ur-deva_ulb/16-NEH.usfm

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Plaintext

\id NEH
\ide UTF-8
\h नहमियाह
\toc1 नहमियाह
\toc2 नहमियाह
\toc3 neh
\mt1 नहमियाह
\s5
\c 1
\p
\v 1 नहमियाह बिन हकलियाह का कलाम। बीसवें बरस किसलेव के महीने में, जब मैं क़स्र-ए-सोसन में था तो ऐसा हुआ,
\v 2 ~कि हनानी जो मेरे भाइयों में से एक है और चन्द आदमी यहूदाह से आए; और मैंने उनसे उन यहूदियों के बारे में जो बच निकले थे और ग़ुलामों में से बाक़ी रहे थे, और यरुशलीम के बारे में पूछा।
\s5
\v 3 ~उन्होंने मुझ से कहा कि वह बाक़ी लोग जो ग़ुलामी से छूट कर उस सूबे में रहते हैं, बहुत मुसीबत और ज़िल्लत में पड़े हैं; और यरुशलीम की फ़सील टूटी हुई, और उसके फाटक आग से जले हुए हैं।
\s5
\v 4 जब मैंने ये बातें सुनीं तो बैठ कर रोने लगा और कई दिनों तक मातम करता रहा, और रोज़ा रख्खा और आसमान के ख़ुदा के सामने दु'आ की,
\v 5 और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, आसमान के ख़ुदा~ख़ुदा-ए-'अज़ीम-ओ-मुहीब जो उनके साथ जो तुझसे मुहब्बत रखते और तेरे हुक्मों को मानते है 'अहद-ओ-फ़ज़्ल को क़ायम रखता है, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ,
\s5
\v 6 कि तू कान लगा और अपनी आँखें खुली रख ताकि तू अपने बन्दे की उस दु'आ को सुने जो मैं अब रत दिन तेरे सामने तेरे बन्दों बनी इस्राईल के लिए करता हूँ और बनी इस्राईल की ख़ताओं को जो हमने तेरे बर ख़िलाफ़ कीं मान लेता हूँ, और मैं और मेरे आबाई ख़ान्दान दोनों ने गुनाह किया है|"
\v 7 हमने तेरे ख़िलाफ़ बड़ी बुराई की है और उन हुक्मों और क़ानून और फ़रमानों को जो तूने अपने बन्दे मूसा को दिए नहीं माना
\s5
\v 8 मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि अपने उस क़ौल को याद कर जो तूने अपने बन्दे मूसा को फ़रमाया अगर तुम नाफ़रमानी करो, मैं तुम को क़ौमों में तितर-बितर करूँगा
\v 9 लेकिन अगर तुम मेरी तरफ़ फिरकर मेरे हुक्मों को मानों और उन पर 'अमल करो तो गो तुम्हारे आवारागर्द आसमान के किनारों पर भी हो मैं उनको वहाँ से इकट्ठा करके उस मक़ाम में पहुँचाऊँगा जिसे मैंने चुन लिया ताकि अपना नाम वहाँ रखूँ
\s5
\v 10 वह तो तेरे बन्दे और तेरे लोग है जिनको तूने अपनी बड़ी क़ुदरत और क़वी हाथ से छुड़ाया है
\v 11 ऐ ख़ुदावन्द मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि अपने बन्दे की दु'आ पर, और अपने बन्दों की दु'आ पर जो तेरे नाम से डरना पसन्द करते है कान लगा~और आज ~मैं तेरे मिन्नत करता हूँ अपने ~बन्दे को कामयाब कर और इस शख़्स के सामने उसपर फ़ज़्ल कर |"{मै तो बादशाह का साक़ी था |}
\s5
\c 2
\p
\v 1 अरतख़शशता बादशाह के बीसवें बरस नैसान के महीने में, जब मय उसके आगे थी तों मैंने मय उठा कर बादशाह को दी| इससे पहले मैं कभी उसके सामने मायूस नहीं हुआ था|
\v 2 इसलिए बादशाह ने मुझसे कहा, "तेरा चेहरा क्यूँ मायूस है, बावजूद ये कि तू बीमार नहीं है? तब ये दिल के ग़म के अलावा और कुछ न होगा|" तब मैं बहुत डर गया|
\s5
\v 3 मैंने बादशाह से कहा कि "बादशाह हमेशा ज़िन्दा रहे! मेरा चेहरा मायूस क्यूँ न हो, जबकि वह शहर जहाँ मेरे बाप-दादा की क़ब्रे हैं उजाड़ पड़ा है, और उसके फाटक आग से जले हुए हैं?"
\s5
\v 4 बादशाह ने मुझसे फ़रमाया, "किस बात के लिए तेरी दरख़्वास्त है?" तब मैंने आसमान के ख़ुदा से दु'आ की,
\v 5 फिर मैंने बादशाह से कहा, "अगर बादशाह की मर्ज़ी हो, और अगर तेरे ख़ादिम पर तेरे करम की नज़र है, तो तू मुझे यहूदाह में मेरे बाप-दादा की क़ब्रों के शहर को भेज दे ताकि मैं उसे ता'मीर करूँ|"
\v 6 तब बादशाह ने {मलिका भी उस के पास बैठी थी }मुझ से कहा, "तेरा सफ़र कितनी मुद्दत का होगा और तू कब लौटेगा?" ग़रज़ बादशाह की मर्ज़ी हुई कि मुझे भेजे: और मैंने वक़्त मुक़र्रर करके उसे बताया |
\s5
\v 7 और मैंने बादशाह से ये भी कहा, "अगर बादशाह की मर्ज़ी हो, तो दरिया पार हाकिमों के लिए मुझे परवाने 'इनायत हों कि वह मुझे यहूदाह तक पहुँचने ~के लिए गुज़र जाने दें|"
\v 8 और आसफ़ के लिए जो शाही जंगल का निगहबान है, एक शाही ख़त मिले कि वह हैकल के क़िले' के फाटकों के लिए, और शहरपनाह और उस घर के लिए जिस में रहूँगा, कड़ियाँ बनाने को मुझे लकड़ी दे और चूँकि मेरे ख़ुदा की शफ़क़त का हाथ मुझ पर था, बादशाह ने 'अर्ज़ क़ुबूल की |
\s5
\v 9 ~तब मैंने दरिया पार के हाकिमों के पास पहुँचकर बादशाह के परवाने उनको दिए और बादशाह ने फ़ौजी सरदारों और सवारों को मेरे साथ कर दिया था।
\v 10 ~जब सनबल्लत हूरूनी और 'अम्मोनी ग़ुलाम तूबियाह ने ये सुना, कि एक शख़्स बनी-इस्राईल की बहबूदी का तलबगार आया है, तो वह बहुत रंजीदा हुए।
\s5
\v 11 ~और यरुशलीम पहुँच कर तीन दिन रहा।
\v 12 ~फिर मैं रात को उठा, मैं भी और मेरे साथ चन्द आदमी; लेकिन जो कुछ यरुशलीम के लिए करने को मेरे ख़ुदा ने मेरे दिल में डाला था, वह मैंने किसी को न बताया; और जिस जानवर पर मैं सवार था, उसके अलावा और कोई जानवर मेरे साथ न था।
\s5
\v 13 ~मैं रात को वादी के फाटक से निकल कर अज़दहा के कुएँ और कूड़े के फाटक को गया; और यरुशलीम की फ़सील को, जो तोड़ दी गई थी और उसके फाटकों को, जो आग से जले हुए थे देखा।
\v 14 ~फिर मैं चश्मे के फाटक और बादशाह के तालाब को गया, लेकिन वहाँ उस जानवर के लिए जिस पर मैं सवार था, गुज़रने की जगह न थी।
\s5
\v 15 फिर मैं रात ही को नाले की तरफ़ से फ़सील को देखकर लौटा, और वादी के फाटक से दाख़िल हुआ और यूँ वापस आ गया।
\v 16 ~और हाकिमों को मा'लूम न हुआ कि मैं कहाँ-कहाँ गया, या मैंने क्या-क्या किया; और मैंने उस वक़्त तक न यहूदियों, न काहिनों, न अमीरों, न हाकिमों, न बाक़ियों को जो कारगुज़ार थे कुछ बताया था।
\s5
\v 17 ~तब मैंने उनसे कहा, "तुम देखते हो कि हम कैसी मुसीबत में हैं, कि यरुशलीम उजाड़ पड़ा है, और उसके फाटक आग से जले हुए हैं। आओ, हम यरुशलीम की फ़सील बनाएँ, ताकि आगे को हम ज़िल्लत का निशान न रहें।”
\v 18 और मैंने उनको बताया कि ख़ुदा की शफ़क़त का हाथ मुझ पर कैसे रहा, और ये कि बादशाह ने मुझ से क्या क्या बातें कहीं थीं। उन्होंने कहा, "हम उठकर बनाने लगें।” इसलिए इस अच्छे काम के लिए उन्होंने अपने हाथों को मज़बूत किया।
\s5
\v 19 लेकिन जब सनबल्लत हूरूनी और अम्मूनी ग़ुलाम तूबियाह और अरबी जशम ने सुना, तो वह हम को ठट्ठों में उड़ाने और हमारी हिक़ारत करके कहने लगे, "तुम ये क्या काम करते हो? क्या तुम बादशाह से बग़ावत करोगे?”
