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तौसीक़ जाँच के लिए सवालात

ये सवालात उनके लिए हैं जो तौसीक़ की जाँच कर रहे हैं ताके वो नया तर्जुमा पढ़ते वक़्त ज़हन में रखें।

तर्जुमा के हिस्से पढ़ने के बाद आप इन सवालात का जवाब दे सकते हैं या जब आप मतन में परेशानियों का सामना करते हैं। अगर आपका जवाब पहले गिरोह के सवालात में से किसी का भी “न” है तो, बराय करम मज़ीद तफ़सील से बयान करें, वह मख्सूस क़तआ शामिल करें जो आपको सहीह नहीं लगता है, और अपना मशवरा दें के किस तरह तर्जुमा टीम को इसे सहीह करना चाहिए।

ज़हन में रखें के तर्जुमा टीम का मक़सद माख़ज़ मतन के मानी को क़ुदरती और वाज़े तरीक़े से हदफ़ ज़बान में बयान करना है। इसके मानी है के उनको बाज़ शिक़ों के तरतीब को तब्दील करने की ज़रुरत हो सकती थी और उन्हें हदफ़ ज़बान में मुतद्दद अल्फ़ाज़ के साथ माख़ज़ ज़बान में मुतद्दद वाहिद अल्फ़ाज़ की नुमाइंदगी करनी पड़ी थी। दूसरी ज़बान (OL) के तर्जुमों में इन चीज़ों को परेशानी नहीं समझा जाता है। सिर्फ़ जिन औक़ात पर मुतर्जमीन को इन तब्दीलियों से गुरेज़ करना चाहिए वो हैं ULT और UST के गेटवे ज़बान (GL)तर्जुमों के लिए। ULT का मक़सद OL मुतर्जिम को यह दिखाना है के किस तरह असल बाईबल के ज़बानों ने मानी को बयान किया था, और UST का मक़सद उसी मानी को आसान और वाज़े सूरतों में बयान करना है अगरचे OL में किसी मुहावरे का इस्तेमाल ज़ियादा क़ुदरती हो सकता है। GL मुतर्जमीन को वो हदायतनामे याद रखना ज़रूरी है। लेकिन OL तर्जुमों के लिए, मक़सद हमेशा क़ुदरती और वाज़े, नीज़ दुरुस्त भी होना है।

यह भी ज़हन में रखें के हो सकता है मुतर्जमीन ने वो मालूमात शामिल किया हो जो असल सामअीन ने असल पैग़ाम से समझा होगा, लेकिन के असल मुसन्निफ़ ने वाज़े तौर पर बयान नहीं किया। जब यह मालूमात हदफ़ सामअीन को मतन समझने के लिए ज़रूरी हो तो, इसे वाज़े तौर पर शामिल करना अच्छा है। इसकी बाबत मज़ीद के लिए, देखें मफ़हूम और वाज़े मालूमात.

तौसीक़ सवालात

  1. क्या तर्जुमा ईमान के बयान और तर्जुमा हिदायतनामे के मुताबिक़ है?

  2. क्या तर्जुमा टीम ने माख़ज़ ज़बान के साथ साथ हदफ़ ज़बान और तहज़ीब के बारे में अच्छी समझ ज़ाहिर की?

  3. क्या ज़बान बिरादरी इस बात की तस्दीक़ करती है के तर्जुमा उनकी ज़बान में वाज़े और क़ुदरती तरीक़े से बोलता है?

  4. क्या तर्जुमा मुकम्मल है (क्या इसमें सारी आयात, वाक़यात, और मालूमात माख़ज़ के तौर पर मौज़ूद हैं)?

  5. मुतर्जमीन मुन्दर्जा जैल तर्जुमे के तरीकों में से किसकी पैरवी करते हुए नज़र आते हैं?

  6. लफ्ज़ बा लफ्ज़ तर्जुमा, माख़ज़ तर्जुमे की सूरत के बिल्कुल क़रीब रहते हुए

  7. जुमला बा जुमला तर्जुमा, क़ुदरती ज़बान के जुमले के साख्त का इस्तेमाल करते हुए

  8. मानी पर मबनी तर्जुमा, मक़ामी ज़बान के इज़हार की आज़ादी को मक़सद बनाते हुए

  9. क्या बिरादरी के रहनुमा महसूस करते हैं के मुतर्जमीन का पैरवी किया हुआ अन्दाज़ (जैसा के सवाल 4 में शिनाख्त किया गया है) बिरादरी के लिए मुनासिब है?

