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किस क़िस्म के वापसी तर्जुमे मौज़ूद हैं?

ज़बानी

ज़बानी वापसी तर्जुमा वह है जो वापसी मुतर्जिम तर्जुमा जाँचने वाले को वसीतर मवास्लात की ज़बान में बोलता है जब वह तर्जुमे को हदफ़ ज़बान में पढ़ता या सुनता है। वह आम तौर पर इसे एक वक़्त में एक जुमला, या अगर जुमले मुख़्तसर हैं तो एक वक़्त में दो जुमले करेगा। जब तर्जुमा जाँचने वाला ऐसा कुछ सुनता है जो एक परेशानी हो सकता है, तो वह ज़बानी वापसी तर्जुमा करने वाले शख्स को रोकेगा ताके वह इसकी बाबत सवाल पूछ सके। तर्जुमा टीम के एक या ज़ियादा अरकान भी मौज़ूद होने चाहिए ताके वो तर्जुमे की बाबत सवालात का जवाब दे सकें।

ज़बानी वापसी तर्जुमे का एक फ़ायदा यह है के वापसी मुतर्जिम फ़ौरी तौर पर तर्जुमा जाँचने वाले तक क़ाबिल ए रसाई है और वापसी तर्जुमे की बाबत तर्जुमा जाँचने वाले के सवालात का जवाब दे सकता है। ज़बानी वापसी तर्जुमे का एक नुक़सान यह है के वापसी मुतर्जिम के पास तर्जुमे को बेहतरीन तरीक़े से वापसी तर्जुमा करने की बाबत सोचने के लिए बहुत कम वक़्त होता है और हो सकता है के वह तर्जुमे के मानी का बेहतरीन तरीक़े से बयान न कर पाए। यह तर्जुमा जाँचने वाले के लिए ज़ियादा सवालात पूछना ज़रूरी बना सकता है मुक़ाबले इसके के अगर तर्जुमें का मानी बेहतरीन तरीक़े से बयान किया जाता। दूसरा नुक्सान यह है के जाँचने वाले के पास भी वापसी तर्जुमे की तशख़ीस के लिए बहुत कम वक़्त होता है। दूसरा जुमला सुनने से पहले उसके पास एक जुमले की बाबत सोचने के लिए सिर्फ़ कुछ सेकेन्ड ही होते हैं। इस वजह से, वह सारे मसाएल को पकड़ नहीं सकता जो वह तब पकड़ पाता अगर उसके पास हर जुमले की बाबत सोचने के लिए ज़ियादा वक़्त होता।

तहरीरी

दो तरह के तहरीरी वापसी तर्जुमे हैं। दोनों के दरमियान इख्तिलाफ़ात के लिए, देखें तहरीरी वापसी तर्जुमे. ज़बानी वापसी तर्जुमे के मुक़ाबले एक तहरीरी वापसी तर्जुमे के कई फ़ायदे हैं। पहला, जब एक वापसी तर्जुमा लिखा जाता है, तर्जुमा टीम यह देखने के लिए इसे पढ़ सकती है के क्या कोई ऐसी जगहें हैं जहाँ वापसी मुतर्जिम ने उनके तर्जुमे को ग़लत समझ लिया है। अगर वापसी मुतर्जिम ने तर्जुमे को ग़लत समझा, फिर तर्जुमे के दूसरे कारअीन या सामअीन भी यक़ीनन इसे ग़लत समझेंगे, और लिहाज़ा तर्जुमा टीम को उन नुक़तों पर अपने तर्जुमे का जायज़ा लेने की ज़रुरत होगी।

दूसरा, जब वापसी तर्जुमे को लिखा जाता है, तो तर्जुमा जाँचने वाला तर्जुमा टीम को मिलने से पहले वापसी तर्जुमे को पढ़ सकता है और ऐसा कोई सवाल जो वापसी तर्जुमे से उठता है उसकी तहक़ीक़ करने के लिए वक़्त ले सकता है। यहाँ तक के जब तर्जुमा जाँचने वाले को किसी मसअले की तहक़ीक़ करने की ज़रूरत न हो, तो भी तहरीरी वापसी तर्जुमा उसे तर्जुमे की बाबत सोचने के लिए ज़ियादा वक़्त की इजाज़त देता है। वह तर्जुमे में ज़ियादातर मसाएल की शिनाख्त और ख़िताब कर सकता है और बाज़ औक़ात मसाएल के बेहतर हल निकाल सकता है क्योंके उसके पास हर एक की बाबत सोचने के लिए ज़ियादा वक़्त है मुकाबले इसके के जब उसके पास हर जुमले की बाबत सोचने के लिए कुछ ही सेकेण्ड होते हैं।

