hi_psa_tn/35/07.txt

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Plaintext

[
{
"title": "उन्होंने मेरे लिये अपना जाल गड्ढे में बिछाया;",
"body": "\"एक छोटे जानवर के समान जाल से वह मुझे पकड़ना चाहते हैं”"
},
{
"title": "उन्होंने मेरा प्राण लेने के लिये गड्ढा खोदा है। ",
"body": "“वह गड्ढे में मुझे एक बड़े जानवर के समान पकड़ना चाहते है”"
},
{
"title": "मेरा प्राण।",
"body": "यहाँ “मेरा” लेखक को दर्शाता है। “मैं।”"
},
{
"title": "अचानक उन पर विपत्ति आ पड़े!",
"body": "“उनको अचानक नाश होने दो”"
},
{
"title": "जो जाल उन्होंने बिछाया है।",
"body": "“उन्‍होने जाल बिछाया है मुझे जानवरो के समान पकड़ने और नुकसान पहुचाने के लिए”"
},
{
"title": "उसी में वे आप ही फँसे।",
"body": "“उनको उसी गड्ढे में गिरने दो जो उन्‍होने मेरे लिए खोदा था”"
},
{
"title": "उसी में वे फँसे।",
"body": "“गड्ढे में गिर जाए।”"
},
{
"title": "उसी विपत्ति में।",
"body": "“ताकि वह नाश हो जाएं”"
}
]