\id PSA \ide UTF-8 \h ज़बूर \toc1 ज़बूर \toc2 ज़बूर \toc3 psa \mt1 ज़बूर \s5 \c 1 \p \v 1 ~मुबारक है वह आदमी जो शरीरों की सलाह पर नहीं चलता, और ख़ताकारों की राह में खड़ा नहीं होता; और ठट्ठा बाज़ों की महफ़िल में नहीं बैठता। \v 2 बल्कि ख़ुदावन्द की शरी'अत में ~ही उसकी ख़ुशी है; और उसी की शरी'अत पर दिन रात उसका ध्यान रहता है। \s5 \v 3 ~वह उस दरख़्त की तरह होगा, जो पानी की नदियों के पास लगाया गया है। जो अपने वक़्त पर फलता है, और जिसका पत्ता भी नहीं मुरझाता। इसलिए जो कुछ वह करे फलदार होगा। \s5 \v 4 ~शरीर ऐसे नहीं, बल्कि वह भूसे की तरह हैं, जिसे हवा उड़ा ले जाती है। \v 5 ~इसलिए शरीर 'अदालत में क़ायम न रहेंगे, न ख़ताकार सादिक़ों की जमा'अत में। \s5 \v 6 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द सादिक़ो की राह ~जानता है लेकिन शरीरों की राह बर्बाद हो जाएगी। \s5 \c 2 \p \v 1 ~क़ौमें किस लिए ग़ुस्से में है और लोग क्यूँ बेकार ख़याल बाँधते हैं \v 2 ~ख़ुदावन्द और उसके मसीह के ख़िलाफ़ ज़मीन के बादशाह एक हो कर, और हाकिम आपस में मशवरा करके कहते हैं, \v 3 ~'आओ, हम उनके बन्धन तोड़ डालें, और उनकी रस्सियाँ अपने ऊपर से उतार फेंके।" \s5 \v 4 वह जो आसमान पर तख़्त नशीन है हँसेगा, ख़ुदावन्द उनका मज़ाक़ उड़ाएगा। \v 5 ~तब वह अपने ग़ज़ब में उनसे कलाम करेगा, और अपने ग़ज़बनाक ग़ुस्से में उनको परेशान कर देगा, \s5 \v 6 ~"मैं तो अपने बादशाह को, अपने पाक पहाड़ सिय्यून पर बिठा चुका हूँ।” \v 7 ~मैं उस फ़रमान को बयान करूँगा: ख़ुदावन्द ने मुझ से कहा, "तू मेरा बेटा है। आज तू मुझ से पैदा हुआ। \s5 \v 8 ~मुझ से माँग, और मैं क़ौमों को तेरी मीरास के लिए, और ज़मीन के आख़िरी हिस्से तेरी मिल्कियत के लिए तुझे बख़्शूँगा। \v 9 ~तू उनको लोहे के 'असा से तोड़ेगा, कुम्हार के बर्तन की तरह तू उनको चकनाचूर कर डालेगा।" \s5 \v 10 ~इसलिए अब ऐ बादशाहो, अक़्लमंद बनो; ऐ ज़मीन की 'अदालत करने वालो, तरबियत पाओ। \v 11 ~डरते हुए ख़ुदावन्द की 'इबादत करो, काँपते हुए ख़ुशी मनाओ। \s5 \v 12 ~बेटे को चूमो, ऐसा न हो कि वह क़हर में आए, और तुम रास्ते में हलाक हो जाओ, क्यूँकि उसका ग़ज़ब जल्द भड़कने को है | मुबारक हैं वह सब जिनका भरोसा उस पर है। \s5 \c 3 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द मेरे सताने वाले कितने बढ़ गए, वह जो मेरे ख़िलाफ़ उठते हैं बहुत हैं। \v 2 बहुत से मेरी जान के बारे में कहते हैं, कि ख़ुदा की तरफ़ से उसकी मदद न होगी। (सिलाह) \s5 \v 3 लेकिन तू ऐ ख़ुदावन्द, हर तरफ़ मेरी सिपर है। मेरा फ़ख़्र और सरफ़राज़ करने वाला। \v 4 मैं बुलन्द आवाज़ से ख़ुदावन्द के सामने फ़रियाद करता हूँ और वह अपने पाक पहाड़ पर से मुझे जवाब देता है। (सिलाह) \s5 \v 5 मैं लेट कर सो गया; मैं जाग उठा, क्यूँकि ख़ुदावन्द मुझे संभालता है। \v 6 मैं उन दस हज़ार आदमियों से नहीं डरने का, जो चारों तरफ़ मेरे ख़िलाफ़ इकठ्ठा हैं। \s5 \v 7 उठ ऐ ख़ुदावन्द, ऐ मेरे ख़ुदा, मुझे बचा ले! क्यूँकि तूने मेरे सब दुश्मनों को जबड़े पर मारा है। तूने शरीरों के दाँत तोड़ डाले हैं। \v 8 नजात ख़ुदावन्द की तरफ़ से है।तेरे लोगों पर तेरी बरकत हो! \s5 \c 4 \p \v 1 जब मै पुकारूँ तो मुझे जबाब दे ऐ मेरी सदाक़त के ख़ुदा! तंगी में तूने मुझे कुशादगी बख़्शी, मुझ पर रहम कर और मेरी दु'आ सुन ले। \s5 \v 2 ~ऐ बनी आदम! कब तक मेरी 'इज़्ज़त के बदले रुस्वाई होगी? तुम कब तक बकवास से मुहब्बत रखोगे और झूट के दर पे रहोगे? \v 3 जान लो कि ख़ुदावन्द ने दीनदार को अपने लिए अलग कर रखा है; जब मैं ख़ुदावन्द को पुकारूँगा तो वह सुन लेगा। \s5 \v 4 ~थरथराओ और गुनाह न करो; अपने अपने बिस्तर पर दिल में सोचो और ख़ामोश रहो। \v 5 सदाक़त की कु़र्बानियाँ पेश करो, और ख़ुदावन्द पर भरोसा करो। \s5 \v 6 ~बहुत से कहते हैं कौन हम को कुछ भलाई दिखाएगा? ऐ ख़ुदावन्द तू अपने चेहरे का नूर हम पर जलवह गर फ़रमा । \v 7 ~तूने मेरे दिल को उससे ज़्यादा खु़शी बख़्शी है, जो उनको ग़ल्ले और मय की बहुतायत से होती थी। \v 8 मैं सलामती से लेट जाऊँगा और सो रहूँगाः क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द! सिर्फ़ तू ही मुझे मुत्मईन रखता है! \s5 \c 5 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द मेरी बातो पर कान लगा! मेरी आहों पर तवज्जुह कर! \v 2 ~ऐ मेरे बादशाह! ऐ मेरे ख़ुदा! मेरी फ़रियाद की आवाज़ की तरफ़ मुतवज्जिह हो, क्यूँकि मैं तुझ ही से दु'आ करता हूँ। \v 3 ~ऐ ख़ुदावन्द तू सुबह को मेरी आवाज़ सुनेगा। मैं सवेरे ही तुझ से दु'आ करके इन्तिज़ार करूँगा । \s5 \v 4 ~क्यूँकि तू ऐसा ख़ुदा नहीं जो शरारत से खु़श हो। गुनाह तेरे साथ नहीं रह सकता। \v 5 ~घमंडी तेरे सामने खड़े न होंगे।तुझे सब बदकिरदारों से नफ़रत है। \v 6 ~तू उनको जो झूट बोलते हैं हलाक करेगा। ख़ुदावन्द को खू़ँख़्वार और दग़ाबाज़ आदमी से नफ़रत है। \s5 \v 7 लेकिन मैं तेरी शफ़क़त की कसरत से तेरे घर में आऊँगा। मैं तेरा रौ'ब मानकर तेरी पाक हैकल की तरफ़ रुख़ करके सिज्दा करूँगा । \v 8 ~ऐ ख़ुदावन्द! मेरे दुश्मनों की वजह से मुझे अपनी सदाक़त में चला; मेरे आगे आगे अपनी राह को साफ़ कर दे। \s5 \v 9 ~क्यूँकि उनके मुँह में ज़रा सच्चाई नहीं, उनका बातिन ~सिर्फ़ बुराई है। उनका गला खुली क़ब्र है, वह अपनी ज़बान से ख़ुशामद करते हैं। \v 10 ऐ ख़ुदा तू उनको मुजरिम ठहरा; वह अपने ही मश्वरों से तबाह हों। उनको उनके गुनाहों की ज़्यादती की वजह से ख़ारिज कर दे; क्यूँकि उन्होंने तुझ से बग़ावत की है। \s5 \v 11 लेकिन वह सब जो तुझ पर भरोसा रखते हैं, शादमान हों, वह सदा ख़ुशी से ललकारें, क्यूँकि तू उनकी हिमायत करता है। और जो तेरे नाम से मुहब्बत रखते हैं, तुझ में ख़ुश रहें। \v 12 क्यूँकि तू सादिक़ को बरकत बख़्शेगा।ऐ ख़ुदावन्द! तू उसे करम से ढाल की तरह ढाँक लेगा। \s5 \c 6 \p \v 1 ऐ ख़ुदा तू मुझे अपने क़हर में न झिड़क, और अपने ग़ज़बनाक ग़ुस्से में मुझे तम्बीह न दे। \v 2 ऐ ख़ुदावन्द, मुझ पर रहम कर, क्यूँकि मैं अधमरा हो गया हूँ। ऐ ख़ुदवन्द, मुझे शिफ़ा दे, क्यूँकि मेरी हडिडयों में बेक़रारी है। \s5 \v 3 मेरी जान भी बहुत ही बेक़रार है; और तू ऐ ख़ुदावन्द, कब तक? \v 4 ~लौट ऐ ख़ुदावन्द, मेरी जान को छुड़ा।अपनी शफ़क़त की ख़ातिर मुझे बचा ले। \v 5 ~क्यूँकि मौत के बा'द तेरी याद नहीं होती, क़ब्र में कौन तेरी शुक्रगुज़ारी करेगा? \s5 \v 6 मैं कराहते कराहते थक गया, मैं अपना पलंग आँसुओं से भिगोता हूँ हर रात मेरा बिस्तर तैरता है। \v 7 मेरी आँख ग़म के मारे बैठी जाती हैं, और मेरे सब मुख़ालिफ़ों की वजह से धुंधलाने लगीं। \s5 \v 8 ~ऐ सब बदकिरदारो, मेरे पास से दूर हो; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मेरे रोने की आवाज़ सुन ली है। \v 9 खूदावन्द ने मेरी मिन्नत सुन ली; ख़ुदावन्द मेरी दु'आ क़ुबूल करेगा। \v 10 ~मेरे सब दुश्मन शर्मिन्दा और बहुत ही बेक़रार होंगे; वह लौट जाएँगे, वह अचानक शर्मिन्दा होंगे। \s5 \c 7 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, मेरा भरोसा तुझ पर है; सब पीछा करने वालों से मुझे बचा और छुड़ा, \v 2 ~ऐसा न हो कि वह शेर-ए-बबर की तरह मेरी जान को फाड़े; वह उसे टुकड़े टुकड़े कर दे और कोई छुड़ाने वाला न हो। \s5 \v 3 ~ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, अगर मैंने यह किया हो, अगर मेरे हाथों से बुराई हुई हो; \v 4 अगर मैंने अपने मेल रखने वाले से भलाई के बदले बुराई की हो, (बल्कि मैंने तो उसे जो नाहक़ मेरा मुखालिफ़ था, बचाया है); \s5 \v 5 तो दुश्मन मेरी जान का पीछा करके उसे आ पकड़े, बल्कि वह मेरी ज़िन्दगी को बर्बाद करके मिट्टी में, और मेरी 'इज़्ज़त को ख़ाक में मिला दे।(सिलाह) \s5 \v 6 ~ऐ ख़ुदावन्द, अपने क़हर में उठ; मेरे मुख़ालिफ़ों के ग़ज़ब के मुक़ाबिले में तू खड़ा हो जा; और मेरे लिए जाग! तूने इंसाफ़ का हुक्म तो दे दिया है। \v 7 तेरे चारों तरफ़ क़ौमों का इजितमा'अ हो; और तू उनके ऊपर 'आलम-ए-बाला को लौट जा \s5 \v 8 ख़ुदावन्द, क़ौमों का इंसाफ़ करता है; ऐ ख़ुदावन्द, उस सदाक़त-ओ-रास्ती के मुताबिक़ जो मुझ में है मेरी'अदालत कर | \v 9 ~काश कि शरीरों की बदी का ख़ात्मा हो जाए, लेकिन सादिक़ को तू क़याम बख़्श; क्यूँकि ख़ुदा-ए-सादिक़ दिलों और गुर्दों को जाँचता है। \s5 \v 10 ~मेरी ढाल ख़ुदा के हाथ में है, जो रास्त दिलों को बचाता है। \v 11 ~ख़ुदा सादिक़ मुन्सिफ़ है, बल्कि ऐसा ख़ुदा जो हर रोज़ क़हर करता है। \s5 \v 12 अगर आदमी बाज़ न आए तो वहअपनी तलवार तेज़ करेगा; उसने अपनी कमान पर चिल्ला चढ़ाकर उसे तैयार कर लिया है। \v 13 ~उसने उसके लिए मौत के हथियार भी तैयार किए हैं; वह अपने तीरों को आतिशी बनाता है। \s5 \v 14 देखो, उसे बुराई की पैदाइश का दर्द ~लगा है! बल्कि वह शरारत से फलदार ~हुआ और उससे झूट पैदा हुआ। \v 15 ~उसने गढ़ा खोद कर उसे गहरा किया, और उस ख़न्दक में जो उसने बनाई थी ख़ुद गिरा। \v 16 ~उसकी शरारत उल्टी उसी के सिर पर आएगी; उसका ज़ुल्म उसी की खोपड़ी पर नाज़िल होगा। \s5 \v 17 ~ख़ुदावन्द की सदाक़त के मुताबिक़ मैं उसका शुक्र करूँगा, और ख़ुदावन्द ताला के नाम की तारीफ़ गाऊँगा। \s5 \c 8 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द हमारे रब तेरा नाम तमाम ज़मीन पर कैसा बुज़ु़र्ग़ है! तूने अपना जलाल आसमान पर क़ायम किया है। \v 2 तूने अपने मुखालिफ़ों की वजह से बच्चों और शीरख़्वारों के मुँह से कु़दरत को क़ायम किया, ताकि तू दुश्मन और इन्तक़ाम लेने वाले को ख़ामोश कर दे। \s5 \v 3 ~जब मैं तेरे आसमान पर जो तेरी दस्तकारी है, और चाँद और सितारों पर जिनको तूने मुक़र्रर किया, ग़ौर करता हूँ। \v 4 तो फिर इंसान क्या है कि तू उसे याद रख्खे, और बनी आदम क्या है कि तू उसकी ख़बर ले? \v 5 क्यूँकि तूने उसे ख़ुदा से कुछ ही कमतर बनाया है, और जलाल और शौकत से उसे ताजदार करता है। \s5 \v 6 तूने उसे अपनी दस्तकारी पर इख़्तियार बख़्शा है; तूने सब कुछ उसके क़दमों के नीचे कर दिया है। \v 7 सब भेड़-बकरियाँ, गाय-बैल बल्कि सब जंगली जानवर \v 8 हवा के परिन्दे और समन्दर की और जो कुछ समन्दरों के रास्ते में चलता फिरता है। \s5 \v 9 ~ऐ ख़ुदावन्द, हमारे रब्ब! तेरा नाम पूरी ज़मीन पर कैसा बुज़ु़र्ग़ है! \s5 \c 9 \p \v 1 ~मैं अपने पूरे दिल से ख़ुदावन्द ~की शुक्रगुज़ारी करूँगा; मैं तेरे सब 'अजीब कामों का बयान करूँगा। \v 2 ~मैं तुझ में ख़ुशी मनाऊँगा और मसरूर हूँगा; ऐ हक़ता'ला, मैं तेरी सिताइश करूँगा । \s5 \v 3 ~जब मेरे दुश्मन पीछे हटते हैं, तो तेरी हुजू़री की वजह से लग़ज़िश खाते और हलाक हो जाते हैं। \v 4 क्यूँकि तूने मेरे हक़ की और मेरे मु'आमिले की ताईद की है। तूने तख़्त पर बैठकर सदाक़त से इंसाफ़ किया। \s5 \v 5 ~तूने क़ौमों को झिड़का, तूने शरीरों को हलाक किया है; तूने उनका नाम हमेशा से हमेशा के लिए मिटा डाला है। \v 6 ~दुश्मन ख़त्म हुए, वह हमेशा के लिए बर्बाद हो गए; और जिन शहरों को तूने ढा दिया, उनकी यादगार तक मिट गई। \s5 \v 7 लेकिन ख़ुदावन्द हमेशा तक तख़्त नशीन है, उसने इंसाफ़ के लिए अपना तख़्त तैयार किया है; \v 8 ~और वही सदाक़त से जहान की 'अदालत करेगा, और रास्ती से कौमों का इंसाफ़ करेगा। \s5 \v 9 ~ख़ुदावन्द मज़लूमों के लिए ऊँचा बुर्ज होगा, मुसीबत के दिनों में ऊँचा बुर्ज। \v 10 और वह जो तेरा नाम जानते हैं तुझ पर भरोसा करेंगे, क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द, तूने अपने चाहनें वालो को नहीं छोड़ा। \s5 \v 11 ~ख़ुदावन्द की सिताइश करो, जो सिय्यूनमें रहता है! लोगों के बीच उसके कामों का बयान करो \v 12 क्यूँकि खू़न का पूछताछ करने वाला उनको याद रखता है; वह ग़रीबों की फ़रियाद को नहीं भूलता। \s5 \v 13 ~ऐ ख़ुदावन्द, मुझ पर रहम कर।तू जो मौत के फाटकों से मुझे उठाता है, मेरे उस दुख को देख जो मेरे नफ़रत करने वालों की तरफ़ से है। \v 14 ~ताकि मैं तेरी कामिल सिताइश का इज़हार करूँ। सिय्यून की बेटी के फाटकों पर, मैं तेरी नजात से ख़ुश हूँगा \s5 \v 15 ~क़ौमें खु़द उस गढ़े में गिरी हैं जिसे उन्होंने खोदा था; जो जाल उन्होंने लगाया था उसमें उन ही का पाँव फंसा। \v 16 ~ख़ुदावन्द की शोहरत फैल गई, उसने इंसाफ़ किया है; शरीर अपने ही हाथ के कामों में फंस गया है। (हरगायून, सिलाह) \s5 \v 17 शरीर पाताल में जाएँगे, या'नी वह सब क़ौमें जो ख़ुदा को भूल जाती हैं \v 18 ~क्यूँकि ग़रीब सदा भूले बिसरे न रहेंगे, न ग़रीबों की उम्मीद हमेशा के लिए टूटेगी। \s5 \v 19 ~उठ, ऐ ख़ुदावन्द! इंसान ग़ालिब न होने पाए। क़ौमों की 'अदालत तेरे सामने हो। \v 20 ~ऐ ख़ुदावन्द! उनको ख़ौफ़ दिला।क़ौमें अपने आपको इंसान ही जानें। \s5 \c 10 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द तू क्यूँ दूर खड़ा रहता है? मुसीबत के वक़्त तू क्यूँ छिप जाता है? \v 2 ~शरीर के गु़रूर की वजह से ग़रीब का तेज़ी से पीछा किया जाता है; जो मन्सूबे उन्होंने बाँधे हैं, वह उन ही में गिरफ़्तार हो जाएँ। \v 3 क्यूँकि शरीर अपनी जिस्मानी ख़्वाहिश पर फ़ख़्र करता है, और लालची ख़ुदावन्द को छोड़ देता बल्कि उसकी नाक़द्री करता है। \s5 \v 4 शरीर अपने तकब्बुर में कहता है कि वह पूछताछ नहीं करेगा; उसका ख़याल सरासर यही है कि कोई ख़ुदा नहीं। \v 5 उसकी राहें हमेशा बराबर हैं, तेरे अहकाम उसकी नज़र से दूर-ओ-बुलन्द हैं; वह अपने सब मुख़ालिफ़ों पर फूंकारता है। \s5 \v 6 ~वह अपने दिल में कहता है, "मैं जुम्बिश नहीं खाने का; नसल दर नसल मुझ पर कभी मुसीबत न आएगी।" \v 7 ~उसका मुँह लानत-ओ-दग़ा और ज़ुल्म से भरा है; शरारत और बदी उसकी ज़बान पर हैं। \s5 \v 8 ~वह देहात की घातों में बैठता है, वह पोशीदा मक़ामों में बेगुनाह को क़त्ल करता है; उसकी आँखें बेकस की घात में लगी रहती हैं। \v 9 ~वह पोशीदा मक़ाम में शेर-ए-बबर की तरह दुबक कर बैठता है; वह ग़रीब को पकड़ने की घात लगाए रहता है; वह ग़रीब को अपने जाल में फंसा कर पकड़ लेता है। \v 10 वह दुबकता है, वह झुक जाता है; और बेकस उसके पहलवानों के हाथ से मारे जाते हैं। \s5 \v 11 ~वह अपने दिल में कहता है, "ख़ुदा भूल गया है, वह अपना मुँह छिपाता है; वह हरगिज़ नहीं देखेगा।" \v 12 उठ ऐ ख़ुदावन्द! ऐ ख़ुदा अपना हाथ बुलंद कर! ग़रीबों को न भूल | \s5 \v 13 शरीर किस लिए ख़ुदा की नाक़द्री करता है और अपने दिल में कहता है कि तू पूछताछ ना करेगा ? \v 14 तूने देख लिया है क्यूँकि तू शरारत और बुग्ज़ देखता है ताकि अपने हाथ से बदला दे |बेकस अपने आप को तेरे सिपुर्द करता है तू ही यतीम का मददगार रहा है | \s5 \v 15 शरीर का बाज़ू तोड़ दे |और बदकार की शरारत को जब तक बर्बाद न हो ढूँढ़-ढूँढ़ कर निकाल | \v 16 ख़ुदावन्द हमेशा से हमेशा बादशाह है |क़ौमें उसके मुल्क में से हलाक हो गयीं | \s5 \v 17 ऐ ख़ुदावन्द तूने हलीमों का मुद्दा'सुन लिया है तू उनके दिल को तैयार करेगा-तू कान लगा कर सुनेगा \v 18 कि यतीम और मज़लूम का इन्साफ़ करे ताकि इन्सान जो ख़ाक से है फिर ना डराए | \s5 \c 11 \p \v 1 मेरा भरोसा ख़ुदावन्द पर है तुम क्यूँकर मेरी जान से कहते हो कि चिड़िया की तरह अपने पहाड़ पर उड़ जा ? \v 2 क्यूँकि देखो! शरीर कमान खींचते हैं वह तीर को चिल्ले पर रखते हैं ताकि अँधेरे में रास्त दिलों पर चलायें | \s5 \v 3 अगर बुनयाद ही उखाड़ दी जाये तो सादिक़ क्या कर सकता है | \v 4 ख़ुदावन्द अपनी पाक हैकल में है ख़ुदावन्द का तख़्त आसमान पर है |उसकी आँखें बनी आदम को देखती ~और उसकी पलकें उनको जाँचती हैं | \s5 \v 5 ख़ुदावन्द सादिक़ को परखता है लेकिन शरीर और ज़ुल्म को पसन्द करने वाले से उसकी रूह को नफ़रत है \v 6 वह शरीरों पर फंदे बरसायेगा आग और गंधक और लू उनके प्याले का हिस्सा होगा| \v 7 क्यूँकि ख़ुदावन्द सादिक़ है वह सच्चाई को पसंद करता है रास्त बाज़ उसका दीदार हासिल करेंगे | \s5 \c 12 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द! बचा ले क्यूँकि कोई दीनदार नहीं रहा और अमानत दार लोग बनी आदम में से मिट गये | \s5 \v 2 वह अपने अपने पड़ोसी से झूठ बोलते हैं वह ख़ुशामदी लबों से दो रंगी बातें करते हैं \v 3 ख़ुदावन्द सब ख़ुशामदी लबों को और बड़े बोल बोलने वाली ज़बान को काट डालेगा | \v 4 वह कहते हैं, "हम अपनी ज़बान से जीतेंगे, हमारे होंट हमारे ही हैं; हमारा मालिक कौन है?" \s5 \v 5 ~ग़रीबों की तबाही और ग़रीबों कीआह की वजह से, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि अब मैं उठूँगा और जिस पर वह फुंकारते हैं उसे अम्न-ओ-अमान में रख्खूँगा। \s5 \v 6 ख़ुदावन्द का कलाम पाक है, उस चाँदी की तरह जो भट्टी में मिट्टी पर ताई गई, और सात बार साफ़ की गई हो। \v 7 तू ही ऐ ख़ुदावन्द उनकी हिफ़ाज़त करेगा, तू ही उनको इस नसल से हमेशा तक बचाए रखेगा। \v 8 जब बनी आदम में पाजीपन की क़द्र होती है, तो शरीर हर तरफ़ चलते फिरते हैं। \s5 \c 13 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द, कब तक? क्या तू हमेशा मुझे भूला रहेगा? तू कब तक अपना चेहरा मुझ से छिपाए रख्खेगा? \v 2 ~कब तक मैं जी ही जी में मन्सूबा बाँधता रहूँ, और सारे दिन अपने दिल में ग़म किया करू?कब तक मेरा दुश्मन मुझ पर सर बुलन्द रहेगा? \s5 \v 3 ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, मेरी तरफ़ तवज्जुह कर और मुझे जवाब दे। मेरी आँखे रोशन कर, ऐसा न हो कि मुझे मौत की नींद आ जाए \v 4 ~ऐसा न हो कि मेरा दुश्मन कहे, कि मैं इस पर ग़ालिब आ गया।ऐसा न हो कि जब मैं जुम्बिश खाऊँ तो मेरे मुखालिफ़ ख़ुश हों। \s5 \v 5 लेकिन मैंने तो तेरी रहमत पर भरोसा किया है; मेरा दिल तेरी नजात से खु़श होगा। \v 6 ~मैं ख़ुदावन्द का हम्द गाऊँगा क्यूँकि उसने मुझ पर एहसान किया है, \s5 \c 14 \p \v 1 बेवकू़फ़ ने अपने दिल में कहा है, कि कोई ख़ुदा नहीं। वह बिगड़ गए, उन्होंने नफ़रतअंगेज़ काम किए हैं; कोई नेकोकार नहीं। \s5 \v 2 ~ख़ुदावन्द ने आसमान पर से बनी आदम पर निगाह की ताकि देखे कि कोई अक़्लमन्द, कोई ख़ुदा का तालिब है या नहीं। \v 3 वह सब के सब गुमराह हुए, वह एक साथ नापाक हो गए, कोई नेकोकार नहीं, एक भी नहीं। \s5 \v 4 क्या उन सब बदकिरदारों को कुछ'इल्म नहीं, जो मेरे लोगों को ऐसे खा जाते हैं जैसे रोटी, और ख़ुदावन्द का नाम नहीं लेते? \s5 \v 5 वहाँ उन पर बड़ा ख़ौफ़ छा गया, क्यूँकि ख़ुदा सादिक़ नसल के साथ है। \v 6 तुम ग़रीब की मश्वरत की हँसी उड़ाते हो; इसलिए के ख़ुदावन्द उसकी पनाह है। \s5 \v 7 ~काश कि इस्राईल की नजात सिय्यून में से होती! जब ख़ुदावन्द अपने लोगों को ग़ुलामी से लौटा लाएगा, तो या'कू़ब ख़ुश और इस्राईल शादमान होगा। \s5 \c 15 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द तेरे ख़ेमे में कौन रहेगा?तेरे पाक पहाड़ पर कौन सुकूनत करेगा? \v 2 ~वह जो रास्ती से चलता और सदाक़त का काम करता, और दिल से सच बोलता है। \s5 \v 3 वह जो अपनी ज़बान से बुहतान नहीं बांधता, और अपने दोस्त से बदी नहीं करता, और अपने पड़ोसी की बदनामी नहीं सुनता। \s5 \v 4 वह जिसकी नज़र में रज़ील आदमी हक़ीर है, लेकिन जो ख़ुदावन्द से डरते हैं उनकी 'इज़्ज़त करता है; वह जो क़सम खाकर बदलता नहीं चाहे नुक़्सान ही उठाए। \v 5 वह जो अपना रुपया सूद पर नहीं देता, और बेगुनाह के ख़िलाफ़ रिश्वत नहीं लेता। ऐसे काम करने वाला कभी जुम्बिश न खाएगा। \s5 \c 16 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदा मेरी हिफ़ाज़त कर, क्यूँकि मैं तुझ ही में पनाह लेता हूँ। \v 2 मैंने ख़ुदावन्द से कहा तू ही रब है तेरे अलावा मेरी भलाई नहीं।" \v 3 ज़मीन के पाक लोग वह बरगुज़ीदा हैं, जिनमें मेरी पूरी ख़ुशनूदी है। \s5 \v 4 ~गै़र मा'बूदों के पीछे दौड़ने वालों का ग़म बढ़ जाएगा; मैं उनके से खू़न वाले तपावन नहीं तपाऊँगा और अपने होटों से उनके नाम नहीं लूँगा। \s5 \v 5 ख़ुदावन्द ही मेरी मीरास और मेरे प्याले का हिस्सा है; तू मेरे बख़रे का मुहाफ़िज़~~है। \v 6 ~जरीब मेरे लिए दिलपसंद जगहों में पड़ी, बल्कि मेरी मीरास खू़ब है। \s5 \v 7 मैं ख़ुदावन्द की हम्द करूँगा, जिसने, मुझे नसीहत दी है; बल्कि मेरा दिल रात को मेरी तरबियत करता है \v 8 मैंने ख़ुदावन्द को हमेशा अपने सामने रख्खा है; चूँकि वह मेरे दहने हाथ है, इसलिए मुझे जुम्बिश न होगी। \s5 \v 9 ~इसी वजह से मेरा दिल खु़श और मेरी रूह शादमान है; मेरा जिस्म भी अम्न-ओ-अमान में रहेगा। \v 10 क्यूँकि तू न मेरी जान को पाताल में रहने देगा, न अपने मुक़द्दस को सड़ने देगा। \s5 \v 11 तू मुझे ज़िन्दगी की राह दिखाएगा; तेरे हुज़ूरमें कामिल शादमानी है। तेरे दहने हाथ में हमेशा की खु़शी है। \s5 \c 17 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदावन्द, हक़ को सुन, मेरी फ़रियाद पर तवज्जुह कर। मेरी दु'आ पर, जो दिखावे के होंटों से निकलती है कान लगा। \v 2 ~मेरा फ़ैसला तेरे सामने से ज़ाहिर हो! तेरी आँखें रास्ती को देखें! \s5 \v 3 तूने मेरे दिल को आज़मा लिया है, तूने रात को मेरी निगरानी की; तूने मुझे परखा और कुछ खोट न पाया, मैंने ठान लिया है कि मेरा मुँह ख़ता न करे। \s5 \v 4 इंसानी कामों में तेरे लबों के कलाम की मदद से मैं ज़ालिमों की राहों से बाज़ रहा हूँ। \v 5 ~मेरे कदम तेरे रास्तों पर क़ायम रहे हैं, मेरे पाँव फिसले नहीं। \s5 \v 6 ऐ ख़ुदा, मैंने तुझ से दु'आ की है क्यूँकि तू मुझे जवाब देगा। मेरी तरफ़ कान झुका और मेरी 'अर्ज़ सुन ले। \v 7 तू जो अपने दहने हाथ से अपने भरोसा करने वालों को उनके मुखालिफ़ों से बचाता है, अपनी'अजीब शफ़क़त दिखा। \s5 \v 8 मुझे आँख की पुतली की तरह महफूज़ रख; मुझे अपने परों के साये में छिपा ले, \v 9 उन शरीरों से जो मुझ पर ज़ुल्म करते हैं, मेरे जानी दुश्मनों से जो मुझे घेरे हुए हैं। \v 10 उन्होंने अपने दिलों को सख़्त किया है; वह अपने मुँह से बड़ा बोल बोलते हैं। \s5 \v 11 उन्होंने कदम कदम पर हम को घेरा है; वह ताक लगाए हैं कि हम को ज़मीन पर पटक दें। \v 12 वह उस बबर की तरह है जो फाड़ने पर लालची हो, वह जैसे जवान बबर है जो पोशीदा जगहों में दुबका हुआ है। \s5 \v 13 ~उठ, ऐ ख़ुदावन्द! उसका सामना कर, उसे पटक दे! अपनी तलवार से मेरी जान को शरीर से बचा ले। \v 14 अपने हाथ से ऐ ख़ुदावन्द! मुझे लोगों से बचा। या'नी दुनिया के लोगों से, जिनका बख़रा इसी ज़िन्दगी में है, और जिनका पेट तू अपने ज़ख़ीरे से भरता है। उनकी औलाद भी हस्ब-ए-मुराद है; वह अपना बाक़ी माल अपने बच्चों के लिए छोड़ जाते हैं \s5 \v 15 ~लेकिन मैं तो सदाक़त में तेरा दीदार हासिल करूँगा; मैं जब जागूँगा तो तेरी शबाहत से सेर हूँगा। \s5 \c 18 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदावन्द, ऐ मेरी ताक़त! मैं तुझसे मुहब्बत रखता हूँ। \s5 \v 2 ~ख़ुदावन्द मेरी चट्टान, और मेरा क़िला' और मेरा छुड़ाने वाला है; मेरा ख़ुदा, मेरी चट्टान जिस पर मैं भरोसा रखूँगा, मेरी ढाल और मेरी नजात का सींग, मेरा ऊँचा बुर्ज। \v 3 मैं ख़ुदावन्द को, जो सिताइश के लायक़ है पुकारूँगा। यूँ मैं अपने दुश्मनों से बचाया जाऊँगा। \s5 \v 4 मौत की रस्सियों ने मुझे घेर लिया, और बेदीनी के सैलाबों ने मुझे डराया; \v 5 पाताल की रस्सियाँ मेरे चारों तरफ़ थीं, मौत के फंदे मुझ पर आ पड़े थे। \s5 \v 6 अपनी मुसीबत में मैंने ख़ुदावन्द को पुकाराः और अपने ख़ुदा से फ़रियाद की; उसने अपनी हैकल में से मेरी आवाज़ सुनी, और मेरी फ़रियाद जो उसके सामने थी, उसके कान में पहुँची। \s5 \v 7 तब ज़मीन हिल गई और कॉप उठी, पहाड़ों की बुनियादों ने जुम्बिश खाई और हिल गई, इसलिए कि वह ग़ज़बनाक हुआ। \v 8 ~उसके नथनों से धुवाँ उठा, और उसके मुँह से आग निकलकर भसम करने लगी; कोयले उससे दहक उठे। \s5 \v 9 उसने आसमानों को भी झुका दियाअौर नीचे उतर आया; और उसके पाँव तले गहरी तारीकी थी। \v 10 वह करूबी पर सवार होकर उड़ा, बल्कि वह तेज़ी से हवा के बाजू़ओं पर उड़ा। \s5 \v 11 उसने ज़ुल्मत या'नी बादल की तारीकी और आसमान के दलदार बादलों को अपने चारों तरफ़अपने छिपने की जगह और अपना शामियाना बनाया। \v 12 उसकी हुज़ूरी की झलक से उसके दलदार बादल फट गए, ओले और अंगारे। \s5 \v 13 और ख़ुदावन्द आसमान में गरजा, हक़ ता'ला ने अपनी आवाज़ सुनाई, ओले और अंगारे। \v 14 उसने अपने तीर चलाकर उनको तितर बितर किया, बल्कि ताबड़ तोड़ बिजली से उनको शिकस्त दी। \s5 \v 15 तब तेरी डाँट से ऐ ख़ुदावन्द! तेरे नथनों के दम के झोंके से, पानी की थाह दिखाई देने लगीऔर जहान की बुनियादें~नमूदार हुई। \s5 \v 16 उसने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया, और मुझे बहुत पानी में से खींचकर बाहर निकाला। \v 17 उसने मेरे ताक़तवर दुश्मन और मेरे'अदावत रखने वालों से मुझे छुड़ा लिया, क्यूँकि वह मेरे लिए बहुत ही ज़बरदस्त थे। \s5 \v 18 ~वह मेरी मुसीबत के दिन मुझ पर आ पड़े; लेकिन ख़ुदावन्द मेरा सहारा था। \v 19 ~वह मुझे कुशादा जगह में निकाल भी लाया। उसने मुझे छुड़ाया, इसलिए कि वह मुझ से ख़ुश था। \s5 \v 20 ~ख़ुदावन्द ने मेरी रास्ती के मुवाफ़िक़ मुझे बदला दिया : और मेरे हाथों की पाकीज़गी के मुताबिक़ मुझे बदला दिया। \v 21 क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द की राहों पर चलता रहा, और शरारत से अपने ख़ुदा से अलग न हुआ। \s5 \v 22 क्यूँकि उसके सब फ़ैसले मेरे सामने रहे, और मैं उसके आईन से नाफ़रमान न हुआ। \v 23 मैं उसके सामने कामिल भी रहा, और अपने को अपनी बदकारी से रोके रख्खा। \v 24 ~ख़ुदावन्द ने मुझे मेरी रास्ती के मुवाफ़िक़ और मेरे हाथों की पाकीज़गी के मुताबिक़ जो उसके सामने थी बदला दिया। \s5 \v 25 रहम दिल के साथ तू रहीम होगा, और कामिल आदमी के साथ कामिल। \v 26 नेकोकार के साथ नेक होगा, और कजरों के साथ टेढ़ा। \s5 \v 27 क्यूँकि तू मुसीबत ज़दा लोगों को बचाएगा; लेकिन मग़रूरों की आँखों को नीचा करेगा। \v 28 इसलिए के तू मेरे चराग़ को रौशन करेगा: ख़ुदावन्द मेरा ख़ुदा मेरे अंधेरे को उजाला कर देगा। \v 29 ~क्यूँकि तेरी बदौलत मैं फ़ौज पर धावा करता हूँ। और अपने ख़ुदा की बदौलत दीवार फाँद जाता हूँ। \s5 \v 30 लेकिन ख़ुदा की राह कामिल है; ख़ुदावन्द का कलाम ताया हुआ है; वह उन सबकी ढाल है जो उस पर भरोसा रखते हैं। \v 31 क्यूँकि ख़ुदावन्द के अलावा और कौन ख़ुदा है? और हमारे ख़ुदा को छोड़कर और कौन चट्टान है? \v 32 ख़ुदा ही मुझे ताक़त से कमर बस्ता करता है, और मेरी राह को कामिल करता है। \s5 \v 33 ~वही मेरे पाँव हरनियों के से बना देता है, और मुझे मेरी ऊँची जगहों में क़ायम करता है। \v 34 वह मेरे हाथों को जंग करना सिखाता है, यहाँ तक कि मेरे बाजू़ पीतल की कमान को झुका देते हैं। \s5 \v 35 ~तूने मुझ को अपनी नजात की ढाल बख़्शी, और तेरे दहने हाथ ने मुझे संभाला, और तेरी नमी ने मुझे बुज़ूर्ग बनाया है। \v 36 तूने मेरे नीचे, मेरे क़दम कुशादा कर दिए; और मेरे पाँव नहीं फिसले। \s5 \v 37 ~मैं अपने दुश्मनों का पीछा करके उनको जा लूँगा; और जब तक वह फ़ना न हो जाएँ, वापस नहीं आऊँगा। \v 38 ~मैं उनको ऐसा छेदुँगा कि वह उठ न सकेंगे; वह मेरे पाँव के नीचे गिर पड़ेंगे। \v 39 ~क्यूँकि तूने लड़ाई के लिए मुझे ताक़त से कमरबस्ता किया; और मेरे मुख़ालिफ़ों को मेरे सामने नीचा दिखाया। \s5 \v 40 तूने मेरे दुश्मनों की नसल मेरी तरफ़ फेर दी, ताकि मैं अपने 'अदावत रखने वालों को काट डालूँ। \v 41 ~उन्होंने दुहाई दी लेकिन कोई न था जो बचाए, ख़ुदावन्द को भी पुकारा लेकिन उसने उनको जवाब न दिया। \v 42 ~तब मैंने उनको कूट कूट कर हवा में उड़ती हुई गर्द की ~तरह कर दिया; मैंने उनको गली कूचों की कीचड़ की तरह निकाल फेंका \s5 \v 43 ~तूने मुझे क़ौम के झगड़ों से भी छुड़ाया; तूने मुझे क़ौमों का सरदार बनाया है; जिस क़ौम से मैं वाक़िफ़ भी नहीं वह मेरी फ़र्माबरदार होगी। \v 44 मेरा नाम सुनते ही वह मेरी फ़रमाबरदारी करेंगे; परदेसी मेरे ताबे' हो जाएँगे। \v 45 परदेसी मुरझा जाएँगे, और अपने क़िले' से थरथराते हुए निकलेंगे। \s5 \v 46 ख़ुदावन्द ज़िन्दा है! मेरी चट्टान मुबारक हो, और मेरा नजात देने वाला ख़ुदा मुम्ताज़ हो। \v 47 वही ख़ुदा जो मेरा इन्तक़ाम लेता है; और उम्मतों को मेरे सामने नीचा करता है। \s5 \v 48 वह मुझे मेरे दुश्मनों से छुड़ाता है; बल्कि तू मुझे मेरे मुख़ालिफ़ों पर सरफ़राज़ करता है। तू मुझे टेढ़े आदमी से रिहाई देता है। \v 49 ~इसलिए ऐ ख़ुदावन्द! मैं क़ौमों के बीच तेरी शुक्रगुज़ारी, और तेरे नाम की मदहसराई करूँगा । \s5 \v 50 वह अपने बादशाह को बड़ी नजात 'इनायत करता है, और अपने मम्सूह दाऊद और उसकी नसल पर हमेशा शफ़क़त करता है। \s5 \c 19 \p \v 1 ~आसमान ख़ुदा का जलाल ज़ाहिर करता है; और फ़ज़ा उसकी दस्तकारी दिखाती है। \v 2 ~दिन से दिन बात करता है, और रात को रात हिकमत सिखाती है। \v 3 ~न बोलना है न कलाम, न उनकी आवाज़ सुनाई देती है। \s5 \v 4 उनका सुर सारी ज़मीन पर, और उनका कलाम दुनिया की इन्तिहा तक पहुँचा है। उसने आफ़ताब के लिए उनमें ख़ेमा लगाया है। \v 5 जो दुल्हे की तरह अपने ख़िलवतख़ाने से निकलता है। और पहलवान की तरह अपनी दौड़ में दौड़ने को खु़श है। \v 6 वह आसमान की इन्तिहा से निकलता है, और उसकी गश्त उसके किनारों तक होती है; और उसकी हरारत से कोई चीज़ बे बहरा नहीं। \s5 \v 7 ~ख़ुदावन्द की शरी'अत कामिल है, वह जान को बहाल करती है; ख़ुदावन्द कि शहादत बरहक़ है नादान को दानिश बख़्शती है। \v 8 ~ख़ुदावन्द के क़वानीन रास्त हैं, वह दिल को फ़रहत पहुँचाते हैं; ख़ुदावन्द का हुक्म बे'ऐब है, वह आँखों की रौशन करता है। \s5 \v 9 ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ पाक है, वह अबद तक क़ायम रहता है; ख़ुदावन्द के अहकाम बरहक़ और बिल्कुल रास्त हैं। \v 10 वह सोने से बल्कि बहुत कुन्दन से ज़्यादा पसंदीदा हैं; वह शहद से बल्कि छत्ते के टपकों से भी शीरीन हैं। \s5 \v 11 नीज़ उन से तेरे बन्दे को आगाही मिलती है; उनको मानने का अज्र बड़ा है। \v 12 ~कौन अपनी भूलचूक को जान सकता है? तू मुझे पोशीदा 'ऐबों से पाक कर। \s5 \v 13 तू अपने बंदे को बे-बाकी के गुनाहों से भी बाज़ रख; वह मुझ पर ग़ालिब न आएँ तो मैं कामिल हूँगा, और बड़े गुनाह से बचा रहूँगा। \v 14 मेरे मुँह का कलाम और मेरे दिल का ख़याल तेरे सामने मक़्बूल ठहरे; ऐ ख़ुदावन्द! ऐ मेरी चट्टान और मेरे फ़िदिया देने वाले! \s5 \c 20 \p \v 1 मुसीबत के दिन ख़ुदावन्द तेरी सुने। या'कू़ब के ख़ुदा का नाम तुझे बुलन्दी पर क़ायम करे! \v 2 वह मक़दिस से तेरे लिए मदद भेजे, और सिय्यून से तुझे क़ुव्वत बख़्शे! \s5 \v 3 वह तेरे सब हदियों को याद रख्खे, और तेरी सोख़्तनी क़ुर्बानी को क़ुबूल करे! (सिलाह) \v 4 वह तेरे दिल की आरज़ू पूरी करे, और तेरी सब मश्वरत पूरी करे! \s5 \v 5 हम तेरी नजात पर ख़ुशी मनाएंगे, और अपने ख़ुदा के नाम पर झंडे खड़े करेंगे। ख़ुदावन्द तेरी तमाम दरख़्वास्तें पूरी करे! \v 6 अब मैं जान गया कि ख़ुदावन्द अपने मम्सूह को बचा लेता है; वह अपने दहने हाथ की नजात बख़्श ताक़त से अपने पाक आसमान पर से उसे जवाब देगा। \s5 \v 7 किसी को रथों का और किसी को घोड़ों का भरोसा है, लेकिन हम तो ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा ही का नाम लेंगे। \v 8 वह तो झुके और गिर पड़े; लेकिन हम उठे और सीधे खड़े हैं। \s5 \v 9 ऐ ख़ुदावन्द! बचा ले; जिस दिन हम पुकारें, तो बादशाह हमें जवाब दे। \s5 \c 21 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द! तेरी ताक़त से बादशाह खु़श होगा; और तेरी नजात से उसे बहुत ख़ुशी होगी। \v 2 तूने उसके दिल की आरज़ू पूरी की है, और उसके मुँह की दरख़्वास्त को नामंजूर नहीं किया।