hi_psa_tn/52/01.txt

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Plaintext

[
{
"title": "सामान्‍य जानकारीं",
"body": "इब्रानी कविता में समानांतरता आम है।"
},
{
"title": "हे वीर तू बुराई करने पर क्यों घमण्ड करता है?",
"body": "“हे योध्‍दा वीर, तुझे मसीबत खड़ी करने पर घमंड नहीं करना चाहिए”"
},
{
"title": "हे वीर",
"body": "“तुँ जो सोचता है कि तूँ बहुत बड़ा पराक्रमी है”"
},
{
"title": " परमेश्‍वर की करुणा तो अनन्त है।",
"body": "\"परमेश्वर अपनी वाचा के वचनों को निभाने के लिए वफादार है\""
},
{
"title": "सान धरे हुए उस्तरे के समान ",
"body": "“तेज उस्‍तरा”"
},
{
"title": "तेरी जीभ केवल दुष्टता गढ़ती है*; \\q सान धरे हुए उस्तरे के समान वह छल \\q का काम करती है। ",
"body": "“तुम्हा‍री जीभ लोगों को तेज उस्‍तरे के समान घायल करती है”"
},
{
"title": "तेरी जीभ",
"body": "“यहा “तेरी जीभ” उस व्‍यक्‍ति को दर्शाती है जिससे दाऊद बाते कर रहा है”"
}
]