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\v 13 तोहरा सबके बिचमे बुद्धिमान और समझदार के हई ? उ व्यक्ति बुद्धिके नरमतामे अपन कामसबसे एगो असल जिवन जि के देखबउक । \v 14 लेकिन यदि तोहरा सबके हृदयमे तित ईर्ष्‍या और अभिलाषा हउ, त सत्यके विरुद्धमे अभिमान् न कर और झुठ न बोल ।

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\v 15 यि उपरसे निचा आबेवाला विवेक न हई, बल्कि यि त संसारिक, अनात्मिक और शैतानिक हई । \v 16 कएला कि जाहाँ इषर््या और अभिलाषा रहइछै, उहाँ भ्रम और हरेक तरहके दुष्ट काम होइछै । \v 17 लेकिन स्वर्गसे आबेवाला विवेक त सबसे पहिले शुद्ध हाइछै, ओहिके बाद शान्तिप्रिय, कोमल, बिचारशिल, कृपा और असल फलसे भरल, कमजोर न करेवाला और निष्कपट हाइछै । \v 18 धार्मिकताके फल त शान्ति कायम करेवालासबके बिचमे शान्तसे बोएल (छिटल) रहइछै ।

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\c 4 \v 1 तोहरा सबके बिचमे झगडा और विवाद काहाँसे अबइछै ? कि उ बात तोहर शरिरके अङ्ग सबके बिचमे संघर्ष लाबेवाला तोहर सबके अपने अभिलाषा सबसे न अबइछै \v 2 तुसब हत्या करइछे आ लालच करइछे लेकिन पावे त न सकइछे । तुसब झगडा और लडाई करइछे, लेकिन तोहरा सबके न मिलइछौ, कएलाकि तुसब न माँगइछे । \v 3 तुसब माँगइछे लेकिन न मिलइछौ, कएलाकि तुसब अपन अभिलाषा पूर्ति करे सकि कहके गलत नियतसे माँगइछे ।

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\v 4 व्यभिचारी आदमीसब, संसारके साथ दोस्ती करनाई परमेश्वरके साथ दुस्मनी करनाई हई से तोहरा सबके मालुम न हउ कि ? ताइलेल, जे संसारसे दोस्ती करे चाहइछै उ अपने आपके परमेश्वरके दुस्मन बना लेइछै । \v 5 या धर्मशास्त्र, “परमेश्वरसे हमरा सबमे बास करेके खातिर राखल आत्मा बहुत डाही हो गेल हई” कहके बेकारे कहइछै से तुसब सोचइछे कि

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अध्याय ४

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