(सिलाह; ) \s5 \v 3 ~क्यूँकि तू उसे 'उम्दा बरकतें बख़्शने में पेश कदमी करता, और ख़ालिस सोने का ताज उसके सिर पर रखता है। \v 4 उसने तुझ से ज़िन्दगी चाही और तूने बख़्शी; बल्कि 'उम्र की दराज़ी हमेशा के लिए। \s5 \v 5 ~तेरी नजात की वजह से उसकी शौकत 'अज़ीम है; तू उसे हश्मत-ओ-जलाल से आरास्ता करता है। \v 6 क्यूँकि तू हमेशा के लिए उसे बरकतों से मालामाल करता है; और अपने सामने उसे ख़ुश-ओ- ख़ुर्रम रखता है। \s5 \v 7 क्यूँकि बादशाह का भरोसा ख़ुदावन्द पर है; और हक़ता'ला की शफ़क़त की बदौलत उसे हरगिज़ जुम्बिश न होगी। \v 8 तेरा हाथ तेरे सब दुश्मनों को ढूंड निकालेगा, तेरा दहना हाथ तुझ से कीना रखने वालों का पता लगा लेगा। \s5 \v 9 तू अपने क़हर के वक़्त उनको जलते तनूर की तरह कर देगा। ख़ुदावन्द अपने ग़ज़ब में उनको निगल जाएगा, और आग उनको खा जाएगी। \v 10 तू उनके फल को ज़मीन पर से बर्बाद कर देगा, और उनकी नसल को बनी आदम में से। \s5 \v 11 क्यूँकि उन्होंने तुझ से बदी करना चाहा, उन्होंने ऐसा मन्सूबा बाँधा जिसे वह पूरा नहीं कर सकते। \v 12 क्यूँकि तू उनका मुँह फेर देगा, तू उनके मुक़ाबले में अपने चिल्ले चढ़ाएगा। \s5 \v 13 ~ऐ ख़ुदावन्द, तू अपनी ही ताक़त में सरबुलन्द हो! और हम गाकर तेरी क़ुदरत की सिताइश करेंगे \s5 \c 22 \p \v 1 ऐ मेरे ख़ुदा! ऐ मेरे ख़ुदा! तूने मुझे क्यूँ छोड़ दिया? तू मेरी मदद और मेरे नाला-ओ-फ़रियाद से क्यूँ दूर रहता है? \v 2 ऐ मेरे ख़ुदा! मै दिन को पुकारता हूँ लेकिन तू जवाब नहीं देता और रात को भी और ख़ामोश नहीं होता | \s5 \v 3 लेकिन तू पाक है तू जो इस्राईल के हम्दो-ओ-सना पर तख़्तनशीन है| \v 4 हमारे बाप दादा ने तुझ पर भरोसा किया; उन्होंने भरोसा किया और तूने उसको छुड़ाया | \v 5 उन्होंने तुझ से फ़रियाद की और रिहाई पाई; उन्होंने तुझ पर भरोसा किया और शर्मिंदा न हुए| \s5 \v 6 लेकिन मै तो कीड़ा हूँ, इंसान नहीं; आदमियों में अन्गुश्तनुमा हूँ और लोगों में हक़ीर| \v 7 वह सब जो मुझे देखते हैं, मेरा मज़ाक़ उड़ाते हैं; वह मुँह चिड़ाते, वह सर हिलाकर कहते हैं, \v 8 "अपने को ख़ुदावन्द के सुपुर्द कर दे वही उसे छुड़ाए, जब कि वह उससे ख़ुश है तो वही उसे छुड़ाए|" \s5 \v 9 लेकिन तु ही मुझे पेट से बहार लाया; जब मैं छोटा बच्चा ही था, तूने मुझे भरोसा करना सिखाया | \v 10 मैं पैदाइश ही से तुझ पर छोड़ा गया, मेरी माँ के पेट ही से तू मेरा ख़ुदा है| \s5 \v 11 मुझ से दूर न रह क्यूँकि मुसीबत क़रीब है, इसलिए कि कोई मददगार नहीं | \v 12 बहुत से साँडों ने मुझे घेर लिया है, बसन के ताक़तवर साँड मुझे घेरे हुए हैं | \v 13 वह फाड़ने और गरजने वाले बबर की तरह मुझ पर अपना मूंह पसारे हुए हैं| \s5 \v 14 मैं पानी की तरह बह गया मेरी सब हड्डियाँ उखड़ गईं|मेरा दिल मोम की तरह हो गया, वह मेरे सीने में पिघल गया | \v 15 मेरी ताक़त ठीकरे की तरह ख़ुश्क हो गई, और मेरी ज़बान मेरे तालू से चिपक गई; और तूने मुझे मौत की ख़ाक में मिला दिया | \s5 \v 16 क्यूँकि कुत्तो ने मुझे घेर लिया है; बदकारो की गिरोह मुझे घेरे हुए है; वह हाथ और मेरे पाँव छेदते हैं| \v 17 मैं अपनी सब हड्डियाँ गिन सकता हूँ; वह मुझे ताकते और घूरते हैं| \s5 \v 18 ~वह मेरे कपड़े आपस में बाँटते हैं, और मेरी पोशाक पर पर्ची डालते हैं। \v 19 लेकिन तू ऐ ख़ुदावन्द, दूर न रह! ऐ मेरे चारासाज़, मेरी मदद के लिए जल्दी कर! \s5 \v 20 मेरी जान को तलवार से बचा, मेरी जान को कुत्ते के क़ाबू से। \v 21 ~मुझे बबर के मुँह से बचा, बल्कि तूने साँडों के सींगों में से मुझे छुड़ाया है। \s5 \v 22 मैं अपने भाइयों से तेरे नाम का इज़हार करूँगा; जमा'अत में तेरी सिताइश करूँगा। \v 23 ऐ ख़ुदावन्द से डरने वालों, उसकी सिताइश करो! ऐ या'क़ूब की औलाद, सब उसकी तम्जीद करो! और ऐ इस्राईल की नसल, सब उसका डर मानो! \s5 \v 24 क्यूँकि उसने न तो मुसीबत ज़दा की मुसीबत को हक़ीर जाना न उससे नफ़रत की, न उससे अपना मुँह छिपाया; बल्कि जब उसने ख़ुदा से फ़रियाद की तो उसने सुन ली। \v 25 बड़े मजमे' में मेरी सना ख़्वानी का जरिया' तू ही है; मैं उस से डरने वालों के सामने अपनी नज़्रे अदा करूँगा । \s5 \v 26 हलीम खाएँगे और सेर होंगे; ख़ुदावन्द के तालिब उसकी सिताइश करेंगे। तुम्हारा दिल हमेशा तक ज़िन्दा रहे। \v 27 सारी दुनिया ख़ुदावन्द को याद करेगी और उसकी तरफ़ रूजू' लाएगी; और क़ौमों के सब घराने तेरे सामने सिज्दा करेंगे। \s5 \v 28 ~क्यूँकि सल्तनत ख़ुदावन्द की है, वही क़ौमों पर हाकिम है। \v 29 ~दुनिया के सब आसूदा हाल लोग खाएँगे और सिज्दा करेंगे; वह सब जो ख़ाक में मिल जाते हैं उसके सामने झुकेंगे, बल्कि वह भी जो अपनी जान को ज़िन्दा नहीं रख सकता। \s5 \v 30 एक नसल उसकी बन्दगी करेगी; दूसरी नसल को ख़ुदावन्द की ख़बर दी जाएगी। \v 31 ~वह आएँगे और उसकी सदाक़त को एक क़ौम पर जो पैदा होगी यह कहकर ज़ाहिर करेंगे कि उसने यह काम किया है। \s5 \c 23 \p \v 1 ख़ुदावन्द मेरा चौपान है, मुझे कमी न होगी। \v 2 ~वह मुझे हरी हरी चरागाहों में बिठाता है; वह मुझे राहत के चश्मों के पास ले जाता है; \s5 \v 3 वह मेरी जान को बहाल करता है। वह मुझे अपने नाम की ख़ातिर सदाकत की राहों पर ले चलता है। \s5 \v 4 ~बल्कि चाहे मौत के साये की वादी में से मेरा गुज़र हो, मैं किसी बला से नहीं डरूंगा, क्यूँकि तू मेरे साथ है; तेरे 'असा और तेरी लाठी से मुझे तसल्ली है। \s5 \v 5 तू मेरे दुश्मनों के सामने मेरे आगे दस्तरख़्वान बिछाता है; तूने मेरे सिर पर तेल मला है, मेरा प्याला लबरेज़ होता है। \s5 \v 6 यक़ीनन भलाई और रहमत 'उम्र भर मेरे साथ साथ रहेंगी: और मैं हमेशा ख़ुदावन्द के घर में सकूनत करूँगा । \s5 \c 24 \p \v 1 ज़मीन और उसकी मा'मुरी ख़ुदावन्द ही की है, जहान और उसके बाशिन्दे भी। \v 2 ~क्यूँकि उसने समन्दरों पर उसकी बुनियाद रख्खी और सैलाबों पर उसे क़ायम किया। \s5 \v 3 ख़ुदावन्द के पहाड़ पर कौन चढ़ेगा? और उसके पाक मक़ाम पर कौन खड़ा होगा? \v 4 वही जिसके हाथ साफ़ हैं और जिसका दिल पाक है, जिसने बकवास पर दिल नहीं लगाया, और मक्र से क़सम नहीं खाई। \s5 \v 5 ~वह ख़ुदावन्द की तरफ़ से बरकत पाएगा, हाँ अपने नजात देने वाले ख़ुदा की तरफ़ से सदाक़त। \v 6 यही उसके तालिबों की नसल है, यही तेरे दीदार के तलबगार हैं या'नी या'कूब। (सिलाह) \s5 \v 7 ~ऐ फाटको, अपने सिर बुलन्द करो। ऐ अबदी दरवाज़ो, ऊँचे हो जाओ! और जलाल का बादशाह दाख़िल होगा। \v 8 ~यह जलाल का बादशाह कौन है? ख़ुदावन्द जो क़वी और क़ादिर है, ख़ुदावन्द जो जंग में ताक़तवर है! \s5 \v 9 ऐ फाटको, अपने सिर बुलन्द करो! ऐ अबदी दरवाज़ो, उनको बुलन्द करो! और जलाल का बादशाह दाख़िल होगा। \v 10 ~यह जलाल का बादशाह कौन है? लश्करों का ख़ुदावन्द, वही जलाल का बादशाह है। (सिलाह) \s5 \c 25 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदावन्द! मैं अपनी जान तेरी तरफ़ उठाता हूँ। \v 2 ~ऐ मेरे ख़ुदा, मैंने तुझ पर भरोसा किया है, मुझे शर्मिन्दा न होने दे: मेरे दुश्मन मुझ पर ख़ुशी न मनाएँ। \v 3 बल्कि जो तेरे मुन्तज़िर हैं उनमें से कोई शर्मिन्दा न होगा; लेकिन जो नाहक़ बेवफ़ाई करते हैं वही शर्मिन्दा होंगे। \s5 \v 4 ऐ ख़ुदावन्द, अपनी राहें मुझे दिखा; अपने रास्ते मुझे बता दे। \v 5 मुझे अपनी सच्चाई पर चला और ता'लीम दे, क्यूँकि तू मेरा नजात देने वाला ख़ुदा है; मैं दिन भर तेरा ही मुन्तज़िर रहता हूँ। \s5 \v 6 ऐ ख़ुदावन्द, अपनी रहमतों और शफ़क़तों को याद फ़रमा; क्यूँकि वह शुरू' से हैं। \v 7 मेरी जवानी की ख़ताओं और मेरे गुनाहों को याद न कर; ऐ ख़ुदावन्द, अपनी नेकी की ख़ातिर अपनी शफ़क़त के मुताबिक मुझे याद फ़रमा। \s5 \v 8 ख़ुदावन्द नेक और रास्त है; इसलिए वह गुनहगारों को राह-ए-हक़ की ता'लीम देगा। \v 9 वह हलीमों को इंसाफ़ की हिदायत करेगा, हाँ, वह हलीमों को अपनी राह बताएगा। \s5 \v 10 जो ख़ुदावन्द के 'अहद और उसकी शहादतों को मानते हैं, उनके लिए उसकी सब राहें शफ़क़त और सच्चाई हैं। \v 11 ~ऐ ख़ुदावन्द, अपने नाम की ख़ातिर मेरी बदकारी मु'आफ़ कर दे क्यूँकि वह बड़ी है। \s5 \v 12 वह कौन है जो ख़ुदावन्द से डरता है? ख़ुदावन्द उसको उसी राह की ता'लीम देगा जो उसे पसंद है। \v 13 उसकी जान राहत में रहेगी, और उसकी नसल ज़मीन की वारिस होगी। \s5 \v 14 ~ख़ुदावन्द के राज़ को वही जानते हैं जो उससे डरते हैं, और वह अपना 'अहद उनको बताएगा। \v 15 मेरी आँखें हमेशा ख़ुदावन्द की तरफ़ लगी रहती हैं, क्यूँकि वही मेरा पाँव दाम से छुड़ाएगा। \v 16 ~मेरी तरफ़ मुतवज्जिह हो और मुझ पर रहम कर, क्यूँकि मैं बेकस और मुसीबत ज़दा हूँ। \s5 \v 17 मेरे दिल के दुख बढ़ गए, तू मुझे मेरी तकलीफ़ों से रिहाई दे। \v 18 तू मेरी मुसीबत और जॉफ़िशानी को देख, और मेरे सब गुनाह मु'आफ़ फ़रमा। \v 19 मेरे दुश्मनों को देख क्यूँकि वह बहुत हैं और उनको मुझ से सख़्त 'अदावत है। \s5 \v 20 ~मेरी जान की हिफ़ाज़त कर, और मुझे छुड़ा; मुझे शर्मिन्दा न होने दे, क्यूँकि मेरा भरोसा तुझ ही पर है। \v 21 दियानतदारी और रास्तबाज़ी मुझे सलामत रख्खें, क्यूँकि मुझे तेरी ही आस है। \s5 \v 22 ~ऐ ख़ुदा, इस्राईल को उसके सब दुखों से छुड़ा ले। \s5 \c 26 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द, मेरा इंसाफ़ कर, क्यूँकि मैं रास्ती से चलता रहा हूँ, और मैंने ख़ुदावन्द पर बे लग़ज़िश भरोसा किया है। \v 2 ऐ ख़ुदावन्द, मुझे जाँच और आज़मा; मेरे दिल-ओ-दिमाग़ को परख। \v 3 क्यूँकि तेरी शफ़क़त मेरी आँखों के सामने है, और मैं तेरी सच्चाई की राह पर चलता रहा हूँ। \s5 \v 4 मैं बेहूदा लोगों के साथ नहीं बैठा, मैं रियाकारों के साथ कहीं नहीं जाऊँगा। \v 5 बदकिरदारों की जमा'अत से मुझे नफ़रत है, मैं शरीरों के साथ नहीं बैठूँगा। \s5 \v 6 मैं बेगुनाही में अपने हाथ धोऊँगा, और ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरे मज़बह का तवाफ़ करूँगा ; \v 7 ताकि शुक्रगुज़ारी की आवाज़ बुलन्द करूँ, और तेरे सब 'अजीब कामों को बयान करूँ । \v 8 ~ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी सकूनतगाह, और तेरे जलाल के ख़ेमे को 'अज़ीज़ रखता हूँ। \s5 \v 9 मेरी जान को गुनहगारों के साथ, और मेरी ज़िन्दगी को ख़ूनी आदमियों के साथ न मिला। \v 10 ~जिनके हाथों में शरारत है, और जिनका दहना हाथ रिश्वतों से भरा है। \s5 \v 11 ~लेकिन मैं तो रास्ती से चलता रहूँगा। मुझे छुड़ा ले और मुझ पर रहम कर। \v 12 मेरा पाँव हमवार जगह पर क़ायम है। मैं जमा'अतों में ख़ुदावन्द को मुबारक कहूँगा। \s5 \c 27 \p \v 1 ख़ुदावन्द मेरी रोशनी और मेरी नजात मुझे किसकी दहशत? ख़ुदावन्द मेरी ज़िन्दगी की ताक़त है, मुझे किसका डर? \s5 \v 2 ~जब शरीर या'नी मेरे मुख़ालिफ़ और मेरे दुश्मन, मेरा गोश्त खाने को मुझ पर चढ़ आए तो वह ठोकर खाकर गिर पड़े। \v 3 चाहे मेरे ख़िलाफ़ लश्कर ख़ेमाज़न हो, मेरा दिल नहीं डरेगा। चाहे मेरे मुक़ाबले में जंग खड़ी हो, तोभी मैं मुतम'इन रहूँगा। \s5 \v 4 ~मैंने ख़ुदावन्द से एक दरख़्वास्त की है, मैं इसी का तालिब रहूँगा; कि मैं 'उम्र भर ख़ुदावन्द के घर में रहूँ, ताकि ख़ुदावन्द के जमाल को देखूँ और उसकी हैकल में इस्तिफ़्सार किया करूँ ~। \s5 \v 5 क्यूँकि मुसीबत के दिन वह मुझे अपने शामियाने में पोशीदा रख्खेगा; वह मुझे अपने ख़ेमे के पर्दे में छिपा लेगा, वह मुझे चट्टान पर चढ़ा देगा \v 6 अब मैं अपने चारों तरफ़ के दुश्मनों पर सरफराज़ किया जाऊँगा; मैं उसके ख़ेमे में ख़ुशी की क़ुर्बानियाँ पेश करूँगा; मैं गाऊँगा, मैं ख़ुदावन्द की मदहसराई करूँगा । \s5 \v 7 ~ऐ ख़ुदावन्द, मेरी आवाज़ सुन! मैं पुकारता हूँ। मुझ पर रहम कर और मुझे जवाब दे। \v 8 जब तूने फ़रमाया, कि मेरे दीदार के तालिब हो; तो मेरे दिल ने तुझ से कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरे दीदार का तालिब रहूँगा।" \s5 \v 9 मुझ से चेहरा न छिपा ।अपने बन्दे को क़हर से न निकाल। तू मेरा मददगार रहा है; न मुझे तर्क कर, न मुझे छोड़, ऐ मेरे नजात देने वाले ख़ुदा! । \v 10 जब मेरा बाप और मेरी माँ मुझे छोड़ दें, तो ख़ुदावन्द मुझे संभाल लेगा। \s5 \v 11 ऐ ख़ुदावन्द, मुझे अपनी राह बता, और मेरे दुश्मनों की वजह से मुझे हमवार रास्ते पर चला। \v 12 मुझे मेरे मुख़ालिफ़ों की मर्ज़ी पर न छोड़, क्यूँकि झूटे गवाह और बेरहमी से पुंकारने वाले मेरे ख़िलाफ़ उठे हैं। \s5 \v 13 ~अगर मुझे यक़ीन न होता कि ज़िन्दों की ज़मीन में ख़ुदावन्द के एहसान को देखूँगा, तो मुझे ग़श आ जाता। \v 14 ~ख़ुदावन्द की उम्मीद रख; मज़बूत हो और तेरा दिल क़वी हो; हाँ, ख़ुदावन्द ही की उम्मीद रख।~ \s5 \c 28 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदावन्द, मैं तुझ ही को पुकारूँगा; ऐ मेरी चट्टान, तू मेरी तरफ़ से कान बन्द न कर; ऐसा न हो कि अगर तू मेरी तरफ़ से खामोश रहे तो मैं उनकी तरह बन जाऊँ, जो पाताल में जाते हैं। \v 2 जब मैं तुझ से फ़रियाद करूँ, और अपने हाथ तेरी मुक़द्दस हैकल की तरफ़ उठाऊँ, तो मेरी मिन्नत की आवाज़ को सुन ले। \s5 \v 3 मुझे उन शरीरों और बदकिरदारों के साथ घसीट न ले जा; जो अपने पड़ोसियों से सुलह की बातें करते हैं, मगर उनके दिलों में बदी है। \v 4 उनके अफ़'आल-ओ-आ'माल की बुराई के मुवाफ़िक़ उनको बदला दे, उनके हाथों के कामों के मुताबिक़ उनसे सुलूक कर; उनके किए का बदला उनको दे। \v 5 ~वह ख़ुदावन्द के कामों और उसकी दस्तकारी पर ध्यान नहीं करते, इसलिए वह उनको गिरा देगा और फिर नहीं उठाएगा। \s5 \v 6 ख़ुदावन्द मुबारक हो, इसलिए के उसने मेरी मिन्नत की आवाज़ सुन ली। \v 7 ~ख़ुदावन्द मेरी ताक़त और मेरी ढाल है; मेरे दिल ने उस पर भरोसा किया है, और मुझे मदद मिली है। इसलिए मेरा दिल बहुत ख़ुश है; और मैं गीत गाकर उसकी सिताइश करूँगा । \v 8 ख़ुदावन्द उनकी ताक़त है, वह अपने मम्सूह के लिए नजात का क़िला' है। \s5 \v 9 अपनी उम्मत को बचा, और अपनी मीरास को बरकत दे; उनकी पासबानी कर, और उनको हमेशा तक संभाले रह। \s5 \c 29 \p \v 1 ~ऐ फ़रिश्तों की जमा'त ख़ुदावन्द की, ख़ुदावन्द ही की तम्जीद-ओ-ता'ज़ीम करो। \v 2 ~ख़ुदावन्द की ऐसी तम्जीद करो, जो उसके नाम के शायाँ है। पाक आराइश के साथ ख़ुदावन्द को सिज्दा करो। \s5 \v 3 ख़ुदावन्द की आवाज़ बादलों पर है; ख़ुदा-ए-जुलजलाल गरजता है, ख़ुदावन्द पानी से भरे बादलों पर है। \v 4 ख़ुदावन्द की आवाज़ में क़ुदरत है; ख़ुदावन्द की आवाज़ में जलाल है। \v 5 ~ख़ुदावन्द की आवाज़ देवदारों को तोड़ डालती है; बल्कि ख़ुदावन्द लुबनान के देवदारों को टुकड़े टुकड़े कर देता है। \s5 \v 6 वह उनको बछड़े की तरह, लुबनान और सिरयून को जंगली बछड़े की तरह कुदाता है। \v 7 ख़ुदावन्द की आवाज़ आग के शो'लों को चीरती है। \v 8 ख़ुदावन्द की आवाज़ वीरान को हिला देती है; ख़ुदावन्द क़ादिस के वीरान को हिला डालता है। \s5 \v 9 ख़ुदावन्द की आवाज़ से हिरनियों के हमल गिर जाते हैं; और वह जंगलों को बेबर्ग कर देती है; उसकी हैकल में हर एक जलाल ही जलाल पुकारता है। \v 10 ख़ुदावन्द तूफ़ान के वक़्त तख़्तनशीन था; बल्कि ख़ुदावन्द हमेशा तक तख़्तनशीन है। \s5 \v 11 ख़ुदावन्द अपनी उम्मत को ज़ोर बख़्शेगा; ख़ुदावन्द अपनी उम्मत को सलामती की बरकत देगा। \s5 \c 30 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी तम्जीद करूँगा ; क्यूँकि तूने मुझे सरफ़राज़ किया है; और मेरे दुश्मनों को मुझ पर खु़श होने न दिया। \v 2 ~ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा! , मैंने तुझ से फ़रियाद की और तूने मुझे शिफ़ा बख़्शी। \v 3 ~ऐ ख़ुदावन्द, तू मेरी जान को पाताल से निकाल लाया है; तूने मुझे ज़िन्दा रख्खा है कि क़ब्र में न जाऊँ। \s5 \v 4 ~ख़ुदावन्द की सिताइश करो, ऐ उसके पाक लोगों! और उसके पाकीज़गी को याद करके शुक्रगुज़ारी करो| \v 5 क्यूँकि उसका क़हर दम भर का है, उसका करम 'उम्र भर का। रात को शायद रोना पड़े पर सुबह को ख़ुशी की नौबत आती है। \s5 \v 6 मैंने अपनी इक़बालमंदी के वक़्त यह कहा था, कि मुझे कभी जुम्बिश न होगी। \v 7 ऐ ख़ुदावन्द, तूने अपने करम से मेरे पहाड़ को क़ायम रख्खा था; जब तूने अपना चेहरा छिपाया तो मैं घबरा उठा। \v 8 ~ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तुझ से फ़रियाद की; मैंने ख़ुदावन्द से मिन्नत की, \s5 \v 9 जब मैं क़ब्र में जाऊँ तो मेरी मौत से क्या फ़ायदा? क्या ख़ाक तेरी सिताइश करेगी? क्या वह तेरी सच्चाई को बयान करेगी? \v 10 सुन ले ऐ ख़ुदावन्द, और मुझ पर रहम कर; ऐ ख़ुदावन्द, तू मेरा मददगार हो। \s5 \v 11 तूने मेरे मातम को नाच से बदल दिया; तूने मेरा टाट उतार डाला और मुझे ख़ुशी से कमरबस्ता किया, \v 12 ताकि मेरी रूह तेरी मदहसराई करे और चुप न रहे। ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, मैं हमेशा तेरा शुक्र करता रहूँगा। \s5 \c 31 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द! मेरा भरोसा तुझ पर, मुझे कभी शर्मिन्दा न होने दे; अपनी सदाक़त की ख़ातिर मुझे रिहाई दे। \v 2 अपना कान मेरी तरफ़ झुका, जल्द मुझे छुड़ा! तू मेरे लिए मज़बूत चट्टान, मेरे बचाने को पनाहगाह हो! \s5 \v 3 क्यूँकि तू ही मेरी चट्टान और मेरा क़िला' है; इसलिए अपने नाम की ख़ातिर मेरी राहबरीऔर रहनुमाई कर। \v 4 मुझे उस जाल से निकाल ले जो उन्होंने छिपकर मेरे लिए बिछाया है, क्यूँकि तू ही मेरा मज़बूत क़िला' है। \s5 \v 5 मैं अपनी रूह तेरे हाथ में सौंपता हूँ: ऐ ख़ुदावन्द! सच्चाई के ख़ुदा; तूने मेरा फ़िदिया दिया है। \v 6 मुझे उनसे नफ़रत है जो झूटे मा'बूदों को मानते हैं: मेरा भरोसा तो ख़ुदावन्द ही पर है। \v 7 मैं तेरी रहमत से ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम रहूँगा, क्यूँकि तूने मेरा दुख: देख लिया है; तू मेरी जान की मुसीबतों से वाक़िफ़ है। \s5 \v 8 तूने मुझे दुश्मन के हाथ में क़ैद नहीं छोड़ा; तूने मेरे पाँव कुशादा जगह में रख्खे हैं। \v 9 ऐ ख़ुदावन्द, मुझ पर रहम कर क्यूँकि मैं मुसीबत में हूँ। मेरी आँख बल्कि मेरी जान और मेरा जिस्म सब रंज के मारे घुले जाते हैं। \s5 \v 10 क्यूँकि मेरी जान ग़म में और मेरी 'उम्र कराहने में फ़ना हुई; मेरा ज़ोर मेरी बदकारी के वजह से जाता रहा, और मेरी हड्डियाँ घुल गई। \v 11 मैं अपने सब मुख़ालिफ़ों की वजह से अपने पड़ोसियों के लिए, अज़ बस अन्गुश्तनुमा और अपने जान पहचानों के लिए ख़ौफ़ का ज़रिया' हूँ जिन्होंने मुझको बाहर देखा, मुझ से दूर भागे। \s5 \v 12 मैं मुर्दे की तरह भुला दिया गया हूँ; मैं टूटे बर्तन की तरह हूँ। \v 13 क्यूँकि मैंने बहुतों से अपनी बदनामी सुनी है, हर तरफ़ ख़ौफ़ ही ख़ौफ़ है। जब उन्होंने मिलकर मेरे ख़िलाफ़ मश्वरा किया, तो मेरी जान लेने का मन्सूबा बाँधा। \s5 \v 14 लेकिन ऐ ख़ुदावन्द, मेरा भरोसा तुझ पर है।मैंने कहा, "तू मेरा ख़ुदा है।" \v 15 मेरे दिन तेरे हाथ में हैं; मुझे मेरे दुश्मनों और सताने वालों के हाथ से छुड़ा। \v 16 अपने चेहरे को अपने बन्दे पर जलवागर फ़रमा; अपनी शफ़क़त से मुझे बचा ले। \s5 \v 17 ऐ ख़ुदावन्द, मुझे शर्मिन्दा न होने दे क्यूँकि मैंने तुझ से दु'आ की है; शरीर शर्मिन्दा हो जाएँ और पाताल में ख़ामोश हों। \v 18 ~झूटे होंट बन्द हो जाएँ, जो सादिकों के ख़िलाफ़ ग़ुरूर और हिक़ारत से तकब्बुर की बातें बोलते हैं। \s5 \v 19 ~आह! तूने अपने डरने वालों के लिए कैसी बड़ी ने'मत रख छोड़ी है: जिसे तूने बनी आदम के सामने अपने, भरोसा करने वालों के लिए तैयार किया। \v 20 ~तू उनको इंसान की बन्दिशों से अपनी हुज़ूरी के पर्दे में छिपाएगा; तू उनको ज़बान के झगड़ों से शामियाने में पोशीदा रख्खेगा। \s5 \v 21 ~ख़ुदावन्द मुबारक हो! क्यूँकि उसने मुझ को मज़बूत शहर में अपनी 'अजीब शफ़क़त दिखाई। \v 22 ~मैंने तो जल्दबाज़ी से कहा था, कि मैं तेरे सामने से काट डाला गया। तोभी जब मैंने तुझ से फ़रियाद की तो तूने मेरी मिन्नत की आवाज़ सुन ली। \s5 \v 23 ख़ुदावन्द से मुहब्बत रखो, ऐ उसके सब पाक लोगों! ख़ुदावन्द ईमानदारों को सलामत रखता है; और मग़रूरों को ख़ूब ही बदला देता है \v 24 ऐ ख़ुदावन्द पर उम्मीद रखने वालो! सब मज़बूत हो और तुम्हारा दिल क़वी रहे। \s5 \c 32 \p \v 1 ~मुबारक है वह जिसकी ख़ता बख़्शी गई, और जिसका गुनाह ढाँका गया। \v 2 ~मुबारक है वह आदमी जिसकी बदकारी को ख़ुदावन्द हिसाब में नहीं लाता, और जिसके दिल में दिखावा नहीं। \s5 \v 3 ~जब मैं ख़ामोश रहा तो दिन भर के कराहने से मेरी हड्डियाँ घुल गई। \v 4 क्यूँकि तेरा हाथ रात दिन मुझ पर भारी था; मेरी तरावट गर्मियों की खु़श्की से बदल गई। (सिलाह) \s5 \v 5 मैंने तेरे सामने अपने गुनाह को मान लिया और अपनी बदकारी को न छिपाया, मैंने कहा, "मैं ख़ुदावन्द के सामने अपनी ख़ताओं का इक़रार करूँगा और तूने मेरे गुनाह की बुराई को मु'आफ़ किया। (सिलाह) \v 6 ~इसीलिए हर दीनदार तुझ से ऐसे वक़्त में दु'आ करे जब तू मिल सकता है। यक़ीनन जब सैलाब आए तो उस तक नहीं पहुँचेगा। \s5 \v 7 तू मेरे छिपने की जगह है; तू मुझे दुख से बचाये रख्खेगा; तू मुझे रिहाई के नाग़मों से घेर लेगा।(सिलाह ) \v 8 ~मैं तुझे ता'लीम दूँगा, और जिस राह पर तुझे चलना होगा तुझे बताऊँगा; मैं तुझे सलाह दूँगा, मेरी नज़र तुझ पर होगी। \s5 \v 9 तुम घोड़े या खच्चर की तरह न बनो जिनमें समझ नहीं, जिनको क़ाबू में रखने का साज़ दहाना और लगाम है, वर्ना वह तेरे पास आने के भी नहीं। \v 10 ~शरीर पर बहुत सी मुसीबतें आएँगी; पर जिसका भरोसा ख़ुदावन्द पर है, रहमत उसे घेरे रहेगी। \s5 \v 11 ~ऐ सादिक़ो, ख़ुदावन्द में ख़ुश-ओ-बुर्रम रहो; और ऐ रास्तदिलो, खु़शी से ललकारो! \s5 \c 33 \p \v 1 ~ऐ सादिक़ो, ख़ुदावन्द में ख़ुश रहो। हम्द करना रास्तबाज़ों की ज़ेबा है। \v 2 ~सितार के साथ ख़ुदावन्द का शुक्र करो, दस तार की बरबत के साथ उसकी सिताइश करो। \v 3 उसके लिए नया गीत गाओ, बुलन्द आवाज़ के साथ अच्छी तरह बजाओ। \s5 \v 4 क्यूँकि ख़ुदावन्द का कलाम रास्त है; और उसके सब काम बावफ़ा हैं। \v 5 वह सदाक़त और इंसाफ़ को पसंद करता है; ज़मीन ख़ुदावन्द की शफ़क़त से मा'मूर है। \v 6 आसमान ख़ुदावन्द के कलाम से, और उसका सारा लश्कर उसके मुँह के दम से बना। \s5 \v 7 वह समन्दर का पानी तूदे की तरह जमा' करता है; वह गहरे समन्दरों को मख़ज़नों में रखता है। \v 8 सारी ज़मीन ख़ुदावन्द से डरे, जहान के सब बाशिन्दे उसका ख़ौफ़ रख्खें। \v 9 क्यूँकि उसने फ़रमाया और हो गया; उसने हुक्म दिया और वाके' हुआ। \s5 \v 10 ख़ुदावन्द क़ौमों की मश्वरत को बेकार कर देता है; वह उम्मतों के मन्सूबों को नाचीज़ बना देता है। \v 11 ~ख़ुदावन्द की मसलहत हमेशा तक क़ायम रहेगी, और उसके दिल के ख़याल नसल दर नसल । \v 12 ~मुबारक है वह क़ौम जिसका ख़ुदा ख़ुदावन्द है, और वह उम्मत जिसको उसने अपनी ही मीरास के लिए बरगुज़ीदा किया। \s5 \v 13 ~ख़ुदावन्द आसमान पर से देखता है, सब बनी आदम पर उसकी निगाह है। \v 14 अपनी सुकूनत गाह से वह ~ज़मीन के सब बाशिन्दों को देखता है। \v 15 वही है जो उन सबके दिलों को बनाता, और उनके सब कामों का ख़याल रखता है | \s5 \v 16 ~किसी बादशाह को फ़ौज की कसरत न बचाएगी; और किसी ज़बरदस्त आदमी को उसकी बड़ी ताक़त रिहाई न देगी। \v 17 ~बच निकलने के लिए घोड़ा बेकार है, वह अपनी शहज़ोरी से किसी को नबचाएगा। \s5 \v 18 देखो ख़ुदावन्द की निगाह उन पर है जो उससे डरते हैं; जो उसकी शफ़क़त के उम्मीदवार हैं, \v 19 ~ताकि उनकी जान मौत से बचाए, और सूखे में उनको ज़िन्दा रख्खे। \s5 \v 20 हमारी जान को ख़ुदावन्द की उम्मीद है; वही हमारी मदद और हमारी ढाल है। \v 21 हमारा दिल उसमें ख़ुश रहेगा, क्यूँकि हम ने उसके पाक नाम पर भरोसा किया है। \s5 \v 22 ऐ ख़ुदावन्द, जैसी तुझ पर हमारी उम्मीद है, वैसी ही तेरी रहमत हम पर हो। \s5 \c 34 \p \v 1 मैं हर वक़्त ख़ुदावन्द को मुबारक कहूँगा, उसकी सिताइश हमेशा मेरी ज़बान पर रहेगी। \s5 \v 2 ~मेरी रूह ख़ुदावन्द पर फ़ख़्र करेगी; हलीम यह सुनकर ख़ुश होंगे। \v 3 मेरे साथ ख़ुदावन्द की बड़ाई करो, हम मिलकर उसके नाम की तम्जीद करें। \s5 \v 4 मैं ख़ुदावन्द का तालिब हुआ, उसने मुझे जवाब दिया, और मेरी सारी दहशत से मुझे रिहाई बख़्शी। \v 5 ~उन्होंने उसकी तरफ़ नज़र की और मुनव्वर हो गए; और उनके मुँह पर कभी शर्मिन्दगी न आएगी। \v 6 इस ग़रीब ने दुहाई दी, ख़ुदावन्द ने इसकी सुनी, और इसे इसके सब दुखों से बचा लिया। \s5 \v 7 ख़ुदावन्द से डरने वालों के चारों तरफ़ उसका फ़रिश्ता ख़ेमाज़न होता है और उनको बचाता~~है। \v 8 आज़माकर देखो, कि ख़ुदावन्द कैसा मेहरबान है! वह आदमी जो उस पर भरोसा करता है। \v 9 ख़ुदावन्द से डरो, ऐ उसके पाक लोगों! क्यूँकि जो उससे डरते हैं उनको कुछ कमी नहीं। \s5 \v 10 बबर के बच्चे तो हाजतमंद और भूके होते हैं, लेकिन ख़ुदावन्द के तालिब किसी ने'मत के मोहताज न हाँगे। \v 11 ऐ बच्चो, आओ मेरी सुनो, मैं तुम्हें ख़ुदा से डरना सिखाऊँगा। \s5 \v 12 ~वह कौन आदमी है जो ज़िन्दगी का मुश्ताक़ है, और बड़ी 'उम्र चाहता है ताकि भलाई देखें? \v 13 अपनी ज़बान को बदी से बाज़ रख, और अपने होंटों को दग़ा की बात से। \v 14 बुराई को छोड़ और नेकी कर; सुलह का तालिब हो और उसी की पैरवी कर। \s5 \v 15 ख़ुदावन्द की निगाह सादिकों पर है, और उसके कान उनकी फ़रियाद पर लगे रहते हैं। \v 16 ख़ुदावन्द का चेहरा बदकारों के ख़िलाफ़ है, ताकि उनकी याद ज़मीन पर से मिटा दे। \v 17 सादिक़ चिल्लाए, और ख़ुदावन्द ने सुना; और उनको उनके सब दुखों से छुड़ाया। \s5 \v 18 ख़ुदावन्द शिकस्ता दिलों के नज़दीक है, और ख़स्ता ज़ानों को बचाता है। \v 19 सादिक की मुसीबतें बहुत हैं, लेकिन ख़ुदावन्द उसको उन सबसे रिहाई बख्शता है। \v 20 वह उसकी सब हड्डियों को महफूज़ रखता है; उनमें से एक भी तोड़ी नहीं जाती। \s5 \v 21 बुराई शरीर को हलाक कर देगी; और सादिक़ से 'अदावत रखने वाले मुजरिम ठहरेंगे। \v 22 ख़ुदावन्द अपने बन्दों की जान का फ़िदिया देता है; और जो उस पर भरोसा करते हैं उनमें से कोई मुजरिम न ठहरेगा। \s5 \c 35 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द, जो मुझ से झगड़ते हैं तू उनसे झगड़; जो मुझ से लड़ते हैं तू उनसे लड़। \v 2 ढाल और सिपर लेकर मेरी मदद के लिए खड़ा हो। \v 3 भाला भी निकाल और मेरा पीछा करने वालों का रास्ता बंद कर दे; मेरी जान से कह, मैं तेरी नजात हूँ। \s5 \v 4 ~जो मेरी जान के तलबगार हैं, वह शर्मिन्दा और रुस्वा हों। जो मेरे नुक़्सान का मन्सूबा बाँधते हैं, वह पसपा और परेशान हों। \v 5 वह ऐसे हो जाएँ जैसे हवा के आगे भूसा, और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उनको हाँकता रहे। \v 6 उनकी राह अंधेरी और फिसलनी हो जाए, और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उनको दौड़ाता जाए। \s5 \v 7 क्यूँकि उन्होंने बे वजह मेरे लिए गढ़े में जाल बिछाया, और नाहक़ मेरी जान के लिए गढ़ा खोदा है। \v 8 उस पर अचानक तबाही आ पड़े! और जिस जाल को उसने बिछाया है उसमें आप ही फसे; और उसी हलाकत में गिरफ़्तार हो। \s5 \v 9 ~लेकिन मेरी जान ख़ुदावन्द में खु़श रहेगी, और उसकी नजात से शादमान होगी। \v 10 ~मेरी सब हड्डियाँ कहेंगी, "ऐ ख़ुदावन्द तुझ सा कौन है, जो ग़रीब को उसके हाथ से जो उससे ताक़तवर है, और ग़रीब-ओ-मोहताज को ग़ारतगर से छुड़ाता है?" \s5 \v 11 झूटे गवाह उठते हैं; और जो बातें मैं नहीं जानता, वह मुझ से पूछते हैं। \v 12 ~वह मुझ से नेकी के बदले बदी करते हैं, यहाँ तक कि मेरी जान बेकस हो जाती है। \s5 \v 13 लेकिन मैंने तो उनकी बीमारी में जब वह बीमार थे, टाट ओढ़ा और रोज़े रख रख कर अपनी जान को दुख दिया; और मेरी दु'आ मेरे ही सीने में वापस आई। \v 14 ~मैंने तो ऐसा किया जैसे वह मेरा दोस्त या मेरा भाई था; मैंने सिर झुका कर ग़म किया जैसे कोई अपनी माँ के लिए मातम करता हो । \s5 \v 15 लेकिन जब मैं लंगड़ाने लगा तो वह ख़ुश होकर इकट्ठे हो गए, कमीने मेरे ख़िलाफ़ इकट्ठा हुए और मुझे मा'लूम न था; उन्होंने मुझे फाड़ा और बाज़ न आए। \v 16 ज़ियाफ़तों के बदतमीज़ मसखरों की तरह, उन्होंने मुझ पर दाँत पीसे। \s5 \v 17 ~ऐ ख़ुदावन्द, तू कब तक देखता रहेगा? मेरी जान को उनकी ग़ारतगरी से, मेरी जान को शेरों से छुड़ा। \v 18 ~मैं बड़े मजमे' में तेरी शुक्रगुज़ारी करूँगा मैं बहुत से लोगों में तेरी सिताइश करूँगा । \s5 \v 19 जो नाहक़ मेरे दुश्मन हैं, मुझ पर ख़ुशी न मनाएँ; और जो मुझ से बे वजह 'अदावत रखते हैं, चश्मक ज़नी न करें। \v 20 ~क्यूँकि वह सलामती की बातें नहीं करते, बल्कि मुल्क के अमन पसंद लोगों के ख़िलाफ़, मक्र के मन्सूबे बाँधते हैं। \s5 \v 21 यहाँ तक कि उन्होंने ख़ूब मुँह फाड़ा और कहा, "अहा हा हा हम ने अपनी आँख से देख लिया है! " \v 22 ऐ ख़ुदावन्द, तूने ख़ुद यह देखा है; ख़ामोश न रह! ऐ ख़ुदावन्द, मुझ से दूर न रह! \v 23 ~उठ, मेरे इंसाफ़ के लिए जाग, और मेरे मु'आमिले के लिए, ऐ मेरे ख़ुदा! ऐ मेरे ख़ुदावन्द! \s5 \v 24 अपनी सदाक़त के मुताबिक़ मेरी'अदालत कर, ऐ ख़ुदावन्द, मेरे ख़ुदा! और उनको मुझ पर ख़ुशी न मनाने दे। \v 25 ~वह अपने दिल में यह न कहने पाएँ, 'अहा! हम तो यही चाहते थे! " वह यह न कहें, कि हम उसे निगल गए। \v 26 जो मेरे नुक़सान से ख़ुश होते हैं, वह आपस में शर्मिन्दा और परेशान हों! जो मेरे मुक़ाबले में तकब्बुर करते हैं वह शर्मिन्दगी और रुस्वाई से मुलब्बस हों। \s5 \v 27 जो मेरे सच्चे मु'आमिले की ताईद करते हैं, वह ख़ुशी से ललकारें और ख़ुशहों; वह हमेशा यह कहें, "ख़ुदावन्द की तम्जीद हो, जिसकी ख़ुशनूदी अपने बन्दे की इक़बालमन्दी में है! " \v 28 तब मेरी ज़बान से तेरी सदाकत का ज़िक्र होगा, और दिन भर तेरी ता'रीफ़ होगी। \s5 \c 36 \p \v 1 ~शरीर की बदी से मेरे दिल में ख़याल आता है, कि ख़ुदा का ख़ौफ़ उसके सामने नहीं। \v 2 ~क्यूँकि वह अपने आपको अपनी नज़र में इस ख़याल से तसल्ली देता है, कि उसकी बदी न तो फ़ाश होगी, न मकरूह समझी जाएगी। \s5 \v 3 उसके मुँह में बदी और फ़रेब की बातें हैं; वह 'अक़्ल और नेकी से दस्तबरदार हो गया है। \v 4 ~वह अपने बिस्तर पर बदी के मन्सूबे बाँधता है; वह ऐसी राह इख़्तियार करता है जो अच्छी नहीं; वह बुराई से नफ़रत नहीं करता। \s5 \v 5 ~ऐ ख़ुदावन्द, आसमान में तेरी शफ़क़त है, तेरी वफ़ादारी अफ़लाक तक बुलन्द है। \v 6 तेरी सदाक़त ख़ुदा के पहाड़ों की तरह है, तेरे अहकाम बहुत गहरे हैं; ऐ ख़ुदावन्द, तू इंसान और हैवान दोनों को महफ़ूज़ रखता है। \s5 \v 7 ऐ ख़ुदा, तेरी शफ़क़त क्या ही बेशक़ीमत है! बनी आदम तेरे बाज़ुओं के साये में पनाह लेते हैं। \v 8 ~वह तेरे घर की ने'मतों से ख़ूब आसूदा होंगे, तू उनको अपनी ख़ुशनूदी के दरिया में से पिलाएगा। \v 9 ~क्यूँकि ज़िन्दगी का चश्मा तेरे पास है; तेरे नूर की बदौलत हम रोशनी देखेंगे। \s5 \v 10 तेरे पहचानने वालों पर तेरी शफ़क़त हमेशा की हो, और रास्त दिलों पर तेरी सदाकत! \v 11 ~मग़रूर आदमी मुझ पर लात न उठाने पाए, और शरीर का हाथ मुझे हाँक न दे। \v 12 बदकिरदार वहाँ गिरे पड़े हैं; वह गिरा दिए गए हैं और फिर उठ न सकेंगे। \s5 \c 37 \p \v 1 ~तू बदकिरदारों की वजह से बेज़ार न हो, और बदी करने वालों पर रश्क न कर! \v 2 ~क्यूँकि वह घास की तरह जल्द काट डाले जाएँगे, और ~हरियाली की तरह मुरझा जाएँगे। \s5 \v 3 ~ख़ुदावन्द पर भरोसा कर, और नेकी कर; मुल्क में आबाद रह, और उसकी वफ़ादारी से परवरिश पा। \v 4 ख़ुदावन्द में मसरूर रह, और वह तेरे दिल की मुरादें पूरी करेगा। \s5 \v 5 अपनी राह ख़ुदावन्द पर छोड़ दे:और उस पर भरोसा कर, वही सब कुछ करेगा। \v 6 ~वह तेरी रास्तबाज़ी को नूर की तरह, और तेरे हक़ को दोपहर की तरह रोशन करेगा। \s5 \v 7 ख़ुदावन्द में मुतम'इन रह, और सब्र से उसकी आस रख; उस आदमी की वजह से जो अपनी राह में कामयाब होता और बुरे मन्सूबों को अंजाम देता है, बेज़ार न हो। \s5 \v 8 क़हर से बाज़ आ और ग़ज़ब को छोड़ दे! बेज़ार न हो, इससे बुराई ही निकलती है। \v 9 ~क्यूँकि बदकार काट डाले जाएँगे; लेकिन जिनको ख़ुदावन्द की आस है, मुल्क के वारिस होंगे। \v 10 ~क्यूँकि थोड़ी देर में शरीर नाबूद हो जाएगा; तू उसकी जगह को ग़ौर से देखेगा पर वह ~न होगा। \s5 \v 11 ~लेकिन हलीम मुल्क के वारिस होंगे, और सलामती की फ़िरावानी से ख़ुश रहेंगे। \v 12 ~शरीर रास्तबाज़ के ख़िलाफ़ बन्दिशें बाँधता है, और उस पर दाँत पीसता है; \v 13 ~ख़ुदावन्द उस पर हंसेगा, क्यूँकि वह देखता है कि उसका दिनआता है। \s5 \v 14 शरीरों ने तलवार निकाली और कमान खींची है, ताकि ग़रीब और मुहताज को गिरा दें, और रास्तरों ~को क़त्ल करें। \v 15 ~उनकी तलवार उन ही के दिल को छेदेगी, और उनकी कमानें तोड़ी जाएँगी। \s5 \v 16 ~सादिक़ का थोड़ा सा माल, बहुत से शरीरों की दौलत से बेहतर है। \v 17 क्यूँकि शरीरों के बाज़ू तोड़े जाएँगे, लेकिन ख़ुदावन्द सादिकों को संभालता है। \s5 \v 18 ~कामिल लोगों के दिनों को ख़ुदावन्द जानता है, उनकी मीरास हमेशा के लिए होगी। \v 19 ~वह आफ़त के वक़्त शर्मिन्दा न होंगे, और काल के दिनों में आसूदा रहेंगे। \s5 \v 20 ~लेकिन शरीर हलाक होंगे, ख़ुदावन्द के दुश्मन चरागाहों की सरसब्ज़ी की तरह होंगे; वह फ़ना हो जाएँगे, वह धुएँ की तरह जाते रहेंगे। \v 21 ~शरीर क़र्ज़ लेता है और अदा नहीं करता, लेकिन सादिक़ रहम करता है और देता है। \s5 \v 22 क्यूँकि जिनको वह बरकत देता है, वह ज़मीन के वारिस होंगे; और जिन पर वह ला'नत करता है, वह काट डाले जाएँगे। \v 23 ~इंसान की चाल चलन ख़ुदावन्द की तरफ़ से क़ायम हैं, और वह उसकी राह से ख़ुश है; \v 24 अगर वह गिर भी जाए तो पड़ा न रहेगा, क्यूँकि ख़ुदावन्द उसे अपने हाथ से संभालता है। \s5 \v 25 ~मैं जवान था और अब बूढ़ा हूँ तोभी मैंने सादिक़ को बेकस, और उसकी औलाद को टुकड़े माँगते नहीं देखा। \v 26 वह दिन भर रहम करता है और क़र्ज़ देता है, और उसकी औलाद को बरकत मिलती है। \v 27 ~बदी को छोड़ दे और नेकी कर; और हमेशा तक आबाद रह। \s5 \v 28 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द इंसाफ़ को पसंद करता है: और अपने पाक लोगों को नहीं छोड़ता। वह हमेशा के लिए महफ़ूज़ हैं, लेकिन शरीरों की नसल काट डाली जाएगी। \v 29 ~सादिक़ ज़मीन के वारिस होंगे, और उसमें हमेशा बसे रहेंगे। \v 30 सादिक़ के मुँह से दानाई निकलती है, और उसकी ज़बान से इंसाफ़ की बातें । \s5 \v 31 ~उसके ख़ुदा की शरी'अत उसके दिल में है, वह अपनी चाल चलन में फिसलेगा नहीं। \v 32 ~शरीर सादिक़ की ताक में रहता है; और उसे क़त्ल करना चाहता है। \v 33 ~ख़ुदावन्द उसे उसके हाथ में नहीं छोड़ेगा, और जब उसकी 'अदालत हो तो उसे मुजरिम न ठहराएगा। \s5 \v 34 ख़ुदावन्द की उम्मीद रख, और उसी की राह पर चलता रह, और वह तुझे सरफ़राज़ करके ज़मीन का वारिस बनाएगा; जब शरीर काट डाले जाएँगे, तो तू देखेगा। \s5 \v 35 ~मैंने शरीर को बड़े इक्तिदार में और ऐसा फैलता देखा, जैसे कोई हरा दरख़्त अपनी असली ज़मीन में फैलता है। \v 36 ~लेकिन जब कोई उधर से गुज़राऔर देखा तो वह था ही नहीं; बल्कि मैंने उसे ~ढूंढा लेकिन वह न मिला। \s5 \v 37 ~कामिल आदमी पर निगाह कर और रास्तबाज़ को देख, क्यूँकि सुलह दोस्त आदमी के लिए अज्र है | \v 38 ~लेकिन ख़ताकार इकट्ठे मर मिटेंगे; शरीरों का अंजाम हलाकत है। \s5 \v 39 ~लेकिन सादिकों की नजात ख़ुदावन्द की तरफ़ से है; मुसीबत के वक़्त वह उनका मज़बूत क़िला है। \v 40 ~और ख़ुदावन्द उनकी मदद करताऔर उनको बचाता है; वह उनको शरीरों से छुड़ाता और बचा लेता है, इसलिए कि उन्होंने उसमें पनाह ली है। \s5 \c 38 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदावन्द, अपने क़हर में मुझे झिड़क न दे, और अपने ग़ज़ब में मुझे तम्बीह न कर। \v 2 ~क्यूँकि तेरे दुख मुझ में लगे हैं, और तेरा हाथ मुझ पर भारी है। \s5 \v 3 ~तेरे क़हर की वजह से मेरे जिस्म में सिहत नहीं; और मेरे गुनाह की वजह से मेरी हड्डियों को आराम नहीं। \v 4 ~क्यूँकि मेरी बदी मेरे सिर से गुज़र गई, और वह बड़े बोझ की तरह मेरे लिए बहुत भारी है। \s5 \v 5 मेरी हिमाक़त की वजह से, मेरे ज़ख़्मों से बदबू आती है, वह सड़ गए हैं। \v 6 ~मैं पुरदर्द और बहुत झुका हुआ हूँ; मैं दिन भर मातम करता फिरता हूँ । \s5 \v 7 क्यूँकि मेरी कमर में दर्द ही दर्द है, और मेरे जिस्म में कुछ सिहत नहीं। \v 8 ~मैं कमज़ोर और बहुत कुचला हुआ हूँ और दिल की बेचैनी की वजह से कराहता रहा। \s5 \v 9 ऐ ख़ुदावन्द, मेरी सारी तमन्ना तेरे सामने है, और मेरा कराहना तुझ से छिपा नहीं। \v 10 ~मेरा दिल धड़कता है, मेरी ताक़त घटी जाती है; मेरी आँखों की रोशनी भी मुझ से जाती रही। \s5 \v 11 ~मेरे 'अज़ीज़ और दोस्त मेरी बला में अलग हो गए, और मेरे रिश्तेदार दूर जा खड़े हुए। \v 12 मेरी जान के तलबगार मेरे लिए जाल बिछाते हैं, और मेरे नुक़सान के तालिब शरारत की बातें बोलते, और दिन भर मक्र-ओ-फ़रेब के मन्सूबे बाँधते हैं। \s5 \v 13 ~लेकिन मैं बहरे की तरह सुनता ही नहीं, मैं गूँगे की तरह मुँह नहीं खोलता। \v 14 ~बल्कि मैं उस आदमी की तरह हूँ जिसे सुनाई नहीं देता, और जिसके मुँह में मलामत की बातें नहीं। \s5 \v 15 क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द, मुझे तुझ से उम्मीद है, ऐ ख़ुदावन्द, मेरे ख़ुदा! तू जवाब देगा। \v 16 क्यूँकि मैंने कहा, कि कहीं वह मुझ पर ख़ुशी न मनाएँ, जब मेरा पाँव फिसलता है, तो वह मेरे ख़िलाफ़ तकब्बुर करते हैं। \s5 \v 17 क्यूँकि मैं गिरने ही को हूँ, और मेरा ग़म बराबर मेरे सामने है। \v 18 ~इसलिए कि मैं अपनी बदी को ज़ाहिर करूँगा, और अपने गुनाह की वजह से ग़मगीन रहूँगा। \s5 \v 19 लेकिन मेरे दुश्मन चुस्त और ज़बरदस्त हैं, और मुझ से नाहक 'अदावत रखने वाले बहुत हो गए हैं। \v 20 जो नेकी के बदले बदी करते हैं, वह भी मेरे मुख़ालिफ़ हैं; क्यूँकि मैं नेकी की पैरवी करता हूँ। \s5 \v 21 ~ऐ ख़ुदावन्द, मुझे छोड़ न दे! ऐ मेरे ख़ुदा, मुझ से दूर न हो! \v 22 ~ऐ ख़ुदावन्द! ऐ मेरी नजात! मेरी मदद के लिए जल्दी कर! \s5 \c 39 \p \v 1 मैंने कहा मैं अपनी राह की निगरानी करूँगा, ताकि मेरी ज़बान से ख़ता न हो; जब तक शरीर मेरे सामने है, मैं अपने मुँह को लगाम दिए रहूँगा।" \s5 \v 2 ~मैं गूंगा बनकर ख़ामोश रहा, और नेकी की तरफ़ से भी ख़ामोशी इख़्तियार की; और मेरा ग़म बढ़ गया। \v 3 ~मेरा दिल अन्दर ही अन्दर जल रहा था। सोचते सोचते आग भड़क उठी, तब मैं अपनी ज़बान से कहने लगा, \s5 \v 4 ~"ऐ ख़ुदावन्द! ऐसा कर कि मैं अपने अंजाम से वाकिफ़ हो जाऊँ, और इससे भी कि मेरी 'उम्र की मी'आद क्या है; मैं जान लूँ कि कैसा फ़ानी हूँ! \v 5 ~देख, तूने मेरी 'उम्र बालिश्त भर की रख्खी है, और मेरी ज़िन्दगी तेरे सामने बे हक़ीक़त है। यक़ीनन हर इंसान बेहतरीन हालत में भी बिल्कुल बेसबात है (सिलाह) \s5 \v 6 दर हक़ीकत इंसान साये की तरह चलता फिरता है; यक़ीनन वह फ़जूल घबराते हैं; वह ज़ख़ीरा करता है और यह नहीं जानता के उसे कौन लेगा! \v 7 ~"ऐ ख़ुदावन्द! अब मैं किस बात के लिए ठहरा हूँ? मेरी उम्मीद तुझ ही से है। \s5 \v 8 ~मुझ को मेरी सब ख़ताओं से रिहाई दे। बेवक़ूफ़ों को मुझ पर अंगुली न उठाने दे। \v 9 मैं गूंगा बना, मैंने मुँह न खोला क्यूँकि तू ही ने यह किया है। \s5 \v 10 ~मुझ से अपनी बला दूर कर दे; मैं तो तेरे हाथ की मार से फ़ना हुआ जाता हूँ। \v 11 ~जब तू इंसान को बदी पर मलामत करके तम्बीह करता है; तो उसके हुस्न को पतंगे की तरह फ़ना कर देता है; यक़ीनन हर इंसान बेसबात है। (सिलाह) \s5 \v 12 ~"ऐ ख़ुदावन्द! मेरी दु'आ सुन और मेरी फ़रियाद पर कान लगा; मेरे आँसुओं को देखकर ख़ामोश न रह! क्यूँकि मैं तेरे सामने परदेसी और मुसाफ़िर हूँ, जैसे मेरे सब बाप-दादा थे। \v 13 ~आह! मुझ से नज़र हटा ले ताकि ताज़ा दम हो जाऊँ, इससे पहले के मर जाऊँ और हलाक हो जाऊँ।" \s5 \c 40 \p \v 1 मैंने सब्र से ख़ुदावन्द पर उम्मीद रख्खी उसने मेरी तरफ़ माइल होकर मेरी फ़रियाद सुनी। \v 2 ~उसने मुझे हौलनाक गढ़े और दलदल की कीचड़ में से निकाला, और उसने मेरे पाँव चट्टान पर रख्खे और मेरी चाल चलन क़ायम की \s5 \v 3 ~उसने हमारे ख़ुदा की सिताइश का नया हम्द मेरे मुँह में डाला। बहुत से देखेंगे और डरेंगे, और ख़ुदावन्द पर भरोसा करेंगे। \v 4 ~मुबारक है वह आदमी, जो ख़ुदावन्द पर भरोसा करता है, और मग़रूर और झूठे दोस्तों की तरफ़ माइल नहीं होता। \s5 \v 5 ~ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा! जो 'अजीब काम तूने किए, और तेरे ख़याल जो हमारी तरफ़ हैं, वह बहुत से हैं। मैं उनको तेरे सामने तरतीब नहीं दे सकता; अगर मैं उनका ज़िक्र और बयान करना चाहूँ तो वह शुमार से बाहर हैं। \v 6 ~क़ुर्बानी और नज़्र को तू पसंद नहीं करता, तूने मेरे कान खोल दिए हैं।