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पासबानों और कलीसियाई रहनुमाओं के ज़रिये दुरुस्तगी के लिए तर्जुमे की जाँच

इसे यक़ीनी बनाना बहुत अहम है के नया तर्जुमा दुरुस्त है। एक तर्जुमा दुरुस्त होता है जब असल की तरह यकसां मानी को इत्तिला करता हो। दूसरे अल्फ़ाज़ में, एक दुरुस्त तर्जुमा उसी पैग़ाम को इत्तिला करता है जो असल मुसन्निफ़ ने इत्तिला करने का इरादा किया था। एक तर्जुमा दुरुस्त हो सकता है अगरचे यह कम ओ बेश अल्फ़ाज़ इस्तेमाल करता है या ख्यालों को मुख्तलिफ़ तरतीब में रखता हो। असल पैग़ाम को हदफ़ ज़बान में वाज़े बनाने के लिए अक्सर यह ज़रूरी होता है।

अगरचे तर्जुमा टीम के अरकान तर्जुमे को दुरुस्तगी के लिए एक दूसरे के साथ ज़बानी साथी जाँच के दौरान जाँच लिए हैं, तो भी तर्जुमा बेहतर होता रहेगा, जैसा के यह बहुत से लोगों के ज़रिये जाँच किया जाता है, ख़ास तौर से पासबानों और कलीसियाई रहनुमाओं के ज़रिये। हर क़तआ या किताब एक कलीसियाई रहनुमा के ज़रिये जाँच हो सकता है, या, अगर बहुत से रहनुमा दस्तयाब हैं तो कलीसिया के बहुत से रहनुमा हर क़तआ या किताब की जाँच कर सकते हैं। कहानी या क़तआ की जाँच करने में एक से ज़ियादा अफ़राद का होना मददगार साबित हो सकता है क्योंके अक्सर मुख्तलिफ़ जांचने वाले मुख्तलिफ़ चीज़ों को देखेंगे।

वह कलीसियाई रहनुमा जो दुरुस्तगी की जाँच करते हैं उन्हें तर्जुमा की ज़बान बोलने वाला, और बिरादरी में क़ाबिल ए एहतराम, और बाईबल को माख़ज़ ज़बान में अच्छी तरह जानने वाला होना चाहिए। ये वही लोग नहीं होने चाहिए जिन्होंने उस क़तआ या किताब का तर्जुमा किया है जिसका वो जाँच कर रहे हैं। दुरुस्तगी जाँच करने वाले तर्जुमा टीम को यह यक़ीनी बनाने में मदद करेंगे के तर्जुमा सब कुछ वही कहता है जो माख़ज़ कहता है, और यह ऐसी चीज़ों का इज़ाफ़ा नहीं करता है जो माख़ज़ पैग़ाम का हिस्सा नहीं हैं। ताहम, ज़हन में रखें, दुरुस्त तर्जुमे में भी मफ़हूम मालूमात शामिल हो सकते हैं।

यह सच है के ज़बान बिरादरी अरकान जो ज़बान बिरादरी जाँच करते हैं, माख़ज़ मतन को लाज़मी तौर पर न देखें जब वो तर्जुमे को क़ुदरती और वाज़े के लिए जाँच करते हैं। लेकिन दुरुस्तगी की जाँच के लिए, दुरुस्तगी जाँच करने वाले लाज़मी तौर पर माख़ज़ मतन को देखें ताके वो नए तर्जुमे के साथ इसका मोवाज़ना कर सकें।

दुरुस्तगी की जाँच करने वाले कलेसियाई रहनुमाओं को इन इक़दामात पर अमल करना चाहिए:

  1. अगर मुमकिन है तो, वक़्त से पहले मालूम करें के आप कहानी की कौन सी मजमुआ या कौन सी बाईबल क़तआ की जाँच करेंगे।

अपनी समझ में आने वाली ज़बानों में मुतअद्दद वर्ज़न में क़तआ पढ़ें। नोट्स और तर्जुमाअल्फ़ाज़ के साथ ULT और UST वर्ज़न में क़तआ को पढ़ें। आप इन्हें तर्जुमास्टूडियो या बाईबल नाज़िर में पढ़ सकते हैं

