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\id GEN
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\h पैदाइश
\toc1 पैदाइश
\toc2 पैदाइश
\toc3 gen
\mt1 पैदाइश
\s5
\c 1
\p
\v 1 ख़ुदा ने सबसे पहले ज़मीन-ओ-आसमान को पैदा किया।
\v 2 और ज़मीन वीरान और सुनसान थी और गहराओ के ऊपर अँधेरा था: और ख़ुदा की रूह पानी की सतह पर जुम्बिश करती थी।
\s5
\v 3 और ख़ुदा ने कहा कि रोशनी हो जा, और रोशनी हो गई।
\v 4 और ख़ुदा ने देखा कि रोशनी अच्छी है, और ख़ुदा ने रोशनी को अँधेरे से जुदा किया।
\v 5 और ख़ुदा ने रोशनी को तो दिन कहा और अँधेरे को रात। और शाम हुई और सुबह हुई- तब पहला दिन हुआ।
\s5
\v 6 और ख़ुदा ने कहा कि पानियों के बीच फ़ज़ा हो ताकि पानी, पानी से जुदा हो जाए।
\v 7 फिर ख़ुदा ने फ़ज़ा को बनाया और फ़ज़ा के नीचे के पानी को फ़ज़ा के ऊपर के पानी से जुदा किया; और ऐसा ही हुआ।
\v 8 और ख़ुदा ने फ़ज़ा को आसमान कहा। और शाम हुई और सुबह हुई - तब दूसरा दिन हुआ।
\s5
\v 9 और ख़ुदा ने कहा कि आसमान के नीचे का पानी एक जगह जमा' हो कि ख़ुश्की नज़र आए, और ऐसा ही हुआ।
\v 10 और ख़ुदा ने ख़ुश्की को ज़मीन कहा और जो पानी जमा' हो गया था उसको समुन्दर; और ख़ुदा ने देखा कि अच्छा है।
\s5
\v 11 और ख़ुदा ने कहा कि ज़मीन घास और बीजदार बूटियों को, और फलदार दरख़्तों को जो अपनी-अपनी क़िस्म के मुताबिक़ फलें और जो ज़मीन पर अपने आप ही में बीज रख्खें उगाए और ऐसा ही हुआ।
\v 12 तब ज़मीन ने घास, और बूटियों को, जो अपनी-अपनी क़िस्म के मुताबिक़ बीज रख्खें और फलदार दरख़्तों को जिनके बीज उन की क़िस्म के मुताबिक़ उनमें हैं उगाया; और ख़ुदा ने देखा कि अच्छा है।
\v 13 और शाम हुई और सुबह हुई-तब तीसरा दिन हुआ।
\s5
\v 14 और ख़ुदा ने कहा कि फ़लक पर सितारे हों कि दिन को रात से अलग करें; और वह निशानों और ज़मानो और दिनों और बरसों के फ़र्क़ के लिए हों |
\v 15 और वह फ़लक पर रोशनी के लिए हों कि ज़मीन पर रोशनी डालें, और ऐसा ही हुआ।
\s5
\v 16 फिर ख़ुदा ने दो बड़े चमकदार सितारे बनाए ; एक बड़ा चमकदार सितारा, कि दिन पर हुक्म करे और एक छोटा चमकदार सितारा कि रात पर हुक्म करे और उसने सितारों को भी बनाया।
\v 17 और ख़ुदा ने उनको फ़लक पर रख्खा कि ज़मीन पर रोशनी डालें,
\v 18 और दिन पर और रात पर हुक्म करें, और उजाले को अन्धेरे से जुदा करें ; और ख़ुदा ने देखा कि अच्छा है।
\v 19 और शाम हुई और सुबह हुई - तब चौथा दिन हुआ।
\s5
\v 20 और ख़ुदा ने कहा कि पानी जानदारों को कसरत से पैदा करे, और परिन्दे ज़मीन के ऊपर फ़ज़ा में उड़ें।
\v 21 और ख़ुदा ने बड़े बड़े दरियाई जानवरों को, और हर क़िस्म के जानदार को जो पानी से बकसरत पैदा हुए थे, उनकी क़िस्म के मुताबिक़ और हर क़िस्म के परिन्दों को उनकी क़िस्म के मुताबिक़, पैदा किया; और ख़ुदा ने देखा कि अच्छा है।
\s5
\v 22 और ख़ुदा ने उनको यह~कह कर बरकत दी कि फलो और बढ़ो और इन समुन्दरों के पानी को भर दो, और परिन्दे ज़मीन पर बहुत बढ़ जाएँ।
\v 23 और शाम हुई और सुबह हुई - तब पाँचवाँ दिन हुआ।
\s5
\v 24 और ख़ुदा ने कहा कि ज़मीन जानदारों ~को, उनकी क़िस्म ~के मुताबिक़, चौपाये और रेंगनेवाले जानदार और जंगली जानवर उनकी क़िस्म के मुताबिक़ पैदा करे, और ऐसा ही हुआ।
\v 25 और ख़ुदा ने जंगली जानवरों और चौपायों को उनकी क़िस्म ~के मुताबिक़ और ज़मीन के रेंगने वाले जानदारों को उनकी क़िस्म के मुताबिक़ बनाया; और ख़ुदा ने देखा कि अच्छा है।
\s5
\v 26 फिर ख़ुदा ने कहा कि हम इन्सान को अपनी सूरत पर अपनी शबीह की तरह बनाएँ और वह समुन्दर की मछलियों और आसमान के परिन्दों और चौपायों, और तमाम ज़मीन और सब जानदारों पर जो ज़मीन पर रेंगते हैं इख़्तियार रख्खें।
\v 27 और ख़ुदा ने इन्सान को अपनी सूरत पर पैदा किया ख़ुदा की सूरत पर उसको पैदा किया - नर-ओ-नारी उनको पैदा किया।
\s5
\v 28 और ख़ुदा ने उनको बरकत दी और कहा कि फलो और बढ़ो और ज़मीन को भर दो और हुकूमत करो और समुन्दर की मछलियों और हवा के परिन्दों और कुल जानवरों पर जो ज़मीन पर चलते हैं इख़ितयार रख्खो।
\v 29 और ख़ुदा ने कहा कि देखो, मैं तमाम रू-ए-ज़मीन की कुल बीजदार सब्ज़ी और हर दरख़्त जिसमें उसका बीजदार फल हो, तुम को देता हूँ; यह तुम्हारे खाने को हों।
\s5
\v 30 और ज़मीन के कुल जानवरों के लिए, और हवा के कुल परिन्दों के लिए और उन सब के लिए जो ज़मीन पर रेंगने वाले हैं जिनमें ज़िन्दगी का दम है, कुल हरी बूटियाँ खाने को देता हूँ, और ऐसा ही हुआ।
\v 31 और ख़ुदा ने सब पर जो उसने बनाया था नज़र की, और देखा कि बहुत अच्छा है। और शाम हुई और सुबह हुई - तब छठा दिन हुआ।
\s5
\c 2
\p
\v 1 तब आसमान और ज़मीन और उनके कुल लश्कर का बनाना ख़त्म हुआ।
\v 2 और ख़ुदा ने अपने काम को, जिसे वह करता था सातवें दिन ख़त्म किया, और अपने सारे काम से जिसे वह कर रहा था, सातवें दिन फ़ारिग़ हुआ।
\v 3 और ख़ुदा ने सातवें दिन को बरकत दी, और उसे मुक़द्दस ठहराया; क्यूँकि उसमें ख़ुदा सारी कायनात से जिसे उसने पैदा किया और बनाया फ़ारिग़ हुआ।
\s5
\v 4 यह है आसमान और ज़मीन की पैदाइश, जब वह पैदा हुए जिस दिन ख़ुदावन्द ख़ुदा ने ज़मीन और आसमान को बनाया;
\v 5 और ज़मीन पर अब तक खेत का कोई पौधा न था और न मैदान की कोई सब्ज़ी अब तक उगी थी, क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा ने ज़मीन पर पानी नहीं बरसाया था, और न ज़मीन जोतने को कोई इन्सान था।
\v 6 बल्कि ज़मीन से कुहर उठती थी, और तमाम रू-ए-ज़मीन को सेराब करती थी।
\s5
\v 7 और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने ज़मीन की मिट्टी से इन्सान को बनाया और उसके नथनों में ज़िन्दगी का दम फूंका इन्सान जीती जान हुआ।
\v 8 और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मशरिक़ की तरफ़ 'अदन में एक बाग़ लगाया और इन्सान को जिसे उसने बनाया था वहाँ रख्खा।
\s5
\v 9 और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने हर दरख़्त को जो देखने में ख़ुशनुमा और खाने के लिए अच्छा था ज़मीन से उगाया और बाग़ के बीच में ज़िन्दगी का दरख़्त और भले और बुरे की पहचान का दरख़्त भी लगाया।
\v 10 और 'अदन से एक दरिया बाग़ के सेराब करने को निकला और वहाँ से चार नदियों में तक़सीम हुआ।
\s5
\v 11 पहली का नाम फ़ैसून है जो हवीला की सारी ज़मीन को जहाँ सोना होता है घेरे हुए है।
\v 12 और इस ज़मीन का सोना चोखा है। और वहाँ मोती और संग-ए-सुलेमानी भी हैं।
\s5
\v 13 और दूसरी नदी का नाम जैहून है, जो कूश की सारी ज़मीन को घेरे हुए है।
\v 14 और तीसरी नदी का नाम दिजला है जो असूर के मशरिक़ को जाती है। और चौथी नदी का नाम फ़ुरात है।
\s5
\v 15 और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने 'आदम को लेकर बाग़-ए-'अदन में रख्खा के उसकी बाग़वानी और निगहबानी करे।
\v 16 और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने आदम को हुक्म दिया और कहा कि तू बाग़ के हर दरख़्त का फल बे रोक टोक खा सकता है।
\v 17 लेकिन भले और बुरे ~की पहचान के दरख़्त का कभी न खाना क्यूँकि जिस रोज़ तूने उसमें से खायेगा तू मर जायेगा।
\s5
\v 18 और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने कहा कि आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं मैं उसके लिए एक मददगार उसकी तरह बनाऊँगा।"
\v 19 और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने सब जंगली ~जानवर और हवा के सब परिन्दे मिट्टी से बनाए और उनको आदम के पास लाया कि देखे कि वह उनके क्या नाम रखता है और आदम ने जिस जानवर को जो कहा वही उसका नाम ठहरा।
\v 20 और आदम ने सब ~चौपायों और हवा के परिन्दों और सब जंगली ~जानवरों के नाम रख्खे लेकिन आदम के लिए कोई मददगार उसकी तरह न मिला।
\s5
\v 21 और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने आदम पर गहरी नींद भेजी और वह सो गया और उसने उसकी पसलियों में से एक को निकाल लिया और उसकी जगह गोश्त भर दिया।
\v 22 और ख़ुदावन्द ख़ुदा उस पसली से जो उसने आदम में से निकाली थी एक 'औरत बना कर उसे आदम के पास लाया।
\v 23 और आदम ने कहा कि यह तो अब मेरी हड्डियों में से हड्डी, और मेरे गोश्त में से गोश्त है; इसलिए वह 'औरत कहलाएगी क्यूँकि वह मर्द से निकाली गई |
\s5
\v 24 इसलिए आदमी अपने माँ बाप को छोड़ेगा और अपनी बीवी से मिला रहेगा और वह एक तन होंगे।
\v 25 और आदम और उसकी बीवी दोनों नंगे थे और शरमाते न थे।
\s5
\c 3
\p
\v 1 और साँप सब जंगली जानवरों से, जिनको ख़ुदावन्द ख़ुदा ने बनाया था चालाक था, और उसने 'औरत से कहा क्या वाक़'ई ख़ुदा ने कहा है, कि बाग़ के किसी दरख़्त का फल तुम न खाना?
\v 2 'औरत ने साँप से कहा कि बाग़ के दरख़्तों का फल तो हम खाते हैं|
\v 3 लेकिन जो दरख़्त बाग़ के बीच में है उसके फल के बारे में ~ख़ुदा ने कहा है कि तुम न तो उसे खाना और न छूना वरना मर जाओगे।
\s5
\v 4 तब साँप ने 'औरत से कहा कि तुम हरगिज़ न मरोगे!
\v 5 बल्कि ख़ुदा जानता है कि जिस दिन तुम उसे खाओगे, तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, और तुम ख़ुदा की तरह भले और बुरे के जानने वाले बन जाओगे।
\v 6 'औरत ने जो देखा कि वह दरख़्त खाने के लिए अच्छा और आँखों को ख़ुशनुमा मा'लूम होता है और अक्ल बख़्शने के लिए ख़ूब है तो उसके फल में से लिया और खाया और अपने शौहर को भी दिया और उसने खाया।
\s5
\v 7 तब दोनों की आँखें खुल गई और उनको मा'लूम हुआ कि वह नंगे हैं और उन्होंने अन्जीर के पत्तों को सी कर अपने लिए लूंगियाँ बनाई।
\v 8 और उन्होंने ख़ुदावन्द ख़ुदा की आवाज़ जो ठंडे वक़्त बाग़ में फिरता था सुनी और आदम और उसकी बीवी ने अपने आप को ख़ुदावन्द ख़ुदा के सामने से बाग़ के दरख़तों में छिपाया।
\s5
\v 9 तब ख़ुदावन्द ख़ुदा ने आदम को पुकारा और उससे कहा कि तू कहाँ है?|
\v 10 उसने कहा, "मैंने बाग़ में तेरी आवाज़ सुनी और मैं डरा क्यूँकि मैं नंगा था और मैंने अपने आप को छिपाया।"
\v 11 उसने कहा, "तुझे किसने बताया कि तू नंगा है? क्या तूने उस दरख़्त का फल खाया जिसके बारे में ~मैंने तुझ को हुक्म दिया था कि उसे न खाना?"
\s5
\v 12 आदम ने कहा कि जिस 'औरत को तूने मेरे साथ किया है उसने मुझे उस दरख़्त का फल दिया और मैंने खाया।
\v 13 तब ख़ुदावन्द ख़ुदा ने, 'औरत से कहा कि तूने यह क्या किया? 'औरत ने कहा कि साँप ने मुझ को बहकाया तो मैंने खाया।
\s5
\v 14 और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने साँप से कहा, इसलिए कि तूने यह किया तू सब चौपायों और जंगली जानवरों में ला'नती ठहरा; तू अपने पेट के बल चलेगा, और अपनी 'उम्र भर खाक चाटेगा।
\v 15 और मैं तेरे और 'औरत के बीच और तेरी नसल और औरत की नसल के बीच 'अदावत डालूँगा वह तेरे सिर को कुचलेगा और तू उसकी एड़ी पर काटेगा।
\s5
\v 16 फिर उसने 'औरत से कहा कि मैं तेरे दर्द-ए-हम्ल को बहुत बढ़ाऊँगा तू दर्द के साथ बच्चे जनेगी और तेरी रग़बत अपने शौहर की तरफ़ होगी और वह तुझ पर हुकूमत करेगा।"
\s5
\v 17 और आदम से उसने कहा चूँकि तूने अपनी बीवी की बात मानी और उस दरख़्त का फल खाया जिस के बारे ~मैंने तुझे हुक्म दिया था कि उसे न खाना इसलिए ज़मीन तेरी वजह से ला'नती हुई। मशक़्क़त के साथ तू अपनी 'उम्र भर उसकी पैदावार खाएगा
\v 18 और वह तेरे लिए काँटे और ऊँटकटारे उगाएगी और तू खेत की सब्ज़ी खाएगा |
\v 19 तू अपने मुँह के पसीने की रोटी खाएगा जब तक कि ज़मीन में तू फिर लौट न जाए इसलिए कि तू उससे निकाला गया है क्यूँकि तू ख़ाक है और ख़ाक में फिर लौट जाएगा।
\s5
\v 20 और आदम ने अपनी बीवी का नाम हव्वा रख्खा, इसलिए कि वह सब ज़िन्दों की माँ है।
\v 21 और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने आदम और उसकी बीवी के लिए चमड़े के कुर्तें बना कर उनको पहनाए।
\s5
\v 22 और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने कहा, "देखो इंसान भले और बुरे की पहचान में हम में से एक की तरह हो गया: अब कहीं ऐसा न हो कि वह अपना हाथ बढ़ाए और ज़िन्दगी के दरख़्त से भी कुछ लेकर खाए और हमेशा ज़िन्दा रहे।"
\v 23 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा ने उसको बाग-ए-'अदन से बाहर कर दिया, ताकि वह उस ज़मीन की जिसमें से वह लिया गया था, खेती करे।
\v 24 चुनाँचे उसने आदम को निकाल दिया और बाग-ए-'अदन के मशरिक़ की तरफ़ करूबियों को और चारों तरफ़ घूमने वाली शो'लाज़न तलवार को रख्खा, कि वह ज़िन्दगी के दरख़्त की राह की हिफ़ाज़त करें।
\s5
\c 4
\p
\v 1 और आदम अपनी बीवी हव्वा के पास गया, और वह हामिला हुई और उसके क़ाइन पैदा हुआ। तब उसने कहा, "मुझे ख़ुदावन्द से एक फ़र्ज़न्द मिला।”
\v 2 फिर क़ाइन का भाई हाबिल पैदा हुआ; और हाबिल भेड़ बकरियों का चरवाहा और क़ाइन किसान था।
\s5
\v 3 कुछ दिन ~के बा'द ऐसा हुआ कि क़ाइन अपने खेत के फल का हदिया ख़ुदावन्द के लिए लाया।
\v 4 और हाबिल भी अपनी भेड़ बकरियों के कुछ पहलौठे बच्चों का और कुछ उनकी चर्बी का हदिया लाया। और ख़ुदावन्द ने हाबिल को और उसके हदिये को क़ुबूल किया,
\v 5 लेकिन क़ाइन को और उसके हदिये को क़ुबूल न किया। इसलिए क़ाइन बहुत ग़ुस्सा हुआ और उसका मुँह बिगड़ा।
\s5
\v 6 और ख़ुदावन्द ने क़ाइन से कहा, "तू क्यूँ ग़ुस्सा हुआ? और तेरा मुँह क्यूँ बिगड़ा हुआ है?
\v 7 अगर तू भला करे तो क्या तू मक़्बूल न होगा? और अगर तू भला न करे तो गुनाह दरवाज़े पर दुबका बैठा है और तेरा मुश्ताक़ है, लेकिन तू उस पर ग़ालिब आ।"
\s5
\v 8 और क़ाइन ने अपने भाई हाबिल को कुछ कहा और जब वह दोनों खेत में थे तो ऐसा हुआ कि क़ाइन ने अपने भाई हाबिल पर हमला किया और उसे क़त्ल कर डाला।
\v 9 तब ख़ुदावन्द ने क़ाइन से कहा कि तेरा भाई हाबिल कहाँ है?" उसने कहा, "मुझे मा'लूम नहीं; क्या मैं अपने भाई का मुहाफ़िज़ हूँ?"
\s5
\v 10 फिर उसने कहा कि तूने यह क्या किया? तेरे भाई का ख़ून ज़मीन से मुझ को पुकारता है।
\v 11 और अब तू ज़मीन की तरफ़ से ला'नती हुआ, जिसने अपना मुँह पसारा कि तेरे हाथ से तेरे भाई का ख़ून ले।
\v 12 जब तू ज़मीन को जोतेगा, तो वह अब तुझे अपनी पैदावार न देगी और ज़मीन पर तू ख़ानाख़राब और आवारा होगा।
\s5
\v 13 तब क़ाइन ने ख़ुदावन्द से कहा कि मेरी सज़ा बर्दाश्त से बाहर है।
\v 14 देख, आज तूने मुझे रू-ए-ज़मीन से निकाल दिया है, और मैं तेरे सामने से ग़ायब हो जाऊँगा; और ज़मीन पर खानाख़राब और आवारा रहूँगा, और ऐसा होगा कि जो कोई मुझे पाएगा क़त्ल कर डालेगा।
\v 15 तब ख़ुदावन्द ने उसे कहा, "नहीं, बल्कि जो क़ाइन को क़त्ल करे उससे सात गुना बदला लिया जाएगा।" और ख़ुदावन्द ने क़ाइन के लिए एक निशान ठहराया कि कोई उसे पा कर मार न डाले।
\s5
\v 16 इसलिए, क़ाइन ख़ुदावन्द के सामने से निकल गया और 'अदन के मशरिक़ की तरफ़ नूद के इलाक़े में जा बसा।
\v 17 और क़ाइन अपनी बीवी के पास गया और वह हामिला हुई और उसके हनूक पैदा हुआ; और उसने एक शहर बसाया और उसका नाम अपने बेटे के नाम पर हनूक रख्खा।
\s5
\v 18 और हनूक से 'ईराद पैदा हुआ, और 'ईराद से महुयाएल पैदा हुआ, और महुयाएल से मतूसाएल पैदा हुआ, और मत्तूसाएल से लमक पैदा हुआ।
\v 19 और लमक दो 'औरतें ब्याह लाया : एक का नाम 'अदा और दूसरी का नाम ज़िल्ला था।
\s5
\v 20 और 'अदा के याबल पैदा हुआ : वह उनका बाप था जो ख़ेमों में रहते और जानवर पालते हैं।
\v 21 और उसके भाई का नाम यूबल था : वह बीन और बांसली बजाने वालों का बाप था।
\v 22 और ज़िल्ला के भी तूबलक़ाइन पैदा हुआ : जो पीतल और लोहे के सब तेज़ हथियारों का बनाने वाला था; और ना'मा तूबलक़ाइन की बहन थी।
\s5
\v 23 और लमक ने अपनी बीवियों से कहा कि ऐ 'अदा और ज़िल्ला मेरी बात सुनो; ऐ लमक की बीवियो, मेरी बात पर कान लगाओ : मैंने एक आदमी को जिसने मुझे ज़ख़्मी किया, मार डाला । और एक जवान को जिसने मेरे चोट लगाई, क़त्ल कर डाला।
\v 24 अगर क़ाइन का बदला सात गुना लिया जाएगा, तो लमक का सत्तर और सात गुना।
\s5
\v 25 और आदम फिर अपनी बीवी के पास गया और उसके एक और बेटा हुआ और उसका नाम सेत रख्खा : और वह कहने लगी कि ख़ुदा ने हाबिल के बदले जिसको क़ाइन ने क़त्ल किया, मुझे दूसरा फ़र्ज़न्द दिया।
\v 26 और सेत के यहाँ भी एक बेटा पैदा हुआ, जिसका नाम उसने अनूस रख्खा; उस वक़्त से लोग यहोवा का नाम लेकर दु'आ करने लगे।
\s5
\c 5
\p
\v 1 यह आदम का नसबनामा है। जिस दिन ख़ुदा ने आदम को पैदा किया; तो उसे अपनी शबीह पर बनाया।
\v 2 मर्द और 'औरत उनको पैदा किया और उनको बरकत दी, और जिस दिन वह पैदा हुए उनका नाम आदम रख्खा।
\s5
\v 3 और आदम एक सौ तीस साल का था जब उसकी सूरत-ओ-शबीह का एक बेटा उसके यहाँ पैदा हुआ; और उसने उसका नाम सेत रख्खा।
\v 4 और सेत की पैदाइश के बा'द आदम आठ सौ साल ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।
\v 5 और आदम की कुल 'उम्र नौ सौ तीस साल की हुई, तब वह मरा।
\s5
\v 6 और सेत एक सौ पाँच साल का था जब उससे अनूस पैदा हुआ।
\v 7 और अनूस की पैदाइश के बा'द सेत आठ सौ सात साल ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।
\v 8 और सेत की कुल 'उम्र नौ सौ बारह साल की हुई, तब वह मरा।
\s5
\v 9 और अनूस नव्वे साल का था जब उससे क़ीनान पैदा हुआ।
\v 10 और क़ीनान की पैदाइश के बा'द अनूस आठ सौ पन्द्रह साल ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।
\v 11 और अनूस की कुल 'उम्र नौ सौ पाँच साल की हुई, तब वह मरा।
\s5
\v 12 और क़ीनान सत्तर साल का था जब उससे महललेल पैदा हुआ।
\v 13 और महललेल की पैदाइश के बा'द क़ीनान आठ सौ चालीस साल ज़िन्दा रहाऔर उससे बेटे और बेटियाँ ~पैदा हुई।
\v 14 और क़ीनान की कुल 'उम्र नौ सौ दस साल की हुई, तब वह मरा।
\s5
\v 15 और महललेल पैंसठ साल का था जब उससे यारिद पैदा हुआ।
\v 16 और यारिद की पैदाइश के बा'द महललेल आठ सौ तीस साल ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।
\v 17 और महललेल की कुल 'उम्र आठ सौ पचानवे साल की हुई, तब वह मरा।
\s5
\v 18 और यारिद एक सौ बासठ साल का था जब उससे हनूक पैदा हुआ।
\v 19 और हनूक की पैदाइश के बा'द यारिद आठ सौ साल ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।
\v 20 और यारिद की कुल 'उम्र नौ सौ बासठ साल की हुई, तब वह मरा।
\s5
\v 21 और हनूक पैंसठ साल का था उससे मतुसिलह पैदा हुआ।
\v 22 और मतूसिलह की पैदाइश के बा'द हनूक तीन सौ साल तक ख़ुदा के साथ-साथ चलता रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।
\v 23 और हनूक की कुल 'उम्र तीन सौ पैंसठ साल की हुई।
\v 24 और हनूक ख़ुदा के साथ-साथ चलता रहा, और वह ग़ायब हो गया क्यूँकि ख़ुदा ने उसे उठा लिया।
\s5
\v 25 और मतूसिलह एक सौ सतासी साल का था जब उससे लमक पैदा हुआ।
\v 26 और लमक की पैदाइश के बा'द मतूसिलह सात सौ बयासी साल ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।
\v 27 और मतूसिलह की कुल 'उम्र नौ सौ उनहत्तर साल की हुई, तब वह मरा।
\s5
\v 28 और लमक एक सौ बयासी साल का था जब उससे एक बेटा पैदा हुआ।
\v 29 और उसने उसका नाम नूह रख्खा और कहा, कि यह हमारे हाथों की मेहनत और मशक़्क़त से जो ज़मीन की वजह से है जिस पर ख़ुदा ने ला'नत की है, हमें आराम देगा।
\s5
\v 30 और नूह की पैदाइश के बा'द लमक पाँच सौ पंचानवे साल ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।
\v 31 और ~लमक की कुल 'उम्र सात सौ सत्तर साल की हुई, तब वह मरा ।
\s5
\v 32 और नूह पाँच सौ साल का था, जब उससे सिम, हाम और याफ़त, पैदा हुए।
\s5
\c 6
\p
\v 1 जब रु-ए-ज़मीन पर आदमी बहुत बढ़ने लगे और उनके बेटियाँ पैदा हुई।
\v 2 तो ख़ुदा के बेटों ने आदमी की बेटियों को देखा कि वह ख़ूबसूरत हैं; और जिनको उन्होंने चुना उनसे ब्याह कर लिया।
\v 3 तब ख़ुदावन्द ने कहा कि मेरी रूह इन्सान के साथ हमेशा मुज़ाहमत न करती रहेगी। क्यूँकि वह भी तो इन्सान है; तो भी उसकी 'उम्र एक सौ बीस साल की होगी।"
\s5
\v 4 उन दिनों में ज़मीन पर जब्बार थे, और बा'द में जब ख़ुदा के बेटे इन्सान की बेटियों के पास गए, तो उनके लिए उनसे औलाद हुई। यही पुराने ~ज़माने के सूर्मा हैं, जो बड़े नामवर हुए हैं।
\s5
\v 5 और ख़ुदावन्द ने देखा कि ज़मीन पर इन्सान की बदी बहुत बढ़ गई, और उसके दिल के तसव्वुर और ख़याल हमेशा बुरे ही होते हैं।
\v 6 तब ख़ुदावन्द ज़मीन पर इन्सान के पैदा करने से दुखी हुआ और दिल में ग़म किया।
\s5
\v 7 और ख़ुदावन्द ने कहा कि मैं इन्सान को जिसे मैंने पैदा किया, रू-ए-ज़मीन पर से मिटा डालूँगा; इन्सान से लेकर हैवान और रेंगनेवाले जानदार और हवा के परिन्दों तक; क्यूँकि मैं उनके बनाने से दुखी हूँ।"
\v 8 मगर नूह ख़ुदावन्द की नज़र में मक़्बूल हुआ।
\s5
\v 9 नूह का नसबनामा यह है : नूह मर्द-ए-रास्तबाज़ और अपने ज़माने के लोगों में बे'ऐब था, और नूह ख़ुदा के साथ-साथ चलता रहा।
\v 10 और उससे तीन बेटे सिम, हाम और याफ़त पैदा हुए।
\s5
\v 11 लेकिन ज़मीन ख़ुदा के आगे नापाक हो गई थी, और वह ज़ुल्म से भरी थी।
\v 12 और ख़ुदा ने ज़मीन पर नज़र की और देखा, कि वह नापाक हो गई है; क्यूँकि ~हर इन्सान ने ज़मीन पर अपना तरीक़ा बिगाड़ लिया था।
\s5
\v 13 और ख़ुदा ने नूह से कहा कि पूरे इन्सान का ख़ातिमा मेरे सामने आ पहुँचा है; क्यूँकि उनकी वजह से ज़मीन जुल्म से भर गई, इसलिए ~देख, मैं ज़मीन के साथ उनको हलाक करूँगा।
\v 14 तू गोफर की लकड़ी की एक कश्ती अपने लिए बना; उस कश्ती में कोठरियाँ तैयार करना और उसके अन्दर और बाहर राल लगाना।
\v 15 ~और ऐसा करना कि कश्ती की लम्बाई तीन सौ हाथ, उसकी चौड़ाई पचास हाथ और उसकी ऊँचाई तीस हाथ हो।
\s5
\v 16 और उस कश्ती में एक रौशनदान बनाना, और ऊपर से हाथ भर छोड़ कर उसे ख़त्म कर देना; और उस कश्ती का दरवाज़ा उसके पहलू में रखना; और उसमें तीन हिस्से बनाना निचला, दूसरा और तीसरा।
\v 17 और देख, मैं ख़ुद ज़मीन पर पानी का तूफ़ान लानेवाला हूँ, ताकि हर इन्सान को जिसमें जिन्दगी की साँस है, दुनिया से हलाक कर डालूँ, और सब जो ज़मीन पर हैं मर जाएँगे।
\s5
\v 18 लेकिन तेरे साथ मैं अपना 'अहद क़ायम करूँगा; और तू कश्ती में जाना-तू और तेरे साथ तेरे बेटे और तेरी बीवी और तेरे बेटों की बीवियाँ।
\v 19 और जानवरों की हर क़िस्म ~में से दो-दो अपने साथ कश्ती में ले लेना, कि वह तेरे साथ जीते बचें, वह नर-ओ-मादा हों।
\s5
\v 20 और परिन्दों की हर क़िस्म में से, और चरिन्दों की हर क़िस्म में से, और ज़मीन पर रेंगने वालों की हर क़िस्म में से दो दो तेरे पास आएँ, ताकि वह जीते बचें।
\v 21 और तू हर तरह की खाने की चीज़ लेकर अपने पास जमा' कर लेना, क्यूँकि यही तेरे और उनके खाने को होगा।
\v 22 और नूह ने ऐसा ही किया; जैसा ख़ुदा ने उसे हुक्म दिया था, वैसा ही 'अमल किया।
\s5
\c 7
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द ने नूह से कहा कि तू अपने पूरे ख़ान्दान के साथ कश्ती में आ; क्यूँकि मैंने तुझी को अपने सामने इस ज़माना में रास्तबाज़ देखा है।
\v 2 सब पाक जानवरों में से सात-सात, नर और उनकी मादा; और उनमें से जो पाक नहीं हैं दो-दो, नर और उनकी मादा अपने साथ ले लेना।
\v 3 और हवा के परिन्दों में से भी सात-सात, नर और मादा, लेना ताकि ज़मीन पर उनकी नसल बाक़ी रहे।
\s5
\v 4 क्यूँकि सात दिन के बा'द मैं ज़मीन पर चालीस दिन और चालीस रात पानी बरसाऊंगा, और हर जानदार शय को जिसे मैंने बनाया ज़मीन पर से मिटा डालूँगा।
\v 5 और नूह ने वह सब जैसा ख़ुदावन्द ने उसे हुक्म दिया था किया।
\s5
\v 6 और नूह छ: सौ साल का था, जब पानी का तूफ़ान ज़मीन पर आया।
\v 7 तब नूह और उसके बेटे और उसकी बीवी, और उसके बेटों की बीवियाँ, उसके साथ तूफ़ान के पानी से बचने के लिए कश्ती में गए।
\s5
\v 8 और पाक जानवरों में से और उन जानवरों में से जो पाक नहीं, और परिन्दों में से और ज़मीन पर के हर रेंगनेवाले जानदार में से
\v 9 दो-दो, नर और मादा, कश्ती में नूह के पास गए, जैसा ख़ुदा ने नूह को हुक्म दिया था।
\v 10 और सात दिन के बा'द ऐसा हुआ कि तूफ़ान का पानी ज़मीन पर आ गया।
\s5
\v 11 नूह की 'उम्र का छ: सौवां साल था, कि उसके दूसरे महीने के ठीक सत्रहवीं तारीख़ को बड़े समुन्दर के सब सोते फूट निकले और आसमान की खिड़कियाँ खुल गई।
\v 12 और चालीस दिन और चालीस रात ज़मीन पर बारिश होती रही।
\s5
\v 13 उसी दिन नूह और नूह के बेटे सिम और हाम और याफ़त, और
\v 14 और हर क़िस्म का जानवर और हर क़िस्म का चौपाया और हर क़िस्म का ज़मीन पर का रेंगने वाला जानदार और हर क़िस्म का परिन्दा और हर क़िस्म की चिड़िया, यह सब कश्ती में दाख़िल हुए।
\s5
\v 15 और जो ज़िन्दगी का दम रखते हैं उनमें से दो-दो कश्ती में नूह के पास आए।
\v 16 और जो अन्दर आए वो, जैसा ख़ुदा ने उसे हुक्म दिया था, सब जानवरों के नर-ओ-मादा थे। तब ख़ुदावन्द ने उसको बाहर से बन्द कर दिया।
\s5
\v 17 और चालीस दिन तक ज़मीन पर तूफ़ान रहा, और पानी बढ़ा और उसने कश्ती को ऊपर उठा दिया; तब कश्ती ज़मीन पर से उठ गई।
\v 18 और पानी ज़मीन पर चढ़ता ही गया और बहुत बढ़ा और कश्ती पानी के ऊपर तैरती रही।
\s5
\v 19 और पानी ज़मीन पर बहुत ही ज़्यादा चढ़ा और सब ऊँचे पहाड़ जो दुनिया में हैं छिप गए।
\v 20 पानी उनसे पंद्रह हाथ और ऊपर चढ़ा और पहाड़ डूब गए।
\s5
\v 21 और सब जानवर जो ज़मीन पर चलते थे, परिन्दें और चौपाए और जंगली जानवर और ज़मीन पर के सब रेंगनेवाले जानदार, और सब आदमी मर गए।
\v 22 और ख़ुश्की के सब जानदार जिनके नथनों में ज़िन्दगी का दम था मर गए।
\s5
\v 23 बल्कि हर जानदार शय जो इस ज़मीन पर थी मर मिटी - क्या इन्सान क्या हैवान क्या रेंगने वाले जानदार क्या हवा ~का परिन्दा, यह सब के सब ज़मीन पर से मर मिटे। सिर्फ़ एक नूह बाक़ी बचा, या वह जो उसके साथ कश्ती में थे।
\v 24 और पानी ज़मीन पर एक सौ पचास दिन तक बढ़ता रहा।
\s5
\c 8
\p
\v 1 ~फिर ख़ुदा ने नूह को और सब जानदार और सब चौपायों को जो उसके साथ कश्ती में थे याद किया; और ख़ुदा ने ज़मीन पर एक हवा चलाई और पानी रुक गया।
\v 2 और समुन्दर के सोते और आसमान के दरीचे बन्द किए गए, और आसमान से जो बारिश हो रही थी थम गई;|
\v 3 और पानी ज़मीन पर से घटते-घटते एक सौ पचास दिन के बा'द कम हुआ।
\s5
\v 4 और सातवें महीने की सत्रहवीं तारीख़ को कश्ती अरारात के पहाड़ों पर टिक गई।
\v 5 और पानी दसवें महीने तक बराबर घटता रहा, और दसवें महीने की पहली तारीख़ को पहाड़ों की चोटियाँ नज़र आई।
\s5
\v 6 और चालीस दिन के बा'द ऐसा हुआ, कि नूह ने कश्ती की खिड़की जो उसने बनाई थी खोली, |
\v 7 और उसने एक कौवे को उड़ा दिया; इसलिए वह निकला और जब तक कि ज़मीन पर से पानी सूख न गया इधर उधर फिरता रहा।
\s5
\v 8 फिर उसने एक कबूतरी अपने पास से उड़ा दी, ताकि देखे, कि ज़मीन पर पानी घटा या नहीं।
\v 9 लेकिन कबूतरी ने पंजा टेकने की जगह न पाई और उसके पास कश्ती को लौट आई, क्यूँकि तमाम रू-ए-ज़मीन पर पानी था। तब उसने हाथ बढ़ाकर उसे ले लिया और अपने पास कश्ती में रख्खा।
\s5
\v 10 और सात दिन ठहर कर उसने उस कबूतरी को फिर कश्ती से उड़ा दिया ;|
\v 11 और वह कबूतरी शाम के वक़्त उसके पास लौट आई, और देखा तो जैतून की एक ताज़ा पत्ती उसकी चोंच में थी। तब नूह ने मा'लूम किया कि पानी ज़मीन पर से कम हो गया।
\v 12 तब वह सात दिन और ठहरा, इसके बा'द फिर उस कबूतरी को उड़ाया, लेकिन वह उसके पास फिर कभी न लौटी।
\s5
\v 13 और छ: सौ पहले साल के पहले महीने की पहली तारीख़ को ऐसा हुआ, कि ज़मीन पर से पानी सूख गया; और नूह ने कश्ती की छत खोली और देखा कि ज़मीन की सतह सूख गई है।
\v 14 और दूसरे महीने की सताईस्वीं तारीख़ को ज़मीन बिल्कुल सूख गई।
\s5
\v 15 तब ख़ुदा ने नूह से कहा कि
\v 16 "कश्ती से बाहर निकल आ; तू और तेरे साथ तेरी बीवी और तेरे बेटे और तेरे बेटों की बीवियाँ।
\v 17 और उन जानदारों को भी बाहर निकाल ला जो तेरे साथ हैं : क्या परिन्दे, क्या चौपाये, क्या ज़मीन के रेंगनेवाले जानदार; ताकि वह ज़मीन पर कसरत से बच्चे दें और फल दायक हों और ज़मीन पर बढ़ जाएँ।"
\s5
\v 18 तब नूह अपनी बीवी और अपने बेटों और अपने बेटों की बीवियों के साथ बाहर निकला।
\v 19 और सब जानवर, सब रेंगनेवाले जानदार, सब परिन्दे और सब जो ज़मीन पर चलते हैं, अपनीअपनी क़िस्म ~के साथ कश्ती से निकल गए।
\s5
\v 20 तब नूह ने ख़ुदावन्द के लिए एक मज़बह बनाया; और सब पाक चौपायों और पाक परिन्दों में से थोड़े से लेकर उस मज़बह पर सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश कीं।
\v 21 और ख़ुदावन्द ने उसकी राहत अंगेज़ ख़ुशबू ली, और ख़ुदावन्द ने अपने दिल में कहा कि इन्सान की वजह से मैं फिर कभी ज़मीन पर ला'नत नहीं भेजूँगा, क्यूँकि इन्सान के दिल का ख़्याल लड़कपन से बुरा है; और न फिर सब जानदारों को जैसा अब किया है, मारूँगा।
\v 22 बल्कि जब तक ज़मीन क़ायम है बीज बोना और फ़सल कटना, सर्दी और तपिश, गर्मी और जाड़ा और रात ख़त्म न ~होंगे।
\s5
\c 9
\p
\v 1 और ख़ुदा ने नूह और उसके बेटों को बरकत दी और उनको कहा कि फ़ायदेमन्द हो और बढ़ो और ज़मीन को भर दो।
\v 2 और ज़मीन के सब ~जानदारों और हवा के सब परिन्दों पर तुम्हारी दहशत और तुम्हारा रौब होगा;| यह और तमाम कीड़े जिन से ज़मीन भरी पड़ी है, और समुन्दर की कुल मछलियाँ तुम्हारे क़ब्ज़े में की गई ।
\s5
\v 3 हर चलता फिरता जानदार तुम्हारे खाने को होगा; हरी सब्ज़ी की तरह मैंने सबका सब तुम को दे दिया
\v 4 मगर तुम गोश्त के साथ खू़न को, जो उसकी जान है न खाना।
\s5
\v 5 मैं तुम्हारे खू़न का बदला ज़रूर लुँगा, हर जानवर से उसका बदला लूँगा; आदमी की जान का बदला आदमी से और उसके भाई बन्द से लुँगा ।
\v 6 जो आदमी का खू़न करे उसका खू़न आदमी से होगा, क्यूँकि ख़ुदा ने इन्सान को अपनी सूरत पर बनाया है |
\v 7 और तुम फल दायक हो और बढ़ो और ज़मीन पर खू़ब अपनी नसल बढ़ाओ, और बहुत ज़्यादा हो जाओ।”
\s5
\v 8 और ख़ुदा ने नूह और उसके बेटों से कहा,
\v 9 "देखो, मैं खुद तुमसे और तुम्हारे बा'द तुम्हारी नसल से,
\v 10 और सब जानदारों से जो तुम्हारे साथ हैं, क्या परिन्दे क्या चौपाए क्या ज़मीन के जानवर, या'नी ज़मीन के उन सब जानवरों के बारे में जो कश्ती से उतरे, 'अहद करता हूँ
\s5
\v 11 मैं इस 'अहद को तुम्हारे साथ क़ायम रखूँगा कि सब जानदार तूफ़ान के पानी से फिर हलाक न होंगे, और न कभी ज़मीन को तबाह करने के लिए फिर तूफ़ान आएगा
\v 12 ~और ख़ुदा ने कहा कि जो अहद मैंने अपने और तुम्हारे बीच और सब जानदारों के बीच जो तुम्हारे साथ हैं, नसल -दर-नसल हमेशा के लिए करता हूँ, उसका निशान यह है, कि|
\v 13 मैं अपनी कमान को बादल में रखता हूँ, वह मेरे और ज़मीन के बीच 'अहद का निशान होगी
\s5
\v 14 और ऐसा होगा कि जब मैं ज़मीन पर बादल लाऊँगा, तो मेरी कमान बादल में दिखाई देगी।
\v 15 और मैं अपने 'अहद को, जो मेरे और तुम्हारे और हर तरह के जानदार के बीच है, याद करूँगा; और तमाम जानदारों की हलाकत के लिए पानी का तूफ़ान फिर न होगा।
\s5
\v 16 और कमान बादल में होगी और मैं उस पर निगाह करूँगा, ताकि उस अबदी 'अहद को याद करूँ जो ख़ुदा के और ज़मीन के सब तरह के जानदार के बीच है।"
\v 17 तब ख़ुदा ने नूह से कहा कि यह उस 'अहद का निशान है जो मैं अपने और ज़मीन के कुल जानदारों के बीच क़ायम करता हूँ।
\s5
\v 18 नूह के बेटे जो कश्ती से निकले, सिम, हाम और याफ़त थे और हाम कना'न का बाप था ।
\v 19 ~यही तीनों नूह के बेटे थे और इन्हीं की नसल सारी ज़मीन फैली |
\s5
\v 20 और नूह काश्तकारी करने लगा और उसने एक अँगूर का बाग़ लगाया।
\v 21 और उसने उसकी मय पी और उसे नशा आया और वह अपने डेरे में नंगा हो गया।
\s5
\v 22 और कना'न के बाप हाम ने अपने बाप को नंगा देखा, और अपने दोनों भाइयों को बाहर आ कर ख़बर दी।
\v 23 तब सिम और याफ़त ने एक कपड़ा लिया और उसे अपने कन्धों पर धरा, और पीछे को उल्टे चल कर गए और अपने बाप की नंगे पन को ~ढाँका, इसलिए उनके मुँह उल्टी तरफ़ थे और उन्होंने अपने बाप की नंगे पन को ~न देखा।
\s5
\v 24 जब नूह अपनी मय के नशे से होश में आया, तो जो उसके छोटे बेटे ने उसके साथ किया था उसे मा'लूम हुआ |
\v 25 और उसने कहा कि कना'न मल'ऊन हो, वह अपने भाइयों के गु़लामों का ग़ुलाम होगा
\s5
\v 26 फिर कहा, "ख़ुदावन्द सिम का ख़ुदा मुबारक हो, और कना'न सिम का ग़ुलाम हो।
\v 27 ख़ुदा याफ़त को फैलाए, कि वह सिम के डेरों में बसे, और कना'न उसका गु़लाम"
\s5
\v 28 और तूफ़ान के बा'द नूह साढ़े तीन सौ साल और ज़िन्दा रहा।
\v 29 और नूह की कुल 'उम्र साढ़े नौ सौ साल की हुई। तब उसने वफ़ात पाई।
\s5
\c 10
\p
\v 1 नूह के बेटों सिम, हाम और याफ़त की औलाद यह हैं। तूफान के बा'द उनके यहाँ बेटे पैदा हुए।
\s5
\v 2 बनी याफ़त यह हैं : जुमर और माजूज और मादी, और यावान और तूबल और मसक और तीरास।
\v 3 और जुमर के बेटे: अशकनाज़ और रीफ़त और तुजरमा।
\v 4 और यावान के बेटे: इलीसा और तरसीस, किती और दोदानी।
\v 5 क़ौमों के जज़ीरे इन्हीं की नसल में बट कर, हर एक की ज़बान और क़बीले के मुताबिक़ मुख़तलिफ़ मुल्क और गिरोह हो गए।
\s5
\v 6 और बनी हाम यह हैं : कूश और मिस्र और फ़ूत और कना'न।
\v 7 और बनी कूश यह हैं | सबा और हवीला और सबता और रा'मा और सब्तीका। और बनी रा'मा यह हैं : सबा और ददान।
\s5
\v 8 और कूश से नमरूद पैदा हुआ| वह रू-ए-ज़मीन पर एक सूर्मा हुआ है।
\v 9 ख़ुदावन्द के सामने वह एक शिकारी सूर्मा हुआ है, इसलिए यह मसल चली कि ख़ुदावन्द के सामने नमरूद सा शिकारी सूर्मा।"
\v 10 और उस की बादशाही का पहला मुल्क सिन'आर में बाबुल और अरक और अक्काद और कलना से हुई।
\s5
\v 11 उसी मुल्क से निकल कर वह असूर में आया, और नीनवा और रहोबोत 'ईर और कलह को,
\v 12 और नीनवा और कलह के बीच रसन को, जो बड़ा शहर है बनाया।
\v 13 और मिस्र से लूदी और 'अनामी और लिहाबी और नफ़तूही
\v 14 और फ़तरूसी और कसलूही (जिनसे फ़िलिस्ती निकले) और कफ़तूरी पैदा हुए।
\s5
\v 15 और कना'न से सैदा जो उसका पहलौठा था, और हित,
\v 16 और यबूसी और अमोरी और जिरजासी,
\v 17 और हव्वी और 'अरकी और सीनी,
\v 18 और अरवादी और समारी और हमाती पैदा हुए; और बा'द में कना'नी क़बीले फैल गए।
\s5
\v 19 और कना'नियों की हद यह है : सैदा से ग़ज़्ज़ा तक जो जिरार के रास्ते पर है, फिर वहाँ से लसा' तक जो सदूम और 'अमूरा और अदमा और ज़िबयान की राह पर है।
\v 20 इसलिए बनी हाम यह हैं, जो अपने-अपने मुल्क और गिरोहों में अपने क़बीलों और अपनी ज़बानों के मुताबिक़ आबा'द हैं।
\s5
\v 21 और सिम के यहाँ भी जो तमाम बनी 'इब्र का बाप और याफ़त का बड़ा भाई था, औलाद हुई।
\v 22 और बनी सिम यह हैं : 'ऐलाम और असुर और अरफ़कसद और लुद और आराम |
\v 23 ~और बनी आराम यह हैं ;'ऊज़ और हूल और जतर और मस |
\s5
\v 24 और अरफ़कसद से सिलह पैदा हुआ और सिलह से 'इब्र।
\v 25 और 'इब्र के यहाँ दो बेटे पैदा हुए; एक का नाम फ़लज था क्यूँकि ज़मीन उसके दिनों में बटी, और उसके भाई का नाम युक्तान था।
\s5
\v 26 और युक़्तान से अलमूदाद और सलफ़ और हसारमावत और इराख़ |
\v 27 और हदूराम और ऊज़ाल और दिक़ला |
\v 28 और 'ऊबल और अबी माएल और सिबा |
\v 29 और ओफ़ीर और हवील और यूबाब पैदा हुए; यह सब बनी युक़्तान थे |
\s5
\v 30 और इनकी आबादी मेसा से मशरिक़ के एक पहाड़ सफ़ार की तरफ़ थी।
\v 31 इसलिए बनी सिम यह हैं, जो अपने-अपने मुल्क और गिरोह में अपने क़बीलों और अपनी ज़बानों के मुताबिक़ आबा'द हैं |
\s5
\v 32 नूह के बेटों के ख़ान्दान उनके गिरोह और नसलों के ऐतबार से यही हैं, और तूफ़ान के बा'द जो क़ौमें ज़मीन पर इधर उधर बट गई वह इन्हीं में से थीं।
\s5
\c 11
\p
\v 1 और तमाम ज़मीन पर एक ही ज़बान और एक ही बोली थी।
\v 2 और ऐसा हुआ कि मशरिक़ की तरफ़ सफ़र करते करते उनको मुल्क-ए-सिन'आर में एक मैदान मिला और वह वहाँ बस गए।
\s5
\v 3 और उन्होंने आपस में कहा, 'आओ, हम ईटें बनाएँ और उनको आग में खू़ब पकाएँ। तब उन्होंने पत्थर की जगह ईट से और चूने की जगह गारे से काम लिया।
\v 4 फिर वह कहने लगे, कि आओ हम अपने लिए एक शहर और एक बुर्ज जिसकी चोटी आसमान तक पहुँचे बनाए और ~यहाँ अपना नाम करें, ऐसा न हो कि हम तमाम रु-ए-ज़मीन पर बिखर जाएँ | |
\s5
\v 5 और ख़ुदावन्द इस शहर और बुर्ज, को जिसे बनी आदम बनाने लगे देखने को उतरा।
\v 6 और ख़ुदावन्द ने कहा, "देखो, यह लोग सब एक हैं और इन सभों की एक ही ज़बान है। वह जो यह करने लगे हैं तो अब कुछ भी जिसका वह इरादा करें उनसे बाक़ी न छूटेगा।
\v 7 इसलिए आओ, हम वहाँ जाकर उनकी ज़बान में इख्तिलाफ़ डालें, ताकि वह एक दूसरे की बात समझ न सकें।"
\s5
\v 8 तब, ख़ुदावन्द ने उनको वहाँ से तमाम रू-ए-ज़मीन में बिखेर दिया; तब वह उस शहर के बनाने से बाज़ आए।
\v 9 इसलिए उसका नाम बाबुल हुआ क्यूँकि ख़ुदावन्द ने वहाँ सारी ज़मीन की ज़बान में इख्तिलाफ़ डाला और वहाँ से ख़ुदावन्द ने उनको तमाम रू-ए-ज़मीन पर बिखेर ~दिया।
\s5
\v 10 यह सिम का नसबनामा है : सिम एक सौ साल का था जब उससे तूफ़ान के दो साल बा'द अरफ़कसद पैदा हुआ;
\v 11 और अरफ़कसद की पैदाइश के बा'द सिम पाँच सौ साल ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।
\s5
\v 12 जब अरफ़कसद पैतीस साल का हुआ, तो उससे सिलह पैदा हुआ;
\v 13 और सिलह की पैदाइश के बा'द अरफ़कसद चार सौ तीन साल और ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।
\s5
\v 14 सिलह जब तीस साल का हुआ, तो उससे 'इब्र पैदा हुआ;
\v 15 और 'इब्र की पैदाइश के बा'द सिलह चार सौ तीन साल और ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।
\s5
\v 16 जब 'इब्र चौंतीस साल का था. तो उससे फ़लज पैदा हुआ;
\v 17 और फ़लज की पैदाइश के बा'द इब्र चार सौ तीस साल और ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई |
\s5
\v 18 फ़लज तीस साल का था, जब उससे र'ऊ पैदा हुआ;
\v 19 और र'ऊ की पैदाइश के बा'द फ़लज दो सौ नौ साल और ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।
\s5
\v 20 और र'ऊ बत्तीस साल का था, जब उससे सरूज पैदा हुआ;
\v 21 और सरूज की पैदाइश के बा'द र'ऊ दो सौ सात साल और ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई |
\s5
\v 22 और सरूज तीस साल का था, जब उससे नहूर पैदा हुआ |
\v 23 और नहूर की पैदाइश के बा'द सरूज दो सौ साल और ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुईं |
\s5
\v 24 नहूर उन्तीस साल का था, जब उससे तारह पैदा हुआ |
\v 25 और तारह की पैदाइश के बा'द नहूर एक सौ उन्नीस साल और ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।
\v 26 और तारह सत्तर साल का था, जब उससे अब्राम और नहूर और हारान पैदा हुए |
\s5
\v 27 और यह तारह का नसबनामा है : तारह से अब्राम और नहूर और हारान पैदा हुए और हारान से लूत पैदा हुआ।
\v 28 और हारान अपने बाप तारह के आगे अपनी पैदाइशी जगह ~या'नी कसदियों के ऊर में मरा।
\s5
\v 29 और अब्राम और नहूर ने अपना-अपना ब्याह कर लिया। अब्राम की बीवी का नाम सारय ~और नहुर की बीवी का नाम मिल्का था जो हारान की बेटी थी। वही मिल्का का बाप और इस्का का बाप था।
\v 30 और सारय बाँझ थी; उसके कोई बाल-बच्चा न था।
\s5
\v 31 और तारह ने अपने बेटे अब्राम को और अपने पोते लूत को, जो हारान का बेटा था, और अपनी बहू सारय को जो उसके बेटे अब्राम की बीवी थी, साथ लिया और वह सब कसदियों के ऊर से रवाना हुए की कना'न के मुल्क में जाएँ; और वह हारान तक आए और वहीं रहने लगे।
\v 32 और तारह की 'उम्र दो सौ पाँच साल की हुई और उस ने हारान में वफ़ात पाई।
\s5
\c 12
\p
\v 1 ख़ुदावन्द ने अब्राम से कहा, कि तू अपने वतन और अपने नातेदारों के बीच से और अपने बाप के घर से निकल कर उस मुल्क में जा जो मैं तुझे दिखाऊँगा।
\v 2 और मैं तुझे एक बड़ी क़ौम बनाऊँगा और बरकत दूँगा और तेरा नाम सरफ़राज़ करूँगा; इसलिए तू बरकत का ज़रिया' हो।
\v 3 जो तुझे मुबारक कहें उनको मैं बरकत दूँगा, और जो तुझ पर ला'नत करे उस पर मैं ला'नत करूँगा, और ज़मीन के सब क़बीले तेरे वसीले से बरकत पाएँगे।
\s5
\v 4 तब अब्राम ख़ुदावन्द के कहने के मुताबिक़ चल पड़ा और लूत उसके साथ गया, और अब्राम पच्छत्तर साल का था जब वह हारान से रवाना हुआ।
\v 5 और अब्राम ने अपनी बीवी सारय, और अपने भतीजे लूत को, और सब माल को जो उन्होंने जमा' किया था, और उन आदमियों को जो उनको हारान में मिल गए थे साथ लिया, और वह मुल्क-ए-कना'न को रवाना हुए और मुल्क-ए-कना'न में आए।
\s5
\v 6 और अब्राम उस मुल्क में से गुज़रता हुआ मक़ाम-ए-सिक्म में मोरा के बलूत तक पहुँचा। उस वक़्त ~मुल्क में कना'नी रहते थे।
\v 7 तब ख़ुदावन्द ने अब्राम को दिखाई देकर कहा कि यही मुल्क मैं तेरी नसल को दूँगा। और उसने वहाँ ख़ुदावन्द के लिए जो उसे दिखाई दिया था, एक क़ुर्बानगाह बनाई।
\s5
\v 8 और वहाँ से कूच करके उस पहाड़ की तरफ़ गया जो बैत-एल के मशरिक़ में है, और अपना डेरा ऐसे लगाया कि बैत-एल मग़रिब में और 'अई मशरिक़ में पड़ा; और वहाँ उसने ख़ुदावन्द के लिए एक क़ुर्बानगाह बनाई और ख़ुदावन्द से दु'आ की।
\v 9 और अब्राम सफ़र करता करता दख्खिन की तरफ़ बढ़ गया।
\s5
\v 10 और उस मुल्क में काल पड़ा: और अब्राम मिस्र को गया कि वहाँ टिका रहे; क्यूँकि मुल्क में सख़्त काल था।
\v 11 और ऐसा हुआ कि जब वह मिस्र में दाख़िल होने को था तो उसने अपनी बीवी सारय से कहा कि देख, मैं जानता हूँ कि तू देखने में ख़ूबसूरत 'औरत है।
\v 12 और यूँ होगा कि मिस्री तुझे देख कर कहेंगे कि यह उसकी बीवी है, इसलिए वह मुझे तो मार डालेंगे मगर तुझे ज़िन्दा रख लेंगे।
\v 13 इसलिए तू यह कह देना, कि मैं इसकी बहन हूँ, ताकि तेरी वजह से मेरा भला हो और मेरी जान तेरी बदौलत बची रहे।
\s5
\v 14 और यूँ हुआ कि जब अब्राम मिस्र में आया तो मिस्रियों ने उस 'औरत को देखा कि वह निहायत ख़ूबसूरत है।
\v 15 और फ़िर'औन के हाकिमों ने उसे देख कर फ़िर'औन के सामने में उसकी ता'रीफ़ की, और वह 'औरत फ़िर'औन के घर में पहुँचाई गई।
\v 16 और उसने उसकी ख़ातिर अब्राम पर एहसान किया; और भेड़ बकरियाँ और गाय, बैल और गधे और ग़ुलाम और लौंडियाँ और गधियाँ और ऊँट उसके पास हो गए।
\s5
\v 17 लेकिन ख़ुदावन्द ने फ़िर'औन और उसके ख़ान्दान पर, अब्राम की बीवी सारय की वजह से बड़ी-बड़ी बलाएं नाज़िल कीं।
\v 18 तब फ़िर'औन ने अब्राम को बुला कर उससे कहा, कि तूने मुझ से यह क्या किया? तूने मुझे क्यूँ न बताया कि यह तेरी बीवी है।
\v 19 तूने यह क्यूँ कहा कि वह मेरी बहन है? इसी लिए मैंने उसे लिया कि वह मेरी बीवी बने इसलिए देख तेरी बीवी हाज़िर है। उसको ले और चला जा।"
\v 20 और फ़िर'औन ने उसके हक़ में अपने आदमियों को हिदायत की, और उन्होंने उसे और उसकी बीवी को उसके सब माल के साथ रवाना कर दिया।
\s5
\c 13
\p
\v 1 और अब्राम मिस्र से अपनी बीवी और अपने सब माल और लूत को साथ ले कर कना'न के दख्खिन की तरफ़ चला।
\v 2 और अब्राम के पास चौपाए और सोना चाँदी बकसरत था।
\s5
\v 3 और वह कना'न के दख्खिन से सफ़र करता हुआ बैत-एल में उस जगह पहुँचा जहाँ पहले बैत-एल और 'अई के बीच उसका डेरा था।
\v 4 या'नी वह मक़ाम जहाँ उसने शुरु' में क़ुर्बानगाह बनाई थी, और वहाँ अब्राम ने ख़ुदावन्द से दु'आ की।
\s5
\v 5 और लूत के पास भी जो अब्राम का हमसफ़र था भेड़-बकरियाँ, गाय-बैल और डेरे थे।
\v 6 और उस मुल्क में इतनी गुन्जाइश न थी कि वह इकट्ठे रहें, क्यूँकि उनके पास इतना माल था कि वह इकट्ठे नहीं रह सकते थे।
\v 7 और अब्राम के चरवाहों और लूत के चरवाहों में झगड़ा हुआ; और कना'नी और फ़रिज़्ज़ी उस वक़्त मुल्क में रहते थे।
\s5
\v 8 तब अब्राम ने लूत से कहा कि मेरे और तेरे बीच और मेरे चरवाहों और तेरे चरवाहों के~बीच झगड़ा न हुआ करे, क्यूँकि~हम भाई हैं।
\v 9 क्या यह सारा मुल्क तेरे सामने नहीं? इसलिए तू मुझ से अलग हो जा: अगर तू बाएँ जाए तो मैं दहने जाऊँगा, और अगर तू दहने जाए तो मैं बाएँ जाऊँगा।
\s5
\v 10 तब लूत ने आँख उठाकर यरदन की सारी तराई पर जो ज़ुग़र की तरफ़ है नज़र दौड़ाई| क्यूँकि वह इससे पहले कि ख़ुदावन्द ने सदूम और 'अमूरा को तबाह किया, ख़ुदावन्द के बाग़ और मिस्र के मुल्क की तरह खू़ब सेराब थी।
\v 11 तब लूत ने यरदन की सारी तराई को अपने लिए चुन लिया, और वह मशरिक़ की तरफ़ चला; और वह एक दूसरे से जुदा हो गए।
\s5
\v 12 अब्राम तो मुल्क-ए-कना'न में रहा, और लूत ने तराई के शहरों में सुकूनत इख़्तियार की और सदूम की तरफ़ अपना डेरा लगाया।
\v 13 और सदूम के लोग ख़ुदावन्द की नज़र में निहायत बदकार और गुनहगार थे।
\s5
\v 14 और लूत के जुदा हो जाने के बा'द ख़ुदावन्द ने अब्राम से कह कि अपनी आँख उठा और जिस जगह तू है वहाँ से शिमाल दख्खिन और मशरिक़ और मग़रिब की ~तरफ़ नज़र दौड़ा।
\v 15 क्यूँकि यह तमाम मुल्क जो तू देख रहा है, मैं तुझ को और तेरी नसल को हमेशा के लिए दूँगा।
\s5
\v 16 और मैं तेरी नसल को ख़ाक के ज़र्रों की तरह बनाऊँगा, ऐसा कि अगर कोई शख़्स ख़ाक के ज़र्रों को गिन सके तो तेरी नसल भी गिन ली जाएगी।
\v 17 उठ, और इस मुल्क की लम्बाई और चौड़ाई में घूम, क्यूँकि मैं इसे तुझ को दूँगा।"
\v 18 और अब्राम ने अपना डेरा उठाया, और ममरे के बलूतों में जो हबरून में हैं जा कर रहने लगा; और वहाँ ख़ुदावन्द के लिए एक क़ुर्बानगाह बनाई।
\s5
\c 14
\p
\v 1 और सिन'आर के बादशाह अमराफ़िल, और इल्लासर के बादशाह अर्युक, और 'ऐलाम के बादशाह किदरला 'उम्र, और जोइम के बादशाह तिद'आल के दिनों में,
\v 2 ~ऐसा हुआ कि उन्होंने सदूम के बादशाह बर'आ, और 'अमूरा के बादशाह बिरश'आ और अदमा के बादशाह सिनिअब, और ज़िबोईम के बादशाह शिमेबर, और बाला' या'नी जुग़्र के बादशाह से जंग की।
\s5
\v 3 यह सब सिद्दीम या'नी दरिया-ए-शोर की वादी में इकट्ठे हुए।
\v 4 बारह साल तक वह किदरला 'उम्र के फ़र्माबरदार रहे, लेकिन तेरहवें साल उन्होंने सरकशी की।
\v 5 और चौदहवें साल किदरला 'उम्र और उसके साथ के बादशाह आए, और रिफ़ाईम को 'असतारात क़र्नेम में, और ज़ूज़ियों को हाम में, और ऐमीम को सवीक़र्यतैम में,
\v 6 और होरियों को उनके कोह-ए-श'ईर में मारते-मारते एल-फ़ारान तक जो वीराने से लगा हुआ है आए।
\s5
\v 7 फिर वह लौट कर 'ऐन-मिसफ़ात या'नी क़ादिस पहुँचे, और 'अमालीक़ियों के तमाम मुल्क को, और अमोरियों को जो हसेसून तमर में रहते थे मारा।
\v 8 तब सदूम का बादशाह, और 'अमूरा का बादशाह, और अदमा का बादशाह, और ज़िबोइम का बादशाह, और बाला' या'नी ज़ुग़र का बादशाह, निकले और उन्होंने सिद्दीम की वादी में लड़ाई की |
\v 9 ताकि 'ऐलाम के बादशाह किदरला 'उम्र, और जोइम के बादशाह तिद'आल, और सिन'आर के बादशाह अमराफ़िल, और इल्लासर के बादशाह अर्यूक से जंग करें; यह चार बादशाह उन पाँचों के मुक़ाबिले में थे।
\s5
\v 10 और सिद्दीम की वादी में जा-बजा नफ़्त के गढ़े थे; और सदूम और 'अमूरा के बादशाह भागते-भागते वहाँ गिरे, और जो बचे पहाड़ पर भाग गए।
\v 11 तब वह सदूम 'अमूरा का सब माल और वहाँ का सब अनाज लेकर चले गए;
\v 12 और अब्राम के भतीजे लूत को और उसके माल को भी ले गए क्यूँकि वह सदूम में रहता था
\s5
\v 13 तब एक ने जो बच गया था जाकर अब्राम 'इब्रानी को ख़बर दी, जो इस्काल और 'आनेर के भाई ममरे अमोरी के बलूतों में रहता था, और यह अब्राम के हम 'अहद थे।
\v 14 जब अब्राम ने सुना कि उसका भाई गिरफ़्तार हुआ, तो उसने अपने तीन सौ अट्ठारा माहिर लड़ाकों को लेकर दान तक उनका पीछा किया।
\s5
\v 15 और रात को उसने और उसके ख़ादिमों ने गोल-गोल होकर उन पर धावा किया और उनको मारा और खू़बा तक, जो दमिश्क़ के बाएँ हाथ है, उनका पीछा किया।
\v 16 और वह सारे माल को और अपने भाई लूत को और उसके माल और 'औरतों को भी और और लोगों को वापस फेर लाया।
\s5
\v 17 और जब वह किदरला 'उम्र और उसके साथ के बादशाहों को मार कर फिरा तो सदूम का बादशाह उसके इस्तक़बाल को सवी की वादी तक जो बादशाही वादी है आया।
\v 18 और मलिक-ए-सिदक़, सालिम का बादशाह, रोटी और मय लाया और वह ख़ुदा ता'ला का काहिन था।
\s5
\v 19 और उसने उसको बरकत देकर कहा कि ख़ुदा ता'ला की तरफ़ से जो आसमान और ज़मीन का मालिक है, अब्राम मुबारक हो।
\v 20 और मुबारक है ख़ुदा ता'ला जिसने तेरे दुश्मनों को तेरे हाथ में कर दिया। तब अब्राम ने सबका दसवाँ हिस्सा उसको ~दिया।
\s5
\v 21 और सदूम के बादशाह ने अब्राम से कहा कि आदमियों को मुझे दे दे और माल अपने लिए रख ले।
\v 22 लेकिन अब्राम ने सदूम के बादशाह से कहा कि मैंने ख़ुदावन्द ख़ुदा ता'ला, आसमान और ज़मीन के मालिक, की क़सम खाई है,
\v 23 कि मैं न तो कोई धागा, न जूती का तस्मा, न तेरी और कोई चीज़ लूँ ~ताकि तू यह न कह सके कि मैंने अब्राम को दौलतमन्द बना दिया।
\v 24 सिवा उसके जो जवानों ने खा लिया और उन आदमियों के हिस्से के जो मेरे साथ गए; इसलिए 'आनेर और इस्काल और ममरे अपना-अपना हिस्सा ले लें।"
\s5
\c 15
\p
\v 1 इन बातों के बा'द ख़ुदावन्द का कलाम ख़्वाब में अब्राम पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रमाया, "ऐ अब्राम, तू मत डर; मैं तेरी ढाल और तेरा बहुत बड़ा अज्र हूँ।"
\v 2 अब्राम ने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, तू मुझे क्या देगा? क्यूँकि मैं तो बेऔलाद जाता हूँ, और मेरे घर का मुख़्तार दमिश्क़ी इली'अज़र है।"
\v 3 फिर अब्राम ने कहा, "देख, तूने मुझे कोई औलाद नहीं दी और देख मेरा खानाज़ाद मेरा वारिस होगा।”
\s5
\v 4 तब ख़ुदावन्द का कलाम उस पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रमाया, "यह तेरा वारिस न होगा, बल्कि वह जो तेरे सुल्ब से पैदा होगा वही तेरा वारिस होगा।"
\v 5 और वह उसको बाहर ले गया और कहा, कि अब आसमान कि तरफ़ निगाह कर और अगर तू सितारों को गिन सकता है तो गिन। और उससे कहा कि तेरी औलाद ऐसी ही होगी।
\s5
\v 6 और वह ख़ुदावन्द पर ईमान लाया और इसे उसने उसके हक़ में रास्तबाज़ी शुमार किया।
\v 7 और उसने उससे कहा कि मैं ख़ुदावन्द हूँ जो तुझे कसदियों के ऊर से निकाल लाया, कि तुझ को यह मुल्क मीरास में दूँ।"
\v 8 और उसने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा ! मैं क्यूँ कर जानूँ कि मैं उसका वारिस हूँगा?”
\s5
\v 9 उसने उस से कहा कि मेरे लिए तीन साल की एक बछिया, और तीन साल की एक बकरी, और तीन साल का एक मेंढा, और एक कुमरी, और एक कबूतर का बच्चा ले।
\v 10 उसने उन सभों को लिया और उनके बीच से दो टुकड़े किया, और हर टुकड़े को उसके साथ के दूसरे टुकड़े के सामने रख्खा, मगर परिन्दों के टुकड़े न किए।
\v 11 तब शिकारी परिन्दे उन टुकड़ों पर झपटने लगे पर अब्राम उनकी हँकता रहा।
\s5
\v 12 सूरज डूबते वक़्त अब्राम पर गहरी नींद ग़ालिब हुई और देखो, एक बडा ख़तरनाक अँधेरा उस पर छा गया।
\v 13 और उसने अब्राम से कहा, "यक़ीन जान कि तेरी नसल के लोग ऐसे मुल्क में जो उनका नहीं परदेसी होंगे और वहाँ के लोगों की ग़ुलामी करेंगे और वह चार सौ साल तक उनको दुख देंगे।
\s5
\v 14 लेकिन मैं उस कौम की 'अदालत करूँगा जिसकी वह गु़लामी करेंगे, और बा'द में वह बड़ी दौलत लेकर वहाँ से निकल आएँगे।
\v 15 और तू सही सलामत अपने बाप -दादा से जा मिलेगा और बहुत ही बुढापे में दफ़न होगा।
\v 16 और वह चौथी पुश्त में यहाँ लौट आएँगे, क्यूँकि अमोरियों के गुनाह अब तक पूरे नहीं हुए।"
\s5
\v 17 और जब सूरज डूबा और अन्धेरा छा गया, तो एक तनूर जिसमें से धुंआ उठता था दिखाई दिया, और एक जलती मश'अल उन टुकड़ों के बीच में से होकर गुज़री।
\v 18 उसी रोज़ ख़ुदावन्द ने अब्राम से 'अहद किया और फ़रमाया, "यह मुल्क दरिया-ए- मिस्र से लेकर उस बड़े दरिया या'नी दरयाए-फु़रात तक,
\v 19 क़ैनियों और क़नीज़ियों और क़दमूनियों,
\v 20 और हित्तियों ~और फ़रिज़्ज़ियों और रिफ़ाईम,
\v 21 और अमोरियों और कना'नियों और जिरजासियों और यबुसियों समेत मैंने तेरी औलाद को दिया है।
\s5
\c 16
\p
\v 1 और अब्राम की बीवी सारय ~के कोई औलाद न हुई। उसकी एक मिस्री लौंडी थी जिसका नाम हाजिरा था।
\v 2 और सारय ने अब्राम से कहा कि देख, ख़ुदावन्द ने मुझे तो औलाद से महरूम रख्खा है, इसलिए तू मेरी लौंडी के पास जा शायद उससे मेरा घर आबा'द हो। और अब्राम ने सारय की बात मानी।
\v 3 और अब्राम को मुल्क-ए-कना'न में रहते दस साल हो गए थे जब उसकी बीवी सारय ने अपनी मिस्री लौंडी उसे दी कि उसकी बीवी बने।
\v 4 और वह हाजिरा के पास गया और वह हामिला हुई। और जब उसे मा'लूम हुआ कि वह हामिला हो गई तो अपनी बीवी को हक़ीर जानने लगी।
\s5
\v 5 तब सारय ने अब्राम से कहा, "जो जु़ल्म मुझ पर हुआ वह तेरी गर्दन पर है। मैंने अपनी लौंडी तेरे आग़ोश में दी और अब जो उसने आपको हामिला देखा तो मैं उसकी नज़रों में हक़ीर हो गई; इसलिए ख़ुदावन्द मेरे और तेरे बीच इंसाफ़ करे।
\v 6 अब्राम ने सारय से कहा कि तेरी लौंडी तेरे हाथ में है; जो तुझे भला दिखाई दे वैसा ही उसके साथ कर।" तब सारय उस पर सख़्ती करने लगी और वह उसके पास से भाग गई।
\s5
\v 7 और वह ख़ुदावन्द के फ़रिश्ता को वीराने में पानी के एक चश्मे के पास मिली। यह वही चश्मा है जो शोर की राह पर है।
\v 8 और उसने कहा, "ऐ सारय की लौंडी हाजिरा, तू कहाँ से आई और किधर जाती है?" उसने कहा कि मैं अपनी बीबी सारय के पास से भाग आई हूँ।
\s5
\v 9 ख़ुदावन्द के फ़रिश्ता ने उससे कहा कि तू अपनी बीबी के पास लौट जा और अपने को उसके कब्ज़े में कर दे
\v 10 और ख़ुदावन्द के फ़रिश्ता ने उससे कहा, कि मै तेरी औलाद को बहुत बढ़ाऊँगा यहाँ तक कि कसरत की वजह से उसका शुमार न हो सकेगा।
\s5
\v 11 और ख़ुदावन्द के फ़रिश्ता ने उससे कहा कि तू हामिला है और तेरा बेटा होगा, उसका नाम इस्मा'ईल रखना इसलिए कि ख़ुदावन्द ने तेरा दुख सुन लिया।
\v 12 वह गोरखर की तरह आज़ाद मर्द होगा, उसका हाथ सबके ख़िलाफ़ और सबके हाथ उसके ख़िलाफ़ होंगे और वह अपने सब भाइयों के सामने बसा रहेगा।
\s5
\v 13 और हाजिरा ने ख़ुदावन्द का जिसने उससे बातें कीं, अताएल-रोई नाम रख्खा या'नी ऐ ख़ुदा तू बसीर है; क्यूँकि उसने कहा, "क्या मैंने यहाँ भी अपने देखने वाले को जाते हुए देखा?'|
\v 14 इसी वजह से उस कुएँ का नाम बैरलही रोई पड़ गया; वह क़ादिस और बरिद के बीच है।
\s5
\v 15 और अब्राम से हाजिरा के एक बेटा हुआ, और अब्राम ने अपने उस बेटे का नाम जो हाजिरा से पैदा हुआ इस्मा'ईल रख्खा।
\v 16 और जब अब्राम से हाजिरा के इस्मा'ईल पैदा हुआ तब अब्राम छियासी साल का था।
\s5
\c 17
\p
\v 1 जब अब्राम निनानवे साल का हुआ तब ख़ुदावन्द अब्राम को नज़र आया और उससे कहा कि मैं ख़ुदा-ए-क़ादिर हूँ; तू मेरे सामने में चल और कामिल हो।
\v 2 और मैं अपने और तेरे बीच 'अहद बाँधूंगा और तुझे बहुत ज़्यादा बढ़ाऊँगा।
\s5
\v 3 तब अब्राम सिज्दे में हो गया और ख़ुदा ने उससे हम-कलाम होकर फ़रमाया |
\v 4 कि देख मेरा 'अहद तेरे साथ है और तू बहुत क़ौमों का बाप होगा।
\v 5 और तेरा नाम फिर अब्राम नहीं कहलाएगा बल्कि तेरा नाम इब्राहीम होगा, क्यूँकि मैंने तुझे बहुत क़ौमों का बाप ठहरा दिया है।
\v 6 और मैं तुझे बहुत कामयाब करूँगा और क़ौमें तेरी नसल से होंगी और बादशाह तेरी औलाद में से निकलेंगे ।
\s5
\v 7 और मैं अपने और तेरे बीच, और तेरे बा'द तेरी नसल के बीच उनकी सब नसलो के लिए अपना 'अहद जो अबदी 'अहद होगा, बांधूंगा ताकि मैं तेरा और तेरे बा'द तेरी नसल का ख़ुदा रहूँ।
\v 8 और मैं तुझ को और तेरे बा'द तेरी नसल को, कना'न का तमाम मुल्क जिसमें तू परदेसी है ऐसा दूँगा, कि वह हमेशा की मिल्कियत हो जाए; और मैं उनका ख़ुदा हूँगा।
\s5
\v 9 फिर ख़ुदा ने इब्राहीम से कहा ~कि तू मेरे 'अहद को मानना और तेरे बा'द तेरी नसल पुश्त दर पुश्त उसे माने।
\v 10 और मेरा 'अहद जो मेरे और तेरे बीच और तेरे बा'द तेरी नसल के बीच है, और जिसे तुम मानोगे वह यह है: कि तुम में से हर एक फ़र्ज़न्द-ए-नरीना का ख़तना किया जाए।
\v 11 और तुम अपने बदन की खलड़ी का ख़तना किया करना, और यह उस 'अहद का निशान होगा जो मेरे और तुम्हारे बीच है।
\s5
\v 12 तुम्हारे यहाँ नसल -दर-नसल हर लड़के का ख़तना, जब वह आठ रोज़ का हो, किया जाए; चाहे वह घर में पैदा हो चाहे उसे किसी परदेसी से ख़रीदा हो जो तेरी नसल से नहीं।
\v 13 लाज़िम है कि तेरे ख़ानाज़ाद और तेरे ग़ुलाम का ख़तना किया जाए, और मेरा 'अहद तुम्हारे जिस्म में अबदी 'अहद होगा।
\v 14 और वह फ़र्ज़न्द-ए-नरीना जिसका ख़तना न हुआ हो, अपने लोगों में से काट डाला जाए क्यूँकि ~उसने मेरा 'अहद तोड़ा।
\s5
\v 15 और ख़ुदा ने इब्राहीम से कहा, कि सारय जो तेरी बीवी है इसलिए उसको सारय न पुकारना, उसका नाम सारा होगा।
\v 16 और मैं उसे बरकत दूँगा और उससे भी तुझे एक बेटा बख्शूँगा; यक़ीनन मैं उसे बरकत दूँगा कि ~क़ौमें उसकी नसल से होंगी और 'आलम के बादशाह उससे पैदा होंगे।"
\s5
\v 17 तब इब्राहीम सिज्दे में हुआ और हँस कर दिल में कहने लगा कि क्या सौ साल के बूढ़े से कोई बच्चा होगा, और क्या सारा के जो नव्वे साल की है औलाद होगी?
\v 18 और इब्राहीम ने ख़ुदा से कहा कि काश इस्मा'ईल ही तेरे सामने ज़िन्दा रहे,
\s5
\v 19 तब ख़ुदा ने फ़रमाया, कि बेशक तेरी बीवी सारा के तुझ से बेटा होगा, तू उसका नाम इस्हाक़ रखना; और मैं उससे और फिर उसकी औलाद से अपना 'अहद जो अबदी 'अहद है बाँधूगा।
\v 20 और इस्मा'ईल के हक़ में भी मैंने तेरी दु'आ सुनी; देख मैं उसे बरकत दूँगा और उसे कामयाब करूँगा और उसे बहुत बढ़ाऊँगा; और उससे बारह सरदार पैदा होंगे और मैं उसे बड़ी क़ौम बनाऊँगा।
\v 21 लेकिन मैं अपना 'अहद इस्हाक़ से बाँधूगा जो अगले साल इसी वक़्त-ए-मुक़र्रर पर सारा से पैदा होगा।"
\s5
\v 22 और जब ख़ुदा इब्राहीम से बातें कर चुका तो उसके पास से ऊपर चला गया।
\v 23 तब इब्राहीम ने अपने बेटे इस्मा'ईल की और सब ख़ानाज़ादों और अपने सब ग़ुलामों को या'नी अपने घर के सब आदमियों को लिया और उसी दिन ख़ुदा के हुक्म के मुताबिक़ उन का ख़तना किया।
\s5
\v 24 इब्राहीम निनानवे साल का था जब उसका ख़तना हुआ।
\v 25 और जब उसके बेटे इस्मा'ईल का ख़तना हुआ तो वह तेरह साल का था।
\v 26 इब्राहीम और उसके बेटे इस्मा'ईल का ख़तना एक ही दिन हुआ।
\v 27 और उसके घर के सब आदमियों का ख़तना, ख़ानाज़ादों और उनका भी जो ~परदेसियों से ख़रीदे गए थे, उसके साथ हुआ।
\s5
\c 18
\p
\v 1 फिर ख़ुदावन्द ममरे के बलूतों में उसे नज़र आया और वह दिन को गर्मी के वक़्त अपने खे़मे के दरवाज़े पर बैठा था।
\v 2 और उसने अपनी आँखें उठा कर नज़र की और क्या देखता है कि तीन मर्द उसके सामने खड़े हैं। वह उनको देख कर खे़मे के दरवाज़े से उनसे मिलने को दौड़ा और ज़मीन तक झुका|
\s5
\v 3 और कहने लगा कि ऐ मेरे ख़ुदावन्द, अगर मुझ पर आपने करम की नज़र की है तो अपने ख़ादिम के पास से चले न जाएँ।
\v 4 बल्कि थोड़ा सा पानी लाया जाए, और आप अपने पाँव धो कर उस दरख़्त के नीचे आराम करें।
\v 5 मैं कुछ रोटी लाता हूँ, आप ताज़ा-दम हो जाएँ ;तब आगे बढ़ें क्यूँकि आप इसी लिए अपने ख़ादिम के यहाँ आए हैं उन्होंने कहा, "जैसा तूने कहा है, वैसा ही कर।"
\s5
\v 6 और इब्राहीम डेरे में सारा के पास दौड़ा गया और कहा, कि तीन पैमाना बारीक आटा जल्द ले और उसे गूंध कर फुल्के बना।
\v 7 और इब्राहीम गल्ले की तरफ़ दौड़ा और एक मोटा ताज़ा बछड़ा लाकर एक जवान को दिया, और उस ने जल्दी-जल्दी उसे तैयार किया।
\v 8 फिर उसने मक्खन और दूध और उस बछड़े को जो उस ने पकवाया था, लेकर उनके सामने रख्खा; और ख़ुद उनके पास दरख़्त के नीचे खड़ा रहा और उन्होंने खाया।
\s5
\v 9 फिर उन्होंने उससे पूछा कि तेरी बीवी सारा कहाँ है? उसने कहा, "वह डेरे में है।"
\v 10 तब उसने कहा, "मैं फिर मौसम-ए- बहार में तेरे पास आऊँगा, और देख तेरी बीवी सारा के बेटा होगा।" उसके पीछे डेरे का दरवाज़ा था, सारा वहाँ से सुन रही थी।
\s5
\v 11 और इब्राहीम और सारा ज़ईफ़ और बड़ी 'उम्र के थे, और सारा की वह हालत नहीं रही थी जो 'औरतों की होती है।
\v 12 तब सारा ने अपने दिल में हँस कर कहा, "क्या इस क़दर 'उम्र-दराज़ होने पर भी मेरे लिए खु़शी हो सकती है, जबकि मेरा शौहर भी बूढ़ा है?"
\s5
\v 13 फिर ख़ुदावन्द ने इब्राहीम से कहा कि सारा क्यूँ यह कह कर हँसी की क्या मेरे जो ऐसी बुढ़िया हो गई हूँ वाक़ई बेटा होगा?
\v 14 क्या ख़ुदावन्द के नज़दीक कोई बात मुश्किल है? मौसम-ए-बहार में मुक़र्रर वक़्त पर मैं तेरे पास फिर आऊँगा और सारा के बेटा होगा।
\v 15 तब सारा इन्कार कर गई, कि मैं नहीं हँसी।" क्यूँकि वह डरती थी, लेकिन उसने कहा, "नहीं, तू ज़रूर हँसी थी।"
\s5
\v 16 तब वह मर्द वहाँ से उठे और उन्होंने सदूम का रुख़ किया, और इब्राहीम उनको रुख़सत करने को उनके साथ हो लिया।
\v 17 और ख़ुदावन्द ने कहा कि जो कुछ मैं करने को हूँ, क्या उसे इब्राहीम से छिपाए रख्खूँ
\v 18 इब्राहीम से तो यक़ीनन एक बड़ी और ज़बरदस्त क़ौम पैदा होगी, और ज़मीन की सब क़ौमें उसके वसीले से बरकत पाएँगी।
\v 19 क्यूँकि मैं जानता हूँ कि वह अपने बेटों और घराने को जो उसके पीछे रह जाएँगे, वसीयत करेगा कि ~वह ख़ुदावन्द की राह में क़ायम रह कर 'अद्ल और इंसाफ़ करें; ताकि जो कुछ ख़ुदावन्द ने इब्राहीम के हक़ में फ़रमाया है उसे पूरा करे।
\s5
\v 20 फिर ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, "चूँकि सदूम और 'अमूरा का गुनाह बढ़ गया और उनका जुर्म निहायत संगीन हो गया है।
\v 21 इसलिए मैं अब जाकर देखूँगा कि क्या उन्होंने सरासर वैसा ही किया है जैसा गुनाह मेरे कान तक पहुँचा है, और अगर नहीं किया तो मैं मा'लूम कर लूँगा।"
\s5
\v 22 इसलिए वह मर्द वहाँ से मुड़े और सदूम की तरफ़ चले, लेकिन इब्राहीम ख़ुदावन्द के सामने खड़ा ही रहा।
\v 23 तब इब्राहीम ने नज़दीक जा कर कहा, "क्या तू नेक को बद के साथ हलाक करेगा?
\s5
\v 24 शायद उस शहर में पचास रास्तबाज़ हों; क्या तू उसे हलाक करेगा और उन पचास रास्तबाज़ों की ख़ातिर जो उसमें हों उस मक़ाम को न छोड़ेगा?
\v 25 ऐसा करना तुझ से दूर है कि नेक को बद के साथ मार डाले और नेक बद के बराबर हो जाएँ। ये तुझ से दूर है। क्या तमाम दुनिया का इंसाफ़ करने वाला इंसाफ़ न करेगा?"
\v 26 और ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, कि अगर मुझे सदूम में शहर के अन्दर पचास रास्तबाज़ मिलें, तो मैं उनकी ख़ातिर उस मक़ाम को छोड़ दूँगा।"
\s5
\v 27 तब इब्राहीम ने जवाब दिया और कहा, कि देखिए! मैंने ख़ुदावन्द से बात करने की हिम्मत की, अगर चे मैं मिट्टी और राख हूँ।
\v 28 शायद पचास रास्तबाज़ों में पाँच कम हों; क्या उन पाँच की कमी की वजह से तू तमाम शहर को बर्बाद करेगा ?उस ने कहा अगर मुझे वहाँ पैंतालीस मिलें तो मैं उसे बर्बाद नहीं करूँगा।"
\s5
\v 29 फिर उसने उससे कहा कि शायद वहाँ चालीस मिलें। तब उसने कहा कि मैं उन चालीस की ख़ातिर भी यह नहीं करूँगा।"
\v 30 फिर उसने कहा, "ख़ुदावन्द नाराज़ न हो तो मैं कुछ और 'अर्ज़ करूँ। शायद वहाँ तीस मिलें।” उसने कहा, "अगर मुझे वहाँ तीस भी मिलें तो भी ऐसा नहीं करूँगा।"
\v 31 फिर उसने कहा, "देखिए! मैंने ख़ुदावन्द से बात करने की हिम्मत की; शायद वहाँ बीस मिलें।" उसने कहा, 'मैं बीस के लिए भी उसे बर्बाद नहीं करूँगा।"
\s5
\v 32 तब उसने कहा, "ख़ुदावन्द नाराज़ न हो तो मैं एक बार और कुछ 'अर्ज़ करूँ; शायद वहाँ दस मिलें।" उसने कहा, "मैं दस के लिए भी उसे बर्बाद नहीं करूँगा।"
\v 33 जब ख़ुदावन्द इब्राहीम से बातें कर चुका तो चला गया और इब्राहीम अपने मकान को लौटा।
\s5
\c 19
\p
\v 1 और वह दोनों फ़रिश्ता शाम को सदूम में आए और लूत सदूम के फाटक पर बैठा था। और लूत उनको देख कर उनके इस्तक़बाल के लिए उठा और ज़मीन तक झुका,
\v 2 और कहा, "ऐ मेरे ख़ुदावन्द, अपने ख़ादिम के घर तशरीफ़ ले चलिए और रात भर आराम कीजिए और अपने पाँव धोइये और सुबह उठ कर अपनी राह लीजिए।" और उन्होंने कहा, "नहीं, हम चौक ही में रात काट लेंगे।"
\v 3 लेकिन जब वह बहुत बजिद्द हुआ तो वह उसके साथ चल कर उसके घर में आए; और उसने उनके लिए खाना तैयार की और बेख़मीरी रोटी पकाई; और उन्होंने खाया।
\s5
\v 4 और इससे पहले कि वह आराम करने के लिए लेटें सदूम शहर के आदमियों ने, जवान से लेकर बूढ़े तक सब लोगों ने, हर तरफ़ से उस घर को घेर लिया।
\v 5 और उन्होंने लूत को पुकार कर उससे कहा ~कि वह आदमी जो आज रात तेरे यहाँ आए, कहाँ हैं? उनको हमारे पास बाहर ले आ ताकि हम उनसे सोहबत करें।
\s5
\v 6 तब लूत निकल कर उनके पास दरवाज़ा ~पर गया और अपने पीछे किवाड़ बन्द कर दिया |
\v 7 और कहा कि ऐ भाइयो! ऐसी बदी तो न करो।
\v 8 देखो! मेरी दो बेटियाँ हैं जो आदमी से वाकिफ़ नहीं; मर्ज़ी हो तो मैं उनको तुम्हारे पास ले आऊँ और जो तुम को भला मा'लूम हो उनसे करो, मगर इन आदमियों से कुछ न कहना क्यूँकि वह इसलिए मेरी पनाह में आए हैं।"
\s5
\v 9 उन्होंने कहा, "यहाँ से हट जा!" फिर कहने लगे, कि यह शख़्स हमारे बीच क़याम करने आया था और अब हुकूमत जताता है; इसलिए हम तेरे साथ उनसे ज़्यादा ~बद सलूकी करेंगे।" तब वह ~उस आदमी या'नी लूत पर पिल पड़े और नज़दीक आए ताकि किवाड़ तोड़ डालें।
\s5
\v 10 लेकिन उन आदमियों ने अपना हाथ बढ़ा कर लूत को अपने पास घर में खींच लिया और दरवाज़ा बन्द कर दिया।
\v 11 और उन आदमियों को जो घर के दरवाज़े पर थे क्या छोटे क्या बड़े, अन्धा कर दिया; तब वह दरवाज़ा ढूँडते-ढूँडते थक गए।
\s5
\v 12 ~तब उन आदमियों ने लूत से कहा, "क्या यहाँ तेरा और कोई है? दामाद और अपने बेटों और बेटियों और जो कोई तेरा इस शहर में हो, सबको इस मक़ाम से बाहर निकाल ले जा।
\v 13 क्यूँकि हम इस मक़ाम को बर्बाद करेंगे, इसलिए कि उनका गुनाह ख़ुदावन्द के सामने बहुत बुलन्द हुआ है और ख़ुदावन्द ने उसे बर्बाद करने को हमें भेजा है।"
\s5
\v 14 तब लूत ने बाहर जाकर अपने दामादों से जिन्होंने उसकी बेटियाँ ब्याही थीं बातें कीं और कहा कि उठो और इस मक़ाम से निकलो क्यूँकि ख़ुदावन्द इस शहर को बर्बाद करेगा।" लेकिन वह अपने दामादों की नज़र में मज़ाक़ सा मा'लूम हुआ।
\v 15 जब सुबह हुई तो फ़रिश्तों ने लूत से जल्दी कराई और कहा कि उठ अपनी बीवी और अपनी दोनों बेटियों को जो यहाँ हैं ले जा; ऐसा न हो कि तू भी इस शहर की बदी में गिरफ़्तार होकर हलाक हो जाए।
\s5
\v 16 मगर उसने देर लगाई तो उन आदमियों ने उसका और उसकी बीवी और उसकी दोनों बेटियों का हाथ पकड़ा, क्यूँकि ~ख़ुदावन्द की मेहरबानी उस पर हुई और उसे निकाल कर शहर से बाहर कर दिया।
\v 17 और यूँ हुआ कि जब वह उनको बाहर निकाल लाए तो उसने कहा, "अपनी जान बचाने को भाग; न तो पीछे मुड़ कर देखना न कहीं मैदान में ठहरना; उस पहाड़ को चला जा, ऐसा न हो कि तू हलाक हो जाए।"
\s5
\v 18 और लूत ने उनसे कहा कि ऐ मेरे ख़ुदावन्द, ऐसा न कर।
\v 19 देख, तूने अपने ख़ादिम पर करम की नज़र की है और ऐसा बड़ा फ़ज़ल किया कि मेरी जान बचाई; मैं पहाड़ तक जा नहीं सकता, कहीं ऐसा न हो कि मुझ पर मुसीबत आ पड़े और मैं मर जाऊँ।
\v 20 देख, यह शहर ऐसा नज़दीक है कि वहाँ भाग सकता हूँ और यह~छोटा भी है। इजाज़त हो तो मैं वहाँ चला जाऊँ, वह छोटा सा भी है और मेरी जान बच जाएगी।
\s5
\v 21 उसने उससे कहा कि देख, मैं इस बात में भी तेरा लिहाज़ करता हूँ कि इस शहर को जिसका तू ने ज़िक्र किया, बर्बाद नहीं करूँगा।
\v 22 जल्दी कर और वहाँ चला जा, क्यूँकि मैं कुछ नहीं कर सकता जब तक कि तू वहाँ पहुँच न जाए। इसीलिए उस शहर का नाम जुग़्र ~कहलाया।
\s5
\v 23 और ज़मीन पर धूप निकल चुकी थी, जब लूत जुग़्र में दाख़िल हुआ।
\v 24 तब ख़ुदावन्द ने अपनी तरफ़ से सदूम और 'अमूरा पर गन्धक और आग आसमान से बरसाई,
\v 25 और उसने उन शहरों को और उस सारी तराई को और उन शहरों के सब रहने वालों को और सब कुछ जो ज़मीन से उगा था बर्बाद किया।
\s5
\v 26 मगर उसकी बीवी ने उसके पीछे से मुड़ कर देखा और वह ~नमक का सुतून बन गई।
\v 27 और इब्राहीम सुबह सवेरे उठ कर उस जगह गया जहाँ वह ख़ुदावन्द के सामने खड़ा हुआ था;
\v 28 और उसने सदूम और 'अमूरा और उस तराई की सारी ज़मीन की तरफ़ नज़र की, और क्या देखता है कि ज़मीन पर से धुवां ऐसा उठ रहा है जैसे भट्टी का धुवां।
\s5
\v 29 और यूँ हुआ कि जब ख़ुदा ने उस तराई के शहरों को बर्बाद किया, तो ख़ुदा ने इब्राहीम को याद किया और उन शहरों की जहाँ लूत रहता था, बर्बाद करते वक़्त लूत को उस बला से बचाया।
\s5
\v 30 और लूत~जुग़्रसे निकल कर पहाड़ पर जा बसा और उसकी दोनों बेटियाँ उसके साथ थीं; क्यूँकि उसे जुग़्र में बसते~डर लगा, और वह और उसकी दोनों बेटियाँ एक ग़ार में रहने लगे।
\s5
\v 31 तब पहलौठी ने छोटी से कहा, कि हमारा बाप बूढ़ा है और ज़मीन पर कोई आदमी नहीं जो दुनिया के दस्तूर के मुताबिक़ हमारे पास आए।
\v 32 आओ, हम अपने बाप को मय पिलाएँ और उससे हम-आग़ोश हों, ताकि अपने बाप से नसल बाक़ी रख्खें।
\v 33 इसलिए उन्होंने उसी रात अपने बाप को मय पिलाई और पहलौठी अन्दर गई और अपने बाप से हम-आग़ोश हुई, लेकिन उसने न जाना कि वह कब लेटी और कब उठ गई।
\s5
\v 34 और दूसरे दिन यूँ हुआ कि पहलौठी ने छोटी से कहा कि देख, कल रात को मैं अपने बाप से हम-आग़ोश हुई, आओ, आज रात भी उसको मय पिलाएँ और तू भी जा कर उससे हमआग़ोश हो, ताकि हम अपने बाप से नसल बाक़ी रख्खें।"
\v 35 फिर उस रात भी उन्होंने अपने बाप को मय पिलाई और छोटी गई और उससे हम-आग़ोश हुई, लेकिन उसने न जाना कि वह ~कब लेटी और कब उठ गई।
\s5
\v 36 फिर लूत की दोनों बेटियाँ अपने बाप से हामिला हुई।
\v 37 और बड़ी के एक बेटा हुआ और उसने उसका नाम मोआब रख्खा; वही मोआबियों का बाप है जो अब तक मौजूद हैं।
\v 38 और छोटी के भी एक बेटा हुआ और उसने उसका नाम बिन-'अम्मी रख्खाः वही बनी-'अम्मोन का बाप है जो अब तक मौजूद हैं।
\s5
\c 20
\p
\v 1 और इब्राहीम वहाँ से दख्खिन के मुल्क की तरफ़ चला और क़ादिस और शोर के बीच ठहरा और जिरार में क़याम किया।
\v 2 और इब्राहीम ने अपनी बीवी सारा के हक़ में कहा, कि वह मेरी बहन है, "और जिरार के बादशाह अबीमलिक ने सारा को बुलवा लिया।
\v 3 लेकिन रात को ख़ुदा अबीमलिक के पास ख़्वाब में आया और उसे कहा कि देख, तू उस 'औरत की वजह से जिसे तूने लिया है हलाक होगा क्यूँकि वह शौहर वाली है।"
\s5
\v 4 लेकिन अबीमलिक ने उससे सोहबत नहीं की थी; तब उसने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, क्या तू सादिक़ क़ौम को भी मारेगा?
\v 5 क्या उसने ख़ुद मुझ से नहीं कहा, कि यह मेरी बहन है?' और वह ख़ुद भी यही कहती थी, कि वह मेरा भाई है;' मैंने तो अपने सच्चे दिल और पाकीज़ा हाथों से यह किया।
\s5
\v 6 और ख़ुदा ने उसे ख़्वाब में कहा, "हाँ, मैं जानता हूँ कि तूने अपने सच्चे दिल से यह किया, और मैंने भी तुझे रोका कि तू मेरा गुनाह न करे; इसी लिए मैंने तुझे उसको छूने न दिया।
\v 7 अब तू उस आदमी की बीवी को वापस कर दे; क्यूँकि वह ~नबी है और वह तेरे लिए दु'आ करेगा और तू ज़िन्दा रहेगा। लेकिन अगर तू उसे वापस न करे तो जान ले कि तू भी और जितने तेरे हैं सब ज़रूर हलाक होंगे।"
\s5
\v 8 तब अबीमलिक ने सुबह सवेरे उठ कर अपने सब नौकरों को बुलाया और उनको ये सब बातें कह सुनाई, तब वह लोग बहुत डर गए।
\v 9 और अबीमलिक ने इब्राहीम को बुला कर उससे कहा, कि तूने हम से यह क्या किया? और मुझ से तेरा क्या कु़सूर हुआ कि तू मुझ पर और मेरी बादशाही पर एक गुनाह-ए-अज़ीम लाया? तूने मुझ से वह काम किए जिनका करना मुनासिब न था।
\s5
\v 10 अबीमलिक ने इब्राहीम से यह~भी कहा कि तूने क्या समझ कर ये बात की?
\v 11 इब्राहीम ने कहा, कि मेरा ख़्याल था कि ख़ुदा का ख़ौफ़ तो इस जगह हरगिज़ न होगा, और वह ~मुझे मेरी बीवी की वजह से मार डालेंगे।
\v 12 और फ़िल-हक़ीक़त वह मेरी बहन भी है, क्यूँकि वह मेरे बाप की बेटी है अगरचे मेरी माँ की बेटी नहीं; फिर वह मेरी बीवी हुई।
\s5
\v 13 और जब ख़ुदा ने मेरे बाप के घर से मुझे आवारा किया तो मैंने इससे कहा कि मुझ पर यह तेरी मेहरबानी होगी कि जहाँ कहीं हम जाएँ तू मेरे हक़ में यही कहना कि यह मेरा भाई है।
\v 14 तब अबीमलिक ने भेड़ बकरियाँ और गाये बैल और ग़ुलाम और लौंडियाँ इब्राहीम को दीं, और उसकी बीवी सारा को भी उसे वापस कर दिया।
\s5
\v 15 और अबीमलिक ने कहा कि देख, मेरा मुल्क तेरे सामने है, जहाँ जी चाहे रह।
\v 16 और उसने सारा से कहा कि देख, मैंने तेरे भाई को चाँदी के हज़ार सिक्के दिए हैं, वह उन सब के सामने जो तेरे साथ हैं तेरे लिए आँख का पर्दा है, और सब के सामने तेरी बड़ाई हो गी।
\s5
\v 17 तब इब्राहीम ने ख़ुदा से दु'आ की, और ख़ुदा ने अबीमलिक और उसकी बीवी और उसकी-लौंडियों की शिफ़ा बख़्शी ~और उनके औलाद होने लगी।
\v 18 क्यूँकि ख़ुदावन्द ने इब्राहीम की बीवी सारा की वजह से अबीमलिक के ख़ान्दान के सब रहम बन्द कर दिए थे।
\s5
\c 21
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द ने जैसा उसने फ़रमाया था, सारा पर नज़र की और उसने अपने वादे के मुताबिक़ सारा से किया।
\v 2 तब सारा हामिला हुई और इब्राहीम के लिए उसके बुढ़ापे में उसी मुक़र्रर वक़्त पर जिसका ज़िक्र ख़ुदा ने उससे किया था, उसके बेटा हुआ।
\v 3 और इब्राहीम ने अपने बेटे का नाम जो उससे, सारा के पैदा हुआ इस्हाक़ रख्खा।
\v 4 और इब्राहीम ने ख़ुदा के हुक्म के मुताबिक़ अपने बेटे इस्हाक़ का ख़तना, उस वक़्त किया जब वह आठ दिन का हुआ।
\s5
\v 5 और जब उसका बेटा इस्हाक़ उससे पैदा हुआ तो इब्राहीम सौ साल का था।
\v 6 और सारा ने कहा, कि ख़ुदा ने मुझे हँसाया और सब सुनने वाले मेरे साथ हँसेंगे।
\v 7 और यह भी कहा कि भला कोई इब्राहीम से कह सकता था कि सारा लड़कों को दूध पिलाएगी? क्यूँकि उससे उसके बुढ़ापे में मेरे एक बेटा हुआ।
\s5
\v 8 और वह लड़का बढ़ा और उसका दूध छुड़ाया गया और इस्हाक़ के दूध छुड़ाने के दिन इब्राहीम ने बड़ी दावत की।
\v 9 और सारा ने देखा कि हाजिरा मिस्री का बेटा जो उसके इब्राहीम से हुआ था, ठट्ठे मारता है।
\s5
\v 10 तब उसने इब्राहीम से कहा कि इस लौंडी को और उसके बेटे को निकाल दे, क्यूँकि इस लौंडी का बेटा मेरे बेटे इस्हाक़ के साथ वारिस न होगा।
\v 11 लेकिन इब्राहीम को उसके बेटे के ज़रिए' यह बात निहायत बुरी मा'लूम हुई।
\s5
\v 12 और ख़ुदा ने इब्राहीम से कहा कि तुझे इस लड़के और अपनी लौंडी की वजह से बुरा न लगे; जो कुछ सारा तुझ से कहती है तू उसकी बात मान क्यूँकि इस्हाक़ से तेरी नसल का नाम चलेगा।
\v 13 और इस लौंडी के बेटे से भी मैं एक क़ौम पैदा करूँगा, इसलिए कि वह तेरी नसल है।
\s5
\v 14 तब इब्राहीम ने सुबह सवेरे उठ कर रोटी और पानी की एक मश्क ली और उसे हाजिरा को दिया, बल्कि उसे उसके कन्धे पर रख दिया और लड़के को भी उसके हवाले करके उसे रुख़सत कर दिया। इसलिए वह चली गई और बैरसबा' के वीराने में आवारा फिरने लगी।
\v 15 और जब मश्क का पानी ख़त्म हो गया तो उसने लड़के को एक झाड़ी के नीचे डाल दिया।
\v 16 और ख़ुद उसके सामने एक टप्पे के किनारे पर दूर जा कर बैठी और कहने लगी कि मैं इस लड़के का मरना तो न देखूँ । इसलिए वह उसके सामने बैठ गई और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी।
\s5
\v 17 और ख़ुदा ने उस लड़के की आवाज़ सुनी और ख़ुदा के फ़रिश्ता ने आसमान से हाजिरा को पुकारा और उससे कहा, "ऐ हाजिरा, तुझ को क्या हुआ? मत डर, क्यूँकि ख़ुदा ने उस जगह से जहाँ लड़का पड़ा है उसकी आवाज़ सुन ली है।
\v 18 उठ, और लड़के को उठा और उसे अपने हाथ से संभाल; क्यूँकि मैं उसको एक बड़ी क़ौम बनाऊँगा।"
\s5
\v 19 फिर ख़ुदा ने उसकी आँखें खोलीं और उसने पानी का एक कुआँ देखा, और जाकर मश्क को पानी से भर लिया और लड़के को पिलाया।
\v 20 और ख़ुदा उस लड़के के साथ था और वह बड़ा हुआ और वीराने में रहने लगा और तीरंदाज़ बना।
\v 21 और वह फ़ारान के वीराने में रहता था, और उसकी माँ ने मुल्क-ए-मिस्र से उसके लिए बीवी ली।
\s5
\v 22 फिर उस वक़्त यूँ हुआ, कि अबीमलिक और उसके लश्कर के सरदार फ़ीकुल ने इब्राहीम से कहा कि हर काम में जो तू करता है ख़ुदा तेरे साथ है।
\v 23 इसलिए तू अब मुझ से ख़ुदा की क़सम खा, कि तू न मुझ से न मेरे बेटे से और न मेरे पोते से दग़ा करेगा; बल्कि जो मेहरबानी मैंने तुझ पर की है वैसे ही तू भी मुझ पर और इस मुल्क पर, जिसमें तूने क़याम किया है, करेगा।
\v 24 तब इब्राहीम ने कहा, "मैं क़सम खाऊँगा।"
\s5
\v 25 और इब्राहीम ने पानी के एक कुएँ की वजह से, जिसे अबीमलिक के नौकरों ने ज़बरदस्ती छीन लिया था, अबीमलिक को झिड़का।
\v 26 अबीमलिक ने कहा, "मुझे ख़बर नहीं कि किसने यह काम किया, और तूने भी मुझे नहीं बताया, न मैंने आज से पहले इसके बारे में कुछ सुना।"
\v 27 फिर इब्राहीम ने भेड़ बकरियाँ और गाय-बैल लेकर अबीमलिक को दिए और दोनों ने आपस में 'अहद किया।
\s5
\v 28 इब्राहीम ने भेड़ के सात मादा बच्चों को लेकर अलग रख्खा।
\v 29 और अबीमलिक ने इब्राहीम से कहा कि भेड़ के इन सात मादा बच्चों को अलग रखने से तेरा मतलब क्या है?"
\v 30 उसने कहा, कि भेड़ के इन सात मादा बच्चों को तू मेरे हाथ से ले ताकि वह मेरे गवाह हों कि मैंने यह कुआँ खोदा।
\s5
\v 31 इसीलिए उसने उस मक़ाम का नाम बैरसबा' रख्खा, क्यूँकि वहीं उन दोनों ने क़सम खाई।
\v 32 तब उन्होंने बैरसबा' में 'अहद किया, तब अबीमलिक और उसके लश्कर का सरदार फ़ीकुल दोनों उठ खड़े हुए और फ़िलिस्तियों के मुल्क को लौट गए।
\s5
\v 33 तब इब्राहीम ने बैरसबा' में झाऊ का एक दरख़्त लगाया और वहाँ उसने ख़ुदावन्द से जो अबदी ख़ुदा है दु'आ की।
\v 34 और इब्राहीम बहुत दिनों तक फ़िलिस्तियों के मुल्क में रहा।
\s5
\c 22
\p
\v 1 ~इन बातों के बा'द यूँ हुआ कि ख़ुदा ने इब्राहीम को आज़माया और उसे कहा, "ऐ इब्राहीम!" उसने कहा, "मैं हाज़िर हूँ।"
\v 2 तब उसने कहा कि तू अपने बेटे इस्हाक़ को जो तेरा इकलौता है और जिसे तू प्यार करता है, साथ लेकर मोरियाह के मुल्क में जा और वहाँ उसे पहाड़ों में से एक पहाड़ पर जो मैं तुझे बताऊँगा, सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर चढ़ा।
\v 3 तब इब्राहीम ने सुबह सवेरे उठ कर अपने गधे पर चार जामा कसा और अपने साथ दो जवानों और अपने बेटे इस्हाक़ को लिया, और सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए लकड़ियाँ चीरी और उठ कर उस जगह को जो ख़ुदा ने उसे बताई थी रवाना हुआ।
\s5
\v 4 तीसरे दिन इब्राहीम ने निगाह की और उस जगह को दूर से देखा।
\v 5 तब इब्राहीम ने अपने जवानों से कहा, "तुम यहीं गधे के पास ठहरो, मैं और यह लड़का दोनों ज़रा वहाँ तक जाते हैं, और सिज्दा करके फिर तुम्हारे पास लौट आएँगे।"
\v 6 और इब्राहीम ने सोख्त़नी क़ुर्बानी की लकड़ियाँ लेकर अपने बेटें इस्हाक़ पर रख्खीं, और आग और छुरी अपने हाथ में ली और दोनों इकट्ठे रवाना हुए।
\s5
\v 7 तब इस्हाक़ ने अपने बाप इब्राहीम से कहा, "ऐ बाप !" उसने जवाब दिया कि ऐ मेरे बेटे, मैं हाज़िर हूँ। उसने कहा, "देख, आग और लकड़ियाँ तो हैं, लेकिन सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए बर्रा कहाँ है?"
\v 8 इब्राहीम ने कहा, "ऐ मेरे बेटे ख़ुदा ख़ुद ही अपने लिए सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए बर्रा मुहय्या कर लेगा।" तब वह दोनों आगे चलते गए।
\s5
\v 9 और उस जगह पहुँचे जो ख़ुदा ने बताई थी; वहाँ इब्राहीम ने क़ुर्बान गाह बनाई और उस पर लकड़ियाँ चुनीं और अपने बेटे इस्हाक़ को बाँधा और उसे क़ुर्बानगाह पर लकड़ियों के ऊपर रख्खा।
\v 10 और इब्राहीम ने हाथ बढ़ाकर छुरी ली कि अपने बेटे को ज़बह करे।
\s5
\v 11 तब ख़ुदावन्द के फ़रिश्ता ने उसे आसमान से पुकारा, कि ऐ इब्राहीम, ऐ इब्राहीम!” उसने कहा, "मैं हाज़िर हूँ।"
\v 12 फिर उसने कहा कि तू अपना हाथ लड़के पर न चला और न उससे कुछ कर; क्यूँकि मैं अब जान गया कि तू ख़ुदा से डरता है, इसलिए कि तूने अपने बेटे को भी जो तेरा इकलौता है मुझ से दरेग न किया।"
\s5
\v 13 और इब्राहीम ने निगाह की और अपने पीछे एक मेंढा देखा जिसके सींग झाड़ी में अटके थे; तब इब्राहीम ने जाकर उस मेंढे को पकड़ा और अपने बेटे के बदले सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर चढ़ाया।
\v 14 और इब्राहीम ने उस मक़म का नाम यहोवा यरी रख्खा। चुनाँचे आज तक यह कहावत है कि ख़ुदावन्द के पहाड़ पर मुहय्या किया जाएगा।
\s5
\v 15 और ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने आसमान से दोबारा इब्राहीम को पुकारा और कहा कि |
\v 16 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, चूँकि तूने यह काम किया कि अपने बेटे की भी जो तेरा इकलौता है दरेग न रख्खा; इसलिए मैंने भी अपनी ज़ात की क़सम खाई है कि
\v 17 मैं तुझे बरकत पर बरकत दूँगा, और तेरी नसल को बढ़ाते-बढ़ाते आसमान के तारों और समुन्दर के किनारे की रेत की तरह कर दूँगा, और तेरी औलाद अपने दुश्मनों के फाटक की मालिक होगी।
\s5
\v 18 और तेरी नसल के वसीले से ज़मीन की सब क़ौमें बरकत पाएँगी, क्यूँकि तूने मेरी बात मानी।"
\v 19 तब इब्राहीम अपने जवानों के पास लौट गया, और वह उठे और इकट्ठे बैरसबा' को गए; और इब्राहीम बैरसबा' में रहा ।
\s5
\v 20 इन बातों के बा'द यूँ हुआ कि इब्राहीम को यह ख़बर मिली, कि मिल्काह के भी तेरे भाई नहूर से बेटे हुए हैं।
\v 21 या'नी ऊज़ जो उसका पहलौठा है, और उसका भाई बूज़ और क्रमूएल, अराम का बाप,
\v 22 और कसद और हजू और फ़िल्दास और इद्लाफ़ और बैतूएल।
\s5
\v 23 और बैतूएल से रिब्क़ा पैदा हुई। यह आठों इब्राहीम के भाई नहूर से मिल्काह के पैदा हुए।
\v 24 और उसकी बाँदी से भी जिसका नाम रूमा था, तिबख़ और जाहम और तख़स और मा'का पैदा हुए।
\s5
\c 23
\p
\v 1 और सारा की 'उम्र एक सौ सताईस साल की हुई, सारा की ज़िन्दगी के इतने ही साल थे।
\v 2 और सारा ने करयतअरबा' में वफ़ात पाई। यह कना'न में है और हबरून भी कहलाता है। और इब्राहीम सारा के लिए मातम और नौहा करने को वहाँ गया।
\s5
\v 3 फिर इब्राहीम मय्यत के पास से उठ कर बनी-हित से बातें करने लगा और कहा कि |
\v 4 मैं तुम्हारे बीच परदेसी और ग़रीब-उल-वतन हूँ। तुम अपने यहाँ क़ब्रिस्तान के लिए कोई मिलिकयत मुझे दो, ताकि मैं अपने मुर्दे को आँख के सामने से हटाकर दफ़्न कर दूँ।
\s5
\v 5 तब बनीहित ने इब्राहीम को जवाब दिया कि |
\v 6 ऐ खुदावन्द, हमारी सुनः तू हमारे बीच ज़बरदस्त सरदार है। हमारी कब्रों में जो सबसे अच्छी हो उसमें तू अपने मुर्दे को दफ़्न कर; हम में ऐसा कोई नहीं जो तुझ से अपनी क़ब्र का इन्कार करे, ताकि तू अपना मुर्दा दफ़न न कर सके।
\s5
\v 7 इब्राहीम ने उठ कर और बनी-हित के आगे, जो उस मुल्क के लोग हैं, आदाब बजा लाकर
\v 8 उनसे यूँ बातें की, कि अगर तुम्हारी मर्ज़ी हो कि मैं अपने मुर्दे को आँख के सामने से हटाकर दफ़्न कर दूँ, तो मेरी 'अर्ज़ सुनो, और सुहर के बेटे इफ़रोन से मेरी सिफ़ारिश करो,
\v 9 कि वह मकफ़ीला के ग़ार को जो उसका है और उसके खेत के किनारे पर है, उसकी पूरी क़ीमत लेकर मुझे दे दे, ताकि वह क़ब्रिस्तान के लिए तुम्हारे बीच मेरी मिल्कियत हो जाए।
\s5
\v 10 और 'इफ़रोन बनी-हित के बीच बैठा था। तब 'इफ़रोन हिती ने बनी हित के सामने, उन सब लोगों के आमने सामने जो उसके शहर के दरवाज़े से दाख़िल होते थे इब्राहीम को जवाब दिया,
\v 11 "ऐ मेरे ख़ुदावन्द! यूँ न होगा, बल्कि मेरी सुन! मैं यह खेत तुझे देता हूँ, और वह ग़ार भी जो उसमें है तुझे दिए देता हूँ। यह मैं अपनी क़ौम के लोगों के सामने तुझे देता हूँ, तू अपने मुर्दे को दफ़्न कर।"
\s5
\v 12 तब इब्राहीम उस मुल्क के लोगों के सामने झुका।
\v 13 फिर उसने उस मुल्क के लोगों के सुनते हुए 'इफ़रोन से कहा कि अगर तू देना ही चाहता है तो मेरी सुन, मैं तुझे उस खेत का दाम दूँगा; यह तू मुझ से ले ले, तो मैं अपने मुर्दे को वहाँ दफ़्न करूँगा।
\s5
\v 14 इफ़रोन ने इब्राहीम को जवाब दिया,
\v 15 "ऐ मेरे ख़ुदावन्द, मेरी बात सुन; यह ज़मीन चाँदी की चार सौ मिस्काल की है इसलिए मेरे और तेरे बीच यह है क्या? तब अपना मुर्दा दफ़न कर।"
\v 16 और इब्राहीम ने 'इफ़रोन की बात मान ली; इसलिए इब्राहीम ने इफ़रोन को उतनी ही चाँदी तौल कर दी, जितनी का ज़िक्र उसने बनी-हित के सामने किया था, या'नी चाँदी के चार सौ मिस्काल जो सौदागरों में राइज थी।
\s5
\v 17 इसलिए इफ़रोन का वह खेत जो मकफ़ीला में ममरे के सामने था, और वह ग़ार जो उसमें था, और सब दरख़्त जो उस खेत में और उसके चारों तरफ़ की हदूद में थे,
\v 18 यह सब बनी-हित के और उन सबके आमने सामने जो उसके शहर के दरवाज़े से दाख़िल होते थे, इब्राहीम की ख़ास मिल्कियत क़रार दिए गए।
\s5
\v 19 इसके बा'द इब्राहीम ने अपनी बीवी सारा को मकफ़ीला के खेत के ग़ार में, जो मुल्कए-कना'न में ममरे या'नी हबरून के सामने है, दफ़्न किया।
\v 20 चुनाँचे वह खेत और वह ग़ार जो उसमें था, बनी-हित की तरफ़ से क़ब्रिस्तान के लिए इब्राहीम की मिल्कियत क़रार दिए गए।
\s5
\c 24
\p
\v 1 और इब्राहीम ज़ईफ़ और 'उम्र दराज़ हुआ और ख़ुदावन्द ने सब बातों में इब्राहीम को बरकत बख़्शी थी।
\v 2 और इब्राहीम ने अपने घर के ख़ास नौकर से, जो उसकी सब चीज़ों का मुख़्तार था कहा, "तू अपना हाथ ज़रा मेरी रान के नीचे रख कि |
\v 3 ~मैं तुझ से ख़ुदावन्द की जो ज़मीन-ओ-आसमान का ख़ुदा है क़सम लें, कि तू कना'नियों की बेटियों में से जिनमें मैं रहता हूँ, किसी को मेरे बेटे से नहीं ब्याहेगा।
\v 4 बल्कि तू मेरे वतन में मेरे रिश्तेदारों के पास जा कर मेरे बेटे इस्हाक़ के लिए बीवी लाएगा।
\s5
\v 5 उस नौकर ने उससे कहा, "शायद वह 'औरत इस मुल्क में मेरे साथ आना न चाहे; तो क्या मैं तेरे बेटे को उस मुल्क में जहाँ से तू आया फिर ले जाऊँ?"
\v 6 तब इब्राहीम ने उससे कहा ख़बरदार तू मेरे बेटे को वहाँ हरगिज़ न ले जाना।
\v 7 ख़ुदावन्द, आसमान का ख़ुदा, जो मुझे मेरे बाप के घर और मेरी पैदाइशी जगह से निकाल लाया, और जिसने मुझ से बातें कीं और क़सम खाकर मुझ से कहा, कि मैं तेरी नसल को यह मुल्क दूँगा; वही तेरे आगे-आगे अपना फ़िरिश्ता भेजेगा कि तू वहाँ से मेरे बेटे के लिए बीवी लाए।
\s5
\v 8 और अगर वह 'औरत तेरे साथ आना न चाहे, तो तू मेरी इस क़सम से छूटा, लेकिन मेरे बेटे को हरगिज़ वहाँ न ले जाना।"
\v 9 उस नौकर ने अपना हाथ अपने आक़ा इब्राहीम की रान के नीचे रख कर उससे इस बात की क़सम खाई।
\s5
\v 10 तब वह नौकर अपने आक़ा के ऊँटों में से दस ऊँट लेकर रवाना हुआ, और उसके आक़ा की अच्छी अच्छी चीज़ें उसके पास थीं, और वह उठकर मसोपतामिया में नहूर के शहर को गया।
\v 11 और शाम को जिस वक़्त 'औरतें पानी भरने आती है उस ने उस शहर के बाहर बावली के पास ऊँटों को बिठाया |
\s5
\v 12 और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, मेरे आक़ा इब्राहीम के खुदा, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ के आज तू मेरा काम बना दे, और मेरे आक़ा इब्राहीम पर करम कर।
\v 13 देख, मैं पानी के चश्मा पर खड़ा हूँ और इस शहर के लोगों की बेटियाँ पानी भरने को आती हैं;
\v 14 इसलिए ऐसा हो कि जिस लड़की से मैं कहूँ, कि तू ज़रा अपना घड़ा झुका दे तो मैं पानी पी लूँ और वह कहे, कि ले पी, और मैं तेरे ऊँटों को भी पिला दूँगी'; तो वह वही हो जिसे तूने अपने बन्दे इस्हाक़ के लिए ठहराया है; और इसी से मैं समझ लूँगा कि तूने मेरे आक़ा पर करम किया है।"
\s5
\v 15 वह यह कह ही रहा था कि रिब्क़ा, जो इब्राहीम के भाई नहूर की बीवी मिल्काह के बेटे बैतूएल से पैदा हुई थी, अपना घड़ा कंधे पर लिए हुए निकली।
\v 16 वह लड़की निहायत ख़ूबसूरत और कुंवारी, और मर्द से नवाक़िफ़ थी। वह नीचे पानी के चश्मा के पास गई और अपना घड़ा भर कर ऊपर आई।
\s5
\v 17 तब वह नौकर उससे मिलने को दौड़ा और कहा कि ज़रा अपने घड़े से थोड़ा सा पानी मुझे पिला दे।
\v 18 उसने कहा, "पीजिए साहब;" और फ़ौरन घड़े को हाथ पर उतार उसे पानी पिलाया।
\s5
\v 19 जब उसे पिला चुकी तो कहने लगी, कि मैं तेरे ऊँटों के लिए भी पानी भर-भर लाऊँगी, जब तक वह पी न चुकें।"
\v 20 और फ़ौरन अपने घड़े को हौज़ में ख़ाली करके फिर बावली की तरफ़ पानी भरने दौड़ी गई, और उसके सब ऊँटों के लिए भरा।
\s5
\v 21 वह आदमी चुप-चाप उसे ग़ौर से देखता रहा, ताकि मा'लूम करे कि ख़ुदावन्द ने उसका सफ़र मुबारक किया है या नहीं।
\v 22 और जब ऊँट पी चुके तो उस शख़्स ने आधे मिस्काल सोने की एक नथ, और दस मिस्काल सोने के दो कड़े उसके हाथों के लिए निकाले|
\v 23 और कहा कि ज़रा मुझे बता कि तू किसकी बेटी है? और क्या तेरे बाप के घर में हमारे टिकने की जगह है?
\s5
\v 24 उसने उससे कहा कि मैं बैतूएल की बेटी हूँ। वह मिल्काह का बेटा है जो नहूर से उसके हुआ।
\v 25 और यह भी उससे कहा कि हमारे पास भूसा और चारा बहुत है, और टिकने की जगह भी है।
\s5
\v 26 तब उस आदमी ने झुक कर ख़ुदावन्द को सिज्दा किया,
\v 27 और कहा, "ख़ुदावन्द मेरे आक़ा इब्राहीम का ख़ुदा मुबारक हो, जिसने मेरे आक़ा को अपने करम और सच्चाई से महरूम नहीं रख्खा और मुझे तो ख़ुदावन्द ठीक राह पर चलाकर मेरे आक़ा के भाइयों के घर लाया।"
\s5
\v 28 तब उस लड़की ने दौड़ कर अपनी माँ के घर में यह सब हाल कह सुनाया।
\v 29 और रिब्क़ा का एक भाई था जिसका नाम लाबन था; वह बाहर पानी के चश्मा पर उस आदमी के पास दौड़ा गया।
\v 30 और ऐसा हुआ कि जब उसने वह नथ देखी, और वह कड़े भी जो उसकी बहन के हाथों में थे, और अपनी बहन रिब्क़ा का बयान भी सुन लिया कि उस शख़्स ने मुझ से ऐसी-ऐसी बातें कहीं, तो वह उस आदमी के पास आया और देखा कि वह चश्मा के नज़दीक ऊँटों के पास खड़ा है।
\s5
\v 31 तब उससे कहा, "ऐ, तू जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से मुबारक है। अन्दर चल, बाहर क्यूँ खड़ा है? मैंने घर को और ऊँटों के लिए भी जगह को तैयार कर लिया है।"
\v 32 तब वह आदमी घर में आया, और उसने उसके ऊँटों को खोला और ऊँटों के लिए भूसा और चारा, और उसके और उसके साथ के आदमियों के पॉव धोने को पानी दिया।
\s5
\v 33 और खाना उसके आगे रख्खा गया, लेकिन उसने कहा कि मैं जब तक अपना मतलब बयान न कर लूँ नहीं खाऊँगा। उसने कहा, "अच्छा, कह।"
\v 34 तब उसने कहा कि मैं इब्राहीम का नौकर हूँ।
\v 35 और ख़ुदावन्द ने मेरे आक़ा को बड़ी बरकत दी है, और वह बहुत बड़ा आदमी हो गया है; और उसने उसे भेड़-बकरियाँ, और गाय बैल और सोना चाँदी और लौंडिया और ग़ुलाम और ऊँट और गधे बख़्शे हैं।
\s5
\v 36 और मेरे आक़ा की बीवी सारा के जब वह बुढ़िया हो गई, उससे एक बेटा हुआ। उसी को उसने अपना सब कुछ दे दिया है।
\v 37 और मेरे आक़ा ने मुझे क़सम दे कर कहा है, कि तू कना'नियों की बेटियों में से, जिनके मुल्क में मैं रहता हूँ किसी को मेरे बेटे से न ब्याहना।
\v 38 बल्कि तू मेरे बाप के घर और मेरे रिश्तेदारों में जाना और मेरे बेटे के लिए बीवी लाना |
\s5
\v 39 तब मैंने अपने आक़ा से कहा, 'शायद वह 'औरत मेरे साथ आना न चाहे।'
\v 40 तब उसने मुझ से कहा, 'ख़ुदावन्द, जिसके सामने मैं चलता रहा हूँ, अपना फ़रिश्ता तेरे साथ भेजेगा और तेरा सफ़र मुबारक करेगा; तू मेरे रिश्तेदारों और मेरे बाप के ख़ान्दान में से मेरे बेटे के लिए बीवी लाना।
\v 41 और जब तू मेरे ख़ान्दान में जा पहुँचेगा, तब मेरी क़सम से छूटेगा; और अगर वह कोई लड़की न दें, तो भी तू मेरी क़सम से छूटा।'
\s5
\v 42 इसलिए मैं आज पानी के उस चश्मा पर आकर कहने लगा, 'ऐ ख़ुदावन्द, मेरे आक़ा इब्राहीम के ख़ुदा, अगर तू मेरे सफ़र को जो मैं कर रहा हूँ मुबारक करता है।
\v 43 तो देख, मैं पानी के चश्मा के पास खड़ा होता हूँ, और ऐसा हो कि जो लड़की पानी भरने निकले और मैं उससे कहूँ, 'ज़रा अपने घड़े से थोड़ा पानी मुझे पिला दे;"
\v 44 और वह मुझे कहे कि तू भी पी और मैं तेरे ऊँटों के लिए भी भर दूँगी, " तो वो वही 'औरत हो जिसे ख़ुदावन्द ने मेरे आक़ा के बेटे के लिए ठहराया है।'
\s5
\v 45 मैं दिल में यह कह ही रहा था कि रिब्क़ा अपना घड़ा कन्धे पर लिए हुए बाहर निकली, और नीचे चश्मा के पास गई, और पानी भरा। तब मैंने उससे कहा, 'ज़रा मुझे पानी पिला दे।'
\v 46 उसने फ़ौरन अपना घड़ा कन्धे पर से उतारा और कहा, 'ले पी और मैं तेरे ऊँटों को भी पिला दूँगी।' तब मैंने पिया और उसने मेरे ऊँटों को भी पिलाया।
\s5
\v 47 फिर मैंने उससे पूछा, 'तू किसकी बेटी है?' उसने कहा, 'मैं बैतूएल की बेटी हूँ, वह नहूर का बेटा है जो मिल्काह से पैदा हुआ;' फिर मैंने उसकी नाक में नथ और उसके हाथों में कड़े पहना दिए।
\v 48 और मैंने झुक कर ख़ुदावन्द को सिज्दा किया और ख़ुदावन्द, अपने आक़ा इब्राहीम के ख़ुदा को मुबारक कहा, जिसने मुझे ठीक राह पर चलाया कि अपने आक़ा के भाई की बेटी उसके बेटे के लिए ले जाऊँ।
\s5
\v 49 इसलिए अब अगर तुम करम और सच्चाई से मेरे आक़ा के साथ पेश आना चाहते हो तो मुझे बताओ, और अगर नहीं तो कह दो, ताकि मैं दहनी या बाएँ तरफ़ फिर जाऊँ।"
\s5
\v 50 तब लाबन और बैतूएल ने जवाब दिया, कि यह बात ख़ुदावन्द की तरफ़ से हुई है, हम तुझे कुछ बुरा या भला नहीं कह सकते।
\v 51 देख, रिब्क़ा तेरे सामने मौजूद है, उसे ले और जा, और ख़ुदावन्द के क़ौल के मुताबिक़ अपने आक़ा के बेटे से उसे ब्याह दे।"
\s5
\v 52 जब इब्राहीम के नौकर ने उनकी बातें सुनीं, तो ज़मीन तक झुक कर ख़ुदावन्द को सिज्दा किया।
\v 53 और नौकर ने चाँदी और सोने के ज़ेवर, और लिबास निकाल कर रिब्क़ा को दिए, और उसके भाई और उसकी माँ को भी क़ीमती चीजें दीं।
\s5
\v 54 और उसने और उसके साथ के आदमियों ने खाया पिया और रात भर वहीं रहे; सुबह को वह उठे और उसने कहा, कि मुझे मेरे आक़ा के पास रवाना कर दो।"
\v 55 रिब्क़ा के भाई और माँ ने कहा, कि लड़की को कुछ दिन, कम से कम दस दिन, हमारे पास रहने दे; इसके बा'द वह चली जाएगी।"
\s5
\v 56 उसने उनसे कहा, कि मुझे न रोको क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मेरा सफ़र मुबारक किया है, मुझे रुख़्सत कर दो ताकि मैं अपने आक़ा के पास जाऊँ।"
\v 57 उन्होंने कहा, "हम लड़की को बुलाकर पूछते हैं कि वह क्या कहती है।"
\v 58 तब उन्होंने रिब्क़ा को बुला कर उससे पूछा, "क्या तू इस आदमी के साथ जाएगी?” उसने कहा, "जाऊँगी।"
\s5
\v 59 तब उन्होंने अपनी बहन रिब्क़ा और उसकी दाया और इब्राहीम के नौकर और उसके आदमियों को रुख़सत किया।
\v 60 और उन्होंने रिब्क़ा को दु'आ दी और उससे कहा, "ऐ हमारी बहन, तू लाखों की माँ हो और तेरी नसल अपने कीना रखने वालों के फाटक की मालिक हो।”
\s5
\v 61 और रिब्क़ा और उसकी सहेलियाँ उठकर ऊँटों पर सवार हुई, और उस आदमी के पीछे हो लीं। तब वह ~आदमी रिब्क़ा को साथ लेकर रवाना हुआ।
\v 62 और इस्हाक़ बेरलही-रोई से होकर चला आ रहा था, क्यूँकि वह दख्खिन के मुल्क में रहता था।
\s5
\v 63 और शाम के वक़्त इस्हाक़ बैतुलख़ला को ~मैदान में गया, और उसने जो अपनी आँखें उठाई और नज़र की तो क्या देखता है कि ऊँट चले आ रहे हैं।
\v 64 और रिब्क़ा ने निगाह की और इस्हाक़ को देख कर ऊँट पर से उतर पड़ी।
\v 65 और उसने नौकर से पूछा, 'यह शख़्स कौन है जो हम से मिलने की मैदान में चला आ रहा है?" उस नौकर ने कहा, "यह मेरा आक़ा है।" तब उसने बुरक़ा लेकर अपने ऊपर डाल लिया।
\s5
\v 66 नौकर ने जो-जो किया था सब इस्हाक़ को बताया।
\v 67 और इस्हाक़ रिब्क़ा को अपनी माँ सारा के डेरे में ले गया। तब उसने रिब्क़ा से ब्याह कर लिया और उससे मुहब्बत की, और इस्हाक़ ने अपनी माँ के मरने के बा'द तसल्ली पाई।
\s5
\c 25
\p
\v 1 और इब्राहीम ने फिर एक और बीवी की जिसका नाम क़तूरा था।
\v 2 और उससे ज़िम्रान और युकसान और मिदान और मिदियान और इसबाक़ और सूख़ पैदा हुए।
\v 3 और युकसान से सिबा और ददान पैदा हुए, और ददान की औलाद से असूरी और लतूसी और लूमी थे।
\v 4 और मिदियान के बेटे ऐफ़ा और इफ़िर और हनूक और अबीदा'आ और इल्दू'आ थे; यह सब बनी क़तूरा थे।
\s5
\v 5 और इब्राहीम ने अपना सब कुछ इस्हाक़ को दिया।
\v 6 और अपनी बाँदियों के बेटों को इब्राहीम ने बहुत कुछ इनाम देकर अपने जीते जी उनको अपने बेटे इस्हाक़ के पास से मशरिक़ की तरफ़ या'नी मशरिक़ के मुल्क में भेज दिया।
\s5
\v 7 और इब्राहीम की कुल 'उम्र जब तक कि वह जिन्दा रहा एक सौ पिच्छत्तर साल की हुई।
\v 8 तब इब्राहीम ने दम छोड़ दिया और ख़ूब बुढ़ापे में निहायत ज़ईफ़ और पूरी 'उम्र का होकर वफ़ात पाई, और अपने लोगों में जा मिला।
\s5
\v 9 और उसके बेटे इस्हाक़ और इस्मा'ईल ने मकफ़ीला के ग़ार में, जो ममरे के सामने हिती सुहर के बेटे इफ़रोन के खेत में है, उसे दफ़्न किया।
\v 10 यह वही खेत है जिसे इब्राहीम ने बनी-हित से ख़रीदा था; वहीं इब्राहीम और उसकी बीवी सारा दफ़्न हुए।
\v 11 और इब्राहीम की वफ़ात के बा'द ख़ुदा ने उसके बेटे इस्हाक़ को बरकत बख़्शी और इस्हाक़ बैर-लही-रोई के नज़दीक रहता था।
\s5
\v 12 यह नसबनामा इब्राहीम के बेटे इस्मा'ईल का है जो इब्राहीम से सारा की लौंडी हाजिरा मिस्री के बत्न से पैदा हुआ।
\s5
\v 13 और इस्मा'ईल के बेटों के नाम यह है : यह नाम तरतीबवार उनकी पैदाइश के मुताबिक़ हैं, इस्मा'ईल का पहलौठा नबायोत था, फिर कीदार और अदबिएल और मिबसाम,
\v 14 और मिशमा' और दूमा और मस्सा,
\v 15 हदद और तैमा और यतूर और नफ़ीस और क़िदमा।
\v 16 यह इस्मा'ईल के बेटे हैं और इन्ही के नामों से इनकी बस्तियां और छावनियाँ नामज़द हुई और यही बारह अपने अपने क़बीले के सरदार हुए।
\s5
\v 17 और इस्मा'ईल की कुल 'उम्र एक सौ सैंतीस साल की हुई तब उसने दम छोड़ दिया और वफ़ात पाई और अपने लोगों में जा मिला।
\v 18 और उसकी औलाद हवीला से शोर तक, जो मिस्र के सामने उस रास्ते पर है जिस से असूर को जाते हैं आबा'द थी। यह लोग अपने सब भाइयों के सामने बसे हुए थे।
\s5
\v 19 और इब्राहीम के बेटे इस्हाक़ का नसबनामा यह है : इब्राहीम से इस्हाक़ पैदा हुआ:
\v 20 इस्हाक़ चालीस साल का था जब उसने रिब्क़ा से ब्याह किया, जो फ़द्दान अराम के बाशिन्दे बैतूएल अरामी की बेटी और लाबन अरामी की बहन थी।
\s5
\v 21 और इस्हाक़ ने अपनी बीवी के लिए ख़ुदावन्द से दु'आ की, क्यूँकि वह बाँझ थी; और ख़ुदावन्द ने उसकी दु'आ क़ुबूल की, और उसकी बीवी रिब्क़ा हामिला हुई।
\v 22 और उसके पेट में दो लड़के आपस में मुज़ाहमत करने लगे। तब उसने कहा, "अगर ऐसा ही है तो मैं जीती क्यूँ हूँ?" और वह ख़ुदावन्द से पूछने गई।
\s5
\v 23 ख़ुदावन्द ने उससे कहा: ‘दो क़ौमें तेरे पेट में हैं, और दो क़बीले तेरे बत्न से निकलते ही अलग-अलग हो जाएँगे। और एक क़बीला दूसरे क़बीले से ताक़तवर होगा, और बड़ा छोटे की ख़िदमत करेगा।"
\s5
\v 24 और जब उसके बच्चा पैदा होने के दिन पूरे हुए, तो क्या देखते हैं कि उसके पेट में जुड़ुवा बच्चे हैं।
\v 25 और पहला जो पैदा हुआ तो सुर्ख़ था और ऊपर से ऐसा जैसे ऊनी कपड़ा, और उन्होंने उसका नाम 'ऐसौ रख्खा।
\v 26 उसके बा'द उसका भाई पैदा हुआ और उसका हाथ 'ऐसौ की एड़ी को पकड़े हुए था, और उसका नाम या'क़ूब रख्खा गया; जब वह रिब्क़ा से पैदा हुए तो इस्हाक़ साठ साल का था।
\s5
\v 27 और वह लड़के बढ़े, और 'ऐसौ शिकार में माहिर हो गया और जंगल में रहने लगा, और या'क़ूब सादा मिजाज़ डेरों में रहने वाला आदमी था। ।
\v 28 और इस्हाक़ 'ऐसौ को प्यार करता था क्यूँकि वह उसके शिकार का गोश्त खाता था और रिब्क़ा या'क़ूब को प्यार करती थी।
\s5
\v 29 और या'क़ूब ने दाल पकाई, और 'ऐसौ जंगल से आया और वह बहुत भूका ~था।
\v 30 और 'ऐसौ ने या'क़ूब से कहा, "यह जो लाल-लाल है मुझे खिला दे, क्यूँकि मैं बे-दम हो रहा हूँ।" इसी लिए उसका नाम अदोम भी हो गया।
\s5
\v 31 तब या'क़ूब ने कहा, "तू आज अपने पहलौठे का हक़ मेरे हाथ बेच दे।"
\v 32 'ऐसौ ने कहा, "देख, मैं तो मरा जाता हूँ, पहलौठे का हक़ मेरे किस काम आएगा?"
\v 33 तब या'क़ूब ने कहा कि आज ही मुझ से क़सम खा, उसने उससे क़सम खाई; और उसने अपना पहलौठे का हक़ या'क़ूब के हाथ बेच दिया।
\v 34 तब या'क़ूब ने 'ऐसौ को रोटी और मसूर की दाल दी; वह खा-पीकर उठा और चला गया। यूँ 'ऐसौ ने अपने पहलौठे के हक़ की क़द्र न जाना।
\s5
\c 26
\p
\v 1 और उस मुल्क में उस पहले काल के 'अलावा जो इब्राहीम के दिनों में पड़ा था, फिर काल पड़ा। तब इस्हाक़ ज़िरार को फ़िलिस्तियों के बादशाह अबीमलिक के पास गया।
\s5
\v 2 और ख़ुदावन्द ने उस पर ज़ाहिर हो कर कहा कि मिस्र को न जा; बल्कि जो मुल्क मैं तुझे बताऊँ उसमें रह।
\v 3 तू इसी मुल्क में क़याम रख और मैं तेरे साथ रहूँगा और तुझे बरकत बख्शुंगा क्यूँकि मै तुझे और तेरी नसल को यह सब मुल्क दूँगा, और मैं उस क़सम को जो मैंने तेरे बाप इब्राहीम से खाई पूरा करूँगा।
\s5
\v 4 और मैं तेरी औलाद को बढ़ा कर आसमान के तारों की तरह कर दूँगा, और यह सब मुल्क तेरी नसल को दूँगा, और ज़मीन की सब कौमें तेरी नसल के वसीले से बरकत पाएँगी।
\v 5 इसलिए कि इब्राहीम ने मेरी बात मानी, और मेरी नसीहत और मेरे हुक्मों और कवानीन-ओ-आईन पर 'अमल किया।
\s5
\v 6 फिर इस्हाक़ ज़िरार में रहने लगा;
\v 7 और वहाँ के बाशिन्दों ने उससे उसकी बीवी के बारे में पूछा। उसने कहा, "वह मेरी बहन है, " क्यूँकि वह उसे अपनी बीवी बताते डरा, यह सोच कर कि कहीं रिबक़ा की वजह से वहाँ के लोग उसे क़त्ल न कर डालें, क्यूँकि वह ख़ूबसूरत थी।
\v 8 जब उसे वहाँ रहते बहुत दिन हो गए तो, फ़िलिस्तियों के बादशाह अबीमलिक ने खिड़की में से झाँक कर नज़र की और देखा कि इस्हाक़ अपनी बीवी रिब्क़ा से हँसी खेल कर रहा है।
\s5
\v 9 तब अबीमलिक ने इस्हाक़ को बुला कर कहा, "वह तो हक़ीक़त में तेरी बीवी है; फिर तूने क्यूँ कर उसे अपनी बहन बताया?" इस्हाक़ ने उससे कहा, "इसलिए कि मुझे ख़्याल हुआ कि कहीं मैं उसकी वजह से मारा न जाऊँ।"
\v 10 अबीमलिक ने कहा, "तूने हम से क्या किया? यूँ तो आसानी से इन लोगों में से कोई तेरी बीवी के साथ मुबाश्रत कर लेता, और तू हम पर इल्ज़ाम लाता।"
\v 11 तब अबीमलिक ने सब लोगों को यह हुक्म किया कि जो कोई इस आदमी को या इसकी बीवी को छुएगा वह मार डाला जाएगा।"
\s5
\v 12 और इस्हाक़ ने उस मुल्क में खेती की और उसी साल उसे सौ गुना फल मिला; और ख़ुदावन्द ने उसे बरकत बख़्शी।
\v 13 और वह बढ़ गया और उसकी तरक़्क़ी होती गई, यहाँ तक कि वह बहुत बड़ा आदमी हो गया।
\v 14 और उसके पास भेड़ बकरियाँ और गाय बैल और बहुत से नौकर चाकर थे, और फ़िलिस्तियों को उस पर रश्क आने लगा।
\s5
\v 15 और उन्होंने सब कुएँ जो उसके बाप के नौकरों ने उसके बाप इब्राहीम के वक़्त में खोदे थे, बन्द कर दिए और उनको मिट्टी से भर दिया।
\v 16 और अबीमलिक ने इस्हाक़ से कहा कि तू हमारे पास से चला जा, क्यूँकि तू हम से ज़्यादा ताक़तवर हो गया है।
\v 17 तब इस्हाक़ ने वहाँ से जिरार की वादी में जाकर अपना डेरा लगाया और वहाँ रहने लगा।
\s5
\v 18 और इस्हाक़ ने पानी के उन कुओं को जो उसके बाप इब्राहीम के दिनों में खोदे गए थे फिर खुदवाया, क्यूँकि फ़िलिस्तियों ने इब्राहीम के मरने के बा'द उनको बन्द कर दिया था, और उसने उनके फिर वही नाम रख्खे जो उसके बाप ने रख्खे थे।
\s5
\v 19 और इस्हाक़ के नौकरों को वादी में खोदते-खोदते बहते पानी का एक सोता मिल गया।
\v 20 तब जिरार के चरवाहों ने इस्हाक़ के चरवाहों से झगड़ा किया और कहने लगे कि यह पानी हमारा है। और उसने उस कुएँ का नाम 'इस्क़ ~रख्खा, क्यूँकि उन्होंने उससे झगड़ा किया।
\s5
\v 21 और उन्होंने दूसरा कुआँ खोदा, और उसके लिए भी वह झगड़ने लगे; और उसने उसका नाम सितना रख्खा।
\v 22 इसलिए वह वहाँ से दूसरी जगह चला गया और एक और कुआँ खोदा, जिसके लिए उन्होंने झगड़ा न किया और उसने उसका नाम रहोबूत रख्खा और कहा किअब ख़ुदावन्द ने हमारे लिए जगह निकाली और हम इस मुल्क में कामयाब होंगे।
\s5
\v 23 वहाँ से वह बैरसबा' को गया।
\v 24 और ख़ुदावन्द उसी रात उस पर ज़ाहिर हुआ और कहा कि मैं तेरे बाप इब्राहीम का ख़ुदा हूँ! मत डर, क्यूँकि मैं तेरे साथ हूँ और तुझे बरकत दूँगा, और अपने बन्दे ~इब्राहीम की ख़ातिर तेरी नसल बढ़ाऊँगा।
\v 25 और उसने वहाँ मज़बह बनाया और ख़ुदावन्द से दु'आ की, और अपना डेरा वहीं लगा लिया; और वहाँ इस्हाक़ के नौकरों ने एक कुआँ खोदा।
\s5
\v 26 तब अबीमलिक अपने दोस्त अख़ूज़त और अपने सिपहसालार फ़ीकुल को साथ ले कर, जिरार से उसके पास गया।
\v 27 इस्हाक़ ने उनसे कहा कि तुम मेरे पास क्यूँ कर आए, हालाँकि मुझ से कीना रखते हो और मुझ को अपने पास से निकाल दिया।
\s5
\v 28 उन्होंने कहा, "हम ने ख़ूब सफ़ाई से देखा कि ख़ुदावन्द तेरे साथ है, तब हम ने कहा कि हमारे और तेरे बीच क़सम हो जाए और हम तेरे साथ 'अहद करें,
\v 29 कि जैसे हम ने तुझे छुआ तक नहीं, और अलावा नेकी के तुझ से और कुछ नहीं किया और तुझ को सलामत रुख़्सत, किया तू भी हम से कोई बदी न करेगा क्यूँकि तू अब ख़ुदावन्द की तरफ़ से मुबारक है।"
\s5
\v 30 तब उसने उनके लिए दावत तैयार की और उन्होंने खाया पिया।
\v 31 और वह सुबह सवेरे उठे और आपस में क़सम खाई; और इस्हाक़ ने उन्हें रुख़्सत किया और वह उसके पास से सलामत चले गए।
\s5
\v 32 उसी रोज़ इस्हाक़ के नौकरों ने आ कर उससे उस कुएँ का ज़िक्र किया जिसे उन्होंने खोदा था और कहा कि हम को पानी मिल गया।
\v 33 तब उसने उसका नाम सबा' रख्खा : इसीलिए वह शहर आज तक बैरसबा' कहलाता है।
\s5
\v 34 जब 'ऐसौ चालीस साल का हुआ, तो उसने बैरी हिती की बेटी यहूदिथ और ऐलोन हिती की बेटी बशामथ से ब्याह किया;
\v 35 और वह इस्हाक़ और रिब्क़ा के लिए वबाल-ए-जान हुईं।
\s5
\c 27
\p
\v 1 जब इस्हाक़ ज़ईफ़ हो गया, और उसकी आँखें ऐसी धुन्धला गई कि उसे दिखाई न देता था तो उसने अपने बड़े बेटे 'ऐसौ को बुलाया और कहा, "ऐ मेरे बेटे!" उसने कहा, "मैं हाज़िर हूँ।"
\v 2 तब उसने कहा, "देख! मैं तो ज़ईफ़ हो गया और मुझे अपनी मौत का दिन मा'लूम नहीं।
\s5
\v 3 इसलिए अब तू ज़रा अपना हथियार, अपना तरकश और अपनी कमान लेकर जंगल को निकल जा और मेरे लिए शिकार मार ला।
\v 4 और मेरी हस्ब-ए-पसन्द लज़ीज़ खाना मेरे लिए तैयार करके मेरे आगे ले आ, ताकि मैं खाऊँ और अपने मरने से पहले दिल से तुझे दु'आ दूँ।
\s5
\v 5 और जब इस्हाक़ अपने बेटे 'ऐसौ से बातें कर रहा था तो रिब्क़ा सुन रही थी, और 'ऐसौ जंगल को निकल गया कि शिकार मार कर लाए।
\v 6 तब रिब्क़ा ने अपने बेटे या'क़ूब से कहा, कि देख, मैंने तेरे बाप को तेरे भाई 'ऐसौ से यह कहते सुना कि |
\v 7 'मेरे लिए शिकार मार कर लज़ीज़ खाना मेरे लिए तैयार कर ताकि मैं खाऊँ और अपने मरने से पहले ख़ुदावन्द के आगे तुझे दु'आ दूँ।'
\s5
\v 8 इसलिए ऐ मेरे बेटे, इस हुक़्म के मुताबिक़ जो मैं तुझे देती हूँ मेरी बात को मान |
\v 9 और जाकर रेवड़ में से बकरी के दो अच्छे-अच्छे बच्चे मुझे ला दे, और मैं उनको लेकर तेरे बाप के लिए उसकी हस्ब-ए-पसन्द लज़ीज़ खाना तैयार कर दूँगी।
\v 10 और तू उसे अपने बाप के आगे ले जाना, ताकि वह खाए और अपने मरने से पहले तुझे दु'आ दे।
\s5
\v 11 तब या'क़ूब ने अपनी माँ रिब्क़ा से कहा, "देख, मेरे भाई 'ऐसौ के जिस्म पर बाल हैं और मेरा जिस्म साफ़ है।
\v 12 शायद मेरा बाप मुझे टटोले, तो मैं उसकी नज़र में दग़ाबाज़ ठहरूंगा; और बरकत नहीं बल्कि ला'नत कमाऊँगा।"
\s5
\v 13 उसकी माँ ने उसे कहा, "ऐ मेरे बेटे! तेरी ला'नत मुझ पर आए; तू सिर्फ़ मेरी बात मान और जाकर वह बच्चे मुझे ला दे।"
\v 14 तब वह गया और उनको लाकर अपनी माँ को दिया, और उसकी माँ ने उसके बाप की हस्ब-ए-पसन्द लज़ीज़ खाना तैयार किया।
\s5
\v 15 और रिब्क़ा ने अपने बड़े बेटे 'ऐसौ के नफ़ीस लिबास, जो उसके पास घर में थे लेकर उनकी अपने छोटे बेटे या'क़ूब को पहनाया।
\v 16 और बकरी के बच्चों की खालें उसके हाथो और उसकी गर्दन पर जहाँ बाल न थे लपेट दीं।
\v 17 और वह लज़ीज़ खाना और रोटी जो उसने तैयार की थी, अपने बेटे या'क़ूब के हाथ में दे दी।
\s5
\v 18 तब उसने बाप के पास आ कर कहा, "ऐ मेरे बाप!" उसने कहा, "मैं हाज़िर हूँ, तू कौन है मेरे बेटे?"
\v 19 या'क़ूब ने अपने बाप से कहा, "मैं तेरा पहलौठा बेटा 'ऐसौ हूँ। मैंने तेरे कहने के मुताबिक़ किया है;इसलिए ज़रा उठ और बैठ कर मेरे शिकार का गोश्त खा, ताकि तू दिल से मुझे दु'आ दे।"
\s5
\v 20 तब इस्हाक़ ने अपने बेटे से कहा, "बेटा! तुझे यह इस क़दर जल्द कैसे मिल गया?" उसने कहा, "इसलिए कि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने मेरा काम बना दिया।"
\v 21 तब इस्हाक़ ने या'क़ूब से कहा, "ऐ मेरे बेटे, ज़रा नज़दीक आ कि मैं तुझे टटोलूँ कि तू मेरा ही बेटा 'ऐसौ है या नहीं।"
\s5
\v 22 और या'क़ूब अपने बाप इस्हाक़ के नज़दीक गया; और उसने उसे टटोलकर कहा, "आवाज़ तो या'क़ूब की है लेकिन हाथ 'ऐसौ के हैं।"
\v 23 और उसने उसे न पहचाना, इसलिए कि उसके हाथों पर उसके भाई 'ऐसौ के हाथों की तरह बाल थे; इसलिए उसने उसे दु'आ दी।
\s5
\v 24 और उसने पूछा कि क्या तू मेरा बेटा 'ऐसौ ही है?" उसने कहा, "मैं वही हूँ।"
\v 25 तब उसने कहा, "खाना मेरे आगे ले आ, और मैं अपने बेटे के शिकार का गोश्त खाऊँगा, ताकि दिल से तुझे दु'आ दूँ।” तब वह उसे उसके नज़दीक ले आया, और उसने खाया; और वह उसके लिए मय लाया और उसने पी।
\s5
\v 26 फिर उसके बाप इस्हाक़ ने उससे कहा, "ऐ मेरे बेटे! अब पास आकर मुझे चूम।"
\v 27 उसने पास जाकर उसे चूमा। तब उसने उसके लिबास की ख़शबू पाई और उसे दु'आ दे कर कहा, "देखो! मेरे बेटे की महक उस खेत की महक की तरह है जिसे ख़ुदावन्द ने बरकत दी हो।
\s5
\v 28 ख़ुदा आसमान की ओस और ज़मीन की फ़र्बही, और बहुत सा अनाज और मय तुझे बख़्शे।
\s5
\v 29 कौमें तेरी खिदमत करें, और क़बीले तेरे सामने झुकें। तू अपने भाइयों का सरदार हो, और तेरी माँ के बेटे तेरे आगे झुकें, जो तुझ पर ला'नत करे वह खुद ला'नती हो, और जो तुझे दु'आ दे वह बरकत पाए।"
\s5
\v 30 जब इस्हाक़ या'क़ूब को दु'आ दे चुका, और या'क़ूब अपने बाप इस्हाक़ के पास से निकला ही था कि उसका भाई 'ऐसौ अपने शिकार से लौटा।
\v 31 वह भी लज़ीज़ खाना पका कर अपने बाप के पास लाया, और उसने अपने बाप से कहा, "मेरा बाप उठ कर अपने बेटे के शिकार का गोश्त खाए, ताकि दिल से मुझे दु'आ दे।
\s5
\v 32 उसके बाप इस्हाक़ ने उससे पूछा कि तू कौन है?" उसने कहा, "मैं तेरा पहलौठा बेटा 'ऐसौ हूँ।"
\v 33 तब तो इस्हाक़ शिद्दत से काँपने लगा और उसने कहा, "फिर वह कौन था जो शिकार मार कर मेरे पास ले आया, और मैंने तेरे आने से पहले सबमें से थोड़ा-थोड़ा खाया और उसे दु'आ दी? और मुबारक भी वही होगा।"
\s5
\v 34 ऐसौ अपने बाप की बातें सुनते ही बड़ी बुलन्दी और हसरतनाक आवाज़ से चिल्ला उठा, और अपने बाप से कहा, "मुझ को भी दु'आ दे, ऐ मेरे बाप! मुझ को भी।"
\v 35 उसने कहा, "तेरा भाई दग़ा से आया, और तेरी बरकत ले गया।"
\s5
\v 36 तब उसने कहा, "क्या उसका नाम या'क़ूब ठीक नहीं रख्खा गया? क्यूँकि उसने दोबारा मुझे अड़गा मारा। उसने मेरा पहलौठे का हक़ तो ले ही लिया था, और देख, अब वह मेरी बरकत भी ले गया।" फिर उसने कहा, "क्या तूने मेरे लिए कोई बरकत नहीं रख छोड़ी है?"
\v 37 इस्हाक़ ने 'ऐसौ को जवाब दिया, कि देख, मैंने उसे तेरा सरदार ठहराया, और उसके सब भाइयों को उसके सुपर्द किया कि ख़ादिम हों, और अनाज और मय उसकी परवरिश के लिए बताई। अब ऐ मेरे बेटे, तेरे लिए मैं क्या करूँ?"
\s5
\v 38 तब 'ऐसौ ने अपने बाप से कहा, "क्या तेरे पास एक ही बरकत है, ऐ मेरे बाप? मुझे भी दु'आ दे, ऐ मेरे बाप, मुझे भी।" और 'ऐसौ ज़ोर-ज़ोर से रोया।
\s5
\v 39 तब उसके बाप इस्हाक़ ने उससे कहा, "देख ज़रख्खेज़ ज़मीन में तेरा घर हो, और ऊपर से आसमान की शबनम उस पर पड़े।
\v 40 तेरी अौकात-बसरी तेरी तलवार से हो, और तू अपने भाई की ख़िदमत करे, और जब तू आज़ाद हो; तो अपने भाई का जुआ अपनी गर्दन पर से उतार फेंके।"
\s5
\v 41 और 'ऐसौ ने या'क़ूब से, उस बरकत की वजह से जो उसके बाप ने उसे बख्शी, कीना रख्खा; और 'ऐसौ ने अपने दिल में कहा, कि "मेरे बाप के मातम के दिन नज़दीक हैं, फिर मैं अपने भाई या'क़ूब को मार डालूँगा।"
\v 42 और रिब्क़ा को उसके बड़े बेटे 'ऐसौ की यह बातें बताई गई; तब उसने अपने छोटे बेटे या'क़ूब को बुलवा कर उससे कहा, "देख, तेरा भाई 'ऐसौ तुझे मार डालने पर है, और यही सोच-सोचकर अपने को तसल्ली दे रहा है।
\s5
\v 43 इसलिए ऐ मेरे बेटे, तू मेरी बात मान, और उठकर हारान को मेरे भाई लाबन के पास भाग जा;
\v 44 और थोड़े दिन उसके साथ रह, जब तक तेरे भाई की नाराज़गी उतर न जाए।
\v 45 या'नी जब तक तेरे भाई का क़हर तेरी तरफ़ से ठंडा न हो, और वह उस बात को जो तूने उससे की है भूल न जाए; तब मैं तुझे वहाँ से बुलवा भेजूँगी। मैं एक ही दिन में तुम दोनों को क्यूँ खो बैठूँ?"
\s5
\v 46 और रिब्क़ा ने इस्हाक़ से कहा, 'मैं हिती लड़कियों की वजह से अपनी ज़िन्दगी से तंग हूँ, इसलिए अगर या'क़ूब हिती लड़कियों में से, जैसी इस मुल्क की लड़कियाँ हैं, किसी से ब्याह कर ले तो मेरी ज़िन्दगी में क्या लुत्फ़ रहेगा?'
\s5
\c 28
\p
\v 1 तब इस्हाक़ ने या'क़ूब को बुलाया और उसे दु'आ दी और उसे ताकीद की, कि तू कना'नी लड़कियों में से किसी से ब्याह न करना।
\v 2 तू उठ कर फ़द्दान अराम को अपने नाना बैतूएल के घर जा, और वहाँ से अपने मामूं लाबन की बेटियों में से एक को ब्याह ला।
\s5
\v 3 और क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा तुझे बरकत बख़्शे और तुझे क़ामयाब करे और बढ़ाए, कि तुझ से क़ौमों के क़बीले ~पैदा हों।
\v 4 और वह इब्राहीम की बरकत तुझे और तेरे साथ तेरी नसल को दे, कि तेरी मुसाफ़िरत की यह सरज़मीन जो ख़ुदा ने इब्राहीम को दी तेरी मीरास हो जाए।
\s5
\v 5 तब इस्हाक़ ने या'क़ूब को रुख्सत किया और वह फ़द्दान अराम में लाबन के पास, जो अरामी बैतूएल का बेटा और या'क़ूब और 'ऐसौ की माँ रिब्क़ा का भाई था गया।
\s5
\v 6 फिर जब 'ऐसौ ने देखा कि इस्हाक़ ने या'क़ूब को दु'आ देकर उसे फ़द्दान अराम भेजा है, ताकि वह वहाँ से बीवी ब्याह कर लाए; और उसे दु'आ देते वक़्त यह ताकीद भी की है कि तू कना'नी लड़कियों में से किसी से ब्याह न करना |
\v 7 और या'क़ूब अपने माँ बाप की बात मान कर फ़द्दान अराम को चला गया।
\s5
\v 8 और 'ऐसौ ने यह भी देखा कि कना'नी लड़कियाँ उसके बाप इस्हाक़ को बुरी लगती हैं,
\v 9 तो 'ऐसौ इस्मा'ईल के पास गया और महलत को, जो इस्मा'ईल-बिन-इब्राहीम की बेटी और नबायोत की बहन थी, ब्याह कर उसे अपनी और बीवियों में शामिल किया।
\s5
\v 10 और या'क़ूब बैर-सबा' से निकल कर हारान की तरफ़ चला।
\v 11 और एक जगह पहुँच कर सारी रात वहीं रहा क्यूँकि सूरज डूब गया था, और उसने उस जगह के पत्थरों में से एक उठा कर अपने सरहाने रख लिया और उसी जगह सोने को लेट गया।
\s5
\v 12 और ख़्वाब में क्या देखता है कि एक सीढ़ी ज़मीन पर खड़ी है, और उसका सिरा आसमान तक पहुँचा हुआ है। और ख़ुदा के फ़रिश्ता उस पर से चढ़ते उतरते हैं।
\v 13 और ख़ुदावन्द उसके ऊपर खड़ा कह रहा है, कि मैं ख़ुदावन्द, तेरे बाप इब्राहीम का ख़ुदा और इस्हाक़ का ख़ुदा हूँ। मैं यह ज़मीन जिस पर तू लेटा है तुझे और तेरी नसल को दूँगा।
\s5
\v 14 और तेरी नसल ज़मीन की गर्द के ज़रों की तरह होगी और तू मशरिक़ और मग़रिब और शिमाल और दख्खिनमें फैल जाएगा, और ज़मीन के सब क़बीले तेरे और तेरी नसल के वसीले से बरकत पाएंगे।
\v 15 और देख, मैं तेरे साथ हूँ और हर जगह जहाँ कहीं तू जाए तेरी हिफ़ाज़त करूँगा और तुझ को इस मुल्क में फिर लाऊँगा, और जो मैंने तुझ से कहा है जब तक उसे पूरा न कर लें तुझे नहीं छोडुंगा।
\s5
\v 16 तब या'क़ूब जाग उठा और कहने लगा, कि यक़ीनन ख़ुदावन्द इस जगह है और मुझे मा'लूम न था।”
\v 17 और उसने डर कर कहा, "यह कैसी ख़ौफ़नाक जगह है! तो यह ख़ुदा के घर और आसमान के आसताने के अलावा और कुछ न होगा।"
\s5
\v 18 और या'क़ूब सुब्ह-सवेरे उठा, और उस पत्थर की जिसे उसने अपने सरहाने रख्खा ~था लेकर सुतून की तरह खड़ा किया और उसके सिरे पर तेल डाला।
\v 19 और उस जगह का नाम बैतएल रख्खा, लेकिन पहले उस बस्ती का नाम लूज़ था।
\s5
\v 20 और या'क़ूब ने मन्नत मानी और कहा कि अगर ख़ुदा मेरे साथ रहे, और जो सफ़र मैं कर रहा हूँ उसमें मेरी हिफ़ाज़त करे, और मुझे खाने को रोटी और पहनने की कपड़ा देता रहे,
\v 21 और मैं अपने बाप के घर सलामत लौट आऊँ; तो ख़ुदावन्द मेरा ख़ुदा होगा।
\v 22 और यह पत्थर जो मैंने सुतून सा खड़ा किया है, ख़ुदा का घर होगा; और जो कुछ तू मुझे दे उसका दसवाँ हिस्सा ज़रूर ही तुझे दिया करूँगा।
\s5
\c 29
\p
\v 1 और या'क़ूब आगे चल कर मशरिक़ी लोगों के मुल्क में पहुँचा।
\v 2 और उसने देखा कि मैदान में एक कुआँ है और कुएँ के नज़दीक भेड़ बकरियों के तीन रेवड़ बैठे हैं; क्यूँकि चरवाहे इसी कुएँ से रेवड़ों को पानी पिलाते थे और कुएँ के मुँह पर एक बड़ा पत्थर रख्खा ~रहता था।
\v 3 और जब सब रेवड़ वहाँ इकट्ठे होते थे, तब वह उस पत्थर को कुएँ के मुँह पर से ढलकाते और भेड़ों को पानी पिला कर उस पत्थर को ~फिर उसी जगह कुएँ के मुँह पर रख देते थे।
\s5
\v 4 तब या'क़ूब ने उनसे कहा, "ऐ मेरे भाइयों, तुम कहाँ के हो?" उन्होंने कहा, "हम हारान के हैं।"
\v 5 फिर उसने पूछा कि तुम नहूर के बेटे लाबन से वाकिफ़ हो? उन्होंने कहा, "हम वाकिफ़ हैं।"
\v 6 उसने पूछा, "क्या वह ख़ैरियत से है?" उन्होंने कहा, "ख़ैरियत से है, और वह देख, उसकी बेटी राख़िल भेड़ बकरियों के साथ चली आती है।"
\s5
\v 7 और उसने कहा, "देखो, अभी तो दिन बहुत है, और चौपायों के जमा' होने का वक़्त नहीं। तुम भेड़ बकरियों को पानी पिला कर फिर चराने को ले जाओ।
\v 8 उन्होंने कहा, "हम ऐसा नहीं कर सकते, जब तक कि सब रेवड़ जमा' न हो जाएँ। तब हम उस पत्थर को कुएँ के मुँह पर से ढलकाते हैं, और भेड़ बकरियों को पानी पिलाते हैं।"
\s5
\v 9 वह उनसे बातें कर ही रहा था कि राख़िल अपने बाप की भेड़ बकरियों के साथ आई, क्यूँकि वह उनको चराया करती थी।
\v 10 जब या'क़ूब ने अपने मामूँ लाबन की बेटी राख़िल को और अपने मामूँ लाबन के रेवड़ को देखा, तो वह नज़दीक गया और पत्थर को कुएँ के मुँह पर से ढलका कर अपने मामूँ लाबन के रेवड़ को पानी पिलाया।
\s5
\v 11 और या'क़ूब ने राख़िल को चूमा और ज़ोर ज़ोर से रोया।
\v 12 और या'क़ूब ने राख़िल से कहा, कि मैं तेरे बाप का रिश्तेदार और रिब्क़ा का बेटा हूँ। तब उसने दौड़ कर अपने बाप को ख़बर दी।
\s5
\v 13 लाबन अपने भांजे की ख़बर पाते ही उससे मिलने को दौड़ा, और उसको गले लगाया और चूमा और उसे अपने घर लाया; तब उसने लाबन को अपना सारा हाल बताया।
\v 14 लाबन ने उसे कहा, "तू वाक़'ई मेरी हड्डी और मेरा गोश्त है।" फिर वह एक महीना उसके साथ रहा।
\s5
\v 15 तब लाबन ने या'क़ूब से कहा, "चूँकि तू मेरा रिश्तेदार है, तो क्या इसलिए लाज़िम है कि तू मेरी ख़िदमत मुफ़्त करे?इसलिए ~मुझे बता कि तेरी मजदुरी क्या होगी?"
\v 16 और लाबन की दो बेटियाँ थीं, बड़ी का नाम लियाह और छोटी का नाम राख़िल था।
\v 17 लियाह की आखें भूरी थीं लेकिन राख़िल हसीन और ख़ूबसूरत थी।
\v 18 और या'क़ूब राख़िल पर फ़िदा था, तब उसने कहा, "तेरी छोटी बेटी राख़िल की ख़ातिर मैं सात साल तेरी खिदमत करूँगा।"
\s5
\v 19 लाबन ने कहा, "उसे ग़ैर आदमी को देने की जगह तुझी को देना बेहतर है, तू मेरे पास रह।"
\v 20 चुनाँचे या'क़ूब सात साल तक राख़िल की ख़ातिर ख़िदमत करता रहा लेकिन वह उसे राख़िल की मुहब्बत की वजह से चन्द दिनों के बराबर मा'लूम हुए।
\s5
\v 21 या'क़ूब ने लाबन से कहा कि मेरी मुद्दत पूरी हो गई, इसलिए मेरी बीवी मुझे दे ताकि मैं उसके पास जाऊँ।
\v 22 तब लाबन ने उस जगह के सब लोगों को बुला कर जमा' किया और उनकी दावत की।
\s5
\v 23 और जब शाम हो गई तो अपनी बेटी लियाह को उसके पास ले आया, और या'क़ूब उससे हम आगोश हुआ।
\v 24 और लाबन ने अपनी लौंडी ज़िल्फ़ा अपनी बेटी लियाह के साथ कर दी कि उसकी लौंडी हो।
\v 25 जब सुबह को मा'लूम हुआ कि यह तो लियाह है, तब उसने लाबन से कहा, कि तूने मुझ से ये क्या किया? क्या मैंने जो तेरी ख़िदमत की, वह राख़िल की ख़ातिर न थी? फिर तूने क्यूँ मुझे धोका दिया?"
\s5
\v 26 लाबन ने कहा कि हमारे मुल्क में ये दस्तूर नहीं के पहलौठी से पहले छोटी को ब्याह दें।
\v 27 तू इसका हफ़्ता पूरा कर दे, फिर हम दूसरी भी तुझे दे देंगे; जिसकी ख़ातिर तुझे सात साल और मेरी ख़़िदमत करनी होगी।
\s5
\v 28 या'क़ूब ने ऐसा ही किया, कि लियाह का हफ़्ता पूरा किया; तब लाबन ने अपनी बेटी राख़िल भी उसे ब्याह दी।
\v 29 और अपनी लौडी बिल्हाह अपनी बेटी राख़िल के साथ कर दी कि उसकी लौंडी हो।
\v 30 इसलिए वह राख़िल से भी हमआग़ोश हुआ, और वह लियाह से ज़्यादा राख़िल को चाहता था; और सात साल और साथ रह कर लाबन की ख़िदमत की।
\s5
\v 31 और जब ख़ुदावन्द ने देखा कि लियाह से नफ़रत की गई, तो उसने उसका रिहम खोला, मगर राख़िल बाँझ रही।
\v 32 और लियाह हामिला हुई और उसके बेटा हुआ, और उसने उसका नाम रूबिन रख्खा क्यूँकि उसने कहा कि ख़ुदावन्द ने मेरा दुख देख लिया, इसलिए मेरा शौहर अब मुझे प्यार करेगा।
\s5
\v 33 वह फिर हामिला हुई और उसके बेटा हुआ तब उसने कहा कि ख़ुदावन्द ने सुना कि मुझ से नफ़रत की गई, इसलिए उसने मुझे यह~भी बख़्शा।" तब उसने उसका नाम शमा'ऊन रख्खा।
\v 34 और वह फिर हामिला हुई और उसके बेटा हुआ तब उसने कहा, "अब इस बार मेरे शौहर को मुझ से लगन होगी, क्यूँकि उससे मेरे तीन बेटे हुए।" इसलिए उसका नाम लावी रख्खा गया।
\s5
\v 35 और वह फिर हामिला हुई और उसके बेटा हुआ तब उसने कहा कि अब मैं ख़ुदावन्द की हम्द करूँगी।" इसलिए उसका नाम यहूदाह रख्खा। फिर उसके औलाद होने में देरी हुई।
\s5
\c 30
\p
\v 1 और जब राख़िल ने देखा कि या'क़ूब से उसके औलाद नहीं होती तो राख़िल को अपनी बहन पर रश्क आया, तब वह या'क़ूब से कहने लगी, "मुझे भी औलाद दे नहीं तो मैं मर जाऊँगी।"
\v 2 तब या'क़ूब का क़हर राख़िल पर भड़का और उस ने कहा, "क्या मैं ख़ुदा की जगह हूँ जिसने तुझ को औलाद से महरूम रख्खा है?"
\s5
\v 3 उसने कहा, "देख, मेरी लौंडी बिल्हाह हाज़िर है, उसके पास जा ताकि मेरे लिए उससे औलाद हो और वह औलाद मेरी ठहरे।"
\v 4 और उसने अपनी लौंडी बिल्हाह को उसे दिया के उसकी बीवी बने, और या'क़ूब उसके पास गया।
\s5
\v 5 और बिल्हाह हामिला हुई, और या'क़ूब से उसके बेटा हुआ।
\v 6 तब राख़िल ने कहा कि ख़ुदा ने मेरा इंसाफ़ किया और मेरी फ़रियाद भी सुनी और मुझ को बेटा बख़्शा।" इसलिए उसने उसका नाम दान रख्खा।
\s5
\v 7 और राख़िल की लौंडी बिल्हाह फिर हामिला हुई और या'क़ूब से उसके दूसरा बेटा हुआ।
\v 8 तब राख़िल ने कहा, "मैं अपनी बहन के साथ निहायत ज़ोर मार-मारकर कुश्ती लड़ी और मैंने फ़तह पाई।" इसलिए उसने उसका नाम नफ़्ताली रख्खा।
\s5
\v 9 जब लियाह ने देखा कि वह जनने से रह गई तो उसने अपनी लौंडी ज़िलफ़ा को लेकर या'क़ूब को दिया कि उसकी बीवी बने।
\v 10 और लियाह की लौंडी ज़िलफ़ा के भी या'क़ूब से एक बेटा हुआ।
\v 11 तब लियाह ने कहा, "ज़हे-किस्मत!" तब उसने उसका नाम जद रख्खा।
\s5
\v 12 लियाह की लौंडी ज़िलफ़ा के या'क़ूब से फिर एक बेटा हुआ।
\v 13 तब लियाह ने कहा, "मैं ख़ुश क़िस्मत हूँ: 'औरतें मुझे खुश क़िस्मत कहेंगी।" और उसने उसका नाम आशर रख्खा ।
\s5
\v 14 और रूबिन गेहूँ काटने के मौसम में घर से निकला और उसे खेत में मदुम गियाह मिल गए, और वह अपनी माँ लियाह के पास ले आया। तब राख़िल ने लियाह से कहा ~किअपने बेटे के मदुम गियाह में से मुझे भी कुछ दे दे।
\v 15 उसने कहा, "क्या ये छोटी बात है कि तूने मेरे शौहर को ले लिया, और अब क्या मेरे बेटे के मदुम गियाह भी लेना चाहती है?" राख़िल ने कहा, "बस तो आज रात वह तेरे बेटे के मदुम गियाह की ख़ातिर तेरे साथ सोएगा।"
\s5
\v 16 जब या'क़ूब शाम को खेत से आ रहा था तो लियाह आगे से उससे मिलने को गई और कहने लगी कि तुझे मेरे पास आना होगा, क्यूँकि मैंने अपने बेटे के मदुम गियाह के बदले तुझे मज़दूरी पर लिया है। ~वह उस रात उसी के साथ सोया।
\v 17 और ख़ुदा ने लियाह की सुनी और वह हामिला हुई, और या'क़ूब से उसके पाँचवाँ बेटा हुआ।
\v 18 तब लियाह ने कहा कि ख़ुदा ने मेरी मज़दूरी मुझे दी क्यूँकि मैंने अपने शौहर को अपनी लौंडी दी।" और उसने उसका नाम इश्कार रख्खा।
\s5
\v 19 और लियाह फिर हामिला हुई और या'क़ूब से उसके छटा बेटा हुआ।
\v 20 तब लियाह ने कहा कि ख़ुदा ने अच्छा महर मुझे बख़्शा; अब मेरा शौहर मेरे साथ रहेगा क्यूँकि मेरे उससे छ: बेटे हो चुके हैं। इसलिए उसने उसका नाम ज़बूलून रख्खा।
\v 21 इसके बा'द उसके एक बेटी हुई और उसने उसका नाम दीना रख्खा।
\s5
\v 22 और ख़ुदा ने राख़िल को याद किया, और ख़ुदा ने उसकी सुन कर उसके रहम को खोला।
\v 23 और वह हामिला हुई और उसके बेटा हुआ, तब उसने कहा कि ख़ुदा ने मुझ से रुस्वाई दूर की।
\v 24 और उस ने उसका नाम युसुफ़ यह कह कर रख्खा कि ख़ुदा वन्द मुझ को एक और बेटा बख़्शे |
\s5
\v 25 और जब राख़िल से युसुफ़ पैदा हुआ तो या'क़ूब ने लाबन से कहा, "मुझे रुख़्सत कर कि मैं अपने घर और अपने वतन को जाऊँ।
\v 26 मेरी बीवियाँ और मेरे बाल बच्चे जिनकी ख़ातिर मैं ने तेरी ख़िदमत की है ~मेरे हवाले कर और मुझे जाने दे, क्यूँकि तू ख़ुद जानता है कि मैंने तेरी कैसी ख़िदमत की है।"
\s5
\v 27 तब लाबन ने उसे कहा, "अगर मुझ पर तेरे करम की नज़र है तो यहीं रह क्यूँकि मैं जान गया हूँ कि ख़ुदावन्द ने तेरी वजह से मुझ को बरकत बख़्शी है।"
\v 28 और यह भी कहा कि मुझ से तू अपनी मज़दूरी ठहरा ले, और मैं तुझे दिया करूँगा।
\s5
\v 29 उसने उसे कहा कि तू ख़ुद जानता है कि मैंने तेरी कैसी ख़िदमत की और तेरे जानवर मेरे साथ कैसे रहे।
\v 30 क्यूँकि मेरे आने से पहले यह थोड़े थे और अब बढ़ कर बहुत से हो गए हैं, और ख़ुदावन्द ने जहाँ जहाँ मेरे क़दम पड़े तुझे बरकत बख़्शी। अब मैं अपने घर का बन्दोबस्त कब करूँ?"
\s5
\v 31 उसने कहा, "तुझे मैं क्या दूँ?" या'क़ूब ने कहा, "तू मुझे कुछ न देना, लेकिन अगर तू मेरे लिए एक काम कर दे तो मैं तेरी भेड़-बकरियों को फिर चराऊँगा और उनकी निगहबानी करूँगा।
\v 32 मैं आज तेरी सब भेड़-बकरियों में चक्कर लगाऊँगा, और जितनी भेड़ें चितली और अबलक और काली हों और जितनी बकरियाँ अबलक और चितली हों उन सबको अलग एक तरफ़ कर दूँगा, इन्हीं को मैं अपनी मज़दूरी ठहराता हूँ।
\s5
\v 33 और आइन्दा जब कभी मेरी मज़दूरी का हिसाब तेरे सामने ही तो मेरी सच्चाई आप मेरी तरफ़ से इस तरह बोल उठेगी, कि जो बकरियाँ चितली और अबलक नहीं और जो भेड़े काली नहीं अगर वह मेरे पास हों तो चुराई हुई समझी जाएँगी।"
\v 34 लाबन ने कहा, "मैं राज़ी हूँ, जो तू कहे वही सही।"
\s5
\v 35 और उसने उसी रोज़ धारीदार और अबलक बकरों की और सब चितली और अबलक बकरियों को जिनमें कुछ सफ़ेदी थी, और तमाम काली भेड़ों को अलग करके उनकी अपने बेटों के हवाले किया।
\v 36 और उसने अपने और या'क़ूब के बीच तीन दिन के सफ़र का फ़ासला ठहराया; और या'क़ूब लाबन के बाक़ी रेवड़ों को चराने लगा।
\s5
\v 37 और या'क़ूब ने सफ़ेदा और बादाम, और चिनार की हरी हरी छड़ियाँ लीं उनको छील छीलकर इस तरह गन्डेदार बना लिया के उन छड़ियों की सफ़ेदी दिखाई देने लगी।
\v 38 और उसने वह गन्डेदार छड़ियाँ भेड़-बकरियों के सामने हौज़ों और नालियों में जहाँ वह पानी पीने आती थीं खड़ी कर दीं, और जब वह पानी पीने आई तब गाभिन हो गई।
\s5
\v 39 और उन छड़ियों के आगे गाभिन होने की वजह से उन्होने धारीदार, चितले और अबलक बच्चे दिए।
\v 40 और या'क़ूब ने भेड़ बकरियों के उन बच्चों को अलग किया, और लाबन की भेड़-बकरियों के मुँह धारीदार और काले बच्चों की तरफ़ फेर दिए और उसने अपने रेवड़ों को जुदा किया, और लाबन की भेड़ बकरियों में मिलने न दिया।
\s5
\v 41 और जब मज़बूत भेड़-बकरियाँ गाभिन होती थीं तो या'क़ूब छड़ियों को नालियों में उनकी आँखों के सामने रख देता था, ताकि वह उन छड़ियों के आगे गाभिन हों।
\v 42 लेकिन जब भेड़ बकरियाँ दुबली होतीं तो वह उनको वहाँ नहीं रखता था। इसलिए दुबली तो लाबन की रहीं और मज़बूत या'क़ूब की हो गई।
\s5
\v 43 चुनाँचे वह निहायत बढ़ता गया और उसके पास बहुत से रेवड़ और लौंडिया और नौकर चाकर और ऊँट और गधे हो गये |
\s5
\c 31
\p
\v 1 और उसने लाबन के बेटों की यह बातें सुनीं, कि या'क़ूब ने हमारे बाप का सब कुछ ले लिया और हमारे बाप के माल की बदौलत उसकी यह सारी शान-ओ- शौकत है।"
\v 2 और या'क़ूब ने लाबन के चेहरे को देख कर ताड़ लिया कि उसका रुख़ पहले से बदला हुआ है।
\v 3 और ख़ुदावन्द ने या'क़ूब से कहा, कि तू अपने बाप दादा के मुल्क को और अपने रिश्तेदारो के पास लौट जा, और मैं तेरे साथ रहूँगा।
\s5
\v 4 तब या'क़ूब ने राख़िल और लियाह को मैदान में जहाँ उसकी भेड़-बकरियाँ थीं बुलवाया
\v 5 और उनसे कहा, "मैं देखता हूँ कि तुम्हारे बाप का रुख़ पहले से बदला हुआ है, लेकिन मेरे बाप का ख़ुदा मेरे साथ रहा।
\v 6 तुम तो जानती हो कि मैंने अपनी ताक़त के मुताबिक़ तुम्हारे बाप की ख़िदमत की है।
\s5
\v 7 लेकिन तुम्हारे बाप ने मुझे धोका दे देकर दस बार मेरी मज़दूरी बदली, लेकिन ख़ुदा ने उसको मुझे नुक़्सान पहुँचाने न दिया।
\v 8 जब उसने यह कहा कि चितले बच्चे तेरी मज़दूरी होंगे, तो भेड़ बकरियाँ चितले बच्चे देने लगीं, और जब कहा कि धारीदार बच्चे तेरे होंगे, तो भेड़-बकरियों ने धारीदार बच्चे दिए।
\v 9 यूँ ख़ुदा ने तुम्हारे बाप के जानवर लेकर मुझे दे दिए।
\s5
\v 10 और जब भेड़ बकरियाँ गाभिन हुई, तो मैंने ख़्वाब में देखा कि जो बकरे बकरियों पर चढ़ रहे हैं वो धारीदार, चितले और चितकबरे हैं।
\v 11 और ख़ुदा के फ़रिश्ते ने ख़्वाब में मुझ से कहा, 'ऐ या'कूब!' मैंने कहा, 'मैं हाज़िर हूँ।'
\s5
\v 12 तब उसने कहा कि अब तू अपनी आँख उठा कर देख, कि सब बकरे जो बकरियों पर चढ़ रहे हैं धारीदार चितले और चितकबरे हैं, क्यूँकि जो कुछ लाबन तुझ से करता है मैंने देखा।
\v 13 मैं बैतएल का ख़ुदा हूँ, जहाँ तूने सुतून पर तेल डाला और मेरी मन्नत मानी, इसलिए अब उठ और इस मुल्क से निकल कर अपने वतन ~को लौट जा'।
\s5
\v 14 तब राख़िल और लियाह ने उसे जवाब दिया, "क्या, अब भी हमारे बाप के घर में कुछ हमारा बख़रा या मीरास है?
\v 15 क्या वह हम को अजनबी के बराबर नहीं समझता? क्यूँकि उसने हम को भी बेच डाला और हमारे रुपये भी खा बैठा।
\v 16 इसलिए अब जो दौलत ख़ुदा ने हमारे बाप से ली वह हमारी और हमारे फ़र्ज़न्दों की है, फिर जो कुछ ख़ुदा ने तुझ से कहा है वही कर।"
\s5
\v 17 तब या'क़ूब ने उठ कर अपने बाल बच्चों और बीवियों को ऊँटों पर बिठाया।
\v 18 और अपने सब जानवरों और माल-ओ-अस्बाब को जो उसने इकट्ठा किया था, या'नी वह जानवर जो उसे फ़द्दान-अराम में मज़दूरी में मिले थे, लेकर चला ताकि मुल्क-ए-कना'न में अपने बाप इस्हाक़ के पास जाए।
\s5
\v 19 और लाबन अपनी भेड़ों की ऊन कतरने को गया हुआ था, तब राख़िल अपने बाप के बुतों को चुरा ले गई।
\v 20 और या'क़ूब लाबन अरामी के पास से चोरी से चला गया, क्यूँकि उसे उसने अपने भागने की ख़बर न दी।
\v 21 फिर वह अपना सब कुछ लेकर भागा और दरिया पार होकर अपना रुख़ कोह-ए-जिल'आद की तरफ किया।
\s5
\v 22 और तीसरे दिन लाबन की ख़बर हुई कि या'क़ूब भाग गया।
\v 23 तब उसने अपने भाइयों को हमराह लेकर सात मन्ज़िल तक उसका पीछा किया, और जिल'आद के पहाड़ पर उसे जा पकड़ा।
\s5
\v 24 और रात को ख़ुदा लाबन अरामी के पास ख़्वाब में आया और उससे कहा कि ख़बरदार, तू या'क़ूब को बुरा या भला कुछ न कहना।
\v 25 और लाबन या'क़ूब के बराबर जा पहुँचा और या'क़ूब ने अपना ख़ेमा पहाड़ पर खड़ा कर रख्खा था। इसलिए लाबन ने भी अपने भाइयों के साथ जिल'आद के पहाड़ पर डेरा लगा लिया।
\s5
\v 26 तब लाबन ने या'क़ूब से कहा, कि तूने यह क्या किया कि मेरे पास से चोरी से चला आया, और मेरी बेटियों को भी इस तरह ले आया गोया वह तलवार से क़ैद की गई हैं?
\v 27 तू छिप कर क्यूँ भागा और मेरे पास से चोरी से क्यूँ चला आया और मुझे कुछ कहा भी नहीं, वरना मैं तुझे खु़शी-खु़शी तबले और बरबत के साथ गाते बजाते रवाना करता?
\v 28 और मुझे अपने बेटों और बेटियों को चूमने भी न दिया? यह तूने बेहूदा काम किया।
\s5
\v 29 मुझ में इतनी ताक़त है कि तुम को दुख दूँ, लेकिन तेरे बाप के ख़ुदा ने कल रात मुझे यूँ कहा, कि ख़बरदार तू या'क़ूब को बुरा या भला कुछ न कहना।'
\v 30 खै़र! अब तू चला आया तो चला आया क्यूँकि तू अपने बाप के घर का बहुत ख़्वाहिश मन्द है, लेकिन मेरे बुतों को क्यूँ चुरा लाया?"
\s5
\v 31 तब या'क़ूब ने लाबन से कहा, "इसलिए कि मैं डरा, क्यूँकि कि मैंने सोचा कि कहीं तू अपनी बेटियों को जबरन मुझ से छीन न ले।
\v 32 अब जिसके पास तुझे तेरे बुत मिलें वह ज़िन्दा नहीं बचेगा। तेरा जो कुछ मेरे पास निकले उसे इन भाइयों के आगे पहचान कर ले।" क्यूँकि या'क़ूब को मा'लूम न था कि राख़िल उन बुतों को चुरा लाई है।
\s5
\v 33 चुनांचे लाबन या'क़ूब और लियाह और दोनों लौंडियों के ख़ेमों में गया लेकिन उनको वहाँ न पाया, तब वह लियाह के ख़ेमा से निकल कर राख़िल के ख़ेमे में दाख़िल हुआ।
\s5
\v 34 और राख़िल उन बुतों को लेकर और उनकी ऊँट के कजावे में रख कर उन पर बैठ गई थी, और लाबन ने सारे ख़में में टटोल टटोल कर देख लिया पर उनको न पाया।
\v 35 तब वह अपने बाप से कहने लगी, "ऐ मेरे बुज़ुर्ग! तू इस बात से नाराज़ न होना कि मैं तेरे आगे उठ नहीं सकती, क्यूँकि मैं ऐसे हाल में हूँ जो 'औरतों का हुआ करता है।" तब उसने ढूंडा पर वह बुत उसको न मिले।
\s5
\v 36 तब या'क़ूब ने ग़ुस्सा होकर लाबन को मलामत की और या'क़ूब लाबन से कहने लगा कि मेरा क्या जुर्म और क्या क़ुसूर है कि तूने ऐसी तेज़ी से मेरा पीछा किया?
\v 37 तूने जो मेरा सारा सामान टटोल-टटोल कर देख लिया तो तुझे तेरे घर के सामान में से क्या चीज़ मिली? अगर कुछ है तो उसे मेरे और अपने इन भाइयो के आगे रख, कि वह हम दोनों के बीच इंसाफ़ करें।
\s5
\v 38 मैं पूरे बीस साल तेरे साथ रहा; न तो कभी तेरी भेड़ों और बकरियों का गाभ गिरा, और न तेरे रेवड़ के मेंढे मैंने खाए।
\v 39 जिसे दरिन्दों ने फाड़ा मैं उसे तेरे पास न लाया, उसका नुक़्सान मैंने सहा; जो दिन की या रात को चोरी गया उसे तूने मुझ से तलब किया।
\v 40 मेरा हाल यह रहा कि मैं दिन को गर्मी और रात को सर्दी में मरा और मेरी आँखों से नींद दूर रहती थी।
\s5
\v 41 मैं बीस साल तक तेरे घर में रहा, चौदह साल तक तो मैंने तेरी दोनों बेटियों की ख़ातिर और छ: साल तक तेरी भेड़ बकरियों की ख़ातिर तेरी ख़िदमत की, और तूने दस बार मेरी मज़दूरी बदल डाली।
\v 42 अगर मेरे बाप का ख़ुदा इब्राहीम का मा'बूद जिसका रौब इस्हाक़ मानता था, मेरी तरफ़ न होता तो ज़रूर ही तू अब मुझे ख़ाली हाथ जाने देता। ख़ुदा ने मेरी मुसीबत और मेरे हाथों की मेहनत देखी है और कल रात तुझे डाँटा भी।"
\s5
\v 43 तब लाबन ने या'क़ूब को जवाब दिया, "यह बेटियाँ भी मेरी और यह लड़के भी मेरे और यह भेड़ बकरियाँ भी मेरी हैं, बल्कि जो कुछ तुझे दिखाई देता है वह सब मेरा ही है। इसलिए मैं आज के दिन अपनी ही बेटियों से या उनके लड़कों से जो उनके हुए क्या कर सकता हूँ?
\v 44 फिर अब आ, कि मैं और तू दोनों मिल कर आपस में एक 'अहद बाँधे और वही मेरे और तेरे बीच गवाह रहे।
\s5
\v 45 तब या'क़ूब ने एक पत्थर लेकर उसे सुतून की तरह खड़ा किया।
\v 46 और या'क़ूब ने अपने भाइयों से कहा, "पत्थर जमा' करो!" उन्होंने पत्थर जमा' करके ढेर लगाया और वहीं उस ढेर के पास उन्होंने खाना खाया।
\v 47 और लाबन ने उसका नाम यज्र शाहदूथा और या'क़ूब ने जिल'आद रख्खा।
\s5
\v 48 और लाबन ने कहा कि यह ढेर आज के दिन मेरे और तेरे बीच गवाह हो। इसी लिए उसका नाम जिल'आद रख्खा गया।
\v 49 और मिस्फ़ाह भी क्यूँकि लाबन ने कहा कि जब हम एक दूसरे से गैर हाज़िर हों तो ख़ुदावन्द मेरे और तेरे बीच निगरानी करता रहे।
\v 50 अगर तू मेरी बेटियों को दुख दे और उनके अलावा और बीवियाँ करे तो कोई आदमी हमारे साथ नहीं है लेकिन देख ख़ुदा मेरे और तेरे बीच में गवाह है।
\s5
\v 51 लाबन ने या'क़ूब से यह भी कहा कि इस ढेर को देख और उस सुतून को देख जो मैंने अपने और तेरे बीच में खड़ा किया है |
\v 52 यह ढेर गवाह हो और ये सुतून गवाह हो, नुक़सान पहुँचाने के लिए न तो मैं इस ढेर से उधर तेरी तरफ़ हद से बढूँ और न तू इस ढेर और सुतून से इधर मेरी तरफ़ हद से बढ़े।
\v 53 इब्राहीम का ख़ुदा और नहूर का ख़ुदा और उनके बाप का ख़ुदा हमारे बीच में इंसाफ़ करे।" और या'क़ूब ने उस ज़ात की क़सम खाई जिसका रौ'ब उसका बाप इस्हाक़ मानता था।
\s5
\v 54 तब या'क़ूब ने वहीं पहाड़ पर क़ुर्बानी पेश की और अपने भाइयों को खाने पर बुलाया, और उन्होंने खाना खाया और रात पहाड़ पर काटी।
\v 55 और लाबन सुबह-सवेरे उठा और अपने बेटों और अपनी बेटियों को चूमा और उनको दु'आ देकर रवाना हो गया और अपने मकान को लौटा।
\s5
\c 32
\p
\v 1 और या'क़ूब ने भी अपनी राह ली और ख़ुदा के फ़रिश्ता उसे मिले।
\v 2 और या'क़ूब ने उनको देख कर कहा, कि यह ख़ुदा का लश्कर है और उस जगह का नाम महनाइम रख्खा।
\s5
\v 3 और या'क़ूब ने अपने आगे-आगे क़ासिदों को अदोम के मुल्क को, जो श'ईर की सर-ज़मीन में है, अपने भाई 'ऐसौ के पास भेजा,
\v 4 और उनको हुक्म दिया, कि तुम मेरे ख़ुदावन्द 'ऐसौ से यह कहना कि आपका बन्दा या'क़ूब कहता है, कि मै लाबन के यहाँ मुक़ीम था और अब तक वहीं रहा |
\v 5 और मेरे पास गाय बैल गधे और भेड़ बकरियाँ और नौकर चाकर और लौंडियाँ है और मै अपने ख़ुदावन्द के पास इसलिए ख़बर भेजता हूँ कि मुझ पर आप के करम की नज़र हो
\s5
\v 6 फिर क़ासिद या'क़ूब के पास ~लौट कर आए और कहने लगे कि हम भाई 'ऐसौ के पास गए थे ;वह चार सौ आदमियों को साथ लेकर तेरी मुलाक़ात को आ रहा है
\v 7 तब या'क़ूब निहायत डर गया और परेशान हो और उस ने अपने साथ के लोगों और भेड़ बकरियों और गाये बैलों और ऊँटों के दो ग़ोल किए
\v 8 और सोचा कि 'ऐसौ एक ग़ोल पर आ पड़े और उसे मारे तो दुसरा ग़ोल बच कर भाग जाएगा
\s5
\v 9 और या'क़ूब ने कहा ऐ मेरे बापअब्राहम के ख़ुदा और मेरे बाप इस्हाक़ के ख़ुदा !ऐ ख़ुदावन्द जिस ने मुझे यह~फ़रमाया कि तू अपने मुल्क को अपने रिश्तादारों के पास लौट जा और मैं तेरे साथ भलाई करूँगा
\v 10 मै तेरी सब रहमतों और वफ़ादारी के मुक़ाबला में जो तूने अपने बन्दा के साथ बरती है बिल्कुल हेच हूँ क्यूँकि मै सिर्फ़ अपनी लाठी लेकर इस यरदन के पार गया था और अब ऐसा हूँ कि मेरे दो ग़ोल हैं
\s5
\v 11 मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि मुझे मेरे भाई 'ऐसौ के हाथ से बचा ले क्यूँकि मै उस से डरता हूँ कि कहीं वह आकर मुझे और बच्चों को माँ समेत मार न डाले
\v 12 यह तेरा ही फ़रमान है कि मैं तेरे साथ ज़रूर भलाई करूँगा और तेरी नसल को दरिया की रेत की तरह बनाऊंगा जो कसरत की वजह से गिनी नहीं जा सकती |
\s5
\v 13 और वह उस रात वही रहा और जो उसके पास था उस में से अपने भाई 'ऐसौ के लिए यह नज़राना लिया |
\v 14 दो सौ बकरियां और बीस बकरे ;दो सौ भेड़ें और बीस मेंढ़े |
\v 15 और तीस दूध देने वाली ऊँटनीयां बच्चों समेत और चालीस गाय और दस बैल बीस गधियाँ और दस गधे
\v 16 और उनको जुदा-जुदा ग़ोल कर के नौकरों को सौंपना और उन से कहा कि तुम मेरे आगे आगे पार जाओ और ग़ोलों को ज़रा दूर दूर रखना |
\s5
\v 17 और उसने सब से अगले ग़ोल के रखवाले को हुक्म दिया कि जब मेरा भाई 'एेसौ तुझे मिले और तुझ से पूछे कि तू किस का नौकर है और कहाँ जाता है और यह~जानवर जो तेरे आगे आगे हैं किस के हैं ?
\v 18 तू कहना कि यह तेरे ख़ादिम या'क़ूब के हैं, यह नज़राना है जो मेरे ख़ुदावन्द 'ऐसौ के लिए भेजा गया है और वह ख़ुद भी हमारे पीछे पीछे आ रहा है |
\s5
\v 19 और उस ने दूसरे और तीसरे को ग़ोलों के सब रखवालों को हुक्म दिया कि जब 'एसौ तुमको मिले तो तुम यही बात कहना |
\v 20 और यह भी कहना कि तेरा ख़ादिम या'क़ूब ख़ुद भी हमारे पीछे पीछे आ रहा है, उस ने यह सोचा कि मैं इस नज़राना से जो मुझ से पहले वहाँ जायेगा उसे ख़ुश कर लूँ, तब उस का मुँह देखूँगा, शायद यूँ वह मुझको क़ुबूल कर ले |
\v 21 चुनाँचे वह नज़राना उसके आगे आगे पार गया लेकिन वह ख़ुद उस रात अपने डेरे में रहा |
\s5
\v 22 और वह उसी रात उठा और अपनी दोनों बीवियों दोनों लौंडियों और ग्यारह बेटों को लेकर उनको यबूक के घाट से पार उतारा |
\v 23 और उनको लेकर नदी पार कराया और अपना सब कुछ पार भेज दिया |
\s5
\v 24 और या'क़ूब अकेला रह गया और पौ फटने के वक़्त तक एक शख़्स वहाँ उस से कुश्ती लड़ता रहा |
\v 25 जब उसने देखा कि वह उस पर ग़ालिब नहीं होता, तो उसकी रान को अन्दर की तरफ़ से छुआ और या'क़ूब की रान की नस उसके साथ कुश्ती करने में चढ़ गई।
\v 26 और उसने कहा, "मुझे जाने दे क्यूँकि पौ फट चली, ” या'क़ूब ने कहा, "जब तक तू मुझे बरकत न दे, मैं तुझे जाने नहीं दूँगा।"
\s5
\v 27 तब उसने उससे पूछा, "तेरा क्या नाम है? उसने जवाब दिया, "या'क़ूब।"
\v 28 उसने कहा, "तेरा नाम आगे को या'क़ूब नहीं बल्कि इस्राईल होगा, क्यूँकि तूने ख़ुदा और आदमियों के साथ ज़ोर आज़माई की और ग़ालिब हुआ।"
\s5
\v 29 तब या'क़ूब ने उससे कहा, "मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, तू मुझे अपना नाम बता दे।" उसने कहा, "तू मेरा नाम क्यूँ पूछता है?” और उसने उसे वहाँ बरकत दी।
\v 30 और या'क़ूब ने उस जगह का नाम फ़नीएल रख्खा और कहा, "मैंने ख़ुदा को आमने सामने ~देखा, तो भी मेरी जान बची रही।"
\s5
\v 31 और जब वह फ़नीएल से गुज़र रहा था तो आफ़ताब तुलू' हुआ और वह अपनी रान से लंगड़ाता था।
\v 32 इसी वजह से बनी इस्राईल उस नस की जो रान में अन्दर की तरफ़ है आज तक नहीं खाते, क्यूँकि उस शख़्स ने या'क़ूब की रान की नस को जो अन्दर की तरफ़ से चढ़ गई थी छू दिया था।
\s5
\c 33
\p
\v 1 और या'क़ूब ने अपनी आँखें उठा कर नज़र की और क्या देखता है कि 'ऐसौ चार सौ आदमी साथ लिए चला आ रहा है। तब उसने लियाह और राख़िल और दोनों लौंडियों को बच्चे बाँट दिए।
\v 2 और लौंडियों और उनके बच्चों को सबसे आगे, और लियाह और उसके बच्चों को पीछे, और राख़िल और यूसुफ़ को सबसे पीछे रख्खा।
\v 3 और वह खुद उनके आगे-आगे चला और अपने भाई के पास पहुँचते-पहुँचते सात बार ज़मीन तक झुका।
\s5
\v 4 और 'ऐसौ उससे मिलने को दौड़ा, और उससे बग़लगीर ~हुआ और उसे गले लगाया और चूमा, और वह दोनों रोए।
\v 5 फिर उसने आँखें उठाई और 'औरतों और बच्चों को देखा और कहा कि यह तेरे साथ कौन हैं? उसने कहा, 'यह वह बच्चे हैं जो ख़ुदा ने तेरे ख़ादिम को इनायत किए हैं।"
\s5
\v 6 तब लौडियाँ और उनके बच्चे नज़दीक आए और अपने आप को झुकाया।
\v 7 फिर लियाह अपने बच्चों के साथ नज़दीक आई और वह झुके, आख़िर को यूसुफ़ और राख़िल पास आए और उन्होंने अपने आप को झुकाया।
\v 8 फिर उसने कहा कि उस बड़े गोल से जो मुझे मिला तेरा क्या मतलब है?" उसने कहा, "यह कि मैं अपने ख़ुदावन्द की नज़र में मक़्बूल ठहरूँ।
\s5
\v 9 तब 'ऐसौ ने कहा, "मेरे पास बहुत हैं; इसलिए ऐ मेरे भाई जो तेरा है वह तेरा ही रहे।"
\v 10 या'क़ूब ने कहा, "नहीं अगर मुझ पर तेरे करम की नज़र हुई है तो मेरा नज़राना मेरे हाथ से क़ुबूल कर, क्यूँकि मैंने तो तेरा मुँह ऐसा देखा जैसा कोई ख़ुदा का मुँह देखता है, और तू मुझ से राज़ी हुआ।
\v 11 इसलिए मेरा नज़राना जो तेरे सामने पेश हुआ उसे क़ुबूल कर ले, क्यूँकि ख़ुदा ने मुझ पर बड़ा फ़ज़ल किया है और मेरे पास सब कुछ है।" ग़र्ज़ उसने उसे मजबूर किया, तब उसने उसे ले लिया।
\s5
\v 12 और उसने कहा कि अब हम कूच करें और चल पड़ें, और मैं तेरे आगे-आगे हो लूँगा।
\v 13 उसने उसे जवाब दिया, "मेरा ख़ुदावन्द जानता है कि मेरे साथ नाज़ुक बच्चे और दूध पिलाने वाली भेड़-बकरियाँ और गाय हैं। अगर उनकी एक दिन भी हद से ज़्यादा हंकाएँ तो सब भेड़ बकरियाँ मर जाएँगी।
\v 14 इसलिए मेरा ख़ुदावन्द अपने ख़ादिम से पहले रवाना हो जाए, और मैं चौपायों और बच्चों की रफ़्तार के मुताबिक़ आहिस्ता-आहिस्ता चलता हुआ अपने ख़ुदावन्द के पास श'ईर में आ जाऊँगा।"
\s5
\v 15 तब 'ऐसौ ने कहा कि मर्ज़ी हो तो मैं जो लोग मेरे साथ हैं उनमें से थोड़े तेरे साथ छोड़ता जाऊँ। उसने कहा, "इसकी क्या ज़रूरत है? मेरे ख़ुदावन्द की नज़र-ए- करम मेरे लिए काफ़ी है।"
\v 16 तब 'ऐसौ उसी रोज़ उल्टे पाँव श'ईर को लौटा।
\v 17 और या'क़ूब सफ़र करता हुआ सुक्कात में आया, और अपने लिए एक घर बनाया और अपने चौपायों के लिए झोंपड़े खड़े किए। इसी वजह से इस जगह का नाम सुक्कात पड़ गया।
\s5
\v 18 और या'क़ूब जब फ़द्दान अराम से चला तो मुल्क-ए-कना'न के एक शहर सिक्म के नज़दीक सही-ओ-सलामत पहुँचा और उस शहर के सामने अपने डेरे लगाए।
\v 19 और ज़मीन के जिस हिस्से पर उसने अपना ख़ेमा खड़ा किया था, उसे उसने सिक्म के बाप हमीर के लड़कों से चाँदी के सौ सिक्के देकर ख़रीद लिया।
\v 20 और उसने वहाँ एक मसबह बनाया और उसका नाम ~एल-इलाह-ए-इस्राईल रख्खा ।
\s5
\c 34
\p
\v 1 और लियाह की बेटी दीना जो या'क़ूब से उसके पैदा हुई थी, उस मुल्क की लड़कियों के देखने को बाहर गई।
\v 2 तब उस मुल्क के अमीर हवी हमोर के बेटे सिक्म ने उसे देखा, और उसे ले जाकर उसके साथ मुबाश्रत की और उसे ज़लील किया।
\v 3 और उसका दिल या'क़ूब की बेटी दीना से लग गया, और उसने उस लड़की से 'इश्क में मीठी-मीठी बातें कीं।
\s5
\v 4 और सिक्म ने अपने बाप हमीर से कहा कि इस लड़की को मेरे लिए ब्याह ला दे।
\v 5 और या'क़ूब को मा'लूम हुआ कि उसने उसकी बेटी दीना को बे इज़्ज़त किया है। लेकिन उसके बेटे चौपायों के साथ जंगल में थे इसलिए या'क़ूब उनके आने तक चुपका रहा।
\s5
\v 6 तब सिक्म का बाप हमीर निकल कर या'क़ूब से बातचीत करने को उसके पास गया।
\v 7 और या'क़ूब के बेटे यह बात सुनते ही जंगल से आए। यह शख़्स बड़े नाराज़ और ख़ौफ़नाक थे, क्यूँकि उसने जो या'क़ूब की बेटी से मुबाश्रत की तो बनी-इस्राईल में ऐसा मकरूह फ़ेल किया जो हरगिज़ मुनासिब न था।
\s5
\v 8 तब हमूर उन से कहने लगा कि मेरा बेटा सिक्म तुम्हारी बेटी को दिल से चाहता है, उसे उसके साथ ब्याह दो ।
\v 9 हम से समधियाना कर लो; अपनी बेटियाँ हम को दो और हमारी बेटियाँ आप लो।
\v 10 तो तुम हमारे साथ बसे रहोगे और यह मुल्क तुम्हारे सामने है, इसमें ठहरना और तिजारत करना और अपनी जायदादें खड़ी कर लेना।"
\s5
\v 11 और सिक्म ने इस लड़की के बाप और भाइयों से कहा, कि मुझ पर बस तुम्हारे करम की नज़र हो जाए, फिर जो कुछ तुम मुझ से कहोगे मैं दूँगा।
\v 12 मैं तुम्हारे कहने के मुताबिक़ जितना मेहर और जहेज़ तुम मुझ से तलब करो, दूँगा लेकिन लड़की को मुझ से ब्याह दो।"
\v 13 तब या'क़ूब के बेटों ने इस वजह से कि उसने उनकी बहन दीना को बे'इज़्ज़त किया था, रिया से सिक्म और उसके बाप हमीर को जवाब दिया,
\s5
\v 14 और कहने लगे, "हम यह नहीं कर सकते कि नामख़्तून ~आदमी को अपनी बहन दें, क्यूँकि इसमें हमारी बड़ी रुस्वाई है।
\v 15 लेकिन जैसे हम हैं अगर तुम वैसे ही हो जाओ, कि तुम्हारे हर आदमियों का ख़तना कर दिया जाए तो हम राज़ी हो जाएँगे।
\v 16 और हम अपनी बेटियाँ तुम्हे देंगे और तुम्हारी बेटियाँ लेंगे और तुम्हारे साथ रहेंगे और हम सब एक क़ौम हो जाएँगे।
\v 17 और अगर तुम ख़तना कराने के लिए हमारी बात न मानी तो हम अपनी लड़की लेकर चले जाएँगे।"
\s5
\v 18 उनकी बातें हमीर और उसके बेटे सिक्म को पसन्द आई।
\v 19 और उस जवान ने इस काम में ताख़ीर न की क्यूँकि उसे या'क़ूब की बेटी की चाहत थी, और वह अपने बाप के सारे घराने में सबसे ख़ास था।
\s5
\v 20 फिर हमीर और उसका बेटा सिक्म अपने शहर के फाटक पर गए और अपने शहर के लोगों से यूँ बातें करने लगे कि,
\v 21 यह लोग हम से मेल जोल रखते हैं; तब वह इस मुल्क में रह कर सौदागरी करें, क्यूँकि इस मुल्क में उनके लिए बहुत गुन्जाइश है, और हम उनकी बेटियाँ ब्याह लें और अपनी बेटियाँ उनकी दें।
\s5
\v 22 और वह भी हमारे साथ रहने और एक क़ौम बन जाने को राज़ी हैं, मगर सिर्फ़ इस शर्त पर कि हम में से हर आदमी का ख़तना किया जाए जैसा उनका हुआ है।
\v 23 क्या उनके चौपाए और माल और सब जानवर हमारे न हो जाएँगे? हम सिर्फ़ उनकी मान लें और वह हमारे साथ रहने लगेंगे।
\s5
\v 24 तब उन सभों ने जो उसके शहर के फाटक से आया-जाया करते थे, हमीर और उसके बेटे सिक्म की बात मानी और जितने उसके शहर के फाटक से आया-जाया करते थे उनमें से हर आदमी ने ख़तना कराया।
\v 25 और तीसरे दिन जब वह दर्द में मुब्तिला थे, तो यूँ हुआ कि या'क़ूब के बेटों में से दीना के दो भाई, शमा'ऊन और लावी, अपनीअपनी तलवार लेकर अचानक शहर पर आ पड़े और सब आदमियों को क़त्ल किया।
\v 26 और हमोर और उसके बेटे सिक्म को भी तलवार से क़त्ल कर डाला और सिक्म के घर से दीना को निकाल ले गए।
\s5
\v 27 और या'क़ूब के बेटे मक़्तूलों पर आए और शहर को लूटा, इसलिए कि उन्होंने उनकी बहन को बे'इज़्ज़त किया था।
\v 28 उन्होंने उनकी भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल, गधे और जो कुछ शहर और खेत में था ले लिया।
\v 29 और उनकी सब दौलत लूटी और उनके बच्चों और बीवियों को क़ब्ज़े में कर लिया, और जो कुछ घर में था सब लूट-घसूट कर ले गए।
\s5
\v 30 तब या'क़ूब ने शमा'ऊन और लावी से कहा, कि तुम ने मुझे कुढ़ाया क्यूँकि तुम ने मुझे इस मुल्क के बाशिन्दों, या'नी कना'नियों और फ़रिज़्ज़ियों में नफ़रतअंगेज बना दिया, क्यूँकि मेरे साथ तो थोड़े ही आदमी हैं; अब वह मिल कर मेरे मुक़ाबिले को आएँगे और मुझे क़त्ल कर देंगे, और मैं अपने घराने समेत बर्बाद हो जाऊँगा।
\v 31 उन्होंने कहा, "तो क्या उसे मुनासिब था कि वह हमारी बहन के साथ कसबी की तरह बर्ताव करता?"
\s5
\c 35
\p
\v 1 और ख़ुदा ने या'क़ूब से कहा, कि उठ बैतएल को जा और वहीं रह और वहाँ ख़ुदा के लिए, जो तुझे उस वक़्त दिखाई दिया जब तू अपने भाई 'ऐसौ के पास से भागा जा रहा था, एक मज़बह बना।
\v 2 तब या'क़ूब ने अपने घराने और अपने सब साथियों से कहा ग़ैर मा'बूदों को जो तुम्हारे बीच हैं दूर करो, और पाकी हासिल ~करके अपने कपड़े बदल डालो।
\v 3 और आओ, हम रवाना हों और बैत-एल को जाएँ, वहाँ मैं ख़ुदा के लिए जिसने मेरी तंगी के दिन मेरी दु'आ क़ुबूल की और जिस राह में मैं चला मेरे साथ रहा, मज़बह बनाऊँगा।"
\s5
\v 4 तब उन्होंने सब ग़ैर मा'बूदों को जो उनके पास थे और मुन्दरों को जो उनके कानों में थे, या'क़ूब को दे दिया और या'क़ूब ने उनको उस बलूत के दरख़्त के नीचे जो सिक्म के नज़दीक था दबा दिया।
\v 5 और उन्होंने कूच किया और उनके आस पास के शहरों पर ऐसा बड़ा ख़ौफ़ छाया हुआ था कि उन्होंने या'क़ूब के बेटों का पीछा न किया।
\s5
\v 6 और या'क़ूब उन सब लोगों के साथ जो उसके साथ थे लूज़ पहुँचा, बैत-एल यही है और मुल्क-ए-कना'न में है।
\v 7 और उसने वहाँ मज़बह बनाया और उस मुक़ाम ~का नाम एल-बैतएल रख्खा, क्यूँकि जब वह अपने भाई के पास से भागा जा रहा था तो ख़ुदा वहीं उस पर ज़ाहिर हुआ था।
\v 8 और रिब्क़ा की दाया दबोरा मर गई और वह बैतएल की उतराई में बलूत के दरख़्त के नीचे दफ़्न हुई, और उस बलूत का नाम अल्लोन बकूत रख्खा गया।
\s5
\v 9 और या'क़ूब के फ़द्दान अराम से आने के बा'द ख़ुदा उसे फिर दिखाई दिया और उसे बरकत बख़्शी।
\v 10 और ख़ुदा ने उसे कहा कि तेरा नाम या'क़ूब है; तेरा नाम आगे को या'क़ूब न कहलाएगा, बल्कि तेरा नाम इस्राईल होगा। तब उसने उसका नाम इस्राईल रख्खा।
\s5
\v 11 फिर ख़ुदा ने उसे कहा, कि मैं ख़ुदा-ए- क़ादिर-ए-मुतलक हूँ, तू कामयाब हो और बहुत हो जा। तुझ से एक क़ौम, बल्कि क़ौमों के क़बीले पैदा होंगे और बादशाह तेरे सुल्ब से निकलेंगे।
\v 12 और यह मुल्क जो मैंने इब्राहीम और इस्हाक़ को दिया है, वह तुझ को दूँगा और तेरे बा'द तेरी नसल को भी यही मुल्क दूँगा।"
\v 13 और ख़ुदा जिस जगह उससे हम कलाम हुआ, वहीं से उसके पास से ऊपर चला गया।
\s5
\v 14 तब या'क़ूब ने उस जगह जहाँ वह उससे हम-कलाम हुआ, पत्थर का एक सुतून खड़ा किया और उस पर तपावन किया और तेल डाला।
\v 15 और या'क़ूब ने उस मक़ाम का नाम जहाँ ख़ुदा उससे हम कलाम हुआ 'बैतएल' रख्खा।
\s5
\v 16 और वह बैतएल से चले और इफ़रात थोड़ी ही दूर रह गया था कि राख़िल के दर्द-ए- ज़िह लगा, और वज़ा'-ए-हम्ल में निहायत दिक्कत हुई।
\v 17 और जब वह सख़्त दर्द में मुब्तिला थी तो दाई ने उससे कहा, "डर मत, अब के भी तेरे बेटा ही होगा।"
\v 18 और यूँ हुआ कि उसने मरते-मरते उसका नाम बिनऊनी रख्खा और मर गई, लेकिन उसके बाप ने उसका नाम बिनयमीन रख्खा।
\v 19 और राख़िल मर गई और इफ़रात, या'नी बैतलहम के रास्ते में दफ़्न हुई।
\v 20 और या'क़ूब ने उसकी क़ब्र पर एक सुतून खड़ा कर दिया। राख़िल की क़ब्र का यह सुतून आज तक मौजूद है।
\s5
\v 21 और इस्राईल आगे बढ़ा और 'अद्र के बुर्ज की परली तरफ़ अपना डेरा लगाया।
\v 22 और इस्राईल के उस मुल्क में रहते हुए ऐसा हुआ कि रूबिन ने जाकर अपने बाप की हरम बिल्हाह से मुबाश्रत की और इस्राईल को यह मा'लूम हो गया।
\s5
\v 23 उस वक़्त या'क़ूब के बारह बेटे थे लियाह के बेटे यह थे : रूबिन या'क़ूब का पहलौठा, और शमा'ऊन और लावी और यहूदाह, इश्कार और ज़बूलून।
\v 24 और राख़िल के बेटे : युसुफ़ और बिनयमीन थे।
\v 25 और राख़िल की लौंडी बिल्हाह के बेटे, दान और नफ़्ताली थे।
\s5
\v 26 और लियाह की लौडी ज़िलफ़ा के बेटे, जद और आशर थे। यह सब या'क़ूब के बेटे हैं जो फ़द्दान अराम में पैदा हुए।
\v 27 और या'क़ूब ममरे में जो करयत अरबा' या'नी हबरून है जहाँ इब्राहीम और इस्हाक़ ने डेरा किया था, अपने बाप इस्हाक़ के पास आया।
\s5
\v 28 और इस्हाक़ एक सौ अस्सी साल का हुआ।
\v 29 तब इस्हाक़ ने दम छोड़ दिया और वफ़ात पाई और बूढ़ा और पूरी 'उम्र का हो कर अपने लोगों में जा मिला, और उसके बेटों 'ऐसौ और या'क़ूब ने उसे दफ़न किया।
\s5
\c 36
\p
\v 1 और 'ऐसौ या'नी अदोम का नसबनामा यह है।
\v 2 'ऐसौ कना'नी लड़कियों में से हिती ऐलोन की बेटी 'अद्दा को, और हवी सबा'ओन की नवासी और 'अना की बेटी उहलीबामा की,
\v 3 और इस्मा'ईल की बेटी और नबायोत की बहन बशामा को ब्याह लाया।
\s5
\v 4 और 'ऐसौ से 'अद्दा के इलीफ़ज़ पैदा हुआ, और बशामा के र'ऊएल पैदा हुआ,
\v 5 और उहलीबामा के य'ओस और यालाम और क़ोरह पैदा हुए। यह 'ऐसौ के बेटे हैं जो मुल्क-ए-कना'न में पैदा हुए।
\s5
\v 6 और 'ऐसौ अपनी बीवियों और बेटे बेटियों और अपने घर के सब नौकर चाकरों और अपने चौपायों और तमाम जानवरों और अपने सब माल अस्बाब को, जो उसने मुल्कए-कना'न में जमा' किया था, लेकर अपने भाई या'क़ूब के पास से एक दूसरे मुल्क को चला गया।
\v 7 क्यूँकि उनके पास इस क़दर सामान हो गया था कि वह एक जगह रह नहीं सकते थे, और उनके चौपायों की कसरत की वजह से उस ज़मीन में जहाँ उनका क़याम था गुंजाइश न थी।
\v 8 तब 'ऐसौ जिसे अदोम भी कहते हैं, कोह-ए-श'ईर में रहने लगा।
\s5
\v 9 और 'ऐसौ का जो कोह-ए-श'ईर के अदोमियों का बाप है यह नसबनामा है।
\v 10 'ऐसौ के बेटों के नाम यह हैं : इलीफ़ज़, 'ऐसौ की बीवी 'अद्दा का बेटा; और र'ऊएल, 'ऐसौ की बीवी बशामा का बेटा।
\v 11 इलीफ़ज़ के बेटे, तेमान और ओमर और सफ़ी और जा'ताम और कनज़ थे।
\v 12 और तिमना' 'ऐसौ के बेटे इलीफ़ज़ की हरम थी, और इलीफ़ज़ से उसके 'अमालीक पैदा हुआ; और 'ऐसौ की बीवी 'अद्दा के बेटे यह थे।
\s5
\v 13 र'ऊएल के बेटे यह हैं : नहत और ज़ारह और सम्मा और मिज़्ज़ा, यह 'ऐसौ की बीवी बशामा के बेटे थे।
\v 14 और उहलीबामा के बेटे, जो 'अना की बेटी सबा'ओन की नवासी और 'ऐसौ की बीवी थी, यह हैं : 'ऐसौ से उसके य'ओस और या लाम और कोरह पैदा हुए।
\s5
\v 15 और 'ऐसौ की औलाद में जो रईस थे वह यह हैं : 'ऐसी के पहलौटे बेटे इलीफ़ज़ की औलाद में रईस तेमान, रईस ओमर, रईस सफ़ी, रईस कनज़,
\v 16 रईस कोरह, रईस जा'ताम, रईस 'अमालीक। यह वह रईस हैं जो इलीफ़ज़ से मुल्क-ए-अदोम में पैदा हुए और 'अद्दा के फ़र्ज़न्द थे।
\s5
\v 17 और र'ऊएल-बिन 'ऐसौ के बेटे यह हैं : रईस नहत, रईस ज़ारह, रईस सम्मा, रईस मिज़्ज़ा। यह वह रईस हैं जो र'ऊएल से मुल्क-ए-अदोम में पैदा हुए और "ऐसौ की बीवी बशामा के फ़ज़न्द थे।
\v 18 और 'ऐसौ की बीवी उहलीबामा की औलाद यह हैं : रईस य'ऊस, रईस या'लाम, रईस कोरह। यह वह रईस हैं जो 'ऐसौ की बीवी उहलीबामा बिन्त 'अना के फ़र्ज़न्द थे।
\v 19 और 'ऐसौ या'नी अदोम की औलाद और उनके रईस यह हैं।
\s5
\v 20 और श'ईर होरी के बेटे जो उस मुल्क के बाशिन्दे थे, यह हैं : लोप्तान अौर सोबल और सबा'ओन और 'अना
\v 21 और दीसोन और एसर और दीसान; बनी श'ईर में से जो होरी रईस मुल्क-ए-अदोम में हुए ये हैं।
\v 22 होरी और हीमाम लोतान के बेटे, और तिम्ना' लोतान की बहन थी।
\s5
\v 23 और यह सोबल के बेटे हैं : 'अलवान और मानहत और "एबाल और सफ़ी और ओनाम।
\v 24 और सबा'ओन के बेटे यह हैं : आया और 'अना; यह वह 'अना है जिसे अपने बाप के गधों को वीराने में चराते वक़्त गर्म चश्मे मिले।
\s5
\v 25 और 'अना की औलाद यह हैं : दीसोन और उहलीबामा बिन्त 'अना।
\v 26 और दीसोन के बेटे यह हैं : हमदान और इशबान और यित्रान और किरान।
\v 27 यह एसर के बेटे हैं : बिलहान और ज़ावान और 'अकान।
\v 28 दीसान के बेटे यह है : 'ऊज़ और इरान।
\s5
\v 29 जो होरियों में से रईस हुए वह यह हैं : रईस 'लुतान, रईस, सोबल 'रईस सब'उन और रईस 'अना,
\v 30 रईस दीसोन, रईस एसर, रईस दीसान; यह उन होरियों के रईस हैं जो मुल्कए-श'ईर में थे।
\s5
\v 31 यही वह बादशाह हैं जो मुल्क-ए- अदोम से पहले उससे कि इस्त्राईल का कोई बादशाह हो, मुसल्लत थे।
\v 32 बाला'-बिनब'ओर अदोम में एक बादशाह था, और उसके शहर का नाम दिन्हाबा था।
\v 33 बाला' मर गया और यूबाब-बिन ज़ारह जो बुसराही था, उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\v 34 फिर यूबाब मर गया और हुशीम जो तेमानियों के मुल्क का बाशिन्दा था, उसका जानशीन हुआ।
\v 35 और हुशीम मर गया और हदद-बिन-बदद जिसने मोआब के मैदान में मिदियानियों को मारा, उसका जानशीन हुआ और उसके शहर का नाम 'अवीत था।
\v 36 और हदद मर गया और शम्ला जो मुसरिका का था उसका जानशीन हुआ।
\s5
\v 37 और शमला ~मर गया और साउल उसका ~जानशीन हुआ ये रहुबुत का था जो दरियाई फुर्रात के बराबर है ।
\v 38 और साऊल मर गया और बा'लहनानबिन-'अकबूर उसका जानशीन हुआ।
\v 39 और बा'लहनान-बिन-'अकबूर मर गया और हदर उसका जानशीन हुआ, औरउसके शहर का नाम पाऊ और उसकी बीवी का नाम महेतबएल था, जो मतरिद की बेटी और मेज़ाहाब की नवासी थी।
\s5
\v 40 फिर 'ऐसौ के रईसों के नाम उनके ख़ान्दानों और मक़ामो और नामों के मुताबिक़ यह है :रईस', तिम्ना ', रईस 'अलवा, रईस यतेत,
\v 41 रईस उहलिबामा, रईस एला, रईस फिनोन,
\v 42 रईस क़नज़, रईस तेमान, रईस मिबसार,
\v 43 रईस मज्दाएल, रईस 'इराम ;अदोम का रईस यही है, जिनके नाम उनके मक़्बूज़ा मुल्क में उनके घर के मुताबिक़ दिए गए हैं |यह हाल अदोमियों के बाप 'ऐसौ का है|
\s5
\c 37
\p
\v 1 और या'क़ूब मुल्क-ए-कना'न में रहता था, जहाँ उसका बाप मुसाफ़िर की तरह रहा था।
\v 2 या'क़ूब की नसल का हाल यह है : कि यूसुफ़ सत्रह साल की 'उम्र में अपने भाइयों के साथ भेड़-बकरियाँ चराया करता था। यह लड़का अपने बाप की बीवियों, बिल्हाह और ज़िल्फ़ा के बेटों के साथ रहता था और वह उनके बुरे कामों की ख़बर बाप तक पहुँचा देता था।
\s5
\v 3 और इस्राईल यूसुफ़ को अपने सब बेटों से ज़्यादा प्यार करता था क्यूँकि वह उसके बुढ़ापे का बेटा था, और उसने उसे एक बूक़लमून क़बा भी बनवा दी।
\v 4 और उसके भाइयों ने देखा कि उनका बाप उसके सब भाइयों से ज़्यादा उसी को प्यार करता है, इसलिए वह उससे अदावत रखने लगे और ठीक तौर से बात भी नहीं करते थे।
\s5
\v 5 और यूसुफ़ ने एक ख़्वाब देखा जिसे उसने अपने भाइयों को बताया, तो वह उससे और भी अदावत रखने लगे।
\v 6 और उसने उनसे कहा, "ज़रा वह ख़्वाब तो सुनो, जो मैंने देखा है :
\s5
\v 7 हम खेत में पूले बांधते थे और क्या देखता हूँ कि मेरा पूला उठा और सीधा खड़ा हो गया, और तुम्हारे पूलों ने मेरे पूले को चारों तरफ़ से घेर लिया और उसे सिज्दा किया।"
\v 8 तब उसके भाइयों ने उससे कहा, कि क्या तू सचमुच हम पर सल्तनत करेगा या हम पर तेरा तसल्लुत होगा?" और उन्होंने उसके ख़्वाबों और उसकी बातों की वजह से उससे और भी ज़्यादा अदावत रख्खा।
\s5
\v 9 फिर उसने दूसरा ख़्वाब देखा और अपने भाइयों को बताया। उसने कहा, "देखो! मुझे एक और ख़्वाब दिखाई दिया है, कि सूरज और चाँद और ग्यारह सितारों ने मुझे सिज्दा किया।"
\v 10 और उसने इसे अपने बाप और भाइयों दोनों को बताया; तब उसके बाप ने उसे डाँटा और कहा कि यह ख़्वाब क्या है जो तूने देखा है? क्या मैं और तेरी माँ और तेरे भाई सचमुच तेरे आगे ज़मीन पर झुक कर तुझे सिज्दा करेंगे?
\v 11 और उसके भाइयों को उससे हसद हो गया, लेकिन उसके बाप ने यह बात याद रख्खी।
\s5
\v 12 और उसके भाई अपने बाप की भेड़-बकरियाँ चराने सिक्म को गए।
\v 13 तब इस्राईल ने यूसुफ़ से कहा, "तेरे भाई सिक्म में भेड़-बकरियों को चरा रहे होंगे, इसलिए आ कि ~मैं तुझे उनके पास भेज़ें।" उसने उसे कहा, "मैं तैयार हूँ।"
\v 14 तब उसने कहा, "तू जा कर देख कि तेरे भाइयों का और भेड़-बकरियों का क्या हाल है, और आकर मुझे ख़बर दे।” तब उसने उसे हबरून की वादी से भेजा और वह सिक्म में आया।
\s5
\v 15 और एक शख़्स ने उसे मैदान में इधर-उधर आवारा फिरते पाया; यह देख कर उस शख़्स ने उससे पूछा, "तू क्या ढूंडता है?"
\v 16 उसने कहा, "मैं अपने भाइयों को ढूंडता हूँ। ज़रा मुझे बता दे कि वह भेड़ बकरियों को कहाँ चरा रहे हैं?"
\v 17 उस शख़्स ने कहा, "वह यहाँ से चले गए, क्यूँकि मैंने उनको यह कहते सुना, 'चलो, हम दूतैन को जाएँ।” चुनाँचे यूसुफ़ अपने भाइयों की तलाश में चला और उनको दूतैन में पाया।
\s5
\v 18 और जूँ ही उन्होंने उसे दूर से देखा, ~इससे पहले कि वह नज़दीक पहुँचे, उसके क़त्ल का मन्सूबा बाँधा।
\v 19 और आपस में कहने लगे, 'देखो! ख़्वाबों का देखने वाला आ रहा है।
\v 20 आओ, अब हम उसे मार डालें और किसी गढ़े में डाल दें और यह कह देंगे कि कोई बुरा दरिन्दा उसे खा गया; फिर देखेंगे कि उसके ख़्वाबों का अन्जाम क्या होता है।"
\s5
\v 21 तब, रूबिन ने यह सुन कर उसे उनके हाथों से बचाया और कहा, "हम उसकी जान न लें।"
\v 22 और रूबिन ने उनसे यह भी कहा ~कि ख़ून न बहाओ बल्कि उसे इस गढ़े में जो वीराने में है डाल दो, लेकिन उस पर हाथ न उठाओ।” वह चाहता था कि उसे उनके हाथ से बचा कर उसके बाप के पास सलामत पहुँचा दे।
\s5
\v 23 और यूँ हुआ कि जब यूसुफ़ अपने भाइयों के पास पहुँचा, तो उन्होंने उसकी बू क़लमून क़बा की जो वह पहने था उतार लिया;
\v 24 और उसे उठा कर गढ़े में डाल दिया। वह गढ़ा सूखा था, उसमें ज़रा भी पानी न था।
\s5
\v 25 और वह खाना खाने बैठे और ऑखें उठाई तो देखा कि इस्मा'ईलियों का एक काफ़िला जिल'आद से आ रहा है, और गर्म मसाल्हे और रौग़न बलसान और मुर्र ऊँटों पर लादे हुए मिस्र को लिए जा रहा है।
\v 26 तब यहूदाह ने अपने भाइयों से कहा किअगर हम अपने भाई को मार डालें और उसका खू़न छिपाएँ तो क्या नफ़ा' होगा?
\s5
\v 27 आओ, उसे इस्मा'ईलियों के हाथ बेच डालें कि हमारे हाथ उस पर न उठे क्यूँकि वह हमारा भाई और हमारा खू़न है। उसके भाइयों ने उसकी बात मान ली।
\v 28 फिर वह मिदिया'नी सौदागर उधर से गुज़रे, तब उन्होंने यूसुफ़ को खींच कर गढ़े से बाहर निकाला और उसे इस्मा'ईलियों के हाथ बीस रुपये को बेच डाला और वह यूसुफ़ को मिस्र में ले गए।
\s5
\v 29 जब रूबिन गढ़े पर लौट कर आया और देखा कि यूसुफ़ उसमें नहीं है तो अपना लिबास चाक किया।
\v 30 और अपने भाइयों के पास उल्टा फिरा और कहने लगा, कि लड़का तो वहाँ नहीं है, अब मैं कहाँ जाऊँ?
\s5
\v 31 फिर उन्होंने यूसुफ़ की क़बा लेकर और एक बकरा ज़बह करके उसे उसके खू़न में तर किया।
\v 32 और उन्होंने उस बूक़लमून क़बा को भिजवा दिया। फिर वह उसे उनके बाप के पास ले आए और कहा, "हम को यह चीज़ पड़ी मिली; अब तू पहचान कि यह तेरे बेटे की क़बा है या नहीं?"
\v 33 और उसने उसे पहचान लिया और कहा, "यह तो मेरे बेटे की क़बा है। कोई बुरा दरिन्दा उसे खा गया है, यूसुफ़ बेशक फाड़ा गया।"
\s5
\v 34 तब या'क़ूब ने अपना लिबास चाक किया और टाट अपनी कमर से लपेटा, और बहुत दिनों तक अपने बेटे के लिए मातम करता रहा।
\v 35 और उसके सब बेटे बेटियाँ उसे तसल्ली देने जाते थे, लेकिन उसे तसल्ली न होती थी। वह यही कहता रहा, कि मैं तो मातम ही करता हुआ क़ब्र में अपने बेटे से जा मिलूँगा।" इसलिए उसका बाप उसके लिए रोता रहा।
\v 36 और मिदियानियों ने उसे मिस्र में फूतीफ़ार के हाथ जो फ़िर'औन का एक हाकिम और जिलौदारों का सरदार था बेचा।
\s5
\c 38
\p
\v 1 ~उन्ही दिनों में ऐसा हुआ कि यहूदाह अपने भाइयों से जुदा हो कर एक 'अदूल्लामी आदमी के पास, जिसका नाम हीरा था गया।
\v 2 और यहूदाह ने वहाँ सुवा' नाम किसी कना'नी की बेटी को देखा और उससे ब्याह करके उसके पास गया।
\s5
\v 3 वह हामिला हुई और उसके एक बेटा हुआ, जिसका नाम उसने 'एर रख्खा।
\v 4 और वह फिर हामिला हुई और एक बेटा हुआ और उसका नाम ओनान रख्खा।
\v 5 फिर उसके एक और बेटा हुआ और उसका नाम सेला रख्खा, और यहूदाह कज़ीब में था जब इस 'औरत के यह लड़का हुआ।
\s5
\v 6 और यहूदाह अपने पहलौठे बेटे 'एर के लिए एक 'औरत ब्याह लाया जिसका नाम तमर था।
\v 7 और यहूदाह का पहलौठा बेटा 'एर ख़ुदावन्द की निगाह में शरीर था, इसलिए ख़ुदावन्द ने उसे हलाक कर दिया।
\s5
\v 8 तब यहूदाह ने ओनान से कहा किअपने भाई की बीवी के पास जा और देवर का हक़~अदा कर ताकि तेरे भाई के नाम से नसल चले।
\v 9 और ओनान जानता था कि यह नसल मेरी न कहलाएगी, इसलिए यूँ हुआ कि जब वह अपने भाई की बीवी के पास जाता तो नुत्फ़े को ज़मीन पर गिरा देता था कि मबादा उसके भाई के नाम से नसल चले।
\v 10 और उसका यह काम ख़ुदावन्द की नज़र में बहुत बुरा था, इसलिए उसने उसे भी हलाक किया।
\s5
\v 11 तब यहूदाह ने अपनी बहू तमर से कहा कि मेरे बेटे सेला के बालिग़ होने तक तू अपने बाप के घर बेवा बैठी रह। क्यूँकि उसने सोचा कि कहीं यह भी अपने भाइयों की तरह हलाक न हो जाए। तब तमर अपने बाप के घर में जाकर रहने लगी।
\s5
\v 12 और एक 'अरसे के बा'द ऐसा हुआ कि सुवा' की बेटी जो यहूदाह की बीवी थी मर गई, और जब यहूदाह को उसका ग़म भूला तो वह अपने 'अदूल्लामी दोस्त हीरा के साथ अपनी भेड़ो की ऊन के कतरने वालों के पास तिमनत को गया।
\v 13 और तमर की यह ख़बर मिली कि तेरा ख़ुसर अपनी भेड़ो की ऊन कतरने के लिए तिमनत को जा रहा है।"
\v 14 तब उसने अपने रंडापे के कपड़ों को उतार फेंका और बुर्का ओढ़ा और अपने को ढांका और 'ऐनीम के फाटक के बराबर जो तिमनत की राह पर है, जा बैठी क्यूँकि उसने देखा कि सेला बालिग़ हो गया मगर यह उससे ब्याही नहीं गई।
\s5
\v 15 यहूदाह उसे देख कर समझा कि कोई कस्बी है, क्यूँकि उसने अपना मुँह ढाँक रख्खा था।
\v 16 इसलिए वह रास्ते से उसकी तरफ़ को फिरा और उससे कहने लगा कि जरा मुझे अपने साथ मुबासरत कर लेने दे, क्यूँकि इसे बिल्कुल नहीं मा'लूम था कि वह इसकी बहू है। उसने कहा, "तू मुझे क्या देगा ताकि मेरे साथ मुबाश्रत करे।"
\s5
\v 17 उसने कहा, "मैं रेवड़ में से बकरी का एक बच्चा तुझे भेज दूँगा।" उसने कहा कि उसके भेजने तक तू मेरे पास कुछ रहन कर देगा।"
\v 18 उसने कहा, "तुझे रहन क्या दूँ?" उसने कहा, "अपनी मुहर ~और अपना बाजू बंद और अपनी लाठी जो तेरे हाथ में है।” उसने यह चीजें उसे दीं और उसके साथ मुबाश्रत की, और वह उससे हामिला हो गई।
\s5
\v 19 फिर वह उठ कर चली गई और बुरका उतार कर रंडापे का जोड़ा पहन लिया।
\v 20 और यहूदाह ने अपने 'अदूल्लामी दोस्त के हाथ बकरी का बच्चा भेजा ताकि उस 'औरत के पास से अपना रहन वापिस मंगाए, लेकिन वह 'औरत उसे न मिली।
\s5
\v 21 तब उसने उस जगह के लोगों से पूछा, "वह कस्बी जो ऐनीम में रास्ते के बराबर बैठी थी कहाँ है?” उन्होंने कहा, "यहाँ कोई कस्बी नहीं थी।
\v 22 तब उसने यहूदाह के पास लौट कर उसे बताया कि वह मुझे नहीं मिली; और वहाँ के लोग भी कहते थे कि वहाँ कोई कस्बी नहीं थी।
\v 23 यहूदाह ने कहा, "ख़ैर ! उस रहन को वही रख्खे, हम तो बदनाम न हों; मैंने तो बकरी का बच्चा भेजा लेकिन वह तुझे नहीं मिली।"
\s5
\v 24 और करीबन तीन महीने के बा'द यहूदाह को यह ख़बर मिली ~कि तेरी बहू तमर ने ज़िना किया और उसे छिनाले का हम्ल भी है। यहूदाह ने कहा कि उसे बाहर निकाल लाओ कि वह जलाई जाए।
\v 25 जब उसे बाहर निकाला तो उसने अपने खुसर को कहला भेजा कि मेरे उसी शख़्स का हम्ल है जिसकी यह चीजें हैं। इसलिए तू पहचान तो सही कि यह मुहर और बाजूबन्द और लाठी किसकी है।
\v 26 तब यहूदाह ने इक़रार किया और कहा, "वह मुझ से ज़्यादा सच्ची है, क्यूँकि मैंने उसे अपने बेटे सेला से नहीं ब्याहा।" और वह फिर कभी उसके पास न गया।
\s5
\v 27 और उसके वज़ा-ए-हम्ल के वक़्त मा'लूम हुआ कि उसके पेट में तौअम हैं।
\v 28 और जब वह जनने लगी तो एक बच्चे का हाथ बाहर आया और दाई ने पकड़ कर उसके हाथ में लाल डोरा बाँध दिया, और कहने लगी, "यह पहले पैदा हुआ।"
\s5
\v 29 और यूँ हुआ कि उसने अपना हाथ फिर खींच लिया, इतने में उसका भाई पैदा हो गया। तब वह दाई बोल उठी कि तू कैसे ज़बरदस्ती निकल पड़ा तब ~ उसका नाम फ़ारस रख्खा गया।
\v 30 फिर उसका भाई जिसके हाथ में लाल डोरा बंधा था, पैदा हुआ और उसका नाम ज़ारह रख्खा गया।
\s5
\c 39
\p
\v 1 और यूसुफ़ को मिस्र में लाए, और फूतीफ़ार मिस्री ने जो फ़िर'औन का एक हाकिम और जिलौदारों का सरदार था, उसकी इस्मा'ईलियों के हाथ से जो उसे वहाँ ले गए थे ख़रीद लिया।
\v 2 और ख़ुदावन्द यूसुफ़ के साथ था और वह इक़बालमन्द हुआ, और अपने मिस्री आक़ा के घर में रहता था।
\s5
\v 3 और उसके आक़ा ने देखा कि ख़ुदावन्द उसके साथ है और जिस काम को वह हाथ लगाता है ख़ुदावन्द उसमें उसे इकबालमंद करता है।
\v 4 चुनाँचे यूसुफ़ उसकी नज़र में मक़्बूल ठहरा और वही उसकी ख़िदमत करता था; और उसने उसे अपने घर का मुख़्तार बना कर अपना सब कुछ उसे सौंप दिया।
\s5
\v 5 और जब उसने उसे घर का और सारे माल का मुख़्तार बनाया, तो ख़ुदावन्द ने उस मिस्री के घर में यूसुफ़ की ख़ातिर बरकत बख़्शी; और उसकी सब चीज़ों पर जो घर में और खेत में थीं, ख़ुदावन्द की बरकत होने लगी।
\v 6 और उसने अपना सब कुछ यूसुफ़ के हाथ में छोड़ दिया, और सिवा रोटी के जिसे वह खा लेता था, उसे अपनी किसी चीज़ का होश न था। और यूसुफ़ ख़ूबसूरत और हसीन था।
\s5
\v 7 इन बातों के बा'द यूँ हुआ कि उसके आक़ा की बीवी की आँख यूसुफ़ पर लगी और उसने उससे कहा कि मेरे साथ हमबिस्तर हो।
\v 8 लेकिन उसने इन्कार किया; और अपने आक़ा की बीवी से कहा कि देख, मेरे आक़ा को ख़बर भी नहीं कि इस घर में मेरे पास क्या-क्या है, और उसने अपना सब कुछ मेरे हाथ में छोड़ दिया है।
\v 9 इस घर में मुझ से बड़ा कोई नहीं; और उसने तेरे अलावा कोई चीज़ मुझ से बाज़ नहीं रख्खी, क्यूँकि तू उसकी बीवी है। इसलिए भला मैं क्यूँ ऐसी बड़ी बुराई करूँ और ख़ुदा का गुनहगार बनूँ?
\s5
\v 10 और वह हर दिन यूसुफ़ को मजबूर करती ~रही, लेकिन उसने उसकी बात न मानी कि उससे हमबिस्तर होने के लिए उसके साथ लेटे।
\v 11 और एक दिन ऐसा हुआ कि वह अपना काम करने के लिए घर में गया, और घर के आदमियों में से कोई भी अन्दर न था।
\v 12 तब उस 'औरत ने उसका लिबास पकड़ कर कहा, "मेरे साथ हम बिस्तर हो, "वह अपना लिबास उसके हाथ में छोड़ कर भागा और बाहर निकल गया।
\s5
\v 13 जब उसने देखा कि वह अपना लिबास उसके हाथ में छोड़ कर भाग गया,
\v 14 तो उसने अपने घर के आदमियों को बुला कर उनसे कहा, "देखो, वह एक 'इब्री को हम से मज़ाक करने के लिए हमारे पास ले आया है। यह मुझ से हम बिस्तर होने को अन्दर घुस आया, और मैं बुलन्द आवाज़ से चिल्लाने लगी।
\v 15 जब उसने देखा कि मैं ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रही हूँ, तो अपना लिबास मेरे पास छोड़ कर भागा और बाहर निकल गया।"
\s5
\v 16 और वह उसका लिबास उसके आक़ा के घर लौटने तक अपने पास रख्खे रही।
\v 17 तब उसने यह बातें उससे कहीं, "यह इब्री गुलाम, जो तू लाया है मेरे पास अन्दर घुस आया कि मुझ से मज़ाक़ करे।
\v 18 जब मैं ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी तो वह अपना लिबास मेरे ही पास छोड़ कर बाहर भाग गया।"
\s5
\v 19 जब उसके आक़ा ने अपनी बीवी की वह बातें जो उसने उससे कहीं, सुन लीं, कि तेरे ग़ुलाम ने मुझ से ऐसा ऐसा किया तो उसका ग़ज़ब भड़का ।
\v 20 और यूसुफ़ के आक़ा ने उसको लेकर क़ैद खाने में जहाँ बादशाह के क़ैदी बन्द थे डाल दिया, तब वह वहाँ क़ैद खाने में रहा।
\s5
\v 21 लेकिन ख़ुदावन्द यूसुफ़ के साथ था; उसने उस पर रहम किया और क़ैद खाने के दारोग़ा की नज़र में उसे मक़्बूल बनाया।
\v 22 और क़ैद खाने के दारोग़ा ने सब क़ैदियों को जो क़ैद में थे, यूसुफ़ के हाथ में सौंपा; और जो कुछ वह करते उसी के हुक्म से करते थे।
\v 23 और क़ैद खाने का दारोग़ा सब कामों की तरफ़ से, जो उसके हाथ में थे बेफ़िक्र था, इसलिए कि ख़ुदावन्द उसके साथ था; और जो कुछ वह करता ख़ुदावन्द उसमें इक़बाल मन्दी बख़्शता था।
\s5
\c 40
\p
\v 1 इन बातों के बा'द यूँ हुआ कि शाह ए-मिस्र का साकी और नानपज़ अपने ख़ुदावन्द शाह-ए-मिस्र के मुजरिम हुए|
\v 2 और फ़िर'औन अपने इन दोनों हाकिमों से जिनमें एक साकियों और दूसरा नानपज़ों का सरदार था, नाराज़ हो गया।
\v 3 और उसने इनको जिलौदारों के सरदार के घर में उसी जगह जहाँ यूसुफ़ हिरासत में था, क़ैद खाने में नज़रबन्द करा दिया।
\s5
\v 4 जिलौदारों के सरदार ने उनको यूसुफ़ के हवाले किया, और वह उनकी ख़िदमत करने लगा और वह एक मुद्दत तक नज़रबन्द रहे।
\v 5 और शाह-ए-मिस्र के साकी और नानपज़ दोनों ने, जो क़ैद खाने में नज़रबन्द थे एक ही रात में अपने-अपने होनहार के मुताबिक़ एक-एक ख़्वाब देखा।
\s5
\v 6 और यूसुफ़ सुबह को उनके पास अन्दर आया और देखा कि वह उदास हैं।
\v 7 और उसने फ़िर'औन के हाकिमों से जो उसके साथ उसके आक़ा के घर में नज़रबन्द थे, पूछा कि आज तुम क्यूँ ऐसे उदास नज़र आते हो?
\v 8 उन्होंने उससे कहा, "हम ने एक ख़्वाब देखा है, जिसकी ता'बीर करने वाला कोई नहीं।" यूसुफ़ ने उनसे कहा, "क्या ता'बीर की कुदरत ख़ुदा को नहीं? मुझे ज़रा वह ख़्वाब बताओ।"
\s5
\v 9 तब सरदार साकी ने अपना ख़्वाब यूसुफ़ से बयान किया। उसने कहा, "मैंने ख़्वाब में देखा कि अंगूर की बेल मेरे सामने है।
\v 10 और उस बेल में तीन शाखें हैं, और ऐसा दिखाई दिया कि उसमें कलियाँ लगीं और फूल आए और उसके सब गुच्छों में पक्के-पक्के अंगूर लगे।
\v 11 और फ़िर'औन का प्याला मेरे हाथ में है, और मैंने उन अंगूरों को लेकर फ़िर'औन के प्याले में निचोड़ा और वह प्याला मैंने फ़िर'औन के हाथ में दिया।"
\s5
\v 12 यूसुफ़ ने उससे कहा, "इसकी ता'बीर यह है कि वह तीन शाखें तीन दिन हैं।
\v 13 इसलिए अब से तीन दिन के अन्दर फ़िर'औन तुझे सरफ़राज़ फ़रमाएगा, और तुझे फिर तेरे 'ओहदे पर बहाल कर देगा; और पहले की तरह जब तू उसका साकी था, प्याला फ़िर'औन के हाथ में दिया करेगा।
\s5
\v 14 लेकिन जब तू ख़ुशहाल हो जाए तो मुझे याद करना और ज़रा मुझ से मेहरबानी से पेश आना, और फ़िर'औन से मेरा ज़िक्र करना और मुझे इस घर से छुटकारा दिलवाना।
\v 15 क्यूँकि इब्रानियों के मुल्क से मुझे चुरा कर ले आए हैं, और यहाँ भी मैंने ऐसा कोई काम नहीं किया जिसकी वजह से क़ैद खाने में डाला जाऊँ।"
\s5
\v 16 जब सरदार नानपज़ ने देखा कि ता'बीर अच्छी निकली तो यूसुफ़ से कहा, "मैंने भी ख़्वाब में देखा, कि मेरे सिर पर सफ़ेद रोटी की तीन टोकरियाँ हैं;
\v 17 और ऊपर की टोकरी में हर क़िस्म का पका हुआ खाना फ़िर'औन के लिए है, और परिन्दे मेरे सिर पर की टोकरी में से खा रहे हैं।"
\s5
\v 18 यूसुफ़ ने उसे कहा, "इसकी ता'बीर यह है कि वह तीन टोकरियाँ तीन दिन हैं।
\v 19 इसलिए अब से तीन दिन के अन्दर फ़िर'औन तेरा सिर तेरे तन से जुदा करा के तुझे एक दरख़्त पर टंगवा देगा, और परिन्दे तेरा गोश्त नोंच-नोंच कर खाएँगे।”
\s5
\v 20 और तीसरे दिन जो फ़िर'औन की सालगिरह का दिन था, यूँ हुआ कि उसने अपने सब नौकरों की दावत की और उसने सरदार साकी और सरदार नानपज़ को अपने नौकरों के साथ याद फ़रमाया |
\v 21 और उसने सरदार साकी को फिर उसकी ख़िदमत पर बहाल किया, और वह फ़िर'औन के हाथ में प्याला देने लगा।
\v 22 लेकिन उसने सरदार नानपज़ को फाँसी दिलवाई, जैसा यूसुफ़ ने ता'बीर करके उनको बताया था।
\v 23 लेकिन सरदार साकी ने यूसुफ़ को याद न किया बल्कि उसे भूल गया।
\s5
\c 41
\p
\v 1 पूरे दो साल के बा'द फ़िर'औन ने ख़्वाब में देखा कि वह दरिया के किनारे खड़ा है;
\v 2 और उस दरिया में से सात ख़ूबसूरत और मोटी-मोटी गायें निकल कर सरकंडों के खेत में में चरने लगीं।
\v 3 उनके बा'द और सात बदशक्ल और दुबली-दुबली गायें दरिया से निकलीं और दूसरी गायों के बराबर दरिया के किनारे जा खड़ी हुई।
\s5
\v 4 और यह बदशक्ल और दुबली दुबली गायें उन सातों ख़ूबसूरत और मोटी मोटी गायों को खा गई, तब फ़िर'औन जाग उठा।
\v 5 और वह फिर सो गया और उसने दूसरा ख़्वाब देखा कि एक टहनी में अनाज की सात मोटी और अच्छी-अच्छी बालें निकलीं।
\v 6 उनके बा'द और सात पतली और पूरबी हवा की मारी मुरझाई हुई बालें निकलीं।
\s5
\v 7 यह पतली बालें उन सातों मोटी और भरी हुई बालों को निगल गई। और फ़िर'औन जाग गया और उसे मा'लूम हुआ कि यह ख़्वाब था।
\v 8 और सुबह को यूँ हुआ कि उसका जी घबराया तब उसने मिस्र के सब जादूगरों और सब अक्लमन्दों को बुलवा भेजा, और अपना ख़्वाब उनको बताया। लेकिन उनमें से कोई फ़िर'औन के आगे उनकी ता'बीर न कर सका।
\s5
\v 9 उस वक़्त सरदार साक़ी ने फ़िर'औन से कहा, "मेरी ख़ताएँ आज मुझे याद आईं।
\v 10 जब फ़िर'औन अपने ख़ादिमों से नाराज़ था और उसने मुझे और सरदार नानपज़ को जिलौदारों के सरदार के घर में नज़रबन्द करवा दिया।
\v 11 तो मैंने और उसने एक ही रात में एक-एक ख़्वाब देखा, यह~ख्वाब हम ने अपनेअपने होनहार के मुताबिक़ ~देखे।
\s5
\v 12 वहाँ एक 'इब्री जवान, जिलौदारों के सरदार का नौकर, हमारे साथ था। हम ने उसे अपने ख़्वाब बताए और उसने उनकी ता'बीर की, और हम में से हर एक को हमारे ख़्वाब के मुताबिक़ उसने ता'बीर बताई।
\v 13 और जो ता'बीर उसने बताई थी वैसा ही हुआ, क्यूँकि मुझे तो उसने मेरे मन्सब पर बहाल किया था और उसे फाँसी दी थी।
\s5
\v 14 तब फ़िर'औन ने यूसुफ़ को बुलवा भेजा: तब उन्होंने जल्द उसे क़ैद खाने से बाहर निकाला, और उसने हजामत बनवाई और कपड़े बदल कर फ़िर'औन के सामने आया।
\v 15 फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा, "मैंने एक ख़्वाब देखा है जिसकी ता'बीर कोई नहीं कर सकता, और मुझ से तेरे बारे में कहते हैं कि तू ख़्वाब को सुन कर उसकी ता'बीर करता है।"
\v 16 यूसुफ़ ने फ़िर'औन को जवाब दिया, "मैं कुछ नहीं जानता, ख़ुदा ही फ़िर'औन को सलामती बख़्श जवाब देगा।"
\s5
\v 17 तब फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा, "मैंने ख़्वाब में देखा कि मैं दरिया के किनारे खड़ा हूँ।
\v 18 और उस दरिया में से सात मोटी और ख़ूबसूरत गायें निकल कर सरकंडों के खेत में चरने लगीं।
\s5
\v 19 उनके बा'द और सात ख़राब और निहायत बदशक्ल और दुबली गायें निकलीं, और वह इस क़दर बुरी थीं कि मैंने सारे मुल्क-ए-मिस्र में ऐसी कभी नहीं देखीं।
\v 20 और वह दुबली और बदशक्ल गायें उन पहली सातों मोटी गायों को खा गई;
\v 21 और उनके खा जाने के बा'द यह मा'लूम भी नहीं होता था कि उन्होंने उनको खा लिया है, बल्कि वह पहले की तरह जैसी की तैसी बदशक्ल रहीं। तब मैं जाग गया।
\s5
\v 22 और फिर ख़्वाब में देखा कि एक टहनी में सात भरी और अच्छी-अच्छी बालें निकलीं।
\v 23 और उनके बा'द और सात सूखी और पतली और पूरबी हवा की मारी मुरझाई हुई बालें निकलीं।
\v 24 और यह पतली बाले उन सातों अच्छी-अच्छी बालों को निगल गई। और मैंने इन जादूगरों से इसका बयान किया लेकिन ऐसा कोई न निकला जो मुझे इसका मतलब बताता।"
\s5
\v 25 तब यूसुफ़ ने फ़िर'औन से कहा कि फ़िर'औन का ख़्वाब एक ही है, जो कुछ ख़ुदा करने को है उसे उसने फ़िर'औन पर ज़ाहिर किया है।
\v 26 वह सात अच्छी-अच्छी गायें सात साल हैं, और वह सात अच्छीअच्छी बालें भी सात साल हैं; ख़्वाब एक ही है।
\s5
\v 27 और वह सात बदशक्ल और दुबली गायें जो उनके बा'द निकलीं, और वह सात ख़ाली और पूरबी हवा की मारी मुरझाई हुई बालें भी सात साल ही हैं; मगर काल के सात बरस।
\v 28 यह वही बात है जो मैं फ़िर'औन से कह चुका हूँ कि जो कुछ ख़ुदा करने को है उसे उसने फ़िर'औन पर ज़ाहिर किया है।
\v 29 देख! सारे मुल्क-ए-मिस्र में सात साल तो पैदावार ज़्यादा के होंगे।
\s5
\v 30 उनके बा'द सात साल काल के आएँगे और तमाम मुल्क ए-मिस्र में लोग इस सारी पैदावार को भूल जाएँगे और यह काल मुल्क को तबाह कर देगा।
\v 31 और अज़ानी मुल्क में याद भी नहीं रहेगी, क्यूँकि जो काल बा'द में पड़ेगा वह निहायत ही सख़्त होगा।
\v 32 और फ़िर'औन ने जो यह ख़्वाब दो दफ़ा' देखा तो इसकी वजह यह है कि यह बात ख़ुदा की तरफ़ से मुक़र्रर हो चुकी है, और ख़ुदा इसे जल्द पूरा करेगा।
\s5
\v 33 इसलिए फ़िर'औन को चाहिए कि एक समझदार और 'अक़्लमन्द आदमी को तलाश कर ले और उसे मुल्क-ए-मिस्र पर मुख़्तार बनाए।
\v 34 फ़िर'औन यह करे ताकि उस आदमी को इख़्तियार हो कि वह मुल्क में नाज़िरों को मुक़र्रर कर दे, और अज़ानी के सात बरसों में सारे मुल्क-ए-मिस्र की पैदावार का पाँचवा हिस्सा ले ले।
\s5
\v 35 और वह उन अच्छे बरसों में जो आते हैं सब खाने की चीजें जमा' करें और शहर-शहर में गल्ला जो फ़िर'औन के इख़्तियार में हो, ख़ुराक के लिए फ़राहम करके उसकी हिफ़ाज़त करें।
\v 36 यही ग़ल्ला मुल्क के लिए ज़ख़ीरा होगा, और सातों साल के लिए जब तक मुल्क में काल रहेगा काफ़ी होगा, ताकि काल की वजह से मुल्क बर्बाद न हो जाए।"
\s5
\v 37 य बात फ़िर'औन और उसके सब ख़ादिमों को पसंद आई।
\v 38 तब फ़िर'औन ने अपने ख़ादिमों से कहा कि क्या हम को ऐसा आदमी जैसा यह है, जिसमें ख़ुदा का रूह है मिल सकता है?
\s5
\v 39 और फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा, "चूँकि ख़ुदा ने तुझे यह सब कुछ समझा दिया है, इसलिए तेरी तरह~समझदार~और~'अक्लमन्द कोई नहीं।
\v 40 इसलिए तू मेरे घर का मुख़्तार होगा और मेरी सारी रि'आया तेरे हुक्म पर चलेगी, सिर्फ़ तख़्त का मालिक होने की वजह से मैं बुज़ुर्गतर हूँगा।
\v 41 और फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा कि देख, मैं तुझे सारे मुल्क-ए-मिस्र का हाकिम बनाता हूँ
\s5
\v 42 और फ़िर'औन ने अपनी अंगूठी अपने हाथ से निकाल कर यूसुफ़ के हाथ में पहना दी, और उसे बारीक कतान के लिबास में आरास्ता करवा कर सोने का हार उसके गले में पहनाया।
\v 43 और उसने उसे अपने दूसरे रथ में सवार करा कर उसके आगे-आगे यह 'ऐलान करवा दिया, कि घुटने टेको और उसने उसे सारे मुल्क-ए-मिस्र का हाकिम बना दिया ।
\s5
\v 44 और फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा, "मैं फ़िर'औन हूँ और तेरे हुक्म के बग़ैर कोई आदमी इस सारे मुल्क-ए-मिस्र में अपना हाथ या पाँव हिलाने न पाएगा।"
\v 45 और फ़िर'औन ने यूसुफ़ का नाम सिफ़्नात फ़ा'नेह रख्खा, और उसने ओन के पुजारी फ़ोतीफ़िरा' की बेटी आसिनाथ को उससे ब्याह दिया, और यूसुफ़ मुल्क-ए-मिस्र में दौरा करने लगा।
\s5
\v 46 और यूसुफ़ तीस साल का था जब वह मिस्र के बादशाह फ़िर'औन के सामने गया, और उसने फ़िर'औन के पास से रुख़्सत हो कर सारे मुल्क-ए-मिस्र का दौरा किया।
\v 47 और अज़ानी के सात बरसों में इफ़्रात से फ़स्ल हुई।
\s5
\v 48 और वह लगातार सातों साल हर क़िस्म की ख़ुराक, जो मुल्क-ए-मिस्र में पैदा होती थी, जमा' कर करके शहरों में उसका ज़ख़ीरा करता गया। हर शहर की चारों तरफ़ो की ख़ुराक वह उसी शहर में रखता गया।
\v 49 और यूसुफ़ ने ग़ल्ला समुन्दर की रेत की तरह निहायत कसरत से ज़ख़ीरा किया, यहाँ तक कि हिसाब रखना भी छोड़ दिया क्यूँ कि वह बे-हिसाब था।
\s5
\v 50 और काल से पहले ओन के पुजारी फ़ोतीफ़िरा' की बेटी आसिनाथ के यूसुफ़ से दो बेटे पैदा हुए।
\v 51 और यूसुफ़ ने पहलौठे का नाम मनस्सी यह कह कर रख्खा, कि 'ख़ुदा ने मेरी और मेरे बाप के घर की सब मुसीबत मुझ से भुला दी।'
\v 52 और दूसरे का नाम इफ़्राईम यह कह कर रख्खा, कि 'ख़ुदा ने मुझे मेरी मुसीबत के मुल्क में फलदार किया।'
\s5
\v 53 और अज़ानी के वह सात साल जो मुल्क-ए-मिस्र में हुए तमाम हो गए, और यूसुफ़ के कहने के मुताबिक़ काल के सात साल शुरू' हुए।
\v 54 और सब मुल्कों में तो काल था लेकिन मुल्क-ए-मिस्र में हर जगह खुराक मौजूद थी।
\s5
\v 55 और जब मुल्क-ए-मिस्र में लोग भूकों मरने लगे तो रोटी के लिए फ़िर'औन के आगे चिल्लाए। फ़िर'औन ने मिस्रियों से कहा कि यूसुफ़ के पास जाओ, जो कुछ वह तुम से कहे वह करो।
\v 56 और तमाम रू-ए-ज़मीन पर काल था; और यूसुफ़ अनाज के ज़खीरह को खुलवा कर मिस्रियों के हाथ बेचने लगा, और मुल्क-ए-मिस्र में सख़्त काल हो गया।
\v 57 और सब मुल्कों के लोग अनाज मोल लेने के लिए यूसुफ़ के पास मिस्र में आने लगे, क्यूँकि सारी ज़मीन पर सख़्त काल पड़ा था।
\s5
\c 42
\p
\v 1 और या'क़ूब को मा'लूम हुआ कि मिस्र में ग़ल्ला है, तब उसने अपने बेटों से कहा कि तुम क्यूँ एक दूसरे का मुँह ताकते हो?
\v 2 देखो, मैंने सुना है कि मिस्र में ग़ल्ला है। तुम वहाँ जाओ और वहाँ से हमारे लिए अनाज मोल ले आओ, ताकि हम ज़िन्दा रहें और हलाक न हों।
\v 3 तब यूसुफ़ के दस भाई ग़ल्ला मोल लेने को मिस्र में आए।
\v 4 लेकिन या'क़ूब ने यूसुफ़ के भाई बिनयमीन को उसके भाइयों के साथ न भेजा, क्यूँकि उसने कहा, कि कहीं उस पर कोई आफ़त न आ जाए।
\s5
\v 5 इसलिए जो लोग ग़ल्ला खरीदने आए उनके साथ इस्राईल के बेटे भी आए, क्यूँकि कना'न के मुल्क में काल था।
\v 6 और यूसुफ़ मुल्क-ए-मिस्र का हाकिम था और वही मुल्क के सब लोगों के हाथ ग़ल्ला बेचता था। तब यूसुफ़ के भाई आए और अपने सिर ज़मीन पर टेक कर उसके सामने आदाब बजा लाए।
\s5
\v 7 यूसुफ़ अपने भाइयों को देख कर उनको पहचान गया; लेकिन उसने उनके सामने अपने आप को अन्जान बना लिया और उनसे सख़्त लहजे में पूछा, "तुम कहाँ से आए हो?" उन्होंने कहा, "कना'न के मुल्क से अनाज मोल लेने को।"
\v 8 यूसुफ़ ने तो अपने भाइयों को पहचान लिया था लेकिन उन्होंने उसे न पहचाना।
\s5
\v 9 और यूसुफ़ उन ख़्वाबों को जो उसने उनके बारे में देखे थे याद करके उनसे कहने लगा कि तुम जासूस हो। तुम आए हो कि इस मुल्क की बुरी हालत दरियाफ़्त करो।
\v 10 उन्होंने उससे कहा, "नहीं ख़ुदावन्द! तेरे ग़ुलाम अनाज मोल लेने आए हैं।
\v 11 हम सब एक ही शख़्स के बेटे हैं। हम सच्चे हैं; तेरे ग़ुलाम जासूस नहीं हैं।"
\s5
\v 12 उसने कहा, "नहीं; बल्कि तुम इस मुल्क की बुरी हालत दरियाफ़्त करने को आए हो।"
\v 13 तब उन्होंने कहा, "तेरे ग़ुलाम बारह भाई एक ही शख़्स के बेटे हैं जो मुल्क-ए-कना'न में है। सबसे छोटा इस वक़्त हमारे बाप के पास है और एक का कुछ पता नहीं।”
\s5
\v 14 तब यूसुफ़ ने उनसे कहा, "मैं तो तुम से कह चुका कि तुम जासूस हो।
\v 15 इसलिए तुम्हारी आज़माइश इस तरह की जाएगी कि फ़िर'औन की हयात की क़सम, तुम यहाँ से जाने न पाओगे; जब तक तुम्हारा सबसे छोटा भाई यहाँ न आ जाए।
\v 16 इसलिए अपने में से किसी एक को भेजो कि वह तुम्हारे भाई को ले आए और तुम क़ैद रहो, ताकि तुम्हारी बातों की तसदीक़ हो कि तुम सच्चे हो या नहीं; वरना फ़िर'औन की हयात की क़सम तुम ज़रूर ही जासूस हो।"
\v 17 और उसने उन सब को तीन दिन तक इकट्ठे नज़रबन्द रख्खा।
\s5
\v 18 और तीसरे दिन यूसुफ़ ने उनसे कहा, "एक काम करो तो ज़िन्दा रहोगे; क्यूँकि मुझे ख़ुदा का ख़ौफ़ है।
\v 19 अगर तुम सच्चे हो तो अपने भाइयों में से एक को क़ैद खाने में बन्द रहने दो, और तुम अपने घरवालों के खाने के लिए अनाज ले जाओ।
\v 20 और अपने सबसे छोटे भाई को मेरे पास ले आओ, यूँ तुम्हारी बातों की तस्दीक़ हो जाएगी और तुम हलाक न होगे।” इसलिए उन्होंने ऐसा ही किया।
\s5
\v 21 और वह आपस में कहने लगे, "हम दरअसल अपने भाई की वजह से मुजरिम ठहरे हैं; क्यूँकि जब उसने हम से मिन्नत की तो हम ने यह देखकर भी, कि उसकी जान कैसी मुसीबत में है उसकी न सुनी; इसी लिए यह मुसीबत हम पर आ पड़ी है।”
\v 22 तब रूबिन बोल उठा, "क्या मैंने तुम से न कहा था कि इस बच्चे पर ज़ुल्म न करो, और तुम ने न सुना; इसलिए देख लो, अब उसके ख़ून का बदला लिया जाता है।"
\s5
\v 23 और उनको मा'लूम न था कि यूसुफ़ उनकी बातें समझता है, इसलिए कि उनके बीच एक तरजुमान था।
\v 24 तब वह उनके पास से हट गया और रोया, और फिर उनके पास आकर उनसे बातें कीं और उनमें से शमा'ऊन को लेकर उनकी आँखों के सामने उसे बन्धवा दिया।
\v 25 फिर यूसुफ़ ने हुक्म किया, कि उनके बोरों में अनाज भरें और हर शख़्स की नकदी उसी के बोरे में रख दें, और उनको सफ़र का सामान भी दे दें। चुनांचे उनके लिए ऐसा ही किया गया।
\s5
\v 26 और उन्होंने अपने गधों पर ग़ल्ला लाद लिया और वहाँ से रवाना हुए।
\v 27 जब उनमें से एक ने मन्जिल पर अपने गधे को चारा देने के लिए अपना बोरा खोला, तो अपनी नक़दी बोरे के मुँह में रख्खी देखी।
\v 28 तब उसने अपने भाइयों से कहा कि मेरी नक़दी वापस कर दी गई है, वह मेरे बोरे में है, देख लो !' फिर तो वह घबरा ~गए और हक्का-बक्का होकर एक दूसरे को देखने और कहने लगे, "ख़ुदा ने हम से यह क्या किया?"
\s5
\v 29 और वह मुल्क-ए-कना'न में अपने बाप या'क़ूब के पास आए, और सारी वारदात उसे बताई और कहने लगे कि
\v 30 उस शख़्स ने जो उस मुल्क का मालिक है हम से सख़्त लहजे में बातें कीं, और हम को उस मुल्क के जासूस समझा।
\v 31 हम ने उससे कहा कि हम सच्चे आदमी हैं; हम जासूस नहीं।
\v 32 हम बारह भाई एक ही बाप के बेटे हैं; हम में से एक का कुछ पता नहीं और सबसे छोटा इस वक़्त हमारे बाप के पास मुल्क-ए-कना'न में है।
\s5
\v 33 तब उस शख़्स ने जो मुल्क का मालिक है हम से कहा, 'मैं इसी से जान लूँगा कि तुम सच्चे हो कि अपने भाइयों में से किसी को मेरे पास छोड़ दो और अपने घरवालों के खाने के लिए अनाज लेकर चले जाओ।
\v 34 और अपने सबसे छोटे भाई को मेरे पास ले आओ; तब मैं जान लूँगा कि तुम जासूस नहीं बल्कि सच्चे आदमी हो। और मैं तुम्हारे भाई को तुम्हारे हवाले कर दूँगा, फिर तुम मुल्क में सौदागरी करना'।
\s5
\v 35 और यूँ हुआ कि जब उन्होंने अपनेअपने बोरे खाली किए तो हर शख़्स की नक़दी की थैली उसी के बोरे में रख्खी देखी, और वह और उनका बाप नक़दी की थैलियाँ देख कर डर गए।
\v 36 और उनके बाप या'क़ूब ने उनसे कहा, "तुम ने मुझे बेऔलाद कर दिया। यूसुफ़ नहीं रहा और शमा'ऊन भी नहीं है, और अब बिनयमीन को भी ले जाना चाहते ही। ये सब बातें मेरे ख़िलाफ़ हैं।"
\s5
\v 37 तब रूबिन ने अपने बाप से कहा, 'अगर मैं उसे तेरे पास न ले आऊँ तो तू मेरे दोनों बेटों को क़त्ल कर डालना। उसे मेरे हाथ में सौंप दे और मैं उसे फिर तेरे पास पहुँचा दूँगा।"
\v 38 उसने कहा, "मेरा बेटा तुम्हारे साथ नहीं जाएगा; क्यूँकि उसका भाई मर गया और वह अकेला रह गया है। अगर रास्ते में जाते-जाते उस पर कोई आफ़त आ पड़े तो तुम मेरे सफ़ेद बालों को ग़म के साथ क़ब्र में उतारोगे।
\s5
\c 43
\p
\v 1 और काल मुल्क में और भी सख़्त हो गया |
\v 2 और यूँ हुआ कि जब उस ग़ल्ले को जिसे मिस्र से लाए थे, खा चुके तो उनके बाप ने उनसे कहा कि जाकर हमारे लिए फिर कुछ अनाज मोल ले आओ।"
\s5
\v 3 तब यहूदाह ने उसे कहा कि उस शख़्स ने हम को निहायत ताकीद से कह दिया था कि तुम मेरा मुँह न देखोगे, जब तक तुम्हारा भाई तुम्हारे साथ न हो।
\v 4 इसलिए अगर तू हमारे भाई को हमारे साथ भेज दे, तो हम जाएँगे और तेरे लिए अनाज मोल लाएँगे।
\v 5 और अगर तू उसे न भेजे तो हम नहीं जाएँगे; क्यूँकि उस शख़्स ने कह दिया है कि तुम मेरा मुँह न देखोगे जब तक तुम्हारा भाई तुम्हारे साथ न हो'।
\s5
\v 6 तब इस्राईल ने कहा कि तुम ने मुझ से क्यूँ यह बदसुलूकी की, कि उस शख़्स को बता दिया कि हमारा एक भाई और भी है?
\v 7 उन्होंने कहा, "उस शख़्स ने बजिद्द हो कर हमारा और हमारे ख़ान्दान का हाल पूछा कि 'क्या तुम्हारा बाप अब तक ज़िन्दा है? और क्या तुम्हारा कोई और भाई है?' तो हम ने इन सवालों के मुताबिक़ उसे बता दिया। हम क्या जानते थे कि वह कहेगा, 'अपने भाई को ले आओ'।"
\s5
\v 8 तब यहूदाह ने अपने बाप इस्राईल से कहा कि उस लड़के को मेरे साथ कर दे तो हम चले जाएँगे; ताकि हम और तू और हमारे बाल बच्चे ज़िन्दा रहें और हलाक न हों।
\v 9 और मैं उसका ज़िम्मेदार होता हूँ, तू उसको मेरे हाथ से वापस माँगना। अगर मैं उसे तेरे पास पहुँचा कर सामने खड़ा न कर दूँ, तो मैं हमेशा के लिए गुनहगार ठहरूंगा।
\v 10 अगर हम देर न लगाते तो अब तक दूसरी दफ़ा' लौट कर आ भी जाते।"
\s5
\v 11 तब उनके बाप इस्राईल ने उनसे कहा, "अगर यही बात है तो ऐसा करो कि अपने बर्तनों में इस मुल्क की मशहूर पैदावार में से कुछ उस शख़्स के लिए नज़राना लेते जाओ; जैसे थोड़ा सा रौग़ान-ए-बलसान, थोड़ा सा शहद, कुछ गर्म मसाले, और मुर्र और पिस्ता और बादाम,
\v 12 और दूना दाम अपने हाथ में ले लो, और वह नक़दी जो फेर दी गई और तुम्हारे बोरों के मुँह में रख्खी मिली अपने साथ वापस ले जाओ; क्यूँकि शायद भूल हो गई होगी।
\s5
\v 13 और अपने भाई को भी साथ लो, और उठ कर फिर उस शख़्स के पास जाओ।
\v 14 और ख़ुदा-ए-क़ादिर उस शख़्स को तुम पर मेहरबानी करे, ताकि वह तुम्हारे दूसरे भाई को और बिनयमीन को तुम्हारे साथ भेज दे। मैं अगर बे-औलाद हुआ तो हुआ।"
\v 15 तब उन्होंने नज़राना लिया और दूना दाम भी हाथ में ले लिया, और बिनयमीन को लेकर चल पड़े; और मिस्र पहुँच कर यूसुफ़ के सामने जा खड़े हुए।
\s5
\v 16 जब यूसुफ़ ने बिनयमीन को उनके साथ देखा तो उसने अपने घर के मुन्तज़िम से कहा, "इन आदमियों को घर में ले जा, और कोई जानवर ज़बह करके खाना तैयार करवा; क्यूँकि यह आदमी दोपहर को मेरे साथ खाना खाएँगे।"
\v 17 उस शख़्स ने जैसा यूसुफ़ ने फ़रमाया था किया, और इन आदमियों को यूसुफ़ के घर में ले गया।
\s5
\v 18 जब इनको यूसुफ़ के घर में पहुँचा दिया तो डर के मारे कहने लगे, "वह नक़दी जो पहली दफ़ा' हमारे बोरों में रख कर वापस कर दी गई थी, उसी की वजह से हम को अन्दर करवा दिया है; ताकि उसे हमारे ख़िलाफ़ बहाना मिल जाए और वह हम पर हमला करके हम को ग़ुलाम बना ले और हमारे गधों को छीन ले।"
\v 19 और वह यूसुफ़ के घर के मुन्तज़िम के पास गए और दरवाज़े पर खड़े होकर उससे कहने लगे,
\v 20 "जनाब, हम पहले भी यहाँ अनाज मोल लेने आए थे;
\s5
\v 21 और यूँ हुआ कि जब हम ने मंज़िल पर उतर कर अपने बोरों को खोला, तो अपनी अपनी पूरी तौली हुई नक़दी अपने अपने बोरे के मुँह में रख्खी देखी, इसलिए हम उसे अपने साथ वापस लेते आए हैं।
\v 22 और हम अनाज मोल लेने को और भी नक़दी साथ लाए हैं, ये हम नहीं जानते के हमारी नक़दी किसने हमारे बोरों में रख दी।"
\v 23 उसने कहा कि तुम्हारी सलामती हो, मत डरो! तुम्हारे ख़ुदा और तुम्हारे बाप के ख़ुदा ने तुम्हारे बोरों में तुम को ख़ज़ाना दिया होगा, मुझे तो तुम्हारी नक़दी मिल चुकी। फिर वह शमा'ऊन को निकाल कर उनके पास ले आया।
\s5
\v 24 और उस शख़्स ने उनको यूसुफ़ के घर में लाकर पानी दिया, और उन्होंने अपने पाँव धोए; और उनके गधों को चारा दिया।
\v 25 फिर उन्होंने यूसुफ़ के इन्तिज़ार में कि वह दोपहर को आएगा, नज़राना तैयार करके रख्खा; क्यूँकि उन्होंने सुना था कि उनको वहीं रोटी खानी है।
\s5
\v 26 जब यूसुफ़ घर आया, तो वह उस नज़राने को जो उनके पास था उसके सामने ले गए, और ज़मीन पर झुक कर उसके सामने आदाब बजा लाए।
\v 27 उसने उनसे ख़ैर-ओ-'आफियत पूछी और कहा कि तुम्हारा बूढ़ा बाप जिसका तुम ने ज़िक्र किया था अच्छा तो है? क्या वह अब तक ज़िन्दा है?
\s5
\v 28 उन्होंने जवाब दिया, "तेरा ख़ादिम हमारा बाप ख़ैरियत से है; और अब तक ज़िन्दा है।" फिर वह सिर झुका-झुका कर उसके सामने आदाब बजा लाए।
\v 29 फिर उसने आँख उठा कर अपने भाई बिनयमीन को जो उसकी माँ का बेटा था, देखा और कहा कि तुम्हारा सबसे छोटा भाई जिसका ज़िक्र तुम ने मुझ से किया था यही है? फिर कहा कि ऐ मेरे बेटे! ख़ुदा तुझ पर~मेहरबान~रहे।"
\s5
\v 30 तब यूसुफ़ ने जल्दी की क्यूँकि भाई को देख कर उसका जी भर आया, और वह चाहता था कि कहीं जाकर रोए। तब वह अपनी कोठरी में जा कर वहाँ रोने लगा।
\v 31 फिर वह अपना मुँह धोकर बाहर निकला और अपने को बर्दाश्त करके हुक्म दिया कि खाना लगाओ।
\s5
\v 32 और उन्होंने उसके लिए अलग और उनके लिए जुदा, और मिस्रियों के लिए, जो उसके साथ खाते थे, जुदा खाना लगाया; क्यूँकि मिस्र के लोग इब्रानियों के साथ खाना नहीं खा सकते थे, क्यूँकि मिस्रियों को इससे कराहियत है।
\v 33 और यूसुफ़ के भाई उसके सामने तरतीबवार अपनी 'उम्र की बड़ाई और छोटाई के मुताबिक़ बैठे और आपस में हैरान थे।
\v 34 फिर वह अपने सामने से खाना उठा कर हिस्से कर-कर के उनको देने लगा, और बिनयमीन का हिस्सा उनके हिस्सों से पाँच गुना ज़्यादा था। और उन्होंने मय पी और उसके साथ खु़शी मनाई।
\s5
\c 44
\p
\v 1 फिर उसने अपने घर के मुन्ताज़िम को यह हुक्म किया कि इन आदमियों के बोरों में जितना अनाज वह लेजा सकें भर दे, और हर शख़्स की नक़दी उसी के बोरे के मुँह में रख दे;
\v 2 और मेरा चाँदी का प्याला सबसे छोटे के बोरे के मुँह में उसकी नक़दी के साथ रखना।" चुनांचे उसने यूसुफ़ के फ़रमाने के मुताबिक़ 'अमल किया।
\s5
\v 3 सुबह रौशनी होते ही यह आदमी अपने गधों के साथ रुख़्सत कर दिए गए।
\v 4 वह शहर से निकल कर अभी दूर भी नहीं गए थे कि यूसुफ़ ने अपने घर के मुन्तज़िम से कहा, "जा! उन लोगों का पीछा कर; और जब तू उनको पा ले तो उनसे कहना, 'नेकी के बदले तुम ने बदी क्यूँ की?
\v 5 क्या यह वही चीज़ नहीं जिससे मेरा आक़ा पीता और इसी से ठीक फ़ाल भी खोला करता है? तुम ने जो यह किया इसलिए बुरा किया'
\s5
\v 6 और उसने उनको पा लिया और यही बातें उनसे कहीं।
\v 7 तब उन्होंने उससे कहा कि हमारा ख़ुदावन्द, ऐसी बातें क्यूँ कहता है? ख़ुदा न करे कि तेरे ख़ादिम ऐसा काम करें
\s5
\v 8 भला, जो नक़दी हम को अपने बोरों के मुँह में मिली, उसे तो हम मुल्क-ए-कना'न से तेरे पास वापस ले आए; फिर तेरे आक़ा के घर से चाँदी या सोना क्यूँ कर चुरा सकते हैं?
\v 9 इसलिए तेरे ख़ादिमों में से जिस किसी के पास वह निकले वह मार दिया जाए, और हम भी अपने ख़ुदावन्द के ग़ुलाम हो जाएँगे।
\v 10 उसने कहा कि तुम्हारा ही कहना सही, जिसके पास वह निकल आए वह मेरा ग़ुलाम होगा, और तुम बेगुनाह ठहरोगे।
\s5
\v 11 तब उन्होंने जल्दी की, और एक-एक ने अपना बोरा ज़मीन पर उतार लिया और हर शख़्स ने अपना बोरा खोल दिया।
\v 12 तब वह ढूँढने लगा और सबसे बड़े से शुरू' करके सबसे छोटे पर तलाशी ख़त्म की, और प्याला बिनयमीन के बोरे में मिला।
\v 13 तब उन्होंने अपने लिबास चाक किए और हर एक अपने गधे को लादकर उल्टा शहर को फिरा।
\s5
\v 14 और यहूदाह और उसके भाई यूसुफ़ के घर आए, वह अब तक वहीं था; तब वह उसके आगे ज़मीन पर गिरे।
\v 15 तब यूसुफ़ ने उनसे कहा, "तुम ने यह कैसा काम किया? क्या तुम को मा'लूम नहीं कि मुझ सा आदमी ठीक फ़ाल खोलता है?"
\s5
\v 16 यहूदाह ने कहा कि हम अपने ख़ुदावन्द से क्या कहें? हम क्या बात करें? या क्यूँ कर अपने को बरी ठहराएँ? ख़ुदा ने तेरे ख़ादिमों की बदी पकड़ ली। इसलिए देख, हम भी और वह भी जिसके पास प्याला निकला, दोनों अपने ख़ुदावन्द के ग़ुलाम हैं।
\v 17 उसने कहा कि ख़ुदा न करे कि मैं ऐसा करूँ; जिस शख़्स के पास यह प्याला निकला वही मेरा ग़ुलाम होगा, और तुम अपने बाप के पास सलामत चले जाओ।
\s5
\v 18 तब यहूदाह उसके नज़दीक जाकर कहने लगा, "ऐ मेरे ख़ुदावन्द! ज़रा अपने ख़ादिम को इजाज़त दे कि अपने ख़ुदावन्द के कान में एक बात कहे; और तेरा ग़ज़ब तेरे ख़ादिम पर न भड़के, क्यूँकि तू फ़िर'औन की तरह है।
\v 19 मेरे ख़ुदावन्द ने अपने ख़ादिमों से सवाल किया था कि तुम्हारा बाप या तुम्हारा भाई है?"
\s5
\v 20 और हम ने अपने ख़ुदावन्द से कहा था, 'हमारा एक बूढ़ा बाप है और उसके बुढ़ापे का एक छोटा लड़का भी है; और उसका भाई मर गया है और वह अपनी माँ का एक ही रह गया है, इसलिए उसका बाप उस पर जान देता है।'
\v 21 तब तूने अपने ख़ादिमों से कहा, 'उसे मेरे पास ले आओ कि मैं उसे देख़ूँ।'
\v 22 हम ने अपने ख़ुदावन्द को बताया, 'वह लड़का अपने बाप को छोड़ नहीं सकता, क्यूँकि अगर वह अपने बाप को छोड़े तो उसका बाप मर जाएगा।'
\s5
\v 23 फिर तूने अपने खादिमों से कहा कि जब तक तुम्हारा छोटा भाई तुम्हारे साथ न आए, तुम फिर मेरा मुँह न देखोगे।
\v 24 और यूँ हुआ कि जब हम अपने बाप के पास, जो तेरा ख़ादिम है, पहुँचे तो हम ने अपने ख़ुदावन्द की बातें उससे कहीं।
\v 25 हमारे बाप ने कहा, "फिर जा कर हमारे लिए कुछ अनाज मोल लाओ।"
\v 26 हम ने कहा, 'हम नहीं जा सकते; अगर हमारा सबसे छोटा भाई हमारे साथ हो तो हम जाएँगे। क्यूँकि जब तक हमारा सबसे छोटा भाई हमारे साथ न हो, हम उस शख़्स का मुँह न देखेंगे।"
\s5
\v 27 और तेरे ख़ादिम मेरे बाप ने हम से कहा, 'तुम जानते हो कि मेरी बीवी के मुझ से दो बेटे हुए।
\v 28 एक तो मुझे छोड़ ही गया और मैंने ख़्याल किया कि वह ज़रूर फाड़ डाला गया होगा; और मैंने उसे उस वक़्त से फिर नहीं देखा।
\v 29 अब अगर तुम इसको भी मेरे पास से ले जाओ और इस पर कोई आफ़त आ पड़े, तो तुम मेरे सफ़ेद बालों को ग़म के साथ क़ब्र में उतारोगे।”
\s5
\v 30 इसलिए अब अगर मैं तेरे ख़ादिम अपने बाप के पास जाऊँ और यह लड़का हमारे साथ न हो, तो चूँकि उसकी जान इस लड़के की जान के साथ जुड़ी है।
\v 31 वह यह देख कर कि लड़का नहीं आया मर जाएगा, और तेरे ख़ादिम अपने बाप के, जो तेरा ख़ादिम है, सफ़ेद बालों को ग़म के साथ क़ब्र में उतारेंगे।
\v 32 और तेरा ख़ादिम अपने बाप के सामने इस लड़के का ज़िम्मेदार भी हो चुका है और यह कहा है किअगर मैं इसे तेरे पास वापस न पहुँचा दूँ तो मैं हमेशा के लिए अपने बाप का गुनहगार ठहरूंगा।'
\s5
\v 33 इसलिए अब तेरे ख़ादिम की इजाज़त हो कि वह इस लड़के के बदले अपने ख़ुदावन्द का ग़ुलाम हो कर रह जाए, और यह लड़का अपने भाइयों के साथ चला जाए।
\v 34 क्यूँकि लड़के के बग़ैर मैं क्या मुँह लेकर अपने बाप के पास जाऊँ? कहीं ऐसा न हो कि मुझे वह मुसीबत देखनी पड़े, जो ऐसे हाल में मेरे बाप पर आएगी।"
\s5
\c 45
\p
\v 1 तब यूसुफ़ उनके आगे जो उसके आस पास खड़े थे, अपने को रोक न कर सका और चिल्ला कर कहा, "हर एक आदमी को मेरे पास से बाहर कर दो।" चुनांचे जब यूसुफ़ ने अपने आप को अपने भाइयों पर ज़ाहिर किया उस वक़्त और कोई उसके साथ न था।
\v 2 और वह ज़ोर ज़ोर से रोने लगा; और मिस्रियों ने सुना, और फ़िर'औन के महल में भी आवाज़ गई।
\v 3 और यूसुफ़ ने अपने भाइयों से कहा, "मैं यूसुफ़ हूँ! क्या मेरा बाप अब तक ज़िन्दा है?" और उसके भाई उसे कुछ जवाब न दे सके, क्यूँकि वह उसके सामने घबरा गए।
\s5
\v 4 और यूसुफ़ ने अपने भाइयों से कहा, "ज़रा नज़दीक आ जाओ।" और वह नज़दीक आए। तब उसने कहा, "मैं तुम्हारा भाई यूसुफ़ हूँ, जिसको तुम ने बेच कर मिस्र पहुँचवाया।
\v 5 और इस बात से कि तुम ने मुझे बेच कर यहाँ पहुँचवाया, न तो ग़मगीन हो और न अपने-अपने दिल में परेशान हो; क्यूँकि ख़ुदा ने जानों को बचाने के लिए मुझे तुम से आगे भेजा।
\v 6 इसलिए कि अब दो साल से मुल्क में काल है, और अभी पाँच साल और ऐसे हैं जिनमें न तो हल चलेगा और न फसल कटेगी।
\s5
\v 7 और ख़ुदा ने मुझ को तुम्हारे आगे भेजा, ताकि तुम्हारा बक़िया ज़मीन पर सलामत रख्खे और तुम को बड़ी रिहाई के वसीले से ज़िन्दा रख्खे।
\v 8 फिर तुम ने नहीं बल्कि ख़ुदा ने मुझे यहाँ भेजा, और उसने मुझे गोया फ़िर'औन का बाप और उसके सारे घर का ख़ुदावन्द और सारे मुल्क-ए-मिस्र का हाकिम बनाया।
\s5
\v 9 इसलिए तुम जल्द मेरे बाप के पास जाकर उससे कहो, 'तेरा बेटा यूसुफ़ यूँ कहता है, कि ख़ुदा ने मुझ को सारे मिस्र का मालिक कर दिया है। तू मेरे पास चला आ, देर न कर।
\v 10 तू जशन के इलाक़े में रहना, और तू और तेरे बेटे और तेरे पोते और तेरी भेड़ बकरियाँ और गायें बैल और तेरा माल ओ-मता'अ, यह सब मेरे नज़दीक होंगे।
\v 11 और वहीं मैं तेरी परवरिश करूँगा; ऐसा न हो कि तुझ को और तेरे घराने और तेरे माल-ओ-मता'अ को ग़रीबी आ दबाए, क्यूँकि काल के अभी पाँच साल और हैं।'
\s5
\v 12 और देखो, तुम्हारी आँखें और मेरे भाई बिनयमीन की आँखें देखती हैं कि खुद मेरे मुँह से ये बातें तुम से हो रही हैं।
\v 13 और तुम मेरे बाप से मेरी सारी शान-ओ-शौकत का जो मुझे मिस्र में हासिल है, और जो कुछ तुम ने देखा है सबका ज़िक्र करना; और तुम बहुत जल्द मेरे बाप को यहाँ ले आना।"
\s5
\v 14 और वह अपने भाई बिनयमीन के गले लग कर रोया और बिनयमीन भी उसके गले लगकर रोया।
\v 15 और उसने सब भाइयों को चूमा और उनसे मिल कर रोया, इसके बा'द उसके भाई उससे बातें करने लगे।
\s5
\v 16 और फ़िर'औन के महल में इस बात का ज़िक्र हुआ कि यूसुफ़ के भाई आए हैं और इस से फ़िर'औन के नौकर चाकर बहुत खुश हुए।
\v 17 और फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा कि अपने भाइयों से कह, तुम यह काम करो कि अपने जानवरों को लाद कर मुल्क-ए-कना'न को चले जाओ।
\v 18 और अपने बाप को और अपने-अपने घराने को लेकर मेरे पास आ जाओ, और जो कुछ मुल्क-ए-मिस्र में अच्छे से अच्छा है वह मैं तुम को दूँगा और तुम इस मुल्क की उम्दा उम्दा चीज़ें खाना।
\s5
\v 19 तुझे हुक्म मिल गया है, कि उनसे कहे, 'तुम यह करो कि अपने बाल बच्चों और अपनी बीवियों के लिए मुल्क-ए- मिस्र से अपने साथ गाड़ियाँ ले जाओ, और अपने बाप को भी साथ लेकर चले आओ।
\v 20 और अपने अस्बाब का कुछ अफ़सोस न करना, क्यूँकि मुल्क-ए-मिस्र की सब अच्छी चीज़ें तुम्हारे लिए हैं।"
\s5
\v 21 और इस्राईल के बेटों ने ऐसा ही किया; और यूसुफ़ ने फ़िर'औन के हुक्म के मुताबिक़ उनको गाड़ियाँ दीं और सफ़र का सामान ~भी दिया।
\v 22 और उसने उनमें से हर एक को एक-एक जोड़ा कपड़ा दिया, लेकिन बिनयमीन को चाँदी के तीन सौ सिक्के और पाँच जोड़े कपड़े दिए।
\v 23 और अपने बाप के लिए उसने यह चीज़ें भेजीं, या'नी दस गधे जो मिस्र की अच्छी चीज़ों से लदे हुए थे, और दस गधियाँ जो उसके बाप के रास्ते के लिए ग़ल्ला और रोटी और सफ़र के सामान ~से लदी हुई थीं।
\s5
\v 24 चुनांचे ~उसने अपने भाइयों को रवाना किया और वह चल पड़े; और उसने उनसे कहा, "देखना, कहीं रास्ते में तुम झगड़ा न करना।"
\v 25 और वह मिस्र से रवाना हुए और मुल्क-ए-कना'न में अपने बाप या'क़ूब के पास पहुँचे,
\v 26 और उससे कहा, "यूसुफ़ अब तक ज़िन्दा है और वही सारे मुल्क-ए- मिस्र का हाकिम है।" और या'क़ूब का दिल धक से रह गया, क्यूँकि उसने उनका यक़ीन न किया।
\s5
\v 27 तब उन्होंने उसे वह सब बातें जो यूसुफ़ ने उनसे कही थीं बताई, और जब उनके बाप या'क़ूब ने वह गाड़ियाँ देख लीं जो यूसुफ़ ने उसके लाने को भेजीं थीं, तब उसकी जान में जान आई।
\v 28 और इस्राईल कहने लगा, "यह बस है कि मेरा बेटा यूसुफ़ अब तक ज़िन्दा है। मैं अपने मरने से पहले जाकर उसे देख तो लूँगा।"
\s5
\c 46
\p
\v 1 और इस्राईल अपना सब कुछ लेकर चला और बैरसबा' में आकर अपने बाप इस्हाक़ के ख़ुदा के लिए क़ुर्बानियाँ पेश कीं।
\v 2 और ख़ुदा ने रात को ख़्वाब में इस्राईल से बातें कीं और कहा, "ऐ या'कूब, ऐ या'कूब!" उसने जवाब दिया, "मैं हाज़िर हूँ।"
\v 3 उसने कहा, "मैं ख़ुदा, तेरे बाप का ख़ुदा हूँ! मिस्र में जाने से न डर, क्यूँकि मैं वहाँ तुझ से एक बड़ी क़ौम पैदा करूँगा।
\v 4 मैं तेरे साथ मिस्र को जाऊँगा और फिर तुझे ज़रूर लौटा भी लाऊँगा, और यूसुफ़ अपना हाथ तेरी आँखों पर लगाएगा।”
\s5
\v 5 तब या'क़ूब बैरसबा' से रवाना हुआ, और इस्राईल के बेटे अपने बाप या'क़ूब को और अपने बाल बच्चों और अपनी बीवियों को उन गाड़ियों पर ले गए जो फ़िर'औन ने उनके लाने को भेजीं थीं।
\v 6 और वह अपने चौपायों और सारे माल-ओ-अस्बाब को जो उन्होंने मुल्क-ए- कना'न में जमा' किया था लेकर मिस्र में आए, और या'क़ूब के साथ उसकी सारी औलाद थी।
\v 7 ~वह अपने बेटों और बेटियों और पोतों और पोतियों, और अपनी कुल नसल को अपने साथ मिस्र में ले आया।
\s5
\v 8 और या'क़ूब के साथ जो इस्राइली या'नी उसके बेटे वग़ैरा मिस्र में आए उनके नाम यह हैं: रूबिन, या'क़ूब का पहलौठा ।
\v 9 और बनी रूबिन यह हैं : हनूक और फ़ल्लू और हसरोन और करमी।
\v 10 और बनी शमा'ऊन यह हैं: यमूएल और यमीन और उहद और यकीन और सुहर और साऊल, जो एक कना'नी 'औरत से पैदा हुआ था।
\v 11 और बनी लावी यह हैं : जैरसोन और किहात और मिरारी।
\s5
\v 12 और बनी यहूदाह यह हैं : 'एर और ओनान और सीला, और फ़ारस और ज़ारह - इनमें से 'एर और ओनान मुल्क-ए-कना'न में मर चुके थे। और फ़ारस के बेटे यह हैं : हसरोन और हमूल।
\v 13 और बनी इश्कार यह हैं: तोला' और फूवा और योब और सिमरोन।
\v 14 और बनी ज़बूलून यह हैं : सरद और एलोन और यहलीएल।
\v 15 यह सब या'क़ूब के उन बेटों की औलाद हैं जो फ़द्दान अराम में लियाह से पैदा हुए, इसी के बत्न से उसकी बेटी दीना थी। यहाँ तक तो उसके सब बेटे बेटियों का शुमार तैंतीस हुआ।
\s5
\v 16 बनी जद्द यह हैं: सफ़ियान और हज्जी और सूनी और असबान और 'एरी और अरूदी और अरेली।
\v 17 और बनी आशर यह~हैं: यिमना और इसवाह और इसवी और बरि'आह और सिर्राह उनकी बहन और ~बनी बरी'आह यह हैं: हिब्र और मलकीएल।
\v 18 यह सब या'क़ूब के उन बेटों की औलाद हैं जो ज़िल्फ़ा लौंडी से पैदा हुए, जिसे लाबन ने अपनी बेटी लियाह को दिया था। उनका शुमार सोलह था।
\s5
\v 19 और या'क़ूब के बेटे यूसुफ़ और बिनयमीन राख़िल से पैदा हुए थे।
\v 20 और यूसुफ़ से मुल्क-ए-मिस्र में ओन के पुजारी फ़ोतीफ़िरा' की बेटी आसिनाथ के मनस्सी और इफ़ाईम पैदा हुए।
\v 21 और बनी बिनयमीन यह हैं: बाला' और बक्र और अशबेल और जीरा और ना'मान, अख़ी और रोस, मुफ़्फ़ीम और हुफ़्फ़ीम और अरद।
\v 22 यह सब या'क़ूब के उन बेटों की औलाद हैं जो राख़िल से पैदा हुए। यह सब शुमार में चौदह थे।
\s5
\v 23 और दान के बेटे का नाम हशीम था।
\v 24 और बनी नफ़्ताली यह~हैं: यहसीएल और जूनी और यिस्र और सलीम।
\v 25 यह सब या'क़ूब के उन बेटों की औलाद हैं जो बिल्हाह लौंडी से पैदा हुए, जिसे लाबन ने अपनी बेटी राख़िल को दिया था। इनका शुमार सात था।
\s5
\v 26 या'क़ूब के सुल्ब से जो लोग पैदा हुए और उसके साथ मिस्र में आए वह उसकी बहुओं को छोड़ कर शुमार में छियासठ थे।
\v 27 और यूसुफ़ के दो बेटे थे जो मिस्र में पैदा हुए, इसलिए या'क़ूब के घराने के जो लोग मिस्र में आए वह सब मिल कर सत्तर हुए।
\s5
\v 28 और उसने यहूदाह को अपने से आगे यूसुफ़ के पास भेजा ताकि वह उसे जशन का रास्ता दिखाए, और वह जशन के 'इलाक़े में आए।
\v 29 और यूसुफ़ अपना रथ तैयार करवा के अपने बाप इस्राईल के इस्तक़बाल के लिए जशन को गया, और उसके पास जाकर उसके गले से लिपट गया और वहीं लिपटा हुआ देर तक रोता रहा।
\v 30 तब इस्राईल ने यूसुफ़ से कहा, "अब चाहे मैं मर जाऊँ; क्यूँकि तेरा मुँह देख चुका कि तू अभी ज़िन्दा है।"
\s5
\v 31 और यूसुफ़ ने अपने भाइयों से और अपने बाप के घराने से कहा, "मैं अभी जाकर फ़िर'औन को ख़बर कर दूँगा और उससे कह दूँगा कि मेरे भाई और मेरे बाप के घराने के लोग, जो मुल्क-ए-कना'न में थे मेरे पास आ गए हैं।
\v 32 और वह चौपान हैं; क्यूँकि बराबर चौपायों को पालते आए हैं, और वह अपनी भेड़ बकरियाँ और गाय-बैल और जो कुछ उनका है सब ले आए हैं।'
\s5
\v 33 तब जब फ़िर'औन तुम को बुला कर पूछे कि तुम्हारा पेशा क्या है?
\v 34 तो तुम यह कहना कि तेरे ख़ादिम, हम भी और हमारे बाप दादा भी, लड़कपन से लेकर आज तक चौपाये पालते आए हैं।' तब तुम जशन के इलाक़े में रह सकोगे, इसलिए कि मिस्रियों को चौपानों से नफ़रत है।
\s5
\c 47
\p
\v 1 तब यूसुफ़ ने आकर फ़िर'औन को ख़बर दी कि मेरा बाप और मेरे भाई और उनकी भेड़ बकरियाँ और गाय बैल और उनका सारा माल-ओ-सामान' ~मुल्क-ए-कना'न से आ गया है, और अभी तो वह सब जशन के 'इलाक़े में हैं।
\v 2 फिर उसने अपने भाइयों में से पाँच को अपने साथ लिया और उनको फ़िर'औन के सामने हाज़िर किया।
\s5
\v 3 और फ़िर'औन ने उसके भाइयों से पूछा, "तुम्हारा पेशा क्या है?" उन्होंने फ़िर'औन से कहा, तेरे ख़ादिम चौपान हैं जैसे हमारे बाप दादा ~थे।”
\v 4 फिर उन्होंने फ़िर'औन से कहा कि हम इस मुल्क में मुसाफ़िराना तौर पर रहने आए हैं, क्यूँकि मुल्क-ए-कना'न में सख़्त काल होने की वजह से वहाँ तेरे खादिमों के चौपायों के लिए चराई नहीं रही। इसलिए करम करके अपने ख़ादिमों को जशन के 'इलाक़े में रहने दे।
\s5
\v 5 तब फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा कि तेरा बाप और तेरे भाई तेरे पास आ गए हैं।
\v 6 मिस्र का मुल्क तेरे आगे पड़ा है, यहाँ के अच्छे से अच्छे इलाक़े में अपने बाप और भाइयों को बसा दे, या'नी जशन ही के 'इलाक़े में उनको रहने दे, और अगर तेरी समझ में उनमें होशियार आदमी भी हों तो उनको मेरे चौपायों पर मुक़र्रर कर दे।"
\s5
\v 7 और यूसुफ़ अपने बाप या'क़ूब को अन्दर लाया और उसे फ़िर'औन के सामने हाज़िर किया, और या'क़ूब ने फ़िर'औन को दु'आ दी।
\v 8 और फ़िर'औन ने या'क़ूब से पूछा कि तेरी 'उम्र कितने साल की है?
\v 9 या'क़ूब ने फ़िर'औन से कहा कि मेरी मुसाफ़िरत के साल एक सौ तीस हैं; मेरी ज़िन्दगी के दिन थोड़े और दुख से भरे हुए रहे, और अभी यह इतने हुए भी नही हैं जितने मेरे बाप दादा की ज़िन्दगी के दिन उनके दौर-ए-मुसाफ़िरत में हुए।
\v 10 और या'क़ूब फ़िर'औन को दु'आ दे कर उसके पास से चला गया।
\s5
\v 11 और यूसुफ़ ने अपने बाप और अपने भाइयों को बसा दिया और फ़िर'औन के हुक्म के मुताबिक़ रा'मसीस के इलाक़े को, जो मुल्क-ए-मिस्र का निहायत हरा भरा 'इलाक़ा है उनकी जागीर ठहराया।
\v 12 और यूसुफ़ अपने बाप और अपने भाइयों और अपने बाप के घर के सब आदमियों की परवरिश, एक-एक के ख़ान्दान की ज़रूरत के मुताबिक़ अनाज से करने लगा।
\s5
\v 13 और उस सारे मुल्क में खाने को कुछ न रहा, क्यूँकि काल ऐसा सख़्त था कि मुल्क-ए-मिस्र और मुल्क-ए-कना'न दोनों काल की वजह से तबाह हो गए थे।
\v 14 और जितना रुपया मुल्क-ए-मिस्र और मुल्क-ए- कना'न में था वह सब यूसुफ़ ने उस ग़ल्ले के बदले, जिसे लोग ख़रीदते थे, ले ले कर जमा' कर लिया और सब रुपये को उसने फ़िर'औन के महल में पहुँचा दिया।
\s5
\v 15 और जब वह सारा रुपया, जो मिस्र और कना'न के मुल्कों में था, ख़र्च हो गया तो मिस्री यूसुफ़ के पास आकर कहने लगे, "हम को अनाज दे; क्यूँकि रुपया तो हमारे पास रहा नहीं। हम तेरे होते हुए क्यूँ। मरें?"
\v 16 यूसुफ़ ने कहा कि अगर रुपया नहीं हैं तो अपने चौपाये दो; और मैं तुम्हारे चौपायों के बदले तुम को अनाज दूँगा।
\v 17 तब वह अपने चौपाये यूसुफ़ के पास लाने लगे ~और गाय बैलों और गधों के बदले उनको अनाज देने लगा; और पूरे साल भर उनको उनके सब चौपायों के बदले अनाज खिलाया।
\s5
\v 18 जब यह साल गुज़र गया तो वह दूसरे साल उसके पास आ कर कहने लगे कि इसमें हम अपने ख़ुदावन्द से कुछ नहीं छिपाते कि हमारा सारा रुपया ~खर्च हो चुकाऔर हमारे चौपायों के गल्लों का मालिक भी हमारा ख़ुदावन्द हो गया है। और हमारा ख़ुदावन्द देख चुका है कि अब हमारे जिस्म और हमारी ज़मीन के अलावा कुछ बाक़ी नहीं।
\v 19 फिर ऐसा क्यूँ हो कि तेरे देखते-देखते हम भी मरें और हमारी ज़मीन भी उजड़ जाए? इसलिए तू हम को और हमारी ज़मीन को अनाज के बदले ख़रीद ले कि हम फ़िर'औन के ग़ुलाम बन जाएँ, और हमारी ज़मीन का मालिक भी वही हो जाए और हम को बीज दे ताकि हम हलाक न हों बल्कि ज़िन्दा रहें और मुल्क भी वीरान न हो|
\s5
\v 20 ~और ~यूसुफ़ ने मिस्र की सारी ज़मीन फ़िर'औन के नाम पर ख़रीद ली; क्यूँकि काल से तंग आ कर मिस्रियों में से हर शख़्स ने अपना खेत बेच डाला। तब सारी ज़मीन फ़िर'औन की हो गई।
\v 21 और मिस्र के एक सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक जो लोग रहते थे उनको उसने शहरों में बसाया।
\v 22 लेकिन पुजारियों की ज़मीन उसने न ख़रीदी, क्यूँकि फ़िर'औन की तरफ़ से पुजारियों को ख़ुराक मिलती थी। इसलिए वह अपनी-अपनी ख़ुराक, जो फ़िर'औन उनको देता था खाते थे इसलिए उन्होंने अपनी ज़मीन न बेची।
\s5
\v 23 तब यूसुफ़ ने वहाँ के लोगों से कहा, कि देखो, मैंने आज के दिन तुम को और तुम्हारी ज़मीन को फ़िर'औन के नाम पर ख़रीद लिया है। इसलिए तुम अपने लिए यहाँ से बीज लो और खेत बो ~डालो।
\v 24 और फ़सल पर पाँचवाँ हिस्सा फ़िर'औन को दे देना और बाक़ी चार तुम्हारे रहे, ताकि खेती के लिए बीज के भी काम आएँ, और तुम्हारे और तुम्हारे घर के आदमियों और तुम्हारे बाल बच्चों के लिए खाने को भी हो।
\s5
\v 25 उन्होंने कहा, कि तूने हमारी जान बचाई है, हम पर हमारे ख़ुदावन्द के करम की नज़र रहे और हम फ़िर'औन के ग़ुलाम बने रहेंगे।
\v 26 और यूसुफ़ ने यह कानून जो आज तक है मिस्र की ज़मीन के लिए ठहराया, के फ़िर'औन पैदावार का पाँचवाँ हिस्सा लिया करे। इसलिए सिर्फ़ पुजारियों की ज़मीन ऐसी थी जो फ़िर'औन की न हुई।
\s5
\v 27 और इस्राइली मुल्क-ए-मिस्र में जशन के इलाक़े में रहते थे, और उन्होंने अपनी जायदादें खड़ी कर लीं और वह बढ़े और बहुत ज़्यादा हो गए।
\v 28 और या'क़ूब मुल्क-ए-मिस्र में सत्रह साल और जिया; तब या'क़ूब की कुल 'उम्र एक सौ सैंतालीस साल की हुई।
\s5
\v 29 और इस्राईल के मरने का वक़्त नज़दीक आया; तब उसने अपने बेटे यूसुफ़ को बुला कर उससे कहा, "अगर मुझ पर तेरे करम की नज़र है तो अपना हाथ मेरी रान के नीचे रख, और देख, मेहरबानी और सच्चाई से मेरे साथ पेश आना; मुझ को मिस्र में दफ़्न न करना।
\v 30 बल्कि जब मैं अपने बाप-दादा के साथ सो जाऊँ तो मुझे मिस्र से ले जाकर उनके कब्रिस्तान में दफ़न करना।" उसने जवाब दिया, ‘जैसा तूने कहा है मैं वैसा ही करूँगा।"
\v 31 और उसने कहा कि तू मुझ से क़सम खा। और उसने उससे क़सम खाई, तब इस्राईल अपने बिस्तर पर सिरहाने की तरफ़ सिजदे में हो गया।
\s5
\c 48
\p
\v 1 इन बातों के बा'द यूँ हुआ कि किसी ने यूसुफ़ से कहा, "तेरा बाप बीमार है।" तब वह अपने दोनो बेटों, मनस्सी और इफ़्राईम को साथ लेकर चला।
\v 2 और या'क़ूब से कहा गया, "तेरा बेटा यूसुफ़ तेरे पास आ रहा है," और इस्राईल अपने को संभाल कर पलंग पर बैठ गया।
\s5
\v 3 और या'क़ूब ने यूसुफ़ से कहा, "खुदा-ए-क़ादिर-ए-मुतलक़ मुझे लूज़ में जो मुल्क-ए-कना'न में है, दिखाई दिया और मुझे बरकत दी।
\v 4 और उसने मुझ से कहा मै तुझे कामयाब करूँगा और बढ़ाऊंगा और तुझ से क़ौमों का एक गिरोह पैदा करूँगा; और तेरे बा'द यह ज़मीन तेरी नसल को दूँगा, ताकि यह उनकी हमेशा की जायदाद ~हो जाए।'
\s5
\v 5 तब तेरे दोनों बेटे, जो मुल्क-ए-मिस्र में मेरे आने से पहले पैदा हुए मेरे हैं, या'नी रूबिन और शमा'ऊन की तरह इफ़्राईम और मनस्सी भी मेरे ही होंगे।
\v 6 और जो औलाद अब उनके बा'द तुझ से होगी वह तेरी ठहरेगी, लेकिन अपनी मीरास में अपने भाइयों के नाम से वह लोग नामज़द होंगे।
\v 7 और मैं जब फ़द्दान से आता था तो राख़िल ने रास्ते ही में जब इफ़रात थोड़ी दूर रह गया था, मेरे सामने मुल्क-ए-कना'न में वफ़ात पाई। और मैंने उसे वहीं इफ़रात के रास्ते में दफ़्न किया। बैतलहम वही है।"
\s5
\v 8 फिर इस्राईल ने यूसुफ़ के बेटों को देख कर पूछा, "यह कौन हैं?"
\v 9 यूसुफ़ ने अपने बाप से कहा, "यह मेरे बेटे हैं जो ख़ुदा ने मुझे यहाँ दिए हैं।" उसने कहा, "उनको ज़रा मेरे पास ला, मैं उनको बरकत दूँगा।"
\v 10 लेकिन इस्राईल की आँखें बुढ़ापे की वजह से धुन्धला गई थीं, और उसे दिखाई नहीं देता था। तब यूसुफ़ उनको उसके नज़दीक ले आया। तब उसने उनको चूम कर गले लगा लिया।
\s5
\v 11 और इस्राईल ने यूसुफ़ से कहा, "मुझे तो ख़्याल भी न था कि मैं तेरा मुँह देखूँगा लेकिन ख़ुदा ने तेरी औलाद भी मुझे दिखाई।"
\v 12 और यूसुफ़ उनको अपने घुटनों के बीच से हटा कर मुँह के बल ज़मीन तक झुका।
\v 13 और यूसुफ़ उन दोनों को लेकर, या'नी इफ़्राईम को अपने दहने हाथ से इस्राईल के बाएं हाथ के सामने और मनस्सी को अपने बाएं हाथ से इस्राईल के दहने हाथ के सामने करके, उनको उसके नज़दीक लाया।
\s5
\v 14 और इस्राईल ने अपना दहना हाथ बढ़ा कर इफ़्राईम के सिर पर जो छोटा था, और बाँया हाथ मनस्सी के सिर पर रख दिया। उसने जान बूझ कर अपने हाथ यूँ रख्खे, क्यूँकि पहलौठा तो मनस्सी ही था।
\v 15 और उसने यूसुफ़ को बरकत दी और कहा कि ख़ुदा, जिसके सामने मेरे बाप इब्राहीम और इस्हाक़ ने अपना दौर पूरा किया; वह ख़ुदा, जिसने सारी 'उम्र आज के दिन तक मेरी रहनुमाई ~की।
\v 16 और वह फ़रिश्ता, जिसने मुझे सब बलाओं से बचाया, इन लड़कों को बरकत दे; और जो मेरा और मेरे बाप दादा इब्राहीम और इस्हाक़ का नाम है उसी से यह नामज़द हों, और ज़मीन पर बहुत कसरत से बढ़ जाएँ।"
\s5
\v 17 और यूसुफ़ यह देखकर कि उसके बाप ने अपना दहना हाथ इफ़्राईम के सिर पर रख्खा, नाखुश हुआ और उसने अपने बाप का हाथ थाम लिया, ताकि उसे इफ़्राईम के सिर पर से हटाकर मनस्सी के सिर पर रख्खे।
\v 18 और यूसुफ़ ने अपने बाप से कहा कि ऐ मेरे बाप, ऐसा न कर; क्यूँकि पहलौठा यह है, अपना दहना हाथ इसके सिर पर रख।"
\s5
\v 19 उसके बाप ने न माना, और कहा, "ऐ मेरे बेटे, मुझे खू़ब मा'लूम है। इससे भी एक गिरोह पैदा होगी और यह भी बुज़ुर्ग होगा, लेकिन इसका छोटा भाई इससे बहुत बड़ा होगा और उसकी नसल से बहुत सी क़ौमें होंगी।"
\v 20 और उसने उनको उस दिन बरकत बख़्शी और कहा, "इस्राइली तेरा नाम ले लेकर यूँ दु'आ दिया करेंगे, 'ख़ुदा तुझ को इफ़्राईम और मनस्सी को तरह कामयाब ~करे' !' तब उसने इफ़ाईम को मनस्सी पर फ़ज़ीलत दी।
\s5
\v 21 और इस्राईल ने यूसुफ़ से कहा, "मैं तो मरता हूँ लेकिन ख़ुदा तुम्हारे साथ होगा और तुम को फिर तुम्हारे बाप दादा के मुल्क में ले जाएगा।
\v 22 और मैं तुझे तेरे भाइयों से ज़्यादा एक हिस्सा, जो मैने अमोरियों के हाथ से अपनी तलवार और कमान से लिया देता हूँ |
\s5
\c 49
\p
\v 1 और या'क़ूब ने अपने बेटों को यह कह कर बुलवाया कि तुम सब जमा' हो जाओ, ताकि मैं तुम को बताऊँ कि आख़िरी दिनों में तुम पर क्या-क्या गुज़रेगा।
\v 2 ~ऐ, या'क़ूब के बेटों जमा' हो कर सुनो, और अपने बाप इस्राईल की तरफ़ कान लगाओ।
\s5
\v 3 ऐ रूबिन! तू मेरा पहलौठा, मेरी क़ुव्वत और मेरी शहज़ोरी का पहला फल है।तू मेरे रौब की और मेरी ताक़त की शान है।
\v 4 तू पानी की तरह बे सबात है, इसलिए मुझे फ़ज़ीलत नहीं मिलेगी ~क्यूँकि तू अपने बाप के बिस्तर पर चढ़ा तूने उसे नापाक किया; रूबिन मेरे बिछोने पर चढ़ गया।
\s5
\v 5 शमा'ऊन और लावी तो भाई-भाई हैं, उनकी तलवारें ज़ुल्म के हथियार हैं।
\v 6 ऐ मेरी जान! उनके मधरे में शरीक न हो, ऐ मेरी बुज़ुर्गी! उनकी मजलिस में शामिल न हो, क्यूँकि उन्होंने अपने ग़ज़ब में एकआदमी को क़त्ल किया, और अपनी खुदराई से बैलों की कूँचें काटीं।
\s5
\v 7 ~ला'नत उनके ग़ज़ब पर, क्यूँकि वह तुन्द था। और उनके क़हर पर, क्यूँकि वह सख़्त था; मैं उन्हें या'क़ूब में अलग अलग और इस्राईल में बिखेर दूँगा।
\s5
\v 8 ऐ यहूदाह, तेरे भाई तेरी मदह करेंगे, तेरा हाथ तेरे दुश्मनों की गर्दन पर होगा। तेरे बाप की औलाद तेरे आगे सिज्दा करेगी।
\s5
\v 9 यहूदाह शेर-ए-बबर का बच्चा है ~ऐ मेरे बेटे! तू शिकार मार कर चल दिया है। वह शेर-ए-बबर, बल्कि शेरनी की तरह दुबक कर बैठ गया, कौन उसे छेड़े?
\s5
\v 10 यहूदाह से सल्तनत नहीं छूटेगी। और न उसकी नसल से हुकूमत का 'असा मौकूफ़ होगा। जब तक शीलोह न आए और क़ौमें उसकी फ़रमाबरदार होंगी।
\s5
\v 11 वह अपना जवान गधा अंगूर के दरख़्त से, और अपनी गधी का बच्चा 'आला दरजे के अंगूर के दरख़्त से बाँधा करेगा; वह अपना लिबास मय में, और अपनी पोशाक आब-ए अंगूर में ~धोया करेगा
\v 12 उसकी आँखें मय की वजह से लाल, और उसके दाँत दूध की वजह से सफ़ेद रहा करेंगे।
\s5
\v 13 ज़बूलून समुन्दर के किनारे बसेगा, और जहाज़ों के लिए बन्दरगाह का काम देगा, और उसकी हद सैदा तक फैली होगी।
\s5
\v 14 इश्कार मज़बूत गधा है, जो दो भेड़सालों के बीच बैठा है;
\v 15 उसने एक अच्छी आरामगाह और खुशनुमा ज़मीन को ~देख कर अपना कन्धा बोझ उठाने को झुकाया, और बेगार में ग़ुलाम की तरह काम करने लगा।
\s5
\v 16 दान इस्राईल के क़बीलों में से एक की तरह अपने लोगों का इन्साफ़ करेगा।
\v 17 दान रास्ते का साँप है, वह राहगुज़र का अज़दहा है, जो घोड़े के 'अकब को ऐसा डसता है किउसका सवार पछाड़ खा कर गिर पड़ता है।
\v 18 ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी नजात की राह देखता आया हूँ।
\s5
\v 19 जद पर एक फौज़ हमला करेगी लेकिन वह उसके दुम्बाला पर छापा मारेगा ।
\v 20 आशर नफ़ीस अनाज पैदा किया करेगा और बादशाहों के लायक़ लज़ीज़ सामान मुहय्या करेगा।
\v 21 नफ़्ताली ऐसा है जैसा छूटी हुई हरनी, वह मीठी-मीठी बातें करता है।
\s5
\v 22 यूसुफ़ एक फलदार पौधा है, ऐसा फलदार पौधा जो पानी के चश्में के पास लगा हुआ हो, और उसकी शाखें । दीवार पर फैल गई हों।
\v 23 तीरंदाज़ों ने उसे बहुत छेड़ा और मारा और सताया है;
\s5
\v 24 लेकिन उसकी कमान मज़बूत रही, और उसके हाथों और बाजुओं ने या'क़ूब के क़ादिर के हाथ से ताक़त पाई, वहीं से वह चौपान उठा है जो इस्राईल ~की चट्टान ~है।
\s5
\v 25 यह तेरे बाप के ख़ुदा का काम है, जो तेरी मदद करेगा, उसी क़ादिर-ए-मुतलक का काम जो ऊपर से आसमान की बरकतें, और नीचे से गहरे समुन्दर कि बरकतें 'अता करेगा।
\s5
\v 26 तेरे बाप की बरकतें, मेरे बाप दादा की बरकतों से कहीं ज़्यादा हैं, और क़दीम पहाड़ों की इन्तिहा तक पहुँची हैं; वह यूसुफ़ के सिर, बल्कि उसके सिर की चाँदी पर जो अपने भाइयों से जुदा हुआ नाज़िल होंगी।
\s5
\v 27 बिनयमीन फाड़ने वाला भेड़िया है, वह सुबह को शिकार खाएगा और शाम को लूट का माल बाँटेगा।
\s5
\v 28 इस्राईल के बारह क़बीले यही हैं : और उनके बाप ने जो-जो बातें कह कर उनको बरकत दीं वह भी यही हैं; हर एक को, उसकी बरकत के मुवाफ़िक़ उसने बरकत दी।
\v 29 फिर उसने उनको हुक्म किया और कहा, कि मैं अपने लोगों में शामिल होने पर हूँ; मुझे मेरे बाप दादा के पास उस मग़ारह मारे में जो इफ़रोन हित्ती के खेत में है दफ़्न करना,
\v 30 या'नी उस मग़ारे में जो मुल्क-ए-कना'न में ममरे के सामने मकफ़ीला के खेत में है, जिसे इब्राहीम ने खेत के साथ 'इफ़रोन हिती से मोल लिया था, ताकि क़ब्रिस्तान के लिए वह उसकी मिलिकयत बन जाए।
\s5
\v 31 वहाँ उन्होंने इब्राहीम को और उसकी बीवी सारा को दफ़न किया, वहीं उन्होने इस्हाक़ और उसकी बीवी रिबक़ा को दफ़न किया, और वहीं मैंने भी लियाह को दफ़न किया,
\v 32 या'नी उसी खेत के माग़ारे में जो बनी हित्ती से ख़रीदा था।"
\v 33 और जब या'क़ूब अपने बेटों को वसीयत कर चुका तो, उसने अपने पाँव बिछौने पर समेट लिए और दम छोड़ दिया और अपने लोगों में जा मिला।
\s5
\c 50
\p
\v 1 तब यूसुफ़ अपने बाप के मुँह से लिपट कर उस पर रोया और उसको चूमा।
\v 2 और यूसुफ़ ने उन हकीमों को जो उसके नौकर थे, अपने बाप की लाश में खुशबू भरने का हुक्म दिया। तब हकीमों ने इस्राईल की लाश में ख़ुशबू भरी।
\v 3 और उसके चालीस दिन पूरे हुए, क्यूँकि खुशबू भरने में इतने ही दिन लगते हैं। और मिस्री उसके लिए सत्तर दिन तक मातम करते रहे।
\s5
\v 4 और जब मातम के दिन गुज़र गए तो यूसुफ़ ने फ़िर'औन के घर के लोगों से कहा, "अगर मुझ पर तुम्हारे करम की नज़र है तो फ़िर'औन से ज़रा 'अर्ज़ कर दो,
\v 5 कि मेरे बाप ने यह मुझ से क़सम लेकर कहा है, 'मैं तो मरता हूँ, तू मुझ को मेरी क़ब्र में जो मैंने मुल्क-ए-कना'न में अपने लिए खुदवाई है, दफ़्न करना।' इसलिए ज़रा मुझे इजाज़त दे कि मैं वहाँ जाकर अपने बाप को दफ़्न करूँ, और मैं लौट कर आ जाऊँगा।"
\v 6 फ़िर'औन ने कहा, कि जा और अपने बाप को जैसे उसने तुझ से क़सम ली है दफ़्न कर।"
\s5
\v 7 तब यूसुफ़ अपने बाप को दफ़्न करने चला, और फ़िर'औन के सब ख़ादिम और उसके घर के बुज़ुर्ग, और मुल्क-ए-मिस्र के सब बुज़ुर्ग,
\v 8 और यूसुफ़ के घर के सब लोग और उसके भाई, और उसके बाप के घर के आदमी उसके साथ गए; वह सिर्फ़ अपने बाल बच्चे और भेड़ बकरियाँ और गाय-बैल जशन के 'इलाक़े में छोड़ गए।
\v 9 और उसके साथ रथ और सवार भी गए, और एक बड़ा क़ाफिला उसके साथ था।
\s5
\v 10 और वह अतद के खलिहान पर जो यरदन के पार है पहुंचे, और वहाँ उन्होंने बुलन्द और दिलसोज़ आवाज़ से नौहा किया; और यूसुफ़ ने अपने बाप के लिए सात दिन तक मातम कराया।
\v 11 और जब उस मुल्क के बाशिन्दों या'नी कना'नियों ने अतद में खलिहान पर इस तरह का मातम देखा, तो कहने लगे, "मिस्रियों का यह बड़ा दर्दनाक मातम है।" इसलिए वह ~जगह अबील मिस्रयीम कहलाई, और वह यरदन के पार है।
\s5
\v 12 और या'क़ूब के बेटों ने जैसा उसने उनको हुक्म किया था, वैसा ही उसके लिए किया।
\v 13 क्यूँकि उन्होंने उसे मुल्क-ए-कना'न में ले जाकर ममरे के सामने मकफ़ीला के खेत के मग़ारे में, जिसे इब्राहीम ने 'इफ़रोन हिती से खरीदकर क़ब्रिस्तान के लिए अपनी मिल्कियत बना लिया था दफ़न किया।
\v 14 और यूसुफ़ अपने बाप को दफ़्न करके अपने भाइयों, और उनके साथ जोउसके बाप को दफ़्न करने के लिए उसके साथ गए थे, मिस्र को लौटा।
\s5
\v 15 और यूसुफ़ के भाई यह देख कर कि उनका बाप मर गया कहने लगे, कि यूसुफ़ शायद हम से दुश्मनी करे, और सारी बुराई का जो हम ने उससे की है पूरा बदला ले।"
\v 16 तब उन्होंने यूसुफ़ को यह कहला भेजा, "तेरे बाप ने अपने मरने से आगे ये हुक्म किया था,
\v 17 'तुम यूसुफ़ से कहना कि अपने भाइयों की ख़ता और उनका गुनाह अब बख़्श दे, क्यूँकि उन्होंने तुझ से बुराई की; इसलिए अब तू अपने बाप के ख़ुदा के बन्दों की ख़ता बख़्श दे'।" और यूसुफ़ उनकी यह बातें सुन कर रोया।
\s5
\v 18 और उसके भाइयों ने ख़ुद भी उसके सामने जाकर अपने सिर टेक दिए और कहा, "देख! हम तेरे ख़ादिम हैं।"
\v 19 यूसुफ़ ने उनसे कहा, "मत डरो! क्या मैं ख़ुदा की जगह पर हूँ?
\v 20 तुम ने तो मुझ से बुराई करने का इरादा किया था, लेकिन ख़ुदा ने उसी से नेकी का क़स्द किया, ताकि बहुत से लोगों की जान बचाए चुनाँचे आज के दिन ऐसा ही हो रहा है।
\v 21 इसलिए तुम मत डरो, मैं तुम्हारी और तुम्हारे बाल बच्चों की परवरिश करता रहूँगा।” इस तरह उसने अपनी मुलायम बातों से उनको तसल्ली दी।
\s5
\v 22 और यूसुफ़ और उसके बाप के घर के लोग मिस्र में रहे, और यूसुफ़ एक सौ दस साल तक ज़िन्दा रहा।
\v 23 और यूसुफ़ ने इफ़्राईम की औलाद तीसरी नसल तक देखी, और मनस्सी के बेटे मकीर की औलाद को भी यूसुफ़ ने अपने घुटनों पर खिलाया।
\s5
\v 24 और यूसुफ़ ने अपने भाइयों से कहा, "मैं मरता हूँ; और ख़ुदा यक़ीनन तुम को याद करेगा, और तुम को इस मुल्क से निकाल कर उस मुल्क में पहुँचाएगा जिसके देने की क़सम उसने अब्राहम और इस्हाक़ और या'क़ूब से खाई थी।"
\v 25 और यूसुफ़ ने बनी-इस्राईल से क़सम लेकर कहा, "ख़ुदा यक़ीनन तुम को याद करेगा, इसलिए तुम ज़रूर ही मेरी हडिड्डयों को यहाँ से ले जाना।"
\v 26 और यूसुफ़ ने एक सौ दस साल का होकर वफ़ात पाई; और उन्होंने उसकी लाश में ख़ुशबू भरी और उसे मिस्र ही में ताबूत में रख्खा।|

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\c 1
\p
\v 1 इस्राईल के बेटों के नाम जो अपने-अपने घराने को लेकर या'क़ूब के साथ मिस्र में आए यह हैं:
\v 2 ~रूबिन, शमा'ऊन, लावी, यहूदाह,
\v 3 ~इश्कार, ज़बूलून, बिनयमीन,
\v 4 ~दान, नफ़्ताली, जद्द, आशर
\v 5 ~और सब जानें जो या'क़ूब के सुल्ब से पैदा हुई सत्तर थीं, और यूसुफ़ तो मिस्र में पहले ही से था।
\s5
\v 6 और यूसुफ़ और उसके सब भाई और उस नसल के सब लोग मर मिटे।
\v 7 और इस्राईल की औलाद क़ामयाब और ज़्यादा ता'दाद और फ़िरावान और बहुत ताक़तवर हो गई और वह मुल्क उनसे भर गया।
\s5
\v 8 ~तब मिस्र में एक नया बादशाह हुआ जो यूसुफ़ को नहीं जानता था।
\v 9 ~और उसने अपनी क़ौम के लोगों से कहा, "देखो इस्राइली हम से ज़्यादा और ताक़तवर हो गए हैं।
\v 10 ~इसलिए आओ, हम उनके साथ हिकमत से पेश आएँ, ऐसा न हो कि जब वह और ज़्यादा हो जाएँ और उस वक़्त जंग छिड़ जाए तो वह हमारे दुश्मनों से मिल कर हम से लड़ें और मुल्क से निकल जाएँ।”
\s5
\v 11 ~इसलिए उन्होंने उन पर बेगार लेने वाले मुक़र्रर किए जो उनसे सख़्त काम लेकर उनको सताएँ। तब उन्होंने फ़िर'औन के लिए ज़ख़ीरे के शहर पितोम और रा'मसीस बनाए।
\v 12 ~तब उन्होंने जितना उनको सताया वह उतना ही ज़्यादा बढ़ते और फैलते गए, इसलिए वह लोग बनी-इस्राईल की तरफ़ से फ़िक्रमन्द ही गए।
\s5
\v 13 ~और मिस्रियों ने बनी-इस्राईल पर तशद्दुद कर-कर के उनसे काम कराया।
\v 14 और उन्होंने उनसे सख़्त मेहनत से गारा और ईंट बनवा-बनवाकर और खेत में हर क़िस्म की ख़िदमत ले-लेकर उनकी ज़िन्दगी कड़वी की; उनकी सब ख़िदमतें जो वह उनसे कराते थे दुख की थीं।
\s5
\v 15 तब मिस्र के बादशाह ने'इब्रानी दाइयों से जिनमें एक का नाम सिफ़रा और दूसरी का नाम फू'आ था बातें की,
\v 16 ~और कहा, "जब 'इब्रानी 'औरतों के तुम बच्चा जनाओ और उनको पत्थर की बैठकों पर बैठी देखो, तो अगर बेटा हो तो उसे मार डालना, और अगर बेटी हो तो वह जीती रहे।"
\v 17 ~लेकिन वह दाइयाँ ख़ुदा से डरती थीं, तब उन्होंने मिस्र के बादशाह का हुक्म न माना बल्कि लड़कों को ज़िन्दा छोड़ देती थीं।
\s5
\v 18 ~फिर मिस्र के बादशाह ने दाइयों को बुलवा कर उनसे कहा, "तुम ने ऐसा क्यूँ किया कि लड़कों को ज़िन्दा रहने दिया?"
\v 19 दाइयों ने फ़िर'औन से कहा, 'इब्रानी 'औरतें मिस्री 'औरतों की तरह नहीं हैं। वह ऐसी मज़बूत होती हैं कि दाइयों के पहुँचने से पहले ही जनकर फ़ारिग़ हो जाती हैं।"
\s5
\v 20 तब ख़ुदा ने दाइयों का भला किया और लोग बढ़े और बहुत ज़बरदस्त हो गए।
\v 21 और इस वजह से कि दाइयाँ ख़ुदा से डरी, उसने उनके घर आबाद कर दिए ।
\v 22 ~और फ़िर'औन ने अपनी क़ौम के सब लोगों को ताकीदन कहा, "उनमें जो बेटा पैदा हो तुम उसे दरिया में डाल देना, और जो बेटी हो उसे ज़िन्दा छोड़ना।"
\s5
\c 2
\p
\v 1 और लावी के घराने के एक शख़्स ने जाकर लावी की नसल की एक 'औरत से ब्याह किया।
\v 2 ~वह 'औरत हामिला हुई और उसके बेटा हुआ, और उस ने यह देखकर कि बच्चा ख़ूबसूरत है तीन महीने तक उसे छिपा कर रखा।
\s5
\v 3 और जब उसे और ज़्यादा छिपा न सकी तो उसने सरकन्डों का एक टोकरा लिया, और उस पर चिकनी मिट्टी और राल लगा कर लड़के को उसमें रख्खा, और उसे दरिया के किनारे झाऊ में छोड़ आई।
\v 4 और उसकी बहन दूर खड़ी रही ताकि देखे कि उसके साथ क्या होता है।
\s5
\v 5 और फ़िर'औन की बेटी दरिया पर ग़ुस्ल करने आई और उसकी सहेलियाँ दरिया के किनारे-किनारे टहलने लगीं। तब उसने झाऊ में वह टोकरा देख कर अपनी सहेली की भेजा कि उसे उठा लाए।
\v 6 जब उसने उसे खोला तो लड़के को देखा, और वह बच्चा रो रहा था। उसे उस पर रहम आया और कहने लगी, "यह~किसी 'इब्रानी का बच्चा है।”
\s5
\v 7 ~तब उसकी बहन ने फ़िर'औन की बेटी से कहा, "क्या मैं जा कर 'इब्रानी 'औरतों में से एक दाई तेरे पास बुला लाऊँ, जो तेरे लिए इस बच्चे को दूध पिलाया करे?"
\v 8 ~फ़िर'औन की बेटी ने उसे कहा, "जा! "वह लड़की जाकर उस बच्चे की माँ को बुला लाई।
\s5
\v 9 ~फ़िर'औन की बेटी ने उसे कहा, "तू इस बच्चे को ले जाकर मेरे लिए दूध पिला, मैं तुझे तेरी मज़दूरी दिया करूँगी। "वह 'औरत उस बच्चे को ले जाकर दूध पिलाने लगी।
\v 10 जब बच्चा कुछ बड़ा हुआ तो वह उसे फ़िर'औन की बेटी के पास ले गई और वह उसका बेटा ठहरा और उसने उसका नाम मूसा यह कह कर रख्खा, "मैंने उसे पानी से निकाला।"
\s5
\v 11 ~इतने में जब मूसा बड़ा हुआ तो बाहर अपने भाइयों के पास गया। और उनकी मशक़्क़तों पर उसकी नज़र पड़ी और उसने देखा कि एक मिस्री उसके एक 'इब्रानी भाई को मार रहा है।
\v 12 ~फिर उसने इधर उधर निगाह की और जब देखा कि वहाँ कोई दूसरा आदमी नहीं है, तो उस मिस्री को जान से मार कर उसे रेत में छिपा दिया।
\s5
\v 13 ~फिर दूसरे दिन वह बाहर गया और देखा कि दो 'इब्रानी आपस में मार पीट कर रहे हैं। तब उसने उसे जिसका कु़सूर था कहा, कि "तू अपने साथी को क्यूँ मारता है?”
\v 14 ~उसने कहा, "तुझे किसने हम पर हाकिम या मुन्सिफ़ मुक़र्रर किया? क्या जिस तरह तूने उस मिस्री को मार डाला, मुझे भी मार डालना चाहता है?" तब मूसा यह सोच कर डरा, "बिला शक यह राज़ खुल गया।”
\s5
\v 15 ~जब फ़िर'औन ने यह सुना तो चाहा कि मूसा को क़त्ल करे।पर मूसा फ़िर'औन के सामने से भाग कर मुल्क-ए-मिदियान में जा बसा। वहाँ वह एक कुएँ के नज़दीक बैठा था।
\v 16 और मिदियान के काहिन की सात बेटियाँ थी। वह आईं और पानी भर-भर कर कठरों में डालने लगीं ताकि अपने बाप की भेड़-बकरियों को पिलाएँ।
\v 17 ~और गड़रिये आकर उनको भगाने लगे, लेकिन मूसा खड़ा हो गया और उसने उनकी मदद की और उनकी भेड़-बकरियों को पानी पिलाया।
\s5
\v 18 ~और जब वह अपने बाप र'ऊएल के पास लौटीं तो उसने पूछा, "आज तुम इस क़दर जल्द कैसे आ गई?"
\v 19 ~उन्होंने कहा, 'एक मिस्री ने हम को गड़रियों के हाथ से बचाया, और हमारे बदले पानी भर-भर कर भेड़ बकरियों को पिलाया।”
\v 20 ~उसने अपनी बेटियों से कहा, "वह आदमी कहाँ है? तुम उसे क्यूँ छोड़ आई? उसे बुला लाओ कि रोटी खाए।"
\s5
\v 21 और मूसा उस शख़्स के साथ रहने को राज़ी हो गया। तब उसने अपनी बेटी सफ़्फूरा मूसा को ब्याह दी।
\v 22 ~और उसके एक बेटा हुआ, और मूसा ने उसका नाम जैरसोम यह कहकर रख्खा, "मैं अजनबी मुल्क में मुसाफ़िर हूँ।”
\s5
\v 23 और एक मुद्दत के बाद यूँ हुआ कि मिस्र का बादशाह मर गया। और बनी-इस्राईल अपनी ग़ुलामी की वजह से आह भरने लगे और रोए; और उनका रोना जो उनकी ग़ुलामी की वजह था ख़ुदा तक पहुँचा।
\v 24 ~और ख़ुदा ने उनका कराहना सुना, और ख़ुदा ने अपने 'अहद को जो इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब के साथ था याद किया।
\v 25 ~और ख़ुदा ने बनी-इस्राईल पर नज़र की और उनके हाल को मा'लूम किया।
\s5
\c 3
\p
\v 1 और मुसा के ससुर यित्रो कि जो मिदियान का काहिन था, भेड़-बकारियाँ चराता था। और वह भेड़-बकरियों को हंकाता हुआ उनको वीराने की परली तरफ़ से ख़ुदा के पहाड़ होरिब के नज़दीक ले आया।
\v 2 और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता एक झाड़ी में से आग के शो'ले में उस पर ज़ाहिर हुआ। उसने निगाह की और क्या देखता है, कि एक झाड़ी में आग लगी हुई है पर वह झाड़ी भसम नहीं होती।
\v 3 तब मूसा ने कहा, "मैं अब ज़रा उधर कतरा कर इस बड़े मन्ज़र को देखूँ कि यह झाड़ी क्यूँ नहीं जल जाती।"
\s5
\v 4 ~जब ख़ुदावन्द ने देखा कि वह देखने को कतरा कर आ रहा है, तो ख़ुदा ने उसे झाड़ी में से पुकारा और कहा, "ऐ मूसा! ऐ मूसा!" उसने कहा, "मैं हाज़िर हूँ।"
\v 5 ~तब उसने कहा, "इधर पास मत आ। अपने पाँव से जूता उतार, क्यूँकि जिस जगह तू खड़ा है वह पाक ज़मीन है।"
\v 6 ~फिर उसने कहा कि मैं तेरे बाप का ख़ुदा, या'नी इब्राहीम का ख़ुदा और इस्हाक़ का ख़ुदा और या'क़ूब का ख़ुदा हूँ।" मूसा ने अपना मुँह छिपाया क्यूँकि वह ख़ुदा पर नज़र करने से डरता था।
\s5
\v 7 ~और ख़ुदावन्द ने कहा, "मैंने अपने लोगों की तक्लीफ़ जो मिस्र में हैं ख़ूब देखी, और उनकी फ़रियाद जो बेगार लेने वालों की वजह से है सुनी, और मैं उनके दुखों को जानता हूँ।
\v 8 ~और मैं उतरा हूँ कि उनको मिस्रियों के हाथ से छुड़ाऊँ, और उस मुल्क से निकाल कर उनको एक अच्छे और बड़े मुल्क में जहाँ दूध और शहद बहता है या'नी कना'नियों और हित्तियों और अमोरियों और ~फ़रिज़ियों और हव्वियों और यबूसियों के मुल्क में पहुँचाऊँ।
\s5
\v 9 देख बनी-इस्राईल की फ़रियाद मुझ तक पहुँची है, और मैंने वह जु़ल्म भी जो मिस्री उन पर करते हैं देखा है।
\v 10 ~इसलिए अब आ मैं तुझे फ़िर'औन के पास भेजता हूँ कि तू मेरी क़ौम बनी-इस्राईल को मिस्र से निकाल लाए।"
\s5
\v 11 मूसा ने ख़ुदा से कहा, "मैं कौन हूँ जो फ़िर'औन के पास जाऊँ और बनी-इस्राईल को मिस्र से निकाल लाऊँ?"
