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पसन्दीदा अन्दाज़ में तर्जुमा

जब आप नए तर्जुमे को पढ़ते हैं, तो ख़ुद से ये सवालात पूछें। ये वो सवालात हैं जो यह तअीन करने में मदद करेंगे के तर्जुमा इस अन्दाज़ में किया गया है या नहीं जो के ज़बान बिरादरी के लिए पसन्दीदा है:

  1. क्या तर्जुमा इस तरीक़े से लिखा गया है जो ज़बान बिरादरी के नौजवान और बूढ़े दोनों आसानी से समझ सकते हैं? (जब भी कोई बोलता है तो, वह छोटे या बूढ़े हाज़रीन के लिए अपने अल्फ़ाज़ का इन्तखाब तब्दील कर सकता है। क्या यह तर्जुमा ऐसे अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल करते हुए किया गया है जो नौजवान और बूढ़े दोनों को अच्छी तरह से इत्तिला दे सकता है?)
  2. क्या इस तर्जुमे का अन्दाज़ ज़ियादा रस्मी या ग़ैर रस्मी है? (क्या बोलने के अन्दाज़ के तरीक़े को मक़ामी बिरादरी तरजीह देती है, या इसे कम ओ बेश रस्मी होना चाहिए?)
  3. क्या तर्जुमा में बहुत सारे अल्फ़ाज़ इस्तेमाल हुए हैं जो किसी दूसरी ज़बान से मुस्तआर किये गए थे, या ये अल्फ़ाज़ ज़बान बिरादारी का पसन्दीदा हैं?
  4. क्या मुसन्निफ़ ने वसीअ ज़बान बिरादरी के लिए पसन्दीदा ज़बान की एक मुनासिब सूरत इस्तेमाल की? (क्या मुसन्निफ़ आपकी ज़बान की बोली से वाक़िफ है जो आपके इलाक़े में पाया जाता है।? क्या मुसन्निफ़ ने ज़बान की ऐसी सूरत इस्तेमाल की है जो सारी ज़बान बिरादरी अच्छी तरह समझती है, या उसने ऐसी सूरत इस्तेमाल की है जो सिर्फ़ एक छोटे इलाक़े में इस्तेमाल होती है?)

अगर कोई ऐसी जगह है जहाँ तर्जुमा, ज़बान को ग़लत अन्दाज़ में इस्तेमाल करता है, तो इस पर एक नोट बनाएँ ताके आप इसे तर्जुमानी टीम के साथ बहस कर सकें।