सोख़्तनी क़ुर्बानी तूने तलब नहीं की। \s5 \v 7 तब मैंने कहा, "देख! मैं आया हूँ। किताब के तूमार में मेरे बारे लिखा है। \v 8 ~ऐ मेरे ख़ुदा, मेरी ख़ुशी तेरी मर्ज़ी पूरी करने में है; बल्कि तेरी शरी'अत मेरे दिल में है।" \v 9 मैंने बड़े मजमे' में सदाक़त की बशारत दी है; देख! मैं अपना मुँह बंद नहीं करूँगा, ऐ ख़ुदावन्द! तू जानता है। \s5 \v 10 ~मैंने तेरी सदाक़त अपने दिल में छिपा नहीं रखी; मैंने तेरी वफ़ादारी और नजात का इज़हार किया है; मैंने तेरी शफ़क़त और सच्चाई बड़े मजमा' से नहीं छिपाई। \v 11 ~ऐ ख़ुदावन्द! तू मुझ पर रहम करने में दरेग़ न कर; तेरी शफ़क़त और सच्चाई बराबर मेरी हिफ़ाज़त करें! \s5 \v 12 ~क्यूँकि बेशुमार बुराइयों ने मुझे घेर लिया है; मेरी बदी ने मुझे आ पकड़ा है, ऐसा कि मैं आँख नहीं उठा सकता; वह मेरे सिर के बालों से भी ज़्यादा हैं: इसलिए मेरा जी छूट गया। \v 13 ऐ ख़ुदावन्द! मेहरबानी करके मुझे छुड़ा। ऐ ख़ुदावन्द! मेरी मदद के लिए जल्दी कर । \s5 \v 14 ~जो मेरी जान को हलाक करने के दर पै हैं, वह सब शर्मिन्दा और ख़जिल हों; जो मेरे नुक्सान से ख़ुश हैं, वह पस्पा और रुस्वा हो। \v 15 जो मुझ पर अहा हा हा करते हैं, वह अपनी रुस्वाई की वजह से तबाह हो जाएँ। \s5 \v 16 ~तेरे सब तालिब तुझ में ख़ुश-ओ-खुर्रम हों; तेरी नजात के 'आशिक हमेशा कहा करें ख़ुदावन्द की तम्जीद हो! ", \v 17 लेकिन मैं ग़रीब और मोहताज हूँ, ख़ुदावन्द मेरी फ़िक्र करता है। मेरा मददगार और छुड़ाने वाला तू ही है; ऐ मेरे ख़ुदा! देर न कर। \s5 \c 41 \p \v 1 मुबारक, है वह जो ग़रीब का ख़याल रखता है ख़ुदावन्द मुसीबत के दिन उसे छुड़ाएगा। \v 2 ~ख़ुदावन्द उसे महफू़ज़ और ज़िन्दा रख्खेगा, और वह ज़मीन पर मुबारक होगा। तू उसे उसके दुश्मनों की मर्ज़ी पर न छोड़। \v 3 ख़ुदावन्द उसे बीमारी के बिस्तर पर संभालेगा; तू उसकी बीमारी में उसके पूरे बिस्तर को ठीक करता है। \s5 \v 4 ~मैंने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, मुझ पर रहम कर! मेरी जान को शिफ़ा दे, क्यूँकि मैं तेरा गुनहगार हूँ।" \v 5 ~मेरे दुश्मन यह कहकर मेरी बुराई करते हैं, कि वह कब मरेगा और उसका नाम कब मिटेगा ? \v 6 जब वह मुझ से मिलने को आता है, तो झूटी बातें बकता है; उसका दिल अपने अन्दर बदी समेटता है; वह बाहर जाकर उसी का ज़िक्र करता है। \s5 \v 7 मुझ से 'अदावत रखने वाले सब मिलकर मेरी ग़ीबत करते हैं; वह मेरे ख़िलाफ़ मेरे नुक़सान के मन्सूबे बाँधते हैं। \v 8 ~वह कहते हैं, "इसे तो बुरा रोग लग गया है; अब जो वह पड़ा है तो फिर उठने का नहीं।" \v 9 बल्कि मेरे दिली दोस्त ने जिस पर मुझे भरोसा था, और जो मेरी रोटी खाता था, मुझ पर लात उठाई है। \s5 \v 10 ~लेकिन तू ऐ ख़ुदावन्द! मुझ पर रहम करके मुझे उठा खड़ा कर, ताकि मैं उनको बदला दूँ। \v 11 ~इससे मैं जान गया कि तू मुझ से ख़ुश है, कि मेरा दुश्मन मुझ पर फ़तह नहीं पाता। \v 12 ~मुझे तो तू ही मेरी रास्ती में क़याम बख्शता है और मुझे हमेशा अपने सामने क़ायम रखता है|, \s5 \v 13 ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा, इब्तिदा से हमेशा तक मुबारक हो! आमीन, सुम्म आमीन। \s5 \c 42 \p \v 1 ~जैसे हिरनी पानी के नालों को तरसती है, वैसे ही ऐ ख़ुदा! मेरी रूह तेरे लिए तरसती है। \v 2 मेरी रूह, ख़ुदा की, ज़िन्दा ख़ुदा की प्यासी है। मैं कब जाकर ख़ुदा के सामने हाज़िर हूँगा? \s5 \v 3 ~मेरे आँसू दिन रात मेरी खू़राक हैं; जिस हाल कि वह मुझ से बराबर कहते हैं, तेरा ख़ुदा कहाँ है? \v 4 ~इन बातों को याद करके मेरा दिल भरआता है, कि मैं किस तरह भीड़ या'नी 'ईद मनाने वाली जमा'अत के साथ, खु़शी और हम्द करता हुआ उनको ख़ुदा के घर में ले जाता था। \s5 \v 5 ऐ मेरी जान, तू क्यूँ गिरी जाती है? तू अन्दर ही अन्दर क्यूँ बेचैन है? ख़ुदा से उम्मीद रख, क्यूँकि उसके नजात बख़्श दीदार की ख़ातिर मैं फिर उसकी सिताइश करूँगा । \v 6 ~ऐ मेरे ख़ुदा! मेरी जान मेरे अंदर गिरी जाती है, इसलिए मैं तुझे यरदन की सरज़मीन से और हरमून और कोह-ए-मिस्फ़ार पर से याद करता हूँ। \s5 \v 7 ~तेरे आबशारों की आवाज़ से गहराव गहराव को पुकारता है। तेरी सब मौजें और लहरें मुझ पर से गुज़र गई। \v 8 ~तोभी दिन को ख़ुदावन्द अपनी शफ़क़त दिखाएगा; और रात को मैं उसका हम्द गाऊँगा, बल्कि अपनी ज़िन्दगी के ख़ुदा से दु'आ करूँगा । \s5 \v 9 ~मैं ख़ुदा से जो मेरी चट्टान है कहूँगा, "तू मुझे क्यूँ ~भूल गया? मैं दुश्मन के ज़ुल्म की वजह से, क्यूँ मातम करता फिरता हूँ?" \v 10 ~मेरे मुख़ालिफ़ों की मलामत, जैसे मेरी हड्डियों में तलवार है, क्यूँकि वह मुझ से बराबर कहते हैं, "तेरा ख़ुदा कहाँ है?" \s5 \v 11 ~ऐ मेरी जान! तू क्यूँ गिरी जाती है? तू अंदर ही अंदर क्यूँ बेचैन है? ख़ुदा से उम्मीद रख, क्यूँकि वह मेरे चेहरे की रौनक और मेरा ख़ुदा है; मैं फिर उसकी सिताइश करूँगा । \s5 \c 43 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदा, मेरा इंसाफ़ कर और बेदीन क़ौम के मुक़ाबले में मेरी वकालत कर, और दग़ाबाज़ और बेइंसाफ़ आदमी से मुझे छुड़ा। \v 2 ~क्यूँकि तू ही मेरी ताक़त का ख़ुदा है, तूने क्यूँ मुझे छोड़ दिया? मैं दुश्मन के ज़ुल्म की वजह से क्यूँ मातम करता फिरता हूँ? \s5 \v 3 अपने नूर, अपनी सच्चाई को भेज, वही मेरी रहबरी करें, वही मुझ को तेरे पाक पहाड़ और तेरे घर तक पहुँचाए। \v 4 तब मैं ख़ुदा के मज़बह के पास जाऊँगा, ख़ुदा के सामने जो मेरी कमाल ख़ुशी है; ऐ ख़ुदा! मेरे ख़ुदा! मैं सितार बजा कर तेरी सिताइश करूँगा । \s5 \v 5 ~ऐ मेरी जान! तू क्यूँ गिरी जाती है? तू अन्दर ही अन्दर क्यूँ बेचैन है? ख़ुदा से उम्मीद रख, क्यूँकि वह मेरे चेहरे की रौनक़ और मेरा ख़ुदा है; मैं फिर उसकी सिताइश करूँगा। \s5 \c 44 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदा, हम ने अपने कानों से सुना; हमारे बाप-दादा ने हम से बयान किया, कि तूने उनके दिनों में पिछले ज़माने में क्या क्या काम किए। \v 2 तूने क़ौमों को अपने हाथ से निकाल दिया, और उनको बसाया: तूने उम्मतों को तबाह किया, और इनको चारों तरफ़ फैलाया; \s5 \v 3 क्यूँकि न तो यह अपनी तलवार से इस मुल्क पर क़ाबिज़ हुए, और न इनकी ताक़त ने इनको बचाया; बल्कि तेरे दहने हाथ और तेरी ताक़त और तेरे चेहरे के नूर ने इनको फ़तह बख़्शी क्यूँकि तू इनसे ख़ुश था| \v 4 ~ऐ ख़ुदा! तू मेरा बादशाह है; या'कू़ब के हक़ में नजात का हुक्म सादिर फ़रमा। \s5 \v 5 ~तेरी बदौलत हम अपने मुख़ालिफ़ों को गिरा देंगे; तेरे नाम से हम अपने ख़िलाफ़ उठने वालों को पस्त करेंगे। \v 6 ~क्यूँकि न तो मैं अपनी कमान पर भरोसा करूँगा, और न मेरी तलवार मुझे बचाएगी। \s5 \v 7 ~लेकिन तूने हम को हमारे मुख़ालिफ़ों से बचाया है, और हम से 'अदावत रखने वालों को शर्मिन्दा किया। \v 8 ~हम दिन भर ख़ुदा पर फ़ख़्र करते रहे हैं, और हमेशा हम तेरे ही नाम का शुक्रिया अदा करते रहेंगे। ( \s5 \v 9 लेकिन तूने तो अब हम को छोड़ ~दिया और हम को रुस्वा किया, और हमारे लश्करों के साथ नहीं जाता। \v 10 ~तू हम को मुख़ालिफ़ के आगे पस्पा करता है, और हम से 'अदावत रखने वाले लूट मार करते हैं \v 11 ~तूने हम को ज़बह होने वाली भेड़ों की तरह कर दिया, और क़ौमों के बीच हम को तितर बितर किया। \s5 \v 12 तू अपने लोगों को मुफ़्त बेच डालता है, और उनकी क़ीमत से तेरी दौलत नहीं बढ़ती। \v 13 ~तू हम को हमारे पड़ोसियों की मलामत का निशाना, और हमारे आसपास के लोगों के तमसखु़र और मज़ाक़ का जरिया' बनाता है। \v 14 तू हम को क़ौमों के बीच एक मिसाल, और उम्मतों में सिर हिलाने की वजह ठहराता है। \s5 \v 15 मेरी रुस्वाई दिन भर मेरे सामने रहती है, और मेरे मुँह पर शर्मिन्दी छा गई। \v 16 मलामत करने वाले और कुफ़्र बकने वाले की बातों की वजह से, और मुख़ालिफ़ और इन्तक़ाम लेने वाले की वजह। \v 17 ~यह सब कुछ हम पर बीता तोभी हम तुझ को नहीं भूले, न तेरे 'अहद से बेवफ़ाई की; \s5 \v 18 ~न हमारे दिल नाफ़रमान हुए, न हमारे क़दम तेरी राह से मुड़े; \v 19 ~जो तूने हम को गीदड़ों की जगह में खू़ब कुचला, और मौत के साये में हम को छिपाया। \v 20 ~अगर हम अपने ख़ुदा के नाम को भूले, या हम ने किसी अजनबी मा'बूद के आगे अपने हाथ फैलाए हों: \v 21 ~तो क्या ख़ुदा इसे दरियाफ़्त न कर लेगा? क्यूँकि वह दिलों के राज़ जानता है। \v 22 ~बल्कि हम तो दिन भर तेरी ही ख़ातिर जान से मारे जाते हैं, और जैसे ज़बह होने वाली भेड़ें समझे जाते हैं। \s5 \v 23 ~ऐ ख़ुदावन्द, जाग! तू क्यूँ सोता है? उठ! हमेशा के लिए हम को न छोड़ ~। \v 24 ~तू अपना मुँह क्यूँ छिपाता है, और हमारी मुसीबत और मज़लूमी को भूलता है? \s5 \v 25 ~क्यूँकि हमारी जान ख़ाक में मिल गई, हमारा जिस्म मिट्टी हो गया। \v 26 ~हमारी मदद के लिए उठ और अपनी शफ़क़त की ख़ातिर, हमारा फ़िदिया दे। \s5 \c 45 \p \v 1 ~मेरे दिल में एक नफ़ीस मज़मून जोश मार रहा है, मैं वही मज़ामीन सुनाऊँगा जो मैंने बादशाह के हक़ में लिखे हैं, मेरी ज़बान माहिर लिखने वाले का क़लम है। \v 2 ~तू बनी आदम में सबसे हसीन है; तेरे होंटों में लताफ़त भरी है; इसलिए ख़ुदा ने तुझे हमेशा के लिए मुबारक किया। \s5 \v 3 ऐ ज़बरदस्त! तू अपनी तलवार को जो तेरी हशमत-ओ-शौकत है, अपनी कमर से लटका ले । \v 4 और सच्चाई और हिल्म और सदाक़त की ख़ातिर, अपनी शान-ओ-शौकत में इक़बालमंदी से सवार हो; और तेरा दहना हाथ तुझे अजीब काम दिखाएगा। \s5 \v 5 ~तेरे तीर तेज़ हैं, वह बादशाह के दुश्मनों के दिल में लगे हैं, उम्मतें तेरे सामने पस्त होती हैं। \v 6 ~ऐ ख़ुदा, तेरा तख़्त हमेशा से हमेशा तक है; तेरी सल्तनत का 'असा रास्ती का 'असा है। \v 7 ~तूने सदाक़त से मुहब्बत रखी और बदकारी से नफ़रत, इसीलिए ख़ुदा, तेरे ख़ुदा ने ख़ुशी के तेल से, तुझ को तेरे हमसरों से ज़्यादा मसह किया है। \s5 \v 8 ~तेरे हर लिबास से मुर और 'ऊद और तंज की खु़शबू आती है, हाथी दाँत के महलों में से तारदार साज़ों ने तुझे ख़ुश किया है। \v 9 तेरी ख़ास ख़्वातीन में शाहज़ादियाँ हैं; मलिका तेरे दहने हाथ, ओफ़ीर के सोने से सजी खड़ी है। \s5 \v 10 ~ऐ बेटी, सुन! ग़ौर कर और कान लगा; अपनी क़ौम और अपने बाप के घर को भूल जा; \v 11 और बादशाह तेरे हुस्न का मुश्ताक़ होगा। क्यूँकि वह तेरा ख़ुदावन्द है, तू उसे सिज्दा कर! \s5 \v 12 ~और सूर की बेटी हदिया लेकर हाज़िर होगी, क़ौम के दौलतमंद तेरी ख़ुशी की तलाश करेंगे। \v 13 ~बादशाह की बेटी महल में सरापा हुस्न अफ़रोज़ है, उसका लिबास ज़रबफ़्त का है; \s5 \v 14 ~वह बेल बूटे दार लिबास में बादशाह के सामने पहुँचाई जाएगी। उसकी कुंवारी सहेलियाँ जो उसके पीछे-पीछे चलती हैं, तेरे सामने हाज़िर की जाएँगी। \v 15 ~वह उनको ख़ुशी और ख़ुर्रमी से ले आएँगे, वह बादशाह के महल में दाख़िल होंगी। \s5 \v 16 तेरे बेटे तेरे बाप दादा के जाँ नशीन होंगे; जिनको तू पूरी ज़मीन पर सरदार मुक़र्रर करेगा। \v 17 ~मैं तेरे नाम की याद को नसल दर नसल क़ायम रखूँगा इसलिए उम्मतें हमेशा से हमेशा तक तेरी ; शुक्रगुज़ारी करेंगी। \s5 \c 46 \p \v 1 ख़ुदावन्द हमारी पनाह और ताक़त है; मुसीबत में मुस्त'इद मददगार। \v 2 इसलिए हम को कुछ ख़ौफ़ नहीं चाहे ज़मीन उलट जाए, और पहाड़ समुन्दर की तह में डाल दिए जाए \v 3 ~चाहे उसका पानी शोर मचाए और तूफ़ानी हो, और पहाड़ उसकी लहरों से हिल जाएँ।(सिलह) \s5 \v 4 ~एक ऐसा दरिया है जिसकी शाख़ो से ख़ुदा के शहर को या'नी हक़ ता'ला के पाक घर को फ़रहत होती है। \v 5 ~ख़ुदा उसमें है, उसे कभी जुम्बिश न होगी; ख़ुदा सुबह सवेरे उसकी मदद करेगा। \s5 \v 6 ~क़ौमे झुंझलाई, सल्तनतों ने जुम्बिश खाई; वह बोल उठा, ज़मीन पिघल गई। \v 7 ~लश्करों का ख़ुदावन्द हमारे साथ है; या'कूब का ख़ुदा हमारी पनाह है (सिलाह)। \s5 \v 8 आओ, ख़ुदावन्द के कामों को देखो, कि उसने ज़मीन पर क्या क्या वीरानियाँ की हैं। \v 9 वह ज़मीन की इन्तिहा तक जंग बंद कराता है; वह कमान को तोड़ता, और नेज़े के टुकड़े कर डालता है। वह रथों को आग से जला देता है। \s5 \v 10 ~'ख़ामोश हो जाओ, और जान लो कि मैं ख़ुदा हूँ। मैं क़ौमों के बीच सरबुलंद हूँगा।मैं सारी ज़मीन पर सरबुलंद हूँगा।" \v 11 ~लश्करों का ख़ुदावन्द हमारे साथ है; या'क़ूब का ख़ुदा हमारी पनाह है।(सिलाह) \s5 \c 47 \p \v 1 ऐ सब उम्मतों, तालियाँ बजाओ! ख़ुदा के लिए ख़ुशी की आवाज़ से ललकारो! \v 2 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द ता'ला बड़ा है, वह पूरी ज़मीन का शहंशाह है। \s5 \v 3 ~वह उम्मतों को हमारे सामने पस्त करेगा, और क़ौमें हमारे क़दमों तले हो जायेंगी| \v 4 ~वह हमारे लिए हमारी मीरास को चुनेगा, जो उसके महबूब या'कू़ब की हश्मत है।(सिलाह) \v 5 ~ख़ुदा ने बुलन्द आवाज़ के साथ, ख़ुदावन्द ने नरसिंगे की आवाज़ के साथ सु'ऊद फ़रमाया। \s5 \v 6 मदहसराई करो, ख़ुदा की मदहसराई करो! मदहसराई करो, हमारे बादशाह की मदहसराई करो! \v 7 क्यूँकि ख़ुदा सारी ज़मीन का बादशाह है; 'अक़्ल से मदहसराई करो। \s5 \v 8 ~ख़ुदा क़ौमों पर सल्तनत करता है; ख़ुदा अपने पाक तख़्त पर बैठा है। \v 9 ~उम्मतों के सरदार इकट्ठे हुए हैं, ताकि इब्राहीम के ख़ुदा की उम्मत बन जाएँ; क्यूँकि ज़मीन की ढालें ख़ुदा की हैं, वह बहुत बुलन्द है। \s5 \c 48 \p \v 1 हमारे ख़ुदा के शहर में, अपने पाक पहाड़ पर ख़ुदावन्द बुज़ु़र्ग़ और बेहद सिताइश के लायक़ है! \v 2 उत्तर की जानिब कोह-ए-सिय्यून, जो बड़े बादशाह का शहर है, वह बुलन्दी में खु़शनुमा और तमाम ज़मीन का फ़ख़्र है। \v 3 ~उसके महलों में ख़ुदा पनाह माना जाता है। \s5 \v 4 क्यूँकि देखो, बादशाह इकट्ठे हुए,| वह मिलकर गुज़रे। \v 5 वह देखकर दंग हो गए, वह घबराकर भागे। \v 6 वहाँ कपकपी ने उनको आ दबाया, और ऐसे दर्द ने जैसा पैदाइश का दर्द। \s5 \v 7 तू पूरबी हवा से तरसीस के जहाज़ों को तोड़ डालता है। \v 8 लश्करों के ख़ुदावन्द के शहर में, या'नी अपने ख़ुदा के शहर में, जैसा हम ने सुना था वैसा ही हम ने देखा: ख़ुदा उसे हमेशा बरक़रार रखेगा। \s5 \v 9 ~ऐ ख़ुदा, तेरी हैकल के अन्दर हम ने तेरी शफ़क़त पर ग़ौर किया है \v 10 ~ऐ ख़ुदा, जैसा तेरा नाम है वैसी ही तेरी सिताइश ज़मीन की इन्तिहा तक है। तेरा दहना हाथ सदाक़त से मा'मूर है। \s5 \v 11 ~तेरे अहकाम की वजह से: कोह-ए-सिय्यून शादमान हो यहूदाह की बेटियाँ ख़ुशी मनाए ~, \s5 \v 12 सिय्यून के गिर्द फिरो और उसका तवाफ़ करो उसके बुर्जों को गिनों, \v 13 ~उसकी शहर पनाह को खू़ब देख लो, उसके महलों पर ग़ौर करो; ताकि तुम आने वाली नसल को उसकी ख़बर दे सको। \s5 \v 14 ~क्यूँकि यही ख़ुदा हमेशा से हमेशा तक हमारा ख़ुदा है; यही मौत तक हमारा रहनुमा रहेगा। \s5 \c 49 \p \v 1 ~ऐ सब उम्मतो, यह सुनो। ऐ जहान के सब बाशिन्दो, कान लगाओ! \v 2 क्या अदना क्या आ'ला, क्या अमीर क्या फ़कीर। \s5 \v 3 मेरे मुँह से हिकमत की बातें निकलेंगी, और मेरे दिल का ख़याल पुर ख़िरद होगा। \v 4 मैं तम्सील की तरफ़ कान लगाऊँगा, मैं अपना राज़ सितार पर बयान करूँगा । \v 5 ~मैं मुसीबत के दिनों में क्यूँ डरूं, जब मेरा पीछा करने ~करने वाली बदी मुझे घेरे हो? \s5 \v 6 जो अपनी दौलत पर भरोसा रखते, और अपने माल की कसरत पर फ़ख़्र करते हैं; \v 7 ~उनमें से कोई किसी तरह अपने भाई का फ़िदिया नहीं दे सकता, न ख़ुदा को उसका मु'आवज़ा दे सकता है | \v 8 ~(क्यूँकि उनकी जान का फ़िदिया बेश क़ीमत है; वह हमेशा तक अदा न होगा।) \s5 \v 9 ~ताकि वह हमेशा तक ज़िन्दा रहे और क़ब्र को न देखे। \v 10 ~क्यूँकि वह देखता है, कि दानिशमंद मर जाते हैं, बेवकू़फ़ व हैवान ख़सलत एक साथ हलाक होते हैं, और अपनी दौलत औरों के लिए छोड़ जाते हैं। \s5 \v 11 ~उनका दिली ख़याल यह है कि उनके घर हमेशा तक, और उनके घर नसल दर नसल बने रहेंगे; वह अपनी ज़मीन अपने ही नाम नामज़द करते हैं। \s5 \v 12 ~पर इंसान इज़्ज़त की हालत में क़ायम नहीं रहता वह जानवरों की तरह है, जो फ़ना हो, जाते हैं। \v 13 उनकी यह चाल उनकी बेवक़ूफ़ी है, तोभी उनके बा'द लोग उनकी बातों को पसंद करते हैं। (सिलाह) \s5 \v 14 ~वह जैसे पाताल का रेवड़ ठहराए गए हैं; मौत उनकी पासबान होगी; दियानतदार सुबह को उन पर मुसल्लत होगा, और उनका हुस्न पाताल का लुक़्मा होकर बेठिकाना होगा। \v 15 ~लेकिन ख़ुदा मेरी जान को पाताल के इख़्तियार से छुड़ा लेगा, क्यूँकि वही मुझे कु़बूल करेगा। (सिलाह) \s5 \v 16 जब कोई मालदार हो जाए जब उसके घर की हश्मत बढ़े, तो तू ख़ौफ़ न कर। \v 17 क्यूँकि वह मरकर कुछ साथ न ले जाएगा; उसकी हश्मत उसके साथ न जाएगी। \s5 \v 18 ~चाहे जीते जी वह अपनी जान को मुबारक कहता रहा हो (और जब तू अपना भला करता है तो लोग तेरी तारीफ़ करते हैं) \v 19 तोभी वह अपने बाप दादा की गिरोह से जा मिलेगा, वह रोशनी को हरगिज़ न देखेंगे। \v 20 आदमी जो 'इज़्ज़त की हालत में रहता है, लेकिन 'अक़्ल नहीं रखता जानवरों की तरह है, जो फ़ना हो जाते हैं। \s5 \c 50 \p \v 1 ~रब ख़ुदावन्द ख़ुदा ने कलाम किया, और पूरब से पश्चिम तक दुनिया को बुलाया। \v 2 ~सिय्यून से जो हुस्न का कमाल है, ख़ुदा जलवागर हुआ है। \s5 \v 3 हमारा ख़ुदा आएगा और ख़ामोश नहीं रहेगा; आग उसके आगे आगे भसम करती जाएगी, \v 4 अपनी उम्मत की 'अदालत करने के लिए वह आसमान-ओ-ज़मीन को तलब करेगा, \v 5 ~कि मेरे पाक लोगों को मेरे सामने जमा' करो, जिन्होंने कु़र्बानी के ज़रिये' से मेरे साथ 'अहद बाँधा है। \s5 \v 6 ~और आसमान उसकी सदाक़त बयान करेंगे, क्यूँकि ख़ुदा आप ही इंसाफ़ करने वाला है| \s5 \v 7 "ऐ मेरी उम्मत, सुन, मैं कलाम करूँगा, और ऐ इस्राईल, मैं तुझ पर गवाही दूँगा। ख़ुदा, तेरा ख़ुदा मैं ही हूँ। \v 8 ~मैं तुझे तेरी कु़र्बानियों की वजह से मलामत नहीं करूँगा, और तेरी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ बराबर मेरे सामने रहती हैं; \s5 \v 9 ~न मैं तेरे घर से बैल लूँगा न तेरे बाड़े से बकरे। \v 10 ~क्यूँकि जंगल का एक एक जानवर, और हज़ारों पहाड़ों के चौपाये मेरे ही हैं। \v 11 ~मैं पहाड़ों के सब परिन्दों को जानता हूँ, और मैदान के दरिन्दे मेरे ही हैं। \s5 \v 12 "अगर मैं भूका होता तो तुझ से न कहता, क्यूँकि दुनिया और उसकी मा'मूरी मेरी ही है। \v 13 ~क्या मैं साँडों का गोश्त खाऊँगा, या बकरों का खू़न पियूँगा? \s5 \v 14 ख़ुदा के लिए शुक्रगुज़ारी की कु़र्बानी पेश करें, और हक़ता'ला के लिए अपनी मन्नतें पूरी कर;| \v 15 और मुसीबत के दिन मुझ से फ़रियाद कर मैं तुझे छुड़ाऊँगा और तू मेरी तम्जीद करेगा।" \s5 \v 16 ~लेकिन ख़ुदा शरीर से कहता है, "तुझे मेरे क़ानून बयान करने से क्या वास्ता? और तू मेरे 'अहद को अपनी ज़बान पर क्यूँ लाता है? \v 17 ~जबकि तुझे तर्बियत से 'अदावत है, और मेरी बातों को पीठ पीछे फेंक देता है। \s5 \v 18 तू चोर को देखकर उससे मिल गया, और ज़ानियों का शरीक रहा है। \v 19 ~"तेरे मुँह से बदी निकलती है, और तेरी ज़बान फ़रेब गढ़ती है। \v 20 ~तू बैठा बैठा अपने भाई की ग़ीबत करता है; और अपनी ही माँ के बेटे पर तोहमत लगाता है। \s5 \v 21 ~तूने यह काम किए और मैं ख़ामोश रहा; तूने गुमान किया, कि मैं बिल्कुल तुझ ही सा हूँ। लेकिन मैं तुझे मलामत करके इनको तेरी आँखों के सामने तरतीब दूँगा। \v 22 ~"अब ऐ ख़ुदा को भूलने वालो, इसे सोच लो, ऐसा न हो कि मैं तुम को फाड़ डालूँ, और कोई छुड़ाने वाला न हो। \s5 \v 23 जो शुक्रगुज़ारी की क़ुर्बानी पेश करता है वह मेरी तम्जीद करता है; और जो अपना चालचलन दुरुस्त रखता है, उसको मैं ख़ुदा की नजात दिखाऊँगा।" \s5 \c 51 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदा! अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ मुझ पर रहम कर; अपनी रहमत की कसरत के मुताबिक़ मेरी ख़ताएँ मिटा दे। \v 2 ~मेरी बदी को मुझ से धो डाल, और मेरे गुनाह से मुझे पाक कर! \s5 \v 3 ~क्यूँकि मैं अपनी ख़ताओं को मानता हूँ, और मेरा गुनाह हमेशा मेरे सामने है। \v 4 मैंने सिर्फ़ तेरा ही गुनाह किया है, और वह काम किया है जो तेरी नज़र में बुरा है; ताकि तू अपनी बातों में रास्त ठहरे, और अपनी 'अदालत में बे'ऐब रहे। \s5 \v 5 देख, मैंने बदी में सूरत पकड़ी, और मैं गुनाह की हालत में माँ के पेट में पड़ा। \v 6 ~देख, तू बातिन की सच्चाई पसंद करता है, और बातिन ही में मुझे दानाई सिखाएगा। \s5 \v 7 जूफ़े से मुझे साफ़ कर, तो मैं पाक हूँगा; मुझे धो, और मैं बर्फ़ से ज़्यादा सफ़ेद हूँगा। \v 8 ~मुझे ख़ुशी और ख़ुर्रमी की ख़बर सुना, ताकि वह हड्डियाँ जो तूने तोड़ डाली, हैं, ख़ुश हों। \v 9 ~मेरे गुनाहों की तरफ़ से अपना मुँह फेर ले, और मेरी सब बदकारी मिटा डाल। \s5 \v 10 ~ऐ ख़ुदा! मेरे अन्दर पाक दिल पैदा कर, और मेरे बातिन में शुरू' से सच्ची रूह डाल। \v 11 मुझे अपने सामने से ख़ारिज न कर, और अपनी पाक रूह को मुझ से जुदा न कर। \s5 \v 12 ~अपनी नजात की शादमानी मुझे फिर'इनायत कर, और मुस्त'इद रूह से मुझे संभाल। \v 13 ~तब मैं ख़ताकारों को तेरी राहें सिखाऊँगा, और गुनहगार तेरी तरफ़ रुजू' करेंगे। \s5 \v 14 ऐ ख़ुदा! ऐ मेरे नजात बख़्श ख़ुदा, मुझे खू़न के जुर्म से छुड़ा, तो मेरी ज़बान तेरी सदाक़त का हम्द गाएगी। \v 15 ~ऐ ख़ुदावन्द! मेरे होंटों को खोल दे, तो मेरे मुँह से तेरी सिताइश निकलेगी। \v 16 ~क्यूँकि कु़र्बानी में तेरी ख़ुशी नहीं, वरना मैं देता; सोख़्तनी कु़र्बानी से तुझे कुछ ख़ुशी नहीं। \s5 \v 17 ~शिकस्ता रूह ख़ुदा की कु़र्बानी है; ऐ ख़ुदा! तू शिकस्ता और ख़स्तादिल को हक़ीर न जानेगा। \v 18 अपने करम से सिय्यून के साथ भलाई कर, यरूशलीम की फ़सील को तामीर कर, \v 19 ~तब तू सदाक़त की कु़र्बानियों और सोख़्तनी कु़र्बानी और पूरी सोख़्तनी कु़र्बानी से खु़श होगा; और वह तेरे मज़बह पर बछड़े चढ़ाएँगे। \s5 \c 52 \p \v 1 ~ऐ ज़बरदस्त, तू शरारत पर क्यूँ फ़ख़्र करता है? ख़ुदा की शफ़क़त हमेशा की है। \v 2 ~तेरी ज़बान महज़ शरारत ईजाद करती है; ऐ दग़ाबाज़, वह तेज़ उस्तरे की तरह है। \s5 \v 3 ~तू बदी को नेकी से ज़्यादा पसंद करता है, और झूट को सदाक़त की बात से। \s5 \v 4 ऐ दग़ाबाज ज़बान! तू मुहलिक बातों को पसंद करती है। \v 5 ~ख़ुदा भी तुझे हमेशा के लिए हलाक कर डालेगा; वह तुझे पकड़ कर तेरे ख़ेमे से निकाल फेंकेगा, और ज़िन्दों की ज़मीन से तुझे उखाड़ डालेगा। (सिलाह) \s5 \v 6 ~सादिक़ भी इस बात को देख कर डर जाएँगे, और उस पर हँसेंगे, \v 7 ~कि देखो, यह वही आदमी है जिसने ख़ुदा को अपनी पनाहगाह न बनाया, बल्कि अपने माल की ज़यादती पर भरोसा किया, और शरारत में पक्का हो गया। \s5 \v 8 ~लेकिन मैं तो ख़ुदा के घर में जैतून के हरे दरख़्त की तरह हूँ। मेरा भरोसा हमेशा से हमेशा तक ख़ुदा की शफ़क़त पर है। \v 9 ~मैं हमेशा तेरी शुक्रगुज़ारी करता रहूँगा, क्यूँकि तू ही ने यह किया है; और मुझे तेरे ही नाम की आस होगी, क्यूँकि वह तेरे पाक लोगों के नज़दीक खू़ब है। \s5 \c 53 \p \v 1 बेवकू़फ़ ने अपने दिल में कहा है, कि कोई ख़ुदा नहीं।वह बिगड़ गये उन्होंने नफ़रत अंगेज़ बदी की है। कोई नेकोकार नहीं। \v 2 ख़ुदा ने आसमान पर से बनी आदम पर निगाह की ताकि देखे कि कोई दानिशमंद, कोई ख़ुदा का तालिब है या नहीं। \v 3 ~वह सब के सब फिर गए हैं, वह एक साथ नापाक हो गए; कोई नेकोकार नहीं, एक भी नहीं। \s5 \v 4 ~क्या उन सब बदकिरदारों को कुछ 'इल्म नहीं, जो मेरे लोगों को ऐसे खाते हैं जैसे रोटी, और ख़ुदा का नाम नहीं लेते? \v 5 ~वहाँ उन पर बड़ा ख़ौफ़ छा गया जबकि ख़ौफ़ की कोई बात न थी। क्यूँकि ख़ुदा ने उनकी हड्डियाँ जो तेरे ख़िलाफ़ खै़माज़न थे, बिखेर दीं। तूने उनको शर्मिन्दा कर दिया, इसलिए कि ख़ुदा ने उनको रद्द कर ~दिया है। \s5 \v 6 काश कि इस्राईल की नजात सिय्यून में से होती! जब ख़ुदा अपने लोगों को ग़ुलामी से लौटा लाएगा; तो या'कू़ब ख़ुश और इस्राईल शादमान होगा। \s5 \c 54 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदा! अपने नाम के वसीले से मुझे बचा, और अपनी कु़दरत से मेरा इंसाफ़ कर। \v 2 ~ऐ ख़ुदा मेरी दु'आ सुन ले; मेरे मुँह की बातों पर कान लगा। \v 3 ~क्यूँकि बेगाने मेरे ख़िलाफ़ उठे हैं, और टेढ़े लोग मेरी जान के तलबगार हुए हैं; उन्होंने ख़ुदा को अपने सामने नहीं रख्खा| \s5 \v 4 ~देखो, ख़ुदा मेरा मददगार है! ख़ुदावन्द मेरी जान को संभालने वालों में है। \v 5 वह बुराई को मेरे दुश्मनों ही पर लौटा देगा; तू अपनी सच्चाई की रूह से उनको फ़ना कर! \s5 \v 6 ~मैं तेरे सामने रज़ा की कु़र्बानी चढ़ाऊँगा; ऐ ख़ुदावन्द! मैं तेरे नाम की शुक्रगु़ज़ारी करूँगा क्यूँकि वह खू़ब है। \v 7 ~क्यूँकि उसने मुझे सब मुसीबतों से छुड़ाया है, और मेरी आँख ने मेरे दुश्मनों को देख लिया है। \s5 \c 55 \p \v 1 ऐ खु़दा! मेरी दु'आ पर कान लगा; और मेरी मिन्नत से मुँह न फेर। \v 2 मेरी तरफ़ मुतवज्जिह हो और मुझे जवाब दे; मैं ग़म से बेक़रार होकर कराहता हूँ। \v 3 ~दुश्मन की आवाज़ से, और शरीर के जु़ल्म की वजह; क्यूँकि वह मुझ पर बदी लादते, और क़हर में मुझे सताते हैं। \s5 \v 4 ~मेरा दिल मुझ में बेताब है; और मौत का हौल मुझ पर छा गया है। \v 5 ~ख़ौफ़ और कपकपी मुझ पर तारी है, डर ने मुझे दबा लिया है; \s5 \v 6 ~और मैंने कहा, "काश कि कबूतर की तरह मेरे पर होते तो मैं उड़ जाता और आराम पाता! \v 7 ~फिर तो मैं दूर निकल जाता, और वीरान में बसेरा करता। (सिलाह) \s5 \v 8 ~मैं आँधी के झोंके और तूफ़ान से, किसी पनाह की जगह में भाग जाता।" \v 9 ~ऐ ख़ुदावन्द! उनको हलाक कर, और उनकी ज़बान में तफ़रिक़ा डाल; क्यूँकि मैंने शहर में जु़ल्म और झगड़ा देखा है। \s5 \v 10 ~दिन रात वह उसकी फ़सील पर गश्त लगाते हैं; बदी और फ़साद उसके अंदर हैं। \v 11 ~शरारत उसके बीच में बसी हुई है; सितम और फ़रेब उसके कूचों से दूर नहीं होते। \s5 \v 12 ~जिसने मुझे मलामत की वह दुश्मन न था, वरना मैं उसको बर्दाश्त कर लेता; और जिसने मेरे ख़िलाफ़ तकब्बुर किया वह मुझ से 'अदावत रखने वाला न था, नहीं तो मैं उससे छिप जाता। \v 13 ~बल्कि वह तो तू ही था जो मेरा हमसर, मेरा रफ़ीक और दिली दोस्त था। \v 14 ~हमारी आपसी गुफ़्तगू शीरीन थी; और हुजूम के साथ ख़ुदा के घर में फिरते थे। \s5 \v 15 ~उनकी मौत अचानक आ दबाए; वह जीते जी पाताल में उतर जाएँ: क्यूँकि शरारत उनके घरों में और उनके अन्दर है। \s5 \v 16 ~लेकिन मैं तो ख़ुदा को पुकारूँगा; और ख़ुदावन्द मुझे बचा लेगा। \v 17 सुबह -ओ-शाम और दोपहर को मैं फ़रियाद करूँगा और कराहता रहूँगा, और वह मेरी आवाज़ सुन लेगा। \v 18 उसने उस लड़ाई से जो मेरे ख़िलाफ़ थी, मेरी जान को सलामत छुड़ा लिया।क्यूँकि मुझसे झगड़ा करने वाले बहुत थे | \s5 \v 19 ~ख़ुदा जो क़दीम से है, सुन लेगा और उनको जवाब देगा। यह वह हैं जिनके लिए इन्क़लाब नहीं, और जो ख़ुदा से नहीं डरते। \s5 \v 20 ~उस शख़्स ने ऐसों पर हाथ बढ़ाया है, जो उससे सुल्ह रखते थे।उसने अपने 'अहद को तोड़ दिया है। \v 21 ~उसका मुँह मख्खन की तरह चिकना था, लेकिन उसके दिल में जंग थी।उसकी बातें तेल से ज़्यादा मुलायम, लेकिन नंगी तलवारें थीं। \s5 \v 22 ~अपना बोझ ख़ुदावन्द पर डाल दे, वह तुझे संभालेगा। वह सादिक़ को कभी जुम्बिश न खाने देगा। \v 23 ~लेकिन ऐ ख़ुदा! तू उनको हलाकत के गढ़े में उतारेगा। खू़नी और दग़ाबाज़ अपनी आधी 'उम्र तक भी ज़िन्दा न रहेंगे।लेकिन मैं तुझ पर भरोसा करूँगा। \s5 \c 56 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदा! मुझ पर रहम फ़रमा, क्यूँकि इंसान मुझे निगलना चाहता है; वह दिन भर लड़कर मुझे सताता है। \v 2 मेरे दुश्मन दिन भर मुझे निगलना चाहते हैं, क्यूँकि जो गु़रूर करके मुझ से लड़ते हैं, वह बहुत हैं। \s5 \v 3 ~जिस वक़्त मुझे डर लगेगा, मैं तुझ पर भरोसा करूँगा। \v 4 ~मेरा फ़ख़्र ख़ुदा पर और उसके कलाम पर है। मेरा भरोसा ख़ुदा पर है, मैं डरने का नहीं: बशर मेरा क्या कर सकता है? \s5 \v 5 वह दिन भर मेरी बातों को मरोड़ते रहते हैं; उनके ख़याल सरासर यही हैं, कि मुझ से बदी करें। \v 6 ~वह इकठ्ठे होकर छिप जाते हैं; वह मेरे नक्श-ए-क़दम को देखते भालते हैं, क्यूँकि वह मेरी जान की घात में हैं। \s5 \v 7 ~क्या वह बदकारी करके बच जाएँगे? ऐ ख़ुदा, क़हर में उम्मतों को गिरा दे! \v 8 तू मेरी आवारगी का हिसाब रखता है; मेरे आँसुओं को अपने मश्कीज़े में रख ले। क्या वह तेरी किताब में लिखे नहीं हैं? \s5 \v 9 तब तो जिस दिन मैं फ़रियाद करूँगा, मेरे दुश्मन पस्पा होंगे। मुझे यह मा'लूम है कि ख़ुदा मेरी तरफ़ है। \v 10 मेरा फ़ख़्र ख़ुदा पर और उसके कलाम पर है; मेरा~फ़ख़्र~ ख़ुदावन्द पर और उसके कलाम पर है। \v 11 ~मेरा भरोसा ख़ुदा पर है, मैं डरने का नहीं। इंसान मेरा क्या कर सकता है? \s5 \v 12 ~ऐ ख़ुदा! तेरी मन्नतें मुझ पर हैं; मैं तेरे हुजू़र शुक्रगुज़ारी की कु़र्बानियाँ पेश करूँगा। \v 13 ~क्यूँकि तूने मेरी जान को मौत से छुड़ाया; क्या तूने मेरे पाँव को फिसलने से नहीं बचाया, ताकि मैं ख़ुदा के सामने ज़िन्दों के नूर में चलूँ ? \s5 \c 57 \p \v 1 ~मुझ पर रहम कर, ऐ ख़ुदा! मुझ पर रहम कर, क्यूँकि मेरी जान तेरी पनाह लेती है।मैं तेरे परों के साये में पनाह लूँगा, जब तक यह आफ़तें गुज़र न जाएँ। \s5 \v 2 ~मैं ख़ुदा ता'ला से फ़रियाद करूँगा; ख़ुदा से, जो मेरे लिए सब कुछ करता है। \v 3 ~वह मेरी नजात के लिए आसमान से भेजेगा; जब वह जो मुझे निगलना चाहता है, मलामत करता हो।(सिलाह) ख़ुदा अपनी शफ़क़त और सच्चाई को भेजेगा। \s5 \v 4 मेरी जान बबरों के बीच है, मैं आतिश मिज़ाज लोगों में पड़ा हूँ या'नी ऐसे लोगों में जिनके दाँत बर्छियाँऔर तीर हैं, जिनकी ज़बान तेज़ तलवार है। \v 5 ~ऐ ख़ुदा! तू आसमान पर सरफ़राज़ हो, तेरा जलाल सारी ज़मीन पर हो! \s5 \v 6 उन्होंने मेरे पाँव के लिए जाल लगाया है; मेरी जान 'आजिज़ आ गई। उन्होंने मेरे आगे गढ़ा खोदा, वह ख़ुद उसमें गिर पड़े। (सिलाह) \s5 \v 7 ~मेरा दिल क़ायम है, ऐ ख़ुदा! मेरा दिल क़ायम है; मैं गाऊँगा बल्कि मैं मदह सराई करूँगा। \v 8 ~ऐ मेरी शौकत, बेदार हो! ऐ बर्बत और सितार जागो! मैं ख़ुद सुबह सवेरे जाग उठूँगा। \s5 \v 9 ~ऐ ख़ुदावन्द! मैं लोगों में तेरा शुक्र करूँगा । मैं उम्मतों में तेरी मदहसराई करूँगा। \v 10 ~क्यूँकि तेरी शफ़क़त आसमान के, और तेरी सच्चाई अफ़लाक के बराबर बुलन्द है। \v 11 ~ऐ ख़ुदा! तू आसमान पर सरफ़राज़ हो! तेरा जलाल सारी ज़मीन पर हो! \s5 \c 58 \p \v 1 ~ऐ बुज़ुर्गों! क्या तुम दर हक़ीक़त रास्तगोई करते हो? ऐ बनी आदम! क्या तुम ठीक 'अदालत करते हो? \v 2 ~बल्कि तुम तो दिल ही दिल में शरारत करते हो; और ज़मीन पर अपने हाथों से जु़ल्म पैमाई करते हैं। \s5 \v 3 ~शरीर पैदाइश ही से कजरवी इख़्तियार करते हैं; वह पैदा होते ही झूट बोलकर गुमराह हो जाते हैं। \v 4 ~उनका ज़हर साँप का सा ज़हर है; वह बहरे अज़दहे की तरह हैं जो कान बंद कर लेता है; \v 5 जो मन्तर पढ़ने वालों की आवाज़ ही नहीं सुनता, जो चाहे वह कितनी ही होशियारी से मन्तर पढ़ें। \s5 \v 6 ~ऐ ख़ुदा! तू उनके दाँत उनके मुँह में तोड़ दे, ऐ ख़ुदावन्द! बबर के बच्चों की दाढ़ें तोड़ डाल। \v 7 ~वह घुलकर बहते पानी की तरह हो जाएँ जब वह अपने तीर चलाए, तो वह जैसे कुन्द पैकान हों। \v 8 ~वह ऐसे हो जाएँ जैसे घोंघा, जो गल कर फ़ना हो जाता है; और जैसे 'औरत का इस्कात जिसने सूरज को देखा ही नहीं। \s5 \v 9 ~इससे पहले कि तुम्हारी हड्डियों को काँटों की आंच लगे ~वह हरे और जलते दोनों को यकसाँ बगोले से उड़ा ले जाएगा। \v 10 ~सादिक़ इन्तक़ाम को देखकर खु़श होगा; वह शरीर के खू़न से अपने पाँव तर करेगा। \v 11 ~तब लोग कहेंगे, यक़ीनन सादिक़ के लिए अज्र है; बेशक ख़ुदा है, जो ज़मीन पर 'अदालत करता है। \s5 \c 59 \p \v 1 ~ऐ मेरे खु़दा मुझे मेरे दुश्मनों से छुड़ा मेरे ख़िलाफ़ उठने वालों पर सरफ़राज़ कर ~ । \v 2 मुझे बदकिरदारों से छुड़ा, और खूंख़्वार आदमियों से मुझे बचा। \s5 \v 3 ~क्यूँकि देख, वह मेरी जान की घात में हैं। ऐ ख़ुदावन्द! मेरी ख़ता या मेरे गुनाह के बगै़र ज़बरदस्त लोग मेरे ख़िलाफ़ इकठ्ठे होते हैं। \v 4 वह मुझ बेक़सूर पर दौड़ दौड़कर तैयार होते हैं; मेरी मदद के लिए जाग और देख! \s5 \v 5 ~ऐ ख़ुदावन्द, लश्करों के ख़ुदा! इस्राईल के ख़ुदा! सब कौमों के मुहासिबे के लिए उठ; किसी दग़ाबाज़ ख़ताकार पर रहम न कर। (सिलाह) \s5 \v 6 वह शाम को लौटते और कुत्ते की तरह भौंकते हैं और शहर के गिर्द फिरते हैं। \v 7 ~देख! वह अपने मुँह से डकारते हैं, उनके लबों के अन्दर तलवारें हैं; क्यूँकि वह कहते हैं, "कौन सुनता है?" \s5 \v 8 ~लेकिन ऐ ख़ुदावन्द! तू उन पर हँसेगा; तू तमाम क़ौमों को ठट्ठों में उड़ाएगा। \v 9 ~ऐ मेरी कु़व्वत, मुझे तेरी ही आस होगी, क्यूँकि ख़ुदा मेरा ऊँचा बुर्ज है। \s5 \v 10 ~मेरा ख़ुदा अपनी शफ़क़त से मेरा अगुवा होगा, ख़ुदा मुझे मेरे दुश्मनों की पस्ती दिखाएगा। \v 11 उनको क़त्ल न कर, ऐसा न हो मेरे लोग भूल जाएँ ऐ ख़ुदावन्द, ऐ हमारी ढाल! , अपनी कु़दरत से उनको तितर बितर करके पस्त कर दे। \s5 \v 12 वह अपने मुँह के गुनाह, और अपने होंटों की बातों और अपनी लान तान और ~झूट बोलने के वजह से, अपने गु़रूर में पकड़े जाएँ। \v 13 ~क़हर में उनको फ़ना कर दे, फ़ना कर दे ताकि वह बर्बाद हो जाएँ, और वह ज़मीन की इन्तिहा तक जान लें, कि ख़ुदा या'कू़ब पर हुक्मरान है। \s5 \v 14 फिर शाम को वह लौटें और कुत्ते की तरह भौंकें और शहर के गिर्द फिरें। \v 15 ~वह खाने की तलाश में मारे मारे फिरें, और अगर आसूदा न हों तो सारी रात ठहरे रहे। \s5 \v 16 लेकिन मैं तेरी कु़दरत का हम्द गाऊँगा, बल्कि सुबह को बुलन्द आवाज़ से तेरी शफ़क़त का हम्द गाऊँगा। क्यूँकि तू मेरा ऊँचा बुर्ज है, और मेरी मुसीबत के दिन मेरी पनाहगाह। \v 17 ऐ मेरी ताक़त, मै तेरी मदहसराई करूँगा ; क्यूँकि ख़ुदा मेरा शफ़ीक़ ख़ुदा मेरा ऊँचाबुर्ज है। \s5 \c 60 \p \v 1 ऐ ख़ुदा, तूने हमें रद्द किया; तूने हमें शिकस्ता हाल कर दिया। तू नाराज़ रहा है। हमें फिर बहाल कर। \s5 \v 2 ~तूने ज़मीन को लरज़ा दिया; तूने उसे फाड़ डाला है। उसके रख़्ने बन्द कर दे क्यूँकि वह लरज़ाँ है। \v 3 तूने अपने लोगों को सख़्तियाँ दिखाई, तूने हमको लड़खड़ा देने वाली मय पिलाई। \s5 \v 4 जो तुझ से डरते हैं, तूने उनको एक झंडा दिया है; ताकि वह हक़ की ख़ातिर बुलन्द किया जाएं। (सिलाह) \v 5 ~अपने दहने हाथ से बचा और हमें जवाब दे, ताकि तेरे महबूब बचाए जाएँ। \s5 \v 6 ख़ुदा ने अपनी पाकीज़गी में फ़रमाया है, "मैं ख़ुशी करूँगा ; मैं सिक्म को तक़सीम करूँगा, और सुकात की वादी को बाटूँगा। \v 7 ~जिल'आद मेरा है, मनस्सी भी मेरा है; इफ्राईम मेरे सिर का खू़द है, यहूदाह मेरा 'असा है। \s5 \v 8 ~मोआब मेरी चिलमची है, अदोम पर मैं जूता फेफूँगा; ऐ फ़िलिस्तीन, मेरी वजह से ललकार।” \v 9 मुझे उस मुहकम शहर में कौन पहुँचाएगा? कौन मुझे अदोम तक ले गया है? \s5 \v 10 ~ऐ ख़ुदा, क्या तूने हमें रद्द नहीं कर दिया? ऐ ख़ुदा, तू हमारे लश्करों के साथ नहीं जाता। \v 11 ~मुख़ालिफ़ के मुक़ाबले में हमारी मदद कर, क्यूँकि इंसानी मदद बेकार है। \v 12 ~ख़ुदा की मदद से हम बहादुरी करेंगे, क्यूँकि वही हमारे मुख़ालिफ़ों को पस्त करेगा। \s5 \c 61 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदा, मेरी फ़रियाद सुन! मेरी दु'आ पर तवज्जुह कर। \v 2 ~मैं अपनी अफ़सुर्दा दिली में ज़मीन की इन्तिहा से तुझे पुकारूँगा; तू मुझे उस चट्टान पर ले चल जो मुझसे ऊँची है; \v 3 ~क्यूँकि तू मेरी पनाह रहा है, और दुश्मन से बचने के लिए ऊँचा बुर्ज। \s5 \v 4 मैं हमेशा तेरे खे़मे में रहूँगा।