\v 12 उसने कहा, "मैं ज़रूर तेरे साथ रहूँगा और इसका कि मैंने तुझे भेजा है तेरे लिए यह निशान होगा, कि जब तू उन लोगों को मिस्र से निकाल लाएगा तो तुम इस पहाड़ पर ख़ुदा की 'इबादत करोगे।"
\s5
\v 13 ~तब मूसा ने ख़ुदा से कहा, "जब मैं बनी-इस्राईल के पास जाकर उनको कहूँ कि तुम्हारे बाप-दादा के ख़ुदा ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है, " और वह मुझे कहें कि उसका नाम क्या है?" तो मैं उनको क्या बताऊँ?"
\v 14 ~ख़ुदा ने मूसा से कहा, "मैं जो हूँ सो मैं हूँ।इसलिए तू बनी-इस्राईल से यूँ कहना, 'मैं जो हूँ ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है'।"
\v 15 ~फिर ख़ुदा ने मूसा से यह भी कहा कि तू बनी-इस्राईल से यूँ कहना कि ख़ुदावन्द तुम्हारे बाप-दादा के ख़ुदा, इब्राहीम के ख़ुदा और इस्हाक़ के ख़ुदा और या'क़ूब के ख़ुदा ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है। हमेशा तक मेरा यही नाम है और सब नसलों में इसी से मेरा ज़िक्र होगा।"
\s5
\v 16 ~जा कर इस्राइली बुजु़र्गों को एक जगह जमा' कर और उनको कह, 'ख़ुदावन्द तुम्हारे बाप-दादा के ख़ुदा, इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब के ख़ुदा ने मुझे दिखाई देकर यह कहा है कि मैंने तुम को भी, और जो कुछ बरताव तुम्हारे साथ मिस्र में किया जा रहा है उसे भी ख़ूब देखा है।
\v 17 ~और मैंने कहा है कि मैं तुम को मिस्र के दुख में से निकाल कर कना'नियों और हित्तियोंऔर अमोरियोंऔर फ़रिज़्ज़ियों और हव्वियों और यबूसियों के मुल्क में ले चलूँगा, जहाँ दूध और शहद बहता है।'
\v 18 और वह तेरी बात मानेंगे और तू इस्राइली बुज़ुर्गों को साथ लेकर मिस्र के बादशाह के पास जाना और उससे कहना कि ~'ख़ुदावन्द इब्रानियों के ख़ुदा की हम से मुलाक़ात हुई। अब तू हम को तीन दिन की मंज़िल तक वीराने में जाने दे ताकि हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए क़ुर्बानी करें।"
\s5
\v 19 ~और मैं जानता हूँ कि मिस्र का बादशाह तुम को न यूँ जाने देगा, न बड़े ज़ोर से।
\v 20 तब मैं अपना हाथ बढ़ाऊँगा और मिस्र को उन सब 'अजाइब से जो मैं उसमें करूँगा, मुसीबत में डाल दूँगा। इसके बाद वह तुम को जाने देगा।
\v 21 ~और मैं उन लोगों को मिस्रियों की नज़र में इज़्ज़त बख़्शूँगा और यूँ होगा कि जब तुम निकलोगे तो ख़ाली हाथ न निकलोगे।
\v 22 ~बल्कि तुम्हारी एक-एक 'औरत अपनीअपनी पड़ौसन से और अपने-अपने घर की मेहमान से सोने चाँदी के ज़ेवर और लिबास माँग लेगी। इनको तुम अपने बेटों और बेटियों को पहनाओगे और मिस्रियों को लूट लोगे।”
\s5
\c 4
\p
\v 1 तब मूसा ने जवाब दिया, "लेकिन वह तो मेरा यक़ीन ही नहीं करेंगे न मेरी बात सुनेंगे। वह कहेंगे, 'ख़ुदावन्द तुझे दिखाई नहीं दिया'।"
\v 2 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि यह तेरे हाथ में क्या है?" उसने कहा, "लाठी।"
\v 3 फिर उसने कहा कि उसे ज़मीन पर डाल दे।" उसने उसे ज़मीन पर डाला और वह साँप बन गई, और मूसा उसके सामने से भागा।
\s5
\v 4 तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "हाथ बढ़ा कर उसकी दुम पकड़ ले। (उसने हाथ बढ़ाया और उसे पकड़ लिया, वह उसके हाथ में लाठी बन गया।)
\v 5 ~ताकि वह यक़ीन करें कि ख़ुदावन्द उनके बाप-दादा का ख़ुदा, इब्राहीम का ख़ुदा, इस्हाक़ का ख़ुदा और या'क़ूब का ख़ुदा तुझ को दिखाई दिया।"
\s5
\v 6 ~फिर ख़ुदावन्द ने उसे यह भी कहा, कि तू अपना हाथ अपने सीने पर रख कर ढाँक ले।" उसने अपना हाथ अपने सीने पर रख कर उसे ढाँक लिया, और जब उसने उसे निकाल कर देखा तो उसका हाथ कोढ़ से बर्फ़ की तरह सफ़ेद था।
\v 7 ~उसने कहा कि तू अपना हाथ फिर अपने सीने पर रख कर ढाँक ले। (उसने फिर उसे सीने पर रख कर ढाँक लिया। जब उसने उसे सीने पर से बाहर निकाल कर देखा तो वह फिर उसके बाकी जिस्म की तरह हो गया।)
\s5
\v 8 और यूँ होगा कि अगर वह तेरा यक़ीन न करें और पहले मोअजिज़े को भी न मानें तो वह दूसरे मोअजिज़े की वजह से यक़ीन करेंगे।
\v 9 ~और अगर वह इन दोनों मो'अजिज़ों की वजह से भी यक़ीन न करें और तेरी बात न सुनें, तो तू दरिया का पानी लेकर ख़ुश्क ज़मीन पर छिड़क देना और वह पानी जो तू दरिया से लेगा ख़ुश्क ज़मीन पर ख़ून हो जाएगा।"
\s5
\v 10 ~तब मूसा ने ख़ुदावन्द से कहा, "ऐ ख़ुदावन्द! मैं फ़सीह नहीं, न तो पहले ही था और न जब से तूने अपने बन्दे से कलाम किया बल्कि रुक-रुक कर बोलता हूँ और मेरी ज़बान कुन्दहै |"
\v 11 ~तब ख़ुदावन्द ने उसे कहा कि आदमी का मुँह किसने बनाया है? और कौन गूँगा या बहरा या बीना या अन्धा करता है? क्या मैं ही जो ख़ुदावन्द हूँ यह नहीं करता?
\v 12 ~इसलिए अब तू जा और मैं तेरी ज़बान का ज़िम्मा लेता हूँ और तुझे सिखाता रहूँगा कि तू क्या-क्या कहे।"
\v 13 ~तब उसने कहा कि ऐ ख़ुदावन्द! मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, किसी और के हाथ से जिसे तू चाहे यह पैग़ाम भेज।”
\s5
\v 14 ~तब ख़ुदावन्द का क़हर मूसा पर भड़का और उसने कहा, "क्या लावियों में से हारून तेरा भाई नहीं है? मैं जानता हूँ कि वह फ़सीह है और वह तेरी मुलाक़ात को आ भी रहा है, और तुझे देख कर दिल में खु़श होगा।
\v 15 ~इसलिए तू उसे सब कुछ बताना और यह सब बातें उसे सिखाना और मैं तेरी और उसकी ज़बान का ज़िम्मा लेता हूँ, और तुम को सिखाता रहूँगा कि तुम क्या-क्या करो।
\v 16 और वह तेरी तरफ़ से लोगों से बातें करेगा और वह तेरा मुँह बनेगा और तू उसके लिए जैसे ख़ुदा होगा।
\v 17 और तू इस लाठी को अपने हाथ में लिए जा और इसी से इन मो'अजिज़ों को दिखाना।
\s5
\v 18 ~तब मूसा लौट कर अपने ससुर यित्रो के पास गया और उसे कहा, "मुझे ज़रा इजाज़त दे कि अपने भाइयों के पास जो मिस्र में हैं, जाऊँ और देखूँ कि वह अब तक ज़िन्दा हैं कि नहीं।" यित्रो ने मूसा से कहा, कि सलामत जा।"
\v 19 और ख़ुदावन्द ने मिदियान में मूसा से कहा, कि "मिस्र को लौट जा, क्यूँकि वह सब जो तेरी जान के ख़्वाहाँ थे मर गए।"
\v 20 तब मूसा अपनी बीवी और अपने बेटों को लेकर और उनको एक गधे पर चढ़ा कर मिस्र को लौटा, और मूसा ने ख़ुदा की लाठी अपने हाथ में ले ली।
\s5
\v 21 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि "जब तू मिस्र में पहुँचे तो देख वह सब करामात जो मैंने तेरे हाथ में रख्खी हैं फ़िर'औन के आगे दिखाना, लेकिन मैं उसके दिल को सख़्त करूँगा, और वह उन लोगों को जाने नहीं देगा।
\v 22 ~तू फ़िर'औन से कहना, कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि इस्राईल मेरा बेटा बल्कि मेरा पहलौठा है।
\v 23 और मैं तुझे कह चुका हूँ कि मेरे बेटे को जाने दे ताकि वह मेरी 'इबादत करे, और तूने अब तक उसे जाने देने से इन्कार किया है; और देख मैं तेरे बेटे को बल्कि तेरे पहलौटे को ~मार डालूँगा'।"
\s5
\v 24 ~और रास्ते में मंज़िल पर ख़ुदावन्द उसे मिला और चाहा कि उसे मार डाले।
\v 25 तब सफ़्फूरा ने चक़मक़ का एक पत्थर लेकर अपने बेटे की खलड़ी काट डाली और उसे मूसा के पाँव पर फेंक कर कहा, "तू बेशक मेरे लिए ख़ूनी दूल्हा ठहरा।"
\v 26 ~तब उसने उसे छोड़ दिया। लेकिन उसने कहा, कि "ख़तने की वजह से तू ख़ूनी दूल्हा है।"
\s5
\v 27 ~और ख़ुदावन्द ने हारून से कहा, कि "वीराने में जा कर मूसा से मुलाक़ात कर।" वह गया और ख़ुदा के पहाड़ पर उससे मिला और उसे बोसा दिया।
\v 28 ~और मूसा ने हारून को बताया, कि ख़ुदा ने क्या-क्या बातें कह कर उसे भेजा और कौन-कौन से मो'अजिज़े दिखाने का उसे हुक्म दिया है।
\s5
\v 29 ~तब मूसा और हारून ने जाकर बनी-इस्राईल के सब बुज़ुर्गों को एक जगह जमा' किया।
\v 30 ~और हारून ने सब बातें जो ख़ुदावन्द ने मूसा से कहीं थी उनको बताई और लोगों के सामने मो'जिज़े किए।
\v 31 ~तब लोगों ने उनका यक़ीन किया और यह सुन कर कि ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल की ख़बर ली और उनके दुखों पर नज़र की, उन्होंने अपने सिर झुका कर सिज्दा किया।
\s5
\c 5
\p
\v 1 ~इसके बा'द मूसा और हारून ने जाकर फ़िर'औन से कहा कि, "ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि 'मेरे लोगों को जाने दे ताकि वह वीराने में मेरे लिए 'ईद करें'।"
\v 2 ~फ़िर'औन ने कहा, कि "ख़ुदावन्द कौन है कि मैं उसकी बात को मान कर बनी-इस्राईल को जानें दूँ? मैं ख़ुदावन्द को नहीं जानता और मैं बनी-इस्राईल को जाने भी नहीं दूँगा।"
\s5
\v 3 ~तब उन्होंने कहा, कि 'इब्रानियों का ख़ुदा हम से मिला है; इसलिए हम को इजाज़त दे कि हम तीन दिन की मन्ज़िल वीराने में जा कर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए क़ुर्बानी करें, ऐसा न हो कि वह हम पर वबा भेज दे या हम को तलवार से मरवा दे।"
\v 4 ~तब मिस्र के बादशाह ने उनको कहा, कि "ऐ मूसा और ऐ हारून! तुम क्यूँ इन लोगों को इनके काम से छुड़वाते हो? तुम जाकर अपने-अपने बोझ को उठाओ।”
\v 5 ~और फ़िर'औन ने यह भी कहा, कि "देखो, यह लोग इस मुल्क में बहुत हो गए हैं, और तुम इनको इनके काम से बिठाते हो।"
\s5
\v 6 ~और उसी दिन फ़िर'औन ने बेगार लेने वालों और सरदारों को जो लोगों पर थे हुक्म किया,
\v 7 ~"अब आगे को तुम इन लोगों को ईटें बनाने के लिए भुस न देना जैसे अब तक देते रहे, वह ख़ुद ही जाकर अपने लिए भुस बटोरें।
\v 8 ~और इनसे उतनी ही ईटें बनवाना जितनी वह अब तक बनाते आए हैं; तुम उसमें से कुछ न घटाना क्यूँकि वह काहिल हो गए हैं, इसीलिए चिल्ला-चिल्ला कर कहते हैं, 'हम को जाने दो कि हम अपने ख़ुदा के लिए क़ुर्बानी करें।"
\v 9 ~इसलिए इनसे ज़्यादा सख़्त मेहनत ली जाए, ताकि काम में मशगू़ल रहें और झूठी बातों से दिल न लगाएँ।"
\s5
\v 10 ~तब बेगार लेने वालों और सरदारों ने जो लोगों पर थे जाकर उनसे कहा, कि फ़िर'औन कहता है, कि 'मैं तुम को भुस नहीं देने का।
\v 11 ~तुम ख़ुद ही जाओ और जहाँ कहीं तुम को भुस मिले वहाँ से लाओ, क्यूँकि तुम्हारा काम कुछ भी घटाया नहीं जाएगा'।"
\s5
\v 12 ~चुनाँचे वह लोग तमाम मुल्क-ए-मिस्र में मारे-मारे फिरने लगे कि ~भुस के 'बदले खूँटी जमा' करें।
\v 13 ~और बेगार लेने वाले यह कह कर जल्दी कराते थे कि तुम अपना रोज़ का काम जैसे भुस पा कर करते थे अब भी करो।
\v 14 ~और बनी-इस्राईल में से जो-जो फ़िर'औन के बेगार लेने वालों की तरफ़ से इन लोगों पर सरदार मुक़र्रर हुए थे, उन पर मार पड़ी और उनसे पूछा गया, कि "क्या वजह है कि तुम ने पहले की तरह आज और कल पूरी-पूरी ईंटें नहीं बनवाई?"
\s5
\v 15 तब उन सरदारों ने जो बनी-इस्राईल में से मुक़र्रर हुए थे फ़िर'औन के आगे जा कर फ़रियाद की और कहा कि तू अपने ख़ादिमों से ~ऐसा सुलूक क्यूँ करता है?
\v 16 ~तेरे ख़ादिमों को भुस तो दिया नहीं जाता और वह हम से कहते रहते हैं ईंटें बनाओ', और देख तेरे ख़ादिम मार भी खाते हैं पर कु़सूर तेरे लोगों का है।"
\v 17 ~उसने कहा, "तुम सब काहिल हो काहिल, इसी लिए तुम कहते हो कि हम को जाने दे कि ख़ुदावन्द के लिए क़ुर्बानी करें।
\v 18 ~इसलिए अब तुम जाओ और काम करो, क्यूँकि भुस तुम को नहीं मिलेगा और ईटों को तुम्हें उसी हिसाब से देना पड़ेगा।"
\s5
\v 19 ~जब बनी-इस्राईल के सरदारों से यह कहा गया, कि तुम अपनी ईटों और रोज़ मर्रा के काम में कुछ भी कमी नहीं करने पाओगे तो वह जान गए कि वह कैसे वबाल में फैसे हुए हैं।
\v 20 ~जब वह फ़िर'औन के पास से निकले आ रहे थे तो उनको मूसा और हारून मुलाक़ात के लिए रास्ते पर खड़े मिले।
\v 21 ~तब उन्होंने उन से कहा, कि ख़ुदावन्द ही देखे और तुम्हारा इन्साफ़ करे, क्यूँकि तुम ने हम को फ़िर'औन और उसके ख़ादिमों की निगाह में ऐसा घिनौना किया है, कि हमारे क़त्ल के लिए उनके हाथ में तलवार दे दी है।"
\s5
\v 22 तब मूसा ख़ुदावन्द के पास लौट कर गया और कहा, कि ऐ ख़ुदावन्द! तूने इन लोगों को क्यूँ दुख में डाला और मुझे क्यूँ भेजा?
\v 23 ~क्यूँकि जब से मैं फ़िर'औन के पास तेरे नाम से बातें करने गया, उसने इन लोगों से बुराई ही बुराई की और तूने अपने लोगों को ज़रा भी रिहाई न बख़्शी।"
\s5
\c 6
\p
\v 1 तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि 'अब तू देखेगा कि मैं फ़िर'औन के साथ क्या करता हूँ, तब वह ताक़तवर हाथ की वजह से उनको जाने देगा और ताक़तवर हाथ ही की वजह से वह उनको अपने मुल्क से निकाल देगा।"
\s5
\v 2 ~फिर ख़ुदा ने मूसा से कहा, कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\v 3 ~और मैं इब्राहीम ~और इस्हाक़ और या'क़ूब को ख़ुदा-ए-क़ादिर-ए-मुतलक के तौर पर दिखाई दिया, लेकिन अपने यहोवा नाम से उन पर ज़ाहिर न हुआ।
\v 4 और मैंने उनके साथ अपना 'अहद भी बाँधा है कि मुल्क-ए- कना'न जो उनकी मुसाफ़िरत का मुल्क था और जिसमें वह परदेसी थे उनको दूँगा।
\v 5 ~और मैंने बनी-इस्राईल के कराहने को भी सुन कर, जिनको मिस्रियों ने ग़ुलामी में रख छोड़ा है, अपने उस 'अहद को याद किया है।
\s5
\v 6 इसलिए तू बनी-इस्राईल से कह, कि 'मैं ख़ुदावन्द हूँ, और मैं तुम को मिस्रियों के बोझों के नीचे से निकाल लूँगा और मैं तुम को उनकी ग़ुलामी से आज़ाद करूँगा, और मैं अपना हाथ बढ़ा कर और उनको बड़ी-बड़ी सज़ाएँ देकर तुम को रिहाई दूँगा।
\v 7 ~और मैं तुम को ले लूँगा कि मेरी क़ौम बन जाओ और मैं तुम्हारा ख़ुदा हूँगा, और तुम जान लोगे के मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ जो तुम्हें मिस्रियों के बोझों के नीचे से निकालता हूँ।
\s5
\v 8 ~और जिस मुल्क को इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब को देने की क़सम मैंने खाई थी उसमें तुम को पहुँचा कर उसे तुम्हारी मीरास कर दूँगा। ख़ुदावन्द मैं हूँ।"
\v 9 ~और मूसा ने बनी-इस्राईल को यह बातें सुना दीं, लेकिन उन्होंने दिल की कुढ़न और ग़ुलामी की सख़्ती की वजह से मूसा की बात न सुनी।
\s5
\v 10 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा को फ़रमाया,
\v 11 ~कि जा कर मिस्र के बादशाह फ़िर'औन से कह कि बनी-इस्राईल को अपने मुल्क में से जाने दे।"
\v 12 ~मूसा ने ख़ुदावन्द से कहा, कि "देख, बनी-इस्राईल ने तो मेरी सुनी नहीं; तब मैं जो ना मख़्तून होंट रखता हूँ फ़िर'औन मेरी क्यूँ कर सुनेगा?"
\v 13 ~तब ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून को बनी-इस्राईल और मिस्र के बादशाह फ़िर'औन के हक़ में इस मज़मून का हुक्म दिया कि वह बनी-इस्राईल को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल ले जाएँ।
\s5
\v 14 ~उनके आबाई ख़ान्दानों के सरदार यह थे: रूबिन, जो इस्राईल का पहलौठा था, उसके बेटे: हनूक और फ़ल्लू और हसरोन और करमी थे; यह रूबिन के घराने थे।
\v 15 बनी शमा'ऊन यह थे: यमूएल और यमीन और उहद और यक़ीन और सुहर और साऊल, जो एक कना'नी 'औरत से पैदा हुआ था; यह शमा'ऊन के घराने थे।
\s5
\v 16 ~और बनी लावी जिनसे उनकी नसल चली उनके नाम यह हैं: जैरसोन और क़िहात और मिरारी; और लावी की 'उम्र एक सौ सैंतीस बरस की हुई।
\v 17 ~बनी जैरसोन: लिबनी और सिमई थे; इन ही से इनके ख़ान्दान चले।
\v 18 ~और बनी क़िहात: 'अमराम और इज़हार और हबरून और 'उज़्ज़ीएल थे; और क़िहात की 'उम्र एक सौ तैतीस बरस की हुई।
\v 19 और बनी मिरारी: महली और मूर्शी थे। लावियों के घराने जिनसे उनकी नसल चली यही थे।
\s5
\v 20 और 'अमराम ने अपने बाप की बहन यूकबिद से ब्याह किया, उस 'औरत के उससे हारून और मूसा पैदा हुए; और 'अमराम की 'उम्र एक सौ सैंतीस बरस की हुई।
\v 21 ~बनी इज़हार: कोरह और नफ़ज और ज़िकरी थे।
\v 22 ~और बनी उज़्ज़ीएल: मीसाएल और इलसफ़न और सितरी थे।
\s5
\v 23 और हारून ने नहसोन की बहन 'अमीनदाब की बेटी इलीसिबा' से ब्याह किया; उससे नदब और अबीहू और इली'अज़र और इतमर पैदा हुए।
\v 24 और बनी क़ोरह: अस्सीर और इलाकना और अबियासफ़ थे, और यह कोरहियों के घराने थे।
\v 25 ~और हारून के बेटे इली'अज़र ने फूतिएल की बेटियों में से एक के साथ ब्याह किया, उससे फ़ीन्हास पैदा हुआ; लावियों के बाप-दादा के घरानों के सरदार जिनसे उनके ख़ान्दान चले यही थे।
\s5
\v 26 ~यह वह हारून और मूसा हैं जिनको ख़ुदावन्द ने फ़रमाया: कि बनी-इस्राईल को उनके लश्कर के मुताबिक़ मुल्क-ए-मिस्र से निकाल ले जाओ।”
\v 27 ~यह वह हैं जिन्होंने मिस्र के बादशाह फ़िर'औन से कहा, कि हम बनी-इस्राईल को मिस्र से निकाल ले जाएँगे; यह वही मूसा और हारून हैं।
\s5
\v 28 ~जब ख़ुदावन्द ने मुल्क-ए-मिस्र में मूसा से बातें कीं तो यूँ हुआ,
\v 29 ~कि ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि मैं ख़ुदावन्द हूँ जो कुछ मैं तुझे कहूँ तू उसे मिस्र के बादशाह फ़िर'औन से कहना।"
\v 30 ~मूसा ने ख़ुदावन्द से कहा, कि देख, मेरे तो होटों का ख़तना नहीं हुआ। फ़िर'औन क्यूँ कर मेरी सुनेगा?"
\s5
\c 7
\p
\v 1 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, देख, मैंने तुझे फ़िर'औन के लिए जैसे ख़ुदा ठहराया और तेरा भाई पैग़म्बर होगा।
\v 2 ~जो-जो हुक्म मैं तुझे दूँ तब तू कहना, और तेरा भाई हारून उसे फ़िर'औन से कहे कि वह बनी-इस्राईल को अपने मुल्क से जाने दे।
\s5
\v 3 ~और मैं फ़िर'औन के दिल को सख़्त करूँगा और अपने निशान अज़ाईब मुल्क-ए-मिस्र में कसरत से दिखाऊँगा।
\v 4 तो भी फ़िर'औन तुम्हारी न सुनेगा, तब मैं मिस्र को हाथ लगाऊँगा और उसे बड़ी-बड़ी सज़ाएँ देकर अपने लोगों, बनी-इस्राईल के लश्करों को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाऊँगा।
\v 5 और मैं जब मिस्र पर हाथ चलाऊँगा और बनी-इस्राईल को उनमें से निकाल लाऊँगा, तब मिस्री जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
\s5
\v 6 ~मूसा और हारून ने जैसा ख़ुदावन्द ने उनको हुक्म दिया वैसा ही किया।
\v 7 ~और मूसा अस्सी बरस और हारून तिरासी बरस का था, जब वह फ़िर'औन से हम कलाम हुए।
\s5
\v 8 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा,
\v 9 ~"जब फ़िर'औन तुम को कहे, कि अपना मो'अजिज़ा दिखाओ, " तो हारून से कहना, कि अपनी लाठी को लेकर फ़िर'औन के सामने डाल दे, ताकि वह साँप बन जाए'।”
\v 10 ~और मूसा और हारून फ़िर'औन के पास गए और उन्होंने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ किया; और हारून ने अपनी लाठी फ़िर'औन और उसके ख़ादिमों के सामने डाल दी और वह साँप बन गई।
\s5
\v 11 ~तब फ़िर'औन ने भी 'अक़्लमन्दों और जादूगरों को बुलवाया, और मिस्र के जादूगरों ने भी अपने जादू से ऐसा ही किया।
\v 12 ~क्यूँकि उन्होंने भी अपनी-अपनी लाठी सामने डाली और वह साँप बन गई, लेकिन हारून की लाठी उनकी लाठियों को निगल गई।
\v 13 और फ़िर'औन का दिल सख़्त हो गया और जैसा ख़ुदावन्द ने कह दिया था उसने उनकी न सुनी।
\s5
\v 14 तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि फ़िर'औन का दिल मुतास्सिब है, वह इन लोगों को जाने नहीं देता।
\v 15 ~अब तू सुबह को फ़िर'औन के पास जा। वह दरिया पर जाएगा इसलिए तू दरिया के किनारे उसकी मुलाक़ात के लिए खड़ा रहना, और जो लाठी साँप बन गई थी उसे हाथ में ले लेना।
\s5
\v 16 और उससे कहना, कि 'ख़ुदावन्द 'इब्रानियों के ख़ुदा ने मुझे तेरे पास यह कहने को भेजा है कि मेरे लोगों को जाने दे ताकि वह वीराने में मेरी 'इबादत करें; और अब तक तूने कुछ सुनी नहीं ।
\v 17 ~तब ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू इसी से जान लेगा कि मैं ख़ुदावन्द हूँ, देख, मैं अपने हाथ की लाठी को दरिया के पानी पर मारूँगा और वह ख़ून हो जाएगा।
\v 18 और जो मछलियाँ दरिया में हैं मर जाएँगी, और दरिया से झाग उठेगा और मिस्रियों को दरिया का पानी पीने से कराहियत होगी'।"
\s5
\v 19 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि हारून से कह, अपनी लाठी ले और मिस्र में जितना पानी है, या'नी दरियाओं और नहरों और झीलों और तालाबों पर, अपना हाथ बढ़ा ताकि वह ख़ून बन जाएँ; और सारे मुल्क-ए-मिस्र में पत्थर और लकड़ी के बर्तनों में भी ख़ून ही ख़ून होगा।"
\s5
\v 20 ~और मूसा और हारून ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ किया; उसने लाठी उठाकर उसे फ़िर'औन और उसके ख़ादिमों के सामने दरिया के पानी पर मारा, और दरिया का पानी सब ख़ून हो गया।
\v 21 ~और दरिया की मछलियाँ मर गई, और दरिया से झाग उठने लगा और मिस्री दरिया का पानी पी न सके, और तमाम मुल्क-ए-मिस्र में ख़ून ही ख़ून हो गया।
\v 22 ~तब मिस्र के जादूगरों ने भी अपने जादू से ऐसा ही किया, लेकिन फ़िर'औन का दिल सख़्त हो गया; और जैसा ख़ुदावन्द ने कह दिया था उसने उनकी न सुनी।
\s5
\v 23 और फ़िर'औन लौट कर अपने घर चला गया, और उसके दिल पर कुछ असर न हुआ।
\v 24 ~और सब मिस्रियों ने दरिया के आस पास पीने के पानी के लिए कुएँ खोद डाले, क्यूँकि वह दरिया का पानी नहीं पी सकते थे।
\v 25 ~और जब से ख़ुदावन्द ने दरिया को मारा उसके बा'द सात दिन गुज़रे।
\s5
\c 8
\p
\v 1 फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि ~फिर'औंन के पास जा और उससे कह कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि मेरे लोगों को जाने दे ताकि वह मेरी 'इबादत करें।
\v 2 और अगर तू उनको जाने न देगा, तो देख, मैं तेरे मुल्क को मेंढकों से मारूँगा।
\v 3 ~और दरिया बेशुमार मेंढकों से भर जाएगा, और वह आकर तेरे घर में और तेरी आरामगाह में और तेरे पलंग पर और तेरे मुलाज़िमों के घरों में और तेरी र'इयत पर और तेरे तनूरों और आटा गूँधने के लगनों में घुसते फिरेंगे,
\v 4 ~और तुझ पर और तेरी र'इयत और तेरे नौकरों पर चढ़ जाएँगे'।"
\s5
\v 5 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा को फ़रमाया, "हारून से कह, कि अपनी लाठी लेकर अपने हाथ दरियाओं और नहरों और झीलों पर बढ़ा और मेंढकों को मुल्क-ए-मिस्र पर चढ़ा ला।"
\v 6 चुनाँचे ~जितना पानी मिस्र में था उस पर हारून ने अपना हाथ बढ़ाया, और मेंढक चढ़ आए और मुल्क-ए-मिस्र को ढाँक लिया।
\v 7 ~और जादूगरों ने भी अपने जादू से ऐसा ही किया और मुल्क-ए-मिस्र पर मेंढक चढ़ा लाए
\s5
\v 8 ~तब फ़िर'औन ने मूसा और हारून को बुलवाकर कहा, कि ~"ख़ुदावन्द से सिफ़ारिश करो के मेंढकों को मुझ से और मेरी र'इयत से दफ़ा' करे, और मैं इन लोगों को जाने दूँगा ताकि वह ख़ुदावन्द के लिए क़ुर्बानी करें।"
\v 9 ~मूसा ने फ़िर'औन से कहा, कि तुझे मुझ पर यही फ़ख़्र रहे ! मैं तेरे और तेरे नौकरों और तेरी र'इयत के वास्ते कब के लिए सिफ़ारिश करूँ कि मेंढक तुझ से और तेरे घरों से दफ़ा' हों और दरिया ही में रहें?"
\s5
\v 10 ~उसने कहा, कल के लिए।" तब उसने कहा, तेरे ही कहने के मुताबिक़ होगा ताकि तू जाने कि ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा की तरह कोई नहीं
\v 11 और मेंढक तुझ से और तेरे घरों से और तेरे नौकरों से और तेरी र'इयत से दूर होकर दरिया ही में रहा करेंगे।"
\v 12 ~फिर मूसा और हारून फ़िर'औन के पास से निकल कर चले गए; और मूसा ने ख़ुदावन्द से मेंढकों के बारे में जो उसने फ़िर'औन पर भेजे थे फ़रियाद की।
\s5
\v 13 और ख़ुदावन्द ने मूसा की दरख़्वास्त के मुवाफ़िक किया, और सब घरों और सहनों और खेतों के मेंढक मर गए।
\v 14 और लोगों ने उनको जमा' कर करके उनके ढेर लगा दिए, और ज़मीन से बदबू आने लगी।
\v 15 ~फिर जब फ़िर'औन ने देखा कि छुटकारा मिल गया तो उसने अपना दिल सख़्त कर लिया, और जैसा ख़ुदावन्द ने कह दिया था उनकी न सुनी।
\s5
\v 16 ~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, हारून से कह, 'अपनी लाठी बढ़ा कर ज़मीन की गर्द को मार, ताकि वह तमाम मुल्क-ए-मिस्र में जूएँ बन जाएँ"।"
\v 17 ~उन्होंने ऐसा ही किया, और हारून ने अपनी लाठी लेकर अपना हाथ बढ़ाया और ज़मीन की गर्द को मारा, और इन्सान और हैवान पर जूएँ हो गई और तमाम मुल्क-ए-मिस्र में ज़मीन की सारी गर्द जूएँ बन गई।
\s5
\v 18 ~और जादूगरों ने कोशिश की कि अपने जादू से जूएँ पैदा करें लेकिन न कर सके। और इन्सान और हैवान दोनों पर जूएँ चढ़ी रहीं।
\v 19 ~तब जादूगरों ने फ़िर'औन से कहा, कि ~"यह ख़ुदा का काम है।" लेकिन फ़िर'औन का दिल सख़्त हो गया, और जैसा ख़ुदावन्द ने कह दिया था उसने उनकी न सुनी।
\s5
\v 20 ~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "सुबह-सवेरे उठ कर फ़िर'औन के आगे जा खड़ा होना, वह दरिया पर आएगा तब तू उससे कहना, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि मेरे लोगों को जाने दे कि वह मेरी 'इबादत करें।
\v 21 ~वर्ना अगर तू उनको जाने न देगा तो देख मैं तुझ पर और तेरे नौकरों और तेरी र'इयत पर और तेरे घरों में मच्छरों के ग़ोल के ग़ोल भेजूँगा; और मिस्रियों के घर और तमाम ज़मीन जहाँ जहाँ वह हैं, मच्छरों के ग़ोलों से भर जाएगी।
\s5
\v 22 ~और मैं उस दिन जशन के 'इलाके़ को उसमें मच्छरों के ग़ोल न होंगे; ताकि तू जान ले कि दुनिया में ख़ुदावन्द मैं ही हूँ।
\v 23 और मैंऔर अपने लोगों और तेरे लोगों में फ़र्क़ करूँगा और कल तक यह निशान ज़ुहूर में आएगा।"
\v 24 ~चुनाँचे ख़ुदावन्द ने ऐसा ही किया, और फ़िर'औन के घर और उसके नौकरों के घरों और सारे मुल्क-ए-मिस्र में मच्छरों के ग़ोल के ग़ोल भर गए, और इन मच्छरों के ग़ोलों की वजह से मुल्क का नास हो गया।
\s5
\v 25 ~तब फ़िर'औन ने मूसा और हारून को बुलवा कर कहा, कि तुम जाओ और अपने ख़ुदा के लिए इसी मुल्क में क़ुर्बानी करो।”
\v 26 ~मूसा ने कहा, "ऐसा करना मुनासिब नहीं, क्यूँकि हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए उस चीज़ की क़ुर्बानी करेंगे जिससे मिस्री नफ़रत रखते हैं; तब अगर हम मिस्रियों की आँखों के आगे उस चीज़ की क़ुर्बानी करें जिससे वह नफ़रत रखते हैं तो क्या वह हम को संगसार न कर डालेंगे?
\v 27 ~तब हम तीन दिन की राह वीराने में जाकर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए जैसा वह हम को हुक्म देगा क़ुर्बानी करेंगे।"
\s5
\v 28 ~फ़िर'औन ने कहा, "मैं तुम को जाने दूँगा ताकि तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए वीराने में क़ुर्बानी करो, लेकिन तुम बहुत दूर मत जाना और मेरे लिए सिफ़ारिश करना।"
\v 29 ~मूसा ने कहा, ~देख, मैं तेरे पास से जाकर ख़ुदावन्द से सिफ़ारिश करूँगा के मच्छरों के ग़ोल फ़िर'औन और उसके नौकरों और उसकी र'इयत के पास से कल ही दूर हो जाएँ, सिर्फ़ इतना हो कि फ़िर'औन आगे को दग़ा करके लोगों को ख़ुदावन्द के लिए क़ुर्बानी करने को जाने देने से इन्कार न कर दे।"
\s5
\v 30 ~और मूसा ने फ़िर'औन के पास से जा कर ख़ुदावन्द से सिफ़ारिश की।
\v 31 ~ख़ुदावन्द ने मूसा की दरख़्वास्त के मुवाफ़िक़ किया; और उसने मच्छरों के ग़ोलों को फ़िर'औन और उसके नौकरों और उसकी र'इयत के पास से दूर कर दिया, यहाँ तक कि एक भी बाक़ी न रहा।
\v 32 ~फिर फ़िर'औन ने इस बार भी अपना दिल सख़्त कर लिया, और उन लोगों को जाने न दिया।
\s5
\c 9
\p
\v 1 तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि फ़िर'औन के पास जाकर उससे कह, ख़ुदावन्द 'इब्रानियों का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि मेरे लोगों को जाने दे ताकि वह मेरी 'इबादत करें।
\v 2 ~क्यूँकि अगर तू इन्कार करे और उनको जाने न दे और अब भी उनको रोके रख्खे,
\v 3 तो देख, ख़ुदावन्द का हाथ तेरे चौपायों पर जो खेतों में हैं या'नी घोड़ों, गधों, ऊँटों, गाय बैलों और भेड़-बकरियों पर ऐसा पड़ेगा कि उनमें बड़ी भारी मरी फैल जाएगी।
\v 4 ~और ख़ुदावन्द इस्राईल के चौपायों को मिस्रियों के चौपायों से जुदा करेगा, और जो बनी-इस्राईल के हैं उनमें से एक भी नहीं मरेगा'।"
\s5
\v 5 ~और ख़ुदावन्द ने एक वक़्त मुक़र्रर कर दिया और बता दिया कि कल ख़ुदावन्द इस मुल्क में यही काम करेगा।”
\v 6 और ख़ुदावन्द ने दूसरे दिन ऐसा ही किया और मिस्रियों के सब चौपाए मर गए लेकिन बनी-इस्राईल के चौपायों में से एक भी न मरा।
\v 7 ~चुनाँचे फ़िर'औन ने आदमी भेजे तो मा'लूम हुआ कि ~इस्राईलियों के चौपायों में से एक भी नहीं मरा है, लेकिन फ़िर'औन का दिल ता'अस्सुब में~था और उसने लोगों को जाने न दिया।
\s5
\v 8 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा कि तुम दोनों भट्टी की राख अपनी मुट्ठियों में ले लो, और मूसा उसे फ़िर'औन के सामने आसमान की तरफ़ उड़ा दे।
\v 9 ~और वह सारे मुल्क-ए-मिस्र में बारीक गर्द हो कर मिस्र के आदमियों और जानवरों के जिस्म पर फोड़े और फफोले बन जाएगी।"
\v 10 ~फिर वह भट्टी की राख लेकर फ़िर'औन के आगे जा खड़े हुए, और मूसा ने उसे आसमान की तरफ़ उड़ा दिया और वह आदमियों और जानवरों के जिस्म पर फोड़े और फफोले बन गयी।
\s5
\v 11 ~और जादूगर फोड़ों की वजह से मूसा के आगे खड़े न रह सके, क्यूँकि जादूगरों और सब मिस्रियों के फोड़े निकले हुए थे।
\v 12 और ख़ुदावन्द ने फ़िर'औन के दिल को सख़्त कर दिया, और उसने जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा से कह दिया था उनकी न सुनी।
\s5
\v 13 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि "सुबह-सवेरे उठ कर फ़िर'औन के आगे जा खड़ा हो और उसे कह, कि 'ख़ुदावन्द 'इब्रानियों का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि मेरे लोगों को जाने दे ताकि वह मेरी 'इबादत करें।
\v 14 ~क्यूँकि मैं अब की बार अपनी सब बलाएँ तेरे दिल और तेरे नौकरों और तेरी र'इयत पर नाज़िल करूँगा, ताकि तू जान ले कि तमाम दुनिया में मेरी तरह कोई नहीं है।
\s5
\v 15 ~और मैंने तो अभी हाथ बढ़ा कर तुझे और तेरी र'इयत को वबा से मारा होता और तू ज़मीन पर से हलाक हो जाता।
\v 16 ~लेकिन मैंने तुझे हक़ीक़त में इसलिए क़ायम रख्खा है कि अपनी ताक़त तुझे दिखाऊँ, ताकि मेरा नाम सारी दुनिया में मशहूर हो जाए।
\v 17 ~क्या तू अब भी मेरे लोगों के मुक़ाबले में तकब्बुर करता है कि उनको जाने नहीं देता?
\s5
\v 18 देख, मैं कल इसी वक़्त ऐसे बड़े-बड़े ओले बरसाऊँगा जो मिस्र में जब से उसकी बुनियाद डाली गई आज तक नहीं पड़े।
\v 19 ~तब आदमी भेज कर अपने चौपायों को, जो कुछ तेरा माल खेतों में है उसको अन्दर कर ले; क्यूँकि जितने आदमी और जानवर मैदान में होंगे और घर में नहीं पहुँचाए जाएँगे, उन पर ओले पड़ेंगे और वह हलाक हो जाएँगे'।"
\s5
\v 20 ~तब फ़िर'औन के ख़ादिमों में जो-जो ख़ुदावन्द के कलाम से डरता था, वह अपने नौकरों और चौपायों को घर में भगा ले आया।
\v 21 ~और जिन्होंने ख़ुदावन्द के कलाम का लिहाज़ न किया, उन्होंने अपने नौकरों और चौपायों को मैदान में रहने दिया।
\s5
\v 22 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि अपना हाथ आसमान की तरफ़ बढ़ा ताकि सब मुल्क-ए-मिस्र में इन्सान और हैवान और खेत की सब्ज़ी पर जो मुल्क-ए-मिस्र में है ओले गिरें।"
\v 23 ~और मूसा ने अपनी लाठी आसमान की तरफ़ उठाई, और ख़ुदावन्द ने रा'द और ओले भेजे और आग ज़मीन तक आने लगी, और ख़ुदावन्द ने मुल्क-ए-मिस्र पर ओले बरसाए।
\v 24 ~तब ओले गिरे और ओलों के साथ आग मिली हुई थी, और वह ओले ऐसे भारी थे कि जब से मिस्री क़ौम आबाद हुई ऐसे ओले मुल्क में कभी नहीं पड़े थे।
\s5
\v 25 ~और ओलों ने सारे मुल्क-ए-मिस्र में उनको जो मैदान में थे क्या इन्सान, क्या हैवान, सबको मारा और खेतों की सारी सब्ज़ी को भी ओले मार गए और मैदान के सब दरख़्तों को तोड़ डाला।
\v 26 ~मगर जशन के 'इलाक़ा में जहाँ बनी-इस्राईल रहते थे ओले नहीं गिरे।
\s5
\v 27 ~तब फ़िर'औन ने मूसा और हारून को बुला कर उनसे कहा, कि मैंने इस दफ़ा' गुनाह किया; ख़ुदावन्द सच्चा है और मैं और मेरी क़ौम हम दोनों बदकार हैं।
\v 28 ख़ुदावन्द से सिफ़ारिश करो क्यूँकि यह ज़ोर का गरजना और ओलों का बरसना बहुत हो चुका, और मैं तुम को जाने दूँगा और तुम अब रुके नहीं रहोगे।”
\s5
\v 29 ~तब मूसा ने उसे कहा, कि मैं शहर से बाहर निकलते ही ख़ुदावन्द के आगे हाथ फैलाऊँगा और गरज ख़त्म हो जाएगा और ओले भी फिर न पड़ेंगे, ताकि तू जान ले कि ~दुनिया ख़ुदावन्द ही की है।
\v 30 ~लेकिन मैं जानता हूँ कि ~तू और तेरे नौकर अब भी ख़ुदावन्द ख़ुदा से नहीं डरोगे।"
\s5
\v 31 ~अब सुन और जौ को तो ओले मार गए, क्यूँकि जौ की बालें निकल चुकी थीं और सन में फूल लगे हुए थे;
\v 32 ~पर गेहूँ और कठिया गेहूँ मारे न गए क्यूँकि वह बढ़े न थे।
\v 33 और मूसा ने फ़िर'औन के पास से शहर के बाहर जाकर ख़ुदावन्द के आगे हाथ फैलाए, तब गरज और ओले ख़त्म हो गए और ज़मीन पर बारिश थम गई।
\s5
\v 34 ~जब फ़िर'औन ने देखा कि मेंह और ओले और गरज ख़त्म हो गए, तो उसने और उसके ख़ादिमों ने और ज़्यादा गुनाह किया कि अपना दिल सख़्त कर लिया।
\v 35 ~और फ़िर'औन का दिल सख़्त हो गया, और उसने बनी-इस्राईल को जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा के ज़रिए' कह दिया था जाने न दिया।
\s5
\c 10
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि फ़िर'औन के पास जा; क्यूँकि मैं ही ने उसके दिल और उसके नौकरों के दिल को सख़्त कर दिया है, ताकि मैं अपने यह निशान उनके बीच दिखाऊँ;
\v 2 ~और तू अपने बेटे और अपने पोते को मेरे निशान और वह काम जो मैंने मिस्र में उनके बीच किए सुनाए और तुम जान लो कि ख़ुदावन्द मैं ही हूँ।"
\s5
\v 3 और मूसा और हारून ने फ़िर'औन के पास जाकर उससे कहा कि ख़ुदावन्द, 'इब्रानियों का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि 'तू कब तक मेरे सामने नीचा बनने से इन्कार करेगा? मेरे लोगों को जाने दे कि वह मेरी 'इबादत करें।
\v 4 वर्ना, अगर तू मेरे लोगों को जाने न देगा, तो देख, कल मैं तेरे मुल्क में टिड्डियाँ ले आऊँगा।
\s5
\v 5 और वह ज़मीन की सतह को ऐसा ढाँक लेंगी कि कोई ज़मीन को देख भी न सकेगा; और तुम्हारा जो कुछ ओलों से बच रहा है वह उसे खा जाएँगी, और तुम्हारे जितने दरख़्त मैदान में लगे हैं उनको भी चट कर जाएँगी,
\v 6 ~और वह तेरे और तेरे नौकरों बल्कि सब मिस्रियों ~के घरों में भर जाएँगी; और ऐसा तेरे बाप दादाओं ने जब से वह पैदा हुए उस वक़्त से आज तक नहीं देखा होगा'।" और वह लौट कर फ़िर'औन के पास से चला गया।
\s5
\v 7 ~तब फ़िर'औन के नौकर फ़िर'औन से कहने लगे कि "ये शख़्स कब तक हमारे लिए फन्दा बना रहेगा? इन लोगों को जाने दे ताकि वह ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की 'इबादत करें। क्या तुझे ख़बर नहीं कि मिस्र बर्बाद हो गया?"
\v 8 ~तब मूसा और हारून फ़िर'औन के पास फिर बुला लिए गए, और उसने उनको कहा, कि 'जाओ, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की 'इबादत करो, लेकिन वह कौन-कौन हैं जो जाएँगे?”
\s5
\v 9 ~मूसा ने कहा, कि "हम अपने जवानों और बूढों और अपने बेटों और बेटियों और अपनी भेड़ बकरियों और अपने गाये बैलों समेत जाएँगे, क्यूँकि हम को अपने ख़ुदा की 'ईद करनी है।"
\v 10 तब उसने उनको कहा कि "ख़ुदावन्द ही तुम्हारे साथ रहे, ~मैं तो ज़रूर ही तुम को बच्चों समेत जाने दूँगा, ख़बरदार हो जाओ इसमें तुम्हारी ख़राबी है।
\v 11 ~नहीं, ऐसा नहीं होने पाएगा; तब तुम मर्द ही मर्द जाकर ख़ुदावन्द की 'इबादत करो क्यूँकि तुम यही चाहते थे।" और वह फ़िर'औन के पास से निकाल दिए गए।
\s5
\v 12 ~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि "मुल्क-ए-मिस्र पर अपना हाथ बढ़ा ताकि टिड्डियाँ मुल्क-ए-मिस्र पर आएँ और हर क़िस्म की सब्ज़ी को जो इस मुल्क में ओलों से बच रही है चट कर जाएँ।"
\v 13 ~तब मूसा ने मुल्क-ए-मिस्र पर अपनी लाठी बढ़ाई, और ख़ुदावन्द ने उस सारे दिन और सारी रात पुरवा आँधी चलाई; और सुबह होते होते पुरवा आँधी टिड़िडयाँ ले आई।
\s5
\v 14 ~और टिडिडयाँ सारे मुल्क-ए-मिस्र पर छा गई और वहीं मिस्र की हदों में बसेरा किया, और उनका दल ऐसा भारी था कि न तो उनसे पहले ऐसी टिड्डियाँ कभी आई न उनके बा'द फिर आएँगी।
\v 15 ~क्यूँकि उन्होंने इस ज़मीन को ढाँक लिया, ऐसा कि मुल्क में अन्धेरा हो गया; और उन्होंने उस मुल्क की एक-एक सब्ज़ी को और दरख़्तों के मेवह को, जो ओलों से बच गए थे चट कर लिया। और मुल्क-ए-मिस्र में न तो किसी दरख़्त की, न खेत की किसी सब्ज़ी की हरियाली बाक़ी रही।
\s5
\v 16 ~तब फ़िर'औन ने जल्द मूसा और हारून को बुलवा कर कहा कि "मैं ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा का और तुम्हारा गुनहगार हूँ।
\v 17 ~ इसलिए सिर्फ़ इस बार मेरा गुनाह बख़्शो, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से सिफ़ारिश करो कि वह सिर्फ़ इस मौत को मुझ से दूर कर दे।”
\v 18 ~फिर उसने फ़िर'औन के पास से निकल कर ख़ुदावन्द से सिफ़ारिश की।
\s5
\v 19 ~और ख़ुदावन्द ने पछुवा आँधी भेजी जो टिड्डियों को उड़ा कर ले गई और उनको बहर-ए-कुलज़म में डाल दिया, और मिस्र की हदों में एक टिड्डी भी बाक़ी न रही।
\v 20 ~लेकिन ख़ुदावन्द ने फ़िर'औन के दिल को सख़्त कर दिया और उसने बनी-इस्राईल को जाने न दिया।
\s5
\v 21 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि अपना हाथ आसमान की तरफ़ बढ़ा ताकि मुल्क-ए- मिस्र में तारीकी छा जाए, ऐसी तारीकी जिसे टटोल सकें।"
\v 22 और मूसा ने अपना हाथ आसमान की तरफ़ बढ़ाया और तीन दिन तक सारे मुल्क-ए-मिस्र में गहरी तारीकी रही।
\v 23 ~तीन दिन तक न तो किसी ने किसी को देखा और न कोई अपनी जगह से हिला, लेकिन सब बनी-इस्राईल के मकानों में उजाला रहा।
\s5
\v 24 ~तब फ़िर'औन ने मूसा को बुलवा कर कहा कि "तुम जाओ और ख़ुदावन्द की 'इबादत करो सिर्फ़ अपनी भेड़ बकरियों और गाये बैलों को यहीं छोड़ जाओ और जो तुम्हारे बाल-बच्चे हैं उनको भी साथ लेते जाओ।"
\v 25 ~मूसा ने कहा, कि तुझे हम को कु़र्बानियों और सोख़्तनी कु़र्बानियों के लिए जानवर देने पड़ेंगे, ताकि हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के आगे क़ुर्बानी करें।
\v 26 ~इसलिए हमारे चौपाये भी हमारे साथ जाएँगे और उनका एक खुर तक भी पीछे नहीं छोड़ा जाएगा, क्यूँकि उन्ही में से हम को ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की 'इबादत का सामान लेना पड़ेगा, और जब तक हम वहाँ पहुँच न जाएँ हम नहीं जानते कि ~क्या-क्या लेकर हम को ख़ुदावन्द की 'इबादत करनी होगी।"
\s5
\v 27 ~लेकिन ख़ुदावन्द ने फ़िर'औन के दिल को सख़्त कर दिया और उसने उनको जाने ही न दिया।
\v 28 और फ़िर'औन ने उसे कहा, मेरे सामने से चला जा; और होशियार रह, फिर मेरा मुँह देखने को मत आना क्यूँकि जिस दिन तूने मेरा मुँह देखा तो मारा जाएगा।"
\v 29 ~तब मूसा ने कहा, कि तूने ठीक कहा है, मैं फिर तेरा मुँह कभी नहीं देखूँगा
\s5
\c 11
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि "मैं फ़िर'औन और मिस्रियों पर एक बला और लाऊँगा, उसके बा'द वह तुम को यहाँ से जाने देगा, और जब वह तुम को जाने देगा तो यक़ीनन तुम सब को यहाँ से बिल्कुल निकाल देगा।
\v 2 इसलिए अब तू लोगों के कान में यह बात डाल दे कि उनमें से हर शख़्स अपने पड़ोसी और हर 'औरत अपनी पड़ौसन से सोने, चाँदी के ज़ेवर ले।"
\v 3 और ख़ुदावन्द ने उन लोगों पर मिस्रियों को मेहरबान कर दिया, और यह आदमी मूसा भी मुल्क-ए-मिस्र में फ़िर'औन के ख़ादिमों के नज़दीक और उन लोगों की निगाह में बड़ा बुज़ुर्ग़ था।
\s5
\v 4 ~और मूसा ने कहा, कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि मैं आधी रात को निकल कर मिस्र के बीच में जाऊँगा;
\v 5 ~और मुल्क-ए-मिस्र के सब पहलौटे, फ़िर'औन जो तख़्त पर बैठा है उसके पहलौटे से लेकर वह लौंडी जो चक्की पीसती है उसके पहलौटे तक और सब चौपायों के पहलौठे मर जाएँगे।
\s5
\v 6 और सारे मुल्क-ए- मिस्र में ऐसा बड़ा मातम होगा जैसा न कभी पहले हुआ और न फिर कभी होगा।
\v 7 ~लेकिन इस्राईल में से किसी पर चाहे इन्सान हो चाहे हैवान एक कुत्ता भी नही भौंकेगा, ताकि तुम जान लो कि ख़ुदावन्द मिस्रियों और इस्राईलियों में कैसा फ़र्क करता है।
\v 8 ~और तेरे यह सब नौकर मेरे पास आकर मेरे आगे सर झुकाएंगे और कहेंगे, कि 'तू भी निकल और तेरे सब पैरौ भी निकलें, " इसके बा'द मैं निकल जाऊँगा।” यह कह कर वह बड़े ग़ुस्से में फ़िर'औन के पास से निकल कर चला गया।
\s5
\v 9 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि ~फ़िरऔन तुम्हारी इसी वजह से नहीं सुनेगा; ताकि 'अजाइब मुल्क-ए-मिस्र में बहुत ज़्यादा हो जाएँ।"
\v 10 ~और मूसा और हारून ने यह करामात फ़िरऔन को दिखाई, और ख़ुदावन्द ने फ़िर'औन के दिल को सख़्त कर दिया कि उसने अपने मुल्क से बनी-इस्राईल को जाने न दिया।
\s5
\c 12
\p
\v 1 ~फिर ख़ुदावन्द ने मुल्क-ए-मिस्र में मूसा और हारून से कहा कि
\v 2 "यह महीना तुम्हारे लिए महीनों का शुरू'~और साल का पहला महीना हो।
\s5
\v 3 ~तब इस्राईलियों की सारी जमा'अत से यह कह दो कि इसी महीने के दसवें दिन, हर शख़्स अपने आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ घर पीछे एक बर्रा ले;
\v 4 ~और अगर किसी के घराने में बर्रे को खाने के लिए आदमी कम हों, तो वह और उसका पड़ोसी जो उसके घर के बराबर रहता हो, दोनों मिल कर नफ़री के शुमार के मुवाफ़िक़ एक बर्रा ले रख्खें, तुम हर एक आदमी के खाने की मिक़्दार के मुताबिक़ बर्रे का हिसाब लगाना।
\s5
\v 5 ~तुम्हारा बर्रा बे"ऐब और यक साला नर हो, और ऐसा बच्चा या तो भेड़ों में से चुन कर लेना या बकरियों में से।
\v 6 ~और तुम उसे इस महीने की चौदहवीं तक रख छोड़ना, और इस्राईलियों के क़बीलों की सारी जमा'अत शाम को उसे ज़बह करे।
\v 7 ~और थोड़ा सा ख़ून लेकर जिन घरों में वह उसे खाएँ, उनके दरवाज़ों के दोनों बाजु़ओं और ऊपर की चौखट पर लगा दें।
\v 8 ~और वह उसके गोश्त को उसी रात आग पर भून कर बेख़मीरी रोटी और कड़वे साग पात के साथ खा लें।
\s5
\v 9 ~उसे कच्चा या पानी में उबाल कर हरगिज़ न खाना, बल्कि उसको सिर और पाये और अन्दरूनी 'अाज़ा समेत आग पर भून कर खाना।
\v 10 ~और उसमें से कुछ भी सुबह तक बाक़ी न छोड़ना और अगर कुछ उसमें से सुबह तक बाक़ी रह जाए तो उसे आग में जला देना।
\v 11 ~और तुम उसे इस तरह खाना अपनी कमर बाँधे और अपनी जूतियाँ पाँव में पहने और अपनी लाठी हाथ में लिए हुए तुम उसे जल्दी-जल्दी खाना, क्यूँकि यह फ़सह ख़ुदावन्द की है।
\s5
\v 12 इसलिए कि मैं उस रात मुल्क-ए-मिस्र में से होकर गुज़रूँगा और इन्सान और हैवान के सब पहलौठों को जो मुल्क-ए-मिस्र में हैं, मारूँगा और मिस्र के सब मा'बूदों को भी सज़ा दूँगा; मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\v 13 और जिन घरों में तुम हो उन पर वह ख़ून तुम्हारी तरफ़ से निशान ठहरेगा और मैं उस ख़ून को देख कर तुम को छोड़ता जाऊँगा, और जब मैं मिस्रियों को मारूँगा तो वबा तुम्हारे पास फटकने की भी नहीं कि तुम को हलाक करे।
\v 14 ~और वह दिन तुम्हारे लिए एक यादगार होगा और तुम उसको ख़ुदावन्द की 'ईद का दिन समझ कर मानना। तुम उसे हमेशा की रस्म करके उस दिन को नसल दर नसल 'ईद का दिन मानना |
\s5
\v 15 ~'सात दिन तक तुम बेख़मीरी रोटी खाना, और पहले ही दिन से ख़मीर अपने अपने घर से बाहर कर देना; इसलिए कि जो कोई पहले दिन से सातवें दिन तक ख़मीरी रोटी खाए वह शख़्स इस्राईल में से काट डाला जाएगा।
\v 16 और पहले दिन तुम्हारा मुक़द्दस मजमा' हो, और सातवें दिन भी मुक़द्दस मजमा' हो; उन दोनों दिनों में कोई काम न किया जाए सिवा उस खाने के जिसे हर एक आदमी खाए, सिर्फ़ यही किया जाए।
\s5
\v 17 ~और तुम बेख़मीरी रोटी की यह 'ईद मनाना, क्यूँकि मैं उसी दिन तुम्हारे लश्कर को मुल्क-ए-मिस्र से निकालूँगा; इस लिए तुम उस दिन को हमेशा की रस्म करके नसल दर नसल मानना।
\v 18 ~पहले महीने की चौदहवीं तारीख़ की शाम से इक्कीसवीं तारीख़ की शाम तक तुम बेख़मीरी रोटी खाना।
\s5
\v 19 सात दिन तक तुम्हारे घरों में कुछ भी ख़मीर न हो, क्यूँकि जो कोई किसी ख़मीरी चीज़ को खाए, वह चाहे मुसाफ़िर हो चाहे उसकी पैदाइश उसी मुल्क की हो, इस्राईल की जमा'अत से काट डाला जाएगा।
\v 20 ~तुम कोई ख़मीरी चीज़ न खाना बल्कि अपनी सब बस्तियों में बेख़मीरी रोटी खाना।"
\s5
\v 21 ~तब मूसा ने इस्राईल के सब बुज़ुर्गों को बुलवाकर उनको कहा, कि अपने-अपने ख़ान्दान के मुताबिक़ एक-एक बर्रा निकाल रख्खो, और यह फ़सह का बर्रा ज़बह करना।
\v 22 और तुम जूफ़े का एक गुच्छा लेकर उस ख़ून में जो तसले में होगा डुबोना और उसी तसले के ख़ून में से कुछ ऊपर की चौखट और दरवाज़े के दोनों बाजु़ओं पर लगा देना; और तुम में से कोई सुबह तक अपने घर के दरवाज़े से बाहर न जाए।
\s5
\v 23 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द मिस्रियों को मारता हुआ गुज़रेगा, और जब ख़ुदावन्द ऊपर की चौखट और दरवाज़े के दोनों बाज़ुओं पर ख़ून देखेगा तो वह उस दरवाज़े को छोड़ जाएगा; और हलाक करने वाले को तुम को मारने के लिए घर के अन्दर आने न देगा।
\s5
\v 24 और तुम इस बात को अपने और अपनी औलाद के लिए हमेशा की रिवायत करके मानना।
\v 25 ~और जब तुम उस मुल्क में जो ख़ुदावन्द तुम को अपने वा'दे के मुवाफ़िक़ देगा दाख़िल हो जाओ, तो इस 'इबादत को बराबर जारी रखना।
\s5
\v 26 और जब तुम्हारी औलाद तुम से पूछे, कि इस 'इबादत से तुम्हारा मक़सद क्या है?"
\v 27 ~तो तुम यह कहना, कि 'यह ख़ुदावन्द की फ़सह की क़ुर्बानी है, जो मिस्र में मिस्रियों को मारते वक़्त बनी-इस्राईल के घरों को छोड़ गया और यूँ हमारे घरों को बचा लिया'।" तब लोगों ने सिर झुका कर सिज्दा किया।
\v 28 और बनी-इस्राईल ने जाकर, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून को फ़रमाया था वैसा ही किया।
\s5
\v 29 ~और आधी रात को ख़ुदावन्द ने मुल्क-ए-मिस्र के सब पहलौठों को फ़िर'औन जो अपने तख़्त पर बैठा था उसके पहलौठे से लेकर वह कै़दी जो कै़दखानें में था उसके पहलौठे तक, बल्कि चौपायों के पहलौठों को भी हलाक कर दिया।
\v 30 ~और फ़िर'औन और उसके सब नौकर और सब मिस्री रात ही को उठ बैठे और मिस्र में बड़ा कोहराम मचा, क्यूँकि एक भी ऐसा घर न था जिसमें कोई न मरा हो।
\s5
\v 31 ~तब उसने रात ही रात में मूसा और हारून को बुलवा कर कहा, कि "तुम बनी-इस्राईल को लेकर मेरी क़ौम के लोगों में से निकल जाओ और जैसा कहते हो जाकर ख़ुदावन्द की 'इबादत करो।
\v 32 और अपने कहने के मुताबिक़ अपनी भेड़ बकरियाँ और गाय बैल भी लेते जाओ और मेरे लिए भी दुआ' करना।"
\v 33 ~और मिस्री उन लोगों से बजिद्द होने लगे, ताकि उनको मुल्क-ए-मिस्र से जल्द बाहर चलता करें, क्यूँकि वह समझे कि हम सब मर जाएँगे।
\s5
\v 34 ~तब इन लोगों ने अपने गुन्धे गुन्धाए आटे को बग़ैर ख़मीर दिए लगनों समेत कपड़ों में बाँध कर अपने कंधों पर धर लिया।
\v 35 ~और बनी-इस्राईल ने मूसा के कहने के मुवाफ़िक यह भी किया, कि मिस्रियों से सोने चाँदी के ज़ेवर और कपड़े माँग लिए।
\v 36 ~और ख़ुदावन्द ने उन लोगों को मिस्रियों की निगाह में ऐसी 'इज़्ज़त बख़्शी कि जो कुछ उन्होंने माँगा उन्होंने दे दिया। तब उन्होंने मिस्रियों को लूट लिया।
\s5
\v 37 ~और बनी-इस्राईल ने रा'मसीस से सुक्कात तक पैदल सफ़र किया और बाल बच्चों को छोड़ कर वह कोई छः लाख मर्द थे।
\v 38 और उनके साथ एक मिली-जुली गिरोह भी गई और भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल और बहुत चौपाये उनके साथ थे।
\v 39 ~और उन्होंने उस गुन्धे हुए आटे की जिसे वह मिस्र से लाए थे बेख़मीरी रोटियाँ पकाई, क्यूँकि वह उसमें ख़मीर देने न पाए थे इसलिए कि वह मिस्र से ऐसे जबरन निकाल दिए गए कि वहाँ ठहर न सके और न कुछ खाना अपने लिए तैयार करने पाए।
\v 40 और बनी-इस्राईल को मिस्र में रहते हुए हुए चार सौ तीस बरस हुए थे।
\s5
\v 41 ~और उन चार सौ तीस बरसों के गुज़र जाने पर ठीक उसी दिन ख़ुदावन्द का सारा लश्कर मुल्क-ए-मिस्र से निकल गया।
\v 42 ~ये वह रात है जिसे ख़ुदावन्द की ख़ातिर मानना बहुत मुनासिब है क्यूँकि ~इसमें वह उनको मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, ख़ुदावन्द की यह वही रात है जिसे ज़रूरी है कि सब बनीइस्राईल नसल-दर-नसल ख़ूब मानें।
\s5
\v 43 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा, कि 'फ़सह की रिवायत यह है, कि कोई बेगाना उसे खाने न पाए।
\v 44 ~लेकिन अगर कोई शख़्स किसी का ख़रीदा हुआ ग़ुलाम हो, और तूने उसका ख़तना कर दिया हो तो वह उसे खाए।
\s5
\v 45 ~पर अजनबी और मज़दूर उसे खाने न पाए।
\v 46 ~और उसे एक ही घर में खाएँ या'नी उसका ज़रा भी गोश्त तू घर से बाहर न ले जाना और न तुम उसकी कोई हड्डी तोड़ना।
\s5
\v 47 ~इस्राईल की सारी जमा'अत इस पर 'अमल करे।
\v 48 ~और अगर कोई अजनबी तेरे साथ मुक़ीम हो और ख़ुदावन्द की फ़सह को मानना चाहता हो उसके ~यहाँ के सब मर्द अपना ख़तना कराएँ, तब वह पास आकर फ़सह करे; यूँ वह ऐसा समझा जाएगा जैसे उसी मुल्क की उसकी पैदाइश है लेकिन कोई नामख़्तून आदमी उसे खाने न पाए।
\s5
\v 49 ~वतनी और उस अजनबी के लिए जो तुम्हारे बीच मुक़ीम हो एक ही शरी'अत होगी।”
\v 50 तब सब बनी-इस्राईल ने जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून को फ़रमाया वैसा ही किया।
\v 51 ~और ठीक उसी दिन ख़ुदावन्द बनी-इस्राईल के सब लश्करों को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल ले गया।
\s5
\c 13
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा को फ़रमाया, कि |
\v 2 ~"सब पहलौठों को या'नी जो बनी-इस्राईल में, चाहे इन्सान हो चाहे हैवान पहलौठे बच्चे हों उनको मेरे लिए पाक ठहरा क्यूँकि वह मेरे हैं।"
\s5
\v 3 और मूसा ने लोगों से कहा, कि "तुम इस दिन को याद रखना जिस में तुम मिस्र से जो ग़ुलामी का घर है निकले, क्यूँकि ख़ुदावन्द अपनी ताक़त से तुम को वहाँ से निकाल लाया; इसमें ख़मीरी रोटी खाई न जाए।
\v 4 तुम अबीब के महीने में आज के दिन निकले हो ।
\v 5 ~फिर जब ख़ुदावन्द तुझ को कना'नियों और हित्तियों और अमोरियों और हव्वियों और यबूसियों के मुल्क में पहुँचा दे जिसे तुझ को देने की क़सम उसने तेरे बाप दादा से खाई थी और जिसमें दूध और शहद बहता है, तो तू इसी महीने में यह 'इबादत किया करना।
\s5
\v 6 ~सात दिन तक तो तू बेख़मीरी रोटी खाना और सातवें दिन ख़ुदावन्द की 'ईद मनाना।
\v 7 ~बेख़मीरी रोटी सातों दिन खाई जाए, और ख़मीरी रोटी तेरे पास दिखाई भी न दे और न तेरे मुल्क की हदों में कहीं कुछ ख़मीर नज़र आए।
\s5
\v 8 ~और तू उस दिन अपने बेटे को यह बताना, कि इस दिन को मैं उस काम की वजह से मानता हूँ जो ख़ुदावन्द ने मेरे लिए उस वक़्त किया जब मैं मुल्क-ए-मिस्र से निकला।
\v 9 और यही तेरे पास जैसे तेरे हाथ में एक निशान और तेरी दोनों आँखों के सामने एक यादगार ठहरे, ताकि ख़ुदावन्द की शरी'अत ~तेरी ज़बान पर हो; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने तुझ को अपनी ताक़त से मुल्क-ए-मिस्र से निकाला।
\v 10 तब तू इस रिवायत को इसी वक़्त -ए-मु'अय्यन में हर साल माना करना।
\s5
\v 11 ~"और जब ख़ुदावन्द उस क़सम के मुताबिक़, जो उसने तुझ से और तेरे बाप दादा से खाई, तुझ को कना'नियों के मुल्क में पहुँचा कर वह मुल्क तुझ को दे दे।
\v 12 तो तू पहलौटे बच्चों को और जानवरों के पहलौठों को ख़ुदावन्द के लिए अलग कर देना। सब नर बच्चे ख़ुदावन्द के होंगे।
\v 13 और गधे के पहले बच्चे के फ़िदिये में बर्रा देना, और अगर तू उसका फ़िदिया न दे तो उसकी गर्दन तोड़ डालना। और तेरे बेटों में जितने पहलौठे हों उन सबका फ़िदिया तुझ को देना होगा।
\s5
\v 14 और जब अगले ज़माने में तेरा बेटा तुझसे सवाल करे, कि 'यह क्या है?" तो तू उसे यह जवाब देना, 'ख़ुदावन्द हम को मिस्र से जो ग़ुलामी का घर है अपनी ताक़त से निकाल लाया।
\v 15 ~और जब फ़िर'औन ने हम को जाने देना न चाहा, तो ख़ुदावन्द ने मुल्क-ए-मिस्र में इन्सान और हैवान दोनों के पहलौठे मार दिए। इसलिए मैं जानवरों के सब नर बच्चों को जो अपनी अपनी माँ के रिहम को खोलते हैं ख़ुदावन्द के आगे क़ुर्बानी करता हूँ, लेकिन अपने बेटों के सब पहलौठों का फ़िदिया देता हूँ।"
\v 16 ~और यह तेरे हाथ पर एक निशान और तेरी पेशानी पर टीकों की तरह हों, क्यूँकि ख़ुदावन्द अपने ताक़त से हम को मिस्र से निकाल लाया।"
\s5
\v 17 ~और जब फ़िर'औन ने उन लोगों को जाने की इजाज़त दे दी तो ख़ुदा इनको फ़िलिस्तियों के मुल्क के रास्ते से नहीं ले गया, अगरचे उधर से नज़दीक पड़ता; क्यूँकि ख़ुदा ने कहा, "ऐसा न हो कि यह लोग लड़ाई-भिड़ाई देख कर पछताने लगें और मिस्र को लौट जाएँ।"
\v 18 ~बल्कि ख़ुदा इनको चक्कर खिला कर बहर-ए-कुलज़ुम के वीरान के रास्ते से ले गया और बनी-इस्राईल मुल्क-ए-मिस्र से हथियार बन्द निकले थे।
\s5
\v 19 और मूसा यूसुफ़ की हड्डियों को साथ लेता गया, क्यूँकि उसने बनी-इस्राईल से यह कह कर, कि "ख़ुदा ज़रूर तुम्हारी ख़बर लेगा इस बात की सख़्त क़सम ले ली थी, कि "तुम यहाँ से मेरी हड्डियाँ अपने साथ लेते जाना।"
\v 20 ~और उन्होंने सुक्कात से रवाना करके वीराने के किनारे ईताम में ख़ेमा लगाया।
\v 21 ~और ख़ुदावन्द उनको दिन को रास्ता दिखाने के लिए बादल के सुतून में और रात को रौशनी देने के लिए आग के सुतून में हो कर उनके आगे-आगे चला करता था, ताकि वह दिन और रात दोनों में चल सके।
\v 22 ~वह बादल का सुतून दिन को और आग का सुतून रात को उन लोगों के आगे से हटता न था।
\s5
\c 14
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से फ़रमाया, कि
\v 2 ~"बनी-इस्राईल को हुक्म दे कि ~वह लौट कर मिजदाल और समुन्दर के बीच फ़ी हख़ीरोत के सामने बाल-सफ़ोन के आगे ख़ेमे लगाएँ, उसी के आगे समुन्दर के किनारे किनारे ख़ेमें लगाना।
\v 3 ~फ़िर'औन बनी-इस्राईल के हक़ में कहेगा कि वह ज़मीन की उलझनों में आकर वीरान में घिर गए हैं।
\s5
\v 4 ~और मैं फ़िर'औन के दिल को सख़्त करूँगा और वह उनका पीछा करेगा, और मैं फ़िर'औन और उसके सारे लश्कर पर मुम्ताज़ हूँगा और मिस्री जान लेंगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।" और उन्होंने ऐसा ही किया।
\v 5 जब मिस्र के बादशाह को ख़बर मिली कि वह लोग चल दिए, तो फ़िर'औन और उसके खादिमों का दिल उन लोगों की तरफ़ से फिर गया, और वह कहने लगे कि हम ने यह क्या किया, कि इस्राईलियों को अपनी ख़िदमत से छुट्टी देकर उनको जाने दिया?"
\s5
\v 6 ~तब उसने अपना रथ तैयार करवाया और अपनी क़ौम के लोगों को साथ लिया,
\v 7 और उसने छ: सौ चुने हुए रथ बल्कि मिस्र के सब रथ लिए और उन सभों में सरदारों को बिठाया।
\v 8 और ख़ुदावन्द ने मिस्र के बादशाह फ़िर'औन के दिल को सख़्त कर दिया और उसने बनीइस्राईल का पीछा किया, क्यूँकि बनी-इस्राईल बड़े फ़ख़्र से निकले थे।
\v 9 ~और मिस्री फ़ौज ने फ़िर'औन के सब घोड़ों और रथों और सवारों समेत उनका पीछा किया और उनको जब वह समुन्दर के किनारे फ़ी-हख़ीरोत के पास बाल सफ़ोन के सामने ख़ेमा लगा रहे थे जा लिया।
\s5
\v 10 और जब फ़िर'औन नज़दीक आ गया तब बनी-इस्राईल ने आँख उठा कर देखा कि मिस्री उनका पीछा किए चले आते हैं, और वह बहुत ख़ौफ़ज़दा हो गए। तब बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की,
\v 11 ~और मूसा से कहने लगे, "क्या मिस्र में क़ब्रे न थीं जो तू हम को वहाँ से मरने के लिए वीराने में ले आया है? तूने हम से यह क्या किया कि हम को मिस्र से निकाल लाया?
\v 12 क्या हम तुझ से मिस्र में यह बात न कहते थे कि हम को रहने दे कि हम मिस्रियों की ख़िदमत करें? क्यूँकि हमारे लिए मिस्रियों की ख़िदमत करना वीराने में मरने से बेहतर होता।"
\s5
\v 13 ~तब मूसा ने लोगों से कहा, "डरो मत, चुपचाप खड़े होकर ख़ुदावन्द की नजात के काम को देखो जो वह आज तुम्हारे लिए करेगा। क्यूँकि जिन मिस्रियों को तुम आज देखते हो उनको फिर कभी हमेशा तक न देखोगे।
\v 14 ~ख़ुदावन्द तुम्हारी तरफ़ से जंग करेगा और तुम ख़ामोश रहोगे।”
\s5
\v 15 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि तू क्यूँ मुझ से फ़रियाद कर रहा है? बनी-इस्राईल से कह कि वह आगे बढ़ें।
\v 16 ~और तू अपनी लाठी उठा कर अपना हाथ समुन्दर के ऊपर बढ़ा और उसे दो हिस्से कर, और बनीइस्राईल समुन्दर के बीच में से ख़ुश्क ज़मीन पर चल कर निकल जाएँगे।
\v 17 ~और देख, ~मिस्रियों के दिल सख़्त कर दूँगा और वह उनका पीछा करेंगे, और मैं फ़िर'औन और उसकी सिपाह और उसके रथों और सवारों पर मुम्ताज़ हूँगा |
\v 18 और जब मैं फ़िर'औनऔर उसके रथों और सवारों पर मुम्ताज़ हो जाउँगा तो मिस्री जान लेंगे कि मैं ही ख़ुदावन्द हूँ |
\s5
\v 19 और ख़ुदा उसका फ़रिश्ता जो इस्राइली लश्कर के आगे-आगे चला करता था जा कर उनके पीछे हो गया और बादल का वह सुतून उनके सामने से हट कर ~उनके पीछे जा ठहरा |
\v 20 इस तरह वह मिस्रियों के लश्कर और इस्राईली लश्कर के बीच में हो गया, तब वहाँ बादल भी था और अन्धेरा भी तो भी रात को उससे रौशनी रही| तब वह रात भर एक दूसरे के पास नहीं आए |
\s5
\v 21 फिर मूसा ने अपना हाथ समुन्दर के ऊपर बढ़ाया और ख़ुदावन्द ने रात भर तुन्द पूरबी आँधी चला कर और समुन्दर को पीछे हटा कर उसे ख़ुश्क ज़मीन बना दिया और पानी दो हिस्से हो गया |
\v 22 और बनी-इस्राईल समुन्दर के बीच में से ख़ुश्क ज़मीन पर चल कर निकल गए और उनके दाहने और बाएँ हाथ पानी दीवार की तरह था |
\s5
\v 23 और मिस्रियों ने पीछा किया और फ़िर'औन सब घोडे़ और रथ और सवार उनके पीछे-पीछे समुन्दर के बीच में चले गए |
\v 24 और रात के पिछले पहर ख़ुदावन्द ने आग और बादल के सुतून में से मिस्रियों के लश्कर पर नज़र कीऔर उनके लश्कर को घबरा दिया |
\v 25 और उसने उनके रथों के पहियों को निकाल डाला इसलिए उनका चलना मुश्किल हो गया तब मिस्री कहने लगे, "आओ, हम इस्राईलियों के सामने से भागें, क्यूँकि ख़ुदावन्द उनकी तरफ़ से मिस्रियों के साथ जंग करता है |"
\s5
\v 26 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि अपना हाथ समुन्दर के ऊपर बढ़ा, ताकि पानी मिस्रियों और उनके रथों और सवारों पर फिर बहने लगे |"
\v 27 और मूसा ने अपना हाथ समुन्दर के ऊपर बढ़ाया, और सुबह होते होते समुन्दर फिर अपनी असली ताक़त पर आ गया; और मिस्री उल्टे भागने लगे और ख़ुदावन्द ने समुन्दर के बीच ही में मिस्रियों को हलाक कर दिया |
\v 28 और पानी पलट कर आया और उसने रथों और सवारों और फ़िर'औन सारे लश्कर जो इस्रईलियों का पीछा करता हुआ समुन्दर में गया था डुबो दिया और उसमे से एक भी बाक़ी न छोड़ा |
\s5
\v 29 लेकिन बनी-इस्राईल समुन्दर के बीच में ख़ुश्क ज़मीन पर चलकर निकल गए और पानी उनके दहने और बाएँ हाथ दीवार की तरह रहा|
\v 30 फिर ख़ुदावन्द ने उस दिन इस्रईलियों को मिस्रियों को हाथ से इस तरह बचाया, और इस्रईलियों ने मिस्रियों को समुन्दर के किनारे मरे हुए पड़े देखा |
\v 31 और इस्रईलियों ने बड़ी क़ुदरत जो ख़ुदावन्द ने मिस्रियों पर ज़ाहिर की देखी, और वह लोग ख़ुदावन्द से और ख़ुदावन्द पर और उसके बन्दे मूसा पर ईमान लाए|
\s5
\c 15
\p
\v 1 तब मूसा ~और बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द के लिए यह गीत गाया और यूँ कहने लगे, मैं ख़ुदा वन्द की सना गाँऊगा क्यूँकि वह जलाल के साथ फ़तहमन्द हुआ; उस ने घोड़े को सवार समेत समुन्द्र में डाल दिया|
\s5
\v 2 ख़ुदावन्द मेरी ताक़त और राग है, वही मेरी नजात भी ठहरा | वह मेरा ख़ुदा है, मैं उसकी बड़ाई करूँगा, वह मेरे बाप का ख़ुदा है मैं उसकी बुजु़र्गी करूँगा।
\v 3 ~ख़ुदावन्द साहिब-ए-जंग है, यहोवा उसका नाम है।
\s5
\v 4 ~"फ़िर'औन के रथों और लश्कर को उसने समुन्दर में डाल दिया; और उसके चुने सरदार बहर-ए-कु़ल्ज़म में ~डूब गये।
\v 5 ~गहरे पानी ने उनको छिपा लिया;वह पत्थर की तरह तह में चले गए।
\s5
\v 6 ऐ ख़ुदावन्द, तेरा दहना हाथ कु़दरत की वजह से जलाली है। ऐ खुदावन्द तेरा दहना हाथ दुश्मन को चकनाचूर कर देता है।
\v 7 तू अपनी 'अज़मत के ज़ोर से अपने मुख़ालिफ़ों को हलाक करता है; तू अपना क़हर भेजता है, और वह उनको खूँटी की तरह भस्म कर डालता है।
\v 8 ~तेरे नथनों के दम से पानी का ढेर लग गया, सैलाब तूदे की तरह सीधे खड़े हो गए, और गहरा पानी समन्दर के बीच में जम गया।
\s5
\v 9 ~दुश्मन ने तो यह कहा था, मैं पीछा करूँगा, मैं जा पकड़ूँगा, मैं लूट का माल बाटूँगा, उनकी तबाही से मेरा कलेजा ठंडा होगा। मैं अपनी तलवार खींच कर अपने ही हाथ से उनको हलाक करूँगा।
\v 10 ~तूने अपनी आँधी की फूँक मारी, तो समन्दर ने उनको छिपा लिया। वह ज़ोर के पानी में शीसे की तरह डूब गए।
\v 11 ~मा'बूदों में ऐ ख़ुदावन्द तेरी तरह कौन है? कौन है जो तेरी तरह अपनी पाकीज़गी की वजह से जलाली और अपनी मदह की वजह से रौ'ब वाला और साहिब-ए-करामात है?
\s5
\v 12 ~तूने अपना दहना हाथ बढ़ाया, तो ज़मीन उनको निगल गई।
\v 13 ~"अपनी रहमत से तूने उन लोगों की जिनको तूने छुटकारा बख़्शा रहनुमाई की, और अपने ज़ोर से तू उनको अपने मुक़द्दस मकान को ले चला है।
\s5
\v 14 ~क़ौमें सुन कर काँप गई हैं। और फ़िलिस्तीन के रहने वालों की जान पर आ बनी है।
\v 15 ~अदोम के रईस हैरान हैं, मोआब के पहलवानों को कपकपी लग गई है; कना'न के सब रहने वालों के दिल पिघले जाते हैं।
\s5
\v 16 ~ख़ौफ़-ओ-हिरास उन पर तारी है; तेरे बाजू़ की 'अज़मत की वजह से वह पत्थर की तरह बेहिस-ओ-हरकत हैं। जब तक ऐ ख़ुदावन्द, तेरे लोग निकल न जाएँ, जब तक तेरे लोग जिनको तूने ख़रीदा है पार न हो जाएँ,
\s5
\v 17 ~तू उनको वहाँ ले जाकर अपनी मीरास के पहाड़ पर दरख़्त की तरह लगाएगा, तू उनको उसी जगह ले जाएगा जिसे तूने अपनी सुकूनत के लिए बनाया है। ऐ ख़ुदावन्द! वह तेरी जा-ए-मुक़द्दस है, जिसे तेरे हाथों ने क़ायम किया है।
\v 18 ~ख़ुदावन्द हमेशा से हमेशा तक सल्तनत करेगा।"
\s5
\v 19 ~इस हम्द की वजह यह थी कि ~फ़िर'औन के सवार घोड़ों और रथों समेत समन्दर में गए, और ख़ुदावन्द समन्दर के पानी को उन पर लौटा लाया; लेकिन बनी-इस्राईल समन्दर के बीच में से ख़ुश्क ज़मीन पर चल कर निकल गए।
\v 20 ~तब हारून की बहन मरियम नबिया ने दफ़ हाथ में लिया, और सब 'औरतें दफ़ लिए नाचती हुई उसके पीछे चलीं।
\v 21 और मरियम उनके हम्द के जवाब में यह गाती थी, "ख़ुदावन्द की हम्द-ओ-सना गाओ, क्यूँकि वह जलाल के साथ फ़तहमन्द हुआ है; उसने घोड़े को उसके सवार समेत समन्दर में डाल दिया है।”
\s5
\v 22 ~फ़िर मूसा बनी-इस्राईल को बहर -ए-कु़लज़ुम से आगे ले गया और वह शोर के वीराने में आए, और वीराने में चलते हुए तीन दिन तक उनको कोई पानी का चश्मा न मिला।
\v 23 ~और जब वह मारह में आए तो मारह का पानी पी न सके क्यूँकि वह कड़वा था, इसीलिए उस जगह का नाम मारह पड़ गया।
\s5
\v 24 तब वह लोग मूसा पर बड़बड़ा कर कहने लगे, कि हम क्या पिएँ?"
\v 25 उसने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की; ख़ुदावन्द ने उसे एक पेड़ दिखाया जिसे जब उसने पानी में डाला तो पानी मीठा हो गया।वहीं ख़ुदावन्द ने उनके लिए एक क़ानून और शरी'अत बनाई और वहीं यह कह कर उनकी आज़माइश की,
\v 26 कि "अगर तू दिल लगा कर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात सुने और वही काम करे जो उसकी नज़र में भला है और उसके हुक्मों को माने और उसके क़ानूनों पर 'अमल करे, तो मैं उन बीमारियों में से जो मैंने मिस्रियों पर भेजीं तुझ पर कोई न भेजूँगा क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द तेरा शाफ़ी हूँ।"
\s5
\v 27 ~फिर वह एलीम में आए जहाँ पानी के बारह चश्मे और खजूर के सत्तर दरख़्त थे, और वहीं पानी के क़रीब उन्होंने अपने ख़ेमे लगाए।
\s5
\c 16
\p
\v 1 ~फिर वह एलीम से रवाना हुए और बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत मुल्क-ए-मिस्र से निकलने के बा'द दूसरे महीने की पंद्रहवीं तारीख़ को सीन के वीराने में जो एलीम और सीना के बीच है पहुँची।
\v 2 ~और उस वीराने में बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत मूसा और हारून पर बड़बड़ाने लगी।
\v 3 ~और बनी-इस्राईल कहने लगे, "काश कि हम ख़ुदावन्द के हाथ से मुल्क-ए-मिस्र में जब ही मार दिए जाते जब हम गोश्त की हाँडियों के पास बैठ कर दिल भर कर रोटी खाते थे, क्यूँकि तुम तो हम को इस वीराने में इसीलिए ले आए हो कि सारे मजमे' को भूका मारो।"
\s5
\v 4 तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "मैं आसमान से तुम लोगों के लिए रोटियाँ बरसाऊँगा, फिर यह लोग निकल निकल कर सिर्फ़ एक-एक दिन का हिस्सा हर दिन बटोर लिया करें कि इस से मैं इनकी आज़माइश करूँगा कि वह मेरी शरी'अत पर चलेंगे या नहीं।
\v 5 और छटे दिन ऐसा होगा कि जितना वह ला कर पकाएँगे वह उससे जितना रोज़ जमा' करते हैं दूना होगा।”
\s5
\v 6 तब मूसा और हारून ने सब बनी-इस्राईल से कहा, कि "शाम को तुम जान लोगे कि जो तुम को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया है वह ख़ुदावन्द है।
\v 7 ~और सुबह को तुम ख़ुदावन्द का जलाल देखोगे, क्यूँकि तुम जो ख़ुदावन्द पर बड़बड़ाने लगते हो उसे वह सुनता है। और हम कौन हैं जो तुम हम पर बड़बड़ाते हो?"
\v 8 ~और मूसा ने यह भी कहा, कि "शाम को ख़ुदावन्द तुम को खाने को गोश्त और सुबह को रोटी पेट भर के देगा; क्यूँकि तुम जो ख़ुदावन्द पर बड़बड़ाते हो उसे वह सुनता है। और हमारी क्या हक़ीक़त है? तुम्हारा बड़बड़ाना हम पर नहीं बल्कि ख़ुदावन्द पर है।"
\s5
\v 9 ~फिर मूसा ने हारून से कहा, कि "बनी इस्राईल की सारी जमा'अत से कह, कि तुम ख़ुदावन्द के नज़दीक आओ क्यूँकि उसने तुम्हारा बड़बड़ाना सुन लिया है।"
\v 10 और जब हारून बनी-इस्राईल की जमा'अत से यह बातें कह रहा था, तो उन्होंने वीराने की तरफ़ नज़र की और उनको ख़ुदावन्द का जलाल बादल में दिखाई दिया।
\v 11 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 12 "मैंने बनी-इस्राईल का बड़बड़ाना सुन लिया है, इसलिए तू उनसे कह दे कि शाम को तुम गोश्त खाओगे और सुबह को तुम रोटी से सेर होगे, और तुम जान लोगे कि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।"
\s5
\v 13 और यूँ हुआ कि शाम को इतनी बटेरें आईं कि उनकी खे़मागाह को ढाँक लिया, और सुबह को ख़ेमागाह के आस पास ओस पड़ी हुई थी।
\v 14 ~और जब वह ओस जो पड़ी थी। सूख गई तो क्या देखते हैं, कि वीराने में एक छोटी-छोटी गोल गोल चीज़ ऐसी छोटी जैसे पाले के दाने होते हैं ज़मीन पर पड़ी है।
\v 15 ~बनी-इस्राईल उसे देखकर आपस में कहने लगे, मन्न? क्यूँकि वह नहीं जानते थे कि वह क्या है। तब मूसा ने उनसे कहा, "यह वही रोटी है जो ख़ुदावन्द ने खाने को तुम को दी है।
\s5
\v 16 इसलिए ख़ुदावन्द का हुक्म यह है कि तुम उसे अपने-अपने खाने की मिक़्दार के मुवाफ़िक़ या'नी अपने-अपने आदमियों के शुमार के मुताबिक़ हर शख़्स एक ओमर जमा' करना, और हर शख्स़ उतने ही आदमियों के लिए जमा' करे जितने उसके ख़ेमे में हों।"
\v 17 ~चुनाँचे बनी-इस्राईल ने ऐसा ही किया और किसी ने ज़्यादा और किसी ने कम जमा' किया।
\v 18 और जब उन्होंने उसे ओमर से नापा तो जिसने ज़्यादा जमा' किया था कुछ ज़्यादा न पाया और उसका जिसने कम जमा' किया था कम न हुआ। उनमें से हर एक ने अपने खाने की मिक़्दार के मुताबिक़ जमा' किया था।
\s5
\v 19 और मूसा ने उनसे कह दिया था ~कि~कोई उसमें से कुछ सुबह तक बाक़ी न छोड़े।"
\v 20 तोभी उन्होंने मूसा की बात न मानी बल्कि बा'ज़ों ने सुबह तक कुछ रहने दिया, इसलिए उसमें कीड़े पड़ गए और वह सड़ गया; तब मूसा उनसे नाराज़ हुआ।
\v 21 ~और वह हर सुबह को अपने-अपने खाने की मिक़्दार के मुताबिक़ जमा' कर लेते थे और धूप तेज़ होते ही वह पिघल जाता था।
\s5
\v 22 और छटे दिन ऐसा हुआ कि जितनी रोटी वह रोज़ जमा' करते थे उससे दूनी जमा' की या'नी हर शख़्स दो ओमर, और जमा'अत के सब सरदारों ने आकर यह मूसा को बताया।
\v 23 ~उसने उनको कहा, कि "ख़ुदावन्द का हुक्म यह है कि कल ख़ास आराम का दिन या'नी ख़ुदावन्द का मुक़द्दस सबत है, जो तुम को पकाना हो पका लो और जो उबालना हो उबाल लो और वह जो बच रहे उसे अपने लिए सुबह तक महफ़ूज़ रख्खो।"
\s5
\v 24 चुनाँचे उन्होंने जैसा मूसा ने कहा था उसे सुबह तक रहने दिया, और वह न तो सड़ा और न उसमें कीड़े पड़े।
\v 25 और मूसा ने कहा कि आज उसी को खाओ क्यूँकि आज ख़ुदावन्द का सबत है, इसलिए वह आज तुम को मैदान में नहीं मिलेगा।
\s5
\v 26 ~छ: दिन तक तुम उसे जमा' करना लेकिन सातवें दिन सबत है, उसमें वह नहीं मिलेगा।"
\v 27 ~और सातवें दिन ऐसा हुआ कि उनमें से कुछ आदमी मन बटोरने गए पर उनको कुछ नहीं मिला।
\s5
\v 28 ~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि "तुम लोग कब तक मेरे हुक्मों और शरी'अत के मानने से इन्कार करते रहोगे?
\v 29 ~देखो, चूँकि ख़ुदावन्द ने तुम को सबत का दिन दिया है, इसीलिए वह तुम को छठे दिन दो दिन का खाना देता है। इसलिए तुम अपनी-अपनी जगह रहो और सातवें दिन कोई अपनी जगह से बाहर न जाए।"
\v 30 ~चुनाँचे लोगों ने सातवें दिन आराम किया।
\s5
\v 31 ~और बनी-इस्राईल ने उसका नाम मन्न रख्खा, और वह धनिये के बीज की तरह सफ़ेद और उसका मज़ा शहद के बने हुए पूए की तरह था।
\v 32 ~और मूसा ने कहा, "ख़ुदावन्द यह हुक्म देता है, कि इसका एक ओमर भर कर अपनी नसल के लिए रख लो, ताकि वह उस रोटी को देखें जो मैंने तुम को वीराने में खिलाई जब मैं तुम को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया।"
\s5
\v 33 ~और मूसा ने हारून से कहा, "एक मर्तबान ले और एक ओमर मन उसमें भर कर उसे ख़ुदावन्द के आगे रख दे, ताकि वह तुम्हारी नसल के लिए रख्खा रहे।"
\v 34 और जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था उसी के मुताबिक़ हारून ने उसे शहादत के सन्दूक के आगे रख दिया ताकि वह रख्खा रहे।
\v 35 ~और बनी-इस्राईल जब तक आबाद मुल्क में न आए या'नी चालीस बरस तक मन्न खाते रहे, अलग़रज़ जब तक वह मुल्क -ए-कना'न की हद तक न आए मन्न खाते रहे।
\v 36 और एक ओमर ऐफ़ा का दसवाँ हिस्सा है।
\s5
\c 17
\p
\v 1 ~फिर बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत सीन के वीराने से चली और ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ सफ़र करती हुई रफ़ीदीम में आकर ख़ेमा लगाया; वहाँ उन लोगों के पीने को पानी न मिला।
\v 2 ~वहाँ वह लोग मूसा से झगड़ा करके कहने लगे, कि "हम को पीने को पानी दे।" मूसा ने उनसे कहा, कि "तुम मुझ से क्यूँ झगड़ते हो और ख़ुदावन्द को क्यूँ आज़माते हो?"
\v 3 ~वहाँ उन लोगों को बड़ी प्यास लगी, तब वह लोग मूसा पर बड़बड़ाने लगे और कहा, कि तू हम को और हमारे बच्चों और चौपायों को प्यासा मारने के लिए हम लोगों को क्यूँ मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया?”
\s5
\v 4 ~मूसा ने ख़ुदावन्द से फ़रियाद करके कहा किमैं इन लोगों से क्या करूँ? वह सब तो अभी मुझे संगसार करने को तैयार हैं।"
\v 5 ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि लोगों के आगे होकर चल और बनी-इस्राईल के बुज़ुर्गों में से कुछ को अपने साथ ले ले और जिस लाठी से तूने दरिया पर मारा था उसे अपने हाथ में लेता जा।
\v 6 ~देख, मैं तेरे आगे जाकर वहाँ होरिब की एक चट्टान पर खड़ा रहूँगा, और तू उस चट्टान पर मारना तो उसमें से पानी निकलेगा कि यह लोग पिएँ।” चुनाँचे मूसा ने बनी-इस्राईल के बुज़ुर्गों के सामने यही किया,
\v 7 ~और उसने उस जगह का नाम मस्सा और मरीबा रख्खा; क्यूँकि बनी-इस्राईल ने वहाँ झगड़ा किया और यह कह कर ख़ुदावन्द का इम्तिहान किया, "ख़ुदावन्द हमारे बीच में है या नहीं?"
\s5
\v 8 ~तब 'अमालीक़ी आकर रफ़ीदीम में बनी-इस्राईल से लड़ने लगे।
\v 9 ~और मूसा ने यशू'अ से कहा, "हमारी तरफ़ के कुछ आदमी चुन कर ले जा और 'अमालीक़ियों से लड़, और मैं कल ख़ुदा की लाठी अपने हाथ में लिए हुए पहाड़ की चोटी पर खड़ा रहूँगा।"
\v 10 ~फिर मूसा के हुक्म के मुताबिक़ यशू'अ 'अमालीक़ियों से लड़ने लगा, और मूसा और हारून और हूर पहाड़ की चोटी पर चढ़ गए।
\s5
\v 11 और जब तक मूसा अपना हाथ उठाए रहता था बनी-इस्राईल ग़ालिब रहते थे, और जब वह हाथ लटका देता था तब 'अमालीक़ी ग़ालिब होते थे।
\v 12 ~और जब मूसा के हाथ भर गए तो उन्होंने एक पत्थर लेकर मूसा के नीचे रख दिया और वह उस पर बैठ गया, और हारून और हूर एक इधर से दूसरा उधर से उसके हाथों को संभाले रहे। तब उसके हाथ आफ़ताब के गु़रूब होने तक मज़बूती से उठे रहे।
\v 13 ~और यशू'अ ने 'अमालीक़ और उसके लोगों की तलवार की धार से शिकस्त दी।
\s5
\v 14 ~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "इस बात की यादगारी के लिए किताब में लिख दे और यशू'अ को सुना दे कि मैं 'अमालीक़ का नाम-ओ-निशान दुनिया से बिल्कुल मिटा दूँगा।"
\v 15 ~और मूसा ने एक क़ुर्बानगाह बनाई और उसका नाम 'यहोवा निस्सी' रख्खा ।
\v 16 और उसने कहा ख़ुदावन्द ने क़सम खाई है; इसलिए ख़ुदावन्द 'अमालीक़ियों से नसल दर नसल जंग करता रहेगा |
\s5
\c 18
\p
\v 1 ~और जो कुछ ख़ुदावन्द ने मूसा और अपनी क़ौम इस्राईल के लिए किया और जिस तरह से ख़ुदावन्द ने इस्राईल को मिस्र से निकाला, सब मूसा के ससुर यित्रो ने जो मिदियान का काहिन था सुना।
\v 2 ~और मूसा के ससुर यित्रो ने मूसा की बीवी सफ़्फू़रा को जो मायके भेज दी गई थी,
\v 3 और उसके दोनों बेटों को साथ लिया। इनमें से एक का नाम मूसा ने यह कह कर जैरसोम रख्खा था कि "मैं परदेस में मुसाफ़िर हूँ।"
\v 4 ~और दूसरे का नाम यह कह कर इली'अज़र रख्खा था कि "मेरे बाप का ख़ुदा मेरा मददगार हुआ, और उसने मुझे फ़िर'औन की तलवार से बचाया।"
\s5
\v 5 ~और मूसा का ससुर यित्रो उसके बेटों और बीवी को लेकर मूसा के पास उस वीराने में आया, जहाँ ख़ुदा के पहाड़ के पास उसका ख़ेमा लगा था,
\v 6 और मूसा से कहा, कि "मैं तेरा ससुर यित्रो तेरी बीवी को और उसके साथ उसके दोनों बेटों को लेकर तेरे पास आया हूँ।"
\s5
\v 7 ~तब मूसा अपने ससुर से मिलने को बाहर निकला और कोर्निश बजा लाकर उसको चूमा, और वह एक दूसरे की ख़ैर-ओ-'आफ़ियत पूछते हुए ख़ेमे में आए।
\v 8 ~और मूसा ने अपने ससुर को बताया कि ख़ुदावन्द ने इस्राईल की ख़ातिर फ़िर'औन के साथ क्या क्या किया, और इन लोगों पर रास्ते में क्या-क्या मुसीबतें पड़ीं और ख़ुदावन्द उनको किस किस तरह बचाता आया।
\s5
\v 9 और यित्रों इन सब एहसानों की वजह से जो ख़ुदावन्द ने इस्राईल पर किए कि उनको मिस्रियों के हाथ से नजात बख़्शी बहुत ख़ुश हुआ।
\v 10 ~और यित्रों ने कहा, "ख़ुदावन्द मुबारक हो, जिसने तुम को मिस्रियों के हाथ और फ़िर'औन के हाथ से नजात बख़्शी, और जिसने इस क़ौम को मिस्रियों के पंजे से छुड़ाया।
\v 11 ~अब मैं जान गया कि ख़ुदावन्द सब मा'बूदों से बड़ा है, क्यूँकि वह उन कामों में जो उन्होंने गु़रूर से किए उन पर ग़ालिब हुआ।"
\s5
\v 12 और मूसा के ससुर यित्रो ने ख़ुदा के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानी और ज़बीहे चढ़ाए, और हारून और इस्राईल के सब बुज़ुर्ग़ मूसा के ससुर के साथ ख़ुदा के सामने खाना खाने आए।
\s5
\v 13 ~और दूसरे दिन मूसा लोगों की 'अदालत करने बैठा और लोग मूसा के आसपास सुबह से शाम तक खड़े रहे।
\v 14 और जब मूसा के ससुर ने सब कुछ जो वह लोगों के लिए करता था देख लिया तो उससे कहा, "यह क्या काम है जो तू लोगों के लिए करता है? तू क्यूँ आप अकेला बैठता है और सब लोग सुबह से शाम तक तेरे आस-पास खड़े रहते हैं?"
\s5
\v 15 ~मूसा ने अपने ससुर से कहा, "इसकी वजह यह है कि लोग मेरे पास ख़ुदा से मा'लूम करने के लिए आते हैं।
\v 16 जब उनमें कुछ झगड़ा होता है तो वह मेरे पास आते हैं, और मैं उनके बीच इन्साफ़ करता और ख़ुदा के अहकाम और शरी'अत उनको बताता हूँ।"
\s5
\v 17 ~तब मूसा के ससुर ने उससे कहा, कि "तू अच्छा काम नहीं करता।
\v 18 ~इससे तू क्या बल्कि यह लोग भी जो तेरे साथ हैं क़त'ई घुल जाएँगे, क्यूँकि यह काम तेरे लिए बहुत भारी है।
\v 19 ~तू अकेला इसे नहीं कर सकता। इसलिए अब तू मेरी बात सुन, मैं तुझे सलाह देता हूँ और ख़ुदा तेरे साथ रहे! तू इन लोगों के लिए ख़ुदा के सामने जाया कर और इनके सब मु'आमिले ख़ुदा के पास पहुँचा दिया कर।
\v 20 ~और तू रिवायतों और शरी'अत की बातें इनको सिखाया कर, और जिस रास्ते इनको चलना और जो काम इनको करना हो वह इनको बताया कर।
\s5
\v 21 ~और तू इन लोगों में से ऐसे लायक़ शख़्सों को चुन ले जो ख़ुदातरस और सच्चे और रिश्वत के दुश्मन हों, और उनको हज़ार- हज़ार और सौ-सौ और पचास-पचास और दस-दस आदमियों पर हाकिम बना दे;
\v 22 ~कि वह हर वक़्त लोगों का इन्साफ़ किया करें और ऐसा हो कि बड़े-बड़े मुक़द्दमें तो वह तेरे पास लाएँ और छोटी-छोटी बातों का फ़ैसला ख़ुद ही कर दिया करें। यूँ तेरा बोझ हल्का हो जाएगा और वह भी उसके उठाने में तेरे शरीक होंगे।
\v 23 ~अगर तू यह काम करे और ख़ुदा भी तुझे ऐसा ही हुक्म दे, तो तू सब कुछ झेल सकेगा और यह लोग भी अपनी जगह इत्मीनान से जाएँगे।
\s5
\v 24 और मूसा ने अपने ससुर की बात मान कर जैसा उसने बताया था वैसा ही किया।
\v 25 ~चुनाँचे मूसा ने सब इस्राईलियों में से लायक़~शख़्सों को~चुना और उन को हज़ार-हज़ार और सौ-सौ और~पचास-पचास आौर दस-दस आदमियों के ऊपर हाकिम मुक़र्रर किया।
\v 26 इसलिए यही हर वक़्त लोगों का इन्साफ़ करने लगे, मुश्किल मुक़द्दमात तो वह मूसा के पास ले आते थे पर छोटी-छोटी बातों का फ़ैसला ख़ुद ही कर देते थे।
\v 27 ~फिर मूसा ने अपने ससुर को रुख़्सत किया और वह अपने वतन को रवाना हो गया।
\s5
\c 19
\p
\v 1 और बनी-इस्राईल को जिस दिन मुल्क-ए-मिस्र से निकले तीन महीने हुए उसी दिन वह सीना के वीराने में आए।
\v 2 ~और जब वह रफ़ीदीम से रवाना होकर सीना के वीरान में आए तो वीरान ही में ख़ेमे लगा लिए, इसलिए वहीं पहाड़ के सामने इस्राईलियों के डेरे लगे।
\s5
\v 3 ~और मूसा उस पर चढ़ कर ख़ुदा के पास गया और ख़ुदावन्द ने उसे पहाड़ पर से पुकार कर कहा, "तू या'क़ूब के ख़ान्दान से यूँ कह और बनी-इस्राईल को यह सुना दे:
\v 4 ~'तुम ने देखा कि मैंने मिस्रियों से क्या-क्या किया, और तुम को जैसे 'उक़ाब के परों पर बैठा कर अपने पास ले आया।
\v 5 ~इसलिए अब अगर तुम मेरी बात मानो और मेरे 'अहद पर चलो तो सब क़ौमों में से तुम ही मेरी ख़ास मिल्कियत ठहरोगे क्यूँकि सारी ज़मीन मेरी है।
\v 6 ~और तुम मेरे लिए काहिनों की एक मम्लुकत और एक मुक़द्दस क़ौम होगे, इन्हीं बातों को तू बनी-इस्राईल को सुना देना।"
\s5
\v 7 ~तब मूसा ने आ कर और उन लोगों के बुज़ुर्गों को बुलाकर उनके आमने-सामने वह सब बातें जो ख़ुदावन्द ने उसे फ़रमाई थीं बयान कीं।
\v 8 और सब लोगों ने मिल कर जवाब दिया, "जो कुछ ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है वह सब हम करेंगे।" और मूसा ने लोगों का जवाब ख़ुदावन्द को जाकर सुनाया।
\v 9 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि "देख, मैं काले बादल में इसलिए तेरे पास आता हूँ कि जब मैं तुझ से बातें करूँ तो यह लोग सुनें और हमेशा तेरा यक़ीन करें।" और मूसा ने लोगों की बातें ख़ुदावन्द से बयान कीं।
\s5
\v 10 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "लोगों के पास जा, और आज और कल उनको पाक कर, और वह अपने कपड़े धो लें,
\v 11 और तीसरे दिन तैयार रहें, क्यूँकि ख़ुदावन्द तीसरे दिन सब लोगों के देखते देखते कोह-ए-सीना पर उतरेगा।
\s5
\v 12 और तू लोगों के लिए चारों तरफ़ हद बाँध कर उनसे कह देना, ख़बरदार तुम न तो इस पहाड़ पर चढ़ना और न इसके दामन को छूना; जो कोई पहाड़ को छुए ज़रूर जान से मार डाला जाए।
\v 13 ~मगर उसे कोई हाथ न लगाए बल्कि वह ला-कलाम संगसार किया जाए, या तीर से छेदा जाए चाहे वह इन्सान हो चाहे हैवान, वह जीता न छोड़ा जाए; और जब नरसिंगा देर तक फूंका जाए तो वह सब पहाड़ के पास आ जाएँ।"
\s5
\v 14 ~तब मूसा पहाड़ पर से उतरकर लोगों के पास गया और उसने लोगों को पाक साफ़ किया, और उन्होंने अपने कपड़े धो लिए।
\v 15 और उसने लोगों से कहा कि "तीसरे दिन तैयार रहना और 'औरत के नज़दीक न जाना।"
\s5
\v 16 ~जब तीसरा दिन आया तो सुबह होते ही बादल गरजने और बिजली चमकने लगी, और पहाड़ पर काली घटा छा गई और करना की आवाज़ बहुत बुलन्द हुई और सब लोग ख़ेमों में काँप गए।
\v 17 ~और मूसा लोगों को ख़ेमा गाह से बाहर लाया कि ख़ुदा से मिलाए, और वह पहाड़ से नीचे आ खड़े हुए।
\v 18 ~और कोह-ए-सीना ऊपर से नीचे तक धुएँ से भर गया क्यूँकि ख़ुदावन्द शोले में होकर उस पर उतरा, और धुआँ तनूर के धुएँ की तरह ऊपर को उठ रहा था और वह सारा पहाड़ ज़ोर से हिल रहा था।
\s5
\v 19 ~और जब करना की आवाज़ निहायत ही बुलन्द होती गई तो मूसा बोलने लगा और ख़ुदा ने आवाज़ के ज़रिए' से उसे जवाब दिया।
\v 20 ~और ख़ुदावन्द कोह-ए-सीना की चोटी पर उतरा, और ख़ुदावन्द ने पहाड़ की चोटी पर मूसा को बुलाया; तब मूसा ऊपर चढ़ गया।
\v 21 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "नीचे उतर कर लोगों को ताकीदन समझा देता ऐसा न हो कि वह देखने के लिए हदों को तोड़ कर ख़ुदावन्द के पास आ जाएँ और उनमें से बहुत से हलाक हो जाएँ।
\v 22 और काहिन भी जो ख़ुदावन्द के नज़दीक आया करते हैं अपने आपको पाक करें, कहीं ऐसा न हो कि ख़ुदावन्द उन पर टूट पड़े।"
\s5
\v 23 ~तब मूसा ने खुदावन्द से कहा, "लोग कोह-ए-सीना पर नहीं चढ़ सकते क्यूँकि तूने तो हम को ताकीदन कहा है, कि पहाड़ के चौगिर्द हद बन्दी करके उसे पाक रख्खो।"
\v 24 ~ख़ुदावन्द ने उसे कहा, "नीचे उतर जा, और हारून को अपने साथ लेकर ऊपर आ; लेकिन काहिन और अवाम हदें तोड़कर ख़ुदावन्द के पास ऊपर न आए, ऐसा न हो कि वह उन पर टूट पड़े |
\v 25 चुनाँचे मूसा नीचे उतर कर लोगों के पास गया और यह बातें उन को बताई |
\s5
\c 20
\p
\v 1 और ख़ुदा ने यह सब बातें फ़रमाई:कि
\v 2 ~"ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा जो तुझे मुल्क-ए-मिस्र से और ग़ुलामी के घर से निकाल लाया मैं हूँ।
\v 3 "मेरे सामने तू गै़र मा'बूदों को न मानना।
\s5
\v 4 ~"तू अपने लिए कोई तराशी हुई मूरत न बनाना, न किसी चीज़ की सूरत बनाना जो ऊपर आसमान में या नीचे ज़मीन पर या ज़मीन के नीचे पानी में है।
\v 5 ~तू उनके आगे सिज्दा न करना और न उनकी 'इबादत करना, क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा ग़य्यूर ख़ुदा हूँ और जो मुझ से 'अदावत रखते हैं उनकी औलाद को तीसरी और चौथी नसल तक बाप दादा की बदकारी की सज़ा देता हूँ।
\v 6 और हज़ारों पर जो मुझ से मुहब्बत रखते और मेरे हुक्मों को मानते हैं। रहम करता हूँ।
\s5
\v 7 ~"तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का नाम बेफ़ाइदा न लेना, क्यूँकि जो उसका नाम बेफ़ायदा लेता है ख़ुदावन्द उसे बेगुनाह न ठहराएगा।
\s5
\v 8 ~"याद कर कि तू सबत का दिन पाक मानना।
\v 9 ~छ: दिन तक तू मेहनत करके अपना सारा काम-काज करना।
\v 10 ~लेकिन सातवाँ दिन ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा का सबत है; उसमें न तू कोई काम करे न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा गु़लाम, न तेरी लोंडी, न तेरा चौपाया, न कोई मुसाफ़िर जो तेरे यहाँ तेरे फाटकों के अन्दर हो
\v 11 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द ने छ: दिन में आसमान और ज़मीन और समन्दर और जो कुछ उनमें है वह सब बनाया, और सातवें दिन आराम किया; इसलिए ख़ुदावन्द ने सबत के दिन को बरकत दी और उसे पाक ठहराया।
\s5
\v 12 ~"तू अपने बाप और अपनी माँ की इज़्ज़त करना ताकि तेरी 'उम्र उस मुल्क में जो ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझे देता है दराज़ हो।
\v 13 ~"तू ख़ून न करना।
\v 14 ~"तू ज़िना न करना।
\s5
\v 15 ~“तू चोरी न करना।
\v 16 ~"तू अपने पड़ोसी के खिलाफ़ झूटी गवाही न देना।
\v 17 ~"तू अपने पड़ोसी के घर का लालच न करना; तू अपने पड़ोसी की बीवी का लालच न करना, और न उसके ग़ुलाम और उसकी लौंडी और उसके बैल और उसके गधे का, और न अपने पड़ोसी की किसी और चीज़ का लालच करना।"
\s5
\v 18 ~और सब लोगों ने बादल गरजते और बिजली चमकते और करना की आवाज़ होते और पहाड़ से धुआँ उठते देखा, और जब लोगों ने यह देखा तो काँप उठे और दूर खड़े हो गए;
\v 19 ~और मूसा से कहने लगे, "तू ही हम से बातें किया कर और हम सुन लिया करेंगे; लेकिन ख़ुदा हम से बातें न करे, ऐसा न हो कि हम मर जाएँ।"
\v 20 ~मूसा ने लोगों से कहा, "तुम डरो मत, क्यूँकि ख़ुदा इसलिए आया है कि तुम्हारा इम्तिहान करे और तुम को उसका ख़ौफ़ हो ~ताकि तुम गुनाह न करो।"
\v 21 ~और वह लोग दूर ही खड़े रहे और मूसा उस गहरी तारीकी के नज़दीक गया जहाँ ख़ुदा था।
\s5
\v 22 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "तू बनी-इस्राईल से यह कहना कि 'तुम ने ख़ुद देखा कि मैंने आसमान पर से तुम्हारे साथ बातें कीं।
\v 23 ~तुम मेरे साथ किसी को शरीक न करना, या'नी चाँदी या सोने के देवता अपने लिए न गढ़ लेना।
\s5
\v 24 ~और तू मिट्टी की एक क़ुर्बानगाह मेरे लिए बनाया करना, और उस पर अपनी भेंड़ बकरियों और गाय-बैल की सोख़्तनी कु़र्बानियाँ और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश करना और जहाँ-जहाँ मैं अपने नाम की यादगारी कराऊँगा वहाँ मैं तेरे पास आकर तुझे बरकत दूँगा।
\v 25 ~और अगर तू मेरे लिए पत्थर की क़ुर्बानगाह बनाए तो तराशे हुए पत्थर से न बनाना, क्यूँकि अगर तू उस पर अपने औज़ार लगाए तो तू उसे नापाक कर देगा।
\v 26 और तू मेरी क़ुर्बानगाह पर सीढ़ियों से हरगिज़ न चढ़ना ऐसा न हो कि तेरा नंगापन उस पर ज़ाहिर हो।'
\s5
\c 21
\p
\v 1 ~“वह अहकाम जो तुझे उनको बताने हैं यह हैं:
\s5
\v 2 अगर तू कोई 'इब्रानी ग़ुलाम ख़रीदे तो वह छ: बरस ख़िदमत करे और सातवें बरस मुफ़्त आज़ाद होकर चला जाए।
\v 3 ~अगर वह अकेला आया हो तो अकेला ही चला जाए और अगर वह शादी शुदा हो तो उसकी बीवी भी उसके साथ जाए।
\v 4 अगर उसके आक़ा ने उसकी शादी कराया हो और उस 'औरत के उससे बेटे और बेटियाँ हुई हों तो वह 'औरत और उसके बच्चे उस आक़ा के होकर रहें और वह अकेला चला जाए।
\s5
\v 5 ~पर अगर वह ग़ुलाम साफ़ कह दे कि मैं अपने आक़ा से और अपनी बीवी और बच्चों से मुहब्बत रखता हूँ, मैं आज़ाद होकर नहीं जाऊँगा।
\v 6 ~तो उसका आक़ा उसे ख़ुदा के पास ले जाए, और उसे दरवाज़े पर या दरवाज़े की चौखट पर लाकर सुतारी से उसका कान छेदे; तब वह हमेशा उसकी खि़दमत करता रहे।
\s5
\v 7 'और अगर कोई शख़्स अपनी बेटी को लौंडी होने के लिए बेच डाले तो वह गु़लामों की तरह चली न जाए।
\v 8 अगर उसका आक़ा जिसने उससे निस्बत की है उससे ख़ुश न हो, तो वह उसका फ़िदिया मंजूर करे पर उसे यह इख़्तियार न होगा कि उसको किसी अजनबी क़ौम के हाथ बेचे, क्यूँकि उसने उससे दग़ाबाज़ी की।
\s5
\v 9 और अगर वह उसकी निस्बत अपने बेटे से कर दे तो वह उससे बेटियों का सा सुलूक करे।
\v 10 अगर वह दूसरी 'औरत कर ले तो भी वह उसके खाने, कपड़े और शादी के फ़र्ज़ में क़ासिर न हो।
\v 11 ~और अगर वह उससे यह तीनों बातें न करे तो वह मुफ़्त बे-रुपये दिए चली जाए।
\s5
\v 12 ~'अगर कोई किसी आदमी को ऐसा मारे कि वह मर जाए तो वह क़तई' जान से मारा जाए।
\v 13 ~लेकिन अगर वह शख़्स घात लगाकर न बैठा हो बल्कि ख़ुदा ही ने उसे उसके हवाले कर दिया हो, तो मैं ऐसे हाल में एक जगह बता दूँगा जहाँ वह भाग जाए।
\v 14 ~और अगर कोई दीदा-ओ-दानिस्ता अपने पड़ोसी पर चढ़ आए ताकि उसे धोखे से मार डाले, तो तू उसे मेरी क़ुर्बानगाह से जुदा कर देना ताकि वह मारा जाए।
\s5
\v 15 "और जो कोई अपने बाप या अपनी माँ को मारे वह क़तई' जान से मारा जाए।
\v 16 ~"और जो कोई किसी आदमी को चुराए चाहे वह उसे बेच डाले चाहे वह उसके यहाँ मिले, वह क़तई' मार डाला जाए।
\v 17 ~'और जो अपने बाप या अपनी माँ पर ला'नत करे वह क़तई' मार डाला जाए।
\s5
\v 18 ~"और अगर दो शख़्स झगड़ें और एक दूसरे को पत्थर या मुक्का मारे और वह मरे तो नहीं पर बिस्तर पर पड़ा रहे,
\v 19 ~तो जब वह उठ कर अपनी लाठी के सहारे बाहर चलने-फिरने लगे, तब वह जिसने मारा था बरी हो जाए और सिर्फ़ उसका हरजाना भर दे और उसका पूरा 'इलाज करा दे।
\s5
\v 20 "और अगर कोई अपने ग़ुलाम या लौंडी को लाठी से ऐसा मारे कि वह उसके हाथ से मर जाए तो उसे ज़रूर सज़ा दी जाए।
\v 21 ~लेकिन अगर वह एक-दो दिन जीता रहे तो आक़ा को सज़ा न दी जाए, इसलिए कि वह ग़ुलाम उसका माल है।
\s5
\v 22 ~"अगर लोग आपस में मार पीट करें और किसी हामिला को ऐसी चोट पहुँचाएँ कि उसे इस्क़ात हो जाए, लेकिन और कोई नुक़्सान न हो तो उससे जितना जुर्माना उसका शौहर तजवीज़ करे लिया जाए, और वह जिस तरह क़ाज़ी फ़ैसला करें जुर्माना भर दे।
\v 23 लेकिन अगर नुक़्सान हो जाए तो तू जान के बदले जान ले,
\v 24 ~और आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत, और हाथ के बदले हाथ, पाँव के बदले पाँव,
\v 25 जलाने के बदले जलाना, ज़ख़्म के बदले ज़ख़्म और चोट के बदले चोट।
\s5
\v 26 ~"और अगर कोई अपने ग़ुलाम या अपनी लौंडी की आँख पर ऐसा मारे कि वह फूट जाए, तो वह उसकी आँख के बदले उसे आज़ाद कर दे।
\v 27 ~अगर कोई अपने ग़ुलाम या अपनी लौंडी का दाँत मार कर तोड़ दे, तो वह उसके दाँत के बदले उसे आज़ाद कर दे।
\s5
\v 28 ~'अगर बैल किसी मर्द या 'औरत को ऐसा सींग मारे कि वह मर जाए, तो वह बैल ज़रूर संगसार किया जाय और उसका गोश्त खाया न जाए, लेकिन बैल का मालिक बेगुनाह ठहरे।
\v 29 ~लेकिन अगर उस बैल की पहले से सींग मारने की 'आदत थी और उसके मालिक को बता भी दिया गया था तोभी उसने उसे बाँध कर नहीं रख्खा, और उसने किसी मर्द या'औरत को मार दिया हो तो बैल संगसार किया जाए और उसका मालिक भी मारा जाए।
\v 30 ~और अगर उससे ख़ूनबहा माँगा जाए, तो उसे अपनी जान के फ़िदिया में जितना उसके लिए ठहराया जाए उतना ही देना पड़ेगा।
\s5
\v 31 ~चाहे उसने किसी के बेटे को मारा हो या बेटी को, इसी हुक्म के मुवाफ़िक़ उसके साथ 'अमल किया जाए।
\v 32 ~अगर बैल किसी के ग़ुलाम या लौंडी को सींग से मारे तो मालिक उस ग़ुलाम या लौंडी के मालिक को तीस मिस्काल रुपये दे और बैल संगसार किया जाए।
\s5
\v 33 ~'और अगर कोई आदमी गढ़ा खोले या खोदे और उसका मुँह न ढाँपे, और कोई बैल या गधा उसमें गिर जाए;
\v 34 ~तो गढ़े का मालिक इसका नुक़्सान भर दे और उनके मालिक को क़ीमत दे और मरे हुए जानवर को ख़ुद ले ले।
\s5
\v 35 "और अगर किसी का बैल दूसरे के बैल को ऐसी चोट पहुँचाए के वह मर जाए, तो वह जीते बैल को बेचें और उसका दाम आधा आधा आपस में बाँट लें और इस मरे हुए बैल को भी ऐसे ही बाँट लें।
\v 36 ~और अगर मा'लूम हो जाए कि उस बैल की पहले से सींग मारने की 'आदत थी और उसके मालिक ने उसे बाँध कर नहीं रख्खा, तो उसे क़तई' बैल के बदले बैल देना होगा और वह मरा हुआ जानवर उसका होगा।
\s5
\c 22
\p
\v 1 "अगर कोई आदमी बैल या भेड़ चुरा ले और उसे ज़बह कर दे या बेच डाले, तो वह एक बैल के बदले पाँच बैल और एक भेड़ के बदले चार भेड़े भरे।
\v 2 अगर चोर सेंध मारते हुए पकड़ा जाए और उस पर ऐसी मार पड़े कि वह मर जाए तो उसके ख़ून का कोई जुर्म नहीं।
\v 3 ~अगर सूरज निकल चुके तो उसका ख़ून जुर्म होगा; बल्कि उसे नुक़्सान भरना पड़ेगा और अगर उसके पास कुछ न हो तो वह चोरी के लिए बेचा जाए।
\v 4 ~अगर चोरी का माल उसके पास जीता मिले चाहे वह बैल हो या गधा या भेड़ तो वह उसका दूना भर दे।
\s5
\v 5 ~'अगर कोई आदमी किसी खेत या ताकिस्तान को खिलवा दे और अपने जानवर को छोड़ दे कि वह दूसरे के खेत को चर लें, तो अपने खेत या ताकिस्तान की अच्छी से अच्छी पैदावार में से उसका मु'आवज़ा दे।
\s5
\v 6 ~'अगर आग भड़के और काँटों में लग जाए और अनाज के ढेर या खड़ी फ़सल या खेत को जला कर भस्म कर दे, तो जिस ने आग जलाई हो वह ज़रूर मु'आवज़ा दे।
\s5
\v 7 ~"अगर कोई अपने पड़ोसी की नक़द या जिन्स रखने को दे और वह उस शख़्स के घर से चोरी हो जाए, तो अगर चोर पकड़ा जाए तो दूना उसको भरना पड़ेगा।
\v 8 ~लेकिन अगर चोर पकड़ा न जाए तो उस घर का मालिक ख़ुदा के आगे लाया जाए, ताकि मालूम हो जाए कि उसने अपने पड़ोसी के माल को हाथ नहीं लगाया।
\v 9 ~हर क़िस्म की ख़ियानत के मु'आमिले में चाहे बैल का चाहे गधे या भेड़ या कपड़े या किसी और खोई हुई चीज़ का हो, जिसकी निस्बत कोई बोल उठे कि वह चीज़ यह है तो फ़रीक़ीन का मुक़द्दमा ख़ुदा के सामने लाया जाए और जिसे ख़ुदा मुजरिम ठहराए वह अपने पड़ोसी को दूना भर दे।
\s5
\v 10 ~'अगर कोई अपने पड़ोसी के पास गधा या बैल या भेड़ या कोई और जानवर अमानत रख्खे और वह बगै़र किसी के देखे मर जाए या चोट खाए या हंका दिया जाए,
\v 11 ~तो उन दोनों के बीच ख़ुदावन्द की क़सम हो कि उसने अपने हमसाये के माल को हाथ नहीं लगाया, और मालिक इसे सच माने और दूसरा उसका मु'आवज़ा न दे।
\v 12 ~लेकिन अगर वह उसके पास से चोरी हो जाए तो वह उसके मालिक को मु'आवज़ा दे।
\v 13 ~और अगर उसको किसी दरिन्दे ने फाड़ डाला हो तो वह उसको गवाही के तौर पर पेश कर दे और फाड़े हुए का नुक़्सान न भरे।
\s5
\v 14 ~'अगर कोई शख़्स अपने पड़ोसी से कोई जानवर 'आरियत ले और वह ज़ख़्मी हो जाए या मर जाए, और मालिक वहाँ मौजूद न हो तो वह ज़रूर उसका मु'आवज़ा दे।
\v 15 ~लेकिन अगर मालिक साथ हो तो उसका नुक़्सान न भरे और अगर किराया की हुई चीज़ हो तो उसका नुक़्सान उसके किराये में आ गया
\s5
\v 16 ~"अगर कोई आदमी किसी कुँवारी को जिसकी निस्बत न हुई हो, फुसला कर उससे मुबाश्रत करे तो वह ज़रूर ही उसे महर देकर उससे शादी करे।
\v 17 लेकिन अगर उसका बाप हरगिज़ राज़ी न हो कि उस लड़की को उसे दे, तो वह कुँवारियों के महर के मुवाफ़िक़ उसे नक़दी दे।
\s5
\v 18 ~"तू जादूगरनी को जीने न देना।
\v 19 ~"जो कोई किसी जानवर से मुबाश्रत करे वह क़तई' जान से मारा जाए।
\s5
\v 20 ~"जो कोई एक ख़ुदावन्द को छोड़ कर किसी और मा'बूद के आगे क़ुर्बानी चढ़ाए वह बिल्कुल नाबूद कर दिया जाए।
\v 21 ~"और तू मुसाफ़िर को न तो सताना न उस पर सितम करना, इस लिए के तुम भी मुल्क-ए-मिस्र में मुसाफ़िर थे।
\s5
\v 22 तुम किसी बेवा या यतीम लड़के को दुख न देना।
\v 23 ~अगर तू उनको किसी तरह से दुख दे और वह मुझ से फ़रियाद करें तो मैं ज़रूर उनकी फ़रियाद सुनूँगा।
\v 24 ~और मेरा क़हर भड़केगा और मैं तुम को तलवार से मार डालूँगा और तुम्हारी बीवियाँ बेवा और तुम्हारे बच्चे यतीम हो जाएँगे।
\s5
\v 25 ~"अगर तू मेरे लोगों में से किसी मोहताज को जो तेरे पास रहता हो कुछ क़र्ज़ दे तो उससे क़र्ज़दार की तरह सुलूक न करना और न उससे सूद लेना।
\v 26 अगर तू किसी वक़्त अपने पड़ोसी के कपड़े गिरवी रख भी ले तो सूरज के डूबने तक उसको वापस कर देना।
\v 27 क्यूँकि सिर्फ़ वही उसका एक ओढ़ना है, उसके जिस्म का वही लिबास है फिर वह क्या ओढ़ कर सोएगा? फिर जब वह फ़रियाद करेगा तो मैं उसकी सुनूँगा क्यूँकि मैं मेहरबान हूँ।
\s5
\v 28 ~"तू ख़ुदा को न कोसना और न अपनी क़ौम के सरदार पर ला'नत भेजना।
\s5
\v 29 "तू अपनी ज़्यादा पैदावार और अपने कोल्हू के रस में से मुझे नज़्र-ओ-नियाज़ देने में देर न करना और अपने बेटों में से पहलौठे को मुझे देना।
\v 30 ~अपनी गायों और भेड़ों से भी ऐसा ही करना; सात दिन तक तो बच्चा अपनी माँ के साथ रहे, आठवें दिन तू उसे मुझ को देना।
\v 31 ~"और तू मेरे लिए पाक आदमी होना, इसी वजह से दरिन्दों के फाड़े हुए जानवर का गोश्त जो मैदान में पड़ा हुआ मिले मत खाना; तुम उसे कुत्तों के आगे फेंक देना।
\s5
\c 23
\p
\v 1 तू झूठी बात ना फैलाना और नारास्त गवाह होने के लिए शरीरों का साथ न देना।
\v 2 ~बुराई करने के लिए किसी भीड़ की पैरवी न करना, और न किसी मुक़दमें में इन्साफ़ का ख़ून कराने के लिए भीड़ का मुँह देखकर कुछ कहना।
\v 3 ~और न मुक़दमों में कंगाल की तरफ़दारी करना।
\s5
\v 4 'अगर तेरे दुश्मन का बैल या गधा तुझे भटकता हुआ मिले, तो तू ज़रूर उसे उसके पास फेर कर ले आना।
\v 5 ~अगर तू अपने दुश्मन के गधे को बोझ के नीचे दबा हुआ देखे और उसकी मदद करने को जी भी न चाहता हो तो भी ज़रूर उसे मदद देना।
\s5
\v 6 ~"तू अपने कंगाल लोगों के मुक़दमों में इन्साफ़ का ख़ून न करना।
\v 7 झूटे मु'आमिले से दूर रहना और बेगुनाहों और सादिकों को क़त्ल न करना क्यूँकि मैं शरीर को रास्त नहीं ठहराऊँगा।
\v 8 ~तू रिश्वत न लेना क्यूँकि रिश्वत बीनाओं को अन्धा कर देती है और सादिकों की बातों को पलट देती है।
\v 9 ~"परदेसी पर ज़ुल्म न करना क्यूँकि तुम परदेसी के दिल को जानते हो, इसलिए कि तुम ख़ुद भी मुल्क-ए-मिस्र में परदेसी थे।
\s5
\v 10 ~"छ: बरस तक तू अपनी ज़मीन में बोना और उसका ग़ल्ला जमा' करना,
\v 11 ~पर सातवें बरस उसे यूँ ही छोड़ देना कि पड़ती रहे, ताकि तेरी क़ौम के ग़रीब उसे खाएँ और जो उनसे बचे उसे जंगल के जानवर चर लें। अपने अंगूर और जैतून के बाग़ से भी ऐसा ही करना।
\s5
\v 12 ~छ: दिन तक अपना काम काज करना और सातवें दिन आराम करना, ताकि तेरे बैल और गधे को आराम मिले और तेरी लौंडी का बेटा और परदेसी ताज़ा दम हो जाएँ।
\v 13 और तुम सब बातों में जो मैंने तुम से कहीं हैं होशियार रहना और दूसरे मा'बूदों का नाम तक न लेना बल्कि वह तेरे मुँह से सुनाई भी न दे।
\s5
\v 14 ~'तू साल भर में तीन बार मेरे लिए 'ईद मनाना।
\v 15 ~ईद-ए-फ़तीर को मानना, उसमें मेरे हुक्म के मुताबिक़ अबीब महीने के मुक़र्ररा वक़्त पर सात दिन तक बेख़मीरी रोटियाँ खाना (क्यूँकि उसी महीने में तू मिस्र से निकला था) और कोई मेरे आगे ख़ाली हाथ न आए।
\s5
\v 16 और जब तेरे खेत में जिसे तूने मेहनत से बोया पहला फल आए तो फ़स्ल काटने की 'ईद मानना, और साल के आखिर में जब तू अपनी मेहनत का फल खेत से जमा' करे तो जमा' करने की 'ईद मनाना।
\v 17 और साल में तीनों मर्तबा तुम्हारे यहाँ के सब मर्द ख़ुदावन्द ख़ुदा के आगे हाज़िर हुआ करें।
\s5
\v 18 ~"तू ख़़मीरी रोटी के साथ मेरे ज़बीहे का ख़ून न चढ़ाना और मेरी 'ईद की चर्बी सुबह तक बाक़ी न रहने देना।
\v 19 ~तू अपनी ज़मीन के पहले फलों का पहला हिस्सा ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के घर में लाना। तू हलवान को उसकी माँ के दूध में न पकाना।
\s5
\v 20 ~"देख, मैं एक फ़रिश्ता तेरे आगेआगे भेजता हूँ कि रास्ते में तेरा निगहबान हो और तुझे उस जगह पहुँचा दे जिसे मैंने तैयार किया है।
\v 21 ~तुम उसके आगे होशियार रहना और उसकी बात मानना, उसे नाराज़ न करना क्यूँकि वह तुम्हारी ख़ता नहीं बख़्शेगा इसलिए कि मेरा नाम उसमें रहता है।
\v 22 ~लेकिन अगर तू सचमुच उसकी बात माने और जो मैं कहता हूँ वह सब करे, तो मैं तेरे दुश्मनों का दुश्मन और तेरे मुख़ालिफ़ों का मुख़ालिफ़ हूँगा।
\s5
\v 23 इसलिए कि मेरा फ़रिश्ता तेरे आगे-आगे चलेगा और तुझे अमोरियों और हित्तियों और फ़रिज़्ज़ियों और कना'नियों और हव्वियों यबूसियों में पहुँचा देगा और मैं उनको हलाक कर डालूँगा।
\v 24 ~तू उनके मा'बूदो को सिज्दा न करना, न उनकी 'इबादत करना, न उनके से काम करना बल्कि तू उनको बिल्कुल उलट देना और उनके सुतूनो को टुकड़े टुकड़े कर डालना।
\v 25 ~और तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की 'इबादत करना, तब वह तेरी रोटी और पानी पर बरकत देगा और मैं तेरे बीच से बीमारी को दूर कर दूँगा।
\s5
\v 26 ~और तेरे मुल्क में न तो किसी के इस्कात होगा और न कोई बाँझ रहेगी और मैं तेरी उम्र पूरी करूँगा ।
\v 27 ~मैं अपने ख़ौफ़ को तेरे आगे-आगे भेजूँगा और मैं उन सब लोगों को जिनके पास तू जाएगा शिकस्त दूँगा, और मैं ऐसा करूँगा कि तेरे सब दुश्मन तेरे आगे अपनी पुश्त फेर देंगे।
\v 28 ~मैं तेरे आगे ज़म्बूरों को भेजूँगा, जो हव्वी और कना'नी और हित्ती को तेरे सामने से भगा देंगे।
\v 29 ~मैं उनको एक ही साल में तेरे आगे से दूर नहीं करूँगा ऐसा न हो के ज़मीन वीरान हो जाए और जंगली दरिन्दे ज़्यादा होकर तुझे सताने लगें।
\s5
\v 30 ~बल्कि मैं थोड़ा थोड़ा करके उनको तेरे सामने से दूर करता रहूँगा, जब तक तू शुमार में बढ़ कर मुल्क का वारिस न हो जाए।
\v 31 ~मैं बहर-ए-कु़लजु़म से लेकर फ़िलिस्तियों के समन्दर तक और वीरान से लेकर नहर-ए-फु़रात तक तेरी हदें बाधूँगा। क्यूँकि मैं उस मुल्क के बाशिन्दों को तुम्हारे हाथ में कर दूँगा और तू उनको अपने आगे से निकाल देगा।
\v 32 ~तू उनसे या उनके मा'बूदों से कोई 'अहद न बाँधना।
\v 33 वह तेरे मुल्क में रहने न पाएँ ऐसा न हो कि वह तुझ से मेरे ख़िलाफ़ गुनाह कराएँ, क्यूँकि अगर तू उनके मा'बूदों की 'इबादत करे तो यह तेरे लिए ज़रूर फंदा हो जाएगा।"
\s5
\c 24
\p
\v 1 ~और उसने मूसा से कहा, कि "तू हारून और नदब और अबीहू और बनी इस्राईल के सत्तर बुज़ुर्गों को लेकर ख़ुदावन्द के पास ऊपर आ, और तुम दूर ही से सिज्दा करना।
\v 2 ~और मूसा अकेला ख़ुदावन्द के नज़दीक आए पर वह नज़दीक न आएँ और लोग उसके साथ ऊपर न चढ़ें।"
\s5
\v 3 ~और मूसा ने लोगों के पास जाकर ख़ुदावन्द की सब बातें और अहकाम उनको बता दिए और सब लोगों ने हम आवाज़ होकर जवाब दिया, "जितनी बातें ख़ुदावन्द ने फ़रमाई हैं, हम उन सब को मानेंगे।”
\v 4 और मूसा ने ख़ुदावन्द की सब बातें लिख लीं और सुब्ह को सवेरे उठ कर पहाड़ के नीचे एक क़ुर्बानगाह और बनी-इस्राईल के बारह क़बीलों के हिसाब से बारह सुतून बनाए।
\s5
\v 5 और उसने बनीइस्राईल के जवानों को भेजा, जिन्होंने सोख़्तनी कु़र्बानियाँ चढ़ाई और बैलों को ज़बह करके सलामती के ज़बीहे ख़ुदावन्द के लिए पेश किया।
\v 6 ~और मूसा ने आधा ख़ून लेकर तसलों में रख्खा और आधा क़ुर्बानगाह पर छिड़क दिया।
\s5
\v 7 फिर उसने 'अहदनामा लिया और लोगों को पढ़ कर सुनाया। उन्होंने कहा, कि "जो कुछ ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है उस सब को हम करेंगे और ताबे' रहेंगे।"
\v 8 ~तब मूसा ने उस ख़ून को लेकर लोगों पर छिड़का और कहा, "देखो, यह उस 'अहद का ख़ून है जो ख़ुदावन्द ने इन सब बातों के बारे में तुम्हारे साथ बाँधा है।"
\s5
\v 9 ~तब मूसा और हारून और नदब और अबीहू और बनी-इस्राईल के सत्तर बुज़ुर्ग़ ऊपर गए।
\v 10 और उन्होंने इस्राईल के ख़ुदा को देखा, और उसके पाँव के नीचे नीलम के पत्थर का चबूतरा सा था जो आसमान की तरह शफ़्फ़ाफ़ था।
\v 11 ~और उसने बनीइस्राईल के शरीफ़ों पर अपना हाथ न बढ़ाया।फिर उन्होंने ख़ुदा को देखा और खाया और पिया।
\s5
\v 12 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि~"पहाड़ पर मेरे पास आ और वहीं ठहरा रह; और मैं तुझे पत्थर की लोहें और शरी'अत और अहकाम जो मैंने लिखे हैं दूँगा ताकि तू उनको सिखाए।"
\v 13 ~और मूसा और उसका ख़ादिम यशू'अ उठे और मूसा ख़ुदा के पहाड़ के ऊपर गया।
\s5
\v 14 ~और बुज़ुर्गों से कह गया कि "जब तक हम लौट कर तुम्हारे पास न आ जाएँ तुम हमारे लिए यहीं ठहरे रहो, और देखो हारून और हूर तुम्हारे साथ हैं, जिस किसी का कोई मुक़दमा हो वह उनके पास जाए।
\v 15 ~तब मूसा पहाड़ के ऊपर गया और पहाड़ पर घटा छा गई।
\s5
\v 16 ~और ख़ुदावन्द का जलाल कोह-ए-सीना पर आकर ठहरा और छ: दिन तक घटा उस पर छाई रही और सातवें दिन उसने घटा में से मूसा को बुलाया।
\v 17 ~और बनी-इस्राईल की निगाह में पहाड़ की चोटी पर ख़ुदावन्द के जलाल का मन्ज़र भसम करने वाली आग की तरह था।
\v 18 ~और मूसा घटा के बीच में होकर पहाड़ पर चढ़ गया और वह पहाड़ पर चालीस दिन और चालीस रात रहा।
\s5
\c 25
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा को फ़रमाया,
\v 2 'बनी-इस्राईल से यह कहना कि मेरे लिए नज़्र लाएँ, और तुम उन्हीं से मेरी नज़्र लेना जो अपने दिल की ख़ुशी से दें।
\s5
\v 3 और जिन चीज़ों की नज़्र तुम को उनसे लेनी हैं वह यह हैं: सोना और चाँदी और पीतल,
\v 4 और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग का कपड़ा और बारीक कतान और बकरी की पश्म,
\v 5 और मेंढों की सुर्ख़ रंगी हुई खालें और तुख़स की खालें और कीकर की लकड़ी,
\v 6 ~और चराग़ के लिए तेल और मसह करने के तेल के लिए और ख़ुशबूदार ख़ुशबू के लिए मसाल्हे,
\v 7 और संग-ए-सुलेमानी और अफ़ोद और सीनाबन्द में जड़ने के नगीने।
\s5
\v 8 ~और वह मेरे लिए एक मक़दिस बनाएँ ताकि मैं उनके बीच सुकूनत करूँ।
\v 9 ~और घर और उसके सारे सामान का जो नमूना मैं तुझे दिखाऊँ ठीक उसी के मुताबिक़ तुम उसे बनाना।
\s5
\v 10 ~'और वह कीकर की लकड़ी का एक सन्दूक़ बनाये जिस की लम्बाई ढाई हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ और ऊँचाई डेढ़ हाथ हो।
\v 11 ~और तू उसके अन्दर और बाहर ख़ालिस सोना मंढ़ना और उसके ऊपर चारों तरफ़ एक ज़रीन ताज बनाना।
\s5
\v 12 और उसके लिए सोने के चार कड़े ढालकर उसके चारों पायों में लगाना, दो कड़े एक तरफ़ हों और दो ही दूसरी तरफ़।
\v 13 ~और कीकर की लकड़ी की चोबें बना कर उन पर सोना मंढ़ना।
\v 14 और इन चोबों को सन्दूक़ के पास के कड़ों में डालना कि उनके सहारे सन्दूक उठ जाए।
\s5
\v 15 ~चोबें सन्दूक के कड़ों के अन्दर लगी रहें और उससे अलग न की जाएँ।
\v 16 और तू उस शहादत नामे को जो मैं तुझे दूँगा उसी सन्दूक में रखना।
\v 17 "और तू कफ़्फ़ारे का सरपोश ख़ालिस सोने का बनाना जिसकी लम्बाई ढाई हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ हो।
\v 18 और सोने के दो करूबी सरपोश के दोनों सिरों पर गढ़ कर बनाना।
\s5
\v 19 ~एक करूबी को एक सिरे पर और दूसरे करूबी को दूसरे सिरे पर लगाना, और तुम सरपोश को और दोनों सिरों के करूबियों को एक ही टुकड़े से बनाना।
\v 20 ~और वह करूबी इस तरह ऊपर को अपने पर फैलाए हुए हों कि सरपोश को अपने परों से ढाँक लें और उनके मुँह आमने-सामने सरपोश की तरफ़ हों।
\v 21 ~और तू उस सरपोश को उस सन्दूक के ऊपर लगाना और वह 'अहदनामा जो मैं तुझे दूँगा उसे उस सन्दूक के अन्दर रखना।
\s5
\v 22 वहाँ मैं तुझ से मिला करूँगा और उस सरपोश के ऊपर से और करूबियों के बीच में से जो 'अहदनामे के सन्दूक़ के ऊपर होंगे, उन सब अहकाम के बारे में जो मैं बनी-इस्राईल के लिए तुझे दूँगा तुझ से बातचीत किया करूँगा ।
\s5
\v 23 ~"और तू दो हाथ लम्बी और एक हाथ चौड़ी और डेढ़ हाथ ऊँची कीकर की लकड़ी की एक मेज़ भी बनाना।
\v 24 ~और उसको ख़ालिस सोने से मंढ़ना और उसके चारों तरफ़ एक ज़रीन ताज बनाना।
\s5
\v 25 ~और उसके चौगिर्द चार उंगल चौड़ी एक कंगनी लगाना और उस कंगनी के चारों तरफ़ एक ज़रीन ताज बनाना।
\v 26 ~और सोने के चार कड़े उसके लिए बना कर उन कड़ों को उन चारों कोनों में लगाना जो चारों पायों के सामने होंगे।
\v 27 ~वह कड़े कंगनी के पास ही हों, ताकि चोबों के लिए जिनके सहारे मेज़ उठाई जाए घरों का काम दें।
\s5
\v 28 ~और कीकर की लकड़ी की चोबें बना कर उनको सोने से मंढ़ना ताकि मेज़ उन्हीं से उठाई जाए।
\v 29 ~और तू उसके तबाक़ और चमचे और आफ़ताबे और उंडेलने के बड़े-बड़े कटोरे सब ख़ालिस सोने के बनाना।
\v 30 और तू उस मेज़ पर नज़्र की रोटियाँ हमेशा मेरे सामने रखना।
\s5
\v 31 ~"और तू ख़ालिस सोने का एक शमा'दान बनाना। वह शमा'दान और उसका पाया और डन्डी सब घड़ कर बनाए जाएँ और उसकी प्यालियाँ और लट्टू और उसके फूल सब एक ही टुकड़े के बने हों।
\v 32 और उसके दोनों पहलुओं से छ: शाँख़े बाहर को निकलती हों, तीन शाखें शमा'दान के एक पहलू से निकलें और तीन दूसरे पहलू से।
\s5
\v 33 ~एक शाख़ में बादाम के फूल की सूरत की तीन प्यालियाँ, एक लट्टू और एक फूल हो; और दूसरी शाख़ में भी बादाम के फूल की सूरत की तीन प्यालियाँ, एक लट्टू और एक फूल हो; इसी तरह शमा'दान की छहों शाख़ों में यह सब लगा हुआ हो।
\v 34 ~और खु़द शमादान में बादाम के फूल की सूरत की चार प्यालियाँ अपने-अपने लट्टू और फूल समेत हों।
\s5
\v 35 ~और दो शाख़ों के नीचे एक लट्टू, सब एक ही टुकड़े के हों और फिर दो शाख़ों के नीचे एक लट्टू, सब एक ही टुकड़े के हों और फिर दो शाखों के नीचे एक लट्टू, सब एक ही टुकड़े के हों शमा'दान की छहों बाहर को निकली हुई शाखें ऐसी ही हों।
\v 36 ~या'नी लट्टू और शाख़ें और शमा 'दान सब एक ही टुकड़े के बने हों, यह सबका सब ख़ालिस सोने के एक ही टुकड़े से गढ़ कर बनाया जाए।
\s5
\v 37 ~और तू उसके लिए सात चराग़ बनाना, यही चराग़ जलाए जाएँ ताकि शमा'दान के सामने रौशनी हो।
\v 38 ~और उसके गुलगीर और गुलदान ख़ालिस सोने के हों।
\v 39 ~शमा'दान और यह सब बर्तन एक किन्तार ख़ालिस सोने के बने हुए हों।
\v 40 ~और देख, तू इनको ठीक इनके नमूने के मुताबिक़ जो तुझे पहाड़ पर दिखाया गया है बनाना।
\s5
\c 26
\p
\v 1 ~"और तू घर के लिए दस पर्दे बनाना; यह बटे हुए बारीक कतान और आसमानी क़िरमिज़ी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों के हों और इनमें किसी माहिर उस्ताद से करूबियों की सूरत कढ़वाना।
\v 2 ~हर पर्दे की लम्बाई अट्ठाईस हाथ और चौड़ाई चार हाथ हो और सब पर्दे एक ही नाप के हों।
\v 3 ~और पाँच पर्दे एक दूसरे से जोड़े जाएँ और बाक़ी पाँच पर्दे भी एक दूसरे से जोड़े जाएँ।
\s5
\v 4 ~और तू एक बड़े पर्दे के हाशिये में बटे हुए किनारे की तरफ़ जो जोड़ा जाएगा आसमानी रंग के तुकमे बनाना और ऐसे ही दूसरे बड़े पर्दे के हाशिये में जो इसके साथ मिलाया जाएगा तुकमे बनाना।
\v 5 ~पचास तुकमे एक बड़े पर्दे में बनाना और पचास ही दूसरे बड़े पर्दे के हाशिये में जो इसके साथ मिलाया जाएगा बनाना, और सब तुकमे एक दूसरे के आमने सामने हों।
\v 6 ~और सोने की पचास घुन्डियाँ बना कर इन पर्दों को इन्हीं घुन्डियों से एक दूसरे के साथ जोड़ देना, तब वह घर एक हो जाएगा।
\s5
\v 7 'और तू बकरी के बाल के पर्दे बनाना ताकि घर के ऊपर ख़ेमा का काम दें, ऐसे पर्दे ग्यारह हों।
\v 8 और हर पर्दे की लम्बाई तीस हाथ और चौड़ाई चार हाथ हो, वह ग्यारह हों, पर्दे एक ही नाप के हों।
\v 9 ~और तू पाँच पर्दे एक जगह और छ: पर्दे एक जगह आपस में जोड़ देना, और छटे पर्दे को खे़मे के सामने मोड़ कर दोहरा कर देना।
\s5
\v 10 ~और तू पचास तुकमे उस पर्दे के हाशिये में, जो बाहर से मिलाया जाएगा और पचास ही तुकमे दूसरी तरफ़ के पर्दे के हाशिये में जो बाहर से मिलाया जाएगा बनाना।
\v 11 ~और पीतल की पचास घुन्डियाँ बना कर इन घुन्डियों को तुकमों में पहना देना और खे़मे को जोड़ देना ताकि वह एक हो जाए।
\s5
\v 12 और खे़मे के पर्दों का लटका हुआ हिस्सा, या'नी आधा पर्दा जो बचा रहेगा वह घर की पिछली तरफ़ लटका रहे।
\v 13 ~और ख़ेमे के पर्दों की लम्बाई के बाक़ी हिस्से में से एक हाथ पर्दा इधर से और एक हाथ पर्दा उधर से घर की दोनों तरफ़ इधर और उधर लटका रहे ताकि उसे ढाँक ले।
\v 14 ~और तू इस खे़मे के लिए मेंढों की सुर्ख़ रंगी हुई खालों का ग़िलाफ़ और उसके ऊपर तुख़्सों की खालों का ग़िलाफ़ बनाना।
\s5
\v 15 ~"और तू घर के लिए कीकर की लकड़ी के तख़्ते बनाना कि खड़े किए जाएँ।
\v 16 ~हर तख़्ते की लम्बाई दस हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ हो।
\v 17 ~और हर तख़्ते में दो-दो चूलें हों जो एक दूसरे से मिली हुई हों, घर के सब तख़्ते इसी तरह के बनाना।
\v 18 और घर के लिए जो तख़्ते तू बनाएगा उनमें से बीस तख़्ते दाख्खिनी रुख़ के लिए हों।
\s5
\v 19 ~और इन बीसों तख़्तों के नीचे चाँदी के चालीस ख़ाने बनाना या'नी हर एक तख़्ते के नीचे उसकी दोनों चूलों के लिए दो-दो ख़ाने।
\v 20 ~और घर~की दूसरी तरफ़ या'नी उत्तरी रुख़ के लिए बीस तख़्ते हों।
\v 21 ~और उनके लिए भी चाँदी के चालीस ही ख़ाने हों, या'नी एक-एक तख़्ते के नीचे दो-दो ख़ाने।
\s5
\v 22 ~और घर~के पिछले हिस्से के लिए पश्चिमी रुख़ में छ: तख़्ते बनाना।
\v 23 ~और उसी पिछले हिस्से में घर के कोनों के लिए दो तख़्ते बनाना।
\v 24 ~यह नीचे से दोहरे हों और इसी तरह ऊपर के सिरे तक आकर एक हल्के़ में मिलाए जाएँ, दोनों तख़्ते इसी ढब के हों, यह तख़्ते दोनों कोनों के लिए होंगे।
\v 25 ~तब आठ तख़्ते और चाँदी के सोलह ख़ाने होंगे, या'नी एक एक तख़्ते के लिए दो दो ख़ाने।
\s5
\v 26 ~"और तू कीकर की लकड़ी के बेन्डे बनाना, पाँच बेन्डे घर के एक पहलू के तख़्तों के लिए,
\v 27 ~और पाँच बेन्डे घर के दूसरे पहलू के तख़्तों के लिए, और पाँच बेन्डे घर के पिछले हिस्से या'नी ~पश्चिमी रुख़ के तख़्तों के लिए,
\v 28 ~और वस्ती बेन्डा जो तख़्तों के बीच में हो, वह ख़ेमे की एक हद से दूसरी हद तक पहुँचे।
\s5
\v 29 और तू तख़्तों को सोने से मंढ़ना और बेन्डों के घरों के लिए सोने के कड़े बनाना और बेन्डों को भी सोने से मंढ़ना।
\v 30 ~और तू घर~को उसी नमूने के मुताबिक़ बनाना जो पहाड़ पर दिखाया गया है।
\s5
\v 31 ~"और तू आसमानी-अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का एक पर्दा बनाना, और उसमें किसी माहिर उस्ताद से करूबियों की सूरत कढ़वाना।
\v 32 ~और उसे सोने से मंढ़े हुए कीकर के चार सुतूनों पर लटकाना, इनके कुन्डे सोने के हों और चाँदी के चार ख़ानों पर खड़े किए जाएँ,
\v 33 ~और पर्दे को घुन्डियों के नीचे लटकाना और शहादत के सन्दूक को वहीं पर्दे के अन्दर ले जाना और यह पर्दा तुम्हारे लिए पाक मक़ाम को पाकतरीन मक़ाम से अलग करेगा।
\s5
\v 34 ~और तू सरपोश को पाकतरीन मक़ाम में शहादत के सन्दूक़ पर रखना।
\v 35 ~और मेज़ को पर्दे के बाहर रख कर शमा'दान को उसके सामने घर की दाख्खिनी रुख़ में रखना या'नी मेज़ उत्तरी रुख़ में रखना।
\s5
\v 36 ~और तू एक पर्दा खे़मे के दरवाज़े के लिए आसमानी अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बनाना और उस पर बेल बूटे कढ़े हुए हों।
\v 37 ~और इस पर्दे के लिए कीकर की लकड़ी के पाँच सुतून बनाना और उनको सोने से मंढ़ना और उनके कुन्डे सोने के हों, जिनके लिए तू पीतल के पाँच ख़ाने ढाल कर बनाना।
\s5
\c 27
\p
\v 1 "और तू कीकर की लकड़ी की क़ुर्बानगाह पाँच हाथ लम्बी और पाँच हाथ चौड़ी बनाना; वह क़ुर्बानगाह चौखुन्टी और उसकी ऊँचाई तीन हाथ हो।
\v 2 और तू उसके लिए उसके चारों कोनों पर सींग बनाना, और वह सींग और क़ुर्बानगाह सब एक ही टुकड़े के हों और तू उनको पीतल से मंढ़ना।
\s5
\v 3 ~और तू उसकी राख उठाने के लिए देगें और बेलचे और कटोरे और सीखें और अन्गेठियाँ बनाना; उसके सब बर्तन पीतल के बनाना।
\v 4 और उसके लिए पीतल की जाली की झंजरी बनाना और उस जाली के चारों कोनों पर पीतल के चार कड़े लगाना।
\s5
\v 5 ~और उस झंजरी को क़ुर्बानगाह की चारों तरफ़ के किनारे के नीचे इस तरह लगाना कि वह ऊँचाई में क़ुर्बानगाह की आधी दूर तक पहुँचे।
\v 6 और तू क़ुर्बानगाह के लिए कीकर की लकड़ी की चोबें बनाकर उनको पीतल से मंढ़ना।
\s5
\v 7 और तू उन चोबों को कड़ों में पहना देना कि जब कभी क़ुर्बानगाह उठाई जाए, वह चोबें उसकी दोनों तरफ़ रहें।
\v 8 तख़्तों से वह क़ुर्बानगाह बनाना और वह खोखली हो। वह उसे ऐसी ही बनाएँ जैसी तुझे पहाड़ पर दिखाई गई है।
\s5
\v 9 "फिर तू घर के लिए सहन बनाना, उस सहन की दाख्खिनी तरफ़ के लिए बारीक बटे हुए कतान के पर्दे हों जो मिला कर सौ हाथ लम्बे हों; यह सब एक ही रुख़ में हों।
\v 10 और उनके लिए बीस सुतून बनें और सुतूनों के लिए पीतल के बीस ही ख़ाने बनें और इन सुतूनों के कुन्डे और पट्टियाँ चाँदी की हों।
\s5
\v 11 इसी तरह उत्तरी रुख़ के लिए पर्दे सब मिला कर लम्बाई में सौ हाथ हों, उनके लिए भी बीस ही सुतून और सुतूनों के लिए बीस ही पीतल के ख़ाने बनें और सुतूनों के कुन्डे और पट्टियाँ चाँदी की हों।
\v 12 और सहन की पश्चिमी रुख़ की चौड़ाई में पचास हाथ के पर्दे हों, उनके लिए दस सुतून और सुतूनों के लिए दस ही ख़ाने बनें।
\v 13 और पूर्वी रुख़ में सहन हो।
\s5
\v 14 और सहन के दरवाज़े के एक पहलू के लिए पन्द्रह हाथ के पर्दे हों, जिनके लिए तीन सुतून और सुतून के लिए तीन ही ख़ाने बनें।
\v 15 ~और दूसरे पहलू के लिए भी पन्द्रह हाथ के पर्दे और तीन सुतून और तीन ही ख़ाने बनें।
\v 16 और सहन के दरवाज़े के लिए बीस हाथ का एक पर्दा हो जो आसमानी, अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बना हुआ हो और उस पर बेल-बूटे कढ़े हों, उसके सुतून चार और सुतूनों के ख़ाने भी चार ही हों।
\s5
\v 17 और सहन के आस पास सब सुतून चाँदी की पट्टियों से जड़े हुए हों और उनके कुन्डे चाँदी के और उनके ख़ाने पीतल के हों।
\v 18 सहन की लम्बाई सौ हाथ और चौड़ाई हर जगह पचास हाथ और कनात की ऊँचाई पाँच हाथ ही, पर्दे बारीक बटे हुए कतान के और सुतूनों के ख़ाने पीतल के हों।
\v 19 घर के तरह तरह के काम के सब सामान और वहाँ की मेख़ें और सहन की मेख़े यह सब पीतल के हों।
\s5
\v 20 'और तू बनी-इस्राईल को हुक्म देना कि वह तेरे पास कूट कर निकाला हुआ जैतून का ख़ालिस तेल रोशनी के लिए लाएँ ताकि चराग़ हमेशा जलता रहे।
\v 21 ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में उस पर्दे के बाहर, जो शहादत के सन्दूक के सामने होगा, हारून और उसके बेटे शाम से सुबह तक शमा 'दान को ख़ुदावन्द के सामने अरास्ता रख्खें, यह दस्तूर-उल'अमल बनी-इस्राईल के लिए नसल-दर-नसल हमेशा क़ायम रहेगा।
\s5
\c 28
\p
\v 1 "और तू बनी-इस्राईल में से हारून को जो तेरा भाई है, और उसके साथ उसके बेटों को अपने नज़दीक कर लेना; ताकि हारून और उसके बेटे नदब और अबीहू और इली'अज़र और इतमर कहानत के 'उहदे पर होकर मेरी ख़िदमत करें।
\v 2 और तू अपने भाई हारून के लिए 'इज़्ज़त और ज़ीनत के लिए पाक लिबास बना देना।
\v 3 ~और तू उन सब रोशन ज़मीरों से जिनको मैंने हिकमत की रूह से भरा है, कह कि वह हारून के लिए लिबास बनाएँ ताकि वह पाक होकर मेरे लिए काहिन की ख़िदमत को अन्जाम दे।
\s5
\v 4 और जो लिबास वह बनाएँगे यह हैं: या'नी सीना बन्द और अफूद और जुब्बा और चार ख़ाने का कुरता, और 'अमामा, और कमरबन्द, वह तेरे भाई हारून और उसके बेटों के लिए यह पाक लिबास बनाएँ, ताकि वह मेरे लिए काहिन की खि़दमत को अन्जाम दे।
\v 5 और वह सोना और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़े और महीन कतान लें।
\s5
\v 6 ~"और वह अफ़ोद सोने और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बनाएँ, जो किसी माहिर उस्ताद के हाथ का काम हो।
\v 7 और वह इस तरह से जोड़ा जाए कि उसके दोनों मोंढों के सिरे आपस में मिला दिए जाएँ।
\v 8 और उसके ऊपर जो कारीगरी से बना हुआ पटका उसके बाँधने के लिए होगा, उस पर अफ़ोद की तरह काम हो और वह उसी कपड़े का हो, और सोने और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बुना हुआ हो।
\v 9 और तू दो सुलेमानी पत्थर लेकर उन पर इस्राईल के बेटों के नाम कन्दा कराना।
\s5
\v 10 ~उनमें से छ: के नाम तो एक पत्थर पर और बाक़ियों के छः नाम दूसरे पत्थर पर उनकी पैदाइश की तरतीब के मुवाफ़िक हों।
\v 11 तू पत्थर के कन्दाकार को लगा कर अँगूठी के नक़्श की तरह इस्राईल के बेटों के नाम उन दोनों पत्थरों पर खुदवा कर के उनको सोने के ख़ानों में जड़वाना।
\v 12 और दोनों पत्थरों को अफ़ोद के दोनों मोंढों पर लगाना ताकि यह पत्थर इस्राईल के बेटों की यादगारी के लिए हों, और हारून उनके नाम ख़ुदावन्द के सामने अपने दोनों कन्धों पर यादगारी के लिए लगाए रहे।
\s5
\v 13 "और तू सोने के ख़ाने बनाना,
\v 14 और ख़ालिस सोने की दो ज़जीरें डोरी की तरह गुन्धी हुई बनाना और इन गुन्धी हुई ज़ंजीरों को ख़ानों में जड़ देना।
\s5
\v 15 "और 'अदल का सीना बन्द किसी माहिर उस्ताद से बनवाना और अफ़ोद की तरह सोने और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बनाना।
\v 16 ~वह चौखुन्टा और दोहरा हो, उसकी लम्बाई एक बालिश्त और चौड़ाई भी एक ही बालिश्त हो।
\s5
\v 17 और चार कतारों में उस पर जवाहर जड़ना, पहली क़तार में याकू़त-ए-सुर्ख़ और पुखराज और गौहर-ए-शब चराग़ हो
\v 18 ~दूसरी क़तार में ज़मुर्रुद और नीलम और हीरा,
\v 19 ~तीसरी कतार में लश्म और यश्म और याकू़त,
\v 20 ~चौथी क़तार में फ़ीरोज़ा और संग-ए-सुलेमानी और ज़बरजद; यह सब सोने के ख़ानों में जड़े जाएँ।
\s5
\v 21 ~यह जवाहर इस्राईल के बेटों के नामों के मुताबिक़ शुमार में बारह हों और अँगूठी के नक़्श की तरह यह नाम जो बारह क़बीलों के नाम होंगे, उन पर खुदवाए ~जाएँ।
\v 22 ~और तू सीनाबन्द पर डोरी की तरह गुन्धी हुई ख़ालिस सोने की दो ज़ंजीरें लगाना।
\v 23 ~और सीनाबन्द के लिए सोने के दो हल्के़ बना कर उनको सीनाबन्द के दोनों सिरों पर लगाना;
\v 24 और सोने की दोनों गुन्धी हुई ज़ंजीरों को उन दोनों हल्क़ों में जो सीनाबन्द के दोनों सिरों पर होंगे लगा देना।
\s5
\v 25 और दोनों गुन्धी हुई ज़ंजीरों के बाक़ी दोनों सिरों को दोनों पत्थरों के ख़ानों में जड़ कर उनको अफ़ोद के दोनों मोंढों पर सामने की तरफ़ लगा देना।
\v 26 ~और सोने के और दो हल्के़ बनाकर उनको सीनाबन्द के दोनों सिरों के उस हाशिये में लगाना जो अफ़ोद के अन्दर की तरफ़ है।
\s5
\v 27 ~फिर सोने के दो हल्के़ और बनाकर उनको अफ़ोद के दोनों मोंढों के नीचे उसके अगले हिस्से में लगाना जहाँ अफ़ोद जोड़ा जाएगा, ताकि वह अफ़ोद के कारीगरी से बुने हुए पटके के ऊपर रहे।
\v 28 और वह सीनाबन्द को लेकर उसके हल्क़ो को एक नीले फ़ीते से बाँधे, ताकि यह सीनाबन्द अफ़ोद के कारीगरी से बने हुए पटके के ऊपर भी रहे और अफ़ोद से भी अलग न होने पाए।
\s5
\v 29 और हारून इस्राईल के बेटों के नाम 'अदल के सीनाबन्द पर अपने सीने पर पाक मक़ाम में दाख़िल होने के वक़्त ख़ुदावन्द के आमने सामने लगाए रहे, ताकि हमेशा उनकी यादगारी हुआ करे।
\v 30 ~और तू 'अदल के सीनाबन्द में ऊरीम और तुम्मीम को रखना और जब हारून ख़ुदावन्द के सामने जाए तो यह उसके दिल के ऊपर हों, यूँ हारून बनी-इस्राईल के फै़सले को अपने दिल के ऊपर ख़ुदावन्द के आमने सामने ~हमेशा लिए रहेगा।
\s5
\v 31 "और तू अफ़ोद का जुब्बा बिल्कुल आसमानी रंग का बनाना।
\v 32 ~और उसका गिरेबान बीच में हो, और ज़िरह के गिरेबान की तरह उसके गिरेबान के चारों तरफ़ बुनी हुई गोट हो ताकि वह फटने न पाए।
\s5
\v 33 और उसके दामन के घेर में चारों तरफ़ आसमानी, अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के अनार बनाना और उनके बीच चारों तरफ़ सोने की घंटियाँ लगाना।
\v 34 ~या'नी जुब्बे के दामन के पूरे घेर में एक सोने की घन्टी हो और उसके बाद अनार, फिर एक सोने की घन्टी हो और उसके बाद अनार।
\v 35 ~इस जुब्बे को हारून ख़िदमत के वक़्त पहना करे, ताकि जब-जब वह पाक मक़ाम के अन्दर ख़ुदावन्द के सामने जाए या वहाँ से निकले तो उसकी आवाज़ सुनाई दे, कहीं ऐसा न हो कि वह मर जाए।
\s5
\v 36 ~“और तू ख़ालिस सोने का एक पत्तर बना कर उस पर अँगूठी के नक़्श की तरह यह ~खुदवाना: 'ख़ुदावन्द के लिए मुक़द्दस'।
\v 37 ~और उसे नीले फ़ीते से बाँधना, ताकि वह 'अमामे पर या'नी 'अमामे के सामने के हिस्से पर हो।
\v 38 ~और यह हारून की पेशानी पर रहे ताकि जो कुछ बनी-इस्राईल अपने पाक हदियों के ज़रिए' से पाक ठहराएँ, उन पाक ठहराई हुई चीज़ों की बदी हारून उठाए और यह उसकी पेशानी पर हमेशा रहे, ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने मक़बूल हों।
\s5
\v 39 "और कुरता बारीक कतान का बुना हुआ और चार ख़ाने का हो और 'अमामा भी बारीक कतान ही का बनाना, और एक कमरबन्द बनाना जिस पर बेल बूटे कढ़े हों।
\s5
\v 40 "और हारून के बेटों के लिए कुरते बनाना और 'इज़्ज़त और ज़ीनत के लिए उनके लिए कमरबन्द और पगड़ियाँ बनाना।
\v 41 ~और तू यह सब अपने भाई हारून और उसके साथ उसके बेटों को पहनाना, और उनको मसह और मख़्सूस और पाक करना ताकि वह सब मेरे लिए काहिन की ख़िदमत को अन्जाम दें।
\s5
\v 42 ~और तू उनके लिए कतान के पाजामे बना देना ताकि उनका बदन ढंका रहे, यह कमर से रान तक के हों।
\v 43 और हारून और उसके बेटे जब-जब ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में दाख़िल हों या ख़िदमत करने को पाक मक़ाम के अन्दर क़ुर्बानगाह के नज़दीक जाएँ, उनको पहना करें कहीं ऐसा न हो कि गुनाहगार ठहरें और मर जाएँ। यह दस्तूर-उल-'अमल उसके और उसकी नसल के लिए हमेशा रहेगा।
\s5
\c 29
\p
\v 1 और उनको पाक करने की ख़ातिर ताकि वह मेरे लिए काहिन की ख़िदमत को अन्जाम दें, तू उनके लिए यह करना कि एक बछड़ा और दो बे-'ऐब मेंढे लेना,
\v 2 ~और बेख़मीरी रोटी और बे-ख़मीर के कुल्चे जिनके साथ तेल मिला हो और तेल की चुपड़ी हुई बे-ख़मीरी चपातियाँ लेना। यह सब गेहूँ के मैदे की बनाना।
\s5
\v 3 ~और इनको एक टोकरी में रख कर उस टोकरी को बछड़े और दोनों मेंढों समेत आगे ले आना।
\v 4 ~फिर हारून और उसके बेटों को ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर लाकर उनको पानी से नहलाना।
\s5
\v 5 ~और वह लिबास लेकर हारून को कुरता और अफ़ोद का जुब्बा और अफ़ोद और सीनाबन्द पहनाना, और अफ़ोद का कारीगरी से बुना हुआ कमरबन्द उसके बांध देना।
\v 6 ~और 'अमामे को उसके सिर पर रख कर उस 'अमामे के ऊपर पाक ताज लगा देना।
\v 7 ~और मसह करने का तेल लेकर उसके सिर पर डालना और उसको मसह करना।
\s5
\v 8 ~फिर उसके बेटों को आगे लाकर उनको कुरते पहनाना।
\v 9 ~और हारून और उसके बेटों के कमरबन्द लपेट कर उनके पगड़ियाँ बाँधना ताकि कहानत के 'उहदे पर हमेशा के लिए उनका हक़ रहे; और हारून और उसके बेटों को मख़्सूस करना।
\s5
\v 10 ~"फिर तू उस बछड़े को ख़ेमा -ए- इजितमा'अ के सामने लाना, और हारून और उसके बेटे अपने हाथ उस बछड़े के सिर पर रख्खें।
\v 11 ~फिर उस बछड़े को ख़ुदावन्द के आगे ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर ज़बह करना।
\s5
\v 12 ~और उस बछड़े के ख़ून में से कुछ लेकर उसे अपनी उंगली से क़ुर्बानगाह के सींगों पर लगाना और बाक़ी सारा ख़ून क़ुर्बानगाह के पाये पर उंडेल देना।
\v 13 ~फिर उस चर्बी को जिससे अंतड़ियाँ ढकी रहती हैं, और जिगर पर की झिल्ली को और दोनों गुर्दों को और उनके ऊपर की चर्बी को लेकर सब क़ुर्बानगाह पर जलाना।
\v 14 ~लेकिन उस बछड़े के गोश्त और खाल और गोबर को ख़ेमागाह के बाहर आग से जला देना इसलिए कि यह ख़ता की क़ुर्बानी है।
\s5
\v 15 ~"फिर तू एक मेंढे को लेना, और हारून और उसके बेटे अपने हाथ उस मेंढे के सिर पर रख्खें।
\v 16 और तू उस मेंढे को ज़बह करना और उसका ख़ून लेकर क़ुर्बानगाह पर चारों तरफ़ छिड़कना।
\v 17 ~और तू मेंढे को टुकड़े-टुकड़े काटना और उसकी अंतड़ियों और पायों को धो कर उसके टुकड़ों और उसके सिर के साथ मिला देना।
\v 18 ~फिर इस पूरे मेंढे को क़ुर्बानगाह पर जलाना। यह ख़ुदावन्द के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानी है। यह राहतअंगेज़ खु़शबू या'नी ख़ुदावन्द के लिए आतिशीन क़ुर्बानी है।
\s5
\v 19 ~"फिर दूसरे मेंढे को लेना और हारून और उसके बेटे अपने हाथ उस मेंढे के सिर पर रख्खें।
\v 20 ~और तू इस मेंढे को ज़बह करना और उसके ख़ून में से कुछ लेकर हारून और उसके बेटों के दहने कान की लौ पर और दहने हाथ और दहने पाँव के अंगूठों पर लगाना, और ख़ून को क़ुर्बानगाह पर चारों तरफ़ छिड़क देना।
\s5
\v 21 ~और क़ुर्बानगाह पर के ख़ून और मसह करने के तेल में से कुछ कुछ लेकर हारून और उसके लिबास पर, और उसके साथ उसके बेटों और उनके लिबास पर छिड़कना, तब वह अपने लिबास समेत और उसके साथ ही उसके बेटे अपने-अपने लिबास समेत पाक होंगे।
\s5
\v 22 ~और तू मेंढे की चर्बी और मोटी दुम को, और जिस चर्बी से अंतड़ियाँ ढकी रहती हैं उसको और जिगर पर की झिल्ली को, और दोनों गुर्दों को और उनके ऊपर की चर्बी को और दहनी रान को लेना; इस लिए कि यह ख़ास मेंढा है।
\v 23 ~और बेख़मीरी रोटी की टोकरी में से जो ख़ुदावन्द के आगे रखी होगी, रोटी का एक गिरदा और एक कुल्चा जिसमें तेल मिला हुआ हो और एक चपाती लेना।
\s5
\v 24 ~और इन सभों को हारून और उसके बेटों के हाथों पर रख कर इनको ख़ुदावन्द के सामने हिलाना, ताकि यह हिलाने का हदिया हो।
\v 25 ~फिर इनको उनके हाथों से लेकर क़ुर्बानगाह पर सोख़्तनी क़ुर्बानी के ऊपर जला देना, ताकि वह ख़ुदावन्द के आगे राहतअंगेज़ ख़ुशबू हो; यह ख़ुदावन्द के लिए आतिशीन क़ुर्बानी है।
\s5
\v 26 ~"और तू हारून के ख़ास मेंढे का सीना लेकर उसको ख़ुदावन्द के सामने हिलाना ताकि वह हिलाने का हदिया हो, यह तेरा हिस्सा ठहरेगा।
\v 27 और तू हारून और उसके बेटों के ख़ास मेंढे के हिलाने के हदिये के सीने को जो हिलाया जा चुका है, और उठाए जाने के हदिये की रान को जो उठाई जा चुकी है, लेकर उन दोनों को पाक ठहराना,
\v 28 ~ताकि यह सब बनी-इस्राईल की तरफ़ से हमेशा के लिए हारून और उसके बेटों का हक़ हो क्यूँकि यह उठाए जाने का हदिया है। इसलिए यह बनी-इस्राईल की तरफ़ से उनकी सलामती के ज़बीहों में से उठाए जाने का हदिया होगा, जो उनकी तरफ़ से ख़ुदावन्द के लिए उठाया गया है।
\s5
\v 29 ~'और हारून के बा'द उसके पाक लिबास उसकी औलाद के लिए होंगे ताकि उन ही में वह मसह-ओ-मख़्सूस किए जाएँ।
\v 30 ~उसका जो बेटा उसकी जगह काहिन हो वह जब पाक मक़ाम में ख़िदमत करने को ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में दाख़िल हो तो उनको सात दिन तक पहने रहे।
\s5
\v 31 "और तू ख़ास मेंढे को लेकर उसके गोश्त को किसी पाक जगह में उबालना।
\v 32 ~और हारून और उसके बेटे मेंढे का गोश्त और टोकरी की रोटियाँ ख़ेमा-ए- इजितमा'अ के दरवाज़े पर खाएँ।
\v 33 ~और जिन चीज़ों से उनको मख़्सूस और पाक करने के लिए कफ़्फ़ारा दिया जाए वह उनको भी खाएँ, लेकिन अजनबी शख़्स उनमें से कुछ न खाने पाए क्यूँकि यह चीजें पाक हैं।
\v 34 और अगर मख़्सूस करने के गोश्त या रोटी में से कुछ सुबह तक बचा रह जाए तो उस बचे हुए को आग से जला देना, वह हरगिज़ न खाया जाए इसलिए कि वह पाक है।
\s5
\v 35 ~"और तू हारून और उसके बेटों के साथ जो कुछ मैंने हुक्म दिया है वह सब 'अमल में लाना, और सात दिन तक उनको मख़्सूस करते रहना।
\v 36 ~और तू हर रोज़ ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े को कफ़्फ़ारे के लिए ज़बह करना; और तू क़ुर्बानगाह को उसके कफ़्फ़ारा देने के वक़्त साफ़ करना, और उसे मसह करना ताकि वह पाक हो जाए,
\v 37 ~तू सात दिन तक क़ुर्बानगाह के लिए कफ़्फ़ारा देना और उसे पाक करना तो क़ुर्बानगाह निहायत पाक हो जाएगी, और जो कुछ उससे छू जाएगा वह भी पाक ठहरेगा
\s5
\v 38 ~"और तू हर रोज़ सदा एक-एक बरस के दो-दो बर्रे क़ुर्बानगाह पर चढ़ाया करना।
\v 39 ~एक बर्रा सुबह को और दूसरा बर्रा ज़वाल और गु़रूब के बीच चढ़ाना।
\s5
\v 40 ~और एक बर्रे के साथ ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर मैदा देना, जिसमें हीन के चौथे हिस्से की मिक़्दार में कूट कर निकाला हुआ तेल मिला हुआ हो और हीन के चौथे हिस्से की मिक़्दार में तपावन के लिए मय भी देना।
\s5
\v 41 ~और तू दूसरे बर्रे को ज़वाल और गु़रूब के बीच चढ़ाना और उसके साथ सुबह की तरह नज़्र की क़ुर्बानी और वैसा ही तपावन देना, जिससे वह ख़ुदावन्द के लिए राहतअंगेज़ ख़ुशबू और आतिशीन क़ुर्बानी ठहरे।
\v 42 ऐसी ही सोख़्तनी क़ुर्बानी तुम्हारी नसल दर नसल ख़ेमा-ए- इज्तिमा'अ के दरवाज़े पर ख़ुदावन्द के आगे हमेशा हुआ करे। वहाँ मैं तुम से मिलूँगा और तुझ से बातें करूँगा ।
\s5
\v 43 ~और वहीं मैं बनी इस्राईल से मुलाक़ात करूँगा और वह मक़ाम मेरे जलाल से पाक होगा।
\v 44 और मैं ख़ेमा-ए-इजितमा'अ को और क़ुर्बानगाह को पाक करूँगा, और मैं हारून और उसके बेटों को पाक करूँगा ताकि वह मेरे लिए काहिन की ख़िदमत की अन्जाम दें।
\s5
\v 45 और मैं बनी-इस्राईल के बीच सुकूनत करूँगा और उनका ख़ुदा हूँगा।
\v 46 ~तब वह जान लेंगे कि मैं ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हूँ जो उनको मुल्क -ए-मिस्र से इसलिए निकाल कर लाया कि मैं उनके बीच सुकूनत करूँ। मैं ही ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हूँ।
\s5
\c 30
\p
\v 1 और तू ख़ुशबू जलाने के लिए कीकर की लकड़ी की एक क़ुर्बानगाह बनाना।
\v 2 उसकी लम्बाई एक हाथ और चौड़ाई एक हाथ हो, वह चौखुन्टी रहे और उसकी ऊँचाई दो हाथ हो और उसके सींग उसी टुकड़े से बनाए जाएँ।
\s5
\v 3 ~और तू उसकी ऊपर की सतह और चारों पहलूओं को जो उसके चारों ओर हैं, और उसके सींगों को ख़ालिस सोने से मढ़ना और उसके लिए चारों ओर एक ज़रीन ताज बनाना।
\v 4 ~और तू उस ताज के नीचे उसके दोनों पहलुओं में सोने के दो कड़े उसकी दोनों तरफ़ बनाना। वह उसके उठाने की चोबों के लिए ख़ानों का काम देंगे।
\s5
\v 5 ~और चोबें कीकर की लकड़ी की बना कर उनको सोने से मंढना।
\v 6 ~और तू उसको उस पर्दे के आगे रखना जो शहादत के सन्दूक के सामने है; वह सरपोश के सामने रहे जो शहादत के सन्दूक के ऊपर है, जहाँ मैं तुझ से मिला करूँगा ।
\s5
\v 7 ~इसी पर हारून ख़ुशबूदार ख़ुशबू जलाया करे, हर सुबह चराग़ों को ठीक करते वक़्त ख़ुशबू जलाएँ।
\v 8 ~और ज़वाल और गु़रूब के बीच भी जब हारून चरागों को रोशन करे तब ख़ुशबू जलाए, यह ख़ुशबू ख़ुदावन्द के सामने तुम्हारी नसल-दर-नसल हमेशा जलाया जाए।
\v 9 और तुम उस पर और तरह की ख़ुशबू न जलाना, न उस पर सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़र की क़ुर्बानी चढ़ाना और कोई तपावन भी उस पर न तपाना।
\s5
\v 10 और हारून साल में एक बार उसके सींगों पर कफ़्फ़ारा दे। तुम्हारी नसल-दर-नसल साल में एक बार इस ख़ता की क़ुर्बानी के ख़ून से जो कफ़्फ़ारे के लिए हो, उसके लिए कफ़्फ़ारा दिया जाए। यह ख़ुदावन्द के लिए सबसे ज़्यादा पाक है।"
\s5
\v 11 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, |
\v 12 "जब तू बनी-इस्राईल का शुमार करे तो जितनों का शुमार हुआ हो वह फ़ी-मर्द शुमार के वक़्त अपनी जान का फ़िदिया ख़ुदावन्द के लिए दें, ताकि जब तू उनका शुमार कर रहा हो उस वक़्त कोई वबा उनमें फैलने न पाए।
\v 13 हर एक जो निकल-निकल कर शुमार किए हुओं में मिलता जाए, वह मक़दिस की मिस्काल के हिसाब से नीम मिस्काल दे। मिस्काल बीस जीरहों की होती है। यह नीम मिस्काल ख़ुदावन्द के लिए नज़र है।
\v 14 जितने बीस बरस के या इससे ज़्यादा उम्र के निकल निकल कर शुमार किए हुओं में मिलते जाएँ, उनमें से हर एक ख़ुदावन्द की नज़्र दे।
\s5
\v 15 ~जब तुम्हारी जानों के कफ़्फ़ारे के लिए ख़ुदावन्द की नज़्र दी जाए, तो दौलतमन्द नीम मिस्काल से ज़्यादा न दे और न ग़रीब उससे कम दे।
\v 16 और तू बनी-इस्राईल से कफ़्फ़ारे की नक़्दी लेकर उसे ख़ेमा -ए-इजितमा'अ के काम में लगाना, ताकि वह बनी-इस्राईल की तरफ़ से तुम्हारी जानों के कफ़्फ़ारे के लिए ख़ुदावन्द के सामने यादगार हो।"
\s5
\v 17 फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 18 "तू धोने के लिए पीतल का एक हौज़ और पीतल ही की उसकी कुर्सी बनाना, और उसे ख़ेमा-ए-इजितमा'अ और क़ुर्बानगाह के बीच में रख कर उसमें पानी भर देना।
\s5
\v 19 और हारून और उसके बेटे अपने हाथ पाँव उससे धोया करें।
\v 20 ~ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में दाख़िल होते वक़्त पानी से धो लिया करें ताकि हलाक न हों, या जब वह क़ुर्बानगाह के नज़दीक ख़िदमत के लिए या'नी ख़ुदावन्द के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानी पेश करने को आएँ,
\v 21 ~तो अपने-अपने हाथ पाँव धो लें ताकि मर न जाएँ। यह उसके और उसकी औलाद के लिए नसल-दर-नसल हमेशा की रिवायत हो।"
\s5
\v 22 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 23 कि तू मक़दिस की मिस्काल के हिसाब से ख़ास-ख़ास खु़शबूदार मसाल्हे लेना; या'नी अपने आप निकला हुआ मुर्र पाँच सौ मिस्काल, और उसका आधा या'नी ढाई सौ मिस्काल दारचीनी, और ख़ुशबूदार अगर ढाई सौ मिस्काल,
\v 24 और तज पाँच सौ मिस्काल, और जैतून का तेल एक हीन;
\v 25 और तू उनसे मसह करने का पाक तेल बनाना, या'नी उनकी गन्धी की हिकमत के मुताबिक़ मिला कर एक ख़ुशबूदार रौग़न तैयार करना। यही मसह करने का पाक तेल होगा।
\s5
\v 26 इसी से तू ख़ेमा -ए- इजित्तमा'अ को, और शहादत के सन्दूक को,
\v 27 और मेज़ को उसके बर्तन के साथ, और शमा'दान को उसके बर्तन के साथ, और ख़ुशबू जलाने की क़ुर्बानगाह को
\v 28 और सोख़्तनी क़ुर्बानी पेश करने के मज़बह को उसके सब बर्तन के साथ, और हौज़ को और उसकी कुर्सी को मसह करना;
\s5
\v 29 और तू उनको पाक करना ताकि वह निहायत पाक हो जाएँ, जो कुछ उनसे छू जाएगा वह पाक ठहरेगा।
\v 30 और तू हारून और उसके बेटों को मसह करना और उनको ~पाक करना ताकि वह मेरे लिए काहिन की ख़िदमत को अन्जाम दें।
\v 31 और तू बनी-इस्राईल से कह देना, 'यह तेल मेरे लिए तुम्हारी नसल दर नसल मसह करने का पाक तेल होगा।
\s5
\v 32 यह किसी आदमी के जिस्म पर न डाला जाए, और न तुम कोई और रौग़न इसकी तरकीब से बनाना; इस लिए के यह पाक है और तुम्हारे नज़दीक पाक ठहरे।
\v 33 जो कोई इसकी तरह कुछ बनाए या इसमें, से कुछ किसी अजनबी पर लगाए वह अपनी कौम में से काट डाला जाए"।"
\s5
\v 34 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "तू ख़ुशबूदार मसाल्हे मुर्र और मस्तकी और लौन और खु़शबूदार मसाल्हे के साथ ख़ालिस लुबान वज्न में बराबर-बराबर लेना,
\v 35 और नमक मिलाकर उनसे गन्धी की हिकमत के मुताबिक़ ख़ुशबूदार रोग़न की तरह साफ़ और पाक ख़ुशबू बनाना।
\v 36 और इसमें से कुछ ख़ूब बारीक पीस कर ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में शहादत के सन्दूक़ के सामने जहाँ मैं तुझ से मिला करूँगा रखना। यह तुम्हारे लिए निहायत पाक ठहरे।
\s5
\v 37 ~और जो ख़ुशबू तू बनाए उसकी तरकीब के मुताबिक़ तुम अपने लिए कुछ न बनाना। वह ख़ुशबू तेरे नज़दीक ख़ुदावन्द के लिए पाक हो।
\v 38 ~जो कोई सूघने के लिए भी उसकी तरह कुछ बनाए वह अपनी क़ौम में से काट डाला जाए।"
\s5
\c 31
\p
\v 1 फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 2 "देख मैंने बज़लीएल-बिन-ऊरी, बिन हूर को यहूदाह के क़बीले में से नाम लेकर बुलाया है।
\s5
\v 3 और मैंने उसको हिकमत और समझऔर 'इल्म और हर तरह की कारिगरी में अल्लाह के रूह ~से मा'मूर किया है।
\v 4 ताकि हुनरमन्दी के कामों को ईजाद करे, और सोने और चाँदी और पीतल की चीज़ें बनाए।
\v 5 और पत्थर को जड़ने के लिए काटे और लकड़ी को तराशे, जिससे सब तरह की कारीगरी का काम हो।
\s5
\v 6 और देख, मैंने अहलियाब को जो अख़ीसमक का बेटा और दान के क़बीले में से है उसका साथी मुक़र्रर किया है, और मैंने सब रौशन ज़मीरो के दिल में ऐसी समझ रख्खी है कि जिन-जिन चीज़ों का मैंने तुझ को हुक्म दिया है उन सभों को वह बना सकें।
\v 7 या'नी ख़ेमा -ए-इजितमा'अ और शहादत का सन्दूक और सरपोश जो उसके ऊपर रहेगा, और ख़ेमें का सब सामान,
\v 8 और मेज़ और उसके बर्तन, और ख़ालिस सोने का शमा'दान और उसके सब बर्तन, और ख़ुशबू जलाने की क़ुर्बानगाह ,
\v 9 और सब बर्तन, और हौज़ और उसकी कुर्सी,
\s5
\v 10 और बेल-बूटे कढ़े हुए जामे और हारून काहिन के पाक लिबास और उसके बेटों के लिबास, ताकि काहिन की ख़िदमत को अन्जाम दें।
\v 11 और मसह करने का तेल, और मक़दिस के लिए खु़शबूदार मसाल्हे का ख़ुशबू; इन सभों को वह जैसा मैंने तुझे हुक्म दिया है वैसा ही बनाएँ।"
\s5
\v 12 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 13 कि तू बनी-इस्राईल से यह भी कह देना, 'तुम मेरे सबतों को ज़रूर मानना, इस लिए कि यह मेरे और तुम्हारे बीच तुम्हारी नसल दर नसल एक निशान रहेगा, ताकि तुम जानों कि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा पाक करने वाला हूँ।
\v 14 फिर तुम सबत को मानना इस लिए कि वह तुम्हारे लिए पाक है, जो कोई उसकी बे हुरमती करे वह ज़रूर मार डाला जाए। जो उसमें कुछ काम करे वह अपनी क़ौम में से काट डाला जाए।
\v 15 ~छ: दिन काम काज किया जाए लेकिन सातवाँ दिन आराम का सबत है जो ख़ुदावन्द के लिए पाक है, जो कोई सबत के दिन काम करे वह ज़रूर मार डाला जाए।
\s5
\v 16 ~तब बनी-इस्राईल सबत को मानें और नसल दर नसल उसे हमेशा का 'अहद' जानकर उसका लिहाज़ रख्खें।
\v 17 ~मेरे और बनी-इस्राईल के बीच यह हमेशा के लिए एक निशान रहेगा, इस लिए कि छ: दिन में ख़ुदावन्द ने आसमान और ज़मीन को पैदा किया और सातवें दिन आराम करके ताज़ा दम हुआ'।"
\s5
\v 18 ~और जब ख़ुदावन्द कोह-ए-सीना पर मूसा से बातें कर चुका तो उसने उसे शहादत की दो तख़्तियाँ दीं, वह~तख़्तियाँ पत्थर की और ख़ुदा के हाथ की लिख्खी हुई थीं।
\s5
\c 32
\p
\v 1 और जब लोगों ने देखा कि मूसा ने पहाड़ से उतरने में देर लगाई तो वह हारून के पास जमा' होकर उससे कहने लगे, कि "उठ, हमारे लिए देवता बना दे जो हमारे आगे-आगे चले; क्यूँकि हम नहीं जानते कि इस मर्द मूसा को, जो हम को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया क्या हो गया?"
\v 2 हारून ने उनसे कहा, "तुम्हारी बीवियों और लड़कों और लड़कियों के कानों में जो सोने की बालियाँ हैं उनको उतार कर मेरे पास ले आओ।"
\s5
\v 3 चुनाँचे सब लोग उनके कानों से सोने की बालियाँ उतार-उतार कर उनको हारून के पास ले आए।
\v 4 और उसने उनको उनके हाथों से लेकर एक ढाला हुआ बछड़ा बनाया, जिसकी सूरत छेनी से ठीक की। तब वह कहने लगे, "ऐ इस्राईल, यही तेरा वह देवता है जो तुझ को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया।"
\s5
\v 5 ~यह देख कर हारून ने उसके आगे एक क़ुर्बानगाह बनाई और उसने 'ऐलान कर दिया कि "कल ख़ुदावन्द के लिए 'ईद होगी।"
\v 6 और दूसरे दिन सुबह सवेरे उठ कर उन्होंने क़ुर्बानियाँ पेश कीं और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेशअदा कीं ~फिर उन लोगों ने बैठ कर खाया-पिया और उठकर खेल-कूद में लग गए।
\s5
\v 7 तब ख़ुदावन्द ने मूसा को कहा, "नीचे जा, क्यूँकि तेरे लोग जिनको तू मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया बिगड़ गए हैं।
\v 8 वह उस राह से जिसका मैंने उनको हुक्म दिया था बहुत जल्द फिर गए हैं; उन्होंने अपने लिए ढाला हुआ बछड़ा बनाया और उसे पूजा और उसके लिए क़ुर्बानी चढ़ाकर यह भी कहा, कि "ऐ इस्राईल, यह तेरा वह देवता है जो तुझ को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया'।"
\s5
\v 9 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि "मैं इस क़ौम को देखता हूँ कि यह बाग़ी क़ौम है।
\v 10 इसलिए तू मुझे अब छोड़ दे कि मेरा ग़ज़ब उन पर भड़के और मैं उनको भसम कर दूँ, और मैं तुझे एक बड़ी क़ौम बनाऊँगा।"
\v 11 तब मूसा ने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के आगे मिन्नत करके कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, क्यूँ तेरा ग़ज़ब अपने लोगों पर भड़कता है जिनको तू क़ुव्वत-ए-'अज़ीम और ताक़तवर हाथों से मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया है?
\s5
\v 12 मिस्री लोग यह क्यूँ कहने पाएँ, कि 'वह उनको बुराई के लिए निकाल ले गया, ताकि उनको पहाड़ों में मार डाले और उनको ~इस ज़मीन पर से फ़ना कर दे'? इसलिए तू अपने क़हर-ओ- ग़ज़ब से बाज़ रह और अपने लोगों से इस बुराई करने के ख़याल को छोड़ दे।
\v 13 तू अपने बन्दों, इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब, को याद कर जिनसे तूने अपनी ही क़सम खा कर यह कहा था, कि मैं तुम्हारी नसल को आसमान के तारों की तरह बढ़ाऊँगा; और यह सारा मुल्क जिसका मैंने ज़िक्र किया है तुम्हारी नसल को बख़्शूँगा कि वह सदा उसके मालिक रहें।"
\v 14 तब ख़ुदावन्द ने उस बुराई के ख़याल को छोड़ दिया जो उसने कहा था कि अपने लोगों से करेगा।
\s5
\v 15 ~और मूसा शहादत की दोनों~तख़्तियाँ~हाथ में लिए हुए उल्टा फिरा और पहाड़ से नीचे उतरा; और वह~तख़्तियाँ इधर से और उधर से दोनों तरफ़ से लिखी हुई थीं।
\v 16 ~और वह~तख़्तियाँ ख़ुदा ही की बनाई हुई थीं, और जो लिखा हुआ था वह भी ख़ुदा ही का लिखा और उन पर खुदा हुआ था।
\s5
\v 17 ~और जब यशू'अ ने लोगों की ललकार की आवाज़ सुनी तो मूसा से कहा, कि "लश्करगाह में लड़ाई का शोर हो रहा है।”
\v 18 मूसा ने कहा, "यह आवाज़ न तो फ़तहमन्दों का नारा है, न मग़लूबों की फ़रियाद; बल्कि मुझे तो गाने वालों की आवाज़ सुनाई देती है।”
\s5
\v 19 और लश्करगाह के नज़दीक आकर उसने वह बछड़ा और उनका नाचना देखा। तब मूसा का ग़ज़ब भड़का, और उसने उन~तख़्तियाँ को अपने हाथों में से पटक दिया और उनकी पहाड़ के नीचे तोड़ डाला।
\v 20 और उसने उस बछड़े को जिसे उन्होंने बनाया था लिया, और उसको आग में जलाया और उसे बारीक पीस कर पानी पर छिड़का और उसी में से बनी-इस्राईल को पिलवाया।
\s5
\v 21 और मूसा ने हारून से कहा, कि "इन लोगों ने तेरे साथ क्या किया था जो तूने इनको इतने बड़े गुनाह में फँसा दिया?"
\v 22 हारून ने कहा, कि "मेरे मालिक का ग़ज़ब न भड़के; तू इन लोगों को जानता है कि गुनाह पर तुले रहते हैं, ~'
\v 23 चुनाँचे इन्हीं ने मुझ से कहा, कि 'हमारे लिए देवता बना दे जो हमारे आगे-आगे चले, क्यूँकि हम नहीं जानते कि इस आदमी मूसा को जो हम को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया क्या हो गया?
\v 24 ~तब मैंने इनसे कहा, कि "जिसके यहाँ सोना हो वह उसे उतार लाए।'तब इन्होंने उसे मुझ को दिया और मैंने उसे आग में डाला, तो यह बछड़ा निकल पड़ा।”
\s5
\v 25 ~जब मूसा ने देखा कि लोग बेक़ाबू हो गए, क्यूँकि हारून ने उनको बेलगाम छोड़कर उनको उनके दुश्मनों के बीच ज़लील कर दिया,
\v 26 ~तो मूसा ने लश्करगाह के दरवाज़े पर खड़े होकर कहा, "जो-जो ख़ुदावन्द की तरफ़ है वह मेरे पास आ जाए।" तब सभी बनी लावी उसके पास जमा' हो गए।
\v 27 और उसने उनसे कहा, कि "ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि तुम अपनी-अपनी रान से तलवार लटका कर फाटक-फाटक घूम-घूम कर सारी लश्करगाह में अपने अपने भाइयों और अपने अपने साथियों और अपने अपने पड़ोसियों को क़त्ल करते फिरो।"
\s5
\v 28 और बनी लावी ने मूसा के कहने के मुवाफ़िक़ 'अमल किया; चुनाँचे उस दिन लोगों में से करीबन तीन हज़ार मर्द मारे गए।
\v 29 और मूसा ने कहा, कि "आज ख़ुदावन्द के लिए अपने आपको मख़्सूस करो; बल्कि हर शख़्स अपने ही बेटे और अपने ही भाई के ख़िलाफ़ हो ताकि वह तुम को आज ही बरकत दे।"
\s5
\v 30 और दूसरे दिन मूसा ने लोगों से कहा, कि "तुम ने बड़ा गुनाह किया; और अब मैं ख़ुदावन्द के पास ऊपर जाता हूँ शायद मैं तुम्हारे गुनाह का कफ़्फ़ारा दे सकूं।"
\v 31 और मूसा ख़ुदावन्द के पास लौट कर गया और कहने लगा, 'हाय, इन लोगों ने बड़ा गुनाह किया कि अपने लिए सोने का देवता बनाया।
\v 32 और अब अगर तू इनका गुनाह मु'आफ़ कर दे तो ख़ैर वरना मेरा नाम उस किताब में से जो तूने लिखी है मिटा दे।"
\s5
\v 33 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि "जिसने मेरा गुनाह किया है मैं उसी के नाम को अपनी किताब में से मिटाऊँगा।
\v 34 अब तू रवाना हो और लोगों को उस जगह ले जा जो मैंने तुझे बताई है। देख, मेरा फ़रिश्ता तेरे आगे-आगे चलेगा। लेकिन मैं अपने मुतालबे के दिन उनको उनके गुनाह की सज़ा दूँगा।"
\v 35 और ख़ुदावन्द ने उन लोगों में वबा भेजी, क्यूँकि जो बछड़ा हारून ने बनाया वह उन्हीं का बनवाया हुआ था।
\s5
\c 33
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि "उन लोगों को अपने साथ लेकर, जिनको तू मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया, यहाँ से उस मुल्क की तरफ़ रवाना हो जिसके बारे में इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब से मैंने क़सम खाकर कहा था कि इसे मैं तेरी नसल को दूँगा।
\v 2 ~और मैं तेरे आगे-आगे एक फ़रिश्ते को भेजूँगा; और मैं कना'नियों और अमोरियों और हित्तियों और फ़रिज़्ज़ियों और हव्वियों और यबूसियों को निकाल दूँगा।
\v 3 ~उस मुल्क में दूध और शहद बहता है; और चूँकि तू बाग़ी~क़ौम है इस लिए मैं तेरे बीच में होकर न चलूँगा, कहीं ऐसा न हो कि मैं तुझ को राह में फ़ना कर डालूँ।"
\s5
\v 4 ~लोग इस दहशतनाक ख़बर को सुन कर ग़मगीन हुए और किसी ने अपने ज़ेवर न पहने।
\v 5 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मूसा से कह दिया था, कि "बनी-इस्राईल से कहना, कि 'तुम बाग़ी लोग हो, अगर मैं एक लम्हा भी तेरे बीच में होकर चलूँ तो तुझ को फ़ना कर दूँगा। फिर तू अपने ज़ेवर उतार डाल ताकि मुझे मा'लूम हो कि तेरे साथ क्या करना चाहिए।"
\v 6 ~चुनाँचे बनी-इस्राईल होरिब पहाड़ से लेकर आगेआगे अपने ज़ेवरों को उतारे रहे।
\s5
\v 7 और मूसा ख़ेमें को लेकर उसे लश्करगाह से बाहर बल्कि लश्करगाह से दूर लगा लिया करता था, और उसका नाम ख़ेमा ए-इजितमा'अ रख्खा। और जो कोई ख़ुदावन्द का तालिब होता वह लश्करगाह के बाहर उसी ख़ेमे की तरफ़ चला जाता था।
\v 8 और जब मूसा बाहर ख़ेमे की तरफ़ जाता तो सब लोग उठकर अपने-अपने ख़ेमे के दरवाज़े पर खड़े हो जाते और मूसा के पीछे देखते रहते थे, जब तक वह ख़ेमे के अन्दर दाख़िल न हो जाता।
\v 9 ~और जब मूसा ख़ेमे के अन्दर चला जाता तो बादल का सुतून उतरकर ख़ेमे के दरवाज़े पर ठहरा रहता, और ख़ुदावन्द मूसा से बातें करने लगता।
\s5
\v 10 ~और सब लोग बादल के सुतून को ख़ेमे के दरवाज़े पर ठहरा हुआ देखते थे, और सब लोग उठ-उठकर अपने-अपने ख़ेमे के दरवाज़े पर से उसे सिज्दा करते थे।
\v 11 ~और जैसे कोई शख़्स अपने दोस्त से बात करता है वैसे ही ख़ुदावन्द आमने सामने होकर मूसा से बातें करता था। और मूसा लश्करगाह को लौट आता था, लेकिन उसका ख़ादिम यशू'अ जो नून का बेटा और जवान आदमी था ख़ेमे से बाहर नहीं निकलता था।
\s5
\v 12 ~और मूसा ने ख़ुदावन्द से कहा, "देख, तू मुझ से कहता है, कि "इन लोगों को ले चल, 'लेकिन मुझे यह नहीं बताया कि तू किसको मेरे पास भेजेगा। हालाँकि तूने यह भी कहा है, कि मैं तुझ को नाम से जानता हूँ और तुझ पर मेरे करम की नज़र है।
\v 13 तब अगर मुझ पर तेरे करम की नज़र है तो मुझ को अपनी राह बता, जिससे मैं तुझे पहचान लूँ ताकि मुझ पर तेरे करम की नज़र रहे; और यह ख़याल रख कि यह क़ौम तेरी ही उम्मत है।"
\s5
\v 14 ~तब उसने कहा, "मैं साथ चलूँगा और तुझे आराम दूँगा।"
\v 15 ~मूसा ने कहा, "अगर तू साथ न चले तो हम को यहाँ से आगे न ले जा।
\v 16 ~क्यूँकि यह क्यूँ कर मा'लूम होगा कि मुझ पर और तेरे लोगों पर तेरे करम की नज़र है? क्या इसी तरह से नहीं कि तू हमारे साथ-साथ चले, ताकि मैं और तेरे लोग इस ज़मीन की सब क़ौमों से निराले ठहरें?
\s5
\v 17 ~ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "मैं यह काम भी जिसका तूने ज़िक्र किया है, करूँगा क्यूँकि तुझ पर मेरे करम की नज़र है और मैं तुझ को नाम से पहचानता हूँ।”
\v 18 ~तब वह बोल उठा, कि "मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, मुझे अपना जलाल दिखा दे।"
\s5
\v 19 उसने कहा, "मैं अपनी सारी नेकी तेरे सामने ज़ाहिर करूँगा और तेरे ही सामने ख़ुदावन्द के नाम का 'ऐलान करूँगा; और मैं जिस पर मेहरबान होना चाहूँ मेहरबान हूँगा, और जिस पर रहम करना चाहूँ रहम करूँगा ।"
\v 20 ~और यह भी कहा, "तू मेरा चेहरा नहीं देख सकता, क्यूँकि इन्सान मुझे देख कर ज़िन्दा नहीं रहेगा।"
\s5
\v 21 ~फिर ख़ुदावन्द ने कहा, "देख, मेरे क़रीब ही एक जगह है, इसलिए तू उस चट्टान पर खड़ा हो।
\v 22 ~और जब तक मेरा जलाल गुज़रता रहेगा मैं तुझे उस चट्टान के शिगाफ़ में रख्खूँगा, और जब तक मैं निकल न जाऊँ तुझे अपने हाथ से ढाँके रहूँगा।
\v 23 ~इसके बा'द मैं अपना हाथ उठा लूँगा, और तू मेरा पीछा देखेगा लेकिन मेरा चेहरा दिखाई नहीं देगा।”
\s5
\c 34
\p
\v 1 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा पहली~तख़्तियों की तरह दो~तख़्तियाँ अपने लिए तराश लेना; और मैं उन~तख़्तियों पर वही बातें लिख दूँगा जो पहली~तख़्तियों पर, जिनको तूने तोड़ डाला मरकू़म थीं।
\v 2 और सुबह तक तैयार हो जाना, और सवेरे ही कोह-ए-सीना पर आकर वहाँ पहाड़ की चोटी पर मेरे सामने हाज़िर होना।
\s5
\v 3 ~लेकिन तेरे साथ कोई और आदमी न आए, और न पहाड़ पर कहीं कोई दूसरा शख़्स दिखाई दे। भेड़ बकरियाँ और गाय-बैल भी पहाड़ के सामने चरने न पाएँ।
\v 4 ~और मूसा ने पहली~तख़्तियों की तरह पत्थर की दो~तख़्तियाँ~तराशीं, और सुबह सवेरे उठ कर पत्थर की दोनों~तख़्तियाँ~हाथ में लिए हुए ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ कोह-ए-सीना पर चढ़ गया।
\s5
\v 5 ~तब ख़ुदावन्द बादल में हो कर उतरा और उसके साथ वहाँ खड़े हो कर ख़ुदावन्द के नाम का 'ऐलान किया।
\v 6 और ख़ुदावन्द उसके आगे से यह पुकारता हुआ गुज़रा ख़ुदावन्द ख़ुदावन्द ख़ुदा-ए-रहीम और मेहरबान, क़हर करने में धीमा और शफ़क़त और वफ़ा में ग़नी ।
\v 7 ~हज़ारों पर फ़ज़्ल करने वाला, गुनाह और तक़सीर और ख़ता का बख़्शने वाला; लेकिन वह मुजरिम को हरगिज़ बरी नहीं करेगा, बल्कि बाप-दादा के गुनाह की सज़ा उनके बेटों और पोतों को तीसरी और चौथी नसल तक देता है।"
\s5
\v 8 तब मूसा ने जल्दी से सिर झुका कर सिज्दा किया,
\v 9 ~और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, अगर मुझ पर तेरे करम की नज़र है, तो ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि हमारे बीच में होकर चल, अगरचे यह क़ौम बाग़ी है, और तू हमारे गुनाह और ख़ता को मु'आफ़ कर और हम को अपनी मीरास कर ले।"
\s5
\v 10 ~उसने कहा, "देख, मैं 'अहद बाँधता हूँ, कि तेरे सब लोगों के सामने ऐसी करामात करूँगा जो दुनिया भर में और किसी क़ौम में कभी की नहीं गई; और वह सब लोग जिनके बीच तू रहता है, ख़ुदावन्द के काम को देखेंगे क्यूँकि जो मैं तुम लोगों से करने को हूँ वह हैबतनाक काम होगा।
\v 11 ~आज के दिन जो हुक्म मैं तुझे देता हूँ, तू उसे याद रखना। देख, मैं अमोरियों और कना'नियों और हित्तियों और फ़रिज़्ज़यों और हव्वियों और यबूसियों को तेरे आगे से निकालता हूँ।
\s5
\v 12 ~इसलिए ख़बरदार रहना कि जिस मुल्क को तू जाता है उसके बाशिन्दों से कोई 'अहद न बाँधना, ऐसा न हो कि वह तेरे लिए फन्दा ठहरें।
\v 13 ~बल्कि तुम उनकी क़ुर्बानगाहों को ढा देना, और उनके सुतूनों के टुकड़े-टुकड़े कर देना, और उनकी यसीरतों को काट डालना।
\v 14 ~क्यूँकि तुझ को किसी दूसरे मा'बूद की परस्तिश नहीं करनी होगी, इसलिए कि ख़ुदावन्द जिसका नाम ग़य्यूर है वह ख़ुदा-ए-ग़य्यूर है भी।
\s5
\v 15 ~कहीं ऐसा न हो कि तू उस मुल्क के बाशिन्दों से कोई 'अहद बाँध ले और जब वह अपने मा'बूदों की पैरवी में ज़िनाकार ठहरें और अपने मा'बूदों के लिए क़ुर्बानी करें, और कोई तुझ को दा'वत दे और तू उसकी क़ुर्बानी में से कुछ खा ले;
\v 16 ~और तू उनकी बेटियाँ अपने बेटों से ब्याहे और उनकी बेटियाँ अपने मा'बूदों की पैरवी में ज़िनाकार ठहरें, और तेरे बेटों को भी अपने मा'बूदों की पैरवी में ज़िनाकार बना दें।
\v 17 ~"तू अपने लिए ढाले हुए देवता न बना लेना।
\s5
\v 18 ~"तू बेख़मीरी रोटी की 'ईद माना करना। मेरे हुक्म के मुताबिक़ सात दिन तक अबीब के महीने में वक़्त-ए-मुअय्यना पर बेख़मीरी रोटियाँ खाना; क्यूँकि माह-ए-अबीब में तू मिस्र से निकला था।
\s5
\v 19 ~सब पहलौठे मेरे हैं: और तेरे चौपायों में जो नर पहलौटे हों, क्या बछड़े, क्या बर्रे सब मेरे होंगे।
\v 20 ~लेकिन गधे के पहले बच्चे का फ़िदिया बर्रा देकर होगा, और अगर तू फ़िदिया देना न चाहे तो उसकी गर्दन तोड़ डालना; लेकिन अपने सब पहलौठे बेटों का फ़िदिया ज़रूर देना। और कोई मेरे सामने ख़ाली हाथ दिखाई न दे।
\s5
\v 21 ~"छ: दिन काम काज करना लेकिन सातवें दिन आराम करना, हल जोतने और फ़सल काटने के मौसम में भी आराम करना।
\v 22 ~और तू गेहूँ के पहले फल के काटने के वक़्त हफ़्तों की 'ईद, और साल के आख़िर में फ़सल जमा' करने की 'ईद माना करना।
\s5
\v 23 ~तेरे सब मर्द साल में तीन बार ख़ुदावन्द ख़ुदा के आगे जो इस्राईल का ख़ुदा है, हाज़िर हों।
\v 24 ~क्यूँकि मैं क़ौमों को तेरे आगे से निकाल कर तेरी सरहदों को बढ़ा दूँगा, और जब साल में तीन बार तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के आगे हाज़िर होगा तो कोई शख़्स तेरी ज़मीन का लालच न करेगा।
\s5
\v 25 ~"तू मेरी क़ुर्बानी का ख़ून ख़मीरी रोटी के साथ न पेश करना, और 'ईद-ए-फ़सह की क़ुर्बानी में से कुछ सुबह तक बाक़ी न रहने देना।
\v 26 अपनी ज़मीन की पहली पैदावार का पहला फल ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के घर में लाना। हलवान को उसकी माँ के दूध में न पकाना।"
\s5
\v 27 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि "तू यह बातें लिख; क्यूँकि इन्हीं बातों के मतलब के मुताबिक़ मैं तुझ से और इस्राईल से 'अहद बाँधता हूँ।"
\v 28 ~तब वह चालीस दिन और चालीस रात वहीं ख़ुदावन्द के पास रहा और न रोटी खाई और न पानी पिया, और उसने उन~तख़्तियों पर उस 'अहद की बातों को या'नी दस अहकाम को लिखा।
\s5
\v 29 ~और जब मूसा शहादत की दोनों~तख़्तियाँ अपने हाथ में लिए हुए कोह-ए-सीना से उतरा आता था, तो पहाड़ से नीचे उतरते वक़्त उसे ख़बर न थी कि ख़ुदावन्द के साथ बातें करने की वजह से उसका चेहरा चमक रहा है।
\v 30 ~और जब हारून और बनीइस्राईल ने मूसा पर नज़र की और उसके चेहरे को चमकते देखा तो उसके नज़दीक आने से डरे।
\v 31 ~तब मूसा ने उनको बुलाया; और हारून और जमा'अत के सब सरदार उसके पास लौट आए और मूसा उन से बातें करने लगा।
\s5
\v 32 ~और बा'द में सब बनीइस्राईल नज़दीक आए और उसने वह सब अहकाम जो ख़ुदावन्द ने कोह-ए-सीना पर बातें करते वक़्त उसे दिए थे उनको बताए।
\v 33 ~और जब मूसा उनसे बातें कर चुका तो उसने अपने मुँह पर नक़ाब डाल लिया।
\s5
\v 34 ~और जब मूसा ख़ुदावन्द से बातें करने के लिए उसके सामने जाता तो बाहर निकलने के वक़्त तक नक़ाब को उतारे रहता था; और जो हुक्म उसे मिलता था, वह उसे बाहर आकर बनी-इस्राईल को बता देता था।
\v 35 ~और बनी-इस्राईल मूसा के चेहरे को देखते थे कि उसके चेहरे की जिल्द चमक रही है; और जब तक मूसा ख़ुदावन्द से बातें करने न जाता तब तक अपने मुँह पर नक़ाब डाले रहता
\s5
\c 35
\p
\v 1 ~और मूसा ने बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत को जमा' करके कहा, "जिन बातों पर 'अमल करने का हुक्म ख़ुदावन्द ने तुम को दिया है वह यह हैं।
\v 2 ~छ: दिन काम लिए रोज़-ए-मुक़द्दस या'नी ख़ुदावन्द के आराम का सबत हो; जो कोई उसमें कुछ काम करे वह मार डाला जाए।
\v 3 ~तुम सबत के दिन अपने घरों में कहीं भी आग न जलाना।”
\s5
\v 4 ~और मूसा ने बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत से कहा, "जिस बात का हुक्म ख़ुदावन्द ने दिया है वह यह है, कि
\v 5 ~तुम अपने पास से ख़ुदावन्द के लिए हदिया लाया करो। जिस किसी के दिल की खु़शी हो वह ख़ुदावन्द का हदिया लाये सोना और चाँदी और पीतल,
\v 6 ~और आसमानी रंग और अर्ग़वानी रंगऔर सुर्ख़ रंग के कपड़े, और महीन कतान, और बकरियों की पश्म,
\v 7 ~और मेंढों की सुर्ख़ रंगी हुई खालें और तुख़्स की खालें और कीकर की लकड़ी,
\v 8 और जलाने का तेल, और मसह करने के तेल के लिए और ख़ुशबूदार ख़ुशबू के लिए मसाल्हे,
\v 9 ~और अफ़ोद और सीनाबन्द के लिए सुलेमानी पत्थर और और जड़ाऊ पत्थर।
\s5
\v 10 ~"और तुम्हारे बीच जो रौशन ज़मीर हैं, वह आकर वह चीजें बनाएँ जिनका हुक्म ख़ुदावन्द ने दिया है।
\v 11 ~या'नी घर और उसका ख़ेमा और ग़िलाफ़ और उसकी घुन्डियाँ और तख़्तें और बेंडे और उसके ~सुतून, और ख़ाने,
\v 12 ~सन्दूक और उसकी चोबें, सरपोश और बीच का पर्दा,
\s5
\v 13 ~मेज़ और उसकी चोबें और उसके सब बर्तन, और नज़्र की रोटियाँ,
\v 14 ~और रोशनी के लिए शमा 'दान और उसके बर्तन और चराग़ और जलाने का तेल;
\v 15 ~और ख़ुशबू जलाने की क़ुर्बान गाह और उसकी चोबें और मसह करने का तेल, और ख़ुशबूदार ख़ुशबू; और घर के दरवाज़े के लिए दरवाज़े का पर्दा,
\v 16 ~और सोख़्तनी क़ुर्बानी का मज़बह, और उसके लिए पीतल की झंजरी और उसकी चोबें और उसके सब बर्तन, और हौज़ और उसकी कुर्सी;
\s5
\v 17 ~और सहन के पर्दे सुतूनों के साथ और उनके ख़ाने, और सहन के दरवाज़े का पर्दा,
\v 18 और घर की मेंख़े, और सहन की मेखें, और उन दोनों की रस्सियाँ,
\v 19 और मकदिस की खिदमत के लिए बेल बूटे कढ़े हुए लिबास, और हारून काहिन के लिए पाक लिबास और उसके बेटों के लिबास, ताकि वह काहिन की ख़िदमत को अन्जाम दें।
\s5
\v 20 ~तब बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत मूसा के पास से रुख़्सत हुई।
\v 21 ~और जिस जिस का जी चाहा और जिस-जिस के दिल में रग़बत । हुई, वह ख़ेमा -ए-इजतिमा'अ के काम और वहाँ की 'इबादत और पाक लिबास के लिए ख़ुदावन्द का हदिया लाया।
\v 22 ~और क्या मर्द, क्या 'औरत, जितनों का दिल चाहा वह सब जुगनू बालियाँ, अँगूठियाँ और बाजूबन्द, जो सब सोने के ज़ेवर थे लाने लगे। इस तरीके से लोगों ने ख़ुदावन्द को सोने का हदिया दिया।
\s5
\v 23 ~और जिस-जिस के पास आसमानी रंग ~और अर्ग़वानी रंग और सुर्ख़ रंग के कपड़े, और महीन कतान और बकरियों की पश्म और मेंढों की सुर्ख रंगी हुई खाले और तुख़स की खालें थीं, वह उनको ले आए।
\v 24 ~जिसने चाँदी या पीतल का हदिया देना चाहा वह वैसा ही हदिया ख़ुदावन्द के लिए लाया, और जिस किसी के पास कीकर की लकड़ी थी वह उसी को ले आया।
\s5
\v 25 ~और जितनी 'औरतें होशियार थीं उन्होंने अपने हाथों से कात-कात कर आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के और महीन कतान के तार लाकर दिए।
\v 26 ~और जितनी 'औरतों के दिल हिकमत की तरफ़ मायल थे उन्होंने बकरियों की पश्म काती।
\s5
\v 27 ~और जो सरदार थे वह अफ़ोद और सीना बन्द के लिए सुलेमानी पत्थर और जड़ाऊ पत्थर,
\v 28 ~और रोशनी और मसह करने के तेल, और ख़ुशबूदार ख़ुशबू के लिए मसाल्हे और तेल लाए।
\v 29 ~यूँ बनी-इस्राईल अपनी ही ख़ुशी से ख़ुदावन्द के लिए हदिये लाए, या'नी जिस-जिस मर्द या 'औरत का जी चाहा कि इन कामों के लिए जिनके बनने का हुक्म ख़ुदावन्द ने मूसा के ज़रिए' दिया था, कुछ दे वह उन्होंने दिया
\s5
\v 30 ~और मूसा ने बनी-इस्राईल से कहा, "देखो, ख़ुदावन्द ने बज़लीएल बिन ऊरी बिन हूर को जो यहूदाह के क़बीले में से है नाम लेकर बुलाया है।
\v 31 और उसने उसे हिकमत और समझ और अक़्ल और हर तरह की कारीगरी ~के लिए रूह उल्लाह से मा'मूर किया है।
\v 32 ~और कारीगरी ~में और सोना, चाँदी और पीतल के काम में,
\v 33 ~और जड़ाऊ पत्थर और लकड़ी के तराशने में गरज़ हर एक नादिर काम के बनाने में माहिर किया है।
\s5
\v 34 ~और उसने उसे और अखीसमक के बेटे अहलियाब को भी जो दान के क़बीले का है, हुनर सिखाने की क़ाबिलियत बख़्शी है।
\v 35 ~और उनके दिलों में ऐसी हिकमत भर दी है जिससे वह हर तरह की कारीगरी में माहिर हों, और कन्दाकार का और माहिर उस्ताद का और ज़रदोज़ का जो आसमानी, अर्ग़वानी और सु़र्ख रंग के कपड़ों और महीन कतान पर गुलकारी करता है, और जूलाहे का और हर तरह के दस्तकार का काम कर सके और 'अजीब और नादिर चीजें ईजाद करें।
\s5
\c 36
\p
\v 1 फिर~बज़लीएल और अहलियाब और सब रोशन ज़मीर आदमी काम करें, जिनको ख़ुदावन्द ने हिकमत और समझ से मालामाल किया है ताकि वह मक़दिस की ' इबादत के सब काम को ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ अन्जाम दें।
\s5
\v 2 तब मूसा ने बज़लीएल और अहलियाब और सब रोशन ज़मीर आदमियों को बुलाया, जिनके दिल में ख़ुदावन्द ने हिकमत भर दी थी, या'नी जिनके दिल में तहरीक हुई कि जाकर काम करें।
\v 3 ~और जो-जो हदिये बनी-इस्राईल लाए थे कि उनसे मक़दिस की 'इबादत की चीज़ें बनाई जाएँ, वह सब उन्होंने मूसा से ले लिए, और लोग फिर भी अपनी खु़शी से हर सुबह उसके पास हदिये लाते रहे।
\v 4 तब वह सब 'अक़्लमन्द कारीगर जो मक़दिस के सब काम बना रहे थे, अपने-अपने काम को छोड़कर मूसा के पास आए,
\s5
\v 5 ~और वह मूसा से कहने लगे, कि लोग इस काम के सरअन्जाम के लिए, जिसके बनाने का हुक्म ख़ुदावन्द ने दिया है, ज़रूरत से बहुत ज़्यादा ले आए हैं।"
\v 6 ~तब मूसा ने जो हुक्म दिया उसका 'ऐलान उन्होंने तमाम लश्करगाह में करा दिया: कि कोई मर्द या 'औरत अब से मक़दिस के लिए हदिया देने की ग़र्ज़ से कुछ और काम न बनाएँ।" यूँ वह लोग और लाने से रोक दिए गए।
\v 7 ~क्यूँकि जो सामान उनके पास पहुँच चुका था वह सारे काम को तैयार करने के लिए न सिर्फ़ काफ़ी बल्कि ज़्यादा था।
\s5
\v 8 ~और काम करनेवालों में जितने रोशन ज़मीर थे, उन्होंने मक़दिस के लिए बारीक बटे हुए कतान के और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों के दस पर्दे बनाए, जिन पर माहिर उस्ताद के हाथ के कढ़े हुए करूबी थे।
\v 9 ~हर पर्दे की लम्बाई अट्ठाईस हाथ और चौड़ाई चार हाथ थी और वह सब पर्दे एक ही नाप के थे।
\v 10 और उसने पाँच पर्दे एक दूसरे के साथ जोड़ दिए और दूसरे पाँच पर्दे भी एक दूसरे के साथ जोड़ दिए।
\s5
\v 11 ~और उसने एक बड़े पर्दे के हाशिये में उसके मिलाने के रुख़ पर आसमानी रंग के तुकमे बनाए। ऐसे ही तुकमे उसने दूसरे बड़े पर्दे की उस तरफ़ के हाशिये में बनाए जिधर मिलाने का रुख़ था।
\v 12 ~पचास तुकमे उसने एक पर्दे में और पचास ही दूसरे पर्दे के हाशिये में उसके मिलाने के रुख़ पर बनाए, यह तुकमे आपस में एक दूसरे के सामने थे।
\v 13 ~और उसने सोने की पचास घुन्डियाँ बनाई और उन्हीं घुन्डियों से पर्दों को आपस में ऐसा जोड़ दिया कि घर मिलकर एक हो गया।
\s5
\v 14 ~और बकरी के बालों से ग्यारह पर्दे घर के ऊपर के ख़ेमे के लिए बनाए।
\v 15 ~हर पर्दे की लम्बाई तीस हाथ और चौड़ाई चार हाथ थी, और वह ग्यारह पर्दे एक ही नाप के थे।
\v 16 ~और उसने पाँच पर्दे तो एक साथ जोड़े और छ: एक साथ।
\v 17 ~और पचास तुकमे उन जुड़े हुए पर्दों में से किनारे के पर्दे के हाशिये में बनाए और पचास ही तुकमे उन दूसरे जुड़े हुए पर्दों में से किनारे के पर्दे के हाशिये में बनाए।
\s5
\v 18 ~और उसने पीतल की पचास घुन्डियाँ भी बनाई ताकि उनसे उस ख़ेमे को ऐसा जोड़ दे कि वह एक हो जाए।
\v 19 और ख़ेमे के लिए एक ग़िलाफ़ मेंढों की सुर्ख़ रंगी हुई खालों का और उसके लिए ग़िलाफ़ तुख़स की खालों का बनाया।
\s5
\v 20 ~और उसने घर के लिए कीकर की लकड़ी के तख़्ते बनाए कि खड़े किए जाएँ।
\v 21 ~हर तख़्ते की लम्बाई दस हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ थी।
\v 22 और उसने एक एक तख़्ते के लिए दो-दो जुड़ी हुई चूलें बनाई, घर के सब तख़्तों की चूलें ऐसी ही बनाई।
\v 23 और घर के लिए जो तख़्ते बने थे उनमें से बीस तख़्ते दाख्खिनी रुख़ में लगाए।
\s5
\v 24 ~और उसने उन बीसों तख़्तों के नीचे चाँदी के चालीस ख़ाने बनाए, या'नी हर तख़्ते की दोनों चूलों के लिए दो-दो ख़ाने।
\v 25 ~और घर की दूसरी तरफ़ या'नी उत्तरी रुख़ के लिए बीस तख़्ते बनाए।
\v 26 ~और उनके लिए भी चाँदी के चालीस ही ख़ाने बनाए, या'नी एक-एक तख़्ते के नीचे दो-दो ख़ाने।
\s5
\v 27 ~और घर के पिछले हिस्से या'नी पश्चिमी रुख़ के लिए छ: तख़्ते बनाए।
\v 28 ~और दो तख़्ते घर के दोनों कोनों के लिए पिछले हिस्से में बनाए।
\s5
\v 29 ~यह नीचे से दोहरे थे और इसी तरह ऊपर के सिरे तक आकर एक ही हल्के में मिला दिए गए थे, उसने दोनों कोनों के दोनों तख़्ते इसी ढब के बनाए।
\v 30 ~वह, आठ तख़्ते थे और उनके लिए चाँदी के सोलह ख़ाने, या'नी एक-एक तख़्ते के लिए दो-दो ख़ाने।
\s5
\v 31 ~और उसने कीकर की लकड़ी के~बेन्डे~बनाये पाँच~बेन्डे~घर के एक तरफ़~के तख़्तों के लिए,
\v 32 और पाँच बेन्डे घर के दूसरी तरफ़ के तख़्तों के लिए, और पाँच बेन्डे घर के पिछले हिस्से में पश्चिम की तरफ़ के तख़्तों के लिए बनाए।
\v 33 ~और उसने वस्ती बेन्डे को ऐसा बनाया कि तख़्तों के बीच में से होकर एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचे।
\v 34 ~और तख़्तों को सोने से मंढ़ा और सोने के कड़े बनाए, ताकि बेन्डों के लिए ख़ानों का काम दें और बेन्डों को सोने से मंढ़ा।
\s5
\v 35 ~और उसने बीच का पर्दा आसमानी, अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बनाया जिस पर माहिर उस्ताद के हाथ के करूबी कढ़े हुए थे।
\v 36 ~और उसके लिए कीकर के चार सुतून बनाए और उनको सोने से मंढ़ा, उनके कुन्डे सोने के थे और उसने उनके लिए चाँदी के चार ख़ाने ढाल कर बनाए।
\s5
\v 37 ~और उसने ख़ेमे के दरवाज़े के लिए एक पर्दा आसमानी, अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बनाया, वह बेल-बूटेदार था।
\v 38 और उसके लिए पाँच सुतून कुन्डों समेत बनाए और उनके सिरों और पट्टियों को सोने से मंढ़ा, उनके लिए जो पाँच ख़ाने थे वह पीतल के बने हुए थे।
\s5
\c 37
\p
\v 1 ~और बज़लीएल ने वह सन्दूक कीकर की लकड़ी का बनाया, उसकी लम्बाई ढाई हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ और ऊँचाई डेढ़ हाथ थी।
\v 2 ~और उसने उसके अन्दर और बाहर ख़ालिस सोना मंढा और उसके लिए चारों तरफ़ एक सोने का ताज बनाया।
\v 3 ~और उसने उसके चारों पायों पर लगाने को सोने के चार कड़े ढाले, दो कड़े तो उसकी एक तरफ़ और दो दूसरी तरफ़ थे।
\s5
\v 4 ~और उसने कीकर की लकड़ी की चोबें बनाकर उनको सोने से मंढ़ा।
\v 5 ~और उन चोबों को सन्दूक के दोनों तरफ़ के कड़ों में डाला ताकि सन्दूक उठाया जाए।
\v 6 ~और उसने सरपोश ख़ालिस सोने का बनाया, उसकी लम्बाई ढाई हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ थी।
\s5
\v 7 और उसने सरपोश के दोनों सिरों पर सोने के दो करूबी गढ़ कर बनाए।
\v 8 ~एक करूबी को उसने एक सिरे पर रख्खा और दूसरे को दूसरे सिरे पर, दोनों सिरों के करूबी और सरपोश एक ही टुकड़े से बने थे।
\v 9 ~और करूबियों के बाजू ऊपर से फैले हुए थे और उनके बाजूओं से सरपोश ढका हुआ था, और उन करूबियों के चेहरे सरपोश की तरफ़ और एक दूसरे के सामने थे।
\s5
\v 10 ~और उसने वह मेज़ कीकर की लकड़ी की बनाई, उसकी लम्बाई दो हाथ और चौड़ाई एक हाथ और ऊँचाई डेढ़ हाथ थी।
\v 11 ~और उसने उसको ख़ालिस सोने से मंढ़ा और उसके लिए चारों तरफ़ सोने का एक ताज बनाया।
\v 12 और उसने एक कंगनी चार उंगल चौड़ी उसके चारों तरफ़ रख्खी और उस कंगनी पर चारों तरफ़ सोने का एक ताज बनाया।
\v 13 ~और उसने उसके लिए सोने के चार कड़े ढाल कर उनको उसके चारों पायों के चारों कोनों में लगाया।
\s5
\v 14 ~यह कड़े कंगनी के पास थे, ताकि मेज़ उठाने की चोबों के ख़ानों का काम दें।
\v 15 और उसने मेज़ उठाने की वह चोबें कीकर की लकड़ी की बनाई और उनको सोने से मंढ़ा।
\v 16 और उसने मेज़ पर के सब बर्तन, या'नी उसके तबाक़ और चमचे और बड़े-बड़े प्याले और उंडेलने के लोटे ख़ालिस सोने के बनाए।
\s5
\v 17 ~और उसने शमा'दान ख़ालिस सोने का बनाया। वह शमा'दान और उसका पायाऔर उसकी डन्डी गढ़े हुए थे। यह सब और उसकी प्यालियाँ और लट्टू और फूल एक ही टुकड़े के बने हुए थे।
\v 18 ~और छ: शाखें उसकी दोनों तरफ़ से निकली हुई थीं। शमा'दान की तीन शाख़ें तो उसकी एक तरफ़ से और तीन शाख़ उसकी दूसरी तरफ़ से।
\v 19 और एक शाख़ में बादाम के फूल की शक्ल की तीन प्यालियाँ और एक लट्टू और एक फूल था, और दूसरी शाख़ में भी बादाम के फूल की शक्ल की तीन प्यालियाँ और एक लट्टू और एक फूल था। ग़र्ज़ उस शमा'दान की छहों शाखों में सब कुछ ऐसा ही था।
\s5
\v 20 और ख़ुद शमा'दान में बादाम के फूल की शक्ल की चार प्यालियाँ अपने-अपने लट्टू और फूल समेत बनी थीं।
\v 21 ~और शमा'दान की छहों निकली हुई शाख़ों में से हर दो-दो शाखें और एक-एक लट्टू एक ही टुकड़े के थे।
\v 22 ~उनके लट्टू और उनकी शाख़ें सब एक ही टुकड़े के थे। सारा शमा'दान ख़ालिस सोने का और एक ही टुकड़े का गढ़ा हुआ था।
\s5
\v 23 ~और उसने उसके लिए सात चराग़ बनाए और उसके गुलगीर और गुलदान ख़ालिस सोने के थे।
\v 24 और उसने उसको और उसके सब बर्तन को एक किन्तार ख़ालिस सोने से बनाया
\s5
\v 25 ~और उसने ख़ुशबू जलाने की क़ुर्बानगाह कीकर की लकड़ी की बनाई, उसकी लम्बाई एक हाथ और चौड़ाई एक हाथ थी। वह चौकोर थी और उसकी ऊँचाई दो हाथ थी और वह और उसके सींग एक ही टुकड़े के थे।
\v 26 ~और उसने उसके ऊपर की सतह और चारों तरफ़ की अतराफ़ और सींगों को ख़ालिस सोने से मढ़ा और उसके लिए सोने का एक ताज चारों तरफ़ बनाया।
\s5
\v 27 ~और उसने उसकी दोनों तरफ़ के दोनों पहलुओं में ताज के नीचे सोने के दो कड़े बनाए जो उसके उठाने की चोबों के लिए ख़ानों का काम दें।
\v 28 ~और चोबें कीकर की लकड़ी की बनाई और उनको सोने से मढ़ा।
\v 29 ~और उसने मसह करने का पाक तेल और खु़शबूदार मसाल्हे का ख़ालिस ख़ुशबू गन्धी की हिकमत के मुताबिक़ तैयार किया।
\s5
\c 38
\p
\v 1 ~और उसने सोख़्तनी क़ुर्बानी का मज़बह कीकर की लकड़ी का बनाया; उसकी लम्बाई पाँच हाथ और चौड़ाई पाँच हाथ थी, वह चौकोर था और उसकी ऊँचाई तीन हाथ थी।
\v 2 ~और उसने उसके चारों कोनों पर सींग बनाए सींग और वह मज़बह दोनों एक ही टुकड़े के थे, और उसने उसको पीतल से मंढ़ा।
\v 3 ~और उसने मज़बह के सब बर्तन, या'नी देगें और बेलचे और कटोरे और सीहें और अंगूठियाँ बनायीं उसके सब बर्तन पीतल के थे।
\s5
\v 4 ~और उसने मज़बह के लिए उसकी चारों तरफ़ किनारे के नीचे पीतल की जाली की झंजरी इस तरह लगाई कि वह उसकी आधी दूर तक पहुँचती थी।
\v 5 ~और उसने पीतल की झंजरी के चारों कोनों में लगाने के लिए चार कड़े ढाले ताकि चोबों के लिए ख़ानों का काम दें।
\s5
\v 6 और चोबें कीकर की लकड़ी की बनाकर उनको पीतल से मंढ़ा।
\v 7 और उसने वह चोबें मज़बह की दोनों तरफ़ के कड़ों में उसके उठाने के लिए डाल दीं। वह खोखला तख़्तों का बना हुआ था।
\s5
\v 8 ~और जो ख़िदमत गुज़ार 'औरतें ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर ख़िदमत करती थीं, उनके आईनों के पीतल से उसने पीतल का हौज़ और पीतल ही की उसकी कुर्सी बनाई
\s5
\v 9 फिर उसने सहन बनाया, और दख्खिनी रुख़ के लिए उस सहन के पर्दे बारीक बटे हुए कतान के थे और सब मिला कर सौ हाथ लम्बे थे।
\v 10 उनके लिए बीस सुतून और उनके लिए पीतल के बीस ख़ाने थे, और सुतून के कुन्डे और पट्टियाँ चाँदी की थीं।
\s5
\v 11 ~और उत्तरी रुख़ में भी वह सौ हाथ लम्बे और उनके लिए बीस सुतून और उनके लिए बीस ही पीतल के ख़ाने थे, और सुतूनों के कुन्डे और पट्टियाँ चाँदी की थीं।
\v 12 ~और पश्चिमी रुख़ के लिए सब पर्दे मिला कर पचास हाथ के थे, उनके लिए दस सुतून और दस ही उनके ख़ाने थे और सुतूनों के कुन्डे और पट्टियाँ चाँदी की थीं।
\s5
\v 13 ~और पूर्वी रुख़ में भी वह पचास ही हाथ के थे।
\v 14 ~उसके दरवाज़े की एक तरफ़ पन्द्रह हाथ के पर्दे और उनके लिए तीन सुतून और तीन ख़ाने थे |
\v 15 और दुसरी तरफ़ भी वैसा ही था तब सहन के दरवाज़े के इधर और उधर पंद्रह-पन्द्रह हाथ के पर्दे थे |उनके लिए तीन-तीन सुतून और तीन ही तीन ख़ाने थे |
\v 16 सहन के चारों तरफ़ के सब पर्दे बारीक बटे हुए कतान के बुने हुए थे |
\s5
\v 17 और सुतूनों के ख़ाने पीतल के और उनके कुंडे और पट्टियाँ चाँदी की थी| उनके सिरे चाँदी से मंढ़े हुए और सहन के कुल सुतून चाँदी की पट्टियों से जड़े हुए थे |
\v 18 और सहन के दरवाज़े के पर्दे पर बेल बूटे का काम था, और वह आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़े और बारीक बटे हुए कतान का बुना हुआ था; उसकी लम्बाई बीस हाथ और ऊँचाई सहन के पर्दे की चौड़ाई के मुताबिक़ पाँच हाथ थी |
\v 19 उनके लिए चार सुतून और चार ही उनके लिए पीतल के ख़ाने थे, उनके कुन्दे चाँदी के थे और उनके सिरों पर चाँदी मंढी हुई थी और उनकी पट्टियाँ भी चाँदी की थीं |
\v 20 और घर के और सहन के चारो तरफ़~की सब मेखे़ं पीतल ~की थीं
\s5
\v 21 और ~घर या'नी मस्कन-ए-शहादत के जो सामान लावियों की ख़िदमत के लिए बने और जिनको मूसा के हुक्म के मुताबिक़ हारून काहिन के बेटे इतमर ने गिना, उनका हिसाब यह है|
\v 22 बज़लीएल बिन-ऊरी बिन-हूर ने जो यहूदाह के क़बीले का था, सब कुछ जो ख़ुदावन्द ने मूसा को फ़रमाया था बनाया |
\v 23 और उसके साथ दान के क़बीले का अहलियाब बिन अख़ीसमक था जो खोदने में माहिर कारीगर था और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ो और बारीक कतान पर बेल-बूटे काढ़ता था
\s5
\v 24 सब सोना जो मक़दिस की चीज़ों के काम में लगा, या'नी हदिये का सोना उन्तीस क़िन्तार और मक़दिस की मिस्क़ाल के हिसाब से एक हज़ार सात सौ पिछत्तर मिस्क़ाल था |
\v 25 और जमा'त में से गिने हुए लोगों के हदिये की चाँदी एक सौ क़िन्तार और मक़दिस की मिस्क़ाल के हिसाब से एक हज़ार सात सौ पिछत्तर~मिस्क़ाल थी |
\v 26 मक़दिस की मिस्क़ाल के हिसाब से हरआदमी जो निकल कर शुमार किए हुओ में मिल गया एक बिका, या'नी नीम मिस्क़ाल बीस बरस और उससे ज़्यादा 'उम्र लोगों से लिया गया था यह छ:लाख तीन हज़ार साढ़े पाँच सौ मर्द थे |
\s5
\v 27 इस सौ~क़िन्तार चाँदी से मक़दिस के और बीच के पर्दे के ख़ाने ढाले गए, सौ~क़िन्तार से सौ ही ख़ाने बने या'नी एक-एक क़िन्तार |एक-एक ख़ाने में लगा
\v 28 और एक हज़ार सात सौ पिछत्तर मिस्क़ाल चाँदी से सुतूनों के कुन्डे बने और उनके सिरे मंढे गए और उनके लिए पट्टियाँ तैयार हुई |
\v 29 और हदिये का पीतल सत्तर क़िन्तार और दो हज़ार चार सौ मिस्क़ाल था |
\s5
\v 30 इससे उसने ख़ेमें-ए-इज्तिमा'अ के दरवाज़े के ख़ाने और पीतल का मज़बह और उसके लिए पीतल की झंजरी और मज़बह के सब बर्तन,
\v 31 और सहन के चारों तरफ़ के ख़ाने और सहन के दरवाज़े के ख़ाने और घर की मेख़ें और सहन के चारों तरफ़ की मेख़ें ~बनाई |
\s5
\c 39
\p
\v 1 ~और उन्होंने मक़दिस में ख़िदमत करने के लिए आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ बेल बूटे कढ़े हुए लिबास और हारून के लिए पाक लिबास, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था बनाए।
\s5
\v 2 ~और उसने सोने, और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का अफ़ोद बनाया।
\v 3 ~और उन्होंने सोना पीट पीट कर पतले-पतले पत्तर और पतरों को काट-काट कर तार बनाए, ताकि आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के ~कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान पर माहिर उस्ताद की तरह उनसे ज़रदोज़ी करें।
\s5
\v 4 ~और अफ़ोद को जोड़ने के लिए उन्होंने दो मोंढे बनाए और उनके दोनों सिरों को मिलाकर बाँध दिया।
\v 5 ~और उसके कसने के लिए कारीगरी से बुना हुआ कमरबन्द जो उसके ऊपर था, वह भी उसी टुकड़े और बनावट का था, या'नी सोने और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बना हुआ था; जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।
\s5
\v 6 और उन्होंने सुलेमानी पत्थर काट कर साफ़ किए जो सोने के ख़ानों में जड़े गए, और उन पर अँगूठी के नक़्श की तरह बनीइस्राईल के नाम खुदे थे।
\v 7 ~और उसने उनको अफ़ोद के मोंढों पर लगाया ताकि वह बनी-इस्राईल की यादगारी के पत्थर हों, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।
\s5
\v 8 ~और उसने अफ़ोद की बनावट का सीनाबन्द तैयार किया जो माहिर उस्ताद के हाथ का काम था, या'नी वह सोने और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बना हुआ था।
\v 9 ~वह चौकोर था; उन्होंने उस सीनाबन्द को दोहरा बनाया और दोहरा होने पर उसकी लम्बाई एक बालिश्त और चौड़ाई एक बालिश्त थी।
\s5
\v 10 इस पर चार कतारों में उन्होंने जवाहर जड़े। याकू़त-ए-सुर्ख़, और पुखराज, और ज़मुर्रुद की कतार तो पहली कतार थी।
\v 11 ~और दूसरी क़तार में गौहर-ए-शब चराग़, और नीलम, और हीरा:
\v 12 ~तीसरी कतार में लश्म, और यश्म, और याकू़त:
\v 13 ~चौथी क़तार में फ़ीरोज़ा, और संग-ए-सुलेमानी, और ज़बरजद; यह सब अलग-अलग सोने के ख़ानों में जड़े हुए थे।
\s5
\v 14 ~और यह पत्थर इस्राईल के बेटों के नामों के शुमार के मुताबिक़ बारह थे और अँगूठी के नक़्श की तरह बारह क़बीलों में से एक-एक का नाम अलग-अलग एक एक पत्थर पर ख़ुदा था।
\v 15 ~और उन्होंने सीना बन्द पर डोरी की तरह गुन्धी हुई ख़ालिस सोने की ज़न्जीरें बनाई।
\v 16 ~और उन्होंने सोने के दो ख़ाने और सोने के दो कड़े बनाए और दोनों कड़ों को सीनाबन्द के दोनों सिरों पर लगाया।
\s5
\v 17 ~और सोने की दोनों गुन्धी हुई ज़न्जीरें उन कड़ों में पहनाई जो सीनाबन्द के सिरों पर थे
\v 18 ~और दोनों गुन्धी हुई ज़न्जीरों के बाक़ी दोनों सिरों को दोनों ख़ानो में जड़कर उनको अफ़ोद के दोनों मोंढों पर सामने के रुख़ लगाया।
\s5
\v 19 ~और उन्होंने सोने के दो कड़े और बना कर उनको सीना बन्द के दोनो सिरों के उस हाशिये में लगाया जिस का रुख़ अन्दर अफ़ोद की तरफ़ था |
\v 20 और उन्होंने सोने ~के दो कड़े और बना कर उनको अफ़ोद के दोनों मेढ़ों के सामने के हिस्से में अन्दर के रुख़ जहाँ अफ़ोद जुड़ा था लगाया ताकि वह अफ़ोद के कारीगरी से बुने हुए पटके के ऊपर रहे |
\s5
\v 21 और उन्होंने सीना बन्द को लेकर उसके कड़े को अफ़ोद के कड़ों के साथ एक नीले फ़ीते से इस तरह बाँधा कि वह अफ़ोद के कारीगरी से बने हुए पटके के ऊपर रहे और सीना बन्द ढीला होकर अफ़ोद से अलग न होने पाए जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था |
\s5
\v 22 और उसने अफ़ोद का जुब्बा बुन कर बिल्कुल आसमानी रंग का बनाया |
\v 23 और उसका गिरेबान ज़िरह के गिरेबान की तरह बीच में था और उसके चारों तरफ़ गोट लगी ~हुई थी ताकि वह फट न जाए |
\v 24 और उन्होंने उसके दामन के घेरे में आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के बटे हुए तार से अनार बनाये |
\s5
\v 25 और ख़ालिस सोंने की घंटियाँ बना कर उनको जुब्बे के दामन के घेरे में चारों तरफ़ अनारों के बीच लगाया |
\v 26 तब जुब्बे के दामन के सारे घेरे में ख़िदमत करने के लिए एक-एक घन्टी थी और फिर एक-एक अनार जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था |
\s5
\v 27 और उन्होंने बारीक कतान के बुने हुए कुरते हारून और उसके बेटों के लिए बनाये |
\v 28 और बारीक कतान का 'अमामा, और बारीक कतान की ख़ूबसूरत पगड़ियाँ, और बारीक बटे हुए कतान के पजामे,
\v 29 और बारीक बटे हुए कतान, और आसमानी अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों का बेल बूटेदार कमरबन्द~भी बनाया; जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था |
\s5
\v 30 और उन्होंने पाक ताज का पत्तर ख़ालिस सोने का बनाकर उस पर अँगूठी के नक़्श की तरह यह खुदवाया: ख़ुदावन्द के लिए पाक |
\v 31 और उसे 'अमामे के साथ ऊपर बाँधने के लिए उसमे एक नीला फ़ीता लगाया, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था |
\s5
\v 32 इस तरह ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ के घर का सब काम ख़त्म हुआ और बनी इस्राईल ने सब कुछ जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था वैसा ही किया |
\v 33 और वह घर को मूसा के पास लाए, या'नी ख़ेमा, और उसका सारा सामान, उसकी घुन्डियाँ, और तख़्ते, बेन्डे और सुतून और ख़ाने;
\v 34 और घटा टोप, मेंढों की सुर्ख़ रंगी हुई खालों का ग़िलाफ़ और तुख़स की खालों का~~ग़िलाफ़ और बीच का पर्दा;
\v 35 शहादत का सन्दूक़ और उसकी चोबें और सरपोश,
\s5
\v 36 और मेज़ और उसके सब बर्तन और नज़्र की रोटी;
\v 37 और पाक शमा'दान और उसकी सजावट के चराग़ और उसके सब बर्तनऔर जलाने का तेल;
\v 38 और ज़र्रीन क़ुर्बानगाह, और मसह करने का तेल और ख़ुशबूदार ख़ुशबू और ख़ेमे के दरवाज़े का पर्दा;
\v 39 और पीतल मढ़ा हुआ मज़बह, और पीतल की झंजरी, और उसकी चोबें और उसके सब बर्तन और हौज़ और उसकी कुर्सी;
\s5
\v 40 सहन के पर्दे और उनके सुतून और ख़ाने और सहन के दरवाज़े का पर्दा और उसकी रस्सियाँ और मेख़े और ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ के काम के लिए घर की 'इबादत के सब सामान;
\v 41 और पाक मुक़ाम कि ख़िदमत के लिए कढ़े हुए लिबास और हारून काहिन के पाक लिबास और उसके बेटों के लिबास जिनको पहन कर उनको काहिन की ख़िदमत को अन्जाम देना था |
\s5
\v 42 जो कुछ ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था उसी के मुताबिक़ बनीइस्राईल ने सब काम बनाया|
\v 43 और मूसा ने सब काम का मुलाहज़ा किया और देखा कि उन्होंने उसे कर लिया है जैसा ख़ुदावन्द ने हुक्म दिया था उन्होंने सब कुछ वैसा ही किया, और मूसा ने उनको बरकत दी |
\s5
\c 40
\p
\v 1 और खुदावन्द ने मूसा से कहा;
\v 2 पहले महीने की पहली तारीख़ को तू ख़ेमा इज्तिमा' के घर को खड़ा कर देना |
\s5
\v 3 और उस में शहादत का संदूक रख कर संदूक पर बीच का पर्दा खींच देना |
\v 4 और मेज़ को अन्दर ले जाकर उस पर की सब चीज़ें तरतीब से सजा देना और शमा'दान को अन्दर करके उसके चराग़ रोशन कर देना |
\s5
\v 5 और ख़ुशबू जलाने की ज़र्रीन क़ुर्बानगाह को शहादत के संदूक़ के सामने रखना और घर के दरवाज़े का पर्दा लगा देना |
\v 6 और सोख़्तनी क़ुर्बानी का मज़बह ख़ेमा-ऐ-इज्तिमा'आ के घर के दरवाज़े के सामने रखना|
\v 7 और हौज़ को ख़ेमा-ऐ-इज्त्तिमा'अ और मज़बह के बीच में रख ~कर~उसमे पानी भर देना
\s5
\v 8 और सहन के चारो तरफ़ से घेर कर सहन के दरवाज़े में पर्दा ~लटका देना |
\v 9 और मसह करने का तेल लेकर घर को और उसके अन्दर के सब चीजों को मसह करना; और यूँ उसे और उसके सब बर्तन को पाक करना तब वह पाक ठहरेगा |
\v 10 और तू सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह और उसके सब बर्तन को मसह करके मज़बह को पाक करना, और मज़बह निहायत ही पाक ठहरेगा
\v 11 और तू हौज़ और उसकी कुर्सी को भी मसह करके पाक करना |
\s5
\v 12 और हारून और उसके बेटे को ख़ेमा-ऐ-इज्त्तिमा'अ के दरवाज़े पर लाकर उसको पानी से ग़ुस्ल दिलाना
\v 13 और हारून को पाक लिबास पहनाना और उसे मसह और पाक करना, ताकि वह मेरे लिए काहिन की ख़िदमत को अन्जाम दे
\s5
\v 14 और उनके बेटों को लाकर उनको कुरते पहनाना,
\v 15 और जैसा उनके बाप को मसह करे वैसा ही उनको भी मसह करना, ताकि वह मेरे लिए काहिन की ख़िदमत को अन्जाम दे;और उनका मसह होना उनके लिए नसल-दर-नसल हमेशा की कहानत का निशान होगा|"
\v 16 और मूसा ने सब कुछ जैसा ख़ुदावन्द ने उसको हुक्म किया था उसके मुताबिक़ किया |
\s5
\v 17 और दूसरे साल के पहले महीने की पहली तारीख़ को घर खड़ा किया गया |
\v 18 और मूसा ने घर को खड़ा किया और ख़ानों को रख कर उनमे तख़्ते लगा उनके बेन्डे खींच दिए और उसके सुतूनों खड़ा कर दिया |
\v 19 और घर के ऊपर ख़ेमे को तान दिया और ख़ेमा पर उसका ग़िलाफ़ चढ़ा दिया, जैसे ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था |
\v 20 और शहादतनामे को लेकर सन्दूक़ में रख्खा, और चोबों को सन्दूक़ में लगा सरपोश को सन्दूक़ के ऊपर रख्खा;
\s5
\v 21 फिर उस सन्दूक़ को घर के अन्दर लाया, और बीच का पर्दा लगा कर शहादत के सन्दूक़ को पर्दे के अन्दर किया, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।
\v 22 ~और मेज़ को उस पर्दे के बाहर घर को उत्तरी रुख़ में ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के अन्दर रख्खा,
\v 23 ~और उस पर ख़ुदावन्द के आमने सामने रोटी सजाकर रख्खी, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।
\s5
\v 24 ~और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के अन्दर ही मेज़ के सामने घर की दाख्खिनी रुख़ में शमा'दान को रख्खा,
\v 25 ~और चराग़ ख़ुदावन्द के सामने रोशन कर दिए, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।
\s5
\v 26 ~और ज़रीन क़ुर्बानगाह को ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के अन्दर पर्दे के सामने रख्खा,
\v 27 ~और उस पर ख़ुशबूदार मसाल्हे का ख़ुशबू ~जलाया, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था
\s5
\v 28 और उसने घर के दरवाज़े में पर्दा लगाया था।
\v 29 ~और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के घर के दरवाज़े पर सोख़्तनी क़ुर्बानी का मज़बह रखकर उस पर सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़्र की क़ुर्बानी पेश कीं, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया,
\v 30 ~और उसने हौज़ को ख़ेमा-ए-इजितमा'अ और मज़बह के बीच में रखकर उसमें धोने के लिए पानी भर दिया।
\s5
\v 31 ~और मूसा और हारून और उसके बेटों ने अपने-अपने हाँथ-पाँव उसमे धोए|
\v 32 ~जब-जब वह ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के अन्दर दाख़िल होते, और जब-जब वह मज़बह के नज़दीक जाते तो अपने आपको धोकर जाते थे, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।
\v 33 ~और उसने घर और मज़बह के चारों तरफ़ सहन को घेर कर सहन के दरवाज़े का पर्दा डाल दिया यूँ मूसा ने उस काम को ख़त्म किया।
\s5
\v 34 ~तब ख़ेमा-ए-इजितमा'अ पर बादल छा गया, और घर ख़ुदावन्द के जलाल से भरा हो गया।
\v 35 और मूसा ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में दाख़िल न हो सका क्यूँकि वह बादल उस पर ठहरा हुआ था, और घर ख़ुदावन्द के जलाल से भरा था |
\s5
\v 36 ~और बनी-इस्राईल के सारे सफ़र में यह होता रहा कि जब वह बादल घर के ऊपर से उठ जाता तो वह आगे बढ़ाते,
\v 37 लेकिन अगर वह बादल न उठता तो उस दिन तक सफ़र नहीं करते थे जब तक वह उठ न जाता|
\v 38 क्यूँकि ख़ुदावन्द का बादल इस्राईल के सारे घराने ~के समाने और उनके सारे सफ़र में दिन के वक़्त तो घर के ऊपर ठहरा रहता और रात को उसमें आग रहती थी|

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03-LEV.usfm Normal file
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\id LEV
\ide UTF-8
\h अहबार
\toc1 अहबार
\toc2 अहबार
\toc3 lev
\mt1 अहबार
\s5
\c 1
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द ने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में से मूसा को बुलाकर उससे कहा,
\v 2 बनी-इस्राईल से कह, कि जब तुम में से कोई ख़ुदावन्द के लिए चढ़ावा चढ़ाए, तो तुम चौपायों या'नी गाय-बैल और भेड़-बकरी का हदिया देना।
\s5
\v 3 अगर उसका चढ़ावा गाय-बैल की सोख़्तनी क़ुर्बानी हो, तो वह बे'ऐब नर को लाकर उसे ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर चढ़ाए ताकि वह ख़ुद ख़ुदावन्द के सामने मक़बूल ठहरे।
\v 4 और वह सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवर के सिर पर अपना हाथ रख्खे, तब वह उसकी तरफ़ से मक़बूल होगा ताकि उसके लिए कफ़्फ़ारा हो।
\s5
\v 5 ~और वह उस बछड़े को ख़ुदावन्द के सामने ज़बह करे, और हारून के बेटे जो काहिन हैं ख़ून को लाकर उसे उस मज़बह पर चारों तरफ़ छिड़कें जो ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर है।
\v 6 तब वह उस सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवर की खाल खींचे और उसके 'उज़्व-'उज़्व को काट कर जुदा-जुदा करे।
\s5
\v 7 ~फिर हारून काहिन के बेटे मज़बह पर आग रख्खें, और आग पर लकड़ियाँ तरतीब से चुन दें।
\v 8 और हारून के बेटे जो काहिन हैं, उसके 'आज़ा को और सिर और चर्बी ~को उन लकड़ियों पर जो मज़बह की आग पर होंगी तरतीब से रख दें।
\v 9 ~लेकिन वह उसकी अंतड़ियों और पायों को पानी से धो ले, तब काहिन सबको मज़बह पर जलाए कि वह सोख़्तनी क़ुर्बानी या'नी ख़ुदावन्द के लिए राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी हों|
\s5
\v 10 और अगर उसका चढ़ावा रेवड़ में से भेड़ या बकरी की सोख़्तनी क़ुर्बानी हो, तो वह बे-'ऐब नर को लाए।
\v 11 ~और वह उसे मज़बह की उत्तरी सिम्त में ख़ुदावन्द के आगे ज़बह करे, और हारून के बेटे जो काहिन हैं उसके ख़ून को मज़बह पर चारों तरफ़ छिड़कें।
\s5
\v 12 ~फिर वह उसके 'उज़्व-'उज़्व को और सिर और चर्बी को काट कर जुदा-जुदा करे, और काहिन उनकी तरतीब से उन लकड़ियों पर जो मज़बह की आग पर होंगी चुन दे;
\v 13 ~लेकिन वह अंतड़ियों और पायों को पानी से धो ले। तब काहिन सबको लेकर मज़बह पर जला दे, वह सोख़्तनी क़ुर्बानी या'नी ख़ुदावन्द के लिए राहतअंगेज़ ख़ूशबू की आतिशी क़ुर्बानी है।
\s5
\v 14 ~"और अगर उसका चढ़ावा ख़ुदावन्द के लिए परिन्दों की सोख़्तनी क़ुर्बानी हो, तो वह कुमरियों या कबूतर के बच्चों का चढ़ावा चढ़ाए।
\v 15 और काहिन उसको मज़बह पर लाकर उसका सिर मरोड़ डाले, और उसे मज़बह पर जला दे; और उसका ख़ून मज़बह के पहलू पर गिर जाने दे।
\s5
\v 16 और उसके पोटे को आलाइश के साथ ले जाकर मज़बह की पूरबी सिम्त में राख की जगह में डाल दे|
\v 17 ~ और वह उसके दोनों बाज़ुओं को पकड़ कर उसे चीरे पर अलग-अलग न करे। तब काहिन उसे मज़बह पर उन लकड़ियों के ऊपर रख कर जो आग पर होंगी जला दे, वह सोख़्तनी क़ुर्बानी या'नी ख़ुदावन्द के लिए राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी है।
\s5
\c 2
\p
\v 1 और अगर कोई ख़ुदावन्द के लिए नज़्र की क़ुर्बानी का हदिया लाए, तो अपने हदिये के लिए मैदा ले और उसमें तेल डाल कर उसके ऊपर लुबान रख्खे;
\v 2 ~और वह उसे हारून के बेटों के पास जो काहिन हैं लाए, और तेल मिले हुए मैदे में से इस तरह अपनी मुट्ठी भर कर निकाले कि सब लुबान उसमें आ जाए। तब काहिन उसे नज़्र की क़ुर्बानी की यादगारी के तौर पर मज़बह के ऊपर जलाए। यह ख़ुदावन्द के लिए राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी होगी।
\v 3 ~और जो कुछ उस नज़्र की क़ुर्बानी में से बाक़ी रह जाए, वह हारून और उसके बेटों का होगा। यह ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानियों में पाकतरीन चीज़ है।
\s5
\v 4 ~"और जब तू तनूर का पका हुआ नज़्र की क़ुर्बानी का हदिया लाए, तो वह तेल मिले हुए मैदे के बेख़मीरी गिरदे या तेल चुपड़ी हुई बेख़मीरी चपातियाँ हों।
\v 5 ~और अगर तेरी नज़्र की क़ुर्बानी का चढ़ावा तवे का पका हुआ हो, तो वह तेल मिले हुए बेख़मीरी मैदे का हो।
\s5
\v 6 ~उसको टुकड़े-टुकड़े करके उस पर तेल डालना, तो वह नज़्र की क़ुर्बानी होगी।
\v 7 ~और अगर तेरी नज़्र की क़ुर्बानी का चढ़ावा कढ़ाई का तला हुआ हो, तो वह मैदे से तेल में बनाया जाए।
\s5
\v 8 ~तू इन चीज़ों की नज़्र की क़ुर्बानी का चढ़ावा ख़ुदावन्द के पास लाना, वह काहिन को दिया जाए। और वह उसे मज़बह के पास लाए।
\v 9 और काहिन उस नज़्र की क़ुर्बानी में से उसकी यादगारी का हिस्सा उठा कर मज़बह पर जलाए, यह ख़ुदावन्द के लिए राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी होगी।
\v 10 और जो कुछ उस नज़्र की क़ुर्बानी में से बच रहे वह हारून और उसके बेटों का होगा। यह ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानियों में पाकतरीन चीज़ है।
\s5
\v 11 कोई नज़्र की क़ुर्बानी जो तुम ख़ुदावन्द के सामने चढ़ाओ, वह ख़मीर मिला कर न बनाई जाए; तुम कभी आतिशी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने ख़मीर या शहद न जलाना।
\v 12 ~तुम इनको पहले फलों के हदिये के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने लाना, लेकिन राहतअंगेज़ ख़ुशबू के लिए वह मज़बह पर न पेश किये जाएँ।
\v 13 ~और तू अपनी नज़्र की क़ुर्बानी के हर हदिये को नमकीन बनाना, और अपनी किसी नज़्र की क़ुर्बानी को अपने ख़ुदा के 'अहद के नमक बग़ैर न रहने देना; अपने सब हदियों के साथ नमक भी पेश करना।
\s5
\v 14 ~'और अगर तू पहले फलों की नज़्र का हदिया ख़ुदावन्द के सामने पेश करे तो अपने पहले फलों की नज़्र के चढ़ावे के लिए अनाज की भुनी हुई बालें, या'नी हरी-हरी बालों में से हाथ से मलकर निकाले हुए अनाज को चढ़ाना।
\v 15 ~और उसमें तेल डालना और उसके ऊपर लुबान रखना, तो वह नज़्र की क़ुर्बानी होगी।
\v 16 ~और काहिन उसकी यादगारी के हिस्से को, या'नी थोड़े से मल कर निकाले हुए दानों को और थोड़े से तेल को और सारे लुबान को जला दे; यह ख़ुदावन्द के लिए आतिशी क़ुर्बानी होगी।
\s5
\c 3
\p
\v 1 और अगर उसका हदिया सलामती का ज़बीहा हो और वह गाय बैल में से किसी को अदा करे, तो चाहे वह नर हो या मादा; लेकिन जो बे-'ऐब हो उसी को वह ख़ुदावन्द~के सामने पेश करे।
\v 2 और वह अपना हाथ अपने हदिये के जानवर के सिर पर रख्खे, और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर उसे ज़बह करे; और हारून के बेटे जो काहिन हैं उसके ख़ून को मज़बह पर चारों तरफ़ छिड़कें।
\s5
\v 3 ~और वह सलामती के ज़बीहे में से ख़ुदावन्द के लिए आतिशी क़ुर्बानी पेश करे, या'नी जिस चर्बी से अंतड़ियाँ ढकी रहती हैं,
\v 4 और वह सारी चर्बी जो अंतड़ियों पर लिपटी रहती है, और दोनों गुर्दे और उनके ऊपर की चर्बी जो कमर के पास रहती है, और जिगर पर की झिल्ली गुर्दों के साथ; इन सभों को वह जुदा करे।
\v 5 और हारून के बेटे उन्हें मज़बह पर सोख़्तनी क़ुर्बानी के ऊपर जलाएँ जो उन लकड़ियों पर होगी जो आग के ऊपर हैं; यह ख़ुदावन्द के लिए राहतअंगेज़ ख़ुशबू की अतिशी क़ुर्बानी है।
\s5
\v 6 और अगर उसका सलामती के ज़बीहे का हदिया ख़ुदावन्द के लिए भेड़-बकरी में से हो, तो चाहे नर हो या मादा, लेकिन जो बे-'ऐब हो उसी को वह अदा करे।
\v 7 ~अगर वह बर्रा पेश करता हो, तो उसे ख़ुदावन्द के सामने अदा करे,
\v 8 ~और अपना हाथ अपने चढ़ावे के जानवर के सिर पर रख्खे, और उसे ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के सामने ज़बह करे; और हारून के बेटे उसके ख़ून को मज़बह पर चारों तरफ़ छिड़कें।
\s5
\v 9 ~और वह सलामती के ज़बीहे में से ख़ुदावन्द के लिए अतिशी क़ुर्बानी पेश करे; या'नी उसकी पूरी चर्बी भरी दुम को वह रीढ़ के पास से अलग करे, और जिस चर्बी से अंतड़ियाँ ढकी रहती हैं, और वह सारी चर्बी जो अंतड़ियों पर लिपटी रहती है,
\v 10 ~और दोनों गुर्दे और उनके ऊपर की चर्बी जो कमर के पास रहती है, और जिगर पर की झिल्ली गुर्दों के साथ; इन सभों को वह अलग करे।
\v 11 ~और काहिन इन्हें मज़बह पर जलाए; यह उस अतिशी क़ुर्बानी की ग़िज़ा है जो ख़ुदावन्द को पेश की जाती है।
\s5
\v 12 ~"और अगर वह बकरा या बकरी पेश करता हो, तो उसे ख़ुदावन्द के सामने अदा करे।
\v 13 ~और वह अपना हाथ उसके सिर पर रख्खे, और उसे ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के सामने ज़बह करे; और हारून के बेटे उसके ख़ून को मज़बह पर चारों तरफ़ छिड़कें।
\v 14 ~और वह उसमें से अपना चढ़ावा अतिशी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश करे; या'नी जिस चर्बी से अंतड़ियाँ ढकी रहती हैं, और वह सब चर्बी जो अंतड़ियों पर लिपटी रहती है,
\s5
\v 15 ~और दोनों गुर्दे और उनके ऊपर की चर्बी जो कमर के पास रहती है, और जिगर पर की झिल्ली गुर्दों के साथ, इन सभों को वह अलग करे।
\v 16 और काहिन इनको मज़बह पर जलाए; यह उस अतिशीन क़ुर्बानी की ग़िज़ा है, जो राहतअंगेज़ ख़ुशबू के लिए होती है; सारी चर्बी ख़ुदावन्द की है।
\v 17 यह तुम्हारी सब सुकूनतगाहों में नसल-दर-नसल एक हमेशा का क़ानून रहेगा, कि तुम चर्बी या ख़ून मुतलक़ न खाओ।'
\s5
\c 4
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,
\v 2 ~बनी इस्राईल से कह कि अगर कोई उन कामों में से जिनको ख़ुदावन्द ने मना' किया है, किसी काम को करे और उससे अनजाने में ख़ता हो जाए।
\v 3 अगर काहिन-ए-मम्सूह ऐसी ख़ता करे जिससे क़ौम मुजरिम ठहरती हो, तो वह अपनी उस ख़ता के लिए जो उसने की है, एक बे-'ऐब बछड़ा ख़ता की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश करे।
\s5
\v 4 ~वह उस बछड़े को ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर ख़ुदावन्द के आगे लाए, और बछड़े के सिर पर अपना हाथ रख्खे और उसको ख़ुदावन्द के आगे ज़बह करे।
\v 5 ~और वह काहिन-ए-मम्सूह उस बछड़े के ख़ून में से कुछ लेकर उसे ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में ले जाए।
\s5
\v 6 ~और काहिन अपनी उँगली ख़ून में डुबो-डुबो कर, और ख़ून में से ले लेकर उसे हैकल के पर्दे के सामने सात बार ख़ुदावन्द के आगे छिड़के।
\v 7 ~और काहिन उसी ख़ून में से ख़ुशबूदार ख़ुशबू जलाने की क़ुर्बानगाह के सींगों पर, जो ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ में है, ख़ुदावन्द के आगे लगाए; और उस बछड़े के बाक़ी सब ख़ून को सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह के पाये पर, जो ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर है उँडेल दे।
\s5
\v 8 ~फिर वह ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े की सब चर्बी को उससे अलग करे; या'नी जिस चर्बी से अंतड़ियाँ ढकी रहती हैं, और वह सब चर्बी जो अंतड़ियों पर लिपटी रहती है,
\v 9 ~और दोनों गुर्दे और उनके ऊपर की चर्बी जो कमर के पास रहती है, और जिगर पर की झिल्ली गुर्दों के साथ; इन सभों को वह वैसे ही अलग करे|
\v 10 ~जैसे सलामती के ज़बीहे के बछड़े से वह अलग किए जाते हैं; और काहिन उनको सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह पर जलाए।
\s5
\v 11 ~और उस बछड़े की खाल, और उसका सब गोश्त, और सिर और पाये, और अंतड़ियाँ और गोबर;
\v 12 ~या'नी पूरे बछड़े को लश्कर गाह के बाहर किसी साफ़ जगह में जहाँ राख पड़ती है, ले जाए; और सब कुछ लकड़ियों पर रख कर आग से जलाए, वह वहीं जलाया जाए जहाँ राख डाली जाती है।
\s5
\v 13 ~'अगर बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत से अनजाने चूक हो जाए, और यह बात जमा'अत की आँखों से छिपी तो हो तो भी वह उन कामों में से जिन्हें ख़ुदावन्द ने मना'~किया है, किसी काम को करके मुजरिम हो गई हो,
\v 14 ~तो उस ख़ता के जिसके वह क़ुसूरवार हों, मा'लूम हो जाने पर जमा'अत एक बछड़ा ख़ता की क़ुर्बानी के तौर पर चढ़ाने के लिए ख़ेमा-ए-इजतिमा'अ के सामने लाए।
\v 15 ~और जमा'अत के बुज़ुर्ग अपने-अपने हाथ ख़ुदावन्द के आगे उस बछड़े के सिर पर रख्खें, और बछड़ा ख़ुदावन्द के आगे ज़बह किया जाए।
\s5
\v 16 ~और काहिन-ए-मम्सूह उस बछड़े के ख़ून में से कुछ ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में ले जाए;
\v 17 ~और काहिन अपनी उँगली उस ख़ून में डुबो-डुबो कर उसे पर्दे के सामने सात बार ख़ुदावन्द के आगे छिड़के,
\s5
\v 18 और उसी ख़ून में से मज़बह के सींगों पर जो ख़ुदावन्द के आगे ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में है लगाए, और बाक़ी सारा ख़ून सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह के पाये पर, जो ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर है, उँडेल दे।
\v 19 ~और उसकी सब चर्बी उससे अलग करके उसे मज़बह पर जलाए।
\s5
\v 20 ~ वह बछड़े से यही करे, या'नी जो कुछ ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े से किया था, वही इस बछड़े से करे। यूँ काहिन उनके लिए कफ़्फ़ारा दे, तो उन्हें मु'आफ़ी मिलेगी;
\v 21 ~और वह उस बछड़े को लश्करगाह के बाहर ले जा कर जलाए, जैसे पहले बछड़े को जलाया था; यह जमा'अत की ख़ता की क़ुर्बानी है।
\s5
\v 22 ~और जब किसी सरदार से ख़ता हो जाए, और वह उन कामों में से जिन्हें ख़ुदावन्द ने मना' किया है किसी काम को अनजाने में कर बैठे और मुजरिम हो जाए।
\v 23 ~तो जब वह ख़ता जो उससे सरज़द हुई है उसे बता दी जाए, तो वह एक बे-'ऐब बकरा अपनी क़ुर्बानी के लिए लाए;
\s5
\v 24 ~और अपना हाथ उस बकरे के सिर पर रख्खे, और उसे उस जगह ज़बह करे जहाँ सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवर ख़ुदावन्द के आगे ज़बह करते हैं; यह ख़ता की क़ुर्बानी है।
\v 25 ~और काहिन ख़ता की क़ुर्बानी का कुछ ख़ून अपनी उँगली पर लेकर उसे सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह के सींगों पर लगाए, और उसका बाक़ी सब ख़ून सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह के पाए पर उँडेल दे।
\s5
\v 26 ~और सलामती के ज़बीहे की चर्बी की तरह उसकी सब चर्बी मज़बह पर जलाए। यूँ काहिन उसकी ख़ता का कफ़्फ़ारा दे, तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी।
\s5
\v 27 ~'और अगर कोई 'आम आदमियों में से अनजाने में ख़ता करे, और उन कामों में से जिन्हें ख़ुदावन्द ने मना' किया है किसी काम को करके मुजरिम हो जाए;
\v 28 ~तो जब वह ख़ता जो उसने की है उसे बता दी जाए, तो वह अपनी उस ख़ता के लिए जो उससे सरज़द हुई है, एक बे-'ऐब बकरी लाए।
\s5
\v 29 ~और वह अपना हाथ ख़ता की क़ुर्बानी के जानवर के सिर पर रख्खे, और ख़ता की क़ुर्बानी के उस जानवर को सोख़्तनी क़ुर्बानी की जगह पर ज़बह करे।
\v 30 और काहिन उसका कुछ ख़ून अपनी उँगली पर ले कर उसे सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह के सींगों पर लगाए, और उसका बाक़ी सब ख़ून मज़बह के पाए पर उँडेल दे;
\s5
\v 31 ~और वह उसकी सारी चर्बी को अलग करे जैसे सलामती के ज़बीहे की चर्बी अलग की जाती है, और काहिन उसे मज़बह पर राहतअंगेज़ ख़ुशबू के तौर पर ख़ुदावन्द के लिए जलाए। यूँ काहिन उसके लिए कफ़्फ़ारा दे, तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी।
\s5
\v 32 ~और अगर ख़ता की क़ुर्बानी के लिए उसका हदिया बर्रा हो, तो वह बे-'ऐब मादा लाए;
\v 33 और अपना हाथ ख़ता की क़ुर्बानी के जानवर के सिर पर रख्खे; और उसे ख़ता की क़ुर्बानी के तौर पर उस जगह ज़बह करे जहाँ सोख़्तनी क़ुर्बानी ज़बह करते है |"
\s5
\v 34 और काहिन ख़ता की क़ुर्बानी का कुछ ख़ून अपनी उँगली पर लेकर उसे सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह के सींगों पर लगाए, और उसका बाक़ी सब ख़ून मज़बह के पाये पर उँडेल दे।
\v 35 ~और उसकी सब चर्बी को अलग करे जैसे सलामती के ज़बीहे के बर्रे की चर्बी अलग की जाती है। और काहिन उसको मज़बह पर ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानियों के ऊपर जलाए। यूँ काहिन उसके लिए उसकी ख़ता का जो उससे हुई है कफ़्फ़ारा दे, तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी।
\s5
\c 5
\p
\v 1 और ~अगर कोई इस तरह ख़ता करे कि~वह गवाह हो और उसे क़सम दी जाए कि जैसे उसने कुछ देखा या उसे कुछ मा'लूम है, और वह न बताए, तो उसका गुनाह उसी के सिर लगेगा।
\v 2 ~या अगर कोई शख़्स किसी नापाक चीज़ को छू ले, चाहे वह नापाक जानवर या नापाक चौपाये या नापाक रेंगनेवाले जानदार की लाश हो, तो चाहे उसे मा'लूम भी न हो कि वह नापाक हो गया है तो भी वह मुजरिम ठहरेगा।
\s5
\v 3 या अगर वह इन्सान की उन नजासतों में से जिनसे वह नजिस हो जाता है, किसी नजासत को छू ले और उसे मा'लूम न हो, तो वह उस वक़्त मुजरिम ठहरेगा जब उसे मा'लूम हो जाएगा।
\v 4 ~या अगर कोई बगै़र सोचे अपनी ज़बान से बुराई या भलाई करने की क़सम खाले, तो क़सम खा कर वह आदमी चाहे कैसी ही बात बग़ैर सोचे कह दे, बशर्ते कि उसे मा'लूम न हो, तो ऐसी बात में मुजरिम उस वक़्त ठहरेगा जब उसे मा'लूम हो जाएगा।
\s5
\v 5 और जब वह इन बातों में से किसी में मुजरिम हो, तो जिस अम्र में उससे ख़ता हुई है वह उसका इक़रार करे,
\v 6 ~और ख़ुदावन्द के सामने अपने जुर्म की क़ुर्बानी लाए; या'नी जो ख़ता उससे हुई है उसके लिए रेवड़ में से एक मादा, या'नी एक भेड़ या बकरी ख़ता की क़ुर्बानी के तौर पर पेश करे, और काहिन उसकी ख़ता का कफ़्फ़ारा दे
\s5
\v 7 ~"और अगर उसे भेड़ देने का मक़दूर न हो, तो वह अपनी ख़ता के लिए जुर्म की क़ुर्बानी के तौर पर दो कुमरियाँ या कबूतर के दो बच्चे ख़ुदावन्द के सामने पेश करे; एक ख़ता की क़ुर्बानी के लिए और दूसरा सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए।
\v 8 वह उन्हें काहिन के पास ले आए जो पहले उसे जो ख़ता की क़ुर्बानी के लिए है पेश करे, और उसका सिर गर्दन के पास से मरोड़ डाले पर उसे अलग न करे,
\v 9 और ख़ता की क़ुर्बानी का कुछ ख़ून मज़बह के पहलू पर छिड़के और बाक़ी ख़ून को मज़बह के पाये पर गिर जाने दे; यह ख़ता की क़ुर्बानी है।
\s5
\v 10 ~और दूसरे परिन्दे को हुक्म के मुवाफ़िक़ सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर अदा करे यूँ काहिन उसकी ख़ता का जो उसने की है कफ़्फ़ारा दे, तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी।
\s5
\v 11 ~और अगर उसे दो कुमरियाँ या कबूतर के दो बच्चे लाने का भी मक़दूर न हो, तो अपनी ख़ता के लिए अपने हदिये के तौर पर, ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर मैदा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए लाए। उस पर न तो वह तेल डाले, न लुबान रख्खे, क्यूँकि यह ख़ता की क़ुर्बानी है।
\s5
\v 12 ~वह उसे काहिन के पास लाए, और काहिन उसमें से अपनी मुट्ठी भर कर उसकी यादगारी का हिस्सा मज़बह पर ख़ुदावन्द की आतिशीन क़ुर्बानी के ऊपर जलाए। यह ख़ता की क़ुर्बानी है।
\v 13 यूँ काहिन उसके लिए इन बातों में से, जिस किसी में उससे ख़ता हुई है उस ख़ता का कफ़्फ़ारा दे, तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी; और जो कुछ बाक़ी रह जाएगा, वह नज़्र की क़ुर्बानी की तरह काहिन का होगा।”
\s5
\v 14 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;
\v 15 अगर ख़ुदावन्द की पाक चीज़ों में किसी से तक़सीर हो और वह अनजाने में ख़ता करे, तो वह अपने जुर्म की क़ुर्बानी के तौर पर रेवड़ में से बे-'ऐब मेंढा ख़ुदावन्द के सामने अदा करे। जुर्म की क़ुर्बानी के लिए उसकी क़ीमत हैकल की मिस्क़ाल के हिसाब से चाँदी की उतनी ही मिस्क़ालें हों, जितनी तू मुक़र्रर कर दे।
\v 16 ~और जिस पाक चीज़ में उससे तक़सीर हुई है वह उसका मु'आवज़ा दे, और उसमें पाँचवाँ हिस्सा और बढ़ा कर उसे काहिन के हवाले करे। यूँ काहिन जुर्म की क़ुर्बानी का मेंढा पेश कर उसका कफ़्फ़ारा दे, तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी।
\s5
\v 17 ~'और अगर कोई ख़ता करे, और उन कामों में से जिन्हें ख़ुदावन्द ने मना' किया है किसी काम को करे, तो चाहे वह यह बात जानता भी न हो तो भी मुजरिम ठहरेगा; और उसका गुनाह उसी के सिर लगेगा।
\v 18 तब वह रेवड़ में से एक बे-'ऐब मेंढा उतने ही दाम का, जो तू मुक़र्रर कर दे, जुर्म की क़ुर्बानी के तौर पर काहिन के पास लाए। यूँ काहिन उसकी उस बात का, जिसमें उससे अनजाने में चूक हो गई क़फ़्फ़ारा दे, तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी।
\v 19 ~यह जुर्म की क़ुर्बानी है, क्यूँकि वह यक़ीनन ख़ुदावन्द के आगे मुजरिम है।"
\s5
\c 6
\p
\v 1 फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से ~कहा,
\v 2 ~"अगर किसी से यह ख़ता हो कि वह ख़ुदावन्द का क़ुसूर करे, और अमानत या लेन-देन या लूट के मु'आमिले में अपने पड़ोसी को धोखा दे, या अपने पड़ोसी पर ज़ुल्म करे,
\v 3 ~या किसी खोई हुई चीज़ को पाकर धोखा दे, और झूठी क़सम भी खा ले; तब इनमें से चाहे कोई बात हो जिसमें किसी शख़्स से ख़ता हो गई है,
\v 4 इसलिए अगर उससे ख़ता हुई है और वह मुजरिम ठहरा है, तो जो चीज़ उसने लूटी, या जो चीज़ उसने ज़ुल्म करके छीनी, या जो चीज़ उसके पास अमानत थी, या जो खोई हुई चीज़ उसे मिली,
\s5
\v 5 ~या जिस चीज़ के बारे में उसने झूटी क़सम खाई; उस चीज़ को वह ज़रूर पूरा-पूरा वापस करे, और असल के साथ पाँचवा हिस्सा भी बढ़ा कर दे। जिस दिन यह मा'लूम हो कि वह मुजरिम है, उसी दिन वह उसे उसके मालिक को वापस दे;
\v 6 ~और अपने जुर्म की क़ुर्बानी ख़ुदावन्द के सामने अदा करे, और जितना दाम तू मुक़र्रर करे उतने दाम का एक बे-'ऐब मेंढा रेवड़ में से जुर्म की क़ुर्बानी के तौर पर काहिन के पास लाए।"
\v 7 यूँ कहिन उसके लिए ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दे, तो जिस काम को करके वह मुजरिम ठहरा है उसकी उसे मु'आफ़ी मिलेगी।"
\s5
\v 8 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 9 ~"हारून और उसके बेटों को यूँ हुक्म दे कि सोख़्तनी क़ुर्बानी के बारे में शरा' यह है, कि सोख़्तनी क़ुर्बानी मज़बह के ऊपर आतिशदान पर तमाम रात सुबह तक रहे, और मज़बह की आग उस पर जलती रहे।
\s5
\v 10 और काहिन अपना कतान का लिबास पहने और कतान के पाजामे को अपने तन पर डाले और आग ने जो सोख़्तनी क़ुर्बानी को मज़बह पर भसम करके राख कर दिया है, उस राख को उठा कर उसे मज़बह की एक तरफ़ रख्खे।
\v 11 ~फिर वह अपने लिबास को उतार कर दूसरे कपड़े पहने, और उस राख को उठा कर लश्करगाह के बाहर किसी साफ़ जगह में ले जाए।
\s5
\v 12 और मज़बह पर आग जलती रहे, और कभी बुझने न पाए; और काहिन हर सुबह को उस पर लकड़ियाँ जला कर सोख़्तनी क़ुर्बानी को उसके ऊपर चुन दे, और सलामती के ज़बीहों की चर्बी को उसके ऊपर जलाया करे।
\v 13 ~मज़बह पर आग हमेशा जलती रख्खी जाए; वह कभी बुझने न पाए।
\s5
\v 14 नज़्र की क़ुर्बानी~'और नज़्र की क़ुर्बानी के बारे में शरा' यह है, कि हारून के बेटे उसे मज़बह के आगे ख़ुदावन्द के सामने पेश करें।
\v 15 और वह नज़्र की क़ुर्बानी में से अपनी मुट्ठी भर इस तरह निकाले कि उसमें थोड़ा सा मैदा और कुछ तेल जो उसमें पड़ा होगा और नज़्र की क़ुर्बानी का सब लुबान आ जाए, और इस~यादगारी के हिस्से को मज़बह पर ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज ख़ुशबू के तौर पर जलाए।
\s5
\v 16 ~और जो बाक़ी बचे उसे हारून और उसके बेटे खाएँ, वह बग़ैर ख़मीर के पाक जगह में खाया जाए, या'नी वह ख़ेमा-ए- इजितमा'अ के सहन में उसे खाएँ।
\v 17 वह ख़मीर के साथ पकाया न जाए; मैंने यह अपनी आतिशीन क़ुर्बानियों में से उनका हिस्सा दिया है, और यह ख़ता की क़ुर्बानी और जुर्म की क़ुर्बानी की तरह बहुत पाक है।
\v 18 ~हारून की औलाद के सब मर्द उसमें से खाएँ। तुम्हारी नसल-दर-नसल की आतिशी क़ुर्बानियों में से यह उनका हक़ होगा। जो कोई उन्हें छुए वह पाक ठहरेगा।"
\s5
\v 19 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,
\v 20 ~'जिस दिन हारून को मसह किया जाए उस दिन वह और उसके बेटे ख़ुदावन्द के सामने यह हदिया अदा करें, कि ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर मैदा, आधा सुबह को और आधा शाम को, हमेशा नज़्र की क़ुर्बानी के लिए लाएँ।
\s5
\v 21 ~वह तवे पर तेल में पकाया जाए; जब वह तर हो जाए तो तू उसे ले आना। इस नज़्र ~की क़ुर्बानी को पकवान के टुकड़ों की सूरत में पेश करना ताकि वह ख़ुदावन्द के लिए राहतअंगेज़ ख़ुशबू भी हो।
\v 22 और जो उसके बेटों में से उसकी जगह काहिन मम्सूह हो वह उसे पेश करे। यह हमेशा का क़ानून होगा कि वह ख़ुदावन्द के सामने बिल्कुल जलाया जाए।
\v 23 ~काहिन की हर एक नज़्र की क़ुर्बानी बिल्कुल जलाई जाए; वह कभी खाई न जाए।"
\s5
\v 24 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 25 ~"हारून और उसके बेटों से कह कि ख़ता की क़ुर्बानी के बारे में शरा' यह है, कि जिस जगह सोख़्तनी क़ुर्बानी का जानवर ज़बह किया जाता है, वहीं ख़ता की क़ुर्बानी का जानवर भी ख़ुदावन्द के आगे ज़बह किया जाए; वह बहुत पाक है।
\v 26 ~जो काहिन उसे ख़ता के लिए पेश करे वह उसे खाए: वह पाक जगह में, या'नी ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के सहन में खाया जाए।
\s5
\v 27 ~जो कुछ उसके गोश्त से छू जाए वह पाक ठहरेगा, और अगर किसी कपड़े पर उसके ख़ून की छिट पड़ जाए, तो जिस कपड़े पर उसकी छींट पड़ी है तू उसे किसी पाक जगह में धोना।
\v 28 ~और मिट्टी का वह बर्तन जिसमें वह पकाया जाए तोड़ दिया जाए, लेकिन अगर वह पीतल के बर्तन में पकाया जाए तो उस बर्तन की माँज कर पानी से धो लिया जाए।
\s5
\v 29 ~और काहिनों में से हर मर्द उसे खाए; वह बहुत पाक है।
\v 30 ~लेकिन जिस ख़ता की क़ुर्बानी का कुछ ख़ून ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के अन्दर पाक मक़ाम में कफ़्फ़ारे के लिए पहुँचाया गया है, उसका गोश्त कभी न खाया जाए; बल्कि वह आग से जला दिया जाए।
\s5
\c 7
\p
\v 1 ~"और जुर्म की क़ुर्बानी के बारे में शरा' यह है। वह बहुत पाक है।
\v 2 ~जिस जगह सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवर को ज़बह करते हैं, वहीं वह जुर्म की क़ुर्बानी के जानवर को भी ज़बह करें; और वह उसके ख़ून को मज़बह के चारों तरफ़ छिड़के।
\v 3 ~और वह उसकी सब चर्बी को चढ़ाए, या'नी उसकी मोटी दुम को, और उस चर्बी को जिससे अंतड़ियाँ ढकी रहती हैं
\v 4 ~और दोनों गुर्दे और उनके ऊपर की चर्बी जो कमर के पास रहती है, और जिगर पर की झिल्ली गुर्दों के साथः इन सबको वह अलग करे।
\s5
\v 5 ~और काहिन उनको मज़बह पर ख़ुदावन्द के सामने आतिशीन क़ुर्बानी के तौर पर जलाए, यह जुर्म की क़ुर्बानी है।
\v 6 ~और काहिनों में से हर मर्द उसे खाए और किसी पाक जगह में उसे खाएँ; वह बहुत पाक है।
\s5
\v 7 ~जुर्म की क़ुर्बानी वैसी ही है ~जैसी ख़ता की क़ुर्बानी है और उनके लिए एक ही शरा' है, और उन्हें वही काहिन ले जो उनसे कफ़्फ़ारा देता है
\v 8 ~और जो काहिन किसी शख़्स की तरफ़ से सोख़्तनी क़ुर्बानी पेश करता हैं वही काहिन उस सोख़्तनी क़ुर्बानी की खाल को जो उसने पेश कीं, अपने लिए ले-ले।
\s5
\v 9 और हर एक नज़्र ~की क़ुर्बानी जो तनूर में पकाई जाए, और वह भी जी कड़ाही में तैयार की जाए, और तवे की पकी हुई भी उसी~काहिन की है जो उसे पेश करे।
\v 10 ~और हर एक नज़्र की क़ुर्बानी चाहे उसमे तेल मिला हुआ हो या वह ख़ुश्क हो, बराबर-बराबर हारून के सब बेटों के लिए हो।
\s5
\v 11 'और सलामती के ज़बीहे के बारे में जिसे कोई ख़ुदावन्द के सामने चढ़ाए शरा' यह है,
\v 12 ~कि वह अगर शुक्राने के तौर पर उसे अदा करे तो वह शुक्राने के ज़बीहे के साथ, तेल मिले हुए बे-ख़मीरी कुल्चे और तेल चुपड़ी हुई बे-ख़मीरी चपातियाँ और तेल मिले हुए मैदे के तर कुल्चे भी पेश करे।
\s5
\v 13 ~और सलामती के ज़बीहे की क़ुर्बानी के साथ जो शुक्राने के लिए होगी, वह ख़मीरी रोटी के गिर्द अपने हदिये पर पेश करे।
\v 14 ~और हर हदिये में से वह एक को लेकर उसे ख़ुदावन्द के सामने हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर अदा करे; और यह उस काहिन का ही जो सलामती के ज़बीहे का ख़ून छिड़कता है।
\s5
\v 15 ~और सलामती के ज़बीहों की उस क़ुर्बानी का गोश्त, जो उस की तरफ़ से शुक्राने के तौर पर होगी, क़ुर्बानी अदा करने के दिन ही खा लिया जाए; वह उसमें से कुछ सुबह तक बाक़ी न छोड़े।
\v 16 ~लेकिन अगर उसके चढ़ावे की क़ुर्बानी मिन्नत का या रज़ा का हदिया हो, तो वह उस दिन खाई जाए जिस दिन वह अपनी क़ुर्बानी पेश करे; और जो कुछ उस में से बच रहे, वह दूसरे दिन खाया जाए।
\s5
\v 17 ~लेकिन जो कुछ उस क़ुर्बानी के गोश्त में से तीसरे दिन तक रह जाए वह आग में जला दिया जाए।
\v 18 ~और उसके सलामती के ज़बीहों की क़ुर्बानी के गोश्त में से अगर कुछ तीसरे दिन खाया जाए तो वह मंजूर न होगा, और न उस का सवाब क़ुर्बानी देने वाले की तरफ़ मन्सूब होगा, बल्कि यह मकरूह बात होगी; और जो उस में से खाए उस का गुनाह उसी के सिर लगेगा।
\s5
\v 19 'और जो गोश्त किसी नापाक चीज़ से छू जाए, खाया न जाए; वह आग में जलाया जाए। और ज़बीहे के गोश्त को, जो पाक है वह तो खाए,
\v 20 ~लेकिन जो शख़्स नापाकी की हालत में ख़ुदावन्द की सलामती के ज़बीहे का गोश्त खाए, वह अपने लोगों में से काट डाला जाए।
\s5
\v 21 ~और जो कोई किसी नापाक चीज़ को छुए, चाहे वह इन्सान की नापाकी हो या नापाक जानवर हो या कोई नजिस मकरूह शय हो, और फिर ख़ुदावन्द के सलामती के ज़बीहे के गोश्त में से खाए, वह भी अपने लोगों में से काट डाला जाए।"
\s5
\v 22 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 23 ~"बनी-इस्राईल से कह, कि तुम लोग न तो बैल की न भेड़ की और न बकरी की कुछ चर्बी खाना।
\v 24 जो जानवर ख़ुद-ब-ख़ुद मर गया हो और जिस को दरिन्दों ने फाड़ा हो, उनकी चर्बी ~और-और काम में लाओ तो लाओ पर उसे तुम किसी हाल में न खाना।
\s5
\v 25 ~क्यूँकि जो कोई ऐसे चौपाये की चर्बी खाए, जिसे लोग आतिशी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने चढ़ाते हैं, वह खाने वाला आदमी अपने लोगों में से काट डाला जाए।
\v 26 ~और तुम अपनी सुकूनतगाहों में कहीं भी किसी तरह का ख़ून चाहे परिन्दे का हो या चौपाये का, हरगिज़ न खाना।
\v 27 ~जो कोई किसी तरह का ख़ून खाए, वह शख़्स अपने लोगों में से काट डाला जाए।"
\s5
\v 28 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 29 "बनी-इस्राईल से कह कि जो कोई अपना सलामती का ज़बीहा ख़ुदावन्द के सामने पेश करे, वह ख़ुद ही अपने सलामती के ज़बीहे की क़ुर्बानी में से अपना हदिया ख़ुदावन्द के सामने लाए "
\v 30 ~वह अपने ही हाथों में ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानी को लाए, या'नी चर्बी को सीने के साथ लाए कि सीना हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर हिलाया जाए।
\s5
\v 31 ~और काहिन चर्बी ~को मज़बह पर जलाए, लेकिन सीना हारून और उसके बेटों का हो।
\v 32 ~और तुम सलामती के ज़बीहों की दहनी रान उठाने की क़ुर्बानी के तौर पर काहिन को देना।
\s5
\v 33 ~हारून के बेटों में से जो सलामती के ज़बीहों का ख़ून और चर्बी पेश करे, वही वह दहनी रान अपना हिस्सा ले।
\v 34 ~क्यूँकि बनीइस्राईल के सलामती के ज़बीहों में से हिलाने की क़ुर्बानी का सीना और उठाने की क़ुर्बानी की रान को लेकर, मैंने हारून काहिन और उसके बेटों को दिया है, कि यह हमेशा बनीइस्राईल की तरफ़ से उन का हक़ हो।
\s5
\v 35 ~"यह ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानियों में से हारून के मम्सूह होने का और उसके बेटों के मम्सूह होने का हिस्सा है, जो उस दिन मुक़र्रर हुआ जब वह ख़ुदावन्द के सामने काहिन की ख़िदमत को अंजाम देने के लिए हाज़िर किए गए।
\v 36 ~या'नी जिस दिन ख़ुदावन्द ने उन्हें मसह किया, उस दिन उसने यह हुक्म दिया कि बनी-इस्राईल की तरफ़ से उन्हें यह मिला करे; इसलिए उन की नसल-दर-नसल यह उन का हक़ रहेगा।"
\s5
\v 37 ~सोख़्तनी क़ुर्बानी, और नज़्र की क़ुर्बानी, और ख़ता की क़ुर्बानी, और जुर्म की क़ुर्बानी, और तख़्सीस और सलामती के ज़बीहे के बारे में शरा' यह है।
\v 38 ~जिसका हुक्म ख़ुदावन्द ने मूसा को उस दिन कोह-ए-सीना पर दिया जिस दिन उसने बनी-इस्राईल को फ़रमाया, कि सीना के वीराने में ख़ुदावन्द के सामने अपनी क़ुर्बानी पेश करें।
\s5
\c 8
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 2 ~"हारून और उसके साथ उसके बेटों को, और लिबास, को और मसह करने के तेल को, और ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े और दोनों मेंढों और बे-ख़मीरी रोटियों की टोकरी को ले;
\v 3 ~और सारी जमा'अत को ख़ेमा-ए- इजितमा'अ के दरवाज़े पर जमा' कर।"
\s5
\v 4 चुनाँचे मूसा ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ 'अमल किया; और सारी जमा'अत ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर जमा' हुई।
\v 5 ~तब मूसा ने जमा'अत से कहा, 'यह वह काम है, जिसके करने का हुक्म ख़ुदावन्द ने दिया है।"
\s5
\v 6 ~फिर मूसा हारून और उसके बेटों को आगे लाया और उन को पानी से ग़ुस्ल दिलाया।
\v 7 ~और उसको कुरता पहना कर उस पर कमरबन्द लपेटा, और उसको जुब्बा पहना कर उस पर अफ़ोद लगाया और अफ़ोद के कारीगरी से बुने हुए कमरबन्द को उस पर लपेटा, और उसी से उसको उसके ऊपर कस दिया।
\s5
\v 8 ~और सीनाबन्द को उसके ऊपर लगा कर सीनाबन्द में ऊरीम और तुम्मीम लगा दिए।
\v 9 ~और उसके सिर पर 'अमामा रख्खा और 'अमामे पर सामने सोने के पत्तर या'नी पाक ताज को लगाया, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।
\s5
\v 10 ~और मूसा ने मसह करने का तेल लिया; और घर को और जो कुछ उसमें था सब को मसह कर के पाक किया।
\v 11 ~और उस में से थोड़ा सा लेकर मज़बह पर सात बार छिड़का; और मज़बह और उसके सब बर्तनों को, और हौज़ और उसकी कुर्सी को मसह किया, ताकि उन्हें पाक करे।
\s5
\v 12 ~और मसह करने के तेल में से थोड़ा सा हारून के सिर पर डाला और उसे मसह किया ताकि वह पाक हो।
\v 13 ~फिर मूसा हारून के बेटों को आगे लाया और उन को कुरते पहनाए, और उन पर कमरबन्द लपेटे, और उनको पगड़ियाँ पहनाई जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।
\s5
\v 14 ~और वह ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े को आगे लाया, और हारून और उसके बेटों ने अपने-अपने हाथ ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े के सिर पर रख्खे।
\v 15 ~फिर उसने उसको ज़बह किया, और मूसा ने ख़ून को लेकर मज़बह के चारों तरफ़ उसके सींगों पर अपनी उँगली से लगाया और मज़बह को पाक किया; और बाक़ी ख़ून मज़बह के पाये पर उँडेल कर उसका कफ़्फ़ारा दिया, ताकि वह पाक हो।
\s5
\v 16 ~और मूसा ने अंतड़ियों के ऊपर की सारी चर्बी, और जिगर पर की झिल्ली, और दोनों गुर्दों और उन की चर्बी को लिया और उन्हें मज़बह पर जलाया;
\v 17 ~लेकिन बछड़े को, उसकी खाल और गोश्त और गोबर के साथ, लश्करगाह के बाहर आग में जलाया, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।
\s5
\v 18 ~फिर उसने सोख़्तनी क़ुर्बानी के मेंढे को हाज़िर किया, और हारून और उसके बेटों ने अपने-अपने हाथ उस मेंढे के सिर पर रख्खे।
\v 19 और उसने उसको ज़बह किया, और मूसा ने ख़ून को मज़बह के ऊपर चारों तरफ़ छिड़का।
\s5
\v 20 ~फिर उसने मेंढे के 'उज़्व-'उज़्व को काट कर अलग किया, और मूसा ने सिर और 'आज़ा और चर्बी को जलाया।
\v 21 और उसने अंतड़ियों और पायों को पानी से धोया, और मूसा ने पूरे मेंढे को मज़बह पर जलाया। यह सोख़्तनी क़ुर्बानी राहतअंगेज़ ख़ुशबू के लिए थी, यह ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानी थी, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।
\s5
\v 22 और उसने दूसरे मेंढे को जो तख़्सीसी मेंढा था हाज़िर किया, और हारून और उसके बेटों ने अपने-अपने हाथ उस मेंढे के सिर पर रख्खे।
\v 23 और उसने उस को ज़बह किया, और मूसा ने उसका कुछ ख़ून लेकर उसे हारून के दहने कान की लौ पर, और दहने हाथ के अंगूठे और दहने पाँव के अंगूठे पर लगाया।
\v 24 ~फिर वह हारून के बेटों को आगे लाया, और उसी ख़ून में से कुछ उनके दहने कान की लौ पर और दहने हाथ के अंगूठे और दहने पाँव के अंगूठे पर लगाया; और बाक़ी ख़ून को उसने मज़बह के ऊपर चारों तरफ़ छिड़का।
\s5
\v 25 ~और उसने चर्बी और मोटी दुम, और अंतड़ियों के ऊपर की चर्बी, और जिगर पर की झिल्ली, और दोनो गुर्दे और उन की चर्बी, और दहनी रान इन सभों को लिया,
\v 26 और बे-ख़मीरी रोटियों की टोकरी में से जो ख़ुदावन्द के सामने रहती थी, बे-ख़मीरी रोटी का एक गिर्दा, और तेल चुपड़ी हुई रोटी का एक गिर्दा, और एक चपाती निकाल कर उन्हे चर्बी और दहनी रान पर रख्खा।
\v 27 और इन सभों को हारून और उसके बेटों के हाथों पर रखकर उन्हें हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर ख़दावन्द के सामने हिलाया।
\s5
\v 28 ~फिर मूसा ने उनको उनके हाथों से ले लिया, और उनको मज़बह पर सोख़्तनी क़ुर्बानी के ऊपर जलाया। यह राहतअंगेज़ ख़ुशबू के लिए तख़्सीसी क़ुर्बानी थी। यह ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानी थी।
\v 29 ~फिर मूसा ने सीने को लिया, और उसको हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने हिलाया। उस तख़्सीसी मेंढे में से यही मूसा का हिस्सा था, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।
\s5
\v 30 ~और मूसा ने मसह करने के तेल और मज़बह के ऊपर के ख़ून में से कुछ-कुछ लेकर उसे हारून और उसके लिबास पर, और साथ ही उसके बेटों पर और उनके लिबास पर छिड़का; और हारून और उसके लिबास को, और उसके बेटों को और उनके लिबास को पाक किया।
\s5
\v 31 ~और मूसा ने हारून और उसके बेटों से कहा कि , "ये गोश्त ख़मा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर पकाओ, और इसको वहीं उस रोटी के साथ जो तख़्सीसी टोकरी में है, खाओ, जैसा मैंने हुक्म किया है कि हारून और उसके बेटे उसे खाएँ।
\v 32 ~और इस गोश्त और रोटी में से जो कुछ बच रहे उसे आग में जला देना;
\v 33 ~और जब तक तुम्हारी तख्सीस के दिन पूरे न हों, तब तक या'नी सात दिन तक, तुम ख़ेमा-ए-इजतिमा'अ के दरवाज़े से बाहर न जाना; क्यूँकि सात दिन तक वह तुम्हारी तख्सीस करता रहेगा।
\s5
\v 34 ~जैसा आज किया गया है, वैसा ही करने का हुक्म ख़ुदावन्द ने दिया है ताकि तुम्हारे लिए कफ़्फ़ारा हो।
\v 35 ~इसलिए तुम ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर सात रोज़ तक दिन रात ठहरे रहना, और ख़ुदावन्द के हुक्म को मानना, ताकि तुम मर न जाओ; क्यूँकि ऐसा ही हुक्म मुझको मिला है।"
\v 36 तब हारून और उसके बेटों ने सब काम ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ किया जो उस ने मूसा के ज़रिए' दिया था।
\s5
\c 9
\p
\v 1 ~आठवें दिन मूसा ने हारून और उसके बेटों को और बनी-इस्राईल के बुज़ुर्गों को बुलाया और हारून से कहा कि ,
\v 2 ~"ख़ता की~क़ुर्बानी के लिए एक बे-'ऐब बछड़ा और सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बे-'ऐब मेंढा तू अपने वास्ते ले और उन को ख़ुदावन्द के सामने पेश कर।
\s5
\v 3 ~और बनी-इस्राईल से कह, कि तुम ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा, और सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, और एक बर्रा जो यकसाला और बे-'ऐब हों लो।
\v 4 और सलामती के ज़बीहे के लिए ख़ुदावन्द के सामने चढ़ाने के वास्ते एक बैल और एक मेंढा, और तेल मिली हुई नज़्र की क़ुर्बानी भी लो; क्यूँकि आज ख़ुदावन्द तुम पर ज़ाहिर होगा।"
\v 5 और वह जो कुछ मूसा ने हुक्म किया था सब ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ के सामने ले आए, और सारी जमा'अत नज़दीक आकर ख़ुदावन्द के सामने खड़ी हुई।
\s5
\v 6 ~मूसा ने कहा, "ये वह काम है जिसके बारे में ख़ुदावन्द ने हुक्म दिया है कि तुम उसे करो, और ख़ुदावन्द का जलाल तुम पर ज़ाहिर होगा।"
\v 7 और मूसा ने हारून से कहा, कि मज़बह के नज़दीक जा और अपनी ख़ता की क़ुर्बानी और अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी पेश कर और अपने लिए और क़ौम के लिए कफ़्फ़ारा दे, और जमा'अत के हदिये को पेश कर और उनके लिए कफ़्फ़ारा दे जैसा ख़ुदावन्द ने हुक्म किया है।"
\s5
\v 8 ~तब हारून ने मज़बह के पास जाकर उस बछड़े को जो उसकी ख़ता की क़ुर्बानी के लिए था ज़बह किया।
\v 9 और हारून के बेटे ख़ून को उसके पास ले गए, और उस ने अपनी उँगली उस में डुबो-डुबो कर उसे मज़बह के सीगों पर लगाया और बाक़ी ख़ून मज़बह के पाये पर उँडेल दिया।
\s5
\v 10 ~लेकिन ख़ता की क़ुर्बानी की चर्बी, और गुर्दों और जिगर पर की झिल्ली को उसने मज़बह पर जलाया, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।
\v 11 ~और गोश्त और खाल को लश्करगाह के बाहर आग में जलाया।
\s5
\v 12 ~फिर उसने सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवर को ज़बह किया, और हारून के बेटों ने ख़ून उसे दिया और उसने उसको मज़बह के चारों तरफ़ छिड़का।
\v 13 ~और सोख़्तनी क़ुर्बानी को एक-एक टुकड़ा कर के, सिर के साथ उसको दिया और उसने उन्हें मज़बह पर जलाया।
\v 14 ~और उसने अंतड़ियों और पायों को धोया और उनको मज़बह पर सोख़्तनी क़ुर्बानी के उपर जलाया ।
\s5
\v 15 ~फिर जमा'अत के हदिये को आगे लाकर, और उस बकरे को जो जमा'अत की ख़ता की क़ुर्बानी के लिए था लेकर उस को ज़बह किया, और पहले की तरह उसे भी ख़ता के लिए पेश करा।
\v 16 और सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवर को आगे लाकर, उसने उसे हुक्म के मुताबिक़ पेश किया।
\v 17 . फिर नज़्र की क़ुर्बानी को आगे लाया, और उसमें से एक मुट्ठी लेकर सुबह की सोख़्तनी क़ुर्बानी के 'अलावा उसे जलाया।
\s5
\v 18 और उसने बैल और मेंढे को, जो लोगों की तरफ़ से सलामती के ज़बीहे थे, ज़बह किया; और हारून के बेटों ने ख़ून उसे दिया, और उसने उसको मज़बह पर चारों तरफ़ छिड़का।
\v 19 और उन्होंने बैल की चर्बी को, और मेंढे की मोटी दुम को, और उस चर्बी को जिससे अंतड़ियाँ ढकी रहती हैं, और दोनों गुर्दों, और जिगर पर की झिल्ली को भी उसे दिया;
\s5
\v 20 ~और चर्बी सीनों पर धर दी। तब उसने वह चर्बी मज़बह पर जलाई,
\v 21 ~और सीना और दहनी रान को हारून ने मूसा के हुक्म के मुताबिक़ हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने हिलाया।
\s5
\v 22 ~और हारून ने जमा'अत की तरफ़ अपने हाथ बढ़ाकर उनको बरकत दी; ~और ख़ता की क़ुर्बानी और सोख़्तनी क़ुर्बानी और सलामती की क़ुर्बानी पेश करके नीचे उतर आया।
\v 23 ~और मूसा और हारून ख़ेमा-ए- इजितमा'अ में दाख़िल हुए, और बाहर निकल कर लोगों को बरकत दी; तब सब लोगों पर ख़ुदावन्द का जलाल नमूदार हुआ।
\v 24 ~और ख़ुदावन्द के सामने से आग निकली और सोख़्तनी क़ुर्बानी और चर्बी को मज़बह के ऊपर भसम कर दिया; लोगों ने यह देख कर ना'रे मारे और~सरनगूँ हो गए।
\s5
\c 10
\p
\v 1 ~और नदब और अबीहू ने जो हारून के बेटे थे, अपने-अपने ख़ुशबूदान को लेकर उनमें आग भरी, और उस पर और ऊपरी आग जिस का हुक्म ख़ुदावन्द ने उनको नहीं दिया था, ख़ुदावन्द के सामने पेश कीं।
\v 2 और ख़ुदावन्द के सामने से आग निकली और उन दोनों को खा गई, और वह ख़ुदावन्द के सामने मर गए।
\s5
\v 3 ~तब मूसा ने हारून से कहा, "यह वही बात है जो ख़ुदावन्द ने कही थी, कि जो मेरे नज़दीक आएँ ज़रूर है कि वह मुझे पाक जानें, और सब लोगों के आगे मेरी तम्जीद करें।" और हारून चुप रहा
\v 4 ~फिर मूसा ने मीसाएल और अलसफ़न को जो हारून के चचा उज़्ज़ीएल के बेटे थे, बुला कर उन से कहा, "नज़दीक आओ, और अपने भाइयों को हैकल के सामने से उठा कर लश्करगाह के बाहर ले जाओ।"
\s5
\v 5 ~तब वह नज़दीक गए, और उन्हें उनके कुरतों के साथ उठाकर मूसा के हुक्म के मुताबिक़ लश्करगाह के बाहर ले गए।
\v 6 ~और मूसा ने हारून और उसके बेटों, इली'अज़र और इतमर से कहा, कि न तुम्हारे सिर के बाल बिखरने पाएँ, और न तुम अपने कपड़े फाड़ना, ताकि न तुम ही मरो, और न सारी जमा'अत पर उसका ग़ज़ब नाज़िल हो; लेकिन इस्राईल के सब घराने के लोग जो तुम्हारे भाई हैं, उस आग पर जो ख़ुदावन्द ने लगाई है नोहा करें।
\v 7 ~और तुम ख़ेमा-ए- इजितमा'अ के दरवाज़े से बाहर न जाना, ता ऐसा न हो कि तुम मर जाओ; क्यूँकि ख़ुदावन्द का मसह करने का तेल तुम पर लगा हुआ है। इसलिए उन्होंने मूसा के कहने के मुताबिक़ 'अमल किया।
\s5
\v 8 ~और ख़ुदावन्द ने हारून से कहा,कि
\v 9 ~"तू या तेरे बेटे मय या शराब पीकर कभी ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के अन्दर दाख़िल न होना, ताकि तुम मर न जाओ। यह तुम्हारे लिए नसल-दर-नसल हमेशा तक एक क़ानून रहेगा;
\v 10 ~ताकि तुम पाक और 'आम अशिया में, और पाक और नापाक में तमीज़ कर सको;
\v 11 और बनी-इस्राईल को वह सब तौर-तरीक़े सिखा सको जो ख़ुदावन्द ने मूसा के ज़रिए' उनको फ़रमाए हैं।"
\s5
\v 12 ~फिर मूसा ने हारून और उसके बेटों, इली'अज़र और इतमर से जो बाक़ी रह गए थे कहा, कि"ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानियों में से जो नज़्र की क़ुर्बानी बच रही है उसे ले लो, और बग़ैर ख़मीर के उसको मज़बह के पास खाओ, क्यूँकि यह बहुत पाक है;
\v 13 और तुम उसे किसी पाक जगह में खाना, इसलिए ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानियों में से तेरा और तेरे बेटों का यह हक़ है; क्यूँकि मुझे ऐसा ही हुक्म मिला है।
\s5
\v 14 ~और हिलाने की क़ुर्बानी के सीने को, और उठाने की क़ुर्बानी की रान को तुम लोग या'नी तेरे साथ तेरे बेटे और बेटियाँ भी, किसी साफ़ जगह में खाना; क्यूँकि बनी-इस्राईल की सलामती के ज़बीहो में से यह तेरा और तेरे बेटों का हक़ है जो दिया गया है।
\v 15 ~और उठाने की क़ुर्बानी की रान और हिलाने की क़ुर्बानी का सीना, जिसे वह चर्बी की आतिशी क़ुर्बानियों के साथ लाएँगे, ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर हिलाए जाएँ। यह दोनों हमेशा के लिए ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ तेरा और तेरे बेटों का हक़ होगा।"
\s5
\v 16 ~फिर मूसा ने ख़ता की क़ुर्बानी के बकरे को जो बहुत तलाश किया, तो क्या देखता है कि वह जल चुका है। तब वह हारून के बेटों इली'अज़र और इतमर पर, जो बच रहे थे, नाराज़ हुआ और कहने लगा कि ,
\v 17 ~"ख़ता की क़ुर्बानी जो बहुत पाक है और जिसे ख़ुदावन्द ने तुम को इसलिए दिया है कि तुम जमा'अत के गुनाह को अपने ऊपर उठा कर ख़ुदावन्द के सामने उनके लिए कफ़्फ़ारा दो, तुम ने उसका गोश्त हैकल में क्यूँ न खाया?
\v 18 ~देखो, उसका ख़ून हैकल में तो लाया ही नहीं गया था। पस तुम्हें लाज़िम था कि मेरे हुक्म के मुताबिक़ तुम उसे हैकल में खा लेते।"
\s5
\v 19 ~तब हारून ने मूसा से कहा, "देख, आज ही उन्होंने अपनी ख़ता की क़ुर्बानी और अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी ख़ुदावन्द के सामने पेश कीं, और मुझ पर ऐसे-ऐसे हादसे गुज़र गए। तब अगर मैं आज ख़ता की क़ुर्बानी का गोश्त खाता तो क्या यह बात ख़ुदावन्द की नज़र में भली होती?"
