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प्रेम, प्रेम करता है, प्रिय, प्रेम किया
परिभाषा:
किसी मनुष्य से प्रेम करने का अर्थ है, उस मनुष्य की सुधि लेना और उसे लाभ पहुंचाने के काम करना। “प्रेम” के विभिन्न अर्थ होते हैं जिनके लिए विभिन्न भाषाओं में विभिन्न शब्द होते हैं।
परमेश्वर का प्रेम मनुष्य की भलाई पर केन्द्रित होता है चाहे उसमें स्वयं का लाभ न हो। ऐसा प्रेम जो मनुष्यों की परवाह करता है चाहे वे कुछ भी करते हों। परमेश्वर स्वयं प्रेम है और सच्चे प्रेम का स्रोत है।
- यीशु ने इस प्रेम का प्रदर्शन किया कि है कि पाप और मृत्यु से बचाने के लिए अपने आपको बलि चढ़ा दिया। उसने अपने अनुयायियों को सिखाया कि निस्वार्थ प्रेम करें।
- जब लोग इस तरह के प्रेम से दूसरों को प्रेम करते हैं, तो वे उन तरीकों से कार्य करते हैं जो वे यह सोचते हैं कि दूसरों के विकास के लिए क्या कारण होगा। ऐसा प्रेम विशेष करके दूसरों को क्षमा करता है।
- यू.एल.बी. में “प्रेम” शब्द ऐसा ही आत्म त्याग या प्रेम है जब तक कि अनुवाद की टिप्पणी भिन्न अर्थ की व्याख्या न करे।
नये नियम में शब्द का एक और संदर्भ है, भाईचारे का प्रेम या “मित्र का प्रेम या पारिवारिक सदस्य का प्रेम”
- यह शब्द मित्रों और परिजनों के प्राकृतिक मानव प्रेम का संदर्भ देता है।
- इस का उपयोग ऐसे संदर्भों में भी हो सकता है जैसे वे भोज में महत्वपूर्ण स्थानों में बैठने की इच्छा रखते हैं। अर्थात उन्हें ऐसा करने की “अत्यधिक लालसा” या “ गहरी इच्छा”
“प्रेम” शब्द का संदर्भ स्त्री-पुरूष में प्रसंगयुक्त संबन्धित प्रेम।
प्रतीकात्मक रूप में, “मैंने याकूब से प्रेम किया है और एसाव को अप्रिय जाना है।” यहां “प्रेम” शब्द का आशय है कि परमेश्वर ने याकूब को चुना कि परमेश्वर के साथ वाचा के संबंध में रहे। इसका अनुवाद “चुना” भी हो सकता है। यद्यपि एसाव को भी परमेश्वर ने आशिषें दी थी, उसे वाचा के संबन्ध के सौभाग्य प्राप्त नहीं थे। “अप्रिय” शब्द का प्रतीकात्मक उपयोग किया गया है जिसका अर्थ है “परित्याग किया” या “नहीं चुना।”
अनुवाद के लिए सुझाव:
- जब तक कि अनुवाद से संबन्धित टिप्पणी में अन्य अर्थ समझाया न जाए यू.एल.बी. में “प्रेम” शब्द परमेश्वर से प्राप्त आत्मत्याग के प्रेम का संदर्भ देता है।
- कुछ भाषाओं में परमेश्वर के निःस्वार्थ, आत्मत्याग के प्रेम के लिए विशेष शब्द हो सकता है। इस शब्द के अनुवाद हो सकते हैं, “समर्पित निष्ठावान देखरेख” या “निःस्वार्थ सेवा करना” या “परमेश्वर का प्रेम।” सुनिश्चित करें कि परमेश्वर के प्रेम का अनुवाद हो सकता है, अन्यों के लाभ के निमित्त अपनी इच्छाओं को मारना और कोई कुछ भी करे उनसे प्रेम निभाते रहना।
- कभी-कभी “प्रेम” शब्द का अर्थ होता है मित्रों और पारिवारिक सदस्यों के लिए अगाध सेवाभाव रखना। कुछ भाषाओं में इस शब्द का अनुवाद ऐसे शब्द या उक्ति से किया जा सकता है जिसका अर्थ है, “बहुत प्रिय समझना” या “सुधि लेना” या “गहरा लगाव होना।”