मैं तेरे परों के साये में पनाह लूँगा। \v 5 क्यूँकि ऐ ख़ुदा तूने मेरी मिन्नतें क़ुबूल की हैं तूने मुझे उन लोगों की सी मीरास बख़्शी है जो तेरे नाम से डरते हैं। \s5 \v 6 ~तू बादशाह की 'उम्र दराज़ करेगा; उसकी 'उम्र बहुत सी नसलों के बराबर होगी। \v 7 ~वह ख़ुदा के सामने हमेशा क़ायम रहेगा; तू शफ़क़त और सच्चाई को उसकी हिफ़ाज़त के लिए मुहय्या कर। \s5 \v 8 ~यूँ मैं हमेशा तेरी मदहसराई करूँगा, ताकि रोज़ाना अपनी मिन्नतें पूरी करूँ । \s5 \c 62 \p \v 1 मेरी जान को ख़ुदा ही की उम्मीद है, मेरी नजात उसी से है | \v 2 वही अकेला मेरी चट्टान और मेरी नजात है, वही मेरा ऊँचा बुर्ज है, मुझे ज़्यादा जुम्बिश न होगी। \s5 \v 3 ~तुम कब तक ऐसे शख़्स पर हमला करते रहोगे, जो झुकी हुई दीवार और हिलती बाड़ की तरह है; ताकि सब मिलकर उसे क़त्ल करो? \v 4 ~वह उसको उसके मर्तबे से गिरा देने ही का मश्वरा करते रहते हैं; वह झूट से ख़ुश होते हैं।वह अपने मुँह से तो बरकत देते हैं लेकिन दिल में ला'नत करते हैं। \s5 \v 5 ~ऐ मेरी जान, ख़ुदा ही की आस रख, क्यूँकि उसी से मुझे उम्मीद है। \v 6 ~वही अकेला मेरी चट्टान और मेरी नजात है; वही मेरा ऊँचा बुर्ज है, मुझे जुम्बिश न होगी। \s5 \v 7 ~मेरी नजात और मेरी शौकत ख़ुदा की तरफ़ से है; ख़ुदा ही मेरी ताक़त की चट्टान और मेरी पनाह है। \v 8 ~ऐ लोगो। हर वक़्त उस पर भरोसा करो; अपने दिल का हाल उसके सामने खोल दो। ख़ुदा हमारी पनाहगाह है। (सिलाह) \s5 \v 9 ~यक़ीनन अदना लोग बेसबात हैं और आला आदमी झूटे; वह तराजू़ में हल्के निकलेंगे; वह सब के सब बेसबाती से भी कमज़ोर हैं \v 10 ~जु़ल्म पर तकिया न करो, लूटमार करने पर न फूलो; ~अगर माल बढ़ जाए तो उस पर दिल न लगाओ। \s5 \v 11 ~ख़ुदा ने एक बार फ़रमाया; मैंने यह दो बार सुना, कि कु़दरत ख़ुदा ही की है। \v 12 ~शफ़क़त भी ऐ ख़ुदावन्द तेरी ही है; क्यूँकि तू हर शख़्स को उसके 'अमल के मुताबिक़ बदला देता है। \s5 \c 63 \p \v 1 ऐ ख़ुदा, तू मेरा खु़दा है, मै दिल से तेरा तालिब हूँगा; ~ख़ुश्क और प्यासी ज़मीन में जहाँ पानी नहीं, मेरी जान तेरी प्यासी और मेरा जिस्म तेरा मुशताक़ है \v 2 ~इस तरह मैंने मक़दिस में तुझ पर निगाह की ताकि तेरी कु़दरत और हश्मत को देखूँ । \s5 \v 3 ~क्यूँकि तेरी शफ़क़त ज़िन्दगी से बेहतर है मेरे होंट तेरी ता'रीफ़ करेंगे। \v 4 ~इसी तरह मैं 'उम्र भर तुझे मुबारक कहूँगा; और तेरा नाम लेकर अपने हाथ उठाया करूँगा; \s5 \v 5 ~मेरी जान जैसे गूदे और चर्बी से सेर होगी, और मेरा मुँह मसरूर लबों से तेरी ता'रीफ़ करेगा | \v 6 जब मैं बिस्तर पर तुझे याद करूँगा, और रात के एक एक पहर में तुझ पर ध्यान करूँगा ; \s5 \v 7 ~इसलिए कि तू मेरा मददगार रहा है, ~और मैं तेरे परों के साये में ख़ुशी ~मनाऊँगा। \v 8 ~मेरी जान को तेरी ही धुन है; तेरा दहना हाथ मुझे संभालता है। \s5 \v 9 लेकिन जो मेरी जान की हलाकत के दर पै हैं, वह ज़मीन के तह में चले जाएँगे। \v 10 वह तलवार के हवाले होंगे, वह गीदड़ों का लुक्मा बनेंगे। \s5 \v 11 लेकिन बादशाह खु़दा में ख़ुश होगा; जो उसकी क़सम खाता है वह फ़ख़्र करेगा; क्यूँकि झूट बोलने वालों का मुँह बन्द कर दिया जाएगा \s5 \c 64 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदा मेरी फ़रियाद की आवाज़ सुन ले मेरी जान को दुश्मन के ख़ौफ़ से बचाए रख | \v 2 ~शरीरों के ख़ुफ़िया मश्वरे से, और बदकिरदारों के हँगामे से मुझे~छिपा ले \s5 \v 3 जिन्होंने अपनी ज़बान तलवार की~तरह तेज़ की, और तल्ख़ बातों के तीरों का निशाना~लिया है; \v 4 ताकि उनको ख़ुफ़िया मक़ामों में कामिल आदमी पर चलाएँ; वह उनको अचानक उस पर चलाते हैं और डरते नहीं। \s5 \v 5 ~वह बुरे काम का मज़बूत इरादा करते हैं; वह फंदे लगाने की सलाह करते हैं, वह कहते हैं, "हम को कौन देखेगा?" \v 6 ~वह शरारतों को खोज खोज कर निकालते हैं; वह कहते हैं, "हमने खू़ब खोज लगाया।" उनमें से हर एक का बातिन और दिल 'अमीक है। \s5 \v 7 लेकिन ख़ुदा उन पर तीर चलाएगा; वह अचानक तीर से ज़ख़्मी हो जाएँगे। \v 8 ~और उन ही की ज़बान उनको तबाह करेगी; जितने उनको देखेंगे सब सिर हिलाएँगे। \v 9 और सब लोग डर जाएँगे, और ख़ुदा के काम का बयान करेंगे; और उसके तरीक़-ए-'अमल को बख़ूबी समझ लेंगे। \s5 \v 10 ~सादिक़ ख़ुदावन्द में ख़ुश होगा, और उस पर भरोसा करेगा, और जितने रास्तदिल हैं सब फ़ख़्र करेंगे। \s5 \c 65 \p \v 1 ऐ ख़ुदा, सिय्यून में ता'रीफ़ तेरी मुन्तज़िर है; और तेरे लिए मिन्नत पूरी की जाएगी। \v 2 ~ऐ दु'आ के सुनने वाले! सब बशर तेरे पास आएँगे। \v 3 ~बद आ'माल मुझ पर ग़ालिब आ जाते हैं; लेकिन हमारी ख़ताओं का कफ़्फ़ारा तू ही देगा। \s5 \v 4 मुबारक है वह आदमी जिसे तू बरगुज़ीदा करता और अपने पास आने देता है, ताकि वह तेरी बारगाहों में रहे। हम तेरे घर की खू़बी से, या'नी तेरी पाक हैकल से आसूदा होंगे। \s5 \v 5 ~ऐ हमारे नजात देने वाले ख़ुदा! तू जो ज़मीन के सब किनारों का और समन्दर पर दूर दूर रहने वालों का तकिया है; ख़ौफ़नाक बातों के ज़रिए' से तू हमें सदाक़त से जवाब देगा। \s5 \v 6 ~तू कु़दरत से कमरबस्ता होकर, अपनी ताक़त से पहाड़ों को मज़बूती बख़्शता है। \v 7 ~तू समन्दर के और उसकी मौजों के शोर को, और उम्मतों के हँगामे को ख़त्म कर देता है। \s5 \v 8 ~ज़मीन की इन्तिहा के रहने वाले, तेरे मु'अजिज़ों से डरते हैं; तू मतला'-ए-सुबह को और शाम को ख़ुशी बख़्शता है। \v 9 तू ज़मीन पर तवज्जुह करके उसे सेराब करता है, तू उसे खू़ब मालामाल कर देता है; ख़ुदा का दरिया पानी से भरा है; जब तू ज़मीन को यूँ तैयार कर लेता है तो उनके लिए अनाज मुहय्या करता है। \s5 \v 10 उसकी रेघारियों को खू़ब सेराब उसकी मेण्डों को बिठा देता उसे बारिश से नर्म करता है, उसकी पैदावार में बरकत देता \v 11 तू साल को अपने लुत्फ़ का ताज पहनाता है; और तेरी राहों से रौग़न टपकता है। \v 12 वह बियाबान की चरागाहों पर टपकता है, और पहाड़ियाँ ख़ुशी से कमरबस्ता हैं। \s5 \v 13 चरागाहों में झुंड के झुंड फैले हुए हैं, वादियाँ अनाज से ढकी हुई हैं, वह ख़ुशी के मारे ललकारती और गाती हैं| \s5 \c 66 \p \v 1 ऐ सारी ज़मीन ख़ुदा के सामने ख़ुशी का ना'रा मार | \v 2 उसके नाम के जलाल का हम्द गाओ; सिताइश करते हुए उसकी तम्जीद करो। \s5 \v 3 ख़ुदा से कहो, "तेरे काम क्या ही बड़े हैं! तेरी बड़ी क़ुदरत के ज़रिए' तेरे दुश्मन आजिज़ी करेंगे। \v 4 सारी ज़मीन तुझे सिज्दा करेगी, और तेरे सामने गाएगी; वह तेरे नाम के हम्द गाएँगे।" \s5 \v 5 आओ और ख़ुदा के कामों को देखो; बनी आदम के साथ वह अपने सुलूक में बड़ा है। \v 6 उसने समन्दर को खु़श्क ज़मीन बना दिया: वह दरिया में से पैदल गुज़र गए। वहाँ हम ने उसमें ख़ुशी मनाई। \v 7 वह अपनी कु़दरत से हमेशा तक सल्तनत करेगा, उसकी आँखें क़ौमों को देखती रहती हैं। सरकश लोग तकब्बुर न करें। \s5 \v 8 ऐ लोगो, हमारे ख़ुदा को मुबारक कहो, और उसकी तारीफ़ में आवाज़ बुलंद करो।~। \v 9 वही हमारी जान को ज़िन्दा रखता है; और हमारे पाँव को फिसलने नहीं देता \s5 \v 10 क्यूँकि ऐ ख़ुदा, तूने हमें आज़मा लिया है; तूने हमें ऐसा ताया जैसे चाँदी ताई जाती है। \v 11 तूने हमें जाल में फँसाया, और हमारी कमर पर भारी बोझ रख्खा। \v 12 तूने सवारों को हमारे सिरों पर से गुज़ारा हम आग में से और पानी में से होकर गुज़रे; लेकिन तू हम को अफ़रात की जगह में निकाल लाया। \s5 \v 13 मैं सोख़्तनी कु़र्बानियाँ लेकर तेरे घर में दाख़िल हूँगा; और अपनी मिन्नतें तेरे सामने अदा करूँगा | \v 14 जो मुसीबत के वक़्त मेरे लबों से निकलीं, और मैंने अपने मुँह से मानें | \v 15 मैं मोटे मोटे जानवरों की सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ मेंढों की खु़शबू के साथ अदा करूँगा। मैं बैल और बकरे पेश करूँगा | \s5 \v 16 ऐ ख़ुदा से डरने वालो, सब आओ, सुनो; और मैं बताऊँगा कि उसने मेरी जान के लिए क्या क्या किया है। \v 17 मैंने अपने मुँह से उसको पुकारा, उसकी तम्जीद मेरी ज़बान से हुई। \v 18 अगर मैं बदी को अपने दिल में रखता, तो ख़ुदावन्द मेरी न सुनता। \s5 \v 19 लेकिन ख़ुदा ने यक़ीनन सुन लिया है; उसने मेरी दु'आ की आवाज़ पर कान लगाया है। \v 20 ख़ुदा मुबारक हो, जिसने न तो मेरी दु'आ को रद्द किया, ~और न अपनी शफ़क़त को मुझ से बाज़ रख्खा~! \s5 \c 67 \p \v 1 ख़ुदा हम पर रहम करे और हम को बरक़त बख़्शे; और अपने चेहरे को हम पर जलवागर फ़रमाए, (सिलाह) \v 2 ताकि तेरी राह ज़मीन पर ज़ाहिर हो जाए, और तेरी नजात सब क़ौमों पर| \s5 \v 3 ऐ ख़ुदा! लोग तेरी ता'रीफ़ करें; सब लोग तेरी ता'रीफ़ करें | \v 4 उम्मते ख़ुश हों और ख़ुशी से ललकारें, क्यूँकि तू रास्ती से लोगों की 'अदालत करेगा, और ज़मीन की उम्मतों पर हुकूमत करेगा (सिलाह) \s5 \v 5 ऐ ख़ुदा! लोग तेरी ता'रीफ़ करें; सब लोग तेरी ता'रीफ़ करें| \v 6 ज़मीन ने अपनी पैदावार दे दी, ख़ुदा या'नी हमारा ख़ुदा हम को बरकत देगा | \s5 \v 7 ~ख़ुदा हम को बरकत देगा; और ज़मीन की इन्तिहा तक सब लोग उसका डर मानेंगे | \s5 \c 68 \p \v 1 ख़ुदा उठे, उसके दुश्मन तितर बितर हों, उससे 'अदावत ~रखने वाले उसके सामने से भाग जाएँ। \v 2 जैसे धुवाँ उड़ जाता है, वैसे ही तू उनको उड़ा दे; जैसे मोम आग के सामने पिघला जाता, वैसे ही शरीर ख़ुदा के सामने फ़ना हो जाएँ। \v 3 लेकिन सादिक़ ख़ुशी मनाएँ, वह ख़ुदा के सामने ख़ुश हों, ~बल्कि वह खु़शी से फूले न समाएँ। \s5 \v 4 ख़ुदा के लिए गाओ, उसके नाम की मदहसराई करो; सहरा के सवार के लिए शाहराह तैयार करो; उसका नाम याह है, ~और तुम उसके सामने ख़ुश हो। \v 5 ख़ुदा अपने मुक़द्दस मकान में, यतीमों का बाप और बेवाओं का दादरस है। \v 6 खु़दा तन्हा को ख़ान्दान बख़्शता है; वह कैदियों को आज़ाद करके इक़बालमंद करता है; लेकिन सरकश ख़ुश्क ज़मीन में रहते हैं। \s5 \v 7 ऐ ख़ुदा, जब तू अपने लोगों के आगे-आगे चला, जब तू वीरान में से गुज़रा, (सिलाह) \v 8 तो ज़मीन काँप उठी; ख़ुदा के सामने आसमान गिर पड़े, ~बल्कि पाक पहाड़ भी ख़ुदा के सामने, इस्राईल के ख़ुदा के सामने काँप उठा। \s5 \v 9 ऐ ख़ुदा, तूने खू़ब मेंह बरसाया: तूने अपनी खु़श्क मीरास को ताज़गी बख़्शी। \v 10 तेरे लोग उसमें बसने लगे; ऐ ख़ुदा, तूने अपने फ़ैज़ से ग़रीबों के लिए उसे तैयार किया। \s5 \v 11 ख़ुदावन्द हुक्म देता है; ख़ुशख़बरी देने वालियाँ फ़ौज की ~फ़ौज हैं। \v 12 लश्करों के बादशाह भागते हैं, वह भाग जाते हैं; ~और~'औरत घर में बैठी बैठी लूट का माल बाँटती है। \v 13 जब तुम भेड़ सालों में पड़े रहते हो, तो उस कबूतर की तरह होगे जिसके बाज़ू जैसे चाँदी से, और पर ख़ालिस सोने से मंढ़े हुए हों। \s5 \v 14 जब क़ादिर-ए-मुतलक ने बादशाहों को उसमें परागंदा किया, तो ऐसा हाल हो गया, जैसे सलमोन पर बर्फ़ पड़ रही थी। \v 15 बसन का पहाड़ ख़ुदा का पहाड़ है; बसन का पहाड़ ऊँचा पहाड़ है। \v 16 ऐ ऊँचे पहाड़ो, तुम उस पहाड़ को क्यूँ ताकते हो, जिसे ख़ुदा ने अपनी सुकूनत के लिए पसन्द किया है, बल्कि ख़ुदावन्द उसमें हमेशा तक रहेगा? \s5 \v 17 ~ख़ुदा के रथ बीस हज़ार, बल्कि हज़ारहा हज़ार हैं; ~ख़ुदावन्द जैसा पाक पहाड़ में वैसा ही उनके बीच हैकल में है। \v 18 तूने~'आलम-ए-बाला को सु'ऊद फ़रमाया, तू कैदियों को साथ ले गया; तुझे लोगों से बल्कि सरकशों से भी हदिए मिले, ~ताकि ख़ुदावन्द ख़ुदा उनके साथ रहे। \s5 \v 19 ख़ुदावन्द मुबारक हो, जो हर रोज़ हमारा बोझ उठाता है; ~वही हमारा नजात देने वाला ख़ुदा है। \v 20 ख़ुदा हमारे लिए छुड़ाने वाला ख़ुदा है और मौत से बचने की राहें भी ख़ुदावन्द ख़ुदा की हैं। \v 21 ~लेकिन ख़ुदावन्द अपने दुश्मनों के सिर को, और लगातार गुनाह करने वाले की बालदार खोपड़ी को चीर डालेगा। \s5 \v 22 ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, "मैं उनको बसन से निकाल लाऊँगा; ~मैं उनको समन्दर की तह से निकाल लाऊँगा | \v 23 ताकि तू अपना पाँव ख़ून से तर करे, और तेरे दुश्मन तेरे कुत्तों के मुँह का निवाला बनें|" \s5 \v 24 ऐ ख़ुदा! लोगों ने तेरी आमद देखी, मक़दिस में मेरे ख़ुदा, ~मेरे बादशाह की 'आमद \v 25 ~गाने वाले आगे आगे और बजाने वाले पीछे पीछे चले, दफ़ बजाने वाली जवान लड़कियाँ बीच में। \s5 \v 26 तुम जो इस्राईल के चश्मे से हो, ख़ुदावन्द को मुबारक कहो, ~हाँ, मजमे'~में ख़ुदा को मुबारक कहो। \v 27 वहाँ छोटा बिनयमीन उनका हाकिम है, यहूदाह के उमरा और उनके मुशीर, ज़बूलून के उमरा और नफ़्ताली के उमरा हैं। \s5 \v 28 तेरे ख़ुदा ने तेरी पायदारी का हुक्म दिया है, ऐ ख़ुदा, जो कुछ तूने हमारे लिए किया है, उसे पायदारी बख़्श। \v 29 तेरी हैकल की वजह से जो यरूशलीम में है, बादशाह तेरे पास हदिये लाएँगे। \s5 \v 30 तू नैसतान के जंगली जानवरों को धमका दे, सांडों के ग़ोल को, और क़ौमों के बछड़ों को। जो चाँदी के सिक्कों को पामाल करते हैं:~उसने जंगजू क़ौमों को परागंदा कर दिया है। \v 31 उमरा मिस्र से आएँगे; कूश ख़ुदा की तरफ़ अपने हाथ बढ़ाने में जल्दी करेगा। \s5 \v 32 ऐ ज़मीन की ममलुकतो, ख़ुदा के लिए गाओ; ख़ुदावन्द की मदहसराई करो। \v 33 (सिलाह)~उसी की जो क़दीम आसमान नहीं बल्कि आसमानों पर सवार है; देखो वह अपनी आवाज़ बुलंद करता है, उसकी आवाज़ में कु़दरत है। \s5 \v 34 ख़ुदा ही की ताज़ीम करो, उसकी हश्मत इस्राईल में है, ~और उसकी क़ुदरत आसमानों पर। \v 35 ऐ ख़ुदा, तू अपने मक़दिसों में मुहीब है, इस्राईल का ख़ुदा ही अपने लोगों को ज़ोर और तवानाई बख़्शता है। खु़दा मुबारक हो। \s5 \c 69 \p \v 1 ऐ ख़ुदा मुझ को बचा ले, क्यूँकि पानी मेरी जान तक आ पहुँचा है| \v 2 मैं गहरी दलदल में धंसा जाता हूँ, जहाँ खड़ा नहीं रहा जाता; ~मैं गहरे पानी में आ पड़ा हूँ, जहाँ सैलाब मेरे सिर पर से गुज़रता है। \s5 \v 3 मैं चिल्लाते चिल्लाते थक गया, मेरा गला सूख गया; मेरी आँखें अपने ख़ुदा के इन्तिज़ार में पथरा गई। \v 4 मुझ से बे वजह~'अदावत रखने वाले, मेरे सिर के बालों से ज़्यादा हैं; मेरी हलाकत के चाहने वाले और नाहक़ दुश्मन ज़बरदस्त हैं, तब जो मैंने छीना नहीं मुझे देना पड़ा। \s5 \v 5 ऐ ख़ुदा, तू मेरी हिमाक़त से वाक़िफ़ है, और मेरे गुनाह तुझ से पोशीदा नहीं हैं | \v 6 ऐ ख़ुदावन्द, लश्करों के ख़ुदा, तेरी उम्मीद रखने वाले मेरी वजह से शर्मिन्दा न हों, ऐ इस्राईल के ख़ुदा, तेरे तालिब मेरी वजह से रुस्वा न हों। \s5 \v 7 क्यूँकि तेरे नाम की ख़ातिर मैंने मलामत उठाई है, शर्मिन्दगी मेरे मुँह पर छा गई है। \v 8 मैं अपने भाइयों के नज़दीक बेगाना बना हूँ, और अपनी माँ के फ़रज़न्दों के नज़दीक अजनबी। \v 9 क्यूँकि तेरे घर की गै़रत मुझे खा गई, और तुझ को मलामत करने वालों की मलामतें मुझ पर आ पड़ीं हैं। \s5 \v 10 मेरे रोज़ा रखने से मेरी जान ने ज़ारी की, और यह भी मेरी मलामत का ज़रिए' हुआ। \v 11 जब मैं ने टाट ओढ़ा, तो उनके लिए ज़र्ब-उल-मसल ठहरा| \v 12 फाटक पर बैठने वालों में मेरा ही ज़िक्र रहता है, और मैं नशे बाज़ों का हम्द हूँ। \s5 \v 13 लेकिन ऐ ख़ुदावन्द, तेरी ख़ुशनूदी के वक़्त मेरी दु'आ तुझ ही से है; ऐ ख़ुदा, अपनी शफ़क़त की फ़िरावानी से, अपनी नजात की सच्चाई में जवाब दे। \v 14 मुझे दलदल में से निकाल ले और धसने न दे:~मुझ से~'अदावत रखने वालों, और गहरे पानी से मुझे बचा ले। \v 15 मैं सैलाब में डूब न जाऊँ, और गहराव मुझे निगल न जाए, ~और पाताल मुझ पर अपना मुँह बन्द न कर ले \s5 \v 16 ऐ ख़ुदावन्द, मुझे जवाब दे, क्यूँकि मेरी शफ़क़त ख़ूब है अपनी रहमतों की कसरत के मुताबिक़ मेरी तरफ़ मुतवज्जिह हो। \v 17 अपने बन्दे से रूपोशी न कर; क्यूँकि मैं मुसीबत में हूँ, ~जल्द मुझे जवाब दे। \s5 \v 18 मेरी जान के पास आकर उसे छुड़ा ले मेरे दुश्मनों के सामने मेरा फ़िदिया दे। \v 19 तू मेरी मलामत और शर्मिन्दगी और रुस्वाई से वाक़िफ़ है; ~मेरे दुश्मन सब के सब तेरे सामने हैं। \s5 \v 20 मलामत ने मेरा दिल तोड़ दिया, मैं बहुत उदास हूँ और मैं इसी इन्तिज़ार में रहा कि कोई तरस खाए लेकिन कोई न था; ~और तसल्ली देने वालों का मुन्तज़िर रहा लेकिन कोई न मिला। \v 21 ~उन्होंने मुझे खाने को इन्द्रायन भी दिया, और मेरी प्यास बुझाने को उन्होंने मुझे सिरका पिलाया। \s5 \v 22 उनका दस्तरख़्वान उनके लिए फंदा हो जाए। और जब वह अमन से हों तो जाल बन जाए। \v 23 उनकी आँखें तारीक हो जाएँ, ताकि वह देख न सके, और उनकी कमरें हमेशा काँपती रहें। \s5 \v 24 अपना ग़ज़ब उन पर उँडेल दे, और तेरा शदीद क़हर उन पर आ पड़े। \v 25 उनका घर उजड़ जाए, उनके खे़मों में कोई न बसे। \s5 \v 26 क्यूँकि वह उसको जिसे तूने मारा है और जिनको तूने जख़्मी किया है, उनके दुख का ज़िक्र करते हैं। \v 27 उनके गुनाह पर गुनाह बढ़ा; और वह तेरी सदाक़त में दाख़िल न हों। \s5 \v 28 उनके नाम किताब-ए-हयात से मिटा और सादिकों के साथ मुन्दर्ज न हों। \v 29 लेकिन मैं तो ग़रीब और ग़मगीन हूँ। ऐ ख़ुदा तेरी नजात मुझे सर बुलन्द करे। \s5 \v 30 मैं हम्द गाकर ख़ुदा के नाम की ता'रीफ़ करूँगा, और शुक्रगुज़ारी के साथ उसकी तम्जीद करूँगा। \v 31 यह ख़ुदावन्द को बैल से ज़्यादा पसन्द होगा, बल्कि सींग और खुर वाले बछड़े से ज़्यादा। \s5 \v 32 हलीम इसे देख कर ख़ुश हुए हैं; ऐ ख़ुदा के तालिबो, ~तुम्हारे दिल ज़िन्दा रहें। \v 33 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द मोहताजों की सुनता है, और अपने क़ैदियों को हक़ीर नहीं जानता। \s5 \v 34 आसमान और ज़मीन उसकी ता'रीफ़ करें, और समन्दर और जो कुछ उनमें चलता फिरता है। \v 35 क्यूँकि ख़ुदा सिय्यून को बचाएगा, और यहूदाह के शहरों को बनाएगा; और वह वहाँ बसेंगे और उसके वारिस होंगे। \v 36 उसके बन्दों की नसल भी उसकी मालिक होगी, और उसके नाम से मुहब्बत रखने वाले उसमें बसेंगे। \s5 \c 70 \p \v 1 ऐ ख़ुदा! मुझे छुड़ाने के लिए, ऐ ख़ुदावन्द, मेरी मदद के लिए कर जल्दी कर! \v 2 जो मेरी जान को हलाक करने के दर पै हैं, वह सब शर्मिन्दा और रुस्वा हों| जो मेरे नुक़्सान से ख़ुश हैं, वह पस्पा और रुस्वा हों | \v 3 अहा! हा! हा! करने वाले अपनी रुस्वाई के वजह से पस्पा हों| \s5 \v 4 तेरे सब तालिब तुझ में ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम हों; तेरी नजात के 'आशिक़ हमेशा कहा करें, "ख़ुदा की तम्जीद हो! " \v 5 लेकिन मैं ग़रीब और मोहताज हूँ; ऐ ख़ुदा, मेरे पास जल्द आ! मेरा मददगार और छुड़ाने वाला तू ही है; ऐ ख़ुदावन्द, देर न कर! \s5 \c 71 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द तू ही मेरी पनाह है; मुझे कभी शर्मिन्दा न होने दे! \v 2 अपनी सदाक़त में मुझे रिहाई दे और छुड़ा; मेरी तरफ़ कान लगा, और मुझे बचा ले। \v 3 तू मेरे लिए ठहरने की चट्टान हो, जहाँ मैं बराबर जा सकूँ; ~तूने मेरे बचाने का हुक्म दे दिया है, क्यूँकि मेरी चट्टान और मेरा क़िला' तू ही है। \s5 \v 4 ऐ मेरे ख़ुदा, मुझे शरीर के हाथ से, नारास्त और बेदर्द आदमी के हाथ से छुड़ा। \v 5 क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, तू ही मेरी उम्मीद है; लड़कपन से मेरा भरोसा तुझ ही पर है। \s5 \v 6 तू पैदाइश ही से मुझे संभालता आया है तू मेरी माँ के बतन ही से मेरा शफ़ीक़ रहा है; इसलिए मैं हमेशा तेरी सिताइश करता रहूँगा। \v 7 मैं बहुतों के लिए हैरत की वजह हूँ। लेकिन तू मेरी मज़बूत पनाहगाह है। \s5 \v 8 मेरा मुँह तेरी सिताइश से, और तेरी ता'ज़ीम से दिन भर पुर रहेगा। \v 9 ~बुढ़ापे के वक़्त मुझे न छोड़; मेरी ज़ईफ़ी में मुझे छोड़ न दे। \s5 \v 10 क्यूँकि मेरे दुश्मन मेरे बारे में बातें करते हैं, और जो मेरी जान की घात में हैं वह आपस में मशवरा करते हैं, \v 11 और कहते हैं, कि ख़ुदा ने उसे छोड़ दिया है; उसका पीछा करो और पकड़ लो, क्यूँकि छुड़ाने वाला कोई नहीं। \s5 \v 12 ऐ ख़ुदा, मुझ से दूर न रह! ऐ मेरे ख़ुदा, मेरी मदद के लिए जल्दी कर! \v 13 मेरी जान के मुख़ालिफ़ शर्मिन्दा और फ़ना हो जाएँ; मेरा नुक़्सान चाहने वाले मलामत और रुस्वाई से मुलब्बस हो। \s5 \v 14 लेकिन मैं हमेशा उम्मीद रख्खूंगा, और तेरी ता'रीफ़ और भी ज़्यादा किया करूँगा। \v 15 मेरा मुँह तेरी सदाक़त का, और तेरी नजात का बयान दिन भर करेगा; क्यूँकि मुझे उनका शुमार मा'लूम नहीं। \v 16 मैं ख़ुदावन्द ख़ुदा की क़ुदरत के कामों का इज़हार करूँगा; मैं सिर्फ़ तेरी ही सदाक़त का ज़िक्र करूँगा। \s5 \v 17 ऐ ख़ुदा, तू मुझे बचपन से सिखाता आया है, और मैं अब तक तेरे~'अजाइब का बयान करता रहा हूँ। \v 18 ऐ ख़ुदा, जब मैं बुड्ढा और सिर सफ़ेद हो जाऊँ तो मुझे ~न छोड़ना; ~जब तक कि मैं तेरी क़ुदरत आइंदा नसल पर, ~और तेरा ज़ोर हर आने वाले पर ज़ाहिर न कर दूँ। \s5 \v 19 ऐ ख़ुदा, तेरी सदाक़त भी बहुत बलन्द है। ऐ ख़ुदा, तेरी तरह ~कौन है जिसने बड़े बड़े काम किए हैं? \v 20 तू जिसने हम को बहुत और सख़्त तकलीफ़ें दिखाई हैं फिर हम को ज़िन्दा करेगा; और ज़मीन की तह से हमें फिर ऊपर ले आएगा। \s5 \v 21 तू मेरी~'अज़मत को बढ़ा, और फिर कर मुझे तसल्ली दे। \v 22 ऐ मेरे ख़ुदा, मैं बरबत पर तेरी, हाँ तेरी सच्चाई की हम्द करूँगा ; ऐ इस्राईल के पाक! मैं सितार के साथ तेरी मदहसराई करूँगा । \s5 \v 23 ~जब मैं तेरी मदहसराई करूँगा, तो मेरे होंट बहुत ख़ुश होंगे; और मेरी जान भी जिसका तूने फ़िदिया दिया है। \v 24 और मेरी ज़बान दिन भर तेरी सदाक़त का ज़िक्र करेगी; ~क्यूँकि मेरा नुक़्सान चाहने वाले शर्मिन्दा और पशेमान हुए हैं। \s5 \c 72 \p \v 1 ऐ ख़ुदा! बादशाह को अपने अहकाम और शहज़ादे को अपनी सदाक़त 'अता फ़रमा। \v 2 वह सदाक़त से तेरे लोगों की, और इन्साफ़ से तेरे ग़रीबों की 'अदालत करेगा। \v 3 इन लोगों के लिए पहाड़ों से सलामती के, और पहाड़ियों से सदाक़त के फल पैदा होंगे। \s5 \v 4 वह इन लोगों के गरीबों की~'अदालत करेगा; वह मोहताजों की औलाद को बचाएगा, और ज़ालिम को टुकड़े टुकड़े कर डालेगा। \v 5 जब तक सूरज और चाँद क़ायम हैं, लोग नसल-दर-नसल तुझ से डरते रहेंगे। \s5 \v 6 वह कटी हुई घास पर मेंह की तरह, और ज़मीन को सेराब करने वाली बारिश की तरह नाज़िल होगा। \v 7 उसके दिनों में सादिक बढ़ेंगे, और जब तक चाँद क़ायम है ख़ूब अमन रहेगा। \s5 \v 8 उसकी सल्तनत समन्दर से समन्दर तक और दरिया-ए-फ़रात से ज़मीन की इन्तिहा तक होगी। \v 9 वीरान के रहने वाले उसके आगे झुकेंगे, और उसके दुश्मन ख़ाक चाटेंगे। \v 10 तरसीस के और जज़ीरों के बादशाह नज़रें पेश करेंगे, सबा और सेबा के बादशाह हदिये लाएँगे। \s5 \v 11 बल्कि सब बादशाह उसके सामने सर्नगूँ होंगे कुल क़ौमें उसकी फरमाबरदार होंगी। \v 12 क्यूँकि वह मोहताज को जब वह फ़रियाद करे, और ग़रीब की जिसका कोई मददगार नहीं छुड़ाएगा। \s5 \v 13 वह ग़रीब और मुहताज पर तरस खाएगा, और मोहताजों की जान को बचाएगा। \v 14 वह फ़िदिया देकर उनकी जान को ज़ुल्म और जब्र से छुड़ाएगा और उनका खू़न उसकी नज़र में बेशक़ीमत होगा | \s5 \v 15 वह ज़िन्दा रहेंगे और सबा का सोना उसको दिया जाएगा। लोग बराबर उसके हक़ में दु'आ करेंगे: वह दिनभर उसे दु'आ देंगे। \v 16 ज़मीन में पहाड़ों की चोटियों पर अनाज को अफ़रात होगी; ~उनका फल लुबनान के दरख़्तों की तरह झूमेगा; और शहर वाले ज़मीन की घास की तरह हरे भरे होंगे। \s5 \v 17 उसका नाम हमेशा क़ायम रहेगा, जब तक सूरज है उसका नाम रहेगा; और लोग उसके वसीले से बरकत पाएँगे, सब क़ौमें उसे खु़शनसीब कहेंगी। \s5 \v 18 खु़दावन्द ख़ुदा इस्राईल का खु़दा, मुबारक हो! ~वही~'अजीब-ओ-ग़रीब काम करता है। \v 19 उसका जलील नाम हमेशा के लिए सारी ज़मीन उसके जलाल से मा'मूर हो| आमीन सुम्मा आमीन! \v 20 दाऊद बिन यस्सी की दु'आएँ तमाम हुई। \s5 \c 73 \p \v 1 बेशक ख़ुदा इस्राईल पर, या'नी पाक दिलों पर मेहरबान है। \v 2 लेकिन मेरे पाँव तो फिसलने को थे, मेरे क़दम क़रीबन लग़ज़िश खा चुके थे। \v 3 क्यूँकि जब मैं शरीरों की इक़बालमंदी देखता, तो मग़रूरों पर हसद करता था। \s5 \v 4 इसलिए के उनकी मौत में दर्द नहीं, बल्कि उनकी ताक़त बनी रहती है। \v 5 वह और आदमियों की तरह मुसीबत में नहीं पड़ते; न और लोगों की तरह उन पर आफ़त आती है। \s5 \v 6 इसलिए गु़रूर उनके गले का हार है, जैसे वह ज़ुल्म से मुलब्बस हैं। \v 7 उनकी आँखें चर्बी से उभरी हुई हैं, उनके दिल के ख़यालात हद से बढ़ गए हैं। \s5 \v 8 वह ठट्ठा मारते, और शरारत से जु़ल्म की बातें करते हैं; वह बड़ा बोल बोलते हैं। \v 9 उनके मुँह आसमान पर हैं, और उनकी ज़बाने ज़मीन की सैर करती हैं। \s5 \v 10 इसलिए उसके लोग इस तरफ़ रुजू' होते हैं, और जी भर कर पीते हैं। \v 11 वह कहते हैं, "ख़ुदा को कैसे मा'लूम है?~क्या हक़ ता'ला को कुछ 'इल्म है?" \v 12 इन शरीरों को देखो, यह हमेशा चैन से रहते हुए दौलत बढ़ाते हैं। \s5 \v 13 यक़ीनन मैने बेकार अपने दिल को साफ़, और अपने हाथों को पाक किया; \v 14 क्यूँकि मुझ पर दिन भर आफ़त रहती है, और मैं हर सुबह तम्बीह पाता हूँ। \v 15 अगर मैं कहता, कि यूँ कहूँगा; तो तेरे फ़र्ज़न्दों की नसल से बेवफ़ाई करता । \s5 \v 16 जब मैं सोचने लगा कि इसे कैसे समझूँ, तो यह मेरी नज़र में दुश्वार था, \v 17 जब तक कि मैंने ख़ुदा के मक़दिस में जाकर, उनके अंजाम को न सोचा। \s5 \v 18 यक़ीनन तू उनको फिसलनी जगहों में रखता है, और हलाकत की तरफ़ ढकेल देता है। \v 19 वह दम भर में कैसे उजड़ गए! वह हादिसों से बिल्कुल फ़ना हो गए। \v 20 जैसे जाग उठने वाला ख़्वाब को, वैसे ही तू ऐ ख़ुदावन्द, ~जाग कर उनकी सूरत को नाचीज़ जानेगा। \s5 \v 21 क्यूँकि मेरा दिल रंजीदा हुआ, और मेरा जिगर छिद गया था; \v 22 मैं बे'अक्ल और जाहिल था, मैं तेरे सामने जानवर की तरह था। \s5 \v 23 तोभी मैं बराबर तेरे साथ हूँ। तूने मेरा दाहिना हाथ पकड़ रखा है | \v 24 तू अपनी मसलहत से मेरी रहनुमाई करेगा, और आख़िरकार मुझे जलाल में कु़बूल फ़रमाएगा। \s5 \v 25 आसमान पर तेरे अलावा मेरा कौन है? और ज़मीन पर मैं तेरे अलावा किसी का मुश्ताक़ नहीं। \v 26 जैसे मेरा जिस्म और मेरा दिल ज़ाइल हो जाएँ, तोभी ख़ुदा हमेशा मेरे दिल की ताक़त और मेरा हिस्सा है। \s5 \v 27 क्यूँकि देख, वह जो तुझ से दूर हैं फ़ना हो जाएँगे; तूने उन सबको जिन्होंने तुझ से बेवफ़ाई की, हलाक कर दिया है। \v 28 लेकिन मेरे लिए यही भला है कि ख़ुदा की नज़दीकी हासिल करूँ; मैंने ख़ुदावन्द ख़ुदा को अपनी पनाहगाह बना लिया है ताकि तेरे सब कामों का बयान करूँ| \s5 \c 74 \p \v 1 ऐ ख़ुदा! तूने हम को हमेशा के लिए क्यूँ छोड़ दिया?~तेरी चरागाह की भेड़ों पर तेरा क़हर क्यूँ भड़क रहा है? \v 2 अपनी जमा'अत को जिसे तूने पहले से ख़रीदा है, जिसका तूने फ़िदिया दिया ताकि तेरी मीरास का क़बीला हो, और कोह-ए-सिय्यून को जिस पर तूने सुकूनत की है, याद कर। \s5 \v 3 अपने क़दम दाइमी खण्डरों की तरफ़ बढ़ा; या'नी उन सब ख़राबियों की तरफ़ जो दुश्मन ने मक़दिस में की हैं। \v 4 तेरे मजमे'~में तेरे मुख़ालिफ़ गरजते रहे हैं; निशान के लिए उन्होंने अपने ही झंडे खड़े किए हैं। \v 5 वह उन आदमियों की तरह थे, जो गुनजान दरख़्तों पर कुल्हाड़े चलाते हैं;| \v 6 और अब वह उसकी सारी नक़्शकारी को, कुल्हाड़ी और हथौड़ों से बिल्कुल तोड़े डालते हैं। \s5 \v 7 उन्होंने तेरे हैकल में आग लगा दी है, और तेरे नाम के घर को ज़मीन तक मिस्मार करके नापाक किया है। \v 8 उन्होंने अपने दिल में कहा है, "हम उनको बिल्कुल वीरान कर डालें; "उन्होंने इस मुल्क में ख़ुदा के सब 'इबादतख़ानों को जला दिया है। \s5 \v 9 हमारे निशान नज़र नहीं आते; और कोई नबी नहीं रहा, और हम में कोई नहीं जानता कि यह हाल कब तक रहेगा। \v 10 ऐ ख़ुदा, मुख़ालिफ़ कब तक ता'नाज़नी करता रहेगा?~क्या दुश्मन हमेशा तेरे नाम पर कुफ़्र बकता रहेगा? \v 11 तू अपना हाथ क्यूँ रोकता है? अपना दहना हाथ बाल से निकाल और फ़ना कर। \s5 \v 12 ख़ुदा क़दीम से मेरा बादशाह है, जो ज़मीन पर नजात बख़्शता है। \v 13 तूने अपनी क़ुदरत से समन्दर के दो हिस्से कर दिए तू पानी में अज़दहाओं के सिर कुचलता है। \s5 \v 14 तूने लिवियातान के सिर के टुकड़े किए, और उसे वीरान के रहने वालों की खू़राक बनाया। \v 15 तूने चश्मे और सैलाब जारी किए; तूने बड़े बड़े दरियाओं को ख़ुश्क कर डाला। \s5 \v 16 दिन तेरा है, रात भी तेरी ही है; नूर और आफ़ताब को तू ही ने तैयार किया। \v 17 ज़मीन की तमाम हदें तू ही ने ठहराई हैं; गर्मी और सर्दी के मौसम तू ही ने बनाए। \s5 \v 18 ऐ ख़ुदावन्द, इसे याद रख के दुश्मन ने ता'नाज़नी की है, ~और बेवकूफ़ क़ौम ने तेरे नाम की तक्फ़ीर की है। \v 19 अपनी फ़ाख़्ता की जान की जंगली जानवर के हवाले न कर; अपने ग़रीबों की जान को हमेशा के लिए भूल न जा। \s5 \v 20 अपने~'अहद का ख़याल फ़रमा, क्यूँकि ज़मीन के तारीक मक़ाम जु़ल्म के घरों से भरे हैं। \v 21 मज़लूम शर्मिन्दा होकर न लौटे; ग़रीब और मोहताज तेरे नाम की ता'रीफ़ करें। \s5 \v 22 उठ ऐ ख़ुदा, आप ही अपनी वकालत कर; याद कर कि अहमक़ दिन भर तुझ पर कैसी ता'नाज़नी करता है। \v 23 अपने दुश्मनों की आवाज़ को भूल न मुख़ालिफ़ों का हंगामा खड़ा ~होता रहता| \s5 \c 75 \p \v 1 ऐ ख़ुदा, हम तेरा शुक्र करते हैं, हम तेरा शुक्र करते हैं; क्यूँकि तेरा नाम नज़दीक है, लोग तेरे~'अजीब कामों का ज़िक्र करते हैं। \v 2 जब मेरा मु'अय्यन वक़्त आएगा, तो मैं रास्ती से~'अदालत करूँगा। \v 3 ज़मीन और उसके सब बाशिन्दे गुदाज़ हो गए हैं, मैंने उसके सुतूनों को क़ायम कर दिया| \s5 \v 4 मैंने मग़रूरों से कहा, "गु़रूर न करो, "और शरीरों से, कि सींग ऊँचा न करो। \v 5 अपना सींग ऊँचा न करो, बग़ावत से बात न करो। \v 6 क्यूँकि सरफ़राज़ी न तो पूरब से न पश्चिम से, और न दख्खिन से आती है; \s5 \v 7 बल्कि ख़ुदा ही~'अदालत करने वाला है; वह किसी को पस्त करता है और किसी को सरफ़राज़ी बख़्शता है। \v 8 क्यूँकि ख़ुदावन्द के हाथ में प्याला है, और मय झाग वाली है; ~वह मिली हुई शराब से भरा है, और ख़ुदावन्द उसी में से उंडेलता है; बेशक उसकी तलछट ज़मीन के सब शरीर निचोड़ निचोड़ कर पिएँगे। \s5 \v 9 लेकिन मैं तो हमेशा ज़िक्र करता रहूँगा, मैं या'क़ूब के ख़ुदा की मदहसराई करूँगा। \v 10 और मैं शरीरों के सब सींग काट डालूँगा लेकिन ~सादिकों के सींग ऊँचे किए जाएंगे| \s5 \c 76 \p \v 1 ख़ुदा यहूदाह में मशहूर है, उसका नाम इस्राईल में बुजु़र्ग है। \v 2 सालिम में उसका खे़मा है, और सिय्यून में उसका घर। \v 3 वहाँ उसने बर्क़-ए-कमान की और ढाल और तलवार, और सामान-ए-जंग को तोड़ डाला| \s5 \v 4 तू जलाली है, और शिकार के पहाड़ों से शानदार है। \v 5 मज़बूत दिल लुट गए, वह गहरी नींद में पड़े हैं, और ज़बरदस्त लोगों में से किसी का हाथ काम न आया| \s5 \v 6 ऐ या'क़ूब के ख़ुदा, तेरी झिड़की से, रथ और घोड़े दोनों पर मौत की नींद तारी है। \v 7 ~सिर्फ़ तुझ ही से डरना चाहिए; और तेरे क़हर के वक़्त कौन तेरे सामने खड़ा रह सकता है? \s5 \v 8 तूने आसमान पर से फ़ैसला सुनाया; ज़मीन डर कर चुप हो गई| \v 9 जब ख़ुदा~'अदालत करने को उठा, ताकि ज़मीन के सब हलीमों को बचा ले।~(सिलाह) \s5 \v 10 बेशक इन्सान का ग़ज़ब तेरी सिताइश का ज़रिए' होगा, ~और तू ग़ज़ब के बक़िये से कमरबस्ता होगा। \s5 \v 11 ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए मन्नत मानो, और पूरी करो, ~और सब जो उसके गिर्द हैं वह उसी के लिए जिससे डरना वाजिब है, हदिए लाएँ। \v 12 ~वह हाकिम की रूह को क़ब्ज़ करेगा; वह ज़मीन के बादशाहों के लिए बड़ा है| \s5 \c 77 \p \v 1 मैं बुलन्द आवाज़ से ख़ुदा के सामने फ़रियाद करूँगा ख़ुदा ही के सामने बुलन्द आवाज़ से, और वह मेरी तरफ़ कान लगाएगा। \s5 \v 2 अपनी मुसीबत के दिन मैंने ख़ुदावन्द को ढूँढा, मेरे हाथ रात को फैले रहे और ढीले न हुए; मेरी जान को तस्कीन न हुई। \v 3 मैं ख़ुदा को याद करता हूँ और बेचैन हूँ मैं वावैला करता हूँ और मेरी जान निढाल है| \s5 \v 4 तू मेरी आँखें खुली रखता है; मैं ऐसा बेताब हूँ कि बोल नहीं सकता। \v 5 मैं गुज़रे दिनों पर, या'नी क़दीम ज़माने के बरसों पर सोचता रहा। \s5 \v 6 मुझे रात को अपना हम्द याद आता है; मैं अपने दिल ही में सोचता हूँ। मेरी रूह बड़ी तफ़्तीश में लगी है: \v 7 ~"क्या ख़ुदावन्द हमेशा के लिए छोड़ देगा?~क्या वह फिर कभी मेंहरबान न होगा? \s5 \v 8 ~क्या उसकी शफ़क़त हमेशा के लिए जाती रही?~क्या उसका वा'दा हमेशा तक बातिल हो गया? \v 9 क्या ख़ुदा करम करना भूल गया?क्या उसने क़हर से अपनी रहमत रोक ली?"