\v 20 ~जब मूसा ने यह सुना तो उसे पसन्द आया।
\s5
\c 11
\p
\v 1 फ़िर ~ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा,
\v 2 ~"तुम बनी-इस्राईल से कहो कि ज़मीन के सब ~हैवानात में से जिन जानवरों को तुम खा सकते हो वह यह हैं।
\s5
\v 3 ~जानवरों में जिनके पाँव अलग और चिरे हुए हैं और वह जुगाली करते हैं, तुम उनको ~खाओ।
\v 4 ~मगर जो जुगाली करते हैं या जिनके पाँव अलग हैं, उन में से तुम इन जानवरों को न खाना; या'नी ऊँट को, क्यूँकि वह जुगाली करता है लेकिन उसके पाँव अलग नहीं, इसलिए वह तुम्हारे लिए नापाक है।
\s5
\v 5 ~और साफ़ान को, क्यूँकि वह जुगाली करता है लेकिन उसके पाँव अलग नहीं, वह भी तुम्हारे लिए नापाक है।
\v 6 ~और ख़रगोश को, क्यूँकि वह जुगाली तो करता है लेकिन उसके पाँव अलग नहीं, वह भी तुम्हारे लिए नापाक है।
\v 7 ~और सूअर को, क्यूँकि उसके पाँव अलग और चिरे हुए हैं लेकिन वह जुगाली नहीं करता, वह भी तुम्हारे लिए नापाक है।
\v 8 ~तुम उनका गोश्त न खाना और उन की लाशों को न छूना, वह तुम्हारे लिए नापाक हैं।
\s5
\v 9 ~"जो जानवर पानी में रहते हैं उन में से तुम इनको खाना, या'नी समन्दरों और दरियाओं वग़ैरह के जानवरो में, जिनके पर और छिल्के हों तुम उन्हें खाओ।
\v 10 ~लेकिन वह सब जानदार जो पानी में या'नी समन्दरों और दरियाओं~वग़ैरह~में चलते फिरते और रहते हैं, लेकिन उनके पर और छिल्के नहीं होते, वह तुम्हारे लिए मकरूह हैं।
\s5
\v 11 ~और वह तुम्हारे लिए मकरूह ही रहें। तुम उनका गोश्त न खाना और उन की लाशों से कराहियत करना।
\v 12 ~पानी के जिस किसी जानदार के न पर हों और न छिल्के, वह तुम्हारे लिए मकरूह हैं।
\s5
\v 13 ~'और परिन्दों में जो मकरूह होने की वजह से कभी खाए न जाएँ और जिन से तुम्हें कराहियत करना है वो यह हैं। 'उक़ाब और उस्तख़्वान ख़्वार और लगड़,
\v 14 और चील और हर क़िस्म का बाज़,
\v 15 ~और हर क़िस्म के कव्वे,
\v 16 ~और शुतरमुर्ग़ और चुग़द और कोकिल और हर क़िस्म के शाहीन,
\s5
\v 17 ~और बूम और हड़गीला और उल्लू,
\v 18 और क़ाज़ और हवासिल और गिद्ध,
\v 19 ~और लक़लक़ और सब क़िस्म के बगुले और हुद-हुद, और चमगादड़।
\s5
\v 20 ~"और सब परदार रेंगने वाले जानदार जितने चार पाँवों के बल चलते हैं, वह तुम्हारे लिए मकरूह हैं।
\v 21 ~मगर परदार रेंगने वाले जानदारों में से जो चार पाँव के बल चलते हैं तुम उन जानदारों को खा सकते हो, जिनके ज़मीन के ऊपर कूदने फाँदने को पाँव के ऊपर टाँगें होती हैं,
\v 22 ~वह जिन्हें तुम खा सकते हो यह हैं, हर क़िस्म की टिड्डी और हर क़िस्म का सुलि'आम और हर क़िस्म का झींगर और हर क़िस्म का टिड्डा।
\v 23 ~लेकिन सब परदार रेंगने वाले जानदार जिनके चार पाँव हैं, वह तुम्हारे लिए मकरूह हैं।
\s5
\v 24 ~'और इन से तुम नापाक ठहरोगे, जो कोई इन में से किसी की लाश को छुए वह शाम तक नापाक रहेगा।
\v 25 और जो कोई इन की लाश में से कुछ भी उठाए वह अपने कपड़े धो डाले और वह शाम तक नापाक रहेगा।
\s5
\v 26 और सब चारपाए जिनके पाँव अलग हैं लेकिन वह चिरे हुए नहीं और न वह जुगाली करते हैं, वह तुम्हारे लिए नापाक हैं; जो कोई उन को छुए वह नापाक ठहरेगा।
\v 27 ~और चार पाँवों पर चलने वाले जानवरों में से जितने अपने पंजों के बल चलते हैं, वह भी तुम्हारे लिए नापाक हैं। जो कोई उन की लाश को छुए वह शाम तक नापाक रहेगा।
\v 28 ~और जो कोई उन की लाश को उठाए वह अपने कपड़े धो डाले और वह शाम तक नापाक रहेगा। यह सब तुम्हारे लिए नापाक हैं।
\s5
\v 29 ~"और ज़मीन पर के रेंगने वाले जानवरों में से जो तुम्हारे लिए नापाक हैं वह यह हैं, या'नी नेवला और चूहा और हर क़िस्म की बड़ी छिपकली,
\v 30 और हिरजून और गोह और छिपकली और सान्डा और गिरगिट।
\s5
\v 31 ~सब रेंगने वाले जानदारों में से यह तुम्हारे लिए नापाक हैं, जो कोई उनके मरे पीछे उन को छुए वह शाम तक नापाक रहेगा।
\v 32 और जिस चीज़ पर वह मरे पीछे गिरें वह चीज़ नापाक होगी, चाहे वह लकडी का बर्तन हो या कपड़ा या चमड़ा या बोरा हो, चाहे किसी का कैसा ही बर्तन हो, ज़रूर है कि वह पानी में डाला जाए और वह शाम तक नापाक रहेगा, इस के बा'द वह पाक ठहरेगा।
\v 33 ~और अगर इनमें से कोई किसी मिट्टी के बर्तन में गिर जाए तो जो कुछ उस में है वह नापाक होगा, और बर्तन को तुम तोड़ डालना।
\s5
\v 34 ~उसके अन्दर अगर खाने की कोई चीज़ हो जिस में पानी पड़ा हुआ हो, तो वह भी नापाक ठहरेगी; और अगर ऐसे बर्तन में पीने के लिए कुछ हो तो वह नापाक होगा
\v 35 ~और जिस चीज़ पर उनकी लाश का कोई हिस्सा गिरे, चाहे वह तनूर हो या चूल्हा, वह नापाक होगी और तोड़ डाली जाए। ऐसी चीज़ें नापाक होती हैं और वह तुम्हारे लिए भी नापाक हों,
\s5
\v 36 ~मगर चश्मा या तालाब जिस में बहुत पानी हो वह पाक रहेगा, लेकिन जो कुछ उन की लाश से छू जाए वह नापाक होगा।
\v 37 ~और अगर उन की लाश का कुछ हिस्सा किसी बोने के बीज पर गिरे तो वह बीज पाक रहेगा;
\v 38 ~लेकिन अगर बीज पर पानी डाला गया हो और इसके बा'द उन की लाश में से कुछ उस पर गिरा हो, तो वह तुम्हारे लिए नापाक होगा।
\s5
\v 39 ~"और जिन जानवरों को तुम खा सकते हो, अगर उन में से कोई मर जाए तो जो कोई उस की लाश को छुए वह शाम तक नापाक रहेगा।
\v 40 और जो कोई उनकी लाश में से कुछ खाए, वह अपने कपड़े धो डाले और वह शाम तक नापाक रहेगा; और जो कोई उन की लाश को उठाए, वह अपने कपड़े धो डाले और वह शाम तक नापाक रहेगा।
\s5
\v 41 ~'और सब रेंगने वाले जानदार जो ज़मीन पर रेंगते हैं, मकरूह हैं और कभी खाए न जाएँ।
\v 42 ~और ज़मीन पर के सब रेंगने वाले जानदारों में से, जितने पेट या चार पाँवों के बल चलते हैं या जिनके बहुत से पाँव होते हैं, उनको तुम न खाना क्यूँकि वह मकरूह हैं।
\s5
\v 43 ~और तुम किसी रेंगने वाले जानदार की वजह से जो ज़मीन पर रेंगता है, अपने आप को मकरूह न बना लेना और न उन से अपने आप को नापाक करना के नजिस हो जाओ;
\v 44 क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ, इसलिए अपने आप को पाक करना और पाक होना क्यूँकि मैं क़ुद्दूस हूँ, इसलिए तुम किसी तरह के रेंगने वाले जानदार से जो ज़मीन पर चलता है, अपने आप को नापाक न करना;
\v 45 ~क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द हूँ, और तुमको मुल्क-ए-मिस्र से इसी लिए निकाल कर लाया हूँ कि मैं तुम्हारा ख़ुदा ठहरूँ । इसलिए तुम पाक होना क्यूँकि मैं क़ुद्दुस हूँ।"
\s5
\v 46 ~हैवानात, और परिन्दों, और आबी जानवरों, और ज़मीन पर के सब रेंगने वाले जानदारों के बारे में शरा' यही है;
\v 47 ~ताकि पाक और नापाक में, और जो जानवर खाए जा सकते हैं और जो नहीं खाए जा सकते, उनके बीच इम्तियाज़ किया जाए।
\s5
\c 12
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 2 ~"बनी-इस्राईल से कह कि अगर कोई 'औरत हामिला हो, और उसके लड़का हो तो वह सात दिन तक नापाक रहेगी; जैसे हैज़ के दिनों में रहती है।
\v 3 ~और आठवें दिन लड़के का ख़तना किया जाए।
\s5
\v 4 ~इसके बा'द तैतीस दिन तक वह तहारत के ख़ून में रहे, और जब तक उसकी तहारत के दिन पूरे न हों तब तक न तो किसी पाक चीज़ को छुए और न हैकल में दाख़िल हो।
\v 5 ~और अगर उसके लड़की हो तो वह दो हफ़्ते नापाक रहेगी, जैसे हैज़ के दिनों में रहती है। इसके बा'द वह छियासठ दिन तक तहारत के ख़ून में रहे।
\s5
\v 6 ~'और जब उसकी तहारत के दिन पूरे हो जाएँ, तो चाहे उसके बेटा हुआ हो या बेटी, वह सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक यक-साला बर्रा, और ख़ता की क़ुर्बानी के लिए कबूतर का एक बच्चा या एक कुमरी ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर काहिन के पास लाए;
\s5
\v 7 ~और काहिन उसे ख़ुदावन्द के सामने पेश करे और उसके लिए कफ़्फ़ारा दे। तब वह अपने जिरयान-ए-ख़ून से पाक ठहरेगी। जिस 'औरत के लड़का या लड़की हो उसके बारे में शरा' यह है।
\v 8 और अगर उस को बर्रा लाने का मक़दूर न हो तो वह दो कुमरियाँ या कबूतर के दो बच्चे, एक सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए और दूसरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए लाए। यूँ कहिन उसके लिए कफ़्फ़ारा दे तो वह पाक ठहरेगी।"
\s5
\c 13
\p
\v 1 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा,
\v 2 ~"अगर किसी के जिस्म की जिल्द में वर्म, या पपड़ी, या सफ़ेद चमकता हुआ दाग़ हो, और उसके जिस्म की जिल्द में कोढ़ जैसी बला हो, तो उसे हारून काहिन के पास या उसके बेटों में से जो काहिन हैं किसी के पास ले जाएँ।
\s5
\v 3 और काहिन उसके जिस्म की जिल्द की बला को देखे, अगर उस बला की जगह के बाल सफ़ेद हो गए हों और वह बला देखने में खाल से गहरी हो, तो वह कोढ़ का मर्ज़ है; और काहिन उस शख़्स को देख कर उसे नापाक करार दे।
\v 4 और अगर उसके जिस्म की जिल्द का चमकता हुआ दाग़ सफ़ेद तो हो लेकिन खाल से गहरा न दिखाई दे, और न उसके ऊपर के बाल सफ़ेद हो गए हों, तो काहिन उस शख़्स को सात दिन तक बन्द रख्खे;
\s5
\v 5 ~और सातवें दिन काहिन उसे मुलाहिज़ा करे, और अगर वह बला उसे वहीं के वहीं दिखाई दे और जिल्द पर फैल न गई हो, तो काहिन उसे सात दिन और बन्द रख्खे;
\v 6 ~और~सातवें दिन काहिन उसे मुलाहिज़ा करे,और अगर देखे कि उस बला की चमक कम है और वह जिल्द के ऊपर फैली भी नहीं है; तो काहिन उसे पाक क़रार दे क्यूँकि वह पपड़ी है। इसलिए वह अपने कपड़े धो डाले और साफ़ हो जाए।
\s5
\v 7 ~लेकिन अगर काहिन के उस मुलहज़े के बा'द जिस में वह साफ़ क़रार दिया गया था, वह पपड़ी उसकी जिल्द पर बहुत फैल जाए, तो वह शख़्स काहिन को फिर~दिखाया जाए;
\v 8 और काहिन उसे मुलाहिज़ा करे, और अगर देखे कि वह पपड़ी जिल्द पर फैल गई है तो वह उसे नापाक क़रार दे; क्यूँकि वह कोढ़ है।
\s5
\v 9 ~"अगर किसी शख़्स को कोढ़ का मर्ज़ हो, तो उसे काहिन के पास ले जाएँ,
\v 10 और काहिन उसे मुलाहिज़ा करे, और अगर देखे कि जिल्द पर सफ़ेद वर्म है और उसने बालों को~सफ़ेद कर दिया है, और उस वर्म की जगह का गोश्त ज़िन्दा और कच्चा है,
\v 11 ~तो यह उसके जिस्म की जिल्द में पुराना कोढ़ है, इसलिए काहिन उसे नापाक करार दे लेकिन उसे बन्द न करे क्यूँकि वह नापाक है।
\s5
\v 12 और अगर कोढ़ जिल्द में चारों तरफ़ फूट आए, और जहाँ तक काहिन को दिखाई देता है, यही मा'लूम हो कि उस की जिल्द सिर से पाँव तक कोढ़ से ढंक गई है;
\v 13 ~तो काहिन ग़ौर से देखे और अगर उस शख़्स का सारा जिस्म कोढ़ से ढका हुआ निकले, तो काहिन उस मरीज़ को पाक क़रार दे, क्यूँकि वह सब सफ़ेद हो गया है और वह पाक है।
\v 14 ~लेकिन जिस दिन जीता और कच्चा गोश्त उस पर दिखाई दे, वह नापाक होगा।
\s5
\v 15 ~और काहिन उस कच्चे गोश्त को देख कर उस शख़्स को नापाक करार दे, कच्चा गोश्त नापाक होता है; वह कोढ़ है।
\v 16 ~और अगर वह कच्चा गोश्त फिर कर सफ़ेद हो जाए, तो वह काहिन के पास जाए;
\v 17 ~और काहिन उसे मुलाहिज़ा करे, और अगर देखे कि मर्ज़ की जगह सब सफ़ेद हो गई है तो काहिन मरीज़ को पाक क़रार दे; वह पाक है।
\s5
\v 18 ~'और अगर किसी के जिस्म की जिल्द पर फोड़ा हो कर अच्छा हो जाए,
\v 19 ~और फोड़े की जगह सफ़ेद वर्म या~सुर्ख़ी~~माइल चमकता हुआ सफ़ेद दाग़ हो तो वह दिखाया जाए;
\v 20 और काहिन उसे मुलाहिज़ा करे, और अगर देखे कि वह खाल से गहरा नज़र आता है और उस पर के बाल भी सफ़ेद हो गए हैं, तो काहिन उस शख़्स को नापाक करार दे; क्यूँकि वह कोढ़ है जो फोड़े में से फूट कर निकला है।
\s5
\v 21 ~लेकिन अगर काहिन देखे कि उस पर सफ़ेद बाल नहीं, और वह खाल से गहरा भी नहीं है और उसकी चमक कम है; तो काहिन उसे सात दिन तक बन्द रख्खे।
\v 22 ~और अगर वह जिल्द पर चारों तरफ़ फैल जाए, तो काहिन उसे नापाक क़रार दे; क्यूँकि वह कोढ़ की बला है।
\v 23 ~लेकिन~अगर वह चमकता हुआ दाग अपनी जगह पर वहीं का वहीं रहे, और फैल न जाए तो वह फोड़े का दाग़ है; तब काहिन उस शख़्स को पाक करार दे।
\s5
\v 24 ~"या अगर जिस्म की खाल कहीं से जल जाए, और उस जली हुई जगह का ज़िन्दा गोश्त एक सुर्ख़ी माइल चमकता हुआ सफ़ेद दाग़ या बिल्कुल ही सफ़ेद दाग़ बन जाए
\v 25 ~तो काहिन उसे मुलाहिज़ा करे, और अगर देखे कि उस चमकते हुए दाग़ के बाल सफ़ेद हो गए हैं और वह खाल से गहरा दिखाई देता है; तो वह कोढ़ है जो उस जल जाने से पैदा हुआ है; और काहिन उस शख़्स को नापाक क़रार दे क्यूँकि उसे कोढ़ की बीमारी है।
\s5
\v 26 ~लेकिन अगर काहिन देखे कि उस चमकते हुए दाग़ पर सफ़ेद बाल नहीं, और न वह खाल से गहरा है बल्कि उसकी चमक भी कम है, तो वह उसे सात दिन तक बन्द रख्खे;
\v 27 ~और सातवें दिन काहिन उसे देखे, अगर वह जिल्द पर बहुत फैल गया हो तो काहिन उस शख़्स को नापाक क़रार दे; क्यूँकि उसे कोढ़ की बीमारी है।
\v 28 ~और अगर वह चमकता हुआ दाग़ अपनी जगह पर वहीं का वहीं रहे और जिल्द पर फैला हुआ न हो, बल्कि उसकी चमक भी कम हो, तो वह सिर्फ़ जल जाने की वजह से फूला हुआ है; और काहिन उस शख़्स को पाक क़रार दे क्यूँकि वह दाग़ जल जाने की वजह से है।
\s5
\v 29 ~"अगर किसी मर्द या 'औरत के सिर या ठोड़ी में दाग़ हो,
\v 30 ~तो काहिन उस दाग़ को मुलाहिज़ा करे और अगर देखे कि वह खाल से गहरा मा'लूम होता है और उस पर ज़र्द-ज़र्द बारीक रोंगटे हैं तों काहिन उस शख़्स को नापाक क़रार दे क्यूँकि वह सा'फ़ा है जो सिर या ठोड़ी का कोढ़ है।
\s5
\v 31 ~और अगर काहिन देखे कि वह सा'फ़ा की बला खाल से गहरी नहीं मा'लूम होती और उस पर स्याह बाल नहीं हैं, तो काहिन उस शख़्स को जिसे सा'फ़ा का मर्ज़ है, सात दिन तक बन्द रख्खे;
\s5
\v 32 ~और सातवें दिन काहिन उस बला का मुलाहिज़ा करे और अगर देखे कि सा'फ़ा फैला नहीं और उस पर कोई ज़र्द बाल भी नहीं और सा'फ़ा खाल से गहरा नहीं मा'लूम होता;
\v 33 तो उस शख़्स के बाल मूँडे जाएँ, लेकिन जहाँ सा'फ़ा हो वह जगह न मूँडी जाए। और काहिन उस शख़्स को जिसे सा'फ़ा का मर्ज़ है, सात दिन और बन्द रख्खे।
\s5
\v 34 ~फिर सातवें रोज़ काहिन सा'फ़े का मुलाहिज़ा करे, और अगर देखें कि सा'फ़ा जिल्द में फैला नहीं और न वह खाल से गहरा दिखाई देता है तो काहिन उस शख़्स को पाक करार दे; और वह अपने कपड़े धोए और साफ़ हो जाए।
\s5
\v 35 ~लेकिन अगर उस की सफ़ाई के बा'द सा'फ़ा उसकी जिल्द पर बहुत फैल जाए तो काहिन उसे देखे,
\v 36 ~और अगर सा'फ़ा उसकी जिल्द पर फैला हुआ नज़र आए तो काहिन ज़र्द बाल को न ढूँढे क्यूँकि वह शख़्स नापाक है।
\v 37 ~लेकिन अगर उस को सा'फ़ा अपनी जगह पर वहीं का वहीं दिखाई दे और उस पर स्याह बाल निकले हुए हों, तो सा'फ़ा अच्छा हो गया; वह शख़्स पाक है और काहिन उसे पाक क़रार दे।
\s5
\v 38 ~और अगर किसी मर्द या 'औरत के जिस्म की जिल्द में चमकते हुए दाग़ या सफ़ेद चमकते हुए दाग़ हों,
\v 39 ~तो काहिन देखे, और अगर उनके जिस्म की जिल्द के दाग स्याही माइल सफ़ेद रंग के हों, तो वह छीप है जो जिल्द में फूट निकली है; वह शख़्स पाक है।
\s5
\v 40 ~'और जिस शख़्स के सिर के बाल गिर गए हों, वह गंजा तो है मगर पाक है।
\v 41 और जिस शख़्स के सर के बाल पेशानी की तरफ़ से गिर गए हों, वह चँदुला तो है मगर पाक है|
\s5
\v 42 ~लेकिन उस गंजे या चँदले सिर पर~सुर्ख़ी~~माइल सफ़ेद दाग़ हों, तो यह कोढ़ है जो उसके गंजे या चँदले सिर पर निकला~है;
\v 43 ~इसलिए काहिन उसे मुलाहिज़ा करे, और अगर वह देखे कि उसके गंजे या चँदले सिर पर वह दाग़ ऐसा सुर्खी माइल सफ़ेद रंग लिए हुए है, जैसा जिल्द के कोढ़ में होता है,
\v 44 ~तो वह आदमी कोढ़ी है, वह नापाक है और काहिन उसे ज़रूर ही नापाक करार दे क्यूँकि वह मर्ज़ उसके सिर पर है।
\s5
\v 45 ~और जो कोढ़ी इस बला में मुब्तिला हो, उसके कपड़े फटे और उसके सिर के बाल बिखरे रहें, और वह अपने ऊपर के होंट को ढाँके और चिल्ला-चिल्ला कर कहे, नापाक, नापाक।
\v 46 जितने दिनों तक वह इस बला में मुब्तिला रहे, वह नापाक रहेगा और वह है भी नापाक। तब वह अकेला रहा करे, उसका मकान लश्करगाह के बाहर हो।
\s5
\v 47 'और वह कपड़ा भी जिस में कोढ़ की बला हो, चाहे वह ऊन का हो या कतान का;
\v 48 और वह बला भी चाहे कतान या ऊन के कपड़े के ताने में या उसके बाने में हो, या वह चमड़े में हो या चमड़े की बनी हुई किसी चीज़ में हो;
\v 49 ~अगर वह बला कपड़े में या चमड़े में, कपड़े के ताने में या बाने में या चमड़े की किसी चीज़ में सब्ज़ी माइल या~सुर्ख़ी~माइल रंग की हो, तो वह कोढ़ की बला है और काहिन को दिखाई जाए।
\s5
\v 50 ~और काहिन उस बला को देखे, और उस चीज़ को जिस में वह बला है सात दिन तक बन्द रख्खे;
\v 51 ~और सातवें दिन उस को देखें। अगर वह बला कपड़े के ताने में या बाने में, या चमड़े पर या चमड़े की बनी हुई किसी चीज़ पर फैल गई हो, तो वह खा जाने वाला कोढ़ है और नापाक है।
\v 52 ~और उस ऊन या कतान के कपड़े को जिसके ताने में या बाने में वह बला है, या चमड़े की उस चीज़ को जिस में वह है जला दे; क्यूँकि यह खा जाने वाला कोढ़ है। वह आग में जलाया जाए।
\s5
\v 53 ~"और अगर काहिन देखे, कि वह बला कपड़े के ताने में या बाने में, या चमड़े की किसी चीज़ में फैली हुई नज़र नहीं आती,
\v 54 ~तो काहिन हुक्म करे कि उस चीज़ को जिस में वह बला है धोएँ, और वह फिर उसे और सात दिन तक बन्द रख्खे;
\v 55 ~और उस बला के धोए जाने के बा'द काहिन फिर उसे मुलाहिज़ा करे, और अगर देखे कि उस बला का रंग नहीं बदला और वह फैली भी नहीं है, तो वह नापाक है। तू उस कपड़े को आग में जला देना; क्यूँकि वह खा जाने वाली बला है, चाहे उस का फ़साद अन्दरूनी हो या बैरूनी।
\s5
\v 56 ~और अगर काहिन देखे कि धोने के बा'द उस बला की चमक कम हो गई है, तो वह उसे उस कपड़े से या चमड़े से, ताने या बाने से, फाड़ कर निकाल फेंके।
\v 57 ~और अगर वह बला फिर भी कपड़े के ताने या बाने में या चमड़े की चीज़ में दिखाई दे, तो वह फूटकर निकल रही है। तब तू उस चीज़ को जिस में वह बला है आग में जला देना।
\v 58 ~और अगर उस कपड़े के ताने या बाने में से, या चमड़े की चीज़ में से, जिसे तूने धोया है, वह बला जाती रहे तो वह चीज़ दोबारा धोई जाए और वह पाक ठहरेगी।”
\s5
\v 59 ~ऊन या कतान के ताने या बाने में, या चमड़े की किसी चीज़ में अगर कोढ़ की बला हो, तो उसे पाक या नापाक क़रार देने केलिए शरा' यही है।
\s5
\c 14
\p
\v 1 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 2 ~'कोढ़ी के लिए जिस दिन वह पाक क़रार दिया जाए यह शरा' है, कि उसे काहिन के पास ले जाएँ,
\s5
\v 3 और काहिन लश्करगाह के बाहर जाए, और काहिन ख़ुद कोढ़ी को मुलाहिज़ा करे और अगर देखे कि उसका कोढ़ अच्छा हो गया है,
\v 4 तो काहिन हुक्म दे कि वह जो पाक क़रार दिए जाने को है, उसके लिए दो ज़िन्दा पाक परिन्दे और देवदार की लकड़ी और सुर्ख़ कपड़ा और जूफ़ा लें।
\v 5 और काहिन हुक्म दे कि उनमें से एक परिन्दा किसी मिट्टी के बर्तन में बहते हुए पानी के ऊपर ज़बह किया जाए।
\s5
\v 6 फिर वह ज़िन्दा परिन्दे को और देवदार की लकड़ी और सुर्ख़ कपड़े और जूफ़े को ले, और इन को और उस ज़िन्दा परिन्दे को उस परिन्दे के ख़ून में ग़ोता दे जो बहते पानी पर ज़बह हो चुका है।
\v 7 ~और उस शख़्स पर जो कोढ़ से पाक करार दिया जाने को है, सात बार छिड़क कर उसे पाक क़रार दे और ज़िन्दा परिन्दे को खुले मैदान में छोड़ दे।
\s5
\v 8 ~और वह जो पाक करार दिया जाएगा अपने कपड़े धोए और सारे बाल मुन्डाए और पानी में ग़ुस्ल करे, तब वह पाक ठहरेगा; इसके बा'द वह लश्करगाह में आए, लेकिन सात दिन तक अपने ख़ेमे के बाहर ही रहे।
\v 9 ~और सातवें रोज़ अपने सिर के सब~बाल और अपनी दाढ़ी और अपने अबरू ग़र्ज़ अपने सारे बाल मुंडाए, और अपने कपड़े धोए और पानी में नहाए, तब वह पाक ठहरेगा।
\s5
\v 10 ~और वह आठवें दिन दो बे-'ऐब नर बर्रे और एक बे-'ऐब यक-साला मादा बर्रा और नज़्र की क़ुर्बानी के लिए ऐफ़ा के तीन दहाई हिस्से के बराबर तेल मिला हुआ मैदा और लोज भर तेल ले।
\v 11 ~तब वह काहिन जो उसे पाक करार देगा, उस शख़्स को जो पाक करार दिया जाएगा और इन चीज़ों को ख़ुदावन्द के सामने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर हाज़िर करे।
\s5
\v 12 ~और काहिन नर बर्रों में से एक को लेकर जुर्म की क़ुर्बानी के लिए उसे और उस लोज भर तेल की नज़दीक लाए, और उनको हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने हिलाए;
\v 13 ~और उस बर्रे को हैकल में उस जगह ज़बह करे जहाँ ख़ता की क़ुर्बानी और सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवर ज़बह किए जाते हैं, क्यूँकि जुर्म की क़ुर्बानी ख़ता की क़ुर्बानी की तरह काहिन का हिस्सा ठहरेगी; वह बहुत पाक है।
\s5
\v 14 और काहिन जुर्म की क़ुर्बानी का कुछ ख़ून ले और जो शख़्स पाक क़रार दिया जाएगा उसके दहने कान की लौ पर और दहने हाथ के अँगूठे पर और दहने पाँव के अंगूठे पर उसे लगाए,
\v 15 ~और काहिन उस लोज भर तेल में से कुछ लेकर अपने बाएँ हाथ की हथेली में डाले;
\v 16 और काहिन अपनी दहनी उँगली को अपने बाएँ हाथ के तेल में डुबोए, और ख़ुदावन्द के सामने कुछ तेल सात बार अपनी उँगली से छिड़के।
\s5
\v 17 ~और काहिन अपने हाथ के बाक़ी तेल में से कुछ ले और जो शख़्स पाक करार दिया जाएगा उसके दहने कान की लौ पर और उसके दहने हाथ के अंगूठे और दहने पांव के अंगूठे पर, जुर्म की क़ुर्बानी के ख़ून के ऊपर लगाए।
\v 18 ~~और जो तेल काहिन के हाथ में बाक़ी बचे उसे वह उस शख़्स के सिर में डाल दे जो पाक करार दिया जाएगा, यूँ काहिन उसके लिए ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दे।
\s5
\v 19 ~और काहिन ख़ता की क़ुर्बानी भी पेश करे, और उसके लिए जो अपनी नापाकी से पाक करार दिया जाएगा कफ़्फ़ारा दे; इसके बा'द वह सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवर को ज़बह करे।
\v 20 ~फिर काहिन सोख़्तनी कुबानी और नज़्र की क़ुर्बानी को मज़बह पर अदा करे। यूँ काहिन उसके लिए कफ़्फ़ारा दे तो वह पाक ठहरेगा।
\s5
\v 21 ~"और अगर वह ग़रीब हो और इतना उसे मक़दूर न हो तो वह हिलाने के लिए जुर्म की क़ुर्बानी के लिए एक नर बर्रा ले ताकि उसके लिए कफ़्फ़ारा दिया जाए और नज़्र की क़ुर्बानी के लिए ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर तेल मिला हुआ मैदा और लोज भर तेल,
\v 22 ~और अपने मक़दूर के मुताबिक़ दो कुमरियाँ या कबूतर के दो बच्चे भी ले, जिन में से एक तो ख़ता की क़ुर्बानी के लिए और दूसरा सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए हो।
\v 23 इन्हें वह आठवें दिन अपने पाक करार दिए जाने के लिए काहिन के पास ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर ख़ुदावन्द के सामने लाए।
\s5
\v 24 ~और काहिन जुर्म की क़ुर्बानी के बर्रे को और उस लोज भर तेल को लेकर उनको ख़ुदावन्द के सामने हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर हिलाए।
\v 25 ~फिर काहिन जुर्म की क़ुर्बानी के बर्रे को ज़बह करे, और वह जुर्म की क़ुर्बानी का कुछ ख़ून लेकर जो शख़्स पाक क़रार दिया जाएगा, उसके दहने कान की लौ पर और दहने हाथ के अंगूठे और दहने पाँव के अंगूठे पर उसे लगाए।
\s5
\v 26 ~फिर काहिन उस तेल में से कुछ अपने बाएँ हाथ की हथेली में डाले,
\v 27 और वह अपने बाएँ हाथ के तेल में से कुछ अपनी दहनी उँगली से ख़ुदावन्द के सामने सात बार छिड़के।
\s5
\v 28 ~फिर काहिन कुछ अपने हाथ के तेल में से ले, और जो शख़्स पाक करार दिया जाएगा उसके दहने कान की लौ पर और उसके दहने हाथ के अंगूठे और दहने पाँव के अंगूठे पर, जुर्म की क़ुर्बानी के ख़ून की जगह उसे लगाए;
\v 29 ~और जो तेल काहिन के हाथ में बाक़ी बचे उसे वह उस शख़्स के सिर में डाल दे जो पाक क़रार दिया जाएगा, ताकि उसके लिए ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दिया जाए।
\s5
\v 30 ~फिर वह कुमरियों या कबूतर के बच्चों में से जिन्हें वह ला सका हो एक को अदा करे,
\v 31 ~या'नी जो कुछ उसे मयस्सर हुआ हो उस में से एक को ख़ता की क़ुर्बानी के तौर पर और दूसरे को सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर, नज़्र की क़ुर्बानी के साथ पेश करे। यूँ कहिन उस शख़्स के लिए जो पाक क़रार दिया जाएगा, ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दे।
\v 32 ~उस कोढ़ी के लिए जो अपने पाक क़रार दिए जाने के सामान को लाने का मक़दूर न रखता हो शरा' यह है।"
\s5
\v 33 फिर ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा,
\v 34 ~"जब तुम मुल्क-ए-कनान में जिसे मैं तुम्हारी मिल्कियत किए देता हूँ दाख़िल हो, और मैं तुम्हारे मीरासी मुल्क के किसी घर में कोढ़ की बला भेजूँ
\v 35 ~तो उस घर का मालिक जाकर काहिन को ख़बर दे कि मुझे ऐसा मा'लूम होता है कि उस घर में कुछ बला सी है।
\s5
\v 36 ~तब काहिन हुक्म करे कि इससे पहले कि उस बला को देखने के लिए काहिन वहाँ जाए लोग उस घर को ख़ाली करें, ताकि जो कुछ घर में हो वह नापाक न ठहराया जाए। इसके बा'द काहिन घर देखने को अन्दर जाए।
\v 37 और उस बला को मुलाहिज़ा करे, और अगर देखे कि वह बला उस घर की दीवारों में सब्ज़ी या सुर्ख़ीमाइल गहरी लकीरों की सूरत में है, और दीवार में सतह के अन्दर नज़र आती है,
\v 38 तो काहिन घर से बाहर निकल कर घर के दरवाज़े पर जाए और घर को सात दिन के लिए बन्द कर दे;
\s5
\v 39 ~और वह सातवें दिन फिर आकर उसे देखें। अगर वह बला घर की दीवारों में फैली हुई नज़र आए,
\v 40 ~तो काहिन हुक्म दे कि उन पत्थरों को जिन में वह बला है, निकालकर उन्हें शहर के बाहर किसी नापाक जगह में फेंक दें।
\s5
\v 41 ~फिर वह उस घर को अन्दर ही अन्दर चारों तरफ़ से खुर्चवाए, और उस खुर्ची हुई मिट्टी को शहर के बाहर किसी नापाक जगह में डालें।
\v 42 ~और वह उन पत्थरों की जगह और पत्थर लेकर लगाएं और काहिन ताज़ा गारे से उस घर की अस्तरकारी कराए।
\s5
\v 43 और अगर पत्थरों के निकाले जाने और उस घर के खुर्च और अस्तरकारी कराए जाने के बा'द भी वह बला फिर आ जाए और उस घर में फूट निकले,
\v 44 ~तो काहिन अन्दर जाकर मुलाहिज़ा करे, और अगर देखे कि वह बला घर में फैल गई है तो उस घर में खा जाने वाला कोढ़ है; वह नापाक है।
\s5
\v 45 ~तब वह उस घर को, उसके पत्थरों और लकड़ियों और उसकी सारी मिट्टी को गिरा दे; और वह उनको शहर के बाहर निकाल कर किसी नापाक जगह में ले जाए।
\v 46 ~इसके सिवा , अगर कोई उस घर के बन्द कर दिए जाने के दिनों में उसके अन्दर दाख़िल हो तो वह शाम तक नापाक रहेगा;
\v 47 और जो कोई उस घर में सोए वह अपने कपड़े धो डाले, और जो कोई उस घर में कुछ खाए वह भी अपने कपड़े धोए।
\s5
\v 48 "और अगर काहिन अन्दर जाकर मुलाहिज़ा करे और देखे कि घर की अस्तरकारी के बा'द वह बला उस घर में नहीं फैली, तो वह उस घर को पाक क़रार दे क्यूँकि वह बला दूर हो गई।
\s5
\v 49 और वह उस घर को पाक करार देने के लिए दो परिन्दे और देवदार की लकड़ी और सुर्ख़ कपड़ा और जूफ़ा ले,
\v 50 ~और वह उन परिन्दों में से एक को मिट्टी के किसी बर्तन में बहते हुए पानी पर ज़बह करे;
\v 51 फिर वह देवदार की लकड़ी और जूफ़े और~सुर्ख़~कपड़े और उस ज़िन्दा परिन्दे को लेकर उनको उस ज़बह किए हुए~परिन्दे के ख़ून में और उस बहते हुए पानी में गोता दे, और सात बार उस घर पर छिड़के।
\s5
\v 52 और वह उस परिन्दे के ख़ून से, और बहते हुए पानी और ज़िन्दा परिन्दे और देवदार की लकड़ी और जूफ़े और~सुर्ख़~कपड़े से उस घर को पाक करे;
\v 53 और उस ज़िन्दा परिन्दे को शहर के बाहर खुले मैदान में छोड़ दे; यूँ वह घर के लिए कफ़्फ़ारा दे, तो वह पाक ठहरेगा।"
\s5
\v 54 कोढ़ की हर क़िस्म की बला के, और साफ़े के लिए,
\v 55 और कपड़े और घर के कोढ़ के लिए,
\v 56 और वर्म और पपड़ी, और चमकते हुए दाग़ के लिए शरा' यह है;
\v 57 ~ ~ताकि बताया जाए कि कब वह नापाक और कब पाक करार दिए जाएँ। कोढ़ के लिए शरा' यही है।
\s5
\c 15
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा कि;
\v 2 ~"बनी-इस्राईल से कहो कि अगर किसी शख़्स की जिरयान का मर्ज़ हो तो वह जिरयान की वजह से नापाक है;
\v 3 ~और जिरयान की वजह से उसकी नापाकी यूँ होगी, कि चाहे धात बहती हो या धात का बहना ख़त्म हो गया हो वह नापाक है।
\s5
\v 4 ~जिस बिस्तर पर जिरयान का मरीज़ सोए वह बिस्तर नापाक होगा, और जिस चीज़ पर वह बैठे वह चीज़ नापाक होगी।
\v 5 और जो कोई उसके बिस्तर को छुए, वह अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और शाम तक नापाक रहे।
\s5
\v 6 और जो कोई उस चीज़ पर बैठे जिस पर जिरयान का मरीज़ बैठा हो, वह अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और शाम तक नापाक रहे।
\v 7 ~और जो कोई जिरयान के मरीज़ के जिस्म को छुए, वह भी अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और शाम तक नापाक रहे।
\s5
\v 8 और अगर जिरयान का मरीज़ किसी शख़्स पर जो पाक है। थूक दे, तो वह शख़्स अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और शाम तक नापाक रहे।
\v 9 ~और जिस ज़ीन पर जिरयान का मरीज़ सवार हो, वह ज़ीन नापाक होगा।
\s5
\v 10 ~और जो कोई किसी चीज़ को जो उस मरीज़ के नीचे रही हो छुए, वह शाम तक नापाक रहे; और जो कोई उन चीज़ों को उठाए, वह अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और शाम तक नापाक रहे।
\v 11 ~और जिस शख़्स की जिरयान का मरीज़ बगै़र हाथ धोए छुए, वह अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और शाम तक नापाक रहे।
\v 12 ~और मिट्टी के जिस बर्तन को जिरयान का मरीज़ छुए, वह तोड़ डाला जाए; लेकिन चोबी बर्तन पानी से धोया जाए।
\s5
\v 13 'और जब जिरयान के मरीज़ को शिफ़ा हो जाए, तो वह अपने पाक ठहरने के लिए सात दिन गिने; इस के बा'द वह अपने कपड़े धोए और बहते हुए पानी में नहाए तब वह पाक होगा।
\v 14 ~और आठवें दिन दो कुमरियाँ या कबूतर के दो बच्चे लेकर वह ख़ुदावन्द के सामने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर जाए, और उन को काहिन के हवाले करे;
\v 15 ~और काहिन एक को ख़ता की~क़ुर्बानी के लिए, और दूसरे को सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए पेश करे। यूँ काहिन उसके लिए उसके जिरयान की वजह से ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दे।
\s5
\v 16 ~'और अगर किसी मर्द की धात बहती हो, तो वह पानी में नहाए और शाम तक नापाक रहे।
\v 17 ~और जिस कपड़े या चमड़े पर नुत्फ़ा लग जाए, वह कपड़ा या चमड़ा पानी से धोया जाए और शाम तक नापाक रहे।
\v 18 और वह 'औरत भी जिसके साथ मर्द सुहबत करे और मुन्ज़िल हो, तो वह दोनों पानी से ग़ुस्ल करें और शाम तक नापाक रहे।
\s5
\v 19 'और अगर किसी 'औरत को ऐसा जिरयान हो कि उसे हैज़ का ख़ून आए, तो वह सात दिन तक नापाक रहेगी, और जो कोई उसे छुए वह शाम तक नापाक रहेगा।
\v 20 और जिस चीज़ पर वह अपनी नापाकी की हालत में सोए वह चीज़ नापाक होगी, और जिस चीज़ पर बैठे वह भी नापाक हो जाएगी।
\s5
\v 21 ~और जो कोई उसके बिस्तर को छुए, वह अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और शाम तक नापाक रहे।
\v 22 ~और जो कोई उस चीज़ को जिस पर वह बैठी हो छुए, वह अपने कपड़े धोए और पानी से नहाए और शाम तक नापाक रहे।
\v 23 ~और अगर उसका ख़ून उसके बिस्तर पर या जिस चीज़ पर वह बैठी हो उस पर लगा हुआ हो और उस वक़्त कोई उस चीज़ को छुए, तो वह शाम तक नापाक रहे।
\s5
\v 24 ~और अगर मर्द उसके साथ सुहबत करे और उसके हैज़ का ख़ून उसे लग जाए, तो वह सात दिन तक नापाक रहेगा और हर एक बिस्तर जिस पर वह मर्द सोएगा नापाक होगा।
\s5
\v 25 ~'और अगर किसी 'औरत को हैज़ के दिन को छोड़कर यूँ बहुत दिनों तक ख़ून आए या हैज़ की मुद्दत गुज़र जाने पर भी ख़ून जारी रहे, तो जब तक उस को यह मैला ख़ून आता रहेगा तब तक वह ऐसी ही रहेगी जैसी हैज़ के दिनों में रहती है, वह नापाक है।
\v 26 ~और इस जिरयान-ए-ख़ून के कुल दिनों में जिस-जिस बिस्तर पर वह सोएगी, वह हैज़ के बिस्तर की तरह नापाक होगा; और जिस-जिस चीज़ पर वह बैठेगी, वह चीज़ हैज़ की नजासत की तरह नापाक होगी।
\v 27 ~और जो कोई उन चीज़ों को छुए वह नापाक होगा, वह अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और शाम तक नापाक रहे।
\s5
\v 28 ~और जब वह अपने जिरयान से शिफ़ा पा जाए तो सात दिन गिने, तब इसके बा'द वह पाक ठहरेगी।
\v 29 ~और आठवें दिन वह दो कुमरियाँ या कबूतर के दो बच्चे लेकर उनको ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर काहिन के पास लाए।
\v 30 ~और काहिन एक को ख़ता की क़ुर्बानी के लिए और दूसरे को सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए पेश करे, यूँ काहिन उसके नापाक ख़ून के जिरयान के लिए ख़ुदावन्द के सामने उस की तरफ़ से कफ़्फ़ारा दे।
\s5
\v 31 ~"इस तरीक़े से तुम बनी-इस्राईल को उन की नजासत से अलग रखना, ताकि वह मेरे हैकल की जो उनके बीच है नापाक करने की वजह से अपनी नजासत में हलाक न हों।”
\s5
\v 32 ~उसके लिए जिसे जिरयान का मर्ज़ हो, और उसके लिए जिस की धात बहती हो, और वह उसकी वजह से नापाक हो जाए,
\v 33 और उसके लिए जो हैज़ से हो, और उस मर्द और 'औरत के लिए जिनको जिरयान का मर्ज़ हो, और उस मर्द के लिए जो नापाक 'औरत के साथ सुहबत करे शरा' यही है।
\s5
\c 16
\p
\v 1 ~और हारून के दो बेटों की वफ़ात के बा'द जब वह ख़ुदावन्द के नज़दीक आए और मर गए|
\v 2 ~ख़ुदावन्द मूसा से हम कलाम हुआ; और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "अपने भाई हारून से कह कि वह हर वक़्त पर्दे के अन्दर के पाकतरीन मक़ाम में सरपोश के पास जो सन्दूक के ऊपर है न आया करे, ताकि वह मर न जाए; क्यूँकि मैं सरपोश पर बादल में दिखाई दूँगा।
\s5
\v 3 ~और हारून पाकतरीन मक़ाम में इस तरह आए कि ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा और सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक मेंढा लाए।
\v 4 और वह कतान का पाक कुरता पहने, और उसके तन पर कतान का पाजामा हो, और कतान के कमरबन्द से उसकी कमर कसी हुई हो, और कतान ही का 'अमामा उसके सिर पर बँधा हो; यह पाक लिबास हैं और वह इन को पानी से नहा कर पहने
\v 5 और बनी-इस्राईल की जमा'अत से ख़ता की क़ुर्बानी के लिए दो बकरे और सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक मेंढा ले।
\s5
\v 6 और हारून ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े को जो उसकी तरफ़ से है पेश कर अपने और अपने घर के लिए कफ़्फ़ारा दे।
\v 7 फिर उन दोनों बकरों को लेकर उन को ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर ख़ुदावन्द के सामने खड़ा करे।
\s5
\v 8 और हारून उन दोनों बकरों पर चिट्ठियाँ डाले, एक चिट्ठी ख़ुदावन्द के लिए और दूसरी 'अज़ाज़ेल के लिए हो।
\v 9 और जिस बकरे पर ख़ुदावन्द के नाम की चिट्ठी निकले उसे हारून लेकर ख़ता की क़ुर्बानी के लिए अदा करे;
\v 10 ~लेकिन जिस बकरे पर 'अज़ाज़ेल के नाम की चिट्ठी निकले वह ख़ुदावन्द के सामने ज़िन्दा खड़ा किया जाए, ताकि उससे कफ़्फ़ारा दिया जाए और वह 'अज़ाज़ेल के लिए वीराने में छोड़ दिया जाए।
\s5
\v 11 ~"और हारून ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े की जो उस की तरफ़ से है, आगे लाकर अपने और अपने घर के लिए कफ़्फ़ारा दे, और उस बछड़े को जो उस की तरफ़ से ख़ता की क़ुर्बानी के लिए है ज़बह करे।
\s5
\v 12 ~और वह एक ख़ुशबूदान को ले जिसमें ख़ुदावन्द के मज़बह पर की आग के अंगारे भर हों और अपनी मुठ्ठियाँ बारीक ख़ुशबूदार ख़ुशबू से भर ले और उसे पर्दे के अन्दर लाए
\v 13 ~और उस~ख़ुशबू~को ख़ुदावन्द के सामने आग में डाले, ताकि~ख़ुशबू~का धुआँ सरपोश को जो शहादत के सन्दूक के~ऊपर है~छिपा ले, कि वह हलाक न हो।
\s5
\v 14 ~फिर वह उस बछड़े का कुछ ख़ून लेकर उसे अपनी उँगली से पूरब की तरफ़ सरपोश के ऊपर छिड़के, और सरपोश के आगे भी कुछ ख़ून अपनी उँगली से सात बार छिड़के।
\s5
\v 15 ~फिर वह ख़ता की क़ुर्बानी के उस बकरे को ज़बह करे जो जमा'अत की तरफ़ से है और उसके ख़ून को पर्दे के अन्दर लाकर जो कुछ उसने बछड़े के ख़ून से किया था वही इससे भी करे, और उसे सरपोश के ऊपर और उसके सामने छिड़के।
\v 16 ~और बनी-इस्राईल की सारी नापाकियों, और गुनाहों, और ख़ताओं की वजह से पाकतरीन मक़ाम के लिए कफ़्फ़ारा दे; और ऐसा ही वह ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के लिए भी करे जो उनके साथ उन की~नापाकियों~के बीच रहता है।
\s5
\v 17 ~और जब वह कफ़्फ़ारा देने को पाकतरीन मक़ाम के अन्दर जाए, तो जब तक वह अपने और अपने घराने और बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत के लिए कफ़्फ़ारा देकर बाहर न आ जाए उस वक़्त तक कोई आदमी ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के अन्दर न रहे
\v 18 ~फिर वह निकल कर उस मज़बह के पास जो ख़ुदावन्द के सामने है जाए और उसके लिए कफ़्फ़ारा दे, और उस बछड़े और बकरे का थोड़ा-थोड़ा सा ख़ून लेकर मज़बह के सींगों पर चारों तरफ़ लगाए;
\v 19 ~और कुछ ख़ून उसके ऊपर सात बार अपनी उँगली से छिड़के और उसे बनी-इस्राईल की~नापाकियों~से पाक और पाक करे।
\s5
\v 20 और जब वह पाकतरीन मक़ाम और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ और मज़बह के लिए कफ़्फ़ारा दे चुके तो उस ज़िन्दा बकरे को आगे लाए;
\v 21 ~और हारून अपने दोनों हाथ उस ज़िन्दा बकरे के सिर पर रख कर उसके ऊपर बनी-इस्राईल की सब बदकारियों, और उनके सब गुनाहों, और ख़ताओं का इक़रार करे और उन को उस बकरे के सिर पर धर कर उसे किसी शख़्स के हाथ जो इस काम के लिए तैयार ही वीरान में भिजवा दे।
\v 22 और वह बकरा उनकी सब बदकारियाँ अपने ऊपर लादे हुए किसी वीरान में ले जाएगा, इसलिए वह उस बकरे को वीराने में छोड़े दे|
\s5
\v 23 ~"फिर हारून ख़मा-ए-इजितमा'अ में आकर कतान के सारे लिबास को जिसे उसने पाकतरीन मक़ाम में जाते वक़्त पहना था उतारे और उसकी वहीं रहने दे।
\v 24 ~फिर वह किसी पाक जगह में पानी से ग़ुस्ल करके अपने कपड़े पहन ले, और बाहर आ कर अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी और जमा'त की~सोख़्तनी क़ुर्बानी ~पेश करे और अपने लिए और जमा'अत के लिए कफ़्फ़ारा दे।
\s5
\v 25 ~और ख़ता की क़ुर्बानी की चर्बी को मज़बह पर जलाए।
\v 26 ~और जो आदमी बकरे को 'अज़ाज़ेल के लिए छोड़ कर आए, वह अपने कपड़े धोए और पानी से नहाए, इसके बा'द वह लश्करगाह में दाख़िल हो।
\s5
\v 27 ~और ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े को और ख़ता की क़ुर्बानी के बकरे को जिन का ख़ून पाकतरीन मक़ाम में कफ़्फ़ारे के लिए पहुँचाया जाए, उन को वह लश्करगाह से बाहर ले जाएँ, और उनकी खाल और गोश्त और फुज़लात को आग में जला दें:
\v 28 ~और जो उन को जलाए वह अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे, उसके बा'द वह लश्करगाह में दाख़िल हो।
\s5
\v 29 ~"और यह तुम्हारे लिए एक हमेशा का क़ानून हो कि सातवें महीने की दसवीं तारीख़ को तुम अपनी अपनी जान को दुख देना, और उस दिन कोई चाहे वह देसी हो या परदेसी जो तुम्हारे बीच बूद-ओ-बाश रखता हो किसी तरह का काम न करे;
\v 30 ~क्यूँकि उस रोज़ तुम्हारे लिए तुम को पाक करने के लिए कफ़्फ़ारा दिया जाएगा, इसलिए तुम अपने सब गुनाहों से ख़ुदावन्द के सामने पाक ठहरोगे।
\v 31 ~यह तुम्हारे लिए ख़ास आराम का सबत होगा। तुम उस दिन अपनी अपनी जान को दुख देना; यह हमेशा का क़ानून है।
\s5
\v 32 ~और जो अपने बाप की जगह काहिन होने के लिए मसह और मख़्सूस किया जाए, वह काहिन कफ़्फ़ारा दिया करे; या'नी कतान के पाक लिबास को पहनकर
\v 33 ~वह हैकल के लिए कफ़्फ़ारा दे, और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ और मज़बह के लिए कफ़्फ़ारा दे, और काहिनों और जमा'अत के सब लोगों के लिए कफ़्फ़ारा दे।
\s5
\v 34 ~इसलिए यह तुम्हारे लिए एक ~हमेशा क़ानून हो कि तुम बनी-इस्राईल के लिए साल में एक दफ़ा' उनके सब गुनाहों का कफ़्फ़ारा दो।" और उसने जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था वैसा ही किया।
\s5
\c 17
\p
\v 1 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 2 ~'हारून और उसके बेटों से और सब बनी-इस्राईल से कह कि ख़ुदावन्द ने यह हुक्म दिया है कि
\v 3 " इस्राईल के घराने का जो कोई शख़्स बैल या बर्रे या बकरे को चाहे लश्करगाह में या लश्करगाह के बाहर ज़बह कर के
\v 4 उसे ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर, ख़ुदावन्द के घर के आगे, ख़ुदावन्द के सामने चढ़ाने को न ले जाए, उस शख़्स पर ख़ून का इल्ज़ाम होगा कि उसने ख़ून किया है; और वह शख़्स अपने लोगों में से काट डाला जाए।
\s5
\v 5 ~इससे मक़सूद यह है कि बनी-इस्राईल अपनी क़ुर्बानियाँ, जिनको वह खुले मैदान में ज़बह करते हैं, उन्हें ख़ुदावन्द के सामने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर काहिन के पास लाएँ और उनको ख़ुदावन्द के सामने सलामती के ज़बीहों के तौर पर पेश करें,
\v 6 ~और काहिन उस ख़ून को ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर ख़ुदावन्द के मज़बह के ऊपर छिड़के और चर्बी को जलाए, ताकि ख़ुदावन्द के लिए राहतअंगेज़ ख़ुशबू हो।
\s5
\v 7 और आइन्दा कभी वह उन बकरों के लिए जिनके पैरौ होकर वह ज़िनाकार ठहरें हैं, अपनी क़ुर्बानियाँ न पेश करे। उनके लिए नसल-दर-नसल यह हमेशा क़ानून होगा।
\s5
\v 8 ~"इसलिए तू उन से कह दे कि इस्राईल के घराने का या उन परदेसियों में से जो उनमें क़याम करते हैं जो कोई सोख़्तनी क़ुर्बानी या कोई ज़बीहा पेश कर,
\v 9 ~उसे ख़ेमा-ए- इजितमा'अ के दरवाज़े पर ख़ुदावन्द के सामने चढ़ाने को न लाए; वह अपने लोगों में से काटडाला जाए।
\s5
\v 10 ~"और इस्राईल के घराने का या उन परदेसियों में से जो उनमें क़याम करते हैं जो कोई किसी तरह का ख़ून खाए, मैं उस ख़ून खाने वाले के खिलाफ़ हूँगा और उसे उसके लोगों में से काट डालूँगा।
\v 11 ~क्यूँकि जिस्म की जान ख़ून में है; और मैंने मज़बह पर तुम्हारी जानों के कफ़्फ़ारे के लिए उसे तुम को दिया है कि उससे तुम्हारी जानों के लिए कफ़्फ़ारा हो; क्यूँकि जान रखने ही की वजह से ख़ून कफ़्फ़ारा देता है।
\s5
\v 12 ~इसीलिए मैंने बनी-इस्राईल से कहा है कि तुम में से कोई शख़्स ख़ून कभी न खाए, और न कोई परदेसी जो तुम में क़याम करता हो कभी ख़ून को खाए।
\v 13 "और बनी-इस्राईल में से या उन परदेसियों में से जो उनमें क़याम करते हैं जो कोई शिकार में ऐसे जानवर या परिन्दे को पकड़े जिसका खाना ठीक है, तो वह उसके ख़ून को निकाल कर उसे मिट्टी से ढॉक दे।
\s5
\v 14 ~क्यूँकि जिस्म की जान जो है वह उस का ख़ून है, जो उसकी जान के साथ एक है। इसीलिए मैंने बनी-इस्राईल को हुक्म किया है कि तुम किसी क़िस्म के जानवर का ख़ून न खाना, क्यूँकि हर जानवर की जान उसका ख़ून ही है; जो कोई उसे खाए वह काट डाला जाएगा।
\s5
\v 15 ~और जो शख़्स मुरदार को या दरिन्दे के फाड़े हुए जानवर को खाए, वह चाहे देसी हो या परदेसी अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और शाम तक नापाक रहे; तब वह पाक होगा।
\v 16 ~लेकिन अगर वह उनको न धोए और न ग़ुस्ल करे, तो उसका गुनाह उसी के सिर लगेगा।"
\s5
\c 18
\p
\v 1 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 2 ~"बनी-इस्राईल से कह कि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
\v 3 ~तुम मुल्क-ए- मिस्र के से काम जिसमें तुम रहते थे, न करना और मुल्क-ए-कना'न के से काम भी जहाँ मैं तुम्हें लिए जाता हूँ, न करना और न उनकी रस्मों पर चलना।
\s5
\v 4 ~तुम मेरे हुक्मों पर 'अमल करना और मेरे क़ानून को मान कर उन पर चलना। मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
\v 5 ~इसलिए तुम मेरे आईन और अहकाम मानना, जिन पर अगर कोई 'अमल करे तो वह उन ही की बदौलत ज़िन्दा रहेगा। मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 6 "तुम में से कोई अपनी किसी क़रीबी रिश्तेदार के पास उसके बदन को बे-पर्दा करने के लिए न जाए। मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\v 7 ~तू अपनी माँ के बदन को जो तेरे बाप का बदन है बे-पर्दा न करना; क्यूँकि वह तेरी माँ है, तू उसके बदन को बे-पर्दा न करना।
\v 8 ~तू अपने बाप की बीवी के बदन को बे-पर्दा न करना, क्यूँकि वह तेरे बाप का बदन है।
\s5
\v 9 ~तू अपनी बहन के बदन को, चाहे वह तेरे बाप की बेटी हो चाहे तेरी माँ की और चाहे वह घर में पैदा हुई हो चाहे और कहीं, बे-पर्दा न करना।
\v 10 ~तू अपनी पोती या नवासी के बदन को बे-पर्दा न करना क्यूँकि उनका बदन तो तेरा ही बदन है।
\v 11 तेरे बाप की बीवी की बेटी, जो तेरे बाप से पैदा हुई है, तेरी बहन है; तू उसके बदन को बे-पर्दा न करना।
\s5
\v 12 ~तू अपनी फूफी के बदन को बे-पर्दा न करना, क्यूँकि वह तेरे बाप की क़रीबी रिश्तेदार है।
\v 13 ~तू अपनी ख़ाला के बदन को बेपर्दा न करना, क्यूँकि वह तेरी माँ की क़रीबी रिश्तेदार है।
\v 14 ~तू अपने बाप के भाई के बदन को बे-पर्दा न करना, या'नी उस की बीवी के पास न जाना, वह तेरी चची है।
\s5
\v 15 ~तू अपनी बहू के बदन को बे-पर्दा न करना, क्यूँकि वह तेरे बेटे की बीवी है, इसलिए तू उसके बदन को बे-पर्दा न करना।
\v 16 ~तू अपनी भावज के बदन को बे-पर्दा न करना, क्यूँकि वह तेरे भाई का बदन है।
\s5
\v 17 तू किसी 'औरत और उसकी बेटी दोनों के बदन को बेपर्दा न करना; और न तू उस 'औरत की पोती या नवासी से ब्याह कर के उस में से किसी के बदन को बे-पर्दा करना, क्यूँकि वह दोनों उस 'औरत की क़रीबी रिश्तेदार हैं : यह बड़ी ख़बासत है।
\v 18 ~तू अपनी साली से ब्याह कर के उसे अपनी बीवी की सौतन न बनाना, कि दूसरी के जीते जी उसके बदन को भी बेपर्दा करे।
\s5
\v 19 ~"और तू 'औरत के पास जब तक वह हैज़ की वजह से नापाक है, उसके बदन को बे-पर्दा करने के लिए न जाना।
\v 20 ~और तू अपने को नजिस करने के लिए अपने पड़ोसी की बीवी से सुहबत न करना।
\s5
\v 21 ~तू अपनी औलाद में से किसी को मोलक की ख़ातिर आग में से पेश करने के लिए न देना, और न अपने ख़ुदा के नाम को नापाक ठहराना। मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 22 ~तू मर्द के साथ सुहबत न करना जैसे 'औरत से करता है; यह बहुत मकरूह काम है।
\v 23 ~तू अपने को नजिस करने के लिए किसी जानवर से सुहबत न करना, और न कोई 'औरत किसी जानवर से हम-सुहबत होने के लिए उसके आगे खड़ी हो; क्यूँकि यह औंधी बात है।
\s5
\v 24 ~"तुम इन कामों में से किसी में फँस कर आलूदा न हो जाना, क्यूँकि जिन क़ौमों को मैं तुम्हारे आगे से निकालता हूँ वह इन सब कामों की वजह से आलूदा हैं।
\v 25 और उन का मुल्क भी आलूदा हो गया है; इसलिए मैं उसकी बदकारी की सज़ा उसे देता हूँ, ऐसा कि वह अपने बाशिन्दों को उगले देता है।
\s5
\v 26 ~लिहाज़ा तुम मेरे आईन और अहकाम को मानना और तुम में से कोई, चाहे वह देसी हो या परदेसी जो तुम में क़याम रखता हो, इन मकरूहात में से किसी काम को न करे;
\v 27 ~क्यूँकि उस मुल्क के बाशिंदों ने जो तुमसे पहले थे यह सब मकरूह काम किये हैं और मुल्क आलूदा हो गया है |
\v 28 ~इसलिए ऐसा न हो कि जिस तरह उस मुल्क ने उस क़ौम को जो तुमसे पहले वहाँ थी उगल दिया, उसी तरह तुम को भी जब तुम उसे आलूदा करो तो उगल दे।
\s5
\v 29 क्यूँकि जो इन मकरूह कामों में से किसी को करेगा, वह अपने लोगों में से काट डाला जाएगा।
\v 30 ~इसलिए मेरी शरी'अत को मानना, और यह मकरूह रस्में जो तुमसे पहले अदा की जाती थीं, इनमें से किसी को 'अमल में न लाना और इन में फँस कर आलूदा न हो जाना। मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।"
\s5
\c 19
\p
\v 1 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 2 ~"बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत से कह कि तुम पाक रहो; क्यूँकि मैं जो ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ पाक हूँ
\v 3 तुम में से हर एक अपनी माँ और अपने बाप से डरता रहे, और तुम मेरे सबतों को मानना; मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
\v 4 ~तुम बुतों की तरफ़ रुजू' न होना, और न अपने लिए ढाले हुए मा'बूद बनाना; मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
\s5
\v 5 ~"और जब तुम ख़ुदावन्द के सामने सलामती के ज़बीहे पेश करो, तो उनको इस तरह पेश करना कि तुम मक़बूल हो।
\v 6 ~और जिस दिन उसे पेश करो उस दिन और दूसरे दिन वह खाया जाए, और अगर तीसरे दिन तक कुछ बचा रह जाए तो वह आग में जला दिया जाए।
\v 7 और अगर वह ज़रा भी तीसरे दिन खाया जाए, तो मकरूह ठहरेगा और मक़बूल न होगा;
\v 8 ~बल्कि जो कोई उसे खाए उसका गुनाह उसी के सिर लगेगा, क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द की पाक चीज़ को नजिस किया; इसलिए वह शख़्स अपने लोगों में से काट डाला जाएगा।
\s5
\v 9 "और जब तुम अपनी ज़मीन की पैदावार की फ़स्ल काटो, तो अपने खेत के कोने-कोने तक पूरा-पूरा न काटना और न कटाई की गिरी-पड़ी बालों को चुन लेना।
\v 10 ~और तू अपने अंगूरिस्तान का दाना-दाना न तोड़ लेना, और न अपने अंगूरिस्तान के गिरे हुए दानों को जमा' करना; उनको ग़रीबों और मुसाफ़िरों के लिए छोड़ देना। मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
\s5
\v 11 ~"तुम चोरी न करना और न दग़ा देना और न एक दूसरे से झूट बोलना।
\v 12 और तुम मेरा नाम लेकर झूटी क़सम न खाना जिससे तू अपने ख़ुदा के नाम को नापाक ठहराए; मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 13 ~"तू अपने पड़ोसी पर न ज़ुल्म करना, न उसे लूटना। मज़दूर की मज़दूरी तेरे पास सारी रात सुबह तक रहने न पाए।
\v 14 ~तू बहरे को न कोसना, और न अन्धे के आगे ठोकर खिलाने की चीज़ को धरना, बल्कि अपने ख़ुदा से डरना। मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 15 ~"तुम फ़ैसले में नारास्ती न करना, न तो ग़रीब की रि'आयत करना और न बड़े आदमी का लिहाज़; बल्कि रास्ती के साथ अपने पड़ोसी का इन्साफ़ करना।
\v 16 ~तू अपनी क़ौम में इधर-उधर लुतरापन न करते फिरना, और न अपने पड़ोसी का ख़ून करने पर आमादा होना; मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 17 ~तू अपने दिल में अपने भाई से बुग्ज़ न रखना; और अपने पड़ोसी को ज़रूर डाँटते भी रहना, ताकि उसकी वजह से तेरे सिर गुनाह न लगे।
\v 18 ~तू इन्तक़ाम न लेना, और न अपनी क़ौम की नसल से कीना रखना, बल्कि अपने पड़ोसी से अपनी तरह मुहब्बत करना; मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 19 ~"तू मेरी शरी'अतों को माननाः तू अपने चौपायों को ग़ैर जिन्स से भरवाने न देना, और अपने खेत में दो क़िस्म के बीज एक साथ न बोना, और न तुझ पर दो क़िस्म के मिले जुले तार का कपड़ा हो।
\s5
\v 20 ~"अगर कोई ऐसी 'औरत से सुहबत करे जो लौंडी और किसी शख़्स की मंगेतर हो, और न तो उसका फ़िदिया ही दिया गया हो और न वह आज़ाद की गई हो, तो उन दोनों की सज़ा मिले लेकिन वह जान से मारे न जाएँ इसलिए कि वह 'औरत आज़ाद न थी।
\v 21 ~और वह आदमी अपने जुर्म की क़ुर्बानी के लिए ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर ख़ुदावन्द के सामने एक मेंढा लाए कि वह उसके जुर्म की क़ुर्बानी हो।
\v 22 ~और काहिन उसके जुर्म की क़ुर्बानी के मेंढे से उसके लिए ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दे, तब जो ख़ता उसने की है वह उसे मु'आफ़ की जाएगी।
\s5
\v 23 और जब तुम उस मुल्क में पहुँचकर क़िस्म-क़िस्म के फल के दरख़्त लगाओ तो~तुम ~उनके फल को जैसे नामख़्तून समझना वह तुम्हारे लिए तीन बरस तक नामख़्तून के बराबर हों और खाए न जाएँ ।
\v 24 ~और चौथे साल उनका सारा फल ख़ुदावन्द की तम्जीद करने के~लिए पाक होगा |
\v 25 ~तब पाँचवे साल से उनका फल खाना ताकि वह तुम्हारे लिए इफ़रात के साथ पैदा हों। मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
\s5
\v 26 ~"तुम किसी चीज़ को ख़ून के साथ न खाना। और न जादू मंतर करना, न शगुन निकालना।
\v 27 तुम अपने अपने सिर के गोशों को बाल काट कर गोल न बनाना, और न तू अपनी दाढ़ी के कोनों को बिगाड़ना।
\v 28 तुम मुर्दों की वजह से अपने जिस्म को ज़ख़्मी न करना, और न अपने ऊपर कुछ गुदवाना। मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 29 ~तू अपनी बेटी को कस्बी बना कर नापाक न होने देना, कहीं ऐसा न हो कि मुल्क में ~रण्डी बाज़ी फैल जाए और सारा मुल्क बदकारी से भर जाए।
\v 30 ~तुम मेरे सबतों को मानना और मेरे हैकल की ता'ज़ीम करना; मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 31 ~जो जिन्नात के यार हैं और जो जादूगर हैं, तुम उनके पास न जाना और न उनके तालिब होना कि वह तुम को नजिस बना दें। मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
\s5
\v 32 ~"जिनके सिर के बाल सफ़ेद हैं, तुम उनके सामने उठ खड़े होना और बड़े-बूढ़े का अदब करना, और अपने ख़ुदा से डरना। मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 33 'और अगर कोई परदेसी तेरे साथ तुम्हारे मुल्क में क़याम करता हो तो तुम उसे आज़ार न पहुँचाना;
\v 34 बल्कि जो परदेसी तुम्हारे साथ रहता हो उसे देसी की तरह समझना, बल्कि तू उससे अपनी तरह मुहब्बत करना; इसलिए कि तुम मुल्क-ए-मिस्र में परदेसी थे। मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
\s5
\v 35 "तुम इन्साफ़, और पैमाइश, और वज़न, और पैमाने में नारास्ती न करना।
\v 36 ठीक तराजू, ठीक बाट, पूरा ऐफ़ा और पूरा हीन रखना। जो तुम को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया मैं ही हूँ, ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा।
\v 37 इसलिए तुम मेरे सब आईन और सब अहकाम मानना और उन पर 'अमल करना; मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
\s5
\c 20
\p
\v 1 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 2 "तू बनी-इस्राईल से यह भी कह दे कि बनी-इस्राईल में से या उन परदेसियों में से जो इस्राईलियों के बीच क़याम करते हैं, जो कोई शख़्स अपनी औलाद में से किसी की मोलक की नज़्र करे वह ज़रूर जान से मारा जाए; अहल-ए-मुल्क उसे संगसार करें।
\s5
\v 3 ~और मैं भी उस शख़्स का मुख़ालिफ़ हूँगा और उसे उसके लोगों में से काट डालेंगा, इसलिए कि उस ने अपनी औलाद को मोलक की नज़्र कर के मेरे हैकल और मेरे पाक नाम को नापाक ठहराया।
\v 4 और अगर उस वक़्त जब वह अपनी औलाद में से किसी की मोलक की नज़्र करे, अहल-ए-मुल्क उस शख़्स की तरफ़ से चश्मपोशी कर के उसे जान से न मारें
\v 5 ~तो मैं ख़ुद उस शख़्स का और उसके घराने का मुख़ालिफ़ हो कर उसको और उन सभों को जो उसकी पैरवी में ज़िनाकार बनें और मोलक के साथ ज़िना करें, उनकी क़ौम में से काट डालूँगा।
\s5
\v 6 'और जो शख़्स जिन्नात के यारों और जादूगरों के पास जाए कि उनकी पैरवी में ज़िना करे, मैं उसका मुख़ालिफ़ हूँगा और उसे उस की क़ौम में से काट डालूँगा।
\v 7 इसलिए तुम अपने आप को पाक करो और पाक रहो, मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़दा हूँ।
\s5
\v 8 ~और तुम मेरे क़ानून को मानना और उस पर 'अमल करना। मैं ख़ुदावन्द हूँ जो तुम को पाक करता हूँ।
\v 9 ~और जो कोई अपने बाप या अपनी माँ पर ला'नत करे वह ज़रूर जान से मारा जाए, उसने अपने बाप या माँ पर ला'नत की है, इसलिए उस का ख़ून उसी की गर्दन पर होगा।
\s5
\v 10 'और जो शख़्स दूसरे की बीवी से या'नी अपने पड़ोसी की बीवी से ज़िना करे, वह ज़ानी और ज़ानिया दोनों ज़रूर जान से मार दिए जाएँ।
\v 11 और जो शख़्स अपनी सौतेली माँ से सुहबत करे उसने अपने बाप के बदन को बे-पर्दा किया, वह दोनों ज़रूर जान से मारे जाएँ, उन का ख़ून उन ही की गर्दन पर होगा।
\v 12 ~और अगर कोई शख़्स अपनी बहू से सुहबत करे तो वह दोनों ज़रूर जान से मारे जायें उन्होंने औंधी बात की है उनका ख़ून उन~ही की गर्दन पर होगा।
\s5
\v 13 और अगर कोई मर्द से सुहबत करे जैसे 'औरत से करते हैं तो उन दोनों ने बहुत मकरूह काम किया है, इसलिए वह दोनों ज़रूर जान से मारे जाएँ, उनका ख़ून उनही की गर्दन पर होगा।
\v 14 ~और अगर कोई शख़्स अपनी बीवी और अपनी सास दोनों को रख्खे तो यह बड़ी ख़बासत है, इसलिए वह आदमी और वह 'औरतें तीनों के तीनों जला दिए जाएँ ताकि तुम्हारे बीच~ख़बासत न रहे;
\s5
\v 15 और अगर कोई मर्द किसी जानवर से जिमा'अ करे तो वह ज़रूर जान से मारा जाए और तुम उस जानवर को भी मार डालना।
\v 16 ~और अगर कोई 'औरत किसी जानवर के पास जाए और उससे हम सुहबत हो तो उस 'औरत और जानवर दोनों को मार डालना, वह ज़रूर जान से मारे जाएँ; उनका ख़ून उन ही की गर्दन पर होगा।
\s5
\v 17 'और अगर कोई मर्द अपनी बहन को जो उसके बाप की या उसकी माँ की बेटी हो, लेकर उसका बदन देखे और उसकी बहन उसका बदन देखे, तो यह शर्म की बात है; वह दोनों अपनी क़ौम के लोगों की आँखों के सामने क़त्ल किए जाएँ, उसने अपनी बहन के बदन को बे-पर्दा किया, उसका गुनाह उसी के सिर लगेगा।
\v 18 और अगर मर्द उस 'औरत से जो कपड़ों से हो सुहबत कर के उसके बदन को बे-पर्दा करे, तो उसने उसका चश्मा खोला और उस 'औरत ने अपने ख़ून का चश्मा खुलवाया। इसलिए वह दोनों अपनी क़ौम में से काट डाले जाएँ।
\s5
\v 19 और तू अपनी ख़ाला या फूफी के बदन को बे-पर्दा न करना, क्यूँकि जो ऐसा करे उसने अपनी क़रीबी रिश्तेदार को बे-पर्दा किया; इसलिए उन दोनों का गुनाह उन ही के सिर लगेगा।
\v 20 और अगर कोई अपनी चची या ताई से सुहबत करे तो उसने अपने चचा या ताऊ के बदन को बे-पर्दा किया; इसलिए उनका गुनाह उनके सिर लगेगा, वह बे-औलाद मरेंगे।
\v 21 ~अगर कोई शख़्स अपने भाई की बीवी को रख्खें तो यह नजासत है, उसने अपने भाई के बदन को बे-पर्दा किया है; वह बे-औलाद रहेंगे।
\s5
\v 22 इसलिए तुम मेरे सब आईन और अहकाम मानना और उन पर 'अमल करना, ताकि वह मुल्क जिसमें मैं तुम को बसाने को लिए जाता हूँ तुम को उगल न दे।
\v 23 ~तुम उन क़ौमों के दस्तूरों पर जिनको मैं तुम्हारे आगे से निकालता हूँ मत चलना, क्यूँकि उन्होंने यह सब काम किए इसीलिए मुझे उन से नफ़रत हो गई।
\s5
\v 24 लेकिन मैंने तुमसे कहा है कि तुम उनके मुल्क के वारिस होगे, और मैं तुम को वह मुल्क जिस में दूध और शहद बहता है तुम्हारी मिल्कियत होने के लिए दूँगा। मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ, जिसने तुम को और क़ौमों से अलग किया है।
\v 25 इसलिए तुम पाक और नापाक चौपायों में, और पाक और नापाक परिन्दों में फ़र्क़ करना, और तुम किसी जानवर या परिन्दे या ज़मीन पर के रेंगनेवाले जानदार से, जिनको मैंने तुम्हारे लिए नापाक ठहराकर अलग किया है अपने आप को मकरूह न बना लेना।
\s5
\v 26 ~और तुम मेरे लिए पाक बने रहना, क्यूँकि मैं जो ख़ुदावन्द हूँ पाक हूँ; और मैंने तुम को और क़ौमों से अलग किया है ताकि तुम मेरे ही रहो।
\s5
\v 27 ~' और वह मर्द या 'औरत जिसमें जिन्न हो या वह जादूगर हो तो वह ज़रूर जान से मारा जाए, ऐसों को लोग संगसार करें; उनका ख़ून उन ही की गर्दन पर होगा।"
\s5
\c 21
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि 'हारून के बेटों से जो काहिन हैं कह कि अपने क़बीले के मुर्दे की वजह से कोई अपने आप को नजिस न कर ले।
\v 2 अपने क़रीबी रिश्तेदारों की वजह से जैसे अपनी माँ की वजह से, और अपने बाप की वजह से, और अपने बेटे-बेटी की वजह से, और अपने भाई की वजह से,
\v 3 ~और अपनी सगी कुँवारी बहन की वजह से जिसने शौहर न किया हो, इन की ख़ातिर वह अपने को नजिस कर सकता है।
\s5
\v 4 ~चूँकि वह अपने लोगों में सरदार है, इसलिए वह अपने आप को ऐसा आलूदा न करे कि नापाक हो जाए।
\v 5 ~वह न अपने सिर उनकी ख़ातिर बीच से घुटवाएँ और न अपनी दाढ़ी के कोने मुण्डवाएँ, और न अपने को ज़ख़्मी करें।
\v 6 ~वह अपने ख़ुदा के लिए पाक बने रहें और अपने ख़ुदा के नाम को बेहुरमत न करें, क्यूँकि वह ख़ुदावन्द की आतिशीन क़ुर्बानियाँ जो उनके ख़ुदा की गिज़ा है पेश करते हैं; इसलिए वह पाक रहें।
\s5
\v 7 ~वह किसी फ़ाहिशा या नापाक 'औरत से ब्याह न करें, और न उस 'औरत से ब्याह करें जिसे उसके शौहर ने तलाक़ दी हो; क्यूँकि काहिन अपने ख़ुदा के लिए पाक है।
\v 8 तब तू काहिन को पाक जानना क्यूँकि वह तेरे ख़ुदा की गिज़ा पेश करता है; इसलिए वह तेरी नज़र में पाक ठहरे, क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द जो तुम को पाक करता हूँ क़ुद्दूस हूँ।
\v 9 ~और अगर काहिन की बेटी फ़ाहिशा बनकर अपने आप को नापाक करे तो वह अपने बाप को नापाक ठहराती है, वह 'औरत आग में जलाई जाए।
\s5
\v 10 ' और वह जो अपने भाइयों के बीच सरदार काहिन हो, जिसके सिर पर मसह करने का तेल डाला गया और जो पाक लिबास पहनने के लिए मख़्सूस किया गया, वह अपने सिर के बाल बिखरने न दे और अपने कपड़े न फाड़े।
\v 11 वह किसी मुर्दे के पास न जाए, और न अपने बाप या माँ की ख़ातिर अपने आप को नजिस करे।
\v 12 और वह हैकल के बाहर भी न निकले और न अपने ख़ुदा के हैकल को बेहुरमत करे, क्यूँकि उसके ख़ुदा के मसह करने के तेल का ताज उस पर है; मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 13 ~और वह कुँवारी 'औरत से ब्याह करे;
\v 14 जो बेवा या मुतल्लक़ा या नापाक 'औरत या फ़ाहिशा हो, उनसे वह ब्याह न करे बल्कि वह अपनी ही क़ौम की कुँवारी को ब्याह ले।
\v 15 ~और वह अपने तुख़्म को अपनी क़ौम में नापाक न ठहराए, क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द हूँ जो उसे पाक करता हूँ।"
\s5
\v 16 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,
\v 17 ~"हारून से कह दे कि तेरी नसल में नसल-दर-नसल अगर कोई किसी तरह का 'ऐब रखता हो, तो वह अपने ख़ुदा की गिज़ा पेश करने को नज़दीक न आए;
\s5
\v 18 ~चाहे कोई हो जिसमें 'ऐब हो वह नज़दीक न आए चाहे वह अन्धा हो या लंगड़ा, या नकचपटा हो, या ज़ाइद-उल-'आज़ा,
\v 19 ~या उसका पाँव टूटा हो, या~हाथ टूटा हो
\v 20 , या वह कुबड़ा या बौना हो, या उसकी आँख में कुछ नुक्स हो, या खुजली भरा हो, या उसके पपड़ियाँ हों, या उसके खुसिए पिचके हों।
\v 21 ~हारून काहिन की नसल में से कोई जो 'ऐबदार हो ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानियाँ पेश करने को नज़दीक न आए, वह 'ऐबदार है; वह हरगिज़ अपने ख़ुदा की ग़िज़ा पेश करने को पास न आए।
\s5
\v 22 ~वह अपने ख़ुदा की बहुत ही मुक़द्दस और पाक दोनों तरह की रोटी खाए,
\v 23 ~लेकिन पर्दे के अन्दर दाख़िल न हो, न मज़बह के पास आए इसलिए कि वह 'ऐबदार है; कहीं ऐसा न हो कि वह मेरे पाक मक़ामों को बे-हुरमत करे, क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द उनका पाक करने वाला हूँ।"
\v 24 ~तब मूसा ने हारून और उसके बेटों और सब बनी-इस्राईल से यह बातें कहीं।
\s5
\c 22
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 2 ~"हारून और उसके बेटों से कह कि वह बनी-इस्राईल की पाक चीज़ों से जिनको वह मेरे लिए पाक करते हैं अपने आप को बचाए रख्खें, और मेरे पाक नाम को बे-हुरमत न करें; मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\v 3 उनको कह दे कि तुम्हारी नसल-दर-नसल जो कोई तुम्हारी नसल में से अपनी नापाकी की हालत में उन पाक चीज़ों के पास जाए, जिनको बनी-इस्राईल ख़ुदावन्द के लिए पाक करते हैं, वह शख़्स मेरे सामने से काट डाला जाएगा; मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 4 ~हारून की नसल में जो कोढ़ी, या जिरयान का मरीज़ हो वह जब तक पाक न हो जाए, पाक चीज़ों में से कुछ न खाए; और जो कोई ऐसी चीज़ को जो मुर्दे की वजह से नापाक हो गई है, या उस शख़्स की जिस की धात बहती हो छुए
\v 5 ~या जो कोई किसी रेंगने वाले जानदार को जिसके छूने से वह नापाक हो सकता है, छुए या किसी ऐसे शख़्स को छुए जिससे उसकी नापाकी चाहे वह किसी क़िस्म की हो उसको भी लग सकती हो;
\v 6 तो वह आदमी जो इनमें से किसी को छुए शाम तक नापाक रहेगा, और जब तक पानी से ग़ुस्ल न कर ले पाक चीज़ों में से कुछ न खाए;
\s5
\v 7 और वह उस वक़्त पाक ठहरेगा जब आफ़ताब गुरूब हो जाए, इसके बा'द वह पाक चीज़ों में से खाए, क्यूँकि यह उसकी ख़ुराक है।
\v 8 और मुरदार या दरिन्दों के फाड़े हुए जानवर को खाने से वह अपने आप को नजिस न कर ले; मैं ख़ुदावन्द हूँ
\v 9 ~इसलिए वह मेरी शरा' को माने, ऐसा न हो कि उस की वजह से उनके सिर गुनाह लगे और उसकी बेहुरमती करने की वजह से वह मर भी जाएँ, मैं ख़ुदावन्द उनका पाक करने वाला हूँ।
\s5
\v 10 ~'कोई अजनबी पाक चीज़ की न खाने पाए चाहे वह काहिन ही के यहाँ ठहरा हो, या उसका नौकर हो तो भी वह कोई पाक चीज़ न खाए;
\v 11 ~लेकिन वह जिसे काहिन ने अपने ज़र से ख़रीदा हो उसे खा सकता है, और वह जो उसके घर में पैदा हुए हों वह भी उसके खाने में से खाएँ।
\s5
\v 12 ~अगर काहिन की बेटी किसी अजनबी से ब्याही गई हो, तो वह पाक चीज़ों की क़ुर्बानी में से कुछ न खाए।
\v 13 ~लेकिन अगर काहिन की बेटी बेवा हो जाए, या मुतल्लक़ा हो और बे-औलाद हो, और लड़कपन के दिनों की तरह अपने बाप के घर में फिर आ कर रहे तो वह अपने बाप के खाने में से खाए; लेकिन कोई अजनबी उसे न खाए।
\s5
\v 14 ~और अगर कोई अनजाने में पाक चीज़ को खा जाए तो वह उसके पाँचवें हिस्से के बराबर अपने पास से उस में मिला कर वह पाक चीज़ काहिन को दे
\v 15 ~और वह बनी-इस्राईल की पाक चीज़ों को जिनको वह ख़ुदावन्द की नज़्र करते हों बेहुरमत करके,
\v 16 उनके सिर उस गुनाह का जुर्म न लादें जो उनकी पाक चीज़ों को खाने से होगा; क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द उनका पाक करने वाला हूँ।"
\s5
\v 17 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 18 ~"हारून और उसके बेटों और सब बनी-इस्राईल से कह कि इस्राईल के घराने का या उन परदेसियों में से जो इस्राईलियों के बीच रहते हैं, जो कोई शख़्स अपनी क़ुर्बानी लाए, चाहे वह कोई मिन्नत की क़ुर्बानी हो या रज़ा की क़ुर्बानी, जिसे वह सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश करते हैं;
\v 19 ~तो अपने मक़बूल होने के लिए तुम बैलों या बर्रों ~या बकरों में से बे-'ऐब नर चढ़ाना।
\s5
\v 20 ~और जिसमें 'ऐब हो उसे न अदा करना क्यूँकि वह तुम्हारी तरफ़ से मक़बूल न होगा।
\v 21 ~और जो कोई अपनी मिन्नत पूरी करने के लिए या रज़ा की क़ुर्बानी के तौर पर गाय, बैल या भेड़ बकरी में से सलामती का ज़बीहा ख़ुदावन्द के सामने पेश करे, तो वह जानवर मक़बूल ठहरने के लिए बे-'ऐब हो; उसमें कोई नुक़्स न हो।
\s5
\v 22 ~जो अन्धा या शिकस्ता-ए-'उज़्व या लूला हो, जिसके रसौली या खुजली या पपड़ियाँ हों, ऐसों को ख़ुदावन्द के सामने न चढ़ाना और न मज़बह पर उनकी आतिशी क़ुर्बानी ख़ुदावन्द के सामने पेश करना।
\v 23 ~जिस बछड़े या बर्रे का कोई 'उज़्व ज़्यादा या कम हो उसे तो रज़ा की क़ुर्बानी के तौर पर पेश कर सकता है, लेकिन मिन्नत पूरी करने के लिए वह मक़बूल न होगा।
\s5
\v 24 ~जिस जानवर के ख़ुसिए कुचले हुए या चूर किए हुए या टूटे या कटे हुए हों, उसे तुम ख़ुदावन्द के सामने न चढ़ाना और न अपने मुल्क में ऐसा काम करना;
\v 25 और न इनमें से किसी को लेकर तुम अपने ख़ुदा की ग़िज़ा परदेसी या अजनबी के हाथ से अदा करवाना, क्यूँकि उनका बिगाड़ उनमें मौजूद होता है, उनमें 'ऐब है इसलिए वह तुम्हारी तरफ़ से मक़बूल न होंगे।"
\s5
\v 26 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 27 ~"जिस वक़्त बछड़ा या भेड़ या बकरी का बच्चा पैदा हो, तो सात दिन तक वह अपनी माँ के साथ रहे और आठवें दिन से और उसके बा'द से वह ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानी के लिए मक़बूल होगा।
\s5
\v 28 और चाहे गाय हो या भेड़, बकरी, तुम उसे और उसके बच्चे दोनों को एक ही दिन ज़बह न करना।
\v 29 ~और जब तुम ख़ुदावन्द के शुक्राने का ज़बीहा क़ुर्बानी करो, तो उसे इस तरह क़ुर्बानी करना कि तुम मक़बूल ठहरो;
\v 30 ~और वह उसी दिन खा भी लिया जाए, तुम उसमें से कुछ भी दूसरे दिन की सुबह तक बाक़ी न छोड़ना; मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 31 ~"इसलिए तुम मेरे हुक्मों को मानना और उन पर 'अमल करना; मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\v 32 ~तुम मेरे पाक नाम को नापाक न ठहराना, क्यूँकि मैं बनी-इस्राईल के बीच ज़रूर ही पाक माना जाऊँगा; मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा पाक करने वाला हूँ,
\v 33 ~जो तुम को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया हूँ ताकि तुम्हारा ख़ुदा बना रहूँ, मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
\s5
\c 23
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,कि
\v 2 ~"बनी-इस्राईल से कह कि ख़ुदावन्द की 'ईदें जिनका तुम को पाक मजम'ओं के लिए 'ऐलान देना होगा, मेरी वह 'ईदें यह हैं।
\s5
\v 3 ~छ: दिन काम-काज किया जाए लेकिन सातवाँ दिन ख़ास आराम का और पाक मजमे' का सबत है, उस रोज़ किसी तरह का काम न करना; वह तुम्हारी सब सुकूनतगाहों में ख़ुदावन्द का सबत है।
\s5
\v 4 ~"ख़ुदावन्द की 'ईदें जिनका 'ऐलान तुम को पाक मजम'ओं के लिए वक़्त-ए- मु'अय्यन पर करना होगा इसलिए यह हैं।
\v 5 ~पहले महीने की चौदहवीं तारीख़ की शाम के वक़्त ख़ुदावन्द की फ़सह हुआ करे।
\v 6 ~और उसी महीने की पंद्रहवीं तारीख़ को ख़ुदावन्द के लिए 'ईद-ए-फ़तीर हो, उसमें तुम सात दिन तक बे-ख़मीरी रोटी खाना।
\s5
\v 7 ~पहले दिन तुम्हारा पाक मजमा' हो उसमें तुम कोई ख़ादिमाना काम न करना।
\v 8 और सातों दिन तुम ख़ुदावन्द के सामने आतिशी क़ुर्बानी पेश करना और और सातवें दिन फिर पाक मजमा' हो उस रोज़ तुम कोई ख़ादिमाना काम न करना।"
\s5
\v 9 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 10 ~"बनी-इस्राईल से कह कि जब तुम उस मुल्क में जो मैं तुम को देता हूँ दाख़िल हो जाओ और उसकी फ़स्ल काटो, तो तुम अपनी फ़स्ल के पहले फलों का एक पूला काहिन के पास लाना;
\v 11 ~और वह उसे ख़ुदावन्द के सामने हिलाए, ताकि वह तुम्हारी तरफ़ से क़ुबूल हो और काहिन उसे सबत के दूसरे दिन सुबह को हिलाए।
\s5
\v 12 ~और जिस दिन तुम पूले को हिलाओ उसी दिन एक नर बे-'ऐब यक-साला बर्रा सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश करना।
\v 13 ~और उसके साथ नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा ऐफ़ा के दो दहाई हिस्से के बराबर हो, ताकि वह आतिशी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू के लिए जलाई जाए; और उसके साथ मय का तपावन हीन के चौथे हिस्से के बराबर मय लेकर करना।
\v 14 ~और जब तक तुम अपने ख़ुदा के लिए यह हदिया न ले आओ, उस दिन तक नई फ़स्ल की रोटी या भुना हुआ अनाज, या हरी बालें हरगिज़ न खाना। तुम्हारी सब सुकूनतगाहों में नसल-दर-नसल हमेशा यही क़ानून रहेगा।
\s5
\v 15 ~"और तुम सबत के दूसरे दिन से जिस दिन हिलाने की क़ुर्बानी के लिए पूला लाओगे गिनना शुरू' करना, जब तक सात सबत पूरे न हो जाएँ।
\v 16 ~और सातवें सबत के दूसरे दिन तक पचास दिन गिन लेना, तब तुम ख़ुदावन्द के लिए नज़्र की नई क़ुर्बानी पेश करना।
\s5
\v 17 ~तुम अपने घरों में से ऐफ़ा के दो दहाई हिस्से के वज़न के मैदे के दो गिर्दे हिलाने की क़ुर्बानी के लिए ले आना; वह ख़मीर के साथ पकाए जाएँ ताकि ख़ुदावन्द के लिए पहले फल ठहरें।
\v 18 और उन गिर्दों के साथ ही तुम सात यक-साला बे-'ऐब बर्रे और एक बछड़ा और दो मेंढे लाना, ताकि वह अपनी अपनी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन के साथ ख़ुदावन्द के सामने सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर पेश करे जाएँ, और ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़शबू की आतिशी क़ुर्बानी ठहरें।
\s5
\v 19 और तुम ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा और सलामती के ज़बीहे के लिए दो यकसाला नर बर्रे चढ़ाना।
\v 20 ~और काहिन इनको पहले फल के दोनों गिर्दों के साथ लेकर उन दोनों बर्रों के साथ हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने हिलाए, वह ख़ुदावन्द के ~लिए पाक और काहिन का हिस्सा ठहरें।
\v 21 ~और तुम ऐन उसी दिन 'ऐलान कर देना, उस रोज़ तुम्हारा पाक मजमा' हो, तुम उस दिन कोई ख़ादिमाना काम न करना; तुम्हारी सब सुकूनतगाहों में नसल-दर-नसल सदा यही तौर तरीक़ा रहेगा।
\s5
\v 22 ~"और जब तुम अपनी ज़मीन की पैदावार की फ़सल काटो, तो तू अपने खेत को कोने-कोने तक पूरा न काटना और न अपनी फ़सल की गिरी-पड़ी बालों को जमा' करना, बल्कि उनको ग़रीबों और मुसाफ़िरों के लिए छोड़ देना; मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।"
\s5
\v 23 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 24 ~"बनी-इस्राईल से कह कि सातवें महीने की पहली तारीख़ तुम्हारे लिए ख़ास आराम का दिन हो, उसमें यादगारी के लिए नरसिंगे फूंके जाएँ और पाक मजमा' हो।
\v 25 ~तुम उस रोज़ कोई ख़ादिमाना काम न करना और ख़ुदावन्द के सामने आतिशी क़ुर्बानी पेश करना।"
\s5
\v 26 ~ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा
\v 27 ~'उसी सातवें महीने की दसवीं तारीख़ की कफ़्फ़ारे का दिन है; उस रोज़ तुम्हारा पाक मजमा' हो, और तुम अपनी जानों को दुख देना और ख़ुदावन्द के सामने आतिशी क़ुर्बानी पेश करना।
\s5
\v 28 ~तुम उस दिन किसी तरह का काम न करना, क्यूँकि वह कफ़्फ़ारे का दिन है जिसमें ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा के सामने तुम्हारे लिए क़फ्फारा दिया जाएगा|
\v 29 जो शख़्स उस दिन अपनी जान को दुख ने दे वह अपने लोगों में से काट डाला जाएगा। ་
\s5
\v 30 और जो शख़्स उस दिन किसी तरह का काम करे, उसे मैं उसके लोगों में से फ़ना कर दूँगा।
\v 31 ~तुम किसी तरह का काम मत करना, तुम्हारी सब सुकुनत गाहों में नसल-दर-नसल हमेशा यही तौर तरीक़े रहेंगे ।
\v 32 ~यह तुम्हारे लिए ख़ास आराम का सबत हो, इसमें तुम अपनी जानों को दुख देना; तुम उस महीने की नौवीं तारीख़ की शाम से दूसरी शाम तक अपना सबत मानना।"
\s5
\v 33 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 34 ~'बनी-इस्राईल से कह कि उसी सातवें महीने की पंद्रहवीं तारीख़ से लेकर सात दिन तक ख़ुदावन्द के लिए 'ईद-ए-ख़ियाम होगी।
\s5
\v 35 पहले दिन पाक मजमा हो; तुम उस दिन कोई ख़ादिमाना काम न करना।
\v 36 ~तुम सातों दिन बराबर ख़ुदावन्द के सामने आतिशी क़ुर्बानी पेश करना। आठवें दिन तुम्हारा पाक मजमा' हो और फिर ख़ुदावन्द के सामने आतिशी क़ुर्बानी पेश करना; वह ख़ास मजमा' है, उसमें कोई ख़ादिमाना काम न करना।
\s5
\v 37 ~"यह ख़ुदावन्द की मुक़र्ररा 'ईदें हैं जिनमें तुम पाक मजम'ओं का 'ऐलान करना; ताकि ख़ुदावन्द के सामने आतिशी क़ुर्बानी, और सोख़्तनी क़ुर्बानी, और नज़्र की क़ुर्बानी और जबीहा और तपावन हर एक अपने अपने मुअ'य्यन दिन में पेश किया जाए।
\v 38 ~इनके अलावा ख़ुदावन्द के सबतों को मानना, और अपने हदियों और मिन्नतों और रज़ा की क़ुर्बानियों को जो तुम ख़ुदावन्द के सामने लाते हो पेश करना।
\s5
\v 39 ~"और सातवें महीने की पंद्रहवीं तारीख़ से, जब तुम ज़मीन की पैदावार जमा' कर चुको तो सात दिन तक ख़ुदावन्द की 'ईद मानना। पहला दिन खास आराम का हो, और अट्ठारहवें दिन भी ख़ास आराम ही का हो।
\s5
\v 40 ~इसलिए तुम पहले दिन ख़ुशनुमा दरख़्तों के फल और खजूर की डालियाँ, और घने दरख़्तों की शाख़े और नदियों की बेद-ए-मजनूँ लेना; और तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के आगे सात दिन तक ख़ुशी मनाना।
\v 41 ~और तुम हर साल ख़ुदावन्द के लिए सात रोज़ तक यह 'ईद माना करना। तुम्हारी नसल दर नसल हमेशा यही क़ानून रहेगा कि तुम सातवें महीने इस 'ईद को मानो।
\s5
\v 42 ~सात रोज़ तक बराबर तुम सायबानों में रहना, जितने इस्राईल की नसल के हैं सब के सब सायबानों में रहें;
\v 43 ~ताकि तुम्हारी नसल को मा'लूम हो कि जब मैं बनी-इस्राईल को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर ला रहा था तो मैंने उनको सायबानों में टिकाया था; मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।"
\v 44 ~इसलिए मूसा ने बनी-इस्राईल को ख़ुदावन्द की मुक़र्ररा 'ईदें बता दीं।
\s5
\c 24
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 2 ~"बनी-इस्राईल को हुक्म कर कि वह तेरे पास जै़तून का कूट कर निकाला हुआ ख़ालिस तेल रोशनी के लिए लाएँ, ताकि चराग़ा हमेशा जलता रहे।
\s5
\v 3 ~हारून उसे शहादत के पर्दे के बाहर ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में शाम से सुबह तक ख़ुदावन्द के सामने क़रीने से रख्खा करे; तुम्हारी नसल-दर-नसल सदा यही क़ानून रहेगा।
\v 4 ~वह हमेशा उन चराग़ो की तरतीब से पाक शमा'दान पर ख़ुदावन्द के सामने रख्खा करे।
\s5
\v 5 "और तू मैदा लेकर बारह गिर्दे पकाना, हर एक गिर्दे में ऐफ़ा के दो दहाई हिस्से के बराबर मैदा हो;
\v 6 और तू उनको दो क़तारें कर कि हर क़तार में छ: छ: रोटियाँ, पाक मेज़ पर ख़ुदावन्द के सामने रखना।
\s5
\v 7 ~और तू हर एक क़तार पर ख़ालिस लुबान रखना, ताकि वह रोटी पर यादगारी या'नी ख़ुदावन्द के सामने आतिशी क़ुर्बानी के तौर पर हो।
\v 8 वह हमेशा हर सबत के रोज़ उनको ख़ुदावन्द के सामने तरतीब दिया करे, क्यूँकि यह बनी-इस्राईल की जानिब से एक हमेशा 'अहद है।
\v 9 ~और यह रोटियाँ हारून और उसके बेटों की होंगी वह इन को किसी पाक जगह में खाएँ, क्यूँकि वह एक जाविदानी क़ानून के मुताबिक़ ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानियों में से हारून के लिए बहुत पाक हैं।"
\s5
\v 10 ~और एक इस्राइली 'औरत का बेटा जिसका बाप मिस्री था, इस्राईलियों के बीच चला गया और वह इस्राइली 'औरत का बेटा और एक इस्राइली लश्करगाह में आपस में मार पीट करने लगे;
\v 11 ~और इस्राइली 'औरत के बेटे ने पाक नाम पर कुफ़्र बका और ला'नत की। तब लोग उसे मूसा के पास ले गए। उसकी माँ का नाम सलोमीत था, जो दिब्री की बेटी थी जो दान के क़बीले का था।
\v 12 ~और उन्होंने उसे हवालात में डाल दिया ताकि ख़ुदावन्द की जानिब से इस बात का फ़ैसला उन पर ज़ाहिर किया जाए।
\s5
\v 13 ~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;
\v 14 'उस ला'नत करने वाले को लश्करगाह के बाहर निकाल कर ले जा : और जितनों ने उसे ला'नत करते सुना, वह सब अपने-अपने हाथ उसके सिर पर रख्खें और सारी जमा'अत उसे संगसार करे।
\s5
\v 15 ~और तू बनी-इस्राईल से कह दे कि जो कोई अपने ख़ुदा पर ला'नत करे उसका गुनाह उसी के सिर लगेगा।
\v 16 ~और वह जो ख़ुदावन्द के नाम पर कुफ़्र बके, ज़रूर जान से मारा जाए; सारी जमा'अत उसे कत'ई संगसार करे, चाहे वह देसी हो या परदेसी; जब वह पाक नाम पर कुफ़्र बके तो वह ज़रूर जान से मारा जाए।
\s5
\v 17 ~'और जो कोई किसी आदमी को मार डाले वह ज़रूर जान से मारा जाए।
\v 18 और जो कोई किसी चौपाए को मार डाले, वह उसका मु'आवज़ा जान के बदले जान दे।
\s5
\v 19 "और अगर कोई शख़्स अपने पड़ोसी को 'ऐबदार बना दे, जो जैसा उसने किया वैसा ही उससे किया जाए;
\v 20 ~या'नी 'उज़्व तोड़ने के बदले 'उज़्व तोड़ना हो, और आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत। जैसा ऐब उसने दूसरे आदमी में पैदा कर दिया है वैसा ही उसमें भी कर दिया जाए
\v 21 अलग़र्ज़, जो कोई किसी चौपाए को मार डाले वह उसका मु'आवज़ा दे; लेकिन इन्सान का क़ातिल जान से मारा जाए।
\s5
\v 22 ~तुम एक ही तरह का क़ानून देसी और परदेसी दोनों के लिए रखना,क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।"
\v 23 ~और मूसा ने यह बनी-इस्राईल को बताया। तब वह उस ला'नत करने वाले को निकाल कर लश्करगाह के बाहर ले गए और उसे संगसार कर दिया। इसलिए बनी-इस्राईल ने जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था वैसा ही किया।
\s5
\c 25
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द ने कोह-ए-सीना पर मूसा से कहा कि;
\v 2 ~"बनी-इस्राईल से कहा कि,~जब तुम उस मुल्क में जो मैं तुम को देता हूँ दाख़िल हो जाओ, तो उसकी ज़मीन भी ख़ुदावन्द के लिए सबत को माने।
\s5
\v 3 ~तू अपने खेत को छ: बरस बोना, और अपने अंगूरिस्तान को छ: बरस छाँटना और उसका फल जमा' करना|
\v 4 लेकिन सातवें साल ज़मीन के लिए ख़ास आराम का सबत हो। यह सबत ख़ुदावन्द के लिए हो। इसमें तू न अपने खेत को बोना और न अपने अंगूरिस्तान को छाँटना।
\s5
\v 5 ~और न अपनी खु़दरो फ़सल को काटना और न अपनी बे-छटी ताकों के अंगूरों को तोड़ना; यह ज़मीन के लिए ख़ास आराम का साल हो।
\v 6 और ज़मीन का यह सबत तेरे, और तेरे ग़ुलामों और तेरी लौंडी और मज़दूरों ~और उन परदेसियों के लिए जो तेरे साथ रहते हैं, तुम्हारी ख़ुराक का ज़रिया' होगा;
\v 7 और उसकी सारी पैदावार तेरे चौपायों और तेरे मुल्क के और जानवरों के लिए ख़ूराक़ ठहरेगी।
\s5
\v 8 ~"और तू बरसों के सात सबतों को, या’नी सात गुना सात साल गिन लेना, और तेरे हिसाब से बरसों के सात सबतों की मुद्दत कुल उन्चास साल होंगे।
\v 9 ~तब तू सातवें महीने की दसवीं तारीख़ की बड़ा नरसिंगा ज़ोर से फुँकवाना, तुम कफ़्फ़ारे के रोज़ अपने सारे मुल्क में यह नरसिंगा फुँकवाना।
\s5
\v 10 ~और तुम पचासवें बरस को पाक जानना और तमाम मुल्क में सब बाशिन्दों के लिए आज़ादी का 'ऐलान कराना, यह तुम्हारे लिए यूबली हो। इसमें तुम में से हर एक अपनी मिल्कियत का मालिक हो, और हर शख़्स अपने ख़ान्दान में फिर शामिल हो जाए।
\s5
\v 11 ~वह पचासवाँ बरस तुम्हारे लिए यूबली हो, तुम उसमें कुछ न बोना और न उसे जो अपने आप पैदा हो जाए काटना और न बे-छटी ताकों का अंगूर जमा' करना।
\v 12 क्यूँकि वह साल-ए-यूबली होगा; इसलिए वह तुम्हारे लिए पाक ठहरे, तुम उसकी पैदावार की खेत से लेकर खाना।
\s5
\v 13 "उस साल-ए-यूबली में तुम में से हर एक अपनी मिल्कियत का फिर मालिक हो जाए।
\v 14 और अगर तू अपने पड़ोसी के हाथ कुछ बेचे या अपने पड़ोसी से कुछ ख़रीदे, तो तुम एक दूसरे पर अन्धेर न करना।
\s5
\v 15 यूबली के बा'द जितने बरस गुज़रें हो उनके शुमार के मुताबिक़ तू अपने पड़ोसी से उसे ख़रीदना, और वह उसे फ़सल के बरसों के शुमार के मुताबिक़ तेरे हाथ बेचे।
\v 16 जितने ज़्यादा बरस हों उतना ही दाम ज़्यादा करना और जितने कम बरस हों उतनी ही उस की क़ीमत घटाना; क्यूँकि बरसों के शुमार के मुताबिक़ वह उनकी फ़स्ल तेरे हाथ बेचता है।
\v 17 और तुम एक दूसरे पर अन्धेर न करना, बल्कि अपने ख़ुदा से डरते रहना; क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
\s5
\v 18 ~इसलिए तुम मेरी शरी'अत पर 'अमल करना और मेरे हुक्मों को मानना और उन पर चलना, तो तुम उस मुल्क में अम्न के साथ बसे रहोगे।
\v 19 ~और ज़मीन फलेगी और तुम पेट भर कर खाओगे, और वहाँ अम्न के साथ रहा करोगे।
\s5
\v 20 ~और अगर तुम को ख़याल हो ~कि हम सातवें बरस क्या खाएँगे? क्यूँकि देखो, हम को न तो बोना है और न अपनी पैदावार की जमा' करना है।
\v 21 ~तो मैं छटे ही बरस ऐसी बरकत तुम पर नाज़िल करूँगा कि तीनों साल के लिए काफ़ी ग़ल्ला पैदा हो जाएगा।
\v 22 ~और आठवें बरस फिर जीतना बोना और पिछला ग़ल्ला खाते रहना, बल्कि जब तक नौवें साल के बोए हुए की फ़सल न काट लो उस वक़्त तक ~वही पिछला ग़ल्ला खाते रहोगे।
\s5
\v 23 "और ज़मीन हमेशा के लिए बेची न जाए क्यूँकि ज़मीन मेरी है, और तुम मेरे मुसाफ़िर और मेहमान हो।
\v 24 बल्कि तुम अपनी मिल्कियत के मुल्क में हर जगह ज़मीन को छुड़ा लेने देना।
\v 25 "और अगर तुम्हारा भाई ग़रीब हो जाए और अपनी मिल्कियत का कुछ हिस्सा बेच डाले, तो जो उस का सबसे क़रीबी रिश्तेदार है वह आकर उस को जिसे उसके भाई ने बेच डाला है छुड़ा ले।
\s5
\v 26 और अगर उस आदमी का कोई न हो जो उसे छुड़ाए, और वह ख़ुद मालदार हो जाए और उसके छुड़ाने के लिए उसके पास काफ़ी हो।
\v 27 तो वह फ़रोख़्त के बा'द के बरसों को गिन कर बाक़ी दाम उसकी जिसके हाथ ज़मीन बेची है फेर दे; तब वह फिर अपनी मिल्कियत का मालिक हो जाए।
\v 28 लेकिन अगर उसमें इतना मक़दूर न हो कि अपनी ज़मीन वापस करा ले, तो जो कुछ सन बेच डाला है वह साल-ए-यूबली तक ख़रीदार के हाथ में रहे; और साल-ए-यूबली में छुट जाए, तब यह आदमी अपनी मिल्कियत का फिर मालिक हो जाए।
\s5
\v 29 ‘और अगर कोई शख़्स रहने के ऐसे मकान को बेचे जो किसी फ़सीलदार शहर में हो, तो वह उसके बिक जाने के बा'द साल भर के अन्दर-अन्दर उसे छुड़ा सकेगा; या'नी पूरे एक साल तक वह उसे छुड़ाने का हक़दार रहेगा।
\v 30 ~और अगर वह पूरे एक साल की मी'आद के अन्दर छुड़ाया न जाए, तो उस फ़सीलदार शहर के मकान पर ख़रीदार का नसल-दर-नसल हमेशा का क़ब्ज़ा हो जाए और वह साल-ए-यूबली में भी न छूटे।
\s5
\v 31 ~लेकिन जिन देहात के गिर्द कोई फ़सील नहीं उनके मकानों का हिसाब मुल्क के खेतों की तरह होगा, वह छुड़ाए भी जा सकेंगे और साल-ए- यूबली में वह छूट भी जाएँगे।
\v 32 ~तो भी लावियों के जो शहर हैं, लावी अपनी मिल्कियत के शहरों के मकानों को चाहे किसी वक़्त छुड़ा लें।
\s5
\v 33 और अगर कोई दूसरा लावी उनको छुड़ा ले, तो वह मकान जो बेचा गया और उसकी मिल्कियत का शहर दोनों साल ए-यूबली में छूट जाएँ; क्यूँकि जो मकान लावियों के शहरों में हैं वही बनी-इस्राईल के बीच लावियों की मिल्कियत हैं।
\v 34 लेकिन उनके शहरों की 'इलाक़े के खेत नहीं बिक सकते, क्यूँकि वह उनकी हमेशा की ~मिल्कियत हैं।
\s5
\v 35 और अगर तेरा कोई भाई ग़रीब हो जाए और वह तेरे सामने तंगदस्त हो, तो तू उसे संभालना। वह परदेसी और मुसाफ़िर की तरह तेरे साथ रहे।
\v 36 ~तू उससे सूद या नफ़ा' मत लेना बल्कि अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ रखना, ताकि तेरा भाई तेरे साथ ज़िन्दगी बसर कर सके।
\v 37 तू अपना रुपया उसे सूद पर मत देना और अपना खाना भी उसे नफ़े' के ख़याल से न देना।
\v 38 ~मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ, जो तुम को इसी लिए मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया कि मुल्क-ए-कना'न तुम को दूँ और तुम्हारा ख़ुदा ठहरूँ ।
\s5
\v 39 'और अगर तेरा कोई भाई तेरे सामने ऐसा ग़रीब हो जाए कि अपने को तेरे हाथ बेच डाले, तो तू उससे गु़लाम की तरह ख़िदमत न लेना।
\v 40 बल्कि वह मज़दूर और मुसाफ़िर की तरह तेरे साथ रहे और साल-ए-यूबली तक तेरी ख़िदमत करे।
\v 41 उसके बा'द वह बाल-बच्चों के साथ तेरे पास से चला जाए, और अपने घराने के पास और अपने बाप दादा की मिल्कियत की जगह को लौट जाए।
\s5
\v 42 ~~इसलिए कि वह मेरे ख़ादिम हैं जिनको मैं मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया हूँ, वह ग़ुलामों की तरह बेचे न जाएँ।
\v 43 ~तू उन पर सख़्ती से हुक्मरानी न करना, बल्कि अपने ख़ुदा से डरते रहना।
\v 44 ~और तेरे जो ग़ुलाम और तेरी जो लौंडियाँ हों, वह उन क़ौमों में से हों जो तुम्हारे चारों तरफ़ रहती हैं; उन ही में से तुम गु़लाम और लौंडियाँ ख़रीदा करना।
\s5
\v 45 इनके सिवा उन परदेसियों के लड़के बालों में से भी जो तुम में क़याम करते हैं और उनके घरानों में से जो तुम्हारे मुल्क में पैदा हुए और तुम्हारे साथ हैं तुम ख़रीदा करना और वह तुम्हारी ही मिल्कियत होंगे।
\v 46 और तुम उनको मीरास के तौर पर अपनी औलाद के नाम कर देना कि वह उनकी मौरूसी मिल्कियत हों। इनमें से तुम हमेशा अपने लिए ग़ुलाम लिया करना; लेकिन बनी-इस्राईल जो तुम्हारे भाई हैं, उनमें से किसी पर तुम सख़्ती से हुक्मरानी न करना।
\s5
\v 47 "और अगर कोई परदेसी या मुसाफ़िर जो तेरे साथ हो, दौलतमन्द हो जाए और तेरा भाई उसके सामने ग़रीब हो कर अपने आप को उस परदेसी या मुसाफ़िर या परदेसी के ख़ान्दान के किसी आदमी के हाथ बेच डाले,
\v 48 तो बिक जाने के बा'द वह छुड़ाया जा सकता है, उसके भाइयों में से कोई उसे छुड़ा सकता है,
\s5
\v 49 या उसका चचा या ताऊ, या उसके चचा या ताऊ का बेटा, या उसके ख़ान्दान का कोई और आदमी जो उसका क़रीबी रिश्तेदार हो वह उस को छुड़ा सकता है; या अगर वह मालदार हो जाए, तो वह अपना फ़िदिया दे कर छूट सकता है।
\v 50 वह अपने ख़रीदार के साथ अपने को फ़रोख़्त कर देने के साल से लेकर साल-ए-यूबली तक हिसाब करे और उसके बिकने की क़ीमत बरसों की ता'दाद के मुताबिक़ हो; या'नी उसका हिसाब मज़दूर के दिनों की तरह उसके साथ होगा।
\s5
\v 51 ~अगर यूबली के अभी बहुत से बरस बाक़ी हों, तो जितने रुपयों में वह ख़रीदा गया था उनमें से अपने छूटने की क़ीमत उतने ही बरसों के हिसाब के मुताबिक़ फेर दे।
\v 52 ~और अगर साल-ए-यूबली के थोड़े से बरस रह गए हों, तो वह उसके साथ हिसाब करे और अपने छूटने की क़ीमत उतने ही बरसों के मुताबिक़ उसे फेर दे;
\s5
\v 53 ~और वह उस मज़दूर की तरह अपने आक़ा के साथ रहे जिसकी मज़दूरी साल-ब-साल ठहराई जाती हो, और उसका आक़ा उस पर तुम्हारे सामने सख़्ती से हुकूमत न करने पाए।
\v 54 ~और अगर वह इन तरीक़ों से छुड़ाया न जाए तो साल-ए-यूबली में बाल बच्चों के साथ छूट जाए।
\v 55 ~क्यूँकि बनी-इस्राईल मेरे लिए ख़ादिम हैं, वह मेरे ख़ादिम हैं जिनको मैं मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया हूँ; मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
\s5
\c 26
\p
\v 1 ~तुम अपने लिए बुत न बनाना और न कोई तराशी हुई मूरत या लाट अपने लिए खड़ी करना, और न अपने मुल्क में कोई शबीहदार पत्थर रखना कि उसे सिज्दा करो; इसलिए कि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
\v 2 ~तुम मेरे सबतों को मानना और मेरे हैकल की ता'ज़ीम करना; मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 3 ~"अगर तुम मेरी शरी'अत पर चलो और मेरे हुक्मों को मानो और उन पर 'अमल करो,
\v 4 ~तो मैं तुम्हारे लिए सही वक़्त मेंह बरसाऊँगा और ज़मीन से अनाज पैदा होगा और मैदान के दरख़्त फलेंगे;
\s5
\v 5 यहाँ तक कि अंगूर जमा' करने के वक़्त तक तुम दावते रहोगे, और जोतने बोने के वक़्त तक अंगूर जमा' करोगे, और पेट भर अपनी रोटी खाया करोगे, और चैन से अपने मुल्क में बसे रहोगे।
\v 6 ~और मैं मुल्क में अम्न बख़्शूंगा, और तुम सोओगे और तुम को कोई नहीं डराएगा; और मैं बुरे दरिन्दों को मुल्क से हलाक कर दूँगा, और तलवार तुम्हारे मुल्क में नहीं चलेगी।
\s5
\v 7 और तुम अपने दुश्मनों का पीछा करोगे, और वह तुम्हारे आगे-आगे तलवार से मारे जाएँगे।
\v 8 और तुम्हारे पाँच आदमी सौ को दौड़ाएंगे, और तुम्हारे सौ आदमी दस हज़ार को खदेड़ देगें, और तुम्हारे दुश्मन तलवार से तुम्हारे आगे-आगे मारे जाएँगे;
\s5
\v 9 ~और मैं तुम पर नज़र-ए-'इनायत रख्खूंगा, और तुम को कामयाब करूँगा और बढ़ाऊँगा, और जो मेरा 'अहद तुम्हारे साथ है उसे पूरा करूँगा।
\v 10 और तुम 'अरसे का ज़ख़ीरा किया हुआ पुराना अनाज खाओगे, और नये की वजह से पुराने को निकाल बाहर करोगे।
\s5
\v 11 ~और मैं अपना घर तुम्हारे बीच क़ायम रखूँगा और मेरी रूह तुमसे नफ़रत न करेगी।
\v 12 ~और मैं तुम्हारे बीच चला फिरा करूँगा, और तुम्हारा ख़ुदा हूँगा, और तुम मेरी क़ौम होगे।
\v 13 ~मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ, जो तुम को मुल्क-ए-मिस्र से इसलिए निकाल कर ले आया कि तुम उनके ग़ुलाम न बने रहो; और मैंने तुम्हारे जूए की चोबें तोड़ डाली हैं और तुम को सीधा खड़ा करके चलाया।
\s5
\v 14 ~लेकिन अगर तुम मेरी न सुनो और इन सब हुक्मों पर 'अमल न करो,
\v 15 ~और मेरी शरी'अत को छोड़ दो, और तुम्हारी रूहों को मेरे फ़ैसलों से नफ़रत हो, और तुम मेरे सब हुक्मों पर 'अमल न करो बल्कि मेरे 'अहद को तोड़ो;
\s5
\v 16 ~तो मैं भी तुम्हारे साथ इस तरह पेश आऊँगा कि दहशत और तप-ए-दिक़ और बुख़ार को तुम पर मुक़र्रर कर दूँगा, जो तुम्हारी आँखों को चौपट कर देंगे और तुम्हारी जान को घुला डालेंगे, और तुम्हारा बीज बोना फ़िज़ूल होगा क्यूँकि तुम्हारे दुश्मन उसकी फ़सल खाएँगे;
\v 17 ~और मैं ख़ुद भी तुम्हारा मुख़ालिफ़ हो जाऊँगा, और तुम अपने दुश्मनों के आगे शिकस्त खाओगे; और जिनको तुमसे 'अदावत है वही तुम पर हुक्मरानी करेंगे, और जब कोई तुमको दौड़ाता भी न होगा तब भी तुम भागोगे।
\s5
\v 18 ~और अगर इतनी बातों पर भी तुम मेरी न सुनो तो मैं तुम्हारे गुनाहों के ज़रिए' तुम को सात गुनी सज़ा और दूँगा।
\v 19 ~और मैं तुम्हारी शहज़ोरी के फ़ख़्र को तोड़ डालूँगा, और तुम्हारे लिए आसमान को लोहे की तरह और ज़मीन को पीतल की तरह कर दूँगा।
\v 20 ~और तुम्हारी क़ुव्वत बेफ़ायदा सर्फ़ होगी क्यूँकि तुम्हारी ज़मीन से कुछ पैदा न होगा और मैदान के दरख़्त फलने ही के नहीं।
\s5
\v 21 ~और अगर तुम्हारा चलन मेरे ख़िलाफ़ ही रहे और तुम मेरा कहा न मानो, तो मैं तुम्हारे गुनाहों के मुवाफ़िक़ तुम्हारे ऊपर और सातगुनी बलाएँ लाऊँगा।
\v 22 जंगली दरिन्दे तुम्हारे बीच छोड़ दूंगा जो तुम को बेऔलाद कर देंगे और तुम्हारे चौपायों को हलाक करेंगे और तुम्हारा शुमार घटा देगें, और तुम्हारी सड़कें सूनी पड़ जाएँगी।
\s5
\v 23 ~और अगर इन बातों पर भी तुम मेरे लिए न सुधरो बल्कि मेरे ख़िलाफ़ ही चलते रहो,
\v 24 ~तो मैं भी तुम्हारे ख़िलाफ़ चलूँगा, और मैं आप ही तुम्हारे गुनाहों के लिए तुम को और सात गुना मारूँगा।
\s5
\v 25 और तुम पर एक ऐसी तलवार चलवाऊँगा जो 'अहदशिकनी का पूरा पूरा इन्तक़ाम ले लेगी, और जब तुम अपने शहरों के अन्दर जा जाकर इकट्ठे हो जाओ, तो मैं वबा को तुम्हारे बीच भेजूँगा और तुम ग़नीम के हाथ में सौंप दिए जाओगे।
\v 26 और जब मैं तुम्हारी रोटी का सिलसिला तोड़ दूंगा, तो दस 'औरतें एक ही तनूर में तुम्हारी रोटी पकाएँगी। और तुम्हारी उन रोटियों को तोल-तोल कर देती जाएँगी; और तुम खाते जाओगे पर सेर न होगे।
\s5
\v 27 ~"और अगर तुम इन सब बातों पर भी मेरी न सुनो और मेरे ख़िलाफ़ ही चलते रहो,
\v 28 ~तो मैं अपने ग़ज़ब में तुम्हारे बरख़िलाफ़ चलूँगा, और तुम्हारे गुनाहों के ज़रिए' तुम को सात गुनी सज़ा भी दूँगा।
\s5
\v 29 ~और तुम को अपने बेटों का गोश्त और अपनी बेटियों का गोश्त खाना पड़ेगा।
\v 30 और मैं तुम्हारी परस्तिश के बलन्द मकामों को ढा दुंगा, और तुम्हारी सूरज की मूरतों को काट डालूँगा और तुम्हारी लाशें तुम्हारे शिकस्ता बुतों पर डाल दूँगा, और मेरी रूह को तुमसे नफ़रत हो जाएगी।
\s5
\v 31 ~और मैं तुम्हारे शहरों को वीरान कर डालूँगा, और तुम्हारे हैकलों को उजाड़ बना दूँगा, और तुम्हारी ख़ुशबू-ए- शीरीन की लपट को मैं सूघने का भी नहीं।
\v 32 ~और मैं मुल्क को सूना कर दूँगा, और तुम्हारे दुश्मन जो वहाँ रहते हैं इस बात से हैरान होंगे।
\v 33 और मैं तुम को गैर क़ौमों में बिखेर दूँगा और तुम्हारे पीछे-पीछे तलवार खींचे रहूँगा; और तुम्हारा मुल्क सूना हो जाएगा, और तुम्हारे शहर वीरान बन जाएँगे।
\s5
\v 34 'और यह ज़मीन जब तक वीरान रहेगी और तुम दुश्मनों के मुल्क में होगे, तब तक वह अपने सबत मनाएगी; तब ही इस ज़मीन को आराम भी मिलेगा और वह अपने सबत भी मनाने पाएगी।
\v 35 ~ये जब तक वीरान रहेगी तब ही तक आराम भी करेगी, जो इसे कभी तुम्हारे सबतों में जब तुम उसमें रहते थे नसीब नहीं हुआ था।
\v 36 ~~और जो तुम में से बच जाएँगे और अपने दुश्मनों के मुल्कों में होंगे, उनके दिल के अन्दर मैं बेहिम्मती पैदा कर दूँगा उड़ती हुई पट्टी की आवाज़ उनको खदेड़ेगी, और वह ऐसे भागेंगे जैसे कोई तलवार से भागता हो और हालाँकि कोई पीछा भी न करता होगा तो भी वह गिर-गिर पड़ेगे।
\s5
\v 37 और वह तलवार के ख़ौफ़ से एक दूसरे से टकरा-टकरा जाएँगे बावजूद यह कि कोई खदेड़ता न होगा, और तुम को अपने दुश्मनों के मुक़ाबले की ताब न होगी।
\v 38 और तुम ग़ैर क़ौमों के बीच बिखर कर हलाक हो जाओगे, और तुम्हारे दुश्मनों की ज़मीन तुम को खा जाएगी।
\v 39 और तुम में से जो बाक़ी बचेंगे वह अपनी बदकारी की वजह से तुम्हारे दुश्मनों के मुल्कों में घुलते रहेंगे, और अपने बाप दादा की बदकारी की वजह से भी वह उन्हीं की तरह घुलते जाएँगे।
\s5
\v 40 'तब वह अपनी और अपने बाप दादा की इस बदकारी का इक़रार करेंगे कि उन्होंने मुझ से ख़िलाफ़वर्ज़ी कर कि मेरी हुक्म-उदूली की; और यह भी मान लेंगे कि चूँकि वह मेरे ख़िलाफ़ चले थे,
\v 41 ~इसलिए मैं भी उनका मुख़ालिफ़ हुआ और उनको उनके दुश्मनों के मुल्क में ला छोड़ा। अगर उस वक़्त उनका नामख़्तून दिल 'आजिज़ बन जाए और वह अपनी बदकारी की सज़ा को मन्जूर करें,
\v 42 तब मैं अपना 'अहद जो या'क़ूब के साथ था याद करूँगा, और जो 'अहद मैंने इस्हाक़ के साथ, और जो 'अहद मैंने इब्राहीम के साथ बान्धा था उनको भी याद करूँगा, और इस मुल्क को याद करूँगा।
\s5
\v 43 ~और वह ज़मीन भी उनसे छूट कर जब तक उनकी ग़ैर हाज़िरी में सूनी पड़ी रहेगी तब तक अपने सबतों को मनाएगी; और वह अपनी बदकारी की सज़ा को मन्जूर कर लेंगे, इसी वजह से कि उन्होंने मेरे हुक्मों को छोड़ दिया था, और उनकी रूहों को मेरी शरी'अत से नफ़रत ही गई थी।
\s5
\v 44 इस पर भी जब वह अपने दुश्मनों के मुल्क में होंगे तो मैं उनको ऐसा नहीं छोड़ूँगा करूँगा और न मुझे उनसे ऐसी नफ़रत होगी कि मैं उनकी बिल्कुल फ़ना कर दूँ, और मेरा जो 'अहद उनके साथ है उसे तोड़ दूँ क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हूँ।
\v 45 बल्कि मैं उनकी ख़ातिर उनके बाप दादा के 'अहद की याद करूँगा, जिनको मैं ग़ैरक़ौमों की आँखों के सामने मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया ताकि मैं उनका ख़ुदा ठहरूँ; मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
\s5
\v 46 यह वह शरी'अत और अहकाम और क़वानीन हैं जो ख़ुदावन्द ने कोह-ए-सीना पर अपने और बनी-इस्राईल के बीच मूसा की ज़रिए' मुक़र्रर किए।
\s5
\c 27
\p
\v 1 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;
\v 2 ~"बनी-इस्राईल से कह,~कि जब कोई शख़्स अपनी मिन्नत पूरी करने लगे, तो मिन्नत के आदमी तेरी क़ीमत ठहराने के मुताबिक़ ख़ुदावन्द के होंगे।
\s5
\v 3 इसलिए बीस बरस की 'उम्र से लेकर साठ बरस की 'उम्र तक के मर्द के लिए तेरी ठहराई हुई क़ीमत हैकल की ~मिस्क़ाल के हिसाब से चाँदी की पचास मिस्क़ाल हों।
\v 4 ~और अगर वह 'औरत हो, तो तेरी ठहराई हुई क़ीमत तीस मिस्क़ाल हों।
\s5
\v 5 ~और अगर पाँच बरस से लेकर बीस बरस तक की 'उम्र हो, तो तेरी ठहराई हुई क़ीमत मर्द के लिए बीस मिस्क़ाल और 'औरत के लिए दस मिस्क़ाल हों।
\v 6 ~लेकिन अगर 'उम्र एक महीने से लेकर पाँच बरस तक की हो, तो लड़के के लिए चाँदी के पाँच मिस्क़ाल और लड़की के लिए चाँदी के तीन मिस्क़ाल ठहराई जाएँ।
\s5
\v 7 ~. और अगर साठ बरस से लेकर ऊपर ऊपर की 'उम्र हो, तो मर्द के लिए पन्द्रह मिस्क़ाल और 'औरत के लिए दस मिस्क़ाल मुक़र्रर हों।
\v 8 लेकिन अगर कोई तेरे अन्दाज़े की निस्बत कम मक़दूर रखता हो, तो वह काहिन के सामने हाज़िर किया जाए और काहिन उसकी क़ीमत ठहराए, या'नी जिस शख़्स ने मिन्नत मानी है उसकी जैसी हैसियत ही वैसी ही क़ीमत काहिन उसके लिए ठहराए।
\s5
\v 9 'और अगर वह मिन्नत किसी ऐसे जानवर की है जिसकी क़ुर्बानी लोग ख़ुदावन्द के सामने चढ़ाया करते हैं, तो जो जानवर कोई ख़ुदावन्द की नज़्र करे वह पाक ठहरेगा।
\v 10 ~~वह उसे फिर किसी तरह न बदले, न तो अच्छे की बदले बुरा दे और न बुरे की बदले अच्छा दे; और अगर वह किसी हाल में एक जानवर के बदले दूसरा जानवर दे तो वह और उसका बदल दोनों पाक ठहरेंगे।
\s5
\v 11 और अगर वह कोई नापाक जानवर हो जिसकी क़ुर्बानी ख़ुदावन्द के सामने नहीं पेश करते, तो वह उसे काहिन के सामने खड़ा करे,
\v 12 और चाहे वह अच्छा हो या बुरा काहिन उसकी क़ीमत ठहराए और ऐ काहिन, जो कुछ तू उसका दाम ठहराएगा वही रहेगा।
\v 13 ~और अगर वह चाहे कि उसका फ़िदिया देकर उसे छुड़ाए, तो जो क़ीमत तूने ठहराई है उसमें उसका पाँचवा हिस्सा वह और मिला कर दे।
\s5
\v 14 'और अगर कोई अपने घर को पाक क़रार दे ताकि वह ख़ुदावन्द के लिए पाक हो, तो ख़्वाह वह अच्छा हो या बुरा काहिन उसकी क़ीमत ठहराए, और जो कुछ वह ठहराए वही उसकी क़ीमत रहेगी।
\v 15 और जिसने उस घर को पाक क़रार दिया है अगर वह चाहे कि घर का फ़िदिया देकर उसे छुड़ाए, तो तेरी ठहराई हुई क़ीमत में उसका पाँचवाँ हिस्सा और मिला दे तब वह घर उसी का रहेगा।
\s5
\v 16 और अगर कोई शख़्स अपने मौरूसी खेत का कोई हिस्सा ख़ुदावन्द के लिए पाक~क़रार दे, तो तू क़ीमत का अन्दाज़ा करते यह देखना कि उसमें कितना बीज बोया जाएगा। जितनी ज़मीन में एक ख़ोमर के वज़न के बराबर जौ बो सकें उसकी क़ीमत चाँदी की पचास मिस्क़ाल हो।
\s5
\v 17 अगर कोई साल-ए- यूबली से अपना खेत पाक करार दे, तो उसकी क़ीमत जो तू ठहराए वही रहेगी।
\v 18 लेकिन अगर वह साल-ए-यूबली के बा'द अपने खेत को पाक क़रार दे, तो जितने बरस दूसरे साल-ए-यूबली के बाक़ी हों उन्ही के मुताबिक़ काहिन उसके लिए रुपये का हिसाब करे; और जितना हिसाब में आए उतना तेरी ठहराई हुई क़ीमत से कम किया जाए।
\s5
\v 19 ~और अगर वह जिसने उस खेत को पाक करार दिया है यह चाहे कि उसका फ़िदिया देकर उसे छुड़ाए, वह तेरी ठहराई हुई क़ीमत का पाँचवाँ हिस्सा उसके साथ और मिला कर दे तो वह खेत उसी का रहेगा।
\v 20 ~और अगर वह उस खेत का फ़िदिया देकर उसे न छुड़ाए या किसी दूसरे शख़्स के हाथ उसे बेच दे, तो फिर वह खेत कभी न छुड़ाया जाए;
\v 21 बल्कि वह खेत जब साल-ए-यूबली में छूटे तो वक्फ़ किए हुए खेत की तरह वह ख़ुदावन्द के लिए पाक होगा, और काहिन की मिल्कियत ठहरेगा
\s5
\v 22 ~और अगर कोई शख़्स किसी ख़रीदे हुए खेत को जो उसका मौरूसी नहीं, ख़ुदावन्द के लिए पाक क़रार दे,
\v 23 ~तो काहिन जितने बरस दूसरे साल-ए-यूबली के बाक़ी हों उनके मुताबिक़ तेरी ठहराई हुई क़ीमत का हिसाब उसके लिए करे, और वह उसी दिन तेरी ठहराई हुई क़ीमत को ख़ुदावन्द के लिए पाक जानकर दे दे।
\s5
\v 24 और साल-ए- यूबली में वह खेत उसी को वापस हो जाए जिससे वह ख़रीदा गया था और जिसकी वह मिल्कियत है।
\v 25 और तेरे सारे क़ीमत के अन्दाज़े हैकल की मिस्क़ाल के हिसाब से हों; और एक मिस्क़ाल बीस जीरह का हो।
\s5
\v 26 लेकिन सिर्फ़ चौपायों के पहलौठों को जो पहलौठे होने की वजह से ख़ुदावन्द के ठहर चुके हैं, कोई शख़्स पाक क़रार न दे, चाहे वह बैल हो या भेड़-बकरी वह तो ख़ुदावन्द ही का है।
\v 27 ~लेकिन अगर वह किसी नापाक जानवर का पहलौठा हो तो वह शख़्स तेरी ठहराई हुई क़ीमत का पाँचवा हिस्सा क़ीमत में और मिलाकर उसका फ़िदिया दे और उसे छुड़ाए; और अगर उसका फ़िदिया न दिया जाए तो वह तेरी ठहराई हुई क़ीमत पर बेचा जाए।
\s5
\v 28 "तोभी कोई मख़्सूस की हुई चीज़ जिसे कोई शख़्स अपने सारे माल में से ख़ुदावन्द के लिए मख़्सूस करे, चाहे वह उसका आदमी या जानवर या मौरूसी ज़मीन ही बेची न जाए और न उसका फ़िदिया दिया जाए; हर एक मख़्सूस की हुई चीज़ ख़ुदावन्द के लिए बहुत पाक है।
\v 29 ~अगर आदमियों में से कोई मख़्सूस किया जाए तो उसका फ़िदिया न दिया जाए, वह ज़रूर जान से मारा जाए।
\s5
\v 30 ' और ज़मीन की पैदावार की सारी दहेकी चाहे वह ज़मीन के बीज की या दरख़्त के फल की हो, ख़ुदावन्द की है और ~ख़ुदावन्द के लिए पाक है।
\v 31 ~और अगर कोई अपनी दहेकी में से कुछ छुड़ाना चाहे, तो वह उसका पाँचवाँ हिस्सा उसमें और मिला कर उसे छुड़ाए।
\s5
\v 32 और गाय, बैल और भेड़ बकरी, या जो जानवर चरवाहे की लाठी के नीचे से गुज़रता हो, उनकी दहेकी या'नी दस पीछे एक-एक जानवर ख़ुदावन्द के लिए पाक ठहरे।
\v 33 ~कोई उसकी देख भाल न करे कि वह अच्छा है या बुरा है और न उसे बदलें और अगर कहीं कोई उसे बदले तो वह असल और बदल दोनों के दोनों पाक ठहरे और उसका फ़िदिया भी न दिया जाए |
\s5
\v 34 जो हुक्म ख़ुदावन्द ने कोह-ए-सीना पर बनी इस्राईल के लिए मूसा को दिए वह यही हैं|

1944
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\id NUM
\ide UTF-8
\h गिनती
\toc1 गिनती
\toc2 गिनती
\toc3 num
\mt1 गिनती
\s5
\c 1
\p
\v 1 ~बनी-इस्राईल के मुल्क-ए-मिस्र से निकल आने के दूसरे बरस के दूसरे महीने की पहली तारीख़ को सीना के वीरान में ख़ुदावन्द ने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में मूसा से कहा कि,
\v 2 "तुम एक-एक मर्द का नाम ले लेकर गिनो, और उनके नामों की ता'दाद से बनी-इस्रईल की सारी जमा'अत की मर्दुमशुमारी का हिसाब उनके क़बीलों और आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ करो।
\v 3 ~बीस बरस और उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र के जितने इस्राईली जंग करने के क़ाबिल हों, उन सभों के अलग-अलग दलों को तू और हारून दोनों मिल कर गिन डालो।
\s5
\v 4 ~और हर क़बीले से एक-एक आदमी जो अपने आबाई ख़ान्दान का सरदार है तुम्हारे साथ हो।
\v 5 ~और जो आदमी तुम्हारे साथ होंगे उनके नाम यह हैं: रूबिन के क़बीले से इलीसूर बिन शदियूर
\v 6 शमा'ऊन के क़बीले से सलूमीएल बिन सूरी शद्दी,
\s5
\v 7 ~यहूदाह के क़बीले से नहसोन बिन 'अम्मीनदाब,
\v 8 ~इश्कार के क़बीले से नतनीएल बिन ज़ुग़र,
\v 9 ~ज़बूलून के क़बीले से इलियाब बिन हेलोन,
\s5
\v 10 ~यूसुफ़ की नसल में से इफ़्राईम के क़बीले का इलीसमा'अ बिन 'अम्मीहूद, और मनस्सी के क़बीले का जमलीएल बिन फ़दाहसूर,
\v 11 ~बिनयमीन के क़बीले से अबिदान बिन जिदा'ऊनी
\s5
\v 12 ~दान के क़बीले से अख़ी'अज़र बिन 'अम्मीशद्दी,
\v 13 ~आशर के क़बीले से फ़ज'ईएल बिन 'अकरान,
\v 14 ~जद्द के क़बीले से इलियासफ़ बिन द'ऊएल,
\v 15 ~नफ़्ताली के क़बीले से अख़िरा' बिन 'एनान।"
\s5
\v 16 ~यही अश्ख़ास जो अपने आबाई क़बीलों के रईस और बनी-इस्राईल में हज़ारों के सरदार थे जमा'अत में से बुलाए गए।
\s5
\v 17 ~और मूसा और हारून ने इन अश्ख़ास को जिनके नाम मज़कूर हैं अपने साथ लिया।
\v 18 ~और उन्होंने दूसरे महीने की पहली तारीख़ को सारी जमा'अत को जमा' किया, और इन लोगों ने बीस बरस और उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र के सब आदमियों का शुमार करवा के अपने-अपने क़बीले, और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ अपना अपना हस्ब-ओ-नसब लिखवाया।
\v 19 ~इसलिए जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था उसी के मुताबिक़ उसने उनको दश्त-ए-सीना में गिना।
\s5
\v 20 ~और इस्राईल के पहलौठे रूबिन की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ अपने नाम से गिना गया।
\v 21 ~इसलिए रूबिन के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह छियालीस हज़ार पाँच सौ थे ।
\s5
\v 22 ~और शमा'ऊन की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ अपने नाम से गिना गया।
\v 23 इसलिए शमा'ऊन के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह उन्सठ हज़ार तीन सौ थे।
\s5
\v 24 ~और जद्द की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।
\v 25 ~इसलिए जद्द के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह पैंतालीस हज़ार छ: सौ पचास थे।
\s5
\v 26 ~और यहूदाह की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।
\v 27 ~इसलिए यहूदाह के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह चौहत्तर हज़ार छ: सौ थे।
\s5
\v 28 और इश्कार की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।
\v 29 ~इसलिए इश्कार के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह चव्वन हज़ार चार सौ थे।
\s5
\v 30 ~और ज़बूलून की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।
\v 31 ~इसलिए ज़बूलून के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह सतावन हज़ार चार सौ थे।
\s5
\v 32 ~और यूसुफ़ की औलाद या'नी इफ़्राईम की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।
\v 33 इसलिए इफ़्राईम के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह चालीस हज़ार पाँच सौ थे।
\s5
\v 34 ~और मनस्सी की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।
\v 35 इसलिए मनस्सी के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह बत्तीस हज़ार दो सौ थे।
\s5
\v 36 ~और बिनयमीन की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।
\v 37 ~इसलिए बिनयमीन के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह पैतिस हज़ार चार सौ थे।
\s5
\v 38 ~और दान की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।
\v 39 ~इसलिए दान के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह बासठ हज़ार सात सौ थे।
\s5
\v 40 और आशर की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।
\v 41 ~इसलिए आशर के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह इकतालीस हज़ार पाँच सौ थे।
\s5
\v 42 ~और नफ़्ताली की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।
\v 43 ~इसलिए, नफ़्ताली के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह तिरपन हज़ार चार सौ थे।
\s5
\v 44 ~यही वह लोग हैं जो गिने गए। इन ही को मूसा और हारून और बनी-इस्राईल के बारह रईसों ने जो अपने-अपने आबाई ख़ान्दान के सरदार थे, गिना।
\v 45 ~इसलिए बनी-इस्राईल में से जितने आदमी बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र के और जंग करने के क़ाबिल थे, वह सब गिने गए।
\v 46 ~और उन सभों का शुमार छः लाख तीन हज़ार पाँच सौ पचास था।
\s5
\v 47 ~पर लावी अपने आबाई क़बीले के मुताबिक़ उनके साथ गिने नहीं गए।
\v 48 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा था कि,
\v 49 ~'तू लावियों के क़बीले को न गिनना और न बनी-इस्राईल के शुमार में उनका शुमार दाख़िल करना,
\s5
\v 50 ~बल्कि तू~लावियों को शहादत के घर और उसके सब बर्तनों और उसके सब लवाज़िम के मुतवल्ली मुक़र्रर करना।~वही घर और उसके सब बर्तनों को उठाया करें और वहीँ उसमें ख़िदमत भी करें और घर के आस-पास वही अपने ख़ेमे लगाया करें।
\s5
\v 51 ~और जब घर को आगे रवाना करने का वक़्त हो तो लावी उसे उतारें, और जब घर को लगाने का वक़्त हो तो लावी उसे खड़ा करें; और अगर कोई अजनबी शख़्स उसके नज़दीक आए तो वह जान से मारा जाए।
\v 52 और बनी-इस्राईल अपने-अपने दल के मुताबिक़ अपनी-अपनी छावनी और अपने-अपने झंडे के पास अपने-अपने ख़ेमे डालें;
\s5
\v 53 ~लेकिन लावी शहादत के घर के चारों तरफ़ ख़ेमे लगाएँ, ताकि बनी-इस्राईल की जमा'अत पर ग़ज़ब न हो; और लावी ही शहादत के घर की निगाहबानी करें।”
\v 54 चुनाँचे बनी-इस्राईल ने जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था वैसा ही किया।
\s5
\c 2
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा कि
\v 2 ~"बनी-इस्राईल अपने-अपने ख़ेमे अपने-अपने झंडे के पास और अपने-अपने आबाई ख़ान्दान के 'अलम के साथ ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ के सामने और उसके चारों तरफ़ लगाएँ।
\s5
\v 3 और जो पश्चिम की तरफ़ जिधर से सूरज निकलता है, अपने ख़ेमे अपने दलों के मुताबिक़ लगाएँ वह यहूदाह की छावनी के झंडे के लोग हों, और अम्मीनदाब का बेटा नहसोन बनी यहूदाह का सरदार हो;
\v 4 ~और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे वह सब चौहत्तर हजार छ: सौ थे।
\s5
\v 5 ~और इनके क़रीब इश्कार के क़बीले के लोग ख़ेमे लगायें, और ज़ुग़र का बेटा नतनीएल बनी इश्कार का सरदार हो;
\v 6 ~और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे चव्वन हज़ार चार सौ थे।
\s5
\v 7 ~फिर ज़बूलून का क़बीला हो, और हेलोन का बेटा इलियाब बनी ज़बूलून का सरदार हो;
\v 8 ~और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे वह सत्तावन हज़ार चार सौ थे।
\s5
\v 9 इसलिए जितने यहूदाह की छावनी में अपने-अपने दल के मुताबिक़ गिने गए वह एक लाख छियासी हज़ार चार सौ थे। पहले यही रवाना हुआ करें।
\s5
\v 10 ~"और दख्खिन की तरफ़ अपने दलों के मुताबिक़ रूबिन की छावनी के झंडे के लोग हों, और शदियूर का बेटा इलीसूर बनी रूबिन का सरदार हो;
\v 11 और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे वह छियालीस हज़ार पाँच सौ थे।
\s5
\v 12 ~और इनके क़रीब शमा'ऊन के क़बीले के लोग ख़ेमे लगायें, और सूरीशद्दी का बेटा सलूमीएल बनी शमा'ऊन का सरदार हो;
\v 13 ~और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे वह उनसठ हज़ार तीन सौ थे।
\s5
\v 14 फिर जद्द का क़बीला हो, और र'ऊएल का बेटा इलियासफ़ बनी जद्द का सरदार हो;
\v 15 ~और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे वह पैन्तालीस हज़ार छ: सौ पचास थे।
\s5
\v 16 ~इसलिए जितने रूबिन की छावनी में अपने-अपने दल के मुताबिक़ गिने गए वह एक लाख इक्कावन हज़ार चार सौ पचास थे। रवानगी के वक़्त दूसरी नौबत इन लोगों की हो।
\s5
\v 17 ~"फिर ख़ेमा-ए-इजितमा'अ लावियों की छावनी के साथ जो और छावनियों के बीच में होगी आगे जाए और जिस तरह से लावी ख़ेमे लगाएँ उसी तरह से वह अपनी-अपनी जगह और अपने-अपने झंडे के पास-पास चलें।
\s5
\v 18 ~'और पश्चिम की तरफ़ अपने दलों के मुताबिक़ इफ़्राईम की छावनी के झंडे के लोग हों, और 'अम्मीहूद का बेटा इलीसमा' बनी इफ़्राईम का सरदार हो;
\v 19 ~और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे, वह चालीस हज़ार पाँच सौ थे।
\s5
\v 20 ~और इनके क़रीब मनस्सी का क़बीला हो, और फ़दाहसूर का बेटा जमलीएल बनी मनस्सी का सरदार हो;
\v 21 ~उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे बत्तीस हज़ार दो सौ थे।
\s5
\v 22 ~फिर बिनयमीन का क़बीला हो, और जिद'औनी का बेटा अबिदान बनी बिनयमीन का सरदार हो;
\v 23 ~और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे वह पैंतीस हज़ार चार सौ थे।
\s5
\v 24 ~इसलिए जितने इफ़्राईम की छावनी में अपने-अपने दल के मुताबिक़ गिने गए वह एक लाख आठ हज़ार एक सौ थे। रवाना के वक़्त तीसरी नौबत इन लोगों की हो।
\s5
\v 25 ~'और शिमाल की तरफ़ अपने दलों के मुताबिक़ दान की छावनी के झंडे के लोग हों और 'अम्मीशद्दी का बेटा अख़ी 'अज़र बनी दान का सरदार हो;
\v 26 ~और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे, वह बासठ हज़ार सात सौ थे।
\s5
\v 27 ~इनके क़रीब आशर के क़बीले के लोग ख़ेमे लगाएँ, और 'अकरान का बेटा फ़ज'ईएल बनी आशर का सरदार हो;
\v 28 ~और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे वह, इकतालीस हज़ार पाँच सौ थे।
\s5
\v 29 फिर नफ़्ताली का क़बीला हो, और 'एनान का बेटा अख़ीरा' बनी नफ़्ताली का सरदार हो;
\v 30 और उसके दल के लोग जो शुमार किये गए, वह तिरपन हज़ार चार सौ थे।
\s5
\v 31 ~फिर जितने दान की छावनी में गिने गए वह एक लाख सत्तावन हज़ार छ: सौ थे। यह लोग अपने-अपने झंडे के पास-पास होकर सब से पीछे रवाना हुआ करें।”
\s5
\v 32 ~बनी-इस्राईल में से जो लोग अपने आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ गिने गए वह यही हैं; और सब छावनियों के जितने लोग अपने-अपने दल के मुताबिक़ गिने गए वह छः लाख तीन हज़ार पाँच सौ पचास थे।
\v 33 ~लेकिन लावी जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था, बनी-इस्राईल के साथ गिने नहीं गए।
\s5
\v 34 ~इसलिए बनी-इस्राईल ने ऐसा ही किया और जो-जो हुक्म ख़ुदावन्द ने मूसा को दिया था उसी के मुताबिक़ वह अपने-अपने झंडे के पास और अपने आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़, अपने-अपने घराने के साथ ख़ेमे लगाते और रवाना होते थे।
\s5
\c 3
\p
\v 1 ~और जिस दिन ख़ुदावन्द ने कोह-ए-सीना पर मूसा से बातें कीं, तब हारून और मूसा के पास यह औलाद थी।
\v 2 और हारून के बेटों के नाम यह हैं: नदब जो पहलौठा था, और अबीहू और इली'अज़र और इतमर।
\s5
\v 3 ~हारून के बेटे जो कहानत के लिए मम्सूह हुए और जिनको उसने कहानत की ख़िदमत के लिए मख़्सूस किया था उनके नाम यही हैं।
\v 4 ~और नदब और अबीहू तो जब उन्होंने~दश्त-ए-सीना में ख़ुदावन्द के सामने ऊपरी आग पेश कीं तब ही ख़ुदावन्द के सामने मर गए, और वह बे-औलाद भी थे। और इली'अज़र और इतमर अपने बाप हारून के सामने कहानत की ख़िदमत को अन्जाम देते थे।
\s5
\v 5 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 6 ~"लावी के क़बीले को नज़दीक लाकर हारून काहिन के आगे हाज़िर कर ताकि वह उसकी ख़िदमत करें।
\s5
\v 7 और जो कुछ उसकी तरफ़ से और जमा'अत की तरफ़ से उनको सौंपा जाए वह सब की ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के आगे निगहबानी करें ताकि घर की ख़िदमत बजा लाएँ।
\v 8 ~और वह ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के सब सामान की और बनी-इस्राईल की सारी अमानत की हिफ़ाज़त करें ताकि घर की ख़िदमत बजा लाएँ।
\s5
\v 9 ~और तू लावियों को हारून और उसके बेटों के हाथ में सुपर्द कर; बनी-इस्राईल की तरफ़ से वह बिल्कुल उसे दे दिए गए हैं।
\v 10 और हारून और उसके बेटों को मुक़र्रर कर, और वह अपनी कहानत को महफ़ूज़ रख्खे और अगर कोई अजनबी नज़दीक आये तो वह जान से मारा जाए।"
\s5
\v 11 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;
\v 12 ~"देख, मैंने बनी-इस्राईल में से लावियों को उन सभों के बदले में ले लिया है जो इस्राईलियों में पहलौठी के बच्चे हैं, इसलिए लावी मेरे हों।
\v 13 ~क्यूँकि सब पहलौठे मेरे हैं, इसलिए कि जिस दिन मैंने मुल्क-ए-मिस्र में सब पहलौठों को मारा, उसी दिन मैंने बनी-इस्राईल के सब पहलौठों को, क्या इन्सान और क्या हैवान, अपने लिए पाक किया; इसलिए वह ज़रूर मेरे हों। मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
\s5
\v 14 ~फिर ख़ुदावन्द ने दश्त-ए-सीना में मूसा से कहा,
\v 15 ~"बनी लावी को उनके आबाई ख़ान्दानों और घरानों के मुताबिक़ शुमार कर, या'नी एक महीने और उससे ऊपर-ऊपर के हर लड़के को गिनना।"
\v 16 ~चुनाँचे मूसा ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ जो उसने उसे दिया, उनको गिना।
\s5
\v 17 ~और लावी के बेटों के नाम यह हैं : जैरसोन और क़िहात और मिरारी।
\v 18 ~जैरसोन के बेटों के नाम जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं : लिबनी और सिम'ई।
\v 19 और क़िहात के बेटों के नाम जिनसे उनके ख़ान्दान चले 'अमराम और इज़हार और हब्रून और 'उज़्ज़ीएल हैं।
\v 20 ~और मिरारी के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले, महली और मूशी हैं। लावियों के घराने उनके आबाई ख़ान्दानों के मुवाफ़िक़ यही हैं।
\s5
\v 21 ~और जैरसोन से लिबनियों और सिम'इयों के ख़ान्दान चले; यह जैरसोनियों के ख़ान्दान हैं।
\v 22 ~इनमें जितने फ़रज़न्द-ए-नरीना एक महीने और उससे ऊपर-ऊपर के थे वह सब गिने गए और उनका शुमार सात हज़ार पाँच सौ था।
\v 23 ~जैरसोनियों के ख़ान्दानों के आदमी घर के पीछे पश्चिम की तरफ़ अपने ख़ेमे लगाया करें।
\s5
\v 24 और लाएल का बेटा इलियासफ़, जैरसोनियों के आबाई ख़ान्दानों का सरदार हो।
\v 25 ~और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के जो सामान बनी जैरसोन की हिफ़ाज़त में सौंपे जाएँ वह यह हैं : घर और ख़ेमा, और उसका ग़िलाफ़, और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े का पर्दा,
\v 26 ~और घर और मज़बह के गिर्द के सहन के पर्दे, और सहन के दरवाज़े का पर्दा, और वह सब रस्सियाँ जो उसमें काम आती हैं।
\s5
\v 27 ~और क़िहात से 'अमरामियों और इज़हारियों और हबरूनियों और 'उज़्ज़ीएलियों के ख़ान्दान चले; ये~क़िहातियों के~ख़ान्दान हैं।
\v 28 ~उनके फ़र्ज़न्द-ए-नरीना एक महीने और उससे ऊपर-ऊपर के आठ हज़ार छ: सौ थे। हैकल की निगहबानी इनके ज़िम्मे थी।
\v 29 ~बनी क़िहात के ख़ान्दानों के आदमी घर की दख्खिनी सिम्त में अपने ख़ेमे डाला करें।
\s5
\v 30 और 'उज़्ज़ीएल का बेटा इलीसफ़न क़िहातियों के घरानों के आबाई खान्दान का सरदार हो।
\v 31 और सन्दूक़ और मेज़ और शमा'दान और दोनों मज़बहे और हैकल के बर्तन, जो 'इबादत के काम में आते हैं, और पर्दे और हैकल में बर्तन का सारा सामान, यह सब उनके ज़िम्मे हों।
\v 32 ~और हारून काहिन का बेटा इलि'अज़र लावियों के सरदारों का सरदार और हैकल के मुत्वल्लियों का नाज़िर हो।
\s5
\v 33 ~मिरारी से महलियों और मूशियों के ख़ान्दान चले; यह मिरारियों के ख़ान्दान हैं।
\v 34 ~इनमें जितने फ़रज़न्द-ए-नरीना एक महीने और उससे ऊपर-ऊपर के थे वह छः हज़ार दो सौ थे।
\v 35 ~और अबीख़ेल का बेटा सूरीएल मिरारियों के घरानों के आबाई ख़ान्दान का सरदार हो । यह लोग घर की उत्तरी सिम्त में अपने ख़ेमे डाला करें।
\s5
\v 36 और घर के तख़्तों और उसकी बेडों और सुतूनों और ~ख़ानों और उसके सब आलात, और उसकी ख़िदमत के सब लवाज़िम की मुहाफ़िज़त,
\v 37 ~और सहन के चारों तरफ़ के सुतूनों, और ख़ानों और मेख़ों और रस्सियों की निगरानी बनी मिरारी के ज़िम्मे हो।
\s5
\v 38 ~और घर के आगे पश्चिम की तरफ़ जिधर से सूरज निकलता है, या'नी ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के आगे, मूसा और हारून और उसके बेटे अपने ख़ेमे लगाया करें और बनी-इस्राईल के बदले हैकल की हिफ़ाज़त किया करें; और जो अजनबी शख़्स उसके नज़दीक आए वह जान से मारा जाए।
\v 39 ~इसलिए लावियों में से जितने एक महीने और उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र के थे उनको मूसा और हारून ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुवाफ़िक़ उनके घरानों के मुताबिक़ गिना, वह शुमार में बाईस हज़ार थे।
\s5
\v 40 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि "बनीइस्राईल के सब नरीना पहलौटे, एक महीने और उससे ऊपर-ऊपर के गिन ले और उनके नामों का शुमार लगा।
\v 41 ~और बनी-इस्राईल के सब पहलौठों के बदले लावियों को, और बनी-इस्राईल के चौपायों के सब पहलौठों के बदले लावियों के चौपायों को मेरे लिए ले। मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
\s5
\v 42 चुनाँचे मूसा ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ बनी-इस्राईल के सब पहलौठों को गिना।
\v 43 ~तब जितने नरीना पहलौठे एक महीने और उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र के गिने गए, वह नामों के शुमार के मुताबिक़ बाईस हज़ार दो सौ तिहतर थे।
\s5
\v 44 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;
\v 45 ~'बनी-इस्राईल के सब पहलौठों के बदले लावियों को, और उनके चौपायों के बदले लावियों के चौपायों को ले; और लावी मेरे हों, मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 46 ~और बनी-इस्राईल के पहलौठों में जो दो सौ तिहत्तर लावियों के शुमार से ज़्यादा हैं, उनके फ़िदिये के लिए
\v 47 तू हैकल की मिस्काल के हिसाब से हर शख़्स पाँच मिस्काल लेना (एक मिस्क़ाल बीस जीरह का होता है)।
\v 48 ~और इनके फ़िदिये का रुपया जो शुमार में ज़्यादा हैं तू हारून और उसके बेटों को देना।”
\v 49 ~तब जो उनसे जिनको लावियों ने छुड़ाया था, शुमार में ज़्यादा निकले थे उनके फ़िदिये का रुपया मूसा ने उनसे लिया।
\v 50 ~ये रुपया उसने बनी-इस्राईल के पहलौठों से लिया, इसलिए हैकल की मिस्काल के हिसाब से एक हज़ार तीन सौ पैंसठ मिस्क़ालें वसूल हुई।
\v 51 ~और मूसा ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ फ़िदिये का रुपया जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को फ़रमाया था, हारून और उसके बेटों को दिया।
\s5
\c 4
\p
\v 1 और ख़दावन्द ने मूसा और हारून से कहा कि;,
\v 2 ~"बनी लावी में से क़िहातियों को उनके घरानों और आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़,
\v 3 ~तीस बरस से लेकर पचास बरस की 'उम्र तक के जितने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में काम करने के लिए हैकल की ख़िदमत में शामिल हैं, उन सभों को गिनो।
\v 4 और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में पाकतरीन चीज़ों की निस्बत बनी क़िहात का यह काम होगा,
\s5
\v 5 कि जब लश्कर रवाना हो तो हारून और उसके बेटे आएँ और बीच के पर्दे को उतारें और उससे शहादत के सन्दूक़ को ढाँकें,
\v 6 ~और उस पर तुख़स की खालों का एक ग़िलाफ़ डालें, और उसके ऊपर बिल्कुल आसमानी रंग का कपड़ा बिछाएँ, और उसमें उसकी चोबें लगाएँ।
\s5
\v 7 और नज़्र की रोटी की मेज़ पर आसमानी रंग का कपड़ा बिछाकर, उसके ऊपर तबाक़ और चमचे और उँडेलने के कटोरे और प्याले रख्खें; और दाइमी रोटी भी उस पर हो।
\v 8 ~फिर वह उन पर सुर्ख़ रंग का कपड़ा बिछाएँ और उसे तुख़स की खालों के एक ग़िलाफ़ से ढाँकें, और मेज़ में उसकी चोबें लगा दें।
\s5
\v 9 ~फिर आसमानी रंग का कपड़ा लेकर उससे रोशनी देने वाले शमा'दान को, और उसके चराग़ों और गुलगीरों और गुलदानों और तेल के सब बर्तनों को, जो शमा'दान के लिए काम में आते हैं ढाँकें;
\v 10 ~और उसको और उसके सब बर्तनों को तुख़स की खालों के एक ग़िलाफ़ के अन्दर रख कर उस ग़िलाफ़ को चौखटे पर धर दें।
\v 11 ~और ज़रीन मज़बह पर आसमानी रंग का कपड़ा बिछाएँ और उसे तुख़स की खालों के एक ग़िलाफ़ से ढाँकें और उसकी चोबें उसमें लगाएँ।
\s5
\v 12 ~और सब बर्तनों को जो हैकल की ख़िदमत के काम में आते हैं लेकर उनको आसमानी रंग के कपड़े में लपेटें और उनको तुख़स की खालों के एक ग़िलाफ़ से ढाँक कर चौखटे पर धरें।
\v 13 ~फिर वह मज़बह पर से सब राख को उठाकर उसके ऊपर अर्गवानी रंग का कपड़ा बिछाएँ।
\v 14 उसके सब बर्तन जिनसे उसकी ख़िदमत करते हैं जैसे अंगीठियाँ और सेख़ें और बेल्चे और कटोरे, ग़र्ज़ मज़बह के सब बर्तन उस पर रख्खें, और उस पर तुख़स की खालों का एक ग़िलाफ़ बिछाएँ और मज़बह में चोबें लगा दें।
\s5
\v 15 ~और जब हारून और उसके बेटे हैकल की और हैकल के सब अस्बाब को ढाँक चुकें, तब ख़ेमागाह के रवानगी के वक़्त बनी क़िहात उसके उठाने के लिए आएँ लेकिन वह हैकल को न छुएँ, ऐसा न हो कि वह मर जाएँ। ख़ेमा-ए-इजितमा'अ की यही चीज़ें बनी क़िहात के उठाने की हैं।
\v 16 "और रोशनी के तेल, और ख़ुशबूदार ख़ुशबू और दाइमी नज़्र की क़ुर्बानी और मसह करने के तेल, और सारे घर, और उसके लवाज़िम और हैकल और उसके सामान की निगहबानी हारून काहिन के बेटे इली'अज़र के ज़िम्मे हो।”
\s5
\v 17 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा कि;
\v 18 ~"तुम लावियों में से क़िहातियों के क़बीले के ख़ान्दानों को मुनक़ता' होने न देना;
\v 19 ~बल्कि इस मक़सूद से कि जब वह पाकतरीन चीज़ों के पास आएँ तो ज़िन्दा रहें, और मर न जाएँ, तुम उनके लिए ऐसा करना कि हारून और उसके बेटे अन्दर आ कर उनमें से एक-एक का काम और बोझ मुक़र्रर कर दें।
\v 20 ~लेकिन वह हैकल को देखने की ख़ातिर दम भर के लिए भी अन्दर न आने पाएँ, ऐसा न हो कि वह मर जाएँ।”
\s5
\v 21 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 22 ~'बनी जैरसोन में से भी उनके आबाई ख़ान्दानों और घरानों के मुताबिक़,
\v 23 ~तीस बरस से लेकर पचास बरस तक की 'उम्र के जितने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में काम करने के लिए हैकल की ख़िदमत के वक़्त हाज़िर रहते हैं उन सभों को गिन।
\s5
\v 24 ~जैरसोनियों के ख़ान्दानों का काम ख़िदमत करने और बोझ उठाने का है।
\v 25 वह घर के पर्दों को, और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ और उसके ग़िलाफ़ को, और उसके ऊपर के ग़िलाफ़ को जो तुख़स की खालों का है, और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े के पर्दे को,
\v 26 ~और घर और मज़बह के चारों तरफ़ के सहन के पर्दों को, और सहन के दरवाज़े के पर्दे को और उनकी रस्सियों को, और ख़िदमत के सब बर्तनों को उठाया करें; और इन चीज़ों से जो-जो काम लिया जाता है वह भी यही लोग किया करें।
\s5
\v 27 ~जैरसोनियों की औलाद का ख़िदमत करने और बोझ उठाने का सारा काम हारून और उसके बेटों के हुक्म के मुताबिक़ हो, और तुम उनमें से हर एक का बोझ मुक़र्रर करके उनके सुपुर्द करना।
\v 28 ~ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में बनी जैरसोन के ख़ान्दानों का यही काम रहे और वह हारून काहिन के बेटे इतमर के मातहत होकर ख़िदमत करें।
\s5
\v 29 ~'और बनी मिरारी में से उनके आबाई ख़ान्दानों और घरानों के मुताबिक़,
\v 30 ~तीस बरस से लेकर पचास बरस तक की 'उम्र के जितने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में काम करने के लिए हैकल की ख़िदमत के वक़्त हाज़िर रहते हैं उन सभों को गिन।
\s5
\v 31 ~और ख़ेमा-ए- इजितमा'अ में जिन चीज़ों के उठाने की ख़िदमत उनके ज़िम्मे हो वह यह हैं : घर के तख़्ते और उसके बेंडे, और सुतून और सुतूनों के ख़ाने,
\v 32 ~और चारों तरफ़ के सहन के सुतून और उनके सब आलात और सारे सामान; और जो चीज़ें उनके उठाने के लिए तुम मुक़र्रर करो उनमें से एक-एक का नाम लेकर उसे उनके सुपुर्द करो।
\s5
\v 33 ~बनी मिरारी के ख़ान्दानों को जो कुछ ख़िदमत ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ में हारून काहिन के बेटे इतमर के मातहत करना है वह यही है।”
\s5
\v 34 ~चुनाँचे मूसा और हारून और जमा'अत के सरदारों ने क़िहातियों की औलाद में से उनके घरानों और आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़,
\v 35 ~तीस बरस की 'उम्र से लेकर पचास बरस की 'उम्र तक के जितने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में काम करने के लिए हैकल की ख़िदमत में शामिल थे, उन सभों की गिन लिया;
\v 36 और उनमें से जितने अपने घरानों के मुवाफ़िक़ गिने गए वह दो हज़ार सात सौ पचास थे।
\s5
\v 37 ~क़िहातियों के ख़ान्दानों में से जितने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में ख़िदमत करते थे उन सभों का शुमार इतना ही है; जो हुक्म ख़ुदावन्द ने मूसा के ज़रिए' दिया था उसके मुताबिक़ मूसा और हारून ने उनको गिना।
\s5
\v 38 ~और बनी जैरसोन में से अपने घरानों और आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़,
\v 39 ~तीस बरस से लेकर पचास बरस की 'उम्र तक के जितने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में काम करने के लिए हैकल की ख़िदमत में शामिल थे, वह सब गिने गए;
\v 40 और जितने अपने घरानों और आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ गिने गए वह दो हज़ार छ: सौ तीस थे।
\s5
\v 41 ~इसलिए बनी जैरसोन के ख़ान्दानों में से जितने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में ख़िदमत करते थे और जिनको मूसा और हारून ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ शुमार किया वह इतने ही थे।
\s5
\v 42 ~और बनी मिरारी के घरानों में से अपने घरानों और आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़,
\v 43 ~तीस बरस से लेकर पचास बरस की 'उम्र तक के जितने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में काम करने के लिए हैकल की ख़िदमत में शामिल थे,
\v 44 ~वह सब गिने गए; और जितने उनमें से अपने घरानों के मुवाफ़िक़ गिने गए वह तीन हज़ार दो सौ थे।
\s5
\v 45 ~इसलिए ख़ुदावन्द के उस हुक्म के मुताबिक़ जो उसने मूसा के ज़रिए' दिया था, जितनों को मूसा और हारून ने बनी मिरारी के ख़ान्दानों में से गिना वह यही हैं।
\s5
\v 46 ~अलग़रज़ लावियों में से जिनको मूसा और हारून और इस्राईल के सरदारों ने उनके घरानों और आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ गिना,
\v 47 ~या'नी तीस बरस से लेकर पचास बरस की 'उम्र तक के जितने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में ख़िदमत करने और बोझ उठाने के काम के लिए हाज़िर होते थे,
\v 48 ~उन सभों का शुमार आठ हज़ार पाँच सौ अस्सी था।
\s5
\v 49 ~वह ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ मूसा के ज़रिए' अपनी अपनी ख़िदमत और बोझ उठाने के काम के मुताबिक़ गिने गए। यूँ वह मूसा के ज़रिए' जैसा ख़ुदावन्द ने उसको हुक्म दिया था गिने गए।
\s5
\c 5
\p
\v 1 फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;
\v 2 ~"बनी-इस्राईल को हुक्म दे कि वह हर कोढ़ी को, और जिरयान के मरीज़ को, और जो मुर्दे की वजह से से नापाक हो, उसको लश्करगाह से बाहर कर दें;
\v 3 ~ऐसों को चाहे वह मर्द हों या 'औरत, तुम निकाल कर उनको लश्करगाह के बाहर रख्खो ताकि वह उनकी लश्करगाह को जिसके बीच मैं रहता हूँ, नापाक न करें।"
\v 4 ~चुनाँचे बनी-इस्राईल ने ऐसा ही किया और उनको निकाल कर लश्करगाह के बाहर रख्खा; जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था वैसा ही बनी-इस्राईल ने किया।
\s5
\v 5 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;
\v 6 ~'बनी-इस्राईल से कह कि अगर कोई मर्द या 'औरत ख़ुदावन्द की हुक्म उदूली करके कोई ऐसा गुनाह करे जो आदमी करते हैं और क़ुसूरवार हो जाए,
\v 7 ~तो जो गुनाह उसने किया है वह उसका इक़रार करे, और अपनी तक़सीर के मु'आवज़े में पूरा दाम और उसमें पाँचवाँ हिस्सा और मिलकर उस शख़्स को दे जिसका उसने क़ुसूर किया है।
\s5
\v 8 ~लेकिन अगर उस शख़्स का कोई रिश्तेदार न हो जिसे~उस तक़सीर का मु'आवज़ा दिया जाए, तो तक़सीर का जो मु'आवज़ा ख़ुदावन्द को दिया जाए वह काहिन का हो 'अलावा कफ़्फ़ारे के उस मेंढे के जिससे उसका कफ़्फ़ारा दिया जाए।
\v 9 ~और जितनी पाक चीज़ें बनीइस्राईल उठाने की क़ुर्बानी के तौर पर काहिन के पास लाएँ वह उसी की हों।
\v 10 ~और हर शख़्स की पाक की हुई चीज़ें उसकी हों और जो चीज़ कोई शख़्स काहिन को दे वह भी उसी की हो।"
\s5
\v 11 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि "बनीइस्राईल से कह कि
\v 12 ~अगर किसी की बीवी गुमराह हो कर उससे बेवफ़ाई करे,
\s5
\v 13 ~और कोई दूसरा आदमी उस 'औरत के साथ मुबाश्रत करे और उसके शौहर को मा'लूम न हो बल्कि यह उससे पोशीदा रहे, और वह नापाक हो गई हो लेकिन न तो कोई शाहिद ही और न वह 'ऐन फ़ेल के वक़्त पकड़ी गई हो।
\v 14 ~और उसके शौहर के दिल में ग़ैरत आए: और वह अपनी बीवी से ग़ैरत खाने लगे हालाँकि वह नापाक हुई हो, या उसके शौहर के दिल में ग़ैरत आए और वह अपनी बीवी से ग़ैरत खाने लगे हालाँके वह नापाक नहीं हुई।
\s5
\v 15 ~तो वह शख़्स अपनी बीवी को काहिन के पास हाज़िर करे, और उस 'औरत के चढ़ावे के लिए ऐफ़ा के दस्वें हिस्से के बराबर जौ का आटा लाए लेकिन उस पर न तेल डाले न लुबान रख्खे; क्यूँकि यह नज़्र की क़ुर्बानी ग़ैरत की है, या'नी यह यादगारी की नज़्र की क़ुर्बानी है जिससे गुनाह याद दिलाया जाता है।
\s5
\v 16 ~"तब काहिन उस 'औरत की नज़दीक लाकर ख़ुदावन्द के सामने खड़ी करे,
\v 17 ~और काहिन मिट्टी के एक बासन में पाक पानी ले और घर के फ़र्श की गर्द लेकर उस पानी में डाले।
\s5
\v 18 ~फिर काहिन उस 'औरत को ख़ुदावन्द के सामने खड़ी करके उसके सिर के बाल खुलवा दे, और यादगारी की नज़्र की क़ुर्बानी को जो ग़ैरत की नज़्र की क़ुर्बानी है उसके हाथों पर धरे, और काहिन अपने हाथ में उस कड़वे पानी को ले जो ला'नत को लाता है।
\v 19 ~फिर काहिन उस 'औरत को क़सम खिला कर कहे कि अगर किसी शख़्स ने तुझसे सुहबत नहीं की है और तू अपने शौहर की होती हुई नापाकी की तरफ़ माइल नहीं हुई, तो तू इस कड़वे पानी की तासीर से जो ला'नत लाता है बची रह।
\s5
\v 20 ~लेकिन अगर तू अपने शौहर की होती हुई गुमराह होकर नापाक हो गई है और तेरे शौहर के 'अलावा किसी दूसरे शख़्स ने तुझ से सुहबत की है,
\v 21 ~तो काहिन उस 'औरत को ला'नत की क़सम खिला कर उससे कहे, कि ख़ुदावन्द तुझे तेरी क़ौम में तेरी रान को सड़ा कर और तेरे पेट को फुला कर ला'नत और फटकार का निशाना बनाए;
\v 22 ~और यह पानी जो ला'नत लाता है तेरी अंतड़ियों में जा कर तेरे पेट को फुलाए और तेरी रान को सड़ाए। और 'औरत आमीन, आमीन कहे।
\s5
\v 23 ~"फिर काहिन उन ला'नतों को किसी किताब में लिख कर उनको उसी कड़वे पानी में धो डाले।
\s5
\v 24 ~और वह कड़वा पानी जो ला'नत को लाता है उस 'औरत को पिलाए, और वह पानी जो ला'नत को लाता है उस 'औरत के पेट में जा कर कड़वा हो जाएगा।
\v 25 ~और काहिन उस 'औरत के हाथ से ग़ैरत की नज़्र की क़ुर्बानी को लेकर ख़ुदावन्द के सामने उसको हिलाए, और उसे मज़बह के पास लाए,
\v 26 ~फिर काहिन उस नज़्र की क़ुर्बानी में से उसकी यादगारी के तौर पर एक मुट्ठी लेकर उसे मज़बह पर जलाए, बा'द उसके वह पानी उस 'औरत को पिलाए।
\s5
\v 27 ~और जब वह उसे वह पानी पिला चुकेगा, तो ऐसा होगा कि अगर वह नापाक हुई और उसने अपने शौहर से बेवफ़ाई की, तो वह पानी जो ला'नत को लाता है उसके पेट में जा कर कड़वा हो जाएगा और उसका पेट फूल जाएगा और उसकी रान सड़ जाएगी; और वह 'औरत अपनी क़ौम में ला'नत का निशाना बनेगी।
\v 28 ~पर अगर वह नापाक नहीं हुई बल्कि पाक है, तो बे-इल्ज़ाम ठहरेगी और उससे औलाद होगी।
\s5
\v 29 ~"ग़ैरत के बारे में यही शरा' है, चाहे 'औरत अपने शौहर की होती हुई गुमराह होकर नापाक हो जाए या मर्द पर ग़ैरत सवार हो,
\v 30 ~और वह अपनी बीवी से ग़ैरत खाने लगे; ऐसे हाल में वह उस 'औरत को ख़ुदावन्द के आगे खड़ी करे और काहिन उस पर यह सारी शरी'अत 'अमल में लाए।
\s5
\v 31 ~तब मर्द गुनाह से बरी ठहरेगा और उस 'औरत का गुनाह उसी के सिर लगेगा।"
\s5
\c 6
\p
\v 1 फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;
\v 2 ~'बनी-इस्राईल से कह कि जब कोई मर्द या 'औरत नज़ीर की मिन्नत, या'नी अपने आप को ख़ुदावन्द के लिए अलग रखने की ख़ास मिन्नत माने,
\v 3 ~तो वह मय और शराब से परहेज़ करे, और मय का या शराब का सिरका न पिए और न अंगूर का रस पिए और न ताज़ा या ख़ुश्क अंगूर खाए।
\v 4 और अपनी नज़ारत के तमाम दिनों में बीज से लेकर छिल्के तक जो कुछ अंगूर के दरख़्त में पैदा हो उसे न खाए।
\s5
\v 5 ~'और उसकी नज़ारत की मिन्नत के दिनों में उसके सिर पर उस्तरा न फेरा जाए; जब तक वह मुद्दत जिसके लिए वह ख़ुदावन्द का नज़ीर बना है पूरी न हो, तब तक वह पाक रहे और अपने सिर के बालों की लटों को बढ़ने दे।
\s5
\v 6 ~उन तमाम दिनों में जब वह ख़ुदावन्द का नज़ीर हो वह किसी लाश के नज़दीक न जाए।
\v 7 ~वह अपने बाप या माँ या भाई या बहन की ख़ातिर भी जब वह मरें, अपने आप को नजिस न करे। क्यूँकि उसकी नज़ारत जो ख़ुदा के लिए है, उसके सिर पर है।
\v 8 वह अपनी नज़ारत की पूरी मुद्दत तक ख़ुदावन्द के लिए पाक है।
\s5
\v 9 ~"और अगर कोई आदमी नागहान उसके पास ही मर जाए और उसकी नज़ारत के सिर को नापाक कर दे, तो वह अपने पाक होने के दिन अपना सिर मुण्डवाए, या'नी सातवें दिन सिर मुण्डवाए।
\s5
\v 10 और आठवें दिन दो कुमरियाँ या कबूतर के दो बच्चे ख़ेमा-ए- इजितमा'अ के दरवाज़े पर काहिन के पास लाए।
\v 11 ~और काहिन एक को ख़ता की क़ुर्बानी के लिए और दूसरे को सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए पेश करे और उसके लिए कफ़्फ़ारा दे, क्यूँकि वह मुर्दे की वजह से से गुनहगार ठहरा है; और उसके सिर को उसी दिन पाक करे।
\s5
\v 12 ~फिर वह अपनी नज़ारत की मुद्दत को ख़ुदावन्द के लिए पाक करे, और एक यकसाला नर बर्रा जुर्म की क़ुर्बानी के लिए लाए; लेकिन जो दिन गुज़र गए हैं वह गिने नहीं जाएँगे क्यूँकि उसकी नज़ारत* नापाक हो गई थी।
\s5
\v 13 ~'और नज़ीर के लिए शरा' यह है, कि जब उसकी नज़ारत के दिन पूरे हो जाएँ तो वह ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर हाज़िर किया जाए।
\v 14 और वह ख़ुदावन्द के सामने अपना चढ़ावा चढ़ाए, या'नी सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बे-'ऐब यक-साला नर बर्रा, और ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बे-'ऐब यक-साला मादा बर्रा, और सलामती की क़ुर्बानी के लिए एक बे-'ऐब मेंढा,
\v 15 ~और बेख़मीरी रोटियों की एक टोकरी, और तेल मिले हुए मैदे के कुल्चे, और तेल चुपड़ी हुई बे-ख़मीरी रोटियाँ, और उनकी नज़्र की कुर्बानी, और उनके तपावन लाए।
\s5
\v 16 ~और काहिन उनको ख़ुदावन्द के सामने ला कर उसकी तरफ़ से ख़ता की क़ुर्बानी और सोख़्तनी क़ुर्बानी पेश करे।
\v 17 ~और उस मेंढे को बेख़मीरी रोटियों की टोकरी के साथ ख़ुदावन्द के सामने सलामती की क़ुर्बानी के तौर पर पेश करे, और काहिन उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और उसका तपावन भी अदा करे।
\s5
\v 18 ~फिर वह नज़ीर ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर अपनी नज़ारत के बाल मुण्डवाए, और नज़ारत के बालों को उस आग में डाल दे जो सलामती की क़ुर्बानी के नीचे होगी।
\s5
\v 19 ~और जब नज़ीर अपनी नज़ारत के बाल मुण्डवा चुके, तो काहिन उस मेंढे का उबाला हुआ शाना और एक बे-ख़मीरी रोटी टोकरी में से और एक बे-ख़मीरी कुल्चा लेकर उस नज़ीर के हाथों पर उनको धरे।
\v 20 ~फिर काहिन उनको हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने हिलाए। हिलाने की क़ुर्बानी के सीने और उठाने की क़ुर्बानी के शाने के साथ यह भी काहिन के लिए पाक हैं। इसके बा'द नज़ीर मय पी सकेगा।
\s5
\v 21 ~"नज़ीर जो मिन्नत माने और जो चढ़ावा अपनी नज़ारत के लिए ख़ुदावन्द के सामने लाये 'अलावा उसके जिसका उसे मक़दूर हो उन सभों के बारे में शरा' यह है। जैसी मिन्नत उसने मानी हो वैसा ही उसको नज़ारत की शरा' के मुताबिक़ 'अमल करना पड़ेगा।"
\s5
\v 22 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;
\v 23 ~"हारून और उसके बेटों से कह कि तुम बनी-इस्राईल को इस तरह दु'आ दिया करना। तुम उनसे कहना :
\v 24 ~'ख़ुदावन्द तुझे बरकत दे और तुझे महफ़ूज़ रख्खें।
\s5
\v 25 ~"ख़ुदावन्द अपना चेहरा तुझ पर जलवागर फ़रमाए, और तुझ पर मेहरबान रहे।
\v 26 ~"ख़ुदावन्द अपना चेहरा तेरी तरफ़ मुतवज्जिह करे, और तुझे सलामती बख़्शे।
\v 27 ~"इस तरह वह मेरे नाम को बनी-इस्राईल पर रख्खें और मैं उनको बरकत बख़्शूँगा।"
\s5
\c 7
\p
\v 1 और जिस दिन मूसा घर को खड़ा करने से फ़ारिग़ हुआ और उसको और उसके सब सामान को मसह और पाक किया, और मज़बह और उसके सब मसह को भी मसह और पाक किया;
\v 2 ~तो इस्राईली रईस जो अपने आबाई ख़ान्दानों के सरदार और क़बीलों के रईस और शुमार किए हुओं~के ऊपर मुक़र्रर थे नज़राना लाए।
\v 3 वह अपना हदिया छ: पर्देदार गाड़ियाँ और बारह बैल ख़ुदावन्द के सामने लाये दो-दो रईसों की तरफ़ से एक-एक गाड़ी और हर रईस की तरफ़ से एक बैल था, इनको उन्होंने घर के सामने हाज़िर किया|
\s5
\v 4 ~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;
\v 5 ~"तू इनको उनसे ले ताकि वह ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के काम में आएँ, और तू लावियों में हर शख़्स की ख़िदमत के मुताबिक़ उनको तक़सीम कर दे।”
\s5
\v 6 ~तब मूसा ने वह गाड़ियाँ और बैल लेकर उनको लावियों को दे दिया।
\v 7 ~बनी जैरसोन को उसने उनकी ख़िदमत के लिहाज़ से दो गाड़ियाँ और चार बैल दिए।
\v 8 और चार गाड़ियाँ और आठ बैल उसने बनी मिरारी को उनकी ख़िदमत के लिहाज़ से हारून काहिन के बेटे इतमर के माताहत करके दिए।
\s5
\v 9 ~लेकिन बनी क़िहात को उसने कोई गाड़ी नहीं दी, क्यूँकि उनके ज़िम्में हैकल की ख़िदमत थी; वह उसे अपने कन्धों पर उठाते થે
\s5
\v 10 और जिस दिन मज़बह मसह किया गया उस दिन वह रईस उसकी तक़दीस के लिए हदिये लाए, और अपने हदियों को वह रईस मज़बह के आगे ले जाने लगे।
\v 11 ~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "मज़बह की~तक़दीस~के लिए एक-एक रईस एक-एक दिन अपना हदिया पेश करे।"
\s5
\v 12 ~इसलिए पहले दिन यहूदाह के क़बीले में से 'अम्मीनदाब के बेटे नहसोन ने अपना हदिया पेश करा।
\v 13 ~और उसका हदिया यह था : हैकल की मिस्क़ाल के हिसाब से एक सौ तीस~मिस्क़ाल~चाँदी का एक तबाक़, और सत्तर~मिस्क़ाल~चाँदी का एक कटोरा, उन~दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;
\v 14 ~दस~मिस्क़ाल~सोने का एक चम्मच, जो ख़ुशबू से भरा था;
\s5
\v 15 ~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा,
\v 16 ~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;
\v 17 ~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह 'अमीनदाब के बेटे नहसोन का हदिया था।
\s5
\v 18 ~दूसरे दिन ज़ुग़र के बेटे नतनीएल ने जो इश्कार के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।
\v 19 और उसका हदिया यह था : हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस~मिस्क़ाल~चाँदी का एक तबाक़, और~सत्तर~मिस्क़ाल~चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;
\s5
\v 20 ~दस~मिस्क़ाल~सोने का एक चम्मच, जो ख़ुशबू से भरा था;
\v 21 ~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;
\v 22 ~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;
\v 23 ~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह ज़ुग़र के बेटे नतनीएल का हदिया था।
\s5
\v 24 और तीसरे दिन हेलोन के बेटे इलियाब ने जो ज़बूलून के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।
\v 25 और उसका हदिया यह था : हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़, और~सत्तर~मिस्क़ाल~चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;
\v 26 दस मिस्क़ाल सोने का एक चम्मच, जो ख़ुशबू से भरा था;
\s5
\v 27 ~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;
\v 28 ~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;
\v 29 ~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह हेलोन के बेटे इलियाब का हदिया था।
\s5
\v 30 ~चौथे दिन शदियूर के बेटे इलीसूर ने जो रूबिन के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।
\v 31 ~और उसका हदिया यह था: हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़, और सत्तर मिस्क़ाल चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;
\v 32 ~दस~मिस्क़ाल~सोने का एक चम्मच, जो ख़ुशबू से भरा था;
\s5
\v 33 सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;
\v 34 ~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;
\v 35 और सलामती की क़ुर्बानी लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह शदियूर के बेटे इलीसूर का हदिया था।
\s5
\v 36 और पाँचवे दिन सूरीशद्दी के बेटे सलूमीएल ने जो शमा'ऊन के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।
\v 37 और उसका हदिया यह था : हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़ और सत्तर मिस्क़ाल चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;
\v 38 दस मिस्क़ाल सोने का एक चम्मच, जो~ख़ुशबू~से भरा था;
\s5
\v 39 ~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;
\v 40 ~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;
\v 41 ~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल पाँच मेंढे पाँच बकरे पाँच नर यक-साला बर्रे। यह सूरीशद्दी के बेटे सलूमीएल का हदिया था।
\s5
\v 42 ~और छटे दिन द'ऊएल के बेटे इलियासफ़ ने जो जद्द के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।
\v 43 और उसका हदिया यह था: हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़, और सत्तर मिस्क़ाल चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;
\v 44 दस मिस्क़ाल सोने का एक चम्मच, जो~ख़ुशबू~से भरा था;
\s5
\v 45 सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;
\v 46 ~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;
\v 47 ~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढ़े, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह द'ऊएल के बेटे इलियासफ़ का हदिया था।
\s5
\v 48 और सातवें दिन 'अम्मीहूद के बेटे इलीसमा' ने जो इफ़्राईम के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।
\v 49 ~और उसका हदिया यह था: हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़, और सत्तर मिस्क़ाल चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;
\v 50 दस मिस्क़ाल सोने का एक चम्मच, जो~ख़ुशबू~से भरा था;
\s5
\v 51 ~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;
\v 52 ~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;
\v 53 ~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह 'अम्मीहूद के बेटे इलीसमा' का हदिया था।
\s5
\v 54 और आठवें दिन फ़दाहसूर के बेटे जमलीएल ने जो मनस्सी के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।
\v 55 ~और उसका~हदिया यह था : हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़, और सत्तर मिस्क़ाल चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;
\v 56 दस मिस्क़ाल सोने का एक चम्मच, जो~ख़ुशबू~से भरा था;
\s5
\v 57 ~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा,
\v 58 ~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;
\v 59 ~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह फ़दाहसूर के बेटे जमलीएल का हदिया था।
\s5
\v 60 ~और नवें दिन जिद'औनी के बेटे अबिदान ने जो बिनयमीन के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।
\v 61 ~और उसका हदिया यह था: हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़, और~सत्तर मिस्क़ाल चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;
\v 62 दस मिस्क़ाल सोने का एक चम्मच जो~ख़ुशबू~से भरा था;
\s5
\v 63 सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;
\v 64 ~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;
\v 65 ~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह जिद'औनी के बेटे अबिदान का हदिया था।
\s5
\v 66 और दसवें दिन 'अम्मीशद्दी के बेटे अख़ी'अज़र ने जो दान के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।
\v 67 ~और उसका हदिया यह था: हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़, और सत्तर मिस्क़ाल चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;
\v 68 दस मिस्क़ाल सोने का एक चम्मच, जो~ख़ुशबू~से भरा था;
\s5
\v 69 ~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;
\v 70 ~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;
\v 71 ~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह 'अम्मीशद्दी के बेटे अख़ी'अज़र का हदिया~था।
\s5
\v 72 और ग्यारहवें दिन 'अकरान के बेटे फ़ज'ईएल ने जो आशर के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।
\v 73 ~और उसका हदिया यह था: हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़, और सत्तर मिस्क़ाल चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;
\v 74 दस मिस्क़ाल चाँदी का एक चम्मच, जो~ख़ुशबू~से भरा था;
\s5
\v 75 ~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;
\v 76 ~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;
\v 77 और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह 'अकरान के बेटे फ़ज'ईएल का हदिया था।
\s5
\v 78 ~और बारहवें दिन 'एनान के बेटे अख़ीरा' ने जो बनी नफ़्ताली के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।
\v 79 और उसका हदिया यह था : हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़, और सत्तर मिस्क़ाल चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;
\v 80 दस मिस्क़ाल सोने का एक चम्मच, जो~ख़ुशबू~से भरा था;
\s5
\v 81 ~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक~बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;
\v 82 ~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;
\v 83 ~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यकसाला बर्रे। यह 'एनान के बेटे अख़ीरा' का हदिया था।
\s5
\v 84 मज़बह के मम्सूह होने के दिन जो हदिये उसकी तक़दीस के लिए इस्राईली रईसों की तरफ़ से पेश करे गए वह यही थे : या'नी चाँदी के बारह तबाक़, चाँदी के बारह कटोरे, सोने के बारह चम्मच।
\v 85 चाँदी का हर तबाक़ वज़न में एक सौ तीस मिस्क़ाल और हर एक कटोरा सत्तर मिस्क़ाल का था। इन बर्तनों की सारी~चाँदी~हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से दो हज़ार चार सौ~मिस्क़ाल~थी।
\v 86 ख़ुशबू से भरे हुए सोने के बारह चम्मच जो हैकल की~मिस्क़ाल~की तौल के मुताबिक़ वज़न में दस-दस मिस्क़ाल के थे,~इन~चम्मचों का सारा सोना एक सौ बीस मिस्क़ाल था। सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए कुल बारह बछड़े, बारह मेंढे, बारह नर यक-साला बर्रे अपनी-अपनी नज़्र की क़ुर्बानी के साथ थे; और ख़ता की क़ुर्बानी के लिए बारह बकरे थे;
\s5
\v 87 ~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए कुल बारह बछड़े, बारह मेंढे, बारह नर यक-साला बर्रे अपनी-अपनी नज़्र की क़ुर्बानी के साथ थे; और ख़ता की क़ुर्बानी के लिए बारह बकरे थे;
\v 88 और सलामती की क़ुर्बानी के लिए कुल चौबीस बैल, साठ मेंढ़े, साठ बकरे, साठ नर यक-साला बर्रे थे। मज़बह की तक़दीस के लिए जब वह मम्सूह हुआ इतना हदिया पेश करा गया।
\s5
\v 89 ~और जब मूसा ख़ुदा से बातें करने को ख़ेमा-ए- इजितमा'अ में गया, तो उसने सरपोश पर से जो शहादत के सन्दूक़ के ऊपर था, दोनों करूबियों के बीच से वह आवाज़ सुनी जो उससे मुख़ातिब थी; और उसने उससे बातें की।
\s5
\c 8
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;
\v 2 "हारून से कह, जब तू चराग़ों को रोशन करे तो सातों चराग़ों की रोशनी शमा'दान के सामने हो।"
\s5
\v 3 चुनाँचे हारून ने ऐसा ही किया, उसने चराग़ों को इस तरह जलाया कि शमा'दान के सामने रोशनी पड़े, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था।
\v 4 ~और शमा'दान की बनावट ऐसी थी कि वह पाये से लेकर फूलों तक गढ़े हुए सोने का बना हुआ था। जो नमूना ख़ुदावन्द ने मूसा को दिखाया उसी के मुवाफ़िक उसने शमा'दान को बनाया।
\s5
\v 5 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि
\v 6 ~"लावियों को बनी-इस्राईल से अलग करके उनको पाक कर।
\s5
\v 7 और उनको पाक करने के लिए उनके साथ यह करना, कि ख़ता का पानी लेकर उन पर छिड़कना; फिर वह अपने सारे जिस्म पर उस्तरा फिरवाएँ, और अपने कपड़े धोएँ, और अपने को साफ़ करें।
\v 8 ~तब वह एक बछड़ा और उसके साथ की नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा लें, और तू ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक दूसरा बछड़ा भी लेना।
\s5
\v 9 ~और तू लावियों को ख़ेमा-ए- इजितमा'अ के आगे हाज़िर करना और बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत को जमा' करना।
\v 10 ~फिर लावियों को ख़ुदावन्द के आगे लाना, तब बनी-इस्राईल अपने-अपने हाथ लावियों पर रख्खें।
\v 11 और हारून लावियों की बनी-इस्राईल की तरफ़ से हिलाने की क़ुर्बानी के लिए ख़ुदावन्द के सामने पेश करे, ताकि वह ख़ुदावन्द~की ख़िदमत करने पर रहें।
\s5
\v 12 ~फिर लावी अपने-अपने हाथ बछड़ों के सिरों पर रख्खें, और तू एक को ख़ता की क़ुर्बानी और दूसरे को सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए ख़ुदावन्द के सामने पेश करना, ताकि लावियों के वास्ते कफ़्फ़ारा दिया जाए।
\v 13 ~फिर तू लावियों को हारून और उसके बेटों के आगे खड़ा करना और उनको हिलाने की क़ुर्बानी के लिए ख़ुदावन्द के सामने पेश करना।
\s5
\v 14 ~"यूँ तू लावियों को बनी-इस्राईल से अलग करना और लावी मेरे ही ठहरेंगे।
\v 15 ~इसके बा'द लावी ख़ेमा-ए-इजितमा'अ की ख़िदमत के लिए अन्दर आया करें, इसलिए तू उनको पाक कर और हिलाने की क़ुर्बानी के लिए उनको पेश करना।
\s5
\v 16 ~इसलिए कि वह सब बनी-इस्राईल में से मुझे बिल्कुल दे दिए गए हैं, क्यूँकि मैंने इन ही को उन सभों के बदले जो इस्राईलियों में पहलौठी के बच्चे हैं, अपने लिए ले लिया है।
\v 17 ~इसलिए कि बनी-इस्राईल के सब पहलौठे, क्या इन्सान क्या हैवान मेरे हैं, मैंने जिस दिन मुल्क-ए- मिस्र के पहलौठों को मारा उसी दिन उनको अपने लिए पाक किया।
\s5
\v 18 और बनी-इस्राईल के सब पहलौठों के बदले मैंने लावियों को ले लिया है।
\v 19 और मैंने बनी-इस्राईल में से लावियों को लेकर उनको हारून और उसके बेटों को 'अता किया है, ताकि वह ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में बनी-इस्राईल की जगह ख़िदमत करें और बनी-इस्राईल के लिए कफ़्फ़ारा दिया करें; ताकि जब बनी-इस्राईल हैकल के नज़दीक आएँ तो उनमें कोई वबा न फैले।”
\s5
\v 20 ~चुनाँचे मूसा और हारून और बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत ने लावियों से ऐसा ही किया; जो कुछ ख़ुदावन्द ने लावियों के बारे में मूसा को हुक्म दिया था, वैसा ही बनी-इस्राईल ने उनके साथ किया।
\v 21 ~और लावियों ने अपने आप को गुनाह से पाक करके अपने कपड़े धोए, और हारून ने उनको हिलाने की क़ुर्बानी के लिए ख़ुदावन्द के सामने पेश करा, और हारून ने उनकी तरफ़ से कफ़्फ़ारा दिया ताकि वह पाक हो जाएँ।
\s5
\v 22 ~इसके बा'द लावी अपनी ख़िदमत बजा लाने को हारून और उसके बेटों के सामने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में जाने लगे। इसलिए जैसा ख़ुदावन्द ने लावियों के बारे में मूसा को हुक्म दिया था उन्होंने वैसा ही उनके साथ किया।
\s5
\v 23 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 24 "लावियों के मुत'अल्लिक़ जो बात है वह यह है, कि पच्चीस बरस से लेकर उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र में वह ख़ेमा-ए-इजितमा'अ की ख़िदमत के काम के लिए अन्दर हाज़िर हुआ करें।
\s5
\v 25 और जब पचास बरस के हों तो फिर उस काम के लिए न आएँ और न ख़िदमत करें,
\v 26 ~बल्कि ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ में अपने भाइयों के साथ निगहबानी के काम में मशग़ूल हों, और कोई ख़िदमत न करें। लावियों को जो-जो काम सौंपे जाएँ उनके~मुत'अल्लिक़~तू उनसे ऐसा ही करना।"
\s5
\c 9
\p
\v 1 ~बनी-इस्राईल के मुल्क-ए-मिस्र से निकलने के दूसरे बरस के पहले महीने में ख़ुदावन्द ने दश्त-ए-सीना में मूसा से कहा कि;
\v 2 ~"बनी इस्राईल 'ईद-ए-फ़सह उसके मु'अय्यन वक़्त पर मनाएँ।
\v 3 ~इसी महीने की चौदहवीं तारीख़ की शाम को तुम वक़्त-ए-मु'अय्यन पर यह 'ईद मनाना, और जितने उसके तौर तरीक़े और रसूम हैं, उन सभों के मुताबिक़ उसे मनाना।"
\s5
\v 4 ~इसलिए मूसा ने बनी-इस्राईल को हुक्म किया कि 'ईद-ए-फ़सह करें।
\v 5 ~और उन्होंने पहले महीने~की चौदहवीं तारीख़ की शाम को दश्त-ए- सीना में 'ईद-ए-फ़सह की और बनी-इस्राईल ने सब पर, जो ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था 'अमल किया।
\s5
\v 6 और कई आदमी ऐसे थे जो किसी लाश की वजह से से नापाक हो गए थे, वह उस दिन फ़सह न कर सके। इसलिए वह उसी दिन मूसा और हारून के पास आए,
\v 7 ~और मूसा से कहने लगे, "हम एक लाश की वजह से से नापाक हो रहे हैं; फिर भी हम और इस्राईलियों के साथ वक़्त-ए-मु'अय्यन पर ख़ुदावन्द की क़ुर्बानी पेश करने से क्यूँ रोके जाएँ?"
\v 8 मूसा ने उनसे कहा, "ठहर जाओ, मैं ज़रा सुन लूँ किख़ुदावन्द तुम्हारे हक़ में क्या हुक्म करता है।"
\s5
\v 9 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 10 ~"बनी-इस्राईल से कह कि अगर कोई तुम में से या तुम्हारी नसल में से, किसी लाश की वजह से से नापाक हो जाए या वह कहीं दूर सफ़र में हो तोभी वह ख़ुदावन्द के लिए 'ईद-ए-फ़सह करे।
\s5
\v 11 ~वह दूसरे महीने की चौदहवीं तारीख़ की शाम को यह 'ईद मनाएँ और क़ुर्बानी के गोश्त को बे-ख़मीरी रोटियों और कड़वी तरकारियों के साथ खाएँ।
\v 12 ~वह उसमें से कुछ भी सुबह के लिए बाक़ी न छोड़ें, और न उसकी कोई हड्डी तोड़ें, और फ़सह को उसके सारे तौर तरीक़े के मुताबिक़ मानें।
\s5
\v 13 ~लेकिन जो आदमी पाक हो और सफ़र में भी न हो, अगर वह फ़सह करने से बाज़ रहे तो वह आदमी अपनी क़ौम में से अलग कर डाला जाएगा; क्यूँकि उसने मु'अय्यन वक़्त पर ख़ुदावन्द की क़ुर्बानी नहीं पेश कीं इसलिए उस आदमी का गुनाह उसी के सिर लगेगा।
\v 14 और अगर कोई परदेसी तुम में क़याम करता हो और वह ख़ुदावन्द के लिए फ़सह करना चाहे, तो वह फ़सह के तौर तरीक़े और रसूम के मुताबिक़ उसे माने; तुम देसी और परदेसी दोनों के लिए एक ही क़ानून रखना।"
\s5
\v 15 और जिस दिन घर या'नी ख़ेमा-ए-शहादत नस्ब हुआ उसी दिन बादल उस पर छा गया, और शाम को वह घर पर आग सा दिखाई दिया और सुबह तक वैसा ही रहा।
\v 16 और हमेशा ऐसा ही हुआ करता था, कि बादल उस पर छाया रहता और रात को आग दिखाई देती थी।
\v 17 ~और जब घर पर से वह बादल उठ जाता तो बनी-इस्राईल रवाना होते थे, और जिस जगह वह बादल जा कर ठहर जाता वहीं बनी-इस्राईल ख़ेमा लगाते थे।
\s5
\v 18 ~ख़ुदावन्द के हुक्म से बनी-इस्राईल रवाना होते, और ख़ुदावन्द ही के हुक्म से वह ख़ेमे लगाते थे; और जब तक बादल घर पर ठहरा रहता वह अपने ख़ेमे डाले पड़े रहते थे।
\v 19 ~और जब बादल घर पर बहुत दिनों ठहरा रहता, तो बनी-इस्राईल खुदावन्द के हुक्म को मानते और रवाना नहीं होते थे।
\s5
\v 20 और कभी-कभी वह बादल चंद दिनों तक घर पर रहता, और तब भी वह ख़ुदावन्द के हुक्म से ख़ेमे लगाये रहते और ख़ुदावन्द ही के हुक्म से वह~रवाना होते थे।
\v 21 ~फिर कभी-कभी वह बादल शाम से सुबह तक ही रहता, तो जब वह सुबह को उठ जाता तब वह रवाना ते थे; और अगर वह रात दिन बराबर रहता, तो जब वह उठ जाता तब ही वह~रवाना होते थे।
\s5
\v 22 और जब तक वह बादल घर पर ठहरा रहता, चाहे दो दिन या एक महीने या एक बरस हो, तब तक बनी-इस्राईल अपने ख़ेमों में मक़ीम रहते और रवाना नहीं होते थे; पर~जब वह उठ जाता तो वह रवाना होते थे।
\v 23 ~ग़रज़ वह ख़ुदावन्द के हुक्म से मक़ाम करते और ख़ुदावन्द ही के हुक्म से रवाना होते थे; और जो हुक्म ख़ुदावन्द मूसा के ज़रिए' देता, वह ख़ुदावन्द के उस हुक्म को माना करते थे।
\s5
\c 10
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,
\v 2 'अपने लिए चाँदी के दो नरसिंगे बनवा; वह दोनों गढ़कर बनाए जाएँ, तू उनको जमा'अत के बुलाने और लश्करों की रवानगी के लिए काम में लाना।
\s5
\v 3 ~और जब वह दोनों नरसिंगे फूँकें, तो सारी जमा'अत ख़ेमा-ए- इज्तिमा'अ के दरवाज़े पर तेरे पास इकट्ठी हो जाए।
\v 4 और अगर एक ही फूँके, तो वह रईस जो हज़ारों इस्राईलियों के सरदार हैं तेरे पास जमा' हो।
\v 5 और जब तुम साँस बाँध कर ज़ोर से फूँको, तो वह लश्कर जो पश्चिम की तरफ़ हैं रवानगी करें।
\s5
\v 6 ~जब तुम दोबारा साँस बाँध कर ज़ोर से फूँको, तो उन लश्करों को जो दख्खिन की तरफ़ हैं रवाना हो । इसलिए रवानगी के लिए साँस बाँध कर ज़ोर से नरसिंगा फूँका करें।
\v 7 लेकिन जब जमा'अत को जमा' करना हो तब भी फूँकना, लेकिन साँस बाँध कर ज़ोर से न फूँकना।
\v 8 ~और हारून के बेटे जो काहिन हैं वह नरसिंगे~फूँका~करें। यही तौर तरीक़े हमेशा तुम्हारी नसल-दर-नसल क़ायम रहे।
\s5
\v 9 और जब तुम अपने मुल्क में ऐसे दुश्मन से जो तुम को सताता हो लड़ने को निकलो, तो तुम नरसिंगों को साँस बाँध कर ज़ोर से फूँकना। इस हाल में ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा के सामने तुम्हारी याद होगी और तुम अपने दुश्मनों से नजात पाओगे।
\s5
\v 10 ~और तुम अपनी खुशी के दिन और अपनी मुक़र्ररा 'ईदों के दिन और अपने महीनों के शुरू' में अपनी सोख़्तनी कुर्बानियों और सलामती की कुर्बानियों के वक़्त नरसिंगे फूँकना ताकि उनसे तुम्हारे ख़ुदा~के सामने तुम्हारी यादगारी हो; मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।"
\s5
\v 11 और दूसरे साल के दूसरे महीने की बीसवीं तारीख़ को वह बादल शहादत के घर पर से उठ गया।
\v 12 ~तब बनी-इस्राईल सीना के जंगल से रवाना होकर निकले और वह बादल फारान के जंगल में ठहर गया।
\v 13 इसलिए ख़ुदावन्द के उस हुक्म के मुताबिक़ जो उसने मूसा के ज़रिए' दिया था, उनकी पहली रवानगी हुई।
\s5
\v 14 और सब से पहले बनी यहूदाह के लश्कर का झंडा रवाना हुआ और वह अपने दलों के मुताबिक़ चले, उनके लश्कर का सरदार 'अम्मीनदाब का बेटा नहसोन था।
\v 15 और इश्कार के क़बीले के लश्कर का सरदार ज़ुग़र का बेटा नतनीएल था।
\v 16 और ज़बूलून के क़बीले के लश्कर का सरदार हेलोन का बेटा इलियाब था।
\s5
\v 17 ~फिर घर उतारा गया और बनी जैरसोन और बनी मिरारी, जो घर को उठाते थे रवाना हुए।
\v 18 ~फिर रूबिन के लश्कर का झंडा आगे बढ़ा और वह अपने दलों के मुताबिक़ चले, शदियूर का बेटा इलीसूर उनके लश्कर का सरदार था।
\v 19 ~और शमा'ऊन के क़बीले के लश्कर का सरदार सूरीशद्दी का बेटा सलूमीएल था।
\v 20 ~और जद्द के क़बीले के लश्कर का सरदार द'ऊएल का बेटा इलियासफ़ था।
\s5
\v 21 ~फिर क़िहातियों ने जो हैकल को उठाते थे रवानगी की , और उनके पहुँचने तक घर खड़ा कर दिया जाता था।
\v 22 ~फिर बनी इफ़्राईम के लश्कर का झंडा निकला और वह अपने दलों के मुताबिक़ चले, उनके लश्कर का सरदार 'अम्मीहूद का बेटा इलीसमा' था।
\v 23 ~और मनस्सी के क़बीले के लश्कर का सरदार फ़दाहसूर का बेटा जमलीएल था।
\v 24 और बिनयमीन के क़बीले के लश्कर का सरदार जिद'औनी का बेटा अबिदान था।
\s5
\v 25 और बनी दान के लश्कर का झंडा उनके सब लश्करों के पीछे-पीछे रवाना हुआ और वह अपने दलों के मुताबिक़ चले, उनके लश्कर का सरदार 'अम्मीशद्दी का बेटा अख़ी'अज़र था।
\v 26 और आशर के क़बीले के लश्कर का सरदार 'अकरान का बेटा फ़ज'ईएल था।
\v 27 ~और नफ़्ताली के क़बीले के लश्कर का सरदार एनान का बेटा अख़ीरा' था।
\v 28 ~तब बनी-इस्राईल इसी तरह अपने दलों के मुताबिक़ कूच करते और आगे रवाना होते थे।
\s5
\v 29 ~इसलिए मूसा ने अपने ससुर र'ऊएल मिदियानी के बेटे होबाब से कहा कि "हम उस जगह जा रहे हैं जिसके बारे में ख़ुदावन्द ने कहा है कि मैं उसे तुम को दूँगा; इसलिए तू भी साथ चल और हम तेरे साथ नेकी करेंगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल से नेकी का वा'दा किया है।”
\v 30 उसने उसे जवाब दिया, "मैं नहीं चलता, बल्कि मैं अपने वतन को और अपने रिश्तेदारों में लौट कर जाऊँगा।"
\s5
\v 31 ~तब मूसा ने कहा, "हम को छोड़ मत, क्यूँकि यह तुझ को मा'लूम है कि हमको वीराने में किस तरह ख़ेमाज़न होना चाहिए, इसलिए तू हमारे लिए आँखों का काम देगा;
\v 32 ~और अगर तू हमारे साथ चले, तो इतनी बात ज़रूर होगी कि जो नेकी ख़ुदावन्द हम से करे वही हम तुझ से करेंगे।"
\s5
\v 33 ~फिर वह ख़ुदावन्द के पहाड़ से सफ़र करके तीन दिन की राह चले, और तीनों दिन के सफ़र में ख़ुदावन्द के 'अहद का संदूक़ उनके लिए आरामगाह तलाश करता हुआ उनके आगे-आगे चलता रहा।
\v 34 और जब वह लश्करगाह से रवाना होते तो ख़ुदावन्द का बादल दिन भर उनके ऊपर छाया रहता था।
\s5
\v 35 और संदूक़ की रवानगी के वक़्त मूसा यह कहा करता, "उठ, ऐ ख़ुदावन्द, तेरे दुश्मन तितर-बितर हो जाएँ, और जो तुझ से कीना रखते है वह तेरे आगे से भागें।"
\v 36 और जब वह ठहर जाता तो वह यह कहता था, "ऐ ख़ुदावन्द, हज़ारों-हज़ार इस्राईलियों में लौट कर आ जा।"
\s5
\c 11
\p
\v 1 फिर वह लोग़ कुड़कुड़ाने और ख़ुदावन्द के सुनते बुरा कहने लगे; चुनाँचे ख़ुदावन्द ने सुना और उसका ग़ज़ब भड़का और ख़ुदावन्द की आग उनके बीच जल उठी, और लश्करगाह को एक किनारे से भसम करने लगी।
\v 2 ~तब लोगों ने मूसा से फ़रियाद की; और मूसा ने ख़ुदावन्द से दु'आ की, तो आग बुझ गई।
\v 3 और उस जगह का नाम तबे'रा पड़ा, क्यूँकि ख़ुदावन्द की आग उनमें जल उठी थी।
\s5
\v 4 और जो मिली-जुली भीड़ इन लोगों में थी वह तरह-तरह की लालच करने लगी, और बनी-इस्राईल भी फिर रोने और कहने~लगे, “हम को कौन गोश्त खाने को देगा?
\v 5 ~हम को वह मछली याद आती है जो हम मिस्र में मुफ़्त खाते थे; और हाय! वह खीरे, और वह ख़रबूज़े, और वह गन्दने, और प्याज़, और लहसन;
\v 6 लेकिन अब तो हमारी जान ख़ुश्क हो गई, यहाँ कोई चीज़ मयस्सर नहीं और मन के अलावा हम को और कुछ दिखाई नहीं देता।
\s5
\v 7 ~और मन धनिये की तरह था और ऐसा नज़र आता था जैसे मोती।
\v 8 ~लोग इधर-उधर जा कर उसे जमा' करते और उसे चक्की में पीसते या ओखली में कूट लेते थे, फिर उसे हाण्डियों में उबाल कर रोटियाँ बनाते थे; उसका मज़ा ताज़ा तेल का सा था।
\s5
\v 9 ~और रात को जब लश्करगाह में ओस पड़ती तो उसके साथ मन भी गिरता था।
\v 10 और मूसा ने सब घरानों के आदमियों को अपने-अपने ख़ेमे के दरवाज़े पर रोते सुना, और ख़ुदावन्द का क़हर बहुत भड़का और मूसा ने भी बुरा माना।
\s5
\v 11 ~तब मूसा ने ख़ुदावन्द से कहा, "तूने अपने ख़ादिम से यह सख़्त बर्ताव क्यूँ किया? और मुझ पर तेरे करम की नज़र क्यूँ नहीं हुई, जो तू इन सब लोगों का बोझ मुझ पर डालता है?
\v 12 ~क्या यह सब लोग मेरे पेट में पड़े थे? क्या यह मुझ ही से पैदा हुए थे जो तू मुझे कहता है कि जिस तरह से बाप दूध पीते बच्चे को उठाए-उठाए फिरता है, उसी तरह मैं इन लोगों को अपनी गोद में उठा कर उस मुल्क में ले जाऊँ जिसके देने की क़सम तूने उनके बाप दादा से खाई है?
\s5
\v 13 ~मैं इन सब लोगों को कहाँ से गोश्त ला कर दूँ? क्यूँकि वह यह कह-कह कर मेरे सामने रोते हैं, कि हम को गोश्त खाने को दे।
\v 14 ~मैं अकेला इन सब लोगों को नहीं सम्भाल सकता, क्यूँकि यह मेरी ताक़त से बाहर है।
\v 15 ~और जो तुझे मेरे साथ यही बर्ताव करना है तो मेरे ऊपर अगर तेरे करम की नज़र हुई है, तो मुझे एक ही बार में जान से मार डाल ताकि मैं अपनी बुरी हालत देखने न पाऊँ।"
\s5
\v 16 ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "बनी-इस्राईल के बुज़ुगों में से सत्तर मर्द, जिनको तू जानता है कि क़ौम के बुज़ुर्ग और उनके सरदार हैं मेरे सामने जमा' कर और उनको ख़ेमा-ए- इजितमा'अ के पास ले आ; ताकि वह तेरे साथ वहाँ खड़े हों।
\v 17 ~और में उतर कर तेरे साथ वहाँ बातें करूँगा, और मैं उस रूह में से जो तुझ में है, कुछ लेकर उनमें डाल दूँगा कि वह तेरे साथ क़ौम का बोझ उठाएँ, ताकि तू उसे अकेला न उठाए।
\s5
\v 18 ~और लोगों से कह कि कल के लिए अपने को पाक कर रख्खो तो तुम गोश्त खाओगे, क्यूँकि तुम ख़ुदावन्द के सुनते हुए यह कह-कह कर रोए हो कि हम को कौन गोश्त खाने को देगा? हम तो मिस्र ही में मौज से थे। इसलिए ख़ुदावन्द तुम को गोश्त देगा और तुम खाना।
\v 19 ~और तुम एक या दो दिन नहीं और न पाँच या दस या बीस दिन,
\v 20 ~बल्कि एक महीना कामिल उसे खाते रहोगे, जब तक वह तुम्हारे नथुनों से निकलने न लगे और तुम उससे घिन न खाने लगो; क्यूँकि तुम ने ख़ुदावन्द को जो तुम्हारे बीच है छोड़ दिया, और उसके सामने यह कह-कह कर रोए हो कि हम मिस्र से क्यूँ निकल आए?”
\s5
\v 21 ~फिर मूसा कहने लगा, "जिन लोगों में मैं हूँ उनमें छः लाख तो प्यादे ही हैं; और तू ने कहा है कि मैं उनको इतना गोश्त दूँगा कि वह महीने भर उसे खाते रहेंगे।
\v 22 ~इसलिए क्या भेड़बकरियों के यह रेवड़ और गाय-बैलों के झुण्ड उनकी ख़ातिर ज़बह हों कि उनके लिए बस हो? या समन्दर की सब मछलियाँ उनकी ख़ातिर इकट्ठी की जाएँ कि उन सब के लिए काफ़ी हो?"
\v 23 ~ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "क्या ख़ुदावन्द का हाथ छोटा हो गया है? अब तू देख लेगा कि जो मैंने तुझ से कहा है वह पूरा होता है या नहीं।"
\s5
\v 24 ~तब मूसा ने बाहर जाकर ख़ुदावन्द की बातें उन लोगों को कह सुनाई, और क़ौम के बुज़ुर्गों में से सत्तर शख़्स इकट्ठे करके उनको ख़ेमे के चारों तरफ़ खड़ा कर दिया।
\v 25 तब ख़ुदावन्द बादल में होकर उतरा और उसने मूसा से बातें कीं, और उस रूह में से जो उसमें थी कुछ लेकर उसे उन सत्तर बुज़ुगों में डाला; चुनाँचे जब रूह उनमें आई तो वह नबुव्वत करने लगे, लेकिन बा'द में फिर कभी न की।
\s5
\v 26 लेकिन उनमें से दो शख़्स लश्करगाह ही में रह गए, एक का नाम इलदाद और दूसरे का मेदाद था, उनमें भी रूह आई; यह भी उन्हीं में से थे जिनके नाम लिख लिए गए थे लेकिन यह खेमे के पास न गए, और लश्करगाह ही में नबुव्वत करने लगे।
\v 27 ~तब किसी जवान ने दौड़ कर मूसा को ख़बर दी और कहने लगा, कि इलदाद और मेदाद लश्करगाह में नबुव्वत कर रहे हैं।
\s5
\v 28 इसलिए मूसा के ख़ादिम नून के बेटे यशू'आ ने, जो उसके चुने हुए जवानों में से था मूसा से कहा, "ऐ मेरे मालिक मूसा, तू उनको रोक दे।"
\v 29 ~मूसा ने उससे कहा, "क्या तुझे मेरी ख़ातिर रश्क आता है? काश ख़ुदावन्द के सब लोग नबी होते, और ख़ुदावन्द अपनी रूह उन सब में डालता।”
\v 30 फिर मूसा और वह इस्राईली बुज़ुर्ग लश्करगाह में गए।
\s5
\v 31 और ख़ुदावन्द की तरफ़ से एक आँधी चली और समन्दर से बटेरें उड़ा लाई, और उनको लश्करगाह के बराबर और उसके चारों तरफ़ एक दिन की राह तक इस तरफ़ और एक ही दिन की राह तक दूसरी तरफ़ ज़मीन से क़रीबन दो-दो हाथ ऊपर डाल दिया।
\v 32 ~और लोगों ने उठ कर उस सारे दिन और उस सारी रात और उसके दूसरे दिन भी बटेरें जमा' कीं, और जिसने कम से कम जमा' की थीं उसके पास भी दस खोमर के बराबर जमा' हो गई; और उन्होंने अपने लिए लश्करगाह की चारों तरफ़ उनको फैला दिया।
\s5
\v 33 ~और उनका गोश्त उन्होंने दाँतों से काटा ही था और उसे चबाने भी नहीं पाए थे कि ख़ुदावन्द का क़हर उन लोगों पर भड़क उठा, और ख़ुदावन्द ने उन लोगों को बड़ी सख़्त वबा से मारा।
\v 34 इसलिए उस मक़ाम का नाम क़ब्रोत हतावा रखा गया, क्यूँकि उन्होंने उन लोगों को जिन्होंने लालच किया था वहीं दफ़न किया।
\v 35 ~और वह लोग कब्रोत हतावा से सफ़र करके हसेरात को गए और वहीं हसेरात में रहने लगे।
\s5
\c 12
\p
\v 1 ~और मूसा ने एक कूशी 'औरत से ब्याह कर लिया। तब उस कूशी 'औरत की वजह से से जिसे मूसा ने ब्याह लिया था, मरियम और हारून उसकी बदगोई करने लगे।
\v 2 ~वह कहने लगे, "क्या ख़ुदावन्द ने सिर्फ़ मूसा ही से बातें की हैं? क्या उसने हम से भी बातें नहीं कीं?" और ख़ुदावन्द ने यह सुना।
\v 3 और मूसा तो इस ज़मीन के सब आदमियों से ज़्यादा हलीम था।
\s5
\v 4 तब ख़ुदावन्द ने अचानक मूसा और हारून और मरियम से कहा, "तुम तीनों निकल कर ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ के पास हाज़िर हो।" तब वह तीनों वहाँ आए।
\v 5 और ख़ुदावन्द बादल के सुतून में होकर उतरा और ख़ेमे के दरवाज़े पर खड़े होकर~हारून और मरियम को बुलाया। वह दोनों पास गए।
\s5
\v 6 तब उसने कहा, "मेरी बातें सुनो, अगर तुम में कोई नबी हो, तो मैं जो ख़ुदावन्द हूँ उसे रोया में दिखाई दूँगा और ख़्वाब में उससे बातें करूँगा।
\v 7 ~पर मेरा ख़ादिम मूसा ऐसा नहीं है, वह मेरे सारे ख़ान्दान में अमानतदार है;
\v 8 मैं उससे राज़ों में नहीं बल्कि आमने-सामने और सरीह तौर पर बातें करता हूँ, और उसे ख़ुदावन्द का दीदार भी नसीब होता है। इसलिए तुम को मेरे ख़ादिम मूसा की बदगोई करते ख़ौफ़ क्यूँ न आया?"
\s5
\v 9 और ख़ुदावन्द का ग़ज़ब उन पर भड़का और वह चला गया।
\v 10 ~और बादल ख़ेमे के ऊपर से हट गया, और मरियम कोढ़ से बर्फ़ की तरह सफ़ेद हो गई; और हारून ने जो मरियम की तरफ़ नज़र की तो देखा कि वह कोढ़ी हो गई है।
\s5
\v 11 ~तब हारून मूसा से कहने लगा, "हाय मेरे मालिक, इस गुनाह को हमारे सिर न लगा, क्यूँकि हम से नादानी हुई और हम ने ख़ता की।
\v 12 ~और मरियम की उस मरे हुए की तरह न रहने दे, जिसका जिस्म उसकी पैदाइश ही के वक़्त आधा गला हुआ होता है।"
\s5
\v 13 ~तब मूसा ख़ुदावन्द से फ़रियाद करने लगा, "ऐ ख़ुदा, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, उसे शिफ़ा दे।"
\v 14 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "अगर उसके बाप ने उसके मुँह पर सिर्फ़ थूका ही होता, तो क्या सात दिन तक वह शर्मिन्दा न रहती ? इसलिए वह सात दिन तक लश्करगाह के बाहर बन्द रहे, इसके बा'द वह फिर अन्दर आने पाए।"
\v 15 चुनाँचे मरियम सात दिन तक लश्करगाह के बाहर बन्द रही, और लोगों ने जब तक वह अन्दर आने न पाई रवाना न हुए।
\s5
\v 16 ~इसके बा'द वह लोग हसेरात से रवाना हुए और फ़ारान के जंगल में पहुँच कर उन्होंने ख़ेमे लगाए।
\s5
\c 13
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,
\v 2 ~"तू आदमियों को भेज कि वह मुल्क-ए-कना'न का, जो मैं बनी-इस्राईल को देता हूँ हाल दरियाफ़्त करें; उनके बाप-दादा के हर क़बीले से एक आदमी भेजना जो उनके यहाँ का रईस हो।"
\s5
\v 3 ~चुनाँचे मूसा ने ख़ुदावन्द के इरशाद के मुवाफ़िक़ फ़ारान के जंगल से ऐसे आदमी रवाना किए जो बनी-इस्राईल के सरदार थे।
\v 4 ~उनके यह नाम थे: रूबिन के क़बीले से ज़कूर का बेटा सम्मूअ,
\s5
\v 5 ~और शमा'ऊन के क़बीले से होरी का बेटा साफ़त,
\v 6 ~और यहूदाह के क़बीले से यफुना का बेटा कालिब,
\v 7 ~और इश्कार के क़बीले से युसुफ़ का बेटा इजाल,
\v 8 ~और इफ़्राईम के क़बीले से नून का बेटा होसे'अ,
\s5
\v 9 ~और बिनयमीन के क़बीले से रफू का बेटा फ़ल्ती,
\v 10 और ज़बूलून के क़बीले से सोदी का बेटा जद्दीएल,
\v 11 और यूसुफ़ के क़बीले या'नी मनस्सी के क़बीले से सूसी का बेटा जद्दी,
\v 12 ~और दान के क़बीले से जमल्ली का बेटा 'अम्मीएल,
\s5
\v 13 और आशर के क़बीले से मीकाएल का बेटा सतूर,
\v 14 और नफ़्ताली के क़बीले से वुफ़सी का बेटा नख़बी,
\v 15 ~और जद्द के क़बीले से माकी का बेटा ज्यूएल।
\v 16 ~यही उन लोगों के नाम हैं जिनको मूसा ने मुल्क का हाल दरियाफ़्त करने को भेजा था। और नून के बेटे होसे'अ का नाम मूसा ने यशू'अ रख्खा।
\s5
\v 17 और मूसा ने उनको रवाना किया ताकि मुल्क-ए-कना'न का हाल दरियाफ़्त करें और उनसे कहा, "तुम इधर दख्खिन की तरफ़ से जाकर पहाड़ों में चले जाना।
\v 18 और देखना कि वह मुल्क कैसा है, और जो लोग~वहाँ बसे हुए हैं वह कैसे हैं, ज़ोरावर हैं या कमज़ोर और थोड़े से हैं या बहुत।
\v 19 ~और जिस मुल्क में वह आबाद हैं वह कैसा है, अच्छा है या बुरा; जिन शहरों में वह रहते हैं वह कैसे हैं, आया वह ख़ेमों में रहते हैं या किलों' में।
\v 20 और वहाँ की ज़मीन कैसी है, ज़रखेज़ है या बंजर और उसमें दरख़्त हैं या नहीं; तुम्हारी हिम्मत बन्धी रहे और तुम उस मुल्क का कुछ फल लेते आना।" और वह मौसम अंगूर की पहली फ़सल का था।
\s5
\v 21 ~तब वह रवाना हुए और दश्त-ए-सीन से रहोब तक जो हमात के रास्ते में है, मुल्क को ख़ूब देखा भाला।
\v 22 ~और वह दख्खिन की तरफ़ से होते हुए हबरून तक गए, जहाँ 'अनाक के बेटे अख़ीमान और सीसी और तलमी रहते थे (और हबरून जुअन से जो मिस्र में है, सात बरस आगे बसा था)।
\s5
\v 23 और वह वादी-ए-इस्काल में पहुँचे, वहाँ से उन्होंने अंगूर की एक डाली काट ली जिसमें एक ही गुच्छा था, और जिसे दो आदमी एक लाठी पर लटकाए हुए लेकर गए; और वह कुछ अनार और अंजीर भी लाए।
\v 24 उसी गुच्छे की वजह से से जिसे इस्राईलियों ने वहाँ से काटा था, उस जगह का नाम वादी-ए-इस्काल पड़ गया।
\s5
\v 25 ~और चालीस दिन के बा'द वह उस मुल्क का हाल दरियाफ़्त करके लौटे।
\v 26 ~और वह चले और मूसा और हारून और बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत के पास दश्त-ए-फ़ारान के क़ादिस में आए, और उनकी और सारी जमा'अत को सब हाल सुनाया, और उस मुल्क का फल उनको दिखाया।
\s5
\v 27 और मूसा से कहने लगे, "जिस मुल्क में तूने हम को भेजा था हम वहाँ गए; वाक़'ई दूधऔर शहद उसमें बहता है, और यह वहाँ का फल है।
\v 28 ~लेकिन जो लोग वहाँ बसे हुए हैं वह ज़ोरावर हैं और उनके शहर बड़े-बड़े और फ़सीलदार हैं, और हम ने बनी 'अनाक को भी वहाँ देखा।
\v 29 उस मुल्क के दख्खिनी हिस्से में तो अमालीकी आबाद हैं, और हित्ती और यबूसी और अमोरी पहाड़ों पर रहते हैं, और समन्दर के साहिल पर और यरदन के किनारे-किनारे कना'नी बसे हुए हैं।"
\s5
\v 30 ~तब कालिब ने मूसा के सामने लोगों को चुप कराया और कहा, "चलो, हम एक दम जा कर उस पर क़ब्ज़ा करें, क्यूँकि हम इस क़ाबिल हैं कि उस पर हासिल कर लें।”
\v 31 ~लेकिन जो और आदमी उसके साथ गए थे वह कहने लगे, "हम इस लायक़ नहीं हैं ~कि उन लोगों पर हमला करें, क्यूँकि वह हम से ज़्यादा ताक़तवर हैं।"
\s5
\v 32 ~इन आदमियों ने बनी-इस्राईल को उस मुल्क की, जिसे वह देखने गए थे बुरी ख़बर दी, और यह कहा, "वह मुल्क जिसका हाल दरियाफ़्त करने को हम उसमें से गुज़रे, एक ऐसा मुल्क है जो अपने बाशिन्दों को खा जाता है; और वहाँ जितने आदमी हम ने देखें वह सब बड़े क़द्दावर हैं।
\v 33 और हम ने वहाँ बनी 'अनाक को भी देखा जो जब्बार हैं और जब्बारों की नसल से हैं, और हम तो अपनी ही निगाह में ऐसे थे जैसे टिड्डे होते हैं और ऐसे ही उनकी निगाह में थे।”
\s5
\c 14
\p
\v 1 तब सारी जमा'अत ज़ोर ज़ोर से चीखने लगी और वह लोग उस रात रोते ही रहे।
\v 2 ~और कुल बनी-इस्राईल मूसा और हारून की शिकायत करने लगे, और सारी जमा'त उनसे कहने लगी हाय काश ~हम मिस्र ही में मर जाते या काश इस वीरान ही में मरते।
\v 3 ~ख़ुदावन्द क्यूँ हम को उस मुल्क में ले जा कर तलवार से क़त्ल कराना चाहता है?
\s5
\v 4 फिर तो हमारी बीवियाँ और बाल बच्चे लूट का माल ठहरेंगे, क्या हमारे लिए बेहतर न होगा कि हम मिस्र को वापस चले जाएँ?" फिर वह आपस में कहने लगे, "आओ हम किसी को अपना सरदार बना लें, और मिस्र को लौट चलें।
\v 5 तब मूसा और हारून बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत के सामने औधे मुँह हो गए।
\s5
\v 6 और नून का बेटा यशू'अ और यफुन्ना का बेटा कालिब, जो उस मुल्क का हाल दरियाफ़्त करने वालों में से थे, अपने-अपने कपड़े फाड़ कर
\v 7 बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत से कहने लगे कि "वह मुल्क जिसका हाल दरियाफ़्त करने को हम उसमें से गुज़रे, बहुत अच्छा मुल्क है।
\v 8 अगर ख़ुदा हम से राज़ी रहे तो वह हम को उस मुल्क में पहुँचाएगा, और वही मुल्क जिस में दूध और शहद बहता है हम को देगा।
\s5
\v 9 ~सिर्फ़ इतना हो कि तुम ख़ुदावन्द से बग़ावत न करो और न उस मुल्क के लोगों से डरो; वह तो हमारी ख़ुराक हैं, उनकी पनाह उनके सिर पर से जाती रही है और हमारे साथ ख़ुदावन्द है; इसलिए उनका ख़ौफ़ न करो।"
\v 10 तब सारी जमा'अत बोल उठी कि इनको संगसार करो। उस वक़्त ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में सब बनी-इस्राईल के सामने ख़ुदावन्द का जलाल नुमायाँ हुआ।
\s5
\v 11 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि "यह लोग कब तक मेरी तौहीन करते रहेंगे? और बावजूद उन सब मो'जिज़ों के जो मैंने इनके बीच किए हैं, कब तक मुझ पर ईमान नहीं लाएँगे?
\v 12 में इनको वबा से मारूँगा और मीरास से ख़ारिज करूँगा, और तुझे एक ऐसी क़ौम बनाऊँगा जो इनसे कहीं बड़ी और ज़्यादा ज़ोरावर हो।"
\s5
\v 13 मूसा ने ख़ुदावन्द से कहा, "तब तो मिस्री, जिनके बीच से तू इन लोगों को अपने ज़ोर-ए-बाज़ू से निकाल ले आया यह सुनेंगे,
\v 14 और उसे इस मुल्क के बाशिन्दों को बताएँगे। उन्होंने सुना है कि तू जो ख़ुदावन्द है इन लोगों के बीच रहता है, क्यूँकि तू ऐ ख़ुदावन्द सरीह तौर पर दिखाई देता है, और तेरा बादल इन पर साया किए रहता है, और तू दिन को बादल के सुतून में और रात को आग के सुतून में हो कर इनके आगे-आगे चलता है।
\s5
\v 15 तब अगर तू इस क़ौम को एक अकेले आदमी की तरह जान से मार डाले, तो वह क़ौमें जिन्होंने तेरी शोहरत सुनी कहेंगी;
\v 16 कि चूँकि ख़ुदावन्द इस क़ौम को उस मुल्क में, जिसे उसने इनको देने की क़सम खाई थी पहुँचा न सका, इसलिए उसने इनको वीरान में हलाक कर दिया।
\s5
\v 17 तब ख़ुदावन्द की क़ुदरत की 'अज़मत तेरे ही इस क़ौल के मुताबिक़ ज़ाहिर हो,
\v 18 ~कि ख़ुदावन्द क़हर करने में धीमा और शफ़क़त में ग़नी है, वह गुनाह और ख़ता को बख़्श देता है लेकिन मुजरिम को हरगिज़ बरी नहीं करेगा, क्यूँकि वह बाप दादा के गुनाह की सज़ा उनकी औलाद को तीसरी और चौथी नसल तक देता है।
\v 19 इसलिए तू अपनी रहमत की फ़िरावानी से इस उम्मत का गुनाह, जैसे तू मिस्र से लेकर यहाँ तक इन लोगों को मु'आफ़ करता रहा है अब भी मु'आफ़ कर दे।"
\s5
\v 20 ख़ुदावन्द ने कहा, "मैंने तेरी दरख़्वास्त के मुताबिक़ मुआफ़ किया;
\v 21 लेकिन मुझे अपनी हयात की क़सम और ख़ुदावन्द के जलाल की क़सम जिससे सारी ज़मीन मा'मूर होगी,
\v 22 ~चूँकि इन सब लोगों ने जिन्होंने बावजूद मेरे जलाल के देखने के, और बावजूद उन मो'जिजों के जो मैंने मिस्र में और इस वीरान में दिखाए, फिर भी दस बार मुझे आज़माया और मेरी बात नहीं मानी;
\s5
\v 23 इसलिए वह उस मुल्क को जिसके देने की क़सम मैंने उनके बाप दादा से खाई थी देखने भी न पायेंगे और जिन्होंने मेरी तौहीन की है उन में से भी कोई उसे देखने नहीं पाएगा।
\v 24 ~लेकिन इसलिए कि मेरे बन्दे कालिब का कुछ और ही मिज़ाज था और उसने मेरी पूरी पैरवी की है, मैं उसको उस मुल्क में जहाँ वह हो आया है पहुँचाऊँगा और उसकी औलाद उसकी वारिस होगी।
\v 25 और वादी में तो 'अमालीकी और कना'नी बसे हुए हैं, इसलिए कल तुम घूम कर उस रास्ते से जो बहर-ए-क़ुलज़ुम को जाता है वीरान में दाख़िल हो जाओ।"
\s5
\v 26 और ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा,
\v 27 ~"मैं कब तक इस ख़बीस गिरोह की जो मेरी शिकायत करती रहती है, बर्दाश्त करूँ? बनी-इस्राईल जो मेरे बरख़िलाफ़ शिकायतें करते रहते हैं, मैंने वह सब शिकायतें सुनी हैं।
\s5
\v 28 ~इसलिए तुम उससे कह दो, ख़ुदावन्द कहता है, मुझे अपनी हयात की क़सम है कि जैसा तुम ने मेरे सुनते कहा है, मैं तुम से ज़रूर वैसा ही करूँगा।
\v 29 तुम्हारी लाशें इसी वीरान में पड़ी रहेंगी, और तुम्हारी सारी ता'दाद में से या 'नी बीस बरस से लेकर उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र के तुम सब जितने गिने गए, और मुझ पर शिकायत करते रहे,
\v 30 ~इनमें से कोई उस मुल्क में, जिसके बारे में मैने क़सम खाई थी कि तुमको वहाँ बसाऊँगा, जाने न पाएगा, अलावा यफ़ुन्ना के बेटे कालिब और नून के बेटे यशू'अ के।
\s5
\v 31 ~और तुम्हारे बाल-बच्चे जिनके बारे में तुम ने यह कहा कि वह तो लूट का माल ठहरेंगे, उनको मैं वहाँ पहुँचाऊगा, और जिस मुल्क को तुम ने हक़ीर जाना वह उसकी हक़ीक़त पहचानेंगे।
\v 32 ~और तुम्हारा यह हाल होगा कि तुम्हारी लाशें इसी वीरान में पड़ी रहेंगी।
\v 33 और तुम्हारे लड़के बाले चालीस बरस तक वीरान में आवारा फिरते और तुम्हारी ज़िनाकारियों का फल पाते रहेंगे, जब तक कि तुम्हारी लाशें वीरान में गल न जाएँ।
\s5
\v 34 उन चालीस दिनों के हिसाब से जिनमें तुम उस मुल्क का हाल दरियाफ़्त करते रहे थे, अब दिन पीछे एक-एक बरस या'नी चालीस बरस तक, तुम अपने गुनाहों का फल पाते रहोगे; तब तुम मेरे मुख़ालिफ़ हो जाने को समझोगे।
\v 35 मैं ख़ुदावन्द यह कह चुका हूँ कि मैं इस पूरी ख़बीस गिरोह से जो मेरी मुखालिफ़त पर मुत्तफ़िक़ है क़त'ई ऐसा ही करूँगा, इनका ख़ातमा इसी वीरान में होगा और वह यहीं मरेंगे।"
\s5
\v 36 और जिन आदमियों को मूसा ने मुल्क का हाल दरियाफ़्त करने को भेजा था, जिन्होंने लौट कर उस मुल्क की ऐसी बुरी ख़बर सुनाई थी, जिससे सारी जमा'अत मूसा पर कुड़कुड़ाने लगी,
\v 37 इसलिए वह आदमी जिन्होंने मुल्क की बुरी ख़बर दी थी खुदावन्द के सामने वबा से मर गए।
\v 38 ~लेकिन जो आदमी उस मुल्क का हाल दरियाफ़्त करने गए थे उनमें से नून का बेटा यशू'अ और यफ़ुन्ना का बेटा कालिब दोनों जीते बचे रहे।
\s5
\v 39 और मूसा ने यह बातें सब बनीइस्राईल से कहीं, तब वह लोग ज़ार-ज़ार रोए।
\v 40 ~और वह दूसरे दिन सुबह सवेरे उठ कर यह कहते हुए पहाड़ की चोटी पर चढ़ने लगे, कि हम हाज़िर हैं और जिस जगह का वा'दा ख़ुदावन्द ने किया है वहाँ जाएँगे क्यूँकि हम से ख़ता हुई है।
\s5
\v 41 ~मूसा ने कहा, "तुम क्यूँ अब ख़ुदावन्द की हुक्म उदूली करते हो? इससे कोई फ़ाइदा न होगा।
\v 42 ऊपर मत चढ़ो क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारे बीच नहीं है ऐसा न हो कि अपने दुश्मनों के मुक़ाबले में शिकस्त खाओ।
\v 43 क्यूँकि वहाँ तुम से आगे 'अमालीक़ी और कना'नी लोग हैं, इसलिए तुम तलवार से मारे जाओगे; क्यूँकि ख़ुदावन्द से तुम फिर गए हो, इसलिए ख़ुदावन्द तुम्हारे साथ नहीं रहेगा।"
\s5
\v 44 लेकिन वह शोख़ी करके पहाड़ की चोटी तक चढ़े चले गए, लेकिन ख़ुदावन्द के 'अहद का सन्दूक़ और मूसा लश्करगाह से बाहर न निकले।
\v 45 तब 'अमालीक़ी और कना'नी जो उस पहाड़ पर रहते थे, उन पर आ पड़े और उनको क़त्ल किया और हुरमा तक उनको मारते चले आए।
\s5
\c 15
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 2 "बनी-इस्राईल से कह कि जब तुम अपने रहने के मुल्क में जो मैं तुम को देता हूँ पहुँचो
\v 3 और ख़ुदावन्द के सामने आतिशी क़ुर्बानी, या'नी सोख़्तनी क़ुर्बानी या ख़ास मिन्नत का ज़बीहा या रज़ा की क़ुर्बानी पेश करो, या अपनी मु'अय्यन 'ईदों में राहतअंगेज़ ख़ुशबू के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने गाय बैल या भेड़ बकरी चढ़ाओ|
\s5
\v 4 ~तो जो शख़्स अपना हदिया लाए, वह ख़ुदावन्द के सामने नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर ऐफ़ा के दस्वें हिस्से के बराबर मैदा जिसमें चौथाई हीन के बराबर तेल मिला हुआ हो,
\v 5 और तपावन के तौर पर चौथाई हीन के बराबर मय भी लाए; तू अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी या अपने ज़बीहे के हर बर्रे के साथ इतना ही तैयार किया करना।
\s5
\v 6 और हर मेंढे के साथ ऐफ़ा के पाँचवे हिस्से के बराबर मैदा, जिसमें तिहाई हीन के बराबर तेल मिला हुआ हो, नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर लाना।
\v 7 और तपावन के तौर पर तिहाई हीन के बराबर मय देना, ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू ठहरे।
\s5
\v 8 और जब तू ख़ुदावन्द के सामने सोख़्तनी क़ुर्बानी या ख़ास मिन्नत के ज़बीहे या सलामती के ज़बीहे के तौर पर बछड़ा पेश करे,
\v 9 तो वह उस बछड़े के साथ नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर ऐफ़ा के तीन दहाई हिस्से के बराबर मैदा, जिसमें आधे हीन के बराबर तेल मिला हुआ हो चढ़ाए।
\v 10 और तू तपावन के तौर पर आधे हीन के बराबर मय पेश करना, ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी ठहरे।
\s5
\v 11 "हर बछड़े, और हर मेंढे, और हर नर बर्रे या बकरी के बच्चे के लिए ऐसा ही किया जाए।
\v 12 तुम जितने जानवर लाओ, उनके शुमार के मुताबिक़ एक-एक के साथ ऐसा ही करना।
\v 13 जितने देसी ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी पेश करें वह उस वक़्त यह सब काम इसी तरीक़े से करें|
\s5
\v 14 और अगर कोई परदेसी तुम्हारे साथ क़याम करता हो या जो कोई नसलों से तुम्हारे साथ रहता आया हो, और वह ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू की~आतिशीन क़ुर्बानी पेश करना चाहे तो जैसा तुम करते हो वह भी वैसा ही करे।
\v 15 मजमे' के लिए, या'नी तुम्हारे लिए और उस परदेसी के लिए जो तुम में रहता हो नसल-दर-नसल हमेशा एक ही क़ानून रहेगा; ख़ुदावन्द के आगे परदेसी भी वैसे ही हों जैसे तुम हो।
\v 16 तुम्हारे लिए और परदेसियों के लिए जो तुम्हारे साथ रहते हैं एक ही शरी'अत और एक ही क़ानून हो।"
\s5
\v 17 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;
\v 18 ~"बनी-इस्राईल से कह, जब तुम उस मुल्क में पहुँचो, जहाँ मैं तुम को लिए जाता हूँ,
\v 19 ~और उस मुल्क की रोटी खाओ तो ख़ुदावन्द के सामने उठाने की क़ुर्बानी पेश करना।
\s5
\v 20 ~तुम अपने पहले गूँधे हुए आटे का एक गिर्दा उठाने की क़ुर्बानी के तौर पर अदा करना, जैसे खलीहान की उठाने की क़ुर्बानी को लेकर उठाते हो वैसे ही इसे भी उठाना।
\v 21 तुम अपनी नसल-दर-नसल अपने पहले ही गूँधे हुए आटे में से कुछ लेकर उसे ख़ुदावन्द के सामने उठाने की क़ुर्बानी के तौर पर पेश करना।
\s5
\v 22 ~"और अगर तुम से भूल हो जाए और तुमने उन सब हुक्मों पर जो ख़ुदावन्द ने मूसा को दिए 'अमल न किया हो,
\v 23 या'नी जिस दिन से ख़ुदावन्द ने हुक्म देना शुरू' किया उस दिन से लेकर आगे-आगे, जो कुछ हुक्म खुदावन्द ने तुम्हारी नसल-दर-नसल मूसा के ज़रिए' तुम को दिया है,
\v 24 ~उसमें अगर अनजाने में कोई ख़ता हो गई हो और जमा'अत उससे वाक़िफ़ न हो तो सारी जमा'अत एक बछड़ा सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए पेश करे, ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू हो,और उसके साथ शरा' के मुताबिक़ उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और उसका तपावन भी चढ़ाए, और ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा पेश करे।
\s5
\v 25 यूँ काहिन बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत के लिए कफ़्फ़ारा दे तो उनकी मु'आफ़ी मिलेगी, क्यूँकि यह महज़ भूल थी और उन्होंने उस भूल के बदले वह क़ुर्बानी भी चढ़ाई जो ख़ुदावन्द के सामने आतिशी क़ुर्बानी ठहरती है, और ख़ता की क़ुर्बानी भी ख़ुदावन्द के सामने पेश कीं।
\v 26 तब बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत को और उन परदेसियों को भी जो उनमें रहते हैं मु'आफ़ी मिलेगी, क्यूँकि जमा'अत के ऐतबार से यह अनजाने में हुआ।
\s5
\v 27 और अगर एक ही शख़्स अनजाने में ख़ता करे तो वह यक-साला बकरी ख़ता की क़ुर्बानी के लिए चढ़ाए।"
\v 28 ~यूँ काहिन उस शख़्स की तरफ़ से जिसने अनजाने में ख़ता की, उसकी ख़ता के लिए ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दे तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी।
\v 29 जिस शख़्स ने अनजाने में ख़ता की हो, उसके लिए तुम एक ही शरा' रखना चाहे वह बनी-इस्राईल में से देसी हो या परदेसी जो उनमें रहता हो।
\s5
\v 30 लेकिन जो शख़्स बेख़ौफ़ हो कर गुनाह करे, चाहे वह देसी हो या परदेसी, वह ख़ुदावन्द की बे'इज़्ज़ती करता है; वह शख़्स अपने लोगों में से अलग किया जाएगा।
\v 31 क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द के कलाम की हिक़ारत की और उसके हुक्म को तोड़ डाला, वह शख़्स बिल्कुल अलग कर दिया जाएगा, उसका गुनाह उसी के सिर लगेगा।"
\s5
\v 32 और जब बनी-इस्राईल वीरान में रहते थे, उन दिनों एक आदमी उनको सबत के दिन लकड़ियाँ जमा' करता हुआ मिला।
\v 33 ~और जिनकी वह लकड़ियाँ जमा' करता हुआ मिला वह उसे मूसा और हारून और सारी जमा'अत के पास ले गए।
\v 34 ~उन्होंने उसे हवालात में रख्खा, क्यूँकि उनको यह नहीं बताया गया था कि उसके साथ क्या करना चाहिए
\s5
\v 35 तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "यह शख़्स ज़रूर जान से मारा जाए; सारी जमा'अत लश्करगाह के बाहर उसे पथराव करे।"
\v 36 चुनाँचे जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था, उसके मुताबिक़ सारी जमा'अत ने उसे लश्करगाह के बाहर ले जाकर पथराव किया और वह मर गया।
\s5
\v 37 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 38 "बनी-इस्राईल से कह कि वह नसल-दर-नसल अपने लिबासों के किनारों पर झालर लगाएँ, और हर किनारे की झालर के ऊपर आसमानी रंग का डोरा टाँके।
\v 39 यह झालर तुम्हारे लिए ऐसी हो कि जब तुम उसे देखो तो ख़ुदावन्द के सारे हुक्मों को याद करके उन पर 'अमल करो और अपने दिल और आँखों ~की ख़्वाहिशों की पैरवी में ज़िनाकारी न करते फिरो जैसा करते आए हो;
\s5
\v 40 बल्कि मेरे सब हुक्मों को याद करके उनको 'अमल में लाओ और अपने ख़ुदा के लिए पाक हो।
\v 41 ~मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ, जो तुम को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया ताकि तुम्हारा ख़ुदा ठहरूँ। मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।"
\s5
\c 16
\p
\v 1 और कोरह बिन इज़हार बिन क़िहात बिन लावी ने बनी रूबिन में से~इलियाब के बेटों दातन और अबीराम, और पलत के बेटे ओन के साथ मिल कर और आदमियों को साथ लिया;
\v 2 ~और वह और बनी-इस्राईल में से ढाई सौ और अश्ख़ास जो जमा'अत के सरदार और चीदा और मशहूर आदमी थे, मूसा के मुक़ाबले में उठे;
\v 3 और वह मूसा और हारून के ख़िलाफ़ इकट्ठे होकर उनसे कहने लगे, "तुम्हारे तो बड़े दा'वे हो चले, क्यूँकि जमा'अत का एक-एक आदमी पाक है और ख़ुदावन्द उनके बीच रहता है। इसलिए तुम अपने आप को ख़ुदावन्द की जमा'अत से बड़ा क्यूँकर ठहराते हो?"
\s5
\v 4 मूसा यह सुन कर मुँह के बल गिरा।
\v 5 फिर उसने कोरह और उसके कुल फ़रीक़ से कहा कि "कल सुबह ख़ुदावन्द दिखा देगा कि कौन उसका है और कौन पाक है और वह उसी को अपने नज़दीक आने देगा, क्यूँकि जिसे वह ख़ुद चुनेगा उसे वह अपनी क़ुरबत भी देगा।
\s5
\v 6 इसलिए ऐ क़ोरह और उसके फ़रीक़ के लोगों, तुम यूँ करो कि अपना अपना ख़ुशबूदान लो,
\v 7 और उनमें आग भरो और ख़ुदावन्द के सामने कल उनमें ख़ुशबू जलाओ, तब जिस शख़्स को ख़ुदावन्द चुन ले वही पाक ठहरेगा। ऐ लावी के बेटो, बड़े-बड़े दा'वे तो तुम्हारे हैं।"
\s5
\v 8 फिर मूसा ने क़ोरह की तरफ़ मुख़ातिब होकर कहा, "ऐ बनी लावी सुनो,
\v 9 क्या यह तुम को छोटी बात दिखाई देती है कि इस्राईल के ख़ुदा ने तुम को बनी-इस्राईल की जमा'अत में से चुन कर अलग किया, ताकि तुम को वह अपनी क़ुरबत बख़्शे और तुम ख़ुदावन्द के घर की ख़िदमत करो, और जमा'अत के आगे खड़े हो कर उसकी भी ख़िदमत बजा लाओ।
\v 10 और तुझे और तेरे सब भाइयों को जो बनी लावी हैं, अपने नज़दीक आने दिया? इसलिए क्या अब तुम कहानत को भी चाहते हो?
\v 11 इसीलिए तू और तेरे फ़रीक़ के लोग, यह सब के सब ख़ुदावन्द के खिलाफ़ इकट्ठे हुए हैं; और हारून कौन है जो तुम उस की शिकायत करते हो?"
\s5
\v 12 फिर मूसा ने दातन और अबीराम को जो इलियाब के बेटे थे बुलवा भेजा; उन्होंने कहा, "हम नहीं आते;
\v 13 क्या यह छोटी बात है कि तू हम को एक ऐसे मुल्क से, जिसमें दूध और शहद बहता है निकाल लाया है, कि हमको वीरान में हलाक करे, और उस पर भी यह तुर्रा है कि अब तू सरदार बन कर हम पर हुकूमत जताता है?
\v 14 इसके अलावा तूने हम को उस मुल्क में भी नहीं पहुँचाया जहाँ दूध और शहद बहता है, और न हम को खेतों और ताकिस्तानों का वारिस बनाया; क्या तू इन लोगों की आँखें निकाल डालेगा? हम तो नहीं आने के।"
\s5
\v 15 तब मूसा बहुत तैश में आ कर ख़ुदावन्द से कहने लगा, "तू उनके हदिये की तरफ़ तवज्जुह मत कर। मैंने उनसे एक गधा भी नहीं लिया, न उनमें से किसी को कोई नुक़सान पहुँचाया है।"
\v 16 ~फिर मूसा ने कोरह से कहा, "कल तू अपने सारे फ़रीक़ के लोगों को लेकर ख़ुदावन्द के आगे हाज़िर हो; तू भी हो और वह भी हों, और हारून भी हो।
\v 17 ~और तुम में से हर शख़्स अपना ख़ुशबूदान लेकर उसमें~ख़ुशबू~डाले, और तुम अपने-अपने~ख़ुशबूदान को जो शुमार~में~ढाई सौ होंगे, ख़ुदावन्द के सामने लाओ और तू भी अपना~ख़ुशबूदान लाना और हारून भी लाए।"
\s5
\v 18 तब उन्होंने अपना अपना~ख़ुशबूदान लेकर और उनमें आग रख कर उस पर~ख़ुशबू~डाला, और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ~के~दरवाज़े पर मूसा और हारून के साथ आ कर खड़े हुए।
\v 19 और कोरह ने सारी जमा'अत को उनके खिलाफ़ ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर जमा' कर लिया था। तब ख़ुदावन्द का जलाल सारी जमा'अत के सामने नुमायाँ हुआ।
\s5
\v 20 और ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा;
\v 21 कि "तुम अपने आप को इस जमा'अत से बिल्कुल अलग कर लो, ताकि मैं उनको एक पल में भसम कर दूँ।”
\v 22 तब वह मुँह के बल गिर कर कहने लगे, "ऐ ख़ुदा, सब बशर की रूहों के ख़ुदा ! क्या एक आदमी के गुनाह की वजह से से तेरा क़हर सारी जमा'अत पर होगा?"
\s5
\v 23 तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 24 "तू जमा'अत से कह कि तुम क़ोरह और दातन और अबीराम के खेमों के आस पास से दूर हट जाओ।"
\s5
\v 25 ~और मूसा उठ कर दातन और अबीराम की तरफ़ गया, और बनी-इस्राईल के बुज़ुर्ग उसके पीछे पीछे गए।
\v 26 और उसने जमा'अत से कहा, "इन शरीर आदमियों के खेमों से निकल जाओ और उनकी किसी चीज़ को हाथ न लगाओ, ऐसा न हो कि तुम भी उनके सब गुनाहों की वजह से से हलाक हो जाओ।"
\v 27 ~तब वह लोग कोरह और दातन और अबीराम के खेमों के आस पास से दूर हट गए; और दातन और अबीराम अपनी बीवियों और बेटों और बाल-बच्चों समेत निकल कर अपने ख़ेमों के दरवाज़ों पर खड़े हुए।
\s5
\v 28 तब मूसा ने कहा, "इस से तुम जान लोगे के ख़ुदावन्द ने मुझे भेजा है कि यह सब काम करूँ, क्यूँकि मैंने अपनी मर्ज़ी से कुछ नहीं किया।
\v 29 अगर यह आदमी वैसी ही मौत से मरें जो सब लोगों को आती है, या इन पर वैसे ही हादसे गुज़रें जो सब पर गुज़रते हैं, तो मैं ख़ुदावन्द का भेजा हुआ नहीं हूँ।
\v 30 लेकिन अगर ख़ुदावन्द कोई~नया करिश्मा दिखाए, और ज़मीन अपना मुँह खोल दे और इनको इनके घर-बार के साथ निगल जाए और यह जीते जी पाताल में समा जाएँ, तो तुम जानना कि इन लोगों ने ख़ुदावन्द की तहक़ीर की है।"
\s5
\v 31 उसने यह बातें ख़त्म ही की थीं कि ज़मीन उनके पाओं तले फट गई।
\v 32 और ज़मीन ने अपना मुँह खोल दिया और उनको और उनके घर-बार को, और कोरह के यहाँ के सब आदमियों को और उनके सारे माल-ओ-अस्बाब को निगल गई।
\s5
\v 33 तब वह और उनका सारा घर-बार जीते जो पाताल में समा गए और ज़मीन उनके ऊपर बराबर हो गई, और वह जमा'अत में से ख़त्म हो गए।
\v 34 और सब इस्राईली जो उनके आस पास थे उनका चिल्लाना सुन कर यह कहते हुए भागे, कि कहीं ज़मीन हम को भी निगल न ले।
\v 35 और ख़ुदावन्द के सामने से आग निकली और उन ढाई सौ आदमियों को जिन्होंने~ख़ुशबू~पेश करा था भसम कर डाला।
\s5
\v 36 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;
\v 37 ~'हारून काहिन के बेटे इली'अज़र से कह कि वह~ख़ुशबूदान को शोलों में से उठा ले और आग के अंगारों को उधर ही~बिखेर दे क्यूँकि वह पाक हैं।
\v 38 जो ख़ताकार अपनी ही जान के दुश्मन हुए, उनके~ख़ुशबूदानों के पीट पीट कर पत्तर बनाए जाएँ ताकि वह मज़बह पर~मंढे जाएँ, क्यूँकि उन्होंने उनको ख़ुदावन्द के सामने रख्खा था इसलिए वह पाक हैं, और वह बनी-इस्राईल के लिए एक निशान भी ठहरेंगे।”
\s5
\v 39 तब इली'अज़र काहिन ने पीतल के उन~ख़ुशबूदानों को उठा लिया जिनमें उन्होंने जो भसम कर दिए गए थे~ख़ुशबू~पेश करा~था, और मज़बह पर मंढने के लिए उनके पत्तर बनवाए:
\v 40 ~ताकि बनी-इस्राईल के लिए एक यादगार हो कि कोई ग़ैर शख़्स जो हारून की नसल से नहीं, ख़ुदावन्द के सामने~ख़ुशबू~जलाने को नज़दीक न जाए, ऐसा न हो कि वह कोरह और उसके फ़रीक़ की तरह हलाक हो, जैसा ख़ुदावन्द ने उसको~मूसा के ज़रिए' बता दिया था।
\s5
\v 41 ~लेकिन दूसरे ही दिन बनी-इस्राईल की सारी जमाअत ने मूसा और हारून की शिकायत की और कहने लगे, कि तुम ने ख़ुदावन्द के लोगों को मार डाला है।
\v 42 और जब वह जमा'अत मूसा और हारून के ख़िलाफ़ इकट्ठी हो रही थी तो उन्होंने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ की तरफ़ निगाह की, और देखा कि बादल उस पर छाया हुआ है और ख़ुदावन्द का जलाल नुमायाँ है।
\v 43 तब मूसा और हारून ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के सामने आए।
\s5
\v 44 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;
\v 45 ~"तुम इस जमा'अत के बीच से हट जाओ, ताकि मैं इनको एक पल में भसम कर डालूँ।" तब वह मुँह के बल गिरे।
\v 46 ~और मूसा ने हारून से कहा, "अपना~ख़ुशबूदान ले और मज़बह पर से आग लेकर उसमें डाल और उस पर~ख़ुशबू~जला, और जल्द जमा'अत के पास जाकर उनके लिए कफ़्फ़ारा दे क्यूँकि ख़ुदावन्द का क़हर नाज़िल हुआ है और~वबा शुरू' हो गई।”
\s5
\v 47 ~मूसा के कहने के मुताबिक़ हारून~ख़ुशबूदान लेकर जमा'अत के बीच में दौड़ता हुआ गया और देखा कि वबा लोगों में~फैलने लगी है, तब उसने~ख़ुशबू~जलायी और उन लोगों के लिए कफ़्फ़ारा दिया।
\v 48 और वह मुर्दों और ज़िन्दों के बीच~में खड़ा हुआ, तब वबा ख़त्म हुई।
\s5
\v 49 ~तब 'अलावा उनके जो क़ोरह के मुआ'मिले की वजह से से हलाक हुए थे, चौदह हज़ार सात सौ आदमी वबा से हलाक गए।
\v 50 फिर हारून लौट कर ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर मूसा के पास आया और वबा ख़त्म हो गई।
\s5
\c 17
\p
\v 1 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;
\v 2 "बनी-इस्राईल से गुफ़्तगू करके उनके सब सरदारों से उनके आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक, हर ख़ान्दान एक लाठी के हिसाब से बारह लाठियाँ ले; और हर सरदार का नाम उसी की लाठी पर लिख,
\s5
\v 3 और लावी की लाठी पर हारून का नाम लिखना। क्यूँकि उनके आबाई ख़ान्दानों के हर सरदार के लिए एक लाठी होगी।
\v 4 और उनको लेकर ख़ेमा-ए- इजितमा'अ में शहादत के सन्दूक के सामने जहाँ मैं तुम से मुलाक़ात करता हूँ रख देना।
\v 5 और जिस शख़्स को मैं चुनूँगा उसकी लाठी से कलियाँ फूट निकलेंगी, और बनी-इस्राईल जो तुम पर कुड़कुड़ाते रहते हैं, वह कुड़कुड़ाना मैं अपने पास से दफ़ा' करूँगा।"
\s5
\v 6 तब मूसा ने बनी-इस्राईल से गुफ़्तगू की, और उनके सब सरदारों ने अपने आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ हर सरदार एक लाठी के हिसाब से बारह लाठियाँ उस को दीं; और हारून की लाठी भी उनकी लाठियों में थी।
\v 7 और मूसा ने उन लाठियों को शहादत के ख़ेमे में ख़ुदावन्द के सामने रख दिया।
\s5
\v 8 और दूसरे दिन जब मूसा शहादत के ख़ेमे में गया, तो देखा कि हारून की लाठी में जो लावी के ख़ान्दान के नाम की थी कलियाँ फूटी हुई और शगूफ़े खिले हुए और पक्के बादाम लगे हैं।
\v 9 ~और मूसा उन सब लाठियों को ख़ुदावन्द के सामने से निकाल कर सब बनी-इस्राईल के पास ले गया, और उन्होंने देखा और हर शख़्स ने अपनी लाठी ले ली।
\s5
\v 10 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "हारून की लाठी शहादत के सन्दूक़ के आगे धर दे, ताकि वह फ़ित्नाअंगेज़ों के लिए एक निशान के तौर पर रख्खी रहे, और इस तरह तू उनकी शिकायतें जो मेरे ख़िलाफ़ होती रहती हैं बन्द कर दे ताकि वह हलाक न हों।"
\v 11 और मूसा ने जैसा ख़ुदावन्द ने उसे हुक्म दिया था वैसा ही किया।
\s5
\v 12 और बनी-इस्राईल ने मूसा से कहा, "देख, हम हलाक हुए जाते, हम हलाक हुए जाते, हम सब के सब हलाक हुए जाते हैं।
\v 13 जो कोई ख़ुदावन्द के घर के नज़दीक जाता है, मर जाता है। तो क्या हम सब के सब हलाक ही हो जाएँगे?"
\s5
\c 18
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द ने हारून से कहा कि, "हैकल का बार-ए-गुनाह तुझ पर और तेरे बेटों और तेरे आबाई ख़ान्दान पर होगा, और तुम्हारी कहानत का बार-ए-गुनाह भी तुझ पर और तेरे बेटों पर होगा।
\v 2 ~और तू लावी के क़बीले या'नी अपने बाप के क़बीले के लोगों को भी जो तेरे भाई हैं अपने साथ ले आया कर, ताकि वह तेरे साथ होकर तेरी ख़िदमत करें; लेकिन शहादत के ख़ेमे के आगे तू और तेरे बेटे ही आया करें।
\s5
\v 3 ~वह तेरी ख़िदमत और सारे ख़ेमे की मुहाफ़िज़त करें; सिर्फ़ वह हैकल के बर्तनों और मज़बह के नज़दीक न जाएँ, ऐसा न हो कि वह भी और तुम भी हलाक हो जाओ।
\v 4 इसलिए वह तेरे साथ होकर ख़ेमा-ए-इजितमा'अ और ख़ेमे के इस्ते'माल की सब चीज़ों की मुहाफ़िज़त करें,~और कोई ग़ैर शख़्स तुम्हारे नज़दीक न आने पाए।
\v 5 और तुम हैकल और मज़बह की मुहाफ़िज़त करो ताकि आगे को फिर बनी इस्राईल पर क़हर नाज़िल न हो।
\s5
\v 6 और देखो, मैंने बनी लावी को जो तुम्हारे भाई हैं बनी-इस्राईल से अलग करके ख़ुदावन्द की ख़ातिर बख़्शिश के तौर पर तुम को सुपुर्द किया, ताकि वह ख़ेमा-ए-इजितमा'अ की ख़िदमत करें।
\v 7 लेकिन मज़बह की और पर्दे के अन्दर की ख़िदमत तेरे और तेरे बेटों के ज़िम्मे है; इसलिए उसके लिए तुम अपनी कहानत की हिफ़ाज़त करना, वहाँ तुम ही ख़िदमत किया करना, कहानत की ख़िदमत का शर्फ़ मैं तुम को बख़्शता हूँ और जो ग़ैर शख़्स नज़दीक आए वह जान से मारा जाए।"
\s5
\v 8 फिर ख़ुदावन्द ने हारून से कहा, "देख, मैंने बनी-इस्राईल की सब पाक चीज़ों में से उठाने की कुर्बानियाँ तुझे दे दीं; मैंने उनको तेरे मम्सूह होने का हक़ ठहराकर तुझे और तेरे बेटों को हमेशा के लिए दिया।
\v 9 सबसे पाक चीज़ों में से जो कुछ आग से बचाया जाए वह तेरा होगा; उनके सब चढ़ावे, या'नी नज़्र की क़ुर्बानी और ख़ता की क़ुर्बानी और जुर्म की क़ुर्बानी जिनको वह मेरे सामने गुजरानें, वह तेरे और तेरे बेटों के लिए बहुत पाक ठहरें।
\s5
\v 10 और तू उनको बहुत पाक जान कर खाना; मर्द ही मर्द उनको खाएँ, वह तेरे लिए पाक हैं।
\v 11 और अपने हदिये में से जो कुछ बनी-इस्राईल उठाने की क़ुर्बानी और हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर पेश करें वह भी तेरा ही हो, इनको मैं तुझ को और तेरे बेटे-बेटियों को हमेशा के हक़ के तौर पर देता हूँ; तेरे घराने में जितने पाक हैं वह उनको खाएँ।
\s5
\v 12 अच्छे से अच्छा तेल और अच्छी से अच्छी मय और अच्छे से अच्छा गेहूँ, या'नी इन चीज़ों में से जो कुछ वह पहले फल के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश करें वह सब मैंने तुझे दिया।
\v 13 ~उनके मुल्क की सारी पैदावार के पहले पक्के फल, जिनको वह ख़ुदावन्द के सामने लाएँ तेरे होंगे; तेरे घराने में जितने पाक हैं वह उनको खाएँ।
\s5
\v 14 बनी-इस्राईल की हर एक मख़्सूस की हुई चीज़ तेरी होगी।
\v 15 ~उन जानदारों में से जिनको वह ख़ुदावन्द के सामने पेश करते हैं, जितने पहलौठी के बच्चे हैं चाहे वह इंसान के हों चाहे हैवान के वह सब तेरे होंगे; लेकिन इंसान के पहलौठों का फ़िदिया लेकर उनको ज़रूर छोड़ देना और नापाक जानवरों के पहलौठे भी फ़िदिये से छोड़ दिए जाएँ।
\v 16 और जिनका फ़िदिया दिया जाए वह जब एक महीने के हों, तो उनको अपनी ठहराई हुई क़ीमत के मुताबिक़ हैकल की मिस्क़ाल के हिसाब से जो बीस जीरे की होती है चाँदी की पाँच मिस्क़ाल लेकर छोड़ देना।
\s5
\v 17 ~लेकिन गाय और भेड़-बकरी के पहलौठों का फ़िदिया न लिया जाए, वह पाक हैं; तू उनका ख़ून मज़बह पर छिड़कना और उनकी चर्बी आतिशीन क़ुर्बानी के तौर पर जला देना, ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू ठहरे।
\v 18 और उनका गोश्त तेरा होगा जिस तरह हिलाई हुई क़ुर्बानी का सीना और दहनी रान तेरे हैं।
\s5
\v 19 ~जितनी पाक चीज़ें बनी-इस्राईल उठाने की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश करें, उन सभों को मैंने तुझे और तेरे बेटे-बेटियों को हमेशा के हक़ के तौर पर दिया; यह ख़ुदावन्द के सामने तेरे और तेरी नसल के लिए नमक का दाइमी 'अहद है।"
\v 20 और ख़ुदावन्द ने हारून से कहा, "उनके मुल्क में तुझे कोई मीरास नहीं मिलेगी और न उनके बीच तेरा कोई हिस्सा होगा क्यूँकि बनी-इस्राईल में तेरा हिस्सा और तेरी मीरास मैं हूँ |
\s5
\v 21 'और बनी लावी को उस ख़िदमत के मु'आवज़े में जो वह ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में करते हैं मैंने बनी इस्राईल की सारी दहेकी मौरूसी हिस्से के तौर पर दी।
\v 22 और आगे को बनी-इस्राईल ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के नज़दीक हरगिज़ न आएँ, ऐसा न हो कि गुनाह उनके सिर लगे और वह मर जाएँ।
\s5
\v 23 बल्कि बनी लावी ख़ेमा-ए-इजतिमा'अ की ख़िदमत करें और वहीँ उनका बार-ए-गुनाह उठाएँ; तुम्हारी नसल-दर-नसल यह एक दाइमी क़ानून हो, और बनीइस्राईल के बीच उनको कोई मीरास न मिले।
\v 24 ~क्यूँकि मैंने बनी-इस्राईल की दहेकी को, जिसे वह उठाने की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश करेंगे उनका मौरूसी हिस्सा कर दिया है; इसी वजह से मैंने उनके हक़ में कहा है कि बनी-इस्राईल के बीच उनकी कोई मीरास न मिले।"
\s5
\v 25 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,
\v 26 ~"तू लावियों से इतना कह देना कि जब तुम बनी-इस्राईल से उस दहेकी को लो जिसे मैंने उनकी तरफ़ से तुम्हारा मौरूसी हिस्सा कर दिया है, तो तुम उस दहेकी की दहेकी ख़ुदावन्द के सामने उठाने की क़ुर्बानी के लिए पेश करना।
\v 27 और यह तुम्हारी उठाई हुई क़ुर्बानी तुम्हारी तरफ़ से ऐसी ही समझी जाएगी जैसे खलिहान का गल्ला और कोल्हू की मय समझी जाती है।
\s5
\v 28 इस तरीक़े से तुम भी अपनी सब दहेकियों में से जो तुम को बनी इस्राईल की तरफ़ से मिलेगी ख़ुदावन्द के सामने उठाने की क़ुर्बानी पेश करना, और ख़ुदावन्द की यह उठाई हुई क़ुर्बानी हारून काहिन को देना।
\v 29 जितने नज़राने तुम को मिलें उनमें से उनका अच्छे से अच्छा हिस्सा, जो पाक किया गया है और ख़ुदावन्द का है, तुम उठाने की क़ुर्बानी के तौर पर पेश करना।
\s5
\v 30 इसलिए तू उनसे कह देना कि जब तुम इनमें से उनका अच्छे से अच्छा हिस्सा उठाने की क़ुर्बानी के तौर पर पेश करोगे, तो वह लावियों के हक़ में खलिहान के भरे गल्ले और कोल्हू की भरी मय के बराबर का हिसाब होगा।
\v 31 ~और इनको तुम अपने घरानों के साथ हर जगह खा सकते हो, क्यूँकि यह उस ख़िदमत के बदले तुम्हारा मजदूरी है जो तुम ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ में करोगे।
\v 32 ~और जब तुम उसमें से अच्छे से अच्छा हिस्सा उठाने की क़ुर्बानी के तौर पर पेश करोगे, तो तुम उसकी वजह से गुनाहगार न ठहरोगे; और ख़बरदार बनी इस्राईल की पाक चीज़ों को नापाक न करना ताकि तुम हलाक न हो|
\s5
\c 19
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा,
\v 2 कि "शरी'अत के जिस क़ानून का हुक्म ख़ुदावन्द ने दिया है वह यह है, कि तू बनी-इस्राईल से कह कि वह तेरे पास एक बेदाग़ और बे-'ऐब सुर्ख़ रंग की बछिया लाएँ, जिस पर कभी बोझ न रख्खा गया हो।
\s5
\v 3 और तुम उसे लेकर इली'अज़र काहिन को देना कि वह उसे लश्करगाह के बाहर ले जाए, और कोई उसे उसी के सामने ज़बह कर दे;
\v 4 और इली'अज़र काहिन अपनी उंगली से उसका कुछ ख़ून लेकर उसे ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के आगे की तरफ़ सात बार छिड़के।
\v 5 फिर कोई उसकी आँखों के सामने उस गाय को जला दे; या'नी उसका चमड़ा, और गोश्त, और ख़ून, और गोबर, इन सब को वह जलाए।
\v 6 फिर काहिन देवदार की लकड़ी और जूफ़ा और सुर्ख़ कपड़ा लेकर उस आग में जिसमें गाय जलती हो डाल दे।
\s5
\v 7 तब काहिन अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे; इसके बा'द वह लश्करगाह के अन्दर आए, फिर भी काहिन शाम तक नापाक रहेगा।
\v 8 ~और जो उस गाय को जलाए वह भी अपने कपड़े पानी से धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और वह भी शाम तक नापाक रहेगा।
\s5
\v 9 ~और कोई पाक शख़्स उस गाय की राख को बटोरे, और उसे लश्करगाह के बाहर किसी पाक जगह में धर दे; यह बनी-इस्राईल की जमा'अत के लिए नापाकी दूर करने के पानी के लिए रख्खी रहे, क्यूँकि यह ख़ता की क़ुर्बानी है।
\v 10 और जो उस गाय की राख को बटोरे वह भी अपने कपड़े धोए और वह भी शाम तक नापाक रहेगा, और यह बनी-इस्राईल के और उन परदेसियों के लिए जो उनमें क़याम करते हैं एक दाइमी क़ानून होगा।
\s5
\v 11 ~'जो कोई किसी आदमी की लाश को छुए वह सात दिन तक नापाक रहेगा।
\v 12 ~ऐसा आदमी तीसरे दिन उस राख से अपने को साफ़ करे तो वह सातवें दिन पाक ठहरेगा लेकिन अगर वह तीसरे दिन अपने को साफ़ न करे तों वह सातवें दिन पाक नहीं ठहरेगा |
\v 13 जो कोई आदमी की लाश को छूकर अपने को साफ़ न करे वह ख़ुदावन्द के घर को नापाक करता है, वह शख़्स इस्राईल में से अलग किया जाएगा क्यूँकि नापाकी दूर करने का पानी उस पर छिड़का नहीं गया इसलिए वह नापाक है उसकी नापाकी अब तक उस पर है|
\s5
\v 14 ~अगर कोई आदमी किसी ख़ेमे में मर जाए तो उसके बारे में शरा' यह है, कि जितने उस ख़ेमे में आएँ और जितने उस ख़ेमे में रहते हों वह सात दिन तक नापाक रहेंगे।
\v 15 और हर एक खुला बर्तन जिसका ढकना उस पर बन्धा न हो नापाक ठहरेगा।
\v 16 और जो कोई मैदान में तलवार के मक़तूल को या मुर्दे को या आदमी की हड्डी को या किसी क़ब्र को छुए वह सात दिन तक नापाक रहेगा।
\s5
\v 17 और नापाक आदमी के लिए उस जली हुई ख़ता की क़ुर्बानी की राख को किसी बर्तन में लेकर उस पर बहता पानी डालें।
\v 18 फिर कोई पाक आदमी जूफ़ा लेकर और उसे पानी में डुबो-डुबोकर उस ख़ेमे पर, और जितने बर्तन और आदमी वहाँ हों उन पर और जिस शख़्स ने हड्डी को, या~मक़तूलको, या मुर्दे को,~या क़ब्र को छुआ है उस पर छिड़के।
\v 19 ~वह पाक आदमी तीसरे दिन और सातवें दिन उस नापाक आदमी पर इस पानी को छिड़के और सातवें दिन उसे साफ़ करे फिर वह अपने कपड़े धोए और पानी से नहाए, तो वह शाम को पाक होगा।
\s5
\v 20 ~'लेकिन जो कोई नापाक हो और अपनी सफ़ाई न करे, वह शख़्स जमा'अत में से अलग किया जाएगा क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द के हैकल को नापाक किया नापाकी दूर करने का पानी उस पर छिड़का नहीं गया इसलिए वह नापाक है|
\v 21 और यह उनके लिए एक दाइमी क़ानून हो; जो नापाकी दूर करने के पानी को लेकर छिड़के वह अपने कपड़े धोए, और जो कोई नापाकी दूर करने के पानी को छुए वह भी शाम तक नापाक रहेगा।
\v 22 और जिस किसी चीज़ को वह नापाक आदमी छुए~वह चीज़ नापाक ठहरेगी, और जो कोई उस चीज़ को छू ले वह भी शाम तक नापाक रहेगा|
\s5
\c 20
\p
\v 1 और पहले महीने में बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत सीन के जंगल में आ गई और वह लोग क़ादिस में रहने लगे, और मरियम ने वहाँ वफ़ात पाई और वहीं दफ़्न हुई।
\s5
\v 2 और जमा'अत के लोगों के लिए वहाँ पानी न मिला, इसलिए वह मूसा और हारून के बरख़िलाफ़ इकट्ठे हुए।
\v 3 और लोग मूसा से झगड़ने और यह कहने लगे, "हाय, काश हम भी उसी वक़्त मर जाते जब हमारे भाई ख़ुदावन्द के सामने मरे।
\s5
\v 4 तुम ख़ुदावन्द की जमा'अत को इस जंगल में क्यूँ ले आए हो कि हम भी और हमारे जानवर भी यहाँ मरें?
\v 5 और तुम ने क्यूँ हम को मिस्र से निकाल कर इस बुरी जगह पहुँचाया है? यह तो बोने की और अंजीरों और ताकों और अनार की जगह नहीं है बल्कि यहाँ तो पीने के लिए पानी तक हासिल नहीं।”
\s5
\v 6 और मूसा और हारून जमा'अत के पास से जाकर ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर औंधे मुँह गिरे। तब ख़ुदावन्द का जलाल उन पर ज़ाहिर हुआ,
\s5
\v 7 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,
\v 8 ~"उस लाठी को ले और तू और तेरा भाई हारून, तुम दोनों जमा'अत को इकट्ठा करो और उनकी आँखों के सामने उस चट्टान से कहो कि वह अपना पानी दे; और तू उनके लिए~चट्टान~ही से पानी निकालना, यूँ जमा'अत को और उनके चौपायों को पिलाना।"
\v 9 चुनाँचे मूसा ने ख़ुदावन्द के सामने से उसी के हुक्म के मुताबिक़ वह लाठी ली।
\s5
\v 10 और मूसा और हारून ने जमा'अत को उस चट्टान के सामने इकट्ठा किया, और उसने उनसे कहा, “सुनो, ऐ बाग़ियों, क्या हम तुम्हारे लिए इसी चट्टान से पानी निकालें?"
\v 11 तब मूसा ने अपना हाथ उठाया और उस चट्टान पर दो बार लाठी मारी, और कसरत से पानी बह निकला और जमा'अत ने और उनके चौपायों ने पिया।
\s5
\v 12 लेकिन मूसा और हारून से ख़ुदावन्द ने कहा, "चूँकि तुम ने मेरा यक़ीन नहीं किया कि बनी-इस्राईल के सामने मेरी तक़दीस करते, इसलिए तुम इस जमा'अत को उस मुल्क में जो मैंने उनको दिया है नहीं पहुँचाने पाओगे।"
\v 13 मरीबा का चश्मा यही है क्यूँकि बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द से झगड़ा किया और वह उनके बीच क़ुद्दूस साबित हुआ।
\s5
\v 14 और मूसा ने क़ादिस से अदोम के बादशाह के पास क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा कि "तेरा भाई इस्राईल यह 'अर्ज़ करता है, कि तू हमारी सारी मुसीबतों से जो हम पर आईं वाकिफ़ है;
\v 15 ~कि हमारे बाप दादा मिस्र में गए और हम बहुत मुद्दत तक मिस्र में रहे, और मिस्रियों ने हम से और हमारे बाप दादा से बुरा सुलूक किया।
\v 16 और जब हमने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की तो उसने हमारी सुनी, और एक फ़रिश्ते को भेज कर हम को मिस्र से निकाल ले आया है, और अब हम क़ादिस शहर में हैं जो तेरी सरहद के आख़िर में वाक़े' है।
\s5
\v 17 इसलिए हम को अपने मुल्क में से होकर जाने की इजाज़त दे। हम खेतों और ताकिस्तानों~में से होकर नहीं गुज़रेंगे, और न कुओं का पानी पिएँगे; हम शाहराह पर चल कर जाएँगे और दहने या बाएँ हाथ नहीं मुड़ेंगे, जब तक तेरी सरहद से बाहर निकल न जाएँ।"
\s5
\v 18 लेकिन शाह-ए-अदोम ने कहला भेजा, "तू मेरे मुल्क से होकर जाने नहीं पाएगा, वरना मैं तलवार लेकर तेरा सामना करूँगा।"
\v 19 बनी-इस्राईल ने उसे फिर कहला भेजा कि "हम सड़क ही सड़क जाएँगे, और अगर हम या हमारे चौपाये तेरा पानी भी पिएँ तो उसका दाम देंगे; हम को और कुछ नहीं चाहिए अलावा इसके कि हम को पॉव-पाँव चल कर निकल जाने दे।"
\s5
\v 20 लेकिन उसने कहा, "तू हरगिज़ निकलने नहीं पाएगा।” और अदोम उसके मुक़ाबले के लिए बहुत से आदमी और हथियार लेकर निकल आया।
\v 21 ~यूँ अदोम ने इस्राईल को अपनी हदों से गुज़रने का रास्ता देने से इन्कार किया, इसलिए इस्राईल उसकी तरफ़ से मुड़ गया।
\s5
\v 22 और बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत क़ादिस से रवाना होकर कोह-ए-हूर पहुँची।
\v 23 और ख़ुदावन्द ने कोह-ए-हूर पर, जो अदोम की सरहद से मिला हुआ था, मूसा और हारून से कहा,
\v 24 ~'हारून अपने लोगों में जा मिलेगा, क्यूँकि वह उस मुल्क में जो मैने बनी-इस्राईल को दिया है जाने नहीं पाएगा, इसलिए कि मरीबा के चश्मे पर तुम ने मेरे कलाम के ख़िलाफ़ 'अमल किया।
\s5
\v 25 ~इसलिए तू हारून और उसके बेटे इली'अज़र को अपने साथ लेकर कोह-ए-हूर के ऊपर आ जा।
\v 26 और हारून के लिबास को उतार कर उसके बेटे इली'अज़र को पहना देना, क्यूँकि हारून वहीं वफ़ात पाकर अपने लोगों में जा मिलेगा।"
\s5
\v 27 और मूसा ने ख़ुदा के हुक्म के मुताबिक़ 'अमल किया, और वह सारी जमा'अत की आँखों के सामने कोह-ए-हूर पर चढ़ गए।
\v 28 और मूसा ने हारून के लिबास को उतार कर उस के बेटे इली'अज़र को पहना दिया, और हारून ने वहीं पहाड़ की चोटी पर रहलत की। तब मूसा और इली'अजर पहाड़ पर से उतर आए।
\v 29 ~जब जमा'अत ने देखा कि हारून ने वफ़ात पाई तो इस्राईल के सारे घराने के लोग हारून पर तीस दिन तक मातम करते रहे।
\s5
\c 21
\p
\v 1 और जब 'अराद के कना'नी बादशाह ने जो दख्खिन की तरफ़ रहता था सुना, कि इस्राईली अथारिम की राह से आ रहे हैं, तो वह इस्राईलियों से लड़ा और उनमें से कई एक को ग़ुलाम कर लिया।
\v 2 ~तब इस्राईलियों ने ख़ुदावन्द के सामने मिन्नत मानी और कहा कि "अगर तू सचमुच उन लोगों को हमारे हवाले कर दे तो हम उनके शहरों को बर्बाद कर देंगे।"
\v 3 और ख़ुदावन्द ने इस्राईल की फ़रियाद सुनी और कना'नियों को उन के हवाले कर दिया; और उन्होंने उनको और उनके शहरों को बर्बाद कर दिया, चुनाँचे उस जगह का नाम भी हुरमा पड़ गया।
\s5
\v 4 फिर उन्होंने कोह-ए-होर से रवाना होकर बहर-ए-क़ुलज़ुम का रास्ता लिया, ताकि मुल्क-ए-अदोम के बाहर-बाहर घूम कर जाएँ; लेकिन उन लोगों की जान उस रास्ते से 'आजिज़ आ गई।
\v 5 और लोग ख़ुदा की और मूसा की~शिकायत करके कहने लगे कि " तुम क्यूँ हम को मिस्र से वीरान में मरने के लिए ले आए? यहाँ तो न रोटी है, न पानी, और हमारा जी इस निकम्मी ख़ुराक से कराहियत करता है।”
\s5
\v 6 तब ख़ुदावन्द ने उन लोगों में जलाने वाले साँप भेजे, उन्होंने लोगों को काटा और बहुत से इस्राईली मर गए।
\v 7 तब वह लोग मूसा के पास आकर कहने लगे कि "हम ने गुनाह किया, क्यूँकि हम ने ख़ुदावन्द की और तेरी शिकायत की; इसलिए तू ख़ुदावन्द से दु'आ कर कि वह इन साँपों को हम से दूर करे।” चुनौंचे मूसा ने लोगों के लिए दु'आ की।
\s5
\v 8 ~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि "एक जलाने वाला साँप बना ले और उसे एक बल्ली पर लटका दे, और जो साँप का डसा हुआ उस पर नज़र करेगा वह ज़िन्दा बचेगा।"
\v 9 चुनाँचे मूसा ने पीतल का एक साँप बनवाकर उसे बल्ली पर लटका दिया; और ऐसा हुआ कि जिस जिस साँप के डसे हुए आदमी ने उस पीतल के साँप पर निगाह की वह ज़िन्दा बच गया।
\s5
\v 10 और बनी-इस्राईल ने वहाँ से रवानगी की और ओबूत में आकर ख़ेमे डाले।
\v 11 फिर ओबूत से कूच किया और 'अय्ये 'अबारीम में, जो पश्चिम की तरफ़ मोआब के सामने के वीरान में वाके' है ख़ेमे डाले।
\s5
\v 12 और वहाँ से रवाना होकर वादी-ए-ज़रद में ख़ेमे डाले।
\v 13 ~जब वहाँ से चले तो अरनोन से पार हो कर, जो अमोरियों की सरहद से निकल कर वीरान में बहती है, ख़ेमे डाले: क्यूँकि मोआब और अमोरियों के बीच अरनोन मोआब की सरहद है।
\s5
\v 14 इसी वजह से ख़ुदावन्द के जंग नामे में यूँ लिखा है : "वाहेब जो सूफ़ा में है, और अरनोन के नाले
\v 15 और उन नालों का ढलान जो 'आर शहर तक जाता है, और मोआब की सरहद से मुतसिल है।"
\s5
\v 16 फिर इस जगह से वह बैर को गए; यह वही कुवाँ है जिसके बारे में ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा था कि "इन लोगों को एक जगह जमा' कर, और मैं इनको पानी दूँगा।"
\s5
\v 17 तब इस्राईल ने यह गीत गाया: 'ऐ कुएँ, तू उबल आ! तुम इस कुएँ की ता'रीफ़ गाओ।
\v 18 यह वही कुआँ है जिसे रईसों ने बनाया, और क़ौम के अमीरों ने अपने 'असा और लाठियों से खोदा।" तब वह उस जंगल से मत्तना को गए,
\s5
\v 19 और मत्तना से नहलीएल को, और नहलीएल से बामात को,
\v 20 और बामात से उस वादी में पहुँच कर जो मोआब के मैदान में है, पिसगा की उस चोटी तक निकल गए जहाँ से यशीमोन नज़र आता है।
\s5
\v 21 और इस्राईलियों ने अमोरियों के बादशाह सीहोन के पास क़ासिद रवाना किए और यह कहला भेजा कि;
\v 22 "हम को अपने मुल्क से गुज़र जाने दे; हम खेतों और अँगूर के बाग़ों में नहीं घुसेंगे, और न कुओं का पानी पीएँगे, बल्कि शाहराह से सीधे चले जाएँगे जब तक तेरी हद के बाहर न हो जाएँ।”
\v 23 लेकिन सीहोन ने इस्राईलियों को अपनी हद में से गुज़रने न दिया; बल्कि सीहोन अपने सब लोगों को इकट्ठा करके इस्राईलियों के मुक़ाबले के लिए वीरान में पहुँचा, और उसने यहज़ में आकर इस्राईलियों से जंग की।
\s5
\v 24 और इस्राईल ने उसे तलवार की धार से मारा और उसके मुल्क पर, अरनोन से लेकर यब्बोक़ तक जहाँ बनी 'अम्मोन की सरहद है क़ब्ज़ा कर ~लिया; क्यूँकि बनी 'अम्मोन की सरहद मज़बूत थी।
\v 25 तब बनी-इस्राईल ने यहाँ के सब शहरों को ले लिया और अमोरियों के सब शहरों में, या'नी हस्बोन और उसके आस पास के कस्बों में बनी-इस्राईल बस गए।
\v 26 हस्बोन अमोरियों के बादशाह सीहोन का शहर था, इसने मोआब के अगले बादशाह से लड़कर उसके सारे मुल्क को, अरनोन तक उससे छीन लिया था।
\s5
\v 27 ~इसी वजह से मिसाल कहने वालों की यह कहावत है कि "हस्बोन में आओ, ताकि सीहोन का शहर बनाया और मज़बूत किया जाए।
\v 28 क्यूँकि हस्बोन से आग निकली, सीहोन के शहर से शोला बरामद हुआ, इसने मोआब के 'आर शहर को और अरनोन के ऊँचे मक़ामात के सरदारों को भसम कर दिया।
\s5
\v 29 ऐ, मोआब! तुझ पर नोहा है। ऐ कमोस के मानने वालों! तुम हलाक हुए, उसने अपने बेटों को जो भागे थे और अपनी बेटियों को ग़ुलामों की तरह अमोरियों के बादशाह सीहोन के हवाले किया।
\v 30 हमने उन पर तीर चलाए, इसलिए हस्बोन दीबोन तक तबाह हो गया, बल्कि हम ने नुफ़ा तक सब कुछ उजाड़ दिया। वह नुफ़ा जो मीदबा से मुत्तसिल है।"
\s5
\v 31 ~तब बनी-इस्राईल अमोरियों के मुल्क में रहने लगे।
\v 32 और मूसा ने या'ज़ेर की जासूसी कराई; फिर उन्होंने उसके गाँव ले लिए और अमोरियों को जो वहाँ थे निकाल दिया।
\s5
\v 33 और वह घूम कर बसन के रास्ते से आगे को बढ़े और बसन का बादशाह 'ओज अपने सारे लश्कर को लेकर निकला, ताकि अदर'ई में उनसे जंग करे।
\v 34 ~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "उससे मत डर, क्यूँकि मैंने उसे और उसके सारे लश्कर को और उसके मुल्क को तेरे हवाले कर दिया है। इसलिए जैसा तूने अमोरियों के बादशाह सीहोन के साथ जो हस्बोन में रहता था किया है, वैसा ही इसके साथ भी करना।"
\v 35 चुनाँचे उन्होंने उसको और उसके बेटों और सब लोगों को यहाँ तक मारा कि उसका कोई बाक़ी न रहा, और उसके मुल्क को अपने क़ब्ज़े में कर लिया।
\s5
\c 22
\p
\v 1 फिर बनी-इस्राईल रवाना हुए और दरिया-ए-यरदन के पार मोआब के मैदानों में यरीहू के सामने ख़ेमे खड़े किए।
\s5
\v 2 और जो कुछ बनी-इस्राईल ने अमोरियों के साथ किया था वह सब बलक़ बिन सफ़ोर ने देखा था।
\v 3 इसलिए मोआबियों को इन लोगों से बड़ा ख़ौफ़ आया, क्यूँकि यह बहुत से थे; ग़र्ज़ मोआबी बनी-इस्राईल की वजह से से परेशान हुए।
\v 4 ~तब मोआबियों ने मिदियानी बुज़ुर्गों से कहा, "जो कुछ हमारे आस पास है उसे यह लश्कर ऐसा चट कर जाएगा जैसे बैल मैदान की घास को चट कर जाता है।” उस वक़्त बलक़ बिन सफ़ोर मोआबियों का बादशाह था।
\s5
\v 5 इसलिए उस ने ब'ओर के बेटे बल'आम के पास फ़तोर को, जो बड़े दरिया कि किनारे उसकी क़ौम के लोगों का मुल्क था, क़ासिद रवाना किए कि उसे बुला लाएँ और यह कहला भेजा, "देख, एक क़ौम मिस्र से निकलकर आई है, उनसे ज़मीन की सतह छिप गई है; अब वह मेरे सामने ही आकर जम गए हैं।
\v 6 इसलिए अब तू आकर मेरी ख़ातिर इन लोगों पर ला'नत कर, क्यूँकि यह मुझ से बहुत क़वी हैं; फिर मुम्किन है कि मैं ग़ालिब आऊँ, और हम सब इनको मार कर इस मुल्क से निकाल दें; क्यूँकि यह मैं जानता हूँ कि जिसे तू बरकत देता है उसे बरकत मिलती है, और जिस पर तू ला'नत करता है वह मला'ऊन होता है।”
\s5
\v 7 तब मोआब के बुज़ुर्ग और मिदियान के बुज़ुर्ग फ़ाल खोलने का इनाम साथ लेकर रवाना हुए और बल'आम के पास पहुँचे और बलक़ का पैग़ाम उसे दिया।
\v 8 उसने उनसे कहा, "आज रात यहीं ठहरो और जो कुछ ख़ुदावन्द मुझ से कहेगा, उसके मुताबिक़ मैं तुम को जवाब दूँगा।" चुनाँचे मोआब के हाकिम बल'आम के साथ ठहर गए।
\s5
\v 9 और ख़ुदा ने बल'आम के पास आकर कहा, "तेरे यहाँ यह कौन आदमी हैं?"
\v 10 बल'आम ने ख़ुदा से कहा, "मोआब के बादशाह बलक़ बिन सफ़ोर ने मेरे पास कहला भेजा है, कि
\v 11 जो कौम मिस्र से निकल कर आई है उससे ज़मीन की सतह छिप गई है, इसलिए तू अब आकर मेरी ख़ातिर उन पर ला'नत कर, फिर मुम्किन है कि मैं उनसे लड़ सकूँ और उनको निकाल दूँ।”
\s5
\v 12 ~ख़ुदा ने बल'आम से कहा, "तू इनके साथ मत जाना, तू उन लोगों पर ला'नत न करना, इसलिए कि वह मुबारक हैं।"
\v 13 ~बल'आम ने सुबह को उठ कर बलक़ के हाकिमों से कहा, "तुम अपने मुल्क को लौट जाओ, क्यूँकि ख़ुदावन्द मुझे तुम्हारे साथ जाने की इजाज़त नहीं देता।"
\v 14 और मोआब के हाकिम चले गए और जाकर बलक़ से कहा, 'बल'आम हमारे साथ आने से इंकार करता है।”
\s5
\v 15 ~तब दूसरी दफ़ा' बलक़ ने और हाकिमों को भेजा, जो पहलों से बढ़ कर मु'अज़िज़ और शुमार में भी ज़्यादा थे।
\v 16 उन्होंने बल'आम के पास जाकर उस से कहा, "बलक़ बिन सफ़ोर ने यूँ कहा है, कि मेरे पास आने में तेरे लिए कोई रुकावट न हो;
\v 17 क्यूँकि मैं बहुत 'आला मन्सब पर तुझे मुम्ताज़ करूँगा, और जो कुछ तू मुझ से कहे मैं वही करूँगा; इसलिए तू आ जा और मेरी ख़ातिर इन लोगों पर ला'नत कर।”
\s5
\v 18 बल'आम ने बलक़ के ख़ादिमों को जवाब दिया, "अगर बलक़ अपना घर भी चाँदी और सोने से भर कर मुझे दे, तो भी मैं ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्म से तजावुज़ नहीं कर सकता, कि उसे घटाकर या बढ़ा कर मानूँ।
\v 19 ~इसलिए अब तुम भी आज रात यहीं ठहरो, ताकि मैं देखूँ कि ख़ुदावन्द मुझ से और क्या कहता है।"
\v 20 और ख़ुदा ने रात को बल'आम के पास आ कर उससे कहा, "अगर यह आदमी तुझे बुलाने को आए हुए हैं तो तू उठ कर उनके साथ जा; मगर जो बात मैं तुझ से कहूँ उसी पर 'अमल करना।"
\s5
\v 21 तब बल'आम सुबह को उठा, और अपनी गधी पर ज़ीन रख कर मोआब के हाकिमों के साथ चला।
\v 22 और उसके जाने की वजह से ख़ुदा का ग़ज़ब भड़का, और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उससे मुज़ाहमत करने के लिए रास्ता रोक कर खड़ा हो गया। वह तो अपनी गधी पर सवार था और उसके साथ उसके दो मुलाज़िम थे।
\v 23 और उस गधी ने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को देखा, कि वह अपने हाथ में नंगी तलवार लिए हुए रास्ता रोके खड़ा है; तब गधी रास्ता छोड़कर एक तरफ़~हो गई और खेत में चली गई। तब बल'आम ने गधी को मारा ताकि उसे रास्ते पर ले आए।
\s5
\v 24 तब ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता एक नीची राह में जा खड़ा हुआ, जो ताकिस्तानों के बीच से होकर निकलती थी और उसकी दोनों तरफ़ दीवारें थीं।
\v 25 गधी ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को देख कर दीवार से जा लगी और बल'आम का पाँव दीवार से पिचा दिया, इसलिए उसने फिर उसे मारा।
\s5
\v 26 ~तब ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता आगे बढ़ कर एक ऐसे तंग मक़ाम में खड़ा हो गया, जहाँ दहनी या बाई तरफ़ मुड़ने की जगह न थी।
\v 27 फिर जो गधी ने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को देखा तो बल'आम को लिए हुए बैठ गई; फिर तो बल'आम झल्ला उठा और उसने गधी को अपनी लाठी से मारा।
\s5
\v 28 तब ख़ुदावन्द ने गधी की ज़बान खोल दी और उसने बल'आम से कहा, "मैंने तेरे साथ क्या किया है कि तूने मुझे तीन बार मारा?"
\v 29 ~बल'आम ने गधी से कहा, "इसलिए कि तूने मुझे चिढ़ाया; काश मेरे हाथ में तलवार होती, तो मैं तुझे अभी मार डालता।"
\v 30 गधी ने बल'आम से कहा, "क्या मैं तेरी वही गधी नहीं हूँ जिस पर तू अपनी सारी 'उम्र आज तक सवार होता आया है? क्या मैं तेरे साथ पहले कभी ऐसा करती थी?" उसने कहा, "नहीं।"
\s5
\v 31 ~तब ख़ुदावन्द ने बल'आम की आँखें खोलीं, और उसने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को देखा कि वह अपने हाथ में नंगी तलवार लिए हुए रास्ता रोके खड़ा है, तब उसने अपना सिर झुका लिया और औंधा हो गया।
\v 32 ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उसे कहा, "तू ने अपनी गधी को तीन बार क्यूँ मारा? देख, मैं तुझ से मुज़ाहमत करने को आया हूँ, इसलिए कि तेरी चाल मेरी नज़र में टेढ़ी है।
\v 33 और गधी ने मुझ को देखा, और वह तीन बार मेरे सामने से मुड़ गई। अगर वह मेरे सामने से न हटती तो मैं ज़रूर तुझ को मार ही डालता, और उसको ज़िन्दा छोड़ देता।"
\s5
\v 34 ~बल'आम ने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते से कहा, "मुझ से ख़ता हुई, क्यूँकि मुझे मा'लूम न था कि तू मेरा रास्ता रोके खड़ा है। इसलिए अगर अब तुझे बुरा लगता है तो मैं लौट जाता हूँ।"
\v 35 ~ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने बल'आम से कहा, "तू इन आदमियों के साथ चला ही जा, लेकिन सिर्फ़ वही बात कहना जो मैं तुझ से कहूँ।" तब बल'आम बलक़ के हाकिमों के साथ गया।
\s5
\v 36 जब बलक़ ने सुना कि बल'आम आ रहा है, तो वह उसके इस्तक़बाल के लिए मोआब के उस शहर तक गया जो अरनोन की सरहद पर उसकी हदों के इन्तिहाई हिस्से में वाक़े' था।
\v 37 तब बलक़ ने बल'आम से कहा, "क्या मैंने बड़ी उम्मीद के साथ तुझे नहीं बुलवा भेजा था? फिर तू मेरे पास क्यूँ न चला आया? क्या मैं इस क़ाबिल नहीं कि तुझे 'आला मन्सब पर मुम्ताज़ करूँ?"
\s5
\v 38 बल'आम ने बलक़ को जवाब दिया, "देख, मैं तेरे पास आ तो गया हूँ लेकिन क्या मेरी इतनी मजाल है कि मैं कुछ बोलूँ? जो बात ख़ुदा मेरे मुँह में डालेगा, वही मैं कहूँगा।"
\v 39 और बल'आम बलक़ के साथ-साथ चला और वह करयत हुसात में पहुँचे।
\v 40 ~बलक़ ने बैल और भेड़ों की क़ुर्बानी पेश कीं, और बल'आम और उन हाकिमों के पास जो उसके साथ थे क़ुर्बानी का गोश्त भेजा।
\s5
\v 41 दूसरे दिन सुबह को बलक़ बल'आम को साथ लेकर उसे बा'ल के बुलन्द मक़ामों पर ले गया। वहाँ से उसने दूर दूर के इस्राईलियों को देखा।
\s5
\c 23
\p
\v 1 और बल'आम ने बलक़ से कहा,मेरे लिए यहाँ सात मज़बहे बनवा दे, और सात बछड़े और सात मेंढे मेरे लिए यहाँ तैयार कर रख।”
\v 2 बलक़ ने बल'आम के कहने के मुताबिक़ किया, और बलक़ और बल'आम ने हर मज़बह पर एक बछड़ा और एक मेंढा चढ़ाया।
\v 3 फिर बल'आम ने बलक़ से कहा, "तू अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी के पास खड़ा रह, और मैं जाता हूँ, मुम्किन है कि ख़ुदावन्द मुझ से मुलाक़ात करने को आए। इसलिए जो कुछ वह मुझ पर ज़ाहिर करेगा, मैं तुझे बताऊँगा।" और वह एक बरहना पहाड़ी पर चला गया।
\s5
\v 4 और ख़ुदा बल'आम से मिला; उसने उससे कहा मैंने सात मज़बहे तैयार किए हैं और उन पर एक-एक बछड़ा और एक-एक मेंढा चढ़ाया है।"
\v 5 ~तब ख़ुदावन्द ने एक बात बल'आम के मुँह में डाली और कहा कि "बलक़ के पास लौट जा, और यूँ कहना।"
\v 6 तब वह उसके पास लौट कर आया और क्या देखता है, कि वह अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी के पास मोआब के सब हाकिमों के साथ खड़ा है।
\s5
\v 7 तब उसने अपनी मिसाल शुरू' की, और कहने लगा, "बलक़ ने मुझे अराम से, या'नी शाह-ए-मोआब ने पश्चिम के पहाड़ों से बुलवाया, कि आ जा, और मेरी ख़ातिर या'क़ूब पर ला'नत कर, आ, इस्राईल को~फटकार !
\v 8 ~मैं उस पर ला'नत कैसे करूँ, जिस पर ख़ुदा ने ला'नत नहीं की? मैं उसे कैसे फटकारूँ, जिसे ख़ुदावन्द ने नहीं फटकारा
\s5
\v 9 चट्टानों की चोटी पर से वह मुझे नज़र आते हैं, और पहाड़ों पर से मैं उनको देखता हूँ। देख, यह वह क़ौम है जो अकेली बसी रहेगी, और दूसरी क़ौमों के साथ मिल कर इसका शुमार न होगा।
\s5
\v 10 ~या'क़ूब की गर्द के ज़र्रों को कौन गिन सकता है, और बनीइस्राईल की चौथाई को कौन शुमार कर सकता है? काश, मैं सादिक़ों की मौत मरूँ और मेरी 'आक़बत भी उन ही की तरह हो।"
\s5
\v 11 तब बलक़ ने बल'आम से कहा, "ये तूने मुझ से क्या किया? मैंने तुझे बुलवाया ताकि तू मेरे दुश्मनों पर ला'नत करे, और तू ने उनको बरकत ही बरकत दी।"
\v 12 उसने जवाब दिया और कहा क्या मैं उसी बात का ख़याल न करूँ, जो ख़ुदावन्द मेरे मुँह में डाले?'
\s5
\v 13 फिर बलक़ ने उससे कहा, "अब मेरे साथ दूसरी जगह चल, जहाँ से तू उनको देख भी सकेगा; वह सब के सब तो तुझे नहीं दिखाई देंगे, लेकिन जो दूर दूर पड़े हैं उनको देख लेगा; फिर तू वहाँ से मेरी ख़ातिर उन पर ला'नत करना।”
\v 14 ~तब वह उसे पिसगा की चोटी पर, जहाँ ज़ोफ़ीम का मैदान है ले गया; वहीं उसने सात मज़बहे बनाए और हर मज़बह पर एक-एक बछड़ा और एक मेंढा चढ़ाया।
\v 15 ~तब उसने बलक़ से कहा, "तू यहाँ अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी के पास ठहरा रह, जब कि मैं उधर जाकर ख़ुदावन्द से मिल कर आऊँ।"
\s5
\v 16 और ख़ुदावन्द बल'आम से मिला, और उसने उसके मुँह में एक बात डाली, और कहा, 'बलक़ के पास लौट जा, और यूँ कहना।"
\v 17 और जब वह उसके पास लौटा तो क्या देखता है, कि वह अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी कि पास मोआब के हाकिमों के साथ खड़ा है। तब बलक़ ने उससे पूछा, "ख़ुदावन्द ने क्या कहा है?"
\v 18 तब उसने अपनी मिसाल शुरू' की और कहने लगा, "उठ ऐ बलक़, और सुन, ऐ सफ़ोर के बेटे! मेरी बातों पर कान लगा,
\s5
\v 19 ~ख़ुदा इन्सान नहीं कि झूठ बोले, और न वह आदमज़ाद है कि अपना इरादा बदले। क्या, जो कुछ उसने कहा उसे न करे? या, जो फ़रमाया है उसे पूरा न करे?
\v 20 देख, मुझे तो बरकत देने का हुक्म मिला है; उसने बरकत दी है, और मैं उसे पलट नहीं सकता।
\s5
\v 21 वह या'क़ूब में बदी नहीं पाता, और न इस्राईल में कोई ख़राबी देखता है। ख़ुदावन्द उसका ख़ुदा उसके साथ है, और बादशाह के जैसी ललकार उन लोगों के बीच में है।
\v 22 ख़ुदा उनको मिस्र से निकाल कर लिए आ रहा है, उनमें जंगली साँड के जैसी ताक़त है|
\s5
\v 23 या'क़ूब पर कोई जादू नहीं चलता, और न इस्राईल के ख़िलाफ़ फ़ाल कोई चीज़ है; बल्कि या'क़ूब और इस्राईल के हक़ में अब यह कहा जाएगा, कि ख़ुदा ने कैसे कैसे काम किए।
\s5
\v 24 ~देख, यह गिरोह शेरनी की तरह उठती है। और शेर की तरह तन कर खड़ी होती है। वह अब नहीं लेटने को, जब तक शिकार न खा ले। और मक़तूलों~का ख़ून न पी ले।”
\s5
\v 25 तब बलक़ ने बल'आम से कहा, "न तो तू उन पर ला'नत ही कर और न उनको बरकत ही दे।"
\v 26 ~बल'आम ने जवाब दिया, और बलक़ से कहा, "क्या मैंने तुझ से नहीं कहा कि जो कुछ ख़ुदावन्द कहे, वही मुझे करना पड़ेगा?"
\v 27 तब बलक़ ने बल'आम से कहा, 'अच्छा आ, मैं तुझ को एक और जगह ले जाऊँ; शायद ख़ुदा को पसन्द आए कि तू मेरी ख़ातिर वहाँ से उन पर ला'नत करे।"
\s5
\v 28 तब बलक़ बल'आम को फ़गूर की चोटी पर, जहाँ से यशीमोन नज़र आता है ले गया।
\v 29 और बल'आम ने बलक़ से कहा कि "मेरे लिए यहाँ सात मज़बहे बनवा और सात बैल और सात ही मेंढे मेरे लिए तैयार कर रख।”
\v 30 चुनाँचे बलक़ ने, जैसा बल'आम ने कहा वैसा ही किया और हर मज़बह पर एक बैल और एक मेंढा चढ़ाया।
\s5
\c 24
\p
\v 1 जब बल'आम ने देखा कि ख़ुदावन्द को यही मन्ज़ूर है कि इस्राईल को बरकत दे, तो वह पहले की तरह शगून देखने को इधर उधर न गया, बल्कि वीरान की तरफ़ अपना मुँह कर लिया।
\s5
\v 2 और बल'आम ने निगाह की, और देखा कि बनी-इस्राईल अपने-अपने क़बीले की तरतीब से मुक़ीम हैं। और ख़ुदा की रूह उस पर नाज़िल हुई।
\v 3 और उसने अपनी मसल शुरू' की और कहने लगा, ब'ओर का बेटा बल'आम कहता है, या'नी वही शख़्स जिसकी आँखें बन्द थीं यह कहता है,
\s5
\v 4 बल्कि यह उसी का कहना है जो ख़ुदा की बातें सुनता है, और सिज्दे में पड़ा हुआ खुली आँखों से क़ादिर-ए-मुतलक का ख्व़ाब देखता है।
\v 5 ऐ या'क़ूब, तेरे डेरे, ऐ इस्राईल, तेरे ख़ेमें कैसे ख़ुशनुमा हैं!
\s5
\v 6 वह ऐसे फैले हुए हैं, जैसे वादियाँ और दरिया कि किनारे बाग़, और ख़ुदावन्द के लगाए हुए 'ऊद के दरख़्त और नदियों के किनारे देवदार के दरख़्त।
\s5
\v 7 उसके चरसों से पानी बहेगा, और सेराब खेतों में उसका बीज पड़ेगा। उसका बादशाह अजाज से बढ़कर होगा, और उसकी सल्तनत को 'उरूज हासिल होगा।
\s5
\v 8 ख़ुदा उसे मिस्र से निकाल कर लिए आ रहा उसमें जंगली सांड के जैसी ताक़त है, वह उन क़ौमों को जो उसकी दुश्मन हैं, चट कर जाएगा, और उनकी हड्डियों को तोड़ डालेगा और उनको अपने तीरों से छेद-छेद कर मारेगा।
\s5
\v 9 वह दुबक कर बैठा है, वह शेर की तरह बल्कि शेरनी की तरह लेट गया है, अब कौन उसे छेड़े? जो तुझे बरकत दे वह मुबारक, और जो तुझ पर ला'नत करे वह मला'ऊन हो।”
\s5
\v 10 तब बलक़ को बल'आम पर बड़ा ग़ुस्सा आया, और वह अपने हाथ पीटने लगा। फिर उसने बल'आम से कहा, "मैंने तुझे बुलाया कि तू मेरे दुश्मनों पर ला'नत करे, लेकिन तू ने तीनों बार उनको बरकत ही बरकत दी।
\v 11 इसलिए अब तू अपने मुल्क को भाग जा। मैंने तो सोचा था कि तुझे 'आला मन्सब पर मुम्ताज़ करूँ, लेकिन ख़ुदावन्द ने तुझे ऐसे ऐज़ाज़ से महरूम रख्खा।"
\s5
\v 12 बल'आम ने बलक़ को जवाब दिया, "क्या मैंने तेरे उन क़ासिदों से भी जिनको तूने मेरे पास भेजा था। यह नहीं कह दिया था, कि
\v 13 अगर बलक़ अपना घर चाँदी और सोने से भर कर मुझे दे तोभी मैं अपनी मर्ज़ी से भला या बुरा करने की ख़ातिर ख़ुदावन्द के हुक्म से तजावुज़ नहीं कर सकता, बल्कि जो कुछ ख़ुदावन्द कहे मैं वही कहूँगा?
\v 14 ~'और अब मैं अपनी क़ौम के पास लौट कर जाता हूँ, इसलिए तू आ, मैं तुझे आगाह कर दूँ कि यह लोग तेरी क़ौम के साथ आख़िरी दिनों में क्या क्या करेंगे।"
\s5
\v 15 ~चुनौंचे उसने अपनी मिसाल शुरू' की और ~कहने लगा, ब'ओर का बेटा बल'आम कहता है, या'नी वही शख़्स जिसकी आँखें बन्द थी यह कहता है,
\v 16 ~बल्कि यह उसी का कहना है जो ख़ुदा की बातें सुनता है, और हक़ता'ला का इरफ़ान रखता है, और सिज्दे में पड़ा हुआ खुली आँखों से क़ादिर-ए-मुतलक का ख्व़ाब देखता है;
\s5
\v 17 ~मैं उसे देखूँगा तो सही, लेकिन अभी नहीं; वह मुझे नज़र भी आएगा, लेकिन नज़दीक से नहीं; या'क़ूब में से एक सितारा निकलेगा और इस्राईल में से एक 'असा उठेगा, और मोआब के 'इलाक़े को मार मार कर साफ़ कर देगा, और सब हंगामा करने वालों को हलाक कर डालेगा।
\s5
\v 18 और उसके दुश्मन अदोम और श'ईर दोनों उसके क़ब्ज़े में होंगे, और इस्राईल दिलावरी करेगा।
\v 19 और या'क़ूब ही की नसल से वह फ़रमाँरवाँ उठेगा, जो शहर के बाक़ी मान्दा लोगों को हलाक कर डालेगा।"
\s5
\v 20 फिर उसने 'अमालीक पर नज़र करके अपनी यह मसल शुरू' की, और कहने लगा, 'क़ौमोंमें पहली क़ौम 'अमालीक़ की थी, लेकिन उसका अन्जाम हलाकत है।"
\s5
\v 21 और कीनियों की तरफ़ निगाह करके यह मिसाल शुरू' की,और कहने लगा तेरा घर मज़बूत है और तेरा आशियाना भी चट्टान पर बना हुआ है।
\v 22 तोभी क़ीन ख़ाना ख़राब होगा, यहाँ तक कि असूर तुझे ग़ुलाम करके ले जाएगा।"
\s5
\v 23 और उसने यह मसल भी शुरू' की, और कहने लगा, "हाय, अफ़सोस! जब ख़ुदा यह करेगा तो कौन जीता बचेगा?
\v 24 लेकिन कितीम के साहिल से जहाज़ आएँगे, और वह असूर और इब्र दोनों को दुख देंगे। फिर वह भी हलाक हो जाएगा।"
\v 25 इसके बा'द बल'आम उठ कर रवाना हुआ और अपने मुल्क को लौटा, और बलक़ ने भी अपनी राह ली।
\s5
\c 25
\p
\v 1 और इस्राईली शित्तीम में रहते थे, और लोगों ने मोआबी 'औरतों के साथ हरामकारी शुरू' कर दी।
\v 2 क्यूँकि वह~'औरतें इन लोगों को अपने मा'बूदों की क़ुर्बानियों में आने की दावत देती थीं, और यह लोग जाकर खाते और उनके मा'बूदों को सिज्दा करते थे।
\v 3 ~यूँ इस्राईली बा'ल फ़ग़ूर की 'इबादत लगे। तब ख़ुदावन्द का क़हर बनीइस्राईल पर भड़का,
\s5
\v 4 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "क़ौम के सब सरदारों को पकड़कर ख़ुदावन्द के सामने धूप में टाँग दे, ताकि ख़ुदावन्द का शदीद क़हर इस्राईल पर से टल जाए।”
\v 5 तब मूसा ने बनी-इस्राईल के हाकिमों से कहा, "तुम्हारे जो-जो आदमी बा'ल फ़गूर की 'इबादत करने लगे हैं उनको क़त्ल कर डालो।”
\s5
\v 6 और जब बनी-इस्राईल की जमा'अत ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर रो रही थी, तो एक इस्राईली मूसा और तमाम लोगों की आँखों के सामने एक मिदियानी 'औरत को अपने साथ अपने भाइयों के पास ले आया।
\v 7 जब फ़ीन्हास बिन इली'अज़र बिन हारून काहिन ने यह देखा, तो उसने जमा'अत में से उठ हाथ में एक बर्छी ली,
\s5
\v 8 और उस मर्द के पीछे जाकर ख़ेमे के अन्दर घुसा और उस इस्राईली मर्द और उस 'औरत दोनों का पेट छेद दिया। तब बनी-इस्राईल में से वबा जाती रही।
\v 9 और जितने इस वबा से मरे उनका शुमार चौबीस हज़ार था।
\s5
\v 10 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;
\v 11 'फ़ीन्हास बिन इली'अज़र बिन हारून काहिन ने मेरे क़हर को बनी-इस्राईल पर से हटाया क्यूँकि उनके बीच उसे मेरे लिए ग़ैरत आई, इसीलिए मैंने बनी-इस्राईल को~अपनी ग़ैरत के जोश में हलाक नहीं किया।
\s5
\v 12 इसलिए तू कह दे कि मैंने उससे अपना सुलह का 'अहद बाँधा,
\v 13 ~और वह उसके लिए और उसके बा'द उसकी नसल के लिए कहानत का 'दाइमी 'अहद होगा; क्यूँकि वह अपने ख़ुदा के लिए ग़ैरतमन्द हुआ और उसने बनी-इस्राईल के लिए कफ़्फ़ारा दिया।"
\s5
\v 14 उस इस्राईली मर्द का नाम जो उस मिदियानी 'औरत के साथ मारा गया ज़िमरी था, जो सलू ~का बेटा और शमाऊन के क़बीले के एक आबाई ख़ान्दान का सरदार था।
\v 15 ~और जो मिदियानी 'औरत मारी गई उसका नाम कज़बी था, वह सूर की बेटी थी जो मिदियान में एक आबाई ख़ान्दान के लोगों का सरदार था ।
\s5
\v 16 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,
\v 17 "मिदियानियों को सताना और उनको मारना,
\v 18 क्यूँकि वह तुम को अपने धोखे के दाम में फँसाकर सताते हैं, जैसा फ़गूर के मु'आमिले में हुआ और कज़बी के मु'आमिले में भी हुआ।" जो मिदियान के सरदार की बेटी और मिदियानियों की बहन थी, और फ़गूर ही के मु'आमिले में वबा के दिन मारी गई।
\s5
\c 26
\p
\v 1 और वबा के बा'द ख़ुदावन्द ने मूसा अौर हारून काहिन के बोटे इली'अज़र से कहा कि,
\v 2 "बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत में बीस बरस और उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र के जितने इस्राईली जंग करने के क़ाबिल हैं, उन सभों को उनके आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ गिनो।"
\s5
\v 3 चुनाँचे मूसा और इली'अज़र काहिन ने मोआब के मैदानों में जो यरदन के किनारे किनारे यरीहू के सामने हैं, उन लोगों से कहा,
\v 4 कि "बीस बरस और उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र के आदमियों को वैसे ही गिन लो जैसे ख़ुदावन्द ने मूसा और बनी-इस्राईल को, जब वह मुल्क-ए-मिस्र से निकल आए थे हुक्म किया था।”
\s5
\v 5 रूबिन जो इस्राईल का पहलौठा था~उसके बेटे यह हैं, या'नी हनूक, जिससे हनूकियों का ख़ान्दान चला; और फ़ल्लू, जिससे फ़लवियों का ख़ान्दान चला;
\v 6 और हसरोन, जिससे हसरोनियों का ख़ान्दान चला; और करमी, जिससे करमियों का ख़ान्दान चला।
\v 7 ~ये बनी रूबिन के ख़ान्दान हैं, और इनमें से जो गिने गए वह तैन्तालीस हज़ार सात सौ तीस थे।
\s5
\v 8 और फ़ल्लू का बेटा इलियाब था,
\v 9 और इलियाब के बेटे नमूएल और दातन और अबीराम थे। यह वही दातन और अबीराम हैं जो जमा'अत के चुने हुए थे, और जब क़ोरह के फ़रीक़ ने ख़ुदावन्द से झगड़ा किया तो यह भी उस फ़रीक़ के साथ मिल कर मूसा और हारून से झगड़े;
\s5
\v 10 और जब उन ढाई सौ आदमियों के आग में भसम हो जाने से वह फ़रीक़ हलाक हो गया, उसी मौक़े' पर ज़मीन ने मुँह खोल कर क़ोरह के साथ उनको भी निगल लिया था; और वह सब 'इबरत का निशान ठहरे।
\v 11 लेकिन कोरह के बेटे नहीं मरे थे।
\s5
\v 12 और शमा'ऊन के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी नमूएल, जिससे नमूएलियों का ख़ान्दान चला; और यमीन, जिससे यमीनियों का ख़ान्दान चला; और यकीन, जिससे यकीनियों का ख़ान्दान चला;
\v 13 और ज़ारह, जिससे ज़ारहियों का ख़ान्दान चला; और साऊल, जिससे साऊलियों का ख़ान्दान चला।
\v 14 तब बनी शमा'ऊन के ख़ान्दानों में से बाईस हज़ार दो सौ आदमी गिने गए।
\s5
\v 15 और जद्द के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी सफ़ोन, जिससे सफ़ोनियों का ख़ान्दान चला; और हज्जी, जिससे हज्जियों का ख़ान्दान चला; और सूनी, जिससे सूनियों का ख़ान्दान चला;
\v 16 और उज़नी, जिससे उज़नियों का ख़ान्दान चला; और 'एरी, जिससे 'एरियों का ख़ान्दान चला;
\v 17 और अरूद,जिससे अरूदियों का ख़ान्दान चला; और अरेली, जिससे अरेलियों का ख़ान्दान चला।
\v 18 बनी जद्द के यही घराने हैं, जो इनमें से गिने गए वह चालीस हज़ार पाँच सौ थे।
\s5
\v 19 ~यहूदाह के बेटों में से 'एर और ओनान तो मुल्क-ए-कना'न ही में मर गए।
\v 20 और यहूदाह के और बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी सीला, जिससे सीलानियों का ख़ान्दान चला; और फ़ारस, जिससे फ़ारसियों का ख़ान्दान चला; और ज़ारह, जिससे ज़ारहियों का ख़ान्दान चला।
\v 21 फ़ारस के बेटे यह हैं, या'नी हसरोन, जिससे हसरोनियों का ख़ान्दान चला; और हमूल, जिससे हमूलियों का ख़ान्दान चला।
\v 22 ~ये बनी यहूदाह के घराने हैं। इनमें से छिहत्तर हज़ार पाँच सौ आदमी गिने गए।
\s5
\v 23 और इश्कार के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी तोला', जिससे तोल'इयों का ख़ान्दान चला; और फ़ुव्वा, जिससे फ़ुवियों का ख़ान्दान चला:
\v 24 यसूब, जिससे यसूबियों का ख़ान्दान चला; सिमरोन, जिससे सिमरोनियों का ख़ान्दान चला।
\v 25 यह बनी इश्कार के घराने हैं। इनमें से जो गिने गए वह चौंसठ हज़ार तीन सौ थे।
\s5
\v 26 और ज़बूलून के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी सरद, जिससे सरदियों का ख़ान्दान चला; एलोन, जिससे एलोनियों का ख़ान्दान चला; यहलीएल, जिससे यहलीएलियों का ख़ान्दान चला।
\v 27 यह बनी ज़बूलून के घराने हैं। इनमें से साठ हज़ार पाँच सौ आदमी गिने गए।
\s5
\v 28 और यूसुफ़ के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी मनस्सी और इफ़्राईम।
\v 29 और मनस्सी का बेटा मकीर था, जिससे मकीरियों का ख़ान्दान चला; और मकीर से~जिल'आद पैदा हुआ, जिससे जिल'आदियों का ख़ान्दान चला।
\s5
\v 30 और जिल'आद के बेटे यह हैं, या'नी ई'अज़र, जिससे ई'अज़रियों का ख़ान्दान चला; और ख़लक़, जिससे ख़लक़ियों का ख़ान्दान चला;
\v 31 और असरीएल, जिससे असरिएलियों का ख़ान्दान चला; और सिक्म, जिससे सिक्मियों का ख़ान्दान चला;
\v 32 और समीदा', जिससे समीदा'इयों का ख़ान्दान चला; और हिफ़्र, जिससे हिफ़्रियों का ख़ान्दान चला।
\s5
\v 33 और हिफ़्र के बेटे सिलाफ़िहाद के यहाँ कोई बेटा नहीं बल्कि बेटियाँ ही हुई, और सिलाफ़िहाद की बेटियों के नाम यह हैं: महलाह, और नू'आह, और हुजलाह, और मिल्काह, और तिरज़ाह।
\v 34 यह बनी मनस्सी के घराने हैं। इनमें से जो गिने गए वह बावन हज़ार सात सौ थे।
\s5
\v 35 और इफ़्राईम के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी सुतलह, जिससे सुतलहियों का ख़ान्दान चला; और बकर, जिससे बकरियों का ख़ान्दान चला; और तहन जिससे तहनियों का ख़ान्दान चला।
\v 36 और सूतलह का बेटा 'ईरान था, जिससे 'ईरानियों का ख़ान्दान चला।
\v 37 यह बनी इफ़्राईम के घराने हैं। इनमें से जो गिने गए वह बत्तीस हज़ार पाँच सौ थे। यूसुफ़ के बेटों के ख़ान्दान यही हैं।
\s5
\v 38 और बिनयमीन के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी बला', जिससे बला'इयों का ख़ान्दान चला; और अशबील, जिससे अशबीलियों का ख़ान्दान चला; और अख़ीराम, जिससे अख़ीरामियों का ख़ान्दान चला;
\v 39 और सूफ़ाम, जिससे सूफ़ामियों का ख़ान्दान चला; और हूफ़ाम, जिससे हूफ़ामियों का ख़ान्दान चला।
\v 40 ~बाला' के दो बेटे थे एक अर्द, जिससे अर्दियों का ख़ान्दान चला; दूसरा ना'मान, जिससे ना'मानियों का ख़ानदान चला।
\v 41 ~यह बनी बिनयमीन के घराने हैं। इनमें से जो गिने गए वह पैंतालस हजार छ: सौ थे|
\s5
\v 42 और दान का बेटा जिससे उसका ख़ान्दान चला सुहाम था, उससे सूहामियों ख़ान्दान चला। दानियों का ख़ान्दान यही था|
\v 43 सूहामियों के ख़ान्दान के जो आदमी गिने गए वह चौंसठ हज़ार चार सौ थे।
\s5
\v 44 ~और आशर के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी यिमना, जिससे यिमनियों का ख़ान्दान चला; और इसवी, जिससे इसवियों का ख़ान्दान चला; और बरी'अह, जिससे बरी'अहियों का ख़ान्दान चला ।
\v 45 बनी बरी'आह यह हैं, या'नी हिब्र, जिससे हिब्रियों का ख़ान्दान चला; और मलकीएल, जिससे मलकीएलियों का ख़ान्दान चला।
\v 46 और आशर की बेटी का नाम सारा था।
\v 47 यह बनी आशर के घराने हैं, और जो इनमें से गिने गए वह तिरपन हज़ार चार सौ थे।
\s5
\v 48 और नफ़्ताली के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी यहसीएल, जिससे यहसीएलियों का ख़ान्दान चला; और जूनी, जिससे जूनियों का ख़ान्दान चला;
\v 49 ~और यिस्र, जिससे यिस्रियों का ख़ान्दान चला; और सलीम, जिससे सलीमियों का ख़ान्दान चला।
\v 50 यह बनी नफ़्ताली के घराने हैं, और जितने इनमें से गिने गए वह पैंतालीस हज़ार चार सौ थे।
\s5
\v 51 फिर बनी-इस्राईल में से जितने गिने गए वह सब मिला कर छः लाख एक हज़ार सात सौ तीस थे।
\s5
\v 52 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 53 "इन ही को, इनके नामों के शुमार के मुवाफ़िक़ वह ज़मीन मीरास के तौर पर बाँट दी जाए।
\s5
\v 54 ~जिस क़बीले में ज़्यादा आदमी हों उसे ज़्यादा हिस्सा मिले, और जिसमें कम हों उसे कम हिस्सा मिले। हर क़बीले की मीरास उसके गिने हुए आदमियों के शुमार पर ख़त्म हो।
\v 55 ~लेकिन ज़मीन पर्ची से तक़्सीम की जाए। वह अपने आबाई क़बीलों के नामों के मुताबिक़ मीरास पाएँ।
\v 56 और चाहे ज़्यादा आदमियों का क़बीला हो या थोड़ों का, पर्चीसे उनकी मीरास~तक़्सीम~की~जाए।"
\s5
\v 57 और जो लावियों में से अपने-अपने ख़ान्दान के मुताबिक़ गिने गए वह यह हैं, या'नी जैरसोन से जैरसोनियों का घराना, क़िहात से क़िहातियों का घराना, मिरारी से मिरारियों का घराना।
\v 58 और यह भी लावियों के घराने हैं, या'नी लिबनी का घराना, हबरून का घराना, महली का घराना, और मूशी का घराना, और कोरह का घराना। और क क़िहात से अमराम पैदा हुआ।
\v 59 और अमराम की बीवी का नाम यूकबिद था, जो लावी की बेटी थी और मिस्र में लावी के यहाँ पैदा हुई; इसी के हारून और मूसा और उनकी बहन मरियम अमराम से पैदा हुए।
\s5
\v 60 ~और हारून के बेटे यह थे: नदब और अबीहू और अली 'अज़र और ~इतमर।
\v 61 और~नदब और अबीहू तो उसी वक़्त मर गए जब उन्होंने ख़ुदावन्द के सामने ऊपरी आग पेश कीं थी।
\v 62 फिर उनमें से जितने एक महीने और उससे ऊपर-ऊपर के नरीना फ़र्ज़न्द गिने गए वह तेईस हज़ार थे। यह बनी-इस्राईल के साथ नहीं गिने गए क्यूँकि इनको बनी-इस्राईल के साथ मीरास नहीं मिली।
\s5
\v 63 तब मूसा और इली'अज़र काहिन ने जिन बनी-इस्राईल को मोआब के मैदानों में जो यरदन के किनारे किनारे यरीहू के सामने हैं शुमार किया वह यही हैं।
\v 64 लेकिन जिन इस्राईलियों को मूसा और हारून काहिन ने सीना के जंगल में गिना था, उनमें से एक शख़्स भी इनमें न था।
\s5
\v 65 क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनके हक़ में कह दिया था कि वह यक़ीनन वीरान में मर जाएँगे, चुनाँचे उनमें से अलावा युफ़न्ना के बेटे कालिब और नून के बेटे यशू'अ के एक भी बाक़ी नहीं बचा था।
\s5
\c 27
\p
\v 1 तब यूसुफ़ के बेटे मनस्सी की औलाद के घरानों में से सिलाफ़िहाद बिन हिफ़्र बिन जिल'आद बिन मकीर बिन मनस्सी की बेटियाँ, जिनके नाम महलाह और नो'आह और हुजलाह और मिलकाह और तिरज़ाह हैं, पास आकर
\s5
\v 2 ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर मूसा और इली'अज़र काहिन और अमीरों और सब जमा'अत के सामने खड़ी हुई और कहने लगीं कि;
\v 3 ~"हमारा बाप वीरान में मरा, लेकिन वह उन लोगों में शामिल न था जिन्होंने कोरह के फ़रीक से मिल कर ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ सिर उठाया था; बल्कि वह अपने गुनाह में मरा और उसके कोई बेटा न था।
\s5
\v 4 ~इसलिए बेटा न होने की वजह से से हमारे बाप का नाम उसके घराने से क्यूँ मिटने पाए? इसलिए हम को भी हमारे बाप के भाइयों के साथ हिस्सा दो।"
\v 5 मूसा उनके मु'आमिले को ख़ुदावन्द के सामने ले गया।
\s5
\v 6 ~ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 7 "सिलाफ़िहाद की बेटियाँ ठीक कहती हैं; तू उनको उनके बाप के भाइयों के साथ ज़रूर ही मीरास का हिस्सा देना, या'नी उनको उनके बाप की मीरास मिले।
\v 8 और बनी-इस्राईल से कह, कि अगर कोई शख़्स मर जाए और उसका कोई बेटा न हो, तो उस की मीरास उसकी बेटी को देना।
\s5
\v 9 अगर उसकी कोई बेटी भी न हो, तो उसके भाइयों को उसकी मीरास देना।
\v 10 अगर उसके भाई भी न हों, तो तुम उसकी मीरास उसके बाप के भाइयों को देना।
\v 11 अगर उसके बाप का भी कोई भाई न हो, तो जो शख़्स उसके घराने में उसका सब से क़रीबी रिश्तेदार हो उसे उसकी मीरास देना; वह उसका वारिस होगा। और यह हुक्म बनी-इस्राईल के लिए, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को फ़रमाया वाजिबी फ़र्ज़ होगा।”
\s5
\v 12 फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "तू 'अबारीम के इस पहाड़ पर चढ़कर उस मुल्क को, जो मैंने बनी-इस्राईल को 'इनायत किया है देख ले।
\v 13 ~और जब तू उसे देख लेगा, तो तू भी अपने लोगों में अपने भाई हारून की तरह जा मिलेगा।
\v 14 क्यूँकि सीन के जंगल में जब जमा'अत ने मुझ से झगड़ा किया, तो बर'अक्स इसके कि वहाँ पानी के चश्मे पर तुम दोनों उनकी आँखों के सामने मेरी तक़दीस करते, तुम ने मेरे हुक्म से सरकशी की।" यह वही मरीबा का चश्मा है जो दश्त-ए-सीन के क़ादिस में है।
\s5
\v 15 ~मूसा ने ख़ुदावन्द से कहा कि;
\v 16 "ख़ुदावन्द सारे बशर की रूहों का ख़ुदा, किसी आदमी को इस जमा'अत पर मुक़र्रर करे;
\v 17 जिसकी आमद-ओ-रफ़्त उनके सामने हो और वह उनको बाहर ले जाने और अन्दर ले आने में उनका रहबर हो, ताकि ख़ुदावन्द की जमा'अत उन भेड़ों की तरह न रहे जिनका कोई चरवाहा नहीं।"
\s5
\v 18 ~ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "तू नून के बेटे यशू'अ को लेकर उस पर अपना हाथ रख, क्यूँकि उस शख़्स में रूह है;
\v 19 और उसे इली'अज़र काहिन और सारी जमा'अत के आगे खड़ा करके उनकी आँखों के सामने उसे वसीयत कर।
\s5
\v 20 और अपने रोबदाब से उसे बहरावर कर दे, ताकि बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत उसकी फ़रमाबरदारी करे।
\v 21 वह इली 'काहिन के आगे खड़ा हुआ करे, जो उसकी जानिब से ख़ुदावन्द के सामने ऊरीम का हुक्म दरियाफ़्त किया करेगा। उसी के कहने से वह और बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत के लोग निकला करें, और उसी के कहने से लौटा भी करें।"
\s5
\v 22 ~इसलिए मूसा ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ 'अमल किया, और उसने यशू'अ को लेकर उसे इली'अज़र काहिन और सारी जमा'अत के सामने खड़ा किया;
\v 23 और उसने अपने हाथ उस पर रख्खे, और जैसा ख़ुदावन्द ने उसको हुक्म दिया था उसे वसीयत की।
\s5
\c 28
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;
\v 2 ~"बनी-इस्राईल से कह कि मेरा हदिया, या'नी मेरी वह गिज़ा जो राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशीन क़ुर्बानी है, तुम याद करके मेरे सामने वक़्त-ए-मु'अय्यन पर पेश करा करना।
\s5
\v 3 तू उन से कह दे कि जो आतिशी क़ुर्बानी तुम को ख़ुदावन्द के सामने पेश करना है वह यह है: कि दो बे-'ऐब यक-साला नर बर्रे हर दिन दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए 'अदा करो।
\v 4 एक बर्रा सुबह और दूसरा बर्रा शाम को चढ़ाना;
\v 5 और साथ ही ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर मैदा, जिसमें कूट कर निकाला हुआ तेल चौथाई हीन के बराबर मिला हो, नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर पेश करना।
\s5
\v 6 यह वही दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी है जो कोह-ए- सीना पर मुक़र्रर की गई, ताकि ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी ठहरे।
\v 7 और हीन की चौथाई के बराबर मय हर एक बर्रा तपावन के लिए लाना। हैकल ही में ख़ुदावन्द के सामने मय का यह तपावन चढ़ाना।
\v 8 और दूसरे बर्रे को शाम के वक़्त चढ़ाना, और उसके साथ भी सुबह की तरह वैसी ही नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन हो, ताकि यह ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी ठहरे।
\s5
\v 9 'और सबत के दिन दो बे-'ऐब यकसाला नर बर्रे और नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर ऐफ़ा के पाँचवें हिस्से के बराबर मैदा, जिसमें तेल मिला हो, तपावन के साथ पेश करना।
\v 10 दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसके तपावन के 'अलावा यह हर सब्त की सोख़्तनी क़ुर्बानी है।
\s5
\v 11 ~"और अपने महीनों के शुरू' में हर माह दो। बछड़े और एक मेंढा और सात बे'ऐब यक-साला नर बर्रे सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने चढ़ाया करना।
\v 12 और ऐफ़ा के तीन दहाई हिस्से के बराबर मैदा, जिसमें तेल मिला हो, हर बछड़े के साथ; और ऐफ़ा के पाँचवे हिस्से के बराबर मैदा, जिसमें तेल मिला हो, हर मेंढे के साथ: और ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर मैदा, जिसमें तेल मिला हो,
\v 13 हर बर्रे के साथ नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर लाना। ताकि यह राहतअंगेज़ ख़ुशबू की सोख़्तनी कुर्बानी, या'नी ख़ुदावन्द के सामने आतिशीन क़ुर्बानी ठहरे।
\s5
\v 14 ~और इन के साथ तपावन के लिए मय हर एक बछड़ा आधे हीन के बराबर, और हर एक मेंढा तिहाई हीन के बराबर, और हर एक बर्रा चौथाई हीन के बराबर हो। यह साल भर के हर महीने की सोख़्तनी क़ुर्बानी है।
\v 15 और उस दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसके तपावन के 'अलावा एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश करा जाए।
\s5
\v 16 ~और पहले महीने की चौदहवीं तारीख़ को ख़ुदावन्द की फ़सह हुआ करे।
\v 17 और उसी महीने की पंद्रहवीं तारीख़ को 'ईद हो, और सात दिन तक बेख़मीरी रोटी खाई जाए।
\v 18 पहले दिन लोगों का पाक मजमा' हो, तुम उस दिन कोई ख़ादिमाना काम न करना।
\s5
\v 19 बल्कि तुम आतिशी क़ुर्बानी, या'नी ख़ुदावन्द के सामने सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर दो बछड़े और एक मेंढा और सात यक-साला नर बर्रे चढ़ाना। यह सब के सब बे-'ऐब हों।
\v 20 और उनके साथ नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर तेल मिला हुआ मैदा; हर एक बछड़ा ऐफ़ा के तीन दहाई हिस्से के बराबर, और हर एक मेंढा पाँचवें हिस्से के बराबर।
\v 21 और सातों बर्रों में से हर बर्रा पीछे ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर पेश करा करना।
\v 22 ~और ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा हो, ताकि उससे तुम्हारे लिए कफ़्फ़ारा दिया जाए।
\s5
\v 23 ~तुम सुबह की सोख़्तनी क़ुर्बानी के 'अलावा, जो दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी है, इनको भी पेश करना।
\v 24 इसी तरह तुम हर दिन सात दिन तक आतिशी क़ुर्बानी की यह ग़िज़ा चढ़ाना, ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू ठहरे; दिन-मर्रा की दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और तपावन के 'अलावा यह भी पेश करा जाए।
\v 25 और सातवें दिन फिर तुम्हारा पाक मज़मा हो उसमें कोई ख़ादिमाना काम न करना।
\s5
\v 26 'और पहले फलों के दिन, जब तुम नई नज़्र की क़ुर्बानी हफ़्तों की 'ईद में ख़ुदावन्द के सामने पेश करो, तब भी तुम्हारा पाक मजमा' हो; उस दिन कोई ख़ादिमाना काम न करना।
\v 27 बल्कि तुम सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर दो बछड़े, एक मेंढा और सात यक-साला नर बर्रे पेश करना; ताकि यह ख़ुदावन्द के सामने राहत अंगेज़ ख़ुशबू हो,
\v 28 और इनके साथ नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर तेल मिला हुआ मैदा; हर बछड़ा ऐफ़ा के तीन दहाई हिस्से के बराबर, और हर मेंढा पाँचवें हिस्से के बराबर,
\s5
\v 29 और सातों बर्रों में से हर बर्रे पीछे ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर हो।
\v 30 ~और एक बकरा हो ताकि तुम्हारे लिए कफ़्फ़ारा दिया जाए।
\v 31 ~दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की क़ुर्बानी के 'अलावा तुम इनको भी पेश करना। यह सब बे-'ऐब हों और इनके तपावन साथ हों।
\s5
\c 29
\p
\v 1 और सातवें महीने की पहली तारीख़ को तुम्हारा पाक मजमा' हो, उसमें कोई ख़ादिमाना काम न करना। यह तुम्हारे लिए नरसिंगे फूँकने का दिन है।
\s5
\v 2 तुम सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर एक बछड़ा, एक मेंढा और सात बे-'ऐब यक-साला नर बर्रे चढ़ाना ताकि यह ख़ुदावन्द के सामने राहत अंगेज़ ख़ुशबू ठहरे।
\s5
\v 3 और इनके साथ नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर तेल मिला हुआ मैदा; "बछड़ा ऐफ़ा के तीन दहाई हिस्से के बराबर, और हर मेंढा पाँचवें हिस्से के बराबर,
\v 4 और सातों बर्रों में से हर बर्रे पीछे ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर हो।
\v 5 और एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए हो, ताकि तुम्हारे वास्ते कफ़्फ़ारा दिया जाए।
\s5
\v 6 नये चाँद की~सोख़्तनी क़ुर्बानी और~उसकी नज़्र की क़ुर्बानी, और दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और~उसकी नज़्र की क़ुर्बानी~और~उनके तपावनों के 'अलावा, जो अपने-अपने क़ानून के मुताबिक़ पेश करे जाएँगे, यह भी राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने अदा किये जाए।
\s5
\v 7 ~'फिर उसी सातवें महीने की दसवीं तारीख़ को तुम्हारा पाक मजमा' हो; तुम अपनी अपनी जान को दुख देना और किसी~तरह का काम न करना,
\v 8 बल्कि सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर एक बछड़ा, एक मेंढा और सात यक-साला नर बर्रे ख़ुदावन्द के सामने चढ़ाना, ताकि यह राहतअंगेज़ ख़ुशबू ठहरे; यह सब के सब बे-'ऐब हों,
\s5
\v 9 ~और इनके साथ नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर तेल मिला हुआ मैदा; हर बछड़ा ऐफ़ा के तीन दहाई हिस्से के बराबर, और हर मेंढा पाँचवें हिस्से के बराबर,
\v 10 और सातों बर्रों में से हर बर्रे पीछे ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर हो,
\v 11 और ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा हो; यह भी उस ख़ता की क़ुर्बानी के 'अलावा, जो कफ़्फ़ारे के लिए है और दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की कुर्बानी, और तपावनों के 'अलावा अदा किये जाएँ।
\s5
\v 12 और सातवें महीने की पन्द्रहवीं तारीख़ को फिर तुम्हारा पाक मजमा' हो; उस दिन तुम कोई ख़ादिमाना काम न करना, और सात दिन तक ख़ुदावन्द की ख़ातिर 'ईद मनाना।
\v 13 और तुम सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर तेरह बछड़े, दो मेंढे, और चौदह यक-साला नर बर्रे चढ़ाना ताकि यह राहत अंगेज़ ख़ुशबू की आतिशीन क़ुर्बानी ठहरे; यह सब के सब बे-'ऐब हों।
\s5
\v 14 और इनके साथ नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर तेरह बछड़ों में से हर बछड़े पीछे तेल मिला हुआ मैदा ऐफ़ा के तीन दहाई हिस्से के बराबर, और दोनों मेंढों में से हर मेंढे पीछे पाँचवें हिस्से के बराबर,
\v 15 ~और चौदह बर्रों में से हर बर्रे पीछे ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर हो।
\v 16 और एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए हो। यह सब दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन के 'अलावा चढ़ाए जाएँ।
\s5
\v 17 "और दूसरे दिन बारह बछड़े, दो मेंढे और चौदह बे-'ऐब यक-साला नर बर्रे चढ़ाना।
\v 18 ~और बछड़ों और मेंढों और बर्रों के साथ, उनके शुमार और तौर तरीक़े के मुताबिक़ उनकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन हों,
\v 19 और एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए हो। यह सब दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावनों के 'अलावा चढ़ाए जाएँ।
\s5
\v 20 ~'और तीसरे दिन ग्यारह बछड़े, दो मेंढे और चौदह यक-साला बे-'ऐब नर बर्रे हों।
\v 21 और बछड़ों और मेंढों और बर्रों के साथ, उनके शुमार और तौर तरीक़े के मुताबिक़ उनकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन हों,
\v 22 और एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए हो। यह सब दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन के अलावा चढ़ाए जाएँ।
\s5
\v 23 ~'और चौथे दिन दस बछड़े, दो मेंढे और चौदह यक-साला बे-'ऐब नर बर्रे हों।
\v 24 ~और बछड़ों और मेंढों और बर्रों के साथ, उनके शुमार और तौर तरीक़े के मुताबिक़ उनकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन हों,
\v 25 और एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए हो। यह सब दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन के 'अलावा चढ़ाए जाए।
\s5
\v 26 ~"और पाँचवे दिन नौ बछड़े, दो मेंढ़े और चौदह यक-साला बे-'ऐब नर बर्रे हों।
\v 27 और बछड़ों और मेंढों और बर्रों के साथ, उनके शुमार और क़ानून के मुताबिक़ उनकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन हों,
\v 28 और एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए हो। यह सब दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन के 'अलावा चढ़ाए जाए।
\s5
\v 29 'और छठे दिन आठ बछड़े, दो मेंढे और चौदह यक-साला बे-'ऐब नर बर्रे हों।
\v 30 और बछड़ों और मेंढों और बर्रों के साथ, उनके शुमार और क़ानून के मुताबिक़ उनकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन हों;
\v 31 और एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए हो। यह सब दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन के 'अलावा अदा की जाए।
\s5
\v 32 "और सातवें दिन सात बछड़े, दो मेंढे और चौदह यक-साला बे-'ऐब नर बर्रे हों।
\v 33 और बछड़ों और मेंढों और बर्रों के साथ, उनके शुमार और तौर तरीक़े के मुताबिक़ उनकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन हों,
\v 34 और एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए हो। यह सब दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन के अलावा अदा की जाएँ
\s5
\v 35 "और आठवें दिन तुम्हारा पाक मजमा' हो; तुम उस दिन कोई ख़ादिमाना काम न करना,
\v 36 बल्कि तुम एक बछड़ा, एक मेंढा, और सात यक-साला बे-'ऐब नर बर्रे सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर चढ़ाना ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी ठहरे।
\s5
\v 37 ~और बछड़े और मेंढे और बर्रों के साथ, उनके शुमार और तौर तरीक़े के मुताबिक़ उनकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन हों,
\v 38 और एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए हो। यह सब दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन के 'अलावा चढ़ाए जाएँ।
\s5
\v 39 "तुम अपनी मुक़र्ररा 'ईदों में अपनी मिन्नतों और रज़ा की क़ुर्बानियों के 'अलावा यहीं सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और नज़्र की कुर्बानियाँ और तपावन और सलामती की कुर्बानियाँ पेश करना।”
\v 40 और जो कुछ ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया, वह सब मूसा ने बनीइस्राईल को बता दिया।
\s5
\c 30
\p
\v 1 और मूसा ने बनी-इस्राईल के क़बीलों के सरदारों से कहा, "जिस बात का ख़ुदावन्द ने हुक्म दिया है वह यह है, कि
\v 2 जब कोई मर्द ख़ुदावन्द की मिन्नत माने या ~क़सम खाकर अपने ऊपर कोई ख़ास फ़र्ज़~ठहराए, तो वह अपने 'अहद को न तोड़े; बल्कि जो कुछ उसके मुँह से निकला है उसे पूरा करे।
\s5
\v 3 और अगर कोई 'औरत ख़ुदावन्द की मिन्नत माने और अपनी नौ जवानी के दिनों में अपने बाप के घर होते हुए अपने ऊपर कोई फ़र्ज़ ठहराए।
\v 4 और उसका बाप उसकी~मिन्नत और उसके फ़र्ज़ का हाल जो उसने अपने ऊपर ठहराया है सुनकर चुप हो रहे, तो वह सब मिन्नतें ~और सब फ़र्ज़ जो उस 'औरत ने अपने ऊपर ठहराए हैं क़ायम रहेंगे।
\s5
\v 5 लेकिन अगर उसका बाप जिस दिन यह सुने उसी दिन उसे मना' करे, तो उसकी कोई मिन्नत या कोई फ़र्ज़ जो उसने अपने ऊपर ठहराया है, क़ायम नहीं रहेगा; और ख़ुदावन्द उस 'औरत को मा'ज़ूर रख्खेगा क्यूँकि उसके बाप ने उसे इजाज़त नहीं दी।
\s5
\v 6 और अगर किसी आदमी से उसकी निस्बत हो जाए, हालाँके उसकी मिन्नतें या मुँह की निकली हुई बात जो उसने अपने ऊपर फ़र्ज़ ठहराई है, अब तक पूरी न हुई हो;
\v 7 और उसका आदमी यह हाल सुनकर उस दिन उससे कुछ न कहे तो उसकी मनतें क़ायम रहेंगी, और जो बातें उसने अपने ऊपर फ़र्ज़ ठहराई हैं वह भी क़ायम रहेंगी।
\s5
\v 8 ~लेकिन अगर उसका आदमी जिस दिन यह सब सुने, उसी दिन उसे मना' करे तो उसने जैसे उस 'औरत की मिन्नत को और उसके मुँह की निकली हुई बात को जो उसने अपने ऊपर फ़र्ज़ ठहराई थी तोड़ दिया; और ख़ुदावन्द उस 'औरत को मा'जूर रख्खेगा।
\s5
\v 9 लेकिन बेवा और तलाकशुदा कीं मिन्नतें और फ़र्ज़ ठहरायी हुई बातें क़ायम रहेंगी।
\v 10 और अगर उसने अपने शौहर के घर होते हुए कुछ मिन्नत मानी या क़सम खाकर अपने ऊपर कोई फ़र्ज़ ठहराया ~हो,
\v 11 और उसका शौहर यह हाल सुन कर ख़ामोश रहा हो और उसे मना' न किया हो, तो उसकी मिन्नतें और सब फ़र्ज़ जो उसने अपने ऊपर ठहराए क़ायम रहेंगे।
\s5
\v 12 ~लेकिन अगर उसके शौहर ने जिस दिन यह सब सुना उसी दिन उसे बातिल ठहराया हो, तो जो कुछ उस 'औरत के मुँह से उसकी मिन्नतों और ठहराए हुए फ़र्ज़ के बारे में निकला है, वह क़ायम नहीं रहेगा; उसके शौहर ने उनको तोड़ डाला है, और ख़ुदावन्द उस 'औरत को मा'ज़ूर रख्खेगा।
\s5
\v 13 उसकी हर मिन्नत को और अपनी जान को दुख देने की हर क़सम को उसका शौहर चाहे तो क़ायम रख्खे, या अगर चाहे तो बातिल ठहराए।
\v 14 ~लेकिन अगर उसका शौहर दिन-ब-दिन ख़ामोश ही रहे, तो वह जैसे उसकी सब मिन्नतों और ठहराए हुए फ़र्ज़ों को क़ायम कर देता है; उसने उनको क़ायम यूँ किया कि जिस दिन से सब सुना वह ख़ामोश ही रहा।
\s5
\v 15 लेकिन अगर वह उनको सुन कर बा'द में उनको बातिल ठहराए तो वह उस 'औरत का गुनाह उठाएगा।"
\v 16 शौहर और बीवी के बीच और बाप बेटी के बीच, जब बेटी नौ-जवानी के दिनों में बाप के घर हो, इन ही तौर तरीक़े का हुक्म ख़ुदावन्द ने मूसा को दिया।
\s5
\c 31
\p
\v 1 ~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
\v 2 ~"मिदियानियों से बनी-इस्राईल का इन्तक़ाम ले; इसके बा'द तू अपने लोगों में जा मिलेगा।"
\s5
\v 3 तब मूसा ने लोगों से कहा, "अपने में से जंग के लिए आदमियों को~हथियारबन्द~करो, ताकि वह~मिदियानियों पर हमला करें और मिदियानियों से ख़ुदावन्द का इन्तक़ाम लें।
\v 4 और इस्राईल के सब क़बीलों में से हर क़बीला एक हज़ार आदमी लेकर जंग के लिए भेजना।"
\v 5 फिर हज़ारों हज़ार बनी-इस्राईल में से हर क़बीला एक हज़ार के हिसाब से बारह हज़ार हथियारबन्द आदमी जंग के लिए चुने गए।
\s5
\v 6 यूँ मूसा ने हर क़बीले से एक हज़ार आदमियों को जंग के लिए भेजा और इली'अज़र काहिन के बेटे फ़ीन्हास को भी जंग पर रवाना किया, और हैकल के बर्तन और बलन्द आवाज़ के नरसिंगे उसके साथ कर दिए।
\v 7 और जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था, उसके मुताबिक़ उन्होंने मिदियानियों से जंग की और सब मर्दों को क़त्ल किया।
\v 8 और उन्होंने उन मक्तूलों के अलावा 'अव्वी और रक़म और सूर और होर और रबा' को भी, जो मिदियान के पाँच बादशाह थे, जान से मारा और ब'ओर के बेटे बल'आम को भी तलवार से क़त्ल किया।
\s5
\v 9 ~और बनी-इस्राईल ने मिदियान की 'औरतों और उनके बच्चों को ग़ुलाम किया, और उनके चौपाये और भेड़ बकरियाँ और माल-ओ-अस्बाब सब कुछ लूट लिया।
\v 10 और उनकी सुकुनतगाहों के सब शहरों को जिनमें वह रहते थे, और उनकी सब छावनियों को आग से फूँक दिया।
\s5
\v 11 और उन्होंने सारा माल-ए-ग़नीमत और सब ग़ुलाम, क्या इन्सान और क्या हैवान साथ लिए,
\v 12 ~और उन ग़ुलामों और माल-ए-ग़नीमत को मूसा और अली 'अज़र काहिन और बनी इस्राईल की सारी~जमा'अत के पास उस लश्करगाह में ले आए जो यरीहू के सामने यरदन के किनारे किनारे मोआब के मैदानों में थी।
\s5
\v 13 ~तब मूसा और इली'अज़र काहिन और जमा'अत के सब सरदार उनके इस्तक़बाल के लिए लश्करगाह के बाहर गए।
\v 14 और मूसा उन फ़ौजी सरदारों पर जो हज़ारों और सैकड़ों के सरदार थे और जंग से लौटे थे झल्लाया,
\v 15 और उनसे कहने लगा, 'क्या तुम ने सब 'औरतें जीती बचा रख्खी हैं?
\s5
\v 16 ~देखो, इन ही ने बल'आम की सलाह से~फ़गूर के मु'आमिले में बनी-इस्राईल से ख़ुदावन्द की हुक्म उदूली कराई, और यूँ ख़ुदावन्द की जमा'अत में वबा फैली।
\v 17 इसलिए इन बच्चों में जितने लड़के हैं सब को मार डालो, और जितनी 'औरतें मर्द का मुँह देख चुकी हैं उनको क़त्ल कर डालो।
\s5
\v 18 लेकिन उन लड़कियों को जो मर्द से वाक़िफ़ नहीं और अछूती हैं, अपने लिए ज़िन्दा रख्खो।
\v 19 और तुम सात दिन तक लश्करगाह के बाहर ही ख़ेमे डाले पड़े रहो, और तुम में से जितनों ने किसी आदमी की जान से मारा हो और जितनों ने किसी मक़्तूल को छुआ हो, वह सब अपने आप को और अपने कैदियों को तीसरे दिन और सातवें दिन पाक करें।
\v 20 ~तुम अपने सब कपड़ों और चमड़े की सब चीज़ों को और बकरी के बालों की बुनी हुई चीज़ों को और लकड़ी के सब बर्तनों को पाक करना।”
\s5
\v 21 और इली'अज़र काहिन ने उन सिपाहियों से जो जंग पर गए थे कहा, “शरी'अत का वह क़ानून जिसका हुक्म ख़ुदावन्द ने मूसा को दिया यही है, कि
\v 22 ~सोना और चाँदी और पीतल और लोहा और रांगा और सीसा;
\v 23 ~ग़रज़ जो कुछ आग में ठहर सके वह सब तुम आग में डालना तब वह साफ़ होगा, तो भी नापाकी दूर करने के पानी से उसे पाक करना पड़ेगा; और जो कुछ आग में न ठहर सके उसे तुम पानी में डालना।
\v 24 और तुम सातवें दिन अपने कपड़े धोना तब तुम पाक ठहरोगे, इसके बा'द लश्करगाह में दाख़िल होना।'
\s5
\v 25 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,
\v 26 "इली'अज़र काहिन और जमा'अत के आबाई ख़ान्दानों के सरदारों को साथ लेकर, तू उन आदमियों और जानवरों को शुमार कर जो लूट में आए हैं।
\v 27 और लूट के इस माल को दो हिस्सों में तक़्सीम कर कि, एक हिस्सा उन जंगी मर्दों को दे जो लड़ाई में गए थे और दूसरा हिस्सा जमा'अत को दे।
\s5
\v 28 और उन जंगी मर्दों से जो लड़ाई में गए थे, ख़ुदावन्द के लिए चाहे आदमी हों या गाय-बैल या गधे या भेड़ बकरियाँ, हर पाँच सौ पीछे एक को हिस्से के तौर पर ले;
\v 29 इनही के आधे में से इस हिस्से को लेकर इली'अज़र काहिन को देना, ताकि यह ख़ुदावन्द के सामने उठाने की क़ुर्बानी ठहरे।
\s5
\v 30 और बनी-इस्राईल के आधे में से चाहे आदमी हों या गाय-बैल या गधे या भेड़-बकरियाँ, या'नी सब क़िस्म के चौपायों में से पचास-पचास पीछे एक-एक को लेकर लावियों को देना जो ख़ुदावन्द के घर की मुहाफ़िज़त करते हैं।"
\v 31 चुनाँचे मूसा और इली'अज़र काहिन ने जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा था वैसा ही किया।
\s5
\v 32 और जो कुछ माल-ए-ग़नीमत जंगी मदों के हाथ आया था उसे छोड़कर लूट के माल में छः लाख पिछतर हज़ार भेड़-बकरियाँ थीं;
\v 33 और बहतर हज़ार गाय-बैल,
\v 34 और इकसठ हज़ार गधे,
\v 35 और नुफूस-ए-इन्सानी में से बतीस हज़ार ऐसी 'औरतें जो मर्द से नावाक़िफ़ और अछूती थीं।
\s5
\v 36 ~और लूट के माल के उस आधे में जो जंगी मदों का हिस्सा था, तीन लाख सैंतीस हज़ार पाँच सौ भेड़-बकरियाँ थीं,
\v 37 जिनमें से छ: सौ पिछतर भेड़-बकरियाँ ख़ुदावन्द के हिस्से के लिए थीं।
\v 38 और छत्तीस हज़ार गाय-बैल थे, जिनमें से बहत्तर ख़ुदावन्द के हिस्से के थे।
\s5
\v 39 ~और तीस हज़ार पाँच सौ गधे थे, जिनमें से इकसठ गधे ख़ुदावन्द के हिस्से के थे।
\v 40 और नुफूस-ए-इन्सानी का शुमार सोलह हज़ार था, जिनमें से बतीस जानें ख़ुदावन्द के हिस्से की थीं।
\v 41 तब मूसा ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुवाफ़िक उस हिस्से को जो ख़ुदावन्द के उठाने की क़ुर्बानी थी, इली'अज़र काहिन को दिया।
\s5
\v 42 अब रहा बनी-इस्राईल का आधा हिस्सा, जिसे मूसा ने जंगी मर्दों के हिस्से से अलग रख्खा था;
\v 43 फिर ~इस आधे में भी जो जमा'अत को दिया गया तीन लाख सैंतीस हज़ार पाँच सौ भेड़-बकरियाँ थीं,
\v 44 ~और छत्तीस हज़ार गाय-बैल
\v 45 और तीस हज़ार पाँच सौ गधे,
\v 46 और सोलह हज़ार नुफूस-ए-इन्सानी।
\s5
\v 47 ~और बनी-इस्राईल के इस आधे में से मूसा ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुवाफ़िक, क्या इन्सान और क्या हैवान हर पचास पीछे एक को लेकर लावियों को दिया जो ख़ुदावन्द के घर की मुहाफ़िज़त करते थे|
\s5
\v 48 तब वह फ़ौजी सरदार जो हज़ारों और सैकड़ों सिपाहियों के सरदार थे, मूसा के पास आकर
\v 49 उससे कहने लगे, "तेरे ख़ादिमों ने उन सब जंगी मदों को जो हमारे मातहत हैं गिना, और उनमें से एक जवान भी कम न हुआ।
\s5
\v 50 ~इसलिए हम में से जो कुछ जिसके हाथ लगा, या'नी सोने के ज़ेवर और पाज़ेब और कंगन और अंगूठियाँ और मुन्दरें और बाज़ूबन्द यह सब हम ख़ुदावन्द के हदिये के तौर पर ले आए हैं ताकि हमारी जानों के लिए ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दिया जाए।"
\v 51 ~चुनाँचे मूसा और इली'अज़र काहिन ने उनसे यह सब सोने के घड़े हुए ज़ेवर ले लिए।
\s5
\v 52 और उस हदिये का सारा सोना जो हज़ारों और सैकड़ों के सरदारों ने ख़ुदावन्द के सामने पेश कर, वह या'नी , तकरीबन 190 कि. ग्रा.~या'नीसोलह हज़ार सात सौ पचास मिस्काल था।
\v 53 क्यूँकि जंगी मर्दों में से हर एक कुछ न कुछ लूट कर ले आया था।
\v 54 तब मूसा और इली'अज़र काहिन उस सोने को जो उन्होंने हज़ारों और सैकड़ों के सरदारों से लिया था, ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में लाए ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने बनी-इस्राईल की यादगार ठहरे।
\s5
\c 32
\p
\v 1 और बनी रूबिन और बनी जद्द के पास चौपायों के बहुत बड़े बड़े ग़ोल थे। इसलिए जब उन्होंने या'ज़ेर और जिल'आद के मुल्कों को देखा कि यह मक़ाम चौपायों के लिए बहुत अच्छे हैं,
\v 2 तो उन्होंने जाकर मूसा और इली'अज़र काहिन और जमा'अत के सरदारों से कहा कि,
\v 3 'अतारात और दीबोन और या'जेर और निमरा और हस्बोन, इली'आली और शबाम और नबू और बऊन,
\s5
\v 4 ~या'नी वह मुल्क जिस पर ख़ुदावन्द ने इस्राईल की जमा'अत को फ़तह दिलाई है, चौपायों के लिए बहुत अच्छा है और तेरे ख़ादिमों के पास चौपाये हैं।
\v 5 इसलिए अगर हम पर तेरे करम की नज़र है तो इसी मुल्क को अपने ख़ादिमों की मीरास कर दे, और हम को यरदन पार न ले जा।"
\s5
\v 6 ~मूसा ने बनी रूबिन और बनी जद्द से कहा, "क्या तुम्हारे भाई लड़ाई में जाएँ और तुम यहीं बैठे रहो?
\v 7 तुम क्यूँ बनी-इस्राईल को पार उतर कर उस मुल्क में जाने से, जो ख़ुदावन्द ने उन को दिया है, बेदिल करते हो?
