STR_ur-deva_ta/checking/vol2-backtranslation-guidel.../01.md

12 KiB

1. अल्फ़ाज़ और शिक़ों के लिए हदफ़ ज़बान का इस्तेमाल ज़ाहिर करें

इस मॉड्यूलके मक़ासद के लिए, “हदफ़ ज़बान” उस ज़बान से मुराद है जिसमे बाईबल मुसव्वदा बनाया गया था, और “वसीतर मवास्लात की ज़बान” उस ज़बान से मुराद है जिसमे वापसी तर्जुमा किया जा रहा है।

a. लफ्ज़ का मानी क़रीने में इस्तेमाल करें

अगर किसी लफ्ज़ का सिर्फ़ एक बुनियादी मानी है, तब वापसी मुतर्जिम को वसीतर मवास्लात की ज़बान में ऐसे लफ्ज़ का इस्तेमाल करना चाहिए जो पूरे वापसी तर्जुमे में बुनियादी मानी की नुमाइंदगी करता हो। अगर, ताहम, किसी लफ्ज़ का हदफ़ ज़बान में एक से ज़ियादा मानी है, ताके मानी उस क़रीने के लिहाज़ से बदलता हो जिसमे वो है, तब वापसी मुतर्जिम को वसीतर मवास्लात की ज़बान में ऐसे लफ्ज़ या फ़िक़रे का इस्तेमाल करना चाहिए जो उस तरीक़े की बेहतरीन नुमाइंदगी करता हो जिसमे वह लफ्ज़ उस क़रीने में इस्तेमाल किया गया था। तर्जुमा जाँचने वाले को उलझन से बचाने के लिए, वापसी मुतर्जिम दीगर मानी को पहली दफ़ा क़ोसैन में रख सकता है के वह लफ्ज़ का इस्तेमाल एक मुख्तलिफ़ तरीक़े में कर रहा है, ताके तर्जुमा जाँचने वाला देख और समझ सके के इस लफ्ज़ के एक से ज़ियादा मानी हैं। मिशाल के तौर पर, वह लिख सकता है, “आओ (जाओ)” अगर हदफ़ ज़बान लफ्ज़ पहले वापसी तर्जुमे में “जाओ” के तौर पर तर्जुमा किया गया था लेकिन नए क़रीने में इसका बेहतर तर्जुमा “आओ” के तौर पर किया गया है।

अगर हदफ़ ज़बान तर्जुमा किसी मुहावरे का इस्तेमाल करता है, तो तर्जुमा जाँचने वाले के लिए सबसे ज़ियादा मददगार है अगर वापसी मुतर्जिम मुहावरे का लफ्ज़ी (अल्फ़ाज़ के मानी के मुताबिक़) तर्जुमा करे, लेकिन फिर मुहावरे के मानी को क़ोसैन में रखे। इस तरह से, तर्जुमा जाँचने वाला देख सकता है के हदफ़ ज़बान तर्जुमा उस जगह में मुहावरे का इस्तेमाल करता है, और यह भी देख सकता है के इसके मानी क्या है। मिशाल के तौर पर, एक वापसी मुतर्जिम किसी मुहावरे का इस तरह तर्जुमा कर सकता है जैसे, “उसने बाल्टी को लात मारी (वह मर गया)।” अगर मुहावरा एक या दो से ज़ियादा दफ़ा आता है, तो वापसी मुतर्जिम को हर दफ़ा इसकी वज़ाहत जारी रखने की ज़रुरत नहीं है, लेकिन या तो इसका सिर्फ़ लफ्ज़ी तर्जुमा कर सकता है या सिर्फ़ मानी का तर्जुमा कर सकता है।

b. क़वायदी इज्ज़ा ए कलाम को यकसां रख्खें

वापसी तर्जुमे में, वापसी मुतर्जिम को हदफ़ ज़बान के क़वायदी इज्ज़ा ए कलाम की नुमाइंदगी वसीतर मवास्लात की ज़बान में उसी क़वायदी इज्ज़ा ए कलाम के साथ करनी चाहिए। इसके मानी है के वापसी मुतर्जिम को इस्म को इस्म के साथ, फ़अल को फ़अल के साथ, और तरमीम करने वाले को तरमीम करने वाले के साथ तर्जुमा करना चाहिए। इससे तर्जुमा जाँचने वाले को यह देखने में मदद मिलेगी के हदफ़ ज़बान कैसे काम करती है।

