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\id MAT
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\h मुक़द्दस मत्ती की मा'रिफ़त इन्जील
\toc1 मुक़द्दस मत्ती की मा'रिफ़त इन्जील
\toc2 मुक़द्दस मत्ती की मा'रिफ़त इन्जील
\toc3 mat
\mt1 मुक़द्दस मत्ती की मा'रिफ़त इन्जील
\s5
\c 1
\p
\v 1 ईसा' मसीह इब्न- ए दाऊद इब्न- ए इब्राहीम का नसबनामा।
\v 2 इब्राहीम से इज़्हाक़ पैदा हुआ, और इज़्हाक़ से या'क़ूब पैदा हुआ, और या'क़ूब से यहूदा और उस के भाई पैदा हुए;
\v 3 और यहूदा से फ़ारस और ज़ारह तमर से पैदा हुए, और फ़ारस से हसरोंन पैदा हुआ, और हसरोन से राम पैदा हुआ;
\s5
\v 4 और राम से अम्मीनदाब पैदा हुआ, और अम्मीनदाब से नह्सोन पैदा हुआ, और नह्सोन से सलमोन पैदा हुआ;
\v 5 और सलमोन से बो'अज़ राहब से पैदा हुआ, और बो'अज़ से ओबेद रूत से पैदा हुआ, और ओबेद से यस्सी पैदा हुआ;
\v 6 और यस्सी से दाऊद बादशाह पैदा हुआ| और दाऊद से सुलैमान उस 'औरत से पैदा हुआ जो पहले ऊरिय्याह की बीवी थी;
\s5
\v 7 और सुलैमान से रहुब'आम पैदा हुआ, और रहुब'आम से अबियाह पैदा हुआ, और अबियाह से आसा पैदा हुआ;
\v 8 और आसा से यहूसफ़त पैदा हुआ,और यहूसफ़त से यूराम पैदा हुआ, और यूराम से उज़्ज़ियाह पैदा हुआ;
\s5
\v 9 उज़्ज़ियाह से यूताम पैदा हुआ,और यूताम से आख़ज़ पैदा हुआ, और आख़ज़ से हिज़क़ियाह पैदा हुआ;
\v 10 और हिज़क़ियाह से मनस्सी पैदा हुआ, और मनस्सी से अमून पैदा हुआ, और अमून से यूसियाह पैदा हुआ;
\v 11 और गिरफ़्तार होकर बाबुल जाने के ज़माने में यूसियाह से यकुनियाह और उस के भाई पैदा हुए;
\s5
\v 12 और गिरफ़्तार होकर बाबुल जाने के बा'द यकूनियाह से सियाल्तीएल पैदा हुआ, और सियाल्तीएल से ज़रुब्बाबुल पैदा हुआ।
\v 13 और ज़रुब्बाबुल से अबीहूद पैदा हुआ, और अबिहूद से इलियाक़ीम पैदा हुआ, और इलियाक़ीम से आज़ोर पैदा हुआ;
\v 14 और आज़ोर से सदोक़ पैदा हुआ, और सदोक़ से अख़ीम पैदा हुआ, और अख़ीम से इलीहूद पैदा हुआ;
\s5
\v 15 और इलीहूद से इलीअज़र पैदा हुआ, और अलीअज़र से मत्तान पैदा हुआ, और मत्तान से याक़ूब पैदा हुआ;
\v 16 और याक़ूब से यूसुफ़ पैदा हुआ,ये उस मरियम का शौहर था जिस से ईसा' पैदा हुआ, जो मसीह कहलाता है|
\v 17 पस सब पुश्तें इब्राहीम से दाऊद तक चौदह पुश्तें हुईं, और दाऊद से लेकर गिरफ़्तार होकर बाबुल जाने तक चौदह पुश्तें, और गिरफ़्तार होकर बाबुल जाने से लेकर मसीह तक चौदह पुश्तें हुईं।
\s5
\v 18 अब ईसा' मसीह की पैदाइश इस तरह हुई कि जब उस की माँ मरियम की मंगनी यूसुफ़ के साथ हो गई: तो उन के एक साथ होने से पहले वो रूह-उल क़ुद्स की क़ुदरत से हामिला पाई गई।
\v 19 पस उस के शौहर यूसुफ़ ने जो रास्तबाज़ था, और उसे बदनाम नहीं करना चाहता था। उसे चुपके से छोड़ देने का इरादा किया।
\s5
\v 20 वो ये बातें सोच ही रहा था, कि ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उसे ख़्वाब में दिखाई देकर कहा,"ऐ यूसुफ़" इब्न -ए दाऊद अपनी बीवी मरियम को अपने यहाँ ले आने से न डर; क्यूँकि जो उस के पेट में है, वो रूह- उल -कुद्दूस की क़ुदरत से है।
\v 21 उस के बेटा होगा और तू उस का नाम ईसा' रखना, क्योंकि वह अपने लोगों को उन के गुनाहों से नजात देगा।
\s5
\v 22 यह सब कुछ इस लिए हुआ कि जो ख़ुदावन्द ने नबी के ज़रिये कहा था, वो पूरा हो कि |
\v 23 “देखो एक कुंवारी हामिला होगी। और बेटा जनेंगी और उस का नाम इम्मानुएल रखेंगे,” जिसका मतलब है- ख़ुदा हमारे साथ।
\s5
\v 24 पस यूसुफ़ ने नींद से जाग कर वैसा ही किया जैसा ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उसे हुक्म दिया था, और अपनी बीवी को अपने यहाँ ले गया।
\v 25 और उस को न जाना जब तक उस के बेटा न हुआ और उस का नाम ईसा' रख्खा ।
\s5
\c 2
\v 1 जब ईसा' हेरोदेस बादशाह के ज़माने में यहूदिया के बैत-लहम में पैदा हुआ। तो देखो कई मजूसी पूरब से यरूशलीम में ये कहते हुए आए।
\v 2 “ यहूदियों का बादशाह जो पैदा हुआ है, वो कहाँ है ? क्यूँकि पूरब में उस का सितारा देखकर हम उसे सज्दा करने आए हैं।”
\v 3 यह सुन कर हेरोदेस बादशाह और उस के साथ यरूशलीम के सब लोग घबरा गए।
\s5
\v 4 और उस ने क़ौम के सब सरदार काहिनों और आलिमों को जमा' करके उन से पूछा, “मसीह की पैदाइश कहाँ होनी चाहिए?”
\v 5 उन्हों ने उस से कहा, “यहूदिया के बैत-लहम में, क्यूँकि नबी के ज़रिये यूँ लिखा गया है,कि
\v 6 ‘ऐ बैत-लहम, यहूदिया के 'इलाक़े तू यहूदाह के हाकिमों में हरगिज़ सब से छोटा नहीं। क्यूँकि तुझ में से एक सरदार निकलेगा जो मेरी क़ौम इस्राईल की निगेहबानी करेगा|
\s5
\v 7 इस पर हेरोदेस ने मजूसियों को चुपके से बुला कर उन से मालूम किया कि वह सितारा किस वक़्त दिखाई दिया था।
\v 8 और उन्हें ये कह कर “बैतलहम भेजा कि जा कर उस बच्चे के बारे मे ठीक ठीक मालूम करो और जब वो मिले तो मुझे ख़बर दो ताकि मैं भी आ कर उसे सिज्दा करूँ।”
\s5
\v 9 वो बादशाह की बात सुनकर रवाना हुए "और देखो, जो सितारा उन्होंने पूरब में देखा था; वो उनके आगे आगे चला; यहाँ तक कि उस जगह के ऊपर जाकर ठहर गया जहाँ वो बच्चा था।
\v 10 वो सितारे को देख कर निहायत ख़ुश हुए।
\s5
\v 11 और उस घर में पहुँचकर बच्चे को उस की माँ मरियम के पास देखा; और उसके आगे गिर कर सिज्दा किया। और अपने डिब्बे खोल कर सोना, और लुबान और मुर उसको नज़्र किया।
\v 12 और हेरोदेस के पास फिर न जाने की हिदायत ख़्वाब में पाकर दूसरी राह से अपने मुल्क को रवाना हुए।
\s5
\v 13 जब वो रवाना हो गए तो देखो ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने यूसुफ़ को ख़्वाब में दिखाई देकर कहा,“उठ बच्चे और उस की माँ को साथ लेकर मिस्र को भाग जा: और जब तक कि मैं तुझ से न कहूँ वहीं रहना; क्यूँकि हेरोदेस इस बच्चे को तलाश करने को है, ताकि इसे हलाक करे।”
\v 14 पस वो उठा और रात के वक़्त बच्चे और उस की माँ को साथ ले कर मिस्र के लिए रवाना हो गया।
\v 15 और हेरोदेस के मरने तक वहीं रहा ताकि जो ख़ुदावन्द ने नबी के ज़रिये कहा था, वो पूरा हो “कि मिस्र से मैंने अपने बेटे को बुलाया।”
\s5
\v 16 जब हेरोदेस ने देखा कि मजूसियों ने मेरे साथ हँसी की तो निहायत ग़ुस्सा हुआ और आदमी भेजकर बैतलहम और उसकी सब सरहदों के अन्दर के उन सब लड़कों को क़त्ल करवा दिया जो दो दो बरस के या इस से छोटे थे, उस वक़्त के हिसाब से जो उसने मजूसियों से तहक़ीक़ की थी।
\s5
\v 17 उस वक़्त वो बात पूरी हुई जो यर्मियाह नबी के ज़रिये कही गई थी।
\v 18 “रामा में आवाज़ सुनाई दी, रोना और बड़ा मातम। राख़िल अपने बच्चे को रो रही है और तसल्ली क़बूल नहीं करती , इसलिए कि वो नहीं हैं।”
\s5
\v 19 जब हेरोदेस मर गया, तो देखो ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने मिस्र में यूसुफ़ को ख़्वाब में दिखाई देकर कहा कि ।
\v 20 उठ इस बच्चे और इसकी माँ को लेकर इस्राईल के मुल्क मे चला जा, क्यूंकि जो बच्चे की जान लेने वाले थे वो मर गए
\v 21 पस वो उठा और बच्चे और उस की माँ को ले कर मुल्क-ए-इस्राईल में लौट आया।
\s5
\v 22 मगर जब सुना कि अर्ख़िलाउस अपने बाप हेरोदेस की जगह यहूदिया में बादशाही करता है तो वहाँ जाने से डरा, और ख़्वाब में हिदायत पाकर गलील के 'इलाक़े को रवाना हो गया।
\v 23 और नासरत नाम एक शहर में जा बसा, ताकि जो नबियों की मारफ़त कहा गया थावो पूरा हो, “वह नासरी कहलाएगा।”
\s5
\c 3
\v 1 उन दिनों में युहन्ना बपतिस्मा देने वाला आया और यहूदिया के वीराने में ये ऐलान करने लगा कि ,
\v 2 “तौबा करो, क्यूँकि आस्मान की बादशाही नज़दीक आ गई है।”
\v 3 ये वही है जिस का ज़िक्र यसायाह नबी के ज़रिये यूँ हुआ कि वीराने में पुकारने वाले की आवाज़ आती है, कि ख़ुदावन्द की राह तैयार करो! उसके रास्ते सीधे बनाओ।
\s5
\v 4 ये यूहन्ना ऊँटों के बालों की पोशाक पहने और चमड़े का पटका अपनी कमर से बाँधे रहता था। और इसकी ख़ुराक टिड्डियाँ और जंगली शहद था।
\v 5 उस वक़्त यरूशलीम, और सारे यहूदिया और यरदन और उसके आस पास क़े सब लोग निकल कर उस के पास गये।
\v 6 और अपने गुनाहों का इक़रार करके। यरदन नदी में उस से बपतिस्मा लिया?
\s5
\v 7 मगर जब उसने बहुत से फ़रीसियों और सदूक़ियों को बपतिस्मे के लिए अपने पास आते देखा तो उनसे कहा कि , "ऐ साँप के बच्चो" तुम को किस ने बता दिया कि आने वाले ग़ज़ब से भागो ?
\v 8 पस तौबा के मुताबिक़ फल लाओ।
\v 9 और अपने दिलों में ये कहने का ख़याल न करो कि अब्रहाम हमारा बाप है क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ, कि "ख़ुदा" इन पत्थरों से अब्रहाम के लिए औलाद पैदा कर सकता है।
\s5
\v 10 अब दरख़्तों की जड़ पर कुल्हाड़ा रख्खा हुआ है पस, जो दरख़्त अच्छा फ़ल नहीं लाता वो काटा और आग में डाला जाता है।
\v 11 “मैं तो तुम को तौबा के लिए पानी से बपतिस्मा देता हूँ, लेकिन जो मेरे बाद आता है मुझ से बड़ा है; मैं उसकी जूतियाँ उठाने के लायक़ नहीं| वो तुम को रूह -उल कुददूस और आग से बपतिस्मा देगा।
\v 12 उस का छाज उसके हाथ में है और वो अपने खलियान को ख़ूब साफ़ करेगा, और अपने गेहूँ को तो खत्ते में जमा' करेगा, मगर भूसी को उस आग में जलाएगा जो बुझने वाली नहीं।”
\s5
\v 13 उस वक़्त "ईसा" गलील से यर्दन के किनारे यूहन्ना के पास उस से बपतिस्मा लेने आया।
\v 14 मगर यूहन्ना ये कह कर उसे मना करने लगा,“मैं आप तुझ से बपतिस्मा लेने का मोहताज हूँ, और तू मेरे पास आया है?”
\v 15 ईसा' ने जवाब में उस से कहा, “अब तू होने ही दे, क्यूंकि हमें इसी तरह सारी रास्तबाज़ी पूरी करना मुनासिब है। इस पर उस ने होने दिया।”
\s5
\v 16 और "ईसा" बपतिस्मा लेकर फ़ौरन पानी के ऊपर आया। और देखो, उस के लिए आस्मान खुल गया और उस ने "ख़ुदा" की रूह को कबूतर की शक्ल मे उतरते और अपने ऊपर आते देखा।
\v 17 और देखो आसमान से ये आवाज़ आई: “ये मेरा प्यारा बेटा है जिससे मैं ख़ुश हूँ।”
\s5
\c 4
\v 1 उस वक़्त रूह "ईसा" को जंगल में ले गया ताकि इब्लीस से आज़माया जाए।
\v 2 और चालीस दिन और चालीस रात फ़ाक़ा कर के आख़िर को उसे भूख लगी।
\v 3 और आज़माने वाले ने पास आकर उस से कहा “अगर तू "ख़ुदा" का बेटा है तो फ़रमा कि ये पत्थर रोटियाँ बन जाएँ।”
\v 4 उस ने जवाब में कहा, “लिखा है आदमी सिर्फ़ रोटी ही से ज़िन्दा न रहेगा; बल्कि हर एक बात से जो "ख़ुदा" के मुँह से निकलती है।”
\s5
\v 5 तब इब्लीस उसे मुक़द्दस शहर में ले गया और हैकल के कंगूरे पर खड़ा करके उस से कहा।
\v 6 “अगर तू "ख़ुदा" का बेटा है तो अपने आपको नीचे गिरा दे; क्यूँकि लिखा है कि ‘वह तेरे बारे में अपने फ़रिश्तों को हुक्म देगा, और वह तुझे अपने हाथों पर उठा लेंगे ताकि ऐसा न हो कि तेरे पैर को पत्थर से ठेस लगे’।”
\s5
\v 7 ईसा' ने उस से कहा, “ये भी लिखा है; ‘तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आज़माइश न कर।’”
\v 8 फिर इब्लीस उसे एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर ले गया, और दुनिया की सब सल्तनतें और उन की शान -ओ शौकत उसे दिखाई।
\v 9 और उससे कहा कि अगर तू झुक कर मुझे सज्दा करे तो ये सब कुछ तुझे दे दूंगा
\s5
\v 10 ईसा' ने उस से कहा, “ऐ शैतान दूर हो क्यूंकि लिखा है, ‘तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को सज्दा कर और सिर्फ़ उसी की 'इबादत कर|’”
\v 11 तब इब्लीस उस के पास से चला गया; और देखो फ़रिश्ते आ कर उस की ख़िदमत करने लगे।
\s5
\v 12 जब उस ने सुना कि यूहन्ना पकड़वा दिया गया तो गलील को रवाना हुआ;
\v 13 और नासरत को छोड़ कर कफ़रनहूम में जा बसा जो झील के किनारे ज़बलून और नफ़्ताली की सरहद पर है।
\s5
\v 14 ताकि जो यसा'याह नबी की मारफ़त कहा गया था, वो पूरा हो।
\v 15 “ज़बूलून का इलाक़ा,और नफ़्ताली का इलाक़ा, दरिया की राह यर्दन के पार, ग़ैर क़ौमों की गलील :
\v 16 या'नी जो लोग अन्धेरे में बैठे थे, उन्होंने बड़ी रौशनी देखी; और जो मौत के मुल्क और साये में बैठे थे, उन पर रोशनी चमकी।”
\s5
\v 17 उस वक़्त से ईसा' ने एलान करना और ये कहना शुरू किया “तौबा करो, क्यूँकि आस्मान की बादशाही नज़दीक आ गई है।”
\s5
\v 18 उस ने गलील की झील के किनारे फिरते हुए दो भाइयों या'नी शमाऊन को जो पतरस कहलाता है; और उस के भाई अन्द्रियास को। झील में जाल डालते देखा , क्यूँकि वह मछली पकड़ने वाले थे।
\v 19 और उन से कहा, “मेरे पीछे चले आओ, मैं तुम को आदमी पकड़ने वाला बनाऊँगा।”
\v 20 वो फ़ौरन जाल छोड़ कर उस के पीछे हो लिए।
\s5
\v 21 वहाँ से आगे बढ़ कर उस ने और दो भाइयों या'नी, ज़ब्दी के बेटे याक़ूब और उस के भाई यूहन्ना को देखा। कि अपने बाप ज़ब्दी के साथ नाव पर अपने जालों की मरम्मत कर रहे हैं । और उन को बुलाया।
\v 22 वह फ़ौरन नाव और अपने बाप को छोड़ कर उस के पीछे हो लिए।
\s5
\v 23 ईसा' पुरे गलील में फिरता रहा, और उनके इबादतख़ानों में तालीम देता, और बादशाही की ख़ुशख़बरी का एलान करता और लोगों की हर तरह की बीमारी और हर तरह की कमज़ोरी को दूर करता रहा।
\v 24 और उस की शोहरत पूरे सूब-ए-सूरिया में फैल गई, और लोग सब बिमारों को जो तरह तरह की बीमारियों और तक्लीफ़ों में गिरिफ़्तार थे; और उन को जिन में बदरूहें थी, और मिर्गी वालों और मफ़्लूजों को उस के पास लाए और उसने उन को अच्छा किया।
\v 25 और गलील, और दिकपुलिस, और यरूशलम, और यहूदिया और यर्दन के पार से बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली।
\s5
\c 5
\v 1 वो इस भीड़ को देख कर ऊँची जगह पर चढ़ गया। और जब बैठ गया तो उस के शागिर्द उस के पास आए।
\v 2 और वो अपनी ज़बान खोल कर उन को यूँ ता'लीम देने लगा।
\v 3 मुबारक हैं वो जो दिल के ग़रीब हैं क्यूँकि आस्मान की बादशाही उन्ही की है।
\v 4 मुबारक हैं वो जो ग़मगीन हैं, क्यूँकि वो तसल्ली पाँएगे।
\s5
\v 5 मुबारक हैं वो जो हलीम हैं, क्यूँकि वो ज़मीन के वारिस होंगे।
\v 6 मुबारक हैं वो जो रास्तबाज़ी के भूखे और प्यासे हैं , क्यूँकि वो सेर होंगे।
\v 7 मुबारक हैं वो जो रहमदिल हैं, क्यूँकि उन पर रहम किया जाएगा।
\v 8 मुबारक हैं वो जो पाक दिल हैं, क्यूँकि वह "ख़ुदा" को देखेंगे।
\s5
\v 9 मुबारक हैं वो जो सुलह कराते हैं, क्यूँकि वह "ख़ुदा" के बेटे कहलाएँगे।
\v 10 मुबारक हैं वो जो रास्तबाज़ी की वजह से सताये गए हैं, क्यूँकि आस्मान की बादशाही उन्ही की है।
\s5
\v 11 जब लोग मेरी वजह से तुम को लान-तान करेंगे, और सताएँगे; और हर तरह की बुरी बातें तुम्हारी निस्बत नाहक़ कहेंगे; तो तुम मुबारक होगे।
\v 12 ख़ुशी करना और निहायत शादमान होना क्यूँकि आस्मान पर तुम्हारा अज्र बड़ा है। इसलिए कि लोगों ने उन नबियों को जो तुम से पहले थे, इसी तरह सताया था।
\s5
\v 13 तुम ज़मीन के नमक हो। लेकिन अगर नमक का मज़ा जाता रहे तो वो किस चीज़ से नमकीन किया जाएगा? फिर वो किसी काम का नहीं सिवा इस के कि बाहर फेंका जाए और आदमियों के पैरों के नीचे रौंदा जाए।
\v 14 तुम दुनिया के नूर हो। जो शहर पहाड़ पर बसा है वो छिप नहीं सकता।
\s5
\v 15 और चिराग़ जलाकर पैमाने के नीचे नहीं बल्कि चिराग़दान पर रखते हैं; तो उस से घर के सब लोगों को रोशनी पहुँचती है।
\v 16 इसी तरह तुम्हारी रोशनी आदमियों के सामने चमके, ताकि वो तुम्हारे नेक कामों को देखकर तुम्हारे बाप की जो आसमान पर है बड़ाई करें।
\s5
\v 17 “ये न समझो कि मैं तौरेत या नबियों की किताबों को मन्सूख़ करने आया हूँ , मन्सूख़ करने नहीं बल्कि पूरा करने आया हूँ |
\v 18 क्यूँकि मैं तुम से सच कहता हूँ, जब तक आस्मान और ज़मीन टल न जाएँ, एक नुक़्ता या एक शोशा तौरेत से हरगिज़ न टलेगा जब तक सब कुछ पूरा न हो जाए।
\s5
\v 19 पस जो कोई इन छोटे से छोटे हुक्मों में से किसी भी हुक्म को तोड़ेगा, और यही आदमियों को सिखाएगा। वो आसमान की बादशाही में सब से छोटा कहलाएगा; लेकिन जो उन पर अमल करेगा, और उन की ता'लीम देगा; वो आसमान की बादशाही में बड़ा कहलाएगा।
\v 20 क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ, कि अगर तुम्हारी रास्तबाज़ी आलिमों और फ़रीसियों की रास्तबाज़ी से ज़्यादा न होगी, तो तुम आसमान की बादशाही में हरग़िज़ दाख़िल न होगे।
\s5
\v 21 तुम सुन चुके हो कि अगलों से कहा गया था कि ख़ून ना करना जो कोई ख़ून करेगा वो 'अदालत की सजा के लायक़ होगा |
\v 22 लेकिन मैं तुम से ये कहता हूँ कि , 'जो कोई अपने भाई पर ग़ुस्सा होगा, वो 'अदालत की सज़ा के लायक़ होगा; कोई अपने भाई को पागल कहेगा, वो सद्रे-ऐ ‘अदालत की सज़ा के लायक़ होगा; और जो उसको बेवकूफ़ कहेगा, वो जहन्नुम की आग का सज़ावार होगा।’
\s5
\v 23 पस अगर तू क़ुर्बानगाह पर अपनी क़ुर्बानी करता है और वहाँ तुझे याद आए कि मेरे भाई को मुझ से कुछ शिकायत है।
\v 24 तो वहीं क़ुर्बानगाह के आगे अपनी नज़्र छोड़ दे और जाकर पहले अपने भाई से मिलाप कर तब आकर अपनी क़ुर्बानी कर।
\s5
\v 25 जब तक तू अपने मुद्द'ई के साथ रास्ते में है, उससे जल्द सुलह कर ले, कहीं ऐसा न हो कि मुद्द'ई तुझे मुन्सिफ़ के हवाले कर दे और मुन्सिफ़ तुझे सिपाही के हवाले कर दे; और तू क़ैद खाने में डाला जाए।
\v 26 मैं तुझ से सच कहता हूँ, कि जब तक तू कौड़ी कौड़ी अदा न करेगा वहाँ से हरगिज़ न छूटेगा।
\s5
\v 27 तुम सुन चुके हो कि कहा गया था,‘ज़िना न करना।’
\v 28 लेकिन मैं तुम से ये कहता हूँ कि जिस किसी ने बुरी ख़्वाहिश से किसी 'औरत पर निगाह की वो अपने दिल में उस के साथ ज़िना कर चुका।
\s5
\v 29 पस अगर तेरी दहनी आँख तुझे ठोकर खिलाए तो उसे निकाल कर अपने पास से फेंक दे; क्यूँकि तेरे लिए यही बेहतर है; कि तेरे आ'ज़ा में से एक जाता रहे और तेरा सारा बदन जहन्नुम में न डाला जाए।
\v 30 और अगर तेरा दाहिना हाथ तुझे ठोकर खिलाए तो उस को काट कर अपने पास से फेंक दे। क्यूँकि तेरे लिए यही बेहतर है; कि तेरे आ'ज़ा में से एक जाता रहे और तेरा सारा बदन जहन्नुम में न जाए।
\s5
\v 31 ये भी कहा गया था, ,जो कोई अपनी बीवी को छोड़े उसे तलाक़नामा लिख दे |
\v 32 लेकिन मैं तुम से ये कहता हूँ, कि जो कोई अपनी बीवी को हरामकारी के सिवा किसी और वजह से छोड़ दे वो उस से ज़िना करता है; और जो कोई उस छोड़ी हुई से शादी करे वो भी ज़िना करता है।
\s5
\v 33 फिर तुम सुन चुके हो कि अगलों से कहा गया था‘झूटी क़सम न खाना; बल्कि अपनी क़समें "ख़ुदावन्द" के लिए पूरी करना।’
\v 34 लेकिन मैं तुम से ये कहता हूँ कि बिल्कुल क़सम न खाना ‘न तो आस्मान की ’क्यूँकि वो "ख़ुदा" का तख़्त है,
\v 35 न ‘ज़मीन की’ क्यूँकि वो उस के पैरों की चौकी है।‘न यरूशलीम की ’क्यूँकि वो बुज़ुर्ग बादशाह का शहर है।
\s5
\v 36 न अपने सर की क़सम खाना क्यूँकि तू एक बाल को भी सफ़ेद या काला नहीं कर सकता।
\v 37 बल्कि तुम्हारा कलाम ‘हाँ हाँ ’या ‘नहीं नहीं में’ हो क्यूँकि जो इस से ज़्यादा है वो बदी से है।
\s5
\v 38 तुम सुन चुके हो कि कहा गया था,‘आँख के बदले आँख, और दाँत के बदले दाँत।’
\v 39 लेकिन मैं तुम से ये कहता हूँ कि शरीर का मुक़ाबला न करना बल्कि जो कोई तेरे दहने गाल पर तमाचा मारे दूसरा भी उसकी तरफ़ फेर दे।
\s5
\v 40 और अगर कोई तुझ पर नालिश कर के तेरा कुर्ता लेना चाहे; तो चोग़ा भी उसे ले लेने दे।
\v 41 और जो कोई तुझे एक कोस बेगार में ले जाए; उस के साथ दो कोस चला जा।
\v 42 जो कोई तुझ से माँगे उसे दे; और जो तुझ से क़र्ज़ चाहे उस से मुँह न मोड़।
\s5
\v 43 तुम सुन चुके हो कि कहा गया था,‘अपने पड़ोसी से मुहब्बत रख और अपने दुश्मन से दुश्मनी ।’
\v 44 लेकिन मैं तुम से ये कहता हूँ, अपने दुश्मनों से मुहब्बत रखो और अपने सताने वालों के लिए दुआ करो।
\v 45 ताकि तुम अपने बाप के जो आसमान पर है, बेटे ठहरो; क्यूँकि वो अपने सूरज को बदों और नेकों दोनों पर चमकाता है; और रास्तबाज़ों और नारास्तों दोनों पर मेंह बरसाता है।
\s5
\v 46 क्यूँकि अगर तुम अपने मुहब्बत रखने वालों ही से मुहब्बत रख्खो तो तुम्हारे लिए क्या अज्र है? क्या महसूल लेने वाले भी ऐसा नहीं करते।
\v 47 अगर तुम सिर्फ़ अपने भाइयों को सलाम करो; तो क्या ज़्यादा करते हो? क्या ग़ैर क़ौमों के लोग भी ऐसा नहीं करते?