\v 20 तब मैंने जवाब देकर उनसे कहा, "आसमान का ख़ुदा, वही हम को कामयाब करेगा; इसी वजह से हम जो उसके बन्दे हैं, उठकर ता'मीर करेंगे; लेकिन यरुशलीम में तुम्हारा न तो कोई हिस्सा, न हक़, न यादगार है।"
\s5
\c 3
\p
\v 1 ~तब इलियासिब सरदार काहिन अपने भाइयों या'नी काहिनों के साथ उठा, और उन्होंने भेड़ फाटक को बनाया; और उसे पाक किया, और उसके किवाड़ों को लगाया। उन्होंने हमियाह के बुर्ज बल्कि हननएल के बुर्ज तक उसे पाक किया।
\v 2 ~उससे आगे यरीहू के लोगों ने बनाया, और उनसे आगे ज़क्कूर बिन इमरी ने बनाया।
\s5
\v 3 मछली फाटक को बनी हसन्नाह ने बनाया उन्होंने उसकी कड़ियाँ रख्खीं और उसके किवाड़े और चटकनियाँ और अड़बंगे लगाए।
\v 4 ~और उनसे आगे मरीमोत बिन ऊरियाह बिन हक्कूस ने मरम्मत की। और उनसे आगे मुसल्लाम बिन बरकियाह बिन मशीज़बेल ने मरम्मत की। और उनसे आगे सदोक़ बिन बा'ना ने मरम्मत की।
\v 5 ~और उनसे आगे तक़ू'इयों ने मरम्मत की, लेकिन उनके अमीरों ने अपने मालिक के काम के लिए गर्दन न झुकाई।
\s5
\v 6 ~और पुराने फाटक की यहूयदा बिन फ़ासख़ और मुसल्लाम बिन बसूदियाह ने मरम्मत की ~उन्होंने उसकी कड़ियाँ रख्खीं और उसके किवाड़े और चटकनियाँ और अड़बंगे लगाए।
\v 7 और उनसे आगे मलतियाह जिबा'ऊनी और यदून मरूनोती, और जिबा'ऊन और मिस्फ़ाह ~के लोगों ने जो दरिया पार के हाकिम की 'अमलदारी में से थे मरम्मत की।
\s5
\v 8 और उनसे आगे सुनारों की तरफ़ से उज़्ज़ीएल बिन हररहियाह ने, और उससे आगे 'अत्तारों में से हननियाह ने मरम्मत की, और उन्होंने यरुशलीम को चौड़ी दीवार तक मज़बूत किया।
\v 9 और उनसे आगे रिफ़ायाह ने, जो हूर का बेटा और यरुशलीम के आधे हल्क़े का सरदार था मरम्मत की।
\v 10 ~और उससे आगे यदायाह बिन हरुमफ़ ने अपने ही घर के सामने तक की मरम्मत की। और उससे आगे हतूश बिन हसबनियाह ने मरम्मत की।
\s5
\v 11 मलकियाह बिन हारिम और हसूब बिन पख़त-मोआब ने दूसरे हिस्से की और तनूरों के बुर्ज की मरम्मत की।
\v 12 और उससे आगे सलूम बिन हलूहेश ने जो यरुशलीम के आधे हल्क़े का सरदार था, और उसकी बेटियों ने मरम्मत की।
\s5
\v 13 ~वादी के फाटक की मरम्मत हनून और ज़नुवाह के बाशिन्दों ने की; उन्होंने उसे बनाया और उसके किवाड़े और चटकनियाँ और अड़बंगे लगाए, और कूड़े के फाटक तक एक हज़ार हाथ दीवार तैयार की।
\s5
\v 14 और कूड़े के फाटक की मरम्मत मलकियाह बिन रैकाब ने की जो बैत-हक्करम के हल्क़े का सरदार था; उसने उसे बनाया और उसके किवाड़े और चटकनियाँ और अड़बंगे लगाए।
\v 15 और चश्मा फाटक की सलूम बिन कलहूज़ा ने जो मिस्फ़ाह के हल्क़े का सरदार था, मरम्मत की; उसने उसे बनाया और उसको पाटा और उसके किवाड़े चिटकनियाँ और उसके अड़बंगे लगाये और बादशाही बाग़ के पास शीलोख़ के हौज़ की दीवार को उस सीढ़ी तक, जो दाऊद के शहर से नीचे आती है बनाया।
\s5
\v 16 ~फिर नहमियाह बिन 'अज़बूक ने जो बैतसूर के आधे हल्क़े का सरदार था, दाऊद की क़ब्रों के सामने की जगह और उस हौज़ तक जो बनाया गया था, और सूर्माओं के घर तक मरम्मत की।
\v 17 ~फिर लावियों में से रहूम बिन बानी ने मरम्मत की। उससे आगे हसबियाह ने जो क'ईलाह के आधे हल्क़े का सरदार था, अपने हल्क़े की तरफ़ से मरम्मत की।
\s5
\v 18 फिर उनके भाइयों में से बवी बिन हनदाद ने जो क़'ईलाह के आधे हल्क़े का सरदार था, मरम्मत की।
\v 19 ~और उससे आगे ईज़र बिन यशू'अ मिस्फ़ाह के सरदार ने दूसरे टुकड़े की जो मोड़ के पास सिलाहख़ाने की चढ़ाई के सामने है, मरम्मत की।
\s5
\v 20 ~फिर बारूक बिन ज़ब्बी ने सरगर्मी से उस मोड़ से सरदार काहिन इलियासिब के घर के दरवाज़े तक, एक और टुकड़े की मरम्मत की।
\v 21 ~फिर मरीमोत बिन ऊरियाह बिन हक्कूस ने एक और टुकड़े की इलियासिब के घर के दरवाज़े से इलियासिब के घर के आख़िर तक मरम्मत की।
\s5
\v 22 ~फिर नशेब के रहनेवाले काहिनों ने मरम्मत की।
\v 23 फिर बिनयमीन और हसूब ने अपने घर के सामने तक मरम्मत की। फिर 'अज़रियाह बिन मा'सियाह बिन 'अननियाह ने अपने घर के बराबर तक मरम्मत की।
\v 24 ~फिर बिनवी बिन हनदाद ने 'अज़रियाह के घर से दीवार के मोड़ और कोने तक, एक और टुकड़े की मरम्मत की।
\s5
\v 25 ~फ़ालाल बिन ऊज़ी ने मोड़ के सामने के हिस्से की, और उस बुर्ज की जो क़ैदख़ाने के सहन के पास के शाही महल से बाहर निकला हुआ है मरम्मत की। फिर फ़िदायाह बिन पर'ऊस ने मरम्मत की।
\v 26 ~(और नतीनीम" पूरब की तरफ़ ओफ़ल में पानी फाटक के सामने और उस बुर्ज तक बसे हुए थे, जो बाहर निकला हुआ है)
\v 27 ~फिर तक़ू'इयों ने उस बड़े बुर्ज के सामने जो बाहर निकला हुआ है, और ओफ़ल की दीवार तक एक और टुकड़े की मरम्मत की।
\s5
\v 28 ~घोड़ा फाटक के ऊपर काहिनों ने अपने अपने घर के सामने मरम्मत की।
\v 29 ~उनके पीछे सदोक़ बिन इम्मीर ने अपने घर के सामने मरम्मत की। और फिर पूरबी फाटक के दरबान समा'याह बिन सिकनियाह ने मरम्मत की।
\v 30 ~फिर हननियाह बिन सलमियाह और हनून ने जो सलफ़ का छठा बेटा था, एक और टुकड़े की मरम्मत की। फिर मुसल्लाम बिन बरकियाह ने अपनी कोठरी के सामने मरम्मत की।
\s5
\v 31 ~फिर सुनारों में से एक शख़्स मलकियाह ने नतीनीम" और सौदागरों के घर तक हिम्मीफ़क़ाद के फाटक के सामने और कोने की चढ़ाई तक मरम्मत की।
\v 32 ~और उस कोने की चढ़ाई और भेड़ फाटक के बीच सुनारों और सौदागरों ने मरम्मत की।
\s5
\c 4
\p
\v 1 लेकिन ऐसा हुआ जब सनबल्लत ने सुना के हम शहरपनाह बना रहे हैं, तो वह जल गया और बहुत ग़ुस्सा हुआ और यहूदियों को ठट्ठों में उड़ाने लगा।
\v 2 ~और वह अपने भाइयों और सामरिया के लश्कर के आगे यूँ कहने लगा, "ये कमज़ोर यहूदी क्या कर रहे हैं? क्या ये अपने गिर्द मोर्चाबन्दी करेंगे? क्या वह क़ुर्बानी चढ़ाएँगे? क्या वह एक ही दिन में सब कुछ कर चुकेंगे? क्या वह जले हुए पत्थरों को कूड़े के ढेरों में से निकाल कर फिर नये कर देंगे?"
\v 3 और तूबियाह 'अम्मोनी उसके पास खड़ा था, तब वह कहने लगा, "जो कुछ वह बना रहे हैं, अगर उसपर लोमड़ी चढ़ जाए तो वह उनके पत्थर की शहरपनाह को गिरा देगी।"
\s5
\v 4 ~सुन ले, ऐ हमारे ख़ुदा क्यूँकि हमारी हिक़ारत होती है और उनकी मलामत उन ही के सिर पर डाल: और ग़ुलामी के मुल्क में उनको ग़ारतगरों के हवाले कर दे।
\v 5 और उनकी बुराई को न ढाँक, और उनकी ख़ता तेरे सामने से मिटाई न जाए; क्यूँकि उन्होंने मे'मारों के सामने तुझे ग़ुस्सा दिलाया है।
\v 6 ~ग़रज़ हम दीवार बनाते रहे, और सारी दीवार आधी बलन्दी तक जोड़ी गई; क्यूँकि लोग दिल लगा कर काम करते थे।
\s5
\v 7 लेकिन जब सनबल्लत और तूबियाह और अरबों ~और 'अम्मोनियों और अशदूदियों ने सुना कि यरुशलीम की फ़सील मरम्मत होती जाती है, और दराड़े बन्द होने लगीं, तो वह जल गए।
\v 8 और सभों ने मिल कर बन्दिश बाँधी कि आकर यरुशलीम से लड़ें, और वहाँ परेशानी पैदा कर दें।
\v 9 ~लेकिन हम ने अपने ख़ुदा से दु'आ की, और उनकी वजह से दिन और रात उनके मुक़ाबले में पहरा बिठाए रखा
\s5
\v 10 ~और यहूदाह कहने लगा कि बोझ उठाने वालों की ताक़त घट गयी और मलबा बहुत है, इसलिए हम दीवार नहीं बना सकते हैं।
\v 11 ~और हमारे दुश्मन कहने लगे, "जब तक हम उनके बीच पहुँच कर उनको क़त्ल न कर डालें और काम ख़त्म न कर दें, तब तक उनको न मा'लूम होगा न वह देखेंगे।"
\s5
\v 12 ~और जब वह यहूदी जो उनके आस-पास रहते थे आए, तो उन्होंने सब जगहों से दस बार आकर हम से कहा कि तुम को हमारे पास लौट आना ज़रूर है।
\v 13 इसलिए मैंने शहरपनाह के पीछे की जगह के सबसे नीचे हिस्सों में जहाँ जहाँ खुला था, लोगों को अपनी अपनी तलवार और बर्छी और कमान लिए हुए उनके घरानों के मुताबिक़ बिठा दिया।
\v 14 ~तब मैं देख कर उठा, और अमीरों और हाकिमों और बाक़ी लोगों से कहा कि तुम उनसे मत डरो; ख़ुदावन्द को जो बुज़ुर्ग और बड़ा है याद करो, और अपने भाइयों और बेटे बेटियों और अपनी बीवियों और घरों के लिए लड़ो।
\s5
\v 15 ~और जब हमारे दुश्मनों ने सुना कि ये बात हम को मा'लूम हो गई और ख़ुदा ने उनका मन्सूबा बेकार कर दिया, तो हम सबके सब शहरपनाह को अपने अपने काम पर लौटे।
\v 16 और ऐसा हुआ कि उस दिन से मेरे आधे नौकर काम में लग जाते, और आधे बर्छियाँ और और ढालें और कमाने लिए और बख़्तर पहने ~रहते थे; और वह जो हाकिम थे यहूदाह के सारे ख़ान्दान के पीछे मौजूद रहते थे।
\s5
\v 17 इसलिए जो लोग दीवार बनाते थे और जो बोझ उठाते और ढोते थे, हर एक अपने एक हाथ से काम करता था और दूसरे में अपना हथियार लिए रहता था।
\v 18 और मे'मारों में से हर एक आदमी अपनी तलवार अपनी कमर से बाँधे हुए काम करता था, और वह जो नरसिंगा फूँकता था मेरे पास रहता था।
\s5
\v 19 ~और मैंने अमीरों और हाकिमों और बाक़ी लोगों से कहा कि काम तो बड़ा और फैला हुआ है, और हम दीवार पर अलग अलग एक दूसरे से दूर रहते हैं।
\v 20 इसलिए जिधर से नरसिंगा तुम को सुनाई दे, उधर ही तुम हमारे पास चले आना। हमारा ख़ुदा हमारे लिए लड़ेगा।
\s5
\v 21 ~यूँ हम काम करते रहे, और उनमें से आधे लोग पौ फटने के वक़्त से तारों के दिखाई देने तक बर्छियाँ लिए रहते थे।
\v 22 ~और मैंने उसी मौक़े' पर लोगों से ये भी कह दिया था कि हर शख़्स अपने नौकर को लेकर यरुशलीम में रात काटा करे, ताकि रात को वह हमारे लिए पहरा दिया करें और दिन को काम करें।
\v 23 ~इसलिए न तो मैं न मेरे भाई न मेरे नौकर और न पहरे के लोग जो मेरे पैरौ थे, कभी अपने कपड़े उतारते थे; बल्कि हर शख़्स अपना हथियार लिए हुए पानी के पास जाता था।
\s5
\c 5
\p
\v 1 फिर लोगों और उनकी बीवियों की तरफ़ से उनके यहूदी भाइयों पर बड़ी शिकायत हुई।
\v 2 ~क्यूँकि कई ऐसे थे जो कहते थे कि हम और हमारे बेटे-बेटियाँ बहुत हैं; इसलिए हम अनाज ले लें, ताकि खाकर ज़िन्दा रहें।
\v 3 और कुछ ऐसे भी थे जो कहते थे कि हम अपने खेतों और अंगूरिस्तानों और मकानों को गिरवी रखते हैं, ताकि हम काल में अनाज ले लें।
\s5
\v 4 और कितने कहते थे कि हम ने अपने खेतों और अंगूरिस्तानों पर बादशाह के ख़िराज के लिए रुपया क़र्ज़ लिया है।
\v 5 ~लेकिन हमारे जिस्म तो हमारे भाइयों के जिस्म की तरह हैं, और हमारे बाल बच्चे ऐसे जैसे उनके बाल बच्चे और देखो, हम अपने बेटे-बेटियों को नौकर होने के लिए ग़ुलामी के सुपुर्द करते हैं, और हमारी बेटियों में से कुछ लौंडियाँ बन चुकी हैं; और हमारा कुछ बस नहीं चलता, क्यूँकि हमारे खेत और अंगूरिस्तान औरों के क़ब्ज़े में हैं।
\s5
\v 6 ~जब मैंने उनकी फ़रियाद और ये बातें सुनीं, तो मैं बहुत ग़ुस्सा हुआ।
\v 7 और मैंने अपने दिल में सोचा, और अमीरों और हाकिमों को मलामत करके उनसे कहा, "तुम में से हर एक अपने भाई से सूद लेता है।" और मैंने एक बड़ी जमा'अत को उनके ख़िलाफ़ जमा' किया;
\v 8 और मैंने उनसे कहा कि हम ने अपने मक़दूर के मुवाफ़िक़ अपने यहूदी भाइयों को जो और क़ौमों के हाथ बेच दिए गए थे, दाम देकर छुड़ाया; इसलिए क्या तुम अपने ही भाइयों को बेचोगे? और क्या वह हमारे ही हाथ में बेचे जाएँगें? तब वह चुप रहे और उनको कुछ जवाब न सूझा।
\s5
\v 9 ~और मैंने ये भी कहा कि ये काम जो तुम करते हो ठीक नहीं; क्या और क़ौमों की मलामत की वजह से जो हमारी दुश्मन हैं, तुम को ख़ुदा के ख़ौफ़ में चलना लाज़िम नहीं?
