hi_tn-temp/act/07/47.md

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स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में अपनी बात जारी रखता है।

हाथ के बनाए घरों में

अर्थात “लोगों द्वारा बनाए गए घरों में।”

स्वर्ग मेरा सिंहासन और पृथ्वी मेरे पांवों तले की पीढी है

परमेश्वर की उपस्थिति की महानता और विशालता का बखान करते समय भविष्यद्वक्ता कहता है कि पूरा विश्व उसका सिंहासन है, और एक मनुष्य के इतने इतने विराट और महान परमेश्वर का निवास स्थान बनाना असंभव है क्योंकि यह पृथ्वी तो बस उसके पैरों की पीढी जिंतनी बड़ी है।

मेरे लिए तुम किस प्रकार का घर बनाओगे?

मेरे लिए तुम किस प्रकार का घर बनाओगे यह कोई वास्तविक प्रश्न नहीं, वरन भाषा का आलंकारिक प्रयोग है। असल में इसका आशय है कि “तुम मेरे योग्य घर नहीं बना सकते”

मेरे विश्राम का कौन सा स्थान होगा?

अर्थात “मेरे विश्राम के योग्य स्थान कहीं नहीं है!”

क्या ये सब वस्तुएं मेरे हाथ की बनाई नहीं?

यह वास्तविक प्रश्न नहीं वरन भाषा का आलंकारिक प्रयोग है। असल में इसका आशय है कि “इन सभी वस्तुएं स्वयं मैं ही ने बनाई हैं।”