\v 48 पस चाहिए कि तुम कामिल हो जैसा तुम्हारा आस्मानी बाप कामिल है।
\s5
\c 6
\v 1 "ख़बरदार! अपने रास्तबाज़ी के काम आदमियों के सामने दिखावे के लिए न करो, नहीं तो तुम्हारे बाप के पास जो आसमान पर है; तुम्हारे लिए कुछ अज्र नहीं है|”
\v 2 पस जब तुम ख़ैरात करो तो अपने आगे नरसिंगा न बजाओ, जैसा रियाकार 'इबादतख़ानों और कूचों में करते हैं; ताकि लोग उनकी बड़ाई करें मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वो अपना अज्र पा चुके।
\s5
\v 3 बल्कि जब तू ख़ैरात करे तो जो तेरा दहना हाथ करता है; उसे तेरा बाँया हाथ न जाने।
\v 4 ताकि तेरी ख़ैरात पोशीदा रहे, इस सूरत में तेरा आसमानी बाप जो पोशीदगी में देखता है तुझे बदला देगा।
\s5
\v 5 जब तुम दु'आ करो तो रियाकारों की तरह न बनो; क्यूँकि वो 'इबादतख़ानों में और बाज़ारों के मोड़ों पर खड़े होकर दु'आ करना पसंद करते हैं; ताकि लोग उन को देखें; मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वो अपना बदला पा चुके।
\v 6 बल्कि जब तू दु'आ करे तो अपनी कोठरी में जा और दरवाज़ा बंद करके अपने आसमानी बाप से जो पोशीदगी में है ; दु'आ कर इस सूरत में तेरा आसमानी बाप जो पोशीदगी में देखता है तुझे बदला देगा।
\v 7 और दु'आ करते वक़्त ग़ैर क़ौमों के लोगों की तरह बक बक न करो क्यूँकि वो समझते हैं; कि हमारे बहुत बोलने की वजह से हमारी सुनी जाएगी।
\s5
\v 8 पस उन की तरह न बनो; क्यूँकि तुम्हारा आसमानी बाप तुम्हारे माँगने से पहले ही जानता है कि तुम किन किन चीज़ों के मोहताज हो।
\v 9 पस तुम इस तरह दुआ किया करो, " ऐ हमारे बाप, तू जो आसमान पर है तेरा नाम पाक माना जाए।
\v 10 तेरी बादशाही आए। तेरी मर्ज़ी जैसी आस्मान पर पूरी होती है ज़मीन पर भी हो।
\s5
\v 11 हमारी रोज़ की रोटी आज हमें दे।
\v 12 और जिस तरह हम ने अपने क़ुसूरवारों को मु'आफ़ किया है; तू भी हमारे कुसूरों को मु'आफ़ कर।
\v 13 और हमें आज़्माइश में न ला, बल्कि बुराई से बचा; क्यूँकि बादशाही और क़ुदरत और जलाल हमेशा तेरे ही हैं; " आमीन।
\s5
\v 14 इसलिए कि अगर तुम आदमियों के क़ुसूर मु'आफ़ करोगे तो तुम्हारा आसमानी बाप भी तुम को मु'आफ़ करेगा।
\v 15 और अगर तुम आदमियों के क़ुसूर मु'आफ़ न करोगे तो तुम्हारा आसमानी बाप भी तुम को मु'आफ़ न करेगा।।
\s5
\v 16 जब तुम रोज़ा रख्खो तो रियाकारों की तरह अपनी सूरत उदास न बनाओ; क्यूँकि वो अपना मुँह बिगाड़ते हैं; ताकि लोग उन को रोज़ादार जाने। मैं तुम से सच कहता हूँ कि वो अपना अज्र पा चुके।
\v 17 बल्कि जब तू रोज़ा रख्खे तो अपने सिर पर तेल डाल और मुँह धो।
\v 18 ताकि आदमी नहीं बल्कि तेरा बाप जो पोशीदगी में है तुझे रोज़ादार जाने। इस सूरत में तेरा बाप जो पोशीदगी में देखता है तुझे बदला देगा।
\s5
\v 19 अपने वास्ते ज़मीन पर माल जमा' न करो, जहाँ पर कीड़ा और ज़ंग ख़राब करता है; और जहाँ चोर नक़ब लगाते और चुराते हैं।
\v 20 बल्कि अपने लिए आसमान पर माल जमा' करो; जहाँ पर न कीड़ा ख़राब करता है; न ज़ंग और न वहाँ चोर नक़ब लगाते और चुराते हैं।
\v 21 क्यूँकि जहाँ तेरा माल है वहीं तेरा दिल भी लगा रहेगा।
\s5
\v 22 बदन का चराग़ आँख है। पस अगर तेरी आँख दुरुस्त हो तो तेरा पूरा बदन रोशन होगा।
\v 23 अगर तेरी आँख ख़राब हो तो तेरा सारा बदन तारीक होगा। पस अगर वो रोशनी जो तुझ में है तारीक हो तो तारीकी कैसी बड़ी होगी।
\v 24 कोई आदमी दो मालिकों की ख़िदमत नहीं कर सकता; क्यूँकि या तो एक से दुश्मनी रख्खे और दूसरे से मुहब्बत या एक से मिला रहेगा और दूसरे को नाचीज़ जानेगा; तुम "ख़ुदा" और दौलत दोनों की ख़िदमत नहीं कर सकते।
\s5
\v 25 इसलिए मैं तुम से कहता हूँ; कि अपनी जान की फ़िक्र न करना कि हम क्या खाएँगे या क्या पीएँगे, और न अपने बदन की कि क्या पहनेंगे; क्या जान ख़ूराक से और बदन पोशाक से बढ़ कर नहीं।
\v 26 हवा के परिन्दों को देखो कि न बोते हैं न काटते न कोठियों में जमा' करते हैं; तोभी तुम्हारा आसमानी बाप उनको खिलाता है क्या तुम उस से ज़्यादा क़द्र नहीं रखते?
\s5
\v 27 तुम में से ऐसा कौन है जो फ़िक्र करके अपनी उम्र एक घड़ी भी बढ़ा सके?
\v 28 और पोशाक के लिए क्यों फ़िक्र करते हो; जंगली सोसन के दरख़्तों को ग़ौर से देखो कि वो किस तरह बढ़ते हैं; वो न मेहनत करते हैं न कातते हैं।
\v 29 तोभी मैं तुम से कहता हूँ; कि सुलेमान भी बावजूद अपनी सारी शानो शौकत के उन में से किसी की तरह कपड़े पहने न था।
\s5
\v 30 पस जब "ख़ुदा" मैदान की घास को जो आज है और कल तंदूर में झोंकी जाएगी; ऐसी पोशाक पहनाता है, तो "ऐ कम ईमान वालो " तुम को क्यों न पहनाएगा?
\v 31 "इस लिए फ़िक्रमन्द होकर ये न कहो, ‘हम क्या खाएँगे ? या क्या पिएँगे ? या क्या पहनेंगे?’”
\s5
\v 32 क्यूँकि इन सब चीज़ों की तलाश में ग़ैर क़ौमें रहती हैं; और तुम्हारा आसमानी बाप जानता है, कि तुम इन सब चीज़ों के मोहताज हो।
\v 33 बल्कि तुम पहले उसकी बादशाही और उसकी रास्बाज़ी की तलाश करो तो ये सब चीज़ें भी तुम को मिल जाएँगी।
\v 34 पस कल के लिए फ़िक्र न करो क्यूँकि कल का दिन अपने लिए आप फ़िक्र कर लेगा; आज के लिए आज ही का दु:ख काफ़ी है।
\s5
\c 7
\v 1 बुराई न करो, कि तुम्हारी भी बुराई न की जाए।
\v 2 क्यूँकि जिस तरह तुम बुराई करते हो उसी तरह तुम्हारी भी बुराई की जाएगी और जिस पैमाने से तुम नापते हो उसी से तुम्हारे लिए नापा जाएगा।
\s5
\v 3 तू क्यूँ अपने भाई की आँख के तिनके को देखता है और अपनी आँख के शहतीर पर ग़ौर नहीं करता?
\v 4 और जब तेरी ही आँख में शहतीर है तो तू अपने भाई से क्यूँ कर कह सकता है, 'ला, तेरी आँख में से तिनका निकाल दूँ '?
\v 5 ऐ रियाकार, पहले अपनी आँख में से तो शहतीर निकाल, फिर अपने भाई की आँख में से तिनके को अच्छी तरह देख कर निकाल सकता है।
\s5
\v 6 पाक चीज़ कुत्तों को ना दो, और अपने मोती सुअरों के आगे न डालो, ऐसा न हो कि वो उनको पाँवों के तले रौंदें और पलट कर तुम को फाड़ें।
\s5
\v 7 माँगो तो तुम को दिया जाएगा। ढूँडो तो पाओगे; दरवाज़ा खटखटाओ तो तुम्हारे लिए खोला जाएगा।
\v 8 क्यूँकि जो कोई माँगता है उसे मिलता है; और जो ढूँडता है वो पाता है और जो खटखटाता है उसके लिए खोला जाएगा।
\v 9 तुम में ऐसा कौन सा आदमी है, कि अगर उसका बेटा उससे रोटी माँगे तो वो उसे पत्थर दे?
\v 10 या अगर मछली माँगे तो उसे साँप दे!
\s5
\v 11 पस जबकि तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी चीज़ें देना जानते हो, तो तुम्हारा बाप जो आसमान पर है; अपने माँगने वालों को अच्छी चीज़ें क्यूँ न देगा।
\v 12 पस जो कुछ तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें वही तुम भी उनके साथ करो; क्यूँकि तौरेत और नबियों की ता'लीम यही है।
\s5
\v 13 तंग दरवाज़े से दाख़िल हो, क्यूँकि वो दरवाज़ा चौड़ा है, और वो रास्ता चौड़ा है जो हलाकत को पहुँचाता है; और उससे दाख़िल होने वाले बहुत हैं।
\v 14 क्यूँकि वो दरवाज़ा तंग है और वो रास्ता सुकड़ा है जो ज़िन्दगी को पहुँचाता है और उस के पाने वाले थोड़े हैं।
\s5
\v 15 झूटे नबियों से ख़बरदार रहो! जो तुम्हारे पास भेड़ों के भेस में आते हैं; मगर अन्दर से फाड़ने वाले भेड़िये की तरह हैं।
\v 16 उनके फलों से तुम उनको पहचान लोगे; क्या झाड़ियों से अंगूर या ऊँट कटारों से अंजीर तोड़ते हैं?
\v 17 इसी तरह हर एक अच्छा दरख़्त अच्छा फल लाता है और बुरा दरख़्त बुरा फल लाता है।
\s5
\v 18 अच्छा दरख़्त बुरा फल नहीं ला सकता, न बुरा दरख़्त अच्छा फल ला सकता है।
\v 19 जो दरख़्त अच्छा फल नहीं लाता वो काट कर आग में डाला जाता है।
\v 20 पस उनके फ़लों से तुम उनको पहचान लोगे।
\s5
\v 21 “जो मुझ से ऐ ख़ुदावन्द! ऐ ख़ुदावन्द! कहते हैं उन में से हर एक आस्मान की बादशाही में दाख़िल न होगा। मगर वही जो मेरे आस्मानी बाप की मर्ज़ी पर चलता है।
\v 22 उस दिन बहुत से मुझसे कहेंगे, ‘ऐ ख़ुदावन्द! ख़ुदावन्द! क्या हम ने तेरे नाम से नबुव्वत नहीं की, और तेरे नाम से बदरुहों को नहीं निकाला और तेरे नाम से बहुत से मोजिज़े नहीं दिखाए?
\v 23 उस दिन मैं उन से साफ़ कह दूँगा, ‘मेरी तुम से कभी वाक़फ़ियत न थी, ऐ बदकारो! मेरे सामने से चले जाओ।’”
\s5
\v 24 “पस जो कोई मेरी यह बातें सुनता और उन पर अमल करता है वह उस अक़्लमन्द आदमी की तरह ठहरेगा जिस ने चट्टान पर अपना घर बनाया।
\v 25 और मेंह बरसा और पानी चढ़ा और आन्धियाँ चलीं और उस घर पर टक्करे लगीं; लेकिन वो न गिरा क्यूँकि उस की बुन्याद चट्टान पर डाली गई थी।
\s5
\v 26 और जो कोई मेरी यह बातें सुनता है और उन पर अमल नहीं करता वह उस बेवक़ूफ़ आदमी की तरह ठहरेगा जिस ने अपना घर रेत पर बनाया।
\v 27 और मेंह बरसा और पानी चढ़ा और आन्धियाँ चलीं, और उस घर को सदमा पहुँचा और वो गिर गया, और बिल्कुल बर्बाद हो गया।”
\s5
\v 28 जब ईसा' ने यह बातें ख़त्म कीं तो ऐसा हुआ कि भीड़ उस की तालीम से हैरान हुई।
\v 29 क्यूँकि वह उन के आलिमों की तरह नहीं बल्कि साहिब- ए- इख़्तियार की तरह उनको ता'लीम देता था।
\s5
\c 8
\v 1 जब वो उस पहाड़ से उतरा तो बहुत सी भीड़ उस के पीछे हो ली।
\v 2 और देखो : एक कोढ़ी ने पास आकर उसे सज्दा किया और कहा, “ऐ ख़ुदावन्द! अगर तू चाहे तो मुझे पाक साफ़ कर सकता है|”
\v 3 उसने हाथ बढ़ा कर उसे छुआ और कहा,“मैं चाहता हूँ, तू पाक-साफ़ हो जा|” वह फ़ौरन कोढ़ से पाक-साफ़ हो गया।
\s5
\v 4 ईसा' ने उस से कहा, “ख़बरदार! किसी से न कहना बल्कि जाकर अपने आप को काहिन को दिखा; और जो नज़्र मूसा ने मुक़र्रर की है उसे गुज़रान ; ताकि उन के लिए गवाही हो।”
\s5
\v 5 जब वो कफ़र्नहूम में दाख़िल हुआ तो एक सूबेदार उसके पास आया; और उसकी मिन्नत करके कहा।
\v 6 “ऐ ख़ुदावन्द, मेरा ख़ादिम फ़ालिज का मारा घर में पड़ा है; और बहुत ही तक्लीफ़ में है।”
\v 7 उस ने उस से कहा, “मैं आ कर उसे शिफ़ा दूँगा।”
\s5
\v 8 सूबेदार ने जवाब में कहा “ऐ ख़ुदावन्द, मैं इस लायक़ नहीं कि तू मेरी छत के नीचे आए; बल्कि सिर्फ़ ज़बान से कह दे तो मेरा ख़ादिम शिफ़ा पाएगा।
\v 9 क्यूँकि मैं भी दूसरे के इख़्तियार में हूँ; और सिपाही मेरे मातहत हैं; जब एक से कहता हूँ, ‘जा! तो वह जाता है और दूसरे से‘आ! तो वह आता है। और अपने नौकर से‘ ये कर ’तो वह करता है।”
\v 10 ईसा' ने ये सुनकर त'अज्जुब किया और पीछे आने वालों से कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मैं ने इस्राईल में भी ऐसा ईमान नहीं पाया।
\s5
\v 11 और मैं तुम से कहता हूँ कि बहुत सारे पूरब और पश्चिम से आ कर अब्राहम, इज़्हाक़ और याक़ूब के साथ आसमान की बादशाही की ज़ियाफ़त में शरीक होंगे।
\v 12 मगर बादशाही के बेटे बाहर अंधेरे में डाले जायगें; जहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।”
\v 13 और ईसा' ने सूबेदार से कहा, “जा! जैसा तू ने यक़ीन किया तेरे लिए वैसा ही हो|” और उसी घड़ी ख़ादिम ने शिफ़ा पाई।
\s5
\v 14 और ईसा' ने पतरस के घर में आकर उसकी सास को बुख़ार में पड़ी देखा।
\v 15 उस ने उसका हाथ छुआ और बुख़ार उस पर से उतर गया ; और वो उठ खड़ी हुई और उसकी ख़िदमत करने लगी।
\s5
\v 16 जब शाम हुई तो उसके पास बहुत से लोगों को लाए; जिन में बदरूहें थी उसने बदरूहों को ज़बान ही से कह कर निकाल दिया; और सब बीमारों को अच्छा कर दिया।
\v 17 ताकि जो यसायाह नबी के ज़रिये कहा गया था, वो पूरा हो: “उसने आप हमारी कमज़ोरियाँ ले लीं और बीमारियाँ उठा लीं ।”
\s5
\v 18 जब ईसा' ने अपने चारो तरफ़ बहुत सी भीड़ देखी तो पार चलने का हुक्म दिया।
\v 19 और एक आलिम ने पास आकर उस से कहा “ऐ उस्ताद, जहाँ कहीं भी तू जाएगा मैं तेरे पीछे चलूँगा।”
\v 20 ईसा' ने उस से कहा, “लोमड़ियों के भट होते हैं और हवा के परिन्दों के घोंसले, मगर इबने आदम के लिए सर रखने की भी जगह नहीं|”
\s5
\v 21 एक और शागिर्द ने उस से कहा, “ऐ ख़ुदावन्द, मुझे इजाज़त दे कि पहले जाकर अपने बाप को दफ़न करूँ।”
\v 22 ईसा' ने उससे कहा, “तू मेरे पीछे चल और मुर्दों को अपने मुर्दे दफ़न करने दे|”
\s5
\v 23 जब वो नाव पर चढ़ा तो उस के शागिर्द उसके साथ हो लिए।
\v 24 और देखो झील में ऐसा बड़ा तूफ़ान आया कि नाव लहरों से छिप गई, मगर वो सोता रहा |
\v 25 उन्होंने पास आकर उसे जगाया और कहा “ऐ ख़ुदावन्द, हमें बचा, हम हलाक हुए जाते हैं”|
\s5
\v 26 उसने उनसे कहा “ऐ कम ईमान वालो ! डरते क्यूँ हो?”तब उसने उठकर हवा और पानी को डाँटा और बड़ा अम्न हो गया।
\v 27 और लोग ता'अज्जुब करके कहने लगे “ये किस तरह का आदमी है कि हवा और पानी सब इसका हुक्म मानते हैं।”
\s5
\v 28 जब वो उस पार गदरीनियों के मुल्क में पहुँचा तो दो आदमी जिन में बदरूहें थी; क़ब्रों से निकल कर उससे मिले: वो ऐसे तंग मिज़ाज थे कि कोई उस रास्ते से गुज़र नहीं सकता था।
\v 29 और देखो उन्होंने चिल्लाकर कहा “ऐ "ख़ुदा" के बेटे हमें तुझ से क्या काम? क्या तू इसलिए यहाँ आया है कि वक़्त से पहले हमें अज़ाब में डाले?”
\s5
\v 30 उनसे कुछ दूर बहुत से सूअरों का ग़ोल चर रहा था।
\v 31 पस बदरूहों ने उसकी मिन्नत करके कहा“अगर तू हम को निकालता है तो हमें सूअरों के ग़ोल में भेज दे।”
\v 32 उसने उनसे कहा “जाओ।”वो निकल कर सुअरों के अन्दर चली गईं; और देखो; सारा ग़ोल किनारे पर से झपट कर झील में जा पड़ा और पानी में डूब मरा।
\s5
\v 33 और चराने वाले भागे और शहर में जाकर सब माजरा और उनके हालात जिन में बदरूहें थी बयान किया।
\v 34 और देखो सारा शहर ईसा' से मिलने को निकला और उसे देख कर मिन्नत की, कि हमारी सरहदों से बाहर चला जा।
\s5
\c 9
\v 1 फिर वो नाव पर चढ़ कर पार गया; और अपने शहर में आया।
\v 2 और देखो, लोग एक फ़ालिज मारे हुए को जो चारपाई पर पड़ा हुआ था उसके पास लाए; ईसा' ने उसका ईमान देखकर मफ़्लूज से कहा “बेटा, इत्मीनान रख। तेरे गुनाह मुआफ़ हुए।”
\s5
\v 3 और देखो कुछ आलिमों ने अपने दिल में कहा, “ये कुफ़्र बकता है”
\v 4 ईसा' ने उनके ख़याल मा'लूम करके कहा,“तुम क्यूँ अपने दिल में बुरे ख़याल लाते हो?
\v 5 आसान क्या है? ये कहना तेरे गुनाह मु'आफ़ हुए; या ये कहना; उठ और चल फिर|
\v 6 लेकिन इसलिए कि तुम जान लो कि इबने आदम को ज़मीन पर गुनाह मु'आफ़ करने का इख़्तियार है,” उसने फ़ालिज मारे हुए से कहा, “उठ, अपनी चारपाई उठा और अपने घर चला जा।”
\s5
\v 7 वो उठ कर अपने घर चला गया।
\v 8 लोग ये देख कर डर गए; और "ख़ुदा" की बड़ाई करने लगे; जिसने आदमियों को ऐसा इख़्तियार बख़्शा।
\v 9 ईसा' ने वहाँ से आगे बढ़कर मत्ती नाम एक शख़्स को महसूल की चौकी पर बैठे देखा; और उस से कहा, "मेरे पीछे हो ले।"वो उठ कर उसके पीछे हो लिया।
\s5
\v 10 जब वो घर में खाना खाने बैठा; तो ऐसा हुआ कि बहुत से महसूल लेने वाले और गुनहगार आकर "ईसा" और उसके शागिर्दों के साथ खाना खाने बैठे।
\v 11 फ़रीसियों ने ये देख कर उसके शागिर्दों से कहा,“तुम्हारा उस्ताद महसूल लेने वालों और गुनहगारों के साथ क्यूँ खाता है?”
\s5
\v 12 उसने ये सुनकर कहा, “तंदरूस्तों को हकीम की ज़रुरत नहीं बल्कि बीमारों को।
\v 13 मगर तुम जाकर उसके मा'ने मा'लूम करो: मैं क़ुर्बानी नहीं बल्कि रहम पसन्द करता हूँ।क्यूँकि मैं रास्तबाज़ों को नहीं बल्कि गुनाहगारों को बुलाने आया हूँ।”
\s5
\v 14 उस वक़्त यूहन्ना के शागिर्दों ने उसके पास आकर कहा, “क्या वजह है कि हम और फ़रीसी तो अक्सर रोज़ा रखते हैं, और तेरे शागिर्द रोज़ा नहीं रखते?”