तीसरा, जब वापसी तर्जुमा लिखा जाता है, तो तर्जुमा जाँचने वाला तर्जुमा टीम को मिलने से पहले अपने सवालात को तहरीरी शक्ल में भी तैयार कर सकता है। अगर उनके मिलने के पहले वक़्त है और अगर उनके पास गुफ़्तगू करने का कोई तरीक़ा है, तो जाँचने वाला अपने सवालात तर्जुमा टीम को भेज सकता है ताके वो उसे पढ़ सकें और तर्जुमे के उन हिस्सों को तब्दील कर सकें जो जाँचने वाले के ख़याल में मसाएल हैं। यह तर्जुमा टीम और जाँचने वाले को जब वो एक साथ मिलते हैं, बाईबल के बहुत ज़ियादा मवाद का जायज़ा लेने के क़ाबिल होने में मदद करता है, क्योंके वो मिलने के पहले ही तर्जुमे में बहुत सी मसाएल को दूर करने में कामयाब थे। मुलाक़ात के दौरान, वह जो मसाएल बाक़ी हैं उन पर तवज्जो दे सकते हैं। ये आम तौर पर वो जगह हैं जहाँ तर्जुमा टीम ने जाँचने वाले के सवाल को नहीं समझा है या जहाँ जाँचने वाले ने हदफ़ ज़बान की बाबत कोई चीच नहीं समझा है और इसलिए सोचता है के कोई मसअला है जबके वहाँ कोई मसअला नहीं है। इस सूरत में, मुलाक़ात के वक़्त के दौरान तर्जुमा टीम जाँचने वाले को वज़ाहत कर सकती है के वह क्या है जो उसने नहीं समझा है।

चाहे जाँचने वाले को मुलाक़ात से पहले अपने सवालात तर्जुमा टीम के पास भेजने के लिए वक़्त न हो, फिर भी वे मुलाक़ात में ज़ियादा मवाद का जायज़ा लेने के क़ाबिल होंगे मुक़ाबले इसके के वे जितना किसी और तरह से जायज़ा लेने में कामयाब होते क्योंके जाँचने वाले ने वापसी तर्जुमा पहले ही पढ़ लिया है और अपने सवालात पहले ही तैयार कर लिए हैं। क्योंके उसके पास यह पिछला तैयारी का वक़्त था, वह और तर्जुमा टीम अपने मुलाक़ात का वक़्त सिर्फ़ तर्जुमे के इलाक़े के मसाएल पर गुफ़्तगू करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, बजाय इसके के सुस्त रफ़्तार से पूरे तर्जुमे को पढ़ें जैसा के एक ज़बानी वापसी तर्जुमा बनाते वक़्त करना ज़रूरी है।

चौथा, तहरीरी वापसी तर्जुमा, तर्जुमा जाँचने वाले के तनाव को दूर करता है जो किसी ज़बानी तर्जुमे को एक ही वक़्त में कई घन्टों तक सुनने और समझने पर तवज्जो देने से होता है जिस तरह यह उससे बोला जाता है। अगर जाँचने वाला और तर्जुमा टीम किसी शोर के माहौल में मुलाक़ात करते हैं, तो जाँचने वाले के लिए इस बात को यक़ीनी बनाने की मुश्किल के वह हर लफ्ज़ सहीह तौर पर सुनता है काफ़ी थकावट देने वाला हो सकता है। इरतिकाज़ का ज़हनी तनाव इस इमकान को बढ़ाता है के जाँचने से कुछ मसाएल छूट जायेंगे और नतीजे में वो बाईबल मतन में बगैर सहीह किये हुए रहते हैं। इन वजूहात से, जब भी मुमकिन हो हम तहरीरी वापसी तर्जुमे का मशवरा देते हैं।