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\v 7 \v 8 \v 9 7 बासुरी अथवा तन्दुरा जैसो निर्जीव बाजासे स्पस्ट आवाज नाए निकरहे कहेसे, कौन कहन सिकहे का बाज रहो हए? 8 अगर तुरहीको स्पस्ट आवाज नाए देतहए तव युध्दके ताहि कौन तयार हुइहए? 9 तुमरेसंग फिर अइसी हुइहए| अगर बुझन नाए सिकनबारो बोली तुम अपन जिभसे बुलहौ तव तुम का बोल रहेहौ कौन जानैगो? तुम त हावामे बोलो कताहुइहे|
\v 7 7 बासुरी अथवा तन्दुरा जैसो निर्जीव बाजासे स्पस्ट आवाज नाए निकरहे कहेसे, कौन कहन सिकहे का बाज रहो हए? \v 8 8 अगर तुरहीको स्पस्ट आवाज नाए देतहए तव युध्दके ताहि कौन तयार हुइहए? \v 9 9 तुमरेसंग फिर अइसी हुइहए| अगर बुझन नाए सिकनबारो बोली तुम अपन जिभसे बुलहौ तव तुम का बोल रहेहौ कौन जानैगो? तुम त हावामे बोलो कताहुइहे|

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\v 10 \v 11 10 संसारमे शायद बहुत किसिमके भाषा हए| बे कोइ फिर अर्थहिन नैयाँ| 11 अगर बोलो भाषाको अर्थ मए बुझो नाए तव बोलके मोके का फाइदा बोलनबारेके ताहि मए विदेशी हुइजएहेओ
\v 10 10 संसारमे शायद बहुत किसिमके भाषा हए| बे कोइ फिर अर्थहिन नैयाँ| \v 11 11 अगर बोलो भाषाको अर्थ मए बुझो नाए तव बोलके मोके का फाइदा बोलनबारेके ताहि मए विदेशी हुइजएहेओ

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\v 12 \v 13 \v 14 12 अइसी तुम फिर पवित्र आत्माको वरदानके ताहिँउत्कष्ट भए हौँ मण्डलीको निर्मणको काममे श्रेष्ठता हासिल करन प्रयत्न करओ| 13 जहेमारे अन्य भाषामे बोलनबारो बाको अर्थ खोलनके शक्तिके ताहि प्रार्थना करौ| 14 काहेकी मए अन्य भाषामे प्रार्थना करत मेरो आत्मा प्रार्थना करत हए, पर मिर दिमाकचाहिँ काम नाए करत हए|
\v 12 12 अइसी तुम फिर पवित्र आत्माको वरदानके ताहिँउत्कष्ट भए हौँ मण्डलीको निर्मणको काममे श्रेष्ठता हासिल करन प्रयत्न करओ| \v 13 13 जहेमारे अन्य भाषामे बोलनबारो बाको अर्थ खोलनके शक्तिके ताहि प्रार्थना करौ| \v 14 14 काहेकी मए अन्य भाषामे प्रार्थना करत मेरो आत्मा प्रार्थना करत हए, पर मिर दिमाकचाहिँ काम नाए करत हए|

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\v 15 \v 16 15 अब मए का करै त? मए आत्मामे प्रार्थना करत हौ, और दिमाकसे फिर प्रार्थना करत हौ| आत्मामे स्तुति करहौ, और मए दिमाकमे फिर स्तुति करत हौ| 16 तुम आत्मामे परमेश्वरको प्रशंसा करत बुझ्न नाए सिकनबारो बाहिरको आदमी तुमरो धन्यवादको प्रार्थना पिच्छु “आमेन” कैसे कतहए? जब कि तुम का कहे सो बे नबुझत हए|
\v 15 15 अब मए का करै त? मए आत्मामे प्रार्थना करत हौ, और दिमाकसे फिर प्रार्थना करत हौ| आत्मामे स्तुति करहौ, और मए दिमाकमे फिर स्तुति करत हौ| \v 16 16 तुम आत्मामे परमेश्वरको प्रशंसा करत बुझ्न नाए सिकनबारो बाहिरको आदमी तुमरो धन्यवादको प्रार्थना पिच्छु “आमेन” कैसे कतहए? जब कि तुम का कहे सो बे नबुझत हए|