\v 15 ईसा' ने उस से कहा, “क्या बाराती जब तक दुल्हा उनके साथ है,मातम कर सकते हैं? मगर वो दिन आएँगे; कि दुल्हा उनसे जुदा किया जाएगा; उस वक़्त वो रोज़ा रखेंगे।
\s5
\v 16 कोरे कपड़े का पैवंद पुरानी पोशाक में कोई नहीं लगाता क्यूँकि वो पैवंद पोशाक में से कुछ खींच लेता है और वो ज़्यादा फट जाती है।
\s5
\v 17 और नई मय पुरानी मश्कों में नहीं भरते वरना मश्कें फट जाती हैं; और मय बह जाती है, और मश्कें बर्बाद हो जाती हैं; बल्कि नई मय नई मश्को में भरते हैं; और वो दोनों बची रहती हैं।”
\s5
\v 18 वो उन से ये बातें कह ही रहा था, कि देखो एक सरदार ने आकर उसे सज्दा किया और कहा,“ मेरी बेटी अभी मरी है लेकिन तू चलकर अपना हाथ उस पर रख तो वो ज़िन्दा हो जाएगी|”
\v 19 ईसा' उठ कर अपने शागिर्दों समेत उस के पीछे हो लिया।
\s5
\v 20 और देखो; एक 'औरत ने जिसके बारह बरस से ख़ून जारी था; उसके पीछे आकर उस की पोशाक का किनारा छुआ।
\v 21 क्यूँकि वो अपने जी में कहती थी; अगर सिर्फ़ उसकी पोशाक ही छू लूँगी “तो अच्छी हो जाऊँगी।”
\v 22 ईसा' ने फिर कर उसे देखा और कहा, “बेटी,इत्मिनान रख! तेरे ईमान ने तुझे अच्छा कर दिया|” पस वो 'औरत उसी घड़ी अच्छी हो गई।
\s5
\v 23 जब ईसा' सरदार के घर में आया और बाँसुरी बजाने वालों को और भीड़ को शोर मचाते देखा।
\v 24 तो कहा, “हट जाओ! क्यूँकि लड़की मरी नहीं बल्कि सोती है।” वो उस पर हँसने लगे।
\s5
\v 25 मगर जब भीड़ निकाल दी गई तो उस ने अन्दर जाकर उसका हाथ पकड़ा और लड़की उठी।
\v 26 और इस बात की शोहरत उस तमाम इलाक़े में फ़ैल गई।
\s5
\v 27 जब ईसा' वहाँ से आगे बढ़ा तो दो अन्धे उसके पीछे ये पुकारते हुए चले“ऐ इब्न-ए-दाऊद, हम पर रहम कर ।”
\v 28 जब वो घर में पहुँचा तो वो अन्धे उसके पास आए और 'ईसा' ने उनसे कहा “क्या तुम को यक़ीन है कि मैं ये कर सकता हूँ?” उन्हों ने उस से कहा “हां ख़ुदावन्द।”
\s5
\v 29 फिर उस ने उन की आँखें छू कर कहा, “तुम्हारे यक़ीन के मुताबिक़ तुम्हारे लिए हो।”
\v 30 और उन की आँखें खुल गईं और ईसा' ने उनको ताकीद करके कहा, “ख़बरदार, कोई इस बात को न जाने!”
\v 31 मगर उन्होंने निकल कर उस तमाम इलाक़े में उसकी शोहरत फैला दी।
\s5
\v 32 जब वो बाहर जा रहे थे, तो देखो लोग एक गूँगे को जिस में बदरूह थी उसके पास लाए।
\v 33 और जब वो बदरूह निकाल दी गई तो गूँगा बोलने लगा; और लोगों ने ता'अज्जुब करके कहा, “इस्राईल में ऐसा कभी नहीं देखा गया|”
\v 34 मगर फ़रीसियों ने कहा, “ये तो बदरूहों के सरदार की मदद से बदरूहों को निकालता है|”
\s5
\v 35 ईसा' सब शहरों और गाँव में फिरता रहा, और उनके इबादतख़ानों में ता'लीम देता और बादशाही की ख़ुशख़बरी का एलान करता और और हर तरह की बीमारी और हर तरह की कमज़ोरी दूर करता रहा।
\v 36 और जब उसने भीड़ को देखा तो उस को लोगों पर तरस आया; क्यूँकि वो उन भेड़ों की तरह थे जिनका चरवाहा न हो बुरी हालत में पड़े थे।
\s5
\v 37 उस ने अपने शागिर्दों से कहा, “फ़सल बहुत है, लेकिन मज़दूर थोड़े हैं।
\v 38 पस फ़सल के मालिक से मिन्नत करो कि वो अपनी फ़सल काटने के लिए मजदूर भेज दे|”
\s5
\c 10
\v 1 फिर उस ने अपने बारह शागिर्दों को पास बुला कर उनको बदरूहों पर इख़्तियार बख़्शा कि उनको निकालें और हर तरह की बीमारी और हर तरह की कमज़ोरी को दूर करें।
\s5
\v 2 और बारह रसूलों के नाम ये हैं; पहला शमा'ऊन, जो पतरस कहलाता है और उस का भाई अन्द्रियास ज़बदी का बेटा या'कूब और उसका भाई यूहन्ना।
\v 3 फ़िलिप्पुस, बरतुल्माई, तोमा,और मत्ती महसूल लेने वाला।
\v 4 हल्फ़ई का बेटा या'कूब और तद्दी शमा'ऊन कनानी और यहूदाह इस्करियोती जिस ने उसे पकड़वा भी दिया|
\s5
\v 5 इन बारह को ईसा' ने भेजा और उनको हुक्म देकर कहा, “ग़ैर क़ौमों की तरफ़ न जाना और सामरियों के किसी शहर में भी दाख़िल न होना।
\v 6 बल्कि इस्राईल के घराने की खोई हुई भेड़ों के पास जाना।
\v 7 और चलते चलते ये एलान करना ‘आस्मान की बादशाही नज़दीक आ गई है।’
\s5
\v 8 बीमारों को अच्छा करना; मुर्दों को जिलाना कोढ़ियों को पाक साफ़ करना बदरूहों को निकालना; तुम ने मुफ़्त पाया मुफ़्त ही देना।
\v 9 न सोना अपने कमरबन्द में रखना -न चाँदी और न पैसे।
\v 10 रास्ते के लिए न झोली लेना न दो दो कुर्ते न जूतियाँ न लाठी; क्यूँकि मज़दूर अपनी ख़ूराक का हक़दार है।
\s5
\v 11 जिस शहर या गाँव में दाख़िल हो मालूम करना कि उस में कौन लायक़ है और जब तक वहाँ से रवाना न हो उसी के यहाँ रहना।
\v 12 और घर में दाख़िल होते वक़्त उसे दु'आ-ए-ख़ैर देना।
\v 13 अगर वो घर लायक़ हो तो तुम्हारा सलाम उसे पहुँचे; और अगर लायक़ न हो तो तुम्हारा सलाम तुम पर फिर आए।
\s5
\v 14 और अगर कोई तुम को क़ुबूल न करे, और तुम्हारी बातें न सुने तो उस घर या शहर से बाहर निकलते वक़्त अपने पैरों की धूल झाड़ देना।
\v 15 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि 'अदालत के दिन उस शहर की निस्बत सदूम और अमूरा के इलाक़े का हाल ज़्यादा बर्दाश्त के लायक़ होगा।
\s5
\v 16 देखो, मैं तुम को भेजता हूँ ; गोया भेड़ों को भेड़ियों के बीच पस साँपों की तरह होशियार और कबूतरों की तरह सीधे बनो।
\v 17 मगर आदमियों से ख़बरदार रहो, क्यूँकि वह तुम को अदालतों के हवाले करेंगे; और अपने इबादतख़ानों में तुम को कोड़े मारेंगे।
\v 18 और तुम मेरी वजह से हाकिमों और बादशाहों के सामने हाज़िर किए जाओगे; ताकि उनके और ग़ैर क़ौमों के लिए गवाही हो।
\s5
\v 19 लेकिन जब वो तुम को पकड़वाएँगे; तो फ़िक्र न करना कि हम किस तरह कहें या क्या कहें; क्यूँकि जो कुछ कहना होगा उसी वक़्त तुम को बताया जाएगा।
\v 20 क्यूँकि बोलने वाले तुम नहीं बल्कि तुम्हारे आसमानी बाप का रूह है; जो तुम में बोलता है।
\s5
\v 21 भाई को भाई क़त्ल के लिए हवाले करेगा और बेटे को बाप और बेटा अपने माँ बाप के बरख़िलाफ़ खड़े होकर उनको मरवा डालेंगे।
\v 22 और मेरे नाम के ज़रिए से सब लोग तुम से अदावत रखेंगे; मगर जो आख़िर तक बर्दाश्त करेगा वही नजात पाएगा।
\v 23 लेकिन जब तुम को एक शहर सताए तो दूसरे को भाग जाओ; क्यूँकि मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तुम इस्राईल के सब शहरों में न फिर चुके होगे कि 'इब्न-ए-आदम आजाएगा|
\s5
\v 24 शागिर्द अपने उस्ताद से बड़ा नहीं होता, न नौकर अपने मालिक से।
\v 25 शागिर्द के लिए ये काफ़ी है कि अपने उस्ताद की तरह हो; और नौकर के लिए ये कि अपने मालिक की तरह जब उन्होंने घर के मालिक को बा'लज़बूल कहा; तो उसके घराने के लोगों को क्यूँ न कहेंगे।
\s5
\v 26 पस उनसे न डरो; क्यूँकि कोई चीज़ ढकी नहीं जो खोली न जाएगी और न कोई चीज़ छिपी है जो जानी न जाएगी।
\v 27 जो कुछ मैं तुम से अन्धेरे में कहता हूँ; उजाले में कहो और जो कुछ तुम कान में सुनते हो छतो पर उसका एलान करो।
\s5
\v 28 जो बदन को क़त्ल करते हैं और रूह को क़त्ल नहीं कर सकते उन से न डरो बल्कि उसी से डरो जो रूह और बदन दोनों को जहन्नुम में हलाक कर सकता है।
\v 29 क्या पैसे की दो चिड़ियाँ नहीं बिकतीं? और उन में से एक भी तुम्हारे बाप की मर्ज़ी के बग़ैर ज़मीन पर नहीं गिर सकती।
\v 30 बल्कि तुम्हारे सर के बाल भी सब गिने हुए हैं।
\v 31 पस डरो नहीं; तुम्हारी क़द्र तो बहुत सी चिड़ियों से ज़्यादा है।
\s5
\v 32 पस जो कोई आदमियों के सामने मेरा इक़रार करेगा; मैं भी अपने बाप के सामने जो आसमान पर है उसका इक़रार करूँगा।
\v 33 मगर जो कोई आदमियों के सामने मेरा इन्कार करेगा मैं भी अपने बाप के जो आस्मान पर है उसका इन्कार करूँगा।
\s5
\v 34 ये न समझो कि मैं ज़मीन पर सुलह करवाने आया हूँ; सुलह करवाने नहीं बल्कि तलवार चलवाने आया हूँ।
\v 35 क्यूँकि मैं इसलिए आया हूँ, कि आदमी को उसके बाप से और बेटी को उस की माँ से और बहू को उसकी सास से जुदा कर दूँ।
\v 36 और आदमी के दुश्मन उसके घर के ही लोग होंगे।
\s5
\v 37 जो कोई बाप या माँ को मुझ से ज़्यादा अज़ीज़ रखता है वो मेरे लायक़ नहीं; और जो कोई बेटे या बेटी को मुझ से ज़्यादा अज़ीज़ रखता है वो मेरे लायक़ नहीं।
\v 38 जो कोई अपनी सलीब न उठाए और मेरे पीछे न चले वो मेरे लायक़ नहीं।
\v 39 जो कोई अपनी जान बचाता है उसे खोएगा; और जो कोई मेरी ख़ातिर अपनी जान खोता है उसे बचाएगा।
\s5
\v 40 जो तुम को क़ुबूल करता है वो मुझे क़ुबूल करता है और जो मुझे क़ुबूल करता है वो मेरे भेजने वाले को क़ुबूल करता है ।
\v 41 जो नबी के नाम से नबी को क़ुबूल करता है; वो नबी का अज्र पाएगा; और जो रास्तबाज़ के नाम से रास्तबाज़ को क़ुबूल करता है वो रास्तबाज़ का अज्र पाएगा।
\s5
\v 42 और जो कोई शागिर्द के नाम से इन छोटों मे से किसी को सिर्फ़ एक प्याला ठंडा पानी ही पिलाएगा; मैं तुम से सच कहता हूँ वो अपना अज्र हरगिज़ न खोएगा|”
\s5
\c 11
\v 1 जब ईसा' अपने बारह शागिर्दों को हुक्म दे चुका, तो ऐसा हुआ कि वहाँ से चला गया ताकि उनके शहरों में ता'लीम दे और एलान करे।
\v 2 यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने क़ैदख़ाने में मसीह के कामों का हाल सुनकर अपने शागिर्दों के ज़रिये उससे पुछवा भेजा।
\v 3 “आने वाला तू ही है या हम दूसरे की राह देखें?”
\s5
\v 4 ईसा' ने जवाब में उनसे कहा, “जो कुछ तुम सुनते हो और देखते हो जाकर यूहन्ना से बयान कर दो।
\v 5 ‘कि अन्धे देखते और लंगड़े चलते फिरते हैं; कोढ़ी पाक साफ़ किए जाते हैं और बहरे सुनते हैं और मुर्दे ज़िन्दा किए जाते हैं और ग़रीबों को ख़ुशख़बरी सुनाई जाती है।’
\v 6 और मुबारक वो है जो मेरी वजह से ठोकर न खाए।”
\s5
\v 7 जब वो रवाना हो लिए तो ईसा' ने यूहन्ना के बारे मे लोगों से कहना शुरू किया कि “तुम वीराने में क्या देखने गए थे? क्या हवा से हिलते हुए सरकंडे को?
\v 8 तो फिर क्या देखने गए थे क्या महीन कपड़े पहने हुए शख़्स को? देखो जो महीन कपड़े पहनते हैं वो बादशाहों के घरों में होते हैं।
\s5
\v 9 तो फिर क्यूँ गए थे? क्या एक नबी को देखने? हाँ मैं तुम से कहता हूँ बल्कि नबी से बड़े को।
\v 10 ये वही है जिसके बारे मे लिखा है कि ‘देख मैं अपना पैग़म्बर तेरे आगे भेजता हूँ जो तेरा रास्ता तेरे आगे तैयार करेगा’
\s5
\v 11 मैं तुम से सच कहता हूँ; जो औरतों से पैदा हुए हैं, उन में यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले से बड़ा कोई नहीं हुआ, लेकिन जो आसमान की बादशाही में छोटा है वो उस से बड़ा है।
\v 12 और यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के दिनों से अब तक आसमान की बादशाही पर ज़ोर होता रहा है; और ताक़तवर उसे छीन लेते हैं।
\s5
\v 13 क्यूँकि सब नबियों और तौरेत ने यूहन्ना तक नबुव्वत की।
\v 14 और चाहो तो मानो; एलिया जो आनेवाला था; यही है।
\v 15 जिसके सुनने के कान हों वो सुन ले!
\s5
\v 16 "पस इस ज़माने के लोगों को मैं किस की मिसाल दूँ? वो उन लड़कों की तरह हैं, जो बाज़ारों में बैठे हुए अपने साथियों को पुकार कर कहते हैं।
\v 17 ‘हम ने तुम्हारे लिए बाँसुली बजाई और तुम न नाचे। हम ने मातम किया और तुम ने छाती न पीटी’
\s5
\v 18 क्यूँकि यूहन्ना न खाता आया न पीता और वो कहते हैं उस में बदरूह है।
\v 19 इब्न-ए-आदम खाता पीता आया। और वो कहते हैं, ‘देखो खाऊ और शराबी आदमी महसूल लेने वालों और गुनाहगारों का यार । मगर हिक्मत अपने कामों से रास्त साबित हुई है|’”
\s5
\v 20 वो उस वक़्त उन शहरों को मलामत करने लगा जिनमें उसके अकसर मो'जिज़े ज़ाहिर हुए थे; क्यूँकि उन्होंने तौबा न की थी।
\v 21 “ऐ ख़ुराज़ीन, तुझ पर अफ़्सोस ! ऐ बैत-सैदा, तुझ पर अफ़्सोस ! क्यूँकि जो मोजिज़े तुम में हुए अगर सूर और सैदा में होते तो वो टाट ओढ़ कर और ख़ाक में बैठ कर कब के तौबा कर लेते।
\v 22 मैं तुम से सच कहता हूँ; कि 'अदालत के दिन सूर और सैदा का हाल तुम्हारे हाल से ज़्यादा बर्दाश्त के लायक़ होगा।
\s5
\v 23 और ऐ कफ़रनहूम, क्या तू आस्मान तक बुलन्द किया जाएगा? तू तो आलम -ए अर्वाह में उतरेगा क्यूँकि जो मो'जिज़े तुम में ज़ाहिर हुए अगर सदूम में होते तो आज तक क़ायम रहता।
\v 24 मगर मैं तुम से कहता हूँ कि 'अदालत के दिन सदूम के इलाक़े का हाल तेरे हाल से ज़्यादा बर्दाश्त के लायक़ होगा।”
\s5
\v 25 उस वक़्त ईसा' ने कहा, “ऐ बाप, आस्मान-ओ-ज़मीन के ख़ुदावन्द मैं तेरी हम्द करता हूँ कि तू ने यह बातें समझदारों और अक़लमन्दों से छिपाईं और बच्चों पर ज़ाहिर कीं ।
\v 26 हाँ ऐ बाप!, क्यूँकि ऐसा ही तुझे पसन्द आया।
\v 27 मेरे बाप की तरफ़ से सब कुछ मुझे सौंपा गया और कोई बेटे को नहीं जानता सिवा बाप के और कोई बाप को नहीं जानता सिवा बेटे के और उसके जिस पर बेटा उसे ज़ाहिर करना चाहे।
\s5
\v 28 'ऐ मेहनत उठाने वालो और बोझ से दबे हुए लोगो, सब मेरे पास आओ! मैं तुम को आराम दूँगा।
\v 29 मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो और मुझ से सीखो, क्यूँकि मैं हलीम हूँ और दिल का फ़िरोतन तो तुम्हारी जानें आराम पाएँगी,
\v 30 क्यूँकि मेरा जूआ मुलायम है और मेरा बोझ हल्का।”
\s5
\c 12
\v 1 उस वक़्त ईसा' सबत के दिन खेतों में हो कर गया, और उसके शागिर्दों को भूक लगी और वो बालियां तोड़ तोड़ कर खाने लगे।
\v 2 फ़रीसियों ने देख कर उससे कहा “देख तेरे शागिर्द वो काम करते हैं जो सबत के दिन करना जायज़ नहीं।”
\s5
\v 3 उसने उनसे कहा “क्या तुम ने ये नहीं पढ़ा कि जब दाऊद और उस के साथी भूके थे; तो उसने क्या किया?
\v 4 वो क्यूँकर "ख़ुदा" के घर में गया और नज़्र की रोटियाँ खाईं जिनको खाना उसको जायज़ न था; न उसके साथियों को मगर सिर्फ़ काहिनों को?
\s5
\v 5 क्या तुम ने तौरेत में नहीं पढ़ा कि काहिन सबत के दिन हैकल में सबत की बेहुरमती करते हैं; और बेक़ुसूर रहते हैं?
\v 6 लेकिन मैं तुम से कहता हूँ कि यहाँ वो है जो हैकल से भी बड़ा है।
\s5
\v 7 लेकिन अगर तुम इसका मतलब जानते कि ,‘मैं क़ुर्बानी नहीं बल्कि, रहम पसन्द करता हूँ| तो बेक़ुसूरों को क़ुसूरवार न ठहराते।
\v 8 क्यूँकि इब्न-ए-आदम सबत का मालिक है।”
\s5
\v 9 वो वहाँ से चलकर उन के इबादतख़ाने में गया।
\v 10 और देखो; वहाँ एक आदमी था जिस का हाथ सूखा हुआ था उन्होंने उस पर इल्ज़ाम लगाने के 'इरादे से ये पुछा, “क्या सबत के दिन शिफ़ा देना जायज़ है|”
\s5
\v 11 उसने उनसे कहा, “तुम में ऐसा कौन है जिसकी एक भेड़ हो और वो सबत के दिन गड्ढे में गिर जाए तो वो उसे पकड़कर न निकाले?
\v 12 पस आदमी की क़द्र तो भेड़ से बहुत ही ज़्यादा है; इसलिए सबत के दिन नेकी करना जायज़ है|”
\s5
\v 13 तब उसने उस आदमी से कहा “अपना हाथ बढ़ा।” उस ने बढ़ाया और वो दूसरे हाथ की तरह दुरुस्त हो गया।
\v 14 इस पर फ़रीसियों ने बाहर जाकर उसके बरख़िलाफ़ मशवरा किया कि उसे किस तरह हलाक़ करें।
\s5
\v 15 ईसा' ये मा'लूम करके वहाँ से रवाना हुआ; और बहुत से लोग उसके पीछे हो लिए और उसने सब को अच्छा कर दिया,
\v 16 और उनको ताकीद की, कि मुझे ज़ाहिर न करना।
\v 17 ताकि जो यसायाह नबी की मा'रिफ़त कहा गया था वो पूरा हो।
\s5
\v 18 'देखो, ये मेरा ख़ादिम है जिसे मैं ने चुना मेरा प्यारा जिससे मेरा दिल ख़ुश है। मैं अपना रूह इस पर डालूँगा, और ये ग़ैर क़ौमों को इन्साफ़ की ख़बर देगा।
\s5
\v 19 ये न झगड़ा करेगा न शोर, और न बाज़ारों में कोई इसकी आवाज़ सुनेगा।
\v 20 ये कुचले हुए सरकन्डे को न तोड़ेगा और धुवाँ उठते हुए सन को न बुझाएगा; जब तक कि इन्साफ़ की फ़तह न कराए।
\v 21 और इसके नाम से ग़ैर क़ौमें उम्मीद रख्खेंगी।'
\s5
\v 22 उस वक़्त लोग उसके पास एक अंधे गूंगे को लाए; उसने उसे अच्छा कर दिया चुनाचे वो गूँगा बोलने और देखने लगा।
\v 23 “सारी भीड़ हैरान होकर कहने लगी; क्या ये इब्न-ए- आदम है?”
\s5
\v 24 फ़रीसियों ने सुन कर कहा,“ये बदरूहों के सरदार बा'लज़बूल की मदद के बग़ैर बदरूहों को नहीं निकालता।”
\v 25 उसने उनके ख़यालों को जानकर उनसे कहा, “जिस बादशाही में फ़ूट पड़ती है वो वीरान हो जाती है और जिस शहर या घर में फ़ूट पड़ेगी वो क़ायम न रहेगा।
\s5
\v 26 और अगर शैतान ही शैतान को निकाले तो वो आप ही अपना मुख़ालिफ़ हो गया; फिर उसकी बादशाही क्यूँकर क़ायम रहेगी?
\v 27 अगर मैं बा'लज़बूल की मदद से बदरूहों को निकालता हूँ तो तुम्हारे बेटे किस की मदद से निकालते हैं? पस वही तुम्हारे मुन्सिफ़ होंगे।
\s5
\v 28 लेकिन अगर मैं "ख़ुदा" के रूह की मदद से बदरूहों को निकालता हूँ तो "ख़ुदा" की बादशाही तुम्हारे पास आ पहुँची।
\v 29 या क्यूँकर कोई आदमी किसी ताक़तवर के घर में घुस कर उसका माल लूट सकता है; जब तक कि पहले उस ताक़तवर को न बाँध ले? फिर वो उसका घर लूट लेगा।
\v 30 जो मेरे साथ नहीं वो मेरे ख़िलाफ़ है और जो मेरे साथ जमा' नहीं करता वो बिखेरता है।
\s5
\v 31 इसलिए मैं तुम से कहता हूँ कि आदमियों का हर गुनाह और कुफ़्र तो मुआफ़ किया जाएगा; मगर जो कुफ़्र रूह के हक़ में हो वो मु'आफ़ न किया जाएगा।
\v 32 और जो कोई इब्न-ए-आदम के ख़िलाफ़ कोई बात कहेगा वो तो उसे मु'आफ़ की जाएगी; मगर जो कोई रूह- उल -कुद्दूस के ख़िलाफ़ कोई बात कहेगा; वो उसे मु'आफ़ न की जाएगी न इस आलम में न आने वाले में।
\s5
\v 33 या तो दरख़्त को भी अच्छा कहो; और उसके फ़ल को भी अच्छा, या दरख़्त को भी बुरा कहो और उसके फ़ल को भी बुरा; क्यूँकि दरख़्त फ़ल से पहचाँना जाता है।
\v 34 ऐ साँप के बच्चो! तुम बुरे होकर क्यूँकर अच्छी बातें कह सकते हो? क्यूँकि जो दिल में भरा है वही मुँह पर आता है।
\v 35 अच्छा आदमी अच्छे ख़ज़ाने से अच्छी चीज़ें निकालता है; बुरा आदमी बुरे ख़ज़ाने से बुरी चीज़ें निकालता है।
\s5
\v 36 मैं तुम से कहता हूँ ;कि जो निकम्मी बात लोग कहेंगे; 'अदालत के दिन उसका हिसाब देंगे।
\v 37 क्यूँकि तू अपनी बातों की वजह से रास्तबाज़ ठहराया जाएगा; और अपनी बातों की वजह से क़ुसूरवार ठहराया जाएगा।”
\s5
\v 38 इस पर कुछ आलिमों और फ़रीसियों ने जवाब में उससे कहा,“ऐ उस्ताद हम तुझ से एक निशान देखना चहते हैं।”
\v 39 उस ने जवाब देकर उनसे कहा, “इस ज़माने के बुरे और बे ईमान लोग निशान तलब करते हैं; मगर यूनाह नबी के निशान के सिवा कोई और निशान उनको न दिया जाएगा।
\v 40 क्यूँकि जैसे यूनाह तीन रात तीन दिन मछली के पेट में रहा; वैसे ही इबने आदम तीन रात तीन दिन ज़मीन के अन्दर रहेगा।
\s5
\v 41 निनवे शहर के लोग 'अदालत के दिन इस ज़माने के लोगों के साथ खड़े होकर इनको मुजरिम ठहराएँगे; क्यूँकि उन्होंने यूनाह के एलान पर तौबा कर ली; और देखो, यह वो है जो यूनाह से भी बड़ा है।
\s5
\v 42 दक्खिन की मलिका 'अदालत के दिन इस ज़माने के लोगों के साथ उठकर इनको मुजरिम ठहराएगी; क्यूँकि वो दुनिया के किनारे से सुलेमान की हिकमत सुनने को आई; और देखो यहाँ वो है जो सुलेमान से भी बड़ा है।
\s5
\v 43 जब बदरूह आदमी में से निकलती है तो सूखे मक़ामों में आराम ढूँडती फिरती है, और नहीं पाती।
\v 44 तब कहती है, ‘मैं अपने उस घर में फिर जाऊँगी जिससे निकली थी| और आकर उसे ख़ाली और झड़ा हुआ और आरास्ता पाती है।
\v 45 फिर जा कर और सात रूहें अपने से बुरी अपने साथ ले आती है और वो दाख़िल होकर वहाँ बसती हैं; और उस आदमी का पिछला हाल पहले से बदतर हो जाता है, इस ज़माने के बुरे लोगों का हाल भी ऐसा ही होगा|”
\s5
\v 46 जब वो भीड़ से ये कह रहा था, उसकी माँ और भाई बाहर खड़े थे, और उससे बात करना चहते थे।
\v 47 किसी ने उससे कहा,“देख तेरी माँ और भाई बाहर खड़े हैं और तुझ से बात करना चाहते हैं।”
\s5
\v 48 उसने ख़बर देने वाले को जवाब में कहा “कौन है मेरी माँ और कौन हैं मेरे भाई?”
