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\v 16 वहिकारण हमनी निराश नै होइछी । हमनी बाहरी रुपसे विनाश होते जायम फिरभी भित्रि रूपसे हमनी प्रतिदिन नयाँ भेरहल छी । \v 17 कैलाकी यी क्षणीक है, हलका कष्‍टसे हमनीके सब नापके माथ करेबाला वजन्दार अन्नत महिमा के लागि तयार कर रहल छै । \v 18 कैलाकी हमनी देखेबाला बातके नै लेकिन नदेखेबाला बातके प्रतिक्षा कर रहल छी । देखेबाला बातसब क्षणीक होइछै आ नदेखेबाला बातसबके अन्नत तक रहैछै ।