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Raw Blame History

  • बाहमी इलम का मतलब है ,जो भी एक बोलने वाला, अपने सुनने वालों की शरूर के बारे में तस्लीम करता है और कुछ उनको कुछ किस्म की मालूमात फ़राहम करता है I तक़रीर करने वाले ने दो तरीक़ों से सामईन की मालूमात फ़राहम की है
  • वाज़िह मालूमात स्पीकर जिसका बराह-ए-रास्त रियासत करता है I
  • वाज़िह इत्तिलाआत वही है जो स्पीकर बराह-ए-रास्त रियासत नहीं करता क्योंकि उस की तवक़्क़ो है कि वो अपने सामईन को इस के बारे में सीखा सके I

तफ़सील

जब कोई बोलता या लिखता है, तो उस के पास कुछ ख़ास है जो वो चाहता है की लोग जाने I वो आम तौर पर ये बराह-ए-रास्त कहते हैं ये * वाज़िह मालूमात * है I

स्पीकर इस बात का फ़र्ज़ करता है कि इस के सामईन पहले से ही कुछ चीज़ों को जानता है जो कि उन्हें इस मालूमात को समझने के लिए सोचने की ज़रूरत होगी I आम तौर पर वो लोगों को ये चीज़ें नहीं बताता, क्योंकि वो पहले ही उन्हें जानता है इसे * फ़र्ज़ इलम * कहा जाता है I

स्पीकर हमेशा हर चीज़ को बराह-ए-रास्त एहतिराम नहीं करता जिसे वो चाहता है की उसके समायीन समझे की वो क्या कह रहा है I वो मालूमात जो वो , अपने कहे बातों से ,चाहता है की लोग जाने , चाहे उसे सीधे तौर पे उसने कहा ही ना हो उसे वाज़िह मालूमात कहते है I

अक्सर, सामईन ऐसे * वाज़िह इत्तिलाआत को समझते हैं जो पहले से ही इलम रखते हैं (समझ लिया) वाज़िह मालूमात के साथ कि स्पीकर उन्हें बराह-ए-रास्त बता रहा है I

वजूहात ये तर्जुमा का मसला है

तीन किस्म की मालूमात स्पीकर के पैग़ाम का हिस्सा हैं I अगर उनमें से किसी किस्म की मालूमात ग़ायब हो गयी तो, सामईन पैग़ाम को समझ नहीं पाएँगे I क्योंकि हदफ़ तर्जुमा एक ऐसी ज़बान में है जो बाइबल की ज़बानों से बहुत मुख़्तलिफ़ है और ऐसे सामईन के लिए बना दिया गया है जो बाइबल के लोगों के मुक़ाबले में बहुत मुख़्तलिफ़ वक़्त और जगह में रहते हैं I कई बार * इलमी इलम * या * वाज़िह मालूमात पैग़ाम से ग़ायब होते है दूसरे अलफ़ाज़ में, जदीद क़ारईन सब कुछ नहीं जानते हैं जो की कि बाइबल को असल में बोलने वाले और सुनने वाले जानते थे I जब पैग़ाम को समझने के लिए ये चीज़ अहम हैं तो, आप इस मालूमात को मतन में या तन्क़ुईदे हसिया में शामिल कर सकते हैं I

बाइबल की मिसाल

इस के बाद एक मुसानिफ उस के पास आए और कहा, "उस्ताद, में जहां भी जाऊँगा आपकी पैरवी करूँगा I यसवा ने इस पे कहा, "लोमड़ियों के पास <यु>सुराख़<यु> हैं, और आसमान के परिंदों के <यु>पास घोंसला<यु> हैं, लेकिन इन्सान का बेटा उस के सर पर क़ाबू नहीं रखता है. (मेथ्यु 8:20 यू एल टी )

यसवा ने ये नहीं कहा कि लोमड़ी और परिंदें सुराख़ और घोंसला इस्तिमाल किस लिए करते हैं, क्योंकि उसने ये फ़र्ज़ किया था कि मुसानिफ को पता है कि लोमड़ी जमीन में किये सुराख और परिंदे घोसलों में सोते हैं ये * इलम का फ़र्ज़ है

यसवा मसीह ने बराह-ए-रास्त यहां नहीं कहा था "मैं इन्सान का बेटा हूँ लेकिन, अगर मुसानिफ को पहले से ही नहीं पता था, तो उसे इस हक़ीक़त की * वाज़िह मालूमात होगी * I वो सीख सकता है क्योंकि यसवा मसीह ने इस तरह यहाँ अपना हवाला दिया था I इस के इलावा, यसवा ने वाज़िह तौर पर ये बयान नहीं किया कि वो बहुत सफ़र करते थे और उनके पास एक घर नहीं था जिसमें वो हर रात सोये I * मुज़मिर मालूमात * है कि यसवा ने कहा जब मुसानिफ सीख सकता है की उनके पास सर छुपाने की जगह नहीं थी I