\v 10 ~मैं भी और मेरे भाई और मेरे नौकर भी उनको ~रुपया और ग़ल्ला सूद पर देते हैं, लेकिन मैं तुम्हारी मिन्नत करता हूँ कि हम सब सूद लेना छोड़ दें।
\v 11 ~मैं तुम्हारी मिन्नत करता हूँ कि आज ही के दिन उनके खेतों और अंगूरिस्तानों और ज़ैतून के बाग़ों और घरों को, और उस रुपये और अनाज और मय और तेल के सौवें हिस्से को, जो तुम उनसे जबरन लेते हो उनको वापस कर दो।
\s5
\v 12 ~तब उन्होंने कहा कि हम इनको वापस कर देंगे और उनसे कुछ न माँगेंगे, जैसा तू कहता है हम वैसा ही करेंगें। फिर मैंने काहिनों को बुलाया और उनसे क़सम ली कि वह इसी वा'दे के मुताबिक़ करेंगे।
\v 13 ~फिर मैंने अपना दामन झाड़ा और कहा कि इसी तरह से ख़ुदा हर शख़्स को जो अपने इस वा'दे पर 'अमल न करे, उसके घर से और उसके कारोबार से झाड़ डाले; वह इसी तरह झाड़ दिया और निकाल फेंका जाए। तब सारी जमा'अत ने कहा, "आमीन!" और ख़ुदावन्द की हम्द की। और लोगों ने इस वा'दे के मुताबिक़ काम किया।
\s5
\v 14 'अलावा इसके जिस वक़्त से मैं यहूदाह के मुल्क में हाकिम मुक़र्रर हुआ, या'नी अरतख़शशता बादशाह के बीसवें बरस से बत्तीसवें बरस तक, ग़रज़ बारह बरस मैंने और मेरे भाइयों ने हाकिम होने की रोटी न खाई।
\v 15 ~लेकिन अगले हाकिम जो मुझ से पहले थे र'इयत पर एक बार थे, और 'अलावा चालीस मिस्क़ाल चाँदी के रोटी और मय उनसे लेते थे, बल्कि उनके नौकर भी लोगों पर हुकूमत जताते थे; लेकिन मैंने ख़ुदा के ख़ौफ़ की वजह से ऐसा न किया।
\s5
\v 16 ~बल्कि मैं इस शहरपनाह के काम में बराबर मशग़ूल रहा, और हम ने कुछ ज़मीन भी नहीं ख़रीदी, और मेरे सब नौकर वहाँ काम के लिए इकट्ठे रहते थे।
\v 17 ~इसके अलावा उन लोगों के 'अलावा जो हमारे आस पास की क़ौमों में से हमारे पास आते थे, यहूदियों और सरदारों में से डेढ़ सौ आदमी मेरे दस्तरख़्वान पर होते थे।
\s5
\v 18 ~और एक बैल और छ: मोटी मोटी भेड़ें एक दिन के लिए तैयार होती थी, मुर्ग़ियाँ भी मेरे लिए तैयार की जाती थीं, और दस दस दिन के बा'द हर क़िस्म की मय का ज़ख़ीरा तैयार होता था, बावजूद इस सबके मैंने हाकिम होने की रोटी तलब न की क्यूँकि इन लोगों पर ग़ुलामी गिराँ थी।
\v 19 ~ऐ मेरे ख़ुदा, जो कुछ मैंने इन लोगों के लिए किया है, उसे तू मेरे हक़ में भलाई के लिए याद रख।
\s5
\c 6
\p
\v 1 जब सनबल्लत और तूबियाह और जशम 'अरबी और हमारे बाक़ी दुश्मनों ने सुना कि मैं शहरपनाह को बना चुका, और उसमें कोई रख़ना बाक़ी नहीं रहा (अगरचे उस वक़्त तक मैंने फाटकों में किवाड़े नहीं लगाए थे)।
\v 2 ~तो सनबल्लत और जशम ने मुझे ये कहला भेजा कि आ, हम ओनू के मैदान के किसी गाँव में आपस में मुलाक़ात करें। लेकिन वह मुझ से बुराई करने की फ़िक्र में थे।
\s5
\v 3 इसलिए मैंने उनके पास कासिदों से कहला भेजा कि मैं बड़े काम में लगा हूँ और आ नहीं सकता; मेरे इसे छोड़कर तुम्हारे पास आने से ये काम क्यूँ बन्द रहे?
\v 4 ~उन्होंने चार बार मेरे पास ऐसा ही पैग़ाम भेजा और मैंने उनको इसी तरह का जवाब दिया।
\s5
\v 5 ~फिर सनबल्लत ने पाँचवीं बार उसी तरह से अपने नौकर को मेरे पास हाथ में खुली चिट्ठी लिए हुए भेजा:
\v 6 ~जिसमें लिखा था कि और क़ौमों में ये अफ़वाह है और जशम यही कहता है, कि तेरा और यहूदियों का इरादा बग़ावत करने का है, इसी वजह से तू शहरपनाह बनाता है; और तू इन बातों के मुताबिक़ उनका बादशाह बनना चाहता है।
\s5
\v 7 और तूने नबियों को भी मुक़र्रर किया कि यरुशलीम में तेरे हक़ में 'ऐलान करें और कहें, 'यहूदाह में एक बादशाह है।' तब इन बातों के मुताबिक़ बादशाह को इत्तला' की जाएगी। इसलिए अब आ हम आपस में मशवरा करें।
\s5
\v 8 ~तब मैंने उसके पास कहला भेजा, "जो तू कहता है, इस तरह की कोई बात नहीं हुई, बल्कि तू ये बातें अपने ही दिल से बनाता है।"
\v 9 ~वह सब तो हम को डराना चाहते थे, और कहते थे कि इस काम में उनके हाथ ऐसे ढीले पड़ जाएँगे कि वह होने ही का नहीं। लेकिन अब ऐ ख़ुदा, तू मेरे हाथों को ताक़त बख़्श।
\s5
\v 10 फिर मैं समा'याह बिन दिलायाह बिन मुहेतबेल के घर गया, वह घर में बन्द था; उसने कहा, "हम ख़ुदा के घर में, हैकल के अन्दर मिलें, और हैकल के दरवाज़ों को बन्द कर लें। क्यूँकि वह तुझे क़त्ल करने को आएँगे, वह ज़रूर रात को तुझे क़त्ल करने को आएँगे।"
\v 11 ~मैंने कहा, "क्या मुझसा आदमी भागे? और कौन है जो मुझ सा हो और अपनी जान बचाने को हैकल में घुसे'? मैं अन्दर नहीं जाने का।”
\s5
\v 12 और मैंने मा'लूम कर लिया कि ख़ुदा ने उसे नहीं भेजा था, लेकिन उसने मेरे ख़िलाफ़ पेशीनगोई की बल्कि सनबल्लत और तूबियाह ने उसे मज़दूरी पर रख्खा था।
\v 13 और उसको इसलिए मज़दूरी दी गई ताकि मैं डर जाऊँ और ऐसा काम करके ख़ताकार ठहरूँ, और उनको बुरी ख़बर फैलाने का मज़मून मिल जाए, ताकि मुझे मलामत करें।
\v 14 ~ऐ मेरे ख़ुदा! तूबियाह और सनबल्लत को उनके इन कामों के लिहाज़ से, और नौ'ईदियाह नबिया को भी और बाक़ी नबियों को जो मुझे डराना चाहते थे याद रख।
\s5
\v 15 ~ग़रज़ बावन दिन में, अलूल महीने की पच्चीसवीं तारीख़ को शहरपनाह बन चुकी।
\v 16 ~जब हमारे सब दुश्मनों ने ये सुना, तो हमारे आस-पास की सब क़ौमें डरने लगीं और अपनी ही नज़र में ख़ुद ज़लील हो गईं; क्यूँकि उन्होंने जान लिया कि ये काम हमारे ख़ुदा की तरफ़ से हुआ।
\s5
\v 17 इसके अलावा उन दिनों में यहूदाह के अमीर बहुत से ख़त तूबियाह को भेजते थे, और तूबियाह के ख़त उनके पास आते थे।
\v 18 ~क्यूँकि यहूदाह में बहुत लोगों ने उससे क़ौल-ओ-क़रार किया था, इसलिए कि वह सिकनियाह बिन अरख़ का दामाद था; और उसके बेटे यहूहानान ने मुसल्लाम बिन बरकियाह की बेटी को ब्याह लिया था।
\v 19 और वह मेरे आगे उसकी नेकियों का बयान भी करते थे और मेरी बातें उसे सुनाते थे, और तूबियाह मुझे डराने को चिट्ठियाँ भेजा करता था।
\s5
\c 7
\p
\v 1 जब शहरपनाह बन चुकी और मैंने दरवाज़े लगा लिए, और दरबान और गानेवाले और लावी मुक़र्रर हो गए,
\v 2 तो मैंने यरुशलीम को अपने भाई हनानी और क़िले' के हाकिम हनानियाह के सुपुर्द किया, क्यूँकि वह अमानतदार और बहुतों से ज़्यादा ख़ुदा तरस था।
\s5
\v 3 और मैंने उनसे कहा कि जब तक धूप तेज़ न हो यरुशलीम के फाटक न खुलें, और जब वह पहरे पर खड़े हों तो किवाड़े बन्द किए जाएँ, और तुम उनमें अड़बंगे लगाओ और यरुशलीम के बाशिन्दों में से पहरेवाले मुक़र्रर करो कि हर एक अपने घर के सामने अपने पहरे पर रहे।
\v 4 और शहर तो वसी' और बड़ा था, लेकिन उसमें लोग कम थे और घर बने न थे।
\s5
\v 5 और मेरे ख़ुदा ने मेरे दिल में डाला कि अमीरों और सरदारों और लोगों को इकठ्ठा करूँ ताकि नसबनामे के मुताबिक़ उनका शुमार किया जाए और मुझे उन लोगों का नसबनामा मिला जो पहले आए थे, और उसमें ये लिखा हुआ पाया :
\s5
\v 6 मुल्क के जिन लोगों को शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र बाबुल को ले गया था, उन ग़ुलामों की ग़ुलामी में से वह जो निकल आए, और यरुशलीम और यहूदाह में अपने अपने शहर को गए ये हैं,
\v 7 ~जो ज़रुब्बाबुल, यशू'अ, नहमियाह, 'अज़रियाह, रा'मियाह, नहमानी, मर्दकी बिलशान मिसफ़रत, बिगवई, नहूम और बा'ना के साथ आए थे।बनी-इस्राईल के लोगों का शुमार ये था :
\s5
\v 8 बनी पर'ऊस, दो हज़ार एक सौ बहतर;
\v 9 बनी सफ़तियाह, तीन सौ बहतर;
\v 10 ~बनी अरख़, छ: सौ बावन;
\s5
\v 11 ~बनी पख़त-मोआब जो यशू'अ और योआब की नसल में से थे, दो हज़ार आठ सौ अठारह;
\v 12 ~बनी 'ऐलाम, एक हज़ार दो सौ चव्वन,
\v 13 बनी ज़त्तू, आठ सौ पैन्तालीस;
\v 14 ~बनी ज़क्की, सात सौ साठ;
\s5
\v 15 ~बनी बिनबी, छ: सौ अड़तालीस;
\v 16 ~बनी बबई, छ: सौ अठाईस;