(सिलाह) \s5 \v 10 फिर मैंने कहा, ‘यह मेरी ही कमज़ोरी है; मैं तो हक़ ता'ला की कुदरत के ज़माने को याद करूँगा ।" \s5 \v 11 मैं ख़ुदावन्द के कामों का ज़िक्र करूँगा ; क्यूँकि मुझे तेरे क़दीम~'अज़ाइब यादआएँगे। \v 12 मैं तेरी सारी सन'अत पर ध्यान करूँगा, और तेरे कामों को सोचूँगा। \s5 \v 13 ऐ ख़ुदा, तेरी राह मक़दिस में है। कौन सा देवता ख़ुदा की तरह बड़ा है | \v 14 तू वह ख़ुदा है जो~'अजीब काम करता है, तूने क़ौमों के बीच अपनी क़ुदरत ज़ाहिर की | \v 15 तूने अपने ही बाज़ू से अपनी क़ौम, बनी या'कू़ब और बनी यूसुफ़ को फ़िदिया देकर छुड़ाया है। \s5 \v 16 ऐ ख़ुदा, समन्दरों ने तुझे देखा, समन्दर तुझे देख कर डर गए, गहराओ भी काँप उठे। \v 17 बदलियों ने पानी बरसाया, आसमानों से आवाज़ आई, तेरे तीर भी चारों तरफ़ चले। \s5 \v 18 बगोले में तेरे गरज़ की आवाज़ थी, बर्क़ ने जहान को रोशन कर दिया, ज़मीन लरज़ी और काँपी। \v 19 तेरी राह समन्दर में है, तेरे रास्ते बड़े समुन्दरों में हैं; और तेरे नक़्श-ए-क़दम ना मा'लूम हैं। \v 20 तूने मूसा और हारून के वसीले से, क़ि'ला की तरह अपने लोगों की रहनुमाई की| \s5 \c 78 \p \v 1 ऐ मेरे लोगों मेरी शरी'अत को सुनो मेरे मुँह की बातों पर कान लगाओ। \v 2 मैं तम्सील में कलाम~करूँगा, और पुराने पोशीदा राज़ कहूँगा, \s5 \v 3 जिनको हम ने सुना और जान लिया, और हमारे बाप-दादा ने हम को बताया। \v 4 और जिनको हम उनकी औलाद से पोशीदा नहीं रख्खेंगे; ~बल्कि आइंदा नसल को भी ख़ुदावन्द की ता'रीफ़, और उसकी कु़दरत और~'अज़ाइब जो उसने किए बताएँगे। \s5 \v 5 क्यूँकि उसने या'कू़ब में एक शहादत क़ायम की, और इस्राईल में शरी'अत मुक़र्रर की, जिनके बारे में उसने हमारे बाप दादा को हुक्म दिया, कि वह अपनी औलाद को उनकी ता'लीम दें, \v 6 ताकि आइंदा नसल, या'नी वह फ़र्ज़न्द जो पैदा होंगे, उनको जान लें: और वह बड़े होकर अपनी औलाद को सिखाएँ, \s5 \v 7 कि वह ख़ुदा पर उम्मीद रखें, और उसके कामों को भूल न जाएँ, बल्कि उसके हुक्मों पर~'अमल करें; \v 8 और अपने बाप-दादा की तरह, सरकश और बाग़ी नसल न बनें:~ऐसी नसल जिसने अपना दिल दुरुस्त न किया और जिसकी रूह ख़ुदा के सामने वफ़ादार न रही। \s5 \v 9 बनी इफ़राईम हथियार बन्द होकर और कमाने रखते हुए लड़ाई के दिन फिर गए। \v 10 उन्होंने ख़ुदा के~'अहद को क़ायम न रख्खा, और उसकी शरी'अत पर चलने से इन्कार किया। \v 11 और उसके कामों को और उसके'अजाइब को, जो उसने उनको दिखाए थे भूल गए। \s5 \v 12 उसने मुल्क-ए-मिस्र में जुअन के इलाके में, उनके बाप-दादा के सामने~'अजीब-ओ-ग़रीब काम किए। \v 13 उसने समुन्दर के दो हिस्से करके उनको पार उतारा, और पानी को तूदे की तरह खड़ा कर दिया। \v 14 उसने दिन को बादल से उनकी रहबरी की, और रात भर आग की रोशनी से। \s5 \v 15 उसने वीरान में चट्टानों को चीरा, और उनको जैसे बहर से खू़ब पिलाया। \v 16 उसने चट्टान ~में से नदियाँ जारी कीं, और दरियाओं की तरह पानी बहाया। \s5 \v 17 तोभी वह उसके ख़िलाफ़ गुनाह करते ही गए, और वीरान में हक़ता'ला से सरकशी करते रहे। \v 18 अौर उन्होंने अपनी ख़्वाहिश के मुताबिक़ खाना मांग कर अपने दिल में ख़ुदा को आज़माया। \s5 \v 19 बल्कि वह ख़ुदा के खि़लाफ़ बकने लगे, और कहा, "क्या ख़ुदा वीरान में दस्तरख़्वान बिछा सकता है? \v 20 देखो, उसने चट्टान को मारा तो पानी फूट निकला, और नदियाँ बहने लगीं क्या वह रोटी भी दे सकता है?~क्या वह अपने लोगों के लिए गोश्त मुहय्या कर देगा?" \s5 \v 21 तब ख़ुदावन्द सुन कर गज़बनाक हुआ, और या'कू़ब के ख़िलाफ़ आग भड़क उठी, और इस्राईल पर क़हर टूट पड़ा; \v 22 इसलिए कि वह ख़ुदा पर ईमान न लाए, और उसकी नजात पर भरोसा न किया। \s5 \v 23 तोभी उसने आसमानों को हुक्म दिया, और आसमान के दरवाज़े खोले: \v 24 और खाने के लिए उन पर मन्न बरसाया, और उनको आसमानी खू़राक बख़्शी। \v 25 ~इन्सान ने फ़रिश्तों की गिज़ा खाई: उसने खाना भेजकर उनको आसूदा किया। \s5 \v 26 उसने आसमान में पुर्वा चलाई, और अपनी कु़दरत से दखना बहाई| \v 27 उसने उन पर गोश्त को ख़ाक की तरह बरसाया, और परिन्दों को समन्दर की रेत की तरह; \v 28 जिनको उसने उनकी खे़मागाह में, उनके घरों के आसपास गिराया। \s5 \v 29 तब वह खाकर खू़ब सेर हुए, और उसने उनकी ख़्वाहिश पूरी की। \v 30 वह अपनी ख्वाहिश से बाज़ न आए, और उनका खाना उनके मुँह ही में था| \s5 \v 31 कि ख़ुदा का ग़ज़ब उन पर टूट पड़ा, और उनके सबसे मोटे ताज़े आदमी क़त्ल किए, और इस्राइली जवानों को मार गिराया। \v 32 बावुजूद इन सब बातों कि वह गुनाह करते ही रहे; और उसके~'अजीब-ओ-ग़रीब कामों पर ईमान न लाए। \s5 \v 33 इसलिए उसने उनके दिनों को बतालत से, और उनके बरसों को दहशत से तमाम कर दिया। \v 34 जब वह उनको कत्ल करने लगा, तो~वह उसके तालिब हुए; और रुजू होकर दिल-ओ-जान से ख़ुदा को ढूंडने लगे। \s5 \v 35 और उनको याद आया कि ख़ुदा उनकी चट्टान, और हक़ता'ला उनका फ़िदिया देने वाला है| \v 36 लेकिन उन्होंने अपने मुँह से उसकी ख़ुशामद की, और अपनी ज़बान से उससे झूट बोला। \v 37 क्यूँकि उनका दिल उसके सामने दुरुस्त~और वह उसके~'अहद में वफ़ादार न~निकले। \s5 \v 38 लेकिन वह रहीम होकर बदकारी मु'आफ़ करता है, और हलाक नहीं करता; बल्कि बारहा अपने क़हर को रोक लेता है, और अपने पूरे ग़ज़ब को भड़कने नहीं~देता। \s5 \v 39 ~और उसे याद रहता है कि यह महज़ बशर है| या'नी हवा जो चली जाती है और फिर नहीं आती | \v 40 कितनी बार उन्होंने वीरान में उससे सरकशी की और सेहरा में उसे दुख किया। \v 41 और वह फिर ख़ुदा को आज़माने लगे और उन्होंने इस्राईल के ख़ुदा को नाराज़ किया | \s5 \v 42 उन्होंने उसके हाथ को याद न रखा, न उस दिन की जब उसने फ़िदिया देकर उनको मुख़ालिफ़ से रिहाई~बख़्शी| \v 43 ~उसने मिस्र में अपने निशान दिखाए, और जु'अन के 'इलाके में अपने अजाइब। \s5 \v 44 और उनके दरियाओं को खू़न बना दिया~और वह अपनी नदियों से पी न सके।, \v 45 उसने उन पर मच्छरों के ग़ोल भेजे~जो उनको खा गए और मेंढ़क जिन्होंने उनको तबाह कर~दिया।~, \v 46 उसने उनकी पैदावार कीड़ों कोऔर उनकी मेहनत का फल~टिड्डियों को दे दिया।~, \s5 \v 47 उसने उनकी ताकों को ओलों से, और उनके गूलर के दरख़्तों को~पाले से मारा। \v 48 उसने उनके चौपायों को ओलों के~हवाले किया, और उनकी भेड़ बकरियों को बिजली के। \v 49 उसने~'अज़ाब के फ़रिश्तों की फ़ौज भेज कर अपनी क़हर की शिद्दत ग़ैज़-ओ-ग़जब और बला को उन पर नाज़िल किया। \s5 \v 50 उसने अपने क़हर के लिए रास्ता बनाया, और उनकी जान मौत से न बचाई, बल्कि उनकी ज़िन्दगी वबा के हवाले की | \v 51 उसने मिस्र के सब पहलौठों को, या'नी हाम के घरों में उनकी ताक़त के पहले फल को मारा~: \s5 \v 52 लेकिन वह अपने लोगों को भेड़ों की तरह ले चला, और वीरान में ग़ल्ले की तरह उनकी रहनुमाई की। \v 53 और वह उनको सलामत ले गया और वह न डरे, लेकिन उनके दुश्मनों को समन्दर ने छिपा लिया। \s5 \v 54 और वह उनको अपने मक़दिस की सरहद तक लाया, ~या'नी उस पहाड़ तक जिसे उसके दहने हाथ ने हासिल किया था। \v 55 उसने और क़ौमों को उनके सामने से निकाल दिया; जिनकी मीरास जरीब डाल कर उनको बाँट दी; और जिनके खे़मों में इस्राईल के क़बीलों को बसाया। \s5 \v 56 तोभी उन्होंने ख़ुदाता'ला को आज़मायाऔर उससे सरकशी की, और उसकी शहादतों को न माना; \v 57 ~बल्कि नाफ़रमान होकर अपने बाप दादा की तरह बेवफ़ाई की और धोका देने वाली कमान की तरह एक तरफ़ को झुक गए। \s5 \v 58 क्यूँकि उन्होंने अपने ऊँचे मक़ामों के वजह से उसका क़हर भड़काया, और अपनी खोदी हुई मूरतों से उसे गै़रत दिलाई। \v 59 ~ख़ुदा यह सुनकर गज़बनाक हुआ, और इस्राईल से सख़्त नफ़रत की। \s5 \v 60 ~फिर उसने सैला के घर को छोड़ दिया, या'नी उस खे़मे को जो बनी आदम के बीच खड़ा किया था। \v 61 और उसने अपनी ताक़त को ग़ुलामी में, और अपनी हश्मत को मुख़ालिफ़ के हाथ में दे दिया। \s5 \v 62 ~उसने अपने लोगों को तलवार के हवाले कर दिया, और वह अपनी मीरास से ग़ज़बनाक हो गया। \v 63 आग उनके जवानों को खा गई,, और उनकी कुँवारियों के सुहाग न गाए गए। \s5 \v 64 उनके काहिन तलवार से मारे गए, और उनकी बेवाओं ने नौहा न किया। \v 65 तब ख़ुदावन्द जैसे नींद से जाग उठा, उस ज़बरदस्त आदमी की तरह जो मय की वजह से ललकारता हो। \v 66 और उसने अपने मुख़ालिफ़ों को मार कर पस्पा कर दिया; ~उसने उनको हमेशा के लिए रुस्वा किया। \s5 \v 67 और उसने यूसुफ़ के ख़मे को छोड़ दिया; और इफ़्राईम के क़बीले को न चुना; \v 68 बल्कि यहूदाह के क़बीले को चुना! उसी कोह-ए-सिय्यून को जिससे उसको मुहब्बत थी। \v 69 और अपने मक़दिस को पहाड़ों की तरह तामीर किया, और ज़मीन की तरह जिसे उसने हमेशा के लिए क़ायम किया है। \s5 \v 70 उसने अपने बन्दे दाऊद को भी चुना, और भेड़सालों में से उसे ले लिया; \v 71 वह उसे बच्चे वाली भेड़ों की चौपानी से हटा लाया, ताकि उसकी क़ौम या'कू़ब और उसकी मीरास इस्राईल की ग़ल्लेबानी करे। \v 72 फिर उसने ख़ुलूस-ए-दिल से उनकी पासबानी की और अपने माहिर हाथों से उनकी रहनुमाई करता रहा | \s5 \c 79 \p \v 1 ऐ ख़ुदा, क़ौमें तेरी मीरास में घुस आई हैं; उन्होंने तेरी पाक हैकल को नापाक किया है; उन्होंने यरूशलीम को खण्डर बना दिया \v 2 उन्होंने तेरे बन्दों की लाशों को आसमान के परिन्दों की, और तेरे पाक लोगों के गोश्त को ज़मीन के दरिंदों की खू़राक बना दिया है। \v 3 उन्होंने उनका खू़न यरूशलीम के गिर्द पानी की तरह बहाया, और कोई उनको दफ़्न करने वाला न था। \s5 \v 4 हम अपने पड़ोसियों की मलामत का निशाना हैं; और अपने आसपास के लोगों के तमसख़ुरऔर मज़ाक की वजह| \v 5 ऐ ख़ुदावन्द, कब तक?~क्या तू हमेशा के लिए नाराज़ रहेगा?~क्या तेरी गै़रत आग की तरह भड़कती रहेगी? \s5 \v 6 अपना क़हर उन क़ौमों पर जो तुझे नहीं पहचानतीं, और उन ममलुकतों पर जो तेरा नाम नहीं लेतीं, उँडेल दे। \v 7 क्यूँकि उन्होंने या'कू़ब को खा लिया, और उसके घर को उजाड़ दिया है। \s5 \v 8 हमारे बाप-दादा के गुनाहों को हमारे ख़िलाफ़ याद न कर; ~तेरी रहमत जल्द हम तक पहुँचे, क्यूँकि हम बहुत पस्त हो गए हैं। \v 9 ऐ हमारे नजात देने वाले ख़ुदा, अपने नाम के जलाल की ख़ातिर हमारी मदद कर; अपने नाम की ख़ातिर हम को छुड़ाऔर हमारे गुनाहों का कफ़्फ़ारा दे। \s5 \v 10 क़ौमें क्यूँ कहें कि उनका ख़ुदा कहाँ है? तेरे बन्दों के बहाए हुए खू़न का बदला, हमारी आँखों के सामने क़ौमों पर ज़ाहिर हो जाए। \v 11 कै़दी की आह तेरे सामने तक पहुँचे: अपनी बड़ी कु़दरत से मरने वालों को बचा ले। \s5 \v 12 ऐ ख़ुदावन्द, हमारे पड़ोसियों की ता'नाज़नी, जो वह तुझ पर करते रहे हैं, उल्टी सात गुना उन्ही के दामन में डाल दे। \v 13 तब हम जो तेरे लोग और तेरी चरागाह की भेड़ें हैं, हमेशा तेरी शुक्रगुज़ारी करेंगे; हम नसल दर नसल तेरी सिताइश करेंगे | \s5 \c 80 \p \v 1 ऐ इस्राईल के चौपान! तू जो ग़ल्ले की तरह यूसुफ़ को ले चलता है, कान लगा! तू जो करूबियों पर बैठा है, जलवागर हो! \v 2 इफ़्राईम-ओ-बिनयमीन और मनस्सी के सामने अपनी कु़व्वत को बेदार कर, और हमें बचाने को आ! \v 3 ऐ ख़ुदा, हम को बहाल कर; और अपना चेहरा चमका, तो हम बच जाएँगे। \s5 \v 4 ऐ ख़ुदावन्द लश्करों के ख़ुदा, तू कब तक अपने लोगों की दु'आ से नाराज़ रहेगा? \v 5 तूने उनको आँसुओं की रोटी खिलाई, और पीने को कसरत से आँसू ही दिए। \v 6 तू हम को हमारे पड़ोसियों के लिए झगड़े का ज़रिए' बनाता है, और हमारे दुश्मन आपस में हँसते हैं। \s5 \v 7 ऐ लश्करों के ख़ुदा, हम को बहाल कर; और अपना चेहरा चमका, तो हम बच जाएँगे। \v 8 तू मिस्र से एक ताक लाया; तूने क़ौमों को ख़ारिज करके उसे लगाया। \s5 \v 9 तूने उसके लिए जगह तैयार की; उसने गहरी जड़ पकड़ी और ज़मीन को भर दिया। \v 10 पहाड़ उसके साये में छिप गए, और उसकी डालियाँ ख़ुदा के देवदारों की तरह थीं। \v 11 ~उसने अपनी शाख़ समन्दर तक फैलाई, और अपनी टहनियाँ दरिया-ए-फरात तक। \s5 \v 12 फिर तूने उसकी बाड़ों को क्यूँ तोड़ डाला, कि सब आने जाने वाले उसका फल तोड़ते हैं? \v 13 जंगली सूअर उसे बरबाद करता है, और जंगली जानवर उसे खा जातेहैं। \s5 \v 14 ऐ लश्करों के ख़ुदा, हम तेरी मिन्नत करते हैं, फिर मुतक्ज्जिह हो! आसमान पर से निगाह कर और देख, और इस ताक की निगहबानी फ़रमा| \v 15 और उस पौदे की भी जिसे तेरे दहने हाथ ने लगाया है, ~और उस शाख़ की जिसे तूने अपने लिए मज़बूत किया है। \v 16 यह आग से जली हुई है, यह कटी पड़ी है; वह तेरे मुँह की झिड़की से हलाक हो जाते हैं। \s5 \v 17 तेरा हाथ तेरी दहनी तरफ़ के इन्सान पर हो, उस इब्न-ए-आदम पर जिसे तूने अपने लिए मज़बूत किया है। \v 18 फिर हम तुझ से नाफ़रमान न होंगे: तू हम को फिर ज़िन्दा कर और हम तेरा नाम लिया करेंगे। \s5 \v 19 ऐ ख़ुदा वन्द लश्करों के ख़ुदा! हम को बहाल कर; अपना ~चेहरा चमका तो हम बच जाएँगे! \s5 \c 81 \p \v 1 ख़ुदा के सामने जो हमारी ताक़त है, बुलन्द आवाज़ से गाओ; ~या'क़ूब के ख़ुदा के सामने ख़ुशी का नारा मारो~! \v 2 नग़मा छेड़ो, और दफ़ लाओ और दिलनवाज़ सितार और बरबत। \v 3 नए चाँद और पूरे चाँद के वक़्त, हमारी 'ईद के दिन नरसिंगा फूँको। \s5 \v 4 क्यूँकि यह इस्राईल के लिए क़ानून, और या'क़ूब के ख़ुदा का हुक्म है। \v 5 ~इसको उसने यूसुफ़ में शहादत ठहराया, जब वह मुल्क-ए-मिस्र के ख़िलाफ़ निकला। मैंने उसका कलाम सुना, जिसको मैं जानता न था \s5 \v 6 ~'मैंने उसके कंधे पर से बोझ उतार दिया; उसके हाथ टोकरी ढोने से छूट गए। \v 7 तूने मुसीबत में पुकारा और मैंने तुझे छुड़ाया; मैंने राद के पर्दे में से तुझे जवाब दिया; मैंने तुझे मरीबा के चश्मे पर आज़माया।~(सिलाह) \s5 \v 8 ऐ मेरे लोगो,~सुनो, मैं तुम को होशियार करता हूँ! ऐ इस्राईल, ~काश के तू मेरी सुनता! \v 9 तेरे बीच कोई गै़र मा'बूद न हो; और तू किसी गै़र मा'बूद को सिज्दा न करना \v 10 ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा मैं हूँ, जो तुझे मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया। तू अपना मुँह खू़ब खोल और मैं उसे भर दूँगा। \s5 \v 11 "लेकिन मेरे लोगों ने मेरी बात न सुनी, और इस्राईल मुझ से रज़ामंद न हुआ। \v 12 तब मैंने उनको उनके दिल की हट पर छोड़ दिया, ताकि वह अपने ही मश्वरों पर चलें। \s5 \v 13 काश कि मेरे लोग मेरी सुनते, और इस्राईल मेरी राहों पर चलता~! \v 14 मैं जल्द उनके दुश्मनों को मग़लूब कर देता, और उनके मुखालिफ़ों पर अपना हाथ चलाता । \s5 \v 15 ~ख़ुदावन्द से~'अदावत रखने वाले उसके ताबे"~हो जाते, ~और इनका ज़माना हमेशा तक बना रहता। \v 16 ~वह इनको अच्छे से अच्छा गेहूँ खिलाता और मैं तुझे चट्टान में के शहद से शेर करता | \s5 \c 82 \p \v 1 ख़दा की जमा'अत में ख़ुदा मौजूद है| वह इलाहों के बीच~'अदालत करता है~: \v 2 तुम कब तक बेइन्साफ़ी से~'अदालत करोगे, और शरीरों की तरफ़दारी करोगे? (सिलाह) \s5 \v 3 ग़रीब और यतीम का इन्साफ़ करो, ग़मज़दा और मुफ़लिस के साथ इन्साफ़ से पेश आओ। \v 4 ग़रीब और मोहताज को बचाओ; शरीरों के हाथ से उनको छुड़ाओ।" \s5 \v 5 वह न तो कुछ जानते हैं न समझते हैं, वह अंधेरे में इधर उधर चलते हैं; ज़मीन की सब बुनियादें हिल गई हैं। \s5 \v 6 मैंने कहा था, "तुम इलाह हो, और तुम सब हक़ता'ला के फ़र्ज़न्द हो; \v 7 तोभी तुम आदमियों की तरह मरोगे, और 'उमरा में से किसी की तरह गिर जाओगे।" \s5 \v 8 ~ऐ ख़ुदा! उठ ज़मीन की 'अदालत कर क्यूँकि तू ही सब क़ौमों का मालिक होगा। \s5 \c 83 \p \v 1 ऐ ख़ुदा! ~ख़ामोश न रह; ऐ ख़ुदा! चुपचाप न हो और ख़ामोशी इख़्तियार न कर। \v 2 ~क्यूँकि देख तेरे दुश्मन ऊधम मचाते हैं और तुझ से~'अदावत रखने वालों ने सिर उठाया है। \s5 \v 3 क्यूँकि वह तेरे लोगों के ख़िलाफ़ मक्कारी से मन्सूबा बाँधते हैं, और उनके ख़िलाफ़ जो तेरी पनाह में हैं मशवरा करते हैं। \v 4 उन्होंने कहा, "आओ, हम इनको काट डालें कि उनकी क़ौम ही न रहे; और इस्राईल के नाम का फिर ज़िक्र न हो|" \v 5 क्यूँकि उन्होंने एक हो कर के आपस में मश्वरा किया है, वह तेरे ख़िलाफ़~'अहद बाँधते हैं। \s5 \v 6 या'नी अदूम के अहल-ए-ख़ैमा और इस्माइली मोआब और हाजरी, \v 7 जबल और'अम्मून और~'अमालीक़, फ़िलिस्तीन और सूर के बाशिन्दे, \s5 \v 8 असूर भी इनसे मिला हुआ है; उन्होंने बनी लूत की मदद की है। \s5 \v 9 तू उनसे ऐसा कर जैसा मिदियान से, और जैसा वादी-ए-कैसून में सीसरा और याबीन से किया था। \v 10 जो~'ऐन दोर में हलाक हुए, वह जैसे ज़मीन की खाद हो गए \s5 \v 11 उनके सरदारों को~'ओरेब और ज़ईब की तरह, बल्कि उनके शाहज़ादों को ज़िबह और ज़िलमना'~की तरह बना दे; \v 12 जिन्होंने कहा है, "आओ, हम ख़ुदा की बस्तियों पर कब्ज़ा कर लें।" \s5 \v 13 ~ऐ मेरे ख़ुदा, उनको बगोले की गर्द की तरह बना दे, और जैसे हवा के आगे डंठल। \v 14 उस आग की तरह जो जंगल को जला देती है, उस शो'ले की तरह जो पहाड़ों मेंआग लगा देता है; \v 15 तू इसी तरह अपनी आँधी से उनका पीछा कर, और अपने तूफ़ान से उनको परेशान कर दे। \s5 \v 16 ऐ ख़ुदावन्द! उनके चेहरों पर रुस्वाई तारी कर, ताकि वह तेरे नाम के तालिब हों। \v 17 वह हमेशा शर्मिन्दा और परेशान रहें, बल्कि वह रुस्वा होकर हलाक हो जाएँ \s5 \v 18 ताकि वह जान लें कि तू ही जिसका यहोवा है, ज़मीन पर बुलन्द-ओ-बाला है| \s5 \c 84 \p \v 1 ऐ लश्करों के ख़ुदावन्द! तेरे घर क्या ही दिलकश हैं! \v 2 मेरी जान ख़ुदावन्द की बारगाहों की मुश्ताक़ है, बल्कि गुदाज़ हो चली, मेरा दिल और मेरा जिस्म ज़िन्दा ख़ुदा के लिए ख़ुशी से ललकारते हैं। \s5 \v 3 ऐ लश्करों के ख़ुदावन्द! ऐ मेरे बादशाहऔर मेरे ख़ुदा! तेरे मज़बहों के पास गौरया ने अपनाआशियाना, और अबाबील ने अपने लिए घोंसला बना लिया, जहाँ वह अपने बच्चों को रख्खे। \v 4 मुबारक हैं वह जो तेरे घर में रहते हैं, वह हमेशा तेरी ता'रीफ़ करेंगे। (मिलाह) \s5 \v 5 मुबारक है वह आदमी, जिसकी ताक़त तुझ से है, जिसके दिल में सिय्यून की शाह राहें हैं। \v 6 वह वादी-ए-बुका से गुज़र कर उसे चश्मों की जगह बना लेते हैं, बल्कि पहली बारिश उसे बरकतों से मा'मूर कर देती है। \s5 \v 7 वह ताक़त पर ताक़त पाते हैं; उनमें से हर एक सिय्यून में ख़ुदा के सामने हाज़िर होता है। \v 8 ऐ ख़ुदावन्द, लश्करों के ख़ुदा, मेरी दु'आ सुन ऐ या'क़ूब के ख़ुदा! कान लगा! (सिलाह) \v 9 ऐ ख़ुदा! ऐ हमारी सिपर! ~देख; और अपने मम्सूह के चेहरे पर नजर कर । \v 10 क्यूँकि तेरी बारगाहों में एक दिन हज़ार से बेहतर है। मैं अपने ख़ुदा के घर का दरबान होना, शरारत के खे़मों में बसने से ज़्यादा पसंद करूँगा। \s5 \v 11 क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा, आफ़ताब और ढाल है; ख़ुदावन्द फ़ज़ल और जलाल बख़्शेगा वह ~रास्तरू से कोई ने'मत बाज़ न रख्खेगा। \v 12 ऐ लश्करों के ख़ुदावन्द! मुबारक है वह आदमी जिसका भरोसा तुझ पर है। \s5 \c 85 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदावन्द तू अपने मुल्क पर मेहरबान रहा है| तू या'क़ूब को ग़ुलामी से वापस लाया है। \v 2 तूने अपने लोगों की बदकारी मु'आफ़ कर दी है; तूने उनके सब गुनाह ढाँक दिए हैं। \s5 \v 3 तूने अपना ग़ज़ब बिल्कुल उठा लिया; तू अपने क़हर-ए-शदीद से बाज़ आया है। \v 4 ऐ हमारे नजात देने वाले ख़ुदा! हम को बहाल कर, अपना ग़ज़ब हम से दूर कर! \v 5 क्या तू हमेशा हम से नाराज़ रहेगा? क्या तू अपने क़हर को नसल दर नसल जारी रख्खेगा? \s5 \v 6 ~क्या तू हम को फिर ज़िन्दा न करेगा, ताकि तेरे लोग तुझ में ख़ुश हों? \v 7 ऐ ख़ुदावन्द! तू अपनी शफ़क़त हमको दिखा, और अपनी नजात हम को बख़्श। \s5 \v 8 मैं सुनूँगा कि ख़ुदावन्द ख़ुदा क्या फ़रमाता है| क्यूँकि वह अपने लोगों और अपने पाक लोगों से सलामती की बातें करेगा; लेकिन वह फिर हिमाक़त की तरफ़ रुजू न करें। \v 9 ~यक़ीनन उसकी नजात उससे डरने वालों के क़रीब है, ~ताकि जलाल हमारे मुल्क में बसे। \s5 \v 10 शफ़क़त और रास्ती एक साथ मिल गई हैं, सदाक़त और सलामती ने एक दूसरे का बोसा लिया है। \v 11 रास्ती ज़मीन से निकलती है, और सदाक़त आसमान पर से झाँकती हैं। \s5 \v 12 जो कुछ अच्छा है वही ख़ुदावन्द अता फ़रमाएगा और हमारी ज़मीन अपनी पैदावार देगी| \v 13 सदाक़त उसके आगे-आगे चलेगी, उसके नक़्श-ए-क़दम को हमारी राह बनाएगी| \s5 \c 86 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द! अपना कान झुका और मुझे जवाब दे, क्यूँकि मैं ग़रीब और मोहताज हूँ। \v 2 मेरी जान की हिफ़ाज़त कर, क्यूँकि मैं दीनदार हूँ, ऐ मेरे ख़ुदा! अपने बन्दे को, जिसका भरोसा तुझ पर है, बचा ले। \s5 \v 3 या रब्ब, मुझ पर रहम कर, क्यूँकि मैं दिन भर तुझ से फ़रियाद करता हूँ। \v 4 या रब्ब, अपने बन्दे की जान को ख़ुश कर दे, क्यूँकि मैं अपनी जान तेरी तरफ़ उठाता हूँ। \s5 \v 5 इसलिए कि तू या रब्ब, नेक और मु'आफ़ करने को तैयार है, और अपने सब दु'आ करने वालों पर शफ़क़त में ग़नी है। \v 6 ऐ ख़ुदावन्द, मेरी दु'आ पर कान लगा, और मेरी मिन्नत की आवाज़ पर तवज्जुह फ़रमा। \v 7 मैं अपनी मुसीबत के दिन तुझ से दु'आ करूँगा, क्यूँकि तू मुझे जवाब देगा। \s5 \v 8 या रब्ब, मा'मूदों में तुझ सा कोई नहीं, और तेरी कारीगरी बेमिसाल हैं। \v 9 या रब्ब, सब क़ौमें जिनको तूने बनाया, आकर तेरे सामने सिज्दा करेंगी और तेरे नाम की तम्जीद करेंगी। \s5 \v 10 क्यूँकि तू बुजु़र्ग है और 'अजीब-ओ-ग़रीब काम करता है, ~तू ही अकेला ख़ुदा है। \v 11 ऐ ख़ुदावन्द, मुझ को अपनी राह की ता'लीम दे, मैं तेरी रास्ती में चलूँगा; मेरे दिल को यकसूई बख़्श, ताकि तेरे नाम का ख़ौफ़ मानूँ। \v 12 या रब्ब! मेरे ख़ुदा, मैं पूरे दिल से तेरी ता'रीफ़ करूँगा; मैं हमेशा तक तेरे नाम की तम्जीद करूँगा। \s5 \v 13 क्यूँकि मुझ पर तेरी बड़ी शफ़क़त है; और तूने मेरी जान को पाताल की तह से निकाला है। \v 14 ऐ ख़ुदा, मग़रूर मेरे ख़िलाफ़ उठे हैं, और टेढ़े लोगों जमा'अत मेरी जान के पीछे पड़ी है, और उन्होंने तुझे अपने सामने नहीं रख्खा। \s5 \v 15 लेकिन तू या रब्ब, रहीम-ओ-करीम ख़ुदा है, क़हर करने में धीमा और शफ़क़त-ओ-रास्ती में ग़नी। \v 16 मेरी तरफ़ मुतवज्जिह हो और मुझ पर रहम कर; अपने बन्दे को अपनी ताक़त बख़्श, और अपनी लौंडी के बेटे को बचा ले। \v 17 मुझे भलाई का कोई निशान दिखा, ताकि मुझ से 'अदावत रखने वाले इसे देख कर शर्मिन्दा हों क्यूँकि तूने ऐ ख़ुदावन्द, मेरी मदद की, और मुझे तसल्ली दी है। \s5 \c 87 \p \v 1 उसकी बुनियाद पाक पहाड़ों में है| \v 2 ख़ुदावन्द सिय्यून के फाटकों को या'क़ूब के सब घरों से ज़्यादा 'अज़ीज़ रखता है। \v 3 ऐ ख़ुदा के शहर! तेरी बड़ी बड़ी खू़बियाँ बयान की जाती हैं।~(सिलाह) \s5 \v 4 मैं रहब और बाबुल का यूँ ज़िक्र करूँगा, कि वह मेरे जानने वालों में हैं; फ़िलिस्तीन और सूर और कूश को देखो, यह वहाँ पैदा हुआ था। \s5 \v 5 बल्कि सिय्यून के बारे में कहा जाएगा, कि फ़लाँ फ़लाँ आदमी उसमें पैदा हुए। "और हक़ता'ला ख़ुद उसको क़याम बख़्शेगा। \v 6 ~ख़ुदावन्द क़ौमों के शुमार के वक़्त दर्ज करेगा, कि यह शख़्स वहाँ पैदा हुआ था। \s5 \v 7 गाने वाले और नाचने वाले यही कहेंगे कि मेरे सब चश्में तुझ ही में हैं।" \s5 \c 88 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द, मेरी नजात देने वाले ख़ुदा, मैंने रात दिन तेरे सामने फ़रियाद की है। \v 2 मेरी दु'आ तेरे सामने पहुँचे, मेरी फ़रियाद पर कान लगा! \s5 \v 3 क्यूँकि मेरा दिल दुखों से भरा है, और मेरी जान पाताल के नज़दीक पहुँच गई है। \v 4 मैं क़ब्र में उतरने वालों के साथ गिना जाता हूँ। मैं उस शख़्स की तरह हूँ, जो बिल्कुल बेकस हो। \s5 \v 5 ~जैसे मक़्तूलो की तरह जो क़ब्र में पड़े हैं, मुर्दों के बीच डाल दिया गया हूँ, जिनको तू फिर कभी याद नहीं करता और वह तेरे हाथ से काट डाले गए। \v 6 तूने मुझे गहराओ में, अंधेरी जगह में, पाताल की तह में रख्खा है। \s5 \v 7 मुझ पर तेरा क़हर भारी है, तूने अपनी सब मौजों से मुझे दुख दिया है।(सिलाह) \s5 \v 8 तूने मेरे जान पहचानों को मुझ से दूर कर दिया; तूने मुझे उनके नज़दीक घिनौना बना दिया। मैं बन्द हूँ और निकल नहीं सकता। \s5 \v 9 ~मेरी आँख दुख से धुंधला चली। ऐ ख़ुदावन्द, मैंने हर रोज़ तुझ से दु'आ की है; मैंने अपने हाथ तेरी तरफ़ फैलाए हैं। \v 10 क्या तू मुर्दों को~'अजाइब दिखाएगा? क्या वह जो मर गए हैं उठ कर तेरी ता'रीफ़ करेंगे?(सिलाह) \s5 \v 11 क्या तेरी शफ़क़त का ज़िक्र क़ब्र में होगा, या तेरी वफ़ादारी का जहन्नुम में? \v 12 क्या तेरे~'अजाइब को अंधेरे में पहचानेंगे, और तेरी सदाक़त को फ़रामोशी की सरज़मीन में? \s5 \v 13 लेकिन ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तो तेरी दुहाई दी है; और सुबह को मेरी दु'आ तेरे सामने पहुँचेगी। \v 14 ऐ ख़ुदावन्द, तू क्यूँ। मेरी जान को छोड़ देता है?~तू अपना चेहरा मुझ से क्यूँ छिपाता है? \s5 \v 15 मैं लड़कपन ही से मुसीबतज़दा और मौत के क़रीब हूँ मैं तेरे डर के मारे बद हवास हो गया। \v 16 तेरा क़हर-ए-शदीद मुझ पर आ पड़ा: तेरी दहशत ने मेरा काम तमाम कर दिया। \s5 \v 17 उसने दिनभर सैलाब की तरह मेरा घेराव किया; उसने मुझे बिल्कुल घेर लिया। \v 18 तूने दोस्त व अहबाब को मुझ से दूर किया और मेरे जान पहचानों को अंधेरे में डाल ~दिया है। \s5 \c 89 \p \v 1 ~मैं हमेशा ख़ुदावन्द की शफ़क़त के हम्द गाऊँगा| मैं नसल दर नसल अपने मुँह से तेरी वफ़ादारी का~'ऐलान करूँगा। \v 2 क्यूँकि मैंने कहा कि शफ़क़त हमेशा तक बनी रहेगी, तू अपनी वफ़ादारी को आसमान में क़ायम रखेगा।" \s5 \v 3 ~"मैंने अपने बरगुज़ीदा के साथ~'अहद बाँधा है मैंने अपने बन्दे दाऊद से क़सम खाई है; \v 4 मैं तेरी नसल को हमेशा के लिए क़ायम करूँगा, और तेरे तख़्त को नसल दर नसल बनाए रखूँगा।" (सिलाह) \s5 \v 5 ऐ ख़ुदावन्द, आसमान तेरे~'अजाइब की ता'रीफ़ करेगा; ~पाक लोगों के मजमे'~में तेरी वफ़ादारी की ता'रीफ़ होगी। \v 6 ~क्यूँकि आसमान पर ख़ुदावन्द का नज़ीर कौन है?~फ़रिश्तों की जमा'त में कौन ख़ुदावन्द की तरह है? \s5 \v 7 ~ऐसा मा'बूद जो पाक लोगो की महफ़िल में बहुत ता'ज़ीम के लायक़ है, और अपने सब चारों तरफ़ वालों से ज़्यादा बड़ा है। \v 8 ऐ ख़ुदावन्द, लश्करों के ख़ुदा, ऐ याह! तुझ सा ज़बरदस्त कौन है?~तेरी वफ़ादारी तेरे चारों तरफ़ है। \s5 \v 9 समन्दर के जोश-ओ-ख़रोश पर तू हुक्मरानी करता है; तू उसकी उठती लहरों को थमा देता है। \v 10 तूने रहब को मक़्तूल की तरह टुकड़े टुकड़े किया; तूने अपने क़वी बाज़ू से अपने दुश्मनों को तितर बितर कर दिया। \s5 \v 11 आसमान तेरा है, ज़मीन भी तेरी है; जहान और उसकी मा'मूरी को तू ही ने क़ायम किया है। \v 12 उत्तर और दाख्खिन का पैदा करने वाला तू ही है; तबूर और हरमून तेरे नाम से ख़ुशी मनाते हैं। \s5 \v 13 तेरा बाज़ू कु़दरत वाला है; तेरा हाथ क़वी और तेरा दहना हाथ बुलंद है। \v 14 सदाक़त और~'अद्ल तेरे तख़्त की बुनियाद हैं; शफ़क़त और वफ़ादारी तेरे आगे आगे चलती हैं। \s5 \v 15 मुबारक है वह क़ौम, जो खु़शी की ललकार को पहचानती है, ~वह ऐ ख़ुदावन्द, जो तेरे चेहरे के नूर में चलते हैं; \v 16 वह दिनभर तेरे नाम से ख़ुशी मनाते हैं, और तेरी सदाक़त से सरफराज़ होते हैं। \s5 \v 17 क्यूँकि उनकी ताक़त की शान तू ही हैऔर तेरे करम से हमारा सींग बुलन्द होगा। \v 18 क्यूँकि हमारी ढाल ख़ुदावन्द की तरफ़ से है, और हमारा बादशाह इस्राईल के क़ुद्दूस की तरफ़ से। \s5 \v 19 उस वक़्त तूने ख़्वाब में अपने पाक लोगों से कलाम किया, और फ़रमाया, "मैंने एक ज़बरदस्त को मददगार बनाया है, ~और क़ौम में से एक को चुन कर सरफ़राज़ किया है। \v 20 मेरा बन्दा दाऊद मुझे मिल गया, अपने पाक तेल से मैंने उसे मसह किया है। \v 21 मेरा हाथ उसके साथ रहेगा, मेरा बाजू़ उसे तक़वियत देगा। \v 22 दुश्मन उस पर जब्र न करने पाएगा, और शरारत का फ़र्ज़न्द उसे न सताएगा। \v 23 मैं उसके मुख़ालिफ़ों को उसके सामने मग़़लूब करूँगा और उससे~'अदावत रखने वालों को मारूँगा। \s5 \v 24 लेकिन मेरी वफ़ादारी और शफ़क़त उसके साथ रहेंगी, ~और मेरे नाम से उसका सींग बुलन्द होगा। \v 25 मैं उसका हाथ समन्दर तक बढ़ाऊँगा, और उसके दहने हाथ को दरियाओं तक। \v 26 वह मुझे पुकार कर कहेगा, 'तू मेराबाप, मेरा ख़ुदा, और मेरी नजात की चट्टान है।' \s5 \v 27 और मैं उसको अपना पहलौठा बनाऊँगा और दुनिया का शहंशाह। \v 28 मैं अपनी शफ़क़त को उसके लिए हमेशा तक क़ायम रखूँगा और मेरा~'अहद उसके साथ लातब्दील रहेगा। \v 29 मैं उसकी नसल को हमेशा तक क़ायम रख्खूंगा, और उसके तख़्त को जब तक आसमानहै। \s5 \v 30 अगर उसके फ़र्ज़न्द मेरी शरी'अत को छोड़ दें, और मेरे अहकाम पर न चलें, \v 31 अगर वह मेरे क़ानून को तोड़ें, और मेरे फ़रमान को न मानें, \v 32 तो मैं उनको छड़ी से ख़ता की, और कोड़ों से बदकारी की सज़ा दूँगा। \s5 \v 33 लेकिन मैं अपनी शफ़क़त उस पर से हटा न लूँगा, और अपनी वफ़ादारी को बेकार न होने न दूँगा। \v 34 मैं अपने~'अहद को न तोडूँगा, और अपने मुँह की बात को न बदलूँगा। \s5 \v 35 मैं एक बार अपनी पाकी की क़सम खा चुका हूँ मैं दाऊद से झूट न बोलूँगा। \v 36 उसकी नसल हमेशा क़ायम रहेगी, और उसका तख़्त आफ़ताब की तरह मेरे सामने क़ायम रहेगा। \v 37 वह हमेशा चाँद की तरह, और आसमान के सच्चे गवाह की तरह क़ायम रहेगा।"(मिलाह) \s5 \v 38 लेकिन तूने तो तर्क कर दिया और छोड़ दिया, तू अपने मम्सूह से नाराज़ हुआ है। \v 39 तूने अपने ख़ादिम के~'अहद को रद्द कर दिया, तूने उसके ताज को ख़ाक में मिला दिया। \v 40 तूने उसकी सब बाड़ों को तोड़ डाला, तूने उसके क़िलों'~को खण्डर बना दिया। \s5 \v 41 सब आने जाने वाले उसे लूटते हैं, वह अपने पड़ोसियों की मलामत का निशाना बन गया। \v 42 तूने उसके मुख़ालिफ़ों के दहने हाथ को बुलन्द किया; तूने उसके सब दुश्मनों को ख़ुश किया। \v 43 ~बल्कि तू उसकी तलवार की धार को मोड़ देता है, और लड़ाई में उसके पाँव को जमने नहीं दिया। \s5 \v 44 तूने उसकी रौनक़ उड़ा दी, और उसका तख़्त ख़ाक में मिला दिया। \v 45 तूने उसकी जवानी के दिन घटा दिए, तूने उसे शर्मिन्दा कर दिया है।(सिलाह) \s5 \v 46 ऐ ख़ुदावन्द, कब तक?~क्या तू हमेशा तक पोशीदा रहेगा?~तेरे क़हर की आग कब तक भड़कती रहेगी? \v 47 याद रख मेरा क़याम ही क्या है, तूने कैसी बतालत के लिए कुल बनी आदम को पैदा किया। \v 48 वह कौन सा आदमी है जो ज़िन्दा ही रहेगा और मौत को न देखेगा, और अपनी जान को पाताल के हाथ से बचा लेगा? (सिलाह) \s5 \v 49 या रब्ब, तेरी वह पहली शफ़क़त क्या हुई, जिसके बारे में तूने दाऊद से अपनी वफ़ादारी की क़सम खाई थी? \v 50 या रब्ब, अपने बन्दों की रुस्वाई को याद कर; मैं तो सब ज़बरदस्त क़ौमों की ता'नाज़नी, अपने सीने में लिए फिरता हूँ। \v 51 ~ऐ ख़ुदावन्द, तेरे दुश्मनों ने कैसे ता'ने मारे, तेरे मम्सूह के क़दम क़दम पर कैसी ता'नाज़नी की है। \s5 \v 52 ख़ुदावन्द हमेशा से हमेशा तक ~मुबारक हो! आमीन सुम्मा आमीन | \s5 \c 90 \p \v 1 या रब्ब, नसल दर नसल, तू ही हमारी पनाहगाह रहा है। \v 2 इससे पहले के पहाड़ पैदा हुए, या ज़मीन और दुनिया को तूने बनाया, इब्तिदा से हमेशा तक तू ही ख़ुदा है। \s5 \v 3 तू इन्सान को फिर ख़ाक में मिला देता है, और फ़रमाता है, "ऐ बनी आदम, लौट आओ! " \v 4 क्यूँकि तेरी नज़र में हज़ार बरस ऐसे हैं, जैसे कल का दिन जो गुज़र गया, और जैसे रात का एक पहर। \s5 \v 5 तू उनको जैसे सैलाब से बहा ले जाता है; वह नींद की एक झपकी की तरह हैं, वह सुबह को उगने वाली घास की तरह हैं। \v 6 वह सुबह को लहलहाती और बढ़ती है, वह शाम को कटती और सूख जातीहै। \s5 \v 7 क्यूँकि हम तेरे क़हर से फ़ना हो गए; और तेरे ग़ज़ब से परेशान हुए। \v 8 तूने हमारी बदकिरदारी को अपने सामने रख्खा, और हमारे छुपे हुए गुनाहों को अपने चेहरे की रोशनी में। \s5 \v 9 ~क्यूँकि हमारे तमाम दिन तेरे क़हर में गुज़रे, हमारी 'उम्र ख़याल की तरह जाती रहती है। \v 10 हमारी 'उम्र की मी'आद सत्तर बरस है, या कु़व्वत हो तो अस्सी बरस; तो भी उनकी रौनक़ महज़ मशक्क़त और ग़म है, ~क्यूँकि वह जल्द जाती रहती है और हम उड़ जाते हैं। \s5 \v 11 तेरे क़हर की शिद्दत को कौन जानता है, और तेरे ख़ौफ़ के मुताबिक़ तेरे ग़ज़ब को? \v 12 हम को अपने दिन गिनना सिखा, ऐसा कि हम अक़्लदिल हासिल करें। \v 13 ऐ ख़ुदावन्द, बाज़ आ! कब तक? और अपने बन्दों पर रहम फ़रमा~! \s5 \v 14 सुबह को अपनी शफ़क़त से हम को आसूदा कर, ताकि हम 'उम्र भर ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम रहें। \v 15 जितने दिन तूने हम को दुख दिया, और जितने बरस हम मुसीबत में रहे, ~उतनी ही ख़ुशी हम को 'इनायत कर। \v 16 ~तेरा काम तेरे बन्दों पर, और तेरा जलाल उनकी औलाद पर ज़ाहिर हो। \s5 \v 17 और रब्ब हमारे ख़ुदा का करम हम पर साया करे। हमारे हाथों के काम को हमारे लिए क़याम बख़्श हाँ हमारे हाथों के काम को क़याम~बख़्श दे | \s5 \c 91 \p \v 1 जो हक़ता'ला के पर्दे में रहता है, वह क़ादिर-ए-मुतलक़ के साये में सुकूनत करेगा। \v 2 ~मैं ख़ुदावन्द के बारे में कहूँगा, "वही मेरी पनाह और मेरा गढ़ है; वह मेरा ख़ुदा है, जिस पर मेरा भरोसा है।" \s5 \v 3 क्यूँकि वह तुझे सय्याद के फंदे से, और मुहलिक वबा से छुड़ाएगा। \v 4 वह तुझे अपने परों से छिपा लेगा, और तुझे उसके बाजु़ओं के नीचे पनाह मिलेगी, ~उसकी सच्चाई ढाल और सिपर है। \s5 \v 5 तू न रात के ख़ौफ़ से डरेगा, न दिन को उड़ने वाले तीर से। \v 6 न उस वबा से जो अंधेरे में चलती है, न उस हलाकत से जो दोपहर को वीरान करती है। \v 7 तेरे आसपास एक हज़ार गिर जाएँगे, और तेरे दहने हाथ की तरफ़ दस हज़ार; लेकिन वह तेरे नज़दीक न आएगी। \s5 \v 8 लेकिन तू अपनी आँखों से निगाह करेगा, और शरीरों के अंजाम को देखेगा। \v 9 लेकिन तू ऐ ख़ुदावन्द, मेरी पनाह है।