आप पर अफ़सोस है, चवरिया ज़ैन आप पर अफ़सोस है बेतसाईदा अगर ताक़तवर का में u> टावर और सदावन / u> मैं किए गए हैं जो आप में किए गए हैं, तो वो तवील अरसा पहले कटोरी और चौक में तौबा कर चुके हैं लेकिन ये आपके मुक़ाबले में फ़ैसले के दिन <टावर और सदावन के लिए ज़्यादा बर्दाश्त हो सकता है (मति11:21، 22 यू उल्टी

यसवा ने फ़र्ज़ किया कि वो जिनसे बात कर रहे थे जानते थे कि टायर और सदावन बहुत कबीस थे I और फैसले का दिन , वो है जब ख़ुदा हर शख़्स का फ़ैसला करेगा Iयसवा भी ये जानते थे की वो जिन लोगों से बात कर रहे हैं वो इस बात पर यक़ीन रखते थे कि वो अच्छे थे और उन्हें तौबा करने की ज़रूरत नहीं थी I यसवा ने उन्हें इन चीज़ें को बताने की ज़रूरत नहीं थी ये सब * फ़र्ज़ इलम * है

वाज़िह मालूमात का एक अहम हिस्सा ये है कि वो लोग जिनसे वो बात कर रहे थे वो तौबा नहीं करते, उन्हें टायर और सदावन के मुक़ाबले में कम शदीद नहीं समझा जाएगा I

आपके शागिर्द क्यों बुज़ुर्गों की रवायात की ख़िलाफ़वरज़ी करते हैं? जब वो खाते हैं तो <अपने हाथों को धोते नहीं हैं (मथ्यु15: 2 यू एल टी )

बुज़ुर्गों की रवायात में एक तक़रीब थी जिसमें लोग खाने से पहले , रुहानी तौर पर साफ़ होने के लिए, अपने हाथ धो लेंगे I लोगों ने सोचा कि रास्तबाज़ होने के लिए, उन्हें बुज़ुर्गों की तमाम रवायात पर अमल करना पड़ेगा I ये एक * इख्तियार मालूमात * है कि फ़रीसी जो यसवा से बात कर रहे थे , उम्मीद करते थे की वो यह जाने I ये कह कर, वो अपने शागिर्दों पर, रवायात की पैरवी नहीं करने का , इल्ज़ाम लगा रहे थे और बता रहे थे की इस तरह वो नेक अमल नहीं है I ये * वाज़िह मालूमात * है जो वो चाहते हैं कि वो इसे समझें I

तर्जुमा की हिक्मत-ए-अमली

अगर क़ारईन को काफ़ी मोतदिल इलम है तो, वाज़िह मालूमात जो अहम मालूमात के साथ होती है के साथ , पैग़ाम को समझने में कामयाब हो सकते हैं I तब सही यही होगा की जो मालूमात बताई नहीं गयी है उसे रहने दे, और मोतबर मालूमात को वज़ह ही रहने देI अगर क़ारईन पैग़ाम नहीं समझते हैं क्योंकि उनमें से एक उनके लिए ग़ायब है, तो नीचे दिए गए हिक्मत-ए-अमली पर अमल करें :

  1. अगर क़ारईन पैग़ाम को नहीं समझ पता है ,क्योंकि उनके पास कुछ इलमी इलम नहीं है, तो इस इलम को वाज़िह मालूमात के तौर पर फ़राहम करें
  2. अगर क़ारईन पैग़ाम को नहीं समझ पता है क्योंकि वो कुछ मोतबर मालूमात नहीं जानते हैं, फिर उस मालूमात को साफ़ साफ़ बताएं, लेकिन ऐसा इस तरह ना करें कि ये असल सामईन के लिए एक नयी मालूमात बन जाए I

लागू तर्जुमा की हिक्मत-ए-अमली की मिसालें

  1. अगर क़ारईन पैग़ाम को नहीं समझा जा सकता है क्योंकि उनके पास कुछ इलमी इलम नहीं है, तो इस इलम को वाज़िह मालूमात के तौर पर फ़राहम करें

यसवा ने इस पे कहा, "लोमड़ियों के पास <यु>सुराख़<यु> हैं, और आसमान के परिंदों के <यु>पास घोंसला<यु> हैं, लेकिन इन्सान का बेटा उस के सर पर क़ाबू नहीं रखता है. (मेथ्यु 8:20 यू एल टी ) यहाँ मोतबर मालूमात यह है की लोमड़ी अपने सुराख़ में और परिंदे अपने घोंसले में सोते है I