c. शिक़ के क़िस्मों को यकसां रख्खें

वापसी तर्जुमे में, वापसी मुतर्जिम को हदफ़ ज़बान के हर शिक़ की नुमाइंदगी वसीतर मवास्लात की ज़बान में उसी क़िस्म की शिक़ के साथ करनी चाहिए। मिशाल के तौर पर, अगर हदफ़ ज़बान की शिक़ किसी हुक्म का इस्तेमाल करती है, तब वापसी तर्जुमे को भी किसी मशवरे या दरख्वास्त की बजाय हुक्म का इस्तेमाल करना चाहिए। या अगर हदफ़ ज़बान की शिक़ ख़तीबाना सवाल का इस्तेमाल करती है, तब वापसी तर्जुमे को भी किसी बयान या दूसरे इज़हार के बजाय किसी सवाल का इस्तेमाल करना चाहिए।

d. औक़ाफ़ को यकसां रख्खें

वापसी मुतर्जिम को वापसी तर्जुमे में उसी औक़ाफ़ का इस्तेमाल करना चाहिए जैसा हदफ़ ज़बान तर्जुमे में है। मिशाल के तौर पर, जहाँ कहीं भी हदफ़ ज़बान तर्जुमे में कोमा हो, वापसी मुतर्जिम को भी वापसी तर्जुमे में कोमा रखना चाहिए। वक़फ़ा, अलामत ए अस्तजाब, अलामत ए इक्तबास, और तमाम औक़ाफ़ का दोनों तर्जुमों में यकसां मक़ाम पर होना ज़रूरी है। इस तरह से, तर्जुमा जाँचने वाले ज़ियादा आसानी से देख सकते हैं के वापसी तर्जुमे का कौन सा हिस्सा हदफ़ ज़बान तर्जुमे के कौन से हिस्से की नुमाइंदगी करता है। बाईबल की वापसी तर्जुमा करते वक़्त, इस बात को यक़ीनी बनाना भी काफी अहम है के सारे बाब और आयत एदाद वापसी तर्जुमे में सहीह मक़ामों पर हैं।

e. पेचीदा अल्फ़ाज़ के पूरे मानी का इज़हार करें

बाज़ औक़ात हदफ़ ज़बान में अल्फ़ाज़ वसीतर मवास्लात की ज़बान में अल्फ़ाज़ के मुक़ाबले ज़ियादा पेचीदा होंगे। इस सूरत में, वापसी मुतर्जिम को ज़रूरी होगा के वह हदफ़ ज़बान के लफ्ज़ को वसीतर मवास्लात की ज़बान में नुमाइंदगी के लिए किसी तवील फ़िक़रे का इस्तेमाल करे। यह ज़रूरी है ताके तर्जुमा जाँचने वाला जितना ज़ियादा मुमकिन हो मानी को देख सके। मिशाल के तौर पर, हदफ़ ज़बान में एक लफ्ज़ का तर्जुमा करने के लिए वसीतर मवास्लात की ज़बान में एक फ़िक़रे का इस्तेमाल करना ज़रूरी हो सकता है जैसे, “ऊपर जाओ” या “लेटे रहो”। नीज़, कई ज़बानों में ऐसे अल्फ़ाज़ होते हैं जो वसीतर मवास्लात की ज़बान में मसावी अल्फ़ाज़ के मुक़ाबले ज़ियादा मालूमात रखते हैं। इस सूरत में, यह सबसे ज़ियादा मददगार है अगर वापसी मुतर्जिम क़ोसैन में इज़ाफ़ी मालूमात को शामिल करे, जैसे “हम (मुश्तमिल),” या तुम (निसाए, जमा)।”

2. जुमले और मन्तक़ी साख्त के लिए वसीतर मवास्लात की ज़बान के अन्दाज़ का इस्तेमाल करें

वापसी तर्जुमे को वसीतर मवास्लात की ज़बान के लिए ऐसे जुमले के साख्त का इस्तेमाल करना चाहिए जो क़ुदरती है, ऐसा साख्त नहीं जो हदफ़ ज़बान में इस्तेमाल किया जाता है। इसके मानी है के वापसी तर्जुमे को वसीतर मवास्लात की ज़बान के लिए ऐसी लफ्ज़ की तरतीब का इस्तेमाल करना चाहिए जो क़ुदरती है, ऐसी लफ्ज़ की तरतीब नहीं जो हदफ़ ज़बान में इस्तेमाल किया जाता है। वापसी तर्जुमे को एक दूसरे के लिए मुताल्लिक़ फ़िक़रों और मन्तक़ी ताल्लुकात की निशानदेही करने का तरीक़ा भी इस्तेमाल करना चाहिए, जैसे वजह या मक़सद, जो वसीतर मवास्लात की ज़बान के लिए क़ुदरती हैं। यह तर्जुमा जाँचने वाले के लिए वापसी तर्जुमे को पढ़ना और समझना आसान बनाएगा। इससे वापसी तर्जुमे की जाँच की अमल में भी तेज़ी आएगी।