hi_psa_tn/39/04.txt

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Plaintext

[
{
"title": "मेरा अन्त ... मेरी आयु के दिन कितने हैं; ",
"body": "इन वाक्‍यांशो का सामान्‍य रूप में एक ही अर्थ है।"
},
{
"title": " मैं जान लूँ कि कैसा अनित्य हूँ! ",
"body": "“मुझे दिखायो कि मेरा जीवन कितना छोटा है”"
},
{
"title": "तूने मेरी आयु बालिश्त भर की रखी है।",
"body": "“बस थोड़ा सा समय”"
},
{
"title": " मेरा जीवनकाल तेरी दृष्टि में कुछ है ही नहीं।",
"body": "“मेरे जीवन की लंबाई मुशकिल से कुछ ही वकत की है”"
},
{
"title": " सचमुच सब मनुष्य कैसे ही स्थिर क्यों न हों तो भी व्यर्थ ठहरे हैं। ",
"body": "मानवता के जीवन का समय इतना छोटा है जितना कि एक व्‍यक्‍ति का एक बार सांस लेना।"
}
]