  • यसवा ने उस से कहा ,” लौमादी के पास <यु> रहने के लिए सुराख़ है , और परिंदों के पास रहने के लिए <यु> घोंसला है , पर इंसान के बेटे के पास सर छुपाने और सोने की कोई जगह नहीं है I “
  • ये, फैसले के दिन, <यु> टायर और सिडॉन<यु> के लिए, तुमसे ज्यादा बर्दाश्ते काबिल होगा (मथ्यु 11:22 यू एल टी ) यहाँ फ़र्ज़ किया मालूमात यह है की , टायर और सिडॉन के लोग बहुत कबीस है I इसे वज़ह तौर पे बताया जा सकता है I
  • ... ये आपके मुक़ाबले में, <यु> फ़ैसले के दिन, u> टायर और सिदोन <यु> शहरों <यु> के लिए ज़्यादा बर्दाश्ते काबिल होगा , जिनके लोग बहुत शदीद </यु> थे I
  • या फिर
  • ... आपके मुक़ाबले में, फ़ैसले के दिन , उस बदतरीन शहर टायर और सीडोन / u> के लिए ज़्यादा बर्दाश्ते काबिल होगा I
  • आपके शागिर्द क्यों बुज़ुर्गों की रवायात की ख़िलाफ़वरज़ी करते हैं? जब वो खाते हैं तो वो अपने हाथों को नहीं धोते (मथ्यु15: 2 यू एल टी ) - माक़ूल इलम ये था कि बुज़ुर्गों की रवायात में से एक तक़रीब यह थी, जिसमें लोग, खाने से पहले, अपना हाथ, रुहानी तौर पर साफ़ होने के लिए ,धो लेंगे , और उन्हें सालिह होना चाहीए I जैसा कि एक जदीद क़ारईन सोच सकता है की अगर गन्दगी नहीं साफ़ की गयी तो , वो बीमार हो जायेंगे I
  • आपके शागिर्द क्यों बुज़ुर्गों की रवायात की ख़िलाफ़वरज़ी करते हैं? जब वो <यु> खाते <यु> है तो सदाक़त के <यु> रस्मी <यु> वसूलों की तामील नहीं करते है I
  1. अगर क़ारईन पैग़ाम को नहीं समझ पता है क्योंकि वो कुछ मोतबर मालूमात नहीं जानते हैं, फिर उस मालूमात को साफ़ साफ़ बताएं, लेकिन ऐसा इस तरह ना करें कि ये असल सामईन के लिए एक नयी मालूमात बन जाए I

इस के बाद एक मुसानिफ उस के पास आए और कहा, "उस्ताद, में जहां भी जाऊँगा आपकी पैरवी करूँगा I यसवा ने इस पे कहा, "लोमड़ियों के पास <यु>सुराख़<यु> हैं, और आसमान के परिंदों के <यु>पास घोंसला<यु> हैं, लेकिन इन्सान का बेटा उस के सर पर क़ाबू नहीं रखता है. (मेथ्यु 8:20 यू एल टी ) यहाँ मुताबिर मालूमात यह है की जीसस खुद आदमी के बेटे है I दूसरा मुताबिर मालूमात यह है की मुसानिफ उनकी राह पर चलना चाहता है , उसे जीसस की तरह बिना घर के रहना होगा I

  • यसवा ने उस से कहा ,” लौमादी के पास <यु> रहने के लिए सुराख़ है , और परिंदों के पास रहने के लिए <यु> घोंसला है , पर इंसान के बेटे के पास आराम करने के लिए कोई <यु>घर<यु> नहीं है I अगर तुम मेरी राह पे चलना कहते हो तो तुम वैसे ही रहोगे जैसे में रहता हूँ <यु>
  • ... ये आपके मुक़ाबले में, फ़ैसले के दिन, टायर और सिदोन के लिए ज़्यादा बर्दाश्ते काबिल होगा I यहाँ मोतबर मालूमात यह है की , खुदा उन लोगो का सिर्फ फैसला ही नहीं करेगा पर उन्हें सजा भी देगा I यह एक वाजिह मालूमात हो सकती है I
  • ... ये आपके मुक़ाबले में, <यु> फ़ैसले के दिन, u> टायर और सिदोन <यु> शहरों <यु> के लिए ज़्यादा बर्दाश्ते काबिल होगा , जिनके लोग बहुत शदीद </यु> थे I
  • फैसले के दिन , खुदा तुम्हे , टायर और सिदोन,ऐसे शहर जहाँ के लोग ज्यादा कबीस थे , से , ज्यादा शदीद <यु> सजा <यु> देगा I

जदीद क़ारईन शायद कुछ चीज़ों को नहीं जान सकें जो बाइबल और पहले पढने वाले लोग जानते थे I किसि तक़रीर करने वाले या मुसन्निफ़ की बातो को समझना और मोतबिर चीज़ें जिन्हें तक़रीर करने वाले ने रहने दिया है उसे सीखना इसे पड़ने वाले के लिए मुश्किल हो सकता है I तर्जुमान को इसकी तर्जुमानी में वाज़िह तौर पर कुछ चीज़ें पेश करना हैं जो असल स्पीकर या मुसन्निफ़ ने ग़ैर-मुस्तहकम या मनफ़ी तौर पर छोड़ दिया है I