\s5
\v 8 तुम्हारे बाप दादा ने भी, जब मैंने उनको क़ादिस बरनी' से भेजा कि मुल्क का हाल दरियाफ़्त करें तो ऐसा ही~किया था।
\v 9 क्यूँकि जब वह वादी-ए-इस्काल में पहुँचे और उस मुल्क को देखा, तो उन्होंने बनी-इस्राईल को बे-दिल कर दिया, ताकि वह उस मुल्क में जो ख़ुदावन्द ने उनको 'इनायत किया न जाएँ।
\s5
\v 10 और उसी दिन ख़ुदावन्द का ग़ज़ब भड़का और उसने क़सम खाकर कहा, कि
\v 11 उन लोगों में से जो मिस्र से निकल कर आये हैं बीस बरस और उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का कोई शख़्स उस मुल्क को नहीं देखने पाएगा, जिसके देने की क़सम मैंने इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब से खाई; क्यूँकि उन्होंने मेरी पूरी पैरवी नहीं की।
\v 12 ~मगर युफ़ना क़िन्ज़ी का बेटा कालिब और नून का बेटा यशू'अ उसे देखेंगे, क्यूँकि उन्होंने ख़ुदावन्द की पूरी पैरवी की है।
\s5
\v 13 सो ख़ुदावन्द का क़हर इस्राईल पर भड़का और उसने उनकी वीरान में चालीस बरस तक आवारा फिराया, जब तक कि उस नसल के सब लोग जिन्होंने ख़ुदावन्द के सामने गुनाह किया था, नाबूद न हो गए।
\v 14 और देखो, तुम जो गुनाहगारों की नसल हो, अब अपने बाप दादा की जगह उठे हो, ताकि ख़ुदावन्द के क़हर-ए-शदीद की इस्राईलियों पर ज़्यादा कराओ।
\v 15 क्यूँकि अगर तुम उस की पैरवी से फिर जाओ तो वह उनको फिर वीरान में छोड़ देगा, और तुम इन सब लोगों को हलाक कराओगे।”
\s5
\v 16 ~तब वह उसके नज़दीक आकर कहने लगे, "हम अपने चौपायों के लिए यहाँ भेड़साले और अपने बाल-बच्चों के लिए शहर बनाएँगे,
\v 17 लेकिन हम ख़ुद हथियार बाँधे हुए तैयार रहेंगे के बनी-इस्राईल के आगे आगे चलें, जब तक कि उनको उनकी जगह तक न पहुँचा दें; और हमारे बाल-बच्चे इस मुल्क के बाशिन्दों की वजह से से फ़सीलदार शहरों में रहेंगे।
\s5
\v 18 ~और हम अपने घरों को फिर वापस नहीं आएँगे जब तक बनी-इस्राईल का एक-एक आदमी अपनी मीरास का मालिक न हो जाए।
\v 19 और हम उनमें शामिल होकर यरदन के उस पार या उससे आगे, मीरास न लेंगे क्यूँकि हमारी मीरास यरदन के इस पार पश्चिम की तरफ़ हम को मिल गई।"
\s5
\v 20 मूसा ने उनसे कहा, "अगर तुम यह काम करो और ख़ुदावन्द के सामने हथियारबन्द होकर लड़ने जाओ,
\v 21 और तुम्हारे हथियार बन्द जवान ख़ुदावन्द के सामने यरदन पार जाएँ, जब तक कि ख़ुदावन्द अपने दुश्मनों को अपने सामने से दफ़ा' न करे,
\v 22 और वह मुल्क ख़ुदावन्द के सामने क़ब्ज़े में न आ जाए; तो इसके बा'द तुम वापस आओ, फिर तुम ख़ुदावन्द के सामने और इस्राईल के आगे बेगुनाह ठहरोगे और यह मुल्क ख़ुदावन्द के सामने तुम्हारी मिल्कियत हो जाएगा।
\s5
\v 23 लेकिन अगर तुम ऐसा न करो तो तुम ख़ुदावन्द के गुनाहगार ठहरोगे; और यह जान लो कि तुम्हारा गुनाह तुम को पकड़ेगा।
\v 24 इसलिए तुम अपने बाल बच्चों के लिए शहर और अपनी भेड़-बकरियों के लिए भेड़साले बनाओ; जो तुम्हारे मुँह से निकला है वही करो।”
\v 25 तब बनी जद्द और बनी रूबिन ने मूसा से कहा कि "तेरे ख़ादिम, जैसा हमारे मालिक का हुक्म है वैसा ही करेंगे।
\s5
\v 26 हमारे बाल बच्चे और हमारी बीवियाँ, हमारी भेड़ बकरियाँ और हमारे सब चौपाये जिल'आद के शहरों में रहेंगे;
\v 27 लेकिन हम जो तेरे ख़ादिम हैं, इसलिए हमारा एक-एक हथियारबन्द जवान ख़ुदावन्द के सामने लड़ने को पार जाएगा, जैसा हमारा मालिक कहता है।”
\s5
\v 28 ~तब मूसा ने उनके बारे में इली'अज़र काहिन और नून के बेटे यशू'अ और इस्राईली क़बाइल के आबाई ख़ान्दानों के सरदारों को~वसीयत की
\v 29 ~और उनसे यह कहा कि "अगर बनी जद्द और बनी रूबिन का एक-एक मर्द ख़ुदावन्द के सामने तुम्हारे साथ यरदन के पार हथियारबन्द होकर लड़ाई में जाए और उस मुल्क पर तुम्हारा क़ब्ज़ा हो जाए, तो तुम जिल'आद का मुल्क उनकी मीरास कर देना।
\v 30 लेकिन अगर वह हथियार बाँध कर तुम्हारे साथ पार न जाएँ, तो उनको भी मुल्क-ए-कना'न ही में तुम्हारे बीच मीरास मिले।"
\s5
\v 31 तब बनी जद्द और बनी रूबिन ने जवाब दिया, "जैसा ख़ुदावन्द ने तेरे ख़ादिमों को हुक्म दिया है, हम वैसा ही करेंगे।
\v 32 हम हथियार बाँध कर ख़ुदावन्द के सामने उस पार मुल्क-ए-कना'न को जाएँगे, लेकिन यरदन के इस पार ही हमारी मीरास रहे।”
\s5
\v 33 तब मूसा ने अमोरियों के बादशाह सीहोन की मम्लकत और बसन के बादशाह 'ओज की मम्लकत को, या'नी उनके मुल्कों को और शहरों को जो उन अतराफ़ में थे, और उस सारी नवाही के शहरों को बनी जद्द और बनी रूबिन और मनस्सी बिन यूसुफ़ के आधे क़बीले को दे दिया।
\s5
\v 34 तब बनी जद्द ने तब बनी जद्द ने दिबोन] और 'अतारात और अरो'ईर,
\v 35 और 'अतारात, शोफ़ान, और या'ज़ेर, और युगबिहा,
\v 36 और बैत निमरा, और बैत हारन, फ़सीलदार शहर और भेड़साले बनाए।
\s5
\v 37 अौर बनी रूबिन ने हस्बोन, और इली'आली, और करयताइम,
\v 38 और नबो, और बालम'ऊन के नाम बदलकर उनको और शिबमाह को बनाया, और उन्होंने अपने बनाए हुए शहरों के दूसरे नाम रख्खे।
\v 39 और मनस्सी के बेटे मकीर की नसल के लोगों ने जाकर जिल'आद को ले लिया, और अमोरियों को जो वहाँ बसे हुए थे निकाल दिया।
\s5
\v 40 तब मूसा ने जिल'आद मकीर बिनमनस्सी को दे दिया। तब उसकी नसल के लोग वहाँ सुकूनत करने लगे।
\v 41 और मनस्सी के बेटे या'ईर ने उस नवाही की बस्तियों की जाकर ले लिया और उनका नाम हव्वहत या'ईर रख्खा
\v 42 और नूबह ने कनात और उसके देहात को अपने क़ब्ज़े में कर लिया और अपने ही नाम पर उस का भी नाम नूबह रख्खा |
\s5
\c 33
\p
\v 1 जब बनी-इस्राईल मूसा और हारून के मातहत दल बाँधे हुए मुल्क-ए-मिस्र से निकल कर चले तो जैल की मंज़िलों पर उन्होंने क़याम किया।
\v 2 और मूसा ने उनके सफ़र का हाल उनकी मंज़िलों के मुताबिक़ ख़ुदावन्द के हुक्म से लिखा किया; इसलिए उनके सफ़र की मंज़िलें यह हैं।
\s5
\v 3 पहले महीने की पंद्रहवी तारीख़ की उन्होंने रा'मसीस से रवानगी की। फ़सह के दूसरे दिन सब बनी-इस्राईल के लोग सब मिस्रियों की आँखों के सामने बड़े फ़ख़्र से रवाना हुए।
\v 4 उस वक़्त मिस्री अपने पहलौठों को, जिनको ख़ुदावन्द ने मारा था दफ़न कर रहे थे। ख़ुदावन्द ने उनके मा'बूदों को भी सज़ा दी थी।
\s5
\v 5 इसलिए बनी-इस्राईल ने रा'मसीस से रवाना होकर सुक्कात में ख़ेमे डाले।
\v 6 और सुक्कात से रवाना होकर एताम में, जो वीरान से मिला हुआ है मुक़ीम हुए।
\v 7 फिर एताम से रवाना होकर हर हखीरोत को, जो बा'ल सफ़ोन के सामने है मुड़ गए और मिजदाल के सामने ख़ेमे डाले।
\s5
\v 8 फिर उन्होंने फ़ी हख़ीरोत के सामने से कूच किया और समन्दर के बीच से गुज़र कर वीरान में दाख़िल हुए, और दश्त-ए-एताम में तीन दिन की राह चल कर~मारा में पड़ाव किया।
\v 9 और मारा से रवाना होकर एलीम में आए। और एलीम में पानी के बारह चश्मे और खजूर के सत्तर दरख़्त थे, इसलिए उन्होंने यहीं ख़ेमे डाल लिए।
\v 10 और एलीम से रवाना होकर उन्होंने बहर-ए-क़ुलज़ुम के किनारे ख़ेमे खड़े किए।
\s5
\v 11 और बहर-ए- क़ुलज़ुम से चल कर सीन के जंगल में ख़ेमाज़न हुए।
\v 12 और~सीन के जंगल~से रवाना होकर दफ़का में ठहरे।
\v 13 और दफ़का से रवाना होकर अलूस में मुक़ीम हुए।
\v 14 और अलूस से चल कर रफ़ीदीम में ख़ेमे डाले। यहाँ इन लोगों को पीने के लिए पानी न मिला।
\s5
\v 15 और रफ़ीदीम से रवाना होकर दश्त-ए- सीना में ठहरे।
\v 16 और~सीना के जंगल~से चल कर क़बरोत हतावा में ख़ेमें खड़े किए।
\v 17 ~और क़बरोत हतावा से रवाना होकर हसीरात में ख़ेमे डाले।
\v 18 और हसीरात से रवाना होकर रितमा में ख़ेमे डाले।
\s5
\v 19 और रितमा से रवाना होकर रिम्मोन फ़ारस में खेमें खड़े किए।
\v 20 और रिमोन फ़ारस से जो चले तो लिबना में जाकर मुक़ीम हुए।
\v 21 और लिबना से रवाना होकर रैस्सा में ख़ेमे डाले।
\v 22 और रैस्सा से चलकर कहीलाता में ख़ेमे खड़े किए।
\s5
\v 23 और कहीलाता से चल कर कोह-ए- साफ़र के पास ख़ेमा किया।
\v 24 कोह-ए-साफ़र से रवाना होकर हरादा में ख़ेमाज़न हुए।
\v 25 और हरादा से सफ़र करके मकहीलोत में क़याम किया।
\v 26 और मकहीलोत से रवाना होकर तहत में ख़ेमें खड़े किए।
\s5
\v 27 तहत से जो चले तो तारह में आकर ख़ेमे डाले।
\v 28 और तारह से रवाना होकर मितक़ा में क़याम किया।
\v 29 और मितका से रवाना होकर हशमूना में ख़ेमे डाले।
\v 30 और हशमूना से चल कर मौसीरोत में ख़ेमे खड़े किए।
\s5
\v 31 और मौसीरोत से रवाना होकर बनी या'कान में ख़ेमे डाले।
\v 32 और बनी या'कान से चल कर होर हज्जिदजाद में ख़ेमाज़न हुए।
\v 33 और हीर हज्जिदजाद से रवाना होकर यूतबाता में ख़ेमें खड़े किए।
\v 34 और यूतबाता से चल कर 'अबरूना में ख़ेमे डाले।
\s5
\v 35 और 'अबरूना से चल कर "अस्यून जाबर में ख़ेमा किया।
\v 36 और 'अस्यून जाबर से रवाना होकर~सीन के जंगल~में, जो क़ादिस है क़याम किया।
\v 37 और क़ादिस से चल कर कोह-ए- होर के पास, जो मुल्क-ए-अदोम की सरहद है ख़ेमाज़न हुए।
\s5
\v 38 यहाँ हारून काहिन ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ कोह-ए-होर पर चढ़ गया और उसने बनी-इस्राईल के मुल्क-ए-मिस्र से निकलने के चालीसवें बरस के पाँचवें महीने की पहली तारीख़ को वहीं वफ़ात पाई।
\v 39 और जब हारून ने कोह-ए-होर पर वफ़ात पाई तो वह एक सौ तेईस बरस का था।
\s5
\v 40 और 'अराद के कना'नी बादशाह को, जो मुल्क-ए-कना'न के दख्खिन में रहता था, बनीइस्राईल की आमद की ख़बर मिली।
\s5
\v 41 और इस्राईली कोह-ए-होर से रवाना होकर ज़लमूना में ठहरे।
\v 42 और ज़लमूना से रवाना होकर फूनोन में ख़ेमे डाले।
\v 43 और फूनोन से रवाना होकर ओबोत में क़याम किया।
\s5
\v 44 ~और ओबोत से रवाना होकर 'अय्यी अबारीम में जो मुल्क-ए-मोआब की सरहद पर है ख़ेमे डाले,
\v 45 और 'अय्यीम से रवाना होकर दीबोन जद्द में ख़ेमाज़न हुए।
\v 46 और दीबोन जद्द से रवाना होकर 'अलमून दबलातायम में ख़मे खड़े किए।
\s5
\v 47 और 'अलमून दबलातायम से रवाना होकर 'अबारीम के कोहिस्तान में, जो नबी के सामने है ख़ेमा किया।
\v 48 और 'अबारीम के कोहिस्तान से चल कर मोआब के मैदानों में, जो यरीहू के सामने यरदन के किनारे वाके' है ख़ेमाज़न हुए।
\v 49 और यरदन के किनारे बैत यसीमोत~से लेकर अबील सतीम तक मोआब के मैदानों में उन्होंने ख़ेमे डाले।
\s5
\v 50 और ख़ुदावन्द ने मोआब के मैदानों में, जो यरीहू के सामने यरदन के किनारे वाके' है, मूसा से कहा कि ,
\v 51 "बनी-इस्राईल से यह कह दे कि जब तुम यरदन को उबूर करके मुल्क-ए-कना'न में दाख़िल हो,
\v 52 तो तुम उस मुल्क के सारे बाशिन्दों को वहाँ से निकाल देना, और उनके शबीहदार पत्थरों को ~और उनके ढाले हुए बुतों को तोड़ डालना, और उनके सब ऊँचे मक़ामों को तबाह कर देना।
\s5
\v 53 और तुम उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करके उसमें बसना, क्यूँकि मैंने वह मुल्क तुम को दिया है कि तुम उसके मालिक बनो।
\v 54 और तुम पर्ची डाल कर उस मुल्क को अपने घरानों में मीरास के तौर पर बाँट लेना। जिस ख़ान्दान में ज़्यादा आदमी हों उसको ज़्यादा, और जिसमें थोड़े हों उसको थोड़ी मीरास देना; और जिस आदमी का पर्चा जिस जगह के लिए निकले वही उसके हिस्से में मिले। तुम अपने आबाई क़बाइल के मुताबिक़ अपनी अपनी मीरास लेना।
\s5
\v 55 ~लेकिन अगर तुम उस मुल्क के बाशिन्दों को अपने आगे से दूर न करो, तो जिनको तुम बाक़ी रहने दोगे वह तुम्हारी आँखों में ख़ार और तुम्हारे पहलुओं में काँटे होंगे, और उस मुल्क में जहाँ तुम बसोगे तुम को दिक़ करेंगे।
\v 56 और आख़िर को यूँ होगा कि जैसा मैंने उनके साथ करने का इरादा किया वैसा ही तुम से करूँगा।"
\s5
\c 34
\p
\v 1 फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,
\v 2 "बनी-इस्राईल को हुक्म कर,और उनको कह दे कि जब तुम मुल्क-ए-कना'न में दाख़िल हो; (यह वही मुल्क है जो तुम्हारी मीरास होगा, या'नी कना'न का मुल्क म'ए अपनी हुदूद-ए-अरबा' के)
\v 3 तो तुम्हारी दख्खिनी सिम्त~सीन के जंगल~से लेकर मुल्क-ए-अदोम के किनारे किनारे हो, और तुम्हारी~दख्खिनी सरहद दरिया-ए-शोर के आख़िर से शुरू' होकर पश्चिम को जाए।
\s5
\v 4 वहाँ से तुम्हारी सरहद 'अक़राबियम की चढ़ाई के दख्खिन तक पहुँच कर मुड़े, और सीन से होती हुई क़ादिस बर्नी'अ के दख्खिन में जाकर निकले, और हसर अद्दार से होकर 'अज़मून तक पहुँचे।
\v 5 फिर यही सरहद 'अज़मून से होकर घूमती हुई मिस्र की नहर तक जाए और समन्दर के किनारे पर ख़त्म हो।
\s5
\v 6 "और पश्चिमी सिम्त में बड़ा समन्दर और उसका साहिल हो, इसलिए यही तुम्हारी पश्चिमी सरहद ठहरे।
\s5
\v 7 "और उत्तरी सिम्त में तुम बड़े समन्दर से कोह-ए-होर तक अपनी हद्द रखना।
\v 8 फिर कोह-ए-होर से हमात के मदख़ल तक तुम इस तरह अपनी हद्द मुक़र्रर करना कि वह सिदाद से जा मिले।
\v 9 और वहाँ से होती हुई ज़िफ़रून को निकल जाए और हसर 'एनान पर जाकर ख़त्म हो, यह तुम्हारी उत्तरी सरहद हो।
\s5
\v 10 "और तुम अपनी पूरबी सरहद हसर 'एनान से लेकर सफ़ाम तक बाँधना।
\v 11 ~ और यह सरहद सफ़ाम से रिबला तक जो 'ऐन के पश्चिम में है जाए, और वहाँ से नीचे को उतरती हुई किन्नरत की झील के पूरबी किनारे तक पहुँचे:
\v 12 और फिर यरदन के किनारे किनारे नीचे को जाकर दरिया-ए-शोर पर ख़त्म हो। इन हदों के अन्दर का मुल्क तुम्हारा होगा।"
\s5
\v 13 तब मूसा ने बनी-इस्राईल को हुक्म दिया, "यही वह ज़मीन है जिसे तुम पर्ची डाल कर मीरास में लोगे, और इसी के बारे में ख़ुदावन्द ने हुक्म दिया है कि वह साढ़े नौ क़बीलों को दी जाए।
\v 14 क्यूँकि बनी रूबिन के क़बीले ने अपने आबाई ख़ान्दानों के मुवाफ़िक, और बनी जद्द के क़बीले ने भी अपने आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ मीरास पा ली, और बनी मनस्सी के आधे क़बीले ने भी अपनी मीरास पा ली;
\v 15 या'नी इन ढाई क़बीलों को यरदन के इसी पार यरीहू के सामने पश्चिम की तरफ़ जिधर से सूरज निकलता है मीरास मिल चुकी है।"
\s5
\v 16 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,
\v 17 'जो अश्ख़ास इस मुल्क को मीरास के तौर पर तुम को बाँट देंगे उन के नाम यह हैं, या'नी इली'अज़र काहिन और नून का बेटा यशू'अ।
\v 18 और तुम ज़मीन को मीरास के तौर पर बाँटने के लिए हर क़बीले से एक सरदार को लेना।
\s5
\v 19 ~और उन आदमियों के नाम यह हैं : यहूदाह के क़बीले से यफुना का बेटा कालिब,
\v 20 और बनी शमा'ऊन के क़बीले से अम्मीहूद का बेटा समूएल,
\s5
\v 21 और बिनयमीन के क़बीले से किसलून का बेटा इलीदाद,
\v 22 और बनी दान के क़बीले से एक सरदार बुक्की बिन युगली,
\v 23 और बनी यूसुफ़ में से या'नी बनी मनस्सी के क़बीले से एक सरदार हनीएल बिन अफूद,
\s5
\v 24 और बनी इफ़्राईम के क़बीले से एक सरदार क़मूएल बिन सिफ़्तान,
\v 25 और बनी ज़बूलून के क़बीले से एक सरदार इलीसफ़न बिन फ़रनाक,
\v 26 और बनी इश्कार के क़बीले से एक सरदार फ़लतीएल बिन 'अज़्ज़ान,
\s5
\v 27 और बनी आशर के क़बीले से एक सरदार अखीहूद बिन शलूमी,
\v 28 और बनी नफ़्ताली के क़बीले से एक सरदार फ़िदाहेल बिन 'अम्मीहूद।"
\v 29 यह वह लोग हैं जिनको ख़ुदावन्द ने हुक्म दिया कि मुल्क-ए-कना'न में बनी-इस्राईल को मीरास तक़्सीम कर दें।
\s5
\c 35
\p
\v 1 ~फिर ख़ुदावन्द ने मोआब के मैदानों में, जो यरीहू के सामने यरदन के किनारे वाके' हैं, मूसा से कहा कि,
\v 2 ~"बनी इस्राईल को हुक्म कर, कि अपनी मीरास में से जो उनके क़ब्ज़े में आए लावियों की रहने के लिए शहर दें, और उन शहरों के 'इलाक़े भी तुम लावियों को दे देना।
\s5
\v 3 यह शहर उनके रहने के लिए हों; उनके 'इलाक़े उनके चौपायों और माल और सारे जानवरों के लिए हों।
\v 4 और शहरों के 'इलाक़े जो तुम लावियों को दो वह हर शहर की दीवार से शुरू' करके बाहर चारों तरफ़ हज़ार-हज़ार हाथ के फेर में हों।
\s5
\v 5 और तुम शहर के बाहर पश्चिम की तरफ़ दो हज़ार हाथ, और दख्खिन की तरफ़ दो हज़ार हाथ, और पश्चिम की तरफ़ दो हज़ार हाथ, और उत्तर की तरफ़ दो हज़ार हाथ इस तरह पैमाइश करना के शहर उनके बीच में आ जाए। उनके शहरों के इतनी ही 'इलाक़े हों।
\s5
\v 6 और लावियों के उन शहरों में से जो तुम उनको दो, छः पनाह के शहर ठहरा देना जिनमें ख़ूनी भाग जाएँ। इन शहरों के 'अलावा बयालीस शहर और उनको देना;
\v 7 या'नी सब मिला कर अड़तालीस शहर लावियों की देना और इन शहरों के साथ इनके 'इलाक़े भी हों।
\s5
\v 8 और वह शहर बनी-इस्राईल की मीरास में से यूँ दिए जाएँ। जिनके क़ब्ज़े में बहुत से~हों उनसे थोड़े शहर लेना। हर क़बीला अपनी मीरास के मुताबिक़ जिसका वह वारिस हो लावियों के लिए शहर दे।"
\s5
\v 9 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,
\v 10 "बनी-इस्राईल से कह दे कि जब तुम यरदन को पार करके मुल्क-ए-कना'न में पहुँच जाओ,
\v 11 ~तो तुम कई ऐसे शहर मुक़र्रर करना जो तुम्हारे लिए पनाह के शहर हों, ताकि वह ख़ूनी जिससे अनजाने में ~ख़ून हो जाए वहाँ भाग जा सके।
\s5
\v 12 इन शहरों में तुम को इन्तक़ाम लेने वाले से पनाह मिलेगी, ताकि ख़ूनी जब तक वह फ़ैसले के लिए जमा'अत के आगे हाज़िर न हो तब तक मारा न जाए।
\v 13 और पनाह के जो शहर तुम दोगे वह छः हों।
\s5
\v 14 तीन शहर तो यरदन के पार और तीन मुल्क-ए-कना'न में देना। यह पनाह के शहर होंगे।
\v 15 इन छहों शहरों में बनी-इस्राईल को और उन मुसाफ़िरों और परदेसियों को जो तुम में क़याम करते हैं, पनाह मिलेगी ताकि जिस किसी से अनजाने में ख़ून हो जाए वह वहाँ भाग जा सके।
\s5
\v 16 'और अगर कोई किसी को लोहे के हथियार से ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो वह ख़ूनी ठहरेगा और वह ख़ूनी ज़रूर मारा जाए।
\v 17 या अगर कोई ऐसा पत्थर हाथ में लेकर जिससे आदमी मर सकता हो, किसी को मारे और वह मर जाए, तो वह ख़ूनी ठहरेगा और वह ख़ूनी ज़रूर मारा जाए।
\v 18 या अगर कोई चोबी आला हाथ में लेकर जिससे आदमी मर सकता हो, किसी को मारे और वह मर जाए, तो वह ख़ूनी ठहरेगा और वह ख़ूनी ज़रूर मारा जाए।
\s5
\v 19 ख़ून का इन्तक़ाम लेने वाला ख़ूनी को आप ही क़त्ल करे; जब वह उसे मिले तब ही उसे मार डाले।
\v 20 और अगर कोई किसी को 'अदावत से धकेल दे या घात लगा कर कुछ उस पर फेंक दे और वह मर जाए,
\v 21 या दुश्मनी से उसे अपने हाथ से ऐसा मारे कि वह मर जाए; तो वह जिसने मारा हो ज़रूर क़त्ल किया जाए क्यूँकि वह ख़ूनी है। ख़ून का इन्तक़ाम लेने वाला इस ख़ूनी को जब वह उसे मिले मार डाले।
\s5
\v 22 'लेकिन अगर कोई किसी को बग़ैर 'अदावत के नागहान धकेल दे या बग़ैर घात लगाए उस पर कोई चीज़ डाल दे,
\v 23 या उसे बग़ैर देखे कोई ऐसा पत्थर उस पर फेंके जिससे आदमी मर सकता हो, और वह मर जाए; लेकिन यह न तो उसका दुश्मन और न उसके नुक़सान का ख्वाहान था;
\s5
\v 24 तो जमा'अत ऐसे क़ातिल और ख़ून के इन्तक़ाम लेने वाले के बीच इन ही हुक्मों के मुवाफ़िक़ फ़ैसला करे;
\v 25 और जमा'अत उस क़ातिल को ख़ून के इन्तक़ाम लेने वाले के हाथ से छुड़ाए और जमा'अत ही उसे पनाह के उस शहर में जहाँ वह भाग गया था वापस पहुँचा दे, और जब तक सरदार काहिन जो पाक तेल से मम्सूह हुआ था मर न जाए तब तक वह वहीं रहे।
\s5
\v 26 लेकिन अगर वह ख़ूनी अपने पनाह के शहर की सरहद से, जहाँ वह भाग कर गया हो किसी वक़्त बाहर निकले,
\v 27 और ख़ून के इन्तक़ाम लेने वाले की वह पनाह के शहर की सरहद के बाहर मिल जाए और इन्तक़ाम लेने वाला क़ातिल को क़त्ल कर डाले, तो वह ख़ून करने का मुजरिम न होगा;
\v 28 क्यूँकि ख़ूनी को लाज़िम था कि सरदार काहिन की वफ़ात तक उसी पनाह कि शहर में रहता, लेकिन सरदार काहिन के मरने के बा'द ख़ूनी अपनी मौरूसी जगह को लौट जाए।
\s5
\v 29 "इसलिए तुम्हारी सब सुकूनतगाहों में नसल-दर-नसल यह बातें फ़ैसले के लिए क़ानून ठहरेंगी।
\v 30 अगर कोई किसी को मार डाले तो कातिल गवाहों की शहादत पर क़त्ल किया जाए, लेकिन एक गवाह की शहादत से कोई मारा न जाए।
\s5
\v 31 और तुम उस क़ातिल से जो वाजिब-उल-क़त्ल हो दियत न लेना बल्कि वह ज़रूर ही मारा जाए।
\v 32 ~और तुम उससे भी जो किसी पनाह के शहर को भाग गया हो, इस ग़र्ज़ से दियत न लेना कि वह सरदार काहिन की मौत से पहले फिर मुल्क में रहने को लौटने पाए।
\s5
\v 33 इसलिए तुम उस मुल्क को जहाँ तुम रहोगे नापाक न करना, क्यूँकि ख़ून मुल्क को नापाक कर देता है; और उस मुल्क के लिए जिसमें ख़ून बहाया जाए अलावा क़ातिल के ख़ून के और किसी चीज़ का कफ़्फ़ारा नहीं लिया जा सकता।
\v 34 ~और तुम अपनी क़याम के मुल्क को जिसके अन्दर मैं रहूँगा, गन्दा भी न करना; क्यूँकि मैं जो ख़ुदावन्द हूँ, इसलिए बनी-इस्राईल के बीच रहता हूँ।"
\s5
\c 36
\p
\v 1 और बनी यूसुफ़ के घरानों में से बनी जिल'आद बिन मकीर बिन मनस्सी के आबाई ख़ान्दानों के सरदार मूसा और उन अमीरों के पास जाकर जो बनी इस्राईल के आबाई ख़ान्दानों के सरदार थे कहने लगे,
\v 2 "ख़ुदावन्द ने हमारे मालिक को हुक्म दिया था कि ~पर्ची डाल कर यह मुल्क मीरास के तौर पर बनी-इस्राईल को देना; और हमारे मालिक को ख़ुदावन्द की तरफ़ से हुक्म मिला था, कि हमारे भाई सिलाफ़िहाद की मीरास उसकी बेटियों को दी जाए।
\s5
\v 3 लेकिन अगर वह बनी-इस्राईल के और क़बीलों के आदमियों से ब्याही जाएँ, तो उनकी मीरास हमारे बाप-दादा की मीरास से निकल कर उस क़बीले की मीरास में शामिल की जाएगी जिसमें वह ब्याही जाएँगी; यूँ वह हमारे हिस्से की मीरास से अलग हो जाएगी।
\v 4 और जब बनी-इस्राईल का साल-ए-यूबली आएगा, तो उनकी मीरास उसी क़बीले की मीरास से मुल्हक़ की जाएगी जिसमें वह ब्याही जाएँगी। यूँ हमारे बाप-दादा के क़बीले की मीरास से उनका हिस्सा निकल जाएगा।"
\s5
\v 5 तब मूसा ने ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ बनी-इस्राईल को हुक्म दिया और कहा कि "बनी यूसुफ़ के क़बीले के लोग ठीक कहते हैं।
\v 6 इसलिए सिलाफ़िहाद की बेटियों के हक़ में ख़ुदावन्द का हुक्म यह है कि वह जिनको पसन्द करें उन्हीं से ब्याह करें, लेकिन अपने बापदादा के क़बीले ही के ख़ान्दानों में ब्याही जाएँ।
\s5
\v 7 ~यूँ बनी-इस्राईल की मीरास एक क़बीले से दूसरे क़बीले में नहीं जाने पाएगी; क्यूँकि हर इस्राईली को अपने बाप-दादा के क़बीले की मीरास को अपने क़ब्ज़े में रखना होगा।
\s5
\v 8 और अगर बनी इस्राईल के किसी क़बीले में कोई लड़की हो जो मीरास की ,मालिक हो तों वह अपने बाप के क़बीले के किसी ख़ानदान में ब्याह करे ताकि हर इस्राईली अपने बाप दादा की मीरास पर क़ायम रहे|
\v 9 यूँ किसी की मीरास एक क़बीले से दूसरे क़बीले में नहीं जाने पाएगी; क्यूँकि बनी-इस्राईल के क़बीलों को लाज़िम है कि अपनी अपनी मीरास अपने-अपने क़ब्ज़े में रख्खें।"
\s5
\v 10 और सिलाफ़िहाद की बेटियों ने जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था वैसा ही किया।
\v 11 क्यूँकि महलाह और तिरज़ाह और हुजलाह और मिल्काह और नू'आह जो सिलाफ़िहाद की बेटियाँ थीं, वह अपने चचेरे भाइयों के साथ ब्याही गई,
\v 12 या'नी वह यूसुफ़ के बेटे मनस्सी की नसल के ख़ान्दानों में ब्याही गई, और उनकी मीरास, उनके आबाई ख़ान्दान के क़बीले में क़ायम रही।
\s5
\v 13 जो हुक्म और फ़ैसले ख़ुदावन्द ने मूसा के ज़रिए' मोआब के मैदानों में जो यरीहू के सामने यरदन के किनारे वाक़े' है बनी इस्राईल को दिए वह यही हैं|

1549
05-DEU.usfm Normal file
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\id DEU
\ide UTF-8
\h इस्तिस्ना
\toc1 इस्तिस्ना
\toc2 इस्तिस्ना
\toc3 deu
\mt1 इस्तिस्ना
\s5
\c 1
\p
\v 1 यह~वही बातें हैं जो मूसा ने यरदन के उस पार वीराने में, या'नी उस मैदान में जो सूफ़ के सामने और फ़ारान और तोफ़ल और लाबन और हसीरात और दीज़हब के बीच है, सब इस्राईलियों से कहीं।
\v 2 कोह-ए-श'ईर की राह से होरिब से क़ादिस बर्नी'अ तक ग्यारह दिन की मन्ज़िल है।
\s5
\v 3 ~और चालीसवें बरस के ग्यारहवें महीने की पहली तारीख़ को मूसा ने उन सब अहकाम के मुताबिक़ जो ख़ुदावन्द ने उसे बनी-इस्राईल के लिए दिए थे, उनसे यह बातें कहीं:
\v 4 या'नी जब उसने अमोरियों के बादशाह सीहोन को जो हस्बोन में रहता था मारा, और बसन के बादशाह 'ओज को जो 'इस्तारात में रहता था, अदर'ई में क़त्ल किया;
\s5
\v 5 तो इसके बा'द यरदन के पार मोआब के मैदान में मूसा इस शरी'अत को यूँ बयान करने लगा कि,
\v 6 ~"ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने होरिब में हमसे यह कहा था, कि तुम इस पहाड़ पर बहुत रह चुके हो
\s5
\v 7 इसलिए अब फिरो और कूच करो और अमोरियों के पहाड़ी मुल्क, और उसके आस-पास के मैदान और पहाड़ी क़ता'अ और नशेब की ज़मीन और दख्खिनी अतराफ़ में, और समन्दर के साहिल तक जो कना'नियों का मुल्क है बल्कि कोह-ए-लुबनान और दरिया-ए-फ़रात तक जो एक बड़ा दरिया है, चले जाओ।
\v 8 देखो, मैंने इस मुल्क को तुम्हारे सामने कर दिया है। इसलिए जाओ और उस मुल्क को अपने क़ब्ज़े में कर लो, जिसके बारे में ख़ुदावन्द ने तुम्हारे बाप-दादा इब्राहीम, इस्हाक़, और या'क़ूब से क़सम खाकर यह कहा था, कि वह उसे उनको और उनके बा'द उनकी नसल को देगा।
\s5
\v 9 ~उस वक़्त मैंने तुमसे कहा था, कि मैं अकेला तुम्हारा बोझ नहीं उठा सकता।
\v 10 ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुमको बढ़ाया है और आज के दिन आसमान के तारों की तरह तुम्हारी कसरत है।
\v 11 ख़ुदावन्द तुम्हारे बाप-दादा का ख़ुदा तुमको इससे भी हज़ार चँद बढ़ाए, और जो वा'दा उसने तुमसे किया है उसके मुताबिक़ तुमको बरकत बख़्शे।
\s5
\v 12 मैं अकेला तुम्हारे जंजाल और बोझ और झंझट को कैसे उठा सकता हूँ?
\v 13 इसलिए तुम अपने-अपने क़बीले से ऐसे आदमियों को चुनो जो दानिश्वर और 'अक़्लमन्द और मशहूर हों, और मैं उनको तुम पर सरदार बना दूँगा।
\v 14 इसके जवाब में तुमने मुझसे कहा था, कि जो कुछ तूने फ़रमाया है उसका करना बेहतर है।
\s5
\v 15 इसलिए मैंने तुम्हारे क़बीलों के सरदारों को जो 'अक़्लमन्द और मशहूर थे, लेकर उनको तुम पर मुक़र्रर किया ताकि वह तुम्हारे क़बीलों के मुताबिक़ हज़ारों के सरदार, और सैकड़ों के सरदार, और पचास-पचास के सरदार, और दस-दस के सरदार हाकिम हों।
\v 16 और उसी मौक़े' पर मैंने तुम्हारे क़ाज़ियों से ताकीदन ये कहा, कि तुम अपने भाइयों के मुक़द्दमों को सुनना, पर चाहे भाई-भाई का मुआ'मिला हो या परदेसी का तुम उनका फैसला इंसाफ़ के साथ करना।
\s5
\v 17 तुम्हारे फ़ैसले में किसी की रू-रि'आयत न हो, जैसे बड़े आदमी की बात सुनोगे वैसे ही छोटे की सुनना और किसी आदमी का मुँह देख कर डर न जाना; क्यूँकि यह 'अदालत ख़ुदा की है; और जो मुक़द्दमा तुम्हारे लिए मुश्किल हो उसे मेरे पास ले आना मैं उसे सुनूँगा
\v 18 और मैंने उसी वक़्त सब कुछ जो तुमको करना है बता दिया।
\s5
\v 19 और हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्म के मुताबिक़ होरिब से सफ़र करके उस बड़े और ख़तरनाक वीराने में से होकर गुज़रे, जिसे तुमने अमोरियों के पहाड़ी मुल्क के रास्ते में देखा। फिर हम क़ादिस बर्नी'अ में पहुँचे।
\s5
\v 20 वहाँ मैंने तुमको कहा, कि तुम अमोरियों के पहाड़ी मुल्क तक आ गए हो जिसे ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा हमको देता है।
\v 21 ~देख, उस मुल्क को ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तेरे सामने कर दिया है। इसलिए तू जा, और जैसा ख़ुदावन्द तेरे बाप-दादा के ख़ुदा ने तुझ से कहा है तू उस पर क़ब्ज़ा कर और न ख़ौफ़ खा न हिरासान हो।
\s5
\v 22 ~तब तुम सब मेरे पास आकर मुझसे कहने लगे, कि हम अपने जाने से पहले वहाँ आदमी भेजें, जो जाकर हमारी ख़ातिर उस मुल्क का हाल दरियाफ़्त करें और आकर हमको बताएँ के हमको किस राह से वहाँ जाना होगा और कौन-कौन से शहर हमारे रास्ते में पड़ेंगे।
\v 23 यह बात मुझे बहुत पसन्द आई चुनाँचे मैंने क़बीले पीछे एक-एक आदमी के हिसाब से बारह आदमी चुने।
\v 24 और वह रवाना हुए और पहाड़ पर चढ़ गए और वादी-ए-इसकाल में पहुँच कर उस मुल्क का हाल दरियाफ़्त किया।
\s5
\v 25 और उस मुल्क का कुछ फल हाथ में लेकर उसे हमारे पास लाए, और हमको यह ख़बर दी कि जो मुल्क ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा हमको देता है वह अच्छा है।
\s5
\v 26 "तो भी तुम वहाँ जाने पर राज़ी न हुए, बल्कि तुमने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्म से सरकशी की,
\v 27 और अपने ख़ेमों में कुड़कुड़ाने और कहने लगे, कि ख़ुदावन्द को हमसे नफ़रत है इसीलिए वह हमको मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया ताकि वह हमको अमोरियों के हाथ में गिरफ़्तार करा दे और वह हमको हलाक कर डालें ।
\v 28 हम किधर जा रहे हैं? हमारे भाइयों ने तो यह बता कर हमारा हौसला तोड़ दिया है, कि वहाँ के लोग हमसे बड़े-बड़े और लम्बे हैं; और उनके शहर बड़े-बड़े और उनकी फ़सीलें आसमान से बातें करती हैं। इसके अलावा हमने वहाँ 'अनाक़ीम की औलाद को भी देखा।
\s5
\v 29 ~तब मैंने तुमको कहा, कि ख़ौफ़ज़दा मत हो और न उनसे डरो।
\v 30 ~ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा जो तुम्हारे आगे आगे चलता है, वही तुम्हारी तरफ़ से जंग करेगा जैसे उसने तुम्हारी ख़ातिर मिस्र में तुम्हारी आँखों के सामने सब कुछ किया
\v 31 और वीराने में भी तुमने यही देखा के जिस तरह इन्सान अपने बेटे को उठाए हुए चलता है उसी तरह ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तेरे इस जगह पहुँचने तक सारे रास्ते जहाँ-जहाँ तुम गए तुमको उठाए रहा
\s5
\v 32 तो भी इस बात में तुमने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का यक़ीन न किया,
\v 33 जो राह में तुमसे आगे-आगे तुम्हारे वास्ते ख़ेमे लगाने की जगह तलाश करने के लिए, रात को आग में और दिन को बादल में होकर चला, ताकि तुमको वह रास्ता दिखाए जिस से तुम चलो।
\s5
\v 34 'और ख़ुदावन्द तुम्हारी बातें सुन कर गज़बनाक हुआ और उसने क़सम खाकर कहा, कि
\v 35 इस बुरी नसल के लोगों में से एक भी उस अच्छे मुल्क को देखने नहीं पाएगा, जिसे उनके बाप-दादा को देने की क़सम मैंने खाई है,
\v 36 सिवा यफुना के बेटे कालिब के; वह उसे देखेगा, और जिस ज़मीन पर उसने क़दम रख्खा है उसे मैं उसकी और उसकी नसल को दूँगा; इसलिए के उसने ख़ुदावन्द की पैरवी पूरे तौर पर की,
\s5
\v 37 और तुम्हारी ही वजह से ख़ुदावन्द मुझ पर भी नाराज़ हुआ और यह कहा, कि तू भी वहाँ जाने न पाएगा।
\v 38 नून का बेटा यशू'अ जो तेरे सामने खड़ा रहता है वहाँ जाएगा, इसलिए तू उसकी हौसला अफ़ज़ाई कर क्यूँकि वही बनी इस्राईल को उस मुल्क का मालिक बनाएगा।
\s5
\v 39 और तुम्हारे बाल-बच्चे जिनके बारे में तुमने कहा था, कि लूट में जाएँगे, और तुम्हारे लड़के बाले जिनको आज भले और बुरे की भी तमीज़ नहीं, यह~वहाँ जाएँगे; और यह मुल्क मैं इन ही को दूँगा और यह उस पर क़ब्ज़ा करेंगे।
\v 40 पर तुम्हारे लिए यह है, कि तुम लौटो और बहर-ए-क़ुलज़ुम की राह से वीराने में जाओ।
\s5
\v 41 "तब तुमने मुझे जवाब दिया, कि हमने ख़ुदावन्द का गुनाह किया है और अब जो कुछ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने हमको हुक्म दिया है, उसके मुताबिक़ हम जाएँगे और जंग करेंगे। इसलिए तुम सब अपने-अपने जंगी हथियार बाँध कर पहाड़ पर चढ़ जाने को तैयार हो गए।
\v 42 ~तब ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, कि उनसे कह दे के ऊपर मत चढ़ो और न जंग करो क्यूँकि मैं तुम्हारे बीच नहीं हूँ; कहीं ऐसा न हो कि तुम अपने दुश्मनों से शिकस्त खाओ।
\s5
\v 43 और मैंने तुमसे कह भी दिया पर तुमने मेरी न सुनी, बल्कि तुमने ख़ुदावन्द के हुक्म से सरकशी की और शोख़ी से पहाड़ पर चढ़ गए।
\v 44 तब अमोरी जो उस पहाड़ पर रहते थे तुम्हारे मुक़ाबले को निकले, और उन्होंने शहद की मक्खियों की तरह तुम्हारा पीछा किया और श'ईर में मारते-मारते तुमको हुरमा तक पहुँचा दिया।
\s5
\v 45 तब तुम लौट कर ख़ुदावन्द के आगे रोने लगे, लेकिन ख़ुदावन्द ने तुम्हारी फ़रियाद न सुनी और न तुम्हारी बातों पर कान लगाया।
\v 46 इसलिए तुम क़ादिस में बहुत दिनों तक पड़े रहे, यहाँ तक के एक ज़माना हो गया |
\s5
\c 2
\p
\v 1 ~"और जैसा ख़ुदावन्द ने मुझे हुक्म दिया था, उसके मुताबिक़ हम लौटे और बहर-ए-क़ुलज़ुम की राह से वीराने में आए और बहुत दिनों तक कोह-ए-श'ईर के बाहर-बाहर चलते रहे।
\v 2 तब ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, कि:
\v 3 ~तुम इस पहाड़ के बाहर-बाहर बहुत चल चुके; उत्तर की तरफ़ मुड़ जाओ,
\s5
\v 4 और तू इन लोगों को ताकीद कर दे कि तुमको बनी 'ऐसौ, तुम्हारे भाई जो श'ईर में रहते हैं उनकी सरहद के पास से होकर जाना है, और वह तुमसे हिरासान होंगे। इसलिए तुम ख़ूब एहतियात रखना,
\v 5 और उनको मत छेड़ना; क्यूँकि मैं उनकी ज़मीन में से पाँव धरने तक की जगह भी तुमको नहीं दूँगा, इसलिए कि मैंने कोह-ए-श'ईर 'ऐसौ को मीरास में दिया है।
\s5
\v 6 तुम रुपये देकर अपने खाने के लिए उनसे ख़ुराक ख़रीदना, और पीने के लिए पानी भी रुपया देकर उनसे मोल लेना।
\v 7 क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तेरे हाथ की कमाई में बरकत देता रहा है, और इस बड़े वीराने में जो तुम्हारा चलना फिरना है वह उसे जानता है। इन चालीस बरसों में ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा बराबर तुम्हारे साथ रहा और तुझको किसी चीज़ की कमी नहीं हुई।
\s5
\v 8 इसलिए हम अपने भाइयों बनी 'ऐसौ के पास से जो श'ईर में रहते हैं, कतरा कर मैदान की राह से ऐलात और 'अस्यून जाबर होते हुए गुज़रे।"फिर हम मुड़े और मोआब के वीराने के रास्ते से चले।
\s5
\v 9 फिर ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, कि मोआबियों को न तो सताना और न उनसे जंग करना; इसलिए कि मैं तुझको उनकी ज़मीन का कोई हिस्सा मिल्कियत के तौर पर नहीं दूँगा, क्यूँकि मैंने 'आर को बनी लूत की मीरास कर दिया है।
\s5
\v 10 ~(वहाँ पहले ऐमीम बसे हुए थे जो 'अनाक़ीम की तरह बड़े-बड़े और लम्बे-लम्बे और शुमार में बहुत थे।
\v 11 और 'अनाक़ीम ही की तरह वह भी रफ़ाईम में गिने जाते थे, लेकिन मोआबी उनको ऐमीम कहते हैं।
\s5
\v 12 और पहले श'ईर~में होरी क़ौम के लोग बसे हुए थे, लेकिन बनी 'ऐसौ ने उनको निकाल दिया और उनको अपने सामने से बर्बाद करके आप उनकी जगह बस गए, जैसे इस्राईल ने अपनी मीरास के मुल्क में किया जिसे ख़ुदावन्द ने उनको दिया।)
\s5
\v 13 अब उठो और वादी-ए-ज़रद के पार जाओ। चुनाँचे हम वादी-ए-ज़रद से पार हुए।
\v 14 ~और हमारे क़ादिस बर्नी'अ से रवाना होने से लेकर वादी-ए-ज़रद के पार होने तक अड़तीस बरस का 'अरसा गुज़रा। इस असना में ख़ुदावन्द की क़सम के मुताबिक़ उस नसल के सब जंगी मर्द लश्कर में से मर खप गए|
\v 15 ~और जब तक वह नाबूद न हो गए तब तक ख़ुदावन्द का हाथ उनको लश्कर में से हलाक करने को उनके ख़िलाफ़ बढ़ा ही रहा।
\s5
\v 16 जब सब जंगी मर्द मर गए और क़ौम में से फ़ना हो गए
\v 17 तो ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा,
\v 18 आज तुझे 'आर शहर से होकर जो मोआब की सरहद है गुज़रना है।
\v 19 ~और जब तू बनी 'अम्मोन के क़रीब जा पहुँचे, तो उन को मत सताना और न उनको छेड़ना, क्यूँकि मैं बनी 'अम्मोन की ज़मीन का कोई हिस्सा तुझे मीरास के तौर पर नहीं दूँगा इसलिए कि उसे मैंने बनी लूत को मीरास में दिया है।
\s5
\v 20 (वह मुल्क भी रफ़ाईम का गिना जाता था, क्यूँकि पहले रफ़ाईम जिनको 'अम्मोनी लोग ज़मज़मीम कहते थे वहाँ बसे हुए थे।
\v 21 यह लोग भी 'अनाक़ीम की तरह बड़े-बड़े और लम्बे-लम्बे और शुमार में बहुत थे, लेकिन ख़ुदावन्द ने उनको 'अम्मोनियों के सामने से हलाक किया, और वह उनको निकाल कर उनकी जगह आप बस गए।
\v 22 ठीक वैसे ही जैसे उसने बनी 'ऐसौ के सामने से जो श'ईर में रहते थे होरियों को हलाक किया, और वह उनको निकाल कर आज तक उन ही की जगह बसे हुए हैं।
\s5
\v 23 ऐसे ही 'अवियों को जो अपनी बस्तियों में ग़ज़्ज़ा तक बसे हुए थे, कफ़तूरियों ने जो कफ़तूरा से निकले थे हलाक किया और उनकी जगह आप बस गए)
\s5
\v 24 इसलिए उठो, और वादी-ए-अरनून के पार जाओ। देखो, मैंने हस्बोन के बादशाह सीहोन को, जो अमोरी है उसके मुल्क समेत तुम्हारे हाथ में कर दिया है; इसलिए उस पर क़ब्ज़ा करना शुरू' करो और उससे जंग छेड़ दो।
\v 25 मैं आज ही से तुम्हारा ख़ौफ़ और रौब उन क़ौमों के दिल में डालना शुरू' करूँगा जो इस ज़मीन पर रहती हैं, वह तुम्हारी ख़बर सुनेंगी और काँपेंगी, और तुम्हारी वजह से बेताब हो जाएँगी।
\s5
\v 26 ~"और मैंने दश्त-ए-क़दीमात से हस्बोन के बादशाह सीहोन के पास सुलह के पैग़ाम के साथ क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा, कि
\v 27 मुझे अपने मुल्क से गुज़र जाने दे; मैं शाहराह से होकर चलूँगा और दहने और बाएँ हाथ नहीं मुड़ूँगा
\s5
\v 28 तू रुपये लेकर मेरे हाथ मेरे खाने के लिए ख़ुराक बेचना, और मेरे पीने के लिए पानी भी मुझे रुपया लेकर देना; सिर्फ़ मुझे पाँव-पाँव निकल जाने दे,
\v 29 जैसे बनी 'ऐसौ ने जो श'ईर में रहते हैं, और मोआबियों ने जो 'आर शहर में बसते हैं। मेरे साथ किया; जब तक कि मैं यरदन को उबूर करके उस मुल्क में पहुँच न जाऊँ जो ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा हमको देता है।
\s5
\v 30 लेकिन हस्बोन के बादशाह सीहोन ने हमको अपने हाँ से गुज़रने न दिया; क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने उसका मिज़ाज कड़ा और उसका दिल सख़्त कर दिया ताकि उसे तेरे हाथ में हवाले कर दे, जैसा आज ज़ाहिर है।
\v 31 ~और ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, "देख, मैं सीहोन और उसके मुल्क को तेरे हाथ में हवाले करने को हूँ, इसलिए तू उस पर क़ब्ज़ा करना शुरू' कर, ताकि वह तेरी मीरास ठहरे।'
\s5
\v 32 तब सीहोन अपने सब आदमियों को लेकर हमारे मुक़ाबले में निकला और जंग करने के लिए यहज़ में आया।
\v 33 और ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने उसे हमारे हवाले कर दिया; और हमने उसे, और उसके बेटों को, और उसके सब आदमियों को मार लिया।
\s5
\v 34 और हमने उसी वक़्त उसके सब शहरों को ले लिया, और हर आबाद शहर को 'औरतों और बच्चों समेत बिल्कुल नाबूद कर दिया और किसी को बाक़ी न छोड़ा;
\v 35 ~लेकिन चौपायों को और शहरों के माल को जो हमारे हाथ लगा लूट कर हमने अपने लिए रख लिया।
\s5
\v 36 और 'अरो'ईर से जो वादी-ए-अरनोन के किनारे है, और उस शहर से जो वादी में है, जिल'आद तक ऐसा कोई शहर न था जिसको सर करना हमारे लिए मुश्किल हुआ; ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने सबको हमारे क़ब्ज़े में कर दिया।
\v 37 लेकिन बनी 'अम्मोन के मुल्क के नज़दीक और दरिया-ए- यबोक़ का 'इलाक़ा और कोहिस्तान के शहरों में और जहाँ-जहाँ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने हमको मना' किया था तो नहीं गया।
\s5
\c 3
\p
\v 1 "फिर हमने मुड़ कर बसन का रास्ता लिया और बसन का बादशाह 'ओज अदर'ई में अपने सब आदमियों को लेकर हमारे मुक़ाबले में जंग करने को आया।
\v 2 और ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, 'उससे मत डर, क्यूँकि मैंने उसको और उसके सब आदमियों और मुल्क को तेरे क़ब्ज़े में कर दिया है; जैसा तूने अमोरियों के बादशाह सीहोन से जो हस्बोन में रहता था किया, वैसा ही तू इससे भी करेगा।'
\s5
\v 3 चुनाँचे ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने बसन के बादशाह 'ओज को भी उसके सब आदमियों समेत हमारे क़ाबू में कर दिया, और हमने उनको यहाँ तक मारा के उनमें से कोई बाक़ी न रहा।
\v 4 और हमने उसी वक़्त उसके सब शहर ले लिए, और एक शहर भी ऐसा न रहा जो हमने उनसे ले न लिया हो। यूँ अरजूब का सारा मुल्क जो बसन में 'ओज की सल्तनत में शामिल था और उसमें साठ शहर थे, हमारे क़ब्ज़े में आया।
\s5
\v 5 यह सब शहर फ़सीलदार थे और इनकी ऊँची-ऊँची दीवारें और फाटक और बेंडे थे। इनके 'अलावा बहुत से ऐसे क़स्बे भी हमने ले लिए जो फ़सीलदार न थे।
\v 6 और जैसा हमने हस्बोन के बादशाह सीहोन के यहाँ किया वैसा ही इन सब आबाद शहरों को म'ए 'औरतों और बच्चों के बिल्कुल नाबूद कर डाला।
\v 7 लेकिन सब चौपायों और शहरों के माल को लूट कर हमने अपने लिए रख लिया।
\s5
\v 8 यूँ हमने उस वक़्त अमोरियों के दोनों बादशाहों के हाथ से, जो यरदन पार रहते थे उनका मुल्क वादी-ए- अरनोन से कोह-ए-हरमून तक ले लिया।
\v 9 (इस हरमून को सैदानी सिरयून, और अमोरी सनीर कहते हैं)
\v 10 और सलका और अदर'ई तक मैदान के सब शहर और सारा जिल'आद और सारा बसन या'नी 'ओज की सल्तनत के सब शहर जो बसन में शामिल थे हमने ले लिए।
\s5
\v 11 (क्यूँकि रफ़ाईम की नसल में से सिर्फ़ बसन का बादशाह 'ओज बाक़ी रहा~था। उसका पलंग लोहे का बना हुआ था और वह बनी अम्मोन के शहर रब्बा में मौजूद है, और आदमी के हाथ के नाप के मुताबिक़ नौ हाथ लम्बा और चार हाथ चौड़ा है।)
\s5
\v 12 ~इसलिए इस मुल्क पर हमने उस वक़्त क़ब्ज़ा कर लिया, और 'अरो'ईर जो वादी-ए-अरनोन के किनारे है और जिल'आद के पहाड़ी मुल्क का आधा हिस्सा और उसके शहर मैंने रूबीनियों और जद्दियों को दिए।
\v 13 और जिल'आद का बाक़ी हिस्सा और सारा बसन या'नी अरजूब का सारा मुल्क जो 'ओज की क़लमरौ में था, मैंने मनस्सी के आधे क़बीले को दिया। (बसन रफ़ाईम का मुल्क कहलाता था।
\s5
\v 14 और मनस्सी के बेटे याईर ने जसूरियों और मा'कातियों की सरहद तक अरजूब के सारे मुल्क को ले लिया और अपने नाम पर बसन के शहरों को हव्वत याईर का नाम दिया, जो आज तक चला आता है)
\s5
\v 15 और जिल'आद मैंने मकीर को दिया,
\v 16 और रूबीनियों और जद्दियों को मैंने जिल'आद से वादी-ए-अरनोन तक का मुल्क, या'नी उस वादी के बीच के हिस्से को उनकी एक हद ठहरा कर दरिया-ए-यबोक़ तक, जो 'अम्मोनियों की सरहद है उनको दिया।
\s5
\v 17 और मैदान को और किन्नरत से लेकर मैदान के दरिया या'नी दरिया-ए-शोर तक, जो पूरब में पिसगा के ढाल तक फैला हुआ है और यरदन और उसका सारा इलाके को भी मैंने इन ही को दे दिया।
\s5
\v 18 ~"और मैंने उस वक़्त तुमको हुक्म दिया, कि ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुमको यह मुल्क दिया है कि तुम उस पर क़ब्ज़ा करो। इसलिए तुम सब जंगी मर्द हथियारबंद होकर अपने भाइयों बनी-इस्राईल के आगे-आगे पार चलो;
\s5
\v 19 मगर तुम्हारी बीवियाँ और तुम्हारे बाल बच्चे और चौपाये (क्यूँकि मुझे मा'लूम है कि तुम्हारे पास चौपाये बहुत हैं), इसलिए यह सब तुम्हारे उन ही शहरों में रह जाएँ जो मैंने तुमको दिए हैं;
\v 20 आखीर तक कि ख़ुदावन्द तुम्हारे भाइयों को चैन न बख़्शे जैसे तुमको बख़्शा, और वह भी उस मुल्क पर जो ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा यरदन के उस पार तुमको देता है क़ब्ज़ा न कर लें। तब तुम सब अपनी मिल्कियत में जो मैंने तुमको दी है लौट कर आने पाओगे।
\s5
\v 21 और उसी मौक़े' पर मैंने यशू'अ को हुक्म दिया, कि जो कुछ ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने इन दो बादशाहों से किया वह सब तूने अपनी आँखों से देखा; ख़ुदावन्द ऐसा ही उस पार उन सब सल्तनतों का हाल करेगा जहाँ तू जा रहा है।
\v 22 तुम उनसे न डरना, क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुम्हारी तरफ़ से आप जंग कर रहा है।
\s5
\v 23 उस वक़्त मैंने ख़ुदावन्द से 'आजिज़ी के साथ दरख़्वास्त की कि,
\v 24 ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा तूने अपने बन्दे को अपनी 'अज़मत और अपना ताक़तवर हाथ दिखाना शुरू' किया है क्यूँकि आसमान में या ज़मीन पर ऐसा कौन मा'बूद है जो तेरे से काम या करामात कर सके|
\v 25 इसलिए मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि मुझे पार जाने दे कि मैं भी अच्छे मुल्क को जो यरदन के पार है और उस ख़ुशनुमा पहाड़ और लुबनान को देखूँ|
\s5
\v 26 लेकिन ख़ुदावन्द तुम्हारी वजह से मुझसे नाराज़ था और उसने मेरी न सुनी; बल्कि ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, कि बस कर इस मज़मून पर मुझसे फिर कभी कुछ न कहना।
\v 27 तू कोह-ए-पिसगा की चोटी पर चढ़ जा और पश्चिम और उत्तर और दख्खिन और पूरब की तरफ़ नज़र दौड़ा कर उसे अपनी आँखों से देख ले, क्यूँकि तू इस यरदन के पार नहीं जाने पाएगा।
\s5
\v 28 पर यशू'अ को वसीयत कर और उसकी हौसला अफ़्ज़ाई करके उसे मज़बूत कर क्यूँकि वह इन लोगों के आगे पार जाएगा; और वही इनको उस मुल्क का, जिसे तू देख लेगा मालिक बनाएगा।
\v 29 चुनाँचे हम उस वादी में जो बैत फ़ग़ूर है ठहरे रहे।
\s5
\c 4
\p
\v 1 "और अब ऐ इस्राईलियो, जो आईन और अहकाम मैं तुमको सिखाता हूँ तुम उन पर 'अमल करने के लिए उनको सुन लो, ताकि तुम ज़िन्दा रहो और उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तुम्हारे बाप-दादा का ख़ुदा तुमको देता है, दाख़िल हो कर उस पर क़ब्ज़ा कर लो।
\v 2 जिस बात का मैं तुमको हुक्म देता हूँ, उसमें न तो कुछ बढ़ाना और न कुछ घटाना; ताकि तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्मों को जो मैं तुमको बताता हूँ मान सको।
\s5
\v 3 जो कुछ ख़ुदावन्द ने बा'ल फ़ग़ूर की वजह से किया, वह तुमने अपनी आँखों से देखा है; क्यूँकि उन सब आदमियों को जिन्होंने बा'ल फ़ग़ूर की पैरवी की, ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हारे बीच से नाबूद कर दिया।
\v 4 पर तुम जो ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से लिपटे रहे हो, सब के सब आज तक ज़िन्दा हो।
\s5
\v 5 देखो, जैसा ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा ने मुझे हुक्म दिया, उसके मुताबिक़ मैंने तुमको आईन और अहकाम सिखा दिए हैं; ताकि उस मुल्क में उन पर 'अमल करो जिस पर क़ब्ज़ा करने के लिए जा रहे हो।
\v 6 इसलिए तुम इनको मानना और 'अमल में लाना, क्यूँकि और क़ौमों के सामने यही तुम्हारी 'अक़्ल और दानिश ठहरेंगे। वह इन तमाम क़वानीन को सुन कर कहेंगी, कि यक़ीनन ये बुज़ुर्ग क़ौम निहायत 'अक़्लमन्द और समझदार है।
\s5
\v 7 क्यूँकि ऐसी बड़ी क़ौम कौन है जिसका मा'बूद इस क़द्र उसके नज़दीक हो जैसा ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा, कि जब कभी हम उससे दु'आ करें हमारे नज़दीक है?
\v 8 और कौन ऐसी बुज़ुर्ग क़ौम है जिसके आईन और अहकाम ऐसे रास्त हैं जैसी ये सारी शरी'अत है, जिसे मैं आज तुम्हारे सामने रखता हूँ।
\s5
\v 9 "इसलिए तुम ज़रूर ही अपनी एहतियात रखना और बड़ी हिफ़ाज़त करना, ऐसा न हो कि तुम वह बातें जो तुमने अपनी आँख से देखी हैं भूल जाओ और वह ज़िन्दगी भर के लिए तुम्हारे दिल से जाती रहें; बल्कि तुम उनको अपने बेटों और पोतों को सिखाना।
\v 10 ~ख़ासकर उस दिन की बातें, जब तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने होरिब में खड़ा हुआ; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा था, कि क़ौम को मेरे सामने जमा' कर और मैं उनको अपनी बातें सुनाऊँगा ताकि वह ये सीखें कि ज़िन्दगी भर, जब तक ज़मीन पर ज़िन्दा रहें मेरा ख़ौफ़ मानें और अपने बाल-बच्चों को भी यही सिखाएँ।
\s5
\v 11 चुनाँचे तुम नज़दीक जाकर उस पहाड़ के नीचे खड़े हुए, और वह पहाड़ आग से दहक रहा था और उसकी लौ आसमान तक पहुँचती थी और चारों तरफ़ तारीकी और घटा और ज़ुलमत थी।
\v 12 ~और ख़ुदावन्द ने उस आग में से होकर तुमसे कलाम किया; तुमने बातें तो सुनीं लेकिन कोई सूरत न देखी, सिर्फ़ आवाज़ ही आवाज़ सुनी।
\s5
\v 13 और उसने तुमको अपने 'अहद के दसों अहकाम बताकर उनके मानने का हुक्म दिया, और उनको पत्थर की दो तख़्तियों पर लिख भी दिया।
\v 14 उस वक़्त ख़ुदावन्द ने मुझे हुक्म दिया, कि तुमको यह आईन और अहकाम सिखाऊँ ताकि तुम उस मुल्क में जिस पर क़ब्ज़ा करने के लिए जा रहे हो, उन पर 'अमल करो।
\s5
\v 15 "इसलिए तुम अपनी ख़ूब ही एहतियात रखना; क्यूँकि तुमने उस दिन जब ख़ुदावन्द ने आग में से होकर होरिब में तुमसे कलाम किया, किसी तरह की कोई सूरत नहीं देखी।
\v 16 ~ऐसा न हो कि तुम बिगड़कर किसी शक्ल या सूरत की खोदी हुई मूरत अपने लिए बना लो, जिसकी शबीह किसी मर्द या 'औरत,
\v 17 या ज़मीन के किसी हैवान या हवा में उड़ने वाले परिन्दे,
\v 18 ~या ज़मीन के रेंगनेवाले जानदार या मछली से, जो ज़मीन के नीचे पानी में रहती है मिलती हो;
\s5
\v 19 ~या जब तू आसमान की तरफ नज़र करे और तमाम अजराम-ए-फ़लक या'नी सूरज और चाँद और तारों को देखे, तो गुमराह होकर उन्हीं को सिज्दा और उनकी 'इबादत करने लगे जिनको ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने इस ज़मीन की सब क़ौमों के लिए रख्खा है।
\v 20 लेकिन ख़ुदावन्द ने तुमको चुना, और तुमको जैसे लोहे की भट्टी या'नी मिस्र से निकाल ले आया है ताकि तुम उसकी मीरास के लोग ठहरो, जैसा आज ज़ाहिर है।
\s5
\v 21 और तुम्हारी ही वजह से ख़ुदावन्द ने मुझसे नाराज़ होकर क़सम खाई, कि मैं यरदन पार न जाऊँ और न उस अच्छे मुल्क में पहुँचने पाऊँ, जिसे ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा मीरास के तौर पर तुझको देता है;
\v 22 बल्कि मुझे इसी मुल्क में मरना है, मैं यरदन पार नहीं जा सकता; लेकिन तुम पार जाकर उस अच्छे मुल्क पर क़ब्ज़ा करोगे।
\s5
\v 23 इसलिए तुम एहतियात रखो, ऐसा न हो कि तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के उस 'अहद को जो उसने तुमसे बाँधा है भूल जाओ, और अपने लिए किसी चीज़ की शबीह की खोदी हुई मूरत बना लो जिसे ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको मना' किया है
\v 24 क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा भसम करने वाली आग है; वह ग़य्यूर ख़ुदा है।
\s5
\v 25 और जब तुझसे बेटे और पोते पैदा हों और तुमको उस मुल्क में रहते हुए एक ज़माना हो जाए, और तुम बिगड़कर किसी चीज़ की शबीह की खोदी हुई मूरत बना लो, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने शरारत करके उसे ग़ुस्सा दिलाओ;
\v 26 तो मैं आज के दिन तुम्हारे बरख़िलाफ़ आसमान और ज़मीन को गवाह बनाता हूँ कि तुम उस मुल्क से, जिस पर क़ब्ज़ा करने को यरदन पार जाने पर हो, जल्द बिल्कुल फ़ना हो जाओगे; तुम वहाँ बहुत दिन रहने न पाओगे बल्कि बिल्कुल नाबूद कर दिए जाओगे।
\s5
\v 27 और ख़ुदावन्द तुमको क़ौमों में तितर बितर करेगा; और जिन क़ौमों के बीच ख़ुदावन्द तुमको पहुँचाएगा उनमें तुम थोड़े से रह जाओगे।
\v 28 और वहाँ तुम आदमियों के हाथ के बने हुए लकड़ी और पत्थर के मा'बूदों की 'इबादत करोगे, जो न देखते न सुनते न खाते न सूँघते हैं।
\s5
\v 29 लेकिन वहाँ भी अगर तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के तालिब हो तो वह तुझको मिल जाएगा, बशर्ते कि तुम अपने पूरे दिल से और अपनी सारी जान से उसे ढूँढो।
\s5
\v 30 ~जब तू मुसीबत में पड़ेगा और यह सब बातें तुझ पर गुज़रेंगी तो आख़िरी दिनों में तू ~ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ फिरेगा और उसकी मानेगा;
\v 31 ~क्यूँकि खुदावन्द तेरा ख़ुदा रहीम ख़ुदा है, वह तुझको न तो छोड़ेगा और न हलाक करेगा और न उस 'अहद को भूलेगा जिसकी क़सम उसने तुम्हारे बाप-दादा से खाई।
\s5
\v 32 ~"और जब से ख़ुदा ने इन्सान को ज़मीन पर पैदा किया, तब से शुरू' करके तुम उन गुज़रे दिनों का हाल जो तुमसे पहले हो चुके पूछ, और आसमान के एक सिरे से दूसरे सिरे तक दरियाफ़्त कर, कि इतनी बड़ी वारदात की तरह कभी कोई बात हुई या सुनने में भी आई?
\v 33 ~क्या कभी कोई क़ौम ख़ुदा की आवाज़ जैसे तू ने सुनी, आग में से आती हुई सुन कर ज़िन्दा बची है?
\s5
\v 34 या कभी ख़ुदा ने एक क़ौम को किसी दूसरी क़ौम के बीच से निकालने का इरादा करके, इम्तिहानों और निशानों और मो'जिज़ों और जंग और ताक़तवर हाथ और बलन्द बाज़ू और हौलनाक माजरों के वसीले से, उनको अपनी ख़ातिर बरगुज़ीदा करने के लिए वह काम किए जो ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हारी आँखों के सामने मिस्र में तुम्हारे लिए किए?
\s5
\v 35 ~यह सब कुछ तुझको दिखाया गया, ताकि तू जाने कि ख़ुदावन्द ही ख़ुदा है और उसके अलावा और कोई है ही नहीं।
\v 36 ~उसने अपनी आवाज़ आसमान में से तुमको सुनाई ताकि तुझको तरबियत करे, और ज़मीन पर उसने तुझको अपनी बड़ी आग दिखाई; और तुमने उसकी बातें आग के बीच में से आती हुई सुनी।
\s5
\v 37 ~और चूँकि उसे तेरे बाप-दादा से मुहब्बत थी, इसीलिए उसने उनके बा'द उनकी नसल को चुन लिया, और तेरे साथ होकर अपनी बड़ी कुदरत से तुझको मिस्र से निकाल लाया;
\v 38 ताकि तुम्हारे सामने से उन क़ौमों को जो तुझ से बड़ी और ताक़तवर हैं दफ़ा' करे, और तुझको उनके मुल्क में पहुँचाए, और उसे तुझको मीरास के तौर पर दे, जैसा आज के दिन ज़ाहिर है।
\s5
\v 39 इसलिए आज के दिन तू जान ले और इस बात को अपने दिल में जमा ले, कि ऊपर आसमान में और नीचे ज़मीन पर ख़ुदावन्द ही ख़ुदा है और कोई दूसरा नहीं।
\v 40 ~इसलिए तू उसके आईन और अहकाम को जो मैं तुझको आज बताता हूँ मानना, ताकि तेरा और तेरे बा'द तेरी औलाद का भला हो, और हमेशा उस मुल्क में जो ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है तेरी 'उम्र दराज़ हो।"
\s5
\v 41 फिर मूसा ने यरदन के पार पूरब की तरफ़ तीन शहर अलग किए,
\v 42 ताकि ऐसा ख़ूनी जो अनजाने बग़ैर क़दीमी 'अदावत के अपने पड़ोसी को मार डाले, वह वहाँ भाग जाए और इन शहरों में से किसी में जाकर जीता बच रहे।
\v 43 या'नी रूबीनियों के लिए तो शहर-ए-बसर हो जो तराई में वीरान के बीच वाक़े' है, और जद्दियों के लिए शहर-ए- रामात जो जिल'आद में है, और मनस्सियों के लिए बसन का शहर-ए-जौलान।
\s5
\v 44 यह वह शरी'अत है जो मूसा ने बनी-इस्राईल के आगे पेश की।
\v 45 ~यही वह शहादतें और आईन और अहकाम हैं जिनको मूसा ने बनी-इस्राईल को उनके मिस्र से निकलने के बा'द,
\v 46 ~यरदन के पार उस वादी में जो बैत फ़ग़ूर के सामने है, कह सुनाया; या'नी अमोरियों के बादशाह सीहोन के मुल्क में जो हस्बोन में रहता था, जिसे मूसा और बनी इस्राईल ने मुल्क-ए-मिस्र से निकलने के बा'द मारा।
\s5
\v 47 और फिर उसके मुल्क को, और बसन के बादशाह 'ओज के मुल्क को अपने क़ब्ज़े में कर लिया। अमोरियों के इन दोनों बादशाहों का यह मुल्क यरदन पार पूरब की तरफ़,
\v 48 'अरो'ईर से जो वादी-ए-अरनोन के किनारे वाक़े' है, कोह-ए-सियून तक जिसे हरमून भी कहते हैं, फैला हुआ है।
\v 49 ~इसी में यरदन पार पूरब की तरफ़ मैदान के दरिया तक जो पिसगा की ढाल के नीचे बहता है, वहाँ का सारा मैदान शामिल है।
\s5
\c 5
\p
\v 1 फिर मूसा ने सब इस्रराईलियों को बुलावा कर उनको कहा, "ऐ इस्राईलियो। तुम उन आईन और अहकाम को सुन लो, जिनको मैं आज तुमको सुनाता हूँ, ताकि तुम उनको सीख कर उन पर 'अमल करो।
\v 2 ~ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने होरिब में हमसे एक 'अहद बाँधा।
\v 3 ख़ुदावन्द ने यह 'अहद हमारे बाप-दादा से नहीं, बल्कि ख़ुद हम सब से जो यहाँ आज के दिन जीते हैं बाँधा।
\s5
\v 4 ~ख़ुदावन्द ने तुमसे उस पहाड़ पर, आमने-सामने आग के बीच में से बातें कीं।
\v 5 उस वक़्त मैं तुम्हारे और ख़ुदावन्द के बीच खड़ा हुआ ताकि ख़ुदावन्द का कलाम तुम पर ज़ाहिर करूँ क्यूँकि तुम आग की वजह से डरे हुए थे और पहाड़ पर न चढ़े|
\v 6 "तब उसने कहा, 'ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा, जो तुझको मुल्क-ए-मिस्र या'नी ग़ुलामी के घर से निकाल लाया, मैं हूँ।
\s5
\v 7 'मेरे आगे तू और मा'बूदों को न मानना।
\v 8 'तू अपने लिए कोई तराशी हुई मूरत न बनाना, न किसी चीज़ की सूरत बनाना जो ऊपर आसमान में या नीचे ज़मीन पर या ज़मीन के नीचे पानी में है।
\s5
\v 9 तू उनके आगे सिज्दा न करना और न उनकी 'इबादत करना,क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा ग़य्यूर ख़ुदा हूँ। और जो मुझसे 'अदावत रखते हैं उनकी औलाद को तीसरी और चौथी नसल तक बाप-दादा की बदकारी की सज़ा देता हूँ
\v 10 और हज़ारों पर जो मुझसे मुहब्बत रखते और मेरे हुक्मों को मानते हैं, रहम करता हूँ।
\s5
\v 11 ~'तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का नाम बेफ़ायदा न लेना; क्यूँकि ख़ुदावन्द उसको जो उसका नाम बेफ़ायदा लेता है, बेगुनाह न ठहराएगा।
\s5
\v 12 ~'तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्म के मुताबिक़ सबत के दिन को याद करके पाक मानना।
\v 13 छ: दिन तक तू मेहनत करके अपना सारा काम-काज करना;
\v 14 लेकिन सातवाँ दिन ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा का सबत है उसमें न तू कोई काम करे, न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा ग़ुलाम, न तेरी लौंडी, न तेरा बैल, न तेरा गधा, न तेरा और कोई जानवर और न कोई मुसाफ़िर जो तेरे फाटकों के अन्दर हों; ताकि तेरा ग़ुलाम और तेरी लौंडी भी तेरी तरह आराम करें।
\s5
\v 15 और याद रखना कि तू मुल्क-ए-मिस्र में ग़ुलाम था, और वहाँ से ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा अपने ताक़तवर हाथ और बलन्द बाज़ू से तुझको निकाल लाया; इसलिए ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको सबत के दिन को मानने का हुक्म दिया।
\s5
\v 16 ~'अपने बाप और अपनी माँ की 'इज़्ज़त करना, जैसा ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझे हुक्म दिया है; ताकि तेरी 'उम्र दराज़ हो और जो तेरा मुल्क ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदातुझे देता है उसमें तेरा भला हो।
\s5
\v 17 ~‘तू ख़ून न करना।
\v 18 ~'तू ज़िना न करना।
\v 19 ~“तू चोरी न करना।
\v 20 'तू अपने पड़ोसी के ख़िलाफ़ झूठी गवाही न देना।
\s5
\v 21 'तू अपने पड़ोसी की बीवी का लालच न करना, और न अपने पड़ोसी के घर, या उसके खेत, या ग़ुलाम, या लौंडी, या बैल, या गधे, या उसकी किसी और चीज़ का ख़्वाहिश मन्द ~होना।'
\s5
\v 22 "यही बातें ख़ुदावन्द ने उस पहाड़ पर, आग और घटा और ज़ुलमत में से तुम्हारी सारी जमा'अत को बलन्द आवाज़ से कहीं, और इससे ज़्यादा और कुछ न कहा और इन ही को उसने पत्थर की दो तख़्तियों पर लिखा और उनको मेरे सुपुर्द किया।
\s5
\v 23 'और जब वह पहाड़ आग से दहक रहा था, और तुमने वह आवाज़ अन्धेरे में से आती सुनी तो तुम और तुम्हारे क़बीलों के सरदार और बुज़ुर्ग मेरे पास आए।
\v 24 और तुम कहने लगे, कि ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने अपनी शौकत और 'अज़मत हमको दिखाई, और हमने उसकी आवाज़ आग में से आती सुनी; आज हमने देख लिया के ख़ुदावन्द इन्सान से बातें करता है तो भी इन्सान ज़िन्दा रहता है।
\s5
\v 25 इसलिए अब हम क्यूँ अपनी जान दें? क्यूँकि ऐसी बड़ी आग हमको भसम कर देगी, अगर हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आवाज़ फिर सुनें तो मर ही जाएँगे।
\v 26 क्यूँकि ऐसा कौन सा बशर है जिसने ज़िन्दा ख़ुदा की आवाज़ हमारी तरह आग में से आती सुनी हो और फिर भी ज़िन्दा रहा?
\v 27 इसलिए तू ही नज़दीक जाकर जो कुछ ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा कहे उसे सुन ले, और तू ही वह बातें जो ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा तुझ से कहे हमको बताना; और हम उसे सुनेंगे और उस पर 'अमल करेंगे।
\s5
\v 28 ~"और जब तुम मुझसे गुफ़्तगू कर रहे थे तो ख़ुदावन्द ने तुम्हारी बातें सुनीं। तब ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, कि मैंने इन लोगों की बातें, जो उन्होंने तुझ से कहीं सुनी हैं; जो कुछ उन्होंने कहा ठीक कहा।
\v 29 ~काश उनमें ऐसा ही दिल हो ताकि वह मेरा ख़ौफ़ मान कर हमेशा मेरे सब हुक्मों पर 'अमल करते, ताकि हमेशा उनका और उनकी औलाद का भला होता।
\v 30 ~इसलिए तू जाकर उनसे कह दे, कि तुम अपने ख़ेमों को लौट जाओ।
\s5
\v 31 लेकिन तू यहीं मेरे पास खड़ा रह और मैं वह सब फ़रमान और सब आईन और अहकाम जो तुझे उनको सिखाने हैं, तुझको बताऊँगा; ताकि वह उन पर उस मुल्क में जो मैं उनको क़ब्ज़ा करने के लिए देता हूँ, 'अमल करें।
\s5
\v 32 ~इसलिए तुम एहतियात रखना और जैसा ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुमको हुक्म दिया है वैसा ही करना, और दहने या बाएँ हाथ को न मुड़ना।
\v 33 ~तुम उस सारे रास्ते पर जिसका हुक्म ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुमको दिया है चलना; ताकि तुम ज़िन्दा रहो और तुम्हारा भला हो, और तुम्हारी 'उम्र उस मुल्क में जिस पर तुम क़ब्ज़ा करोगे दराज़ हो।
\s5
\c 6
\p
\v 1 ~यह वह फ़रमान और आईन और अहकाम हैं, जिनको ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुमको सिखाने का हुक्म दिया है; ताकि तुम उन पर उस मुल्क में 'अमल करो, जिस पर क़ब्ज़ा करने के लिए पार जाने को हो।
\v 2 और तुम अपने बेटों और पोतों समेत ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मान कर उसके तमाम आईन और अहकाम पर, जो मैं तुमको बताता हूँ, ज़िन्दगी भर 'अमल करना ताकि तुम्हारी 'उम्र दराज़ हो।
\s5
\v 3 इसलिए, ऐ इस्राईल सुन, और एहतियात करके उन पर 'अमल कर, ताकि तेरा भला हो और तुम ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा के वा'दे के मुताबिक़ उस मुल्क में, जिस में दूध और शहद बहता है बहुत बढ़ जाओ।
\s5
\v 4 ~'सुन, ऐ इस्राईल, खुदावन्द हमारा ख़ुदा एक ही ख़ुदावन्द है।
\v 5 तू अपने सारे दिल, और अपनी सारी जान, और अपनी सारी ताक़त से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रख।
\s5
\v 6 और ये बातें जिनका हुक्म आज मैं तुझे देता हूँ तेरे दिल पर नक़्श रहें।
\v 7 और तू इनको अपनी औलाद के ज़हन नशीं करना, और घर बैठे और राह चलते और लेटते और उठते वक़्त इनका ज़िक्र किया करना।
\s5
\v 8 और तू निशान के तौर पर इनको अपने हाथ पर बाँधना, और वह तेरी पेशानी पर टीकों की तरह हों।
\v 9 और तू उनको अपने घर की चौखटों और अपने फाटकों पर लिखना।
\s5
\v 10 और जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको उस मुल्क में पहुँचाए, जिसे तुझको देने की क़सम उसने तेरे बाप-दादा इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब से खाई, और जब वह तुझको बड़े-बड़े और अच्छे शहर जिनको तूने नहीं बनाया,
\v 11 और अच्छी-अच्छी चीज़ों से भरे हुऐ घर जिनको तूने नहीं भरा, और खोदे-खुदाए हौज़ जो तूने नहीं खोदे, और अंगूर के बाग़ और ज़ैतून के दरख़्त जो तूने नहीं लगाए 'इनायत करे, और तू खाए और सेर हो,
\v 12 ~तो तू होशियार रहना, कहीं ऐसा न हो कि तू ख़ुदावन्द को जो तुझको मुल्क-ए-मिस्र या'नी ग़ुलामी के घर से निकाल लाया भूल जाए।
\s5
\v 13 तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना, और उसी की 'इबादत करना, और उसी के नाम की क़सम खाना।
\v 14 तुम और मा'बूदों की या'नी उन क़ौमों के मा'बूदों की, जो तुम्हारे आस-पास रहती हैं पैरवी न करना।
\v 15 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा जो तुम्हारे बीच है ग़य्यूर ख़ुदा है। इसलिए ऐसा न हो कि ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा का ग़ज़ब तुझ पर भड़के, और वह तुझको इस ज़मीन पर से फ़ना कर दे।
\s5
\v 16 "तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को मत आज़माना, जैसा तुमने उसे मस्सा में आज़माया था।
\v 17 ~तुम मेहनत से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्मों और शहादतों और आईन को, जो उसने तुझको फ़रमाए हैं मानना।
\s5
\v 18 और तुम वह ही करना जो ख़ुदावन्द की नज़र में दुरुस्त और अच्छा है ताकि तेरा भला हो ~और जिस अच्छे मुल्क के बारे में ख़ुदावन्द ने तुम्हारे बाप-दादा से क़सम खाई तू उसमें दाख़िल होकर उस पर क़ब्ज़ा कर सके।
\v 19 और ख़ुदावन्द तेरे सब दुश्मनों को तुम्हारे आगे से दफ़ा' करे, जैसा उसने कहा है।
\s5
\v 20 ~"और जब आइन्दा ज़माने में तुम्हारे बेटे तुझसे सवाल करें, कि जिन शहादतों और आईन और फ़रमान के मानने का हुक्म ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने तुमको दिया है उनका मतलब क्या है?
\v 21 तो तू अपने बेटों को यह जवाब देना, कि जब हम मिस्र में फ़िर'औन के ग़ुलाम थे, तो ख़ुदावन्द अपने ताक़तवर हाथ से हमको मिस्र से निकाल लाया;
\v 22 और ख़ुदावन्द ने बड़े-बड़े और हौलनाक अजायब-ओ-निशान हमारे सामने अहल-ए-मिस्र, और फ़िर'औन और उसके सब घराने पर करके दिखाए;
\v 23 और हमको वहाँ से निकाल लाया ताकि हमको इस मुल्क में, जिसे हमको देने की क़सम उसने हमारे बाप दादा से खाई पहुँचाए।
\s5
\v 24 इसलिए खुदावन्द ने हमको इन सब हुक्मों पर 'अमल करने और हमेशा अपनी भलाई के लिए ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानने का हुक्म दिया है, ताकि वह हमको ज़िन्दा रख्खे, जैसा आज के दिन ज़ाहिर है।
\v 25 और अगर हम एहतियात रख्खें कि ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने इन सब हुक्मों को मानें, जैसा उस ने हमसे कहा है, तो इसी में हमारी सदाक़त होगी।
\s5
\c 7
\p
\v 1 "जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको~उस मुल्क में, जिस पर क़ब्ज़ा करने के लिए तू जा रहा है पहुँचा दे, और तेरे ~आगे से उन बहुत सी क़ौमों को या'नी हित्तियों,~और जिरजासियों, और अमोरियों, और कना'नियों,और फ़रिज़्ज़ियों, और हव्वियों,और~यबूसियों को, जो सातों क़ौमें तुझसे बड़ी और ताक़तवर हैं निकाल दे।
\s5
\v 2 और जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उनको तेरे ~आगे शिकस्त दिलाए और तू ~उनको मार ले, तो तू उनको बिल्कुल हलाक कर डालना; तू उनसे कोई 'अहद न बांधना और न उन पर रहम करना।
\v 3 तू उनसे ब्याह शादी भी न करना, न उनके बेटों को अपनी बेटियाँ देना और न अपने बेटों के लिए उनकी बेटियाँ लेना।
\s5
\v 4 क्यूँकि वह तेरे बेटों को मेरी पैरवी से बरगश्ता कर देंगी, ताकि वह और मा'बूदों की 'इबादत करें। यूँ ख़ुदावन्द का ग़ज़ब तुम पर भड़केगा और वह तुझको जल्द हलाक कर देगा।
\v 5 बल्कि तुम उनसे यह सुलूक करना, कि उन के मज़बहों को ढा देना, उन के सुतूनों को टुकड़े-टुकड़े कर देना और उनकी यसीरतों को काट डालना, और उनकी तराशी हुई मूरतें आग में जला देना।
\s5
\v 6 क्यूँकि तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए एक मुक़द्दस क़ौम हो, ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुझको इस ज़मीन की और सब क़ौमों में से चुन लिया है ताकि उसकी ख़ास उम्मत ठहरो।
\s5
\v 7 ~ख़ुदावन्द ने जो तुमसे मुहब्बत की और तुमको चुन लिया, तो इसकी वजह यह न थी कि तुम शुमार में और क़ौमों से ज़्यादा थे, क्यूँकि तुम सब क़ौमों से शुमार में कम थे;
\v 8 बल्कि चूँकि ख़ुदावन्द को तुमसे मुहब्बत है और वह उस क़सम को जो उसने तुम्हारे बाप-दादा से खाई पूरा करना चाहता था, इसलिए ख़ुदावन्द तुमको अपने ताक़तवर हाथ से निकाल लाया, और ग़ुलामी के घर या'नी मिस्र के बादशाह फ़िर'औन के हाथ से तुमको छुटकारा बख़्शा।
\s5
\v 9 इसलिए जान लो कि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा वही ख़ुदा है। वह वफ़ादार ख़ुदा है, और जो उससे मुहब्बत रखते और उसके हुक्मों को मानते हैं, उनके साथ हज़ार नसल तक वह अपने 'अहद को क़ायम रखता और उन पर रहम करता है।
\v 10 और जो उससे 'अदावत रखते हैं, उनको उनके देखते ही देखते बदला देकर हलाक कर डालता है, वह उसके बारे में जो उससे 'अदावत रखता है देर न करेगा, बल्कि उसी के देखते-देखते उसे बदला देगा।
\v 11 इसलिए जो फ़रमान और आईन और अहकाम मैं आज के दिन तुझको बताता हूँ तू उनको मानना और उन पर 'अमल करना।
\s5
\v 12 ~और तुम्हारे इन हुक्मों को सुनने और मानने और उन पर 'अमल करने की वजह से ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा भी तेरे साथ उस 'अहद और रहमत को क़ायम रख्खेगा, जिसकी क़सम उसने तुम्हारे बाप-दादा से खाई,
\v 13 और तुझसे मुहब्बत रख्खेगा और तुझको बरकत देगा और बढ़ाएगा; और उस मुल्क में जिसे तुझको देने की क़सम उसने तेरे बाप-दादा से खाई वह तेरी औलाद पर, और तेरी ज़मीन की पैदावार या'नी तुम्हारे ग़ल्ले, और मय, और तेल पर, और तेरे गाय-बैल के और भेड़-बकरियों के बच्चों पर बरकत नाज़िल करेगा।
\s5
\v 14 तुझको सब क़ौमों से ज़्यादा बरकत दी जाएगी, और तुम में या तुम्हारे चौपायों में न तो कोई 'अक़ीम होगा न बाँझ।
\v 15 और ख़ुदावन्द हर क़िस्म की बीमारी तुझ से दूर करेगा और मिस्र के उन बुरे रोगों को जिनसे तुम वाक़िफ़ हो तुझको लगने न देगा, बल्कि उनको उन पर जो तुझ से 'अदावत रखते हैं नाज़िल करेगा।
\s5
\v 16 और तू उन सब क़ौमों को, जिनको ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे क़ाबू में कर देगा नाबूद कर डालना। तू उन पर तरस न खाना और न उनके मा'बूदों की 'इबादत करना, वर्ना यह तुम्हारे लिए एक जाल होगा।
\s5
\v 17 और अगर तेरा दिल भी यह कहे कि ये क़ौमें तो मुझसे ज़्यादा हैं, हम उनको क्यूँ कर निकालें?
\v 18 तोभी तू उनसे न डरना, बल्कि जो कुछ ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने फ़िर'औन और सारे मिस्र से किया उसे ख़ूब याद रखना;
\v 19 या'नी उन बड़े-बड़े तजरिबों को जिनको तेरी आँखों ने देखा, और उन निशानों और मो'जिज़ों और ताक़तवर हाथ और बलन्द बाज़ू को जिनसे ख़ुदावन्द तेरा ~ख़ुदा~तुझको निकाल लाया; क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा ऐसा ही उन सब क़ौमों से~करेगा जिनसे तू डरता है।
\s5
\v 20 बल्कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उनमें ज़म्बूरों को भेज देगा, यहाँ तक कि जो उनमें से बाक़ी बच कर छिप जाएँगे वह भी तेरे आगे से हलाक हो जाएँगे।
\v 21 इसलिए तू उनसे दहशत न खाना; क्यूँकि खुदावन्द तेरा ~ख़ुदा तेरे ~बीच में है, और वह ख़ुदा-ए-'अज़ीम और मुहीब है।
\v 22 और ख़ुदावन्द तेरा ~ख़ुदा उन क़ौमों को तेरे आगे से थोड़ा-थोड़ा करके दफ़ा' करेगा। तू एक ही दम उनको हलाक न करना, ऐसा न हो कि जंगली दरिन्दे बढ़ कर तुझ पर हमला करने लगें।
\s5
\v 23 बल्कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उनको तेरे हवाले करेगा, और उनको ऐसी शिकस्त-ए-फ़ाश देगा कि वह हलाक हो जाएँगे।
\v 24 और वह उनके बादशाहों को तेरे क़ाबू में कर देगा, और तू उनका नाम सफ़ह-ए-रोज़गार से मिटा डालेगा ; और कोई मर्द तेरा सामना न कर सकेगा, यहाँ तक कि तू उनको हलाक कर देगा।
\s5
\v 25 तुम उनके मा'बूदों की तराशी हुई मूरतों को आग से जला देना और जो चाँदी या सोना उन पर हो उसका तू ~लालच न करना और न उसे लेना, ऐसा न हो कि तू उसके फन्दे में फँस जाए क्यूँकि ऐसी बात ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के आगे मकरूह है।
\v 26 इसलिए तू ऐसी मकरूह चीज़ अपने घर में लाकर उसकी तरह नेस्त कर दिए जाने के लायक़ न बन जाना, बल्कि तू उससे बहुत ही नफ़रत करना और उससे बिल्कुल नफ़रत रखना; क्यूँकि वह मलाऊन चीज़ है।
\s5
\c 8
\p
\v 1 सब हुक्मों पर जो आज के दिन मैं तुझको देता हूँ, तुम एहतियात करके 'अमल करना ताकि तुम जीते और बढ़ते रहो; और जिस मुल्क के बारे में ख़ुदावन्द ने तुम्हारे बाप-दादा से क़सम खाई है, तुम उसमें जाकर उस पर क़ब्ज़ा करो।
\v 2 और तू उस सारे तरीक़े को याद रखना जिस पर इन चालीस बरसों में ख़ुदावन्द तेरे ~ख़ुदा ने तुझको इस वीराने में चलाया, ताकि वह तुझको 'आजिज़ कर के आज़माए और तेरे ~दिल की बात दरियाफ़्त करे कि तू उसके हुक्मों को मानेगा या नहीं।
\s5
\v 3 और उसने~तुझको 'आजिज़ किया भी और~तुझको भूका होने दिया, और वह मन्न जिसे न तू न तेरे बाप-दादा~जानते~थे~तुझको खिलाया; ताकि~तुझको सिखाए कि इन्सान सिर्फ़ रोटी ही से ज़िन्दा नहीं रहता, बल्कि हर बात से~जो~ख़ुदावन्द के मुँह से निकलती है वह ज़िन्दा रहता है।
\s5
\v 4 इन चालीस बरसों में न तो तेरे तन पर तेरे ~कपड़े पुराने हुए और न तुम्हारे पाँव सूजे।
\v 5 और तू अपने दिल में ख़याल रखना कि जिस तरह आदमी अपने बेटों को तम्बीह करता है, वैसे ही ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुमको तम्बीह करता है।
\v 6 ~इसलिए तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की राहों पर चलने और उसका ख़ौफ़ मानने के लिए उसके हुक्मों पर 'अमल करना।
\s5
\v 7 क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको एक अच्छे मुल्क में लिए जाता है। वह पानी की नदियों और ऐसे चश्मों और सोतों का मुल्क है जो वादियों और पहाड़ों से फूट कर निकलते हैं।
\v 8 वह ऐसा मुल्क है जहाँ गेहूँ और जौ और अंगूर और अंजीर के दरख़्त और अनार होते हैं। वह ऐसा मुल्क है जहाँ रौग़नदार ज़ैतून और शहद भी है।
\s5
\v 9 उस मुल्क में~तुझको रोटी इफ़रात से मिलेगी और~तुझको किसी चीज़ की कमी न होगी, क्यूँकि उस मुल्क के पत्थर~भी~लोहा हैं और वहाँ के पहाड़ों से तू ~ताँबा खोद कर निकाल सकेगा।
\v 10 और तू खाएगा और सेर होगा, और उस अच्छे मुल्क के लिए जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है उसका शुक्र बजा लाएगा।
\s5
\v 11 इसलिए ख़बरदार रहना, कि कहीं ऐसा न हो कि तू ~ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को भूलकर, उसके फ़रमानों और हुक्मों और आईन को जिनको आज मैं~तुझको सुनाता हूँ मानना छोड़ दे;
\v 12 ऐसा न हो कि जब तू खाकर सेर हो और ख़ुशनुमा घर बना कर उनमें रहने लगे,
\s5
\v 13 और तेरे गाय-बैल के ग़ल्ले और भेड़ बकरियाँ बढ़ जाएँ और तेरे पास चाँदी, और सोना और माल बा-कसरत हो जाए;
\v 14 तो तेरे दिल में गु़रूर समाए और तू ~ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को भूल जाए ~जो~तुझ~को मुल्क-ए-मिस्र या'नी ग़ुलामी के घर~से निकाल लाया है,
\s5
\v 15 और ऐसे बड़े और हौलनाक वीराने में तेरा रहबर हुआ जहाँ जलाने वाले साँप और बिच्छू थे; और जहाँ की ज़मीन बग़ैर पानी के सूखी पड़ी थी।वहाँ उसने तेरे लिए चक़मक़ की चट्टान से पानी निकाला|
\v 16 ~और तुझको वीरान में वह मन्न खिलाया जिसे तेरे ~बाप-दादा जानते भी न थे; ताकि तुझको 'आजिज़ करे और तेरी आज़माइश करके आख़िर में तेरा भला करे।
\v 17 ~और ऐसा न हो कि तू अपने दिल में कहने लगे, कि मेरी ही ताक़त और हाथ के ज़ोर से मुझको यह दौलत नसीब हुई है।
\s5
\v 18 ~बल्कि तू ~ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को याद रखना, क्यूँकि वही~तुझको दौलत हासिल करने की क़ुव्वत इसलिए देता है कि अपने उस 'अहद को जिसकी क़सम उसने तेरे बाप-दादा से खाई थी, क़ायम रखे जैसा आज के दिन ज़ाहिर है।
\v 19 और अगर तू कभी ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को भूले, और और मा'बूदों के पैरौ बन कर उनकी 'इबादत और परस्तिश करे, तो मैं आज के दिन तुमको आगाह किए देता हूँ कि तुम ज़रूर ही हलाक हो जाओगे।
\v 20 ~जिन क़ौमों को ख़ुदावन्द तुम्हारे सामने हलाक करने को है, उन्ही की तरह तुम भी ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात न मानने की वजह से हलाक हो जाओगे।
\s5
\c 9
\p
\v 1 ~सुन ले ऐ इस्राईल, आज तुझे यरदन पार इसलिए जाना है, कि तू ऐसी क़ौमों पर जो तुझ से बड़ी और ताक़तवर हैं, और ऐसे बड़े शहरों पर जिनकी फ़सीलें आसमान से बातें करती हैं, क़ब्ज़ा करे।
\v 2 वहाँ 'अनाक़ीम की औलाद हैं जो बड़े-बड़े और क़दआवर लोग हैं। तुझे उनका हाल मा'लूम है, और तूने उनके बारे में यह कहते सुना है कि बनी 'अनाक़ का मुक़ाबला कौन कर सकता है?
\s5
\v 3 फिर तू आज कि दिन जान ले, कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे आगे आगे भसम करने वाली आग की तरह पार जा रहा है। वह उनको फ़ना करेगा और वह उनको तेरे आगे पस्त करेगा, ऐसा कि तू उनको निकाल कर जल्द हलाक कर डालेगा, जैसा ख़ुदावन्द ने तुझ से कहा है।
\s5
\v 4 "और जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उनको तेरे आगे से निकाल चुके, तो तू अपने दिल में यह न कहना कि मेरी सदाक़त की वजह से ख़ुदावन्द मुझे इस मुल्क पर क़ब्ज़ा करने को यहाँ लाया क्यूँकि हक़ीक़त में इनकी शरारत ~की वजह से ख़ुदावन्द इन क़ौमों को तेरे आगे से निकालता है।
\s5
\v 5 तू अपनी सदाक़त या अपने दिल की रास्ती की वजह से उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करने को नहीं जा रहा है बल्कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा इन क़ौमों की शरारत की वजह से इनको तेरे आगे से ख़ारिज करता है, ताकि यूँ वह उस वा'दे को जिसकी क़सम उसने तेरे बाप-दादा इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब से खाई पूरा करे।
\s5
\v 6 "ग़रज़ तू समझ ले कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरी सदाक़त की वजह से यह अच्छा मुल्क तुझे क़ब्ज़ा करने के लिए नहीं दे रहा है, क्यूँकि तू एक बाग़ी क़ौम है।
\s5
\v 7 इस बात को याद रख और कभी न भूल, कि तूने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को वीराने में किस किस तरह ग़ुस्सा दिलाया; बल्कि जब से तुम मुल्क-ए-मिस्र से निकले हो तब से इस जगह पहुँचने तक, तुम बराबर ख़ुदावन्द से बग़ावत ही करते रहे।
\v 8 और होरिब में भी तुमने ख़ुदावन्द को ग़ुस्सा दिलाया, चुनाँचे ख़ुदावन्द नाराज़ होकर तुमको हलाक करना चाहता था।
\s5
\v 9 जब मैं पत्थर की दोनों तख़्तियों को, या'नी उस अहद की~तख़्तियों~को जो ख़ुदावन्द ने तुमसे बाँधा था लेने को पहाड़ पर चढ़ गया; तो मैं चालीस दिन और चालीस रात वहीं पहाड़ पर रहा और न रोटी खाई न पानी पिया।
\v 10 और ख़ुदावन्द ने अपने हाथ की लिखी हुई पत्थर की दोनों~तख़्तियाँ~मेरे सुपुर्द की, और उन पर वही बातें लिखी थीं जो ख़ुदावन्द ने पहाड़ पर आग के बीच में से मजमे' के दिन तुमसे कही थीं।
\s5
\v 11 और चालीस दिन और चालीस रात के बा'द ख़ुदावन्द ने पत्थर की वह दोनों~तख़्तियाँ~या'नी 'अहद की~तख़्तियाँ~मुझको दीं।
\v 12 और ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, 'उठ कर जल्द यहाँ से नीचे जा, क्यूँकि तेरे लोग जिनको तू मिस्र से निकाल लाया है बिगड़ गए हैं वह उस राह से जिसका मैंने ~उनको हुक्म दिया जल्द नाफ़रमान हो गए, और अपने लिए एक मूरत ढाल कर बना ली है।"
\s5
\v 13 ~"और ख़ुदावन्द ने मुझसे यह भी कहा, कि मैंने इन लोगों को देख लिया, ये बाग़ी लोग हैं।
\v 14 इसलिए अब तू मुझे इनको हलाक करने दे ताकि मैं इनका नाम सफ़ह-ए- रोज़गार से मिटा डालूँ, और मैं तुझ से एक क़ौम जो इन से ताक़तवर और बड़ी हो बनाऊँगा।
\s5
\v 15 तब मैं उल्टा फिरा और पहाड़ से नीचे उतरा, और पहाड़ आग से दहक रहा था; और 'अहद की वह दोनों~तख़्तियाँ~मेरे दोनों हाथों में थीं।
\v 16 और मैंने देखा कि तुमने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का गुनाह किया; और अपने लिए एक बछड़ा ढाल कर बना लिया है, और बहुत जल्द उस राह से जिसका हुक्म ख़ुदावन्द ने तुमको दिया था, नाफ़रमान हो गए।
\s5
\v 17 ~तब मैंने उन दोनों~तख़्तियों~को अपने दोनों हाथों से लेकर फेंक दिया और तुम्हारी आँखों के सामने उनको तोड़ डाला
\v 18 और मैं पहले की तरह चालीस दिन और चालीस रात ख़ुदावन्द के आगे औंधा पड़ा रहा, मैंने न रोटी खाई न पानी पिया; क्यूँकि तुमसे बड़ा गुनाह सरज़द हुआ था, और ख़ुदावन्द को ग़ुस्सा दिलाने के लिए तुमने वह काम किया जो उसकी नज़र में बुरा था।
\s5
\v 19 और मैं ख़ुदावन्द के क़हर और ग़ज़ब से डर रहा था, क्यूँकि वह तुमसे सख़्त नाराज़ होकर तुमको हलाक करने को था; लेकिन ख़ुदावन्द ने उस बार भी मेरी सुन ली।
\v 20 ~और ख़ुदावन्द हारून से ऐसे ग़ुस्सा था कि उसे हलाक करना चाहा, लेकिन मैंने उस वक़्त हारून के लिए भी दु'आ की।
\s5
\v 21 और मैंने तुम्हारे गुनाह को या'नी उस बछड़े को, जो तुमने बनाया था लेकर आग में जलाया; फिर उसे कूट कूटकर ऐसा पीसा कि वह गर्द की तरह बारीक हो गया; और उसकी उस राख को उस नदी में जो पहाड़ से निकल कर नीचे बहती थी डाल दिया।
\s5
\v 22 "और तबेरा और मस्सा और क़बरोत हत्तावा में भी तुमने ख़ुदावन्द को ग़ुस्सा दिलाया।
\v 23 और जब ख़ुदावन्द ने तुमको क़ादिस बर्नी'अ से यह कह कर रवाना किया, कि जाओ और उस मुल्क को जो मैंने तुमको दिया है क़ब्ज़ा करो, तो उस वक़्त भी तुमने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्म को 'उदूल किया, और उस पर ईमान न लाए और उसकी बात न मानी।
\v 24 ~जिस दिन से मेरी तुमसे वाक़फ़ियत हुई है, तुम बराबर ख़ुदावन्द से सरकशी करते रहे हो।
\s5
\v 25 ~"इसलिए वह चालीस दिन और चालीस रात जो मैं ख़ुदावन्द के आगे औंधा पड़ा रहा, इसी लिए पड़ा रहा क्यूँकि ख़ुदावन्द ने कह दिया था कि वह तुमको हलाक करेगा।
\v 26 और मैंने ख़ुदावन्द से यह दु'आ की, कि ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा तू अपनी क़ौम और अपनी मीरास के लोगों को, जिनको तूने अपनी क़ुदरत से नजात बख़्शी और जिनको तू ताक़तवर हाथ से मिस्र से निकाल लाया, हलाक न कर।
\s5
\v 27 अपने ख़ादिमों इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब को याद फ़रमा, और इस क़ौम की ख़ुदसरी और शरारत और गुनाह पर नज़र न कर,
\v 28 कहीं ऐसा न हो कि जिस मुल्क से तू हमको निकाल लाया है वहाँ के लोग कहने लगें, कि चूँकि ख़ुदावन्द उस मुल्क में जिसका वा'दा उसने उनसे किया था पहुँचा न सका, और चूँकि उसे उनसे नफ़रत भी थी, इसलिए वह उनको निकाल ले गया ताकि उनको वीराने में हलाक कर दे।
\v 29 आख़िर यह लोग तेरी क़ौम और तेरी मीरास हैं जिनको तू अपने बड़े ज़ोर और बलन्द बाज़ू से निकाल लाया है।
\s5
\c 10
\p
\v 1 "उस वक़्त ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, कि पहली~तख़्तियों की तरह पत्थर की दो और~तख़्तियों~तराश ले, और मेरे पास पहाड़ पर आ जा, और एक चोबी संदूक़ भी बना ले।
\v 2 और जो बातें पहली~तख़्तियों~पर जिनको तूने तोड़ डाला लिखी थीं, वही मैं इन~तख़्तियों~पर भी लिख दूँगा; फिर तू इनको उस सन्दूक़ में रख देना।
\s5
\v 3 इसलिए मैंने कीकर की लकड़ी का एक संदूक़ बनाया और पहली~तख़्तियों~की तरह पत्थर की दो~तख़्तियाँ~तराश लीं, और उन दोनों~तख़्तियों~को अपने हाथ में लिये हुए पहाड़ पर चढ़ गया।
\v 4 और जो दस हुक्म ख़ुदावन्द ने मजमे' के दिन पहाड़ पर आग के बीच में से तुमको दिए थे, उन ही को पहली तहरीर के मुताबिक़ उसने इन~तख़्तियों~पर लिख दिया; फिर इनको ख़ुदावन्द ने मेरे सुपुर्द किया।
\s5
\v 5 तब मैं पहाड़ से लौट कर नीचे आया और इन~तख़्तियों को उस संदूक़ में जो मैंने बनाया था रख दिया, और ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ जो उसने मुझे दिया था, वह वहीं रखी हुई हैं।
\s5
\v 6 फिर बनी-इस्राईल बेरोत-ए-बनी या'कान से रवाना होकर मौसीरा में आए। वहीं हारून ने वफ़ात पाईऔर दफ़्न भी हुआ, और उसका बेटा इली'अज़र कहानत के 'उहदे पर मुक़र्रर होकर उसकी जगह ख़िदमत करने लगा।
\v 7 वहाँ से वह जुदजूदा को और जुदजूदा से यूतबात को चले, इस मुल्क में पानी की नदियाँ हैं।
\s5
\v 8 उसी मौक़े' पर ख़ुदावन्द ने लावी के क़बीले को इस वजह से अलग किया, कि वह ख़ुदावन्द के 'अहद के संदूक़ को उठाया करे और ख़ुदावन्द के सामने खड़ा होकर उसकी खिदमत को अन्जाम दे, और उसके नाम से बरकत दिया करे, जैसा आज तक होता है।
\v 9 ~इसीलिए लावी को कोई हिस्सा या मीरास उसके भाइयों के साथ नहीं मिली, क्यूँकि ख़ुदावन्द उसकी मीरास है, जैसा ख़ुद ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने उससे कहा है।)
\s5
\v 10 'और मैं पहले की तरह चालीस दिन और चालीस रात पहाड़ पर ठहरा रहा, और इस दफ़ा' भी ख़ुदावन्द ने मेरी सुनी और न चाहा कि तुझको हलाक करे।
\v 11 फिर ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, 'उठ, और इन लोगों के आगे रवाना हो, ताकि ये उस मुल्क पर जाकर क़ब्ज़ा कर लें जिसे उनको देने की क़सम मैंने उनके बाप-दादा से खाई थी।'
\s5
\v 12 ~"इसलिए ऐ इस्राईल, ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझ से इसके अलावा और क्या चाहता है कि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ माने, और उसकी सब राहों पर चले, और उससे मुहब्बत रख्खे, और अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बन्दगी करे,
\v 13 और ख़ुदावन्द के जो अहकाम और आईन मैं तुझको आज बताता हूँ उन पर 'अमल करो, ताकि तेरी ख़ैर हो ?
\s5
\v 14 ~देख, आसमान और आसमानों का आसमान, और ज़मीन और जो कुछ ज़मीन में है, यह सब ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ही का है।
\v 15 तोभी ख़ुदावन्द ने तेरे बाप-दादा से ख़ुश होकर उनसे मुहब्बत की, और उनके बा'द उनकी औलाद को या'नी तुमको सब क़ौमों में से बरगुज़ीदा किया, जैसा आज के दिन ज़ाहिर है।
\s5
\v 16 इसलिए अपने दिलों का ख़तना करो और आगे को बाग़ी न रहो।
\v 17 क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा इलाहों का इलाह ख़ुदावन्दों का ख़ुदावन्द है, वह बुज़ुर्गवार और क़ादिर और मुहीब ख़ुदा है, जो रूरि'आयत नहीं करता और न रिश्वत लेता है।
\s5
\v 18 ~वह यतीमों और बेवाओं का इन्साफ़ करता है, और परदेसी से ऐसी मुहब्बत रखता है कि उसे खाना और कपड़ा देता है।
\v 19 इसलिए तुम परदेसियों से मुहब्बत रखना क्यूँकि तुम भी मुल्क-ए-मिस्र में परदेसी थे।
\s5
\v 20 तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना, उसकी बन्दगी करना और उससे लिपटे रहना और उसी के नाम की क़सम खाना।
\v 21 ~वही तेरी हम्द का सज़ावार है और वही तेरा ख़ुदा है जिसने तेरे ~लिए वह बड़े और हौलनाक काम किए जिनको तू ने अपनी आँखों से देखा।
\s5
\v 22 तेरे बाप-दादा जब मिस्र में गए तो सत्तर आदमी थे, लेकिन अब ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुझको बढ़ा कर आसमान के सितारों की तरह कर दिया है।
\s5
\c 11
\p
\v 1 ~"इसलिए तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रखना, और उसकी शरी'अत और आईन और अहकाम और फ़रमानों पर सदा 'अमल करना।
\s5
\v 2 ~और तुम आज के दिन ख़ूब समझ लो, क्यूँकि मैं तुम्हारे बाल बच्चों से कलाम नहीं कर रहा हूँ, जिनको न तो मा'लूम है और न उन्होंने देखा कि ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा की तम्बीह, और उसकी 'अज़मत, और ताक़तवर हाथ और बलन्द बाज़ू से क्या क्या हुआ;
\v 3 और मिस्र के बीच मिस्र के बादशाह फ़िर'औन और उसके मुल्क के लोगों को कैसे कैसे निशान और कैसी करामात दिखाई।
\s5
\v 4 और उसने मिस्र के लश्कर और उनके घोड़ों और रथों का क्या हाल किया, और कैसे उसने बहर-ए-कु़लजु़म के पानी में उनको डुबो दिया जब वह तुम्हारा पीछा कर रहे थे, और ख़ुदावन्द ने उनको कैसा हलाक किया कि आज के दिन तक वह नाबूद हैं;
\v 5 और तुम्हारे इस जगह पहुँचने तक उसने वीराने में तुमसे क्या क्या किया;
\s5
\v 6 और दातन और अबीराम का जो इलीयाब बिन रूबिन के बेटे थे, क्या हाल बनाया कि सब इस्राईलियों के सामने ज़मीन ने अपना मुँह पसार कर उनको और उनके घरानों और ख़ेमो और हर आदमी को जो उनके साथ था निगल लिया;
\v 7 लेकिन ख़ुदावन्द के इन सब बड़े-बड़े कामों को तुमने अपनी आँखों से देखा है।
\s5
\v 8 "इसलिए इन सब हुक्मों को जो आज मैं तुमको देता हूँ तुम मानना, ताकि तुम मज़बूत होकर उस मुल्क में जिस पर क़ब्ज़ा करने के लिए तुम पार जा रहे हो, पहुँच जाओ और उस पर क़ब्ज़ा भी कर लो।
\v 9 ~और उस मुल्क में तुम्हारी 'उम्र दराज़ हो जिसमें दूध और शहद बहता है, और जिसे तुम्हारे बाप-दादा और उनकी औलाद को देने की क़सम ख़ुदावन्द ने उनसे खाई थी।
\s5
\v 10 ~क्यूँकि जिस मुल्क पर तू क़ब्ज़ा करने को जा रहा है वह मुल्क मिस्र की तरह नहीं है, जहाँ से तुम निकल आए हो वहाँ तो तू बीज बोकर उसे सब्ज़ी के बाग़ की तरह पाँव से नालियाँ बना कर सींचता था।
\v 11 ~लेकिन जिस मुल्क पर क़ब्ज़ा करने के लिए तुम पार जाने को हो वह पहाड़ों और वादियों का मुल्क है, और बारिश के पानी से सेराब हुआ करता है।
\v 12 ~उस मुल्क पर ख़ुदावन्द तेरे ~ख़ुदा की तवज्जुह रहती है, और साल के शुरू' से साल के आख़िर तक ख़ुदावन्द तेरे ~ख़ुदा की आँखें उस पर लगी रहती हैं।
\s5
\v 13 'और अगर तुम मेरे हुक्मों को जो आज मैं तुमको देता हूँ दिल लगा कर सुनो, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रख्खो, और अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से उसकी बन्दगी करो,
\v 14 ~तो मैं तुम्हारे मुल्क में सही वक़्त पर पहला और पिछला मेंह बरसाऊँगा, ताकि तू अपना ग़ल्ला और मय और तेल जमा' कर सके।
\v 15 और मैं तेरे चौपायों के लिए मैदान में घास पैदा करूँगा, और तू खायेगा और सेर होगा।
\s5
\v 16 इसलिए तुम ख़बरदार रहना कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे दिल धोका खाएँ और तुम बहक कर और मा'बूदों की 'इबादत और परस्तिश करने लगो।
\v 17 और ख़ुदावन्द का ग़ज़ब तुम पर भड़के और वह आसमान को बन्द कर दे ताकि मेंह न बरसे, और ज़मीन में कुछ पैदावार न हो, और तुम इस अच्छे मुल्क से जो ख़ुदावन्द तुमको देता है जल्द फ़ना हो जाओ।
\s5
\v 18 इसलिए मेरी इन बातों को तुम अपने दिल और अपनी जान में महफू़ज़ रखना और निशान के तौर पर इनको अपने हाथों पर बाँधना, और वह तुम्हारी पेशानी पर टीकों की तरह हों।
\v 19 और तुम इनको अपने लड़कों को सिखाना, और तुम घर बैठे और राह चलते और लेटते और उठते वक़्त इन ही का ज़िक्र किया करना।
\s5
\v 20 और तुम इनको अपने घर की चौखटों पर और अपने फाटकों पर लिखा करना,
\v 21 ताकि जब तक ज़मीन पर आसमान का साया है, तुम्हारी और तुम्हारी औलाद की 'उम्र उस मुल्क में दराज़ हो, जिसको खुदावन्द ने तुम्हारे बाप-दादा को देने की क़सम उनसे खाई थी।
\s5
\v 22 क्यूँकि अगर तुम उन सब हुक्मों को जो मैं तुमको देता हूँ, पूरी जान से मानो और उन पर 'अमल करो, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रख्खो, और उसकी सब राहों पर चलो, और उससे लिपटे रहो;
\v 23 तो ख़ुदावन्द इन सब क़ौमों को तुम्हारे आगे से निकाल डालेगा, और तुम उन क़ौमों पर जो तुमसे बड़ी और ताक़तवर हैं क़ाबिज़ होगे।
\s5
\v 24 जहाँ जहाँ तुम्हारे पाँव का तलवा टिके वह जगह तुम्हारी हो जाएगी, या'नी वीराने और लुबनान से और दरिया-ए-फु़रात से पश्चिम के समन्दर तक तुम्हारी सरहद होगी।
\v 25 और कोई शख़्स वहाँ तुम्हारा मुक़ाबला न कर सकेगा, क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुम्हारा रौब और ख़ौफ़ उस तमाम मुल्क जहाँ कहीं तुम्हारे क़दम पड़े पैदा कर देगा जैसा उसने तुमसे कहा है।
\s5
\v 26 "देखो, मैं आज के दिन तुम्हारे आगे बरकत और ला'नत दोनों रख्खे देता हूँ
\v 27 ~बरकत उस हाल में जब तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्मों को जो आज मैं तुमको देता हूँ मानो;
\v 28 और ला'नत उस वक़्त जब तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की फ़रमाँबरदारी न करो, और उस राह को जिसके बारे में मैं आज तुमको हुक्म देता हूँ छोड़ कर और मा'बूदों की पैरवी करो, जिनसे तुम अब तक वाक़िफ़ नहीं।
\s5
\v 29 और जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको उस मुल्क में जिस पर क़ब्ज़ा करने को तू जा रहा है पहुँचा दे, तो कोह-ए-गरिज़ीम पर से बरकत और कोह-ए-'ऐबाल पर से ला'नत सुनाना।
\v 30 वह दोनों पहाड़ यरदन पार पश्चिम की तरफ़ उन कना'नियों के मुल्क में वाके' हैं जो जिलजाल के सामने मोरा के बलूतों के क़रीब मैदान में रहते हैं।
\s5
\v 31 और तुम यरदन पार इसी लिए जाने को हो, कि उस मुल्क पर जो ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुमको देता है क़ब्ज़ा करो, और तुम उस पर क़ब्ज़ा करोगे भी और उसी में बसोगे।
\v 32 इसलिए तुम एहतियात कर के उन सब आईन और अहकाम पर 'अमल करना जिनको मैं आज तुम्हारे सामने पेश करता हूँ।
\s5
\c 12
\p
\v 1 "जब तक तुम दुनिया में ज़िन्दा~रहो तुम एहतियात करके इन ही आईन और अहकाम पर उस मुल्क में 'अमल करना जिसे ख़ुदावन्द तेरे ~बाप-दादा के ख़ुदा ने तुझको दिया है, ताकि तू उस पर क़ब्ज़ा करे।
\v 2 वहाँ तुम ज़रूर उन सब जगहों को बर्बाद कर देना जहाँ-जहाँ वह क़ौमें ~जिनके तुम वारिस होगे, ऊँचे ऊँचे पहाड़ों पर और टीलों पर और हर एक हरे दरख़्त के नीचे अपने मा'बूदों की पूजा करती थीं।
\s5
\v 3 तुम उनके मज़बहों को ढा देना, और उनके सुतूनों को तोड़ डालना, और उनकी यसीरतों को आग लगा देना, और उनके मा'बूदों की खुदी हुई मूरतों को काट कर गिरा देना, और उस जगह से उनके नाम तक को मिटा डालना।
\v 4 लेकिन ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से ऐसा न करना।
\s5
\v 5 बल्कि जिस जगह को ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुम्हारे सब क़बीलों में से चुन ले, ताकि वहाँ अपना नाम क़ायम करे, तुम उसके उसी घर के तालिब होकर वहाँ जाया करना।
\v 6 और वहीं तुम अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानियों और ज़बीहों और दहेकियों और उठाने की क़ुर्बानियों और अपनी मिन्नतों की चीज़ों और अपनी रज़ा की क़ुर्बानियों और गाय बैलों और भेड़ बकरियों के पहलौठों को पेश करना।
\s5
\v 7 और वहीं ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने खाना और अपने घरानों समेत अपने हाथ की कमाई की ख़ुशी भी करना, जिसमें ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको बरकत बख़्शी हो।
\s5
\v 8 और जैसे हम यहाँ जो काम जिसको ठीक दिखाई देता है वही करते हैं, ऐसे तुम वहाँ न करना।
\v 9 क्यूँकि तुम अब तक उस आरामगाह और मीरास की जगह तक, जो खुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है नहीं पहुँचे हो।
\s5
\v 10 लेकिन जब तुम यरदन पार जाकर उस मुल्क में जिसका मालिक ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुमको बनाता है बस जाओ, और वह तुम्हारे सब दुश्मनों की तरफ़ से जो चारों तरफ़ हैं तुमको राहत दे, और तुम अम्न से रहने लगो;
\v 11 ~तो वहाँ जिस जगह को ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा अपने नाम के घर के लिए चुन ले, वहीं तुम ये सब कुछ जिसका मैं तुमको हुक्म देता हूँ ले जाया करना; या'नी अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ ~और ज़बीहे और ~अपनी दहेकियाँ, और अपने हाथ के उठाए हुए हदिये, और अपनी ख़ास नज़्र की चीज़ें जिनकी मन्नत तुमने ख़ुदावन्द के लिए मानी हो।
\s5
\v 12 और वहीं तुम और तुम्हारे बेटे बेटियाँ और तुम्हारे नौकर चाकर और लौंडियाँ ~और वह लावी भी जो तुम्हारे फाटकों के अन्दर रहता हो और जिसका कोई हिस्सा या मीरास तुम्हारे साथ नहीं, सब के सब मिल कर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने ख़ुशी मनाना।
\s5
\v 13 और तुम ख़बरदार रहना, कहीं ऐसा न हो कि जिस जगह को देख ले। वहीं अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी पेश करो।
\v 14 ~बल्कि सिर्फ़ उसी जगह जिसे ख़ुदावन्द तेरे किसी क़बीले में चुन ले, तू अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश करना और वहीं सब कुछ जिसका मैं तुमको हुक्म देता हूँ करना।
\s5
\v 15 "लेकिन गोश्त को तुम अपने सब फाटकों के अन्दर अपने दिल की चाहत और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की दी हुई बरकत के मुवाफ़िक़ ज़बह कर के खा सकेगा। पाक और नापाक दोनों तरह के आदमी उसे खा सकेंगे, जैसे चिकारे और हिरन को खाते हैं।
\v 16 ~लेकिन तुम ख़ून को बिल्कुल न खाना, बल्कि तुम उसे पानी की तरह ज़मीन पर उँडेल देना।
\s5
\v 17 और तू अपने फाटकों के अन्दर अपने ग़ल्ले और मय और तेल की दहेकियाँ, और गाय-बैलों और भेड़-बकरियों के पहलौठे, और अपनी मन्नत मानी हुई चीज़ें और रज़ा की क़ुर्बानियाँ और अपने हाथ की उठाई हुई क़ुर्बानियाँ कभी न खाना।
\s5
\v 18 बल्कि तू और तेरे ~बेटे बेटियाँ और तेरे नौकर-चाकर और लौंडियाँ, और वह लावी भी जो तेरे फाटकों के अन्दर हो, उन चीज़ों को ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने उस जगह खाना जिसे ख़ुदावन्द तेरा ~ख़ुदा चुन ले, और तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने अपने हाथ की कमाई की ख़ुशी मनाना।
\v 19 ~और ख़बरदार जब तक तू ~अपने मुल्क में ज़िन्दा रहे ~लावियों को छोड़ न देना।
\s5
\v 20 ~"जब ख़ुदावन्द तेरा ~ख़ुदा उस वा'दे के मुताबिक़ जो उसने तुझ से किया है तुम्हारी सरहद को बढ़ाए, और तेरा जी गोश्त खाने को करे और तू कहने लगे कि मै तो गोश्त खाऊँगा, तो तू जैसा तेरा जी चाहे गोश्त खा सकता है।
\s5
\v 21 और अगर वह जगह जिसे ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने अपने नाम को वहाँ क़ायम करने के लिए चुना है तेरे मकान से बहुत दूर हो, तो तूअपने गाय बैल और भेड़-बकरी में से जिनको ख़ुदावन्द ने तुझको दिया है किसी को ज़बह कर लेना और जैसा मैंने तुझको हुक्म दिया है तू उसके गोश्त को अपने दिल की चाहत के ~ मुताबिक़ अपने फाटकों के अन्दर खाना;
\v 22 जैसे चिकारे और हिरन को खाते हैं वैसे ही तू उसे खाना। पाक और नापाक दोनों तरह के आदमी उसे एक जैसे खा सकेंगे।
\s5
\v 23 सिर्फ़ इतनी एहतियात ज़रूर रखना कि तू ~ख़ून को न खाना; क्यूँकि ख़ून ही तो जान है, इसलिए तू गोश्त के साथ जान को हरगिज़ न खाना।
\v 24 तू ~उसको खाना मत, बल्कि उसे पानी की तरह ज़मीन पर उँडेल देना;
\v 25 तू उसे न खाना; ताकि तेरे ~उस काम के करने से जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक है, तेरा ~और तेरे ~साथ तेरी ~औलाद का भी भला हो।
\s5
\v 26 ~लेकिन अपनी पाक चीज़ों को जो तेरे पास हों और अपनी मन्नतो की चीज़ों ~को उसी जगह ले जाना जिसे ख़ुदावन्द चुन ले।
\v 27 और वहीं अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानियों का गोश्त और ख़ून दोनों ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के मज़बह पर पेश करना; और ख़ुदावन्द तेरे ~ख़ुदा ही के मज़बह पर तेरे ~ज़बीहों का ख़ून उँडेला जाए, मगर उनका गोश्त तू खाना।
\s5
\v 28 इन सब बातों को जिनका मैं तुझको हुक्म देता हूँ ग़ौर से सुन ले, ताकि तेरे ~उस काम के करने से जो ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा की नज़र में अच्छा और ठीक है, तेरा ~और तेरे ~बा'द तेरी औलाद का भला हो।
\s5
\v 29 "जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे सामने से उन क़ौमों को उस जगह जहाँ तू उनके वारिस होने को जा रहा है काट डाले, और तू उनका वारिस होकर उनके मुल्क में बस जाये,
\v 30 तो तू ख़बरदार रहना, कहीं ऐसा न हो कि जब वह तेरे आगे से ख़त्म हो जाएँ तो तू इस फंदे में फँस जाये, कि उनकी पैरवी करे और उनके मा'बूदों के बारे में ये दरियाफ़्त करे कि ये क़ौमें किस तरह से अपने मा'बूदों की पूजा करती है? मै भी वैसा ही करूँगा।
\s5
\v 31 ~तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए ऐसा न करना, क्यूँकि जिन जिन कामों से ख़ुदावन्द को नफ़रत और 'अदावत है वह सब उन्होंने अपने मा'बूदों के लिए किए हैं, बल्कि अपने बेटों और बेटियों को भी वह अपने मा'बूदों के नाम पर आग में डाल कर जला देते हैं।
\v 32 ~"जिस जिस बात का मैं हुक्म करता हूँ, तुम एहतियात करके उस पर 'अमल करना और उसमें न तो कुछ बढ़ाना और न उसमें से कुछ घटाना।
\s5
\c 13
\p
\v 1 अगर तेरे बीच कोई नबी या ख्व़ाब ~देखने वाला ज़ाहिर हो और तुझको किसी निशान या अजीब बात की ख़बर दे|
\v 2 और वह निशान या 'अजीब बात जिसकी उसने तुझको ख़बर दी वजूद में आए और वह तुझ से कहे, कि आओ हम और मा'बूदों की जिनसे तुम वाक़िफ़ नहीं पैरवी करके उनकी पूजा करें;
\v 3 तो तू हरगिज़ उस नबी या ख़्वाब देखने वाले की बात को न सुनना; क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुमको आज़माएगा, ताकि जान ले कि तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से मुहब्बत रखते हो या नहीं।
\s5
\v 4 तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की पैरवी करना, और उसका ख़ौफ़ मानना , और उसके हुक्मों ~पर चलना, और उसकी बात सुनना; तुम उसी की बन्दगी करना और उसी से लिपटे रहना।
\v 5 वह नबी या ख़्वाब देखने वाला क़त्ल किया जाए, क्यूँकि उसने तुमको ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा से (जिसने तुमको मुल्क-ए-मिस्र से निकाला और तुझको ग़ुलामी के घर से रिहाई बख़्शी), बग़ावत करने की तरगीब दी ताकि तुझको उस राह से जिस पर ख़ुदावन्द तेरे ~ख़ुदा ने तुझको चलने का हुक्म दिया है बहकाए। यूँ तुम अपने बीच में से ऐसे गुनाह को दूर कर देना।
\s5
\v 6 "अगर तेरा भाई, या तेरी माँ का बेटा, या तेरा बेटा या बेटी, या तेरी हमआग़ोश बीवी, या तेरा दोस्त जिसको तू अपनी जान के बराबर 'अज़ीज़ रखता है, तुझको चुपके चुपके फुसलाकर कहे, कि चलो, हम और मा'बूदों की पूजा करें जिनसे तू और तेरे बाप-दादा वाक़िफ़ भी नहीं,
\v 7 ~या'नी उन लोगों के मा'बूद जो तेरे चारों तरफ़ तेरे नज़दीक रहते हैं, या तुझ से दूर ज़मीन के इस सिरे से उस सिरे तक बसे हुए हैं;
\s5
\v 8 तो तू इस पर उसके साथ रज़ामन्द न होना, और न उनकी बात सुनना। तू उस पर तरस भी न खाना और न उसकी रि'आयत करना और न उसे छिपाना।
\v 9 बल्कि तू उसको ज़रूर क़त्ल करना और उसको क़त्ल ~करते वक़्त पहले तेरा हाथ उस पर पड़े, इसके बा'द सब क़ौम का हाथ।
\s5
\v 10 ~और तू उसे संगसार करना ताकि वह मर जाए; क्यूँकि उसने तुझको ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा से, जो तुझको मुल्क-ए-मिस्र से या'नी ग़ुलामी के घर से निकाल लाया, नाफ़रमान करना चाहा।
\v 11 तब सब इस्राईल सुन कर डरेंगे और तेरे बीच फिर ऐसी शरारत नहीं करेंगे।
\s5
\v 12 ~"और जो शहर ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको रहने को दिए हैं, अगर उनमें से किसी के बारे में तू ये अफ़वाह सुने, कि,
\v 13 ~कुछ ~ख़बीस आदमियों ने तेरे ही बीच में से निकलकर अपने शहर के लोगों को ये कहकर गुमराह कर दिया है, कि चलो, हम और मा'बूदो की जिनसे तू वाक़िफ़ नहीं पूजा करें;
\v 14 तो तू दरियाफ़्त और ख़ूब तफ़्तीश करके पता लगाना; और देखो, अगर ये सच हो और क़त'ई यही बात निकले, कि ऐसा मकरूह काम तेरे बीच किया गया,
\s5
\v 15 तो तू उस शहर के बाशिन्दों को तलवार से ज़रूर क़त्ल कर डालना, और वहाँ का सब कुछ और चौपाये वग़ैरा तलवार ही से हलाक कर देना।
\v 16 और वहाँ की सारी लूट को चौक के बीच जमा' कर के उस शहर को और वहाँ की लूट को, तिनका तिनका ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने आग से जला देना; और वह हमेशा को एक ढेर सा पड़ा रहे, और फिर कभी बनाया न जाए।
\s5
\v 17 और उनकी मख़्सूस की हुई चीज़ों में से कुछ भी तेरे हाथ में न रहे; ताकि ख़ुदावन्द अपने क़हर-ए- शदीद से बाज़ आए, और जैसा उसने तेरे बाप-दादा से क़सम खाई है, उस के मुताबिक़ तुझ पर रहम करे और तरस खाए और तुझको बढ़ाए।
\v 18 ये तब ही होगा जब तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात मान कर उसके हुक्मों पर जो आज मैं तुझको देता हूँ चले, और जो कुछ ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा की नज़र में ठीक है उसी को करे।
\s5
\c 14
\p
\v 1 ~"तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के फ़र्ज़न्द हो, तुम मुर्दों ~की वजह से अपने आप को ज़ख़्मी न करना, और न अपने अबरू के बाल मुंडवाना।
\v 2 ~क्यूँकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की मुक़द्दस क़ौम है और ख़ुदावन्द ने तुझको इस ज़मीन की और सब क़ौमों में से चुन लिया है ताकि तू उसकी ख़ास क़ौम ठहरे।
\s5
\v 3 ~"तू किसी घिनौनी चीज़ को मत खाना।
\v 4 जिन चौपायों को तुम खा सकते हो वह ये हैं, या'नी गाय-बैल, और भेड़, और बकरी,
\v 5 और हिरन, और चिकारा, और ~छोटा हिरन और बुज़कोही और साबिर और नीलगाय और, जंगली भेड़।
\s5
\v 6 और चौपायों में से जिस जिस के पाँव अलग और चिरे हुए हैं और वह जुगाली भी करता हो तुम उसे खा सकते हो।
\v 7 लेकिन उनमें से जो जुगाली करते हैं या उनके पाँव चिरे हुए हैं तुम उनको, या'नी ऊँट, और ख़रगोश, और साफ़ान को न खाना, क्यूँकि ये जुगाली करते हैं लेकिन इनके पाँव चिरे हुए नहीं हैं; इसलिए ये तुम्हारे लिए नापाक हैं।
\s5
\v 8 और सूअर तुम्हारे लिए इस वजह से नापाक है कि उसके पाँव तो चिरे हुए हैं लेकिन वह जुगाली नहीं करता। तुम न तो उनका गोश्त खाना और न उनकी लाश को हाथ लगाना।
\s5
\v 9 ~'आबी जानवरों में से तुम उन ही को खाना जिनके पर और छिल्के हों।
\v 10 ~लेकिन जिसके पर और छिल्के न हों तुम उसे मत खाना, वह तुम्हारे लिए नापाक हैं।
\s5
\v 11 ~"पाक परिन्दों में से तुम जिसे चाहो खा सकते हो,
\v 12 लेकिन इनमें से तुम किसी को न खाना, या'नी 'उक़ाब, और उस्तुख़्वानख़्वार, और बहरी 'उक़ाब,
\v 13 और चील और बाज़ और गिद्ध और उनकी क़िस्म के :
\s5
\v 14 हर क़िस्म का कौवा,
\v 15 और शुतुरमुर्ग़ और चुग़द और कोकिल और क़िस्म क़िस्म के शाहीन,
\v 16 और बूम, और उल्लू, और क़ाज़,
\v 17 और हवासिल, और रख़म, और हड़गीला,
\s5
\v 18 और लक़-लक़, और हर क़िस्म का बगुला, और हुद-हुद, और चमगादड़।
\v 19 और सब परदार रेंगने वाले जानदार तुम्हारे लिए नापाक हैं, वह खाए न जाएँ।
\v 20 और पाक परिन्दों में से तुम जिसे चाहो खाओ।
\s5
\v 21 ~"जो जानवर आप ही मर जाए तू उसे मत खाना; तू उसे किसी परदेसी को, जो तेरे फाटकों के अन्दर हो खाने को दे सकता है, या उसे किसी अजनबी आदमी के हाथ बेच सकता है; क्यूँकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की मुक़द्दस क़ौम है। तू हलवान को उसकी माँ के दूध में न उबालना।
\s5
\v 22 ~"तू अपने ग़ल्ले में से, जो हर साल तुम्हारे खेतों में पैदा हो दहेकी देना।
\v 23 और तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने उसी मक़ाम में जिसे वह अपने नाम के घर के लिए चुने, अपने ग़ल्ले और मय और तेल की दहेकी को, और अपने गाय-बैल और भेड़-बकरियों के पहलौठों को खाना, ताकि तू हमेशा ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना सीखे।
\s5
\v 24 और अगर वह जगह जिसको ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा अपने नाम को वहाँ क़ायम करने के लिए चुने तेरे घर से बहुत दूर हो, और रास्ता भी इस क़दर लम्बा हो कि तू अपनी दहेकी को उस हाल में जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको बरकत बख़्शे वहाँ तक न ले जा सके,
\v 25 तो तू उसे बेच कर रुपये को बाँध, हाथ में लिए हुए उस जगह चले जाना जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा चुने।
\s5
\v 26 और इस रुपये से जो कुछ तेरा जी चाहे, चाहे गाय-बैल, या भेड़-बकरी, या मय, या शराब मोल लेकर उसे अपने घराने समेत वहाँ ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने खाना और ख़ुशी मनाना।
\v 27 ~और लावी को जो तेरे फाटकों के अन्दर है छोड़ न देना, क्यूँकि उसका तेरे साथ कोई हिस्सा या मीरास नहीं हैं।
\s5
\v 28 'तीन तीन बरस के बा'द तू तीसरे बरस के माल की सारी दहेकी निकाल कर उसे अपने फाटकों के अन्दर इकट्ठा करना।
\v 29 तब लावी जिसका तेरे ~साथ कोई हिस्सा या मीरास नहीं, और परदेसी और यतीम और बेवा 'औरतें जो तेरे फाटकों के अन्दर हों आएँ, और खाकर सेर हों, ताकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे सब कामों में जिनको तू हाथ लगाये तुझको बरकत बख़्शे।
\s5
\c 15
\p
\v 1 'हर सात साल के बा'द तू ~छुटकारा दिया करना।
\v 2 और छुटकारा देने का तरीक़ा ये हो, कि अगर किसी ने अपने पड़ोसी को कुछ क़र्ज़ दिया हो तो वह उसे छोड़ दे, और अपने पड़ोसी से या भाई से उसका मुताल्बा न करे; क्यूँकि ख़ुदावन्द के नाम से इस छुटकारे का 'ऐलान हुआ है।
\v 3 परदेसी से तू उसका मुताल्बा कर सकता है, पर जो कुछ तेरा तेरे भाई पर आता हो उसकी तरफ़ से दस्तबरदार हो जाना।
\s5
\v 4 तेरे बीच कोई कंगाल न रहे; क्यूँकि ख़ुदावन्द तुझको इस मुल्क में ज़रूर बरकत बख़्शेगा, जिसे ख़ुद ख़ुदावन्द तेरा ~ख़ुदा मीरास के तौर पर तुझको क़ब्ज़ा करने को देता है।
\v 5 बशर्ते कि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात मान कर इन सब अहकाम पर चलने की एहतियात रख्खे, जो मैं आज तुझको देता हूँ।
\v 6 क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा, जैसा उसने तुझ से वा'दा किया है, तुझको बरकत बख़्शेगा और तू बहुत सी क़ौमों को क़र्ज़ देगा, पर तुझको उनसे क़र्ज़ लेना न पड़ेगा; और तू बहुत सी क़ौमों पर हुक्मरानी करेगा, लेकिन वह तुझ पर हुक्मरानी करने न पाएँगी।
\s5
\v 7 जो मुल्क खुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है, अगर उसमें कहीं तेरे फाटकों के अन्दर तेरे भाइयों में से कोई ग़रीब हो, तो तू अपने उस ग़रीब भाई की तरफ़ से न अपना दिल सख़्त करना और न अपनी मुट्ठी बन्द कर लेना;
\v 8 बल्कि उसकी ज़रूरत दूर करने को जो चीज़ उसे दरकार हो, उसके लिए तू ज़रूर खुले दिल से उसे क़र्ज़ देना।
\s5
\v 9 ख़बरदार रहना कि तेरे दिल में ये बुरा ख़याल न गुज़रने पाए कि सातवाँ साल, जो छुटकारे का साल है, नज़दीक है और तेरे ग़रीब भाई की तरफ़ से तेरी नज़र बद हो जाए और तू उसे कुछ न दे; और वह तेरे ख़िलाफ़ ख़ुदावन्द से फ़रियाद करे और ये तेरे लिए गुनाह ठहरे।
\v 10 बल्कि तुझको उसे ज़रूर देना होगा; और उसको देते वक़्त तेरे दिल को बुरा भी न लगे, इसलिए कि ऐसी बात की वजह से ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे सब कामों में, और सब मु'आमिलों में जिनको तू अपने हाथ में लेगा तुझको बरकत बख़्शेगा।
\s5
\v 11 और चूँकि मुल्क में कंगाल हमेशा पाए जाएँगे, इसलिए मैं तुझको हुक्म करता हूँ कि तू अपने मुल्क में अपने भाई या'नी कंगालों और मुहताजों के लिए अपनी मुट्ठी खुली रखना।
\s5
\v 12 ~'अगर तेरा कोई भाई, चाहे वह 'इब्रानी मर्द हो या 'इब्रानी 'औरत तेरे हाथ बिके और वह छ: बरस तक तेरी ख़िदमत करे, तो तू सातवें साल उसको आज़ाद होकर जाने देना।
\v 13 और जब तू उसे आज़ाद कर के अपने पास से रुख़्सत करे, तो उसे ख़ाली हाथ न जाने देना।
\v 14 बल्कि तू अपनी भेड़ बकरी और खत्ते और कोल्हू में से दिल खोलकर उसे देना, या'नी ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने जैसी बरकत तुझको दी हो उसके मुताबिक़ उसे देना।
\s5
\v 15 और याद रखना कि मुल्क-ए-मिस्र में तू भी ग़ुलाम था, और ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको छुड़ाया; इसीलिए मैं तुझको इस बात का हुक्म आज देता हूँ।
\v 16 और अगर वह इस वजह से कि उसे तुझसे और तेरे घराने से मुहब्बत हो और वह तेरे साथ ख़ुशहाल हो, तुझ से कहने लगे कि मैं तेरे पास से नहीं जाता।
\v 17 ~तो तू एक सुतारी लेकर उसका कान दरवाज़े से लगाकर छेद देना, तो वह हमेशा तेरा ग़ुलाम बना रहेगा। और अपनी लौंडी से भी ऐसा ही करना।
\s5
\v 18 और अगर तू उसे आज़ाद करके अपने पास से रुख़्सत करे तो उसे मुश्किल न गरदानना; क्यूँकि उसने दो मज़दूरों के बराबर छ: बरस तक तेरी ख़िदमत की, और ख़ुदावन्द तेरा ~ख़ुदा तेरे ~सब कारोबार में तुझको बरकत बख़्शेगा।
\s5
\v 19 ~"तेरे ~गाय-बैल और भेड़-बकरियों में जितने पहलौठे नर पैदा हों, उन सब को ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए मुक़द्दस करना।अपने गाय-बैल के पहलौठे से कुछ काम न लेना और न अपनी भेड़-बकरी के पहलौठे के बाल कतरना।
\v 20 तू उसे अपने घराने समेत ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने उसी जगह जिसे ख़ुदावन्द चुन ले, साल-ब-साल खाया करना।
\v 21 ~और अगर उसमें कोई नुक़्स हो मसलन वह लंगड़ा या अन्धा हो या उसमें और कोई बुरा 'ऐब हो, तो ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए उसकी क़ुर्बानी न गुज़रानना।
\s5
\v 22 तू उसे अपने फाटकों के अन्दर खाना। पाक और नापाक दोनों तरह के आदमी जैसे चिकारे और हिरन को खाते हैं वैसे ही उसे खाएँ।
\v 23 लेकिन उसके ख़ून को हरगिज़ न खाना; बल्कि तू उसको पानी की तरह ज़मीन पर उँडेल देना।
\s5
\c 16
\p
\v 1 'तू अबीब के महीने को याद रखना और उसमें ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की फ़सह करना क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा अबीब के महीने में रात के वक़्त तुझको मिस्र से निकाल लाया।
\v 2 और जिस जगह को ख़ुदावन्द अपने नाम के घर के लिए चुने, वहीं तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए अपने गाय-बैल और भेड़-बकरी में से फ़सह की क़ुर्बानी पेश करना।
\s5
\v 3 ~तू उसके साथ ख़मीरी रोटी न खाना, बल्कि सात दिन तक उसके साथ बेख़मीरी रोटी जो दुख की रोटी है खाना; क्यूँकि तू मुल्क-ए-मिस्र से हड़बड़ी में निकला था। यूँ तू 'उम्र भर उस दिन को जब तू मुल्क-ए-मिस्र से निकले याद रख सकेगा।
\v 4 और तेरी हदों के अन्दर सात दिन तक कहीं ख़मीर नज़र न आए, और उस क़ुर्बानी में से जिसको तू पहले दिन की शाम को चढ़ाए कुछ गोश्त सुबह तक बाक़ी न रहने पाए।
\s5
\v 5 तू फ़सह की क़ुर्बानी को अपने फाटकों के अन्दर, जिनको ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको दिया हो कहीं न चढ़ाना;
\v 6 बल्कि जिस जगह को ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा अपने नाम के घर के लिए चुनेगा, वहाँ तू फ़सह की क़ुर्बानी को उस वक़्त जब तू मिस्र से निकला था, या'नी शाम को सूरज डूबते वक़्त अदा करना।
\s5
\v 7 और जिस जगह को ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा चुने वहीं उसे भून कर खाना और फिर सुबह को अपने-अपने ख़ेमे को लौट जाना।
\v 8 छ: दिन तक बेख़मीरी रोटी खाना और सातवें दिन ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा की ख़ातिर पाक मजमा' हो, उसमें तू कोई काम न करना।
\s5
\v 9 फिर तू सात हफ़्ते यूँ गिनना, कि जब से हँसुआ लेकर फ़सल काटनी शुरू' करे~तब से सात हफ़्ते गिन लेना।
\v 10 तब जैसी बरकत ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने दी हो, उसके मुताबिक़ अपने हाथ की रज़ा की क़ुर्बानी का हदिया लाकर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए हफ़्तों की 'ईद मनाना।
\s5
\v 11 और उसी जगह जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा अपने नाम के घर के लिए चुनेगा, तू और तेरे बेटे बेटियाँ और तेरे ग़ुलाम और लौंडियाँ और वह लावी जो तेरे फाटकों के अन्दर हो, और मुसाफ़िर और यतीम और बेवा जो तेरे बीच हों, सब मिल कर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने ख़ुशी मनाना।
\v 12 और याद रखना के तू मिस्र में ग़ुलाम था और इन हुक्मों पर एहतियात करके 'अमल करना।
\s5
\v 13 जब तू अपने खलीहान और कोल्हू का माल जमा' कर चुके, तो सात दिन तक 'ईद-ए-ख़ियाम करना।
\v 14 और तू और तेरे बेटे बेटियाँ और ग़ुलाम और लौंडियाँ और लावी, और मुसाफ़िर और यतीम और बेवा जो तेरे फाटकों के अन्दर हों, सब तेरी इस 'ईद में ख़ुशी मनाएँ।
\s5
\v 15 सात दिन तक तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए उसी जगह जिसे ख़ुदावन्द चुने, 'ईद करना, इसलिए कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे सारे माल में और सब कामों में जिनको तू ~हाथ लगाये तुझको बरकत बख़्शेगा, इसलिए तू पूरी-पूरी ख़ुशी करना।
\s5
\v 16 और साल में तीन बार, या'नी बेख़मीरी रोटी की 'ईद और हफ़्तों की 'ईद और 'ईद-ए-ख़ियाम के मौक़े' पर तेरे यहाँ के सब मर्द ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के आगे, उसी जगह हाज़िर हुआ करें जिसे वह चुनेगा। और जब आएँ तो ख़ुदावन्द के सामने ख़ाली हाथ न आएँ;
\v 17 बल्कि हर मर्द जैसी बरकत ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको बख़्शी हो अपनी तौफ़ीक़ के मुताबिक़ दे।
\s5
\v 18 तू अपने क़बीलों की सब बस्तियों में जिनको ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको दे, क़ाज़ी और हाकिम मुक़र्रर करना जो सदाक़त से लोगों की 'अदालत करें।
\v 19 तू इन्साफ़ का ख़ून न करना। तू न तो किसी की रूरि'आयत करना और न रिश्वत लेना, क्यूँकि रिश्वत 'अक़्लमन्द की आँखों को अन्धा कर देती है और सादिक़ की बातों को पलट देती है।
\v 20 जो कुछ बिल्कुल हक़ है तू उसी की पैरवी करना, ताकि तू ज़िन्दा रहे और उस मुल्क का मालिक बन जाये जो ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है।
\s5
\v 21 जो मज़बह तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए बनाये उसके क़रीब किसी क़िस्म के दरख़्त की यसीरत न लगाना,
\v 22 और न कोई सुतून अपने लिए खड़ा कर लेना, जिससे ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा को नफ़रत है।
\s5
\c 17
\p
\v 1 तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए कोई बैल या भेड़-बकरी, जिसमें कोई 'ऐब या बुराई हो, ज़बह मत करना क्यूँकि यह ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के नज़दीक मकरूह है।
\s5
\v 2 'अगर तेरे बीच तेरी बस्तियों में जिनको ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको दे, कहीं कोई मर्द या 'औरत मिले जिसने ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के सामने यह बदकारी की हो कि उसके 'अहद को तोड़ा हो,
\v 3 और जाकर और मा'बूदों की या सूरज या चाँद या अजराम-ए-फ़लक में से किसी की, जिसका हुक्म मैंने तुझको नहीं दिया, 'इबादत और परस्तिश की हो,
\v 4 ~और यह बात तुझको बताई जाए और तेरे सुनने में आए, तो तू जाँफ़िशानी से तहक़ीक़ात करना और अगर यह ठीक हो और कत'ई तौर पर साबित हो जाए कि इस्राईल में ऐसा मकरूह काम हुआ,
\s5
\v 5 तो तू उस मर्द या उस 'औरत को जिसने यह बुरा काम किया हो, बाहर अपने फाटकों पर निकाल ले जाना और उनको ऐसा संगसार करना कि वह मर जाएँ।
\v 6 ~जो वाजिब-उल-क़त्ल ठहरे वह दो या तीन आदमियों की गवाही से मारा जाए, सिर्फ़ एक ही आदमी की गवाही से वह मारा न जाए।
\v 7 उसको क़त्ल करते वक़्त गवाहों के हाथ पहले उस पर उठे उसके बा'द बाक़ी सब लोगों के हाथ, यूँ तू अपने बीच से शरारत को दूर किया करना।
\s5
\v 8 ‘अगर तेरी बस्तियों में कहीं आपस के ख़ून या आपस के दा'वे या आपस की मार पीट के बारे में कोई झगड़े की बात उठे, और उसका फ़ैसला करना तेरे लिए निहायत ही मुश्किल हो, तो तू उठ कर उस जगह जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा चुनेगा जाना।
\v 9 और लावी काहिनों और उन दिनों के क़ाज़ियों के पास पहुँच कर उनसे दरियाफ़्त करना, और वह तुझको फ़ैसले की बात बताएँगे;
\s5
\v 10 और तू उसी फ़ैसले के मुताबिक़ जो वह तुझको उस जगह से जिसे ख़ुदावन्द चुनेगा बताए 'अमल करना। जैसा वह तुमको सिखाएँ उसी के मुताबिक़ सब कुछ एहतियात करके मानना।
\v 11 शरी'अत की जो बात वह तुझको सिखाएँ और जैसा फ़ैसला तुझको बताएँ, उसी के मुताबिक़ करना और जो कुछ फ़तवा वह दें उससे दहने या बाएँ न मुड़ना।
\s5
\v 12 ~और अगर कोई शख़्स गुस्ताख़ी से पेश आए कि उस काहिन की बात, जो ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के सामने ख़िदमत के लिए खड़ा रहता है या उस क़ाज़ी का कहा न सुने, तो वह शख़्स मार डाला जाए और तू इस्राईल में से ऐसी बुराई को दूर कर देना।
\v 13 और सब लोग सुन कर डर जाएँगे और फिर गुस्ताख़ी से पेश नहीं आएँगे।
\s5
\v 14 ~जब तू उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है पहुँच जाये,~और उस पर क़ब्ज़ा कर के वहाँ रहने और कहने लगे, कि उन क़ौमों की तरह जो मेरे चारों तरफ़ हैं मैं भी किसी को अपना बादशाह बनाऊँ|
\v 15 तो तू बहरहाल सिर्फ़ उसी को अपना बादशाह बनाना जिसको ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा चुन ले, तू अपने भाइयों में से ही किसी को अपना बादशाह बनाना, और परदेसी को जो तेरा भाई नहीं अपने ऊपर हाकिम न कर लेना।
\s5
\v 16 इतना ज़रूर है कि वह अपने लिए बहुत घोड़े न बढ़ाए, और न लोगों को मिस्र में भेजे ताकि उसके पास बहुत से घोड़े हो जाएँ, इसलिए कि ख़ुदावन्द ने तुमसे कहा है कि तुम उस राह से फिर कभी उधर न लौटना।
\v 17 और वह बहुत सी बीवियाँ भी न रख्खे ऐसा न हो कि उसका दिल फिर जाए, और न वह अपने लिए सोना चाँदी ज़ख़ीरा करे।
\s5
\v 18 ~और जब वह तख़्त-ए-सल्तनत पर बैठा करे तो उस शरी'अत की जो लावी काहिनों के पास रहेगी, एक नक़ल अपने लिए एक किताब में उतार ले।
\v 19 और वह उसे अपने पास रख्खे और अपनी सारी 'उम्र उसको पढ़ा करे, ताकि वह ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना और उस शरी'अत और आईन की सब बातों पर 'अमल करना सीखे;
\s5
\v 20 ~जिससे उसके दिल में ग़ुरूर न हो कि वह अपने भाइयों को हक़ीर जाने, और इन अहकाम से न तो दहने न बाएँ मुड़े; ताकि इस्राईलियों के बीच उसकी और उसकी औलाद की सल्तनत ज़माने तक रहे।
\s5
\c 18
\p
\v 1 लावी काहिनों या'नी लावी के क़बीले का कोई हिस्सा और मीरास इस्राईल के साथ न हो; वह ख़ुदावन्द की आतिशीन क़ुर्बानियाँ और उसी की मीरास खाया करें|
\v 2 ~इसलिए उनके भाइयों के साथ उनको मीरास न मिले; ख़ुदावन्द उनकी मीरास है, जैसा उसने ख़ुद उनसे कहा है।
\s5
\v 3 और जो लोग गाय-बैल या भेड़ या बकरी की क़ुर्बानी गुज़रानते हैं उनकी तरफ़ से काहिनों का यह हक़ होगा, कि वह काहिन को शाना और कनपटियाँ और झोझ दें।
\v 4 और तू अपने अनाज और मय और तेल के पहले फल में से, और अपनी भेड़ों के बाल में से जो पहली दफ़ा' कतरे जाएँ उसे देना।
\v 5 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने उसको तेरे सब क़बीलों में से चुन लिया है, ताकि वह और उसकी औलाद हमेशा ख़ुदावन्द के नाम से ख़िदमत के लिए हाज़िर रहें।
\s5
\v 6 और तेरी जो बस्तियाँ सब इस्राईलियों में हैं उनमें से अगर कोई लावी किसी बस्ती से जहाँ वह बूद-ओ-बाश करता था आए, और अपने दिल की पूरी चाहत से उस जगह हाज़िर हो जिसको ख़ुदावन्द चुनेगा:
\v 7 तो अपने सब लावी भाइयों की तरह जो वहाँ ख़ुदावन्द के सामने खड़े रहते हैं, वह भी ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के नाम से ख़िदमत करे।
\v 8 और उन सबको खाने को बराबर हिस्सा मिले, 'अलावा उस क़ीमत के जो उसके बाप-दादा की मीरास बेचने से उसे हासिल हो।
\s5
\v 9 जब तू उस मुल्क में जो ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुमको देता है पहुँच जाओ, तो वहाँ की क़ौमों की तरह मकरूह काम करने न सीखना।
\v 10 तुझमें हरगिज़ कोई ऐसा न हो जो अपने बेटे या बेटी को आग में चलवाए, या फ़ालगीर या शगुन निकालने वाला या अफ़सूँगर या जादूगर
\v 11 या मंतरी या जिन्नात का आशना या रम्माल या साहिर हो।
\s5
\v 12 क्यूँकि वह सब जो ऐसा काम करते हैं ख़ुदावन्द के नज़दीक मकरूह हैं, और इन ही मकरूहात की वजह से ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उनको तेरे सामने से निकालने पर है।
\v 13 तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने कामिल रहना ।
\v 14 क्यूँकि वह क़ौमें जिनका तू वारिस होगा शगुन निकालने वालों और फ़ालगीर की सुनती हैं; लेकिन तुझको ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने ऐसा करने न दिया।
\s5
\v 15 ~ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे लिए तेरे ही बीच से, या'नी तेरे ही भाइयों में से मेरी तरह एक नबी खड़ा करेगा तुम उसकी सुनना;
\v 16 यह तेरी उस दरख़्वास्त के मुताबिक़ होगा जो तूने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मजमे' के दिन होरिब में की थी, 'मुझको न तो ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आवाज़ फिर सुननी पड़े और न ऐसी बड़ी आग ही का नज़ारा हो, ताकि मैं मर न जाऊँ।'
\s5
\v 17 और ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा कि "वह जो कुछ कहते हैं इसलिए ठीक कहते हैं।
\v 18 ~मैं उनके लिए उन ही के भाइयों में से तेरी तरह एक नबी खड़ा करूँगा, और अपना कलाम उसके मुँह में डालूँगा, और जो कुछ मैं उसे हुक्म दूँगा वही वह उनसे कहेगा।
\v 19 और जो कोई मेरी उन बातों की जिनकी वह मेरा नाम लेकर कहेगा न सुने, तो मैं उनका हिसाब उनसे लूँगा।
\s5
\v 20 लेकिन जो नबी गुस्ताख़ बन कर कोई ऐसी बात मेरे नाम से कहे, जिसके कहने का मैंने उसको हुक्म नहीं दिया या और मा'बूदों के नाम से कुछ कहे, तो वह नबी क़त्ल किया जाए।'
\v 21 और अगर तू अपने दिल में कहे कि ~'जो बात ख़ुदावन्द ने नहीं कही है, उसे हम क्यूँ कर पहचानें?'
\s5
\v 22 तो पहचान यह है, कि जब वह नबी ख़ुदावन्द के नाम से कुछ कहे और उसके कहे कि मुताबिक़ कुछ वाक़े' या पूरा न हो, तो वह बात ख़ुदावन्द की कही हुई नहीं; बल्कि उस नबी ने वह बात ख़ुद गुस्ताख़ बन कर कही है, तू उससे ख़ौफ़ न करना।
\s5
\c 19
\p
\v 1 जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उन क़ौमों को, जिनका मुल्क ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है काट डाले, और तू उनकी जगह उनके शहरों और घरों में रहने लगे,
\v 2 ~तो तू उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको क़ब्ज़ा करने को देता है, तीन शहर अपने लिए अलग कर देना।
\v 3 और तू एक रास्ता भी अपने लिए तैयार करना, और अपने उस मुल्क की ज़मीन को जिस पर ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको क़ब्ज़ा दिलाता है तीन हिस्से करना, ताकि हर एक ख़ूनी वहीं भाग जाए।
\s5
\v 4 और उस क़ातिल का जो वहाँ भाग कर अपनी जान बचाए हाल यह हो, कि उसने अपने पड़ोसी को अनजाने में और बग़ैर उससे पुरानी दुश्मनी रख्खे मार डाला हो।
\v 5 मसलन कोई शख़्स अपने पड़ोसी के साथ लकड़ियाँ काटने को जंगल में जाए और कुल्हाड़ा हाथ में उठाए ताकि दरख़्त काटे, और कुल्हाड़ा दस्ते से निकल कर उसके पड़ोसी के जा लगे और वह मर जाए, तो वह इन शहरों में से किसी में भाग कर ज़िन्दा बचे।
\s5
\v 6 ~कहीं ऐसा न हो कि रास्ते की लम्बाई की वजह से ख़ून का इन्तक़ाम लेने वाला अपने जोश-ए-ग़ज़ब में क़ातिल का पीछा करके उसको जा पकड़े और उसको क़त्ल करे, हालाँके वह वाजिब-उल-क़त्ल नहीं क्यूँकि उसे मक़्तूल से पुरानी दुश्मनी न थी।
\v 7 इसलिए मैं तुझको हुक्म देता हूँ कि तू अपने लिए तीन शहर अलग कर देना।
\s5
\v 8 और अगर ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उस क़सम के मुताबिक़ जो उसने तेरे बाप-दादा से खाई, तेरी सरहद को बढ़ाकर वह सब मुल्क जिसके देने का वा'दा उसने तेरे बाप दादा से किया था तुझको दे।
\v 9 और तू इन सब हुक्मों पर जो आज के दिन मैं तुझको देता हूँ ध्यान करके 'अमल करे और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रख्खे और हमेशा उसकी राहों पर चले, तो इन तीन शहरों के आलावा तीन शहर और अपने लिए अलग कर देना।
\v 10 ताकि तेरे मुल्क के बीच जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको मीरास में देता है, बेगुनाह का ख़ून बहाया न जाए और वह ख़ून यूँ तेरी गर्दन पर हो।
\s5
\v 11 ~लेकिन अगर कोई शख़्स अपने पड़ोसी से दुश्मनी रखता हुआ उसकी घात में लगे, और उस पर हमला कर के उसे ऐसा मारे कि वह मर जाए और वह ख़ुद उन शहरों में से किसी में भाग जाए।
\v 12 ~तो उसके शहर के बुज़ुर्ग लोगों को भेजकर उसे वहाँ से पकड़वा मँगवाएँ, और उसको ख़ून के इन्तक़ाम लेने वाले के हाथ में हवाले करें ताकि वह क़त्ल हो।
\v 13 तुझको उस पर ज़रा तरस न आए, बल्कि तू इस तरह बेगुनाह के ख़ून को इस्राईल से दफ़ा' करना ताकि तेरा भला हो।
\s5
\v 14 तू उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको क़ब्ज़ा करने को देता है,अपने पड़ोसी की हद का निशान जिसको अगले लोगों ने तेरी मीरास के हिस्से में ठहराया हो मत हटाना।
\s5
\v 15 ~किसी शख़्स के ख़िलाफ़ उसकी किसी बदकारी या गुनाह के बारे में जो उससे सरज़द हो, एक ही गवाह बस नहीं बल्कि दो गवाहों या तीन गवाहों के कहने से बात पक्की समझी जाए।
\v 16 अगर कोई झूटा गवाह उठ कर किसी आदमी की बदी की निस्बत गवाही दे,
\s5
\v 17 तो वह दोनों आदमी जिनके बीच यह झगड़ा हो, ख़ुदावन्द के सामने काहिनों और उन दिनों के क़ाज़ियों के आगे खड़े हों,
\v 18 और क़ाज़ी ख़ूब तहक़ीक़ात करें, और अगर वह गवाह झूटा निकले और उसने अपने भाई के ख़िलाफ़ झूटी गवाही दी हो;
\v 19 ~तो जो हाल उसने अपने भाई का करना चाहा था, वही तुम उसका करना; और यूँ तू ऐसी बुराई को अपने बीच से दफ़ा' कर देना।
\s5
\v 20 और दूसरे लोग सुन कर डरेंगे और तेरे बीच फिर ऐसी बुराई नहीं करेंगे।
\v 21 और तुझको ज़रा तरस न आए; जान का बदला जान, आँख का बदला आँख, दाँत का बदला दाँत, हाथ का बदला हाथ, और पाँव का बदला पाँव हो।
\s5
\c 20
\p
\v 1 ~जब तू अपने दुश्मनों से जंग करने को जाये, और घोड़ों और रथों और अपने से बड़ी फ़ौज को देखे तो उनसे डर न जाना; क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा जो तुझको मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया तेरे साथ है।
\s5
\v 2 ~और जब मैदान-ए-जंग में तुम्हारा मुक़ाबला होने को हो तो काहिन फ़ौज के आदमियों के पास जाकर उनकी तरफ़ मुख़ातिब हो,
\v 3 और उनसे कहे, 'सुनो ऐ इस्राईलियों, तुम आज के दिन अपने दुश्मनों के मुक़ाबले के लिए मैदान-ए-जंग में आए हो; इसलिए तुम्हारा दिल परेशान न हो, तुम न ख़ौफ़ करो, न काँपों, न उनसे दहशत खाओ।
\v 4 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुम्हारे साथ-साथ चलता है, ताकि तुमको बचाने को तुम्हारी तरफ़ से तुम्हारे दुश्मनों से जंग करे।"
\s5
\v 5 ~फिर फ़ौजी अफ़सरान लोगों से यूँ कहें कि 'तुम में से जिस किसी ने नया घर बनाया हो और उसे मख़्सूस न किया हो तो वह अपने घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि वह जंग में क़त्ल हो और दूसरा शख़्स उसे मख़्सूस करे।
\s5
\v 6 और जिस किसी ने ताकिस्तान लगाया हो लेकिन अब तक उसका फल इस्ते'माल न किया हो वह भी अपने घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि वह जंग में मारा जाए और दूसरा आदमी उसका फल खाए।
\v 7 और जिसने किसी 'औरत से अपनी मंगनी तो कर ली हो लेकिन उसे ब्याह कर नहीं लाया है वह अपने घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि वह लड़ाई में मारा जाए और दूसरा मर्द उससे ब्याह करे।'
\s5
\v 8 और फ़ौजी हाकिम लोगों की तरफ़ मुख़ातिब हो कर उनसे यह भी कहें कि 'जो शख़्स डरपोक और कच्चे दिल का हो वह भी अपने घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि उसकी तरह उसके भाइयों का हौसला भी टूट जाए।'
\v 9 और जब फ़ौजी हाकिम यह सब कुछ लोगों से कह चुकें, तो लश्कर के सरदारों को उन पर मुक़र्रर कर दें।
\s5
\v 10 जब तू किसी शहर से जंग करने को उसके नज़दीक पहुँचे, तो पहले उसे सुलह का पैग़ाम देना।
\v 11 और अगर वह तुझको सुलह का जवाब दे और अपने फाटक तेरे लिए खोल दे, तो वहाँ के सब बाशिन्दे तेरे बाजगुज़ार बन कर तेरी ख़िदमत करें।
\s5
\v 12 ~और अगर वह तुझसे सुलह न करें बल्कि तुझसे लड़ना चाहें, तो तुम उसका मुहासिरा करना;
\v 13 और जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उसे तेरे क़ब्ज़े में कर दे तो वहाँ के हर मर्द को तलवार से क़त्ल कर डालना।
\s5
\v 14 ~लेकिन 'औरतों और बाल बच्चों और चौपायों और उस शहर का सब माल और लूट को अपने लिए रख लेना, और तू अपने दुश्मनों की उस लूट को जो ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको दी हो खाना।
\v 15 उन सब शहरों का यही हाल करना जो तुझसे बहुत दूर हैं और इन क़ौमों के शहर नहीं हैं।
\s5
\v 16 लेकिन इन क़ौमों के शहरों में जिनको ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा मीरास के तौर पर तुझको देता है, किसी आदमीं को ज़िन्दा न बाक़ी रखना।
\v 17 बल्कि तू इनको या'नी हित्ती और अमोरी और कना'नी और फ़रिज़्ज़ी और हव्वी और यबूसी क़ौमों को, जैसा ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको हुक्म दिया है बिल्कुल हलाक कर देना।
\v 18 ~ताकि वह तुमको अपने से मकरूह काम करने न सिखाएँ जो उन्होंने अपने मा'बूदों के लिए किए हैं, और यूँ तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के ख़िलाफ़ गुनाह करने लगो।
\s5
\v 19 जब तू किसी शहर को फ़तह करने के लिए उससे जंग करे और ज़माने तक उसको घेरे रहे, तो उसके दरख़्तों को कुल्हाड़ी से न काट डालना क्यूँकि उनका फल तेरे खाने के काम में आएगा इसलिए तू उनको मत काटना। क्यूँकि क्या मैदान का दरख़्त इन्सान है कि तू उसको घेरे रहे?
\v 20 इसलिए सिर्फ़ उन्हीं दरख्तों को काट कर उड़ा देना जो तेरी समझ में खाने के मतलब के न हों, और तू उस शहर के सामने जो तुझसे जंग करता हो बुर्जों को बना लेना जब तक वह सर न हो जाए।
\s5
\c 21
\p
\v 1 अगर उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको क़ब्ज़ा करने को देता है, किसी मक़्तूल की लाश मैदान में पड़ी हुई मिले और यह मा'लूम न हो कि उसका क़ातिल कौन है;
\v 2 तो तेरे बुज़ुर्ग और क़ाज़ी निकल कर उस मक़्तूल के चारों तरफ़ के शहरों के फ़ासले को नापें,
\s5
\v 3 और जो शहर उस~मक़्तूल~के सब से नज़दीक हो, उस शहर के बुज़ुर्ग एक बछिया लें जिससे कभी कोई काम न लिया गया~हो और न वह जुए में जोती गई हो;
\v 4 और उस शहर के बुज़ुर्ग उस बछिया को बहते पानी की वादी में, जिसमें न हल चला हो और न उसमें कुछ बोया गया हो ले जाएँ, और वहाँ उस वादी में उस बछिया की गर्दन तोड़ दें।
\s5
\v 5 तब बनी लावी जो काहिन है नज़दीक आयें क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने उनको चुन लिया है कि ख़ुदावन्द की ख़िदमत करें और उसके नाम से बरकत दिया करें, और उन ही के कहने के मुताबिक़ हर झगड़े और मार पीट के मुक़द्दमे का फ़ैसला हुआ करे।
\s5
\v 6 फिर इस शहर के सब बुज़ुर्ग जो उस मक़्तूल के सब से नज़दीक रहने वाले हों, उस बछिया के ऊपर जिसकी गर्दन उस वादी में तोड़ी गई अपने अपने हाथ धोएँ,
\v 7 और यूँ कहें, 'हमारे हाथ से यह ख़ून नहीं हुआ और न यह हमारी आँखों का देखा हुआ है।
\s5
\v 8 इसलिए ऐ ख़ुदावन्द, अपनी क़ौम इस्राईल को जिसे तुने छुड़ाया है मु'आफ़ कर, और बेगुनाह के ख़ून को अपनी क़ौम इस्राईल के ज़िम्में न लगा।' तब वह ख़ून उनको मु'आफ़ कर दिया जाएगा।
\v 9 यूँ तू उस काम को करके जो ख़ुदावन्द के नज़दीक दुरुस्त है, बेगुनाह के ख़ून की जवाबदेही को अपने ऊपर से दूर-ओ-दफ़ा' करना।
\s5
\v 10 ~'जब तू अपने दुश्मनों से जंग करने को निकले और ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उनको तेरे ~हाथ में कर दे, और तू उनको ग़ुलाम कर लाए,
\v 11 और उन ग़ुलामों में किसी ख़ूबसूरत 'औरत को देख कर तुम उस पर फ़रेफ़्ता हो जाओ और उसको ब्याह लेना चाहो,
\v 12 तो तू उसे अपने घर ले आना और वह अपना सिर मुण्डवाए और अपने नाख़ून तरशवाए,
\s5
\v 13 और अपनी ग़ुलामी का लिबास उतार कर तेरे घर में रहे और एक महीने तक अपने माँ बाप के लिए मातम करे; इसके बा'द तू उसके पास जाकर उसका शौहर होना और वह तेरी बीवी बने।
\v 14 और अगर वह तुझको न भाए तो जहाँ वह चाहे उसको जाने देना, लेकिन रुपये की ख़ातिर उसको हरगिज़ न बेचना और उससे लौंडी का सा सुलूक न करना, इसलिए कि तूने उसकी हुरमत ले ली है।
\s5
\v 15 ~'अगर किसी मर्द की दो बीवियाँ हों और एक महबूबा और दूसरी ग़ैर महबूबा हो, और महबूबा और ग़ैर महबूबा दोनों से लड़के हों और पहलौठा बेटा ग़ैर महबूबा से हो,
\v 16 तो जब वह अपने बेटों को अपने माल का वारिस करे, तो वह महबूबा के बेटे को ग़ैर महबूबा के बेटे पर जो हक़ीक़त में पहलौठा है तर्जीह देकर पहलौठा न ठहराए।
\v 17 बल्कि वह ग़ैर महबूबा के बेटे को अपने सब माल का दूना हिस्सा दे कर उसे पहलौठा माने, क्यूँकि वह उसकी क़ुव्वत की शुरू'आत है और पहलौठे का हक़ उसी का है।
\s5
\v 18 अगर किसी आदमी का ज़िद्दी और बाग़ी, बेटा हो, जो अपने बाप या माँ की बात न मानता हो और उनके तम्बीह करने पर भी उनकी न सुनता हो,
\v 19 ~तो उसके माँ बाप उसे पकड़ कर और निकाल कर उस शहर के बुज़ुर्गों के पास उस जगह के फाटक पर ले जाएँ,
\s5
\v 20 और वह उसके शहर के बुज़ुर्गों से 'अर्ज़ करें कि यह हमारा बेटा ज़िद्दी और बाग़ी है, यह हमारी बात नहीं मानता और उड़ाऊ और शराबी है।
\v 21 ~तब उसके शहर के सब लोग उसे संगसार करें कि वह मर जाए, यूँ तू ऐसी बुराई को अपने बीच से दूर करना। तब सब इस्राईली सुन कर डर जाएँगे।
\s5
\v 22 और अगर किसी ने कोई ऐसा गुनाह किया हो जिससे उसका क़त्ल वाजिब हो, और तू उसे मारकर दरख़्त से टाँग दे,
\v 23 ~तो उसकी लाश रात भर दरख़्त पर लटकी न रहे बल्कि तू उसी दिन उसे दफ़्न कर देना, क्यूँकि जिसे फाँसी मिलती है वह ख़ुदा की तरफ़ से मला'ऊन है; ऐसा न हो कि तू उस मुल्क को नापाक कर दे जिसे खुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको मीरास के तौर पर देता है।
\s5
\c 22
\p
\v 1 ~तू अपने भाई के बैल या भेड़ को भटकती देख कर उस से मुँह न फेरना, बल्कि ज़रूर तू उसको अपने भाई के पास पहुँचा देना।
\v 2 और अगर तेरा भाई तेरे नज़दीक न रहता हो या तू उससे वाक़िफ़ न हो, तो तू उस जानवर को अपने घर ले आना और वह तेरे पास रहे जब तक तेरा भाई उसकी तलाश न करे, तब तू उसे उसको दे देना।
\s5
\v 3 तू उसके गधे और उसके कपड़े से भी ऐसा ही करना; ग़रज़ जो कुछ तेरे भाई से खोया जाए और तुझको मिले, तू उससे ऐसा ही करना और मुँह न फेरना।
\v 4 तू अपने भाई का गधा या बैल रास्ते में गिरा हुआ देखकर उससे मुँह न फेरना, बल्कि ज़रूर उसके उठाने में उसकी~मदद करना।
\s5
\v 5 ~'औरत मर्द का लिबास न पहने और न मर्द 'औरत की पोशाक पहने, क्यूँकि जो ऐसा काम करता है वह ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के नज़दीक मकरूह है।
\s5
\v 6 ~अगर राह चलते अचानक किसी परिन्दे का घोंसला दरख़्त या ज़मीन पर बच्चों या अण्डों के साथ तुझको मिल जाए, और माँ बच्चों या अण्डों पर बैठी हुई हो तो तू बच्चों को माँ के साथ न पकड़ लेना;
\v 7 बच्चों को तू ले तो ले लेकिन माँ को ज़रूर छोड़ देना, ताकि तेरा भला हो और तेरी 'उम्र दराज़ हो।
\s5
\v 8 जब तू कोई नया घर बनाये तो अपनी छत पर मुण्डेर ज़रूर लगाना, ऐसा न हो कि कोई आदमी वहाँ से गिरे और तेरी वजह से वह ख़ून तेरे ही घरवालों पर हो।
\s5
\v 9 तू अपने ताकिस्तान में दो क़िस्म के बीज न बोना, ऐसा न हो कि सारा फल या'नी जो बीज तूने बोया और ताकिस्तान की पैदावार दोनों ज़ब्त कर लिए जाएँ।
\v 10 ~तू बैल और गधे दोनों को एक साथ जोत कर हल न चलाना।
\v 11 ~तू ऊन और सन दोनों की मिलावट का बुना हुआ कपड़ा न पहनना।
\s5
\v 12 तू अपने ओढ़ने की चादर के चारों किनारों पर झालर लगाया करना।
\s5
\v 13 'अगर कोई मर्द किसी 'औरत को ब्याहे और उसके पास जाए, और बा'द उसके उससे नफ़रत करके,
\v 14 शर्मनाक बातें उसके हक़ में कहे और उसे बदनाम करने के लिए यह दा'वा करे कि 'मैंने इस 'औरत से ब्याह किया, और जब मैं उसके पास गया तो मैंने कुँवारेपन के निशान उसमें नहीं पाए।'
\s5
\v 15 ~तब उस लड़की का बाप और उसकी माँ उस लड़की के कुँवारेपन के निशानों को उस शहर के फाटक पर बुज़ुर्गों के पास ले जाएँ,
\s5
\v 16 ~और उस लड़की का बाप बुज़ुर्गों से कहे कि 'मैंने अपनी बेटी इस शख़्स को ब्याह दी, लेकिन यह उससे नफ़रत रखता है;
\v 17 और शर्मनाक बातें उसके हक़ में कहता है, और यह दा'वा करता है कि मैंने तेरी बेटी में कुँवारेपन के निशान नहीं पाए; हालाँकि मेरी बेटी के कुँवारेपन के निशान यह मौजूद हैं।' फिर वह उस चादर को शहर के बुज़ुर्गों के आगे फैला दें।
\s5
\v 18 ~तब शहर के बुज़ुर्ग उस शख़्स को पकड़ कर उसे कोड़े लगाएँ,
\v 19 और उससे चाँदी के सौ मिस्क़ाल जुर्माना लेकर उस लड़की के बाप को दें, इसलिए कि उसने एक इस्राईली कुँवारी को बदनाम किया; और वह उसकी बीवी बनी रहे और वह ज़िन्दगी भर उसको तलाक़ न देने पाए।
\s5
\v 20 लेकिन अगर यह बात सच हो कि लड़की में कुँवारेपन के निशान नहीं पाए गए,
\v 21 तो वह उस लड़की को उसके बाप के घर के दरवाज़े पर निकाल लाएँ, और उसके शहर के लोग उसे संगसार करें कि वह मर जाए; क्यूँकि उसने इस्राईल के बीच शरारत की, कि अपने बाप के घर में फ़ाहिशापन किया। यूँ~तू ऐसी बुराई को अपने बीच से दफ़ा' करना ।
\s5
\v 22 ~अगर कोई मर्द किसी शौहर वाली 'औरत से ज़िना करते पकड़ा जाए तो वह दोनों मार डाले जाएँ, या'नी वह मर्द भी जिसने उस 'औरत से सुहबत की और वह 'औरत भी; यूँ तू इस्राईल में से ऐसी बुराई को दफ़ा' करना।
\s5
\v 23 ~अगर कोई कुंवारी लड़की किसी शख़्स से मन्सूब हो गई हो, और कोई दूसरा आदमी उसे शहर में पाकर उससे सुहबत करे;
\v 24 तो तू उन दोनों को उस शहर के फाटक पर निकाल लाना, और उनको तू संगसार कर देना कि वह मर जाएँ, लड़की को इसलिए कि वह शहर में होते हुए न चिल्लाई, और मर्द को इसलिए कि उसने अपने पड़ोसी की बीवी को बेहुरमत किया। यूँ तू ऐसी बुराई को अपने बीच से दफ़ा' करना।
\s5
\v 25 लेकिन अगर उस आदमी को वही लड़की जिसकी निस्बत हो चुकी हो किसी मैदान या खेत में मिल जाए, और वह आदमी जबरन उससे सुहबत करे, तो सिर्फ़ वह आदमी ही जिसने सुहबत की मार डाला जाए:
\v 26 ~लेकिन उस लड़की से कुछ न करना क्यूँकि लड़की का ऐसा गुनाह नहीं जिससे वह क़त्ल के लायक ठहरे, इसलिए कि यह बात ऐसी है जैसे कोई अपने पड़ोसी पर हमला करे और उसे मार डाले।
\v 27 ~क्यूँकि वह लड़की उसे मैदान में मिली और वह मन्सूबा लड़की चिल्लाई भी लेकिन वहाँ कोई ऐसा न था जो उसे छुड़ाता।
\s5
\v 28 अगर किसी आदमी को कोई कुँवारी लड़की मिल जाए जिसकी निस्बत न हुई हो, और वह उसे पकड़कर उससे सुहबत करे और दोनों पकड़े जाएँ,
\v 29 ~तो वह मर्द जिसने उससे सुहबत की हो, लड़की के बाप को चाँदी के पचास मिस्क़ाल दे और वह लड़की उसकी बीवी बने; क्यूँकि उसने उसे बेहुरमत किया, और वह उसे अपनी जिन्दगी भर तलाक़ न देने पाए।
\s5
\v 30 ~कोई शख़्स अपने बाप की बीवी से ब्याह न करे और अपने बाप के दामन को न खोले।
\s5
\c 23
\p
\v 1 जिसके ख़ुसिये कुचले गए हों या आलत काट डाली गई हो, वह ख़ुदावन्द की जमा'अत में आने न पाए।
\v 2 कोई हरामज़ादा ख़ुदावन्द की जमा'अत में दाख़िल न हो, दसवीं नसल तक उसकी नसल में से कोई ख़ुदावन्द की जमा'अत में आने न पाए।
\s5
\v 3 कोई 'अम्मोनी या मोआबी ख़ुदावन्द की जमा'अत में दाख़िल न हो, दसवीं नसल तक उनकी नसल में से कोई ख़ुदावन्द की जमा'अत में कभी आने न पाए;
\v 4 ~इसलिए कि जब तुम मिस्र से निकल कर आ रहे थे तो उन्होंने रोटी और पानी लेकर रास्ते में तुम्हारा इस्तक़बाल नहीं किया, बल्कि ब'ओर के बेटे बल'आम को मसोपतामिया के फ़तोर से उजरत पर बुलवाया ताकि वह तुझ पर ला'नत करे।
\s5
\v 5 लेकिन ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने बल'आम की न सुनी, बल्कि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तेरे लिए उस ला'नत को बरकत से बदल दिया इसलिए कि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा को तुझसे मुहब्बत थी।
\v 6 तू अपनी ज़िन्दगी भर कभी उनकी सलामती या स'आदत की चाहत न रखना।
\s5
\v 7 तू किसी अदोमी से नफ़रत न रखना, क्यूँकि वह तेरा भाई है; तू किसी मिस्री से भी नफ़रत न रखना, क्यूँकि तू उसके मुल्क में परदेसी हो कर रहा था।
\v 8 उनकी तीसरी नसल के जो लड़के पैदा हों वह ख़ुदावन्द की जमा'अत में आने पाएँ।
\s5
\v 9 जब तू अपने दुश्मनों से लड़ने के लिए दल बाँध कर निकले तो अपने को हर बुरी चीज़ से बचाए रखना।
\v 10 अगर तुम्हारे बीच कोई ऐसा आदमी हो जो रात को एहतिलाम की वजह से नापाक हो गया हो, तो वह खे़मागाह से बाहर निकल जाए और खे़मागाह के अन्दर न आए;
\v 11 लेकिन जब शाम होने लगे तो वह पानी से गु़स्ल करे, और जब आफ़ताब गु़रूब हो जाए तो ख़ेमागाह में आए।
\s5
\v 12 और ख़ेमागाह के बाहर तू कोई जगह ऐसी ठहरा देना, जहाँ तू अपनी हाजत के लिए जा सके;
\v 13 और अपने साथ अपने हथियारों में एक मेख़ भी रखना, ताकि जब बाहर तुझे हाजत के लिए बैठना हो तो उससे जगह खोद लिया करे और लौटते वक़्त अपने फुज़ले को ढाँक दिया करे।
\v 14 इसलिए कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरी ख़ेमागाह में फिरा करता है ताकि तुझको बचाए, और तेरे दुश्मनों को तेरे हाथ में कर दे; इसलिए तेरी ख़ेमागाह पाक रहे, ऐसा न हो कि वह तुझमें नजासत को देख कर तुझ से फिर जाए।
\s5
\v 15 अगर किसी का ग़ुलाम अपने आक़ा के पास से भाग कर तेरे पास पनाह ले, तो तू उसे उसके आक़ा के हवाले न कर देना;
\v 16 बल्कि वह तेरे साथ तेरे ही बीच तेरी बस्तियों में से, जो उसे अच्छी लगे उसे चुन कर उसी जगह रहे; इसलिए तू उसे हरगिज़ न सताना।
\s5
\v 17 इस्राईली लड़कियों में कोई फ़ाहिशा न हो, और न इस्राईली लड़कों में कोई लूती हो।
\v 18 ~तू किसी फ़ाहिशा की ख़र्ची या कुत्ते की मज़दूरी, किसी मिन्नत के लिए ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के घर में न लाना; क्यूँकि ये दोनों ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के नज़दीक मकरूह हैं।
\s5
\v 19 तू अपने भाई को सूद पर क़र्ज़ न देना, चाहे वह रुपये का सूद ~हो या अनाज का सूद या किसी ऐसी चीज़ का सूद हो जो ब्याज पर दी जाया करती है।
\v 20 तू परदेसी को सूद पर क़र्ज़ दे तो दे, लेकिन अपने भाई को सूद पर क़र्ज़ न देना; ताकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उस मुल्क में जिस पर तू क़ब्ज़ा करने जा रहा है, तेरे सब कामों में जिनको तू हाथ लगाए तुझको बरकत दे।
\s5
\v 21 जब तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की ख़ातिर मिन्नत माने तो उसके पूरा करने में देर न करना, इसलिए कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा ज़रूर उसको तुझसे तलब करेगा तब तू गुनहगार ठहरेगा।
\v 22 लेकिन अगर तू मिन्नत न माने तो तेरा कोई गुनाह नहीं |
\v 23 जो कुछ तेरे मुँह से निकले उसे ध्यान कर के पूरा करना, और जैसी मिन्नत तूने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए मानी हो, उसके मुताबिक़ रज़ा की क़ुर्बानी जिसका वा'दा तेरी ज़बान से हुआ अदा करना।
\s5
\v 24 ~जब तू अपने पड़ोसी के ताकिस्तान में जाए, तो जितने अंगूर चाहे पेट भर कर खाना, लेकिन कुछ अपने बर्तन में न रख लेना।
\v 25 जब तू अपने पड़ोसी के खड़े खेत में जाए, तो अपने हाथ से बालें तोड़ सकता है लेकिन अपने पड़ोसी के खड़े खेत को हँसुआ न लगाना।
\s5
\c 24
\p
\v 1 ~अगर कोई मर्द किसी 'औरत से ब्याह करे और पीछे उसमे कोई ऐसी बेहूदा बात पाए जिससे उस 'औरत की तरफ़ उसकी उनसियत न रहे, तो वह उसका तलाक़ नामा लिख कर उसके हवाले करे और उसे अपने घर से निकाल दे।
\v 2 ~और जब वह उसके घर से निकल जाए, तो वह दूसरे मर्द की हो सकती है।
\s5
\v 3 लेकिन अगर दूसरा शौहर भी उससे नाख़ुश रहे, और उसका तलाक़नामा लिखकर उसके हवाले करे और उसे अपने घर से निकाल दे या वह दूसरा शौहर जिसने उससे ब्याह किया हो मर जाए,
\v 4 तो उसका पहला शौहर जिसने उसे निकाल दिया था उस 'औरत के नापाक हो जाने के बा'द फिर उससे ब्याह न करने पाए, क्यूँकि ऐसा काम ख़ुदावन्द के नज़दीक मकरूह है। इसलिए तू उस मुल्क को जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा मीरास के तौर पर तुझको देता है, गुनाहगार न बनाना।
\s5
\v 5 ~जब किसी ने कोई नई 'औरत ब्याही हो, तो वह जंग के लिए न जाए और न कोई काम उसके सुपुर्द हो। वह साल भर तक अपने ही घर में आज़ाद रह कर अपनी ब्याही हुई बीवी को ख़ुश रख्खे।
\s5
\v 6 कोई शख़्स चक्की को या उसके ऊपर के पाट को गिरवी न रख्खे, क्यूँकि यह तो जैसे आदमी की जान को गिरवी रखना है।
\s5
\v 7 ~अगर कोई शख़्स अपने इस्राईली भाइयों में से किसी को ग़ुलाम बनाए या बेचने की नियत से चुराता हुआ पकड़ा जाए, तो वह चोर मार डाला जाए। यूँ तू ऐसी बुराई अपने बीच से दफ़ा' करना।
\s5
\v 8 ~तू कोढ़ की बीमारी की तरफ़ से होशियार रहना, और लावी काहिनों की सब बातों को जो वह तुमको बताएँ जानफ़िशानी से मानना और उनके मुताबिक़ 'अमल करना; जैसा मैंने उनको हुक्म किया है वैसा ही ध्यान देकर करना।
\v 9 तू याद रखना कि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने जब तुम मिस्र से निकलकर आ रहे थे, तो रास्ते में मरियम से क्या किया।
\s5
\v 10 ~जब तू अपने भाई को कुछ क़र्ज़ दे, तो गिरवी की चीज़ लेने को उसके घर में न घुसना।
\v 11 ~तू बाहर ही खड़े रहना, और वह शख़्स जिसे तू ~क़र्ज़ दे खु़द गिरवी की चीज़ बाहर तेरे पास लाए।
\s5
\v 12 और अगर वह शख़्स ग़रीब हो, तो उसकी गिरवी की चीज़ को पास रखकर सो न जाना;
\v 13 बल्कि जब आफ़ताब गु़रूब होने लगे, तो उसकी चीज़ उसे लौटा देना ताकि वह अपना ओढ़ना ओढ़कर सोए और तुझको दु'आ दे; और यह बात तेरे लिए ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के सामने रास्तबाज़ी ठहरेगी।
\s5
\v 14 ~तू अपने ग़रीब और मोहताज ख़ादिम पर जु़ल्म न करना, चाहे वह तेरे भाइयों में से हो चाहे उन परदेसियों में से जो तेरे मुल्क के अन्दर तेरी बस्तियों में रहते हों।
\v 15 ~तू उसी दिन इससे पहले कि आफ़ताब ग़ुरूब हो उसकी मज़दूरी उसे देना, क्यूँकि वह ग़रीब है और उसका दिल मज़दूरी में लगा रहता है; ऐसा न हो कि वह ख़ुदावन्द से तेरे ख़िलाफ़ फ़रियाद करे और यह तेरे हक़ में गुनाह ठहरे।
\s5
\v 16 बेटों के बदले बाप मारे न जाएँ न बाप के बदले बेटे मारे जाएँ। हर एक अपने ही गुनाह की वजह से मारा जाए।
\s5
\v 17 तू परदेसी या यतीम के मुक़द्दमे को न बिगाड़ना, और न बेवा के कपड़े को गिरवी रखना;
\v 18 ~बल्कि याद रखना कि तू मिस्र में ग़ुलाम था, और ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको वहाँ से छुड़ाया; इसीलिए मैं तुझको इस काम के करने का हुक्म देता हूँ।
\s5
\v 19 ~जब तू अपने खेत की फ़सल काटे और कोई पूला खेत में भूल से रह जाए, तो उसके लेने को वापस न जाना, वह परदेसी और यतीम और बेवा के लिए रहे; ताकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे सब कामों में जिनको तू हाथ लगाये तुझको बरकत बख़्शे।
\v 20 जब तू अपने ज़ैतून के दरख़्त को झाड़े, तो उसके बा'द उसकी शाख़ों को दोबारा न झाड़ना; बल्कि वह परदेसी और यतीम और बेवा के लिए रहें।
\s5
\v 21 ~जब तू अपने ताकिस्तान के अंगूरों को जमा' करे , तो उसके बा'द उसका दाना-दाना न तोड़ लेना; वह परदेसी और यतीम और बेवा के लिए रहे।
\v 22 और याद रखना कि तू मुल्क-ए-मिस्र में ग़ुलाम था; इसी लिए मैं तुझको इस काम के करने का हुक्म देता हूँ।
\s5
\c 25
\p
\v 1 ~अगर लोगों में किसी तरह का झगड़ा हो और वह 'अदालत में आएँ ताकि क़ाज़ी उनका इन्साफ़ करें, तो वह सादिक़ को बेगुनाह ठहराएँ और शरीर पर फ़तवा दें।
\v 2 ~और अगर वह शरीर पिटने के लायक़ निकले, तो क़ाज़ी उसे ज़मीन पर लिटवाकर अपनी आँखों के सामने उसकी शरारत के मुताबिक़ उसे गिन गिनकर कोड़े लगवाए।
\s5
\v 3 वह उसे चालीस कोड़े लगाए, इससे ज़्यादा न मारे; ऐसा न हो कि इससे ज़्यादा कोड़े लगाने से तेरा भाई तुझको हक़ीर मा'लूम देने लगे।
\s5
\v 4 ~तू दाएँ में चलते हुए बैल का मुँह न बाँधना।
\s5
\v 5 अगर कोई भाई मिलकर साथ रहते हों और एक उनमें से बे-औलाद मर जाए, तो उस मरहूम की बीवी किसी अजनबी से ब्याह न करे; बल्कि उसके शौहर का भाई उसके पास जाकर उसे अपनी बीवी बना ले, और शौहर के भाई का जो हक़ है वह उसके साथ अदा करे।
\v 6 और उस 'औरत के जो पहला बच्चा हो वह इस आदमी के मरहूम भाई के नाम का कहलाए, ताकि उसका नाम इस्राईल में से मिट न जाए।
\s5
\v 7 और अगर वह आदमी अपनी भावज से ब्याह करना न चाहे, तो उसकी भावज फाटक पर बुज़ुर्गों के पास जाए और कहे, 'मेरा देवर इस्राईल में अपने भाई का नाम बहाल रखने से इनकार करता है, और मेरे साथ देवर का हक़ अदा करना नहीं चाहता।'
\v 8 तब उसके शहर के बुज़ुर्ग उस आदमी को बुलवाकर उसे समझाएँ, और अगर वह अपनी बात पर क़ायम रहे और कहे, 'मुझको उससे ब्याह करना मंज़ूर नहीं।'
\s5
\v 9 तो उसकी भावज बुज़ुर्गों के सामने उसके पास जाकर उसके पावों से जूती उतारे, और उसके मुँह पर थूक दे और यह कहे, 'जो आदमी अपने भाई का घर आबाद न करे उससे ऐसा ही किया जाएगा।'
\v 10 तब इस्राईलियों में उसका नाम यह पड़ जाएगा, कि यह उस शख़्स का घर है जिसकी जूती उतारी गई थी।
\s5
\v 11 ~जब दो शख़्स आपस में लड़ते हों और एक की बीवी पास जाकर अपने शौहर को उस आदमी के हाथ से छुड़ाने के लिए जो उसे मारता हो अपना हाथ बढ़ाए और उसकी शर्मगाह को पकड़ ले,
\v 12 तो तू उसका हाथ काट डालना और ज़रा तरस न खाना।
\s5
\v 13 तू अपने थैले में तरह-तरह के छोटे और बड़े बाट न रखना।
\v 14 तू अपने घर में तरह-तरह के छोटे और बड़े पैमाने भी न रखना।
\s5
\v 15 तेरा बाट पूरा और ठीक और तेरा पैमाना भी पूरा और ठीक हो, ताकि उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है तेरी 'उम्र दराज़ हो।
\v 16 इसलिए कि वह सब जो ऐसे ऐसे फ़रेब के काम करते हैं, ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के नज़दीक मकरूह हैं।
\s5
\v 17 याद रखना कि जब तुम मिस्र से निकलकर आ रहे थे तो रास्ते में 'अमालीकियों ने तेरे साथ क्या किया।
\v 18 क्यूँकि वह रास्ते में तेरे सामने आए और जबकि तू थका माँदा था, तोभी उन्होंने उनको जो कमज़ोर और सब से पीछे थे मारा, और उनको ख़ुदा का ख़ौफ़ न आया।
\v 19 ~इसलिए जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उस मुल्क में, जिसे ख़ुदावन्द तेरा ~ख़ुदा मीरास के तौर पर तुझको क़ब्ज़ा करने को देता है, तेरे सब दुश्मनों से जो आस-पास हैं तुझको राहत बख़्शे, तो तू 'अमालीकियों के नाम-ओ-निशान को सफ़ह-ए-रोज़गार से मिटा देना; तू इस बात को न भूलना।
\s5
\c 26
\p
\v 1 ~और जब तू उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको मीरास के तौर पर देता है पहुँचे, और उस पर क़ब्ज़ा~कर के उस में बस जाये;
\v 2 ~तब जो मुल्क ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है उसकी ज़मीन में जो क़िस्म-क़िस्म की चीज़े तू लगाये, उन सब के पहले फल को एक टोकरे में रख कर उस जगह ले जाना जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा अपने नाम के घर के लिए चुने।
\s5
\v 3 और उन दिनों के काहिन के पास जाकर उससे कहना, 'आज के दिन मैं ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के सामने इक़रार करता हूँ, कि मैं उस मुल्क में जिसे हमको देने की क़सम ख़ुदावन्द ने हमारे बाप-दादा से खाई थी आ गया हूँ।'
\v 4 तब काहिन तेरे हाथ से उस टोकरे को लेकर ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के मज़बह के आगे रख्खे।
\s5
\v 5 फिर तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने यूँ कहना, 'मेरा बाप एक अरामी था जो मरने पर था, वह मिस्र में जाकर वहाँ रहा और उसके लोग थोड़े से थे, और वहीं वह एक बड़ी और ताक़तवर और ज़्यादा ता'दाद वाली क़ौम बन गयी।
\s5
\v 6 ~फिर मिस्रियों ने हमसे बुरा सुलूक किया और हमको दुख दिया और हमसे सख़्त-ख़िदमत ली।
\v 7 और हमने ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा के सामने फ़रियाद की, तो ख़ुदावन्द ने हमारी फ़रियाद सुनी और हमारी मुसीबत और मेहनत और मज़लूमी देखी।
\s5
\v 8 और ख़ुदावन्द क़वी हाथ और बलन्द बाज़ू से बड़ी हैबत और निशानों और मो'जिज़ों के साथ हमको मिस्र से निकाल लाया।
\v 9 और हमको इस जगह लाकर उसने यह मुल्क जिसमें दूध और शहद बहता है हमको दिया है।
\s5
\v 10 इसलिए अब ऐ ख़ुदावन्द, देख, जो ज़मीन तूने मुझको दी है, उसका पहला फल मैं तेरे पास ले आया हूँ।' फिर तू उसे ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के आगे रख देना और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को सिज्दा करना।
\v 11 और तू और लावी और जो मुसाफ़िर तेरे बीच रहते हों, सब के सब मिल कर उन सब ने'मतों के लिए, जिनको ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको और तेरे घराने को बख़्शा हो ख़ुशी करना।
\s5
\v 12 और जब तू तीसरे साल जो दहेकी का साल है अपने सारे माल की दहेकी निकाल चुके, तो उसे लावी और मुसाफ़िर और यतीम और बेवा को देना ताकि वह उसे तेरी बस्तियों में खाएँ और सेर हों।
\v 13 फिर तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के आगे यूँ कहना, 'मैंने तेरे हुक्मों के मुताबिक़ जो तूने मुझे दिए मुक़द्दस चीज़ों को अपने घर से निकाला और उनको लावियों और मुसाफ़िरों और यतीमों और बेवाओं को दे भी दिया: और मैंने तेरे किसी हुक्म को नहीं टाला और न उनको भूला।
\s5
\v 14 और मैंने अपने मातम के वक़्त उन चीज़ों में से कुछ नहीं खाया, और नापाक हालत में उनको अलग नहीं किया, और न उनमें से कुछ मुर्दों के लिए दिया। मैंने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात मानी है, और जो कुछ तूने हुक्म दिया उसी के मुताबिक़ 'अमल किया।
\v 15 आसमान पर से जो तेरा मुक़द्दस घर है नज़र कर और अपनी क़ौम इस्राईल को और उस मुल्क को बरकत दे, जिस मुल्क में दूध और शहद बहता है और जिसको तूने उस क़सम के मुताबिक़ जो तूने हमारे बाप दादा से खाई हमको 'अता किया है।
\s5
\v 16 ~खुदावन्द तेरा खुदा, आज तुझको इन आईन और अहकाम के मानने का हुक्म देता है; इसलिए तू अपने सारे दिल और सारी जान से इनको मानना और इन पर 'अमल करना।
\v 17 ~तूने आज के दिन इक़रार किया है कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा है, और तू उसकी राहों पर चलेगा, और उसके आईन और फ़रमान और अहकाम को मानेगा, और उसकी बात सुनेगा।
\s5
\v 18 और ख़ुदावन्द ने भी आज के दिन तुझको, जैसा उसने वा'दा किया था, अपनी ख़ास क़ौम क़रार दिया है ताकि तू उसके सब हुक्मों को माने;
\v 19 और वह सब क़ौमों से, जिनको उसने पैदा किया है, ता'रीफ़ और नाम और 'इज़्ज़त में तुझको मुम्ताज़ करे; और तू उसके कहने के मुताबिक़ ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की पाक क़ौम बन जाये।"
\s5
\c 27
\p
\v 1 ~फिर मूसा ने बनी-इस्राईल के बुज़ुर्गों के साथ हो कर लोगों से कहा कि "जितने हुक्म आज के दिन मैं तुमको देता हूँ उन सब को मानना।
\v 2 और जिस दिन तुम यरदन पार हो कर उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है पहुँचो, तो तू बड़े-बड़े पत्थर खड़े करके उन पर चूने की अस्तरकारी करना;
\v 3 और पार हो जाने के बा'द इस शरी'अत की सब बातें उन पर लिखना, ताकि उस वा'दे के मुताबिक़ जो ख़ुदावन्द तेरे बाप-दादा के ख़ुदा ने तुझ से किया, उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है या'नी उस मुल्क में जहाँ दूध और शहद बहता है तू पहुँच जाये।
\s5
\v 4 इसलिए तुम यरदन के पार हो कर उन पत्थरों को जिनके बारे में मैं तुमको आज के दिन हुक्म देता हूँ, कोह-ए-'ऐबाल पर नस्ब करके उन पर चूने की अस्तरकारी करना।
\v 5 और वहीं तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए पत्थरों का एक मज़बह बनाना, और लोहे का कोई औज़ार उन पर न लगाना।
\s5
\v 6 और तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का मज़बह बे तराशे पत्थरों से बनाना, और उस पर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश करना।
\v 7 और वहीं सलामती की क़ुर्बानियाँ अदा करना और उनको खाना और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने ख़ुशी मनाना।
\v 8 और उन पत्थरों पर इस शरी'अत की सब बातें साफ़-साफ़ लिखना।"
\s5
\v 9 फिर मूसा और लावी काहिनों ने सब बनी-इस्राईल से कहा, "ऐ इस्राईल, ख़ामोश हो जा और सुन, तू आज के दिन ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की क़ौम बन गया है।
\v 10 ~इसलिए तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात सुनना और उसके सब आईन और अहकाम पर जो आज के दिन मैं तुझको देता हूँ 'अमल करना।"
\s5
\v 11 और मूसा ने उसी दिन लोगों से ताकीद करके कहा कि;
\v 12 "जब तुम यरदन पार हो जाओ, तो कोह-ए-गरिज़ीम पर शमा'ऊन, और लावी, और यहूदाह, और इश्कार,और यूसुफ़, और बिनयमीन खड़े हों और लोगों को बरकत सुनाएँ।
\s5
\v 13 और रूबिन, और जद्द, और आशर, और जबूलून, और दान, और नफ़्ताली कोह-ए-'ऐबाल पर खड़े होकर ला'नत सुनाएँ।
\v 14 और लावी बलन्द आवाज़ से सब इस्राईली आदमियों से कहें कि :
\s5
\v 15 ~'ला'नत उस आदमी पर जो कारीगरी की सन'अत की तरह खोदी हुई या ढाली हुई मूरत बना कर जो ख़ुदावन्द के नज़दीक मकरूह है, उसको किसी पोशीदा जगह में नस्ब करे।' और सब लोग जवाब दें और कहें, 'आमीन।'
\s5
\v 16 ~'ला'नत उस पर जो अपने बाप या माँ को हक़ीर जाने।' और सब लोग कहें, 'आमीन।'
\v 17 ~'ला'नत उस पर जो अपने पड़ोसी की हद के निशान को हटाये |' और सब लोग कहें, 'आमीन|'
\s5
\v 18 ~'ला'नत उस पर जो अन्धे को रास्ते से गुमराह करे।' और सब लोग कहें, 'आमीन।'
\v 19 'ला'नत उस पर जो परदेसी और यतीम और बेवा के मुक़द्दमे को बिगाड़े।" और सब लोग कहें, 'आमीन।'
\s5
\v 20 ~'ला'नत उस पर जो अपने बाप की बीवी से मुबाश्रत करे, क्यूँकि वह अपने बाप के दामन को बेपर्दा करता है।' और सब लोग कहें, 'आमीन।'
\v 21 'ला'नत उस पर जो किसी चौपाए के साथ जिमा'अ करे।' और सब लोग कहें, 'आमीन।'
\s5
\v 22 ~~'ला'नत उस पर जो अपनी बहन से मुबाश्रत करे, चाहे वह उसके बाप की बेटी हो चाहे माँ की।' और सब लोग कहें, 'आमीन।'
\v 23 'ला'नत उस पर जो अपनी सास से मुबाश्रत करे।' और सब लोग कहें, 'आमीन।'
\s5
\v 24 ~'ला'नत उस पर जो अपने पड़ोसी को पोशीदगी में मारे।' और सब लोग कहें, 'आमीन।'
\v 25 'लानत उस पर जो बे-गुनाह को क़त्ल करने के लिए इनाम ले।' और सब लोग कहें, 'आमीन।'
\s5
\v 26 'ला'नत उस पर जो इस शरी'अत की बातों पर 'अमल करने के लिए उन पर क़ायम न रहे।" और सब लोग कहें, 'आमीन।'
\s5
\c 28
\p
\v 1 और अगर तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात को जांफिशानी से मान कर उसके इन सब हुक्मों पर, जो आज के दिन मैं तुझको देता हूँ, एहतियात से 'अमल करे तो ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा दुनिया की सब क़ौमों से ज़्यादा तुझको सरफ़राज़ करेगा।
\v 2 ~और अगर तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात सुने तो यह सब बरकतें तुझ पर नाज़िल होंगी और तुझको मिलेंगी।
\s5
\v 3 ~शहर में भी तू मुबारक होगा, और खेत में भी मुबारक होगा।
\v 4 तेरी औलाद, और तेरी ज़मीन की पैदावार, और तेरे चौपायों के बच्चे, या'नी गाय-बैल की बढ़ती और तेरी भेड़-बकरियों के बच्चे मुबारक होंगे।
\s5
\v 5 ~तेरा टोकरा और तेरी कठौती दोनों मुबारक होंगे।
\v 6 और तू अन्दर आते वक़्त मुबारक होगा, और बाहर जाते वक़्त भी मुबारक होगा।
\s5
\v 7 ख़ुदावन्द तेरे दुश्मनों को जो तुझ पर हमला करें, तेरे सामने शिकस्त दिलाएगा; वह तेरे मुक़ाबले को तो एक ही रास्ते से आएँगे, लेकिन सात सात रास्तों से हो कर तेरे आगे से भागेंगे।
\v 8 ख़ुदावन्द तेरे अम्बारख़ानों में और सब कामों में जिनमें तू हाथ लगाये बरकत का हुक्म देगा, और ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उस मुल्क में जिसे वह तुझको देता है तुझको बरकत बख़्शेगा।
\s5
\v 9 अगर तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्मों को माने और उसकी राहों पर चले, तो ख़ुदावन्द अपनी उस क़सम के मुताबिक़ जो उसने तुझ से खाई तुझको अपनी पाक क़ौम बना कर क़ायम रख्खेगा।
\v 10 ~और दुनिया की सब क़ौमें यह देखकर कि तू ख़ुदावन्द के नाम से कहलाता है, तुझ से डर जाएँगी।
\s5
\v 11 ~और जिस मुल्क को तुझको देने की क़सम ख़ुदावन्द ने तेरे बाप-दादा से खाई थी, उसमें ख़ुदावन्द तेरी औलाद को और तेरे चौपायों के बच्चों को और तेरी ज़मीन की पैदावार को ख़ूब बढ़ा कर तुझको बढ़ाएगा।
\v 12 ख़ुदावन्द आसमान को जो उसका अच्छा ख़ज़ाना है तेरे लिए खोल देगा कि तेरे मुल्क में वक़्त पर मेंह बरसाए, और वह तेरे सब कामों में जिनमें तू हाथ लगाए बरकत देगा; और तू बहुत सी क़ौमों को क़र्ज़ देगा, लेकिन ख़ुद क़र्ज़ नहीं लेगा।
\s5
\v 13 और ख़ुदावन्द तुझको दुम नहीं बल्कि सिर ठहराएगा, और तू पस्त नहीं बल्कि सरफ़राज़ ही रहेगा; बशर्ते कि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्मों को, जो मैं तुझको आज के दिन देता हूँ, सुनो और एहतियात से उन पर 'अमल करो,
\v 14 और जिन बातों का मैं आज के दिन तुझको हुक्म देता हूँ, उनमें से किसी से दहने या बाएँ हाथ मुड़ कर और मा'बूदों की पैरवी और 'इबादत न करे।
\s5
\v 15 "लेकिन अगर तू ऐसा न करे, कि ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात सुनकर उसके सब अहकाम और आईन पर जो आज के दिन मैं तुझको देता हूँ एहतियात से 'अमल करे, तो यह सब ला'नतें तुझ पर नाज़िल होंगी और तुझको लगेंगी।
\s5
\v 16 ~शहर में भी तू ला'नती होगा, और खेत में भी ला'नती होगा।
\v 17 तेरा टोकरा और तेरी कठौती दोनों ला'नती ठहरेंगे।
\s5
\v 18 तेरी औलाद और तेरी ज़मीन की पैदावार, और तेरे गाय-बैल की बढ़ती और तेरी भेड़-बकरियों के बच्चे ला'नती होंगे।
\v 19 तू अन्दर आते ला'नती ठहरेगा, और बाहर जाते भी ला'नती ठहरेगा।
\s5
\v 20 ~ख़ुदावन्द उन सब कामों में जिनको तू हाथ लगाए, ला'नत और इज़तिराब और फटकार को तुझ पर नाज़िल करेगा जब तक कि तू हलाक होकर जल्द बर्बाद न हो जाए, यह तेरी उन बद'आमालियों की वजह से होगा जिनको करने की वजह से तू मुझको छोड़ देगा।
\v 21 ~ख़ुदावन्द ऐसा करेगा कि वबा तुझ से लिपटी रहेगी, जब तक कि वह तुझको उस मुल्क से जिस पर क़ब्ज़ा करने को तू वहाँ जा रहा है फ़ना न कर दे।
\s5
\v 22 ख़ुदावन्द तुझको तप-ए-दिक़ और बुख़ार और सोज़िश और शदीद हरारत और तलवार और बाद-ए-समूम और गेरूई से मारेगा, और यह तेरे पीछे पड़े रहेंगे जब तक कि तू फ़ना न हो जाये।
\s5
\v 23 और आसमान जो तेरे सिर पर है पीतल का, और ज़मीन जो तेरे नीचे है लोहे की हो जाएगी।
\v 24 ~ख़ुदावन्द मेंह के बदले तेरी ज़मीन पर ख़ाक और धूल बरसाएगा; यह आसमान से तुझ पर पड़ती ही रहेगी, जब तक कि तू हलाक न हो जाये।
\s5
\v 25 ~"ख़ुदावन्द तुझको तेरे दुश्मनों के आगे शिकस्त दिलाएगा; तू उनके मुक़ाबले के लिए तो एक ही रास्ते से जाएगा, और उनके सामने से सात-सात रास्तों से होकर भागेगा, और दुनिया की तमाम सल्तनतों में तू मारा-मारा फिरेगा।
\v 26 और तेरी लाश हवा के परिन्दों और ज़मीन के दरिन्दों की ख़ुराक होगी, और कोई उनको हंका कर भगाने को भी न होगा।
\s5
\v 27 ~ख़ुदावन्द तुझको मिस्र के फोड़ों, और बवासीर, और खुजली, और ख़ारिश में ऐसा मुब्तिला करेगा कि तू कभी अच्छा भी नहीं होने का।
\v 28 ~ख़ुदावन्द तुझको जुनून और नाबीनाई और दिल की घबराहट में भी मुब्तिला कर देगा।
\v 29 और जैसे अँधा अँधेरे में टटोलता है वैसे ही तू ~दोपहर दिन को टटोलता फिरेगा और तू अपने धन्धों में ~नाकाम रहेगा; और तुझ पर हमेशा जुल्म ही होगा, और तू लुटता ही रहेगा और कोई न होगा जो तुझको बचाए।
\s5
\v 30 'औरत से मंगनी तो तू करेगा लेकिन दूसरा उससे मुबाश्रत करेगा, तू घर बनाएगा लेकिन उसमें बसने न पाएगा, तू ताकिस्तान लगाएगा लेकिन उसका फल इस्ते'माल न करेगा।
\v 31 तेरा बैल तेरी आँखों के सामने ज़बह किया जाएगा लेकिन तू उसका गोश्त खाने न पाएगा, तेरा गधा तुझ से जबरन छीन लिया जाएगा और तुझको फिर न मिलेगा, तेरी भेड़ें तेरे दुश्मनों के हाथ लगेंगी और कोई न होगा जो तुझको बचाए।
\s5
\v 32 ~तेरे बेटे और बेटियाँ दूसरी क़ौम को दी जाएँगी, और तेरी आँखें देखेंगी और सारे दिन उनके लिए तरसते-तरसते रह जाएँगी; और तेरा कुछ बस नहीं चलेगा।
\s5
\v 33 तेरी ज़मीन की पैदावार और तेरी सारी कमाई को एक ऐसी क़ौम खाएगी जिससे तू वाक़िफ़ नहीं; और तू हमेशा मज़लूम और दबा ही रहेगा,
\v 34 ~यहाँ तक कि इन बातों को अपनी आँखों से देख देखकर दीवाना हो जाएगा।
\v 35 ख़ुदावन्द तेरे घुटनों और टाँगों में ऐसे बुरे फोड़े पैदा करेगा, कि उनसे तू पाँव के तलवे से लेकर सिर की चाँद तक शिफ़ा न पा सकेगा।
\s5
\v 36 ख़ुदावन्द तुझको और तेरे बादशाह को, जिसे तू अपने ऊपर मुक़र्रर करेगा, एक ऐसी क़ौम के बीच ले जाएगा जिसे तू और तेरे बाप-दादा जानते भी नहीं; और वहाँ तू और मा'बूदों की जो महज़ लकड़ी और पत्थर है 'इबादत करेंगे।
\v 37 और उन सब क़ौमों में, जहाँ-जहाँ ख़ुदावन्द तुझको पहुँचाएगा, तू बाइस-ए-हैरत और ज़र्ब-उल-मसल और अंगुश्तनुमा बनेगा।
\s5
\v 38 तू खेत में बहुत सा बीज ले जाएगा लोकन थोड़ा सा जमा' करेगा, क्यूँकि टिड्डी उसे चाट लेंगी।
\v 39 तू ताकिस्तान लगाएगा और उन पर मेहनत करेगा, लेकिन न तो मय पीने और न अंगूर जमा' करने पायेगा; क्यूँकि उनको कीड़े खा जाएँगे।
\s5
\v 40 ~तेरी सब हदों में ज़ैतून के दरख़्त लगे होंगे, लेकिन तू उनका तेल नहीं लगाने पाएगा; क्यूँकि तेरे ज़ैतून के दरख़्तों का फल झड़ जाया करेगा।
\v 41 तेरे बेटे और बेटियाँ पैदा होंगी लेकिन वह सब तेरे न रहेंगे, क्यूँकि वह ग़ुलाम हो कर चले जाएँगे।
\s5
\v 42 ~तेरे सब दरख़्तों और तेरी सब ज़मीन की पैदावार पर टिड्डियाँ क़ब्ज़ा कर लेंगी।
\v 43 ~परदेसी जो तेरे बीच होगा वह तुझसे बढ़ता और सरफ़राज़ होता जाएगा, लेकिन तू पस्त ही पस्त होता जाएगा।
\v 44 ~वह तुझको क़र्ज़ देगा, लेकिन तू उसे क़र्ज़ न दे सकेगा; वह सिर होगा और तू दुम ठहरेगा।
\s5
\v 45 और चूँकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के उन हुक्मों और आईन पर जिनको उसने तुझको दिया है, 'अमल करने के लिए उसकी बात नहीं सुनेंगे; इसलिए यह सब ला'नतें तुझ पर आएँगी और तेरे पीछे पड़ी रहेंगी और तुझको लगेंगी, जब तक तेरा नास न हो जाए।
\v 46 और वह तुझ पर और तेरी औलाद पर हमेशा निशान और अचम्भे के तौर पर रहेंगी।
\s5
\v 47 और चूँकि तू बावजूद सब चीज़ों की फ़िरावानी के फ़रहत और ख़ुशदिली से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की 'इबादत नहीं करेगा।
\v 48 इसलिए भूका और प्यासा और नंगा और सब चीज़ों का मुहताज होकर तू अपने दुश्मनों की ख़िदमत करेगा जिनको ख़ुदावन्द तेरे बरख़िलाफ़ भेजेगा; और ग़नीम तेरी गरदन पर लोहे का जुआ रख्खे रहेगा, जब तक वह तेरा नास न कर दे।
\s5
\v 49 ख़ुदावन्द दूर से बल्कि ज़मीन के किनारे से एक क़ौम को तुझ पर चढ़ा लाएगा जैसे 'उक़ाब टूट कर आता है, उस क़ौम की ज़बान को तू नहीं समझेगा;
\v 50 उस क़ौम के लोग तुर्शरू होंगे, जो न बुड्ढों का लिहाज़ करेंगे न जवानों पर तरस खाएँगे।
\v 51 और वह तेरे चौपायों के बच्चों और तेरी ज़मीन की पैदावार को खाते रहेंगे, जब तक तेरा नास न हो जाए और वह तेरे लिए अनाज, या मय, या तेल, या गाय-बैल की बढ़ती, या तेरी भेड़-बकरियों के बच्चे कुछ नहीं छोड़ेंगे, जब तक वह तुझको फ़ना न कर दें।
\s5
\v 52 और वह तेरे तमाम मुल्क में तेरा घिराव तेरी ही बस्तियों में किए रहेंगे; जब तक तेरी ऊँची-ऊँची फ़सीलें जिन पर तेरा भरोसा होगा, गिर न जाएँ। तेरा घिराव वह तेरे ही उस मुल्क की सब बस्तियों में करेंगे, जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है।
\v 53 तब उस घिराव के मौक़े' पर और उस आड़े वक़्त में तू अपने दुश्मनों से तंग आकर अपने ही जिस्म के पहले फल को, या'नी अपने ही बेटों और बेटियों का गोश्त जिनको ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको 'अता किया होगा खायेगा।
\s5
\v 54 वह शख़्स जो तुम में नाज़ुक मिज़ाज और नाज़ुक बदन होगा, उसकी भी अपने भाई और अपनी हमआग़ोश बीवी और अपने बाक़ी मांदा बच्चों की तरफ़ बुरी नज़र होगी;
\v 55 यहाँ तक कि वह इनमें से किसी को भी अपने ही बच्चों के गोश्त में से, जिनको वह ख़ुद खाएगा कुछ नहीं देगा; क्यूँकि उस घिराव के मौक़े' पर और उस आड़े वक़्त में जब तेरे दुश्मन तुझको तेरी ही सब बस्तियों में तंग कर मारेंगे, तो उसके पास और कुछ बाक़ी न रहेगा।
\s5
\v 56 वह 'औरत भी जो तुम्हारे बीच ऐसी नाज़ुक मिज़ाज और नाज़ुक बदन होगी कि नर्मी-ओ-नज़ाकत की वजह से अपने पाँव का तलवा भी ज़मीन से लगाने की जुर'अत न करती हो, उसकी भी अपने पहलू के शौहर और अपने ही बेटे और बेटी,
\v 57 और अपने ही नौज़ाद बच्चे की तरफ़ जो उसकी रानों के बीच से निकला हो, बल्कि अपने सब लड़के बालों की तरफ़ जिनको वह जनेगी बुरी नज़र होगी; क्यूँकि वह तमाम चीज़ों की क़िल्लत की वजह से उन्हीं को छुप-छुप कर खाएगी, जब उस घिराव के मौक़े' पर और उस आड़े वक़्त में तेरे दुश्मन तेरी ही बस्तियों में तुझको तंग कर मारेंगे।
\s5
\v 58 ~अगर तू उस शरी'अत की उन सब बातों पर जो इस किताब में लिखी हैं, एहतियात रख कर इस तरह 'अमल न करे कि तुमको ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के जलाली और मुहीब नाम का ख़ौफ़ हो;
\v 59 तो ख़ुदावन्द तुम पर 'अजीब आफ़तें नाज़िल करेगा, और तुम्हारी औलाद की आफ़तों को बढ़ा कर बड़ी और देरपा आफ़तें और सख़्त और देरपा बीमारियाँ कर देगा।
\s5
\v 60 और मिस्र के सब रोग जिनसे तू डरता था तुझको लगाएगा और वह तुझको लगे रहेंगे।
\v 61 और उन सब बीमारियों और आफ़तों को भी जो इस शरी'अत की किताब में मज़कूर नहीं हैं, ख़ुदावन्द तुझको लगाएगा जब तक तेरा नास न हो जाए।
\v 62 और चूँकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात नहीं सुनेगा, इसलिए कहाँ तो तुम कसरत में आसमान के तारों की तरह हो, और कहाँ शुमार में थोड़े ही से रह जाओगे।
\s5
\v 63 तब यह होगा कि जैसे तुम्हारे साथ भलाई करने और तुमको बढ़ाने से ख़ुदावन्द ख़ुशनूद हुआ, ऐसे ही तुमको फ़ना कराने और हलाक कर डालने से ख़ुदावन्द ख़ुशनूद होगा; और तुम उस मुल्क से उखाड़ दिए जाओगे, जहाँ तू उस पर क़ब्ज़ा करने को जा रहा है।
\v 64 और ख़ुदावन्द तुझको ज़मीन के एक सिरे से दूसरे सिरे तक तमाम क़ौमों में तितर-बितर करेगा, वहाँ तू लकड़ी और पत्थर के और मा'बूदों को जिनको तू या तेरे बाप-दादा जानते भी नहीं 'इबादत करेगा।
\s5
\v 65 ~उन क़ौमों के बीच तुझको चैन नसीब न होगा और न तेरे पाँव के तलवे को आराम मिलेगा, बल्कि ख़ुदावन्द तुझको वहाँ दिल-ए-लरज़ाँ और आँखों को धुंधलाहट और जी को कुढ़न देगा।
\v 66 और तेरी जान शक में अटकी रहेगी और तू रात-दिन डरता रहेगा, और तुम्हारी ज़िन्दगी का कोई ठिकाना न होगा।
\s5
\v 67 ~और तू अपने दिली ख़ौफ़ के और उन नज़ारों की वजह से जिनको तू अपनी आँखों से देखेगा, सुबह को कहेगा कि ऐ काश कि शाम होती और शाम को कहेगा ऐ काश कि सुबह होती।
\v 68 और ख़ुदावन्द तुझको किश्तियों में चढ़ा कर उस रास्ते से मिस्र में लौटा ले जाएगा, जिसके बारे में मैंने तुझसे कहा कि तू उसे फिर कभी न देखना; और वहाँ तुम अपने दुश्मनों के ग़ुलाम और लौंडी होने के लिए अपने को बेचोगे लेकिन कोई ख़रीदार न होगा।"
\s5
\c 29
\p
\v 1 इस्राईलियों के साथ जिस 'अहद के बाँधने का हुक्म ख़ुदावन्द ने मूसा को मोआब के मुल्क में दिया उसी की यह बातें हैं। यह उस 'अहद से अलग हैं जो उसने उनके साथ होरिब में बाँधा था।
\s5
\v 2 इसलिए मूसा ने सब इस्राईलियों को बुलवा कर उनसे कहा, "तुमने सब कुछ जो ख़ुदावन्द ने तुम्हारी आँखों के सामने, मुल्क-ए-मिस्र में फ़िर'औन और उसके सब ख़ादिमों और उसके सारे मुल्क से किया देखा है।
\v 3 इम्तिहान के वह बड़े-बड़े काम और निशान और बड़े-बड़े करिश्मे, तुमने अपनी आँखों से देखे।
\v 4 लेकिन ख़ुदावन्द ने तुमको आज तक न तो ऐसा दिल दिया जो समझे, और न देखने की आँखें और सुनने के कान दिए।
\s5
\v 5 ~और मैं चालीस बरस वीराने में तुमको लिए फिरा, और न तुम्हारे तन के कपड़े पुराने हुए और न तुम्हारे पाँव की जूती पुरानी हुई।
\v 6 और तुम इसी लिए रोटी खाने और मय या शराब पीने नहीं पाए ताकि तुम जान लो कि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
\s5
\v 7 और जब तुम इस जगह आए तो हस्बोन का बादशाह सीहोन और बसन का बादशाह 'ओज हमारा मुक़ाबला करने को निकले, और हमने उनको मारकर
\v 8 उनका मुल्क ले लिया और उसे रूबीनियों को और जद्दियों को और मनस्सियों के आधे क़बीले को मीरास के तौर पर दे दिया।
\v 9 तब तुम इस 'अहद की बातों को मानना और उन पर 'अमल करना, ताकि जो कुछ तुम करो उसमें कामयाब हो।
\s5
\v 10 ~आज के दिन तुम और तुम्हारे सरदार, तुम्हारे क़बीले और तुम्हारे बुज़ुर्ग और तुम्हारे 'उहदेदार और सब इस्राईली मर्द,
\v 11 ~और तुम्हारे बच्चे और तुम्हारी बीवियाँ और वह परदेसी भी जो तेरी ख़ेमागाह में रहता है, चाहे वह तेरा लकड़हारा हो चाहे सक़्क़ा, सबके सब ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने खड़े हों,
\s5
\v 12 ताकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के 'अहद में, जिसे वह तेरे साथ आज बाँधता और उसकी क़सम में जिसे वह आज तुझसे खाता है शामिल हो।
\v 13 और वह तुझको आज के दिन अपनी क़ौम क़रार दे और वह तेरा ख़ुदा हो, जैसा उसने तुझसे कहा, जैसी उसने तेरे बाप-दादा इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब से क़सम खाई।
\s5
\v 14 और मैं इस 'अहद और क़सम में सिर्फ़ तुम्हीं को नहीं,
\v 15 लेकिन उसको भी जो आज के दिन ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के सामने यहाँ हमारे साथ खड़ा है, और उसकी भी जो आज के दिन यहाँ हमारे साथ नहीं, उनमें शामिल करता हूँ।
\v 16 ~(तुम ख़ुद जानते हो कि मुल्क-ए-मिस्र में हम कैसे रहे और क्यूँ कर उन क़ौमों के बीच से होकर आए, जिनके बीच से तुम गुज़रे।
\s5
\v 17 और तुमने ख़ुद उनकी मकरूह चीज़ें और लकड़ी और पत्थर और चाँदी और सोने की मूरतें देखीं जो उनके यहाँ थीं।)
\v 18 ~इसलिए ऐसा न हो कि तुम में कोई मर्द या 'औरत या ख़ान्दान या क़बीला ऐसा हो जिसका दिल आज के दिन ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा से बरगश्ता हो, और वह जाकर उन क़ौमों के मा'बूदों की 'इबादत करे या ऐसा न हो कि तुम में कोई ऐसी जड़ हो जो इन्द्रायन और नागदौना पैदा करे;
\v 19 और ऐसा आदमी ला'नत की यह बातें सुनकर दिल ही दिल में अपने को मुबारकबाद दे और कहे, कि चाहे मैं कैसा ही ज़िद्दी हो कर तर के साथ ख़ुश्क को फ़ना कर डालूँ तोभी मेरे लिए सलामती है।
\s5
\v 20 लेकिन ख़ुदावन्द उसे मु'आफ़ नहीं करेगा, बल्कि उस वक़्त ख़ुदावन्द का क़हर और उसकी ग़ैरत उस आदमी पर नाज़िल होगी और सब ला'नतें जो इस किताब में लिखी हैं उस पर पड़ेंगी, और ख़ुदावन्द उसके नाम को सफ़ह-ए-रोज़गार से मिटा देगा।
\v 21 और ख़ुदावन्द इस 'अहद की उन सब ला'नतों के मुताबिक़ जो इस शरी'अत की किताब में लिखी हैं, उसे इस्राईल के सब क़बीलों में से बुरी सज़ा के लिए जुदा करेगा।
\s5
\v 22 ~और आने वाली नसलों में तुम्हारी नसल के लोग जो तुम्हारे बा'द पैदा होंगे और परदेसी भी जो दूर के मुल्क से आएँगे, जब वह इस मुल्क की बलाओं और ख़ुदावन्द की लगाई हुई बीमारियों को देखेंगे,
\v 23 और यह भी देखेंगे कि सारा मुल्क जैसे गन्धक और नमक बना पड़ा है और ऐसा जल गया है कि इसमें न तो कुछ बोया जाता न पैदा होता, और न किसी क़िस्म की घास उगती है और वह सदूम और 'अमूरा और 'अदमा और ज़िबोईम की तरह उजड़ गया जिनको ख़ुदावन्द ने अपने ग़ज़ब और क़हर में तबाह कर डाला।
\v 24 तब वह बल्कि सब क़ौमे पूछेंगी, 'ख़ुदावन्द ने इस मुल्क से ऐसा क्यूँ किया? और ऐसे बड़े क़हर के भड़कने की वजह क्या है?'
\s5
\v 25 ~उस वक़्त लोग जवाब देंगे, 'ख़ुदावन्द इनके बाप-दादा के ख़ुदा ने जो 'अहद इनके साथ इनको मुल्क-ए-मिस्र से निकालते वक़्त बाँधा था, उसे इन लोगों ने छोड़ दिया;
\v 26 और जाकर और मा'बूदों की 'इबादत और परस्तिश की, जिनसे वह वाक़िफ़ न थे और जिनको ख़ुदावन्द ने इनको दिया भी न था।
\s5
\v 27 इसीलिए इस किताब की लिखी हुई सब ला'नतों को इस मुल्क पर नाज़िल करने के लिए ख़ुदावन्द का ग़ज़ब इस पर भड़का।
\v 28 और ख़ुदावन्द ने क़हर और ग़ुस्से और बड़े ग़ज़ब में इनको इनके मुल्क से उखाड़कर दूसरे मुल्क में फेंका, जैसा आज के दिन ज़ाहिर है।'
\s5
\v 29 ~ग़ैब का मालिक तो ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा ही है; लेकिन जो बातें ज़ाहिर की गई हैं वह हमेशा तक हमारे और हमारी औलाद के लिए हैं, ताकि हम इस शरी'अत की सब बातों पर 'अमल करें।
\s5
\c 30
\p
\v 1 ~और जब यह सब बातें या'नी बरकत और ला'नत जिनको मैंने आज तेरे आगे रख्खा है तुझ पर आएँ, और तू उन क़ौमों के बीच जिनमें ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको हँका कर पहुँचा दिया हो उनको याद करें।
\v 2 और तू और तेरी औलाद दोनों ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ फिरे, और उसकी बात इन सब हुक्मों के मुताबिक़ जो मैं आज तुझको देता हूँ अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से माने।
\v 3 तो खुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरी ग़ुलामी को पलटकर तुझ पर रहम करेगा, और फिरकर तुझको सब क़ौमों में से, जिनमें ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको तितर-बितर किया हो जमा' करेगा।
\s5
\v 4 अगर तेरे आवारागर्द दुनिया के इन्तिहाई हिस्सों में भी हों, तो वहाँ से भी ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको जमा' करके ले आएगा।
\v 5 और ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उसी मुल्क में तुमको लाएगा जिस पर तुम्हारे बाप-दादा ने क़ब्ज़ा किया था, और तू उसको अपने क़ब्ज़े में लाएगा; फिर वह तुझसे भलाई करेगा और तेरे बाप-दादा से ज़्यादा तुमको बढ़ाएगा।
\s5
\v 6 और ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे और तेरी औलाद के दिल का ख़तना करेगा, ताकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से मुहब्बत रख्खे और ज़िन्दा रहे।
\v 7 और ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा यह सब ला'नतें तुम्हारे दुश्मनों और कीना रखने वालों पर, जिन्होंने तुझको सताया नाज़िल करेगा।
\v 8 और तू लौटेगा और ख़ुदावन्द की बात सुनेगा, और उसके सब हुक्मों पर जो मैं आज तुझको देता हूँ 'अमल करेगा।
\s5
\v 9 और ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको तेरे कारोबार और आस औलाद और चौपायों के बच्चों और ज़मीन की पैदावार के लिहाज़ से तेरी भलाई की ख़ातिर तुझको~बढ़ाएगा; फिर तुझसे ख़ुश होगा, जैसे वह तेरे बाप-दादा से ख़ुश था।
\v 10 बशर्ते कि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात को सुनकर उसके अहकाम और आईन को माने जो शरी'अत की इस किताब में लिखे हैं, और अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ फिरे।
\s5
\v 11 ~क्यूँकि वह हुक्म जो आज के दिन मैं तुझको देता हूँ, तेरे लिए बहुत मुश्किल नहीं और न वह दूर है।
\v 12 वह आसमान पर तो है नहीं कि तू कहे कि 'आसमान पर कौन हमारी ख़ातिर चढ़े, और उसको हमारे पास लाकर सुनाए ताकि हम उस पर 'अमल करें?'
\s5
\v 13 और न वह समन्दर पार है कि तू कहे, 'समन्दर पर कौन हमारी ख़ातिर जाए, और उसको हमारे पास ला कर सुनाए ताकि हम उस पर 'अमल करें?'
\v 14 बल्कि वह कलाम तेरे बहुत नज़दीक है; वह तुम्हारे मुँह में और तुम्हारे दिल में है, ताकि तुम उस पर 'अमल करो।
\s5
\v 15 ~देखो, मैंने आज के दिन ज़िन्दगी और भलाई को, और मौत और बुराई को तुम्हारे आगे रख्खा है।
\v 16 ~क्यूँकि मैं आज के दिन तुमको हुक्म करता हूँ, कि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रखे और उसकी राहों पर चले, और उसके फ़रमान और आईन और अहकाम को माने ताकि तू ज़िन्दा रहे और बढ़े; और ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उस मुल्क में तुझको बरकत बख़्शे, जिस पर क़ब्ज़ा करने को तू वहाँ जा रहा है।
\s5
\v 17 लेकिन अगर तेरा दिल फिर जाए और तू न सुने, बल्कि गुमराह होकर और मा'बूदों की परस्तिश और 'इबादत करने लगे;
\v 18 तो आज के दिन मैं तुमको जता देता हूँ कि तुम ज़रूर फ़ना हो जाओगे, और उस मुल्क में जिस पर क़ब्ज़ा करने को तुम यरदन पार जा रहे हो तुम्हारी 'उम्र दराज़ न होगी।
\s5
\v 19 मैं आज के दिन आसमान और ज़मीन को तुम्हारे बरख़िलाफ़ गवाह बनाता हूँ, कि मैंने ज़िन्दगी और मौत की और बरकत और ला'नत को तुम्हारे आगे रख्खा है; इसलिए तुम ज़िन्दगी को इख़्तियार करो कि तुम भी ज़िन्दा रहो और तुम्हारी औलाद भी;
\v 20 ~ताकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रखे, और उसकी बात सुने और उसी से लिपटा रहे; क्यूँकि वही तेरी ज़िन्दगी और तेरी 'उम्र की दराज़ी है, ताकि तू उस मुल्क में बसा रहे जिसको तेरे बाप-दादा इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब को देने की क़सम ख़ुदावन्द ने उनसे खाई थी।”
\s5
\c 31
\p
\v 1 और मूसा ने जा कर यह बातें सब इस्राईलियों को सुनाई,
\v 2 और उनको कहा कि "मैं तो आज कि दिन एक सौ बीस बरस का हूँ, मैं अब चल फिर नहीं सकता; और ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा है कि तू इस यरदन पार नहीं जाएगा।
\v 3 इसलिए ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा ही तेरे आगे-आगे पार जाएगा, और वही उन क़ौमों को तेरे आगे से फ़ना करेगा और तू उसका वारिस होगा; और जैसा ख़ुदावन्द ने कहा है, यशू'अ तुम्हारे आगे-आगे पार जाएगा।
\s5
\v 4 और ख़ुदावन्द उनसे वही करेगा जो उसने अमोरियों के बादशाह सीहोन और 'ओज और उनके मुल्क से किया, कि उनको फ़ना कर डाला।
\v 5 और ख़ुदावन्द उनको तुमसे शिकस्त दिलाएगा, और तुम उनसे उन सब हुक्मों के मुताबिक़ पेश आना जो मैंने तुमको दिए हैं।
\v 6 तू मज़बूत हो जा और हौसला रख; मत डर और न उनसे ख़ौफ़ खा, क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा ख़ुद ही तेरे साथ जाता है; वह तुझसे दस्तबरदार नहीं होगा, और न तुमको छोड़ेगा।"
\s5
\v 7 फिर मूसा ने यशू'अ को बुलाकर सब इस्राईलियों के सामने उससे कहा, "तू मज़बूत हो जा और हौसला रख; क्यूँकि तू इस क़ौम के साथ उस मुल्क में जाएगा, जिसको ख़ुदावन्द ने उनके बाप-दादा से क़सम खाकर देने को कहा था, और तू उनको उसका वारिस बनाएगा।
\v 8 ~और ख़ुदावन्द ही तेरे आगे-आगे चलेगा; वह तेरे साथ रहेगा, वह तुझ से न दस्तबरदार होगा, न तुझे छोड़ेगा; इसलिए तू ख़ौफ़ न कर और बे-दिल न हो।"
\s5
\v 9 और मूसा ने इस शरी'अत को लिखकर उसे काहिनों के, जो बनी लावी और ख़ुदावन्द के 'अहद के संन्दूक के उठाने वाले थे, और इस्राईल के सब बुज़ुर्गों के सुपर्द किया।
\v 10 फिर मूसा ने उनको यह हुक्म दिया, "हर सात बरस के आख़िर में छुटकारे के साल के मु'अय्यन वक़्त पर झोपड़ियों ~के 'ईद में,
\v 11 ~जब सब इस्राइली ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा के सामने उस जगह आ कर हाज़िर हों जिसे वह ख़ुद चुनेगा, तो तुम इस शरी'अत को पढ़कर सब इस्राईलियों को सुनाना।
\s5
\v 12 तुम सारे लोगों को, या'नी मर्दों और 'औरतों और बच्चों और अपनी बस्तियों के मुसाफ़िरों को जमा' करना, ताकि वह सुनें और सीखें और ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा का ख़ौफ़ मानें और इस शरी"अत की सब बातों पर एहतियात रखकर 'अमल करें;
\v 13 और उनके लड़के जिनको कुछ मा'लूम नहीं वह भी सुनें, और जब तक तुम उस मुल्क में जीते रहो जिस पर क़ब्ज़ा करने को तुम यरदन पार जाते हो, तब तक वह बराबर ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना सीखें।"
\s5
\v 14 फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "देख, तेरे मरने के दिन आ पहुँचे। इसलिए तू यशू'अ को बुला ले और तुम दोनों ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में हाज़िर हो जाओ, ताकि मैं उसे हिदायत करूँ।"चुनाँचे मूसा और यशू'अ रवाना होकर ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में हाज़िर हुए।
\v 15 और ख़ुदावन्द बादल के सुतून में होकर ख़ेमे में नमूदार हुआ, और बादल का सुतून ख़ेमे के दरवाज़े पर ठहर गया।
\s5
\v 16 ~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "देख, तू अपने बाप-दादा के साथ सो जाएगा; और यह लोग उठकर उस मुल्क के अजनबी मा'बूदों की पैरवी में, जिनके बीच वह जाकर रहेंगे ज़िनाकार हो जाएँगे और मुझको छोड़ देंगे, और उस 'अहद को जो मैंने उनके साथ बाँधा है तोड़ डालेंगे।
\s5
\v 17 तब उस वक़्त मेरा क़हर उन पर भड़केगा, और मैं उन को छोड़ दूँगा और उनसे अपना मुँह छिपा लूँगा; और वह निगल लिए जाएँगे और बहुत सी बलाएँ और मुसीबतें उन पर आएँगी, चुनाँचे वह उस दिन कहेंगे, 'क्या हम पर यह बलाएँ इसी वजह से नहीं आईं कि हमारा ख़ुदा हमारे बीच नहीं?'
\v 18 उस वक़्त उन सब बदियों की वजह से, जो और मा'बूदों की तरफ़ माइल होकर उन्होंने की होंगी मैं ज़रूर अपना मुँह छिपा लूँगा।
\s5
\v 19 इसलिए तुम यह गीत अपने लिए लिख लो, और तुम उसे बनी-इस्राईल को सिखाना और उनको हिफ़्ज़ करा देना, ताकि यह गीत बनी इस्राईल के ख़िलाफ़ मेरा गवाह रहे।
\v 20 इसलिए कि जब मैं उनको उस मुल्क में, जिस की क़सम मैंने उनके बाप-दादा से खाई और जहाँ दूध और शहद बहता है पहुँचा दूँगा, और वह ख़ूब खा-खाकर मोटे हो जाएँगे; तब वह और मा'बूदों की तरफ़ फिर जाएँगे और उनकी 'इबादत करेंगे और मुझको हक़ीर जानेंगे और मेरे 'अहद को तोड़ डालेंगे।
\s5
\v 21 और यूँ होगा कि जब बहुत सी बलाएँ और मुसीबतें उन पर आएँगी, तो ये गीत गवाह की तरह उन पर शहादत देगा; इसलिए कि इसे उनकी औलाद कभी नहीं भूलेगी, क्यूँकि इस वक़्त भी उनको उस मुल्क में पहुँचाने से पहले जिसकी क़सम मैंने खाई है, मैं उनके ख़याल को जिसमें वह हैं जानता हूँ।”
\s5
\v 22 ~इसलिए मूसा ने उसी दिन इस गीत को लिख लिया और उसे बनी-इस्राईल को सिखाया।
\v 23 और उसने नून के बेटे यशू'अ को हिदायत की और कहा, "मज़बूत हो जा, और हौसला रख; क्यूँकि तू बनी-इस्राईल को उस मुल्क में ले जाएगा जिसकी क़सम मैंने उनसे खाई थी, और मैं तेरे साथ रहूँगा।"
\s5
\v 24 और ऐसा हुआ कि जब मूसा इस शरी'अत की बातों को एक किताब में लिख चुका और वह ख़त्म हो गई,
\v 25 ~तो मूसा ने लावियों से, जो ख़ुदावन्द के 'अहद के संदूक़ को उठाया करते थे कहा,
\v 26 "इस शरी'अत की किताब को लेकर खुदावन्द अपने ख़ुदा के 'अहद के सन्दूक़ के पास रख दो, ताकि वह तुम्हारे बरख़िलाफ़ गवाह रहे।
\s5
\v 27 ~क्यूँकि मैं तुम्हारी बग़ावत और गर्दनकशी को जानता हूँ। देखो, अभी तो मेरे जीते जी तुम ख़ुदावन्द से बग़ावत करते रहे हो, तो मेरे मरने के बा'द कितना ज़्यादा न करोगे?
\v 28 तुम अपने क़बीले के सब बुज़ुर्गों और 'उहदेदारों को मेरे पास जमा' करो, ताकि मैं यह बातें उनके कानों में डाल दूँ और आसमान और ज़मीन को उनके बरख़िलाफ़ गवाह बनाऊँ।
\v 29 क्यूँकि मैं जानता हूँ कि मेरे मरने के बा'द तुम अपने को बिगाड़ लोगे, और उस रास्ते से जिसका मैंने तुमको हुक्म दिया है फिर जाओगे; तब आख़िरी दिनों में तुम पर आफ़त टूटेगी, क्यूँकि तुम अपने कामों से ख़ुदावन्द को ग़ुस्सा दिलाने के लिए वह काम करोगे जो उसकी नज़र में बुरा है।"
\s5
\v 30 इसलिए मूसा ने इस गीत की बातें इस्राईल की सारी जमा'अत को आख़िर तक कह सुनाई।
\s5
\c 32
\p
\v 1 कान लगाओ, ऐ आसमानो, और मैं बोलूँगा; और ज़मीन मेरे मुँह की बातें सुने।
\v 2 मेरी ता'लीम मेंह की तरह बरसेगी, मेरी तक़रीर शबनम की तरह टपकेगी; जैसे नर्म घास पर फुआर पड़ती हो, और सब्ज़ी पर झड़ियाँ।
\s5
\v 3 क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द के नाम का इश्तिहार दूँगा। तुम हमारे ख़ुदा की ता'ज़ीम करो।
\v 4 ~"वह वही चट्टान है, उसकी सन'अत कामिल है; क्यूँकि उसकी सब राहें इन्साफ़ की हैं, वह वफ़ादार ख़ुदा, और बदी से मुबर्रा है, वह मुन्सिफ़ और बर-हक़ है।
\s5
\v 5 यह लोग उसके साथ बुरी तरह से पेश आए, यह उसके फ़र्ज़न्द नहीं। यह उनका 'ऐब है, यह सब कजरौ और टेढ़ी नसल हैं।
\v 6 क्या तुम ऐ बेवक़ूफ़ और कम'अक़्ल लोगों, इस तरह ख़ुदावन्द को बदला दोगे? क्या वह तुम्हारा बाप नहीं, जिसने तुमको ख़रीदा है? उस ही ने तुमको बनाया और क़याम बख़्शा।
\s5
\v 7 क़दीम दिनों को याद करो, नसल दर नसल के बरसों पर ग़ौर करो; अपने बाप से पूछो, वह तुमको बताएगा; बुज़ुर्गों से सवाल करो, वह तुमसे बयान करेंगे।
\v 8 जब हक़ त'आला ने क़ौमों को मीरास बाँटी, और बनी आदम को जुदा-जुदा किया, तो उसने क़ौमों की सरहदें, बनी इस्राईल के शुमार के मुताबिक़ ठहराईं।
\s5
\v 9 क्यूँकि ख़ुदावन्द का हिस्सा उसी के लोग हैं। या'क़ूब उसकी मीरास का हिस्सा है।
\v 10 वह ख़ुदावन्द को वीराने और सूने ख़तरनाक वीराने में मिला; ख़ुदावन्द उसके चारों तरफ़ रहा,उसने उसकी ख़बर ली, और उसे अपनी आँख की पुतली की तरह रख्खा।
\s5
\v 11 जैसे 'उक़ाब अपने घोंसले को हिला हिलाकर अपने बच्चों पर मण्डलाता है, वैसे ही उसने अपने बाज़ूओं को फैलाया,और उनको लेकर अपने परों पर उठा लिया।
\v 12 ~सिर्फ़ ख़ुदावन्द ही ने उनकी रहबरी की, और उसके साथ कोई अजनबी मा'बूद न था।
\s5
\v 13 उसने उसे ज़मीन की ऊँची-ऊँची जगहों पर सवार कराया, और उसने खेत की पैदावार खाई; उसने उसे चट्टान में से शहद, और मुश्किल जगह में से तेल चुसाया।
\s5
\v 14 और गायों का मक्खन और भेड़-बकरियों का दूध और बर्रों की चर्बी, और बसनी नसल के मेंढे और बकरे, और ख़ालिस गेंहू का आटा भी; और तू अंगूर के ख़ालिस रस की मय पिया करता था।
\s5
\v 15 लेकिन यसूरून मोटा हो कर लातें मारने लगा; तू मोटा हो कर सुस्त हो गया है, और तुझ पर चर्बी छा गई है; तब उसने ख़ुदा को जिसने उसे बनाया छोड़ दिया, और अपनी नजात की चट्टान की हिक़ारत की।
\v 16 उन्होंने अजनबी मा'बूदों के ज़रिए' उसे ग़ैरत, और मकरूहात से उसे ग़ुस्सा दिलाया।
\s5
\v 17 उन्होंने जिन्नात के लिए जो ख़ुदा न थे, बल्कि ऐसे मा'बूदों के लिए जिनसे वह वाक़िफ़ न थे, या'नी नये-नये मा'बूदों के लिए जो हाल ही में ज़ाहिर हुए थे, जिनसे उनके बाप दादा कभी डरे नहीं क़ुर्बानी की।
\v 18 तू उस चट्टान से ग़ाफ़िल हो गया, जिसने तुझे पैदा किया था; तू ख़ुदा को भूल गया,जिसने तुझे पैदा किया।
\s5
\v 19 "ख़ुदावन्द ने यह देख कर उनसे नफ़रत की, क्यूँकि उसके बेटों और बेटियों ने उसे ग़ुस्सा दिलाया।
\v 20 तब उसने कहा, 'मैं अपना मुँह उनसे छिपा लूँगा, और देखूँगा कि उनका अन्जाम कैसा होगा; क्यूँकि वह बाग़ी नसल और बेवफ़ा औलाद हैं।
\s5
\v 21 ~उन्होंने उस चीज़ के ज़रिए' जो ख़ुदा नहीं, मुझे ग़ैरत और अपनी बातिल बातों से मुझे ग़ुस्सा दिलाया; इसलिए मैं भी उनके ज़रिए' से जो कोई उम्मत नहीं उनको ग़ैरत और एक नादान क़ौम के ज़रिए' से उनको ग़ुस्सा दिलाऊँगा।
\s5
\v 22 इसलिए कि मेरे ग़ुस्से के मारे आग भड़क उठी है, जो पाताल की तह तक जलती जाएगी, और ज़मीन को उसकी पैदावार समेत भसम कर देगी, और पहाड़ों की बुनियादों में आग लगा देगी।
\s5
\v 23 'मैं उन पर आफ़तों का ढेर लगाऊँगा, और अपने तीरों को उन पर ख़त्म करूँगा।
\v 24 वह भूक के मारे घुल जाएँगे,और शदीद हरारत और सख़्त हलाकत का लुक़्मा हो जाएँगे; और मैं उन पर दरिन्दों के दाँत और ज़मीन पर के सरकने वाले कीड़ों का ज़हर छोड़ दूँगा।
\s5
\v 25 बाहर वह तलवार से मरेंगे, और कोठरियों के अन्दर ख़ौफ़ से, जवान मर्द और कुँवारियों, दूध पीते बच्चे और पक्के बाल वाले सब यूँ ही हलाक होंगे।
\v 26 मैंने कहा, मैं उनको दूर-दूर तितर-बितर करूँगा, और उनका तज़किरा नौ'-ए-बशर में से मिटा डालूँगा।
\s5
\v 27 लेकिन मुझे दुश्मन की छेड़ छाड़ का अन्देशा था, कि कहीं मुख़ालिफ़ उल्टा समझ कर,यूँ न कहने लगें, कि हमारे ही हाथ बाला हैं और यह सब ख़ुदावन्द से नहीं हुआ।"
\s5
\v 28 "वह एक ऐसी क़ौम हैं जो मसलहत से ख़ाली हो उनमें कुछ समझ नहीं।
\v 29 काश वह 'अक़्लमन्द होते कि इसको समझते, और अपनी 'आक़बत पर ग़ौर करते।
\s5
\v 30 क्यूँ कर एक आदमी हज़ार का पीछा करता, और दो आदमी दस हज़ार को भगा देते, अगर उनकी चट्टान ही उनको बेच न देती, और ख़ुदावन्द ही उनको हवाले न कर देता?
\v 31 क्यूँकि उनकी चट्टान ऐसी नहीं जैसी हमारी चट्टान है, चाहे हमारे दुश्मन ही क्यूँ न मुन्सिफ़ हों।
\s5
\v 32 क्यूँकि उनकी ताक सदूम की ताकों में से और 'अमूरा के खेतों की है; उनके अंगूर हलाहल के बने हुए हैं, और उनके गुच्छे कड़वे हैं।
\s5
\v 33 उनकी मय अज़दहाओं का बिस,और काले नागों का ज़हर-ए-क़ातिल है
\v 34 क्या यह मेरे ख़ज़ानों में सर-ब-मुहर होकर भरा नहीं पड़ा है?
\s5
\v 35 उस वक़्त जब उनके पाँव फिसलें,तो इन्तक़ाम लेना और बदला देना मेरा काम होगाः क्यूँकि उनकी आफ़त का दिन नज़दीक है, और जो हादिसे उन पर गुज़रने वाले हैं वह जल्द आएँगे।
\s5
\v 36 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द अपने लोगों का इन्साफ़ करेगा, और अपने बन्दों पर तरस खाएगा; जब वह देखेगा कि उनकी क़ुव्वत जाती रही, और कोई भी, न क़ैदी और न आज़ाद बाक़ी बचा।
\s5
\v 37 और वह कहेगा, उन के मा'बूद कहाँ हैं? वह चट्टान कहाँ, जिस पर उनका भरोसा था;
\v 38 जो उनके क़ुर्बानियों की चर्बी खाते,और उनके तपावन की मय पीते थे? वही उठ कर तुम्हारी मदद करें, वही तुम्हारी पनाह हों।
\s5
\v 39 ~'इसलिए अब तुम देख लो, कि मैं ही वह हूँ। और मेरे साथ कोई मा'बूद नहीं।मैं ही मार डालता और मैं ही जिलाता हूँ। मैं ही ज़ख़्मी करता और मैं ही चंगा करता हूँ, और कोई नहीं जो मेरे हाथ से छुड़ाए।
\v 40 क्यूँकि मैं अपना हाथ आसमान की तरफ़ उठाकर कहता हूँ, कि चूँकि मैं हमेशा हमेश ज़िन्दा हूँ,
\s5
\v 41 इसलिए अगर मैं अपनी झलकती तलवार को, तेज़ करूँ, और 'अदालत को अपने हाथ में ले लूँ, तो अपने मुख़ालिफ़ों से इन्तक़ाम लूँगा, और अपने कीना रखने वालों को बदला दूँगा।
\s5
\v 42 ~मैं अपने तीरों को ख़ून पिला-पिलाकर मस्त कर दूंगा, और मेरी तलवार गोश्त खाएगी- वह ख़ून~मक़्तूलों~और ग़ुलामों~का, और वह गोश्त दुश्मन के सरदारों के सिर का होगा।'
\s5
\v 43 'ऐ क़ौमों, उसके लोगों के साथ ख़ुशी मनाओ क्यूँकि वह अपने बन्दों के ख़ून का बदला लेगा,और अपने मुख़ालिफ़ों को बदला देगा, और अपने मुल्क और लोगों के लिए कफ़्फ़ारा देगा।"
\s5
\v 44 तब मूसा और नून के बेटे होसे'अ ने आ कर इस गीत की सारी बातें लोगों को कह सुनाईं।
\v 45 और जब मूसा यह सब बातें सब इस्राईलियों को सुना चुका,
\s5
\v 46 तो उसने उनसे कहा, "जो बातें मैंने तुमसे आज के दिन बयान की हैं, उन सब से तुम दिल लगाना और अपने लड़कों को हुक्म देना कि वह एहतियात रखकर इस शरी'अत की सब बातों पर 'अमल करें।
\v 47 ~क्यूँकि यह तुम्हारे लिए कोई बे फ़ायदा बात नहीं, बल्कि यह तुम्हारी ज़िन्दगानी है; और इसी से उस मुल्क में, जहाँ तुम यरदन पार जा रहे हो कि उस पर क़ब्ज़ा करो, तुम्हारी 'उम्र दराज़ होगी।"
\s5
\v 48 और उसी दिन ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,
\v 49 "तू इस कोह-ए-'अबारीम पर चढ़ कर नबू की चोटी को जा, जो यरीहू के सामने मुल्क-ए-मोआब में है; और कना'न के मुल्क की जिसे मैं मीरास के तौर पर बनी-इस्राईल को देता हूँ देख ले।
\s5
\v 50 और उसी पहाड़ पर जहाँ तू जाए वफ़ात पाकर अपने लोगों में शामिल हो, जैसे तेरा भाई हारून होर के पहाड़ पर मरा और अपने लोगों में जा मिला।
\v 51 ~इसलिए कि तुम दोनों ने बनी-इस्राईल के बीच सीन के जंगल के क़ादिस में मरीबा के चश्मे पर मेरा गुनाह किया, क्यूँकि तुमने बनी-इस्राईल के बीच मेरी बड़ाई न की।
\v 52 इसलिए तू उस मुल्क को अपने आगे देख लेगा, लेकिन तू वहाँ उस मुल्क में जो मैं बनी-इस्राईल को देता हूँ जाने न पाएगा।"
\s5
\c 33
\p
\v 1 ~और मर्द-ए-ख़ुदा मूसा ने जो दु'आ-ए-ख़ैर देकर अपनी वफ़ात से पहले बनी-इस्राईल को बरकत दी, वह यह है।
\v 2 ~और उसने कहा :"ख़ुदावन्द सीना से आया और श'ईर से उन पर ज़ाहिर हुआ, वह कोह-ए-फ़ारान से जलवागर हुआ, और लाखों फ़रिश्तों ~में से आया; उसके दहने हाथ पर उनके लिए आतिशी शरी'अत थी।
\s5
\v 3 वह बेशक क़ौमों से मुहब्बत रखता है, उसके सब मुक़द्दस लोग तेरे हाथ में हैं, और वह तेरे क़दमों में बैठे, एक एक तेरी बातों से मुस्तफ़ीज़ होगा।
\v 4 मूसा ने हमको शरी'अत और या'क़ूब की जमा'अत के लिए मीरास दी।
\s5
\v 5 और वह उस वक़्त यसूरून में बादशाह था, जब क़ौम के सरदार इकट्ठे और इस्राईल के क़बीले जमा' हुए।
\v 6 "रूबिन ज़िन्दा रहे और मर न जाए, तोभी उसके आदमी थोड़े ही हों।"
\s5
\v 7 और यहूदाह के लिए यह है जो मूसा ने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, तू यहूदाह की सुन, और उसे उसके लोगों के पास पहुँचा; वह अपने लिए आप अपने हाथों से लड़ा, और तू ही उसके दुश्मनों के मुक़ाबले में उसका मददगार होगा।"
\s5
\v 8 और लावी के हक़ में उसने कहा, "तेरे तुम्मीन और ऊरीम उस मर्द-ए-ख़ुदा के पास हैं जिसे तूने मस्सा पर आज़मा लिया, और जिसके साथ मरीबा के चश्मे पर तेरा तनाज़ा' हुआ;
\s5
\v 9 जिसने अपने माँ बाप के बारे में कहा, कि मैंने इन को देखा नहीं; और न उसने अपने भाइयों को अपना माना, और न अपने बेटों को पहचाना। क्यूँकि उन्होंने तेरे कलाम की एहतियात की और वह तेरे 'अहद को मानते हैं।
\s5
\v 10 वह या'क़ूब को तेरे हुक्मों और इस्राईल को तेरी शरी'अत सिखाएँगे। वह तेरे आगे ख़ुशबू और तेरे मज़बह पर पूरी सोख़्तनी क़ुर्बानी रख्खेंगे।
\s5
\v 11 ~ऐ ख़ुदावन्द, तू उसके माल में बरकत दे और उसके हाथों की ख़िदमत को क़ुबूल कर; जो उसके ख़िलाफ़ उठे उनकी कमर तोड़ दे, और उनकी कमर भी जिनको उससे 'अदावत है ताकि वह फिर न उठे।
\s5
\v 12 और बिनयमीन के हक़ में उस ने कहा,"खुदावन्द का प्यारा, सलामती के साथउसके पास रहेगा; वह सारे दिन उसे ढाँके रहता है, और वह उसके कन्धों के बीच सुकूनत करता है।"
\s5
\v 13 ~और यूसुफ़ के हक़ में उसने कहा,"उसकी ज़मीन ख़ुदावन्द की तरफ़ से मुबारक हो, आसमान की बेशक़ीमत अशया और शबनम और वह गहरा पानी जो नीचे है,
\s5
\v 14 और सूरज के पकाए हुए बेशक़ीमत फल,और चाँद की उगाई हुई बेशक़ीमती चीज़ें|
\v 15 और क़दीम पहाड़ों की बेशक़ीमत चीज़ें,और अबदी पहाड़ियों की बेशक़ीमत चीज़ें।
\s5
\v 16 और ज़मीन और उसकी मा'मूरी की बेशक़ीमती चीज़ें और उसकी ख़ुशनूदी जो झाड़ी में रहता था, इन सबके ऐतबार से यूसुफ़ के सिर पर या'नी उसी के सिर के चाँद पर, जो अपने भाइयों से जुदा रहा बरकत नाज़िल हो।
\s5
\v 17 उसके बैल के पहलौठे की सी उसकी शौकत है; और उसके सींग जंगली साँड के से हैं; उन्हीं से वह सब क़ौमों को, बल्कि ज़मीन की इन्तिहा के लोगों को ढकेलेगा; वह इफ़्राईम के लाखों लाख,और मनस्सी के हज़ारों हज़ार हैं।"
\s5
\v 18 और ज़बूलून के बारे में उसने कहा,"ऐ ज़बूलून, तू अपने बाहर जाते वक़्त और ऐ इश्कार, तू अपने ख़ेमों में ख़ुश रह।
\v 19 वह लोगों को पहाड़ों पर बुलाएँगे, और वहाँ सदाक़त की क़ुर्बानियाँ पेश करेंगे; क्यूँकि वह समन्दरों के फ़ैज़ और रेत के छिपे हुऐ ख़ज़ानों से बहरावर होंगे।"
\s5
\v 20 और जद्द के हक़ में उसने कहा,"जो कोई जद्द को बढ़ाए वह मुबारक हो। वह शेरनी की तरह रहता है,और बाज़ू बल्कि सिर के चाँद तक को फाड़ डालता है
\s5
\v 21 और उसने पहले हिस्से को अपने लिए चुन लिया, क्यूँकि शरा' देने वाले का हिस्सा वहाँ अलग किया हुआ था; और उसने लोगों के सरदारों के साथ आकर ख़ुदावन्द के इन्साफ़ को और उसके हुक्मों को जो इस्राईल के लिए था पूरा किया।”
\s5
\v 22 और दान के हक़ में उसने कहा,"दान उस शेर-ए-बबर का बच्चा है जो बसन से कूद कर आता है।”
\s5
\v 23 और नफ़्ताली के हक़ में उसने कहा,"ऐ नफ़्ताली, जो लुत्फ़-ओ-करम से आसूदा, और ख़ुदावन्द की बरकत से मा'मूर है; तू पश्चिम और दख्खिन का मालिक हो।"
\s5
\v 24 और आशर के हक़ में उसने कहा,"आशर आस-औलाद से मालामाल हो; वह अपने भाइयों का मक़्बूल हो और अपना पाँव तेल में डुबोए।
\v 25 तेरे बेन्डे लोहे और पीतल के होंगे, और जैसे तेरे दिन वैसी ही तेरी क़ुव्वत हो।
\s5
\v 26 "ऐ यसूरून, ख़ुदा की तरह और कोई नहीं, जो तेरी मदद के लिए आसमान पर और अपने जाह-ओ-जलाल में आसमानों पर सवार है|
\s5
\v 27 अबदी ख़ुदा तेरी सुकूनतगाह है और नीचे दाइमी बाज़ू है, उसने ग़नीम को तेरे सामने से निकाल दिया और कहा, "उनको हलाक कर दे|"
\s5
\v 28 और इस्राईल सलामती के साथ या'क़ूब का सोता, अकेला अनाज और मय के मुल्क में बसा हुआ है; बल्कि आसमान से उस पर ओस पड़ती रहती है
\s5
\v 29 मुबारक है तू, ऐ इस्राईल; तू ख़ुदावन्द की बचाई हुई क़ौम है, इसलिए कौन तेरी तरह है? वही तेरी मदद की सिपर, और तेरे जाह-ओ-जलाल की तलवार है।तेरे दुश्मन तेरे मुती' होंगे और तू उन के ऊँचे मक़ामों को पस्त करेगा।"
\s5
\c 34
\p
\v 1 और मूसा मोआब के मैदानों से कोह~ए-नबू के ऊपर पिसगा की चोटी पर, जो यरीहू के सामने है चढ़ गया; और ख़ुदावन्द ने जिल'आद का सारा मुल्क दान तक, और नफ़्ताली का सारा मुल्क,
\v 2 और इफ़्राईम और मनस्सी का मुल्क, और यहूदाह का सारा मुल्क पिछले समन्दर तक,
\v 3 ~और दख्खिन का मुल्क, और वादी-ए-यरीहू जो ख़ुरमों का शहर है उसकी वादी का मैदान ज़ुग़र तक उसको दिखाया।
\s5
\v 4 और ख़ुदावन्द ने उससे कहा, "यही वह मुल्क है, जिसके बारे में मैंने इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब से क़सम खाकर कहा था, कि इसे मैं तुम्हारी नसल को दूँगा। इसलिए मैंने ऐसा किया कि तू इसे अपनी आँखों से देख ले, लेकिन तू उस पार वहाँ जाने न पाएगा।"
\v 5 तब ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने ख़ुदावन्द के कहे के मुवाफ़िक़, वहीं मोआब के मुल्क में वफ़ात पाई,
\v 6 और उसने उसे मोआब की एक वादी में बैत फ़ग़ूर के सामने दफ़न किया; लेकिन आज तक किसी आदमी को उसकी क़ब्र मा'लूम नहीं।
\s5
\v 7 और मूसा अपनी वफ़ात के वक़्त एक सौ बीस बरस का था, और न तो उसकी आँख धुंधलाने पाई और न उसकी अपनी क़ुव्वत कम हुई।
\v 8 और बनी इस्राईल मूसा के लिए मोआब के मैदानों में तीस दिन तक रोते रहे; फिर मूसा के लिए मातम करने और रोने-पीटने के दिन ख़त्म हुए।
\s5
\v 9 और नून का बेटा यशू'अ 'अक़्लमन्दी की रूह से मा'मूर था, क्यूँकि मूसा ने अपने हाथ उस पर रख्खे थे; और बनी-इस्राईल उसकी बात मानते रहे, और जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था उन्होंने वैसा ही किया।
\s5
\v 10 और उस वक़्त से अब तक बनी-इस्राईल में कोई नबी मूसा की तरह, जिससे ख़ुदावन्द ने आमने-सामने बातें कीं नहीं उठा।
\v 11 और उसको खुदावन्द ने मुल्क-ए-मिस्र में फ़िर'औन और उसके सब ख़ादिमों और उसके सारे मुल्क के सामने, सब निशानों और 'अजीब कामों के दिखाने को भेजा था।
\v 12 यूँ मूसा ने सब इस्राईलियों के सामने ताक़तवर हाथ और बड़ी हैबत के काम कर दिखाए।

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06-JOS.usfm Normal file
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\id JOS
\ide UTF-8
\h यशूअ
\toc1 यशूअ
\toc2 यशूअ
\toc3 jos
\mt1 यशूअ
\s5
\c 1
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा की वफ़ात के बा'द ऐसा हुआ कि ख़ुदावन्द ने उसके ख़ादिम नून के बेटे यशू'अ से कहा,
\v 2 "मेरा बन्दा मूसा मर गया है इसलिए अब तू उठ और इन सब लोगों को साथ लेकर इस यरदन के पार उस मुल्क में जा जिसे मैं उनको या'नी, बनी इस्राईल को देता हूँ|
\v 3 जिस-जिस जगह तुम्हारे पाँव का तलुवा टिके उसको, जैसा मैंने मूसा से कहा, मैंने तुमको दिया है|
\s5
\v 4 वीराने और उस लुबनान से लेकर बड़े दरिया-ए- फ़रात तक हित्तियों का सारा मुल्क और पश्चिम की तरफ़ बड़े समन्दर तक तुम्हारी ह़द होगी|
\v 5 तेरी ज़िन्दगी भर कोई शख्स़ तेरे सामने खड़ा न रह सकेगा; जैसे मैं मूसा के साथ था वैसे ही तेरे साथ रहूँगा मैं न तुझ से अलग हूँगा और न तुझे छोड़ूंगा|
\s5
\v 6 इसलिए मज़बूत हो जा और हौसला रख, क्यूँकि तू इस क़ौम को उस मुल्क का वारिस करायेगा जिसे मैंने उनको देने की क़सम उनके बाप दादा से खाई|
\v 7 तू सिर्फ़ मज़बूत और निहायत दिलेर हो जा कि एहतियात रख कर उस सारी शरी'अत पर 'अमल करे जिसका हुक्म मेरे बन्दे मूसा ने तुझ को दिया; उस से न दहिने मुड़ना न बायें ताकि जहाँ कहीं तू जाये तुझे ख़ूब कामयाबी हासिल हो|
\s5
\v 8 शरी'अत की यह किताब तेरे मुँह से न हटे, बल्कि तुझे दिन और रात इसी का ध्यान हो ताकि जो कुछ उस में लिखा है उस सब पर तू एहतियात करके 'अमल कर सके; ~क्यूँकि तब ही तुझे कामयाबी ~की राह नसीब होगी और तू ख़ूब कामयाब होगा|
\v 9 क्या मैनें तुझको हुक्म नहीं दिया? इसलिए मज़बूत हो जा और हौसला रख; ख़ौफ़ न खा और बेदिल न हो, क्यँकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा जहाँ जहाँ तू जाए तेरे साथ रहेगा| ”
\s5
\v 10 तब यशू'अ ने लोगों के मनसबदारों को हुक्म दिया कि|
\v 11 तुम लश्कर के बीच से होकर गुज़रो और लोगों को यह हुक्म दो कि तुम अपने अपने लिए सफ़र का सामान ~तैयार कर लो क्यूँकि तीन दिन के अन्दर तुम को इस यरदन के पार होकर उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करने को जाना है जिसे ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुमको देता है ताकि तुम उसके मालिक हो जाओ|
\s5
\v 12 और बनी रुबिन और बनी जद और मनस्सी के आधे क़बीले~से यशू'अ ने यह कहा कि|
\v 13 उस बात को जिसका हुक्म ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने तुमको दिया याद रखना कि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुमको आराम बख़्शता है और वह यह मुल्क तुमको देगा|
\s5
\v 14 तुम्हारी बीवियां और तुम्हारे बाल बच्चे और चौपाये इसी मुल्क में जिसे मूसा ने यरदन के इस पार तुमको दिया है रहें, लेकिन तुम सब जितने बहादुर और सूरमा हो हथियार लगाए हुए अपने भाइयों के आगे आगे पार जाओ और उनकी मदद करो|
\v 15 जब तक ख़ुदावन्द तुम्हारे भाइयों को तुम्हारी तरह आराम न बख़्शे और वह उस मुल्क पर जिसे ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा उनको देता है क़ब्ज़ा न कर लें| बा'द में तुम अपनी मिल्कियत के मुल्क में लौटना जिसे ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने यरदन के इस पार पूरब की तरफ़ तुम को दिया है और उसके मालिक होना|
\s5
\v 16 और उन्होंने यशू'अ को जवाब दिया कि जिस जिस बात का तूने हम को हुक्म दिया है हम वह सब करेंगे, और जहाँ जहाँ तू हमको भेजे वहाँ हम जाएँगे|
\v 17 जैसे हम सब उमूर में मूसा की बात सुनते थे वैसे ही तेरी सुनेंगे; सिर्फ़ ~इतना हो कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा जिस तरह मूसा के साथ रहता था तेरे साथ भी रहे|
\v 18 जो कोई तेरे हुक्म की मुख़ालिफ़त करे और सब मु'आमिलों में जिनकी तू ताकीद करे तेरी बात न माने वह जान से मारा जाए| तू सिर्फ़ मज़बूत हो जा और हौसला रख|
\s5
\c 2
\p
\v 1 तब नून के बेटे यशू'अ ने शित्तीम से दो आदमियों को चुपके से जासूस के तौर पर भेजा और उन से कहा, कि जा कर उस मुल्क को और यरीहू को देखो भालो| चुनाँचे वह रवाना हुए और एक कस्बी के घर में जिसका नाम राहब था आए और वहीं सोए|
\v 2 और यरीहू के बादशाह को ख़बर मिली कि देख आज की रात बनी इस्राईल में से कुछ आदमी इस मुल्क की जासूसी करने को यहाँ आए हैं|
\v 3 और यरीहू के बादशाह ने राहब को कहला भेजा कि उन लोगों को जो तेरे पास आये और तेरे घर में दाख़िल हुए हैं निकाल ला इस लिए कि वह इस सारे मुल्क की जासूसी करने को आए हैं|
\s5
\v 4 तब उस 'औरत ने उन दोनों आदमियों को लेकर और उनको छिपा कर यूँ कह दिया कि वह आदमी मेरे पास आए तो थे लेकिन मुझे मा'लूम न हुआ कि वह कहाँ के थे|
\v 5 और फाटक बंद होने के वक़्त के क़रीब जब अँधेरा हो गया, वह आदमी चल दिए और मैं नहीं जानती हूँ कि वह कहाँ गये| इसलिए जल्द उनका पीछा करो क्यूँकि तुम ज़रूर उनको पा लोगे|
\s5
\v 6 लेकिन उसने उनको अपनी छत पर चढ़ा कर सन की लकड़ियों के नीचे जो छत पर तरतीब से धरी थीं छिपा दिया था|
\v 7 और यह लोग यरदन के रास्ते पर पाँव के निशानों ~तक उनके पीछे गये और जूँही उनका पीछा करने वाले फाटक से निकले उन्होंने फाटक बंद कर लिया|
\s5
\v 8 तब राहब छत पर उन आदमियों ~के लेट जाने से पहले उन के पास गई
\v 9 और उन से यूँ कहने लगी कि मुझे यक़ीन है कि ख़ुदावन्द ने यह मुल्क तुमको दिया है और तुम्हारा रौ'ब हम लोगों पर छा गया है और इस मुल्क के सब बाशिन्दे तुम्हारे आगे डरे जा रहे हैं|
\s5
\v 10 क्यँकि हम ने सुन लिया है कि जब तुम मिस्र से निकले तो ख़ुदावन्द ने तुम्हारे आगे बहरे क़ुलज़ुम के पानी को सुखा दिया, और तुम ने अमूरियों के दोनों बादशाहों सीहोन और 'ओज़ से जो यरदन के उस पार थे और जिनको तुमने बिल्कुल हलाक कर डाला क्या क्या किया|
\v 11 यह सब कुछ सुनते ही हमारे दिल पिघल गये और तुम्हारी वजह से ~फिर किसी शख़्स में जान बाक़ी न रही क्यँकि खु़दावन्द तुम्हारा ख़ुदा ही ऊपर आसमान का और नीचे ज़मीन का ख़ुदा है|
\s5
\v 12 इसलिए अब मैं तुम्हारी मिन्नत करती हूँ कि मुझ से ख़ुदावन्द की क़सम खाओ कि चूँकि मैंने तुम पर मेहरबानी की है तुम भी मेरे बाप के घराने पर मेहरबानी करोगे और मुझे कोई सच्चा निशान दो;
\v 13 कि तुम मेरे बाप और माँ और भाइयों और बहनों को और जो कुछ उनका है सबको सलामत बचा लोगे और हमारी जानों को मौत से महफ़ूज़ रखोगे|
\s5
\v 14 उन आदमियों ने उस से कहा कि हमारी जान तुम्हारी जान की ज़िम्मेदार होगी बशर्ते कि तुम हमारे इस काम का ज़िक्र न कर दो और ऐसा होगा कि जब ख़ुदावन्द इस मुल्क को हमारे क़ब्ज़े में कर देगा तो हम तेरे साथ मेहरबानी और वफ़ादारी से पेश आयेंगे|
\s5
\v 15 तब उस 'औरत ने उनको खिड़की के रास्ते रस्सी से नीचे उतार दिया क्यूँकि उस का घर शहर की दीवार पर बना था और वह दीवार पर रहती थी|
\v 16 और उस ने उस से कहा कि पहाड़ को चल दो ऐसा न हो कि पीछा करने वाले तुम को मिल जायें; और तीन दिन तक वहीं छिपे रहना जब तक पीछा करने वाले लौट न आयें , इस के बा'द अपना रास्ता लेना|
\v 17 तब उन आदमियों ने उस से कहा कि हम तो उस क़सम की तरफ़ से जो तूने हम को खिलाई है बे इलज़ाम रहेंगे|
\s5
\v 18 इसलिए देख! जब हम इस मुल्क में आंएँ तो तू सुर्ख़ रंग के सूत की इस डोरी को उस खिड़की में जिससे तूने हम को नीचे उतारा है बांध देना; और अपने बाप और माँ और भाईयों बल्कि अपने बाप के सारे घराने को अपने पास घर में जमा' कर रखना|
\v 19 फिर जो कोई तेरे घर के दरवाज़ों से निकल कर गली में जाये, उस का ख़ून उसी के सर पर होगा और हम बे गुनाह ठहरेंगे; और जो कोई तेरे साथ घर में होगा उस पर अगर किसी का हाथ चले, तो उसका ख़ून हमारे सर पर होगा|
\s5
\v 20 और अगर तू हमारे इस काम का ज़िक्र कर दे, तो हम उस क़सम की तरफ़ से जो तूने हम को खिलाई है बेइल्ज़ाम हो जाएँगे|
\v 21 उसने कहा , "जैसा तुम कहते हो वैसा ही हो| ” इसलिए उसने उनको रवाना किया और वह चल दिए; तब उसने सुर्ख़ रंग की वह डोरी खिड़की में बाँध दी|
\s5
\v 22 और वह जाकर पहाड़ पर पहुँचे और तीन दिन तक वहीं ठहरे रहे, जब तक उनका पीछा करने वाले लौट न आए; और उन पीछा करने वालों ने उनको सारे रास्ते ढूंढा पर कहीं न पाया|
\s5
\v 23 फिर यह दोनों आदमी लौटे और पहाड़ से उतर कर पार गये, और नून के बेटे यशु'अ के पास जाकर सब कुछ जो उन पर गुज़रा था उसे बताया|
\v 24 और उन्होंने यशू'अ से कहा “यक़ीनन ख़ुदावन्द ने वह सारा मुल्क हमारे क़ब्ज़े में कर दिया है क्यूँकि उस मुल्क के सब बाशिंदे हमारे आगे डरे जा रहे हैं| ”
\s5
\c 3
\p
\v 1 तब यशू'अ सुबह सवेरे उठा, और वह सब बनी इस्राईल शित्तीम से रवाना हो कर यरदन पर आए, और पार उतरने से पहले वहीं टिके|
\s5
\v 2 और तीन दिन के बा'द मनसबदार लश्कर के बीच होकर गुज़रे|
\v 3 और उन्होंने लोगों को हुक्म दिया कि जब तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के अहद के सन्दूक़ को देखो और काहिनों और लावी उसे उठाये हुए हों, तो तुम अपनी जगह से उठ कर उसके पीछे पीछे चलना|
\v 4 लेकिन तुम्हारे और उस के बीच पैमाइश करके क़रीब दो हज़ार हाथ का फ़ासला रहे , उसके नज़दीक न जाना; ताकि तुम को मा'लूम हो कि किस रास्ते तुमको चलना है, क्यूँकि तुम अब तक इस राह से कभी नहीं गुज़रे|
\s5
\v 5 और यशू'अ ने लोगों से कहा, "तुम अपने आप को पाक करो क्यूँकि कल के दिन ख़ुदावन्द तुम्हारे बीच 'अजीब-ओ-ग़रीब काम करेगा| ”
\v 6 फिर यशू'अ ने काहिनों से कहा कि तुम 'अहद के सन्दूक़ को ले कर लोगों के आगे आगे पार उतरो| चुनाँचे वह 'अहद के सन्दूक़ को लेकर लोगों के आगे आगे चले|
\s5
\v 7 और ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा, "आज के दिन से मैं तुझे सब इस्राईलियों के सामने सरफ़राज़ करना शुरू'' करूँगा, ताकि वह जान लें कि जैसे मैं मूसा के साथ रहा वैसे ही तेरे साथ रहूँगा|
\v 8 और तू उन काहिनों को जो 'अहद के सन्दूक़ को उठायें यह हुक्म देना, कि जब तुम यरदन के पानी के किनारे पहुँचो तो यरदन में खड़े रहना| ”
\s5
\v 9 और यशू'अ ने बनी इस्राईल से कहा कि पास आकर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बातें सुनो|
\v 10 और यशू'अ कहने लगा कि इस से तुम जान लोगे कि ज़िन्दा ख़ुदा तुम्हारे बीच है, और वही ज़रूर कना'नियों और हित्तियों और हव्वियों, और फ़रिज़्ज़ियों और जरजासियों, और अमोरियों और यबूसियों को तुम्हारे आगे से दफ़ा करेगा|
\v 11 देखो, सारी ज़मीन के मालिक के 'अहद का सन्दूक़ तुम्हारे आगे आगे यरदन में जाने को है|
\s5
\v 12 इसलिए अब तुम हर क़बीला पीछे एक आदमी के हिसाब से बारह आदमी इस्राईल के क़बीलों में से चुन लो|
\v 13 और जब यरदन के पानी में उन काहिनों के पाँव के तलवे टिक जाएँगे, जो ख़ुदावन्द या'नी सारी दुनिया के मालिक के 'अहद का सन्दूक़ उठाते हैं तो यरदन का पानी या'नी वह पानी जो उपर से बहता हुआ नीचे आता है थम जायेगा, और उस का ढेर लग जाएगा|
\s5
\v 14 और जब लोगों ने यरदन के पार जाने को अपने ख़ेमों से रवानगी की और वह काहिन जो 'अहद का सन्दूक़ उठाये हुए थे, लोगों के आगे आगे हो लिए|
\v 15 और जब 'अहद के संदूक़ के उठाने वाले यरदन पर पहुँचे और उन काहिनों के पाँव जो संदूक़ को उठाये हुए थे, किनारे के पानी में डूब गए (क्यूँकि फ़सल के तमाम दिनों में यरदन का पानी चारों तरफ़ अपने किनारों से ऊपर चढ़कर बहा करता है ),
\v 16 तो जो पानी ऊपर से आता था वह ख़ूब दूर 'अदम के पास जो ज़रतान के बराबर एक शहर है, रुक कर एक ढेर हो गया; और वह पानी जो मैदान के दरिया या'नी दरिया-ए-शोर की तरफ़ बह कर गया था बिल्कुल अलग हो गया और लोग 'ऐन यरीहू के मुक़ाबिल पार उतरे|
\s5
\v 17 और वह काहिन जो ख़ुदावन्द के 'अहद का संदूक़ उठाये हुए थे यरदन के बीच में सूखी ज़मीन पर खड़े रहे; और सब इस्राईली ख़ुश्क ज़मीन पर हो कर गुज़रे, यहाँ तक कि सारी क़ौम साफ़ यरदन के पार हो गयी|
\s5
\c 4
\p
\v 1 और जब सारी क़ौम यरदन के पार हो गई तो ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा कि|
\v 2 क़बीला पीछे एक आदमी के हिसाब से बारह आदमी लोगों में से चुन लो|
\v 3 और उन को हुक्म दो कि तुम यरदन के बीच में से जहाँ काहिनों के पाँव जमे हुए थे बारह पत्थर लो और उनको अपने साथ ले जा कर उस मंज़िल पर जहाँ तुम आज की रात टिकोगे रख देना|
\s5
\v 4 तब यशू'अ ने उन बारह आदमियों को जिनको उस ने बनी इस्राईल में से क़बीला पीछे एक आदमी के हिसाब से तैयार कर रखा था बुलाया|
\v 5 और यशू'अ ने उन से कहा, " तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के 'अहद के सन्दूक़ के आगे आगे यरदन के बीच में जाओ, और तुम में से हर शख़्स बनी इस्राईल के क़बीलों के शुमार के मुताबिक़ एक एक पत्थर अपने कन्धे पर उठा ले|
\s5
\v 6 ताकि यह तुम्हारे बीच एक निशान हो, और जब तुम्हारी औलाद आइन्दा ज़माने में तुम से पूछे, कि इन पत्थरों से तुम्हारा क्या मतलब है ?
\v 7 तो तुम उन को जवाब देना कि यरदन का पानी ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ के आगे दो हिस्से हो गया था; क्यूँकि जब वह यरदन पार आ रहा था तब यरदन का पानी दो हिस्से होगया| यूँ यह पत्थर हमेशा के लिए बनी इस्राईल के वास्ते यादगार ठहरेंगे| ”
\s5
\v 8 चुनाँचे बनी इस्राईल ने यशू'अ के हुक्म के मुताबिक़ किया, और जैसा ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा था उन्होंने बनी इस्राईल के क़बीलों के शुमार के मुताबिक़ यरदन के बीच में से बारह पत्थर उठा लिए; और उन को उठा कर अपने साथ उस जगह ले गये जहाँ वह टिके और वहीं उनको रख दिया|
\v 9 और यशू'अ ने यरदन के बीच में उस जगह जहाँ 'अहद के सन्दूक़ के उठाने वाले काहिनों ने पाँव जमाये थे बारह पत्थर खड़े किये; चुनाँचे वह आज के दिन तक वहीं हैं|
\s5
\v 10 क्यूँकि वह काहिन जो सन्दूक़ को उठाये हुए थे यरदन के बीच ही में खड़े रहे, जब तक उन सब बातों के मुताबिक़ जिनका हुक्म मूसा ने यशू'अ को दिया था हर एक बात पूरी न हो चुकी, जिसे लोगों को बताने का हुक्म ख़ुदावन्द ने यशू'अ को किया था; और लोगों ने जल्दी की और पार उतरे|
\v 11 और ऐसा हुआ कि जब सब लोग साफ़ पार हो गये, ~तो ख़ुदावन्द का सन्दूक़ और काहिन भी लोगों के रूबरू पार हुए|
\s5
\v 12 और बनी रुबिन और बनी जद्द और मनस्सी के आधे क़बीले के लोग मूसा के कहने के मुताबिक़ हथियार बांधे हुए बनी इस्राईल के आगे पार गये;
\v 13 या'नी क़रीब चालीस हज़ार आदमी लड़ाई के लिए तैयार और हथियार बांधे हुए ~ख़ुदावन्द के सामने पार होकर यरीहू के मैदान में पहुँचे ताकि जंग करें|
\v 14 उस दिन ख़ुदावन्द ने सब इस्राईलियों के सामने यशू'अ को सरफ़राज़ किया; और जैसा वह मूसा से डरते थे, वैसे ही उससे उसकी ज़िन्दगी भर डरते रहे|
\s5
\v 15 और ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा कि|
\v 16 इन काहिनो को जो 'अहद का सन्दूक़ उठाये हुए हैं, हुक्म कर कि वह यरदन में से निकल आयें|
\s5
\v 17 चुनाँचे यशू'अ ने काहिनो को हुक्म दिया कि यरदन में से निकल आओ|
\v 18 और जब वह काहिन जो ख़ुदावन्द के 'अहद का सन्दूक़ उठाये हुए थे यरदन के बीच में से निकल आए, और उनके पाँव के तलवे ख़ुश्की पर आ टिके तो यरदन का पानी फिर अपनी जगह पर आ गया और पहले की तरह अपने सब किनारों पर बहने लगा|
\s5
\v 19 और लोग पहले महीने की दसवीं तारीख़ को यरदन में से निकल कर यरीहू की पूरबी सरहद पर जिल्जाल में ख़ेमाज़न हुए|
\v 20 और यशू'अ ने उन बारह पत्थरों को जिनको उन्होंने यरदन में से लिया था जिल्जाल में खड़ा किया|
\v 21 और उस ने बनी इस्राईल से कहा कि जब तुम्हारे लड़के आइन्दा ज़माने में अपने अपने बाप दादा से पूछें, कि इन पत्थरों का मतलब क्या है ?|
\s5
\v 22 तो तुम अपने लड़कों को यही बताना कि इस्राईली ख़ुश्की ख़ुश्की हो कर इस यरदन के पार आए थे|
\v 23 क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने जब तक तुम पार न हो गये, यरदन के पानी को तुम्हारे सामने से हटा कर सुखा दिया; जैसा ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने बहर-ए- कुल्ज़ुम से किया, कि उसे हमारे सामने से हटा कर सुखा दिया जब तक हम पार न हो गये|
\v 24 ताकि ज़मीन की सब क़ौमें जान लें कि ख़ुदावन्द का हाथ ताक़तवर है| और ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा से हमेशा डरती रहें|
\s5
\c 5
\p
\v 1 और जब उन अमोरियों के सब बादशाहों ने जो यरदन के पार पश्चिम की तरफ़ थे, और उन कना'नियों के तमाम बादशाहों ने जो समन्दर के नज़दीक थे सुना, कि ख़ुदावन्द ने बनी इस्राईल के सामने से यरदन के पानी को हटा कर सुखा दिया, जब तक हम पार न आ गये तो उनके दिल डर गये और उन में बनी इस्राईल की वजह से जान बाक़ी न रही|
\s5
\v 2 उस वक़्त ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा कि चक़मक़ की छुरियां बना कर बनी इस्राईल का ख़तना फिर दूसरी बार कर दे|
\v 3 और यशू'अ ने चक़मक़़ की छुरियां बनायीं और खल्ड़ियों की पहाड़ी पर बनी इस्राईल का ख़तना किया|
\s5
\v 4 और यशू'अ ने जो ख़तना किया उसकी वजह यह है, कि वह लोग जो मिस्र से निकले, उन में जितने जंगी मर्द थे वह सब वीराने में मिस्र से निकलने के बा'द रास्ते ही में मर गये|
\v 5 तब वह सब लोग जो निकले थे उनका ख़तना हो चुका था, लेकिन वह सब लोग जो वीराने में मिस्र से निकलने के बा'द रास्ते ही में पैदा हुए थे उनका ख़तना नहीं हुआ था|
\s5
\v 6 क्यूँकि बनी इस्राईल चालीस बरस तक वीराने में फिरते रहे, जब तक सारी क़ौम या'नी सब जंगी मर्द जो मिस्र से निकले थे फ़ना न हो गये| इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द की बात नहीं मानी थी| उन ही से ख़ुदावन्द ने क़सम खा कर कहा था, कि वह उनको उस मुल्क को देखने भी न देगा जिसे हमको देने की क़सम उस ने उनके बाप दादा से खाई और जहाँ दूध और शहद बहता है|
\v 7 तब उन ही के लड़कों का जिनको उस ने उनकी जगह बरपा किया था, यशू'अ ने ख़तना किया क्यूँकि वह नामख़्तून थे इसलिए कि रास्ते में उनका ख़तना नहीं हुआ था|
\s5
\v 8 और जब सब लोगों का ख़तना कर चुके तो यह लोग ख़ेमागाह में अपनी अपनी जगह रहे जब तक अच्छे न हो गये|
\v 9 फिर ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा कि आज के दिन में मिस्र की मलामत को तुम पर से ढलका दिया| इसी वजह से आज के दिन तक उस जगह का नाम जिल्जाल है|
\s5
\v 10 और बनी इस्राईल ने जिल्जाल में डेरे डाल लिए, और उन्होंने यरीहू के मैदानों में उसी महीने की चौदहवीं तारीख़ को शाम के वक़्त 'ईद-ए- फ़सह मनाई|
\v 11 और 'ईद-ए- फ़सह के दूसरे दिन उस मुल्क के पुराने अनाज की बेख़मीरी रोटियां और उसी रोज़ भुनी हुईं बालें भी खायीं|
\s5
\v 12 और दूसरे ही दिन से उनके उस मुल्क के पुराने अनाज के खाने के बा'द मन्न रोक दिया गया और आगे फिर बनी इस्राईल को मन्न कभी न मिला, लेकिन उस साल उन्होंने मुल्क कना'न की पैदावार खाई|
\s5
\v 13 और जब यशू'अ यरीहू के नज़दीक था तो उस ने अपनी आँखें उठायीं और क्या देखा कि उसके मुक़ाबिल एक शख़्स हाथ में अपनी नंगी तलवार लिए खड़ा है; और यशू'अ ने उस के पास जा कर उस से कहा, " तू हमारी तरफ़ है या हमारे दुश्मनों की तरफ़ ?”
\s5
\v 14 उस ने कहा, " नहीं! बल्कि मैं इस वक़्त ख़ुदावन्द के लश्कर का सरदार हो कर आया हूँ| ” तब यशू'अ ने ज़मीन पर सरनगूँ हो कर सिज्दा किया और उससे कहा, " मेरे मालिक का अपने ख़ादिम से क्या इरशाद है ?”
\v 15 और ख़ुदावन्द के लश्कर के सरदार ने यशू'अ से कहा कि तू अपने पाँव से अपनी जूती उतार दे क्यूँकि यह जगह जहाँ तू खड़ा है पाक है| इसलिए यशू'अ ने ऐसा ही किया|
\s5
\c 6
\p
\v 1 (और यरीहू बनी इस्राईल की वजह ~से निहायत मज़बूती से बंद था और न तो कोई बाहर जाता और न कोई अन्दर आता था )|
\v 2 और ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा कि देख मैं ने यरीहू को और उसके बादशाह और ज़बरदस्त सूरमाओं को तेरे हाथ में कर दिया है|
\s5
\v 3 इसलिए तुम जंगी मर्द शहर को घेर लो, और एक दफ़ा' उसके चौगिर्द गश्त करो| छ: दिन तक तुम ऐसा ही करना|
\v 4 और सात काहिन सन्दूक़ के आगे आगे मेंढों के सींगों के सात नरसिंगे लिए हुए चलें! और सातवें दिन तुम शहर की चारों तरफ़ सात बार घूमना, और काहिन नरसिंगे फूँकें|
\s5
\v 5 और यूँ होगा कि जब वह मेंढे के सींग को ज़ोर से फूँकें और तुम नरसिंगे की आवाज़ सुनो तो सब लोग निहायत ज़ोर से ललकारें; तब शहर की दीवार बिल्कुल गिर जायेगी और लोग अपने अपने सामने सीधे चढ़ जायें|
\s5
\v 6 और नून के बेटे यशू'अ ने काहिनों को बुला कर उन से कहा कि 'अहद के सन्दूक़ को उठाओ, और सात काहिन मेंढों के सींगो के सात नरसिंगे लिए हुए ख़ुदावन्द के सन्दूक़ के आगे आगे चलें|
\v 7 और उन्होंने लोंगों से कहा, " बढ़ कर शहर को घेर लो और जो आदमी हथियार लिए हैं वह ख़ुदा के सन्दूक़ के आगे आगे चलें| ”
\s5
\v 8 और जब यशू'अ लोगों से यह बातें कह चुका, तो सात काहिन मेंढों के सींगों के सात नरसिंगे लिए हुए ख़ुदावन्द के आगे आगे चले और वह नरसिंगे फूँकते गये और ख़ुदावन्द के 'अहद का सन्दूक़ उनके पीछे पीछे चला|
\v 9 और वह हथियार लिए आदमी उन काहिनों के आगे आगे चले जो नरसिंगे फूँक रहे थे, और दुम्बाला सन्दूक़ के पीछे पीछे चला, और काहिन चलते चलते नरसिंगे फूँकते जाते थे|
\s5
\v 10 और यशू'अ ने लोगों को हुक्म दिया कि न तुम ललकारना, और न तुम्हारी आवाज़ सुनायी दे और न तुम्हारे मुँह से कोई बात निकले| जब मैं तुम को ललकारने को कहूँ तब तुम ललकारना|
\v 11 इसलिए उसने ख़ुदावन्द के सन्दूक़ को शहर के गिर्द एक बार फिरवाया| तब वह ख़ेमागाह में आए और वहीं रात काटी|
\s5
\v 12 और यशू'अ सुबह सवेरे उठा और काहिनों ने ख़ुदावन्द का सन्दूक़ उठा लिया|
\v 13 और वह सात काहिन मेंढों के सींगों के सात नरसिंगे लिए हुए ख़ुदावन्द के सन्दूक़ के आगे आगे बराबर चलते और नरसिंगे फूँकते जाते थे और वह हथियार लिए आदमी आगे आगे हो लिए और दुम्बाला ख़ुदावन्द के सन्दूक़ के पीछे पीछे चला, और काहिन चलते चलते नरसिंगे फूँकते जाते थे|
\v 14 और दूसरे दिन भी वह एक बार शहर के गिर्द घूम कर ख़ेमागाह में फिर आए| उनहोंने छे दिन तक ऐसा ही किया|
\s5
\v 15 और सातवें दिन यूँ हुआ कि वह सुबह को पौ फटने के वक़्त उठे और उसी तरह शहर के गिर्द सात बार फिरे; सात बार शहर के गिर्द सिर्फ़ उसी दिन फिरे|
\v 16 और सातवीं बार ऐसा हुआ कि जब काहिनों ने नरसिंगे फूंके तो यशू'अ ने लोगों से कहा, " ललकारो! क्यूँकि ख़ुदावन्द ने यह शहर तुम को दे दिया है|
\s5
\v 17 और वह शहर और जो कुछ उस में है सब ख़ुदावन्द की ख़ातिर बर्बाद होगा| सिर्फ़ राहिब कस्बी और जितने उसके साथ घर में हों वह सब जीते बचेंगे, इसलिए कि उस ने उन क़ासिदों को जिनको हम ने भेजा छुपा रखा था|
\v 18 और तुम बहरहाल अपने आप को मख़्सूस की हुई चीज़ों से बचाए रखना, ऐसा न हो कि उनको मख़्सूस करने के बा'द तुम किसी मख़्सूस की हुई चीज़ को लो और यूँ इस्राईल की ख़ेमागाह को ला'नती कर डालो और उसे दुख दो|
\v 19 लेकिन सब चाँदी और सोना और बरतन जो पीतल और लोहे के हों ख़ुदावन्द के लिए पाक हैं~इसलिए वह ख़ुदावन्द के ख़ज़ाने में दाख़िल किये जाएँ| ”
\s5
\v 20 तब लोगों ने ललकारा और काहिनों ने नरसिंगे फूँके, और ऐसा हुआ कि जब लोगों ने नरसिंगे की आवाज़ सुनी तो उन्होंने बुलंद आवाज़ से ललकारा और दीवार बिल्कुल गिर पड़ी और लोगों में से हर एक आदमी अपने सामने से चढ़ कर शहर में घुसा और उन्होंने उस को ले लिया|
\v 21 और उन्होंने उन सब को जो शहर में थे क्या मर्द क्या 'औरत, क्या जवान क्या बुढ्ढे, क्या बैल क्या भेड़ क्या गधे सब को तलवार की धार से बिल्कुल हलाक कर दिया|
\s5
\v 22 और यशू'अ ने उन दोनों आदमियों से जिन्होंने उस मुल्क की जासूसी की थी कहा कि उस कस्बी के घर जाओ, और वहाँ से जैसी तुम ने उस से क़सम खाई है उसके मुताबिक़ उस 'औरत को और जो कुछ उसके पास है सब को निकाल लाओ|
\s5
\v 23 तब वह दोनों जवान जासूस अन्दर गये और राहब को और उसके बाप और उसकी माँ और उसके भाइयों को, और उसके अस्बाब बल्कि उसके सारे ख़ानदान को निकाल लाये, और उनको बनी इस्राईल की ख़ेमागाह के बाहर बिठा दिया|
\v 24 फिर उन्होंने उस शहर को और जो कुछ उस में था सब को आग से फूँक दिया और सिर्फ़ चाँदी और सोने को और पीतल और लोहे के बरतनों को ख़ुदावन्द के घर के ख़़ज़ाने में दाख़िल किया|
\s5
\v 25 लेकिन यशू'अ ने राहब कस्बी और उस के बाप के घराने को और जो कुछ उसका था सब को सलामत बचा लिया| उसकी रिहाइश आज के दिन तक इस्राईल में है, क्यूँकि उस ने उन क़ासिदों को जिनको यशू'अ ने यरीहू में जासूसी के लिए भेजा था छिपा रखा था|
\s5
\v 26 और यशू'अ ने उस वक़्त उन को क़सम दे कर ताकीद की और कहा कि जो शख़्स उठ कर इस यरीहू शहर को फिर बनाये वह ख़ुदावन्द के सामने मला'ऊन हो| वह अपने पहलौठे को उसकी नींव डालते वक़्त और अपने सब से छोटे बेटे को उसके फाटक लगवाते वक़्त खो बैठेगा|
\v 27 इसलिए ख़ुदावन्द यशू'अ के साथ था और उस सारे मुल्क में उसकी शोहरत फैल गयी|
\s5
\c 7
\p
\v 1 लेकिन बनी इस्राईल ने मख़्सूस की हुई चीज़ में ख़यानत की, क्यूँकि 'अकन बिन करमी बिन ज़ब्दी बिन ज़ारह ने जो यहूदाह के क़बीले का था उन मख़्सूस की हुई चीज़ों में से कुछ ले लिया; ~इसलिए ख़ुदावन्द का क़हर बनी इस्राईल पर भड़का|
\s5
\v 2 और यशू'अ ने यरीहू से 'ए को जो बैतएल की पूरबी सिम्त में बैतआवन के क़रीब आबाद है, कुछ लोग यह कहकर भेजे , कि जाकर मुल्क का हाल दरियाफ़्त करो! और इन लोगों ने जाकर 'ए का हाल दरियाफ़्त किया|
\v 3 और वह यशू'अ के पास लौटे और उस से कहा, " सब लोग न जाएँ सिर्फ़ दो तीन हज़ार मर्द चढ़ जाएँ और 'ए को मार लें| सब लोगों को वहाँ जाने की तकलीफ़ न दे, क्यूँकि वह थोड़े से हैं”
\s5
\v 4 चुनाँचे लोगों में से तीन हज़ार मर्द के क़रीब वहाँ चढ़ गये , और 'ए के लोगों के सामने से भाग आए|
\v 5 और 'ए के लोगों ने उन में से तक़रीबन छत्तीस आदमी मार लिए; और फाटक के सामने से लेकर शबरीम तक उनको खदेड़ते आए और उतार पर उनको मारा| इसलिए उन लोगों के दिल पिघल कर पानी की तरह हो गये|
\s5
\v 6 तब यशू'अ और सब इस्राईली बुज़ुर्गों ने अपने अपने कपड़े फाड़े और ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ के आगे शाम तक ज़मीन पर औंधे पड़े रहे, और अपने अपने सर पर ख़ाक डाली|
\v 7 और यशू'अ ने कहा, " हाय ऐ मालिक ख़ुदावन्द! तू हमको अमोरियों के हाथ में हवाला करके, हमारा नास कराने की ख़ातिर इस क़ौम को यरदन के इस पार क्यों लाया ?काश कि हम सब्र करते और यरदन के उस पार ही ठहरे रहते|
\s5
\v 8 ऐ मालिक, इस्राईलियों के अपने दुश्मनों के आगे पीठ फेर देने के बा'द मैं क्या कहूँ !|
\v 9 क्यूँकि कना'नी और इस मुल्क के सब बाशिन्दे यह सुन कर हम को घेर लेंगे, और हमारा नाम मिटा डालेंगे| फिर तू अपने बुज़ुर्ग नाम के लिए क्या करेगा ?”
\s5
\v 10 और ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा , " उठ खड़ा हो| तू क्यूँ इस तरह औंधा पड़ा है ?
\v 11 इस्राईलियों ने गुनाह किया, और उन्होंने उस 'अहद को जिसका मैंने उनको हुक्म दिया तोड़ा है; उन्होंने मख़्सूस की हुई चीज़ों में से कुछ ले भी लिया, और चोरी भी की और रियाकारी भी की और अपने सामान में उसे मिला भी लिया है|
\v 12 इस लिए बनी इस्राईल अपने दुश्मनों के आगे ठहर नहीं सकते| वह अपने दुश्मनों के आगे पीठ फेरते हैं, क्यूँकि वह मल'ऊन हो गये मैं आगे को तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा, जब तक तुम मख़्सूस की हुई चीज़ को अपने बीच से मिटा न दो|
\s5
\v 13 उठ लोगों को पाक कर और कह कि तुम अपने को कल के लिए पाक करो, क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि ऐ इस्राईलियों! तुम्हारे बीच मख़्सूस की हुई चीज़ मौजूद है तुम अपने दुश्मनों के आगे ठहर नहीं सकते जब तक तुम उस मख़्सूस की हुई चीज़ को अपने बीच से दूर न कर दो| ”
\s5
\v 14 इसलिए तुम कल सुबह को अपने क़बीले के मुताबिक़ हाज़िर किये जाओगे; और जिस क़बीले को ख़ुदावन्द पकड़े वह एक एक ख़ानदान कर के पास आए; और जिस ख़ानदान को ख़ुदावन्द पकड़े वह एक एक घर कर के पास आए; और जिस घर को ख़ुदावन्द पकड़े वह एक-एक आदमी करके पास आए|
\v 15 तब जो कोई मख़्सूस की हुई चीज़ रखता हुआ पकड़ा जाये, वह और जो कुछ उसका हो सब आग से जला दिया जाये; इस लिए कि उस ने ख़ुदावन्द के 'अहद को तोड़ डाला और बनी इस्राईल के बीच शरारत का काम किया|
\s5
\v 16 तब यशू'अ ने सुबह सवेरे उठ कर इस्राईलियों को क़बीला बा क़बीला हाज़िर किया, और यहूदाह का क़बीला पकड़ा गया|
\v 17 फिर वह यहूदाह के ख़ानदानों को नज़दीक लाया, और ज़ारह का ख़ानदान पकड़ा गया| फिर वह ज़ारह के ख़ानदान के एक एक आदमी को नज़दीक लाया, और ज़ब्दी पकड़ा गया|
\v 18 फिर वह उसके घराने के एक एक आदमी को नज़दीक लाया, और 'अकन बिन करमी बिन ज़ब्दी बिन ज़ारह जो यहूदाह के क़बीले का था पकड़ा गया|
\s5
\v 19 तब यशू'अ ने 'अकन से कहा, " ऐ मेरे फ़र्ज़न्द मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की तमजीद कर और उसके आगे इक़रार कर , अब तू मुझे बता दे कि तूने क्या किया है और मुझ से मत छिपा| ”
\v 20 और 'अकन ने यशू'अ को जवाब दिया, " हक़ीक़त में मैंने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा का गुनाह किया है, और यह यह मुझ से सरज़द हुआ है|
\v 21 कि जब मैंने लूट के माल में बाबुल की एक नफ़ीस चादर, और दो सौ मिस्क़ाल चाँदी और पचास मिस्क़ाल सोने की एक ईंट देखी तो मैंने ललचा कर उन को ले लिया; और देख वह मेरे ख़ेमे में ज़मीन में छिपाई हुई हैं और चाँदी उनके नीचे है| ”
\s5
\v 22 तब यशू'अ ने क़ासिद भेजे; वह उस डेरे को दौड़े गये, और क्या देखा कि वह उसके डेरे में छिपाई हुई हैं और चाँदी उनके नीचे है|
\v 23 वह उनको डेरे में से निकाल कर यशू'अ और सब बनी इस्राईल के पास लाये, और उनको ख़ुदावन्द के सामने रख दिया|
\s5
\v 24 तब यशू'अ और सब इस्राईलियों ने ज़ारह के बेटे 'अकन को, और उस चाँदी और चादर और सोने की ईंट को, और उसके बेटों और बेटियों को, और उसके बैलों और गधों और भेड़ बकरियों और डेरे को, और जो कुछ उसका था सबको लिया और वादी-ए-अकूर में उनको ले गये|
\s5
\v 25 और यशू'अ ने कहा कि तूने हम को क्यूँ दुख दिया ?ख़ुदावन्द आज के दिन तुझे दुख देगा !तब सब इस्राईलियों ने उसे संगसार किया; और उन्होंने उनको आग में जलाया और उनको पत्थरों से मारा|
\v 26 और उन्होंने उसके पत्थरों का एक बड़ा ढेर लगा दिया जो आज तक है तब ख़ुदावन्द अपने क़हर-ए- शदीद से बा'ज़ आया| इस लिए उस जगह का नाम आज तक वादी-ए-'अकूर है|
\s5
\c 8
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा, " खौफ़ न खा और न हिरासाँ हो सब जंगी मर्दों को साथ ले और उठ कर 'ए पर चढ़ाई कर देख मैंने 'ए के बादशाह और उसकी क़ौम और उसके शहर और उसके 'इलाक़े को तेरे क़ब्ज़े में कर दिया है|
\v 2 और तू 'ए और उसके बादशाह से वही करना जो तूने यरीहू और उसके बादशाह से किया| सिर्फ़ वहाँ के माल-ए-ग़नीमत और चौपायों को तुम अपने लिए लूट के तौर पर ले लेना| इसलिए तू उस शहर के लिए उसी के पीछे अपने आदमी घात में लगा दे| ”
\s5
\v 3 तब यशू'अ और सब जंगी मर्द 'ए पर चढ़ाई करने को उठे; और यशू'अ ने तीस हज़ार मर्द जो ज़बरदस्त सूरमा थे, चुन कर रात ही को उनको रवाना किया|
\v 4 और उनको यह हुक्म दिया कि देखो !तुम उस शहर के मुक़ाबिल शहर ही के पीछे घात में बैठना; शहर से बहुत दूर न जाना बल्कि तुम सब तैयार रहना|
\s5
\v 5 और मैं उन सब आदमियों को लेकर जो मेरे साथ हैं, शहर के नज़दीक आऊँगा; और ऐसा होगा कि जब वह हमारा सामना करने को पहले की तरह निकल आएंगे, तो हम उनके सामने से भागेंगे|
\v 6 और वह हमारे पीछे पीछे निकल चले आयेंगे, यहाँ तक कि हम उनको शहर से दूर निकाल ले जायेंगे; क्यूँकि वह कहेंगे कि यह तो पहले की तरह हमारे सामने से भागे जातें हैं; ~इसलिए हम उनके आगे से भागेंगे|
\v 7 और तुम घात में से उठ कर शहर पर क़ब्ज़ा कर लेना, क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा उसे तुम्हारे क़ब्ज़े में कर देगा|
\s5
\v 8 और जब तुम उस शहर को ले लो तो उसे आग लगा देना; ख़ुदावन्द के कहने के मुताबिक़ काम करना| देखो, मैंने तुमको हुक्म कर दिया|
\v 9 और यशू'अ ने उनको रवाना किया, और वह आराम गाह में गये और बैत एल और 'ए के पश्चिम की तरफ़ जा बैठे; लेकिन यशू'अ उस रात को लोगों के बीच टिका रहा|
\s5
\v 10 और यशू'अ ने सुबह सवेरे उठ कर लोगों की मौजूदात ली, और वह बनी इस्राईल के बुज़ुर्गों को साथ लेकर लोगों के आगे आगे 'ए की तरफ़ चला|
\v 11 और सब जंगी मर्द जो उसके साथ थे चले, और नज़दीक पहुँचकर शहर के सामने आए और 'ए के उत्तर में डेरे डाले, और यशू'अ और 'ए के बीच एक वादी थी|
\v 12 तब उस ने कोई पाँच हज़ार आदमियों को लेकर बैतएल और 'ए के बीच शहर के पश्चिम की तरफ़ उनको आराम गाह में बिठाया|
\s5
\v 13 इसलिए उन्होंने लोगों को या'नी सारी फ़ौज जो शहर के उत्तर में थी, और उनको जो शहर की पश्चिमी तरफ़ घात में थे ठिकाने पर कर दिया; और यशू'अ उसी रात उस वादी में गया|
\v 14 और जब 'ए के बादशाह ने देखा, तो उन्होंने जल्दी की और सवेरे उठे और शहर के आदमी या'नी वह और उसके सब लोग निकल कर मु'अय्यन वक़्त पर लड़ाई के लिए बनी इस्राईल के मुक़ाबिल मैदान के सामने आए; और उसे ख़बर न थी कि शहर के पीछे उसकी घात में लोग बैठे हुए हैं|
\s5
\v 15 तब यशू'अ और सब इस्राईलियों ने ऐसा दिखाया, गोया उन्होंने उन से शिकस्त खाई और वीराने के रास्ते होकर भागे|
\v 16 और जितने लोग शहर में थे वह उनका पीछा करने के लिए बुलाये गये; और उन्होंने यशू'अ का पीछा किया और शहर से दूर निकले चले गये|
\v 17 और 'ए और बैतएल में कोई आदमी बाक़ी न रहा जो इस्राईलियों के पीछे न गया हो; और उन्होंने शहर को खुला छोड़ कर इस्राईलियों का पीछा किया|
\s5
\v 18 तब ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा कि जो बरछा तेरे हाथ में है उसे 'ए की तरफ़ बढ़ा दे, क्यूँकि मैं उसे तेरे क़ब्ज़े में कर दूँगा और यशू'अ ने उस बरछे को जो उसके हाथ में था शहर की तरफ़ बढ़ाया|
\v 19 तब उसके हाथ बढ़ाते ही जो घाट में थे अपनी जगह से निकले, और दौड़ कर शहर में दाख़िल हुए और उसे सर कर लिया, और जल्द शहर में आग लगा दी|
\s5
\v 20 और जब 'ए के लोगों ने पीछे मुड़ कर नज़र की, तो देखा, कि शहर का धुंआ आसमान की तरफ़ उठ रहा है और उनका बस न चला कि वह इधर या उधर भागें, और जो लोग वीराने की तरफ़ भागे थे वह पीछा करने वालों पर उलट पड़े|
\v 21 और जब यशू'अ और सब इस्राईलियों ने देखा कि घात वालों ने शहर ले लिया और शहर का धुंआ उठ रहा है, तो उन्होंने पलट कर 'ए के लोगों को क़त्ल किया|
\s5
\v 22 और वह दूसरे भी उनके मुक़ाबले को शहर से निकले; इसलिए वह सब के सब इस्राईलियों के बीच में, जो कुछ तो इधर और उधर थे पड़ गये , और उन्होंने उनको मारा यहाँ तक कि किसी को न बाक़ी छोड़ा न भागने दिया|
\v 23 और वह 'ए के बादशाह को ज़िन्दा गिरफ़्तार करके यशू'अ के पास लाये|
\s5
\v 24 और जब इस्राईली 'ए के सब बाशिंदों को मैदान में उस वीराने के बीच जहाँ उन्होंने इनका पीछा किया था क़त्ल कर चुके, और वह सब तलवार से मारे गये यहाँ तक कि बिल्कुल फ़ना हो गये, तो सब इस्राईली 'ए को फिरे और उसे बर्बाद कर दिया|
\v 25 चुनाँचे वह जो उस दिन मारे गये, मर्द 'औरत मिला कर बारह हज़ार या'नी 'ए के सब लोग थे|
\v 26 क्यूँकि यशू'अ ने अपना हाथ जिस से वह बरछे को बढ़ाये हुए था नहीं खींचा, जब तक कि उस ने 'ए के सब रहने वालों को बिल्कुल हलाक न कर डाला|
\s5
\v 27 और इस्राईलियों ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़, जो उस ने यशू'अ को दिया था अपने लिए सिर्फ़ शहर के चौपायों और माल-ए-ग़नीमत को लूट में लिया|
\v 28 तब यशू'अ ने 'ए को जला कर हमेशा के लिए उसे एक ढेर और वीराना बना दिया, जो आज के दिन तक है|
\s5
\v 29 और उस ने 'ए के बादशाह को शाम तक दरख़्त पर टांग रखा; और जूँ ही सूरज डूबने लगा, उन्होंने यशू'अ के हुक्म से उसकी लाश को दरख़्त से उतार कर शहर के फाटक के सामने डाल दिया, और उस पर पत्थरों का एक बड़ा ढेर लगा दिया जो आज के दिन तक है|
\s5
\v 30 तब यशू'अ ने कोह-ए-'एबाल पर ख़ुदावन्द इस्राईल के खुदा के लिए एक मज़बह बनाया|
\v 31 जैसा ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने बनी इस्राईल को हुक्म दिया था, और जैसा मूसा की शरी'अत की किताब में लिखा है; यह मज़बह बे खड़े पत्थरों का था जिस पर किसी ने लोहा नहीं लगाया था, और उन्होंने उस पर ख़ुदावन्द के सामने सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और सलामती के ज़बीहे पेश किये|
\v 32 और उस ने वहाँ उन पत्थरों पर मूसा की शरी'अत की जो उस ने लिखी थीं, सब बनी इस्राईल के सामने एक नक़ल कन्दा की|
\s5
\v 33 और सब इस्राईली और उनके बुज़ुर्ग और मनसबदार और क़ाज़ी, या'नी देसी और परदेसी दोनों लावी काहिनों के आगे जो ख़ुदावन्द के आगे, जो ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ के उठाने वाले थे, सन्दूक़ के इधर और उधर खड़े हुए| इन में से आधे तो कोह-ए-गरज़ीम के मुक़ाबिल थे जैसा ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने पहले हुक्म दिया था कि वह इस्राईली लोगों को बरकत दें|
\s5
\v 34 इसके बा'द उस ने शरी'अत की सब बातें, या'नी बरकत और ला'नत जैसी वह शरी'अत की किताब में लिखी हुई हैं, पढ़ कर सुनायीं|
\v 35 चुनाँचे जो कुछ मूसा ने हुक्म दिया था, उस में से एक बात भी ऐसी न थी जिसे यशू'अ ने बनी इस्राईल की सारी जमा'अत, और 'औरतों और बाल बच्चों और उन मुसाफ़िरों के सामने जो उनके साथ मिल कर रहते थे न पढ़ा हो|
\s5
\c 9
\p
\v 1 और जब उन सब हित्ती, अमोरी, कना'नी , फ़रिज़्ज़ी , हव्वी और यबूसी बादशाहों ने जो यरदन के उस पार पहाड़ी मुल्क और नशेब की ज़मीन और बड़े समन्दर के उस साहिल पर जो लुबनान के सामने है रहते थे यह सुना|
\v 2 तो वह सब के सब इकठ्ठा हुए ताकि मुत्तफ़िक़ हो कर यशू'अ और बनी इस्राईल से जंग करें|
\s5
\v 3 और जब जिबा'ऊन के बाशिंदों ने सुना कि यशू'अ ने यरीहू और 'ए से क्या क्या किया है|
\v 4 तो उन्होंने भी हीला बाज़ी की और जाकर सफ़ीरों का भेस भरा , और पुराने बोरे और पुराने फटे हुए और मरम्मत किये हुए शराब के मश्कीज़े अपने गधों पर लादे|
\v 5 और पाँव में पुराने पैवन्द लगे हुए जूते और तन पर पुराने कपड़े डाले, और उनके सफ़र का खाना सूखी फफूँदी लगी हुई रोटियां थीं|
\s5
\v 6 और वह जिल्जाल में ख़ेमागाह को यशू'अ के पास जाकर उस से और इस्राईली मर्दों से कहने लगे, "हम एक दूर मुल्क से आयें हैं; इसलिए अब तुम हम से 'अहद बाँधों| ”
\v 7 तब इस्राईली मर्दों ने उन हव्वियों से कहा, कि शायद तुम हमारे बीच ही रहते हो; फिर हम तुम से क्यूँकर 'अहद बाँधें ?
\v 8 उन्होंने यशू'अ से कहा, " हम तेरे ख़ादिम हैं| तब यशू'अ ने उन से पूछा, " तुम कौन हो और कहाँ से आए हो ?”
\s5
\v 9 उन्होंने ने उस से कहा, " तेरे ख़ादिम एक बहुत दूर मुल्क से ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के नाम के ज़रिये' आए हैं क्यूँकि हम ने उसकी शोहरत और जो कुछ उस ने मिस्र में किया|
\v 10 और जो कुछ उस ने अमोरियों के दोनों बादशाहों से जो यरदन के उस पार थे, या'नी हसबून के बादशाह सीहोन और बसन के बादशाह 'ओज़ से जो असतारात में था किया सब सुना है|
\s5
\v 11 इसलिए हमारे बुज़ुर्गों और हमारे मुल्क के सब बाशिंदों ने हम से यह कहा कि तुम सफ़र के लिए अपने हाथ में खाना ले लो और उन से मिलने को जाओ और उन से कहो कि हम तुम्हारे ख़ादिम हैं~इसलिए ~तुम अब हमारे साथ 'अहद बाँधो|
\v 12 जिस दिन हम तुम्हारे पास आने को निकले हमने अपने अपने घर से अपने खाने की रोटी गरम गरम ली, और अब देखो वह सूखी है और उसे फफूँदी लग गई|
\v 13 और मय के यह मश्कीज़े जो हम ने भर लिए थे नये थे, और देखो यह तो फट गये; और यह हमारे कपड़े और जूते दूर-ओ-दराज़ सफ़र की वजह से पुराने हो गये|
\s5
\v 14 तब इन लोगों ने उनके खाने में से कुछ लिया और ख़ुदावन्द से मशवरत न की|
\v 15 और यशू'अ ने उन से सुलह की और उनकी जान बख़्शी करने के लिए उन से 'अहद बाँधा, और जमा'अत के अमीरों ने उन से क़सम खाई|
\s5
\v 16 और उनके साथ 'अहद बाँधने से तीन दिन के बा'द उनके सुनने में आया, कि यह उनके पड़ोसी हैं और उनके बीच ही रहते हैं|
\v 17 और बनी इस्राईल रवाना हो कर तीसरे दिन उनके शहरों में पहुँचे; जिबा'ऊन और कफ़ीरह और बैरूत और क़रयत या'रीम उनके शहर थे|
\s5
\v 18 और बनी इस्राईल ने उनको क़त्ल न किया इसलिए कि जमा'अत के अमीरों ने उन से ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की क़सम खाई थी; और सारी जमा'अत उन अमीरों पर कुड़कुड़ाने लगी
\v 19 लेकिन उन सब अमीरों ने सारी जमा'अत से कहा कि हम ने उन से ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की क़सम खाई है, इसलिए हम उन्हें छू नहीं सकते|
\s5
\v 20 हम उन से यही करेंगे और उनको जीता छोड़ेंगे ऐसा न हो कि उस क़सम की वजह से जो हम ने उन से खाई है, हम पर ग़ज़ब टूटे|
\v 21 इसलिए अमीरों ने उन से यही कहा कि उनको जीता छोड़ो| तब वह सारी जमा'अत के लिए लकड़हारे और पानी भरने वाले बने जैसा अमीरों ने उन से कहा था|
\s5
\v 22 तब यशू'अ ने उनको बुलवा कर उन से कहा जिस हाल कि तुम हमारे बीच रहते हो, तुम ने यह कह कर हमको क्यूँ फ़रेब दिया कि हम तुम से बहुत दूर रहते हैं ?
\v 23 इसलिए अब तुम ला'नती ठहरे, और तुम में से कोई ऐसा न रहेगा जो ग़ुलाम या'नी मेरे ख़ुदा के घर के लिए लकड़हारा और पानी भरने वाला न हो|
\s5
\v 24 उन्होंने यशू'अ को जवाब दिया कि तेरे ख़ादिमों को तहक़ीक़ यह ख़बर मिली थी, कि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने अपने बन्दे मूसा को फ़रमाया कि सारा मुल्क तुमको दे और उस मुल्क के सब बाशिंदों को तुम्हारे सामने से हलाक करे| इसलिए हमको तुम्हारी वजह से अपनी अपनी जानों के लाले पड़ गये, इस लिए हम ने यह काम किया|
\v 25 और अब देख, हम तेरे हाथ में हैं जो कुछ तू हम से करना भला और ठीक जाने सो कर|
\s5
\v 26 फिर उसने उन से वैसा ही किया, और बनी इस्राईल के हाथ से उनको ऐसा बचाया कि उन्होंने उनको क़त्ल न किया|
\v 27 और यशू'अ ने उसी दिन उनको जमा'अत के लिए और उस मुक़ाम पर जिसे ख़ुदावन्द ख़ुद चुने उसके मज़बह के लिए, लकड़हारे और पानी भरने वाले मुक़र्रर किया जैसा आज तक है
\s5
\c 10
\p
\v 1 और जब यरुशलीम के बादशाह अदूनी सिद्क़ ने सुना कि यशू'अ ने 'ए को सर करके उसे हलाक कर दिया और जैसा उस ने यरीहू और वहाँ के बादशाह से किया वैसा ही 'ए और उसके बादशाह से किया; और जिबा'ऊन के बाशिंदों ने बनीइस्राईल से सुलह कर ली और उनके बीच रहने लगे हैं|
\v 2 तो वह सब बहुत ही डरे, क्यूँकि जिबा'ऊन एक बड़ा शहर बल्कि बादशाही शहरों में से एक की तरह और 'ए से बड़ा था और उसके सब मर्द बड़े बहादुर थे|
\s5
\v 3 इस लिए यरूशलीम के बादशाह अदूनी सिद्क़ ने हबरून के बादशाह हुहाम , और यरमूत के बादशाह पीराम, और लकीस के बादशाह याफ़ी' और अजलून के बादशाह दबीर को यूँ कहला भेजा कि|
\v 4 मेरे पास आओ और मेरी मदद करो और चलो हम जिबा'ऊन को मारें; क्यूँकि उस ने यशू'अ और बनीइस्राईल से सुलह कर ली है|
\s5
\v 5 इसलिए अमोरियों के पाँच बादशाह, या'नी यरूशलीम का बादशाह और हबरून का बादशाह और यरमूत का बादशाह और लकीस का बादशाह और 'अजलून का बादशाह इकठ्ठे हुए; और उन्होंने अपनी सब फ़ौजों के साथ चढ़ाई की और जिबा'ऊन के मुक़ाबिल डेरे डाल कर उस से जंग शुरू' की|
\s5
\v 6 तब जिबा'ऊन के लोगों ने यशू'अ को जो जिलजाल में ख़ेमाज़न था कहला भेजा कि अपने ख़ादिमों की तरफ़ से अपना हाथ मत खींच| जल्द हमारे पास पहुँच कर हमको बचा और हमारी मदद कर, इसलिए कि सब अमूरी बादशाह जो पहाड़ी मुल्क में रहते हैं हमारे ख़िलाफ़ इकठ्ठे हुए हैं|
\v 7 तब यशू'अ सब जंगी मर्दों और सब ज़बरदस्त सूरमाओं को हमराह लेकर जिलजाल से चल पड़ा|
\s5
\v 8 और ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा, " उन से न डर इस लिए कि मैंने उनको तेरे क़ब्ज़े में कर दिया है; उन में से एक आदमी भी तेरे सामने खड़ा न रह सकेगा| ”
\s5
\v 9 तब यशू'अ रातों रात जिल्जाल से चल कर अचानक उन पर आ पड़ा|
\v 10 और ख़ुदावन्द ने उनको बनीइस्राईल के सामने शिकस्त दी; और उस ने उनको जिबा'ऊन में बड़ी ख़ून रेज़ी के साथ क़त्ल किया और बैत हौरून की चढ़ाई के रास्ते पर उनको दौड़ाया और 'अजी़क़ाह और मुक़क़ीदा तक उनको मारता गया|
\s5
\v 11 और जब वह इस्राईलियों के सामने से भागे और बैतहोरून के उतार पर थे, तो ख़ुदावन्द ने 'अज़ीक़ाह तक आसमान से उन पर बड़े बड़े पत्थर बरसाए और वह मर गये; और जो ओलों से मरे वह उनसे जिनको बनीइस्राईल ने तलवार से मारा कहीं ज़्यादा थे|
\s5
\v 12 और उस दिन जब ख़ुदावन्द ने अमोरियों को बनीइस्राईल के क़ाबू में कर दिया यशू'अ ने ख़ुदावन्द के हुज़ूर बनी इस्राईल के सामने यह कहा कि, ऐ सूरज तू जिबा'ऊन पर और ऐ चाँद! तू वादी-ए-अयालून में ठहरा रह|
\s5
\v 13 और सूरज ठहर गया और चाँद थमा रहा| जब तक क़ौम ने अपने दुश्मनों से अपना इन्तिक़ाम न ले लिया| क्या यह आशर की किताब में नहीं लिखा है ?और सूरज आसमान के बीचो बीच ठहरा रहा, और तक़रीबन सारे दिन डूबने में जल्दी न की|
\v 14 और ऐसा दिन कभी उस से पहले हुआ और न उसके बा'द, जिस में ख़ुदावन्द ने किसी आदमी की बात सुनी हो; क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईलियों की ख़ातिर लड़ा|
\s5
\v 15 फिर यशू'अ और उसके साथ सब इस्राईली जिलजाल को ख़ेमागाह में लौटे|
\v 16 और वह पाँचों बादशाह भाग कर मुक़्क़ैदा के ग़ार में जा छिपे|
\v 17 और यशू'अ को यह ख़बर मिली कि वह पाँचो बादशाह मुक़्क़ैदा के ग़ार में छिपे हुए मिले हैं|
\s5
\v 18 यशू'अ ने हुक्म किया कि बड़े बड़े पत्थर उस ग़ार के मुँह पर लुढ़का दो और आदमियों को उसके पास उनकी निगहबानी के लिए बिठा दो|
\v 19 लेकिन तुम न रुको , तुम अपने दुश्मनों का पीछा करो और उन में के जो जो पीछे रह गए ~हैं उनको मार डालो , उनको मोहलत न दो कि वह अपने अपने शहर में दाख़िल हों; इसलिए कि खुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने उनको तुम्हारे क़ब्ज़े में कर दिया है|
\s5
\v 20 और जब यशू'अ और बनी इस्राईल बड़ी ख़ूँरेज़ी के साथ उनको क़त्ल कर चुके, यहाँ तक कि वह हलाक-ओ-बर्बाद हो गये; और वह जो उन में से बाक़ी बचे फ़सील दार शहरों में दाख़िल हो गये|
\v 21 तो सब लोग मुक़्क़ैदा में यशू'अ के पास लश्कर गाह को सलामत लौटे, और किसी ने बनीइस्राईल में से किसी के बरख़िलाफ़ ज़बान न हिलाई|
\s5
\v 22 फिर यशू'अ ने हुक्म दिया कि ग़ार का मुँह खोलो और उन पाँचों बादशाहों को ग़ार से बाहर निकाल कर मेरे पास लाओ
\v 23 उन्होंने ऐसा ही किया और वह पाँचों बादशाहों को या'नी शाह यरुशलीम और शाह-ए-हबरोन और शाह-ए-यारमोत और शाह-ए-लकीस और शाह-ए-अजलून को ग़ार से निकाल कर उसके पास लाये|
\s5
\v 24 और जब वह उनको यशू'अ के सामने लाये तो यशू'अ ने सब इस्राईलियों को बुलवाया और उन जंगी मर्दों के सरदारों से जो उसके साथ गये थे यह कहा कि नज़दीक आकर अपने अपने पाँव इन बादशाहों की गरदनों पर रखो|
\v 25 और यशू'अ ने उन से कहा खौफ़ न करो और हिरासाँ मत हो मज़बूत हो जाओ और हौसला रखो इसलिए कि ख़ुदावन्द तुम्हारे सब दुश्मनों से जिनका मुक़ाबिला तुम करोगे ऐसा ही करेगा|
\s5
\v 26 इसके बा'द यशू'अ ने उनको मारा और क़त्ल किया और पाँच दरख़्तों पर उनको टांग दिया| इसलिए वह शाम तक दरख़्तों पर टंगे रहे|
\v 27 और सूरज डूबते वक़्त उन्होंने यशू'अ के हुक्म से उनको दरख़्तों पर से उतार कर उसी ग़ार में जिस में वह जा छिपे थे डाल दिया, और ग़ार के मुँह पर बड़े बड़े पत्थर रख दिए जो आज तक हैं|
\s5
\v 28 और उसी दिन यशू'अ ने मुक़्क़ैदा को घेर कर के उसे हलाक किया, और उसके बादशाह को और उसके सब लोगों को बिल्कुल हलाक कर डाला और एक भी बाक़ी न छोड़ा; और मुक़्क़ैदा के बादशाह से उसने वही किया जो यरीहू के बादशाह से किया था|
\s5
\v 29 फिर यशू'अ और उसके साथ सब इस्राईली मुक़्क़ैदा से लिबनाह को गये, और वह लिबनाह से लड़ा|
\v 30 और ख़ुदावन्द ने उसको भी और उसके बादशाह को भी बनीइस्राईल के क़ब्ज़े में कर दिया; और उस ने उसे और उसके सब लोगों को हलाक किया और एक को भी बाक़ी न छोड़ा, और वहाँ के बादशाह से वैसा ही किया जो यरीहू के बादशाह से किया था|
\s5
\v 31 फिर लिबनाह से यशू'अ और उसके साथ सब इस्राईली लकीस को गये और उसके मुक़ाबिल डेरे डाल लिए और वह उस से लड़ा|
\v 32 और ख़ुदावन्द ने लकीस को इस्राईल के क़ब्ज़े में कर दिया उस ने दूसरे दिन उस पर फ़तह पायी और उसे हलाक किया और सब लोगों को जो उस में थे क़त्ल किया जिस तरह उस ने लिबनाह से किया था|
\s5
\v 33 उस वक़्त जज़र का बादशाह हुरम लकीस को मदद करने को आया~इसलिए यशू'अ ने उसको और उसके आदमियों को मारा यहाँ तक कि उसका एक भी जीता न छोड़ा| |
\s5
\v 34 और यशू'अ और उसके साथ सब इस्राईली लकीस से 'अजलून को गये और उसके मुक़ाबिल डेरे डालकर उस से जंग शुरू' की|
\v 35 और उसी दिन उसे घेर लिया उसे हलाक किया और उन सब लोगों को जो उस में थे उस ने उसी दिन बिल्कुल हलाक कर डाला जैसा उस ने लकीस से किया था|
\s5
\v 36 फिर 'अजलून से यशू'अ और उसके साथ सब इस्राईली हबरून को गये और उस से लड़े|
\v 37 और उन्होंने उसे घेर करके उसे और उसके बादशाह और उसकी सब बस्तियों और वहाँ के सब लोगों को बर्बाद किया और जैसा उस ने 'अजलून से किया था एक को भी जीता न छोड़ा बल्कि उसे और वहाँ के सब लोगों को बिल्कुल हलाक कर डाला|
\s5
\v 38 फिर यशू'अ और उसके साथ सब इस्राईली दबीर को लौटे और उससे लड़े|
\v 39 और उसने उसे और उसके बादशाह और उसकी सब बस्तियों को फ़तह कर लिया और उन्होंने उनको बर्बाद किया और सब लोगों को जो उस में थे बिल्कुल हलाक कर दिया उसने एक को भी बाक़ी न छोड़ा जैसा उसने हबरून और उसके बादशाह से किया था वैसा ही दबीर और उसके बादशाह से किया, ऐसा ही उस ने लिबनाह और उसके बादशाह से भी किया था|
\s5
\v 40 तब यशू'अ ने सारे मुल्क को या'नी पहाड़ी मुल्क और दख्खिनी हिस्सा और नशीब की ज़मीन और ढलानों और वहाँ के सब बादशाहों को मारा| उस ने एक को भी जीता न छोड़ा बल्कि वहाँ के हर इन्सान को जैसा ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने हुक्म किया था बिल्कुल हलाक कर डाला|
\v 41 और यशू'अ ने उनको क़ादिस बरनी' से लेकर ग़ज़्ज़ा तक और जशन के सारे मुल्क के लोगों को जिबा'ऊन तक मारा|
\s5
\v 42 और यशू'अ ने उन सब बादशाहों पर और उनके मुल्क पर एक ही वक़्त में क़ब्ज़ा हासिल किया इसलिए कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा इस्राईल की ख़ातिर लड़ा|
\v 43 फिर यशू'अ और सब इस्राईली उसके साथ जिल्जाल को ख़ेमागाह में लौटे|
\s5
\c 11
\p
\v 1 जब हसूर के बादशाह याबीन ने यह सुना तो उस ने मदून के बादशाह यूआब और समरून के बादशाह और इक्शाफ़ के बादशाह को|
\v 2 और उन बादशाहों को जो उत्तर की तरफ़ पहाड़ी मुल्क और किन्नरत के दख्खिनी मैदान और नशेब की ज़मीन और पश्चिम की तरफ़ डोर की मुर्तफ़ा ज़मीन में रहते थे|
\v 3 और पूरबी और पश्चिम के कना'नियों और अमूरीयों और हित्तियों और फ़रिज़्ज़ियों और पहाड़ी मुल्क के यबूसियों और हव्वियों को जो हरमून के नीचे मिस्फ़ाह के मुल्क में रहते थे बुलवा भेजा|
\s5
\v 4 तब वह और उनके साथ उनके लश्कर या'नी एक बड़ी भीड़ जो ता'दाद में समन्दर के किनारे की रेत की तरह ~थे बहुत से घोड़ों और रथों को साथ लेकर निकले|
\v 5 और यह सब बादशाह मिलकर आए और उन्होंने मेरुम की झील पर इकठ्ठे डेरे डाले ताकि इस्राईलियों से लड़ें|
\s5
\v 6 तब ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा कि उन से न डरो क्यूँकि कल इस वक़्त मैं उन सब को इस्राईलियों के सामने मार कर डाल दूँगा तू उनके घोड़ों की कूचें काट डालना और उनके रथ आग से जला देना|
\v 7 चुनाँचे यशू'अ और सब जंगी मर्द उसके साथ मेरूम की झील पर अचानक उनके मुक़ाबिले को आए और उन पर टूट पड़े|
\s5
\v 8 और ख़ुदावन्द ने उनको इस्राईलियों के क़ब्ज़े में कर दिया~इसलिए उन्होंने उनको मारा और बड़े सैदा और मिसरफ़ात अलमाइम और पूरब में मिसफ़ाह की वादी तक उनको दौड़ाया और क़त्ल किया यहाँ तक कि उन में से एक भी बाक़ी न छोड़ा|
\v 9 और यशू'अ ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुवाफ़िक़ उन से किया कि उनके घोड़ों की कूँचें काट डालीं और उनके रथ आग से जला दिए|
\s5
\v 10 फिर यशू'अ उसी वक़्त लौटा और उस ने हसूर को घेर करके उसके बादशाह को तलवार से मारा, क्यूँकि अगले वक़्त में हसूर उन सब सल्तनतों का सरदार था|
\v 11 और उन्होंने उन सब लोगों को जो वहाँ थे तहस नहस ~करके उनको, बिल्कुल हलाक कर दिया; वहाँ कोई आदमी बाक़ी न रहा, फिर उस ने हसूर को आग से जला दिया|
\s5
\v 12 और यशू'अ ने उन बादशाहों के सब शहरों को और उन शहरों के सब बादशाहों को लेकर और उनको तहस नहस कर के बिल्कुल हलाक कर दिया, जैसा खुदावन्द के बन्दे मूसा ने हुक्म किया था|
\v 13 लेकिन जो शहर अपने टीलों पर बने हुए थे उन में से किसी को इस्राईलियों ने नहीं जलाया, सिवा हसूर के जिसे यशू'अ ने फूँक दिया था|
\s5
\v 14 और उन शहरों के तमाम माल-ए-ग़नीमत और चौपायों को बनीइस्राईल ने अपने वास्ते लूट में ले लिया, लेकिन हर एक आदमी को तलवार की धार से क़त्ल किया, यहाँ तक कि उनको ख़त्म ~कर दिया और एक आदमी ~को भी न छोड़ा|
\v 15 जैसा ख़ुदावन्द ने अपने बन्दे मूसा को हुक्म दिया था वैसा ही मूसा ने यशू'अ को हुक्म दिया , और यशू'अ ने वैसा ही किया; और जो हुक्म ख़ुदावन्द ने मूसा को दिया था उन में से किसी को उस ने बग़ैर पूरा किये न छोड़ा|
\s5
\v 16 इसलिए ~यशू'अ ने उस सारे मुल्क को, या'नी पहाड़ी मुल्क, और सारे दख्खिनी हिस्से और जशन के सारे मुल्क, और नशेब की ज़मीन, और मैदान और इस्राईलियों के पहाड़ी मुल्क, और उसी के नशेब की ज़मीन, |
\v 17 कोह-ए-ख़ल्क़ से लेकर जो सि'ईर की तरफ़ जाता है, बा'ल जद्द तक जो वादी-ए-लुबनान में कोह-ए-हरमून के नीचे है सब को ले लिया, और उनके बादशाहों पर फ़तह़ हासिल करके उस ने उनको मारा और क़त्ल किया|
\s5
\v 18 और यशू'अ मुद्दत तक उन सब बादशाहों से लड़ता रहा|
\v 19 सिवा हव्वियों के जो जिबा'ऊन के बाशिंदे थे और किसी शहर ने बनीइस्राईल से सुलह नहीं की, बल्कि ~सब को उन्होंने लड़ कर फ़तह किया|
\v 20 क्यूँकि यह ख़ुदावन्द ही की तरफ़ से था कि वह उनके दिलों को ऐसा सख़्त कर दे कि वह जंग में इस्राईल का मुक़ाबला करें ताकि वह उनको बिल्कुल हलाक़ कर डाले और उन पर कुछ मेहरबानी न हो बल्कि वह उनको बर्बाद ~कर दे, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था|
\s5
\v 21 फिर उस वक़्त यशू'अ ने आकर, अनाक़ीम की पहाड़ी मुल्क, या'नी हबरून और दबीर और 'अनाब से बल्कि यहूदाह के सारे पहाड़ी मुल्क और इस्राईल के सारे पहाड़ी मुल्क से काट डाला; यशू'अ ने उनको उनके शहरों के साथ बिल्कुल हलाक़ कर दिया|
\v 22 इसलिए ~अ'नाक़ीम में में से कोई बनीइस्राईल के मुल्क में बाक़ी न रहा, सिर्फ़ गज़्ज़ा और जात और अशदूद में थोड़े से बाक़ी रहे|
\s5
\v 23 तब जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा था, उसके मुताबिक़ यशू'अ ने सारे मुल्क को लिया यशू'अ ने उसे इस्राईलियों को उनके क़बीलों के हिस्से ~के मुवाफ़िक़ मीरास के तौर पर दिया, और मुल्क को जंग से फराग़त मिली|
\s5
\c 12
\p
\v 1 उस मुल्क के वह बादशाह जिनको बनीइस्राईल ने क़त्ल करके उनके मुल्क पर, यरदन के उस पार पूरब की तरफ़ अरनोंन की वादी से लेकर कोह-ए-हरमून तक और तमाम पूरबी मैदान पर, क़ब्ज़ा कर लिया यह हैं ~|
\v 2 अमूरियों का बादशाह सीहून जो हसबून में रहता था और 'अरो'ईर से लेकर जो वादी-ए-अरनून के किनारे है, और उस वादी के बीच के शहर से वादी-ए-यब्बूक़ तक जो बनी 'अम्मून की सरहद है आधे जिल'आद पर, |
\s5
\v 3 और मैदान से बहरे-ए-किन्नरत तक जो पूरब की तरफ़ है, बल्कि पूरब ही की तरफ़ बैत यसीमोत से होकर मैदान के दरिया तक जो दरयाई शोर है, और दख्खिन में पिसगा के दामन के नीचे नीचे हुकूमत करता था|
\v 4 और बसन के बादशाह 'ऊज़ की सरहद , जो रफ़ाईम की बक़िया नसल से था और 'असतारात और अदर'ई में रहता था, |
\v 5 और वह कोह-ए-हरमून और सिल्का और सारे बसन में जसूरियों और मा'कातियों की सरहद तक, आधे जिल'आद में जो हसबून के बादशाह सीहून की सरहद थी, हुकूमत करता था|
\s5
\v 6 उनको ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा और बनीइस्राईल ने मारा, और ख़ुदावन्द के बन्दा मूसा ने बनीरूबिन और बनीजद और मनस्सी के आधे क़बीले को उनका मुल्क, मीरास के तौर पर दे दिया|
\s5
\v 7 और यरदन के इस पार पश्चिम की तरफ़ बा'ल जद से जो वादी-ए-लुबनान में है, कोह-ए-ख़ल्क़ तक जो स'ईर को निकल गया है, जिन बादशाहों को यशू'अ और बनीइस्राईल ने मारा और जिनके मुल्क को यशू'अ ने इस्राईलियों के क़बीलों को उनकी तक़सीम के मुताबिक़ मीरास के तौर पर दे दिया वह यह हैं|
\v 8 पहाड़ी मुल्क और नशीब की ज़मीन और मैदान और ढलानों में और वीरान और दख्खिनी हिस्से में हित्ती और अमूरी और कना'नी और फ़रिज्ज़ी और हव्वी और यबूसी क़ौमों में से; |
\s5
\v 9 एक यरीहू का बादशाह, एक 'ए का बादशाह जो बैतएल के नज़दीक आबाद है|
\v 10 एक यरूशलीम का बादशाह, एक हबरून का बादशाह, |
\v 11 एक यरमूत का बादशाह, एक लकीस का बादशाह, |
\v 12 एक 'अजलून का बादशाह, एक जज़र का बादशाह, |
\s5
\v 13 एक दबीर का बादशाह, एक जदर का बादशाह, |
\v 14 एक हुरमा का बादशाह, एक 'अराद का बादशाह, |
\v 15 एक लिब्नाह का बादशाह, एक उद्लाम का बादशाह, |
\v 16 एक मक़्क़ीदा का बादशाह, एक बैत एल का बादशाह, |
\s5
\v 17 एक तफ़ूह का बादशाह, एक हफ़र का बादशाह, |
\v 18 एक अफ़ीक का बादशाह, एक लशरून का बादशाह, |
\v 19 एक मदून का बादशाह, एक हसूर का बादशाह, |
\v 20 एक सिमरून मरून का बादशाह, एक इक्शाफ़ का बादशाह, |
\s5
\v 21 एक ता'नक का बादशाह, एक मजिद्दो का बादशाह, |
\v 22 एक क़ादिस का बादशाह, एक कर्मिल के यक़'नियाम का बादशाह, |
\v 23 एक दोर की मुर्तफ़ा' ज़मीन के दोर का बादशाह, एक गोइम का बादशाह, जो जिलजाल में था|
\v 24 एक तिरज़ा का बादशाह, यह सब इकतीस बादशाह, थे|
\s5
\c 13
\p
\v 1 और यशू'अ बूढ़ा और 'उम्र रसीदा हुआ और ख़ुदावन्द ने उस से कहा, कि तू बूढ़ा और 'उम्र रसीदा है और क़ब्ज़ा करने को अभी बहुत सा मुल्क बाक़ी है|
\s5
\v 2 और वह मुल्क जो बाक़ी है~इसलिए ~ये है; फिलिस्तियों की सब इक़लीम और सब हबसूरी|
\v 3 सीहूर से जो मिस्र के सामने है उत्तर की तरफ़ 'अक़रून की हद तक जो कना'नियों का गिना जाता है, | फ़िलिस्तियों के पाँच सरदार या'नी ग़ज़ी और अशदूदी असक़लूंनी और जातीऔर अक़रूनी और 'अव्वीम भी|
\s5
\v 4 जो दख्खिन की तरफ़ हैं ~और कना'नियों का सारा मुल्क और मग़ारह जो सैदानियों का है, | अफ़ीक़ या'नी अमूरियों की सरहद तक|
\v 5 और जिब्लियों का मुल्क और पूरब की तरफ़ बा'ल जद से जो कोह-ए-हरमून के नीचे है, हिमात के मद्खल तक सारा लुबनान|
\s5
\v 6 फिर लुबनान से मिसरफ़ात अलमाईम तक पहाड़ी मुल्क के सब बाशिंदे या'नी सब सैदानी| उनको मैं बनीइस्राईल के सामने से निकाल डालूँगा, | तू सिर्फ़ जैसा मैंने तुझको हुक्म दिया है, मीरास के तौर पर उसे इस्राईलियों को तक़सीम कर दे, |
\v 7 इसलिए तू~इस मुल्क को उन नौ क़बीलों और मनस्सी के आधे क़बीले को मीरास के तौर पर बाँट दे, |
\s5
\v 8 मनस्सी के साथ बनी रूबिन और बनी जद ने अपनी अपनी मीरास पा ली थी जिसे मूसा ने यरदन के उस पार पूरब की तरफ़ उनको दिया था, क्यूँकि ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने उसे उन ही को दिया था, या'नी: |
\v 9 'अरो'ईर से जो वादी-ए-अरनून के किनारे आबाद है शुरू', करके वह शहर जो वादी के बीच में है, मिदबा का सारा मैदान दीबोन तक, |
\s5
\v 10 और अमूरियों के बादशाह सीहून के सब शहर जो हसबून में सल्तनत करता था बनी 'अम्मून की सरहद तक|
\v 11 और जिल'आद और जसूरियों और मा'कातियों की नवाही और सारा कोह-ए-हरमून और सारा बसन सलका तक|
\v 12 और 'ओज जो रफ़ाईम की बक़िया नसल से था और 'इस्तारात और अदर'ई में हुक्मरान था उसका सारा 'इलाक़ा जो बसन में था क्यूँकि मूसा ने उनको मार कर अलग कर दिया था|
\s5
\v 13 तो भी बनीइस्राईल ने जसूरियों और मा'कात्तियों को नहीं निकाला चुनाँचे जसूरी और मा'काती आज तक इस्राईलियों के बीच ~बसे हुए हैं|
\s5
\v 14 सिर्फ़ लावी के क़बीले को उस ने कोई मीरास नहीं दी; क्यूँकी ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की आतिशीन क़ुर्बानियाँ उसकी मीरास हैं , जैसा उसने उससे कहा था|
\s5
\v 15 और मूसा ने बनी रूबिन के क़बीले को उनके घरानों के मुताबिक़ मीरास दी, |
\v 16 और उनकी सरहद यह थी: या'नी 'अरो'ईर से जो वादी-ए-अरनोन के किनारे आबाद ~है, और वह शहर जो पहाड़ के बीच में है , और मिदबा के पास का सारा मैदान;
\s5
\v 17 हस्बोन और उसके सब शहर जो मैदान में हैं, दीबोन और बामात बा'ल , बैत बा'ल म'ऊन ,
\v 18 और यह्साह, और क़दीमात, और मफ़'अत,
\v 19 और क़रीताईम, और सिबमाह, और ज़रत-उल-सहर जो पहाड़ के किनारे ~में हैं,
\s5
\v 20 और बैत फ़गू़र, और पिसगा के दामन की ज़मीन, और बैत यसीमोत,
\v 21 और मैदान के सब शहर और अमोरियों के बादशाह सीहोन का सारा मुल्क़ जो हसबोन में सल्तनत करता था, जिसे मूसा ने मिदियान के रईसों अवी और रक़म और सूर और हूर और रब्बा , सीहोन के रईसों के साथ जो उस मुल्क़ में बसते थे, क़त्ल किया था|
\s5
\v 22 और ब'ओर के बेटे बल'आम को भी जो नजूमी था, बनीइस्राईल ने तलवार से क़त्ल करके उनके मक़तूलों के साथ मिला दिया था|
\v 23 और यरदन और उसके 'इलाक़े बनी रूबिन की सरहद थी| यही शहर और उनके गाँव बनी रूबिन के घरानों के मुताबिक़ उनके वारिस ठहरे|
\s5
\v 24 और मूसा ने जद्द के क़बीले या'नी बनी जद्द को उनके घरानों के मुताबिक़ मीरास दी|
\v 25 और उनकी सरहद यह थी: या'ज़ीर और जिल'आद के सब शहर और बनी 'अम्मोन का आधा मुल्क़, 'अरो'ईर तक जो रब्बा के सामने है|
\v 26 और हसबोन से रामात उल मिस्फ़ाह और बतूनीम तक, और महनाईम से दबीर की सरहद तक|
\s5
\v 27 और वादी ~में बैत हारम, और बैत निमरा, और सुक्कात, और सफ़ोन, या'नी हस्बोन के बादशाह सीहोन की अक़लीम का बाक़ी हिस्सा, और यरदन के उस पार पूरब की तरफ़ किन्नरत की झील के उस सिरे तक, यरदन और उस की सारी नवाही|
\v 28 यही शहर और इनके गाँव बनी जद्द के घरानों के मुताबिक़ उनकी मीरास ~ठहरे|
\s5
\v 29 और मूसा ने मनस्सी के आधे क़बीले को भी मीरास दी, यह बनी मनस्सी के घरानों के मुताबिक़ उनके आधे क़बीले के लिए थी|
\v 30 और उनकी सरहद यह थी: महनाईम से लेकर सारा बसन और बसन के बादशाह 'ओज़ की तमाम अक़लीम, और या'ईर के सब क़स्बे जो बसन में हैं वह साठ शहर हैं,
\v 31 और आधा जिल'आद और 'इस्तारात और अदर'ई जो बसन के बादशाह 'ओज़ के शहर थे, मनस्सी के बेटे मकीर की औलाद को मिले, या'नी मकीर की औलाद के आधे को उनके घरानों के मुताबिक़ यह मिले|
\s5
\v 32 यही वह हिस्से हैं जिनको मूसा ने यरीहू के पास मोआब के मैदानों में यरदन के उस पार पूरब की तरफ़ मीरास ~के तौर पर तक़सीम किया|
\v 33 लेकिन लावी के क़बीले को मूसा ने कोई मीरास नही दी; क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा उनकी मीरास है, जैसा उसने उनसे ख़ुद कहा|
\s5
\c 14
\p
\v 1 और वह हिस्से जिनको कन'आन के मुल्क में बनीइस्राईल ने वारिस ~के तौर पर पाया, और जिनको इली'अज़र काहिन और नून के बेटे यशू'अ और बनीइस्राईल के क़बीलों के आबाई ख़ानदानों के सरदारों ने उनको तक़सीम किया यह हैं|
\s5
\v 2 उनकी मीरास पर्ची से दी गयी, जैसा ख़ुदावन्द ने साढ़े नौ क़बीलों के हक़ में मूसा को हुक्म दिया था|
\v 3 क्यूँकि मूसा ने यरदन के उस पार ढाई क़बीलों की मीरास ~उनको दे दी थी, लेकिन उसने लावियों को उनके बीच कुछ मीरास ~नहीं दी|
\v 4 क्यूँकि बनी यूसुफ़ के दो क़बीले थे, मनस्सी और इफ़्राईम, ~इसलिए लावियों को उस मुल्क में कुछ हिस्सा न मिला सिवा शहरों के जो उनके रहने के लिए थे और उनकी नवाही के जो उनके चौपायों और माल के लिए थी|
\v 5 जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था, वैसा ही बनीइस्राईल ने किया और मुल्क को बाँट लिया|
\s5
\v 6 तब बनी यहूदाह जिल्जाल में यशू'अ के पास आये; और क़िन्ज़ी युफ़न्ना के बेटे कालिब ने उससे कहा, "तुझे मा'लूम है कि ख़ुदावन्द ने मर्द-ए-ख़ुदा मूसा से मेरी और तेरी बारे में क़ादिस बरनी' में क्या कहा था|
\v 7 जब ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने क़ादिस बरनी' से मुझको इस मुल्क का हाल दरियाफ़्त करने को भेजा उस वक़्त मैं चालीस बरस का था; और मैंने उसको वही ख़बर ला कर दी जो मेरे दिल में थी|
\s5
\v 8 तो भी मेरे भाइयों ने जो मेरे साथ गये थे, लोगों के दिलों को पिघला दिया; लेकिन मैंने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की पूरी पैरवी की है|
\v 9 तब मूसा ने उस दिन क़सम खा कर कहा, “जिस ज़मीन पर तेरा क़दम पड़ा है वह हमेशा के लिए तेरी और तेरे बेटों की मीरास ठहरेगी, क्यूँकि तूने ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा की पूरी पैरवी की है”|
\s5
\v 10 और अब देख जब से ख़ुदावन्द ने यह बात मूसा से कही तब से इन पैंतालीस बरसों तक, जिनमें बनीइस्राईल वीराने में आवारा फ़िरते रहे, ख़ुदावन्द मुझे अपने क़ौल के मुताबिक़ जीता रखा और अब देख, मैं आज के दिन पिचासी बरस का हूँ|
\v 11 और आज के दिन भी मैं वैसा ही हूँ जैसा उस दिन था, जब मूसा ने मुझे भेजा था और जंग के लिए और बाहर जाने और लौटने के लिए जैसी क़ुव्वत मुझ में उस वक़्त थी वैसी ही अब भी है|
\s5
\v 12 इसलिए यह पहाड़ी जिसका ज़िक्र ख़ुदावन्द ने उस रोज़ किया था मुझ को दे दे, क्यूँकि तूने उस दिन सुन लिया था कि 'अनाक़ीम वहाँ बसते हैं और वहाँ के शहर बड़े फ़सील दार हैं; यह मुमकिन है कि ख़ुदावन्द मेरे साथ हो और मैं उनको ख़ुदावन्द के क़ौल के मुताबिक़ निकाल दूँ| ”
\s5
\v 13 तब यशू'अ ने युफ़न्ना के बेटे कालिब को दु'आ दी, और उसको हबरून मीरास के तौर पर दे दिया|
\v 14 इसलिए हबरून उस वक़्त से आज तक क़िन्ज़ी युफ़न्ना के बेटे कालिब की मीरास ~है, इस लिए कि उस ने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की पूरी पैरवी की|
\v 15 और अगले वक़्त में हबरून का नाम क़रयत अरबा' था, और वह अरबा' 'अनाक़ीम में सब से बड़ा आदमी था| और उस मुल्क को जंग से फ़राग़त मिली|
\s5
\c 15
\p
\v 1 और बनी यहूदाह के क़बीले का हिस्सा उनके घरानों के मुताबिक़ पर्ची डालकर अदोम की सरहद तक, और दख्खिन में दश्त-ए-सीन तक जो जुनुब के इन्तिहाई हिस्से में आबाद है ठहरा|
\v 2 और उनकी दख्खिनी हद दरिया-ए-शोर के इन्तिहाई हिस्से की उस खाड़ी से जिसका रुख दख्खिन की तरफ़ है शुरू'' हुई;
\s5
\v 3 और वह 'अक़रब्बीम की चढ़ाई की दख्खिनी सिम्त से निकल सीन होती हुई क़ादिस बरनी' के दख्खिन को गयी, फिर हसरून के पास से अदार को जाकर क़रक़ा' को मुड़ी,
\v 4 और वहाँ से 'अज़मून होती हुई मिस्र के नाले को जा निकली, और उस हद का ख़ातिमा समन्दर पर हुआ; यही तुम्हारी दख्खिनी सरहद होगी|
\s5
\v 5 और पूरबी सरहद यरदन के दहाने तक दरिया-ए-शोर ही ठहरा, और उसकी उत्तरी हद उस दरिया की उस खाड़ी से जो यरदन के दहाने पर है शुरू'' हुई ,
\v 6 और यह हद बैत हजला को जाकर और बैत उल 'अराबा के उत्तर से गुज़र कर रूबिन के बेटे बोहन के पत्थर को पहुँची;
\s5
\v 7 फिर वहाँ से वह हद 'अकूर की वादी होती हुई दबीर को गई और वहाँ से उत्तर की सिम्त चल कर जिलजाल के सामने जो अदुम्मीम की चढ़ाई के मुक़ाबिल है जा निकली, यह चढ़ाई नदी के दख्खिन में है; फिर वह हद 'ऐन शम्स के चश्मों के पास होकर 'ऐन राजिल पहुँची|
\v 8 फिर वही हद हिन्नूम के बेटे की वादी में से होकर यबूसियों की बस्ती के दख्खिन को गयी, यरुशलीम ~वही है; और वहाँ से उस पहाड़ की चोटी को जा निकली, जो वादी-ए-हिन्नूम के मुक़ाबिल पश्चिम की तरफ़ और रिफ़ाईम की वादी के उत्तरी इन्तिहाई हिस्से में आबाद' है;
\s5
\v 9 फिर वही हद पहाड़ की चोटी से आब-ए-नफ़्तूह के चश्में को गयी, और वहाँ से कोह-ए-'अफ़रोन के शहरों के पास जा निकली, और उधर से बा'ला तक जो क़रयत या'रीम है पहुँची;
\v 10 और बा'ला से होकर पश्चिम की सिम्त कोह-ए-श'ईर को फिरी, और कोह-ए-या'रीम के जो कसलून भी कहलाता है, उत्तरी दामन के पास से गुज़र कर बैत शम्स की तरफ़ उतरती हुई तिमना को गयी;
\s5
\v 11 और वहाँ से वह हद 'अक़रून के उत्तर को जा निकली; फिर वह सिक्रून से हो कर कोह-ए-बा'ला के पास से गुज़रती हुई यबनीएल पर जा निकली; और इस हद का ख़ातिमा समन्दर पर हुआ
\v 12 और पश्चिमी सरहद बड़ा समन्दर और उसका साहिल था| बनी यहूदाह की चारों तरफ़ की हद उनके घरानों के मुताबिक़ यही है|
\s5
\v 13 और यशू'अ ने उस हुक्म के मुताबिक़ जो ख़ुदावन्द ने उसे दिया था, युफ़न्ना के बेटे कालिब को बनी यहूदाह के बीच 'अनाक़ के बाप अरबा' का शहर क़रयत अरबा'जो हबरून है हिस्सा दिया|
\v 14 इसलिए कालिब ने वहाँ से 'अनाक़ के तीनों बेटों, या'नी सीसी और अख़ीमान और तलमी को जो बनी 'अनाक़ हैं निकाल दिया|
\v 15 और वह वहाँ से दबीर के बाशिंदों पर चढ़ गया| दबीर का क़दीमी नाम क़रयत सिफ़र था|
\s5
\v 16 और कालिब ने कहा, “जो कोई क़रयत सिफ़र को मार कर उसको सर करले, उसे मैं अपनी बेटी 'अकसा ब्याह दूँगा”|
\v 17 तब कालिब के भाई क़नज़ के बेटे ग़तनीएल ने उसको सर कर लिया, इसलिए उसने अपनी बेटी 'अकसा उसे ब्याह दी|
\s5
\v 18 जब वह उसके पास आई, तो उसने उस आदमी को उभारा कि वह उसके बाप से एक खेत माँगे; इसलिए वह अपने गधे पर से उतर पड़ी, तब कालिब ने उससे कहा, “तू क्या चाहती है ?”
