thr_1co_text_reg/14/24.txt

1 line
645 B
Plaintext
Raw Normal View History

\v 24 24 तव सब अगमवाणी कहत बेरा कोइ अविश्वासी अथवा बाहिरको आदमी हुवाँ घुसी गओ तव सब से अग्गु अपनो पापको बोध हुइहए, और सबसे बो जँचैगो| \v 25 25 "बाकि हृदयकि लुकी बात प्रकट हुइहए, और घुप्टाएके बो परमेश्वरके पुज हए, और बो ""परमेश्वर तुमके विचमे हए"" करके घोषण करत हए|"