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पौलुस मूसा प्रदत्त विधान की तुलना मसीही सेवा से कर रहा है।

दोषी ठहराने वाली वाचा

अर्थात् मूसा प्रदत्त परमेश्वर का विधान। जिसके द्वारा परमेश्वर के समक्ष मनुष्य दोषी ही ठहराया जाता है और इस प्रकार वह मनुष्य को मृत्युदण्ड ही देता है।

धर्मी ठहराने वाली वाचा

यह उक्ति मसीह यीशु द्वारा प्रस्तुत क्षमा के सन्देश के संदर्भ में है। यह क्षमा तथा नया जीवन देती है जो विधान से भिन्न है, क्योंकि वह केवल मृत्युदण्ड देता है।

और भी तेजोमय क्यों न होगा?

मसीह की न्यायोचित ठहराने की सेवा विधान से कहीं अधिक महिमामय है जबकि विधान तो महिमामय था ही।

जो तेजोमय था.... क्योंकि जब तक वह

“वह” अर्थात मूसा प्रदत्त विधान

इसलिए

“इस प्रकार”

और भी

“उससे अधिक उत्तम”

घटता जाता था

“अपने उद्देश्य को पूरा कर चुका था”