\v 49 फिर अपने शागिर्दों की तरफ़ हाथ बढ़ा कर कहा, “देखो, मेरी माँ और मेरे भाई ये हैं।
\v 50 क्यूँकि जो कोई मेरे आस्मानी बाप की मर्ज़ी पर चले वही मेरा भाई, मेरी बहन और माँ है।”
\s5
\c 13
\v 1 उसी रोज़ ईसा' घर से निकलकर झील के किनारे जा बैठा।
\v 2 उस के पास एसी बड़ी भीड़ जमा' हो गई, कि वो नाव पर चढ़ बैठा, और सारी भीड़ किनारे पर खड़ी रही।
\s5
\v 3 और उसने उनसे बहुत सी बातें मिसालों में कहीं “देखो एक बोने वाला बीज बोने निकला।
\v 4 और बोते वक़्त कुछ दाने राह के किनारे गिरे और परिन्दों ने आकर उन्हें चुग लिया।
\v 5 और कुछ पथरीली ज़मीन पर गिरे जहाँ उनको बहुत मिट्टी न मिली और गहरी मिट्टी न मिलने की वजह से जल्द उग आए।
\v 6 और जब सूरज निकला तो जल गए और जड़ न होने की वजह से सूख गए |
\s5
\v 7 और कुछ झाड़ियों में गिरे और झाड़ियों ने बढ़ कर उनको दबा लिया।
\v 8 और कुछ अच्छी ज़मीन पर गिरे और फल लाए; कुछ सौ गुना कुछ साठ गुना कुछ तीस गुना।
\v 9 जो सुनना चाहता है वो सुन ले!”
\s5
\v 10 शागिर्दों ने पास आ कर उससे पूछा “तू उनसे मिसालों में क्या बातें करता है?”
\v 11 उस ने जवाब में उनसे कहा “इसलिए कि तुम को आस्मान की बादशाही के राज़ की समझ दी गई है, मगर उनको नहीं दी गई।
\v 12 क्यूँकि जिस के पास है उसे दिया जाएगा और उसके पास ज़्यादा हो जाएगा; और जिसके पास नहीं है उस से वो भी ले लिया जाएगा; जो उसके पास है।
\s5
\v 13 मैं उनसे मिसालों में इसलिए बातें कहता हूँ; कि वो देखते हुए नहीं देखते और सुनते हुए नहीं सुनते और नहीं समझते।
\v 14 उनके हक़ में यसायाह की ये नबूव्वत पूरी होती है कि ‘तुम कानों से सुनोगे पर हरगिज़ न समझोगे, और आँखों से देखोगे और हरगिज़ मा'लूम न करोगे।
\s5
\v 15 क्यूँकि इस उम्मत के दिल पर चर्बी छा गई है, और वो कानों से ऊँचा सुनते हैं; और उन्होंने अपनी आँखें बन्द कर ली हैं; ताकि ऐसा न हो कि आँखों से मा'लूम करें और कानों से सुनें और दिल से समझें और रुजू लाएँ और में उनको शिफ़ा बख़्शूं।’
\s5
\v 16 लेकिन मुबारक हैं तुम्हारी आँखें क्यूँकि वो देखती हैं और तुम्हारे कान इसलिए कि वो सुनते हैं।
\v 17 क्यूँकि मैं तुम से सच कहता हूँ कि बहुत से नबियों और रास्तबाज़ों की आरज़ू थी कि जो कुछ तुम देखते हो देखें मगर न देखा और जो बातें तुम सुनते हो सुनें मगर न सुनीं।
\s5
\v 18 पस बोनेवाले की मिसाल सुनो।
\v 19 जब कोई बादशाही का कलाम सुनता है और समझता नहीं तो जो उसके दिल में बोया गया था उसे वो शैतान छीन ले जाता है ये वो है जो राह के किनारे बोया गया था।
\s5
\v 20 और वो पथरीली ज़मीन में बोया गया; ये वो है जो कलाम को सुनता है, और उसे फ़ौरन ख़ुशी से क़ुबूल कर लेता है।
\v 21 लेकिन अपने अन्दर जड़ नहीं रखता बल्कि चंद रोज़ा है, और जब कलाम के वजह से मुसीबत या ज़ुल्म बर्पा होता है तो फ़ौरन ठोकर खाता है।
\s5
\v 22 और जो झाड़ियों में बोया गया, ये वो है जो कलाम को सुनता है और दुनिया की फ़िक्र और दौलत का फ़रेब उस कलाम को दबा देता है; और वो बे फल रह जाता है।
\v 23 और जो अच्छी ज़मीन में बोया गया, ये वो है जो कलाम को सुनता और समझता है और फल भी लाता है; कोई सौ गुना फलता है, कोई साठ गुना, और कोई तीस गुना।”
\s5
\v 24 उसने एक और मिसाल उनके सामने पेश करके कहा, “आसमान की बादशाही उस आदमी की तरह है; जिसने अपने खेत में अच्छा बीज बोया।
\v 25 मगर लोगों के सोते में उसका दुश्मन आया और गेहूँ में कड़वे दाने भी बो गया।
\v 26 पस जब पत्तियाँ निकलीं और बालें आईं तो वो कड़वे दाने भी दिखाई दिए।
\s5
\v 27 नौकरों ने आकर घर के मालिक से कहा, ‘ऐ ख़ुदावन्द क्या तू ने अपने खेत में अच्छा बीज न बोया था? उस में कड़वे दाने कहाँ से आ गए?
\v 28 उस ने उनसे कहा, ‘ये किसी दुश्मन का काम है, नौकरों ने उससे कहा, तो क्या तू चाहता है कि हम जाकर उनको जमा' करें।’
\s5
\v 29 उस ने कहा, ‘नहीं, ऐसा न हो कि कड़वे दाने जमा' करने में तुम उनके साथ गेहूँ भी उखाड़ लो।
\v 30 कटाई तक दोनों को इकट्ठा बढ़ने दो, और कटाई के वक़्त में काटने वालों से कह दूँगा कि पहले कड़वे दाने जमा कर लो और जलाने के लिए उनके गठ्ठे बाँध लो और गेहूँ मेरे खत्ते में जमा' कर दो|’”
\s5
\v 31 उसने एक और मिसाल उनके सामने पेश करके कहा, “आसमान की बादशाही उस राई के दाने की तरह है जिसे किसी आदमी ने लेकर अपने खेत में बो दिया।
\v 32 वो सब बीजों से छोटा तो है मगर जब बढ़ता है तो सब तरकारियों से बड़ा और ऐसा दरख़्त हो जाताहै, कि हवा के परिन्दे आकर उसकी डालियों पर बसेरा करते हैं|”
\s5
\v 33 उस ने एक और मिसाल उनको सुनाई। “आस्मान की बादशाही उस ख़मीर की तरह है जिसे किसी 'औरत ने ले कर तीन पैमाने आटे में मिला दिया और वो होते होते सब ख़मीर हो गया।”
\s5
\v 34 ये सब बातें ईसा' ने भीड़ से मिसालों में कहीं और बग़ैर मिसालों के वो उनसे कुछ न कहता था।
\v 35 ताकि जो नबी के ज़रिये कहा गया थ वो पूरा हो “मैं मिसालों में अपना मुँह खोलूँगा; में उन बातों को ज़ाहिर करूँगा जो बिना -ए- आलम से छिपी रही हैं।”
\s5
\v 36 उस वक़्त वो भीड़ को छोड़ कर घर में गया और उस के शागिर्दों ने उस के पास आकर कहा, “खेत के कड़वे दाने की मिसाल हमें समझा दे। ”
\v 37 उस ने जवाब में उन से कहा, “अच्छे बीज का बोने वाला इबने आदम है।
\v 38 और खेत दुनिया है और अच्छा बीज बादशाही के फ़र्ज़न्द और कड़वे दाने उस शैतान के प़र्ज़न्द हैं।
\v 39 जिस दुश्मन ने उन को बोया वो इब्लीस है। और कटाई दुनिया का आख़िर है और काटने वाले फ़िरिश्ते हैं।
\s5
\v 40 पस जैसे कड़वे दाने जमा' किए जाते और आग में जलाए जाते हैं।
\v 41 इब्न-ए- आदम अपने फ़िरिश्तों को भेजेगा; और वो सब ठोकर खिलाने वाली चीज़ें और बदकारों को उस की बादशाही में से जमा' करेंगे।
\v 42 और उनको आग की भट्टी में डाल देंगे वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।
\v 43 उस वक़्त रास्तबाज़ अपने बाप की बादशाही में सूरज की तरह चमकेंगे; जिसके कान हों वो सुन ले!
\s5
\v 44 आसमान की बादशाही खेत में छिपे ख़ज़ाने की तरह है जिसे किसी आदमी ने पाकर छिपा दिया और ख़ुशी के मारे जाकर जो कुछ उसका था; बेच डाला और उस खेत को ख़रीद लिया|”
\v 45 “फिर आसमान की बादशाही उस सौदागर की तरह है, जो उम्दा मोतियों की तलाश में था ।
\v 46 जब उसे एक बेशक़ीमती मोती मिला तो उस ने जाकर जो कुछ उस का था बेच डाला और उसे ख़रीद लिया।
\s5
\v 47 फिर आसमान की बादशाही उस बड़े जाल की तरह है; जो दरिया में डाला गया और उस ने हर क़िस्म की मछलियाँ समेट लीं।
\v 48 और जब भर गया तो उसे किनारे पर खींच लाए; और बैठ कर अच्छी अच्छी तो बर्तनों में जमा' कर लीं और जो ख़राब थी फ़ेंक दीं।
\s5
\v 49 दुनिया के आख़िर में ऐसा ही होगा; फ़रिश्ते निकलेंगे और शरीरों को रास्तबाज़ों से जुदा करेंगे; और उनको आग की भट्टी में डाल देंगे।
\v 50 वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।”
\s5
\v 51 “क्या तुम ये सब बातें समझ गए?” उन्होंने उससे कहा,“हाँ|”
\v 52 उसने उससे कहा,“इसलिए हर आलिम जो आसमान की बादशाही का शागिर्द बना है उस घर के मालिक की तरह है जो अपने ख़ज़ाने में से नई और पुरानी चीज़ें निकालता है।”
\v 53 जब ईसा' ये मिसाल ख़त्म कर चुका तो ऐसा हुआ कि वहाँ से रवाना हो गया।
\s5
\v 54 और अपने वतन में आकर उनके इबादतख़ाने में उनको ऐसी ता'लीम देने लगा; कि वो हैरान होकर कहने लगे, “इसमें ये हिकमत और मो'जिज़े कहाँ से आए?
\v 55 क्या ये बढ़ई का बेटा नहीं? और इस की माँ का नाम मरियम और इस के भाई या'कूब और यूसुफ़ और शमा'ऊन और यहूदा नहीं?
\v 56 और क्या इस की सब बहनें हमारे यहाँ नहीं? फिर ये सब कुछ इस में कहाँ से आया?”
\s5
\v 57 और उन्होंने उसकी वजह से ठोकर खाई मगर ईसा' ने उन से कहा “नबी अपने वतन और अपने घर के सिवा कहीं बेइज़्ज़त नहीं होता।”
\v 58 और उसने उनकी बेऐ'तिक़ादी की वजह से वहाँ बहुत से मो'जिज़े न दिखाए।
\s5
\c 14
\v 1 उस वक़्त चौथाई मुल्क के हाकिम हेरोदेस ने ईसा' की शोहरत सुनी।
\v 2 और अपने ख़ादिमों से कहा “ये यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला है वो मुर्दों में से जी उठा है; इसलिए उससे ये मो'जिज़े ज़ाहिर होते हैं।”
\s5
\v 3 क्यूँकि हेरोदेस ने अपने भाई फ़िलिप्पुस की बीवी हेरोदियास की वजह से यूहन्ना को पकड़ कर बाँधा और क़ैद ख़ाने में डाल दिया था।
\v 4 क्योंकि यूहन्ना ने उससे कहा था कि इसका रखना तुझे जायज़ नहीं।
\v 5 और वो हर चंद उसे क़त्ल करना चाहता था, मगर आम लोगों से डरता था क्यूँकि वो उसे नबी मानते थे।
\s5
\v 6 लेकिन जब हेरोदेस की साल गिरह हुई तो हेरोदियास की बेटी ने महफ़िल में नाच कर हेरोदेस को ख़ुश किया।
\v 7 इस पर उसने क़सम खाकर उससे वा'दा किया “जो कुछ तू माँगेगी तुझे दूँगा।”
\s5
\v 8 उसने अपनी माँ के सिखाने से कहा,“मुझे यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का सिर थाल में यहीं मँगवा दे।”
\v 9 बादशाह ग़मगीन हुआ; मगर अपनी क़समों और मेहमानों की वजह से उसने हुक्म दिया कि " दे दिया जाए।
\s5
\v 10 और आदमी भेज कर क़ैद ख़ाने में यूहन्ना का सिर कटवा दिया।
\v 11 और उस का सिर थाल में लाया गया और लड़की को दिया गया; और वो उसे अपनी माँ के पास ले गई।
\v 12 और उसके शागिर्दों ने आकर लाश उठाई और उसे दफ़्न कर दिया, और जा कर ईसा' को ख़बर दी।
\s5
\v 13 जब ईसा' ने ये सुना तो वहाँ से नाव पर अलग किसी वीरान जगह को रवाना हुआ और लोग ये सुनकर शहर शहर से पैदल उसके पीछे गए।
\v 14 उसने उतर कर बड़ी भीड़ देखी और उसे उन पर तरस आया; और उसने उनके बीमारों को अच्छा कर दिया।
\s5
\v 15 जब शाम हुई तो शागिर्द उसके पास आकर कहने लगे “जगह वीरान है और वक़्त गुज़र गया है लोगों को रुख़्सत कर दे ताकि गाँव में जाकर अपने लिए खाना खरीद लें।”
\s5
\v 16 ईसा' ने उनसे कहा , “इन्हें जाने की ज़रूरत नहीं, तुम ही इनको खाने को दो।”
\v 17 उन्होंने उससे कहा “यहाँ हमारे पास पाँच रोटियाँ और दो मछलियों के सिवा और कुछ नहीं।”
\v 18 उसने कहा “वो यहाँ मेरे पास ले आओ,”
\s5
\v 19 और उसने लोगों को घास पर बैठने का हुक्म दिया। फिर उस ने वो पाँच रोटियों और दो मछलियाँ लीं और आसमान की तरफ़ देख कर बर्कत दी और रोटियाँ तोड़ कर शागिर्दों को दीं और शागिर्दों ने लोगो को।
\v 20 और सब खाकर सेर हो गए; और उन्होंने बिना इस्तेमाल बचे हुए खाने से भरी हुई बारह टोकरियाँ उठाईं।
\v 21 और खानेवाले औरतों और बच्चों के सिवा पाँच हज़ार मर्द के क़रीब थे।
\s5
\v 22 और उसने फ़ौरन शागिर्दों को मजबूर किया कि नाव में सवार होकर उससे पहले पार चले जाएँ जब तक वो लोगों को रुख़्सत करे।
\v 23 और लोगों को रुख़्सत करके तन्हा दुआ करने के लिए पहाड़ पर चढ़ गया; और जब शाम हुई तो वहाँ अकेला था।
\v 24 मगर नाव उस वक़्त झील के बीच में थी और लहरों से डगमगा रही थी; क्यूँकि हवा मुख़ालिफ़ थी।
\s5
\v 25 और वो रात के चौथे पहर झील पर चलता हुआ उनके पास आया।
\v 26 शागिर्द उसे झील पर चलते हुए देखकर घबरा गए और कहने लगे “भूत है,”और डर कर चिल्ला उठे।
\v 27 ईसा' ने फ़ौरन उन से कहा “इत्मिनान रख्खो! मैं हूँ। डरो मत।”
\s5
\v 28 पतरस ने उससे जवाब में कहा “ऐ ख़ुदावन्द, अगर तू है तो मुझे हुक्म दे कि पानी पर चलकर तेरे पास आऊँ।”
\v 29 उस ने कहा ,“आ।”पतरस नाव से उतर कर ईसा' के पास जाने के लिए पानी पर चलने लगा।
\v 30 मगर जब हवा देखी तो डर गया और जब डूबने लगा तो चिल्ला कर कहा “ऐ ख़ुदावन्द, मुझे बचा!”
\s5
\v 31 ईसा' ने फ़ौरन हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ लिया। और उससे कहा,“ऐ कम ईमान तूने क्यूँ शक किया ?”
\v 32 जब वो नाव पर चढ़ आए तो हवा थम गई;
\v 33 जो नाव पर थे, उन्होंने सज्दा करके कहा “यक़ीनन तू "ख़ुदा" का बेटा है!”
\s5
\v 34 वो नदी पार जाकर गनेसरत के इलाक़े में पहुँचे।
\v 35 और वहाँ के लोगों ने उसे पहचान कर उस सारे इलाके में ख़बर भेजी; और सब बीमारों को उस के पास लाए।
\v 36 और वो उसकी मिन्नत करने लगे कि उसकी पोशाक का किनारा ही छू लें और जितनों ने उसे छुआ वो अच्छे हो गए।
\s5
\c 15
\v 1 उस वक़्त फ़रीसियों और आलिमों ने यरूशलीम से ईसा' के पास आकर कहा।
\v 2 “तेरे शागिर्द हमारे बुज़ुर्गों की रिवायत को क्यूँ टाल देते हैं; कि खाना खाते वक़्त हाथ नहीं धोते? ”
\v 3 उस ने जवाब में उनसे कहा “ तुम अपनी रिवायात से "ख़ुदा" का हुक्म क्यूँ टाल देते हो?
\s5
\v 4 क्यूँकि "ख़ुदा" ने फ़रमाया है,‘तू अपने बाप की और अपनी माँ की 'इज़्ज़त करना, और ‘जो बाप या माँ को बुरा कहे वो ज़रूर जान से मारा जाए|
\v 5 मगर तुम कहते हो कि जो कोई बाप या माँ से कहे, 'जिस चीज़ का तुझे मुझ से फ़ायदा पहुँच सकता था, ‘वो "ख़ुदा" की नज़्र हो चुकी,
\v 6 तो वो अपने बाप की इज्ज़त न करे; पस तुम ने अपनी रिवायत से "ख़ुदा" का कलाम बातिल कर दिया।
\s5
\v 7 ऐ रियाकारो! यसायाह ने तुम्हारे हक़ में क्या ख़ूब नबूव्वत की है,
\v 8 ‘ये उम्मत ज़बान से तो मेरी 'इज़्ज़त करती है मगर इन का दिल मुझ से दूर है।
\v 9 और ये बेफ़ाइदा मेरी इबादत करते हैं क्यूँकि इन्सानी अहकाम की ता'लीम देते हैं|’”
\s5
\v 10 फिर उस ने लोगों को पास बुला कर उनसे कहा, “सुनो और समझो।
\v 11 जो चीज़ मुँह में जाती है, वो आदमी को नापाक नहीं करती मगर जो मुँह से निकलती है वही आदमी को नापाक करती है।”
\s5
\v 12 इस पर शागिर्दों ने उसके पास आकर कहा, “क्या तू जानता है कि फ़रीसियों ने ये बात सुन कर ठोकर खाई?”
\v 13 उसने जवाब में कहा, “जो पौदा मेरे आसमानी बाप ने नहीं लगाया, जड़ से उखाड़ा जाएगा।
\v 14 उन्हें छोड़ दो, वो अन्धे राह बताने वाले हैं; और अगर अन्धे को अन्धा राह बताएगा तो दोनों गड्ढे में गिरेंगे।”
\s5
\v 15 पतरस ने जवाब में उससे कहा “ये मिसाल हमें समझा दे।”
\v 16 उस ने कहा, “क्या तुम भी अब तक नासमझ हो?
\v 17 क्या नहीं समझते कि जो कुछ मुँह में जाता है; वो पेट में पड़ता है और गंदगी में फेंका जाता है?
\s5
\v 18 मगर जो बातें मुँह से निकलती हैं वो दिल से निकलती हैं और वही आदमी को नापाक करती हैं।
\v 19 क्यूँकि बुरे ख़याल, ख़ू रेज़ियाँ, ज़िनाकारियाँ, हरामकारियाँ, चोरियाँ, झूटी, गवाहियाँ, बदगोईयाँ, दिल ही से निकलती हैं।”
\v 20 “यही बातें हैं जो आदमी को नापाक करती हैं, मगर बग़ैर हाथ धोए खाना खाना आदमी को नापाक नहीं करता|”
\s5
\v 21 फिर ईसा' वहाँ से निकल कर सूर और सैदा के इलाक़े को रवाना हुआ।
\v 22 और देखो, एक कनानी 'औरत उन सरहदों से निकली और पुकार कर कहने लगी,“ऐ ख़ुदावन्द! इबने दाऊद मुझ पर रहम कर! एक बदरूह मेरी बेटी को बहुत सताती है|”
\v 23 मगर उसने उसे कुछ जवाब न दिया “उसके शागिर्दों ने पास आकर उससे ये अर्ज़ किया कि ; उसे रुख़्सत कर दे, क्यूँकि वो हमारे पीछे चिल्लाती है ।”
\s5
\v 24 उसने जवाब में कहा , “में इस्राईल के घराने की खोई हुई भेड़ों के सिवा और किसी के पास नहीं भेजा गया।”
\v 25 मगर उसने आकर उसे सज्दा किया और कहा “ऐ ख़ुदावन्द, मेरी मदद कर!”
\v 26 उस ने जवाब में कहा “लड़कों की रोटी लेकर कुत्तों को डाल देना अच्छा नहीं।”
\s5
\v 27 उसने कहा “हाँ ख़ुदावन्द,। क्यूँकि कुत्ते भी उन टुकड़ों में से खाते हैं जो उनके मालिकों की मेज़ से गिरते हैं।”
\v 28 इस पर ईसा' ने जवाब में कहा, “ऐ 'औरत, तेरा ईमान बहुत बड़ा है। जैसा तू चाहती है तेरे लिए वैसा ही हो; और उस की बेटी ने उसी वक़्त शिफ़ा पाई”।
\s5
\v 29 फिर ईसा' वहाँ से चल कर गलील की झील के नज़दीक आया और पहाड़ पर चढ़ कर वहीं बैठ गया।
\v 30 और एक बड़ी भीड़ लंगड़ों, अन्धों, गूँगों, टुन्डों और बहुत से और बीमारों को अपने साथ लेकर उसके पास आई और उनको उसके पाँवों में डाल दिया; उसने उन्हें अच्छा कर दिया।
\v 31 चुनाँचे जब लोगों ने देखा कि गूँगे बोलते, टुन्डे तन्दुरुस्त होते, लंगड़े चलते फिरते और अन्धे देखते हैं तो ता'ज्जुब किया; और इस्राईल के "ख़ुदा" की बड़ाई की।
\s5
\v 32 और ईसा' ने अपने शागिर्दों को पास बुला कर कहा, “मुझे इस भीड़ पर तरस आता है। क्यूँकि ये लोग तीन दिन से बराबर मेरे साथ हैं और इनके पास खाने को कुछ नहीं और मैं इनको भूखा रुख़्सत करना नहीं चाहता; कहीं ऐसा न हो कि रास्ते में थककर रह जाएँ।”
\v 33 शागिर्दों ने उससे कहा, “वीराने में हम इतनी रोटियाँ कहाँ से लाएँ; कि ऐसी बड़ी भीड़ को सेर करें?”