\v 17 ~बनी 'अज़जाद, दो हज़ार तीन सौ बाईस;
\v 18 ~बनी अदूनिक़ाम, छ: सौ सड़सठ;
\s5
\v 19 ~बनी बिगवई, दो हज़ार सड़सठ;
\v 20 ~बनी 'अदीन, छ: सौ पचपन,
\v 21 हिज़कियाह के ख़ान्दान में से बनी अतीर, अट्ठानवे;
\v 22 ~बनी हशूम, तीन सौ अठाईस;
\s5
\v 23 ~बनी बज़ै, तीन सौ चौबीस;
\v 24 ~बनी ख़ारिफ़, एक सौ बारह,
\v 25 ~बनी जिबा'ऊन, पचानवे;
\v 26 ~बैतलहम और नतूफ़ाह के लोग, एक सौ अठासी,
\s5
\v 27 ~'अन्तोत के लोग, एक सौ अटठाईस;
\v 28 ~बैत 'अज़मावत के लोग, बयालीस,
\v 29 करयतया'रीम, कफ़ीरा और बैरोत के लोग, सात सौ तैन्तालीस;
\v 30 ~रामा और जिबा' के लोग, छ: सौ इक्कीस;
\s5
\v 31 ~मिक्मास के लोग, एक सौ बाईस;
\v 32 ~बैतएल और 'ए के लोग, एक सौ तेईस;
\v 33 दूसरे नबू के लोग, बावन;
\v 34 ~दूसरे 'ऐलाम की औलाद, एक हज़ार दो सौ चव्वन;
\s5
\v 35 ~बनी हारिम, तीन सौ बीस;
\v 36 ~यरीहू के लोग, तीन सौ पैन्तालीस;
\v 37 ~लूद और हादीद और ओनू के लोग, सात सौ इक्कीस;
\v 38 बनी सनाआह, तीन हज़ार नौ सौ तीस।
\s5
\v 39 ~फिर काहिन या'नी यशू'अ के घराने में से बनी यदा'याह, नौ सौ तिहत्तर;
\v 40 ~बनी इम्मेर, एक हज़ार बावन;
\v 41 ~बनी फ़शहूर, एक हज़ार दो सौ सैन्तालीस;
\v 42 ~बनी हारिम, एक हज़ार सत्रह।
\s5
\v 43 ~फिर लावी या'नी बनी होदावा में से यशू'अ और क़दमीएल की औलाद, चौहत्तर;
\v 44 ~और गानेवाले या'नी बनी आसफ़, एक सौ अड़तालीस;
\v 45 ~और दरबान जो सलूम और अतीर और तलमून और 'अक़्क़ूब और ख़तीता और सोबै की औलाद थे, एक सौ अड़तीस।
\s5
\v 46 और नतीनीम, या'नी बनी ज़ीहा, बनी हसूफ़ा, बनी तब'ओत,
\v 47 ~बनी क़रूस, बनी सीगा, बनी फ़दून,
\v 48 ~बनी लिबाना, बनी हजाबा, बनी शलमी,
\v 49 ~बनी हनान, बनी जिद्देल, बनी जहार,
\s5
\v 50 ~बनी रियायाह, बनी रसीन, बनी नकूदा,
\v 51 ~बनी जज़्ज़ाम, बनी उज़्ज़ा, बनी फ़ासख़,
\v 52 बनी बसै, बनी म'ऊनीम, बनी नफ़ूशसीम
\s5
\v 53 बनी बक़बूक़, बनी हक़ूफ़ा, बनी हरहूर,
\v 54 ~बनी बज़लीत, बनी महीदा, बनी हरशा
\v 55 ~बनी बरक़ूस, बनी सीसरा, बनी तामह,
\v 56 ~बनी नज़ियाह, बनी ख़तीफ़ा।
\s5
\v 57 सुलेमान के ख़ादिमों की औलाद : बनी सूती, बनी सूफ़िरत, बनी फ़रीदा,
\v 58 बनी या'ला, बनी दरक़ून, बनी जिद्देल,
\v 59 बनी सफ़तियाह, बनी ख़तील, बनी फूक़रत ज़बाइम और बनी अमून।
\v 60 सबनतीनीम और सुलेमान के ख़ादिमों की औलाद, तीन सौ बानवे।
\s5
\v 61 और जो लोग तल-मलह और तलहरसा और करोब और उद्दून और इम्मेर से गए थे, लेकिन अपने आबाई ख़ान्दानों और नसल का पता न दे सके कि इस्राईल में से थे या नहीं, सो ये हैं:
\v 62 ~बनी दिलायाह, बनी तूबियाह, बनी नक़ूदा, छ: सौ बयालिस।
\v 63 और काहिनों में से बनी हबायाह, बनी हक़्क़ूस और बरज़िल्ली की औलाद जिसने ~जिल'आदी बरज़िल्ली की बेटियों में से एक लड़की को ब्याह लिया और उनके नाम से कहलाया।
\s5
\v 64 ~उन्होंने अपनी सनद उनके बीच जो नसबनामों के मुताबिक़ गिने गए थे ढूँडी, लेकिन वह न मिली। इसलिए वह नापाक माने गए और कहानत से ख़ारिज हुए;
\v 65 और हाकिम ने उनसे कहा कि वह पाकतरीन चीज़ों में से न खाएँ, जब तक कोई काहिन ऊरीम-ओ-तुम्मीम लिए हुए खड़ा न हो।
\s5
\v 66 ~सारी जमा'अत के लोग मिलकर बयालीस हज़ार तीन सौ साठ थे;
\v 67 'अलावा उनके ग़ुलामों और लौंडियों का शुमार सात हज़ार तीन सौ सैन्तीस था, और उनके साथ दो सौ पैन्तालिस गानेवाले और गानेवालियाँ थीं।
\s5
\v 68 उनके घोड़े, सात सौ छत्तीस; उनके खच्चर, दो सौ पैन्तालीस;
\v 69 ~उनके ऊँट, चार सौ पैन्तीस; उनके गधे, छः हज़ार सात सौ बीस थे।
\s5
\v 70 और आबाई ख़ान्दानों के सरदारों में से कुछ ने उस काम के लिए दिया। हाकिम ने एक हज़ार सोने के दिरहम, और पचास प्याले, और काहिनों के पाँच सौ तीस लिबास ख़ज़ाने में दाख़िल किए।
\v 71 और आबाई ख़ान्दानों के सरदारों में से कुछ ने उस कम के ख़ज़ाने में बीस हज़ार सोने के दिरहम, और दो हज़ार दो सौ मना चाँदी दी।
\v 72 और बाक़ी लोगों ने जो दिया वह बीस हज़ार सोने के दिरहम, और दो हज़ार मना चाँदी, और काहिनों के सड़सठ पैराहन थे।
\s5
\v 73 ~इसलिए काहिन ओर लावी और दरबान और गाने वाले और कुछ लोग, और नतीनीम, और तमाम इस्राईल अपने-अपने शहर में बस गए।
\s5
\c 8
\p
\v 1 और जब सातवाँ महीना आया, तो बनी-इस्राईल अपने-अपने शहर में थे। और सब लोग यकतन होकर पानी फाटक के सामने के मैदान में इकट्ठा हुए, और उन्होंने 'अज़्रा फ़क़ीह से 'अर्ज़ की कि मूसा की शरी'अत की किताब को, जिसका ख़ुदावन्द ने इस्राईल को हुक्म दिया था लाए।
\v 2 ~और सातवें महीने की पहली तारीख़ को 'अज़्रा काहिन तौरेत को जमा'अत के, या'नी मर्दों और 'औरतों और उन सबके सामने ले आया जो सुनकर समझ सकते थे।
\v 3 ~और वह उसमें से पानी फाटक के सामने के मैदान में, सुबह से दोपहर तक मर्दों और 'औरतों और सभों के आगे जो समझ सकते थे पढ़ता रहा; और सब लोग शरी'अत की किताब पर कान लगाए रहे।
\s5
\v 4 और 'अज़्रा~फ़कीह एक चोबी मिम्बर पर, जो उन्होंने इसी काम के लिए बनाया था खड़ा हुआ; और उसके पास मत्तितियाह, और समा', और 'अनायाह, और ~ऊरियाह, और ख़िलक़ियाह, और मासियाह उसके दहने खड़े थे; और उसके बाएँ फ़िदायाह, और मिसाएल, और मलकियाह, और हाशूम, और हसबदाना, और ज़करियाह और मुसल्लाम थे।
\v 5 ~और 'अज़्रा~ने सब लोगों के सामने किताब खोली (क्यूँकि वह सब लोगों से ऊपर था), और जब उसने उसे खोला तो सब लोग उठ खड़े हुए;
\s5
\v 6 और 'अज़्रा~ने ख़ुदावन्द ख़ुदा-ए-'अज़ीम को मुबारक कहा; और सब लोगों ने अपने हाथ उठाकर जवाब दिया, "आमीन-आमीन" और उन्होंने औंधे मुँह ज़मीन तक ~झुककर ख़ुदावन्द को सिज्दा किया।
\v 7 ~यशू'अ, और बानी, और सरीबियाह, और यामिन और 'अक़्क़ूब, और सब्बती, और हूदियाह, और मासियाह, और क़लीता, और 'अज़रियाह, और यूज़बद, और हनान, और फ़िलायाह और लावी लोगों को शरी'अत समझाते गए; और लोग अपनी-अपनी जगह पर खड़े रहे।
\v 8 ~और उन्होंने उस किताब या'नी ख़ुदा की शरी'अत में से साफ़ आवाज़ से पढ़ा, फिर उसके मानी बताए और उनको 'इबारत समझा दी।
\s5
\v 9 ~और नहमियाह ने जो हाकिम था, और 'अज़्रा~काहिन और फ़क़ीह ने, और उन लावियों ने जो लोगों को सिखा रहे थे सब लोगों से कहा, "आज का दिन ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा के लिए पाक है, न ग़म करो न रो।" क्यूँकि सब लोग शरी'अत की बातें सुनकर रोने लगे थे।
\v 10 ~फिर उसने उनसे कहा, "अब जाओ, और जो मोटा है खाओ, और जो मीठा है पियो और जिनके लिए कुछ तैयार नहीं हुआ उनके पास भी भेजो; क्यूँकि आज का दिन हमारे ख़ुदावन्द के लिए पाक है; और तुम मायूस मत हो, क्यूँकि ख़ुदावन्द की ख़ुशी तुम्हारी पनाहगाह है।”
\s5
\v 11 और लावियों ने सब लोगों को चुप कराया और कहा, "ख़ामोश हो जाओ, क्यूँकि आज का दिन पाक है; और ग़म न करो।”
\v 12 ~तब सब लोग खाने पीने और हिस्सा भेजने और बड़ी ख़ुशी करने को चले गए; क्यूँकि वह उन बातों को जो उनके आगे पढ़ी गई, समझे थे।
\s5
\v 13 और ~दूसरे दिन सब लोगों के आबाई ख़ान्दानों के सरदार और काहिन और लावी, 'अज़्रा~फ़क़ीह के पास इकट्ठे हुए कि तौरेत की बातों पर ध्यान लगाएँ।
\v 14 ~और उनको शरी'अत में ये लिखा मिला, कि ख़ुदावन्द ने मूसा के ज़रिए' फ़रमाया है कि बनी-इस्राईल सातवें महीने की 'ईद में झोपड़ियों में रहा करें,
\v 15 और अपने सब शहरों में और यरुशलीम में ये 'ऐलान और मनादी कराएँ कि पहाड़ पर जाकर ज़ैतून की डालियाँ और जंगली ज़ैतून की डालियाँ और मेहंदी की डालियाँ और खजूर की शाख़ें, और घने दरख़्तों की डालियाँ झोपड़ियों के बनाने को लाओ, जैसा लिखा है।
\s5