तूने हक़ता'ला को अपना घर बना लिया है। \s5 \v 10 तुझ पर कोई आफ़त नहीं आएगी, और कोई वबा तेरे ख़ेमे के नज़दीक न पहुँचेगी। \v 11 क्यूँकि वह तेरे बारे में अपने फ़रिश्तों को हुक्म देगा, कि तेरी सब राहों में तेरी हिफ़ाज़त करें। \s5 \v 12 वह तुझे अपने हाथों पर उठा लेंगे, ताकि ऐसा न हो कि तेरे पाँव को पत्थर से ठेस लगे। \v 13 तू शेर-ए-बबर और अज़दहा को रौंदेगा, तू जवान शेर और अज़दहा को पामाल करेगा। \s5 \v 14 चूँकि उसने मुझ से दिल लगाया है, इसलिए मैं उसे छुड़ाऊँगा; ~मैं उसे सरफ़राज़ करूँगा, क्यूँकि उसने मेरा नाम पहचाना है। \v 15 ~वह मुझे पुकारेगा और मैं उसे जवाब दूँगा, मैं मुसीबत में उसके साथ रहूँगा, मैं उसे छुड़ाऊँगा और 'इज़्ज़त बख़्शूँगा। \v 16 मैं उसे 'उम्र की दराज़ी से आसूदा कर दूँगा और अपनी नजात उसे दिखाऊँगा। \s5 \c 92 \p \v 1 क्या ही भला है, ख़ुदावन्द का शुक्र करना, और तेरे नाम की मदहसराई करना; ऐ हक़ ता'ला! \v 2 सुबह को तेरी शफ़क़त का इज़्हार करना, और रात को तेरी वफ़ादारी का, \v 3 दस तार वाले साज़ और बर्बत पर, और सितार पर गूंजती आवाज़ के साथ| \s5 \v 4 ~क्यूँकि, ऐ ख़ुदावन्द, तूने मुझे अपने काम से ख़ुश किया; मैं तेरी कारीगरी की वजह से ख़ुशी मनाऊँगा। \v 5 ऐ ख़ुदावन्द, तेरी कारीगरी कैसी बड़ी हैं। तेरे ख़याल बहुत~'अमीक़ हैं। \s5 \v 6 हैवान ख़सलत नहीं जानताऔर बेवक़ूफ़ इसको नहीं समझता, \v 7 जब शरीर घास की तरह उगते हैं, और सब बदकिरदार फूलते फलते हैं, तो यह इसी लिए है कि वह हमेशा के लिए फ़ना हों। \s5 \v 8 लेकिन तू ऐ ख़ुदावन्द, हमेशा से हमेशा तक बुलन्द है। \v 9 क्यूँकि देख, ऐ ख़ुदावन्द, तेरे दुश्मन; देख, तेरे दुश्मन हलाक हो जाएँगे; सब बदकिरदार तितर बितर कर दिए जाएँगे। \s5 \v 10 लेकिन तूने मेरे सींग को जंगली साँड के सींग की तरह बलन्द किया है; मुझ पर ताज़ा तेल मला गया है। \v 11 मेरी आँख ने मेरे दुश्मनों को देख लिया, मेरे कानों ने मेरे मुख़ालिफ़ बदकारों का हाल सुन लिया है। \s5 \v 12 सादिक़ खजूर के दरख़्त ~की तरह सरसब्ज़ होगा। वह लुबनान के देवदार की तरह बढ़ेगा। \v 13 जो ख़ुदावन्द के घर में लगाए गए हैं, वह हमारे ख़ुदा की बारगाहों में सरसब्ज़ होंगे। \s5 \v 14 वह बुढ़ापे में भी कामयाब होंगे, वह तर-ओ-ताज़ा और सरसब्ज़ रहेंगे; \v 15 ताकि वाज़ह करें कि ख़ुदावन्द रास्त है वही मेरी चट्टान है और उसमें न रास्ती नहीं | \s5 \c 93 \p \v 1 ख़ुदावन्द सलतनत करता है वह शौकत से मुलब्बस है ख़ुदावन्द कु़दरत से मुलब्बस है, वह उससे कमर बस्ता है इस लिए जहान क़ायम है और उसे जुम्बिश नहीं। \v 2 तेरा तख़्त पहले से क़ायम है, तू इब्तिदा से है। \s5 \v 3 सैलाबों ने, ऐ ख़ुदावन्द! सैलाबों ने शोर मचा रख्खा है, ~सैलाब मौजज़न हैं। \v 4 बहरों की आवाज़ से, समन्दर की ज़बरदस्त मौजों से भी, ~ख़ुदावन्द बलन्द-ओ-क़ादिर है। \s5 \v 5 तेरी शहादतें बिल्कुल सच्ची हैं; ऐ ख़ुदावन्द हमेशा से हमेशा तक के लिए ~पाकीज़गी तेरे घर को ज़ेबा है | \s5 \c 94 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द! ऐ इन्तक़ाम लेने वाले ख़ुदा ऐ इन्तक़ाम लेने वाले ख़ुदा! जलवागर हो! \v 2 ~ऐ जहान का इन्साफ़ करने वाले! उठ; मग़रूरों को बदला दे! \s5 \v 3 ऐ ख़ुदावन्द, शरीर कब तक; शरीर कब तक ख़ुशी मनाया करेंगे? \v 4 वह बकवास करते और बड़ा बोल बोलत हैं, सब बदकिरदार लाफ़ज़नी करते हैं। \s5 \v 5 ऐ ख़ुदावन्द! वह तेरे लोगों को पीसे डालते हैं, और तेरी मीरास को दुख देते हैं। \v 6 वह बेवा और परदेसी को क़त्ल करते, और यतीम को मार डालते हैं; \v 7 और कहते है ख़ुदावन्द नहीं देखेगा और या'कूब का ख़ुदा ख़याल नहीं करेगा।" \s5 \v 8 ऐ क़ौम के हैवानो! ~ज़रा ख़याल करो; ऐ बेवक़ूफ़ों! तुम्हें कब ~'अक़्ल आएगी? \v 9 जिसने कान दिया, क्या वह ख़ुद नहीं सुनता? जिसने आँख बनाई, क्या वह देख नहीं सकता? \s5 \v 10 क्या वह जो क़ौमों को तम्बीह करता है, और इन्सान को समझ सिखाता है, सज़ा न देगा? \v 11 ख़ुदावन्द इन्सान के ख़यालों को जानता है, कि वह बेकार हैं। \s5 \v 12 ~ऐ ख़ुदावन्द, मुबारक है वह आदमी जिसे तू तम्बीह करता, ~और अपनी शरी'अत की ता'लीम देता है। \v 13 ~ताकि उसको मुसीबत के दिनों में आराम बख्शे, जब तक शरीर के लिए गढ़ा न खोदा जाए। \s5 \v 14 क्यूँकि ख़ुदावन्द अपने लोगों को नहीं छोड़ेगा, और वह अपनी मीरास को नहीं छोड़ेगा; \v 15 क्यूँकि~'अद्ल सदाक़त की तरफ़ रुजू' करेगा, और सब रास्त दिल~उसकी पैरवी करेंगे। \v 16 शरीरों के मुक़ाबले में कौन मेरे लिए ~उठेगा? बदकिरदारों के ख़िलाफ़ कौन मेरे लिए खड़ा होगा? \s5 \v 17 अगर ख़ुदावन्द मेरा मददगार न होता, तो मेरी जान कब की~'आलम-ए-ख़ामोशी में जा बसी होती। \v 18 जब मैंने कहा, ‘मेरा पाँव फिसल चला, "तो ऐ ख़ुदावन्द! ~तेरी शफ़क़त ने मुझे संभाल लिया। \v 19 जब मेरे दिल में फ़िक्रों की कसरत होती है, तो तेरी तसल्ली मेरी जान को ख़ुश करती है। \s5 \v 20 क्या शरारत के तख़्त से तुझे कुछ वास्ता होगा, जो क़ानून की आड़ में बदी गढ़ता है? \v 21 वह सादिक़ की जान लेने को इकट्ठे होते हैं, और बेगुनाह पर क़त्ल का फ़तवा देते हैं। \s5 \v 22 लेकिन ख़ुदावन्द मेरा ऊँचा बुर्ज, और मेरा ख़ुदा मेरी पनाह की चट्टान ~रहा है। \v 23 वह उनकी बदकारी उन ही पर लाएगा, और उन ही की शरारत में उनको काट डालेगा। ख़ुदावन्द हमारा उनको काट डालेगा। \s5 \c 95 \p \v 1 आओ हम ख़ुदावन्द के सामने नग़मासराई करे! अपनी नजात की चट्टान के सामने खु़शी से ललकारें। \v 2 शुक्रगुज़ारी करते हुए उसके सामने में हाज़िर हों, मज़मूर गाते हुए उसके आगे ख़ुशी से ललकारें। \v 3 क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा-ए-'अज़ीम है, और सब इलाहों पर शाह-ए-'अज़ीम है। \s5 \v 4 ज़मीन के गहराव उसके क़ब्ज़े में हैं; पहाड़ों की चोटियाँ भी उसी की हैं। \v 5 समन्दर उसका है, उसी ने उसको बनाया, और उसी के हाथों ने खु़श्की को भी तैयार किया। \s5 \v 6 आओ हम झुकें और सिज्दा करें, और अपने खालिक़ ख़ुदावन्द के सामने घुटने टेकें! \v 7 क्यूँकि वह हमारा ख़ुदा है, और हम उसकी चरागाह के लोग, और उसके हाथ की भेड़ें हैं।काश कि आज के दिन तुम उसकी आवाज़ सुनते! \s5 \v 8 तुम अपने दिल को सख़्त न करो जैसा मरीबा में, जैसा मस्साह के दिन वीरान में किया था, \v 9 उस वक़्त तुम्हारे बाप-दादा ने मुझे आज़माया, और मेरा इम्तिहान किया और मेरे काम को भी देखा। \s5 \v 10 चालीस बरस तक मैं उस नसल से बेज़ार रहा, और मैने कहा, कि 'ये वह लोग हैं जिनके दिल आवारा हैं, और उन्होंने मेरी राहों को नहीं पहचाना।" \v 11 चुनाँचे ~मैने अपने ग़ज़ब में क़सम खाई कि यह लोग मेरे आराम में दाख़िल न होंगे | \s5 \c 96 \p \v 1 ख़ुदावन्द के सामने नया हम्द गाओ! ऐ सब अहल-ए-ज़मीन! ~ख़ुदावन्द के सामने गाओ। \v 2 ख़ुदावन्द के~सामने~गाओ, उसके नाम को मुबारक कहो; ~रोज़ ब रोज़ उसकी नजात की बशारत दो। \s5 \v 3 क़ौमों में उसके जलाल का, सब लोगों में उसके~'अजाइब का बयान करो। \v 4 क्यूँकि ख़ुदावन्द बुज़ु़र्ग़ और बहुत। सिताइश के लायक़ है; ~वह सब मा'बूदों से ज़्यादा ता'ज़ीम के लायक़ है। \s5 \v 5 इसलिए कि और क़ौमों के सब मा'बूद सिर्फ़ बुत हैं; लेकिन ख़ुदावन्द ने आसमानों को बनाया। \v 6 अज़मत और जलाल उसके सामने में हैं, क़ुदरत और जमाल उसके मक़दिस में। \s5 \v 7 ऐ क़ौमों के क़बीलो! ख़ुदावन्द की, ख़ुदावन्द ही की तम्जीद-ओ-ताज़ीम करो~! \v 8 ख़ुदावन्द की ऐसी तम्जीद करो जो उसके नाम की शायान है; हदिया लाओ और उसकी बारगाहों में आओ! \s5 \v 9 पाक आराइश के साथ ख़ुदावन्द को सिज्दा करो; ऐ सब अहल-ए-ज़मीन! उसके सामने काँपते रहो! \v 10 क़ौमों में~'ऐलान करो, "ख़ुदावन्द सल्तनत करता है! जहान क़ायम है, और उसे जुम्बिश नहीं; वह रास्ती से कौमों की~'अदालत करेगा।” \s5 \v 11 आसमान ख़ुशी मनाए, और ज़मीन ख़ुश हो; समन्दर और उसकी मा'मूरी शोर मचाएँ; \v 12 मैदान और जो कुछ उसमें है, बाग़-बाग़~हों; तब जंगल के सब दरख़्त खु़शी से गाने लगेंगे। \v 13 ख़ुदावन्द के सामने, क्यूँकि वह आ रहा है; वह ज़मीन की 'अदालत करने को रहा है। वह सदाक़त से जहान की, और अपनी सच्चाई से क़ौमों की 'अदालत करेगा| \s5 \c 97 \p \v 1 ख़ुदावन्द सल्तनत करता है, ज़मीन ख़ुश हो; बेशुमार जज़ीरे ख़ुशी मनाएँ। \v 2 बादल और तारीकी उसके चारों तरफ़ हैं; सदाक़त और अदल उसके तख़्त की बुनियाद हैं। \s5 \v 3 आग उसके आगे आगे चलती है, और चारों तरफ़ उसके मुख़ालिफ़ो को भसम कर देती है। \v 4 ~उसकी बिजलियों ने जहान को रोशन कर दिया ज़मीन ने देखा और काँप गई। \v 5 ख़ुदावन्द के सामने पहाड़ मोम की तरह पिघल गए, या'नी सारी ज़मीन के ख़ुदावन्द के सामने। \s5 \v 6 ~आसमान उसकी सदाक़त ज़ाहिर करता सब क़ौमों ने उसका जलाल देखा है। \v 7 खुदी हुई मूरतों के सब पूजने वाले, जो बुतों पर फ़ख़्र करते हैं, ~शर्मिन्दा हों, ऐ मा'बूद! सब उसको सिज्दा करो। \v 8 ~ऐ ख़ुदावन्द! सिय्यून ने सुना और खु़श हुई और यहूदाह की बेटियाँ तेरे अहकाम से ख़ुश हुई। \s5 \v 9 क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द! तू तमाम ज़मीन पर बुलंद-ओ-बाला है; ~तू सब मा'बूदों से बहुत आला है। \v 10 ऐ ख़ुदावन्द से मुहब्बत रखने वालों, बदी से नफ़रत करो, ~वह अपने पाक लोगों की जानों को महफ़ूज़ रखता है, वह उनको शरीरों के हाथ से छुड़ाता है। \v 11 सादिक़ों के लिए नूर बोया गया है, और रास्त दिलों के लिए खु़शी। \s5 \v 12 ऐ~सादिक़ों! ख़ुदावन्द में खु़श रहो; उसके पाक नाम का शुक्र करो। \s5 \c 98 \p \v 1 ख़ुदावन्द के सामने नया हम्द गाओ क्यूँकि उसने~'अजीब काम किए हैं। उसके दहने हाथ और उसके पाक बाज़ू ने उसके लिए फ़तह हासिल की है। \v 2 ख़ुदावन्द ने अपनी नजात ज़ाहिर की है, "उसने अपनी सदाक़त क़ौमों के सामने ज़ाहिर की है। \s5 \v 3 उसने इस्राईल के घराने के हक़ में अपनी शफ़क़त-ओ-वफ़ादारी याद की है, इन्तिहाई ज़मीन के लोगों ने हमारे ख़ुदा की नजात देखी है। \v 4 ऐ तमाम अहल-ए-ज़मीन! ख़ुदावन्द के सामने ख़ुशी का नारा मारो; ललकारो और खु़शी से गाओ और मदहसराई करो | \s5 \v 5 ख़ुदावन्द की सिताइश सितार पर करो, सितार और सुरीली आवाज़ से। \v 6 नरसिंगे और करना की आवाज़ से, बादशाह या'नी ख़ुदावन्द के सामने खु़शी का नारा मारो। \s5 \v 7 समन्दर और उसकी मा'मूरी शोर मचाएँ और जहान और उसके बाशिंदे। \v 8 सैलाब तालियाँ बजाएँ; पहाड़ियाँ मिलकर ख़ुशी से गाएँ। \v 9 ~ख़ुदावन्द के सामने, क्यूँकि वह ज़मीन की 'अदालत करने आ रहा है। वह सदाक़त से जहान की, रास्ती से क़ौमों की 'अदालत करेगा| \s5 \c 99 \p \v 1 ख़ुदावन्द सलतनत करता है, क़ौमें काँपी। वह करूबियों पर बैठता है, ज़मीन लरज़े| \v 2 ख़ुदावन्द सिय्यून में बुज़ु़र्ग़ है; और वह सब क़ौमों पर बुलंद-ओ-बाला है। \v 3 वह तेरे बुज़ुर्ग और बड़े नाम की ता'रीफ़ करें वह पाक हैं| \s5 \v 4 बादशाह की ताक़त इन्साफ़ पसन्द है तू रास्ती को क़ायम करता है~तू ही ने~'अद्ल और सदाक़त को या'कूब, में रायज किया। \v 5 तुम ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा की तम्जीद करो, और उसके पाँव की चौकी पर सिज्दा वह पाक है| \s5 \v 6 उसके काहिनों में से मूसा और हारून ने, और उसका नाम लेनेवालों में से समुएल ने~~ख़ुदावन्द से दु'आ की और उसने उनको जवाब दिया। \v 7 उसने बादल के सुतून में से उनसे कलाम किया; उन्होंने उसकी शहादतों को और उस क़ानून को जो उनको दिया था, माना| \s5 \v 8 ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा, तू उनको जवाब देता था; तू वह ख़ुदा है जो उनको मु'आफ करता रहा, अगरचे तूने उनके आ'माल का बदला भी दिया| \v 9 तुम ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा की तम्जीद करो, और उसके पाक पहाड़ पर सिज्दा करो; क्यूँकि ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा क़ुददूस है| \s5 \c 100 \p \v 1 ऐ अहले ज़मीन, सब ख़ुदावन्द के सामने ख़ुशी का ना'रा मारो! \v 2 ख़ुशी से ख़ुदावन्द की 'इबादत करो! गाते हुए उसके सामने हाज़िर हों! \s5 \v 3 जान रखों ख़ुदावन्द ही ख़ुदा है! उसी ने हम को बनाया और हम उसी के है; हम उसके लोग और उसकी चरागाह की भेड़े हैं | \s5 \v 4 शुक्रगुज़ारी करते हुए उसके फाटकों में और हम्द करते हुए उसकी बारगाहों में दाख़िल हो; उसका शुक्र करो और उसके नाम को मुबारक कहो! \v 5 क्यूँकि ख़ुदावन्द भला है, उसकी शफ़क़त हमेशा की है, और उसकी वफ़ादारी नसल दर नसल रहती है| \s5 \c 101 \p \v 1 ~मैं शफ़क़त और 'अद्ल का हम्द गाऊँँगा; ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी मदह सराई करूँगा । \s5 \v 2 मैं 'अक़्लमंदी से कामिल राह पर चलूँगा, तू मेरे पास कब आएगा?~घर में मेरा चाल चलन सच्चे दिल से होगा। \v 3 ~मैं किसी ख़बासत को मद्द-ए-नज़र नहीं रख्खूँँगा; मुझे कज रफ़तारों के काम से नफ़रत है; उसको मुझ से कुछ मतलब न होगा। \s5 \v 4 ~कजदिली मुझ से दूर हो जाएगी; मैं किसी बुराई से आशना न हूँगा। \v 5 ~जो दर पर्दा अपने पड़ोसी की बुराई करे, मैं उसे हलाक कर डालूँगा; मैं बुलन्द नज़र और मग़रूर दिल की बर्दाश्त न करूँगा। \v 6 ~मुल्क के ईमानदारों पर मेरी निगाह होगी~ताकि वह मेरे साथ रहें; जो कामिल राह पर चलता है वही मेरी ख़िदमत करेगा। \s5 \v 7 दग़ाबाज़ मेरे घर में रहने न पाएगा; दरोग़ गो को मेरे सामने क़याम न होगा| \v 8 ~मैं हर सुबह मुल्क के सब शरीरों को हलाक किया करूँगा, ताकि ख़ुदावन्द के शहर से बदकारों को काट डालूँ। \s5 \c 102 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द! मेरी दु'आ सुन और मेरी फ़रियाद तेरे सामने पहुँचे| \v 2 मेरी मुसीबत के दिन मुझ से चेहरा न छिपा, अपना कान मेरी तरफ़ झुका, जिस दिन मैं फ़रियाद करूँ मुझे जल्द जवाब दे| \s5 \v 3 क्यूँकि मेरे दिन धुएँ की तरह उड़े जाते हैं, और मेरी हड्डियाँ ईधन की तरह जल गई। \v 4 मेरा दिल घास की तरह झुलस कर सूख गया; क्यूँकि मैं अपनी रोटी खाना भूल जाता हूँ। \s5 \v 5 कराहते कराहते मेरी हड्डियाँ मेरे गोश्त से जा लगीं। \v 6 ~मैं जंगली हवासिल की तरह हूँ, मैं वीराने का उल्लू बन गया। \s5 \v 7 मैं बेख़्वाब और उस गौरे की तरह हो गया हूँ, जो छत पर अकेला हो। \v 8 ~मेरे दुश्मन मुझे दिन भर मलामत करते हैं; मेरे मुख़ालिफ़ दीवाना होकर मुझ पर ला'नत करते हैं। \s5 \v 9 ~क्यूँकि मैंने रोटी की तरह राख खाई, और आँसू मिलाकर पानी पिया। \v 10 यह तेरे ग़ज़ब और क़हर की वजह से है, क्यूँकि तूने मुझे उठाया और फिर पटक दिया। \s5 \v 11 ~मेरे दिन ढलने वाले साये की तरह हैं, और मैं घास की तरह मुरझा गया \v 12 ~लेकिन तू ऐ ख़ुदावन्द, हमेशा तक रहेगा; और तेरी यादगार नसल-दर-नसल रहेगी। \s5 \v 13 ~तू उठेगा और सिय्यून पर रहम करेगाःक्यूँकि उस पर तरस खाने का वक़्त है, हाँ उसका मु'अय्यन वक़्त आ गया है। \v 14 ~इसलिए कि तेरे बन्दे उसके पत्थरों को चाहते, और उसकी ख़ाक पर तरस खाते हैं। \v 15 और क़ौमों को ख़ुदावन्द के नाम का, और ज़मीन के सब बादशाहों को तेरे जलाल का ख़ौफ़ होगा। \v 16 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द ने सिय्यून को बनाया है; वह अपने जलाल में ज़ाहिर हुआ है। \s5 \v 17 उसने बेकसों की दु'आ पर तवज्जुह की, और उनकी दु'आ को हक़ीर न जाना। \v 18 यह आने वाली नसल के लिए लिखा जाएगा, और एक क़ौम पैदा होगी जो ख़ुदावन्द की सिताइश करेगी। \s5 \v 19 ~क्यूँकि उसने अपने हैकल की बुलन्दी पर से निगाह की, ख़ुदावन्द ने आसमान पर से ज़मीन पर~नज़र की; \v 20 ताकि ग़ुलाम का कराहना सुने, और मरने वालों को छुड़ा ले; \s5 \v 21 ताकि लोग सिय्यून में ख़ुदावन्द के नाम का इज़हार, और यरूशलीम में उसकी ता'रीफ़ करें, \v 22 जब ख़ुदावन्द की 'इबादत के लिए, हों। \s5 \v 23 उसने राह में मेरा ज़ोर घटा दिया, उसने मेरी 'उम्र कोताह कर दी। \v 24 ~मैंने कहा, "ऐ मेरे ख़ुदा, मुझे आधी 'उम्र में न उठा, तेरे बरस नसल दर नसल हैं। \s5 \v 25 ~तूने इब्तिदा से ज़मीन की बुनियाद डाली; आसमान तेरे हाथ की कारीगरी है। \v 26 वह हलाक हो जाएँगे, लेकिन तू बाक़ी रहेगा; बल्कि वह सब पोशाक की तरह पुराने हो जाएँगे। तू उनको लिबास की तरह बदलेगा, और वह बदल जाएँगे; \v 27 ~लेकिन तू बदलने वाला नहीं है, और तेरे बरस बेइन्तिहा होंगे। \s5 \v 28 तेरे बन्दों के फ़र्ज़न्द बरकरार रहेंगे; और उनकी नसल तेरे सामने क़ायम रहेगी। \s5 \c 103 \p \v 1 ऐ मेरी जान! ख़ुदावन्द को मुबारक़ कह; और जो कुछ मुझमें है उसके पाक नाम को मुबारक़ कहें \v 2 ऐ मेरी जान! ख़ुदावन्द को मुबारक़ कह और उसकी किसी ने'मत को फ़रामोश न कर | \s5 \v 3 वह तेरी सारी बदकारी को बख़्शता है वह तुझे तमाम बीमारियों से शिफ़ा देता है \v 4 वह तेरी जान हलाकत से बचाता है, वह तेरे सर पर शफ़क़त व रहमत का ताज रखता है | \v 5 वह तुझे 'उम्र भर अच्छी अच्छी चीज़ों से आसूदा करता है, तू 'उक़ाब की तरह नए सिरे नौजवान होता है। \s5 \v 6 ख़ुदावन्द सब मज़लूमों के लिए सदाक़त और अदल के काम करता है| \v 7 उसने अपनी राहें मूसा पर और अपने काम बनी इस्राईल पर ज़ाहीर किए | \v 8 ख़ुदावन्द रहीम व करीम है, क़हर करने में धीमा और शफ़क़त में गनी | \s5 \v 9 वह सदा झिड़कता न रहेगा वह हमेशा ग़ज़बनाक न रहेगा | \v 10 उस ने हमारे गुनाहों के मुवाफ़िक़ हम से सुलूक नहीं किया और हमारी बदकारियों के मुताबिक़ हमको बदला नहीं दिया | \s5 \v 11 क्यूँकि जिस क़द्र आसमान ज़मीन से बुलन्द, उसी क़द्र उसकी शफ़क़त उन पर है, जो उससे डरते हैं। \v 12 जैसे पूरब पच्छिम से दूर है, वैसे ही उसने हमारी ख़ताएँ हम सेदूर कर दीं। \v 13 ~जैसे बाप अपने बेटों पर तरस खाता है, वैसे ही ख़ुदावन्द उन पर जो उससे डरते हैं, तरस खाता है। \s5 \v 14 क्यूँकि वह हमारी सरिश्त से वाक़िफ़ है, उसे याद है कि हम ख़ाक हैं। \v 15 ~इन्सान की उम्र तो घास की तरह है, वह जंगली फूल की तरह खिलता है, \v 16 कि हवा उस पर चली और वह नहीं, और उसकी जगह उसे फिर न देखेगी \s5 \v 17 लेकिन ख़ुदावन्द की शफ़क़त उससे डरने वालों पर अज़ल से हमेशा तक, और उसकी सदाक़त नसल-दर-नसल है \v 18 ~या'नी उन पर जो उसके 'अहद पर क़ायम रहते हैं, और उसके क़वानीन पर 'अमल करनायाद रखते हैं। \v 19 ~ख़ुदावन्द ने अपना तख़्त आसमान पर क़ायम किया है, और उसकी सल्तनत सब पर मुसल्लत है। \s5 \v 20 ऐ ख़ुदावन्द के फ़िरिश्तो, उसको मुबारक कहो, तुम जो ज़ोर में बढ़ कर हो और उसके कलाम की आवाज़ सुन कर उस पर 'अमल करते हो। \v 21 ~ऐ ख़ुदावन्द के लश्करो, सब उसको मुबारक कहो! तुम जो उसके ख़ादिम हो और उसकी मर्ज़ी बजा लाते हो। \v 22 ~ऐ ख़ुदावन्द की मख़लूक़ात, सब उसको मुबारक कहो! तुम जो उसके तसल्लुत के सब मकामों में ही। ऐ मेरी जान, तू ख़ुदावन्द को मुबारक कह! \s5 \c 104 \p \v 1 ~ऐ मेरी जान, तू ख़ुदावन्द को मुबारक कह, ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा तू बहुत बुज़ुर्ग है, तू हश्मत और जलाल से मुलब्बस है! \v 2 ~तू नूर को पोशाक की तरह पहनता है, और आसमान को सायबान की तरह तानता है। \v 3 तू अपने बालाख़ानों के शहतीर पानी पर टिकाता है; तू बादलों को अपना रथ बनाता है; तू हवा के बाज़ुओं पर सैर करता है; \s5 \v 4 तू अपने फ़रिश्तों को हवाएँ और अपने ख़ादिमों की आग के शो'ले बनाता है। \v 5 ~तूने ज़मीन को उसकी बुनियाद पर क़ायम किया, ताकि वह कभी जुम्बिश न खाए। \s5 \v 6 ~तूने उसको समन्दर से छिपाया जैसे लिबास से; पानी पहाड़ों से भी बुलन्द था। \v 7 वह तेरी झिड़की से भागा वह तेरी गरज की आवाज़ से जल्दी-जल्दी चला। \s5 \v 8 उस जगह पहुँच गया जो तूने उसके लिए तैयार की थी; पहाड़ उभर आए, वादियाँ बैठ गई। \v 9 तूने हद बाँध दी ताकि वह आगे न बढ़ सके, और फिर लौटकर ज़मीन को न छिपाए। \s5 \v 10 ~वह वादियों में चश्मे जारी करता है, जो पहाड़ों में बहते हैं। \v 11 सब जंगली जानवर उनसे पीते हैं; गोरखर अपनी प्यास बुझाते हैं। \v 12 उनके आसपास हवा के परिन्दे बसेरा करते, और डालियों में चहचहाते हैं। \s5 \v 13 वह अपने बालाख़ानों से पहाड़ों को सेराब करता है। तेरी कारीगरी के फल से ज़मीन आसूदा है। \v 14 ~वह चौपायों के लिए घास उगाता है, और इन्सान के काम के लिए सब्ज़ा, ताकि ज़मीन से ख़ुराक पैदा करे। \v 15 और मय जो इन्सान के दिल कोऔर रोग़न जो उसके चेहरे को चमकाता है, और रोटी जो आदमी के दिल को तवानाई बख्शती है। \s5 \v 16 ~ख़ुदावन्द के दरख़्त शादाब रहते हैं, या'नी लुबनान के देवदार जो उसने लगाए। \v 17 ~जहाँ परिन्दे अपने घोंसले बनाते हैं; सनोबर के दरख़्तों में लकलक का बसेरा है। \v 18 ऊँचे पहाड़ जंगली बकरों के लिए हैं; चट्टानें साफ़ानों की पनाह की जगह हैं। \s5 \v 19 उसने चाँद को ज़मानों के फ़र्क़ के लिए मुक़र्रर किया; आफ़ताब अपने ग़ुरुब की जगह जानता है| \v 20 तू अँधेरा कर देता है तो रात हो जाती है, जिसमें सब जंगली जानवर निकल आते हैं। \s5 \v 21 ~जवान शेर अपने शिकार की तलाश में गरजते हैं, और ख़ुदा से अपनी खू़राक माँगते हैं। \v 22 आफ़ताब निकलते ही वह चल देते हैं, और जाकर अपनी माँदों में पड़े रहते हैं। \s5 \v 23 इन्सान अपने काम के लिए, और शाम तक अपनी मेहनत करने के लिए निकलता है। \v 24 ~ऐ ख़ुदावन्द, तेरी कारीगरी ~कैसी बेशुमार हैं। तूने यह सब कुछ हिकमत से बनाया; ज़मीन तेरी मख़लूक़ात से मा'मूर है। \s5 \v 25 देखो, यह बड़ा और चौड़ा समन्दर, जिसमें बेशुमार रेंगने वाले जानदार हैं; या'नी छोटे और बड़े जानवर। \v 26 ~जहाज़ इसी में चलते हैं; इसी में लिवियातान है, जिसे तूने इसमें खेलने को पैदा किया। \s5 \v 27 इन सबको तेरी ही उम्मीद है, ताकि तू उनको वक़्त पर ख़ूराक दे। \v 28 जो कुछ तू देता है, यह ले लेते हैं; तू अपनी मुट्ठी खोलता है और यह अच्छी चीज़ों से सेर होते हैं \s5 \v 29 ~तू अपना चेहरा छिपा लेता है, और यह परेशान हो जाते हैं; तू इनका दम रोक लेता है, और यह मर जाते हैं, और फिर मिट्टी में मिल जाते हैं। \v 30 तू अपनी रूह भेजता है, और यह पैदा होते हैं; और तू ~इस ज़मीन को नया बना देता है। \s5 \v 31 ~ख़ुदावन्द का जलाल हमेशा तक रहे, ख़ुदावन्द अपनी कारीगरी से खु़श हो। \v 32 वह ज़मीन पर निगाह करता है, और वह काँप जाती है; वह पहाड़ों को छूता है, और उनसे से धुआँ निकलने लगता है। \s5 \v 33 ~मैं 'उम्र भर ख़ुदावन्द की ता'रीफ़ गाऊँगा; जब तक मेरा वुजूद है मैं अपने ख़ुदा की मदहसराई करूँगा । \v 34 ~मेरा ध्यान उसे पसन्द आए, मैं ख़ुदावन्द में ख़ुश रहूँगा। \s5 \v 35 गुनहगार ज़मीन पर से फ़ना हो जाएँ, और शरीर बाक़ी न रहें! ऐ मेरी जान, ख़ुदावन्द को मुबारक कह! ख़ुदावन्द की हम्द करो! \s5 \c 105 \p \v 1 ~ख़ुदावन्द का शुक्र करो, उसके नाम से दु'आ करो; क़ौमों में उसके कामों का बयान करो! \v 2 ~उसकी ता'रीफ़ में गाओ, उसकी मदहसराई करो; उसके तमाम 'अजाइब का चर्चा करो! \v 3 उसके पाक नाम पर फ़ख़्र करो, ख़ुदावन्द के तालिबों के दिल ख़ुश हों! \s5 \v 4 ~ख़ुदावन्द और उसकी ताक़त के तालिब हो, हमेशा उसके दीदार के तालिब रहो! \v 5 उन 'अजीब कामों को जो उसने किए, उसके 'अजाइब और मुँह केअहकाम को याद रख्खो! \v 6 ~ऐ उसके बन्दे इब्राहीम की नसल! ऐ बनी या'क़ूब उसके बरगुज़ीदो! \s5 \v 7 ~वही ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा है; उसके अहकाम तमाम ज़मीन पर हैं। \v 8 ~उसने अपने 'अहद को हमेशा याद रख्खा, या'नी उस कलाम को जो उसने हज़ार नसलों के लिए फ़रमाया; \s5 \v 9 उसी 'अहद को जो उसने इब्राहीम से बाँधा, और उस क़सम को जो उसने इस्हाक़ से खाई, \v 10 और उसी को उसने या'क़ूब के लिए क़ानून, या'नी इस्राईल के लिए हमेशा का 'अहद ठहराया, \v 11 और कहा, "मैं कना'न का मुल्क तुझे दूँगा, कि तुम्हारा मौरूसी हिस्सा हो।" \s5 \v 12 ~उस वक़्त वह शुमार में थोड़े थे, बल्कि बहुत थोड़े और उस मुल्क में मुसाफ़िर थे। \v 13 और वह एक क़ौम से दूसरी क़ौम में, और एक सल्तनत से दूसरी सल्तनत में फिरते रहे। \s5 \v 14 ~उसने किसी आदमी को उन पर ज़ुल्म न करने दिया, बल्कि उनकी ख़ातिर उसने बादशाहों को धमकाया, \v 15 ~और कहा, "मेरे मम्सूहों को हाथ न लगाओ, और मेरे नबियों को कोई नुक़सान न पहुँचाओ! " \s5 \v 16 फिर उसने फ़रमाया, कि उस मुल्क पर क़हत नाज़िल हो और उसने रोटी का सहारा बिल्कुल तोड़ दिया। \v 17 उसने उनसे पहले एक आदमी को भेजा, यूसुफ़ गु़लामी में बेचा गया। \s5 \v 18 उन्होंने उसके पाँव को बेड़ियों से दुख दिया; वह लोहे की ज़न्जीरों में जकड़ा रहा; \v 19 ~जब तक के उसका बात पूरा न हुआ, ख़ुदावन्द का कलाम उसे आज़माता रहा | \s5 \v 20 ~बादशाह ने हुक्म भेज कर उसे छुड़ाया, हाँ क़ौमों के फ़रमान रवा ने उसे आज़ाद किया। \v 21 उसने उसको अपने घर का मुख़्तार और अपनी सारी मिलिकयत पर हाकिम बनाया, \v 22 ~ताकि उसके हाकिमों को जब चाहे कै़द करे, और उसके बुज़ुर्गों को अक़्ल सिखाए। \v 23 ~इस्राईल भी मिस्र में आया, और या'क़ूब हाम की सरज़मीन में मुसाफ़िर रहा। \s5 \v 24 और ख़ुदा ने अपने लोगों को खू़ब बढ़ाया, और उनको उनके मुख़ालिफ़ों से ज़्यादा मज़बूत किया। \v 25 उसने उनके दिल को नाफ़रमान किया, ताकि उसकी क़ौम से 'अदावत रख्खें, और उसके बन्दों से दग़ाबाजी करें। \v 26 ~उसने अपने बन्दे मूसा को, और अपने बरगुज़ीदा हारून को भेजा। \v 27 ~उसने उनके बीच मु'अजिज़ात, और हाम की सरज़मीन में 'अजाइब दिखाए। \s5 \v 28 उसने तारीकी भेजकर अंधेरा कर दिया; और उन्होंने उसकी बातों से सरकशी न की। \v 29 उसने उनकी नदियों को लहू बना दिया, और उनकी मछलियाँ मार डालीं। \v 30 ~उनके मुल्क और बादशाहों के बालाख़ानों में, मेंढक ही मेंढक भर गए। \s5 \v 31 उसने हुक्म दिया, और मच्छरों के ग़ोल आए, और उनकी सब हदों में जूएं आ गई \v 32 उसने उन पर मेंह की जगह ओले बरसाए, और उनके मुल्क पर दहकती आग नाज़िल की। \v 33 ~उसने उनके अँगूर और अंजीर के दरख़तों को भी बर्बाद कर डाला, और उनकी हद के पेड़ तोड़ डाले। \s5 \v 34 उसने हुक्म दिया तो बेशुमार टिड्डियाँऔर कीड़े आ गए, \v 35 और उनके मुल्क की तमाम चीज़े चट कर गए, और उनकी ज़मीन की पैदावार खा गए। \v 36 ~उसने उनके मुल्क के सब पहलौठों को भी मार डाला, जो उनकी पूरी ताक़त के पहले फल थे। \s5 \v 37 और इस्राईल को चाँदी और सोने के साथ निकाल लाया, और उसके क़बीलों में एक भी कमज़ोर आदमी न था। \v 38 ~उनके चले जाने से मिस्र खु़श हो गया, क्यूँकि उनका ख़ौफ़ मिस्रियों पर छा गया था। \v 39 उसने बादल को सायबान होने के लिए फैला दिया, और रात को रोशनी के लिए आग दी। \s5 \v 40 ~उनके माँगने पर उसने बटेरें भेजीं, और उनको आसमानी रोटी से सेर किया। \v 41 उसने चट्टान को चीरा, और पानी फूट निकलाः और ख़ुश्क ज़मीन पर नदी की तरह बहने लगा। \v 42 ~क्यूँकि उसने अपने पाक क़ौल को, और अपने बन्दे इब्राहीम को याद किया। \s5 \v 43 ~और वह अपनी क़ौम को ख़ुशी के साथ, और अपने बरगुज़ीदों को हम्द गाते हुए निकाल लाया। \v 44 ~और उसने उनको क़ौमों के मुल्क दिए, और उन्होंने उम्मतों की मेहनत के फल पर कब्ज़ा किया। \v 45 ~ताकि वह उसके क़ानून पर चलें, और उसकी शरी'अत को मानें।ख़ुदावन्द की हम्द करो! \s5 \c 106 \p \v 1 ख़ुदावन्द की हम्द करो, ख़ुदावन्द का शुक्र करो, क्यूँकि वह भला है; और उसकी शफ़क़त हमेशा की है! \v 2 कौन ख़ुदावन्द की कु़दरत के कामों काबयान कर सकता है, या उसकी पूरी सिताइश सुना सकता है? \s5 \v 3 ~मुबारक हैं वह जो 'अद्ल करते हैं, और वह जो हर वक़्त सदाक़त के~काम करता है। \v 4 ऐ ख़ुदावन्द, उस करम से जो तू अपने लोगों पर करता है मुझे याद कर, अपनी नजात मुझे इनायत फ़रमा, \v 5 ताकि मैं तेरे बरगुज़ीदों की इक़बालमंदी देखें और तेरी क़ौम की ख़ुशी में ख़ुश रहूँ। और तेरी मीरास के लोगों के साथ फ़ख़्र करूँ । \s5 \v 6 हम ने और हमारे बाप दादा ने गुनाह किया; हम ने बदकारी की, हम ने शरारत के काम किए! \v 7 हमारे बाप-दादा मिस्र में तेरे 'अजाइब न समझे; उन्होंने तेरी शफ़क़त की कसरत को याद न किया; बल्कि समन्दर पर या'नी बहर-ए-कु़लज़ुम पर बाग़ी हुए। \s5 \v 8 तोभी उसने उनको अपने नाम की ख़ातिर बचाया, ताकि अपनी कु़दरत ज़ाहिर करे \v 9 उसने बहर-ए-कु़लज़ुम को डाँटा और वह सूख गया। वह उनकी गहराव में से ऐसे निकाल ले गया जैसे वीरान में से. \s5 \v 10 ~और उसने उनको 'अदावत रखने वाले के हाथ से बचाया, और दुश्मन के हाथ से छुड़ाया। \v 11 समन्दर ने उनके मुख़ालिफ़ों को छिपा लियाः उनमें से एक भी न बचा। \v 12 ~तब उन्होंने उसके क़ौल का यक़ीन किया; और उसकी मदहसराई करने लगे। \s5 \v 13 ~फिर वह जल्द उसके कामों को भूल गए, और उसकी मश्वरत का इन्तिज़ार न किया। \v 14 ~बल्कि वीरान में बड़ी हिर्स की, और सेहरा में ख़ुदा को आज़माया। \v 15 ~फिर उसने उनकी मुराद तो पूरी कर दी, लेकिन उनकी जान को सुखा दिया। \s5 \v 16 ~उन्होंने ख़ेमागाह में मूसा पर, और ख़ुदावन्द के पाक मर्द हारून पर हसद किया। \v 17 ~फिर ज़मीन फटी और दातन को निगल गई, और अबिराम की जमा'अत को खा गई, \v 18 और उनके जत्थे में आग भड़क उठी, और शो'लों ने शरीरों को भसम कर दिया। \s5 \v 19 उन्होंने होरिब में एक बछड़ा बनाया, और ढाली हुई मूरत को सिज्दा किया। \v 20 यूँ उन्होंने ख़ुदा के जलाल को, घास खाने वाले बैल की शक्ल से बदल दिया। \v 21 वह अपने मुनज्जी ख़ुदा को भूल गए, जिसने मिस्र में बड़े बड़े काम किए, \s5 \v 22 और हाम की सरज़मीन में 'अजाइब, और बहर-ए-कु़लजु़म पर दहशत अंगेज़ काम किए। \v 23 इसलिए उसने फ़रमाया, मैं उनको हलाक कर डालता, अगर मेरा बरगुज़ीदा मूसा मेरे सामने बीच में न आता कि मेरे क़हर को टाल दे, ऐसा न हो कि मैं उनको हलाक करूँ। \s5 \v 24 और उन्होंने उस सुहाने मुल्क को हक़ीर जाना, और उसके क़ौल का यक़ीन न किया। \v 25 ~बल्कि वह अपने डेरों में बड़बड़ाए, और ख़ुदावन्द की बात न मानी। \s5 \v 26 ~तब उसने उनके ख़िलाफ़ क़सम खाई कि मैं उनको वीरान में पस्त करूँगा, \v 27 और उनकी नसल की क़ौमों के बीच और उनको मुल्क मुल्क में तितर बितर करूँगा। \s5 \v 28 वह बा'ल फ़गू़र को पूजने लगे, और बुतों की कु़र्बानियाँ खाने लगे। \v 29 यूँ उन्होंने अपने आ'माल से उसको ना ख़ुश किया, और वबा उनमें फूट निकली। \s5 \v 30 तब फ़ीन्हास उठा और बीच में आया, और वबा रुक गई। \v 31 और यह काम उसके हक़ में नसल दर नसल, हमेशा के लिए रास्तबाज़ी गिना गया। \s5 \v 32 ~उन्होंने उसकी मरीबा के चश्मे पर भी नाख़ुश किया, और उनकी ख़ातिर मूसा को नुक़सान पहुँचा; \v 33 ~इसलिए कि उन्होंने उसकी रूह से सरकशी की, और मूसा बे सोचे बोल उठा। \v 34 उन्होंने उन क़ौमों को हलाक न किया, जैसा ख़ुदावन्द ने उनको हुक्म दिया था, \v 35 ~बल्कि उन कौमों के साथ मिल गए, और उनके से काम सीख गए; \v 36 और उनके बुतों की परस्तिश करने लगे, जो उनके लिए फंदा बन गए। \s5 \v 37 बल्कि उन्होंने अपने बेटे बेटियों को, शयातीन के लिए कु़र्बान किया: \v 38 ~और मासूमों का या'नी अपने बेटे बेटियों का खू़न बहाया, . जिनको उन्होंने कना'न के बुतों के लिए कु़र्बान कर दियाः और मुल्क खू़न से नापाक हो गया। \v 39 ~यूँ वह अपने ही कामों से आलूदा हो गए, और अपने फ़े'लों से बेवफ़ा बने। \s5 \v 40 ~इसलिए ख़ुदावन्द का क़हर अपने लोगों पर भड़का, और उसे अपनी मीरास से नफ़रत हो गई; \v 41 ~और उसने उनकी क़ौमों के क़ब्ज़े में कर दिया, और उनसे 'अदावत रखने वाले उन पर हुक्मरान हो गए। \s5 \v 42 उनके दुशमनों ने उन पर ज़ुल्म किया, और वह उनके महकूम हो गए। \v 43 ~उसने तो बारहा उनको छुड़ाया, लेकिन उनका मश्वरा बग़ावत वाला ही रहा और वह अपनी बदकारी के वजह से पस्त हो गए। \s5 \v 44 तोभी जब उसने उनकी फ़रियाद सुनी, तो उनके दुख पर नज़र की। \v 45 ~और उसने उनके हक़ में अपने 'अहद को याद किया, और अपनी शफ़क़त की कसरत के मुताबिक़ तरस खाया। \v 46 ~उसने उनकी ग़ुलाम करने वालों के दिलमें उनके लिए रहम डाला। \s5 \v 47 ~ऐ ख़ुदावन्द, हमारे ख़ुदा! हम को बचा ले, और हम को क़ौमों में से इकट्ठा कर ले, ताकि हम तेरे पाक नाम का शुक्र करें, और ललकारते हुए तेरी सिताइश करें। \v 48 ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा, इब्तिदा से हमेशा तक मुबारक हो! ख़ुदावन्द की हम्द करो*। \s5 \c 107 \p \v 1 ख़ुदा का शुक्र ~करो, क्यूँकि वह भला है; और उसकी शफ़क़त हमेशा की है! \v 2 ख़ुदावन्द के छुड़ाए हुए यही कहें, जिनको फ़िदिया देकर मुख़ालिफ़ के हाथ से छुड़ा लिया, \v 3 और उनको मुल्क-मुल्क से जमा' किया; पूरब से और पच्छिम से, उत्तर से और दक्खिन से। \s5 \v 4 ~वह वीरान में सेहरा के रास्ते पर भटकते फिरे; उनको बसने के लिए कोई शहर न मिला। \v 5 ~वह भूके और प्यासे थे, और उनका दिल बैठा जाता था। \v 6 तब अपनी मुसीबत में उन्होंने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की, और उसने उनको उनके दुखों से रिहाई बख़्शी। \v 7 वह उनको सीधी राह से ले गया, ताकि बसने के लिए किसी शहर में जा पहुँचें। \s5 \v 8 ~काश के लोग ख़ुदावन्द की शफ़क़त की ख़ातिर, और बनी आदम के लिए उसके 'अजाइब की ख़ातिर उसकी सिताइश करते। \v 9 क्यूँकि वह तरसती जान को सेर करता है, और भूकी जान को ने 'मतों से मालामाल करता है। \v 10 ~जो अंधेरे और मौत के साये में बैठे, मुसीबत और लोहे से जकड़े हुएथे; \s5 \v 11 चूँके उन्होंने ख़ुदा के कलाम से सरकशी कीऔर हक़ ता'ला की मश्वरत को हक़ीर जाना। \v 12 इसलिए उसने उनका दिल मशक़्क़त से'आजिज़ कर दिया; वह गिर पड़े और कोई मददगार न था। \v 13 तब अपनी मुसीबत में उन्होंने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की, और उसने उनको उनके दुखों से रिहाई बख़्शी। \s5 \v 14 वह उनको अंधेरे और मौत के साये से निकाल लाया, और उनके बंधन तोड़ डाले। \v 15 काश के लोग ख़ुदावन्द की शफ़क़त की खातिर, और बनी आदम के लिए उसके 'अजाइब की ख़ातिर उसकी सिताइश करते! \v 16 ~क्यूँकि उसने पीतल के फाटक तोड़ दिए, और लोहे के बेण्डों को काट डाला। \s5 \v 17 बेवक़ूफ़ अपनी ख़ताओं की वजह से, और अपनी बदकारी के ज़रिए' मुसीबत में पड़ते हैं। \v 18 उनके जी को हर तरह के खाने से नफ़रत हो जाती है, और वह मौत के फाटकों के नज़दीक पहुँच जाते हैं। \v 19 तब वह अपनी मुसीबत में ख़ुदावन्द से फ़रियाद करते है और वह उनको उनके दुखों से रिहाई बख़्शता है। \s5 \v 20 ~वह अपना कलाम नाज़िल फ़रमा कर उनको शिफ़ा देता है, और उनकी उनकी हलाकत से रिहाई बख्शता है। \v 21 काश के लोग ख़ुदावन्द की शफ़क़त की खातिर, और बनी आदम के लिए उसके 'अजाइब की ख़ातिर उसकी सिताइश करते! \v 22 ~वह शुक्रगुज़ारी की क़ुर्बानियाँ पेश करें, और गाते हुए उसके कामों को बयान करें। \s5 \v 23 ~जो लोग जहाज़ों में बहर पर जाते हैं, और समन्दर पर कारोबार में लगे रहते हैं; \v 24 ~वह समन्दर में ख़ुदावन्द के कामों को, और उसके 'अजाइब को देखते हैं। \s5 \v 25 ~क्यूँकि वह हुक्म देकर तुफ़ानी हवा चलाता जो उसमें लहरें उठाती है। \v 26 ~वह आसमान तक चढ़ते और गहराओ ~में उतरते हैं; परेशानी से उनका दिल पानी पानी हो जाता है; \v 27 ~वह झूमते और मतवाले की तरह लड़खड़ाते, और बदहवास हो जाते हैं। \s5 \v 28 ~तब वह अपनी मुसीबत में ख़ुदावन्द से फ़रियाद करते है और वह उनको उनके दुखों से रिहाई बख़्शता है। \v 29 वह आँधी को थमा देता है, और लहरें ख़त्म हो जाती हैं। \v 30 ~तब वह उसके थम जाने से ख़ुश होते हैं, यूँ वह उनको बन्दरगाह-ए-मक़सूद तक पहुँचा देता है। \s5 \v 31 काश के लोग ख़ुदावन्द की शफ़क़त की खातिर, और बनी आदम के लिए उसके 'अजाइब की ख़ातिर उसकी सिताइश करते! \v 32 वह लोगों के मजमे' में उसकी बड़ाई करें, और बुज़ुगों की मजलिस में उसकी हम्द। \s5 \v 33 ~वह दरियाओं को वीरान बना देता है, और पानी के चश्मों को ख़ुश्क ज़मीन। \v 34 वह ज़रखेज़ ज़मीन की सैहरा-ए-शोर कर देता है, इसलिए कि उसके बाशिंदे शरीर हैं। \v 35 वह वीरान की झील बना देता है, और ख़ुश्क ज़मीन को पानी के चश्मे। \s5 \v 36 वहाँ वह भूकों को बसाता है, ताकि बसने के लिए शहर तैयार करें; \v 37 ~और खेत बोएँ, और ताकिस्तान लगाएँ, और पैदावार हासिल करें। \v 38 वह उनको बरकत देता है, और वह बहुत बढ़ते हैं, और वह उनके चौपायों को कम नहीं होने देता। \s5 \v 39 फिर ज़ुल्म-ओ-तकलीफ़ और ग़म के मारे, वह घट जाते और पस्त हो जाते हैं, \v 40 वह उमरा पर ज़िल्लत उंडेल देता है, और उनको बेराह वीराने में भटकाता है। \s5 \v 41 तोभी वह मोहताज को मुसीबत से निकालकर सरफ़राज़ करता है, और उसके ख़ान्दान को रेवड़ की तरह बढ़ाता है। \v 42 रास्तबाज़ यह देखकर ख़ुश होंगे; और सब बदकारों का मुँह बन्द हो जाएगा। \v 43 'अक्लमंद इन बातों पर तवज्जुह करेगा, और वह ख़ुदावन्द की शफ़क़त पर ग़ौर करेंगे। \s5 \c 108 \p \v 1 ऐ ख़ुदा, मेरा दिल क़ायम है; मैं गाऊँगा और दिल से मदहसराई करूँगा । \v 2 ~ऐ बरबत और सितार जागो! मैं ख़ुद भी सुबह सवेरे जाग उठूँगा । \s5 \v 3 ~ऐ ख़ुदावन्द, मैं लोगों में तेरा शुक्र करूँगा, मैं उम्मतों में तेरी मदहसराई करूँगा । \v 4 क्यूँकि तेरी शफ़क़त आसमान से बुलन्द है, और तेरी सच्चाई आसमानों के बराबर है। \s5 \v 5 ~ऐ ख़ुदा, तू