\v 34 ईसा' ने उनसे कहा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने कहा, “सात और थोड़ी सी छोटी मछलियाँ हैं|”
\v 35 उसने लोगों को हुक्म दिया कि ज़मीन पर बैठ जाएँ।
\s5
\v 36 और उन सात रोटियों और मछलियों को लेकर शुक्र किया और उन्हें तोड़ कर शागिर्दों को देता गया और शागिर्द लोगों को।
\v 37 और सब खाकर सेर हो गए; और बिना इस्तेमाल बचे हुए खाने से भरे हुए सात टोकरे उठाए।
\v 38 और खाने वाले सिवा औरतों और बच्चों के चार हज़ार मर्द थे।
\v 39 फिर वो भीड़ को रुख़्सत करके नाव पर सवार हुआ और मगदन की सरहदों में आ गया।
\s5
\c 16
\v 1 फिर फ़रीसियों और सदूक़ियों ने 'ईसा के पास आकर आज़माने के लिए उससे दरख़्वास्त की;कि हमें कोई आसमानी निशान दिखा।
\v 2 उसने जवाब में उनसे कहा “शाम को तुम कहते हो, ‘खुला रहेगा , क्यूँकि आसमान लाल है’
\s5
\v 3 और सुबह को ये कि ‘आज आन्धी चलेगी क्यूँकि आसमान लाल धुन्धला है ’तुम आसमान की सूरत में तो पहचान करना जानते हो मगर ज़मानों की अलामतों में पहचान नहीं कर सकते ।
\v 4 इस ज़माने के बुरे और बे ईमान लोग निशान तलब करते हैं; मगर यूनाह के निशान के सिवा कोई और निशान उनको न दिया जाएगा। और वो उनको छोड़ कर चला गया ”।
\s5
\v 5 शागिर्द पार जाते वक़्त रोटी साथ लेना भूल गए थे।
\v 6 ईसा' ने उन से कहा, “ख़बरदार, फ़रीसियों और सदूक़ियों के ख़मीर से होशियार रहना।”
\v 7 वो आपस में चर्चा करने लगे, “हम रोटी नहीं लाए।”
\v 8 ईसा' ने ये मालूम करके कहा, "ऐ कम-ऐ'तिक़ादों तुम आपस मे क्योँ चर्चा करते हो कि हमारे पास रोटी नहीं?
\s5
\v 9 क्या अब तक नहीं समझते और उन पाँच हज़ार आदमियों की पाँच रोटियाँ तुम को याद नहीं? और न ये कि कितनी टोकरियाँ उठाईं?
\v 10 और न उन चार हज़ार आदमियों की सात रोटियाँ? और न ये कि कितने टोकरे उठाए।
\s5
\v 11 क्या वजह है कि तुम ये नहीं समझते कि मैंने तुम से रोटी के बारे मे नहीं कहा “फ़रीसियों और सदूक़ियों के ख़मीर से होशियार रहो|”
\v 12 जब उनकी समझ में न आया कि उसने रोटी के खमीर से नहीं; बल्कि फ़रीसियों और सदूक़ियों की ता'लीम से ख़बरदार रहने को कहा था।
\s5
\v 13 जब ईसा' क़ैसरिया फ़िलप्पी के इलाक़े में आया तो उसने अपने शागिर्दों से ये पूछा,“ लोग इब्न-ए- आदम को क्या कहते हैं?”
\v 14 उन्होंने कहा, “कुछ यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला कहते हैं। कुछ एलिया और कुछ यरमियाह या नबियों में से कोई।”
\v 15 उसने उनसे कहा,“मगर तुम मुझे क्या कहते हो?”
\v 16 शमा'ऊन पतरस ने जवाब में कहा,“तू ज़िन्दा ख़ुदा का बेटा मसीह है।”
\s5
\v 17 ईसा' ने जवाब में उससे कहा,“मुबारक है तू शमा'ऊन बर-यूनाह, क्यूँकि ये बात गोश्त और ख़ून ने नहीं, बल्कि मेरे बाप ने जो आसमान पर है; तुझ पर ज़ाहिर की है।
\v 18 और मैं भी तुम से कहता हूँ; कि तू पतरस है; और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊँगा। और आलम- ए-अरवाह के दरवाज़े उस पर ग़ालिब न आएँगे।
\s5
\v 19 मैं आसमान की बादशाही की कुन्जियाँ तुझे दूँगा; और जो कुछ तू ज़मीन पर बाँधे गा वो आसमान पर बाँधेगा और जो कुछ तू ज़मीन पर खोले गा वो आसमान पर खुलेगा|”
\v 20 उस वक़्त उसने शागिर्दों को हुक्म दिया कि किसी को न बताना कि मैं मसीह हूँ।
\s5
\v 21 उस वक़्त से ईसा' अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर करने लगा “कि उसे ज़रूर है कि यरूशलीम को जाए और बुज़ुर्गों और सरदार काहिनों और आलिमों की तरफ़ से बहुत दु:ख उठाए; और क़त्ल किया जाए और तीसरे दिन जी उठे।”
\v 22 इस पर पतरस उसको अलग ले जाकर मलामत करने लगा “ऐ ख़ुदावन्द, "ख़ुदा" न करे ये तुझ पर हरगिज़ नहीं आने का।”
\v 23 उसने फिर कर पतरस से कहा, “ऐ शैतान, मेरे सामने से दूर हो ! तू मेरे लिए ठोकर का बा'इस है; क्यूँकि तू "ख़ुदा" की बातों का नहीं बल्कि आदमियों की बातों का ख़याल रखता है।”
\s5
\v 24 उस वक़्त ईसा' ने अपने शागिर्दों से कहा, “अगर कोई मेरे पीछे आना चाहे तो अपने आपका इन्कार करे; अपनी सलीब उठाए और मेरे पीछे हो ले।
\v 25 क्यूँकि जो कोई अपनी जान बचाना चाहे उसे खोएगा; और जो कोई मेरी ख़ातिर अपनी जान खोएगा उसे पाएगा।
\v 26 अगर आदमी सारी दुनिया हासिल करे और अपनी जान का नुक़्सान उठाए तो उसे क्या फ़ाइदा होगा?
\s5
\v 27 क्यूँकि इब्न-ए-आदम अपने बाप के जलाल में अपने फ़रिश्तों के साथ आएगा; उस वक़्त हर एक को उसके कामों के मुताबिक़ बदला देगा।
\v 28 मैं तुम से सच कहता हूँ कि जो यहाँ खड़े हैं उन में से कुछ ऐसे हैं कि जब तक इब्न-ए-आदम को उसकी बादशाही में आते हुए न देख लेंगे; मौत का मज़ा हरगिज़ न चखेंगे।”
\s5
\c 17
\v 1 छः दिन के बाद ईसा' ने पतरस, को और याक़ूब और उसके भाई यूहन्ना को साथ लिया और उन्हें एक ऊँचे पहाड़ पर ले गया।
\v 2 और उनके सामने उसकी सूरत बदल गई; और उसका चेहरा सूरज की तरह चमका और उसकी पोशाक नूर की तरह सफ़ेद हो गई।
\s5
\v 3 और देखो; मूसा और एलियाह उसके साथ बातें करते हुए उन्हें दिखाई दिए।
\v 4 पतरस ने ईसा' से कहा “ ऐ ख़ुदावन्द, हमारा यहाँ रहना अच्छा है; मर्ज़ी हो तो मैं यहाँ तीन डेरे बनाऊँ। एक तेरे लिए; एक मूसा के लिए; और एक एलियाह के लिए।”
\s5
\v 5 वो ये कह ही रहा था कि देखो; “एक नूरानी बादल ने उन पर साया कर लिया और उस बादल में से आवाज़ आई; ये मेरा प्यारा बेटा है जिससे मैं ख़ुश हूँ; उसकी सुनो।”
\v 6 शागिर्द ये सुनकर मुँह के बल गिरे और बहुत डर गए।
\v 7 ईसा' ने पास आ कर उन्हें छुआ और कहा, “उठो डरो मत ।”
\v 8 जब उन्होंने अपनी आँखें उठाईं तो ईसा' के सिवा और किसी को न देखा।
\s5
\v 9 जब वो पहाड़ से उतर रहे थे तो ईसा' ने उन्हें ये हुक्म दिया “जब तक इब्न-ए- आदम मुर्दों में से जी न उठे; जो कुछ तुम ने देखा है किसी से इसका ज़िक्र न करना।”
\v 10 शागिर्दों ने उस से पूछा, “फिर आलिम क्यूँ कहते हैं कि एलियाह का पहले आना ज़रूर है?”
\s5
\v 11 उस ने जवाब में कहा, “एलियाह अलबत्ता आएगा और सब कुछ बहाल करेगा।
\v 12 लेकिन मैं तुम से कहता हूँ; कि एलियाह तो आ चुका और उन्हों ने उसे नहीं पहचाना बल्कि जो चाहा उसके साथ किया; इसी तरह इबने आदम भी उनके हाथ से दु:ख उठाएगा।”
\v 13 और शागिर्द समझ गए; कि उसने उनसे यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के बारे में कहा है।
\s5
\v 14 और जब वो भीड़ के पास पहुँचे तो एक आदमी उसके पास आया; और उसके आगे घुटने टेक कर कहने लगा।
\v 15 “ऐ ख़ुदावन्द, मेरे बेटे पर रहम कर, क्यूँकि उसको मिर्गी आती है और वो बहुत दु:ख उठाता है; इसलिए कि अक्सर आग और पानी में गिर पड़ता है।
\v 16 और मैं उसको तेरे शागिर्दों के पास लाया था; मगर वो उसे अच्छा न कर सके।”
\s5
\v 17 ईसा' ने जवाब में कहा, “ऐ बे ऐ'तिक़ाद और टेढ़ी नस्ल मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? कब तक तुम्हारी बर्दाशत करूँगा? उसे यहाँ मेरे पास लाओ|”
\v 18 ईसा' ने उसे झिड़का और बदरूह उससे निकल गई; वो लड़का उसी वक़्त अच्छा हो गया।
\s5
\v 19 तब शागिर्दों ने ईसा' के पास आकर तन्हाई में कहा “हम इस को क्यूँ न निकाल सके?”
\v 20 उस ने उनसे कहा, “अपने ईमान की कमी की वजह से ‘क्यूँकि मैं तुम से सच कहता हूँ, कि अगर तुम में राई के दाने के बराबर भी ईमान होगा’तो इस पहाड़ से कह सकोगे; यहाँ से सरक कर वहाँ चला जा, और वो चला जाएगा; और कोई बात तुम्हारे लिए नामुमकिन न होगी।”
\v 21 (लेकिन ये क़िस्म दुआ और रोज़े के सिवा और किसी तरह नहीं निकल सकती)।
\s5
\v 22 जब वो गलील में ठहरे हुए थे, ईसा' ने उनसे कहा, “'इब्न-ए-आदम आदमियों के हवाले किया जाएगा।
\v 23 और वो उसे क़त्ल करेंगे और तीसरे दिन ज़िन्दा किया जाएगा|” इस पर वो बहुत ही ग़मगीन हुए।
\s5
\v 24 और जब कफ़रनहूम में आए तो नीम मिस्काल लेनेवालों ने पतरस के पास आकर कहा, “क्या तुम्हारा उस्ताद नीम मिस्क़ाल नहीं देता?”
\v 25 उसने कहा, “हाँ देता है|” और जब वो घर में आया तो ईसा' ने उसके बोलने से पहले ही कहा,“ऐ शमा'ऊन तू क्या समझता है? दुनिया के बादशाह किनसे महसूल या जिज़िया लेते हैं; अपने बेटों से या ग़ैरों से?”
\s5
\v 26 जब उसने कहा, “ग़ैरों से,” तो ईसा' ने उनसे कहा, “ पस बेटे बरी हुए।
\v 27 लेकिन मुबादा हम इनके लिए ठोकर का बा'इस हों तू झील पर जाकर बन्सी डाल और जो मछली पहले निकले उसे ले और जब तू उसका मुँह खोलेगा; तो एक चाँदी का सिक्का पाएगा; वो लेकर मेरे और अपने लिए उन्हें दे।”
\s5
\c 18
\v 1 उस वक़्त शागिर्द ईसा' के पास आ कर कहने लगे, “पस आस्मान की बादशाही में बड़ा कौन है?”
\v 2 उसने एक बच्चे को पास बुलाकर उसे उनके बीच में खड़ा किया।
\v 3 और कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ कि अगर तुम तौबा न करो और बच्चों की तरह न बनो तो आस्मान की बादशाही में हरग़िज़ दाख़िल न होगे।
\s5
\v 4 पस जो कोई अपने आपको इस बच्चे की तरह छोटा बनाएगा; वही आसमान की बादशाही में बड़ा होगा।
\v 5 और जो कोई ऐसे बच्चे को मेरे नाम पर क़ुबूल करता है; वो मुझे क़ुबूल करता है।
\v 6 लेकिन जो कोई इन छोटों में से जो मुझ पर ईमान लाए हैं; किसी को ठोकर खिलाता है उसके लिए ये बेहतर है कि बड़ी चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाए और वो गहरे समुन्दर में डुबो दिया जाए।
\s5
\v 7 ठोकरों की वजह से दुनिया पर अफ़्सोस है; क्यूँकि ठोकरों का होना ज़रूर है; लेकिन उस आदमी पर अफ़्सोस है; जिसकी वजह से ठोकर लगे।
\v 8 पस अगर तेरा हाथ या तेरा पाँव तुझे ठोकर खिलाए तो उसे काट कर अपने पास से फेंक दे; टुन्डा या लंगड़ा होकर ज़िन्दगी में दाख़िल होना तेरे लिए इससे बेहतर है; कि दो हाथ या दो पाँव रखता हुआ तू हमेशा की आग में डाला जाए।
\s5
\v 9 और अगर तेरी आँख तुझे ठोकर खिलाए तो उसे निकाल कर अपने से फेंक दे ; काना हो कर ज़िन्दगी में दाख़िल होना तेरे लिए इससे बेहतर है कि दो आँखें रखता हुआ तू जहन्नुम कि आग में डाला जाए।
\s5
\v 10 ख़बरदार! इन छोटों में से किसी को नाचीज़ न जानना। क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ; कि आसमान पर उनके फ़रिश्ते मेरे आसमानी बाप का मुँह हर वक़्त देखते हैं।
\v 11 [क्यूँकि इब्न-ए-आदम खोए हुओं को ढूँडने और नजात देने आया है।]
\s5
\v 12 तुम क्या समझते हो? अगर किसी आदमी की सौ भेड़ें हों और उन में से एक भटक जाए; तो क्या वो निनानवें को छोड़कर और पहाड़ों पर जाकर उस भटकी हुई को न ढूँडेगा?।
\v 13 और अगर ऐसा हो कि उसे पाए; तो मैं तुम से सच कहता हूँ; कि वो उन निनानवें से जो भटकी हुई नहीं इस भेड़ की ज़्यादा ख़ुशी करेगा।
\v 14 इस तरह तुम्हारा आसमानी बाप ये नहीं चाहता कि इन छोटों में से एक भी हलाक हो।
\s5
\v 15 अगर तेरा भाई तेरा गुनाह करे तो जा और अकेले में बात चीत करके उसे समझा; और अगर वो तेरी सुने तो तूने अपने भाई को पा लिया।
\v 16 और अगर न सुने, तो एक दो आदमियों को अपने साथ ले जा, ताकि हर एक बात दो तीन गवाहों की ज़बान से साबित हो जाए।
\s5
\v 17 और अगर वो उनकी भी सुनने से इन्कार करे, तो कलीसिया से कह, और अगर कलीसिया की भी सुनने से इन्कार करे तो तू उसे ग़ैर क़ौम वाले और महसूल लेने वाले के बराबर जान।
\s5
\v 18 मैं तुम से सच कहता हूँ; कि जो कुछ तुम ज़मीन पर बाँधोगे वो आसमान पर बँधेगा; और जो कुछ तुम ज़मीन पर खोलोगे; वो आसमान पर खुलेगा।
\v 19 फिर मैं तुम से कहता हूँ; कि अगर तुम में से दो शख़्स ज़मीन पर किसी बात के लिए जिसे वो चाहते हों इत्तफ़ाक़ करें तो वो मेरे बाप की तरफ़ से जो आसमान पर है, उनके लिए हो जाएगी।
\v 20 क्यूँकि जहाँ दो या तीन मेरे नाम से इकट्ठे हैं, वहाँ मैं उनके बीच में हूँ।”
\s5
\v 21 उस वक़्त पतरस ने पास आकर उससे कहा“ऐ ख़ुदावन्द, अगर मेरा भाई मेरा गुनाह करता रहे, तो मैं कितनी मर्तबा उसे मु'आफ़ करूँ? क्या सात बार तक?”
\v 22 ईसा' ने उससे कहा, “मैं तुझ से ये नहीं कहता कि सात बार,बल्कि सात दफ़ा के सत्तर बार तक।
\s5
\v 23 पस आसमान की बादशाही उस बादशाह की तरह है जिसने अपने नौकरों से हिसाब लेना चाहा।
\v 24 और जब हिसाब लेने लगा तो उसके सामने एक क़र्ज़दार हाज़िर किया गया; जिस पर उसके दस हज़ार चाँदी के सिक्के आते थे।
\v 25 मगर चूँकि उसके पास अदा करने को कुछ न था; इसलिए उसके मालिक ने हुक्म दिया कि, ये और इसकी बीवी और बच्चे और जो कुछ इसका है सब बेचा जाए और कर्ज़ वसूल कर लिया जाए।
\s5
\v 26 पस नौकर ने गिरकर उसे सज्दा किया और कहा, ‘ऐ ख़ुदावन्द मुझे मोहलत दे, मैं तेरा सारा क़र्ज़ा अदा करूँगा।’
\v 27 उस नौकर के मालिक ने तरस खाकर उसे छोड़ दिया, और उसका क़र्ज़ बख़्श दिया।
\s5
\v 28 जब वो नौकर बाहर निकला तो उसके हम ख़िदमतों में से एक उसको मिला जिस पर उसके सौ चाँदी के सिक्के आते थे| उसने उसको पकड़ कर उसका गला घोंटा और कहा,‘जो मेरा आता है अदा कर दे!
\v 29 पस उसके हमख़िदमत ने उसके सामने गिरकर मिन्नत की और कहा,‘मुझे मोहलत दे; मैं तुझे अदा कर दूँगा|
\s5
\v 30 उसने न माना; बल्कि जाकर उसे क़ैदख़ाने में डाल दिया; कि जब तक क़र्ज़ अदा न कर दे क़ैद रहे।
\v 31 पस उसके हमख़िदमत ये हाल देखकर बहुत ग़मगीन हुए; और आकर अपने मालिक को सब कुछ जो हुआ था; सुना दिया।
\s5
\v 32 इस पर उसके मालिक ने उसको पास बुला कर उससे कहा,‘ऐ शरीर नौकर; मैं ने वो सारा क़र्ज़ तुझे इसलिए मु'आफ़ कर दिया; कि तूने मेरी मिन्नत की थी।
\v 33 क्या तुझे ज़रूरी न था, कि जैसे मैं ने तुझ पर रहम किया; तू भी अपने हमख़िदमत पर रहम करता?
\s5
\v 34 उसके मालिक ने ख़फ़ा होकर उसको जल्लादों के हवाले किया; कि जब तक तमाम क़र्ज़ अदा न कर दे क़ैद रहे।
\v 35 मेरा आसमानी बाप भी तुम्हारे साथ इसी तरह करेगा; अगर तुम में से हर एक अपने भाई को दिल से मु'आफ़ न करे।”
\s5
\c 19
\v 1 जब ईसा' ये बातें ख़त्म कर चुका तो ऐसा हुआ कि गलील को रवाना होकर यरदन के पार यहूदिया की सरहदों में आया।
\v 2 और एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली; और उस ने उन्हें वहीं अच्छा किया।
\s5
\v 3 और फ़रीसी उसे आज़माने को उसके पास आए और कहने लगे “क्या हर एक वजह से अपनी बीवी को छोड़ देना जायज़ है?”
\v 4 उस ने जवाब में कहा , “क्या तुम ने नहीं पढ़ा कि जिसने उन्हें बनाया उसने शुरू ही से उन्हें मर्द और 'औरत बना कर कहा?
\s5
\v 5 कि इस वजह से मर्द बाप से और माँ से जुदा होकर अपनी बीवी के साथ रहेगा;‘और वो दोनों एक जिस्म होंगे।’
\v 6 पस वो दो नहीं, बल्कि एक जिस्म हैं; इसलिए जिसे "ख़ुदा" ने जोड़ा है उसे आदमी जुदा न करे।”
\s5
\v 7 उन्होंने उससे कहा, “फिर मूसा ने क्यूँ हुक्म दिया है; कि तलाक़नामा देकर छोड़ दी जाए?”
\v 8 उस ने उनसे कहा , “मूसा ने तुम्हारी सख़्त दिली की वजह से तुम को अपनी बीवियों को छोड़ देने की इजाज़त दी; मगर शुरू से ऐसा न था।
\v 9 और मैं तुम से कहता हूँ; कि जो कोई अपनी बीवी को हरामकारी के सिवा किसी और वजह से छोड़ दे; और दूसरी शादी करे, वो ज़िना करता है; और जो कोई छोड़ी हुई से शादी कर ले, वो भी ज़िना करता है|”
\s5
\v 10 शागिर्दों ने उससे कहा, “अगर मर्द का बीवी के साथ ऐसा ही हाल है, तो शादी करना ही अच्छा नहीं।”
\v 11 उसने उनसे कहा,“सब इस बात को क़ुबूल नहीं कर सकते मगर वही जिनको ये क़ुदरत दी गई है।
\v 12 क्यूँकि कुछ ख़ोजे ऐसे हैं 'जो माँ के पेट ही से ऐसे पैदा हुए, और कुछ ख़ोजे ऐसे हैं जिनको आदमियों ने ख़ोजा बनाया; और कुछ ख़ोजे ऐसे हैं, जिन्होंने आसमान की बादशाही के लिए अपने आप को ख़ोजा बनाया, जो क़ुबूल कर सकता है करे।
\s5
\v 13 उस वक़्त लोग बच्चों को उसके पास लाए, ताकि वो उन पर हाथ रख्खे और दुआ दे मगर शागिर्दों ने उन्हें झिड़का।
\v 14 लेकिन ईसा' ने उनसे कहा,”बच्चों को मेरे पास आने दो और उन्हें मना न करो, क्यूँकि आसमान की बादशाही ऐसों ही की है।
\v 15 और वो उन पर हाथ रखकर वहीं से चला गया।
\s5
\v 16 और देखो; एक शख़्स ने पास आकर उससे कहा “मैं कौन सी नेकी करूँ, ताकि हमेशा की ज़िन्दगी पाऊँ?”
\v 17 उसने उससे कहा, “तू मुझ से नेकी की वजह क्यूँ पूछता है? नेक तो एक ही है लेकिन अगर तू ज़िन्दगी में दाख़िल होना चाहता है तो हुक्मों पर अमल कर।”
\s5
\v 18 उसने उससे कहा, “कौन से हुक्म पर? ” ईसा' ने कहा , “ये कि ख़ून न कर ज़िना न कर चोरी न कर, झूटी गवाही न दे।
\v 19 अपने बाप की और माँ की 'इज़्ज़त कर और अपने पड़ौसी से अपनी तरह मुहब्बत रख।”
\s5
\v 20 उस जवान ने उससे कहा कि “मैंने उन सब पर अमल किया है अब मुझ में किस बात की कमी है?”
\v 21 ईसा' ने उससे कहा,“अगर तू कामिल होना चाहे तो जा अपना माल-ओ- अस्बाब बेच कर ग़रीबों को दे, तुझे आसमान पर ख़ज़ाना मिलेगा; और आकर मेरे पीछे होले|”
\v 22 मगर वो जवान ये बात सुनकर उदास होकर चला गया, क्यूँकि बड़ा मालदार था।
\s5
\v 23 ईसा' ने अपने शागिर्दों से कहा "मैं तुम से सच कहता हूँ कि दौलतमन्द का आस्मान की बादशाही में दाख़िल होना मुश्किल है।
\v 24 और फिर तुम से कहता हूँ, 'कि ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना इससे आसान है कि दौलतमन्द "ख़ुदा" की बादशाही में दाख़िल हो।
\s5
\v 25 शागिर्द ये सुनकर बहुत ही हैरान हुए और कहने लगे “फिर कौन नजात पा सकता है?”
\v 26 ईसा' ने उनकी तरफ देखकर कहा" ये आदमियों से तो नहीं हो सकता; लेकिन "ख़ुदा" से सब कुछ हो सकता है |"
\v 27 इस पर पतरस ने जवाब में उससे कहा “देख हम तो सब कुछ छोड़ कर तेरे पीछे हो लिए हैं ; पस हम को क्या मिलेगा?”
\s5
\v 28 ईसा' ने उस से कहा,“मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब इबने आदम नई पैदाइश में अपने जलाल के तख़्त पर बैठेगा, तो तुम भी जो मेरे पीछे हो लिए हो बारह तख़्तों पर बैठ कर इस्राईल के बारह क़बीलों का इन्साफ़ करोगे।
\s5
\v 29 और जिस किसी ने घरों, या भाइयों, या बहनों, या बाप, या माँ, या बच्चों, या खेतों को मेरे नाम की ख़ातिर छोड़ दिया है, उसको सौ गुना मिलेगा और हमेशा की ज़िन्दगी का वारिस होगा।
\v 30 लेकिन बहुत से पहले आख़िर हो जाएँगे और आख़िर पहले।
\s5
\c 20
\v 1 ” क्यूँकि आस्मान की बादशाही उस घर के मालिक की तरह है, जो सवेरे निकला ताकि अपने बाग़ में मज़दूर लगाए।
\v 2 उसने मज़दूरों से एक दीनार रोज़ तय करके उन्हें अपने बाग़ में भेज दिया।
\s5
\v 3 फिर पहर दिन चढ़ने के क़रीब निकल कर उसने औरों को बाज़ार में बेकार खड़े देखा,
\v 4 और उन से कहा, 'तुम भी बाग़ में चले जाओ, जो वाजिब है तुम को दूँगा|' पस वो चले गए।
\s5
\v 5 फिर उसने दोपहर और तीसरे पहर के क़रीब निकल कर वैसा ही किया।
\v 6 और कोई एक घंटा दिन रहे फिर निकल कर औरों को खड़े पाया, और उनसे कहा, 'तुम क्यूँ यहाँ तमाम दिन बेकार खड़े हो?'
