* महिमा विशेष करके परमेश्वर का वर्णन करने में काम में ली जाती है क्योंकि वह संपूर्ण ब्रह्माण्ड में सबसे अधिक महिमामय है उसके व्यक्तित्व में हर एक बात उसकी महिमा और उसका वैभव प्रकट करती है।
* "परमेश्वर की महिमा" की अभिव्यक्ति "परमेश्वर की महानता का सम्मान" या "उसकी महिमा के कारण परमेश्वर की स्तुति" या "दूसरों को बताओं कि महान परमेश्वर कितना महान है" के रूप में अनुवाद किया जा सकता है।
* अभिव्यक्ति "महिमा" का अनुवाद "प्रशंसा" या "में अभिमान" या "घमण्ड" या "आनंद लेना" के रूप में किया जा सकता है।
* __[23:07](rc://en/tn/help/obs/23/07)__ तब एकाएक स्वर्गदूतों का दल परमेश्वर की स्तुति करते हुए और यह कहते हुए दिखाई दिया, “आकाश में परमेश्वर की __महिमा__ और पृथ्वी पर उन मनुष्यों में जिनसे वह प्रसन्न है, शान्ति हो ।”
* __[25:06](rc://en/tn/help/obs/25/06)__ फिर शैतान ने यीशु को जगत के सारे राज्य और उसका __वैभव__ दिखाकर उससे कहा, “यदि तू गिरकर मुझे प्रणाम करे, तो मैं यह सब कुछ तुझे दे दूँगा।”
* __[37:01](rc://en/tn/help/obs/37/01)__ यह सुनकर यीशु ने कहा, “यह बीमारी मृत्यु की नहीं; परन्तु परमेश्वर की __महिमा__ के लिये है।
* __[37:08](rc://en/tn/help/obs/37/08)__ यीशु ने जवाब दिया , “क्या मैं ने तुझ से नहीं कहा था कि यदि तू मुझ पर विश्वास करेगी, तो परमेश्वर की __महिमा__ को देखेगी?”