आसमानों पर सरफ़राज़ हो! और तेरा जलाल सारी ज़मीन पर हो \v 6 ~~अपने दहने हाथ से बचा और हमें जवाब दे, ताकि तेरे महबूब बचाए जाएँ। \s5 \v 7 ~ख़ुदा ने अपनी पाकिज़गी में यह फ़रमाया है" मैं खु़शी करूँगा, मैं सिक्म को तक़्सीम करूँगा और सुक्कात की वादी को बाटुँगा। \v 8 ~जिल'आद मेरा है, मनस्सी मेरा है; इफ़ाईम मेरे सिर का खू़द है; यहूदाह मेरा 'असा है। \s5 \v 9 ~मोआब मेरी चिलपची है, अदोम पर मैं जूता फेकूँगा, मैं फ़िलिस्तीन पर ललकारूँगा।" \v 10 ~मुझे उस फ़सीलदार शहर में कौन पहुँचाएगा? कौन मुझे अदोम तक ले गया है? \s5 \v 11 ~ऐ ख़ुदा, क्या तूने हमें रद्द नहीं कर दिया? ऐ ख़ुदा, तू हमारे लश्करों के साथ नहीं जाता। \v 12 ~मुख़ालिफ़ के मुक़ाबिले में हमारी मदद कर, क्यूँकि इन्सानी मदद 'बेकार है। \v 13 ख़ुदा की बदौलत हम दिलावरी करेगी; क्यूँकि वही हमारे मुख़ालिफ़ों को पामाल करेगा। \s5 \c 109 \p \v 1 ऐ ख़ुदा मेरे महमूद ख़ामोश न~रह! \v 2 क्यूँकि शरीरों और दग़ाबाज़ों ने मेरे ख़िलाफ़ ~मुँह खोला है, उन्होंने झूठी ज़बान से मुझ से बातें की हैं। \v 3 उन्होंने 'अदावत की बातों से मुझे घेर~लिया, और बे वजह मुझ से लड़े हैं। \s5 \v 4 वह मेरी मुहब्बत की वजह से मेरे मुख़ालिफ़~हैं, लेकिन मैं तो बस दु'आ करता हूँ। \v 5 उन्होंने नेकी के बदले मुझ से बदी की है, और मेरी मुहब्बत के बदले' अदावत। \s5 \v 6 तू किसी शरीर आदमी को उस पर मुक़र्रर कर दे और कोई मुख़ालिफ़ उनके दहने हाथ खड़ा रहे \v 7 ~जब उसकी 'अदालत हो तो वह मुजरिम ठहरे, और उसकी दुआ भी गुनाह गिनी जाए! \s5 \v 8 ~उसकी 'उम्र कोताह हो जाए, और उसका मन्सब कोई दूसरा ले ले! \v 9 ~उसके बच्चे यतीम हो जाएँ, और उसकी बीवी बेवा हो जाए! \v 10 ~उसके बच्चे आवारा होकर भीक माँगे; उनको अपने वीरान मकामों से दूर जाकर टुकड़े माँगना पड़ें! \s5 \v 11 ~क़र्ज़ के तलबगार उसका सब कुछ छीन ले, और परदेसी उसकी कमाई लूट लें। \v 12 कोई न हो जो उस पर शफ़क़त करे, न कोई उसके यतीम बच्चों पर तरस खाए! \v 13 ~उसकी नसल कट जाए, और दूसरी नसल में उनका नाम मिटा दिया जाए! \s5 \v 14 उसके बाप-दादा की बदी ख़ुदावन्द के सामने याद रहे, और उसकी माँ का गुनाह मिटाया न जाए! \v 15 ~वह बराबर ख़ुदावन्द के सामने रहें, ताकि वह ज़मीन पर से उनका ज़िक्र मिटा दे! \v 16 इसलिए कि उसने रहम करना याद नरख्खा, लेकिन ग़रीब और मुहताज और शिकस्तादिल को सताया, ताकि उनको मार डाले। \s5 \v 17 बल्कि लानत करना उसे पसंद था, इसलिए वही उस पर आ पड़ी; और दु'आ देना उसे पसन्द न था, इसलिए वह उससे दूर रही \v 18 ~उसने लानत को अपनी पोशाक की तरह पहना, और वह पानी की तरह उसके बातिन में, और तेल की तरह उसकी हड़िडयों में समा गई। \s5 \v 19 ~वह उसके लिए उस पोशाक की तरह हो जिसे वह पहनता है, और उस पटके की जगह, जिससे वह अपनी कमर कसे रहता है। \v 20 ~ख़ुदावन्द की तरफ़ से मेरे मुख़ालिफ़ों का, और मेरी जान को बुरा कहने वालों का यही बदला है! \s5 \v 21 लेकिन ऐ मालिक ख़ुदावन्द, अपने नाम की ख़ातिर मुझ पर एहसान कर; मुझे छुड़ा क्यूँकि तेरी शफ़क़त खू़ब है! \v 22 ~इसलिए कि मैं ग़रीब और मुहताज हूँ, और मेरा दिल मेरे पहलू में ज़ख़्मी है। \v 23 ~मैं ढलते साये की तरह जाता रहा; मैंटिड्डी की तरह उड़ा दिया गया। \s5 \v 24 फ़ाक़ा करते करते मेरे घुटने कमज़ोर हो गए, और चिकनाई की कमी से मेरा जिस्म सूख गया। \v 25 ~मैं उनकी मलामत का निशाना बन गया हूँ जब वह मुझे देखते हैं तो सिर हिलाते हैं। \s5 \v 26 ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, मेरी मदद कर! अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ मुझे बचा ले। \v 27 ताकि वह जान लें कि इसमें तेरा हाथ है, और तू ही ने ऐ ख़ुदावन्द, यह किया है! \s5 \v 28 ~वह ला'नत करते रहें, लेकिन तू बरकत दे! वह जब उठेगे तो शर्मिन्दा होंगे, लेकिन तेरा बन्दा ख़ुश होगा! \v 29 ~मेरे मुख़ालिफ़ ज़िल्लत से मुलब्बस हो जाएँऔर अपनी ही शर्मिन्दगी की चादर की तरह ओढ़ लें। \s5 \v 30 मैं अपने मुँह से ख़ुदावन्द का बड़ा शुक्र करूँगा, बल्कि बड़ी भीड़ में उसकी हम्द करूँगा । \v 31 ~क्यूँकि वह मोहताज के दहने हाथ खड़ा होगा, ताकि उसकी जान पर फ़तवा देने वालों से उसे रिहाई दे। \s5 \c 110 \p \v 1 यहोवा ने मेरे ख़ुदावन्द से कहा, जब तक कि मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाँव की चौकी न कर दूँ।" \s5 \v 2 ख़ुदावन्द तेरे ज़ोर का 'असा सिय्यून से भेजेगा। तू अपने दुश्मनों में हुक्मरानी कर। \v 3 ~लश्करकशी के दिन तेरे लोग ख़ुशी से अपने आप को पेश करते हैं; तेरे जवान पाक आराइश में हैं, और सुबह के बत्न से शबनम की तरह। \s5 \v 4 ~ख़ुदावन्द ने क़सम खाई है और फिरेगा नहीं, "तू मलिक-ए-सिद्क के तौर पर हमेशा तक काहिन है।" \s5 \v 5 ख़ुदावन्द तेरे दहने हाथ पर अपने कहर के दिन बादशाहों को छेद डालेगा। \v 6 वह क़ौमों में 'अदालत करेगा, वह लाशों के ढेर लगा देगा; और बहुत से मुल्कों में सिरों को कुचलेगा। \s5 \v 7 वह राह में नदी का पानी पिएगा; इसलिए वह सिर को बुलन्द करेगा \s5 \c 111 \p \v 1 ख़ुदावन्द की हम्द करो! मैं रास्तबाज़ों की मजलिस में और जमा'अत में, अपने सारे दिल से ख़ुदावन्द का शुक्र करूँगा । \v 2 ~ख़ुदावन्द के काम 'अज़ीम हैं, जो उनमें मसरूर हैं उनकी तलाश। में रहते हैं। \v 3 ~उसके काम जलाली और पुर हश्मत हैं, और उसकी सदाकत हमेशा तक क़ायम है। \s5 \v 4 ~उसने अपने 'अजाइब की यादगार क़ायम की है; ख़ुदावन्द रहीम-ओ-करीम है। \v 5 ~वह उनको जो उससे डरते हैं खू़राक देता है; वह अपने 'अहद को हमेशा याद रख्खेगा। \v 6 उसने कौमों की मीरास अपने लोगों को देकर, अपने कामों का ज़ोर उनकी दिखाया। \s5 \v 7 उसके हाथों के काम बरहक़ और इन्साफ भरे हैं; उसके तमाम क़वानीन रास्त है, \v 8 वह हमेशा से हमेशा तक क़ायम रहेंगे, वह सच्चाई और रास्ती से बनाए गए हैं। \v 9 ~उसने अपने लोगों के लिए फ़िदिया दिया; उसने अपना 'अहद हमेशा के लिए ठहराया है। उसका नाम पाक और बड़ा है। \s5 \v 10 ~ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ समझ ~का शुरू' है; उसके मुताबिक 'अमल करने वाले अक़्लमंद हैं। उसकी सिताइश हमेशा तक क़ायम है। \s5 \c 112 \p \v 1 ख़ुदावन्द की हम्द करो! मुबारक है वह आदमी जो ख़ुदावन्द से डरता है, और उसके हुक्मों में खू़ब मसरूर रहता है! \v 2 उसकी नसल ज़मीन पर ताक़तवर होगी; रास्तबाज़ों की औलाद मुबारक होगी। \s5 \v 3 माल-ओ-दौलत उसके घर में है; और उसकी सदाकत हमेशा तक क़ायम है। \v 4 रास्तबाज़ों के लिए तारीकी में नूर चमकता है; वह रहीम-ओ-करीम और सादिक है। \v 5 ~~रहम दिल और क़र्ज़ देने वाला आदमी फ़रमाँबरदार है; वह अपना कारोबार रास्ती से करेगा। \s5 \v 6 ~उसे कभी जुम्बिश न होगी:सादिक की यादगार हमेशा रहेगी। \v 7 वह बुरी ख़बर से न डरेगा; ख़ुदावन्द पर भरोसा करने से उसका दिल क़ायम है। \s5 \v 8 ~उसका दिल बरकरार है, वह डरने का नहीं, यहाँ तक कि वह अपने मुख़ालिफ़ों को देख लेगा। \v 9 उसने बाँटा और मोहताजों को दिया, उसकी सदाक़त हमेशा क़ायम रहेगी; उसका सींग इज़्ज़त के साथ बलन्द किया जाएगा। \s5 \v 10 ~~शरीर यह देखेगा और कुढ़ेगा; वह दाँत पीसेगा और घुलेगा; शरीरों की मुराद बर्बाद होगी। \s5 \c 113 \p \v 1 ख़ुदावन्द की हम्द करो! ऐ ख़ुदावन्द के बन्दों, हम्द करो! ख़ुदावन्द के नाम की हम्द करो! \v 2 अब से हमेशा तक, ख़ुदावन्द का नाम मुबारक हो! \s5 \v 3 आफ़ताब के निकलने' से डूबने तक, ख़ुदावन्द के नाम की हम्द हो! \v 4 ~ख़ुदावन्द सब क़ौमों पर बुलन्द-ओ-बाला है; उसका जलाल आसमान से बरतर है। \s5 \v 5 ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा की तरह कौन है? जो 'आलम-ए-बाला पर तख़्तनशीन है, \v 6 जो फ़रोतनी से, आसमान-ओ-ज़मीन पर नज़र करता है। \s5 \v 7 ~वह ग़रीब को खाक से, और मोहताज को मज़बले पर से उठा लेता है, \v 8 ~ताकि उसे उमरा के साथ, या'नी अपनी कौम के उमरा के साथ बिठाए। \s5 \v 9 वह बाँझ का घर बसाता है, और उसे बच्चों वाली बनाकर दिलखुश करता है। ख़ुदावन्द की हम्द करो! \s5 \c 114 \p \v 1 जब इस्राईल मिस्र से निकलआया, या'नी या'क़ूब का घराना अजनबी ज़बान वाली क़ौम में से; \v 2 तो यहूदाह उसका हैकल, और इस्राईल उसकी ममलुकत ठहरा । \s5 \v 3 ~यह देखते ही समन्दर भागा; यरदन पीछे हट गया। \v 4 ~पहाड़ मेंढों की तरह उछले, पहाड़ियाँ भेड़ के बच्चों की तरह कूदे। \s5 \v 5 ~ऐ समन्दर, तुझे क्या हुआ के तू भागता है? ऐ यरदन, तुझे क्या हुआ कि तू पीछे हटता है? \v 6 ऐ पहाड़ो, तुम को क्या हुआ के तुम मेंढों की तरह उछलते हो? ऐ पहाड़ियो, तुम को क्या हुआ के तुम भेड़ के बच्चों की तरह कूदती हो ? \v 7 ~ऐ ज़मीन, तू रब्ब के सामने, या'क़ूब के ख़ुदा के सामने थरथरा; \s5 \v 8 ~जो चट्टान को झील, और चक़माक़ की पानी का चश्मा बना देता है। \s5 \c 115 \p \v 1 हमको नहीं, ऐ ख़ुदावन्द बल्कि तू अपने ही नाम को अपनी शफ़क़त और सच्चाई की ख़ातिर जलाल बख़्श। \v 2 क़ौमें क्यूँ कहें, "अब ~उनका ख़ुदा कहाँ है?" \s5 \v 3 ~हमारा ख़ुदा तो आसमान पर है; उसने जो कुछ चाहा वही किया। \v 4 ~उनके बुत चाँदी और सोना हैं, या'नी आदमी की दस्तकारी। \s5 \v 5 ~उनके मुँह हैं लेकिन वह बोलते नहीं; आँखें हैं लेकिन वह देखते नहीं। \v 6 उनके कान हैं लेकिन वह सुनते नहीं; नाक हैं लेकिन वह सूघते नहीं। \s5 \v 7 पाँव हैं लेकीन वह चलते नहीं, और उनके गले से आवाज़ नहीं निकलती। \v 8 ~उनके बनाने वाले उन ही की तरह हो जाएँगे; बल्कि वह सब जो उन पर भरोसा रखते हैं। \s5 \v 9 ~ऐ इस्राईल, ख़ुदावन्द पर भरोसा कर! वही उनकी मदद और उनकी ढाल है। \v 10 ऐ हारून के घराने, ख़ुदावन्द पर भरोसा करो। वही उनकी मदद और उनकी ढाल है। \v 11 ~ऐ ख़ुदावन्द से डरने वालो, ख़ुदावन्द पर भरोसा करो! वही उनकी मदद और उनकी ढाल ~है। \s5 \v 12 ~ख़ुदावन्द ने हम को याद रखा, वह बरकत देगाः वह इस्राईल के घराने को बरकत देगा; वह हारून के घराने को बरकत देगा। \v 13 ~जो ख़ुदावन्द से डरते हैं, क्या छोटे क्या बड़े, वह उन सबको बरकत देगा। \v 14 ख़ुदावन्द तुम को बढ़ाए, तुम को और तुम्हारी औलाद को! \s5 \v 15 तुम ख़ुदावन्द की तरफ़ से मुबारक हो, जिसने आसमान और ज़मीन को बनाया । \v 16 आसमान तो ख़ुदावन्द का आसमान है, लेकिन ज़मीन उसने बनी आदम को दी है। \s5 \v 17 मुर्दे ख़ुदावन्द की सिताइश नहीं करते, न वह जो ख़ामोशी के 'आलम में उतर जाते हैं: \v 18 ~लेकिन हम अब से हमेशा तक, ख़ुदावन्द को मुबारक कहेंगे। ख़ुदावन्द की हम्द करो!| \s5 \c 116 \p \v 1 मैं ख़ुदावन्द से मुहब्बत रखता हूँ क्यूँकि उसने मेरी फ़रियाद और मिन्नत सुनी है \v 2 चुँकि उसने मेरी तरफ़ कान लगाया, इसलिए मैं 'उम्र भर उससे दू'आ करूँगा \s5 \v 3 मौत की रस्सियों ने मुझे जकड़ लिया, और पाताल के दर्द मुझ पर आ पड़े; मैं दुख और ग़म में गिरफ़्तार हुआ। \v 4 ~तब मैंने ख़ुदावन्द से दु'आ की, "ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ मेरी जान की रिहाई बख्श! " \s5 \v 5 ~ख़ुदावन्द सादिक़ और करीम है; हमारा ख़ुदा रहीम है। \v 6 ~ख़ुदावन्द सादा लोगों की हिफ़ाज़त करता है; मैं पस्त हो गया था, उसी ने मुझे बचा लिया। \s5 \v 7 ऐ मेरी जान, फिर मुत्मइन हो; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने तुझ पर एहसान किया है। \v 8 इसलिए के तूने मेरी जान को मौत से, मेरी आँखों को आँसू बहाने से, और मेरे पाँव को फिसलने से बचाया है। \s5 \v 9 ~मैं ज़िन्दों की ज़मीन में, ख़ुदावन्द के सामने चलता रहूँगा। \v 10 मैं ईमान रखता हूँ इसलिए यह कहूँगा, "मैं बड़ी मुसीबत में था।" \v 11 ~मैंने जल्दबाज़ी से कह दिया, कि "सब आदमी झूटे हैं।" \s5 \v 12 ~ख़ुदावन्द की सब ने'मतें जो मुझे मिलीं, मैं उनके बदले में उसे क्या दूँ? \v 13 ~मैं नजात का प्याला उठाकर, ख़ुदावन्द से दु'आ करूँगा। \v 14 मैं ख़ुदावन्द के सामने अपनी मन्नतें, उसकी सारी क़ौम के सामने पूरी करूँगा । \v 15 ख़ुदावन्द की निगाह में, उसके पाक लोगों की मौत गिरा क़द्र है। \s5 \v 16 आह! ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरा बन्दा हूँ। मैं तेरा बन्दा, तेरी लौंडी का बेटा हूँ। तूने मेरे बन्धन खोले हैं। \v 17 मैं तेरे सामने शुक्रगुज़ारी की कु़र्बानी पेश करूँगा और ख़ुदावन्द से दुआ करूँगा । \s5 \v 18 ~मैं ख़ुदावन्द के सामने अपनी मन्नतें, उसकी सारी क़ौम के सामने पूरी करूँगा। \v 19 ~ख़ुदावन्द के घर की बारगाहों में, तेरे अन्दर ऐ यरूशलीम! ख़ुदावन्द की हम्द करो। \s5 \c 117 \p \v 1 ऐ क़ौमो सब ख़ुदावन्द की हम्द करो! करो! ऐ उम्मतो! सब उसकी सिताइश करो! \v 2 ~क्यूँकि हम पर उसकी बड़ी शफ़क़त है; और ख़ुदावन्द की सच्चाई हमेशा है ख़ुदावन्द की हम्द करो!| \s5 \c 118 \p \v 1 ~ख़ुदावन्द का शुक्र ~करो, क्यूँकि वह भला है; और उसकी शफ़क़त हमेशा की है! \v 2 इस्राईल अब कहे, उसकी शफ़क़त हमेशा की है। \s5 \v 3 ~हारून का घराना अब कहे, उसकी शफ़क़त हमेशा की है। \v 4 ~ख़ुदावन्द से डरने वाले अब कहें, उसकी शफ़क़त हमेशा की है। \s5 \v 5 ~मैंने मुसीबत में ख़ुदावन्द से दु'आ की, ख़ुदावन्द ने मुझे जवाब दिया और कुशादगी बख़्शी। \v 6 ख़ुदावन्द मेरी तरफ़ है, मैं नहीं डरने का; इन्सान मेरा क्या कर सकता है? \v 7 ~ख़ुदावन्द मेरी तरफ़ मेरे मददगारों में है, इसलिए मैं अपने 'अदावत रखने वालों को देख लूँगा। \s5 \v 8 ~ख़ुदावन्द पर भरोसा करना, इन्सान पर भरोसा रखने से बेहतर है। \v 9 ~ख़ुदावन्द पर भरोसा करना, उमरा पर भरोसा रखने से बेहतर है। \s5 \v 10 ~सब क़ौमों ने मुझे घेर लिया; मैं ख़ुदावन्द के नाम से उनको काट डालूँगा! \v 11 उन्होंने मुझे घेर लिया, बेशक घेर लिया; मैं ख़ुदावन्द के नाम से उनको काट डालूँगा! \v 12 उन्होंने शहद की मक्खियों की तरह मुझे घेर लिया, वह काँटों की आग की तरह बुझ गए; मैं ख़ुदावन्द के नाम से उनको काट डालूँगा। \s5 \v 13 तूने मुझे ज़ोर से धकेल दिया कि गिर पडू लेकिन ख़ुदावन्द ने मेरी मदद की। \v 14 ~ख़ुदावन्द मेरी ताक़त और मेरी हम्द है; वही मेरी नजात हुआ। \s5 \v 15 सादिकों के खे़मों में ख़ुशी और नजात की रागनी है, ख़ुदावन्द का दहना हाथ दिलावरी करता है। \v 16 ~ख़ुदावन्द का दहना हाथ बुलन्द हुआ है, ख़ुदावन्द का दहना हाथ दिलावरी करता है। \s5 \v 17 मैं मरूँगा नहीं बल्कि जिन्दा रहूँगा, और ख़ुदावन्द के कामों का बयान करूँगा । \v 18 ~ख़ुदावन्द ने मुझे सख़्त तम्बीह तो की, लेकिन मौत के हवाले नहीं किया। \s5 \v 19 सदाक़त के फाटकों को मेरे लिए खोल दो, मैं उनसे दाख़िल होकर ख़ुदावन्द का शुक्र करूँगा । \v 20 ~ख़ुदावन्द का फाटक यही है, सादिक इससे दाख़िल होंगे। \v 21 मैं तेरा शुक्र करूँगा क्यूँकि तूने मुझे जवाब दिया, और ख़ुद मेरी नजात बना है। \s5 \v 22 ~जिस पत्थर की मे'मारों ने रद्द किया, वही कोने के सिरे का पत्थर हो गया। \v 23 ~यह ख़ुदावन्द की तरफ़ से हुआ, और हमारी नज़र में 'अजीब है। \s5 \v 24 ~यह वही दिन है जिसे ख़ुदावन्द ने मुक़र्रर किया, हम इसमें ख़ुश होंगे और ख़ुशी मनाएँगे। \v 25 आह! ऐ ख़ुदावन्द बचा ले! आह! ऐ ख़ुदावन्द खु़शहाली बख़्श! \s5 \v 26 मुबारक है वह जो ख़ुदावन्द के नाम से आता है! हम ने तुम को ख़ुदावन्द के घर से दु'आ दी है। \v 27 ~यहोवा ही ख़ुदा है, और उसी ने हम को नूर बख़्शा है। कु़र्बानी को मज़बह के सींगों से रस्सियों से बाँधो! \v 28 ~तू मेरा ख़ुदा है, मैं तेरा शुक्र करूँगा ; तू मेरा ख़ुदा है, मैं तेरी तम्जीद करूँगा| \s5 \v 29 ख़ुदावन्द का शुक्र करो, क्यूँकि वह भला है; और उसकी शफ़क़त हमेशा की है! \s5 \c 119 \p \v 1 मुबारक हैं वह जो कामिल रफ़्तार है, जो ख़ुदा की शरी'अत पर 'अमल करते हैं! \v 2 मुबारक हैं वह जो उसकी शहादतों को मानते हैं, और पूरे दिल से उसके तालिब हैं! \s5 \v 3 उन से नारास्ती नहीं होती, वह उसकी राहों पर चलते हैं। \v 4 तूने अपने क़वानीन दिए हैं, ताकि हम दिल लगा कर उनकी मानें। \s5 \v 5 काश कि तेरे क़ानून मानने के लिए, मेरी चाल चलन दुरुस्त हो जाएँ! \v 6 ~जब मैं तेरे सब अहकाम का लिहाज़ रख्खूँगा, तो शर्मिन्दा न हूँगा। \s5 \v 7 जब मैं तेरी सदाक़त के अहकाम सीख लूँगा, तो सच्चे दिल से तेरा शुक्र अदा करूँगा। \v 8 ~मैं तेरे क़ानून मानूँगा; मुझे बिल्कुल छोड़ न दे! \s5 \v 9 ~जवान अपने चाल चलन किस तरह पाक रख्खे? तेरे कलाम के मुताबिक़ उस पर निगाह रखने से। \v 10 मैं पूरे दिल से तेरा तालिब हुआ हूँ:मुझे अपने फ़रमान से भटकने न दे। \s5 \v 11 ~मैंने तेरे कलाम को अपने दिल में रख लिया है ताकि मैं तेरे ख़िलाफ़ गुनाह न करूँ। \v 12 ऐ ख़ुदावन्द! तू मुबारक है; मुझे अपने क़ानून सिखा! \s5 \v 13 मैंने अपने लबों से, तेरे फ़रमूदा अहकाम को बयान किया। \v 14 मुझे तेरी शहादतों की राह से ऐसी ख़ुशी हुई, जैसी हर तरह की दौलत से होती है। \s5 \v 15 ~मैं तेरे क़वानीन पर ग़ौर करूँगा, और तेरी राहों का लिहाज़ रख्खूँगा। \v 16 ~मैं तेरे क़ानून में मसरूर रहूँगा; मैं तेरे कलाम को न भूलूँगा। \s5 \v 17 ~अपने बन्दे पर एहसान कर ताकि मैं जिन्दा रहूँ और तेरे कलाम को मानता रहूँ। \v 18 ~मेरी आँखे खोल दे, ताकि मैं तेरी शरीअत के 'अजाइब देखूँ। \s5 \v 19 ~मैं ज़मीन पर मुसाफ़िर हूँ, अपने फ़रमान मुझ से छिपे न रख| \v 20 ~मेरा दिल तेरे अहकाम के इश्तियाक में, हर वक़्त तड़पता रहता है। \s5 \v 21 ~तूने उन मला'ऊन मग़रूरों को झिड़क दिया, जो तेरे फ़रमान से भटकते रहते हैं। \v 22 ~मलामत और हिक़ारत को मुझ से दूर कर दे, क्यूँकि मैंने तेरी शहादतें मानी हैं। \s5 \v 23 ~उमरा भी बैठकर मेरे ख़िलाफ़ बातें करते रहे, लेकिन तेरा बंदा तेरे क़ानून पर ध्यान लगाए रहा। \v 24 ~तेरी शहादतें मुझे पसन्द, और मेरी मुशीर हैं। \s5 \v 25 ~मेरी जान ख़ाक में मिल गई: तू अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे ज़िन्दा कर। \v 26 ~मैंने अपने चाल चलन का इज़हार किया और तूने मुझे जवाब दिया; मुझे अपने क़ानून की ता'लीम दे। \s5 \v 27 अपने क़वानीन की राह मुझे समझा दे, और मैं तेरे 'अजाइब पर ध्यान करूँगा । \v 28 ~ग़म के मारे मेरी जान घुली जाती है; अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे ताक़त दे। \s5 \v 29 ~झूट की राह से मुझे दूर रख, और मुझे अपनी शरी'अत इनायत फ़रमा। \v 30 ~मैंने वफ़ादारी की राह इख़्तियार की है, मैंने तेरे अहकाम अपने सामने रख्खे हैं। \s5 \v 31 ~मैं तेरी शहादतों से लिपटा हुआ हूँ, ऐ ख़ुदावन्द! मुझे शर्मिन्दा न होने दे! \v 32 जब तू मेरा हौसला बढ़ाएगा, तो मैं तेरे फ़रमान की राह में दौड़ूँगा। \s5 \v 33 ~ऐ ख़ुदावन्द, मुझे अपने क़ानून की राह बता, और मैं आख़िर तक उस पर चलूँगा । \v 34 ~मुझे समझ 'अता कर और मैं तेरी शरी'अत पर चलूँगा, बल्कि मैं पूरे दिल से उसको मानूँगा। \s5 \v 35 ~मुझे अपने फ़रमान की राह पर चला, क्यूँकि इसी में मेरी ख़ुशी है। \v 36 मेरे दिल की अपनी शहादतों की तरफ़ रुजू' दिला; न कि लालच की तरफ़। \s5 \v 37 मेरी आँखों को बेकारी पर नज़र करने से बाज़ रख, और मुझे अपनी राहों में ज़िन्दा कर। \v 38 ~अपने बन्दे के लिए अपना वह क़ौल पूरा कर, जिस से तेरा खौफ़ पैदा होता है। \s5 \v 39 ~मेरी मलामत को जिस से मैं डरता हूँ दूर कर दे; क्यूँकि तेरे अहकाम भले हैं। \v 40 ~देख, मैं तेरे क़वानीन का मुश्ताक़ रहा हूँ; मुझे अपनी सदाक़त से ज़िन्दा कर। \s5 \v 41 ~ऐ ख़ुदावन्द, तेरे क़ौल के मुताबिक़, तेरी शफ़क़त और तेरी नजात मुझे नसीब हों, \v 42 ~तब मैं अपने मलामत करने वाले को जवाब दे सकूँगा, क्यूँकि मैं तेरे कलाम पर भरोसा रखता हूँ। \s5 \v 43 ~और हक़ बात को मेरे मुँह से हरगिज़ ~जुदा न होने दे, क्यूँकि मेरा भरोसा तेरे अहकाम पर है। \v 44 फिर मैं हमेशा से हमेशा तक, तेरी शरी'अत को मानता रहूँगा \s5 \v 45 ~और मैं आज़ादी से चलूँगा, क्यूँकि मैं तेरे क़वानीन का तालिब रहा हूँ। \v 46 ~मैं बादशाहों के सामने तेरी शहादतों का बयान करूँगा, और शर्मिन्दा न हूँगा। \s5 \v 47 ~तेरे फ़रमान मुझे 'अज़ीज़ हैं, मैं उनमें मसरूर रहूँगा। \v 48 ~मैं अपने हाथ तेरे फ़रमान की तरफ़ जो मुझे 'अज़ीज़ है उठाऊँगा, और तेरे क़ानून पर ध्यान करूँगा। \s5 \v 49 ~जो कलाम तूने अपने बन्दे से किया उसे याद कर, क्यूँकि तूने मुझे उम्मीद दिलाई है। \v 50 ~मेरी मुसीबत में यही मेरी तसल्ली है, कि तेरे कलाम ने मुझे ज़िन्दा किया \s5 \v 51 ~मग़रूरों ने मुझे बहुत ठठ्ठों में उड़ाया, तोभी मैंने तेरी शरी'अत से किनारा नहीं किया \v 52 ~ऐ ख़ुदावन्द! मैं तेरे क़दीम अहकाम को याद करता, और इत्मीनान पाता रहा हूँ। \s5 \v 53 ~उन शरीरों की वजह से जो तेरी शरी'अत को छोड़ देते ~हैं, मैं सख़्त ग़ुस्से में आ गया हूँ। \v 54 ~मेरे मुसाफ़िर ख़ाने में, तेरे क़ानून मेरी हम्द रहे हैं। \s5 \v 55 ~ऐ ख़ुदावन्द, रात को मैंने तेरा नाम याद किया है, और तेरी शरी'अत पर 'अमल किया है। \v 56 ~यह मेरे लिए इसलिए हुआ, कि मैंने तेरे क़वानीन को माना। \s5 \v 57 ~ख़ुदावन्द मेरा बख़रा है; मैंने कहा है मैं तेरी बातें मानूँगा। \v 58 ~मैं पूरे दिल से तेरे करम का तलब गार हुआ; अपने कलाम के मुताबिक़ मुझ पर रहम कर! \s5 \v 59 ~मैंने अपनी राहों पर ग़ौर किया, और तेरी शहादतों की तरफ़ अपने कदम मोड़े। \v 60 ~मैंने तेरे फ़रमान मानने में, जल्दी की और देर न लगाई। \s5 \v 61 ~शरीरों की रस्सियों ने मुझे जकड़ लिया, लेकिन मैं तेरी शरी'अत को न भूला। \v 62 ~तेरी सदाकत के अहकाम के लिए, मैं आधी रात को तेरा शुक्र करने को उठूँगा। \s5 \v 63 ~मैं उन सबका साथी हूँ जो तुझ से डरते हैं, और उनका जो तेरे क़वानीन को मानते हैं। \v 64 ~ऐ ख़ुदावन्द, ज़मीन तेरी शफ़क़त से मा'मूर है; मुझे अपने क़ानून सिखा! \s5 \v 65 ~ऐ ख़ुदावन्द! तूने अपने कलाम के मुताबिक़, अपने बन्दे के साथ भलाई की है। \v 66 ~मुझे सही फ़र्क़ और 'अक़्ल सिखा, क्यूँकि मैं तेरे फ़रमान पर ईमान लाया~हूँ| \s5 \v 67 ~मैं मुसीबत उठाने से पहले गुमराह था; लेकिन अब तेरे कलाम को मानता हूँ। \v 68 ~तू भला है और भलाई करता है; मुझे अपने क़ानून सिखा। \s5 \v 69 ~मग़रूरों ने मुझ पर बहुतान बाँधा है; मैं पूरे दिल से तेरे क़वानीन को मानूँगा। \v 70 ~उनके दिल चिकनाई से फ़र्बा हो गए, लेकिन मैं तेरी शरी'अत में मसरूर हूँ। \s5 \v 71 अच्छा हुआ कि मैंने मुसीबत उठाई, ताकि तेरे क़ानून सीख लूँ। \v 72 तेरे मुँह की शरी'अत मेरे लिए, सोने चाँदी के हज़ारों सिक्कों से बेहतर है। \s5 \v 73 ~तेरे हाथों ने मुझे बनाया और तरतीब दी; मुझे समझ 'अता कर ताकि तेरे फ़रमान सीख लें। \v 74 ~तुझ से डरने वाले मुझे देख कर इसलिए कि~मुझे तेरे कलाम पर भरोसा है। \s5 \v 75 ~ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरे अहकाम की सदाक़त को जानता हूँ, और यह कि वफ़ादारी ही से तूने मुझे दुख; में डाला। \v 76 ~उस कलाम के मुताबिक़ जो तूनेअपने बन्दे से किया, तेरी शफ़क़त मेरी तसल्ली का ज़रिया' हो। \s5 \v 77 ~तेरी रहमत मुझे नसीब हो ताकि मैं ज़िन्दा रहूँ। क्यूँकि तेरी शरी'अत मेरी ख़ुशनूदी है। \v 78 ~मग़रूर शर्मिन्दा हों, क्यूँकि उन्होंने नाहक़ मुझे गिराया, लेकिन मैं तेरे क़वानीन पर ध्यान करूँगा । \s5 \v 79 ~तुझ से डरने वाले मेरी तरफ़ रुजू हों, तो वह तेरी शहादतों को जान लेंगे। \v 80 ~मेरा दिल तेरे क़ानून मानने में कामिल रहे, ताकि मैं शर्मिन्दगी न उठाऊँ। \s5 \v 81 ~मेरी जान तेरी नजात के लिए बेताब है, लेकिन मुझे तेरे कलाम पर भरोसा है। \v 82 तेरे कलाम के इन्तिज़ार में मेरी आँखें रह गई, मैं यही कहता रहा कि तू मुझे कब तसल्ली देगा? \s5 \v 83 ~मैं उस मश्कीज़े की तरह हो गया जो धुएँ में हो, तोभी मैं तेरे क़ानून को नहीं भूलता। \v 84 ~तेरे बन्दे के दिन ही कितने हैं? तू मेरे सताने वालों पर कब फ़तवा देगा? \s5 \v 85 ~मग़रूरों ने जो तेरी शरी'अत के पैरौ नहीं, मेरे लिए गढ़े खोदे हैं। \v 86 ~तेरे सब फ़रमान बरहक़ हैं:वह नाहक़ मुझे सताते हैं; तू मेरी मदद कर! \s5 \v 87 ~उन्होंने मुझे ज़मीन पर से फ़नाकर ही डाला था, लेकिन मैंने तेरे कवानीन को न छोड़ा। \v 88 ~तू मुझे अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ ज़िन्दा कर, तो मैं तेरे मुँह की शहादत को मानूँगा। \s5 \v 89 ~ऐ ख़ुदावन्द! तेरा कलाम, आसमान पर हमेशा तक क़ायम है। \v 90 तेरी वफ़ादारी नसल दर नसल है; तूने ज़मीन को क़याम बख़्शा और वह क़ायम है। \s5 \v 91 ~वह आज तेरे अहकाम के मुताबिक़ क़ायम हैं क्यूँकि सब चीजें तेरी ख़िदमत गुज़ार हैं। \v 92 अगर तेरी शरी'अत मेरी ख़ुशनूदी न होती, तो मैं अपनी मुसीबत में हलाक हो जाता। \s5 \v 93 ~मैं तेरे क़वानीन को कभी न भूलूँगा, क्यूँकि तूने उन्ही के वसीले से मुझे ज़िन्दा किया है। \v 94 ~मैं तेरा ही हूँ मुझे बचा ले, क्यूँकि मैं तेरे क़वानीन का तालिब रहा हूँ। \s5 \v 95 ~शरीर मुझे हलाक करने को घात में लगे रहे, लेकिन मैं तेरी शहादतों पर ग़ौर करूँगा । \v 96 ~मैंने देखा कि हर कमाल की इन्तिहा है, लेकिन तेरा हुक्म बहुत वसी'अ है। \s5 \v 97 ~आह! मैं तेरी शरी'अत से कैसी मुहब्बत रखता हूँ, मुझे दिन भर उसी का ध्यान रहता है। \v 98 ~तेरे फ़रमान मुझे मेरे दुश्मनों से ज़्यादा 'अक़्लमंद ~बनाते हैं, क्यूँकि वह हमेशा मेरे साथ हैं। \s5 \v 99 ~मैं अपने सब उस्तादों से 'अक़्लमंद हैं, क्यूँकि तेरी शहादतों पर मेरा ध्यान रहता है। \v 100 ~मैं 'उम्र रसीदा लोगों से ज़्यादा समझ रखता हूँ क्यूँकि मैंने तेरे क़वानीन को माना है। \s5 \v 101 ~मैंने हर बुरी राह से अपने क़दम रोक रख्खें हैं, ताकि तेरी शरी'अत पर 'अमल करूँ। \v 102 मैंने तेरे अहकाम से किनारा नहीं किया, क्यूँकि तूने मुझे ता'लीम दी है। \s5 \v 103 ~तेरी बातें मेरे लिए कैसी शीरीन हैं, वह मेरे मुँह को शहद से भी मीठी मा'लूम होती हैं! \v 104 ~तेरे क़वानीन से मुझे समझ हासिल होता है, इसलिए मुझे हर झूटी राह से नफ़रत है। \s5 \v 105 ~तेरा कलाम मेरे क़दमों के लिए चराग़, और मेरी राह के लिए रोशनी है। \v 106 ~मैंने क़सम खाई है और उस पर क़ायम हूँ, कि तेरी सदाक़त के अहकाम पर'अमल करूँगा। \s5 \v 107 ~मैं बड़ी मुसीबत में हूँ।ऐ ख़ुदावन्द! अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे ज़िन्दा कर। \v 108 ~ऐ ख़ुदावन्द, मेरे मुँह से रज़ा की क़ुर्बानियाँ क़ुबूल फ़रमा और मुझे अपने अहकाम की ता'लीम दे। \s5 \v 109 मेरी जान हमेशा हथेली पर है, तोभी मैं तेरी शरी'अत को नहीं भूलता। \v 110 ~शरीरों ने मेरे लिए फंदा लगाया है, तोभी मैं तेरे क़वानीन से नहीं भटका। \s5 \v 111 ~मैंने तेरी शहादतों को अपनी हमेशा की मीरास बनाया है, क्यूँकि उनसे मेरे दिल को ख़ुशी होती है। \v 112 ~मैंने हमेशा के लिए आख़िर तक, तेरे क़ानून मानने पर दिल लगाया है। \s5 \v 113 ~मुझे दो दिलों से नफ़रत है, लेकिन तेरी शरी'अत से मुहब्बत रखता हूँ | \v 114 ~तू मेरे छिपने की जगह और मेरी ढाल है; मुझे तेरे कलाम पर भरोसा है। \s5 \v 115 ~ऐ बदकिरदारो! मुझ से दूर हो जाओ, ताकि मैं अपने ख़ुदा के फ़रमान पर'अमल करूँ! \v 116 ~तू अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे संभाल ताकि ज़िन्दा रहूँ, और मुझे अपने भरोसा से शर्मिन्दगी न उठाने दे। \s5 \v 117 ~मुझे संभाल और मैं सलामत रहूँगा, और हमेशा तेरे क़ानून का लिहाज़ रखूँगा । \v 118 ~तूने उन सबको हक़ीर जाना है, जो तेरे क़ानून से भटक जाते हैं; क्यूँकि उनकी दग़ाबाज़ी 'बेकार है। \s5 \v 119 ~तू ज़मीन के सब शरीरों को मैल की तरह छाँट देता है; इसलिए में तेरी शहादतों को 'अज़ीज़ रखता हूँ। \v 120 मेरा जिस्म तेरे ख़ौफ़ से काँपता है, और मैं तेरे अहकाम से डरता हूँ। \s5 \v 121 ~मैंने 'अद्ल और इन्साफ़ किया है; मुझे उनके हवाले न कर जो मुझ पर ज़ुल्म करते हैं। \v 122 ~भलाई के लिए अपने बन्दे का ज़ामिन हो, मग़रूर मुझ पर ज़ुल्म न करें। \s5 \v 123 ~तेरी नजात और तेरी सदाक़त के कलाम के इन्तिज़ार में मेरी आँखें रह गई। \v 124 अपने बन्दे से अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ सुलूक कर, और मुझे अपने क़ानून सिखा। \s5 \v 125 ~मैं तेरा बन्दा हूँ! मुझ को समझ 'अताकर, ताकि तेरी शहादतों को समझ लूँ। \v 126 अब वक़्त आ गया, कि ख़ुदावन्द काम करे, क्यूँकि उन्होंने तेरी शरी'अत को बेकार कर दिया है। \s5 \v 127 ~इसलिए मैं तेरे फ़रमान को सोने से बल्कि कुन्दन से भी ज़्यादा 'अज़ीज़ रखता हूँ। \v 128 ~इसलिए मैं तेरे सब कवानीन को बरहक़ जानता हूँ, और हर झूटी राह से मुझे नफ़रत है। \s5 \v 129 ~तेरी शहादतें 'अजीब हैं, इसलिए मेरा दिल उनको मानता है। \v 130 तेरी बातों की तशरीह नूर बख़्शती है, वह सादा दिलों को 'अक़्लमन्द बनाती है। \s5 \v 131 ~मैं खू़ब मुँह खोलकर हाँपता रहा, क्यूँकि मैं तेरे फ़रमान का मुश्ताक़ था। \v 132 ~मेरी तरफ़ तवज्जुह कर और मुझ पर रहम फ़रमा, जैसा तेरे नाम से मुहब्बत रखने वालों का हक़ है। \s5 \v 133 ~अपने कलाम में मेरी रहनुमाई कर, कोई बदकारी मुझ पर तसल्लुत न पाए। \v 134 इन्सान के ज़ुल्म से मुझे छुड़ा ले, तो तेरे क़वानीन पर 'अमल करूँगा । \s5 \v 135 अपना चेहरा अपने बन्दे पर जलवागर फ़रमा, और मुझे अपने क़ानून सिखा। \v 136 ~मेरी आँखों से पानी के चश्मे जारी हैं, इसलिए कि लोग तेरी शरी'अत को नहीं मानते। \s5 \v 137 ~ऐ ख़ुदावन्द तू सादिक़ है, और तेरे अहकाम बरहक़ हैं। \v 138 ~तूने सदाक़त और कमाल वफ़ादारी से, अपनी शहादतों को ज़ाहिर फ़रमाया है। \s5 \v 139 ~मेरी गै़रत मुझे खा गई, क्यूँकि मेरे मुख़ालिफ़ तेरी बातें भूल गए| \v 140 तेरा कलाम बिल्कुल ख़ालिस है, इसलिए तेरे बन्दे को उससे मुहब्बत है। \s5 \v 141 ~मैं अदना और हक़ीर हूँ, तौ भी मैं तेरे क़वानीन को नहीं भूलता। \v 142 ~तेरी सदाक़त हमेशा की सदाक़त है, और तेरी शरी'अत बरहक़ है। \s5 \v 143 ~मैं तकलीफ़ और अज़ाब में मुब्तिला, हूँ तोभी तेरे फ़रमान मेरी ख़ुशनूदी हैं। \v 144 ~तेरी शहादतें हमेशा रास्त हैं; मुझे समझ 'अता कर तो मैं ज़िन्दा रहूँगा। \s5 \v 145 ~मैं पूरे दिल से दु'आ करता हूँ, ऐ ख़ुदावन्द, मुझे जवाब दे। मैं तेरे क़ानून पर 'अमल करूँगा । \v 146 मैंने तुझ से दु'आ की है, मुझे बचा ले, और मैं तेरी शहादतों को मानूँगा। \s5 \v 147 ~मैंने पौ फटने से पहले फ़रियाद की; मुझे तेरे कलाम पर भरोसा है। \v 148 ~मेरी आँखें रात के हर पहर से पहले खुल गई, ताकि तेरे कलाम पर ध्यान करूँ। \s5 \v 149 अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ मेरी फ़रियाद सुन: ऐ ख़ुदावन्द! अपने अहकाम के मुताबिक़ मुझे ज़िन्दा कर। \v 150 ~जो शरारत के दर पै रहते हैं, वह नज़दीक आ गए; वह तेरी शरी'अत से दूर हैं। \s5 \v 151 ~ऐ ख़ुदावन्द, तू नज़दीक है, और तेरे सब फ़रमान बरहक़ हैं। \v 152 ~तेरी शहादतों से मुझे क़दीम से मा'लूम हुआ, कि तूने उनको हमेशा के लिए क़ायम किया है। \s5 \v 153 ~मेरी मुसीबत का ख़याल करऔर मुझे छुड़ा, क्यूँकि मैं तेरी शरी'अत को नहीं भूलता। \v 154 ~मेरी वकालत कर और मेरा फ़िदिया दे:अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे ज़िन्दा कर। \s5 \v 155 ~नजात शरीरों से दूर है, क्यूँकि वह तेरे क़ानून के तालिब नहीं हैं। \v 156 ~ऐ ख़ुदावन्द! तेरी रहमत बड़ी है; अपने अहकाम के मुताबिक़ मुझे ज़िन्दा कर। \s5 \v 157 ~मेरे सताने वाले और मुखालिफ़ बहुत हैं, तोभी मैंने तेरी शहादतों से किनारा न किया। \v 158 ~मैं दग़ाबाज़ों को देख कर मलूल हुआ, क्यूँकि वह तेरे कलाम को नहीं मानते। \s5 \v 159 ~ख़याल फ़रमा कि मुझे तेरे क़वानीन से कैसी मुहब्बत है! ऐ ख़ुदावन्द! अपनी शफ़क़त के मुताबिक मुझे ज़िन्दा कर। \v 160 तेरे कलाम का ख़ुलासा सच्चाई है, तेरी सदाक़त के कुल अहकाम हमेशा के हैं। \s5 \v 161 ~उमरा ने मुझे बे वजह सताया है, लेकिन मेरे दिल में तेरी बातों का ख़ौफ़ है। \v 162 ~मैं बड़ी लूट पाने वाले की तरह, तेरे कलाम से ख़ुश हूँ। \s5 \v 163 ~मुझे झूट से नफ़रत और कराहियत है, लेकिन तेरी शरी'अत से मुहब्बत है। \v 164 ~मैं तेरी सदाक़त के अहकाम की वजह से, दिन में सात बार तेरी सिताइश करता हूँ। \s5 \v 165 ~तेरी शरी'अत से मुहब्बत रखने वाले मुत्मइन हैं; उनके लिए ठोकर खाने का कोई मौक़ा' नहीं। \v 166 ~ऐ ख़ुदावन्द! मैं तेरी नजात का उम्मीदवार रहा हूँ और तेरे फ़रमान बजा लाया हूँ। \s5 \v 167 ~मेरी जान ने तेरी शहादतें मानी हैं, और वह मुझे बहुत 'अज़ीज़ हैं। \v 168 ~मैंने तेरे क़वानीन और शहादतों को माना है, क्यूँकि मेरे सब चाल चलन तेरे सामने हैं। \s5 \v 169 ~ऐ ख़ुदावन्द! मेरी फ़रियाद तेरे सामने पहुँचे; अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे समझ 'अता कर। \v 170 ~मेरी इल्तिजा तेरे सामने पहुँचे, अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे छुड़ा। \s5 \v 171 ~मेरे लबों से तेरी सिताइश हो।