\s5
\v 19 उस ने कहा, “ मुझे बरकत दे; क्यूँकि तूने दख्खिन के मुल्क में कुछ ज़मीन मुझे 'इनायत की है, इसलिए मुझे पानी के चश्में भी दे| ” तब उसने उसे ऊपर के चश्में और नीचे के चश्में 'इनायत किये|
\s5
\v 20 बनीयहूदाह के क़बीले की मीरास उनके घरानों के मुताबिक़ यह है|
\s5
\v 21 और अदूम की सरहद की तरफ़ दख्खिन में बनी यहूदाह के इन्तिहाई शहर यह हैं: क़बज़ीएल और 'एदर और यजूर ,
\v 22 और कै़ना और दैमूना और 'अद 'अदा ,
\v 23 और क़ादिस और हसूर और इतनान ,
\v 24 ज़ीफ़ और तलम और बा'लूत ,
\s5
\v 25 और हसूर और हदता और क़रयत और हसरून जो हसूर हैं ,
\v 26 और अमाम और समा' और मोलादा ,
\v 27 और हसार जद्दा और हिशमोन और बैत फ़लत ,
\v 28 और हसर सु'आल और बैरसबा'और बिज़योत्याह ,
\s5
\v 29 बा'ला और 'इय्यीम और 'अज़म ,
\v 30 और इलतोलद और कसील और हुरमा ,
\v 31 और सिक़लाज और मदमन्ना और सनसन्ना ,
\v 32 और लबाऊत और सिलहीम और 'ऐन और रिम्मोन; यह सब उन्तीस शहर हैं, और इनके गाँव भी हैं|
\s5
\v 33 और नशेब की ज़मीन में इस्ताल और सुर'आह और असनाह ,
\v 34 और ज़नूह और 'ऐन जन्नीम, तफ़्फ़ूह और 'एनाम,
\v 35 यरमोत और 'अद्दुल्लाम , शोका और 'अज़ीक़ा ,
\v 36 और शा'रीम और अदीतीम और जदीरा और जदीरतीम; और यह चौदह शहर हैं और इनके गाँव भी हैं|
\s5
\v 37 ज़िनान और हदाशा और मिजदल जद ,
\v 38 और दिल'आन और मिस्फ़ाह और यक़्तीएल ,
\v 39 लकीस और बुसक़त और 'इजलून ,
\s5
\v 40 और कब्बून और लहमान और कितलीस ,
\v 41 और जदीरोत और बैत दजून और ना'मा और मुक़्क़ैदा; यह सोलह शहर हैं, और इनके गाँव भी हैं|
\s5
\v 42 लिबना और 'अत्र और 'असन ,
\v 43 और यफ़्ताह और असना और नसीब;
\v 44 और क़'ईला और अकज़ीब और मरेसा; यह नौ शहर हैं और इनके गाँव भी हैं|
\s5
\v 45 'अकरून और उसके क़स्बे और गाँव|
\v 46 'अकरून से समन्दर तक अशदूद के पास के सब शहर और उनके गाँव|
\v 47 अशदूद अपने शहरों और गांवों के साथ, और गज़्ज़ा अपने शहरों और गाँव के साथ; मिस्र की नदी और बड़े समन्दर और साहिल तक|
\s5
\v 48 और पहाड़ी मुल्क में समीर और यतीर और शोका ,
\v 49 और दन्ना और क़रयत सन्ना जो दबीर है ,
\v 50 और 'अनाब और इस्मतोह और 'इनीम,
\v 51 और जशन और हौलून और जिलोह; यह ग्यारह शहर हैं और इनके गाँव भी हैं|
\s5
\v 52 अराब और दोमाह और इश'आन ,
\v 53 और यनीम और बैत तफ़्फ़ूह और अफ़ीका ,
\v 54 और हुमता और क़रयत अरबा' जो हबरून है और सी'ऊर; यह नौ शहर हैं और इनके गाँव भी हैं|
\s5
\v 55 म'ऊन, कर्मिल और ज़ीफ़ और यूत्ता ,
\v 56 और यज़रएल और याक़दि'आम और ज़नूह ,
\v 57 कै़न, जिब'आ और तिमना; यह दस शहर हैं और इनके गाँव भी हैं|
\s5
\v 58 हालहूल और बैत सूर और जदूर ,
\v 59 और मा' रात और बैत 'अनोत और इलतिक़ून; यह छह शहर हैं और इनके गाँव भी हैं|
\s5
\v 60 क़रयत बा'ल जो क़रयत या'रीम है, और रब्बा; यह दो शहर हैं और इनके गाँव भी हैं|
\v 61 और वीराने में बैत 'अराबा और मद्दीन और सकाका ,
\v 62 और नबसान और नमक का शहर और 'ऐन जदी; यह छः शहर हैं और इनके गाँव भी हैं|
\s5
\v 63 और यबूसियों को जो यरूशलीम के बाशिन्दे थे, बनी यहूदाह निकाल न सके; इसलिए यबूसी बनी यहूदाह के साथ आज के दिन तक यरूशलीम में बसे हुए हैं|
\s5
\c 16
\p
\v 1 और बनी यूसुफ़ का हिस्सा पर्ची डालकर यरीहू के पास के यरदन से शुरू' हुआ, या'नी पूरब की तरफ़ यरीहू के चश्में बल्कि वीराना पड़ा| फिर उसकी हद यरीहू से पहाड़ी मुल्क होती हुई बैत एल को गयी|
\v 2 फिर बैत एल से निकल कर लूज़ को गई और अर्कियों की सरहद के पास से गुज़रती हुई 'अतारात पहुँची;
\s5
\v 3 और वहाँ से पश्चिम की तरफ़ यफ़लीतियों की सरहद से होती हुई नीचे के बैत हौरून बल्कि जज़र को निकल गयी, और उसका ख़ातिमा समन्दर पर हुआ|
\v 4 तब बनी यूसुफ़ या'नी मनस्सी और इफ़्राईम ने अपनी अपनी मीरास ~पर क़ब्ज़ा किया|
\s5
\v 5 और बनी इफ़्राईम की सरहद उनके घरानों के मुताबिक़ यह थी: पूरब की तरफ़ ऊपर के बैत हौरून तक 'अतारात अदार उनकी हद ठहरी;
\v 6 मैं उत्तर की तरफ़ वह हद पश्चिम के मिकमता होती हुई पूरब की तरफ़ तानत सैला को मुड़ी, और वहाँ से यनूहाह के पूरब को गयी; |
\v 7 और यनूहाह से 'अतारात और ना'राता होती हुई यरीहू पहुँची, और फिर यरदन को जा निकली;
\s5
\v 8 और वह हद तफ़्फ़ूह से निकल कर पश्चिम की तरफ़ क़ानाह के नाले को गई और उसका ख़ातिमा समन्दर पर हुआ| बनी इफ्राईम के क़बीला की मीरास उनके घरानों के मुताबिक़ यही है|
\v 9 और इसके साथ बनी इफ़्राईम के लिए बनी मनस्सी की मीरास में भी शहर अलग किए गये और उन सब शहरों के साथ उनके गाँव भी थे|
\s5
\v 10 और उन्होंने कना'नियों को जो जज़र में रहते थे न निकाला, बल्कि वह कना'नी आज के दिन तक इफ्राईमियों में बसे हुए हैं, और ख़ादिम बनकर बेगार का काम करते हैं|
\s5
\c 17
\p
\v 1 और मनस्सी के क़बीले का हिस्सा पर्ची डालकर यह ठहरा| क्यूँकि वह यूसुफ़ का पहलौठा था, और चूँकि मनस्सी का पहलौठा बेटा मकीर जो जिल'आद का बाप था जंगी मर्द था इसलिए उस को जिल'आद और बसन मिले|
\v 2 इसलिए यह हिस्सा बनी मनस्सी के बाक़ी लोगों के लिए उनके घरानों के मुताबिक़ था या'नी बनी अबी'अज़र और बनी ख़लक़ और बनी इसरीएल और बनी सिक्म और बनी हिफ़्र और बनी समीदा' के लिए, यूसुफ़ के बेटे मनस्सी के फ़र्ज़न्द-ए-नरीना अपने अपने घराने के मुताबिक़ यही थे|
\s5
\v 3 और सिलाफ़िहाद बिन हिफ्र बिन जिल'आद बिन मकीर बिन मनस्सी के बेटे नहीं बल्कि बेटियाँ थी और उसकी बेटियों के नाम यह हैं , महलाह और नू'आह और हुजला और मिलकाह और तिरज़ाह|
\v 4 इसलिए ~वह इली'अज़र काहिन और नून के बेटे यशू'अ और सरदारों के आगे आकर कहने लगीं कि ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था कि वह हमको हमारे भाईयों के बीच मीरास दे चुनाँचे ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ उस ने उनके भाईयों के बीच उनको विरासत दी|
\s5
\v 5 इसलिए ~मनस्सी को जिल'आद और बसन के मुल्क को छोड़ कर जो यरदन के उस पार है दस हिस्से और मिले|
\v 6 क्यूँकि मनस्सी की बेटियों ने भी बेटों के साथ मीरास पाई और मनस्सी के बेटों को जिल'आद का मुल्क मिला|
\s5
\v 7 और आशर से लेकर मिकमताह तक जो सिक्म के मुक़ाबिल है मनस्सी की हद थी , और वही हद दहने हाथ पर, 'ऐन तफ़्फ़ूह के बाशिन्दों तक चली गयी|
\v 8 यूँ तफ़्फ़ूह की ज़मीन तो मनस्सी की हुई लेकिन तफ़्फ़ूह शहर जो मनस्सी की सरहद पर था बनी इफ़्राईम ~का हिस्सा ठहरा, |
\s5
\v 9 फिर वहाँ से वह हद क़ानाह के नाले को उतर कर उसके दख्खिन की तरफ़ पहुँची, यह शहर जो मनस्सी के शहरों के बीच हैं इफ़्राईम के ठहरे और मनस्सी की हद उस नाले के उत्तर की तरफ़ से होकर समन्दर पर ख़त्म हुई|
\v 10 इसलिए ~दख्खिन की तरफ़ इफ़्राईम ~की और उत्तर की तरफ़ मनस्सी की मीरास पड़ी और उसकी सरहद समन्दर थी यूँ वह दोनों उत्तर की तरफ़ आशर से और पूरब की तरफ़ इश्कार से जा मिलीं|
\s5
\v 11 और इश्कार और आशर की हद में बैत शान और उसके क़स्बे और इबली'आम और उसके क़स्बे और अहल-ए-दोर और उसके क़स्बे और अहल-ए-'ऐन दोर और उसके क़स्बे और अहल-ए-ता'नाक और उसके क़स्बे और अहल-ए-मजिद्दो और उसके क़स्बे बल्कि तीनों मुर्तफ़ा' मक़ामात ~मनस्सी को मिले|
\v 12 तो भी बनी मनस्सी उन शहरों के रहने वालों को निकाल न सके बल्कि उस मुल्क में कना'नी बसे ही रहे, |
\s5
\v 13 और जब बनी इस्राईल ताक़तवर हो गये तो उन्होंने कना'नियों से बेगार का काम लिया और उनको बिल्कुल निकाल बाहर न किया|
\s5
\v 14 बनी यूसुफ़ ने यशू'अ से कहा कि तूने क्यूँ पर्ची डालकर हम को सिर्फ़ एक ही हिस्सा मीरास के लिए दिया अगरचे हम बड़ी क़ौम हैं क्यूँकि ख़ुदावन्द ने हम को बरकत दी है ?|
\v 15 यशू'अ ने उनको जवाब दिया कि अगर तुम बड़ी क़ौम हो तो जंगल में जाओ, और वहाँ फ़रिज्ज़ियों और रिफ़ाईम के मुल्क को अपने लिए काट कर साफ़ कर लो क्यूँकि इफ़्राईम का पहाड़ी मुल्क तुम्हारे लिए बहुत तंग है|
\s5
\v 16 बनी यूसुफ़ ने कहा कि यह पहाड़ी मुल्क हमारे लिए काफ़ी नहीं है और सब कना'नियों के पास जो नशेब के मुल्क में रहते हैं या'नी वह जो बैत शान और उसके क़स्बों में और वह जो यज़र 'एल की वादी में रहते हैं दोनों के पास लोहे के रथ हैं|
\v 17 यशू'अ ने बनी युसुफ़ या'नी इफ़्राईम और मनस्सी से कहा कि तुम बड़ी क़ौम हो और बड़े ज़ोर रखते हो, ~इसलिए~तुम्हारे लिए सिर्फ़ एक ही हिस्सा न होगा|
\v 18 बल्कि यह पहाड़ी मुल्क भी तुम्हारा होगा क्यूँकि अगरचे वह जंगल है तुम उसे काट कर साफ़ कर डालना और उसके मख़ारिज भी तुम्हारे ही ठहरेंगे क्यूँकि तुम कना'नियों को निकाल दोगे अगरचे उनके पास लोहे के रथ हैं और वह ताक़तवर भी हैं|
\s5
\c 18
\p
\v 1 और बनी इस्राईल की सारी जमा'अत ने सैला में जमा' होकर ख़ेमा'-ए-इज्तिमा'अ को वहाँ खड़ा किया और वह मुल्क उनके आगे मग़लूब हो चुका था|
\v 2 और बनी इस्राईल में सात क़बीले ऐसे रह गये थे जिनकी मीरास उनको तक़सीम होने न पाई थी|
\s5
\v 3 और यशू'अ ने बनी इस्राईल से कहा, कि तुम कब तक उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करने से जो ख़ुदावन्द तुम्हारे बाप दादा के ख़ुदा ने तुम को दिया है सुस्ती करोगे ?|
\v 4 इसलिए ~तुम अपने लिए हर क़बीले में से तीन शख़्स चुन लो, मैं उनको भेजूँगा और वह जाकर उस मुल्क में सैर करेंगे और अपनी अपनी मीरास के मुवाफ़िक़ उसका हाल लिख कर मेरे पास आएँगें|
\s5
\v 5 वह उसके सात हिस्से करेंगे, यहूदाह अपनी सरहद में दख्खिन की तरफ़ और यूसुफ़ का ख़ानदान अपनी सरहद में उत्तर की तरफ़ रहेगा|
\v 6 इसलिए तुम उस मुल्क के सात हिस्से लिख कर मेरे पास यहाँ लाओ ताकि मैं ख़ुदावन्द के आगे जो हमारा ख़ुदा है तुम्हारे लिए पर्ची डालूँ|
\s5
\v 7 क्यूँकि तुम्हारे बीच लावियों का कोई हिस्सा नहीं इसलिए कि ख़ुदावन्द की कहानत उनकी मीरास है और जद्द और रूबिन और मनस्सी के आधे क़बीले को यरदन के उस पार पूरब की तरफ़ मीरास मिल चुकी है जिसे ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने उनको दिया|
\s5
\v 8 तब वह आदमी उठ कर रवाना हुए और यशू'अ ने उनको जो उस मुल्क का हाल लिखने के लिए गये ताकीद की कि तुम जाकर उस मुल्क में सैर करो और उसका हाल लिख कर फिर मेरे पास आओ और मैं सैला में ख़ुदावन्द के आगे तुम्हारे लिए पर्ची डालूँगा|
\v 9 चुनाँचे उन्होंने जाकर उस मुल्क में सैर की और शहरों के सात हिस्से कर के उनका हाल किताब में लिखा और सैला की ख़ेमागाह में यशू'अ के पास लौटे|
\s5
\v 10 तब यशू'अ ने सैला में उनके लिए ख़ुदावन्द के सामने पर्ची डाली और वहीं यशू'अ ने उस मुल्क को बनी इस्राईल की हिस्सों ~के मुताबिक़ उनको बाँट दिया|
\s5
\v 11 और बनी बिन यमीन के क़बीले की पर्ची उनके घरानों के मुताबिक़ निकली और उनके हिस्से की हद बनी यहूदाह और बनी यूसुफ़ के बीच पड़ी|
\v 12 इसलिए ~उनकी उत्तरी हद यरदन से शुरू'' हुई और यह हद यरीहू के पास से उत्तर की तरफ़ गुज़र कर पहाड़ी मुल्क से होती हुई पश्चिम की तरफ़ बैत आवन के वीराने तक पहुँची|
\s5
\v 13 और वह हद वहाँ से लूज़ को जो बैत एल है गयी और लूज़ के दख्खिन से उस पहाड़ के बराबर होती हुई जो नीचे के बैत हौरून के दख्खिन में है 'अतारात अदार को जा निकली|
\v 14 और वह पश्चिम की तरफ़ से मुड़ कर दख्खिन को झुकी और बैत हौरून के सामने के पहाड़ से होती हुई दख्खिन की तरफ़ बनी यहूदाह के एक शहर क़रयत बा'ल तक जो क़रयत या'रीम है चली गयी, यह पश्चिमी हिस्सा था|
\s5
\v 15 और दख्खिनी हद क़रयत या'रीम की इन्तिहा से शुरू''हुई और वह हद पश्चिम की तरफ़ आब-ए-नफ़तूह के चश्मे तक चली गयी; |
\v 16 और वहाँ से वह हद उस पहाड़ के सिरे तक जो हिन्नूम के बेटे की वादी के सामने है गयी, यह रिफ़ाईम की वादी के उत्तर में है और वहाँ से दख्खिन की तरफ़ हिन्नूम की वादी और यबूसियों के बराबर से गुज़रती हुई 'ऐन राजिल पहुँची; |
\s5
\v 17 वहाँ से वह उत्तर की तरफ़ मुड़ कर और 'ऐन शम्स से गुज़रती हुई जलीलोत को गयी जो अदुम्मीम की चढ़ाई के मुक़ाबिल है और वहाँ से रूबिन के बेटे बोहन के पत्थर तक पहुँची; |
\v 18 और फिर उत्तर को जाकर मैदान के मुक़ाबिल के रुख़ से निकलती हुयी मैदान ही में जा उतरी|
\s5
\v 19 फिर वह हद वहाँ से बैत हुजला के उत्तरी पहलू तक पहुँची और उस हद का ख़ातिमा दरिया-ए-शोर की उत्तरी खाड़ी पर हुआ जो यरदन के दख्खिनी सिरे पर है, यह दख्खिन की हद थी|
\v 20 और उसकी पूरबी सिम्त की हद यरदन ठहरा, बनी बिनयमीन की मीरास उनकी चौगिर्द की हदों के 'ऐतबार से और उनके घरानों के मुवाफ़िक़ यह थी|
\s5
\v 21 और बनी बिन यमीन के क़बीले के शहर उनके घरानों के मुवाफ़िक़ यह थे, यरीहू और बैत हुजला और 'ईमक़ क़सीस|
\v 22 और बैत 'अराबा और समरीम और बैतएल|
\v 23 और 'अव्वीम और फ़ारा और 'उफ़रा|
\v 24 और कफ़रउल'उम्मूनी और 'उफ़नी और जबा' , यह बारह शहर थे और इनके गाँव भी थे|
\s5
\v 25 और जिबा'ऊन और रामा और बैरोत|
\v 26 मिस्फ़ाह और कफ़ीरह और मोज़ा
\v 27 और रक़म और अरफ़ील और तराला|
\v 28 और ज़िला', अलिफ़ और यबूसियों का शहर जो यरूशलीम है और जिब'अत और क़रयत, यह चौदह शहर हैं और इनके गाँव भी हैं, बनी बिनयमीन की मीरास उनके घरानों के मुताबिक़ यह है
\s5
\c 19
\p
\v 1 और दूसरा पर्चा शमा'ऊन के नाम पर बनी शमा'ऊन के क़बीले के वास्ते उनके घरानों के मुवाफ़िक़ निकला और उनकी मीरास बनी यहूदाह की मीरास के बीच थी|
\s5
\v 2 और उनकी मीरास में बैरसबा' यासबा' था और मोलादा|
\v 3 और हसार स'ऊल और बालाह और 'अज़म|
\v 4 और इलतोलद और बतूल और हुरमा
\s5
\v 5 और सिक़लाज और बैत मरकबोत और हसार सूसा|
\v 6 और बैत लिबाउत और सरोहन, यह तेरह शहर थे और इनके गाँव भी थे|
\v 7 'ऐन और रिम्मोन और 'अतर और 'असन, यह चार शहर थे और इनके गाँव भी थे|
\s5
\v 8 और वह सब गाँव भी इनके थे जो इन शहरों के आस पास बा'लात बैर या'नी दख्खिन के रामा तक हैं, बनी शमा'ऊन के क़बीले की मीरास उनके घरानों के मुताबिक़ यह ठहरी|
\v 9 बनी यहूदाह की मिल्कियत में से बनी शमा'ऊन की मीरास ली गयी क्यूँकि बनी यहूदाह का हिस्सा उनके वास्ते बहुत ज़्यादा था, इसलिए बनी शमा'ऊन को उनकी मीरास के बीच मीरास मिली|
\s5
\v 10 और तीसरा पर्चा ~बनी ज़बूलून का उनके घरानों के मुवाफ़िक़ निकला और उनकी मीरास की हद सारीद तक थी|
\v 11 और उनकी हद पश्चिम की तरफ़ मर'अला होती हुई दब्बासत तक गयी, और उस नदी से जो युक़नि'आम के आगे है जा मिली|
\s5
\v 12 और सारीद से पूरब की तरफ़ मुड़ कर वह किसलोत तबूर की सरहद को गई और वहाँ से दबरत होती हुई यफ़ी'को जा निकली|
\v 13 और वहाँ से पूरब की तरफ़ जित्ता हीफ़्र और इत्ता क़ाज़ीन से गुज़रती हुई रिम्मोन को गयी, जो नी'आ तक फैला हुआ है|
\s5
\v 14 और वह हद उस के उत्तर से मुड़ कर हन्नातोन को गई, और उसका ख़ातिमा इफ़ताएल की वादी पर हुआ|
\v 15 और क़त्तात और नहलाल और सिमरोन और इदाला और बैतलहम, यह बारह शहर और उनके गाँव इन लोगों के ठहरे|
\v 16 यह सब शहर और इनके गाँव बनी ज़बूलून के घरानों के मुवाफ़िक़ उनकी मीरास है|
\s5
\v 17 और चौथा पर्चा ~इश्कार के नाम पर बनी इश्कार के लिए उनके घरानों के मुवाफ़िक़ निकला|
\v 18 और उनकी हद यज़र 'एल और किसूलोत और शूनीम|
\v 19 और हफ़ारीम और शियून और अनाख़रात|
\s5
\v 20 और रबैत क़सयोन और अबिज़|
\v 21 और रीमत और 'ऐन जन्नीम और 'ऐन हद्दा और बैत क़सीस तक थी|
\v 22 और वह हद तबूर और शख़सीमाह और बैत शम्स से जा मिली और उनकी हद का ख़ातिमा यरदन पर हुआ, यह सोलह शहर थे और इनके गाँव भी थे|
\s5
\v 23 यह शहर और इनके गाँव बनी इश्कार के घरानों के मुवाफ़िक़ उनकी मीरास है|
\s5
\v 24 और पाँचवां पर्चा बनी आशर के क़बीले के लिए उनके घरानों के मुताबिक़ निकला|
\v 25 और ख़िलक़त और हली और बतन और इक्शाफ़|
\v 26 और अलम्मलक और 'अमाद और मिसाल उनकी हद ठहरे और पश्चिम की तरफ़ वह कर्मिल और सैहूर लिबनात तक पहुँची|
\s5
\v 27 औ़र वह पूरब की तरफ़ मुड़ कर बैत द्जून को गयी और फिर ज़बूलून तक और वादी-ए-इफ़ताहएल के उत्तर से होकर बैत उल 'अमक़ और नग़ीएल तक पहुँची और फिर कबूल के बाएँ को गयी|
\v 28 और 'अबरून और रहोब और ह्म्मून और क़ानाह बल्कि बड़े सैदा तक पहुँची|
\s5
\v 29 फिर वह हद रामा ज़ूर के फ़सील दार शहर की तरफ़ को झुकी और वहाँ से मुड़ कर हूसा तक गयी और उसका ख़ातिमा अकज़ीब की नवाही के समन्दर पर हुआ|
\v 30 और 'उम्मा और अफ़ीक़ और रहोब भी इनको मिले, यह बाईस शहर थे और इनके गाँव भी थे|
\s5
\v 31 बनी आशर के क़बीले की मीरास उनके घरानों के मुताबिक़ यह शहर और इनके गाँव थे|
\s5
\v 32 छठा पर्चा ~बनी नफ़्ताली के नाम पर बनी नफ़्ताली के क़बीले के लिए उनके घरानों के मुताबिक़ निकला|
\v 33 और उनकी सरहद हलफ़ से ज़ा'नन्नीम के बलूत से अदामी नक़ब और यबनीएल होती हुई लक़ूम तक थी और उसका ख़ातिमा यरदन पर हुआ|
\v 34 और वह हद पश्चिम की तरफ़ मुड़ कर अज़नूत तबूर से गुज़रती हुई हुक़्क़ूक़ को गई और दख्खिन में ज़बूलून तक और पश्चिम में आशर तक और पूरब में यहूदाह के हिस्सा के यरदन तक पहुँची|
\s5
\v 35 और फ़सील दार शहर यह हैं या'नी सिद्दीम और सैर और ह्म्मात और रक़त और किन्नरत|
\v 36 और अदामा और रामा और ह्सूर|
\v 37 और क़ादिस और अद'रई और 'ऐन हसूर|
\s5
\v 38 और इरून और मिजदालएल और हुरीम और बैत 'अनात और बैत शम्स, यह उन्तीस शहर थे और इनके गाँव भी थे|
\v 39 यह शहर और इनके गाँव बनी नफ़्ताली के क़बीले के घरानों के मुताबिक़ उनकी मीरास हैं|
\s5
\v 40 और सातवां पर्चा ~बनी दान के क़बीले के लिए उनके घरानों के मुवाफ़िक़ निकला|
\v 41 और उनकी मीरास की हद यह है, सुर'आह और इस्ताल और 'ईर शम्स|
\v 42 और शा'लबीन और अय्यालोन और इतलाह|
\s5
\v 43 और एलोन और तिमनाता और 'अक़रून|
\v 44 और इलतिक़िया और जिब्बातोन और बा'लात|
\v 45 और यहूदी और बनी बरक़ और जात रिम्मोन|
\v 46 और मेयरक़ून और रिक़्क़ूनमा' उस सरहद के जो याफ़ा के मुक़ाबिल है|
\s5
\v 47 और बनी दान की हद उनकी इस हद के' अलावा भी थी, क्यूँकि बनी दान ने जाकर लशम से जंग की और उसे घेर करके उसको तलवार की धार से मारा और उस पर क़ब्ज़ा करके वहाँ बसे, और अपने बाप दान के नाम पर लशम का नाम दान रखा|
\v 48 यह सब शहर और इनके गाँव बनी दान के क़बीले के घरानों के मुताबिक़ उनकी मीरास है|
\s5
\v 49 तब वह उस मुल्क को मीरास के लिए उसकी सरहदों के मुताबिक़ तक़सीम करने से फ़ारिग़ हुए और बनी इस्राईल ने नून के बेटे यशू'अ को अपने बीच मीरास दी|
\v 50 उन्होंने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ वही शहर जिसे उसने माँगा था या'नी इफ्राईम के पहाड़ी मुल्क का तिमनत सरह उसे दिया और वह उस शहर को ता'मीर करके उसमें बस गया|
\s5
\v 51 यह वह मीरासी हिस्से हैं जिनको इली'अज़र काहिन और नून के बेटे यशू'अ और बनी इस्राईल के क़बीलों के आबाई ख़ानदानों के सरदारों ने सैला में ख़ेमा-ए-इज्तिमा' के दरवाज़े पर ख़ुदावन्द के सामने पर्ची डालकर मीरास के लिए तक़सीम किया, यूँ वह उस मुल्क की तक़सीम से फ़ारिग़ हुए|
\s5
\c 20
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा कि, |
\v 2 बनी इस्राईल से कह कि अपने लिए पनाह के शहर जिनकी वजह मैं ने मूसा के बारे में ~तुमको हुक्म किया मुक़र्रर करो, |
\v 3 ताकि वह ख़ूनी जो भूल से और ना दानिस्ता किसी को मार डाले वहाँ भाग जाए और वह ख़ून के बदला लेने वाले से तुम्हारी पनाह ठहरें|
\s5
\v 4 वह उन शहरों में से किसी में भाग जाए , और उस शहर के दरवाज़े पर खड़ा हो कर उस शहर के बुज़ुर्गों को अपना हाल कह सुनाए; तब वह उसे शहर में अपने हाँ ले जाकर कोई जगह दें ताकि वह उनके बीच रहे|
\s5
\v 5 और अगर ख़ून का बदला लेने वाला उसका पीछा करे तो वह उस ख़ूनी को उसके हवाला न करें क्यूँकि उस ने अपने पड़ोसी को अन्जाने में ~मारा ओर पहले से उसकी उस से 'अदावत न थी|
\v 6 और वह जब तक फ़ैसले के लिए जमा'त के आगे खड़ा न हो, और उन दिनों का सरदार काहिन मर न जाये तब तक उसी शहर में रहे इसके बा'द वह ख़ूनी लौट कर अपने शहर और अपने घर में या'नी उस शहर में आए जहाँ से वह भागा था|
\s5
\v 7 तब उन्होंने नफ़्ताली के पहाड़ी मुल्क में जलील के क़ादिस को और इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में सिक्म को और यहूदाह के पहाड़ी मुल्क में क़रयत अरबा' को जो हबरून है अलग किया|
\v 8 और यरीहू के पास के यरदन के पूरब की तरफ़ रूबिन के क़बीले के मैदान में बसर को जो वीराने में है और जद् के क़बीले के हिस्से में रामा को जो जिल'आद में है और मनस्सी के क़बीले के हिस्सा में जो लान को जो बसन में है मुक़र्रर किया|
\s5
\v 9 यही वह शहर हैं जो सब बनी इस्राईल और उन मुसाफ़िरों के लिए जो उनके बीच बसते हैं इसलिए ठहराये गये कि जो कोई अन्जाने में किसी को क़त्ल करे वह वहाँ भाग जाये, और जब तक वह जमा'अत के आगे खड़ा न हो तब तक ख़ून के बदला लेने वाले के हाथ से मारा न जाये|
\s5
\c 21
\p
\v 1 तब लावियों के आबाई ख़ानदानों के सरदार इली'अज़र काहिन और नून के बेटे यशू'अ और बनी इस्राईल के क़बीलों के आबाई ख़ानदानों के सरदारों के पास आये|
\v 2 और मुल्क-ए-कना'न के सैला में उन से कहने लगे कि ख़ुदावन्द ने मूसा के बारे में ~हमारे रहने के लिए शहर और हमारे चौपायों के लिए उनकी नवाही के देने का हुक्म किया था|
\s5
\v 3 इसलिए बनी इस्राईल ने अपनी अपनी मीरास में से ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ यह शहर और उनकी नवाही लावियों को दीं|
\s5
\v 4 और पर्चा क़िहातियों के नाम पर निकला और हारून काहिन की औलाद को जो लावियों में से थी पर्ची से यहूदाह के क़बीले और शमा'ऊन के क़बीले और बिनयमीन के क़बीले में से तेरह शहर मिले|
\v 5 और बाक़ी बनी क़िहात को इफ़्राईम के क़बीले के घरानों और दान के क़बीले और मनस्सी के आधे क़बीले में से दस शहर पर्ची से मिले|
\s5
\v 6 और बनी जैरसोन को इश्कार के क़बीले के घरानों औरआशर के क़बीले और नफ़्ताली के क़बीले और मनस्सी के आधे क़बीले में से जो बसन में है तेरह शहर पर्ची से मिले|
\v 7 और बनी मिरारी को उनके घरानों के मुताबिक़ रूबिन के क़बीले और जद्द के क़बीले और ज़बूलून के क़बीले में से बारह शहर मिले|
\s5
\v 8 और बनी इस्राईल ने पर्ची डालकर इन शहरों और इनकी नवाही को जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा के बारे में ~फ़रमाया था लावियों को दिया|
\v 9 उन्होंने बनी यहूदाह के क़बीले और बनी शमा'ऊन के क़बीले में से यह शहर दिए जिनके नाम यहाँ मज़कूर है|
\v 10 और यह क़हातियों के ख़ानदानों में से जो लावी की नसल में से थे बनी हारून को मिले क्यूँकि पहला पर्चा ~उनके नाम का था|
\s5
\v 11 इसलिए उन्होंने यहूदाह के पहाड़ी मुल्क में 'अनाक़ के बाप अरबा' का शहर क़रयत अरबा'जो हबरून कहलाता है म'ए उसके 'इलाक़े के उनको दिया|
\v 12 लेकिन उस शहर के खेतों और गाँव को उन्होंने युफ़न्ना के बेटे कालिब को मीरास के तौर पर दिया|
\s5
\v 13 इसलिए ~उन्होंने हारून का काहिन की औलाद को हबरून जो ख़ूनी की पनाह का शहर था और उसके 'इलाक़े और लिबनाह और उसके 'इलाक़े|
\v 14 और यतीर और उसके 'इलाक़े और इस्तिमू'अ और उसके 'इलाक़े|
\v 15 और हौलून और उसके 'इलाक़े और दबीर और उसके 'इलाक़े|
\v 16 और 'ऐन और उसके 'इलाक़े और यूता और उसके 'इलाक़े और बैत शम्स और उसके 'इलाक़े या'नी यह नौ शहर उन दोनों क़बीलों से ले कर दिए|
\s5
\v 17 और बिनयमीन के क़बीले से जिबा'ऊन और उसके 'इलाक़े और जिबा' और उसके 'इलाक़े|
\v 18 और 'अनतोत और उसके 'इलाक़े और 'अलमोन और उसके 'इलाक़े यह चार शहर दिए गए ~|
\v 19 इसलिए बनी हारून के जो काहिन हैं सब शहर तेरह थे जिनके साथ उनकी नवाही भी थी|
\s5
\v 20 और बनी क़िहात के घरानों को जो लावी थे या'नी बाक़ी बनी क़िहात को इफ़्राईम के क़बीले से यह शहर पर्ची से मिले|
\v 21 और उन्होंने इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में उनको सिक्म शहर और उसके 'इलाक़े तो ख़ूनी की पनाह के लिए और जज़र और उसके 'इलाक़े|
\v 22 और क़िबज़ैम और उसके 'इलाक़े और बैत हौरून और उसके 'इलाक़े यह चार शहर दिए|
\s5
\v 23 और दान के क़बीला से इलतिक़िया और उसके 'इलाक़े और जिब्बतून और उसके 'इलाक़े|
\v 24 और अय्यालोन और उसके 'इलाक़े और जात रिम्मोन और उसके 'इलाक़े यह चार शहर दिए|
\s5
\v 25 और मनस्सी के आधे क़बीले से ता'नाक और उसके 'इलाक़े और जात रिम्मोन और उसके 'इलाक़े , यह दो शहर दिए|
\v 26 बाक़ी बनी क़िहात के घरानों के सब शहर अपनी अपनी नवाही के साथ दस थे|
\s5
\v 27 और बनी जैरसोन को जो लावियों के घरानों में से हैं मनस्सी के दूसरे आधे क़बीले में से उन्होंने बसन में जो लान और उसके 'इलाक़े तो ख़ूनी की पनाह के लिए और बि'अस्तराह और उसके 'इलाक़े यह दो शहर दिए|
\s5
\v 28 और इश्कार के क़बीले से क़िसयून और उसके 'इलाक़े और दबरत और उसके 'इलाक़े|
\v 29 यरमोत और उसके 'इलाक़े और 'ऐन जन्नीम और उसके 'इलाक़े , यह चार शहर दिए|
\v 30 और आशर के क़बीले से मसाल और उसके 'इलाक़े और अबदोन और उसके 'इलाक़े|
\v 31 ख़िलक़त और उसके 'इलाक़े और रहोब और उसके 'इलाक़े यह चार शहर दिए|
\s5
\v 32 और नफ़्ताली के क़बीले से जलील में क़ादिस और उसके 'इलाक़े तो ख़ूनी की पनाह के लिए और हम्मात दूर और उसके 'इलाक़े और क़रतान और उसके 'इलाक़े , यह तीन शहर दिए|
\v 33 इसलिए जैरसोनियों के घरानों के मुताबिक़ उनके सब शहर अपनी अपनी नवाही के साथ तेरह थे|
\s5
\v 34 और बनी मिरारी के घरानों को जो बाक़ी लावी थे ज़बूलून के क़बीला से युक़नि'याम और उसके 'इलाक़े , क़रताह और उसके 'इलाक़े|
\v 35 दिमना और उसके 'इलाक़े , नहलाल और उसके 'इलाक़े , यह चार शहर दिए|
\s5
\v 36 और रूबिन के क़बीले से बसर और उसके 'इलाक़े , यहसा और उसके 'इलाक़े|
\v 37 क़दीमात और उसके 'इलाक़े और मिफ़'अत और उसके 'इलाक़े , यह चार शहर दिये|
\v 38 और जद के क़बीले से जिल'आद में रामा और उसके 'इलाक़े तो ख़ूनी की पनाह के लिए और महनाइम और उसके 'इलाक़े|
\s5
\v 39 हस्बोन और उसके 'इलाक़े , या'ज़ीर और उसके 'इलाक़े , कुल चार शहर दिए|
\v 40 इसलिए ~ये सब शहर उनके घरानों के मुताबिक़ बनी मिरारी के थे, जो लावियों के घरानों के बाक़ी लोग थे उनको पर्ची से बारह शहर मिले|
\s5
\v 41 तब बनी इस्राईल की मिल्कियत के बीच लावियों के सब शहर अपनी अपनी नवाही के साथ अड़तालीस थे|
\v 42 उन शहरों में से हर एक शहर अपने गिर्द की नवाही के साथ था सब शहर ऐसे ही थे|
\s5
\v 43 यूँ ख़ुदावन्द ने इस्राईलियों को वह सारा मुल्क दिया जिसे उनके बाप दादा को देने की क़सम उस ने खाई थी और वह उस पर क़ाबिज़ हो कर उसमें बस गये|
\v 44 और ख़ुदावन्द ने उन सब बातों के मुताबिक़ जिनकी क़सम उस ने उनके बाप दादा से खाई थी चारों तरफ़ से उनको आराम दिया और उनके सब दुश्मनों में से एक आदमी भी उनके सामने खड़ा न रहा, ख़ुदावन्द ने उनके सब दुश्मनों को उनके क़ब्ज़े में कर दिया|
\v 45 और जितनी अच्छी बातें ख़ुदावन्द ने इस्राईल के घराने से कही थीं उन में से एक भी न छूटी, सब की सब पूरी हुईं|
\s5
\c 22
\p
\v 1 उस वक़्त यशू'अ ने रोबिनियों और जद्दियों और मनस्सी के आधे क़बीले को बुला कर|
\v 2 उन से कहा कि सब कुछ जो ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने तुम को फ़रमाया तुम ने माना, और जो कुछ मैं ने तुम को हुक्म दिया उस में तुम ने मेरी बात मानी|
\v 3 तुमने अपने भाईयों को इस मुद्दत में आज के दिन तक नहीं छोड़ा बल्कि ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्म की ताकीद पर 'अमल किया|
\s5
\v 4 और अब ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हारे भाईयों को जैसा उस ने उन से कहा था आराम बख़्शा है~इसलिए तुम अब लौट कर अपने अपने ख़ेमे को अपनी मीरासी सर ज़मीन में जो ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने यरदन के उस पार तुम को दी है चले जाओ|
\v 5 सिर्फ़ उस फ़रमान और शरा' पर 'अमल करने की निहायत एहतियात रखना जिसका हुक्म ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने तुम को दिया, कि तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रखो और उसकी सब राहों पर चलो, और उसके हुक्मों को मानो और उस से लिपटे रहो और अपने सारे दिल, और सारी जान, से उसकी बन्दगी करो|
\v 6 और यशू'अ ने बरकत दे कर उनको रुख़्सत किया और वह अपने अपने ख़ेमे को चले गये|
\s5
\v 7 मनस्सी के आधे क़बीले को तो मूसा ने बसन में मीरास दी, थी लेकिन उस के दूसरे आधे को यशु'अ ने उनके भाईयों के बीच यरदन के इस पार पश्चिम की तरफ़ हिस्सा दिया; और जब यशू'अ ने उनको रुख़्सत किया की अपने अपने ख़ेमे को जाएँ, तो उनको भी बरकत देकर|
\v 8 उन से कहा कि, बड़ी दौलत और बहुत से चौपाये, और चाँदी और सोना और पीतल और लोहा और बहुत सी पोशाक लेकर तुम अपने अपने ख़ेमे को लौटो; और अपने दुश्मनों के माल-ए-ग़नीमत को अपने भाईयों के साथ बाँट लो|
\s5
\v 9 तब बनी रूबिन और बनी जद्द और मनस्सी का आधा क़बीला लौटा और वह बनी इस्राईल के पास से सैला से जो मुल्क-ए-कना'न में है रवाना हुए, ताकि वह अपने मीरासी मुल्क जिल'आद को लौट, जाएँ जिसके मालिक वह ख़ुदावन्द के उस हुक्म के मुताबिक़ हुए थे जो उस ने मूसा के बारे में ~दिया था|
\s5
\v 10 और जब वह यरदन के पास के उस मुक़ाम में पहुँचे जो मुल्क कना'न में है, तो बनी रूबिन और बनी जद और मनस्सी के आधे क़बीले ने वहाँ यरदन के पास एक मज़बह जो देखने में बड़ा मज़बह था बनाया|
\v 11 और बनी इस्राईल के सुनने में आया की देखो बनी रूबिन और बनी जद और मनस्सी के आधे क़बीला ने मुल्क-ए-कना'न के सामने, यरदन के गिर्द के मक़ाम में उस रुख़ पर जो बनी इस्राईल का है एक मज़बह बनाया है|
\s5
\v 12 जब बनी इस्राईल ने यह सुना तो बनी इस्राईल की सारी जमा'त सैला में इकठ्ठा हुई , ताकि उन पर चढ़ जाये और लड़े, |
\s5
\v 13 और बनी इस्राईल ने इली'अज़र काहिन के बेटे फ़ीन्हास को बनी रूबिन और बनी जद और मनस्सी के आधे क़बीला के पास जो मुल्क जिल'आद में थे भेजा|
\v 14 और बनी इस्राईल के क़बीलों से हर एक के आबाई ख़ानदान से एक अमीर के हिसाब से दस अमीर उसके साथ किये, उन में से हर एक हज़ार दर हज़ार इस्राईलियों में अपने आबाई ख़ानदान का सरदार था|
\s5
\v 15 इसलिए वह बनी रूबिन और बनी जद्द और मनस्सी के आधे क़बीले के पास मुल्क जिल'आद में आये और उन से कहा कि, |
\v 16 ख़ुदावन्द की सारी जमा'अत यह कहती, है कि तुम ने इस्राईल के ख़ुदा से यह क्या सरकशी की कि, आज के दिन ख़ुदावन्द की पैरवी से फिरकर ~अपने लिए एक मज़बह बनाया, और आज के दिन तुम ख़ुदावन्द से बाग़ी हो गये ?|
\s5
\v 17 क्या हमारे लिए फ़गू़र की बदकारी कुछ कम थी जिस से हम आज के दिन तक पाक नहीं हुए, अगरचे ख़ुदावन्द की जमा'त में वबा भी आई कि|
\v 18 तुम आज के दिन ख़ुदावन्द की पैरवी से फिर जाते हो ?और चूँकि तुम आज ख़ुदावन्द से बाग़ी होते हो, इसलिए कल यह होगा कि इस्राईल की सारी जमा'त पर उसका क़हर नाज़िल होगा
\s5
\v 19 और अगर तुम्हारा मीरासी मुल्क नापाक है, तो तुम ख़ुदावन्द के मीरासी मुल्क में पार आ जाओ जहाँ ख़ुदावन्द का घर है और हमारे बीच मीरास लो, लेकिन ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के मज़बह के सिवा अपने लिए कोई और मज़बह बना कर, न तो ख़ुदावन्द से बाग़ी हो और न हम से बग़ावत करो|
\v 20 क्या ज़ारह के बेटे 'अकन की ख़यानत की वजह से जो उस ने मख़्सूस की हुई चीज़ में की इस्राईल की सारी जमा'त पर ग़ज़ब नाज़िल न हुआ ?वह शख्स़ अकेला ही अपनी बदकारी में हलाक नहीं हुआ|
\s5
\v 21 तब बनी रूबिन औ बनी जद्द और मनस्सी के आधे क़बीला ने हज़ार दर हज़ार इस्राईलियों के सरदारों को जवाब दिया कि|
\v 22 ख़ुदावन्द ख़ुदाओं का ख़ुदा, ख़ुदावन्द ख़ुदाओं का ख़ुदा जानता है और इस्राईली भी जान लेंगे, अगर इस में बग़ावत या ख़ुदावन्द की मुख़ालिफ़त है (तूने तो हमको आज जीता न छोड़ा )|
\v 23 अगर हम ने आज के दिन इसलिए यह मज़बह बनाया हो कि ख़ुदावन्द से फिर जाएँ या उस पर सोख़्तनी क़ुर्बानी या नज़र की क़ुर्बानी या सलामती के ज़बीहे चढ़ाएं तो ख़ुदावन्द ही इसका हिसाब ले|
\s5
\v 24 बल्कि हम ने इस ख़याल और ग़रज़ से यह किया कि कहीं आइन्दा ज़माना में तुम्हारी औलाद हमारी औलाद से यह न कहने लगे, ' कि तुम को ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा से क्या लेना है ?
\s5
\v 25 क्यूँकि ख़ुदावन्द तो हमारे और तुम्हारे बीच 'ऐ बनी रूबिन और बनी जद यरदन को हद ठहराया है इसलिए ख़ुदावन्द में तुम्हारा कोई हिस्सा नहीं है, यूँ तुम्हारी औलाद हमारी औलाद से ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ छुड़ा देगी|
\s5
\v 26 इसलिए हम ने कहा कि आओ हम अपने लिए एक मज़बह बनाना शुरू'' करें जो न सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए हो और न ज़बीहे के लिए|
\v 27 बल्कि वह हमारे और तुम्हारे और हमारे बा'द हमारी नसलों के बीच ~गवाह ठहरे, ताकि हम ख़ुदावन्द के सामने उसकी ''इबादत अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानियों और अपने ज़बीहों और सलामती के हदियों से करें, और आइन्दा ज़माना में तुम्हारी औलाद हमारी औलाद से कहने न पाए कि ख़ुदावन्द में तुम्हारा कोई हिस्सा नहीं| '
\s5
\v 28 इसलिए हम ने कहा कि, जब वह हम से या हमारी औलाद से आइन्दा ज़माना में यूँ कहेंगे तो हम उनको जवाब देंगे कि देखो ख़ुदावन्द के मज़बह का नमूना जिसे हमारे बाप दादा ने बनाया, यह न सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए है न ज़बीहा के लिए बल्कि यह हमारे और तुम्हारे बीच गवाह है|
\v 29 ख़ुदा न करे कि हम ख़ुदावन्द से बाग़ी हों और आज ख़ुदावन्द की पैरवी से फिर कर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के मज़बह के सिवा जो उसके ख़ेमें के सामने है सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़्र की क़ुर्बानी और ज़बीहा के लिए कोई मज़बह बनाएँ|
\s5
\v 30 जब फ़ीन्हास काहिन और जमा'त के अमीरों या'नी हज़ार दर हज़ार इस्राईलियों के सरदारों ने जो उसके साथ आए थे यह बातें सुनीं जो बनी रूबिन और बनीजद और बनी मनस्सी ने कहीं तो वह बहुत खुश हुए|
\v 31 तब इली'अज़र के बेटे फ़ीन्हास काहिन ने बनी रूबिन और बनी जद और बनी मनस्सी से कहा आज हम ने जान लिया कि ख़ुदावन्द हमारे बीच है क्यूँकि तुम से ख़ुदावन्द की यह ख़ता नहीं हुई, ~इसलिए ~तुम ने बनी इस्राईल को ख़ुदावन्द के हाथ से छुड़ा लिया है|
\s5
\v 32 और इली'अज़र काहिन का बेटा फ़ीन्हास और वह सरदार जिल'आद से बनी रूबिन और बनी जद के पास से मुल्क-ए-कना'न में बनी इस्राईल के पास लौट आये और उनको यह माजरा सुनाया ?|
\v 33 तब बनी इस्राईल इस बात से खुश हुए और बनी इस्राईल ने ख़ुदा की हम्द की और फिर जंग के लिए उन पर चढ़ाई करने और उस मुल्क को तबाह करने का नाम न लिया जिस में बनी रूबिन और बनी जद रहते थे|
\s5
\v 34 तब बनी रूबिन और बनी जद ने उस मज़बह का नाम 'ईद यह कह कर रखा की वह हमारे बीच ~गवाह है कि यहोवाह ख़ुदा है|
\s5
\c 23
\p
\v 1 इसके बहुत दिनों बा'द जब ख़ुदावन्द ने बनी इस्राईल को उनके सब चारों तरफ़ के दुश्मनों से आराम दिया और यशू'अ बुढ्ढा और 'उम्र रसीदा हुआ|
\v 2 तो यशू'अ ने सब इस्राईलियों और उनके बुज़ुर्गों और सरदारों और क़ाज़ियों और मनसबदारों को बुलवा कर उन से कहा कि, मैं बूढ़ा और 'उम्र रसीदा हूँ|
\v 3 और जो कुछ ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हारे वजह से इन सब क़ौमों के साथ किया वह सब तुम देख चुके हो क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने आप तुम्हारे लिए जंग की|
\s5
\v 4 देखो मैं ने पर्ची डाल कर इन क़ौमों को तुम में तक़सीम किया कि यह इन सब क़ौमों के साथ जिनको मैंने काट डाला यरदन से लेकर पश्चिम की तरफ़ बड़े समन्दर तक तुम्हारे क़बीलों की मीरास ठहरें|
\v 5 और ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा ही उनको तुम्हारे सामने से निकालेगा और तुम्हारी नज़र से उनको दूर कर देगा और तुम उनके मुल्क पर क़ाबिज़ होगे जैसा ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम से कहा है, |
\s5
\v 6 इसलिए तुम ख़ूब हिम्मत बाँध कर जो कुछ मूसा की शरी'अत की किताब में लिखा है उस पर चलना और 'अमल करना ताकि तुम उस से दहने या बाएं हाथ को न मुड़ो|
\v 7 और उन क़ौमों में जो तुम्हारे बीच हुनूज़ बाक़ी हैं न जाओ और न उनके म'बूदों के नाम का ज़िक्र करो और न उनकी क़सम खिलाओ और न उनकी 'इबादत करो और न उनको सिज्दा करो|
\v 8 बल्कि ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से लिपटे रहो जैसा तुम ने आज तक किया है|
\s5
\v 9 क्यूँकि ख़ुदावन्द ने बड़ी बड़ी और ज़ोरावर क़ौमों को तुम्हारे सामने से दफ़ा' किया बल्कि तुम्हारा यह हाल रहा कि आज तक कोई आदमी तुम्हारे सामने ठहर न सका|
\v 10 तुम्हारा एक-एक आदमी एक-एक हज़ार को दौड़ायेगा, क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा ही तुम्हारे लिए लड़ता है जैसा उसने तुम से कहा|
\v 11 इसलिए तुम ख़ूब चौकसी करो कि ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रखो|
\s5
\v 12 वरना अगर तुम किसी तरह फिर कर उन क़ौमों के बक़िया से या'नी उन से जो तुम्हारे बीच बाक़ी हैं घुल मिल ~जाओ और उनके साथ ब्याह शादी करो और उन से मिलो और वह तुम से मिलें|
\v 13 तो यक़ीन जानो कि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा फिर इन क़ौमों को तुम्हारे सामने से दफ़ा' नहीं करेगा; बल्कि यह तुम्हारे लिए जाल और फंदा और तुम्हारे पहलुओं के लिए कोड़े , और तुम्हारी आँखों में काँटों की तरह होंगी, यहाँ तक कि तुम इस अच्छे मुल्क से जिसे ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम को दिया है मिट जाओगे|
\s5
\v 14 और देखो, मैं आज उसी रास्ते जाने वाला हूँ जो सारे जहान का है और तुम ख़ूब जानते हो कि उन सब अच्छी बातों में से जो ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हारे हक़ में कहीं एक बात भी न छूटी, सब तुम्हारे हक़ में पूरी हुईं और एक भी उन में से न रह गयी|
\v 15 इसलिए ~ऐसा होगा कि जिस तरह वह सब भलाइयां जिनका ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम से ज़िक्र किया था तुम्हारे आगे आयीं उसी तरह ख़ुदावन्द सब बुराईयाँ तुम पर लाएगा जब तक इस अच्छे मुल्क से जो ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम को दिया है वह तुम को बर्बाद न कर डाले|
\s5
\v 16 जब तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के उस 'अहद को जिसका हुक्म उस ने तुम को दिया तोड़ डालो और जाकर और मा'बूदों की 'इबादत करने और उनको सिज्दा करने लगो तो ख़ुदावन्द का क़हर तुम पर भड़केगा और तुम इस अच्छे मुल्क से जो उस ने तुम को दिया है जल्द हलाक हो जाओगे|
\s5
\c 24
\p
\v 1 इसके बा'द यशू'अ ने इस्राईल के सब क़बीलों को सिक्म में जमा' किया, और इस्राईल के बुज़ुर्गों और सरदारों और क़ाज़ियों और मनसबदारों को बुलवाया, और वह ख़ुदा के सामने हाज़िर हुए|
\v 2 तब यशू'अ ने उन सब लोगों से कहा कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि तुम्हारे आबा या'नी अब्रहाम और नहूर का बाप तारह वगै़रह पुराने ज़माने में बड़े दरिया के पार रहते और दूसरे मा'बूदों की 'इबादत करते थे|
\s5
\v 3 और मैंने तुम्हारे बाप अब्रहाम को बड़े दरिया के पार से लेकर कना'न के सारे मुल्क में उसकी रहबरी की, और उसकी नसल को बढ़ाया और उसे इज़्हाक़ 'इनायत किया|
\v 4 और मैंने इस्हाक़ को या'क़ूब और 'ऐसौ बख़्शे; और 'ऐसौ को कोह-ए-श'ईर दिया की वह उसका मालिक हो, और या'क़ूब अपनी औलाद के साथ मिस्र में गया|
\s5
\v 5 और मैंने मूसा और हारून को भेजा, और मिस्र पर जो मैंने उस में किया उसके मुताबिक़ मेरी मार पड़ी और उसके बा'द मैं तुमको निकाल लाया|
\v 6 तुम्हारे बाप दादा को मैंने मिस्र से निकाला , और तुम समन्दर पर आये, तब मिस्रियों ने रथों और सवारों को लेकर बहर-ए-क़ुल्ज़ुम तक तुम्हारे बाप दादा का पीछा किया|
\s5
\v 7 और जब उन्होंने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की तो उसने तुम्हारे और मिस्रियों के बीच अन्धेरा कर दिया, और समन्दर को उन पर चढ़ा लाया और उनको छिपा दिया और तुमने जो कुछ मैंने मिस्र में किया अपनी आँखों से देखा और तुम बहुत दिनों तक वीराने में रहे|
\s5
\v 8 फिर मैं तुम को अमोरियों के मुल्क में जो यरदन के उस पार रहते थे ले आया, वह तुमसे लड़े और मैंने उनको तुम्हारे हाथ में कर दिया; और तुमने उनके मुल्क पर क़ब्ज़ा कर लिया, और मैंने उनको तुम्हारे आगे से हलाक किया|
\s5
\v 9 फिर सफ़ोर का बेटा बलक़, मोआब का बादशाह, उठ कर इस्राईलियों से लड़ा और तुम पर ला'नत करने को ब'ऊर के बेटे बिल'आम को बुलवा भेजा|
\v 10 और मैंने न चाहा बिल'आम की सुनूँ; इसलिए वह तुम को बरकत ही देता गया, ~इसलिए ~मैं ने तुम को उसके हाथ से छुड़ाया|
\s5
\v 11 फिर तुम यरदन पार हो कर यरीहू को आये, और यरीहू के लोग या'नी अमोरी और फ़िरिज़्ज़ी और कना'नी और हित्ती और जिरजासी और हव्वी और यबूसी तुम से लड़े, और मैंने उनको तुम्हारे क़ब्ज़ा में कर दिया|
\v 12 और मैंने तुम्हारे आगे ज़म्बूरों को भेजा, जिन्होंने दोनों अमोरी बादशाहों को तुम्हारे सामने से भगा दिया; यह न तुम्हारी तलवार और न तुम्हारी कमान से हुआ|
\s5
\v 13 और मैंने तुम को वह मुल्क जिस पर तुम ने मेहनत न की, और वह शहर जिनको तुम ने बनाया न था 'इनायत किये, और तुम उन में बसे हो और तुम ऐसे ताकिस्तानो और ज़ैतून के बाग़ों का फल खाते हो जिनको तुमने नहीं लगाया|
\s5
\v 14 इसलिए अब तुम ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ रखो और नेक नियती और सदाक़त से उसकी 'इबादत करो; और उन माँ'बूदों को दूर कर दो जिनकी 'इबादत तुम्हारे बाप दादा बड़े दरिया के पार और मिस्र में करते थे, और ख़ुदावन्द की 'इबादत करो|
\v 15 और अगर ख़ुदावन्द की 'इबादत तुम को बुरी मा'लूम होती हो, तो आज ही तुम उसे जिसकी 'इबादत करोगे चुन लो, ख़्वाह वह वही मा'बूद हों जिनकी 'इबादत तुम्हारे बाप दादा बड़े दरिया के उस पार करते थे या अमोरी के मा'बूद हों जिनके मुल्क में तुम बसे हो; अब रही मेरी और मेरे घराने की बात~इसलिए हम तो ख़ुदावन्द की 'इबादत करेंगे|
\s5
\v 16 तब लोगों ने जवाब दिया कि ख़ुदा न करे कि हम ख़ुदावन्द को छोड़ कर और मा'बूदों की 'इबादत करें|
\v 17 क्यूँकि ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा वही है जिस ने हमको और हमारे बाप दादा को मुल्क मिस्र या'नी ग़ुलामी के घर से निकाला और वह बड़े-बड़े निशान हमारे सामने दिखाए और सारे रास्ते जिस में हम चले और उन सब क़ौमों के बीच जिन में से हम गुज़रे हम को महफ़ूज़ रखा|
\v 18 और ख़ुदावन्द ने सब क़ौमों या'नी अमोरियों को जो उस मुल्क में बसते थे हमारे सामने से निकाल दिया, ~इसलिए ~हम भी ख़ुदावन्द की 'इबादत करेंगे क्यूँकि वह हमारा ख़ुदा है|
\s5
\v 19 यशू'अ ने लोगों से कहा, " तुम ख़ुदावन्द की 'इबादत नहीं कर सकते; क्यूँकि वह पाक ख़ुदा है, वह ग़य्यूर ख़ुदा है, वह तुम्हारी ख़ताएँ और तुम्हारे गुनाह नहीं बख़्शेगा|
\v 20 अगर तुम ख़ुदावन्द को छोड़ कर अजनबी मा'बूदों की 'इबादत करो तो अगरचे वह तुम से नेकी करता रहा है तो भी वह फिर कर तुम से बुराई करेगा और तुम को फ़ना कर डालेगा| ”
\s5
\v 21 लोगों ने यशू'अ से कहा, " नहीं बल्कि हम ख़ुदावन्द ही की 'इबादत करेंगे| ”
\v 22 यशू'अ ने लोगों से कहा, " तुम आप ही अपने गवाह हो कि तुम ने ख़ुदावन्द को चुना है कि उसकी 'इबादत करो| ” उन्होंने ने कहा, " हम गवाह हैं| ”
\v 23 तब उसने कहा, "इसलिए अब तुम अजनबी मा'बूदों को जो तुम्हारे बीच हैं दूर कर दो और अपने दिलों को ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की तरफ़ लाओ| ”
\s5
\v 24 लोगों ने यशू'अ से कहा, " हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की 'इबादत करेंगे और उसी की बात मानेंगे| ”
\v 25 इसलिए ~यशू'अ ने उसी रोज़ लोगों के साथ 'अहद बांधा, और उनके लिए सिक्म में क़ायदा और क़ानून ठहराया|
\v 26 और यशू'अ ने यह बातें ख़ुदा की शरी'अत की किताब में लिख दीं, और एक बड़ा पत्थर लेकर उसे वहीं उस बलूत के दरख्त़ के नीचे जो ख़ुदावन्द के मक़्दिस के पास था खड़ा किया|
\s5
\v 27 और यशू'अ ने सब लोगों से कहा कि देखो यह पत्थर हमारा गवाह रहे, क्यूँकि उस ने ख़ुदावन्द की सब बातें जो उस ने हम से कहीं सुनी हैं इसलिए यही तुम पर गवाह रहे ऐसा न हो की तुम अपने ख़ुदा का इन्कार कर जाओ|
\v 28 फिर यशू'अ ने लोगों को उनकी अपनी अपनी मीरास की तरफ़ रुख़्सत कर दिया|
\s5
\v 29 और इन बातों के बा'द यूँ हुआ कि नून का बेटा यशू'अ ख़ुदावन्द का बन्दा एक सौ दस बरस का होकर वफ़ात कर गया|
\v 30 ~और उन्होंने उसी की मीरास की हद पर तिमनत सिरह में जो इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में कोह-ए-जा'स की उत्तर की तरफ़ को है उसे दफ़न किया
\s5
\v 31 और इस्राईली ख़ुदावन्द की 'इबादत यशू'अ के जीते जी और उन बुज़ुर्गों के जीते जी करते रहे जो यशू'अ के बा'द ज़िन्दा रहे, और ख़ुदावन्द के सब कामों से जो उस ने इस्राईलियों के लिए किये वाक़िफ़ थे
\s5
\v 32 और उन्होंने यूसुफ़ की हड्डियों को, जिनको बनी इस्राईल मिस्र से ले आये थे, सिक्म में उस ज़मीन के हिस्से में दफ़न किया जिसे या'क़ूब ने सिक्म के बाप हमोर के बेटों से चाँदी के सौ सिक्कों में ख़रीदा था; और वह ज़मीन बनी यूसुफ़ की मीरास ठहरी|
\v 33 और हारून के बेटे इली'अज़र ने वफ़ात की और उन्होंने उसे उसके बेटे फ़ीन्हास की पहाड़ी पर दफ़न किया, जो इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में उसे दी गयी थी|

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\h क़ुज़ात
\toc1 क़ुज़ात
\toc2 क़ुज़ात
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\mt1 क़ुज़ात
\s5
\c 1
\p
\v 1 ~और यशू'अ की मौत के बा'द यूँ हुआ कि बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द से पूछा कि हमारी तरफ़ से कन'आनियों से जंग करने को पहले कौन चढ़ाई करे ?
\v 2 ख़ुदावन्द ने कहा कि यहूदाह चढ़ाई करे; और देखो, मैंने यह मुल्क उसके हाथ में कर दिया है।
\v 3 तब यहूदाह ने अपने भाई शमा'ऊन से कहा कि तू मेरे साथ मेरे बँटवारे के हिस्से में चल, ताकि हम कन'आनियों से लड़ें: और इसी तरह मैं भी तेरे बँटवारे के हिस्से में तेरे साथ चलूँगा। इसलिए शमा'ऊन उसके साथ गया।
\s5
\v 4 और यहूदाह ने चढ़ाई की, और ख़ुदावन्द ने कन'आनियों और फ़रिज़्ज़ियों को उनके क़ब्ज़े में कर दिया; और उन्होंने बज़क़ में उनमें से दस हज़ार आदमी क़त्ल किए।
\v 5 और अदूनी बज़क़ को बज़क़ में पाकर वह उससे लड़े, और कन'आनियों और फ़रिज़्ज़ियों को मारा।
\s5
\v 6 लेकिन अदूनी बज़क़ भागा, और उन्होंने उसका पीछा करके उसे पकड़ लिया, और उसके हाथ और पाँव के अँगूठे काट डाले।
\v 7 तब अदूनी बज़क़ ने कहा कि हाथ और पाँव के अँगूठे कटे हुए सत्तर बादशाह मेरी मेज़ के नीचे रेज़ाचीनी करते थे, इसलिए जैसा मैंने किया वैसा ही ख़ुदा ने मुझे बदला दिया। फिर वह उसे यरुशलीम में लाए और वह वहाँ मर गया।
\s5
\v 8 और बनी यहूदाह ने यरुशलीम से लड़ कर उसे ले लिया, और उसे बर्बाद करके शहर को आग से फूंक दिया।
\v 9 इसके बा'द बनी यहूदाह उन कन'आनियों से जो पहाड़ी मुल्क और दक्खिनी हिस्से और नशेब की ज़मीन में रहते थे, लड़ने को गए।
\v 10 और यहूदाह ने उन कन'आनियों पर जो हबरून में रहते थे चढ़ाई की (और हबरून का नाम पहले क़रयत अरबा' था); वहाँ उन्होंने सीसी और अख़ीमान और तलमी को मारा।
\s5
\v 11 वहाँ से वह दबीर के बाशिदों पर चढ़ाई करने को गया (दबीर का नाम पहले क़रयत सिफ़र था)।
\v 12 तब कालिब ने कहा, "जो कोई क़रयत सिफ़र को मार कर उसे ले ले, मैं उसे अपनी बेटी 'अकसा ब्याह दूँगा।"
\v 13 और कालिब के छोटे भाई क़नज़ के बेटे ग़ुतनीएल ने उसे ले लिया; फिर उसने अपनी बेटी 'अकसा उसे ब्याह दी।
\s5
\v 14 और जब वह उसके पास गई, तो उसने उसे सलाह दी कि वह उसके बाप से एक खेत माँगे; फिर वह अपने गधे पर से उतर पड़ी, तब कालिब ने उससे कहा, "तू क्या चाहती है?"
\v 15 उसने उससे कहा, "मुझे बरकत दे; चूँकि तूने मुझे दख्खिन के मुल्क में रख्खा है, इसलिए पानी के चश्मे भी मुझे दे।" तब कालिब ने ऊपर के चश्मे और नीचे के चश्मे उसे दिए।
\s5
\v 16 और मूसा के साले क़ीनी की औलाद खजूरों के शहर में बनी यहूदाह के साथ याहूदाह के वीराने ~को जो 'अराद के दख्खिन में है, चली गयी और जाकर लोगों के साथ रहने लगी |
\v 17 और यहूदाह अपने भाई शमा'ऊन के साथ गया और उन्होंने उन कन'आनियों को जो सफ़त में रहते थे मारा, और शहर को मिटा दिया; इसलिए उस शहर का नाम हुरमा' कहलाया।
\s5
\v 18 और यहूदाह ने ग़ज़्ज़ा और उसका 'इलाक़ा,और अस्क़लोन और उसका 'इलाक़ा अक़रून और उसका 'इलाक़ा को भी ले लिया।
\v 19 और ख़ुदावन्द यहूदाह के साथ था, इसलिए उसने पहाड़ियों को निकाल दिया, लेकिन वादी के बाशिदों को निकाल न सका, क्यूँकि उनके पास लोहे के रथ थे।
\s5
\v 20 तब उन्होंने मूसा के कहने के मुताबिक़ हबरून कालिब को दिया; और उसने वहाँ से 'अनाक़ के तीनों बेटों को निकाल दिया।
\v 21 और बनी बिनयमीन ने उन यबूसियों को जो यरुशलीम में रहते थे न निकाला,~इसलिए यबूसी बनी बिनयमीन के साथ आज तक यरुशलीम में रहते हैं।
\s5
\v 22 और यूसुफ़ के घराने ने भी बैतएल लेकिन चढ़ाई की, और ख़ुदावन्द उनके साथ था।
\v 23 और यूसुफ़ के घराने ने बैतएल का हाल दरियाफ़्त करने को जासूस भेजे (और उस शहर का नाम पहले लूज़ था)।
\v 24 और जासूसों ने एक शख़्स को उस शहर से निकलते देखा और उससे कहा,कि शहर में दाख़िल होने की राह हम को दिखा दे, तो हम तुझ से मेहरबानी से पेश आएँगे।
\s5
\v 25 इसलिए~उसने शहर में दाख़िल होने की राह उनको दिखा दी। उन्होंने शहर को बर्बाद किया, पर उस शख़्स और उसके सारे घराने को छोड़ दिया।
\v 26 और वह शख़्स हित्तियों के मुल्क में गया, और उसने वहाँ एक शहर बनाया और उसका नाम लूज़ रख्खा; चुनाँचे आज तक उसका यही नाम है।
\s5
\v 27 और मनस्सी ने भी बैत शान और उसके क़स्बों और ता'नाक और उसके क़स्बों और दोर और उसके क़स्बों के बाशिदों, और इबली'आम और उसके क़स्बों के बाशिंदों, और मजिद्दो और उसके क़स्बों के बार्शिदों को न निकाला; बल्कि कन'आनी उस मुल्क में बसे ही रहे।
\v 28 लेकिन जब इस्राईल ने ज़ोर पकड़ा, तो वह कन'आनियों से बेगार का काम लेने लगे लेकिन उनको बिल्कुल निकाल न दिया।
\s5
\v 29 और इफ़्राईम~ने उन कन'आनियों को जो जज़र में रहते थे न निकाला,~इसलिए~कन'आनी उनके बीच जज़र में बसे रहे।
\s5
\v 30 और ज़बूलून ने क़ितरोन और नहलाल के लोगों को न निकाला, इसलिए~कन'आनी उनमें क़याम करते रहे और उनके फ़रमाबरदार हो गए।
\s5
\v 31 और आशर ने 'अक्को और सैदा और अहलाब और अकज़ीब और हिलबा और अफ़ीक़ और रहोब के बाशिंदों को न निकाला;
\v 32 बल्कि आशरी उन कन'आनियों के बीच जो उस मुल्क के बाशिंदे थे बस गए, क्यूँकि उन्होंने उनको निकाला न था।
\s5
\v 33 और नफ़्ताली ने बैत शम्स और बैत 'अनात के बाशिंदों को न निकाला, बल्कि वह उन कन'आनियों में जो वहाँ रहते थे बस गया; तो भी बैत शम्स और बैत'अनात के बाशिंदे उनके फ़रमाबरदार हो गए।
\s5
\v 34 और अमोरियों ने बनी दान को पहाड़ी मुल्क में भगा दिया, क्यूँकि उन्होंने उनको वादी में आने न दिया।
\v 35 बल्कि अमोरी कोह-ए-हरिस पर और अय्यालोन और सा'लबीम में बसे ही रहे, तो भी बनी यूसुफ़ का हाथ ग़ालिब हुआ, ऐसा कि यह फ़रमाबरदार हो गए।
\v 36 और अमोरियों की सरहद 'अक़रब्बीम की चढ़ाई से या'नी चट्टान से शुरू' करके ऊपर ऊपर थी।
\s5
\c 2
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता जिल्जाल से बोकीम को आया और कहने लगा, "मैं तुम को मिस्र से निकाल कर, उस मुल्क में जिसके बारे में मैं ने तुम्हारे बाप-दादा से क़सम खाई थी, ले आया और मैंने कहा, 'मैं हरगिज़ तुम से वा'दा ख़िलाफ़ी नहीं करूंगा।
\v 2 और तुम उस मुल्क के बाशिंदों के साथ 'अहद न बाँधना, बल्कि तुम उनके मज़बहों को ढा देना।' लेकिन तुम ने मेरी बात नहीं मानी। तुमने क्यूँ ऐसा किया?
\s5
\v 3 इसी लिए मैंने भी कहा, 'कि मैं उनको तुम्हारे आगे से दफ़ा' न करूँगा, बल्कि वह तुम्हारे पहलुओं के काँटे और उनके मा'बूद तुम्हारे लिए फंदा होंगे'।"
\v 4 जब ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने सब बनी इस्राईल से यह बातें कहीं, तो वह ज़ोर-ज़ोर रोने से लगे।
\v 5 और उन्होंने उस जगह का नाम बोकीम रख्खा; और वहाँ उन्होंने ख़ुदावन्द के लिए क़ुर्बानी अदा की।
\s5
\v 6 और जिस वक़्त यशू'अ ने जमा'अत को रुख़सत किया था, तब बनी-इस्राईल में से हर एक अपनी मीरास को लौट गया था ताकि उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करे।
\v 7 और वह लोग ख़ुदावन्द की 'इबादत यशू'अ के जीते जी और उन बुज़ुर्गों के जीते जी करते रहे, जो यशू'अ के बा'द ज़िन्दा रहे और जिन्होंने ख़ुदावन्द के सब बड़े काम जो उसने इस्राईल के लिए किए देखे थे।
\v 8 और नून का बेटा यशू'अ, ख़ुदावन्द का बंदा, एक सौ दस बरस का होकर वफ़ात कर गया।
\s5
\v 9 और उन्होंने उसी की मीरास की हद पर, तिमनत हरिस में इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में जो कोह-ए-जा'स के उत्तर की तरफ़ है, उसको दफ़्न किया।
\v 10 और वह सारी नसल भी अपने बाप-दादा से जा मिली; और उनके बा'द एक और नसल पैदा हुई, जो न ख़ुदावन्द को और न उस काम को जो उसने इस्राईल के लिए किया जानती थी।
\s5
\v 11 और बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द के आगे बुराई की, और बा'लीम की 'इबादत करने लगे।
\v 12 और उन्होंने ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा को जो उनको मुल्क-ए- मिस्र से निकाल लाया था छोड़ दिया, और दूसरे मा'बूदों की जो उनके चारों तरफ़ की क़ौमों के मा'बूदों में से थे पैरवी करने और उनको सिज्दा करने लगे और ख़ुदावन्द को ग़ुस्सा दिलाया।
\v 13 और वह ख़ुदावन्द को छोड़ कर बा'ल और 'इस्तारात की 'इबादत करने लगे।
\s5
\v 14 और ख़ुदावन्द का क़हर इस्राईल पर भड़का, और उसने उनको ग़ारतगरों के हाथ में कर दिया जो उनको लूटने लगे; और उसने उनको उनके दुश्मनों के हाथ जो आस पास थे बेचा,~इसलिए वह फिर अपने दुश्मनों के सामने खड़े न हो सके।
\v 15 और वह जहाँ कहीं जाते ख़ुदावन्द का हाथ उनकी तकलीफ़ ही पर तुला रहता था, जैसा ख़ुदावन्द ने कह दिया था और उनसे क़सम खाई थी; इसलिए वह निहायत तंग आ गए।
\s5
\v 16 फिर ख़ुदावन्द ने उनके लिए ऐसे क़ाज़ी खड़े किए, जिन्होंने उनको उनके ग़ारतगरों के हाथ से छुड़ाया।
\v 17 लेकिन उन्होंने अपने क़ाज़ियों की भी न सुनी, बल्कि और मा'बूदों की पैरवी में ज़िना करते और उनको सिज्दा करते थे; और वह उस राह से जिस पर उनके बाप-दादा चलते और ख़ुदावन्द की फ़रमाँबरदारी करते थे, बहुत जल्द फिर गए और उन्होंने उनके से काम न किए।
\s5
\v 18 और जब ख़ुदावन्द उनके लिए क़ाज़ियों को बरपा करता तो ख़ुदावन्द उस क़ाज़ी के साथ होता, और उस क़ाज़ी के जीते जी उनको उनके दुश्मनों के हाथ से छुड़ाया करता था; इसलिए कि जब वह अपने सताने वालों और दुख देने वालों के ज़रिए' कुढ़ते थे, तो ख़ुदावन्द ग़मगीन होता था।
\v 19 लेकिन जब वह क़ाज़ी मर जाता, तो वह फिरकर और मा'बूदों की पैरवी में अपने बाप-दादा से भी ज़्यादा बिगड़ जाते और उनकी 'इबादत करते और उनको सिज्दा करते थे; वह न तो अपने कामों से और न अपनी घमंडी के चाल-चलन से बाज़ आए।
\s5
\v 20 इसलिए ख़ुदावन्द का ग़ज़ब इस्राईल पर भड़का और उसने कहा, "चूँकि इन लोगों ने मेरे उस 'अहद को जिसका हुक्म मैं ने उनके बाप-दादा को दिया था, तोड़ डाला और मेरी बात नहीं सुनी।
\v 21 इसलिए मैं भी अब उन क़ौमों में से जिनको यशू'अ छोड़ कर मरा है, किसी को भी इनके आगे से दफ़ा' नहीं करूँगा।
\v 22 ताकि मैं इस्राईल को उन ही के ज़रिए' से आज़माऊँ, कि वह ख़ुदावन्द की राह पर चलने के लिए अपने बाप-दादा की तरह क़ायम रहेंगे या नहीं।"
\v 23 ~इसलिए~ख़ुदावन्द ने उन कौमों को रहने दिया और उनको जल्द न निकाल दिया और यशू'अ. के हाथ में भी उनको हवाले न किया।
\s5
\c 3
\p
\v 1 और यह वह क़ौमें हैं जिनको ख़ुदावन्द ने रहने दिया, ताकि उनके वसीले से इस्राईलियों में से उन सब को जो कन'आन की सब लड़ाइयों से वाक़िफ़ न थे आज़माए,
\v 2 ~सिर्फ़ मक़सद यह था कि बनी-इस्राईल की नसल के ख़ासकर उन लोगों को, जो पहले लड़ना नहीं जानते थे लड़ाई सिखाई जाए ताकि वह वाक़िफ़ हो जाएँ,
\v 3 या'नी फ़िलिस्तियों के पाँचों सरदार, और सब कन'आनी और सैदानी, और कोह-ए-बा'ल हरमून से हमात के मदख़ल तक के सब हव्वी जो कोह-ए-लुबनान में बसते थे।
\s5
\v 4 यह इसलिए थे कि इनके वसीले से इस्राइली आज़माए जाएँ, ताकि मा'लूम हो जाए के वह ख़ुदावन्द के हुक्मों को जो उसने मूसा के ज़रिए' उनके बाप-दादा को दिए थे सुनेंगे या नहीं।
\v 5 ~इसलिए~बनी-इस्राईल कन'आनियों और हित्तियों और अमूरियों और फ़रिज़्ज़ियों और हव्वियों और यबूसियों के बीच बस गए;
\v 6 और उनकी बेटियों से आप निकाह करने और अपनी बेटियाँ उनके बेटों को देने, और उनके मा'बूदों की 'इबादत करने लगे।
\s5
\v 7 और बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द के आगे बुराई की, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को भूल कर बा'लीम और यसीरतों की 'इबादत करने लगे।
\v 8 इसलिए ख़ुदावन्द का क़हर इस्राईलियों पर भड़का, और उसने उनको मसोपतामिया के बादशाह कोशन रिसा'तीम के हाथ बेच डाला; इसलिए वह आठ बरस तक कोशन रिसा'तीम के फ़रमाँबरदार रहे।
\s5
\v 9 और जब बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की तो ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के लिए एक रिहाई देने वाले को खड़ा किया, और कालिब के छोटे भाई क़नज़ के बेटे ग़ुतनीएल ने उनको छुड़ाया।
\v 10 और ख़ुदावन्द की रूह उस पर उतरी और वह इस्राईल का क़ाज़ी हुआ और जंग के लिए निकला; तब ख़ुदावन्द ने मसोपतामिया के बादशाह कोशन रिसा'तीम को उसके हाथ में कर दिया,~इसलिए~उसका हाथ कोशन रिसा'तीम पर ग़ालिब हुआ।
\v 11 और उस मुल्क में चालीस बरस तक चैन रहा और क़नज़ के बेटे गुतनीएल ने वफ़ात पाई।
\s5
\v 12 और बनी-इस्राईल ने फिर ख़ुदावन्द के आगे बुराई की; तब ख़ुदावन्द ने मोआब के बादशाह 'अजलून को इस्राईलियों के ख़िलाफ़ ज़ोर बख़्शा, इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द के आगे बदी की थी।
\v 13 और उसने बनी 'अम्मून और बनी 'अमालीक़ को अपने यहाँ जमा' किया और जाकर इस्राईल को मारा, और उन्होंने खजूरों का शहर ले लिया।
\v 14 इसलिए बनीइस्राईल अठारह बरस तक मोआब के बादशाह 'अजलून के फ़रमाँबरदार रहे।
\s5
\v 15 लेकिन जब बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की तो ख़ुदावन्द ने बिनयमीनी जीरा के बेटे अहूद को जो बेसहारा था, उनका छुड़ाने वाले मुक़र्रर किया और बनी इस्राईल ने उसके ज़रिए' मोआब के बादशाह 'अजलून के लिए हदिया भेजा।
\s5
\v 16 और अहूद ने अपने लिए एक दोधारी तलवार एक हाथ लम्बी बनवाई, और उसे अपने जामे के नीचे दहनी रान पर बाँध लिया।
\v 17 फिर उसने मोआब के बादशाह 'अजलून के सामने वह हदिया पेश किया, और 'अजलून बड़ा मोटा आदमी था।
\v 18 और जब वह हदिया पेश कर चुका तो उन लोगों को जो हदिया लाए थे रुख़सत किया।
\s5
\v 19 और वह उस पत्थर के कान के पास जो जिल्जाल में है, कहने लगा, "ऐ बादशाह मेरे पास तेरे लिए एक ख़ूफ़िया पैग़ाम है |" उसने कहा, " ख़ामोश रह|" तब वह पास सब जो उसके खड़े थे उसके पास से बाहर चले गए|
\v 20 फिर अहूद उसके पास आया, उस वक़्त वह अपने हवादार बालाख़ाने में अकेला बैठा था। तब अहूद ने कहा, "तेरे लिए मेरे पास ख़ुदा की तरफ़ से एक पैग़ाम है।" तब वह कुर्सी पर से उठ खड़ा हुआ।
\s5
\v 21 और अहूद ने अपना बायाँ हाथ बढ़ा कर अपनी दहनी रान पर से वह तलवार ली और उसकी पेट में घुसेड़ दी।
\v 22 और फल क़ब्ज़े समेत दाख़िल हो गया, और चर्बी फल के ऊपर लिपट गई; क्यूँकि उसने तलवार को उसकी पेट से न निकाला, बल्कि वह पार हो गई।
\v 23 तब अहूद ने बरआमदे में आकर और बालाख़ाने के दरवाज़ों के अन्दर उसे बन्द कर के ताला लगा दिया।
\s5
\v 24 और जब वह चलता बना तो उसके ख़ादिम आए और उन्होंने देखा कि बालाख़ाने के दरवाज़ों में ताला लगा है; वह कहने लगे, "वह ज़रूर हवादार कमरे में फराग़त कर रहा है।"
\v 25 और वह ठहरे ठहरे शरमा भी गए, और जब देखा के वह बालाख़ाने के दरवाज़े नहीं खोलता, तो उन्होंने कुंजी ली और दरवाज़े खोले, और देखा कि उनका आक़ा ज़मीन पर मरा पड़ा है।
\s5
\v 26 और वह ठहरे ही हुए थे के अहूद इतने में भाग निकला, और पत्थर की कान से आगे बढ़ कर स'ईरत में जा पनाह ली।
\v 27 और वहाँ पहुँच कर उसने इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में नरसिंगा फूंका। तब बनी इस्राईल उसके साथ पहाड़ी मुल्क से उतरे, और वह उनके आगे आगे हो लिया।
\s5
\v 28 उसने उनको कहा, "मेरे पीछे पीछे चले चलो, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने तुम्हारे दुश्मनों या'नी मोआबियों को तुम्हारे क़ब्ज़ा में कर दिया है।"~इसलिए उन्होंने उसके पीछे पीछे जाकर यरदन के घाटों को जो मोआब की तरफ़ थे अपने क़ब्ज़े में कर लिया, और एक को भी पार उतरने न दिया।
\v 29 उस वक़्त उन्होंने मोआब के दस हज़ार शख़्स के क़रीब जो सब के सब मोटे ताज़े और बहादुर थे, क़त्ल किए और उनमें से एक भी न बचा।
\v 30 ~इसलिए~मोआब उस दिन इस्राईलियों के हाथ के नीचे दब गया, और उस मुल्क में अस्सी बरस चैन रहा।
\s5
\v 31 इसके बा'द 'अनात का बेटा शमजर खड़ा हुआ, और उसने फ़िलिस्तियों में से छ: सौ आदमी बैल के पैने से मारे; और उसने भी इसाईल को रिहाई दी।
\s5
\c 4
\p
\v 1 और अहूद की वफ़ात के बा'द बनीइस्राईल ने फिर ख़ुदावन्द के सामने बुराई की।
\v 2 ~इसलिए~ख़ुदावन्द ने उनको कन'आन के बादशाह याबीन के हाथ जो हसूर में सल्तनत करता था बेचा, और उसके लश्कर के सरदार का नाम सीसरा था; वह~दीगर अक़वाम के शहर हरूसत में रहता था।
\v 3 तब बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की; क्यूँकि उसके पास लोहे के नौ सौ रथ थे, और उसने बीस बरस तक बनी-इस्राईल को शिद्दत से सताया।
\s5
\v 4 उस वक़्त लफ़ीदोत की बीवी दबोरा नबिया, बनी-इस्राईल का इन्साफ़ किया करती थी।
\v 5 और वह इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में रामा और बैतएल के बीच दबोरा के खजूर के दरख़्त के नीचे रहती थी, और बनी इस्राईल उसके पास इन्साफ़ के लिए आते थे।
\s5
\v 6 और उसने क़ादिस नफ़्ताली से अबीनू'अम के बेटे बरक़ को बुला भेजा और उससे कहा, "क्या ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने हुक्म नहीं किया, कि तू तबूर के पहाड़ पर चढ़ जा, और बनी नफ़्ताली और बनी ज़बूलून में से दस हज़ार आदमी अपने साथ ले ले?
\v 7 और मैं नहर-ए-क़ीसोन पर याबीन के लश्कर के सरदार सीसरा को और उसके रथों और फ़ौज को तेरे पास खींच लाऊँगा, और उसे तेरे हाथ में कर दूँगा।"
\s5
\v 8 और बरक़ ने उससे कहा, "अगर तू मेरे साथ चलेगी तो मैं जाऊँगा, लेकिन अगर तू मेरे साथ नहीं चलेगी तो मैं नहीं जाऊँगा।"
\v 9 उसने कहा, "मैं ज़रूर तेरे साथ चलूँगीं ; लेकिन इस सफ़र से जो तू करता है तुझे कुछ इज़्ज़त हासिल न होगी, क्यूँकि ख़ुदावन्द सीसरा को एक 'औरत के हाथ बेच डालेगा।" और दबोरा उठ कर बरक़ के साथ क़ादिस को गई।
\s5
\v 10 और बरक़ ने ज़बूलून और नफ़्ताली को क़ादिस में बुलाया; और दस हज़ार आदमी अपने साथ लेकर चढ़ा, और दबोरा भी उसके साथ चढ़ी।
\s5
\v 11 और हिब्र क़ीनी ने जो मूसा के साले हुबाब की नसल से था, क़ीनियों से अलग होकर क़ादिस के क़रीब ज़ाननीम में बलूत के दरख़्त के पास अपना डेरा डाल लिया था।
\s5
\v 12 तब उन्होंने सीसरा को ख़बर पहुँचाई कि बरक़ बिन अबीनू'अम कोह-ए-तबूर पर चढ़ गया है।
\v 13 और सीसरा ने अपने सब रथों को, या'नी लोहे के नौ सौ रथों और अपने साथ के सब लोगों को दीगर अक़वाम के शहर हरूसत से क़ीसोन की नदी पर जमा' किया।
\s5
\v 14 तब दबोरा ने बरक़ से कहा कि उठ! क्यूँकि यही वह दिन है, जिसमें ख़ुदावन्द ने सीसरा को तेरे क़ब्ज़े में कर दिया है। क्या ख़ुदावन्द तेरे आगे नहीं गया है? तब बरक़ और वह दस हज़ार आदमी उसके पीछे पीछे कोह-ए-तबूर से उतरे।
\s5
\v 15 और ख़ुदावन्द ने सीसरा को और उसके सब रथों और सब लश्कर को, तलवार की धार से बरक़ के सामने शिकस्त दी; और सीसरा रथ पर से उतर कर पैदल भागा।
\v 16 और बरक़ रथों और लश्कर को दीगर अक़वाम के हरूसत शहर तक दौड़ाता गया; चुनाँचे सीसरा का सारा लश्कर तलवार से मिटा, और एक भी न बचा।
\s5
\v 17 लेकिन सीसरा हिब्र क़ीनी की बीवी या'एल के डेरे को पैदल भाग गया, इसलिए कि हसूर के बादशाह याबीन और हिब्र क़ीनी के घराने में सुलह थी।
\v 18 तब या'एल सीसरा से मिलने को निकली, और उससे कहने लगी, "ऐ मेरे ख़ुदावन्द, आ मेरे पास आ, और परेशान न हो।” इसलिए वह उसके पास डेरे में चला गया, और उसने उसको कम्बल उढ़ा दिया।
\s5
\v 19 तब सीसरा ने उससे कहा कि ज़रा मुझे थोड़ा सा पानी पीने को दे, क्यूँकि मैं प्यासा हूँ। तब उसने दूध का मश्कीज़ा खोलकर उसे पिलाया, और फिर उसे उढ़ा दिया।
\v 20 तब उसने उससे कहा कि तू डेरे के दरवाज़े पर खड़ी रहना, और अगर कोई शख़्स आकर तुझ से पूछे कि यहाँ कोई आदमी है? तो कह देना कि नहीं।
\s5
\v 21 तब हिब्र की बीवी या'एल डेरे की एक मेख और एक मेख़चू को हाथ में ले, दबे पाँव उसके पास गई और मेख़ उसकी कनपट्टियों पर रख कर ऐसी ठोंकी कि वह पार होकर ज़मीन में जा धँसी, क्यूँकि वह गहरी नींद में था, पस वह बेहोश होकर मर गया।
\v 22 और जब बरक़ सीसरा को दौड़ाता आया तो या'एल उससे मिलने को निकली और उससे कहा, "आ जा, और मैं तुझे वही शख़्स जिसे तू ढूँडता है दिखा दूँगी।” पस उसने उसके पास आकर देखा कि सीसरा मरा पड़ा है, और मेख़ उसकी कनपट्टियों में है।
\s5
\v 23 ~इसलिए~ख़ुदा ने उस दिन कन'आन के बादशाह याबीन को बनी-इस्राईल के सामने नीचा दिखाया।
\v 24 और बनी-इस्राईल का हाथ कन'आन के बादशाह याबीन पर ज़्यादा ग़ालिब ही होता गया, यहाँ तक कि उन्होंने शाह-ए-कन'आन याबीन को बर्बाद कर डाला।
\s5
\c 5
\p
\v 1 उसी दिन दबोरा और अबीनू'अम के बेटे बरक़ ने यह गीत गाया कि :
\v 2 ~पेशवाओं ने जो इस्राईल की पेशवाई की और लोग ख़ुशी ख़ुशी भर्ती हुए इसके लिए ख़ुदावन्द को मुबारक कहो।
\s5
\v 3 ऐ बादशाहों, सुनो! ऐ शाहज़ादों, कान लगाओ! मैं ख़ुद ख़ुदावन्द की ता'रीफ़ करूंगी, मैं ख़ुदावन्द, इस्राईल के ख़ुदा की बड़ाई गाऊँगी।
\v 4 ऐ ख़ुदावन्द, जब तू श'ईर से चला, जब तू अदोम के मैदान से बाहर निकला, तो ज़मीन कॉप उठी, और आसमान टूट पड़ा, हाँ, बादल बरसे।
\s5
\v 5 पहाड़ ख़ुदावन्द की हुज़ूरी की वजह से, और वह सीना भी ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की हुज़ूरी की वजह से कॉप गए।
\v 6 'अनात के बेटे शमजर के दिनों में, और या'एल के दिनों में शाहराहें सूनी पड़ी थीं, और मुसाफ़िर पगडंडियों से आते जाते थे।
\s5
\v 7 इस्राईल में हाकिम बन्द रहे, वह बन्द रहे, जब तक कि मैं दबोरा खड़ी न हुई, जब तक कि मैं इस्राईल में माँ होकर न उठी।
\v 8 उन्होंने नए नए मा'बूद चुन लिए, तब जंग फाटकों ही पर होने लगी। क्या चालीस हज़ार इस्त्राईलियों में भी कोई ढाल या बर्छी दिखाई देती थी?
\s5
\v 9 मेरा दिल इस्राईल के हाकिमों की तरफ़ लगा है जो लोगों के बीच ख़ुशी ख़ुशी भर्ती हुए। तुम ख़ुदावन्द को मुबारक कहो।
\v 10 ~ऐ तुम सब जो सफ़ेद गधों पर सवार हुआ करते हो, और तुम जो नफ़ीस गालीचों पर बैठते हो, और तुम लोग जो रास्ते चलते हो, सब इसका चर्चा करो।
\s5
\v 11 तीरअंदाज़ों के शोर से दूर पनघटों में, वह ~ख़ुदावन्द के सच्चे कामों का, या'नी उसकी हुकूमत के उन सच्चे कामों का जो इस्राईल में हुए ज़िक्र करेंगे। उस वक़्त ख़ुदावन्द के लोग उतर उतर कर फाटकों पर गए।
\s5
\v 12 "जाग, जाग, ऐ दबोरा! जाग, जाग और गीत गा! उठ, ऐ बरक़, और अपने ग़ुलामों को बाँध ले जा, ऐ अबीनू'अम के बेटे।
\v 13 उस वक़्त थोड़े से ~रईस और लोग उतर आए: ख़ुदावन्द मेरी तरफ़ से ताक़तवरों के मुक़ाबिले के लिए आया।
\s5
\v 14 ~इफ़्राईम ~में से वह ~लोग आए जिनकी जड़ 'अमालीक़ में है; तेरे पीछे पीछे ऐ बिनयमीन, तेरे लोगों के बीच , मकीर में से हाकिम उतर कर आए; और ज़बूलून में से वह ~लोग आए जो सिपहसालार की लाठी लिए रहते हैं;
\s5
\v 15 और इश्कार के सरदार दबोरा के साथ साथ थे, जैसा इश्कार वैसा ही बरक़ था; वह ~लोग उसके साथी ~झपट कर वादी में गए। रूबिन की नदियों के पास बड़े बड़े इरादे दिल में ठाने गए।
\s5
\v 16 तू उन सीटियों को सुनने के लिए, जो भेड़ बकरियों के लिए बजाते हैं भेड़ सालों के बीच क्यूँ बैठा रहा? रूबिन की नदियों के पास दिलों में बड़ी घबराहट थी।
\s5
\v 17 जिल'आद यरदन के पार रहा; और दान किश्तियों में क्यूँ रह गया? आशर समुन्दर के बन्दर के पास बैठा ही रहा, और अपनी खाड़ियों के आस पास जम गया।
\v 18 ज़बूलून अपनी जान पर खेलने वाले लोग थे; और नफ़्ताली भी मुल्क के ऊँचे ऊँचे मक़ामों पर ऐसा ही निकला।
\s5
\v 19 ~बादशाह आकर लड़े, तब कन'आन के बादशाह ता'नाक में मजिद्दो के चश्मों के पास लड़े: लेकिन उनको कुछ रूपये हासिल न हुए।
\v 20 आसमान की तरफ़ से भी लड़ाई हुई; बल्कि सितारे भी अपनी अपनी मंजिल में सीसरा से लड़े।
\s5
\v 21 ~क़ीसोन नदी उनको बहा ले गई, या'नी वही पुरानी नदी जो क़ीसोन नदी है। ऐ मेरी जान! तू ज़ोरों में चल।
\v 22 उनके कूदने, उन ताक़तवर घोड़ों के कूदने की वजह से, खुरों की टांप की आवाज़ होने लगी।
\s5
\v 23 ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने कहा, कि तुम मीरोज़ पर ला'नत करो,उसके बाशिंदों पर सख़्त ला'नत करो क्यूँकि वह ख़ुदावन्द की मदद को ताक़तवर के मुक़ाबिल ख़ुदावन्द की मदद को आए|
\s5
\v 24 ~हिब्र क़ीनी की बीवी या'एल, सब 'औरतों से मुबारक ठहरेगी; जो 'औरतें डेरों में हैं उन से वह मुबारक होगी।
\v 25 सीसरा ने पानी माँगा, उसने उसे दूध दिया, अमीरों की थाल में वह उसके लिए मक्खन लाई।
\s5
\v 26 उसने अपना हाथ मेख़ को, और अपना दहना हाथ बढ़इयों के मेख़चू को लगाया; और मेख़चू से उसने सीसरा को मारा, उसने उसके सिर को फोड़ डाला, और उसकी कनपट्टियों को आर पार छेद दिया।
\v 27 उसके पाँव पर वह ~झुका, वह गिरा, और पड़ा रहा; उसके पाँव पर वह झुका और गिरा; जहाँ वह झुका था, वहीं वह मर कर गिरा।
\s5
\v 28 सीसरा की माँ खिड़की से झाँकी और चिल्लाई, उसने झिलमिली की ओट से पुकारा, 'उसके रथ के आने में इतनी देर क्यूँ लगी? उसके रथों के पहिए क्यूँ अटक गए?'
\s5
\v 29 उसकी अक़्लमन्द 'औरतों ने जवाब दिया, बल्कि उसने अपने को आप ही जवाब दिया,
\v 30 'क्या उन्होंने लूट को पाकर उसे बॉट नहीं लिया है? क्या हर आदमी को एक एक बल्कि दो दो कुँवारियाँ, और सीसरा को रंगारंग कपड़ों की लूट, बल्कि बेल बूटे कढ़े हुए रंगारंग कपड़ों की लूट, और दोनों तरफ़ बेल बूटे कढ़े हुए जो ग़ुलामों की गरदनों पर लदी हों, नहीं मिली ?'
\s5
\v 31 ~ऐ ख़ुदावन्द, तेरे सब दुश्मन ऐसे ही हलाक हो जाएँ! लेकिन उसके प्यार करने वाले आफ़ताब की तरह हों जब वह ज़ोश के साथ उगता है।" और मुल्क में चालीस बरस अम्न रहा।
\s5
\c 6
\p
\v 1 और बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द के आगे बुराई की, और ख़ुदावन्द ने उनको सात बरस तक मिदियानियों के हाथ में रख्खा।
\v 2 और मिदियानियों का हाथ इस्राईलियों पर ग़ालिब हुआ; और मिदियानियों की वजह से बनी-इस्राईल ने अपने लिए पहाड़ों में खोह और ग़ार और क़िले' बना लिए।
\s5
\v 3 और ऐसा होता था कि जब बनी-इस्राईल कुछ बोते थे, तो मिदियानी और 'अमालीक़ी और मशरिक़ के लोग उन पर चढ़ आते थे;
\v 4 और उनके मुक़ाबिल डेरे लगा कर ग़ज़्ज़ा तक खेतों की पैदावार को बर्बाद कर डालते, और बनी-इस्राईल के लिए न तो कुछ ख़ुराक, न भेड़-बकरी, न गाय बैल, न गधा छोड़ते थे।
\s5
\v 5 क्यूँकि वह अपने चौपायों और डेरों को साथ लेकर आते, और टिड्डियों के दल की तरह आते; और वह और उनके ऊँट बेशुमार होते थे। यह लोग मुल्क को तबाह करने के लिए आ जाते थे।
\v 6 ~~इसलिए~इस्राइली मिदियानियों की वजह से निहायत बर्बाद हो गए, और बनी-इस्राईल ख़ुदावन्द से फ़रियाद करने लगे।
\s5
\v 7 और जब बनी-इस्राईल मिदियानियों की वजह से ख़ुदावन्द से फ़रियाद करने लगे,
\v 8 तो ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के पास एक नबी को भेजा। उसने उनसे कहा कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: मैं तुम को मिस्र से लाया, और मैंने तुम को ग़ुलामी के घर से बाहर निकाला।
\s5
\v 9 मैंने मिस्त्रियों के हाथ से और उन सभों के हाथ से जो तुम को सताते थे तुम को छुड़ाया, और तुम्हारे सामने से उनको दफ़ा' किया और उनका मुल्क तुम को दिया।
\v 10 और मैंने तुम से कहा था कि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा मैं हूँ;~इसलिएतुम उन अमोरियों के मा'बूदों से जिनके मुल्क में बसते हो, मत डरना।' लेकिन तुम ने मेरी बात न मानी।
\s5
\v 11 फिर ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता आकर उफ़रा में बलूत के एक दरख़्त के नीचे जो यूआस अबी'अज़री का था बैठा, और उसका बेटा जिदाऊन मय के एक कोल्हू में गेहूँ झाड़ रहा था ताकि उसको मिदियानियों से छिपा रख्खे।
\v 12 और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उसे दिखाई देकर उससे कहने लगा कि ऐ ताक़तवर सूर्मा, ख़ुदावन्द तेरे साथ है।
\s5
\v 13 ` जिदा'ऊन ने उससे कहा, "ऐ मेरे मालिक! अगर ख़ुदावन्द ही हमारे साथ है तो हम पर यह सब हादसे क्यूँ गुज़रे? और उसके वह सब 'अजीब काम कहाँ गए, जिनका ज़िक्र हमारे बाप-दादा हम से यूँ करते थे, कि क्या ख़ुदावन्द ही हम को मिस्र से नहीं निकाल लाया? लेकिन अब तो ख़ुदावन्द ने हम को छोड़ दिया, और हम को मिदियानियों के हाथ में कर दिया।"
\s5
\v 14 तब ख़ुदावन्द ने उस पर निगाह की और कहा कि तू अपने इसी ताक़त में जा, और बनी-इस्राईल की मिदियानियों के हाथ से छुड़ा। क्या मैंने तुझे नहीं भेजा?
\v 15 उसने उससे कहा, "ऐ मालिक! मैं किस तरह बनी-इस्राईल को बचाऊँ? मेरा घराना मनस्सी में सब से ग़रीब है, और मैं अपने बाप के घर में सब से छोटा हूँ।"
\s5
\v 16 ख़ुदावन्द ने उससे कहा, "मैं ज़रूर तेरे साथ हूँगा, और तू मिदियानियों को ऐसा मार लेगा जैसे एक आदमी को।"
\v 17 तब उसने उससे कहा कि अगर अब मुझ पर तेरे करम की नज़र हुई है, तो इसका मुझे कोई निशान दिखा कि मुझ से तू ही बातें करता है।
\v 18 और मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, कि तू यहाँ से न जा जब तक मैं तेरे पास फिर न आऊँ और अपना हदिया निकाल कर तेरे आगे न रखूँ। उसने कहा कि जब तक तू फिर आ न जाए, मैं ठहरा रहूँगा।
\s5
\v 19 तब जिदा'ऊन ने जाकर बकरी का एक बच्चा और एक ऐफ़ा आटे की फ़तीरी रोटियाँ तैयार कीं, और गोश्त को एक टोकरी में और शोरबा एक हॉण्डी में डालकर उसके पास बलूत के दरख़्त के नीचे लाकर पेश किया।
\v 20 तब ख़ुदा के फ़रिश्ते ने उससे कहा, "इस गोश्त और फ़तीरी रोटियों कों ले जाकर उस चट्टान पर रख, और शोरबे को उंडेल दे।” उसने वैसा ही किया।
\s5
\v 21 तब ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उस लाठी की नोक से जो उसके हाथ में थी, गोश्त और फ़तीरी रोटियों को छुआ; और उस पत्थर से आग निकली और उसने गोश्त और फ़तीरी रोटियों को भसम कर दिया। तब ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उसकी नज़र से ग़ायब हो गया।
\s5
\v 22 और जिदा'ऊन ने जान लिया के वह ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता था;~इसलिए ~जिदा'ऊन कहने लगा, "अफ़सोस है ऐ मालिक, ख़ुदावन्द, कि मैंने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को आमने-सामने देखा।"
\v 23 ख़ुदावन्द ने उससे कहा, "तेरी सलामती हो, ख़ौफ़ न कर, तू मरेगा नहीं।"
\v 24 तब जिदाऊन ने वहाँ ख़ुदावन्द के लिए मज़बह बनाया, और उसका नाम यहोवा सलोम रख्खा; वह अबी'अज़रियों के 'उफ़रा में आज तक मौजूद है।
\s5
\v 25 और उसी रात ख़ुदावन्द ने उसे कहा कि अपने बाप का जवान बैल, या'नी वह दूसरा बैल जो सात बरस का है ले, और बा'ल के मज़बह को जो तेरे बाप का है ढा दे, और उसके पास की यसीरत को काट डाल;
\v 26 और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए इस गढ़ी की चोटी पर क़ा'इदे के मुताबिक़ एक मज़बह बना; और उस दूसरे बैल को लेकर, उस यसीरत की लकड़ी से जिसे तू काट डालेगा, सोख़्तनी क़ुर्बानी गुज़ार।
\s5
\v 27 तब जिदा'ऊन ने अपने नौकरों में से दस आदमियों को साथ लेकर जैसा ख़ुदावन्द ने उसे फ़रमाया था किया; और चूँकि वह यह काम अपने बाप के ख़ान्दान और उस शहर के बाशिंदों के डर से दिन को न कर सका, इसलिए उसे रात को किया।
\s5
\v 28 जब उस शहर के लोग सुबह सवेरे उठे तो क्या देखते हैं, कि बा'ल का मज़बह ढाया हुआ, और उसके पास की यसीरत कटी हुई, और उस मज़बह पर जो बनाया गया था वह दूसरा बैल चढ़ाया हुआ है।
\v 29 और वह आपस में कहने लगे, "किसने यह काम किया?" और जब उन्होंने तहक़ीक़ात और पूछ-ताछ की तो लोगों ने कहा, "यूआस के बेटे जिदा'ऊन ने यह काम किया है।"
\s5
\v 30 तब उस शहर के लोगों ने यूआस से कहा, "अपने बेटे को निकाल ला ताकि क़त्ल किया जाए, इसलिए कि उसने बा'ल का मज़बह ढा दिया, और उसके पास की यसीरत काट डाली है।"
\s5
\v 31 यूआस ने उन सभों को जो उसके सामने खड़े थे कहा, "क्या तुम बा'ल के वास्ते झगड़ा करोगे? या तुम उसे बचा लोगे? जो कोई उसकी तरफ़ से झगड़ा करे वह इसी सुबह मारा जाए। अगर वह ख़ुदा है तो आप ही अपने लिए झगड़े, क्यूँकि किसी ने उसका मज़बह ढा दिया है।"
\v 32 इसलिए उसने उस दिन जिदा'ऊन का नाम यह कहकर यरुब्बा'ल रख्खा, कि बा'ल आप इससे झगड़ ले, इसलिए कि इसने उसका मज़बह ढा दिया है।
\s5
\v 33 तब सब मिदियानी और 'अमालीकी और मशरिक़ के लोग इकट्ठे हुए, और पार होकर यज़र'एल की वादी में उन्होंने डेरा किया।
\s5
\v 34 तब ख़ुदावन्द की रूह जिदा'ऊन पर नाज़िल हुई,~इसलिए~उसने नरसिंगा फूंका और अबी'अज़र के लोग उसकी पैरवी में इकट्ठे हुए।
\v 35 फिर उसने सारे मनस्सी के पास क़ासिद भेजे, तब वह भी उसकी पैरवी में इकट्ठे हुए। और उसने आशर और ज़बूलून और नफ़्ताली के पास भी क़ासिद रवाना किए,~इसलिए वह उनके इस्तक़बाल को आए।
\s5
\v 36 तब जिदा'ऊन ने खुदा से कहा, "अगर तू अपने क़ौल के मुताबिक़ मेरे हाथ के वसीले से बनी-इस्राईल को रिहाई देना चाहता है,
\v 37 तो देख, मैं भेड़ की ऊन खलिहान में रख दूँगा;~इसलिए~अगर ओस सिर्फ़ ऊन ही पर पड़े और आस- पास की ज़मीन सब सूखी रहे, तो मैं जान लूंगा कि तू अपने क़ौल के मुताबिक़ बनी-इस्राईल को मेरे हाथों के वसीले से रिहाई बख़्शेगा।"
\s5
\v 38 और ऐसा ही हुआ। क्यूँकि वह सुबह को जूँ ही सवेरे उठा, और उस ऊन को दबाया और ऊन में से ओस निचोड़ी तो प्याला भर पानी निकला।
\s5
\v 39 तब जिदा'ऊन ने ख़ुदा से कहा कि तेरा ग़ुस्सा मुझ पर न भड़के, मैं सिर्फ़ एक बार और 'अर्ज़ करता हूँ, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि सिर्फ़ एक बार और इस ऊन से आज़माइश कर लूँ, अब सिर्फ़ ऊन ही ऊन ख़ुश्क रहे और आस पास की सब ज़मीन पर ओस पड़े।
\v 40 ~तब ख़ुदा ने उस रात ऐसा ही किया क्यूँकि ऊन ही ख़ुश्क रही और सारी ज़मीन पर ओस पड़ी।
\s5
\c 7
\p
\v 1 तब यरुब्बा'ल या'नी जिदा'ऊन और सब लोग जो उसके साथ थे सवेरे ही उठे, और हरोद के चश्मे के पास डेरा किया, और मिदियानियों की लश्कर गाह उनके उत्तर की तरफ़ कोह-ए-मोरा के मुत्तसिल वादी में थी
\s5
\v 2 तब ख़ुदावन्द ने जिदा'ऊन से कहा, "तेरे साथ के लोग इतने ज़्यादा हैं, कि मैं मिदियानियों को उनके हाथ में नहीं कर सकता; ऐसा न हो कि इस्राइली मेरे सामने अपने ऊपर फ़ख़्र कर के कहने लगें कि हमारी ताक़त ने हम को बचाया।
\v 3 ~इसलिए~तू लोगों में सुना सुना कर ऐलान कर दे कि जो कोई तरसान और हिरासान हो, वह लौट कर कोह-ए-जिल'आद से चला जाए'। चुनाचें उन लोगों में से बाइस हज़ार तो लौट गए, और दस हज़ार बाक़ी रह गए।
\s5
\v 4 तब खुदावन्द ने जिदा'ऊन से कहा कि लोग अब भी ज़्यादा हैं;~इसलिए~तू उनको चश्मे के पास नीचे ले आ, और वहाँ मैं तेरी ख़ातिर उनको आज़माऊँगा; और ऐसा होगा कि जिसके बारे में में तुझ से कहूँ, 'यह तेरे साथ जाए, वही तेरे साथ जाए; और जिसके हक़ में मैं कहूँ कि यह तेरे साथ न जाए,' वह न जाए।
\s5
\v 5 ~इसलिए~वह उन लोगों को चश्मे के पास नीचे ले गया, और ख़ुदावन्द ने जिदा'ऊन से कहा कि जो जो अपनी ज़बान से पानी चपड़ चपड़ कर के कुत्ते की तरह पिए उसको अलग रख, और वैसे ही हर ऐसे शख़्स को जो घुटने टेक कर पिए।
\v 6 ~इसलिए~जिन्होंने अपना हाथ अपने मुँह से लगा कर चपड़ चपड़ कर के पिया वह गिनती में तीन सौ शख़्स थे, और बाक़ी सब लोगों ने घुटने टेक कर पानी पिया।
\s5
\v 7 तब ख़ुदावन्द ने जिदा'ऊन से कहा कि मैं इन तीन सौ आदमियों के वसीले से जिन्होंने चपड़ चपड़ कर के पिया तुम को बचाऊँगा, और मिदियानियों को तेरे हाथ में कर दूँगा; और बाक़ी सब लोग अपनी अपनी जगह को लौट जाएँ।
\v 8 तब उन लोगों ने अपना-अपना खाना और नरसिंगा अपने अपने हाथ में लिया; और उसने सब इस्राइली आदमियों को उनके डेरों की तरफ़ रवाना कर दिया पर उन तीन सौ आदमियों रख लिया; और मिदियानियों की लश्कर गाह उसके नीचे वादी में थी।
\s5
\v 9 और उसी रात ख़ुदावन्द ने उससे कहा, "उठ, और नीचे लश्कर गाह में उतर जा: क्यूँकि मैंने उसे तेरे क़ब्ज़ा में कर दिया है।
\v 10 लेकिन अगर तू नीचे जाते डरता है, तो तू अपने नौकर फ़ूराह के साथ लश्कर गाह में उतर जा,
\v 11 और तू सुन लेगा कि वह क्या कह रहे हैं; इसके बा'द तुझ को हिम्मत होगी कि तू उस लश्कर गाह में उतर जाए। चुनाँचे वह अपने नौकर फ़ूराह को साथ लेकर उन सिपाहियों के पास जो उस लश्कर गाह के किनारे थे गया।
\s5
\v 12 और मिदियानी और 'अमालीकी और मशरिक़ के लोग कसरत से वादी के बीच टिड्डियों की तरह फैले पड़े थे; और उनके ऊँट कसरत की वजह से समुन्दर के किनारे की रेत की तरह बेशुमार थे।
\s5
\v 13 और जब जिदा'ऊन पहुँचा तो देखो, वहाँ एक शख़्स अपना ख़्वाब अपने साथी से बयान करता हुआ कह रहा था, "देख, मैंने एक ख़्वाब देखा है कि जौ की एक रोटी मिदियानी लश्कर गाह में गिरी और लुढ़कती हुई डेरे के पास पहुँची, और उससे ऐसी टकराई कि वह गिर गया और उसको ऐसा उलट दिया कि वह डेरा फ़र्श हो गया।"
\v 14 तब उसके साथी ने जवाब दिया कि यह यूआस के बेटे जिदा'ऊन इस्राइली आदमी की तलवार के 'अलावा और कुछ नहीं; ख़ुदा ने मिदियान की और सारे लश्कर को उसके क़ब्ज़े में कर दिया है।
\s5
\v 15 जब जिदा'ऊन ने ख़्वाब का मज़मून और उसकी ता'बीर सुनी तो सिज्दा किया, और इस्राइली लश्कर में लौट कर कहने लगा, "उठो, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मिदियानी लश्कर को तुम्हारे क़ब्ज़े में कर दिया है।"
\v 16 और उसने उन तीन सौ आदमियों के तीन ग़ोल किए, और उन सभों के हाथ में एक एक नरसिंगा, और उसके साथ एक एक खाली घड़ा दिया हर घड़े के अन्दर एक मशाल थी।
\s5
\v 17 और उसने उनसे कहा कि मुझे देखते रहना और वैसा ही करना; और देखो, जब मैं लश्कर गाह के किनारे जा पहुँचूँ, तो जो कुछ मैं करूँ तुम भी वैसा ही करना।
\v 18 जब मैं और वह सब जो मेरे साथ हैं। नरसिंगा फूंकें, तो तुम भी लश्कर गाह की हर तरफ़ नरसिंगे फूँकना और ललकारना, ~यहोवा की और जिदा'ऊन की तलवार।"
\s5
\v 19 ~इसलिए बीच के पहर के शुरू' में जब नए पहरे वाले बदले गए, तो जिदा'ऊन और वह सौ आदमी जो उसके साथ थे लश्कर गाह के किनारे आए; और उन्होंने नरसिंगे फूँके और उन घड़ों को जो उनके हाथ में थे तोड़ा।
\s5
\v 20 और उन तीनों ग़ोलों ने नरसिंगे फूँके और घड़े तोड़े और मशालों को अपने बाएँ हाथ में और नरसिंगों को फूँकने के लिए अपने दहने हाथ में ले लिया और चिल्ला उठे कि यहोवा की और जिदा'ऊन की तलवार।
\v 21 और यह सब के सब लश्कर गाह के चारों तरफ़ अपनी अपनी जगह खड़े हो गए, तब सारा लश्कर दौड़ने लगा और उन्होंने चिल्ला चिल्लाकर उनको भगाया।
\s5
\v 22 और उन्होंने तीन सौ नरसिंगों को फूँका, और ख़ुदावन्द ने हर शख़्स की तलवार उसके साथी और सब लश्कर पर चलवाई और सारा लश्कर सरीरात की तरफ़ बैत-सित्ता तक और तब्बात के क़रीब अबील महूला की सरहद तक भागा।
\v 23 तब इस्राइली आदमी नफ़्ताली और आशर और मनस्सी की सरहदों से जमा' होकर निकले और मिदियानियों का पीछा किया।
\s5
\v 24 और जिदा'ऊन ने इफ़्राईम के तमाम पहाड़ी मुल्क में क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा कि मिदियानियों के मुक़ाबिले को उतर आओ, और उनसे पहले पहले दरिया-ए-यरदन के घाटों पर बैतबरा तक क़ाबिज़ हो जाओ। तब सब इफ़ाईमी जमा' होकर दरिया-ए-यरदन के घाटों पर बैतबरा तक क़ाबिज़ हो गए।
\v 25 और उन्होंने मिदियान के दो सरदारों 'ओरेब और ज़ईब को पकड़ लिया, और 'ओरेब को 'ओरेब की चट्टान पर और ज़ईब को ज़ईब के कोल्हू के पास क़त्ल किया; और मिदियानियों को दौड़ाया और 'ओरेब और ज़ईब के सिर यरदन पार जिदा'ऊन के पास ले आए।
\s5
\c 8
\p
\v 1 और इफ़्राईम के बाशिन्दों ने उससे कहा कि तूने हम से यह सलूक क्यूँ किया, कि जब तू मिदियानियों से लड़ने को चला तो हम को न बुलवाया?~इसलिए~उन्होंने उसके साथ बड़ा झगड़ा किया।
\s5
\v 2 उसने उनसे कहा, "मैंने तुम्हारी तरह भला किया ही क्या है? क्या इफ़्राईम के छोड़े हुए अंगूर भी अबी'अज़र की फ़सल से बेहतर नहीं हैं?
\v 3 ख़ुदा ने मिदियान के सरदार 'ओरेब और ज़ईब को तुम्हारे क़ब्ज़े में कर दिया; इसलिए तुम्हारी तरह मैं कर ही क्या सका हूँ?" जब उसने यह कहा, तो उनका गुस्सा उसकी तरफ़ से धीमा हो गया।
\s5
\v 4 तब जिदा'ऊन और उसके साथ के तीन सौ आदमी जो बावजूद थके माँदे होने के फिर भी पीछा करते ही रहे थे, यरदन पर आकर पार उतरे।
\v 5 तब उसने सुक्कात के बाशिंदों से कहा कि इन लोगों को जो मेरे पैरौ हैं, रोटी के गिर्दे दो क्यूँकि यह थक गए हैं; और मैं मिदियान के दोनों बादशाहों ज़िबह और ज़िलमना' का पीछा कर रहा हूँ।
\s5
\v 6 सुक्कात के सरदारों ने कहा, "क्या ज़िबह और ज़िलमना' के हाथ अब तेरे क़ब्ज़े में आ गए हैं, जो हम तेरे लश्कर को रोटियाँ दें?"
\v 7 जिदा'ऊन ने कहा, "जब ख़ुदावन्द ज़िबह और ज़िलमना' को मेरे क़ब्ज़े में कर देगा, तो मैं तुम्हारे गोश्त को बबूल और हमेशा गुलाब के काँटों से नुचवाऊँगा।"
\s5
\v 8 फिर वहाँ से वह फ़नूएल को गया, और वहाँ के लोगों से भी ऐसी ही बात कही; और फ़नूएल के लोगों ने भी उसे वैसा ही जवाब दिया जैसा सुक्कातियों ने दिया था।
\v 9 ~इसलिए~उसने फ़नूएल के बाशिंदों से भी कहा कि जब मैं सलामत लौटूँगा, तो इस बुर्ज को ढा दूँगा।
\s5
\v 10 और ज़िबह और ज़िलमना' अपने क़रीबन पंद्रह हज़ार आदमियों के लश्कर के साथ क़रक़ूर में थे, क्यूँकि सिर्फ़ इतने ही मशरिक़ के लोगों के लश्कर में से बच रहे थे; इसलिए कि एक लाख बीस हज़ार शमशीर ज़न आदमी क़त्ल हो गए थे।
\s5
\v 11 ~तब जिदा'ऊन उन लोगों के रास्ते से जो नुबह और युगबिहा के मशरिक़ की तरफ़ डेरों में रहते थे गया, और उस लश्कर को मारा क्यूँकि वह लश्कर बेफ़िक्र पड़ा था।
\v 12 और ज़िबह और ज़िलमना' भागे, और उसने उनका पीछा करके उन दोनों मिदियानी बादशाहों, ज़िबह और ज़िलमना' को पकड़ लिया और सारे लश्कर को भगा दिया।
\s5
\v 13 और यूआस का बेटा जिदा'ऊन हर्स की चढ़ाई के पास से जंग से लौटा।
\v 14 और उसने सुक्कातियों में से एक जवान को पकड़ कर उससे दरियाफ़त किया;~इसलिए उसने उसे सुक्कात के सरदारों और बुज़ुर्गों का हाल बता दिया जो शुमार में सत्तर थे।
\s5
\v 15 तब वह सुक्कातियों के पास आकर कहने लगा कि ज़िबह और ज़िलमना' को देख लो, जिनके बारे में तुम ने तन्ज़न मुझ से कहा था, 'क्या ज़िबह और ज़िलमना' के हाथ तेरे क़ब्ज़े में आ गए हैं, कि हम तेरे आदमियों को जो थक गए हैं रोटियाँ दें?'
\v 16 तब उसने शहर के बुज़ुर्गों को पकड़ा और बबूल और सदा गुलाब के कॉटें लेकर उनसे सुक्कातियों की तादीब की।
\v 17 और उसने फ़नूएल का बुर्ज ढा कर उस शहर के लोगों को क़त्ल किया।
\s5
\v 18 फिर उसने ज़िबह और ज़िलमना' से कहा कि वह लोग जिनको तुम ने तबूर में क़त्ल किया कैसे थे? उन्होंने जवाब दिया, "जैसा तू है वैसे ही वह थे; उनमें से हर एक शहज़ादों की तरह था।"
\v 19 तब उसने कहा कि वह मेरे भाई, मेरी माँ के बेटे थे,~इसलिए~ख़ुदावन्द की हयात की क़सम, अगर तुम उनको जीता छोड़ते तो मैं भी तुम को न मारता।
\s5
\v 20 फिर उसने अपने बड़े बेटे यतर को हुक्म किया कि उठ, उनको क़त्ल कर। लेकिन उस लड़के ने अपनी तलवार न खींची, क्यूँकि उसे डर लगा, इसलिए कि वह अभी लड़का ही था।
\v 21 तब ज़िबह और ज़िलमना' ने कहा, "तू आप उठ कर हम पर वार कर, क्यूँकि जैसा आदमी होता है वैसी ही उसकी ताक़त होती है।" इसलिए जिदा'ऊन ने उठ कर ज़िबह और ज़िलमना' को क़त्ल किया, और उनके ऊँटों के गले के चन्दन हार ले लिए।
\s5
\v 22 तब बनीं-इस्राईल ने जिदा'ऊन से कहा कि तू हम पर हुकूमत कर, तू और तेरा बेटा और तेरा पोता भी; क्यूँकि तूने हम को मिदियानियों के हाथ से छुड़ाया।
\v 23 तब जिदा'ऊन ने उनसे कहा कि न मैं तुम पर हुकूमत करूँ और न मेरा बेटा, बल्कि ख़ुदावन्द ही तुम पर हुकूमत करेगा।
\s5
\v 24 और जिदा'ऊन ने उनसे कहा कि मैं तुम से यह 'अर्ज़ करता हूँ, कि तुम में से हर शख़्स अपनी लूट की बालियाँ मुझे दे दे। (यह लोग इस्माईली थे, इसलिए इनके पास सोने की बालियाँ थीं।)
\v 25 उन्होंने जवाब दिया कि हम इनको बड़ी ख़ुशी से देंगे। फिर उन्होंने एक चादर बिछाई और हर एक ने अपनी लूट की बालियाँ उस पर डाल दीं।
\s5
\v 26 ~इसलिए~वह सोने की बालियाँ जो उसने माँगी थीं, वज़न में एक हज़ार सात सौ मिस्काल थीं; 'अलावह उन चन्दन हारों और झुमकों और मिदियानी बादशाहों की इर्ग़वानी पोशाक के जो वह पहने थे, और उन ज़न्जीरों के जो उनके ऊँटों के गले में पड़ी थीं।
\s5
\v 27 और जिदा'ऊन ने उनसे एक अफ़ूद बनवाया और उसे अपने शहर उफ़रा में रख्खा; और वहाँ सब इस्राइली उसकी पैरवी में ज़िनाकारी करने लगे, और वह जिदा'ऊन और उसके घराने के लिए फंदा ठहरा।
\v 28 यूँ मिदियानी बनी-इस्राईल के आगे मग़लूब हुए और उन्होंने फिर कभी सिर न उठाया। और जिदा'ऊन के दिनों में चालीस बरस तक उस मुल्क में अम्न रहा।
\s5
\v 29 और यूआस का बेटा यरुब्बा'ल जाकर अपने घर में रहने लगा।
\v 30 और जिदा'ऊन के सत्तर बेटे थे जो उस ही के सुल्ब से पैदा हुए थे, क्यूँकि उसकी बहुत सी बीवियाँ थीं।
\v 31 और उसकी एक हरम के भी जो सिक्म में थी उस से एक बेटा हुआ, और उसने उसका नाम अबीमलिक रख्खा।
\s5
\v 32 और यूआस के बेटे जिदा'ऊन ने ख़ूब 'उम्र रसीदा होकर वफ़ात पाई, और अबी'अज़रियों के उफ़रा में अपने बाप यूआस की क़ब्र में दफ़्न हुआ।
\v 33 अौर जिदा'ऊन के मरते ही बनीइस्राईल फिर कर बा'लीम की पैरवी में ज़िनाकारी करने लगे, और बा'ल बरीत को अपना मा'बूद बना लिया।
\s5
\v 34 और बनीइस्राईल ने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को, जिसने उनको हर तरफ़ उनके दुश्मनों के हाथ से रिहाई दी थी याद न रख्खा;
\v 35 और न वह यरुब्बा'ल या'नी जिदा'ऊन के ख़ान्दान के साथ, उन सब नेकियों के बदले में जो उसने बनीइस्राईल से की थीं महेरबानी से पेश आए।
\s5
\c 9
\p
\v 1 तब यरुब्बा'ल का बेटा अबीमलिक सिक्म में अपने मामुओं के पास गया, और उनसे और अपने सब ननिहाल के लोगों से कहा कि;
\v 2 ~सिक्म के सब आदमियों से पूछ देखो कि तुम्हारे लिए क्या बेहतर है, यह कि यरुब्बा'ल के सब बेटे जो सत्तर आदमी हैं वह तुम पर सल्तनत करें, या यह कि एक ही की तुम पर हुकूमत हो? और यह भी याद रखो, कि मैं तुम्हारी ही हड्डी और तुम्हारा ही गोश्त हूँ।
\s5
\v 3 और उसके मामुओं ने उसके बारे में सिक्म के सब लोगों के कानों में यह बातें डालीं; और उनके दिल अबी मलिक की पैरवी पर माइल हुए, क्यूँकि वह कहने लगे कि यह हमारा भाई है।
\v 4 और उन्होंने बा'ल बरीत के घर में से चाँदी के सत्तर सिक्के उसको दिए, जिनके वसीले से अबी मलिक ने शुहदे और बदमाश लोगों को अपने यहाँ लगा लिया, जो उसकी पैरवी करने लगे।
\s5
\v 5 और वह उफ़रा में अपने बाप के घर गया और उसने अपने भाइयों यरुब्बा'ल के बेटों को जो सत्तर आदमी थे, एक ही पत्थर पर क़त्ल किया; लेकिन यरुब्बा'ल का छोटा बेटा यूताम बचा रहा, क्यूँकि वह छिप गया था।
\v 6 तब सिक्म के सब आदमी और सब अहल-ए-मिल्लो जमा' हुए, और जाकर उस सुतून के बलूत के पास जो सिक्म में था अबीमलिक को बादशाह बनाया।
\s5
\v 7 जब यूताम को इसकी ख़बर हुई तो वह जाकर कोह-ए-गरिज़ीम की चोटी पर खड़ा हुआ और अपनी आवाज़ बुलन्द की, और पुकार पुकार कर उनसे कहने लगा, "ऐ सिक्म के लोगों, मेरी सुनो। ताकि ख़ुदा तुम्हारी सुने।
\v 8 एक ज़माने में दरख़्त चले, ताकि किसी को मसह करके अपना बादशाह बनाएँ;~इसलिए~उन्होंने जै़तून के दरख़्त से कहा, 'तू हम पर सल्तनत कर।'
\s5
\v 9 तब जै़तून के दरख़्त ने उनसे कहा, 'क्या मैं अपनी चिकनाहट की, जिसके ज़रिए' मेरे वसीले से लोग ख़ुदा और इन्सान की बड़ाई करते हैं, छोड़ कर दरख़्तों पर हुक्मरानी करने जाऊँ?'
\v 10 तब दरख़्तों ने अंजीर के दरख़्त से कहा, 'तू आ और हम पर सल्तनत कर।'
\v 11 लेकिन अंजीर के दरख़्त ने उनसे कहा, 'क्या मैं अपनी मिठास और अच्छे अच्छे फलों को छोड़ कर दरख़्तों पर हुक्मरानी करने जाऊँ?"
\s5
\v 12 तब दरख़्तों ने अंगूर की बेल से कहा कि तू आ और हम पर सल्तनत कर।
\v 13 अंगूर की बेल ने उनसे कहा, "क्या मैं अपनी मय को जो ख़ुदा और इन्सान दोनों को ख़ुश करती है, छोड़ कर दरख़्तों पर हुक्मरानी करने जाऊँ?"
\v 14 तब उन सब दरख़्तों ने ऊँट कटारे से कहा, "चल, तू ही हम पर सल्तनत कर।"
\s5
\v 15 ऊँटकटारे ने दरख़्तों से कहा, "अगर तुम सचमुच मुझे अपना बादशाह मसह करके बनाओ, तो आओ, मेरे साये में पनाह लो; और अगर नहीं, तो ऊँटकटारे से आग निकलकर लुबनान के देवदारों को खा जाए।"
\v 16 ~इसलिए~बात यह है कि तुम ने जो अबी मलिक को बादशाह बनाया है, इसमें अगर तुम ने सच्चाई और ईमानदारी बरती है, और यरुब्बा'ल और उसके घराने से अच्छा सुलूक किया और उसके साथ उसके एहसान के हक़ के मुताबिक़ सुलूक किया है।
\s5
\v 17 (क्यूँकि मेरा बाप तुम्हारी ख़ातिर लड़ा, और उसने अपनी जान ख़तरे में डाली, और तुम को मिदियान के क़ब्ज़े से छुड़ाया।
\v 18 और तुम ने आज मेरे बाप के घराने से बग़ावत की, और उसके सत्तर बेटे एक ही पत्थर पर क़त्ल किए, और उसकी लौंडी के बेटे अबीमलिक को सिक्म के लोगों का बादशाह बनाया इसलिए कि वह तुम्हारा भाई है।)
\s5
\v 19 ~इसलिए~अगर तुम ने यरुब्बा'ल और उसके घराने के साथ आज के दिन सच्चाई और ईमानदारी बरती है, तो तुम अबी मलिक से ख़ुश रहो और वह तुम से ख़ुश रहे|
\v 20 और अगर नहीं, तो अबि मलिक से आग निकलकर सिक्म के लोगों को और अहल-ए-मिल्लो खा जाए; और सिक्म के लोगों और अहल-ए-मिल्लो के बीच से आग निकलकर अबी मलिक को खा जाए।
\v 21 फिर यूताम दौड़ता हुआ भागा और बैर को चलता बना, और अपने भाई अबी मलिक के ख़ौफ़ से वहीं रहने लगा।
\s5
\v 22 और अबीमलिक इस्राईलियों पर तीन बरस हाकिम रहा।
\v 23 तब ख़ुदा ने अबीमलिक और सिक्म के लोगों के बीच एक बुरी रूह भेजी, और सिक्म के लोग अबी मलिक से दग़ा बाज़ी करने लगे;
\v 24 ~ताकि जो ज़ुल्म उन्होंने यरुब्बा'ल के सत्तर बेटों पर किया था वह उन ही पर आए, और उनका ख़ून उनके भाई अबीमलिक के सिर पर जिस ने उनको क़त्ल किया, और सिक्म के लोगों के सिर पर हो जिन्होंने उसके भाइयों के क़त्ल में उसकी मदद की थी।
\s5
\v 25 तब सिक्म के लोगों ने पहाड़ों की चोटियों पर उसकी घात में लोग बिठाए, और वह उनको जो उस रास्ते के पास से गुज़रते लूट लेते थे; और अबीमलिक को इसकी ख़बर हुई।
\s5
\v 26 तब जा'ल बिन 'अबद अपने भाइयों के साथ सिक्म में आया; और सिक्म के लोगों ने उस पर भरोसा किया।
\v 27 और वह खेतों में गए और अपने अपने ताकिस्तानों का फल तोड़ा और अंगूरों का रस निकाला और ख़ूब ख़ुशी मनाई, और अपने मा'बूद के हैकल में जाकर खाया-पिया और अबीमलिक पर ला'नतें बरसाई।
\s5
\v 28 और जा'ल बिन 'अबद कहने लगा, "अबीमलिक कौन है, और सिक्म कौन है कि हम उसकी फ़रमाँबरदारी करें? क्या वह यरुब्बा'ल का बेटा नहीं, और क्या ज़बूल उसका मन्सबदार नहीं? तुम ही सिक्म के बाप हमूर के लोगों की~फ़रमाँबरदारी ~करो, हम उसकी~फ़रमाँबरदारी क्यूँ करें?
\v 29 काश कि यह लोग मेरे क़ब्ज़े में होते, तो मैं अबीमलिक को किनारे कर देता।" और उसने अबीमलिक से कहा, "तू अपने लश्कर को बढ़ा और निकल आ।"
\s5
\v 30 जब उस शहर के हाकिम ज़बूल ने ज़ाल बिन 'अबद की यह बातें सुनीं तो उसका क़हर भड़का।
\v 31 और उसने चालाकी से अबीमलिक के पास क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा, "देख, जा'ल बिन 'अबद और उसके भाई सिक्म में आए हैं, और शहर को तुझ से बग़ावत करने की तहरीक कर रहे हैं।
\s5
\v 32 ~इसलिए तू अपने साथ के लोगों को लेकर रात को उठ, और मैदान में घात लगा कर बैठ जा।
\v 33 और सुबह को सूरज निकलते ही सवेरे उठ कर शहर पर हमला कर, और जब वह और उसके साथ के लोग तेरा सामना करने को निकलें तो जो कुछ तुझ से बन आए तू उन से कर।"
\s5
\v 34 ~इसलिए अबीमलिक और उसके साथ के लोग रात ही को उठ चार ग़ोल हो सिक्म के मुक़ाबिल घात में बैठ गए।
\v 35 और जा'ल बिन 'अबद बाहर निकल कर उस शहर के फाटक के पास जा खड़ा हुआ; तब अबीमलिक और उसके साथ के आदमी आरामगाह से उठे।
\s5
\v 36 और जब जा'ल ने फ़ौज को देखा तो वह ~ज़बूल से कहने लगा, "देख, पहाड़ों की चोटियों से लोग उतर रहे हैं।" ज़बूल ने उससे कहा कि तुझे पहाड़ों का साया ऐसा दिखाई देता है जैसे आदमी।
\v 37 जा'ल फिर कहने लगा, "देख, मैदान के बीचों बीच से लोग उतरे आते हैं; और एक ग़ोल म'ओननीम के बलूत के रास्ते आ रहा है।"
\s5
\v 38 तब ज़बूल ने उससे कहा, "अब तेरा वह मुँह कहाँ है जो तू कहा करता था, कि अबी मलिक कौन है कि हम उसकी फ़रमाँबरदारी करें? क्या यह वही लोग नहीं हैं जिनकी तूने हिक़ारत की है? इसलिए अब ज़रा निकल कर उनसे लड़ तो सही।"
\v 39 तब जा'ल सिक्म के लोगों के सामने बाहर निकला और अबीमलिक से लड़ा।
\v 40 और अबीमलिक ने उसको दौड़ाया और वह उसके सामने से भागा, और शहर के फाटक तक बहुत से ~ज़ख़्मी हो हो कर गिरे।
\s5
\v 41 और अबीमलिक ने अरोमा में क़याम किया; और ज़बूल ने जा'ल और उसके भाइयों को निकाल दिया, ताकि वह सिक्म में रहने न पाएँ।
\v 42 और दूसरे दिन सुबह को ऐसा हुआ कि लोग निकल कर मैदान को जाने लगे, और अबी मलिक को ख़बर हुई।
\v 43 ~इसलिए~अबी मलिक ने फ़ौज लेकर उसके तीन ग़ोल किए और मैदान में घात लगाई; और जब देखा कि लोग शहर से निकले आते हैं, तो वह उनका सामना करने को उठा और उनको मार लिया।
\s5
\v 44 और अबीमलिक उस~ग़ोल~समेत जो उसके साथ था आगे लपका, और शहर के फाटक के पास आकर खड़ा हो गया; और वह दो~ग़ोल~उन सभों पर जो मैदान में थे झपटे और उनको काट डाला।
\v 45 और अबीमलिक उस दिन शाम तक शहर से लड़ता रहा, और शहर को घेर कर के उन लोगों को जो वहाँ थे क़त्ल किया, और शहर को बर्बाद कर के उसमें नमक छिड़कवा दिया।
\s5
\v 46 और जब सिक्म के बुर्ज के सब लोगों ने यह सुना, तो वह अलबरीत के हैकल के क़िले' में जा घुसे।
\v 47 और अबी मलिक को यह ख़बर हुई कि सिक्म के बुर्ज के सब लोग इकट्ठे हैं।
\s5
\v 48 तब अबीमलिक अपनी फ़ौज समेत ज़लमोन के पहाड़ पर चढ़ा; और अबी मलिक ने कुल्हाड़ा अपने हाथ में ले दरख़्तों में से एक डाली काटी और उसे उठा कर अपने कन्धे पर रख लिया, और अपने साथ के लोगों से कहा, "जो कुछ तुम ने मुझे करते देखा है, तुम भी जल्द वैसा ही करो।"
\v 49 तब उन सब लोगों में से हर एक ने उसी तरह एक डाली काट ली, और वह अबीमलिक के पीछे हो लिए और उनको क़िले' पर डालकर क़िले' में आग लगा दी; चुनाँचे सिक्म के बुर्ज के सब आदमी भी जो शख़्स और 'औरत मिलाकर क़रीबन एक हज़ार थे मर गए।
\s5
\v 50 फिर अबीमलिक तैबिज़ को जा तैबिज़ के मुक़ाबिल ख़ेमाज़न हुआ और उसे ले लिया।
\v 51 लेकिन वहाँ शहर के अन्दर एक बड़ा मज़बूत बुर्ज था,~इसलिए~सब शख़्स और 'औरतें और शहर के सब बाशिन्दे भाग कर उस में जा घुसे और दरवाज़ा बन्द कर लिया, और बुर्ज की छत पर चढ़ गए।
\s5
\v 52 और अबीमलिक बुर्ज के पास आकर उसके मुक़ाबिल लड़ता रहा, और बुर्ज के दरवाज़े के नज़दीक गया ताकि उसे जला दे।
\v 53 तब किसी 'औरत ने चक्की का ऊपर का पाट अबी मलिक के सिर पर फेंका, और उसकी खोपड़ी को तोड़ डाला।
\v 54 तब अबीमलिक ने फ़ौरन एक जवान को जो उसका सिलाहबरदार था बुला कर उससे कहा कि अपनी तलवार खींच कर मुझे क़त्ल कर डाल, ताकि मेरे हक़ में लोग यह न कहने पाएँ कि एक 'औरत ने उसे मार डाला।~इसलिए~उस जवान ने उसे छेद दिया और वह मर गया।
\s5
\v 55 जब इस्राईलियों ने देखा के अबीमलिक मर गया, तो हर शख़्स अपनी जगह चला गया।
\v 56 यूँ ख़ुदा ने अबी मलिक की उस बुराई का बदला जो उसने अपने सत्तर भाइयों को मार कर अपने बाप से की थी उसको दिया।
\v 57 और सिक्म के लोगों की सारी बुराई ख़ुदा ने उन ही के सिर पर डाली, और यरुब्बा'ल के बेटे यूताम की ला'नत उनको लगी।
\s5
\c 10
\p
\v 1 और अबीमलिक के बा'द तोला' बिन फुव्वा बिन दोदो जो इश्कार के क़बीले का था, इस्राईलियों की हिमायत करने को उठा; वह इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में समीर में रहता था।
\v 2 वह तेईस बरस इस्राईलियों का क़ाज़ी रहा; और मर गया और समीर में दफ़्न हुआ।
\s5
\v 3 इसके बा'द जिल'आदी याईर उठा, और वह बाइस बरस इस्राईलियों का क़ाज़ी रहा।
\v 4 उसके तीस बेटे थे जो तीस जवान गधों पर सवार हुआ करते थे; और उनके तीस शहर थे जो आज तक हव्वोत याईर कहलाते हैं, और जिल'आद के मुल्क में हैं।
\v 5 और याईर मर गया और क़ामोन में दफ़्न हुआ।
\s5
\v 6 और बनी-इस्राईल ख़ुदावन्द के हुज़ूर फिर बुराई करने, और बा'लीम और 'इस्तारात और अराम के मा'बूदों और सैदा के मा'बूदों और मोआब के मा'बूदों और बनी 'अम्मोन के मा'बूदों और फ़िलिस्तियों के मा'बूदों की 'इबादत करने लगे, और ख़ुदावन्द को छोड़ दिया और उसकी 'इबादत न की।
\v 7 तब ख़ुदावन्द का क़हर इस्राईल पर भड़का, और उसने उनको फ़िलिस्तियों के हाथ और बनी 'अम्मोन के हाथ बेच डाला।
\s5
\v 8 और उन्होंने उस साल बनी इस्राईल को तंग किया और सताया, बल्कि अठारह बरस तक वह सब बनी-इस्राईल पर ज़ुल्म करते रहे, जो यरदन पार अमोरियों के मुल्क में जो जिल'आद में है रहते थे।
\v 9 और बनी 'अम्मून~यरदन पार होकर यहूदाह और बिनयमीन और इफ़्राईम के ख़ान्दान से लड़ने को भी आ जाते थे, इसलिए इस्राईली बहुत तंग आ गए।
\s5
\v 10 और बनीइस्राईल ख़ुदावन्द से फ़रियाद करके कहने लगे, "हमने तेरा गुनाह किया कि अपने ख़ुदा को छोड़ा और बा'लीम की 'इबादत की।"
\v 11 और ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल से कहा, "क्या मैंने तुम को मिस्रियों और अमोरियों और बनी 'अम्मोन और फ़िलिस्तियों के हाथ से रिहाई नहीं दी?
\v 12 और सैदानियों और 'अमालीक़ियों और मा'ओनियों ने भी तुम को सताया, और तुम ने मुझ से फ़रियाद की और मैंने तुम को उनके हाथ से छुड़ाया।
\s5
\v 13 ~तो भी तुम ने मुझे छोड़ कर और मा'बूदों की 'इबादत की, इसलिए~अब मैं तुम को रिहाई नहीं दूँगा।
\v 14 तुम जाकर उन मा'बूदों से, जिनको तुम ने इख़्तियार किया है फ़रियाद करो, वही तुम्हारी मुसीबत के वक़्त तुम को छुड़ाएँ।"
\s5
\v 15 बनी इस्राईल ने ख़ुदावन्द से कहा, "हम ने तो गुनाह किया,~इसलिए~जो कुछ तेरी नज़र में अच्छा हो हम से कर; लेकिन आज हम को छुड़ा ही ले।"
\v 16 और वह अजनबी मा'बूदों को अपने बीच से दूर करके ख़ुदावन्द की 'इबादत करने लगे; तब उसका जी इस्राईल की परेशानी से ग़मगीन हुआ।
\s5
\v 17 फिर बनी 'अम्मून इकट्ठे होकर जिल'आद में ख़ेमाज़न हुए; और बनी-इस्राईल भी फ़राहम होकर मिस्फ़ाह में ख़ेमाज़न हुए।
\v 18 तब जिल'आद के लोग और सरदार एक दूसरे से कहने लगे, "वह~कौन शख़्स है जो बनी 'अम्मून से लड़ना शुरू' करेगा? वही जिल'आद के सब बाशिदों का हाकिम होगा।"
\s5
\c 11
\p
\v 1 और जिल'आदी इफ़्ताह बड़ा ज़बरदस्त सूर्मा और कस्बी का बेटा था; और जिल'आद से इफ़्ताह पैदा हुआ था।
\v 2 और जिल'आद की बीवी के भी उससे बेटे हुए, और जब उसकी बीवी के बेटे बड़े हुए, तो उन्होंने इफ़्ताह को यह कहकर निकाल दिया कि हमारे बाप के घर में तुझे कोई मीरास नहीं मिलेगी, क्यूँकि तू ग़ैर 'औरत का बेटा है।
\v 3 तब इफ़्ताह अपने भाइयों के पास से भाग कर तोब के मुल्क में रहने लगा और इफ़्ताह के पास शुहदे जमा' हो गए, और उसके साथ फिरने लगे।
\s5
\v 4 और कुछ 'अरसे के बा'द बनी 'अम्मून ने बनी-इस्राईल से जंग छेड़ दी।
\v 5 और जब बनी 'अम्मून~बनी-इस्राईल से लड़ने लगे, तो जिल'आदी बुज़ुर्ग चले कि इफ़्ताह को तोब के मुल्क से ले आएँ।
\v 6 ~इसलिए~वह इफ़्ताह से कहने लगे कि हम बनी 'अम्मून~से लड़ें।
\s5
\v 7 और इफ़्ताह ने जिल'आदी बुज़ुगों से कहा, "क्या तुम ने मुझ से 'अदावत करके मुझे मेरे बाप के घर से निकाल नहीं दिया?~इसलिए~अब जो तुम मुसीबत में पड़ गए हो तो मेरे पास क्यूँ आए?"
\v 8 जिल'आदी बुज़ुर्गों ने इफ़्ताह से कहा कि अब हम ने फिर इसलिए तेरी तरफ़ रुख़ किया है, कि तू हमारे साथ चलकर बनी 'अम्मून~से जंग करे; और तू ही जिल'आद के सब बाशिंदों पर हमारा हाकिम होगा।
\s5
\v 9 और इफ़्ताह ने जिल'आदी~बुज़ुर्गों~से कहा, "अगर तुम मुझे बनी 'अम्मून~से लड़ने को मेरे घर ले चलो, और ख़ुदावन्द~उनको मेरे हवाले कर दे, तो क्या मैं तुम्हारा हाकिम हूँगा?”
\v 10 जिल'आदी~बुज़ुर्गों~ने इफ़्ताह को जवाब दिया कि ख़ुदावन्द हमारे बीच गवाह हो, यक़ीनन जैसा तूने कहा, हम वैसा ही~करेंगे।
\v 11 तब इफ़्ताह जिल'आदी~बुज़ुर्गों~के साथ रवाना हुआ, और लोगों ने उसे अपना हाकिम और सरदार बनाया; और इफ़्ताह~ने मिस्फ़ाह में ख़ुदावन्द के आगे अपनी सब बातें कह सुनाई।
\s5
\v 12 और इफ़्ताह ने बनी 'अम्मून~के बादशाह के पास क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा कि तुझे मुझ से क्या काम, जो तू मेरे मुल्क में लड़ने को मेरी तरफ़ आया है?
\v 13 बनी 'अम्मून~के बादशाह ने इफ़्ताह के क़ासिदों को जवाब दिया, "इसलिए कि जब इस्राइली मिस्र से निकल कर आए, तो अरनून से यब्बूक़ और यरदन तक जो मेरा मुल्क था उसे उन्होंने छीन लिया;~इसलिए~अब तू उन 'इलाकों को सुलह-ओ-सलामती से मुझे लौटा दे।"
\s5
\v 14 तब इफ़्ताह ने फिर क़ासिदों को बनी 'अम्मून~के बादशाह के पास रवाना किया,
\v 15 और यह कहला भेजा कि इफ़्ताह यूँ कहता है कि; इस्राईलियों ने न तो मोआब का मुल्क और न बनी 'अम्मोन का मुल्क छीना;
\v 16 बल्कि इस्राइली जब मिस्र से निकले और वीराने छानते हुए बहर-ए-क़ुलज़ुम तक आए और क़ादिस में पहुँचे,
\s5
\v 17 तो इस्राईलियों ने अदोम के बादशाह के पास क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा कि हम को ज़रा अपने मुल्क से होकर गुज़र जाने दे, लेकिन अदोम का बादशाह न माना। इसी तरह उन्होंने मोआब के बादशाह को कहला भेजा, और वह भी राज़ी न हुआ। चुनाँचे इस्राइली क़ादिस में रहे।
\v 18 तब वह वीराने में होकर चले, और अदोम के मुल्क और मोआब के मुल्क के बाहर बाहर चक्कर काट कर मोआब के मुल्क के मशरिक़ की तरफ़ आए, और अरनून के उस पार डेरे डाले, पर मोआब की सरहद में दाख़िल न हुए, इसलिए कि मोआब की सरहद अरनून था।
\s5
\v 19 फिर इस्राईलियों ने अमोरियों के बादशाह सीहोन के पास जो हस्बोन का बादशाह था, क़ासिद रवाना किए; और इस्राईलियों ने उसे कहला भेजा कि 'हम को ज़रा इजाज़त दे दे, कि तेरे मुल्क में से होकर अपनी जगह को चले जाएँ।
\v 20 लेकिन सीहोन ने इस्राईलियों का इतना ऐ'तबार न किया कि उनको अपनी सरहद से गुज़रने दे, बल्कि सीहोन अपने सब लोगों को जमा' करके यहस में ख़ेमाज़न हुआ और इस्राईलियों से लड़ा।
\s5
\v 21 और ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने सीहोन और उसके सारे लश्कर को इस्राईलियों के क़ब्ज़े में कर दिया, और उन्होंने उनको मार लिया; इसलिए इस्राईलियों ने अमोरियों के जो वहाँ के बाशिंदे थे, सारे मुल्क पर क़ब्ज़ा कर लिया।
\v 22 और वह अरनून से यब्बूक तक, और वीरान से यरदन तक अमोरियों की सब सरहदों पर क़ाबिज़ हो गए।
\s5
\v 23 ~तब ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने अमोरियों को उनके मुल्क से अपनी क़ौम इस्राईल के सामने से ख़ारिज किया;~इसलिए क्या तू अब उस पर क़ब्ज़ा करने पाएगा?
\v 24 क्या जो कुछ तेरा मा'बूद कमोस तुझे क़ब्ज़ा करने को दे, तू उस पर क़ब्ज़ा न करेगा? इसलिए जिस जिस को ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने हमारे सामने से ख़ारिज कर दिया है, हम भी उनके मुल्क पर क़ब्ज़ा करेंगे।
\v 25 और क्या तू सफ़ोर के बेटे बलक़ से जो मोआब का बादशाह था, कुछ बेहतर है? क्या उसने इस्राईलियों से कभी झगड़ा किया या कभी उन से लड़ा?
\s5
\v 26 जब इस्राइली हस्बोन और उसके क़स्बों, और 'अरो'ईर और उसके क़स्बों और उन सब शहरों में जो अरनून के किनारे-किनारे हैं तीन सौ बरस से बसे हैं, तो इस 'अरसे में तुम ने उनको क्यूँ न छुड़ा लिया?
\v 27 ग़रज़ मैंने तेरी ख़ता नहीं की, बल्कि तेरा मुझ से लड़ना तेरी तरफ़ से मुझ पर ज़ुल्म है; इसलिए ख़ुदावन्द ही जो मुन्सिफ़ है, बनी-इस्राईल और बनी 'अम्मोन के बीच आज इन्साफ़ करे।
\v 28 लेकिन बनी 'अम्मोन के बादशाह ने इफ़्ताह की यह बातें, जो उसने उसे कहला भेजी थीं न मानीं।
\s5
\v 29 तब ख़ुदावन्द की रूह इफ़्ताह पर नाज़िल हुई, और वह जिल'आद और मनस्सी से गुज़र कर जिल'आद के मिस्फ़ाह में आया; और जिल'आद के मिस्फ़ाह से बनी 'अमोन की तरफ़ चला।
\v 30 और इफ़्ताह ने ख़ुदावन्द की मिन्नत मानी और कहा कि अगर तू यक़ीनन बनी 'अम्मोन को मेरे हाथ में कर दे;
\v 31 तो जब मैं बनी 'अम्मोन की तरफ़ से सलामत लौटूँगा, उस वक़्त जो कोई पहले मेरे घर के दरवाज़े से निकलकर मेरे इस्तक़बाल को आए वह ख़ुदावन्द का होगा; और मैं उसको सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर पेश करूँगा।
\s5
\v 32 तब इफ़्ताह बनी 'अम्मून~की तरफ़ उनसे लड़ने को गया, और ख़ुदावन्द ने उनको उसके हाथ में कर दिया।
\v 33 और उसने 'अरो'ईर से मिनियत तक जो बीस शहर हैं, और अबील करामीम तक बड़ी ख़ूँरेज़ी के साथ उनको मारा; इस तरह बनी 'अम्मून बनी-इस्राईल से मग़लूब हुए।
\s5
\v 34 और इफ़्ताह मिस्फ़ाह को अपने घर आया, और उसकी बेटी तबले बजाती और नाचती हुई उसके इस्तक़बाल को निकलकर आई; और वही एक उसकी औलाद थी, उसके सिवा उसके कोई बेटी बेटा न था।
\v 35 जब उसने उसको देखा, तो अपने कपड़े फाड़ कर कहा, "हाय, मेरी बेटी! तूने मुझे पस्त कर दिया, और जो मुझे दुख देते हैं उनमें से एक तू है; क्यूँकि मैंने ख़ुदावन्द को ज़बान दी है, और मैं पलट नहीं सकता।"
\s5
\v 36 उसने उससे कहा, "ऐ मेरे बाप, तूने ख़ुदावन्द को ज़बान दी है,इसलिए~जो कुछ तेरे मुँह से निकला वही मेरे साथ कर, इसलिए कि ख़ुदावन्द ने तेरे दुश्मनों बनी 'अम्मून से तेरा इन्तक़ाम लिया।"
\v 37 फिर उसने अपने बाप से कहा, "मेरे लिए इतना कर दिया जाए कि दो महीने की मोहलत मुझ को मिले, ताकि मैं जाकर पहाड़ों पर अपनी हमजोलियों के साथ अपने कुँवारेपन पर मातम करती फिरूं।"
\s5
\v 38 उसने कहा, "जा!" और उसने उसे दो महीने की रुख्त़स दी, और वह अपनी हमजोलियों को लेकर गई, और पहाड़ों पर अपने कुँवारेपन पर मातम करती फिरी।
\v 39 और दो महीने के बा'द वह अपने बाप के पास लौट आई, और वह उसके साथ वैसा ही पेश आया जैसी मिन्नत उसने मानी थी। इस लड़की ने शख़्स का मुँह न देखा था; इसलिए बनी इस्राईल में यह दस्तूर चला,
\v 40 ~कि साल-ब-साल इस्राइली 'औरतें जाकर बरस में चार दिन तक इफ़्ताह जिल'आदी की बेटी की यादगारी करती थीं
\s5
\c 12
\p
\v 1 तब इफ़्राईम के लोग जमा' होकर उत्तर की तरफ़ गए और इफ़्ताह से कहने लगे कि जब तू बनी 'अम्मून से जंग करने को गया तो हम को साथ चलने को क्यूँ न बुलवाया? इसलिए~हम तेरे घर को तुझ समेत जलाएँगे।
\v 2 इफ़्ताह ने उनको जवाब दिया कि मेरा और मेरे लोगों का बड़ा झगड़ा बनी 'अम्मून के साथ हो रहा था, और जब मैंने तुम को बुलवाया तो तुम ने उनके हाथ से मुझे न बचाया।
\s5
\v 3 और जब मैंने यह देखा कि तुम मुझे नहीं बचाते, तो मैंने अपनी जान हथेली पर रख्खी और बनी 'अम्मून के मुक़ाबिले को चला, और ख़ुदावन्द ने उनको मेरे क़ब्ज़े में कर दिया; फिर तुम आज के दिन मुझ से लड़ने को मेरे पास क्यूँ चले आए?
\v 4 तब इफ़्ताह सब जिल'आदियों को जमा' करके इफ़्राईमियों से लड़ा, और जिल'आदियों ने इफ़्राईमियों को मार लिया क्यूँकि वह कहते थे कि तुम जिल'आदी इफ़्राईम ही के भगोड़े हो, जो इफ़्राईमियों और मनस्सियों के बीच रहते हो।
\s5
\v 5 और जिल'आदियों ने इफ़्राईमियों का रास्ता रोकने के लिए यरदन के घाटों को अपने क़ब्ज़े में कर लिया, और जो भागा हुआ इफ़्राईमी कहता कि मुझे पार जाने दो तो जिल'आदी उससे कहते क्या कि तू इफ़्राइमी ~है? और अगर वह ~जवाब देता, "नहीं।"
\v 6 तो वह उससे कहते, "शिब्बुलत तो बोल," तो वह "सिब्बुलत" कहता, क्यूँकि उससे उसका सही तलफ़्फ़ुज़ नहीं हो सकता था। तब वह उसे पकड़कर यरदन के घाटों पर कत्ल कर देते थे।~इसलिए~उस वक़्त बयालीस हज़ार इफ़्राइमी क़त्ल हुए।
\s5
\v 7 और इफ़्ताह छ: बरस तक बनीइस्राईल का क़ाज़ी रहा। फिर जिल'आदी इफ़्ताह ने वफ़ात पाई, और जिल'आद के शहरों में से एक में दफ़्न हुआ।
\s5
\v 8 उसके बा'द बैतलहमी इबसान इस्राईलियों का क़ाज़ी हुआ।
\v 9 उसके तीस बेटे थे; और तीस बेटियाँ उसने बाहर ब्याह दीं, और बाहर से अपने बेटों के लिए तीस बेटियाँ ले आया। वह सात बरस तक इस्राईलियों का क़ाज़ी रहा।
\s5
\v 10 और इबसान मर गया और बैतलहम में दफ़्न हुआ।
\v 11 और उसके बा'द ज़बूलूनी अय्यालोन इस्राईल का क़ाज़ी हुआ; और वह दस बरस इस्राईल का क़ाज़ी रहा।
\v 12 और ज़बूलूनी अय्यालोन मर गया, और अय्यालोन में जो ज़बूलून के मुल्क में है दफ़्न हुआ।
\s5
\v 13 इसके बा'द फ़िर'अतोनी हिल्लेल का बेटा 'अबदोन इस्राईल का क़ाज़ी हुआ।
\v 14 और उसके चालीस बेटे और तीस पोते थे जो सत्तर जवान गधों पर सवार होते थे; और वह आठ बरस इस्राईलियों का क़ाज़ी रहा।
\v 15 और फ़िर'आतोनी हिल्लेल का बेटा 'अबदोन मर गया, और 'अमालीक़ियों के पहाड़ी 'इलाक़े में, फ़िर'आतोन में जो इफ़्राईम के मुल्क में है दफ़्न हुआ।
\s5
\c 13
\p
\v 1 और बनी-इस्राईल ने फिर ख़ुदावन्द के आगे बुराई की, और ख़ुदावन्द ने उनकी चालीस बरस तक फ़िलिस्तियों के हाथ में कर रख्खा।
\v 2 और दानियों के घराने में सुर'आ का एक शख़्स था जिसका नाम मनोहा था। उसकी बीवी बाँझ थी,~इसलिए~उसके कोई बच्चा न हुआ।
\s5
\v 3 और ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उस 'औरत को दिखाई देकर उससे कहा, "देख, तू बाँझ है और तेरे बच्चा नहीं होता; लेकिन तू हामिला होगी और तेरे बेटा होगा।
\v 4 ~इसलिए~ख़बरदार, मय या नशे की चीज़ न पीना, और न कोई नापाक चीज़ खाना।
\v 5 क्यूँकि देख, तू हामिला होगी और तेरे बेटा होगा। उसके सिर पर कभी उस्तरा न फिरे, इसलिए कि वह लड़का पेट ही से ख़ुदा का नज़ीर होगा; और वह इस्राईलियों को फ़िलिस्तियों के हाथ से रिहाई देना शुरू' करेगा।"
\s5
\v 6 उस 'औरत ने जाकर अपने शौहर से कहा कि एक शख़्स-ए-ख़ुदा मेरे पास आया, उसकी सूरत ख़ुदा के फ़रिश्ते की सूरत की तरह निहायत ख़ौफ़नाक थी; और मैंने उससे नहीं पूछा के तू कहाँ का है? और न उसने मुझे अपना नाम बताया।
\v 7 लेकिन उसने मुझ से कहा, "देख, तू हामिला होगी और तेरे बेटा होगा;~इसलिए~तू मय या नशे की चीज़ न पीना, और न कोई नापाक चीज़ खाना, क्यूँकि वह लड़का पेट ही से अपने मरने के दिन तक ख़ुदा का नज़ीर रहेगा।"
\s5
\v 8 तब मनोहा ने ख़ुदावन्द से दरख़्वास्त की और कहा, "ऐ मेरे मालिक, मैं तेरी मित्रत करता हूँ कि वह शख़्स-ए-ख़ुदा जिसे तूने भेजा था, हमारे पास फिर आए और हम को सिखाए कि हम उस लड़के से जो पैदा होने को है क्या करें।"
\v 9 और ख़ुदा ने मनोहा की 'अर्ज़ सुनी, और ख़ुदा का फ़रिश्ता उस 'औरत के पास जब वह खेत में बैठी थी फिर आया, लेकिन उसका शौहर मनोहा उसके साथ नहीं था।
\s5
\v 10 ~इसलिए~उस 'औरत ने जल्दी की और दौड़ कर अपने शौहर को ख़बर दी और उससे कहा कि देख, वही शख़्स जो उस दिन मेरे पास आया था अब फिर मुझे दिखाई दिया।
\v 11 तब मनोहा उठ कर अपनी बीवी के पीछे पीछे चला, और उस शख़्स के पास आकर उससे कहा, "क्या तू वही शख़्स है जिसने इस 'औरत से बातें की थीं?" उसने कहा, "मैं वही हूँ।"
\s5
\v 12 तब मनोहा ने कहा, "तेरी बातें पूरी हों, लेकिन उस लड़के का कैसा तौर-ओ-तरीक़ और क्या काम होगा?”
\v 13 ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने मनोहा से कहा, "उन सब चीज़ों से जिनका ज़िक्र मैंने इस 'औरत से किया यह परहेज़ करे।
\v 14 वह ऐसी कोई चीज़ जो ताक से पैदा होती है न खाए, और मय या नशे की चीज़ न पिए, और न कोई नापाक चीज़ खाए; और जो कुछ मैंने उसे हुक्म दिया यह उसे माने।"
\s5
\v 15 मनोहा ने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते से कहा कि इजाज़त हो तो हम तुझ को रोक लें, और बकरी का एक बच्चा तेरे लिए तैयार करें।
\v 16 तब ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने मनोहा को जवाब दिया, "अगर तू मुझे रोक भी ले, तो भी मैं तेरी रोटी नहीं खाने का; लेकिन अगर तू सोख़्तनी क़ुर्बानी तैयार करना चाहे, तो तुझे लाज़िम है कि उसे ख़ुदावन्द के लिए पेश करे।" (क्यूँकि मनोहा नहीं जानता था कि वह ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता है।)
\s5
\v 17 फिर मनोहा ने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते से कहा कि तेरा नाम क्या है? ताकि जब तेरी बातें पूरी हों तो हम तेरा इकराम कर सकें।
\v 18 ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उससे कहा, "तू क्यूँ। मेरा नाम पूछता है? क्यूँकि वह तो 'अजीब है।"
\s5
\v 19 तब मनोहा ने बकरी का वह बच्चा म'ए उसकी नज़्र की क़ुर्बानी के लेकर एक चट्टान पर ख़ुदावन्द के लिए उनको पेश किया, और फ़रिश्ते ने मनोहा और उसकी बीवी के देखते देखते 'अजीब काम किया।
\v 20 क्यूँकि ऐसा हुआ कि जब शो'ला मज़बह पर से आसमान की तरफ़ उठा, तो ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता मज़बह के शो'ले में होकर ऊपर चला गया, और मनोहा और उसकी बीवी देखकर औधे मुँह ज़मीन पर गिरे।
\s5
\v 21 लेकिन ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता न फिर मनोहा को दिखाई दिया न उसकी बीवी को। तब मनोहा ने जाना कि वह ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता था।
\v 22 और मनोहा ने अपनी बीवी से कहा कि हम अब ज़रूर मर जाएँगे, क्यूँकि हम ने ख़ुदा को देखा।
\s5
\v 23 उसकी बीवी ने उससे कहा, "अगर ख़ुदावन्द यही चाहता कि हम को मार दे, तो सोख़्तनी और नज़्र की क़ुर्बानी हमारे हाथ से क़ुबूल न करता, और न हम को यह वाक़ि'आत दिखाता और न हम से ऐसी बातें कहता।"
\s5
\v 24 और उस 'औरत के एक बेटा हुआ और उसने उसका नाम समसून रख्खा; और वह लड़का बढ़ा, और खुदावन्द ने उसे बरकत दी।
\v 25 और ख़ुदावन्द की रूह उसे महने दान में, जो सुर'आ और इस्ताल के बीच में है तहरीक देने लगी।
\s5
\c 14
\p
\v 1 और समसून तिमनत को गया, और तिमनत में उसने फ़िलिस्तियों की बेटियों में से एक 'औरत देखी।
\v 2 और उसने आकर अपने माँ बाप से कहा, "मैंने फ़िलिस्तियों की बेटियों में से तिमनत में एक 'औरत देखी है,~इसलिए~तुम उससे मेरा ब्याह करा दो।"
\s5
\v 3 उसके माँ बाप ने उससे कहा, "क्या तेरे भाइयों की बेटियों में, या मेरी सारी क़ौम में कोई 'औरत नहीं है जो तू नामख़्तून फ़िलिस्तियों में ब्याह करने जाता है?" समसून ने अपने बाप से कहा, "उसी से मेरा ब्याह करा दे, क्यूँकि वह मुझे बहुत पसंद आती है।"
\v 4 लेकिन उसके माँ बाप को मा'लूम न था, यह ख़ुदावन्द की तरफ़ से है; क्यूँकि वह फ़िलिस्तियों के ख़िलाफ़ बहाना ढूंडता था। उस वक़्त फ़िलिस्ती इस्राईलियों पर हुक्मरान थे।
\s5
\v 5 फिर समसून और उसके माँ बाप तिमनत को चले, और तिमनत के ताकिस्तानों में पहुँचे, और देखो, एक जवान शेर समसून के सामने आकर गरजने लगा।
\v 6 तब ख़ुदावन्द की रूह उस पर ज़ोर से नाज़िल हुई, और उसने उसे बकरी के बच्चे की तरह चीर डाला, गो उसके हाथ में कुछ न था। लेकिन जो उसने किया उसे अपने बाप या माँ को न बताया।
\s5
\v 7 और उसने जाकर उस 'औरत से बातें कीं: और वह समसून को बहुत पसंद आई।
\v 8 और कुछ 'अरसे के बा'द वह~उसे लेने को लौटा; और शेर की लाश देखने को कतरा गया, और देखा कि शेर के पिंजर में शहद की मक्खियों का हुजूम और शहद है।
\v 9 उसने उसे हाथ में ले लिया और खाता हुआ चला, और अपने माँ बाप के पास आकर उनको भी दिया और उन्होंने भी खाया, लेकिन उसने उनको न बताया कि यह शहद उसने शेर के पिंजरे में से निकाला था।
\s5
\v 10 फिर उसका बाप उस 'औरत के यहाँ गया, वहाँ समसून ने बड़ी ज़ियाफ़त की क्यूँकि जवान ऐसा ही करते थे।
\v 11 वह उसे देखकर उसके लिए तीस साथियों को ले आए कि उसके साथ रहें।
\s5
\v 12 समसून ने उनसे कहा, "मैं तुम से एक पहेली पूछता हूँ;~इसलिए~अगर तुम ज़ियाफ़त के सात दिन के अन्दर अन्दर उसे बूझकर मुझे उसका मतलब बता दो, तो मैं तीस कतानी कुर्ते और तीस जोड़े कपड़े तुम को दूँगा।
\v 13 और अगर तुम न बता सको, तो तुम तीस कतानी कुर्ते और तीस जोड़े कपड़े मुझ को देना।” उन्होंने उससे कहा कि तू अपनी पहेली बयान कर, ताकि हम उसे सुनें।
\s5
\v 14 उसने उनसे कहा, "खाने वाले में से तो खाना निकला, और ज़बरदस्त में से मिठास निकली" और वह तीन दिन तक उस पहेली को हल न कर सके।
\s5
\v 15 और सातवें दिन उन्होंने समसून की बीवी से कहा कि अपने शौहर को फुसला, ताकि इस पहेली का मतलब वह हम को बता दे; नहीं तो हम तुझ को और तेरे बाप के घर को आग से जला देंगे। क्या तुम ने हम को इसीलिए बुलाया है कि हम को फ़क़ीर कर दो? क्या बात भी यूँ ही नहीं?
\s5
\v 16 और समसून की बीवी उसके आगे रो कर कहने लगी, "तुझे तो मुझ से नफ़रत है, तू मुझ को प्यार नहीं करता। तूने मेरी क़ौम के लोगों से पहेली पूछी, लेकिन वह मुझे न बताई।" उसने उससे कहा, "ख़ूब! मैंने उसे अपने माँ बाप को तो बताया नहीं और तुझे बता दूँ ?"
\v 17 ~इसलिए वह उसके आगे जब तक ज़ियाफ़त रही सातों दिन रोती रही; और सातवें दिन ऐसा हुआ कि उसने उसे बता ही दिया, क्यूँकि उसने उसे निहायत परेशान किया था। और उस 'औरत ने वह पहेली अपनी क़ौम के लोगों को बता दी।
\s5
\v 18 और उस शहर के लोगों ने सातवें दिन सूरज के डूबने से पहले उससे कहा, "शहद से मीठा और क्या होता है? और शेर से ताक़तवर और कौन है?" उसने उनसे कहा, "अगर तुम मेरी बछिया को हल में न जोतते, तो मेरी पहेली कभी न बूझते"।
\s5
\v 19 फिर ख़ुदावन्द की रूह उस पर जोर से नाज़िल हुई, और वह अस्क़लोन को गया। वहाँ उसने उनके तीस आदमी मारे, और उनको लूट कर कपड़ों के जोड़े पहेली बूझने वालों को दिए। और उसका क़हर भड़क उठा, और वह अपने माँ बाप के घर चला गया।
\v 20 लेकिन समसून की बीवी उसके एक साथी को, जिसे समसून ने दोस्त बनाया था दे दी गई।
\s5
\c 15
\p
\v 1 लेकिन कुछ 'अरसे बा'द गेहूँ की फ़सल के मौसम में, समसून बकरी का एक बच्चा लेकर अपनी बीवी के यहाँ गया और कहने लगा, "मैं अपनी बीवी के पास कोठरी में जाऊँगा।" लेकिन उसके बाप ने उसे अन्दर जाने न दिया।
\v 2 और उसके बाप ने कहा, "मुझ को यक़ीनन यह ख़याल हुआ कि तुझे उससे सख़्त नफ़रत हो गई है, इसलिए मैंने उसे तेरे साथी को दे दिया। क्या उसकी छोटी बहन उससे कहीं ख़ूबसूरत नहीं है?~इसलिए उसके बदले तू इसी को ले ले।"
\s5
\v 3 समसून ने उनसे कहा, "इस बार मैं फ़िलिस्तियों की तरफ़ से, जब मैं उनसे बुराई करूँ बेक़ुसूर ठहरूँगा।"
\v 4 और समसून ने जाकर तीन सौ लोमड़ियाँ पकड़ीं; और मशा'लें ली और दुम से दुम मिलाई, और दो दो दुमों के बीच में एक एक मशा'ल बाँध दी।
\s5
\v 5 और मशा'लों में आग लगा कर उसने लोमड़ियों को फ़िलिस्तियों के खड़े खेतों में छोड़ दिया, और पूलियों और खड़े खेतों दोनों को, बल्कि ज़ैतून के बाग़ों को भी जला दिया।
\v 6 तब फ़िलिस्तियों ने कहा, "किसने यह किया है?" लोगों ने बताया कि तिमनती के दामाद समसून ने; इसलिए कि उसने उसकी बीवी छीन कर उस के साथी को दे दी। तब फ़िलिस्तियों ने आकर उस 'औरत को और उसके बाप को आग में जला दिया।
\s5
\v 7 समसून ने उनसे कहा कि तुम जो ऐसा काम करते हो, तो ज़रूर ही मैं तुम से बदला लूँगा और इसके बा'द बाज़ आऊँगा।
\v 8 और उस ने उनको बड़ी ख़ूँरेज़ी के साथ मार मार कर उनका कचूमर कर डाला; और वहाँ से जाकर 'ऐताम की चट्टान की दराड़ में रहने लगा।
\s5
\v 9 तब फ़िलिस्ती जाकर यहूदाह में ख़ेमाज़न हुए और लही में फैल गए।
\v 10 और यहूदाह के लोगों ने उनसे कहा, "तुम हम पर क्यूँ चढ़ आए हो?" उन्होंने कहा, "हम समसून को बाँधने आए हैं, ताकि जैसा उसने हम से किया हम भी उससे वैसा ही करें।"
\s5
\v 11 तब यहूदाह के तीन हज़ार आदमी ऐताम की चट्टान की दराड़ में उतर गए, और समसून से कहने लगे, "क्या तू नहीं जानता के फ़िलिस्ती हम पर हुक्मरान हैं?~इसलिए~तूने हम से यह क्या किया है?" उसने उनसे कहा, "जैसा उन्होंने मुझ से किया, मैंने भी उनसे वैसा ही किया।"
\s5
\v 12 उन्होंने उससे कहा, "अब हम आए हैं कि तुझे बाँध कर फ़िलिस्तियों के हवाले कर दें।" समसून ने उनसे कहा, "मुझ से क़सम खाओ के तुम ख़ुद मुझ पर हमला न करोगे।"
\v 13 उन्होंने उसे जवाब दिया, "नहीं! बल्कि हम तुझे कस कर बाँधेगे और उनके हवाले कर देंगे; लेकिन हम हरगिज़ तुझे जान से न मारेंगे।" फिर उन्होंने उसे दो नई रस्सियों से बाँधा और चट्टान से उसे ऊपर लाए।
\s5
\v 14 जब वह लही में पहुँचा, तो फ़िलिस्ती उसे देख कर ललकारने लगे। तब ख़ुदावन्द की रूह उस पर ज़ोर से नाज़िल हुई, और उसके बाजु़ओं पर की रस्सियाँ आग से जले हुए सन की तरह हो गई, और उसके बन्धन उसके हाथों पर से उतर गए।
\s5
\v 15 और उसे एक गधे के जबड़े की नई हड्डी मिल गई:~इसलिए~उसने हाथ बढ़ा कर उसे उठा लिया, और उससे उसने एक हज़ार आदमियों को मार डाला।
\v 16 फिर समसून ने कहा, 'गधे के जबड़े की हड्डी से ढेर के ढेर लग गए, गधे के जबड़े की हड्डी से मैंने एक हज़ार आदमियों को मारा"।
\s5
\v 17 और जब वह अपनी बात ख़त्म कर चुका, तो उसने जबड़ा अपने हाथ में से फेंक दिया; और उस जगह का नाम रामत लही पड़ गया।
\v 18 और उसको बड़ी प्यास लगी, तब उसने ख़ुदावन्द को पुकारा और कहा, "तूने अपने बन्दे के हाथ से ऐसी बड़ी रिहाई बख़्शी। अब क्या मैं प्यास से मरूँ, और नामख़्तूनों के हाथ में पडूँ?"
\s5
\v 19 लेकिन ख़ुदा ने उस गढ़े को जो लही में है चाक कर दिया, और उसमें से पानी निकला; और जब उसने उसे पी लिया तो उसकी जान में जान आई, और वह ताज़ा दम हुआ। इसलिए उस जगह का नाम ऐन हक़्क़ोरे रख्खा गया, वह लही में आज तक है।
\v 20 और वह फ़िलिस्तियों के दिनों में बीस बरस तक इस्राईलियों का क़ाज़ी रहा।
\s5
\c 16
\p
\v 1 फिर समसून ग़ज़्ज़ा को गया। वहाँ उसने एक कस्बी देखी, और उसके पास गया।
\v 2 और ग़ज़्ज़ा के लोगों को ख़बर हुई के समसून यहाँ आया है। उन्होंने उसे घेर लिया और सारी रात शहर के फाटक पर उसकी घात में बैठे रहे; लेकिन रात भर चुप चाप रहे और कहा कि सुबह की रोशनी होते ही हम उसे मार डालेंगे।
\s5
\v 3 और समसून आधी रात तक लेटा रहा, और आधी रात को उठ कर शहर के फाटक के दोनों पल्लों और दोनों बाज़ुओं को पकड़कर चौखट समेत उखाड़ लिया; और उनको अपने कंधों पर रख कर उस पहाड़ की चोटी पर, जो हबरून के सामने है ले गया।
\s5
\v 4 इसके बा'द सूरिक़ की वादी में एक 'औरत से जिसका नाम दलीला था, उसे 'इश्क़ हो गया।
\v 5 और फ़िलिस्तियों के सरदारों ने उस 'औरत के पास जाकर उससे कहा कि तू उसे फुसलाकर दरियाफ़्त कर ले कि उसकी ताक़त ~का राज़ क्या है और हम क्यूँकर उस पर ग़ालिब आएँ, ताकि हम उसे बाँधकर उसको अज़िय्यत पहुँचाएँ; और हम में से हर एक ग्यारह सौ चाँदी के सिक्के तुझे देगा।
\s5
\v 6 तब दलीला ने समसून से कहा कि मुझे तो बता दे तेरी ताक़त का राज़ क्या है, और तुझे तकलीफ़ पहुँचाने के लिए किस चीज़ से तुझे बाँधना चाहिए।
\v 7 समसून ने उससे कहा कि अगर वह मुझ को सात हरी हरी बेदों से जो सुखाई न गई हों बाँधे, तो मैं कमज़ोर होकर और आदमियों की तरह हो जाऊँगा।
\s5
\v 8 तब फ़िलिस्तियों के सरदार सात हरी हरी बेदें जो सुखाई न गई थीं, उस 'औरत के पास ले आए और उसने समसून को उनसे बाँधा।
\v 9 और उस 'औरत ने कुछ आदमी अन्दर की कोठरी में घात में बिठा लिए थे।~इसलिए उस ने समसून से कहा कि ऐ समसून, फ़िलिस्ती तुझ पर चढ़ आए! तब उसने उन बेदों को ऐसा तोड़ा जैसे सन का सूत आग पाते ही टूट जाता है;~इसलिए~उसकी ताक़त का राज़ न खुला।
\s5
\v 10 तब दलीला ने समसून से कहा, "देख, तूने मुझे धोका दिया और मुझ से झूट बोला। अब तू ज़रा मुझ को बता दे, कि तू किस चीज़ से बाँधा जाए।"
\v 11 उसने उससे कहा, "अगर वह मुझें नई नई रस्सियों से जो कभी काम में न आई हों , बाँधे तो मैं कमज़ोर होकर और आदमियों की तरह हो जाऊँगा।"
\v 12 तब दलीला ने नई रस्सियाँ लेकर उसको उनसे बाँधा और उससे कहा, "ऐ समसून, फ़िलिस्ती तुझ पर चढ़ आए!" और घात वाले अन्दर की कोठरी में ठहरे ही हुए थे। तब उसने अपने बाज़ुओं पर से धागे की तरह उनको तोड़ डाला।
\s5
\v 13 ~तब~दलीला समसून से कहने लगी, "अब तक तो तूने मुझे धोका ही दिया और मुझ से झूट बोला; अब तो बता दे, कि तू किस चीज़ से बँध सकता है?" उसने उसे कहा, "अगर तू मेरे सिर की सातों लटें ताने के साथ बुन दे।"
\v 14 तब उसने खूंटे से उसे कसकर बाँध दिया और उससे कहा, "ऐ समसून, फ़िलिस्ती तुझ पर चढ़ आए!" तब वह नींद से जाग उठा, और बल्ली के खूंटे को ताने के साथ उखाड़ डाला।
\s5
\v 15 फिर वह उससे कहने लगी, "तू क्यूँकर कह सकता है, कि मैं तुझे चाहता हूँ, जब कि तेरा दिल मुझ से लगा नहीं? तूने तीनों बार मुझे धोका ही दिया और न बताया कि तेरी ताक़त का राज़ क्या है।"
\v 16 जब वह उसे रोज़ अपनी बातों से तंग और मजबूर करने लगी, यहाँ तक कि उसका दम नाक में आ गया।
\s5
\v 17 तो उसने अपना दिल खोलकर उसे बता दिया कि मेरे सिर पर उस्तरा नहीं फिरा है, इसलिए कि मैं अपनी माँ के पेट ही से ख़ुदा का नज़ीर हूँ,~इसलिए~अगर मेरा सिर मूंडा जाए तो मेरी ताक़त मुझ से जाती रहेगा, और मैं कमज़ोर होकर और आदमियों की तरह हो जाऊँगा।
\s5
\v 18 जब दलीला ने देखा के उसने दिल खोलकर सब कुछ बता दिया, तो उसने फ़िलिस्तियों के सरदारों को कहला भेजा कि इस बार और आओ, क्यूँकि उसने दिल खोलकर मुझे सब कुछ बता दिया है।" तब फ़िलिस्तियों के सरदार उसके पास आए, और रुपये अपने हाथ में लेते आए।
\v 19 तब उसे उसने अपने ज़ानों पर सुला लिया, और एक आदमी को बुलवाकर सातों लटें जो उसके सिर पर थीं, मुण्डवा डालीं, और उसे तकलीफ़ देने लगी; और उसका ज़ोर उससे जाता रहा।
\s5
\v 20 फिर उसने कहा, "ऐ समसून, फ़िलिस्ती तुझ पर चढ़ आए!” और वह नींद से जागा और कहने लगा कि मैं और दफ़ा' की तरह बाहर जाकर अपने को झटकुँगा। लेकिन उसे ख़बर न थी कि ख़ुदावन्द उससे अलग हो गया है।
\v 21 तब फ़िलिस्तियों ने उसे पकड़ कर उसकी आँखें निकाल डालीं, और उसे ग़ज़्ज़ा में ले आए और पीतल की बेड़ियों से उसे जकड़ा, और वह क़ैदख़ाने में चक्की पीसा करता था।
\v 22 ~तो भी उसके सिर के बाल मुण्डवाए जाने के बा'द फिर बढ़ने लगे।
\s5
\v 23 और फ़लिस्तियों के सरदार फ़राहम हुए ताकि अपने मा'बूद दजोन के लिए बड़ी क़ुर्बानी गुजारें और ख़ुशी करें क्यूँकि वह कहते थे कि हमारे मा'बूद ने हमारे दुश्मन समसून को हमारे क़ब्ज़े में कर दिया है।
\v 24 और जब लोग उसको देखते तो अपने मा'बूद की ता'रीफ़ करते और कहते थे कि हमारे मा'बूद ने हमारे दुश्मन और हमारे मुल्क को उजाड़ने वाले को, जिसने हम में से बहुतों को हलाक किया हमारे हाथ में कर दिया है।
\s5
\v 25 और ऐसा हुआ कि जब उनके दिल निहायत शाद हुए, तो वह कहने लगे कि समसून को बुलाओ, कि हमारे लिए कोई खेल करे।~इसलिए~उन्होंने समसून को क़ैदख़ाने से बुलवाया, और वह उनके लिए खेल करने लगा; और उन्होंने उसको दो खम्बों के बीच खड़ा किया।
\v 26 तब समसून ने उस लड़के से जो उसका हाथ पकड़े था कहा, "मुझे उन खम्बों को जिन पर यह घर क़ायम है, थामने दे ताकि मैं उन पर टेक लगाऊँ।"
\s5
\v 27 और वह~घर शख़्सों और 'औरतों से भरा था, और फ़िलिस्तियों के सब सरदार वहीं थे, और छत पर क़रीबन तीन हज़ार शख़्स और 'औरत थे जो समसून के खेल देख रहे थे।
\s5
\v 28 तब समसून ने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की और कहा, "ऐ मालिक, ख़ुदावन्द! मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि मुझे याद कर; और मैं तेरी मिन्नत करता हूँ ऐ ख़ुदा सिर्फ़ इस बार और तू मुझे ताक़त बख़्श, ताकि मैं एक बार फ़िलिस्तियों से अपनी दोनों ऑखों का बदला लूं।"
\v 29 और समसून ने दोनों बीच के खम्बों को जिन पर घर क़ायम था पकड़ कर, एक पर दहने हाथ से और दूसरे पर बाएँ हाथ से ज़ोर लगाया।
\s5
\v 30 और समसून कहने लगा कि फ़िलिस्तियों के साथ मुझे भी मरना ही है।~इसलिए~वह अपने सारी ताक़त से झुका; और वह घर उन सरदारों और सब लोगों पर जो उसमें थे गिर पड़ा। इसलिए वह मुर्दे जिनको उसने अपने मरते दम मारा, उनसे भी ज़्यादा थे जिनको उसने जीते जी क़त्ल किया।
\v 31 तब उसके भाई और उसके बाप का सारा घराना आया, और वह उसे उठा कर ले गए और सुर'आ और इस्ताल के बीच उसके बाप मनोहा के क़ब्रिस्तान में उसे दफ़्न किया। वह बीस बरस तक इस्राईलियों का क़ाज़ी रहा।
\s5
\c 17
\p
\v 1 और इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क का एक शख़्स था जिसका नाम मीकाह था।
\v 2 उसने अपनी माँ से कहा, "चाँदी के वह ग्यारह सौ सिक्के जो तेरे पास से लिए गए थे, और जिनके बारे में तूने ला'नत भेजी और मुझे भी यही सुना कर कहा;~इसलिए देख वह चाँदी मेरे पास है, मैंने उसको ले लिया था।” उसकी माँ ने कहा, "मेरे बेटे को ख़ुदावन्द की तरफ़ से बरकत मिले।"
\s5
\v 3 और उसने चाँदी के वह ग्यारह सौ सिक्के अपनी माँ को लौटा दिए, तब उसकी माँ ने कहा, "मैं इस चाँदी को अपने बेटे की ख़ातिर अपने हाथ से ख़ुदावन्द के लिए मुक़द्दस किए देती हूँ, ताकि वह एक बुत तराशा हुआ और एक ढाला हुआ बनाए~इसलिए, अब मैं इसको तुझे लौटा देती हूँ।”
\v 4 लेकिन जब उसने वह नक़दी अपनी माँ को लौटा दी, तो उसकी माँ ने चाँदी के दो सौ सिक्के लेकर उनको ढालने वाले को दिया, जिसने उनसे एक तराशा हुआ और एक ढाला हुआ बुत बनाया; और वह मीकाह के घर में रहे।
\s5
\v 5 और इस शख़्स मीकाह के यहाँ एक बुत ख़ाना था, और उसने एक अफ़ूद और तराफ़ीम को बनवाया; और अपने बेटों में से एक को मख़्सूस किया जो उसका काहिन हुआ।
\v 6 उन दिनों इस्राईल में कोई बादशाह न था, और हर शख़्स जो कुछ उसकी नज़र में अच्छा मा'लूम होता वही करता था।
\s5
\v 7 और बैतलहम यहूदाह में यहूदाह के घराने का एक जवान था जो लावी था; यह वहीं टिका हुआ था।
\v 8 यह शख़्स उस शहर या'नी बैतलहम-ए-यहूदाह से निकला, कि और कहीं जहाँ जगह मिले जा टिके। तब वह सफ़र करता हुआ इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में मीकाह के घर आ निकला।
\v 9 और मीकाह ने उससे कहा, "तू कहाँ से आता है?" उसने उससे कहा, "मैं बैतलहम-ए-यहूदाह का एक लावी हूँ, और निकला हूँ कि जहाँ कहीं जगह मिले वहीं रहूँ।”
\s5
\v 10 मीकाह ने उससे कहा, "मेरे साथ रह जा, और मेरा बाप और काहिन हो; मैं तुझे चाँदी के दस सिक्के सालाना और एक जोड़ा कपड़ा और खाना दूँगा।" तब वह लावी अन्दर चला गया।
\v 11 और वह उस आदमी के साथ रहने पर राज़ी हुआ; और वह जवान उसके लिए ऐसा ही था जैसा उसके अपने बेटों में से एक बेटा।
\s5
\v 12 और मीकाह ने उस लावी को मख़्सूस किया, और वह जवान उसका काहिन बना और मीकाह के घर में रहने लगा।
\v 13 तब मीकाह ने कहा, "मैं अब जानता हूँ कि ख़ुदावन्द मेरा भला करेगा, क्यूँकि एक लावी मेरा काहिन है।"
\s5
\c 18
\p
\v 1 उन दिनों इस्राईल में कोई बादशाह न था, और उन ही दिनों में दान का क़बीला अपने रहने के लिए मीरास ढूँडता था, क्यूँकि उनको उस दिन तक इस्राईल के क़बीलों में मीरास नहीं मिली थी।
\v 2 ~इसलिए~बनी दान ने अपने सारे शुमार में से पाँच सूर्माओं को सुर'आ और इस्ताल से रवाना किया, ताकि मुल्क का हाल दरियाफ़्त करें और उसे देखें भालें और उनसे कह दिया कि जाकर उस मुल्क को देखो भालो।~इसलिए~वह इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में मीकाह के घर आए और वहीं उतरे।
\s5
\v 3 जब वह मीकाह के घर के पास पहुँचे, तो उस लावी जवान की आवाज़ पहचानी, पस वह उधर को मुड़ गए और उससे कहने लगे, "तुझ को यहाँ कौन लाया? तू यहाँ क्या करता है और यहाँ तेरा क्या है?"
\v 4 उसने उनसे कहा, "मीकाह ने मुझ से ऐसा ऐसा सुलूक किया, और मुझे नौकर रख लिया है और मैं उसका काहिन बना हूँ।"
\s5
\v 5 उन्होंने उससे कहा कि ख़ुदा से ज़रा सलाह ले, ताकि हम को मा'लूम हो जाए कि हमारा यह सफ़र मुबारक होगा या नहीं।
\v 6 उस काहिन ने उनसे कहा, "सलामती से चले जाओ, क्यूँकि तुम्हारा यह सफ़र ख़ुदावन्द के हुज़ूर है।"
\s5
\v 7 ~इसलिए~वह पाँचों शख़्स चल निकले और लैस में आए। उन्होंने वहाँ के लोगों को देखा कि सैदानियों की तरह कैसे इत्मिनान और अम्न और चैन से रहते हैं; क्यूँकि उस मुल्क में कोई हाकिम नहीं था जो उनको किसी बात में ज़लील करता। वह सैदानियों से बहुत दूर थे, और किसी से उनको कुछ सरोकार न था।
\v 8 ~इसलिए~वह सुर'आ और इस्ताल को अपने भाइयों के पास लौटे, और उनके भाइयों ने उनसे पूछा कि तुम क्या कहते हो?
\s5
\v 9 उन्होंने कहा, "चलो, हम उन पर चढ़ जाएँ; क्यूँकि हम ने उस मुल्क को देखा कि वह बहुत अच्छा है; और तुम क्या चुप चाप ही रहे? अब चलकर उस मुल्क पर क़ाबिज़ होने में सुस्ती न करो।
\v 10 अगर तुम चले तो एक मुतम'इन क़ौम के पास पहुँचोगे, और वह मुल्क वसी' है; क्यूँकि ख़ुदा ने उसे तुम्हारे हाथ में कर दिया है। वह ऐसी जगह है जिसमें दुनिया की किसी चीज़ की कमी नहीं।"
\s5
\v 11 तब बनी दान के घराने के छ: सौ शख़्स जंग के हथियार बाँधे हुए सुर'आ और इस्ताल से रवाना हुए।
\v 12 और जाकर यहूदाह के क़रयत या'रीम में ख़ैमाज़न हुए। इसीलिए आज के दिन तक उस जगह को महने दान कहते हैं, और यह क़रयत या'रीम के पीछे है।
\s5
\v 13 और वहाँ से चलकर इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में पहुँचे और मीकाह के घर आए।
\v 14 तब वह पाँचों शख़्स जो लैस के मुल्क का हाल दरियाफ़्त करने गए थे, अपने भाइयों से कहने लगे, "क्या तुम को ख़बर है, कि इन घरों में एक अफ़ूद और तराफ़ीम और एक तराशा हुआ बुत और एक ढाला हुआ बुत है?~इसलिए अब सोच लो कि तुम को क्या करना है।"
\s5
\v 15 तब वह उस तरफ़ मुड़ गए और उस लावी जवान के मकान में या'नी मीकाह के घर में दाख़िल हुए, और उससे ख़ैर-ओ-सलामती पूछी।
\v 16 और वह छ: सौ आदमी जो बनी दान में से थे, जंग के हथियार बाँधे फाटक पर खड़े रहे।
\s5
\v 17 और उन पाँचों शख़्सों ने जो ज़मीन का हाल दरियाफ़्त करने को निकले थे, वहाँ आकर तराशा हुआ बुत और अफ़ूद और तराफ़ीम और ढाला हुआ बुत सब कुछ ले लिया, और वह काहिन फाटक पर उन छ: सौ आदमियों के साथ जो जंग के हथियार बाँधे थे खड़ा था।
\v 18 जब वह मीकाह के घर में घुस कर तराशा हुआ बुत और अफ़ूद और तराफ़ीम और ढाला हुआ बुत ले आए, तो उस काहिन ने उनसे कहा, "तुम यह क्या करते हो?"
\s5
\v 19 तब उन्होंने उसे कहा, "चुप रह, मुँह पर हाथ रख ले; और हमारे साथ चल और हमारा बाप और काहिन बन। क्या तेरे लिए एक शख़्स के घर का काहिन होना अच्छा है, या यह कि तू बनी-इस्राईल के एक क़बीले और घराने का काहिन हो?"
\v 20 तब काहिन का दिल ख़ुश हो गया और वह अफ़ूद और तराफ़ीम और तराशे हुए बुत को लेकर लोगों के बीच चला गया।
\s5
\v 21 फिर वह मुड़े और रवाना हुए, और बाल बच्चों और चौपायों और सामन को अपने आगे कर लिया।
\v 22 जब वह मीकाह के घर से दूर निकल गए, तो जो लोग मीकाह के घर के पास के मकानों में रहते थे वह जमा' हुए और चलकर बनी दान को जा लिया।
\v 23 और उन्होंने बनी दान को पुकारा, तब उन्होंने उधर मुँह करके मीकाह से कहा, "तुझ को क्या हुआ जो तू इतने लोगों की जमिय'त को साथ लिए आ रहा है?"
\s5
\v 24 उसने कहा, "तुम मेरे मा'बूदों को जिनको मैंने बनवाया, और मेरे काहिन को साथ लेकर चले आए, अब मेरे पास और क्या बाक़ी रहा?~इसलिए~तुम मुझ से यह क्यूँकर कहते हो कि तुझ को क्या हुआ?"
\v 25 बनी दान ने उससे कहा कि तेरी आवाज़ हम लोगों में सुनाई न दे, ऐसा न हो कि झल्ले मिज़ाज के आदमी तुझ पर हमला कर बैठें और तू अपनी जान अपने घर के लोगों की जान के साथ खो बैठे।
\v 26 ~इसलिए बनी दान तो अपने रास्ते ही चले गए: और जब मीकाह ने देखा, कि वह उसके मुक़ाबले में बड़े ज़बरदस्त हैं, तो वह मुड़ा और अपने घर को लौटा।
\s5
\v 27 यूँ वह मीकाह की बनवाई हुई चीज़ों को और उस काहिन को जो उसके यहाँ था, लेकर लैस में ऐसे लोगों के पास पहुँचे जो अम्न और चैन से रहते थे; और उनको बर्बाद किया और शहर जला दिया।
\v 28 और बचाने वाला कोई न था, क्यूँकि वह सैदा से दूर था और यह लोग किसी आदमी से सरोकार नहीं रखते थे। और वह शहर बैत रहोब के पास की वादी में था। फिर उन्होंने वह शहर बनाया और उसमें रहने लगे।
\v 29 और उस शहर का नाम अपने बाप दान के नाम पर जो इस्राईल की औलाद था दान ही रख्खा, लेकिन पहले उस शहर का नाम लैस था।
\s5
\v 30 और बनी दान ने वह तराशा हुआ बुत अपने लिए खड़ा कर लिया; और यूनतन बिन जैरसोम बिन मूसा और उसके बेटे उस मुल्क की असीरी के दिन तक बनी दान के क़बीले के काहिन बने रहे।
\v 31 और सारे वक़्त जब तक ख़ुदा का घर सैला में रहा, वह मीकाह के तराशे हुए बुत को जो उसने बनवाया था अपने लिए खड़े किए रहे।
\s5
\c 19
\p
\v 1 उन दिनों में जब इस्राईल में कोई बादशाह न था, ऐसा हुआ कि एक शख़्स ने जो लावी था और इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क के दूसरे सिरे पर रहता था, बैतलहम-ए-यहूदाह से एक हरम अपने लिए कर ली।
\v 2 उसकी हरम ने उस से बेवफ़ाई की और उसके पास से बैतलहम यहूदाह में अपने बाप के घर चली गई, और चार महीने वहीं रही।
\s5
\v 3 और उसका शौहर उठकर और एक नौकर और दो गधे साथ लेकर उसके पीछे रवाना हुआ, कि उसे मना फुसला कर वापस ले आए।~इसलिए~वह उसे अपने बाप के घर में ले गई, और उस जवान 'औरत का बाप उसे देख कर उसकी मुलाक़ात से ख़ुश हुआ।
\v 4 और उसके ख़ुसर या'नी उस जवान 'औरत के बाप ने उसे रोक लिया, और वह उसके साथ तीन दिन तक रहा; और उन्होंने खाया पिया और वहाँ टिके रहे।
\s5
\v 5 चौथे रोज़ जब वह सुबह सवेरे उठे, और वह चलने को खड़ा हुआ; तो उस जवान 'औरत के बाप ने अपने दामाद से कहा, "एक टुकड़ा रोटी खाकर ताज़ा दम हो जा, इसके बा'द तुम अपनी राह लेना।
\v 6 ~इसलिए~वह दोनों बैठ गए और मिलकर खाया पिया फिर उस जवान 'औरत के बाप ने उस शख़्स से कहा कि रात भर और टिकने को राज़ी हो जा, और अपने दिल को ख़ुश कर।
\s5
\v 7 लेकिन वह शख़्स चलने को खड़ा हो गया, लेकिन उसका ख़ुसर उससे बजिद हुआ;~इसलिए~फिर उसने वहीं रात काटी।
\v 8 और पाँचवें रोज़ वह सुबह सवेरे उठा, ताकि रवाना हो; और उस जवान 'औरत के बाप ने उससे कहा, "ज़रा इत्मिनान रख और दिन ढलने तक ठहरे रहो।" तब दोनों ने रोटी खाई।
\s5
\v 9 और जब वह शख़्स और उसकी हरम और उसका नौकर चलने को खड़े हुए, तो उसके ख़ुसर या'नी उस जवान 'औरत के बाप ने उससे कहा, "देख, अब तो दिन ढला और शाम हो चली;~इसलिए~मैं तुम से मिन्नत करता हूँ कि तुम रात भर ठहर जाओ। देख, दिन तो ख़ातिमें पर है, इसलिए यहीं टिक जा, तेरा दिल खुश हो और कल सुबह ही सुबह तुम अपनी राह लगना, ताकि तू अपने घर को जाए।"
\s5
\v 10 लेकिन वह शख़्स उस रात रहने पर राज़ी न हुआ, बल्कि उठ कर रवाना हुआ और यबूस के सामने पहुँचा (यरुशलीम यही है); और दो गधे ज़ीन कसे हुए उसके साथ थे, और उसकी हरम भी साथ थी।
\v 11 जब वह यबूस के बराबर पहुँचे तो दिन बहुत ढल गया था, और नौकर ने अपने आक़ा से कहा, "आ, हम यबूसियों के इस शहर में मुड़ जाएँ और यहीं टिकें।"
\s5
\v 12 उसके आक़ा ने उससे कहा, "हम किसी अजनबी के शहर में, जो बनी-इस्राईल में से नहीं दाख़िल न होंगे, बल्कि हम जिब'आ को जाएँगे।"
\v 13 फिर उसने अपने नौकर से कहा कि आ, हम इन जगहों में से किसी में चले चलें, और जिब'आ या रामा में रात काटें।"
\s5
\v 14 ~इसलिए~वह आगे बढ़े और रास्ता चलते ही रहे, और बिनयमीन के जिब'आ के नज़दीक पहुँचते पहुँचते सूरज डूब गया।
\v 15 इसलिए~वह उधर को मुड़े, ताकि जिब'आ में दाख़िल होकर वहाँ टिके। वह दाख़िल होकर शहर के चौक में बैठ गया, क्यूँकि वहाँ कोई आदमी उनको टिकाने को अपने घर न ले गया।
\s5
\v 16 शाम को एक बूढ़ा शख़्स अपना काम करके वहाँ आया। यह आदमी इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क का था, और जिब'आ में आ बसा था; लेकिन उस मक़ाम के बाशिंदे बिनयमीनी थे।
\v 17 उसने जो आँखें उठाई तो उस मुसाफ़िर को उस शहर के चौक में देखा, तब उस बूढ़े शख़्स ने कहा, "तू किधर जाता है और कहाँ से आया है?"
\s5
\v 18 उसने उससे कहा, "हम यहूदाह के बैतलहम से इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क के दूसरे सिरे को जाते हैं। मैं वहीं का हूँ, और यहूदाह के बैतलहम को गया हुआ था; और अब ख़ुदावन्द के घर को जाता हूँ, यहाँ कोई मुझे अपने घर में नहीं उतारता।
\v 19 हालाँकि हमारे साथ हमारे गधों के लिए भूसा और चारा है; और मेरे और तेरी लौंडी के वास्ते, और इस जवान के लिए जो तेरे बन्दो के साथ है रोटी और मय भी है, और किसी चीज़ की कमी नहीं।"
\s5
\v 20 उस बूढ़े शख़्स ने कहा, "तेरी सलामती हो; तेरी सब ज़रूरतें हरसूरत मेरे ज़िम्मे हों, लेकिन इस चौक में हरगिज़ न टिक।"
\v 21 वह उसे अपने घर ले गया और उसके गधों को चारा दिया, और वह अपने पाँव धोकर खाने पीने लगे।
\s5
\v 22 जब वह अपने दिलों को ख़ुश कर रहे थे, तो उस शहर के लोगों में से कुछ ख़बीसों ने उस घर को घेर लिया और दरवाज़ा पीटने लगे, और साहिब-ए-खाना या'नी बूढ़े शख़्स से कहा, "उस शख़्स को जो तेरे घर में आया है, बाहर ले आ ताकि हम उसके साथ सुहबत करें।"
\v 23 वह ~आदमी जो साहिब-ए- ख़ाना था, बाहर उनके पास जाकर उनसे कहने लगा, "नहीं, मेरे भाइयों ऐसी शरारत न करो; चूँकि यह शख़्स मेरे घर में आया है, इसलिए यह बेवक़ूफ़ी न करो।
\s5
\v 24 देखो, मेरी कुँवारी बेटी और इस शख़्स की हरम यहाँ हैं, मैं अभी उनको बाहर लाए देता हूँ, तुम उनकी आबरू लो और जो कुछ तुम को भला दिखाई दे उनसे करो, लेकिन इस शख़्स से ऐसा घिनौना काम न करो।"
\v 25 लेकिन वह लोग उसकी सुनते ही न थे। तब वह शख़्स अपनी हरम को पकड़ कर उनके पास बाहर ले आया। उन्होंने उससे सुहबत की और सारी रात सुबह तक उसके साथ बदज़ाती करते रहे, और जब दिन निकलने लगा तो उसको छोड़ दिया।
\v 26 वह 'औरत पौ फटते हुए आई, और उस शख़्स के घर के दरवाज़े पर जहाँ उसका ख़ाविन्द था गिरी और रोशनी होने तक पड़ी रही।
\s5
\v 27 और उसका ख़ाविन्द सुबह को उठा और घर के दरवाज़े खोले और बाहर निकला कि रवाना हों और देखो वह 'औरत जो उसकी हरम थी घर के दरवाज़े पर अपने आस्ताना पर फैलाये हुए पड़ी थी |
\v 28 उसने उससे कहा, "उठ, हम चलें।" लेकिन किसी ने जवाब न दिया। तब उस शख़्स ने उसे अपने गधे पर लाद लिया, और वह शख़्स उठा और अपने मकान को चला गया।
\s5
\v 29 और उसने घर पहुँच कर छुरी ली, और अपनी हरम को लेकर उसके आ'ज़ा काटे और उसके बारह टुकड़े करके इस्राईल की सब सरहदों में भेज दिए।
\v 30 और जितनों ने यह देखा, वह कहने लगे कि जब से बनी-इस्राईल मुल्क-ए-मिस्र से निकल आए, उस दिन से आज तक ऐसा बुरा काम न कभी हुआ न कभी देखने में आया,~इसलिए~इस पर ग़ौर करो और सलाह करके बताओ।
\s5
\c 20
\p
\v 1 ་तब सब बनी इस्राईल निकले और सारी जमा'अत जिल'आद के मुल्क समेत दान से बैरसबा' तक यकतन होकर ख़ुदावन्द के सामने मिस्फ़ाह में इकट्ठी हुई।
\v 2 और तमाम क़ौम के सरदार बल्कि बनी इस्राईल के सब क़बीलों के लोग जो चार लाख शमशीर ज़न प्यादे थे, ख़ुदा के लोगों के मजमे' में हाज़िर हुए।
\s5
\v 3 (और बनी बिनयमीन ने सुना कि बनी-इस्राईल मिसफ़ाह में आए हैं।) और बनी-इस्राईल पूछने लगे कि बताओ तो सही यह शरारत क्यूँकर हुई?
\v 4 तब उस लावी ने जो उस मक़्तूल 'औरत का शौहर था जवाब दिया कि मैं अपनी हरम को साथ लेकर बिनयमीन के जिब'आ में टिकने को गया था।
\s5
\v 5 और जिब'आ के लोग मुझ पर चढ़ आए, और रात के वक़्त उस घर को जिसके अन्दर मैं था चारों तरफ़ से घेर लिया, और मुझे तो वह मार डालना चाहते थे; और मेरी हरम को जबरन ऐसा बेआबरू किया कि वह मर गई।
\v 6 ~इसलिए~मैंने अपनी हरम को लेकर उसको टुकड़े टुकड़े किया, और उनको इस्राईल की मीरास के सारे मुल्क में भेजा, क्यूँकि इस्राईल के बीच उन्होंने शुहदापन और घिनौना काम किया है।
\v 7 ऐ बनी-इस्राईल, तुम सब के सब देखो, और यहीं अपनी सलाह-ओ-मशवरत दो।
\s5
\v 8 और सब लोग यकतन होकर उठे और कहने लगे, "हम में से कोई अपने डेरे को नहीं जाएगा, और न हम में से कोई अपने घर की तरफ़ रुख़ करेगा।
\v 9 बल्कि हम जिब'आ से यह करेंगे, कि पर्ची डाल कर उस पर चढ़ाई करेंगे।
\s5
\v 10 और हम इस्राईल के सब क़बीलों में से सौ पीछे दस, और हज़ार पीछे सौ, और दस हज़ार पीछे एक हज़ार आदमी लोगों के लिए रसद लाने को जुदा करें; ताकि वह लोग जब बिनयमीन के जिब'आ में पहुँचें, तो जैसा मकरूह काम उन्होंने इस्राईल में किया है उसके मुताबिक़ उससे कारगुज़ारी कर सकें।
\v 11 तब~सब बनी-इस्राईल उस शहर के मुक़ाबिल गठे हुए यकतन होकर जमा' हुए।
\s5
\v 12 और बनी-इस्राईल के क़बीलों ने बिनयमीन के सारे क़बीले में लोग रवाना किए और कहला भेजा कि यह क्या शरारत है जो तुम्हारे बीच हुई?
\v 13 इसलिए अब उन आदमियों या'नी उन ख़बीसों को जो जिब'आ में हैं हमारे हवाले करो, कि हम उनको क़त्ल करें और इस्राईल में से बुराई को दूर कर डालें। लेकिन बनी बिनयमीन ने अपने भाइयों बनी इस्राईल का कहना न माना।
\v 14 बल्कि बनी बिनयमीन शहरों में से जिब'आ में जमा' हुए, ताकि बनी-इस्राईल से लड़ने को जाएँ।
\s5
\v 15 और बनी बिनयमीन जो शहरों में से उस वक़्त जमा' हुए, वह शुमार में छब्बीस हज़ार शमशीर ज़न शख़्स थे, 'अलावा जिब'आ के बाशिंदों के जो शुमार में सात सौ चुने हुए जवान थे|
\v 16 ~ इन सब लोगों में से सात सौ चुने हुए बेंहत्थे जवान थे, जिनमें से हर एक फ़लाख़न से बाल के निशाने पर बग़ैर ख़ता किए पत्थर मार सकता था।
\s5
\v 17 और इस्राईल के लोग, बिनयमीन के 'अलावा, चार लाख शमशीर ज़न शख़्स थे, यह सब साहिब-ए-जंग थे।
\v 18 और बनी-इस्राईल उठ कर बैतएल को गए और ख़ुदा से मश्वरत चाही और कहने लगे कि हम में से कौन बनी बिनयमीन से लड़ने को पहले जाए? ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, "पहले यहूदाह जाए।"
\s5
\v 19 ~इसलिए~बनी-इस्राईल सुबह सवेरे उठे और जिब'आ के सामने डेरे खड़े किए।
\v 20 और इस्राईल के लोग बिनयमीन से लड़ने को निकले, और इस्राईल के लोगों ने जिब'आ में उनके मुक़ाबिल सफ़आराई की।
\v 21 तब बनी बिनयमीन ने जिब'आ से निकल कर उस दिन बाइस हज़ार इस्राईलियों को क़त्ल करके ख़ाक में मिला दिया।
\s5
\v 22 लेकिन बनी-इस्राईल के लोग हौसला करके दूसरे दिन उसी मक़ाम पर जहाँ पहले दिन सफ़ बाँधी थी फिर सफ़आरा हुए।
\v 23 ~(और बनी-इस्राईल जाकर शाम तक ख़ुदावन्द के आगे रोते रहे; और उन्होंने ख़ुदावन्द से पूछा कि हम अपने भाई बिनयमीन की औलाद से लड़ने के लिए फिर बढ़े या नहीं? ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, "उस पर चढ़ाई करो)।"
\s5
\v 24 ~इसलिए~बनी-इस्राईल दूसरे दिन बनी बिनयमीन के मुक़ाबले के लिए नज़दीक आए।
\v 25 और उस दूसरे दिन बनी बिनयमीन उनके मुक़ाबिल जिब'आ से निकले और अठारह हज़ार इस्राईलियों को क़त्ल करके ख़ाक में मिला दिया, यह सब शमशीर ज़न थे।
\s5
\v 26 तब सब बनी-इस्राईल और सब लोग उठे और बैतएल में आए और वहाँ ख़ुदावन्द के हुज़ूर बैठे रोते रहे, और उस दिन शाम तक रोज़ा रख्खा और सोख़्तनी क़ुर्बानी और सलामती की क़ुर्बानियाँ ख़ुदावन्द के आगे पेश कीं।
\s5
\v 27 और बनी-इस्राईल ने इस वजह से कि ख़ुदा के 'अहद का सन्दूक़ उन दिनों वहीं था,
\v 28 और हारून के बेटे इली'अज़र का बेटा फ़ीन्हास उन दिनों उसके आगे खड़ा रहता था, ख़ुदावन्द से पूछा कि मैं अपने भाई बिनयमीन की औलाद से एक दफ़ा' और लड़ने को जाऊँ या रहने दूँ? ख़ुदावन्द ने फ़रमाया कि जा, मैं कल उसको तेरे क़ब्ज़े में कर दूँगा।
\s5
\v 29 ~इसलिए~बनी-इस्राईल ने जिब'आ के चारों तरफ़ लोगों को घात में बिठा दिया।
\v 30 और बनी-इस्राईल तीसरे दिन बनी बिनयमीन के मुक़ाबिले को चढ़ गए, और पहले की तरह जिब'आ के मुक़ाबिल फिर सफ़आरा हुए।
\s5
\v 31 और ~बनी बिनयमीन इन लोगों का सामना करने ~निकले, और शहर से दूर खिंचे चले गए; और उन शाहराहों पर जिनमें से एक बैतएल को और दूसरी मैदान में से जिब'आ को जाती थी, पहले की तरह लोगों को मारना और क़त्ल करना शुरू' किया और इस्राईल के तीस आदमी के क़रीब मार डाले |
\s5
\v 32 और बनी बिनयमीन कहने लगे कि वह पहले की तरह हम से मग़लूब हुए। लेकिन बनी-इस्राईल ने कहा, "आओ, भागें और उन को शहर से दूर शाहराहों पर खींच लाएँ।"
\v 33 तब सब इस्राईली शख़्स अपनी अपनी जगह से उठ खड़े हुए, और बा'ल तमर में सफ़आरा हुए; इस वक़्त वह इस्राइली जो कमीन में बैठे थे, मा'रे जिब'आ से जो उनकी जगह थी निकले।
\s5
\v 34 और सारे इस्राईल में से दस हज़ार चुने हुए आदमी जिब'आ के सामने आए और लड़ाई सख़्त होने लगी; लेकिन उन्होंने न जाना कि उन पर आफ़त आने वाली है।
\v 35 और ख़ुदावन्द ने बिनयमीन को इस्राईल के आगे मारा, और बनी-इस्राईल ने उस दिन पच्चीस हज़ार एक सौ बिनयमीनियों को क़त्ल किया, यह सब शमशीर ज़न थे।
\s5
\v 36 ~तब बनी बिनयमीन ने देखा कि वह मग़लूब हुए क्यूँकि इस्राइली~शख़्स उन लोगों का भरोसा करके जिनकी उन्होंने जिब'आ के ख़िलाफ़ घात में बिठाया था, बिनयमीन के सामने से हट गए।
\v 37 तब कमीन वालों ने जल्दी की और जिब'आ पर झपटे, और इन कमीन वालों ने आगे बढ़कर सारे शहर को बर्बाद किया।
\v 38 और इस्राइली आदमियों और उन कमीनवालों में यह निशान मुक़र्रर हुआ था, कि वह ऐसा करें कि धुवें का बहुत बड़ा बादल शहर से उठाएँ।
\s5
\v 39 इसलिए~इस्राइली शख़्स लड़ाई में हटने लगे और बिनयमीन ने उनमें से क़रीब तीस के आदमी क़त्ल कर दिए क्यूँकि उन्होंने कहा कि वह यक़ीनन हमारे सामने मग़लूब हुए जैसे पहली लड़ाई में।
\s5
\v 40 लेकिन जब धुएँ के सुतून में बादल सा उस शहर से उठा, तो बनी बिनयमीन ने अपने पीछे निगाह की और क्या देखा कि शहर का शहर धुवें में आसमान को उड़ा जाता है।
\v 41 फिर तो इस्राइली~शख़्स पलटे और बिनयमीन के लोग हक्का-बक्का हो गए, क्यूँकि उन्होंने देखा कि उन पर आफ़त आ पड़ी।
\s5
\v 42 ~इसलिए~उन्होंने इस्राइली शख़्सों के आगे पीठ फेर कर वीराने की की राह ली; लेकिन लड़ाई ने उनका पीछा न छोड़ा, और उन लोगों ने जो और शहरों से आते थे उनको उनके बीच में फ़ना कर दिया।
\s5
\v 43 यूँ उन्होंने बिनयमीनियों को घेर लिया और उनको दौड़ाया, और मशरिक़ में जिब'आ के मुक़ाबिल उनकी आराम गाहों में उनको लताड़ा।
\v 44 ~इसलिए~अठारह हज़ार बिनयमीनी मारे गए, यह सब सूर्मा थे।
\s5
\v 45 और वह लौट कर रिम्मोन की चट्टान की तरफ़ वीराने में भाग गए; लेकिन उन्होंने शाहराहों में चुन-चुन कर उनके पाँच हज़ार और मारे और जिदोम तक उनको ख़ूब दौड़ा कर उनमें से दो हज़ार~शख़्स और मार डाले।
\v 46 ~इसलिए सब बनी बिनयमीन जो उस दिन मारे गए पच्चीस हज़ार शमशीर ज़न शख़्स थे, और यह सब के सब सूर्मा थे।
\s5
\v 47 लेकिन छ: सौ आदमी लौट कर और वीराने की तरफ़ भाग कर रिम्मोन की चट्टान को चल दिए, और रिम्मोन की चट्टान में चार महीने रहे।
\v 48 और इस्राईली~शख़्स~लौट कर फिर बनी बिनयमीन पर टूट पड़े, और उनको बर्बाद किया, या'नी सारे शहर और चौपायों और उन सब को जो उनके हाथ आए। और जो-जो शहर उनको मिले उन्होंने उन सबको फूँक दिया।
\s5
\c 21
\p
\v 1 और इस्राईल के लोगों ने मिस्फ़ाह में क़सम खाकर कहा था कि हम में से कोई अपनी बेटी किसी बिनयमीनी को न देगा।
\v 2 और लोग बैतएल में आए, और शाम तक वहाँ ख़ुदा के आगे बुलन्द आवाज़ से ज़ार ज़ार रोते रहे,
\v 3 और उन्होंने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, इस्राईल के ख़ुदा! इस्राईल में ऐसा क्यूँ हुआ, कि इस्राईल में से आज के दिन एक क़बीला कम हो गया?"
\s5
\v 4 और दूसरे दिन वह लोग सुबह सवेरे उठे और उस जगह एक मज़बह बना कर सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश कीं।
\v 5 और बनी-इस्राईल कहने लगे कि इस्राईल के सब क़बीलों में ऐसा कौन है जो ख़ुदावन्द के हुज़ूर जमा'अत के साथ नहीं आया क्यूँकि उन्होंने सख़्त क़सम खाई थी कि जो ख़ुदावन्द के सामने मिस्फ़ाह में हाज़िर न होगा वह ज़रूर क़त्ल किया जाएगा।
\s5
\v 6 इसलिए बनी-इस्राईल अपने भाई बिनयमीन की वजह से पछताए और कहने लगे कि आज के दिन बनी-इस्राईल का एक क़बीला कट गया।
\v 7 और वह जो बाक़ी रहे हैं, हम उनके लिए बीवियों की निस्बत क्या करें? क्यूँकि हम ने तो ख़ुदावन्द की क़सम खाई है कि हम अपनी बेटियाँ उनको नहीं ब्याहेंगे।
\s5
\v 8 ~इसलिए वह कहने लगे कि बनी-इस्राईल में से वह कौन सा क़बीला है जो मिस्फ़ाह में ख़ुदावन्द के सामने नहीं आया? और देखो, लश्कर गाह में जमा'अत में शामिल होने के लिए यबीस जिल'आद से कोई नहीं आया था।
\v 9 क्यूँकि जब लोगों का शुमार किया गया तो यबीस जिल'आद के बाशिंदों में से वहाँ कोई नहीं मिला।
\v 10 तब जमा'अत ने बारह हज़ार सूर्मा रवाना किए और उनको हुक्म दिया कि जाकर याबीस जिल'आद के बाशिंदों को 'औरतों और बच्चों समेत क़त्ल करो।
\s5
\v 11 और जो तुम को करना होगा वह यह है, कि सब~शख़्सों~और ऐसी 'औरतों को जो~शख़्ससे वाक़िफ़ हो चुकी हों हलाक कर देना।
\v 12 और उनको यबीस जिल'आद के बाशिंदों में चार सौ कुँवारी 'औरतें मिलीं जो~शख़्स से नावाक़िफ़ और अछूती थीं, और वह उनको मुल्क-ए-कन'आन में सैला की लश्करगाह में ले आए।
\s5
\v 13 तब सारी जमा'अत ने बनी बिनयमीन को जो रिम्मोन की चट्टान में थे कहला भेजा, और सलामती का पैग़ाम उनको दिया।
\v 14 तब बिनयमीनी लौटे; और उन्होंने वह 'औरतें उनको दे दीं, जिनको उन्होंने यबीस जिल'आद की 'औरतों में से ज़िन्दा बचाया था, लेकिन वह उनके लिए बस न हुई।
\v 15 और लोग बिनयमीन की वजह से पछताए, इसलिए कि ख़ुदावन्द ने इस्राईल के क़बीलों में रख़ना डाल दिया था।
\s5
\v 16 तब जमा'अत के बुज़ुर्ग कहने लगे किउनके लिए जो बच रहे हैं बीवियों की निस्बत हम क्या करें, क्यूँकि बनी बिनयमीन की सब 'औरतें मिट गई?
\v 17 ~इसलिए उन्होंने कहा, 'बनी बिनयमीन के बाक़ी मान्दा लोगों के लिए मीरास ज़रूरी है, ताकि इस्राईल में से एक क़बीला मिट न जाए।
\s5
\v 18 ~तो भी हम तो अपनी बेटियां उनको ब्याह नहीं सकते; क्यूँकि बनी-इस्राईल ने यह कहकर क़सम खाई थी, कि जो किसी बिनयमीनी को बेटी दे वह ला'नती हो।
\v 19 फिर वह कहने लगे, "देखो, सैला में जो बैतएल के उत्तर में, और उस शाहराह की मशरिक़ी तरफ़ में है जो बैतएल से सिक्म को जाती है, और लबूना के दख्खिन में है, साल-ब-साल खुदावन्द की एक 'ईद होती है।"
\s5
\v 20 तब उन्होंने बनी बिनयमीन को हुक्म दिया कि जाओ, और ताकिस्तानों में घात लगाए बैठे रहो;
\v 21 और देखते रहना, कि अगर सैला की लड़कियाँ नाच नाचने को निकलें, तो तुम ताकिस्तानों में से निकलकर सैला की लड़कियों में से एक एक बीवी अपने अपने लिए पकड़ लेना, और बिनयमीन के मुल्क को चल देना।
\s5
\v 22 और जब उनके बाप या भाई हम से शिकायत करने को आएँगे, तो हम उनसे कह देंगे कि उनको महेरबानी से हमें 'इनायत करो, क्यूँकि उस लड़ाई में हम उनमें से हर एक के लिए बीवी नहीं लाए; और तुम ने उनको अपने आप नहीं दिया, वरना तुम गुनहगार होते।
\s5
\v 23 ~ग़रज़ बनी बिनयमीन ने ऐसा ही किया, और अपने शुमार के मुताबिक़ उनमें से जो नाच रही थीं जिनको पकड़ कर ले भागे, उनको ब्याह लिया और अपनी मीरास को लौट गए, और उन शहरों को बना कर उनमें रहने लगे।
\v 24 तब बनी-इस्राईल वहाँ से अपने अपने क़बीले और घराने को चले गए, और अपनी मीरास को लौटे।
\s5
\v 25 और उन दिनों इस्राईल में कोई बादशाह न था; हर एक शख़्स जो कुछ उसकी नज़र में अच्छा मा'लूम होता था वही करता था।

143
08-RUT.usfm Normal file
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\id RUT
\ide UTF-8
\h रूत
\toc1 रूत
\toc2 रूत
\toc3 rut
\mt1 रूत
\s5
\c 1
\p
\v 1 उन ही दिनों में जब क़ाज़ी इन्साफ़ किया करते थे, ऐसा हुआ कि~उस सरज़मीन में काल पड़ा, बैतलहम का एक आदमी अपनी बीवी और दो बेटों को लेकर चला कि मोआब के मुल्क में ~जाकर बसे।
\v 2 उस आदमी का नाम इलीमलिक और उसकी बीवी का नाम न'ओमी उसके दोनों बेटों के नाम महलोन~और किलयोन थे।ये यहूदाह के बैतलहम के इफ़्राती थे। तब वह मोआब के मुल्क में आकर रहने लगे।
\s5
\v 3 और न'ओमी का शौहर इलीमलिक मर गया, वह और उसके दोनों बेटे बाक़ी रह गए।
\v 4 उन दोनों ने एक एक मोआबी ''औरत ब्याह ली।~इनमें से एक का नाम 'उर्फ़ा और दूसरी का रूत था;और वह दस बरस के क़रीब वहाँ रहे।
\v 5 और महलोन और किलयोन दोनों मर गए ,तब वह 'औरत अपने दोनों बेटों और शौहर से महरूम हो ~गई।
\s5
\v 6 तब वह अपनी दोनों बहुओं को लेकर उठी कि मोआब के मुल्क से लौट जाएँ इसलिए कि उस ने मोआब के मुल्क में यह हाल सुना कि ख़ुदावन्द ने अपने लोगों को रोटी दी और यूँ उनकी ख़बर ली।
\v 7 इसलिए वह उस जगह से जहाँ वह थी, दोनों बहुओं को साथ लेकर चल निकली,और वह सब यहूदाह की सरज़मीन को लौटने के लिए रास्ते पर हो लीं|
\s5
\v 8 और न'ओमी ने अपनी दोनों बहुओं से कहा, "दोनों अपने अपने मैके को जाओ। जैसा तुम ने मरहूमों के साथ और मेरे साथ किया,वैसा ही ख़ुदावन्द तुम्हारे साथ मेहरबानी से पेश आए।
\v 9 ख़ुदावन्द यह करे कि तुम को अपने अपने शौहर के घर में आराम मिले| तब उसने उनको चूमा और वह ज़ोर-ज़ोर से~रोने लगीं।
\v 10 ~फिर उन दोनों ने उससे कहा,~"नहीं! बल्कि हम तेरे साथ लौट कर तेरे लोगों में जाएँगी।”
\s5
\v 11 ~न'ओमी ने कहा, "ऐ मेरी बेटियों, लौट जाओ! मेरे साथ क्यूँ चलो? क्या मेरे रिहम में और बेटे हैं जो तुम्हारे शौहर हों?
\v 12 ऐ मेरी बेटियों, लौट जाओ! अपना रास्ता लो, क्यूँकि मैं ज़्यादा बुढ़िया हूँ और शौहर करने के लायक़ नहीं।अगर मैं कहती कि मुझे उम्मीद है बल्कि अगर आज ~की रात मेरे पास शौहर भी होता, और मेरे लड़के पैदा होते;
\v 13 तो भी क्या तुम उनके बड़े होने तक इंतज़ार करतीं ~और शौहर कर लेने से बाज़ रहतीं ?नहीं मेरी बेटियों मैं तुम्हारी वजह से ज़ियादा दुखी हूँ इसलिए कि ख़ुदावन्द का हाथ मेरे ख़िलाफ़ बढ़ा हुआ है
\s5
\v 14 वह फिर ~ज़ोर ज़ोर से रोईं,और उर्फ़ा ने अपनी सास को चूमा लेकिन रूत उससे लिपटी रही।
\v 15 तब उसने कहा, जिठानी अपने ~कुन्बे और अपने मा'बूद के पास लौट गई; तू भी अपनी जिठानी के पीछे चली जा |"
\s5
\v 16 रुत ~ने कहा, "तू मिन्नत न कर कि मैं तुझे छोडूं और तेरे पीछे से लौट जाऊँ; क्यूँकि जहाँ तू जाएगीं मै जाऊँगी और जहाँ तू रहेगी ~मैं रहूँगी,| तेरे लोग मेरे लोग और तेरा ख़ुदा मेरा ख़ुदा होगा।
\v 17 जहाँ तू मरेगी मैं मरूँगीं और वहीं दफ़्न भी हूँगी; ख़ुदावन्द मुझ से ऐसा ही बल्कि इस से भी ज़्यादा करे,अगर मौत के अलावा कोई और चीज़ मुझ को तुझ से जुदा न कर दे।”
\v 18 ~जब उसने देखा कि उसने उसके साथ चलने की ठान ली है,तो उससे और कुछ न कहा।
\s5
\v 19 इसलिए वह~दोनों चलते चलते बैतलहम में आईं। जब वह बैतलहम में दाख़िल हुई तो सारे शहर में धूम मची,और 'औरतें ~कहने लगीं, कि क्या ये न'ओमी है ?|
\v 20 उसने उनसे कहा, "मुझ को न'ओमी ~नहीं बल्कि मारह कहो, कि क़ादिर-ए-मुतलक मेरे साथ बहुत तल्ख़ी से पेश आया है।
\v 21 मैं भरी पूरी गई, ख़ुदावन्द मुझ को ख़ाली लौटा लाया। इसलिए तुम क्यूँ मुझे न'ओमी कहती हो, हालाँकि ख़ुदावन्द मेरे ख़िलाफ़ दा'वेदार हुआ और क़ादिर-ए-मुतलक ने मुझे दुख दिया ?”
\s5
\v 22 ~ग़रज़ ~न'ओमी ~लौटी और उसके साथ उसकी बहू मोआबी रूत थी, जो मोआब के मुल्क से यहाँ आई। और वह दोनों जौ काटने के मौसम में बैतलहम में दाख़िल हुईं |
\s5
\c 2
\p
\v 1 और न'ओमी के शौहर का एक रिश्तेदार था, जो इलीमलिक के घराने का और बड़ा मालदार था; और उसका नाम बो'अज़ था |
\v 2 ~इसलिए मोआबी रूत ने न'ओमी से कहा, "मुझे इजाज़त दे,तो मैं खेत में जाऊँ और जो कोई करम की नज़र मुझ पर करे,उसके पीछे पीछे बाले चुनूँ।"उस ने उससे कहा, " जा मेरी बेटी |"
\s5
\v 3 ~इसलिए वह गई और खेत में जाकर काटने ~वालों के पीछे बालें चुनने लगी, इत्तफ़ाक से वह बो'अज़ ही के खेत के हिस्से में जा पहुँची जो इलीमलिक के ख़ान्दान का था।
\v 4 और बो'अज़ ने बैतलहम से आकर काटने वालों से कहा,ख़ुदावन्द ~तुम्हारे साथ हो |उन्होंने उससे जवाब दिया ख़ुदावन्द तुझे बरकत दे!"
\s5
\v 5 फिर बो'अज़ ने अपने उस नौकर से जो काटने वालों पर मुक़र्रर था पूछा, किसकी लड़की है?"
\v 6 उस नौकर ने जो काटने वालों पर मुक़र्रर था जवाब दिया, "ये वह मोआबी लड़की है जो न'ओमी के साथ मोआब के मुल्क से आई है | "
\v 7 उस ने मुझ से कहा था,'कि मुझ को ज़रा काटने वालों के पीछे पूलियों के बीच बालें चुनकर जमा' करने दे इसलिए यह आकर सुबह से अब तक यहीं रही, सिर्फ़ ज़रा सी देर घर में ठहरी। थी "
\s5
\v 8 तब बो'अज़ ने रूत से कहा, "ऐ मेरी बेटी! क्या तुझे सुनाई नहीं देता? तू दूसरे खेत में बालें चुनने को न जाना और न यहाँ से निकलना, मेरी लड़कियों के साथ साथ रहना |
\v 9 इस खेत पर जिसे वह काटते हैं तेरी आखें जमी रहें और तू इन्ही के पीछे पीछे चलना। क्या मैंने इन जवानों को हुक्म नहीं किया कि वह तुझे न छुएँ? और जब तू प्यासी हो, बर्तनों के पास जाकर उसी पानी में से पीना जो मेरे जवानों ने भरा है।"
\s5
\v 10 तब वह औधे मुँह गिरी और ज़मीन पर सरनगू होकर उससे कहा,क्या वजह है कि तू मुझ पर करम की नज़र करके मेरी ख़बर लेता है,हालाँकि मैं परदेसन हूँ?"
\v 11 बो'अज़ ने उसे जवाब दिया,कि "जो कुछ तूने अपने शौहर के मरने के बा'द अपनी सास के साथ किया सब मुझे पूरे तौर पर बताया गया तूने कैसे अपने माँ-बाप और रहने की जगह को छोड़ा, उन लोगों में जिनको तू इससे पहले न जानती थी आई।
\v 12 ख़ुदावन्द ~तेरे काम का बदला दे, ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की तरफ़ से,जिसके परों के नीचे तू पनाह के लिए आई है,तुझ को पूरा अज्र मिले।"
\s5
\v 13 तब उसने कहा, "ऐ मेरे मालिक! तेरे करम की नज़र मुझ पर रहे,क्यूँकि तूने मुझे दिलासा दिया और मेहरबानी के साथ अपनी लौंडी से बातें कीं जब कि मैं तेरी लौंडियों में से एक के बराबर भी नहीं।"
\s5
\v 14 फिर बो'अज़ ने उससे खाने के वक़्त कहा कि यहाँ आ और रोटी खा और अपना निवाला सिरके में भिगो। तब वह काटने वालों के पास बैठ गई,और उन्होंने भुना ~हुआ अनाज उसके पास कर दिया; तब उसने खाया और सेर हुई और कुछ रख छोड़ा।
\s5
\v 15 और जब वह बालें चुनने उठी, तो बो'अज़ ने अपने जवानों से कहा कि उसे पूलियों के बीच में भी चुनने देना और उसे ~न डाँटना।
\v 16 और उसके लिए गट्ठरों में से थोड़ा सा निकाल कर छोड़ देना, और उसे चुनने देना और झिड़कना मत |
\s5
\v 17 इसलिए वह शाम तक खेत में चुनती रही, जो कुछ उसने चुना था उसे फटका और वह क़रीब एक ऐफ़ा जौ निकला।
\v 18 और वह उसे उठा कर शहर में गई, जो कुछ उसने चुना था उसे उसकी सास ने देखा, और उसने वह भी जो उसने सेर होने के बाद रख छोड़ा था,निकालकर अपनी सास को दिया।
\s5
\v 19 उसकी सास ने उससे पूछा,तूने आज कहाँ बालें चुनीं और कहाँ काम किया? मुबारक हो वह जिसने तेरी खबर ली।"तब ~उसने अपनी सास को बताया कि उसने किसके पास काम किया था, और कहा कि उस शख़्स का नाम,जिसके यहाँ आज मैंने काम किया बो'अज़ है |
\v 20 न'ओमी ने अपनी बहू से कहा, :वह ख़ुदावन्द की तरफ़ से बरकत पाए, जिसने ज़िंदों और मुर्दों से अपनी मेहरबानी बा'ज़ न रखी!"और न'ओमी ने उससे कहा, ये शख़्स हमारे क़रीबी रिश्ते का है और हमारे नज़दीक के क़रीबी रिश्तेदारों में से एक है।”
\s5
\v 21 मोआबी रूत ने कहा,उसने मुझ से ये भी कहा था कि तू मेरे जवानों के साथ रहना,जब तक वह मेरी सारी फ़स्ल काट न चुकें |
\v 22 न'ओमी ने अपनी बहू रूत से कहा, मेरी बेटी ये अच्छा है कि तू उसकी लड़कियों के साथ जाया करे, और वह तुझे किसी और खेत में न पायें |
\s5
\v 23 तब वह बालें चुनने के लिए जौ और गेहूँ की फ़सल के ख़ातिमे तक बो'अज़ की लड़कियों के साथ-साथ लगी रही;और वह अपनी सास के साथ रहती थी।
\s5
\c 3
\p
\v 1 फिर उसकी सास न'ओमी ने उससे कहा, "मेरी बेटी क्या मैं ~तेरे आराम की तालिब न बनूँ, जिससे तेरी भलाई हो?
\v 2 और क्या बो'अज़ हमारा रिश्तेदार नहीं,जिसकी लड़कियों के साथ तू थी? देख वह आज की रात खलीहान में जौ फटकेगा।
\s5
\v 3 इसलिए तू नहा-धोकर ख़ुश्बू लगा, अपनी पोशाक पहन और खलीहान को जा जब तक वह मर्द खा पी न चुके,तब तक तू अपने आप उस पर ज़ाहिर न करना |
\v 4 जब वह लेट जाए, तो उसके लेटने की जगह को देख लेना; तब तू अन्दर जा कर और उसके पाँव खोलकर लेट जाना और जो ~कुछ तुझे करना मुनासिब है वह तुझ को बताएगा।"
\v 5 उसने अपनी सास से कहा, "जो कुछ तू मुझ से कहती है, वह सब मैं करूँगी।"
\s5
\v 6 फिर वह खलीहान को गई और जो कुछ उसकी सास ने हुक्म दिया था वह सब किया |
\v 7 और जब बो'अज़ खा पी चुका, उसका दिल खुश हुआ; तो वह ग़ल्ले के ढेर की एक तरफ़ जाकर लेट गया। तब वह चुपके-चुपके आई और उसके पाँव खोलकर लेट गई।
\s5
\v 8 और आधी रात को ऐसा हुआ कि वह मर्द डर गया,और उसने करवट ली और देखा कि एक ''औरत उसके पाँव के पास पड़ी है।
\v 9 तब उसने पूछा, "तू कौन है?" उस ने कहा , "तेरी लौंडी रूत हूँ; इसलिए तू अपनी लौंडी पर अपना दामन फैला दे, क्यूँकि तू नज़दीक का क़रीबी रिश्तेदार ~है।"
\s5
\v 10 उसने कहा, "तू ख़ुदावन्द की तरफ़ से मुबारक हो, ऐ मेरी बेटी क्यूँकि तूने शुरू' की तरह आख़िर में ज़्यादा मेहरबानी कर दिखाई कि तूने जवानों का चाहे अमीर हों या ग़रीब पीछा न किया |
\v 11 अब ऐ मेरी बेटी, मत डर! मैं सब कुछ जो तू कहती है तुझ से करूँगा क्यूँकि मेरी क़ौम का तमाम शहर जानता है कि तू पाक दामन 'औरत है |
\s5
\v 12 और यह सच है कि मैं नज़दीक का क़रीबी रिश्तेदार हूँ ,लेकिन एक और भी है जो क़रीब के रिश्तों ~में मुझ से ज़्यादा नज़दीक है।
\v 13 ~इस रात तू ठहरी रह, सुबह को अगर वह क़रीब के रिश्ते का हक़ अदा करना चाहे,तो ख़ैर वह क़रीब के रिश्ते का हक़ अदा करे; और अगर वह तेरे साथ क़रीबी रिश्ते का हक़ अदा करना न चाहे, तो ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम है मैं तेरे क़रीबी रिश्ते का हक़ अदा करूँगा। सुबह तक तो तू लेटी रह।”
\s5
\v 14 इसलिए वह सुबह तक उसके पाँव के पास लेटी रही, और पहले इससे कि कोई एक दूसरे को पहचान सके उठ खड़ी हुई; क्यूँकि उसने कह दिया था कि ये ज़ाहिर होने न पाए कि खलीहान में ये 'औरत आई थी।
\v 15 फिर उसने कहा,उस चादर को जो तेरे ऊपर है ला, और उसे थामे रह। ”जब उसने उसे थामा तो उसने जौ के छह पैमाने नाप कर उस पर लाद दिए| फिर वह शहर को चला गया।
\s5
\v 16 फिर वह अपनी सास के पास आई तो उसने कहा ,"ऐ मेरी बेटी, तू कौन है?" तब उसने सब कुछ जो उस मर्द ने उससे किया था उसे बताया,
\v 17 और कहने लगी कि मुझको उसने यह छ: पैमाने जौ के दिए, क्यूँकि उसने कहा, "तू अपनी सास के पास ख़ाली हाथ न जा।”
\v 18 तब उसने कहा, "ऐ मेरी बेटी, जब तक इस बात के अंजाम का तुझे पता न लगे,तू चुप चाप बैठी रह इसलिए कि उस शख़्स को चैन न मिलेगा जब तक वह इस काम को आज ही तमाम न कर ले|"
\s5
\c 4
\p
\v 1 तब बो'अज़ फाटक के पास जाकर वहाँ बैठ गया और देखो जिस नज़दीक के क़रीबी रिश्ते का ज़िक्र बो'अज़ ने किया था वह आ निकला। उसने उससे कहा अरे भाई इधर आ! ज़रा यहाँ बैठ जा। तब वह उधर आकर बैठ गया।
\v 2 ~फिर उसने शहर के बुज़ुर्गों में से दस आदमियों को बुला कर कहा, "यहाँ बैठ जाओ।" तब वह बैठ गए।
\s5
\v 3 तब उसने उस नज़दीक के क़रीबी रिश्तेदार से कहा, न'ओमी जो मोआब के मुल्क से लौट आई है ज़मीन के उस टुकड़े को जो हमारे भाई इलीमलिक का माल था बेचती है।
\v 4 इसलिए मैंने सोचा कि तुझ पर इस बात को ज़ाहिर करके कहूँगा कि तू इन लोगों के सामने जो बैठे हैं और मेरी क़ौम के बुज़ुर्गों के सामने उसे मोल ले। अगर तू उसे छुड़ाता है तो छुड़ा और अगर नहीं छुड़ाता तो मुझे बता दे ताकि मुझ को मा'लूम हो जाए क्यूँकि तेरे अलावा और कोई नहीं जो उसे छुड़ाए और मैं तेरे बा'द हूँ। उसने कहा, "मैं छुड़ाऊँगा |"
\s5
\v 5 तब बो'अज़ ने कहा, " जिस दिन तू वह ज़मीन न'ओमी के हाथ से मोल ले तो तुझे उसको मोआबी रूत के हाथ से भी जो मरहूम की बीवी है मोल लेना होगा ताकि उस मरहूम ~का नाम उसकी मीरास पर क़ायम करे।
\v 6 तब उसके नज़दीक के क़रीबी रिश्तेदार ने कहा, " मै अपने लिए ~उसे छुड़ा नहीं सकता ~ऐसा न हो कि मैं अपनी मीरास ख़राब कर दूँ। उसके छुड़ाने का जो मेरा हक़ है उसे तू ले ले क्यूँकि मैं उसे छुड़ा नहीं सकता।"
\s5
\v 7 और अगले ज़माने में इस्राईल में मु'आमिला पक्का करने के लिए छुड़ाने और बदलने के बारे में यह मा'मूल था कि आदमी अपनी जूती उतार कर अपने पड़ोसी को दे देता था। इस्राईल में तस्दीक़ करने का यही तरीक़ा था
\v 8 तब उस नज़दीक के क़रीबी रिश्तेदार ने बो'अज़ से कहा, " तू आप ही उसे मोल ले ले। फिर उसने अपनी जूती उतार डाली।
\s5
\v 9 और बो'अज़ ने बुज़ुर्गों और सब लोगों से कहा, " तुम आज के दिन गवाह हो कि मैंने इलीमलिक और किलयोन और महलोन का सब कुछ न'ओमी के हाथ से मोल ले लिया है।
\v 10 सिर्फ़ इसके मैंने महलोन की बीवी मोआबी रूत को भी अपनी बीवी बनाने के लिए ख़रीद लिया है ताकि उस मरहूम के नाम को उसकी मीरास में क़ायम करूं और उस मरहूम का नाम उसके भाइयों और उसके मकान के दरवाज़े से मिट न जाए तुम आज के दिन गवाह हो।”
\s5
\v 11 तब सब लोगों ने जो फाटक पर थे और उन बुज़ुर्गों ने कहा कि हम गवाह हैं। ख़ुदावन्द उस 'औरत को जो तेरे घर में आई है राख़िल और लियाह की तरह करे जिन दोनों ने इस्राईल का घर आबाद किया और तू इफ़्राता ~में भलाई का काम करे, और बैतलहम में तेरा नाम हो
\v 12 और तेरा घर उस नसल से जो ख़ुदावन्द तुझे इस 'औरत से दे फ़ारस के घर की तरह हो जो यहूदाह से तमर के हुआ |
\s5
\v 13 इसलिए बो'अज़ ने रूत को लिया और वह उसकी बीवी बनी और उसने उससे सोहबत की और ख़ुदावन्द के फ़ज़ल से वह हामिला हुई और उसके बेटा हुआ।
\v 14 और 'औरतों ने न'ओमी से कहा, " ख़ुदावन्द मुबारक हो जिसने आज के दिन तुझ को नज़दीक के क़रीबी रिश्ते ~के बग़ैर नहीं छोड़ा और उसका नाम इस्राईल में मशहूर हुआ |
\v 15 और वह तेरे लिए तेरी जान का बहाल करनेवाला और तेरे बुढ़ापे का पालने वाला होगा क्यूँकि तेरी बहू जो तुझ से मुहब्बत रखती है और तेरे लिए सात बेटों से भी बढ़ कर है वह उसकी माँ है।
\s5
\v 16 और न'ओमी ने उस लड़के को लेकर उसे अपनी छाती से लगाया और उसकी दाया बनी |
\v 17 और उसकी पड़ोसनों ने उस बच्चे को एक नाम दिया और कहने लगीं न'ओमी के लिए बेटा पैदा हुआ इसलिए उन्होंने उसका नाम 'ओबेद रखा। वह यस्सी का बाप था जो दाऊद का बाप है।
\s5
\v 18 ~और फ़ारस का नसबनामा ये है फ़ारस से हसरोन पैदा हुआ
\v 19 और हसरोन से राम पैदा हुआ और राम से 'अम्मीनदाब पैदा हुआ
\v 20 और 'अम्मीनदाब से नहसोन पैदा हुआ और नहसोन से सलमोन पैदा हुआ,
\v 21 ~और सलमोन से बो'अज़ पैदा हुआ और बो'अज़ से 'ओबेद पैदा हुआ
\v 22 और ओबेद से यस्सी पैदा हुआ और यस्सी से दाऊद पैदा हुआ |

1307
09-1SA.usfm Normal file
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\id 1SA
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\h १-समूएल
\toc1 १-समूएल
\toc2 १-समूएल
\toc3 1sa
\mt1 १-समूएल
\s5
\c 1
\p
\v 1 इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में रामातीम सोफ़ीम का एक शख़्स था जिसका नाम इल्क़ाना था | वह इफ़्राईमी था और यरोहाम बिन इलीहू बिन तूहू बिन सूफ़ का बेटा था |
\v 2 उसके दो बीवियाँ थीं ,एक का नाम हन्ना था और दूसरी का फ़निन्ना :और फ़निन्ना के औलाद हुई लेकिन हन्ना बे औलाद थी|
\s5
\v 3 यह शख़्स हर साल अपने शहर से सैला में रब्ब-उल-अफ़्वाज़ के हुज़ूर सज्दा करने क़ुर्बानी पेश करने को जाता था और एली के दोनों बेटे हुफ़्नी और फ़ीन्हास जो ख़ुदावन्द के काहिन थे वहीं रहते थे
\v 4 और जिस दिन इल्क़ना क़ुर्बानी अदा करता वह अपनी बीवी फ़निन्ना को और उस के सब बेटे बेटियों को हिस्से देता था
\s5
\v 5 लेकिन हन्ना को दूना हिस्सा दिया करता था इसलिए कि वह हन्ना को चाहता था लेकिन ख़ुदावन्द ने उसका रहम बंद कर रख्खा था
\v 6 और उसकी सौत उसे कुढ़ाने के लिए बे तरह छेड़ती थी क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उसका रहम बंद कर रख्खा था
\s5
\v 7 और चूँकि वह हर साल ऐसा ही करता था जब वह ख़ुदावन्द के घर जाती इसलिए फ़निन्ना उसे छेड़ती थी चुनाँचे वह रोती खाना न खाती थी
\v 8 इसलिए उसके ख़ाविंद इल्क़ना ने उससे कहा, ”ऐ हन्ना तू क्यूँ रोती है और क्यूँ नहीं खाती और तेरा दिल क्यूँ ग़मगीन है ?क्या मैं तेरे लिए दस बेटों से बढ़ कर नहीं ?”
\s5
\v 9 और जब वह सैला में खा पी चुके तो हन्ना उठी; उस वक़्त ‘एली कहिन ख़ुदावन्द की हैकल की चौखट के पास कुर्सी पर बैठा हुआ था
\v 10 और वह निहायत दुखी थी, तब वह ख़ुदावन्द से दु'आ करने और ज़ार ज़ार रोने लगी
\s5
\v 11 और उसने मिन्नत मानी और कहा, "ऐ रब्ब-उल-अफ़वाज़ अगर तू अपनी लौंडी की मुसीबत पर नज़र करे और मुझे याद फ़रमाए और अपनी लौंडी को फ़रामोश न करे और अपनी लौंडी को फ़र्ज़न्द-ए-नरीना बख़्शे तो मैं उसे ज़िन्दगी भर के लिए ख़ुदावन्द को सुपुर्द कर दूँगी और उस्तरा उसके सर पर कभी न फिरेगा|"
\s5
\v 12 और जब वह ख़ुदावन्द के सामने दु’आ कर रही थी, तो एली उसके मुँह को ग़ौर से देख रहा था|
\v 13 और हन्ना तो दिल ही दिल में कह रही थी सिर्फ़ उसके होंट हिलते थे लेकिन उसकी आवाज़ नहीं सुनाई देती थी तब ~एली को गुमान हुआ कि वह नशे में है |
\v 14 इसलिए एली ने उस से कहा, "कि तू कब तक नशे में रहेगी ?अपना नशा उतार |
\s5
\v 15 हन्ना ने जवाब दिया "नहीं ऐ मेरे मालिक,मैं तो ग़मगीन औरत हूँ-मैंने न तो मय न कोई नशा पिया लेकिन ख़ुदावन्द के आगे अपना दिल उँडेला है |
\v 16 तू अपनी लौंडी को ख़बीस 'औरत न समझ, मैं तो अपनी फ़िक्रों और दुखों के हुजूम के ज़रिए' अब तक बोलती रही|”
\s5
\v 17 तब एली ने जवाब दिया, "तू सलामत जा और इस्राईल का ख़ुदा तेरी मुराद जो तूने उससे माँगी है पूरी करे |”
\v 18 उसने कहा, ”तेरी ख़ादिमा पर तेरे करम की नज़र हो|” तब वह 'औरत चली गई और खाना खाया और फिर उसका चेहरा उदास न रहा |
\s5
\v 19 और सुबह को वह सवेरे उठे और ख़ुदावन्द के आगे सज्दा किया और रामा को अपने घर लोट गये| और इल्क़ाना ने अपनी बीवी हन्ना से मुबाशरत की और ख़ुदावन्द ने उसे याद किया |
\v 20 और ऐसा हुआ कि वक़्त पर हन्ना हामिला हुई और उस के बेटा हुआ और उस ने उसका नाम समुएल ~रख्खा क्यूँकि वह कहने लगी, “मैंने उसे ख़ुदावन्द से माँग कर पाया है |”
\s5
\v 21 और वह शख़्स इल्क़ाना अपने सारे घराने के साथ ख़ुदावन्द के हुज़ूर सालाना क़ुर्बानी पेश करने और अपनी मिन्नत पूरी करने को गया |
\v 22 लेकिन हन्ना न गई क्यूँकि उसने अपने ख़ाविंद से कहा, “जब तक लड़के का दूध छुड़ाया न जाए मैं यहीं रहूँगी और तब उसे लेकर जाऊँगी ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने हाज़िर हो और फिर हमेशा वहीं रहे
\v 23 और उस के खा़विन्द इल्क़ाना ने उससे कहा, जो तुझे अच्छा लगे ~वह कर |जब तक तू उसका दूध न छुड़ाये ठहरी रह सिर्फ़ इतना हो कि ~ख़ुदावन्द अपनी बात को बऱकरार रख्खे इसलिए वह 'औरत ठहरी रही और अपने बेटे को दूध छुड़ाने के वक़्त तक पिलाती रही |
\s5
\v 24 और जब उस ने उसका दूध छुड़ाया तो उसे अपने साथ लिया और तीन बछड़े और एक एफ़ा आटा मय की एक मश्क अपने साथ ले गई ,और उस लड़के को सैला में ख़ुदावन्द के घर लाई ,और वह लड़का बहुत ही छोटा था
\v 25 और उन्होंने एक बछड़े को ज़बह किया और लड़के को एली के पास लाए :
\s5
\v 26 और वह कहने लगी, ऐ मेरे मालिक तेरी जान की क़सम ऐ मेरे मालिक मैं वही 'औरत हूँ जिसने तेरे पास यहीं खड़ी होकर ख़ुदावन्द से दु'आ की थी|
\v 27 मैंने इस लड़के के लिए दु'आ की थी और ख़ुदावन्द ने मेरी मुराद जो मैंने उससे माँगी पूरी की |
\v 28 इसी लिए मैंने भी इसे ख़ुदावन्द को दे दिया; यह अपनी ज़िन्दगी भर के लिए ख़ुदावन्द को दे दिया गया है "तब उसने वहाँ ख़ुदावन्द के आगे सिज्दा किया|
\s5
\c 2
\p
\v 1 और हन्ना ने दु'आ की और कहा, "मेरा दिल ख़ुदावन्द मैं ख़ुश है: मेरा सींग ख़ुदावन्द के तुफ़ैल से ऊँचा हुआ | मेरा मुँह मेरे दुश्मनों पर खुल गया है क्यूँकि मैं तेरी नजात से ख़ुश हूँ |
\s5
\v 2 "ख़ुदावन्द की तरह कोई पाक नहीं क्यूँकि तेरे सिवा और कोई है ही नहीं और न कोई चटटान है जो हमारे ख़ुदा की तरह हो
\s5
\v 3 इस क़दर ग़ुरूर से और बातें न करो और बड़ा बोल तुम्हारे मुहँ से न निकले; क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा-ए-'अलीम है, और 'आमाल का तोलने वाला है |
\v 4 ताक़तवरों की कमाने टूट गईं और जो लड़खड़ाते थे वह ताक़त से कमर बस्ता हुए |
\s5
\v 5 वह जो आसूदा थे रोटी की ख़ातिर मज़दूर बनें और जो भूके थे ऐसे न रहे, बल्कि जो बाँझ थी उस के साथ हुए, और जिसके पास बहुत बच्चे हैं वह घुलती जाती है |
\s5
\v 6 ख़ुदावन्द मारता है और जिलाता है ;वही क़ब्र मैं उतारता और उससे निकालता है |
\v 7 ख़ुदावन्द ग़रीब कर देता और दौलतमंद बनाता है, वही पस्त करता और बुलंद भी करता है |
\s5
\v 8 वह ग़रीब को ख़ाक पर से उठाता, और कंगाल को घूरे में से निकाल खड़ा करता है ताकि इनको शहज़ादों के साथ बिठाए ,और जलाल के तख़्त का वारिस बनाए ;क्यूँकि ज़मीन के सुतून ख़ुदावन्द के हैं उसने दुनिया को उन ही पर क़ायम किया है |
\s5
\v 9 "वह अपने मुक़द्दसों के पाँव को संभाले रहेगा, लेकिन शरीर अँधेरे मैं ख़ामोश किए जायेंगे क्यूँकि ताक़त ही से कोई फ़तह नहीं पाएगा |
\s5
\v 10 जो ख़ुदावन्द से झगड़ते हैं वह टुकड़े टुकड़े कर दिए जाएँगे ;वह उन के ख़िलाफ़ आस्मान में गरजेगा ख़ुदावन्द ज़मीन के किनारों का इंसाफ करेगा: वह अपने बादशाह को ताक़त बख़्शेगा ,और अपने मम्सूह के सींग को बुलंद करेगा "
\s5
\v 11 तब इल्क़ाना रामा को अपने घर चला गया; और एली काहिन के सामने वह लड़का ख़ुदावन्द की ख़िदमत करने लगा |
\s5
\v 12 और एली के बेटे बहुत शरीर थे; उन्होंने ख़ुदावन्द को न पहचाना |
\v 13 और कहिनों का दस्तूर लोगों के साथ यह था, कि जब कोई शख़्स क़ुर्बानी करता था तो काहिन का नोंकर गोश्त उबालने के वक़त एक सह्शाखा काँटा अपने हाथ मैं लिए हुए आता था;
\v 14 और उसको कढ़ाह या दिग्चे या हांडे या हांड़ी में डालता और जितना गोश्त उस काँटे में लग जाता उसे काहिन अपने आप लेता था |यूँ ही वह सैला में सब इस्राईलियों से किया करते थे जो वहाँ आते थे
\s5
\v 15 बल्कि चर्बी जलाने से पहले काहिन का नोकर आ मौजूद होता, और उस शख़्स से जो क़ुर्बानी पेश करता यह कहने लगता था, "काहिन के लिए कबाब के वास्ते गोश्त दे, क्यूँकि वह तुझ से उबला हुआ गोश्त नहीं बल्कि कच्चा लेगा|"
\v 16 और अगर वह शख़्स यह कहता कि अभी वह चर्बी को ज़रूर जलायेंगे तब जितना तेरा जी चाहे ले लेना "तो वह उसे जवाब देता नहीं तू मुझे अभी दे नही तो मैं छीन कर ले जाऊँगा|"
\v 17 इसलिए उन जवानों का गुनाह ख़ुदावन्द के सामने बहुत बड़ा था क्यूँकि लोग ख़ुदावन्द की क़ुर्बानी से नफ़रत करने लगे थे|
\s5
\v 18 लेकिन समुएल जो लड़का था, कतान का अफ़ूद पहने हुए ख़ुदावन्द के सामने ख़िदमत करता था |
\v 19 और उस की माँ उस के लिए एक छोटा सा जुब्बा बनाकर साल ब साल लाती जब वह अपने शौहर के साथ सालाना क़ुर्बानी पेश करने ~आती थी |
\s5
\v 20 और एली ने इल्क़ाना और उस की बीवी को दु'आ दी और कहा, "ख़ुदावन्द तुझको इस 'औरत से उस क़र्ज़ के बदले में जो ख़ुदावन्द को दिया गया नसल दे|" फिर वह अपने घर गये |
\v 21 और ख़ुदावन्द ने हन्ना पर नज़र की और वह हामिला हुई, और उसके तीन बेटे और दो बेटियाँ हुईं, और वह लड़का समुएल ख़ुदावन्द के सामने बढ़ता गया|
\s5
\v 22 एली बहुत बुड्ढा हो गया था, और उसने सब कुछ सुना कि उसके बेटे सारे इस्राईल से क्या किया करते हैं और उन 'औरतों से जो ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ के दरवाज़े पर ख़िदमत करती थी हम आग़ोशी करते हैं|
\v 23 और उस ने उन से कहा, तुम ऐसा क्यूँ करते हो? क्यूँकि मैं तुम्हारी बदज़ातियाँ पूरी क़ौम से सुनता हूँ?
\v 24 नहीं मेरे बेटों ये अच्छी बात नहीं जो मैं सुनता हूँ; तुम ख़ुदावन्द के लोगों से नाफ़रमानी कराते हो |
\s5
\v 25 अगर एक आदमी दूसरे का गुनाह करे तो ख़ुदा उसका इंसाफ करेगा लेकिन अगर आदमी ख़ुदावन्द का गुनाह करे तो उस की शफ़ा'अत क़ौन करेगा?" बावजूद इसके उन्होंने अपने बाप का कहना न माना; क्यूँकि ख़ुदावन्द उनको मार डालना चाहता था|
\v 26 और वह लड़का समुएल बढ़ता गया और ख़ुदावन्द और इन्सान दोनों का मक़बूल था|
\s5
\v 27 तब एक नबी एली के पास आया और उससे कहने लगा, "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है क्या मैं तेरे आबाई ख़ानदान पर जब वह मिस्र में फिर'औन के ख़ानदान की ग़ुलामी में था ज़ाहिर नहीं हुआ?
\v 28 और क्या मैंने उसे बनी इस्राईल के सब क़बीलों में से चुन न लिया, ताकि वह मेरा काहिन हो और मेरे मज़बह के पास जाकर ख़ुशबू जलाये और मेरे सामने अफ़ूद पहने और क्या मैंने सब क़ुर्बानियाँ जो बनी इस्राईल आग से अदा करते है तेरे बाप को न दी?
\s5
\v 29 तब तुम क्यूँ मेरे उस क़ुर्बानी और हदिये को जिनका हुक्म मैंने अपने घर में दिया लात मारते हो ?और क्यूँ तू अपने बेटों की मुझ से ज़्यादा 'इज़्ज़त करता है, ताकि तुम मेरी क़ौम इस्राईल के अच्छे से अच्छे हदियों को खाकर मोटे बनो|
\v 30 इसलिए ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा फ़रमाता है कि मैंने तो कहा, था कि तेरा घराना और तेरे बाप का घराना हमेशा मेरे सामने चलेगा लेकिन अब ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि यह बात अब मुझ से दूर हो, क्यूँकि वह जो मेरी 'इज़्ज़त करते है मैं उन की 'इज़्ज़त करूँगा लेकिन वह जो मेरी हिक़ारत करते है बेक़द्र होंगे
\s5
\v 31 देख वह दिन आते हैं कि मैं तेरा बाज़ू और तेरे बाप के घराने का बाज़ू काट डालूँगा, कि तेरे घर में कोई बुड्ढा होने न पाएगा |
\v 32 और तू मेरे घर की मुसीबत देखेगा बावजूद उस सारी दौलत के जो ख़ुदा इस्राईल को देगा और तेरे घर में कभी कोई बुड्ढा होने न पाएगा
\v 33 और तेरे जिस आदमी को मैं अपने मज़बह से काट नहीं डालूँगा वह तेरी आँखों को घुलाने और तेरे दिल को दुख देने के लिए रहेगा और तेरे घर की सब बढ़ती अपनी भरी जवानी में मर मिटेगी|
\s5
\v 34 और जो कुछ तेरे दोनों बेटों हुफ़्नी फ़ीन्हास पर नाज़िल होगा वही तेरे लिए निशान ठहरेगा; वह दोनों एक ही दिन मर जाएँगे |
\v 35 और मैं अपने लिए एक वफ़ादार काहिन पैदा करूँगा जो सब कुछ मेरी मर्ज़ी और मंशा के मुताबिक़ करेगा, और मैं उस के लिए एक पायदार घर बनाऊँगा और वह हमेशा मेरे मम्सूह के आगे आगे चलेगा
\s5
\v 36 और ऐसा होगा की हर एक शख्स़ जो तेरे घर में बच रहेगा, एक टुकड़े चाँदी और रोटी के एक टुकड़े के लिए उस के सामने आकर सिज्दा करेगा और कहेगा, कि कहानत का कोई काम मुझे दीजिए ताकि मैं रोटी का निवाला खा सकूँ|"
\s5
\c 3
\p
\v 1 और वह लड़का समुएल एली के सामने ख़ुदावन्द की ख़िदमत करता था, और उन दिनों ख़ुदावन्द का कलाम गिराँक़द्र था कोई ख़्वाब ज़ाहिर न होता था |
\v 2 और उस वक़्त ऐसा हुआ कि जब एली अपनी जगह लेटा था उस की ऑंखें धुन्द्लाने लगी थी,और वह देख नहीं सकता था |
\v 3 और ख़ुदा का चराग़ अब तक बुझा नहीं था और समुएल ख़ुदावन्द की हैकल में जहाँ ख़ुदा का संदूक़ था लेटा हुआ था
\v 4 तो ख़ुदावन्द ने समुएल को पुकारा; उसने कहा, "मैं हाज़िर हूँ|"
\s5
\v 5 और वह दौड़ कर एली के पास गया और कहा, "तूने मुझे पुकारा इसलिए में हाज़िर हूँ "उसने कहा, "मैंने नहीं पुकारा फिर लेट जा इसलिए वह जाकर लेट गया |
\v 6 और ख़ुदावन्द ने फिर पुकारा "समुएल|" समुएल उठ कर एली के पास गया और कहा, "तूने मुझे पुकारा इसलिए मैं हाज़िर हूँ |"उसने कहा, "ऐ,मेरे बेटे मैंने नहीं पुकारा; फिर लेट जा|"
\s5
\v 7 और समुएल ने अभी ख़ुदावन्द को नही पहचाना था और न ख़ुदावन्द का कलाम उस पर ज़ाहिर हुआ था |
\v 8 फिर ख़ुदावन्द ने तीसरी दफ़ा समुएल को पुकारा और वह उठ कर एली के पास गया और कहा, "तूने मुझे पुकारा इसलिए में हाज़िर हूँ "तब एली जान गया कि ख़ुदावन्द ने उस लड़के को पुकारा |
\s5
\v 9 इसलिए एली ने समुएल से कहा, "जा लेट रह और अगर वह तुझे पुकारे तो तू कहना ऐ ख़ुदावन्द फ़रमा; क्यूँकि तेरा बन्दा सुनता है|" तब समुएल जाकर अपनी जगह पर लेट गया
\s5
\v 10 तब ख़ुदावन्द आ मौजूद हुआ, और पहले की तरह पुकारा "समुएल, समुएल" समुएल ने कहा, "फ़रमा, क्यूँकि तेरा बन्दा सुनता है|"
\v 11 ख़ुदावन्द ने समुएल से कहा, "देख मैं इस्राईल में ऐसा काम करने पर हूँ जिस से हर सुनने वाले के कान भन्ना जाएँगे|
\s5
\v 12 उस दिन मैं एली पर सब कुछ जो मैंने उस के घराने के हक़ में कहा है शुरू' से आख़िर तक पूरा करूँगा
\v 13 क्यूँकि मैं उसे बता चुका हूँ कि मैं उस बदकारी की वजह से जिसे वह जानता है हमेशा के लिए उसके घर का ~फ़ैसला करूँगा क्यूँकि उसके बेटों ने अपने ऊपर ला'नत बुलाई और उसने उनको न रोका |
\v 14 इसी लिए एली के घराने के बारे में मैंने क़सम खाई कि एली के घराने की बदकारी न तो कभी किसी ज़बीहा से साफ़ होगी न हदिये से|"
\s5
\v 15 और समुएल सुबह तक लेटा रहा; तब उसने ख़ुदावन्द के घर के दरवाज़े खोले और समुएल एली पर ख़्वाब ज़ाहिर करने से डरा |
\v 16 तब एली ने समुएल को बुलाकर कहा, "ऐ मेरे बेटे समुएल" उसने कहा, "मैं ~हाज़िर हूँ|"
\s5
\v 17 तब उसने पूछा वह "क्या बात है जो ख़ुदावन्द ने तुझ से कही हैं? मैं तेरी मिन्नत करता हूँ उसे मुझ से पोशीदा न रख ,अगर तू कुछ भी उन बातों में से जो उसने तुझ से कहीं हैं छिपाए तो ख़ुदा तुझ से ऐसा ही करे बल्कि उससे भी ज़्यादा|"
\v 18 तब समुएल ने उसको पूरा हाल बताया और उससे कुछ न छिपाया, उसने कहा, "वह ख़ुदावन्द है जो वह भला जाने वह करे|"
\s5
\v 19 और समुएल बड़ा होता गया और ख़ुदावन्द उसके साथ था और उसने उसकी बातों में से किसी को मिट्टी में मिलने न दिया |
\v 20 और सब बनी इस्राईल ने दान से बैरसबा' तक जान लिया कि समुएल ख़ुदावन्द का नबी मुक़र्रर हुआ |
\v 21 और ख़ुदावन्द सैला में फिर ज़ाहिर हुआ, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने अपने आप को सैला में समुएल पर अपने कलाम के ज़रिए' से ज़ाहिर किया
\s5
\c 4
\p
\v 1 और समुएल की बात सब इस्राईलीयों के पास पहुँची, और इसराईली फ़िलिस्तियों से लड़ने को निकले और इब्न-ए-'अज़र के आस पास डेरे लगाए और फ़िलिस्तियों ने अफ़ीक़ में ख़ेमे खड़े किए |
\v 2 और फ़िलिस्तियों ने इस्राईल के मुक़ाबिले के लिए सफ़ आराई की और जब वह इकठ्ठा लड़ने लगे तो इस्राईलियों ने फिलिस्तियों से शिकस्त खाई; और उन्होंने उनके लश्कर में से जो मैदान में था क़रीबन चार हज़ार आदमी क़त्ल किए |
\s5
\v 3 और जब लोग लश्कर गाह में फिर आए तो इस्राईल के बुज़ुर्गों ने कहा, "कि आज ख़ुदावन्द ने हमको फ़िलिस्तियों के सामने क्यूँ शिकस्त दी आओ हम ख़ुदावन्द के 'अहद का संदूक़ सैला से अपने पास ले आयें ताकि वह हमारे बीच आकर हमको हमारे दुशमनों से बचाए|"
\v 4 तब उन्होंने सैला में लोग भेजे, और वह करुबियों के ऊपर बैठने वाले रब्ब-उल-अफ़्वाज ~के 'अहद के संदूक़ को वहाँ से ले आए और एली के दोनों बेटे हुफ़्नी और फ़ीन्हास ख़ुदा के 'अहद का संदूक़ के साथ वहाँ हाज़िर थे |
\s5
\v 5 और जब ख़ुदावन्द के 'अहद का संदूक़ लश्कर गाह में आ पहुँचा तो सब इस्राईली ऐसे ज़ोर से ललकारने लगे, कि ज़मीन गूँज उठी |
\v 6 और फ़िलिस्तियों ने जो ललकारने की आवाज़ सुनी तो वह कहने लगे, कि इन 'इब्रानियों की लश्कर गाह में इस बड़ी ललकार के शोर के क्या मा'ना हैं? "फिर उनको मा'लूम हुआ कि ख़ुदावन्द का संदूक़ लश्कर गाह में आया है |
\s5
\v 7 तब फ़िलिस्ती डर गए क्यूँकि वह कहने लगे, "कि ख़ुदा लश्कर गाह में आया है और उन्होंने कहा, "कि हम पर बर्बादी है इस लिए कि इस से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ ~|
\v 8 हम पर बर्बादी है ,ऐसे ज़बरदस्त मा'बूदों के हाथ से हमको क़ौन बचाएगा? यह वहीं मा'बूद हैं जिन्होंने मिस्रियों को वीराने में हर क़िस्म की बला से मारा |
\v 9 ऐ फ़िलिस्तियों तुम मज़बूत हो और मर्दानगी करो ताकि तुम 'इब्रानियों के ग़ुलाम न बनो जैसे वह तुम्हारे बने बल्कि मर्दानगी करो और लड़ो|"
\s5
\v 10 और फ़िलिस्ती लड़े और बनी इस्राईल ने शिकस्त खाई और हर एक अपने डेरे को भागा, और वहाँ बहुत बड़ी खूँरेज़ी हुई क्यूँकि तीस हज़ार इस्राईली पियादे वहाँ मारे गए|
\v 11 और ख़ुदावन्द का संदूक़ छिन गया, और ‘एली के दोनों बेटे हुफ़्नी और फ़ीन्हास मारे गये |
\s5
\v 12 और बिनयमीन का एक आदमी लश्कर में से दौड़ कर अपने कपड़े फाड़े और सर पर ख़ाक डाले हुए उसी दिन सैला में आ पहुँचा|
\v 13 और जब वह पहुँचा तो एली रास्ते ~के किनारे कुर्सी पर बैठा इंतिज़ार कर रहा था क्यूँकि उसका दिल ख़ुदा के संदूक़ के लिए काँप रहा था और जब उस शख़्स ने शहर में आकर हाल ~सुनाया, तो सारा शहर चिल्ला उठा |
\s5
\v 14 और एली ने चिल्लाने की आवाज़ सुनकर कहा, "इस हुल्लड़ की आवाज़ के क्या मा'ने हैं" और उस आदमी ने जल्दी की और आकर एली को हाल सुनाया|
\v 15 और एली अठानवे साल का था और उसकी आँखें रह गई थीं और उसे कुछ नहीं सूझता था |
\s5
\v 16 तब उस शख़्स ने एली से कहा,"मैं फ़ौज में से आता हूँ और मैं आज ही फ़ौज के बीच से भागा हूँ," उसने कहा, "ऐ मेरे बेटे क्या ~हाल रहा?"
\v 17 उस ख़बर ~लाने वाले ने जवाब दिया इस्राईली फ़िलिस्तियों के आगे से भागे और लोगों में भी बड़ी खूँरेज़ी हुई और तेरे दोनों बेटे हुफ़्नी और फ़ीन्हास भी मर गये और ख़ुदा का संदूक़ छिन गया|"
\s5
\v 18 जब उसने ख़ुदा के संदूक़ का ज़िक्र किया तो वह कुर्सी पर से पछाड़ खाकर फाटक के किनारे गिरा,और उसकी गर्दन टूट गई और वह मर गया क्यूँकि वह बुड्ढा और भारी आदमी था, वह चालीस बरस बनी इस्राईल का क़ाज़ी रहा|
\s5
\v 19 और उसकी बहू, फ़ीन्हास की बीवी हमल से थी, और उसके जनने का वक़्त नज़दीक था और जब उसने यह ख़बरें सुनीं कि ख़ुदा का संदूक़ छिन गया और उसका ससुर और शौहर मर गये तो वह झुक कर जनी क्यूँकि दर्द ऐ ज़िह उसके लग गया था |
\v 20 और उसने उसके मरते वक़्त उन 'औरतों ने जो उस के पास खड़ी थीं उसे कहा, "मत डर क्यूँकि तेरे बेटा हुआ है|" लेकिन उसने न जवाब दिया और न कुछ तवज्जुह की|
\s5
\v 21 और उसने उस लड़के का नाम यकबोद रख्खा और कहने लगी,"कि हशमत इस्राईल से जाती रही|" इसलिए कि ख़ुदा का संदूक़ छिन गया था, और उसका ससुर और शौहर जाते रहे थे |
\v 22 इसलिए उसने कहा, "हशमत इस्राईल से जाती रही, क्यूँकि ख़ुदा का संदूक़ छिन गया है|"
\s5
\c 5
\p
\v 1 और फ़िलिस्तियों ने ख़ुदा का संदूक़ छीन लिया और वह उसे इब्न-ए- 'अज़र से अशदुद को ले गए;
\v 2 और फ़िलिस्ती ख़ुदा के संदूक़ को लेकर उसे दजोन के घर में लाए और दजोन के पास उसे रख्खा;
\v 3 और अशदूदी जब सुबह को सवेरे उठे, तो देखा कि दजोन ख़ुदावन्द के संदूक़ के आगे औंधे मुहँ ज़मीन पर गिरा पड़ा है |तब उन्होंने दजोन को लेकर उसी की जगह उसे फिर खड़ा कर दिया |
\s5
\v 4 फिर वह जो दूसरे दिन की सुबह को सवेरे उठे, तो देखा कि दजोन ख़ुदावन्द के संदूक़ के आगे औंधे मुहँ ज़मीन पर गिरा पड़ा है, और दजोन का सर और उसकी हथेलियाँ दहलीज़ पर कटी पड़ी थीं, सिर्फ़ दजोन का धड़ ही धड़ रह गया था;
\v 5 तब दजोन के पुजारी और जितने दजोन के घर में आते हैं, आज तक अश्दूद में दजोन की दहलीज़ पर पाँव नहीं रखते |
\s5
\v 6 तब ख़ुदावन्द का हाथ अशदूदियों पर भारी हुआ,और वह उनको हलाक करने लगा, और अशदूद और उसकी 'इलाक़े के लोगों को गिल्टियों से मारा |
\v 7 और अशदूदियों ने जब यह हाल देखा तो कहने लगे, "कि इस्राईल के ख़ुदा का संदूक़ हमारे साथ न रहे, क्यूँकि उसका हाथ बुरी तरह हम पर और हमारे मा'बूद दजोन पर है|"
\s5
\v 8 तब उन्होंने फ़िलिस्तियों के सब सरदारों को बुलवा कर अपने यहाँ जमा' किया और कहने लगे, "हम इस्राईल के ख़ुदा के संदूक़ को क्या करें?" उन्होंने जवाब दिया, "कि इस्राईल के ख़ुदा का संदूक़ जात को पहुँचाया जाए|" इसलिए वह इस्राईल के ख़ुदा के संदूक़ को वहाँ ले गए|
\v 9 और जब वह उसे ले गए तो ऐसा हुआ कि ख़ुदावन्द का हाथ उस शहर के ख़िलाफ़ ऐसा उठा कि उस में बड़ी भारी हल चल मच गई; और उसने उस शहर के लोगों को छोटे से बड़े तक मारा और उनके गिल्टियाँ निकलने लगीं |
\s5
\v 10 जब उन्होंने ख़ुदा का संदूक़ 'अक़्रून को भेज दिया |और जैसे ही ख़ुदा का संदूक़ 'अक़्रूून को पहुँचा,अक़्रूनी चिल्लाने लगे, "वह इस्राईल के ख़ुदा का संदूक़ हम में इसलिए लाए हैं, कि हमको और हमारे लोगों को मरवा डालें|"
\s5
\v 11 तब उन्होंने फ़िलिस्तियों के सरदारों को बुलवा कर जमा'~किया और कहने लगे, "कि इस्राईल के ख़ुदा के संदूक़ को रवाना कर दो कि वह फिर अपनी जगह पर जाए, और हमको और हमारे लोगों को मार डालने न पाए|" क्यूँकि वहाँ सारे शहर में मौत की हलचल मच गई थी, और ख़ुदा का हाथ वहाँ बहुत भारी हुआ |
\v 12 और जो लोग मरे नहीं वह गिल्टियों के मारे पड़े रहे, और शहर की फ़रियाद आसमान तक पहुँची |
\s5
\c 6
\p
\v 1 इसलिए ख़ुदावन्द का संदूक़ सात महीने तक फ़िलिस्तियों के मुल्क में रहा |
\v 2 तब फ़िलिस्तियों ने काहिनों और नजूमियों को बुलवाया और कहा, "कि हम ख़ुदावन्द के इस संदूक़ को क्या करें? हमको बताओ कि हम क्या साथ कर के उसे उसकी जगह भेजें ?"
\s5
\v 3 उन्होंने कहा, "कि अगर तुम इस्राईल के ख़ुदा के संदूक़ को वापस भेजते हो, तो उसे ख़ाली न भेजना बल्कि जुर्म की क़ुर्बानी उसके लिए ज़रूर ही साथ करना तब तुम शिफ़ा पाओगे और तुमको मा'लूम हो जाएगा कि वह तुम से किस लिए अलग नहीं होता|"
\v 4 उन्होंने पूछा कि "वह जुर्म की क़ुर्बानी जो हम उसको दें क्या हो" उन्होंने जवाब दिया, "कि फ़िलिस्ती सरदारों के शुमार के मुताबिक़ सोने की पाँच गिल्टियाँ और सोने ही की पाँच चुहियाँ क्यूँकि तुम सब और तुम्हारे सरदार दोनों एक ही दुख में मुब्तिला हुए|
\s5
\v 5 इसलिए तुम अपनी गिल्टियों की मूरतें और उन चूहियों की मूरतें, जो मुल्क को ख़राब करतीं हैं बनाओ और इस्राईल के ख़ुदा की बड़ाई करो; शायद यूँ वह तुम पर से और तुम्हारे मा'बूदों पर से और तुम्हारे मुल्क पर से अपना हाथ हल्का कर ले |
\v 6 तुम क्यूँ अपने दिल को सख़्त करते हो, जेसे मिस्रियों ने और फिर'औन ने अपने दिल को सख़्त किया ?जब उसने उनके बीच 'अजीब काम किए, तो क्या उन्होंने लोगों को जाने न दिया और क्या वह चले न गये?
\s5
\v 7 अब तुम एक नई गाड़ी बनाओ, और दो दूध वाली गायों को जिनके जुआ न लगा हो लो, और उन गायों को गाड़ी में जोतो और उनके बच्चों को घर लौटा लाओ|
\v 8 और ख़ुदावन्द का संदूक़ लेकर उस गाड़ी पर रख्खो, और सोने की चीज़ों को जिनको तुम जुर्म की क़ुर्बानी के तौर पर साथ करोगे एक सन्दूक्चे में करके उसके पहलू में रख दो और उसे रवाना न कर दो कि चला जाए |
\v 9 और देखते रहना, अगर वह अपनी ही सरहद के रास्ते बैत शम्स को जाए, तो उसी ने हम पर यह बलाए 'अज़ीम भेजीं और अगर नहीं तो हम जान लेंगे कि उसका हाथ हम पर नहीं चला, बल्कि यह हादसा जो हम पर हुआ इत्तिफ़ाक़ी था|"
\s5
\v 10 तब उन लोगों ने ऐसा ही किया, और दो दूध वाली गायें लेकर उनको गाड़ी में जोता और उनके बच्चों को घर में बन्द कर दिया |
\v 11 और ख़ुदवन्द के सन्दूक़ और सोने की चुहियों और अपनी गिल्टियों की मूरतों के संदूक्चे को गाड़ी पर रख दिया|
\v 12 उन गायों ने बैत शम्स का सीधा रास्ता लिया, वह सड़क ही सड़क डकारती गईं, और दहने या बाएँ हाथ न मुड़ीं, और फ़िलिस्ती सरदार उनके पीछे-पीछे बैत शम्स की सरहद तक गये |
\s5
\v 13 और बैत शम्स के लोग वादी में गेहूं की फ़सल काट रहे थे|उनहों ने जो आँख उठाई तो संदूक़ को देखा, और देखते ही ख़ुश हो गए |
\s5
\v 14 और गाड़ी बैतशम्सी यशु 'अ के खेत में आकर वहाँ खड़ी हो गई, जहाँ एक बड़ा पत्थर था| तब उनहोंने गाड़ी की लकड़ियों को चीरा और गायों को सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश किया |
\v 15 और लावियों ने ख़ुदावन्द के संदूक़ को और उस संदूक्चे को जो उसके साथ था, ~जिसमें सोने की चीजें थीं, नीचे उतारा और उनको उस बड़े पत्थर पर रख्खा| और बैत शम्स के लोगों ने उसी दिन ख़ुदावन्द के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश कीं और ज़बीहे पेश किए|
\s5
\v 16 जब उन पाँचों फ़िलिस्ती सरदारों ने यह देख लिया तो वह उसी दिन 'अक़्रून को लौट गए|
\s5
\v 17 सोने की गिल्टियाँ जो फ़िलिस्तियों ने जुर्म की क़ुर्बानी के तौर ~पर ख़ुदावन्द को पेश कीं वह यह हैं, एक अशदूद की तरफ़ से ,एक ग़ज्ज़ा की तरफ़ से, एक अस्क़लोन की तरफ़ से ,एक जात की तरफ़ से, और एक 'अक़्रून की तरफ़ से |
\v 18 और वह सोने की चुहियाँ फ़िलिस्तियों के उन पाँचो सरदारों के शहरों के शुमार के मुताबिक़ थीं, जो फ़सीलदार शहरों और दिहात के मालिक उस बड़े पत्थर तक थे जिस पर उन्होंने ख़ुदावन्द के संदूक़ को रख्खा था जो आज के दिन तक बैत शम्सी यशु'अ के खेत में मौजूद है |
\s5
\v 19 और उसने बैत शम्स के लोगों को मारा इस लिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द के संदूक़ के अंदर झाँका था तब उसने उनके पचास हज़ार और सत्तर आदमी मार डाले, और वहाँ के लोगों ने मातम किया, इसलिए कि ख़ुदावन्द ने उन लोगों को बड़ी वबा से मारा |
\v 20 तब बैत शम्स के लोग कहने लगे, "कि किसकी मजाल है कि इस ख़ुदावन्द ख़ुदा-ए-क़ुद्दूस के आगे खड़ा हो? और वह हमारे पास से किस की तरफ़ जाए ?"
\s5
\v 21 और उन्होंने क़रयत या'रीम के बाशिंदों के पास क़ासिद भेजे और कहला भेजा, कि फ़िलिस्ती ख़ुदावन्द के संदूक़ को वापस ले आए हैं इसलिये तुम आओ और उसे अपने यहाँ ले जाओ|
\s5
\c 7
\p
\v 1 तब क़रयत या'रीम के लोग आए और ख़ुदावन्द के संदूक़ को लेकर अबीनदाब के घर में जो टीले पर है, लाए, और उसके बेटे एली 'अज़र को पाक किया कि वह ख़ुदावन्द के संदूक़ की निगरानी करे |
\v 2 और जिस दिन से संदूक़ क़रयत या'रीम में रहा, तब से एक मुद्दत हो गई, या'नी बीस बरस गुज़रे और इस्राईल का सारा घराना ख़ुदावन्द के पीछे नौहा करता रहा |
\s5
\v 3 और समुएल ने इस्राईल के सारे घराने से कहा कि "अगर तुम अपने सारे दिल से ख़ुदावन्द की तरफ़ फिरते हो तो ग़ैर मा'बूदों और ~'इस्तारात को अपने बीच से दूर करो और ख़ुदावन्द के लिए अपने दिलों को मुसत'इद करके सिर्फ़ उसकी 'इबादत करो, और वह फ़िलिस्तियों के हाथ से तुमको रिहाई देगा|"
\v 4 तब बनी इस्राईल ने बा'लीम और 'इस्तारात को दूर किया, और सिर्फ़ ख़ुदावन्द की 'इबादत करने लगे |
\s5
\v 5 फिर समुएल ने कहा कि "सब इस्राईल को मिस्फ़ाह में जमा' करो,और मैं तुम्हारे लिए ख़ुदावन्द से दु'आ करूंगा|"
\v 6 तब ~वह सब मिस्फ़ाह में इकठ्ठा हुए और पानी भर कर ख़ुदावन्द के आगे उँडेला, और उस दिन रोज़ा रख्खा और वहाँ कहने लगे, कि "हमने ख़ुदावन्द का गुनाह किया है |"और समुएल मिस्फ़ाह में बनी इस्राईल की 'अदालत करता था |
\s5
\v 7 और जब फ़िलिस्तियों ने सुना कि बनी इस्राईल मिस्फ़ाह में इकट्ठे हुए हैं, तो उनके सरदारों ने बनी इस्राईल पर हमला किया, और जब बनी- इस्राईल ने यह सुना तो वह फ़िलिस्तियों से डरे|
\v 8 और बनी-इस्राईल ने समुएल से कहा, "ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के सामने हमारे लिए फ़रियाद करना न छोड़, ताकि वह हमको फ़िलिस्तियों के हाथ से बचाए|"
\s5
\v 9 और समुएल ने एक दूध पीता बर्रा लिया और उसे पूरी सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश किया, और समुएल बनी -इस्राईल के लिए ख़ुदावन्द के सामने फ़रियाद करता रहा और ख़ुदावन्द ने उस की सुनी |
\s5
\v 10 और जिस वक़्त समुएल उस सोख़्तनी क़ुर्बानी को अदा कर रहा था उस वक़्त फ़िलिस्ती इस्रालियों से जंग करने को नज़दीक आए, लेकिन ख़ुदावन्द फ़िलिस्तियों के उपर उसी दिन बड़ी कड़क के साथ गरजा और उनको घबरा दिया; और उन्होंने इस्रालियों के आगे शिकस्त खाई |
\v 11 और इस्राईल के लोगों ने मिस्फ़ाह से निकल कर फ़िलिस्तियों को दौड़ाया, और बैतकर्र के नीचे तक उन्हें मारते चले गए |
\s5
\v 12 तब समुएल ने एक पत्थर ले कर उसे मिस्फ़ाह और शेन के बीच में खड़ा किया, और उसका नाम इब्न-ए-'अज़र यह कहकर रख्खा, कि यहाँ तक ख़ुदावन्द ने हमारी मदद की|"
\s5
\v 13 इस लिए फ़िलिस्ती मग़लूब हुए और इस्राईल की सरहद में फिर न आए, और समुएल की ज़िन्दगी भर ख़ुदावन्द का हाथ फ़िलिस्तियों के ख़िलाफ़ रहा |
\v 14 और~'अक़्रून से जात तक के शहर जिनको फ़िलिस्तियों ने इस्राईलियों से ले लिया था, वह फिर इस्रालियों के क़ब्ज़े में आए; और इस्राईलियों ने उनकी 'इलाक़ा भी फ़िलिस्तियों के हाथ से छुड़ा लिया और इस्राईलियों और अमोरियों में सुलह थी |
\s5
\v 15 और समुएल अपनी ज़िन्दगी भर इस्राईलियों की 'अदालत करता रहा|
\v 16 और वह हर साल बैतएल और जिल्जाल और मिस्फ़ाह में दौरा करता, और उन सब मक़ामों में बनी-इस्राईल की 'अदालत करता था |
\v 17 फिर वह रामा को लौट आता क्यूँकि ~वहाँ उसका घर था, और वहाँ इस्राईल की 'अदालत करता था, और वहीं उसने ख़ुदावन्द के लिए एक मज़बह बनाया |
\s5
\c 8
\p
\v 1 जब समुएल बुड्ढा हो गया, तो उसने अपने बेटों को इस्राईलियों के क़ाज़ी ठहराया |
\v 2 उसके पहलौठे का नाम यूएल, और उसके दूसरे बेटे का नाम अबियाह था| वह दोनों बैरसबा' के क़ाज़ी थे |
\v 3 लेकिन उसके बेटे उसकी रास्ते पर न चले, बल्कि वह नफ़ा' के लालच से रिश्वत लेते और इन्साफ़ का ख़ून कर देते थे |
\s5
\v 4 तब सब इस्राईली बुज़ुर्ग जमा' होकर रामा में समुएल के पास आए |
\v 5 और उससे कहने लगे "देख, तू ज़ई'फ़ है, और तेरे बेटे तेरी राह पर नही चलते; अब तो किसी को हमारा बादशाह मुक़र्रर करदे,जो और क़ौमों ~की तरह हमारी 'अदालत करे|"
\s5
\v 6 लेकिन जब उन्होंने कहा, "कि हमको कोई बादशाह दे जो हमारी 'अदालत करे, तो यह बात समुएल को बुरी लगी,"और समुएल ने ख़ुदावन्द से दु'आ की |
\v 7 और ख़ुदावन्द ने समुएल से कहा, कि "जो कुछ यह लोग तुझ से कहते हैं, तू उसको मान क्यूँकि उन्होंने तेरी नहीं बल्कि मेरी हिक़ारत की है कि मैं उनका बादशाह न रहूँ |
\s5
\v 8 जैसे काम वह उस दिन से जब से में उनको मिस्र से निकाल लाया आज तक करते आए हैं,कि मुझे छोड़ करके और मा'बूदों की 'इबादत करते रहे हैं, वैसा ही वह तुझ से करते हैं|
\v 9 इसलिए तू उसकी बात मान, तो भी तू संजीदगी से उनको ख़ूब जता दे और उनको बता भी दे, कि जो बादशाह उनपर हुकूमत करेगा उसका तरीक़ा कैसा होगा|"
\s5
\v 10 और समुएल ने उन लोगों को जो उससे बादशाह के तालिब थे, ख़ुदावन्द की सब बातें कह सुनाईं |
\v 11 और उसने कहा, कि जो बादशाह तुम पर हुकूमत करेगा उसका तरीक़ा यह होगा, कि वह तुम्हारे बेटों को लेकर अपने रथों के लिए और अपने रिसाले में नौकर रख्खेगा और वह उसके रथों के आगे आगे दौड़ेंगे |
\v 12 और वह उनको हज़ार-हज़ार के सरदार और पचास-पचास के जमा'दार बनाएगा और कुछ से हल जुतवायेगा और फ़सल कटवाएगा और अपने लिए जंग के हथियार और अपने रथों के साज़ बनवाएगा |
\s5
\v 13 और तुम्हारी बेटियों को लेकर गंधिन और बावरचिन और नानबज़ बनाएगा |
\v 14 और तुम्हारे खेतों और ताकिस्तानों और ज़ैतून के बाग़ों को जो अच्छे से अच्छे होंगे लेकर अपने ख़िदमत गारों को 'अता करेगा ,|
\v 15 और तुम्हारे खेतों और ताकिस्तानों का दसवाँ हिस्सा लेकर अपने ख़ोजों और ख़ादिमों को देगा |
\s5
\v 16 और तुम्हारे नौकर चाकरों और लौंडियों और तुम्हारे ख़ूबसूरत जवानों और तुम्हारे गदहों को लेकर अपने काम पर लगाएगा |
\v 17 और वह तुम्हारी भेड़ बकरियों का भी दसवाँ हिस्सा लेगा इस लिए तुम उसके ग़ुलाम बन जाओगे |
\v 18 और तुम उस दिन उस बादशाह की वजह से जिसे तुमने अपने लिए चुना होगा, फ़रियाद करोगे पर उस दिन ख़ुदावन्द तुम को जवाब न देगा |
\s5
\v 19 तो भी लोगों ने समुएल की बात न सुनी और कहने लगे, "नहीं हम तो बादशाह चाहते हैं जो हमारे ऊपर हो|
\v 20 ताकि हम भी और सब क़ौमों की तरह हों और हमारा बादशाह हमारी 'अदालत करे, और हमारे आगे आगे चले और हमारी तरफ़ से लड़ाई करे|"
\s5
\v 21 और समुएल ने लोगों की सब बातें सुनीं और उनको ख़ुदावन्द के कानों तक पहुँचाया|
\v 22 और ख़ुदावन्द ने समुएल को फ़रमाया तू उनकी बात मान और उनके लिए एक बादशाह मुक़र्रर कर तब समुएल ने इस्राईल के लोगों से कहा कि तुम सब अपने अपने शहर को चले जाओ |
\s5
\c 9
\p
\v 1 और बिनयमीन के क़बीले का एक शख़्स था जिसका नाम क़ीस, बिन अबिएल, बिन सरोर, बिन बकोरत, बिन अफ़ीख़ था वह एक बिनयमीनी का बेटा और ज़बरदस्त सूरमा था|
\v 2 उसका एक जवान और ख़ूबसूरत बेटा था जिसका नाम साऊल था, और बनी -इस्राईल के बीच उससे ख़ूबसूरत कोई शख़्स न था| वह ऐसा लम्बा था कि लोग उसके कंधे तक आते थे |
\s5
\v 3 और साऊल के बाप क़ीस के गधे खो गए, इसलिए क़ीस ने अपने बेटे साऊल से कहा, "कि नौकरों में से एक को अपने साथ ले और उठ कर गधों को ढूँड ला|"
\v 4 इसलिए वह इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क और सलीसा की सर ज़मीन से होकर गुज़रा, लेकिन वह उनको न मिले |तब वह सा'लीम की सर ज़मीन में गए और वह वहाँ भी न थे, फिर वह बिन यमीनियों के मुल्क में आए लेकिन उनको वहाँ ~भी न पाया|
\s5
\v 5 जब वह सूफ़ के मुल्क में पहुँचे तो साऊल अपने नौकर से जो उसके साथ था कहने लगा, "आ हम लौट जाएँ, ऐसा न हो कि मेरा बाप गधों की फ़िक्र छोड़ कर हमारी फ़िक्र करने लगे|"
\v 6 उसने उससे कहा, "देख इस शहर में एक नबी है जिसकी बड़ी 'इज़्ज़त होती है, जो कुछ वह कहता है, वह सब ज़रूर ही पूरा होता है| इसलिए हम उधर चलें, शायद वह हमको बता दे कि हम किधर जाएँ|"
\s5
\v 7 साऊल ने अपने नौकर से कहा, "लेकिन देख अगर हम वहाँ चलें तो उस शख़्स के लिए क्या लेते जाएँ? रोटियाँ तो हमारे तोशेदान की हो चुकीं और कोई चीज़ हमारे पास है नहीं, जिसे हम उस नबी को पेश करें हमारे पास है किया?"
\v 8 नौकर ने साऊल को जवाब दिया, "देख, पाव मिस्क़ाल चाँदी मेरे पास है, उसी को मैं उस नबी को दूँगा ताकि वह हमको रास्ता बता दे |"
\s5
\v 9 अगले ज़माने में इस्राईलियों में जब कोई शख़्स ख़ुदा से मशवरा करने जाता तो यह कहता था, "कि आओ, हम ग़ैबबीन के पास चलें, "क्यूँकि जिसको अब नबी कहतें हैं, उसको पहले ग़ैबबीन कहते थे |
\v 10 तब साऊल ने अपने नौकर से कहा, "तू ने क्या ख़ूब कहा, आ हम चलें इस लिए वह उस शहर को जहाँ वह नबी था चले|
\v 11 और उस शहर की तरफ़ टीले पर चढ़ते हुए, उनको कई जवान लड़कियाँ ~मिलीं जो पानी भरने जाती थीं; उन्होंने उन से पूछा, "क्या ग़ैबबीन यहाँ है?"
\s5
\v 12 उन्होंने उनको जवाब दिया, "हाँ है, देखो वह तुम्हारे सामने ही है, इसलिए जल्दी करो क्यूँकि वह आज ही शहर में आया है, इसलिए कि आज के दिन ऊँचे मक़ाम में लोगों की तरफ़ से क़ुर्बानी होती है|
\v 13 जैसे ही तुम शहर में दाख़िल होगे, वह तुमको पहले उससे कि वह ऊँचे मक़ाम में खाना खाने जाए मिलेगा, क्यूँकि जब तक वह न पहुँचे लोग खाना नहीं खायेंगे, इसलिए कि वह क़ुर्बानी को बरकत देता है, उसके बा'द मेहमान खाते हैं ,इसलिए अब तुम चढ़ जाओ, क्यूँकि इस वक़्त वह तुमको मिल जाएगा|"
\s5
\v 14 इसलिए वह शहर को चले और शहर में दाख़िल होते ही देखा कि समुएल उनके सामने आ रहा है कि वह ऊँचे मक़ाम को जाए |
\s5
\v 15 और ख़ुदावन्द ने साऊल के आने से एक दिन पहले समुएल पर ज़ाहिर कर दिया था कि
\v 16 कल इसी वक़्त मैं एक शख़्स को बिन यमीन के मुल्क से तेरे पास भेजूँगा ,तू उसे मसह करना ताकि वह मेरी क़ौम इस्राईल का सरदार हो, और वह मेरे लोगों को फ़िलिस्तियों के हाथ से बचाएगा, क्यूँकि मैंने अपने लोगों पर नज़र की है, इसलिए कि उनकी फ़रियाद मेरे पास पहुँची है|
\s5
\v 17 इसलिए जब समुएल साऊल से मिला, तो ख़ुदावन्द ने उससे कहा, "देख यही वह शख़्स है जिसका ज़िक्र मैंने तुझ से किया था ,यही मेरे लोगों पर हुकूमत करेगा|"
\v 18 फिर साऊल ने फाटक पर समुएल के नज़दीक जाकर उससे कहा, "कि मुझको ज़रा बता दे कि ग़ैबबीन का घर कहा, है?"
\v 19 समुएल ने साऊल को जवाब दिया कि वह ग़ैबबीन मैं ही हूँ; मेरे आगे आगे ऊँचे मक़ाम को जा, क्यूँकि तुम आज के दिन मेरे साथ खाना खाओगे और सुबह को मैं तुझे रुख़्सत करूँगा, और जो कुछ तेरे दिल में है सब तुझे बता दूँगा|
\s5
\v 20 और तेरे गधे जिनको खोए हुए तीन दिन हुए, उनका ख़्याल मत कर, क्यूँकि वह मिल गए और इस्राईलियों में जो कुछ दिलकश हैं वह किसके लिए हैं, क्या वह तेरे और तेरे बाप के सारे घराने के लिए नहीं?
\v 21 साऊल ने जवाब दिया "क्या मैं बिन यमीनी, या'नी इस्राईल के सब से छोटे क़बीले का नहीं? और क्या मेरा घराना बिन यमीन के क़बीले के सब घरानों में सब से छोटा नहीं? इस लिए तू मुझ से ऐसी बातें क्यूँ कहता है ?"
\s5
\v 22 और समुएल साऊलऔर उसके नौकर को मेहमानख़ाने में लाया, और उनको मेहमानों के बीच जो कोई तीस आदमी थे सद्र जगह में बिठाया|
\s5
\v 23 और समुएल ने बावर्ची से कहा "कि वह टुकड़ा जो मैंने तुझे दिया ,जिसके बारे में तुझ से कहा, था कि उसे अपने पास रख छोड़ना,लेआ|"
\v 24 बावर्ची ने वह रान म'अ उसके जो उसपर था, उठा कर साऊल के सामने रख दी ,तब समुएल ने कहा, "यह देख जो रख लिया गया था, उसे अपने सामने रख कर खा ले क्यूँकि वह इसी मु'अय्यन वक़्त के लिए, तेरे लिए रख्खी रही क्यूँकि मैंने कहा कि मैंने इन लोगों की दा'वत की है" इस लिए साऊल ने उस दिन समुएल के साथ खाना खाया|
\s5
\v 25 और जब वह ऊँचे मक़ाम से उतर कर शहर में आए तो उसने साऊल से उस के घर की छत पर बातें कीं
\v 26 और वह सवेरे उठे, और ऐसा हुआ, कि जब दिन चढ़ने लगा, तो समुएल ने साऊल को फिर घर की छत पर बुलाकर उससे कहा, "उठ कि मैं तुझे रुख़्सत करूँ।" इस लिए साऊल उठा, और वह और समुएल दोनों बाहर निकल गए|
\s5
\v 27 और शहर के सिरे के उतार पर चलते चलते समुएल ने साऊल से कहा कि अपने नौकर को हुक्म कर कि वह हम से आगे बढ़े, इसलिए वह आगे बढ़,गया, लेकिन तू अभी ठहरा ~रह ताकि मैं तुझे ख़ुदा की बात सुनाऊँ |
\s5
\c 10
\p
\v 1 फिर समुएल ने तेल की कुप्पी ली और उसके सर पर उँडेली और उसे चूमा और कहा,"कि क्या यही बात नहीं कि ख़ुदावन्द ने तुझे मसह किया ,ताकि तू उसकी मीरास का रहनुमा हो?
\v 2 जब तू आज मेरे पास से चला जाएगा, तो ज़िल्ज़ह में जो बिनयमीन की सरहद में है, राख़िल की क़ब्र के पास दो शख़्स तुझे मिलेंगे, और वह तुझ से कहेंगे ,कि वह गधे जिनको तू ढूंडने गया था मिल गए;और देख अब तेरा बाप गधों की तरफ़ से बेफ़िक्र होकर तुम्हारे लिए फ़िक्र मंद है, और कहता है,कि मैं अपने बेटे के लिए क्या करूँ?
\s5
\v 3 फिर वहाँ से आगे बढ़ कर जब तू तबूर के बलूत के पास पहुँचेगा, तो वहाँ तीन शख़्स जो बैतएल को ख़ुदा के पास जाते होंगे तुझे मिलेंगे ,एक तो बकरी के तीन बच्चे, दूसरा रोटी के तीन टुकड़े, और तीसरा मय का एक मश्कीज़ा लिए जाता होगा|
\v 4 और वह तुझे सलाम करेंगे, और रोटी के दो टुकड़े तुझे देंगे, तू उनको उनके हाथ से ले लेना |
\s5
\v 5 और बा'द उसके तू ख़ुदा के पहाड़ को पहुँचेगा, जहाँ फ़िलिस्तियों की चौकी है,और जब तू वहाँ शहर में दाख़िल होगा तो नबियों की एक जमा'अत जो ऊँचे मक़ाम से उतरती होगी,तुझे मिलेगी, और उनके आगे सितार और दफ़ और बाँसुली और बरबत होंगे और वह नबुव्वत करते होंगे|
\v 6 तब ख़ुदावन्द की रूह तुझ पर ज़ोर से नाज़िल होगी, और तू उनके साथ नबुव्वत करने लगेगा, और बदल कर और ही आदमी हो जाएगा|
\s5
\v 7 इसलिए जब यह निशान तेरे आगे आएँ, तो फिर जैसा मौक़ा हो वैसा ही काम करना क्यूँकि ~ख़ुदा तेरे साथ है |
\v 8 और तु मुझ से पहले जिल्जाल को जाना; और देख में तेरे पास आऊँगा ताकि सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ करूँ और सलामती के ज़बीहों को ज़बह करूँ| तू~सात दिन तक वहीं रहना जब तक मैं तेरे पास आकर तुझे बता न दूँ कि तुझको क्या करना होगा|"
\s5
\v 9 और ऐसा हुआ कि जैसे ही उसने समुएल से रुख़्सत होकर पीठ फेरी, ख़ुदा ने उसे दूसरी तरह का दिल दिया और वह सब निशान उसी दिन वजूद में आए|
\v 10 और जब वह उधर उस पहाड़ के पास आए तो नबियों की एक जमा'अत उसको मिली, और ख़ुदा की रूह उस पर ज़ोर से नाज़िल हुई, और वह भी उनके बीच नबुव्वत करने लगा|
\s5
\v 11 और ऐसा हुआ कि जब उसके अगले जान पहचानों ने यह देखा कि वह नबियों के बीच नबुव्वत कर रहा है तो वह एक दूसरे से कहने लगे,"क़ीस के बेटे को क्या हो गया? क्या साऊल भी नबियों में शामिल है?"
\v 12 और वहाँ के एक आदमी ने जवाब दिया, कि भला उनका बाप कौन है ?" तब ही से यह मिसाल चली,क्या साऊल भी नबियों में है?"
\v 13 और जब वह नबुव्वत कर चुका तो ऊँचे मक़ाम में आया|
\s5
\v 14 वहाँ साऊल के चचा ने उससे और उसके नौकर से कहा,"तुम कहाँ गए थे? "उसने कहा,गधे ढूंडने और जब हमने देखा कि वह नही मिलते,तो हम समुएल के पास आए|"
\v 15 फिर साऊल के चचा ने कहा, "कि मुझको ज़रा बता तो सही कि समुएल ने तुम से क्या क्या कहा|"
\v 16 साऊल ने अपने चचा से कहा, "उसने हमको साफ़-साफ़ बता दिया, कि गधे मिल गए," लेकिन हुकूमत का मज़मून जिसका ज़िक्र समुएल ने किया था न बताया|
\s5
\v 17 और समुएल ने लोगों को मिसफ़ाह में ख़ुदावन्द के सामने बुलवाया |
\v 18 और उसने बनीइस्राईल से कहा "कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि मैं इस्राईल को मिस्र से निकाल लाया और मैंने तुमको मिस्रयों के हाथ से और सब सल्तनतों के हाथ से जो तुम पर ज़ुल्म करती थीं रिहाई दी|
\v 19 लेकिन तुमने आज अपने ख़ुदा को जो तुम को तुम्हारी सब मुसीबतों और तकलीफ़ों से रिहाई बख़्शी है, हक़ीर जाना और उससे कहा, हमारे लिए एक बादशाह मुक़र्रर कर, इसलिए अब तुम क़बीला- क़बीला होकर और हज़ार हज़ार करके सब के सब ख़ुदावन्द के सामने हाज़िर हो|"
\s5
\v 20 जब समुएल इस्राईल के सब क़बीलों को नज़दीक लाया,और पर्ची बिनयमीन के क़बीले के नाम पर निकली |
\v 21 तब वह बिनयमीन के क़बीला को ख़ानदान-ख़ानदान करके नज़दीक लाया, तो मतरियों के ख़ानदान का नाम निकला और फिर क़ीस के बेटे साऊल का नाम निकला लेकिन जब उन्होंने उसे ढूँढा, तो वह न मिला |
\s5
\v 22 तब उन्होंने ख़ुदावन्द से फिर पूछा, क्या यहाँ किसी और आदमी को भी आना है, ख़ुदावन्द ने जवाब दिया, देखो वह असबाब के बीच ~छिप गया है|
\v 23 तब वह दौड़े और उसको वहाँ से लाए,और जब वह लोगों के बीच खड़ा हुआ, तो ऐसा लम्बा था कि लोग उसके कंधे तक आते थे|
\s5
\v 24 और समुएल ने उन लोगों से कहा तुम उसे देखते हो जिसे ख़ुदावन्द ने चुन लिया, कि उसकी तरह सब लोगो में एक भी नहीं, तब सब लोग ललकार कर बोल उठे, "कि बादशाह जीता रहे|"
\s5
\v 25 फिर समुएल ने लोगों को हुकूमत का तरीक़ा बताया और उसे किताब में लिख कर ख़ुदावन्द के सामने रख दिया, उसके बा'द समुएल ने सब लोगों को रुख़्सत कर दिया, कि अपने अपने घर जाएँ |
\s5
\v 26 और साऊल भी जिबा' को अपने घर गया, और लोगों का एक जत्था,भी जिनके दिल को ख़ुदा ने उभारा था उसके साथ, हो लिया |
\v 27 लेकिन शरीरों में से कुछ कहने लगे,"कि यह शख़्स हमको किस तरह बचाएगा?" इसलिए उन्होंने उसकी तहक़ीर की और उसके लिए नज़राने न लाए तब वह अनसुनी कर गया |
\s5
\c 11
\p
\v 1 तब अम्मूनी नाहस चढ़ाई कर के यबीस जिल'आद के मुक़ाबिल ख़ेमाज़न हुआ; और यबीस के सब लोगों ने नाहस से कहा,"हम से 'अहद-ओ-पैमान कर ले, और हम तेरी ख़िदमत करेंगे|"
\v 2 तब अम्मूनी नाहस ने उनको जवाब दिया, इस शर्त पर मैं तुम से 'अहद करूँगा, कि तुम सब की दहनी आँख निकाल डाली जाए और मैं इसे सब इस्राईलियों के लिए ज़िल्लत का निशान ठहराऊँ|"
\s5
\v 3 तब यबीस के बुज़ुर्गों ने उस से कहा, "हमको सात दिन की मोहलत दे ताकि हम इस्राईल की सब सरहदों में क़ासिद भेजें, तब अगर हमारा हिमायती कोई न मिले तो हम तेरे पास निकल आएँगे|"
\s5
\v 4 और वह क़ासिद साऊल के जिबा' में आए और उन्होंने लोगों को यह बातें कह सुनाई और सब लोग चिल्ला चिल्ला कर रोने लगे |
\v 5 और साऊल खेत से बैलों के पीछे पीछे चला आता था, और साऊल ने पूछा ,"कि इन लोगों को क्या हुआ,कि रोते हैं ?"उन्होंने यबीस के लोगों की बातें उसे बताईं |
\s5
\v 6 जब साऊल ने यह बातें सुनीं तो ख़ुदा की रूह उसपर ज़ोर से नाज़िल हुई,और उसका ग़ुस्सा निहायत भड़का
\v 7 तब उसने एक जोड़ी बैल लेकर उनको टुकड़े-टुकड़े काटा और क़ासिदों के हाथ इस्राईल की सब सरहदों में भेज दिया, और यह कहा कि "जो कोई आकर साऊल और समुएल के पीछे न हो ले, उसके बैलों से ऐसा ही किया जाएगा, "और ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ लोगों पर छा गया, और वह एक तन हो कर निकल आए |
\v 8 और उसने उनको बज़क़ में गिना, इसलिए बनी इस्राईल तीन लाख और यहूदाह के आदमी तीस हज़ार थे |
\s5
\v 9 और उन्होंने उन क़ासिदों से जो आए थे कहा कि तुम यबीस जिल'आद के लोगों से यूँ कहना कि कल धूप तेज़ होने के वक़्त तक तुम रिहाई पाओगे इस लिए क़ासिदों ने जाकर यबीस के लोगों को ख़बर दी और वह ख़ुश हुए |
\v 10 तब अहल-ए-यबीस ~ने कहा, "कल हम तुम्हारे पास निकल आएँगे, और जो कुछ तुमको अच्छा लगे, हमारे साथ करना|"
\s5
\v 11 और दूसरी सुबह को साऊल ने लोगों के तीन ग़ोल किए; और वह रात के पिछले पहर लश्कर में घुस कर 'अम्मूनियों को क़त्ल करने लगे, यहाँ तक कि दिन बहुत चढ़ गया, और जो बच निकले वह ऐसे तितर बितर हो गए, कि दो आदमी भी कहीं एक साथ न रहे |
\s5
\v 12 और लोग समुएल से कहने लगे "किसने यह कहा, था कि क्या साऊल हम पर हुकूमत करेगा? उन आदमियों को लाओ, ताकि हम उनको क़त्ल करें|"
\v 13 साऊल ने कहा "आज के दिन हरगिज़ कोई मारा नहीं जाएगा, इसलिए कि ख़ुदावन्द ने इस्राईल को आज के दिन रिहाई दी है|"
\s5
\v 14 तब समुएल ने लोगों से कहा,"आओ जिल्जाल को चलें ताकि वहाँ हुकूमत को नए सिरे से क़ायम करें|"
\v 15 तब सब लोग जिल्जाल को गए,और वहीं उन्होंने ख़ुदावन्द के सामने साऊल को बादशाह बनाया, फिर उन्होंने वहाँ ख़ुदावन्द के आगे, सलामती के ज़बीहे ज़बह किए, और वहीं साऊल और सब इस्राईली मर्दों ने बड़ी ख़ुशी मनाई|
\s5
\c 12
\p
\v 1 तब समुएल ने सब इस्राईलियों से कहा,"देखो जो कुछ तुमने मुझ से कहा, मैंने तुम्हारी एक एक बात मानी और एक बादशाह तुम्हारे ऊपर ठहराया है |
\v 2 और अब देखो यह बादशाह तुम्हारे आगे आगे चलता है, मैं तो बुड्ढा हूँ और मेरा सिर सफ़ेद हो गया और देखो मेरे बेटे तुम्हारे साथ हैं, मैं लड़कपन से आज तक तुम्हारे सामने ही चलता रहा हूँ |
\s5
\v 3 मैं हाज़िर हूँ, इसलिए तुम ख़ुदावन्द और उसके मम्सूह के आगे मेरे मुँह पर बताओ, कि मैंने किसका बैल ले लिया या किसका गधा लिया? मैंने किसका हक़ मारा या किस पर ज़ुल्म किया, या किस के हाथ से मैंने रिश्वत ली, ताकि अँधा बनज़ाऊँ? बताओ और यह मैं तुमको वापस कर दूँगा|"
\s5
\v 4 उन्होंने जवाब दिया "तूने हमारा हक़ नहीं मारा और न हम पर ज़ुल्म किया, और न तूने किसी के हाथ से कुछ लिया|"
\v 5 तब उसने उनसे कहा,"कि ख़ुदावन्द तुम्हारा गवाह, और उसका मम्सूह आज के दिन गवाह है, कि मेरे पास तुम्हारा कुछ नहीं निकला|" उन्होंने कहा, "वह गवाह है|"
\s5
\v 6 फिर समुएल लोगों से कहने लगा, "वह ख़ुदावन्द ही है जिसने मूसा और हारून को मुक़र्रर किया, और तुम्हारे बाप दादा को मुल्क मिस्र से निकाल लाया |
\v 7 इस लिए अब ठहरे रहो ताकि मैं ख़ुदावन्द के सामने उन सब नेकियों के बारे में जो ख़ुदावन्द ने तुम से और तुम्हारे बाप दादा से कीं बातें करूँ|
\s5
\v 8 जब या'कूब मिस्र में गया, और तुम्हारे बाप दादा ने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की तो ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून को भेजा, जिन्होंने तुम्हारे बाप दादा को मिस्र से निकाल कर इस जगह बसाया |
\v 9 लेकिन वह ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को भूल गए, तब उसने उनको हसूर की फ़ौज के सिपह सालार सीसरा के हाथ और फ़िलिस्तियों के हाथ और शाह-ए-मोआब के हाथ बेच डाला, और वह उनसे लड़े |
\s5
\v 10 फिर उन्होंने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की और कहा कि हमने गुनाह किया, इसलिए कि हमने ख़ुदावन्द को छोड़ा, और बा'लीम और इस्तारात की 'इबादत की लेकिन अब तू हमको हमारे दुश्मनों के हाथ, से छुड़ा, तो हम तेरी 'इबादत करेंगे |
\v 11 इस लिए ख़ुदावन्द ने यरुब्बा'ल और बिदान और इफ़्ताह और समुएल को भेजा और तुम को तुम्हारे दुश्मनों के हाथ से जो तुम्हारी चारों तरफ़ थे, रिहाई दी और तुम चैन से रहने लगे |
\s5
\v 12 और जब तुमने देखा कि बनी अम्मून का बादशाह नाहस तुम पर चढ़ आया, तो तुमने मुझ से कहा कि हम पर कोई बादशाह हुकूमत करे हालाँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुम्हारा बादशाह था |
\v 13 इसलिए अब उस बादशाह को देखो जिसे तुमने चुन लिया, और जिसके लिए तुमने दरख़्वास्त की थी, देखो ख़ुदावन्द ने तुम पर बादशाह मुक़र्रर कर दिया है |
\s5
\v 14 अगर तुम ख़ुदावन्द से डरते और उसकी 'इबादत करते और उस की बात मानते रहो, और ख़ुदावन्द के हुक्म से सरकशी न करो और तुम और वह बादशाह भी जो तुम पर हुकूमत करता है ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के पैरौ बने रहो तो भला;
\v 15 लेकिन अगर तुम ख़ुदावन्द की बात न मानों बल्कि ख़ुदावन्द के हुक्म से सरकशी करो तो ख़ुदावन्द का हाथ तुम्हारे ख़िलाफ़ होगा, जैसे वह तुम्हारे बाप दादा के ख़िलाफ़ होता था |
\s5
\v 16 इसलिए अब तुम ठहरे रहो और इस बड़े काम को देखो जिसे ख़ुदावन्द तुम्हारी आँखों के सामने करेगा |
\v 17 क्या आज गेहूँ काटने का दिन नही, मैं ख़ुदावन्द से दरख़्वास्त करूँगा ,कि बादल गरजे और पानी बरसे, और तुम जान लोगे,और देख भी लोगे कि तुमने ख़ुदावन्द के सामने अपने लिए ,बादशाह माँगने से कितनी बड़ी शरारत की |
\v 18 चुनाँचे समुएल ने ख़ुदावन्द से दरख़्वास्त की और ख़ुदावन्द की तरफ़ से उसी दिन बादल गरजा और पानी बरसा; तब सब लोग ख़ुदावन्द और समुएल से निहायत डर गए|
\s5
\v 19 और सब लोगों ने समुएल से कहा, कि अपने ख़ादिमों के लिए ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से दु'आ कर कि हम मर न जाएँ क्यूँकि हमने अपने सब गुनाहों पर यह शरारत भी बढ़ा दी है कि अपने लिए एक बादशाह माँगा|
\v 20 समुएल ने लोगों से कहा, "खौफ़ न करो, यह सब शरारत तो तुमने की है तो भी ख़ुदावन्द की पैरवी से किनारा कशी न करो बल्कि अपने सारे दिल से ख़ुदावन्द की 'इबादत करो |
\v 21 तुम किनारा कशी न करना: वरना ~बातिल चीज़ों की पैरवी करने लगोगे जो न फ़ायदा पहुंचा सकती न रिहाई दे सकती हैं, इसलिए कि वह सब बातिल हैं |
\s5
\v 22 क्यूँकि ख़ुदावन्द अपने बड़े नाम के ज़रिए' अपने लोगों को नहीं छोड़ेगा, इस लिए कि ख़ुदावन्द को यही पसंद आया कि तुम को अपनी क़ौम बनाए |
\v 23 अब रहा मैं इसलिए ख़ुदा न करे कि तुम्हारे लिए दु'आ करने से बाज़ आकर ख़ुदावन्द का गुनहगार ठहरुँ, बल्कि मैं वही रास्ता जो अच्छा और सीधा है, तुमको बताऊँगा |
\s5
\v 24 सिर्फ़ इतना हो कि तुम ख़ुदावन्द से डरो, और अपने सारे दिल और सच्चाई से उसकी 'इबादत करो क्यूँकि सोचो कि उसने तुम्हारे लिए कैसे बड़े काम किए हैं |
\v 25 लेकिन अगर तुम अब भी शरारत ही करते जाओ, तो तुम और तुम्हारा बादशाह दोनों के दोनों मिटा दिए जाओगे|"
\s5
\c 13
\p
\v 1 साऊल तीस बरस की 'उम्र में हुकूमत करने लगा, और इस्राईल पर दो बरस हुकूमत कर चुका |
\v 2 तो साऊल ने तीन हज़ार इस्राईली जवान अपने लिए चुने, उनमें से दो हज़ार मिक्मास में और बैत'एल के पहाड़ पर साऊल के साथ और एक हज़ार बिनयमीन के जिबा' में यूनतन के साथ रहे और बाक़ी लोगों को उसने रुख़्सत किया, कि अपने अपने डेरे को जाएँ|
\s5
\v 3 और यूनतन ने फ़िलिस्तियों की चौकी के सिपाहियों को जो जिबा' में थे क़त्ल कर डाला और फ़िलिस्तियों ने यह सुना, और साऊल ने सारे मुल्क में नरसिंगा फुंकवा ~कर ~कहला भेजा कि 'इब्रानी लोग सुनें |
\v 4 और सारे इस्राईल ने यह कहते सुना, कि साऊल ने फ़िलिस्तियों की चौकी के सिपाही मार डाले और यह भी कि इस्राईल से फ़िलिस्तियों को नफ़रत हो गई है, तब लोग साऊल के पीछे चल कर जिल्जाल में जमा' हो गए|
\s5
\v 5 और फ़िलिस्ती इस्राईलियों से लड़ने को इकट्ठे हुए या'नी तीस हज़ार रथ और छ: हज़ार सवार और एक बड़ा गिरोह जैसे समन्दर के किनारे की रेत| इसलिए वह चढ़ आए और मिक्मास में बैतआवन के पूरब की तरफ़ ख़ेमाज़न हुए |
\s5
\v 6 जब बनी इस्राईल ने देखा, कि वह आफ़त में मुब्तिला हो गए, क्यूँकि लोग परेशान थे, तो वह ग़ारों और झाड़ियों और चट्टानों और गढ़यों और गढ़ों में जा छिपे|
\v 7 और कुछ 'इब्रानी यरदन के पार जद और जिल'आद के 'इलाक़े को चले गए लेकिन साऊल जिल्जाल ही में रहा, और सब लोग काँपते हुए उसके पीछे पीछे रहे|
\s5
\v 8 और वह वहाँ सात दिन समुएल के मुक़र्रर वक़्त के मुताबिक़ ठहरा रहा, लेकिन समुएल जिल्जाल में न आया, और लोग उसके पास से इधर उधर हो गए|
\v 9 तब साऊल ने कहा,"सोख़्तनी क़ुर्बानी और सलामती की क़ुर्बानियों को मेरे पास लाओ, " तब उसने सोख़्तनी क़ुर्बानी अदा की|
\v 10 और जैसे ही वह सोख़्तनी क़ुर्बानी अदा कर चुका तो क्या, देखता है, कि समुएल आ पहुँचा और साऊल उसके इस्तक़बाल को निकला ताकि उसे सलाम करे
\s5
\v 11 समुएल ने पूछा,"कि तूने क्या किया?" साऊल ने जवाब दिया कि जब मैंने देखा कि लोग मेरे पास से इधर उधर हो गए, और तू ठहराए, हुए दिनों के अन्दर नहीं आया, और फ़िलिस्ती मिक्मास में जमा' हो गए हैं|
\v 12 तो मैंने सोंचा कि फ़िलिस्ती जिल्जाल में मुझ पर आ पड़ेंगे, और मैंने ख़ुदावन्द के करम के लिए अब तक दु'आ भी नहीं की है, इस लिए मैंने मजबूर होकर सोख़्तनी क़ुर्बानी अदा की|"
\s5
\v 13 समुएल ने साऊल से कहा, "तूने बेवक़ूफ़ी की, तूने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्म को जो उसने तुझे दिया, नहीं माना वर्ना ख़ुदावन्द तेरी बादशाहत बनी इस्राईल में हमेशा तक क़ायम रखता|
\v 14 लेकिन अब तेरी हुकूमत क़ायम न रहेगी क्यूँकि ख़ुदावन्द ने एक शख़्स को जो उसके दिल के मुताबिक़ है, तलाश कर लिया है और ख़ुदावन्द ने उसे अपनी क़ौम का सरदार ठहराया है, इसलिए कि तूने वह बात नहीं मानी जिसका हुक्म ख़ुदावन्द ने तुझे दिया था|"
\s5
\v 15 और समुएल ~उठकर जिल्जाल से बिनयमीन के जिबा' को गया तब साऊल ने उन लोगों को जो उसके साथ हाज़िर थे, गिना और वह क़रीबन छ:सौ थे
\v 16 और साऊल और उसका बेटा यूनतन और उनके साथ के लोग बिनयमीन के जिबा' में रहे, लेकिन फ़िलिस्ती मिक्मास में ख़ेमाज़न थे|
\s5
\v 17 और ग़ारतगर फ़िलिस्तियों के लश्कर में से तीन ग़ोल होकर निकले एक ग़ोल तो सु'आल के 'इलाक़े को उफ़रह के रास्ते से गया|
\v 18 और दूसरे ग़ोल ने बैतहोरून की राह ली और तीसरे ग़ोल ने उस सरहद की राह ली जिसका रुख़ वादी -ए-ज़ुबू'ईम की तरफ़ जंगल के सामने है|
\s5
\v 19 और इस्राईल के सारे मुल्क में कहीं लुहार नहीं मिलता था क्यूँकि फ़िलिस्तियों ने कहा था कि, 'इब्रानी लोग अपने लिए तलवारें और भाले न बनाने पाएँ|
\v 20 इसलिए सब इस्राईली अपनी अपनी फाली और भाले और कुल्हाड़ी और कुदाल को तेज़ कराने के लिए फ़िलिस्तियों के पास जाते थे |
\v 21 लेकिन कुदालों और फालियों और काँटो और कुल्हाड़ों के लिए, और पैनों को दुरुस्त करने के लिए, वह रेती रखते थे |
\s5
\v 22 इस लिए लड़ाई के दिन साऊल और यूनतन के साथ के लोगों में से किसी के हाथ में न तो तलवार थी न भाला, लेकिन साऊल और उसके बेटे यूनतन के पास तो यह थे|
\v 23 और फ़िलिस्तियों की चौकी के सिपाही, निकल कर मिक्मास की घाटी को गए|
\s5
\c 14
\p
\v 1 और एक दिन ऐसा हुआ, कि साऊल के बेटे यूनतन ने उस जवान से जो उसका सिलाह बरदार था कहा कि आ हम फ़िलिस्तियों की चौकी को जो उस तरफ़ है चलें, पर उसने अपने बाप को न बताया|
\s5
\v 2 और साऊल जिबा' के निकास पर उस अनार के दरख़्त के नीचे जो मजरुन में है मुक़ीम ~था, और क़रीबन छ: सौ आदमी उसके साथ थे |
\v 3 और अख़ियाह बिन अख़ीतोब जो यक़बोद बिन फ़ीन्हास बिन 'एली का भाई और सैला में ख़ुदावन्द का काहिन था अफ़ूद पहने हुए था और लोगों को ख़बर न थी कि यूनतन चला गया है|
\s5
\v 4 और उन की घाटियों के बीच जिन से होकर यूनतन फ़िलिस्तियों की ~चौकी को जाना चाहता था एक तरफ़ एक बड़ी नुकीली चट्टान थी और दूसरी तरफ़ भी एक बड़ी नुकीली चट्टान थी, एक का नाम बुसीस था दूसरी का सना |
\v 5 एक तो शिमाल की तरफ़ मिक्मास के मुक़ाबिल और दूसरी जुनूब की तरफ़ जिबा' के मुक़ाबिल थी |
\s5
\v 6 इसलिए यूनतन ने उस जवान से जो उसका सिलाह बरदार था, कहा, "आ हम उधर उन नामख़्तूनों ~की चौकी को चलें -मुम्किन है, कि ख़ुदावन्द हमारा काम बना दे, क्यूँकि ख़ुदावन्द के लिए बहुत सारे या थोड़ों के ज़रिए' से बचाने की कै़द नहीं|"
\v 7 उसके सिलाह बरदार ने उससे कहा, "जो कुछ तेरे दिल में है इसलिए कर और उधर चल मैं तो तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ तेरे साथ हूँ|"
\s5
\v 8 तब यूनतन ने कहा, "देख हम उन लोगों के पास इस तरफ़ जाएँगे,और अपने को उनको दिखाएँगे|
\v 9 अगर वह हम से यह कहें, कि हमारे आने तक ठहरो, तो हम अपनी जगह चुप चाप खड़े रहेंगे और उनके पास नहीं जाएँगे|
\v 10 लेकिन अगर वह यूँ कहें, कि हमारे पास तो आओ, तो हम चढ़ जाएँगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनको हमारे क़ब्ज़े में कर दिया, और यह हमारे लिए निशान होगा|"
\s5
\v 11 फिर इन दोनों ने अपने आप को फ़िलिस्तियों की चौकी के सिपाहियों को दिखाया, और फ़िलिस्ती कहने लगे, "देखो ये 'इब्रानी उन सुराख़ों में से जहाँ वह छिप गए थे ,बाहर निकले आते हैं |"
\v 12 और चौकी के सिपाहियों ने यूनतन और उसके सिलाह बरदार से कहा, "हमारे पास आओ, तो सही, हम तुमको एक चीज़ दिखाएँ|"इसलिए यूनतन ने अपने सिलाह बरदार से कहा, "अब मेरे पीछे पीछे चढ़ा,चला आ, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनको इस्राईल के क़ब्ज़े में कर दिया है|"
\s5
\v 13 और यूनतन अपने हाथों और पाँव के बल चढ़ गया, और उसके पीछे पीछे उसका सिलाह बरदार था,और वह यूनतन के सामने गिरते गए और उसका सिलाह बरदार उसके पीछे पीछे उनको क़त्ल करता गया|
\v 14 यह पहली ख़ूॅरेज़ी जो यूनतन और उसके सिलाह बरदार ने की क़रीबन बीस आदमियों की थी जो कोई एक बीघा ज़मीन की रेघारी में मारे गए|
\s5
\v 15 तब लश्कर और मैदान और सब लोगों में लरज़िश हुई और चौकी के सिपाही,और ग़ारतगर भी काँप गए, और ज़लज़ला ~आया इसलिए निहायत तेज़ कपकपी हुई|
\s5
\v 16 और साऊल के निगहबानों ने जो बिनयमीन के जिबा' में थे नज़र की और देखा कि भीड़ घटती जाती है और लोग इधर उधर जा रहे हैं|
\v 17 तब साऊल ने उन लोगों से जो उसके साथ थे, कहा, "गिनती करके देखो, कि हम में से कौन चला गया है, इसलिए उन्होंने शुमार किया तो देखो, यूनतन और उसका सिलाह बरदार ग़ायब थे|"
\s5
\v 18 और साऊल ने अख़ियाह से कहा, "ख़ुदा का संदूक़ यहाँ ला|" क्यूँकि ख़ुदा का संदूक़ उस वक़्त बनी इस्राईल के साथ वहीं था |
\v 19 और जब साऊल काहिन से बातें कर रहा था तो फ़िलिस्तियों की लश्कर गाह, में जो हलचल मच गई थी वह और ज़्यादा हो गई तब साऊल ने काहिन से कहा कि "अपना हाथ खींच ले|"
\s5
\v 20 और साऊल और सब लोग जो उसके साथ थे, एक जगह जमा' हो गए, और लड़ने को आए और देखा कि हर एक की तलवार अपने ही साथी पर चल रही है,और सख़्त तहलका मचा हुआ है|
\v 21 और वह 'इब्रानी भी जो पहले की तरह फ़िलिस्तियों के साथ थे और चारो तरफ़ से उनके साथ लश्कर में आए थे फिर कर उन इस्राईलियों से मिल गए जो साऊल और यूनतन के साथ थे |
\s5
\v 22 इसी तरह उन सब इस्राईली मर्दों ने भी जो इफ़्राईम ~के पहाड़ी मुल्क में छिप गए थे, यह सुन कर कि फ़िलिस्ती भागे जाते हैं, लड़ाई में आ उनका पीछा किया |
\v 23 तब ख़ुदावन्द ने उस दिन इस्राईलियों को रिहाई दी और लड़ाई बैत आवन के उस पार तक पहुँची|
\s5
\v 24 और इस्राईली मर्द उस दिन बड़े परेशान थे, क्यूँकि साऊल ने लोगों को क़सम देकर यूँ कहा,था कि जब तक शाम न हो और मैं अपने दुश्मनों से बदला न ले लूँ उस वक़्त तक अगर कोई कुछ खाए तो वह ला'नती हो| इस वजह से उन लोगों में से किसी ने खाना चखा तक न था|
\v 25 और सब लोग जंगल में जा पहुँचे और वहाँ ज़मीन पर शहद था|
\v 26 और जब यह लोग उस जंगल में पहुँच गए तो देखा कि शहद टपक रहा है तो भी कोई अपना हाथ अपने मुँह तक नही ले गया इसलिए कि उनको क़सम का ख़ौफ़ था |
\s5
\v 27 लेकिन यूनतन ने अपने बाप को उन लोगों को क़सम देते नहीं सुना था, इसलिए उसने अपने हाथ की लाठी के सिरे को शहद के छत्ते में भोंका और अपना हाथ अपने मुँह से लगा लिया और उसकी आँखों में रोशनी आई|
\v 28 तब उन लोगों में से एक ने उससे कहा, "तेरे बाप ने लोगों को क़सम देकर सख़्त ताकीद की थी, और कहा, था कि जो शख़्स आज के दिन कुछ खाना खाए, वह ला'नती हो और लोग बेदम से हो रहे थे|"
\s5
\v 29 तब यूनतन ने कहा कि मेरे बाप ने मुल्क को दुख ~दिया है, देखो मेरी आँखों में ज़रा सा शहद चखने की वजह से कैसी रोशनी आई |
\v 30 कितना ज़्यादा अच्छा होता अगर सब लोग दुश्मन की लूट में से जो उनको मिली दिल खोल कर खाते क्यूँकि अभी तो फ़िलिस्तियों में कोई बड़ी ख़ूॅरेज़ी भी नहीं हुई है |
\s5
\v 31 और उन्होंने उस दिन मिक्मास से अय्यालोन तक फ़िलिस्तियों को मारा और लोग बहुत ही बे दम हो गए|
\v 32 इसलिए वह लोग लूट पर गिरे और भेड़ बकरियों और बैलों और बछड़ों को लेकर उनको ज़मीन पर ज़बह, किया और ख़ून समेत खाने लगे|
\s5
\v 33 तब उन्होंने साऊल को ख़बर दी कि देख लोग ख़ुदावन्द का गुनाह करते हैं कि ख़ून समेत खा रहे हैं| उसने कहा, "तुम ने बेईमानी की, इसलिए एक बड़ा पत्थर आज मेरे सामने ढलका लाओ|
\v 34 फिर साऊल ने कहा कि लोगों के बीच इधर उधर जाकर उन से कहो कि हर शख़्स अपना बैल और अपनी भेड़ यहाँ मेरे पास लाए और यहीं, ज़बह करे और खाए और ख़ून समेत खाकर ख़ुदा का गुनहगार न बने| चुनाँचे उस रात लोगों में से हर शख़्स अपना बैल वहीं लाया और वहीं ज़बह किया |
\s5
\v 35 और साऊल ने ख़ुदावन्द के लिए एक मज़बह बनाया,यह पहला मज़बह है, जो उसने ख़ुदावन्द के लिए बनाया |
\s5
\v 36 फिर साऊल ने कहा, "आओ,रात ही को फ़िलिस्तियों का पीछा करें और पौ फटने तक उनको लूटें और उन में से एक आदमी को भी न छोड़ें|" उन्होंने कहा, "जो कुछ तुझे अच्छा लगे वह कर तब काहिन ने कहा, कि आओ,हम यहाँ ख़ुदा के नज़दीक हाज़िर हों|"
\v 37 और साऊल ने ख़ुदा से सलाह ली, कि क्या मैं ~फ़िलिस्तियों का पीछा करूँ? क्या तू उनको इस्राईल के हाथ में कर देगा |तो भी~उसने उस दिन उसे कुछ जवाब न दिया |
\s5
\v 38 तब साऊल ने कहा कि तुम सब जो लोगों के सरदार हो यहाँ, नज़दीक आओ, और तहक़ीक़ करो और देखो कि आज के दिन गुनाह क्यूँकर हुआ है |
\v 39 क्यूँकि ख़ुदावन्द की हयात की क़सम जो इस्राईल को रिहाई देता है अगर वह मेरे बेटे यूनतन ही का गुनाह हो, वह ज़रूर मारा जाएगा, लेकिन उन सब लोगों में से किसी आदमी ने उसको जवाब न दिया|
\s5
\v 40 तब उस ने सब इस्राईलियों से कहा, "तुम सब के सब एक तरफ़ हो जाओ,और मैं और मेरा बेटा यूनतन दूसरी तरफ़ हो जायेंगे|" लोगों ने साऊल से कहा, "जो तू मुनासिब जाने वह कर|"
\v 41 तब साऊल ने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा से कहा, "हक़ को ज़ाहिर कर दे ,इसलिए पर्ची यूनतन और साऊल के नाम पर निकली,और लोग बच गए|"
\v 42 तब साऊल ने कहा कि "मेरे और मेरे बेटे यूनतन के नाम पर पर्ची डालो, तब यूनतन पकड़ा गया|"
\s5
\v 43 और साऊल ने यूनतन से कहा, "मुझे बता कि तूने क्या किया है?" यूनतन ने उसे बताया कि मैंने बेशक अपने हाथ की लाठी ~के सिरे से ज़रा सा शहद चख्खा था इसलिए देख मुझे मरना होगा|
\v 44 साऊल ने कहा, "ख़ुदा ऐसा ही बल्कि इससे भी ज़्यादा करे क्यूँकि ऐ यूनतन तू ज़रूर मारा जाएगा|"
\s5
\v 45 तब लोगों ने साऊल से कहा, "क्या यूनतन मारा जाए, जिसने इस्राईल को ऐसा बड़ा छुटकारा दिया है ऐसा न होगा, ख़ुदावन्द की हयात की क़सम है कि उसके सर का एक बाल भी ज़मीन पर गिरने नहीं पाएगा क्यूँकि उसने आज ख़ुदा के साथ हो कर काम किया है|" इसलिए लोगों ने यूनतन को बचा लिया और वह मारा न गया|
\v 46 और साऊल फ़िलिस्तियों का पीछा छोड़ कर लौट गया और फ़िलिस्ती अपने मक़ाम को चले गए
\s5
\v 47 जब साऊल बनी इस्राईल पर बादशाहत करने लगा, तो वह हर तरफ़ अपने दुश्मनों या'नी मोआब और बनी 'अम्मून और अदूम और जुबाह के बादशाहों और फ़िलिस्तियों से लड़ा और वह जिस जिस तरफ़ फिरता उनका बुरा हाल करता था |
\v 48 और उसने बहादुरी करके अमालीक़ियों को मारा, और इस्राईलियों को उनके हाथ से छुड़ाया जो उनको लूटते थे |
\s5
\v 49 साऊल के बेटे यूनतन और इसवी और मलकीशू'अ थे; और उसकी दोनों बेटियों के नाम यह थे,बड़ी का नाम मेरब और छोटी का नाम मीकल था|
\v 50 और साऊल कि बीवी का नाम अख़ीनु'अम था जो अख़ीमा'ज़ की बेटी थी, और उसकी फ़ौज के सरदार का नाम अबनेर था, जो साऊल के चचा नेर का बेटा था |
\v 51 और साऊल के बाप का नाम क़ीस था और अबनेर का बाप नेर अबीएल का बेटा था |
\s5
\v 52 और साऊल की ज़िन्दगी भर फ़िलिस्तियों से सख़्त जंग रही, इसलिए जब साऊल किसी ताक़तवर मर्द या सूरमा को देखता था तो उसे अपने पास रख लेता था |
\s5
\c 15
\p
\v 1 और समुएल ने साऊल से कहा कि "ख़ुदावन्द ने मुझे भेजा है कि मैं तुझे मसह करूँ ताकि तू उसकी क़ौम इस्राईल का बादशाह हो, इसलिए अब तू ख़ुदावन्द की बातें सुन|
\v 2 रब्ब-उल-अफ़वाज़ यूँ फ़रमाता है कि मुझे इसका ख़्याल है कि 'अमालीक़ ने इस्राईल से क्या किया और जब यह मिस्र से निकल आए तो वह रास्ते में उनका मुख़ालिफ़ हो कर आया |
\v 3 इस लिए अब तू जा और 'अमालीक़ को मार और जो कुछ उनका है, सब को बिलकुल मिटा दे, और उनपर रहम मत कर बल्कि मर्द और 'औरत नन्हे, बच्चे और दूध पीते, गाय बैल और भेड़ बकरियाँ, ऊँट और गधे सब को क़त्ल कर डाल|"
\s5
\v 4 चुनाँचे साऊल ने लोगों को जमा' किया और तलाइम में उनको गिना; इस लिए वह दो लाख पियादे, और यहूदा के दस हज़ार जवान थे|
\v 5 और साऊल 'अमालीक़ के शहर को आया और वादी के बीच घात लगा कर बैठा|
\s5
\v 6 और साऊल ने क़ीनियों से कहा कि तुम चल दो 'अमालीक़ियों के बीच से निकल जाओ; ऐसा न हो कि मैं तुमको उनके साथ हलाक कर डालूँ इसलिए कि तुम सब इस्राईलियों से जब वह मिस्र से निकल आए महेरबानी के साथ पेश आए| इसलिए क़ीनी अमालीक़ियों में से निकल गए |
\v 7 और साऊल ने 'अमालीक़ियों को हवीला से शोर तक जो मिस्र के सामने है मारा |
\s5
\v 8 और 'अमालीक़ियों के बादशाह अजाज को जीता पकड़ा और सब लोगों को तलवार की धार से ~मिटा दिया|
\v 9 लेकिन साऊल ने और उन लोगों ने अजाज को और अच्छी अच्छी भेड़ बकरियों गाय -बैलों और मोटे मोटे बच्चों और बर्रों को और जो कुछ अच्छा था उसे जीता रख्खा और उनको बरबाद करना न चाहा लेकिन उन्होंने हर एक चीज़ को जो नाक़िस और निकम्मी थी बरबाद कर दिया|
\s5
\v 10 तब ख़ुदावन्द का कलाम समुएल को पहुँचा कि |
\v 11 मुझे अफ़सोस है कि मैंने साऊल को बादशाह होने के लिए मुक़र्रर किया है, क्यूँकि वह मेरी पैरवी से फिर गया है, और उसने मेरे हुक्म नहीं माने, तब समुएल का ग़ुस्सा भड़का और वह सारी रात ख़ुदावन्द से फ़रियाद करता रहा |
\s5
\v 12 और समुएल सवेरे उठा कि सुबह को साऊल से मुलाक़ात करे, और समुएल को ख़बर मिली, कि साऊल करमिल को आया था, और अपने लिए लाट खड़ी की और फिर गुज़रता हुआ जिल्जाल को चला गया है|
\v 13 फिर समुएल साऊल के पास गया और साऊल ने उस से कहा, "तू ख़ुदावन्द की तरफ़ से मुबारक हुआ, मैंने ख़ुदावन्द के हुक्म पर 'अमल किया|"
\s5
\v 14 समुएल ने कहा, "फिर यह भेड़ बकरियों का मिम्याना और गाय,और बैलों का बनबाना कैसा है,जो मैं सुनता हूँ?"
