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\v 15 यि उपरसे निचा आबेवाला विवेक न हई, बल्कि यि त संसारिक, अनात्मिक और शैतानिक हई । \v 16 कएला कि जाहाँ इषर््या और अभिलाषा रहइछै, उहाँ भ्रम और हरेक तरहके दुष्ट काम होइछै । \v 17 लेकिन स्वर्गसे आबेवाला विवेक त सबसे पहिले शुद्ध हाइछै, ओहिके बाद शान्तिप्रिय, कोमल, बिचारशिल, कृपा और असल फलसे भरल, कमजोर न करेवाला और निष्कपट हाइछै । \v 18 धार्मिकताके फल त शान्ति कायम करेवालासबके बिचमे शान्तसे बोएल (छिटल) रहइछै । |