\v 16 ~तब लोग जा-जा कर उनको लाए, और हर एक ने अपने घर की छत पर, और अपने अहाते में, और ख़ुदा के घर के सहनों में, और पानी फाटक के मैदान में, और इफ़्राइमी फाटक के मैदान में अपने लिए झोपड़ियाँ बनाई।
\v 17 और उन लोगों की सारी जमा'अत ने जो ग़ुलामी से फिर आए थे, झोपड़ियाँ बनाई और उन्हीं झोपड़ियों में रहे; क्यूँकि यशू'अ बिन नून के दिनों से उस दिन तक बनी-इस्राईल ने ऐसा नहीं किया था। चुनाँचे बहुत बड़ी ख़ुशी हुई।
\s5
\v 18 और पहले दिन से आख़िरी दिन तक रोज़-ब-रोज़ उसने ख़ुदा की शरी'अत की किताब पढ़ी। और उन्होंने सात दिन 'ईद मनाई, और आठवें दिन दस्तूर के मुवाफ़िक़ पाक मजमा' इकठ्ठा हुआ।
\s5
\c 9
\p
\v 1 ~फिर इसी महीने की चौबीसवीं तारीख़ को बनी-इस्राईल रोज़ा रखकर और टाट ओढ़कर और मिट्टी अपने सिर पर डालकर इकट्ठे हुए।
\v 2 और इस्राईल की नसल के लोग सब परदेसियों से अलग हो गए, और ~खड़े होकर अपने गुनाहों और अपने बाप-दादा की ख़ताओं का इक़रार किया।
\s5
\v 3 ~और उन्होंने अपनी अपनी जगह पर खड़े होकर एक पहर तक ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की ~किताब पढ़ी; और दूसरे पहर में, इक़रार करके ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को सिज्दा करते रहे।
\v 4 ~तब क़दमीएल, यशू'आ, और बानी, और सबनियाह, बुन्नी और सरबियाह, और ~ बानी, और कना'नी ने लावियों की सीढ़ियों पर खड़े होकर बलन्द आवाज़ से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से फ़रियाद की।
\s5
\v 5 ~फिर यशू'अ, और क़दमिएल और बानी और हसबनियाह और सरबियाह और हूदियाह, और सबनियाह, और फ़तहियाह लावियों ने कहा, "खड़े हो जाओ, और कहो, ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा इब्तिदा से हमेशा तक मुबारक है; तेरा जलाली नाम मुबारक हो, जो सब हम्द-ओ-ता'रीफ़ से बाला है।
\v 6 तू ही अकेला ख़ुदावन्द है; तूने आसमान और आसमानों के आसमान को और उनके सारे लश्कर को, और ज़मीन को और जो कुछ उसपर है, और समन्दरों को और जो कुछ उनमें है बनाया और तू उन सभों का परवरदिगार है; और आसमान का लश्कर तुझे सिज्दा करता है।
\s5
\v 7 ~तू वह ख़ुदावन्द ख़ुदा है जिसने अब्राम को चुन लिया, और उसे कसदियों के ऊर से निकाल लाया, और उसका नाम इब्राहीम रख्खा;
\v 8 ~तूने उसका दिल अपने सामने वफ़ादार पाया, और कना'नियों हित्तियों और अमोरियों फ़रिज़्ज़ियों और यबूसियों और जिरजासियों का मुल्क देने का 'अहद उससे बाँधा ताकि उसे उसकी नसल को दे; और तूने अपने सुख़न पूरे किए क्यूँकि तू सादिक़ है।
\s5
\v 9 ~"और तूने मिस्र में हमारे बाप-दादा की मुसीबत पर नज़र की, और बहर-ए-क़ुलज़ुम के किनारे उनकी फ़रियाद सुनी।
\v 10 और फ़िर'औन और उसके सब नौकरों, और उसके मुल्क की सब र'इयत पर निशान और 'अजाइब कर दिखाए; क्यूँकि तू जानता था कि वह ग़ुरूर के साथ उनसे पेश आए। इसलिए तेरा बड़ा नाम हुआ, जैसा आज है।
\s5
\v 11 ~और तूने उनके आगे समन्दर को दो हिस्से किया, ऐसा कि वह समन्दर के बीच सूखी ज़मीन पर होकर चले; और तूने उनका पीछा करनेवालों को गहराओ में डाला, जैसा पत्थर समन्दर में फेंका जाता है।
\s5
\v 12 और तूने दिन को बादल के सुतून में होकर उनकी रहनुमाई की और रात को आग के सुतून में, ताकि जिस रास्ते उनको चलना था उसमें उनको रोशनी मिले।
\v 13 ~और तू कोह-ए-सीना पर उतर आया, और तूने आसमान पर से उनके साथ बातें कीं, और रास्त अहकाम और सच्चे क़ानून और अच्छे आईन-ओ-फ़रमान उनको दिए,
\s5
\v 14 और उनको अपने पाक सबत से वाक़िफ़ किया, और अपने बन्दे मूसा के ज़रिए' उनको अहकाम और आईन और शरी'अत दी।
\v 15 ~और तूने उनकी भूक मिटाने को आसमान पर से रोटी दी, और उनकी प्यास बुझाने को चट्टान में से उनके लिए पानी निकाला, और उनको फ़रमाया कि वह जाकर उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करें जिसको उनको देने की तूने क़सम खाई थी।
\s5
\v 16 "लेकिन उन्होंने और हमारे बाप-दादा ने ग़ुरूर किया, और बाग़ी बने और तेरे हुक्मों को न माना;
\v 17 और फ़रमाँबरदारी से इन्कार किया, और तेरे 'अजाइब को जो तूने उनके बीच किए याद न रख्खा; बल्कि बाग़ी बने और अपनी बग़ावत में अपने लिए एक सरदार मुक़र्रर किया, ताकि अपनी ग़ुलामी की तरफ़ लौट जाएँ। लेकिन तू वह ख़ुदा है जो रहीम-ओ-करीम मु'आफ़ करने को तैयार, और क़हर करने में धीमा, और शफ़क़त में ग़नी है, इसलिए तूने उनको छोड़ न दिया|
\s5
\v 18 ~लेकिन जब उन्होंने अपने लिए ढाला हुआ बछड़ा बनाकर कहा, 'ये तेरा ख़ुदा है, जो तुझे मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, " और यूँ ग़ुस्सा दिलाने के बड़े बड़े काम किए;
\v 19 ~तो भी तूने अपनी गूँनागूँ रहमतों से उनको वीराने में छोड़ न दिया; दिन को बादल का सुतून उनके ऊपर से दूर न हुआ, ताकि रास्ते में उनकी रहनुमाई करे, और न रात को आग का सुतून दूर हुआ, ताकि वह उनको रोशनी और वह रास्ता दिखाए जिससे उनको चलना था।
\s5
\v 20 और तूने अपनी नेक रूह भी उनकी तरबियत के लिए बख़्शी, और मन को उनके मुँह से न रोका, और उनको प्यास को बुझाने को पानी दिया।
\v 21 ~चालीस बरस तक तू वीराने में उनकी परवरिश करता रहा; वह किसी चीज़ के मुहताज न हुए, न तो उनके कपड़े पुराने हुए और न उनके पाँव सूजे।
\s5
\v 22 इसके सिवा तूने उनको ममलुकतें और उम्मतें बख़्शीं, जिनको तूने उनके हिस्सों के मुताबिक़ उनको बाँट दिया; चुनाँचे वह सीहून के मुल्क, और शाह-ए-हस्बोन के मुल्क, और बसन के बादशाह 'ओज के मुल्क पर क़ाबिज़ हुए।
\s5
\v 23 ~तूने उनकी औलाद को बढ़ाकर आसमान के सितारों की तरह कर दिया, और उनको उस मुल्क में लाया जिसके बारे में तूने उनके बाप-दादा से कहा था कि वह जाकर उसपर क़ब्ज़ा करें।
\v 24 तब उनकी औलाद ने आकर इस मुल्क पर क़ब्ज़ा किया, और तूने उनके आगे इस मुल्क के बाशिन्दों या'नी कना'नियों को मग़लूब किया, और उनको उनके बादशाहों और इस मुल्क के लोगों के साथ उनके हाथ में कर दिया कि जैसा चाहें वैसा उनसे करें।
\s5
\v 25 ~तब उन्होंने फ़सीलदार शहरों और ज़रख़ेज़ मुल्क को ले लिया, और वह सब तरह के अच्छे माल से भरे हुए घरों और खोदे हुए कुँवों, और बहुत से अंगूरिस्तानों और ज़ैतून के बाग़ों और फलदार दरख़्तों के मालिक हुए; फिर वह खा कर सेर हुए और मोटे ताज़े हो गए, और तेरे बड़े एहसान से बहुत हज़ उठाया।
\s5
\v 26 ~"तो भी वह ना-फ़रमान होकर तुझ से बाग़ी हुए, और उन्होंने तेरी शरी'अत को पीठ पीछे फेंका, और तेरे नबियों को जो उनके ख़िलाफ़ गवाही देते थे ताकि उनको तेरी तरफ़ फिरा लायें क़त्ल किया और उन्होंने ग़ुस्सा दिलाने के बड़े-बड़े काम किए।
\v 27 इसलिए तूने उनको उनके दुश्मनों के हाथ में कर दिया, जिन्होंने उनको सताया; और अपने दुख के वक़्त में जब उन्होंने तुझ से फ़रियाद की, तो तूने आसमान पर से सुन लिया और अपनी गूँनागूँ रहमतों के मुताबिक़ उनको छुड़ाने वाले दिए जिन्होंने उनको उनके दुश्मनों के ~हाथ से छुड़ाया।
\s5
\v 28 ~लेकिन जब उनको आराम मिला तो उन्होंने फिर तेरे आगे बदकारी की, इसलिए तूने उनको उनके दुश्मनों के क़ब्ज़े में छोड़ दिया इसलिए वह उन पर मुसल्लत रहे; तो भी जब वह रुजू' लाए और तुझ से फ़रियाद की, तो तूने आसमान पर से सुन लिया और अपनी रहमतों के मुताबिक़ उनको बार-बार छुड़ाया;
\v 29 और तूने उनके ख़िलाफ़ गवाही दी, ताकि अपनी शरी'अत की तरफ़ उनको फेर लाए। लेकिन उन्होंने ग़ुरूर किया और तेरे फ़रमान न माने, बल्कि तेरे अहकाम के बरख़िलाफ़ गुनाह किया (जिनको अगर कोई माने, तो उनकी वजह से जीता रहेगा), और अपने कन्धे को हटाकर बाग़ी बन गए और न सुना।
\s5