\v 15 साऊल ने कहा कि "यह लोग उनको 'अमालीक़ियों के यहाँ से ले आए है, इसलिए कि लोगों ने अच्छी अच्छी भेड़ बकरियों और गाय बैलों को जीता रख्खा ताकि उनको ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के लिए ज़बह करें और बाक़ी सब को तो हम ने बरबाद कर दिया |"
\v 16 तब समुएल ने साऊल से कहा, "ठहर जा और जो कुछ ख़ुदावन्द ने आज की रात मुझ से कहा है, वह मैं तुझे बताऊँगा|" उसने कहा, "बताइये|"
\s5
\v 17 समुएल ने कहा, "अगर्चे तू अपनी ही नज़र में हक़ीर था तो भी क्या तू बनी इस्राईल के क़बीलों का सरदार न बनाया गया? और ख़ुदावन्द ने तुझे मसह किया ताकि तू बनी इस्राईल का बादशाह हो|
\v 18 और ख़ुदावन्द ने तुझे सफ़र पर भेजा और कहा कि जा और गुनहगार 'अमालीक़ियों को मिटा कर और जब तक वह फ़ना न हो जायें उन से लड़ता रह|
\v 19 तब तूने ख़ुदावन्द की बात क्यूँ न मानी बल्कि लूट पर टूट कर वह काम कर गुज़रा जो ख़ुदावन्द की नज़र में बुरा है?"
\s5
\v 20 साऊल ने समुएल से कहा, "मैंने तो ख़ुदावन्द का हुक्म माना और जिस रास्ते पर ख़ुदावन्द ने मुझे भेजा चला,और 'अमालीक़ के बादशाह अजाज को ले आया हूँ,और 'अमालीक़ियों को बरबाद कर दिया |
\v 21 जब लोग लूट के माल में से भेड़ बकरियाँ और गाय बैल या'नी अच्छी अच्छी चीज़ें जिनको बरबाद करना था, ले आए ताकि जिल्जाल में ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के सामने क़ुर्बानी करें|"
\s5
\v 22 समुएल ने कहा, "क्या ख़ुदावन्द सोख़्तनी क़ुर्बानियों और जबीहों से इतना ही ख़ुश होता है जितना इस बात से कि ख़ुदावन्द का हुक्म माना जाए? देख फ़रमा बरदारी क़ुर्बानी से और बात मानना मेंढ़ों की चर्बी से बेहतर है |
\v 23 क्यूँकि बग़ावत और जादूगरी बराबर हैं और सरकशी ऐसी ही है जैसी मूरतों और बुतों की 'इबादत इस लिए चूँकि तूने ख़ुदावन्द के हुक्म को रद्द किया है इसलिए उसने भी तुझे रद्द किया है कि बादशाह न रहे|"
\s5
\v 24 साऊल ने समुएल से कहा, "मैंने गुनाह किया कि मैंने ~ख़ुदावन्द के फ़रमान को और तेरी बातों को टाल दिया है, क्यूँकि मैं लोगों से डरा और उनकी बात सुनी |
\v 25 इसलिए अब में तेरी मिन्नत करता हूँ कि मेरा गुनाह बख़्श दे, और मेरे साथ लौट चल ताकि मैं ख़ुदावन्द को सिज्दा करूँ|
\s5
\v 26 समुएल ने साऊल से कहा, "मैं तेरे साथ नहीं लौटूँगा क्यूँकि तूने ख़ुदावन्द के कलाम को रद्द कर दिया है और ख़ुदावन्द ने तुझे रद्द किया, कि इस्राईल का बादशाह न रहे|"
\v 27 और जैसे ही समुएल जाने को मुड़ा साऊल ने उसके जुब्बा का दामन पकड़ लिया, और वह फट गया |
\s5
\v 28 तब समुएल ने उससे कहा, "ख़ुदावन्द ने इस्राईल की बादशाही तुझ से आज ही चाक कर के छीन ली और तेरे एक पड़ोसी को जो तुझ से बेहतर है दे दी है |
\v 29 और जो इस्राईल की ताक़त है,वह न तो झूट बोलता और न पछताता है, क्यूँकि वह इंसान नही है कि पछताए|"
\s5
\v 30 उसने कहा, "मैंने गुनाह तो किया है तो भी मेरी क़ौम के बुज़ुर्गों और इस्राईल के आगे मेरी 'इज्ज़त कर और मेरे साथ, लौट कर चल ताकि मैं ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा को सिज्दा करूँ|"
\v 31 तब समुएल लौट कर साऊल के पीछे हो लिया और साऊल ने ख़ुदावन्द को सिज्दा किया|
\s5
\v 32 तब समुएल ने कहा कि 'अमालीक़ियों के बादशाह अजाज को यहाँ मेरे पास लाओ, इसलिए अजाज ख़ुशी ख़ुशी उसके पास आया और अजाज कहने लगा, हक़ीक़त में मौत की कड़वाहट गुज़र गयी |
\v 33 समुएल ने कहा, "जैसे तेरी तलवार ने 'औरतों को बे औलाद किया वैसे ही तेरी माँ 'औरतों में बे औलाद होगी और समुएल ने अजाज को जिल्जाल में ख़ुदावन्द के सामने टुकड़े टुकड़े किया|
\s5
\v 34 और समुएल रामा को चला गया और साऊल अपने घर साऊल के ज़िबा' को ~गया |
\v 35 और समुएल अपने मरते दम तक साऊल ~को फिर देखने न गया क्यूँकि साऊल के लिए ग़म खाता रहा,और ख़ुदावन्द साऊल को बनी इस्राईल का बादशाह करके दुखी हुआ|"
\s5
\c 16
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द ने समुएल से कहा, "तू कब तक साऊल के लिए ग़म खाता रहेगा, जिस हाल कि मैंने उसे बनी इस्राईल का बादशाह होने से रद्द कर दिया है? तू अपने सींग में तेल भर और जा, मैं तुझे बैतलहमी यस्सी के पास भेजता हूँ, क्यूँकि मैंने उसके बेटों में से एक को अपनी तरफ़ से बादशाह चुना है|"
\s5
\v 2 समुएल ने कहा, "में क्यूँकर जाऊँ? अगर साऊल सुन लेगा, तो मुझे मार ही डालेगा" ख़ुदावन्द ने कहा, "एक बछिया अपने साथ लेजा और कहना कि मैं ख़ुदावन्द के लिए क़ुर्बानी करने को आया हूँ|
\v 3 और यस्सी को क़ुर्बानी की दा'वत देना फिर मैं तुझे बता दूँगा कि तुझे क्या करना है, और उसी को जिसका नाम मैं तुझे बताऊँ मेरे लिए मसह करना|"
\s5
\v 4 और समुएल ने वही जो ख़ुदावन्द ने कहा था किया और बैतलहम में आया, तब शहर के बुज़ुर्ग काँपते हुए उससे मिलने को गए और कहने लगे, "तू सुलह के ख़्याल से आया है ?"
\v 5 उसने कहा, "सुलह के ख़्याल से, मैं ख़ुदावन्द के लिए क़ुर्बानी पेश करने आया हूँ| तुम अपने आप को पाक साफ़ करो और मेरे साथ क़ुर्बानी के लिए आओ" और उसने यस्सी को और उसके बेटों को पाक किया और उनको क़ुर्बानी की दा'वत दी|
\s5
\v 6 जब वह आए तो वह इलियाब को देख कर कहने लगा, "यक़ीनन ख़ुदावन्द का म्मसूह उसके आगे है|"
\v 7 तब ख़ुदावन्द ने समुएल से कहा कि "तू उसके चेहरा और उसके क़द की ऊँचाई को न देख इसलिए कि मैंने उसे ना पसंद किया है, क्यूँकि ख़ुदावन्द इंसान की तरह नज़र नहीं करता इसलिए कि इन्सान ज़ाहिरी सूरत को देखता है,पर ख़ुदावन्द दिल पर नज़र करता है"
\s5
\v 8 तब यस्सी ने अबीनदाब को बुलाया और उसे समुएल के सामने से निकाला, उसने कहा, "ख़ुदावन्द ने इसको भी नहीं चुना|"
\v 9 फिर यस्सी ने सम्मा को आगे किया, उसने कहा, "ख़ुदावन्द ने इसको भी नहीं चुना "
\v 10 और यस्सी ने अपने सात बेटों को समुएल के सामने से निकाला और समुएल ने यस्सी से कहा कि "ख़ुदावन्द ने उनको नहीं ~चुना है|"
\s5
\v 11 फिर समुएल ने यस्सी से पूछा, "क्या तेरे सब लड़के यहीं हैं?" उसने कहा, "सब से छोटा अभी रह गया, वह भेड़ बकरियाँ चराता है" समुएल ने यस्सी से कहा, "उसे बुला भेज क्यूँकि जब तक वह यहाँ न आ जाए हम नहीं बैठेंगे|"
\v 12 इसलिए वह उसे बुलवाकर अंदर लाया|वह सुर्ख रंग और ख़ूबसूरत और हसीन था और ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, "उठ,और उसे मसह कर क्यूँकि वह यही है|"
\s5
\v 13 तब समुएल ने तेल का सींग लिया और उसे उसके ~भाइयों के बीच मसह किया; और ख़ुदावन्द की रूह उस दिन से आगे को दाऊद पर ज़ोर से नाज़िल होती रही,तब ~समुएल उठकर रामा को चला गया|
\s5
\v 14 और ख़ुदावन्द की रूह साऊल से जुदा हो गई और ख़ुदावन्द की तरफ़ से एक बुरी रूह उसे सताने लगी |
\v 15 और साऊल के मुलाज़िमों ने उससे कहा, "देख अब एक बुरी रूह ख़ुदा की तरफ़ तुझे सताती है|
\v 16 इसलिए हमारा मालिक अब अपने ख़ादिमों को जो उसके सामने हैं, हुक्म दे कि वह एक ऐसे ~शख़्स को तलाश कर लाएँ जो बरबत बजाने में क़ाबिल हो, और जब जब ख़ुदा की तरफ़ से यह बुरी रूह तुझ पर चढ़े वह अपने हाथ से बजाए, और तू बहाल हो जाए|"
\s5
\v 17 साऊल ने अपने ख़ादिमों से कहा, "ख़ैर एक अच्छा बजाने वाला मेरे लिए ढूँढों और उसे मेरे पास लाओ|"
\v 18 तब जवानों में से एक यूँ बोल उठा कि देख मैंने बैतलहम के यस्सी के एक बेटे को देखा जो बजाने में क़ाबिल और ज़बरदस्त सूरमा और जंगी जवान और बात में साहिबे तमीज़ और ख़ूबसूरत आदमी है और ख़ुदावन्द उसके साथ है|"
\v 19 तब साऊल ने यस्सी के पास क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा कि "अपने बेटे दाऊद को जो भेड़ बकरियों ~के साथ रहता है, मेरे पास भेज दे|"
\s5
\v 20 तब यस्सी ~ने एक गधा जिस पर रोटियाँ लदीं थीं, और मय का एक मश्कीज़ा और बकरी का एक बच्चा लेकर उनको अपने बेटे दाऊद के हाथ साऊल के पास भेजा|
\v 21 और दाऊद साऊल के पास आकर उसके सामने खड़ा हुआ, और साऊल उससे मुहब्बत करने लगा, और वह उसका सिलह बरदार हो गया|
\s5
\v 22 और साऊल ने यस्सी ~को कहला भेजा कि दाऊद को मेरे सामने रहने दे क्यूँकि वह मेरा मंज़ूरे नज़र हुआ है|
\v 23 इसलिए जब वह बुरी रूह ख़ुदा की तरफ़ से साऊल पर चढ़ती थी तो दाऊद बरबत लेकर हाथ से बजाता था, और साऊल को राहत होती और वह बहाल हो जाता था,और वह बुरी रूह उस पर से उतर जाती थी|
\s5
\c 17
\p
\v 1 फिर फ़िलिस्तियों ने जंग के लिए अपनी फ़ौजें जमा' कीं,और यहूदाह के शहर शोके में इकट्ठे हुए. और शोक़े और 'अजीक़ा के बीच अफ़सदम्मीम में ख़ैमाज़न हुए|
\s5
\v 2 और साऊल और इस्राईल के लोगों ने जमा' ~होकर एला की वादी में डेरे डाले और लड़ाई के लिए फ़िलिस्तियों के मुक़ाबिल सफ़ आराई की|
\v 3 और एक तरफ़ के पहाड़ पर फ़िलिस्ती और दूसरी तरफ़ के पहाड़ पर बनी इस्राईल खड़े हुए और इन दोनों के बीच वादी थी|
\s5
\v 4 और फ़िलिस्तियों के लश्कर से एक पहलवान निकला जिसका नाम जाती जूलियत था, उसका क़द छ हाथ और एक बालिश्त था|
\v 5 और उसके सर पर पीतल का टोपा था,और वह पीतल ही की ज़िरह पहने हुए था जो तोल में पाँच हज़ार पीतल की मिस्क़ाल के बराबर थी|
\s5
\v 6 और उसकी टाँगों पर पीतल के दो साकपोश थे और उसके दोनों शानों के बीच पीतल की बरछी थी|
\v 7 और उसके भाले की छड़ ऐसी थी जैसे जुलाहे का शहतीर और उसके नेज़े का फ़ल छ: सौ मिस्क़ाल लोहे का था और एक शख़्स ढाल ~लिए हुए उसके आगे आगे चलता था|
\s5
\v 8 वह खड़ा हुआ,और इस्राईल के लश्करों को पुकार कर उन से कहने लगा कि तुमने आकर जंग के लिए क्यूँ सफ आराई की? क्या मैं फ़िलिस्ती नहीं और तुम साऊल के ख़ादिम नहीं ? इसलिए अपने लिए किसी शख़्स को चुनो जो मेरे पास उतर आए |
\v 9 अगर वह मुझे से लड़ सके और मुझे क़त्ल कर डाले तो हम तुम्हारे ख़ादिम हो जाएँगे लेकिन अगर मैं उस पर ग़ालिब आऊँ और उसे क़त्ल कर डालूँ तो तुम हमारे ख़ादिम हो जाना और हमारी ख़िदमत करना |
\s5
\v 10 फिर उस फ़िलिस्ती ने कहा कि मैं आज के दिन इस्राईली फ़ौजों की बे'इज़्ज़ती करता हूँ कोई जवान निकालो ताकि हम लड़ें |
\v 11 जब साऊल और सब इस्राईलियों ने उस फ़िलिस्ती की बातें सुनीं,तो परेशान हुए और बहुत डर गए |
\s5
\v 12 और दाऊद बैतल हम यहूदाह के उस इफ़्राती आदमी का बेटा था जिसका नाम यस्सी था, उसके आठ बेटे थे और वह ख़ुद साऊल के ज़माना के लोगों के बीच बुड्ढा और उम्र दराज़ था |
\v 13 और यस्सी के तीन बड़े बेटे साऊल के पीछे पीछे जंग में गए थे और उसके तीनों बेटों के नाम जो जंग में गए थे यह थे इलियाब जो पहलौठा था,और दूसरा अबीनदाब और तीसरा सम्मा|
\s5
\v 14 और दाऊद सबसे छोटा था और तीनों बड़े बेटे साऊल के पीछे पीछे थे |
\v 15 और दाऊद बैतलहम में अपने बाप की भेड़ बकरयाँ चराने को साऊल के पास से आया जाया करता था |
\v 16 और वह फ़िलिस्ती सुबह और शाम नज़दीक आता और चालिस दिन तक निकल कर आता रहा|
\s5
\v 17 और यस्सी ने अपने बेटे दाऊद से कहा कि "इस भुने अनाज में से एक ऐफ़ा और यह दस रोटियाँ अपने भाइयों के लिए लेकर इनको जल्द लश्कर गाह, में अपने भाइयों के पास पहुचा दे |
\v 18 और उनके हज़ारी सरदार के पास पनीर की यह दस टिकियाँ लेजा और देख कि तेरे भाइयों का क्या हाल है, और उनकी कुछ निशानी ले आ|"
\s5
\v 19 और साऊल और वह भाई और सब इस्राईली जवान एला की वादी में फ़िलिस्तियों से लड़ रहे थे|
\v 20 और दाऊद सुबह को सवेरे उठा, और भेड़ बकरियों को एक रखवाले ~के पास छोड़ कर यस्सी के हुक्म के मुताबिक़ सब कुछ लेकर रवाना हुआ, और जब वह लश्कर जो लड़ने जा रहा था, जंग के लिए ललकार रहा था, उस वक़्त वह छकड़ों के पड़ाव में पहुँचा|
\v 21 और इस्राईलियों और फ़िलिस्तियों ने अपने-अपने लश्कर को आमने सामने करके सफ़ आराई की|
\s5
\v 22 और दाऊद अपना सामान असबाब के निगहबान के हाथ में छोड़ कर आप लश्कर में दौड़ गया और जाकर अपने भाइयों से ख़ैर-ओ-'आफ़ियत पूछी|
\v 23 और वह उनसे बातें करता ही था कि देखो वह पहलवान जात का फ़िलिस्ती जिसका नाम जूलियत था फ़िलिस्ती सफ़ों में से निकला और उसने फिर वैसी ही बातें कहीं और दाऊद ने उनको सुना|
\v 24 और सब इस्राईली जवान उस शख़्स को देख कर उसके सामने से भागे और बहुत डर गए|
\s5
\v 25 तब इस्राईली जवान ऐसा कहने लगे, "तुम इस आदमी को जो निकला है देखते हो? यक़ीनन यह इस्राईल की बे'इज़्ज़ती करने को आया है, इसलिए जो कोई उसको मार डाले उसे बादशाह बड़ी दौलत से माला माल करेगा और अपनी बेटी उसे ब्याह देगा, और उसके बाप के घराने को इस्राईल के बीच आज़ाद कर देगा|"
\s5
\v 26 और दाऊद ने उन लोगों से जो उसके पास खड़े थे पूछा कि जो शख़्स इस फ़िलिस्ती को मार कर यह नंग इस्राईल से दूर करे उस से क्या सुलूक किया जाएगा? क्यूँकि यह ना मख्तून फ़िलिस्ती होता कौन है कि वह जिंदा ख़ुदा की फ़ौजों की बे'इज़्ज़ती करे?|
\v 27 और लोगों ने उसे यही जवाब दिया कि उस शख़्स से जो उसे मार डाले यह सुलूक किया जाएगा |
\s5
\v 28 और उसके सब से बड़े भाई इलयाब ने उसकी बातों को जो वह लोगों से करता था सुना और इलयाब का ग़ुस्सा दाऊद पर भड़का और वह कहने लगा, "तू यहाँ क्यूँ आया है? और वह थोड़ी सी भेड़ बकरियाँ तूने जंगल में किस के पास छोड़ीं?मैं तेरे घमंड और तेरे दिल की शरारत से वाक़िफ़ हूँ, तु लड़ाई देखने आया है|"
\v 29 दाऊद ने कहा, ~"मैंने अब क्या किया? क्या बात ही नहीं हो रही है?"
\v 30 और वह उसके पास से फिर कर दूसरे की तरफ़ गया और वैसी ही बातें करने लगा और लोगों ने उसे फिर पहले की तरह जवाब दिया|
\s5
\v 31 और जब वह बातें जो दाऊद ने कहीं सुनने में आईं तो उन्होंने साऊल के आगे उनका ज़िक्र किया और उसने उसे बुला भेजा|
\v 32 और दाऊद ने साऊल से कहा कि उस शख़्स की वजह से किसी का दिल न घबराए, तेरा ख़ादिम जाकर उस फ़िलिस्ती से लड़ेगा|
\v 33 साऊल ने दाऊद से कहा कि तू इस क़ाबिल नहीं कि उस फ़िलिस्ती से लड़ने को उसके सामने जाए; क्यूँकि तू महज़ लड़का है और वह अपने बचपन से जंगी जवान है|
\s5
\v 34 तब दाऊद ने साऊल को जवाब दिया कि तेरा ख़ादिम अपने बाप की भेड़ बकरियाँ चराता था और जब कभी कोई शेर या रीछ आकर झुंड में से कोई बर्रा उठा ले जाता|
\v 35 तो मैं उसके पीछे पीछे जाकर उसे मारता और उसे उसके मुँह से छुड़ाता था और जब वह मुझ पर झपटता तो मैं उसकी दाढ़ी पकड़ कर उसे मारता और हलाक कर देता था|
\s5
\v 36 तेरे ख़ादिम ने शेर और रीछ दोनों को जान से मारा इसलिए यह नामख़तून फ़िलिस्ती उन में से एक की तरह होगा, इसलिए कि उसने ज़िन्दा ख़ुदा की फ़ौजों की बे'इज़्ज़ती की है|
\s5
\v 37 फिर दाऊद ने कहा, "ख़ुदावन्द ने मुझे शेर और रीछ के पंजे से बचाया, वही मुझको इस फ़िलिस्ती के हाथ से बचाएगा|" ~साऊल ने दाऊद से कहा, जा ख़ुदावन्द तेरे साथ रहे |
\v 38 तब साऊल ने अपने कपड़े दाऊद को पहनाए, और पीतल का टोप उसके सर पर रख्खा और उसे ज़िरह भी पहनाई |
\s5
\v 39 और दाऊद ने उसकी तलवार अपने कपड़ों पर कस ली और चलने की कोशिश की क्यूँकि उसने इनको आजमाया नहीं था, तब दाऊद ने साऊल से कहा, "मैं इनको पहन कर चल नहीं सकता क्यूँकि मैंने इनको आजमाया नहीं है|" इसलिए दाऊद ने उन सबको उतार दिया|
\v 40 और उसने अपनी लाठी अपने हाथ में ली,और उस नाला से पाँच चिकने-चिकने पत्थर अपने वास्ते चुन कर उनको चरवाहे के थैले में जो उसके पास था, या'नी झोले में डाल लिया, और उसका गोफ़न उसके हाथ में था फिर वह फ़िलिस्ती के नज़दीक चला|
\s5
\v 41 और वह फ़िलिस्ती बढ़ा, और दाऊद के नज़दीक़ आया और उसके आगे-आगे उसका सिपर बरदार था|
\v 42 और जब उस फ़िलिस्ती ने इधर उधर निगाह की और दाऊद को देखा तो उसे नाचीज़ जाना क्यूँकि वह महज़ लड़का था, और सुर्ख़रु और नाज़ुक चेहरे का था|
\v 43 तब फ़िलिस्ती ने दाऊद से कहा, "क्या मैं कुत्ता हूँ, जो तू लाठी लेकर मेरे पास आता है?" और उस फ़िलिस्ती ने अपने मा'बूदों का नाम लेकर दाऊद पर ला'नत की |
\s5
\v 44 और उस फ़िलिस्ती ने दाऊद से कहा, "तू मेरे पास आ, और मैं तेरा गोश्त हवाई परिंदों और जंगली जानवरों को दूँगा|"
\v 45 और दाऊद ने उस फ़िलिस्ती से कहा कि "तू तलवार भाला और बरछी लिए हुए मेरे पास आता है, लेकिन मैं रब्ब-उल-अफ़वाज़ के नाम से जो इस्राईल के लश्करों का ख़ुदा है, जिसकी तूने बे'इज़्ज़ती की है तेरे पास आता हूँ |
\s5
\v 46 और आज ही के दिन ख़ुदावन्द तुझको मेरे हाथ में कर देगा, और मैं तुझको मार कर तेरा सर तुझ पर से उतार लूँगा और मैं आज के दिन फ़िलिस्तियों के लश्कर की लाशें हवाई परिंदों और ज़मीन के जंगली जानवरों को दूँगा ताकि दुनिया जान ले कि इस्राईल में एक ख़ुदा है|
\v 47 और यह सारी जमा'अत जान ले कि ख़ुदावन्द तलवार और भाले के ज़रिए' से नहीं बचाता इसलिए कि जंग तो ख़ुदावन्द की है, और वही तुमको हमारे हाथ में कर देगा|"
\s5
\v 48 और ऐसा हुआ, कि जब वह फ़िलिस्ती उठा, और बढ़ कर दाऊद के मुक़ाबिला के लिए नज़दीक आया, तो दाऊद ने जल्दी की और लश्कर की तरफ़ उस फ़िलिस्ती से मुक़ाबिला करने को दौड़ा |
\v 49 और दाऊद ने अपने थैले में अपना हाथ डाला और उस में से एक पत्थर लिया और गोफ़न में रख कर उस फ़िलिस्ती के माथे पर मारा और वह पत्थर उसके माथे के अंदर घुस गया और वह ज़मीन पर मुँह के बल गिर पड़ा |
\s5
\v 50 इसलिए दाऊद उस गोफ़न और एक पत्थर से उस फ़िलिस्ती पर ग़ालिब आया और उस फ़िलिस्ती को मारा और क़त्ल किया और दाऊद के हाथ में तलवार न थी |
\v 51 और दाऊद दौड़ कर उस फ़िलिस्ती के ऊपर खड़ा हो गया, और उसकी तलवार पकड़ कर मियाँन से खींची और उसे क़त्ल किया और उसी से उसका सर काट डाला और फ़िलिस्तियों ने जो देखा कि उनका पहलवान मारा गया तो वह भागे|
\s5
\v 52 और इस्राईल और यहूदाह के लोग उठे और ललकार कर फ़िलिस्तियों को गई और 'अक्रू़न के फाटकों तक दौड़ाया और फ़िलिस्तियों में से जो ज़ख़्मी हुए थे वह शा'रीम के रास्ते ~में और जात और 'अक्रू़न तक गिरते गए |
\v 53 तब बनी इस्राईल फ़िलिस्तियों के पीछे से उलटे फिरे और उनके ख़ेमों को लूटा |
\v 54 और दाऊद उस फ़िलिस्ती का सर लेकर उसे यरूशलीम में लाया और उसके हथियारों को उसने अपने डेरे में रख दिया|
\s5
\v 55 जब साऊल ने दाऊद को उस फ़िलिस्ती का मुक़ाबिला करने के लिए जाते देखा तो उसने लश्कर के सरदार अबनेर से पूछा अबनेर यह लड़का किसका बेटा है? अबनेर ने कहा, ऐ बादशाह तेरी जान की क़सम में नहीं जानता |
\v 56 तब बादशाह ने कहा, तू मा'लूम कर कि यह नौजवान किस का बेटा है |
\s5
\v 57 और जब दाऊद उस फ़िलिस्ती को क़त्ल कर के फ़िरा तो अबनेर उसे लेकर साऊल के पास लाया और फ़िलिस्ती का सर उसके हाथ में था |
\v 58 तब साऊल ने उससे कहा, "ऐ जवान तू किसका बेटा है?" दाऊद ने जवाब दिया, "मैं तेरे ख़ादिम बैतलहमी यस्सी का बेटा हूँ|"
\s5
\c 18
\p
\v 1 जब वह साऊल से बातें कर चुका, तो यूनतन का दिल दाऊद के दिल से ऐसा मिल गया कि यूनतन उससे अपनी जान के बराबर मुहब्बत करने लगा|
\v 2 और साऊल ने उस दिन से उसे अपने साथ रख्खा और फिर उसे उसके बाप के घर जाने न दिया|
\s5
\v 3 और यूनतन और दाऊद ने आपस में 'अहद किया, क्यूँकि वह उससे अपनी जान के बराबर मुहब्बत रखता था|
\v 4 तब यूनतन ने वह क़बा जो वह पहने हुए था उतार कर दाऊद को दी ओर अपनी पोशाक बल्कि अपनी तलवार और अपनी कमान और अपना कमर बन्द तक दे दिया|
\s5
\v 5 और जहाँ, कहीं साऊल दाऊद को भेजता वह जाता और 'अक़्लमन्दी से काम करता था, और साऊल ने उसे जंगी मर्दों पर मुक़र्रर कर दिया और यह बात सारी क़ौम की और साऊल के मुलाज़िमों की नज़र में अच्छी थी |
\s5
\v 6 जब दाऊद उस फ़िलिस्ती को क़त्ल कर के लौटा आता था, और वह सब भी आ रहे थे, तो इस्राईल के सब शहरों से 'औरतें गाती और नाचती हुई दफ़ों और ख़ुशी के ना'रों और बाजों के साथ साऊल बादशाह के इस्तक़बाल को निकलीं |
\v 7 और वह 'औरतें नाचती हुई गाती जाती थीं, कि साऊल ने तो हज़ारों को पर दाऊद ने लाखों को मारा |
\s5
\v 8 और साऊल निहायत ख़फ़ा हुआ क्यूँकि वह बात उसे बड़ी बुरी लगी, और वह कहने लगा, कि उन्होंने दाऊद के लिए तो लाखों और मेरे लिए सिर्फ़ हज़ारों ही ठहराए| इसलिए बादशाही के 'अलावा उसे और क्या मिलना बाक़ी है ?
\v 9 इसलिए उस दिन से आगे को साऊल दाऊद को बद गुमानी से देखने लगा |
\s5
\v 10 और दूसरे दिन ऐसा हुआ, कि ख़ुदा कि तरफ़ से बुरी रूह साऊल पर ज़ोर से नाज़िल हुई और वह घर के अंदर नबुव्वत करने लगा, और दाऊद हर दिन ~की तरह अपने हाथ से बजा रहा था, और साऊल अपने हाथ में अपना भाला लिए था|
\v 11 तब साऊल ने भाला चलाया क्यूँकि उसने कहा, कि मैं दाऊद को दीवार के साथ छेद दूँगा, और दाऊद उसके सामने से दो बार हट गया |
\v 12 इसलिए साऊल दाऊद से डरा करता था क्यूँकि ख़ुदावन्द उसके साथ था और साऊल से अलग हो गया था |
\s5
\v 13 इसलिए साऊल ने उसे अपने पास से अलग कर के उसे हज़ार जवानों का सरदार बना दिया, और वह लोगों के सामने आया जाया करता था |
\v 14 और दाऊद अपनी सब राहों में 'अक़्लमन्दी के साथ चलता था, और ख़ुदावन्द उसके साथ था |
\s5
\v 15 जब साऊल ने देखा कि वह 'अक़्लमन्दी से काम करता है, तो वह उससे डरने लगा|
\v 16 लेकिन पूरा इस्राईल और यहूदाह के लोग दाऊद को प्यार करते थे, इसलिए कि वह उनके सामने आया जाया करता था|
\s5
\v 17 तब साऊल ने दाऊद से कहा कि देख मैं अपनी बड़ी बेटी मेरब को तुझ से ब्याह दूँगा, तू सिर्फ़ मेरे लिए बहादुरी का काम कर और ख़ुदावन्द की लड़ाइयाँ लड़, क्यूँकि साऊल ने कहा ~कि मेरा हाथ नहीं बल्कि फ़िलिस्तियों का हाथ उस पर चले|
\v 18 दाऊद ने साऊल से कहा, "मैं क्या हूँ और मेरी हस्ती ही क्या और इस्राईल में मेरे बाप का ख़ानदान क्या है, कि मैं बादशाह का दामाद बनूँ?"|
\s5
\v 19 लेकिन जब वक़्त आ गया कि साऊल की बेटी मेरब दाऊद से ब्याही जाए, तो वह महूलाती 'अदरीएल से ब्याह दी गई|
\s5
\v 20 और साऊल की बेटी मीकल दाऊद को चाहती थीं, इसलिए उन्होंने साऊल को बताया और वह इस बात से ख़ुश हुआ|
\v 21 तब साऊल ने कहा, मैं उसी को उसे दूँगा, ताकि यह उसके लिए फंदा हो और फ़िलिस्तियों का हाथ उस पर पड़े, इसलिए साऊल ने दाऊद से कहा कि इस दूसरी दफ़ा' तो तू आज के दिन मेरा दामाद हो जाएगा|
\s5
\v 22 और साऊल ने अपने ख़ादिमों को हुक्म किया कि दाऊद से चुपके चुपके बातें करो और कहो कि देख बादशाह तुझ से ख़ुश है और उसके सब ख़ादिम तुझे प्यार करतें हैं इसलिए अब तू बादशाह का दामाद बन जा|
\s5
\v 23 चुनाँचे साऊल के मुलाज़िमों ने यह बातें दाऊद के कान तक पहूँचाईं, दाऊद ने कहा, "क्या बादशाह का दामाद बनना तुमको कोई हल्की बात मा'लूम होती है ,जिस हाल कि मैं ग़रीब आदमी हूँ और मेरी कुछ औक़ात नहीं?"
\v 24 तब साऊल के मुलाज़िमों ने उसे बताया कि दाऊद ऐसा कहता है |
\s5
\v 25 तब साऊल ने कहा, "तुम दाऊद से कहना कि बादशाह मेहर नही माँगता वह सिर्फ़ फ़िलिस्तियों की सौ खलड़ियाँ चाहता है, ताकि बादशाह के दुश्मनों से इन्तक़ाम लिया जाए, साऊल का यह इरादा था, कि दाऊद को फ़िलिस्तियों के हाथ से मरवा डाले |
\v 26 जब उसके ख़ादिमो ने यह बातें दाऊद से कहीं तो दाऊद बादशाह का दामाद बनने को राज़ी हो गया और अभी दिन पूरे भी नहीं हुए थे |
\s5
\v 27 कि दाऊद उठा, और अपने लोगों को लेकर गया और दो सौ फ़िलिस्ती क़त्ल कर डाले और दाऊद उनकी खलड़ियाँ लाया और उन्होंने उनकी पूरी ता'दाद में बादशाह को दिया ताकि वह बादशाह का दामाद हो, और साऊल ने अपनी बेटी मीकल उसे ब्याह दी |
\v 28 और साऊल ने देखा और जान लिया कि ख़ुदावन्द दाऊद के साथ है, और साऊल की बेटी मीकल उसे चाहती थी |
\v 29 और साऊल दाऊद से और भी डरने लगा, और साऊल बराबर दाऊद का दुश्मन रहा|
\s5
\v 30 फिर फ़िलिस्तियों के सरदारों ने धावा किया और जब जब उन्होंने धावा किया साऊल के सब ख़ादिमों की निस्बत दाऊद ने ज़्यादा 'अक़्लमंदी का काम किया इस से उसका नाम बहुत बड़ा हो गया |
\s5
\c 19
\p
\v 1 और साऊल ने अपने बेटे यूनतन और अपने सब ख़ादिमों से कहा, कि दाऊद को मार डालो |
\v 2 लेकिन साऊल का बेटा यूनतन दाऊद से बहुत ख़ुश था इसलिए यूनतन ने दाऊद से कहा, मेरा बाप तेरे क़त्ल की फ़िक्र में है, इसलिए तू सुबह को अपना ख़याल रखना और किसी पोशीदा जगह में छिपे रहना |
\v 3 और मैं बाहर जाकर उस मैदान में जहाँ तू होगा अपने बाप के पास खड़ा हूँगा और अपने बाप से तेरे ज़रिए' बात करूँगा और अगर मुझे कुछ मा'लूम हो जाए तो तुझे बता दूँगा"|
\s5
\v 4 और यूनतन ने अपने बाप साऊल से दाऊद की ता'रीफ की और कहा,कि बादशाह अपने ख़ादिम दाऊद से बुराई न करे क्यूँकि उसने तेरा कुछ गुनाह नहीं किया बल्कि तेरे लिए उसके काम बहुत अच्छे रहे हैं |
\v 5 क्यूँकि उसने अपनी जान हथेली पर रख्खी और उस फ़िलिस्ती को क़त्ल किया और ख़ुदावन्द ने सब इस्राईलियों के लिए बड़ी फ़तह कराई, तूने यह देखा और ख़ुश हुआ, तब तू किस लिए दाऊद को बे वजह क़त्ल करके बे गुनाह के ख़ून का मुजरिम बनना चाहता है?
\s5
\v 6 और साऊल ने यूनतन की बात सुनी और साऊल ने क़सम ख़ाकर कहा कि ख़ुदावन्द की हयात की क़सम है वह मारा नहीं जाएगा|
\v 7 और यूनतन ने दाऊद को बुलाया और उसने वह सब बातें उसको बताईं और यूनतन दाऊद को साऊल के पास लाया और वह पहले की तरह उसके पास रहने लगा |
\s5
\v 8 और फिर जंग हुई और दाऊद निकला और फ़िलिस्तियों से लड़ा और बड़ी ख़ूँरेज़ी के साथ उनको क़त्ल किया और वह उसके सामने से भागे|
\v 9 और ख़ुदावन्द की तरफ़ से एक बुरी रूह साऊल पर जब वह अपने घर में अपना भाला अपने हाथ में लिए बैठा था, चढ़ी और दाऊद हाथ से बजा रहा था, |
\s5
\v 10 और साऊल ने चाहा, कि दाऊद को दीवार के साथ भाले से छेद दे लेकिन वह साऊल के आगे से हट गया, और भाला दीवार में जा घुसा और दाऊद भागा और उस रात बच गया |
\v 11 और साऊल ने दाऊद के घर पर क़ासिद भेजे कि उसकी ताक में रहें और सुबह को उसे मार डालें, इसलिए दाऊद की बीवी मीकल ने उससे कहा, "अगर आज की रात तू अपनी जान न बचाए तो कल मारा जाएगा|"
\s5
\v 12 और मीकल ने दाऊद को खिड़की से उतार दिया, इसलिए वह चल दिया और भाग कर बच गया |
\v 13 और मीकल ने एक बुत को लेकर पलंग पर लिटा दिया, और बकरियों के बाल का तकिया सिरहाने रखकर उसे कपड़ों से ढांक दिया |
\s5
\v 14 और जब साऊल ने दाऊद के पकड़ने को क़ासिद भेजे तो वह कहने लगी, कि वह बीमार है|
\v 15 और साऊल ने क़ासिदों को भेजा कि दाऊद को देखें और कहा, कि उसे पलंग समेत मेरे पास लाओ कि मैं उसे क़त्ल करूँ|
\s5
\v 16 और जब वह क़ासिद अंदर आए, तो देखा कि पलंग पर बुत पड़ा है और उसके सिरहाने बकरियों के बाल का तकिया है|
\v 17 तब साऊल ने मीकल से कहा, "कि तू ने मुझ से क्यूँ ऐसी दग़ा की और मेरे दुश्मन को ऐसे जाने दिया कि वह बच निकला?" मीकल ने साऊल को जवाब दिया, कि वह मुझ से कहने लगा, मुझे जाने दे, मैं क्यूँ तुझे मार डालूँ?
\s5
\v 18 और दाऊद भाग कर बच निकला और रामा में समुएल के पास आकर जो कुछ साऊल ने उससे किया था, सब उसको बताया, तब वह और समुएल दोनों नयोत में जाकर रहने लगे |
\v 19 और साऊल को ख़बर मिली कि दाऊद रामा के बीच नयोत में है |
\v 20 और साऊल ने दाऊद को पकड़ने को क़ासिद भेजे और उन्होंने जो देखा कि नबियों का मजमा' नबुव्वत कर रहा है और समुएल उनका सरदार बना खड़ा है तो ख़ुदा की रूह साऊल के क़ासिदों पर नाज़िल हुई और वह भी नबुव्वत करने लगे|
\s5
\v 21 और जब साऊल तक यह ख़बर पहूँची तो उसने और क़ासिद भेजे और वह भी नबुव्वत करने लगे और साऊल ने फिर तीसरी बार और क़ासिद भेजे और वह भी नबुव्वत करने लगे|
\v 22 तब वह ख़ुद रामा को चला और उस बड़े कुवें पर जो सीको में है पहूँच कर पूछने लगा कि समुएल और दाऊद कहाँ ~हैं? और किसी ने कहा, कि देख वह रामा के बीच नयोत में हैं|
\s5
\v 23 तब वह उधर रामा के नयोत की तरफ़ चला और ख़ुदा की रूह उस पर भी नाज़िल हुई और वह चलते चलते नबुव्वत करता हुआ, रामा के नयोत में पहूँचा |
\v 24 और उसने भी अपने कपड़े उतारे और वह भी समुएल के आगे नबुव्वत करने लगा, और उस सारे दिन और सारी रात नंगा पड़ा रहा, इसलिए यह कहावत चली, "क्या साऊल भी नबियों में है?"
\s5
\c 20
\p
\v 1 और दाऊद रामा के नयोत से भागा, और यूनतन के पास जाकर कहने लगा कि मैंने क्या किया है? मेरा क्या गुनाह है?मैंने तेरे बाप के आगे कौन सी ग़ल्ती की है, जो वह मेरी जान चाहता है?
\v 2 उसने उससे कहा कि ख़ुदा न करे, तू मारा नहीं जाएगा, देख मेरा बाप कोई काम बड़ा हो या छोटा नहीं करता जब तक उसे मुझ को न बताए, फिर भला मेरा बाप इस बात को क्यूँ मुझसे छिपाएगा? ऐसा नहीं|
\s5
\v 3 तब दाऊद ने क़सम खाकर कहा कि तेरे बाप को अच्छी तरह मा'लूम है ,कि मुझ पर तेरे करम की नज़र है इस लिए वह सोचता होगा, कि यूनतन को यह मा'लूम न हो नहीं तो वह दुखी होगा लेकिन यक़ीनन ख़ुदावन्द की हयात और तेरी जान की क़सम मुझ में और मौत में सिर्फ़ एक ही क़दम का फ़ासला है|
\s5
\v 4 तब यूनतन ने दाऊद से कहा कि जो कुछ तेरा जी चाहता हो मैं तेरे लिए वही करूँगा|
\v 5 दाऊद ने यूनतन से कहा कि देख कल नया चाँद है, और मुझे लाज़िम है कि बादशाह के साथ खाने बैठूँ; लेकिन तू मुझे इजाज़त दे कि मैं परसों शाम तक मैदान में छिपा रहूँ |
\s5
\v 6 अगर मैं तेरे बाप को याद आऊँ तो कहना कि दाऊद ने मुझ से बजिद होकर इजाज़त माँगी ताकि वह अपने शहर बैतलहम को जाए, इसलिए कि वहाँ, सारे घराने की तरफ़ से सालाना क़ुर्बानी है|
\v 7 अगर वह कहे कि अच्छा तो तेरे चाकर की सलामती है लेकिन अगर वह ग़ुस्से से भर जाए तो जान लेना कि उसने बदी की ठान ली है |
\s5
\v 8 तब तू अपने ख़ादिम के साथ नरमी से पेश आ, क्यूँकि तूने अपने ख़ादिम को अपने साथ ख़ुदावन्द के 'अहद में दाख़िल कर लिया है, लेकिन अगर मुझ में कुछ बुराई हो तो तू ख़ुद ही मुझे क़त्ल कर डाल तू मुझे अपने बाप के पास क्यूँ पहुँचाए ?|
\v 9 यूनतन ने कहा, "ऐसी बात कभी न होगी, अगर मुझे 'इल्म होता कि मेरे बाप का 'इरादा है कि तुझ से बदी करे तो क्या में तुझे ख़बर न करता?|"
\s5
\v 10 फिर दाऊद ने यूनतन से कहा, "अगर तेरा बाप तुझे सख़्त जवाब दे तो कौन मुझे बताएगा?"
\v 11 यूनतन ने दाऊद से कहा, "चल हम मैदान को निकल जाएँ|" चुनाँचे वह दोनों मैदान को चले गए|
\s5
\v 12 तब यूनतन दाऊद से कहने लगा, "ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा गवाह रहे ,कि जब मैं कल या परसों 'अनक़रीब इसी वक़्त अपने बाप का राज़ लूँ और देखूँ कि दाऊद के लिए भलाई है तो क्या मैं उसी वक़्त तेरे पास कहला न भेजूँगा और तुझे न बताऊँगा?
\v 13 ख़ुदावन्द यूनतन से ऐसा ही बल्कि इससे भी ज़्यादा करे अगर मेरे बाप की यही मर्जी हो कि तुझ से बुराई करे और मैं तुझे न बताऊँ और तुझे रुख़्सत न करदूँ ताकि तू सलामत चला जाए और ख़ुदावन्द तेरे साथ रहे, जैसा वह मेरे बाप के साथ रहा|
\s5
\v 14 और सिर्फ़ यहीं नहीं कि जब तक मैं जीता रहूँ तब ही तक तू मुझ पर ख़ुदावन्द का सा करम करे ताकि मैं मर न जाऊँ;
\v 15 बल्कि मेरे घराने से भी कभी अपने करम को बाज़ न रखना और जब ख़ुदावन्द तेरे दुश्मनों में से एक एक को ज़मीन पर से मिटा और बर्बाद कर डाले तब भी ऐसा ही करना|"
\v 16 इसलिए यूनतन ने दाऊद के ख़ानदान से 'अहद किया और कहा कि "ख़ुदावन्द दाऊद के दुशमनों से बदला ले|
\s5
\v 17 और यूनतन ने दाऊद को उस मुहब्बत की वजह से जो उसको उससे थी दोबारा क़सम खिलाई क्यूँकि उससे अपनी जान के बराबर मुहब्बत रखता था|"
\v 18 तब यूनतन ने दाऊद से कहा कि "कल नया चाँद है और तू याद आएगा, क्यूँकि तेरी जगह ख़ाली रहेगी |
\v 19 और अपने तीन दिन ठहरने के बा'द तू जल्द जाकर उस जगह आ जाना जहाँ, तू उस काम के दिन छिपा था, और उस पत्थर के नज़दीक रहना जिसका नाम अज़ल है|
\s5
\v 20 और मैं उस तरफ़ तीन तीर इस तरह चलाऊँगा, गोया निशाना मारता हूँ |
\v 21 और देख, मैं उस वक़्त लड़के को भेजूँगा कि जा तीरों को ढूँड ले आ, इसलिए अगर मैं लड़के से कहूँ कि देख ,तीर तेरी इस तरफ़ हैं तो तू ~उनको उठा ,कर ले आना क्यूँकि ख़ुदावद की हयात की क़सम तेरे लिए सलामती होगी न कि नुक़्सान |
\s5
\v 22 लेकिन अगर मैं छोकरे से यूँ ~कहूँ कि देख, तीर तेरी उस तरफ़ हैं तो तू अपनी रास्ता लेना क्यूँकि ख़ुदावन्द ने तुझे रुख़्सत किया है|
\v 23 रहा वह मु'आमिला जिसका ज़िक्र तूने और मैंने किया है इस लिए देख ,ख़ुदावन्द हमेशा तक मेरे और तेरे बीच रहे|"
\s5
\v 24 तब दाऊद मैदान मैं जा छिपा और जब नया चाँद हुआ तो बादशाह खाना खाने बैठा |
\v 25 और बादशाह अपने दस्तूर के मुताबिक़ अपनी मसनद पर या'नी उसी मसनद पर जो दीवार के बराबर थी बैठा, और यूनतन खड़ा हुआ, और अबनेर साऊल के पहलू में बैठा, और दाऊद की जगह ख़ाली रही |
\s5
\v 26 लेकिन उस रोज़ साऊल ने कुछ न कहा, क्यूँकि उसने गुमान किया कि उसे कुछ हो गया होगा, वह नापाक होगा, वह ज़रूर नापाक ही होगा |
\v 27 और नए चाँद के बा'द दूसरे दिन दाऊद की जगह फिर ख़ाली रही, तब साऊल ने अपने बेटे यूनतन से कहा कि "क्या वजह है, कि यस्सी का बेटा न तो कल खाने पर आया न आज आया है?"
\s5
\v 28 तब यूनतन ने साऊल को जवाब दिया कि दाऊद ने मुझ से बजिद होकर बैतलहम जाने को इजाज़त माँगी |
\v 29 वह कहने लगा कि "मैं तेरी मिन्नत करता हूँ मुझे जाने दे क्यूँकि शहर में हमारे घराने का ज़बीहा है और मेरे भाई ने मुझे हुक्म किया है कि हाज़िर रहूँ, अब अगर मुझ पर तेरे करम की नज़र है तो मुझे जाने दे कि अपने भाइयों को देखूँ, इसीलिए वह बादशाह के दस्तरख़्वान पर हाज़िर नही हुआ|"
\s5
\v 30 तब साऊल का ग़ुस्सा यूनतन पर भड़का और उसने उससे कहा, "ऐ कजरफ़्तार चण्डालन के बेटे क्या मैं नहीं जानता कि तूने अपनी शर्मिंदगी और अपनी माँ की बरहनगी की शर्मिंदगी के लिए यस्सी के बेटे को चुन लिया है?
\v 31 क्यूँकि जब तक यस्सी का यह बेटा इस ज़मीन पर ज़िन्दा है, न तो तुझ को क़याम होगा न तेरी बादशाहत को, इसलिए अभी लोग भेज कर उसे मेरे पास ला क्यूँकि उसका मरना ज़रूर है|"
\s5
\v 32 तब यूनतन ने अपने बाप साऊल को जवाब दिया "वह क्यूँ मारा जाए? उसने क्या किया है?"
\v 33 तब साऊल ने भाला फेंका कि उसे मारे, इससे यूनतन जान गया कि उसके बाप ने दाऊद के क़त्ल का पूरा 'इरादा किया है|
\v 34 इसलिए यूनतन बड़े ग़ुस्सा में दस्तरख़्वान पर से उठ गया और महीना के उस दूसरे दिन कुछ खाना न खाया क्यूँकि वह दाऊद के लिए दुखी था इसलिए कि उसके बाप ने उसे रुसवा किया|
\s5
\v 35 और सुबह को यूनतन उसी वक़्त जो दाऊद के साथ ठहरा था मैदान को गया और एक लड़का उसके साथ था |
\v 36 और उसने अपने लड़के को हुक्म किया कि दौड़ और यह तीर जो मैं चलाता हूँ ढूँड ला और जब वह लड़का दौड़ा जा रहा था, तो उसने ऐसा तीर लगाया जो उससे आगे गया |
\v 37 और जब वह लड़का उस तीर की जगह पहूँचा जिसे यूनतन ने चलाया था ,तो यूनतन ने लड़के के पीछे पुकार कर कहा, "क्या वह तीर तेरी उस तरफ़ नहीं?"
\s5
\v 38 और यूनतन उस लड़के के पीछे चिल्लाया, तेज़ जा, ज़ल्दी कर ठहरमत ,इस लिए यूनतन के लड़के ने तीरों को जमा' किया और अपने आक़ा के पास लौटा|
\v 39 लेकिन उस लड़के को कुछ मा'लूम न हुआ, सिर्फ़ दाऊद और यूनतन ही इसका राज़ जानते थे |
\v 40 फिर यूनतन ने अपने हथियार उस लड़के को दिए और उससे कहा "इनको शहर को ले जा|"
\s5
\v 41 जैसे ही वह लड़का चला गया दाऊद जुनूब की तरफ़ से निकला और ज़मीन पर औंधा ~होकर तीन बार सिज्दा किया और उन्होंने आपस में एक दूसरे को चूमा और आपस में रोए लेकिन दाऊद बहुत रोया |
\v 42 और यूनतन ने दाऊद से कहा कि सलामत चला जा क्यूँकि हम दोनों ने ख़ुदावन्द के नाम की क़सम खाकर कहा है कि ख़ुदावन्द मेरे और तेरे बीच और मेरी और तेरी नसल के बीच हमेशा तक रहे, इसलिए वह उठ कर रवाना हुआ और यूनतन शहर में चला गया |
\s5
\c 21
\p
\v 1 और दाऊद नोब में अख़ीमलिक काहिन के पास आया; और अख़ीमलिक दाऊद से मिलने को काँपता हुआ आया और उससे कहा,"तू क्यूँ अकेला है ,और तेरे साथ कोई आदमी नहीं?"
\v 2 दाऊद ने अख़ीमलिक काहिन से कहा कि "बादशाह ने मुझे एक काम का हुक्म करके कहा है, कि जिस काम पर मैं तुझे भेजता हूँ, और जो हुक्म मैंने तुझे दिया है वह किसी शख़्स पर ज़ाहिर न हो इस लिए मैंने जवानों को फु़लानी फु़लानी जगह बिठा दिया है |
\s5
\v 3 इसलिए अब तेरे यहाँ क्या है? मेरे हाथ में रोटियों के पाँच टुकड़े या जो कुछ मौजूद हो दे|"
\v 4 काहिन ने दाऊद को जवाब दिया मेरे यहाँ 'आम रोटियाँ तो नहीं लेकिन पाक रोटियाँ हैं; बशर्ते कि वह जवान 'औरतों से अलग रहे हों |"
\s5
\v 5 दाऊद ने काहिन को जवाब दिया "सच तो यह है कि तीन दिन से 'औरतें हमसे अलग रहीं हैं, और अगरचे यह मा'मूली सफ़र है तोभी जब मैं चला था तब इन जवानों के बर्तन पाक थे, तो आज तो ज़रूर ही वह बर्तन पाक होंगे |"
\v 6 तब काहिन ने पाक रोटी उसको दी क्यूँकि और रोटी वहाँ नहीं थी, सिर्फ़ नज़र की रोटी थी ,जो ख़ुदावन्द के आगे से उठाई गई थी ताकि उसके बदले उस दिन जब वह उठाई जाए गर्म रोटी रख्खी जाए |
\s5
\v 7 और वहाँ उस दिन साऊल के ख़ादिमों में से एक शख़्स ख़ुदावन्द के आगे रुका हुआ था, उसका नाम अदोमी दोएग था| यह साऊल के चरवाहों का सरदार था |
\s5
\v 8 फिर दाऊद ने अख़ीमलिक से पूछा "क्या यहाँ तेरे पास कोई नेज़ह या तलवार नहीं? क्यूँकि मैं अपनी तलवार और अपने हथियार अपने साथ नहीं लाया क्यूँकि बादशाह के काम की जल्दी थी |"
\v 9 उस काहिन ने कहा, कि "फ़िलिस्ती जोलियत की तलवार जिसे तूने एला की वादी में क़त्ल किया कपड़े में लिपटी हुई अफ़ूद के पीछे रख्खी है, अगर तु उसे लेना चाहता है तो ले ,उसके 'अलावा यहाँ कोई और नहीं है|" दाऊद ने कहा,"वैसे तो कोई है ही नहीं, वही मुझे दे |"
\s5
\v 10 और दाऊद उठा,और साऊल के ख़ौफ़ से उसी दिन भागा और जात के बादशाह अकीस के पास चला गया |
\v 11 और अकीस के मुलाज़िमों ने उससे कहा, "क्या यही उस मुल्क का बादशाह दाऊद नहीं? क्या इसी के बारे में नाचते वक़्त गा-गा कर उन्होंने आपस में नहीं कहा था कि साऊल ने तो हज़ारों को लेकिन दाऊद ने लाखों को मारा?|"
\s5
\v 12 दाऊद ने यह बातें अपने दिल में रख्खीं और जात के बादशाह अकीस से निहायत डरा |
\v 13 इसलिए वह उनके आगे दूसरी चाल चला और उनके हाथ पड़ कर अपने को दीवाना सा बना लिया,और फाटक के किवाड़ों पर लकीरें खींचने और अपनी थूक को अपनी दाढ़ी पर बहाने लगा |
\s5
\v 14 तब अकीस ने अपने नौकरों से कहा, "लो यह आदमी तो दीवाना है, तुम उसे मेरे पास क्यूँ लाए ?
\v 15 क्या मुझे दीवानों की ज़रूरत है जो तुम उसको मेरे पास लाए हो कि मेरे सामने दीवाना पन करे? क्या ऐसा आदमी मेरे घर में आने पाएगा ?"
\s5
\c 22
\p
\v 1 और दाऊद वहाँ से चला और 'अदूल्लाम के मग़ारे में भाग आया, और उसके भाई और उसके बाप का सारा घराना यह सुनकर उसके पास वहाँ पहुँचा |
\v 2 और सब कंगाल और सब क़र्ज़दार और सब बिगड़े दिल उसके पास जमा' हुए और वह उनका सरदार बना और उसके साथ क़रीबन चार सौ आदमी हो गए |
\s5
\v 3 और वहाँ से दाऊद मोआब के मिसफ़ाह को गया और मोआब के बादशाह से कहा, "मेरे माँ बाप को ज़रा यहीं आकर अपने यहाँ रहने दे जब तक कि मुझे मा'लूम न हो कि ख़ुदा मेरे लिए क्या करेगा|"
\v 4 और वह उनको शाहे मोआब के सामने ले आया, इसलिए वह जब तक दाऊद गढ़ में रहा, उसी के साथ रहे |
\v 5 तब जाद नबी ने दाऊद से कहा, "इस गढ़ में मत रह, रवाना हो और यहूदाह के मुल्क में जा, इसलिए दाऊद रवाना हुआ ,और हारत के बन में चला गया|
\s5
\v 6 और साऊल ने सुना कि दाऊद और उसके साथियों का पता लगा है, और साऊल उस वक़्त रामा के जिब'आ में झाऊ के दरख़्त के नीचे अपना भाला अपने हाथ में लिए बैठा था और उसके ख़ादिम उसके चारों तरफ़ खड़े थे |
\s5
\v 7 तब साऊल ने अपने ख़ादिमों से जो उसके चारों तरफ़ खड़े थे कहा, "सुनों तो ऐ बिनयमीनों |क्या यस्सी का बेटा तुम मैं से हर एक को खेत और ताकिस्तान देगा और तुम सबको हज़ारों और सैकड़ों का सरदार बनाएगा?
\v 8 जो तुम सब ने मेरे ख़िलाफ़ साज़िश की है और जब मेरा बेटा यस्सी के बेटे से 'अहद-ओ-पैमान करता है तो तुम में से कोई मुझ पर ज़ाहिर नहीं करता और तुम में कोई नहीं जो मेरे लिए ग़मगीन हो और मुझे बताए कि मेरे बेटे ने मेरे नौकर को मेरे ख़िलाफ़ घात लगाने को उभारा है, जैसा आज के दिन है ?"
\s5
\v 9 तब अदोमी दोएग ने जो साऊल के ख़ादिमों के बराबर खड़ा था जवाब दिया कि मैंने यस्सी के बेटे को नोब में अख़ीतोब के बेटे अख़ीमलिक काहिन के पास आते देखा |
\v 10 और उसने उसके लिए ख़ुदावन्द से सवाल किया और उसे ज़ाद -ए-राह दिया और फ़िलिस्ती जूलियत की तलवार दी|"
\s5
\v 11 तब बादशाह ने अख़ीतोब के बेटे अख़ीमलिक काहिन को और उसके बाप के सारे घराने को या'नी उन काहिनों को जो नोब में थे बुलवा भेजा और वह सब बादशाह के पास हाज़िर हुए |
\v 12 और साऊल ने कहा, "ऐ अख़ीतोब के बेटे तू सुन| उसने कहा, "ऐ मेरे मालिक मैं हाज़िर हूँ|"
\v 13 और साऊल ने उससे कहा कि "तुम ने या'नी तूने और यस्सी के बेटे ने क्यूँ मेरे ख़िलाफ़ साज़िश की है, कि तूने उसे रोटी और तलवार दी और उसके लिए ख़ुदा से सवाल किया ताकि वह मेरे बर ख़िलाफ़ उठ कर घात लगाए जैसा आज के दिन है?"
\s5
\v 14 तब अख़ीमलिक ने बादशाह को जवाब दिया कि "तेरे सब ख़ादिमों में दाऊद की तरह आमानतदार कौन है? वह बादशाह का दामाद है, और तेरे दरबार में हाज़िर हुआ ,करता और तेरे घर में मु'अज़िज्ज़ है |
\v 15 और क्या मैंने आज ही उसके लिए ख़ुदा से सवाल करना शुरू' किया? ऐसी बात मुझ से दूर रहे, बादशाह अपने ख़ादिम पर और मेरे बाप के सारे घराने पर कोई इल्ज़ाम न लगाए क्यूँकि तेरा ख़ादिम उन बातों को कुछ नहीं जानता ,न थोड़ा न बहुत|"
\s5
\v 16 बादशाह ने कहा, "ऐ अख़ीमलिक! तू और तेरे बाप का सारा घराना ज़रूर मार डाला जाएगा|"
\v 17 फिर बादशाह ने उन सिपाहियों को जो उसके पास खड़े थे हुक्म किया कि "मुड़ो और ख़ुदावन्द के काहिनों को मार डालो क्यूँकि दाऊद के साथ इनका भी हाथ है और इन्होंने यह जानते हुए भी कि वह भागा हुआ है मुझे नही बताया|" लेकिन बादशाह के ख़ादिमों ने ख़ुदावन्द के काहिनों पर हमला करने के लिए हाथ बढाना न चाहा|
\s5
\v 18 तब बादशाह ने दोएग से कहा, "तू मुड़ और उन काहिनों पर हमला कर इसलिए अदोमी दोएग ने मुड़ कर काहिनों पर हमला किया" और उस दिन उसने पचासी आदमी जो कतान के अफ़ूद पहने थे क़त्ल किए |
\v 19 और उसने काहिनों के शहर नोब को तलवार की धार से मारा और मर्दों और औरतों और लड़कों और दूध पीते बच्चों और बैलों और गधों और भेड़ बकरियों को बरबाद किया |
\s5
\v 20 और अख़ीतोब के बेटे अख़ीमलिक के बेटों में से एक जिसका नाम अबीयातर था बच निकला और दाऊद के पास भाग गया |
\v 21 और अबीयातर ने दाऊद को ख़बर दी कि "साऊल ने ख़ुदावन्द के काहिनों को क़त्ल कर ड़ाला है|"
\s5
\v 22 दाऊद ने अबीयातर से कहा, "मैं उसी दिन जब अदोमी दोएग वहाँ मिला जान गया था कि वह ज़रूर साऊल को ख़बर देगा तेरे बाप के सारे घराने के मारे जाने की वजह ~मैं हूँ |
\v 23 इसलिए तू मेरे साथ रह और मत डर -जो तेरी जान चाहता ~है,वह मेरी जान चाहता है, इसलिए तू मेरे साथ सलामत रहेगा|"
\s5
\c 23
\p
\v 1 और उन्होंने दाऊद को ख़बर दी कि "देख ,फ़िलिस्ती क़'ईला से लड़ रहे हैं और खलिहानों को लूट रहे हैं|"
\v 2 तब दाऊद ने ख़ुदावन्द से पूछा कि "क्या मैं जाऊँ और उन फ़िलिस्तियों को मारूं?" ख़ुदावन्द ने दाऊद को फ़रमाया, "जा फ़िलिस्तियों को मार और क़'ईला को बचा|"
\s5
\v 3 और दाऊद के लोगों ने उससे कहा कि "देख ,हम तो यहीं यहूदाह में डरते हैं, तब हम क़'ईला को जाकर फ़िलिस्ती लशकरों का सामना करें तो कितना ज़्यादा न डर लगेगा?"
\v 4 तब दाऊद ने ख़ुदावन्द से फिर सवाल किया ,ख़ुदावन्द ने जवाब दिया कि "उठ क़'ईला को जा क्यूँकि मैं फ़िलिस्तियों को तेरे क़ब्ज़े ~में कर दूँगा|"
\s5
\v 5 इसलिए दाऊद और उसके लोग क़'ईला को गए और फ़िलिस्तियों से लड़े और उनकी मवाशी ले आए और उनको बड़ी खूँरेज़ी के साथ क़त्ल किया ,यूँ दाऊद ने क़'ईलियों को बचाया|
\v 6 जब अख़ीमलिक का बेटा अबीयातर दाऊद के पास क़'ईला को भागा तो उसके हाथ में एक अफ़ूद था जिसे वह साथ ले गया था|
\s5
\v 7 और साऊल को ख़बर हुई कि दाऊद क़'ईला में आया है इसलिए साऊल कहने लगा कि "ख़ुदा ने उसे मेरे क़ब्ज़े में कर दिया क्यूँकि वह जो ऐसे शहर में घुसा है, जिस में फाटक और अड़बंगे हैं तो क़ैद हो गया है|"
\v 8 और साऊल ने जंग के लिए अपने सारे लश्कर को बुला लिया ताकि क़'ईला में जाकर दाऊद और उसके लोगों को घेर ले|
\v 9 और दाऊद को मा'लूम हो गया कि साऊल उसके ख़िलाफ़ बुराई की तदबीरें कर रहा है, इसलिए उसने अबीयातर काहिन से कहा कि "अफ़ूद यहाँ ले आ|"
\s5
\v 10 और दाऊद ने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा तेरे बन्दे ने यह क़त'ई सुना है कि साऊल क़'ईला को आना चाहता है ताकि मेरी वजह से शहर को बरबाद करदे |
\v 11 तब क्या क़'ईला के लोग मुझको उसके हवाले कर देंगे ?क्या साऊल जैसा तेरे बन्दे ने सुना है आएगा? ऐ ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि तू अपने बन्दे को बता दे" ख़ुदावन्द ने कहा, "वह आएगा|"
\s5
\v 12 तब दाऊद ने कहा कि "क्या क़'ईला के लोग मुझे और मेरे लोगों को साऊल के हवाले कर देंगे?" ख़ुदावन्द ने कहा, "वह तुझे हवाले कर देंगे|"
\s5
\v 13 तब दाऊद और उसके लोग जो क़रीबन छ: सौ थे उठकर क़'ईला से निकल गए और जहाँ कहीं जा सके चल दिए और साऊल को ख़बर मिली कि दाऊद क़'ईला से निकल गया तब वह जाने से बाज़ रहा|
\v 14 और दाऊद ने वीराने के क़िलों' में सुकूनत की और दश्त ऐ ज़ीफ़ के पहाड़ी मुल्क में रहा,और साऊल हर रोज़ उसकी तलाश में रहा, लेकिन ख़ुदावन्द ने उसको उसके क़ब्ज़े में हवाले न किया|
\s5
\v 15 और दाऊद ने देखा कि साऊल उसकी जान लेने को निकला है, उस वक़्त दाऊद दश्त-ए-जीफ़ के बन में था |
\v 16 और साऊल का बेटा यूनतन उठकर दाऊद के पास बन में गया और ख़ुदा में उसका हाथ मज़बूत किया |
\s5
\v 17 उसने उससे कहा, "तू मत डर क्यूँकि तू मेरे बाप साऊल के हाथ में नहीं पड़ेगा और तू इस्राईल का बादशाह होगा और में तुझ से दूसरे दर्जे पर हूँगा, यह मेरे बाप साऊल को भी मा'लूम है|"
\v 18 और उन दोनों ने ख़ुदावन्द के आगे 'अहद ओ पैमान किया और दाऊद बन में ठहरा रहा, और यूनतन अपने घर को गया |
\s5
\v 19 तब ज़ीफ़ के लोग जिबा' में साऊल के पास जाकर कहने लगे, "क्या दाऊद हमारे बीच कोहे ह्कीला के बन के क़िलों' में जंगल के जुनूब की तरफ़ छिपा नही है?
\v 20 इसलिए अब ऐ बादशाह तेरे दिल को जो बड़ी आरजू आने की है उसके मुताबिक़ आ और उसको बादशाह के हाथ में हवाले करना हमारा ज़िम्मा रहा|"
\s5
\v 21 तब साऊल ने कहा, "ख़ुदावन्द की तरफ़ से तुम मुबारक हो क्यूँकि तुमने मुझ पर रहम किया|
\v 22 इसलिए अब ज़रा जाकर सब कुछ और पक्का कर लो और उसकी जगह को देख, कर जान लो कि उसका ठिकाना कहाँ है, और किसने उसे वहाँ देखा है, क्यूँकि मुझ से कहा, गया है कि वह बड़ी चालाकी से काम करता है|
\v 23 इसलिए तुम देख भाल कर जहाँ-जहाँ वह छिपा करता है उन ठिकानों का पता लगा कर ज़रूर मेरे पास फिर आओ और मैं तुम्हारे साथ चलूँगा और अगर वह इस मुल्क में कहीं भी हो तो में उसे यहूदाह के हज़ारों हज़ार में से ढूँड निकालूँगा|"
\s5
\v 24 इसलिए वह उठे और साऊल से पहले ज़ीफ़ को गए लेकिन दाऊद और उसके लोग म'ऊन के वीराने में थे जो जंगल के जुनूब की तरफ़ मैदान में था |
\v 25 और साऊल और उसके लोग उसकी तलाश में निकले और दाऊद को ख़बर पहुँची, इसलिए वह चट्टान पर से उतर आया और म'ऊन के वीराने में रहने लगा, और साऊल ने यह सुनकर म'ऊन के वीराने में दाऊद का पीछा किया |
\s5
\v 26 और साऊल पहाड़ की इस तरफ़ और दाऊद और उसके लोग पहाड़ की उस तरफ़ चल रहे थे, और दाऊद साऊल के ख़ौफ़ से निकल जाने की जल्दी कर रहा ,था इसलिए कि साऊल और उसके लोगों ने दाऊद को और उसके लोगों को पकड़ने के लिए घेर लिया था |
\v 27 लेकिन एक क़ासिद ने आकर साऊल से कहा कि "जल्दी चल क्यूँकि फ़िलिस्तियों ने मुल्क पर हमला किया है|"
\s5
\v 28 इसलिए साऊल दाऊद का पीछा छोड़ कर फ़िलिस्तियों का मुक़ाबिला करने को गया इसलिए उन्होंने उस जगह का नाम सिला'हम्मख़ल्कोत रख्खा |
\v 29 और दाऊद वहाँ से चला गया और 'ऐन जदी के क़िलों' में रहने लगा |
\s5
\c 24
\p
\v 1 जब साऊल फ़िलिस्तियों का पीछा करके लौटा तो उसे ख़बर मिली कि दाऊद 'ऐन जदी के वीराने में हैं |
\v 2 इसलिए साऊल सब इस्राईलियों में से तीन हज़ार चुने हुए जवान लेकर जंगली बकरों की चट्टानों पर दाऊद और उसके लोगों की तलाश में चला |
\s5
\v 3 और वह रास्ता में भेड़ सालो के पास पहुँचा जहाँ एक ग़ार था ,और साऊल उस ग़ार में फ़राग़त करने घुसा और दाऊद अपने लोगों के साथ उस ग़ार के अंदरूनी ख़ानों में बैठा ,था |
\v 4 और दाऊद के लोगों ने उससे कहा, "देख,यह वह दिन है ,जसके बारे में ~ख़ुदावन्द ने तुझ से कहा,था कि देख,मैं तेरे दुश्मन को तेरे क़ब्ज़े ~में कर दूँगा और जो तेरा जी चाहे वह तू उससे करना" इसलिए दाऊद उठकर साऊल के जुब्बे का दामन चुपके से काट ले गया |
\s5
\v 5 और उसके बा'द ऐसा हुआ कि दाऊद का दिल बेचैन हुआ ,इसलिए कि उसने साऊल के जुब्बे का दामन काट लिया था |
\v 6 और उसने अपने लोगों से कहा कि "ख़ुदावन्द न करे कि मैं अपने मालिक से जो ख़ुदावन्द का मम्सूह ~है ,ऐसा काम करूं कि अपना हाथ उस पर चलाऊँ इसलिए कि वह ख़ुदावन्द का मम्सुह है|"
\v 7 इसलिए दाऊद ने अपने लोगों को यह बातें कह कर रोका और उनको साऊल पर हमला करने न दिया और साऊल उठ कर ग़ार से निकला और अपनी राह ली |
\s5
\v 8 और बा'द उसके दाऊद भी उठा,और उस ग़ार में से निकला और साऊल के पीछे पुकार कर कहने लगा, "ऐ मेरे मालिक बादशाह!" जब साऊल ने पीछे फिर कर देखा तो दाऊद ने ओंधे मुँह गिरकर सिज्दा किया |
\v 9 और दाऊद ने साऊल से कहा, "तू क्यूँ ऐसे लोगों की बातों को सुनता है,जो कहते है कि दाऊद तेरी बदी चाहता है|?
\s5
\v 10 देख,आज के दिन तूने अपनी आँखों से देखा कि ख़ुदावन्द ने ग़ार में आज ही तुझे मेरे क़ब्ज़े में कर दिया और कुछ ने मुझ से कहा,भी कि तुझे मार डालूँ लेकिन मेरी आँखों ने तेरा लिहाज़ किया और मैंने कहा कि मैं अपने मालिक पर हाथ नहीं चलाऊँगा क्यूँकि वह ख़ुदावन्द का मम्सूह है |
\v 11 'अलावा इसके ऐ मेरे बाप देख,यह भी देख,कि तेरे जुब्बे का दामन मेरे हाथ में है ,और चूँकि मैंने तेरे जुब्बे का दामन काटा और तुझे मार नहीं डाला इसलिए तू जान ले और देख,ले कि मेरे हाथ में किसी तरह,की बदी या बुराई नहीं और मैंने तेरा कोई गुनाह नहीं किया अगर्चे ~तू मेरी जान लेने के दर्पे है |
\s5
\v 12 ख़ुदावन्द मेरे और तेरे बीच इन्साफ़ करे और ख़ुदावन्द तुझ से मेरा बदला ले लेकिन मेरा हाथ तुझ पर नहीं उठेगा |
\v 13 ~ ~पुराने लोगों कि मिसाल है ,कि बुरों से बुराई होती है लेकिन मेरा हाथ तुझ पर नहीं उठेगा |
\s5
\v 14 इस्राईल का बादशाह किस के पीछे निकला? तू किस के पीछे पड़ा है? एक मरे हुए कुत्ते के पीछे,एक पिस्सू के पीछे |
\v 15 जब ख़ुदावन्द ही मुंसिफ हो और मेरे और तेरे बीच फ़ैसला करे और देखे,और मेरा मुक़द्दमा लड़े और तेरे हाथ से मुझे छुड़ाए|"
\s5
\v 16 और ऐसा हुआ,कि जब दाऊद यह बातें साऊल से कह चुका तो साऊल ने कहा, "ऐ मेरे बेटे दाऊद क्या यह तेरी आवाज़ है?और साऊल चिल्ला कर रोने लगा|"
\s5
\v 17 और उसने दाऊद से कहा, "तू मुझ से ज़्यादा सच्चा है इसलिए कि तूने मेरे साथ भलाई की है,हालाँकि मैंने तेरे साथ बुराई की |
\v 18 और तूने आज के दिन ज़ाहिर कर दिया कि तूने मेरे साथ भलाई की है क्यूँकि जब ख़ुदावन्द ने मुझे तेरे क़ब्ज़े में कर दिया तो तूने मुझे क़त्ल न किया |
\s5
\v 19 भला क्या कोई अपने दुश्मन को पाकर उसे सलामत जाने देता है ? इसलिए ख़ुदावन्द उसने की के बदले जो तूने मुझ से आज के दिन की तुझ को नेक अज्र दे|
\v 20 और अब देख,मैं ख़ूब जानता हूँ कि तू यक़ीनन बादशाह होगा और इस्राईल की सल्तनत तेरे हाथ में पड़ कर क़ायम होगी |
\s5
\v 21 इसलिए अब मुझ से ख़ुदावन्द की क़सम खा कि तू मेरे बा'द मेरी नसल को हलाक नहीं करेगा और मेरे बाप के घराने में से मेरे नाम को मिटा नहीं डालेगा|"
\v 22 इसलिए दाऊद ने साऊल से क़सम खाई और साऊल घर को चला गया पर दाऊद और उसके लोग उस गढ़ में जा बैठे |
\s5
\c 25
\p
\v 1 और समुएल मर गया और सब इस्राईली जमा' हुए और उन्होंने उस पर नौहा किया और उसे रामा में उसी के घर में दफ़न किया और दाऊद उठ कर फ़ारान के जंगल को चला गया |
\s5
\v 2 और म'ऊन में एक शख़्स रहता था जिसकी जायदाद करमिल में थी यह शख़्स बहुत बड़ा था और उस के पास तीन हज़ार भेड़ें और एक हज़ार बकरियाँ थीं और यह कर्मिल में अपनी भेड़ों के बाल कतर रहा था |
\v 3 इस शख़्स का नाम नाबाल और उसकी बीवी का नाम अबीजेल था ,यह 'औरत बड़ी समझदार और ख़ूबसूरत थी लेकिन वह आदमी बड़ा बे अदब और बदकार था और वह कालिब के ख़ानदान से था |
\s5
\v 4 और दाऊद ने वीराने में सुना कि नाबाल अपनी भेड़ों के बाल कतर रहा,है |
\v 5 इसलिए दाऊद ने दस जवान रवाना किए और उसने उन जवानों से कहा,कि तुम कर्मिल पर चढ़कर नाबाल के पास जाओ,और मेरा नाम लेकर उसे सलाम कहो |
\v 6 और उस ख़ुश हाल आदमी से यूँ कहो कि तेरी और तेरे घर कि और तेरे माल असबाब की सलामती हो |
\s5
\v 7 मैंने अब सुना है कि तेरे यहाँ बाल कतरने वाले हैं और तेरे चरवाहे हमारे साथ रहे और हमने उनको नुक़्सान नहीं पहूँचाया और जब तक वह कर्मिल में हमारे साथ रहे उनकी कोई चीज़ खोई न गई|
\v 8 तू अपने जवानों से पूछ और वह तुझे बताएँगे ,तब इन जवानों पर तेरे करम की नज़र हो इसलिए कि हम अच्छे दिन आए हैं ,मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि जो कुछ तेरे क़ब्ज़े में आए अपने ख़ादिमों को और अपने बेटे दाऊद को 'अता कर|"
\s5
\v 9 इसलिए दाऊद के जवानों ने जाकर नाबाल से दाऊद का नाम लेकर यह बातें कहीं और चुप हो रहे |
\v 10 नाबाल ने दाऊद के ख़ादिमों को जवाब दिया "कि दाऊद कौन है ?और यस्सी का बेटा कौन है ?इन दिनों बहुत से नौकर ऐसे हैं जो अपने आक़ा के पास से भाग जातें हैं |
\v 11 क्या मैं अपनी रोटी और पानी और ज़बीहे जो मैंनें अपने कतरने वालों के लिए ज़बह किए हैं ,लेकर उन लोगों को दूँ जिनको मैं नहीं जानता कि वह कहाँ के हैं ?|"
\s5
\v 12 इसलिए दाऊद के जवान उलटे पाँव फिरे और लौट गए और आकर यह सब बातें उसे बताईं |
\v 13 तब दाऊद ने अपने लोगों से कहा, "अपनी अपनी तलवार बाँध लो ,इसलिए हर एक ने अपनी तलवार बाँधी और दाऊद ने भी अपनी तलवार लटकाई ,तब क़रीबन चार सौ जवान दाऊद के पीछे चले और दो सौ सामान के पास रहे |
\s5
\v 14 और जवानों में से एक ने नाबाल की बीवी अबीजेल से कहा,कि देख,दाऊद ने वीराने से हमारे आक़ा को मुबारकबाद देने को क़ासिद भेजे लेकिन वह उन पर झुंझलाया |
\v 15 लेकिन इन लोगों ने हम से बड़ी नेकी की और हमारा नुक़्सान नहीं हुआ,और मैदानों में जब तक हम उनके साथ रहे हमारी कोई चीज़ गुम न हुई |
\s5
\v 16 बल्कि जब तक हम उनके साथ भेड़ बकरी चराते रहे वह रात दिन हमारे लिए गोया दीवार थे |
\v 17 इसलिए अब सोच समझ ले कि तू क्या करेगी क्यूँकि हमारे आक़ा और उसके सब घराने के ख़िलाफ़ बदी का मंसूबा बाँधा गया है ,क्यूँकि यह ऐसा ख़बीस आदमी है कि कोई इस से बात नहीं कर सकता|"
\s5
\v 18 तब अबीजेल ने जल्दी की और दो सौ रोटियाँ और मय के दो मश्कीज़े और पाँच पकी पकाई भेंडें और भुने हुए अनाज के पाँच पैमाने और किशमिश के एक सौ ख़ोशे और इन्जीर की दो सौ टिकियाँ साथ लीं और उनको गधों पर लाद लिया |
\v 19 और अपने चाकरों से कहा, "तुम मुझ से आगे जाओ,देखो मैं तुम्हारे पीछे पीछे आती हूँ "और उसने अपने शोहर नाबाल को ख़बर न की |
\s5
\v 20 और ऐसा हुआ,कि जैसे ही वह गधे पर चढ़ कर पहाड़ की आड़ से उतरी दाऊद अपने लोगों के साथ उतरते हुए उसके सामने आया और वह उनको मिली |
\s5
\v 21 और दाऊद ने कहा,था "कि मैं इस पाजी के सब माल की जो वीराने में था बे फ़ाइदा इस तरह निगहबानी की कि उसकी चीज़ों में से कोई चीज़ गुम न हुई क्यूँकि उसने नेकी के बदले मुझ से बदी की |
\v 22 इसलिए अगर मैं सुबह की रोशनी होने तक उसके~लोगों में से एक लड़का भी बाक़ी छोडूँ तो ख़ुदावन्द दाऊद के दुशमनों से ऐसा ही बल्कि इससे ज़्यादा ही करे|"
\s5
\v 23 और अबीजेल ने जो दाऊद को देखा,तो जल्दी की और गधे से उतरी और दाऊद के आगे औंधी गिरीं और ज़मीन पर सरनगूँ ~हो गई |
\v 24 और वह उसके पाँव पर गिर कर कहने लगी, "मुझ पर ऐ मेरे मालिक मुझी पर यह गुनाह हो और ज़रा अपनी लौंडी को इजाज़त दे कि तेरे कान में कुछ कहे और तू अपनी लौंडी की दरख़्वास्त सुन |
\s5
\v 25 मैं तेरी मिन्नत करती हूँ कि मेरा मालिक उस ख़बीस आदमी नाबाल का कुछ ख़याल न करे क्यूँकि जैसा उसका नाम है वैसा ही वह है उसका नाम नाबाल है और हिमाक़त उसके साथ है लेकिन मैंनें जो तेरी लौंडी हूँ अपने मालिक के जवानों को जिनको तूने भेजा था नहीं देखा |
\v 26 और अब ऐ मेरे मालिक !ख़ुदावन्द की हयात की क़सम और तेरी जान ही की क़सम कि ख़ुदावन्द ने जो तुझे ख़ूँरेज़ी से और अपने ही हाथो अपना इन्तक़ाम लेने से बाज़ रख्खा है इसलिए तेरे दुश्मन और मेरे मालिक के बुराई चाहने वाले नाबाल की तरह ठहरें |
\s5
\v 27 अब यह हदिया जो तेरी लौंडी अपने मालिक के सामने लाई है,उन जवानों को जो मेरे ख़ुदावन्द की पैरवी करतें हैं दिया जाए |
\v 28 तू अपनी लौंडी का गुनाह मु'आफ़ करदे क्यूँकि ख़ुदावन्द यक़ीनन मेरे मालिक का घर क़ायम रख्खेगा इसलिए कि मेरे मालिक ख़ुदावन्द की लड़ाईयाँ लड़ता है और तुझ में तमाम 'उम्र बुराई नहीं पाई जाएगी |
\s5
\v 29 और जो इन्सान तेरा पीछा करने और तेरी जान लेने को उठे तोभी मेरे मालिक की जान ज़िन्दगी के बूक़चे में ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के साथ बंधी रहेगी लेकिन तेरे दुशमनों की जानें वह गोया गोफ़न में रखकर फेंक देगा |
\s5
\v 30 और जब ख़ुदावन्द मेरे मालिक से वह सब नेकियाँ जो उसने तेरे हक़ में फ़रमाई हैं कर चुकेगा और तुझ को इस्राईल का सरदार बना देगा |
\v 31 तो तुझे इसका ग़म और मेरे मालिक को यह दिली सदमा न होगा कि तूने बे वजह ख़ून बहाया या मेरे मालिक ने अपना बदला लिया और जब ख़ुदावन्द मेरे मालिक से भलाई करे तो तू अपनी लौंडी को याद करना|"
\s5
\v 32 दाऊद ने अबीजेल से कहा, "कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा मुबारक हो जिसने तुझे आज के दिन मुझ से मिलने को भेजा |
\v 33 और तेरी 'अक़ल्मंदी मुबारक तू ख़ुद भी मुबारक हो जिसने मुझको आज के दिन ख़ूँरेज़ीऔर अपने हाथों अपना बदला लेने से बाज़ रख्खा |
\s5
\v 34 क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की हयात की क़सम जिसने मुझे तुझको नुक़्सान पहुचाने से रोका कि अगर तू जल्दी न करती और मुझ से मिलने को न आती तो सुबह की रोशनी तक नाबाल के लिए एक लड़का भी न रहता|"
\v 35 और दाऊद ने उसके हाथ से जो कुछ वह उसके लिए लाई थी क़ुबूल किया और उससे कहा, "अपने घर सलामत जा ,देख मैंने तेरी बात मानी और तेरा लिहाज़ किया|"
\s5
\v 36 और अबीजेल नाबाल के पास आई और देखा कि उसने अपने घर में शाहाना ज़ियाफ़त की तरह दावत कर रख्खी है और नाबाल का दिल उसके पहलू में ख़ुश है इसलिए कि वह नशे में चूर था ,इसलिए उसने उससे सुबह की रोशनी तक न थोड़ा न बहुत कुछ न कहा,|
\s5
\v 37 सुबह को जब नाबाल का नशा उतर गया तो उसकी बीवी ने यह बातें उसे बताईं तब उसका दिल उसके पहलू में मुर्दा हो गया और वह पत्थर की तरह सुन पड़ गया |
\v 38 और दस दिन के बा'द ऐसा हुआ कि ख़ुदावन्द ने नाबाल को मारा और वह मर गया |
\s5
\v 39 जब दाऊद ने सुना कि नाबाल मर गया तो वह कहने लगा, "कि ख़ुदावन्द मुबारक हो जो नाबाल से मेरी रुसवाई का मुक़द्दमा लड़ा और अपने बन्दे को बुराई से बाज़ रख्खा और ख़ुदावन्द ने नाबाल की शरारत को उसी के सिर पर लादा|"और दाऊद ने अबीजेल के बारे में पैग़ाम भेजा ताकि उससे शादी करे |
\v 40 और जब दाऊद के ख़ादिम करमिल में अबीजेल के पास आए तो उन्होंने उससे कहा, "कि दाऊद ने हमको तेरे पास भेजा है ताकि हम तुझे उससे शादी करने को लें जाएँ|"
\s5
\v 41 इसलिए वह उठी,और ज़मीन पर ओंधे मुँह गिरी और कहने लगी "कि देख,तेरी लौंडी तो नौकर है ताकि अपने मालिक के ख़ादिमों के पाँव धोए |"
\v 42 और अबीजेल ने जल्दी की और उठकर गधे पर सवार हुई और अपनी पाँच लौंडियाँ जो उसके जिलौ में थीं साथ लेलीं और वह दाऊद के क़ासिदों के पीछे पीछे गईं और उसकी बीवी बनी |
\s5
\v 43 और दाऊद ने यज़र'एल की अख़ीनु'अम को भी ब्याह लिया ,इसलिए वह दोनों उसकी बीवियाँ बनीं |
\v 44 और साऊल ने अपनी बेटी मीकल को जो दाऊद की बीवी थी लैस के बेटे जिल्लीमी फिल्ती को दे दिया था |
\s5
\c 26
\p
\v 1 और ज़ीफ़ी जिबा' में साऊल के पास जाकर कहने लगे, "क्या दाऊद हकीला के पहाड़ में जो जंगल के सामने है ,छिपा हुआ,नहीं?"
\v 2 तब साऊल उठा,और तीन हज़ार चुने हुए इस्राईली जवान अपने साथ लेकर ज़ीफ़ के जंगल को गया ताकि उस जंगल में दाऊद को तलाश करे |
\s5
\v 3 और साऊल हकीला के पहाड़ में जो जंगल के सामने है रास्ता के किनारे ख़ेमा ज़न हुआ,पर दाऊद जंगल में रहा,और उसने देखा कि साऊल उसके पीछे जंगल में आया है |
\v 4 तब दाऊद ने जासूस भेज कर मा'लूम कर लिया कि साऊल ~हक़ीक़त में आया है ?
\s5
\v 5 तब दाऊद उठ कर साऊल की ख़ेमागाह,में आया और वह जगह देखी जहाँ साऊल और नेर का बेटा अबनेर भी जो उसके लश्कर का सरदार था आराम कर रहे थे और साऊल गाड़ियों की जगह के बीच सोता था और लोग उसके चारों तरफ़ डेरे डाले हुए थे |
\s5
\v 6 तब दाऊद ने हित्ती अख़ीमलिक जरुयाह के बेटे अबीशै से जो योआब का भाई था कहा "कौन मेरे साथ साऊल के पास ख़ेमागाह में चलेगा ? "अbiशै ने कहा ,मैं तेरे साथ चलूँगा|"
\v 7 इसलिए दाऊद और अबीशै रात को लश्कर में घुसे और देखा कि साऊल गाड़ियों की जगह के बीच में पड़ा सो रहा है और उसका नेज़ा उसके सरहाने ज़मीन में गड़ा हुआ है और अबनेर और लश्कर के लोग उसके चारों तरफ़ पड़े हैं |
\v 8 तब अबीशै ने दाऊद से कहा, "ख़ुदा ने आज के दिन तेरे दुश्मन को तेरे हाथ में कर दिया है इसलिए अब तू ज़रा मुझको इजाज़त दे कि नेज़े के एक ही वार में उसे ज़मीन से पैवंद कर दूँ और मैं उस पर दूसरा वार करने का भी नहीं |
\s5
\v 9 दाऊद ने अबीशै से कहा, "उसे क़त्ल न कर क्यूँकि कौन है जो ख़ुदावन्द के मम्सूह पर हाथ उठाए और बे गुनाह ठहरे|"
\v 10 और दाऊद ने यह भी कहा, "कि ख़ुदावन्द की हयात की क़सम ख़ुदावन्द आप उसको मारेगा या उसकी मौत का दिन आएगा या वह जंग में जाकर मर जाएगा |
\s5
\v 11 लेकिन ख़ुदावन्द न करे कि मैं ख़ुदावन्द के मम्सूह पर हाथ चलाऊँ पर ज़रा उसके सरहाने से यह नेज़ा और पानी की सुराही उठा, ले फिर हम चले चलें|"
\v 12 इसलिए दाऊद ने नेज़ा और पानी की सुराही साऊल के सरहाने से उठा ली और वह चल दिए और न किसी आदमी ने यह देखा और न किसी को ख़बर हुई और न कोई जागा क्यूँकि वह सब के सब सोते थे इसलिए कि ख़ुदावन्द की तरफ़ से उन पर गहरी नींद आई हुई थी |
\s5
\v 13 फिर दाऊद दूसरी तरफ़ जाकर उस पहाड़ की चोटी पर दूर खड़ा रहा, और उनके बीच एक बड़ा फ़ासला था|
\v 14 और दाऊद ने उन लोगों को और नेर के बेटे अबनेर को पुकार कर कहा, "ऐ अबनेर तु जवाब नहीं देता? अबनेर ने जवाब दिया "तू कौन है जो बादशाह को पुकारता है?"
\s5
\v 15 दाऊद ने अबनेर से कहा, "क्या तू बड़ा बहादुर नहीं और कौन बनी इस्राईल में तेरा नज़ीर है? फिर किस लिए तूने अपने मालिक बादशाह की निगहबानी न की? क्यूँकि एक शख़्स तेरे मालिक बादशाह को क़त्ल करने घुसा था |
\v 16 तब यह काम तूने कुछ अच्छा न किया ख़ुदावन्द कि हयात की क़सम तुम क़त्ल के लायक़ हो क्यूँकि तुमने अपने मालिक की जो ख़ुदावन्द का मम्सूह है, निगहबानी न की अब ज़रा देख, कि बादशाह का भाला और पानी की सुराही जो उसके सरहाने थी कहाँ हैं|
\s5
\v 17 तब साऊल ने दाऊद की आवाज़ पहचानी और कहा, "ऐ मेरे बेटे दाऊद क्या यह तेरी आवाज़ है? "दाऊद ने कहा, ऐ मेरे मालिक बादशाह यह मेरी ही आवाज़ है |"
\v 18 और उसने कहा, "मेरा मालिक क्यूँ अपने ख़ादिम के पीछे पड़ा है? मैंने क्या किया है और मुझ में क्या बुराई है ?|
\s5
\v 19 इसलिए अब ज़रा मेरा मालिक बादशाह अपने बन्दे की बातें सुने अगर ख़ुदावन्द ने तुझ को मेरे ख़िलाफ़ उभारा हो तो वह कोई हदिया मंज़ूर करे और अगर यह आदमियों का काम हो तो वह ख़ुदावन्द के आगे ला'नती हों क्यूँकि उन्होंने आज के दिन मुझको ख़ारिज किया है कि मैं ख़ुदावन्द की दी हुई मीरास में शामिल न रहूँ और मुझ से कहते हैं जा और मा'बूदों की 'इबादत कर|
\v 20 इसलिए अब ख़ुदावन्द की सामने से अलग मेरा ख़ून ज़मीन पर न बहे क्यूँकि बनी इस्राईल का बादशाह एक पिस्सू ढूँढने को इस तरह, निकला है जैसे कोई पहाड़ों पर तीतर का शिकार करता हो|"
\s5
\v 21 तब साऊल ने कहा, "कि मैंने ख़ता की -ऐ मेरे बेटे दाऊद लौट आ क्यूँकि मैं फिर तुझे नुक़्सान नहीं पहुचाऊँगा इसलिए की मेरी जान आज के दिन तेरी निगाह में क़ीमती ठहरी -देख,मैंने हिमाक़त की और निहायत बड़ी भूल मुझ से हुई|"
\s5
\v 22 दाऊद ने जवाब दिया "ऐ बादशाह इस भाला को देख, इसलिए जवानों में से कोई आकर इसे ले जाए |
\v 23 और ख़ुदावन्द हर शख़्स को उसकी सच्चाई और दियानतदारी के मुताबिक़ बदला देगा क्यूँकि ख़ुदावन्द ने आज तुझे मेरे हाथ में कर दिया था लेकिन मैंनें न चाहा कि ख़ुदावन्द के मम्सूह पर हाथ उठाऊँ |
\s5
\v 24 और देख, जिस तरह,तेरी ज़िन्दगी आज मेरी नज़र में क़ीमती ठहरी इसी तरह मेरी ज़िंदगी ख़ुदावन्द की निगाह में क़ीमती हो और वह मुझे सब तकलीफ़ों से रिहाई बख़्शे|"
\v 25 तब साऊल ने दाऊद से कहा,"ऐ मेरे बेटे दाऊद तू मुबारक हो तू बड़े बड़े काम करेगा और ज़रूर फ़तहमंद होगा। इसलिए दाऊद अपनी रास्ते~चला गया और साऊल अपने मकान को लौटा |
\s5
\c 27
\p
\v 1 और दाऊद ने अपने दिल में कहा कि अब मैं किसी न किसी दिन साऊल के हाथ से हलाक हूँगा, तब मेरे लिए इससे बेहतर और कुछ नहीं कि मैं फ़िलिस्तियों की सर ज़मीन को भाग जाऊँ और साऊल मुझ से न उम्मीद हो कर बनी इस्राईल की सरहदों में फिर मुझे नहीं ढूँडेगा, यूँ मैं उसके हाथ से बच जाऊँगा|
\s5
\v 2 इसलिए दाऊद उठा और अपने साथ के छ :सौ जवानों को लेकर जात के बादशाह म'ओक के बेटे अकीस के पास गया |
\v 3 और दाऊद उसके लोग जात में अख़ीस के साथ अपने अपने ख़ानदान समेत रहने लगे और दाऊद के साथ भी उसकी दोनों बीवियाँ या'नी यज़र'एली अख़ीनु'अम और नाबाल की बीवी कर्मिली अबीजेल थीं |
\v 4 और साऊल को ख़बर मिली कि दाऊद जात को भाग गया, तब उस ने फिर कभी उसकी तलाश न की |
\s5
\v 5 और दाऊद ने अख़ीस से कहा, "कि अगर मुझ पर तेरे करम की नज़र है तो मुझे उस मुल्क के शहरों में कहीं जगह दिला दे ताकि मैं वहाँ बसूँ, तेरा ख़ादिम तेरे साथ दार-उस -सल्तनत में क्यूँ रहें?"
\v 6 इसलिए अख़ीस ने उस दिन सिक़लाज उसे दिया इसलिए सिक़लाज आज के दिन तक यहूदाह के बादशाहों का है |
\v 7 और दाऊद फ़िलिस्तियों की सर ज़मीन में कुल एक बरस और चार महीने तक रहा|
\s5
\v 8 और दाऊद और उसके लोगों ने जाकर जसूरियों और जज़ीरयों और 'अमालीक़ियों पर हमला किया क्यूँकि वह शोर कि राह से मिस्र की हद तक उस सर ज़मीन के पुराने बाशिंदे थे |
\v 9 और दाऊद ने उस सर ज़मीन को तबाह कर डाला और 'औरत मर्द किसी को ज़िन्दा न छोड़ा और उनकी भेड़ बकरियाँ और बैल और गधे और ऊँट और कपड़े लेकर लौटा और अख़ीस के पास गया |
\s5
\v 10 अख़ीस ने पूछा, "कि आज तुम ने किधर लूट मार की", दाऊद ने कहा,"यहूदाह के~दख्खिन~और यरहमीलियों के दख्खिन और~क़ीनियों के~दख्खिनमें |"
\s5
\v 11 और दाऊद उन में से एक मर्द 'औरत को भी ज़िन्दा बचा कर जात में नहीं लाता था और कहता था कि "कहीं वह हमारी हक़ीक़त न खोल दें ,और कह दें कि दाऊद ने ऐसा ऐसा किया और जब से वह फ़िलिस्तियों के मुल्क में बसा है, तब से उसका यहीं तरीक़ा रहा,है|"
\v 12 और अख़ीस ने दाऊद का यक़ीन कर के कहा, "कि उसने अपनी कौम इस्राईल को अपनी तरफ़ से कमाल नफ़रत दिला दी है इसलिए अब हमेशा यह मेरा ख़ादिम रहेगा|"
\s5
\c 28
\p
\v 1 और उन्हीं दिनों में ऐसा हुआ ,कि फ़िलिस्तियों ने अपनी फ़ौजें जंग के लिए जमा' कीं ताकि इस्राईल से लड़ें और अख़ीस ने दाऊद से कहा,"तू ~यक़ीन जान कि तुझे और तेरे लोगों को लश्कर में हो कर मेरे साथ जाना होगा|"
\v 2 दाऊद ने अख़ीस से कहा, "फिर जो कुछ तेरा ख़ादिम करेगा वह तुझे मा'लूम भी हो जाएगा "अख़ीस ने दाऊद से कहा, "फिर तो हमेशा के लिए तुझ को मैं अपने बुराई का निगहबान ठहराऊँगा|"
\s5
\v 3 और समुएल मर चुका था और सब इस्राईलियों ने उस पर नौहा कर के उसे ~उसके शहर रामा में दफ़न किया था और साऊल ने जिन्नात के आशनाओं और अफ़सूँगरों को मुल्क से ख़ारिज कर दिया था |
\v 4 और फ़िलिस्ती जमा'हुए और आकर शूनीम में डेरे डाले और साऊल ने भी सब इस्राईलियों को जमा' किया और वह जिलबु'आ में ख़ेमाज़न हुए |
\s5
\v 5 और जब साऊल ने फ़िलिस्तियों का लश्कर देखा तो परेशान हुआ, और उसका दिल बहुत काँपने लगा |
\v 6 और जब साऊल ने ख़ुदावन्द से सवाल किया तो ख़ुदावन्द ने उसे न तो ख़्वाबों और न उरीम और न नबियों के वसीले से कोई जवाब दिया |
\v 7 तब साऊल ने अपने मुलाज़िमों से कहा,"कोई ऐसी 'औरत मेरे लिए तलाश करो जिसका आशना जिन्न हो ताकि मैं उसके पास जाकर उससे पूछूँ|" उसके मुलाज़िमों ने उससे कहा, "देख, ऐन दोर में एक 'औरत है जिसका आशना जिन्न है|"
\s5
\v 8 इसलिए साऊल ने अपना भेस बदल कर दूसरी पोशाक पहनी और दो आदमियों को साथ लेकर चला और वह रात को उस 'औरत के पास आए और उसने कहा, "ज़रा मेरी ख़ातिर जिन्न के ज़रिए' से मेरा फ़ाल खोल और जिसका नाम मैं तुझे बताऊँ उसे ऊपर बुला दे|"
\v 9 तब उस 'औरत ने उससे कहा, "देख,तू जानता है कि साऊल ने क्या किया कि उसने जिन्नात के आशनाओं और अफसूँगरों को मुल्क से काट डाला है ,फिर तू क्यूँ ~मेरी जान के लिए फँदा लगाता है ताकि मुझे मरवा डाले|"
\v 10 तब साऊल ने ख़ुदावन्द की क़सम खा कर कहा,"कि ख़ुदावन्द की हयात की क़सम इस बात के लिए तुझे कोई सज़ा नहीं दी जाएगी|"
\s5
\v 11 तब उस 'औरत ने कहा, "मैं किस को तेरे लिए ऊपर बुला दूँ? "उसने कहा, "समुएल को मेरे लिए बुला दे|"
\v 12 जब उस 'औरत ने समुएल को देखा तो बुलंद आवाज़ से चिल्लाई और उस 'औरत ने साऊल से कहा, "तूने मुझ से क्यूँ दग़ा की क्यूँकि तू ~तो साऊल है|"
\s5
\v 13 तब बादशाह ने उससे कहा,"परेशान मत हो, तुझे क्या दिखाई देता है?" उसने साऊल से कहा,"मुझे एक मा'बूद ज़मीन से उपर आते दिखाई देता है|"
\v 14 तब उसने उससे कहा, "उसकी शक्ल कैसी है ? "उसने कहा, "एक बुड्ढा ऊपर को आ रहा है और जुब्बा पहने है," तब साऊल जान गया कि वह समुएल है और उसने मुँह के बल गिर कर ज़मीन पर सिज्दा किया |
\s5
\v 15 समुएल ने साऊल से कहा, "तूने क्यूँ मुझे बेचैन किया कि मुझे ऊपर बुलवाया? " साऊल ने जवाब दिया, "मैं सख़्त परेशान हूँ; क्यूँकि फ़िलिस्ती मुझ से लड़तें हैं और ख़ुदा मुझ से अलग हो गया है और न तो नबियों और न तो ख़्वाबों के वसीले से मुझे जवाब देता है इसलिए मैंने तुझे बुलाया ताकि तू मुझे बताए कि मैं क्या करूँ|"
\s5
\v 16 समुएल ने कहा, " फिर तू मुझ से किस लिए पूछता है जिस हाल कि ख़ुदावन्द तुझ से अलग हो गया और तेरा दुश्मन बना है?
\v 17 और ख़ुदावन्द ने जैसा मेरे ज़रिए' कहा, था वैसा ही किया है, ख़ुदावन्द ने तेरे हाथ से सल्तनत चाक कर ली और तेरे पड़ोसी दाऊद को 'इनायत की है |
\s5
\v 18 इसलिए कि तूने ख़ुदावन्द की बात नहीं मानी और 'अमालीक़ियों से उसके क़हर-ए-शदीद के मुताबिक़ पेश नहीं आया इसी वजह से ख़ुदावन्द ने आज के दिन तुझ से यह बरताव किया |
\v 19 'अलावा इसके ख़ुदावन्द तेरे साथ इस्राईलियों को भी फ़िलिस्तियों के हाथ में कर देगा और कल तू और तेरे बेटे मेरे साथ होंगे और ख़ुदावन्द इस्राइली लश्कर को भी फ़िलिस्तियों के हाथ में कर देगा |
\s5
\v 20 तब साऊल फ़ौरन ज़मीन पर लम्बा होकर गिरा और समुएल की बातों की वजह से निहायत डर गया और उस में कुछ ताक़त बाक़ी न रही क्यूँकि उसने उस सारे दिन और सारी रात रोटी नहीं खाई थी |
\v 21 तब वह 'औरत साऊल के पास आई और देखा कि वह निहायत परेशान है, इसलिए उसने उससे कहा,"देख, तेरी लौंडी ने तेरी बात मानी और मैंने अपनी जान अपनी हथेली पर रख्खी और जो बातें तूने मुझ से कहीं मैंने उनको माना है |
\s5
\v 22 इसलिए अब मैं तेरी मिन्नत करती हूँ कि तू अपनी लौंडी की बात सुन और मुझे 'इजाज़त दे कि रोटी का टुकड़ा तेरे आगे रख्खूँ, तू खा कि जब तू अपनी राह ले तो तुझे ताक़त मिले|"
\v 23 लेकिन उसने इनकार किया और कहा, कि मैं नहीं खाऊँगा लेकिन उसके मुलाज़िम उस 'औरत के साथ मिलकर उससे बजिद हुए, तब उसने उनका कहा, माना और ज़मीन पर से उठ कर पलंग पर बैठ गया |
\s5
\v 24 उस 'औरत के घर में एक मोटा बछड़ा था, इसलिए उसने जल्दी की और उसे ज़बह किया और आटा लेकर गूँधा और बे ख़मीरी रोटियाँ पकाईं ~|
\v 25 और उनको साऊल और उसके मुलाज़िमों के आगे लाई और उन्होंने खाया तब वह उठेऔर उसी रात चले गए |
\s5
\c 29
\p
\v 1 और फ़िलिस्ती अपने सारे लश्कर को अफ़ीक़ में जमा' करने लगे और इस्राईली उस चश्मा के नज़दीक जो यज़रएल में है ख़ेमा ज़न हुए|
\v 2 और फ़िलिस्तियों के उमरा सैकड़ों और हज़ारों के साथ आगे-आगे चल रहे थे और दाऊद अपने लोगों के साथ अख़ीस के साथ पीछे-पीछे जा रहा था |
\s5
\v 3 तब फ़िलिस्ती अमीरों ने कहा, "इन 'इब्रानियों का यहाँ क्या काम है ? "अख़ीस ने फ़िलिस्ती अमीरों से कहा "क्या यह इस्राईल के बादशाह साऊल का ख़ादिम दाऊद नहीं जो इतने दिनों बल्कि इतने बरसों से मेरे साथ है और मैंने जब से वह मेरे पास भाग आया है आज के दिन तक उस में कुछ बुराई नहीं पाई?"
\s5
\v 4 लेकिन फ़िलिस्ती हाकिम उससे नाराज़ हुए और फ़िलिस्ती ने उससे कहा, "इस शख़्स को लौटा दे कि वह अपनी जगह को जो तूने उसके लिए ठहराई है वापस जाए , उसे हमारे साथ जंग पर न जाने दे ऐसा न हो कि जंग में वह हमारा मुख़ालिफ़ हो क्यूँकि वह अपने आक़ा से कैसे मेल करेगा? क्या इन ही लोगों के सिरों से नहीं ?
\s5
\v 5 क्या यह वही दाऊद नहीं जिसके बारे में उन्होंने नाचते वक़्त गा-गा कर एक दूसरे से कहा कि "साऊल ने तो हज़ारों को पर दाऊद ने लाखों को मारा?"
\s5
\v 6 तब अक़ीस ने दाऊद को बुला कर उससे कहा, "ख़ुदवन्द की हयात की क़सम कि तू सच्चा है और मेरी नज़र में तेरा आना जाना मेरे साथ लश्कर में अच्छा है क्यूँकि मैंने ~जिस दिन से तू मेरे पास आया आज के दिन तक तुझ में कुछ बुराई नहीं पाई तोभी यह हाकिम तुझे नहीं चाहते |
\v 7 इसलिए तू अब लौट कर सलामत चला जा ताकि फ़िलिस्ती हाकिम तुझ से नाराज़ न हों|"
\s5
\v 8 दाऊद ने अक़ीस से कहा,"लेकिन मैंने क्या किया है? और जब से मैं तेरे सामने हूँ तब से आज के दिन तक मुझ में तूने क्या बात पाई जो मैं अपने मालिक बादशाह के दुश्मनों से जंग करने को न जाऊँ|"
\v 9 अक़ीस ने दाऊद को जवाब दिया "मैं जानता हूँ कि तू मेरी नज़र में ख़ुदा के फ़रिश्ता की तरह नेक है तोभी फ़िलिस्ती हाकिम ने कहा है कि वह हमारे साथ जंग के लिए न जाए |
\s5
\v 10 इसलिए अब तू सुबह सवेरे अपने आक़ा के ख़ादिमों को लेकर जो तेरे साथ यहाँ आए हैं उठना और जैसे ही तुम सुबह सवेरे उठो रोशनी होते होते रवाना हो जाना|"
\v 11 इसलिए दाऊद अपने लोगों के साथ तड़के उठा ताकि सुबह को रवाना होकर फ़िलिस्तियों के मुल्क को लौट जाए और फ़िलिस्ती यज़र'एल को चले गए|
\s5
\c 30
\p
\v 1 और ऐसा हुआ, कि जब दाऊद और उसके लोग तीसरे दिन सिक़लाज में पहुँचे तो देखा कि 'अमालीक़ियों ने~दख्खिनी~हिस्से और~सिक़लाज पर चढ़ाई कर के सिक़लाज को मारा और आग से फूँक दिया |
\v 2 और 'औरतों को और जितने छोटे बड़े वहाँ थे सब को क़ैद कर लिया है, उन्होंने किसी को क़त्ल नहीं किया बल्कि उनको लेकर चल दिए थे |
\s5
\v 3 इसलिए जब दाऊद और उसके लोग शहर में पहुँचे तो देखा कि शहर आग से जला पड़ा है,और उनकी बीवियाँ और बेटे और बेटियाँ क़ैद हो गई हैं |
\v 4 तब दाऊद और उसके साथ के लोग ज़ोर ज़ोर से रोने लगे यहाँ तक कि उन में रोने की ताक़त न रही |
\s5
\v 5 और दाऊद की दोनों बीवियाँ यज़र'एली अख़ीनु'अम और कर्मिली नाबाल की बीवी अबीजेल क़ैद हो गई थीं |
\v 6 और दाऊद बड़े शिकंजे में था क्यूँकि लोग उसे संगसार करने को कहते थे इसलिए कि लोगों के दिल अपने बेटों और बेटियों के लिए निहायत ग़मग़ीन थे लेकिन दाऊद ने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा में अपने आप को मज़बूत किया |
\s5
\v 7 और दाऊद ने अख़ीमलिक के बेटे अबीयातर काहिन से कहा, "कि ज़रा अफ़ूद को यहाँ मेरे पास ले आ," इसलिए अबीयातर अफ़ूद को दाऊद के पास ले आया |
\v 8 और दाऊद ने ख़ुदावन्द से पूछा कि "अगर मैं उस फ़ौज का पीछा करूँ तो क्या मैं उनको जा लूँगा?" उसने उससे कहा कि "पीछा कर क्यूँकि तू यक़ीनन उनको पालेगा और ज़रूर सब कुछ छुड़ा लाएगा|"
\s5
\v 9 इसलिए दाऊद और वह छ:सौ आदमी जो उसके साथ थे चले और बसोर की नदी पर पहुँचे जहाँ वह लोग जो पीछे छोड़े गए ठहरे रहे |
\v 10 लेकिन दाऊद और चार सौ आदमी पीछा किए चले गए क्यूँकि दो सौ जो ऐसे थक गए थे कि बसोर की नदी के पार न जा सके पीछे रह गए |
\s5
\v 11 और उनको मैदान में एक मिस्री मिल गया, उसे वह दाऊद के पास ले आए और उसे रोटी दी, इसलिए उसने खाई और उसे पीने को पानी दिया |
\v 12 और उन्होंने अंजीर की टिकया का टुकड़ा और किशमिश के दो खोशे उसे दिए, जब वह खा चुका तो उसकी जान में जान आई क्यूँकि उस ने तीन दिन और तीन रात से न रोटी खाई थी न पानी पिया था |
\s5
\v 13 तब दाऊद ने पूछा ~"तू किस का आदमी है ?और तू कहाँ का है?" उस ने कहा "मैं एक मिस्री जवान और एक 'अमालीक़ी का नौकर हूँ और मेरा आक़ा मुझ को छोड़ गया क्यूँकि तीन दिन हुए कि मैं बीमार पड़ गया था|
\v 14 हमने करेतियों के दख्खिन में और यहूदाह के मुल्क में और कालिब के दख्खिन में लूट मार की और सिक़लाज को आग से फूँक दिया |
\s5
\v 15 दाऊद ने उस से कहा ~"क्या तू मुझे उस फ़ौज तक पहुँचा देगा?" उसने कहा "तू मुझ से ख़ुदा की क़सम खा कि न तू मुझे क़त्ल करेगा और न मुझे मेरे आक़ा के हवाले करेगा तो मैं तुझ को उस फ़ौज तक पहुँचा दूँगा|"
\s5
\v 16 जब उसने उसे वहाँ पहुँचा दिया तो देखा कि वह लोग उस सारी ज़मीन पर फैले हुए थे और उसे बहुत से माल की वजह से जो उन्होंने फ़िलिस्तियों के मुल्क और यहूदाह के मुल्क से लूटा था खाते पीते और ज़ियाफतें उड़ा रहे थे |
\v 17 इसलिए दाऊद रात के पहले पहर से लेकर दूसरे दिन की शाम तक उनको मारता रहा, और उन में से एक भी न बचा सिवा चार सौ जवानों के जो ऊँटों पर चढ़ कर भाग गए |
\s5
\v 18 और दाऊद ने सब कुछ जो 'अमालीक़ी ले गए थे छुड़ा लिया और अपनी दोनों बीवियों को भी दाऊद ने छुड़ाया |
\v 19 और उनकी कोई चीज़ गुम न हुई न छोटी न बड़ी न लड़के न लड़कियाँ न लूट का माल न और कोई चीज़ जो उन्होंने ली थी दाऊद सब का सब लौटा लाया |
\v 20 और दाऊद ने सब भेड़ बकरियाँ और गाय और बैल ले लिए और वह उनको बाक़ी जानवर के आगे यह कहते हुए हाँक लाए कि यह दाऊद की लूट है |
\s5
\v 21 और दाऊद उन दो सौ जवानों के पास आया जो ऐसे थक गए थे कि दाऊद के पीछे पीछे न जा सके और जिनको उन्होंने बसोर की नदी पर ठहराया था, वह दाऊद और उसके साथ के लोगों से मिलने को निकले और जब दाऊद उन लोगों के नज़दीक पहुँचा तो उसने उनसे ख़ैर-ओ- 'आफ़ियत पूछी |
\v 22 तब उन लोगों में से जो दाऊद के साथ गए थे सब बद ज़ात और ख़बीस लोगों ने कहा, चूँकि यह हमारे साथ न गए ,इसलिए हम इनको उस माल में से जो हम ने छुड़ाया है कोई हिस्सा नहीं देंगे 'अलावा हर शख़्स की ~बीवी और बाल बच्चों के ताकि वह उनको लेकर चलें जाएँ|
\s5
\v 23 तब दाऊद ने कहा,"ऐ मेरे भाइयों तुम इस माल के साथ जो ख़ुदावन्द ने हमको दिया है ऐसा नहीं करने पाओगे क्यूँकि उसी ने हमको बचाया और उस फ़ौज को जिसने हम पर चढ़ाई की हमारे क़ब्ज़े में कर दिया|
\v 24 और इस काम में तुम्हारी मानेगा कौन? क्यूँकि जैसा उसका हिस्सा है जो लड़ाई में जाता है वैसा ही उसका हिस्सा होगा जो सामान के पास ठहरता है, दोनों बराबर हिस्सा पाएँगे|"
\v 25 और उस दिन से आगे को ऐसा ही रहा कि उसने इस्राईल के लिए यही क़ानून और आईन मुक़र्रर किया जो आज तक है |
\s5
\v 26 और जब दाऊद सिक़लाज में आया तो उसने लूट के माल में से यहूदाह के बुज़ुर्गों के पास जो उसके दोस्त थे कुछ कुछ भेजा और कहा,कि देखो ख़ुदावन्द के दुश्मनों के माल में से यह तुम्हारे लिए हदिया है |
\v 27 यह उनके पास जो बैतएल में और उनके पास जो रामात-उल-जुनूब में और उनके पास जो यतीर में |
\v 28 और उनके पास जो 'अरो'ईर में, और उनके पास जो सिफ़मोत में और उनके पास जो इस्तमु' में |
\s5
\v 29 और उनके पास जो रकिल में और उनके पास जो यरहमीलियों के शहरों में और उनके पास जो क़ीनियों के शहरों में |
\v 30 और उनके पास जो हुरमा में और उनके पास जो कोर'आसान में, और उनके पास जो 'अताक में |
\v 31 और उनके पास जो हबरून में थे और उन सब जगहों में जहाँ जहाँ दाऊद और उसके लोग फ़िरा करते थे, भेजा|
\s5
\c 31
\p
\v 1 और फ़िलिस्ती इस्राईल से लड़े और इस्राईली जवान फ़िलिस्तियों ~के सामने से भागे और पहाड़ी-ए-जिल्बू'आ में क़त्ल होकर गिरे|
\v 2 ~और फ़िलिस्तियों ने साऊल और उसके बेटों का ख़ूब पीछा किया और फ़िलिस्तियों ने साऊल के बेटों यूनतन और अबीनदाब, और मलकीशु'अ को मार डाला |
\v 3 और यह जंग साऊल पर निहायत भारी हो गई और तीरअंदाज़ो ने उसे पा लिया और वह तीरअंदाज़ों की वजह से सख़्त मुश्किल में पड़ गया |
\s5
\v 4 तब साऊल ने अपने सिलाह बरदार से कहा, "अपनी तलवार खींच और उससे मुझे छेद दे ऐसा न हो कि यह नामख़्तून आएँ और मुझे छेद लें, और मुझे बे 'इज्ज़त करें लेकिन उसके सिलाह बरदार ऐसा करना न चाहा, क्यूँकि वह बहुत डर गया था इसलिए साऊल ने अपनी तलवार ली और उस पर गिरा|
\v 5 जब उसके सिलाह बरदार ने देखा ,कि साऊल मर गया तो वह भी अपनी तलवार पर गिरा और उसके साथ मर गया |
\v 6 इसलिए साऊल और उसके तीनों बेटे और उसका सिलाह बरदार और उसके सब लोग उसी दिन एक साथ मर मिटे |
\s5
\v 7 जब उन इस्राईली मर्दों ने जो उस वादी की दूसरी तरफ़ और यरदन के पार थे यह देखा कि इस्राईल के लोग भाग गए और साऊल और उसके बेटे मर गए तो वह शहरों को छोड़ कर भाग निकले और फ़िलिस्ती आए और उन में रहने लगे |
\v 8 दूसरे दिन जब फ़िलिस्ती लाशों के कपड़े उतारने आए तो उन्होंने साऊल और उसके तीनों बेटों को कोहे जिल्बू'आ पर मुर्दा पाया|
\s5
\v 9 इसलिए उन्होंने उसका सर काट लिया और उसके हथियार उतार लिए और फ़िलिस्तियों के मुल्क में क़ासिद रवाना कर दिए, ताकि उनके बुतख़ानों और लोगों को यह ख़ुशख़बरी पहूँचा दें|
\v 10 इसलिए उन्होंने उसके हथियारों को 'अस्तारात के मन्दिर में रख्खा और उसकी लाश को बैतशान की दीवार पर जड़ दिया |
\s5
\v 11 जब यबीस जिल'आद के बाशिंदों ने इसके बारे में वह बात जो फ़िलिस्तियों ने साऊल से की सुनी |
\v 12 तो सब बहादुर उठे, और रातों रात जाकर साऊल और उसके बेटों की लाशें बैतशान की दीवार पर से ले आए और यबीस में पहुँच कर वहाँ उनको जला दिया |
\v 13 और उनकी हड्डियाँ लेकर यबीस में झाऊ के दरख़्त के नीचे दफ़न कीं और सात दिन तक रोज़ा रख्खा |

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\id 2SA
\ide UTF-8
\h २-समूएल
\toc1 २-समूएल
\toc2 २-समूएल
\toc3 2sa
\mt1 २-समूएल
\s5
\c 1
\p
\v 1 ~और साऊल की मौत के बा’द जब दाऊद ‘अमालीक़ियों को मार कर लौटा और दाऊद को सिक़लाज में रहते हुए दो दिन हो गए|
\v 2 तो तीसरे दिन ऐसा हुआ कि एक शख़्स लश्करगाह में से साऊल के पास से अपने लिबास को फाड़े और सिर पर ख़ाक डाले हुए आया और जब वह दाऊद के पास पहुँचा तो ज़मीन पर गिरा और सिज्दा किया|
\s5
\v 3 दाऊद ने उससे कहा, "तू कहाँ से आता है ?" उसने उससे कहा, "मैं इस्राईल की लश्करगाह में से बच निकला हूँ|"
\v 4 तब दाऊद ने उससे पूँछा, "क्या हाल रहा? ज़रा मुझे बता|" उसने कहा कि लोग जंग में से भाग गए,और बहुत से गिरे मर गए और साऊल और उसका बेटा यूनतन भी मर गये हैं|
\v 5 तब दाऊद ने उस जवान से जिसने उसको यह ख़बर दी कहा, "तुझे कैसे मा'लूम है कि साऊल और उसका बेटा यूनतन मर गये ?|"
\s5
\v 6 वह जवान जिसने उसको यह ख़बर दी कहने लगा कि मैं कूह-ए- जिलबू’आ पर अचानक पहुँच गया और क्या देखा कि साऊल अपने नेज़ह पर झुका हुआ है रथ और सवार उसका पीछा किए आ रहे हैं|
\v 7 और जब उसने अपने पीछे नज़र की तो मुझको देखा और मुझे पुकारा, मैंने जवाब दिया मैं हाज़िर हूँ|
\s5
\v 8 उसने मुझे कहा तू कौन है? मैंने उसे जवाब दिया मैं ‘अमालीक़ी हूँ|
\v 9 फिर उसने मुझसे कहा, "मेरे पास खड़ा होकर मुझे क़त्ल कर डाल क्यूँकि मैं बड़े तकलीफ़ में हूँ और अब तक मेरी जान मुझ में है|"
\v 10 तब मैंने उसके पास खड़े होकर उसे क़त्ल किया क्यूँकि मुझे यक़ीन था कि अब जो वह गिरा है तो बचेगा नहीं और मैं उसके सिर का ताज और बाज़ू पर का कंगन लेकर उनको अपने ख़ुदावन्द के पास लाया हूँ|
\s5
\v 11 तब दाऊद ने अपने कपड़ों को पकड़ कर उनको फाड़ डाला और उसके साथ सब आदमियों ने भी ऐसा ही किया|
\v 12 और वह साऊल और उसके बेटे यूनतन और ख़ुदावन्द के लोगों और इस्राईल के घराने के लिये मातम करने लगे और रोने लगे और शाम तक रोज़ा रखा इसलिए कि वह तलवार से मारे गये थे|
\v 13 फिर दाऊद ने उस जवान से जो यह ख़बर लाया था पूछा कि तू कहाँ का है? उसने कहा, "मैं एक परदेसी का बेटा और 'अमालीक़ी हूँ|"
\s5
\v 14 दाऊद ने उससे कहा, "तू ख़ुदावन्द के ममसूह को हलाक करने के लिए उस पर हाथ चलाने से क्यूँ न डरा ?|"
\v 15 फिर दाऊद ने एक जवान को बुलाकर कहा, "नज़दीक जा और उसपर हमला कर|" इसलिए उसने उसे ऐसा मारा कि वह मर गया|
\v 16 और दाऊद ने उससे कहा, ~"तेरा ख़ून तेरे ही सिर पर हो क्यूँकि तू ही ने अपने मुँह से ख़ुद अपने ऊपर गवाही दी| और कहा कि मैंने ख़ुदावन्द के ममसूह को जान से मारा|"
\s5
\v 17 और दाऊद ने साऊल और उसके बेटे यूनतन पर इस मर्सिया के साथ मातम किया|
\v 18 और उसने उनको हुक्म दिया कि बनी यहूदाह को कमान का गीत सिखायें|देखो वह याशर की किताब में लिखा है|
\v 19 "ए इस्राईल !तेरे ही ऊँचे मक़ामों पर तेरा ग़ुरूर मारा गया, हाय !पहलवान कैसे मर गए|
\v 20 यह जात में न बताना, अस्क़लोन की गलियों में इसकी ख़बर न करना, ऐसा न हो कि फ़िलिस्तियों की बेटियाँ ख़ुश हों, ऐसा न हो कि नामख़्तूनों की बेटियाँ ग़ुरूर ~करें|
\s5
\v 21 ऐ जिलबू'आ के पहाड़ों! तुम पर न ओस पड़े और न बारिश हो और न हदिया की चीज़ों के खेत हों, क्यूँकि वहाँ पहलवानों ~की ढाल बुरी तरह से फेंक दी गई, या'नी साऊल की ढाल जिस पर तेल नहीं लगाया गया था|
\v 22 मक़तूलों के ख़ून से ज़बरदस्तों की चर्बी से यूनतन की कमान कभी न टली, और साऊल की तलवार ख़ाली न लौटी|
\s5
\v 23 साऊल और यूनतन अपने जीते जी ‘अज़ीज़ और दिल पसन्द थे और अपनी मौत के वक़्त अलग न हुए, वह 'उक़ाबों से तेज़ और शेर बबरों से ताक़त वर थे|
\v 24 जिसने तुमको अच्छे अच्छे अर्ग़वानी लिबास पहनाए और सोने के ज़ेवरों से तुम्हारे लिबास को आरास्ता किया|
\s5
\v 25 हाय! लड़ाई में पहलवान कैसे मर गये !यूनतन तेरे ऊँचे मक़ामों पर क़त्ल हुआ|
\v 26 ऐ मेरे भाई यूनतन! मुझे तेरा ग़म है, तू मुझको बहुत ही प्यारा था, तेरी मुहब्बत मेरे लिए 'अजीब थी, ’औरतों की मुहब्बत से भी ज़्यादा,|
\v 27 हाय, पहलवान कैसे मर गये और जंग के हथियार बरबाद ~हो गये|"
\s5
\c 2
\p
\v 1 और इसके बा’द ऐसा हुआ कि दाऊद ने ख़ुदावन्द से पूछा कि क्या मैं यहूदाह के शहरों में से किसी में चला जाऊँ| ख़ुदावन्द ने उस से कहा, "ज़ा|" दाऊद ने कहा, "किधर जाऊँ" उस ने फ़रमाया, "हब्रून को|"
\v 2 इसलिए दाऊद अपनी दोनों बीवियों यज़र’एली आख़ीन’अम और कर्मिली नाबाल की बीवी अबीजेल के साथ वहाँ गया|
\v 3 और दाऊद अपने साथ के आदमियों को भी एक एक घराने समेत वहाँ ले गया और वह हब्रून के शहरों में रहने लगे|
\s5
\v 4 तब यहूदाह के लोग आए और वहाँ उन्होंने दाऊद को मसह करके यहूदाह के ख़ानदान का बादशाह बनाया, और उन्होंने दाऊद को बताया कि यबीस जिल’आद के लोगों ने साऊल को दफ़न किया था|
\v 5 इसलिए दाऊद ने यबीस जिल'आद के लोगों के पास क़ासिद रवाना किए और उनको कहला भेजा कि ख़ुदावन्द की तरफ़ से तुम मुबारक हो इसलिए कि तुमने अपने मालिक साऊल पर यह एहसान किया और उसे दफ़न किया|
\s5
\v 6 इसलिए ख़ुदावन्द तुम्हारे साथ रहमत और सच्चाई को ‘अमल में लाये और मैं भी तुमको इस नेकी का बदला दूँगा इसलिए कि तुमने यह काम किया है|
\v 7 तब तुम्हारे बाज़ू ताक़तवर ~हों और तुम दिलेर रहो क्यूँकि तुम्हारा मालिक साऊल मर गया और यहूदाह के घराने ने मसह कर के मुझे अपना बादशाह बनाया है|
\s5
\v 8 लेकिन नेर के बेटे अबनेर ने जो साऊल के लशकर का सरदार था साऊल के बेटे इश्बोसत को लेकर उसे महनायम में पहुँचाया|
\v 9 और उसे जिल’आद और आशरयों और यज़र'ईल और इफ़्राईम और बिनयामीन और तमाम इस्राईल का बादशाह बनाया|
\s5
\v 10 और साऊल के बेटे इश्बोसत की ‘उम्र चालीस बरस की थी जब वह इस्राईल का बादशाह हुआ और उसने दो बरस बादशाही की लेकिन यहूदाह के घराने ने दाऊद की पैरवी की|
\v 11 और दाऊद हब्रून में बनी यहूदाह पर सात बरस छ:महीने तक हाकिम रहा|
\s5
\v 12 फिर नेर का बेटा अबनेर और साऊल के बेटे इश्बोसत के ख़ादिम महनायम से जिब’ऊन में आए|
\v 13 और ज़रोयाह का बेटा योआब और दाऊद के मुलाज़िम निकले और जिब’ऊन के तालाब पर उनसे मिले और दोनों अलग अलग बैठ गये, एक तालाब की इस तरफ़ और दूसरा तालाब की दूसरी तरफ़|
\s5
\v 14 तब अबनेर ने योआब से कहा, "ज़रा यह जवान उठकर हमारे सामने एक दूसरे का मुक़ाबला करें ",योआब ने कहा "ठीक|"
\v 15 तब वह उठकर ता’दाद के मुताबिक़ आमने सामने हुए या’नी साऊल के बेटे इश्बोसत और बिनयामीन की तरफ़ से बारह जवान और दाऊद के ख़ादिमों में से बारह आदमी|
\s5
\v 16 और उन्होंने एक दूसरे का सिर पकड़ कर अपनी अपनी तलवार अपने मुख़ालिफ़ के पेट में भोंक दी, इसलिए वह एक ही साथ गिरे इसलिए वह जगह हल्क़त हस्सोरीम कहलाई वह जिब’ऊन में है|
\v 17 और उस रोज़ बड़ी सख्त़ लड़ाई हुई और अबनेर और इस्राईल के लोगों ने दाऊद के ख़ादिमों से शिकस्त खाई|
\s5
\v 18 और ज़रोयाह के तीनों बेटे योआब, और अबीशे और ‘असाहील वहाँ मौजूद थे और ‘असाहील जंगली हिरन की तरह दौड़ता था|
\v 19 और ‘असाहील ने अबनेर का पीछा किया और अबनेर का पीछा करते वक़्त वह दहने या बाएं हाथ न मुड़ा|
\s5
\v 20 तब अबनेर ने अपने पीछे नज़र करके उससे कहा, "ऐ ‘असाहील क्या तू है|" उसने कहा, "हाँ|"
\v 21 अबनेर ने उससे कहा, "अपनी दहनी या बायीं तरफ़ मुड़ जा और जवानों में से किसी को पकड़ कर उसके हथियार लूट ले|" लेकिन 'असाहेल उसका पीछा करने से बाज़ न आया|
\s5
\v 22 अबनेर ने ‘असाहील से फिर कहा, "मेरा पीछा करने से बाज़ रह मैं कैसे तुझे ज़मीन पर मार कर डाल दूँ क्यूँकि फिर मैं तेरे भाई योआब को क्या मुँह दिखाऊंगा|"
\v 23 इस पर भी उसने मुड़ने से इनकार किया, अबनेर ने अपने भाले के पिछले सिरे से उसके पेट पर ऐसा मारा कि वह पार हो गया तब ~वह वहाँ गिरा और उसी जगह मर गया और ऐसा हुआ कि जितने उस जगह आए जहाँ 'असाहील गिर कर मरा था वह वहीं खड़े रह गये|
\s5
\v 24 लेकिन योआब और अबीशे अबनेर का पीछा करते रहे और जब वह कोह-ए-अम्मा जो दश्त-ए-जिबऊन के रास्ते में जियाह के मुक़ाबिल है पहुँचे तो सूरज डूब गया|
\v 25 और बनी बिनयमीन अबनेर के पीछे इकट्ठे हुए और एक झुण्ड बन गए और एक पहाड़ की चोटी पर खड़े हुए|
\s5
\v 26 तब अबनेर ने योआब को पुकार कर कहा, "क्या ~तलवार हमेशा तक हलाक करती रहे ?क्या तू नहीं जानता कि इसका अंजाम कड़वाहट होगा? तू कब लोगों को हुक्म देगा कि अपने भाइयों का पीछा छोड़ कर लौट जायें|”
\v 27 योआब ने कहा, "ज़िन्दा ख़ुदा की क़सम अगर तू न बोला होता तो लोग सुबह ही को ज़रूर चले जाते और अपने भाइयों का पीछा न करते|"
\s5
\v 28 फिर योआब ने नरसिंगा फूँका और सब लोग ठहर गये और इस्राईल का पीछा फिर न किया और न फिर लड़े
\v 29 और अबनेर और उसके लोग उस सारी रात मैदान चले, और यरदन के पार हुए, और सब बितारोन से गुज़र कर महनायम में आ पहुँचे|
\s5
\v 30 और योआब अबनेर का पीछा छोड़ कर लौटा, और उसने जो सब आदमियों को जमा' किया, तो दाऊद के मुलाज़िमो में से उन्नीस आदमी और 'असाहील कम निकले|
\v 31 लेकिन दाऊद के मुलाज़िमों ने बिनयमीन में से और अबनेर के लोगों में से इतने मार दिए कि तीन सौ साठ आदमी मर गये|
\v 32 और उन्होंने 'असाहील को उठा कर उसे उसके बाप की क़ब्र में जो बैतलहम में थी दफ़न किया और योआब और उसके लोग सारी रात चले और हब्रून पहुँच कर उनको दिन निकला|
\s5
\c 3
\p
\v 1 असल में साऊल के घराने और दाऊद के घराने में मुद्दत तक जंग रही और दाऊद रोज़ ब रोज़ ताक़तवर होता गया और साऊल का ख़ानदान कमज़ोर होता गया|
\s5
\v 2 और हब्रून में दाऊद के यहाँ बेटे पैदा हुए, अमनून उसका पहलौठा था, जो यज़र ऐली अख़नूअम के बतन से था|
\v 3 और दूसरा किलयाब था जो कर्मिली नाबाल की बीवी अबिजेल से हुआ, तीसरा अबी सलोम था जो जसूर के बादशाह तल्मी की बेटी मा'का से हुआ|
\s5
\v 4 चौथा अदुनियाह था जो हज्जीत का बेटा था और पाँचवाँ सफतियाह जो अबीताल का बेटा था|
\v 5 और छठा इत्रि'आम था जो दाऊद की बीवी 'इज्लाह से हुआ, यह दाऊद के यहाँ हब्रून में पैदा हुआ|
\s5
\v 6 और जब साऊल के घराने और दाऊद के घराने में जंग हो रही थी, तो अबनेर ने साऊल के घराने में ख़ूब ज़ोर पैदा कर लिया|
\v 7 और साऊल के एक बाँदी थी जिसका नाम रिस्फ़ाह था, वह अय्याह की बेटी थी इसलिए इश्बोसत ने अबनेर से कहा, ”तू मेरे बाप की बाँदी के पास क्यूँ गया ?”
\s5
\v 8 अबनेर इश्बोसत की इन बातों से बहुत ग़ुस्सा होकर कहने लगा, "क्या मैं यहूदाह के किसी कुत्ते का सिर हूँ ? आज तक मैं तेरे बाप साऊल के घराने और उसके भाइयों और दोस्तों से मेहरबानी से पेश आता रहा हूँ और तुझे दाऊद के हवाले नहीं किया, तो भी तू आज इस 'औरत के साथ मुझ पर 'ऐब लगाता है|
\s5
\v 9 ख़ुदा अबनेर से वैसा ही बल्कि उससे ज़्यादा करे अगर मैं दाऊद से वही सुलूक न करूँ जिसकी क़सम ख़ुदावन्द ने उसके साथ खाई थी|
\v 10 ताकि हुकूमत को साऊल के घराने से हटा कर के दाऊद के तख़्त को इस्राईल और यहूदाह दोनों पर दान से बैरसबा' तक क़ायम करूँ|"
\v 11 और वह अबनेर को एक लफ्ज़ जवाब न दे सका इसलिए कि उससे डरता था|
\s5
\v 12 और अबनेर ने अपनी तरफ़ से दाऊद के पास क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा कि "मुल्क किसका है ?तू मेरे साथ अपना 'अहद बाँध और देख मेरा हाथ तेरे साथ होगा ताकि सारे इस्राईल को तेरी तरफ़ मायल करूँ|”
\v 13 उसने कहा, "अच्छा मैं तेरे साथ 'अहद बाँधूँगा पर मैं तुझसे एक बात चाहता हूँ और वह यह है कि जब तू मुझसे मिलने को आए तो जब तक साऊल की बेटी मीकल को पहले अपने साथ न लाये तू मेरा मुँह देखने नहीं पाएगा|"
\s5
\v 14 और दाऊद ने साऊल के बेटे इश्बोसत को क़ासिदों कि ज़रिए' कहला भेजा कि "मेरी बीवी मीकल को जिसको मैंने फ़िलिस्तियों की सौ खलड़ियाँ देकर ब्याहा था मेरे हवाले कर|"
\v 15 इसलिए इश्बोसत ने लोग भेज कर उसे उसके शौहर लैस के बेटे फ़लतीएल से छीन लिया|
\v 16 और उसका शौहर उसके साथ चला, और उसके पीछे पीछे बहुरीम तक रोता हुआ चला आया, तब अबनेर ने उससे कहा, "लौट जा|” इसलिए वह लौट गया|
\s5
\v 17 और अबनेर ने इस्राईली बुज़ुर्गों के पास ख़बर भेजी, ”गुज़रे दिनों में तुम यह चाहते थे कि दाऊद तुम पर बादशाह हो|
\v 18 तब अब ऐसा करलो, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने दाऊद के हक़ में फ़रमाया है कि मैं अपने बन्दा दाऊद के ज़रिए' अपनी क़ौम इस्राईल को फ़िलिस्तियों और उनके सब दुश्मनों के हाथ से रिहाई दूँगा|”
\s5
\v 19 और अबनेर ने बनी बिनयमीन से भी बातें कीं और अबनेर चला कि जो कुछ इस्राईलियों और बिनयमीन के सारे घराने को अच्छा लगा उसे हब्रून में दाऊद को कह सुनाये|
\v 20 इसलिए अबनेर हब्रून में दाऊद के पास आया और बीस आदमी उसके साथ थे तब दाऊद ने अबनेर और उन लोगों की जो उसके साथ थे मेहमान नवाज़ी की|
\s5
\v 21 अबनेर ने दाऊद से कहा,"अब में उठकर जाऊँगा और सारे इस्राईल को अपने मालिक बादशाह के पास इकट्ठा करूँगा ताकि वह तुझसे ‘अहद बाँधे और तू जिस जिस पर तेरा जी चाहे हुकूमत करे|” ~इसलिए दाऊद ने अबनेर को रुखसत किया और वह सलामत चला गया|
\s5
\v 22 दाऊद के लोग और योआब किसी जंग से लूट का बहुत सा माल अपने साथ लेकर आए : लेकिन अबनेर हबरून में दाऊद के पास नहीं था, क्यूँकि उसे उसने रुख़सत कर दिया था और वह सलामत चला गया था|
\v 23 और जब योआब और लश्कर के सब लोग जो उसके साथ थे आए तो उन्होंने योआब को बताया कि "नेर का बेटा अबनेर बादशाह के पास आया था और उसने उसे रुख़्सत कर दिया और वह सलामत चला गया|"
\s5
\v 24 तब योआब बादशाह के पास आकर कहने लगा, "यह तूने क्या किया? देख !अबनेर तेरे पास आया था, इसलिए तूने उसे क्यूँ रुख़्सत कर दिया कि वह निकल गया|?
\v 25 तू नेर के बेटे अबनेर को जानता है कि वह तुझको धोका देने और तेरे आने जाने और तेरे सारे काम का राज़ लेने आया था|"
\v 26 जब योआब दाऊद के पास से बाहर निकला तो उसने अबनेर के पीछे क़ासिद भेजे और वह उसको सीरह के कुँवें से लौटा ले आए, लेकिन यह दाऊद को मा'लूम नहीं था|
\s5
\v 27 जब अबनेर हब्रून में लौट आया तो योआब उसे अलग फाटक के अन्दर ले गया, ताकि उसके साथ चुपके चुपके बात करे, और वहाँ अपने भाई 'असाहील के ख़ून के बदले में उसके पेट में ऐसा मारा कि वह मर गया|
\s5
\v 28 बा'द में जब दाऊद ने यह सुना तो कहा कि "मैं और मेरी हुकूमत दोनों हमेशा तक ख़ुदावन्द के आगे नेर के बेटे अबनेर के ख़ून की तरफ़ से बे गुनाह हैं|
\v 29 वह योआब और उसके बाप के सारे घराने के सिर लगे, और योआब के घराने में कोई न कोई ऐसा होता रहे जिसे जरयान हो या कोढ़ी या बैसाखी पर चले या तलवार से मरे या टुकड़े टुकड़े को मोहताज हों|"
\v 30 इसलिए योआब और उसके भाई अबीशे ने अबनेर को मार दिया इसलिए कि उसने जिब’ऊन में उनके भाई 'असाहेल को लड़ाई में क़त्ल किया था
\s5
\v 31 और दाऊद ने योआब से और उन सब लोगों से जो उसके साथ थे कहा कि "अपने कपड़े फाड़ो और टाट पहनो और अबनेर के आगे आगे मातम करो|" और दाऊद बादशाह ख़ुद जनाज़े के पीछे पीछे चला|
\v 32 और उन्होंने अबनेर को हब्रून में दफ़न किया और बादशाह अबनेर की क़ब्र पर ज़ोर ज़ोर से रोया और सब लोग भी रोए|
\s5
\v 33 और बादशाह ने अबनेर पर मर्सिया कहा, "क्या अबनेर को ऐसा ही मरना था जैसे बेवकूफ़ मरता है ?|
\v 34 तेरे हाथ बंधे न थे और न तेरे पाँव बेड़ियों में थे, जैसे कोई बदकारों के हाथ से मरता है वैसे ही तू मारा गया|" तब उसपर सब लोग दोबारह रोए|
\s5
\v 35 और सब लोग कुछ दिन रहते दाऊद को रोटी खिलाने आए लेकिन दाऊद ने क़सम खाकर कहा, "अगर मैं सूरज के गु़रूब होने से पहले रोटी या और कुछ चखूँ तो ख़ुदा मुझ से ऐसा बल्कि इससे ज़्यादा करे|"
\v 36 और सब लोगों ने इस पर ग़ौर किया और इससे ख़ुश हुए क्यूँकि जो कुछ बादशाह करता था सब लोग उससे ख़ुश होते थे|
\s5
\v 37 तब सब लोगों ने और तमाम इस्राईल ने उसी दिन जान लिया कि नेर के बेटे अबनेर का क़त्ल होना बादशाह की तरफ़ से न था|
\v 38 और बादशाह ने अपने मुलाज़िमों से कहा, “क्या तुम नहीं जानते हो कि आज के दिन एक सरदार बल्कि एक बहुत बड़ा आदमी इस्राईल में मरा है?
\v 39 और अगर्चे मैं मम्सूह बादशाह हूँ तो भी आज के दिन बेबस हूँ और यह लोग बनी ज़रोयाह मुझसे ~ताक़तवर हैं ख़ुदावन्द बदकारों को उसकी गुनाह के मुताबिक़ बदला दे|”
\s5
\c 4
\p
\v 1 जब साऊल के बेटे इश्बोसत ने सुना कि अबनेर हब्रून में मर गया तो उसके हाथ ढीले पड़ गए, और सब इस्राईली घबरा गए|
\v 2 और साऊल के बेटे इश्बोसत के दो आदमी थे जो फ़ौजों के सरदार थे, एक का नाम बा'ना और दूसरे का रेकाब था, यह दोनों बिनयमीन की नसल के बैरूती रिम्मोंन के बेटे थे, क्यूँकि बैरूत भी बनी बिनयमीन का गिना जाता है|
\v 3 और बैरूती जित्तीम को भाग गए थे चुनाँचे आज के दिन तक वह वहीं रहते हैं|
\s5
\v 4 और साऊल के बेटे यूनतन का एक लंगड़ा बेटा था, जब साऊल और यूनतन की ख़बर यज़र'एल से पहुँची तो एह पाँच बरस का था, तब उसकी दाया उसको उठा कर भागी और और उसने जो भागने में जल्दी की तो ऐसा हुआ कि वह गिर पड़ा और वह लंगड़ा हो गया उसका नाम मिफ़ीबोसत था|
\s5
\v 5 और बैरूती रिम्मोन के बेटे रेकाब और बा'ना चले और कड़ी धूप के वक़्त इश्बोसत के घर आए जब दोपहर को आराम कर रहा था|
\v 6 तब वह वहाँ घर के अन्दर गेंहूँ लेने के बहाने से घुसे और उसके पेट में मारा और रेकाब और उसका भाई बा'ना भाग निकले|
\v 7 जब वह घर में घुसे तो वह अपनी आरामगाह में अपने बिस्तर पर सोता था, तब उन्होंने उसे मारा और क़त्ल किया और उसका सिर काट दिया और उसका सिर लेकर तमाम रात मैदान की राह चले|
\s5
\v 8 और इश्बोसत का सिर हब्रून में दाऊद के पास ले आए और बादशाह से कहा, "तेरा दुश्मन साऊल जो तेरी जान का तालिब था यह उसके बेटे इश्बोसत का सिर है, इसलिए ख़ुदावन्द ने आज के दिन मेरे मालिक बादशाह का बदला साऊल और उसकी नसल से लिया|"
\v 9 तब दाऊद ने रेकाब और उसके भाई बा'ना को बैरूती रिममोन के बेटे थे जवाब दिया कि "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम जिसने मेरी जान को हर मुसीबत से रिहाई दी है|
\v 10 जब एक शख्स़ ने मुझसे कहा कि देख साऊल मर गया और समझा कि ख़ुशख़बरी देता है तो मैंने उसे पकड़ा और सिक़लाज में उसे क़त्ल किया यही सज़ा मैंने उसे उसकी ख़बर के बदले दिया|
\s5
\v 11 तब जब बदकारों ने एक सच्चे इन्सान को उसी के घर में उसके बिस्तर पर क़त्ल किया है, तो क्या मैं अब उसके ख़ून का बदला तुमसे ज़रूर न ~लूँ और तुमको ज़मीन पर से मिटा न ~डालूँ ?|”
\v 12 तब दाऊद ने अपने जवानों को हुक्म दिया, और उन्होंने उनको क़त्ल किया और उनके हाथ और पाँव काट डाले, और उनको हब्रून में तालाब के पास टाँग दिया और इश्बोसत के सिर को लेकर उन्होंने हब्रून में अबनेर की क़ब्र में दफ़न किया|
\s5
\c 5
\p
\v 1 तब इस्राईल के सब क़बीले हब्रून में दाऊद के पास आकर कहने लगे, "देख हम तेरी हड्डी और तेरा गोश्त हैं|
\v 2 और गुज़रे ज़माने में जब साऊल हमारा बादशाह था, तो तू ही इस्राईलियों को ले जाया और ले आया करता था: और ख़ुदावन्द ने तुझसे कहा कि तू मेरे इस्राईली लोगों की गल्ला बानी करेगा और तू इस्राईल का सरदार होगा|"
\s5
\v 3 ग़र्ज़ इस्राईल के सब बुज़ुर्ग हब्रून में बादशाह के पास आए और दाऊद बादशाह ने हब्रून में उनके साथ ख़ुदावन्द के सामने 'अहद बाँधा और उन्होंने दाऊद को मसह करके इस्राईल का बादशाह बनाया|
\v 4 और दाऊद जब हुकूमत करने लगा तो तीस बरस का था और उसने चालीस बरस बादशाहत की|
\v 5 उसने हब्रून में सात बरस छ: महीने यहूदाह पर हुकूमत की और यरुशलीम में सब इस्राईल और यहूदाह पर तैंतीस बरस बादशाहत की|
\s5
\v 6 फिर बादशाह और उसके लोग यरुशलीम को यबूसियों पर जो उस मुल्क के बाशिंदे थे चढ़ाई करने लगे, उन्होंने दाऊद से कहा, "जब तक तू अंधों और लंगड़ों को न ले जाए यहाँ नहीं आने पायेगा|" वह समझते थे कि दाऊद यहाँ नहीं आ सकता है|
\v 7 तो भी दाऊद ने सीय्योन का क़िला' ले लिया, वही दाऊद का शहर है|
\s5
\v 8 और दाऊद ने उस दिन कहा कि "जो कोई यबूसियों को मारे वह नाले को जाए और उन लंगड़ों और अंधों को मारे जिन से दाऊद के दिल को नफ़रत है|" ~इसी लिए यह कहावत है कि "अंधे और लंगड़े वहाँ हैं, इसलिए वह घर में नहीं आ सकता|"
\v 9 और दाऊद उस क़िला' में रहने लगाऔर उसने उसका नाम दाऊद का शहर रखा और दाऊद ने चारों तरफ़ मिल्लो से लेकर अन्दर के रुख़ तक बहुत कुछ ता'मीर किया|
\v 10 और दाऊद बढ़ता ही गया क्यूँकि ख़ुदावन्द लश्करों का ख़ुदा उसके साथ था|
\s5
\v 11 और सूर के बादशाह हेरान ने क़ासिदों को और देवदार की लकड़ियों और बढ़इयों और राजगीरों को दाऊद के पास भेजा और उन्होंने दाऊद के लिए एक महल बनाया|
\v 12 और दाऊद को यक़ीन हुआ कि ख़ुदावन्द ने उसे इस्राईल का बादशाह बनाकर क़यास बख़्शा, और उसने उसकी हुकूमत को अपनी क़ौम इस्राईल की खा़तिर मुम्ताज़ किया है|
\s5
\v 13 और हब्रून से चले आने के बा'द दाऊद ने यरुशलीम से और बाँदियाँ ~रख लीं और बीवियाँ कीं और दाऊद के यहाँ और बेटे बेटियाँ पैदा हुईं|
\v 14 और जो यरुशलीम में उसके यहाँ पैदा हुए, उनके नाम यह हैं सम्मू'आ, और सोबाब और नातन और सुलैमान|
\v 15 और इबहार और इलीसू और नफ़ज और यफ़ी’|
\v 16 और इलीसमा’ और इलयदा और इलीफ़ालत|
\s5
\v 17 और जब फ़िलिस्तियों ने सुना कि उन्होंने दाऊद को मसह करके इस्राईल का बादशाह बनाया है, तो सब फ़िलिस्ती दाऊद की तलाश में चढ़ आए और दाऊद को ख़बर हुई, तब वह क़िला' में चला गया|
\v 18 और फ़िलिस्ती आकर रिफ़ाईम की वादी में फ़ैल गये|
\s5
\v 19 तब दाऊद ने ख़ुदा से पूँछा, "क्या मैं फ़िलिस्तियों के मुक़ाबला को जाऊँ ?क्या तू उनको मेरे क़ब्ज़े ~में कर देगा ?" ~ख़ुदावन्द ने दाऊद से कहा कि "जा|" क्यूँकि मैं ज़रूर फ़िलिस्तियों को तेरे क़ब्ज़े में कर दूँगा|”
\v 20 फिर दाऊद बा'ल प्राज़ीम में आया और वहाँ दाऊद ने उनको मारा और कहने लगा कि "ख़ुदावन्द ने मेरे दुश्मनों को मेरे सामने तोड़ डाला जैसे पानी टूट कर बह निकलता है|" ~तब उसने उस जगह का नाम बा'ल प्राज़ीम रखा|
\v 21 और वहीं उन्होंने अपने बुतों को छोड़ दिया था तब दाऊद और उसके लोग उनको ले गए|
\s5
\v 22 और फ़िलिस्ती फिर चढ़ आए और रिफ़ाईम की वादी में फ़ैल गये|
\v 23 और जब दाऊद ने ख़ुदावन्द से पूँछा तो उसने कहा, "तू चढ़ाई न कर, उनके पीछे से घूम कर तूत के दरख़्तों के सामने से उन पर हमला कर|
\s5
\v 24 और जब तूत के दरख़्तों की फुन्गियों में तुझे फ़ौज के चलने की आवाज़ सुनाई दे तो चुस्त हो जाना, क्यूँकि उस वक़्त ख़ुदावन्द तेरे आगे आगे निकल चुका होगा, ताकि फ़िलिस्तियों के लश्कर को मारे|"
\v 25 और दाऊद ने जैसा ख़ुदावन्द ने उसे फ़रमाया था वैसा ही किया और फ़िलिस्तियों को जिबा' से जज़र तक मारता गया|
\s5
\c 6
\p
\v 1 और दाऊद ने फिर इस्राईलियों के सब चुने हुए तीस हज़ार मर्दों को जमा' किया|
\v 2 और दाऊद उठा और सब लोगों को जो उसके साथ थे लेकर बा'ला यहूदाह से चला ताकि ख़ुदा के संदूक़ को उधर से ले आए, जो उस नाम का या'नी रब्ब-उल-अफ़्वाज के नाम का कहलाता है, जो करूबियों पर बैठता है|
\s5
\v 3 तब उन्होंने ख़ुदा के संदूक़ को नई गाड़ी पर रखा और उसे अबीनदाब के घर से जो पहाड़ी पर था निकाल लाये, और उस नई गाड़ी को अबीनदाब के बेटे उज़्ज़ह और अख़ियो हॉकने लगे|
\v 4 और वह उसे अबीनदाब के घर से जो पहाड़ी पर था ख़ुदा के संदूक़ के साथ निकाल लाये, और अख़ियो संदूक़ के आगे आगे चल रहा था|
\v 5 और दाऊद और इस्राईल का सारा घराना सनोबर की लकड़ी के सब तरह के साज़ और सितार बरबत और दफ़ और ख़न्जरी और झाँझ ख़ुदावन्द के आगे आगे बजाते चले|
\s5
\v 6 और जब वह नकोन के खलियान पर पहुँचे तो उज़्ज़ह ने ख़ुदा के संदूक़ की तरफ़ हाथ बढ़ाकर उसे थाम लिया, क्यूँकि बैलों ने ठोकर खाई थी|
\v 7 तब ख़ुदावन्द का ग़ुस्सा उज़्ज़ह पर भड़का और ख़ुदा ने वहीं उसे उसकी ख़ता की वजह ~से मारा, और वह वहीं ख़ुदा के संदूक़ के पास मर गया|
\s5
\v 8 और दाऊद इस वजह ~से कि ख़ुदा उज़्ज़ह पर टूट पड़ा नाख़ुश हुआ, और उसने उस जगह का नाम परज़ उज़्ज़ह रख्खा जो आज के दिन तक है|
\v 9 और दाऊद उस दिन ख़ुदावन्द से डर गया और कहने लगा कि "ख़ुदावन्द का संदूक़ मेरे यहाँ क्यूँकर आए ?|"
\s5
\v 10 और दाऊद ने ख़ुदावन्द के संदूक़ को अपने यहाँ, दाऊद के शहर में ले जाना न चाहा, बल्कि दाऊद उसे एक तरफ़ जाती 'ओबेदअदूम के घर ले गया|
\v 11 और ख़ुदावन्द का संदूक़ जाती ओबेदअदूम के घर में तीन महीने तक रहा और ख़ुदावन्द ने ओबेदअदूम को और उसके सारे घराने को बरकत दी|
\s5
\v 12 और दाऊद बादशाह को ख़बर मिली कि ख़ुदावन्द ने 'ओबेदअदूम के घराने ~को और उसकी हर चीज़ में ख़ुदा के संदूक़ की वजह से बरकत दी है, तब दाऊद गया और ख़ुदा के संदूक़ को 'ओबेदअदूम के घर से दाऊद के शहर में ख़ुशी ख़ुशी ले आया|
\v 13 और ऐसा हुआ कि जब ख़ुदावन्द के संदूक़ के उठाने वाले छ:क़दम चले तो दाऊद ने एक बैल और एक मोटा बछड़ा ज़बह किया|
\s5
\v 14 और दाऊद ख़ुदावन्द के सामनेअपने सारे ज़ोर से नाचने लगा, और दाऊद कतान का अफ़ूद पहने था|
\v 15 तब दाऊद और इस्राईल का सारा घराना ख़ुदावन्द के संदूक़ को ललकारते और नरसिंगा फूँकते हुए लाये|
\s5
\v 16 और जब ख़ुदावन्द का संदूक़ दाऊद के शहर के अन्दर आ रहा था, तो साऊल की बेटी मीकल ने खिड़की से निगाह की और दाऊद बादशाह को ख़ुदावन्द के सामने उछलते और नाचते देखा, तब उसने अपने दिल ही दिल में हक़ीर जाना|
\v 17 और वह ख़ुदा के संदूक़ को अन्दर लाये और उसे उसकी जगह पर उस ख़ेमा के बीच जो दाऊद ने उसके लिए खड़ा किया था रख्खा, और दाऊद ने सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और सलामती की क़ुर्बानियाँ ख़ुदावन्द के आगे पेश कीं|
\s5
\v 18 और जब दाऊद सोख़्तनी क़ुर्बानी और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश कर चुका, तो उसने रब्बुल अफ़्वाज के नाम से लोगों को बरकत दी|
\v 19 और उसने सब लोगों या'नी इस्राईल के सारे जमा'त के मर्दों और 'औरतों दोनों को एक एक रोटी और एक एक टुकड़ा गोश्त और किशमिश की एक एक टिकया बाँटी, फिर सब लोग अपने अपने घर चले गये|
\s5
\v 20 तब दाऊद लौटा ताकि अपने घराने को बरकत दे और साऊल की बेटी मीकल दाऊद के इस्तक़बाल को निकली और कहने लगी कि "इस्राईल का बादशाह आज कैसा शानदार मा'लूम होता था जिसने आज के दिन अपने मुलाज़िमों की लौंडियों के सामने अपने को नंगा किया जैसे कोई नौजवान बेहयाई से नंगा हो जाता है|"
\s5
\v 21 दाऊद ने मीकल से कहा, "यह तो ख़ुदावन्द के सामने था जिसने तेरे बाप और उसके सारे घराने को छोड़ कर मुझे पसन्द किया, ताकि वह मुझे ख़ुदावन्द की क़ौम इस्राईल का रहनुमा बनाये, इसलिए मैं ख़ुदावन्द के आगे नाचूँगा|
\v 22 बल्कि मैं इससे भी ज़्यादा ज़लील हूँगा और अपनी ही नज़र में नीच हूँगा और जिन लौंडियों का ज़िक्र तूने किया है वहीं मेरी इज़्ज़त करेंगी|”
\v 23 इसलिए साऊल की बेटी मीकल मरते दम तक बे औलाद रही|
\s5
\c 7
\p
\v 1 जब बादशाह अपने महल में रहने लगा, और ख़ुदावन्द ने उसे उसको चारों तरफ़ के सब दुश्मनों से आराम बख़्शा|
\v 2 तो बादशाह ने नातन नबी से कहा, "देख मैं तो देवदार की लकड़ियों के घर में रहता हूँ लेकिन ख़ुदावन्द का संदूक़ पर्दों के अन्दर रहता है|"
\s5
\v 3 तब नातन ने बादशाह से कहा. “जा जो कुछ तेरे दिल में है कर क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरे साथ है|”
\v 4 और उसी रात को ऐसा हुआ कि ख़ुदावन्द का कलाम नातन को पहुँचा कि|
\v 5 "जा और मेरे बन्दा दाऊद से कह, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि क्या तू मेरे रहने के लिए एक घर बनाएगा ?
\s5
\v 6 क्यूँकि जब से मैं बनी इस्राईल को मिस्र से निकाल लाया आज के दिन तक किसी घर में नहीं रहा, बल्कि ख़ेमा और मसकन में फिरता रहा हूँ|
\v 7 और जहाँ जहाँ मैं सब बनी इस्राईल के साथ फिरता रहा, क्या मैं ने कहीं किसी इस्राईली क़बीले से जिसे मैंने हुक्म किया कि मेरी क़ौम इस्राईल की गल्ला बानी करो यह कहा कि तुमने मेरे लिए देवदार की लकड़ियों का घर क्यों नहीं बनाया ?|
\s5
\v 8 इसलिए अब तू मेरे बन्दा ~दाऊद से कहा ~कि रब्बुल अफ़्वाज यूँ फ़रमाता है, कि मैंने तुझे भेड़साला से जहाँ तू भेड़ बकरियों के पीछे पीछे फिरता था लिया, ताकि तू मेरी क़ौम इस्राईल का रहनुमा हो|
\v 9 और मैं जहाँ जहाँ तू गया तेरे साथ रहा, और तेरे सब दुश्मनों को तेरे सामने से काट डाला है, और मैं दुनिया के बड़े बड़े लोगों के नाम की तरह तेरा नाम बड़ा करूँगा|
\s5
\v 10 और मैं अपनी क़ौम इस्राईल के लिए एक जगह मुक़र्रर करूँगा, और वहाँ उनको जमाऊँगा ताकि वह अपनी ही जगह बसें और फिर हटाये न जायें, और शरारत के फ़र्ज़न्द उनको फिर दुख नहीं देने पायेंगे जैसा पहले होता था|
\v 11 और जैसा उस दिन से होता आया, जब मैंने हुक्म दिया, कि मेरी क़ौम इस्राईल पर क़ाज़ी हों और मैं ऐसा करूँगा, कि तुझको तेरे सब दुश्मनों से आराम मिले ~इसके अलावा ख़ुदावन्द तुझको बताता है कि ख़ुदावन्द तेरे घरको बनाये रख्खेगा|
\s5
\v 12 और जब तेरे दिन पूरे हो जायेंगे और तू अपने बाप दादा के साथ मर जाएगा, तो मैं तेरे बा'द तेरी नसल को जो तेरे सुल्ब से होगी, खड़ा करके उसकी हुकूमत को क़ायम करूँगा|
\v 13 वही मेरे नाम का एक घर बनाएगा और मैं उसकी बादशाहत का तख़्त हमेशा के लिए क़ायम करूँगा |
\v 14 और मैं उसका बाप हूँगा और वह मेरा बेटा होगा, अगर वह ख़ता करे तो मैं उसे आदमियों की लाठी और बनी आदम के ताज़िया नों से नसीहत करूँगा|
\s5
\v 15 लेकिन मेरी रहमत उससे जुदा न होगी, जैसे मैंने उसे साऊल से जुदा किया जिसे मैंने तेरे आगे से हटा दिया|
\v 16 और तेरा घर और तेरी बादशाहत हमेशा बनी रहेगी, तेरा तख़्त हमेशा के लिए क़ायम किया जायेगा|"
\v 17 जैसी यह सब बातें और यह सारा ख़्वाब था वैसा ही दाऊद से नातन ने कहा|
\s5
\v 18 तब दाऊद बादशाह अन्दर जाकर ख़ुदावन्द के आगे बैठा, और कहने लगा, "ऐ मालिक ख़ुदावन्द मैं कौन हूँ और मेरा घराना क्या है कि तूने मुझे यहाँ तक पहुँचाया|
\v 19 तो भी ऐ मालिक ख़ुदावन्द यह तेरी नज़र में छोटी बात थी क्यूँकि तूने अपने बन्दा के घराने के हक़ में बहुत मुद्दत तक का ज़िक्र किया है और वह भी ऐ मालिक ख़ुदावन्द आदमियों के तरीक़े पर|
\v 20 और दाऊद तुझसे और क्या कह सकता है ?क्यूँकि ऐ मालिक ख़ुदावन्द तू अपने बन्दा को जानता है|
\s5
\v 21 तूने अपने कलाम की ख़ातिर और अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ यह सब बड़े काम किए, ताकि तेरा बन्दा उनसे वाकिफ़ हो जाए|
\v 22 इसलिए तू ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, बुज़ुर्ग है, क्यूँकि जैसा हमने अपने कानों से सुना है उसके मुताबिक़ कोई तेरी तरह नहीं और तेरे 'अलावह कोई ख़ुदा नहीं|
\v 23 और दुनिया में वह कौन सी एक क़ौम है जो तेरे लोगों या'नी इस्राईल की तरह है, जिसे ख़ुदा ने जाकर अपनी क़ौम बनाने को छुड़ाया, ताकि वह अपना नाम करे, और तुम्हारी ख़ातिर बड़े बड़े काम और अपने मुल्क के लिए और अपनी क़ौम के आगे जिसे तूने मिस्र की क़ौमों से और उनके मा'बूदों से रिहाई बख़्शी होलनाक काम करे|
\s5
\v 24 और तूने अपने लिए अपनी क़ौम बनी इस्राईल को मुक़र्रर किया, ताकि वह हमेशा के लिए तेरी क़ौम ठहरे और तू ख़ुद ऐ ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हुआ|
\v 25 और अब तू ऐ ख़ुदावन्द उस बात को जो तूने अपने बन्दा और उसके घराने के हक़ में फ़रमाई है, हमेशा के लिए क़ायम करदे और जैसा तूने फ़रमाया है वैसा ही कर|
\v 26 और हमेशा यह कह कहकर तेरे नाम की बड़ाई की जाए, कि रब्ब-उल-अफ़्वाज इस्राईल का ख़ुदा है और तेरे बन्दा दाऊद का घराना तेरे सामने क़ायम किया जाएगा|
\s5
\v 27 क्यूँकि तूने ऐ रब्ब-उल-अफ़्वाज इस्राईल के ख़ुदा अपने बन्दा पर ज़ाहिर किया, और फ़रमाया कि मैं तेरा घराना बनाए रख्खूँगा, तब तेरे बन्दा के दिल में यह आया कि तेरे आगे यह मुनाजात करे|
\v 28 और ऐ मालिक ख़ुदावन्द तू ख़ुदा है और तेरी बातें सच्ची हैं, और तूने अपने बन्दे से इस नेकी का वा'दा किया है|
\v 29 इसलिए अब अपने बन्दा के घराने को बरकत देना मंज़ूर कर, ताकि वह हमेशा तेरे नज़दीक वफ़ादार रहे, कि तू ही ने ऐ मालिक ख़ुदावन्द यह कहा है, और तेरी ही बरकत से तेरे बन्दे का घराना हमेशा मुबारक रहे !|"
\s5
\c 8
\p
\v 1 इसके बा'द दाऊद ने फ़िलिस्तियों को मारा, और उनको मग़लूब किया और दाऊद ने दारुल हुकूमत 'इनान फ़िलिस्तियों के हाथ से छीन ली|
\s5
\v 2 और उसने मोआब को मारा और उनको ज़मीन पर लिटा कर रस्सी से नापा, तब उसने क़त्ल करने के लिए दो रस्सियों से नापा और जीता छोड़ने के लिए एक पूरी रस्सी से, यूँ मोआबी दाऊद के ख़ादिम बनकर हदिये लाने लगे|
\s5
\v 3 और दाऊद ने ज़ोबाह के बादशाह रहोब के बेटे हदद'अज़र को भी जब वह दरिया-ए-फ़रात पर बादशाहत पर भी क़ब्ज़ा करने को जा रहा था मार लिया|
\v 4 और दाऊद ने उसके एक हज़ार सात सौ सवार और बीस हज़ार पियादे पकड़ लिए और दाऊद ने रथों के सब घोड़ों की नालें काटीं पर उनमें से सौ रथों के लिए घोड़े बचा रख्खे|
\s5
\v 5 और जब दमिश्क़ के अरामी ज़ूबाह के बादशाह हदद अज़र की मदद को आए तो दाऊद ने अरामियों के बाईस हज़ार आदमी क़त्ल किए|
\v 6 जब दाऊद ने दमिश्क़ के आराम में सिपाहियों की चौकियाँ बिठाईं तब अरामी भी दाऊद के ख़ादिम बन कर हदिये लाने लगे, और ख़ुदावन्द ने दाऊद को जहाँ कहीं वह गया फ़तह बख़्शी|
\s5
\v 7 और दाऊद ने हदद'अज़र के मुलाज़िमों की सोने की ढालें छीन लीं और उनको यरुशलीम में ले आया|
\v 8 और दाऊद बादशाह बताह और बैरूती से जो हदद'अज़र के शहर थे बहुत सा पीतल ले आया|
\s5
\v 9 और जब हमात के बादशाह तूग़ी ने सुना कि दाऊद ने हदद'अज़र का सारा लश्कर मार लिया|
\v 10 तो तूग़ी ने अपने बेटे यूराम को दाऊद बादशाह के पास भेजा, कि उसे सलाम कहे और ~मुबारकबाद दे, इसलिए कि उसने हदद’अज़र तूग़ी से लड़ा करता था और यूराम चाँदी और सोने और पीतल के बरतन अपने साथ लाया|
\s5
\v 11 और दाऊद बादशाह ने उनको ख़ुदावन्द के लिए मख़्सूस किया, ऐसे ही उसने उनसब क़ौमों के सोने चाँदी को मख़्सूस किया जिनको उसने मग़लूब किया था|
\v 12 या'नी अरामियों और मोआबियों और बनी अम्मोन और फ़िलिस्तियों और 'अमालीकियों के सोने चाँदी और ज़ूबाह के बादशाह रहोब के बेटे हदद'अज़र की लूट को|
\s5
\v 13 और दाऊद का बड़ा नाम हुआ जब वह नमक की वादी में अरामियों के अठारह हज़ार आदमी मार कर लौटा|
\v 14 और उसने अदूम में चौकियाँ बिठायीं बल्कि सारे अदूम में चौकियाँ बिठायीं और सब अदूमी दाऊद के ख़ादिम बने और ख़ुदावन्द ने दाऊद को जहाँ कहीं वह गया फ़तह बख़्शी|
\s5
\v 15 और दाऊद ने कुल इस्राईल पर बादशाहत की और दाऊद अपनी सब र’इयत के साथ ‘अदल-ओ- इन्साफ़ करता था
\v 16 और ज़रोयाह का बेटा योआब लश्कर का सरदार था, और अख़ीलूद का बेटा यहूसफ़त मुवर्रिख़ था|
\v 17 और अख़ीतोब का बेटा सदूक़ और अबियातर का बेटा अख़ीमलिक कहिन थे और शरायाह मुंशी था|
\v 18 और यहूयदाह का बेटा बनायाह करेतियों और फ़िलिस्तियों का सरदार था, और दाऊद के बेटे कहिन थे|
\s5
\c 9
\p
\v 1 फिर दाऊद ने कहा, "क्या साऊल के घराने में से कोई बाक़ी है, जिस पर मैं यूनतन की ख़ातिर महेरबानी करूँ|"
\v 2 और साऊल के घराने का एक ख़ादिम जिसका नाम ~ज़ीबा था, उसे दाऊद के पास बुला लाये, बादशाह ने उससे कहा, "क्या तू ज़ीबा है ?" उसने कहा, "हाँ तेरा बन्दा वही है|”
\s5
\v 3 तब बादशाह ने उससे कहा, "क्या साऊल के घराने में से कोई नहीं रहता ताकि मैं उसपर ख़ुदा की तरह महेरबानी करूं?" ज़ीबा ने बादशाह से कहा, "यूनतन का एक बेटा रह गया है जो लंगड़ा है|"
\v 4 तब बादशाह ने उससे पूछा,”वह कहाँ है ?” ~ज़ीबा ने बादशाह को जवाब दिया, "देख वह लूदबार में ‘अम्मी ऐल के बेटे मकीर के घर में है|”
\s5
\v 5 तब दाऊद बादशाह ने लोग भेज कर लूदबार से ‘अम्मी ऐल के बेटे मकीर के घर से उसे बुलवा लिया|
\v 6 और साऊल के बेटे यूनतन का बेटा मिफ़ीबोसत दाऊद के पास आया, और उसने मुँह के बल गिरकर सिज्दा किया, तब दाऊद ने कहा, "मिफ़ीबोसत !" ~उसने जवाब दिया, "तेरा बन्दा हाज़िर है|"
\s5
\v 7 दाऊद ने उससे कहा, "मत डर क्यूँकि मैं तेरे बाप यूनतन की ख़ातिर ज़रुर तुझ पर महेरबानी करूँगा, और तेरे बाप साऊल की ज़मीन पर तुझे फेर दूँगा, और तू हमेशा मेरे दस्तरख़्वान पर खाना खाया कर|"
\v 8 तब उसने सिज्दा किया और कहा, "कि तेरा बन्दा है क्या चीज़ जो तू मुझ जैसे मरे कुत्ते पर निगाह करे ?"
\s5
\v 9 तब बादशाह ने साऊल के ख़ादिम ज़ीबा को बुलाया और उससे कहा कि "मैंने सब कुछ जो साऊल और उसके सारे घराने का था तेरे आक़ा के बेटे को बख़्श दिया|
\v 10 इसलिए तू अपने बेटों और नौकरों समेत ज़मीन को उसकी तरफ़ से जोत कर पैदावार को ले आया कर ताकि तेरे आक़ा के बेटे के खाने को रोटी हो पर मिफ़ीबोसत जो तेरे आक़ा का बेटा है मेरे दस्तरख़्वान पर हमेशा खाना खायेगा|" और ज़ीबा के पन्दरह बेटे और बीस नौकर थे|
\s5
\v 11 तब ज़ीबा ने बादशाह से कहा, "जो कुछ मेरे मालिक बादशाह ने अपने ख़ादिम को हुक्म दिया है तेरा ख़ादिम वैसा ही करेगा|" लेकिन मिफ़ीबोसत के हक़ में बादशाह ने फ़रमाया कि वह मेरे दस्तरख़्वान पर इस तरह खाना खायेगा कि गोया वह बादशाह जादों मेंसे एक है|
\v 12 और मिफ़ीबोसत का एक छोटा बेटा था जिसका नाम मीका था, और जितने ज़ीबा के घर में रहते थे वह सब मिफ़ीबोसत के ख़ादिम थे|
\v 13 इसलिए मिफ़ीबोसत यरुशलीम में रहने लगा, क्यूँकि वह हमेशा बादशाह के दस्तरख़्वान पर खाना खाता था और वह दोनों पाँव से लंगड़ा था|
\s5
\c 10
\p
\v 1 इसके बा'द ऐसा हुआ कि बनी अम्मोन का बादशाह मर गया और उसका बेटा हनून उसका जानशीन हुआ|
\v 2 तब दाऊद ने कहा कि "मैं नाहस के बेटे हनून के साथ महेरबानी करूँगा, जैसे उसके बाप ने मेरे साथ महेरबानी की|" तब दाऊद ने अपने ख़ादिम भेजे ताकि उनके ज़रिए' उसके बाप के बारे में उसे तसल्ली दे, चुनाँचे दाऊद के ख़ादिम बनी अम्मोन की सर ज़मीन पर आए|
\v 3 बनी अम्मोन के सरदारों ने अपने मालिक हनून से कहा, "तुझे क्या यह गुमान है कि दाऊद तेरे बाप की ता'ज़ीम करता है कि उसने तसल्ली देने वाले तेरे पास भेजे हैं ? क्या दाऊद ने अपने ख़ादिम तेरे पास इसलिए नहीं भेजे हैं कि शहर का हाल दरयाफ़्त करके और इसका भेद लेकर वह इसको बरबाद करे ?”
\s5
\v 4 तब हनून ने दाऊद के ख़ादिमों को पकड़ कर उनकी आधी आधी दाढ़ी मुंडवाई और उनकी लिबास बीच से सुरीन तक कटवा कर उनको रूख़्सत कर दिया|
\v 5 जब दाऊद को ख़बर पहुँची तो उसने उनसे मिलने को लोग भेजे इसलिए यह आदमी बहुत ही शर्मिन्दा थे, इसलिए बादशाह ने फ़रमाया कि "जब तक तुम्हारी दाढ़ी न बढ़े यरीहू में रहो, उसके बा'द चले आना|"
\s5
\v 6 जब बनी अम्मोन ने देखा कि वह दाऊद के आगे ग़ुस्सा ~हो गया तो बनी अम्मोन ने लोग भेजे और बैतरहोब के अरामियों और ज़ूबाह के अरामियों में से बीस हज़ार पियादों को और मा'का के बादशाह को एक हज़ार सिपाहियों समेत और तोब के बारह हज़ार आदमियों को मज़दूरी पर बुलाया|
\v 7 और दाऊद ने यह सुनकर योआब और बहादुरों के सारे लश्कर को भेजा|
\v 8 तब बनी अम्मोन निकले और उन्होंने फाटक के पास ही लड़ाई के लिए सफ़ बाँधी और ज़ूबाह और रहोब के अरामी और तोब और मा'का के लोग मैदान में अलग थे|
\s5
\v 9 जब योआब ने देखा कि उसके आगे और पीछे दोनों तरफ़ लड़ाई के लिए सफ़ बंधी है तो उसने बनी इस्राईल के ख़ास लोगों को चुन लिया और अरामियों के सामने उनकी सफ़ बाँधी|
\v 10 और बाक़ी लोगों को अपने भाई अबीशे के हाथ सौंप दिया, और उसने बनी अम्मोन के सामने सफ़ बाँधी|
\s5
\v 11 फिर उसने कहा, "अगर अरामी मुझ पर ग़ालिब होने लगें तो तू मेरी मदद करना और अगर बनी अम्मोन तुझ पर ग़ालिब होने लगें तो मैं आकर तेरी मदद करूँगा|
\v 12 इसलिए ख़ूब हिम्मत रख और हम सब अपनी क़ौम और अपने ख़ुदा के शहरों की ख़ातिर मर्दानगी करें और ख़ुदावन्द जो बेहतर जाने वह करे|
\s5
\v 13 तब योआब और वह लोग जो उसके साथ थे अरामियों पर हमला करने को आगे बढ़े और वह उसके आगे भागे|
\v 14 जब बनी अम्मोन ने देखा कि अरामी भाग गए तो वह भी अबीशे के सामने से भाग कर शहर के अन्दर घुस गए, तब योआब बनी अम्मोन के पास से लौट कर यरुशलीम में आया|
\s5
\v 15 जब अरामियों ने देखा कि उन्होंने इस्राईलियों से शिकस्त खाई तो वह सब जमा' हुए|
\v 16 और हदद’अज़र ने लोग भेजे और अरामियों को जो दरिया-ए-फ़रात के पार थे ले आया और वह हिलाम में आए और हदद’अज़र की फ़ौज का सिपह सालार सूबक उनका सरदार था|
\s5
\v 17 और दाऊद को ख़बर मिली, इसलिए उसने सब इस्राईलियों को इकठ्ठा किया और यर्दन के पार होकर हिलाम में आया और अरामियों ने दाऊद के सामने सफ़ आराई की और उससे लड़े|
\v 18 और अरामी इस्राईलियों के सामने से भागे और दाऊद ने अरामियों के सात सौ रथों के आदमी और चालीस हज़ार सवार क़त्ल कर डाले, और उनकी फ़ौज के सरदार सूबक को ऐसा मारा कि वह वहीं मर गया|
\v 19 और जब बादशाहों ने जो हदद’अज़र के ख़ादिम थे देखा कि वह इस्राईलियों से हार गए, तो उन्होंने इस्राईलियों से सुलह कर ली और उनकी ख़िदमत करने लगे, तब अरामी बनी अम्मोन की फिर मदद करने से डरे|
\s5
\c 11
\p
\v 1 और ऐसा हुआ कि दूसरे साल जिस वक़्त बादशाह जंग के लिए निकलते हैं, दाऊद ने योआब और उसके साथ अपने ख़ादिमों और सब इस्राईलियों को भेजा, और उन्होंने बनी अम्मोन को क़त्ल किया और रब्बा को जा घेरा पर दाऊद यरुशलीम ही में रहा|
\s5
\v 2 और शाम के वक़्त दाऊद अपने पलंग पर से उठकर बादशाही महल की छत पर टहलने लगा, और छत पर से उसने एक 'औरत को देखा जो नहा रही थी, और वह 'औरत निहायत ख़ूबसूरत थी|
\v 3 तब दाऊद ने लोग भेजकर उस 'औरत का हाल दरयाफ़्त किया, और किसी ने कहा, "क्या वह इल’आम की बेटी बतसबा नहीं जो हित्ती औरय्याह की बीवी है ?|"
\s5
\v 4 और दाऊद ने लोग भेजकर उसे बुला लिया, वह उसके पास आई और उसने उससे सोहबत की {क्यूँकि वह अपनी नापाकी से पाक हो चुकी थी }फिर वह अपने घर को चली गई|
\v 5 और वह औरत हाम्ला हो गई, तब उसने दाऊद के पास ख़बर भेजी कि "मैं हाम्ला हूँ|"
\s5
\v 6 और दाऊद ने योआब को कहला भेजा कि "हित्ती औरय्याह को मेरे पास भेज दे|" इसलिए योआब ने औरय्याह को दाऊद के पास भेज दिया|
\v 7 और जब औरय्याह आया तो दाऊद ने पूछा कि योआब कैसा है और लोगों का क्या हाल है और जंग कैसी हो रही है ?|
\v 8 फिर दाऊद ने औरय्याह से कहा कि "अपने घर जा और अपने पाँव धो|" और औरय्याह बादशाह के महल से निकला और बादशाह की तरफ़ से उसके पीछे पीछे एक ख़्वान भेजा गया|
\s5
\v 9 लेकिन औरय्याह बादशाह के घर के आस्ताना पर अपने मालिक के और सब ख़ादिमों के साथ सोया और अपने घर न गया|
\v 10 और जब उन्होंने दाऊद को यह बताया कि "औरय्याह अपने घर नहीं गया| तो दाऊद ने औरय्याह से कहा, "क्या तू सफ़र से नहीं आया ?तब तू अपने घर क्यों नहीं गया ?|"
\v 11 औरय्याह ने दाऊद से कहा कि "संदूक़ और इस्राईल और यहूदाह झोंपड़ियों में रहते हैं और मेरा मालिक योआब और मेरे मालिक के ख़ादिम खुले मैदान में डेरे डाले हुए हैं तो क्या मैं अपने घर जाऊँ और खाऊँ पियूँ और अपनी बीवी के साथ सोऊँ ? तेरी हयात और तेरी जान की क़सम मुझसे यह बात न होगी|"
\s5
\v 12 फिर दाऊद ने औरय्याह से कहा कि "आज भी तू यहीं रह जा, कल मैं तुझे रवाना कर दूँगा|" इसलिए औरय्याह उस दिन और दूसरे दिन भी यरुशालीम में रहा|
\v 13 और जब दाऊद ने उसे बुलाया तो उसने उसके सामने खाया पिया और उसने उसे पिलाकर मतवाला किया और शाम को वह बाहर जाकर अपने मालिक के और ख़ादिमों के साथ अपने बिस्तर पर सो रहा पर अपने घर को न गया|
\s5
\v 14 सुबह को दाऊद ने योआब के लिए ख़त लिखा और उसे औरय्याह के हाथ भेजा|
\v 15 और उसने ख़त में यह लिखा कि "औरय्याह को जंग में सबसे आगे रखना और तुम उसके पास से हट जाना ताकि वह मारा जाए और जाँ बहक़ हो|"
\s5
\v 16 और यूँ हुआ कि जब योआब ने उस शहर का जाइज़ा कर लिया तो उसने औरय्याह को ऐसी जगह रख्खा जहाँ वह जानता था कि बहादुर मर्द हैं|
\v 17 और उस शहर के लोग निकले ओर योआब से लड़े और वहाँ दाऊद के ख़ादिमों में से थोड़े से लोग काम आए और हित्ती औरय्याह भी मर गया|
\s5
\v 18 तब योआब ने आदमी भेज कर जंग का सब हाल दाऊद को बताया|
\v 19 और उसने क़ासिद को नसीहत कर दी कि "जब तू बादशाह से जंग का सब हाल byaa कर चुके|
\v 20 तब अगर ऐसा हो कि बादशाह को ग़ुस्सा आ जाये और वह तुझसे कहने लगे कि तुम लड़ने को शहर के ऐसे नज़दीक क्यों चले गये? क्या तुम नहीं जानते थे कि वह दीवार पर से तीर मारेंगे ?|
\s5
\v 21 यरोब्बुसत के बेटे अबीमलिक को किसने मारा? क्या एक 'औरत ने चक्की का पात दीवार परसे उसके ऊपर ऐसा नहीं फेंका कि वह तैबिज़ में मर गया? ~इसलिए तुम शहर की दीवार के नज़दीक क्यों गये? तो फिर तू कहना कि तेरा ख़ादिम हित्ती औरय्याह भी मर गया|"
\s5
\v 22 तब वह क़ासिद चला और आकर जिस काम के लिए योआब ने उसे भेजा था वह सब दाऊद को बताया|
\v 23 और उस क़ासिद ने दाऊद से कहा कि “वह लोग हमपर ग़ालिब हुए और निकल कर मैदान में हमारे पास आगए, फिर हम उनको दौड़ाते हुए फाटक के मदख़ल तक चले गये|
\s5
\v 24 तब तीरंदाज़ों ने दीवार पर से तेरे ख़ादिमों पर तीर छोड़े, इसलिए बादशाह के थोड़े ख़ादिम भी मरे और तेरा ख़ादिम हित्ती औरय्याह भी मर गया|”
\v 25 तब दाऊद ने क़ासिद से कहा कि, "तू योआब से यूँ कहना कि तुझे इस बात से ना ख़ुशी न हो इसलिए कि तलवार जैसा एक को उड़ाती है वैसा ही दूसरे को, इसलिए तू शहर से और सख़्त जंग करके उसे ढा दे और तू उसे हिम्मत देना|”
\s5
\v 26 जब और्य्याह की बीवी ने सुना कि उसका शौहर औरय्याह मर गया तो वह अपने शौहर के लिए मातम करने लगी|
\v 27 और जब मातम के दिन गुज़र गए तो दाऊद ने बुलवाकर उसको अपने महल में रख लिया और वह उसकी बीवी हो गई और उससे उसके एक लड़का हुआ पर उस काम से जिसे दाऊद ने किया था ख़ुदावन्द नाराज़ हुआ|
\s5
\c 12
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द ने नातन को दाऊद के पास भेजा, उसने उसके पास आकर उससे कहा, "किसी शहर में दो शख़्स थे, एक अमीर दूसरा ग़रीब|
\v 2 उस अमीर के पास बहुत से रेवड़ और गल्ले थे|
\v 3 लेकिन उस ग़रीब के पास भेड़ की एक पठिया के 'अलावा कुछ न था, जिसे उसने ख़रीद कर पाला था और वह उसके और उसके बाल बच्चों के साथ बढ़ी थी, वह उसी के नेवाले में से खाती और उसके पियाला से पीती और उसकी गोद में सोती थी, और उसके लिए बतौर बेटी के थी|
\s5
\v 4 और उस अमीर के यहाँ कोई मुसाफ़िर आया, इसलिए उसने उस मुसाफ़िर के लिए जो उसके यहाँ आया था पकाने को अपने रेवड़ और गल्ला में से कुछ न लिया, बल्कि उस ग़रीब की भेड़ ले ली, और उस शख़्स के लिए जो उसके यहाँ आया था पकाई|"
\v 5 तब दाऊद का गज़ब उस शख्स़ पर बशिददत भड़का और उसने नातन से कहा कि "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम कि वह शख़्स जिसने यह काम किया वाजिबुल क़त्ल है|
\v 6 इसलिए उस शख़्स को उस भेड़ का चौ गुना भरना पड़ेगा क्यूँकि उसने ऐसा काम किया और उसे तरस न आया|"
\s5
\v 7 तब नातन ने दाऊद से कहा, "वह शख़्स तूही है, ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि मैंने तुझे मसह करके इस्राईल का बादशाह बनाया और मैंने तुझे साऊल के हाथ से छुड़ाया|
\v 8 और मैंने तेरे आक़ा का घर तुझे दिया और तेरे आक़ा की बीवियाँ तेरी गोद में करदीं, और इस्राईल और यहूदाह का घराना तुझको दिया, और अगर यह सब कुछ थोड़ा था तो मैं तुझको और और चीजें भी देता|
\s5
\v 9 इसलिए तूने क्यों ख़ुदा की बात की तहक़ीर करके उसके सामने बुराई की ?तूने हित्ती औरय्याह को तलवार से मारा और उसकी बीवी लेली ताकि वह तेरी बीवी बने और उसको बनी अम्मोन की तलवार से क़त्ल करवाया|
\v 10 इसलिए अब तेरे घरसे तलवार कभी अलग न होगी क्यूँकि तूने मुझे हक़ीर जाना और हित्ती औरय्याह की बीवी लेली ताकि वह तेरी बीवी हो|
\s5
\v 11 इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देख मैं बुराई को तेरे ही घर से तेरे ख़िलाफ़ उठाऊँगा और मैं तेरी बीवियों को लेकर तेरी आँखों के सामने तेरे पड़ोसी को दूँगा, और वह दिन दहाड़े तेरी बीवियों से सोहबत करेगा|
\v 12 क्यूँकि तूने छिपकर यह किया लेकिन मैं सारे इस्राईल के सामने दिन दहाड़े यह करूँगा|”
\v 13 तब दाऊद ने नातन से कहा, "मैंने ख़ुदावन्द का गुनाह किया|" ~नातन ने दाऊद से कहा कि "ख़ुदावन्द ने भी तेरा गुनाह बख़्शा, तू मरेगा नहीं|
\s5
\v 14 तोभी चूँकि तूने इस काम से ख़ुदावन्द के दुश्मनों को कुफ़्र बकने का बड़ा मौ'क़ा दिया है इसलिए वह लड़का भी जो तुझसे पैदा होगा मर जाएगा|"
\v 15 फिर नातन अपने घर चला गया और ख़ुदावन्द ने उस लड़के को जो औरय्याह की बीवी के दाऊद से पैदा हुआ था मारा और वह बहुत बीमार हो गया|
\s5
\v 16 इसलिए दाऊद ने उस लड़के की ख़ातिर ख़ुदा से मिन्नत की और दाऊद ने रोज़ा रखा और अन्दर जाकर सारी रात ज़मीन पर पड़ा रहा|
\v 17 और उसके घराने के बुज़ुर्ग उठकर उसके पास आए कि उसे ज़मीन पर से उठायें पर वह न उठा और न उसने उनके साथ खाना खाया|
\v 18 और सातवें दिन वह लड़का मर गया और दाऊद के मुलाज़िम उसे डर के मारे यह न बता सके कि लड़का मर गया, क्यूँकि उन्होंने कहा कि "जब वह लड़का ज़िन्दा ही था और हमने उससे बात की तो उसने हमारी बात न मानी तब अगर हम उसे बतायें कि लड़का मर गया तो वह बहुत ही दुखी होगा|"
\s5
\v 19 लेकिन जब दाऊद ने अपने मुलाज़िमों को आपस में फुसफुसाते देखा तो दाऊद समझ गया कि लड़का मर गया, इसलिए दाऊद ने अपने मुलाज़िमों से पूछा, "क्या लड़का मर गया ?" उन्होंने जवाब दिया,"मर गया|”
\v 20 तब दाऊद ज़मीन पर से उठा और उसने ग़ुस्ल करके उसने तेल लगाया और लिबास बदली और ख़ुदावन्द के घर में जाकर सज्दा किया फिर वह अपने घर आया और उसके हुक्म देने पर उन्होंने उसके आगे रोटी रखी और उसने खाई
\s5
\v 21 तब उसके मुलाज़िमों ने उससे कहा, "यह कैसा काम है जो तूने किया? जब वह लड़का जीता था तो तूने उसके लिए रोज़ा रख्खा और रोता भी रहा और जब वह लड़का मर गया तो तूने उठकर रोटी खाई|"
\v 22 उसने कहा कि "जब तक वह लड़का ज़िन्दा था मैंने रोज़ा रख्खा और मैं रोता रहा क्यूँकि मैंने सोचा क्या जाने ख़ुदावन्द को मुझपर रहम आजाये कि वह लड़का जीता रहे?|
\v 23 लेकिन अब तो मर गया तब मैं किस लिए रोज़ा रखूँ? क्या मैं उसे लौटा के ला सकता हूँ ?मैं तो उसके पास जाऊँगा पर वह मेरे पास नहीं लौटने का|"
\s5
\v 24 फिर दाऊद ने अपनी बीवी बत सबा'को तसल्ली दी और उसके पास गया और उससे सोहबत की और उसके एक बेटा हुआ और दाऊद ने उसका नाम सुलैमान रख्खा और ख़ुदावन्द का प्यारा हुआ|
\v 25 और उसने नातन नबी की ज़रिए पैग़ाम भेजा तब उसने उसका नाम ख़ुदावन्द की ख़ातिर यदीदियाह रख्खा|
\s5
\v 26 और योआब बनी अम्मोन के रब्बा से लड़ा और उसने दारुल हुकूमत को ले लिया|
\v 27 और योआब ने क़ासिदों के ज़रिए ~दाऊद को कहला भेजा कि "मैं रब्बा से लड़ा और मैंने पानियों के शहर को ले लिया|
\v 28 फिर अब तू बाक़ी लोगों को जमा' कर और इस शहर के नज़दीक ख़ेमा ज़न हो और इस पर क़ब्ज़ा कर ले ऐसा न हो कि मैं इस शहर को बरबाद करूँ और वह मेरे नाम से कहलाए|"
\s5
\v 29 तब दाऊद ने लोगों को जमा' किया और रब्बा को गया और उससे लड़ा और उसे ले लिया|
\v 30 और उसने उनके बादशाह का ताज उसके सर पर से उतार लिया, उसका वज़न सोने का एक क़िन्तार था और उसमें जवाहर जड़े हुए थे, फिर वह दाऊद के सर पर रख्खा गया और वह उस शहर से लूट का बहुत सा माल निकाल लाया|
\s5
\v 31 और उसने उन लोगों को जो उसमें थे बाहर निकाल कर उनको आरों और लोहे के हैंगों और लोहे के कुल्हाड़ों के नीचे कर दिया, और उनको ईंटों के पज़ावे में से चलवाया और उसने बनी अम्मोन के सब शहरों से ऐसा ही किया, फिर दाऊद और सब लोग यरुशलीम को लौट आए|
\s5
\c 13
\p
\v 1 और इसके बा'द ऐसा हुआ कि दाऊद के बेटे अबी सलोम की एक ख़ूबसूरत बहन थी, जिसका नाम तमर था, उस पर दाऊद का बेटा अमनून 'आशिक़ हो गया|
\v 2 और अमनून ऐसा कुढ़ने लगा कि वह अपनी बहन तमर की वजह से बीमार पड़ गया, क्यूँकि वह कुँवारी थी इसलिए अमनून को उसके साथ कुछ करना दुशवार मा'लूम हुआ|
\s5
\v 3 और दाऊद के भाई सम'आ का बेटा यूनदब अमनून का दोस्त था, और यूनदब बड़ा चालाक आदमी था|
\v 4 फिर उसने उनसे कहा, "ऐ बादशाह ज़ादे! तू क्यूँ दिन ब दिन दुबला होता जाता है ?क्या तू मुझे नहीं बताएगा?" तब अमनून ने उससे कहा कि "मैं अपने भाई अबीसलोम की बहन तमर पर 'आशिक़ हूँ|"
\s5
\v 5 यूनदब ने उससे कहा, "तू अपने बिस्तर पर लेट जा और बीमारी का बहाना कर ले और जब तेरा बाप तुझे देखने आए, तो तू उससे कहना, मेरी बहन तमर को ज़रा आने दे कि वह मुझे खाना दे और मेरे सामने खाना पकाये, ताकि मैं देखूँ और उसके हाथ से खाऊँ|"
\v 6 तब अमनून पड़ गया और उसने बीमारी का बहाना कर लिया और ~जब बादशाह उसको देखने आया, तो अमनून ने बादशाह से कहा, "मेरी बहन तमर को ज़रा आने दे कि वह मेरे सामने दो पूरियाँ बनाये, ताकि मैं उसके हाथ से खाऊँ|"
\s5
\v 7 तब दाऊद ने तमर के घर कहला भेजा कि "तू अभी अपने भाई अमनून के घर जा और उसके लिए खाना पका|"
\v 8 फिर तमर अपने भाई अमनून के घर गई और वह बिस्तर पर पड़ा हुआ था और उसने आटा लिया और गूँधा, और उसके सामने पूरियाँ बनायीं और उनको पकाया|
\v 9 और तवे को लिया और उसके सामने उनको उंडेल दिया, लेकिन उसने खाने से इन्कार किया, तब अमनून ने कहा कि "सब आदमियों को मेरे पास से बाहर कर दो|" तब हर एक आदमी उसके पास से चला गया|
\s5
\v 10 तब अमनून ने तमर से कहा कि "खाना कोठरी के अन्दर ले आ ताकि मैं तेरे हाथ से खाऊँ|" इसलिए तमर वह पूरियाँ जो उसने पकाई थीं उठा कर उनको कोठरी में अपने भाई अमनून के पास लायी|
\v 11 और जब वह उनको उसके नज़दीक ले गई कि वह खाए तो उसने उसे पकड़ लिया और उससे कहा, "ऐ मेरी बहन मुझसे सोहबत कर|"
\v 12 उसने कहा, "नहीं मेरे भाई मेरे साथ ज़बरदस्ती न कर क्यूँकि इस्राईलियों में कोई ऐसा काम नहीं होना चाहिए, तू ऐसी हिमाक़त न कर|
\s5
\v 13 और भला मैं अपनी रुसवाई कहाँ लिए फिरूँगी? और तू भी इस्राईलियों के बेवक़ूफ़ों~में से एक की तरह~ठहरेगा, इसलिए तू बादशाह से दरख़्वास्त कर क्यूँकि वह मुझको तुझसे रोक नहीं रख्खेगा|"
\v 14 लेकिन उसने उसकी बात न मानी और चूँकि वह उससे ताक़तवर था इसलिए उसने उसके साथ ज़बरदस्ती की, और उससे सोहबत की|
\s5
\v 15 फिर अमनून को उससे बड़ी सख्त़ नफ़रत हो गई क्यूँकि उसकी नफ़रत उसके जज़्ब-ए-इश्क़ से कहीं बढ़कर थी, इसलिए अमनून ने उससे कहा, "उठ चली जा|"
\v 16 वह कहने लगी, "ऐसा न होगा क्यूँकि यह ज़ुल्म कि तू मुझे निकालता है उस काम से जो तूने मुझसे किया बदतर है|" लेकिन उसने उसकी एक न सुनी|
\v 17 तब उसने अपने एक मुलाज़िम को जो उसकी ख़िदमत करता था बुला कर कहा, "इस 'औरत को मेरे पास से बाहर निकाल दे और पीछे दरवाज़े की चटकनी लगा दे|"
\s5
\v 18 और वह रंग बिरंग जोड़ा पहने हुए थी क्यूँकि बादशाहों की कुँवारी बेटियाँ ऐसी ही लिबास पहनती थीं फिर उसके ख़ादिम ने उसको बाहर कर दिया और उसके पीछे चटकनी लगा दी
\v 19 और तमर ने अपने सर पर ख़ाक डाली और अपने रंग बिरंग के जोड़े को जो पहने हुए थी फाड़ लिया, और सर पर हाथ धर कर रोती हुई चली|
\s5
\v 20 उसके भाई अबीसलोम ने उससे कहा, "क्या तेरा भाई अमनून तेरे साथ रहा है ? ख़ैर ऐ मेरी बहन अब चुप हो रह क्यूँकि वह तेरा भाई है और इस बात का ग़म न कर|" ~तब तमर अपने भाई अबीसलोम के घर में बे बस पड़ी रही|
\v 21 और जब दाऊद बादशाह ने यह सब बातें सुनी तो निहायत ग़ुस्सा हुआ|
\v 22 और अबी सलोम ने अपने भाई अमनून से कुछ बुरा भला न कहा क्यूँकि अबीसलोम को अमनून से नफ़रत थी इसलिए कि उसने उसकी बहन तमर के साथ ज़बरदस्ती किया था|
\s5
\v 23 और ऐसा हुआ कि पूरे दो साल के बा'द भेड़ों के बाल कतरने वाले अबीसलोम के यहाँ बा'ल हसोर में थे जो इफ़्राईम के पास है और अबीसलोम ने बादशाह के सब बेटों को दा'वत दी|
\v 24 तब अबीसलोम बादशाह के पास आकर कहने लगा, "तेरे ख़ादिम के यहाँ भेड़ों के बाल कतरने वाले आए हैं इसलिए मैं मिन्नत करता हूँ कि बादशाह अपने मुलाज़िमों और अपने ख़ादिम के साथ चले|"
\s5
\v 25 तब बादशाह ने अबीसलोम से कहा, "नहीं मेरे बेटे हम सबके सब न चलें ऐसा न हो कि तुझ पर हम बोझ हो जाएँ और वह उससे बजिद हुआ तो भी वह न गया पर उसे दु'आ दी|"
\v 26 तब अबीसलोम ने कहा, "अगर ऐसा नहीं हो सकता तो मेरे भाई अमनून को तो हमारे साथ जाने दे" बादशाह ने उससे कहा, "वह तेरे साथ क्यों जाए ?|"
\s5
\v 27 लेकिन अबीसलोम ऐसा बजिद हुआ कि उसने अमनून और सब शहज़ादों को उसके साथ जाने दिया|
\v 28 और अबीसलोम ने अपने ख़ादिमों को हुक्म दिया कि "देखो जब अमनून का दिल मय से सुरूर में हो और मैं तुम को कहूँ कि अमनून को मारो तो तुम उसे मार डालना खौफ़ न करना, क्या मैंने तुमको हुक्म नही दिया? ~हिम्मतवर और बहादुर बने रहो|"
\v 29 चुनाँचे अबीसलोम के नौकरों ने अमनून से वैसा ही किया जैसा अबीसलोम ने हुक्म दिया था, तब सब शहज़ादे उठे और हर एक अपने खच्चर पर चढ़ कर भागा|
\s5
\v 30 और वह अभी रास्ते ही में थे कि दाऊद के पास यह ख़बर पहुँची कि "अबीसलोम ने सब शहज़ादों को क़त्ल कर डाला है और उनमें से एक भी बाक़ी नहीं बचा|"
\v 31 तब बादशाह ने उठकर अपने लिबास को फाड़ा और ज़मीन पर गिर पड़ा और उसके सब मुलाज़िम लिबास फाड़े हुए उसके सामने खड़े रहे|
\s5
\v 32 तब दाऊद के भाई सिम'आ का बेटा यून्दब कहने लगा कि "मेरा मालिक यह ख़्याल न करे, कि उन्होंने सब जवानों को जो बादशाह ज़ादे हैं मार डाला है इसलिए कि सिर्फ़ अमनून ही मरा है, क्यूँकि अबीसलोम के इन्तिज़ाम से उसी दिन से यह बात ठान ली गई थी जब उसने उसकी बहन तमर के साथ ज़बरदस्ती की थी|
\v 33 इसलिए मेरा मालिक बादशाह ऐसा ख़्याल करके कि सब शहज़ादे मर गये इस बात का ग़म न करे क्यूँकि सिर्फ़ अमनून ही मरा है|"
\s5
\v 34 और अबीसलोम भाग गया और उस जवान ने जो निगहबान था अपनी आँखें उठाकर निगाह की और क्या देखा कि बहुत से लोग उसके पीछे की तरफ़ से पहाड़ के किनारे के रास्ते से चले आ रहे हैं|
\v 35 तब यूनदब ने बादशाह से कहा कि "देख शहज़ादे आ गए जैसा तेरे ख़ादिम ने कहा ~था वैसा ही है|"
\v 36 उसने अपनी बात ख़त्म ही की थी कि शहज़ादे आ पहुँचे और ज़ोर ज़ोर से रोने लगे और बादशाह और उसके सब मुलाज़िम भी ज़ोर ज़ोर से रोए|
\s5
\v 37 लेकिन अबीसलोम भाग कर जसूर के बादशाह 'अम्मीहूद के बेटे तल्मी के पास चला गया और दाऊद हर रोज़ अपने बेटे के लिए मातम करता रहा|
\v 38 इसलिए अबीसलोम भाग कर जसूर को गया और तीन बरस तक वहीं रहा|
\v 39 और दाऊद बादशाह के दिल में अबीसलोम के पास जाने की बड़ी आरज़ू थी क्यूँकि अमनून की तरफ़ से उसे तसल्ली हो गई थी इसलिए कि वह मर चुका था
\s5
\c 14
\p
\v 1 और ज़रोयाह के बेटे योआब ने जान लिया कि बादशाह का दिल अबीसलोम की तरफ़ लगा है|
\v 2 तब योआब ने तक़ू'अ को आदमी भेज कर वहाँ से एक 'अक़्लमन्द 'औरत बुलवाई और उससे कहा कि "ज़रा सोग वाली सा भेस करके मातम के कपड़े पहन ले, और तेल न लगा बल्कि ऐसी 'औरत की तरह बन जा, जो बड़ी मुद्दत से मुर्दा के लिए मातम कर रही हो|
\v 3 और बादशाह के पास जाकर उससे इस इस तरह कहना| फिर योआब ने जो बातें कहनी थीं सिखायीं|
\s5
\v 4 और जब तक़ू'अ ~की वह 'औरत बादशाह से बातें करने लगी, तो ज़मीन पर औंधे मुँह होकर गिरी और सिज्दा करके कहा, "ऐ बादशाह तेरी दुहाई है!|"
\v 5 बादशाह ने उससे कहा, "तुझे क्या हुआ?" उसने कहा, "मैं सच मुच एक बेवा हूँ और मेरा शौहर मर गया है|
\v 6 तेरी लौंडी के दो बेटे थे, वह दोनों मैदान पर आपस में मार पीट करने लगे, और कोई न था जो उनको छुड़ा देता, इसलिए एक ने दूसरे को ऐसी मार लगाई कि उसे मार डाला|
\s5
\v 7 और अब देख कि सब कुम्बे का कुम्बा तेरी लौंडी के ख़िलाफ़ उठ खड़ा हुआ है, और वह कहते हैं, कि उसको जिसने अपने भाई को मारा हमारे हवाले कर ताकि हम उसको उसके भाई की जान के बदले, जिसे उसने मार डाला क़त्ल करें, और यूँ वारिस को भी हलाक कर दें, इस तरह वह मेरे अंगारे को जो बाक़ी रहा है बुझा देंगे, और मेरे शौहर का न तो नाम न बक़िया रू-ए-ज़मीन पर छोड़ेंगे|"
\s5
\v 8 बादशाह ने उस 'औरत से कहा, "तू अपने घर जा और मैं तेरे बारे में हुक्म करूँगा|"
\v 9 तक़ू'अ की उस 'औरत ने बादशाह से कहा, "ऐ मेरे मालिक !ऐ बादशाह! सारा गुनाह मुझ पर और मेरे बाप के घराने पर हुआ और बादशाह और उसका तख़्त बे गुनाह रहे|"
\s5
\v 10 तब बादशाह ने फ़रमाया, "जो कोई तुझसे कुछ कहे उसे मेरे पास ले आना और फिर वह तुझको छूने नहीं पायेगा|"
\v 11 तब उसने कहा कि "मैं 'अर्ज़ करती हूँ कि बादशाह ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को याद करे, कि ख़ून का बदला लेने~वाला और हलाक ~न करने पाए, ऐसा न हो कि वह मेरे बेटे को हलाक कर दें" उसने जवाब दिया, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम तेरे बेटे का एक बाल भी ज़मीन पर नहीं गिरने पायेगा|"
\s5
\v 12 तब उस 'औरत ने कहा, "ज़रा मेरे मालिक बादशाह से तेरी लौंडी एक बात कहे ? "
\v 13 उसने जवाब दिया,"कह" तब उस 'औरत ने कहा कि "तूने ख़ुदा के लोगों के ख़िलाफ़ ऐसी तदबीर क्यों निकाली है?क्यूँकि बादशाह इस बात के कहने से मुजरिम सा ठहरता है, इसलिए कि बादशाह अपने जिला वतन को फिर घर लौटा कर नहीं आता|
\v 14 क्यूँकि हम सबको मरना है, और हम ज़मीन पर गिरे हुए पानी कि तरह हो जाते हैं जो फिर जमा' नहीं हो सकता, और ख़ुदा किसी की जान नहीं लेता बल्कि ऐसे ज़रिए' निकालता है, कि जिला वतन उसके यहाँ से निकाला हुआ न रहे|
\s5
\v 15 और मैं जो अपने मालिक से यह बात कहने आई हूँ, तो इसकी वजह यह है कि लोगों ने मुझे डरा दिया था, इसलिए तेरी लौंडी ने कहा कि मैं ख़ुद बादशाह से दरख़्वास्त ~करूँगी, शायद बादशाह अपनी लौंडी की गुज़ारिश~पूरी करे|
\v 16 क्यूँकि बादशाह सुनकर ज़रूर अपनी लौंडी को उस शख़्स के हाथ से छुड़ाएगा, जो मुझे और मेरे बेटे दोनों को ख़ुदा की मीरास में से मिटा ~डालना चाहता है|
\v 17 इसलिए तेरी लौंडी ने कहा कि मेरे मालिक बादशाह की बात तसल्ली बख़्स हो, क्यूँकि मेरा मालिक बादशाह नेकी और गुनाह के फ़र्क ~करने में ख़ुदा के फ़रिश्ता की तरह है, इसलिए ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे साथ हो|"
\s5
\v 18 तब बादशाह ने उस 'औरत से कहा, "मैं तुझसे जो कुछ पूछूँ तो उसको ज़रा भी मुझसे मत छिपाना| उस 'औरत ने कहा, "मेरा मालिक बादशाह फ़रमाए|"
\v 19 बादशाह ने कहा, "क्या इस सारे मु'आमले में योआब का हाथ तेरे साथ है ?" उस 'औरत ने जवाब दिया, "तेरी जान की क़सम ऐ मेरे मालिक बादशाह कोई इन बातों से जो मेरे मालिक बादशाह ने फ़रमाई हैं दहनी याँ बायीं तरफ़ नहीं मुड़ सकता क्यूँकि तेरे ख़ादिम योआब ही ने मुझे हुक्म दिया और उसी ने यह सब बातें तेरी लौंडी को सिखायीं|
\v 20 और तेरे ख़ादिम योआब ने यह काम इसलिए किया ताकि उस मज़मून के रंग ही को पलट दे और मेरा मालिक 'अक़्लमन्द है, जिस तरह ख़ुदा के फ़रिश्ता में समझ होती है कि दुनिया की सब बातों को जान ले|"
\s5
\v 21 तब बादशाह ने योआब से कहा, "देख, मैंने यह बात मान ली इसलिए तू जा और उस जवान अबीसलोम को फिर ले आ|"
\v 22 तब यूआब ज़मीन पर औंधे होकर गिरा और सज्दा किया और बादशाह को मुबारक बाद दी और योआब कहने लगा, "आज तेरे बन्दा को यक़ीन हुआ ऐ मेरे मालिक बादशाह मुझ पर तेरे करम की नज़र है इसलिए कि बादशाह ने अपने ख़ादिम की गुज़ारिश पूरी की|"
\s5
\v 23 फिर योआब उठा, और जसूर को गया और अबीसलोम को यरुशलीम में ले आया|
\v 24 तब बादशाह ने फ़रमाया, "वह अपने घर जाए और मेरा मुँह न देखे|" तब अबीसलोम अपने घर गया और वह बादशाह का मुँह देखने न पाया|
\s5
\v 25 और सारे इस्राईल में कोई शख़्स अबी सलोम की तरह उसके हुस्न की वजह से ता'रीफ़ के क़ाबिल न था क्यूँकि उसके पाँव के तलवे से सर के चाँद तक उसमें कोई ऐब न था|
\v 26 जब वह अपना सिर मुंडवाता था क्यूँकि हर साल के आख़िर में वह उसे मुंडवाता था इसलिए कि उसके बाल घने थे, इसलिए वह उनको मुंडवाता था तो अपने सिर के बाल वज़न में शाही तौल के मुताबिक़ दो सौ मिस्क़ाल के बराबर पाता था|
\v 27 और अबीसलोम से तीन बेटे पैदा हुए और एक बेटी जिसका नाम तमर था वह बहुत ख़ूबसूरत 'औरत थी|
\s5
\v 28 और अबीसलोम पूरे दो बरस यरुशलीम में रहा और बादशाह का मुँह न देखा|
\v 29 तब अबीसलोम ने योआब को बुलवाया ताकि उसे बादशाह के पास भेजे, लेकिन उसने उसके पास आने से इन्कार किया, और उसने दोबारह बुलवाया लेकिन वह न आया|
\s5
\v 30 तब उसने अपने मुलाज़िमों से कहा, "देखो योआब का खेत मेरे खेत से लगा है और उसमें जौ हैं इसलिए जाकर उसमें आग लगा दो|" और अबीसलोम के मुलाज़िमों ने उस खेत में आग लगा दी|
\v 31 तब योआब उठा और अबीसलोम के पास उसके घर जाकर उससे कहने लगा, "तेरे ख़ादिमों ने मेरे खेत में आग क्यों लगा दी ?|"
\s5
\v 32 अबीसलोम ने योआब को जवाब दिया कि "देख मैंने तुझे कहला भेजा कि यहाँ आ ताकि मैं तुझे बादशाह के पास यह कहने को भेजूँ, कि मैं जसूर से यहाँ क्यों आया? मेरे लिए वहीँ रहना बेहतर होता, इसलिए बादशाह अब मुझे अपना दीदार दे और अगर मुझमें कोई बुराई हो तो मुझे मार डाले|"
\v 33 तब योआब ने बादशाह के पास जाकर उसे यह पैग़ाम दिया और जब उसने अबीसलोम को बुलवाया तब वह बादशाह के पास आया और बादशाह के आगे ज़मीन पर सर झुका दिया, और बादशाह ने अबीसलोम को बोसा दिया|
\s5
\c 15
\p
\v 1 इसके बा'द ऐसा हुआ कि अबीसलोम ने अपने लिए एक रथ और घोड़े और पचास आदमी तैयार किए, जो उसके आगे आगे दौड़ें|
\v 2 और अबीसलोम सवेरे उठकर फाटक के रास्ता के बराबर खड़ा हो जाता और जब कोई ऐसा आदमी आता जिसका मुक़द्दमा फ़ैसला के लिए बादशाह के पास जाने को होता, तो अबीसलोम उसे बुलाकर पूछता था कि "तू किस शहर का है?" और वह कहता कि "तेरा ख़ादिम इस्राईल के फ़लाँ क़बीले का है?|"
\s5
\v 3 फिर अबीसलोम उससे कहता,"देख तेरी बातें तो ठीक और सच्ची हैं लेकिन कोई बादशाह की तरफ़ से मुक़र्रर नहीं है जो तेरी सुने|"
\v 4 और अबीसलोम यह भी कहा करता था कि "काश मैं मुल्क का क़ाज़ी बनाया गया होता तो हर शख़्स जिसका कोई मुक़द्दमा या दा'वा होता मेरे पास आता और मैं उसका इन्साफ़ करता|"
\s5
\v 5 और जब कोई अबीसलोम के नज़दीक आता था कि उसे सज्दा करे तो वह हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ लेता और उसको बोसा देता था|
\v 6 और अबीसलोम सब इस्राईलियों से जो बादशाह के पास फ़ैसला के लिए आते थे, इसी तरह पेश आता था|यूँ अबी सलोम ने इस्राईल के दिल जीत लिए|
\s5
\v 7 और चालीस बरस के बा'द यूँ हुआ कि अबीसलोम ने बादशाह से कहा, "मुझे ज़रा जाने दे कि मैं अपनी मिन्नत जो मैंने ख़ुदावन्द के लिए मानी है हब्रून में पूरी करूँ|
\v 8 क्यूँकि जब मैं अराम के जसूर में था तो तेरे ख़ादिम ने यह मिन्नत मानी थी कि अगर ख़ुदावन्द मुझे फिर यरुशलीम में सच मुच पहुँचा दे, तो मैं ख़ुदावन्द की 'इबादत करूँगा|"
\s5
\v 9 बादशाह ने उससे कहा कि "सलामत जा|" इसलिए वह उठा और हब्रून को गया|
\v 10 और अबीसलोम ने बनी इस्राईल के सब क़बीलों में जासूस भेजकर ऐलान करा दिया कि जैसे ही तुम नरसिंगे की आवाज़ सुनो तो बोल उठना कि "अबीसलोम हब्रून में बादशाह ~हो गया है|"
\s5
\v 11 और अबीसलोम के साथ यरुशलीम से दो सौ आदमी जिनको दा'वत दी गई थी गये थे वह सादा दिली से गये थे और उनको किसी बात की ~ख़बर नहीं थी|
\v 12 और अबीसलोम ने कुर्बानियाँ अदा करते वक़्त जिलोनी अख़ीतुफ्फ़ल को जो दाऊद का सलाहकार था, उसके शहर जल्वा से बुलवाया, यह बड़ी भारी साज़िश थी और अबीसलोम के पास लोग बराबर बढ़ते ही जाते थे|
\s5
\v 13 और एक क़ासिद ने आकर दाऊद को ख़बर दी कि "बनी इस्राईल के दिल अबी सलोम की तरफ़ हैं|"
\v 14 और दाऊद ने अपने सब मुलाज़िमों से जो यरुशलीम में उसके साथ थे कहा, "उठो भाग चलें नहीं तो हममें से एक भी अबीसलोम से नहीं बचेगा चलने की जल्दी न करो ऐसा न हो कि वह हम को झट आले और हम पर आफ़त लाये और शहर को तहस नहस ~करे|"
\v 15 बादशाह के ख़ादिमों ने बादशाह से कहा, "देख तेरे ख़ादिम जो कुछ हमारा मालिक बादशाह चाहे उसे करने को तैयार हैं|"
\s5
\v 16 तब बादशाह निकला और उसका सारा घराना उसके पीछे चला और बादशाह ने दस 'औरतें जो बाँदी ~थीं घर की निगहबानी के लिए पीछे छोड़ दीं|
\v 17 और बादशाह निकला और सब लोग उसके पीछे चले और वह बैत मिर्हाक़ में ठहर गये|
\v 18 और उसके सब ख़ादिम उसके बराबर से होते हुए आगे गए और सब करैती और सब फ़लैती और सब जाती या'नी वह छ:सौ आदमी जो जात से उसके साथ आए थे बादशाह के सामने आगे चले|
\s5
\v 19 तब बादशाह ने जाती इती से कहा, "तू हमारे साथ क्यों चलता है? तू लौट जा और बादशाह के साथ रह क्यूँकि तू परदेसी और जिला वतन भी है, इसलिए अपनी जगह को लौट जा|
\v 20 तू कल ही तो आया है, तो क्या आज मैं तुझे अपने साथ इधर उधर फिराऊँ? जिस ~हाल कि मुझे जिधर जा सकता हूँ जाना है ?इसलिए तू लौट जा और अपने भाइयों को साथ लेता जा, रहमत और सच्चाई तेरे साथ हों|"
\s5
\v 21 तब इती ने बादशाह को जवाब दिया, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम और मेरे मालिक बादशाह की जान की क़सम जहाँ कहीं मेरा मालिक बादशाह चाहे मरते चाहे जीते होगा, वहीं ज़रूर तेरा ख़ादिम भी होगा|"
\v 22 तब दाऊद ने इती से कहा, "चल पार जा|" और जाती इती और उसके सब लोग और सब नन्हे बच्चे जो उसके साथ थे पार गये|
\v 23 और सारा मुल्क ऊँची आवाज़ से रोया और सब लोग पार हो गये, और बादशाह ख़ुद नहर क़िद्रोन के पार हुआ,और सब लोगों ने पार हो कर जंगल की राह ली|
\s5
\v 24 और सदूक़ भी और उसके साथ सब लावी ख़ुदा के 'अहद का संदूक़ लिए हुए आए और उन्होंने ख़ुदा के संदूक़ को रख दिया, और अबियातर ऊपर चढ़ गया और जब तक सब लोग शहर से निकल न आए वहीं रहा|
\v 25 तब बादशाह ने सदूक़ से कहा कि "ख़ुदा का संदूक़ शहर को वापस ले जा, तब अगर ख़ुदावन्द के करम की नज़र मुझ पर होगी तो वह मुझे फिर ले आएगा, और उसे और अपने घर को मुझे फिर दिखाएगा|
\v 26 लेकिन अगर वह यूँ फ़रमाए, कि मैं तुझसे ख़ुश नहीं, तो देख मैं हाज़िर हूँ जो कुछ उसको अच्छा मा'लूम हो मेरे साथ करे|"
\s5
\v 27 और बादशाह ने सदूक़ काहिन से यह भी कहा, "क्या तू ग़ैब बीन नहीं? शहर को सलामत लौट जा और तुम्हारे साथ तुम्हारे दोनों बेटे हों, अख़ीमा'ज़ जो तेरा बेटा है और यूनतन जो अबियातर का बेटा है|
\v 28 और देख, मैं उस जंगल के घाटों के पास ठहरा रहूँगा जब तक तुम्हारे पास से मुझे हक़ीक़त हाल की ख़बर न मिले|"
\v 29 इसलिए सदूक़ और अबियातर ख़ुदा का संदूक़ यरुशलीम को वापस ले गये और वहीं रहे|
\s5
\v 30 और दाऊद कोह-ए-ज़ैतून की चढ़ाई पर चढ़ने लगा और रोता जा रहा था, उसका सिर ढका था और वह नंगे पाँव चल रहा था, और वह सब लोग जो उसके साथ थे उनमें से हर एक ने अपना सिर ढाँक रख्खा था, वह ऊपर चढ़ते जाते थे और रोते जाते थे|
\v 31 और किसी ने दाऊद को बताया कि "अख़ीतुफ़्फ़ल भी फ़सादियों में शामिल और अबी सलोम के साथ है|" तब दाऊद ने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द! मैं तुझसे मिन्नत करता हूँ कि अख़ीतुफ़्फ़ल की सलाह को बेवक़ूफ़ी से बदल दे|"
\s5
\v 32 जब दाऊद चोटी पर पहुँचा जहाँ ख़ुदा को सज्दा किया करते थे, तो अरकी हूसी अपनी चोग़ा फाड़े और सिर पर ख़ाक डाले उसके इस्तक़बाल को आया|
\v 33 और दाऊद ने उससे कहा, "अगर तू मेरे साथ जाए तो मुझ पर बोझ होगा|
\v 34 लेकिन अगर तू शहर को लौट जाए और अबी सलोम से कहे कि, ऐ बादशाह मैं तेरा ख़ादिम हूँगा जैसे गुज़रे ज़माना में तेरे बाप का ख़ादिम रहा वैसे ही अब तेरा ख़ादिम हूँ तो तू मेरी ख़ातिर अख़ीतुफ़्फ़ल की सलाह को रद कर देगा
\s5
\v 35 और क्या वहाँ तेरे साथ सदूक़ और अबियातर काहिन न होंगे? इसलिए जो कुछ तू बादशाह के घर से सुने उसे सदूक़ और अबियातर काहिनों को बता देना|
\v 36 देख वहाँ उनके साथ उनके दोनों बेटे हैं या'नी सदूक़ का बेटा अख़ीमा'ज़ और अबियातर का बेटा यूनतन इसलिए जो कुछ तुम सुनो, उसे उनके ज़रिए' मुझे कहला भेजना|"
\v 37 इसलिए दाऊद का दोस्त हूसी शहर में आया और अबीसलोम भी यरुशलीम में पहुँच गया|
\s5
\c 16
\p
\v 1 और जब दाऊद चोटी से आगे बढ़ा तो मिफ़ीबोसत का ख़ादिम ज़ीबा दो गधे लिए हुए उसे मिला, जिन पर जीन कसे थे और उनके ऊपर दो सौ रोटियाँ और किशमिश के सौ गुच्छे और ताबिस्तानी मेवों के सौ दाने और मय का एक मश्कीज़ा था|
\v 2 और बादशाह ने ज़ीबा से कहा, "इन से तेरा क्या मतलब है?" ज़ीबा ने कहा, "यह गधे बादशाह के घराने की सवारी के लिए और रोटियाँ और गर्मी के फल जवानों के खाने के लिए हैं और यह शराब इसलिए है कि जो बयाबान में थक जायें उसे पियें|"
\s5
\v 3 और बादशाह ने पूछा, "तेरे आक़ा का बेटा कहाँ है ?" ज़ीबा ने बादशाह से कहा, "देख वह यरुशलीम में रह गया है क्यूँकि उसने कहा आज इस्राईल का घराना मेरे बाप की बादशाहत मुझे लौटा देगा|"
\v 4 तब बादशाह ने ज़ीबा से कहा, "देख! जो कुछ मिफ़ीबोसत का है वह सब तेरा हो गया|तब ज़ीबा ने कहा, "मैं सिज्दा करता हूँ ऐ मेरे मालिक बादशाह तेरे करम की नज़र मुझ पर रहे !"
\s5
\v 5 जब दाऊद बादशाह बहूरेम पहुँचा तो वहाँ से साऊल के घर के लोगों में से एक शख़्स जिसका नाम सिम'ई बिन जीरा था निकला और ला'नत करता हुआ आया|
\v 6 और उसने दाऊद पर और दाऊद बादशाह के सब ख़ादिमों पर पत्थर फेंके और सब लोग और सब सूरमा उसके दहने और बायें हाथ थे|
\s5
\v 7 और सिम'ई ला'नत करते वक़्त यूँ कहता था, "दूर हो! दूर हो !ऐ ख़ूनी आदमी ऐ ख़बीस !|
\v 8 ख़ुदावन्द ने साऊल के घराने के सब ख़ून को जिसके बदले तू बादशाह हुआ तेरे ही ऊपर लौटाया, और ख़ुदावन्द बादशाहत तेरे बेटे अबीसलोम के हाथ में दे दी, है और देख तू अपनी ही बुराई में ख़ुद आप फंस गया है इसलिए कि तू ख़ूनी आदमी है|"
\s5
\v 9 तब ज़रोयाह के बेटे अबीशे ने बादशाह से कहा, "यह मरा हुआ कुत्ता मेरे मालिक बादशाह पर क्यूँ ला'नत करे? मुझको ज़रा उधर जाने दे कि उसका सिर उड़ा दूँ|"
\v 10 बादशाह ने कहा, "ऐ ज़रोयाह के बेटो ! मुझे तुमसे क्या काम? वह जो ला'नत कर रहा है, और ख़ुदावन्द ने उससे कहा है कि दाऊद पर ला'नत कर इसलिए कौन कह सकता है कि तूने क्यों ऐसा किया?|"
\s5
\v 11 और दाऊद ने अबीशे से और अपने सब ख़ादिमों से कहा, "देखो मेरा बेटा ही जो मेरे सुल्ब से पैदा हुआ मेरी जान का तालिब है तब अब यह बिनयमीनी कितना ज़्यादा ऐसा न करे ? उसे छोड़ दो और ला'नत करने दो क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उसे हुक्म दिया है
\v 12 शायद ख़ुदावन्द उस ज़ुल्म पर जो मेरे ऊपर हुआ है, नज़र करे और ख़ुदावन्द आज के दिन उसकी ला'नत के बदले मुझे नेक बदला दे|"
\s5
\v 13 तब दाऊद और उसके लोग रास्ता चलते रहे और सिम'ई उसके सामने के पहाड़ के किनारे पर चलता रहा और चलते चलते ला'नत करता और उसकी तरफ़ पत्थर फेंकता और ख़ाक डालता रहा|
\v 14 और बादशाह और उसके सब साथी थके हुए आए और वहाँ उसने आराम किया|
\s5
\v 15 और अबीसलोम और सब इस्राईली मर्द यरुशलीम में आए और अख़ीतुफ़्फ़ल उसके साथ था|
\v 16 और ऐसा हुआ कि जब दाऊद का दोस्त अरकी हूसी अबीसलोम के पास आया तो हूसी ने~अबीसलोम से कहा, "बादशाह जीता रहे !बादशाह जीता रहे !|"
\s5
\v 17 और अबीसलोम ने हूसी से कहा, "क्या तूने अपने दोस्त पर यही महेरबानी की ? तू अपने दोस्त के साथ क्यों न गया?|"
\v 18 हूसी ने अबीसलोम से कहा, "नहीं बल्कि जिसको ख़ुदावन्द ने और इस क़ौम ने और इस्राईल के सब आदमियों ने चुन लिया है मैं उसी का हूँगा और उसी के साथ रहूँगा|
\s5
\v 19 और फिर मैं किसकी ख़िदमत करूँ? क्या मैं उसके बेटे के सामने रह कर ख़िदमत न करूँ? जैसे मैंने तेरे बाप के सामने रहकर की वैसे ही तेरे सामने रहूँगा|"
\s5
\v 20 तब अबीसलोम ने अख़ीतुफ़्फ़ल से कहा, "तुम सलाह दो कि हम क्या करें|"
\v 21 तब अख़ीतुफ़्फ़ल ने अबीसलोम से कहा कि "अपने बाप की बाँदियों ~के पास जा जिनको वह घर की निगह बानी को छोड़ गया है, इसलिए कि जब इस्राईली सुनेंगे कि तेरे बाप को तुझ से नफ़रत है, तो उन सबके हाथ जो तेरे साथ हैं ताक़तवर हो जायेंगे|"
\s5
\v 22 फिर उन्होंने महल की छत पर अबीसलोम के लिए एक तम्बू खड़ा कर दिया और अबी सलोम सब इस्राईल के सामने अपने बाप की बाँदियों के पास गया|
\v 23 और अख़ीतुफ़्फ़ल की सलाह जो इन दिनों होती वह ऐसी समझी जाती थी, कि गोया ख़ुदा के कलाम से आदमी ने बात पूछ ली, यूँ अख़ीतुफ़्फ़ल की सलाह दाऊद और अबी सलोम की ख़िदमत में ऐसी ही होती थी|
\s5
\c 17
\p
\v 1 और अख़ीतुफ़्फ़ल ने अबीसलोम से यह भी कहा कि "मुझे अभी बारह हज़ार जवान चुन लेने दे और मैं उठकर आज ही रात को दाऊद का पीछा करूँगा|
\v 2 और ऐसे हाल में कि वह थका माँदा हो और उसके हाथ ढीले हों, मैं उस पर जा पडूँगा और उसे डराऊँगा, और सब लोग जो उसके साथ हैं भाग जायेंगे, और मैं सिर्फ़ बादशाह को मारूँगा|
\v 3 और मैं सब लोगों को तेरे पास लौटा लाऊँगा, जिस आदमी का तू तालिब है वह ऐसा है कि जैसे सब लौट आए, यूँ सब लोग सलामत रहेंगे|
\v 4 यह बात अबीसलोम को और इस्राईल के सब बुज़ुर्गों को बहुत अच्छी लगी|"
\s5
\v 5 और अबीसलोम ने कहा, "अब अरकी हूसी को भी बुलाओ और जो वह कहे हम उसे भी सुनें|
\v 6 जब हूसी अबीसलोम के पास आया तो अबीसलोम ने उससे कहा कि, "अख़ीतुफ़्फ़ल ने तो यह यह कहा है, क्या हम उसके कहने के मुताबिक़ 'अमल करें? अगर नहीं तो तू बता|"
\v 7 हूसी ने अबीसलोम से कहा कि, "वह सलाह जो अख़ीतुफ़्फ़ल ने इस बार दी है अच्छी नहीं|"
\s5
\v 8 ~इसके 'अलावा हूसी ने यह भी कहा कि, "तू अपने बाप को और उसके आदमियों को जानता है कि वह बहादुर लोग हैं, और वह अपने दिल ही दिल में उस रीछनी की तरह, जिसके बच्चे जंगल में छिन गये हों झल्ला रहे होंगे और तेरा बाप जंगी मर्द है, और वह लोगों के साथ नहीं ठहरेगा
\v 9 और देख अब तो वह किसी ग़ार में या किसी दूसरी जगह छिपा हुआ होगा|और जब शुरू' ही में थोड़े से क़त्ल हों जायेंगे, तो जो कोई सुनेगा यही कहेगा, कि अबीसलोम के पैरोकार के बीच तो ख़ूँरेज़ी शुरू' है|
\v 10 तब वह भी जो बहादुर है और जिसका दिल शेर के दिल की तरह है बिल्कुल पिघल जाएगा क्यूँकि सारा इस्राईल जानता है कि तेरा बाप बहादुर आदमी है और उसके साथ के लोग सूरमा हैं|
\s5
\v 11 तो मैं यह सलाह देता हूँ कि दान से बेर सबा' तक के सब इस्राईली समुन्दर के किनारे की रेत की तरह तेरे पास कसरत से इकट्ठे किए जायें और तू आप ही लड़ाई पर जा|
\v 12 यूँ हम किसी न किसी जगह जहाँ वह मिले उस पर जा ही पड़ेंगे और हम उस पर ऐसे गिरेंगे जैसे शबनम ज़मीन पर गिरती है, फिर न तो हम उसे और न उसके साथ के सब आदमियों में से किसी को जीता छोड़ेंगे|
\s5
\v 13 ~इसके 'अलावा अगर वह किसी शहर में घुसा हुआ होगा तो सब इस्राईली उस शहर के पास रस्सियाँ ले आयेंगे और हम उसको खींचकर दरया में कर देंगे यहाँ तक कि उसका एक छोटा सा पत्थर भी वहाँ नहीं मिलेगा|"
\v 14 तब अबी सलोम और सब इस्राईली कहने लगे कि "यह सलाह जो अरकी हूसी ने दी है अख़ीतुफ़्फ़ल की सलाह से अच्छी है|" क्यूँकि यह तो ख़ुदावन्द ही ने ठहरा दिया था कि अख़ीतुफ़्फ़ल की अच्छी सलाह बातिल हो जाए ताकि ख़ुदावन्द अबीसलोम पर बला नाज़िल करे|
\s5
\v 15 तब हूसी ने सदूक़ और अबियातर काहिनों से कहा कि "अख़ीतुफ़्फ़ल ने अबीसलोम को और बनी इस्राईल के बुज़ुर्गों को ऐसी ऐसी सलाह दी और मैंने ~यह सलाह दी|
\v 16 इसलिए अब जल्द दाऊद के पास कहला भेजो कि आज रात को जंगल के घाटों पर न ठहर बल्कि जिस तरह हो सके पार उतर जा ताकि ऐसा न हो कि बादशाह और सब लोग जो उसके साथ हैं निगल लिए जायें|"
\s5
\v 17 और यूनतन और अख़ीमा'ज़ 'ऐन राजिल के पास ठहरे थे और एक लौंडी जाती और उनको ख़बर दे आती थी और वह जाकर दाऊद को बता देते थे क्यूँकि मुनासिब न था कि वह शहर में आते दिखाई देते|
\v 18 लेकिन एक लड़के ने उनको देख लिया और अबीसलोम को ख़बर दी लेकिन वह दोनों जल्दी करके निकल गये और बहूरीम में एक शख़्स के घर गये जिसके सहन में एक कुआँ था इसलिए वह उसमें उतर गये|
\s5
\v 19 और उस 'औरत ने पर्दा ले कर कुवें के मुहँ पर बिछाया और उस पर दला हुआ अनाज फैला दिया और कुछ मा'लूम नहीं होता था|
\v 20 और अबीसलोम के ख़ादिम उस घर पर उस 'औरत के पास आए और पूछा कि "अख़ीमा'ज़ और यूनतन कहाँ हैं ?" उस 'औरत ने उनसे कहा, "वह नाले के पार गये|" और जब उन्होंने उनको ढूंडा और न पाया तो यरुशलीम को लौट गये|
\s5
\v 21 और ऐसा हुआ कि जब यह चले गये तो वह कुवें से निकले और जाकर दाऊद बादशाह को ख़बर दी और वह दाऊद से कहने लगे, कि "उठो और दरया पार हो जाओ क्यूँकि अख़ीतुफ़्फ़ल ने तुम्हारे ख़िलाफ़ ऎसी ऐसी सलाह दी है|"
\v 22 तब दाऊद और सब लोग जो उसके साथ थे उठे और यर्दन के पार गये,और सुबह की रोशनी तक उनमें से एक भी ऐसा न था जो यर्दन के पार न हो गया हो|
\s5
\v 23 जब अख़ीतुफ़्फ़ल ने देखा कि उसकी सलाह पर 'अमल नहीं किया गया तो उसने अपने गधे पर ज़ीन कसा और उठ कर अपने शहर को अपने घर गया और अपने घराने का बन्दोबस्त करके अपने को फाँसी दी और मर गया और अपने बाप की क़ब्र में दफ़न हुआ|
\s5
\v 24 तब दाऊद महनायम में आया और अबीसलोम और सब इस्राईली जवान जो उसके साथ थे यर्दन के पार हुए|
\v 25 और अबीसलोम ने योआब के बदले 'अमासा को लश्कर का सरदार किया, यह 'अमासा एक इस्राईली आदमी का बेटा था जिसका नाम इतरा था उसने नाहस की बेटी अबीजेल से जो योआब की माँ ज़रोयाह की बहन थी सोहबत की थी|
\v 26 और इस्राईली और अबीसलोम जिल'आद के मुल्क में ख़ेमा ज़न हुए|
\s5
\v 27 और जब दाऊद महनायम में पहुँचा तो ऐसा हुआ कि नाहस का बेटा सोबी, बनी अम्मोन के रब्बा से और अम्मी ऐल का बेटा मकीर लूदबार से और बरज़िली जिल'आदी राजिलीम से|
\v 28 पलंग और चार पाइयाँ और बासन और मिट्टी के बर्तन और गेहूँ और जौ और आटा और भुना हुआ अनाज और लोबिये की फलियाँ और मसूर और भुना हुआ चबेना|
\v 29 और शहद और मख्खन और भेड़ और गाय के दूध का पनीर दाऊद के और उसके साथ के लोगों के खाने के लिए लाये क्यूँकि उन्होंने कहा कि "लोग बयाबान में भूके और थके और प्यासे हैं|"
\s5
\c 18
\p
\v 1 और दाऊद ने उन ~लोगों को जो उसके साथ थे गिना और हज़ारों के और सैकड़ों के सरदार मुक़र्रर किए|
\v 2 और दाऊद ने लोगों की एक तिहाई योआब के मातहत और एक तिहाई योआब के भाई अबीशे बिन ज़रोयाह के मातहत और तिहाई जाती इत्ती के मातहत करके उनको रवाना किया और बादशाह ने लोगों से कहा कि "मैं ख़ुद भी ज़रूर तुम्हारे साथ चलूँगा|"
\s5
\v 3 लेकिन लोगों ने कहा कि "तू नहीं जाने पायेगा क्यूँकि हम अगर भागें तो उनको कुछ हमारी परवा न होगी और अगर हम में से आधे मारे जायें तो भी उनको कुछ परवा न होगी लेकिन तू हम जैसे दस हज़ार के बराबर है इसलिए बेहतर यह है कि तू शहर में से हमारी मदद करने को तैयार रहे|"
\v 4 बादशाह ने उनसे कहा, "जो तुमको बेहतर मा'लूम होता है मैं वही करूँगा|" ~इसलिए बादशाह शहर के फाटक की एक तरफ़ खड़ा रहा और सब लोग सौ सौ और हज़ार हज़ार करके निकलने लगे|
\s5
\v 5 और बादशाह ने योआब और अबीशे और इती को फ़रमाया कि "मेरी ख़ातिर उस जवान अबीसलोम के साथ नरमी से पेश आना|" जब बादशाह ने सब सरदारों को अबीसलोम के हक़ में नसीहत की तो सब लोगों ने सुना|
\s5
\v 6 इसलिए वह लोग निकल कर मैदान में इस्राईल के मुक़ाबिले को गये और इफ़्राईम के जंगल में हुई|
\v 7 और वहाँ इस्राईल के लोगों ने दाऊद के ख़ादिमों से शिकस्त खाई और उस दिन ऐसी बड़ी खूँरेज़ी हुई कि बीस हज़ार आदमी मारे गए|
\v 8 इसलिए कि उस दिन सारी बादशाहत में जंग थी और लोग इतने तलवार का लुक़मा नहीं बने जितने बन का शिकार हुए|
\s5
\v 9 और अचानक अबीसलोम दौड़ के ख़ादिमों के सामने आ गया और अबीसलोम अपने खच्चर पर सवार था और वह खच्चर एक बड़े बलूत के दरख़्त की घनी डालियों के नीचे से गया, इसलिए उसका सिर बलूत में अटक गया और वह आसमान और ज़मीन के बीच में लटका रह गया और वह खच्चर जो उसके रान तले था निकल गया|
\v 10 किसी शख़्स ने यह देखा और योआब को ख़बर दी कि "मैंने अबीसलोम को बलूत के दरख्त़ में लटका हुआ देखा|"
\v 11 और योआब ने उस शख़्स से जिसने उसे ख़बर दी थी कहा, "तूने यह देखा फिर क्यों नहीं तूने उसे मार कर वहीं ज़मीन पर गिरा दिया? क्यूँकि मैं तुझे चाँदी के दस टुकड़े और कमर बंद देता|"
\s5
\v 12 उस शख़्स ने योआब से कहा कि "अगर मुझे चाँदी के हज़ार टुकड़े भी मेरे हाथ में मिलते तो भी मैं बादशाह के बेटे पर हाथ न उठाता क्यूँकि बादशाह ने हमारे सुनते तुझे और अबीशे और इती को नसीहत की थी कि ख़बरदार कोई उस जवान अबीसलोम को न छुए|
\v 13 वरना अगर मैं उसकी जान के साथ दग़ा खेलता और बादशाह से तो कोई बात छुपी भी नहीं तो तू ख़ुद भी किनारा कर लेता|"
\s5
\v 14 तब योआब ने कहा, "मैं तेरे साथ यूँ ही ठहरा नहीं रह सकता|" फिर उसने तीन तीर हाथ में लिए और उनसे अबी सलोम के दिल को जो अभी बलूत के दरख्त़ के बीच ज़िन्दा ही था छेद डाला|
\v 15 और दस जवानों ने जो योआब के सलह बरदार थे अबी सलोम को घेर कर उसे मारा और क़त्ल कर दिया|
\s5
\v 16 तब योआब ने नरसिंगा फूँका और लोग इस्राईलियों का पीछा करने से लौटे क्यूँकि योआब ने लोगों को रोक लिया|
\v 17 और उन्होंने अबीसलोम को लेकर बन के उस बड़े गढ़े में डाल दिया और उस पर पत्थरों का एक बहुत बड़ा ढेर लगा दिया और सब इस्राईली अपने अपने डेरे को भाग गये|
\s5
\v 18 और अबीसलोम ने अपने जीते जी एक लाट लेकर खड़ी कराई थी जो शाही वादी में है क्यूँकि उसने कहा, "मेरे कोई बेटा नहीं जिससे मेरे नाम की यादगार रहे इसलिए उसने उस लाट को अपना नाम दिया|" और वह आज तक अबी सलोम की यादगार कहलाती है|
\s5
\v 19 तब सदूक़ के बेटे अखीमा'ज़ ने कहा कि "मुझे दौड़ कर बादशाह को ख़बर पहुँचाने दे कि ख़ुदावन्द ने उसके दुश्मनों से उसका बदला ले लिया|"
\v 20 लेकिन योआब ने उससे कहा कि आज के दिन तू कोई ख़बर न पहुँचा बल्कि दूसरे दिन ख़बर पहुँचा देना लेकिन आज तुझे कोई ख़बर नहीं ले जाना होगा इसलिए बादशाह का बेटा मर गया है|
\s5
\v 21 तब योआब ने कूशी से कहा कि ~जा कर जो कुछ तूने देखा है इसलिए बादशाह को जाकर बता दे| तब वह कूशी योआब को सज्दा करके दौड़ गया|
\v 22 तब सदूक़ के बेटे अख़ीमा'ज़ ने फिर योआब से कहा, "चाहे कुछ ही हो तू मुझे भी उस कूशी के पीछे दौड़ जाने दे|" ~योआब ने कहा, "ऐ मेरे बेटे तू क्यूँ दौड़ जाना चाहता है जिस हाल कि इस ख़बर के बदले तुझे कोई इन'आम नहीं मिलेगा?"
\v 23 उसने कहा, "चाहे कुछ ही हो मैं तो जाऊँगा" उसने कहा, "दौड़ जा|" तब अख़ीमा'ज़ मैदान से होकर दौड़ गया और कूशी से आगे बढ़ गया|
\s5
\v 24 और दाऊद दोनों फाटकों के दरमियान बैठा था और पहरे वाला फाटक की छत से होकर दीवार पर गया और क्या देखता है कि एक शख़्स अकेला दौड़ा आता है|
\v 25 उस पहरे वाले ने पुकार कर बादशाह को ख़बर दी, बादशाह ने फ़रमाया, "अगर वह अकेला है तो मुँह ज़बानी ख़बर लाता होगा|" और वह तेज़ आया और नज़दीक पहुँचा|
\s5
\v 26 और पहरे वाले ने एक और आदमी को देखा कि दौड़ा आता है, तब उस पहरे वाले ने दरबान को पुकार कर कहा कि "देख एक शख़्स और अकेला दौड़ा आता है|" बादशाह ने कहा, वह भी ख़बर लाता होगा|"
\v 27 और पहरे वाले ने कहा, "मुझे अगले का दौड़ना सदूक़ के बेटे अख़ीमा'ज़ के दौड़ने की तरह मा'लूम देता है|" तब बादशाह ने कहा, "वह भला आदमी है और अच्छी ख़बर लाता होगा|"
\s5
\v 28 और अख़ीमा'ज़ ने पुकार कर बादशाह से कहा, "ख़ैर है!" और बादशाह के आगे ज़मीन पर झुक कर सिज्दा किया और कहा कि "ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा मुबारक हो जिसने उन आदमियों को जिन्होंने मेरे मालिक बादशाह के ख़िलाफ़ हाथ उठाये थे क़ाबू में कर दिया है|"
\v 29 बादशाह ने पूछा क्या वह जवान अबीसलोम सलामत है ?अख़ीमा'ज़ ने कहा कि "जब योआब ने बादशाह के ख़ादिम को या'नी मुझको जो तेरा ख़ादिम हूँ रवाना किया तो मैंने एक बड़ी हलचल तो देखी लेकिन मैं नहीं जानता कि वह क्या थी|"
\v 30 तब बादशाह ने कहा, "एक तरफ़ हो जा और यहीं खड़ा रह|" इसलिए वह एक तरफ़ होकर चुप चाप खड़ा हो गया|
\s5
\v 31 फिर वह कूशी आया और कूशी ने कहा, "मेरे मालिक बादशाह के लिए ख़बर है क्यूँकि ख़ुदावन्द ने आज के दिन उन सबसे जो तेरे ख़िलाफ़ उठे थे तेरा बदला लिया|"
\v 32 तब बादशाह ने कूशी से पूछा, "क्या वह जवान अबीसलोम सलामत है ?" कूशी ने जवाब दिया कि "मेरे मालिक बादशाह के दुश्मन और जितने तुझे तकलीफ़ पहुँचाने को तेरे ख़िलाफ़ उठें वह उसी जवान की तरह हो जायें|"
\v 33 तब बादशाह बहुत बेचैन हो गया और उस कोठरी की तरफ़ जो फाटक के ऊपर थी रोता हुआ चला और चलते चलते यूँ कहता जाता था, "हाय मेरे बेटे अबीसलोम! मेरे बेटे! मेरे बेटे अबीसलोम! काश मैं तेरे बदले मर जाता !ऐ अबी सलोम !मेरे बेटे !मेरे बेटे "|
\s5
\c 19
\p
\v 1 और योआब को बताया गया कि "देख बादशाह अबीसलोम के लिए नौहा और मातम कर रहा है|"
\v 2 इसलिए तमाम लोगों के लिए उस दिन की फ़तह मातम से बदल गई क्यूँकि लोगों ने उस दिन यह कहते सुना कि "बादशाह अपने बेटे के लिए दुखी ~है|"
\s5
\v 3 इसलिए वह लोग उस दिन चोरी से शहर में घुसे जैसे वह लोग जो लड़ाई से भागते हैं शर्म के मारे चोरी चोरी चलते हैं|
\v 4 और बादशाह ने अपना मुँह ढाँक लिया और बादशाह ऊँची आवाज़ से चिल्लाने लगा कि "हाय मेरे बेटे अबीसलोम! हाय अबी सलोम मेरे बेटे! मेरे बेटे|"
\s5
\v 5 तब योआब घर में बादशाह के पास जाकर कहने लगा कि "तूने आज अपने सब ख़ादिमों को शर्मिन्दा किया, जिन्होंने आज के दिन तेरी जान और तेरे बेटों और तेरी बेटियों की जानें और तेरी बीवियों की जानें और तेरी बाँदियों की जानें बचायीं|
\v 6 क्यूँकि तू अपने 'अदावत रखने वालों को प्यार करता है, और अपने दोस्तों से 'अदावत रखता है, इसलिए कि तूने आज के दिन ज़ाहिर कर दिया कि सरदार और ख़ादिम तेरे नज़दीक बेक़द्र हैं, क्यूँकि आज के दिन मैं देखता हूँ कि अगर अबी सलोम जीता रहता और हम सब मर जाते, तो तू बहुत ख़ुश होता|
\s5
\v 7 इसलिए उठ बाहर निकल और अपने ख़ादिमों से तसल्ली बख़्श बातें कर क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द की क़सम खाता हूँ कि अगर तू बाहर न जाए तो आज रात को एक आदमी भी तेरे साथ न रहेगा और यह तेरे लिए उन सब आफतों से बदतर होगा जो तेरी नौजवानी से लेकर अब तक तुझ पर आई है|"
\v 8 तब बादशाह उठकर फाटक में जा बैठा और सब लोगों को बताया गया कि देखो बादशाह फाटक में बैठा है, तब सब लोग बादशाह के सामने आए और इस्राईली अपने अपने डेरे को भाग गये थे|
\s5
\v 9 और इस्राईल के क़बीलों के सब लोगों में झगड़ा था और वह कहते थे कि "बादशाह ने हमारे दुश्मनों के हाथ से और फ़िलिस्तियों के हाथ से बचाया और अब वह अबी सलोम के सामने से मुल्क छोड़ कर भाग गया|
\v 10 और अबी सलोम जिसे हमने मसह करके अपना हाकिम बनाया था, लड़ाई में मर गया है इसलिए तुम अब बादशाह को वापस लाने की बात क्यों नहीं करते ?"
\s5
\v 11 तब दाऊद बादशाह ने सदूक़ और अबियातर काहिनों को कहला भेजा कि "यहूदाह के बुज़ुर्गों से कहो कि तुम बादशाह को उसके महल में पहुँचाने के लिए सबसे पीछे क्यों होते हो जिस हाल कि सारे इस्राईल की बात उसे उसके महल में पहुँचाने के बारे में बादशाह तक पहुँची है|
\v 12 तुम तो मेरे भाई और मेरी हड्डी हो फिर तुम बादशाह को वापस ले जाने के लिए सबसे पीछे क्यों हो ?|
\s5
\v 13 और 'अमासा से कहना क्या तू मेरी हड्डी और गोश्त नहीं ? इसलिए अगर तू योआब की जगह मेरे सामने हमेशा के लिए लश्कर का सरदार न हो तो ख़ुदा मुझसे ऐसा ही बल्कि इससे भी ज़्यादा करे|"
\v 14 और उसने सब बनी यहूदाह का दिल एक आदमी के दिल की तरह माएल कर लिया चुनाँचे उन्होंने बादशाह को पैग़ाम भेजा कि "तू अपने सब ख़ादिमों को साथ लेकर लौट आ|"
\v 15 इसलिए बादशाह लौट कर यर्दन पर आया और सब बनी यहूदाह ज़िल्जाल को गये कि बादशाह का इस्तक़बाल करें और उसे यर्दन के पार ले आयें|
\s5
\v 16 और जीरा के बेटे बिनयमीनी सिम'ई ने जो बहूरीम का था जल्दी की और बनी यहूदाह के साथ दाऊद बादशाह के इस्तक़बाल को आया|
\v 17 और उसके साथ एक हज़ार बिनयमीनी जवान थे और साऊल के घराने का ख़ादिम ज़ीबा अपने पन्दरह बेटों और बीस नौकरों समेत आया और बादशाह के सामने यर्दन के पार उतरे|
\v 18 और एक कश्ती पार गई कि बादशाह के घराने को ले आये और जो काम उसे मुनासिब मा'लूम हो उसे करे और ज़ीरा का बेटा सिम'ई बादशाह के सामने जैसे ही वह यर्दन पार हुआ औंधा हो कर गिरा|
\s5
\v 19 और बादशाह से कहने लगा कि मेरा मालिक मेरी तरफ़ गुनाह मंसूब न करे और जिस दिन मेरा मालिक बादशाह यरुशलीम से निकला उस दिन जो कुछ तेरे ख़ादिम ने बद मिज़ाजी से किया उसे ऐसा याद न रख कि बादशाह उसको अपने दिल में रख्खे|
\v 20 क्यूँकि तेरा बन्दा यह जानता है कि "मैंने गुनाह किया है और देख आज के दिन मैं ही यूसुफ़ के घराने में से पहले आया हूँ कि अपने मालिक बादशाह का इस्तक़बाल करूँ|
\s5
\v 21 और ज़रोयाह के बेटे अबीशे ने जवाब, "दिया क्या सिम'ई इस वजह से मारा न जाए कि उसने ख़ुदावन्द के ममसूह पर ला'नत की ?"
\v 22 दाऊद ने कहा, "ऐ ज़रोयाह के बेटो !मुझे तुमसे क्या काम कि तुम आज के दिन मेरे मुखालिफ़ हुए हो? क्या इस्राईल में से कोई आदमी आज के दिन क़त्ल किया जाए? क्या मैं यह नहीं जानता कि कि मैं आज के दिन इस्राईल का बादशाह हूँ ?"
\v 23 और बादशाह ने सिम'ई से कहा, "तू मारा नहीं जाएगा" और बादशाह ने उससे क़सम खाई|
\s5
\v 24 फिर साऊल का बेटा मिफ़ीबोसत बादशाह के इस्तक़बाल को आया, उसने बादशाह के चले जाने के दिन से लेकर उसे सलामत घर आजाने के दिन तक न तो अपने पाँव पर पट्टियाँ बाँधी और न अपनी दाढ़ी कतरवाई और न अपने कपड़े धुलवाए थे|
\v 25 और ऐसा हुआ कि जब वह यरुशलीम में बादशाह से मिलने आया तो बादशाह ने उससे कहा, "ऐ मिफ़ीबोसत तू मेरे साथ क्यों नहीं गया था ?"
\s5
\v 26 उसने जवाब दिया, "ऐ मेरे मालिक बादशाह मेरे नौकर ने मुझसे दग़ा की क्यूँकि तेरे ख़ादिम ने कहा था कि मैं अपने लिए गधे पर जीन कसूँगा ताकि मैं सवार हो कर बादशाह के साथ जाऊँ इसलिए कि तेरा ख़ादिम लंगड़ा है|
\v 27 तब उसने मेरे मालिक बादशाह के सामने तेरे ख़ादिम पर ~इल्ज़ाम लगाया, लेकिन मेरा मालिक बादशाह तू ख़ुदावन्द के फ़रिश्ता की तरह है, इसलिए जो कुछ तुझे अच्छा मा'लूम हो वह कर|
\v 28 क्यूँकि मेरे बाप का सारा घराना, मेरे मालिक बादशाह के आगे मुर्दों के तरह था तो भी तूने अपने ख़ादिम को उन लोगों के बीच बिठाया जो तेरे दस्तरख़्वान~पर खाते थे तब क्या अब भी मेरा कोई हक़ है कि मैं बादशाह के आगे फिर फ़रयाद करूँ?|
\s5
\v 29 बादशाह ने उनसे कहा,"तू अपनी बातें क्यों बयान करता जाता है? मैं कहता हूँ कि तू और ज़ीबा दोनों उस ज़मीन को आपस में बाँट लो|"
\v 30 और मिफ़ीबोसत ने बादशाह से कहा, "वही सब ले ले इसलिए कि मेरा मालिक बादशाह अपने घर में फिर सलामत आ गया है|"
\s5
\v 31 और बरज़िली जिल'आदी रजिलीम से आया और बादशाह के साथ यर्दन पार गया ताकि उसे यर्दन के पार पहुँचाये|
\v 32 और यह बरज़िली बहुत ही 'उम्र दराज़ आदमी या'नी अस्सी बरस का था, उसने बादशाह को जब तक वह मेहनायम में रहा ख़ुराक पहुँचाई थी इसलिए कि वह बहुत बड़ा आदमी था|
\v 33 तब बादशाह ने बरज़िली से कहा कि "तू मेरे साथ चल और मैं यरुशलीम में अपने साथ तेरी परवरिश करूँगा|"
\s5
\v 34 और बरज़िली ने बादशाह को जवाब दिया कि "मेरी ज़िन्दगी के दिन ही कितने हैं जो मैं बादशाह के साथ यरुशलीम को जाऊँ?
\v 35 आज मैं अस्सी बरस का हूँ, क्या मैं भले और बुरे में फ़र्क कर सकता हूँ?क्या तेरा बन्दा जो कुछ खाता पीता है उसका मज़ा जान सकता है?क्या मैं गाने वालों और गाने वालियों की फिर आवाज़ सुन सकता हूँ? तब तेरा बन्दा अपने बादशाह पर क्यों बोझ हो?
\v 36 तेरा बन्दा सिर्फ़ यर्दन के पार तक बादशाह के साथ जाना चाहता है, इसलिए बादशाह मुझे ऐसा बड़ा बदला क्यूँ दे?
\s5
\v 37 अपने बन्दा को लौट जाने दे ताकि मैं अपने शहर में अपने बाप और माँ की क़ब्र के पास मरूँ लेकिन देख तेरा बन्दा किम्हाम हाज़िर है, वह मेरे मालिक बादशाह के साथ पार जाए और जो कुछ तुझे अच्चा मा'लूम दे उससे कर|"
\s5
\v 38 तब बादशाह ने कहा, "किम्हाम मेरे साथ पार चलेगा और जो कुछ तुझे अच्चा मा'लूम हो वही मैं उसके साथ करूँगा और जो कुछ तू चाहेगा मैं तेरे लिए वही करूँगा|"
\v 39 और सब लोग यर्दन के पार हो गये और बादशाह भी पार हुआ, फिर बादशाह ने बरज़िली को चूमा और उसे दु'आ दी और वह अपनी जगह को लौट गया|
\s5
\v 40 तब बादशाह जिलजाल को रवाना हुआ और किम्हाम उसके साथ चला और यहूदाह के सब लोग और इस्राईल के लोगों में से भी आधे बादशाह को पार लाये|
\v 41 तब इस्राईल के सब लोग बादशाह के पास आकर उससे कहने लगे कि "हमारे भाई बनी यहूदाह तुझे क्यूँ चोरी से ले आए और बादशाह को और उसके घराने को और दाऊद के साथ जितने थे उनको यर्दन के पार से लाये?"
\s5
\v 42 तब सब बनी यहूदाह ने बनी इस्राईल को जवाब दिया, "इसलिए कि बादशाह का हमारे साथ नज़दीक का रिश्ता है, तब तुम इस बात की वजह से नाराज़ क्यों हुए? क्या हमने बादशाह के दाम का कुछ खा लिया है या उसने हमको कुछ इन'आम दिया है?"
\v 43 फिर बनी इस्राईल ने बनी यहूदाह को जवाब दिया कि "बादशाह में हमारे दस हिस्से हैं और हमारा हक़ भी दाऊद पर तुम से ज़्यादा है तब तुमने क्यों हमारी हिक़ारत की, कि बादशाह को लौटा लाने में पहले हमसे सलाह नहीं ली?" और बनी यहूदाह की बातें बनी इस्राईल की बातों से ज़्यादा सख्त़ थीं|
\s5
\c 20
\p
\v 1 और वहाँ एक शरीर बिनयमीनी था और उसका नाम सबा' बिन बिक्री था, उसने नरसिंगा फूँका और कहा कि "दाऊद में हमारा कोई हिस्सा नहीं और न हमारी मीरास यस्सी के बेटे के साथ है, ऐ इस्राईलियों अपने अपने डेरे को चले जाओ|"
\v 2 इसलिए सब इस्राईली दाऊद की पैरवी छोड़ कर सबा' बिन बिक्री के पीछे हो लिए लेकिन यहूदाह के लोग यर्दन से यरुशलीम तक अपने बादशाह के साथ ही रहे|
\s5
\v 3 और दाऊद यरुशलीम में अपने महल में आया और बादशाह ने अपनी उन दस बाँदियों को जिनको वह अपने घर की निगहबानी के लिए छोड़ गया था, लेकर उनको नज़र बंद कर दिया और उनकी परवरिश करता रहा लेकिन उनके पास न गया, इसलिए उन्होंने अपने मरने के दिन तक नज़र बंद रहकर रंडापे की हालत में ज़िन्दगी काटी|
\s5
\v 4 और बादशाह ने 'अमासा को हुक्म किया कि "तीन दिन के अन्दर बनी यहूदाह को मेरे पास जमा' कर और तू भी यहाँ हाज़िर हो|"
\v 5 तब 'अमासा बनी यहूदाह को बुलाने गया, लेकिन वह मुताअय्यन वक़्त से जो उसने उसके लिए मुक़र्रर किया था ज़्यादा ठहरा|
\s5
\v 6 तब दाऊद ने अबीशे से कहा कि "सबा' बिन बिक्री तो हमको अबी सलोम से ज़्यादा नुक़सान पहुँचायेगा फिर तू अपने मालिक के ख़ादिमों को लेकर उसका पीछा कर ऐसा न हो कि वह दीवारदार शहरों को लेकर हमारी नज़र से बच निकले|"
\v 7 तब योआब के आदमी और करैती और फ़लेती और सब बहादुर उसके पीछे हो लिए और यरुशलीम से निकले ताकि सबा' बिन बिक्री का पीछा करें|
\s5
\v 8 और जब वह उस बड़े पत्थर के नज़दीक पहुँचे जो जिब'ऊन में है तो 'अमासा उनसे मिलने को आया और योआब अपना जंगी लिबास पहने था और उसके ऊपर एक पटका था जिस से एक तलवार मियान में पड़ी हुई उसके कमर में बंधी थी और उसके चलते चलते वह निकल पड़ी|
\s5
\v 9 तब योआब ने 'अमासा से कहा, "ऐ मेरे भाई तू ~ख़ैरियत से है?" और योआब ने 'अमासा की दाढ़ी अपने दहने हाथ से पकड़ी कि उसको बोसा दे|
\v 10 और 'अमासा ने उस तलवार का जो योआब के हाथ में थी ख़्याल न किया, इसलिए उसने उससे उसके पेट में ऐसा मारा कि उसकी अंतड़ियाँ ज़मीन पर निकल पड़ीं ~और उसने दूसरा वार न किया, इसलिए वह मर गया, फिर योआब और उसका भाई अबीशे सबा' बिन बिक्री का पीछा करने चले "|
\s5
\v 11 और योआब के जवानों में से एक शख़्स उसके पास खड़ा हो गया और कहने लगा कि "जो कोई योआब से राज़ी है और जो कोई दाऊद की तरफ़ है वह योआब के पीछे होले|"
\v 12 और 'अमासा सड़क के बीच अपने ख़ून में लोट रहा था और उस शख़्स ने देखा कि सब लोग खड़े हो गये हैं, तो वह 'अमासा को सड़क पर से मैदान को उठा ले गया और जब यह देखा कि जो कोई उसके पास आता है खड़ा हो जाता है, तो उस पर एक कपड़ा डाल दिया|
\v 13 और जब वह सड़क पर से हटा लिया गया, तो सब लोग योआब के पीछे सबा' बिन बिक्री का पीछा करने चले|
\s5
\v 14 और वह इस्राईल के सब क़बीलों ~में से होता हुआ अबील और बैत मा'का और सब बेरियों तक पहुँचा और वह भी जमा' होकर उसके पीछे चले|
\v 15 और उन्होंने आकर उसे बैत मा'का में घेर लिया शहर के सामने ऐसा दमदमा बाँधा कि वह दीवार के बराबर रहा और सब लोगों ने जो योआब के साथ थे दीवार को तोड़ना शुरू' किया ताकि उसे गिरा दें|
\v 16 तब एक 'अक़्ल मन्द 'औरत शहर में से पुकार कर कहने लगी कि ""ज़रा योआब से कह दो कि यहाँ आए ताकि मैं उससे कुछ कहूँ|
\s5
\v 17 तब वह उसके नज़दीक आया, उस 'औरत ने उससे कहा, "क्या तू योआब है ?"उसने कहा, "हाँ " तब वह उससे कहने लगी, "अपनी लौंडी की बातें सुन| उसने कहा, "मैं सुनता हूँ|"
\v 18 तब वह कहने लगी कि "पुराने ज़माना में यूँ कहा करते थे कि वह ज़रूर अबील में सलाह पूँछेंगे और इस तरह वह बात को ख़त्म करते थे|
\v 19 और मैं इस्राईल में उन लोगों में से हूँ जो सुलह पसंद और दयानतदार हैं, तू चाहता है कि एक शहर और माँ को इस्राईलियों के बीच हलाक करे, फिर तू क्यूँ ख़ुदावन्द की मीरास को निगलना चाहता है ?"
\s5
\v 20 योआब ने जवाब दिया, "मुझसे हरगिज़ हरगिज़ ऐसा न हो कि मैं निगल जाऊँ या हलाक करूँ|
\v 21 बात यह नहीं है बल्कि इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क के एक शख़्स ने जिसका नाम सबा' बिन बिक्री है बादशाह या'नी दाऊद के ख़िलाफ़ हाथ उठाया है इसलिए सिर्फ़ उसी को मेरे हवाले कर देते तो मैं शहर से चला जाऊँगा|" उस 'औरत ने योआब से कहा, "देख उसका सिर दीवार पर से तेरे पास फेंक दिया जाएगा|"
\v 22 तब वह 'औरत अपनी दानाई से सब लोगों के पास गई, फिर उसने सबा'बिन बिक्री का सिर काट कर उसे बाहर योआब की तरफ़ फेंक दिया, तब उसने नरसिंगा फूँका और लोग शहर से अलग होकर अपने अपने डेरे को चले गये और योआब यरुशलीम को बादशाह के पास लौट आया|
\s5
\v 23 और योआब इस्राईल के सारे लश्कर का सरदार था, और बिनायाह बिन यहूयदा' करेतियों और फलेतियों का सरदार था|
\v 24 और आदूराम ख़िराज का दरोग़ा था और अख़ीलूद का बेटा यहूसफ़त मुवर्रिख़ था|
\v 25 और सिवा मुन्शी था और सदूक़ और अबियातर काहिन थे|
\v 26 और 'ईरा याइरी भी दाऊद का एक काहिन था|
\s5
\c 21
\p
\v 1 और दाऊद के दिनों में लगातार तीन साल काल पड़ा, और दाऊद ने ख़ुदावन्द से दरियाफ़्त किया, ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, "यह साऊल और उसके ख़ूँरेज़ घराने की वजह से है, क्यूँकि उसने जिब'ऊँनियों को क़त्ल किया|"
\s5
\v 2 तब बादशाह ने जिब'ऊँनियों को बुलाकर उनसे बात की, यह जिब'ऊनी बनी इस्राईल में से नहीं बल्कि बचे हुए अमूरियों में से थे और बनी इस्राईल ने उनसे क़सम खाई थी और साऊल ने बनी इस्राईल और बनी यहूदाह की ख़ातिर अपनी गरम जोशी में उनको क़त्ल कर डालना चाहा था|
\v 3 इसलिए दाऊद ने जिब'ऊनियों से कहा, "मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ और मैं किस चीज़ से कफ़्फ़ारा दूँ, ताकि तुम ख़ुदावन्द की मीरास को दु'आ दो?"
\s5
\v 4 जिब'ऊनियों ने उससे कहा कि "हमारे और साऊल या उसके घराने के दरमियान चाँदी या सोने का कोई मु'आमला नहीं और न हमको यह इख़्तियार है कि हम इस्राईल के किसी आदमी को जान से मारें|" उसने कहा, "जो कुछ तुम कहो मैं वही तुम्हारे लिए करूँगा|"
\s5
\v 5 उन्होंने बादशाह को जवाब दिया कि जिस शख़्स ने हमारा नास किया और हमारे ख़िलाफ़ ऐसी तदबीर निकाली कि हम मिटा दिए जायें, और इस्राईल की किसी बादशाहत में बाक़ी न रहें|
\v 6 उसी के बेटों में से सात आदमी हमारे हवाले कर दिए जायें, और हम उनको ख़ुदावन्द के लिए चुने हुए साऊल के जिबा' में लटका देंगे|" बादशाह ने कहा, "मैं दे दूँगा|"
\s5
\v 7 लेकिन बादशाह ने मिफ़ीबोसत बिन यूनतन बिन साऊल को ख़ुदावन्द की क़सम की वजह से जो उनके दाऊद और साऊल के बेटे यूनतन के दरमियान हुई थी बचा रख्खा|
\v 8 लेकिन बादशाह ने अय्याह की बेटी रिस्फ़ह के दोनों बेटों अरमोनी और मिफ़ीबोसत को जो साऊल से हुए थे और साऊल की बेटी मीकल के पाँचों बेटों को जो बरज़िली महूलाती के बेटे 'अदरी ऐल से हुए थे लेकर|
\v 9 उनको जिब'ऊनियों के हवाले किया और उन्होंने उनको पहाड़ पर ख़ुदावन्द के सामने लटका दिया, इसलिए वह सातों एक साथ मारे, यह सब फ़सल काटने के दिनों में या'नी जौ की फ़सल के शुरू' में मारे गये|
\s5
\v 10 तब अय्याह की बेटी रिस्फ़ह ने टाट लिया और फ़सल के शुरू' से उसको अपने लिए चट्टान पर बिछाए रही जब तक आसमान से उन पर बारिश न हुई और उसने न तो दिन के वक़्त हवा के परिन्दों को और न रात के वक़्त जंगली दरिन्दों को उन पर आने दिया|
\v 11 और दाऊद को बताया गया कि साऊल की बाँदी अय्याह की बेटी रिस्फ़ह ने ऐसा ऐसा किया|
\s5
\v 12 तब दाऊद ने जाकर साऊल की हड्डियों और उसके बेटे यूनतन की हड्डियों को यबीस जिल'आद के लोगों से लिया जो उनको बैत शान के चौक में से चुरा लाये थे, जहाँ फ़िलिस्तियों ने उनको जिस दिन कि उन्होंने साऊल को जिलबू'आ में क़त्ल किया टाँग दिया था|
\v 13 इसलिए वह साऊल की हड्डियों और उसके बेटे यूनतन की हड्डियों को वहाँ से ले आया, और उन्होंने उनकी भी हड्डियाँ जमा' कीं जो लटकाए गये थे|
\s5
\v 14 और उन्होंने साऊल और उसके बेटे यूनतन की हड्डियों को जिला' में जो बिनयमीन की सर ज़मीन में है उसी के बाप क़ैस की क़ब्र में दफ़न किया और उन्होंने जो कुछ बादशाह ने फ़रमाया था सब पूरा किया, इसके बा'द ख़ुदा ने उस मुल्क के बारे में दु'आ सुनी|
\s5
\v 15 और फ़िलिस्ती फिर इस्राईलियों से लड़े और दाऊद अपने ख़ादिमों के साथ निकला और फ़िलिस्तियों से लड़ा और दाऊद बहुत थक गया|
\v 16 और इश्बी बनोब ने जो देवज़ादों में से था और जिसका नेज़ह वज़न में पीतल की तीन सौ मिस्क़ाल था और वह एक नई तलवार बाँधे था चाहा कि दाऊद को क़त्ल करे|
\v 17 लेकिन ज़रोयाह के बेटे अबीशे ने उसकी मदद की और उस फ़िलिस्ती को ऐसी मार लगाई कि उसे मार दिया, तब दाऊद के लोगों ने क़सम खाकर उससे कहा कि ~"तू फिर कभी हमारे साथ जंग पर नहीं जाएगा ऐसा न हो कि तू इस्राईल का चराग़ बुझादे|"
\s5
\v 18 इसके बा'द फ़िलिस्तियों के साथ जूब में लड़ाई हुई, तब हूसाती सिब्बकी ने सफ़ को जो देवज़ादों में से था क़त्ल किया|
\v 19 और फिर फ़िलिस्तियों से जूब में एक और लड़ाई हुई, तब इलहनान बिन या'अरी अरजीम ने जो बैतल हम का था जाती जोलियत को क़त्ल किया जिसके नेज़ह की छड़ जुलाहे के शहतीर की तरह थी|
\s5
\v 20 फिर जात में लड़ाई हुई और वहाँ एक बड़ा लम्बा शख़्स था, उसके दोनों हाथों और दोनों पावों में छ: छ: उंगलियाँ थीं जो सब की सब गिनती में चौबीस थीं और यह भी उस देव से पैदा हुआ था|
\v 21 जब इसने इस्राईलियों की फ़ज़ीहत की तो दाऊद के भाई सिम'ई के बेटे यूनतन ने उसे क़त्ल किया|
\v 22 यह चारों उस देव से जात में पैदा हुए थे, और वह दाऊद के हाथ से और उसके ख़ादिमों के हाथ से मारे गये|
\s5
\c 22
\p
\v 1 जब ख़ुदावन्द ने दाऊद को उसके सब दुश्मनों और साऊल के हाथ से रिहाई दी तो उसने ख़ुदावन्द के सामने इस मज़मून का हम्द सुनाया|
\v 2 वह कहने लगा, "ख़ुदावन्द मेरी चट्टान और मेरा किला' और मेरा छुड़ाने वाला है|
\s5
\v 3 ख़ुदा मेरी चट्टान है, मैं उसी पर भरोसा रख्खूँगा, वही मेरी ढाल और मेरी नजात का सींग है, मेरा ऊँचा बुर्ज और मेरी पनाह है, मेरे नजात देने वाले! तूही मुझे ज़ुल्म से बचाता है|
\v 4 मैं ख़ुदावन्द को जो ता'रीफ़ के लायक़ है पुकारूँगा, यूँ मैं अपने दुश्मनों से बचाया जाऊँगा|
\s5
\v 5 क्यूँकि मौत की मौजों ने मुझे घेरा, बेदीनी के सैलाबों ने मुझे डराया|
\v 6 पाताल की रस्सियाँ मेरे चारो तरफ़ थीं~मौत के फंदे मुझ पर आते थे|
\s5
\v 7 अपनी मुसीबत में मैंने ख़ुदावन्द को पुकारा, मैं अपने ख़ुदा के सामने चिल्लाया| उसने अपनी हैकल में से मेरी आवाज़ सुनी~और मेरी फ़रयाद उसके कान में पहुँची|
\s5
\v 8 तब ज़मीन हिल गई और काँप उठी~और आसमान की बुनियादों ने जुम्बिश खाई~और हिल गयीं, इसलिए कि वह ग़ुस्सा हुआ|
\v 9 उसके नथुनों से धुवाँ उठा~और उसके मुँह से आग निकल कर भस्म करने लगी, कोयले उससे दहक उठे|
\s5
\v 10 उसने आसमानों को भी झुका दिया और नीचे उतर आया~और उसके पाँव तले गहरा अँधेरा था|
\v 11 वह करूबी पर सवार होकर उदा~और हवा के बाज़ुओं पर दिखाई दिया|
\v 12 और उसने अपने चारों तरफ़ अँधेरे को और पानी के इज्तिमा'और आसमान के दलदार बादलों को शामियाने बनाया|
\s5
\v 13 उस झलक से जो उसके आगे आगे थी~आग के कोयले सुलग गये|
\v 14 ख़ुदावन्द आसमान से गरजा~और हक़ त'आला ने अपनी आवाज़ सुनाई|
\v 15 उसने तीर चला कर उनको तितर बितर ~किया, और बिजली से उनको शिकस्त दी|
\s5
\v 16 तब ख़ुदावन्द की डॉट से ;उसके नथुनों के दम के झोंके से, समुन्दर की गहराई दिखाई देने लगी, और जहान की बुनियादें नमूदार हुईं|
\s5
\v 17 उसने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया, और मुझे बहुत पानी में से खींच कर बाहर निकाला|
\v 18 उसने मेरे ताक़तवर दुश्मन और मेरे 'अदावत रखने वालों से, मुझे छुड़ा लिया क्यूँकि वह मेरे लिए निहायत बहादुर थे|
\s5
\v 19 वह मेरी मुसीबत के दिन मुझ पर आ पड़े, पर ख़ुदावन्द मेरा सहारा था|
\v 20 वह मुझे चौड़ी जगह में निकाल भी लाया, उसने मुझे छुड़ाया, इसलिए कि वह मुझसे ख़ुश था|
\v 21 ख़ुदावन्द ने मेरी रास्तबाज़ी के मुवाफ़िक़ मुझे बदला दिया, और मेरे हाथों की पाकीज़गी के मुताबिक़ मुझे बदला दिया|
\s5
\v 22 क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द की राहों पर चलता रहा, और ग़ल्ती से अपने ख़ुदा से अलग न हुआ|
\v 23 क्यूँकि उसके सारे फ़ैसले मेरे सामने थे, और मैं उसके क़ानून से अलग न हुआ|
\s5
\v 24 मैं उसके सामने कामिल भी रहा, और अपनी बदकारी से बा'ज़ रहा|
\v 25 इसीलिए ख़ुदावन्द ने मुझे मेरी रास्तबाज़ी के मुवाफ़िक़ बल्कि मेरी उस पाकीज़गी के मुताबिक़ जो उसकी नज़र के सामने थी बदला दिया|
\s5
\v 26 रहम दिल के साथ तू रहीम होगा, और कामिल आदमी के साथ कामिल|
\v 27 नेकों के साथ नेक होगा, और टेढों के साथ टेढ़ा|
\s5
\v 28 मुसीबत ज़दा लोगों को तू बचाएगा, लेकिन तेरी आँखें मग़रूरों पर लगी हैं ताकि तू उन्हें नीचा करे|
\v 29 क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द! तू मेरा चराग़ है, और ख़ुदावन्द मेरे अँधेरे को उजाला कर देगा|
\s5
\v 30 क्यूँकि तेरी बदौलत मैं फ़ौज पर जंग करता हूँ, और अपने ख़ुदा की बदौलत दीवार फाँद जाता हूँ|
\v 31 लेकिन ख़ुदा की राह कामिल है, ख़ुदावन्द का कलाम ताया हुआ है, वह उन सबकी ढाल है जो उसपर भरोसा रखते हैं|
\s5
\v 32 क्यूँकि ख़ुदावन्द के 'अलावा और कौन ख़ुदा है? और हमारे ख़ुदा को छोड़ कर और कौन चटटान है?
\v 33 ख़ुदा मेरा मज़बूत किला' है, वह अपनी राह में कामिल शख़्स की रहनुमाई करता है|
\s5
\v 34 वह उसके पाँव हरनियों के से बना देता है, और मुझे मेरी ऊँची जगहों में क़ायम करता है|
\v 35 वह मेरे हाथों को जंग करना सिखाता है, यहाँ तक कि मेरे बाज़ू पीतल की कमान को झुका देते हैं|
\s5
\v 36 तूने मुझको अपनी नजात की ढाल भी बख़्शी, और तेरी नरमी ने मुझे बुज़ुर्ग बना दिया|
\v 37 तूने मेरे नीचे मेरे क़दम चौड़े कर दिए, और मेरे पाँव नहीं फिसले|
\s5
\v 38 मैंने अपने दुश्मनों का पीछा करके उनको हलाक किया, और जब तक वह फ़ना न हो गये मैं वापस नहीं आया|
\v 39 मैंने उनको फ़ना कर दिया और ऐसा छेद डाला है कि वह उठ नहीं सकते, बल्कि वह तो मेरे पाँव के नीचे गिरे पड़े हैं|
\s5
\v 40 क्यूँकि तूने लड़ाई के लिए मुझे ताक़त से तैयार किया, और मेरे मुख़ालिफ़ों को मेरे सामने नीचा किया|
\v 41 तूने मेरे दुश्मनों की पीठ मेरी तरफ़ फेरदी, ताकि मैं अपने 'अदावत रखने वालों को काट डालूँ|
\s5
\v 42 उन्होंने इन्तिज़ार किया लेकिन कोई न था जो बचाए, बल्कि ख़ुदावन्द का भी इन्तिज़ार किया, लेकिन उसने उनको जवाब न दिया|
\v 43 तब मैंने उनको कूट कूट कर ज़मीन की गर्द की तरह कर दिया, मैंने उनको गली कूचों के कीचड़ की तरह रौंद रौंद कर चारो तरफ़ फैला दिया|
\s5
\v 44 तूने मुझे मेरी क़ौम के झगड़ों से भी छुड़ाया, तूने मुझे क़ौमों का सरदार होने के लिए रख छोड़ा है, जिस क़ौम से मैं वाक़िफ़ भी नहीं वह मेरी फ़रमा बरदार ~होगी|
\v 45 परदेसी मेरे ताबे' हो जायेंगे, वह मेरा नाम सुनते ही मेरी फ़रमाबर्दारी करेंगे|
\v 46 परदेसी मुरझा जायेंगे~और अपने किलों'से थरथराते हुए निकलेंगे|
\s5
\v 47 ख़ुदावन्द ज़िन्दा है, मेरी चटटान मुबारक हो! और ख़ुदा मेरे नजात की चटटान मुम्ताज़ हो !
\v 48 वही ख़ुदा जो मेरा बदला लेता है, और उम्मतों को मेरे ताबे' कर देता है|
\v 49 और मुझे मेरे दुश्मनों के बीच से निकालता है, हाँ तू मुझे मेरे मुख़ालिफ़ों पर सरफ़राज़ करता है, तू मुझे टेढ़े आदमियों से रिहाई देता है|
\s5
\v 50 इसलिए ऐ ख़ुदावन्द ! मैं क़ौमों के बीच तेरी शुक्रगुज़ारी और तेरे नाम की मदह सराई करूँगा|
\v 51 वह अपने बादशाह को बड़ी नजात 'इनायत करता है, और अपने ममसूह दाऊद और उसकी नसल पर हमेशा शफ़क़त करता है|
\s5
\c 23
\p
\v 1 दाऊद की आख़री बातें यह हैं: दाऊद बिन यस्सी कहता है, "या'नी यह उस शख़्स का कलाम है जो सरफ़राज़ किया गया, और या'क़ूब के ख़ुदा का ममसूह~और इस्राईल का शीरीं नग़मा साज़ है|
\v 2 "ख़ुदावन्द की रूह ने मेरी ज़रिए' कलाम किया, और उसका सुख़न मेरी ज़बान पर था|
\s5
\v 3 इस्राईल के ख़ुदा ने फ़रमाया|इस्राईल की चटटान ने मुझसे कहा|एक है जो सच्चाई से लोगों पर हुकूमत करता है|जो ख़ुदा के खौफ़ के साथ हुकूमत करता है|
\v 4 वह सुबह की रोशनी की तरह होगा जब सूरज निकलता है, ऐसी सुबह जिसमें बादल न हो, जब नरम नरम घास ज़मीन में से, बारिश के बा'द की साफ़ चमक के ज़रिए' निकलती है|
\s5
\v 5 मेरा घर तो सच मुच ख़ुदा के सामने ऐसा है भी नहीं, तो भी उसने मेरे साथ एक हमेशा का 'अहद, जिसकी सब बातें मु'अय्यन और पाएदार हैं बाँधा है, क्यूँकि यही मेरी सारी नजात और सारी मुराद है, अगर चे वह उसको बढ़ाता नहीं|
\s5
\v 6 लेकिन झूठे लोग सब के सब काँटों की तरह ठहरेंगे जो हटा दिए जाते हैं, क्यूँकि वह हाथ से पकड़े नहीं जा सकते|
\v 7 बल्कि जो आदमी उनको छुए, ज़रूर है कि वह लोहे और नेज़ह की छड़ से मुसल्लह हो, इसलिए वह अपनी ही जगह में आग से बिल्कुल भस्म कर दिए जायेंगे|
\s5
\v 8 और दाऊद के बहादुरों के नाम यह हैं :या'नी तहकमोनी योशेब बशेबत जो सिपह सालार का सरदार था, वही ऐज़नी अदीनो था जिससे आठ सौ एक ही वक़्त में मक़तूल हुए|
\s5
\v 9 उसके बा'द एक अखूही के बेटे दोदे का बेटा इली'अज़र था, यह उन तीनों सूरमाओं में से एक था जो दाऊद के साथ उस वक़्त थे, जब उन्होंने उन फ़िलिस्तियों को जो लड़ाई के लिए जमा' हुए थे लल्कारा हालाँकि सब बनी इस्राईल चले गये थे|
\v 10 और उसने उठकर फ़िलिस्तियों को इतना मारा कि उसका हाथ थक कर तलवार से चिपक गया और ख़ुदावन्द ने उस दिन बड़ी फ़तह कराई और लोग फिर कर सिर्फ़ लूटने के लिए उसके पीछे हो लिए|
\s5
\v 11 बा'द उसके हरारी अजी का बेटा सम्मा था और फ़िलिस्तियों ने उस क़त-ए-ज़मीन के पास जो मसूर के पेड़ों से भरा था जमा' होकर दिल बाँध लिया था और लोग फ़िलिस्तियों के आगे से भाग गये थे|
\v 12 लेकिन उसने उस क़ता' के बीच में खड़े होकर उसको बचाया और फ़िलिस्तियों को क़त्ल किया और ख़ुदावन्द ने बड़ी फ़तह कराई|
\s5
\v 13 और उन तीस सरदारों में से तीन सरदार निकले और फ़सल काटने के मौसम में दाऊद के पास 'अदुल्लाम के मग़ारा में आए और फ़िलिस्तियों की फ़ौज रिफ़ाईम की वादी में ख़ेमा ज़न थी|
\v 14 और दाऊद उस वक़्त गढ़ी में था और फ़िलिस्तियों के पहरे की चौकी बैतल हम में थी|
\s5
\v 15 और दाऊद ने तरसते हुए कहा, "ऐ काश कोई मुझे बैतल हम के उस कुँवें का पानी पीने को देता जो फाटक के पास है|
\v 16 और उन तीनों बहादुरों ने फ़िलिस्तियों के लश्कर में से जाकर बैतल हम के कुँवें से जो फाटक के बराबर है पानी भर लिया और उसे दाऊद के पास लाये लेकिन उसने ~न चाहा कि पिए बल्कि उसे ख़ुदावन्द के सामने उंडेल दिया|
\v 17 और कहने लगा, "ऐ ख़ुदावन्द मुझसे यह बात हरगिज़ न हो कि मैं ऐसा करूँ, क्या मैं उन लोगों का ख़ून पियूँ जिन्होंने अपनी जान जोखों में डाली?" इसी लिए उसने न चाहा कि उसे पिए, उन तीनों बहादुरों ने ऐसे ऐसे काम किए|
\s5
\v 18 और ज़रोयाह के बेटे योआब का भाई अबीशे उन तीनों में अफज़ल था, उसने तीन सौ पर अपना भाला चला ~कर उनको क़त्ल किया और तीनों में नामी था|
\v 19 क्या वह उन तीनों में ख़ास न था ? इसीलिए वह उनका सरदार हुआ तो भी वह उन पहले तीनों के बराबर नहीं होने पाया|
\s5
\v 20 और यहूयदा' का बेटा बिनायाह क़बजील के एक सूरमा का बेटा था, जिसने बड़े बड़े काम किए थे, इसने मोआब के अरीऐल के दोनों बेटों को क़त्ल किया और जाकर बर्फ़ के मौसम में एक ग़ार के बीच एक शेर बबर को मारा|
\v 21 और उसने एक जसीम मिस्री को क़त्ल किया, उस मिस्री के हाथ में भला था लेकिन यह लाठी ही लिए हुए उस पर लपका और मिस्री के हाथ से भला छीन लिया और उसी के भाले से उसे मारा|
\s5
\v 22 तब यहूयदा' के बेटे बिनायाह ने ऐसे ऐसे काम किए और तीनों बहादुरों में नामी था|
\v 23 वह उन तीसों से ज़्यादा ख़ास था लेकिन वह उन पहले तीनों के बराबर नहीं होने पाया और दाऊद ने उसे अपने मुहाफ़िज़ सिपाहियों पर मुक़र्रर किया|
\s5
\v 24 और तीसों में योआब का भाई 'असाहील और इल्हनान बैतल हम के दोदो का बेटा|
\v 25 हरोदी सम्मा, हरोदी इल्क़ा|
\v 26 फ़लती ख़लिस,~'ईरा बिन 'अक़ीस तकू़'ई|
\v 27 अन्तोती अबी अज़र, ~हूसाती मबूनी|
\v 28 अखू़सी ज़ल्मोन, नतोफ़ाती महरी|
\s5
\v 29 नतोफ़ाती बा'ना के बेटा हलिब, ~इती बिन रीबी बनी बिनयमीन के जिब्बा'का|
\v 30 फिर'आतोनी, ~बिनायाह, ~और जा'स के नालों कब हिद्दी|
\v 31 'अरबाती अबी 'अल्बून, बर्हूमी 'अज़मावत|
\v 32 सा'लाबूनी इल्याहब, ~ बनी यासीन यूनतन|
\s5
\v 33 हरारी सम्मा, ~अख़ीआम ~बिन सरार हरारी|
\v 34 इलीफ़लत बिन अहसबी मा'काती का बेटा, इली'आम बिन अख़ीतुफ़्फ़ल जिलोनी|
\v 35 कर्मिली हसरो, अरबी फ़ा'री|
\v 36 ज़ोबाह के नातन का बेटा इजाल, जद्दी बानी|
\s5
\v 37 'अम्मोनी सिलक़, बैरोती नहरी, ज़रोयाह के बेटे योआब के सिलहबरदार|
\v 38 इतरी 'ईरा, इतरी जरीब|
\v 39 और हित्ती औरय्याह : यह सब सैंतीस थे|
\s5
\c 24
\p
\v 1 इसके बा'द ख़ुदावन्द का ग़ुस्सा इस्राईल पर फिर भड़का और उसने दाऊद के दिल को उनके ख़िलाफ़ यह कहकर उभारा कि "जाकर इस्राईल और यहूदाह को गिन|"
\v 2 और बादशाह ने लश्कर के सरदार योआब को जो उसके साथ था हुक्म किया कि "इस्राईल के सब क़बीलों में दान से बेर सबा' तक गश्त करो और लोगों को गिनो ताकि लोगों की ता'दाद मुझे मा'लूम हो|"
\s5
\v 3 तब योआब ने बादशाह से कहा कि "ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उन लोगों को चाहे वह कितने ही हों सौ गुना बढ़ाए और मेरे मालिक बादशाह की आँखें इसे देखें, लेकिन मेरे मालिक बादशाह को यह बात क्यों भाती है ?|"
\v 4 तो भी बादशाह की बात योआब और लश्कर के सरदारों पर ग़ालिब ही रही, और योआब और लश्कर के सरदार बादशाह के सामने से इस्राईल के लोगों का शुमार करने निकले|
\s5
\v 5 और वह यर्दन पार उतरे और उस शहर की दहनी तरफ़ 'अरो'ईर में ख़ेमाज़न हुए जो जद की वादी में उया'ज़ेर की जानिब है|
\v 6 फिर जिल'आद और तहतीम हदसी के 'इलाक़े में गए,और दान या'न को गए, और घूम कर सैदा तक पहुँचे|
\v 7 और वहाँ से सूर के क़िला' को और हव्वियों और कन'आनियों के सब शहरों को गए और यहूदाह के जुनूब में बेरसबा' तक निकल गए|
\s5
\v 8 चुनाँचे सारी हुकूमत में गश्त करके नौ महीने बीस दिन के बा'द वह यरुशलीम को लौटे|
\v 9 और योआब ने मर्दुम शुमारी~की ता'दाद~बादशाह को दी वह इस्राईल में आठ लाख बहादुर मर्द निकले जो शमशीर ज़न थे और यहूदाह में आदमी पाँच लाख निकले|
\s5
\v 10 और लोगों का शुमार करने के बा'द दाऊद का दिल बेचैन हुआ और दाऊद ने ख़ुदावन्द से कहा, "यह जो मैंने किया वह बड़ा गुनाह किया, अब ऐ ख़ुदावन्द मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि तू अपने बन्दा का गुनाह दूर कर दे क्यूँकि मुझसे बड़ी बेवक़ूफ़ी हुई|"
\s5
\v 11 इसलिए जब दाऊद सुबह को उठा तो ख़ुदावन्द का कलाम जाद ~पर जो दाऊद का ग़ैब बीन था नाज़िल हुआ और उसने कहा कि|
\v 12 "जा और दाऊद से कह ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि ~मैं तेरे सामने तीन बलाएँ पेश करता हूँ, तू उनमें से एक को चुन ले ताकि मैं उसे तुझ पर नाज़िल करूँ|"
\s5
\v 13 तब जाद ने दाऊद के पास जाकर उसको यह बताया और उस से पुछा, "क्या तेरे मुल्क में सात बरस क़हत रहे या तू तीन महीने तक अपने दुश्मनों से भागता फिरे और वह तेरा पीछा करें या तेरी हुकूमत में तीन दिन तक मौतें हों? इसलिए तू सोच ले और ग़ौर कर ले कि मैं उसे जिसने मुझे भेजा नै क्या जवाब दूँ|"
\v 14 दाऊद ने जाद से कहा, "मैं बड़े शिकंजे में हूँ, हम ख़ुदावन्द के हाथ में पड़ें क्यूँकि उसकी रहमतें 'अजीम हैं लेकिन मैं इन्सान के हाथ में न पड़ूँ|"
\s5
\v 15 तब ख़ुदावन्द ने इस्राईल पर वबा भेजी जो उस सुबह से लेकर वक़्त मु'अय्यना तक रही और दान से बेर सबा' तक लोगों मेंसे सत्तर हज़ार आदमी मर गए|
\v 16 और जब फ़रिश्ते ने अपना हाथ बढ़ाया कि यरुशलीम को हलाक करे तो ख़ुदावन्द उस वबा से मलूल हुआ और उस फ़रिश्ते से जो लोगों को हलाक कर रहा था कहा, "यह बस है, अब अपना हाथ रोक ले|" उस वक़्त ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता याबूसी अरोनाह के खलिहान के पास ~खड़ा था|
\s5
\v 17 और दाऊद ने जब उस फ़रिश्ता को जो लोगों को मार रहा था देखा तो ख़ुदावन्द से कहने लगा, "देख गुनाह तो मैंने किया और ख़ता मुझसे हुई लेकिन इन भेड़ों ने क्या किया है? ~इसलिए तेरा हाथ मेरे और मेरे बाप के घराने के ख़िलाफ़ हो|"
\s5
\v 18 उसी दिन जाद ने दाऊद के पास आकर उससे कहा, ~"जा और याबूसी अरोनाह के खलिहान में ख़ुदावन्द के लिए एक मज़बह बना|"
\v 19 इसलिए दाऊद जाद के कहने के मुताबिक़ जैसा ख़ुदावन्द का हुक्म था गया|
\v 20 और अरोनाह ने निगाह की और बादशाह और उसके ख़ादिमों को अपनी तरफ़ आते देखा, तब अरोनाह निकला और ज़मीन पर सरनगूँ ~होकर बादशाह के आगे सज्दा किया|
\s5
\v 21 और अरोनाह कहने लगा, "मेरा मालिक बादशाह अपने बन्दा के पास क्यों आया?" दाऊद ने कहा, "यह खलिहान तुझसे ख़रीदने और ख़ुदावन्द के लिए एक मज़बह बनाने आया हूँ ताकि लोगों में से वबा जाती रहे|"
\v 22 अरोनाह ने दाऊद से कहा, "मेरा मालिक बादशाह जो कुछ उसे अच्छा मा'लूम हो लेकर पेश करे, देख सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए बैल हैं और दायें चलाने के औज़ार और बैलों का सामान ईंधन के लिए हैं|
\v 23 यह सब कुछ ऐ बादशाह अरोनाह बादशाह की नज़र करता है|" और अरोनाह ने बादशाह से कहा कि "ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको क़ुबूल फ़रमाए|"
\s5
\v 24 तब बादशाह ने अरोनाह से कहा, "नहीं बल्कि मैं ज़रूर क़ीमत देकर उसको तुझसे ख़रीदूँगा और मैं ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने ऐसी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ अदा करूँगा जिन पर मेरा कुछ ख़र्च न हुआ हो" फिर दाऊद ने वह खलिहान और वह बैल चाँदी के पचास मिस्क़ालें देकर ख़रीदे|
\v 25 और दाऊद ने वहाँ ख़ुदावन्द के लिए मज़बह बनाया और सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश कीं और ख़ुदावन्द ने उस मुल्क के बारे में दु'आ सुनी और वबा इस्राईल में से जाती रही|

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\toc2 १-सलातीन
\toc3 1ki
\mt1 १-सलातीन
\s5
\c 1
\p
\v 1 और दाऊद बादशाह बुड्ढा और 'उम्र दराज़ हुआ; और वह उसे कपड़े उढ़ाते, लेकिन वह गर्म न होता था।
\v 2 तब उसके ख़ादिमों ने उससे कहा, "कि हमारे मालिक बादशाह के लिए एक जवान कुँवारी ~ढूँडी ~जाए, जो बादशाह~के सामने खड़ी रहे और उसकी देख भाल किया करे, और तेरे पहलू में लेट रहा करे ताकि हमारे मालिक बादशाह को गर्मी पहुँचे।"
\s5
\v 3 ~चुनाँचे उन्होंने इस्राईल की सारी हुकूमत में एक ख़ूबसूरत लड़की तलाश करते करते शून्मीत अबीशाग को पाया, और उसे बादशाह के पास लाए।
\v 4 ~और वह लड़की बहुत हसीन थी, तब वह बादशाह की देख भाल और उसकी ख़िदमत करने लगी; लेकिन बादशाह उससे वाक़िफ़ न हुआ।
\s5
\v 5 ~तब हज्जीत के बेटे अदूनियाह ने सर उठाया और कहने लगा, "मैं बादशाह हूँगा।" और अपने लिए रथ और सवार और पचास आदमी, जो उसके आगे-आगे दौड़ें, तैयार किए।
\v 6 उसके बाप ने उसको कभी इतना भी कहकर ग़मगीन नहीं किया, "कि तू ने यह क्यूँ किया है?" और वह बहुत ख़ूबसूरत भी था, और अबीसलोम के बा'द पैदा हुआ था।
\s5
\v 7 और उसने ज़रोयाह के बेटे योआब और अबीयातर काहिन से बात की; और यह दोनों अदूनियाह के पैरोकार होकर उसकी मदद करने लगे।
\v 8 ~लेकिन सदूक़ काहिन, और यहूयदा' के बेटे बिनायाह, और नातन नबी, और सिम'ई और रे'ई और दाऊद के बहादुर लोगों ने अदूनियाह का साथ न दिया।
\s5
\v 9 ~और अदूनियाह ने भेड़ें और बैल और मोटे-मोटे जानवर ज़ुहलत के पत्थर के पास, जो 'ऐन राजिल के बराबर है, ज़बह किए, और अपने सब भाइयों या'नी बादशाह के बेटों की, और सब यहूदाह के लोगों की, जो बादशाह के मुलाज़िम थे, दा'वत की;
\v 10 लेकिन नातन नबी और बिनायाह और बहादुर लोगों और अपने भाई सुलेमान को न बुलाया।
\s5
\v 11 ~तब नातन ने सुलेमान की माँ ~बतसबा' से कहा, "क्या तू ने नहीं सुना कि हज्जीत का बेटा अदूनियाह बादशाह बन बैठा है, और हमारे मालिक दाऊद को यह मालूम नहीं?
\v 12 अब तू आ कि मैं तुझे सलाह दूँ, ताकि तू अपनी और अपने बेटे सुलेमान की जान बचा सके।
\s5
\v 13 तू दाऊद बादशाह के सामने जाकर उससे कह, 'ऐ मेरे मालिक, ऐ बादशाह, क्या तू ने अपनी लौंडी से क़सम खाकर नहीं कहा कि यक़ीनन तेरा बेटा सुलेमान मेरे बा'द हुकूमत ~करेगा, और वही मेरे तख़्त पर बैठेगा? पस अदूनियाह क्यूँ बादशाही करता है?"
\v 14 और देख, तू बादशाह से बात करती ही होगी कि मैं भी तेरे बा'द आ पहुँचूँगा, और तेरी बातों की तस्दीक़ करूँगा।"
\s5
\v 15 ~तब बतसबा' अन्दर कोठरी में बादशाह के पास गई; और बादशाह बहुत बुड्ढा था, और शून्मीत अबीशाग बादशाह की ख़िदमत करती थी।
\v 16 और बतसबा' ने झुककर बादशाह को सिज्दा किया। बादशाह ने कहा, "तू क्या चाहती है?"
\v 17 उसने उससे कहा, "ऐ मेरे मालिक, तू ने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की क़सम खाकर अपनी लौंडी से कहा था, "यक़ीनन तेरा बेटा सुलेमान मेरे बा'द हुकूमत करेगा, और वही मेरे तख़्त पर बैठेगा।'
\s5
\v 18 ~पर देख, अब तो अदूनियाह बादशाह बन बैठा है, और ऐ मेरे मालिक बादशाह, तुझ को इसकी ख़बर नहीं।
\v 19 और उसने बहुत से बैल और मोटे मोटे जानवर और भेड़ें ज़बह की हैं; और बादशाह के सब बेटों और अबीयातार काहिन, और लश्कर के सरदार योआब की दा'वत की है, लेकिन तेरे बन्दे सुलेमान को उसने नहीं बुलाया।
\s5
\v 20 ~लेकिन ऐ मेरे मालिक, सारे इस्राईल की निगाह तुझ पर है, ताकि तू उनको बताए कि मेरे मालिक बादशाह के तख़्त पर कौन उसके बा'द बैठेगा।
\v 21 वरना यह होगा कि जब मेरा मालिक बादशाह अपने बाप-दादा के साथ सो जाएगा, तो मैं और मेरा बेटा सुलेमान दोनों क़ुसूरवार ठहरेंगे।"
\s5
\v 22 ~वह अभी बादशाह से बात ही कर रही थी कि नातन नबी आ गया।
\v 23 और उन्होंने बादशाह को ख़बर दी, "देख, नातन नबी हाज़िर है।" और जब वह बादशाह के सामने आया, तो उसने मुँह के बल गिर कर बादशाह को सिज्दा किया।
\s5
\v 24 और नातन कहने लगा, "ऐ मेरे मालिक बादशाह ! क्या तू ने फ़रमाया है, कि मेरे बा'द अदूनियाह बादशाह हो, और वही मेरे तख़्त पर बैठे'?
\v 25 ~क्यूँकि उसने आज जाकर बैल और मोटे-मोटे जानवर और भेड़ें कसरत से ज़बह की हैं, और बादशाह के सब बेटों और लश्कर के सरदारों और अबीयातर काहिन की दा'वत की है; और देख, वह उसके सामने खा पी रहे हैं और कहते हैं, 'अदूनियाह बादशाह ज़िन्दा रहे!"
\s5
\v 26 ~लेकिन मुझ तेरे ख़ादिम को, और सदूक़ काहिन और यहूयदा' के बेटे बिनायाह और तेरे ख़ादिम सुलेमान को उसने नहीं बुलाया।
\v 27 ~क्या यह बात मेरे मालिक बादशाह की तरफ़ से है? और तू ने अपने ख़ादिमों को बताया भी नहीं कि मेरे मालिक बादशाह के बा'द, उसके तख़्त पर कौन बैठेगा?"
\s5
\v 28 ~तब दाऊद बादशाह ने जवाब दिया और फ़रमाया, 'बतसबा' को मेरे पास बुलाओ।" तब वह बादशाह के सामने आई और बादशाह के सामने खड़ी हुई।
\v 29 बादशाह ने क़सम खाकर कहा कि, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम ~जिसने मेरी जान को हर तरह की आफ़त से रिहाई दी,
\v 30 ~कि सचमुच जैसी मैंने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की क़सम तुझ से खाई और कहा, 'कि यक़ीनन तेरा बेटा सुलेमान मेरे बा'द बादशाह होगा, और वही मेरी जगह मेरे तख़्त पर बैठेगा, "तो सचमुच मैं आज के दिन वैसा ही करूँगा।"
\v 31 तब बतसबा' ज़मीन पर मुँह के बल गिरी और बादशाह को सिज्दा करके कहा कि "मेरा मालिक दाऊद बादशाह, हमेशा ज़िन्दा रहे |"
\s5
\v 32 और दाऊद बादशाह ने फ़रमाया, कि सदूक़ काहिन आयर नातन नबी और यहूयदा' के बेटे बिनायाह को मेरे पास बुलाओ।" तब वह बादशाह के सामने आए।
\v 33 बादशाह ने उनको फ़रमाया कि "तुम अपने मालिक के मुलाज़िमों को अपने साथ लो, और मेरे बेटे सुलेमान को मेरे ही खच्चर पर सवार कराओ; और उसे जैहून को ले जाओ;
\v 34 ~और वहाँ सदूक़ काहिन और नातन नबी उसे मसह करें, कि वह इस्राईल का बादशाह हो; और तुम नरसिंगा फूँकना और कहना कि सुलेमान बादशाह ज़िन्दा रहे!"
\s5
\v 35 ~फिर तुम उसके पीछे-पीछे चले आना, और वह आकर मेरे तख़्त पर बैठे; क्यूँकि वही मेरी जगह बादशाह होगा, और मैंने उसे मुक़र्रर किया है कि वह इस्राईल और यहूदाह का हाकिम हो।”
\v 36 तब यहूयदा' के बेटे बिनायाह ने बादशाह के जवाब में कहा, "आमीन! ख़ुदावन्द मेरे मालिक बादशाह का ख़ुदा भी ऐसा ही कहे।
\v 37 जैसे ख़ुदावन्द मेरे मालिक बादशाह के साथ रहा, वैसे ही वह सुलेमान के साथ रहे; और उसके तख़्त को मेरे मालिक दाऊद बादशाह के तख़्त से बड़ा बनाए।"
\s5
\v 38 ~इसलिए सदूक़ काहिन और नातन नबी और यहूयदा' का बेटा बिनायाह और करेती और फ़लेती गए, और सुलेमान को दाऊद बादशाह के खच्चर पर सवार कराया और उसे जैहून पर लाए।
\v 39 ~और सदूक़ काहिन ने ख़ेमे से तेल का सींग लिया और सुलेमान को मसह किया। और उन्होंने नरसिंगा फूंका और सब लोगों ने कहा, "सुलेमान बादशाह ज़िन्दा रहे!"
\v 40 और सब लोग उसके पीछे आए और उन्होंने बाँसुलियाँ बजाईं और बड़ी ख़ुशी मनाई, ऐसा कि ज़मीन उनके शोरओ-गु़ल से गूँज उठी।
\s5
\v 41 और अदूनियाह और उसके सब मेहमान जो उसके साथ थे, खा ही चुके थे कि उन्होंने यह सुना। और जब योआब को नरसिंगे की आवाज़ सुनाई दी तो उसने कहा, "शहर में यह हंगामा और शोर क्यूँ मच रहा है?"
\v 42 ~वह यह ~कह ही रहा था कि देखो, अबीयातर काहिन का बेटा यूनतन आया; और अदूनियाह ने उससे कहा, "भीतर आ; क्यूँकि तू लायक़ शख़्स है, और अच्छी ख़बर लाया होगा।"
\s5
\v 43 यूनतन ने अदूनियाह को जवाब दिया, "वाक़ई हमारे मालिक दाऊद बादशाह ने सुलेमान को बादशाह बना दिया है।
\v 44 और बादशाह ने सदूक़ काहिन और नातन नबी और यहूयदा' के बेटे बिनायाह और करेतियों और फ़लेतियों को उसके साथ भेजा। तब उन्होंने बादशाह के खच्चर पर उसे सवार कराया।
\v 45 ~और सदूक़ काहिन और नातन नबी ने जैहून पर उसको मसह करके बादशाह बनाया है; तब वह वहीं से ख़ुशी करते आए हैं, ऐसा कि शहर गूँज गया। वह शोर जो तुम ने सुना यही है।
\s5
\v 46 और सुलेमान तख़्त-ए-हुकूमत पर बैठ भी गया है।
\v 47 इसके 'अलावा बादशाह के मुलाज़िम हमारे मालिक दाऊद बादशाह को मुबारकबाद देने आए और कहने लगे कि तेरा ख़ुदा, सुलेमान के नाम को तेरे नाम से ज़्यादा मुम्ताज़ करे, और उसके तख़्त को तेरे तख़्त से बड़ा बनाए;' और बादशाह अपने बिस्तर पर सिजदे में हो गया।
\v 48 और बादशाह ने भी ऐसा फ़रमाया कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा मुबारक हो, जिसने एक वारिस बख़्शा कि वह मेरी ही आँखों के देखते हुए आज मेरे तख़्त पर बैठे।”
\s5
\v 49 ~फिर तो अदूनियाह के सब मेहमान डर गए, और उठ खड़े हुए और हर एक ने अपना रास्ता लिया।
\v 50 और अदूनियाह सुलेमान की वजह से डर के मारे उठा, और जाकर मज़बह के सींग पकड़ लिए।
\v 51 और सुलेमान को यह बताया गया कि "देख, अदूनियाह सुलेमान बादशाह से डरता है, क्यूँकि उसने मज़बह के सींग पकड़ रख्खे हैं; और कहता है कि ~सुलेमान बादशाह आज के दिन मुझ से क़सम खाए, कि वह ~अपने ख़ादिम को तलवार से क़त्ल नहीं करेगा। "
\s5
\v 52 सुलेमान ने कहा, "अगर वह अपने को लायक़ साबित करे, तो उसका एक बाल भी ज़मीन पर नहीं गिरेगा; लेकिन अगर उसमें शरारत पाई जाएगी तो वह मारा जाएगा।"
\v 53 तब सुलेमान बादशाह ने लोग भेजे, और वह उसे मज़बह पर से उतार लाए। उसने आकर सुलेमान बादशाह को सिज्दा किया; और सुलेमान ने उससे कहा, "अपने घर जा।"
\s5
\c 2
\p
\v 1 और दाऊद के मरने के दिन नज़दीकआए, तब उसने अपने बेटे सुलेमान को वसीय्यत की और कहा कि,
\v 2 ~"मैं उसी रास्ते जाने वाला हूँ जो सारे जहान का है; इसलिए तू मज़बूत हो और मर्दानगी दिखा।
\v 3 ~और जो मूसा की शरी'अत में लिखा है, उसके मुताबिक़ ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की हिदायत को मानकर उसके रास्तों पर चल; और उसके क़ानून पर और उसके फ़रमानों और हुक्मों और शहादतों पर 'अमल कर, ताकि जो कुछ तू करे और जहाँ कहीं तू जाए, सब में तुझे कामयाबी हो,
\v 4 और ख़ुदावन्द अपनी उस बात को क़ायम रख्खे, जो उसने मेरे हक़ में कही कि, 'अगर तेरी औलाद अपने रास्ते की हिफ़ाज़त करके अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से मेरे सामने सच्चाई से चले, तो इस्राईल के तख़्त पर तेरे यहाँ आदमी की कमी न होगी।'
\s5
\v 5 "और तू ख़ुद जानता है कि ज़रोयाह के बेटे योआब ने मुझ से क्या-क्या किया, या'नी उसने इस्राइली लश्कर के दो सरदारों, नेर के बेटे अबनेर और यतर के बेटे 'अमासा से क्या किया, जिनको उसने क़त्ल किया और सुलह के वक़्त ख़ून-ए-जंग बहाया, और ख़ून-ए-जंग को अपने पटके पर जो उसकी कमर में बंधा था और अपनी जूतियों पर जो उसके पाँवों में थी लगाया।
\v 6 इसलिए तू अपनी हिकमत से काम लेना और उसके सफ़ेद सर को क़ब्र में सलामत उतरने न देना।
\s5
\v 7 लेकिन बरज़िली जिल'आदी के बेटों पर महेरबानी करना, और वह उनमें शामिल हों जो तेरे दस्तरख़्वान पर खाना खाया करेंगे, क्यूँकि वह ऐसा ही करने को मेरे पास आए जब मैं तेरे भाई अबीसलोम की वजह से भागा था।
\s5
\v 8 और देख, बिनयमीनी जीरा का बेटा बहूरीमी सिम'ई तेरे साथ है, जिसने उस दिन जब कि मैं महनायम को जाता था बहुत बुरी तरह मुझ पर ला'नत की, लेकिन वह यरदन पर मुझ से मिलने को आया, और मैंने ख़ुदावन्द की क़सम खाकर उससे कहा कि "मैं तुझे तलवार से क़त्ल नहीं करूँगा।
\v 9 ~तब तू उसको बेगुनाह न ठहराना, क्यूँकि तू ''अक़्लमन्द आदमी है और तू जानता है कि तुझे उसके साथ क्या करना चाहिए, इसलिए तू उसका सफ़ेद सर लहू लुहान करके क़ब्र में उतारना।"
\s5
\v 10 ~और दाऊद अपने बाप-दादा के साथ सो गया और दाऊद के शहर में दफ़्न हुआ।
\v 11 और कुल मुद्दत जिसमें दाऊद ने इस्राईल पर हुकूमत की चालीस साल की थी; सात साल तो उसने हबरून में हुकूमत की, और सैंतीस साल यरूशलीम में।
\v 12 और सुलेमान अपने बाप दाऊद के तख़्त पर बैठा और उसकी हुकूमत बहुत ही मज़्बूत हुई।
\s5
\v 13 ~~तब हज्जीत का बेटा अदूनियाह, सुलेमान की माँ बतसबा' के पास आया; उसने पूछा, "तू सुलह के ख़्याल से आया है?” उसने कहा, "सुलह के ख़्याल से।"
\v 14 ~ फिर उसने कहा, "मुझे तुझ से कुछ कहना है।" उसने कहा, "कह।"
\v 15 ~उसने कहा, "तू जानती है कि हुकूमत मेरी थी, और सब इस्राइली मेरी तरफ़ मुतवज्जिह थे कि मैं हुकूमत करूँ, लेकिन हुकूमत पलट गई और मेरे भाई की हो गई, क्यूँकि ख़ुदावन्द की तरफ़ से यह उसी की थी।
\s5
\v 16 ~इसलिए मेरी तुझ से एक दरख़्वास्त है, नामंजूर न कर।" उसने कहा, "बयान कर।"
\v 17 ~उसने कहा, "ज़रा सुलेमान बादशाह से कह, क्यूँकि वह तेरी बात को नहीं टालेगा, किअबीशाग शून्मीत को मुझे ब्याह दे।”
\v 18 ~बतसबा' ने कहा, "अच्छा, मैं तेरे लिए बादशाह से 'दरख़्वास्त करूँगी।"
\s5
\v 19 तब बतसबा' सुलेमान बादशाह के पास गई, ताकि उससे अदूनियाह के लिए 'दरख़्वास्त करे। बादशाह उसके इस्तक़बाल के वास्ते उठा और उसके सामने झुका, फिर अपने तख़्त पर बैठा; और उसने बादशाह की माँ के लिए एक तख़्त लगवाया, तब वह उसके दहने हाथ बैठी;
\v 20 ~और कहने लगी, "मेरी तुझ से एक छोटी सी दरख़्वास्त है; तू मुझ से इन्कार न करना।" बादशाह ने उससे कहा, "ऐ मेरी माँ, इरशाद फ़रमा; मुझे तुझ से इन्कार न होगा।"
\v 21 ~उसने कहा, 'अबीशाग शून्मीत तेरे भाई अदूनियाह को ब्याह दी जाए।"
\s5
\v 22 ~सुलेमान बादशाह ने अपनी माँ को जवाब दिया, "तू अबीशाग शून्मीत ही को अदूनियाह के लिए क्यूँ माँगती है? उसके लिए हुकूमत भी माँग, क्यूँकि वह तो मेरा बड़ा भाई है; बल्कि उसके लिए क्या, अबीयातर काहिन और ज़रोयाह के बेटे योआब के लिए भी माँग।"
\v 23 तब सुलेमान बादशाह ने ख़ुदावन्द की क़सम खाई और कहा कि अगर अदूनियाह ने यह बात अपनी ही जान के ख़िलाफ़ नहीं कही, तो ख़ुदा मुझ से ऐसा ही, बल्कि इससे भी ज़्यादा करे।
\s5
\v 24 ~इसलिए अब ख़ुदावन्द की हयात की क़सम जिसने मुझ को क़याम बख़्शा, और मुझ को मेरे बाप दाऊद के तख़्त पर बिठाया, और मेरे लिए अपने वा'दे के मुताबिक़ एक घर बनाया, यक़ीनन अदूनियाह आज ही क़त्ल किया जाएगा।"
\v 25 ~और सुलेमान बादशाह ने यहूयदा' के बेटे बिनायाह को भेजा: उसने उस पर ऐसा वार किया कि वह मर गया।
\s5
\v 26 फिर बादशाह ने अबीयातर काहिन से कहा, "तू अनतोत को अपने खेतों में चला जा क्यूँकि तू क़त्ल के लायक़ है, लेकिन मैं इस वक़्त तुझ को क़त्ल नहीं करता क्यूँकि तू मेरे बाप दाऊद के सामने ख़ुदावन्द यहोवाह का सन्दूक़ उठाया करता था; और जो जो मुसीबत मेरे बाप पर आई वह तुझ पर भी आई।"
\v 27 तब सुलेमान ने अबीयातर को ख़ुदावन्द के कहिन के उहदे से बरतरफ़ किया, ताकि वह~ख़ुदावन्द के उस क़ौल को पूरा करे जो उसने सैला में एली के घराने के हक़ में कहा था।
\s5
\v 28 और यह ख़बर योआब तक पहुँची: क्यूँकि योआब अदूनियाह का तो पैरोकार हो गया था, अगर्चे वह अबीसलोम का पैरोकार नहीं हुआ था। इसलिए योआब ख़ुदावन्द के ख़ेमे को भाग गया, और मज़बह के सींग पकड़ लिए।
\v 29 ~ और सुलेमान बादशाह को ख़बर हुई, "योआब ख़ुदावन्द के ख़ैमे को भाग गया है; और देख, वह मज़बह के पास है।" तब सुलेमान ने यहूयदा' के बेटे बिनायाह को यह कहकर भेजा कि, "जाकर उस पर वार कर।"
\s5
\v 30 ~तब बिनायाह ख़ुदावन्द के ख़ैमे को गया, और उसने उससे कहा, "बादशाह यूँ फ़रमाता है कि "तू बाहर निकल आ।" उसने कहा, "नहीं, बल्कि मैं यहीं मरूँगा।" तब बिनायाह ने लौट कर बादशाह को ख़बर दी कि "योआब ने ऐसा कहा है, और उसने मुझे ऐसा जवाब दिया।"
\v 31 तब बादशाह ने उससे कहा, "जैसा उसने कहा वैसा ही कर, और उस पर वार कर और उसे दफ़्न कर दे; ताकि तू उस ख़ून को जो योआब ने बे वजह बहाया, मुझ पर से और मेरे बाप के घर पर से दूर कर दे।
\s5
\v 32 और ख़ुदावन्द उसका ख़ून उल्टा उसी के सर पर लाएगा, क्यूँकि उसने दो शख़्सों पर जो उससे ज़्यादा रास्तबाज़ और अच्छे थे, या'नी नेर के बेटे अबनेर पर जो इस्राइली लश्कर का सरदार था और यतर के बेटे 'अमासा पर जो यहूदाह की फ़ौज का सरदार था, वार किया और उनको तलवार से क़त्ल किया, और मेरे बाप दाऊद को मा'लूम न था।
\v 33 इसलिए उनका ख़ून योआब के सर पर और उसकी नसल के सर पर हमेशा तक रहेगा, लेकिन दाऊद पर और उसकी नसल पर और उसके घर पर और उसके तख़्त पर हमेशा तक ख़ुदावन्द की तरफ़ से सलामती होगी।"
\s5
\v 34 ~तब यहूयदा' का बेटा बिनायाह गया, और उसने उस पर वार करके उसे क़त्ल किया; और वह वीरान के बीच अपने ही घर में दफ़्न हुआ।
\v 35 ~ और बादशाह ने यहूयदा' के बेटे बिनायाह को उसकी जगह लश्कर पर मुक़र्रर किया; और सदूक़ काहिन को बादशाह ने अबीयातर की जगह रखा |
\s5
\v 36 फिर बादशाह ने सिम्ई को बुला भेजा और उससे कहा कि "यरूशलीम में अपने लिए एक घर बना ले और वहीं रह, और वहाँ से कहीं न जाना;
\v 37 क्यूँकि जिस दिन तू बाहर निकलेगा और नहर-ए-क़िद्रोन के पार जाएगा, तू यक़ीन जान ले कि तू ज़रूर मारा जाएगा, और तेरा ख़ून तेरे ही सर पर होगा।"
\v 38 और सिम्ई ने बादशाह से कहा, "यह बात अच्छी है; जैसा मेरे मालिक बादशाह ने कहा है, तेरा ख़ादिम वैसा ही करेगा।" इसलिए सिम्ई बहुत दिनों तक यरूशलीम में रहा।
\s5
\v 39 और तीन साल के आख़िर में ऐसा हुआ कि सिम्ई के नौकरों में से दो आदमी जात के बादशाह अकीस-बिन-मा'काह के यहाँ भाग गए। और उन्होंने सिम'ई को बताया कि, "देख, तेरे नौकर जात में है।”
\v 40 ~तब सिम्'ई ने उठकर अपने गधे पर ज़ीन कसा, और अपने नौकरों की तलाश में जात को अकीस के पास गया; और सिम्'ई जाकर अपने नौकरों को जात से ले आया।
\s5
\v 41 और यह ख़बर सुलेमान को मिली कि सिम्'ई यरूशलीम से जात को गया था और वापस आ गया है,
\v 42 तब बादशाह ने सिम्'ई को बुला भेजा और उससे कहा, "क्या मैंने तुझे ख़ुदावन्द की क़सम न खिलाई और तुझ को बता न दिया कि, 'यक़ीन जान ले कि जिस दिन तू बाहर निकला और इधर-उधर कहीं गया, तो ज़रूर मारा जाएगा'? और तू ने मुझ से यह कहा कि जो बात मैंने सुनी, वह अच्छी है।'
\s5
\v 43 ~इसलिए तूने ख़ुदावन्द की क़सम को, और उस हुक्म को जिसकी मैंने तुझे ताकीद की, क्यूँ न माना?"
\v 44 और बादशाह ने सिम्'ई से यह भी कहा, "तू उस सारी शरारत को जो तू ने मेरे बाप दाऊद से की, जिससे तेरा दिल वाकिफ़ है जानता है; इसलिए ~ख़ुदावन्द तेरी शरारत को उल्टा तेरे ही सर पर लाएगा।
\s5
\v 45 लेकिन सुलेमान बादशाह मुबारक होगा, और दाऊद का तख़्त ख़ुदावन्द के सामने हमेशा क़ायम रहेगा।"
\v 46 और बादशाह ने यहूयदा' के बेटे बिनायाह को हुक्म दिया, तब उसने बाहर जाकर उस पर ऐसा वार किया कि वह मर गया। और हुकूमत सुलेमान के हाथ में मज़बूत हो गई।
\s5
\c 3
\p
\v 1 ~और सुलेमान ने मिस्र के बादशाह फ़िर'औन से रिश्तेदारी की, और फ़िर'औन की बेटी ब्याह ली; और जब तक अपना महल और ख़ुदावन्द का घर और यरूशलीम के चरों तरफ़ दीवार न बना चुका, उसे दाऊद के शहर में लाकर रख्खा।
\v 2 ~ लेकिन लोग ऊँची जगहों में क़ुर्बानी करते थे, क्यूँकि उन दिनों तक कोई घर ख़ुदावन्द के नाम के लिए नहीं बना था।
\v 3 ~और सुलेमान ख़ुदावन्द से मुहब्बत रखता और अपने बाप दाऊद के क़ानून पर चलता था। इतना ज़रूर है कि वह ऊँची जगहों में क़ुर्बानी करता और बख़ूर जलाता था।
\s5
\v 4 और बादशाह जिबा'ऊन को गया ताकि क़ुर्बानी करे, क्यूँकि वह ख़ास ऊँची जगह थी, और सुलेमान ने उस मज़बह पर एक हज़ार सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश कीं।
\v 5 ~जिबाऊन में ख़ुदावन्द रात के वक़्त सुलेमान को ख़्वाब में दिखाई दिया, और ख़ुदावन्द ने कहा, "माँग, मैं तुझे क्या दूँ।”
\s5
\v 6 सुलेमान ने कहा, "तू ने अपने ख़ादिम मेरे बाप दाऊद पर बड़ा एहसान किया, इसलिए कि वह तेरे सामने सच्चाई और सदाक़त और तेरे साथ सीधे दिल से चलता रहा, और तू ने उसके वास्ते यह बड़ा एहसान रख छोड़ा था कि तू ने उसे एक बेटा इनायत किया जो उसके तख़्त पर बैठे, जैसा आज के दिन है।
\s5
\v 7 और अब ऐ ख़ुदावन्द, मेरे ख़ुदा! तू ने अपने ख़ादिम को मेरे बाप दाऊद की जगह बादशाह बनाया है, और मैं छोटा लड़का ही हूँ और मुझे बाहर जाने और भीतर आने का तमीज़ नहीं।
\v 8 और तेरा ख़ादिम तेरी क़ौम के बीच में है, जिसे तू ने चुन लिया है; वह ऐसी क़ौम है जो कसरत के ज़रिए' न गिनी जा सकती है न शुमार हो सकती है।
\v 9 तब तू अपने ख़ादिम को अपनी क़ौम का इन्साफ़ करने के लिए समझने वाला दिल 'इनायत कर, ताकि मैं बुरे और भले में फ़र्क़ कर सकूँ; क्यूँकि तेरी इस बड़ी क़ौम का इन्साफ़ कौन कर सकता है?"
