hi_psa_tn/144/05.txt

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Plaintext

[
{
"title": "उतर आ, छू, तितर-बितर कर, घबरा दे ",
"body": "ये सब आज्ञाओं के जैसे नहीं विनतयों के जैसे अनुवाद की जानी चाहिए"
},
{
"title": "स्वर्ग को नीचा करके",
"body": "आकाश को खोल कर "
},
{
"title": " घबरा दे",
"body": "ताकि उन्हे पता न चले कि क्या करना और सोचना है"
}
]