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एक मन होकर

“एक मनसा”

वे लगातार यही करते थे

अर्थात “विश्वासी प्रतिदिन....एक मन होकर मन्दिर में इकट्ठे होते थे”

रोटी तोड़ते

भोजन आपस में बाँटते थे, परभू भोज साँझा करते थे (यूडीबी)।

मन की सीधे से

बिना किसी घमंड के, सरल भाव के साथ, बिना किसी औपचारिकता के, बिना किसी पद या विशेषाधिकार के भाव के

सब लोग उनसे प्रसन्न थे

सब लोग उनका सम्मान करते थे