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\c 1 \v 1 इससे वह मनुष्य उस वृक्ष जैसा सुदृढ़ बनता है \p जिसको जलधार के किनारे रोपा गया है। \p वह उस वृक्ष \v 2 समान है, जो उचित समय में फलता \p और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। \p वह जो भी करता है सफल ही होता है। \p किन्तु दुष्ट जन \v 3 ऐसे नहीं होते। \p दुष्ट जन उस भूसे के समान होते हैं जिन्हें पवन का झोका उड़ा ले जाता है।