क्यूँकि तू मुझे अपने क़ानून सिखाता है। \v 172 मेरी ज़बान तेरे कलाम का हम्द गाए, क्यूँकि तेरे सब फ़रमान बरहक़ हैं। \s5 \v 173 ~तेरा हाथ मेरी मदद को तैयार है क्यूँकि मैंने तेरे क़वानीन इख़्तियार, किए हैं। \v 174 ~ऐ ख़ुदावन्द! मैं तेरी नजात का मुश्ताक़ रहा हूँ, और तेरी शरी'अत मेरी ख़ुशनूदी है। \s5 \v 175 ~मेरी जान ज़िन्दा रहे तो वह तेरी सिताइश करेगी, और तेरे अहकाम मेरी मदद करें। \v 176 मैं खोई हुई भेड़ की तरह भटक गया हूँ अपने बन्दे की तलाश कर, क्यूँकि मैं तेरे फ़रमान को नहीं भूलता। \s5 \c 120 \p \v 1 ~मैंने मुसीबत में ख़ुदावन्द से फ़रियाद की, और उसने मुझे जवाब दिया। \v 2 ~झूटे होंटों और दग़ाबाज़ ज़बान से, ऐ ख़ुदावन्द, मेरी जान को छुड़ा। \s5 \v 3 ~ऐ दग़ाबाज़ ज़बान, तुझे क्या दिया जाए? और तुझ से और क्या किया जाए? \v 4 ~ज़बरदस्त के तेज़ तीर, झाऊ के अंगारों के साथ। \s5 \v 5 ~मुझ पर अफ़सोस कि मैं मसक में बसता, और क़ीदार के ख़ैमों में रहता हूँ। \v 6 सुलह के दुश्मन के साथ रहते हुए, मुझे बड़ी मुद्दत हो गई। \v 7 मैं तो सुलह दोस्त हूँ। लेकिन जब बोलता हूँ तो वह जंग पर आमादा हो जाते हैं। \s5 \c 121 \p \v 1 मैं अपनी आँखें पहाड़ों की तरफ उठाऊगा; मेरी मदद कहाँ से आएगी? \v 2 मेरी मदद ख़ुदावन्द से है, जिसने आसमान और ज़मीन को बनाया। \s5 \v 3 ~वह तेरे पाँव को फिसलने न देगा; तेरा मुहाफ़िज़ ऊँघने का नहीं। \v 4 ~देख! इस्राईल का मुहाफ़िज़, न ऊँघेगा, न सोएगा। \s5 \v 5 ~ख़ुदावन्द तेरा मुहाफ़िज़ है; ख़ुदावन्द तेरे दहने हाथ पर तेरा सायबान है। \v 6 ~न आफ़ताब दिन को तुझे नुक़सान पहुँचाएगा, न माहताब रात को। \s5 \v 7 ~ख़ुदावन्द हर बला से तुझे महफूज़ रख्खेगा, वह तेरी जान को महफूज़ रख्खेगा। \v 8 ~ख़ुदावन्द तेरी आमद-ओ-रफ़्त में, अब से हमेशा तक तेरी हिफ़ाज़त करेगा। \s5 \c 122 \p \v 1 ~मैं ख़ुश हुआ जब वह मुझ ~से कहने लगे~"आओ ख़ुदावन्द के घर चलें।” \v 2 ऐ यरूशलीम! हमारे क़दम, तेरे फाटकों के अन्दर हैं। \v 3 ऐ यरुशलीम तू ऐसे शहर के तरह है जो गुनजान बना हो। \s5 \v 4 ~जहाँ क़बीले या'नी ख़ुदावन्द के क़बीले, इस्राईल की शहादत के लिए, ख़ुदावन्द के नाम का शुक्र करने को जातें हैं। \v 5 क्यूँकि वहाँ 'अदालत के तख़्त, या'नी दाऊद के ख़ान्दान के तख़्त क़ायम हैं। \s5 \v 6 ~यरूशलीम की सलामती की दु'आ करो, वह जो तुझ से मुहब्बत रखते हैं इकबालमंद होंगे। \v 7 ~तेरी फ़सील के अन्दर सलामती, और तेरे महलों में इकबालमंदी हो। \s5 \v 8 ~मैं अपने भाइयों और दोस्तों की ख़ातिर, अब कहूँगा तुझ में सलामती रहे! \v 9 ~ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के घर की ख़ातिर, मैं तेरी भलाई का तालिब रहूँगा। \s5 \c 123 \p \v 1 ~तू जो आसमान पर तख़्तनशीन है, मैं अपनी आँखें तेरी तरफ़ उठाता हूँ! \v 2 देख, जिस तरह गुलामों की आँखेंअपने आका के हाथ की तरफ़, और लौंडी की आँखें अपनी बीबी के हाथ की तरफ़ लगी रहती है उसी तरह हमारी आँखे ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ लगी है जब तक वह हम पर रहम न करे। \s5 \v 3 हम पर रहम कर! ऐ ख़ुदावन्द, हम पर रहम कर, क्यूँकि हम ज़िल्लत उठाते उठाते तंग आ गए। \v 4 आसूदा हालों के तमसख़ुर, और माग़रूरों की हिक़ारत से, हमारी जान सेर हो गई। \s5 \c 124 \p \v 1 अब इस्राईल यूँ कहे, अगर ख़ुदावन्द हमारी तरफ़ न होता, \v 2 ~अगर ख़ुदावन्द उस वक़्त हमारी तरफ़ न होता, जब लोग हमारे ख़िलाफ़ उठे, \v 3 ~तो जब उनका क़हर हम पर भड़का था, वह हम को ज़िन्दा ही निगल जाते। \s5 \v 4 उस वक़्त पानी हम को डुबो देता, और सैलाब हमारी जान पर से गुज़र जाता। \v 5 उस वक़्त मौजज़न, पानी हमारी जान पर से गुज़र जाता। \s5 \v 6 ख़ुदावन्द मुबारक हो, जिसने हमें उनके दाँतों का शिकार न होने दिया। \v 7 हमारी जान चिड़िया की तरह चिड़ीमारों के जाल से बच निकली, जाल तो टूट गया और हम बच निकले। \s5 \v 8 हमारी मदद ख़ुदावन्द के नाम से है, जिसने आसमान और ज़मीन को बनाया। \s5 \c 125 \p \v 1 जो ख़ुदावन्द पर भरोसा करते~वह कोह-ए-सिय्यून की तरह हैं, जो अटल बल्कि हमेशा क़ायम है। \v 2 ~जैसे यरूशलीम पहाड़ों से घिरा है, वैसे ही अब से हमेशा तक ख़ुदावन्द अपने लोगों को घेरे रहेगा। \v 3 ~क्यूँकि शरारत का 'असा सादिकों की मीरास पर क़ायम न होगा, ताकि सादिक बदकारी की तरफ़ अपने हाथ न बढ़ाएँ। \s5 \v 4 ~ऐ ख़ुदावन्द! भलों के साथ भलाई कर, और उनके साथ भी जो रास्त दिल हैं। \v 5 ~लेकिन जो अपनी टेढ़ी राहों की तरफ़ मुड़ते हैं, उनको ख़ुदावन्द बदकिरदारों के साथ निकाल ले जाएगा। इस्राईल की सलामती हो! \s5 \c 126 \p \v 1 जब ख़ुदावन्द सिय्युन के गुलामों को वापस लाया, तो हम ख़्वाब देखने वालों की तरह थे। \s5 \v 2 उस वक़्त हमारे मुँह में हँसी, और हमारी ज़बान पर रागनी थी; तब क़ौमों में यह चर्चा होने लगा, "ख़ुदावन्द ने इनके लिए बड़े बड़े काम किए हैं।" \v 3 ख़ुदावन्द ने हमारे लिए बड़े बड़े काम किए हैं, और हम ख़ुश हैं! \s5 \v 4 ऐ ख़ुदावन्द! दखिन की नदियों की तरह, हमारे गुलामों को वापस ला। \v 5 ~जो आँसुओं के साथ बोते हैं, वह खु़शी के साथ काटेंगे। \v 6 ~जो रोता हुआ बीज बोने जाता है, वह अपने पूले लिए हुए ख़ुश लौटेगा। \s5 \c 127 \p \v 1 अगर ख़ुदावन्द ही घर न बनाए, तो बनाने वालों की मेहनत' बेकार है। अगर ख़ुदावन्द ही शहर की हिफ़ाज़त न करे, तो निगहबान का जागना 'बेकार है। \v 2 तुम्हारे लिए सवेरे उठना और देर में आराम करना, और मशक़्क़त की रोटी खाना 'बेकार है; क्यूँकि वह अपने महबूब को तो नींद ही में दे देता है।. \s5 \v 3 देखो, औलाद ख़ुदावन्द की तरफ़ से मीरास है, और पेट का फल उसी की तरफ़ से अज्र है, \v 4 जवानी के फ़र्ज़न्द ऐसे हैं, जैसे ज़बरदस्त के हाथ में तीर। \v 5 ~ख़ुश नसीब है वह आदमी जिसका तरकश उनसे भरा है। जब वह अपने दुश्मनों से फाटक पर बातें करेंगे तो शर्मिन्दा न होंगे। \s5 \c 128 \p \v 1 मुबारक है हर एक जो ख़ुदावन्द~से डरता, और उसकी राहों पर चलता है। \v 2 तू अपने हाथों की कमाई खाएगा; तू मुबारक और फ़र्माबरदार होगा। \s5 \v 3 ~तेरी बीवी तेरे घर के अन्दर मेवादार ताक की तरह होगी, और तेरी औलाद तेरे दस्तरख़्वान पर ज़ैतून के पौदों की तरह। \v 4 देखो! ऐसी बरकत उसी आदमी को मिलेगी, जो ख़ुदावन्द से डरता है। \v 5 ख़ुदावन्द सिय्यून में से तुझ को बरकत दे, और तू 'उम्र भर यरूशलीम की भलाई देखे। \v 6 बल्कि तू अपने बच्चों के बच्चे देखे।इस्राईल की सलामती हो! \s5 \c 129 \p \v 1 इस्राईल अब यूँ कहे, 'उन्होंने मेरी जवानी से अब तक मुझे बार बार सताया, \v 2 हाँ, उन्होंने मेरी जवानी से अब तक मुझे बार बार सताया, तोभी वह मुझ पर ग़ालिब न आए। \v 3 हलवाहों ने मेरी पीठ पर हल चलाया, और लम्बी लम्बी रेघारियाँ बनाई।" \s5 \v 4 ख़ुदावन्द सादिक़ है; उसने शरीरों की रसियाँ काट डालीं। \v 5 सिय्यून से नफ़रत रखने वाले, सब शर्मिन्दा और पस्पा हों। \s5 \v 6 ~वह छत पर की घास की तरह हों, जो बढ़ने से पहले ही सूख जाती है; \v 7 ~जिससे फ़सल काटने वाला अपनी मुट्ठी को, और पूले बाँधने वाला अपने दामन को नहीं भरता, \v 8 न आने जाने वाले यह कहते हैं, "तुम पर ख़ुदावन्द की बरकत हो! हम ख़ुदावन्द के नाम से तुम को दु'आ देते हैं! ” \s5 \c 130 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द! मैंने गहराओ में से तेरे सामने फ़रियाद की है! \v 2 ~ऐ ख़ुदावन्द! मेरी आवाज़ सुन ले! मेरी इल्तिजा की आवाज़ पर, तेरे कान लगे रहें। \s5 \v 3 ~ऐ ख़ुदावन्द! अगर तू बदकारी को हिसाब में लाए, तो ऐ ख़ुदावन्द कौन क़ायम रह सकेगा? \v 4 लेकिन मग़फ़िरत तेरे हाथ में है, ताकि लोग तुझ से डरें। \s5 \v 5 ~मैं ख़ुदावन्द का इन्तिज़ार करता हूँ। मेरी जान मुन्तज़िर है, और मुझे उसके कलाम पर भरोसा है। \v 6 सुबह का इन्तिज़ार करने वालों से ज़्यादा, हाँ, सुबह का इन्तिज़ार करने वालों से कहीं ज़्यादा, मेरी जान ख़ुदावन्द की मुन्तज़िर है। \s5 \v 7 ऐ इस्राईल! ख़ुदावन्द पर भरोसा कर; क्यूँकि ख़ुदावन्द के हाथ में शफ़क़त है, उसी के हाथ में फ़िदिए की कसरत है। \v 8 और वही इस्राईल का फ़िदिया देकर, उसको सारी बदकारी से छुड़ाएगा। \s5 \c 131 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द! मेरा दिल मग़रूर नहीं और मै बुलंद नज़र नहीं हूँ न मुझे बड़े बड़े मु'आमिलो से कोई सरोकार है, न उन बातों से जो मेरी समझ से बाहर हैं, \s5 \v 2 यक़ीनन मैंने अपने दिल को तिस्कीन देकर मुत्मइन कर दिया है, मेरा दिल मुझ में दूध छुड़ाए हुए बच्चे की तरह है; हाँ, जैसे दूध छुड़ाया हुआ बच्चा माँ की गोद में | \v 3 ऐ इस्राईल! अब से हमेशा तक, ख़ुदावन्द पर भरोसा कर! \s5 \c 132 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदावन्द! दाऊद कि ख़ातिर उसकी सब मुसीबतों को याद कर; \v 2 कि उसने किस तरह ख़ुदावन्द से क़सम खाई, और या'क़ूब के क़ादिर के सामने मन्नत मानी, \s5 \v 3 ~"यक़ीनन मैं न अपने घर में दाख़िल हूँगा, न अपने पलंग पर जाऊँगा; \v 4 और न अपनी आँखों में नींद, न अपनी पलकों में झपकी आने दूँगा; \v 5 जब तक ख़ुदावन्द के लिए कोई जगह, और या'क़ूब के क़ादिर के लिए घर न हो।" \s5 \v 6 ~देखो, हम ने उसकी ख़बर इफ़्राता में सुनी; हमें यह जंगल के मैदान में मिली। \v 7 ~हम उसके घरों में दाखि़ल होंगे, हम उसके पाँव की चौकी के सामने सिजदा करेंगे! \v 8 उठ, ऐ ख़ुदावन्द! अपनी आरामगाह में दाखि़ल हो! तू और तेरी कु़दरत का संदूक़। \s5 \v 9 तेरे काहिन सदाक़त से मुलब्बस हों, और तेरे पाक ख़ुशी के नारे मारें। \v 10 अपने बन्दे दाऊद की ख़ातिर, अपने मम्सूह की दु'आ ना-मन्जूर न कर। \s5 \v 11 ~ख़ुदावन्द ने सच्चाई के साथ दाऊद से क़सम खाई है; वह उससे फिरने का नहीं: कि मैं तेरी औलाद में से किसी को तेरे तख़्त पर बिठाऊँगा। \v 12 ~अगर तेरे फ़र्ज़न्द मेरे 'अहद और मेरी शहादत पर, जो मैं उनको सिखाऊँगा 'अमल करें; तो उनके फ़र्ज़न्द भी हमेशा तेरे तख़्त पर बैठेगें।" \s5 \v 13 क्यूँकि ख़ुदावन्द ने सिय्यून को चुना है, उसने उसे अपने घर के लिए पसन्द किया है: \v 14 ~"यह हमेशा के लिए मेरी आरामगाह है; मै यहीं रहूँगा क्यूँकि मैंने इसे पसंद किया है। \s5 \v 15 मैं इसके रिज़क़ में ख़ूब बरकत दूँगा; मैं इसके ग़रीबों को रोटी से सेर करूँगा \v 16 ~इसके काहिनों को भी मैं नजात से मुलव्वस करूँगा और उसके पाक बुलन्द आवाज़ से ख़ुशी के नारे मारेंगे। \s5 \v 17 वहीं मैं दाऊद के लिए एक सींग निकालूँगा मैंने अपने मम्सूह के लिए चराग़ तैयार किया है। \v 18 मैं उसके दुश्मनों को शर्मिन्दगी का लिबास पहनाऊँगा, लेकिन उस पर उसी का ताज रोनक अफ़रोज़ होगा। \s5 \c 133 \p \v 1 ~देखो! कैसी अच्छी और खु़शी की बात है, कि भाई एक साथ मिलकर रहें! \s5 \v 2 ~यह उस बेशक़ीमत तेल की तरह है, जो सिर पर लगाया गया, और बहता हुआ दाढ़ी पर, या'नी हारून की दाढ़ी पर आ गया; बल्कि उसके लिबास के दामन तक जा पहुँचा। \v 3 ~या हरमून की ओस की तरह है, जो सिय्यून के पहाड़ों पर पड़ती है! क्यूँकि वहीं ख़ुदावन्द ने बरकत का, या'नी हमेशा की ज़िन्दगी का हुक्म फ़रमाया। \s5 \c 134 \p \v 1 ऐ ख़ुदावन्द के बन्दो! आओ सब ख़ुदावन्द को मुबारक कहो! तुम जो रात को ख़ुदावन्द के घर में खड़े रहते हो! \v 2 हैकल की तरफ़ अपने हाथ उठाओ, और ख़ुदावन्द को मुबारक कहो! \s5 \v 3 ~ख़ुदावन्द, जिसने आसमान और ज़मीन को बनाया, सिय्यून में से तुझे बरकत बख़्शे। \s5 \c 135 \p \v 1 ~ ख़ुदावन्द की हम्द करो! ख़ुदावन्द के नाम की हम्द करो! ऐ ख़ुदावन्द के बन्दो! उसकी हम्द करो। \v 2 तुम जो ख़ुदावन्द के घर में, हमारे ख़ुदा के घर की बारगाहों में खड़े रहते हो! \s5 \v 3 ~ख़ुदावन्द की हम्द करो, क्यूँकि ख़ुदावन्द भला है; उसके नाम की मदहसराई करो कि यह दिल पसंद है! \v 4 क्यूँकि ख़ुदावन्द ने या'क़ूब को अपने लिए, और इस्राईल को अपनी ख़ास मिल्कियत के लिए चुन लिया है। \s5 \v 5 ~~इसलिए कि मैं जानता हूँ कि ख़ुदावन्द बुजुर्ग़ है ~और हमारा रब्ब सब मा'बूदों से बालातर है। \v 6 आसमान और ज़मीन में, समन्दर और गहराओ में; ख़ुदावन्द ने जो कुछ चाहा वही किया। \s5 \v 7 ~वह ज़मीन की इन्तिहा से बुख़ारात उठाता है, वह बारिश के लिए बिजलियाँ बनाता है, और अपने मख़ज़नों से आँधी निकालता है। \s5 \v 8 उसी ने मिस्र के पहलौठों को मारा, क्या इन्सान के क्या हैवान के। \v 9 ऐ मिस्र, उसी ने तुझ में फ़िर'औन और उसके सब ख़ादिमो पर, निशान और 'अजाइब ज़ाहिर किए। \s5 \v 10 उसने बहुत सी क़ौमों को मारा, और ज़बरदस्त बादशाहों को क़त्ल किया। \v 11 अमोरियों के बादशाह सीहोन को, और बसन के बादशाह 'ओज को, और कना'न की सब मम्लुकतों को; \s5 \v 12 और उनकी ज़मीन मीरास कर दी, या'नी अपनी क़ौम इस्राईल की मीरास। \v 13 ऐ ख़ुदावन्द! तेरा नाम हमेशा का है, और तेरी यादगार, ऐ ख़ुदावन्द, नसल दर नसल क़ायम है। \s5 \v 14 क्यूँकि ख़ुदावन्द अपनी क़ौम की 'अदालत करेगा, और अपने बन्दों पर तरस खाएगा। \v 15 ~क़ौमों के बुत चाँदी और सोना हैं, या'नी आदमी की दस्तकारी। \v 16 उनके मुँह हैं, लेकिन वह बोलते नहीं; आँखें हैं लेकिन वह देखते नहीं। \v 17 उनके कान हैं, लेकिन वह सुनते नहीं; और उनके मुँह में साँस नहीं। \v 18 उनके बनाने वाले उन ही की तरह हो जाएँगे; बल्कि वह सब जो उन पर भरोसा रखते हैं। \s5 \v 19 ~ऐ इस्राईल के घराने! ख़ुदावन्द को मुबारक कहो! ऐ हारून के घराने! ख़ुदावन्द को मुबारक कहो । \v 20 ~ऐ लावी के घराने! ख़ुदावन्द को मुबारक कहो! ऐ ख़ुदावन्द से डरने वालो! ख़ुदावन्द को मुबारक कहो! \v 21 सिय्यून में ख़ुदावन्द मुबारक हो! वह यरूशलीम में सुकूनत करता है ख़ुदावन्द की हम्द करो| \s5 \c 136 \p \v 1 खु़दावन्द का शुक्र करो, क्यूँकि वह भला है, कि उसकी शफ़क़त हमेशा की है। \v 2 इलाहों के ख़ुदा का शुक्र करो, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की है। \v 3 मालिकों के मालिक का शुक्र करो, कि उसकी शफ़क़त हमेशा की है। \s5 \v 4 ~उसी का जो अकेला बड़े बड़े 'अजीब काम करता है, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा कीहै। \v 5 उसी का जिसने 'अक़्लमन्दी से आसमान बनाया, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा कीहै। \s5 \v 6 उसी का जिसने ज़मीन को पानी पर फैलाया, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा कीहै। \v 7 उसी का जिसने बड़े-बड़े सितारे बनाए, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है। \s5 \v 8 दिन को हुकूमत करने के लिए आफ़ताब, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की है। \v 9 रात को हुकूमत करने के लिए माहताब और सितारे, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की है। \s5 \v 10 उसी का जिसने मिस्र के पहलौठों को मारा, कि उसकी शफ़क़त~हमेशाकी है। \v 11 और इस्राईल को उनमें से निकाल लाया, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा कीहै। \v 12 ~क़वी हाथ और बलन्द बाज़ू से, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा~की है| \s5 \v 13 उसी का जिसने बहर-ए-कु़लज़ुम को दो हिस्से कर दिया, कि उसकी शफ़क़त हमेशा की है। \v 14 और इस्राईल को उसमें से पार किया, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है। \v 15 लेकिन फ़िर'औन और उसके लश्कर को बहर-ए-कु़लजु़म में डाल दिया, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की है। \s5 \v 16 उसी का जो वीरान में अपने लोगों का राहनुमा हुआ, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है। \v 17 ~उसी का जिसने बड़े-बड़े बादशाहों को मारा, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है; \s5 \v 18 और नामवर बादशाहों को क़त्ल किया, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है। \v 19 अमोरियों के बादशाह सीहोन को, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है। \v 20 और बसन के बादशाह 'ओज की, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है; \s5 \v 21 और उनकी ज़मीन मीरास कर दी, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है; \v 22 या'नी अपने बन्दे इस्राईल की मीरास, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है। \v 23 ~जिसने हमारी पस्ती में हम को याद किया, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है; \s5 \v 24 और हमारे मुख़ालिफ़ों से हम को छुड़ाया, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है। \v 25 जो सब बशर को रोज़ी देता है, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है। \v 26 ~आसमान के ख़ुदा का शुक्र करो, कि उसकी सफ़कत हमेशा की है| \s5 \c 137 \p \v 1 ~हम बाबुल की नदियों पर बैठे, और सिय्यून को याद करके रोए। \v 2 ~वहाँ बेद के दरख़्तों पर उनके वस्त में, हम ने अपने सितारों को टाँग दिया। \s5 \v 3 ~क्यूँकि वहाँ हम को ग़ुलाम करने वालों ने हम्द गाने का हुक्म दिया, और तबाह करने वालों ने खु़शी करने का, और कहा, "सिय्यून के हम्दों में से हमको कोई हम्द सुनाओ!" \v 4 ~हम परदेस में, ख़ुदावन्द का हम्द कैसे गाएँ? \s5 \v 5 ~~ऐ यरूशलीम! अगर मैं तुझे भूलूँ, तो मेरा दहना हाथ अपना हुनर भूल जाए। \v 6 ~अगर मैं तुझे याद न रख्खूँ, अगर मैं यरूशलीम को, अपनी बड़ी से बड़ी ख़ुशी पर तरजीह न दूँ मेरी ज़बान मेरे तालू से चिपक जाए! \s5 \v 7 ~ऐ ख़ुदावन्द! यरूशलीम के दिन को, बनी अदोम के ख़िलाफ़ याद कर, जो कहते थे, "इसे ढा दो, इसे बुनियाद तक ढा दो! " \s5 \v 8 ~ऐ बाबुल की बेटी! जो हलाक होने वाली है, वह मुबारक होगा, जो तुझे उस सुलूक का, जो तूने हम से किया बदला दे। \v 9 ~~वह मुबारक होगा, जो तेरे बच्चों को लेकर, चट्टान पर पटक दे! \s5 \c 138 \p \v 1 ~मैं पूरे दिल से तेरा शुक्र करूँगा; मा'बूदों के सामने तेरी मदहसराई करूँगा। \v 2 ~मैं तेरी पाक हैकल की तरफ़ रुख़ कर के सिज्दा करूँगा, और तेरी शफ़क़त औए सच्चाई की ख़ातिर तेरे नाम का शुक्र करूँगा। क्यूँकि तूने अपने कलाम को अपने हरनाम से ज़्यादा 'अज़मत दी है। \s5 \v 3 ~जिस दिन मैंने तुझ से दु'आ की, तूने मुझे जवाब दिया, और मेरी जान की ताक़त देकर मेरा हौसला बढ़ाया। \v 4 ~ऐ ख़ुदावन्द! ज़मीन के सब बादशाह तेरा शुक्र करेंगे, क्यूँकि उन्होंने तेरे मुँह का कलाम सुना है; \s5 \v 5 ~बल्कि वह ख़ुदावन्द की राहों का हम्द गाएंगे क्यूँकि ख़ुदावन्द का जलाल बड़ा है। \v 6 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द अगरचे बुलन्द-ओ-बाला है, तोभी ख़ाकसार का ख़याल रखता है; लेकिन मग़रूर को दूर ही से पहचान लेता है। \s5 \v 7 ~चाहे मैं दुख में से गुज़रूं तू मुझे ताज़ादम करेगा, तू मेरे दुश्मनों के क़हर के ख़िलाफ़ हाथ बढ़ाएगा, और तेरा दहना हाथ मुझे बचा लेगा। \v 8 ~~ख़ुदावन्द मेरे लिए सब कुछ करेगा; ऐ ख़ुदावन्द! तेरी शफ़क़त हमेशा की है। अपनी दस्तकारी को न छोड़ | \s5 \c 139 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदावन्द! तूने मुझे जाँच लिया और पहचान लिया। \v 2 ~तू मेरा उठना बैठना जानता है; तू मेरे ख़याल को दूर से समझ लेता है। \s5 \v 3 ~तू मेरे रास्ते की और मेरी ख़्वाबगाह की छान बीन करता है, और मेरे सब चाल चलन से वाक़िफ़ है। \v 4 ~~देख! मेरी ज़बान पर कोई ऐसी बात नहीं, जिसे तू ऐ ख़ुदावन्द पूरे तौर पर न जानता हो। \v 5 ~तूने मुझे आगे पीछे से घेर रखा है, और तेरा हाथ मुझ पर है। \v 6 ~यह इरफ़ान मेरे लिए बहुत 'अजीब है; यह बुलन्द है, मैं इस तक पहुँच नहीं सकता। \s5 \v 7 ~मैं तेरी रूह से बचकर कहाँ जाऊँ? या तेरे सामने से किधर भागूँ? \v 8 ~अगर आसमान पर चढ़ जाऊँ, तो तू वहाँ है। अगर मैं पाताल में बिस्तर बिछाऊँ, तो देख तू वहाँ भी है! \s5 \v 9 ~अगर मैं सुबह के पर लगाकर, समन्दर की इन्तिहा में जा बसूँ, \v 10 ~तो वहाँ भी तेरा हाथ मेरी राहनुमाई करेगा, और तेरा दहना हाथ मुझे संभालेगा। \s5 \v 11 ~अगर मैं कहूँ कि यक़ीनन तारीकी मुझे छिपा लेगी, और मेरी चारों तरफ़ का उजाला रात बन जाएगा। \v 12 ~~तो अंधेरा भी तुझ से छिपा नहीं सकता, बल्कि रात भी दिन की तरह रोशन है; अंधेरा और उजाला दोनों एक जैसे हैं। \s5 \v 13 ~क्यूँकि मेरे दिल को तू ही ने बनाया; मेरी माँ के पेट में तू ही ने मुझे सूरत बख़्शी। \v 14 ~~मैं तेरा शुक्र करूँगा, क्यूँकि मैं 'अजीबओ-ग़रीब तौर से बना हूँ।तेरे काम हैरत अंगेज़ हैं मेरा दिल इसे खू़ब जानता है। \s5 \v 15 ~जब मैं पोशीदगी में बन रहा था, और ज़मीन के तह में 'अजीब तौर से मुरतब हो रहा था, तो मेरा क़ालिब तुझ से छिपा न था। \v 16 ~~तेरी आँखों ने मेरे बेतरतीब माद्दे को देखा, और जो दिन मेरे लिए मुक़र्रर थे, वह सब तेरी किताब में लिखे थे; जब कि एक भी वुजूद में न आया था। \s5 \v 17 ~ऐ ख़ुदा! तेरे ख़याल मेरे लिए कैसे बेशबहा हैं। उनका मजमूआ कैसा बड़ा है! \v 18 ~~अगर मैं उनको गिनूँ तो वह शुमार में रेत से भी ज़्यादा हैं। जाग उठते ही तुझे अपने साथ पाता हूँ। \s5 \v 19 ~~ऐ ख़ुदा! काश के तू शरीर को क़त्ल करे। इसलिए ऐ ख़ूनख़्वारो! मेरे पास से दूर हो जाओ। \v 20 ~~क्यूँकि वह शरारत से तेरे ख़िलाफ़ बातें करते हैं: और तेरे दुश्मन तेरा नाम बेफ़ायदा लेते हैं। \s5 \v 21 ~~ऐ ख़ुदावन्द! क्या मैं तुझ से 'अदावत रखने वालों से 'अदावत नहीं रखता, और क्या मैं तेरे मुख़ालिफ़ों से बेज़ार नहीं हूँ? \v 22 ~मुझे उनसे पूरी 'अदावत है, मैं उनको अपने दुश्मन समझता हूँ। \s5 \v 23 ~ऐ ख़ुदा, तू मुझे जाँच और मेरे दिल को पहचान। मुझे आज़मा और मेरे ख़यालों को जान ले! \v 24 ~~और देख कि मुझ में कोई बुरा चाल चलन तो नहीं, और मुझ को हमेशा की राह में ले चल! \s5 \c 140 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदावन्द! मुझे बुरे आदमी से रिहाई बख़्श; मुझे टेढ़े आदमी से महफूज़ रख। \v 2 ~जो दिल में शरारत के मन्सूबे बाँधते हैं; वह हमेशा मिलकर जंग के लिए जमा' हो जाते हैं। \v 3 ~उन्होंने अपनी ज़बान साँप की तरह तेज़ कर रखी है। उनके होटों के नीचे अज़दहा का ज़हर है। \s5 \v 4 ~~ऐ ख़ुदावन्द! मुझे शरीर के हाथ से बचा मुझे टेढ़े आदमी से महफूज़ रख, जिनका इरादा है कि मेरे पाँव उखाड़ दें। \v 5 ~मग़रूरों ने मेरे लिए फंदे और रस्सियों को छिपाया है, उन्होंने राह के किनारे जाल लगाया है; उन्होंने मेरे लिए दाम बिछा रख्खे हैं। (सिलाह) \s5 \v 6 ~मैंने ख़ुदावन्द से कहा, मेरा ख़ुदा तू ही है। ऐ ख़ुदावन्द, मेरी इल्तिजा की आवाज़ पर कान लगा। \v 7 ~~ऐ ख़ुदावन्द मेरे मालिक, ऐ मेरी नजात की ताक़त, तूने जंग के दिन मेरे सिर पर साया किया है। \v 8 ~ऐ ख़ुदावन्द, शरीर की मुराद पूरी न कर, उसके बुरे मन्सूबे को अंजाम न दे ताकि वह डींग न मारे। (सिलाह) \s5 \v 9 ~मुझे घेरने वालों की मुँह के शरारत, उन्हीं के सिर पर पड़े। \v 10 ~उन पर अंगारे गिरें! वह आग में डाले जाएँ! और ऐसे गढ़ों में कि फिर न उठे। \v 11 ~बदज़बान आदमी की ज़मीन पर क़याम न होगा। आफ़त टेढ़े आदमी को दौड़ा कर हलाक करेगी। \s5 \v 12 ~मैं जानता हूँ कि ख़ुदावन्द मुसीब तज़दा के मु'आमिले की, और मोहताज के हक़ की ताईद करेगा। \v 13 ~~यक़ीनन सादिक़ तेरे नाम का शुक्र करेंगे, और रास्तबाज़ तेरे सामने में रहेंगे। \s5 \c 141 \p \v 1 ~ ऐ ख़ुदावन्द! मैने तेरी दुहाई दी मेरी तरफ़ जल्द आ! जब मैं तुझ से दु'आ करूँ, तो मेरी आवाज़ पर कान लगा! \v 2 ~मेरी दु'आ तेरे सामने ख़ुशबू की तरह हो, और मेरा हाथ उठाना शाम की कु़र्बानी की तरह! \s5 \v 3 ~~ऐ ख़ुदावन्द! मेरे मुँह पर पहरा बिठा; मेरे लबों के दरवाजे़ की निगहबानी कर | \v 4 ~~मेरे दिल को किसी बुरी बात की तरफ़ माइल न होने दे; कि बदकारों के साथ मिलकर, शरारत के कामों में मसरूफ़ हो जाए, और मुझे उनके नफ़ीस खाने से दूर रख। \s5 \v 5 ~सादिक़ मुझे मारे तो मेहरबानी होगी, वह मुझे तम्बीह करे तो जैसे सिर पर रौग़न होगा। मेरा सिर इससे इंकार न करे, क्यूँकि उनकी शरारत में भी मैं दु'आ करता रहूँगा। \v 6 ~उनके हाकिम चट्टान के किनारों पर से गिरा दिए गए हैं, और वह मेरी बातें सुनेंगे, क्यूँकि यह शीरीन हैं। \v 7 ~जैसे कोई हल चलाकर ज़मीन को तोड़ता है, वैसे ही हमारी हड्डियाँ पाताल के मुँह पर बिखरी पड़ी हैं। \s5 \v 8 ~क्यूँकि ऐ मालिक ख़ुदावन्द! मेरी आँखें तेरी तरफ़ हैं; मेरा भरोसा तुझ पर है, मेरी जान को बेकस न छोड़! \v 9 ~~मुझे उस फंदे से जो उन्होंने मेरे लिए लगाया है, और बदकिरदारों के दाम से बचा। \v 10 ~शरीर आप अपने जाल में फंसें, और मैं सलामत बच निकलूँ। \s5 \c 142 \p \v 1 ~मैं अपनी ही आवाज़ बुलंद करके ख़ुदावन्द से फ़रियाद करता हूँ मै अपनी ही आवाज़ से ख़ुदावन्द से मिन्नत करता हूँ। \v 2 ~मैं उसके सामने फ़रियाद करता हूँ, मैं अपना दुख उसके सामने बयान करता हूँ। \s5 \v 3 ~जब मुझ में मेरी जान निढाल थी, तू मेरी राह से वाक़िफ़ था! जिस राह पर मैं चलता हूँ उसमे उन्होंने मेरे लिए फंदा लगाया है। \v 4 ~दहनी तरफ़ निगाह कर और देख, मुझे कोई नहीं पहचानता। मेरे लिए कहीं पनाह न रही, किसी को मेरी जान की फ़िक्र नहीं। \v 5 ~~ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तुझ से फ़रियाद की; मैंने कहा, तू मेरी पनाह है, और ज़िन्दों की ज़मीन में मेरा बख़रा। \s5 \v 6 ~~मेरी फ़रियाद पर तवज्जुह कर, क्यूँकि मैं बहुत पस्त हो गया हूँ! मेरे सताने वालों से मुझे रिहाई बख़्श, क्यूँकि वह मुझ से ताक़तवर हैं। \v 7 ~मेरी जान को कै़द से निकाल, ताकि तेरे नाम का शुक्र करूँ सादिक़ मेरे गिर्द जमा होंगे ~क्यूँकि तू मुझ पर एहसान करेगा। \s5 \c 143 \p \v 1 ~ऐ ख़ुदावन्द, मेरी दू'आ सुन, मेरी इल्तिजा पर कान लगा। अपनी वफ़ादारी और सदाक़त में मुझे जवाब दे, \v 2 ~और अपने बन्दे को 'अदालत में न ला, क्यूँकि तेरी नज़र में कोई आदमी रास्तबाज़ नहीं ठहर सकता। \s5 \v 3 ~इसलिए कि दुश्मन ने मेरी जान को सताया है; उसने मेरी ज़िन्दगी को ख़ाक में मिला दिया, और मुझे अंधेरी जगहों में उनकी तरह बसाया है जिनको मरे मुद्दत हो गई हो। \v 4 ~इसी वजह से मुझ में मेरी जान निढाल है; और मेरा दिल मुझ में बेकल है। \s5 \v 5 ~मैं पिछले ज़मानों को याद करता हूँ, मैं तेरे सब कामों पर ग़ौर करता हूँ, और तेरी दस्तकारी पर ध्यान करता हूँ। \v 6 ~मैं अपने हाथ तेरी तरफ़ फैलाता हूँ मेरी जान खु़श्क ज़मीन की तरह तेरी प्यासी है। \s5 \v 7 ~ऐ ख़ुदावन्द, जल्द मुझे जवाब दे: मेरी रूह गुदाज़ हो चली! अपना चेहरा मुझ से न छिपा, ऐसा न हो कि मैं क़ब्र में उतरने वालों की तरह हो जाऊँ। \v 8 ~सुबह को मुझे अपनी शफ़क़त की ख़बर दे, क्यूँकि मेरा भरोसा तुझ पर है।मुझे वह राह बता जिस पर मैं चलूं, क्यूँकि मैं अपना दिल तेरी ही तरफ़ लगाता हूँ। \s5 \v 9 ~ऐ ख़ुदावन्द, मुझे मेरे दुश्मनों से रिहाई बख्श; क्यूँकि मैं पनाह के लिए तेरे पास भाग आया हूँ। \v 10 ~मुझे सिखा के तेरी मर्ज़ी पर चलूँ, इसलिए कि तू मेरा ख़ुदा है! तेरी नेक रूह मुझे रास्ती के मुल्क में ले चले! \s5 \v 11 ~ऐ ख़ुदावन्द, अपने नाम की ख़ातिर मुझे ज़िन्दा कर! अपनी सदाक़त में मेरी जान को मुसीबत से निकाल! \v 12 ~अपनी शफ़क़त से मेरे दुश्मनों को काट डाल, और मेरी जान के सब दुख देने वालों को हलाक कर दे, क्यूँकि मैं तेरा बन्दा हूँ | \s5 \c 144 \p \v 1 ~ख़ुदावन्द मेरी चट्टान मुबारक हो, जो मेरे हाथों को जंग करना, और मेरी उँगलियों को लड़ना सिखाता है। \v 2 ~~वह मुझ पर शफ़क़त करने वाला, और मेरा क़िला' है; मेरा ऊँचा बुर्ज और मेरा छुड़ाने वाला, वह मेरी ढाल और मेरी पनाहगाह है; जो मेरे लोगों को मेरे ताबे' करता है। \s5 \v 3 ~ऐ ख़ुदावन्द, इन्सान क्या है कि तू उसे याद रख्खे? और आदमज़ाद क्या है कि तू उसका ख़याल करे? \v 4 ~इन्सान बुतलान की तरह है; उसके दिन ढलते साये की तरह हैं। \s5 \v 5 ~ऐ ख़ुदावन्द, आसमानों को झुका कर उतर आ! पहाड़ों को छू, तो उनसे धुआँ उठेगा! \v 6 ~बिजली गिराकर उनको तितर बितर कर दे, अपने तीर चलाकर उनको शिकस्त दे! \s5 \v 7 ~ऊपर से हाथ बढ़ा, मुझे रिहाई दे और बड़े सैलाब, या'नी परदेसियों के हाथ से छुड़ा। \v 8 ~जिनके मुँह से बेकारी निकलती रहती है, और जिनका दहना हाथ झूट का दहना हाथ है। \s5 \v 9 ~ऐ ख़ुदा! मैं तेरे लिए नया हम्द गाऊँगा; दस तार वाली बरबत पर मैं तेरी मदहसराई करूँगा। \v 10 ~वही बादशाहों को नजात बख़्शता है; और अपने बन्दे दाऊद को हलाक़त की तलवार से बचाता है। \v 11 ~~मुझे बचा और परदेसियों के हाथ से छुड़ा, जिनके मुँह से बेकारी निकलती रहती है, और जिनका दहना हाथ झूट का दहना हाथ है। \s5 \v 12 ~जब हमारे बेटे जवानी में क़दआवर पौदों की तरह हों और हमारी बेटियाँ महल के कोने के लिए तराशे हुए पत्थरों की तरह हों, \v 13 ~जब हमारे खत्ते भरे हों, जिनसे हर किस्म की जिन्स मिल सके, और हमारी भेड़ बकरियाँ हमारे कूचों में हज़ारों और लाखों बच्चे दें: \s5 \v 14 ~जब हमारे बैल खू़ब लदे हों, जब न रखना हो न ख़ुरूज, और न हमारे कूचों में वावैला हो। \v 15 ~~मुबारक है वह क़ौम जिसका यह हाल है। मुबारक है वह क़ौम जिसका ख़ुदा ख़ुदावन्द है। \s5 \c 145 \p \v 1 ~ऐ मेरे ख़ुदा, मेरे बादशाह! मैं तेरी तम्जीद करूँगा |और हमेशा से हमेशा तक तेरे नाम को मुबारक कहूँगा। \v 2 ~मैं हर दिन तुझे मुबारक कहूँगा, और हमेशा से हमेशा तक तेरे नाम की सिताइश करूँगा। \v 3 ~ख़ुदावन्द बुजु़र्ग और बेहद सिताइश के लायक़ है; उसकी बुजु़र्गी बयान से बाहर है। \s5 \v 4 ~एक नसल दूसरी नसल से तेरे कामों की ता'रीफ़, और तेरी कु़दरत के कामों का बयान करेगी। \v 5 ~मैं तेरी 'अज़मत की जलाली शान पर, और तेरे 'अजाइब पर ग़ौर करूँगा। \s5 \v 6 ~और लोग तेरी कु़दरत के हौलनाक कामों का ज़िक्र करेंगे, और मैं तेरी बुजु़र्गी बयान करूँगा। \v 7 ~वह तेरे बड़े एहसान की यादगार का बयान करेंगे, और तेरी सदाक़त का हम्द गाएँगे। \s5 \v 8 ~ख़ुदावन्द रहीम-ओ-करीम है; वह कहर करने में धीमा और शफ़क़त में ग़नी है। \v 9 ~ख़ुदावन्द सब पर मेहरबान है, और उसकी रहमत उसकी सारी मख़लूक पर है। \s5 \v 10 ~~ऐ ख़ुदावन्द, तेरी सारी मख़लूक़ तेरा शुक्र करेगी, और तेरे पाक लोग तुझे मुबारक कहेंगे! \v 11 ~वह तेरी सल्तनत के जलाल का बयान, और तेरी कु़दरत का ज़िक्र करेंगे; \v 12 ~ताकि बनी आदम पर उसके कुदरत के कामों को, और उसकी सल्तनत के जलाल की शान को ज़ाहिर करें। \s5 \v 13 ~तेरी सल्तनत हमेशा की सल्तनत है, और तेरी हुकूमत नसल-दर-नसल। \s5 \v 14 ~ख़ुदावन्द गिरते हुए को संभालता, और झुके हुए को उठा खड़ा करता है। \v 15 ~सब की आँखें तुझ पर लगी हैं, तू उनको वक़्त पर उनकी ख़ुराक देता है। \v 16 ~तू अपनी मुट्ठी खोलता है, और हर जानदार की ख़्वाहिश पूरी करता है। \s5 \v 17 ~~ख़ुदावन्द अपनी सब राहों में सादिक़, और अपने सब कामों में रहीम है। \v 18 ~~ख़ुदावन्द उन सबके क़रीब है जो उससे दु'आ करते हैं, या'नी उन सबके जो सच्चाई से दु'आ करते हैं। \v 19 ~जो उससे डरते हैं वह उनकी मुराद पूरी करेगा, वह उनकी फ़रियाद सुनेगा और उनको बचा लेगा। \s5 \v 20 ~ख़ुदावन्द अपने सब मुहब्बत रखने वालों की हिफ़ाज़त करेगा; लेकिन सब शरीरों को हलाक कर डालेगा। \v 21 ~~मेरे मुँह से ख़ुदावन्द की सिताइश होगी, और हर बशर उसके पाक नाम को हमेशा से हमेशा तक मुबारक कहे। \s5 \c 146 \p \v 1 ~ख़ुदावन्द की हम्द करो ऐ मेरी जान, ख़ुदावन्द की हम्द कर! \v 2 ~~मैं 'उम्र भर ख़ुदावन्द की हम्द करूँगा, जब तक मेरा वुजूद है मैं अपने ख़ुदा की मदहसराई करूँगा। \s5 \v 3 ~न उमरा पर भरोसा करो न आदमज़ाद पर, वह बचा नहीं सकता। \v 4 ~उसका दम निकल जाता है तो वह मिट्टी में मिल जाता है; उसी दिन उसके मन्सूबे फ़ना हो जाते हैं। \s5 \v 5 ~खु़श नसीब है वह, जिसका मददगार या'क़ूब का ख़ुदा है, और जिसकी उम्मीद ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा से है। \v 6 ~~जिसने आसमान और ज़मीन और समन्दर को, और जो कुछ उनमें है बनाया; जो सच्चाई को हमेशा क़ायम रखता है। \s5 \v 7 ~जो मज़लूमों का इन्साफ़ करता है; जो भूकों को खाना देता है। ख़ुदावन्द कैदियों को आज़ाद करता है; \v 8 ~ख़ुदावन्द अन्धों की आँखें खोलता है; ख़ुदावन्द झुके हुए को उठा खड़ा करता है; ख़ुदावन्द सादिक़ों से मुहब्बत रखता है| \s5 \v 9 ~ख़ुदावन्द परदेसियों की हिफ़ाज़त करता है; वह यतीम और बेवा को संभालता है; लेकिन शरीरों की राह टेढ़ी कर देता है। \v 10 ~~ख़ुदावन्द, हमेशा तक सल्तनत करेगा, ऐ सिय्यून! तेरा ख़ुदा नसल दर नसल। ख़ुदावन्द की हम्द करो*! \s5 \c 147 \p \v 1 ~ख़ुदावन्द की हम्द करो*! क्यूँकि ख़ुदा की मदह्सराई करना भला है; इसलिए कि यह दिलपसंद और सिताइश ज़ेबा है| \s5 \v 2 ख़ुदावन्द यरूशलीम को ता'मीर करता है; वह इस्राईल के जिला वतनों को जमा' करता है। \v 3 ~वह शिकस्ता दिलों को शिफ़ा देता है, और उनके ज़ख़्म बाँधता है। \s5 \v 4 ~वह सितारों को शुमार करता है, और उन सबके नाम रखता है। \v 5 ~हमारा ख़ुदावन्द बुजु़र्ग और कु़दरत में 'अज़ीम है; उसके समझ की इन्तिहा नहीं। \s5 \v 6 ~~ख़ुदावन्द हलीमों को संभालता है, वह शरीरों को ख़ाक में मिला देता है। \v 7 ~ख़ुदावन्द के सामने शुक्रगुज़ारी का हम्द गाओ, सितार पर हमारे ख़ुदा की मदहसराई करो। \s5 \v 8 ~जो आसमान को बादलों से मुलब्बस करता है; जो ज़मीन के लिए मेंह तैयार करता है; जो पहाड़ों पर घास उगाता है। \v 9 ~जो हैवानात को ख़ुराक देता है, और कव्वे के बच्चे को जो काएँँ काएँँ करते हैं| \s5 \v 10 ~घोड़े के ज़ोर में उसकी खु़शनूदी नहीं न आदमी की टाँगों से उसे कोई ख़ुशी है; \v 11 ~ख़ुदावन्द उनसे ख़ुश है जो उससे डरते हैं, और उनसे ~जो उसकी शफ़क़त के उम्मीदवार हैं| \s5 \v 12 ~~ऐ यरूशलीम! ख़ुदावन्द की सिताइश कर! , ऐ सिय्यून! अपने ख़ुदा की सिताइश कर। \v 13 ~~क्यूँकि उसने तेरे फाटकों के बेंडों को मज़बूत किया है, ~उसने तेरे अन्दर तेरी औलाद को बरकत दी है| \v 14 ~वह तेरी हद में अम्न रखता है! वह तुझे अच्छे से अच्छे गेहूँ से आसूदा करता है। \s5 \v 15 ~~वह अपना हुक्म ज़मीन पर भेजता है, ~उसका कलाम बहुत तेज़ रौ है। \v 16 ~वह बर्फ़ को ऊन की तरह गिराता है, और पाले को राख की तरह बिखेरता है। \s5 \v 17 ~~वह यख़ को लुक़मों की तरह फेंकता उसकी ठंड कौन सह सकता है? \v 18 ~वह अपना कलाम नाज़िल करके उनको पिघला देता है; वह हवा चलाता है और पानी बहने लगता है। \s5 \v 19 ~वह अपना कलाम या'क़ूब पर ज़ाहिर ~करता है, और अपने आईन-ओ-अहकाम इस्राईल पर| \v 20 ~उसने किसी और क़ौम से ऐसा सुलूक नहीं किया; और उनके अहकाम को उन्होंने नहीं जाना| ख़ुदावन्द की हम्द करो*! \s5 \c 148 \p \v 1 ~ख़ुदावन्द की हम्द करो*! आसमान पर से ख़ुदावन्द की हम्द करो, बुलंदियों पर उसकी हम्द करो! \v 2 ~~ऐ उसके फ़िरिश्तो! सब उसकी हम्द करो। ऐ उसके लश्करो! सब उसकी हम्द करो! \s5 \v 3 ~~ऐ सूरज! ऐ चाँद! उसकी हम्द करो। ऐ नूरानी सितारों! सब उसकी हम्द करो \v 4 ~ऐ फ़लक-उल-अफ़लाक! उसकी हम्द करो! और तू भी ~ऐ फ़ज़ा पर के पानी! \s5 \v 5 ~~यह सब ख़ुदावन्द के नाम की हम्द करें, क्यूँकि उसने हुक्म दिया और यह पैदा हो गए| \v 6 ~उसने इनको हमेशा से हमेशा तक के लिए क़ायम किया है; उसने अटल क़ानून मुक़र्रर कर दिया है। \s5 \v 7 ~~ज़मीन पर से ख़ुदावन्द की हम्द करो ऐ अज़दहाओ और सब गहरे समन्दरो! \v 8 ~ऐ आग और ओलो! ऐ बर्फ़ और कुहर ऐ तूफ़ानी हवा! जो उसके कलाम की ता'लीम करती है | \s5 \v 9 ~ऐ पहाड़ो और सब टीलो! ऐ मेवादार दरख़्तो और सब देवदारो! \v 10 ~ऐ जानवरो और सब चौपायो! ऐ रेंगने वालो और परिन्दो! \s5 \v 11 ~~ऐ ज़मीन के बादशाहो और सब उम्मतों! ऐ उमरा और ज़मीन के सब हाकिमों! \v 12 ~ऐ नौजवानो और कुंवारियो! ऐ बूढ़ों और बच्चो! \s5 \v 13 ~यह सब ख़ुदावन्द के नाम की हम्द करें, क्यूँकि सिर्फ़ उसी का नाम मुम्ताज़ है। उसका जलाल ज़मीन और आसमान से बुलन्द है। \v 14 और उसने अपने सब पाक लोगों या'नी अपनी मुक़र्रब क़ौम बनी इस्राईल के फ़ख़्र के लिए, अपनी क़ौम का सींग बुलन्द किया। ख़ुदावन्द की हम्द करो*! \s5 \c 149 \p \v 1 ~ख़ुदावन्द की हम्द करो।! ख़ुदावन्द के सामने नया हम्द गाओ, और पाक लोगों के मजमे' में उसकी मदहसराई करो! \s5 \v 2 ~इस्राईल अपने ख़ालिक में ख़ुश रहे, फ़र्ज़न्दान-ए-सिय्यून अपने बादशाह की वजह से ख़ुश हों! \v 3 ~वह नाचते हुए उसके नाम की सिताइश करें, वह दफ़ और सितार पर उसकी मदहसराई करें! \s5 \v 4 क्यूँकि ख़ुदावन्द अपने लोगों से खू़शनूद रहता है; वह हलीमों को नजात से ज़ीनत बख़्शेगा। \v 5 पाक लोग जलाल पर फ़ख़्र करें, वह अपने बिस्तरों पर ख़ुशी से नग़मा सराई करें। \s5 \v 6 उनके मुँह में ख़ुदा की तम्जीद, और हाथ में दोधारी तलवार हो, \v 7 ~ताकि क़ौमों से इन्तक़ाम लें, और उम्मतों को सज़ा दें: \s5 \v 8 ~उनके बादशाहों को ज़ंजीरों से जकड़ें, और उनके सरदारों को लोहे की बेड़ियाँ पहनाएं| \v 9 ~ताकि उनको वह सज़ा दें जो लिखी हैं! उसके सब पाक लोगों को यह मक़ाम हासिल है। ख़ुदावन्द की हम्द करो*! \s5 \c 150 \p \v 1 ~ख़ुदावन्द की हम्द करो*! तुम ख़ुदा के हैकल में उसकी हम्द करो; उसकी कु़दरत के फ़लक पर उसकी हम्द करो! \v 2 ~उसकी कु़दरत के कामों की वजह से उसकी हम्द करो; उसकी बड़ी 'अज़मत के मुताबिक़ उसकी हम्द करो! \s5 \v 3 ~नरसिंगे की आवाज़ के साथ उसकी हम्द करो; बरबत और सितार पर उसकी हम्द करो! \v 4 ~दफ़ बजाते और नाचते हुए उसकी हम्द करो; तारदार साज़ों और बांसली के साथ~उसकी हम्द करो! \v 5 ~बुलन्द आवाज़ झाँझ के साथ उसकी हम्द करो! ~ज़ोर से इंझनाती झाँझ के साथ उसकी हम्द करो! \s5 \v 6 ~हर शख़्स ख़ुदावन्द की हम्द करे! ~ख़ुदावन्द की हम्द करो!