hi_psa_tn/33/10.txt

50 lines
2.5 KiB
Plaintext

[
{
"title": "सामान्य जाकारी",
"body": "प्रत्येक वचन में दो पंक्‍तियाँ ऐसी हैं जिनके बहुत ही समान अर्थ होते हैं।"
},
{
"title": "यहोवा व्यर्थ कर देता है",
"body": "“यहोवा नाश कर देता है”"
},
{
"title": "जाति-जाति की युक्ति को ",
"body": "“अलग अलग जातीयों के लोग की युक्‍तियाँ”"
},
{
"title": "युक्ति",
"body": "युक्ति एक ही दुशमन के विरुध एक दूसरे का सहारा बनने के लिए दो लोगो या जातीयो के मधय का सम्‍झोता है।"
},
{
"title": "लोगों की कल्पनाओं ",
"body": "“लोगो के बुरी योजनायें”"
},
{
"title": "सर्वदा स्थिर रहेगी",
"body": "यहा पर “स्‍थिर” कहावत का अर्थ “सदा तीक” है।"
},
{
"title": "मन की कल्पनाएँ ",
"body": "“उसके मन की योजनाऐं सदा तीक सब पीड़ीयो के लिऐ है”"
},
{
"title": "उसके मन की कल्पनाएँ",
"body": "”उसका मन” यहोवा को दर्शाता है। “उसकी योजनाऐं”"
},
{
"title": "पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहेंगी।",
"body": "“भविष्य की सबी पीड़ीयो के लिऐ”"
},
{
"title": "क्या ही धन्य है वह जाति ",
"body": "“धन्‍या हैं वह जाती के लोग”"
},
{
"title": "जिसका परमेश्‍वर यहोवा है,",
"body": "“जो यहोवा को प्रमेशवर के समान पूजते है“"
},
{
"title": "उसने अपना निज भाग ",
"body": "यहोवा ने अपनी आराधना के लिऐ चुने हूवे लोगों इस तरह बयान करता है जैसे कि वह उसके प्राप्त किये हुए निज भाग हैं।"
}
]