\v 7 उन्होंने उससे कहा, 'इस लिए कि किसी ने हम को मज़दूरी पर नहीं लगाया|' उस ने उनसे कहा, 'तुम भी बाग़ में चले जाओ|'
\s5
\v 8 जब शाम हुई तो बाग़ के मालिक ने अपने कारिन्दे से कहा, 'मज़दूरों को बुलाओ और पिछलों से लेकर पहलों तक उनकी मज़दूरी दे दो|'
\v 9 जब वो आए जो घंटा भर दिन रहे लगाए गए थे, तो उनको एक एक दीनार मिला।
\v 10 जब पहले मज़दूर आए तो उन्होंने ये समझा कि हम को ज़्यादा मिलेगा; और उनको भी एक ही दीनार मिला।
\s5
\v 11 जब मिला तो घर के मालिक से ये कह कर शिकायत करने लगे,
\v 12 'इन पिछलों ने एक ही घंटा काम किया है और तूने इनको हमारे बराबर कर दिया जिन्होंने दिन भर बोझ उठायाऔर सख़्त धूप सही?'
\s5
\v 13 उसने जवाब देकर उन में से एक से कहा,'मियाँ, मैं तेरे साथ बे इन्साफ़ी नहीं करता; क्या तेरा मुझ से एक दीनार नहीं ठहरा था?
\v 14 जो तेरा है उठा ले और चला जा मेरी मर्ज़ी ये है कि जितना तुझे देता हूँ इस पिछले को भी उतना ही दूँ।
\s5
\v 15 क्या मुझे ठीक नहीं कि अपने माल से जो चाहूँ सो करूँ? तू इसलिए कि मैं नेक हूँ बुरी नज़र से देखता है।'
\v 16 इसी तरह आख़िर पहले हो जाएँगे और पहले आख़िर।”
\s5
\v 17 और यरूशलीम जाते हुए ईसा' बारह शागिर्दों को अलग ले गया; और रास्ते में उनसे कहा।
\v 18 “देखो; हम यरूशलीम को जाते हैं; और इबने आदम सरदार काहिनों और फ़क़ीहों के हवाले किया जाएगा; और वो उसके क़त्ल का हुक्म देंगे।
\v 19 और उसे ग़ैर क़ौमों के हवाले करेंगे ताकि वो उसे ठट्ठों में उड़ाएँ, और कोड़े मारें और मस्लूब करें और वो तीसरे दिन ज़िन्दा किया जाएगा।”
\s5
\v 20 उस वक़्त ज़ब्दी की बीवी ने अपने बेटों के साथ उसके सामने आकर सिज्दा किया और उससे कुछ अर्ज़ करने लगी |
\v 21 उसने उससे कहा, “तू क्या चाहती है?” उस ने उससे कहा, “फ़रमा कि ये मेरे दोनों बेटे तेरी बादशाही में तेरी दहनी और बाईं तरफ़ बैठें।”
\s5
\v 22 ईसा' ने जवाब में कहा, “तुम नहीं जानते कि क्या माँगते हो? जो प्याला मैं पीने को हूँ क्या तुम पी सकते हो?" उन्होंने उससे कहा, "पी सकते हैं|”
\v 23 उसने उनसे कहा “मेरा प्याला तो पियोगे, लेकिन अपने दहने बाएँ किसी को बिठाना मेरा काम नहीं; मगर जिनके लिए मेरे बाप की तरफ़ से तैय्यार किया गया उन्ही के लिए है।”
\v 24 जब शागिर्दों ने ये सुना तो उन दोनों भाइयों से ख़फ़ा हुए।
\s5
\v 25 मगर ईसा' ने उन्हें पास बुलाकर कहा “तुम जानते हो कि ग़ैर क़ौमों के सरदार उन पर हुक्म चलाते और अमीर उन पर इख़्तियार जताते हैं।
\v 26 तुम में ऐसा न होगा; बल्कि जो तुम में बड़ा होना चाहे वो तुम्हारा ख़ादिम बने।
\v 27 और जो तुम में अव्वल होना चाहे वो तुम्हारा ग़ुलाम बने।
\v 28 चुनाँचे; इबने आदम इसलिए नहीं आया कि ख़िदमत ले; बल्कि इसलिए कि ख़िदमत करे और अपनी जान बहुतों के बदले फ़िदिये में दें।”
\s5
\v 29 जब वो यरीहू से निकल रहे थे; एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली।
\v 30 और देखो; दो अँधों ने जो रास्ते के किनारे बैठे थे ये सुनकर कि 'ईसा' जा रहा है चिल्ला कर कहा, “ऐ ख़ुदावन्द इब्ने-ए- दाऊद हम पर रहम कर।”
\v 31 लोगों ने उन्हें डांटा कि चुप रहें; लेकिन वो और भी चिल्ला कर कहने लगे,“ऐ ख़ुदावन्द इबने दाऊद हम पर रहम कर।”
\s5
\v 32 ईसा' ने खड़े होकर उन्हें बुलाया और कहा, “तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए करूँ?”
\v 33 उन्होंने उससे कहा “ऐ ख़ुदावन्द हमारी आँखें खुल जाएँ।”
\v 34 ईसा' को तरस आया। और उसने उन की आँखों को छुआ और वो फ़ौरन देखने लगे और उसके पीछे हो लिए।
\s5
\c 21
\v 1 जब वो यरूशलीम के नज़दीक पहुँचे और ज़ैतून के पहाड़ पर बैतफ़गे के पास आए; तो ईसा' ने दो शागिर्दों को ये कह कर भेजा,
\v 2 “अपने सामने के गाँव में जाओ। वहाँ पहुँचते ही एक गधी बंधी हुई और उसके साथ बच्चा पाओगे| उन्हें खोल कर मेरे पास ले आओ।
\v 3 और अगर कोई तुम से कुछ कहे तो कहना कि ‘ख़ुदावन्द को इन की ज़रूरत है।’वो फ़ौरन इन्हें भेज देगा।”
\s5
\v 4 ये इसलिए हुआ जो नबी की मा'रिफ़त कहा गया था वो पूरा हो:
\v 5 “सिय्यून की बेटी से कहो, ‘देख, तेरा बादशाह तेरे पास आता है; वो हलीम है और गधे पर सवार है, बल्कि लादू के बच्चे पर|’”
\s5
\v 6 पस शागिर्दों ने जाकर जैसा ईसा' ने उनको हुक्म दिया था; वैसा ही किया।
\v 7 गधी और बच्चे को लाकर अपने कपड़े उन पर डाले और वो उस पर बैठ गया।
\v 8 और भीड़ में से अक्सर लोगों ने अपने कपड़े रास्ते में बिछाए; औरों ने दरख़्तों से डालियाँ काट कर राह में फैलाइं।
\s5
\v 9 और भीड़ जो उसके आगे आगे जाती और पीछे पीछे चली आती थी “पुकार पुकार कर कहती थी " इबने दाऊद को हो शा'ना ! मुबारक है वो जो ख़ुदावन्द के नाम से आता है। आलम -ऐ बाला पर होशाना।”
\v 10 और वो जब यरूशलम में दाख़िल हुआ तो सारे शहर मे हलचल मच गई और लोग कहने लगे “ये कौन है?”
\v 11 भीड़ के लोगों ने कहा “ये गलील के नासरत का नबी ईसा' है।”
\s5
\v 12 और ईसा' ने ख़ुदा की हैकल में दाख़िल होकर उन सब को निकाल दिया; जो हैकल में ख़रीद- ओ फ़रोख़्त कर रहे थे; और सरार्फ़ों के तख़्त और कबूतर फ़रोशों की चौकियां उलट दीं।
\v 13 और उन से कहा, “लिखा है ‘मेरा घर दुआ का घर कहलाएगा।’मगर तुम उसे डाकुओं की खो बनाते हो।”
\v 14 और अंधे और लंगड़े हैकल में उसके पास आए, और उसने उन्हें अच्छा किया।
\s5
\v 15 लेकिन जब सरदार काहिनों और फ़क़ीहों ने उन अजीब कामों को जो उसने किए; और लड़कों को हैकल में इबने दाऊद को हो शा'ना पुकारते देखा तो ख़फ़ा होकर उससे कहने लगे,
\v 16 “तू सुनता है कि ये क्या कहते हैं?” ईसा' ने उन से कहा,“हाँ; क्या तुम ने ये कभी नहीं पढ़ा: ‘बच्चों और शीरख़्वारों के मुँह से तुम ने हम्द को कामिल कराया?’”
\v 17 और वो उन्हें छोड़ कर शहर से बाहर बैत अन्नियाह में गया; और रात को वहीं रहा।
\s5
\v 18 और जब सुबह को फिर शहर को जा रहा था; तो उसे भूक लगी।
\v 19 और रास्ते के किनारे अंजीर का एक दरख़्त देख कर उसके पास गया; और पत्तों के सिवा उस में कुछ न पाकर उससे कहा; “आइन्दा कभी तुझ में फल न लगे!”और अंजीर का दरख़्त उसी दम सूख गया।
\s5
\v 20 शागिर्दों ने ये देख कर ताअ'ज्जुब किया और कहा “ये अन्जीर का दरख़्त क्यूँकर एक दम में सूख गया?”
\v 21 ईसा' ने जवाब में उनसे कहा, "तुम से सच कहता हूँ“ कि अगर ईमान रखो और शक न करो तो न सिर्फ़ वही करोगे जो अंजीर के दरख़्त के साथ हुआ; बल्कि अगर इस पहाड़ से कहो उखड़ जा और समुन्दर में जा पड़ तो यूँ ही हो जाएगा।
\v 22 और जो कुछ दुआ में ईमान के साथ माँगोगे वो सब तुम को मिलेगा ”
\s5
\v 23 जब वो हैकल में आकर ता'लीम दे रहा था; तो सरदार काहिनों और क़ौम के बुज़ुर्गों ने उसके पास आकर कहा, “तू इन कामों को किस इख़्तियार से करता है? और ये इख़्तियार तुझे किसने दिया है।”
\v 24 ईसा' ने जवाब में उनसे कहा, “मैं भी तुम से एक बात पूछता हूँ; अगर वो मुझे बताओगे तो मैं भी तुम को बताऊँगा कि इन कामों को किस इख़्तियार से करता हूँ।
\s5
\v 25 यूहन्ना का बपतिस्मा कहाँ से था? आसमान की तरफ़ से या इन्सान की तरफ़ से?” वो आपस में कहने लगे,“ अगर हम कहें, ‘आसमान की तरफ़ से, तो वो हम को कहेगा, ‘फिर तुम ने क्यूँ उसका यक़ीन न किया?
\v 26 और अगर कहें इन्सान की तरफ़ से तो हम अवाम से डरते हैं? क्यूँकि सब यूहन्ना को नबी जानते थे?।”
\v 27 पस उन्होंने जवाब में ईसा' से कहा, “ हम नहीं जानते।” उसने भी उनसे कहा, “मैं भी तुम को नहीं बताता कि मैं इन कामों को किस इख़तियार से करता हूँ|”
\s5
\v 28 “तुम क्या समझते हो? एक आदमी के दो बेटे थे उसने पहले के पास जाकर कहा, बेटा जा! , और बाग़ में जाकर काम कर।’
\v 29 उसने जवाब में कहा, 'मैं नहीं जाऊँगा,' मगर पीछे पछता कर गया।
\v 30 फिर दूसरे के पास जाकर उसने उसी तरह कहा, उसने जवाब दिया, 'अच्छा जनाब ,मगर गया नहीं।
\s5
\v 31 इन दोनों में से कौन अपने बाप की मर्ज़ी बजा लाया?” उन्होंने कहा, “पहला|” ईसा' ने उन से कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ कि महसूल लेने वाले और कस्बियाँ तुम से पहले ख़ुदा की बादशाही में दाख़िल होती हैं।
\v 32 क्यकि यूहन्ना रास्तबाज़ी के तरीक़े पर तुम्हारे पास आया; और तुम ने उसका यक़ीन न किया; मगर महसूल लेने वाले और कस्बियों ने उसका यक़ीन किया; और तुम ये देख कर भी न पछताए; कि उसका यक़ीन कर लेते।
\s5
\v 33 एक और मिसाल सुनो: एक घर का मालिक था; जिसने बाग़ लगाया और उसकी चारों तरफ़ अहाता और उस में हौज़ खोदा और बुर्ज बनाया और उसे बाग़बानों को ठेके पर देकर परदेस चला गया।
\v 34 जब फल का मौसम क़रीब आया तो उसने अपने नौकरों को बाग़बानों के पास अपना फल लेने को भेजा।
\s5
\v 35 बाग़बानों ने उसके नौकरों को पकड़ कर किसी को पीटा किसी को क़त्ल किया और किसी को पथराव किया।
\v 36 फिर उसने और नौकरों को भेजा, जो पहलों से ज़्यादा थे; उन्होंने उनके साथ भी वही सुलूक किया।
\v 37 आख़िर उसने अपने बेटे को उनके पास ये कह कर भेजा कि ‘वो मेरे बेटे का तो लिहाज़ करेंगे।’
\s5
\v 38 जब बाग़बानों ने बेटे को देखा, तो आपस में कहा, ‘ये ही वारिस है! आओ इसे क़त्ल करके इसी की जायदाद पर क़ब्ज़ा कर लें|
\v 39 और उसे पकड़ कर बाग़ से बाहर निकाला और क़त्ल कर दिया।
\s5
\v 40 पस जब बाग़ का मालिक आएगा, तो उन बाग़बानों के साथ क्या करेगा?”
\v 41 उन्होंने उससे कहा, “उन बदकारों को बूरी तरह हलाक करेगा; और बाग़ का ठेका दूसरे बाग़बानों को देगा, जो मौसम पर उसको फल दें।”
\s5
\v 42 ईसा' ने उन से कहा, “क्या तुम ने किताबे मुक़द्दस में कभी नहीं पढ़ा: ‘जिस पत्थर को मे'मारों ने रद्द किया, वही कोने के सिरे का पत्थर हो गया ; ये "ख़ुदावन्द" की तरफ़ से हुआ और हमारी नज़र में 'अजीब है’?
\s5
\v 43 इसलिए मैं तुम से कहता हूँ कि "ख़ुदा" की बादशाही तुम से ले ली जाएगी और उस क़ौम को जो उसके फल लाए, दे दी जाए गी।
\v 44 और जो इस पत्थर पर गिरेगा; ”टुकड़े टुकड़े हो जाएगा; लेकिन जिस पर वो गिरेगा उसे पीस डालेगा।
\s5
\v 45 जब सरदार काहिनों और फ़रीसियों ने उसकी मिसाल सुनी, तो समझ गए, कि हमारे हक़ में कहता है।
\v 46 और वो उसे पकड़ने की कोशिश में थे, लेकिन लोगों से डरते थे; क्यूँकि वो उसे नबी जानते थे।
\s5
\c 22
\v 1 और ईसा' फिर उनसे मिसालों में कहने लगा,
\v 2 “आस्मान की बादशाही उस बादशाह की तरह है जिस ने अपने बेटे की शादी की।
\v 3 और अपने नौकरों को भेजा कि बुलाए हुओं को शादी में बुला लाएँ, मगर उन्होंने आना न चाहा।
\s5
\v 4 फिर उस ने और नौकरों को ये कह कर भेजा, ‘बुलाए हुओं से कहो: देखो, मैंने ज़ियाफ़त तैयार कर ली है, मेरे बैल और मोटे मोटे जानवर ज़बह हो चुके हैं और सब कुछ तैयार है; शादी में आओ|
\s5
\v 5 मगर वो बे परवाई करके चल दिए; कोई अपने खेत को, कोई अपनी सौदागरी को।
\v 6 और बाक़ियों ने उसके नौकरों को पकड़ कर बे'इज़्ज़त किया और मार डाला।
\v 7 बादशाह ग़ज़बनाक हुआ और उसने अपना लश्कर भेजकर उन ख़ूनियों को हलाक कर दिया, और उन का शहर जला दिया।
\s5
\v 8 तब उस ने अपने नौकरों से कहा, शादी का खाना तो तैयार है‘मगर बुलाए हुए लायक़ न थे।
\v 9 पस रास्तों के नाकों पर जाओ, और जितने तुम्हें मिलें शादी में बुला लाओ।’
\v 10 और वो नौकर बाहर रास्तों पर जा कर, जो उन्हें मिले क्या बूरे क्या भले सब को जमा' कर लाए और शादी की महफ़िल मेहमानों से भर गई।
\s5
\v 11 जब बादशाह मेहमानों को देखने को अन्दर आया, तो उसने वहाँ एक आदमी को देखा, जो शादी के लिबास में न था।
\v 12 उसने उससे कहा‘ मियाँ तू शादी की पोशाक पहने बग़ैर यहाँ क्यूँ कर आ गया?’लेकिन उस का मुँह बन्द हो गया।
\s5
\v 13 इस पर बादशाह ने ख़ादिमों से कहा ‘उस के हाथ पाँव बाँध कर बाहर अँधेरे में डाल दो, वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।
\v 14 क्यूँकि बुलाए हुए बहुत हैं, मगर चुने हुए थोड़े।”
\s5
\v 15 उस वक़्त फ़रीसियों ने जा कर मशवरा किया कि उसे क्यूँ कर बातों में फँसाएँ।
\v 16 पस उन्होंने अपने शागिर्दों को हेरोदियों के साथ उस के पास भेजा, और उन्होंने कहा “ऐ उस्ताद हम जानते हैं कि तू सच्चा है और सच्चाई से "ख़ुदा" की राह की तालीम देता है। और किसी की परवाह नहीं करता क्यूँकि तू किसी आदमी का तरफ़दार नहीं।
\v 17 पस हमें बता तू क्या समझता है? क़ैसर को जिज़िया देना जायज़ है या नहीं?”
\s5
\v 18 "ईसा" ने उन की शरारत जान कर कहा, “ऐ रियाकारो, मुझे क्यूँ आज़माते हो?
\v 19 जिज़िये का सिक्का मुझे दिखाओ” वो एक दीनार उस के पास लाए।
\s5
\v 20 उसने उनसे कहा “ये सूरत और नाम किसका है?”
\v 21 उन्होंने उससे कहा,“क़ैसर का|” उस ने उनसे कहा, “ पस जो क़ैसर का है क़ैसर को और जो ख़ुदा का है ख़ुदा को अदा करो|”
\v 22 उन्होंने ये सुनकर ता'अज्जुब किया, और उसे छोड़ कर चले गए।
\s5
\v 23 उसी दिन सदूक़ी जो कहते हैं कि क़यामत नहीं होगी उसके पास आए, और उससे ये सवाल किया|
\v 24 “ऐ उस्ताद, मूसा ने कहा था, कि अगर कोई बे औलाद मर जाए, तो उसका भाई उसकी बीवी से शादी कर ले, और अपने भाई के लिए नस्ल पैदा करे।
\s5
\v 25 अब हमारे दर्मियान सात भाई थे, और पहला शादी करके मर गया; और इस वजह से कि उसके औलाद न थी, अपनी बीवी अपने भाई के लिए छोड़ गया।
\v 26 इसी तरह दूसरा और तीसरा भी सातवें तक।
\v 27 सब के बा'द वो 'औरत भी मर गई।
\v 28 पस वो क़यामत में उन सातों में से किसकी बीवी होगी? क्यूँकि सब ने उससे शादी की थी।”
\s5
\v 29 ईसा' ने जवाब में उनसे कहा, “तुम गुमराह हो; इसलिए कि न किताबे मुक़द्दस को जानते हो न "ख़ुदा" की क़ुद्रत को।
\v 30 क्यूँकि क़यामत में शादी बारात न होगी; बल्कि लोग आसमान पर फ़िरिश्तों की तरह होंगे।
\s5
\v 31 मगर मुर्दों के जी उठने के बारे मे "ख़ुदा" ने तुम्हें फ़रमाया था, क्या तुम ने वो नहीं पढ़ा?
\v 32 ‘मैं इब्राहीम का ख़ुदा, और इज़्हाक़ का ख़ुदा और याक़ूब का ख़ुदा हूँ? वो तो मुर्दों का "ख़ुदा" नहीं ’बल्कि जिन्दो का ख़ुदा है।”
\v 33 लोग ये सुन कर उसकी ता'लीम से हैरान हुए।
\s5
\v 34 जब फ़रीसियों ने सुना कि उसने सदूक़ियों का मुँह बन्द कर दिया, तो वो जमा' हो गए।
\v 35 और उन में से एक आलिम- ऐ शरा ने आज़माने के लिए उससे पूछा;
\v 36 “ऐ उस्ताद, तौरेत में कौन सा हुक्म बड़ा है?”
\s5
\v 37 उसने उस से कहा “‘ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से अपने सारे दिल, और अपनी सारी जान और अपनी सारी अक़्ल से मुहब्बत रख।’
\v 38 बड़ा और पहला हुक्म यही है।
\s5
\v 39 और दूसरा इसकी तरह ये है‘कि अपने पड़ोसी से अपने बराबर मुहब्बत रख।’
\v 40 इन्ही दो हुक्मों पर तमाम तौरेत और अम्बिया के सहीफ़ों का मदार है।”
\s5
\v 41 जब फ़रीसी जमा' हुए तो ईसा' ने उनसे ये पूछा;
\v 42 “तुम मसीह के हक़ में क्या समझते हो? वो किसका बेटा है ”उन्होंने उससे कहा “दाऊद का।”
\s5
\v 43 उसने उनसे कहा, “पस दाऊद रूह की हिदायत से क्यूँकर उसे ख़ुदावन्द कहता है,
\v 44 ख़ुदावन्द ने मेरे ख़ुदावन्द से कहा, ‘मेरी दहनी तरफ़ बैठ, जब तक में तेरे दुश्मनों को तेरे पाँव के नीचे न कर दूँ’।
\s5
\v 45 पस जब दाऊद उसको ख़ुदावन्द कहता है तो वो उसका बेटा क्यूँकर ठहरा?”
\v 46 कोई उसके जवाब में एक हर्फ़ न कह सका, और न उस दिन से फिर किसी ने उससे सवाल करने की जुरअत की।
\s5
\c 23
\v 1 उस वक़्त ईसा ने भीड़ से और अपने शागिर्दों से ये बातें कहीं,
\v 2 “फ़क़ीह और फ़रीसी मूसा के शरी'अत की गद्दी पर बैठे हैं।
\v 3 पस जो कुछ वो तुम्हें बताएँ वो सब करो और मानो, लेकिन उनकी तरह काम न करो; क्यूँकि वो कहते हैं, और करते नहीं।
\s5
\v 4 वो ऐसे भारी बोझ जिनको उठाना मुश्किल है, बाँध कर लोगों के कँधों पर रखते हैं, मगर ख़ुद उनको अपनी उंगली से भी हिलाना नहीं चाहते।
\v 5 वो अपने सब काम लोगों को दिखाने को करते हैं; क्यूँकि वो अपने ता'वीज़ बड़े बनाते और अपनी पोशाक के किनारे चौड़े रखते हैं।
\s5
\v 6 ज़ियाफ़तों में सद्र नशीनी और इबादतख़ानों में आ'ला दर्जे की कुर्सियाँ।
\v 7 और बाज़ारों में सलाम‘और आदमियों से रब्बी कहलाना पसंद करते हैं।’
\s5
\v 8 मगर तुम रब्बी न कहलाओ, क्यूँकि तुम्हारा उसताद एक ही है और तुम सब भाई हो
\v 9 और ज़मीन पर किसी को अपना बाप न कहो, क्यूँकि तुम्हारा‘बाप ’एक ही है जो आसमानी है।
\v 10 और न तुम हादी कहलाओ, क्यूँकि तुम्हारा हादी एक ही है, या'नी मसीह।
\s5
\v 11 लेकिन जो तुम में बड़ा है, वो तुम्हारा ख़ादिम बने।
\v 12 जो कोई अपने आप को बड़ा बनायेगा,वो छोटा किया जायेगा; और जो अपने आप को छोटा बनायेगा,वो बड़ा किया जायेगा |
\s5
\v 13 ऐ रियाकार; आलिमों और फ़रीसियो तुम पर अफ़सोस कि आसमान की बादशाही लोगों पर बन्द करते हो, क्यूँकि न तो आप दाख़िल होते हो, और न दाख़िल होने वालों को दाख़िल होने देते हो।
\v 14 ऐ रियाकार; आलिमों और फ़रीसियो तुम पर अफ़सोस, कि तुम बेवाओं के घरों को दबा बैठते हो, और दिखावे के लिए नमाज़ को तूल देते हो; तुम्हें ज़्यादा सज़ा होगी।
\v 15 ऐ रियाकार; फ़क़ीहो और फ़रीसियो तुम पर अफ़सोस, कि एक मुरीद करने के लिए तरी और ख़ुश्की का दौरा करते हो, और जब वो मुरीद हो चुकता है तो उसे अपने से दूना जहन्नुम का फ़र्ज़न्द बना देते हो।
\s5
\v 16 ऐ अंधे राह बताने वालो , तुम पर अफ़्सोस! जो कहते हो, ‘अगर कोई मक़दिस की क़सम खाए तो कुछ बात नहीं; लेकिन अगर मक़दिस के सोने की क़सम खाए तो उसका पाबँद होगा।’
\v 17 ऐ अहमक़ों ! और अँधों सोना बड़ा है, या मक़्दिस जिसने सोने को मुक़द्दस किया।
\s5
\v 18 फिर कहते हो ‘अगर कोई क़ुर्बानगाह की क़सम खाए तो कुछ बात नहीं; लेकिन जो नज़्र उस पर चढ़ी हो अगर उसकी क़सम खाए तो उसका पाबन्द होगा।’
\v 19 ऐ अंधो! नज़्र बड़ी है या क़ुर्बानगाह जो नज़्र को मुक़द्दस करती है?