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\v 17 \v 18 \v 19 17 तुम त आच्छोसे धन्यवाद देहौ, पर बो दुसरे आदमीके कोइ आत्मिक वृध्दि नाए कर हए| 18 मए परमेश्वरके धन्यवाद चढ़ात हौ, काहेकी तुम सब से जद्धा मए अन्य भाषामे बोलत हौ| 19 तहुफिर मण्डलीमे अन्य भाषामे दश हजार बोली बोलनसे त अपन दिमाकसे पाँच बोली औरनके शिक्षा देन हेतुसे मए बोलन चाहत हौ|
\v 17 17 तुम त आच्छोसे धन्यवाद देहौ, पर बो दुसरे आदमीके कोइ आत्मिक वृध्दि नाए कर हए| \v 18 18 मए परमेश्वरके धन्यवाद चढ़ात हौ, काहेकी तुम सब से जद्धा मए अन्य भाषामे बोलत हौ| \v 19 19 तहुफिर मण्डलीमे अन्य भाषामे दश हजार बोली बोलनसे त अपन दिमाकसे पाँच बोली औरनके शिक्षा देन हेतुसे मए बोलन चाहत हौ|

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\v 20 \v 21 20 भैया तुम, सोच- विचारमे बालक मत बनओ| खराबीके ताहि बालक बनओ, पर सोच- विचारमे परिपक्का बनओ| 21 व्यवस्थामे लिखो हए, अनौठो भाषा बोलनबारे आदमीसे और विदेशीके ओठसे जा आदमी बोलत हए, और फिर बे मेरो बात सुनत नैयाँ, परमप्रभु कहत हए
\v 20 20 भैया तुम, सोच- विचारमे बालक मत बनओ| खराबीके ताहि बालक बनओ, पर सोच- विचारमे परिपक्का बनओ| \v 21 21 व्यवस्थामे लिखो हए, अनौठो भाषा बोलनबारे आदमीसे और विदेशीके ओठसे जा आदमी बोलत हए, और फिर बे मेरो बात सुनत नैयाँ, परमप्रभु कहत हए

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\v 22 \v 23 22 जहेमारे अन्य भाषा विश्वासीके ताहि नैयाँ, पर अविश्वासीके ताहि चिन्हा हए पर अगमवाणीचाहिँ अविश्वासीके ताहि नैयाँ पर विश्वासीके ताहि हए| 23 अगर जम्मए मण्डली इकठ्ठा हुइके हरेक अन्य भाषामे बुलहए कहेसे, और विश्वास नकरनबारे आदमी और नाए बुझ हए तव हुवाँ आए भए तुमके पागल नाए बतए हए का?
\v 22 22 जहेमारे अन्य भाषा विश्वासीके ताहि नैयाँ, पर अविश्वासीके ताहि चिन्हा हए पर अगमवाणीचाहिँ अविश्वासीके ताहि नैयाँ पर विश्वासीके ताहि हए| \v 23 23 अगर जम्मए मण्डली इकठ्ठा हुइके हरेक अन्य भाषामे बुलहए कहेसे, और विश्वास नकरनबारे आदमी और नाए बुझ हए तव हुवाँ आए भए तुमके पागल नाए बतए हए का?

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\v 24 \v 25 24 तव सब अगमवाणी कहत बेरा कोइ अविश्वासी अथवा बाहिरको आदमी हुवाँ घुसी गओ तव सब से अग्गु अपनो पापको बोध हुइहए, और सबसे बो जँचैगो| 25 "बाकि हृदयकि लुकी बात प्रकट हुइहए, और घुप्टाएके बो परमेश्वरके पुज हए, और बो ""परमेश्वर तुमके विचमे हए"" करके घोषण करत हए|"
\v 24 24 तव सब अगमवाणी कहत बेरा कोइ अविश्वासी अथवा बाहिरको आदमी हुवाँ घुसी गओ तव सब से अग्गु अपनो पापको बोध हुइहए, और सबसे बो जँचैगो| \v 25 25 "बाकि हृदयकि लुकी बात प्रकट हुइहए, और घुप्टाएके बो परमेश्वरके पुज हए, और बो ""परमेश्वर तुमके विचमे हए"" करके घोषण करत हए|"

