“पवित्र” और पवित्रता” का संदर्भ परमेश्वर के गुण से है जो पूर्णतः पृथक है और किसी भी पापी और असिद्ध बात से पृथक किया हुआ है।
* केवल परमेश्वर पूर्णतः पवित्र है। वह मनुष्यों और वस्तुओं को पवित्र बनाता है।
* पवित्रजन परमेश्वर का है और वह परमेश्वर की सेवा तथा महिमान्वन के लिए पृथक किया हुआ है।
* जिस वस्तु को परमेश्वर ने पवित्र घोषित कर दिया, वह उसकी महिमा और उपयोग के लिए पृथक कर दी गई है जैसे कि एक वेदी जो उसके बलिदान चढ़ाने के उद्देश्य के लिए है।
* मनुष्य उसकी अनुमति के बिना उसके निकट नहीं आ सकता क्योंकि वे पवित्र और मात्र मनुष्य हैं, पापी और असिद्ध।
* पुराने नियम में, परमेश्वर ने याजकों को पवित्र करके अपनी सेवा के लिए पृथक कर लिया था। उन्हें परमेश्वर के निकट जाने के लिए सांसारिक रूप में पापों से शुद्ध होना होता था।
* परमेश्वर कुछ स्थानों एवं वस्तुओं को भी पवित्रता में पृथक कर लेता है जो उसके होते हैं या जिनमें उसने स्वयं को प्रकट किया है जैसे मन्दिर।
## अनुवाद के सुझाव: ##
* “पवित्र” के अनुवाद रूप हो सकते हैं, “परमेश्वर के लिए पृथक” या “परमेश्वर का” या “पूर्णतः शुद्ध” या “सिद्धता में निष्पाप” या “पाप से पृथक”।
* “पवित्र करना” का अनुवाद प्रायः “शोधन” होता है। इसका अनुवाद “परमेश्वर के महिमा से (किसी को) पृथक करना” भी हो सकता है।
* __[01:16](rc://en/tn/help/obs/01/16)__ उस ने सातवें दिन को आशीष दिया और उसे __पवित्र__ बनाया क्योंकि इस दिन परमेश्वर ने अपने काम से विश्राम लिया था।
* __[09:12](rc://en/tn/help/obs/09/12)__ “जिस स्थान पर तू खड़ा है वह __पवित्र__ भूमि है।”
* __[13:02](rc://en/tn/help/obs/13/01)__ ,”इसलिये अब यदि तुम निश्चय मेरी मानोगे, और मेरी वाचा का पालन करोगे, तो सब लोगों में से तुम ही मेरा निज धन ठहरोगे, समस्त पृथ्वी तो मेरी है, और तुम मेरी दृष्टी में याजकों का राज्य और __पवित्र__ जाति ठहरोगे।”
* __[13:05](rc://en/tn/help/obs/13/05)__ तू सब्त के दिन को __पवित्र__ मानने के लिये स्मरण रखना।
* __[22:05](rc://en/tn/help/obs/22/05)__“इसलिये वह __पवित्र__ जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा।”
* __[50:02](rc://en/tn/help/obs/50/02)__ जबकि हम यीशु के वापस आने का इंतजार कर रहे हैं, तो परमेश्वर चाहता है कि हम ऐसा जीवन जियें जो __पवित्र__ हो तथा उसे आदर देता हो।