\s5
\v 10 और यह बात ख़ुदावन्द को पसन्द आई कि सुलेमान ने यह चीज़ माँगी।
\v 11 और ख़ुदा ने उससे कहा, "चूँकि तू ने यह चीज़ माँगी, और अपने लिए लम्बी 'उम्र की दरख़्वास्त न की और न अपने लिए दौलत का सवाल किया और न अपने दुश्मनों की जान माँगीं, बल्कि इन्साफ़ पसन्दी के लिए तू ने अपने वास्ते 'अक़्लमन्दी की दरख़्वास्त की है।
\v 12 इसलिए देख, मैंने तेरी दरख़्वास्त के मुताबिक़ किया; मैंने एक 'अक़्लमन्द ~और समझने वाला दिल तुझ को बख़्शा, ऐसा कि तेरी तरह न तो कोई तुझ से पहले हुआ और न कोई तेरे बा'द तुझ सा पैदा होगा।
\s5
\v 13 और मैंने तुझ को कुछ और भी दिया जो तू ने नही माँगा, या'नी दौलत और 'इज़्ज़त ऐसा कि बादशाहों में तेरी 'उम्र भर कोई तेरी तरह न होगा।
\v 14 ~और अगर तू मेरे रास्तों पर चले, और मेरे क़ानून और मेरे अहकाम को माने जैसे तेरा बाप दाऊद चलता रहा, तो मैं तेरी 'उम्र लम्बी करूँगा।"
\s5
\v 15 ~फिर सुलेमान जाग गया, और देखा कि एक ख़्वाब था; और वह यरूशलीम में आया और ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ के आगे खड़ा हुआ और सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश कीं और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश कीं और अपने सब मुलाज़िमों की दा'वत की।
\s5
\v 16 ~उस वक़्त दो 'औरतें जो कस्बियाँ थीं, बादशाह के पास आईं और उसके आगे खड़ी हुईं।
\v 17 ~और एक 'औरत कहने लगी, "ऐ मेरे मालिक! मैं और यह 'औरत दोनों एक ही घर में रहती हैं; और इसके साथ घर में रहते हुए मेरे एक बच्चा हुआ।
\s5
\v 18 ~और मेरे जच्चा हो जाने के बा'द, तीसरे दिन ऐसा हुआ कि यह 'औरत भी ज़च्चा हो गई; और हम एक साथ ही थीं कोई गैर-शख़्स उस घर में न था, सिवा हम दोनों के जो घर ही में थीं।
\v 19 और इस 'औरत का बच्चा रात को मर गया, क्यूँकि यह उसके ऊपर ही लेट गई थी।
\v 20 तब यह आधी रात को उठी; और जिस वक़्त तेरी लौड़ी सोती थी। मेरे बेटे को मेरी बग़ल से लेकर अपनी गोद में लिटा लिया, और अपने मरे हुए बच्चे को मेरी गोद में डाल दिया।
\s5
\v 21 सुबह को जब मैं उठी कि अपने बच्चे को दूध पिलाऊँ, तो क्या देखती हूँ कि वह मरा पड़ा है; लेकिन जब मैंने सुबह को ग़ौर किया, तो देखा कि यह मेरा लड़का नहीं है जो मेरे हुआ था।
\v 22 ”फिर वह दूसरी 'औरत कहने लगी, "नहीं, यह जो ज़िन्दा है मेरा बेटा है और मरा हुआ तेरा बेटा है।” इसने जवाब दिया, "नहीं, मरा हुआ तेरा बेटा है और ज़िन्दा मेरा बेटा है।" तब वह बादशाह के सामने इसी तरह कहती रहीं।
\s5
\v 23 तब बादशाह ने कहा, "एक कहती है, 'यह जो ज़िन्दा है मेरा बेटा है, और जो मर गया है वह तेरा बेटा है, " और दूसरी कहती है, 'नहीं, बल्कि जो मर गया है वह तेरा बेटा है, और जो ज़िन्दा है वह मेरा बेटा है।"
\v 24 तब बादशाह ने कहा, "मुझे एक तलवार ला दो।" तब वह बादशाह के पास तलवार ले आए।"
\v 25 फिर बादशाह ने फ़रमाया, "इस जीते बच्चे को चीर कर दो टुकड़े कर डालो, और आधा एक को और आधा दूसरी को दे दो।"
\s5
\v 26 तब उस 'औरत ने जिसका वह ज़िन्दा बच्चा था बादशाह से दरख़्वास्त की, क्यूँकि उसके दिल में अपने बेटे की ममता थी, तब वह कहने लगी, 'ऐ मेरे मालिक! यह ज़िन्दा बच्चा उसी को दे दे, लेकिन उसे जान से न मरवा।" लेकिन दूसरी ने कहा, 'यह न मेरा हो न तेरा, उसे चीर डालो।"
\v 27 तब बादशाह ने हुक्म किया, "ज़िन्दा बच्चा उसी को दो, और उसे जान से न मारो; क्यूँकि वही उसकी माँ है।"
\v 28 और सारे इस्राईल ने यह इन्साफ़ जो बादशाह ने किया सुना, और वह बादशाह से डरने लगे; क्यूँकि उन्होंने देखा कि 'अदालत करने के लिए ख़ुदा की हिकमत उसके दिल में है।
\s5
\c 4
\p
\v 1 और सुलेमान बादशाह तमाम इस्राईल का बादशाह था।
\v 2 और जो सरदार उसके पास थे, वह यह थे: सदूक़ का बेटा अज़रियाह काहिन,
\v 3 और सीसा के बेटे इलीहोरिफ़ और अख़ियाह मुंशी थे, और अख़ीलूद का बेटा यहूसफ़त मुवर्रिख़ था;
\v 4 और यहूयदा' का बेटा बिनायाह लश्कर का सरदार, और सदूक़ और अबीयातर काहिन थे;
\s5
\v 5 और नातन का बेटा अज़रियाह मन्सबदारों का दारोग़ा था, और नातन का बेटा ज़बूद काहिन और बादशाह का दोस्त था;
\v 6 और अख़ीसर महल का दीवान, और 'अबदा का बेटा अदूनिराम बेगार का मुन्सरिम था।
\s5
\v 7 और सुलेमान ने सब इस्राईल पर बारह मन्सबदार मुक़र्रर किए, जो बादशाह और उसके घराने के लिए ख़ुराक पहुँचाते थे। हर एक को साल में महीना भर ख़ूराक पहुँचानी पड़ती थी।
\v 8 उनके नाम यह हैं: इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में बिनहूर;
\v 9 और मक़स और सा'लबीम और बैतशम्स~और ऐलोन बैतहनान में बिन दिक़र
\v 10 और अरबूत में बिन हसद था, और शोकह और हिफ़र की सारी सर-ज़मीन उसके 'इलाक़े में थी;
\s5
\v 11 और दोर के सारे मुर्तफ़ा' इलाक़े में बिन अबीनदाब था, और सुलेमान की बेटी ताफ़त उसकी बीवी थी;
\v 12 और अख़ीलूद का बेटा बा'ना था, जिसके ज़िम्मा ता'नाक और मजिद्दो और सारा बैतशान था, जो ज़रतान से मुत्तसिल और यज़रएल के नीचे बैतशान से अबीलमहूला तक या'नी युक़म'आम से उधर तक था;
\v 13 और बिन जबर रामात जिल'आद में था, और मनस्सी के बेटे याईर की बस्तियाँ जो जिल'आद में हैं उसके ज़िम्मा थीं, और बसन में अरजूब का 'इलाक़ा भी इसी के ज़िम्मा था जिसमें साठ बड़े शहर थे जिनकी शहर पनाहें और पीतल के बेंडे थे;
\v 14 और इददु का बेटा अख़ीनदाब महनायम में था;
\s5
\v 15 और अख़ीमा'ज़ नफ़्ताली में था, इसने भी सुलेमान की बेटी बसीमत को ब्याह लिया था;
\v 16 ~और हूसी का बेटा बा'ना आशर और 'अलोत में था;
\v 17 ~और फ़रूह का बेटा यहूसफ़त इश्कार में था;
\s5
\v 18 ~ और ऐला का बेटा सिम्ई बिनयमीन में था;
\v 19 ~और ऊरी का बेटा जबर जिल'आद के 'इलाक़े में था, जो अमोरियों के बादशाह सीहोन और बसन के बादशाह 'ओज का मुल्क था, उस मुल्क का वही अकेला मन्सबदार था।
\s5
\v 20 और यहूदाह और इस्राईल के लोग कसरत में समुन्दर के किनारे की रेत की तरह थे, और खाते-पीते और ख़ुश रहते थे।
\v 21 और सुलेमान दरिया-ए-फ़ुरात से फ़िलिस्तियों के मुल्क तक, और मिस्र की सरहद तक सब हुकूमतों पर हाकिम था। वह उसके लिए हदिये लाती थीं, और सुलेमान की उम्र भर उसकी फ़रमाबरदार रहीं।
\v 22 ~और सुलेमान की एक दिन की ख़ुराक यह थी: तीस कोर मैदा और साठ कोर आटा,
\v 23 और दस मोटे-मोटे बैल और चराई पर के बीस बैल, एक सौ भेड़े, और इनके 'अलावा चिकारे और हिरन और छोटे हिरन और मोटे ताज़ा मुर्ग़।
\s5
\v 24 क्यूँकि वह दरिया-ए- फ़ुरात की इस तरफ़ के सब मुल्क पर, तिफ़सह से ग़ज़्ज़ा तक, या'नी सब बादशाहों पर जो दरिया-ए-फ़ुरात की इस तरफ़ थे फ़रमानरवा था, और उसके चारों तरफ़ सब पास पड़ोस में सबसे उसकी सुलह थी।
\v 25 ~ और सुलेमान की 'उम्र भर यहूदाह और इस्राईल का एक-एक आदमी अपनी ताक और अपने अंजीर के दरख़्त के नीचे, दान से बैरसबा' तक अमन से रहता था।
\s5
\v 26 और सुलेमान के यहाँ उसके रथों के लिए चालीस हज़ार थान और बारह हज़ार सवार थे'।
\v 27 ~ और उन मन्सबदारों में से हर एक अपने महीने में सुलेमान बादशाह के लिए, और उन सबके लिए जो सुलेमान बादशाह के दस्तरख़्वान पर आते थे, ख़ूराक पहुँचाता था; वह किसी चीज़ की कमी न होने देते थे।
\v 28 ~ और लोग अपने-अपने फ़र्ज़ के मुताबिक़ घोड़ों और तेज़ रफ़्तार समन्दों के लिए जौ और भूसा उसी जगह ले आते थे जहाँ वह मन्सबदार होते थे।
\s5
\v 29 और ख़ुदा ने सुलेमान को हिकमत और समझ बहुत ही ज़्यादा, और दिल की बड़ाई भी 'इनायत की जैसी समुन्दर के किनारे की रेत होती है।
\v 30 और सुलेमान की हिकमत सब अहल-ए-मशरिक़ की हिकमत, और मिस्र की सारी हिकमत पर फ़ोक़ियत रखती थी;
\v 31 ~इसलिए कि वह सब आदमियों से, बल्कि अज़राखी ऐतान और हैमान और कलकूल और दरदा' से, जो बनी महूल थे, ज़्यादा दानिशमन्द था; और चारों तरफ़ की सब क़ौमों में उसकी शोहरत थी।
\s5
\v 32 और उसने तीन हज़ार मिसालें कहीं और उसके एक हज़ार पाँच गीत थे;
\v 33 और उसने दरख़्तों का, या'नी लुबनान के देवदार से लेकर जूफ़ा तक का जो दीवारों पर उगता है, बयान किया;और चौपायों और परिन्दों और रेंगने वाले जानदारों और मछलियों का भी बयान किया।
\v 34 और सब क़ौमों में से ज़मीन के सब बादशाहों की तरफ़ से जिन्होंने उसकी हिकमत की शोहरत सुनी थी, लोग सुलेमान की हिकमत को सुनने आते थे।
\s5
\c 5
\p
\v 1 और सूर के बादशाह हीराम ने अपने ख़ादिमों को सुलेमान के पास भेजा, क्यूँकि उसने सुना था कि उन्होंने उसे उसके बाप की जगह मसह करके बादशाह बनाया है; इसलिए कि हीराम हमेशा दाऊद का दोस्त रहा था।
\v 2 और सुलेमान ने हीराम को कहला भेजा,
\v 3 "तू जानता है कि मेरा बाप दाऊद, ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के नाम के लिए घर न बना सका; क्यूँकि उसके चारों ओर हर तरफ़ लड़ाइयाँ होती रहीं, जब तक कि ख़ुदावन्द ने उन सब को उसके पाँवों के तलवों के नीचे न कर दिया।
\s5
\v 4 और अब ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा ने मुझ को हर तरफ़ अमन दिया है; न तो कोई मुख़ालिफ़ है, न आफ़त की मार।
\v 5 इसलिए देख, ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के नाम के लिए एक घर बनाने का मेरा इरादा है, जैसा ख़ुदावन्द ने मेरे बाप दाऊद से कहा था, 'तेरा बेटा, जिसको मैं तेरी जगह तेरे तख़्त पर बिठाऊँगा, वही मेरे नाम के लिए घर बनाएगा।'
\s5
\v 6 इसलिए अब तू हुक्म कर कि वह मेरे लिए लुबनान से देवदार के दरख़्तों को काटें; और मेरे मुलाज़िम तेरे मुलाज़िमों के साथ रहेंगे, और मैं तेरे मुलाज़िमों के लिए जितनी मज़दूरी तू कहेगा तुझे दूँगा; क्यूँकि तू जानता है कि हम में ऐसा कोई नहीं जो सैदानियों की तरह लकड़ी काटना जानता हो।"
\s5
\v 7 ~जब हीराम ने सुलेमान की बातें सुनी, तो बहुत ही ख़ुश हुआ और कहने लगा कि "आज के दिन ख़ुदावन्द मुबारक हो, जिसने दाऊद को इस बड़ी क़ौम के लिए एक 'अक़्लमन्द बेटा बख़्शा।"
\v 8 ~और हीराम ने सुलेमान को कहला भेजा कि "जो पैग़ाम तू ने मुझे भेजा मैंने उसको सुन लिया है, और मैं देवदार की लकड़ी और सनोबर की लकड़ी के बारे में तेरी मर्ज़ी पूरी करूँगा।
\s5
\v 9 ~मेरे मुलाज़िम उनको लुबनान से उतारकर समुन्दर तक लाएँगे, और मैं उनके बेड़े बन्धवा दूँगा; ताकि समुन्दर ही समुन्दर उस जगह जाएँ जिसे तू ठहराए। और वहाँ उनको खुलवा दूँगा, फिर तू उनको ले लेना, और तू मेरे घराने के लिए ख़ुराक देकर मेरी मर्ज़ी पूरी करना।
\s5
\v 10 ~ फिर हीराम ने सुलेमान को उसकी मर्ज़ी के मुताबिक़ देवदार की लकड़ी और सनोबर की लकड़ी दी;
\v 11 ~और सुलेमान ने हीराम को उसके घराने के खाने के लिए बीस हज़ार कोर' गेहूँ और बीस कोर ख़ालिस तेल दिया; इसी तरह सुलेमान हीराम को ~हर साल देता रहा।
\v 12 और ख़ुदावन्द ने सुलेमान को, जैसा उसने उससे वा'दा किया था हिकमत बख़्शी; और हीराम और सुलेमान के दर्मियान सुलह थी, और उन दोनों ने बाहम 'अहद बाँध लिया।
\s5
\v 13 और सुलेमान बादशाह ने सारे इस्राईल में से बेगारी लगाए, वह बेगारी ~तीस हज़ार आदमी थे,
\v 14 और वह हर महीने उनमें से दस-दस हज़ार को बारी-बारी से लुबनान भेजता था। तब वह एक महीने लुबनान पर और दो महीने अपने घर रहते; और अदूनिराम उन बेगारियों के ऊपर था।
\s5
\v 15 और सुलेमान के सत्तर हज़ार बोझ उठाने वाले, और अस्सी हज़ार दरख़्त काटने वाले पहाड़ों में थे।
\v 16 इनके 'अलावा सुलेमान के तीन हज़ार तीन सौ ख़ास मन्सबदार थे, जो इस काम पर मुख़्तार थे और उन लोगों पर जो काम करते थे सरदार थे।
\s5
\v 17 और बादशाह के हुक्म से वह बड़े बड़े बेशक़ीमत पत्थर निकाल कर लाए, ताकि घर की बुनियाद घड़े हुए पत्थरों की डाली जाए।
\v 18 और सुलेमान के राजगीरों, और हीराम के राजगीरों, और जिबलियों ने उनको तराशा और घर की ता'मीर के लिए लकड़ी और पत्थरों को तैयार किया।
\s5
\c 6
\p
\v 1 और बनी-इस्राईल के मुल्क-ए-मिस्र से निकल आने के बा'द चार सौ अस्सीवें साल, इस्राईल पर सुलेमान की हुकूमत के चौथे साल, ज़ीव के महीने में जो दूसरा महीना है, ऐसा हुआ कि उसने ख़ुदावन्द का घर बनाना शुरू' किया।
\v 2 और जो घर सुलेमान बादशाह ने ख़ुदावन्द के लिए बनाया उसकी लम्बाई साठ हाथ' और चौड़ाई बीस हाथ और ऊँचाई तीस हाथ थी।
\s5
\v 3 और उस घर की हैकल के सामने एक बरआमदा, उस घर की चौड़ाई के मुताबिक़ बीस हाथ लम्बा था, और उस घर के सामने उसकी चौड़ाई दस हाथ थी।
\v 4 और उसने उस घर के लिए झरोके बनाए जिनमें जाली जड़ी हुई थी।
\s5
\v 5 और उसने चारों तरफ़ घर की दीवार से लगी हुई, या'नी हैकल और इल्हामगाह की दीवारों से लगी हुई, चारों तरफ़ मन्ज़िलें बनाई और हुजरे भी~चारों तरफ़~बनाए।
\v 6 सबसे निचली मन्ज़िल पाँच हाथ चौड़ी, और बीच की छ: हाथ चौड़ी, और तीसरी सात हाथ चौड़ी थी; क्यूँकि उसने घर की दीवार के चारों तरफ़ बाहर के रुख पुश्ते बनाए थे, ताकि कड़ियाँ घर की दीवारों को पकड़े हुए न हों।
\s5
\v 7 और वह घर जब ता'मीर हो रहा था, तो ऐसे पत्थरों का बनाया गया जो कान पर तैयार किए जाते थे; इसलिए उसकी ता'मीर के वक़्त न मार तोल, न कुल्हाड़ी, न लोहे के किसी औज़ार की आवाज़ उस घर में सुनाई दी।
\v 8 और बीच के हुजरों का दरवाज़ा उस घर की दहनी तरफ़ था, और चक्करदार सीढ़ियों से बीच की मन्ज़िल के हुजरों में, और बीच की मन्ज़िल से तीसरी मन्ज़िल को जाया करते थे।
\s5
\v 9 तब उसने वह घर बनाकर उसे पूरा किया, और उस घर को देवदार के शहतीरों और तख़्तों से पाटा।
\v 10 और उसने उस पूरे घर से लगी हुई पाँच-पाँच हाथ ऊँची मन्ज़िलें बनाई, और वह देवदार की लकड़ियों के सहारे उस घर पर टिकी हुई थीं।
\s5
\v 11 और ख़ुदावन्द का कलाम सुलेमान पर नाज़िल हुआ,
\v 12 ~"यह घर जो तू बनाता है, इसलिए अगर तू मेरे क़ानून पर चले और मेरे हुक्मों को पूरा करे और मेरे फ़रमानों को मानकर उन पर 'अमल करे, तो मैं अपना वह क़ौल जो मैंने तेरे बाप दाऊद से किया तेरे साथ क़ायम रखूँगा।
\v 13 और मैं बनी-इस्राईल के दर्मियान रहूँगा और अपनी क़ौम इस्राईल को तर्क न करूँगा।"
\s5
\v 14 ~इसलिए सुलेमान ने वह घर बनाकर उसे पूरा किया।
\v 15 और उसने अन्दर घर की दीवारों पर देवदार के तख़्ते लगाए। इस घर के फ़र्श से छत की दीवारों तक उसने उन पर लकड़ी लगाई, और उसने उस घर के फ़र्श को सनोबर के तख़्तों से पाट दिया।
\s5
\v 16 और उसने उस घर के पिछले हिस्से में बीस हाथ तक, फ़र्श से दीवारों तक देवदार के तख़्ते लगाए, उसने इसे उसके अन्दर बनाया ताकि वह इल्हामगाह या'नी पाकतरीन मकान हो।
\v 17 और वह घर या'नी इल्हामगाह के सामने की हैकल चालीस हाथ लम्बी थी।
\v 18 और उस घर के अन्दर-अन्दर देवदार था, जिस पर लट्टू और खिले हुए फूल खुदे हुए थे; सब देवदार ही था और पत्थर अलग नज़र नहीं आता था।
\s5
\v 19 और उसने उस घर के अन्दर बीच में इलहामगाह तैयार की, ताकि ख़ुदावन्द के 'अहद का सन्दूक़ वहाँ रख्खा जाए।
\v 20 और इल्हामगाह अन्दर ही अन्दर से बीस हाथ लम्बी और बीस हाथ चौड़ी और बीस हाथ ऊँची थी; और उसने उस पर ख़ालिस सोना मंढा, और मज़बह को देवदार से पाटा।
\s5
\v 21 और सुलेमान ने उस घर को अन्दरअन्दर ख़ालिस सोने से मंढा, और इल्हामगाह के सामने उसने सोने की ज़जीरें तान दीं और उस पर भी सोना मंढा।
\v 22 और उस पूरे घर को, जब तक कि वह सारा घर पूरा न हो गया, उसने सोने से मंढा; और इल्हामगाह के पूरे मज़बह पर भी उसने सोना मंढा।
\s5
\v 23 और इल्हामगाह में उसने ज़ैतून की लकड़ी के दो करूबी दस-दस हाथ ऊँचे बनाए।
\v 24 और करूबी का एक बाज़ू पाँच हाथ का और उसका दूसरा बाज़ू भी पाँच ही हाथ का था; एक बाज़ू के सिरे से दूसरे बाज़ू के सिरे तक दस हाथ का फ़ासला था।
\v 25 और दस ही हाथ का दूसरा करूबी था; दोनों करूबी एक ही नाप और एक ही सूरत के थे।
\v 26 एक करूबी की ऊंचाई दस हाथ थी, और इतनी ही दूसरे करूबी की थी।
\s5
\v 27 और उसने दोनों करूबियों को भीतर के मकान के अन्दर रखा; और करूबियों के बाज़ू फैले हुए थे, ऐसा कि एक का बाज़ू एक दीवार से, और दूसरे का बाज़ू दूसरी दीवार से लगा हुआ था; और इनके बाज़ू घर के बीच में एक दूसरे से मिले हुए थे।
\v 28 और उसने करूबियों पर सोना मंढा।
\s5
\v 29 उसने उस घर की सब दीवारों पर, चारों तरफ़ अन्दर और बाहर करूबियों और खजूर के दरख़्तोंऔर खिले हुए फूलों की खुदी हुई सूरतें कन्दा की।
\v 30 और उस घर के फ़र्श पर उसने अन्दर और बाहर सोना मंढा।
\s5
\v 31 और इलहामगाह में दाख़िल होने के लिए उसने ज़ैतून की लकड़ी के दरवाज़े बनाए: ऊपर की चौखट और बाज़ुओं का चौड़ाई ~दीवार का पाँचवा हिस्सा था।
\v 32 दोनों दरवाज़े ज़ैतून की लकड़ी के थे; और उसने उन पर करूबियों और खजूर के दरख़्तों और खिले हुए फूलों की खुदी हुई सूरतें कन्दा कीं, और उन पर सोना मंढा और इस सोने को करूबियों पर और खजूर के दरख़्तों पर फैला दिया।
\s5
\v 33 ~ऐसे ही हैकल में दाख़िल होने के लिए उसने ज़ैतून की लकड़ी की चौखट बनाई, जो दीवार का चौथा हिस्सा थी।
\v 34 ~और सनोबर की लकड़ी के दो दरवाज़े थे; एक दरवाज़े के दोनों पट दुहरे हो जाते, और दूसरे दरवाज़े के भी दोनों पट दुहरे हो जाते थे।
\v 35 ~ और इन पर करूबियों और खजूर के दरख़्तोंऔर खिले हुए फूलों को उसने खुदवाया, और खुदे हुए काम पर सोना मंढा।
\s5
\v 36 और अन्दर के सहन की तीन सफ़े तराशे हुए पत्थर की बनाई, और एक सफ़ देवदार के शहतीरों की।
\s5
\v 37 चौथे साल ज़ीव के महीने में ख़ुदावन्द के घर की बुनियाद डाली गई;
\v 38 और ग्यारहवें साल बूल के महीने में, जो आठवाँ महीना है, वह घर अपने सब हिस्सों समेत अपने नक़्शे के मुताबिक़ बनकर तैयार हुआ। ऐसा उसको बनाने में उसे सात साल लगे।
\s5
\c 7
\p
\v 1 और सुलेमान तेरह साल अपने महल की ता'मीर में लगा रहा, और अपने महल को ख़त्म किया;
\v 2 क्यूँकि उसने अपना महल लुबनान के बन की लकड़ी का बनाया, उसकी लम्बाई सौ हाथ और चौड़ाई पचास हाथ और ऊँचाई तीस हाथ थी, और वह देवदार के सुतूनों की चार क़तारों पर बना था; और सुतूनों पर देवदार के शहतीर थे|
\s5
\v 3 और वह पैंतालीस शहतीरों के ऊपर जो सुतूनों पर टिके थे, पाट दिया गया था। हर क़तार में पन्द्रह शहतीर थे।
\v 4 और खिड़कियों की तीन क़तारें थी, और तीनों क़तारों में हर एक रोशनदान दूसरे रोशनदान के सामने था।
\v 5 और सब दरवाज़े और चौखटें मुरब्बा' शक्ल की थीं, और तीनों क़तारों में हर एक रोशनदान दूसरे रोशनदान के सामने था।
\s5
\v 6 और उसने सुतूनों का बरआमदा बनाया; उसकी लम्बाई पचास हाथ और चौड़ाई तीस हाथ, और इनके सामने एक डयोढ़ी थी, और इनके आगे सुतून और मोटे-मोटे शहतीर थे।
\s5
\v 7 और उसने तख़्त के लिए एक बरआमदा, या'नी 'अदालत का बरआमदा बनाया जहाँ वह 'अदालत कर सके; और फ़र्श-से- फ़र्श तक उसे देवदार से पाट दिया।
\s5
\v 8 और उसके रहने का महल जो उसी बरआमदे के अन्दर दूसरे सहन में था, ऐसे ही काम का बना हुआ था। और सुलेमान ने फ़िर'औन की बेटी के लिए, जिसे उसने ब्याहा था, उसी बरआमदे के तरह का एक महल बनाया
\s5
\v 9 ~यह सब अन्दर और बाहर बुनियाद से मुन्डेर तक बेशक़ीमत पत्थरों, या'नी तराशे हुए पत्थरों के बने हुए थे, जो नाप के मुताबिक़ आरों से चीरे गए थे, और ऐसा ही बाहर बाहर बड़े सहन तक था।
\v 10 और बुनियाद बेशक़ीमत पत्थरों, या'नी बड़े-बड़े पत्थरों की थी; यह पत्थर दस-दस हाथ और आठ-आठ हाथ के थे।
\s5
\v 11 और ऊपर नाप के मुताबिक़ बेशक़ीमत पत्थर, या'नी घड़े हुए पत्थर और देवदार की लकड़ी लगी हुई थी।
\v 12 और बड़े सहन में चारों तरफ़ घड़े हुए पत्थरों की तीन क़तारें और देवदार के शहतीरों की एक क़तार, वैसी ही थी जैसी ख़ुदावन्द के घर के अन्दरूनी सहन और उस घर के बरआमदे में थी।
\s5
\v 13 ~फिर सुलेमान बादशाह ने सूर से हीराम को बुलवा लिया।
\v 14 वह नफ़्ताली के क़बीले की एक बेवा 'औरत का बेटा था, और उसका बाप सूर का बाशिन्दा था और ठठेरा था; और वह पीतल के सब काम की कारीगरी में हिकमत और समझ और महारत रखता था। इसलिए ~उसने सुलेमान बादशाह के पास आकर उसका सब काम बनाया।
\s5
\v 15 क्यूँकि उसने अठारह-अठारह हाथ ऊँचे पीतल के दो सुतून बनाए, और एक-एक का घेर बारह हाथ के सूत के बराबर था (यह अन्दर से खोखले और इसके पीतल की मोटाई चार उंगल थी)।
\v 16 और उसने सुतूनों की चोटियों पर रखने के लिए पीतल ढाल कर दो ताज बनाये एक ताज की ऊँचाई पाँच और दूसरे ताज की ऊँचाई भी पाँच हाथ थी।
\v 17 और उन ताजों के लिए जो सुतूनों की चोटियों पर थे, चारखाने की जालियाँ और जंजीरनुमा हार थे, सात एक ताज के लिए और सात दूसरे ताज के लिए।
\s5
\v 18 तब उसने वह सुतून बनाए, और सुतूनों' की चोटी के ऊपर के ताजों को ढाँकने के लिए एक जाली के काम पर चारों तरफ़ दो क़तारें थीं, और दूसरे ताज के लिए भी उसने ऐसा ही किया।
\v 19 और उन चार-चार हाथ के ताजों पर जो बरआमदे के सुतूनों की चोटी पर थे सोसन का काम था;
\s5
\v 20 और उन दोनों सुतूनों पर, ऊपर की तरफ़ भी जाली के बराबर की गोलाई के पास ताज बने थे; और उस दूसरे ताज पर क़तार दर क़तार चारों तरफ़ दो सौ अनार थे।
\v 21 और उसने हैकल के बरआमदे में वह सुतून खड़े किए; और उसने दहने सुतून को खड़ा करके उसका नाम याकिन" रखा, और बाएँ सुतून को खड़ा करके उसका नाम बो'अज़र रखा।
\v 22 और सुतूनों की चोटी पर सोसन का काम था; ऐसे सुतूनों का काम ख़त्म हुआ।
\s5
\v 23 फिर उसने ढाला हुआ एक बड़ा हौज़ बनाया, वह एक किनारे से दूसरे किनारे तक दस हाथ था; वह गोल था, और ऊँचाई उसकी पाँच हाथ थी, और उसका घेर चारों तरफ़ तीस हाथ के सूत के बराबर था।
\v 24 ~और उसके किनारे के नीचे चारों तरफ़ दसों हाथ तक लट्टू थे, जो उसे या'नी बड़े हौज़ को घेरे हुए थे; यह लट्टू दो क़तारों में थे, और जब वह ढाला गया तब ही यह भी ढाले गए थे।
\s5
\v 25 और वह बारह बैलों पर रखा गया; तीन के मुँह शिमाल की तरफ़, और तीन के मुँह मग़रिब की तरफ़, और तीन के मुँह जुनूब की तरफ़, और तीन के मुँह मशरिक़ की तरफ़ थे; और वह बड़ा हौज़ उन ही पर ऊपर की तरफ़ था, और उन सभों का पिछला धड़ अन्दर के रुख़ था।
\v 26 और दिल उसका चार उंगल था, और उसका किनारा प्याले के किनारे की तरह गुल-ए-सोसन की तरह था, और उसमें दो हज़ार बत की समाई थी।
\s5
\v 27 और उसने पीतल की दस कुर्सियाँ बनाई, एक एक कुर्सी की लम्बाई चार हाथ और चौड़ाई चार हाथ और उँचाई तीन हाथ थी।
\v 28 और उन कुर्सियों की कारीगरी इस तरह की थीं; इनके हाशिये थे, और पटरों के दर्मियान भी हाशिये थे;
\v 29 और उन हाशियों पर जो पटरों के दर्मियान थे, शेर और बैल और करूबी बने थे; और उन पटरों पर भी एक कुर्सी ~ऊपर की तरफ़ थी, और शेरों और बैलों के नीचे लटकते काम के हार थे।
\s5
\v 30 और हर कुर्सी ~के लिए चार चार पीतल के पहिये और पीतल ही के धुरे थे, और उसके चारों पायों में टेकें लगी थीं; यह ढली हुई टेकें हौज़ के नीचे थीं, और हर एक के पहलू में हार बने थे।
\v 31 और उसका मुँह ताज के अन्दर और बाहर एक हाथ था, और वह मुँह डेढ़ हाथ था और उसका काम कुर्सी के काम की तरह गोल था; और उसी मुँह पर नक़्क़ाशी का काम था और उनके हाशिये गोल नहीं बल्कि चौकोर थे।
\s5
\v 32 और वह चारों पहिये हाशियों के नीचे थे, और पहियों के धुरे कुर्सी ~में लगे थे; और हर पहिये की उँचाई डेढ़ हाथ थी।
\v 33 और पहियों का काम रथ के पहिये के जैसा था, और उनके धुरे और उनकी पुठियाँ और उनके आरे और उनकी नाभें सब के सब ढाले हुए थे।
\s5
\v 34 और हर कुर्सी ~के चारों कोनों पर चार टेकें थीं, और टेकें और कुर्सी ~एक ही टुकड़े की थीं।
\v 35 और हर कुर्सी के सिरे पर आध हाथ ऊँची चारों तरफ़ गोलाई थी, और कुर्सी ~के सिरे की कंगनियाँ और हाशिये उसी के टुकड़े के थे।
\s5
\v 36 और उसकी कंगनियों के पाटों पर और उसके हाशियों पर उसने करूबियों और शेरों और खजूर के दरख़्तों को, हर एक की जगह के मुताबिक़ कन्दा किया, और चारों तरफ़ हार थे।
\v 37 दसों कुर्सियों को उसने इस तरह बनाया, और उन सबका एक ही साँचा और एक ही नाप और एक ही सूरत थी।
\s5
\v 38 और उसने पीतल के दस हौज़ बनाए, हर एक हौज़ में चालीस बत की समाई थी; और हर एक हौज़ चार हाथ का था; और उन दसों कुर्सियों में से हर एक पर एक हौज़ था।
\v 39 उसने पाँच कुर्सियाँ घर की दहनी तरफ़, और पाँच घर की बाई तरफ़ रखीं, और बड़े हौज़ को घर के दहने मशरिक़ की तरफ़ जुनूब के रुख़ पर रख्खा।
\s5
\v 40 हीराम ने हौज़ों और बेलचों और कटोरों को भी बनाया। इसलिए हीराम ने वह सब काम जिसे वह सुलेमान बादशाह की ख़ातिर ख़ुदावन्द के घर में बना रहा था पूरा किया;
\v 41 या'नी दोनों सुतून और सुतूनों की चोटी पर ताजों के दोनों प्याले, और सुतूनों की चोटी पर के ताजों के दोनों प्यालों की ढाँकने की दोनों जालियाँ;
\s5
\v 42 और दोनों जालियों के लिए चार सौ अनार, या'नी सुतूनों पर के ताजों के दोनों प्यालों के ढाँकने की हर जाली के लिए अनारों की दो दो क़तारें;
\v 43 और दसों कुर्सियाँ और दसों कुर्सियों पर के दसों हौज़;
\s5
\v 44 ~और वह बड़ा हौज़ और बड़े हौज़ के नीचे के बारह बैल;
\v 45 ~ और वह देगें और बेल्चे और कटोरे। यह सब बर्तन ~जो हीराम ने सुलेमान बादशाह की ख़ातिर ख़ुदावन्द के घर में बनाए, झलकते हुए पीतल के थे।
\s5
\v 46 ~ बादशाह ने उन सबको यरदन के मैदान में सुकात और ज़रतान के बीच की चिकनी मिट्टी वाली ज़मीन में ढाला।
\v 47 ~और सुलेमान ने उन सब बर्तन ~को बगै़र तोले छोड़ दिया, क्यूँकि वह बहुत से थे; इसलिए ~उस पीतल का वज़न मा'लूम न हो सका।
\s5
\v 48 ~और सुलेमान ने वह सब बर्तन बनाए जो ख़ुदावन्द के घर में थे, या'नी वह सोने का मज़बह, और सोने की मेज़ जिस पर नज़र ~की रोटी रहती थी,
\v 49 ~और ख़ालिस सोने के वह शमा'दान जो इल्हामगाह के आगे पाँच दहने और पाँच बाएँ थे, और सोने के फूल और चिराग, और चिमटे;
\s5
\v 50 ~और ख़ालिस सोने के प्याले और गुलतराश और कटोरे और चमचे और ऊदसोज़; और अन्दरूनी घर, या'नी पाकतरीन मकान के दरवाज़े के लिए और घर के या'नी हैकल के दरवाज़े के लिए सोने के क़ब्ज़े।
\s5
\v 51 ~ऐसे वह सब काम जो सुलेमान बादशाह ने ख़ुदावन्द के घर में बनाया ख़त्म हुआ; और सुलेमान अपने बाप दाऊद की मख़्सूस की हुई चीज़ो, या'नी सोने और चाँदी और बर्तनों को अन्दर लाया, और उनको ख़ुदावन्द के घर के खज़ानों में रखा।
\s5
\c 8
\p
\v 1 तब सुलेमान ने इस्राईल के बुज़ुगों और क़बीलों के सब सरदारों को, जो बनी इस्राईल के आबाई ख़ान्दानों के रईस थे, अपने पास यरूशलीम में जमा' किया ताकि वह दाऊद के शहर से, जो सिय्यून है, ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को ले आएँ।
\v 2 ~ इसलिए उस 'ईद में इस्राईल के सब लोग माह-ए-ऐतानीम में, जो सातवाँ महीना है, सुलेमान बादशाह के पास जमा' हुए।
\s5
\v 3 और इस्राईल के सब बुज़ुर्ग आए, और काहिनों ने सन्दूक़ उठाया।
\v 4 ~और वह ख़ुदावन्द के सन्दूक़ को, और ख़ेमा-ए- इजितमा'अ को, और उन सब मुक़द्दस बर्तनों ~को जो ख़ेमे के अन्दर थे ले आए; उनको काहिन और लावी लाए थे।
\v 5 ~और सुलेमान बादशाह ने और उसके साथ इस्राईल की सारी जमा'अत ने, जो उसके पास जमा' थी, सन्दूक़ के सामने खड़े होकर इतनी भेड़-बकरियाँ और बैल ज़बह किए कि ~उनको कसरत की वजह से उनकी गिनती या हिसाब न हो सका।
\s5
\v 6 ~और काहिन ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को उसकी जगह पर, उस घर की इल्हामगाह में, या'नी पाकतरीन मकान में 'ऐन करूबियों के बाज़ुओं के नीचे ले आए।
\v 7 ~ क्यूँकि करूबी अपने बाज़ुओं को सन्दूक़ की जगह के ऊपर फैलाए हुए थे, और वह करूबी सन्दूक़ को और उसकी चोबों को ऊपर से ढाँके हुए थे।
\v 8 ~ और वह चोबें ऐसी लम्बी थीं के उन चोंबों के सिरे पाक मकान से इल्हामगाह के सामने दिखाई देते थे, लेकिन बाहर से नहीं दिखाई देते थे। और वह आज तक वहीं हैं।
\s5
\v 9 ~उस सन्दूक़ में कुछ न था सिवा पत्थर की उन दो लौहों के जिनको वहाँ मूसा ने होरिब में रख दिया था, जिस वक़्त के ख़ुदावन्द ने बनी इस्राईल से जब वह मुल्क-ए-मिस्र से निकल आए, 'अहद बाँधा था।
\v 10 ~फिर ऐसा हुआ कि जब काहिन पाक मकान से बाहर निकल आए, तो ख़ुदावन्द का घर अब्र से भर गया:
\v 11 ~इसलिए काहिन उस अब्र की वजह से ख़िदमत के लिए खड़े न हो सके, इसलिए कि ख़ुदावन्द का घर उसके जलाल से भर गया था।
\s5
\v 12 ~तब सुलेमान ने कहा कि ~"ख़ुदावन्द ने फ़रमाया था कि वह गहरी तारीकी में रहेगा।
\v 13 ~मैंने हक़ीक़त में ~एक घर तेरे रहने के लिए, बल्कि तेरी हमेशा की सुकूनत के वास्ते एक जगह बनाई है।”
\s5
\v 14 ~और बादशाह ने अपना मुँह फेरा और इस्राईल की सारी जमा'अत को बरकत दी, और इस्राईल की सारी जमा'अत खड़ी रही;
\v 15 ~और उसने कहा कि "ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा मुबारक हो! जिसने अपने मुँह से मेरे बाप दाऊद से कलाम किया, और उसे अपने हाथ से यह कह कर पूरा किया कि |
\v 16 ~"जिस दिन से मैं अपनी क़ौम इस्राईल को मिस्र से निकाल लाया, मैंने इस्राईल के सब क़बीलों में से भी किसी शहर को नहीं चुना कि एक घर बनाया जाए, ताकि मेरा नाम वहाँ हो; लेकिन मैंने दाऊद को चुन लिया कि वह मेरी क़ौम इस्राईल पर हाकिम हो।'
\s5
\v 17 ~ और मेरे बाप दाऊद के दिल में था कि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के नाम के लिए एक घर बनाए।
\v 18 ~लेकिन ख़ुदावन्द ने मेरे बाप दाऊद से कहा, 'चूँकि मेरे नाम के लिए एक घर बनाने का ख़्याल तेरे दिल में था, तब तू ने अच्छा किया कि अपने दिल में ऐसा ठाना;
\v 19 ~तोभी तू उस घर को न बनाना, बल्कि तेरा बेटा जो तेरे सुल्ब से निकलेगा वह मेरे नाम के लिए घर बनाएगा।'
\s5
\v 20 ~और ख़ुदावन्द ने अपनी बात, जो उसने कही थी, क़ायम की है; क्यूँकि मैं अपने बाप दाऊद की जगह उठा हूँ, और जैसा ख़ुदावन्द ने वा'दा किया था, मैं इस्राईल के तख़्त पर बैठा हूँ और मैंने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के नाम के लिए उस घर को बनाया है।
\v 21 ~और मैंने वहाँ एक जगह उस सन्दूक़ के लिए मुक़र्रर कर दी है, जिसमें ख़ुदावन्द का वह 'अहद है जो उसने हमारे बाप-दादा से, जब वह उनको मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, बाँधा था।"
\s5
\v 22 ~और सुलेमान ने इस्राईल की सारी जमा'अत के सामने ख़ुदावन्द के मज़बह के आगे खड़े होकर अपने हाथ आसमान की तरफ़ फ़ैलाए
\v 23 ~और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, इस्राईल के ख़ुदा ! तेरी तरह न तो ऊपर आसमान में, न नीचे ज़मीन पर कोई ख़ुदा है; तू अपने उन बन्दों के लिए जो तेरे सामने अपने सारे दिल से चलते हैं, 'अहद और रहमत को निगाह रखता है।
\v 24 ~तू ने अपने बन्दा मेरे बाप दाऊद के हक़ में वह बात क़ायम रख्खी, जिसका तू ने उससे वा'दा किया था; तू ने अपने मुँह से फ़रमाया और अपने हाथ से उसे पूरा किया, जैसा आज के दिन है।
\s5
\v 25 ~ इसलिए अब ऐ ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा! तू अपने बन्दा मेरे बाप दाऊद के साथ उस क़ौल को भी पूरा कर जो तूने उससे किया था कि 'तेरे आदमियों से मेरे सामने इस्राईल के तख़्त पर बैठने वाले की कमी न होगी; बशर्ते कि तेरी औलाद, जैसे तू मेरे सामने चलता रहा वैसे ही मेरे सामने चलने के लिए, अपने रास्ते की एहतियात रखखे।
\v 26 ~इसलिए अब ऐ इस्राईल के खुदा, तेरा वह क़ौल सच्चा साबित किया जाए, जो तू ने अपने बन्दे मेरे बाप दाऊद से किया।
\s5
\v 27 ~"लेकिन क्या ख़ुदा ~हक़ीक़त में ज़मीन पर सुकूनत करेगा? देख, आसमान बल्कि आसमानों के आसमान में भी तू समा नहीं सकता, तो यह घर तो कुछ भी नहीं जिसे मैंने बनाया।
\v 28 ~तोभी, ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, अपने बन्दा की दु'आ और मुनाजात का लिहाज़ करके, उस फ़रियाद और दु'आ को सुन ले जो तेरा बन्दा आज के दिन तेरे सामने करता है,
\s5
\v 29 ~ताकि तेरी आँखें इस घर की तरफ़, या'नी उसी जगह की तरफ़ जिसकी ज़रिए' तू ने फ़रमाया कि 'मैं अपना नाम वहाँ रखूँगा, ' दिन और रात खुली रहें; ताकि तू उस दु'आ को सुने जो तेरा बन्दा इस मक़ाम की तरफ़ रुख़ करके तुझ से करेगा।
\v 30 ~ और तू अपने बन्दा और अपनी क़ौम इस्राईल की मुनाजात को, जब वह इस जगह की तरफ रुख करके करें सुन लेना, बल्कि तू आसमान पर से जो तेरी सुकूनत गाह है सुन लेना, और सुनकर मु'आफ़ कर देना।
\s5
\v 31 ~"अगर कोई शख़्स अपने पड़ौसी का गुनाह करे, और उसे क़सम खिलाने के लिए उसको हलफ़ दिया जाए, और वह आकर इस घर में तेरे मज़बह के आगे क़सम खाए:
\v 32 ~तो तू आसमान पर से सुनकर 'अमल करना और अपने बन्दों का इन्साफ़ करना, और बदकार पर फ़तवा लगाकर उसके 'आमाल को उसी के सिर डालना, और सादिक़ को सच्चा ठहराकर उसकी सदाक़त के मुताबिक उसे बदला देना।
\s5
\v 33 ~"जब तेरी क़ौम इस्राईल तेरा गुनाह करने के ज़रिए' अपने दुश्मनों से शिकस्त खाए और फिर तेरी तरफ़ रुजू' लाये और तेरे नाम का इकरार करके इस घर में तुझ से दु'आ और मुनाजात करे;
\v 34 ~तो तू आसमान पर से सुनकर अपनी क़ौम इस्राईल का गुनाह मु'आफ़ करना, और उनको इस मुल्क में जो तूने उनके बाप दादा को दिया फिर ले आना|
\s5
\v 35 ~"जब इस वजह से कि उन्होंने तेरा गुनाह किया हो, आसमान बन्द हो जाए और बारिश न हो, और वह इस मक़ाम की तरफ़ रुख़ करके दु'आ करें और तेरे नाम का इक़रार करें, और अपने गुनाह से बाज़ आएँ जब तू उनको दुख दे;
\v 36 तो तू आसमान पर से सुन कर अपने बन्दों और अपनी क़ौम इस्राईल का गुनाह मु'आफ़ कर देना, क्यूँकि तू उनको उस अच्छी रास्ते की ता'लीम देता है जिस पर उनको चलना फ़र्ज़ है, और अपने मुल्क पर जिसे तू ने अपनी क़ौम को मीरास के लिए दिया है, पानी बरसाना।
\s5
\v 37 "अगर मुल्क में काल हो, अगर वबा हो, अगर बाद-ऐ-समूम या गेरूई या टिड्डी या कमला हो, अगर उनके दुश्मन उनके शहरों के मुल्क में उनको घेर लें, ग़रज़ कैसी ही बला कैसा ही रोग हो;
\v 38 ~तो जो दु'आ और मुनाजात किसी एक शख़्स या तेरी क़ौम इस्राईल की तरफ़ से ही, जिनमें से हर शख़्स अपने दिल का दुख जानकर अपने हाथ इस घर की तरफ़ फैलाए;
\s5
\v 39 ~तो तू आसमान पर से जो तेरी सुकुनतगाह है सुनकर मु'आफ़ कर देना, और ऐसा करना कि हर आदमी को, जिसके दिल को तू जानता है, उसी की सारे चाल चलन के मुताबिक़ बदला देना; क्यूँकि सिर्फ़ तू ही सब बनी-आदम के दिलों को जानता है;
\v 40 ~ताकि जितनी मुद्दत तक वह उस मुल्क में जिसे तू ने हमारे बाप-दादा को दिया ज़िन्दा रहें, तेरा ख़ौफ़ माने।
\s5
\v 41 ~'अब रहा वह परदेसी जो तेरी क़ौम इस्राईल में से नहीं है, वह जब दूर मुल्क से तेरे नाम की ख़ातिर आए,
\v 42 क्यूँकि वह तेरे बुज़ुर्ग नाम और क़वी हाथ और बुलन्द बाज़ू का हाल सुनेंगे) इसलिए जब वह आए और इस घर की तरफ़ रुख़ करके दु'आ करे,
\v 43 ~तो तू आसमान पर से जो तेरी सुकूनत गाह है सुन लेना, और जिस-जिस बात के लिए वह परदेसी तुझ से फ़रयाद करे तू उसके मुताबिक़ करना, ताकि ज़मीन की सब क़ौमें तेरे नाम को पहचाने मानें, और जान लें कि यह घर जिसे मैंने बनाया है तेरे नाम का कहलाता है।
\s5
\v 44 'अगर तेरे लोग चाहे किसी रास्ते से तू उनको भेजे, अपने दुश्मनों से लड़ने को निकलें, और वह ख़ुदावन्द से उस शहर की तरफ़ जिसे तू ने चुना है, और उस घर की तरफ़ जिसे मैंने तेरे नाम के लिए बनाया है, रुख़ करके दु'आ करें,
\v 45 तो तू आसमान पर से उनकी दु'आ और मुनाजात सुनकर उनकी हिमायत करना।
\s5
\v 46 'अगर वह तेरा गुनाह करें (क्यूँकि कोई ऐसा आदमी नहीं जो गुनाह न करता हो) और तू उनसे नाराज़ होकर उनको दुश्मन के हवाले कर दे, ऐसा कि वह दुश्मन उनको ग़ुलाम करके अपने मुल्क में ले जाए, ख़्वाह वह दूर हो या नज़दीक,
\v 47 ~तोभी अगर वह उस मुल्क में जहाँ वह ग़ुलाम होकर पहुँचाए गए, होश में आयें और रुजू' लायें और अपने ग़ुलाम करने वालों के मुल्क में तुझसे मुनाजात करें और कहें कि हम ने गुनाह किया, हम टेढ़ी चाल चले, और हम ने शरारत की;
\s5
\v 48 ~इसलिए अगर वह अपने दुश्मनों के मुल्क में जो उनको क़ैद करके ले गए, अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से तेरी तरफ़ फिरें और अपने मुल्क की तरफ़, जो तू ने उनके बाप-दादा को दिया, और इस शहर की तरफ़, जिसे तू ने चुन लिया, और इस घर की तरफ़, जो मैंने तेरे नाम के लिए बनाया है, रुख़ करके तुझ से दु'आ करें,
\s5
\v 49 ~तो तू आसमान पर से, जो तेरी सुकूनत गाह है, उनकी दु'आ और मुनाजात सुनकर उनकी हिमायत करना,
\v 50 ~और अपनी क़ौम को, जिसने तेरा गुनाह किया, और उनकी सब ख़ताओं को, जो उनसे तेरे ख़िलाफ़ सरज़द हों, मु'आफ़ कर देना, और उनके ग़ुलाम करने वालों के आगे उन पर रहम करना ताकि वह उन पर रहम करें।
\s5
\v 51 क्यूँकि वह तेरी क़ौम और तेरी मीरास हैं, जिसे तू मिस्र से लोहे के भट्टे के बीच में से निकाल लाया।
\v 52 ~सो तेरी आँखें तेरे बन्दा की मुनाजात और तेरी क़ौम इस्राईल की मुनाजात की तरफ़ खुली रहें, ताकि जब कभी वह तुझ से फ़रियाद करें, तू उनकी सुने;
\v 53 क्यूँकि तू ने ज़मीन की सब क़ौमों में से उनको ~अलग किया कि वह तेरी मीरास हों, जैसा ऐ मालिक ख़ुदावन्द, तू ने अपने बन्दे मूसा की ज़रिए' फ़रमाया, जिस वक़्त तू हमारे बाप-दादा को मिस्र से निकाल लाया।"
\s5
\v 54 और ऐसा हुआ कि जब सुलेमान ख़ुदावन्द से यह सब मुनाजात कर चुका, तो वह ख़ुदावन्द के मज़बह के सामने से, जहाँ वह अपने हाथ आसमान की तरफ़ फैलाए हुए घुटने टेके था, उठा|
\v 55 ~और खड़े होकर इस्राईल की सारी जमा'अत को ऊँची आवाज़ से बरकत दी और कहा,
\v 56 ~"ख़ुदावन्द, जिसने अपने सब वा'दों के मुताबिक़ अपनी क़ौम इस्राईल को आराम बख़्शा मुबारक हो; क्यूँकि जो सारा अच्छा वा'दा उसने अपने बन्दे मूसा की ज़रिए' किया, उसमें से एक बात भी ख़ाली न गई।
\s5
\v 57 ~ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा हमारे साथ रहे जैसे वह हमारे बाप-दादा के साथ रहा, और न हम को तर्क करे न छोड़े।
\v 58 ~ताकि वह हमारे दिलों को अपनी तरफ़ माइल करे कि ~हम उसकी सब रास्तों पर चलें, और उसके फ़रमानों और क़ानून और अहकाम को, जो उसने हमारे बाप-दादा को दिए मानें।
\s5
\v 59 और यह मेरी बातें जिनको मैंने ख़ुदावन्द के सामने मुनाजात में पेश किया है, दिन और रात ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के नज़दीक रहें, ताकि ~वह अपने बन्दा की दाद और अपनी क़ौम इस्राईल की दाद हर दिन की ज़रूरत के मुताबिक़ दे;
\v 60 ~जिससे ज़मीन की सब क़ौमें जान लें कि ख़ुदावन्द ही ख़ुदा है और उसके सिवा और कोई नहीं।
\v 61 ~इसलिए तुम्हारा दिल आज की तरह ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के साथ उसके क़ानून पर चलने, और उसके हुक्मों को मानने के लिए कामिल रहे।"
\s5
\v 62 और बादशाह ने और उसके साथ सारे इस्राईल ने ख़ुदावन्द के सामने क़ुर्बानी पेश की।
\v 63 ~सुलेमान ने जो सलामती के ज़बीहों की क़ुर्बानी ख़ुदावन्द के सामने पेशकीं उसमें उसने बाईस हज़ार बैल और एक लाख बीस हज़ार भेड़ें पेश कीं। ऐसे बादशाह ने और सब बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द का घर मख़्सूस किया।
\s5
\v 64 उसी दिन बादशाह ने सहन के दर्मियानी हिस्से को जो ख़ुदावन्द के घर के सामने था मुक़द्दस ~किया, क्यूँकि उसने वहीं ~सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़र ~की क़ुर्बानी और सलामती के ज़बीहों की चर्बी पेश की, इसलिए कि पीतल का मज़बह जो ख़ुदावन्द के सामने था, इतना छोटा था कि उस पर सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़र की क़ुर्बानी और सलामती के ज़बोहों की चर्बी के लिए गुन्जाइश न थी।
\s5
\v 65 ~इसलिए सुलेमान ने और उसके साथ सारे इस्राईल, या'नी एक बड़ी जमा'अत, ने जो हमात के मदख़ल से लेकर मिस्र की नहर तक की हुदूद से आई थी, ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के सामने सात दिन और फिर सात दिन और, या'नी चौदह दिन, 'ईद मनाई।
\v 66 ~और आठवें दिन उसने उन लोगों को रुख़सत कर दिया। तब उन्होंने बादशाह को मुबारकबाद दी, और उस सारी नेकी के ज़रिए' जो ख़ुदावन्द ने अपने बन्दा दाऊद और अपनी क़ौम इस्राईल से की थी, अपने डेरों को दिल में ख़ुश और ख़ुश होकर लौट गए।
\s5
\c 9
\p
\v 1 ~और ऐसा हुआ कि जब सुलेमान ख़ुदावन्द का घर और शाही महल बना चुका, और जो कुछ सुलेमान करना चाहता था वह सब ख़त्म हो गया,
\v 2 ~तो ख़ुदावन्द सुलेमान को दूसरी बार दिखाई दिया, जैसे वह जिब'ऊन में दिखाई दिया था।
\s5
\v 3 ~और ख़ुदावन्द ने उससे कहा, "मैंने तेरी दु'आ और मुनाजात जो तूने मेरे सामने की है सुन ली, और इस घर में, जिसे तू ने बनाया है, अपना नाम हमेशा तक रखने के लिए मैंने उसे मुक़द्दस किया; और मेरी आँखें और मेरा दिल सदा वहाँ लगे रहेंगे।
\s5
\v 4 ~अब रहा तू इसलिए अगर तू जैसे तेरा बाप दाऊद चला, वैसे ही मेरे सामने ख़ुलूस-ए-दिल और सच्चाई से चल कर उस सब के मुताबिक़ जो मैंने तुझे फ़रमाया 'अमल करे, और मेरे क़ानून और अहकाम को माने;
\v 5 ~तो मैं तेरी हुकूमत का तख़्त इस्राईल के ऊपर हमेशा क़ायम रखूँगा, जैसा मैंने तेरे बाप दाऊद से वा'दा किया और कहा कि ~'तेरी नस्ल में इस्राईल के तख़्त पर बैठने के लिए आदमी की कमी न होगी।'
\s5
\v 6 ~लेकिन तुम हो या तुम्हारी औलाद, अगर तुम मेरी पैरवी से बरगश्ता हो जाओ और मेरे अहकाम और क़ानून को, जो मैंने तुम्हारे आगे रख्खे हैं, न मानो बल्कि जाकर और मा'बूदों की 'इबादत करने और उनको सिज्दा करने लगो,
\v 7 ~तो मैं इस्राईल को उस मुल्क से जो मैंने उनको दिया है काट डालूँगा; और उस घर को जिसे मैंने अपने नाम के लिए मुक़द्दस किया है, अपनी नज़र से दूर कर दूँगा; और इस्राईल सब क़ौमों में उसकी मिसाल होगी और उस पर उँगली उठेगी।
\s5
\v 8 ~और अगरचे यह घर ऐसा मुम्ताज़ है तोभी हर एक जो इसके पास से गुज़रेगा, हैरान होगा और सुसकारेगा, और वह कहेंगे, 'ख़ुदावन्द ने इस मुल्क और इस घर से ऐसा क्यूँ किया?'
\v 9 ~तब वह जवाब देंगे, 'इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को, जो उनके बाप-दादा को मुल्क-ए- मिस्र से निकाल लाया, छोड़ दिया और गै़र मा'बूदों को थाम कर उनको सिज्दा करने और उनकी 'इबादत करने लगे; इसी लिए ख़ुदावन्द ने उन पर यह सारी मुसीबत नाज़िल की। "
\s5
\v 10 ~और बीस साल के बा'द जिनमें सुलेमान ने वह दोनों घर, या'नी ख़ुदावन्द का घर और शाही महल बनाए, ऐसा हु'आ कि
\v 11 ~ चूँकि सूर के बादशाह हीराम ने सुलेमान के लिए देवदार की और सनोबर की लकड़ी और सोना उसकी मर्ज़ी के मुताबिक़ इन्तिज़ाम किया था, इसलिए सुलेमान बादशाह ने गलील के मुल्क में बीस शहर हीराम को दिए।
\s5
\v 12 और हीराम उन शहरों को जो सुलेमान ने उसे दिए थे, देखने के लिए सूर से निकला पर वह उसे पसन्द न आए।
\v 13 ~तब उसने कहा, "ऐ मेरे भाई, यह क्या शहर हैं जो तू ने मुझे दिए?" और उसने उनका नाम क़ुबूल" का मुल्क रखा, जो आज तक चला आता है।
\v 14 ~ और हीराम ने बादशाह के पास एक सौ बीस क़िन्तार सोना भेजा।
\s5
\v 15 ~और सुलेमान बादशाह ने जो बेगारी लगाए, तो इसी लिए कि वह ख़ुदावन्द के घर और अपने महल को और मिल्लो और यरूशलीम की शहरपनाह और हसूर और मजिद्दो और जज़र को बनाए।
\v 16 ~मिस्र के बादशाह फ़िर'औन ने ~हमला करके और जज़र को घेर करके उसे आग से फूँक दिया था, और उन कना'आनियों को जो उस शहर में बसे हुए थे क़त्ल करके उसे अपनी बेटी को, जो सुलेमान की बीवी थी, जहेज़ में दे दिया था,
\s5
\v 17 ~ तब सुलेमान ने जज़र और बैतहोरून असफ़ल को,
\v 18 ~और बालात और बियाबान के तमर को बनाया, जो मुल्क के अन्दर हैं।
\v 19 ~और ज़ख़ीरों के सब शहरों को जो सुलेमान के पास थे, और अपने रथों के लिए शहरों को, और अपने सवारों के लिए शहरों को, और जो कुछ सुलेमान ने अपनी मर्ज़ी से यरूशलीम में और लुबनान में और अपनी मुल्क की सारी ज़मीन में बनाना चाहा बनाया।
\s5
\v 20 ~और वह सब लोग जो अमोरियों और हित्तियों और फरज़्ज़ियों और हवय्यों यबूसियों में से बाक़ी रह गए थे और बनी-इस्राईल में से न थे,
\v 21 ~इसलिए उनकी औलाद को जो उनके बा'द मुल्क में बाक़ी रही, जिनको बनी-इस्राईल पूरे तौर पर मिटा न सके, सुलेमान ने ग़ुलाम बनाकर बेगार में लगाया जैसा आज तक है।
\s5
\v 22 ~लेकिन सुलेमान ने बनी-इस्राईल में से किसी को ग़ुलाम न बनाया, बल्कि वह उसके जंगी मर्द और मुलाज़िम और हाकिम और फ़ौजी सरदार और उसके रथों और सवारों के हाकिम थे।
\s5
\v 23 ~और वह ख़ास मन्सबदार जो सुलेमान के काम पर मुक़र्रर थे, पाँच सौ पचास थे; यह उन लोगों पर जो काम बना रहे थे सरदार थे।
\s5
\v 24 ~ और फ़िर'औन की बेटी दाऊद के शहर से अपने उस महल में, जो सुलेमान ने उसके लिए बनाया था, आई तब सुलेमान ने मिल्लो की ता'मीर किया।
\s5
\v 25 ~और सुलेमान साल में तीन बार उस मज़बह पर जो उसने ख़ुदावन्द के लिए बनाया था, सोख़्तनी कु़र्बानियाँ और सलामती के ज़बीहे पेश करता था, और उनके साथ उस मज़बह पर जो ख़ुदावन्द के आगे था ख़ुशबू जलाता था। इस तरह उसने उस घर को पूरा किया।
\s5
\v 26 ~फिर सुलेमान बादशाह ने 'असयोन जाबर में, जो अदोम के मुल्क में बहर-ए- कु़लजु़म के किनारे ऐलोत के पास है, जहाज़ों का बेड़ा बनाया।
\v 27 ~ और हीराम ने अपने मुलाज़िम सुलेमान के मुलाज़िमों के साथ उस बेड़े में भेजे, वह मल्लाह थे जो समुन्दर से वाकिफ़ थे।
\v 28 ~और वह ओफ़ीर को गए और वहाँ से चार सौ बीस क़िन्तार सोना लेकर उसे सुलेमान बादशाह के पास लाए।
\s5
\c 10
\p
\v 1 और जब सबा की मलिका ने ख़ुदावन्द के नाम के ज़रिए' सुलेमान की शोहरत सुनी, तो वह आई ताकि मुशकिल सवालों से उसे आज़माए।
\v 2 ~ और वह बहुत बड़ी जिलौ के साथ यरूशलीम में आई; और उसके साथ ऊँट थे, जिन पर मशाल्हे और बहुत सा सोना और क़ीमती जवाहर लदे थे, और जब वह सुलेमान के पास पहुँची तो उसने उन सब बातों के बारे में जो उसके दिल में थीं उससे बात की।
\s5
\v 3 ~सुलेमान ने उसके सब सवालों का जवाब दिया, बादशाह से कोई बात ऐसी छुपी न थी जो उसे न बताई।
\v 4 ~और जब सबा की मलिका ने सुलेमान की सारी हिकमत और उस महल को जो उसने बनाया था,
\v 5 ~ और उसके दस्तरख़्वान की ने'मतों, और उसके मुलाज़िमों के बैठने के तरीक़े, और उसके ख़ादिमों की हुज़ूरी और उनकी पोशाक, और उसके साक़ियों , और उस सीढ़ी को जिससे वह ख़ुदावन्द के घर को जाता' था देखा, तो उसके होश उड़ गए।
\s5
\v 6 ~उसने बादशाह से कहा कि "वह सच्ची ख़बर थी जो मैंने तेरे कामों और तेरी हिकमत के बारे में अपने मुल्क में सुनी थी।
\v 7 ~तोभी मैंने वह बातों पर यक़ीन न कीं, जब तक ख़ुद आकर अपनी ऑखों से यह देख न लिया, और मुझे तो आधा भी नहीं बताया गया था: क्यूँकि तेरी हिकमत औरतेरी कामयाबी उस शोहरत से जो मैंने सुनी बहुत ज़्यादा है।
\s5
\v 8 ~ खु़शनसीब हैं तेरे लोग! और ख़ुशनसीब हैं तेरे यह मुलाज़िम, जो बराबर तेरे सामने खड़े रहते और तेरी हिकमत सुनते हैं।
\v 9 ~ ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा मुबारक हो, जो तुझ से ऐसा ख़ुश हुआ कि तुझे इस्राईल के तख़्त पर बिठाया है; चूँकि ख़ुदावन्द ने इस्राईल से हमेशा मुहब्बत रख्खी है, इसलिए उसने तुझे 'अदल और इन्साफ़ करने को बादशाह बनाया।"
\s5
\v 10 ~और उसने बादशाह को एक सौ बीस क़िन्तार सोना और मसाल्हे का बहुत बड़ा ढेर और क़ीमती जवाहर दिए; और जैसे मसाल्हे सबा की मलिका ने सुलेमान बादशाह को दिए, वैसे फिर कभी ऐसी बहुतायत के साथ न आए।
\s5
\v 11 ~और हीराम का बेड़ा भी जो ओफ़ीर से सोना लाता था, बड़ी कसरत से चन्दन के दरख़्त और क़ीमती जवाहर ओफ़ीर से लाया।
\v 12 ~तब बादशाह ने ख़ुदावन्द के घर और शाही महल के लिए चन्दन की लकड़ी के सुतून, और बरबत और गाने वालों के लिए सितार बनाए; चन्दन के ऐसे दरख़्त न कभी आए थे, और न कभी आज के दिन तक दिखाई दिए।
\s5
\v 13 ~और सुलेमान बादशाह ने सबा की मलिका को सब कुछ, जिसकी वह मुश्ताक़ हुई और जो कुछ उसने माँगा दिया; 'अलावा इसके सुलेमान ने उसको अपनी शाहाना सख़ावत से भी इनायत किया। फिर वह अपने मुलाज़िमों के साथ अपनी मुल्क को लौट गई।
\s5
\v 14 ~जितना सोना एक साल में सुलेमान के पास आता था, उसका वज़न सोने का छ: सौ छियासठ क़िन्तार था।
\v 15 ~'अलावा इसके ब्योपारियों और सौदागरों की तिजारत और मिली जुली क़ौमों के सब सलातीन, और मुल्क के सूबेदारों की तरफ़ से भी सोना आता था।
\s5
\v 16 ~और सुलेमान बादशाह ने सोना घड़कर दो सौ ढालें बनाई, छः सौ मिस्क़ाल सोना एक एक ढाल में लगा।
\v 17 ~और उसने घड़े हुए सोने की तीन सौ ढालें बनाई; एक एक ढाल में डेढ़ सेर सोना लगा, और बादशाह ने उनको लुबनानी बन के घर में रख्खा।
\s5
\v 18 ~ इनके 'अलावा बादशाह ने हाथी दाँत का एक बड़ा तख़्त बनाया, और उस पर सबसे चोखा सोना मंढा।
\v 19 ~उस तख़्त में छ: सीढ़ियाँ थीं, और तख़्त के ऊपर का हिस्सा पीछे से गोल था, और बैठने की जगह की दोनों तरफ़ टेकें थीं, और टेकों के पास दो शेर खड़े थे:
\v 20 ~और उन छ: सीढ़ियों के इधर और उधर बारह शेर खड़े थे। किसी हुकूमत में ऐसा कभी नहीं बना।
\s5
\v 21 ~ और सुलेमान बादशाह के पीने के सब बरतन सोने के थे, और लुबनानी बन के घर के भी सब बरतन ख़ालिस सोने के थे, चाँदी का एक भी न था, क्यूँकि सुलेमान के दिनों में उसकी कुछ क़द्र न थी।
\v 22 ~ क्यूँकि बादशाह के पास समुन्दर में हीराम के बेड़े के साथ एक तरसीसी बेड़ा भी था। यह तरसीसी बेड़ा तीन साल में एक बार आता था, और सोना और चाँदी और हाथी दाँत, और बन्दर, और मोर लाता था।
\s5
\v 23 ~इसलिए सुलेमान बादशाह दौलत और हिकमत में ज़मीन के सब बादशाहों पर सबक़त ले गया।
\v 24 ~और सारा जहान सुलेमान के दीदार का तालिब था, ताकि उसकी हिकमत को जो ख़ुदा ने उसके दिल में डाली थी सुनें,
\v 25 ~और उनमें से हर एक आदमी चाँदी के बर्तन, और सोने के बरतन कपड़े और हथियार और मसाल्हे और घोड़े, और खच्चर हदिये के तौर पर अपने हिस्से के मुवाफ़िक़ लाता था।
\s5
\v 26 ~और सुलेमान ने रथ और सवार इकट्ठे कर लिए; उसके पास एक हज़ार चार सौ रथ और बारह हज़ार सवार थे, जिनको उसने रथों के शहरों में और बादशाह के साथ यरूशलीम में रखा।
\v 27 ~और बादशाह ने यरूशलीम में इफ़रात की वजह से चाँदी को तो ऐसा कर दिया जैसे पत्थर, और देवदारों को ऐसा जैसे नशेब के मुल्क के गूलर के दरख़्त होते हैं।
\s5
\v 28 ~ और जो घोड़े सुलेमान के पास थे वह मिस्र से मगाए गए थे, और बादशाह के सौदागर एक एक झुण्ड की क़ीमत लगाकर उनके झुण्ड के झुण्ड लिया करते थे।
\v 29 ~और एक रथ चाँदी की छ: सौ मिस्क़ाल में आता और मिस्र से रवाना होता, और घोड़ा डेढ़ सौ मिस्क़ाल में आता था, और ऐसे ही हितियों के सब बादशाहों और अरामी बादशाहों के लिए, वह इनको उन्हीं के ज़रिए' से मंगाते थे।
\s5
\c 11
\p
\v 1 और सुलेमान बादशाह फ़िर'औन की बेटी के 'अलावा बहुत सी अजनबी 'औरतों से, या'नी मोआबी, 'अम्मोनी, अदोमी, सैदानी और हिती 'औरतों से मुहब्बत करने लगा;
\v 2 ~यह उन क़ौमों की थीं जिनके बारे में ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल से कहा था कि "तुम उनके बीच न जाना, और न वह तुम्हारे बीच आएँ, क्यूँकि वह ज़रूर तुम्हारे दिलों को अपने मा'बूदों की तरफ़ माइल कर लेंगी" सुलेमान इन्हीं के 'इश्क़ का दम भरने लगा।
\s5
\v 3 और उसके पास सात सौ शाहज़ादियाँ उसकी बीवियाँ और तीन सौ बाँदी थीं, और उसकी बीवियों ने उसके दिल को फेर दिया।
\v 4 ~क्यूँकि जब सुलेमान बुड्ढा हो गया, तो उसकी बीवियों ने उसके दिल को गै़र मा'बूदों की तरफ़ माइल कर लिया; और उसका दिल ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के साथ कामिल न रहा, जैसा उसके बाप दाऊद का दिल था।
\s5
\v 5 ~ क्यूँकि सुलेमान सैदानियों की देवी इसतारात, और 'अम्मोनियों के नफ़रती मिलकोम की पैरवी करने लगा।
\v 6 ~ और सुलेमान ने ख़ुदावन्द के आगे बदी की, और उसने ख़ुदावन्द की पूरी पैरवी न की जैसी उसके बाप दाऊद ने की थी।
\s5
\v 7 ~फिर सुलेमान ने मोआबियों के नफ़रती कमोस के लिए उस पहाड़ पर जो यरूशलीम के सामने है, और बनी 'अम्मोन के नफ़रती मोलक के लिए ऊँचा मक़ाम बना दिया।
\v 8 ~ उसने ऐसा ही अपनी सब अजनबी बीवियों की ख़ातिर किया, जो अपने मा'बूदों के सामने ख़ुशबू जलाती और क़ुर्बानी पेश करती थीं।
\s5
\v 9 ~और ख़ुदावन्द सुलेमान से नाराज़ हुआ, क्यूँकि उसका दिल ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा से फिर गया था जिसने उसे दो बार दिखाई देकर
\v 10 ~उसको इस बात का हुक्म किया था कि वह गै़र मा'बूदों की पैरवी न करे; लेकिन उसने वह बात न मानी जिसका हुक्म ख़ुदावन्द ने दिया था।
\s5
\v 11 ~इस वजह से ख़ुदावन्द ने सुलेमान को कहा, "चूँकि तुझ से यह काम हुआ, और तू ने मेरे 'अहद और मेरे क़ानून को जिनका मैंने तुझे हुक्म दिया नहीं माना, इसलिए मैं हुकूमत को ज़रूर तुझ से छीनकर तेरे ख़ादिम को दूँगा।
\v 12 ~तोभी तेरे बाप दाऊद की ख़ातिर मैं तेरे दिनों में यह नहीं करूँगा; बल्कि उसे तेरे बेटे के हाथ से छीनूँगा।
\v 13 ~फिर भी मैं सारी हुकूमत को नहीं छीनूँगा, बल्कि अपने बन्दे दाऊद की ख़ातिर और यरूशलीम की ख़ातिर, जिसे मैंने चुन लिया है, एक क़बीला तेरे बेटे को दूँगा।
\s5
\v 14 ~तब ख़ुदावन्द ने अदोमी हदद को सुलेमान का मुख़ालिफ़ बना कर खड़ा किया, यह अदोम की शाही नसल से था।
\v 15 ~क्यूँकि जब दाऊद अदोम में था और लश्कर का सरदार योआब अदोम में हर एक आदमी को क़त्ल करके उन मक़्तूलों को दफ़्न करने गया,
\v 16 ~(क्यूँकि योआब और सब इस्राईल छ: महीने तक वहीं रहे, जब तक कि उसने अदोम में हर एक आदमी को क़त्ल न कर डाला।)
\v 17 ~तो हदद कई एक अदोमियों के साथ, जो उसके बाप के मुलाज़िम थे, मिस्र को जाने को भाग निकला, उस वक़्त हदद छोटा लड़का ही था।
\s5
\v 18 ~और वह मिदियान से निकलकर फ़ारान में आए, और फ़ारान से लोग साथ लेकर शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन के पास मिस्र में गए। उसने उसको एक घर दिया और उसके लिए ख़ुराक मुक़र्रर की और उसे जागीर दी।
\v 19 ~ और हदद की फ़िर'औन के सामने इतना रसूख हासिल हुआ कि उसने अपनी साली, या'नी मलिका तहफ़नीस की बहन उसी को ब्याह दी।
\s5
\v 20 ~और तहफ़नीस की बहन के उससे उसका बेटा जनूबत पैदा हुआ जिसका दूध तहफ़नीस ने फ़िर'औन के महल में छुड़ाया; और जनूबत फ़िर'औन के बेटों के साथ फिर'औन के महल में रहा।
\v 21 ~ इसलिए जब हदद ने मिस्र में सुना कि दाऊद अपने बाप-दादा के साथ सो गया और लश्कर का सरदार योआब भी मर गया है, तो हदद ने फ़िर'औन से कहा, "मुझे रुख़्सत कर दे, ताकि मैं अपने मुल्क को चला जाऊँ।"
\v 22 ~तब फ़िर'औन ने उससे कहा, "भला तुझे मेरे पास किस चीज़ की कमी हुई कि तू अपने मुल्क को जाने के लिए तैयार है?" उसने कहा, "कुछ नहीं, फिर भी तू मुझे जिस तरह हो रुख्स़त ही कर दे।"
\s5
\v 23 ~और ख़ुदा ने उसके लिए एक और मुख़ालिफ़ इलयदा' के बेटे रज़ोन को खड़ा किया, जो अपने आक़ा ज़ोबाह के बादशाह हदद'अज़र के पास से भाग गया था;
\v 24 ~ और उसने अपने पास लोग जमा' कर लिए, और जब दाऊद ने ज़ोबाह वालों को क़त्ल किया, तो वह एक फ़ौज का सरदार हो गया; और वह दमिश्क़ को जाकर वहीं रहने और दमिश्क़ में हुकूमत करने लगे।
\v 25 ~ इसलिए हदद की शरारत के 'अलावा यह भी सुलेमान की सारी 'उम्र इस्राईल का दुश्मन रहा; और उसने इस्राईल से नफ़रत रखी और अराम पर हुकूमत करता रहा।
\s5
\v 26 ~और सरीदा के इफ़्राईमी नबात का बेटा युरब'आम, जो सुलेमान का मुलाज़िम था और जिसकी माँ का नाम, जो बेवा थी, सरू'आ था; उसने भी बादशाह के ख़िलाफ़ अपना हाथ उठाया।
\v 27 ~और बादशाह के ख़िलाफ़ उसके हाथ उठाने की यह वजह हुई कि बादशाह मिल्लो को बनाता था, और अपने बाप दाऊद ~के शहर के रखने की मरम्मत करता था।
\s5
\v 28 ~ और वह शख़्स युरब'आम एक ताक़तवर सूर्मा था, और सुलेमान ने उस जवान को देखा कि मेहनती है, इसलिए उसने उसे बनी यूसुफ़ के सारे काम पर मुख़्तार बना दिया।
\v 29 ~उस वक़्त जब युरब'आम यरूशलीम से निकल कर जा रहा था, तो सैलानी अखि़याह नबी उसे रास्ते में मिला, और अख़ियाह एक नई चादर ओढ़े हुए था; यह दोनों मैदान में अकेले थे।
\v 30 ~इसलिए अख़ियाह ने उस नई चादर को जो उस पर थी लेकर उसके बारह टुकड़े फाड़े।
\s5
\v 31 ~और उसने युरब'आम से कहा कि "तू अपने लिए दस टुकड़े ले ले; क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा ऐसा कहता है कि देख, मैं सुलेमान के हाथ से हुकूमत छीन लूँगा, और दस क़बीले तुझे दूँगा।
\v 32 ~ (लेकिन मेरे बन्दे दाऊद की ख़ातिर और यरूशलीम या'नी उस शहर की ख़ातिर, जिसे मैंने बनी-इस्राईल के सब क़बीलों में से चुन लिया है, एक क़बीला उसके पास रहेगा)
\v 33 ~क्यूँकि उन्होंने मुझे छोड़ दिया और सैदानियों की देवी इस्तारात और मोआबियों के मा'बूद कमोस और बनी 'अमोन के मा'बूद मिलकोम की 'इबादत की है, और मेरे रास्तों पर न चले कि वह काम करते जो मेरी नज़र में भला था, और मेरे क़ानून और अहकाम को मानते जैसा उसके बाप दाऊद ने किया।
\s5
\v 34 ~फिर भी मैं सारी मुल्क उसके हाथ से नहीं ले लूँगा, बल्कि अपने बन्दा दाऊद की ख़ातिर, जिसे मैंने इसलिए चुन लिया कि उसने मेरे अहकाम और क़ानून माने, मैं इसकी 'उम्र भर इसे पेशवा बनाए रखूँगा।
\v 35 ~लेकिन उसके बेटे के हाथ से हुकूमत या'नी दस क़बीलों को लेकर तुझे दूँगा;
\v 36 ~ और उसके बेटे को एक क़बीला दूँगा, ताकि मेरे बन्दे दाऊद का चराग़ यरूशलीम, या'नी उस शहर में जिसे मैंने अपना नाम रखने के लिए चुन लिया है, हमेशा मेरे आगे रहे।
\s5
\v 37 ~ और मैं तुझे लूँगा, और तू अपने दिल की पूरी ख़्वाहिश के मुवाफ़िक हुकूमत करेगा और इस्राईल का बादशाह होगा।
\v 38 ~ और ऐसा होगा कि अगर तू उन सब बातों को जिनका मैं तुझे हुक्म दूँ सुने, और मेरी रास्तों पर चले, और जो काम मेरी नज़र में भला है उसको करे, और मेरे क़ानूनऔर अहकाम को माने, जैसा मेरे बन्दा दाऊद ने किया, तो मैं तेरे साथ रहूँगा, और तेरे लिए एक मज़बूत घर बनाऊँगा, जैसा मैंने दाऊद के लिए बनाया, और इस्राईल को तुझे दे दूँगा।
\v 39 ~और मैं इसी वजह से दाऊद की नसल को दुख दूँगा, लेकिन हमेशा तक नहीं।"
\s5
\v 40 ~ इसलिए सुलेमान युरब'आम के क़त्ल के पीछे पड़ गया , लेकिन युरब'आम उठकर मिस्र को शाह-ए-मिस्र सीसाक के पास भाग गया और सुलेमान की वफ़ात तक मिस्र में रहा।
\s5
\v 41 ~ सुलेमान का बाक़ी हाल और सब कुछ जो उसने किया और उसकी हिकमत: इसलिए क्या वह सुलेमान के अहवाल की किताब में दर्ज नहीं?
\v 42 ~और वह मुद्दत जिसमें सुलेमान ने यरूशलीम में सब इस्राईल पर हुकूमत की चालीस साल की थी।
\v 43 ~और सुलेमान अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और अपने बाप दाऊद के शहर में दफ़्न हुआ, और उसका बेटा रहुब'आम उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\c 12
\p
\v 1 और रहुब'आम ~सिक्म को गया, क्यूँकि सारा इस्राईल उसे बादशाह बनाने की सिक्म को गया था।
\v 2 ~और जब नबात के बेटे युरब'आम ने, जो अभी मिस्र में था, यह सुना; (क्यूँकि युरब'आम सुलेमान बादशाह के सामने से भाग गया था, और वह मिस्र में रहता था:
\s5
\v 3 ~इसलिए उन्होंने लोग भेजकर उसे बुलवाया) तो यरुब'आम और इस्राईल की सारी जमा'अत आकर रहुब'आम से ऐसे कहने लगी कि|
\v 4 ~"तेरे बाप ने हमारा बोझ सख़्त कर दिया था; तब तू अब अपने बाप की उस सख़्त ख़िदमत को और उस भारी बोझे को, जो उसने हम पर रखा, हल्का कर दे, और हम तेरी ख़िदमत करेंगे।"
\v 5 ~तब उसने उनसे कहा, "अभी तुम तीन दिन के लिए चले जाओ, तब फिर मेरे पास आना।" तब वह लोग चले गए।
\s5
\v 6 ~और रहुब'आम बादशाह ने उन 'उम्र दराज़ लोगों से जो उसके बाप सुलेमान के जीते जी उसके सामने खड़े रहते थे, सलाह ली और कहा कि ~"इन लोगों को जवाब देने के लिए तुम मुझे क्या सलाह देते हो?"
\v 7 ~ उन्होंने उससे यह कहा कि "अगर तू आज के दिन इस क़ौम का ख़ादिम बन जाए, और उनकी ख़िदमत करे और उनको जवाब दे और उनसे मीठी बातें करे, तो वह हमेशा तेरे ख़ादिम बने रहेंगे।"
\s5
\v 8 ~ लेकिन उसने उन 'उम्र दराज़ लोगों की सलाह जो उन्होंने उसे दी, छोड़कर उन जवानों से जो उसके साथ बड़े हुए थे और उसके सामने खड़े थे, सलाह ली;
\v 9 ~ और उनसे पूछा कि ~"तुम क्या सलाह देते हो, ताकि हम इन लोगों को जवाब दे सकें जिन्होंने मुझ से ऐसा कहा है कि उस बोझे को जो तेरे बाप ने हम पर रख्खा हल्का कर दे?"
\s5
\v 10 ~इन जवानों ने जो उसके साथ बड़े हुए थे उससे कहा, "तू उन लोगों को ऐसा जवाब देना जिन्होंने तुझ से कहा है कि तेरे बाप ने हमारे बोझे को भारी किया, तू उसको हमारे लिए हल्का कर दे" तब तू उनसे ऐसा कहना कि मेरी छिंगुली मेरे बाप की कमर से भी मोटी है।
\v 11 ~और अब अगर्चे मेरे बाप ने भारी बोझ तुम पर रख्खा है, तोभी मैं तुम्हारे बोझे को और ज़्यादा भारी करूँगा, मेरे बाप ने तुम को कोड़ों से ठीक किया, मैं तुम को बिच्छुओं से ठीक बनाऊँगा।"
\s5
\v 12 ~तब युरब'आम और सब लोग तीसरे दिन रहुब'आम के पास हाज़िर हुए, जैसा बादशाह ने उनको हुक्म दिया था कि "तीसरे दिन मेरे पास फिर आना।"
\v 13 ~और बादशाह ने उन लोगों को सख़्त जवाब दिया और 'उम्र दराज़ लोगों की उस सलाह को जो उन्होंने उसे दी थी छोड़ दिया,
\v 14 ~और जवानों की सलाह के मुवाफ़िक़ उनसे यह कहा कि "मेरे बाप ने तो तुम पर भारी बोझ रखा, लेकिन मैं तुम्हारे बोझे को ज़्यादा भारी करूँगा; मेरे बाप ने तुम को कोड़ों से ठीक किया, लेकिन मैं तुम को बिच्छुओं से ठीक बनाऊँगा।"
\s5
\v 15 ~इसलिए बादशाह ने लोगों की न सुनी क्यूँकि यह मु'आमिला ख़ुदावन्द की तरफ़ से था, ताकि ख़ुदावन्द अपनी बात को जो उसने सैलानी अख़ियाह की ज़रिए' नबात के बेटे युरब'आम से कही थी पूरा करे।
\s5
\v 16 और ~जब सारे इस्राईल ने देखा कि बादशाह ने उनकी न सुनी तो उन्होंने बादशाह को ऐसा जवाब दिया कि "दाऊद में हमारा क्या हिस्सा है? यस्सी के बेटे में हमारी मीरास नहीं। ऐ इस्राईल, अपने डेरो को चले जाओ; और अब ऐ दाऊद तू अपने घर को संभाल! तब इस्राईली अपने डेरों को चल दिए।
\v 17 ~लेकिन जितने इस्राइली यहूदाह के शहरों में रहते थे उन पर रहुब'आम हुकूमत करता रहा।
\s5
\v 18 ~फिर रहुब'आम बादशाह ने अदूराम को भेजा जो बेगारियों के ऊपर था, और सारे इस्राईल ने उस पर पथराव किया और वह मर गया। तब रहुब'आम बादशाह ने अपने रथ पर सवार होने में जल्दी की ताकि यरूशलीम को भाग जाए।
\v 19 ~ऐसे इस्राईल दाऊद के घराने से बाग़ी हुआ और आज तक है।
\s5
\v 20 ~ जब सारे इस्राईल ने सुना कि युरब'आम लौट आया है, तो उन्होंने लोग भेज कर उसे जमा'अत में बुलवाया और उसे सारे इस्राईल का बादशाह बनाया, और यहुदाह के क़बीले के 'अलावा किसी ने दाऊद के घराने की पैरवी न की।
\s5
\v 21 ~जब रहुब'आम यरूशलीम में पहुँचा तो उसने यहूदाह के सारे घराने और बिनयमीन के क़बीले को, जो सब एक लाख अस्सी हज़ार चुने हुए जंगी मर्द थे, इकट्ठा किया ताकि वह इस्राईल के घराने से लड़कर हुकूमत को फिर सुलेमान के बेटे रहुब'आम के क़ब्ज़े में करा दें।
\s5
\v 22 ~ लेकिन समायाह को जो मर्द-ए-ख़ुदा था, ख़ुदा का यह पैग़ाम आया
\v 23 कि "यहूदाह के बादशाह सुलेमान के बेटे रहुब'आम और यहूदाह और बिनयमीन के सारे घराने और क़ौम के बाकी लोगों से कह कि
\v 24 ~ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है कि: तुम चढ़ाई न करो और न अपने भाइयों बनी-इस्राईल से लड़ो, बल्कि हर शख़्स अपने घर को लौटे, क्यूँकि यह बात मेरी तरफ़ से है। " इसलिए उन्होंने ख़ुदावन्द की बात मानी और ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ लौटे और अपना रास्ता लिया।
\s5
\v 25 ~तब युरब'आम ने इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में सिक्म को ता'मीर किया और उसमें रहने लगा, और वहाँ से निकल कर उसने फ़नूएल को ता'मीर किया।
\v 26 ~और युरब'आम ने अपने दिल में कहा कि "अब हुकूमत दाऊद के घराने में फिर चली जाएगी।
\v 27 ~ अगर यह लोग यरूशलीम में ख़ुदावन्द के घर में क़ुर्बानी अदाकरने को जाया करें, तो इनके दिल अपने मालिक, या'नी यहूदाह के बादशाह रहुब'आम, की तरफ़ माइल होंगे और वह मुझ को क़त्ल करके शाह-ए-यहूदाह रहुब'आम की तरफ़ फिर जाएँगे।"
\s5
\v 28 ~ इसलिए उस बादशाह ने सलाह लेकर सोने के दो बछड़े बनाए और लोगों से कहा, "यरूशलीम को जाना तुम्हारी ताक़त से बाहर है; ऐ इस्राईल, अपने मा'बूदों को देख, जो तुझे मुल्क-ए- मिस्र से निकाल लाए।"
\v 29 ~ और उसने एक को बैतएल में क़ायम किया, दूसरे को दान में रखा।
\v 30 ~और यह गुनाह का ज़रिए' ठहरा, क्यूँकि लोग उस एक की 'इबादत करने के लिए दान तक जाने लगे।
\s5
\v 31 ~ और उसने ऊँची जगहों के घर बनाए, और लोगों में से जोबनी लावी न थे काहिन बनाए।
\v 32 ~और युरब'आम ने आठवें महीने की पन्द्रहवीं तारीख़ के लिए, उस ईद की तरह जो यहूदाह में होती है एक ईद ठहराई और उस मज़बह के पास गया, ऐसा ही उसने बैतएल में किया; और उन बछड़ों के लिए जो उसने बनाए थे क़ुर्बानी पेशकी, और उसने बैतएल में अपने बनाए हुए ऊँचे मक़ामों के लिए काहिनों को रख्खा।
\s5
\v 33 ~और आठवें महीने की पन्द्रहवीं तारीख़ की, या'नी उस महीने में जिसे उसने अपने ही दिल से ठहराया था, वह उस मज़बह के पास जो उसने बैतएल में बनाया था गया, और बनी-इस्राईल के लिए ईद ठहराई और ख़ुशबू जलाने को मज़बह के पास गया।
\s5
\c 13
\p
\v 1 ~और देखो, ख़ुदावन्द के हुक्म से एक नबी यहूदाह से बैतएल में आया, और युरब'आम ख़ुशबू जलाने को मज़बह के पास खड़ा था।
\v 2 ~और वह ख़ुदावन्द के हुक्म से मज़बह के ख़िलाफ़ चिल्लाकर कहने लगा, "ऐ मज़बह, ऐ मज़बह! ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है कि "देख, दाऊद के घराने से एक लड़का बनाम यूसियाह पैदा होगा। तब वह ऊँचे मक़ामों के काहिनों की, जो तुझ पर ख़ुशबू जलाते हैं, तुझ पर क़ुर्बानी करेगा और वह आदमियों की हड्डियाँ तुझ पर जलाएँगे। "
\v 3 ~और उसने उसी दिन एक निशान दिया और कहा, "वह निशान जो ख़ुदावन्द ने बताया है, यह है कि देखो, मज़बह फट जाएगा और वह राख जो उस पर है गिर जाएगी।"
\s5
\v 4 ~और ऐसा हुआ कि जब बादशाह ने उस नबी का कलाम, जो उसने बैतएल में मज़बह के ख़िलाफ़ चिल्ला कर कहा था, सुना तो युरब'आम ने मज़बह पर से पकड़ लो!" और उसका वह हाथ जो उसने उसकी तरफ़ बढ़ाया था ख़ुश्क हो गया, ऐसा कि वह उसे फिर अपनी तरफ़ खींच न सका।
\v 5 ~और उस निशान के मुताबिक़ जो उस नबी ने ख़ुदावन्द के हुक्म से दिया था, वह मज़बह भी फट गया और राख मज़बह पर से गिर गई।
\s5
\v 6 ~तब बादशाह ने उस नबी से कहा कि "अब ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से इल्तिजा कर और मेरे लिए दु'आ कर, ताकि मेरा हाथ मेरे लिए फिर बहाल हो जाए।" तब उस नबी ने ख़ुदावन्द से इल्तिजा की और बादशाह का हाथ उसके लिए बहाल हुआ, और जैसा पहले था वैसा ही हो गया।
\v 7 ~और बादशाह ने उस नबी से कहा कि "मेरे साथ घर चल और ताज़ा दम हो, और मैं तुझे इनाम दूँगा।"
\s5
\v 8 ~उस नबी ने बादशाह को जवाब दिया कि "अगर तू अपना आधा घर भी मुझे दे, तोभी मैं तेरे साथ नहीं जाने का और न मैं इस जगह रोटी खाऊँ और न पानी पियूँ।
\v 9 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द का हुक्म मुझे ताकीद के साथ यह हुआ है कि तू न रोटी खाना न पानी पीना, न उस रास्ते से लौटना जिससे तू जाए।"
\v 10 ~ तब वह दूसरे रास्ते से गया और जिस रास्ते से बैतएल में आया था उससे न लौटा।
\s5
\v 11 ~और बैतएल में एक बुड्ढा नबी रहता था, तब उसके बेटों में से एक ने आकर वह सब काम जो उस नबी ने उस दिन बैतएल में किए उसे बताए, और जो बातें उसने बादशाह से कहीं थीं उनको भी अपने बाप से बयान किया।
\v 12 ~और उनके बाप ने उनसे कहा, "वह किस रास्ते से गया?" उसके बेटों ने देख लिया था कि वह नबी जो यहूदाह से आया था, किस रास्ते से गया है।
\v 13 ~ तब उसने अपने बेटों से कहा, "मेरे लिए गधे पर ज़ीन कस दो।" तब उन्होंने उसके लिए गधे पर ज़ीन कस दिया और वह उस पर सवार हुआ,
\s5
\v 14 ~और उस नबी के पीछे चला और उसे बलूत के एक दरख़्त के नीचे बैठे पाया। तब उसने उससे कहा, "क्या तू वही नबी है जो यहूदाह से आया था?" उसने कहा, "हाँ।"
\v 15 ~तब उसने उससे कहा, "मेरे साथ घर चल और रोटी खा।"
\v 16 उसने कहा, "मैं तेरे साथ लौट नहीं सकता और न तेरे घर जा सकता हूँ, और मैं तेरे साथ इस जगह न रोटी खाऊँ न पानी पियूँ|
\v 17 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द का मुझ को यूँ हुक्म हुआ है कि "तू वहाँ न रोटी खाना न पानी पीना, और न उस रास्ते से होकर लौटना जिससे तू जाए।"
\s5
\v 18 ~तब उसने उससे कहा, "मैं भी तेरी तरह नबी हूँ, और ख़ुदावन्द के हुक्म से एक फ़रिश्ते ने मुझ से यह कहा कि उसे अपने साथ अपने घर में लौटा कर ले आ, ताकि वह रोटी खाए और पानी पिए।" लेकिन उसने उससे झूठ कहा।
\v 19 ~इसलिए वह उसके साथ लौट गया और उसके घर में रोटी खाई और पानी पिया।
\s5
\v 20 ~जब वह दस्तरख़्वान पर बैठे थे तो ख़ुदावन्द का कलाम उस नबी पर, जो उसे लौटा लाया था, नाज़िल हुआ।
\v 21 और उसने उस नबी से, जो यहूदाह से आया था, चिल्ला कर कहा, "ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है, 'इसलिए कि तू ने ख़ुदावन्द के कलाम से नाफ़रमानी की, और उस हुक्म को नहीं माना जो ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझे दिया था।
\v 22 ~बल्कि तू लौट आया और तू ने उसी जगह जिसके ज़रिए' ख़ुदावन्द ने तुझे फ़रमाया था कि न रोटी खाना, न पानी पीना, रोटी भी खाई और पानी भी पिया; इसलिए तेरी लाश तेरे बाप दादा की क़ब्र तक नहीं पहुँचेगी।”
\s5
\v 23 ~ जब वह रोटी खा चुका और पानी पी चुका, तो उसने उसके लिए या'नी उस नबी के लिए जिसे वह लौटा लाया था, गधे पर ज़ीन कस दिया।
\v 24 ~ जब वह रवाना हुआ तो रास्ते में उसे एक शेर मिला जिसने उसे मार डाला, इसलिए उसकी लाश रास्ते में पड़ी रही और गधा उसके पास खड़ा रहा, शेर भी उस लाश के पास खड़ा रहा।
\v 25 ~और लोग उधर से गुज़रे और देखा कि लाश रास्ते में पड़ी है और शेर लाश के पास खड़ा है, फिर उन्होंने उस शहर में जहाँ वह बुड्ढा नबी रहता था यह बताया।
\s5
\v 26 और जब उस नबी ने, जो उसे रास्ते से लौटा लाया था, यह सुना तो कहा, "यह वही नबी है जिसने ख़ुदावन्द के कलाम की नाफ़रमानी की, इसी लिए ख़ुदावन्द ने उसको शेर के हवाले कर दिया; और उसने ख़ुदावन्द के उस सुखन के मुताबिक़ जो उसने उससे कहा था, उसे फाड़ा और मार डाला।"
\v 27 ~फिर उसने अपने बेटों से कहा कि "मेरे लिए गधे पर ज़ीन कस दो।" इसलिए उन्होंने ज़ीन कस दिया।
\v 28 ~ तब वह गया और उसने उसकी लाश रास्ते में पड़ी हुई, और गधे और शेर को लाश के पास खड़े पाया; क्यूँकि शेर ने न लाश को खाया और न गधे को फाड़ा था|
\s5
\v 29 ~तब उस नबी ने उस नबी की लाश उठाकर उसे गधे पर रखा और ले आया, और वह बुड्ढा नबी उस पर मातम करने और उसे दफ़्न करने को अपने शहर में आया |
\v 30 ~और उसने उसकी लाश को अपनी क़ब्र में रखा, और उन्होंने उस पर मातम किया और कहा, 'हाय, मेरे भाई!"
\s5
\v 31 ~और जब वह उसे दफ़्न कर चुका, तो उसने अपने बेटों से कहा कि ~"जब मैं मर जाऊँ, तो मुझ को उसी क़ब्र में दफ़्न करना जिसमें यह नबी दफ़्न हुआ है। मेरी हड्डियाँ उसकी हड्डियों के बराबर रखना।
\v 32 ~ इसलिए कि वह बात जो उसने ख़ुदावन्द के हुक्म से बैतएल के मज़बह के ख़िलाफ़ और उन सब ऊँचे मक़ामों के घरों के खिलाफ़, जो सामरिया के कस्बों में हैं, कही है ज़रूर पूरी होगी।"
\s5
\v 33 ~इस माजरे के बा'द भी युरब'आम अपनी बुरे रास्ते से बाज़ न आया, बल्कि उसने 'अवाम में से ऊँचे मक़ामों के काहिन ठहराए; जिस किसी ने चाहा उसे उसने मख़्सूस किया, ताकि ऊँचे मक़ामों के लिए काहिन हों।
\v 34 ~और यह काम युरब'आम के घराने के लिए, उसे काट डालने और उसे रू-ए-ज़मीन पर से मिटाऔर बरबाद ~करने के लिए गुनाह ठहरा।
\s5
\c 14
\p
\v 1 ~उस वक़्त युरब'आम का बेटा अबियाह बीमार पड़ा।
\v 2 ~और युरब'आम ने अपनी बीवी से कहा, "ज़रा उठ कर अपना भेस बदल डाल, ताकि पहचान न हो सके कि तू युरब'आम की बीवी है, और सैला को चली जा। देख, अख़ियाह नबी वहाँ है जिसने मेरे बारे में कहा था कि मैं इस क़ौम का बादशाह हूँगा |
\v 3 और दस रोटियाँ और पपड़ियाँ और शहद का एक मर्तबान अपने साथ ले, और उसके पास जा; वह तुझे बता देगा कि लड़के का क्या हाल होगा।”
\s5
\v 4 ~तब युरब'आम की बीवी ने ऐसा ही किया, और उठकर सैला को गई और अख़ियाह के घर पहुँची; लेकिन अख़ियाह को कुछ नज़र नहीं आता था, क्यूँकि बुढ़ापे की वजह से उसकी आँखें रह गई थीं।
\v 5 और ख़ुदावन्द ने अख़ियाह से कहा, "देख, युरब'आम की बीवी तुझ से अपने बेटे के बारे में पूछने आ रही है, क्यूँकि वह बीमार है। तब तू उससे ऐसा ऐसा कहना, क्यूँकि जब वह अन्दर आएगी तो अपने आपको दूसरी 'औरत बनाएगी।"
\s5
\v 6 और जैसे ही वह दरवाज़े से अन्दर आई, और अख़ियाह ने उसके पाँव की आहट सुनी तो उसने उससे कहा, "ऐ युरब'आम की बीवी, अन्दर आ! तू क्यूँ अपने को दूसरी बनाती है? क्यूँकि मैं तो तेरे ही पास सख़्त पैग़ाम के साथ भेजा गया हूँ।
\v 7 ~इसलिए जाकर युरब'आम से कह, 'ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा ऐसा फ़रमाता है, हालाँकि मैंने तुझे लोगों में से लेकर सरफ़राज़ किया, और अपनी कौम इस्राईल पर तुझे बादशाह बनाया।
\v 8 ~और दाऊद के घराने से हुकूमत छीन ली और तुझे दी; तोभी तू मेरे बन्दे दाऊद की तरह न हुआ, जिसने मेरे हुक्म माने और अपने सारे दिल से मेरी पैरवी की ताकि सिर्फ़ वही करे जो मेरी नज़र में ठीक था,
\s5
\v 9 लेकिन तू ने उन सभों से जो तुझ से पहले हुए ज़्यादा बदी की, और जाकर अपने लिए और और मा'बूद और ढाले हुए बुत बनाए ताकि मुझे ग़ुस्सा दिलाए; बल्कि तू ने मुझे अपनी पीठ के पीछे फेंका।
\v 10 ~इसलिए देख, मैं युरब'आम के घराने पर बला नाज़िल करूँगा, और युरब'आम की नसल के हर एक लड़के को, यानी हर एक को जो इस्राईल में बन्द है और उसको जो आज़ाद छूटा हुआ है, काट डालूँगा, और युरब'आम के घराने की सफ़ाई कर दूँगा, जैसे कोई गोबर की सफ़ाई करता हो, जब तक वह सब दूर न हो जाए।
\s5
\v 11 ~युरब'आम का जो कोई शहर में मरेगा उसे कुत्ते खाएँगे और जो मैदान में मरेगा उसे हवा के परिन्दे चट कर जाएँगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने यह फ़रमाया है।'
\v 12 ~इसलिए तू उठ और अपने घर जा, और जैसे ही तेरा क़दम शहर में पड़ेगा वह लड़का मर जाएगा।
\v 13 ~और सारा इस्राईल उसके लिए रोएगा और उसे दफ़न करेगा क्यूँकि युरब'आम की औलाद में से सिर्फ़ उसी को क़ब्र नसीब होगी, इसलिए कि युरब'आम के घराने में से इसी में कुछ पाया गया जो ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के नज़दीक भला है।
\s5
\v 14 ~'अलावा इसके ख़ुदावन्द अपनी तरफ़ से इस्राईल के लिए एक ऐसा बादशाह पैदा करेगा जो उसी दिन युरब'आम के घराने को काट डालेगा, लेकिन कब? यह अभी होगा।
\v 15 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल को ऐसा मारेगा जैसे सरकण्डा पानी में हिलाया जाता है, और वह इस्राईल को इस अच्छे मुल्क से जो उसने उनके बाप दादा को दिया था उखाड़ फेंकेगा, और उनको दरिया-ए-फ़ुरात के पार बिखेर देगा; क्यूँकि उन्होंने अपने लिए यसीरतें बनाई और ख़ुदावन्द को ग़ुस्सा दिलाया है।
\v 16 ~और वह इस्राईल को युरब'आम के उन गुनाहों की वजह से छोड़ देगा जो उसने ख़ुद किए, और जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया।"
\s5
\v 17 ~और युरब'आम की बीवी उठकर रवाना हुई और तिरज़ा में आई, और जैसे ही वह घर की चौखट पर पहुँची वह लड़का मर गया;
\v 18 ~और सारे इस्राईल ने जैसा ख़ुदावन्द ने अपने बन्दे अख़ियाह नबी की ज़रिए' फ़रमाया था, उसे दफ़न करके उस पर नौहा किया।
\s5
\v 19 ~युरब'आम का बाक़ी हाल कि वह किस किस तरह लड़ा और उसने क्यूँकर हुकूमत की, वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा है।
\v 20 ~और जितनी मुद्दत तक युरब'आम ने हुकूमत की वह बाईस साल की थी, और वह अपने बाप दादा के साथ सो गया और उसका बेटा नदब उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\v 21 ~सुलेमान का बेटा रहुब'आम यहूदाह में बादशाह था। रहुब'आम इकतालीस साल का था, जब वह बादशाही करने लगा और उसने यरूशलीम यानी उस शहर में, जिसे ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के सब क़बीलों में से चुना था ताकि अपना नाम वहाँ रख्खे, सतरह साल हुकूमत की; और उसकी माँ का नाम ना'मा था जो 'अमोनी 'औरत थी।
\v 22 और यहूदाह ने ख़ुदावन्द के सामने बदी की और जो गुनाह उनके बाप-दादा ने किए थे उनसे भी ज़्यादा उन्होंने अपने गुनाहों से, जो उनसे सरज़द हुए, उसकी ग़ैरत को भड़काया।
\s5
\v 23 ~क्यूँकि उन्होंने अपने लिए हर एक ऊँचे टीले पर और हर एक हरे दरख़्त के नीचे, ऊँचे मक़ाम और सुतून और यसीरतें बनाई,
\v 24 ~और उस मुल्क में लूती भी थे। वह उन क़ौमों के सब मकरूह काम करते थे, जिनको ख़ुदावन्द ने बनी इस्राईल के सामने से निकाल दिया था।
\s5
\v 25 रहुब'आम बादशाह के पाँचवें साल में शाह-ए-मिस्र सीसक ने यरूशलीम पर पेश की।
\v 26 और उसने ख़ुदावन्द के घर के ख़ज़ानों और शाही महल के ख़ज़ानों को ले लिया, बल्कि उसने सब कुछ ले लिया, और सोने की वह सब ढालें भी ले गया जो सुलेमान ने बनाई थीं।
\s5
\v 27 और रहुब'आम बादशाह ने उनके बदले पीतल की ढालें बनाई और उनको मुहाफ़िज़ सिपाहियों के सरदारों के हवाले किया जो शाही महल के दरवाज़े पर पहरा देते थे।
\v 28 और जब बादशाह ख़ुदावन्द के घर में जाता तो वह सिपाही उनको लेकर चलते, और फिर उनको वापस लाकर सिपाहियों की कोठरी में रख देते थे।
\s5
\v 29 और रहुब'आम का बाक़ी हाल और सब कुछ जो उसने किया, तो क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं है?
\v 30 ~और रहुब'आम और युरब'आम में बराबर जंग रही।
\v 31 ~और रहुब'आम अपने बाप-दादा के साथ सो गया और दाऊद के शहर में अपने बाप-दादा के साथ दफ़न हुआ, उसकी माँ का नाम ना'मा था जो 'अम्मोनी 'औरत थी; और उसका बेटा अबियाम उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\c 15
\p
\v 1 और नबात के बेटे यरुब'आम की हुकूमत के अठारवें साल से अबियाम यहूदाह पर हुकूमत करने लगा।
\v 2 ~उसने यरूशलीम में तीन साल बादशाही की। उसकी माँ का नाम मा'का था, जो अबीसलोम की बेटी थी।
\v 3 ~उसने अपने बाप के सब गुनाहों में, जो उसने उससे पहले किए थे, उसके चाल चलन ~इख़्तियार किए और उसका दिल ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के साथ कामिल न था, जैसा उसके बाप दाऊद का दिल था।
\s5
\v 4 ~बावजूद इसके ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा ने दाऊद की ख़ातिर यरूशलीम में उसे एक चराग़ दिया, या'नी उसके बेटे को उसके बा'द ठहराया और यरूशलीम को बरकरार रख्खा।
\v 5 ~इसलिए कि दाऊद ने वह काम किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक था और अपनी सारी 'उम्र ख़ुदावन्द के किसी हुक्म से बाहर न हुआ, 'अलावा हित्ती औरयाह के मु'आमिले के।
\v 6 ~और रहुब'आम और युरब'आम के बीच उसकी सारी 'उम्र जंग रही;
\s5
\v 7 ~और अबियाम का बाक़ी हाल और सब कुछ जो उसने किया, इसलिए क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं है? और अबियाम और युरब'आम में जंग होती रही।
\v 8 ~और अबियाम अपने बाप दादा के साथ सो गया, और उन्होंने उसे दाऊद के शहर में दफ़न किया; और उसका बेटा आसा उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\v 9 ~शाह-ए-इस्राईल युरब"आम के बीसवें साल से आसा यहूदाह पर हुकूमत करने लगा।
\v 10 ~उसने इकतालीस साल यरूशलीम में हुकूमत की; उस की माँ का नाम मा'काथा, जो अबीसलोम की बेटी थी।
\v 11 ~ और आसा ने अपने बाप दाऊद की तरह वह काम किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक था।
\s5
\v 12 ~ उसने लूतियों को मुल्क से निकाल दिया, और उन सब बुतों को जिनको उसके बाप दादा ने बनाया था दूर कर दिया।
\v 13 ~और उसने अपनी माँ मा'का को भी मलिका के रुतबे से उतार दिया, क्यूँकि उसने एक यसीरत के लिए एक नफ़रत अंगेज़ बुत बनाया था। तब आसा ने उसके बुत को काट डाला और वादी-ए-क़िद्रोन में उसे जला दिया।
\s5
\v 14 ~लेकिन ऊँचे मक़ाम ढाए न गए, तोभी आसा का दिल 'उम्र भर ख़ुदावन्द के साथ कामिल रहा।
\v 15 ~ और उसने वह चीजें जो उसके बाप ने नज़र की थीं, और वह चीज़ें जो उसने आप नज़र की थीं, या'नी चाँदी और सोना और बर्तन, सबको ख़ुदावन्द के घर में दाख़िल किया।
\s5
\v 16 ~आसा और शाह-ए-इस्राईल बाशा में उनकी 'उम्र भर जंग रही।
\v 17 ~ और शाह-ए-इस्राईल बाशा ने यहूदाह पर चढ़ाई की और रामा को बनाया, ताकि शाह-ए-यहूदाह आसा के पास किसी की आना जाना न हो सके।
\s5
\v 18 ~तब आसा ने सब चाँदी और सोने को, जो ख़ुदावन्द के घर के ख़ज़ानों में बाक़ी रहा था, और शाही महल के ख़ज़ानों को लेकर उनको अपने ख़ादिमों के हवाले किया, और आसा बादशाह ने उनको शाह-ए-अराम बिनहदद के पास, जो हज़ियून के बेटे तब रिम्मून का बेटा था और दमिश्क़ में रहता था, रवाना किया और कहला भेजा,
\v 19 कि "मेरे और तेरे बीच और मेरे बाप और तेरे बाप के बीच 'अहद-ओ-पैमान है। देख, मैंने तेरे लिए चाँदी और सोने का हदिया भेजा है; तब तू आकर शाह-ए-इस्राईल बा'शा से 'अहद को तोड़दे , ताकि वह मेरे पास से चला जाए।
\s5
\v 20 ~ और बिन हदद ने आसा बादशाह की बात मानी और अपने लश्कर के सरदारों को इस्राइली शहरों पर चढ़ाई करने को भेजा, और 'अय्यून और दान और अबील बैत मा'का और सारे किनरत और नफ़्ताली के सारे मुल्क को मारा।
\v 21 ~जब बाशा ने यह सुना तो रामा के बनाने से हाथ खींचा और तिरज़ा में रहने लगा।
\v 22 ~तब आसा बादशाह ने सारे यहूदाह में 'एलान कराया और कोई छोड़ा न गया; तब वह रामा के पत्थर को और उसकी लकड़ियों को, जिन से बा'शा उसे ता'मीर कर रहा था, उठा ले गए; और आसा बादशाह ने उनसे बिनयमीन के जिबा' और मिसफ़ाह को बनाया।
\s5
\v 23 ~ आसा का बाकी सब हाल और उसकी सारी ताक़त, और सब कुछ जो उसने किया, और जो शहर उसने बनाए, तो क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में क़लमबन्द नहीं है? लेकिन उसके बुढ़ापे के वक़्त में उसे पाँवों का रोग लग गया।
\v 24 ~ और आसा अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और अपने बाप-दादा के साथ अपने बाप दाऊद के शहर में दफ़्न हुआ; और उसका बेटा यहूसफ़त उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\v 25 ~शाह-ए-यहूदाह आसा की हुकूमत के दूसरे साल से युरब'आम का बेटा नदब इस्राईल पर हुकूमत करने लगा, और उसने इस्राईल पर दो साल हुकूमत की।
\v 26 ~और उसने ख़ुदावन्द की नज़र में बदी की और अपने बाप की रास्ते और उसके गुनाह के चाल चलन ~इख़्तियार किए, जिससे उसने इस्राईल से गुनाह कराया था।
\s5
\v 27 ~अख़ियाह के बेटे बा'शा ने, जो इश्कार के घराने का था, उसके ख़िलाफ़ साज़िश की और बाशा ने जिब्बतून में, जो फ़िलिस्तियों का था, उसे क़त्ल किया; क्यूँकि नदब और सारे इस्राईल ने जिब्बतून का घेरा कर रखा था।
\v 28 ~ शाह-ए-यहूदाह आसा के तीसरे ही साल बाशा ने उसे क़त्ल किया, और उसकी जगह हुकूमत करने लगा।
\s5
\v 29 ~ और जूँही वह बादशाह हुआ उसने युरब'आम के सारे घराने को क़त्ल किया; और जैसा ख़ुदावन्द ने अपने ख़ादिम अख़ियाह सैलानी की ज़रिए' फ़रमाया था, उसने युरब'आम के लिए किसी साँस लेने वाले को भी, जब तक उसे हलाक न कर डाला, न छोड़ा।
\v 30 ~ युरब'आम के उन गुनाहों की वजह से जो उसने ख़ुद किए, और जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया, और उसके उस ग़ुस्सा दिलाने की वजह से, जिससे उसने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के ग़ज़ब को भड़काया।
\s5
\v 31 ~और नदब का बाक़ी हाल और सब कुछ जो उसने किया, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में क़लमबन्द नहीं?
\v 32 आसा और शाह-ए-इस्राईल बा'शा के दर्मियान उनकी 'उम्र भर जंग रही।
\s5
\v 33 ~शाह-ए-यहूदा आसा के तीसरे साल से अख़ियाह का बेटा बा'शा तिरज़ा में सारे इस्राईल पर बादशाही करने लगा, और उसने चौबीस साल हुकूमत की।
\v 34 ~ और उसने ख़ुदावन्द की नज़र में बदी की, और युरब'आम की रास्ते और उसके गुनाह के चाल चलन इख़्तियार किया जिससे उसने इस्राईल से गुनाह कराया।
\s5
\c 16
\p
\v 1 ~और हनानी के बेटे याहू पर ख़ुदावन्द का यह कलाम बा'शा के ख़िलाफ़ नाज़िल हुआ,
\v 2 ~ "इसलिए के मैंने तुझे ख़ाक पर से उठाया और अपनी क़ौम इस्राईल का पेशवा बनाया, और तू युरब'आम की रास्ते पर चला, और तू ने मेरी क़ौम इस्राईल से गुनाह करा के उनके गुनाहों से मुझे ग़ुस्सा दिलाया।
\s5
\v 3 ~इसलिए देख, मैं बा'शा और उसके घराने की पूरी सफ़ाई कर दूँगा और तेरे घराने को नबात के बेटे युरब'आम के घराने की तरह बना दूँगा।
\v 4 ~बा'शा का जो कोई शहर में मरेगा उसे कुत्ते खाएँगे, और जो मैदान में मरेगा उसे हवा के परिन्दे चट कर जाएँगे।"
\s5
\v 5 ~बा'शा का बाक़ी हाल और जो कुछ उसने किया और उसकी ताक़त, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं है?
\v 6 ~ और बा'शा अपने बाप दादा के साथ सो गया और तिरज़ा में दफ़न हुआ, और उसका बेटा ऐला उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\v 7 ~और हनानी के बेटे याहू के ज़रिए' ख़ुदावन्द का कलाम बा'शा और उसके घराने के ख़िलाफ़ उस सारी बदी की वजह से भी नाज़िल हुआ, जो उसने ख़ुदावन्द की नज़र में की और अपने हाथों के काम से उसे ग़ुस्सा दिलाया, और युरब"आम के घराने की तरह बना, और इस वजह से भी कि उसने उसे क़त्ल किया।
\s5
\v 8 ~शाह-ए-यहूदाह आसा के छब्बीसवें साल से बा'शा का बेटा ऐला तिरज़ा में बनी इस्राईल पर हुकूमत करने लगा, और उसने दो साल हुकूमत की।
\v 9 ~ और उसके ख़ादिम ज़िमरी ने, जो उसके आधे रथों का दारोग़ा था, उसके ख़िलाफ़ साज़िश की। उस वक़्त वह तिरज़ा में था, और अरज़ा के घर में जो तिरज़ा में उसके घर का दीवान था, शराब पी पी कर मतवाला होता जाता था।
\v 10 ~ तब ज़िमरी ने आसा शाह-ए-यहूदाह के सत्ताइसवें साल अन्दर जाकर उस पर वार किया और उसे क़त्ल कर दिया, और उसकी जगह हुकूमत करने लगा।
\s5
\v 11 ~जब वह बादशाही करने लगा, तो तख़्त पर बैठते ही उसने बा'शा के सारे घराने को क़त्ल किया, और न तो उसके रिश्तेदारों का और न उसके दोस्तों का कोई लड़का बाक़ी छोड़ा।
\v 12 ~ऐसे ज़िमरी ने ख़ुदावन्द के उस कहे के मुताबिक़, जो उसने बा'शा के ख़िलाफ़ याहू नबी के ~ज़रिए' फ़रमाया था, बाशा के सारे घराने को मिटा दिया।
\v 13 ~बाशा के सब गुनाहों और उसके बेटे ऐला के गुनाहों की वजह से जो उन्होंने किए, और जिनसे उन्होंने इस्राईल से गुनाह कराया, ताकि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा को अपने बातिल कामों से ग़ुस्सा दिलाएँ।
\s5
\v 14 ~ऐला का बाक़ी हाल और सब कुछ जो उसने किया, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में क़लमबन्द नहीं?
\s5
\v 15 ~शाह-ए-यहूदाह आसा के सत्ताइसवें साल में ज़िमरी ने तिरज़ा में सात दिन बादशाही की; उस वक़्त लोग जिब्बतून के मुक़ाबिल, जो फ़िलिस्तियों का था, ख़ेमाज़न थे।
\v 16 ~और उन लोगों ने, जो ख़ैमाज़न थे, यह चर्चा सुना के ज़िमरी ने साज़िश की और बादशाह को मार भी डाला है, इसलिए सारे इस्राईल ने उमरी को, जो लश्कर का सरदार था, उस दिन लश्करगाह में इस्राईल का बादशाह बनाया।
\v 17 ~तब 'उमरी और उसके साथ सारा इस्राईल जिब्बतून से रवाना हुआ और उन्होंने तिरज़ा का घेरा कर लिया।
\s5
\v 18 ~और ऐसा हुआ कि जब ज़िमरी ने देखा कि शहर का घिराव हो गया, तो शाही महल के मज़बूत हिस्से में जाकर शाही महल में आग लगा दी और जल मरा।
\v 19 ~अपने उन गुनाहों की वजह से जो उसने किए, कि ख़ुदावन्द की नज़र में बदी की और युरब'आम के रास्ते और उसके गुनाह के चाल चलन ~इख़्तियार किए जो उसने किया, ताकि इस्राईल से गुनाह कराए।
\v 20 ~ ज़िमरी का बाक़ी हाल और जो बग़ावत उसने की, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में क़लमबन्द नहीं?
\s5
\v 21 ~उस वक़्त इस्राइली दो हिस्से हो गए, आधे आदमी जीनत के बेटे तिबनी के पैरोकार हो गए ताकि उसे बादशाह बनाएँ और आधे 'उमरी के पैरोकार थे।
\v 22 ~ लेकिन जो 'उमरी के पैरोकार थे उन पर, जो जीनत के बेटे तिबनी के पैरोकार थे, ग़ालिब आए। इसलिए तिबनी मर गया और उमरी बादशाह हुआ।
\s5
\v 23 ~ शाह-ए-यहूदाह आसा के इकतीसवें साल में उमरी इस्राईल पर हुकूमत करने लगा, उसने बारह साल हुकूमत की; तिरज़ा में छ: साल उसकी हुकूमत रही।
\v 24 ~ और उसने सामरिया का पहाड़ समर से दो क़िन्तार' चाँदी में ख़रीदा, और उस पहाड़ पर एक शहर बनाया और उस शहर का नाम, जो उसने बनाया था, पहाड़ के मालिक समर के नाम पर सामरिया रखा।
\s5
\v 25 ~और उमरी ने ख़ुदावन्द की नज़र में बदी की, और उन सब से जो उससे पहले हुए बदतर काम किए।
\v 26 ~क्यूँकि उसने नबात के बेटे युरब'आम की सब रास्तों और उसके गुनाहों की चाल चलन ~इख़्तियार की, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया ताकि वह ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा को अपने बातिल कामों से ग़ुस्सा दिलाएँ।
\s5
\v 27 ~और उमरी के बाक़ी काम जो उसने किए और उसका ज़ोर जो उसने दिखाया, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में क़लमबन्द नहीं?
\v 28 ~तब उमरी अपने बाप-दादा के साथ सो गया और सामरिया में दफ़्न हुआ, और उसका बेटा अख़ीअब उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\v 29 ~शाह-ए-यहूदाह आसा के अड़तीसवें साल से उमरी का बेटा अख़ीअब इस्राईल पर हुकूमत करने लगा, और उमरी के बेटे अख़ीअब ने सामरिया में इस्राईल पर बाईस साल हुकूमत की।
\v 30 ~और उमरी के बेटे अख़ीअब ने जितने उससे पहले हुए थे, उन सभों से ज़्यादा ख़ुदावन्द की नज़र में बदी की।
\s5
\v 31 ~और गोया नबात के बेटे युरब'आम के गुनाहों के चाल चलन ~इख़्तियार करना उसके लिए एक हल्की सी बात थी, इसलिए उसने सैदानियों के बादशाह इतबाल की बेटी ईज़बिल से ब्याह किया, और जाकर बाल की 'इबादत करने और उसे सिज्दा करने लगा।
\v 32 ~और बाल के मन्दिर में, जिसे उसने सामरिया में बनाया था, बाल के लिए एक मज़बह तैयार किया।
\v 33 ~ और अख़ीअब ने यसीरत बनाई, और अख़ीअब ने इस्राईल के सब बादशाहों से ज़्यादा, जो उससे पहले हुए थे, ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा को ग़ुस्सा दिलाने के काम किए।
\s5
\v 34 ~ उसके दिनों में बैतएली हीएल ने यरीहू को ता'मीर किया। जब उसने उसकी बुनियाद डाली तो उसका पहलौठा बेटा अबराम मरा, और जब उसके फाटक लगाए तो उसका सबसे छोटा बेटा सजूब मर गया, यह ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ हुआ जो उसने नून के बेटे यशूअ के ज़रिए' फ़रमाया था।
\s5
\c 17
\p
\v 1 ~एलियाह तिशबी ने जो जिल'आद के परदेसियों में से था, अख़ीअब से कहा कि "खुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की हयात की क़सम, जिसके सामने मैं खड़ा हूँ, इन बरसों में न ओस पड़ेगी न बारिश होगी, जब तक मैं न कहूँ।"
\s5
\v 2 ~और ख़ुदावन्द का यह कलाम उस पर नाज़िल हुआ कि
\v 3 ~ "यहाँ से चल दे और मशरिक़ की तरफ़ अपना रुख कर और करीत के नाले के पास, जो यरदन के सामने है, जा छिप।
\v 4 ~ और तू उसी नाले में से पीना, और मैंने कौवों को हुक्म किया है कि वह तेरी परवरिश करें।”
\s5
\v 5 ~ तब उसने जाकर ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ किया, क्यूँकि वह गया और करीत के नाले के पास जो यरदन के सामने है रहने लगा।
\v 6 ~ और कौवे उसके लिए सुबह को रोटी और गोश्त, और शाम को भी रोटी और गोश्त लाते थे, और वह उस नाले में से पिया करता था।
\v 7 और कुछ 'अरसे के बा'द वह नाला सूख गया इसलिए कि उस मुल्क में बारिश नहीं हुई थी।
\s5
\v 8 ~तब ख़ुदावन्द का यह कलाम उस पर नाज़िल हुआ, कि
\v 9 ~ "उठ और सैदा के सारपत को जा और वहीं रह। देख, मैंने एक बेवा को वहाँ हुक्म दिया है कि तेरी परवरिश करे।”
\v 10 ~ तब वह उठकर सारपत को गया, और जब वह शहर के फाटक पर पहुँचा तो देखा, कि एक बेवा वहाँ लकड़ियाँ चुन रही है; तब उसने उसे पुकार कर कहा, "ज़रा मुझे थोड़ा सा पानी किसी बर्तन में ला दे कि मैं पियूं।"
\s5
\v 11 ~जब वह लेने चली, तो उसने पुकार कर कहा, "ज़रा अपने हाथ में एक टुकड़ा रोटी मेरे वास्ते लेती आना।"
\v 12 ~उसने कहा, "ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा की हयात की कसम, मेरे यहाँ रोटी नहीं सिर्फ़ मुट्ठी भर आटा एक मटके में, और थोड़ा सा तेल एक कुप्पी में है। और देख, मैं दो एक लकड़ियाँ चुन रही हूँ, ताकि घर जाकर अपने और अपने बेटे के लिए उसे पकाऊँ, और हम उसे खाएँ, फिर मर जाएँ।"
\v 13 ~और एलियाह ने उससे कहा, "मत डर; जा और जैसा कहती है कर, लेकिन पहले मेरे लिए एक टिकिया उसमें से बनाकर मेरे पास ले आ; उसके बा'द अपने और अपने बेटे के लिए बना लेना।
\s5
\v 14 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा ऐसा फ़रमाता है, "उस दिन तक जब तक ख़ुदावन्द ज़मीन पर मेंह न बरसाए, न तो आटे का मटका खाली होगा और न तेल की कुप्पी में कमी होगी।' "
\v 15 ~ तब उसने जाकर एलियाह के कहने के मुताबिक़ किया, और यह और वह और उसका कुन्बा बहुत दिनों तक खाते रहे।
\v 16 ~और ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ जो उसने एलियाह की ज़रिए' फ़रमाया था, न तो आटे का मटका ख़ाली हुआ और न तेल की कुप्पी में कमी हुई।
\s5
\v 17 ~इन बातों के बा'द उस 'औरत का बेटा, जो उस घर की मालिक थी, बीमार पड़ा और उसकी बीमारी ऐसी सख़्त हो गई कि उसमें दम बाक़ी न रहा।
\v 18 ~तब वह एलियाह से कहने लगी, "ऐ नबी, मुझे तुझ से क्या काम? तू मेरे पास आया है, कि मेरे गुनाह याद दिलाए और मेरे बेटे को मार दे!"
\s5
\v 19 ~उसने उससे कहा, "अपना बेटा मुझ को दे।" और वह उसे उसकी गोद से लेकर उसकी बालाखाने पर, जहाँ वह रहता था, ले गया और उसे अपने पलंग पर लिटाया।
\v 20 ~ और उसने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा! क्या तू ने इस बेवा पर भी, जिसके यहाँ मैं टिका हुआ हूँ, उसके बेटे को मार डालने से बला नाज़िल की?"
\v 21 ~और उसने अपने आपको तीन बार उस लड़के पर पसार कर ख़ुदावन्द से फ़रियाद की और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा! मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि इस लड़के की जान इसमें फिर आ जाए।"
\s5
\v 22 ~और ख़ुदावन्द ने एलियाह की फ़रयाद सुनी औए लड़के की जान उसमें फिर आ गई और वह जी उठा।
\v 23 ~ तब एलियाह उस लड़के को उठाकर बालाखाने पर से नीचे घर के अन्दर ले गया, और उसे उसकी माँ के ज़िम्मे किया, और एलियाह ने कहा, "देख, तेरा बेटा ज़िन्दा है।"
\v 24 ~ तब उस 'औरत ने एलियाह से कहा, "अब मैं जान गई कि तू नबी है, और ख़ुदावन्द का जो कलाम तेरे मुँह में है वह सच है।"
\s5
\c 18
\p
\v 1 और बहुत दिनों के बा'द ऐसा हुआ कि ख़ुदावन्द का यह कलाम तीसरे साल एलियाह पर नाज़िल हुआ, कि "जाकर अख़ीअब से मिल, और मैं ज़मीन पर मेंह बरसाऊँगा।"
\v 2 ~ इसलिए एलियाह अख़ी'अब से मिलने को चला; और सामरिया में सख़्त काल था।
\s5
\v 3 और अख़ीअब ने 'अबदियाह को, जो उसके घर का दीवान था, तलब किया और अबदियाह ख़ुदावन्द से बहुत डरता था,
\v 4 क्यूँकि जब ईज़बिल ने ख़ुदावन्द के नबियों को क़त्ल किया तो 'अबदियाह ने सौ नबियों को लेकर, पचास पचास करके उनको एक ग़ार में छिपा दिया, और रोटी और पानी से उनको पालता रहा -
\s5
\v 5 इसलिए अख़ीअब ने 'अबदियाह से कहा, "मुल्क में गश्त करता हुआ पानी के सब चश्मों और सब नालों पर जा, शायद हम को कहीं घास मिल जाए, जिससे हम घोड़ों और खच्चरों को ज़िन्दा बचा लें ताकि हमारे सब चौपाए जाया' न हों।"
\v 6 ~तब उन्होंने उस पूरे मुल्क में गश्त करने के लिए, उसे आपस में तक़सीम कर लिया; अख़ीअब अकेला एक तरफ़ चलाऔर 'अबदियाह अकेला दूसरी तरफ़ गया।
\s5
\v 7 और 'अबदियाह रास्ते ही में था कि एलियाह उसे मिला, वह उसे पहचान कर मुँह के बल गिरा और कहने लगा, "ऐ मेरे मालिक एलियाह, क्या तू है?"
\v 8 ~उसने उसे जवाब दिया, "मैं ही हूँ जा अपने मालिक को बता दे कि एलियाह हाज़िर है।
\s5
\v 9 ~उसने कहा, "मुझ से क्या गुनाह हुआ है, जो तू अपने ख़ादिम को अख़ीअब के हाथ में हवाले करना चाहता है, ताकि वह मुझे क़त्ल करे |
\v 10 ~ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा की हयात की क़सम, कि~ऐसी कोई क़ौम या हुकूमत नहीं जहाँ मेरे मालिक ने तेरी तलाश के लिए न भेजा हो; और जब उन्होंने कहा कि वह यहाँ नहीं, तो उसने उस हुकूमत और क़ौम से क़सम ली कि तू उनको नहीं मिला है।
\v 11 और अब तू कहता है कि जाकर अपने मालिक को ख़बर कर दे कि एलियाह हाज़िर है।'
\s5
\v 12 ~और ऐसा होगा कि जब मैं तेरे पास से चला जाऊँगा, तो ख़ुदावन्द की रूह तुझ को न जाने कहाँ ले जाए; और मैं जाकर अख़ीअब को ख़बर दूँ और तू उसको कहीं मिल न सके, तो वह मुझको क़त्ल कर देगा। लेकिन मैं तेरा ख़ादिम लड़कपन से ख़ुदावन्द से डरता रहा हूँ।
\v 13 ~क्या मेरे मालिक को जो कुछ मैंने किया है नहीं बताया गया, कि जब ईज़बिल ने ख़ुदावन्द के नबियों को क़त्ल किया, तो मैंने ख़ुदावन्द के नबियों में से सौ आदमियों को लेकर, पचास-पचास करके उनको एक ग़ार में छिपाया और उनको रोटी और पानी से पालता रहा?
\s5
\v 14 ~और अब तू कहता है कि जाकर अपने मालिक को ख़बर दे कि एलियाह हाज़िर है; तब वह मुझे मार डालेगा।"
\v 15 ~तब एलियाह ने कहा, 'रब्ब-उल-अफ़वाज की हयात की क़सम जिसके सामने मैं खड़ा हूँ, मैं आज उससे ज़रूर मिलूँगा।"
\s5
\v 16 तब 'अबदियाह अख़ीअब से मिलने को गया और उसे ख़बर दी; और अख़ीअब एलियाह की मुलाक़ात को चला।
\v 17 ~और जब अख़ीअब ने एलियाह को देखा, तो उसने उससे कहा, "ऐ इस्राईल के सताने वाले, क्या तू ही है?"
\s5
\v 18 ~उसने जवाब दिया, "मैंने इस्राईल को नहीं सताया, बल्कि तू और तेरे बाप के घराने ने, क्यूँकि तुमने ख़ुदावन्द के हुक्मों को छोड़ दिया, और तू बा'लीम का पैरोकार हो गया।
\v 19 इसलिए अब तू क़ासिद भेज; और सारे इस्राईल को और बा'ल के साढ़े चार सौ नबियों को, और यसीरत के चार सौ नबियों को जो ईज़बिल के दस्तरख़्वान पर खाते हैं कर्मिल की पहाड़ी पर मेरे पास इकट्ठा कर दे।"
\s5
\v 20 तब अख़ीअब ने सब बनी-इस्राईल को बुला भेजा, और नबियों को कर्मिल की पहाड़ी पर इकट्ठा किया।
\v 21 और एलियाह सब लोगों के नज़दीक आकर कहने लगा, "तुम कब तक दो ख़्यालों में डाँवाडोल रहोगे? अगर ख़ुदावन्द ही ख़ुदा है, तो उसकी पैरवी करो; और अगर बा'ल है, तो उसकी पैरवी करो।" लेकिन उन लोगों ने उसे एक हर्फ़ जवाब न दिया।
\s5
\v 22 तब एलियाह ने उन लोगों से कहा, "एक मैं ही अकेला ख़ुदावन्द का नबी बच रहा हूँ, लेकिन बा'ल के नबी चार सौ पचास आदमी हैं।
\v 23 इसलिए हम को दो बैल दिए जाएँ, और वह~अपने लिए एक बैल को चुन लें और उसे टुकड़े टुकड़े काटकर लकड़ियों पर धरें~और नीचे आग न दें; और मैं दूसरा बैल तैयार करके उसे लकड़ियों पर धरूँगा, और नीचे आग नहीं दूँगा।
\v 24 ~तब तुम अपने मा'बूद से दु'आ करना, और मैं ख़ुदावन्द से दु'आ करूँगा; और वह ख़ुदा जो आग से जवाब दे, वही ख़ुदा ठहरे।” और सब लोग बोल उठे, "ख़ूब कहा!"
\s5
\v 25 तब एलियाह ने बा'ल के नबियों से कहा कि "तुम अपने लिए एक बैल चुनलो और पहले उसे तैयार करो क्यूँकि~तुम बहुत से हो; और अपने मा'बूद से दु'आ करो, लेकिन आग नीचे न देना।”
\v 26 इसलिए उन्होंने उस बैल को लेकर जो उनको दिया गया उसे तैयार किया; और सुबह से दोपहर तक बा'ल से दु'आ करते और कहते रहे, "ऐ बा'ल, हमारी सुन!" लेकिन न कुछ आवाज़ हुई और न कोई जवाब देने वाला था। और वह उस मज़बह के पास जो बनाया गया था कूदते रहे।
\s5
\v 27 ~और दोपहर को ऐसा हुआ कि एलियाह ने उनको चिढ़ाकर कहा, "बुलन्द आवाज़ से पुकारो; क्यूँकि वह तो मा'बूद है, वह किसी सोच में होगा, या वह तनहाई में है, या कहीं सफ़र में होगा, या शायद वह सोता है, इसलिए ज़रूर है कि वह जगाया जाए।”
\v 28 ~तब वह बुलन्द आवाज़ से पुकारने लगे, और अपने दस्तूर के मुताबिक़ अपने आप को छुरियों और नश्तरों से घायल कर लिया, यहाँ तक कि लहू लुहान हो गए।
\v 29 ~वह दोपहर ढले पर भी शाम की क़ुर्बानी चढ़ाकर नबुव्वत करते रहे; लेकिन न कुछ आवाज़ हुई, न कोई जवाब देने वाला, न ध्यान करने वाला था।
\s5
\v 30 तब एलियाह ने सब लोगों से कहा कि "मेरे नज़दीक आ जाओ।" चुनाँचे सब लोग उसके नज़दीक आ गए। तब उसने ख़ुदावन्द के उस मज़बह को, जो ढा दिया गया था, मरम्मत किया।
\v 31 और एलियाह ने या'कूब के बेटों के क़बीलों के गिनती के मुताबिक़, जिस पर ख़ुदावन्द का यह कलाम नाज़िल हुआ था कि "तेरा नाम इस्राईल होगा" बारह पत्थर लिए,
\v 32 ~और उसने उन पत्थरों से ख़ुदावन्द के नाम का एक मज़बह बनाया; और मज़बह के आस पास उसने ऐसी बड़ी खाई खोदी, जिसमें दो पैमाने बीज की समाई थी,
\s5
\v 33 ~और लकड़ियों को तरतीब से चुना और बैल भी टुकड़े-टुकड़े काटकर लकड़ियों पर धर दिया, और कहा, "चार मटके पानी से भरकर उस सोख़्तनी क़ुर्बानी पर और लकड़ियों पर उँडेल दो।"
\v 34 ~फिर उसने कहा, "दोबारा करो।" उन्होंने दोबारा किया; फिर उसने कहा, "तिबारा करो।" तब उन्होंने तिबारा भी किया।
\v 35 ~और पानी मज़बह के चारों तरफ़ बहने लगा, और उसने खाई भी पानी से भरवा दी।
\s5
\v 36 ~और शाम की क़ुर्बानी पेश करने ~के वक़्त एलियाह नबी नज़दीक आया और उसने कहा ऐ ख़ुदावन्द अब्राहाम और इज़्हाक़ और इस्राईल के ख़ुदा ! आज मा'लूम हो जाए कि इस्राईल में तू ही ख़ुदा है, और मैं तेरा बन्दा हूँ, और मैंने इन सब बातों को तेरे ही हुक्म से किया है।
\v 37 ~ मेरी सुन, ऐ ख़ुदावन्द, मेरी सुन! ताकि यह लोग जान जाएँ कि ~ऐ ख़ुदावन्द, तू ही ख़ुदा है; और तू ने फिर उनके दिलों को फेर दिया है।"
\s5
\v 38 ~ तब ख़ुदावन्द की आग नाज़िल हुई और उसने उस सोख़्तनी क़ुर्बानी को लकड़ियों और पत्थरों और मिट्टी समेत भसम कर दिया, और उस पानी को जो खाई में था चाट लिया।
\v 39 ~जब सब लोगों ने यह देखा, तो मुँह के बल गिरे और कहने लगे, "ख़ुदावन्द वही ख़ुदा है, ख़ुदावन्द वही ख़ुदा है।"
\v 40 ~एलियाह ने उनसे कहा, "बा'ल के नबियों को पकड़ लो, उनमें से एक भी जाने न पाए।" इसलिए उन्होंने उनको पकड़ लिया, और एलियाह उनको नीचे कोसोन के नाले पर ले आया और वहाँ उनको क़त्ल कर दिया।
\s5
\v 41 ~फिर एलियाह ने अख़ीअब से कहा, "ऊपर चढ़ जा, खा और पी, क्यूँकि कसरत की बारिश की आवाज़ है।"
\v 42 इसलिए अख़ीअब खाने पीने को ऊपर चला गया। और एलियाह कर्मिल की चोटी पर चढ़ गया, और ज़मीन पर सरनगू होकर अपना मुँह अपने घुटनों के बीच कर लिया,
\s5
\v 43 और अपने ख़ादिम से कहा, "ज़रा ऊपर जाकर समुन्दर की तरफ़ तो नज़र कर।" इसलिए उसने ऊपर जाकर नज़र की और कहा, "वहाँ कुछ भी नहीं है।" उसने कहा, "फिर सात बार जा।"
\v 44 और सातवें मर्तबा उसने कहा, "देख, एक छोटा सा बादल आदमी के हाथ के बराबर समुन्दर में से उठा है।" तब उसने कहा, "जा और अख़ीअब से कह कि अपना रथ तैयार कराके नीचे उतर जा, ताकि बारिश तुझे रोक न ले।"
\s5
\v 45 और थोड़ी ही देर में आसमान घटा और आँधी से सियाह हो गया और बड़ी बारिश हुई; और अख़ीअब सवार होकर यज़र'एल को चला।
\v 46 ~ और ख़ुदावन्द का हाथ एलियाह पर था; और उसने अपनी कमर कस ली और अख़ीअब के आगे-आगे यज़र'एल के मदख़ल तक दौड़ा चला गया।
\s5
\c 19
\p
\v 1 ~और अख़ीअब ने सब कुछ, जो एलियाह ने किया था और यह भी कि उसने सब नबियों को तलवार से क़त्ल कर दिया, ईज़बिल को बताया।
\v 2 ~इसलिए ईज़बिल ने एलियाह के पास एक क़ासिद रवाना किया और कहला भेजा कि "अगर मैं कल इस वक़्त तक तेरी जान उनकी जान की तरह न बना डालूँ, तो मा'बूद मुझ से ऐसा ही बल्कि इससे ज़्यादा करें।"
\v 3 ~जब उसने यह देखा तो उठकर अपनी जान बचाने को भागा, और बैरसबा' में, जो यहूदाह का है, आया और अपने ख़ादिम को वहीं छोड़ा।
\s5
\v 4 और ख़ुद एक दिन की मन्ज़िल दश्त में निकल गया और झाऊ के एक पेड़ के नीचे आकर बैठा, और अपने लिए मौत माँगी और कहा, "बस है; अब तू ऐ ख़ुदावन्द, मेरी जान को ले ले, क्यूँकि मैं अपने बाप-दादा से बेहतर नहीं हूँ।"
\v 5 ~और वह झाऊ के एक पेड़ के नीचे लेटा और सो गया; और देखो, एक फ़रिश्ते ने उसे छुआ और उससे कहा, "उठ और खा।"
\v 6 उसने जो निगाह की तो क्या देखा कि उसके सिरहाने, अंगारों पर पकी हुई एक रोटी और पानी की एक सुराही रखी है; तब वह खा पीकर फिर लेट गया।
\s5
\v 7 ~और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता दोबारा फिर आया, और उसे छुआ और कहा, "उठ और खा, कि यह सफ़र तेरे लिए बहुत बड़ा है।"
\v 8 ~इसलिए उसने उठकर खाया पिया, और उस खाने की ताक़त से चालीस दिन और चालीस रात चल कर ख़ुदा के पहाड़ होरिब तक गया।
\s5
\v 9 और वहाँ एक ग़ार में जाकर टिक गया, और देखो, ख़ुदावन्द का यह कलाम उस पर नाज़िल हुआ कि "ऐ एलियाह, तू यहाँ क्या करता है?”
\v 10 ~उसने कहा, "ख़ुदावन्द लश्करों के ख़ुदा के लिए मुझे बड़ी गै़रत आई, क्यूँकि बनी-इस्राईल ने तेरे 'अहद को छोड़ दिया और तेरे मज़बहों को ढा दिया, और तेरे नबियों को तलवार से क़त्ल किया, और एक मैं ही अकेला बचा हूँ; तब वह मेरी जान लेने को पीछे पड़े ~हैं।"
\s5
\v 11 ~उसने कहा, "बाहर निकल, और पहाड़ पर ख़ुदावन्द के सामने खड़ा हो।” और देखो, ख़ुदावन्द गुज़रा; और एक बड़ी सख़्त आँधी ने ख़ुदावन्द के आगे पहाड़ों को चीर डाला और चट्टानों के टुकड़े कर दिए, लेकिन ख़ुदावन्द आँधी में नहीं था; और आँधी के बा'द ज़लज़ला आया, पर ख़ुदावन्द ज़लज़ले में नहीं था।
\v 12 ~और ज़लज़ले के बा'द आग आई, लेकिन ख़ुदावन्द आग में भी नहीं था; और आग के बा'द एक दबी हुई हल्की आवाज़ आई।
\s5
\v 13 ~उसको सुनकर एलियाह ने अपना मुँह अपनी चादर से लपेट लिया, और बाहर निकल कर उस ग़ार के मुँह पर खड़ा हुआ। और देखो, उसे यह आवाज़ आई कि 'ऐ एलियाह, तू यहाँ क्या करता है?"
\v 14 ~ उसने कहा, "मुझे ख़ुदावन्द लश्करों के ख़ुदा के लिए बड़ी गै़रत आई, क्यूँकि बनी-इस्राईल ने तेरे 'अहद को छोड़ दिया और तेरे मज़बहों को ढा दिया, और तेरे नबियों को तलवार से क़त्ल किया; एक मैं ही अकेला बचा हूँ, तब वह मेरी जान लेने को पीछे पड़े हैं।"
\s5
\v 15 ~ख़ुदावन्द ने उसे फ़रमाया, "तू अपने रास्ते लौट कर दमिश्क़ के बियाबान को जा, और जब तू वहाँ पहुँचे तो तू हज़ाएल को मसह कर, कि अराम का बादशाह हो,
\v 16 ~ और निमसी के बेटे याहू को मसह कर, कि इस्राईल का बादशाह हो, और अबील महूला के इलीशा'-बिन-साफ़त को मसह कर, कि तेरी जगह नबी हो।
\s5
\v 17 ~ और ऐसा होगा कि जो हज़ाएल की तलवार से बच जाएगा उसे याहू क़त्ल करेगा, और जो याहू की तलवार से बच रहेगा उसे इलीशा क़त्ल कर डालेगा।
\v 18 ~तोभी मैं इस्राईल में सात हज़ार अपने लिए रख छोडूँगा, या'नी वह सब घुटने जो बा'ल के आगे नहीं झुके और हर एक मुँह जिसने उसे नहीं चूमा।"
\s5
\v 19 ~तब वह वहाँ से रवाना हुआ, और साफ़त का बेटा इलीशा' उसे मिला जो बारह जोड़ी बैल अपने आगे लिए हुए जोत रहा था, और वह ख़ुद बारहवें के साथ था; और एलियाह उसके बराबर से गुज़रा, और अपनी चादर उस पर डाल दी।
\v 20 ~तब वह बैलों को छोड़कर एलियाह के पीछे दौड़ा और कहने लगा, "मुझे अपने बाप और अपनी माँ को चूम लेने दे, फिर मैं तेरे पीछे हो लूँगा।" उसने उससे कहा कि "लौट जा; मैंने तुझ से क्या किया है?"
\s5
\v 21 तब वह उसके पीछे से लौट गया, और उसने उस जोड़ी बैल को लेकर ज़बह किया, और उन ही बैलों के सामान से उनका गोश्त उबाला और लोगों को दिया, और उन्होंने खाया; तब वह उठा और एलियाह के पीछे रवाना हुआ, और उसकी ख़िदमत करने लगा।
\s5
\c 20
\p
\v 1 और अराम के बादशाह बिन हदद ने अपने सारे लश्कर को इकट्ठा किया, और उसके साथ बत्तीस बादशाह और घोड़े और रथ थे; और उसने सामरिया पर चढ़ाई करके उसका घेरा किया और उससे लड़ा।
\v 2 और इस्राईल के बादशाह अख़ीअब के पास शहर में क़ासिद रवाना किए और उसे कहला भेजा कि "बिन हदद ऐसा फ़रमाता है:कि
\v 3 ~'तेरी चाँदी और तेरा सोना मेरा है; तेरी बीवियों और तेरे लड़कों में जो सबसे ख़ूबसूरत हैं वह मेरे हैं।' "
\s5
\v 4 ~इस्राईल के बादशाह ने जवाब दिया, "ऐ मेरे मालिक, बादशाह! तेरे कहने के मुताबिक़, मैं और जो कुछ मेरे पास है सब तेरा ही है।"
\v 5 फिर उन क़ासिदों ने दोबारा आकर कहा कि "बिनहदद ऐसा फ़रमाता है कि 'मैंने तुझे कहला भेजा था कि तू अपनी चाँदी और अपनी बीवियाँ और अपने लड़के मेरे हवाले कर दे
\v 6 ~लेकिन अब मैं कल इसी वक़्त अपने ख़ादिमों को तेरे पास भेजूँगा; तब वह तेरे घर और तेरे ख़ादिमों के घरों की तलाशी लेंगे, और जो कुछ तेरी निगाह में क़ीमती होगा वह उसे अपने कब्ज़े में करके ले आएँगे।"
\s5
\v 7 ~तब इस्राईल के बादशाह ने मुल्क के सब बुज़ुर्गों को बुला कर कहा, "ज़रा ग़ौर करो और देखो, कि यह शख़्स किस तरह बुराई के पीछे पड़ा ~है; क्यूँकि उसने मेरी बीवियाँ और मेरे लड़के और मेरी चाँदी और मेरा सोना, मुझ से मंगा भेजा और मैंने उससे इन्कार नहीं किया।"
\v 8 ~तब सब बुज़गों और सब लोगों ने उससे कहा कि "तू मत सुन, और मत मान।"
\s5
\v 9 ~इसलिए उसने बिनहदद के कासिदों से कहा, "मेरे मालिक बादशाह से कहना, 'जो कुछ तू ने अपने ख़ादिम से पहले तलब किया, वह तो मैं करूँगा; पर यह बात मुझ से नहीं हो सकती।” तब क़ासिद रवाना हुए और उसे यह जवाब सुना दिया।
\v 10 तब बिन हदद ने उसको कहला भेजा कि “अगर सामरिया की मिट्टी, उन सब लोगों के लिए जो मेरे पैरोकार हैं, मुट्ठियाँ भरने को भी काफ़ी हो; तो मा'बूद मुझ से ऐसा ही बल्कि इससे भी ज़्यादा करें।"
\s5
\v 11 ~शाह-ए-इस्राईल ने जवाब दिया, "तुम उससे कहना, 'जो हथियार बाँधता ~है, वह उसकी तरह फ़ख़्र न करे जो उसे उतारता है।”
\v 12 ~जब बिन हदद ने, जो बादशाहों के साथ सायबानों में मयनोशी कर रहा था, यह पैग़ाम सुना तो अपने मुलाज़िमों को हुक्म किया कि "सफ़ बान्ध लो।" इसलिए उन्होंने शहर पर चढ़ाई करने के लिए सफ़आराई की।
\s5
\v 13 ~और देखो, एक नबी ने शाह-ए-इस्राईल अख़ीअब के पास आकर कहा, 'ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है कि 'क्या तू ने इस बड़े हुजूम को देख लिया? मैं आज ही उसे तेरे हाथ में कर दूँगा, और तू जान लेगा कि ख़ुदावन्द मैं ही हूँ।"
\v 14 ~तब अख़ीअब ने पूछा, "किसके वसीले से?" उसने कहा, "ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है कि सूबों के सरदारों के जवानों के वसीले से! ~" फिर उसने पूछा कि लड़ाई कौन शुरू करे|" उसने जवाब दिया कि ~"तू।"
\v 15 ~तब उसने सूबों के सरदारों के जवानों को शुमार किया, और वह दो सौ बत्तीस निकले; उनके बा'द उसने सब लोगों, या'नी सब बनी-इस्राईल की हाजरी ली, और वह सात हज़ार थे।
\s5
\v 16 ~यह सब दोपहर को निकले, और बिन हदद और वह बत्तीस बादशाह, जो उसके मददगार थे, सायबानों में पी पीकर मस्त होते जाते थे।
\v 17 ~इसलिए सूबों के सरदारों के जवान पहले निकले। और बिन हदद ने आदमी भेजे, और उन्होंने उसे ख़बर दी कि "सामरिया से लोग निकले हैं।"
\s5
\v 18 उसने कहा, "अगर वह सुलह के इरादे से निकले हों तो उनको ज़िन्दा पकड़ लो, और अगर वह जंग को निकले हों तोभी उनको ज़िन्दा पकड़ो।"
\v 19 ~तब सूबों के सरदारों के जवान और वह लश्कर जो उनके पीछे हो लिया था शहर से बाहर निकले;
\s5
\v 20 ~और उनमें से एक एक ने अपने मुख़ालिफ़ को क़त्ल किया; इसलिए अरामी भागे और इस्राईल ने उनका पीछा किया, और शाह-ए-अराम बिन हदद एक घोड़े पर सवार होकर सवारों के साथ भागकर बच गया।
\v 21 ~और शाह-ए-इस्राईल ने निकल कर घोड़ों और रथों को मारा, और अरामियों को बड़ी खूँरेज़ी के साथ क़त्ल किया।
\s5
\v 22 और वह नबी शाह-ए-इस्राईल के पास आया और उससे कहा, "जा अपने को मज़बूत कर, और जो कुछ तू करे उसे ग़ौर से देख लेना; क्यूँकि अगले साल शाह-ए-अराम फिर तुझ पर चढ़ाई करेगा।"
\v 23 ~और शाह-ए-अराम के ख़ादिमों ने उससे कहा, "उनका ख़ुदा पहाड़ी ख़ुदा है, इसलिए वह हम पर ग़ालिब आए; लेकिन हम को उनके साथ मैदान में लड़ने दे तो ज़रूर हम उन पर ग़ालिब होंगे।
\s5
\v 24 ~और एक काम यह कर, कि बादशाहों को हटा दे, या'नी हर एक को उसके 'उहदे से हटा दे और उनकी जगह सरदारों को मुक़र्रर कर;
\v 25 ~और अपने लिए एक लश्कर अपनी उस फ़ौज की तरह, जो तबाह हो गई, घोड़े की जगह घोड़ा और रथ की जगह रथ गिन गिनकर तैयार कर ले। हम मैदान में उनसे लड़ेंगे और ज़रूर उन पर ग़ालिब होंगे।" इसलिए उसने उनका कहा माना और ऐसा ही किया।
\s5
\v 26 ~और अगले साल बिन हदद ने अरामियों की हाज़री ली, और इस्राईल से लड़ने के लिए अफ़ीक को गया।
\v 27 और बनी-इस्राईल की हाज़री भी ली गई, और उनकी ख़ूराक का इन्तज़ाम किया गया और यह उनसे लड़ने को गए; और बनी-इस्राईल उनके बराबर ख़ेमाज़न होकर ऐसे मा'लूम होते थे जैसे हलवानों के दो छोटे रेवड़, लेकिन अरामियों से वह मुल्क भर गया था।
\s5
\v 28 ~तब एक नबी इस्राईल के बादशाह के पास आया और उससे कहा, "~ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है कि चूँकि अरामियों ने ऐसा कहा है कि ख़ुदावन्द पहाड़ी ख़ुदा है, और वादियों का ख़ुदा नहीं;' इसलिए मैं इस सारे बड़े हुजूम को तेरे ज़िम्मे में कर दूँगा, और तुम जान लोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
\s5
\v 29 और वह एक दूसरे के मुक़ाबिल सात दिन तक ख़ेमाज़न रहे; और सातवें दिन जंग छिड़ गई, और बनी-इस्राईल ने एक दिन में अरामियों के एक लाख प्यादे क़त्ल कर दिए;
\v 30 और बाक़ी अफ़ोक को शहर के अन्दर भाग गए, और वहाँ एक दीवार सताईस हज़ार पर जो बाकी रहे थे गिरी। और बिन हदद भागकर शहर के अन्दर एक अन्दरूनी कोठरी में घुस गया।
\s5
\v 31 ~और उसके ख़ादिमों ने उससे कहा, "देख, हम ने सुना है कि इस्राईल के घराने के बादशाह रहीम होते हैं; इसलिए हम को ज़रा अपनी कमरों पर टाट और अपने सिरों पर रस्सियाँ बाँध कर शाह-ए-इस्राईल के सामने जाने दे; शायद वह तेरी जान बख़्शी करे।"
\v 32 इसलिए उन्होंने अपनी कमरों पर टाट और सिरों पर रस्सियाँ बाँधी, और शाह-ए-इस्राईल के सामने आकर कहा, 'तेरा ख़ादिम बिनहदद यह दरख़्वास्त करता है कि 'महेरबानी करके मुझे जीने दे।' " उसने कहा, "क्या वह अब तक ज़िन्दा है? वह मेरा भाई है।"
\s5
\v 33 ~वह लोग बड़ी ध्यान से सुन रहे थे; इसलिए उन्होंने उसका दिली इरादा दरियाफ़्त करने के लिए झट उससे कहा कि "तेरा भाई बिन हदद।" तब उसने फ़रमाया कि 'जाओ, उसे ले आओ।" तब बिन हदद उससे मिलने को निकला, और उसने उसे अपने रथ पर चढ़ा लिया।
\v 34 ~और बिनहदद ने उससे कहा, "जिन शहरों को मेरे बाप ने तेरे बाप से ले लिया था, मैं उनको लौटा दूँगा; और तू अपने लिए दमिश्क़ में सड़कें बनवा लेना, जैसे मेरे बाप ने सामरिया में बनवाई।” अख़ीअब ने कहा, "मैं इसी 'अहद पर तुझे छोड़ दूँगा।" इसलिए उसने उससे 'अहद बाँधा और उसे छोड़ दिया।
\s5
\v 35 इसलिए अम्बियाज़ादों में से एक ने ख़ुदावन्द के हुक्म से अपने साथी से कहा, "मुझे मार।" लेकिन उसने उसे मारने से इन्कार किया।
\v 36 ~तब उसने उससे कहा, "इसलिए कि तू ने ख़ुदावन्द की बात नहीं मानी, सो देख, जैसे ही तू मेरे पास से रवाना होगा एक शेर तुझे मार डालेगा।" सो जैसे ही वह उसके पास से रवाना हुआ, उसे एक शेर मिला और उसे मार डाला।
\s5
\v 37 ~फिर उसे एक और शख़्स मिला, उसने उससे कहा, "मुझे मार।" उसने उसे मारा, और मार कर ज़ख़्मी कर दिया।
\v 38 ~तब वह नबी चला गया और बादशाह के इन्तज़ार में रास्ते पर ठहरा रहा, और अपनी आँखों पर अपनी पगड़ी लपेट ली और अपना भेस बदल डाला।
\s5
\v 39 ~जैसे ही बादशाह उधर से गुज़रा, उसने बादशाह की दुहाई दी और कहा कि "तेरा ख़ादिम जंग होते में वहाँ चला गया था; और देख, एक शख़्स उधर मुड़कर एक आदमी को मेरे पास ले आया, और कहा कि ~"इस आदमी की हिफ़ाज़त कर; अगर यह किसी तरह ग़ायब हो जाए, तो उसकी जान के बदले तेरी जान जाएगी, और नहीं तो तुझे एक क़िन्तार' चाँदी देनी पड़ेगी।'
\v 40 ~जब तेरा ख़ादिम इधर उधर मसरूफ़ था, वह चलता बना।" शाह-ए-इस्राईल ने उससे कहा, "तुझ पर वैसा ही फ़तवा होगा, तू ने ख़ुद इसका फ़ैसला किया।"
\s5
\v 41 ~तब उसने झट अपनी आँखों पर से पगड़ी हटा दी, और शाह-ए-इस्राईल ने उसे पहचाना कि वह नबियों में से है।
\v 42 ~और उसने उससे कहा, "ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है, 'इसलिए कि तू ने अपने हाथ से एक ऐसे शख़्स को निकल जाने दिया, जिसे मैंने क़त्ल के लायक़ ठहराया था, इसलिए तुझे उसकी जान के बदले अपनी जान और उसके लोगों के बदले अपने लोग देने पड़ेंगे।"
\v 43 इसलिए शाह-ए-इस्राईल उदास और नाख़ुश होकर अपने घर को चला और सामरिया में आया।
\s5
\c 21
\p
\v 1 इन बातों के बा'द ऐसा हुआ कि यज़र एली नबोत के पास यज़र एल में एक ताकिस्तान था, जो सामारिया के बादशाह अख़ीअब के महल से लगा हुआ था।
\v 2 इसलिए अख़ीअब ने नबोत से कहा कि "अपना ताकिस्तान मुझ को दे ताकि मैं उसे तरकारी का बाग बनाऊँ, क्यूँकि वह मेरे घर से लगा हुआ है; और मैं उसके बदले तुझ को उससे बेहतर ताकिस्तान दूँगा; या अगर तुझे मुनासिब मा'लूम हो, तो मैं तुझ को उसकी क़ीमत नक़द दे दूँगा।"
\s5
\v 3 नबोत ने अख़ीअब से कहा, "ख़ुदावन्द मुझ से ऐसा न कराए कि मैं तुझ को अपने बाप-दादा की मीरास दे दूँ।"
\v 4 ~और अख़ीअब उस बात की वजह से जो यज़र'एली नबोत ने उससे कही उदास और ना ख़ुश हो कर अपने घर में आया, क्यूँकि उसने कहा था ~मैं तुझ को अपने बाप-दादा की मीरास नहीं दूँगा। इसलिए उसने अपने बिस्तर पर लेट कर अपना मुँह फेर लिया, और खाना छोड़ दिया।
\s5
\v 5 ~तब उसकी बीवी ईज़बिल उसके पासआकर उससे कहने लगी, "तेरा जी ऐसा क्यूँ उदास है कि तू रोटी नहीं खाता?"
\v 6 ~उसने उससे कहा, "इसलिए कि मैंने यज़र'एली नबोत से बातचीत की, और उससे कहा कि तू अपना ताकिस्तान की क़ीमत लेकर मुझे दे दे; या अगर तू चाहे तो मैं उसके बदले दूसरा ताकिस्तान तुझे दे दूँगा। लेकिन उसने जवाब दिया, 'मैं तुझ को अपना ताकिस्तान नहीं दूँगा'।"
\v 7 ~उसकी बीवी ईज़बिल ने उससे कहा, "इस्राईल की बादशाही पर यही तेरी हुकुमत है? उठ रोटी खा, और अपना दिल बहला; यज़र एली नबोत का ताकिस्तान मैं तुझ को दूँगी।"
\s5
\v 8 ~इसलिए उसने अख़ीअब के नाम से ख़त लिखे, और उन पर उसकी मुहर लगाई, और उनको उन बुज़ुर्गों और अमीरों के पास जो नबोत के शहर में थे और उसी के पड़ोस में रहते थे भेज दिया।
\v 9 ~उसने उन ख़तों में यह लिखा कि "रोज़ा का 'एलान कराके नबोत को लोगों में ऊँची जगह पर बिठाओ।
\v 10 और दो आदमियों को, जो बुरें हों, उसके सामने कर दो कि वह उसके ख़िलाफ़ यह गवाही दें कि तू ने ख़ुदा पर और बादशाह पर ला'नत की, फिर उसे बाहर ले जाकर पथराव करो ताकि वह मर जाए।”
\s5
\v 11 ~चुनाँचे उसके शहर के लोगों या'नी बुज़ुर्गों और अमीरों ने, जो उसके शहर में रहते थे, जैसा ईज़बिल ने उनको कहला भेजा वैसा ही उन ख़ुतूत के मज़मून के मुताबिक़, जो उसने उनको भेजे थे, किया।
\v 12 ~उन्होंने रोज़ा का 'एलान कराके नबोत को लोगों के बीच ऊँची जगह पर बिठाया।
\v 13 और वह दोनों आदमी जो बुरे थे, आकर उसके आगे बैठ गए; और उन बुरों ने लोगों के सामने उसके, या'नी नबोत के ख़िलाफ़ यह गवाही दी कि "नबोत ने ख़ुदा पर और बादशाह पर ला'नत की है।" तब वह उसे शहर से बाहर निकाल ले गए, और उसको ऐसा पथराव किया कि वह मर गया।
\v 14 फिर उन्होंने ईज़बिल को कहला भेजा कि "नबोत पर पथराव कर दिया गया और मर गया।”
\s5
\v 15 ~जब ईज़बिल ने सुना कि नबोत पर पथराव कर दिया गया और मर गया, तो उसने अख़ीअब से कहा, "उठ और यज़र'एली नबोत के ताकिस्तान पर क़ब्ज़ा कर, जिसे उसने क़ीमत पर भी तुझे देने से इन्कार किया था; क्यूँकि नबोत ज़िन्दा नहीं बल्कि मर गया है।"
\v 16 ~जब अख़ीअब ने सुना कि नबोत मर गया है, तो अख़ी'अब उठा ताकि यज़र'एली नबोत के ताकिस्तान को जाकर उस पर क़ब्ज़ा करे।
\s5
\v 17 और ख़ुदावन्द का यह कलाम एलियाह तिशबी पर नाज़िल हुआ कि
\v 18 उठ और शाहए-इस्राईल अख़ीअब से, जो सामरिया में रहता है, मिलने को जा। देख, वह नबोत के ताकिस्तान में है, और उस पर क़ब्ज़ा करने को वहाँ गया है।
\s5
\v 19 ~इसलिए तू उससे यह कहना कि ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है कि क्या तू ने जान भी ली और क़ब्ज़ा भी कर लिया?" तब तू उससे यह कहना कि ~ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है कि उसी जगह जहाँ कुत्तों ने नबोत का लहू चाटा, कुत्ते तेरे लहू को भी चाटेंगे।' "
\v 20 और अख़ीअब ने एलियाह से कहा, "ऐ मेरे दुश्मन, क्या मैं तुझे मिल गया?" उसने जवाब दिया कि "तू मुझे मिल गया; इसलिए कि तू ने ख़ुदावन्द के सामने बदी करने के लिए अपने आपको बेच डाला है।
\s5
\v 21 ~देख, मैं तुझ पर बला नाज़िल करूँगा और तेरी पूरी सफ़ाई कर दूँगा, और अख़ीअब की नसल के हर एक लड़के को, या'नी हर एक को जो इस्राईल में बन्द है, और उसे जो आज़ाद छुटा हुआ है काट डालूँगा।
\v 22 और तेरे घर को नबात के बेटे युरब'आम के घर, और अख़ियाह के बेटे बाशा के घर की तरह बना दूँगा; उस ग़ुस्सा दिलाने की वजह से जिससे तू ने मेरे ग़ज़ब को भड़काया और इस्राईल से गुनाह कराया।
\s5
\v 23 ~और ख़ुदावन्द ने ईज़बिल के हक़ में भी यह फ़रमाया कि यज़र'एल की फ़सील के पास कुत्ते ईज़बिल को खाएँगे।'
\v 24 ~अख़ीअब का जो कोई शहर में मरेगा उसे कुत्ते खाएँगे, और जो मैदान में मरेगा उसे हवा के परिन्दे चट कर जाएँगे।”
\s5
\v 25 क्यूँकि अख़ीअब की तरह कोई नहीं हुआ था, जिसने ख़ुदावन्द के सामने बदी करने के लिए अपने आपको बेच डाला था और जिसे उसकी बीवी ईज़बिल उभारा करती थी।
\v 26 और उसने बहुत ही नफ़रतअंगेज़ काम यह किया कि अमोरियों की तरह, जिनको ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के आगे से निकाल दिया था, बुतों की पैरवी की।
\s5
\v 27 जब अख़ीअब ने यह बातें सुनीं, तो अपने कपड़े फाड़े और अपने तन पर टाट डाला और रोज़ा रख्खा और टाट ही में लेटने और दबे पाँव चलने लगा।
\v 28 ~तब ख़ुदावन्द का यह कलाम एलियाह तिशबी पर नाज़िल हुआ कि
\v 29 ~"तू देखता है कि अख़ीअब मेरे सामने कैसा ख़ाकसार बन गया है? लेकिन चूँकि वह मेरे सामने ख़ाकसार बन गया है, इसलिए मैं उसके दिनों में यह बला नाज़िल नहीं करूँगा, बल्कि उसके बेटे के दिनों में उसके घराने पर यह बला नाज़िल करूँगा।"
\s5
\c 22
\p
\v 1 तीन साल वह ऐसे ही रहे और इस्राईल और अराम के बीच लड़ाई न हुई;
\v 2 ~और तीसरे साल यहूदाह का बादशाह यहूसफ़त शाह-ए-इस्राईल के यहाँ आया,
\s5
\v 3 ~और शाह-ए-इस्राईल ने अपने मुलाज़िमों से कहा, "क्या तुम को मा'लूम है कि रामात जिल'आद हमारा है? लेकिन हम ख़ामोश हैं और शाह-ए-अराम के हाथ से उसे छीन नहीं लेते?"
\v 4 ~फिर उसने यहूसफ़त से कहा, "क्या तू मेरे साथ रामात जिल'आद से लड़ने चलेगा? यहूसफ़त ने शाह-ए-इस्राईल को जवाब दिया, "मैं ऐसा हूँ जैसा तू मेरे लोग ऐसे हैं जैसे तेरे लोग और मेरे घोड़े ऐसे हैं जैसे तेरे घोड़े।"
\s5
\v 5 और यहूसफ़त ने शाह-ए-इस्राईल से कहा, "ज़रा आज ख़ुदावन्द की मर्ज़ी भी तो मा'लूम कर ले।"
\v 6 ~तब शाह-ए-इस्राईल ने नबियों को जो क़रीब चार सौ आदमी थे इकट्ठा किया और उनसे पूछा, "मैं रामात जिल'आद से लड़ने जाऊँ, या बाज़ रहूँ?" उन्होंने कहा, "जा" क्यूँकि ख़ुदावन्द उसे बादशाह के क़ब्ज़े में कर देगा।"
\s5
\v 7 लेकिन यहूसफ़त ने कहा, "क्या इनको छोड़कर यहाँ ख़ुदावन्द का कोई नबी नहीं है, ताकि हम उससे पूछे?"
\v 8 ~शाह-ए- इस्राईल ने यहूसफ़त से कहा, "कि एक शख़्स, इमला का बेटा मीकायाह है तो सही, जिसके ज़रिए' से हम ख़ुदावन्द से पूछ सकते हैं; लेकिन मुझे उससे नफ़रत हैं, क्यूँकि वह मेरे हक़ में नेकी की नहीं बल्कि बदी की पेशीनगोई करता हैं।" यहूसफ़त ने कहा, "बादशाह ऐसा न कहे।"
\v 9 ~तब शाह-ए-इस्राईल ने एक सरदार को बुलाकर कहा, कि "इमला के बेटे मीकायाह को जल्द ले आ।"
\s5
\v 10 ~उस वक़्त शाह-ए- इस्राईल और शाह-ए-यहूदाह यहूसफ़त सामरिया के फाटक के सामने, एक खुली जगह में, अपने-अपने तख़्त पर शाहाना लिबास पहने हुए बैठे थे, और सब नबी उनके सामने पेशीनगोई कर रहे थे।
\v 11 ~और कन'आना के बेटे सिदक़ियाह ~ने अपने लिए लोहे के सींग बनाए और कहा, "ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है कि तू इन से अरामियों को मारेगा, जब तक वह मिट न जाएँ।' "
\v 12 और सब नबियों ने यही पेशीनगोई की और कहा कि रामात जिल'आद पर चढ़ाई कर और कामयाब हो, क्यूँकि ख़ुदावन्द उसे बादशाह के क़ब्ज़े में कर देगा।"
\s5
\v 13 ~और उस क़ासिद ने जो मीकायाह को बुलाने गया था उससे कहा, "देख, सब नबी एक ज़बान होकर बादशाह को ख़ुशख़बरी दे रहे हैं, तो ज़रा तेरी बात भी उनकी बात की तरह हो और तू ख़ुशख़बरी ही देना।"
\v 14 ~मीकायाह ने कहा, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम, जो कुछ ख़ुदावन्द मुझे फ़रमाए मैं वही कहूँगा।"
\v 15 ~इसलिए जब वह बादशाह के पास आया, तो बादशाह ने उससे कहा, "मीकायाह, हम रामात जिल'आद से लड़ने जाएँ या रहने दें?" उसने जवाब दिया, "जा और कामयाब हो, क्यूँकि ख़ुदावन्द उसे बादशाह के क़ब्ज़े में कर देगा।"
\s5
\v 16 ~बादशाह ने उससे कहा, "मैं कितनी मर्तबा तुझे क़सम देकर कहूँ, कि तू ख़ुदावन्द के नाम से हक़ के 'अलावा और कुछ मुझ को न बताए?"
\v 17 तब उसने कहा, "मैंने सारे इस्राईल को उन भेड़ों की तरह, जिनका चौपान न हो, पहाड़ों पर बिखरा देखा; और ख़ुदावन्द ने फ़रमाया कि इनका कोई मालिक नहीं; तब वह अपने अपने घर सलामत लौट जाएँ।”
\s5
\v 18 तब शाह-ए-इस्राईल ने यहुसफ़त से कहा, "क्या मैंने तुझ को बताया नहीं था कि यह मेरे हक़ में नेकी की नहीं बल्कि बदी की पेशीनगोई करेगा?"
\v 19 ~तब उसने कहा, "अच्छा, तू ख़ुदावन्द की बात को सुन ले; मैंने देखा कि ख़ुदावन्द अपने तख़्त पर बैठा है, और सारा आसमानी लश्कर उसके दहने और बाएँ खड़ा है।
\v 20 और ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, 'कौन अख़ीअब को बहकाएगा, ताकि वह चढ़ाई करे और रामात जिल'आद में मारे ग़ए?' तब किसी ने कुछ कहा, और किसी ने कुछ।
\s5
\v 21 लेकिन एक रूह निकल कर ख़ुदावन्द के सामने खड़ी हुई, और कहा, 'मैं उसे बहकाऊँगी।'
\v 22 ~ख़ुदावन्द ने उससे पूछा, "किस तरह?" उसने कहा, 'मैं जाकर उसके सब नबियों के मुँह में झूठ बोलने वाली रूह बन जाऊँगी, उसने कहा तू उसे बहका देगी और ग़ालिब भी होगी, रवाना हो जा और ऐसा ही कर।'
\v 23 ~इसलिए देख, ख़ुदावन्द ने तेरे इन सब नबियों के मुँह में झूठ बोलने वाली रूह डाली है; और ख़ुदावन्द ने तेरे हक़ में बदी का हुक्म दिया है।"
\s5
\v 24 ~तब कन'आना का बेटा सिदक़ियाह नज़दीक आया, और उसने मीकायाह के गाल पर मार कर कहा, "ख़ुदावन्द की रूह तुझ से बात करने को किस रास्ते से होकर मुझ में से गई?"
\v 25 ~मीकायाह ने कहा, "यह तू उसी दिन देख लेगा, जब तू अन्दर की एक कोठरी में घुसेगा ताकि छिप जाए।"
\s5
\v 26 ~और शाह-ए- इस्राईल ने कहा, "मीकायाह को लेकर उसे शहर के नाज़िम अमून और यूआस शहज़ादे के पास लौटा ले जाओं;
\v 27 और कहना, 'बादशाह यूँ फ़रमाता है कि इस शख़्स को कै़दख़ाने में डाल दो, और इसे मुसीबत की रोटी खिलाना और मुसीबत का पानी पिलाना, जब तक मैं सलामत न आऊँ।' "
\v 28 तब मीकायाह ने कहा, "अगर तू सलामत वापस आ जाए, तो ख़ुदावन्द ने मेरी ज़रिए' कलाम ही नहीं किया।" फिर उसने कहा, "ऐ लोगो, तुम सब के सब सुन लो।"
\s5
\v 29 ~इसलिए शाह-ए-इस्राईल और शाह-ए-यहूदाह यहूसफ़त ने रामात जिल'आद पर चढ़ाई की।
\v 30 और शाह-ए-इस्राईल ने यहूसफ़त से कहा, "मैं अपना भेस बदलकर लड़ाई में जाऊँगा; लेकिन तू अपना लिबास पहने रह।" तब शाह-ए-इस्राईल अपना भेस बदलकर लड़ाई में गया।
\s5
\v 31 ~उधर शाह-ए-अराम ने अपने रथों के बत्तीसों सरदारों को हुक्म दिया था, "किसी छोटे या बड़े से न लड़ना, 'अलावा शाह-ए-इस्राईल के।"
\v 32 इसलिए जब रथों के सरदारों ने यहूसफ़त को देखा तो कहा, "ज़रूर शाह-ए-इस्राईल यही है।" और वह उससे लड़ने को मुड़े, तब यहूसफ़त चिल्ला उठा।
\v 33 ~जब रथों के सरदारों ने देखा कि वह शाह-ए-इस्राईल नहीं, तो वह उसका पीछा करने से लौट गए।
\s5
\v 34 ~और किसी शख़्स ने ऐसे ही अपनी कमान खींची और शाह-ए-इस्राईल को जौशन के बन्दों के बीच मारा, तब उसने अपने सारथी से कहा, "बाग" फेर कर मुझे लश्कर से बाहर निकाल ले चल, क्यूँकि मैं ज़ख़्मी हो गया हूँ।"
\s5
\v 35 ~और उस दिन बड़े घमसान का रन पड़ा, और उन्होंने बादशाह को उसके रथ ही में अरामियों के मुक़ाबिल संभाले रखा; और वह शाम को मर गया, और ख़ून उसके ज़ख़्म से बह कर रथ के पायदान में भर गया।
\v 36 ~और आफ़ताब ग़ुरूब होते हुए लश्कर में यह पुकार हो गई, "हर एक आदमी अपने शहर, और हर एक आदमी अपने मुल्क को जाए।"
\s5
\v 37 इसलिए बादशाह मर गया और वह सामरिया में पहुँचाया गया, और उन्होंने बादशाह को सामरिया में दफ़न किया;
\v 38 ~और उस रथ को सामरिया के तालाब में धोया (कस्बियाँ यहीं ग़ुस्ल करती थीं), और ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ जो उसने फ़रमाया था, कुत्तों ने उसका ख़ून चाटा।
\s5
\v 39 और अख़ीअब की बाक़ी बातें, और सब कुछ जो उसने किया था, और हाथी दाँत का घर जो उसने बनाया था, और उन सब शहरों का हाल जो उसने ता'मीर किए, तो क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में क़लमबन्द नहीं?
\v 40 और अख़ीअब अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और उसका बेटा अख़ज़ियाह उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\v 41 ~और आसा का बेटा यहूसफ़त शाह-ए- इस्राईल अख़ीअब के चौथे साल से यहूदाह पर हुकूमत करने लगा।
\v 42 ~जब यहूसफ़त हुकूमत करने लगा तो पैंतीस साल का था, और उसने यरूशलीम में पच्चीस साल हुकूमत की। उसकी माँ का नाम 'अजूबा था, जो सिल्ही की बेटी थी।
\s5
\v 43 ~वह अपने बाप आसा के नक़्श-ए-क़दम पर चला; उससे वह मुड़ा नहीं और जो ख़ुदावन्द की निगाह में ठीक था उसे करता रहा, तोभी ऊँचे मक़ाम ढाए न गए लोग उन ऊँचे मक़ामों पर ही क़ुर्बानी करते और बख़ूर जलाते थे।
\v 44 ~और यहूसफ़त ने शाह-ए-इस्राईल से सुलह की।
\s5
\v 45 और यहूसफ़त की बाक़ी बातें और उसकी ताक़त जो उसने दिखाई, और उसके जंग करने की कै़फ़ियत, तो क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में क़लमबन्द नहीं?
\v 46 ~और उसने बाक़ी लूतियों को जो उसके बाप आसा के 'अहद में रह गए थे, मुल्क से निकाल दिया।
\v 47 और अदोम में कोई बादशाह न था, बल्कि एक नाइब हुकूमत करता था।
\s5
\v 48 ~और यहूसफ़त ने तरसीस के जहाज़ बनाए ताकि ओफ़ीर को सोने के लिए जाएँ, लेकिन वह गए नहीं, क्यूँकि वह "अस्यून जाबर ही में टूट गए।
\v 49 ~तब अख़ीअब के बेटे अख़ज़ियाह ने यहूसफ़त से कहा, 'अपने ख़ादिमों के साथ मेरे ख़ादिमों को भी जहाज़ों में जाने दे।” लेकिन यहूसफ़त राज़ी न हुआ।
\v 50 और यहूसफ़त अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और अपने बाप दाऊद के शहर में अपने बाप-दादा के साथ दफ़्न हुआ; और उसका बेटा यहूराम उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\v 51 ~और अख़ीअब का बेटा अख़ज़ियाह शाह-ए-यहूदाह यहूसफ़त के सत्रहवें साल से सामरिया में इस्राईल पर हुकूमत करने लगा, और उसने इस्राईल पर दो साल हुकूमत की।
\v 52 ~और उसने ख़ुदावन्द की नज़र में बदी की, और अपने बाप की रास्ते और अपनी माँ के रास्ते और नबात के बेटे युरब'आम की रास्ते पर चला, जिससे उसने बनी-इस्राईल से गुनाह कराया;
\v 53 और अपने बाप के सब कामों के मुताबिक़ बा'ल की 'इबादत करता और उसको सिज्दा करता रहा, और ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा को ग़ुस्सा दिलाया||

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\v 1 अख़ीअब के मरने के बा'द मोआब इस्राईल से बाग़ी हो गया।
\v 2 और अख़ज़ियाह उस झिलमिली दार खिड़की में से, जो सामरिया में उसके बालाख़ानें में थी, गिर पड़ा और बीमार हो गया। इसलिए उसने क़ासिदों को भेजा और उनसे ये कहा, "जाकर 'अक्रून के मा'बूद बा'लज़बूब' से पूछो, कि ~मुझे इस बीमारी से शिफ़ा हो जाएगी या नहीं।"
\s5
\v 3 लेकिन ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने एलियाह तिशबी से कहा, "उठ और सामरिया के बादशाह के क़ासिदों से मिलने को जा और उनसे कह, 'क्या इस्राईल में ख़ुदा नहीं जो तुम 'अक्रून के~मा'बूद~बा'लज़बूब से पूछने चले हो?
\v 4 ~इसलिए अब ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू उस पलंग पर से, जिस पर तू चढ़ा है, उतरने न पाएगा, बल्कि तू ज़रूर ~मरेगा।' " तब एलियाह रवाना हुआ।
\s5
\v 5 ~वह क़ासिद उसके पास लौट आए, तब उसने उनसे पूछा, "तुम लौट क्यूँ आए?"
\v 6 ~उन्होंने उससे कहा, "एक शख़्स हम से मिलने को आया, और हम से कहने लगा, 'उस बादशाह के पास जिसने तुम को भेजा है फिर जाओ, और उससे कहो: ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि क्या इस्राईल में कोई ख़ुदा नहीं जो तू 'अक्रून के~मा'बूद बा'लज़बूब से पूछने को भेजता है? इसलिए तू उस पलंग से, जिस पर तू चढ़ा है, उतरने न पाएगा, बल्कि ज़रूर ही मरेगा।' "
\s5
\v 7 ~उसने उनसे कहा, "उस शख़्स की कैसी शक्ल थी, जो तुम से मिलने को आया और तुम से ये बातें कहीं?"
\v 8 ~उन्होंने उसे जवाब दिया, "वह बहुत बालों वाला आदमी था, और चमड़े का कमरबन्द अपनी कमर पर कसे हुए था।" तब उसने कहा, "ये तो एलियाह तिशबी है।”
\s5
\v 9 तब बादशाह ने पचास सिपाहियों के एक सरदार को, उसके पचासों सिपाहियों के साथ उसके पास भेजा। जब वह उसके पास गया और देखा कि वह एक टीले की चोटी पर बैठा है। उसने उससे कहा, "ऐ नबी, बादशाह ने कहा है, 'तू उतर आ।' "
\v 10 एलियाह ने उस पचास के सरदार को जवाब दिया, "अगर मैं नबी हूँ, तो आग आसमान से नाज़िल हो और तुझे तेरे पचासों के साथ जला कर भसम कर दे।” तब आग आसमान से नाज़िल हुई, और उसे उसके पचासों के साथ जला कर भसम कर दिया।
\s5
\v 11 ~फिर उसने दोबारा पचास सिपाहियों के दूसरे सरदार को, उसके पचासों सिपाहियों के साथ उसके पास भेजा। उसने उससे मुख़ातिब होकर कहा, "ऐ नबी, बादशाह ने यूँ कहा है, 'जल्द उतर आ।' "
\v 12 एलियाह ने उनको भी जवाब दिया, "अगर मैं नबी हूँ, तो आग आसमान से नाज़िल हो और तुझे तेरे पचासों के साथ जलाकर ~भसम कर दे।" फ़िर ख़ुदा की आग आसमान से नाज़िल हुई, और उसे उसके पचासों के साथ जला कर भसम कर दिया।
\s5
\v 13 ~फिर उसने तीसरे पचास सिपाहियों के सरदार को, उसके पचासों सिपाहियों के साथ भेजा; और पचास सिपाहियों का ये तीसरा सरदार ऊपर चढ़कर एलियाह के आगे घुटनों के बल गिरा, और उसकी मिन्नत करके उससे कहने लगा, "ऐ नबी, मेरी जान और इन पचासों की जानें, जो तेरे ख़ादिम हैं, तेरी निगाह में क़ीमती हों।
\v 14 ~देख, आसमान से आग नाज़िल हुई और पचास सिपाहियों के पहले दो सरदारों को उनके पचासों समेत ~जला कर भसम कर दिया; इसलिए अब मेरी जान तेरी नज़र में क़ीमती हो।"
\s5
\v 15 तब ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने एलियाह से कहा, "उसके साथ नीचे जा, उससे न डर।" तब वह उठकर उसके साथ बादशाह के पास नीचे गया,
\v 16 और उससे कहा, "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, 'तूने जो 'अक्रून के मा'बूद बा'लज़बूब से पूछने को लोग भेजे हैं, तो क्या इसलिए कि इस्राईल में कोई ख़ुदा नहीं है जिसकी मर्ज़ी को तू दरियाफ़्त कर सके? इसलिए तू उस पलंग से, जिस पर तू चढ़ा है, उतरने न पाएगा, बल्कि ज़रूर ही मरेगा।"
\s5
\v 17 इसलिए वह ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ जो एलियाह ने कहा था, मर गया; और चूँकि उसका कोई बेटा न था, इसलिए शाह-ए-यहूदाह यहूराम-बिन-यहूसफ़त के दूसरे साल से यहूराम उसकी जगह सल्तनत करने लगा।
\v 18 और अख़ज़ियाह के और काम जो उसने किए, क्या वह ~इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे नहीं?
\s5
\c 2
\p
\v 1 और जब ख़ुदावन्द एलियाह को शोले में आसमान पर उठा लेने को था, तो ऐसा हुआ कि एलियाह इलीशा' को साथ लेकर जिलजाल से चला,
\v 2 और एलियाह ने इलीशा' से कहा, "तू ज़रा यहीं ठहर जा, इसलिए कि ख़ुदावन्द ने मुझे बैतएल को भेजा है।” इलीशा' ने कहा, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम और तेरी जान की क़सम, मैं तुझे नहीं छोड़ूँगा।" इसलिए वह बैतएल को चले गए।
\s5
\v 3 ~और अम्बियाज़ादे जो बैतएल में थे, इलीशा' के पास आकर उससे कहने लगे कि क्या तुझे मा'लूम है कि ख़ुदावन्द आज तेरे सिर से तेरे आक़ा को उठा लेगा?" उसने कहा, "हाँ, मैं जानता हूँ; तुम चुप रहो।”
\v 4 एलियाह ने उससे कहा, "इलीशा', तू ज़रा यहीं ठहर जा, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मुझे यरीहू को भेजा है।" उसने कहा, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम और तेरी जान की क़सम, मैं तुझे नहीं छोड़ूँगा।" इसलिए वह यरीहू में आए।
\s5
\v 5 और अम्बियाज़ादे जो यरीहू में थे, इलीशा' के पास आकर उससे कहने लगे, "क्या तुझे मा'लूम है कि ख़ुदावन्द आज तेरे आक़ा को तेरे सिर से उठा लेगा?" उसने कहा, "हाँ, मैं जानता हूँ; तुम चुप रहो।”
\v 6 और एलियाह ने उससे कहा, "तू ज़रा यहीं ठहर जा, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मुझ को यरदन ~भेजा है।" उसने कहा, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम और तेरी जान की क़सम, मैं तुझे नहीं छोड़ूँगा।" इसलिए वह दोनों आगे चले।
\s5
\v 7 और अम्बियाज़ादों में से पचास आदमी जाकर उनके सामने दूर खड़े हो गए; और वह दोनों यरदन के किनारे खड़े हुए।
\v 8 और एलियाह ने अपनी चादर को लिया, और उसे लपेटकर पानी पर मारा और पानी दो हिस्से होकर इधर-उधर हो गया; और वह दोनों खु़श्क ज़मीन पर होकर पार गए।
\s5
\v 9 ~और जब वह पार गए तो एलियाह ने इलीशा' से कहा, "इससे पहले कि मैं तुझ से ले लिया जाऊँ, बता कि मैं तेरे लिए क्या करूँ।" इलीशा' ने कहा, "मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि तेरी रूह का दूना हिस्सा मुझ पर हो।"
\v 10 ~उसने कहा, "तू ने मुश्किल सवाल किया; तोभी अगर तू मुझे अपने से जुदा होते देखे, तो तेरे लिए ऐसा ही होगा; और अगर नहीं, तो ऐसा न होगा।"
\s5
\v 11 और वह आगे चलते और बातें करते जाते थे, कि देखो, एक आग का रथ और आग के घोड़ों ने उन दोनों को जुदा कर दिया, और एलियाह शोले में आसमान पर चला गया।
\v 12 इलीशा' ये देखकर चिल्लाया, "ऐ मेरे बाप, मेरे बाप! इस्राईल के रथ, और उसके सवार!"और उसने उसे फिर न देखा, तब उसने अपने कपड़ों को पकड़कर फाड़ डाला और दो हिस्से कर दिए।
\s5
\v 13 ~और उसने एलियाह की चादर को भी, जो उस पर से गिर पड़ी थी उठा लिया, और उल्टा फिरा और यरदन के किनारे खड़ा हुआ।
\v 14 ~और उसने एलियाह की चादर को, जो उस पर से गिर पड़ी थी, लेकर पानी पर मारा और कहा, "ख़ुदावन्द एलियाह का ख़ुदा कहाँ है?" और जब उसने भी पानी पर मारा, तो वह इधर-उधर दो हिस्से हो गया और इलीशा' पार हुआ।
\s5
\v 15 जब उन अम्बियाज़ादों ने जो यरीहू में उसके सामने थे, उसे देखा तो वह कहने लगे, "एलियाह की रूह इलीशा' पर ठहरी हुई है।" और वह उसके इस्तक़बाल को आए और उसके आगे ज़मीन तक झुककर उसे सिज्दा किया।
\v 16 और उन्होंने उससे कहा, 'अब देख, तेरे ख़ादिमों के साथ पचास ताक़तवर जवान हैं, ज़रा उनको जाने दे कि वह तेरे आक़ा को ढूँढें, कहीं ऐसा न हो कि ख़ुदावन्द की रूह ने उसे उठाकर किसी पहाड़ पर या किसी जंगल में डाल दिया हो।" उसने कहा, "मत भेजो।"
\s5
\v 17 ~जब उन्होंने उससे बहुत ज़िद की, यहाँ तक कि वह शर्मा भी गया, तो उसने कहा, 'भेज दो।" इसलिए उन्होंने पचास आदमियों को भेजा, और उन्होंने तीन दिन तक ढूँढा पर उसे न पाया।
\v 18 और वह अभी यरीहू में ठहरा हुआ था; जब वह उसके पास लौटे, तब उसने उनसे कहा, "क्या मैंने तुमसे न कहा था कि न जाओ?"
\s5
\v 19 ~फिर उस शहर के लोगों ने इलीशा' से कहा, "ज़रा देख, ये शहर क्या अच्छे मौके़' पर है, जैसा हमारा ख़ुदावन्द ख़ुद देखता है; लेकिन पानी ख़राब और ज़मीन बंजर हैं।"
\v 20 उसने कहा, "मुझे एक नया प्याला ला दो, और उसमें नमक डाल दो।" वह उसे उसके पास ले आए।
\s5
\v 21 ~और वह निकल कर पानी के चश्मे पर गया, और वह नमक उसमें डाल कर कहने लगा, "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि मैने इस पानी को ठीक कर दिया है, अब आगे को इससे मौत या बंजरपन न होगा।"
\v 22 ~देखो इलीशा' के कलाम के मुताबिक़ जो उसने फ़रमाया, वह पानी आज तक ठीक है
\s5
\v 23 वहाँ से वह बैतएल को चला, और जब वह रास्ते में जा रहा था तो उस शहर के छोटे लड़के निकले, और उसे चिढ़ाकर कहने लगे, 'चढ़ा चला जा, ऐ गंजे सिर वाले: चढ़ा चला जा, ऐ गंजे सिर वाले।"
\v 24 और उसने अपने पीछे नज़र की, और उनको देखा और ख़ुदावन्द का नाम लेकर उन पर ला'नत की; इसलिए जंगल में से दो रीछनियाँ निकली, और उन्होंने उनमें से बयालीस बच्चे फाड़ डाले।
\v 25 वहाँ से वह कर्मिल पहाड़ को गया, फिर वहाँ से सामरिया को लौट आया।
\s5
\c 3
\p
\v 1 और शाह-ए-यहूदाह यहूसफ़त के अठारवें बरस से अख़ी'अब का बेटा यहूराम सामरिया में इस्राईल पर बादशाहत करने लगा, और उसने बारह साल बादशाहत की।
\v 2 और उसने ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ गुनाह किया; लेकिन अपने बाप और अपनी माँ की तरह नहीं, क्यूँकि उसने बा'ल के उस सुतून को जो उसके बाप ने बनाया था दूर कर दिया।
\v 3 तोभी वह नबात के बेटे युरब'आम के गुनाहों से, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया था लिपटा रहा, और उनसे अपने आपको अलग न किया।
\s5
\v 4 मोआब का बादशाह मीसा बहुत भेड़ बकरियाँ रखता था, और इस्राईल के बादशाह को एक लाख बर्रों और एक लाख मेंढों की ऊन देता था।
\v 5 ~लेकिन जब अख़ीअब मर गया, तो मोआब का बादशाह इस्राईल के बादशाह से बाग़ी हो गया।
\v 6 ~उस वक़्त यहूराम बादशाह ने सामरिया से निकलकर सारे इस्राईल का जाएज़ा लिया।
\s5
\v 7 और उसने जाकर यहूदाह के बादशाह यहूसफ़त से पुछवा भेजा, ' मोआब का बादशाह मुझ से बाग़ी हो गया है; इसलिए क्या तू मोआब से लड़ने के लिए मेरे साथ चलेगा?" उसने जवाब दिया, "मैं चलूँगा; क्यूँकि जैसा मैं हूँ। वैसा ही तू है, और जैसे मेरे लोग वैसे ही तेरे लोग, और जैसे मेरे घोड़े वैसे ही तेरे घोड़े हैं।"
\v 8 ~तब उसने पूछा, "हम किस रास्ते से जाएँ?" उसने जवाब दिया, " अदोम के रास्ते से।"
\s5
\v 9 चुनाँचे इस्राईल के बादशाह और यहूदाह के बादशाह और अदोम के बादशाह निकले; और उन्होंने सात दिन की मन्ज़िल का चक्कर काटा, और उनके लश्कर और चौपायों के लिए, जो पीछे पीछे आते थे, कहीं पानी न था।
\v 10 और इस्राईल के बादशाह ने कहा, "अफ़सोस कि ख़ुदावन्द ने इन तीन बादशाहों को इकट्ठा किया है, ताकि उनको मोआब के बादशाह के हवाले कर दे।"
\s5
\v 11 ~लेकिन यहूसफ़त ने कहा, "क्या ख़ुदावन्द के नबियों में से कोई यहाँ नहीं है, ताकि उसके वसीले से हम ख़ुदावन्द की मर्ज़ी मा'लूम करें?" और इस्राईल के बादशाह के ख़ादिमों में से एक ने जवाब दिया, "इलीशा'- बिन-साफ़त यहाँ है, जो एलियाह के हाथ पर पानी डालता था।"
\v 12 यहूसफ़त ने कहा, "ख़ुदावन्द का कलाम उसके साथ है।" तब इस्राईल के बादशाह और यहूसफ़त और अदोम के बादशाह उसके पास गए।
\s5
\v 13 तब इलीशा' ने इस्राईल के बादशाह से कहा, "मुझ को तुझ से क्या काम? तू अपने बाप के नबियों और अपनी माँ के नबियों के पास जा।" पर इस्राईल के बादशाह ने उससे कहा, "नहीं, नहीं, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने इन तीनों बादशाहों को इकट्ठा किया है, ताकि उनको मोआब के हवाले कर दे।”
\v 14 इलीशा' ने कहा, "रब्ब-उल-अफ़वाज की हयात की क़सम, जिसके आगे मैं खड़ा हूँ, अगर मुझे यहूदाह के बादशाह यहूसफ़त की हुज़ूरी के नज़दीक न होता , तो मैं तेरी तरफ़ नज़र भी न करता और न तुझे देखता।
\s5
\v 15 लेकिन ख़ैर, किसी बजाने वाले को मेरे पास लाओ।” और ऐसा हुआ कि जब उस बजाने वाले ने बजाया, तो ख़ुदावन्द का हाथ उस पर ठहरा।
\v 16 ~तब उसने कहा, "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "इस जंगल में ख़न्दक़ ही ख़न्दक़ खोद डालो।"
\v 17 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, 'तुम न हवा आती देखोगे और न पानी आते देखोगे, तोभी ये वादी पानी से भर जाएगी, और तुम भी पियोगे और तुम्हारे मवेशी और तुम्हारे जानवर भी।'
\s5
\v 18 और ये ख़ुदावन्द के लिए एक हल्की सी बात है; वह मोआबियों को भी तुम्हारे हाथ में कर देगा।
\v 19 और तुम हर फ़सीलदार शहर और उम्दा शहर ~क़ब्ज़ा लोगे, और हर अच्छे दरख़्त को काट डालोगे, और पानी के सब चश्मों को भर दोगे, और हर अच्छे खेत को पत्थरों से ख़राब कर दोगे।”
\s5
\v 20 ~इसलिए सुबह को क़ुर्बानी पेश करने के वक़्त ऐसा हुआ, कि अदोम की राह से पानी बहता आया और वह मुल्क पानी से भर गया।
\s5
\v 21 जब सब मोआबियों ने ये सुना कि बादशाहों ने उनसे लड़ने के लिए चढ़ाई की है, तो वह सब जो हथियार बाँधने के क़ाबिल थे, और 'उम्र दराज़ भी, इकट्ठे होकर सरहद पर खड़े हो गए;
\v 22 और वह सुबह सवेरे उठे और सूरज पानी पर चमक रहा था, और मोआबियों को वह पानी जो उनके सामने था, ख़ून की तरह सुर्ख़ दिखाई दिया।
\v 23 तब वह कहने लगे, "ये तो खू़न है; वह बादशाह यक़ीनन हलाक हो गए हैं, और उन्होंने आपस में एक दूसरे को मार दिया है। इसलिए अब ऐ मोआब, लूट को चल।"
\s5
\v 24 ~जब वह इस्राईल की लश्करगाह में आए, तो इस्राईलियों ने उठकर मोआबियों को ऐसा मारा कि वह उनके आगे से भागे; पर वह आगे बढ़ कर मोआबियों को मारते मारते उनके मुल्क' में घुस गए।
\v 25 ~और उन्होंने शहरों को गिरा दिया, और ज़मीन के हर अच्छे ख़ित्ते' पर सभी ने एक एक पत्थर डालकर उसे भर दिया, और उन्होंने पानी के सब चश्में बन्द कर दिए, और सब अच्छे दरख़्त काट डाले, सिर्फ़ हरासत के पहाड़ ही के पत्थरों को बाक़ी छोड़ा, पर गोफ़न चलाने वालों ने उसको भी जा घेराऔर उसे मारा।
\s5
\v 26 ~जब मोआब के बादशाह ने देखा कि जंग उसके लिए निहायत सख़्त हो गई, तो उसने सात सौ तलवार वाले मर्द अपने साथ लिए, ताकि सफ़ चीर कर अदोम के बादशाह तक जा पहुँचे; पर वह ऐसा न कर सके।
\v 27 तब उसने अपने पहलौठे बेटे को लिया, जो उसकी जगह बादशाह होता, और उसे दीवार पर सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर पेश किया। यूँ इस्राईल पर बड़ा ग़ज़ब हुआ; तब वह उसके पास से हट गए और अपने मुल्क को लौट आए।
\s5
\c 4
\p
\v 1 और अम्बियाज़ादों की बीवियों में से एक 'औरत ने इलीशा' से फ़रियाद की और कहने लगी, "तेरा ख़ादिम मेरा शौहर मर गया है, और तू जानता है कि तेरा ख़ादिम ख़ुदावन्द से डरता था; इसलिए अब क़र्ज़ देने वाला आया है कि मेरे दोनों बेटों को ले जाए ताकि वह ग़ुलाम बनें।"
\v 2 ~इलीशा' ने उससे कहा, "मैं तेरे लिए क्या करूँ? मुझे बता, तेरे पास घर में क्या है?" उसने कहा, "तेरी ख़ादिमा के पास घर में एक प्याला तेल के 'अलावा कुछ भी नहीं।”
\s5
\v 3 ~तब उसने कहा, "तू जा, और बाहर से अपने सब पड़ोसियों से बर्तन उजरत पर ले, वह बर्तन ख़ाली हों, और थोड़े बर्तन न लेना।
\v 4 ~फिर तू अपने बेटों को साथ लेकर अन्दर जाना और पीछे से दरवाज़ा बन्द कर लेना, और उन सब बर्तनों में तेल उँडेलना, और जो भर जाए उसे उठा कर अलग रखना।"
\s5
\v 5 ~तब वह उसके पास से गई, और उसने अपने बेटों को अन्दर साथ लेकर दरवाज़ा बन्द कर लिया; और वह उसके पास लाते जाते थे और वह उँडेलती जाती थी।
\v 6 ~जब वह बर्तन भर गए तो उसने अपने बेटे से कहा, "मेरे पास एक और बर्तन ला।" उसने उससे कहा, "और तो कोई बर्तन रहा नहीं।" तब तेल बन्द हो गया।
\s5
\v 7 ~तब उसने आकर मर्द-ए-ख़ुदा को बताया। उसने कहा, 'जा, तेल बेच, और क़र्ज़ अदा कर, और जो बाक़ी रहे उससे तू और तेरे बेटे गुज़ारा ~करें।”
\s5
\v 8 एक रोज़ ऐसा हुआ कि इलीशा' शूनीम को गया, वहाँ एक दौलतमन्द 'औरत थी; और उसने उसे रोटी खाने पर मजबूर किया। फिर तो जब कभी वह उधर से गुज़रता, रोटी खाने के लिए वहीं चला जाता था।
\v 9 इसलिए उसने अपने शौहर से कहा, "देख, मुझे मा'लूम होता है कि ये मर्द-ए-ख़ुदा, जो अकसर हमारी तरफ़ आता है, मुक़द्दस है।
\s5
\v 10 हम उसके लिए एक छोटी सी कोठरी दीवार पर बना दें, और उसके लिए एक पलंग और मेज़ और चौकी और चराग़दान लगा दें, फिर जब कभी वह हमारे पास आए तो वहीं ठहरेगा।"
\v 11 ~फिर एक दिन ऐसा हुआ कि वह उधर गया और उस कोठरी में जाकर वहीं सोया।
\s5
\v 12 ~फिर उसने अपने ख़ादिम जेहाज़ी से कहा, "इस शूनीमी 'औरत को बुला ले।" उसने उसे बुला लिया और वह उसके सामने खड़ी हुई।
\v 13 ~फिर उसने अपने ख़ादिम से कहा, "तू उससे पूछ कि तूने जो हमारे लिए इस क़दर फ़िक्रें कीं, तो तेरे लिए क्या किया जाए? क्या तू चाहती है कि बादशाह से, या फ़ौज के सरदार से तेरी सिफ़ारिश की जाए?" उसने जवाब दिया, "मैं तो अपने ही लोगों में रहती हूँ।"
\s5
\v 14 ~फिर उसने कहा, "उसके लिए क्या किया जाए?" तब जेहाज़ी ने जवाब दिया, "सच उसके कोई बेटा नहीं, और उसका शौहर बुड्ढा है।”
\v 15 ~तब उसने कहा, "उसे बुला ले।" और जब उसने उसे बुलाया, तो वह दरवाज़े पर खड़ी हुई।
\v 16 तब उसने कहा, "मौसम-ए-बहार में, वक़्त पूरा होने पर तेरी गोद में बेटा होगा।" उसने कहा, "नहीं, ऐ मेरे मालिक! ऐ मर्द-ए-ख़ुदा, अपनी ख़ादिमा से झूठ न कह।"
\s5
\v 17 ~फिर वह 'औरत हामिला हुई और जैसा इलीशा' ने उससे कहा था, मौसम-ए-बहार में वक़्त पूरा होने पर उसके बेटा हुआ।
\v 18 जब वह लड़का बढ़ा, तो एक दिन ऐसा हुआ कि वह अपने बाप के पास खेत काटनेवालों में चला गया।
\v 19 और उसने अपने बाप से कहा, "हाय मेरा सिर, हाय मेरा सिर!" उसने अपने ख़ादिम से कहा, 'उसे उसकी माँ के पास ले जा।"
\v 20 जब उसने उसे लेकर उसकी माँ के पास पहुँचा दिया, तो वह उसके घुटनों पर दोपहर तक बैठा रहा, इसके बा'द मर गया।
\s5
\v 21 तब उसकी माँ ने ऊपर जाकर उसे मर्द-ए-ख़ुदा के पलंग पर लिटा दिया, और दरवाज़ा बन्द करके बाहर गई।
\v 22 ~और उसने अपने शौहर से पुकार कर कहा, "जल्द जवानों में से एक को, और गधों में से एक को मेरे लिए भेज दे, ताकि मैं मर्द-ए-ख़ुदा के पास दौड़ जाऊँ और फिर लौट आऊँ।"
\s5
\v 23 उसने कहा, "आज तू उसके पास क्यूँ जाना चाहती है? आज न तो नया चाँद है न सब्त।" उसने जवाब दिया, "अच्छा ही होगा।"
\v 24 और उसने गधे पर ज़ीन कसकर अपने ख़ादिम से कहा, "चल, आगे बढ़; और सवारी चलाने में सुस्ती न कर, जब तक मैं तुझ से न कहूँ।"
\s5
\v 25 तब वह चली और वह कर्मिल पहाड़ को मर्द-ए-ख़ुदा के पास गई। उस मर्द-ए-ख़ुदा ने दूर से उसे देखकर अपने ख़ादिम जेहाज़ी से कहा, "देख, उधर वह शूनीमी 'औरत है।
\v 26 अब ज़रा उसके इस्तक़बाल को दौड़ जा, और उससे पूछ, 'क्या तू खै़रियत से है? तेरा शौहर खै़रियत से, बच्चा ख़ैरियत से है?' " उसने जवाब दिया, "ठीक नहीं है।"
\s5
\v 27 ~और जब वह उस पहाड़ पर मर्द-ए-ख़ुदा के पास आई, तो उसके पैर पकड़ लिए, और जेहाज़ी उसे हटाने के लिए नज़दीक आया, पर मर्द-ए-ख़ुदा ने कहा, "उसे छोड़ दे, क्यूँकि उसका दिल परेशान है, और ख़ुदावन्द ने ये बात मुझ से छिपाई और मुझे न बताई।"
\s5
\v 28 और वह कहने लगी, "क्या मैंने अपने मालिक से बेटे का सवाल किया था? क्या मैंने न कहा था, 'मुझे धोका न दे'?"
\v 29 तब उसने जेहाज़ी से कहा, "कमर बाँध, और मेरी लाठी हाथ में लेकर अपना रास्ता ले; अगर कोई तुझे रास्ते में मिले तो उसे सलाम न करना, और अगर कोई तुझे सलाम करे तो जवाब न देना; और मेरी लाठी उस लड़के के मुँह पर रख देना।"
\s5
\v 30 ~उस लड़के की माँ ने कहा, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम और तेरी जान की क़सम, मैं तुझे नहीं छोड़ूँगी।" तब वह उठ कर उसके पीछे-पीछे चला।
\v 31 ~और जेहाज़ी ने उनसे पहले आकर लाठी को उस लड़के के मुँह पर रखा; पर न तो कुछ आवाज़ हुई, न सुना। इसलिए वह उससे मिलने को लौटा, और उसे बताया, "लड़का नहीं जागा।"
\s5
\v 32 ~जब इलीशा' उस घर में आया, तो देखो, वह लड़का मरा हुआ उसके पलंग पर पड़ा था।
\v 33 ~तब वह अकेला अन्दर गया, और दरवाज़ा बन्द करके ख़ुदावन्द से दु'आ की।
\v 34 और ऊपर चढ़कर उस बच्चे पर लेट गया; और उसके मुँह पर अपना मुँह, और उसकी आँखों पर अपनी ऑखें, और उसके हाथों पर अपने हाथ रख लिए, और उसके ऊपर लेट गया; तब उस बच्चे का जिस्म गर्म होने लगा।
\s5
\v 35 ~फिर वह उठकर उस घर में एक बार टहला, और ऊपर चढ़कर उस बच्चे के ऊपर लेट गया; और वह बच्चा सात बार छींका और बच्चे ने ऑखें खोल दीं।
\v 36 तब उसने जेहाज़ी को बुला कर कहा, "उस शूनीमी 'औरत को बुला ले।” तब उसने उसे बुलाया, और जब वह उसके पास आई, तो उसने उससे कहा, "अपने बेटे को उठा ले।"
\v 37 ~तब वह अन्दर जाकर उसके क़दमों पर गिरी और ज़मीन पर सिज्दे में हो गई; फिर अपने बेटे को उठा कर बाहर चली गई।
\s5
\v 38 और इलीशा' फिर जिलजाल में आया, और मुल्क में काल था, और अम्बियाज़ादे उसके सामने बैठे हुए थे। और उसने अपने ख़ादिम से कहा, "बड़ी देग चढ़ा दे, और इन अम्बियाज़ादों के लिए लप्सी पका।"
\v 39 और उनमें से एक खेत में गया कि कुछ सब्ज़ी चुन लाए। तब उसे कोई जंगली लता मिल गई। उसने उसमें से इन्द्रायन तोड़कर दामन भर लिया और लौटा, और उनको काटकर लप्सी की देग में डाल दिया, क्यूँकि वह उनको पहचानते न थे।
\s5
\v 40 चुनाँचे उन्होंने उन मर्दों के खाने के लिए उसमें से ऊँडेला। और ऐसा हुआ कि जब वह उस लप्सी में से खाने लगे, तो चिल्ला उठे और कहा, "ऐ मर्द-ए-ख़ुदा, देग में मौत है!" और वह उसमें से खा न सके।
\v 41 ~लेकिन उसने कहा, "आटा लाओ।" और उसने उस देग में डाल दिया और कहा, "उन लोगों के लिए उंडेलो, ताकि वह खाएँ।" फ़िर देग में कोई मुज़िर चीज़ बाक़ी न रही।
\s5
\v 42 बाल सलीसा से एक शख़्स आया, और पहले फ़सल की रोटियाँ, या'नी जौ के बीस गिर्दे और अनाज की हरी-हरी बाले मर्द ए-ख़ुदा के पास लाया, उसने कहा, "इन लोगों को दे दे, ताकि वह खाएँ।”
\v 43 उसके ख़ादिम ने कहा, "क्या मैं इतने ही को सौ आदमियों के सामने रख दूँ?" फिर उसने फिर कहा, "लोगों को दे दे, ताकि वह खाएँ; क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, 'वह खाएँगे और उसमें से कुछ छोड़ भी देंगे।' "
\v 44 तब उसने उसे उनके आगे रख्खा और उन्होंने खाया; और जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया था, उसमें से कुछ छोड़ भी दिया।
\s5
\c 5
\p
\v 1 अराम के बादशाह के लश्कर का सरदार ना'मान, अपने आक़ा के नज़दीक मु'अज़्ज़िज़-'इज़्ज़तदार शख़्स था; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उसके वसीले से अराम को फ़तह बख़्शी थी। वह ज़बरदस्त सूर्मा भी था, लेकिन कोढ़ी था।
\v 2 ~और अरामी दल बाँधकर निकले थे, और इस्राईल के मुल्क में से एक छोटी लड़की को क़ैद करके ले आए थे; वह ना'मान की बीवी की ख़ादमा थी।
\s5
\v 3 उसने अपनी बीबी से कहा, "काश मेरा आक़ा उस नबी के यहाँ होता, जो सामरिया में है! तो वह उसे उसके कोढ़ से शिफ़ा दे देता।”
\v 4 तो किसी ने अन्दर जाकर अपने मालिक से कहा, "वह लड़की जो इस्राईल के मुल्क की है, ऐसा-ऐसा कहती है।"
\s5
\v 5 ~तब अराम के बादशाह ने कहा, "तू जा, और मैं इस्राईल के बादशाह को ख़त भेजूँगा।" तब वह रवाना हुआ, और दस क़िन्तार चाँदी और छः हज़ार मिस्क़ाल सोना और दस जोड़े कपड़े अपने साथ ले लिए।
\v 6 और वह उस ख़त को इस्राईल के बादशाह के पास लाया जिसका मज़मून ये था, "ये ख़त जब तुझको मिले, तो जान लेना कि मैंने अपने ख़ादिम ना'मान को तेरे पास भेजा है, ताकि तू उसके कोढ़ से उसे शिफ़ा दे।"
\s5
\v 7 ~जब इस्राईल के बादशाह ने उस ख़त को पढ़ा, तो अपने कपड़े फाड़कर कहा, "क्या मैं ख़ुदा हूँ कि मारूँ और जिलाऊँ, जो ये शख़्स एक आदमी को मेरे पास भेजता है कि उसको कोढ़ से शिफ़ा दूँ? इसलिए अब ज़रा ग़ौर करो, देखो, कि वह किस तरह मुझ से झगड़ने का बहाना ढूँढता है।"
\s5
\v 8 जब मर्द-ए-ख़ुदा इलीशा' ने सुना कि इस्राईल के बादशाह ने अपने कपड़े फाड़े, तो बादशाह को कहला भेजा, "तूने अपने कपड़े क्यूँ फाड़े? अब उसे मेरे पास आने दे, और वह जान लेगा कि इस्राईल में एक नबी है।”
\v 9 तब ना'मान अपने घोड़ों और रथों के साथ आया, और इलीशा' के घर के दरवाज़े पर खड़ा हुआ,
\v 10 और इलीशा' ने एक क़ासिद के ज़रिए' कहला भेजा, 'जा और यरदन में सात बार ग़ोता मार, तो तेरा जिस्म फिर बहाल हो जाएगा और तू पाक साफ़ होगा।" l
\s5
\v 11 पर ना'मान नाराज़ होकर चला गया और कहने लगा, "मुझे यक़ीन था कि वह निकल कर ज़रूर मेरे पास आएगा, और खड़ा होकर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से दु'आ करेगा, और उस जगह के ऊपर अपना हाथ इधर-उधर हिला कर कोढ़ी को शिफ़ा देगा।
\v 12 क्या दमिश्क़ के दरिया, अबाना और फ़रफ़र, इस्राईल की सब नदियों से बढ़ कर नहीं हैं? क्या मैं उनमें नहाकर पाक साफ़ नहीं हो सकता?" इसलिए वह लौटा और बड़े ग़ुस्से में चला गया।
\s5
\v 13 तब उसके मुलाज़िम पास आकर उससे यूँ कहने लगे, "ऐ हमारे बाप, अगर वह नबी कोई बड़ा काम करने का हुक्म तुझे देता, तो क्या तू उसे न करता? इसलिए जब वह तुझ से कहता है कि नहा ले और पाक साफ़ हो जा, तो कितना ज़्यादा इसे मानना चाहिए?"
\v 14 ~तब उसने उतरकर नबी के कहने के मुताबिक़ यरदन में सात ग़ोते लगाए, और उसका जिस्म छोटे बच्चे के जिस्म की तरह हो गया और वह पाक साफ़ हुआ।
\s5
\v 15 ~फिर वह अपनी जिलौ के सब लोगों के साथ नबी के पास लौटा, और उसके सामने खड़ा हुआ और कहने लगा, "देख, अब मैंने जान लिया कि इस्राईल को छोड़ और कहीं इस ज़मीन पर कोई ख़ुदा नहीं। इसलिए अब करम फ़रमाकर अपने ख़ादिम का तोहफ़ा कु़बूल कर।"
\v 16 ~लेकिन उसने जवाब दिया, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम जिसके आगे मैं खड़ा हूँ, मैं कुछ नहीं लूँगा।" और उसने उससे बहुत मजबूर किया कि ले, पर उसने इन्कार किया।
\s5
\v 17 तब ना'मान ने कहा, "अच्छा, तो मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, कि तेरे ख़ादिम को दो ख़च्चरों का बोझ मिट्टी दी जाए' क्यूँकि तेरा ख़ादिम अब से आगे ख़ुदावन्द के सिवा किसी गै़र-मा'बूद के सामने न तो सोख़्तनी क़ुर्बानी न ज़बीहा पेश करेगा।
\v 18 ~तब इतनी बात में ख़ुदावन्द तेरे ख़ादिम को मु'आफ़ करे, कि जब मेरा आक़ा 'इबादत करने को रिम्मोन के बुतख़ाने में जाए और वह मेरे हाथ का सहारा ले, और मैं रिम्मोन के बुतख़ाने में सिज्दे में जाऊँ ; तो जब मैं रिम्मोन के बुतख़ाने में सिज्दे में हो जाऊँ, तो ख़ुदावन्द इस बात में तेरे ख़ादिम को मु'आफ़ करे।”
\v 19 उसने उससे कहा, 'सलामती जा।" तब वह उससे रुख़्सत होकर थोड़ी दूर निकल गया।
\s5
\v 20 लेकिन उस नबी इलीशा' के ख़ादिम जेहाज़ी ने सोचा, "मेरे आक़ा ने अरामी ना'मान को यूँ ही जाने दिया कि जो कुछ वह लाया था उससे न लिया; इसलिए ख़ुदावन्द की हयात की क़सम, मैं उसके पीछे दौड़ जाऊँगा और उससे कुछ न कुछ लूँगा।"
\v 21 तब जेहाज़ी ना'मान के पीछे चला। जब ना'मान ने देखा, कि कोई उसके पीछे दौड़ा आ रहा है, तो वह उससे मिलने को रथ पर से उतरा और कहा, "खै़र तो है?"
\v 22 उसने कहा, "सब खै़र है! मेरे मालिक ने मुझे ये कहने को भेजा है कि देख, अम्बियाज़ादों में से अभी दो जवान इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क से मेरे पास आ गए हैं; इसलिए ज़रा एक क़िन्तार चाँदी, और दो जोड़े कपड़े उनके लिए दे दे।"
\s5
\v 23 ~ना'मान ने कहा, "ख़ुशी से दो क़िन्तार ले।” और वह उससे बज़िद हुआ, और उसने दो क़िन्तार चाँदी दो थैलियों में बाँधी और दो जोड़े कपड़ों के साथ उनको अपने दो नौकरों पर लादा, और वह उनको लेकर उसके आगे-आगे चले।
\v 24 और उसने टीले पर पहुँचकर उनके हाथ से उनको ले लिया और घर में रख दिया, और उन मर्दों को रुख़्सत किया, तब वह चले गए।
\v 25 ~लेकिन ख़ुद अन्दर जाकर अपने आक़ा के सामने खड़ा हो गया। इलीशा' ने उससे कहा, "जेहाज़ी, तू कहाँ से आ रहा है?" उसने कहा, "तेरा ख़ादिम तो कहीं नहीं गया था।"
\s5
\v 26 उसने उससे कहा, "क्या मेरा दिल उस वक़्त तेरे साथ न था, जब वह शख़्स तुझ से मिलने को अपने रथ पर से लौटा? क्या रुपये लेने, और पोशाक, और जै़तून के बाग़ों और ताकिस्तानों और भेड़ों और गु़लामों, और लौंडियों के लेने का ये वक़्त है?
\v 27 इसलिए ना'मान का कोढ़ तुझे और तेरी नस्ल को हमेशा लगा रहेगा। इसलिए~~वह बर्फ़ की तरह~सफ़ेद कोढ़ी होकर उसके सामने से चला गया।
\s5
\c 6
\p
\v 1 और अम्बियाज़ादों ने इलीशा' से कहा,"देख, ये जगह जहाँ हम तेरे सामने रहते हैं, हमारे लिए छोटी है;
\v 2 ~इसलिए हम को ज़रा यरदन को जाने दे कि हम वहाँ से एक एक कड़ी लेकर आएँ और अपने रहने के लिए एक घर बना सकें ।" उसने जवाब दिया, "जाओ।”
\v 3 तब एक ने कहा, "मेहरबानी से अपने ख़ादिमों के साथ चल।" उसने कहा, "मैं चलूँगा।"
\s5
\v 4 चुनाँचे वह उनके साथ गया, और जब वह यरदन पर पहुँचे तो लकड़ी काटने लगे।
\v 5 ~लेकिन एक की कुल्हाड़ी का लोहा, जब वह कड़ी काट रहा था, पानी में गिर गया। तब वह चित्ला उठा, और कहने लगा, 'हाय, मेरे मालिक! यह तो माँगा हुआ था।”
\s5
\v 6 ~नबी ने कहा, "वह किस जगह गिरा?" उसने उसे वह जगह दिखाई। तब उसने एक छड़ी काट कर उस जगह डाल दी, और लोहा तैरने लगा।
\v 7 ~फिर उसने कहा, "अपने लिए उठा ले।” तब उसने हाथ बढ़ाकर उसे उठा लिया।
\s5
\v 8 अराम का बादशाह, इस्राईल के बादशाह से लड़ रहा था; और उसने अपने ख़ादिमों से मशवरा किया कि मैं इन इन जगह पर डेरा डालूँगा।"
\v 9 ~इसलिए मर्द-ए-ख़ुदा ने इस्राईल के बादशाह से कहला भेजा कि ख़बरदार तू उन जगहों से मत गुज़रना, क्यूँकि वहाँ अरामी आने को हैं।"
\s5
\v 10 और इस्राईल के बादशाह ने उस जगह, जिसकी ख़बर मर्द-ए-ख़ुदा ने दी थी और उसको आगाह कर दिया था, आदमी भेजे और वहाँ से अपने को बचाया, और यह सिर्फ़ एक या दो बार ही नहीं।
\v 11 इस बात की वजह से अराम के बादशाह का दिल निहायत बेचैन हुआ; और उसने अपने ख़ादिमों को बुलाकर उनसे कहा, "क्या तुम मुझे नहीं बताओगे कि हम में से कौन इस्राईल के बादशाह की तरफ़ है?"
\s5
\v 12 ~तब उसके ख़ादिमों में से एक ने कहा, "नहीं, ऐ मेरे मालिक, ऐ बादशाह! बल्कि इलीशा', जो इस्राईल में नबी है, तेरी उन बातों को जो तू अपनी आरामगाह में कहता है, इस्राईल के बादशाह को बता देता है।”
\v 13 ~उसने कहा, "जाकर देखो वह कहाँ है, ताकि मैं उसे पकड़वाऊँ।" और उसे यह बताया गया, "वह दूतैन में है।”
\s5
\v 14 तब उसने वहाँ घोड़ों और रथों, और एक बड़े लश्कर को रवाना किया; तब उन्होंने रातों रात आकर उस शहर को घेर लिया।
\v 15 जब उस मर्द-ए-ख़ुदा का ख़ादिम सुबह को उठ कर बाहर निकला तो देखा, कि एक लश्कर घोड़ों के साथ और रथों के शहर के चारों तरफ़ है। तब उस ख़ादिम ने जाकर उससे कहा, 'हाय! ऐ मेरे मालिक, हम क्या करें?"
\v 16 ~उसने जवाब दिया, "ख़ौफ़ न कर, क्यूँकि हमारे साथ वाले उनके साथ वालों से ज़्यादा हैं।"
\s5
\v 17 और इलीशा' ने दु'आ की और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, उसकी आँखें खोल दे ताकि वह देख सके।" तब ख़ुदावन्द ने उस जवान की आँखें खोल दीं, और उसने जो निगाह की तो देखा कि इलीशा' के चारों तरफ़ का पहाड़ आग के घोड़ों और रथों से भरा है।
\v 18 और जब वह उसकी तरफ़ आने लगे, तो इलीशा' ने ख़ुदावन्द से दु'आ की और कहा, "मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, इन लोगों को अन्धा कर दे।" इसलिए उसने जैसा इलीशा' ने कहा था, उनको अन्धा कर दिया।
\v 19 ~फिर इलीशा' ने उनसे कहा, "यह वह रास्ता नहीं और न ये वह शहर है, तुम मेरे पीछे चले आओ, और मैं तुम को उस शख़्स के पास पहुँचा दूँगा जिसकी तुम तलाश करते हो।” और वह उनको सामरिया को ले गया।
\s5
\v 20 जब वह सामरिया में पहुँचे तो इलीशा' ने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, इन लोगों की आँखें खोल दे, ताकि वह देख सके।" तब ख़ुदावन्द ने उनकी आँखें खोल दीं, उन्होंने जो निगाह की, तो क्या देखा कि सामरिया के अन्दर हैं।
\v 21 और इस्राईल के बादशाह ने उनको देखकर इलीशा' से कहा, "ऐ मेरे बाप, क्या मैं उनको मार लूँ? मैं उनको मार लूँ?”
\s5
\v 22 ~उसने जवाब दिया, "तू उनको न मार। क्या तू उनको मार दिया करता है, जिनको तू अपनी तलवार और कमान से क़ैद कर लेता है? तू उनके आगे रोटी और पानी रख, ताकि वह खाएँ-पिएँ और अपने मालिक के पास जाएँ।"
\v 23 ~तब उसने उनके लिए बहुत सा खाना तैयार किया; और जब वह खा पी चुके तो उसने उनको रुख़्सत किया, और वह अपने मालिक के पास चले गए। और अराम के गिरोह इस्राईल के मुल्क में फिर न आए।
\s5
\v 24 ~इसके बा'द ऐसा हुआ कि बिनहदद, अराम, का बादशाह अपनी सब फ़ौज इकट्ठी करके चढ़ आया और सामरिया का घेरा कर लिया।
\v 25 और सामरिया में बड़ा काल था, और वह उसे घेरे रहे, यहाँ तक कि गधे का सिर चाँदी के अस्सी सिक्कों में और कबूतर की बीट का एक चौथाई पैमाना' चाँदी के पाँच सिक्कों में बिकने लगा।
\v 26 जब इस्राईल का बादशाह दीवार पर जा रहा था, तो एक 'औरत ने उसकी दुहाई दी और कहा, "ऐ मेरे मालिक, ऐ बादशाह, मदद कर।”
\s5
\v 27 उसने कहा, "अगर ख़ुदावन्द ही तेरी मदद न करे, तो मैं कहाँ से तेरी मदद करूँ? क्या ख़लिहान से, या अंगूर के कोल्हू से?"
\v 28 ~फिर बादशाह ने उससे कहा, "तुझे क्या हुआ?" उसने जवाब दिया, "इस 'औरत ने मुझसे कहा, 'अपना बेटा दे दे, ताकि हम आज के दिन उसे खाएँ; और मेरा बेटा जो है, फिर उसे हम कल खाएँगे।'
\v 29 तब मेरे बेटे को हम ने पकाया और उसे खा लिया, और दूसरे दिन मैंने उससे कहा, 'अपना बेटा ला, ताकि हम उसे खाएँ;" लेकिन उसने अपना बेटा छिपा दिया है।"
\s5
\v 30 बादशाह ने उस 'औरत की बातें सुनकर अपने कपड़े फाड़े; उस वक़्त वह दीवार पर चला जाता था, और लोगों ने देखा कि अन्दर उसके तन पर टाट है।
\v 31 ~और उसने कहा, "अगर आज साफ़त के बेटे इलीशा' का सिर उसके तन पर रह जाए, तो ख़ुदावन्द मुझसे ऐसा बल्कि इससे ज़्यादा करे।"
\s5
\v 32 ~लेकिन इलीशा' अपने घर में बैठा रहा, और बुजु़र्ग़ लोग उसके साथ बैठे थे, और बादशाह ने अपने सामने से एक शख़्स को भेजा, पर इससे पहले कि वह क़ासिद उसके पास आए, उसने बुज़ु़गों से कहा, "तुम देखते हो कि उस क़ातिल के बेटे ने मेरा सिर उड़ा देने को एक आदमी भेजा है? इसलिए देखो, जब वह क़ासिद आए, तो दरवाज़ा बन्द कर लेना~और मज़बूती से दरवाज़े को उसके सामने पकड़े रहना। क्या उसके पीछे-पीछे उसके मालिक के पैरों की आहट नहीं?"
\v 33 ~और वह उनसे अभी बातें कर ही रहा था कि देखो, कि वह क़ासिद उसके पास आ पहुँचा, और उसने कहा, "देखो, ये बला ख़ुदावन्द की तरफ़ से है, अब आगे मैं ख़ुदावन्द का रास्ता क्यूँ देखूँ?"
\s5
\c 7
\p
\v 1 तब इलीशा' ने कहा, "तुम ख़ुदावन्द की बात सुनो, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि 'कल इसी वक़्त के क़रीब सामरिया के फाटक पर एक मिस्क़ाल में एक पैमाना' मैदा, और एक ही मिस्क़ाल में दो पैमाना जौ बिकेगा।”
\v 2 ~तब उस सरदार ने जिसके हाथ पर बादशाह भरोसा करता था, मर्द-ए-ख़ुदा को जवाब दिया, "देख, अगर ख़ुदावन्द आसमान में खिड़कियाँ भी लगा दे, तोभी क्या ये बात हो सकती है उसने कहा, सुन, तू इसे अपनी आँखों से देखेगा, लेकिन तू उसमें से खाने न पाएगा।"
\s5
\v 3 और उस जगह जहाँ से फाटक में दाख़िल होते थे, चार कोढ़ी थे: उन्होंने एक दूसरे से कहा, "हम यहाँ बैठे-बैठे क्यूँ मरें?
\v 4 अगर हम कहें, 'शहर के अन्दर जाएँगे, तो शहर में क़हत ~है और हम वहाँ मर जाएँगे; और अगर यहीं बैठे रहें, तोभी मरेंगे। इसलिए आओ, हम अरामी लश्कर में जाएँ, अगर वह हमको जीता छोड़ें तो हम जीते रहेंगे; और अगर वह हम को मार डालें, तो हम को मरना ही तो है।"
\s5
\v 5 ~फिर वह शाम के वक़्त उठ कर अरामियों के लश्करगाह को गए, और जब वह अरामियों के लश्करगाह की बाहर की हद पर पहुँचे तो देखा, कि वहाँ कोई आदमी नहीं है।
\v 6 क्यूँकि ख़ुदावन्द ने रथों की आवाज़ और घोड़ों की आवाज़ बल्कि एक बड़ी फ़ौज की आवाज़ अरामियों के लश्कर को सुनवाई, इसलिए वह आपस में कहने लगे, "देखो, इस्राईल के बादशाह ने हित्तियों के बादशाहों और मिस्रियों के बादशाहों को हमारे ख़िलाफ़ मज़दूरी पर बुलाया है, ताकि वह हम पर चढ़ आएँ।"
\s5
\v 7 इसलिए वह उठे, और शाम को भाग निकले; और अपने ख़ेमे, और अपने घोड़े, और अपने गधे, बल्कि सारी लश्करगाह जैसी की तैसी छोड़ दी और अपनी जान लेकर भागे।
\v 8 ~चुनाँचे जब ये कोढ़ी लश्करगाह की बाहर की हद पर पहुँचे, तो एक ख़ेमे में जाकर उन्होंने खाया पिया, और चाँदी और सोना और लिबास वहाँ से ले जाकर छिपा दिया, और लौट कर आए और दूसरे ख़ेमे में दाख़िल होकर वहाँ से भी ले गए और जाकर छिपा दिया।
\s5
\v 9 फिर वह एक दूसरे से कहने लगे, "हम अच्छा नहीं करते; आज का दिन ख़ुशख़बरी का दिन है, और हम ख़ामोश हैं; अगर हम सुबह की रोशनी तक ठहरे रहे तो सज़ा पाएँगे। अब आओ, हम जाकर बादशाह के घराने को ख़बर दें।"
\v 10 ~फिर उन्होंने आकर शहर के दरबान को बुलाया और उनको बताया, "हम अरामियों की लश्करगाह में गए, और देखो, वहाँ न आदमी है न आदमी की आवाज़, सिर्फ़ घोड़े बन्धे हुए, और गधे बन्धे हुए, और ख़ेमे जैसे थे वैसे ही हैं।"
\v 11 और दरबानों ने पुकार कर बादशाह के महल में ख़बर दी।
\s5
\v 12 तब बादशाह रात ही को उठा, और अपने ख़ादिमों से कहा कि "मैं तुम को बताता हूँ, अरामियों ने हम से क्या किया है? वह खू़ब जानते हैं कि हम भूके हैं; इसलिए वह मैदान में छिपने के लिए लश्करगाह से निकल गए हैं, और सोचा है कि जब हम शहर से निकलें तो वह हम को ज़िन्दा पकड़ लें, और शहर में दाख़िल हो जाएँ।”
\v 13 ~और उसके ख़ादिमों में से एक ने जवाब दिया, "ज़रा कोई उन बचे हुए घोड़ों में से जो शहर में बाक़ी हैं पाँच घोड़े ले (वह तो इस्राईल की सारी जमा'अत की तरह हैं जो बाक़ी रह गई है, बल्कि वह उस सारी इस्राईली जमा'अत की तरह हैं जो फ़ना हो गई), और हम उनको भेज कर देखें।"
\s5
\v 14 तब उन्होंने दो रथ घोड़ों के साथ लिए, और बादशाह ने उनको अरामियों के लश्कर के पीछे भेजा कि जाकर देखें।
\v 15 और वह उनके पीछे यरदन तक चले गए; और देखो, सारा रास्ता कपड़ों और बर्तनों से भरा पड़ा था जिनको अरामियों ने जल्दी में फेंक दिया था। तब क़ासिदों ने लौट कर बादशाह को ख़बर दी।
\s5
\v 16 तब लोगों ने निकल कर अरामियों की लश्करगाह को लूटा। फिर एक मिस्क़ाल में एक पैमाना मैदा, और एक ही मिस्क़ाल में दो पैमाने जौ, ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ बिका।
\v 17 और बादशाह ने उसी सरदार को जिसके हाथ पर भरोसा करता था, फाटक पर मुक़र्रर किया; और वह फाटक में लोगों के पैरों के नीचे दब कर मर गया, जैसा नबी ने फ़रमाया था, जिसने ये उस वक़्त कहा था जब बादशाह उसके पास आया था।
\s5
\v 18 और नबी ने जैसा बादशाह से कहा था, "कल इसी वक़्त के क़रीब एक मिस्क़ाल में दो पैमाने जौ, और एक ही मिस्क़ाल में एक पैमाना मैदा सामरिया के फाटक पर मिलेगा," वैसा ही हुआ;
\v 19 और उस सरदार ने नबी को जवाब दिया था, "देख, अगर ख़ुदावन्द आसमान में खिड़कियाँ भी लगा दे, तोभी क्या ऐसी बात हो सकती है?" और इसने कहा था, "तू अपनी आँखों से देखेगा, पर उसमें से खाने न पाएगा।"
\v 20 ~इसलिए उसके साथ ठीक ऐसा ही हुआ, क्यूँकि वह फाटक में लोगों के पैरों के नीचे दबकर मर गया।
\s5
\c 8
\p
\v 1 और इलीशा' ने उस 'औरत से जिसके बेटे को उसने ज़िन्दा किया था, ये कहा था, "उठ और अपने ख़ानदान के साथ जा, और जहाँ कहीं तू रह सके वहीं रह; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने काल का हुक्म दिया है"; और वह मुल्क में सात बरस तक रहेगा भी।"
\v 2 तब उस 'औरत ने उठ कर नबी के कहने के मुताबिक़ किया, और अपने ख़ानदान के साथ जाकर फ़िलिस्तियों के मुल्क में सात बरस तक रही।
\s5
\v 3 सातवें साल के आख़िर में ऐसा हुआ कि ये 'औरत फ़िलिस्तियों के मुल्क से लौटी, और बादशाह के पास अपने घर और अपनी ज़मीन के लिए फ़रियाद करने लगी।
\v 4 उस वक़्त बादशाह नबी के ख़ादिम जेहाज़ी से बातें कर रहा और ये कह रहा था, "ज़रा वह सब बड़े बड़े काम जो इलीशा' ने किए मुझे बता।"
\s5
\v 5 और ऐसा हुआ कि जब वह बादशाह को बता ही रहा था, कि उसने एक मुर्दे को ज़िन्दा किया, तो वही 'औरत जिसके बेटे को उसने ज़िन्दा किया था, आकर बादशाह के ~अपने घर और अपनी ज़मीन के लिए फ़रियाद करने लगी। तब जेहाज़ी बोल उठा, "ऐ मेरे मालिक, ऐ बादशाह! यही वह 'औरत है, यही उसका बेटा है जिसे इलीशा' ने ज़िन्दा किया था।”
\v 6 जब बादशाह ने उस 'औरत से पूछा, तो उसने उसे सब कुछ बताया। तब बादशाह ने एक ख़्वाजासरा को उसके लिए मुक़र्रर कर दिया और फ़रमाया, "सब कुछ जो इसका था, और जब से इसने इस मुल्क को छोड़ा, उस वक़्त से अब तक की खेत की सारी पैदावार इसको दे दो।
\s5
\v 7 और इलीशा' दमिश्क़ में आया, और अराम का बादशाह बिनहदद बीमार था; और उसकी ख़बर हुई, "वह नबी इधर आया है,"
\v 8 और बादशाह ने हज़ाएल से कहा, "अपने हाथ में तोहफ़ा लेकर नबी के इस्तक़बाल को जा, और उसके ज़रिए ख़ुदावन्द से दरियाफ़्त कर, 'मैं इस बीमारी से शिफ़ा पाऊँगा या नहीं?' "
\v 9 तब हज़ाएल उससे मिलने को चला और उसने दमिश्क़ की हर उम्दा चीज़ में से ~चालीस ऊँटों पर तोहफ़े लदवाकर अपने साथ लिया, और आकर उसके सामने खड़ा हुआ और कहने लगा, "तेरे बेटे बिनहदद अराम के बादशाह ने मुझ को तेरे पास ये पूछने को भेजा है, 'मैं इस बीमारी से शिफ़ा पाऊँगा या नहीं?' "
\s5
\v 10 इलीशा' ने उससे कहा, "जा उससे कह तू ज़रूर शिफ़ा पाएगा तोभी ख़ुदावन्द ने मुझ को यह बताया है कि वह यक़ीनन मर जाएगा।"
\v 11 ~और वह उसकी तरफ़ नज़र लगा कर देखता रहा, यहाँ तक कि वह शर्मा गया; फिर नबी रोने लगा।
\v 12 और हज़ाएल ने कहा, "मेरे मालिक रोता क्यूँ है?" उसने जवाब दिया, "इसलिए कि मैं उस गुनाह से जो तू बनी-इस्राईल से करेगा, आगाह हूँ; तू उनके क़िलों' में आग लगाएगा, और उनके जवानों को हलाक करेगा, और उनके बच्चों को पटख़-पटख़ कर टुकड़े-टुकड़े करेगा, और उनकी हामिला 'औरतों को चीर डालेगा।
\s5
\v 13 हज़ाएल ने कहा, "तेरे ख़ादिम की जो कुत्ते के बराबर है, हक़ीक़त ही क्या है, जो वह ऐसी बड़ी बात करे?" इलीशा' ने जवाब दिया, "ख़ुदावन्द ने मुझे बताया है कि तू अराम का बादशाह होगा।"
\v 14 फिर वह इलीशा' से रुख़्सत हुआ, और अपने मालिक के पास आया, उसने पूछा, "इलीशा' ने तुझ से क्या कहा?" उसने जवाब दिया, "उसने मुझे बताया कि तू ज़रूर शिफ़ा पाएगा।"
\v 15 और दूसरे दिन ऐसा हुआ कि उसने बाला पोश को लिया, और उसे पानी में भिगोकर उसके मुँह पर तान दिया, ऐसा कि वह मर गया। और हज़ाएल उसकी जगह सल्तनत करने लगा।
\s5
\v 16 और इस्राईल का बादशाह अख़ीअब के बेटे यूराम के पाँचवें साल, जब यहूसफ़त यहूदाह का बादशाह था, तो यहूदाह के बादशाह यहूसफ़त का बेटा यहूराम सल्तनत करने लगा।
\v 17 ~जब वह सल्तनत करने लगा तो बत्तीस साल का था, और उसने यरुशलीम में आठ साल बादशाही की।
\s5
\v 18 ~उसने भी अख़ीअब के घराने की तरह इस्राईल के बादशाहों के रास्ते की पैरवी की; क्यूँकि अख़ीअब की बेटी उसकी बीवी थी और उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया।
\v 19 तोभी ख़ुदावन्द ने अपने बन्दे दाऊद की ख़ातिर न चाहा कि यहूदाह को हलाक करे । क्यूँकि उसने उससे वा'दा किया था कि वह उसे उसकी नस्ल के वास्ते हमेशा के लिए एक चराग़ देगा।
\s5
\v 20 उसी के दिनों में अदोम यहूदाह की इता'अत से फिर गया, और उन्होंने अपने लिए एक बादशाह बना लिया।
\v 21 ~तब यूराम' सईर को गया और उसके सब रथ उसके साथ थे, और उसने रात को उठ कर अदोमियों को जो उसे घेरे हुए थे, और रथों के सरदारों को मारा, और लोग अपने डेरों को भाग गए।
\s5
\v 22 ~ऐसे अदोम यहूदाह की इता'अत से आज तक फिरा है। और उसी वक़्त लिबनाह भी फिर ~गया।
\v 23 यूराम के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, तो क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे नहीं?
\v 24 ~और यूराम अपने बाप दादा के साथ सो गया, और दाऊद के शहर में अपने बाप-दादा के साथ दफ़्न हुआ, और उसका बेटा अख़ज़ियाह उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\v 25 और इस्राईल के बादशाह अख़ीअब के बेटे यूराम के बारहवें साल से यहूदाह का बादशाह यहूराम का बेटा अख़ज़ियाह सल्तनत करने लगा।
\v 26 अख़ज़ियाह बाईस साल का था, जब वह सल्तनत करने लगा; और उसने यरुशलीम में एक साल सल्तनत की। उसकी माँ का नाम 'अतलियाह था, जो इरुलाईल के बादशाह उमरी की बेटी थी।
\v 27 और वह भी अख़ीअब के घराने के रास्ते पर चला, और उसने अख़ीअब के घराने की तरह ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया, क्यूँकि वह अख़ीअब के घराने का दामाद था।
\s5
\v 28 ~और वह अख़ीअब के बेटे यूराम के साथ रामात जिल'आद में अराम के बादशाह हज़ाएल से लड़ने को गया, और अरामियों ने यूराम को ज़ख़्मी किया।
\v 29 इसलिए यूराम बादशाह लौट गया ताकि वह यज़र'एल में उन ज़ख़्मों का इलाज कराए, जो अराम के बादशाह हज़ाएल से लड़ते वक़्त रामा में अरामियों के हाथ से लगे थे। और यहूदाह का बादशाह यहूराम का बेटा अख़ज़ियाह अख़ीअब के बेटे यूराम को देखने के लिए यज़रएल में आया क्यूँकि वह बीमार था।
\s5
\c 9
\p
\v 1 ~और इलीशा' नबी ने अम्बियाज़ादों में से एक को बुलाकर उससे कहा, "अपनी कमर बाँध, और तेल की ये कुप्पी अपने हाथ में ले, और रामात जिल'आद को जा।
\v 2 और जब तू वहाँ पहुँचे तो याहू-बिन-यहूसफ़त बिन-निमसी को पूछ, और अन्दर जाकर उसे उसके भाइयों में से उठा और अन्दर की कोठरी में ले जा।
\v 3 फिर तेल की यह ~कुप्पी लेकर उसके सिर पर डाल और कह, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि मैंने तुझे मसह करके इस्राईल का बादशाह बनाया है,' फिर तू दरवाज़ा खोल कर भागना और ठहरना मत।"
\s5
\v 4 तब वह जवान, या'नी वह जवान जो नबी था, रामात जिल'आद को गया।
\v 5 जब वह पहुँचा तो लश्कर के सरदार बैठे हुए थे उसने कहा, "ऐ सरदार, मेरे पास तेरे लिए एक पैग़ाम है।" याहू ने कहा, "हम सभों में से किसके लिए?" उसने कहा, "ऐ सरदार, तेरे लिए।"
\v 6 तब वह उठ कर उस घर में गया, तब उसने उसके सिर पर वह तेल डाला, और उससे कहा, "ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि मैंने तुझे मसह करके ख़ुदावन्द की क़ौम या'नी इस्राईल का बादशाह बनाया है।
\s5
\v 7 इसलिए तू अपने मालिक अख़ीअब के घराने को मार डालना, ताकि मैं अपने बन्दों, नबियों के ख़ून का और ख़ुदावन्द के सब बन्दों के ख़ून का इन्तिक़ाम ईज़बिल के हाथ से लूँ।
\v 8 क्यूँकि अख़ीअब का सारा घराना हलाक होगा, और मैं अख़ीअब की नस्ल के हर एक लड़के को, और उसको जो इस्राईल में बन्द है और उसको जो आज़ाद छूटा हुआ है, काट डालूँगा।
\s5
\v 9 और मैं अख़ीअब के घर को नबात के बेटे युरब'आम के घर और अख़ियाह के बेटे बाशा के घर की तरह कर दूँगा।
\v 10 और ईज़बिल को यज़र'एल के इलाके़ में कुत्ते खाएँगे, वहाँ कोई न होगा जो उसे दफ़्न करे।" फिर वह दरवाज़ा खोल कर भागा।
\s5
\v 11 तब याहू अपने मालिक के ख़ादिमों के पास बाहर आया; और एक ने उससे पूछा,"सब खै़र तो है? यह दीवाना तेरे पास क्यूँ आया था?" उसने उनसे कहा, "तुम उस शख़्स से और उसके पैग़ाम से वाक़िफ हो।"
\v 12 उन्होंने कहा, "यह झूठ है; अब हम को हाल बता।" उसने कहा, "उसने मुझ से इस इस तरह की बात की और कहा, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि मैंने तुझे मसह करके इस्राईल का बादशाह बनाया है।' "
\v 13 ~तब उन्होंने जल्दी की और हर एक ने अपनी पोशाक लेकर उसके नीचे सीढ़ियों की चोटी पर बिछाई, और तुरही फूंककर कहने लगे, "याहू बादशाह है।”
\s5
\v 14 तब याहू-बिन-यहूसफ़त-बिन-निमसी ने यूराम के ख़िलाफ़ साज़िश की। (और यूराम सारे इस्राईल के साथ अराम के बादशाह हज़ाएल की वजह से रामात जिल'आद की हिमायत कर रहा था;
\v 15 ~लेकिन यूराम बादशाह लौट गया था, ताकि यज़र'एल में उन ज़ख़्मों का इलाज कराए जो अराम के बादशाह हज़ाएल से लड़ते वक़्त अरामियों के हाथ से लगे थे।) तब याहू ने कहा, "अगर तुम्हारी मर्ज़ी यही है, तो कोई यज़र'एल जाकर ख़बर करने के लिए इस शहर से भागने और निकलने न पाए।"
\v 16 और याहू रथ पर सवार होकर यज़र'एल को गया, क्यूँकि यूराम वहीं पड़ा हुआ था। और यहूदाह का बादशाह अख़ज़ियाह यूराम की मुलाक़ात को आया हुआ था।
\s5
\v 17 यज़र'एल में निगहबान बुर्ज पर खड़ा था, और उसने जो याहू के लश्कर को आते हुए देखा, तो कहा, "मुझे एक लश्कर दिखाई देता है।" यूराम ने कहा, "एक सवार को लेकर उनसे मिलने को भेज, वह ये पूछे, 'ख़ैर है? "
\v 18 चुनाँचे एक शख़्स घोड़े पर उससे मिलने को गया और कहा, "बादशाह पूछता है, 'ख़ैर है?' " याहू ने कहा, "तुझ को खै़र से क्या काम? मेरे पीछे हो ले।" फिर निगहबान ने कहा, "क़ासिद उनके पास पहुँच तो गया, लेकिन वापस नहीं आता।”
\s5
\v 19 ~तब उसने दूसरे को घोड़े पर रवाना किया, जिसने उनके पास जाकर उनसे कहा, "बादशाह यूँ कहता है, 'ख़ैर है?' " याहू ने जवाब दिया, "तुझे ख़ैर से क्या काम? मेरे पीछे हो ले।”
\v 20 फिर निगहबान ने कहा, "वह भी उनके पास पहुँच तो गया, लेकिन वापस नहीं आता। और रथ का हाँकना ऐसा है जैसे निमसी के बेटे याहू का हाँकना होता है, क्यूँकि वही सुस्ती से हाँकता है।"
\s5
\v 21 तब यूराम ने फ़रमाया, "जोत ले।" तब~उन्होंने उसके रथ को जोत लिया। तब इस्राईल का बादशाह यूराम और यहूदाह का बादशाह अख़ज़ियाह अपने-अपने रथ पर निकले और याहू से मिलने को गए, और यज़र'एली नबोत की मिल्कियत में उससे दो चार हुए।
\v 22 ~यूराम ने याहू को देखकर कहा, 'ऐ याहू, खै़र है?" उसने जवाब दिया, 'जब तक तेरी माँ ईज़बिल की ज़िनाकारियाँ और उसकी जादूगरियाँ इस क़दर हैं, तब तक कैसी ख़ैर?”
\s5
\v 23 ~तब यूराम ने बाग़' मोड़ी और भागा, और अख़ज़ियाह से कहा, "ऐ अख़ज़ियाह यह धोका है।"
\v 24 तब याहू ने अपने सारे ज़ोर से कमान खेंची', और यूराम के दोनों शानों के बीच ऐसा मारा के तीर उसके दिल से पार हो गया और वह अपने रथ में गिरा।
\s5
\v 25 तब याहू ने अपने लश्कर के सरदार बिदक़र से कहा,"उसे लेकर यज़र'एली नबोत की मिल्कियत के खेत में डाल दे; क्यूँकि याद कर कि जब मैं और तू उसके बाप अख़ीअब के पीछे पीछे सवार होकर चल रहे थे, तो ख़ुदावन्द ने ये फ़तवा उस पर दिया था,
\v 26 'यक़ीनन मैंने कल नबोत के ख़ून और उसके बेटों के ख़ून को देखा है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और मैं इसी खेत में तुझे बदला दूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।" इसलिए जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है, उसे लेकर उसी जगह डाल दे।"
\s5
\v 27 लेकिन जब यहूदाह के बादशाहअख़ज़ियाह ने ये देखा, तो वह बाग़ की बारह दरी के रास्ते से निकल भागा। और याहू ने उसका पीछा किया और कहा, "उसे भी रथ ही में मार दो।" चुनाँचे उन्होंने उसे जूर की चढ़ाई पर, जो इबलि'आम के क़रीब है मारा; और वो मजिही को भागा, और वहीं मर गया।
\v 28 ~और उसके ख़ादिम उसको एक रथ में यरुशलीम को ले गए, और उसे उसकी क़ब्र में दाऊद के शहर में उसके बाप-दादा के साथ दफ़न किया।
\s5
\v 29 और अख़ीअब के बेटे यूराम के ग्यारहवें साल अख़ज़ियाह यहूदाह का बादशाह हुआ।
\s5
\v 30 जब याहू यज़र'एल में आया, तो ईज़बिल ने सुना और अपनी आँखों में सुरमा लगा, और अपना सिर संवार खिड़की से झाँकने लगी।
\v 31 ~और जैसे ही याहू फाटक में दाखिल हुआ, वह कहने लगी, "ऐ ज़िमरी। अपने आक़ा के क़ातिल, खै़र तो है?"
\v 32 पर उसने खिड़की की तरफ़ मुँह उठा कर कहा, "मेरी तरफ़ कौन है, कौन?" तब दो तीन ख़्वाजासराओं ने इसकी तरफ़ देखा।
\s5
\v 33 ~इसने कहा, 'उसे नीचे गिरा दो।" तब उन्होंने उसे नीचे गिरा दिया, और उसके ख़ून के छींटें दीवार पर और घोड़ों पर पड़ीं, और इसने उसे पैरों तले रौदा।
\v 34 जब ये अन्दर आया, तो इसने खाया पिया; फिर कहने लगा, 'जाओ, उस ला'नती 'औरत को देखो, और उसे दफ़्न करो क्यूँकि वह शहज़ादी है।"
\s5
\v 35 ~और वह उसे दफ़्न करने गए, पर सिर और उसके पैर और हथेलियों के सिवा उसका और कुछ उनको न मिला।
\v 36 इसलिए वह लौट आए और उसे ये बताया, इसने कहा, "ये ख़ुदावन्द का वही सुख़न है, जो उसने अपने बन्दे एलियाह तिशबी के मा'रिफ़त फ़रमाया था, 'यज़र'एल के इलाके़ में कुत्ते ईज़बिल का गोश्त खाएँगे;
\v 37 और ईज़बिल की लाश यज़र'एल के इलाके़ में खेत में खाद की तरह पड़ी रहेगी, यहाँ तक कि कोई न कहेगा कि यह ईज़बिल है।' "
\s5
\c 10
\p
\v 1 सामरिया में अख़ीअब के सत्तर बेटे थे। इसलिए याहू ने सामरिया में यज़र'एल के अमीरों, या'नी बुज़ुर्गों के पास और उनके पास जो अख़ीअब के बेटों के पालने वाले थे, ख़त लिख भेजे,
\v 2 कि "जिस हाल में तुम्हारे मालिक के बेटे तुम्हारे साथ हैं, और तुम्हारे पास रथ और घोड़े और फ़सीलदार शहर भी और हथियार भी हैं;~इसलिए~इस ख़त के पहुँचते ही,
\v 3 ~तुम अपने मालिक के बेटों में सबसे अच्छे और लायक़ को चुनकर उसे उसके बाप के तख़्त पर बिठाओ, और अपने मालिक के घराने के लिए जंग करो।
\s5
\v 4 लेकिन वह निहायत परेशान हुए और कहने लगे देखो दो बादशाह तो उसका मुक़ाबिला न कर सके; तो हम क्यूँकर कर सकेंगे?"
\v 5 इसलिए महल के दीवान ने और शहर के हाकिम ने और बुज़ुगों ने भी, और लड़कों के पालने वालों ने याहू को कहला भेजा, "हम सब तेरे ख़ादिम हैं, और जो कुछ तू फ़रमाएगा वह सब हम करेंगे; हम किसी को बादशाह नहीं बनाएँगे, जो कुछ तेरी नज़र में अच्छा है वही कर।"
\s5
\v 6 तब उसने दूसरी बार एक ख़त उनको लिख भेजा, कि "अगर तुम मेरी तरफ़ हो और मेरी बात मानना चाहते हो, तो अपने मालिक के बेटों के सिर उतार कर कल यज़र'एल में इसी वक़्त मेरे पास आ जाओ।" उस वक़्त शाहज़ादे जो सत्तर आदमी थे, शहर के उन बड़े आदमियों के साथ थे जो उनके पालनेवाले थे।
\v 7 इसलिए~जब यह ख़त उनके पास आया, तो उन्होंने शाहज़ादों को लेकर उनको, या'नी उन सत्तर आदमियों को क़त्ल किया और उनके सिर टोकरों में रख कर उनको उसके पास यज़र'एल में भेज दिया।
\s5
\v 8 तब एक क़ासिद ने आकर उसे ख़बर दी, "वह शाहज़ादों के सिर लाए हैं।" उसने कहा, "तुम शहर के फाटक के मदख़ल पर उनकी दो ढेरियाँ लगा कर कल सुबह तक रहने दो।"
\v 9 और सुबह को ऐसा हुआ कि वह निकल कर खड़ा हुआ और सब लोगों से कहने लगा, "तुम तो रास्त हो। देखो, मैंने तो अपने मालिक के ख़िलाफ़ बन्दिश बाँधी और उसे मारा; पर इन सभों को किसने मारा?
\s5
\v 10 इसलिए अब जान लो कि ख़ुदावन्द के उस बात में से, जिसे ख़ुदावन्द ने अख़ीअब के घराने के हक़ में फ़रमाया, कोई बात ख़ाक में नहीं मिलेगी; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने जो कुछ अपने बन्दे एलियाह के ज़रिए फ़रमाया था उसे पूरा किया।"
\v 11 इसलिए याहू ने उन सबको जो अख़ीअब के घराने से यज़र'एल में बच रहे थे, और उसके सब बड़े ~आदमियों और क़रीबी दोस्तों और काहिनों को क़त्ल किया, यहाँ तक कि उसने उसके किसी आदमी को बाक़ी न छोड़ा।
\s5
\v 12 ~फिर वह उठ कर रवाना हुआ और सामरिया को चला। और रास्ते में गड़रियों के बाल कतरने के घर तक पहुँचा ही था कि
\v 13 याहू को यहूदाह के बादशाह अख़ज़ियाह के भाई मिल गए; इसने पूछा, "तुम कौन हो?” उन्होंने कहा, "हम अख़ज़ियाह के भाई हैं; और हम जाते हैं कि बादशाह के बेटों और मलिका के बेटों को सलाम करें।” I
\v 14 तब उसने कहा, कि "उनको ज़िन्दा पकड़ लो।"~इसलिए उन्होंने उनको ज़िन्दा पकड़ लिया और उनको जो बयालीस आदमी थे बाल कतरने के घर के हौज़ पर क़त्ल किया; उसने उनमें से एक को भी न छोड़ा।
\s5
\v 15 ~फिर जब वह वहाँ से रुख़्सत हुआ, तो यहूनादाब-बिन-रैकाब जो उसके इस्तक़बाल को आ रहा था उसे मिला। तब उसने उसे सलाम किया और उससे कहा क्या तेरा दिल ठीक है, जैसा मेरा दिल तेरे दिल के साथ है?" यहूनादाब ने जवाब दिया कि है। इसलिए उसने कहा, 'अगर ऐसा है, तो अपना हाथ मुझे दे।" तब उसने उसे अपना हाथ दिया;और उसने उसे रथ में अपने साथ बिठा लिया,
\v 16 और कहा, "मेरे साथ चल, और मेरी गै़रत को जो ख़ुदावन्द के लिए है, देख।" ~तब ~उन्होंने उसे उसके साथ रथ पर सवार कराया,
\v 17 ~और जब वह सामरिया में पहुँचा, तो अख़ीअब के सब बाक़ी लोगों को, जो सामरिया में थे क़त्ल किया, यहाँ तक कि उसने, जैसा ख़ुदावन्द ने एलियाह से कहा था, उसको नेस्त-ओ-नाबूद कर दिया।
\s5
\v 18 ~फिर याहू ने सब लोगों को जमा' किया, और उनसे कहा, कि "अख़ीअब ने बा'ल की थोड़ी 'इबादत की, याहू उसकी बहुत 'इबादत करेगा।"
\v 19 इसलिए अब तुम बा'ल के सब नबियों और उसके सब पूजने वालों और पुजारियों को मेरे पास बुला लाओ; उनमें से कोई गै़र हाज़िर न रहे, क्यूँकि मुझे बा'ल के लिए बड़ी क़ुर्बानी करना है। इसलिए जो कोई गै़र हाज़िर रहे, वह ज़िन्दा न बचेगा।” पर याहू ने इस ग़रज़ से कि बा'ल के पूजनेवालों को हलाक कर दे, ये बहाना निकाला था।
\v 20 और याहू ने कहा, कि "बा'ल के लिए एक ख़ास 'ईद का 'एलान करो।" तब उन्होंने उसका 'एलान कर दिया।
\s5
\v 21 ~और याहू ने सारे इस्राईल में लोग भेजे, और बा'ल के सब पूजनेवाले आए, यहाँ तक कि एक शख़्स भी ऐसा न था जो न आया हो। और वह बा'ल के बुतख़ाने में दाख़िल हुए, और बा'ल का बुतख़ाना इस सिरे से उस सिरे तक भर गया।
\v 22 फिर उसने उसको जो ~तोशाखाने पर मुक़र्रर था हुक्म किया, ~कि बा'ल के सब पूजनेवालों के लिए लिबास निकाल ला।” तब वह उनके लिए लिबास निकाल लाया।
\s5
\v 23 ~तब याहू और यहूनादाब-बिन-रैकाब बा'ल के बुतख़ाने के अन्दर गए, और उसने बा'ल के पूजनेवालों से कहा, "बयान करो, और देख लो कि यहाँ तुम्हारे साथ ख़ुदावन्द के ख़ादिमों में से कोई न हो, सिर्फ़ बा'ल ही के पूजनेवाले हों।”
\v 24 ~और वह ज़बीहे और सोख़्तनी कु़र्बानियाँ पेश करने को अन्दर गए।और याहू ने बाहर अस्सी जवान मुक़र्रर कर दिए और कहा, कि "अगर कोई उन लोगों में से जिनको मैं तुम्हारे हाथ में कर दूँ निकल भागे, तो छोड़ने वाले की जान उसकी जान के बदले जाएगी।"
\s5
\v 25 जब वह सोख़्तनी क़ुर्बानी अदा कर चुका, तो याहू ने पहरेवालों और सरदारों से कहा, कि "घुस जाओ और उनको क़त्ल करो, एक भी निकलने न पाए।" चुनाँचे उन्होंने उनको हलाक किया, और पहरेवालों और सरदारों ने उनको बाहर फेंक दिया और बा'ल के बुतख़ाने के शहर को गए।
\v 26 ~और उन्होंने बा'ल के बुतख़ाने की कड़ियों को बाहर निकाल कर उनको आग में जलाया।
\v 27 और बा'ल के सुतूनों को चकनाचूर किया, और बा'ल का बुतख़ाना को गिरा कर उसे बैतुल-ख़ला' बना दिया, जैसा आज तक है।
\v 28 ~इस तरह याहू ने बा'ल को इस्राईल के बीच से हलाक कर दिया।
\s5
\v 29 तोभी नबात के बेटे युरब'आम के गुनाहों से, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया, याहू बाज़ न आया; या'नी उसने सोने के बछड़ों को मानने से जो बैतएल और दान में थे, दूरी इख़्तियार न की।
\v 30 और ख़ुदावन्द ने याहू से कहा, "चूँकि तू ने ये नेकी की है कि जो कुछ मेरी नज़र में भला था उसे अंजाम दिया है, और अख़ीअब के घराने से मेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ बर्ताव किया है; इसलिए तेरे बेटे चौथी नस्ल तक इस्राईल के तख़्त पर बैठेंगे।"
\v 31 ~लेकिन याहू ने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की शरी'अत पर अपने सारे दिल से चलने की फ़िक्र न की; वह युरब'आम के गुनाहों से, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया, अलग न हुआ।
\s5
\v 32 ~उन दिनों ख़ुदावन्द इस्राईल को घटाने लगा, और हज़ाएल ने उनको इस्राईल की सब सरहदों में मारा,
\v 33 या'नी यरदन से लेकर पूरब की तरफ़ जिल'आद के सारे मुल्क में, और जद्दियों और रूबीनियों और मनस्सियों को, 'अरो'ईर से जो वादी-ए-अरनून में है, या'नी जिल'आद और बसन को भी।
\s5
\v 34 याहू के बाक़ी काम और सब जो उसने किया, और उसकी सारी ताक़त का बयान; इसलिए क्या वह सब इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?
\v 35 और याहू अपने बाप-दादा के साथ मर गया, और उन्होंने उसे सामरिया में दफ़न किया, और उसका बेटा यहूआख़ज़ उसकी जगह बादशाह हुआ।
\v 36 ~और वह उसी 'अरसे में ~जिसमें याहू ने सामरिया में बनी-इस्राईल पर सल्तनत की अठाईस साल का था।
\s5
\c 11
\p
\v 1 ~जब अख़ज़ियाह की माँ 'अतलियाह ने देखा कि उसका बेटा मर गया, तब उसने उठकर बादशाह की सारी नस्ल को हलाक किया।
\v 2 लेकिन यूराम बादशाह की बेटी यहूसबा' ने जो अख़ज़ियाह की बहन थी, अख़ज़ियाह के बेटे यूआस को लिया, और उसे उन शाहज़ादों से जो क़त्ल हुए चुपके से जुदा किया; और उसे उसकी दवा और बिस्तरों ~के साथ बिस्तरों की कोठरी में कर दिया। और उन्होंने उसे 'अतलियाह से छिपाए रख्खा, वह मारा न गया।
\v 3 ~वह उसके साथ ख़ुदावन्द के घर में छ: साल तक छिपा रहा, और 'अतलियाह मुल्क में सल्तनत करती रही।
\s5
\v 4 सातवें साल में यहोयदा' ने काम करने और पहरेवालों के सौ-सौ के सरदारों को बुला भेजा, और उनको ख़ुदावन्द के घर में अपने पास लाकर उनसे 'अहद-ओ-पैमान किया और ख़ुदावन्द के घर में उनको क़सम खिलाई और बादशाह के बेटे को उनको दिखाया।
\v 5 और उसने उनको ये हुक्म दिया, कि "तुम ये काम करना : तुम जो सबत को यहाँ आते हो; इसलिए ~तुम में से एक तिहाई आदमी बादशाह के महल के पहरे पर रहें,
\v 6 और एक तिहाई सूर नाम फाटक पर रहें, और एक तिहाई उस फाटक पर हों जो पहरेवालों के पीछे हैं, यूँ तुम महल की निगहबानी करना और लोगों को रोके रहना।
\s5
\v 7 ~और तुम्हारे दो लश्कर, या'नी ~जो सबत के दिन बाहर निकलते हैं, वह बादशाह के आसपास होकर ख़ुदावन्द के घर की निगहबानी करें।
\v 8 और तुम अपने अपने हथियार हाथ में लिए हुए बादशाह को चारों तरफ़ से घेरे रहना, और जो कोई सफ़ों के अन्दर चला आए वह क़त्ल कर दिया जाए, और तुम बादशाह के बाहर जाते और अंदर आते वक़्त उसके साथ साथ रहना।"
\s5
\v 9 चुनाँचे सौ सौ के सरदारों ने, जैसा यहोयदा' काहिन ने उनको हुक्म दिया था वैसे ही सब कुछ किया; और उनमें से हर एक ने अपने आदमियों को जिनकी सबत के दिन अन्दर आने की बारी थी, ~उन लोगों के साथ जिनकी सबत के दिन बाहर निकलने की बारी थी लिया, और यहोयदा' काहिन के पास आए।
\v 10 और काहिन ने दाऊद बादशाह की बर्छियाँ और सिप्परें, जो ख़ुदावन्द के घर में थीं सौ-सौ के सरदारों को दीं।
\s5
\v 11 और पहरेवाले अपने अपने हथियार हाथ में लिए हुए, हैकल के दाहिने तरफ़ से लेकर बाएँ तरफ़ मज़बह और हैकल के बराबर-बराबर बादशाह के चारों तरफ़ खड़े हो गए।
\v 12 फिर उसने शाहज़ादे को बाहर लाकर उस पर ताज रख्खा, और शहादत नामा उसे दिया; और उन्होंने उसे बादशाह बनाया और उसे मसह किया, और उन्होंने तालियाँ बजाईं और कहा बादशाह सलामत रहे !"
\s5
\v 13 जब 'अतलियाह ने पहरेवालों और लोगों का शोर सुना, तो वह उन लोगों के पास ख़ुदावन्द की हैकल में गई;
\v 14 और देखा कि बादशाह दस्तूर के मुताबिक़ सुतून के क़रीब खड़ा है और उसके पास ही सरदार और नरसिंगे हैं, और सल्तनत के सब लोग ख़ुश हैं और नरसिंगे फूंक रहे हैं। तब 'अतलियाह ने अपने कपड़े फाड़े और चिल्लाई, "ग़द्र है! ग़द्र !"
\s5
\v 15 ~तब यहोयदा" काहिन ने सौ-सौ के सरदारों को जो लश्कर के ऊपर थे ये हुक्म दिया, कि "उसको सफ़ों के बीच करके बाहर निकाल ले जाओ, और जो कोई उसके पीछे चले उसको तलवार से क़त्ल कर दो।" क्यूँकि काहिन ने कहा, "वह ख़ुदावन्द के घर के अन्दर क़त्ल न की जाए।"
\v 16 ~तब उन्होंने उसके लिए रास्ता छोड़ दिया, और वह उस रास्ते से गई जिससे घोड़े बादशाह के महल में दाख़िल होते थे, और वहीं क़त्ल हुई।
\s5
\v 17 और यहोयदा' ने ख़ुदावन्द के, और बादशाह और लोगों के बीच एक 'अहद बाँधा, ताकि वह ख़ुदावन्द के लोग हों, और बादशाह और लोगों के बीच भी 'अहद बाँधा।
\v 18 और ममलुकत के सब लोग बा'ल के बुतख़ाने में गए और उसे ढाया, और उन्होंने उसके मज़बहों और बुतों को बिल्कुल चकनाचूर किया, और बा'ल के पुजारी मत्तान को मज़बहों के सामने क़त्ल किया। और काहिन ने ख़ुदावन्द के घर के लिए सरदारों को मुक़र्रर किया;
\s5
\v 19 और उसने सौ-सौ के सरदारों और काम करने वालों और पहरेवालों और सल्तनत के लोगों को लिया, और वह बादशाह को ख़ुदावन्द के घर से उतार लाए और पहरेवालों के फाटक के रास्ते से बादशाह के महल में आए; और उसने बादशाहों के तख़्त पर जुलूस फ़रमाया।
\v 20 और सल्तनत के सब लोग खु़श हुए, और शहर में अमन हो गया। उन्होंने 'अतलियाह को बादशाह के महल के पास तलवार से क़त्ल किया।
\s5
\v 21 ~और जब यूआस सल्तनत करने लगा तो सात साल का था।
\s5
\c 12
\p
\v 1 और ~याहू के सातवें साल यहूआस ' बादशाह हुआ और उसने यरुशलीम में चालीस साल सल्तनत की। उसकी माँ का नाम ज़िबियाह था जो बैरसबा' की थी।
\v 2 और यहूआस ने इस तमाम 'अर्से ~में जब तक यहोयदा' काहिन उसकी ता'लीम-व-तरबियत करता रहा, वही काम किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक था।
\v 3 ~तोभी ऊँचे मक़ाम ढाए न गए, और लोग अभी ऊँचे मक़ामों पर क़ुर्बानी करते और ख़ुशबू जलाते थे।
\s5
\v 4 ~और यहूआस' ने काहिनों से कहा, कि "मुक़द्दस की हुई चीज़ों की सब नक़दी जो मौजूदा सिक्के में ख़ुदावन्द के घर में पहुँचाई जाती है, या'नी उन लोगों की नक़दी जिनके लिए हर शख़्स की हैसियत के मुताबिक़ अन्दाज़ा लगाया जाता है, और वह सब नक़दी जो हर एक अपनी ख़ुशी से ख़ुदावन्द के घर में लाता है,
\v 5 ~इन सबको काहिन अपने अपने जान पहचान से लेकर अपने पास रख लें; और हैकल की दरारों की जहाँ कहीं कोई दरार मिले मरम्मत ~करें।"
\s5
\v 6 लेकिन यहूआस के तेईसवें साल तक काहिनों ने हैकल की दरारों की मरम्मत न की।
\v 7 ~तब यहूआस ~बादशाह ने यहोयदा' काहिन को और, और काहिनों को बुलाकर उनसे कहा, "तुम हैकल की दरारों की मरम्मत क्यूँ नहीं करते? इसलिए अब अपने अपने जान-पहचान से नक़दी न लेना, बल्कि इसको हैकल की दरारों के लिए हवाले करो।"
\v 8 इसलिए काहिनों ने मंज़ूर कर लिया कि न तो लोगों से नक़दी लें और न हैकल की दरारों की मरम्मत करें।
\s5
\v 9 ~तब यहोयदा' काहिन ने एक सन्दूक़ लेकर उसके ऊपर में एक सूराख किया, और उसे मज़बह के पास रख्खा, ऐसा कि ख़ुदावन्द की हैकल में दाख़िल होते वक़्त वह दहनी तरफ़ पड़ता था; और जो काहिन दरवाज़े के निगहबान थे, वह सब नक़दी जो ख़ुदावन्द के घर में लाई जाती थी उसी में डाल देते थे।
\v 10 ~जब वह देखते थे कि सन्दूक़ में बहुत नक़दी हो गई है, तो बादशाह का मुन्शी और सरदार काहिन ऊपर आकर उसे थैलियों में बाँधते थे, और उस नक़दी को जो ख़ुदावन्द के घर में मिलती थी गिन लेते थे।
\s5
\v 11 और वह उस नक़दी को जो तोल ली जाती थी, उनके हाथों में सौप देते थे जो काम करनेवाले, या'नी ख़ुदावन्द की हैकल की देख भाल करते थे; और वह उसे बढ़इयों और मे'मारों पर जो ख़ुदावन्द के घर का काम बनाते थे।
\v 12 और राजों और संग तराशों पर और ख़ुदावन्द की हैकल की दरारों की मरम्मत के लिए लकड़ी और तराशे हुए पत्थर ख़रीदने में, और उन सब चीज़ों पर जो हैकल की मरम्मत के लिए इस्ते'माल में आती थी ख़र्च करते थे।
\s5
\v 13 लेकिन जो नक़दी ख़ुदावन्द की हैकल में लाई जाती थी, उससे ख़ुदावन्द की हैकल के लिए चाँदी के प्याले, या गुलगीर, या देगचे, या नरसिर्गे, या'नी सोने के बर्तन या चाँदी के बर्तन न बनाए गए,
\v 14 ~क्यूँकि ये नक़दी कारीगरों को दी जाती थी, और इसी से उन्होंने ख़ुदावन्द की हैकल की मरम्मत की।
\s5
\v 15 ~ इसके अलावा जिन लोगों के हाथ वह इस नक़दी को सुपुर्द करते थे, ताकि वह उसे कारीगरों को दें, उनसे वह ~उसका कुछ हिसाब नहीं लेते थे इसलिए कि वह ईमानदारी से काम करते थे।
\v 16 ~और जुर्म की क़ुर्बानी की नक़दी और ख़ता की क़ुर्बानी की नक़दी, ख़ुदावन्द की हैकल में नहीं लाई जाती थी, वह ~काहिनों की थी।
\s5
\v 17 तब शाह-ए-अराम हज़ाएल ने चढ़ाई की, और जात से लड़कर उसे ले लिया। फिर हज़ाएल ने यरुशलीम का रुख़ किया ताकि उस पर चढ़ाई करे।
\v 18 ~तब शाह-ए-यहूदाह यहू'आस ' ने सब मुक़द्दस चीज़ें जिनको उसके बाप-दादा, यहूसफ़त और यहूराम और अख़ज़ियाह, यहूदाह के बादशाहों ने नज़्र किया था, और अपनी सब मुक़द्दस चीज़ों को और सब सोना जो ख़ुदावन्द की हैकल के ख़ज़ानों और बादशाह के महल में मिला, लेकर शाहे अराम हज़ाएल को भेज दिया; तब वह यरुशलीम से हटा।
\s5
\v 19 यूआस के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, इसलिए क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे नहीं?
\v 20 उसके ख़ादिमों ने उठकर साज़िश की और यूआस को मिल्लो के महल में जो सिल्ला की उतराई पर है, क़त्ल किया;
\v 21 ~या'नी उसके ख़ादिमों यूसकार-बिन-समा'अत, और यहूज़बद-बिन-शूमीर ने उसे मारा और वह मर गया, और उन्होंने उसे उसके बाप-दादा के साथ दाऊद के शहर में दफ़न किया; और उसका बेटा अमसियाह उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\c 13
\p
\v 1 और शाह-ए-यहूदाह अख़ज़ियाह के बेटे यूआस के तेईसवें बरस से याहू का बेटा यहूआख़ज़ सामरिया में इस्राईल पर सल्तनत करने लगा और उसने सत्रह बरस सल्तनत की।
\v 2 और उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया और नबात के बेटे युरब'आम के गुनाहों की पैरवी की, जिनसे उसने बनी-इस्राईल से गुनाह कराया, उसने उनसे किनारा न किया।
\s5
\v 3 और ख़ुदावन्द का ग़ुस्सा बनी इस्राईल पर भड़का, और उसने उनको बार बार शाह-ए- अराम हज़ाएल, और हज़ाएल के बेटे बिनहदद के क़ाबू में कर दिया।
\v 4 ~और यहूआख़ज़ ख़ुदावन्द के सामने गिड़गिड़ाया और ख़ुदावन्द ने उसकी सुनी, क्यूँकि उसने इस्राईल की मज़लूमी को देखा कि अराम का बादशाह उन पर कैसा जु़ल्म करता है।
\v 5 ~(और ख़ुदावन्द ने बनी इस्राईल ~को एक नजात देनेवाला इनायत किया, इसलिए वह अरामियों के हाथ से निकल गए, और बनी-इस्राईल पहले की तरह अपने ख़ेमों में रहने लगे।
\s5
\v 6 ~तोभी उन्होंने युरब'आम के घराने के गुनाहों से, जिनसे उसने बनी-इस्राईल से गुनाह कराया, किनारा न किया बल्कि उन्हीं पर चलते रहे; और यसीरत भी सामरिया में रही!)
\v 7 और उसने यहूआख़ज़ के लिए लोगों में से सिर्फ़ पचास सवार और दस रथ और दस हज़ार प्यादे छोड़े; इसलिए कि अराम के बादशाह ने उनको तबाह कर डाला, और रौंद-रौंद कर ख़ाक की तरह कर दिया' ।
\s5
\v 8 और यहुआख़ज़ के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया और उसकी क़ुव्वत, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?
\v 9 और यहूआख़ज़ अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और उन्होंने उसे सामरिया में दफ़न किया; और उसका बेटा यूआस उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\v 10 और शाह-ए-यहूदाह यूआस के सैतीसवें बरस यहूआख़ज़ का बेटा यहूआस सामरिया में इस्राईल पर सल्तनत करने लगा, और उसने सोलह बरस सल्तनत की।
\v 11 ~और उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया और नबात के बेटे युरब'आम के गुनाहों से, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया, बाज़ न आया बल्कि उन ही पर चलता रहा।
\s5
\v 12 और यहूआस के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया और उसकी क़ुव्वत जिससे वह शाह-ए-यहूदाह अमसियाह से लड़ा, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?
\v 13 और यूआस अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और युरब'आम उसके तख़्त पर बैठा; और यूआस। सामरिया में इस्राईल के बादशाहों के साथ दफ़न हुआ।
\s5
\v 14 ~इलीशा' को वह मर्ज़ लगा जिससे वह मर गया। और शाह-ए-इस्राईल यूआस' उसके पास गया और उसके ऊपर रो कर कहने लगा, "ऐ मेरे बाप, ऐ मेरे बाप, इस्राईल के रथ और उसके सवार !"
\v 15 और इलीशा' ने उससे कहा, "तीर-ओ-कमान ले ले।" इसलिए उसने अपने लिए तीर-ओ-कमान ले लिया।
\v 16 ~फिर उसने शाह-ए-इस्राईल से कहा, "कमान पर अपना हाथ रख।" इसलिए उसने अपना हाथ उस पर रखा; और इलीशा' ने बादशाह के हाथों पर अपने हाथ रख्खे,
\s5
\v 17 और कहा, "पूरब की तरफ़ की खिड़की खोल।” इसलिए उसने उसे खोला, तब इलीशा' ने कहा, "तीर चला।" तब उसने चलाया। तब वह कहने लगा, "ये फ़तह का तीर ख़ुदावन्द का, या'नी अराम पर फ़तह पाने का तीर है; क्यूँकि तू अफ़ीक़ में अरामियों को मारेगा, यहाँ तक कि उनको हलाक कर देगा।”
\v 18 फिर उसने कहा, "तीरों को ले।" तब उसने उनको लिया। फिर उसने शाह-ए-इस्राईल से कहा,"ज़मीन पर मार।" इसलिए उसने तीन बार मारा और ठहर गया।
\v 19 तब मर्द-ए-ख़ुदा उस पर ग़ुस्सा हुआ और कहने लगा, "तुझे पाँच या छ: बार मारना चाहिए था, तब तू अरामियों को इतना मारता कि उनको हलाक कर देता; लेकिन अब तू अरामियों को सिर्फ़ तीन बार मारेगा।"
\s5
\v 20 और इलीशा' ने वफ़ात पाई, और उन्होंने उसे दफ़न किया। और नये साल के शुरू' में मोआब के लश्कर मुल्क में घुस आए।
\v 21 और ऐसा हुआ कि जब वह एक आदमी को दफ़न कर रहे थे तो उनको एक लश्कर नज़र आया, तब उन्होंने उस शख़्स को इलीशा' की क़ब्र में डाल दिया, और वह ~शख़्स इलीशा' की हड्डियों से टकराते ही ज़िन्दा हो गया और अपने पाँव पर खड़ा हो गया।
\s5
\v 22 और शाह-ए-आराम हज़ाएल, यहूआख़ज़ के 'अहद में बराबर इस्राईल को सताता रहा।
\v 23 और ख़ुदावन्द उन पर मेहरबान हुआ और उसने उन पर तरस खाया, और उस 'अहद की वजह से जो उसने इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब से बाँधा था, उनकी तरफ़ इलितफ़ात की; और न चाहा कि उनको हलाक करे, और अब भी उनको अपने सामने से दूर न किया।
\v 24 और शाह-ए-अराम हज़ाएल मर गया, और उसका बेटा बिन हदद उसकी जगह बादशाह हुआ।
\v 25 ~और यहूआख़ज़ के बेटे यहूआस ने हज़ाएल के बेटे बिन हदद के हाथ से वह शहर छीन लिए जो उसने उसके बाप यहूआख़ज़ के हाथ से जंग करके ले लिए थे। तीन बार यूआस ने उसे शिकस्त दी और इस्राईल के शहरों को वापस ले लिया।
\s5
\c 14
\p
\v 1 ~और शाह-ए-इस्राईल यहूआख़ज़ के बेटे यूआस के दूसरे साल से शाह-ए-यहूदाह यूआस का बेटा अमसियाह सल्तनत करने लगा।
\v 2 वह पच्चीस बरस का था जब सल्तनत करने लगा, और उसने यरुशलीम में उन्तीस बरस सल्तनत की। उसकी माँ का नाम यहू'अद्दान था जो यरुशलीम की~थी
\v 3 उसने वह काम किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में नेक ~था, तोभी अपने बाप दाऊद की तरह नहीं; बल्कि उसने सब कुछ अपने बाप यूआस की तरह किया।
\s5
\v 4 क्यूँकि ऊँचे मक़ाम ढाए न गए, लोग अभी ऊँचे मक़ामों पर क़ुर्बानी करते और ख़ुशबू जलाते थे।
\v 5 ~जब सल्तनत उसके हाथ में मज़बूत हो गई, तो उसने अपने उन मुलाज़िमों को जिन्होंने उसके बाप बादशाह को क़त्ल किया था जान से मारा।
\s5
\v 6 ~लेकिन ~उसने उन क़ातिलों के बच्चों को जान से न मारा; क्यूँकि मूसा की शरी'अत की किताब में, जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, लिखा है : "बेटों के बदले बाप न मारे जाएँ, और न बाप के बदले बेटे मारे जाएँ, बल्कि हर शख़्स अपने ही गुनाह की ~वजह से मरे।"
\v 7 उसने वादी-ए- शोर में दस हज़ार अदूमी मारे और सिला' को जंग करके ले लिया, और उसका नाम युक़तील रख्खा जो आज तक है।
\s5
\v 8 ~तब अमसियाह ने शाह-ए-इस्राईल यहूआस-बिन-यहूआख़ज़-बिन-याहू के पास क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा ज़रा आ तो, हम एक दूसरे का मुक़ाबला करें।”
\v 9 और शाह-ए-इस्राईल यहूआस ने शाह-ए- यहूदाह अमसियाह को कहला भेजा, "लुबनान के ऊँट-कटारे ने लुबनान के देवदार को पैग़ाम भेजा, 'अपनी बेटी की मेरे बेटे से शादी कर दे; ~इतने में एक जंगली जानवर जो लुबनान में था गुज़रा, और ऊँट-कटारे को रौंद डाला।
\v 10 तू ने बेशक अदूम को मारा, और तेरे दिल में गु़रूर बस गया है"; इसलिए उसी की डींग मार और घर ही में रह, तू क्यूँ नुक़्सान उठाने को छेड़-छाड़ करता है; जिससे तू भी दुख़ उठाए और तेरे साथ यहूदाह भी?”|
\s5
\v 11 लेकिन अमसियाह ने न माना। तब शाह-ए-इस्राईल यहूआस ने चढ़ाई की, और वह और शाह-ए-यहूदाह अमसियाह बैतशम्स में जो यहूदाह में है, एक दूसरे के सामने हुए।
\v 12 ~और यहूदाह ने इस्राईल के आगे शिकस्त खाई, और उनमें से हर एक अपने ख़ेमे को भागा।
\s5
\v 13 लेकिन शाह-ए-इस्राईल यहूआस ने शाह-ए-यहूदाह अमसियाह-बिन-यहूआस-बिन-अख़ज़ियाह को बैत-शम्स में पकड़ लिया और यरुशलीम में आया, और यरुशलीम की दीवार इफ़्राईम के फाटक से कोने वाले फाटक तक, चार सौ हाथ के बराबर ढा दी।
\v 14 और उसने सब सोने और चाँदी की, और सब बर्तनों को जो ख़ुदावन्द की हैकल और शाही महल के ख़ज़ानों में मिले, और कफ़ीलों को भी साथ लिया और सामरिया को लौटा।
\s5
\v 15 यहूआस के बाक़ी काम जो उसने किए और उसकी क़ुव्वत, और जैसे शाह-ए- यहूदाह अमसियाह से लड़ा, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?
\v 16 और यहूआस अपने बाप दादा के साथ सो गया और इस्राईल के बादशाहों के साथ सामरिया में दफ़न हुआ, और उसका बेटा युरब'आम उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\v 17 और शाह-ए-यहूदाह यूआस का बेटा अमसियाह शाह-ए-इस्राईल यहूआख़ज़ के बेटे यहूआस के मरने के बा'द पन्द्रह बरस जीता रहा।
\v 18 ~अमसियाह के बाक़ी काम, इसलिए क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?
\v 19 और उन्होंने यरुशलीम में उसके ख़िलाफ़ साज़िश की, इसलिए वह ~लकीस को भागा; लेकिन उन्होंने लकीस तक उसका पीछा करके वहीं उसे क़त्ल किया।
\s5
\v 20 और वह उसे घोड़ों पर ले आए, और वह यरुशलीम में अपने बाप-दादा के साथ दाऊद के शहर में दफ़न हुआ।
\v 21 और यहूदाह के सब लोगों ने अज़रियाह' को जो सोलह बरस का था, उसके बाप अमसियाह की जगह बादशाह बनाया ।
\v 22 और बादशाह के अपने बाप-दादा के साथ सो जाने के बा'द उसने ऐलात को बनाया, और उसे फिर यहूदाह की मुल्क में दाख़िल कर लिया।
\s5
\v 23 शाह-ए-यहूदाह यूआस के बेटे अमसियाह के पन्द्रहवें बरस से शाह-ए-इस्राईल यूआस का बेटा युरब'आम सामरिया में बादशाही करने लगा; उसने इकतालिस बरस बादशाही की।
\v 24 उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया; वह नबात के बेटे युरब'आम के उन सब गुनाहों से, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया, बाज़ न आया।
\v 25 और उसने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के उस बात के मुताबिक़, जो उसने अपने बन्दे और नबी यूनाह-बिन-अमित्ते के ज़रिए' जो जात हिफ़्र का था फ़रमाया था, इस्राईल की हद को हमात के मदख़ल से मैदान के दरिया तक फिर पहुँचा दिया।
\s5
\v 26 ~इसलिए कि ख़ुदावन्द ने इस्राईल के दुख़ को देखा कि वह बहुत सख़्त है', क्यूँकि न तो कोई बन्द किया हुआ, न आज़ाद छूटा हुआ रहा और न कोई इस्राईल का मददगार था।
\v 27 और ख़ुदावन्द ने यह तो नहीं फ़रमाया था कि मैं इस ज़मीन पर से इस्राईल का नाम मिटा दूँगा; इसलिए उसने उनको यूआस के बेटे युरब'आम के वसीले से रिहाई दी।
\s5
\v 28 युरब'आम के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया और उसकी क़ुव्वत, या'नी क्यूँकर उसने लड़ कर दमिश्क़ और हमात को जो यहूदाह के थे, इस्राईल के लिए वापस ले लिया, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?
\v 29 ~और युरब'आम अपने बाप-दादा, या'नी इस्राईल के बादशाहों के साथ सो गया; और उसका बेटा ज़करियाह उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\c 15
\p
\v 1 ~शाह-ए-इस्राईल युरब'आम के सत्ताइसवें बरस से शाह-ए-यहूदाह अमसियाह का बेटा अज़रियाह सल्तनत करने लगा।
\v 2 जब वह सल्तनत करने लगा तो सोलह बरस का था, और उसने यरुशलीम में बावन बरस सल्तनत की। उसकी माँ का नाम यकूलियाह था, जो यरुशलीम की थी।
\v 3 और उसने जैसा उसके बाप अमसियाह ने किया था, ठीक उसी तरह वह काम किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में नेक था;
\s5
\v 4 ~तोभी ऊँचे मक़ाम ढाए न गए, और लोग अब तक ऊँचे मक़ामों पर क़ुर्बानी करते और ख़ुशबू जलाते थे।
\v 5 और बादशाह पर ख़ुदावन्द की ऐसी मार पड़ी कि वह अपने मरने के दिन तक कोढ़ी रहा और अलग एक घर में रहता था। और बादशाह का बेटा यूताम महल का मालिक था, और मुल्क के लोगों की 'अदालत किया करता था।
\s5
\v 6 और 'अज़रियाह के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, तो क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?
\v 7 और 'अज़रियाह अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और उन्होंने उसे दाऊद के शहर में उसके बाप-दादा के साथ दफ़न किया; और उसका बेटा यूताम उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\v 8 ~और शाह-ए-यहूदाह 'अज़रियाह के अड़तीसवें साल युरब'आम के बेटे ज़करियाह ने इस्राईल पर सामरिया में छ: महीने बादशाही की।
\v 9 और उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया, जिस तरह उसके बाप-दादा ने की थी; और नबात के बेटे युरब'आम के गुनाहों से, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया बाज़ न आया।
\s5
\v 10 और यबीस के बेटे सलूम ने उसके ख़िलाफ़ साज़िश की और लोगों के सामने उसे मारा, और क़त्ल किया और उसकी जगह बादशाह हो गया।
\v 11 ~ज़करियाह के बाक़ी काम इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे हैं।
\v 12 ~और ख़ुदावन्द का वह वा'दा जो उसने याहू से किया यही था कि: "चौथी नस्ल तक तेरे फ़र्ज़न्द इस्राईल के तख़्त पर बैठेगे।" इसलिए ~वैसा ही हुआ।
\s5
\v 13 शाह-ए-यहूदाह उज़्ज़ियाह के उन्तालीसवें बरस यबीस का बेटा सलूम बादशाही करने लगा, और उसने सामरिया में महीना भर सल्तनत की।
\v 14 और जादी का बेटा मनाहिम तिरज़ा से चला और सामरिया में आया, और यबीस के बेटे सलूम को सामरिया में मारा, और क़त्ल किया और उसकी जगह बादशाह हो गया।
\s5
\v 15 और सलूम के बाक़ी काम और जो साज़िश उसने की, इसलिए देखो, वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे हैं।
\v 16 ~फिर मनाहिम ने तिरज़ा से जाकर तिफ़सह को, और उन सभों को जो वहाँ थे और उसकी हुदूद को मारा; और मारने की वजह यह थी कि उन्होंने उसके लिए फाटक नहीं खोले थे; और उसने वहाँ की सब हामिला 'औरतों को चीर डाला।
\s5
\v 17 और शाह-ए-यहूदाह 'अज़रियाह के उन्तालीसवें बरस से जादी का बेटा मनाहिम इस्राईल पर सल्तनत करने लगा, और उसने सामरिया में दस बरस सल्तनत की।
\v 18 उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया और नबात के बेटे युरब'आम के गुनाहों से, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया, अपनी सारी 'उम्र बाज़ न आया।
\s5
\v 19 ~और शाह-ए-असूर पूल उसके मुल्क पर चढ़ आया। इसलिए मनाहिम ने हज़ार क़िन्तार' चाँदी पूल को नज़्र की, ताकि वह ~उसकी दस्तगीरी करे और सल्तनत को उसके हाथ में मज़बूत कर दे।
\v 20 और मनाहिम ने ये नक़दी शाह-ए-असूर को देने के लिए इस्राईल से या'नी सब बड़े-बड़े दौलतमन्दों से पचास-पचास मिस्क़ाल हर शख़्स के हिसाब से जबरन ली। इसलिए असूर का बादशाह लौट गया और उस मुल्क में न ठहरा।
\s5
\v 21 मनाहिम के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे नहीं?
\v 22 ~और मनाहिम अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और उसका बेटा फक़ीहयाह उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\v 23 ~शाह-ए-यहूदाह 'अज़रियाह के पचासवीं साल मनाहिम का बेटा फक़ीयाह सामरिया में इस्राईल पर सल्तनत करने लगा, और उसने दो बरस सल्तनत की।
\v 24 उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया; वह नबात के बेटे युरब'आम के गुनाहों से, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया, बाज़ न आया।
\s5
\v 25 ~और फिक़ह-बिन-रमलियाह ने जो उसका एक सरदार था, उसके ख़िलाफ़ साज़िश की और उसको सामरिया में बादशाह के महल के मुहकम हिस्से में अरजूब और अरिया के साथ मारा, और जिल'आदियों में से पचास मर्द उसके साथ थे, इसलिए वह उसे क़त्ल करके उसकी जगह बादशाह हो गया।
\v 26 फक़ीयाह के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा है।
\s5
\v 27 शाह-ए-यहूदाह 'अज़रियाह के बावनवें बरस से फिक़ह-बिन-रमलियाह सामरिया में इस्राईल पर सल्तनत करने लगा, और उसने बीस बरस सल्तनत की।
\v 28 उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया और नबात के बेटे युरब'आम के गुनाहों से, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया, बाज़ न आया।
\s5
\v 29 शाह-ए-इस्राईल फिक़ह के अय्याम में शाह-ए-असूर तिगलत पिलासर ने आकर अय्यून, और अबील बैतमा'का, और यनूहा, और क़ादिस ~और हसूर और जिल'आद और गलील, और नफ़्ताली के सारे मुल्क को ले लिया, और लोगों को ग़ुलाम करके ग़ुलामी ~में ले गया।
\v 30 और हूसी'-बिन ऐला ने फ़िक़ह-बिन-रमलियाह के ख़िलाफ़ साज़िश की और उसे मारा, और क़त्ल किया और उसकी जगह, उज़्ज़ियाह के बेटे यूताम के बीसवें बरस, बादशाह हो गया;
\v 31 और फ़िक़ह के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे हैं।
\s5
\v 32 शाह-ए-इस्राईल रमलियाह के बेटे फ़िक़ह के दूसरे साल से शाह-ए-यहूदाह उज़ियाह का बेटा यूताम सल्तनत करने लगा।
\v 33 जब वह सल्तनत करने लगा तो पच्चीस बरस का था, उसने सोलह बरस यरुशलीम में सल्तनत की। उसकी माँ का नाम यरूसा था, जो सदूक़ी की बेटी थी।
\s5
\v 34 उसने वह काम किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में भला है; उसने सब कुछ ठीक वैसे ही किया जैसे उसके बाप 'उज़ियाह ने किया था।
\v 35 तोभी ऊँचे मक़ाम ढाए न गए लोग अभी ऊँचे मक़ामों पर क़ुर्बानी करते और ख़ुशबू जलाते थे। ख़ुदावन्द के घर का बालाई दरवाज़ा इसी ने बनाया।
\v 36 यूताम के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, इसलिए क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?
\v 37 ~उन ही दिनों में ख़ुदावन्द शाह-ए-अराम रज़ीन को और फ़िक़ह-बिन-रमलियाह को, यहूदाह पर चढ़ाई करने के लिए भेजने लगा।
\v 38 ~यूताम अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और अपने बाप दाऊद के शहर में अपने बाप-दादा के साथ दफ़न हुआ; और उसका बेटा आख़ज़ उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\c 16
\p
\v 1 और रमलियाह के बेटे फ़िक़ह के सत्तरहवें ~बरस से शाह-ए-यहूदाह यूताम का बेटा आख़ज़ सल्तनत करने लगा।
\v 2 ~जब वह सल्तनत करने लगा तो बीस बरस का था, और उसने सोलह बरस यरुशलीम में बादशाही की। और उसने वह काम न किया जो ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा की नज़र में सही है, जैसा उसके बाप दाऊद ने किया था।
\s5
\v 3 ~बल्कि वह इस्राईल के बादशाहों के रास्ते पर चला और उसने उन क़ौमों के नफ़रती दस्तूर के मुताबिक़, जिनको ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के सामने से ख़ारिज कर दिया था, अपने बेटे को भी आग में चलवाया।
\v 4 ~और ऊँचे मक़ामों और टीलों पर और हर एक हरे दरख़्त के नीचे उसने क़ुर्बानी की और ख़ुशबू जलाया।
\s5
\v 5 तब शाह-ए-अराम रज़ीन और शाह-ए-इस्राईल रमलियाह के बेटे फ़िक़ह ने लड़ने को यरुशलीम पर चढ़ाई की, और उन्होंने आख़ज़ को घेर लिया लेकिन उस पर ग़ालिब न आ सके।
\v 6 उस वक़्त शाह-ए-अराम रज़ीन ने ऐलात को फ़तह करके फिर अराम में शामिल कर लिया, और यहूदियों को ऐलात से निकाल दिया; और अरामी ऐलात में आकर वहाँ बस गए जैसा आज तक है।
\s5
\v 7 इसलिए आख़ज़ ने शाह-ए-असूर तिगलत पिलासर के पास क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा, "मैं तेरा ख़ादिम और बेटा हूँ, इसलिए तू आ और मुझ को शाह-ए-अराम के हाथ से और शाह-ए-इस्राईल के हाथ से जो मुझ पर चढ़ आए हैं, रिहाई दे।"
\v 8 ~और आख़ज़ ने उस चाँदी और सोने को जो ख़ुदावन्द के घर में और शाही महल के ख़ज़ानों में मिला, लेकर शाह-ए-असूर के लिए नज़राना भेजा।
\v 9 और शाह-ए-असूर ने उसकी बात मानी, चुनॉचे शाह-ए-असूर ने दमिश्क़ पर लश्करकशी की और उसे ले लिया, और वहाँ के लोगों को क़ैद करके क़ीर में ले गया और रज़ीन को क़त्ल किया।
\s5
\v 10 और आख़ज़ बादशाह, शाह-ए-असूर तिगलत पिलासर की मुलाक़ात के लिए दमिश्क़ को गया, और उस मज़बह को देखा जो दमिश्क़ में था; और आख़ज़ बादशाह ने उस मज़बह का नक़्शा और उसकी सारी सन'अत का नमूना ऊरियाह काहिन के पास भेजा।
\v 11 ~और ऊरियाह काहिन ने ठीक उसी नमूने के मुताबिक़ जिसे आख़ज़ ने दमिश्क़ से भेजा था, एक मज़बह बनाया। और आख़ज़ बादशाह के दमिश्क़ से लौटने तक ऊरियाह काहिन ने उसे तैयार कर दिया।
\v 12 जब बादशाह दमिश्क़ से लौट आया तो बादशाह ने मज़बह को देखा, और बादशाह मज़बह के पास गया और उस पर क़ुर्बानी पेश की।
\s5
\v 13 उसने उस मज़बह पर अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी और अपनी नज़्र की क़ुर्बानी जलाई, और अपना तपावन तपाया और अपनी सलामती के ज़बीहों का ख़ून उसी मज़बह पर छिड़का।
\v 14 और उसने पीतल का वह मज़बह जो ख़ुदावन्द के आगे था, हैकल के सामने से या'नी अपने मज़बह और ख़ुदावन्द की हैकल के बीच में से, उठवाकर उसे अपने मज़बह के उत्तर की तरफ़ रखवा दिया।
\s5
\v 15 और आख़ज़ बादशाह ने ऊरियाह काहिन को हुक्म दिया , "बड़े मज़बह पर सुबह की सोख़्तनी कु़र्बानी, और शाम की नज़्र की कु़र्बानी, और बादशाह की सोख़्तनी कु़र्बानी, और उसकी नज़्र की कु़र्बानी, और ममलुकत के सब लोगों की सोख़्तनी कु़र्बानी, और उनकी नज़्र की कु़बानी, और उनका तपावन चढ़ाया कर, और सोख़्तनी क़ुर्बानी का सारा खू़न, और ज़बीहे का सारा ख़ून उस पर छिड़क कर; और पीतल का वह मज़बह मेरे सवाल करने के लिए रहेगा।"
\v 16 ~इसलिए जो कुछ आख़ज़ बादशाह ने फ़रमाया, ऊरियाह काहिन ने वह सब किया।
\s5
\v 17 और आख़ज़ बादशाह ने कुर्सियों के किनारों को काट डाला, और उनके ऊपर के हौज़ को उनसे जुदा कर दिया; और उस बड़े हौज़ को पीतल के बैलों पर से जो उसके नीचे थे उतार कर पत्थरों के फ़र्श पर रख दिया |
\v 18 और उसने उस रास्ते को जिस पर छत थी, और जिसे उन्होंने सबत के दिन के लिए हैकल के अन्दर बनाया था, और बादशाह के आने के रास्ते को जो बाहर था, शाह-ए- असूर की वजह से ख़ुदावन्द के घर में शामिल कर दिया'।
\s5
\v 19 और आख़ज़ के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, इसलिए क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?
\v 20 और आख़ज़ अपने बाप दादा के साथ सो गया, और दाऊद के शहर में अपने बाप-दादा के साथ दफ़न हुआ; और उसका बेटा हिज़क़ियाह उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\c 17
\p
\v 1 ~शाह-ए-यहूदाह आख़ज़ के बारहवें बरस से ऐला का बेटा हूसी'अ इस्राईल पर सामरिया में सल्तनत करने लगा, और उसने नौ बरस सल्तनत की।
\v 2 उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया, तोभी इस्राईल के उन बादशाहों की तरह नहीं जो उससे पहले हुए।
\v 3 ~शाह-ए-असूर सलमनसर ने इस पर चढ़ाई की, और हूसी'अ उसका ख़ादिम हो गया और उसके लिए हदिया लाया।
\s5
\v 4 और शाह-ए-असूर ने हूसी'अ की साज़िश मा'लूम कर ली, क्यूँकि उसने शाह-ए-मिस्र के पास इसलिए क़ासिद भेजे, और शाह-ए-असूर को हदिया न दिया जैसा वह साल-ब-साल देता था, इसलिए ~शाह-ए-असूर ने उसे बन्द कर दिया और कै़दखाने में उसके बेड़ियाँ डाल दीं।
\v 5 ~शाह-ए-असूर ने सारी ममलुकत पर चढ़ाई की, और सामरिया को जाकर तीन बरस उसे घेरे रहा।
\v 6 ~और हूसी'अ के नौवें बरस शाह-ए-असूर ने सामरिया को ले लिया और इस्राईल को ग़ुलाम करके असूर में ले गया, और उनको ख़लह में, और जौज़ान की नदी ख़ाबूर पर, और मादियों के शहरों में बसाया I
\s5
\v 7 और ये इसलिए हुआ कि बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के ख़िलाफ़, जिसने उनको मुल्क-ए-मिस्र से निकालकर शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन के हाथ से रिहाई दी थी, गुनाह किया और ग़ैर-मा'बूदों का ख़ौफ़ माना।
\v 8 और उन क़ौमों के तौर पर जिनको ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के आगे से ख़ारिज किया, और इस्राईल के बादशाहों के तौर पर जो उन्होंने ख़ुद ~बनाए थे चलते रहे।
\s5
\v 9 और बनी इस्राईल ने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के ख़िलाफ़ छिपकर वह काम किए जो भले न थे, और उन्होंने अपने सब शहरों में, निगहबानों के बुर्ज से फ़सीलदार शहर तक, अपने लिए ऊँचे मक़ाम बनाए
\v 10 और हर एक ऊँचे पहाड़ पर, और हर एक हरे दरख़्त के नीचे उन्होंने अपने लिए सुतूनों और यसीरतों को खड़ा किया।
\s5
\v 11 ~और वहीं उन सब ऊँचे मक़ामों पर, उन क़ौमों की तरह जिनको ख़ुदावन्द ने उनके सामने से दफ़ा' किया, ख़ुशबू जलाया और ख़ुदावन्द को ग़ुस्सा दिलाने के लिए शरारतें कीं;
\v 12 और बुतों की 'इबादत की, जिसके बारे में ख़ुदावन्द ने उनसे कहा था, "तुम ये काम न करना।"
\s5
\v 13 तोभी ख़ुदावन्द सब नबियों और ग़ैबबीनों के ज़रिए' इस्राईल और यहूदाह को आगाह करता रहा, "तुम अपनी बुरी राहों से बाज़ आओ, और उस सारी शरी'अत के मुताबिक़, जिसका हुक्म मैंने तुम्हारे बाप-दादा को दिया और जिसे मैंने अपने बन्दों नबियों के ज़रिए' तुम्हारे पास भेजा है, मेरे अहकाम और क़ानून को मानो।"
\s5
\v 14 ~बावजूद इसके उन्होंने न सुना, बल्कि अपने बाप-दादा की तरह जो ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा पर ईमान नहीं लाए थे, गर्दनकशी की,
\v 15 और उसके क़ानून को और उसके 'अहद को, जो उसने उनके बाप-दादा से बाँधा था, और उसकी शहादतों को जो उसने उनको दी थीं रद्द किया; और बेकार बातों के पैरौ होकर निकम्मे हो गए, और अपने आस-पास की क़ौमों की पैरवी की, जिनके बारे में ख़ुदावन्द ने उनको ताकीद की थी कि वह उनके से काम न करें।
\s5
\v 16 और उन्होंने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सब अहकाम छोड़ कर अपने लिए ढाली हुई मूरतें या'नी दो बछड़े बना लिए, और यसीरत तैयार की, और आसमानी फ़ौज की 'इबादत की, और बा'ल की 'इबादत की।
\v 17 और उन्होंने अपने बेटे और बेटियों को आग में चलवाया, और फ़ालगीरी और जादूगरी से काम लिया और अपने को बेच डाला, ताकि ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह करके उसे ग़ुस्सा दिलाएँ।
\v 18 इसलिए ख़ुदावन्द इस्राईल से बहुत नाराज़ हुआ, और अपनी नज़र से उनको ~दूर कर दिया; इसलिए यहूदाह के क़बीले के अलावा और कोई न छूटा।
\s5
\v 19 यहूदाह ने भी ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के अहकाम न माने, बल्कि उन तौर तरीक़ों पर चले जिनको ~इस्राईल ने बनाया था।
\v 20 ~तब ख़ुदावन्द ने इस्राईल की सारी नस्ल को रद्द किया, और उनको दुख दिया और उनको लुटेरों के हाथ में करके आख़िरकार उनको अपनी नज़र से दूर कर दिया।
\s5
\v 21 ~क्यूँकि उसने इस्राईल को दाऊद के घराने से जुदा किया, और उन्होंने नबात के बेटे युरब'आम को बादशाह बनाया, और युरब'आम ने इस्राईल को ख़ुदावन्द की पैरवी से दूर किया और उनसे बड़ा गुनाह कराया।
\v 22 और बनी इस्राईल उन सब गुनाहों की जो युरब'आम ने किए, पैरवी करते रहे; वह उनसे बाज़ न आए।
\v 23 यहाँ तक कि ख़ुदावन्द ने इस्राईल को अपनी नज़र से दूर कर दिया, जैसा उसने अपने सब बन्दों के ज़रिए', जो नबी थे फ़रमाया था। इसलिए इस्राईल अपने मुल्क से असूर को पहुँचाया गया, जहाँ वह आज तक है।
\s5
\v 24 ~और शाह-ए-असूर ने बाबुल और कूताह और 'अव्वा और हमात और सिफ़वाइम के लोगों को लाकर बनी-इस्राईल की जगह सामरिया के शहरों में बसाया। इसलिए वह ~सामरिया के मालिक हुए, और उसके शहरों में बस गए।
\v 25 और अपने बस जाने के शुरू' में उन्होंने ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ न माना; इसलिए ख़ुदावन्द ने उनके बीच शेरों को भेजा, जिन्होंने उनमें से कुछ को मार डाला।
\v 26 तब उन्होंने शाह-ए-असूर से ये कहा, "जिन क़ौमों को तूने ले जाकर सामरिया के शहरों में बसाया है, वह उस मुल्क के ख़ुदा के तरीक़े से वाक़िफ़ नहीं हैं; चुनाँचे उसने उनमें शेर भेज दिए हैं और देख, वह उनको फाड़ते हैं, इसलिए कि वह उस मुल्क के ख़ुदा के तरीक़े से वाक़िफ़ नही हैं।"
\s5
\v 27 ~तब असूर के बादशाह ने ये हुक्म दिया, "जिन काहिनों को तुम वहाँ से ले आए हो, उनमें से एक को वहाँ ले जाओ, और वह ~जाकर वहीं रहे और ये काहिन उनको उस मुल्क के ख़ुदा का तरीक़ा सिखाए।"
\v 28 इसलिए उन काहिनों में से, जिनको वह सामरिया ले गए थे, एक काहिन आकर बैतएल में रहने लगा, और उनको सिखाया कि उनको ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ क्यूँकर मानना चाहिए।
\s5
\v 29 ~इस पर भी हर क़ौम ने अपने मा'बूद बनाए, और उनको सामरियों के बनाए हुए ऊँचे मक़ामों के बुतख़ानों में रख्खा; हर क़ौम ने अपने शहर में जहाँ उसकी सुकूनत थी ऐसा ही किया।
\v 30 इसलिए बाबुलियों ने सुक्कात बनात को, और कूतियों ने नैरगुल को, और हमातियों ने असीमा को,
\v 31 और 'अवाइयों ने निबहाज़ और तरताक़ को बनाया; और सिफ़वियों ने अपने बेटों को अदरम्मलिक और 'अनम्मलिक के लिए, जो सिफ़वाइम के मा'बूद थे, आग में जलाया।
\s5
\v 32 इस तरह वह ख़ुदावन्द से भी डरते थे और अपने लिए ऊँचे मक़ामों के काहिन भी अपने ही में से बना लिए, जो ऊँचे मक़ामों के बुतख़ानों में उनके लिए क़ुर्बानी पेश करते थे।
\v 33 इसलिए वह ख़ुदावन्द से भी डरते थे और अपनी क़ौमों के दस्तूर के मुताबिक़, जिनमें से वह निकाल लिए गए थे, अपने-अपने मा'बूद की 'इबादत भी करते थे।
\s5
\v 34 आज के दिन तक वह पहले दस्तूर पर चलते हैं, वह ~ख़ुदावन्द से डरते नहीं, और न तो अपने आईन-ओ-क़वानीन पर और न उस शरा' और फ़रमान पर चलते हैं, जिसका हुक्म ख़ुदावन्द ने या'क़ूब की नसल को दिया था, जिसका नाम उसने इस्राईल रखा था।
\v 35 उन ही से ख़ुदावन्द ने 'अहद करके उनको ये ताकीद की थी, "तुम गै़र-मा'बूदों से न डरना, और न उनको सिज्दा करना, न 'इबादत करना , और न उनके लिए क़ुर्बानी करना;
\s5
\v 36 बल्कि ख़ुदावन्द जो बड़ी क़ुव्वत और बलन्द बाज़ू से तुम को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, तुम उसी से डरना और उसी को सिज्दा करना और उसी के लिए क़ुर्बानी पेश करना।
\v 37 और जो-जो क़ानून, और रवायत, और जो शरी'अत, और हुक्म उसने तुम्हारे लिए लिखे, उनको हमेशा मानने के लिए एहतियात रखना; और तुम गै़र-मा'बूदों से न डरना,
\v 38 और उस 'अहद को जो मैंने तुम से किया है तुम भूल न जाना; और न तुम गै़र-मा'बूदों का ख़ौफ़ मानना;
\s5
\v 39 ~बल्कि तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना, और वह ~तुम को तुम्हारे सब दुश्मनों के हाथ से छुड़ाएगा।"
\v 40 लेकिन उन्होंने न माना, बल्कि अपने पहले दस्तूर के मुताबिक़ करते रहे।
\v 41 ~इसलिए ये क़ौमें ख़ुदावन्द से भी डरती रहीं, और अपनी खोदी हुई मूरतों को भी पूजती रहीं; इसी तरह उनकी औलाद और उनकी औलाद की नसल भी, जैसा उनके बाप-दादा करते थे, वैसा वह भी आज के दिन तक करती हैं।
\s5
\c 18
\p
\v 1 और शाह-ए इस्राईल होशे' बिन ऐला के तीसरे साल ऐसा हुआ कि शाह-ए-यहूदाह आख़ज़ का बेटा हिज़क़ियाह सल्तनत करने लगा।
\v 2 ~जब वह सल्तनत करने लगा तो पच्चीस बरस का था, और उसने उन्तीस बरस यरुशलीम में सल्तनत की। उसकी माँ का नाम अबी था, जो ज़करियाह की बेटी थी।
\v 3 ~और जो-जो उसके बाप दाऊद ने किया था, उसने ठीक उसी के मुताबिक़ वह काम किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में अच्छा था।
\s5
\v 4 उसने ऊँचे मक़ामों को दूर कर दिया, और सुतूनों को तोड़ा और यसीरत को काट डाला; और उसने पीतल के साँप को जो मूसा ने बनाया था चकनाचूर कर दिया, क्यूँकि बनी-इस्राईल उन दिनों तक उसके आगे ख़ुशबू जलाते थे; और उसने उसका नाम नहुश्तान' रखा।
\v 5 ~वह ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा पर भरोसा करता था, ऐसा कि उसके बा'द यहूदाह के सब बादशाहों में उसकी तरह एक न हुआ, और न उससे पहले कोई हुआ था।
\s5
\v 6 क्यूँकि वह ख़ुदावन्द से लिपटा रहा और उसकी पैरवी करने से बाज़ न आया; बल्कि उसके हुक्मों को माना जिनको ख़ुदावन्द ने मूसा को दिया था।
\v 7 और ख़ुदावन्द उसके साथ रहा और जहाँ कहीं वह गया कामयाब हुआ; और वह शाह-ए-असूर से फिर गया और उसकी पैरवी न की।
\v 8 उसने फ़िलिस्तियों को ग़ज़्ज़ा और उसकी सरहदों तक, निगहबानों के बुर्ज से फ़सीलदार शहर तक मारा।
\s5
\v 9 हिज़क़ियाह बादशाह के चौथे बरस जो शाह-ए-इस्राईल हूसे'अ-बिन-ऐला का सातवाँ बरस था, ऐसा हुआ कि शाह-ए-असूर सलमनसर ने सामरिया पर चढ़ाई की, और उसको घेर ~लिया।
\v 10 और तीन साल के आख़िर में उन्होंने उसको ले लिया; या'नी हिज़क़ियाह के छठे साल जो शाह-ए-इस्राईल हूसे'अ का नौवाँ बरस था, सामरिया ले लिया गया।
\s5
\v 11 और शाह-ए-असूर इस्राईल को ग़ुलाम करके असूर को ले गया, और उनको ख़लह में और जौज़ान की नदी ख़ाबूर पर, और मादियों के शहरों में रख्खा,
\v 12 इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात न मानी, बल्कि उसके 'अहद को या'नी उन सब बातों को जिनका हुक्म ख़ुदा के बन्दे मूसा ने दिया था मुख़ालिफ़त की, और न उनको सुना न उन पर 'अमल किया।
\s5
\v 13 ~हिज़क़ियाह बादशाह के चौदहवें बरस शाह-ए-असूर सनहेरिब ने यहूदाह के सब फ़सीलदार शहरों पर चढ़ाई की और उनको ले लिया।
\v 14 ~और शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह ने शाह-ए-असूर को लकीस में कहला भेजा, "मुझ से ख़ता हुई, मेरे पास से लौट जा; जो कुछ तू मेरे सिर करे मैं उसे उठाऊँगा।” इसलिए शाह-ए-असूर ने तीन सौ क़िन्तार चाँदी और तीस क़िन्तार सोना शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह के ज़िम्मे लगाया।
\v 15 ~और हिज़क़ियाह ने सारी चाँदी जो ख़ुदावन्द के घर और शाही महल के ख़ज़ानों में मिली उसे दे दी।
\s5
\v 16 उस वक़्त हिज़क़ियाह ने ख़ुदावन्द की हैकल के दरवाज़ों का और उन सुतूनों पर का सोना, जिनको शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह ने ख़ुद मंढ़वाया था, उतरवा कर शाह-ए-असूर को दे दिया।
\v 17 ~फिर भी शाह-ए-असूर ने तरतान और रब सारिस और रबशाक़ी को लकीस से बड़े लश्कर के साथ हिज़क़ियाह बादशाह के पास यरुशलीम को भेजा। इसलिए वह चले और यरुशलीम को आए, और जब वहाँ पहुँचे तो जाकर ऊपर के तालाब की नाली के पास, जो धोबियों के मैदान के रास्ते पर है, खड़े हो गए।
\v 18 ~और जब उन्होंने बादशाह को पुकारा, तो इलियाक़ीम-बिन-ख़िलक़ियाह जो ~घर का दीवान था और शबनाह मुन्शी और आसफ़ मुहर्रिर का बेटा यूआख़ उनके पास निकल कर आए।
\s5
\v 19 और रबशाक़ी ने उनसे कहा, "तुम हिज़क़ियाह से कहो, कि मलिक-ए-मुअज़्ज़म शाह-ए-असूर यूँ फ़रमाता है, 'तू क्या भरोसा किए बैठा है?
\v 20 तू कहता तो है, लेकिन ये सिर्फ़ बातें ही बातें हैं कि जंग की मसलहत भी है और हौसला भी। आख़िर किसके भरोसे पर तू ने मुझ से सरकशी की है?
\v 21 ~देख, तुझे इस मसले हुए सरकण्डे के 'असा या'नी मिस्र पर भरोसा है; उस पर अगर कोई टेक लगाए, तो वह उसके हाथ में गड़ जाएगा और उसे छेद देगा"। शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन उन सब के लिए जो उस पर भरोसा करते हैं, ऐसा ही है।
\s5
\v 22 और अगर तुम मुझ से कहो कि हमारा भरोसा ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा पर है, तो क्या वह वही नहीं है, जिसके ऊँचे मक़ामों और मज़बहों को हिज़क़ियाह ने दूर करके ~यहूदाह और यरुशलीम से कहा है, कि तुम यरुशलीम में इस मज़बह के आगे सिज्दा किया करो?'
\v 23 इसलिए अब ज़रा मेरे आक़ा शाह-ए-असूर के साथ शर्त बाँध और मैं तुझे दो हज़ार घोड़े दूँगा, बशर्ते कि तू अपनी तरफ़ से उन पर सवार चढ़ा सके।
\s5
\v 24 भला फिर तू क्यूँकर मेरे आक़ा के अदना मुलाज़िमों में से एक सरदार का भी मुँह फेर सकता है, और रथों और सवारों के लिए मिस्र पर भरोसा रखता है?
\v 25 ~और क्या अब मैंने ख़ुदावन्द के बिना कहे ही इस मक़ाम को ग़ारत करने के लिए इस पर चढ़ाई की है? ख़ुदावन्द ही ने मुझ से कहा कि इस मुल्क पर चढ़ाई कर और इसे बर्बाद कर दे।"
\s5
\v 26 ~तब इलियाक़ीम-बिन-ख़िलक़ियाह, और शबनाह, और यूआख़ ने रबशाक़ी से अर्ज़ की कि अपने ख़ादिमों से अरामी ज़बान में बात कर, क्यूँकि हम उसे समझते हैं; और उन लोगों के सुनते हुए जो दीवार पर हैं, यहूदियों की ज़बान में बातें न कर।"
\v 27 ~लेकिन रबशाक़ी ने उनसे कहा, "क्या मेरे आक़ा ने मुझे ये बातें कहने को तेरे आक़ा के पास, या तेरे पास भेजा है? क्या उसने मुझे उन लोगों के पास नहीं भेजा, जो तुम्हारे साथ अपनी ही नजासत खाने और अपना ही क़ारूरा पीने को दीवार पर बैठे हैं?"
\s5
\v 28 फिर रबशाक़ी खड़ा हो गया और यहूदियों की ज़बान में बलन्द आवाज़ से ये कहने लगा, "मलिक-ए-मुअज़्ज़म शाह-ए- असूर का कलाम सुनो,
\v 29 बादशाह यूँ फ़रमाता है, 'हिज़क़ियाह तुम को धोका न दे, क्यूँकि वह तुम को उसके हाथ से छुड़ा न सकेगा।
\v 30 और न हिज़क़ियाह ये कहकर तुम से ख़ुदावन्द पर भरोसा कराए, कि ख़ुदावन्द ज़रूर हमको छुड़ाएगा और ये शहर शाह-ए-असूर के हवाले न होगा।
\s5
\v 31 हिज़क़ियाह की न सुनो। क्यूँकि शाह-ए-असूर यूँ फ़रमाता है कि तुम मुझसे सुलह कर लो और निकलकर मेरे पास आओ, और तुम में से हर एक अपनी ताक और अपने अंजीर के दरख्त़ का फल खाता और अपने हौज़ का पानी पीता रहे।
\v 32 जब तक मैं आकर तुम को ऐसे मुल्क में न ले जाऊँ, जो तुम्हारे मुल्क की तरह ग़ल्ला और मय का मुल्क, रोटी और ताकिस्तानों का मुल्क, ज़ैतूनी तेल और शहद का मुल्क है; ताकि तुम जीते रहो, और मर न जाओ; इसलिए हिज़क़ियाह की न सुनना, जब वह तुमको ये ता'लीम दे कि ख़ुदावन्द हमको छुड़ाएगा।
\s5
\v 33 ~क्या क़ौमों के मा'बूदों में से किसी ने अपने मुल्क को शाह-ए-असूर के हाथ से छुड़ाया है?
\v 34 हमात और अरफ़ाद के मा'बूद कहाँ हैं? और सिफ़वाइम और हेना' और इवाह के~मा'बूद कहाँ हैं? क्या उन्होंने सामरिया को मेरे हाथ से बचा लिया?
\v 35 और मुल्कों के तमाम~मा'बूदों में से किस-किस ने अपना मुल्क मेरे हाथ से छुड़ा लिया, जो यहोवाह यरुशलीम को मेरे हाथ से छुड़ा लेगा?"
\s5
\v 36 लेकिन लोग ख़ामोश रहे और उसके जवाब में एक बात भी न कही, क्यूँकि बादशाह का हुक्म यह था कि उसे जवाब न देना।
\v 37 ~तब इलियाक़ीम-बिन-ख़िलक़ियाह जो घर का दीवान था, और शबनाह मुन्शी, और यूआख़ बिन-आसफ़ मुहर्रिर अपने कपड़े चाक किए हुए हिज़क़ियाह के पास आए और रबशाक़ी की बातें उसे सुनाई।
\s5
\c 19
\p
\v 1 जब हिज़क़ियाह बादशाह ने यह सुना, तो अपने कपड़े फाड़े और टाट ओढ़कर ख़ुदावन्द के घर में गया।
\v 2 और उसने घर के दीवान और इलियाक़ीम और शबनाह मुन्शी और काहिनों के बुज़ुर्गों को टाट उढ़ाकर आमूस के बेटे यसा'याह नबी के पास भेजा।
\s5
\v 3 और उन्होंने उससे कहा, "हिज़क़ियाह यूँ कहता है, कि आज का दिन दुख, और मलामत, और तौहीन का दिन है; क्यूँकि बच्चे पैदा होने पर हैं, लेकिन विलादत की ताक़त नहीं।
\v 4 शायद ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा रबशाक़ी की सब बातें सुने जिसको उसके आक़ा शाह-ए-असूर ने भेजा है, कि ज़िन्दा ख़ुदा की तौहीन करे और जो बातें ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने सुनी हैं उन पर वह मलामत करेगा। इसलिए ~तू उस बक़िया के लिए जो मौजूद है दु'आ कर।”
\s5
\v 5 इसलिए हिज़क़ियाह बादशाह के मुलाज़िम यसा'याह के पास आए।
\v 6 ~यसा'याह ने उनसे कहा, "तुम अपने मालिक से यूँ कहना, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू उन बातों से जो तूने सुनी हैं, जिनसे शाह-ए-असूर के मुलाज़िमों ने मेरी बुराई की है, न डर।
\v 7 देख, मैं उसमें एक रूह डाल दूँगा, और वह एक अफ़वाह सुनकर अपने मुल्क को लौट जाएगा, और मैं उसे उसी के मुल्क में तलवार से मरवा डालूँगा।”
\s5
\v 8 इसलिए रबशाक़ी लौट गया और उसने शाह-ए-असूर को लिबनाह से लड़ते पाया, क्यूँकि उसने सुना था कि वह लकीस से चला गया है;
\v 9 ~और जब उसने कूश के बादशाह तिरहाक़ा के ज़रिए' ये कहते सुना कि "देख, वह तुझसे लड़ने को निकला है, ”तो उसने फिर हिज़क़ियाह के पास क़ासिद रवाना किए और कहा,
\s5
\v 10 कि "शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह से इस तरह कहना, 'तेरा ख़ुदा, जिस पर तेरा भरोसा है, तुझे यह कहकर धोखा न दे कि यरुशलीम शाह-ए-असूर के क़ब्ज़े में नहीं किया जाएगा।
\v 11 देख, तूने सुना है कि असूर के बादशाहों ने तमाम मुमालिक को बिल्कुल ग़ारत करके उनका क्या हाल बनाया है; इसलिए क्या तू बचा रहेगा?
\s5
\v 12 ~क्या उन क़ौमों के~मा'बूदों ने उनको, या'नी जौज़ान और हारान और रसफ़ और बनी-'अदन जो तिल्लसार में थे, जिनको हमारे बाप-दादा ने बर्बाद किया, छुड़ाया?
\v 13 हमात का बादशाह और अरफ़ाद का बादशाह, और शहर सिफ़वाइम और हेना' और इवाह का बादशाह कहाँ है?"
\s5
\v 14 हिज़क़ियाह ने क़ासिदों के हाथ से ख़त लिया और उसे पढ़ा, और हिज़क़ियाह ने ख़ुदावन्द के घर में जाकर उसे ख़ुदावन्द के सामने ~फैला दिया।
\v 15 ~और हिज़क़ियाह ने ख़ुदावन्द के सामने इस तरह दु'आ की,"ऐ ख़ुदावन्द, इस्राईल के ख़ुदा, करूबियों के ऊपर बैठने वाले! तू ही अकेला ज़मीन की सब सल्तनतों का ख़ुदा है। तू ने ही आसमान और ज़मीन को पैदा किया।
\s5
\v 16 ~ऐ ख़ुदावन्द, कान लगा और सुन! ऐ ख़ुदावन्द, अपनी आँखें खोल और देख; और सनहेरिब की बातों को, जिनसे ज़िन्दा ख़ुदा की तौहीन करने के लिए उसने इस आदमी को भेजा है, सुन ले।
\v 17 ~ऐ ख़ुदावन्द, असूर के बादशाहों ने दर हक़ीक़त क़ौमों को उनके मुल्कों समेत तबाह किया:
\v 18 और उनके~मा'बूदों~को आग में डाला क्यूँकि वह ख़ुदा न थे, बल्कि आदमियों की दस्तकारी, या'नी लकड़ी और पत्थर थे; इसलिए उन्होंने उनको बर्बाद किया है।
\s5
\v 19 इसलिए अब ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, कि तू हमको उसके हाथ से बचा ले, ताकि ज़मीन की सब सल्तनतें जान लें कि तू ही अकेला ख़ुदावन्द ख़ुदा है।"
\s5
\v 20 तब यसा'याह-बिन-आमूस ने हिज़क़ियाह को कहला भेजा कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है : चूँकि तू ने शाह-ए-असूर सनहेरिब के ख़िलाफ़ मुझसे दू'आ की है, मैंने तेरी सुन ली|
\v 21 ~इसलिए ख़ुदावन्द ने उसके हक़ में यूँ फ़रमाया कि कुँवारी दुख़्तरें सिय्यून ने तुझे हक़ीर जाना और तेरा मज़ाक़ उड़ाया |
\v 22 यरुशलीम की बेटी ने तुझ पर सर हिलाया है, "तूने किसकी तौहीन-ओ-बुराई की है? तूने किसके ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बलन्द की, और अपनी आँखें ऊपर उठाई? इस्राईल के क़ुद्दूस के ख़िलाफ़ !
\s5
\v 23 ~तूने अपने क़ासिदों के ज़रिए' से ख़ुदावन्द की तौहीन की, और कहा, कि मैं बहुत से रथों को साथ लेकर पहाड़ों की चोटियों पर, बल्कि लुबनान के वस्ती हिस्सों तक चढ़आया हूँ; और मैं उसके ऊँचे-ऊँचे देवदारों और अच्छे ~से अच्छे सनोबर के दरख़्तों को काट डालूँगा; और मैं उसके दूर से दूर मक़ाम में, जहाँ उसकी बेशक़ीमती ज़मीन का जंगल है घुसा चला जाऊँगा।
\v 24 ~मैंने जगह-जगह का पानी खोद-खोद कर पिया है और मैं अपने पाँव के तलवे से मिस्र की सब नदियाँ सुखा डालूँगा।
\s5
\v 25 ~"क्या तू ने नहीं सुना कि मुझे यह किए हुए मुद्दत हुई और मैने इसे गुज़रे दिनों में ठहरा दिया था? अब मैने उसको पूरा किया है कि तू फ़सीलदार शहरों को उजाड़ कर खंडर बना देने के लिए खड़ा हो।
\v 26 इसी वजह से उनके बाशिन्दे कमज़ोर हुए और वह घबरा गए, और शर्मिन्दा हुए वह मैदान की घास और हरी पौद और छतों पर की घास, और उस अनाज की तरह हो गए, जो बढ़ने से पहले ~सूख जाए।
\s5
\v 27 ~"लेकिन मैं तेरी मजलिस और आमद-ओ-रफ़्त और तेरा मुझ पर झुंझलाना मैं जानता हूँ।
\v 28 ~तेरे मुझ पर झंझलाने की वजह से, और इसलिए कि तेरा घमण्ड मेरे कानों तक पहुँचा है, मैं अपनी नकेल तेरी नाक में, और अपनी लगाम तेरे मुँह में डालूँगा; और तू जिस रास्ते से आया है, मैं तुझे उसी रास्ते से वापस लौटा दूँगा।
\s5
\v 29 "और तेरे लिए ये निशान होगा कि तुम इस साल वह चीज़ें जो ~ख़ुद से~उगती हैं, और दूसरे साल वह~चीज़ें~जो उनसे पैदा हों खाओगे; और तीसरे साल तुम बोना और काटना, और बाग़ लगाकर उनका फल खाना।
\v 30 ~और वह ~जो यहूदाह के घराने से बचा रहा है फिर नीचे की तरफ़ जड़ पकड़ेगा और ऊपर कि तरफ़ फल लाएगा।
\v 31 क्यूँकि एक बक़िया यरुशलीम से, और वह जो बच रहे हैं कोह-ए-सिय्यून से निकलेंगे। ख़ुदावन्द की ग़य्यूरी ये कर दिखाएगी।
\s5
\v 32 "इसलिए ख़ुदावन्द शाह-ए-असूर के हक़ में यूँ फ़रमाता है कि वह इस शहर में आने, या यहाँ तीर चलाने न पाएगा; वह न तो सिपर लेकर उसके सामने आने, और न उसके मुक़ाबिल दमदमा बाँधने पाएगा।
\v 33 ~बल्कि ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि जिस रास्ते से वह आया, उसी रास्ते से लौट जाएगा; और इस शहर में आने न पाएगा।
\v 34 क्यूँकि मैं अपनी ख़ातिर और अपने बन्दे दाऊद की ख़ातिर इस शहर की हिमायत करूँगा ताकि इसे बचा लें।"
\s5
\v 35 ~इसलिए उसी रात को ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने निकल कर असूर की लश्करगाह में एक लाख पचासी हज़ार आदमी मार डाले, और सुबह को जब लोग सवेरे उठे तो देखा, कि वह सब मरे पड़े हैं।
\v 36 तब शाह-ए-असूर सनहेरिब वहाँ से चला गया और लौटकर नीनवा में रहने लगा।
\v 37 और जब वह अपने मा'बूद निसरूक के बुतख़ाने में 'इबादत कर रहा था, तो अदरम्मलिक और शराज़र ने उसे तलवार से क़त्ल किया, और अरारात की सरज़मीन को भाग गए। और उसका बेटा असर हद्दून ~उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\c 20
\p
\v 1 उन ही दिनों में हिज़क़ियाह ऐसा बीमार पड़ा कि मरने के क़रीब हो ~गया तब यशायाह नबी आमूस के बेटे ने उसके पास आकर उस से कहा ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि तू अपने घर का इन्तज़ाम कर दे; क्यूँकि तू मर जाएगा और बचने का नहीं।"
\v 2 तब उसने अपना चेहरा दीवार की तरफ़ करके ख़ुदावन्द से यह दु'आ की,
\v 3 "ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी मित्रत करता हूँ, याद फ़रमा कि मैं तेरे सामने ~सच्चाई और पूरे दिल से चलता रहा हूँ, और जो तेरी नज़र में भला है वही किया है।” और हिज़क़ियाह बहुत रोया।
\s5
\v 4 और ऐसा हुआ कि यसा'याह निकल कर शहर के बीच के हिस्से तक पहुँचा भी न था कि ख़ुदावन्द का कलाम उस पर नाज़िल हुआ :
\v 5 "लौट, और मेरी क़ौम के पेशवा हिज़क़ियाह से कह, कि ख़ुदावन्द तेरे बाप दाऊद का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: मैंने तेरी दु'आ सुनी, और मैंने तेरे आँसू देखे। देख, मैं तुझे शिफ़ा दूँगा, और तीसरे दिन तू ख़ुदावन्द के घर में जाएगा।
\s5
\v 6 और मैं तेरी 'उम्र पन्द्रह साल और बढ़ा दूँगा, और मैं तुझ को और इस शहर को शाह-ए-असूर के हाथ से बचा लूँगा, और मैं अपनी ख़ातिर और अपने बन्दे दाऊद की ख़ातिर, इस शहर की हिमायत करूँगा।”
\v 7 ~और यसा'याह ने कहा, "अंजीरों की टिकिया लो।" इसलिए वह ~उन्होंने उसे लेकर फोड़े पर बाँधा, तब वह ~अच्छा हो गया।
\s5
\v 8 हिज़क़ियाह ने यसा'याह से पूछा, "इसका क्या निशान होगा कि ख़ुदावन्द मुझे सेहत बख़्शेगा, और मैं तीसरे दिन ख़ुदावन्द के घर में जाऊँगा?"
\v 9 यसा'याह ने जवाब दिया, "इस बात का, कि ख़ुदावन्द ने जिस काम को कहा है उसे वह करेगा, ख़ुदावन्द की तरफ़ से तेरे लिए निशान ये होगा कि साया या दस दर्जे आगे को जाए, या दस दर्जे पीछे की लौटे।”
\s5
\v 10 ~और हिज़क़ियाह ने जवाब दिया, "ये तो छोटी बात है कि साया दस दर्जे आगे की जाए, इसलिए यूँ नहीं बल्कि साया दस दर्जे पीछे को लौटे।"
\v 11 ~तब यसा'याह नबी ने ख़ुदावन्द से दु'आ की; इसलिए उसने साये को आख़ज़ की धूप घड़ी में दस दर्जे, या'नी जितना वह ढल चुका था उतना ही पीछे को लौटा दिया।
\s5
\v 12 उस वक़्त शाह-ए-बाबुल बरूदक बलादान-बिन-बलादान ने हिज़क़ियाह के पास नामा और तहाइफ़ भेजे; क्यूँकि उसने सुना था कि हिज़क़ियाह बीमार हो गया था।
\v 13 इसलिए हिज़क़ियाह ने उनकी बातें सुनी, और उसने अपनी बेशबहा चीज़ों का सारा घर, और चाँदी और सोना ~अपना सिलाहख़ाना और जो कुछ उसके ख़ज़ानों में मौजूद था उनको दिखाया; उसके घर में और उसकी सारी ममलुकत में ऐसी कोई चीज़ न थी जो हिज़क़ियाह ने उनको न दिखाई।
\s5
\v 14 ~तब यसा'याह नबी ने हिज़क़ियाह बादशाह के पास आकर उसे कहा, "ये लोग क्या कहते थे? और ये तेरे पास कहाँ से आए?" हिज़क़ियाह ने कहा, "ये दूर मुल्क से, या'नी बाबुल से आए हैं।"
\v 15 ~फिर उसने पूछा, "उन्होंने तेरे घर में क्या देखा?" ~हिज़क़ियाह ने जवाब दिया, "उन्होंने सब कुछ जो मेरे घर में है देखा; मेरे ख़ज़ानों में ऐसी कोई चीज़ नहीं जो मैंने उनको दिखाई न हो।"
\s5
\v 16 ~तब यसा'याह ने हिज़क़ियाह से कहा, "ख़ुदावन्द का कलाम सुन ले :
\v 17 देख, वह दिन आते हैं कि सब कुछ जो तेरे घर में है, और जो कुछ तेरे बाप-दादा ने आज के दिन तक जमा' करके रखा है, बाबुल को ले जाएँगे; ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कुछ भी बाक़ी न रहेगा।
\v 18 और वह तेरे बेटों में से जो तुझसे पैदा होंगे, और जिनका बाप तू ही होगा ले जाएँगे, और वह बाबुल के बादशाह के महल में ख़्वाजासरा होंगे।"
\s5
\v 19 ~हिज़क़ियाह ने यसा'याह से कहा, "ख़ुदावन्द का कलाम जो तू ने कहा है, भला है।” और उसने ये भी कहा, 'भला ही होगा, अगर मेरे दिन ~में अमन ~और अमान रहे।
\v 20 हिज़क़ियाह के बाक़ी काम और उसकी सारी क़ुव्वत, और क्यूँकर उसने तालाब और नाली बनाकर शहर में पानी पहुँचाया; इसलिए क्या वह शाहान-ए-यहूदाह की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?
\v 21 और हिज़क़ियाह अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और उसका बेटा मनस्सी उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\c 21
\p
\v 1 जब मनस्सी सल्तनत करने लगा तो बारह बरस का था, उसने पचपन बरस यरुशलीम में सल्तनत की, और उसकी माँ का नाम हिफ़सीबाह था।
\v 2 उसने उन क़ौमों के नफ़रती कामों की तरह जिनको ख़ुदावन्द ने बनी इस्राईल के आगे से दफ़ा' किया, ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया।
\v 3 ~क्यूँकि उसने उन ऊँचे मक़ामों को जिनको उसके बाप हिज़क़ियाह ने ढाया था फिर बनाया; और बा'ल के लिए-मज़बह बनाए। और यसीरत बनाई जैसे शाह-ए-इस्राईल अख़ीअब ने किया था; और आसमान की सारी फ़ौज को सिज्दा करता और उनकी 'इबादत ~करता था।
\s5
\v 4 और उसने ख़ुदावन्द की हैकल में, जिसके ज़रिए' ख़ुदावन्द ने फ़रमाया था, "मैं यरुशलीम में अपना नाम रख्खूँगा।"~मज़बह बनाए।
\v 5 और उसने आसमान की सारी फ़ौज के लिए ख़ुदावन्द की हैकल के दोनों सहनों में मज़बह बनाए।
\v 6 ~और उसने अपने बेटे को आग में चलाया, और वह ~शगून निकालता और अफ़सूँगरी करता, और जिन्नात के प्यारों और जादूगरों से त'अल्लुक़ रखता था। उसने ख़ुदावन्द के आगे उसको ग़ुस्सा दिलाने के लिए बड़ी शरारत की।
\s5
\v 7 और उसने यसीरत की खोदी हुई मूरत को, जिसे उसने बनाया था, उस घर में खड़ा किया जिसके ज़रिए' ख़ुदावन्द ने दाऊद और उसके बेटे सुलेमान से कहा था कि "इसी घर में और यरुशलीम में जिसे मैंने बनी-इस्राईल के सब क़बीलों में से चुन लिया है, मैं अपना नाम हमेशा ~तक रख्खूँगा
\v 8 और मैं ऐसा न करूँगा कि बनी-इस्राईल के पाँव उस मुल्क से बाहर आवारा फिरें, जिसे मैंने उनके बाप-दादा को दिया, बशर्ते कि वह ~उन सब हुक्म के मुताबिक़ और उस शरी'अत के मुताबिक़, जिसका हुक्म मेरे बन्दे मूसा ने उनको दिया, 'अमल करने की एहतियात रख्खें।"
\v 9 लेकिन ~उन्होंने न माना, और मनस्सी ने उनको बहकाया कि वह उन क़ौमों के बारे में, जिनको ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के आगे से बर्बाद ~किया,ज़्यादा बदी करें ।
\s5
\v 10 इसलिए ख़ुदावन्द ने अपने बन्दों, नबियों के ज़रिए' फ़रमाया,
\v 11 ~"चूँकि बादशाह यहूदाह मनस्सी ने नफ़रती काम किए, और अमोरियों की निस्बत जो उससे पहले ~हुए ज़्यादा बुराई की, और यहूदाह से भी अपने बुतों के ज़रीए' से गुनाह कराया;
\v 12 इसलिए ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है : देखो, मैं यरुशलीम और यहूदाह पर ऐसी बला लाने को ~हूँ कि जो कोई उसका हाल सुने, उसके कान झन्ना उठेंगे।
\s5
\v 13 और मैं यरुशलीम पर सामरिया की रस्सी, और अख़ीअब के घराने का साहुल डालूँगा; और मैं यरुशलीम को ऐसा साफ़ करूँगा जैसे आदमी थाली को साफ़ करता है और उसे साफ़कर के उल्टी रख देता है।
\v 14 और मैं अपनी मीरास के बाक़ी लोगों को तर्क करके, उनको उनके दुश्मनों के हवाले करूँगा; और वह अपने सब दुश्मनों के लिए शिकार और लूट ठहरेंगे।
\v 15 ~क्यूँकि जब से उनके बाप-दादा मिस्र ~से निकले, उस दिन से आज तक वह मेरे आगे बुराई ~करते और मुझे ग़ुस्सा दिलाते रहे।"
\s5
\v 16 ~'अलावा इसके मनस्सी ने उस गुनाह के 'अलावा ~कि उसने यहूदाह को गुमराह करके ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह कराया, बेगुनाहों का ख़ून भी इस क़दर किया कि यरुशलीम इस सिरे से उस सिरे तक भर गया।
\v 17 ~और मनस्सी के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, और वह गुनाह जो उससे सरज़द हुआ; इसलिए क्या वह बनी यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?
\v 18 ~और मनस्सी अपने बाप दादा के साथ सो गया, और अपने घर के बाग में जो 'उज़्ज़ा का बाग़ है दफ़न हुआ; और उसका बेटा अमून उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\v 19 और अमून जब सल्तनत करने लगा तो बाईस बरस का था। उसने यरुशलीम में दो बरस सल्तनत की; उसकी माँ का नाम मुसल्लिमत था, जो हरूस युतबही की बेटी थी।
\v 20 ~और उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया जैसे उसके बाप मनस्सी ने की थी।
\s5
\v 21 ~और वह अपने बाप के सब रास्तों पर चला, और उन बुतों की 'इबादत ~की जिनकी 'इबादत ~उसके बाप ने की थी, और उनको सिज्दा किया।
\v 22 और उसने ख़ुदावन्द अपने बाप दादा के ख़ुदा को छोड़ दिया ~, और ख़ुदावन्द की राह पर न चला।
\v 23 और अमून के ख़ादिमों ने उसके ख़िलाफ़ साज़िश की, और बादशाह को उसी के महल में जान से मार दिया।
\s5
\v 24 लेकिन उस मुल्क के लोगों ने उन सबको, जिन्होंने अमून बादशाह के ख़िलाफ़ साज़िश की थी क़त्ल किया। और मुल्क के लोगों ने उसके बेटे यूसियाह को उसकी जगह बादशाह बनाया।
\v 25 ~अमून के बाक़ी काम जो उसने किए, इसलिए क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे नहीं?
