hi_psa_tn/50/18.txt

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Plaintext

[
{
"title": "तू उसकी संगति से प्रसन्‍न हुआ;",
"body": "“तुने उनकी संगति की है”"
},
{
"title": "“तूने अपना मुँह बुराई करने के लिये खोला",
"body": "“तुम हमेंशा बुरा कहते हो”"
},
{
"title": " तेरी जीभ छल की बातें गढ़ती है।",
"body": "“तुम हमेशा झूठ बोलते हो”"
},
{
"title": "तू बैठा हुआ अपने भाई के विरुद्ध बोलता; और अपने सगे भाई की चुगली खाता है।",
"body": "इन दो वाक्यांशों का एक ही अर्थ है लेकिन अलग-अलग शब्दों का उपयोग किया गया है। परमेश्‍वर ने उन पर अपने ही परिवार के सदस्यों के खिलाफ झूठा बोलने का आरोप लगाया।"
},
{
"title": "तू बैठा और बोलता है",
"body": "“तूम हमेशा बोलने के तरीकों के बारे में सोचते हो\""
}
]