  10. क्या बिरादरी के रहनुमा महसूस करते हैं के मुतर्जमीन की इस्तेमाल की गयी बोली वसीअ ज़बान बिरादरी को इत्तिला देने के लिए बेहतरीन है? मिशाल के तौर पर, क्या मुतर्जमीन ने तासरात, फ़िक़रे मुत्तसिल, और हिज्जे इस्तेमाल किये हैं जो ज़बान बिरादरी के ज़ियादातर लोगों के ज़रिये पहचाने जायेंगे? इस सवाल को दरयाफ्त करने के मज़ीद तरीक़ों के लिए, देखें पसन्दीदा अन्दाज़.

  11. जब आप तर्जुमा पढ़ते हैं तो, मक़ामी बिरादरी में तहज़ीबी मसाएल के बारे में सोचें जो किताब में बाज़ क़तआ के तर्जुमे को मुश्किल बना सकते हैं। क्या तर्जुमा टीम ने इन क़तआ का तर्जुमा उस तरीक़े से किया है जो माख़ज़ मतन के पैग़ाम को वाज़े बनाता है, और ऐसी किसी भी ग़लत फ़हमी से गुरेज़ करता है जो तहज़ीबी मसाएल की वजह से हो सकता था?

  12. इन मुश्किल क़तआ में, क्या बिरादरी के रहनुमाओं को लगता है के मुतर्जिम ने ऐसी ज़बान का इस्तेमाल किया है जो उसी पैग़ाम का इत्तिला देती है जो माख़ज़ मतन में है?

  13. आप के फ़ैसले में, क्या तर्जुमा एक ही पैग़ाम को माख़ज़ मतन की तरह इत्तिला देता है? अगर तर्जुमा का कोई हिस्सा आपके जवाब के “न” होने की वजह है तो बराय करम नीचे दूसरे गिरोह के सवालात के जवाब दें।

अगर आप इस दूसरे गिरोह के सवालात में से किसी का जवाब “हाँ” देते है तो, बराय करम मज़ीद तफ़सील से वज़ाहत करें ताके तर्जुमा टीम यह जान सके के ख़ास मसअला क्या है, मतन के किस हिस्से को सहीह करने की ज़रुरत है, और आप किस तरह चाहेंगे के वो इसे सहीह करें।

  1. क्या तर्जुमे में कोई नज़रियाती गलतियाँ हैं?
  2. क्या आपको तर्जुमे में कोई ऐसे इलाक़े मिले जो क़ौमी ज़बान तर्जुमे या आपके मसीही बिरादरी में पाए जाने वाले ईमान के अहम मामलात से इख्तिलाफ़ करते हुए लगे?
  3. क्या तर्जुमा टीम ने ऐसे इज़ाफ़ी मालूमात या नज़रियात शामिल किये हैं जो माख़ज़ मतन के पैग़ाम का हिस्सा नहीं थे? (याद रखें, असल पैग़ाम में भी मफ़हूम मालूमात) शामिल होते हैं।
  4. क्या तर्जुमा टीम ने ऐसे मालूमात या नज़रियात छोड़ दिए हैं जो माख़ज़ मतन के पैग़ाम का हिस्सा थे?

अगर तर्जुमे में कोई दुश्वारी थी तो, तर्जुमे की टीम से मिलने के लिए मन्सूबा बनाएँ और इन मसाएल को हल करें। आप उनसे मिलने के बाद, तर्जुमा टीम को अपने नज़रसानी शुदा तर्जुमे की जाँच बिरादरी रहनुमाई के साथ करने की ज़रुरत हो सकती है ताके यह यक़ीनी बनाएँ के यह अभी भी अच्छी तरह इत्तिला दे रहा है, और फिर आपसे दोबारा मुलाक़ात करें।

जब आप तर्जुमे को मंज़ूरी देने के लिए तैयार हो, यहाँ जाएँ: तौसीक़ मंज़ूरी.