hi_2ki_tn/01/13.txt

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Plaintext

[
{
"title": "पचास सिपाहियों",
"body": "“50 सिपाही”।"
},
{
"title": "उससे विनती की",
"body": "“उस से भीख माँगी”।"
},
{
"title": "तेरे इन पचास दासों के",
"body": "कप्तान कहता है अपने सेवकों को एलिय्याह के सेवक कह कर उसे आदर देता है। “मेरे पचास सैनिक”।"
},
{
"title": "मेरा प्राण…तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरें",
"body": " “कप्तान एलिय्याह से अनुरोध कर रहा है कि वे उन्हे जीने दे”।"
},
{
"title": "मेरा प्राण तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरें",
"body": "यहाँ कप्तान एलिय्याह के लिए अपने अनुरोध दोहरा रहा है कि “और उस से दया दिखा कर जीने देने के लिए कह रहा है”।"
}
]