\v 30 तो भी तू बहुत बरसों तक उनकी बर्दाश्त करता रहा, और अपनी रूह से अपने नबियों के ज़रिए' उनके ख़िलाफ़ गवाही देता रहा; तो भी उन्होंने कान न लगाया, इसलिए तूने उनको और मुल्को के लोगों के हाथ में कर दिया।
\v 31 ~बावजूद इसके तूने अपनी गूँनागूँ रहमतों के ज़रिए' उनको नाबूद न कर दिया और न उनको छोड़ा, क्यूँकि तू रहीम-ओ-करीम ख़ुदा है।
\s5
\v 32 "इसलिए अब, ऐ हमारे ख़ुदा, बुज़ुर्ग, और क़ादिर-ओ-मुहीब ख़ुदा जो 'अहद-ओ-रहमत को क़ायम रखता है। वह दुख जो हम पर और हमारे बादशाहों पर, और हमारे सरदारों और हमारे काहिनों पर, और हमारे नबियों और हमारे बाप-दादा पर, और तेरे सब लोगों पर असूर के बादशाहों के ज़माने से आज तक पड़ा है, इसलिए तेरे सामने हल्का न मा'लूम हो;
\v 33 ~तो भी जो कुछ हम पर आया है उस सब में तू 'आदिल है क्यूँकि तू सच्चाई से पेश आया, लेकिन हम ने शरारत की।
\v 34 और हमारे बादशाहों और सरदारों और हमारे काहिनों और बाप-दादा ने न तो तेरी शरी'अत पर 'अमल किया और न तेरे अहकाम और शहादतों को माना, जिनसे तू उनके ख़िलाफ़ गवाही देता रहा।
\s5
\v 35 ~क्यूँकि उन्होंने अपनी ममलुकत में, और तेरे बड़े एहसान के वक़्त जो तूने उन पर किया, और इस वसी' और ज़रख़ेज़ मुल्क में जो तूने उनके हवाले कर दिया, तेरी 'इबादत न की और न वह अपनी बदकारियों से बाज़ आए।
\s5
\v 36 ~देख, आज हम ग़ुलाम हैं, बल्कि उसी मुल्क में जो तूने हमारे बाप-दादा को दिया कि उसका फल और पैदावार खाएँ; इसलिए देख, हम उसी में ग़ुलाम हैं।
\v 37 ~वह अपनी कसीर पैदावार उन बादशाहों को देता है, जिनको तूने हमारे गुनाहों की वजह से हम पर मुसल्लत किया है; वह हमारे जिस्मों और हमारी मवाशी पर भी जैसा चाहते हैं इख़्तियार रखते हैं, और हम सख़्त मुसीबत में हैं।
\s5
\v 38 ~"इन सब बातों की वजह से हम सच्चा 'अहद करते और लिख भी देते हैं, और हमारे हाकिम, और हमारे लावी, और हमारे काहिन उसपर मुहर करते हैं।"
\s5
\c 10
\p
\v 1 और वह जिन्होंने मुहर लगाई ये हैं: नहमियाह बिन हकलियाह हाकिम, और सिदक़ियाह
\v 2 ~सिरायाह, 'अज़रियाह, यरमियाह,
\v 3 फ़शहूर, अमरियाह, मलकियाह,
\s5
\v 4 ~हत्तूश, सबनियाह, मल्लूक,
\v 5 ~हारिम, मरीमोत, 'अबदियाह,
\v 6 ~दानीएल, जिन्नतून, बारूक़,
\v 7 ~मुसल्लाम, अबियाह, मियामीन,
\v 8 ~माज़ियाह, बिलजी, समा'याह; ये काहिन थे।
\s5
\v 9 ~और लावी ये थे: यशू'अ बिन अज़नियाह, बिनवी बनी हनदाद में से क़दमीएल
\v 10 और उनके भाई सबनियाह, हूदियाह, कलीताह, फ़िलायाह, हनान,
\v 11 मीका, रहोब, हसाबियाह,
\v 12 ~ज़क्कूर, सरिबियाह, सबनियाह,
\v 13 ~हूदियाह, बानी, बनीनू।
\v 14 लोगों के रईस ये थे : पर'ऊस, पख़त-मोआब, 'ऐलाम, ज़त्तू, बानी,
\s5
\v 15 ~बुनी, 'अज़जाद, बबई,
\v 16 अदूनियाह, बिगवई, 'अदीन,
\v 17 ~अतीर, हिज़क़ियाह, 'अज़्जूर,
\v 18 हूदियाह, हाशम, बज़ी,
\v 19 ख़ारीफ़, 'अन्तोत, नूबै,
\v 20 ~मगफ़ी'आस, मुसल्लाम, हज़ीर,
\v 21 ~मशेज़बेल, सदोक़, यद्दू'
\s5
\v 22 ~फ़िलतियाह, हनान, 'अनायाह,
\v 23 ~होसे', हननियाह, हसूब,
\v 24 ~हलूहेस, फ़िलहा, सोबेक,
\v 25 ~रहूम, हसबनाह, मासियाह,
\v 26 ~अखियाह, हनान, 'अनान,
\v 27 ~मल्लूक, हारिम, बानाह।
\s5
\v 28 ~बाक़ी लोग, और काहिन, और लावी, और दरबान और गाने वाले और नतनीम और ~सब जो ख़ुदा की शरी'अत की ख़ातिर और मुल्कों की क़ौमों से अलग हो गए थे, और उनकी बीवियाँ और उनके बेटे और बेटियाँ ग़रज़ जिनमें समझ और 'अक़्ल थी
\v 29 ~वह सबके सब अपने भाई अमीरों के साथ मिलकर ला'नत ओ क़सम में शामिल हुए, ताकि ख़ुदा की शरी'अत पर जो बन्दा-ए-ख़ुदा मूसा के ज़रिए' मिली, चलें और यहोवाह हमारे ख़ुदावन्द के सब हुक्मों और फ़रमानों और आईन को मानें और उन पर 'अमल करें।
\s5
\v 30 और हम अपनी बेटियाँ मुल्क के बाशिन्दों को न दें, और न अपने बेटों के लिए उनकी बेटियाँ लें;
\v 31 ~और अगर मुल्क के लोग सबत के दिन कुछ माल या खाने की चीज़ बेचने को लाएँ, तो हम सबत को या किसी पाक दिन को उनसे मोल न लें। और सातवाँ साल और हर क़र्ज़ का मुतालबा छोड़ दें।
\s5
\v 32 और हम ने अपने लिए क़ानून ठहराए कि अपने ख़ुदा के घर की ख़िदमत के लिए साल-ब-साल मिस्क़ाल का तीसरा हिस्सा' दिया करें;
\v 33 या'नी सबतों और नये चाँदों की नज़्र की रोटी, और हमेशा की नज़्र~की क़ुर्बानी, और हमेशा की सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए~और मुक़र्ररा 'ईदों और पाक चीज़ों और ख़ता की क़ुर्बानियों के लिए कि इस्राईल के वास्ते कफ़्फ़ारा हो, और अपने ख़ुदा के घर के सब कामों के लिए।
\s5
\v 34 और हम ने या'नी काहिनों, और लावियों, और लोगों ने, लकड़ी के हदिए के बारे में पर्ची डाली, ताकि उसे अपने ख़ुदा के घर में बाप-दादा के घरानों के मुताबिक़ मुक़र्ररा वक़्तों पर साल-ब-साल ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के मज़बह पर जलाने को लाया करें, जैसा शरी'अत में लिखा है।
\v 35 ~और साल-ब-साल अपनी-अपनी ज़मीन के पहले फल, और सब दरख़्तों के सब मेवों में से पहले फल ख़ुदावन्द के घर में लाएँ;
\v 36 और जैसा शरी'अत में लिखा है, अपने पहलौठे बेटों को और अपनी मवाशी या'नी गाय, बैल और भेड़-बकरी के पहलौठे बच्चों को अपने ख़ुदा के घर में काहिनों के पास जो हमारे ख़ुदा के घर में ख़िदमत करते हैं लाएँ।
\s5
\v 37 और अपने गूँधे हुए आटे और अपनी उठाई हुई क़ुर्बानियों और सब दरख़्तों के मेवों, और मय और तेल में से पहले फल को अपने ख़ुदा के घर की कोठरियों में काहिनों के पास, और अपने खेत की दहेकी लावियों के पास लाया करें; क्यूँकि लावी सब शहरों में जहाँ हम काश्तकारी करते हैं, दसवाँ हिस्सा लेते हैं।
\v 38 और जब लावी दहेकी लें तो कोई काहिन जो हारून की औलाद से हो, लावियों के साथ हो, और लावी दहेकियों का दसवाँ हिस्सा हमारे ख़ुदा के बैत-उल-माल की कोठरियों में लाएँ।
\s5
\v 39 ~क्यूँकि बनी-इस्राईल और बनी लावी अनाज और मय और तेल की उठाई हुई क़ुर्बानियाँ उन कोठरियों में लाया करेंगे जहाँ हैकल के बर्तन और ख़िदमत गुज़ार काहिन और दरबान और गानेवाले हैं; और हम अपने ख़ुदा के घर को नहीं छोड़ेंगे।
\s5
\c 11
\p
\v 1 और लोगों के सरदार यरुशलीम में रहते थे; और बाक़ी लोगों ने पर्ची डाली कि हर दस शख़्सों में से एक को शहर-ए-पाक, यरुशलीम, में बसने के लिए लाएँ; और नौ बाक़ी शहरों में रहें।
\v 2 और लोगों ने उन सब आदमियों को, जिन्होंने ख़ुशी से अपने आपको यरुशलीम में बसने के लिए पेश किया दु'आ दी।
\s5
\v 3 उस सूबे के सरदार, जो यरुशलीम में आ बसे ये हैं; (लेकिन यहूदाह के शहरों में हर एक अपने शहर में अपनी ही मिल्कियत में रहता था, या'नी~अहल-ए-इस्राईल और काहिन और लावी और~नतीनीम, और सुलेमान के मुलाज़िमों की औलाद।)
\v 4 और यरुशलीम में कुछ बनी यहूदाह और कुछ बनी बिनयमीन रहते थे। बनी यहूदाह में से, 'अतायाह बिन 'उज्ज़ियाह बिन ज़करियाह बिन अमरियाह बिन सफ़तियाह बिन महललएल बनी फ़ारस में से;
\s5
\v 5 और मा'सियाह बिन बारूक बिन कुलहोज़ा, बिन हजायाह, बिन 'अदायाह, बिन यूयरीब बिन ज़करियाह बिन शिलोनी।
\v 6 ~सब बनी फ़ारस जो यरुशलीम में बसे चार सौ अड़सठ सूर्मा थे।
\s5
\v 7 ~और ये बनी बिनयमीन हैं, सल्लू बिन मुसल्लाम बिन यूऐद बिन फ़िदायाह बिन क़ूलायाह बिन मासियाह बिन एतीएल बिन यसा'याह।
\v 8 ~फिर जब्बै सल्लै और नौ सौ अट्ठाईस आदमी।
\v 9 और यूएल बिन ज़िकरी उनका नाज़िम था, और यहूदाह बिन हस्सनूह शहर के हाकिम का नाइब था।
\s5
\v 10 काहिनों में से यदा'याह बिन यूयरीब और याकीन,
\v 11 ~शिरायाह बिन ख़िलक़ियाह बिन मुसल्लाम बिन सदोक़ बिन मिरायोत बिन अख़ीतोब, ख़ुदा के घर का नाज़िम,