  1. फिर हर दुरुस्तगी जाँच करने वाले को माख़ज़ ज़बान में अस्ल बाईबल क़तआ से मोवाज़ना करते हुए ख़ुद से तर्जुमे को पढ़ना (या रिकॉर्डिंग को सुनना) चाहिए। जाँच करने वाला इसे तर्जुमास्टूडियो का इस्तेमाल करते हुए कर सकता है। जाँचने वाले के लिए बुलन्द आवाज़ में तर्जुमा पढ़ना किसी के लिए मददगार साबित हो सकता है, जैसे के मुतर्जिम, जबके जाँचने वाला माख़ज़ बाईबल या बाईबलें साथ साथ देखते हुए पैरवी करता है। जैसा के जाँचने वाला तर्जुमा पढ़ता और इसे माख़ज़ के साथ मोवाज़ना करता है, उसे इन आम सवालात को ज़हन में रखना चाहिए:
  • क्या तर्जुमा अस्ल मानी में किसी चीज़ का इज़ाफ़ा करता है? (अस्ल मानी में मफ़हूम मालूमात) भी शामिल हैं।
  • क्या मानी का कोई हिस्सा ऐसा है जो तर्जुमा में छूट गया है?
  • क्या तर्जुमा ने किसी तरह से मानी को तब्दील कर दिया है?
  1. बाईबल क़तआ के तर्जुमे को कई दफ़ा पढ़ना या सुनना मददगार साबित हो सकता है। हो सकता है के आप पहली दफा में एक क़तआ या आयत में हर चीज़ पर तवज्जो न दे सकें। यह ख़ास तौर से सच है अगर तर्जुमा नज़रियात या जुमले के हिस्सों को माख़ज़ से मुख्तलिफ़ तरतीब में रखता है। आपको जुमले के एक हिस्से को जाँचने की ज़रुरत हो सकती है, फिर जुमले के दूसरे हिस्से को जाँचने के लिए दोबारा पढ़ें या सुनें। जब आप क़तआ को उतनी दफ़ा पढ़ या सुन लेते हैं जितनी इसके सारे हिस्सों को पाने में लगता है, तब आप अगले क़तआ में जा सकते हैं। यह जाँचने के मज़ीद तरीक़ों के लिए के तर्जुमा मुकम्मल है, देखें मुकम्मल.

  2. जाँचने वाले को नोट्स बनाना चाहिए जहाँ उसे लगता है के कोई परेशानी हो सकती है या कुछ और बेहतर होना है। हर जाँचने वाला इन नोट्स को तर्जुमानी टीम के साथ गुफ़्तगू करेगा। ये नोट्स किसी छपे हुए तर्जुमा ख़ाका के हासिये में, या किसी स्प्रेडशीट में, या तर्जुमाकोर के तबसरे की ख़ुसूसियात में हो सकते हैं।

  3. जाँचने वालों के इन्फ़िरादी तौर पर बाईबल की किसी बाब या किताब की जाँच के बाद, उन सब को मुतर्जिम या तर्जुमा टीम से मिलना चाहिए और साथ ही बाब या किताब का जायज़ा लेना चाहिए। अगर मुमकिन हो तो, तर्जुमा को दीवार पर प्रोजेक्ट करें ताके हर एक इसे देख सके। जैसा के टीम उन जगहों पर आती है जहाँ हर जाँचने वाले ने किसी मसअले या सवाल का नोट बनाया है, तो जाँचने वाले अपने सवालात पूछ सकते हैं या बेहतरी के लिए मशवरे दे सकते हैं। जैसा के जाँचने वाले और तर्जुमा की टीम सवालात और मशवरों पर गुफ़्तगू करती हैं, वो दीगर सवालात या बातें कहने के नए तरीक़ों के बारे में सोच सकते हैं। यह अच्छा है। जैसा के जाँचने वाले और तर्जुमा टीम एक साथ काम करते हैं, ख़ुदा बाईबल या क़तआ के मानी इत्तिला करने का बेहतरीन तरीक़ा दरयाफ्त करने में उनकी मदद करेगा।

  4. जाँचने वाले और तर्जुमा टीम के इस फ़ैसले के बाद के उन्हें क्या तब्दील करने की ज़रुरत है, तर्जुमा टीम तर्जुमे की नज़र सानी करेगी। अगर वह सभी तब्दीली के बारे में इत्तफाक़ राय रखते हैं तो, मुलाक़ात के दौरान ही यह काम कर सकते हैं।