\s5
\v 20 पस , जो क़ुर्बानगाह की क़सम खाता है, वो उसकी और उन सब चीज़ों की जो उस पर हैं क़सम खाता है।
\v 21 और जो मक़दिस की क़सम खाता है वो उसकी और उसके रहनेवाले की क़सम खाता है।
\v 22 और जो आस्मान की क़सम खाता है वह "ख़ुदा" के तख़्त की और उस पर बैठने वाले की क़सम भी खाता है।
\s5
\v 23 ऐ रियाकार; आलिमों और फ़रीसियो तुम पर अफ़सोस कि पुदीना सौंफ़ और ज़ीरे पर तो दसवां हिस्सा देते हो, पर तुम ने शरी'अत की ज़्यादा भारी बातों या'नी इन्साफ़, और रहम, और ईमान को छोड़ दिया है; लाज़िम था ये भी करते और वो भी न छोड़ते।
\v 24 ऐ अंधे राह बताने वालो; जो मच्छर को तो छानते हो, और ऊँट को निगल जाते हो।
\s5
\v 25 ऐ रियाकार; आलिमों और फ़रीसियो तुम पर अफ़सोस कि प्याले और रक़ाबी को ऊपर से साफ़ करते हो, मगर वो अन्दर लूट और ना'परहेज़गारी से भरे हैं।
\v 26 ऐ अंधे फ़रीसी; पहले प्याले और रक़ाबी को अन्दर से साफ़ कर ताकि ऊपर से भी साफ़ हो जाए।
\s5
\v 27 ऐ रियाकार; आलिमों और फ़रीसियो तुम पर अफ़सोस कि तुम सफ़ेदी फिरी हुई क़ब्रों की तरह हो, जो ऊपर से तो ख़ूबसूरत दिखाई देती हैं, मगर अन्दर मुर्दों की हड्डियों और हर तरह की नापाकी से भरी हैं।
\v 28 इसी तरह तुम भी ज़ाहिर में तो लोगों को रास्तबाज़ दिखाई देते हो, मगर बातिन में रियाकारी और बेदीनी से भरे हो।
\s5
\v 29 ऐ रियाकार; आलिमों और फ़रीसियो तुम पर अफ़सोस, कि नबियों की क़ब्रें बनाते और रास्तबाज़ों के मक़बरे आरास्ता करते हो।
\v 30 और कहते हो, ‘अगर हम अपने बाप दादा के ज़माने में होते तो नबियों के ख़ून में उनके शरीक न होते।’
\v 31 इस तरह तुम अपनी निस्बत गवाही देते हो, कि तुम नबियों के क़ातिलों के फ़र्ज़न्द हो।
\s5
\v 32 ग़रज़ अपने बाप दादा का पैमाना भर दो।
\v 33 ऐ साँपो, ऐ अफ़'ई के बच्चो; तुम जहन्नुम की सज़ा से क्यूँकर बचोगे?
\s5
\v 34 इसलिए देखो मैं नबियों, और दानाओं और आलिमों को तुम्हारे पास भेजता हूँ, उन में से तुम कुछ को क़त्ल और मस्लूब करोगे, और कुछ को अपने इबादतख़ानों में कोड़े मारोगे, और शहर ब शहर सताते फिरोगे।
\v 35 ताकि सब रास्तबाज़ों का ख़ून जो ज़मीन पर बहाया गया तुम पर आए, रास्तबाज़ हाबिल के ख़ून से लेकर बरकियाह के बेटे ज़करियाह के ख़ून तक जिसे तुम ने मक़दिस और कुर्बानगाह के दर्मियान क़त्ल किया।
\v 36 मैं तुम से सच कहता हूँ कि ये सब कुछ इसी ज़माने के लोगों पर आएगा।
\s5
\v 37 " ऐ यरूशलीम " ऐ यरूशलीम तू जो नबियों को क़त्ल करता और जो तेरे पास भेजे गए, उनको संगसार करता है, कितनी बार मैंने चाहा कि जिस तरह मुर्ग़ी अपने बच्चों को परों तले जमा कर लेती है, इसी तरह मैं भी तेरे लड़कों को जमा' कर लूँ; मगर तुम ने न चाहा।
\v 38 देखो; तुम्हारा घर तुम्हारे लिए वीरान छोड़ा जाता है।
\v 39 क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ, कि "अब से मुझे फिर हरगिज़ न देखोगे; जब तक न कहोगे कि मुबारक है वो जो "ख़ुदावन्द" के नाम से आता है।”
\s5
\c 24
\v 1 और ईसा' हैकल से निकल कर जा रहा था, कि उसके शागिर्द उसके पास आए, ताकि उसे हैकल की इमारतें दिखाएँ।
\v 2 उसने जवाब में उनसे कहा,“क्या तुम इन सब चीज़ों को नहीं देखते? मैं तुम से सच कहता हूँ, कि यहाँ किसी पत्थर पर पत्थर बाक़ी न रहेगा; जो गिराया न जाएगा।”
\s5
\v 3 जब वो ज़ैतून के पहाड़ पर बैठा था, उसके शागिर्दों ने अलग उसके पास आकर कहा,“हम को बता ये बातें कब होंगी ? और तेरे आने और दुनिया के आख़िर होने का निशान क्या होगा?”
\v 4 ईसा' ने जवाब में उनसे कहा , “ख़बरदार! कोई तुम को गुमराह न कर दे,
\v 5 क्यूँकि बहुत से मेरे नाम से आएँगे और कहेंगे,‘मैं मसीह हूँ।’ और बहुत से लोगों को गुमराह करेंगे।
\s5
\v 6 और तुम लड़ाइयाँ और लड़ाइयों की अफ़वाह सुनोगे, ख़बरदार, घबरा न जाना, क्यूँकि इन बातों का वाक़े होना ज़रूर है।
\v 7 क्यूँकि क़ौम पर क़ौम और सल्तनत पर सल्तनत चढ़ाई करेगी, और जगह जगह काल पड़ेंगे, और भूचाल आएँगे।
\v 8 लेकिन ये सब बातें मुसीबतों का शुरू ही होंगी।
\s5
\v 9 उस वक़्त लोग तुम को तकलीफ़ देने के लिए पकड़वाएँगे, और तुम को क़त्ल करेंगे; और मेरे नाम की ख़ातिर सब क़ौमें तुम से दुश्मनी रख्खेंगी।
\v 10 और उस उक़्त बहुत से ठोकर खाएँगे, और एक दूसरे को पकड़वाएँगे; और एक दूसरे से दुश्मनी रख्खेंगे।
\v 11 और बहुत से झूटे नबी उठ खड़े होंगे, और बहुतों को गुमराह करेंगे।
\s5
\v 12 और बेदीनी के बढ़ जाने से बहुतेरों की मुहब्बत ठंडी पड़ जाएगी।
\v 13 लेकिन जो आख़िर तक बर्दाशत करेगा वो नजात पाएगा। ।
\v 14 और बादशाही की इस ख़ुशख़बरी का एलान तमाम दुनिया में होगा, ताकि सब क़ौमों के लिए गवाही हो, तब ख़ात्मा होगा।
\s5
\v 15 पस जब तुम उस उजाड़ने वाली मकरूह चीज़ जिसका ज़िक्र दानीएल नबी की ज़रिये हुआ, मुक़द्दस मुकामों में खड़ा हुआ देखो (पढ़ने वाले संमझ लें ) |
\v 16 तो जो यहूदिया में हों वो पहाड़ों पर भाग जाएँ।
\v 17 जो छत पर हो वो अपने घर का माल लेने को नीचे न उतरे।
\v 18 और जो खेत में हो वो अपना कपड़ा लेने को पीछे न लौटे
\s5
\v 19 मगर अफ़सोस उन पर जो उन दिनों में हामिला हों और जो दूध पिलाती हों।
\v 20 पस, दुआ करो कि तुम को जाड़ों में या सबत के दिन भागना न पड़े।
\v 21 क्यूँकि उस वक़्त ऐसी बड़ी मुसीबत होगी कि दुनिया के शुरू से न अब तक हुई न कभी होगी।
\v 22 अगर वो दिन घटाए न जाते तो कोई बशर न बचता मगर चुने हुवों की ख़ातिर वो दिन घटाए जाएँगे।
\s5
\v 23 उस वक़्त अगर कोई तुम को कहे , ‘देखो, मसीह यहाँ है’ या ‘वह वहाँ है’ तो यक़ीन न करना।
\v 24 क्यूँकि झूटे मसीह और झूटे नबी उठ खड़े होंगे और ऐसे बड़े निशान और अजीब काम दिखाएँगे कि अगर मुम्किन हो तो बरगुज़ीदों को भी गुमराह कर लें।
\v 25 देखो, मैं ने पहले ही तुम को कह दिया है।
\s5
\v 26 पस अगर वो तुम से कहें , ‘देखो, वो वीरानो में है’तो बाहर न जाना । या देखो, कोठरियों में है तो यक़ीन न करना।‘
\v 27 क्यूँकि जैसे बिजली पूरब से कौंध कर पच्छिम तक दिखाई देती है वैसे ही इबने आदम का आना होगा।
\v 28 जहाँ मुर्दार है, वहाँ गिद्ध जमा' हो जाएँगे।
\s5
\v 29 फ़ौरन इन दिनों की मुसीबत के बा'द सूरज तारीक हो जाएगा। और चाँद अपनी रौशनी न देगा, और सितारे आसमान से गिरेंगे और आस्मान की क़ुव्वतें हिलाई जाएँगी।
\s5
\v 30 और उस वक़्त इब्न-ए-आदम का निशान आस्मान पर दिखाई देगा। और उस वक़्त ज़मीन की सब क़ौमें छाती पीटेंगी; और इबने आदम को बड़ी क़ुदरत और जलाल के साथ आसमान के बादलों पर आते देखेंगी।
\v 31 और वो नरसिंगे की बड़ी आवाज़ के साथ अपने फ़रिश्तों को भेजेगा और वो उसके चुने हुवों को चारों तरफ़ से आसमान के इस किनारे से उस किनारे तक जमा' करेंगे।
\s5
\v 32 अब अन्जीर के दरख़्त से एक मिसाल सीखो,। जैसे ही उसकी डाली नर्म होती और पत्ते निकलते हैं तुम जान लेते हो कि गर्मी नज़दीक है।
\v 33 इसी तरह जब तुम इन सब बातों को देखो, तो जान लो कि वो नज़दीक बल्कि दरवाज़े पर है।
\s5
\v 34 मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तक ये सब बातें न हो लें ये नस्ल हरगिज़ तमाम न होगी।
\v 35 आसमान और ज़मीन टल जाएँगी लेकिन मेरी बातें हरगिज़ न टलेंगी
\s5
\v 36 लेकिन उस दिन और उस वक़्त के बारे मे कोई नहीं जानता, न आसमान के फ़रिश्ते न बेटा मगर, सिर्फ़ बाप।
\s5
\v 37 जैसा नूह के दिनों में हुआ वैसा ही इबन-ए- आदम के आने के वक़्त होगा।
\v 38 क्यूँकि जिस तरह तूफ़ान से पहले के दिनों में लोग खाते पीते और ब्याह शादी करते थे, उस दिन तक कि नूह नाव में दाख़िल हुआ।
\v 39 और जब तक तूफ़ान आकर उन सब को बहा न ले गया, उन को ख़बर न हुई, उसी तरह इबने आदम का आना होगा।
\s5
\v 40 उस वक़्त दो आदमी खेत में होंगे, एक ले लिया जाएगा, और दूसरा छोड़ दिया जाएगा,
\v 41 दो औरतें चक्की पीसती होंगी, एक ले ली जाएगी और दूसरी छोड़ दी जाएगी।
\v 42 पस जागते रहो, क्यूँकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा ख़ुदावन्द किस दिन आएगा
\s5
\v 43 लेकिन ये जान रख्खो, कि अगर घर के मालिक को मा'लूम होता कि चोर रात के कौन से पहर आएगा, तो जागता रहता और अपने घर में नक़ब न लगाने देता।
\v 44 इसलिए तुम भी तैयार रहो, क्यूँकि जिस घड़ी तुम को गुमान भी न होगा इबने आदम आ जाएगा।
\s5
\v 45 पस वो ईमानदार और अक़्लमन्द नौकर कौन सा है, जिसे मालिक ने अपने नौकर चाकरों पर मुक़र्रर किया ताकि वक़्त पर उनको खाना दे।
\v 46 मुबारक है वो नौकर जिसे उस का मालिक आकर ऐसा ही करते पाए।
\v 47 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वो उसे अपने सारे माल का मुख़्तार कर देगा।
\s5
\v 48 लेकिन अगर वो ख़राब नौकर अपने दिल में ये कह कर कि मेरे मालिक के आने में देर है।’
\v 49 अपने हमख़िदमतों को मारना शुरू करे, और शराबियों के साथ खाए पिए।
\v 50 तो उस नौकर का मालिक ऐसे दिन कि वो उसकी राह न देखता हो और ऐसी घड़ी कि वो न जानता हो आ मौजूद होगा।
\v 51 और ख़ूब कोड़े लगा कर उसको रियाकारों में शामिल करेगा वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।”
\s5
\c 25
\v 1 “उस वक़्त आसमान की बादशाही उन दस कुँवारियों की तरह होगी जो अपनी मशा'लें लेकर दुल्हा के इस्तक़बाल को निकलीं।
\v 2 उन में पाँच बेवक़ूफ़ और पाँच अक़्लमन्द थीं।
\v 3 जो बेवक़ूफ़ थीं उन्होंने अपनी मशा'लें तो ले लीं मगर तेल अपने साथ न लिया।
\v 4 मगर अक़्लमन्दों ने अपनी मशा'लों के साथ अपनी कुप्पियों में तेल भी ले लिया।
\s5
\v 5 और जब दुल्‍हा ने देर लगाई तो सब ऊँघने लगीं और सो गई।
\v 6 आधी रात को धूम मची, ‘देखो! दूल्हा आ गया, उसके इस्तक़बाल को निकलो!
\s5
\v 7 उस वक़्त वो सब कुंवारियाँ उठकर अपनी अपनी मशा'लों को दुरुस्त करने लगीं।
\v 8 और बेवक़ूफ़ों ने 'अक़्लमन्दों से कहा, ‘अपने तेल में से कुछ हम को भी दे दो, क्यूँकि हमारी मशा'लें बुझी जाती हैं।’
\v 9 'अक़्लमन्दों ने जवाब दिया, ‘शायद हमारे तुम्हारे दोनों के लिए काफ़ी न ह बेहतर; ये है कि बेचने वालों के पास जाकर, अपने लिए मोल ले लो।’
\s5
\v 10 जब वो मोल लेने जा रही थी, तो दुल्हा आ पहुँचा और जो तैयार थीं, वो उस के साथ शादी के जश्न में अन्दर चली गईं, और दरवाज़ा बन्द हो गया।
\v 11 फिर वो बाक़ी कुँवारियाँ भी आईं और कहने लगीं ‘ऐ ख़ुदावन्द ऐ ख़ुदावन्द। हमारे लिए दरवाज़ा खोल दे।’
\v 12 उसने जवाब में कहा ‘मैं तुम से सच कहता हूँ कि मैं तुम को नहीं जानता।’
\v 13 पस जागते रहो, क्यूँकि तुम न उस दिन को जानते हो न उस वक़्त को।
\s5
\v 14 क्यूँकि ये उस आदमी जैसा हाल है, जिसने परदेस जाते वक़्त अपने घर के नौकरों को बुला कर अपना माल उनके सुपुर्द किया।
\v 15 एक को पाँच चाँदी के सिक्के दिए, दूसरे को दो, और तीसरे को एक या'नी हर एक को उसकी क़ाबिलियत के मुताबिक़ दिया और परदेस चला गया।
\v 16 जिसको पाँच सिक्के मिले थे, उसने फ़ौरन जाकर उनसे लेन देन किया, और पाँच तोड़े और पैदा कर लिए।
\s5
\v 17 इसी तरह जिसे दो मिले थे, उसने भी दो और कमाए।
\v 18 मगर जिसको एक मिला था, उसने जाकर ज़मीन खोदी और अपने मालिक का रुपया छिपा दिया।
\s5
\v 19 बड़ी मुद्दत के बा'द उन नौकरों का मालिक आया और उनसे हिसाब लेने लगा।
\v 20 जिसको पाँच तोड़े मिले थे, वो पाँच सिक्के और लेकर आया, और कहा, ‘ऐ ख़ुदावन्द! तूने पाँच सिक्के मुझे सुपुर्द किए थे; देख, मैंने पाँच सिक्के और कमाए।’
\v 21 उसके मालिक ने उससे कहा, ‘ऐ अच्छे और ईमानदार नौकर शाबाश; तू थोड़े में ईमानदार रहा मैं तुझे बहुत चीज़ों का मुख़्तार बनाउँगा; अपने मालिक की ख़ुशी में शरीक हो।’
\s5
\v 22 और जिस को दो सिक्के मिले थे, उस ने भी पास आकर कहा, ‘तूने दो सिक्के मुझे सुपुर्द किए थे, देख मैंने दो सिक्के और कमाए।’
\v 23 उसके मालिक ने उससे कहा, ‘ऐ अच्छे और दियानतदार नौकर शाबाश; तू थोड़े में ईमानदार रहा मैं तुझे बहुत चीज़ों का मुख़्तार बनाउँगा; अपने मालिक की ख़ुशी में शरीक हो।’
\s5
\v 24 और जिसको एक तोड़ा मिला था, वो भी पास आकर कहने लगा, ‘ऐ ख़ुदावन्द! मैं तुझे जानता था, कि तू सख़्त आदमी है, और जहाँ नहीं बोया वहाँ से काटता है, और जहाँ नहीं बिखेरा वहाँ से जमा' करता है।
\v 25 पस मैं डरा और जाकर तेरा तोड़ा ज़मीन में छिपा दिया देख, जो तेरा है वो मौजूद है।’
\s5
\v 26 उसके मालिक ने जवाब में उससे कहा,'ऐ शरीर और सुस्त नौकर तू जानता था कि जहाँ मैंने नहीं बोया वहाँ से काटता हूँ, और जहाँ मैंने नहीं बिखेरा वहाँ से जमा' करता हूँ;
\v 27 पस तुझे लाज़िम था,कि मेरा रुपया साहूकारों को देता, तो मैं आकर अपना माल सूद समेत ले लेता।
\s5
\v 28 पस इससे वो सिक्का ले लो और जिस के पास दस सिक्के हैं‘ उसे दे दो।
\v 29 क्यूँकि जिस के पास है उसे दिया जाएगा और उस के पास ज़्यादा हो जाएगा, मगर जिस के पास नहीं है उससे वो भी जो उसके पास है, ले लिया जाएगा।
\v 30 और इस निकम्मे नौकर को बाहर अँधेरे में डाल दो, और वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।’
\s5
\v 31 जब इबने आदम अपने जलाल में आएगा, और सब फ़रिश्ते उसके साथ आएँगे; तब वो अपने जलाल के तख़्त पर बैठेगा।
\v 32 और सब क़ौमें उस के सामने जमा' की जाएँगी। और वो एक को दूसरे से जुदा करेगा।
\v 33 और भेड़ों को अपने दाहिनें और बकरियों को बाँए जमा' करेगा।
\s5
\v 34 उस वक़्त बादशाह अपनी तरफ़ वालों से कहेगा ‘आओ, मेरे बाप के मुबारक लोगो, जो बादशाही दुनियां बनाने से पहले से तुम्हारे लिए तैयार की गई है उसे मीरास में ले लो।
\v 35 क्यूँकि मैं भूखा था, तुमने मुझे खाना खिलाया; मैं प्यासा था, तुमने मुझे पानी पिलाया; मैं परदेसी था तूने मुझे अपने घर में उतारा।
\v 36 नंगा था तुमने मुझे कपड़ा पहनाया, बीमार था तुमने मेरी ख़बर ली ,मैं क़ैद में था, तुम मेरे पास आए।’
\s5
\v 37 तब रास्तबाज़ जवाब में उससे कहेंगे, ‘ऐ ख़ुदावन्द, हम ने कब तुझे भूका देख कर खाना खिलाया, या प्यासा देख कर पानी पिलाया?
\v 38 हम ने कब तुझे मुसाफ़िर देख कर अपने घर में उतारा? या नंगा देख कर कपड़ा पहनाया।
\v 39 हम कब तुझे बीमार या क़ैद में देख कर तेरे पास आए।?
\v 40 बादशाह जवाब में उन से कहेगा, ‘मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुम ने मेरे सब से छोटे भाइयों में से किसी के साथ ये सुलूक किया, तो मेरे ही साथ किया।’
\s5
\v 41 फिर वो बाएँ तरफ़ वालों से कहेगा, ‘मला'ऊनो मेरे सामने से उस हमेशा की आग में चले जाओ, जो इब्लीस और उसके फ़रिश्तों के लिए तैयार की गई है।
\v 42 क्यूँकि, मैं भूखा था, तुमने मुझे खाना न खिलाया, प्यासा था, तुमने मुझे पानी न पिलाया।
\v 43 मुसाफिर था, तुम ने मुझे घर में न उतारा नंगा था, तुम ने मुझे कपड़ा न पहनाया, बीमार और क़ैद में था, तुम ने मेरी ख़बर न ली।’
\s5
\v 44 तब वो भी जवाब में कहेंगे, ‘ऐ ख़ुदावन्द हम ने कब तुझे भूखा,या प्यासा, या मुसाफिर,या नंगा, या बीमार या क़ैद में देखकर तेरी ख़िदमत न की?
\v 45 उस वक़्त वो उनसे जवाब में कहेगा ‘मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तुम ने इन सब से छोटों में से किसी के साथ ये सुलूक न किया, तो मेरे साथ न किया|
\v 46 और ये हमेशा की सज़ा पाएँगे, मगर रास्तबाज़ हमेशा की ज़िन्दगी।”
\s5
\c 26
\v 1 जब ईसा' ये सब बातें ख़त्म कर चुका, तो ऐसा हुआ कि उसने अपने शागिर्दों से कहा।
\v 2 “तुम जानते हो कि दो दिन के बाद ईद-ए-फ़सह होगी। और इब्न-ए-आदम मस्लूब होने को पकड़वाया जाएगा।”
\s5
\v 3 उस वक़्त सरदार काहिन और क़ौम के बुज़ुर्ग काइफ़ा नाम सरदार काहिन के दिवान ख़ाने में जमा' हुए।
\v 4 और मशवरा किया कि ईसा' को धोखे से पकड़ कर क़त्ल करें।
\v 5 मगर कहते थे, “ 'ईद में नहीं, ऐसा न हो कि लोगों में बलवा हो जाए।”
\s5
\v 6 और जब ईसा' बैत अन्नियाह में शमा'ऊन जो पहले कोढ़ी था के घर में था।
\v 7 तो एक 'औरत संग-मरमर के इत्रदान में क़ीमती इत्र लेकर उसके पास आई, और जब वो खाना खाने बैठा तो उस के सिर पर डाला।
\v 8 शागिर्द ये देख कर खफ़ा हुए और कहने लगे,“ये किस लिए बर्बाद किया गया?
\v 9 ये तो बड़ी क़ीमत में बिक कर ग़रीबों को दिया जा सकता था।”
\s5
\v 10 ईसा' ने ये जान कर उन से कहा, “इस 'औरत को क्यूँ दुखी करते हो ? इस ने तो मेरे साथ भलाई की है।
\v 11 क्यूँकि ग़रीब ग़ुरबे तो हमेशा तुम्हारे पास हैं लेकिन मैं तुम्हारे पास हमेशा न रहूँगा।
\s5
\v 12 और इस ने तो मेरे दफ़्न की तैयारी के लिए इत्र मेरे बदन पर डाला।
\v 13 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तमाम दुनिया में जहाँ कहीं इस ख़ुशख़बरी का एलान किया जाएगा, ये भी जो इस ने किया; इस की यादगारी में कहा जाएगा।”
\s5
\v 14 उस वक़्त उन बारह में से एक ने जिसका नाम यहूदाह इस्करियोती था; सरदार काहिनों के पास जा कर कहा,
\v 15 “अगर मैं उसे तुम्हारे हवाले कर दूँ तो मुझे क्या दोगे? उन्होंने उसे तीस रुपये तौल कर दे दिया|”
\v 16 और वो उस वक़्‍त से उसके पकड़वाने का मौक़ा ढूँडने लगा।
\s5
\v 17 ईद-'ए-फ़ितर के पहले दिन शागिर्दों ने ईसा' के पास आकर कहा, “तू कहाँ चाहता है कि हम तेरे लिए फ़सह के खाने की तैयारी करें।”
\v 18 उस ने कहा, “शहर में फ़लाँ शख़्स के पास जा कर उससे कहना‘उस्ताद फ़रमाता है ’कि मेरा वक़्त नज़दीक है मैं अपने शागिर्दों के साथ तेरे यहाँ ईद'ए फ़सह करूँगा।”
\v 19 और जैसा ईसा' ने शागिर्दों को हुक्म दिया था, उन्होंने वैसा ही किया और फ़सह तैयार किया।
\s5
\v 20 जब शाम हुई तो वो बारह शागिर्दों के साथ खाना खाने बैठा था।
\v 21 जब वो खा रहा था, तो उसने कहा,“मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।”
\v 22 वो बहुत ही ग़मगीन हुए और हर एक उससे कहने लगे “ख़ुदावन्द, क्या मैं हूँ?”
