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\v 31 \v 32 \v 33 31 तुम सब पालो पालोसंग अगमवाणी बोल सक्त हए, और अइसी सबसे सिक्न सक्तहौ और सबके उत्साह पाए सक्तहौ| 32 अगमवक्ताके आत्मा अगमवक्ताके अधीनमे होत हए| 33 काहेकी परमेश्वर गोलमालको परमेश्वर नैयाँ पर शन्तिको परमेश्वर हए| सन्त सबै मण्डलीमे भव प्रार्थना अनुसार,

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\v 34 \v 35 \v 36 34 बैयर मण्डलीको सभामे चूपचाप रहमै| बिनके बोलनके अनुमति नैयाँ, पर व्यवस्था कही अनुसार बे अधिनमे रहमए| 35 कोइ चिजके बारेमे पुछन चाहत हए तव घरमे अपन-अपन लोगाके पुछए| काहेकी मण्डलीमे बैयरके बोलानो शर्मकि बात हए| 36 का परमेश्वर वचन तुमसे सुरु भव हए? अथवा का तुमरेठीन इकल्लो आओ हए?

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\v 37 \v 38 37 कोइ अपनके अगमवक्ता अथवा आत्मिकी आदमी सम्झत हए, तव मए लिखो बात फिर परमेश्वरको आज्ञा हए करके बो स्वीकार करए| 38 पर कोइ जाको वास्ता नाए करतहए, तव बाको फिर वास्ता नाए हुइहए|

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\v 39 \v 40 39 जहेमारे भैया तुम, अगमवाणी बोलन उत्कट इच्छा करओ, और अन्य भाषा बोलन मनाही मतकरओ, 40 पर सब काम शिष्टतापूर्वक और सुव्यवस्थित ढङसे होन पणत हए|