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\v 26 \v 27 \v 28 26 भैया तुम, अब हम का कहए? तुम एक ठिन इकठ्ठा होत हरेकसंग भजन और शिक्षा, प्रकाश, अन्य भाषा और अर्थ खोलाई होत हए| जा सब बात आत्मिक वृध्दिके ताहि हए| 27 कोइ अन्य भाषा बोलत हए तव दुई जनै इकल्लो ज़द्धामे तिन जनै पालो पालोसंग बोलए और एक जनै बाको अर्थ खोलए| 28 अर्थ खोलनबारो हुवाँ कोइ नैयाँ तव बोलनबारो मण्डलीके सभामे चूप रहए, और बो अपनएसंग और परमेश्वरसंग बोलए|
\v 26 26 भैया तुम, अब हम का कहए? तुम एक ठिन इकठ्ठा होत हरेकसंग भजन और शिक्षा, प्रकाश, अन्य भाषा और अर्थ खोलाई होत हए| जा सब बात आत्मिक वृध्दिके ताहि हए| \v 27 27 कोइ अन्य भाषा बोलत हए तव दुई जनै इकल्लो ज़द्धामे तिन जनै पालो पालोसंग बोलए और एक जनै बाको अर्थ खोलए| \v 28 28 अर्थ खोलनबारो हुवाँ कोइ नैयाँ तव बोलनबारो मण्डलीके सभामे चूप रहए, और बो अपनएसंग और परमेश्वरसंग बोलए|

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\v 29 \v 30 29 अगमवाणी बोलनचाहिँ दुई या तिन जनै होमए और बिनको बोलि भई बातके अच्छेसे जाँच करए| 30 पर हुवाँ बैठनबारे कोइ एक जनैके प्रकाश आओ तव पहिले वक्ताचाहिँ चूप रहबए|
\v 29 29 अगमवाणी बोलनचाहिँ दुई या तिन जनै होमए और बिनको बोलि भई बातके अच्छेसे जाँच करए| \v 30 30 पर हुवाँ बैठनबारे कोइ एक जनैके प्रकाश आओ तव पहिले वक्ताचाहिँ चूप रहबए|

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\v 31 \v 32 \v 33 31 तुम सब पालो पालोसंग अगमवाणी बोल सक्त हए, और अइसी सबसे सिक्न सक्तहौ और सबके उत्साह पाए सक्तहौ| 32 अगमवक्ताके आत्मा अगमवक्ताके अधीनमे होत हए| 33 काहेकी परमेश्वर गोलमालको परमेश्वर नैयाँ पर शन्तिको परमेश्वर हए| सन्त सबै मण्डलीमे भव प्रार्थना अनुसार,
\v 31 31 तुम सब पालो पालोसंग अगमवाणी बोल सक्त हए, और अइसी सबसे सिक्न सक्तहौ और सबके उत्साह पाए सक्तहौ| \v 32 32 अगमवक्ताके आत्मा अगमवक्ताके अधीनमे होत हए| \v 33 33 काहेकी परमेश्वर गोलमालको परमेश्वर नैयाँ पर शन्तिको परमेश्वर हए| सन्त सबै मण्डलीमे भव प्रार्थना अनुसार,

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\v 34 \v 35 \v 36 34 बैयर मण्डलीको सभामे चूपचाप रहमै| बिनके बोलनके अनुमति नैयाँ, पर व्यवस्था कही अनुसार बे अधिनमे रहमए| 35 कोइ चिजके बारेमे पुछन चाहत हए तव घरमे अपन-अपन लोगाके पुछए| काहेकी मण्डलीमे बैयरके बोलानो शर्मकि बात हए| 36 का परमेश्वर वचन तुमसे सुरु भव हए? अथवा का तुमरेठीन इकल्लो आओ हए?
\v 34 34 बैयर मण्डलीको सभामे चूपचाप रहमै| बिनके बोलनके अनुमति नैयाँ, पर व्यवस्था कही अनुसार बे अधिनमे रहमए| \v 35 35 कोइ चिजके बारेमे पुछन चाहत हए तव घरमे अपन-अपन लोगाके पुछए| काहेकी मण्डलीमे बैयरके बोलानो शर्मकि बात हए| \v 36 36 का परमेश्वर वचन तुमसे सुरु भव हए? अथवा का तुमरेठीन इकल्लो आओ हए?