\s5
\v 23 उस ने जवाब में कहा,“जिस ने मेरे साथ रक़ाबी में हाथ डाला है वही मुझे पकड़वाएगा।
\v 24 इबने आदम तो जैसा उसके हक़ में लिखा है जाता ही है लेकिन उस आदमी पर अफ़सोस जिसके वसीले से इबने आदम पकड़वाया जाता है अगर वो आदमी पैदा न होता तो उसके लिए अच्छा होता।”
\v 25 उसके पकड़वाने वाले यहूदाह ने जवाब में कहा “ऐ रब्बी क्या मैं हूँ?” उसने उससे कहा “तूने ख़ुद कह दिया।”
\s5
\v 26 जब वो खा रहे थे तो ईसा' ने रोटी ली और और बरकत देकर तोड़ी “और शागिर्दों को देकर कहा," लो, खाओ, ये मेरा बदन है।”
\s5
\v 27 फिर प्याला लेकर शुक्र किया और उनको देकर कहा “तुम सब इस में से पियो।
\v 28 क्यूँकि ये मेरा वो अहद का ख़ून है जो बहुतों के गुनाहों की मु'आफ़ी के लिए बहाया जाता है।
\v 29 मैं तुम से कहता हूँ, कि अंगूर का ये शीरा फिर कभी न पियूँगा, उस दिन तक कि तुम्हारे साथ अपने बाप की बादशाही में नया न पियूँ।”
\s5
\v 30 फिर वो हम्द करके बाहर ज़ैतून के पहाड़ पर गए।
\v 31 उस वक़्त ईसा' ने उनसे कहा “तुम सब इसी रात मेरी वजह से ठोकर खाओगे क्यूँकि लिखा है; मैं चरवाहे को मारूँगा‘और गल्ले की भेंड़े बिखर जाएँगी।’
\v 32 लेकिन मैं अपने जी उठने के बा'द तुम से पहले गलील को जाऊँगा।”
\s5
\v 33 पतरस ने जवाब में उससे कहा, “चाहे सब तेरी वजह से ठोकर खाएँ, लेकिन में कभी ठोकर न खाऊँगा।”
\v 34 ईसा' ने उससे कहा, “मैं तुझसे सच कहता हूँ, इसी रात मुर्ग़ के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा |”
\v 35 पतरस ने उससे कहा, “अगर तेरे साथ मुझे मरना भी पड़े। तोभी तेरा इन्कार हरगिज़ न करूँगा|” और सब शागिर्दो ने भी इसी तरह कहा।
\s5
\v 36 उस वक़्त ईसा' उनके साथ गतसिमनी नाम एक जगह में आया और अपने शागिर्दों से कहा ।“यहीं बैठे रहना जब तक कि मैं वहाँ जाकर दुआ करूँ।”
\v 37 और पतरस और ज़बदी के दोनों बेटों को साथ लेकर ग़मगीन और बेकरार होने लगा।
\v 38 उस वक़्त उसने उनसे कहा, “मेरी जान निहायत ग़मगीन है यहाँ तक कि मरने की नौबत पहुँच गई है, तुम यहाँ ठहरो, और मेरे साथ जागते रहो।”
\s5
\v 39 फिर ज़रा आगे बढ़ा और मुँह के बल गिर कर यूँ दुआ की,“ऐ मेरे बाप, अगर हो सके तो ये दुःख का प्याला मुझ से टल जाए, तोभी न जैसा मैं चाहता हूँ; बल्कि जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।”
\v 40 फिर शागिर्दों के पास आकर उनको सोते पाया और पतरस से कहा, “क्या तुम मेरे साथ एक घड़ी भी न जाग सके?
\v 41 जागते और दु'आ करते रहो ताकि आज़्माइश में न पड़ो, रूह तो मुस्त'इद है मगर जिस्म कमज़ोर है।”
\s5
\v 42 फिर दोबारा उसने जाकर यूँ दुआ की “ऐ मेरे बाप अगर ये मेरे पिये बग़ैर नहीं टल सकता तो तेरी मर्ज़ी पूरी हो।”
\v 43 और आकर उन्हें फिर सोते पाया, क्यूँकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं।
\v 44 और उनको छोड़ कर फिर चला गया, और फिर वही बात कह कर तीसरी बार दुआ की।
\s5
\v 45 तब शागिर्दों के पास आकर उसने कहा “अब सोते रहो, और आराम करो, देखो वक़्त आ पहुँचा है, और इबने आदम गुनाहगारों के हवाले किया जाता है।
\v 46 उठो चलें, देखो, मेरा पकड़वाने वाला नज़दीक आ पहुँचा है। ”
\s5
\v 47 वो ये कह ही रहा था, कि यहूदाह जो उन बारह में से एक था, आया, और उसके साथ एक बड़ी भीड़ तलवारें और लाठियाँ लिए सरदार काहिनों और क़ौम के बुज़ुर्गों की तरफ़ से आ पहुँची।
\v 48 और उसके पकड़वाने वाले ने उनको ये निशान दिया था, जिसका मैं बोसा लूँ वही है उसे पकड़ लेना।
\s5
\v 49 और फ़ौरन उसने ईसा' के पास आ कर कहा, “ऐ रब्बी सलाम! ”और उसके बोसे लिए।
\v 50 ईसा' ने उससे कहा, “मियाँ! जिस काम को आया है वो कर ले”| इस पर उन्होंने पास आकर ईसा' पर हाथ डाला और उसे पकड़ लिया।
\s5
\v 51 और देखो, ईसा' के साथियों में से एक ने हाथ बढ़ा कर अपनी तलवार खींची और सरदार काहिन के नौकर पर चला कर उसका कान उड़ा दिया।
\v 52 ईसा' ने उससे कहा, “अपनी तल वार को मियान में कर क्यूँकि जो तलवार खींचते हैं वो सब तलवार से हलाक किए जाएँगे।
\v 53 क्या तू नहीं समझता कि मैं अपने बाप से मिन्नत कर सकता हूँ, और वो फ़रिश्तों के बारह पलटन से ज़्यादा मेरे पास अभी मौजूद कर देगा?
\v 54 मगर वो लिखे हुए का यूँ ही होना ज़रूर है क्यूँ कर पूरे होंगे?”
\s5
\v 55 उसी वक़्त ईसा' ने भीड़ से कहा, “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे डाकू की तरह पकड़ने निकले हो? मैं हर रोज़ हैकल में बैठकर ता'लीम देता था,और तुमने मुझे नहीं पकड़ा |
\v 56 मगर ये सब कुछ इसलिए हुआ कि नबियों की नबूव्वत पूरी हों।” इस पर सब शागिर्द उसे छोड़ कर भाग गये|
\s5
\v 57 और ईसा' के पकड़ने वाले उसको काइफ़ा नाम सरदार काहिन के पास ले गए, जहाँ आलिम और बुज़ुर्ग जमा' हुए थे।
\v 58 और पतरस दूर दूर उसके पीछे पीछे सरदार काहिन के दिवानख़ाने तक गया, और अन्दर जाकर प्यादों के साथ नतीजा देखने को बैठ गया।
\s5
\v 59 सरदार काहिन और सब सद्रे-ए 'अदालत वाले ईसा' को मार डालने के लिए उसके ख़िलाफ़ झूठी गवाही ढूँडने लगे।
\v 60 मगर न पाई, गरचे बहुत से झूठे गवाह आए, लेकिन आख़िरकार दो गवाहों ने आकर कहा,
\v 61 “इस ने कहा है,कि मैं ख़ुदा के मक़दिस को ढा सकता और तीन दिन में उसे बना सकता हूँ।”
\s5
\v 62 और सरदार काहिन ने खड़े होकर उससे कहा, “तू जवाब नहीं देता? ये तेरे ख़िलाफ़ क्या गवाही देते हैं?”
\v 63 मगर ईसा' ख़ामोश ही रहा, सरदार काहिन ने उससे कहा, मैं तुझे ज़िन्दा ख़ुदा की क़सम देता हूँ,“कि अगर तू ख़ुदा का बेटा मसीह है तो हम से कह दे?”
\v 64 ईसा' ने उससे कहा, "तू ने ख़ुद कह दिया“ बल्कि मैं तुम से कहता हूँ, कि इसके बा'द इबने आदम को क़ादिर- ए मुतलक़ की दहनी तरफ़ बैठे और आसमान के बादलों पर आते देखोगे।”
\s5
\v 65 इस पर सरदार काहिन ने ये कह कर अपने कपड़े फाड़े उसने कुफ़्र बका है अब हम को गवाहों की क्या ज़रूरत रही? देखो, तुम ने अभी ये कुफ़्र सुना है।
\v 66 तुम्हारी क्या राय है? उन्होंने जवाब में कहा,“वो क़त्ल के लायक़ है।”
\s5
\v 67 इस पर उन्होंने उसके मुँह पर थूका और उसके मुक्के मारे और कुछ ने तमांचे मार कर कहा।
\v 68 “ऐ मसीह, हमें नुबुव्वत से बता कि तुझे किस ने मारा।”
\s5
\v 69 पतरस बाहर सहन में बैठा था, कि एक लौंडी ने उसके पास आकर कहा,“तू भी ईसा' गलीली के साथ था।”
\v 70 उसने सबके सामने ये कह कर इन्कार किया “मैं नहीं जानता तू क्या कहती है।”
\s5
\v 71 और जब वो ड्योढ़ी में चला गया तो दूसरी ने उसे देखा, और जो वहाँ थे , उनसे कहा, “ये भी ईसा' नासरी के साथ था|”
\v 72 उसने क़सम खा कर फिर इन्कार किया “मैं इस आदमी को नहीं जानता।”
\s5
\v 73 थोड़ी देर के बा'द जो वहाँ खड़े थे, उन्होंने पतरस के पास आकर कहा,“बेशक तू भी उन में से है, क्यूँकि तेरी बोली से भी ज़ाहिर होता है।”
\v 74 इस पर वो ला'नत करने और क़सम खाने लगा “मैं इस आदमी को नहीं जानता!”और फ़ौरन मुर्ग़ ने बाँग दी।
\v 75 पतरस को ईसा' की वो बात याद आई जो उसने कही थी: “मुर्ग़ के बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा|”और वो बाहर जाकर ज़ार ज़ार रोया।
\s5
\c 27
\v 1 जब सुबह हुई तो सब सरदार काहिनों और क़ौम के बुज़ुर्गों ने ईसा' के ख़िलाफ़ मशवरा किया कि उसे मार डालें।
\v 2 और उसे बाँध कर ले गए, और पीलातुस हाकिम के हवाले किया।
\s5
\v 3 जब उसके पकड़वाने वाले यहूदाह ने ये देखा, कि वो मुजरिम ठहराया गया, तो अफ़्सोस किया और वो तीस रुपये सरदार काहिन और बुज़ुर्गों के पास वापस लाकर कहा।
\v 4 मैंने गुनाह किया,“कि बेक़ुसूर को क़त्ल के लिए पकड़वाया ।”उन्हों ने कहा “हमें क्या! तू जान।”
\v 5 वो रुपयों को मक़दिस में फेंक कर चला गया। और जाकर अपने आपको फाँसी दी।
\s5
\v 6 सरदार काहिन ने रुपये लेकर कहा “इनको हैकल के ख़ज़ाने में डालना जायज़ नहीं; क्यूँकि ये ख़ून की क़ीमत है।”
\v 7 पस उन्होंने मशवरा करके उन रुपयों से कुम्हार का खेत परदेसियों के दफ़्न करने के लिए ख़रीदा।
\v 8 इस वजह से वो खेत आज तक ख़ून का खेत कहलाता है।
\s5
\v 9 उस वक़्त वो पूरा हुआ जो यरमियाह नबी के ज़रिये कहा गया था “कि जिसकी क़ीमत ठहराई गई थी, उन्होंने उसकी क़ीमत के वो तीस रुपये ले लिए, (उसकी क़ीमत कुछ बनी इस्राईल ने ठहराई थी)।
\v 10 और उसको कुम्हार के खेत के लिए दिया, जैसा "ख़ुदावन्द" ने मुझे हुक्म दिया।”
\s5
\v 11 ईसा' हाकिम के सामने खड़ा था, और हाकिम ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का बादशाह है?” ईसा' ने उस से कहा , “तू ख़ुद कहता है।”
\v 12 जब सरदार काहिन और बुज़ुर्ग उस पर इल्ज़ाम लगा रहे थे, उसने कुछ जवाब न दिया।
\v 13 इस पर पीलातुस ने उस से कहा “क्या तू नहीं सुनता, ये तेरे ख़िलाफ़ कितनी गवाहियाँ देते हैं?”
\v 14 उसने एक बात का भी उसको जवाब न दिया, यहाँ तक कि हाकिम ने बहुत ता'ज्जुब किया।
\s5
\v 15 और हाकिम का दस्तूर था,कि ईद पर लोगों की ख़ातिर एक क़ैदी जिसे वो चाहते थे छोड़ देता था।
\v 16 उस वक़्त बरअब्बा नाम उन का एक मशहूर क़ैदी था।
\s5
\v 17 पस जब वो इकटठे हुए तो पीलातुस ने उस से कहा, “तुम किसे चाहते हो कि तुम्हारी ख़ातिर छोड़ दूँ? बरअब्बा को या ईसा' को जो मसीह कहलाता है?”
\v 18 क्यूँकि उसे मा'लूम था, कि उन्होंने उसको जलन से पकड़वाया है।
\v 19 और जब वो तख़्त- ए आदालत पर बैठा था तो उस की बीवी ने उसे कहला भेजा “तू इस रास्तबाज़ से कुछ काम न रख क्यूँकि मैंने आज ख़्वाब में इस की वजह से बहुत दु:ख उठाया है।”
\s5
\v 20 लेकिन सरदार काहिनों और बुज़ुर्गों ने लोगों को उभारा कि बरअब्बा को माँग लें, और ईसा' को हलाक कराएँ।
\v 21 हाकिम ने उनसे कहा इन दोनों में से किसको चाहते हो कि तुम्हारी ख़ातिर छोड़ दूँ,? उन्होंने कहा “बरअब्बा को।”
\v 22 पीलातुस ने उनसे कहा “फिर ईसा' को जो मसीह कहलाता है क्या करूँ?”सब ने कहा “वो मस्लूब हो।”
\s5
\v 23 उसने कहा “क्यूँ? उस ने क्या बुराई की है?”मगर वो और भी चिल्ला चिल्ला कर कहने लगे “वो मस्लूब हो!”
\v 24 जब पीलातुस ने देखा कि कुछ बन नहीं पड़ता बल्कि उल्टा बलवा होता जाता है तो पानी लेकर लोगों के रूबरू अपने हाथ धोए “और कहा, मैं इस रास्तबाज़ के ख़ून से बरी हूँ; तुम जानो।”
\s5
\v 25 सब लोगों ने जवाब में कहा“इसका ख़ून हमारी और हमारी औलाद की गर्दन पर।”
\v 26 इस पर उस ने बरअब्बा को उनकी ख़ातिर छोड़ दिया, और ईसा' को कोड़े लगवा कर हवाले किया कि मस्लूब हो।
\s5
\v 27 इस पर हाकिम के सिपाहियों ने ईसा' को क़िले में ले जाकर सारी पलटन उसके आस पास जमा' की।
\v 28 और उसके कपड़े उतार कर उसे क़िरमिज़ी चोग़ा पहनाया।
\v 29 और काँटों का ताज बना कर उसके सिर पर रख्खा, और एक सरकन्डा उस के दहने हाथ में दिया और उसके आगे घुटने टेक कर उसे ठट्ठों में उड़ाने लगे; “ऐ यहूदियों के बादशाह, आदाब!”
\s5
\v 30 और उस पर थूका, और वही सरकन्डा लेकर उसके सिर पर मारने लगे।
\v 31 और जब उसका ठट्ठा कर चुके तो चोग़े को उस पर से उतार कर फिर उसी के कपड़े उसे पहनाए; और मस्लूब करने को ले गए।
\s5
\v 32 जब बाहर आए तो उन्होंने शमा'ऊन नाम एक कुरेनी आदमी को पाकर उसे बेगार में पकड़ा,कि उसकी सलीब उठाए।
\v 33 और उस जगह जो गुलगुता या'नी खोपड़ी की जगह कहलाती है पहुँचकर।
\v 34 पित मिली हुई मय उसे पीने को दी, मगर उसने चख कर पीना न चाहा।
\s5
\v 35 और उन्होंने उसे मस्लूब किया; और उसके कपड़े पर्चा डाल कर बाँट लिए।
\v 36 और वहाँ बैठ कर उसकी निगहबानी करने लगे।
\v 37 और उस का इल्ज़ाम लिख कर उसके सिर से ऊपर लगा दिया “ कि ये यहूदियों का बादशाह ईसा' है।”
\s5
\v 38 उस वक़्त उसके साथ दो डाकू मस्लूब हुए, एक दहने और एक बाएँ।
\v 39 और राह चलने वाले सिर हिला हिला कर उसको ला'न ता'न करते और कहते थे।
\v 40 “ऐ मक़दिस के ढानेवाले और तीन दिन में बनाने वाले अपने आप को बचा; अगर तू "ख़ुदा" का बेटा है तो सलीब पर से उतर आ।”
\s5
\v 41 इसी तरह सरदार कहिन भी फ़क़ीहों और बुज़ुर्गों के साथ मिलकर ठट्ठे से कहते थे,
\v 42 “इसने औरों को बचाया, अपने आप को नहीं बचा सकता, ये तो इस्राईल का बादशाह है; अब सलीब पर से उतर आए, तो हम इस पर ईमान लाएँ।
\s5
\v 43 इस ने ख़ुदा पर भरोसा किया है, अगरचे इसे चाहता है तो अब इस को छुड़ा ले, क्यूँकि इस ने कहा था,‘मैं ख़ुदा का बेटा हूँ।’”
\v 44 इसी तरह डाकू भी जो उसके साथ मस्लूब हुए थे, उस पर ला'न ता'न करते थे।
\s5
\v 45 और दोपहर से लेकर तीसरे पहर तक तमाम मुल्क में अन्धेरा छाया रहा।
\v 46 और तीसरे पहर के क़रीब ईसा' ने बड़ी आवाज़ से चिल्ला कर कहा “एली, एली, लमा शबक़ तनी ”ऐ मेरे ख़ुदा, ऐ मेरे ख़ुदा,“तू ने मुझे क्यूँ छोड़ दिया?”
\v 47 जो वहाँ खड़े थे उन में से कुछ ने सुन कर कहा “ये एलियाह को पुकारता है।”
\s5
\v 48 और फ़ौरन उनमें से एक शख़्स दौड़ा और सोख़ते को लेकर सिरके में डुबोया और सरकन्डे पर रख कर उसे चुसाया।
\v 49 मगर बाक़ियों ने कहा, “ठहर जाओ, देखें तो एलियाह उसे बचाने आता है या नहीं।”
\v 50 ईसा' ने फिर बड़ी आवाज़ से चिल्ला कर जान दे दी।
\s5
\v 51 और मक़दिस का पर्दा ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया, और ज़मीन लरज़ी और चट्टानें तड़क गईं।
\v 52 और क़ब्रें खुल गईं। और बहुत से जिस्म उन मुक़द्दसों के जो सो गए थे, जी उठे।
\v 53 और उसके जी उठने के बाद क़ब्रों से निकल कर मुक़द्दस शहर में गए, और बहुतों को दिखाई दिए।
\s5
\v 54 पस सुबेदार और जो उस के साथ ईसा' की निगहबानी करते थे, भोंचाल और तमाम माजरा देख कर बहुत ही डर कर कहने लगे “बै -शक ये "ख़ुदा" का बेटा था।”
\v 55 और वहाँ बहुत सी औरतें जो गलील से ईसा' की ख़िदमत करती हुई उसके पीछे पीछे आई थी, दूर से देख रही थीं।
\v 56 उन में मरियम मग्दलीनी थी, और या'क़ूब और योसेस की माँ मरियम और ज़ब्दी के बेटों की माँ।
\s5
\v 57 जब शाम हुई तो यूसुफ़ नाम अरिमतियाह का एक दौलतमन्द आदमी आया जो ख़ुद भी ईसा' का शागिर्द था।
\v 58 उस ने पीलातुस के पास जा कर ईसा' की लाश माँगी, इस पर पीलातुस ने दे देने का हुक्म दे दिया।
\s5
\v 59 यूसुफ़ ने लाश को लेकर साफ़ महीन चादर में लपेटा।
\v 60 और अपनी नई क़ब्र में जो उस ने चट्टान में खुदवाई थी रख्खा, फिर वो एक बड़ा पत्थर क़ब्र के मुँह पर लुढ़का कर चला गया।
\v 61 और मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम वहाँ क़ब्र के सामने बैठी थीं।
\s5
\v 62 दूसरे दिन जो तैयारी के बा'द का दिन था, सरदार काहिन और फ़रीसियों ने पीलातुस के पास जमा' होकर कहा।
\v 63 ख़ुदावन्द हमें याद है “कि उस धोकेबाज़ ने जीते जी कहा था, मैं तीन दिन के बा'द जी उठूँगा ।
\v 64 पस हुक्म दे कि तीसरे दिन तक क़ब्र की निगहबानी की जाए, कहीं ऐसा न हो कि उसके शागिर्द आकर उसे चुरा ले जाएँ, और लोगों से कह दें, वो मुर्दों में से जी उठा, और ये पिछला धोखा पहले से भी बुरा हो।”
\s5
\v 65 पीलातुस ने उनसे कहा “तुम्हारे पास पहरे वाले हैं" जाओ, जहाँ तक तुम से हो सके उसकी निगहबानी करो।”
\v 66 पस वो पहरेवालों को साथ लेकर गए, और पत्थर पर मुहर करके क़ब्र की निगहबानी की।
\s5
\c 28
\v 1 सबत के बा'द हफ़्ते के पहले दिन धूप निकलते वक़्त मरियम मग्दलीनी और दूसरी मरियम क़ब्र को देखने आईं।
\v 2 और देखो, एक बड़ा भूचाल आया क्यूँकि "ख़ुदा" का फ़रिश्ता आसमान से उतरा और पास आकर पत्थर को लुढ़का दिया; और उस पर बैठ गया।
\s5
\v 3 उसकी सूरत बिजली की तरह थी, और उसकी पोशाक बर्फ़ की तरह सफ़ेद थी।
\v 4 और उसके डर से निगहबान काँप उठे,और मुर्दा से हो गए।
\s5
\v 5 फ़रिश्ते ने औरतों से कहा,“तुम न डरो। क्यूँकि मैं जानता हूँ कि तुम ईसा' को ढूँड रही हो जो मस्लूब हुआ था।
\v 6 वो यहाँ नहीं है, क्यूँकि अपने कहने के मुताबिक़ जी उठा है; आओ ये जगह देखो जहाँ "ख़ुदावन्द" पड़ा था।
\v 7 और जल्दी जा कर उस के शागिर्दों से कहो वो मुर्दों में से जी उठा है, और देखो; वो तुम से पहले गलील को जाता है वहाँ तुम उसे देखोगे, देखो मैंने तुम से कह दिया है।”
\s5
\v 8 और वो ख़ौफ़ और बड़ी ख़ुशी के साथ क़ब्र से जल्द रवाना होकर उसके शागिर्दों को ख़बर देने दौड़ीं।
\v 9 और देखो ईसा' उन से मिला, और उस ने कहा, “सलाम।”उन्होंने पास आकर उसके क़दम पकड़े और उसे सज्दा किया।
\v 10 इस पर ईसा' ने उन से कहा, “डरो नहीं। जाओ, मेरे भाइयों से कहो कि गलील को चले जाएँ, वहाँ मुझे देखेंगे।”
\s5
\v 11 जब वो जा रही थीं, तो देखो; पहरेवालों में से कुछ ने शहर में आकर तमाम माजरा सरदार काहिनों से बयान किया।
\v 12 और उन्होंने बुज़ुर्गों के साथ जमा' होकर मशवरा किया और सिपाहियों को बहुत सा रुपया दे कर कहा,
\v 13 "ये कह देना, कि रात को जब हम सो रहे थे “उसके शागिर्द आकर उसे चुरा ले गए।”
\s5
\v 14 “अगर ये बात हाकिम के कान तक पहुँची तो हम उसे समझाकर तुम को ख़तरे से बचा लेंगे”
\v 15 पस उन्होंने रुपया लेकर जैसा सिखाया गया था, वैसा ही किया; और ये बात यहूदियों में मशहूर है।
\s5
\v 16 और ग्यारह शागिर्द गलील के उस पहाड़ पर गए, जो ईसा' ने उनके लिए मुक़र्रर किया था।
\v 17 उन्होंने उसे देख कर सज्दा किया, मगर कुछ ने शक़ किया।
\s5
\v 18 ईसा' ने पास आ कर उन से बातें की और कहा “आस्मान और ज़मीन का कुल इख़तियार मुझे दे दिया गया है।
\v 19 पस तुम जा कर सब क़ौमों को शागिर्द बनाओ और उन को बाप और बेटे और रूह-उल-कुद्दूस के नाम से बपतिस्मा दो।
\s5
\v 20 और उन को ये ता'लीम दो, कि उन सब बातों पर अमल करें जिनका मैंने तुम को हुक्म दिया; और देखो, मैं दुनिया के आख़िर तक हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।”