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संसार से प्रेम न रखो
पद 2: 15-17 में शब्द "संसार" का तात्पर्य उन सभी चीज़ों से है जो लोग करते हैं और चाहते है और जो चीज़ें वे करना चाहते हैं वे परमेश्वर की महिमा नहीं करते. इसका अनुवाद इस प्रकार से किया जा सकता है कि "संसार के उन लोगों के समान व्यवहार मत करो जिससे परमेश्वर को महिमा न मिले." (युडीबी).
और न ही संसार की वस्तुओं से
"और न ही उन वस्तुओं की अभिलाषा करो जिनकी अभिलाषा वे लोग करते हैं जो परमेश्वर का अनादर करते हैं"
उसमें पिता का प्रेम नहीं है
इसका अर्थ यह है कि" वह परमेश्वर पिता से प्रेम नहीं करता है।"
यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उसमें पिता का प्रेम नहीं है
इसका अनुवाद इस प्रकार से किया जा सकता है "एक व्यक्ति इस संसार और उन सब बातों को जो परमेश्वर का अनादर करती हैं एक ही समय पर प्रेम नहीं कर सकता।"
वह सांसारिकता की सूची देता है, शरीर की अभिलाषा, आंखों की अभिलाषा, जीवित का घमण्ड, ये सब पिता परमेश्वर से नहीं है।
यह कुछ सांसारिक वस्तुओं की एक सूची है। "संसार में जो कुछ है" का क्या अर्थ है यह उसका वर्णन करती है।
शरीर की अभिलाषा
"शारीरिक सुख भोगने की तीव्र अभिलाषा"
आँखों की अभिलाषा
"जिन वस्तुओं को हम देखते हैं उन्हें प्राप्त करने की तीव्र अभिलाषा"
जीविका का घमण्ड
"व्यक्ति के पास क्या है उसकी डींग हांकना" या "अपनी वस्तुओं के कारण लोग जिस घमण्ड को महसूस करते हैं"
जीवन
इसका अभिप्राय यहाँ उन वस्तुओं से है जो लोगों के पास जीविका के लिए हैं जैसे कि सम्पति और धन।
पिता की ओर से नहीं है
इसका अनुवाद इस प्रकार से किया जा सकता है कि "पिता की ओर से नहीं आता" या "पिता परमेश्वर हमें इस प्रकार जीना नहीं सिखाता."
मिटते जा रहे हैं
"एक दिन यहाँ नहीं रहेंगे"