  5. तर्जुमा टीम तर्जुमे की नज़र सानी करने के बाद, उन्हें इसे एक दूसरे को या ज़बान बिरादरी के दीगर अरकान को बुलन्द आवाज़ में पढ़ना चाहिए यह यक़ीनी बनाने के लिए के ये अभी भी उनकी ज़बान में क़ुदरती लगता है।

  6. अगर कोई बाईबल क़तआ या आयात ऐसे हैं जो अभी भी समझना मुश्किल हैं तो, तर्जुमा टीम को मुश्किल का नोट बनाना चाहिए। तर्जुमा टीम इन मसाएल का जवाब तलाश करने के लिए बाईबल तर्जुमा इमदाद या तबसरे में मज़ीद तहक़ीक़ करने के लिए अरकान को तफ़वीज़ कर सकते है, या वो बाईबल के दूसरे जाँचने वालों या मुशीरों से इज़ाफ़ी मदद तलब कर सकते हैं। जब अरकान मानी ढूँढ लें तो तर्जुमा करने वाली टीम दोबारा मिल सकती है ताके इस बात का फ़ैसला करें के उनकी ज़बान में क़ुदरती और वाज़े तौर पर इस मानी को कैसे बयान किया जाए।

इज़ाफ़ी सवालात

ये सवालात ऐसी किसी भी चीज़ को तलाश करने में मददगार साबित हो सकते हैं जो तर्जुमे में ग़लत हो सकती है:

  • क्या हर वह चीज़ जिसका ज़िक्र माख़ज़ ज़बान तर्जुमे में किया गया था, उसका ज़िक्र नए (मक़ामी) तर्जुमे के बहाव में भी हुआ है?
  • क्या नए तर्जुमे के मानी माख़ज़ तर्जुमे के पैग़ाम (ज़रूरी नहीं के लफ्ज़ी) की पैरवी किये हैं? (बाज़ औक़ात अगर अल्फ़ाज़ का तरतीब या नज़रियात का तरतीब माख़ज़ तर्जुमे से मुख्तलिफ़ होता है तो, यह इस तरह बेहतर लगता है और अब भी दुरुस्त है।)
  • क्या हर कहानी में तार्रुफ़ किये गए लोग वही बातें कर रहे थे जैस माख़ज़ ज़बान तर्जुमे में ज़िक्र किया गया था? (क्या यह देखना आसान था के नए तर्जुमे के वाक़यात कौन कर रहा था जब माख़ज़ ज़बान से इसका मोवाज़ना किया गया था?)
  • क्या नए तर्जुमे में ऐसे तर्जुमाअल्फ़ाज़ इस्तेमाल किये गये हैं जो माख़ज़ ज़बान के अल्फ़ाज़ की आपकी समझ के साथ मुताबिक़त नहीं रखते? चीज़ों के बारे में इस तरह सोचें: आपके लोग एक काहिन (जो ख़ुदा को क़ुर्बानी देता है) या हैकल (यहूदियों की क़ुर्बानी की जगह) के बारे में माख़ज़ ज़बान से बगैर कोई मुस्तआर लफ्ज़ इस्तेमाल किये किस तरह बात करते हैं?
  • क्या नए तर्जुमे में इस्तेमाल किये गए जुमले माख़ज़ ज़बान के ज़ियादा मुश्किल जुमलों को समझने में मददगार हैं? (क्या नए तर्जुमे के जुमले बाहम इस तरह रखे गए हैं जो बेहतर समझ लाते हैं और अब भी माख़ज़ ज़बान तर्जुमे के मानी पर पूरा उतरते हैं?
  • मतन के दुरुस्त होने का तअीन करने का दूसरा तरीक़ा यह है के तर्जुमा के बारे में फ़हम के सवालात पूछें जैसे, “किसने क्या, कब, कहाँ, कैसे, और क्यों किया”। ऐसे सवालात हैं जो पहले ही इसमें मदद के लिए तैयार किये गए हैं। (तर्जुमासवालात देखने के लिए http://ufw.io/tq/. पर जाएँ।) इन सवालात के जवाबात माख़ज़ ज़बान तर्जुमे के बारे में सवालों के जवाबात की तरह ही होने चाहिए। अगर वो नहीं हैं, तो तर्जुमे में मसअला है।

दीगर अमूमी क़िस्म की चीज़ों के लिए जिनकी जाँच की ज़रुरत है, जाँच के लिए चीज़ों की क़िस्में पर जाएँ।