\v 12 ~और उनके भाई जो हैकल में काम करते थे, आठ सौ बाईस; और 'अदाया बिन यरोहाम, बिन फ़िल्लियाह बिन अम्ज़ी बिन ज़क़रियाह, बिन फ़शहूर बिन मलकियाह,
\s5
\v 13 और उसके भाई आबाई ख़ान्दानों के रईस, दो सौ बयालीस; और अमसी बिन 'अज़्राएल बिन अख़सी बिन ~मसल्लीमोत बिन इम्मेर,
\v 14 ~और उनके भाई ज़बरदस्त सूर्मा, एक सौ अट्ठाईस; और उनका सरदार ज़बदीएल बिन हजदूलीम था।
\s5
\v 15 और लावियों में से, समा'याह बिन हुसूक बिन 'अजरिक़ाम बिन हसबियाह ~बिन बूनी;
\v 16 और सब्बतै और यूज़बाद लावियों के रईसों में से, ख़ुदा के घर के बाहर के काम पर मुक़र्रर थे;
\s5
\v 17 ~और मत्तनियाह बिन मीका बिन ज़ब्दी बिन आसफ़ सरदार था, जो दु'आ के वक़्त शुक्रगुज़ारी शुरू' करने में पेशवा था; और बक़बूक़ियाह उसके भाइयों में से दूसरे दर्जे पर था, और 'अबदा बिन सम्मू' बिन जलाल बिन यदूतून।
\v 18 ~पाक शहर में कुल दो सौ चौरासी लावी थे।
\s5
\v 19 और दरबान 'अक़्क़ब, तलमून और उनके भाई जो फाटकों की निगहबानी करते थे, एक सौ बहतर थे।
\v 20 ~और इस्राईलियों और काहिनों और लावियों के बाक़ी लोग यहूदाह के सब शहरों में अपनी-अपनी मिल्कियत में रहते थे।
\v 21 ~लेकिन नतीनीम 'ओफ़ल में बसे हुए थे; और ज़ीहा और जिसफ़ा नतीनीम पर मुक़र्रर थे।
\s5
\v 22 और उज़्ज़ी बिन बानी बिन हसबियाह बिन मत्तनियाह बिन मीका जो आसफ़ की औलाद या'नी गानेवालों में से था, यरुशलीम में उन लावियों का नाज़िम था, जो ख़ुदा के घर के काम पर मुक़र्रर थे।
\v 23 ~क्यूँकि उनके बारे में बादशाह की तरफ़ से हुक्म हो चुका था, और गानेवालों के लिए हर रोज़ की ज़रूरत के मुताबिक़ मुक़र्ररा रसद थी।
\v 24 ~और फ़तहयाह बिन मशेज़बेल जो ज़ारह बिन यहूदाह की औलाद में से था, र'इयत के सब मुआ'मिलात के लिए बादशाह के सामने रहता था।
\s5
\v 25 ~रहे गाँव और उनके खेत, इसलिए बनीयहूदाह में से कुछ लोग क़रयत-अरबा' और उसके क़स्बों में, और दीबोन और उसके क़स्बों में, और यक़बज़ीएल और उसके गाँवों में रहते थे;
\v 26 ~और यशू'अ और मोलादा और बैत फ़लत में,
\v 27 और हसर-सू'आल और बैरसबा' और उसके कस्बों में,
\s5
\v 28 ~और सिक़लाज ~और मक़ुनाह ~और उस के कस्बों में
\v 29 और 'ऐन-रिम्मोन और सार'आह में, और यारमोत में,
\v 30 ~ज़ानवाह, 'अदुल्लाम, और उनके गाँवों में; लकीस और उसके खेतों में, 'अज़ीक़ा और उसके क़स्बों में, यूँ वह बैरसबा' से हिनूम की वादी तक डेरों में रहते थे।
\v 31 ~बनी बिनयमीन भी जिबा' से लेकर आगे मिकमास और 'अय्याह और बैतएल और उसके क़स्बों में,
\v 32 ~और 'अन्तोत और नूब और 'अननियाह,
\v 33 और हासूर और रामा और जितेम,
\v 34 और हादीद और ज़िबोईम और नबल्लात,
\v 35 ~और लूद और ओनू, या'नी कारीगरों की वादी में रहते थे।
\v 36 ~और लावियों में से कुछ फ़रीक़ जो यहूदाह में थे, वह बिनयमीन से मिल गए।
\s5
\c 12
\p
\v 1 ~वह काहिन और लावी जो ज़रुब्बाबुल बिन सियालतीएल और यशू'अ के साथ गए, सो ये हैं: सिरायाह, यरमियाह, 'अज़्रा,
\v 2 ~अमरियाह, मल्लूक, हत्तूश,
\v 3 ~सिकनियाह, रहूम, मरीमोत,
\s5
\v 4 इद्द, जिन्नतू, अबियाह,
\v 5 ~मियामीन, मा'दियाह, बिल्जा,
\v 6 समा'याह और यूयरीब, यदा'याह
\v 7 सल्लू, 'अमुक़ ख़िलक़ियाह, यदा'याह, ये यशू'अ के ~दिनों में ~काहिनों और उनके भाईयों के सरदार थे
\s5
\v 8 ~और लावी ये थे: यशू'अ, बिनवी, क़दमिएल सेरबियाह यहूदाह और मत्तिनियाह जो अपने भाइयों के साथ शुक्रगुज़ारी पर मुक़र्रर था;
\v 9 ~और उनके भाई बक़बूक़ियाह और 'उन्नी उनके सामने अपने-अपने पहरे पर मुक़र्रर थे।
\s5
\v 10 और यशू'अ से यूयक़ीम पैदा हुआ, और यूयक़ीम से इलियासिब पैदा हुआ, और इलियासिब से यूयदा' पैदा हुआ,
\v 11 ~और यूयदा' से यूनतन पैदा हुआ, और यूनतन से यद्दू' पैदा हुआ,
\s5
\v 12 ~और यूयक़ीम के दिनों में ये काहिन आबाई ख़ान्दानों के सरदार थे: सिरायाह से मिरायाह; यरमियाह से हननियाह;
\v 13 ~'अज़्रा से मुसल्लाम; अमरियाह से यहूहनान;
\v 14 मलकू से योनतन, सबनियाह से यूसुफ़;
\s5
\v 15 ~हारिम से 'अदना; मिरायोत से ख़लक़ै;
\v 16 ~इद्दू से ज़करियाह; जिन्नतून से मुसल्लाम:
\v 17 अबियाह से ज़िकरी; मिनयमीन से' मौ'अदियाह से फ़िल्ती;
\v 18 ~बिलजाह से सम्मू'आ; समा'याह से यहूनतन;
\v 19 ~यूयरीब से मत्तनै; यद'अयाह से 'उज़्ज़ी;
\v 20 ~सल्लै से कल्लै; 'अमोक से इब्र;
\v 21 ~ख़िलक़ियाह से हसबियाह; यदा'याह से नतनीएल।
\s5
\v 22 इलियासिब और यूयदा' और यूहनान और यद्दू' के दिनों में, लावियों के आबाई ख़ान्दानों के सरदार लिखे जाते थे; और काहिनों के, दारा फ़ारसी की सल्तनत में।
\v 23 ~बनी लावी के आबाई ख़ान्दानों के सरदार यूहनान बिन इलियासिब के दिनों तक, तवारीख़ की किताब में लिखे जाते थे।
\s5
\v 24 और लावियों के रईस: हसबियाह, सेरबियाह और यशू'अ बिन क़दमीएल, अपने भाइयों के साथ आमने सामने बारी-बारी से मर्द-ए-ख़ुदा दाऊद के हुक्म के मुताबिक़ हम्द और शुक्रगुज़ारी के लिए मुक़र्रर थे।
\v 25 ~मत्तनियाह और बक़बूक़ियाह और अब्दियाह और मुसल्लाम और तलमून और अक़्क़ूब दरबान थे, जो फाटकों के मख़ज़नों के पास पहरा देते थे।
\v 26 ~ये यूयक़ीम बिन यशू'अ बिन यूसदक़ के दिनों में, और नहमियाह हाकिम और 'अज़्रा~काहिन और फ़कीह के दिनों में थे।
\s5
\v 27 और यरूशलीम की शहरपनाह की तक़्दीस के वक़्त, उन्होंने लावियों को उनकी सब जगहों से ढूंड निकाला कि उनको यरुशलीम में लाएँ, ताकि वह ख़ुशी-ख़ुशी झाँझ और सितार और बरबत के साथ शुक्रगुज़ारी करके और गाकर तक़दीस करें।
\v 28 इसलिए गानेवालों की नसल के लोग यरुशलीम को आस-पास के मैदान से और नतूफ़ातियों के देहात से,
\s5
\v 29 ~और बैत-उल-जिलजाल से भी, और जिबा' और 'अज़मावत के खेतों से इकट्ठे हुए; क्यूँकि गानेवालों ने यरुशलीम के चारों तरफ़ अपने लिए देहात बना लिए थे।
\v 30 ~और काहिनों और लावियों ने अपने आपको पाक किया, और उन्होंने लोगों को और फाटकों को और शहरपनाह को पाक किया।
\s5
\v 31 ~तब मैं यहूदाह के अमीरों को दीवार पर लाया, और मैंने दो बड़े ग़ोल मुक़र्रर किए जो हम्द करते हुए जुलूस में निकले। एक उनमें से दहने हाथ की तरफ़ दीवार के ऊपर-ऊपर से कूड़े के फाटक की तरफ़ गया,
\s5
\v 32 ~और ये उनके पीछे-पीछे गए, या'नी हुसा'याह और यहूदाह के आधे सरदार।
\v 33 ~'अज़रियाह, 'अज़्रा और मुसल्लाम,
\v 34 ~यहूदाह और बिनयमीन और समा'याह और यरमियाह,
\v 35 और कुछ काहिनज़ादे नरसिंगे लिए हुए, या'नी ज़करियाह बिन यूनतन, बिन समा'याह, बिन मत्तिनियाह, बिन मीकायाह, बिन जक्कूर बिन आसफ़;
\s5
\v 36 और उसके भाई समा'याह और 'अज़रएल, मिल्ले, जिल्लै, मा'ऐ, नतनीएल और यहूदाह और हनानी, मर्द-ए- ख़ुदा दाऊद के बाजों को लिए हुए जाते थे और 'अज़्रा~फ़क़ीह उनके आगे-आगे था।
\v 37 और वह चश्मा फाटक से होकर सीधे आगे गए, और दाऊद के शहर की सीढ़ियों पर चढ़कर शहरपनाह की ऊँचाई पर पहुँचे, और दाऊद के महल के ऊपर होकर पानी फाटक तक पूरब की तरफ़ गए।
\s5
\v 38 ~और शुक्रगुज़ारी करनेवालों का दूसरा ग़ोल और उनके पीछे-पीछे मैं और आधे लोग उनसे मिलने को दीवार पर तनूरों के बुर्ज के ऊपर चौड़ी दीवार तक
\v 39 ~और इफ़्राईमी फाटक के ऊपर पुराने फाटक और मछली फाटक, और हननएल के बुर्ज और हमियाह के बुर्ज पर से होते हुए भेड़ फाटक तक गए; और पहरेवालों के फाटक पर खड़े हो गए।
\s5
\v 40 तब शुक्रगुज़ारी करनेवालों के दोनों ग़ोल और मैं और मेरे साथ आधे हाकिम ख़ुदा के घर में खड़े हो गए |
\v 41 ~और काहिन इलियाक़ीम, मासियाह, बिनयमीन, मीकायाह, इल्यूऐनी, ज़करियाह, हननियाह नरसिंगे लिए हुए थे;