- जिन संदर्भों में प्रेम शब्द किसी के प्रति प्रबल अनुराग व्यक्त करे तो उस का अनुवाद हो सकता है, “प्रबल अधिमान्यता” या “बहुत अधिक चाहना” या “अत्यधिक पसन्द करना”।
- कुछ भाषाओं में एक अलग शब्द होता है जिसके द्वारा पति-पत्नी के बीच प्रसंगयुक्त सम्बन्धित प्रेम या यौन संबन्धित प्रेम को व्यक्त किया जाता है।
- अनेक भाषाओं में "प्रेम" शब्द को क्रिया रूप में व्यक्त करना होता है। उदाहरणार्थ उनमें “प्रेम धीरजवन्त है, प्रेम दयालु है, इस उक्ति का अनुवाद हो सकता है, “जब कोई किसी से प्रेम करता है, वह उसके साथ सहनशीलता दिखाता है, उस पर दया करता है।”
(यह भी देखें: वाचा, मृत्यु, बलिदान, बचाना, पाप)
बाइबल संदर्भ:
- 1 कुरिन्थियों 13:4-7
- 1 यूहन्ना 03:1-3
- 1 थिस्सलुनीकियों 04:9-12
- गलातियों 05:22-24
- उत्पत्ति 29:15-18
- यशायाह 56:6-7
- यिर्मयाह 02:1-3
- यूहन्ना 03: 16-18
- मत्ती 10:37-39
- नहेमायाह 09:32-34
- फिलिप्पियों 1: 9-11
- श्रेष्ठगीत 01:1-4
बाइबल कहानियों से उदाहरण:
- 27:02 व्यवस्थापक ने उत्तर दिया, “तू अपने परमेश्वर से अपने सारे ह्रदय, आत्मा, शक्ति और ,मन से प्रेम रखना। और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करना।”
- 33:08 “कंटीली भूमि वे व्यक्ति है जिन्होंने वचन सुना, और संसार की चिन्ता और धन का धोखा, और अन्य वस्तुओं का लोभ उनमें समाकर परमेश्वर के लिए उसके प्रेम को दबा देता है।”
- 36:05 जैसे पतरस बोल ही रहा था कि एक उजले बादल ने उन्हें छा लिया, और उस बादल में से यह शब्द निकला : “ यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे में प्रेम करता हूँ”
- 39:10 हर वह व्यक्ति जिसे सच्चाई से प्रेम है, मुझे सुनेगा।”
- 47:01 वह(लुदिया) बहुत प्रेम के साथ प्रभु की आराधना करती थी।
- __48:01__परमेश्वर ने जब संसार की सृष्टि की , तो सब कुछ एकदम सही था। संसार में कोई पाप नहीं था। आदम और हव्वा एक-दूसरे से वा परमेश्वर से प्रेम करते थे।
- __49:03__उसने(यीशु) सिखाया कि तुम्हें दूसरे लोगों को उसी तरह प्रेम करना है जैसे कि आप स्वयं से प्रेम करते हैं।
- 49:04 उसने(यीशु) यह भी सिखाया कि तुम्हें किसी भी चीज़, अपनी सम्पत्ति से भी ज्यादा परमेश्वर को प्रेम करना चाहिए।
- 49:07 यीशु ने सिखाया कि परमेश्वर पापियों से बहुत प्रेम करता है।
- 49:09 लेकिन परमेश्वर ने जगत के हर मनुष्य से इतना अधिक प्रेम किया कि उसने अपना इकलौता पुत्र दे दिया ताकि जो कोई यीशु पर विश्वास करे उसे उसके पापों का दण्ड नहीं मिलेगा, परन्तु हमेशा परमेश्वर के साथ रहेगा।
- 49:13 परमेश्वर तुमसे प्रेम करता है और चाहता है कि तुम यीशु पर विश्वास करो ताकि वह तुमसे एक निकटतम सम्बन्ध स्थापित रख सके।
शब्द तथ्य:
- Strong's: H157, H158, H159, H160, H2245, H2617, H2836, H3039, H4261, H5689, H5690, H5691, H7355, H7356, H7453, H7474, G25, G26, G5360, G5361, G5362, G5363, G5365, G5367, G5368, G5369, G5377, G5381, G5382, G5383, G5388