\v 42 ~और मासियाह और समा'याह और इली'अज़र और 'उज़्ज़ी और यूहहनान और मल्कियाह और 'ऐलाम और 'अज़्रा अपने सरदार गानेवाले, इज़रखियाह के साथ बलन्द आवाज़ से गाते थे।
\s5
\v 43 और उस दिन उन्होंने बहुत सी क़ुर्बानियाँ चढ़ाईं और उसी दिन ख़ुशी की क्यूँकि ख़ुदा ने ऐसी ख़ुशी उनको बख़्शी कि वह बहुत ख़ुश हुए; और 'औरतों और बच्चों ने भी ख़ुशी मनाई। इसलिए यरुशलीम की ख़ुशी की आवाज़ दूर तक सुनाई देती थी।
\s5
\v 44 ~उसी ~दिन लोग ख़ज़ाने की, और उठाई हुई क़ुर्बानियों और पहले फलों और दहेकियों की कोठरियों पर मुक़र्रर हुए, ताकि उनमें शहर शहर के खेतों के मुताबिक़, जो हिस्से काहिनों और लावियों के लिए शरा' के मुताबिक़ मुक़र्रर हुए उनको जमा' करें क्यूँकि बनी यहूदाह काहिनों और लावियों की वजह से जो हाज़िर रहते थे ख़ुश थे।
\v 45 इसलिए वह अपने ख़ुदा के इन्तज़ाम और तहारत के इन्तज़ाम की निगरानी करते रहे; और गानेवालों और दरबानों ने भी दाऊद और उसके बेटे सुलेमान के हुक्म के मुताबिक़ ऐसा ही किया |
\s5
\v 46 क्यूँकि पुराने ज़माने से दाऊद और आसफ़ के दिनों में एक सरदार मुग़न्नी होता था, और ख़ुदा की हम्द और शुक्र के गीत गाए जाते थे।
\v 47 ~और तमाम इस्राईल ज़रुब्बाबुल के और नहमियाह के दिनों में हर रोज़ की ज़रूरत के मुताबिक़ गानेवालों और दरबानों के हिस्से देते थे; यूँ वह लावियों के लिए चीज़ें मख़्सूस करते, और लावी बनी हारून के लिए मख़्सूस करते थे।
\s5
\c 13
\p
\v 1 उस दिन उन्होंने लोगों को मूसा की किताब में से पढ़कर सुनाया, और उसमें ये लिखा मिला कि 'अम्मोनी और मोआबी ख़ुदा की जमा'अत में कभी न आने पाएँ;
\v 2 ~इसलिए कि वह रोटी और पानी लेकर बनी-इस्राईल के इस्तक़बाल को न निकले, बल्कि बल'आम को उनके ख़िलाफ़ मज़दूरी पर बुलाया ताकि उन पर ला'नत करे - लेकिन हमारे ख़ुदा ने उस ला'नत को बरकत से बदल दिया।
\v 3 और ऐसा हुआ कि शरी'अत को सुनकर उन्होंने सारी मिली जुली भीड़ को इस्राईल से जुदा कर दिया।
\s5
\v 4 ~इससे पहले इलियासिब काहिन ने जो हमारे ख़ुदा के घर की कोठरियों का मुख़्तार था, तूबियाह का रिश्तेदार होने की वजह से,
\v 5 उसके लिए एक बड़ी कोठरी तैयार की थी जहाँ पहले नज़्र की क़ुर्बानियाँ और लुबान और बर्तन, और अनाज की और मय की और तेल की दहेकियाँ, जो हुक्म के मुताबिक़ लावियों और गानेवालों और दरबानों को दी जाती थीं, और काहिनों के लिए उठाई हुई क़ुर्बानियाँ भी रख्खी जाती थीं।
\s5
\v 6 ~लेकिन इन दिनों में मैं यरुशलीम में न था, क्यूँकि शाह-ए-बाबुल अरतख़शशता के बत्तीसवें बरस में बादशाह के पास गया था। और कुछ दिनों के बा'द मैंने बादशाह से रुख़्सत की दरख़्वास्त की,
\v 7 और मैं यरुशलीम में आया, और मा'लूम किया कि ख़ुदा के घर के सहनों में तूबियाह के वास्ते एक कोठरी तैयार करने से इलियासिब ने कैसी ख़राबी की है।
\s5
\v 8 ~इससे मैं बहुत रंजीदा हुआ इसलिए मैंने तूबियाह के सब ख़ानगी सामान को उस कोठरी से बाहर फेंक दिया।
\v 9 ~फिर मैंने हुक्म दिया और उन्होंने उन कोठरियों को साफ़ किया, और मैं ख़ुदा के घर के बर्तनों और नज़्र की क़ुर्बानियों और लुबान को फिर वहीं ले आया।
\s5
\v 10 ~फिर मुझे मा'लूम हुआ कि लावियों के हिस्से उनको नहीं दिए गए, इसलिए ख़िदमतगुज़ार लावी और गानेवाले अपने अपने खेत को भाग गए हैं।
\v 11 ~तब मैंने हाकिमों से झगड़कर कहा कि ख़ुदा का घर क्यूँ छोड़ दिया गया है? और मैंने उनको इकट्ठा करके उनको उनकी जगह पर मुक़र्रर किया।
\s5
\v 12 ~तब सब अहल-ए-यहूदाह ने अनाज और मय और तेल का दसवाँ हिस्सा ख़ज़ानों में दाख़िल किया।
\v 13 ~और मैंने सलमियाह काहिन और सदोक़ फ़क़ीह, और लावियों में से फ़िदायाह को ख़ज़ानों के ख़ज़ांची मुक़र्रर किया; और हनान बिन ज़क्कूर बिन मत्तनियाह उनके साथ था; क्यूँकि वह दियानतदार माने जाते थे, और अपने भाइयों में बाँट देना उनका काम था।
\v 14 ऐ मेरे ख़ुदा इसके लिए याद कर और मेरे नेक कामों को जो मैंने अपने ख़ुदा के घर और उसके रसूम के लिए किये मिटा न डाल|
\s5
\v 15 उन ही दिनों में मैंने यहूदाह में कुछ को देखा, जो सबत के दिन हौज़ों में पाँव से अंगूर कुचल रहे थे, और पूले लाकर उनको गधों पर लादते थे। इसी तरह मय और अंगूर और अन्जीर, और हर क़िस्म के बोझ सबत को यरुशलीम में लाते थे; और जिस दिन वह खाने की चीज़ें बेचने लगे मैंने उनको टोका।
\s5
\v 16 वहाँ सूर के लोग भी रहते थे, जो मछली और हर तरह का सामान लाकर सबत के दिन यरुशलीम में यहूदाह के लोगों के हाथ बेचते थे।
\v 17 ~तब मैंने यहूदाह के हाकिम से झगड़कर कहा, "ये क्या बुरा काम है जो तुम करते, और सबत के दिन की बेहुरमती करते हो?
\v 18 ~क्या तुम्हारे बाप-दादा ने ऐसा ही नहीं किया? और क्या हमारा ख़ुदा हम पर और इस शहर पर ये सब आफ़तें नहीं लाया? तो भी तुम सबत की बेहुरमती करके इस्राईल पर ज़्यादा ग़ज़ब लाते हो।"
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\v 19 ~इसलिए जब सबत से पहले यरुशलीम के फाटकों के पास अन्धेरा होने लगा, तो मैंने हुक्म दिया कि फाटक बन्द कर दिए जाएँ, और हुक्म दे दिया कि जब तक सबत गुज़र न जाए, वह न खुलें, और मैंने अपने कुछ नौकरों को फाटकों पर रख्खा कि सबत के दिन कोई बोझ अन्दर आने न पाए।
\v 20 इसलिए ताजिर और तरह-तरह के माल के बेचनेवाले एक या दो बार यरुशलीम के बाहर टिके।
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\v 21 ~तब मैंने उनको टोका, और उनसे कहा कि तुम दीवार के नज़दीक क्यूँ टिक जाते हो? अगर फिर ऐसा किया तो मैं तुम को गिरफ़्तार कर लूँगा। उस वक़्त से वह सबत को फिर न आए।
\v 22 और मैंने लावियों को हुक्म किया कि अपने आपको पाक करें, और सबत के दिन की तक़्दीस की ग़रज़ से आकर फाटकों की रखवाली करें। ऐ मेरे ख़ुदा, इसे भी मेरे हक़ में याद कर, और अपनी बड़ी रहमत के मुताबिक़ मुझ पर तरस खा।
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\v 23 ~उन्ही दिनों में मैंने उन यहूदियों को भी देखा, जिन्होंने अशदूदी और 'अम्मोनी और मोआबी 'औरतें ब्याह ली थीं।
\v 24 ~और उनके बच्चों की ज़बान आधी अशदूदी थी और वह यहूदी ज़बान में बात नहीं कर सकते थे, बल्कि हर क़ौम की बोली के मुताबिक़ बोलते थे।
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\v 25 ~इसलिए मैंने उनसे झगड़कर उनको ला'नत की, और उनमें से कुछ को मारा, और उनके बाल नोच डाले, और उनको ख़ुदा की क़सम खिलाई, "कि तुम अपनी बेटियाँ उनके बेटों को न देना, और न अपने बेटों के लिए और न अपने लिए उनकी बेटियाँ लेना।
\v 26 ~क्या शाह-ए-इस्राईल सुलेमान ने इन बातों से गुनाह नहीं किया? अगरचे अकसर क़ौमों में उसकी तरह कोई बादशाह न था, और वह अपने ख़ुदा का प्यारा था, और ख़ुदा ने उसे सारे इस्राईल का बादशाह बनाया, तो भी अजनबी 'औरतों ने उसे भी गुनाह में फँसाया।
\v 27 ~इसलिए क्या हम तुम्हारी सुनकर ऐसी बड़ी बुराई करें कि अजनबी 'औरतों को ब्याह कर अपने ख़ुदा का गुनाह करें?"
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\v 28 और इलियासिब सरदार काहिन के बेटे यूयदा' के बेटों में से एक बेटा, हूरोनी सनबल्लत का दामाद था, इसलिए मैंने उसको अपने पास से भगा दिया
\v 29 ऐ मेरे ख़ुदा, उनको याद कर, इसलिए कि उन्होंने कहानत को और कहानत और लावियों के 'अहद को नापाक किया है।
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\v 30 ~यूँ ही मैंने उनको कुल अजनबियों से पाक किया, और काहिनों और लावियों के लिए उनकी ख़िदमत के मुताबिक़,
\v 31 ~और मुक़र्ररा वक़्तों पर लकड़ी के हदिए और पहले फलों के लिए हल्क़े मुक़र्रर कर दिए। ऐ मेरे ख़ुदा, भलाई के लिए मुझे याद कर।