\v 26 ~और वह अपनी क़ब्र में 'उज़्ज़ा के बाग़ में दफ़न हुआ, और उसका बेटा यूसियाह उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\c 22
\p
\v 1 जब यूसियाह सल्तनत करने लगा, तो आठ बरस का था, उसने इकतीस साल ~यरुशलीम में सल्तनत की। उसकी माँ का नाम जदीदाह था, जो बुसकती 'अदायाह की बेटी थी।
\v 2 उसने वह काम किए जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक था, और अपने बाप दाऊद की सब राहों पर चला और दहने या बाएँ हाथ को न मुड़ा।
\s5
\v 3 और यूसियाह बादशाह के अठारहवें बरस ऐसा हुआ कि बादशाह ने साफ़न-बिन असलियाह-बिन-मसुल्लाम मुन्शी को ख़ुदावन्द के घर भेजा और कहा,
\v 4 "तू ख़िलक़ियाह सरदार काहिन के पास जा, ताकि वह उस नक़दी को जो ख़ुदावन्द के घर में लाई जाती है, और जिसे दरबानों ने लोगों से लेकर जमा' किया है गिने,
\v 5 और वह उसे उन कारगुज़ारों को सौंप दे जो ख़ुदावन्द के घर की निगरानी रखते हैं; और ये लोग उसे उन कारीगरों को दें जो ख़ुदावन्द के घर में काम करते हैं, ताकि हैकल की दरारों की मरम्मत हो;
\s5
\v 6 या'नी बढ़इयों और बादशाहों और मिस्त्रियों को दें, और हैकल की मरम्मत के लिए लकड़ी और तराशे हुए पत्थरों के ख़रीदने पर ख़र्च करें।
\v 7 लेकिन उनसे उस नक़दी का जो उनके हाथ में दी जाती थी, कोई हिसाब नहीं लिया जाता था, इसलिए कि वह अमानत दारी से काम करते थे।
\s5
\v 8 और सरदार काहिन ख़िलक़ियाह ने साफ़न मुन्शी से कहा, "मुझे ख़ुदावन्द के घर में तौरेत की किताब मिली है।" और ख़िलक़ियाह ने किताब साफ़न को दी और उसने उसको ~पढ़ा।
\v 9 और साफ़न मुन्शी बादशाह के पास आया और बादशाह को ख़बर दी कि तेरे ख़ादिमों ने वह नक़दी जो हैकल में मिली, लेकर उन कारगुज़ारों के हाथ में सुपुर्द की जो ख़ुदावन्द के घर की निगरानी रखते हैं।"
\v 10 और साफ़न मुन्शी ने बादशाह को ये भी बताया, "ख़िलक़ियाह काहिन ने एक किताब मेरे हवाले की है।"और साफ़न ने उसे बादशाह के सामने पढ़ा।
\s5
\v 11 ~जब बादशाह ने तौरेत की किताब की बातें सुनीं, तो अपने कपड़े फाड़े;
\v 12 और बादशाह ने ख़िलक़ियाह काहिन, और साफ़न के बेटे अख़ीक़ाम, और मीकायाह के 'अकबूर और साफ़न मुन्शी असायाह को जो बादशाह का मुलाज़िम था ये हुक्म दिया,
\v 13 ~कि "ये किताब जो मिली है, इसकी बातों के बारे में तुम जाकर मेरी और ~सब लोगों और सारे यहूदाह की तरफ़ से ख़ुदावन्द से दरियाफ़्त करो; क्यूँकि ख़ुदावन्द का बड़ा ग़ज़ब हम पर इसी वजह से भड़का है कि हमारे बाप-दादा ने इस किताब की बातों को न सुना, कि जो कुछ उसमें हमारे बारे में लिखा है उसके मुताबिक़ 'अमल करते।"
\s5
\v 14 तब ख़िलक़ियाह, काहिन और' अखीक़ाम और 'अकबोर और साफन ~असायाह ख़ुल्दा नबिया के पास गए, जो तोशाख़ाने के दरोग़ा सलूम बिन तिक़वा बिन ख़रख़स की बीवी थी, (ये यरुशलीम में मिशना नामी महल्ले में रहती थी) इसलिए उन्होंने उससे गुफ़्तगू की।
\v 15 ~उसने उनसे कहा, "ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, 'तुम उस शख़्स से जिसने तुम को मेरे पास भेजा है कहना,
\v 16 कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि मैं इस किताब की उन सब बातों के मुताबिक़, जिनको शाह-ए-यहूदाह ने पढ़ा है, इस मक़ाम पर और इसके सब बाशिन्दों पर बला नाज़िल करूँगा।
\s5
\v 17 ~क्यूँकि उन्होंने मुझे छोड़ दिया और गै़र-मा'बूदों के आगे ख़ुशबू जलाया, ताकि अपने हाथों के सब कामों से मुझे ग़ुस्सा दिलाएँ, इसलिए मेरा क़हर इस मक़ाम पर भड़केगा और ठण्डा न होगा।
\v 18 ~लेकिन शाह-ए-यहूदाह से जिसने तुम को ख़ुदावन्द से दरियाफ़्त करने को भेजा है, यूँ कहना कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि जो बातें तू ने सुनीं हैं उनके बारे में यह हैं कि;
\v 19 चूँकि तेरा दिल नर्म है, और जब तू ने वह बात सुनी जो मैंने इस मक़ाम और इसके बशिन्दों के हक़ में कही कि वह तबाह हो जाएँगे और ला'नती भी ठहरेंगे, तो तू ने ख़ुदावन्द के आगे 'आजिज़ी की और अपने कपड़े फाड़े और मेरे आगे रोया; इसलिए मैंने भी तेरी सुन ली, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 20 इसलिए देख मैं तुझे तेरे बाप-दादा के साथ मिला दूँगा, और तू अपनी क़ब्र में सलामती से उतार दिया जाएगा, और उन सब आफ़तों को जो मैं इस मक़ाम पर नाज़िल करूँगा, तेरी ऑखें नहीं देखेंगी।' " इसलिए वह ~यह ख़बर बादशाह के पास लाए।
\s5
\c 23
\p
\v 1 ~और बादशाह ने लोग भेजे, और उन्होंने यहूदाह और यरुशलीम के सब बुज़ुर्गों को उसके पास जमा' किया।
\v 2 और बादशाह ख़ुदावन्द के घर को गया, और उसके साथ यहूदाह के सब लोग, और यरुशलीम के सब बाशिन्दे, और काहिन, और नबी, और सब छोटे बड़े आदमी थे, और उसने जो 'अहद की किताब ख़ुदावन्द के घर में मिली थी, उसकी सब बातें उनको पढ़ सुनाई।
\s5
\v 3 ~और बादशाह सुतून के बराबर खड़ा हुआ, और उसने ख़ुदावन्द की पैरवी करने और उसके हुक्मों और शहादतों और तौर तरीक़े को अपने सारे दिल और सारी जान से मानने, और इस 'अहद की बातों पर जो उस किताब में लिखी हैं 'अमल करने के लिए ख़ुदावन्द के सामने 'अहद बाँधा, और सब लोग उस 'अहद पर क़ायम हुए।
\s5
\v 4 फिर बादशाह ने सरदार काहिन ख़िलक़ियाह को, और उन काहिनों को जो दूसरे दर्जे के थे, और दरबानों को हुक्म किया कि उन सब बर्तनों को जो बा'ल और यसीरत और आसमान की सारी फ़ौज के लिए बनाए गए थे, ख़ुदावन्द की हैकल से बाहर निकालें, और उसने यरुशलीम के बाहर क़िद्रोन ~के खेतों में उनको जला दिया और उनकी राख बैतएल पहुँचाई।
\v 5 और उसने उन बुत परस्त काहिनों को, जिनको शाहान-ए-यहूदाह ने यहूदाह के शहरों के ऊँचे मक़ामों और यरुशलीम के आस-पास के मक़ामों में ख़ुशबू जलाने को मुक़र्रर किया था, और उनको भी जो बा'ल और चाँद और सूरज और सय्यारे और ~आसमान के सारे लश्कर के लिए ख़ुशबू जलाते थे, मौक़ूफ़ किया।
\s5
\v 6 और वह यसीरत को ख़ुदावन्द के घर से यरुशलीम के बाहर क़िद्रोन के नाले पर ले गया, और उसे क़िद्रोन के नाले पर जला दिया और उसे कूट कूटकर ख़ाक बना दिया और उसे 'आम लोगों की क़ब्रों पर फेंक दिया।
\v 7 उसने लूतियों के मकानों को जो ख़ुदावन्द के घर में थे, जिनमें 'औरतें यसीरत के लिए पर्दे बुना करती थीं, ढा दिया।
\s5
\v 8 और उसने यहूदाह के शहरों से सब काहिनों को लाकर, जिबा' से बैरसबा' तक उन सब ऊँचे मक़ामों में जहाँ काहिनों ने ख़ुशबू जलाया था, नजासत डलवाई; और उसने फाटकों के उन ऊँचे मक़ामों को जो शहर के नाज़िम यशू'आ के फाटक के मदखल, या'नी शहर के फाटक के बाएँ हाथ को थे, गिरा दिया।
\v 9 तोभी ऊँचे मक़ामों के काहिन यरुशलीम में ख़ुदावन्द के मज़बह के पास न आए, लेकिन वह अपने भाइयों के साथ बेख़मीरी रोटी खा लेते थे।
\s5
\v 10 और उसने तूफ़त में जो बनी-हिन्नूम की वादी में है, नजासत फिंकवाई ताकि कोई शख़्स मोलक के लिए अपने बेटे या बेटी को आग में न जला सके।
\v 11 ~और उसने उन घोड़ों को दूर कर दिया जिनको यहूदाह के बादशाहों ने सूरज के लिए मख़्सूस करके ख़ुदावन्द के घर के आसताने पर, नातन मलिक ख़्वाजासरा की कोठरी के बराबर रख्खा था जो हैकल की हद के अन्दर थी, और सूरज के रथों को आग से जला दिया।
\s5
\v 12 और उन मज़बहों को जो आख़ज़ के बालाख़ाने की छत पर थे, जिनको शाहान-ए-यहूदाह ने बनाया था और उन मज़बहों को जिनको मनस्सी ने ख़ुदावन्द के घर के दोनों सहनों में बनाया था, बादशाह ने ढा दिया और वहाँ से उनको चूर-चूर करके उनकी ख़ाक को क़िद्रोन के नाले में फिकवा दिया।
\v 13 और बादशाह ने उन ऊँचे मक़ामों पर नजासत डलवाई जो यरूशलनीम के मुक़ाबिल कोह-ए-आलायश की दहनी तरफ़ थे, जिनको इस्राईल के बादशाह सुलेमान ने सैदानियों की ~नफ़रती 'अस्तारात और मोआबियों, के नफ़रती कमूस ~और बनी 'अम्मोंन के नफरती ~मिल्कोम के लिए बनाया था।
\v 14 और उसने सुतूनों को टुकड़े-टुकड़े कर दिया और यसीरतों को काट डाला, और उनकी जगह में मुर्दों की हड्डियाँ भर दीं।
\s5
\v 15 ~फिर बैतएल का वह मज़बह और वह ऊँचा मक़ाम जिसे नबात के बेटे युरब'आम ने बनाया था, जिसने इस्राईल से गुनाह कराया, इसलिए इस मज़बह और ऊँचे मक़ाम दोनों को उसने ढा दिया, और ऊँचे मक़ाम को जला दिया और उसे कूट-कूटकर ख़ाक कर दिया, और यसीरत को जला दिया।
\v 16 और जब यूसियाह मुड़ा तो उसने उन क़ब्रों को देखा जो वहाँ उस पहाड़ पर थीं, इसलिए उसने लोग भेज कर उन क़ब्रों में से हड्डियाँ निकलवाई, और उनको उस मज़बह पर जलाकर उसे नापाक किया। ये ख़ुदावन्द के सुख़न के मुताबिक़ हुआ, जिसे उस मर्द-ए-ख़ुदा ने जिसने इन बातों की ख़बर दी थी सुनाया था।
\s5
\v 17 फिर उसने पूछा, ‘ये कैसी यादगार है जिसे मैं देखता हूँ?" शहर के लोगों ने उसे बताया, "ये उस मर्द-ए-ख़ुदा की क़ब्र है, जिसने यहूदाह से आकर इन कामों की जो तू ने बैतएल के मज़बह से किए, ख़बर दी।”
\v 18 ~तब उसने कहा, "उसे रहने दो, कोई उसकी हड्डियों को न सरकाए।” इसलिए उन्होंने उसकी हडिडयाँ उस नबी की हड्डियों के साथ जो सामरिया से आया था रहने दीं।
\s5
\v 19 और यूसियाह ने उन ऊँचे मक़ामों के सब घरों को भी जो सामरिया के शहरों में थे, जिनको इस्राईल के बादशाहों ने ख़ुदावन्द को ग़ुस्सा दिलाने को बनाया था ढाया, और जैसा उसने बैतएल में किया था वैसा ही उनसे भी किया।
\v 20 और उसने ऊँचे मक़ामों के सब काहिनों को जो वहाँ थे, उन मज़बहों पर क़त्ल किया और आदमियों की हड्डियाँ उन पर जलाई; फिर वह यरुशलीम को लौट आया।
\s5
\v 21 और बादशाह ने सब लोगों को ये हुक्म दिया, कि "ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए फ़सह मनाओ, जैसा 'अहद की इस किताब में लिखा है।”
\v 22 और यक़ीनन क़ाजियों के ज़माने से जो इस्राईल की 'अदालत करते थे, और इस्राईल के बादशाहों और यहूदाह के बादशाहों के कुल दिनों में ऐसी 'ईद-ए-फ़सह कभी नहीं हुई थी।
\v 23 यूसियाह बादशाह के अठारहवें बरस ये फ़सह यरुशलीम में ख़ुदावन्द के लिए मनाई गई।
\s5
\v 24 ~इसके सिवा ~यूसियाह ने जिन्नात के यारों और जादूगरों और मूरतों और बुतों, और सब नफ़रती चीज़ों को जो मुल्क-ए- यहूदाह और यरुशलीम में नज़र आई दूर कर दिया, ताकि वह ~शरी'अत की उन बातों को पूरा करे जो उस किताब में लिखी थी, जो ख़िलक़ियाह काहिन को ख़ुदावन्द के घर में मिली थी।
\v 25 ~उससे पहले कोई बादशाह उसकी तरह नहीं हुआ था, जो अपने सारे दिल और अपनी सारी जान और अपने सारे ज़ोर से मूसा की सारी शरी'अत के मुताबिक़ ख़ुदावन्द की तरफ़ रुजू' लाया हो; और न उसके बा'द कोई उसकी तरह खड़ा हुआ।
\s5
\v 26 बावजूद इसके मनस्सी की सब बदकारियों की वजह से, जिनसे उसने ख़ुदावन्द को ग़ुस्सा दिलाया था, ख़ुदावन्द अपने सख़्त-ओ-शदीद क़हर से, जिससे उसका ग़ज़ब यहूदाह पर भड़का था, बाज़ न आया।
\v 27 और ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, कि "मैं यहूदाह को भी अपनी आँखों के सामने से दूर करूँगा, जैसे मैंने इस्राईल को दूर किया; और मैं इस शहर को जिसे मैंने चुना या'नी यरुशलीम को, और इस घर को जिसके ज़रिए' मैंने कहा था की मेरा नाम वहाँ होगा रद्द कर दूँगा
\s5
\v 28 और यूसियाह के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, इसलिए क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे नहीं?
\v 29 उसी के अय्याम में शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन निकोह शाह-ए-असूर पर चढ़ाई करने के लिए दरिया-ए-फ़ुरात को गया था; और यूसियाह बादशाह उसका सामना करने को निकला, इसलिए उसने उसे देखते ही मजिद्दो में क़त्ल कर दिया।
\v 30 ~और उसके मुलाज़िम उसको एक रथ में मजिद्दो से मरा हुआ ले गए, और उसे यरुशलीम में लाकर उसी की क़ब्र में दफ़्न किया। और उस मुल्क के लोगों ने यूसियाह के बेटे यहूआख़ज़ को लेकर उसे मसह किया, और उसके बाप की जगह उसे बादशाह बनाया।
\s5
\v 31 और ~यहूआख़ज़ जब सल्तनत करने लगा तो तेईस साल का था, उसने यरुशलीम में तीन महीने सल्तनत की। उसकी माँ का नाम हमूतल था, जो लिबनाही यरमियाह की बेटी थी।
\v 32 ~और जो-जो उसके बाप-दादा ने किया था उसके मुताबिक़ इसने भी ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया।
\v 33 इसलिए फ़िर'औन निकोह ने उसे रिबला में, जो मुल्क-ए-हमात में है, क़ैद कर दिया ताकि वह यरुशलीम में सल्तनत न करने पाए; और उस मुल्क पर सौ क़िन्तार चाँदी और एक~क़िन्तार~सोना ख़िराज मुक़र्रर किया।
\s5
\v 34 और फ़िर'औन निकोह ने यूसियाह के बेटे इलियाक़ीम को उसके बाप यूसियाह की जगह बादशाह बनाया, और उसका नाम बदलकर यहूयक़ीम रखा, लेकिन यहूआख़ज़ को ले गया, इसलिए वह मिस्र में आकर वहाँ मर गया।
\v 35 यहूयक़ीम ने वह चाँदी और सोना फ़िर'औन को पहुँचाया, पर इस नक़दी को फ़िर'औन के हुक्म के मुताबिक़ देने के लिए उसने ममलुकत पर ख़िराज मुक़र्रर किया; या'नी उसने उस मुल्क के लोगों से हर शख़्स के लगान के मुताबिक़ चाँदी और सोना लिया ताकि फ़िर'औन निकोह को दे।
\s5
\v 36 यहूयक़ीम जब सल्तनत करने लगा, तो पच्चीस बरस का था, उसने यरुशलीम में ग्यारह बरस सल्तनत की। उसकी माँ का नाम ज़बूदा था, जो रूमाह के फ़िदायाह की बेटी थी।
\v 37 ~और जो-जो उसके बाप-दादा ने किया था, उसी के मुताबिक़ उसने भी ख़ुदावन्द की नज़र में बुराई की।
\s5
\c 24
\p
\v 1 उसी के दिनों में शाह-ए-बाबुल नबूकद नज़र ने चढ़ाई की और यहूयक़ीम तीन बरस तक उसका ख़ादिम रहा तब वह फिर कर उससे मुड़ गया।
\v 2 और ख़ुदावन्द ने कसदियों के दल, और अराम के दल, और मोआब के दल, और बनी 'अम्मोन के दल उस पर भेजे, और यहूदाह पर भी भेजे ताकि उसे जैसा ख़ुदावन्द ने अपने बन्दों नबियों के ज़रिए' फ़रमाया था हलाक कर दे।
\s5
\v 3 यक़ीनन ख़ुदावन्द ही के हुक्म से यहूदाह पर यह सब कुछ हुआ, ताकि मनस्सी के सब गुनाहों के ज़रिए' जो उसने किए, उनको अपनी नज़र से दूर करे
\v 4 और उन सब बेगुनाहों के ख़ून के ज़रिए' भी जिसे मनस्सी ने बहाया; क्यूँकि उसने यरुशलीम को बेगुनाहों के ख़ून से भर दिया था और ख़ुदावन्द ने मु'आफ़ करना न चाहा।
\s5
\v 5 यहूयक़ीम के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, इसलिए क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?
\v 6 और यहूयक़ीम अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और उसका बेटा~यहूयाकीन~उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\v 7 और शाह-ए-मिस्र फिर कभी अपने मुल्क से बाहर न गया; क्यूँकि शाह-ए-बाबुल ने मिस्र के नाले से दरिया-ए-फु़रात तक सब कुछ जो शाह-ए- मिस्र का था ले लिया था।
\s5
\v 8 यहूयाकीन~जब सल्तनत करने लगा तो अठारह बरस का था, और यरुशलीम में उसने तीन महीने सल्तनत की। उसकी माँ का नाम नहुशता था, जो यरुशलीमी इलनातन की बेटी थी।
\v 9 और जो-जो उसके बाप ने किया था उसके मुताबिक़ उसने भी ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया।
\s5
\v 10 उस वक़्त शाह-ए- बाबुल नबूकदनज़र के ख़ादिमों ने यरुशलीम पर चढ़ाई की और शहर को घेर ~लिया।
\v 11 ~और शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र भी, जब उसके ख़ादिमों ने उस शहर को घेर रख्खा था, वहाँ आया।
\v 12 तब शाह-ए-यहूदाह यहूयाकीन अपनी माँ और और अपने मुलाज़िमों और सरदारों और 'उहदादारों साथ निकल कर शाह-ए-बाबुल के पास गया, और शाह-ए-बाबुल ने अपनी सल्तनत के आठवें बरस उसे गिरफ़्तार किया।
\s5
\v 13 और वह ख़ुदावन्द के घर के सब ख़ज़ानों और शाही महल के सब ख़ज़ानों को वहाँ से ले गया, और सोने के सब बर्तनों को जिनको शाह-ए-इस्राईल सुलेमान ने ख़ुदावन्द की हैकल में बनाया था, उसने काट कर ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए।
\v 14 और वह सारे यरुशलीम को और सब सरदारों और सब सूर्माओं को, जो दस हज़ार आदमी थे, और सब कारीगरों और लुहारों को ग़ुलाम करके ले गया; इसलिए वहाँ मुल्क के लोगों में से सिवा कंगालों के और कोई बाक़ी न रहा।
\s5
\v 15 और~यहूयाकीन~को वह बाबुल ले गया, और बादशाह की माँ और बादशाह की बीवियों और उसके 'उहदे दारों और मुल्क के रईसों को वह ग़ुलाम ~करके यरुशलीम से बाबुल को ले गया।
\v 16 और सब ताक़तवर आदमियों को जो सात हज़ार थे, और कारीगरों और लुहारों को जो एक हज़ार थे, और सब के सब मज़बूत और जंग के लायक़ थे; शाह-ए-बाबुल ग़ुलाम करके बाबुल में ले आया
\v 17 और शाह-ए-बाबुल ने उसके बाप के भाई मत्तनियाह को उसकी जगह बादशाह बनाया और उसका नाम बदलकर सिदक़ियाह रखा।
\s5
\v 18 ~जब सिदक़ियाह सल्तनत करने लगा तो इक्कीस बरस का था, और उसने ग्यारह बरस यरुशलीम में सल्तनत की। उसकी माँ का नाम हमूतल था, जो लिबनाही यर्मियाह की बेटी थी।
\v 19 और जो-जो यहू यक़ीम ने किया था उसी के मुताबिक़ उसने भी ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया।
\v 20 क्यूँकि ख़ुदावन्द के ग़ज़ब की वजह से यरुशलीम और यहूदाह की ये नौबत आई, कि आख़िर उसने उनको अपने सामने ~से दूर ही कर दिया; और सिदक़ियाह~शाह-ए-बाबुल से ~फिर ~गया।
\s5
\c 25
\p
\v 1 और उसकी सल्तनत के नौवें बरस के दसवें महीने के दसवें दिन, यूँ हुआ कि शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र ने अपनी सारी फ़ौज के साथ यरुशलीम पर चढ़ाई की, और उसके सामने ख़ैमाज़न हुआ, और उन्होंने उसके सामने चारों तरफ़ घेराबन्दी की ।
\v 2 और सिदक़ियाह बादशाह की सल्तनत के ग्यारहवें बरस तक शहर का मुहासिरा रहा।
\v 3 चौथे महीने के नौवें दिन से शहर में काल ऐसा सख़्त हो गया, कि मुल्क के लोगों के लिए कुछ खाने को न रहा।
\s5
\v 4 तब शहर पनाह में सुराख़ हो गया, और दोनों दीवारों के बीच ~जो फाटक शाही बाग़ के बराबर था, उससे सब जंगी मर्द रात ही रात भाग गए, (उस वक़्त कसदी शहर को घेरे हुए थे) और बादशाह ने वीराने का रास्ता लिया।
\v 5 ~लेकिन कसदियों की फ़ौज ने बादशाह का पीछा किया और उसे यरीहू के मैदान में जा लिया, और उसका सारा लश्कर उसके पास से तितर बितर हो गया था।
\s5
\v 6 इसलिए वह बादशाह को पकड़ कर रिबला में शाह-ए-बाबुल के पास ले गए, और उन्होंने उस पर फ़तवा दिया।
\v 7 और उन्होंने सिदक़ियाह के बेटों को उसकी आँखों के सामने ज़बह किया और~सिदक़ियाह की आँखें निकाल डालीं और~उसे ज़ँजीरों से जकड़कर बाबुल को ले गए।
\s5
\v 8 और शाह-ए-बाबुल नबूकद नज़र के 'अहद के उन्नीसवें साल के पाँचवें महीने के सातवें दिन, शाह-ए-बाबुल का एक ख़ादिम नबुज़रादान जो जिलौदारों का सरदार था यरुशलीम में आया।
\v 9 और उसने ख़ुदावन्द का घर और बादशाह का महल यरुशलीम के सब घर, या'नी हर एक बड़ा घर आग से जला दिया।
\v 10 और कसदियों के सारे लश्कर ने जो जिलौदारों के सरदार के साथ थे, यरुशलीम की फ़सील को चारों तरफ़ से गिरा दिया।
\s5
\v 11 ~और बाक़ी लोगों को जो शहर में रह गए थे, और उनको ~जिन्होंने अपनों को छोड़ कर शाह-ए-बाबुल की पनाह ली थी, और 'अवाम में से जितने बाक़ी रह गए थे, उन सबको नबूज़रादान जिलौदारों का सरदार क़ैद करके ले गया।
\v 12 पर जिलौदारों के सरदार ने मुल्क के कंगालों को रहने दिया, ताकि खेती और बाग़ों ~की बाग़बानी करें।
\s5
\v 13 और पीतल के उन सुतूनों को जो ख़ुदावन्द के घर में थे, और कुर्सियों को और पीतल के ~बड़े हौज़ को, जो ख़ुदावन्द के घर में था, कसदियों ने तोड़ कर टुकड़े-टुकड़े किया और उनका पीतल बाबुल को ले गए।
\v 14 ~और तमाम देगें और बेल्चे और गुलगीर और चम्चे, और पीतल के तमाम बर्तन जो वहाँ काम आते थे ले गए।
\v 15 और अंगीठियाँ और कटोरे, ग़रज़ जो कुछ सोने का था उसके सोने को, और जो कुछ चाँदी का था उसकी चाँदी को, जिलौदारों का सरदार ले गया।
\s5
\v 16 ~और दोनों सुतून और वह बड़ा हौज़ और वह कुर्सियाँ, जिनको सुलेमान ने ख़ुदावन्द के घर के लिए बनाया था, इन सब चीज़ों के पीतल का वज़न बेहिसाब था।
\v 17 ~एक सुतून अठारह हाथ ऊँचा था, और उसके ऊपर पीतल का एक ताज था और वह ताज तीन हाथ बलन्द था; उस ताज पर चारों तरफ़ जालियाँ और अनार की कलियाँ, सब पीतल की बनी हुई थीं; और दूसरे सुतून के लवाज़िम भी जाली समेत इन्हीं की तरह थे।
\s5
\v 18 जिलौदारों के सरदार ने सिरायाह सरदार काहिन को और काहिन-ए-सानी सफ़नियाह को और तीनों दरबानों को पकड़ लिया;
\v 19 और उसने शहर में से एक सरदार को पकड़ लिया जो जंगी मर्दों पर मुक़र्रर था, और जो लोग बादशाह के सामने हाज़िर रहते थे उनमें से पाँच आदमियों को जो शहर में मिले, और लश्कर के बड़े मुहर्रिर को जो अहल-ए-मुल्क की मौजूदात लेता था, और मुल्क के लोगों में से साठ आदमियों को जो शहर में मिले।
\s5
\v 20 इनको जिलौदारों का सरदार नबूज़रादान पकड़ कर शाह-ए-बाबुल के सामने रिबला में ले गया।
\v 21 ~और शाह-ए-बाबुल ने हमात के 'इलाक़े के रिबला में इनको मारा और क़त्ल किया। इसलिए यहूदाह भी अपने मुल्क से ग़ुलाम होकर चला गया।
\s5
\v 22 जो लोग यहूदाह की सर ज़मीन में रह गए, जिनको नबूकदनज़र शाह-ए-बाबुल ने छोड़ दिया, उन पर उसने जिदलियाह-बिनअख़ीक़ाम-बिन साफ़न को हाकिम मुक़र्रर किया।
\v 23 जब लश्करों के सब सरदारों और उनकी सिपाह ने, या'नी इस्माईल-बिन-नतनियाह और यूहनान बिन क़रीह और सराया बिन ताख़ूमत नातूफ़ाती और याजनियाह बिन मा'काती ने सुना कि शाह-ए-बाबुल ने जिदलियाह को हाकिम बनाया है, तो वह अपने लोगों समेत मिस्फ़ाह में जिदलियाह के पास आए।
\v 24 ~जिदलियाह ने उनसे और उनकी सिपाह से क़सम खाकर कहा, "कसदियों के मुलाज़िमों से मत डरो; मुल्क में बसे रहो और शाह-ए-बाबुल की ख़िदमत करो और ~तुम्हारी भलाई होगी।"
\s5
\v 25 ~मगर सातवें महीने ऐसा हुआ कि इस्माईल-बिन-नतनियाह-बिन-एलीशामा' जो बादशाह की नस्ल से था, अपने साथ दस मर्द लेकर आया और जिदलियाह को ऐसा मारा कि वह मर गया; और उन यहूदियों और कसदियों को भी जो उसके साथ मिस्फ़ाह ~में थे क़त्ल किया।
\v 26 ~तब सब लोग, क्या छोटे क्या बड़े और लोगों के सरदार उठ कर मिस्र को चले गए क्यूँकि वह कसदियों से डरते थे।
\s5
\v 27 और~यहूयाकीन~शाह-ए-यहूदाह की ग़ुलामी के सैंतीसवें साल के बारहवें महीने के सत्ताइसवें दिन ऐसा हुआ, कि शाह-ए-बाबुल अवील मरदूक़ ने अपनी सल्तनत के पहले ही साल~यहूयाकीन~शाह-ए-यहूदाह को क़ैदख़ाने से निकाल कर सरफ़राज़ किया;
\s5
\v 28 और उसके साथ मेहरबानी से बातें कीं, और उसकी कुर्सी उन सब बादशाहों की कुर्सियों से जो उसके साथ बाबुल में थे बलन्द की।
\v 29 ~इसलिए वह अपने क़ैदख़ाने के कपड़े बदलकर 'उम्र भर बराबर उसके सामने खाना खाता रहा;
\v 30 ~और उसको 'उम्र भर बादशाह की तरफ़ से वज़ीफ़े के तौर पर हर रोज़ ख़र्चा मिलता रहा।

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\mt1 १-तवारीख़
\s5
\c 1
\p
\v 1 आदम, सेत, उनूस,
\v 2 किनान, महलीएल, यारिद,
\v 3 हनूक, मतूसिलह, लमक,
\v 4 नूह, सिम, हाम, और याफ़त|
\s5
\v 5 बनी याफ़त: जुमर और माजूज और मादी और यावान और तूबल और मसक और तीरास हैं|
\v 6 और बनी जुमर अश्कनाज और रीफ़त और तजुर्मा है|
\v 7 और बनी यावान, इलीसा और तरसीस, कित्ती और दूदानी हैं|
\s5
\v 8 बनी हाम: कूश और मिस्र, फ़ूत और कना'न हैं|
\v 9 बनी कूश: सबा और हवीला और सबता और रा'माह सब्तका हैं और बनी रामाह सबाह और दादान हैं|
\v 10 कूश से नमरूद पैदा हुआ; ज़मीन पर पहले वही बहादुरी करने लगा|
\s5
\v 11 और मिस्र से लूदी और अनामी और लिहाबी और नफ़तूही,
\v 12 और फ़तरूसी और कसलूही (जिनसे फ़िलिस्ती निकले), कफ़्तूरी पैदा हुए|
\s5
\v 13 और कना'न से सैदा जो उसका पहलौठा था, और हित्त,
\v 14 और यबूसी और अमोरी और जिरजाशी,
\v 15 और हव्वी और 'अर्क़ी और सीनी,
\v 16 और अरवादी और सिमारी और हिमाती पैदा हुए|
\s5
\v 17 बनी सिम: 'ऐलाम और असूर और अरफ़कसद और लूद और अराम और 'ऊज़ और हूल और जतर और मसक हैं|
\v 18 और अरफ़कसद से सिलह पैदा हुआ और सिलह से 'इब्र पैदा हुआ|
\v 19 और इब्र से दो बेटे पहले का नाम फ़लज था क्यूँकि उसके अय्याम में ज़मीन बटी, और उसके भाई का नाम नाम युक़तान था|
\s5
\v 20 और युक़तान से अलमूदाद और सलफ़ और हसर मावत और इराख़,
\v 21 और हदूराम और ऊज़ाल और दिक़ला,
\v 22 और 'ऐबाल और अबीमाएल और सबा,
\v 23 और ओफ़ीर और हवीला और युबाब पैदा हुए; यह सब बनी यूक़तान हैं|
\s5
\v 24 सिम, अरफ़कसद, सिलह,
\v 25 ‘इब्र, फ़लज, र’ऊ,
\v 26 सरुज, नहूर, तारह,
\v 27 अब्राम या'नी इब्राहीम|
\s5
\v 28 इब्राहीम के बेटे: इस्हाक़ और इस्मा'ईल थे|
\v 29 उनकी औलाद यह हैं: इस्मा'ईल का पहलौठा नबायोत उसके बा'द कीदार और अदबिएल और मिबसाम,
\v 30 मिशमा'अ और दूमा और मसा, हदद और तेमा,
\v 31 यतूर, नाफ़ीस, क़िदमा; यह बनीइस्मा'ईल हैं|
\s5
\v 32 और इब्राहीम की हरम क़तूरा के बेटे यह हैं: उसके बत्न से ज़िमरान युक़सान और मिदान और मिदियान और इस्बाक़ और सूख़ पैदा हुए और बनी युक़सान: सिबा और ददान हैं|
\v 33 और बनी मिदियान: 'एफ़ा और 'इफ़्र और हनूक और अबीदा'अ अल्द'आ हैं; यह सब बनी क़तूरा हैं|
\s5
\v 34 और इब्राहीम से इस्हाक़ पैदा हुआ| बनी इस्हाक़: 'ऐसौ और इस्राईल थे|
\v 35 बनी 'ऐसौ: अलीफ़ज़ और र'ऊएल और य'ऊस और या'लाम और क़ोरह हैं|
\v 36 बनी अलीफ़ज़: तेमान और ओमर और सफ़ी और जा'ताम, क़नज़, और तिम्ना' और 'अमालीक़ हैं|
\v 37 बनी र'ऊएल: नहत, जारह, सम्मा और मिज़्ज़ा हैं|
\s5
\v 38 और बनी श'ईर: लोतान और सोबल और सबा'ऊन और 'अना और दीसोन और एसर और दीसान हैं|
\v 39 और हूरी और होमाम लूतान के बेटे थे, और तिम्ना' लोतान की बहन थी|
\v 40 बनी सोबल: 'अल्यान और मानहत 'एबाल सफ़ी और औनाम हैं| अय्या और 'अना सबा'ऊन के बेटे थे|
\s5
\v 41 और 'अना का बेटा दीसोन था; और हमरान और इश्बान और यित्रान और किरान दीसोन के बेटे थे|
\v 42 और एसर के बेटे: बिलहान और ज़ा'वान और या'क़ान थे और ऊज़ और अरान दीसान के बेटे थे|
\s5
\v 43 और जिन बादशाहों ने मुल्क-ए-अदोम पर उस वक़्त हुकूमत की जब बनी-इस्राईल पर कोई बादशाह हुक्मरान न था वह यह हैं: बाला' बिन ब'ओर; उसके शहर का नाम दिन्हाबा था|
\v 44 और बाला' मर गया और यूबाब बिन ज़ारह जो बुसराही था उसकी जगह बादशाह हुआ|
\v 45 और यूबाब मर गया और हशाम जो तेमान के 'इलाक़े का था उसकी जगह बादशाह हो हुआ|
\s5
\v 46 और हशाम मर गया और हदद बिन बिदद, जिसने मिदियानियों को मोआब के मैदान में मारा उसकी जगह बादशाह हुआ और उसके शहर का नाम 'अवीत था|
\v 47 और हदद मर गया और शमला जो मसरिक़ा का था, उसकी जगह बादशाह हुआ|
\v 48 और शमला मर गया और साउल जो दरिया-ए-फ़रात के पास के रहोबोत का बाशिंदा था उसकी जगह बादशाह हुआ|
\s5
\v 49 और साउल मर गया और बा'ल-हनान बिन 'अकबोर उसकी जगह बादशाह हुआ|
\v 50 और बा'ल-हनान मर गया और हदद उसकी जगह बादशाह हुआ; उसके शहर का नाम फ़ा'ई और उसकी बीवी का नाम महेतबेल था, जो मतरिद बिन्त मेज़ाहाब की बेटी थी|
\s5
\v 51 और हदद मर गया| फिर यह अदोम के रईस हुए: रईस तिम्ना’, रईस अलियाह, रईस यतीत,
\v 52 रईस उहलीबामा, रईस ऐला, रईस फ़ीनोन,
\v 53 रईस क़नज़, रईस तेमान, रईस मिब्सार,
\v 54 रईस मज्दिएल, रईस 'इराम; अदोम के रईस यही हैं|
\s5
\c 2
\p
\v 1 यह बनी इस्राईल हैं: रूबिन, शमा'ऊन, लावी, यहूदाह, इश्कार और ज़बूलून,
\v 2 दान, यूसुफ़, और बिनयमीन, नफ़्ताली, जद्द और आशर|
\s5
\v 3 'एर और ओनान और सेला, यह यहूदाह के बेटे हैं; यह तीनों उससे एक कना'नी 'औरत बतसू'अ के बत्न से पैदा हुए| और यहूदाह का पहलौठा 'एर ख़ुदावंद की नज़र में एक शरीर था, इसलिए उसने उसको मार डाला;
\v 4 और उसकी बहू तमर के उससे फ़ारस और ज़ारह हुए| यहूदाह के कुल पांच बेटे थे|
\s5
\v 5 और फ़ारस के बेटे हसरोन और हमूल थे|
\v 6 और ज़ारह के बेटे: ज़िमरी और ऐतान, हैमान और कलकूल और दारा', या'नी कुल पाँच थे|
\v 7 और इस्राईल का दुख देने वाला 'अकर जिसने मख़्सूस की हुई चीज़ों में ख़यानत की, करमी का बेटा था;
\v 8 और ऐतान का बेटा 'अज़रियाह था|
\s5
\v 9 और हसरोन के बेटे जो उससे पैदा हुए यह हैं: यरहमिएल और राम और कुलूबी|
\v 10 और राम से 'अम्मीनदाब पैदा हुआ और 'अम्मीनदाब से नह्सोन पैदा हुआ, जो बनी यहूदाह का सरदार था|
\v 11 और नह्सोन से सलमा पैदा हुआ और सलमा से बो'अज़ पैदा हुआ|
\v 12 और बो'अज़ से 'ओबेद पैदा हुआ और 'ओबेद से यस्सी पैदा हुआ|
\s5
\v 13 यस्सी से उसका पहलौठा 'अलियाब पैदा हुआ, और इबीनदाब दूसरा, और सिमा' तीसरा,
\v 14 नतनिएल चौथा, रद्दी पाँचवाँ,
\v 15 'ओज़म छठा, दाऊद सातवाँ,
\s5
\v 16 और उनकी बहनें ज़रुयाह और अबीजेल थीं| अबीशै और युआब और 'असाहेल, यह तीनों ज़रुयाह के बेटे हैं|
\v 17 और अबीजेल से 'अमासा पैदा हुआ, और 'अमासा का बाप इस्माईली यतर था|
\s5
\v 18 और हसरोन के बेटे कालिब से, उसकी बीवी 'अज़ूबा और यरी'ओत के औलाद पैदा हुई| 'अज़ूबा के बेटे यह हैं: यशर और सूबाब और अरदून|
\v 19 और 'अज़ूबा मर गई, और कालिब ने इफ़रात को ब्याह लिया जिसके बत्न से हूर पैदा हुआ|
\v 20 और हूर से ऊरी पैदा हुआ और ऊरी से बज़लिएल पैदा हुआ|
\s5
\v 21 उसके बा'द हसरोन जिल'आद के बाप मकीर की बेटी के पास गया; जिससे उसने साठ बरस की 'उम्र में ब्याह किया था और उसके बत्न से शजूब पैदा हुआ|
\v 22 और शजूब से याईर पैदा हुआ| जो मुल्क-ए-जिल'आद में तेईस शहरों का मालिक था|
\s5
\v 23 और जसूर और अराम ने याईर के शहरों को और क़नात को म'ए उसके क़स्बों के या'नी साठ शहरों को उन से ले लिया| यह सब जिल'आद के बाप मकीर के बेटे थे|
\v 24 और हसरोन के कालिब इफ़राता में मर जाने के बा'द हसरोन की बीवी अबियाह के उससे अशूर पैदा हुआ जो तक़ू'अ का बाप था|
\s5
\v 25 और हसरोन के पहलौठे, यरहमिएल के बेटे यह हैं: राम जो उसका पहलौठा था और बूना और ओरन और ओज़म और अख़ियाह|
\v 26 और यरहमिएल की एक और बीवी थी जिसका नाम 'अतारा था| वह ओनाम की माँ थी|
\v 27 और यरहमिएल के पहलौठे राम के बेटे मा'ज़ और यमीन 'एकर थे|
\v 28 और ओनाम के बेटे: सम्मी और यदा'; और सम्मी के बेटे: नदब और अबीसूर थे|
\s5
\v 29 और अबीसूर की बीवी का नाम अबीख़ैल था| उसके बत्न से अख़बान और मोलिद पैदा हुए|
\v 30 और नदब के बेटे: सिलिद अफ़्फ़ाईम थे लेकिन सिलिद बे औलाद मर गया|
\v 31 और अफ़्फ़ाईम का बेटा यस'ई; और यस'ई का बेटा सीसान; और सीसान का बेटा अख़ली था|
\v 32 और सम्मी के भाई यदा' के बेटे: यतर और यूनतन थे; और यतर बे औलाद मर गया|
\v 33 और यूनतन के बेटे: फ़लत और ज़ाज़ा; यह यरहमिएल के बेटे थे|
\s5
\v 34 और सीसान के बेटे नहीं सिर्फ़ बेटियाँ थीं और सीसान का एक मिस्री नौकर यरख़ा' नामी था|
\v 35 इसलिए सीसान ने अपनी बेटी को अपने नौकर यरख़ा' से ब्याह दिया, और उसके उससे 'अत्ती पैदा हुआ|
\s5
\v 36 और अत्ती से नातन पैदा हुआ, और नातन से ज़ाबा'द पैदा हुआ,
\v 37 और ज़ाबा'द से इफ़लाल पैदा हुआ और इफ़लाल से 'ओबेद पैदा हुआ|
\v 38 और 'ओबेद से याहू पैदा हुआ और याहू से 'अज़रयाह पैदा हुआ
\s5
\v 39 और अज़रयाह से ख़लस पैदा हुआ, और ख़लस से इलि, आसा पैदा हुआ,
\v 40 और इलि'आसा से सिसमी पैदा हुआ, और सिसमी से सलूम पैदा हुआ|
\v 41 और सलूम से यक़मियाह पैदा हुआ और यक़मियाह से इलीसमा' पैदा हुआ|
\s5
\v 42 यरहमिएल के भाई कालिब के बेटे यह हैं: मीसा उसका पहलौठा जो ज़ीफ़ का बाप है, और हबरून के बाप मरीसा के बेटे|
\v 43 और बनी हबरून: क़ोरह और तफ़्फ़ूह और रक़म और समा' थे|
\v 44 और समा' से युरक़'आम का बाप रख़म पैदा हुआ, और रख़म से सम्मी पैदा हुआ|
\s5
\v 45 और सम्मी का बेटा: म'ऊन था और म'ऊन बैतसूर का बाप था|
\v 46 और कालिब की हरम ऐफ़ा से हरान और मौज़ा और जाज़िज़ पैदा हुए और हारान से जाज़िज़ पैदा हुआ|
\v 47 और बनी यहदी: रजम और यूताम और जसाम और फ़लत और 'ऐफ़ा और शा'फ़ थे|
\s5
\v 48 और कालिब की हरम मा'का से शिब्बर और तिरहनाह पैदा हुए|
\v 49 उसी के बत्न से मदमन्नाह का बाप शा'फ़ और मकबीना का बाप सिवा और रहज और रिजबा' का बाप भी पैदा हुए; और कालिब की बेटी 'अकसा थी|
\v 50 कालिब के बेटे यह थे| इफ़राता के पहलौठे हूर का बेटा क़रयत-या'रीम का बाप सोबल,
\s5
\v 51 बैतलहम का बाप सलमा, और बैतजादिर का बाप ख़ारीफ़|
\s5
\v 52 और क़रयत-यारीम के बाप सोबल के बेटे ही बेटे थे; हराई और मनोख़ोत के आधे लोग|
\v 53 और क़रयत या'रीम के घराने यह थे: इतरी और फ़ूती और सुमाती और मिस्रा'ई इन्हीं से सुर'अती और इश्तावली निकले हैं|
\s5
\v 54 बनी सलमा यह थे: बैतलहम और नतूफ़ाती और 'अतरात-बैतयुआब और मनूख़तियों के आधे लोग और सुर'ई,
\v 55 और या'बीज़ के रहने वाले मुन्शियों के घराने, तिर'आती और सम'आती और सौकाती; यह वह क़ीनी हैं जो रैकाब के घराने के बाप हमात की नसल से थे|
\s5
\c 3
\p
\v 1 यह दाऊद के बेटे हैं जो हबरून में उससे पैदा हुए: पहलौठा अमनोन, यज़र'एली अख़ीनू'अम के बत्न से; दूसरा दानिएल, कर्मिली अबीजेल के बत्न से;
\v 2 तीसरा अबीसलोम, जो जसूर के बादशाह तल्मी की बेटी मा'का का बेटा था; चौथा अदूनियाह, जो हज्जियत का बेटा था|
\v 3 पाँचवाँ सफ़तियाह, अबीताल ले बत्न से; छठा इतर'आम, उसकी बीवी 'इजला से|
\s5
\v 4 यह छ: हबरून में उससे पैदा हुए| उसने वहाँ सात बरस छ: महीने हुकूमत की, और यरुशालीम में उसने तैंतीस बरस हुकूमत की|
\v 5 और यह यरुशलीम में उससे पैदा हुए: सिम'आ और सूबाब और नातन और सुलेमान, यह चारों 'अम्मीएल की बेटी बतसू'अ के बत्न से थे|
\s5
\v 6 और इब्हार और इलीसमा' और अलीफ़लत,
\v 7 और नुजा और नफ़ज और यफ़ी'आ,
\v 8 और अलीसमा' और इलीदा' और अलीफ़लत; यह नौ
\v 9 यह सब हरमों के बेटों के 'अलावा दाऊद के बेटे थे; और तमर इनकी बहन थी
\s5
\v 10 और सुलेमान का बेटा रहुब'आम था उसका बेटा अबियाह, उसका बेटा आसा, उसका बेटा यहूसफ़त;
\v 11 उसका बेटा यूराम, उसका बेटा अख़ज़ियाह, उसका बेटा यूआस;
\v 12 उसका बेटा अमसियाह, उसका बेटा 'अज़रयाह, उसका बेटा यूताम;
\s5
\v 13 उसका बेटा आख़ज़, उसका बेटा हिज़कियाह, उसका बेटा मनस्सी|
\v 14 उसका बेटा अमून, उसका बेटा यूसियाह;
\s5
\v 15 और यूसियाह के बेटे यह थे: पहलौठा यूहनान, दूसरा यहूयक़ीम, तीसरा सिदक़ियाह, चौथा सलूम|
\v 16 और बनी यहूयक़ीम: उसका बेटा यकूनियाह, उसका बेटा सिदक़ियाह|
\s5
\v 17 और यकूनियाह जो ग़ुलाम था, उसके बेटे यह हैं: सियालतिएल,
\v 18 और मल्कराम और फ़िदायाह और शीनाज़र, यक़मियाह, होसमा' और नदबियाह;
\s5
\v 19 और फ़िदायाह के बेटे यह हैं: ज़रब्बाबुल और सिम'ई और ज़रब्बाबुल के बेटे यह हैं: मुसल्लाम और हनानियाह, और सल्लूमियत उनकी बहन थी,
\v 20 और हसूबा और अहल और बरकियाह और हसदियाह, यूसजसद यह पाँच|
\v 21 और हनानियाह के बेटे यह हैं: फ़लतियाह और यसा'याह| बनी रिफ़ायाह, बनी अरनान, बनी 'ईदयाह, बनी सकनियाह,
\s5
\v 22 और सकनियाह का बेटा: समा'याह और बनी समा'याह: हतूश और इजाल और बरीह और ना'रियाह और साफ़त' यह छ:|
\v 23 और ना'रियाह के बेटे यह थे: इल्यू'ऐनी, और हिज़क़ियाह और 'अज़रीक़ाम, यह तीन|
\v 24 और बनी इल्यू'ऐनी यह थे: हूदैवाहू और 'अलियासब और फ़िलायाह और 'अक़्क़ूब और युहनान और दिलायाह 'अनानी, यह सात|
\s5
\c 4
\p
\v 1 बनी यहूदाह यह हैं: फ़ारस, हसरोन और कर्मी और हूर और सोबल|
\v 2 और रियायाह बिन सोबल से यहत पैदा हुआ और यहत से अख़ूमी और लाहद पैदा हुए, यह सुर'अतियों के ख़ानदान हैं|
\s5
\v 3 और यह 'ऐताम के बाप से हैं: यज़र'एल और इसमा' और इदबास और उनकी बहन का नाम हज़िल-इलफ़ूनी था;
\v 4 और फ़नूएल जदूर का बाप और 'अज़र हूसा का बाप था| यह इफ़राता के पहलौठे हूर के बेटे हैं| जो बैतलहम का बाप था|
\s5
\v 5 और तकू'अ के बाप अशूर की दो बीवियां थीं हीलाह और ना'रा|
\v 6 और ना'रा के उससे अख़ूसाम और हिफ़्र और तेमनी और हख़सतरी पैसा हुए| यह ना'रा के बेटे थे|
\v 7 और हीलाह के बेटे: ज़रत और यज़ूआर और इतनान थे|
\v 8 क़ूज़ से 'अनूब और ज़ोबीबा और हरूम के बेटे आख़रख़ैल के घराने पैदा हुए|
\s5
\v 9 और या'बीज़ अपने भाइयों से मु'अज़िज़्ज़ था और उसकी माँ ने उसका नाम या'बीज़ रक्खा क्यूँकि कहती थी, की मैंने ग़म के साथ उसे जनम दिया है|”
\v 10 और याबीज़ ने इस्राईल के ख़ुदा से यह दु'आ की, आह, तू मुझे वाक़'ई बरकत दे, और मेरी हुदूद को बढ़ाए, और तेरा हाथ मुझ पर हो और तू मुझे बदी से बचाए ताकि वह मेरे ग़म का ज़रि'अ न हो!” और जो उसने माँगा ख़ुदा ने उसको बख़्शा|
\s5
\v 11 और सूख़ा के भाई कलूब से महीर पैदा हुआ जो इस्तून का बाप था|
\v 12 और इस्तून से बैतरिफ़ा और फ़ासह और 'ईरनहस जा बाप तख़िन्ना पैदा हुए| यही रैका के लोग हैं|
\s5
\v 13 और क़नज़ के बेटे: ग़ुतनिएल और शिरायाह थे, और ग़ुतनिएल का बेटा हतत था|
\v 14 और म'ऊनाती से 'उफ़रा पैदा हुआ, और शिरायाह से युआब पैदा हुआ जो जिख़राशीम का बाप है; क्यूँकि वह कारीगर थे|
\v 15 और यफ़ुन्ना के बेटे कालिब के बेटे यह हैं: 'ईरु और ऐला और ना'म; और बनी ऐला: क़नज़|
\v 16 और यहलिलएल के बेटे यह हैं: ज़ीफ़ और ज़ीफ़ा, तैरयाह और असरिएल|
\s5
\v 17 और 'अज़रा के बेटे यह हैं: यतर और मरद और 'इफ़्र और यलून और उसके बत्न से मरियम और सम्मी और इस्तमू'अ का बाप इस्बाह पैदा हुए,
\v 18 और उसकी यहूदी बीवी के उस से जदूर का बाप यरद और शोको का बाप हिब्र और ज़नूह का बाप यक़ूतिएल पैदा हुए; और फ़िरऔन की बेटी बित्याह के बेटे जिसे मरद ने ब्याह लिया था यह हैं|
\s5
\v 19 और यहूदियाह की बीवी नहम की बहन के बेटे क़'ईलाजर्मी का बाप और इस्मतू'अ मा'काती थे|
\v 20 और सीमोन के बेटे यह हैं: अमनून और रिन्ना, बिनहन्नान और तीलोन, और यस'ई के बेटे: ज़ोहित और बिनज़ोहित थे|
\s5
\v 21 और सैला बिन यहूदाह के बेटे यह हैं: 'एर, लका का बाप; और ला'दा, मरीसा का बाप और बीत-अशबि'अ के घराने, जो बारीक कटान का काम करते थे|
\v 22 और योक़ीम और कोज़ीबा के लोग, और यूआस और शराफ़ जो मोआब के बीच ~हुक्मरान थे, और यसूबी लहम| यह पुरानी तवारीख़ है|
\v 23 यह कुम्हार थे और नताईम और गदेरा के बाशिंदे थे| वह वहाँ बादशाह के साथ उसके काम के लिए रहते थे|
\s5
\v 24 बनी शमा'ऊन यह हैं: नमुएल, और यमीन, यरीब, ज़ारह, साऊल|
\v 25 और सूल का बेटा सलूम और सलूम का बेटा मिब्साम, और मिब्साम का बेटा मिशमा'अ|
\v 26 और मिशमा'अ के बेटे यह हैं: हमुएल हमुएल का बेटा ज़कूर, ज़कूर का बेटा सिम'ई|
\s5
\v 27 और सिम'ई के सोलह बेटे और छ: बेटियाँ थीं, लेकिन उसके भाइयों के बहुत औलाद न हुईं और उनके सब घराने बनी यहूदाह की तरह न बढ़े|
\v 28 और वह बैरसबा' और मोलादा और हसरसो'आल,
\s5
\v 29 और बिलहा और 'अज़म और तोलाद,
\v 30 और बतुएल और हुरमा और सिक़लाज,
\v 31 और मरकबोत और हसर सूसीम और बैतबराई और शा'रीम में रहते थे| दाऊद की हुकूमत तक यही उनके शहर थे|
\s5
\v 32 और उनके गाँव: 'ऐताम और 'ऐन और रिमोन और तोकन और 'असन, यह पाँच शहर थे|
\v 33 और उनके रहने देहात भी, जो बा'ल तक उन शहरों के आस पास थे यह उनके रहने के मुक़ाम थे और उनके नसबनामे हैं|
\s5
\v 34 और मिसोबाब, यमलीक और योशा बिन अमसियाह,
\v 35 और यूएल और याहू बिन यूसीबियाह बिन शिरायाह बिन 'असिएल,
\v 36 और इल्यू'ऐनी और या'क़ूबा और यसुखाया और 'असायाह और 'अदिएल और यिसीमिएल और बिनायाह,
\v 37 और ज़ीज़ा बिन शिफ़'ई बिन अल्लूनबिन यदायाह बिन सिमरी बिन समा'याह:
\v 38 यह जिनके नाम मज़कूर हुए, अपने अपने घराने के सरदार थे और इनके आबाई ख़ानदान बहुत बढ़े|
\s5
\v 39 और वह जदूर के मदख़ल तक या'नी उस वादी के पूरब तक अपने गल्लों के लिए चरागाह ढूँडने गए,
\v 40 वहाँ उन्होंने अच्छी और सुथरी चरागाह पायी और मुल्क वसी' और चैन और सुख की जगह था; क्यूँकि हाम के लोग क़दीम से उस में रहते थे|
\v 41 और वह जिनके नाम लिखे गए हैं, शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह के दिनों में आये और उन्होंने उनके पड़ाव पर हमला किया और म'ऊनीम को जो वहाँ मिले क़त्ल किया, ऐसा की वह आज के दिन तक मिटे हैं, और उनकी जगह रहने लगे क्यूँकि उनके गल्लों के लिए वहाँ चरागाह थी|
\s5
\v 42 और उनमें से या'नी शमा'ऊन के बेटों में से पाँच सौ शख़्स कोह-ए-श'ईर को गए और यस'ई के बेटे फ़लतियाह और ना'रियाह और रिफ़ायाह और 'उज़्ज़ीएल उनके सरदार थे;
\v 43 और उन्होंने उन बाक़ी 'अमालीक़ियों को जो बच रहे थे क़त्ल किया और आज के दिन तक वहीं बसे हुए हैं|
\s5
\c 5
\p
\v 1 और इस्राईल के पहलौठे रूबिन के बेटे (क्यूँकि वह उसका पहलौठा था, लेकिन इसलिए की उसने अपने बाप के बिछौने को नापाक किया था उसके पहलौठे होने का हक़ इस्राईल के यूसुफ़ की औलाद को दिया गया, ताकि नसबनामा पहलौठे पन के मुताबिक़ न हो|
\v 2 क्यूँकि यहूदाह अपने भाइयों से ताक़तवर ~हो गया और सरदार उसी में से निकला लेकिन पहलौठे का यूसुफ़ का हुआ)
\v 3 इसलिए इस्राईल के पहलौठे रूबिन के बेटे यह हैं: हनूक और फ़ल्लू और हसरोन और कर्मी|
\s5
\v 4 यूएल के बेटे यह हैं: उसका बेटा समा'याह, सम'याह का बेटा जूज, जूज का बेटा सिम'ई|
\v 5 सिम'ई का बेटा मीकाह, मीकाह का बेटा रियायाह, रियायाह का बेटा बा'ल|
\v 6 बा'ल का बेटा बईरा जिसको असूर का बादशाह तिलगातपिलनासर ग़ुलाम कर के ले गया| वह रूबीनियों का सरदार था|
\s5
\v 7 और उसके भाई अपने अपने घराने के मुताबिक़ जब उनकी औलाद का नसब नामा लिख्खा गया था, सरदार य'ईएल और ज़करियाह,
\v 8 और बाला' बिन 'अज़ज़ बिन समा' योएल, वह 'अरो'ईर में नबू और बा'ल म'ऊन तक,
\v 9 और पूरब की तरफ़ दरिया-ए-फ़रात से वीरान में दाख़िल होने की जगह तक बसा हुआ था क्यूँकि मुल्क-ए-जिल'आद में उनके चौपाये बहुत बढ़ गए थे|
\s5
\v 10 और साऊल के दिनों में उन्होंने हाजिरियों से लड़ाई की जो उनके हाथ से क़त्ल हुए, और वह जिल'आद के पूरब के सारे 'इलाक़े में उनके डेरों में बस गए|
\s5
\v 11 और बनी जद उनके सामने मुल्क-ए-बसन में सिलका तक बसे हुए थे|
\v 12 पहला यूएल था, और साफ़म दूसरा, और या'नी और साफ़त बसन में थे|
\v 13 और उनके आबाई ख़ानदान के भाई यह हैं: मीकाएल और मुसल्लाम और सबा' और यूरी और या'कान और ज़ी'अ और 'इब्र, यह सातों|
\s5
\v 14 यह बनी अबिखैल बिन हूरी बिन यारूआह बिन जिल'आद बिन मीकाएल बिन यमीसी बिन यहदू बिन बूज़ थे|
\v 15 अख़ी बिन 'अबदिएल बिन जूनी इनके आबाई ख़ानदानों का सरदार था|
\s5
\v 16 और वह बसन में जिल'आद और उसके क़स्बों और शारून की सारे 'इलाक़ा में, जहाँ तक उनकी हद्द थी, बसे हुए थे|
\v 17 यहूदाह के बादशाह यूताम के दिनों में, और इस्राईल के बादशाह युरब'आम के दिनों ~में उन उन सभों के नाम उनके नसबनामों के मुताबिक़ लिखे गए|
\s5
\v 18 और बनी रूबिन और जद्दियों और मनस्सी के आधे क़बीले में सूर्मा, या'नी ऐसे लोग जो सिपर और तेग़ उठाने के क़ाबिल और तीरअन्दाज़ और जंग आज़मूदा थे, चौवालीस हज़ार सात सौ साठ थे जो जंग पर जाने के लायक़ थे|
\v 19 यह हजिरियों और यतूर और नफ़ीस और नोदब से लड़े|
\s5
\v 20 और उनसे मुक़ाबिला करने के लिए मदद पायी, और हाजिरी और सब जो उनके साथ थे उनके हवाले किए गए क्यूँकि उन्होंने लड़ाई में ख़ुदा से दु'आ की और उनकी दु'आ क़ुबूल हुई, इसलिए की उन्होंने उस पर भरोसा रख्खा|
\v 21 और वह उनकी मवेसी ले गए; उनके ऊँटों में से पचास हज़ार और भेड़ बकरियों में से ढाई लाख और गधों में से दो हज़ार और आदमियों में से एक लाख|
\v 22 क्यूँकि बहुत से लोग क़त्ल हुए इसलिए की जंग ख़ुदा की थी और वह ग़ुलामी के वक़्त तक उनकी जगह बसे रहे|
\s5
\v 23 और मनस्सी के आधे क़बीले के लोग मुल्क में बसे| वह बसन से बा'लहरमून और सनीर और हरमून के पहाड़ तक फैल गए|
\v 24 उनके आबाई ख़ानदानों के सरदार यह थे: 'इफ़्र और यिस'ई और इलीएल, 'अज़रिएल, यरमियाह और हुदावियाह और यहदएल, जो ताक़तवर सूर्मा और नामवर और अपने आबाई ख़ानदानों के सरदार थे|
\s5
\v 25 और उन्होंने अपने बाप दादा के ख़ुदा की हुक्म 'उदूली की, और जिस मुल्क के बाशिंदों को ख़ुदा ने उनके सामने से हलाक किया था, उन ही के मा'बूदों की पैरवी में उन्होंने ज़िनाकारी की|
\v 26 तब इस्राईल के ख़ुदा ने असूर के बादशाह पूल के दिल को और असूर के बादशाह तिलगातपलनासर के दिल को उभारा, और वह उनकी या'नी रूबिनियों और जद्दियों और मनस्सी के आधे क़बीले को ग़ुलाम कर के ले गए और उनको ख़लह और ख़ाबूर और हारा और जौज़ान की नदी तक ले आये; यह आज के दिन तक वहीं हैं|
\s5
\c 6
\p
\v 1 बनी लावी: जैरसोन, क़िहात, और मिरारी हैं|
\v 2 और बनी क़िहात: 'अमराम और इज़हार और हबरून और 'उज़्ज़िएल|
\v 3 और 'अमराम की औलाद: हारून और मूसा और मरियम| और बनी हारून: नदब और अबीहू इली'अज़र और इतमर|
\s5
\v 4 इली'अज़र से फ़ीनहास पैदा हुआ और फ़ीनहास से अबिसू' पैदा हुआ,
\v 5 और अबीसू'अ से बुक़्क़ी पैदा हुआ, और बुक़्क़ी 'उज़्ज़ी पैदा हुआ|
\v 6 और उज़्ज़ी ज़राख़ियाह पैदा हुआ हुआ, और ज़राख़ियाह से मिरायोत पैदा हुआ|
\s5
\v 7 मिरायोत से अमरियाह पैदा हुआ, और अमरियाह अख़ितोब पैदा हुआ|
\v 8 और अख़ितोब सदूक़ पैदा हुआ, और सदूक़ से अख़ीमा'ज़ पैदा हुआ|
\v 9 और अख़ीमा'ज़ से 'अज़रियाह पैदा हुआ, और 'अज़रियाह से यूहनान पैदा हुआ,
\s5
\v 10 और यूहनान से अज़रियाह पैदा हुआ (यह वह है जो उस हैकल में जिसे सुलेमान ने यरुशलीम में बनाया था, काहिन था)|
\v 11 और 'अज़रियाह से अमरियाह पैदा हुआ और अमरियाह से अख़ितोब पैदा हुआ|
\v 12 और अख़ितोब से सदूक़ पैदा हुआ और सदूक़ से सलूम पैदा हुआ|
\s5
\v 13 और सलूम से ख़िलक़ियाह पैदा हुआ और ख़िलक़ियाह से 'अज़रियाह पैदा हुआ|
\v 14 और 'अज़रियाह से सिरायाह पैदा हुआ और सिरायाह से यहूसदक़ पैदा हुआ|
\v 15 और जब ख़ुदावन्द ने नबूकदनज़र के हाथ यहूदाह और यरुशलीम को जिला वतन कराया, तो यहूसदक़ भी ग़ुलाम हो गया|
\s5
\v 16 बनी लावी: जैरसोम क़िहात, और मिरारी हैं|
\v 17 और जैरसोम के बेटों के नाम यह हैं: लिबनी और सिम'ई|
\v 18 और बनी क़िहात: 'अमराम और इज़हार और हबरून और 'उज़्ज़ीएल थे|
\s5
\v 19 मिरारी के बेटे यह हैं: महली और मूशी और लावियों के घराने उनके आबाई ख़ानदानों के मुताबिक़ यह हैं|
\v 20 जैरसोम से उसका बेटा लिबनी| लिबनी का बेटा यहत, यहत का बेटा ज़िम्मा|
\v 21 ज़िम्मा का बेटा यूआख़, यूआख़ का बेटा 'ईदू, 'ईदू का बेटा ज़ारह, ज़ारह का बेटा यतरी|
\s5
\v 22 बनी क़िहात: क़िहात का बेटा अम्मीनदाब, का बेटा अम्मीनदाब का बेटा क़ोरह, क़ोरह का बेटा अस्सीर,
\v 23 अस्सीर का बेटा इल्क़ाना| इल्क़ाना का बेटा अबी आसफ़| अबी आसफ़ का बेटा अस्सीर|
\v 24 अस्सीर का बेटा तहत, तहत का बेटा ऊरिएल| ऊरिएल का बेटा उज़्ज़ियाह, 'उज़्ज़ियाह का बेटा साऊल|
\s5
\v 25 और इल्क़ाना के बेटे यह हैं: 'अमासी और अख़ीमोत|
\v 26 रहा इल्क़ाना तो, इल्क़ाना के बेटे यह हैं: या'नी उसका बेटा सूफ़ी, सूफ़ी का बेटा नहत|
\v 27 नहत का बेटा इलियाब, इलियाब का बेटा यरुहाम, यरुहाम का बेटा इल्क़ाना|
\s5
\v 28 समुएल के बेटों में पहलौठा यूएल, दूसरा अबियाह|
\v 29 बनी मिरारी यह हैं: महली, महली का बेटा लिबनी, लिबनी का बेटा सम'ई, सम'ई का बेटा 'उज़्ज़ा,
\v 30 'उज़्ज़ा का बेटा सिम'आ, सिम'आ का बेटा हिज्जियाह हिज्जियाह, का बेटा 'असायाह|
\s5
\v 31 वह जिनको दाऊद ने सन्दूक़ के ठिकाना पाने के बा'द ख़ुदावन्द के घर में हम्द के काम पर मुक़र्रर किया यह हैं:
\v 32 और वह जब तक सुलेमान यरुशलीम में ख़ुदावन्द का घर बनवा न चुका हम्द गा गा कर ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ के मसकन के सामने ख़िदमत करते रहे और अपनी अपनी बारी के मुवाफ़िक़ अपने काम पर हाज़िर रहते थे|
\s5
\v 33 और जो हाज़िर रहते थे वह और उनके बेटे यह हैं: क़िहातियों की औलाद में से हैमान गवय्या बिन यूएल बिन समुएल|
\v 34 बिन इल्क़ाना बिन यरुहाम, बिन इलीएल, बिन तूह|
\v 35 बिन सूफ़ बिन इल्क़ाना बिन महत बिन 'अमासी|
\s5
\v 36 बिन इल्क़ाना बिन यूएल बिन 'अज़रियाह बिन सफ़नियाह|
\v 37 बिन तहत बिन अस्सीर बिन अबी आसफ़बिन क़ोरह|
\v 38 बिन इज़हार बिन क़िहात बिन लावी बिन इस्राईल|
\s5
\v 39 और उसका भाई आसफ़ जो उसके दहने खड़ा होता था, या'नी आसफ़ बिन बरकियाह बिन सिम'आ|
\v 40 बिन मीकाएल बिन बा'सियाह बिन मलकियाह|
\v 41 बिन अतनी बिन जारह बिन 'अदायाह|
\v 42 बिन ऐतान बिन ज़िम्मा बिन सिम'ई|
\v 43 बिन यहत बिन जैरसोम बिन लावी|
\s5
\v 44 और बनी मिरारी उनके भाई बाएं हाथ खड़े होते थे या'नी ऐतान बिन क़ीसी बिन 'अबदी बिन मुलोक|
\v 45 बिन हसबियाह बिन अमसियाह बिन ख़िलक़ियाह|
\v 46 बिन अमसी बिन बानी बिन सामर|
\v 47 बिन महली बिन मूशी नीं मिरारी बिन लावी|
\s5
\v 48 और उनके भाई लावी बैत उल्लाह के घर की सारी ख़िदमत पर मुक़र्रर थे|
\s5
\v 49 लेकिन हारून और उसके बेटे सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह और ख़ुशबू जलाने की क़ुर्बानगाह दोनों पर पाकतरीन मकान की सारी ख़िदमत को अंजाम देने और इस्राईल के लिए कफ़्फ़ारा देने के लिए जैसा ख़ुदा बन्दे मूसा ने हुक्म किया था क़ुर्बानी पेश करते थे|
\s5
\v 50 बनी हारून यह हैं: हारून का बेटा इलीअज़र, इलीअज़र का बेटा फ़ीनहास, फ़ीनहास का बेटा अबीसू'अ|
\v 51 अबीसू'अ का बेटा बुक़्क़ी, बुक़्क़ी का बेटा 'उज़्ज़ी, 'उज़्ज़ी का बेटा ज़राखियाह|
\v 52 ज़राखियाह का बेटा मिरायोत, मिरायोत का बेटा अमरियाह, अमरियाह का बेटा अख़ीतोब|
\v 53 अख़ीतोब का बेटा सदूक़, सदूक़ का बेटा अख़ीमा'ज़|
\s5
\v 54 और उनकी हुदूद में उनकी छावनियों के मुताबिक़ उनकी सुकूनतगाहें यह हैं; बनी हारून में से क़िहातियों के ख़ानदानों को, जिनकी पर्ची पहली निकली|
\v 55 उन्होंने यहूदाह की ज़मीन में हबरून और उसका 'इलाक़ा की दिया|
\v 56 लेकिन उस शहर के खेत और उसके देहात युफ़न्ना के बेटे कालिब को दिए|
\s5
\v 57 और बनी हारून को उन्होंने पनाह के शहर दिए और हबरून और लिबनाह भी और उसका 'इलाक़ा और यतीर और इस्तमू'अ और उसका 'इलाक़ा|
\v 58 और हैलान और उसका 'इलाक़ा, और दबीर और उसका 'इलाक़ा,
\s5
\v 59 और 'असन और उसका 'इलाक़ा, और बैत समा' और उसका 'इलाक़ा|
\v 60 और बिनयमीन के क़बीले में से जिबा' और उसका 'इलाक़ा, और 'अलमत और~उसका 'इलाक़ा, और 'अन्तोत और~उसका इलाक़ा, उनके घरानों के सब शहर तेरह थे|
\s5
\v 61 और बाक़ी बनी क़िहात को आधे क़बीले, या'नी मनस्सी के आधे क़बीले में से दस शहर पर्ची डालकर दिए गए|
\v 62 और जैरसोम के बेटों को उनके घरानों के मुताबिक़ इश्कार के क़बीले और और आशर के क़बीले और नफ़्ताली के क़बीले और मनस्सी के क़बीले से जो बसन में था तेरह शहर मिले|
\s5
\v 63 मिरारी के बेटों को उनके घरानों के मुताबिक़ रुबिन के क़बीले, और जद के क़बीले और ज़बूलून के क़बीले में से बारह शहर पर्ची डालकर दिए गए|
\v 64 ~फिर बनी इस्राईल ने लावियों को वह शहर उनका 'इलाक़ा समेत दिए|
\v 65 और उनोने बनी यहूदाह के क़बीले, और बनी शमा'ऊन के क़बीले, और बनी बिनयमीन के क़बीले, में से यह शहर जिनके नाम मज़कूर हुए पर्ची डालकर दिए|
\s5
\v 66 और बनी क़िहात के कुछ ख़ानदानों के पास उनकी सरहद्दों के शहर इफ़्राईम के क़बीले में से थे|
\v 67 और उन्होंने उनको पनाह के शहर दिए या'नी इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में सिक्म और उसका 'इलाक़ा और जज़र भी और उसका 'इलाक़ा|
\v 68 और युक़म'आम और उसका 'इलाक़ा और बैतहौरून और उसका 'इलाक़ा|
\v 69 और अय्यलोन और उसका 'इलाक़ा, नाफ़्ताली और जातरिम्मोन और उसका 'इलाक़ा|
\s5
\v 70 और मनस्सी के आधे क़बीले में से आज़र और उसका 'इलाक़ा, और बिल'आम और उसका 'इलाक़ा बनी क़िहात के बाक़ी ख़ानदान को मिली|
\s5
\v 71 बनी जैरसोम को मनस्सी के आधे क़बीले के ख़ानदान जोलान और उसका इलाक़ा, बसन में और असारात और उसका 'इलाक़ा|
\v 72 और इश्कार के क़बीले में से क़ादिस और उसका 'इलाक़ा| दाबरात और उसका 'इलाक़ा|
\v 73 और रामात और उसका 'इलाक़ा, और 'आनीम और उसका 'इलाक़ा|
\s5
\v 74 और आसर के क़बीले में से मसल और उसका 'इलाक़ा, और 'अबदोन और उसका 'इलाक़ा|
\v 75 और हक़ूक़ और उसका 'इलाक़ा, और रहोब और उसका 'इलाक़ा|
\v 76 और नफ़्ताली के क़बीले में से क़ादिस और उसका 'इलाक़ा गालील में, और हम्मून और उसकी नवाही, क़रयताइम और उसका 'इलाक़ा, मिला|
\s5
\v 77 बाक़ी लावियों, या'नी बनी मिरारी को ज़बलून के क़बीले में से रिम्मोन और उसकी नवाही, और तबूर और उसका 'इलाक़ा,
\v 78 यरीहू के नज़दीक यरदन के पार या'नी यरदन की पूरब की तरफ़, रूबिन के क़बीले में से वीरान में बसर और उसका 'इलाक़ा, और यहसा और उसका 'इलाक़ा;
\v 79 और क़दीमात और उसका 'इलाक़ा, और मिफ़'अत और उसका 'इलाक़ा;
\s5
\v 80 और जद्द के क़बीले में से रामात और उसका 'इलाक़ा, जिल'आद में, और महनायम और उसका 'इलाक़ा,
\v 81 और हस्बोन और उसका 'इलाक़ा, और याज़ेर और उसका 'इलाक़ा मिली
\s5
\c 7
\p
\v 1 और बनी इश्कार यह हैं: तोला' और फ़ुव्वा और यसूब और सिमरोन, यह चारों|
\v 2 और बनी तोला': 'उज़्ज़ी और रिफ़ायाह और यरीएल और यहमी और इबसाम और समुएल, जो तोला' या'नी अपने आबाई ख़ानदानों के सरदार थे| वह अपने ज़माने में ताक़तवर सूर्मा थे और दाऊद के दिनों में उनका शुमार बाइस हज़ार छ: सौ था|
\v 3 और 'उज़्ज़ी का बेटा इज़राख़ियाह और इज़राख़ियाह के बेटे यह हैं: मीकाएल और 'अबदियाह और यूएल और यसय्याह यह पाँचों यह सब के सब सरदार थे|
\s5
\v 4 और उनके साथ अपनी अपनी पुश्त और अपने अपने आबाई ख़ानदान के मुताबिक़ जंगी लश्कर के दल थे जिन में छत्तीस हज़ार जवान थे क्यूँकि उनके यहाँ बहुत सी बीवियाँ और बेटे थे|
\v 5 और उनके भाई इश्कार के सब घरानों में ताक़तवर सूर्मा थे और नसब नामे के हिसाब के मुताबिक़ कुल सत्तासी हज़ार थे|
\s5
\v 6 और बनी बिनयमीन यह हैं: बाला' और बक्र और यदय'एल, यह तीनों
\v 7 और बनी बाला': इसबून और 'उज़्ज़ी और 'उज़्ज़ीएल और यरीमोत और 'ईरी, यह पाँचों| यह अपने आबाई ख़ानदानों के सरदार और ताक़तवर सूर्मा थे और नसब नामे के हिसाब के मुताबिक़ बाइस हज़ार चौंतीस थे|
\s5
\v 8 और बनी बक्र यह हैं: ज़मीरा और यूआस और इली'अज़र और इल्यू'ऐनी और 'उमरी और यरीमोत और अबियाह और 'अन्तोत और 'अलामत यह सब बक्र के बेटे थे|
\v 9 इनकी नसल के लोग नसबनामे के मुताबिक़ बीस हज़ार दो सौ ताक़तवर सूर्मा और अपने आबाई ख़ानदानों के सरदार थे|
\v 10 और यदा'एल का बेटा: बिलहान था| और बनी बिलहाँ यह हैं: य'ओस और बिनयमीन और अहूद और कना'ना और ज़ैतान और तरसीस और अख़ीसहर|
\s5
\v 11 यह सब यदा'एल के बेटे जो अपने आबाई ख़ानदानों के सरदार और ताक़तवर सूर्मा थे, सत्तरह हज़ार दो सौ थे जो लश्कर के साथ जंग पर जाने के लायक़ थे|
\v 12 और सुफ़्फ़ीम और हुफ़्फ़ीम 'ईर के बेटे, और हाशीम इहीर का बेटा|
\s5
\v 13 बनी नफ़्ताली यह हैं: यहसीएल और जूनी और यसर और सलूम बनी बिल्हा|
\s5
\v 14 बनी मनस्सी यह हैं: असरीएल और उसकी बीवी के बत्न से था ( उसकी अरामी हरम से जिल'आद का बाप मकीर पैदा हुआ|
\v 15 और मकीर ने हफ़्फ़ीम और सुफ़्फ़ीम की बहन जिसका नाम मा'का था ब्याह लिया ) और दूसरे का नाम सिलाफ़हाद था, और सिलाफ़ हाद के पास बेटियां थीं|
\v 16 और मकीर की बीवी मा'का के एक बेटा पैदा हुआ उसने उसका नाम फ़रस रख्खा और उसके भाई का नाम शरस था, और उसके बेटे औलाम रक़म थे|
\s5
\v 17 और औलाम का बेटा बिदान था, यह जिल'आद बिन मकीर बिन मनस्सी के बेटे थे|
\v 18 और उसकी बहन हम्मोलिकत से इशहूद और अबी'अज़र और महला पैदा हुआ|
\v 19 बनी सिमीदा यह हैं: अख़ियान और सिक्म और लिक़ही और अनि'आम|
\s5
\v 20 और बनी इफ़्राईम यह हैं: सूतलाह, सूतलाह का बेटा बरद, बरद का बेटा तहत, तहत का बेटा इली'अदा, इली'अदा का बेटा तहत,
\v 21 तहत का बेटा ज़बद, ज़बद का बेटा सूतलाह था और 'अज़र और इली'अदा भी, जिनको जात के लोगों ने, जो उस मुल्क में पैदा हुए थे, मार डाला क्यूँकि वह उनकी मवैशी ले जाने को उतर आये थे|
\v 22 और उनका बाप इफ़्राईम बहुत दिनों तक मातम करता रहा, और उसके भाई तसल्ली देने को आये|
\s5
\v 23 और वह अपनी बीवी के पास गया और वह हामला हुई और उसके एक बेटा पैदा हुआ और इफ़्राईम ने उसका नाम बरि'आ रख्खा क्यूँकि उसके घर पर आफ़त आई थी|
\v 24 (और उसकी बेटी सराह थी, जिसने नशेब और फ़राज़ के बैतहोरून और 'उज़्ज़न सराह को बनाया )|
\s5
\v 25 और उसका बेटा रफ़ाह और रसफ़ भी और उसका बेटा तलाह, और तलाह का बेटा तहन,
\v 26 तहन का बेटा ला'दान, ला'दान का बेटा 'अम्मीहूद, 'अम्मीहूद का बेटा इलीसमा'अ,
\v 27 इलीसमा'अ का बेटा नून, नून का बेटा यहूसू'अ|
\s5
\v 28 और उनकी मिल्कियत और बस्तियां यह हैं: बैतएल और उसके देहात, और मशरिक़ की तरफ़ ना'रान, और मग़रिब की तरफ़ जज़र और उसके देहात, और सिक्म भी और उसके देहात, 'उज़्ज़ा और उसके देहात तक;
\v 29 और बनी मनस्सी की हुदूद के पास बैतशान और उसके देहात, ता'नाक और उसके देहात, मजिद्दो और उसके देहात, दोर और उसके देहात थे|इनमें यूसुफ़ बिन इस्राईल के बेटे रहते थे|
\s5
\v 30 बनी आशर यह हैं: यिमना और इस्वाह और इस्वी और बरि'आ, और उनकी बहन सिरह|
\v 31 और बरि'आ के बेटे: हिबर बिरज़ावीत का बाप मलकिएल थे|
\v 32 और हिबर से यफ़लीत और सोमिर और ख़ूताम, और उनकी बहन सू'अ पैदा हुए|
\s5
\v 33 और बनी यफ़लीत: फ़ासाक और और बिमहाल और 'असवात; यह बनी यफ़लीत हैं|
\v 34 और बनी सामिर: अख़ी और रूह्जा और यहुब्बा और आराम थे|
\v 35 और उसके भाई हीलम के बेटे: सूफ़ह और इमना' और सलस और 'अमल थे|
\s5
\v 36 और बनी सूफ़ह: सूह और हरनफ़र और सू'अल और बैरी और इमराह,
\v 37 बसर और हुद और सम्मा और सिलसा और इतरान और बैरा थे|
\v 38 और बनी यतर: युफ़न्ना और फ़िसफ़ाह और अरा थे|
\s5
\v 39 और बनी 'उल्ला: अरख़ और हनीएल और रिज़ियाह थे|
\v 40 यह सब बनी आशार, अपने आबाई ख़ानदानों के, चुने हुए रईस और ताक़तवर सूर्मा और अमीरों के सरदार थे|उन में से जो अपने नसबनामे के मुताबिक़ जंग करने के लायक़ थे वह शुमार में छब्बीस हज़ार जवान थे|
\s5
\c 8
\p
\v 1 और बिनयमीन से उसका पहलौठा बाला' पैदा हुआ, दूसरा और अशबेल, तीसरा अख़िरख़,
\v 2 चौथा नूहा और पाँचवाँ रफ़ा|
\v 3 औरे बाला' के बेटे अद्दार और जीरा और अबिहूद,
\v 4 और अबिसू' और ना'मान और अख़ूह,
\v 5 और जीरा और सफ़ूफ़ान और हूराम थे|
\s5
\v 6 और अहूत के बेटे यह हैं (यह जिबा' के बाशिंदों के बीच आबाई ख़ानदानों के सरदार थे, और इन्हीं को ग़ुलाम करके मुनाहत को ले गए थे|):
\v 7 या'नी नामान और अख़ियाह और और जीरा, यह इनको ग़ुलाम करके ले गया था, और उससे 'उज़्ज़ा और अख़ीहूद पैदा हुए|
\s5
\v 8 और सहरीम से, मोआब के मुल्क में अपनी दोनों बीवियों हुसीम और बा'राह को छोड़ देने के बा'द लड़के पैदा हुए,
\v 9 और उसकी बीवी हूदस के बत्न से यूबाब और ज़िबिया और मैसा और मलकाम,
\v 10 और य'ऊज़ और सिक्याह और मिरमा पैदा हुए| यह उसके बेटे थे जो आबाई ख़ानदानों के सरदार थे|
\v 11 और हुसीम से अबीतूब और इलफ़ा'ल पैदा हुए|
\s5
\v 12 और बनी इलफ़ा'ल: 'इब्र और मिश'आम और सामिर थे|इसी ने ओनू और लुद और उसके देहात को आबा'द किया|
\v 13 और बरि'आ और समा' भी जो अय्यलून के बाशिंदों के दरमियान आबाई ख़ानदानों के सरदार थे और जिन्होंने जात के बाशिंदों को भगा दिया|
\s5
\v 14 और अख़ियू, शाशक़ और यरीमोत,
\v 15 और ज़बदियाह और 'अराद और 'अदर,
\v 16 और मीकाएल और इस्फ़ाह और यूख़ा, जो बनी बरि'आ हैं|
\v 17 और ज़बदयाह और मुसल्लाम और हिज़क़ी और हिबर,
\v 18 और यसमरी और यज़लियाह और यूबाब जो बनी इलफ़ा'ल हैं|
\s5
\v 19 और यक़ीम और ज़िकरी और ज़बदी,
\v 20 और इली'ऐनी और ज़लती और इलिएल,
\v 21 और 'अदायाह और बरायाह और सिमरात, जो बनी सम'ई हैं|
\s5
\v 22 और इसफ़ान और 'इब्र और इलिएल,
\v 23 और 'अबदोन और ज़िकरी और हनान,
\v 24 औरे हनानियाह और ऐलाम और अंतूतियाह,
\v 25 और यफ़दियाह और फ़नूएल, जो बनी शाशक़ हैं|
\s5
\v 26 और समसरी और शहारियाह और 'अतालियाह,
\v 27 और या'रसियाह और इलियाह और ज़िकरी जो बनी यरोहाम हैं|
\v 28 यह अपनी नसलों में आबाई ख़ानदानों के सरदार और रईस थे और यरुशलीम में रहते थे|
\s5
\v 29 और जिबा'ऊन में जिबा'ऊन का बाप रहता था, जिसकी बीवी का नाम मा'का था|
\v 30 और उसका पहलौठा बेटा 'अबदोन, और सूर और क़ीस, और बा'ल और नदब,
\v 31 और जदूर और अख़ियू और ज़कर,
\s5
\v 32 और मिक़लोत से सिमाह पैदा हुआ, और वह भी अपने भाइयों के साथ यरुशलीम में अपने भाइयों के सामने रहते थे|
\v 33 और नयिर से क़ीस पैदा हुआ, क़ीस से साऊल पैदा हुआ, और साऊल से यहूनतन और मलकीशू और अबीनदाब और इशबा'ल पैदा हुए;
\v 34 और यहूनतन का बेटा मरीबबा'ल था, मरीबबा'ल से मीकाह पैदा हुआ|
\s5
\v 35 और बनी मीकाह: फ़ीतूँ और मलिक और तारी' और आख़ज़ थे|
\v 36 और आख़ज़ से यहू'अदा पैदा हुआ, और यहू'अदा से 'अलमत और 'अज़मावत और ज़िमरी पैदा हुए; और ज़िमरी से मौज़ा पैदा हुआ|
\v 37 और मौज़ा से बिन'आ पैदा हुआ; बिन'आ का बेटा राफ़ा', राफ़ा' का बेटा इली'असा, और इली'असा का बेटा असील,
\s5
\v 38 और असील के छ: बेटे थे जिनके नाम यह हैं: 'अज़रीकाम, बोकिरू, और इस्मा'ईल और सग़रियाह और 'अबदियाह और हनान; यह सब असील के बेटे थे|
\v 39 और उसके भाई 'ईशक़ के बेटे यह हैं: उसका पहलौठा औलाम, दूसरा य'ओस, तीसरा इलीफ़लत|
\v 40 और औलाम के बेटे ताक़तवर सूर्मा और तीरंदाज़ थे, और उसके बहुत से बेटे और पोते थे जो डेढ़ सौ थे| यह सब बनी बिन यमीन में से थे|
\s5
\c 9
\p
\v 1 फिर सारा इस्राईल नसबनामों के मुताबिक़ जो इस्राईल के बादशाहों की किताब में दर्ज हैं गिना गया और यहूदाह अपने गुनाहों की वजह से ग़ुलाम हो के बाबुल गया|
\v 2 और वह जो पहले अपनी मिल्कियत और अपने शहरों में बसे वह इस्राईल और काहिन और लावी और नतनीम थे|
\v 3 और यारुशलीम में बनी यहूदाह से और बनी बिनयमीन में से और बनी इफ़्राईम और मनस्सी में से यह लोग रहने लगे या'नी|
\s5
\v 4 'ऊती बिन 'अम्मीहूद बिन 'उमरी बिन इमरी बिन बानी जो फ़ारस बिन यहूदाह की औलाद में से था|
\v 5 और सैलानियों में से 'असायाह, जो पहलौठा था, और उसके बेटे|
\v 6 और बनी ज़ारह में से, य'ऊएल और उनके छ: सौ नव्वे भाई|
\s5
\v 7 और बनी बिन यमीन में से सल्लू बिन मुसल्लाम बिन हुदावियाह बिन हसीनुवाह,
\v 8 और इब नियाह बिन यरुहाम औरे ऐला बिन 'उज़्ज़ी बिन बिन मिकरी और मुसल्लाम बिन सफ़तियाह बिन र'ऊएल बिन इबनियाह,
\v 9 और उनके भाई जो अपने नसबनामों के मुताबिक़ नौ सौ छप्पन थे| यह सब आदमी अपने अपने आबाई ख़ानदान के आबाई ख़ानदानों के सरदार थे|
\s5
\v 10 और काहिनों में से यद'अइयाह और यहुयरीब और यकीन,
\v 11 और अज़रियाह बिन ख़िलक़ियाह बिन मुसल्लाम बिन सदोक़ बिन मिरायोत बिन अख़ीतोब, जो ख़ुदा के घर का नाज़िम था|
\s5
\v 12 और 'अदायाह बिन यरोहाम बिन फ़शहूर बिन मलकियाह, और मासी बिन 'अदीइएल बिन याहज़ीराह बिन मुसल्लाम बिन मुसलमीत बिन इम्मेर,
\v 13 और उनके भाई अपने आबाई ख़ानदानों के रईस एक हज़ार सात सौ आठ थे जो ख़ुदा के घर की ख़िदमत के काम के लिए बड़े क़ाबिल आदमी थे|
\s5
\v 14 और लावियों में से यह थे: समा'याह बिन हसूब बिन 'अज़रीक़ाम बिन हसबियाह बनी मिरारी में से,
\v 15 और बक़बक़र, हरस और जलाल और मतनियाह बिन मीकाह बिन ज़िकरी बिन आसफ़,
\v 16 और 'अबदियाह बिन समा'याह बिन जलाल बिन यदूतून, और बरकियाह बिन आसा बिन इल्क़ाना, जो नतूफ़ातियों के देहात में बस गए थे|
\s5
\v 17 और दरबानों में से सलोम और 'अक़्क़ूब और तलमून अख़ीमान और उनके भाई; सलूम सरदार था|
\v 18 वह अब तक शाही फाटक पर मशरिक़ की तरफ़ रहे| बनी लावी की छावनी के दरबान यही थे|
\v 19 और सलोम बिन क़ोरे बिन अबीआसफ़ बिन क़ोरह और उसके आबाई ख़ानदान के भाई या'नी क़ोरही, ख़िदमत की कारगुज़ारी पर त'इनात थे, और ख़ेमे के फाटकों के निगहबान थे|उनके बाप दादा ख़ुदावन्द की लश्कर गाह पर तैनात और मदख़ल के निगहबान थे|
\s5
\v 20 और फ़ीनहास बिन इली'अज़र इस से पहले उनका सरदार था, और ख़ुदावन्द उसके साथ था|
\v 21 ज़करियाह बिन मुसलमियाह ख़ेमा इज्तिमा'अ के दरवाज़े का निगहबान था|
\s5
\v 22 यह सब जो फाटकों के दरबान होने को चुने गए दो सौ बारह थे| यह जिनको दाऊद और समुएल ग़ैब बीन ने इनको ओहदे पर मुक़र्रर किया था अपने नसबनामे के मुताबिक़ अपने अपने गाँव में गिने गए थे|
\v 23 फिर वह और उनके बेटे ख़ुदावन्द के घर या'नी मसकन के घर के फाटकों की निगरानी बारी बारी से करते थे|
\v 24 और दरबान चारों तरफ़ थे या'नी पूरब, पश्चिम, उत्तर, और दखखिन की तरफ़|
\s5
\v 25 और उनके भाई जो अपने अपने गाँव में थे उनको सात सात दिन के बा'द बारी-बारी उनके साथ रहने को आना पड़ता था|
\v 26 क्यूँकि चारों सरदार दरबान जो लावी थे ख़ास ओहदों पर मुक़रर्र थे और ख़ुदा के घर की कोठरियों और ख़ज़ानों पर मुक़र्रर थे|
\v 27 और वह ख़ुदा के घर के आस-पास रहा करते थे क्यूँकि उसकी निगहबानी उनके ज़िम्मे थी और हर सुबह को उसे खोलना उनके ज़िम्मे था|
\s5
\v 28 और उनमें से कुछ की तहवील में 'इबा'दत के बर्तन थे क्यूँकि वह उनको गिन कर अन्दर लाते और गिन कर निकालते थे|
\v 29 और कुछ उनमें से सामान और मक़्दिस के सब बर्तनों और और मैदा और मय और तेल और लुबान और ख़ुशबूदार मसाल्हे पर मुक़र्रर थे|
\s5
\v 30 और काहिनों के बेटों में से कुछ ख़ुशबूदार मसाल्हे का तेल तैयार करते थे|
\v 31 और लावियों में से एक शख़्स मत्तितियाह जो क़ुरही सलूम का पहलौठा था, उन चीज़ों पर ख़ास तौर पर मुक़र्रर था जो तवे पर पकाई जाती थीं|
\v 32 और उनके कुछ भाई जो क़िहातियों की औलाद में से थे, नज़्र की रोटियों पर तैनात थे कि हर सब्त को उसे तैयार करें|
\s5
\v 33 और यह वह हम्द करने वाले हैं जो लावियों के आबाई ख़ानदानों के सरदार थे और कोठरियों में रहते और और ख़िदमत से मा'ज़ूर थे, क्यूँकि वह दिन रात अपने काम में मशग़ूल रहते थे|
\v 34 यह अपनी अपनी नसलों में लावियों के आबाई ख़ानदानों के सरदार और रईस थे; और यरुशलीम में रहते थे|
\s5
\v 35 और जिबा'ऊन में जिबा'ऊन का बाप य'ईएल रहता था, जिसकी बीवी का नाम मा'का था,
\v 36 और उसका पहलौठा बेटा 'अबदोन, और सूर और क़ीसऔर बा'ल और नयिर और नदब,
\v 37 और जदूर और अख़ियू और ज़करियाह और मिक़लोत;
\s5
\v 38 मिक़लोत से सिम'आम पैदा हुआ, और वह भी अपने भाइयों के साथ यरुशलीम में अपने भाइयों के सामने रहते थे|
\v 39 और नयिर से क़ीस पैदा हुआ और क़ीस से साऊल पैदा हुआ और साऊल से यूनतन और मलकीशू'अ और अबीनदाब और इशबा'ल पैदा हुए|
\v 40 और यूनतन का बेटा मरीबबा'ल था और मरीबबा'ल से मीकाह पैदा हुआ|
\s5
\v 41 और मीकाह के बेटे फ़ीतून और मलिक और तहरी' और आख़ज़ थे;
\v 42 और आख़ज़ से या'रा पैदा हुआ, और या'रा से 'अलमत और अज़मावत और ज़िमरी पैदा हुए, और ज़िमरी से मौज़ा पैदा हुआ|
\v 43 और मौज़ा से बिन'आ पैदा हुआ, बिन'आ का बेटा रिफ़ायाह, रिफ़ायाह का बेटा इली'असा, इली'असा का बेटा असील,
\v 44 और असील के छ: बेटे थे और यह उनके नाम हैं: 'अज़रक़ाम, बोकिरू, और इस्मा'ईल और सग़रियाह और 'अबदियाह और हनान, यह बनी असील थे|
\s5
\c 10
\p
\v 1 और फ़िलिस्ती इस्राईल से लड़े और इस्राईल के लोग फ़िलिस्तियों के आगे से भागे और पहाड़ी जिल्बू'आ में क़त्ल हो कर गिरे|
\v 2 और फ़िलिस्तियों ने साऊल का और उसके बेटों का ख़ूब पीछा किया और फ़िलिस्तियों ने यूनतन और अबीनदाब और मलकीशू'अ को जो साऊल के बेटे थे क़त्ल किया|
\v 3 और साऊल पर जंग दोबर हो गयी और तीरंदाज़ों ने उसे पा ~लिया और वह तीरंदाज़ों की वजह से परेशान था|
\s5
\v 4 तब साऊल ने अपने सिलाहबरदार से कहा, अपनी तलवार खींच और उससे मुझे छेद दे ऐसा न हो कि यह नामख़्तून आकर मेरी बे 'इज़्ज़ती करें|"लेकिन उसके सिलाहबरदार ने न माना, क्यूँकि वह बहुत डर गया|तब साऊल ने अपनी तलवार ली और उस पर गिरा|
\s5
\v 5 जब उसके सिलाहबरदार ने देखा कि साऊल मर गया तो वह भी तलवार पर गिरा और मर गया|
\v 6 तब साऊल मर गया और उसके तीनों बेटे भी और उसका सारा ख़ानदान एक साथ मर मिटा|
\s5
\v 7 जब सब इस्राईली लोगों ने जो वादी में थे देखा कि लोग भाग निकले और साऊल और उसके बेटे मर गए हैं, तो वह अपने शहरों को छोड़कर भाग गए और फ़िलिस्ती आकर उनमें बसे|
\v 8 और दूसरे दिन सुबह को जब फ़िलिस्ती मक़्तूलों को नंगा करने आये, तो उन्होंने साऊल और उसके बेटों को कोहे जिल्बू'आ पर पड़े पाया|
\s5
\v 9 तब उन्होंने उसको नंगा किया और उसका सिर और उसके हथियार ले लिए, और फ़िलिस्तियों के मुल्क में चारों तरफ़ लोग रवाना कर दिए ताकि उनके बुतों और लोगों के पास उस ख़ुशख़बरी को पहुँचायें|
\v 10 और उन्होंने उसके हथियारों को अपने मा'बूदों के मंदिर में रख्खा और उसके सिर को दजून के मंदिर में लटका दिया|
\s5
\v 11 जब यबीस जिल'आद के सब लोगों ने, जो कुछ फ़िलिस्तियों ने साऊल से किया था सुना|
\v 12 तो उनमें के सब बहादुर उठे और साऊल की लाश और उसके बेटों की लाशें लेकर उनको यबीस में लाये, और उनकी हड्डियों को यबीस के बलूत के नीचे दफ़्न किया और सात दिन तक रोज़ा रख्खा|
\s5
\v 13 फिर साऊल अपने गुनाह की वजह से, जो उसने ख़ुदावन्द के सामने किया था मरा; इसलिए कि उसने ख़ुदावन्द की बात न मानी, और इसलिए भी कि उससे मशविरा किया जिसका यार जिन्न था, ताकि उसके ज़रि'ए से दरियाफ़्त करे|
\v 14 और उसने ख़ुदावन्द से दरियाफ़्त न किया| इसलिए उसने उसको मार डाला और हुकूमत यस्सी के बेटे दाऊद की तरफ़ बदल दी|
\s5
\c 11
\p
\v 1 तब सब इस्राईली हबरून में दाऊद के पास जमा' होकर कहने लगे, देख हम तेरी ही हड्डी और तेरा ही गोश्त हैं|
\v 2 और गुज़रे ज़माने में उस वक़्त भी जब साऊल बादशाह था, तू ही ले जाने और ले आने में इस्राईलियों का रहबर था; और ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझे फ़रमाया, 'तू मेरी क़ौम इस्राईल की गल्लेबानी करेगा, और तू ही मेरी क़ौम इस्राईल का सरदार होगा|"
\v 3 ग़रज़ इस्राईल के सब बुज़ुर्ग हबरून में बादशाह के पास आये, और दाऊद ने हबरून में उनके साथ ख़ुदावन्द के सामने ~'अहद किया; और उन्होंने ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ जो समूएल की ज़रिए' फ़रमाया था, दाऊद को मम्सूह किया ताकि इस्राईलियों का बादशाह हो|
\s5
\v 4 और दाऊद और तमाम इस्राईली यरुशलीम को गए (यबूस यही है), और उस मुल्क के बाशिंदे यबूसी वहाँ थे|
\v 5 और यबूस के बाशिंदों ने दाऊद से कहा कि तू यहाँ आने न पाएगा तोभी दाऊद ने सिय्यून का क़िला' ले लिया, यही दाऊद का शहर है|
\v 6 और दाऊद ने कहा, जो कोई पहले यबूसियों को मारे वह सरदार और सिपहसालार होगा|" और योआब बिन ज़रुयाह पहले चढ़ गया और सरदार बना|
\s5
\v 7 और दाऊद क़िले' में रहने लगा, इसलिए उन्होंने उसका नाम दाऊद का शहर रख्खा|
\v 8 और उसने शहर को चारों तरफ़ या'नी मिल्लो से लेकर चारों तरफ़ बनाया और योआब ने बाक़ी शहर की मरम्मत की|
\v 9 और दाऊद तरक़्क़ी पर तरक़्क़ी करता गया, क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज़ उसके साथ था|
\s5
\v 10 और दाऊद के सूर्माओं के सरदार यह हैं, जिन्होंने उसकी हुकूमत में सारे इस्राईल के साथ उसे मज़बूती दी ताकि जैसा ख़ुदावन्द ने इस्राईल के हक़ में कहा था उसे बादशाह बनाएँ|
\v 11 दाऊद के सूर्माओं का शुमार यह है: यसुबि'आम बिन हकमूनी जो तीसों का सरदार था| उने तीन सौ पर अपना भाला चलाया और ~उनको एक ही वक़्त में क़त्ल किया|
\s5
\v 12 उसके बा'द अख़ूहीदोदो का बेटा इली'अज़र था जो उन तीनों सूर्माओं में से एक था|
\v 13 वह दाऊद के साथ फ़सदम्मीम में था जहाँ फ़िलिस्ती जंग करने को जमा' हुए थे|वहाँ ज़मीन का टुकड़ा जौ से भरा हुआ था, और लोग फ़िलिस्तियों के आगे से भागे|
\v 14 तब उन्होंने उस ज़मीन क्व टुकड़े के बीच में खड़े हो कर उसे बचाया और फ़िलिस्तियों को क़त्ल किया और ख़ुदावन्द ने बड़ी फ़तह देकर उनको रिहा बख़्शी|
\s5
\v 15 और उन तीसों सरदारों में से तीन, दाऊद के साथ थे उस चट्टान पर या'नी अदुल्लाम के मुग़ारे में उतर गए, और फ़िलिस्तियों की फ़ौज रिफ़ाईम की वादी में ख़ेमाज़न थी|
\v 16 और दाऊद उस वक़्त गढ़ी में था और फ़िलिस्तियों की चौकी उस वक़्त बैतलहम में थी|
\v 17 और दाऊद ने तरस कर कहा, ऐ काश कोई बैतलहम के उस कुँए का पानी जो फाटक के क़रीब है, मुझे पीने को देता!"
\s5
\v 18 तब वह तीनों फ़िलिस्तियों की सफ़ तोड़ कर निकल गए और बैतलहम के उस कुँए में से जो फाटक के क़रीब है पानी भर लिया और उसे दाऊद के पास लाये लेकिन दाऊद ने न चाहा कि उसे पिए बल्कि उसे ख़ुदावन्द के लिए तपाया|
\v 19 और कहने लगा कि ख़ुदा न करे कि मैं ऐसा करूँ| क्या मैं इन लोगों का ख़ून पियूँ जो अपनी जानों पर खेले ~हैं? क्यूँकि वह जानबाज़ी कर के उसको लाये हैं| तब ~उसने न पिया| वह तीनों सूर्मा ऐसे ऐसे काम करते थे|
\s5
\v 20 और योआब का भाई अबीशै तीनों का सरदार था| उसने तीन सौ पर भाला चलाया और उनको मार डाला|वह इन तीनों में मशहूर था|
\v 21 यह तीनों में ~उन दोनों से ज़्यादा ख़ास था और उनका सरदार बना, लेकिन उन पहले तीनों के दर्जे को न पहुँचा|
\s5
\v 22 और बिनायाह बिन यहूयदा' एक क़बज़िएली सूर्मा था जिसने बड़ी बहादुरी के काम किये थे; उसने मोआब के अरिएल के दोनों बेटों को क़त्ल किया, और जाकर बर्फ़ के मौसम में एक गढ़े के बीच एक शेर को मारा|
\v 23 और उसने पाँच हाथ के एक क़दआवर मिस्री को क़त्ल किया हालाँकि उस मिस्री के हाथ में जुलाहे के शहतीर के बराबर एक भाला था, लेकिन वह एक लाठी लिए हुए उसके पास गया और भाले को उस मिस्री के हाथ से छीन कर उसी के भाले से उसको क़त्ल किया|
\s5
\v 24 यहुयदा के बेटे बिनायाह ने ऐसे ऐसे काम किये और वह उन तीनों सूर्माओं में नामी था|
\v 25 वह उन तीसों से मु'अज़्ज़िज़ था, लेकिन पहले तीनों के दर्जे को न पहुँचा| और दाऊद ने उसे मुहाफ़िज़ सिपाहियों का सरदार बनाया|
\s5
\v 26 और लश्करों में सूर्मा यह थे: योआब का भाई 'असाहेल और बैतलहमी दोदो का बेटा इलहनान,
\v 27 और सम्मोत हरूरी, ख़लिसफ़लूनी,
\v 28 तक़ू'अ, 'इक़्क़ीस, का बेटा 'ईरा, अबी'अज़र 'अन्तोती,
\v 29 सिब्बकी हुसाती, 'एली अख़ूही,
\s5
\v 30 महरी नतूफ़ाती, हलिद बिन बा'ना नतूफ़ाती,
\v 31 बनी बिनयमीन के जिब'आ के रीबी का बेटा इत्ती, बिनायाह फ़िर'आतोनी,
\v 32 जा'स की नदियों का बाशिंदा हूरी, अबिएल 'अरबाती,
\v 33 'अज़मावत बहरूमी, इल्याहबा सा'लबूनी,
\s5
\v 34 बनी हशीम जिज़ूनी, हरारी शजी का बेटा यूनतन,
\v 35 और हरारी सक्कार का बेटा अख़ीआम, इलिफ़ाल बिन ऊर,
\v 36 हिफ़्र मकीराती, अख़ियाह फ़लूनी,
\v 37 हसरू कर्मिली, नग़री बिन अज़बी,
\s5
\v 38 नातन कला भाई यूएल, मिबख़ार बिन हाजिरी,
\v 39 सिलक़ 'अम्मूनी, नहरी बैरोती जो योहाब बिन ज़रूयाह का सिलाहबरदार था,
\v 40 'ईरा ईत्री, जरीब ईत्री,
\v 41 ऊरियाह हित्ती, ज़बद बिन अख़ली,
\s5
\v 42 सीज़ा रुबीनी का बेटा 'अदीना रूबीनियों का एक सरदार जिसके साथ तीस जवान थे,
\v 43 हनान बिन मा'का, यूसफ़त मितनी,
\v 44 'उज़्ज़ियाह 'इस्ताराती, ख़ूताम 'अरो'ईरी के बेटे समा'अ और य'ईएल,
\s5
\v 45 यदी'एलबिन सिमरी और उसका भाई यूख़ा तीसी,
\v 46 इलीएल महावी, और इलाना'म के बेटे यरीबी और यूसावियाह, और यितमा मोआबी,
\v 47 इली'एल, और 'ओबेद, और या'सीएल मज़ूबाई|
\s5
\c 12
\p
\v 1 यह वह हैं जो सिक़लाज में दाऊद के पास आये जब कि वह हनूज़ क़ीस के बेटे साऊल की वजह से छिपा रहता था, और उन सूर्माओं में थे जो लड़ाई में उसके मददगार थे|
\v 2 उनके पास कमाने थीं, और वह गु़फान से पत्थर मारते और कमान से तीर चलाते वक़्त दहने और बाएं दोनों हाथों को काम में ला सकते थे और साऊल के बिनयमीनी भाइयों में से थे|
\s5
\v 3 अख़ी'अज़र सरदार था| फिर यूआस बनी समा'आ जिब'आती और यज़ीएल और फ़लत जो अज़मावत के बेटे थे और बराक और याहू 'अन्तोती,
\v 4 और इसमा'ईया जिबा'ऊनी जो तीसों में सूर्मा और तीसों का सरदार था; और यरमियाह और यहज़ीएल और युहनान और यूज़बा'द जदीराती,
\s5
\v 5 इल'ओज़ी और यरीमोत और बा'लियाह और समरियाह और सफ़तियाह ख़रूफ़ी,
\v 6 इलक़ाना और यसियाह और 'अज़रिएल और यू'अज़र और यसूबि'आम जो क़ुरही थे|
\v 7 और यू'ईला और ज़बदियाह जो यरोहाम जदूरी के बेटे थे|
\s5
\v 8 और जद्दियों में से बहुत से अलग होकर बियाबान के क़िले में दाऊद के पास आ गए; वह ताक़तवर सूर्मा और जंग में माहिर ~लोग थे, जो ढाल और बर्छी का इस्ते'माल जानते थे| उनकी सूरतें ऐसीं थीं जैसी शेरों की सूरतें और वह पहाड़ों पर हिरनियों की तरह तेज़ दौड़ते थे:
\s5
\v 9 अव्वल 'अज़र था, 'अबदियाह दूसरा, इलीयाब तीसरा,
\v 10 मिसमन्ना चौथा, यरमियाह पाँचवाँ,
\v 11 'अत्ती छठा, इलीएल सातवाँ,
\v 12 यूहनान आठवाँ, इलज़बा'द नवाँ,
\v 13 यरमियाह दसवाँ, मकबानी ग्यारहवाँ|
\s5
\v 14 यह बनी जद में सरलश्कर थे| इनमें सबसे छोटा सौ के बराबर और सबसे बड़ा हज़ार के बराबर था|
\v 15 यह वह हैं जो पहले महीने में यरदन के पार गए जब उसके सब किनारे डूबे हुए थे और उन्होंने वादियों के सब लोगों को पूरब और पश्चिम की तरफ़ भगा दिया|
\s5
\v 16 बनी बिनयमीन और याहूदाह में से कुछ लोग क़िले' में दाऊद के पास आये|
\v 17 तब दाऊद उनके इस्तक़बाल को निकला और उनसे कहने लगा, अगर तुम नेक नियती से मेरी मदद के लिए मेरे पास आये हो तो मेरा दिल तुमसे मिला रहेगा लेकिन अगर मुझे मेरे दुश्मनों के हाथ में पकड़वाने आये हो हालाँकि मेरा हाथ ज़ुल्म से पाक है तो हमारे बाप दादा का ख़ुदा यह देखे और मलामत करे|"
\s5
\v 18 तब रूह 'अमासी पर नाज़िल हुई और जो उन तीसों का सरदार था और वह कहने लगा, हम तेरे हैं, ऐ दाऊद! और हम तेरी तरफ़ हैं, ऐ यस्सी के बेटे! सलामती तेरी सलामती, और तेरे मददगारों की सलामती हो, क्यूँकि तेरा ख़ुदा तेरी मदद करता है|"तब दाऊद ने उनको क़ुबूल किया और उनको फ़ौज का सरदार बनाया|
\s5
\v 19 और मनस्सी में से कुछ लोग दाऊद से मिल गए जब वह साऊल के मुक़ाबिल जंग के लिए फ़िलिस्तियों के साथ निकला, लेकिन उन्होंने उनकी मदद न की क्यूँकि फ़िलिस्तियों के हाकिमों ने सलाह कर के उसे लौटा दिया और कहने लगे कि वह हमारे सिर काटकर अपने आक़ा साऊल से जा मिलेगा|
\v 20 जब वह सिक़लाज को जा रहा था मनस्सी में से 'अदना और यूज़बा'द और यदी'एल और मीकाएल और यूज़बा'द और इलीहू और ज़िलती जो बनी मनस्सी में हज़ारों के सरदार थे उससे मिल गए|
\s5
\v 21 उन्होंने ग़ारतगरों के जत्थे के मुक़ाबिले में दाऊद की मदद की क्यूँकि वह सब ताक़तवर सूर्मा और लश्कर के सरदार थे|
\v 22 बल्कि रोज़-ब-रोज़ लोग दाऊद के पास उसकी मदद को आते गए, यहाँ तक कि ख़ुदा की फ़ौज की तरह एक बड़ी फ़ौज तैयार हो गयी|
\s5
\v 23 और जो लोग जंग के लिए हथियार बाँध कर हबरून में दाऊद के पास आये ताकि ख़ुदावन्द की बात के मुताबिक़ साऊल की ममलुकत को उसकी तरफ़ बदल दें, उनका शुमार यह है|
\v 24 बनी यहूदाह छ: हज़ार आठ सौ, जो ढाल और नेज़ा लिए हुए जंग के लिए तैयार थे|
\v 25 बनी शमा'ऊन में से जंग के ले लिए सात हज़ार एक सौ ताक़तवर सूर्मा'
\s5
\v 26 बनी लावी में से चार हज़ार छ: सौ|
\v 27 और यहूयदा' हारूनियों का सरदार था और उसके साथ तीन हज़ार सात सौ थे|
\v 28 और सदोक़, एल जवान सूर्मा और उसके आबाई घराने के बाइस सरदार|
\s5
\v 29 और साऊल के भाई बनी बिनयमीन में से तीन हज़ार लेकिन उस वक़्त तक उनका बहुत बड़ा हिस्सा साऊल के घराने का तरफ़दार था|
\v 30 और बनी इफ़्राईम में से बीस हज़ार आठ सौ ताक़तवर सूर्मा जो अपने आबाई ख़ानदानों में नामी आदमी थे|
\v 31 और मनस्सी के आधे क़बीले से अठारह हज़ार, जिनके नाम बताये गए थे कि अगर दाऊद को बादशाह बनायें|
\s5
\v 32 और बनी इश्कार में से ऐसे लोग जो ज़माने को समझते और जानते थे कि इस्राईल को क्या करना मुनासिब है उनके सरदार दो सौ थे और उनके सब भाई उनके हुक्म में थे|
\v 33 और जबूलून में से ऐसे लोग मैदान में जाने और हर क़िस्म की जंगी हथियार के साथ मैदान ए जंग ~के क़ाबिल थे, पचास हज़ार| यह सफ़आराई करना जानते थे और दो दिले न थे|
\s5
\v 34 और नफ़्ताली में से एक हज़ार सरदार और उनके साथ सैंतीस हज़ार ढालें और भाले लिए हुए|
\v 35 और दानियों में से अट्ठाईस हज़ार छ: सौ मैदान ए जंग ~करने वाले|
\s5
\v 36 और आशर में से चालीस हज़ार जो मैदान में जाने और मा'रका आराई के क़ाबिल थे|
\v 37 और यरदन के पार के रुबीनियों और जद्दियों और मनस्सी के आधे क़बीले में से एक लाख बीस हज़ार जिनके साथ लड़ाई के लिए हर क़िस्म के जंगी हथियार थे|
\s5
\v 38 यह सब जंगी मर्द जो मैदान ए जंग ~कर सकते थे ख़ुलूस-ए-दिल से हबरून को आये ताकि दाऊद को सारे इस्राईल का बादशाह बनायें और बाक़ी सब इस्राईली भी दाऊद को बादशाह बनाने पर रज़ामंद थे|
\v 39 और वह वहाँ दाऊद के साथ तीन दिन तक ठहरे और खाते पीते रहे, क्यूँकि उनके भाइयों ने उनके लिए तैयारी की थी|
\v 40 इसकेअलावा इनके जो उनके क़रीब के थे बल्कि इश्कार और जबलून और नफ़्ताली तक के लोग गधों और ऊँटों और ख़च्चरों और बैलों पर रोटियाँ और मैदे की बनी हुई खाने की चीज़ें और अंजीर की टिकियाँ| और किशमिश के गुच्छे और शराब और तेल लादे हुए और बैल और भेड़ बकरियाँ इफ़रात से लाये इसलिए कि इस्राईल में ख़ुशी थी|
\s5
\c 13
\p
\v 1 और दाऊद उन सरदारों से जो हज़ार हज़ार और सौ सौ पर थे या'नी हर एक लश्कर के शख़्स से सलाह ली|
\v 2 और दाऊद ने इस्राईल की सारी जमा'अत से कहा कि मर्ज़ी हो तो आओ हम हर जगह इस्राईल के सारे मुल्क में अपने बाक़ी भाइयों को जिनके साथ काहिन और लावी भी अपने नवाहीदार शहरों में रहते हैं, कहला भेजें ताकि वह हमारे पास जमा' हों,
\v 3 और हम अपने ख़ुदा के सन्दूक़ फिर अपने पास ले आयें क्यूँकि हम साऊल के दिनों में उसके तालिब न हुए|
\v 4 तब सारी जमा'अत बोल उठे कि हम ऐसा ही करेंगे क्यूँकि यह बात सब लोगों की निगाह में ठीक थी|
\s5
\v 5 तब दाऊद ने मिस्र की नदी सीहूर से हमात के मदख़ल तक के सारे इस्राईल को जमा' किया, ताकि ख़ुदा का सन्दूक़ को क़रयत या'रीम से ले आयें|
\v 6 और दाऊद और सारा इस्राईल बा'ला को या'नी क़रयतया'रीम को जो यहूदाह में है गए, ताकि ख़ुदा के सन्दूक़ को वहाँ ले आयें, जो क़रूबियों पर बैठने वाला ख़ुदावन्द है और इस नाम से पुकारा जाता है|
\s5
\v 7 और वह ख़ुदा के सन्दूक़ को एक नयी पर गाड़ी रख कर अबीनदाब के घर से बाहर निकाल लाये, और 'उज़्ज़ा और अख़ियू गाड़ी को हाँक रहे थे|
\v 8 और दाऊद और सारा इस्राईल, ख़ुदा के आगे बड़े ज़ोर सेहम्द करते और बरबत और सितार और दफ़ और झांझ और तुरही बजाते चले आते थे|
\s5
\v 9 और जब वह कीदून के खलिहान पर पहुँचे, तो 'उज़्ज़ा ने सन्दूक़ के थामने को अपना बढ़ाया, क्यूँकि बैलों ने ठोकर खायी थी|
\v 10 तब ख़ुदावन्द का क़हर 'उज़्ज़ा पर भड़का और उसने उसको मार डाला इसलिए कि उसने अपना हाथ सन्दूक़ पर बढ़ाया था और वह वहीँ ख़ुदा के सामने मर गया|
\v 11 तब दाऊद उदास हुआ, इसलिए कि ख़ुदा 'उज़्ज़ा पर टूट पड़ा और उसने उस मुक़ाम का नाम परज़ 'उज़्ज़ा रख्खा जो आज तक है|
\s5
\v 12 और दाऊद उस दिन ख़ुदा से डर गया और कहने लगा कि मैं ख़ुदा के सन्दूक़ को अपने यहाँ क्यूँ कर लाऊँ ?
\v 13 इसलिए दाऊद सन्दूक़ को अपने यहाँ दाऊद के शहर में न लाया बल्कि उसे बाहर ही जाती 'ओबेदअदोम के घर में ले गया
\v 14 तब ख़ुदा का सन्दूक़ 'ओबेदअदोम के घराने के साथ उसके घर में तीन महीने तक रहा, और ख़ुदावन्द ने 'ओबेदअदोम और उसकी सब चीज़ों को बरकत दी|
\s5
\c 14
\p
\v 1 और सूर के बादशाह हीराम ने दाऊद के क़ासिद और उसके लिए महल बनाने के लिए देवदार के लट्ठे और राजगीर और बढ़ई भेजे|
\v 2 और दाऊद जान गया कि ख़ुदावन्द ने उसे बनी-इस्राईल का बादशाह बना कर क़ायम कर दिया है, क्यूँकि उसकी हुकूमत उसके इस्राईली लोगों की ख़ातिर मुम्ताज़ की गई थी|
\s5
\v 3 और दाऊद ने यरुशलीम में और 'औरतें ब्याह लीं, और उससे और बेटे बेटियाँ पैदा हुए|
\v 4 और उसके उन बच्चों के नाम जो यरुशलीम में पैदा हुए यह हैं: सम्मू'अ और सोबाब और नातन और सुलेमान,
\v 5 और इब्हार और इलिसू'अ और इलफ़ालत,
\v 6 और नौजा और नफ़ज और यफ़ी'आ,
\v 7 और इलिसमा' और और बा'लयद'अ और इलीफ़ालत|
\s5
\v 8 और जब फ़िलिस्तियों ने सुना कि दाऊद मम्सूह होकर सारे इस्राईल का बादशाह बना है तो सब फ़िलिस्ती दाऊद की तलाश में चढ़ आये और दाऊद यह सुनकर उनके मुक़ाबिले को निकला|
\v 9 और फ़िलिस्तियों ने आकर रिफ़ाईम की वादी में धावा मारा|
\s5
\v 10 तब दाऊद ने ख़ुदा से सवाल किया, क्या मैं फ़िलिस्तियों पर चढ़ जाऊँ? क्या तू उनको मेरे हाथ में कर देगा?" ख़ुदावन्द ने उसे फ़रमाया, चढ़ जा क्यूँकि मैं उनको तेरे हाथ में कर दूँगा|"
\v 11 तब वह बा'ल पराज़ीम में आये और दाऊद ने वहीं उनको मारा और दाऊद ने कहा, ख़ुदा ने मेरे हाथ से दुश्मनों को ऐसा चीरा, जैसे पानी चाक चाक हो जाता है|" इस वजह से उन्होंने उस मक़ाम का नाम बा'ल पराज़ीम रख्खा|
\v 12 और वह अपने बुतों को वहाँ छोड़ गए, और वह दाऊद के हुक्म से आग में जला दिए गए|
\s5
\v 13 और फ़िलिस्तियों ने फिर उस वादी में धावा मारा|
\v 14 और दाऊद ने फिर ख़ुदा से सवाल किया, और ख़ुदा ने उससे कहा, तू उनका पीछा न कर, बल्कि उनके पास से कतरा कर निकल जा, और तूत के पेड़ों के सामने से उन पर हमला कर|
\s5
\v 15 और जब तू तूत के दरख़्तों की फुन्गियों पर चलने की जैसी आवाज़ सुने, तब लड़ाई को निकलना क्यूँकि ख़ुदा तेरे आगे आगे फ़िलिस्तियों के लश्कर को मारने के लिए निकला है|"
\v 16 और दाऊद ने जैसा ख़ुदा ने उसे फ़रमाया था किया और उन्होंने फ़िलिस्तियों की फ़ौज को जिबा'ऊन से जज़र तक क़त्ल किया|
\v 17 और दाऊद की शोहरत सब मुल्कों में फ़ैल गई, और ख़ुदावन्द ने सब क़ौमों पर उसका ख़ौफ़ बिठा दिया|
\s5
\c 15
\p
\v 1 और दाऊद ने दाऊद के शहर में अपने लिए महल बनाए, और ख़ुदा के सन्दूक़ के लिए एक जगह तैयार करके उसके लिए एक ख़ैमा खड़ा किया।
\v 2 तब दाऊद ने कहा कि लावियों के 'अलावा और किसी को ख़ुदा के सन्दूक़ को उठाना नहीं चाहिए, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उन्हीं को चुना है कि ख़ुदा सन्दूक़ को उठाएँ और हमेशा उसकी ख़िदमत करें।
\v 3 और दाऊद ने सारे इस्राईल को यरूशलीम में जमा' किया, ताकि ख़ुदावन्द के सन्दूक़ को उस जगह जो उसने उसके लिए तैयार की थी ले आएँ।
\s5
\v 4 और दाऊद ने बनी हारून को और लावियों को इकट्ठा किया:
\v 5 या'नी बनी क़िहात में से, ऊरीएल सरदार और उसके एक सौ बीस भाइयों को;
\v 6 बनी मिरारी में से, 'असायाह सरदार और उसके दो सौ बीस भाइयों को;
\s5
\v 7 बनी जैरसोम में से, यूएल सरदार और उसके एक सौ तीस भाइयों को;
\v 8 बनी इलीसफ़न में से, समायाह सरदार और उसके दो सौ भाइयों को;
\v 9 बनी हबरून में से, इलीएल सरदार और उसके अस्सी भाइयों को;
\v 10 बनी उज़्ज़ीएल में से, 'अम्मीनदाब सरदार और उसके एक सौ बारह भाइयों को।
\s5
\v 11 और दाऊद ने सदोक़ और अबियातर काहिनों की, और ऊरिएल और 'असायाह और यूएल और समायाह और इलीएल और 'अम्मीनदाब लावियों को बुलाया,
\v 12 और उनसे कहा कि तुम लावियों के आबाई ख़ान्दानों के सरदार हो; तुम अपने आपको पाक करो, तुम भी और तुम्हारे भाई भी, ताकि तुम ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के सन्दूक़ को उस जगह जो मैंने उसके लिए तैयार की है ला सको।
\s5
\v 13 क्यूँकि जब तुम ने पहली बार उसे न उठाया, तो ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा हम पर टूट पड़ा, क्यूँकि हम क़ानून के मुताबिक़ उसके तालिब नहीं हुए थे।
\v 14 तब काहिनों और लावियों ने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के सन्दूक़ को लाने के लिए अपने आपको पाक किया।
\v 15 और बनी लावी ने ख़ुदा के सन्दूक़ को, जैसा मूसा ने ख़ुदावन्द के कलाम के मुवाफ़िक हुक्म किया था, कड़ियों से अपने कन्धों पर उठा लिया।
\s5
\v 16 और दाऊद ने लावियों के सरदारों को फ़रमाया कि अपने भाइयों में से हम्द करने वालों को मुक़र्रर करें कि मूसीक़ी के साज़, या'नी सितार और बरबत और झाँझ बजाएं और आवाज़ बुलन्द करके ख़ुशी से गाएँ।
\v 17 ~तब लावियों ने हैमान बिन यूएल को मुक़र्रर किया, और उसके भाइयों में से आसफ़ बिन बरकियाह को, और उनके भाइयों बनी मिरारी में से ऐतान बिन कौसियाह को;
\v 18 और उनके साथ उनके दूसरे दर्जे के भाइयों या'नी ज़करियाह, बीन और या'ज़िएल और सिमीरामोत और यहिएल और उन्नी और इलियाब और बिनायाह और मासियाह और मतितियाह और इलीफ़लहू और मिक़िनियाह और 'ओबेदअदोम और य'ईएल को जो दरबान थे।
\s5
\v 19 ~ फिर हम्द करने वाले हैमान, आसफ़ और ऐतान मुक़र्रर हुए कि पीतल की झाँझों को ज़ोर से बजाएँ;
\v 20 और ज़करियाह और 'अज़ीएल और सिमीरामीत और यहीएल और उन्नी और इलियाब और मा'सियाह और बिनायाह सितार को 'अलामीत राग पर छेड़े;
\v 21 और मतितियाह और इलिफ़लहू और मिक़िनियाह और 'ओबेदअदोम और य'ईएल और 'अज़ज़ियाह शमीनीत राग पर सितार बजाएँ।
\s5
\v 22 और कनानियाह, लावियों का सरदार, हम्द गाने पर मुक़र्रर था; वहहम्द सिखाता था, क्यूँकि वह बड़ा ही माहिर था।
\v 23 और बरकियाह और इल्क़ाना सन्दूक़ के दरबान थे,
\v 24 और शबनियाह और यहूसफ़त और नतनिएल और 'अमासी और ज़करियाह और बिनायाह और इली'अज़र काहिन ख़ुदा के सन्दूक़ के आगे आगे नरसिंगे फूँकते जाते थे, और 'आोबेदअदोम और यहियाह सन्दूक़ के दरबान थे।
\s5
\v 25 ~तब दाऊद और इस्राईल के बुज़ुर्ग और हज़ारों के सरदार रवाना हुए कि ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को 'ओबेदअदोम के घर से ख़ुशी मनाते हुए लाएँ।
\v 26 और ऐसा हुआ कि जब ख़ुदा ने उन लावियों की, जो ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक को उठाए हुए थे मदद की, तो उन्होने सात बैल और सात मेंढे क़ुर्बान किए।
\s5
\v 27 और दाऊद और सब लावी जो सन्दूक़ को उठाये हए थे, और हम्द करने वाले और हम्द करने वालों के साथ कनानियाह जो हम्द करने ~में उस्ताद था कतानी लिबासों से मुलब्बस थे, और दाऊद कतान का अफ़ूद भी पहने था।
\v 28 यूँ सब इस्राईली नारा मारते और नरसिंगों और तुरहियों और झाँझों की आवाज़ के साथ सिरतार और बरबत कों ज़ोर से बजाते हुए, ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को लाए।
\s5
\v 29 और ऐसा हुआ कि जब ख़ुदावन्द का 'अहद का सन्दूक़ दाऊद के शहर में पहुँचा, तो साऊल की बेटी मीकल ने खिड़की में से झाँक कर दाऊद बादशाह को ख़ूब नाचते-कूदते देखा, और उसने अपने दिल में उसको हक़ीर जाना।
\s5
\c 16
\p
\v 1 ~तब वह ख़दा के सन्दूक़ को ले आए और उसे उस ख़ेमा के बीच में जो दाऊद ने उसके लिए खड़ा किया था रखा, और सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और सलामती की क़ुर्बानियाँ ख़ुदा के सामने पेश कीं।
\v 2 जब दाऊद सोख़्तनी क़ुर्बानी और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश कर चुका तो उसने ख़ुदावन्द के नाम से लोगों को बरकत दी।
\v 3 और उसने सब इस्राइली लोगों को, क्या आदमी क्या 'औरत, एक एक रोटी और एक एक टुकड़ा गोश्त और किशमिश की एक एक टिकिया दी।
\s5
\v 4 और उसने लावियों में से कुछ को मुक़र्रर किया कि ख़ुदावन्द के सन्दूक़ के आगे ख़िदमत करें, और ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा का ज़िक्र और शुक्र और उसकी हम्द करें।
\v 5 अव्वल आसफ़ और उसके बा'द ज़करियाह और य'ईएल और सिमीरामोत और यहीएल और मतितियाह और इलियाब और बिनायाह और 'आोबेदअदोम और य'ईएल, सितार और बरबत के साथ, और आसफ़ झाँझों को ज़ोर से बजाता हुआ;
\v 6 और बिनायाह और यहज़िएल काहिन हमेशा तुरहियों के साथ ख़ुदा के 'अहद के सन्दूक़ के आगे रहा करें।
\s5
\v 7 पहले उसी दिन दाऊद ने यह ठहराया कि ख़ुदावन्द का शुक्र आसफ़ और उसके भाई बजा लाया करें।
\v 8 ख़ुदावन्द की शुक्रगुज़ारी करो। उससे दु'आ करो; क़ौमों के बीच उसके कामों का इश्तिहार दो।
\v 9 उसके सामने हम्द करो, उसकी बड़ाई करो, उसके सब 'अजीब कामों का ज़िक्र करो।
\s5
\v 10 उसके पाक नाम पर फ़ख़्र करो; जो ख़ुदावन्द के तालिब हैं, उनका दिल खु़श रहे।
\v 11 तुम ख़ुदावन्द और उसकी ताक़त के तालिब हो; तुम हमेश उसके दीदार के तालिब रहो।
\s5
\v 12 तुम उसके 'अजीब कामों को जो उसने किए, और उसके मो'जिज़ों और मुँह के क़ानून को याद रखो
\v 13 ऐ उसके बन्दे इस्राईल की नसल, ऐ बनी या'क़ूब, जो उसके चुने हुए हो।
\v 14 वह ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा है, तमाम रू-ए-ज़मीन पर उसके क़ानून हैं।
\s5
\v 15 ~हमेशा उसके 'अहद को याद रखो, और हज़ार नसलों तक उसके कलाम को जो उसने फ़रमाया।
\v 16 उसी 'अहद को जो उसने इब्राहीम से बाँधा, और उस क़सम को जो उसने इस्हाक़ से खाई,
\v 17 जिसे उसने या'क़ूब के लिए क़ानून के तौर पर और इस्राईल के लिए हमेशा 'अहद के तौर पर क़ायम किया,
\v 18 यह कहकर, मैं कन'आन का मुल्क तुझको दूँगा, वह तुम्हारा मौरुसी हिस्सा होगा|"
\s5
\v 19 उस वक़्त तुम शुमार में थोड़े थे बल्कि बहुत ही थोड़े और मुल्क में परदेसी थे।
\v 20 वह एक क़ौम से दूसरी दूसरी क़ौम में और एक मुल्क से दूसरी मुल्क में फिरते रहे।
\v 21 उसने किसी शख़्स को उनपर ज़ुल्म करने न दिया; बल्कि उनकी ख़ातिर बादशाहों को तम्बीह की,
\v 22 कि तुम मेरे मम्सूहों को न छुओ और मेरे नबियों को न सताओ|
\s5
\v 23 ऐ सब अहल-ए ज़मीन, ख़ुदावन्द के सामने हम्द करो। रोज़-ब-रोज़ उसकी नजात की बशारत दो।
\v 24 क़ौमों में उसके जलाल का, सब लोगों में उसके 'अजाइब का बयान करो।
\s5
\v 25 क्यूँकि ख़ुदावन्द बूज़ुर्ग और बहुत ही ता'रीफ़ ~के लायक़ है, वह सब मा'बूदों से ज़्यादा बड़ा है।
\v 26 इसलिए कि और क़ौमों के सब मा'बूद महज़ बुत हैं; लेकिन ख़ुदावन्द ने आसमानों को बनाया।
\v 27 'अज़मत और जलाल उसके सामने में हैं, और उसके यहाँ क़ुदरत और शादमानी हैं।
\s5
\v 28 ऐ क़ौमों के क़बीलो! ख़ुदावन्द की, ख़ुदावन्द ही की तम्जीद-ओ-ताज़ीम करो।
\v 29 ख़ुदावन्द की ऐसी बड़ाई करो जो उसके नाम के शायाँ है। हदिया लाओ, और उसके सामने आओ, पाक आराइश के साथ ख़ुदावन्द को सिज्दा करो।
\s5
\v 30 ऐ सब अहल-ए-ज़मीन! उसके सामने काँपते रहो। जहान क़ायम है, और उसे हिलता नहीं।
\v 31 आसमान ख़ुशी मनाए और ज़मीन ख़ुश हो, वह क़ौमों में ऐलान करें कि ख़ुदावन्द हुकूमत करता है।
\s5
\v 32 समन्दर और उसकी मामूरी शोर मचाए, मैदान और जो कुछ उसमें है बाग़ बाग़ हो।
\v 33 तब जंगल के दरख़्त ख़ुशी से ख़ुदावन्द के सामने हम्द करने लगेंगे, क्यूँकि वह ज़मीन का इंसाफ़ करने को आ रहा है।
\s5
\v 34 ख़ुदावन्द का शुक्र करो, इसलिए कि वह नेक है; क्यूँकि उसकी शफ़क़त हमेशा है।
\v 35 तुम कहो, ऐ हमारी नजात के ख़ुदा, हम को बचा ले, और क़ौमों में से हम को जमा' कर और उनसे हम को रिहाई दे, ताकि हम तेरे कुहूस नाम का शुक्र करें, और ललकारते हुए तेरी ता'रीफ़ करें।
\s5
\v 36 ख़ुदादावन्द इस्राईल का ख़ुदा, अज़ल से 'हमेश तक मुबारक हो!" और सब लोग बोल उठे आमीन! उन्होंने ख़ुदावन्द की ता'रीफ़ की।
\s5
\v 37 उसने वहाँ ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ के आगे आसफ़ और उसके भाइयों को, हर रोज़ के ज़रूरी काम के मुताबिक़ हमेशा सन्दूक़ के आगे ख़िदमत करने को छोड़ा;
\v 38 और 'आोबेदअदोम और उसके अड़सठ भाइयों को, और 'ओबेदअदोम बिन यदूतून और हूसाह को ताकि दरबान हों।
\v 39 और सदूक़ काहिन और उसके काहिन भाइयों को ख़ुदावन्द के घर के आगे, जिबा'ऊन के ऊँचे मक़ाम पर, इसलिए
\s5
\v 40 कि वह ख़ुदावन्द की शरी'अत की सब लिखी हुई बातों के मुताबिक़ जो उसने इस्राईल को फ़रमाई, हर सुबह और शाम सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह पर ख़ुदावन्द के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश कीं।
\v 41 उनके साथ हैमान और यदूतून और बाक़ी चुने हुए आदमियों को जो नाम-ब-नाम मज़कूर हुए थे, ताकि ख़ुदावन्द का शुक्र करें क्यूँकि उसकी शफ़क़त हमेशा है।
\s5
\v 42 उन ही के साथ हैमान और यदूतून थे, जो बजाने वालों के लिए तुरहियाँ और झाँझें और ख़ुदा के हम्द ~के लिए बाजे लिए हुए थे, और बनी यदूतून दरबान थे।
\v 43 तब सब लोग अपने अपने घर गए, और दाऊद लौटा कि अपने घराने को बरकत दे।
\s5
\c 17
\p
\v 1 जब दाऊद अपने महल में रहने लगा, तो उसने नातन नबी से कहा, मैं तो देवदार के महल में रहता हूँ, लेकिन ख़ुदावन्द के 'अहद का सन्दूक़ ख़ेमे में है।
\v 2 नातन ने दाऊद से कहा, जो कुछ तेरे दिल में है वह कर, क्यूँकि ख़ुदा तेरे साथ है।
\s5
\v 3 और उसी रात ऐसा हुआ कि ख़ुदा का कलाम नातन पर नाज़िल हुआ कि,
\v 4 जाकर मेरे बन्दे दाऊद से कह कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू मेरे रहने के लिए घर न बनाना।
\v 5 क्यूँकि जब से मैं बनी-इस्राईल को निकाल लाया, आज के दिन तक मैंने किसी घर में सुकूनत नहीं की; बल्कि ख़ेमा-ब-ख़ेमा और मस्कन-ब-मस्कन फिरता रहा हूँ
\v 6 उन जगहों में जहाँ जहाँ मैं सारे इस्राईल के साथ फिरता रहा, क्या मैंने इस्राईली क़ाज़ियों में से जिनको मैंने हुक्म किया था कि मेरे लोगों की गल्लेबानी करें, किसी से एक हर्फ़ भी कहा कि तुम ने मेरे लिए देवदार का घर क्यूँ नहीं बनाया?
\s5
\v 7 ~तब तू मेरे बन्दे दाऊद से यूँ कहना कि रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि मैंने तुझे भेड़साले में से जब तू भेड़-बकरियों के पीछे पीछे चलता था लिया, ताकि तू मेरी क़ौम इस्राईल का रहनुमा हो;
\v 8 और जहाँ कहीं तू गया मैं तेरे साथ रहा, और तेरे सब दुश्मनों को तेरे सामने से काट डाला है, और मैं रूए-ज़मीन के बड़े बड़े आदमियों के नाम की तरह ~तेरा नाम कर दूँगा।
\s5
\v 9 और मैं अपनी क़ौम इस्राईल के लिए एक जगह ठहराऊँगा, और उनको क़ायम कर दूँगा ताकि अपनी जगह बसे रहें और फिर हटाए न जाएँ, और न शरारत के फ़र्ज़न्द फिर उनको दुख देने पाएँगे जैसा शुरू' में हुआ।
\v 10 और उस वक़्त भी जब मैंने हुक्म दिया कि मेरी क़ौम इस्राईल पर क़ाज़ी मुकर्रर हों, और मैं तेरे सब दुश्मनों को मग़लूब करूँगा। इसके 'अलावा मैं तुझे बताता हूँ कि ख़ुदावन्द तेरे लिए एक घर बनाएगा।
\s5
\v 11 जब तेरे दिन पूरे हो जाएँगे ताकि तू अपने बाप-दादा के साथ मिल जाने को चला जाए, तो मैं तेरे बा'द तेरी नसल को तेरे बेटों में से खड़ा करूँगा, और उसकी हुकूमत को क़ायम करूँगा।
\v 12 वह मेरे लिए घर बनाएगा, और मैं उसका तख़्त हमेशा के लिए क़ायम करूँगा।
\s5
\v 13 मैं उसका बाप हूँगा और वह मेरा बेटा होगा; और मैं अपनी शफ़क़त उस पर से नहीं हटाऊँगा, जैसे मैंने उस पर से जो तुझ से पहले था हटा ली,
\v 14 बल्कि मैं उसको अपने घर में और अपनी ममलुकत में हमेशा तक क़ायम रखूँगा, और उसका तख़्त हमेशा तक साबित रहेगा।
\v 15 ~इसलिए नातन ने इन सब बातों और इस सारे ख़्वाब के मुताबिक़ ऐसा ही दाऊद से कहा ।
\s5
\v 16 तब दाऊद बादशाह अन्दर जाकर ख़ुदावन्द के सामने बैठा, और कहने लगा, ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा! मैं कौन हूँ, और मेरा घराना क्या है कि तू ने मुझ को यहाँ तक पहुँचाया?
\v 17 और ये, ऐ ख़ुदा, तेरी नज़र में छोटी बात थी, बल्कि तू ने तो अपने बन्दे के घर के हक़ में आइंदा बहुत दिनों का ज़िक्र किया है, और तू ने ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, मुझे ऐसा माना कि गोया मैं बड़ा मन्ज़िलत वाला आदमी' हूँ।
\v 18 भला दाऊद तुझ से उस इकराम की निस्बत, जो तेरे ख़ादिम का हुआ और क्या कहे? क्यूँकि तू अपने बन्दे को जानता है।
\s5
\v 19 ऐ ख़ुदावन्द, तू ने अपने बन्दे की ख़ातिर अपनी ही मर्ज़ी से इन बड़े बड़े कामों को ज़ाहिर करने के लिए इतनी बड़ी बात की।
\v 20 ऐ ख़ुदावन्द, कोई तेरी तरह नहीं और तेरे 'अलावा जिसे हम ने अपने कानों से सुना है और कोई ख़ुदा नहीं।
\v 21 और रू-ए-ज़मीन पर तेरी क़ौम इस्राईल की तरहऔर कौन सी क़ौम है, जिसे ख़ुदा ने जाकर अपनी उम्मत बनाने को ख़ुद छुड़ाया? ताकि तू अपनी उम्मत के सामने से जिसे तू ने मिस्र से ख़लासी बख़्शी, क़ौमों को दूर करके बड़े और मुहीब कामों से अपना नाम करे।
\s5
\v 22 क्यूँकि तू ने अपनी क़ौम इस्राईल को हमेशा के लिए अपनी क़ौम ठहराया है, और तू ख़ुद ऐ ख़ुदावन्द, उनका ख़ुदा हुआ है।
\v 23 और अब ऐ ख़ुदावन्द, वह बात जो तू ने अपने बन्दे के हक़ में और उसके घराने के हक में फ़रमाई, हमेशा तक साबित रहे और जैसा तू ने कहा है वैसा ही कर।
\v 24 और तेरा नाम हमेशा तक क़ायम और बुज़ुर्ग हो ताकि कहा जाए कि रब्ब-उल-अफ़वाज इस्राईल का ख़ुदा है, बल्कि वह इस्राईल ही के लिए ख़ुदा है और तेरे बन्दे दाऊद का घराना तेरे सामने क़ायम रहे।
\s5
\v 25 क्यूँकि तू ने ऐ मेरे ख़ुदा, अपने बन्दा पर ज़ाहिर किया है कि तू उसके लिए एक घर बनाएगा; इसलिए तेरे बन्दे को तेरे सामने दु'आ करने का हौसला हुआ।
\v 26 और ऐ ख़ुदावन्द तू ही ख़ुदा है, और तू ने अपने बन्दे से इस भलाई का वा'दा किया;
\v 27 और तुझे पसंद आया कि तू अपने बन्दे के घराने को बरकत बख़्शे, ताकि वह हमेशा तक तेरे सामने क़ायम रहे; क्यूँकि तू ऐ ख़ुदावन्द बरकत दे चुका है, इसलिए वह हमेशा तक मुबारक है|
\s5
\c 18
\p
\v 1 इसके बा'द यूँ हुआ कि दाऊद ने फ़िलिस्तियों को मारा और उनको मग़लूब किया, और जात को उसके क़स्बों समेत फ़िलिस्तियों के हाथ से ले लिया।
\v 2 उसने मोआब को मारा, और मोआबी दाऊद के फ़रमाँबरदार हो गए और हदिए लाए।
\s5
\v 3 दाऊद ने ज़ोबाह के बादशाह हदर'अज़र को भी, जब वह अपनी हुकूमत दरिया-ए-फु़रात तक क़ायम करने गया, हमात में मार लिया।
\v 4 और दाऊद ने उससे एक हज़ार रथ और सात हज़ार सवार और बीस हज़ार प्यादे ले लिए, और उसने रथों के सब घोड़ों की नालें कटवा दीं, लेकिन उनमें से एक सौ रथों के लिए घोड़े बचा लिए।
\s5
\v 5 जब दमिश्क़ के अरामी ज़ोबाह के बादशाह हदर'अज़र की मदद करने को आए, तो दाऊद ने अरामियों में से बाइस हज़ार आदमी क़त्ल किए।
\v 6 तब दाऊद ने दमिश्क़ के अराम में सिपाहियों की चौकियाँ बिठाई, और अरामी दाऊद के फ़रमाँबरदार हो गए और हदिए लाए। और जहाँ कहीं दाऊद जाता ख़ुदावन्द उसे फ़तह बख़्शता था।
\s5
\v 7 और दाऊद हदर'अज़र के नौकरों की सोने की ढालें लेकर उनको यरूशलीम में लाया;
\v 8 और हदर'अज़र के शहरों, तिबखत और कून से दाऊद बहुत सा पीतल लाया, जिससे सुलेमान ने पीतल का बड़ा हौज़ और खम्भा और पीतल के बर्तन बनाए।
\s5
\v 9 जब हमात के बादशाह तू'ऊ ने सुना के दाऊद ने जू़बाह के बादशाह हदर'अज़र का सारा लश्कर मार लिया,
\v 10 तो उसने अपने बेटे हदूराम को दाऊद बादशाह के पास भेजा ताकि उसे सलाम करे और मुबारक बा'द दे, इसलिए के उसने जंग करके हदर'अज़र को मारा (क्यूँकि हदर'अज़र तू'ऊ से लड़ा करता था), और हर तरह के सोने और चाँदी और पीतल के बर्तन उसके साथ थे।
\v 11 इनकी भी दाऊद बादशाह ने उस चाँदी और सोने के साथ, जो उसने और सब क़ौमों या'नी अदूम और मोआब और बनी 'अम्मून और फ़िलिस्तियों और 'अमालीक से लिया था, ख़ुदावन्द को नज़्र किया।
\s5
\v 12 और अबीशै। बिन ज़रूयाह ने वादी-ए-शोर में अठारह हज़ार अदूमियों को मारा।
\v 13 और उसने अदूम में सिपाहियों की चौकियाँ बिठाई, और सब अदूमी दाऊद के फ़रमाँबरदार हो गए। और जहाँ कहीं दाऊद जाता ख़ुदावन्द उसे फ़तह बख़्शता था।
\s5
\v 14 ~तब दाऊद सारे इस्राईल पर हुकूमत करने लगा, और अपनी सारी र'इयत के साथ अद्ल-ओ-इन्साफ़ करता था।
\v 15 और योआब बिन ज़रूयाह लश्कर का सरदार था, और यहूसफ़त बिन अख़ीलूद मुवर्रिख़था;
\v 16 और सदूक़ बिन अख़ीतोब और अबीमलिक बिन अबियातर काहिन थे, और शौशा मुन्शी था;
\v 17 और बिनायाह बिन यहूयदा' करेतियों और फ़लेतियों पर था; और दाऊद के बेटे बादशाह के ख़ास मुसाहिब थे।
\s5
\c 19
\p
\v 1 इसके बा'द ऐसा हुआ कि बनी 'अम्मून का बादशाह नाहस मर गया, और उसका बेटा उसकी जगह हुकूमत करने लगा।
\v 2 तब दाऊद ने कहा कि मैं नाहस के बेटे हनून के साथ नेकी करूँगा क्यूँकि उसके बाप ने मेरे साथ नेकी की, तब दाऊद ने क़ासिद भेजे ताकि उसके बाप के बारे में उसे तसल्ली दें। इसलिए दाऊद के ख़ादिम बनी अम्मून के मुल्क में हनून के पास आये कि उसे तसल्ली दें।
\v 3 ~लेकिन बनी 'अम्मून के अमीरों ने हनून से कहा, क्या तेरा ख़्याल है कि दाऊद तेरे बाप की 'इज़्ज़त करता है, तो उसने तेरे पास तसल्ली देनेवाले भेजे हैं ? क्या उसके ख़ादिम तेरे मुल्क का हाल दरियाफ़्त करने, और उसे तबाह करने, और राज़ लेने नहीं आए हैं?"
\s5
\v 4 तब हनून ने दाऊद के ख़ादिमों को पकड़ा और उनकी दाढ़ी मूँछें मुंडवाकर, उनकी आधी लिबास उनके सुरीनों तक कटवा डाली, और उनको रवाना कर दिया।
\v 5 तब कुछ ने जाकर दाऊद को बताया कि उन आदमियों से कैसा सुलूक किया गया। तब उसने उनके इस्तक़बाल को लोग भेजे इसलिए कि वह निहायत शरमाते थे, और बादशाह ने कहा कि जब तक तुम्हारी दाढ़ियाँ न बढ़ जाएँ यरीहू में ठहरे रहो, इसके बा'द लौट आना।
\s5
\v 6 जब बनी 'अम्मून ने देखा कि वह दाऊद के सामने नफ़रतअंगेज़ हो गए हैं, तो हनून और बनी 'अम्मून ने मसोपतामिया और अराम, माका और ज़ोबाह से रथों और सवारों को किराया करने के लिए एक हज़ार क़िन्तार चाँदी भेजी।
\v 7 ~इसलिए उन्होंने बत्तीस हज़ार रथों और मा'का के बादशाह और उसके लोगों को अपने लिए किराया कर लिया, जो आकर मीदबा के सामने ख़ैमाज़न हो गए। और बनी 'अम्मून अपने अपने शहर से जमा' हुए और लड़ने को आए।
\s5
\v 8 जब दाऊद ने यह सुना तो उसने योआब और सूर्माओं के सारे लश्कर को भेजा।
\v 9 तब बनी 'अम्मून ने निकलकर शहर के फाटक पर लड़ाई के लिए सफ़ बाँधी, और वह बादशाह जो आए थे सो उनसे अलग मैदान में थे।
\s5
\v 10 जब योआब ने देखा कि उसके आगे और पीछे लड़ाई के लिए सफ़ बँधी है, तो उसने सब इस्राईल के ख़ास लोगों में से आदमी चुन लिए और अरामियों के मुक़ाबिल उनकी सफ़ आराई की;
\v 11 और बाक़ी लोगों को अपने भाई अबीशै के सुपुर्द किया, और उन्होंने बनी 'अम्मून के सामने अपनी सफ़ बाँधी।
\s5
\v 12 और उसने कहा कि अगर अरामी मुझ पर ग़ालिब आएँ, तो तू मेरी मदद करना; और अगर बनी 'अम्मून तुझ पर ग़ालिब आएँ, तो मैं तेरी मदद करूँगा।
\v 13 इसलिए हिम्मत बाँधो, और आओ हम अपनी क़ौम और अपने ख़ुदा के शहरों की ख़ातिर मर्दानगी करें; और ख़ुदावन्द जो कुछ उसे भला मा'लूम हो करे।
\s5
\v 14 तब योआब अपने लोगों समेत अरामियों से लड़ने को आगे बढ़ा, और वह उसके सामने से भागे।
\v 15 जब बनी 'अम्मून ने अरामियों को भागते देखा, तो वह भी उसके भाई अबीशै के सामने से भाग कर शहर में घुस गए। तब योआब यरूशलीम को लौट आया।
\s5
\v 16 जब अरामियों ने देखा कि उन्होंने बनी-इस्राईल से शिकस्त खाई, तो उन्होंने क़ासिद भेज कर दरिया-ए-फु़रात के पार के अरामियों को बुलवाया; और हदर'अज़र का सिपहसालार सोफ़क उनका सरदार था।
\v 17 और इसकी ख़बर दाऊद को मिली तब वह सारे इस्राईल को जमा' करके यरदन के पार गया, और उनके क़रीब पहुँचा और उनके मुक़ाबिल सफ़ बाँधी, फ़िर ~जब दाऊद ने अरामियों के मुक़ाबिले में जंग के लिए सफ़ बाँधी तो वह उससे लड़े।
\s5
\v 18 और अरामी इस्राईल के सामने से भागे, और दाऊद ने अरामियों के सात हज़ार रथों के सवारों और चालीस हज़ार प्यादों को मारा, और लश्कर के सरदार सोफ़क को क़त्ल किया।
\v 19 जब हदर'अज़र के मुलाज़िमों ने देखा कि वह इस्राईल से हार गए, तो वह दाऊद से सुलह करके उसके फ़रमाँबरदार हो गए; और अरामी बनी 'अम्मून की मदद पर फिर कभी राज़ी न हुए।
\s5
\c 20
\p
\v 1 फिर नए साल के शुरू' में जब बादशाह जंग के लिए निकलते हैं, योआब ने ताक़तवर लश्कर ले जाकर बनी 'अम्मून के मुल्क को उजाड़ डाला और आकर रब्बा को घेर लिया; लेकिन दाऊद यरूशलीम में रह गया था, और योआब ने रब्बा को घेर करके उसे ढा दिया।
\s5
\v 2 और दाऊद ने उनके बादशाह के ताज को उसके सिर पर से उतार लिया, और उसका वज़न एक क़िन्तार सोना पाया, और उसमें बेशक़ीमत जवाहिर जड़े थे; इसलिए वह दाऊद के सिर पर रखा गया, और वह उस शहर में से बहुत सा लूट का माल निकाल लाया।
\v 3 उसने उन लोगों को जो उसमें थे, बाहर निकाल कर आरों और लोहे के हींगों और कुल्हाड़ों से काटा, और दाऊद ने बनी 'अम्मून के सब शहरों से ऐसा ही किया। तब दाऊद और सब लोग यरूशलीम को लौट आए।
\s5
\v 4 इसके बा'द जज़र में फ़िलिस्तियों से जंग हुई; तब हूसाती सिब्बकी ने सफ़्फ़ी को जो पहलवान के बेटों में से एक था क़त्ल किया, और फ़िलिस्ती मग़लूब हुए।
\v 5 और फ़िलिस्तियों से फिर जंग हुई; तब य'ऊर के बेटे इलहिनान ने जाती जूलियत के भाई लहमी को, जिसके भाले की छड़ जुलाहे के शहतीर के बराबर थी, मार डाला।
\s5
\v 6 फिर जात में एक और जंग हुई जहाँ एक बड़ा क़दआवर आदमी था जिसके चौबीस उंगलियाँ, या'नी हाथों में छ: छ: और पाँव में छ: छ: थीं, और वह भी उसी पहलवान का बेटा था।
\v 7 जब उसने इस्राईल की फ़ज़ीहत की तो दाऊद के भाई सिम'आ के बेटे योनतन ने उसको मार डाला।
\v 8 यह जात में उस पहलवान से पैदा हुए थे, और दाऊद और उसके ख़ादिमों के हाथ से क़त्ल हुए।
\s5
\c 21
\p
\v 1 और शैतान ने इस्राईल के ख़िलाफ़ उठकर दाऊद को उभारा कि इस्राईल का शुमार करें
\v 2 तब दाऊद ने यूआब से और लोगों के सरदारों से कहा कि जाओ बैरसबा से दान तक इस्राईल का शुमार करो, और मुझे ख़बर दो ताकि मुझे उनकी ता'दाद मा'लूम हो।
\v 3 योआब ने कहा, ख़ुदावन्द अपने लोगों को जितने हैं, उससे सौ गुना ज़्यादा करे; लेकिन ऐ मेरे मालिक बादशाह, क्या वह सब के सब मेरे मालिक के ख़ादिम नहीं हैं? फिर मेरा ख़ुदावन्द यह बात क्यूँ चाहता है? वह इस्राईल के लिए ख़ता का ज़रिए' क्यूँ बने?"
\s5
\v 4 तो भी बादशाह का फ़रमान यूआब पर ग़ालिब रहा चुनाँचे यूआब रुख़्सत हुआ और तमाम इस्राईल में फिरा और यरूशलीम की लौटा;
\v 5 और यूआब ने लोगों के शुमार की मीज़ान दाऊद को बतायी और सब इस्राइली ग्यारह लाख शमशीर ज़न मर्द, और यहूदाह चार लाख सत्तर हज़ार शमशीर ज़न शख़्स थे।
\s5
\v 6 लेकिन उसने लावी और बिनयमीन का शुमार उनके साथ नहीं किया था, क्यूँकि बादशाह का हुक्म यूआब के नज़दीक़ नफ़रतअंगेज़ था।
\v 7 लेकिन ख़ुदा इस बात से नाराज़ हुआ, इसलिए उसने इस्राईल को मारा ।
\v 8 तब दाऊद ने ख़ुदा से कहा कि मुझसे बड़ा गुनाह हुआ कि मैंने यह काम किया|अब मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि अपने बन्दा क़ुसूर मु'आफ़ कर, क्यूँकि मैंने बेहूदा काम किया है।
\s5
\v 9 और ख़ुदावन्द ने दाऊद के गै़बबीन जाद से कहा;
\v 10 कि जाकर दाऊद से कह कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि मैं तेरे सामने तीन चीज़ें पेश करता हूँ, उनमें से एक चुन ले, ताकि मैं उसे तुझ पर भेजूँ।
\s5
\v 11 तब जाद ने दाऊद के पास आकर उससे कहा, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता हैू कि तू जिसे चाहे उसे चुन ले:
\v 12 या तो क़हत के तीन साल; या अपने दुश्मनों के आगे तीन महीने तक हलाक होते रहना, ऐसे हाल में कि तेरे दुश्मनों की तलवार तुझ पर वार करती रहे; या तीन दिन ख़ुदावन्द की तलवार या'नी मुल्क में वबा रहे, और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता इस्राईल की सब सरहदों में मारता रहे।अब सोच ले कि मैं अपने भेजनेवाले को क्या जवाब दूँ।
\s5
\v 13 दाऊद ने जाद से कहा, मैं बड़े शिकंजे में हूँ मैं ख़ुदावन्द के हाथ में पड़ूँ क्यूँकि उसकी रहमतें बहुत ज़्यादा हैं लेकिन इन्सान के हाथ में न पड़ूँ।
\v 14 तब ख़ुदावन्द ने इस्राईल में वबा भेजी, और इस्राईल में से सत्तर हज़ार आदमी मर गए।
\v 15 और ख़ुदा ने एक फ़रिश्ता यरूशलीम को भेजा कि उसे हलाक करे; और जब वह हलाक करने ही को था, तो ख़ुदावन्द देख कर उस बला से मलूल हुआ और उस हलाक करनेवाले फ़रिश्ते से कहा, बस, अब अपना हाथ खींच। और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता यबूसी उरनान के खलिहान के पास खड़ा था।
\s5
\v 16 और दाऊद ने अपनी आँखें उठा कर आसमान-ओ-ज़मीन के बीच ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को खड़े देखा, और उसके हाथ में नंगी तलवार थी जो यरूशलीम पर बढ़ाई हुई थी; तब दाऊद और बुज़ुर्ग टाट ओढ़े हुए मुँह के गिरे सिज्दा किया।
\v 17 और दाऊद ने ख़ुदा से कहा, क्या मैं ही ने हुक्म नहीं किया था कि लोगों का शुमार किया जाए? गुनाह तो मैंने किया, और बड़ी शरारत मुझ से हुई, लेकिन इन भेड़ों ने क्या किया है? ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, तेरा हाथ मेरे और मेरे बाप के घराने के ख़िलाफ़ हो न किअपने लोगों के ख़िलाफ़ के वह वबा में मुब्तिला हों।
\s5
\v 18 तब ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने जाद को हुक्म किया कि दाऊद से कहे कि दाऊद जाकर यबूसी उरनान के खलिहान में ख़ुदावन्द के लिए एक क़ुर्बानगाह बनाए।
\v 19 और दाऊद जाद के कलाम के मुताबिक़, जो उसने ख़ुदावन्द के नाम से कहा था गया,
\v 20 और उरनान ने मुड़ कर उस फ़रिश्ते को देखा, और उसके चारों बेटे जो उसके साथ थे छिप गए। उस वक़्त उरनान गेहूँ दाउता था।
\s5
\v 21 जब दाऊद उरनान के पास आया, तब उरनान ने निगाह की और दाऊद को देखा, और खलिहान से बाहर निकल कर दाऊद के आगे झुका और ज़मीन पर सिज्दा किया।
\v 22 तब दाऊद ने उरनान से कहा कि इस खलिहान की यह जगह मुझे दे दे, ताकि मैं इसमें ख़ुदावन्द के लिए एक क़ुर्बानगाह बनाऊँ; तू इसका पूरा दाम लेकर मुझे दे, ताकि वबा लोगों से दूर कर दी जाए।
\s5
\v 23 उरनान ने दाऊद से कहा, तू इसे ले ले और मेरा मालिक बादशाह जो कुछ उसे भला मा'लूम हो करे। देख, मैं इन बैलों को सोख़्तनी क़ुर्बानियों के लिए और दाउने के सामान ईंधन के लिए, और यह गेहूँ नज़्र की क़ुर्बानी के लिए देता हूँ; मैं यह सब कुछ दिए देता हूँ।”
\v 24 दाऊद बादशाह ने उरनान से कहा, नहीं नहीं, बल्कि मैं ज़रूर पूरा दाम देकर तुझ से खरीद लूँगा, क्यूँकि मैं उसे जो तेरा माल है ख़ुदावन्द के लिए नहीं लेने का, और बगै़र ख़र्च किये सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश करूँगा|"
\s5
\v 25 तब दाऊद ने उरनान को उस जगह के लिए छ: सौ मिस्क़ाल सोना तौल कर दिया।
\v 26 और दाऊद ने वहाँ ख़ुदावन्द के लिए मज़बह बनाया और सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश कीं और ख़ुदावन्द से दु'आ की; और उसने आसमान पर से सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह पर आग भेज कर उसको जवाब दिया।
\v 27 और ख़ुदावन्द ने उस फ़रिश्ते को हुक्म दिया, तब उसने अपनी तलवार फिर मियान में कर ली।
\s5
\v 28 उस वक़्त जब दाऊद ने देखा के ख़ुदावन्द ने यबूसी उरनान के खलिहान में उसको जवाब दिया था, तो उसने वहीं क़ुर्बानी चढ़ाई।
\v 29 क्यूँकि उस वक़्त ख़ुदावन्द का घर जिसे मूसा ने वीरान में बनाया था, और सोख़्तनी क़ुर्बानी का मज़बह जिबा ऊन की ऊँची जगह में थे।
\v 30 लेकिन दाऊद ख़ुदा से पूछने के लिए उसके आगे न जा सका, क्यूँकि वह ख़ुदावन्द के फ़रिश्ता ~की तलवार की वजह से डर गया।
\s5
\c 22
\p
\v 1 और दाऊद ने कहा, "यही ख़ुदावन्द ख़ुदा का घर और यही इस्राईल की सोख़्तनी क़ुर्बानी का मज़बह है।”
\v 2 दाऊद ने हुक्म दिया कि उन परदेसियों को जो इस्राईल के मुल्क में थे जमा' करें, और उसने पत्थरों को तराशने वाले ~मुक़र्रर किए कि ख़ुदा के घर के बनाने के लिए पत्थर काट कर घड़ें।
\s5
\v 3 और दाऊद ने दरवाज़ों के किवाड़ों की कीलों और क़ब्ज़ों के लिए बहुत सा लोहा, और इतना पीतल कि तौल से बाहर था,
\v 4 और देवदार के बेशुमार लट्ठे तैयार किए, क्यूँकि सैदानी और सूरी देवदार के लट्ठे कसरत से दाऊद के पास लाते थे।
\v 5 और दाऊद ने कहा कि मेरा बेटा सुलेमान लड़का और ना तजुरबेकार है, और ज़रूर है कि वह घर जो ख़ुदावन्द के लिए बनाया जाए निहायत 'अज़ीम-उश-शान हो, और सब मुल्कों में उसका नाम और शोहरत हो। इसलिए मैं उसके लिए तैयारी करूँगा। चुनाँचे दाऊद ने अपने मरने से पहले बहुत तैयारी की।
\s5
\v 6 तब उसने अपने बेटे सुलेमान को बुलाया और उसे ताकीद की कि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के लिए एक घर बनाए।
\v 7 दाऊद ने अपने बेटे सुलेमान से कहा, यह तो खु़द मेरे दिल में था कि ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के नाम के लिए एक घर बनाऊँ।
\v 8 लेकिन ख़ुदावन्द का कलाम मुझे पहुँचा, कि तू ने बहुत ख़ूँरेज़ी की है और बड़ी बड़ी लड़ाइयाँ लड़ा है; इसलिए तू मेरे नाम के लिए घर न बनाना, क्यूँकि तू ने ज़मीन पर मेरे सामने बहुत ख़ून बहाया है।
\s5
\v 9 देख, तुझ से एक बेटा पैदा होगा, वह मर्द-ए-सुलह होगा; और मैं उसे चारों तरफ़ के सब दुश्मनों से अम्न बख़्शूँगा, क्यूँकि सुलेमान उसका नाम होगा और मैं उसके दिनों में इस्राईल को अम्न-आो-अमान बख़्शूँगा।
\v 10 वही मेरे नाम के लिए घर बनाएगा। वह मेरा बेटा होगा और मैं उसका बाप हूँगा, और मैं इस्राईल पर उसकी हुकूमत का तख़्त हमेशा तक-क़ायम रख्खूँगा।
\s5
\v 11 अब ऐ मेरे बेटे ख़ुदावन्द तेरे साथ रहे और तू कामयाब हो और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का घर बना, जैसा उसने तेरे हक़ में फ़रमाया है।
\v 12 अब ख़ुदावन्द तुझे अक़्ल-ओ-दानाई बख़्शे और इस्राईल के बारे में तेरी हिदायत करे, ताकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की शरी'अत को मानता रहे।
\v 13 तब तू कामयाब होगा, बशर्ते कि तू उन क़ानून और अहकाम पर जो ख़ुदावन्द ने मूसा को इस्राईल के लिए दिए एहतियात करके 'अमल करे। इसलिए हिम्मत बाँध और हौसला रख, ख़ौफ़ न कर, परेशान न हो।
\s5
\v 14 देख, मैंने मशक़्क़त से ख़ुदावन्द के घर के लिए एक लाख क़िन्तार सोना और दस लाख क़िन्तार चाँदी, और बेअंदाज़ा पीतल और लोहा तैयार किया है क्यूँकि वह कसरत से है, और लकड़ी और पत्थर भी मैंने तैयार किए हैं, और तू उनको और बढ़ा सकता है।
\s5
\v 15 बहुत से कारीगर पत्थर और लकड़ी के काटने और तराशने वाले, और सब तरह के हुनरमन्द जो क़िस्म क़िस्म के काम में माहिर हैं तेरे पास हैं।
\v 16 सोने और चाँदी और पीतल और लोहे का कुछ हिसाब नहीं है। इसलिए उठ और काम में लग जा, और ख़ुदावन्द तेरे साथ रहे।
\s5
\v 17 इसके 'अलावा दाऊद ने इस्राईल के सब सरदारों को अपने बेटे सुलेमान की मदद का हुक्म दिया और कहा,
\v 18 क्या ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुम्हारे साथ नहीं है? और क्या उसने तुम को चारों तरफ़ चैन नहीं दिया है? क्यूँकि उसने इस मुल्क के बाशिंदों को मेरे हाथ में कर दिया है, और मुल्क ख़ुदावन्द और उसके लोगों के आगे मग़लूब हुआ है।
\v 19 इसलिए अब तुम अपने दिल को और अपनी जान को ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तलाश में लगाओ, और उठो और ख़ुदावन्द ख़ुदा का मक़दिस बनाओ, ताकि तुम ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को और ख़ुदा के पाक बर्तनों को उस घर में, जो ख़ुदावन्द के नाम का बनेगा ले आओ।
\s5
\c 23
\p
\v 1 अब दाऊद बुड्ढा और 'उम्र-दराज़ हो गया था, तब उसने अपने बेटे सुलेमान को इस्राईल का बादशाह बनाया।
\v 2 उसने इस्राईल के सब सरदारों को, काहिनों और लावियों समेत इकट्ठा किया।
\v 3 तीस बरस के और उससे ज़्यादा 'उम्र के लावी गिने गए, और उनकी गिनती एक एक आदमी को शुमार करके अड़तीस हज़ार थी।
\s5
\v 4 इनमें से चौबीस हज़ार ख़ुदावन्द के घर के काम की निगरानी पर मुक़र्रर हुए, और छ: हज़ार सरदार और मुन्सिफ़ थे,
\v 5 और चार हज़ार दरबान थे, और चार हज़ार उन साज़ों से ख़ुदावन्द की ता'रीफ़ करते थे जिनको मैंने या'नी दाऊद ने ता'रीफ़ और बड़ाई ~के लिए बनाया था
\v 6 और दाऊद ने उनको जैरसोन, क़िहात और मिरारी नाम बनी लावी के फ़रीक़ों में तक़्सीम किया।
\s5
\v 7 जैरसोनियों में से यह थे: ला'दान और सिम'ई।
\v 8 ला'दान के बेटे: सरदार यहीएल और जैताम और यूएल, यह तीन थे।
\v 9 सिम'ई के बेटे: सलूमियत और हज़ीएल और हारान, यह तीन थे। यह ला'दान के आबाई ख़ान्दानों के सरदार थे।
\s5
\v 10 और सिम'ई के बेटे यहत, ज़ीना और य'ऊस और बरी'आ, यह चारों सिम'ई के बेटे थे।
\v 11 पहला ~यहत था, और ज़ीज़ा दूसरा, और य'ऊस और बरी'आ के बेटे बहुत न थे, इस वजह से वह एक ही आबाई ख़ान्दान में गिने गए।
\s5
\v 12 क़िहात के बेटे: 'अमराम, इज़हार, हबरून और 'उज़्ज़ीएल, यह चार थे।
\v 13 अमराम के बेटे: हारून और मूसा थे। हारून अलग किया गया, ताकि वह और उसके बेटे हमेशा पाकतरीन चीज़ों की पाक किया करें, और हमेशा ख़ुदावन्द के आगे ख़ुशबू जलाएँ और उसकी ख़िदमत करें, और उसका नाम लेकर बरकत दें।
\v 14 रहा मर्द-ए-ख़ुदा मूसा, इसलिए उसके बेटे लावी के क़बीले में गिने गए।
\s5
\v 15 मूसा के बेटे: जैरसोम और इली'अज़र थे।
\v 16 और जैरसोम का बेटा सबुएल सरदार था,
\v 17 और इली'अज़र का बेटा रहबियाह सरदार था; और इली'अज़र के और बेटे न थे, लेकिन रहबियाह के बहुत से बेटे थे।
\v 18 इज़हार का बेटा सलूमीत सरदार था।
\s5
\v 19 हबरून के बेटों में पहला यरयाह, अमरियाह दूसरा, यहज़ीएल तीसरा, और यकीमि'आम चौथा था।
\v 20 उज़्ज़ीएल के बेटों में अव्वल मीकाह सरदार और यसयाह दूसरा था।
\s5
\v 21 मिरारी के बेटे: महली और मूशी। महली के बेटे: इली'अज़र और क़ीस थे।
\v 22 और इली'अज़र मर गया और उसके कोई बेटा न था सिर्फ़ बेटियाँ थीं, और उनके भाई क़ीस के बेटों ने उनसे ब्याह किया।
\v 23 मूशी के बेटे: महली और 'ऐदर और यरीमोत, येतीन थे।
\s5
\v 24 लावी के बेटे यही थे, जो अपने अपने आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ थे। उनके आबाई ख़ान्दानों के सरदार जैसा वह नाम-ब- नाम एक एक करके गिने गए यही हैं। वह बीस बरस और उससे ऊपर की 'उम्र से ख़ुदावन्द के घर की ख़िदमत का काम करते थे।
\v 25 क्यूँकि दाऊद ने कहा कि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने अपने लोगों को आराम दिया है, और वह हमेशा तक यरूशलीम में सुकूनत करेगा।
\v 26 और लावियों को भी घर और उसकी ख़िदमत के सब बर्तनों को फिर कभी उठाना न पड़ेगा।
\s5
\v 27 क्यूँकि दाऊद की पिछली बातों के मुताबिक़ बनी लावी जो बीस बरस और उससे ज़्यादा 'उम्र के थे, गिने गए।
\v 28 क्यूँकि उनका काम यह था कि ख़ुदावन्द के घर की ख़िदमत के वक़्त, सहनों और कोठरियों में और सब मुक़द्दस चीज़ों के पाक करने में, या'नी ख़ुदा के घर की ख़िदमत के काम में, बनी हारून की मदद करें;
\v 29 और नज़्र की रोटी का, और मैदे की नज़्र की क़ुर्बानी का ख़्वाह वह बेख़मीरी रोटियों या तवे पर की पकी हुई चीज़ों या तली हुई चीज़ों की हो, और हर तरह के तौल और नाप का काम करें।
\s5
\v 30 और हर सुबह और शाम को खड़े होकर ख़ुदावन्द की शुक्रगुज़ारी और बड़ाई करें,
\v 31 और सब्तों और नये चाँदों और मुक़र्ररा 'ईदों में, हमेशा ख़ुदावन्द के सामने पूरी ता'दाद में सब सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ उस क़ाइदे के मुताबिक़ जो उनके बारे में है पेश करें।
\s5
\v 32 और ख़ुदावन्द के घर की ख़िदमत को अन्जाम देने के लिए ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ की हिफ़ाज़त और मक़दिस की निगरानी और अपने भाई बनी हारून की इता'अत करें।
\s5
\c 24
\p
\v 1 और बनी हारून के फ़रीक़ यह थे हारून के बेटे नदब, अबीहू और इलि'अज़र और इतमर थे।
\v 2 नदब और अबीहू अपने बाप से पहले मर गए और उनके औलाद न थी, इसलिए इली'अज़र और इतमर ने कहानत का काम किया।
\v 3 दाऊद ने इली'अज़र के बेटों में से सदोक़, और इतमर के बेटों में से अख़ीमलिक को उनकी ख़िदमत की तरतीब के मुताबिक़ तक़्सीम किया।
\s5
\v 4 इतमर के बेटों से ज़्यादा इली'अज़र के बेटों में रईस मिले, और इस तरह से वह तक़्सीम किए गए के इली'अज़र के बेटों में आबाई ख़ान्दानों के सोलह सरदार थे; और इतमर के बेटों में से आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ आठ।
\v 5 इस तरह पर्ची डाल कर और एक साथ ख़ल्त मल्त होकर वह तक़्सीम हुए, क्यूँकि मक़दिस के सरदार और ख़ुदा के सरदार बनी इली'अज़र और बनी इतमर दोनों में से थे।
\s5
\v 6 और नतनीएल मुन्शी के बेटे समायाह ने जो लावियों में से था, उनके नामों को बादशाह और अमीरों और सदोक़ काहिन और अख़ीमलिक बिन अबियातर और काहिनों और लावियों के आबाई ख़ान्दानों के सरदारों के सामने लिखा। जब इली'अज़र का एक आबाई ख़ान्दान लिया गया, तो इतमर का भी एक आबाई ख़ान्दान लिया गया।
\s5
\v 7 और पहली चिट्ठी यहूयरीब की निकली, दूसरी यद'अयाह की,
\v 8 तीसरी हारिम की, चौथी श'ऊरीम,
\v 9 पाँचवीं मलकियाह की, छटी मियामीन की
\v 10 सातवीं हक्कूज़ की, आठवीं अबियाह की,
\s5
\v 11 नवीं यशू'आ की, दसवीं सिकानियाह की,
\v 12 ग्यारहवीं इलयासिब की, बारहवीं यक़ीम की,
\v 13 तेरहवीं खुफ़्फ़ाह की, चौदहवीं यसबाब की,
\v 14 पन्द्रहवीं बिल्जाह की, सोलहवीं इम्मेर की,
\s5
\v 15 सत्रहवीं हज़ीर की, अठारहवीं फ़ज़ीज़ की,
\v 16 उन्नीसवीं फ़तहियाह की, बीसवीं यहज़िकेल की,
\v 17 इक्कीसवीं यकिन की, बाइसवीं जम्मूल की,
\v 18 तेइसवीं दिलायाह की, चौबीसवीं माज़ियाह की।
\s5
\v 19 यह उनकी ख़िदमत की तरतीब थी, ताकि वह ख़ुदावन्द के घर में उस क़ानून के मुताबिक़ आएँ जो उनको उनके बाप हारून की ज़रिए' वैसा ही मिला, जैसा ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने उसे हुक्म किया था।
\s5
\v 20 बाक़ी बनी लावी में से: 'अमराम के बेटों में से सूबाएल, सूबाएल के बेटों में से यहदियाह;
\v 21 रहा रहबियाह, सो रहबियाह के बेटों में से पहला यस्सियाह।
\v 22 इज़हारियों में से सलूमोत, बनी सलूमोत में से यहत।
\s5
\v 23 बनी हबरून में से: यरियाह पहला, अमरियाह दूसरा, यह ज़िएल तीसरा, यकमि'आम चौथा।
\v 24 बनी उज़्ज़ीएल में से: मीकाह; बनी मीकाह में से: समीर।
\v 25 मीकाह का भाई यस्सियाह, बनी यस्सियाह में से ज़करियाह।
\s5
\v 26 मिरारी के बेटे: महली और मूशी। बनी याज़ियाह में से बिनू
\v 27 रहे बनी मिरारी, सो याज़ियाह से बिनू और सूहम और ज़क्कूर और 'इब्री।
\v 28 महली से: इली'अज़र, जिसके कोई बेटा न था।
\s5
\v 29 क़ीस से, क़ीस का बेटा: यरहमिएल।
\v 30 और मूशी के बेटे: महली और 'ऐदर और यरीमीत। लावियों की औलाद अपने आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ यही थी।
\v 31 इन्होंने भी अपने भाई बनी हारून की तरह, दाऊद बादशाह और सदूक़ और अख़ीमालिक और काहिनों और लावियों के आबाई ख़ान्दानों के सरदारों के सामने अपना अपनी पर्ची डाला, या'नी सरदार के आबाई ख़ान्दानों का जो हक़ था वही उसके छोटे भाई के ख़ान्दानों का था।
\s5
\c 25
\p
\v 1 फिर दाऊद और लश्कर के सरदारों ने आसफ़ और हैमान और यदूतून के बेटों में से कुछ को ख़िदमत के लिए अलग किया, ताकि वह बरबत और सितार और झाँझ से नबुव्वत करें; और जो उस काम को करते थे उनका शुमार उनकी ख़िदमत के मुताबिक़ यह था:
\v 2 आसफ़ के बेटों में से ज़क्कूर, यूसुफ़, नतनियाह और असरीलाह; आसफ़ के यह बेटे आसफ़ के मातहत थे, जो बादशाह के हुक्म के मुताबिक़ नबुव्वत करता था।
\v 3 यदूतून से बनी यदूतून, सो जिदलियाह, ज़री और यसा'याह, हसबियाह और मतितियाह, यह छ: अपने बाप यदूतून के मातहत थे जो बरबत लिए रहता और ख़ुदावन्द की शुक्रगुज़ारी और हम्द करता हुआ नबुव्वत करता था।
\s5
\v 4 रहा हैमान, वह हैमान के बेटे: बुक़्क़याह, मत्तनियाह, 'उज़्ज़ीएल, सबूएल यरीमोत, हनानियाह, हनानी, इलियाता, जिद्दाल्ती, रूमम्ती'अज़र, यसबिक़ाशा, मल्लूती, हौतीर, और महाज़ियोत;
\v 5 यह सब हैमान के बेटे थे, जो ख़ुदा की बातों में सींग बुलन्द करने के लिए बादशाह का गै़बबीन था; और ख़ुदा ने हैमान को चौदह बेटे और तीन बेटियाँ दी थीं।
\s5
\v 6 यह सब ख़ुदावन्द के घर में हम्द करने के लिए अपने बाप के मातहत थे, और झाँझ और सितार और बरबत से ख़ुदा के घर की ख़िदमत करते थे। आसफ़ और यदूतून और हैमान बादशाह के हुक्म के ताबे' थे
\v 7 उनके भाइयों समेत जो ख़ुदावन्द की ता'रीफ़ और बड़ाई ~की ता'लीम पा चुके थे, या'नी वह सब जो माहिर थे, उनका शुमार दो सौ अठासी था।
\v 8 और उन्होंने क्या छोटे क्या बड़े क्या उस्ताद क्या शागिर्द, एक ही तरीक़े से अपनी अपनी ख़िदमत के लिए पर्ची डाला।
\s5
\v 9 पहली चिट्ठी आसफ़ की यूसुफ़ को मिली, दूसरी जिदलियाह को, और उसके भाई और बेटे उस समेत बारह थे।
\v 10 तीसरी ज़क्कूर को, और उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\v 11 चौथी यिज़री को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\v 12 पाँचवीं नतनियाह को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\s5
\v 13 छटी बुक्कयाह को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे|
\v 14 सातवीं यसरीलाह को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\v 15 आठवीं यसा'याह को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\v 16 नवीं मत्तनियाह को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\s5
\v 17 दसवीं सिमई को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\v 18 ग्यारहवीं 'अज़रएल को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\v 19 बारहवीं हसबियाह को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\v 20 तेरहवीं सबूएल को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\s5
\v 21 चौदहवीं मतितियाह को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\v 22 पंद्रहवीं यरीमोत को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\v 23 सोलहवीं हनानियाह को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\v 24 सत्रहवीं यसबिक़ाशा को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\s5
\v 25 अठारहवीं हनानी को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\v 26 उन्नीसवीं मल्लूती को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\v 27 बीसवीं इलयाता को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\v 28 इक्कीसवीं हौतीर को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\s5
\v 29 बाइसवीं जिद्दाल्ती को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\v 30 तेइसवीं महाज़ियोत को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\v 31 चौबीसवीं रूमम्ती 'अज़र को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
\s5
\c 26
\p
\v 1 दरबानों के फ़रीक़ यह थे: क़ुरहियों में मसलमियाह बिन कूरे, जो बनी आसफ़ में से था;
\v 2 और मसलमियाह के यहाँ बेटे थे: ज़करियाह पहलौठा, यदी'एल दूसरा, जबदियाह तीसरा, यतनीएल चौथा,
\v 3 ऐलाम पाँचवाँ, यहूहानान छटा, इलीहू'ऐनी सातवाँ था।
\s5
\v 4 और 'ओबेदअदोम के यहाँ बेटे थे: समा'याह पहलौठा, यहूज़बा'द दूसरा, यूआख़ तीसरा, और सकार चौथा, और नतनीएल पाँचवाँ,
\v 5 'अम्मीएल छटा, इश्कार सातवाँ, फ़'उलती आठवाँ; क्यूँकि ख़ुदा ने उसे बरकत बख़्शी थी।
\v 6 उसके बेटे समायाह के यहाँ भी बेटे पैदा हुए, जो अपने आबाई खानदान पर सरदारी करते थे क्यूँकि वह ताक़तवर सूर्मा थे।
\s5
\v 7 समायाह के बेटे: उतनी और रफ़ाएल और 'ओबेद और इलज़बा'द, जिनके भाई इलीहू और समाकियाह सूर्मा थे।
\v 8 यह सब 'ओबेदअदोम की औलाद में से थे। वह और उनके बेटे और उनके भाई ख़िदमत के लिए ताक़त के 'ऐतबार से क़ाबिल आदमी थे, यूँ 'ओबेदअदोमी बासठ थे।
\v 9 मसलमियाह के बेटे और भाई अठारह सूर्मा थे।
\s5
\v 10 और बनी मिरारी में से हूसा के हाँ बेटे थे: सिमरी सरदार था (वह पहलौठा तो न था, लेकिन उसके बाप ने उसे सरदार बना दिया था),
\v 11 दूसरा खिलक़ियाह, तीसरा तबलयाह, चौथा ज़करियाह; हूसा के सब बेटे और भाई तेरह थे।
\s5
\v 12 इन्ही में से या'नी सरदारों में से दरबानों के फ़रीक़ थे, जिनका ज़िम्मा अपने भाइयों की तरह ख़ुदावन्द के घर में ख़िदमत करने का था।
\v 13 और उन्होंने क्या छोटे क्या बड़े, अपने अपने आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ हर एक फाटक के लिए पर्ची डाला।
\v 14 ~पूरब की तरफ़ का पर्ची सलमियाह के नाम निकला। फिर उसके बेटे ज़करियाह के लिए भी, जो 'अक़्लमन्द सलाहकार था, पर्चा डाला गया और उसका पर्चा शिमाल की तरफ़ का निकला।
\s5
\v 15 'ओबेदअदोम के लिए जुनूब की तरफ़ का था, और उसके बेटों के लिए ग़ल्लाखाना का।
\v 16 सुफ़्फ़ीम और हूसा के लिए पश्चिम की तरफ़ सलकत के फाटक के नज़दीक का, जहाँ से ऊँची सड़क ऊपर जाती है ऐसा कि आमने सामने होकर पहरा दें।
\s5
\v 17 ~पूरब की तरफ़ छ: लावी थे, उत्तर की तरफ़ हर रोज़ चार, दक्खिन की तरफ़ हर रोज़ चार, और तोशाख़ाने के पास दो दो।
\v 18 ~पश्चिम की तरफ़ परबार के लिए चार तो ऊँची सड़क पर और दो परबार के लिए।
\v 19 बनी कोरही और बनी मिरारी में से दरबानों के फ़रीक़ यही थे।
\s5
\v 20 लावियों में से अख़ियाह ख़ुदा के घर के ख़ज़ानों और नज़्र की चीज़ों के ख़ज़ानों पर मुक़र्रर था।
\v 21 बनी ला'दान: इसलिए ला'दान के ख़ान्दान के जैरसोनियों के बेटे, जो उन आबाई ख़ान्दानों के सरदार थे, जो जैरसोनी ला'दान से त'अल्लुक रखते थे यह थे: यहीएली।
\v 22 और यहीएली के बेटे: जैताम और उसका भाई यूएल, ख़ुदावन्द के घर के खज़ानों पर थे।
\s5
\v 23 अमरामियों, इज़हारियों, हबरूनियों और उज़्ज़ीएलियों में से:
\v 24 सबूएल बिन जैरसोम बिन मूसा, बैत-उल-माल पर मुख़्तार था।
\v 25 और उसके भाई इली'अज़र की तरफ़ से: उसका बेटा रहबियाह, रहबिया का बेटा यसा'याह, यसा'याह का बेटा यूराम, यूराम का बेटा ज़िकरी, ज़िकरी का बेटा सल्लूमीत।
\s5
\v 26 यह सल्लूमीत और उसके भाई नज़्र की हुई चीज़ों के सब ख़ज़ानों पर मुक़र्रर थे, जिनको दाऊद बादशाह और आबाई ख़ान्दानों के सरदारों और हज़ारों और सैकड़ों के सरदारों और लश्कर के सरदारों ने नज़्र किया था।
\v 27 लड़ाइयों की लूट में से उन्होंने ख़ुदावन्द के घर की मरम्मत के लिए कुछ नज़्र किया था।
\v 28 समुएल गै़बबीन और साऊल बिन क़ीस और अबनेर बिन नेर और योआब बिन ज़रूयाह की सारी नज़्र, ग़रज़ जो कुछ किसी ने नज़्र किया था वह सब सल्लूमीत और उसके भाइयों के हाथ में सुपुर्द था।
\s5
\v 29 इज़हारियों में से कनानियाह और उसके बेटे, इस्राईलियों पर बाहर के काम के लिए हाकिम और क़ाज़ी थे।
\v 30 हबरूनियों में से हसबियाह और उसके भाई, एक हज़ार सात सौ सूर्मा, मग़रिब की तरफ़ यरदन पार के इस्राईलियों की निगरानी की ख़ातिर ख़ुदावन्द के सब काम और बादशाह की ख़िदमत के लिए तैनात थे।
\s5
\v 31 हबरूनियों में यरयाह, हबरूनियों का उनके आबाई ख़ान्दानों के नस्बों के मुताबिक़ सरदार था। दाऊद की हुकूमत के चालीसवें बरस में वह ढूँड निकाले गए, और जिल'आद के या'ज़ीर में उनके बीच ताक़तवर सूर्मा मिले।
\v 32 उसके भाई, दो हज़ार सात सौ सूर्मा और आबाई ख़ान्दानों के सरदार थे, जिनकी दाऊद बादशाह ने रूबीनियों और जहियों और मनस्सी के आधे क़बीले पर ख़ुदा के हर एक काम और शाही मु'आमिलात के लिए सरदार बनाया।
\s5
\c 27
\p
\v 1 और बनी इराईल अपने शुमार के मुवाफ़िक़ या'नी आबाई ख़ान्दानों के रईस और हज़ारों और सैकड़ों के सरदार और उनके मन्सबदार जो उन फ़रीक़ों के हर हाल में बादशाह की ख़िदमत करते थे, जो साल के सब महीनों में माह-ब-माह आते और रुख़्सत होते थे, हर फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।
\v 2 पहले महीने के पहले फ़रीक़ पर यसूबि'आम बिन ज़बदिएल था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।
\v 3 वह बनी फ़ारस में से था और पहले महीने के लश्कर के सब सरदारों का रईस था।
\s5
\v 4 दूसरे महीने के फ़रीक़ पर दूदे अख़्ही था, और उसके फ़रीक़ में मिकलोत भी सरदार था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे
\v 5 तीसरे महीने के लश्कर का ख़ास तीसरा सरदार यहूयदा' काहिन का बेटा बिनायाह था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।
\v 6 यह वह बिनायाह है जो तीसों में ज़बरदस्त और उन तीसों के ऊपर था; उसी के फ़रीक़ में उसका बेटा 'अम्मीज़बा'द भी शामिल था।
\s5
\v 7 चौथे महीने के लिए यूआब का भाई 'असाहील था, और उसके पीछे उसका बेटा ज़बदियाह था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।
\v 8 पाँचवें महीने के लिए पाँचवाँ सरदार समहूत इज़राख़ी था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।
\v 9 छटे महीने के लिए छटा सरदार तकू'ई 'इक्कीस का बेटा ईरा था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।
\s5
\v 10 सातवें महीने के लिए सातवाँ सरदार बनी इफ़्राईम में से फ़लूनीख़लस था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।
\v 11 आठवे महीने के लिए आठवाँ सरदार ज़ारहियों में से हूसाती सिब्बकी था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।
\v 12 नवें महीने के लिए नवाँ सरदार बिनयमीनियों में से 'अन्तूती अबी'अज़र था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।
\s5
\v 13 दसवें महीने के लिए दसवाँ सरदार ज़ारहियों में से नतूफ़ाती महरी था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।
\v 14 ग्यारहवें महीने के लिए ग्यारहवाँ सरदार बनी इफ़्राईम में से फ़र'आतीनी बिनायाह था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।
\v 15 बारहवें महीने के लिए बारहवाँ सरदार गुतनीएलियों में से नतूफ़ाती ख़ल्दी था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।
\s5
\v 16 इस्राईल के क़बीलों पर रूबीनियों का सरदार इली'अज़र बिन ज़िकरी था, शमा'ऊनियों का सफ़तियाह बिन मा'का;
\v 17 लावियों का हसबियाह बिन क़मूएल, हारूनियों का सदोक़;
\v 18 यहूदाह का इलीहू, जो दाऊद के भाइयों में से था; इश्कार का 'उमरी बिन मीकाएल;
\s5
\v 19 ज़बूलून का इसमाइयाह बिन 'अबदियाह, नफ़्ताली का यरीमोत बिन 'अज़रिएल;
\v 20 बनी इफ़्राईम का हूसी'अ बिन 'अज़ाज़ियाह, मनस्सी के आधे क़बीले का यूएल बिन फ़िदायाह;
\v 21 जिल'आद में मनस्सी के आधे क़बीले का 'ईदू बिन ज़करियाह, बिनयमीन का या'सीएल बिन अबनेर;
\v 22 दान का 'अज़रि'एल बिन यरोहाम। यह इस्राईल के क़बीलों के सरदार थे।
\s5
\v 23 लेकिन दाऊद ने उनका शुमार नहीं किया था जो बीस बरस या कम उम्र के थे, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने कहा था कि मैं इस्राईल को आसमान के तारों की तरह बढ़ाऊँगा।
\v 24 ज़रूयाह के बेटे यूआब ने गिनना तो शुरू 'किया, लेकिन ख़त्म नहीं किया था कि इतने में इस्राईल पर क़हर नाज़िल हुआ, और न वह ता'दाद दाऊद बादशाह की तवारीख़ी ता'दादों में दर्ज हुई।
\s5
\v 25 शाही ख़ज़ानों पर 'अज़मावत बिन 'अदिएल मुक़र्रर था, और खेतों और शहरों और गाँव और क़िलों' के ख़ज़ानों पर यहूनतन बिन उज़्ज़ियाह था;
\v 26 और काश्तकारी के लिए खेतों में काम करनेवालों पर 'अज़री बिन कलूब था;
\v 27 और अंगूरिस्तानों पर सिम'ई रामाती था, और मय के ज़ख़ीरों के लिए अंगूरिस्तानों की पैदावार पर ज़बदी शिफ़मी था;
\s5
\v 28 और जै़तून के बाग़ों और गूलर के दरख़्तों पर जो नशेब के मैदानों में थे, बा'ल हनान जदरी था; और यूआस तेल के गोदामों पर;
\v 29 और गाय-बैल के गल्लों पर जो शारून में चरते थे, सितरी शारूनी था; और साफ़त बिन 'अदली गाय-बैल के उन गल्लों पर था जो वादियों में थे;
\s5
\v 30 और ऊँटों पर इस्माईली ओबिल था, और गधों पर यहदियाह मरूनोती था;
\v 31 और भेड़-बकरी के रेवड़ों पर याज़ीज़ हाजिर था। यह सब दाऊद बादशाह के माल पर मुक़र्रर थे।
\s5
\v 32 दाऊद का चचा योनतन सलाह कार और अक़्लमंद और मुन्शी था, और यहीएल बिन हकमूनी शहज़ादों के साथ रहता था।
\v 33 अख़ीतुफ़ल बदशाह का सलाह कार था, और हूसीअरकी बादशाह का दोस्त था।
\v 34 और अख़ीतुफ़ल से नीचे यहूयदा' बिन बिनायाह और अबियातर थे, और शाही फ़ौज का सिपहसालार यूआब था।
\s5
\c 28
\p
\v 1 दाऊद ने इस्राईल के सब हाकिमों को जो क़बीलों के सरदार थे, और उन फ़रीक़ों के सरदारों को जो बारी बारी बादशाह की ख़िदमत करते थे, और हज़ारों के सरदारों और सैकड़ों के सरदारों, और बादशाह के और उसके बेटों के सब माल और मवेशी के सरदारों, और ख़्वाजा सराओं और बहादुरों बल्कि सब ताक़तवर सूर्माओं को यरूशलीम में इकट्ठा किया।
\s5
\v 2 तब दाऊद बादशाह अपने पाँव पर उठ खड़ा हुआ, और कहने लगा, ऐ मेरे भाइयों और मेरे लोगों, मेरी सुनो! मेरे दिल में तो था कि ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ के लिए आरामगाह, और अपने ख़ुदा के लिए पाँव की कुर्सी बनाऊँ, और मैंने उसके बनाने की तैयारी भी की;
\v 3 लेकिन ख़ुदा ने मुझ से कहा कि तू मेरे नाम के लिए घर नहीं बनाने पाएगा, क्यूँकि तू जंगी मर्द है और तू ने ख़ूनबहाया है।
\s5
\v 4 तो भी ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने मुझे मेरे बाप के सारे घराने में से चुन लिया कि मैं हमेशा इस्राईल का बादशाह रहूँ, क्यूँकि उसने यहूदाह को रहनुमा होने के लिए मुन्तख़ब किया; और यहूदाह के घराने में से मेरे बाप के घराने को चुना है, और मेरे बाप के बेटों में से मुझे पसंद किया ताकि मुझे सारे इस्राईल का बादशाह बनाए।
\v 5 और मेरे सब बेटों में से (क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मुझे बहुत से बेटे दिए हैं) उसने मेरे बेटे सुलेमान को पसंद किया, ताकि वह इस्राईल पर ख़ुदावन्द की हुकूमत के तख़्त पर बैठे।
\s5
\v 6 उसने मुझ से कहा, 'तेरा बेटा सुलेमान मेरे घर और मेरी बारगाहों को बनाएगा, क्यूँकि मैंने उसे चुन लिया है कि वह मेरा बेटा हो और मैं उसका बाप हूँगा।
\v 7 और अगर वह मेरे हुक्मों और फ़रमानों पर 'अमल करने में साबित क़दम रहे जैसा आज के दिन है, तो मैं उसकी बादशाही हमेशा तक क़ायम रखूँगा।'
\s5
\v 8 फिर अब सारे इस्राईल या'नी ख़ुदावन्द की जमा'अत के सामने और हमारे ख़ुदा के सामने, तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सब हुक्मों को मानो और उनके तालिब हो, ताकि तुम इस अच्छे मुल्क के वारिस हो; और उसे अपने बा'द अपनी औलाद के लिए हमेशा के लिए मीरास छोड़ जाओ।
\s5
\v 9 और तू ऐ मेरे बेटे सुलेमान, अपने बाप के ख़ुदा को पहचान और पूरे दिल और रूह की मुस्त'इदी से उसकी 'इबा'दत कर; क्यूँकि ख़ुदावन्द सब दिलों को जाँचता है, और जो कुछ ख़्याल में आता है उसे पहचानता है। अगर तू उसे ढूँडे तो वह तुझ को मिल जाएगा, और अगर तू उसे छोड़े तो वह हमेशा के लिए तुझे रद्द कर देगा।
\v 10 इसलिए होशियार हो, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने तुझ को मक़दिस के लिए एक घर बनाने को चुना है, इसलिए हिम्मत बाँध कर काम कर।
\s5
\v 11 तब दाऊद ने अपने बेटे सुलेमान को हैकल के उसारे और उसके मकानों और ख़ज़ानों और बालाख़ानों और अन्दर की कोठरियों और कफ़्फ़ारागाह की जगह का नमूना,
\v 12 और उन सब चीज़ों, या'नी ख़ुदावन्द के घर के सहनों और आस पास की कोठरियों और ख़ुदा के घर के ख़ज़ानों और नज़्र की हुई चीज़ों के ख़ज़ानों का नमूना भी दिया जो, उसको रूह' से मिला था;
\s5
\v 13 और काहिनों और लावियों के फ़रीक़ों और ख़ुदावन्द के घर की 'इबादत के सब काम और ख़ुदावन्द के घर की 'इबादत के सब बर्तन के लिए,
\v 14 या'नी सोने के बर्तनों के वास्ते सोना तोल कर हर तरह की ख़िदमत के सब बर्तनों के लिए, और चाँदी के सब बर्तनों के वास्ते चाँदी तौल कर हर तरह की ख़िदमत के सब बर्तनों के लिए,
\v 15 और सोने के शमा'दानों और उसके चिराग़ों के लिए एक एक शमा'दान, और उसके चराग़ों का सोना तोल कर; और चाँदी के शमा'दानों के लिए एक एक शमा'दान, और उसके चराग़ों के लिए हर शमा'दान के इस्ते'माल के मुताबिक़ चाँदी तौल कर;
\s5
\v 16 और नज़्र की रोटी की मेज़ों के वास्ते एक एक मेज़ के लिए सोना तोल कर, और चाँदी की मेज़ों के लिए चाँदी;
\v 17 और काँटों और कटोरों और प्यालों के लिए ख़ालिस सोना दिया, और सुनहले प्यालों के लिए एक एक प्याले के लिए तौल कर, और चाँदी के प्यालों के वास्ते एक एक प्याले के लिए तौल कर;
\s5
\v 18 और ख़ुशबू की क़ुर्बानगाह के लिए चोखा सोना तौल कर, और रथ के नमूने या'नी उन करूबियों के लिए जो पर फैलाए ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को ढाँके हुए थे, सोना दिया।
\v 19 यह सब या'नी इस नमूने के सब काम ख़ुदावन्द के हाथ की तहरीर से मुझे समझाए गए।
\s5
\v 20 दाऊद ने अपने बेटे सुलेमान से कहा, हिम्मत बाँध और हौसले से काम कर, ख़ौफ़ न कर, परेशान न हो, क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा जो मेरा ख़ुदा है तेरे साथ है। वह तुझ कोन छोड़ेगा और न छोड़ा करेगा, जब तक ख़ुदावन्द के घर की ख़िदमत का सारा काम तमाम न हो जाए।
\v 21 और देख, काहिनों और लावियों के फ़रीक़ ख़ुदा के घर की सारी ख़िदमत के लिए हाज़िर हैं, और हर क़िस्म की ख़िदमत के लिए सब तरह के काम में हर शख़्स जो माहिर है बख़ुशी तेरे साथ हो जाएगा; और लश्कर के सरदार और सब लोग भी तेरे हुक्म में होंगे।
\s5
\c 29
\p
\v 1 और दाऊद बादशाह ने सारी जमा'अत से कहा कि ख़ुदा ने सिर्फ़ मेरे बेटे सुलेमान को चुना है, और वह अभी लड़का और नातज़ुरबेकार है; और काम बड़ा है, क्यूँकि वह महल इन्सान के लिए नहीं बल्कि ख़ुदावन्द ख़ुदा के लिए है।
\v 2 और मैंने तो अपने मक़दूर भर अपने ख़ुदा की हैकल के लिए सोने की चीज़ों के लिए सोना, और चाँदी की चीज़ों के लिए चाँदी, और पीतल की चीज़ों के लिए पीतल, लोहे की चीज़ों के लिए लोहा, और लकड़ी की चीज़ों के लिए लकड़ी, और 'अक़ीक़ और जड़ाऊ पत्थर और पच्ची के काम के लिए रंग बिरंग के पत्थर, और हर क़िस्म के बेशक़ीमत जवाहिर और बहुत सा संग-ए-मरमर तैयार किया है।
\s5
\v 3 और चूँकि मुझे अपने ख़ुदा के घर की लौ लगी है और मेरे पास सोने और चाँदी का मेरा अपना ख़ज़ाना है, इसलिए मैं उसकी भी उन सब चीज़ों के 'अलावा जो मैंने उस मुक़द्दस हैकल के लिए तैयार की हैं, अपने ख़ुदा के घर के लिए देता हूँ।
\v 4 या'नी तीन हज़ार क़िन्तार सोना जो ओफ़ीर का सोना है, और सात हज़ार क़िन्तार ख़ालिस चाँदी 'इमारतों की दीवारों पर मढ़ने के लिए;
\v 5 और कारीगरों के हाथ के हर क़िस्म के काम के लिए सोने की चीज़ों के लिए सोना, और चाँदी की चीज़ों के लिए चाँदी है। तो कौन तैयार है कि अपनी ख़ुशी से अपने आपको आज ख़ुदावन्द के लिए मख़्सूस' करे?
\s5
\v 6 तब आबाई ख़ान्दानों के सरदारों और इस्राईल के क़बीलों के सरदारों और हज़ारों और सैंकड़ों के सरदारों और शाही काम के नाज़िमों ने अपनी ख़ुशी से तैयार होकर,
\v 7 ख़ुदा के घर के काम के लिए, सोना पाँच हज़ार क़िन्तार और दस हज़ार दिरहम, और चाँदी दस हज़ार क़िन्तार, और पीतल अठारह हज़ार क़िन्तार, और लोहा एक लाख क़िन्तार दिया।
\s5
\v 8 और जिनके पास जवाहिर थे, उन्होंने उनकी जैरसोनी यहीएल के हाथ में ख़ुदावन्द के घर के ख़ज़ाने के लिए दे डाला।
\v 9 तब लोग शादमान हुए, इसलिए कि उन्होंने अपनी ख़ुशी से दिया क्यूँकि उन्होंने पूरे दिल से रज़ामन्दी से ख़ुदावन्द के लिए दिया था; और दाऊद बादशाह भी निहायत शादमान हुआ।
\s5
\v 10 ~फिरदाऊद ने सारी जमा'अत के आगे ख़ुदावन्द का शुक्र किया, और दाऊद कहने लगा, ऐ ख़ुदावन्द, हमारे बाप इस्राईल के ख़ुदा! तू हमेशा से हमेशा तक मुबारक हो।
\v 11 ऐ ख़ुदावन्द, 'अज़मत और क़ुदरत और जलाल और ग़लबा और हशमत तेरे ही लिए हैं, क्यूँकि सब कुछ जो आसमान और ज़मीन में है तेरा है। ऐ ख़ुदावन्द, बादशाही तेरी है, और तू ही बहैसियत-ए-सरदार सभों से मुम्ताज़ है।
\s5
\v 12 और दौलत और 'इज़्ज़त तेरी तरफ़ से आती है, और तू सभों पर हुकूमत करता है, और तेरे हाथ में क़ुदरत और तवानाई हैं, और सरफ़राज़ करना और सभों को ज़ोर बख़्शना तेरे हाथ में है।
\v 13 और अब ऐ हमारे ख़ुदा, हम तेरा शुक्र और तेरे जलाली नाम की ता'रीफ़ करते हैं।
\s5
\v 14 ~लेकिन मैं कौन और मेरे लोगों की हक़ीक़त क्या कि हम इस तरह से ख़ुशी ख़ुशी नज़राना देने के क़ाबिल हों? क्यूँकि सब चीजें तेरी तरफ़ से मिलती हैं, और तेरी ही चीज़ों में से हम ने तुझे दिया है।
\v 15 क्यूँकि हम तेरे आगे परदेसी और मुसाफ़िर हैं जैसे हमारे सब बाप-दादा थे। हमारे दिन रू-ए-ज़मीन पर साये की तरह हैं, और क़याम नसीब नहीं।
\s5
\v 16 ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा, यह सारा ज़ख़ीरा जो हम ने तैयार किया है कि तेरे पाक नाम के लिए एक घर बनाएँ, तेरे ही हाथ से मिला है और सब तेरा ही है।
\v 17 ऐ मेरे ख़ुदा, मैं यह भी जानता हूँ कि तू दिल को जाँचता है, और रास्ती में तेरी खुशनूदी है। मैंने तो अपने दिल की रास्ती से यह सब कुछ रज़ामंदी से दिया, और मुझे तेरे लोगों को जो यहाँ हाज़िर हैं, तेरे सामने ख़ुशी ख़ुशी देते देख कर ख़ुशी हासिल हुई।
\s5
\v 18 ऐ ख़ुदावन्द, हमारे बाप-दादा अब्रहाम, इज़्हाक और इस्राईल के ख़ुदा, अपने लोगों के दिल के ख़्याल और तसव्वुर में यह बात सदा जमाए रख, और उनके दिल को अपनी जानिब मुसत'ईद कर।
\v 19 और मेरे बेटे सुलेमान को ऐसा कामिल दिल 'अता कर कि वह तेरे हुक्मों और शहादतों और क़ानून को माने और इन सब बातों पर 'अमल करे, और उस हैकल को बनाए जिसके लिए मैंने तैयारी की है।
\s5
\v 20 फिर दाऊद ने सारी जमा'अत से कहा, अब अपने ख़ुदावन्द ख़ुदा को मुबारक कहो। तब सारी जमा'अत ने ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा को मुबारक कहा, और सिर झुकाकर उन्होंने ख़ुदावन्द और बादशाह के आगे सिज्दा किया।
\v 21 दूसरे दिन ख़ुदावन्द के लिए ज़बीहों को ज़बह किया और ख़ुदावन्द के लिए सोख़्तनी कु़र्बानियाँ पेश कीं, या'नी एक हज़ार बैल और एक हज़ार मेंढे और एक हज़ार बर्रे म'ए उनके तपावनों के चढ़ाए, और बकसरत कु़र्बानियाँ कीं जो सारे इस्राईल के लिए थीं।
\s5
\v 22 और उन्होंने उस दिन निहायत ख़ुशी के साथ ख़ुदावन्द के आगे खाया-पिया और उन्होंने दूसरी बार दाऊद के बेटे सुलेमान को बादशाह बनाकर, उसको ख़ुदावन्द की तरफ़ से पेशवा होने और सदोक़ को काहिन होने के लिए मसह किया।
\v 23 तब सुलेमान ख़ुदावन्द के तख़्त पर अपने बाप दाऊद की जगह बादशाह होकर बैठा और कामयाब हुआ, और सारा इस्राईल उसका फ़रमाँबरदार हुआ।
\s5
\v 24 और सब हाकिम और बहादुर और दाऊद बादशाह के सब बेटे भी सुलेमान बादशाह के फ़रमाँबरदार हुए।
\v 25 और ख़ुदावन्द ने सारे इस्राईल की नज़र में सुलेमान को निहायत सरफ़राज़ किया, और उसे ऐसा शाहाना दबदबा 'इनायत किया जो उससे पहले इस्राईल में किसी बादशाह को नसीब न हुआ था।
\s5
\v 26 दाऊद बिन यस्सी ने सारे इस्राईल पर हुकूमत की;
\v 27 और वह 'अर्सा जिसमें उसने इस्राईल पर हुकूमत की चालीस बरस का था। उसने हबरून में सात बरस और यरूशलीम में तैतीस बरस हुकू़मत की।
\v 28 और उसने निहायत बुढ़ापे में ख़ूब 'उम्र रसीदा और दौलत-ओ-इज़्ज़त से आसूदा होकर वफ़ात पाई, और उसका बेटा सुलेमान उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\v 29 दाऊद बादशाह के काम शुरू' सर तक, आख़िर सब के सब समुएल नबी की तवारीख़ में और नातन नबी की तवारीख़ में और जाद नबी की तवारीख़ में,
\v 30 या'नी उसकी सारी हुकूमत और ज़ोर और जो ज़माने उस पर और इस्राईल पर और ज़मीन की सब ममलुकतों पर गुज़रे, सब उनमें लिखे हैं।

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14-2CH.usfm Normal file
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\id 2CH
\ide UTF-8
\h २- तवारीख़
\toc1 २- तवारीख़
\toc2 २- तवारीख़
\toc3 2ch
\mt1 २- तवारीख़
\s5
\c 1
\p
\v 1 और सुलेमान बिन दाऊद अपनी ममलुकत में ठहरा ~हुआ और ख़ुदावन्द उसका ख़ुदा उसके साथ रहा और उसे बहुत बुलन्द ~किया|~
\s5
\v 2 और सुलेमान ने सारे इस्राईल या'नी हज़ारों और सैंकड़ो के सरदारों और क़ाज़िओं, और सब इस्राईलियों के रईसों से ज़ो आबाई ख़ानदानो के सरदार थे बातें कीं|
\v 3 और सुलेमान सारी ज़मा'अत साथ जिबा'उन के ऊँचे मक़ाम को गया क्यूँकि ख़ुदा का ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ जैसे ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने विराने ~में बनाया था वहीं था|
\v 4 लेकिन ख़ुदा के सन्दूक़ को दाऊद क़रीयत-या'रीम से उस मक़ाम में उठा लाया था जो उस ने उसके लिए तैयार किया था क्यूँकि उसने उस के लिए यरुशलीम में एक~ख़ेमा खड़ा किया था|
\v 5 लेकिन पीतल का वह मज़बह जिसे बज़लीएल बिन ऊरी बिन हूर ने बनाया था वहीं ख़ुदावन्द के मस्कन के आगे था|फिर सुलेमान उस जमा'अत के साथ वहीं गया|
\s5
\v 6 और सुलेमान वहाँ पीतल के मज़बह के पास जो ख़ुदावन्द के आगे ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ में था गया और उस पर एक हज़ार सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश कीं|
\v 7 उसी रात ख़ुदा सुलेमान को दिखाई दिया और उस से कहा, “माँग मैं तुझे क्या दूँ?
\s5
\v 8 सुलेमान ने ख़ुदा से कहा, “ तूने मेरे बाप दाऊद पर बड़ी मेहरबानी की और मुझे उसकी जगह बादशाह बनाया|
\v 9 अब ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, जो वा'दा तूने मेरे बाप दाऊद से किया वह बरक़रार रहे] क्यूँकि तूने मुझे एक ऐसी क़ौम का बादशाह बनाया है जो कसरत में ज़मीन की ख़ाक के ज़र्रों की तरह है|
\v 10 इसलिए मुझे हिक्मत-ओ-मा'रिफत इनायत कर ताकि मै इन लोगों के आगे अन्दर बाहर आया जाया करूँ क्यूँकि ~तेरी इस बड़ी क़ौम का इन्साफ़ कौन कर सकता है?
\v 11 तब ख़ुदा ने सुलेमान से कहा चुँकि तेरे दिल में यह बात थी और तूने न तो दौलत न माल न इज़्ज़त न अपने दुश्मनो की मौत माँगी और न लम्बी 'उम्र की तलब की बल्कि अपने लिए हिकमत-ओ-मा'रिफ़त की दरख़्वास्त की ताकि मेरे लोगों का जिन पर मैंने तुझे बादशाह बनाया है इन्साफ़ करें|
\s5
\v 12 इसलिए ~हिकमत-ओ-मा'रिफ़त तुझे 'अता हुई है और मै तुझे इस क़दर दौलत और माल और 'इज़्ज़त बख़्शूँगा कि न तू उन बादशाहों में से जो तुझ से पहले हुए किसी को नसीब हुई और न किसी को तेरे बा'द नसीब होगी|
\v 13 चुनाँचे सुलेमान जिबा'ऊन के ऊँचे मक़ाम से या'नी~ख़ेमा-ए- इज्तिमा'अ~के आगे से~यरुशलीम को लौट आया और बनी इस्राईल पर बादशाहत ~करने लगा|
\s5
\v 14 और सुलेमान ने रथ और सवार ज़मा कर लिए और उसके पास एक हज़ार चार सौ रथ और बारह हज़ार सवार थे,जिनको उसने रथों के शहरों में और यरुशलीम में बादशाह के पास रखा|
\v 15 और बादशाह ने यरुशलीम में चाँदी और सोने को कसरत की वजह से पत्थरों की तरह ~और देवदारों को नशेब की ज़मीन के गूलर के दरख़्तों की तरह ~बना दिया|
\v 16 और सुलेमान के घोड़े मिस्र से आते थे और बादशाह के सौदागर उनके झुंड के झुंड या'नी हर झुंड ~का मोल करके उनको लेते थे|
\v 17 और वह एक रथ छ:सौ मिस्क़ाल चांदी और एक घोड़ा डेढ़ सौ मिस्क़ाल में लेते और मिस्र से ले आते थे और इसी तरह हित्तियों के सब बादशाहों और आराम के बादशाहों के लिए उन ही के वसीला से उन को लाते थे|
\s5
\c 2
\p
\v 1 और सुलेमान ने 'इरादा किया कि एक घर ख़ुदावन्द के नाम के लिए और एक घर अपनी हुकूमत के लिए बनाए|
\v 2 और सुलेमान ने सत्तर हज़ार भोझ उठाने वाले ~और पहाड़ में अस्सी हज़ार पत्थर काटाने वाले और तीन हज़ार छ:सौ आदमी उनकी निगरानी के लिए गिनकर ठहरा दिए|
\v 3 और सुलेमान ने सूर के बादशाह हूराम के पास कहला भेज़ा कि जैसा तूने मेरे बाप दाऊद के साथ किया और उसके पास देवदार की लकड़ी भेजी कि वह अपने रहने के लिए एक घर बनाए वैसा ही मेरे साथ भी कर
\s5
\v 4 मैं ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के नाम के लिए एक घर बनाने को हूँ कि उसके लिए पाक करूँ और उसके आगे ख़ुशबूदार मसाल्हे का ख़ुशबू जलाऊ, और वह सबतों और नए चाँदों और ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा की मुक़र्ररा 'ईदों पर हमेशा ~नज़्र की रोटी और सुबह और शाम की सोख़्तनी क़ुर्बानियों के लिए हो क्यूँकि यह हमेशा तक इस्राईल पर फ़र्ज़ है|
\v 5 और वह घर जो मै बनाने को हूँ ‘अज़ीम उश शान होगा क्यूँकि हमारा ख़ुदा सब मा'बूदों से 'अज़ीम है|
\s5
\v 6 लेकिन उसके लिए कौन घर बनाने के लिए काबिल है जिस हाल के आसमान में बल्कि आसमानों के आसमान में भी वह समां नहीं सकता तो भला मै कौन हूँ जो उसके सामने ख़ुशबू जलाने के 'अलावा किसी और ख़्याल से उसके लिए घर बनाऊँ?|
\v 7 इसलिए ~अब तू मेरे पास एक ऐसे शख़्स को भेज दे जो सोने और चाँदी और पीतल और लोहे के काम में और अर्ग़वानी और क़िर्मिज़ी और नीले कपड़े के काम में माहिर हो और नक़्क़ाशी भी जानता हो ताकि वह उन कारीगरों के साथ रहे जो मेरे बाप दाऊद के ठहराए हुए यहुदाह और यरुशलीम में मेरे पास हैं|
\s5
\v 8 और देवदार और सनोबर और सन्दल के लट्ठे लुबनान से मेरे पास भेजना क्यूँकि मै जनता हु तेरे नौकर लुबनान की लकड़ी कटाने में होशियार है और मेरे नौकर तेरे नौकरों के साथ रहकर,
\v 9 मेरे लिए बहुत सी लकड़ी तैयार करेंगे क्यूँकि~वह घर जो मै बनाने को हूँ बहुत आ’लिशान होगा
\v 10 और मै तेरे नौकरों या'नी लकड़ी कटाने वालों को बीस हज़ार कुर साफ़ किया हुआ गेहू और बीस हज़ार कुर जौ,और बीस हज़ार बत मय और बीस हज़ार बत तेल दूँगा|
\s5
\v 11 तब सूर के बादशाह हूराम ने जवाब लिखकर उसे सुलेमान के पास भेजा कि चूँकि ख़ुदावन्द को अपने लोगों से मुहब्बत है इसलिए उस ने तुझको उन का बादशाह बनाया है|
\v 12 और हूराम ने यह भी कहा ख़ुदावन्द इस्राएल का ख़ुदा जिस ने आसमान और ज़मीन को पैदा किया मुबारक हो कि उस ने दाऊद बादशाह को एक दाना बेटा फ़हम-व-मा'रिफ़त से मा'मूर बख़्शा ताकि वह ख़ुदावन्द के लिए एक घर और अपनी हुकूमत के लिए एक घर बनाए|
\s5
\v 13 तब मैंने अपने बाप हूराम के एक होशियार शख़्स को जोअक़्ल से मा'मूर है भेज दिया है|
\v 14 वह दान की बेटियों में से एक 'औरत का बेटा है और उसका बाप सूर का बाशिन्दा था|वह सोने और चाँदी और पीतल और लोहे और पत्थर और लकड़ी के काम में और अर्गवानी और नीले और क़िर्मिज़ी और कतानी कपड़े के काम में माहिर और हर तरह की नक़्क़ाशी और हर क़िस्म की सन'अत में ताक़ है ताकि तेरे हुनरमन्दों और मेरे मख़दूम तेरे बाप दाऊद के हुनरमंदों के साथ उसके लिए जगह मुक़र्रर हो जाए|
\s5
\v 15 और अब गेंहूँ और जौ और तेल और शराब जिनका मेरे मालिक ने ज़िक्र किया है वह उनको अपने ख़ादिमों के लिए भेजे|
\v 16 और जितनी लकड़ी तुझको ज़रूरत है हम लुबनान से काटेंगे और उनके बेड़े बनवाकर समुन्दर ही समुन्दर तेरे पास याफ़ा में पहुँचाएँगें, फिर तू उनको यरुशलीम को ले जाना|
\v 17 और सुलेमान ने इस्राईल के मुल्क में के सब परदेसियों को शुमार किया जैसे उसके बाप दाऊद ने उनको शुमार किया था और वह ~एक लाख तिरपन हज़ार छ:सौ निकले|
\v 18 और उसने उन में से सत्तर हज़ार को बोझ उठाने वालो ~पर और अस्सी हज़ार को पहाड़ पर पत्थर काटने के लिए और तीन हज़ार छ:सौ को लोगों से काम लेने के लिए नज़ीर ठहराया|
\s5
\c 3
\p
\v 1 और सुलेमान यरुशलीम में कोह-ए-मोरियाह पर जहाँ उसके बाप दाऊद ने ख़्वाब ~देखा उसी जगह जैसे दाऊद ने तैयारी कर के मुक़र्रर किया या'नी उरनान यबूसी के खलीहान में ख़ुदावन्द का घर बनाने लगा|
\v 2 और उसने अपनी हुकूमत के चौथे साल के दूसरे महीने की दूसरी तारीख़ को बनाना शूरू' किया|
\v 3 और जो बुनियाद सुलेमान ने ख़ुदा के घर की ता’मीर के लिए डाली वह यह है उसका तूल हाथों के हिसाब से पहले नाप के मवाफ़िक़ साठ हाथ और 'अरज बीस हाथ था|
\s5
\v 4 और घर के सामने के उसारा की लम्बाई घर की चौड़ाई के मुताबिक़ बीस हाथ और ऊँचाई एक सौ बीस हाथ थी और उस ने उसे अन्दर से ख़ालिस सोने से मेंढा|
\v 5 और उसने बड़े घर की छत सनोबर के तख़्तों से पटवाई, जिन पर चोखा सोना मंढा था और उसके ऊपर खजूर के दरख़्त और ज़न्जीरे बनाई|
\s5
\v 6 और जो ख़ूबसूरती के लिए उस ने उस घर को बेशक़ीमत जवाहिर से दुरूस्त किया और सोना परवाइम का सोना था|
\v 7 और उसने घर को यानी उसके शहतीरों ,चौखटों ,दिवारो और किवाड़ो को सोने से मंढ़ा और दीवारों पर करुबियों की सूरत कंदा की|
\s5
\v 8 और उसने पाक तरीन मकान बनाया जिसकी लम्बाई घर के चौड़ाई के मुताबिक़ बीस हाथ और उसकी चौड़ाई बीस हाथ थी और उसने उसे छ:सौ क़िन्तार चोखे सोने से मंढ़ा|
\v 9 और कीलों का वज़न पचास मिस्क़ाल सोने का था और उसमें ऊपर की कोठरियाँ भी सोने से मंढ़ा|
\s5
\v 10 और उसने पाकतरिन मकान में दो करुबियों को तराशकर बनाया और उन्होंने उनको सोने से मंढ़ा|
\v 11 और करुबियों के बाज़ू बीस हाथ लम्बे थे,एक करूबी का एक बाज़ू पाँच हाथ का घर की दीवार तक पहुँचा हुआ और दूसरा बाज़ू भी पाँच हाथ का दूसरे करूबी के बाज़ू तक पहुँचा हुआ था|
\v 12 और दूसरे करूबी का एक बाज़ू पाँच हाथ का घर की दिवार तक पहुँचा हुआ और दूसरा बाज़ू भी पाँच हाथ का दूसरे करूबी के बाज़ू से मिला हुआ था|
\s5
\v 13 इन करुबियों के पर बीस हाथ तक फैले हुएं थे और वह अपने पाँव पर खड़े थे और उनके मुँह उस घर की तरफ़ थे|
\v 14 और उसने पर्दः आसमानी और अर्गवानी और क़िरमिज़ी कपड़े और महीन कतान से बनाया उस पर करुबियों को कढ़वाया|
\v 15 और उसने घर के सामने पैंतीस पैंतीस हाथ ऊँचे दो सुतून बनाए,और हर एक के सिरे पर पाँच हाथ का ताज़ था|
\v 16 और उसने इल्हामगाह में ज़ंजीरे बनाकर सुतूनों के सिरों पर लगाए और एक सौ अनार बनाकर ज़ंजीरों में लगा दिए|
\v 17 और उसने हैकल के आगे उन सुतूनों ~को एक दाहिनी और दूसरे को बाई तरफ़ खड़ा किया और जो दहिने था उसका नाम यक़ीन और जो बाएँ था उसका नाम बो'अज़ रखा|
\s5
\c 4
\p
\v 1 और उसने पीतल का एक मजबह बनाया,उसकी लम्बाई बीस हाथ और चौड़ाई बीस हाथ और ऊंचाई दस हाथ थी|
\v 2 और उसने एक ढाला हुआ बड़ा हौज बनाया जो एक किनारा से दूसरे किनारे तक दस हाथ था,वह गोल था और उसकी ऊंचाई पाँच हाथ थी और उसका घर तीस हाथ के नाप का था|
\v 3 और उसके नीचे बैलों की सूरते उसके आस पास ~दस-दस हाथ तक थी और उस बड़े हौज को चारों तरफ़ से घेरे हुए थी, यह बैल दो क़तारों में थे और उसी के साथ ढाले गए थे|
\s5
\v 4 और वह बारह बैलों पर धरा हुआ था, तीन का चेहरा उत्तर की तरफ़ और तीन का चेहरा पश्चिम की तरफ़ और तीन का चेहरा दक्खिन की तरफ़ और तीन का चेहरा पूरब की तरफ़ था और वह बड़ा हौज़ उनके ऊपर था, और उन सब के पिछले 'आज़ा अन्दर के चेहरा थे|
\v 5 उसकी मोटाई चार उंगल की थी और उसका किनारा प्याला के किनारह की तरह और सोसन के फूल से मुशाबह था,उसमे तीन हज़ार बत की समाई थी|
\v 6 और उसने दस हौज़ भी बनाने और पाँच दहनी और पाँच बाई तरफ़ रखें ताकि उन में सोख़्तनी क़ुर्बानी की चीज़ें धोई जाएँ, उनमे वह उन्हीं चीज़ों को धोते थे लेकिन वह बड़ा हौज़ काहिनों के नहाने के लिए था|
\s5
\v 7 और उसने सोने के दस शमा’दान उस हुक्म के मुताबिक़ ~बनाए जो उनके बारे में मिला था उसने उनको हैकल में पाँच दहनी और पाँच बाई तरफ़ रखा|
\v 8 और उसने दस मेज़े भी बनाई और उनको हैकल में पाँच दहनी पाँच बाई तरफ़ रखा और उसने सोने के सौ कटोरे बनाए|
\s5
\v 9 और उस ने काहिनों का सहन और बड़ा सहन और उस सहन के दरवाज़ों को बनाया और उनके किवाड़ों को पीतल से मेंढ़ा|
\v 10 और उसने उस बड़े हौज़ को पूरब की तरफ़ दहिने हाथ दक्खिन चेहरा पर रखा|
\s5
\v 11 और हूराम ने बर्तन और बेल्चे और कटोरे बनाए ,इसलिए हूराम ने उस काम को जिसे वह सुलेमान बादशाह के लिए ख़ुदा के घर में कर रहा था तमाम किया|
\v 12 या’नी दोनों सुतूनों और कुरे और दोनों ताज जो उन दोनों सुतूनों पर थे और सुतूनों ~की चोटी पर के ताजों के दोनों कुरों को ढाकने की दोनों जालियाँ;
\v 13 और दोनों जालियों के लिए चार सौ अनार या'नी हर जाली के लिए अनारों की दो दो क़तारें ताकि सुतूनों ~पर के ताजों के दोनों कुरें ढक जाए|
\s5
\v 14 और उसने कुर्सियाँ भी बनाई और उन कुर्सियों पर हौज़ लगाये|
\v 15 और एक बड़ा हौज़ और उसके नीचे बारह बैल;
\v 16 और देगें ,बेल्चे और काँटे और उसके सब बर्तन ~उसके बाप हूराम ने सुलेमान बादशाह के लिए ख़ुदावन्द के घर के लिए झलकते हुए पीतल के बनाए|
\s5
\v 17 और बादशाह ने उन सब को यरदन के मैदान में सुक्कात और सरीदा के बीच की चिकनी मिटी में ढाला|
\v 18 और सुलेमान ने यह सब बर्तन इस कशरत से बनाए कि उस पीतल का वज़न मा'लूम न हो सका|
\s5
\v 19 और सुलेमान ने उन सब बर्तन को जो ख़ुदा के घर में थे बनाया ,या'नी सोने की क़ुर्बानगाह और वह ~मेजें भी जिन पर नज़्र की रोटियां रखीं जाती थीं|
\v 20 और ख़ालिस सोने के शमा'दान चिराग़ों के साथ ताकि वह दस्तूर के मुताबिक़ ~इल्हमगाह के आगे रोशन रहें|
\v 21 और सोने बल्कि कुन्दन के फूल और~चिराग़ों~और चमटे ;|
\v 22 और गुलगीर और कटोरे और चमचे और ख़ुशबू दान ख़ालिस सोने के और घर का मदख़ल या'नी उसके अन्दुरुनी दरवाज़े पाकतरीन मकान के लिए और घर या'नी हैकल के दरवाज़े सोने के थे|
\s5
\c 5
\p
\v 1 इस तरह सब काम जो सुलेमान ने ख़ुदावन्द के घर के लिए बनवाया ख़त्म हुआ और सुलेमान अपने बाप दाऊद की पाक की हुई चीज़ों या'नी सोने और चाँदी और सब बर्तन को अन्दर ले आया और उनको ख़ुदा के घर के ख़ज़ाना में रख़ दिया|
\s5
\v 2 तब सुलेमान ने इस्राईल के बुज़ुर्गों और क़बीलों के सब रईसों या'नी बनी-इस्राईल के आबाई ख़ानदानों के सरदार को यरुश्लीम में इकट्ठा किया ताकि वह दाऊद के शहर से जो सिय्यून है ख़ुदावन्द के 'अहद का सन्दूक़ ले आएं|
\v 3 और इस्राईल के सब लोग सातवे महीने की 'ईद में बादशाह के पास जमा' हुए|
\s5
\v 4 इस्राईल के सब बुज़ुर्ग आए और लावी ने सन्दूक़ उठाया|
\v 5 और वह सन्दूक़ को ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ को और सब पाक बर्तन ~को जो उस ख़ेमा में थे ले आए| इनको लावी कहिन लाए थे|
\v 6 और सुलेमान बादशाह और इस्राईल की सारी जमा'अत ने जो उसके पास इकट्ठी हुई थी सन्दूक़ के आगे खड़ा होकर भेड़ बकरियाँ और बैल ज़बह किए ऐसा कि कसरत की वजह से उनका शुमार-ओ-हिसाब नहीं हो सकता था|
\s5
\v 7 और काहिनों ने ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को उसकी जगह घरकी इल्हामगाह में जो पाकतरीन मकान है या'नी करुबियों के बाज़ुओं के नीचे लाकर रखा
\v 8 और करूबी अपने कुछ सन्दूक़ की जगह के ऊपर फैलाए हुए थे और यूँ करूबी सन्दूक़ और उसकी चोबों को ऊपर से ढांके हुए थे|
\s5
\v 9 और चोबें ऐसी लम्बी थीं कि उनके सिरे सन्दुक़़ से निकले हुए इल्हामगाह के आगे दिखाई देते थे लेकिन बाहर से नज़र नहीं आते थे और वह आज के दिन तक वहीँ है|
\v 10 और उस सन्दूक़ में कुछ न था 'अलावा पत्थर की उन दो लौहों के जिनको मूसा ने होरेब पर उस में रखा ~था जब ख़ुदावन्द ने बनी इस्राईल से जिस वक़्त वह मिस्र से निकले थे 'अहद बांधा|
\s5
\v 11 और ऐसा हुआ कि जब काहिन पाक मकान से निकले (क्यूँकि सब काहिन जो हाज़िर थे अपने को पाक़ कर के आए थे और बारी बारी से ख़िदमत नही करते थे|
\v 12 और लावी जो गाते थे वह सब के सब जैसे आसफ़ और हैमान और यदूतून और उनके बेटे और उनके भाई कतानी कपड़े से मुलव्वस होकर और झांझ और सितार और बरबत लिए हुए मजबह के पूरबी किनारे पर खड़े थे और उनके साथ एक सौ बीस काहिन थे जो नरसिंगे फूँक रहे थे|)
\v 13 तो ऐसा हुआ कि जब नरसिंगे फूँकने वालें और गाने वाले मिल गए ताकि ख़ुदावन्द की हम्द और शुक्रगुज़ारी में उन सब की एक आवाज़ सुनाई दे और जब नरसिंगो ~और झाँझों और मूसीक़ी के सब साजों के साथ उन्होंने अपनी आवाज़ बलन्द कर के ख़ुदावन्द की ता'रीफ़ ~की कि वह अच्छा है क्यूँकि उसकी रहमत हमेशा हैं तो वह घर जो ख़ुदावन्द का घर है अब्र से भर गया|
\v 14 यहाँ तक कि काहिन अब्र की वजह ~से ख़िदमत के लिए खड़े न रह सके इसलिए कि ख़ुदा का घर ख़ुदावन्द के जलाल से भर गया था|
\s5
\c 6
\p
\v 1 तब सुलेमान ने कहा, "ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है कि वह गहरी तारीकी में रहेगा|"
\v 2 लेकिन मैंने एक घर तेरे रहने के लिए बल्कि तेरी हमेशा ~सुकूनत के वास्ते एक जगह बनाई है|
\v 3 और बादशाह ने अपना मुँह फेरा और इस्राईल की जमा'अत को बरकत दी और इस्राईल की सारी जमा'अत खड़ी रही|
\s5
\v 4 तब उसने कहा,”ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा मुबारक हो जिस ने अपने मुँह से मेरे बाप दाऊद से कलाम किया" और उसे अपने हाथों से यह कहकर पूरा किया| "
\v 5 कि जिस दिन मै अपनी क़ौम को मुल्के मिस्र से निकाल लाया तब से मै ने इस्राईल के सब क़बीलों में से न तो किसी शहर को चुना ताकि उसमे घर बनाया जाए और वहाँ मेरा नाम हो और न किसी आदमी को चुना ताकि वह मेरी क़ौम इस्राईल का पेशवा हो|
\v 6 लेकिन मैंने यरुश्लीम को चुना कि वहाँ मेरा नाम हों और दाऊद को चुना ताकि वह मेरी क़ौम इस्राईल पर हाकिम हों|
\s5
\v 7 और मेरे बाप दाऊद के दिल में था की ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के नाम के लिए एक घर बनाए|
\v 8 लेकिन ख़ुदावन्द ने मेरे बाप दाऊद से कहा, ”चूँकि मेरे नाम के लिए एक घर बनाने का ख़्याल तेरे दिल में था इसलिए तूने अच्छा किया कि अपने दिल में ऐसा ठाना|"
\v 9 तू भी तो इस घर को न बनाना बल्कि तेरा बेटा जो तेरे सुल्ब से निकलेगा वही मेरे नाम के लिए घर बनाएगा|
\s5
\v 10 और खुदवन्द ने अपनी वह बात जो उसने कही थी पूरी की क्यूँकि मैं अपने बाप दाऊद की जगह उठा हूँ और जैसा ख़ुदावन्द ने वा'दा किया था मैं इस्राईल के तख़्त पर बैठा हूँ और मैंने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के नाम के लिए उस घर को बनाया है|
\v 11 और वही मैंने वह सन्दूक़ रखा है जिस में ख़ुदावन्द का वह 'अहद है जो उसने बनी इस्राईल से किया|
\s5
\v 12 और सुलेमान ने इस्राईल की सारी जमा'अत के आमने सामने ~ख़ुदावन्द के मज़बह के आगे खड़े होकर अपने हाथ फैलाए|
\v 13 ( क्यूँकि सुलेमान ने पाँच हाथ लम्बा और पाँच हाथ चौड़ा और तीन हाथ ऊँचा पीतल का एक मिम्बर बना कर सहन के नीचें में उसे रखा था ,उसी पर वह खड़ा था,तब उसने इस्राईल की सारी जमा'अत के आमने सामने ~घुटने टेके और आसमान की तरफ़ अपने हाथ फैलाए )
\s5
\v 14 और कहने लगा ऐ ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा तेरी तरह न तो आसमान में न ज़मीन पर कोंई ख़ुदा है|तू अपने उन बन्दों के लिए जो तेरे सामने अपने सारे दिल से चलते है 'अहद और रहमत को निगाह रखता है|
\v 15 तूने अपने बन्दे मेरे बाप दाऊद के हक़ में वह बात क़ायम रखी जिसका तूने उससे वा'दा किया था ,तूने अपने मुँह से फ़रमाया उसे अपने हाथ से पूरा किया जैसा आज के दिन है|
\s5
\v 16 अब ऐ ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा अपने बन्दा मेरे बाप दाऊद के साथ उस क़ौल को भी पूरा कर जो तूने उस से किया था कि तेरे हाथ मेरे सामने इस्राईल के तख़्त पर बैठने के लिए आदमी की कमी न होगी बशर्ते कि तेरी औलाद जैसे तू मेरे सामने चलता रहा वैसे ही मेरी शरी'अत पर अमल करने के लिए अपनी रास्ते की एहतियात रखें|
\v 17 और अब ऐ ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा जो क़ौल तूने अपने बन्दा दाऊद से किया था वह सच्चा साबित किया जाए|
\s5
\v 18 लेकिन क्या ख़ुदा फ़िलहक़ीक़त आदमियों के साथ ज़मीन पर सुकूनत करेगा? देख आसमान बल्कि आसमानों के आसमान में भी तू रुक नहीं सकता तू यह घर तो कुछ भी नहीं जिसे मैंने बनाया !|
\v 19 तो भी ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा अपने बन्दे की दु'आ और मुनाजात का लिहाज़ कर कि उस फ़रियाद दु'आ को सून ले जो तेरा बन्दा तेरे सामने करता है|
\v 20 ताकि तेरी आँखे इस घर की ~तरफ़ या’नी उसी जगह की तरफ़ जिसकी बारे में ~तूने फ़रमाया कि मैं अपना नाम वहाँ रखूँगा दिन और रात खुली रहे ताकि तू उस दु'आ को सूने जो तेरा बन्दा इस मक़ाम की तरफ़ चेहरा कर के तुझ से करेगा|
\s5
\v 21 और तू अपने बन्दा और अपनी क़ौम इस्राईल की मुनाजात को जब वह इस जगह की तरफ़ चेहरा कर के करें तो सून लेना बल्कि तू आसमान पर से जो तेरी सुकूनत गाह है सून लेना और सुनकर मु'आफ़ कर देना|
\s5
\v 22 अगर कोई शख़्स अपने पड़ोसी का गुनाह करे और उसे क़सम खिलाने के लिए उसकों हल्फ़ दिया जाए और वह आकर इस घर में तेरे मज़बह के आगे क़सम खाए|
\v 23 तो तू आसमान पर से सुनकर 'अमल करना और अपने बन्दों का इन्साफ़ कर के बदकार को सज़ा देना ताकि उसके 'आमाल को उसी कि सर डाले और सादिक़ को सच्चा ठहराना ताकि उसकी सदाक़त के मुताबिक़ उसे बदला दे|
\s5
\v 24 और अगर तेरी क़ौम इस्राईल तेरा गुनाह करने के ज़रिए'अपने दुश्मनों से शिकस्त खाए और फिर तेरी तरफ़ रुजू' लाए और तेरे नाम का इकरार कर के इस घर में तेरे सामने दु'आ और मुनाजात करे|
\v 25 तो तू आसमान पर से सुनकर अपनी क़ौम इस्राईल के गुनाह को बख़्श देना और उनको इस मुल्क में जो तूने उनको और उनके बाप दादा को दिया है फिर ले आना|
\s5
\v 26 और जब इस वजह से कि उन्होंने तेरा गुनाह किया हों आसमान बंद हो जाए और बारिश न हो और वह इस मक़ाम की तरफ़ चेहरा कर के दु'आ करें और तेरे नाम का इक़रार करे और अपने गुनाह से बाज़ आए जब तू उनकों दुःख दे|
\v 27 तो तू आसमान पर से सुनकर अपने बन्दों और अपनी क़ौम इस्राईल का गुनाह मु'आफ़ कर देना क्यूँकि तूने उनको उस अच्छी रास्ते की ता'लिम दी जिस पर उनको चलना फ़र्ज़ है और अपने मुल्क पर जैसे तूने अपनी क़ौम के मीरास के लिए दिया है पानी न बरसाना|
\s5
\v 28 अगर मुल्क में काल हो ,अगर वबा हो ,अगर बा'द-ए-समूम या गेरुई टिड्डी या कमला हो ,अगर उनके दुश्मन उनके शहरों के मुल्क में उनकों घेर ले ग़रज़ कैसी ही बला या कैसा ही रोग हो|
\v 29 तू जो दु'आऔर मुनाजात किसी एक शख़्स या तेरी सारी क़ौम इस्राईल की तरफ़ से हों जिन में से हर शख़्स अपने दुःख और रन्ज को जानकर अपने हाथ इस घर की तरफ़ फैलाए|
\v 30 तू तो आसमान पर से जो तेरी रहने की जगह है सुनकर मु'आफ़ कर देना और हर शख़्स को जिसके दिल को तू जनता है उसकी सब चालचलन ~के मुताबिक़ बदला देना (क्यूँकि सिर्फ़ तू ही बनी आदम के दिलों को जनता है)
\v 31 ताकि जब तक वह उस मुल्क में जिसे तूने हमारे बाप दादा को दिया जीते रहे तेरा ख़ौफ़ मानकर तेरे रास्तों में चलें|
\s5
\v 32 और वह परदेसी भी जो तेरी क़ौम इस्राईल में से नहीं है जब वह तेरे बुज़ुर्ग नाम और क़ौमी हाथ और तेरे बुलन्द बाज़ू की वजह ~से दूर मुल्क से आए और आकर इस घर की तरफ़ चेहरा कर के दु'आ करें|
\v 33 तो तूआसमान पर से जो तेरी रहने की जगह है सून लेना और जिस जिस बात के लिए वह परदेसी तुझ से फ़रियाद करे उसके मुताबिक़ करना ताकि ज़मीन की सब क़ौम तेरे नाम को पहचाने और तेरी क़ौम इस्राईल की तरह तेरा ख़ौफ़ माने और जान ले कि यह घर जिसे मैंने बनाया है तेरे नाम का कहलाता है|
\s5
\v 34 अगर तेरे लोग चाहे ~किसी रास्ते से तू उनको भेजे अपने दुश्मन से लड़ने को निकले और इस शहर की तरफ़ जिसे तूने चुना है और इस घर की तरफ़ जिसे मैंने तेरे नाम के लिए बनाया है चेहरा करके तुझ से दु'आ करें|
\v 35 तो तू आसमान पर से उनकी दु'आ और मुनाजात को सुनकर उनकी हिमा’अत करना|
\s5
\v 36 अगर वह तेरा गुनाह करें क्यूँकि कोई इन्सान नहीं जो गुनाह न करता हो और तू उन से नाराज़ होकर उनको दुश्मन के हवाले कर दे ऐसा कि वह दुश्मन उनको क़ैद करके दूर या नज़दीक मुल्क में ले जाए|
\v 37 तो भी अगर वह उस मुल्क में जहाँ क़ैद होकर पहुँचाए गए ,होश में आए और रुजू' लाए और अपनी ग़ुलामी के मुल्क में तुझ से मुनाजात करें और कहें कि हम ने गुनाह किया है हम टेढ़ी चाल चले और हम ने शरारत की|
\v 38 इसलिएअगर वह अपनी ग़ुलामी के मुल्क में जहाँ उनको ग़ुलाम कर के ले गए हों अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से तेरी तरफ़ फिरें और अपने मुल्क की तरफ़ जो तूने उनको बाप दादा को दिया और इस शहर की तरफ़ जिसे तूने चुना हैं और इस घर की तरफ़ जो मैनें तेरे नाम के लिए बनाया है चेहरा कर के दु'आ कर|
\v 39 तो तू आसमान पर से जो तेरी रहने की जगह है उनकी दु'आ और मुनाजात सुनकर उनकी हिमायत करना और अपनी क़ौम को जिस ने तेरा गुनाह किया हो मु'माफ़ कर देना|
\v 40 इसलिए ऐ मेरे ख़ुदा मै तेरी मिन्नत करता हूँ कि उस दु'आ की तरफ़ जो इस मक़ाम में की ~जाए तेरी ऑंखें खुली और तेरे कान लगें रहें|
\v 41 इसलिए अब ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा तू अपनी ताक़त ~के सन्दूक़ के साथ उठकर अपनी आरामगाह में दाख़िल हो, ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा तेरे काहिन नजात से मुलव्वस हों और तेरे मुक़द्दस नेकी में मगन रहें|
\v 42 ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा तू अपने मम्सूह की दु'आ नामंजूर न कर ,तू अपने बन्दा दाऊद पर की रहमतें याद फ़रमा|
\s5
\c 7
\p
\v 1 और जब सुलेमान दु'आ कर चुका तो आसमान पर से आग़ उतरी और सोख़्तनी क़ुर्बानी और ज़बीहो को भस्म कर दिया और मस्कन ख़ुदावन्द के जलाल से मा'मूर हो गया|
\v 2 और काहिन ~ख़ुदावन्द के घर में दाख़िल न हों सके इसलिए कि ख़ुदावन्द का घर ख़ुदावन्द के जलाल से मा'मूर था|
\v 3 और जब आग नाज़िल हुई और ख़ुदावन्द का जलाल उस घर पर छा गया तो सब बनी इस्राईल देख रहे थे ,तब उन्होंने वही फ़र्श पर मुँह के बल ज़मीन तक झुक कर सिज्दा किया और ख़ुदावन्द का शुक्र अदा किया कि वह भला है क्यूँकि उसकी रहमत हमेशा है|
\s5
\v 4 तब बादशाह और सब लोगो ने ख़ुदावन्द के आगे ज़बीहे ज़बह किए|
\v 5 और सुलेमान बादशाह ने ज़रिए' हज़ार बैलों और एक लाख बीस हज़ार भेड़ बकरियों की क़ुर्बानी पेश कीं ,यूँ बादशाह और सब लोगों ने ख़ुदा के घर को मख़्सूस किया|
\v 6 और काहिन अपने अपने मन्सब के मुताबिक़ खड़े थे और लावी भी ख़ुदावन्द के लिए मुसीक़ी के साज़ लिए हुए थे जिनको दाऊद बादशाह ने ख़ुदावन्द का शुक्र बजा लेन को बनाया था जब उसने उनके ज़रिए' से उसकी ता'रीफ़ की थी क्यूँकि उसकी रहमत हमेशा है और काहिन उनके आगे नरसिंगे फूंकते रहे और सब इस्रईली खड़े रहे हैं|
\s5
\v 7 और सुलेमान ने उस सहन के बीच के हिस्से को जो ~ख़ुदावन्द के घर के सामने था पाक किया क्यूँकि उसने वहाँ सोख़्तनी क़ुर्बानियों और सलामती की क़ुर्बानियों की चर्बी पेश कीं क्यूँकि पीतल के उस मज़बह पर जैसे सुलेमान ने बनाया था सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़्र की क़ुर्बानी और चर्बी के लिए गुंजाइश न थीं|
\s5
\v 8 और सुलेमान और उसके साथ हमात के मदख़ल से मिस्र तक के सब इस्रालियों की बहुत बड़ी जमा'अत ने उस मौक़ा पर सात दिन तक 'ईद मनाई|
\v 9 और आठवे दिन उनका पाक मजमा' जमा' ~हुआ क्यूँकि वह सात दिन मज़बह के मख़्सूस करने में और सात दिन ईद मानाने में लगे रहे|
\v 10 और सातवे महीने की तेइसवी तारीख़ को उसने लोगों को रुख़्शत किया, ताकि वह उस नेकी की वजह से जो ख़ुदावन्द ने दाऊद और सुलेमान और अपनी क़ौम इस्राईल से की थी ख़ुश और शादमान होकर अपने ख़ेमों को जाएँ|
\s5
\v 11 यूँ सुलेमान ने ख़ुदावन्द का घर और बादशाह का घर तमाम किया और जो कुछ सुलेमान ने ख़ुदावन्द के घर में और अपने घर में बनाना चाहा उस ने उसे बख़ूबी अंजाम तक पहुँचाया|
\v 12 और ख़ुदावन्द रात को सुलेमान पर ज़ाहिर हुआ और उससे कहा, “कि मैंने तेरी दु'आ सुनी और इस जगह को अपने वास्ते चुन लिया कि यह क़ुर्बानी का घर हो|
\s5
\v 13 अगर मै आसमान को बंद कर दूँ कि बारिश न हो या टिड्डियों को हुक्म दूँ कि मुल्क को उजाड़ डालें या अपने लोगों के बीच वबा भेजूँ|
\v 14 तब अगर मेरे लोग जो मरे नाम से कहलाते हैं खाकसार बनकर दु'आ करें और मेरे दीदार के तालिब हों और अपनी बुरी रास्तों से फिरें तो मैं आसमान पर से सुनकर उनका गुनाह मु'आफ़ करूँगा और उनके मुल्क को बहाल कर दूँगा|
\v 15 अब जो दु'आ इस जगह की जाएगी उस पर मेरी आँखें खुली और मेरे कान लगे रहेंगें|
\s5
\v 16 क्यूँकि मैंने इस घर को चुना और पाक किया कि मेरा नाम यहाँ हमेशा रहे और मेरी आँखें और मेरा दिल बराबर यहीं लगे रहेंगें|
\v 17 और तू अगर मेरे सामने वैसे ही चले जैसे तेरा बाप दाऊद चलता रहा और जो कुछ मैंने तुझे हुक्म किया उसके मुताबिक़ अम्ल करे और मेरे क़ानून और हुक्मों को माने|
\v 18 तो मैं ~तेरे तख़्त-ए-हुकूमत को क़ायम रखूँगा जैसा मैंने तेरे बाप दाऊद से 'अहद कर के कहा था कि इस्राईल का सरदार होने के लिए तेरे हाथ मर्द की कभी कमी न होगी|
\s5
\v 19 लेकिन अगर तुम बरगश्ता हो जाओ और मेरे क़ानून -व-हुक्मों को जिनको मैंने तुम्हारे आगे रख्खा है छोड़ कर दो, और जाकर ग़ैर मा'बूदों की 'इबादत करो और उनको सिज्दा करों,
\v 20 तो ~मैं उनको अपने मुल्क से जो मैंने उनको दिया है जड़ से उखाड़ डालूँगा और इस घर को मैंने अपने नाम के लिए पाक किया है अपने सामने से दूर कर दूँगा और इसको सब क़ोमों में ज़र्ब-उल-मसल और बदनाम कर ~दूँगा|
\v 21 और यह घर जो ऐसा आलीशान है ,इसलिए हर एक जो इसके पास से गुज़रेगा हैरान होकर कहेगा कि ख़ुदावन्द ने इस मुल्क और इस घर के साथ ऐसा क्यों किया?
\v 22 तब वह जवाब देंगें इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द अपने बाप दादा के ख़ुदा को जो उनको मुल्के मिस्र से निकाल लाया था छोड़ दिया और ग़ैर मा'बूदों को इख़्तियार कर के उनको सिज्दा किया और उनकी 'इबादत की इसीलिए ख़ुदावन्द ने उन पर यह सारी मुसीबत नाज़िल की|
\s5
\c 8
\p
\v 1 और बीस साल के आख़िर में जिन सुलेमान ने ख़ुदावन्द का घर और अपना घर बनाया था यूँ हुआ कि|
\v 2 सुलेमान ने उन शहर को जो हुराम ने सुलेमान को दिए थे फिर ता'मीर किया और बनी इस्राईल को वहाँ बसाया|
\s5
\v 3 और सुलेमान हमात ज़ूबाह को जाकर उस पर ग़ालिब हुआ|
\v 4 और उसने वीरान ~में तदमूर को बनाया और ख़ज़ाना के सब शहरों को भी जो उस ने हमात में बनाए थे|
\s5
\v 5 और उसने ऊपर के बैत हौरून और नीचे के बैत हौरुन को बनाया जो दीवारों और फाटकों और अड़बंगों से मज़बूत किए हुए शहर थे|
\v 6 और बा'लत और ख़ज़ाना के सब शहर जो सुलेमान के थे और रथों के सब शहर और सवारों के शहर जो कुछ सुलेमान चाहता था कि यरुश्लीम और लुबनान और अपनी ममलुकत की सारी ~सर ज़मी बनाए वह सब बनाया|
\s5
\v 7 और वह सब लोग जो हित्तियों और अमोरियों और फरिज़ियों और हव्वियोंऔर यबुसियों में से बाक़ी रह गए थे और इस्रईली न थे|
\v 8 उन ही की औलाद जो उनके बा'द मुल्क में बाक़ी रह गई थी जिसे बनी इस्राईल ने नाबूद नहीं किया ,उसी में से सुलेमान ने बेगारी मुक़र्रर किए जैसा आज के दिन है|
\s5
\v 9 लेकिन सुलेमान ने अपने काम के लिए बनी इस्राईल में से किसी को ग़ुलाम न बनाया बल्कि वह जंगी मर्द और उसके लस्करों के सदार और उसके रथों और सवारों पर हुक्मरान थें|
\v 10 और सुलेमान बादशाह के खास मनसबदार जो लोगों पर हुकूमत करते थे दो सौ पचास थें|
\s5
\v 11 और सुलेमान फ़िर'औन की बेटी को दाऊद के शहर से उस घर में जो उसके लिए बनाया था ले आया क्यूँकि उसने कहाँ, कि “मेरी बीवी इस्राईल के बादशाह दाऊद के घर में नहीं रहेंगी क्यूँकि वह मक़ाम मुक़द्दस है जिन में ख़ुदावन्द का सन्दूक़आ गया है|
\s5
\v 12 तब सुलेमान ख़ुदावन्द के लिए ख़ुदावन्द उस मज़बह पर जिसको उसने उसारें के सामने बनाया था सोख़्तनी क़ुर्बानीयाँ अदा करने लगा|
\v 13 वह हर दिन के फ़र्ज़ के मुताबिक़ जैसा मूसा ने हुक्म दिया था सब्तों और नए चाँदों और साल में तीन बार मुक़र्रारा 'ईद या'नी फ़तीरी रोटी की 'ईद और हफ़्तों की 'ईद और ख़ेमों की 'ईद पर क़ुर्बानी करता था|
\s5
\v 14 और उस ने बाप दाऊद के हुक्म के मुताबिक़ काहिनों के फ़रीक़ो को हर दिन के फ़र्ज़ के मुताबिक़ उनके काम पर और लावीयों को उनकी ख़िदमत पर मुक़र्रर किया ताकि वह काहिनों के आमने सामने हम्द और ख़िदमत करें और दरबानों को भी उनके फ़रीक़ो ~के मुताबिक़ हर फाटक पर मुक़र्रर किया क्यूँकि मर्दे ख़ुदा दाऊद ने ऐसा ही हुक्म दिया था|
\v 15 और वह बादशाह के हुक्म से जो उसने काहिनों और लावियों को किसी बात की निस्बत या ख़ज़ानों के हक़ में दिया था बाहर न हुए|
\s5
\v 16 `और सुलेमान का सारा काम ख़ुदावन्द के घर की बुनियाद डालने के दिन से उसके तैयार होने तक तमाम हुआ और ख़ुदावन्द का घर पूरा बन गया|
\v 17 तब सुलेमान अस्यून जाबर और ऐलोत को गया जो मुल्क-ए-अदोम में समुन्दर के किनारे है|
\v 18 और हुराम ने अपने नौकरों के हाथ से जहाज़ों और मलाहों को जो समुन्दर से वाक़िफ़ थे उसके पास भेजा और वह सुलेमान के मुलाज़िमों के साथ ओफ़िर में आए और वहाँ से साढ़े चार सौ क़िन्तार ~सोना लेकर बादशाह के पास लाए|
\s5
\c 9
\p
\v 1 जब सबा की मलिका ने सुलेमान की शोहरत सुनी तो वह मुश्किल सवालों से सुलेमान को आज़माने के लिए बहुत बड़ी जिलौ और ऊटों के साथ जिन पर मसाल्हे और बाइफ़रात सोना और जवाहर थे यरुशलिम में आई और सुलेमान के पास आकर जो कुछ उसके दिल में था उस सब की बारे में उससे बातें ~की|
\v 2 सुलेमान ने उसके सब सवालो का जवाब उसे दिया और सुलेमान से कोई बात छिपी हुई न थी कि वह उसकों बता न सका|
\s5
\v 3 जब सबा की मलिका ने सुलेमान की 'अक़्लमन्दी को और उस घर को जो उसने बनाया था|
\v 4 और उसके दस्तरख़्वान की ने'मत और उसके ख़ादिमो ~की निश्सत और उसके मुलाज़िमो की हाज़िर बाशी और उनके लिबास और उसके साक़ियों और उनके लिबास को और उस ज़ीने को जिस से वह ख़ुदावन्द को घर को जाता था देखा तो उस के होश उड़ गए|
\s5
\v 5 और उसने बादशाह से कहाँ ,”कि वह सच्ची ~ख़बर थी जो मैंने तेरे कामों और तेरी हिकमत की ~बारे में ~अपने मुल्क में सुनी थी|
\v 6 तोभी जब तक मैंने आकर अपनी आँखों से न देख लिया उनकी बातों का यक़ीन न किया और देख जितनी बड़ी तेरी हिकमत है उसका आधा बयान ~भी मेरे आगे नहीं हुआ तो उस शहर से बढ़कर है जो मैंने सुनी थी|
\s5
\v 7 ख़ुश नसीब है तेरे लोग और ख़ुश नसीब है तेरे यह मलाज़िम जो हमेशा तेरे सामने खड़े रहते और और तेरी हिक्मत सुनते है|
\v 8 ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा मुबारक़ हो जो तुझ से ऐसा राज़ी हुआ कि तुझको अपने तख़्त पर बिठाया ताकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ से बादशाहों चूँकि तेरे ख़ुदा को इस्राईल से मुहब्बत थी कि उनको हमेशा के लिए क़ायम करे इसलिए उस ने तुझे उनका बादशाह बनाया ताकि तू 'अदल-ओ-इन्साफ़ करे|
\s5
\v 9 और उस ने एक सौ बीस क़िन्तार सोना और मसाल्हे का बहुत बड़ा ढेर और जवाहिर सुलेमान को दिए और जो मसाल्हे सबा की मलिका ने सुलेमान बादशाह को दिए वैसे फ़िर कभी मयस्सर न आए|
\s5
\v 10 और हूराम के नौकर भी और सुलेमान के नौकर जो ओफ़ीर से सोना लाते थे ,वह चन्दन के दरख़्त और जवाहिर भी लाते थे|
\v 11 और बादशाह ने चन्दन की लकड़ी से ख़ुदावन्द के घर के लिए और शाही महल के लिए चबूतरे और गाने वालों के लिए बरबत और सितार तैयार कराए ;और ऐसी चीज़ें यहुदाह के मुल्क में पहले कभी देखने में नहीं आई थी|
\v 12 और ~सुलेमान बादशाह ने सबा की मलिका को जो कुछ उसने चाहा और माँगा उस से ज़्यादा जो वह बादशाह के लिए लाई थी दिया और वह लौटकर अपने मुलाज़िमों समेत अपनी ममलुकत को चली गई|
\s5
\v 13 और जितना सोना सुलेमान के पास एक साल में आता था उसका वज़न छे; सौ छियासठ क़िन्तार सोने का था|
\v 14 यह उसके 'अलावा था जो ब्यापारी और सौदागर लाते थे और अरब के सब बादशाहऔर मुल्क के हाकिम सुलेमान के पास सोना और चाँदी लाते थे|
\s5
\v 15 और सुलेमान बादशाह ने पिटे हुए सोने की दो सौ बड़ी ढालें बनवाई ,छ;सौ मिस्क़ाल पिटा ~हुआ सोना एक एक ढाल में लगा|
\v 16 और उसने पिटे हुए सोने की तीन सौ ढालें और बनवाई ,एक एक ढाल में ~तीन सौ मिस्क़ाल सोना लगा, और बादशाह ने उनको लुबनानी बन के घर में रखा|
\s5
\v 17 उसके 'अलावा बादशाह ने हाथी दांत का एक बड़ा तख़्त बनवाया और उस पर ख़ालिस सोना मढ़वाया|
\v 18 और उस तख़्त ~के लिए छ;सीढ़ियाँ और सोने का एक पायदान था ,यह सब तख़्त से जुड़ें हुए थे और बैठने की जगह की दोनों तरफ़ एक एक टेक थी और उन टेकों के बराबर दो शेर-ए-बबर खड़े थे|
\s5
\v 19 और उन छओं ~सीढियों पर इधर और उधर बारह शेर-ए-बबर खड़े थे किसी हुकूमत में कभी नहीं बना था|
\v 20 और सुलेमान बादशाह के पीने के सब बर्तन सोने के थे और लुबनानी बन के घर सब बर्तन ख़ालिस सोने के थे सुलेमान के अय्याम में चाँदी की कुछ क़द्र न थी|
\v 21 क्यूँकि बादशाह के पास जहाज़ थे जो हुराम के नौकारों के साथ तरसीस को जाते थे, तरसीस के यह जहाज़ तीन साल में एक बार सोना और चाँदी और हाथी के दांत और बंदर और मोर लेकर आते थे|
\s5
\v 22 सुलेमान बादशाह दौलत और हिकमत में रु-ए-ज़मींन के सब बादशाहों से बढ़ गया|
\v 23 और रू-ए-ज़मीन के सब बादशाह सुलेमान के दीदार के मुशताक़ थे ताकि वह उसकी हिकमत जो ख़ुदा ने उसके दिल में डाली थी सुनें|
\v 24 और वह साल-ब-साल अपना अपना हदिया, या'नी चाँदी के बर्तन और सोने के बर्तन और लिबास और हथियार और मसाल्हे और घोड़े और खच्चर जितने मुक़र्रर थे लाते थे|
\s5
\v 25 और सुलेमान के पास घोड़े और रथों के लिए चार हज़ार थान और बारह हज़ार सवार थे जिनको उस ने रथों के शहरों और यरुशलीम, में बादशाह के पास रखा|
\v 26 और वह दरिया-ए-फ़रात से फ़लिस्तियों के मुल्क बल्कि मिस्र की हद तक सब बादशाहों पर हुक्मरान था|
\s5
\v 27 और बादशाह ने यरुशलीम में इफ़रात की वजह से चाँदी को पत्थरों की तरह और देवदार के दरख़्तों को गूलर के उन दरख़्तो के बराबर कर दिया जो नशीब की सर ज़मीन में है|
\v 28 और वह मिस्र से और और सब मुल्को से सुलेमान के लिए घोड़े लाया करते थे|
\v 29 और सुलेमान के बाक़ी काम शुरू' से आख़िर तक किया वह नातन नबी की किताब में और सैलानी अखि़याह की पेशीनगोई में और 'ईदू गै़बबीन की रोयतों की किताब में जो उसने युर्बयाआ'म बिन नाबत के ज़रिए देखी थी, मुन्दर्ज़ नहीं है ?|
\v 30 और सुलेमान ने यरुशलीम में सारे इस्राईल पर चालीस साल हुकूमत की|
\v 31 और सुलेमान अपने बाप दादा के साथ सो गया और अपने बाप दाऊद के शहर में दफ़न हुआ और उसका बेटा रहुब 'आम उसकी जगह हुकूमत करने लगा|
\s5
\c 10
\p
\v 1 और रहुब 'आम सिकम को गया ,इसलिए कि सब इस्रईली उसे बादशाह बनाने को सिकम में इकठ्ठठे हुए थे
\v 2 जब नबात के बेटे युरब'आम ने यह सुना (क्यूँकि वह मिस्र में था जहाँ वह सुलेमान बादशाह के आगे से भाग गया था )तो युरब'आम मिस्र से लौटा|
\s5
\v 3 और लोगों ने उसे बुलवा भेजा| तब युरब'आम और सब इस्रईली आए और रहुब'आम से कहने लगे|
\v 4 कि तेरे बाप ने हमारा बोझ सख़्त कर रखा था| इसलिए अब तू अपने बाप की उस सख़्त ख़िदमत को और उस भारी बोझ को जो उस ने हम पर डाल रखा था; कुछ हल्का कर दे और हम तेरी ख़िदमत करेंगे|
\v 5 और उसने उन से कहा, "तीन दिन के बा'द फिर मेरे पास आना" चुनाँचे वह लोग चले गए
\s5
\v 6 तब रहुब'आम बादशाह ने उन बुज़ुर्गों से जो उसके बाप सुलेमान के सामने उसके जीते जी खड़े रहते थे,सलाह ~की और कहा तुम्हारी क्या सलाह है? मैं इन लोगो को क्या जवाब दूँ?
\v 7 उन्होंने उससे कहा कि अगर तू इन लोगों पर मेहरबान हो और उनको राज़ी करें और इन से अच्छी अच्छी बातें कहे,तो वह हमेशा तेरी ख़िदमत करेंगे|
\s5
\v 8 लेकिन उस ने उन बुज़ुर्गों की सलाह को जो उन्होंने उसे दी थी छोड़कर कर उन जवानों से जिन्होंने उसके साथ परवरिश पाई थी और उसके आगे हाज़िर रहते थे सलाह ~की|
\v 9 और उन से कहा तुम मुझे क्या सलाह देते हो कि हम इन लोगों को क्या जवाब दे जिन्होंने मुझ से यह दरखवास्त की है कि उस बोझ को जो तेरे बाप ने हम पर रखा ~कुछ हल्का कर?
\s5
\v 10 उन जवानों ने जिन्होंने उसके साथ परवरिश पाई थी उस से कहा, "तू उन लोगों को जिन्होंने तुझ से कहा तेरे बाप ने हमारे बोझे को भारी ~किया लेकिन तू उसको हमारे लिए कुछ हल्का कर दे यूँ जवाब देना और उन से कहना कि मेरी छिंगुली मेरे बाप के कमर से भी मोटी है|
\v 11 और मेरे बाप ने तो भारी बोझ तुम पर रखा ही था लेकिन मैं उस बोझ को और भी भारी करूँगा|मेरे बाप ने तुम्हे कोड़ों से ठीक किया लेकिन मैं ~तुम को~~बिच्छुयों~से ठीक ~करूँगा|"
\s5
\v 12 और जैसा बादशाह ने हुक्म दिया था कि तीसरे दिन मेरे पास फिर आना तीसरे दिन युरब'आम और सब लोग रहब'आम के पास हाज़िर हुए|
\v 13 तब बादशाह उनको सख़्त जवाब दिया और रहुब'आम बादशाह ने बुज़ुर्गों की सलाह को छोड़कर|
\v 14 जवानों की सलाह के मुताबिक़ उनसे कहा कि मेरे बाप ने तुम्हारा बोझ भारी किया लेकिन मैं उसको और भी भारी करूँगा|मेरे बाप ने तुमको कोड़ों से ठीक किया लेकिन मैं ~तुम को बिच्छुओं से ठीक करूँगा|
\s5
\v 15 तब बादशाह ने लोगों की न मानी क्यूँकि यह ख़ुदा ही की तरफ़ से था ताकि ख़ुदावंद उस बात को जो उसने सैलानी अखि़याह की ज़रिए नबात के बेटे युरबआ'म को फ़रमाई थी पूरा करे|
\s5
\v 16 जब सब इस्राइलियों ने यह देखा कि बादशाह ने उनकी न मानी तो लोगों ने बादशाह को जवाब दिया और यूँ कहा कि दाऊद के साथ हमारा क्या हिस्सा है ?यस्सी के बेटे के साथ हमारी कुछ मीरास नहीं|ऐ इस्राईलियों !अपने अपने डेरे को चले जाओ| अब ऐ दाऊद अपने ही घराने को संभाल|इसलिए सब इस्राइली अपने ख़ेमों को चल दिए|
\v 17 लेकिन उन बनी इस्राईल पर जो यहुदाह के शहरों में रहते थे रहुब'आम हुकूमत करता रहा|
\v 18 तब रहुब'आम बादशाह ने हदुराम को जो बेगारियों का दरोग़ा था भेजा लेकिन बनी इस्राईल ने उसको पथराव किया और वह मर गया|तब रहुब'आम यरुशलीम को भाग जाने के लिए झट अपने रथ पर सवार हो गया|
\v 19 तब ~इस्राईली आज़ के दिन तक दाऊद के घराने से बा'ग़ी है
\s5
\c 11
\p
\v 1 और जब रहुब'आम यरुशलीम में आ गया तो उसने इस्राईल से लड़ने के लिए यहूदाह और बिनयमीन के घराने में से एक लाख अस्सी हज़ार चुने हुए जवान, जो जंगी जवान थे इकठ्ठा किए, ताकि वह फिर ममलुकत को रहुब'आम के क़ब्ज़े में करा दें|
\s5
\v 2 लेकिन ख़ुदा वन्द का कलाम नबी समा'याह को पहुँचा कि;
\v 3 ~यहूदाह के बादशाह सुलेमान के बेटे रहुब'आम से और सारे इस्राईल से जो यहूदाह और बिनयमीन में हैं, कह,
\v 4 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तुम चढ़ाई न करना और न अपने भाइयों से लड़ना। तुम अपने अपने घर को लौट जाओ, क्यूँकि यह मु'आमिला मेरी तरफ़ से है। तब उन्होंने ख़ुदावन्द की बातें मान लीं, और युरब'आम पर हमला किए बगै़र लौट गए।
\s5
\v 5 रहुब'आम यरूशलीम में रहने लगा, और उसने यहूदाह में हिफ़ाज़त के लिए शहर बनाए।
\v 6 ~चुनाँचे उसने बैतलहम और ऐताम और तकू'अ,
\v 7 और बैत सूर और शोको और 'अदुल्लाम,
\v 8 और जात और मरीसा और ज़ीफ़,
\v 9 और अदूरैम और लकीस और 'अज़ीक़ा,
\v 10 और सुर'आ और अय्यालोन और हबरून को जो यहूदाह और बिनयमीन में हैं, बना कर क़िला' बन्द कर दिया।
\s5
\v 11 और उसने क़िलों' को बहुत मज़बूत किया और उनमें सरदारों को मुक़र्रर किया, और ख़ुराक और तेल और शराब के ज़ख़ीरे को रखा।
\v 12 और एक एक शहर में ढालें और भाले रखवाकर उनको बहुत ही मज़बूत कर दिया; और यहूदाह और बिनयमीन उसी के रहे।
\s5
\v 13 और काहिन और लावी जो सारे इस्राईल में थे, अपनी अपनी सरहद से निकल कर उसके पास आ गए।
\v 14 क्यूँकि लावी अपनी पास के 'इलाक़ों और जायदादों को छोड़ कर यहूदाह और यरूशलीम में आए, इसलिए के युरब'आम और उसके बेटों ने उन्हें निकाल दिया था ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने कहानत की ख़िदमत को अंजाम न देने पाएँ,
\v 15 ~और उसने अपनी तरफ़ से ऊँचे मक़ामों और बकरों और अपने बनाए हुए बछड़ों के लिए काहिन मुक़र्रर किए।
\s5
\v 16 ~और लावियों के पीछे इस्राईल के सब क़बीलों में से ऐसे लोग जिन्होंने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की तलाश में अपना दिल लगाया था, यरूशलीम में आए कि ख़ुदावन्द अपने बाप दादा के ख़ुदा के सामने ~क़ुर्बानी पेश करें ।
\v 17 इसलिए उन्होंने यहूदाह की हुकूमत को ताक़तवर बना दिया, और तीन साल तक सुलेमान के बेटे रहुब'आम को ताक़तवर बना रखा, क्यूँकि वह तीन साल तक दाऊद और सुलेमान की रास्ते पर चलते रहे।
\s5
\v 18 ~रहुब'आम ने महालात को जो यरीमोत बिन दाऊद और इलियाब बिन यस्सी की बेटी अबीख़ील की बेटी थी, ब्याह लिया।
\v 19 उसके उससे बेटे पैदा हुए, या'नी य'ऊस और समरियाह और ज़हम।
\s5
\v 20 उसके बा'द उसने अबीसलोम की बेटी मा'का को ब्याह लिया, जिसके उससे अबियाह और 'अत्ती और ज़ीज़ा और सलूमियत पैदा हुए।
\v 21 रहुब'आम अबीसलोम की बेटी मा'का को अपनी सब बीवियों और बाँदियों से ज़्यादा प्यार करता था (क्यूँकि उसकी अठारह बीवियाँ और साठ बाँदी थीं; और उससे अठाईस बेटे और साठ बेटियाँ पैदा हुई)।
\s5
\v 22 और रहुब'आम ने अबियाह बिन मा'का को रहनुमा मुक़र्रर किया ताकि अपने भाइयों में सरदार हो, क्यूँकि उसका इरादा था कि उसे बादशाह बनाए।
\v 23 और उसने होशियारी की, और अपने बेटों को यहूदाह और बिनयमीन की सारी ममलुकत के बीच हर फ़सीलदार शहर में अलग अलग कर दिया; और उनको बहुत ख़ुराक दी, और उनके लिए बहुत सी बीवियाँ तलाश कीं।
\s5
\c 12
\p
\v 1 और ऐसा हुआ कि जब रहब'आम की हुकूमत मज़बूत हो गई और वह ताक़तवर बन गया, तो उसने और उसके साथ सारे इस्राईल ने ख़ुदावन्द की शरी'अत को छोड़ दिया।
\s5
\v 2 रहुब'आम बादशाह के पाँचवें साल में ऐसा हुआ कि मिस्र का बादशाह सीसक यरूशलीम पर चढ़ आया, इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द की हुक्म 'उदूली की थी,
\v 3 और उसके साथ बारह सौ रथ और साठ हज़ार सवार थे, और लूबी और सूकी और कूशी लोग जो उसके साथ मिस्र से आए थे बेशुमार थे।
\v 4 और उसने यहूदाह के फ़सीलदार शहर ले लिए, और यरूशलीम तक आया।
\s5
\v 5 तब समायाह नबी रहुब'आम के और यहूदाह के हाकिमों के पास जो सीसक के डर के मारे यरूशलीम में जमा' हो गए थे, आया और उनसे कहा, "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तुम ने मुझ को छोड़ दिय़ा, इसी लिए मैंने भी तुम को सीसक के हाथ में छोड़ दिया है।”
\v 6 तब इस्राईल के हाकिमों ने और बादशाह ने अपने को ख़ाकसार बनाया और कहा, "ख़ुदावन्द सच्चा है।"
\s5
\v 7 जब ख़ुदावन्द ने देखा के उन्होंने अपने को ख़ाकसार बनाया, तो ख़ुदा वन्द का कलाम समायाह पर नाज़िल हुआ : "उन्होंने अपने को ख़ाकसार बनाया है, इसलिए मैं उनको हलाक नहीं करूँगा बल्कि उनको कुछ रिहाई दूँगा; और मेरा क़हर सीसक के हाथ से यरूशलीम पर नाज़िल न होगा।
\v 8 ~तोभी वह उसके ख़ादिम होंगे, ताकि वह मेरी ख़िदमत को और मुल्क मुल्क की सल्तनतों की ख़िदमत को जान लें।”
\s5
\v 9 ~इसलिए ~मिस्र का बादशाह सीसक यरूशलीम पर चढ़ आया, और ख़ुदावन्द के घर के खज़ाने और बादशाह के घर के ख़ज़ाने ले गया। बल्कि वह सब कुछ ले गया, और सोने की वह ढालें भी जो सुलेमान ने बनवाई थीं ले गया।
\v 10 और रहुब'आम बादशाह ने उनके बदले पीतल की ढालें बनवाई और उनको मुहाफ़िज़ सिपाहियों ~के सरदारों को जो शाही महल की निगहबानी करते थे सौंपा।
\s5
\v 11 और जब बादशाह ख़ुदावन्द के घर में जाता था, तो वह मुहाफ़िज़ सिपाही आते और उनको उठाकर चलते थे, और फिर उनको वापस लाकर सिलाहखाने में रख देते थे।
\v 12 और जब उसने अपने को ख़ाकसार बनाया, तो ख़ुदा वन्द का क़हर उस पर से टल गया और उसने उसको पूरे तौर से तबाह न किया; और भी यहूदाह में ख़ूबियाँ भी थीं।
\s5
\v 13 इसलिए रहुब'आम बादशाह ने ताक़तवर होकर यरूशलीम में हुकूमत की। रहुब'आम जब हुकूमत करने लगा तो इकतालीस साल का था और उसने यरूशलीम में, या'नी उस शहर में जो ख़ुदावन्द ने इस्राईल के सब क़बीलों में से चुन लिया था कि अपना नाम वहाँ रखे, सत्रह साल हुकूमत की। उसकी माँ का नाम नामा 'अम्मूनिया था।
\v 14 और उसने बुराई की, क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द की तलाश में अपना दिल न लगाया।
\v 15 और रहुब'आम के काम अव्वल से आख़िर तक, क्या वह समायाह नबी और 'ईद ग़ैबबीन की तवारीखों' में नसबनामों के मुताबिक़ लिखा नहीं? रहुब'आम और युरब'आम के बीच हमेशा जंग रही।
\v 16 और रहुब'आम अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और दाऊद के शहर में दफ़्न हुआ; और उसका बेटा अबियाह उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\c 13
\p
\v 1 ~युरब'आम बादशाह के अठारहवें साल से अबियाह यहूदाह पर हुकूमत करने लगा।
\v 2 ~उसने यरूशलीम में तीन साल हुकूमत की। उसकी माँ का नाम मीकायाह था जो ऊरीएल जिबई की बेटी थी।और अबियाह और युरब'आम के बीच जंग हुई।
\v 3 अबियाह जंगी सूर्माओं का लश्कर, या'नी चार लाख चुने हुए जंगी सूरमाओं का लश्कर लेकर लड़ाई में गया। और युरब'आम ने उसके मुक़ाबिले में आठ लाख चुने हुए आदमी ~लेकर, जो ताक़तवर सूर्मा थे सफ़आराई की।
\s5
\v 4 और अबियाह समरेम के पहाड़ पर जो इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में है, खड़ा हुआ और कहने लगा, "ऐ युरब'आम और सब इस्राईलियो, मेरी सुनो !
\v 5 क्या तुम को मा'लूम नहीं कि ख़ुदा वन्द इस्राईल के ख़ुदा ने इस्राईल की हुकूमत दाऊद ही को और उसके बेटों को, नमक के 'अहद से हमेशा के लिए दी है?
\s5
\v 6 तोभी नबात का बेटा युरब'आम, जो सुलेमान बिन दाऊद का ख़ादिम था, उठकर अपने आक़ा से बाग़ी हुआ।
\v 7 उसके पास निकम्मे और ख़बीस आदमी जमा' हो गए, जिन्होंने सुलेमान के बेटे रहब'आम के मुक़ाबिले में ज़ोर पकड़ा, जब रहुब'आम अभी जवान और नर्म दिल था और उनका मुक़ाबिला नहीं कर सकता था।
\s5
\v 8 और अब तुम्हारा ख़्याल है कि तुम ख़ुदावन्द की बादशाही का, जो दाऊद की औलाद के हाथ में है, मुक़ाबिला करो; और तुम भारी गिरोह हो और तुम्हारे साथ वह सुनहले बछड़े हैं जिनको युरब'आम ने बनाया कि तुम्हारे मा'बूद हों।
\v 9 ~ क्या तुम ने हारून के बेटों और लावियों को जो ख़ुदावन्द के काहिन थे, ख़ारिज नहीं किया, और मुल्कों की क़ौमों के तरीक़े पर अपने लिए काहिन मुक़र्रर नहीं किए? ऐसा कि जो कोई एक बछड़ा और सात मेंढे लेकर अपनी तक़्दीस करने आए, वह उनका जो हक़ीक़त में ख़ुदा नहीं हैं काहिन हो सके।
\s5
\v 10 लेकिन हमारा यह हाल है कि ख़ुदा वन्द हमारा ख़ुदा है और हम ने उसे छोड़ नहीं दिया ~है, और हमारे यहाँ हारून के बेटे काहिन हैं जो ख़ुदावन्द की ख़िदमत करते हैं, और लावी अपने अपने काम में लगे रहते हैं।
\v 11 और वह हर सुबह और हर शाम को ख़ुदावन्द के सामने सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और ख़ुशबूदार ख़ुशबू जलाते हैं, और पाक मेज़ पर नज़ की रोटियाँ क़ाइदे के मुताबिक़ रखते और सुनहले शमा'दान और उसके चिराग़ों को हर शाम को रौशन करते हैं, क्यूँकि हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्म को मानते हैं; लेकिन तुम ने उसको छोड़ ~दिया है।
\s5
\v 12 ~देखो, ख़ुदा हमारे साथ हमारा रहनुमा है, और उसके काहिन तुम्हारें ख़िलाफ़ साँस बांधकर ज़ोर से फूँकने को नरसिंगे लिए हुए हैं। ऐ बनी-इस्राईल, ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा से मत लड़ो, क्यूँकि तुम कामयाब न होगे।"
\s5
\v 13 लेकिन युरब'आम ने उनके पीछे कमीन लगवा दी।इसलिए वह बनी यहूदाह के आगे रहे और कमीन पीछे थी।
\v 14 जब बनी यहूदाह ने पीछे नज़र की, तो क्या देखा कि लड़ाई उनके आगे और पीछे दोनों तरफ़ से है; और उन्होंने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की, और काहिनों ने नरसिंगे फूंके।
\v 15 ~तब यहूदाह के लोगों ने ललकारा, और जब उन्होंने ललकारा तो ऐसा हुआ कि ख़ुदा ने अबियाह और यहूदाह के आगे युरब'आम को और सारे इस्राईल को मारा।
\s5
\v 16 और बनी इस्राईल यहूदाह के आगे से भागे, और ख़ुदा ने उनको उनके हाथ में कर दिया।
\v 17 और अबियाह और उसके लोगों ने उनको बड़ी ख़ूनरेज़ी के साथ क़त्ल किया, तब इस्राईल के पाँच लाख चुने हुए मर्द मारे गए।
\v 18 ऐसे बनी-इस्राईल उस वक़्त मग़लूब हुए और बनी यहुदाह ग़ालिब आए, इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द अपने बाप दादा के ख़ुदा पर यक़ीन किया।
\v 19 और अबियाह ने युरब'आम का पीछा किया और इन शहरों को उससे ले लिया, या'नी बैतएल और उसके देहात। यसाना और उसके देहात इफ्रोनऔर उसके देहात|
\v 20 ~अबियाह के दिनों में युरब'आम ने फिर ज़ोर न पकड़ा, और ख़ुदावन्द ने उसे मारा और वह मर गया।
\v 21 लेकिन अबियाह ताक़तवर हो गया और उसने चौदह बीवियाँ ब्याही,और उस के ज़रिए' बेटे और सोलह बेटियाँ ~पैदा हुई।
\v 22 अबियाह के बाक़ी काम और उसके हालात और उसकी कहावतें 'ईदू नबी की तफ़्सीर में लिखी हैं।
\s5
\c 14
\p
\v 1 और अबियाह अपने बाप -दादा के साथ सो गया, और उन्होंने उसे दाऊद के शहर में दफ़्न किया; और उसका बेटा आसा उसकी जगह बादशाह हुआ। उसके दिनों में दस साल तक मुल्क में अमन रहा।
\v 2 और आसा ने वही किया जो ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा के सामने अच्छा और ठीक था।
\v 3 क्यूँकि उसने अजनबी मज़बहों और ऊँचे मक़ामों को दूर किया, और लाटों को गिरा दिया, और यसीरतों को काट डाला,
\v 4 ~और यहूदाह को हुक्म किया कि ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा के तालिब हों, और शरी'अत और फ़रमान पर 'अमल करें।
\s5
\v 5 उसने यहूदाह के सब शहरों में से ऊँचे मक़ामों और सूरज की मूरतों को दूर कर दिया, और उसके सामने हुकूमत में अमन रहा।
\v 6 ~उसने यहूदाह में फ़सीलदार शहर बनाए, क्यूँकि मुल्क में अमन था। उन बरसों में उसे जंग न करना पड़ा, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उसे अमान बख़्शी थी।
\s5
\v 7 इसलिए उसने यहूदाह से कहा,कि ~"हम यह शहर ता'मीर करें और उनके पास दीवार और बुर्ज बनायें और फाटक और अड़बंगे लगाएँ। यह मुल्क अभी हमारे क़ाबू में है, क्यूँकि हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के तालिब हुए हैं। हम उसके तालिब हुए और उसने हम को चारों तरफ़ अमान बख़्शी है।" इसलिए उन्होंने उनको ता'मीर किया और कामयाब हुए।
\v 8 और आसा के पास बनी यहूदाह के तीन लाख आदमियों का लश्कर था जो ढाल और भाला उठाते थे, और बिनयमीन के दो लाख अस्सी हज़ार थे जो ढाल उठाते और तीर चलाते थे। यह सब ज़बरदस्त सूर्मा थे।
\s5
\v 9 और इनके मुक़ाबिले में ज़ारह कूशी दस लाख की फ़ौज और तीन सौ रथों को लेकर निकला, और मरीसा में आया।
\v 10 और आसा उसके मुक़ाबिले को गया, और उन्होंने मरीसा के बीच सफ़ाता की वादी में जंग के लिए सफ़ बाँधी।
\v 11 और आसा ने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से फ़रियाद की और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, ताक़तवर और कमज़ोर के मुक़ाबिले में मदद करने को तेरे 'अलावा और कोई नहीं। ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा तू हमारी मदद कर क्यूँकि हम तुझ पर भरोसा रखते हैं और तेरे नाम से इस गिरोह का सामना करने आए हैं। तू ऐ ख़ुदा हमारा ख़ुदा है इन्सान तेरे मुक़ाबिले में ग़ालिब होने न पाए।”
\s5
\v 12 ~फिर ख़ुदावन्द ने आसा और यहूदाह के आगे कूशियों को मारा और कूशी भागे,
\v 13 और आसा और उसके लोगों ने उनको जिरार तक दौड़ाया, और कूशियों में से इतने क़त्ल हुए कि वह फिर संभल न सके, क्यूँकि वह खु़दावन्द और उसके लश्कर के आगे हलाक हुए; और वह बहुत सी लूट ले आए।
\v 14 उन्होंने जिरार के आसपास के सब शहरों को मारा, क्यूँकि ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ उन पर छा गया था। और उन्होंने सब शहरों को लूट लिया, क्यूँकि उनमें बड़ी लूट थी।
\v 15 और उन्होंने मवैशी के डेरों पर भी हमला किया, और कसरत से भेड़ें और ऊँट लेकर यरूशलीम को लौटे ।
\s5
\c 15
\p
\v 1 और ख़ुदा की रूह अज़रियाह बिन ओदिद पर नाज़िल हुई,
\v 2 ~और वह आसा से मिलने को गया और उससे कहा, "ऐ आसा और सारे यहूदाह और बिनयमीन, मेरी सुनो। ख़ुदा वन्द तुम्हारे साथ है जब तक तुम उसके साथ हो, और अगर तुम उसके तालिब हो तो वह तुम को मिलेगा; लेकिन अगर तुम उसे छोड़ दो तो वह तुम को छोड़ देगा।
\s5
\v 3 अब बड़ी मुद्दत से बनी-इस्राईल बग़ैर सच्चे खु़दा और बगै़र सिखाने वाले काहिन और बगै़र शरी'अत के रहे हैं,
\v 4 ~लेकिन जब वह अपने दुख में ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की तरफ़ फिर कर उसके तालिब हुए तो वह उनको मिल गया।
\v 5 और उन दिनों में उसे जो बाहर जाता था और उसे जो अन्दर आता था बिलकुल चैन न था, बल्कि मुल्कों के सब बाशिंदों पर बड़ी तकलीफ़ें थीं|
\s5
\v 6 ~क़ौम क़ौम के मुक़ाबिले में, और शहर शहर के मुक़ाबिले में पिस गए, क्यूँकि ख़ुदा ने उनको हर तरह मुसीबत से तंग किया।
\v 7 ~लेकिन तुम मज़बूत बनो और तुम्हारे हाथ ढीले न होने पाएँ, क्यूँकि तुम्हारे काम का अज्र मिलेगा।"
\s5
\v 8 जब आसा ने इन बातों और 'ओदिद नबी की नबुव्वत को सुना, तो उसने हिम्मत बाँधकर यहूदाह और बिनयमीन के सारे मुल्क से, और उन शहरों से जो उसने इफ्राईम के पहाड़ी मुल्क में से ले लिए थे, मकरूह चीज़ों को दूर कर दिया, और ख़ुदावन्द के मज़बह को जो खु़दावन्द के उसारे के सामने था फिर बनाया।
\v 9 और उसने सारे यहूदाह और बिनयमीन को, और उन लोगों को जो इफ़्राईम और मनस्सी और शमा'ऊन में से उनके बीच रहा करते थे, इकट्ठा किया, क्यूँकि जब उन्होंने देखा कि ख़ुदावन्द उसका ख़ुदा उसके साथ है, तो वह इस्राईल में से बकसरत उसके पास चले आए।
\s5
\v 10 वह आसा की हुकूमत के पन्द्रहवें साल के तीसरे महीने में, यरूशलीम में जमा' हुए;
\v 11 और उन्होंने उसी वक़्त उस लूट में से जो वह लाए थे, ख़ुदावन्द के सामने सात सौ बैल और सात हज़ार भेड़ें क़ुर्बान कीं|
\s5
\v 12 और वह उस 'अहद में शामिल हो गए, ताकि अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा के तालिब हों,
\v 13 और जो कोई, क्या छोटा क्या बड़ा क्या मर्द क्या 'औरत, ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा का तालिब न हो वह क़त्ल किया जाए।
\s5
\v 14 उन्होंनें बड़ी आवाज़ से ललकार कर तुरहियों और नरसिंगों के साथ ख़ुदावन्द के सामने क़सम खाई;
\v 15 ~और सारा यहूदाह उस क़सम से बहुत ख़ुश हो गए, क्यूँकि उन्होंने अपने सारे दिल से क़सम खाई थी, और कमाल आरज़ू से ख़ुदावन्द के तालिब हुए थे और वह उनको मिला, और ख़ुदावन्द ने उनको चारों तरफ़ अमान बख़्शी।
\s5
\v 16 और आसा बादशाह की माँ मा'का को भी उसने मलिका के 'ओहदे से उतार दिया, क्यूँकि उसने यसीरत के लिए एक मकरूह बुत बनाया था। इसलिए आसा ने उसके बुत को काटकर उसे चूर चूर किया, और वादी-ए-क़िद्रोन में उसको जला दिया।
\v 17 लेकिन ऊँचे मक़ाम इस्राईल में से दूर न किए गए, तो भी आसा का दिल 'उम्र भर कामिल रहा।
\v 18 और उसने ख़ुदा के घर में वह चीजें जो उसके बाप ने पाक की थीं, और जो कुछ उसने ख़ुद पाक किया था दाख़िल कर दिया, या'नी चाँदी और सोना और बर्तन।
\v 19 और आसा की हुकूमत के पैंतीसवें साल तक कोई जंग न हुई।
\s5
\c 16
\p
\v 1 और इस्राईल का बादशाह बाशा यहूदाह पर चढ़ आया, और रामा को ता'मीर किया ताकि यहूदाह के बादशाह आसा के यहाँ किसी को आने-जाने न दे।
\s5
\v 2 ~तब आसा ने ख़ुदावन्द के घर और शाही महल के ख़ज़ानों में से चाँदी और सोना निकालकर, अराम के बादशाह बिन-हदद के पास जो दमिश्क़ में रहता था रवाना किया और कहला भेजा कि,
\v 3 ~"मेरे और तेरे बीच और मेरे बाप और तेरे बाप के बीच 'अहद-ओ-पैमान है; देख, मैंने तेरे लिए चाँदी और सोना भेजा है, इसलिए तू जाकर इस्राइल के रहने वाले ~बाशा से वा'दा खिलाफी कर ताकि वह मेरे पास से चला जाए।"
\s5
\v 4 और बिन-हदद ने आसा बादशाह की बात मानी और अपने लश्करों के सरदारों को इस्राईली शहरों पर हमला ~करने को भेजा, तब ~उन्होंने 'अयून और दान और अबीलमाइम और नफ़्ताली के जखीरे के सब शहरों को ~तबाह किया।
\v 5 ~जब बाशा ने यह सुना तो रामा का बनाना छोड़ा, और अपना काम बंद कर दिया।
\v 6 तब आसा बादशाह ने सारे यहूदाह को साथ लिया, और वह रामा के पत्थरों और लकड़ियों को जिनसे बाशा ता'मीर कर रहा था उठा ले गए, और उसने उनसे जिब'आ और मिस्फाह को ता'मीर किया।
\s5
\v 7 उस वक़्त हनानी गै़बबीन यहूदाह के बादशाह आसा के पास आकर कहने लगा, "चूँकि तू ने अराम के बादशाह पर भरोसा किया और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा पर भरोसा नहीं रखा, इसी वजह से अराम के बादशाह का लश्कर तेरे हाथ से बच निकला है।
\v 8 क्या कूशी और लूबी बहुत बड़ा गिरोह न थे, जिनके साथ गाड़ियाँ और सवार बड़ी कसरत से न थे? तो भी चूँकि तू ने ख़ुदावन्द पर भरोसा रखा, उसने उनको तेरे क़ब्ज़ा में कर~दिया;
\s5
\v 9 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द की आँखें सारी ज़मीन पर फिरती हैं, ताकि वह उनकी इमदाद में जिनका दिल उसकी तरफ़ कामिल है, अपनी ताक़त दिखाए। इस बात में तू ने बेवकूफ़ी की, क्यूँकि अब से तेरे लिए जंग ही जंग है।"
\v 10 तब आसा ने उस गै़बबीन से खफ़ा होकर उसे कै़दखाने में डाल दिया, क्यूँकि वह उस कलाम की वजह से बहुत ही ग़ुस्सा हुआ; और आसा ने उस वक़्त लोगों में से कुछ औरों पर भी जु़ल्म किया।
\s5
\v 11 और देखो, आसा के काम शुरू' से आखि़र तक यहूदाह और इस्राईल के बादशाहों की किताब में लिखा हैं।
\v 12 और आसा की हुकूमत के उनतालीसवें साल उसके पाँव में एक रोग लगा और वह रोग बहुत बढ़ गया, तो भी अपनी बीमारी में वह ख़ुदावन्द का तालिब नहीं बल्कि हकीमों का तालिब हुआ।
\s5
\v 13 और आसा अपने बाप-दादा के साथ सो गया; उसने अपनी हुकूमत के इकतालीसवें साल में वफ़ात पाई।
\v 14 उन्होंने उसे उन क़ब्रों में, जो उसने अपने लिए दाऊद के शहर में खुदवाई थीं दफ़्न किया। उसे उस ताबूत में लिटा दिया जो इत्रों और क़िस्म क़िस्म के मसाल्हे से भरा था, जिनको 'अतारों की हिकमत के मुताबिक़ तैयार किया था, और उन्होंने उसके लिए उनको ख़ूब जलाया।
\s5
\c 17
\p
\v 1 ~और उसका बेटा यहूसफ़त उसकी जगह बादशाह हुआ, अौर उसने इस्राईल के मुक़ाबिल अपने आपको मज़बूत किया।
\v 2 ~उसने यहूदाह के सब फ़सीलदार शहरों में फ़ौजें रखी, और यहूदाह के मुल्क में और इफ़्राईम के उन शहरों में जिनको उसके बाप आसा ने ले लिया था, चौकियाँ बिठाई।
\s5
\v 3 और ख़ुदावन्द यहूसफ़त के साथ था, क्यूँकि उसका ~चाल चलन उसके बाप दाऊद के पहले तरीक़ों पर थी, और वह बा'लीम का तालिब न हुआ,
\v 4 ~बल्कि अपने बाप-दादा के ख़ुदा का तालिब हुआ और उसके हुक्मों पर चलता रहा, और इस्राईल के से काम न किए।
\s5
\v 5 इसलिए ख़ुदावन्द ने उसके हाथ में हुकूमत को मज़बूत किया; और सारा यहूदाह यहूसफ़त के पास हदिए लाया,और उसकी दौलत और 'इज़्ज़त बहुत ~फ़रावान हुई|
\v 6 उसका दिल ख़ुदावन्द के रास्तों में बहुत ~ख़ुश था, और उसने ऊँचे मक़ामों और यसीरतों को यहूदाह में से दूर कर दिया।
\s5
\v 7 और अपनी हुकूमत के तीसरे साल उसने बिनखैल और अबदियाह और ज़करियाह और नतनीएल और मीकायाह को, जो उसके हाकिम थे, यहूदाह के शहरों में ता'लीम देने को भेजा:
\v 8 ~और उनके साथ यह लावी थे या'नी समा'याह और नतनियाह और ज़बदियाह और 'असाहेल और समीरामोत और यहूनतन और अदूनियाह और तूबियाह और तूब अदूनियाह लावियों में से, और इनके साथ इलीसमा' और यहूराम काहिनों में से थे।
\v 9 इसोलिए उन्होंने ख़ुदावन्द की शरी'अत की किताब साथ रख कर यहूदाह को ता'लीम दी, और वह यहूदाह के सब शहरों में गए और लोगों को ता'लीम दी।
\s5
\v 10 ~और ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ यहूदाह के पास पास की मुल्कों की सब हुकूमतों पर छा गया, यहाँ तक कि उन्होंने यहूसफ़त से कभी जंग न की।
\v 11 ~बा'ज़ कुछ फ़िलिस्ती यहूसफ़त के पास हदिए और ख़िराज में चाँदी लाए, और 'अरब के लोग भी उसके पास रेवड़ लाए, या'नी सात हज़ार सात सौ मेंढे और सात हज़ार सात सौ बकरे।
\s5
\v 12 और यहूसफ़त बहुत ही बढ़ा और उसने यहूदाह में क़िले' और ज़ख़ीरे के शहर बनाए,
\v 13 और यहूदाह के शहरों में उसके बहुत से कारोबार और यरूशलीम में उसके जंगी जवान या'नी ताक़तवर सूर्मा थे,
\s5
\v 14 और उनका शुमार अपने अपने आबाई ख़ान्दान के मुवाफ़िक़ यह था: यहूदाह में से हज़ारों के सरदार यह थे, सरदार 'अदना और उसके साथ तीन लाख ताक़तवर सूर्मा,
\v 15 और उससे दूसरे दर्जे पर सरदार यूहनान और उसके साथ दो लाख अस्सी हज़ार,
\v 16 और उससे नीचे 'अमसियाह बिन ज़िकरी था, जिसने अपने को बख़ुशी ख़ुदावन्द के लिए पेश किया था, और उस के साथ दो लाख ताक़तवर सूर्मा थे;
\v 17 और बिनयमीन में से, इलीदा' एक ताक़तवर सूर्मा था और उसके साथ कमान और सिपर से मुसल्लह दो लाख थे;
\v 18 ~और उससे नीचे यहूज़बद था, और उसके साथ एक लाख अस्सी हज़ार थे जो जंग के लिए तैयार रहते थे।
\v 19 यह बादशाह के ख़िदमत गुज़ार थे, और उनसे अलग थे जिनको बादशाह ने तमाम यहूदाह के फ़सीलदार शहरों में रख्खा था।
\s5
\c 18
\p
\v 1 और यहूसफ़त की दौलत और 'इज़्ज़त फरावान थी और उसने~अख़ीअब के साथ रिस्ता जोड़ा|
\v 2 और कुछ सालों के बा'द वह अख़ीअब के पास सामरिया को गया, और~अख़ीअब ने उसके और उसके साथियों के~लिए भेड़-बकरियाँ और बैल कसरत से ज़बह किए, और उसे अपने साथ रामात जिल'आद पर चढ़ायी करने की सलाह दी|
\v 3 और इस्राईल के बादशाह~अख़ीअब ने यहूदाह के बादशाह यहूसफ़त से कहा, "क्या तू मेरे साथ रामात जिल'आद को चलेगा? उसने जवाब दिया, "मैं वैसा ही हूँ जैसा तू है, और मेरे लोग ऐसे है जैसे तेरे लोग। इसलिए हम लड़ाई में तेरे साथ होंगे"|
\s5
\v 4 ~और यहूसफ़त ने इस्राईल के बादशाह से कहा, "आज ज़रा ख़ुदावन्द की बात पूँछ लें|"
\v 5 तब इस्राईल के बादशाह ने नबियों को जो चार सौ जवान थे, इकट्ठा किया और उनसे पूछा, "हम रामात जिल'आद को जंग के लिए जाएँ या मैं बाज़ ~रहूँ?" उन्होंने कहा,हमला कर क्यूँकि ख़ुदा उसे बादशाह के क़ब्ज़े में कर देगा।”
\s5
\v 6 लेकिन यहूसफ़त ने कहा, "क्या यहाँ इनके 'अलावा ख़ुदावन्द का कोई नबी नहीं ताकि हम उससे पूछे?"
\v 7 ~शाह-ए-इस्राईल ने यहूसफ़त से कहा, "एक शख़्स है तो सही, है; जिसके ज़रिए' से हम ख़ुदावन्द से पूछ सकते~लेकिन मुझे उससे नफ़रत है, क्यूँकि वह मेरे हक़ में कभी नेकी की नहीं बल्कि हमेशा बुराई की पेशीनगोई करता है। वह शख़्स मीकायाह बिन इमला है।" यहूसफ़त ने कहा, "बादशाह ऐसा न कहे।”
\v 8 ~तब शाह-ए-इस्राईल ने एक 'उहदेदार को बुला कर हुक्म किया, "मीकायाह बिन इमला को जल्द ले आ।"
\s5
\v 9 और शाह-ए-इस्राईल और शाह-ए-यहूदाह यहूसफ़त अपने अपने तख़्त पर अपना अपना लिबास पहने बैठे थे। वह सामरिया के फाटक के सहन पर खुली जगह में बैठे थे, और सब अम्बिया उनके सामने नबुव्वत कर रहे थे।
\v 10 और सिदक़ियाह बिन कना'ना ने अपने लिए लोहे के सींग बनाए और कहा, "ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है कि तू इनसे अरामियों को ढक लेगा, जब तक कि वह ख़त्म न हो जाएँ।"
\v 11 और सब नबियों ने ऐसी ही नबुव्वत की और कहते रहे कि रामात जिल'आद को जा और कामयाब हो, क्यूँकि ख़ुदावन्द उसे बादशाह के क़ब्ज़े में कर देगा।
\s5
\v 12 और उस क़ासिद ने जो मीकायाह को बुलाने गया था, उससे यह कहा, "देख, सब अम्बिया एक ज़बान होकर बादशाह को ख़ुश ख़बरी दे रहे हैं,इसलिए तेरी बात भी ज़रा उनकी बात की तरह हो; और तू ख़ुशख़बरी ही देना।"
\v 13 ~मीकायाह ने कहा, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम, जो कुछ मेरा ख़ुदा फ़रमाएगा मैं वही कहूँगा।"
\v 14 जब वह बादशाह के पास पहुँचा, तो बादशाह ने उससे कहा, "मीकायाह, हम रामात जिल'आद को जंग के लिए जाएँ या मैं बाज़ रहूँ?" उसने कहा, "तुम चढ़ाई ~करो और कामयाब हो, और वह तुम्हारे हाथ में कर दिए जाएँगे।"
\s5
\v 15 बादशाह ने उससे कहा, "मैं तुझे कितनी बार क़सम देकर कहूँ कि तू मुझे ख़ुदावन्द के नाम से हक़ के 'अलावा और कुछ न बताए?"
\v 16 उसने कहा, "मैंने सब बनी-इस्राईल को पहाड़ों पर उन भेड़ों की तरह बिखरा देखा जिनका कोई चरवाहा न हो, और ख़ुदावन्द ने कहा इनका कोई मालिक नहीं, इसलिए इनमें से हर शख़्स अपने घर को सलामत लौट जाए।"
\s5
\v 17 तब शाह-ए-इस्राईल ने यहूसफ़त से कहा, "क्या मैंने तुझ से कहा न था कि वह मेरे हक़ में नेकी की नहीं बल्कि बदी की पेशीनगोई करेगा?”
\v 18 तब वह बोल उठा, "अच्छा, तुम ख़ुदावन्द के बात को सुनो: मैंने देखा कि ख़ुदावन्द अपने तख़्त पर बैठा है और सारा आसमानी लश्कर उसके दहने और बाएँ हाथ खड़ा है।
\s5
\v 19 ~और ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, 'शाह-ए-इस्राईल अखी'अब को कौन बहकाएगा, ताकि वह चढ़ाई करे और रामात जिल'आद में मक्तूल हो? और किसी ने कुछ और किसी ने कुछ कहा।
\s5
\v 20 तब एक रूह निकलकर ख़ुदावन्द के सामने खड़ी हुई, और कहने लगी, मैं उसे बहकाऊँगी। ख़ुदावन्द ने उससे पूछा, "किस तरह?"
\v 21 उसने कहा, 'मैं जाऊँगी, और उसके सब नबियों के मुँह में झूट बोलने वाली रूह बन जाऊँगी।' ख़ुदावन्द ने कहा, 'तू उसे बहकाएगी, और ग़ालिब भी होगी; जा और ऐसा ही कर।
\s5
\v 22 इसलिए देख, ख़ुदावन्द ने तेरे इन सब नबियों के मुँह में झूट बोलने वाली रूह डाली है, और ख़ुदावन्द ने तेरे हक़ में बुराई का हुक्म दिया है।"
\s5
\v 23 तब सिदक़ियाह बिन कना'ना ने पास आकर मीकायाह के गाल पर मारा और कहने लगा, "ख़ुदावन्द की रूह तुझ से कलाम करने को किस रास्ते मेरे पास से निकल कर गई?
\v 24 ~मीकायाह ने कहा, "तू उस दिन देख लेगा, जब तू अन्दर की कोठरी में छिपने को घुसेगा।"
\s5
\v 25 और शाह-ए-इस्राईल ने कहा, "मीकायाह को पकड़ कर उसे शहर के नाज़िम अमून और यूआस शहज़ादे के पास लौटा ले जाओ,
\v 26 और कहना, 'बादशाह यूँ फ़रमाता है कि जब तक मैं सलामत वापस न आ जाऊँ, इस आदमी को क़ैदखाने में रखो, और उसे मुसीबत की रोटी खिलाना और मुसीबत का पानी पिलाना।"
\v 27 मीकायाह ने कहा, "अगर तू कभी सलामत वापस आए, तो ख़ुदावन्द ने मेरे ज़रिए' कलाम ही नहीं किया।" और उसने कहा, "ऐ लोगों, तुम सब के सब सुन लो।"
\s5
\v 28 इसलिए शाह-ए-इस्राईल और शाह-ए-यहूदाह यहूसफ़त ने रामात जिल'आद पर चढ़ाई की।
\v 29 और शाह-ए-इस्राईल ने यहूसफ़त से कहा, "मैं अपना भेस बदलकर लड़ाई में जाऊँगा, लेकिन तू अपना लिबास पहने रह।" इसलिए शाह-ए-इस्राईल ने भेस बदल लिया, और वह लड़ाई में गए।
\v 30 ~इधर शाह-ए-अराम ने अपने रथों के सरदारों को हुक्म दिया था, "शाह-ए-इस्राईल के सिवा, किसी छोटे या बड़े से जंग न करना।"
\s5
\v 31 और ऐसा हुआ कि जब रथों के सरदारों ने यहूसफ़त को देखा तो कहने लगे, "शाह-ए-इस्राईल यही है।” इसलिए वह उससे लड़ने को मुड़े। लेकिन यहूसफ़त चिल्ला उठा, और ख़ुदावन्द ने उसकी मदद की; और ख़ुदा ने उनको उसके पास से लौटा दिया।
\v 32 जब रथों के सरदारों ने देखा कि वह शाह-ए-इस्राईल नहीं है, तो उसका पीछा छोड़कर लौट गए।
\s5
\v 33 और किसी शख़्स ने यूँ ही~कमान खींची और शाह-ए-इस्राईल को जौशन के बन्दों के बीच मारा। तब उसने अपने सारथी से कहा, "बाग मोड़ और मुझे लश्कर से निकाल ले चल, क्यूँकि मैं बहुत ज़ख़्मी हो गया हूँ।"
\v 34 और उस दिन जंग ख़ूब ही हुई, तो भी शाम तक शाह-ए-इस्राईल अरामियों के मुक़ाबिल अपने को अपने रथ पर संभाले रहा, और सूरज डूबने के वक़्त के क़रीब मर गया।
\s5
\c 19
\p
\v 1 और शाह-ए-यहूदाह यहूसफ़त यरूशलीम को अपने महल में सलामत लौटा।
\v 2 तब हनानी ग़ैबबीन का बेटा याहू उसके इस्तक़बाल को निकला, और यहूसफ़त बादशाह से कहने लगा, क्या मुनासिब है कि तू शरीरों की मदद करे, और ख़ुदावन्द के दुश्मनों से मुहब्बत रखें? इस बात की वजह~से ख़ुदावन्द की तरफ़ से तुझ पर ग़ज़ब है।
\v 3 तो भी तुझ में ख़ूबियाँ हैं; क्यूँकि तू ने यसीरतों को मुल्क में से दफ़ा' किया, और ख़ुदा की तलाश में अपना दिल लगाया है।
\s5
\v 4 यहूसफ़त यरूशलीम में रहता था, और उसने फिर बैरसबा' से इफ़्राईम के पहाड़ी तक लोगों के बीच दौरा करके, उनको ख़ुदावन्द उनके बाप-दादा के ख़ुदा की तरफ़ फिर मोड़ दिया।
\v 5 उसने यहूदाह के सब फ़सीलदार शहरों में शहर-ब-शहर क़ाज़ी मुक़र्रर किए,
\s5
\v 6 और क़ाज़ियों से कहा, जो कुछ करो सोच समझकर करो, क्यूँकि तुम आदमियों की तरफ़ से नहीं, बल्कि ख़ुदावन्द की तरफ़ से 'अदालत करते हो; और वह फ़ैसले में तुम्हारे साथ है।
\v 7 फिर ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ तुम में रहे; इसलिए ख़बरदारी से काम करना, क्यूँकि ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा में बेइन्साफ़ी नहीं है, और न किसी की रूदारी न रिश्वत ख़ोरी ~|
\s5
\v 8 ~और यरूशलीम में भी यहूसफ़त ने लावियों और काहिनों और इस्राईल के आबाई ख़ान्दानों के सरदारों में से लोगों को, ख़ुदावन्द की 'अदालत और मुक़द्दमों के लिए मुक़र्रर किया; और वह यरूशलीम को लौटे
\v 9 और उसने उनको ताकीद की और कहा कि तुम ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ से दियानतदारी और कामिल दिल से ऐसा करना।
\s5
\v 10 जब कभी तुम्हारे भाइयों की तरफ़ से जो अपने शहरों में रहते हैं, कोई मुक़द्दमा तुम्हारे सामने आए, जो आपस के ख़ून से या शरी'अत और फ़रमान या क़ानून और 'अदालत से ता'अल्लुक़ रखता हो, तो तुम उनको आगाह कर देना कि वह ख़ुदावन्द का गुनाह न करें, जिससे तुम पर और तुम्हारे भाइयों पर ग़ज़ब नाज़िल हो। यह करो तो तुम से ख़ता न होगी।
\s5
\v 11 और देखो, ख़ुदावन्द के सब मु'आमिलों में अमरियाह काहिन तुम्हारा सरदार है, और बादशाह के सब मु'आमिलों में ज़बदियाह बिन इस्माईल है, जो यहूदाह के ख़ान्दान का रहनुमा है; और लावी भी तुम्हारे आगे सरदार होंगे। हौसले के साथ काम करना और ख़ुदावन्द नेकों के साथ हो।
\s5
\c 20
\p
\v 1 उसके बा'द ऐसा हुआ कि बनी मोआब और बनी 'अम्मून और उनके साथ कुछ 'अम्मूनियों ने यहूसफ़त से लड़ने को चढ़ाई की।
\v 2 तब चन्द लोगों ने आकर यहूसफ़त को ख़बर दी, "दरिया के पार अराम की तरफ़ से एक बड़ा गिरोह तेरे मुक़ाबिले को आ रहा है; और देख, वह हसासून-तमर में हैं, जो ऐनजदी है।"
\s5
\v 3 ~और यहूसफ़त डर कर दिल से ख़ुदावन्द का तालिब हुआ, और सारे यहूदाह में रोज़ा का 'ऐलान कराया।
\v 4 और बनी यहूदाह ख़ुदावन्द से मदद माँगने को इकट्ठे हुए, बल्कि यहूदाह के सब शहरों में से ख़ुदावन्द से मदद माँगने को आए।
\s5
\v 5 और यहूसफ़त यहूदाह और यरूशलीम की जमा'अत के बीच , ख़ुदावन्द के घर में नए सहन के आगे खड़ा हुआ
\v 6 और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, हमारे बाप-दादा के ख़ुदा! क्या तू ही आसमान में ख़ुदा नहीं? और क्या क़ौमों की सब मुल्कों पर हुकूमत करने वाला तू ही नहीं? ज़ोर और क़ुदरत तेरे हाथ में है, ऐसा कि कोई तेरा सामना नहीं कर सकता।
\v 7 ~ऐ हमारे ख़ुदा, क्या तू ही ने इस सरज़मीन के बाशिंदों को अपनी क़ौम इस्राईल के आगे से निकाल कर इसे अपने दोस्त इब्राहीम की नसल को हमेशा के लिए नहीं दिया?
\s5
\v 8 चुनाँचे वह उसमें बस गए, और उन्होंने तेरे नाम के लिए उसमें एक मक़दिस बनाया है और कहते हैं कि;
\v 9 ~अगर कोई बला हम पर आ पड़े, जैसे तलवार या आफ़त या वबा या काल, तो हम इस घर के आगे और तेरे सामने खड़े होंगे (क्यूँकि तेरा नाम इस घर में है), और हम अपनी मुसीबत में तुझ से फ़रियाद करेंगे और तू सुनेगा और बचा लेगा।'
\s5
\v 10 इसलिए अब देख, 'अम्मून और मोआब और कोह-ए-श'ईर के लोग जिन पर तू ने बनी-इस्राईल को, जब वह मुल्क-ए-मिस्र से निकलकर आ रहे थे, हमला करने न दिया बल्कि वह उनकी तरफ़ से मुड़ गए और उनको हलाक न किया।
\v 11 ~देख, वह हम को कैसा बदला देते हैं कि हम को तेरी मीरास से, जिसका तू ने हम को मालिक बनाया है, निकालने को आ रहे हैं।
\s5
\v 12 ~ऐ हमारे ख़ुदा क्या तू उनकी 'अदालत नहीं करेगा? क्यूँकि इस बड़े गिरोह के मुक़ाबिल जो हम पर चढ़ा आता है, हम कुछ ताक़त नहीं रखते और न हम यह जानते हैं कि क्या करें? बल्कि हमारी आँखें तुझ पर लगी हैं।"
\v 13 और सारा यहूदाह अपने बच्चों और बीवियों और लड़कों समेत ख़ुदावन्द के सामने खड़ा रहा।
\s5
\v 14 ~तब जमा'अत के बीच यहज़ीएल बिन ज़करियाह बिन बिनायाह बिन यईएल बिन मत्तनियाह, एक लावी पर जो बनी आसफ़ में से था, ख़ुदावन्द की रूह नाज़िल हुई
\v 15 और वह कहने लगा, "ऐ तमाम यहूदाह और यरूशलीम के बाशिन्दों, और ऐ बादशाह यहूसफ़त, तुम सब सुनो! ख़ुदावन्द तुम को यूँ फ़रमाता है कि तुम इस बड़े गिरोह की वजह से न तो डरो और न घबराओ, क्यूँकि यह जंग तुम्हारी नहीं बल्कि ख़ुदा की है।
\s5
\v 16 तुम कल उनका सामना करने को जाना। देखो, वह सीस की चढ़ाई से आ रहे हैं, और यरूएल के जंगल के सामने वादी के किनारे पर तुम को मिलेंगे
\v 17 ~तुम को इस जगह में लड़ना नहीं पड़ेगा। ऐ यहूदाह और यरूशलीम, तुम क़तार बाँधकर चुपचाप खड़े रहना और ख़ुदावन्द की नजात जो तुम्हारे साथ है देखना। ख़ौफ़ न करो और न घबराओ; कल उनके मुक़ाबिला को निकलना, क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारे साथ है।
\s5
\v 18 और यहूसफ़त सिज्दे होकर ज़मीन तक झुका, और तमाम यहूदाह और यरूशलीम के रहने वालों ने ख़ुदावन्द के आगे गिरकर उसको सिज्दा किया।
\v 19 और बनी क़िहात और बनी क़ोरह के लावी बुलन्द आवाज़ से ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की हम्द करने को खड़े हो गए|
\s5
\v 20 और वह सुबह सवेरे उठ कर तकू'अ के जंगल में निकल गए, और उनके चलते वक़्त यहूसफ़त ने खड़े होकर कहा, "ऐ यहूदाह और यरूशलीम के बाशिन्दों, मेरी सुनो। ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा पर ईमान रखों, तो तुम क़ाइम किए जाओगे; उसके नबियों का यक़ीन करो, तो तुम कामयाब होगे।"
\v 21 जब उसने क़ौम से सलाह कर लिया, तो उन लोगों को मुक़र्रर किया जो लश्कर के आगे आगे चलते हुए ख़ुदावन्द के लिए गाएँ, और पाकीज़गी की ख़ूबसूरती के साथ उसकी हम्द करें और कहें, कि ख़ुदावन्द की शुक्रगुज़ारी करो क्यूँकि उसकी रहमत हमेशा तक है।
\s5
\v 22 जब वह गाने और हम्द करने लगे, तो ख़ुदावन्द ने बनी 'अम्मून और मोआब और कोह-ए-शईर के बाशिन्दों पर जो यहूदाह पर चढ़े आ रहे थे, कमीन वालों को बैठा दिया इसलिए वह मारे गए।
\v 23 क्यूँकि बनी 'अम्मून और मोआब कोह-ए-शईर के बाशिन्दों के मुक़ाबिले में खड़े हो गए कि उनको बिल्कुल तह-ए-तेग और हलाक करें, और जब वह शईर के बाशिन्दों का ख़ातिमा कर चुके, तो आपस में एक दूसरे को हलाक करने लगे।
\s5
\v 24 ~और जब यहूदाह ने पहरेदारों ~के बुर्ज पर जो बियाबान में था, पहुँच कर उस गिरोह पर नज़र की तो क्या देखा कि उनकी लाशें ज़मीन पर पड़ी हैं, और कोई न बचा।
\s5
\v 25 जब यहूसफ़त और उसके लोग उनका माल लूटने आए, तो उनको इस कसरत से दौलत और लाशे और क़ीमती जवाहिर जिनकी उन्होंने अपने लिए उतार लिया, मिले कि वह इनको ले जा भी न सके, और माल-ए-ग़नीमत इतना था कि वह तीन दिन तक उसके बटोर ने में लगे रहे।
\v 26 चौथे दिन वह बराकाह की वादी में इकट्ठे हुए क्यूँकि उन्होंने वहाँ ख़ुदावन्द को मुबारक कहा; इसलिए कि उस मक़ाम का नाम आज तक बराकाह की वादी है।
\s5
\v 27 तब वह लौटे, या'नी यहूदाह और यरूशलीम का हर शख़्स उनके आगे आगे यहूसफत ताकि वह ख़ुशी ख़ुशी यरूशलीम को वापस जाएँ, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनको उनके दुश्मनों पर ख़ुश किया था।
\v 28 इसलिए वह सितार और बरबत और नरसिंगे लिए यरूशलीम में ख़ुदावन्द के घर में आए।
\s5
\v 29 और ख़ुदा का ख़ौफ़ उन मुल्कों की सब सल्तनतों पर छा गया, जब उन्होंने सुना कि इस्राईल कि दुश्मनों से ख़ुदावन्द ने लड़ाई की है।
\v 30 इसलिए यहूसफ़त की हुकूमत में अम्न रहा, क्यूँकि उसके ख़ुदा ने उसे चारों तरफ़ अमान बख़्शी ।
\s5
\v 31 यहूसफ़त यहूदाह पर हुकूमत करता रहा। जब वह हुकूमत करने लगा तो पैतीस साल का था, और उसने यरूशलीम में पच्चीस साल हुकूमत की। उसकी माँ का नाम 'अजूबाह था, जो सिलही की बेटी थी।
\v 32 वह अपने बाप आसा के रास्ते पर चला और उससे न मुड़ा, या'नी वही किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक है।
\v 33 ~तो भी ऊँचे मक़ाम दूर न किए गए थे, और अब तक लोगों ने अपने बाप-दादा के ख़ुदा से दिल नहीं लगाया था।
\s5
\v 34 और यहूसफ़त के बाक़ी काम शुरू' से आख़िर तक याहू बिन हनानी की तारीख़ में दर्ज हैं, जो इस्राईल के सलातीन की किताब में शामिल है
\s5
\v 35 इसके बा'द यहूदाह के बादशाह यहूसफ़त ने इस्राईल के बादशाह अख़ज़ियाह से, जो बड़ा बदकार था, सुलह किया;
\v 36 और इसलिए उससे सुलह किया कि तरसोस जाने को जहाज़ बनाए, और उन्होंने 'अस्यूनजाबर में जहाज़ बनाए।
\v 37 तब इली'अज़र बिन दूदावाहू ने, जो मरीसा का था, यहूसफ़त के बरख़िलाफ़ नबुव्वत की और कहा, "इसलिए कि तू ने अखज़ियाह से सुलह कर लिया है, ख़ुदावन्द ने तेरे बनाए को तोड़ दिया है।" फ़िर वह जहाज़ ऐसे टूटे कि तरसीस~को न जा सके।
\s5
\c 21
\p
\v 1 ~और यहूसफ़त अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और दाऊद के शहर में अपने बाप-दादा के साथ दफ़्न हुआ; और उसका बेटा यहूराम उसकी जगह हुकूमत करने लगा।
\v 2 ~उसके भाई जो यहूसफ़त के बेटे यह थे: या'नी 'अज़रियाह और यहीएल और ज़करियाह और 'अज़रियाह और मीकाईल और सफ़तियाह, यह सब शाह-ए-इस्राईल यहूसफ़त के बेटे थे।
\v 3 और उनके बाप ने उनको चाँदी और सोने और बेशक़ीमत चीज़ों के बड़े इनाम और फ़सीलदार शहर यहूदाह में 'अता किए, लेकिन हुकूमत यहूराम को दी क्यूँकि वह पहलौठा था।
\s5
\v 4 जब यहूराम अपने बाप की हुकूमत पर क़ायम हो गया और अपने को ताक़तवर कर लिया, तो उसने अपने सब भाइयों को और इस्राईल के कुछ सरदारों को भी तलवार से क़त्ल किया
\v 5 ~यहूराम जब हुकूमत करने लगा तो बत्तीस साल का था, और उसने आठ साल यरूशलीम में हुकूमत की।
\s5
\v 6 और वह अख़ीअब के घराने की तरह इस्राईल के बादशाहों के रास्ते पर चला, क्यूँकि अख़ीअब की बेटी उसकी बीवी थी; और उसने वही किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में बुरा है।
\v 7 तो भी ख़ुदावन्द ने दाऊद के ख़ान्दान को हलाक करना न चाहा, उस 'अहद की वजह से जो उसने दाऊद से बाँधा था, और जैसा उसने उसे और उसकी नसल को हमेशा के लिए एक चिराग़ देने का वा'दा किया था।
\s5
\v 8 ~उसी के दिनों में अदोम यहूदाह की हुकूमत से अलग हो गया और अपने ऊपर एक बादशाह बना लिया।
\v 9 ~तब यहूराम अपने अमीरों और अपने सब रथों को साथ लेकर उबूर कर गया और रात को उठकर अदोमियों को, जो उसे और रथों के सरदारों को घेरे हुए थे मारा।
\v 10 ~इसलिए अदोमी यहूदाह से आज तक अलग हैं, और उसी वक़्त लिबनाह भी उसके हाथ से निकल गया, क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा को छोड़ दिया था।
\s5
\v 11 और इसके 'अलावा उसने यहूदाह के पहाड़ों पर ऊँचे मक़ाम बनाए और यरूशलीम के बाशिन्दों को ज़िनाकार बनाया, और यहूदाह को गुमराह किया।
\s5
\v 12 और एलियाह नबी से उसे इस मज़्मून का ख़त मिला, "ख़ुदावन्द तेरे बाप दाऊद का ख़ुदा ऐसा फ़रमाता है, इसलिए कि तू न अपने बाप यहूसफ़त के रास्तों पर और न यहूदाह के बादशाह आसा के रास्तों पर चला,
\v 13 बल्कि इस्राईल के बादशाहों के रास्ते पर चला है, और यहूदाह और यरूशलीम के बाशिन्दों को ज़िनाकार बनाया जैसा अखी'अब के ख़ान्दान ने किया था; और अपने बाप के घराने में से अपने भाइयों को जो तुझ से अच्छे थे क़त्ल भी किया।
\v 14 इसलिए देख, ख़ुदावन्द तेरे लोगों को और तेरे बेटों और तेरी बीवियों को और तेरे सारे माल को बड़ी आफ़तों से मारेगा।
\v 15 और तू अन्तड़ियों के मर्ज़ की वजह से सख़्त बीमार हो जाएगा, यहाँ तक कि तेरी अन्तड़ियाँ उस मर्ज़ की वजह से हर दिन निकलती जाएँगी।"
\s5
\v 16 और ख़ुदावन्द ने यहूराम के ख़िलाफ़ फ़िलिस्तियों और उन 'अरबों का, जो कूशियों की सिम्त में रहते हैं दिल उभारा।
\v 17 इसलिए वह यहूदाह पर चढ़ाई करके उसमें घुस आए, और सारे माल को जो बादशाह के घर में मिला और उसके बेटों और उसकी बीवियों को भी ले गए, ऐसा कि यहूआख़ज़ के 'अलावा जो उसके बेटों में सबसे छोटा था उसका कोई बेटा बाक़ी न रहा।
\s5
\v 18 ~और इस सबके बा'द ख़ुदावन्द ने एक लाइलाज मर्ज़ उसकी अन्तड़ियों में लगा दिया।
\v 19 कुछ मुद्दत के बा'द, दो साल के आख़िर में ऐसा हुआ कि उसके रोग के मारे उसकी अन्तड़ियाँ निकल पड़ी और वह बुरी बीमारियों से मर गया। उसके लोगों ने उसके लिए आग न जलाई, जैसा उसके बाप-दादा के लिए जलाते थे।
\v 20 वह बत्तीस साल का था जब हुकूमत करने लगा और उसने आठ साल यरूशलीम में हुकूमत की; और वह बगै़र मातम के रुख़सत हुआ और उन्होंने उसे दाऊद के शहर में दफ़्न किया, लेकिन शाही क़ब्रों में नहीं।
\s5
\c 22
\p
\v 1 और यरूशलीम के बाशिंदों ने उसके सबसे छोटे बेटे अखज़ियाह को उसकी जगह बादशाह बनाया; क्यूँकि लोगों के उस जत्थे ने जो 'अरबों के साथ छावनी में आया था, सब बड़े बेटों को क़त्ल कर दिया था। इसलिए शाह-ए- यहूदाह यहूराम का बेटा अखज़ियाह बादशाह हुआ।
\v 2 अखज़ियाह बयालीस' साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने यरूशलीम में एक साल हुकूमत की। उसकी माँ का नाम 'अतलियाह था, जो 'उमरी की बेटी थी।
\v 3 ~वह भी अख़ीअब के ख़ान्दान के रास्ते पर चला, क्यूँकि उसकी माँ उसको बुराई की सलाह देती थी।
\s5
\v 4 उसने ख़ुदावन्द की नज़र में बुराई की जैसा अख़ीअब के ख़ान्दान ने किया था, क्यूँकि उसके बाप के मरने के बा'द वही उसके सलाहकार थे, जिससे उसकी बर्बादी हुई।
\v 5 और उसने उनके सलाह पर 'अमल भी किया, और शाह-ए-इस्राईल अख़ीअब के बेटे यहूराम के साथ शाह-ए-अराम हज़ाएल से रामात जिल'आद में लड़ने को गया, और अरामियों ने यहूराम को ज़ख़्मी किया;
\s5
\v 6 और वह यज़र'ऐल को उन ज़ख़्मों के 'इलाज के लिए लौटा जो उसे रामा में शाह-ए-अराम हज़ाएल के साथ लड़ते वक़्त उन लोगों के हाथ से लगे थे, और शाह-ए-यहूदाह यहूराम का बेटा 'अज़रियाह, यहूराम बिन अख़ीअब को यज़र'एल में देखने गया क्यूँकि वह बीमार था।
\s5
\v 7 अखज़ियाह की हलाकत ख़ुदा की तरफ़ से ऐसी हुई कि वह यहूराम के पास गया, क्यूँकि जब वह पहुँचा तो यहूराम के साथ याहू बिन निमसी से लड़ने को गया, जिसे ख़ुदावन्द ने अख़ीअब के ख़ान्दान को काट डालने के लिए मसह किया था।
\v 8 और जब याहू अख़ीअब के ख़ानदान को सज़ा दे रहा था तो उसने यहूदाह के सरदारों और अखज़ियाह के भाइयों ~के बेटों को अख़ज़ियाह की ख़िदमत करते पाया और उनको क़त्ल किया।
\s5
\v 9 और उसने अख़ज़ियाह को ढूंढा यह ~सामरिया में छिपा था इसलिए ~वह उसे पकड़ कर याहू के पास लाये और उसे क़त्ल किया और उन्होंने उसे दफ़न किया क्यूँकि वह कहने लगे, "वह यहूसफ़त का बेटा है,जो अपने सारे दिल से ख़ुदावन्द का तालिब रहा।” और अख़ज़ियाह के घराने में हुकूमत संभालने की ताक़त किसी में न रही।
\s5
\v 10 जब अख़ज़ियाह की माँ 'अतलियाह ने देखा कि उसका बेटा मर गया, तो उसने उठ कर यहूदाह के घराने की सारी शाही नसल को मिटा ~दिया।
\v 11 लेकिन बादशाह की बेटी यहूसब'अत अख़ज़ियाह के बेटे यूआस को बादशाह के बेटों के बीच से जो क़त्ल किए गए, चुरा ले गई और उसे और उसकी दाया को बिस्तरों की कोठरी में रखा। इसलिए यहूराम बादशाह की बेटी यहूयदा' काहिन की बीवी यहूसब'अत ने (चूँकि वह अख़ज़ियाह की बहन थी) उसे अतलियाह से ऐसा छिपाया कि वह उसे क़त्ल करने न पायी|
\v 12 और वह उनके पास ख़ुदा की हैकल में छ: साल तक छिपा रहा, और 'अतलियाह मुल्क पर हुकूमत करती रही।
\s5
\c 23
\p
\v 1 सातवे साल यहूयदा' ने ज़ोर पकड़ा और सैकड़ों के सरदारों या'नी 'अज़रियाह बिन यहूराम और इस्मा'ईल बिनयहूहनान और अज़रियाह बिन 'ओबेद और मासियाह बिन 'अदायाह और इलीसाफ़त बिन ज़िकरी से 'अहद बाँधा।
\v 2 वह यहूदाह में फिरे, और यहूदाह के सब शहरों में से लावियों को, और इस्राईल के आबाई ख़ान्दानों के सरदारों को इकट्ठा किया, और वह यरूशलीम में आए।
\v 3 और सारी जमा'अत ने ख़ुदा के घर में बादशाह के साथ 'अहद बाँधा, और यहूयदा' ने उनसे कहा, "देखो! यह शाहज़ादा जैसा ख़ुदावन्द ने बनी दाऊद के हक़ में फ़रमाया है, हुकूमत करेगा।
\s5
\v 4 जो काम तुम को करना है वह यह है कि तुम काहिनों और लावियों में से जो सब्त को आते हो, एक तिहाई दरबान हो,
\v 5 और एक तिहाई शाही महल पर, और एक तिहाई बुनियाद के फाटक पर; और सब लोग ख़ुदावन्द के घर के सहनों में हो।
\s5
\v 6 पर ख़ुदावन्द के घर में सिवा काहिनों के और उनके जो लावियों में से ख़िदमत करते हैं, और कोई न आने पाए वही अन्दर आए क्यूँकि वह मुक़द्दस है लेकिन सब लोग ख़ुदावन्द का पहरा देते रहें।
\v 7 ~और लावी अपने अपने हाथ में अपने हथियार लिए हुए बादशाह को चारों तरफ़ से घेरे रहे, और जो कोई हैकल में आए क़त्ल किया जाए और बादशाह जब अन्दर आए और बाहर निकले तो तुम उसके साथ रहना।"
\s5
\v 8 इसलिए लावियों और सारे यहूदाह ने यहूयदा' काहिन के हुक्म के मुताबिक़ सब कुछ किया, और उनमें से हर शख़्स ने अपने लोगों को लिया, या'नी उनको जो सब्त को अन्दर आते थे और उनको जो सब्त को बाहर चले जाते थे; क्यूँकि यहूयदा' काहिन ने बारी वालों को ~रुख़सत नहीं किया था।
\v 9 और यहूयदा' काहिन ने दाऊद बादशाह की बर्छियाँ और ढालें और फरियाँ, जो ख़ुदा के घर में थीं, सैंकड़ों सरदारों को दीं।
\s5
\v 10 और उसने सब लोगों को जो अपना अपना हथियार हाथ में लिए हुए थे, हैकल की दहनी तरफ़ से उसकी बाई तरफ़ तक, मज़बह और हैकल के पास बादशाह के चारो तरफ़ खड़ा कर दिया।
\v 11 फिर वह शाहज़ादे को बाहर लाए, और उसके सिर पर ताज रखकर गवाही नामा दिया और उसे बादशाह बनाया; और यहूयदा' और उसके बेटों ने उसे मसह किया, और वह बोल उठे, "बादशाह सलामत रहे।"
\s5
\v 12 जब 'अतलियाह ने लोगों का शोर सुना, जो दौड़ दौड़ कर बादशाह की तारीफ़ कर रहे थे, तो वह ख़ुदावन्द के घर में लोगों के पास आई।
\v 13 और उसने निगाह की और क्या देखा कि बादशाह फाटक में अपने सुतून के पास खड़ा है, और बादशाह के नज़दीक हाकिम और नरसिंगे हैं और सारी ममलकत के लोग ख़ुश हैं और नरसिंगे फूंक रहे हैं, और गानेवाले बाजों को लिए हुए मदहसराई करने में पेशवाई कर रहे हैं। तब 'अतलियाह ने अपने कपड़े फाड़े और कहा, "गद्र है! गद्र!"
\s5
\v 14 तब यहूयदा' काहिन सैकड़ों के सरदारों को जो लश्कर पर मुक़र्रर थे, बाहर ले आया और उनसे कहा कि उसको सफ़ों के बीच करके निकाल ले जाओ, और जो कोई उसके पीछे चले वह तलवार से मारा जाए। क्यूँकि काहिन कहने लगा कि ख़ुदावन्द के घर में उसे क़त्ल न करो।
\v 15 इसलिए उन्होंने उसके लिए रास्ता छोड़ दिया, और वह शाही महल के घोड़ा फाटक के सहन को गई, और वहाँ उन्होंने उसे क़त्ल कर दिया
\s5
\v 16 फिर यहूयदा' ने अपने और सब लोगों और बादशाह के बीच 'अहद बाँधा कि वह ख़ुदावन्द के लोग हों।
\v 17 तब सब लोग बा'ल के मन्दिर को गए और उसे ढाया; और उन्होंने उसके मज़बहों और उसकी मूरतों को चकनाचूर किया, और बा'ल के पुजारी मतान को मज़बहों के सामने क़त्ल किया।
\s5
\v 18 और यहूयदा' ने ख़ुदावन्द की हैकल की ख़िदमत लावी काहिनों के हाथ में सौंपी, जिनको दाऊद' ने ख़ुदावन्द की हैकल में अलग अलग ठहराया था कि ख़ुदावन्द की सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ जैसा मूसा की तौरेत में लिखा है, ख़ुशी मनाते हुए और गाते हुए दाऊद के दस्तूर के मुताबिक़ अदा करेंगे।
\v 19 ~और उसने ख़ुदावन्द की हैकल के फाटकों पर दरबानों को बिठाया, ताकि जो कोई किसी तरह से नापाक हो, अन्दर आने न पाए।
\s5
\v 20 और उसने सैकड़ों के सरदारों और हाकिम और क़ौम के हाकिमों और मुल्क के सब लोगों को साथ लिया, और बादशाह को ख़ुदावन्द की हैकल से ले आया, और वह ऊपर के फाटक से शाही महल में आए और बादशाह की तख़्त-ए-हुकूमत पर बिठाया।
\v 21 तब मुल्क के सब लोगों ने ख़ुशी मनाई और शहर में अमन हुआ। उन्होंने 'अतलियाह को तलवार से क़त्ल कर दिया।
\s5
\c 24
\p
\v 1 ~यूआस सात साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने चालीस साल यरूशलीम में हुकूमत की। उसकी माँ का नाम ज़िबियाह था, जो बैरसबा' की थी।
\v 2 और यूआस यहूयदा' काहिन के जीते जी वही, जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक है, करता रहा।
\v 3 ~यहूयदा' ने उसे दो बीवियाँ ब्याह दीं, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।
\s5
\v 4 इसके बा'द यूँ हुआ कि यूआस ने ख़ुदावन्द के घर की मरम्मत का 'इरादा किया।
\v 5 इसलिए उसने काहिनों और लावियों को इकट्ठा किया और उनसे कहा कि यहूदाह के शहरों में जा जा कर, सारे इस्राईल से साल-ब-साल अपने ख़ुदा के घर की मरम्मत के लिए रुपये जमा' किया करो, और इस काम में तुम जल्दी करना। तो भी लावियों ने कुछ जल्दी न की।
\s5
\v 6 ~तब बादशाह ने यहूयदा सरदार को बुलाकर उससे कहा कि तू ने लावियों से क्यूँ तकाज़ा नहीं किया कि वह शहादत के ख़ेमे के लिए, यहूदाह और यरूशलीम से ख़ुदावन्द के बन्दे और इस्राईल की जमा'अत के ख़ादिम मूसा का महसूल लाया करें?
\v 7 क्यूँकि उस शरीर 'औरत 'अतलियाह के बेटों ने ख़ुदा के घर में छेद कर दिए थे, और ख़ुदावन्द के घर की सब पाक की हुई चीजें भी उन्होंने बा'लीम को दे दी थीं।
\s5
\v 8 तब बादशाह ने हुक्म दिया, और उन्होंने एक सन्दूक़ बना कर उसे ख़ुदावन्द के घर के दरवाज़े के बाहर रखा;
\v 9 और यहूदाह और यरूशलीम में 'ऐलान किया कि लोग वह महसूल जिसे बन्दा-ए-ख़ुदा मूसा ने वीरान में इस्राईल पर लगाया था, ख़ुदावन्द के लिए लाएँ।
\v 10 और सब सरदार और सब लोग ख़ुश हुए, और लाकर उस सन्दूक़ में डालते रहे जब तक पूरा न कर दिया।
\s5
\v 11 जब सन्दूक़ लावियों के हाथ से बादशाह के मुख़्तारों के पास पहुँचा, और उन्होंने देखा कि उसमें बहुत नक़दी है, तो बादशाह के मुन्शी और सरदार काहिन के नाइब ने आकर सन्दूक़ को ख़ाली किया और उसे लेकर फिर उसकी जगह पहुँचा दिया; और हर दिन ऐसा ही कर के उन्होंने बहुत सी नकदी जमा' कर ली
\v 12 ~फिर बादशाह और यहूयदा' ने उसे उनको दे दिया जो ख़ुदावन्द के घर की 'इबादत के काम पर मुक़र्रर थे, और उन्होंने पत्थर तराशों और बढ़इयों को ख़ुदावन्द के घर को बहाल करने के लिए और लोहारों और ठठेरों को भी ख़ुदावन्द के घर की मरम्मत के लिए मज़दूरी पर रखा।
\s5
\v 13 इसलिए ~कारीगर लग गए और काम उनके हाथ से पूरा होता गया, और उन्होंने ख़ुदा के घर को उसकी पहली हालत पर करके उसे मज़बूत कर दिया।
\v 14 और जब उसे पूरा कर चुके तो बाक़ी रुपया बादशाह और यहूयदा' के पास ले आए, जिससे ख़ुदावन्द के घर के लिए बर्तन या'नी ख़िदमत के और क़ुर्बानी पेश करने के बर्तन और चमचे और सोने और चाँदी के बर्तन बने। और वह यहूयदा' के जीते जी ख़ुदावन्द के घर में हमेशा~सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ अदा करते रहे।
\s5
\v 15 लेकिन यहूयदा' ने बुड्ढा और 'उम्र दराज़ होकर वफ़ात पाई; और जब वह मरा तो एक सौ तीस साल का था।
\v 16 और उन्होंने उसे दाऊद के शहर में बादशाहों के साथ दफ़न किया, क्यूँकि उसने इस्राईल में, और ख़ुदा और उसके घर की ख़ातिर नेकी की थी।
\s5
\v 17 यहूयदा' के मरने के बा'द यहूदाह के सरदार आकर बादशाह के सामने कोर्निश बजा लाए; तब बादशाह ने उनकी सुनी,
\v 18 और वह ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा के घर को छोड़ कर यसीरतों और बुतों की 'इबादत करने लगे। और उनकी इस ख़ता की वजह से यहूदाह और यरूशलीम पर ग़ज़ब नाज़िल हुआ।
\v 19 ~तो भी ख़ुदावन्द ने नबियों को उनके पास भेजा ताकि उनको उसकी तरफ़ फेर लाएँ, और वह उनको इल्ज़ाम देते रहे, पर उन्होंने कान न लगाया।
\s5
\v 20 तब ख़ुदा की रूह यहूयदा' काहिन के बेटे ज़करियाह पर नाज़िल हुई, इसलिए वह लोगों से बुलन्द जगह पर खड़ा होकर कहने लगा, "ख़ुदा ऐसा फ़रमाता है कि~तुम क्यूँ ख़ुदावन्द के हुक्मों से बाहर जाते हो कि ऐसे ख़ुशहाल नहीं रह सकते? चूँकि तुम ने ख़ुदावन्द को छोड़ा है, उसने भी तुम को छोड़ दिया।"
\v 21 तब उन्होंने उसके ख़िलाफ़ साज़िश की, और बादशाह के हुक्म से ख़ुदावन्द के घर के सहन में उसे पत्थराव कर दिया।
\v 22 ऐसे यूआस बादशाह ने उसके बाप यहूयदा' के एहसान को जो उसने उस पर किया था, याद न रखा बल्कि उसके बेटे को क़त्ल किया। और मरते वक़्त उसने कहा, "ख़ुदावन्द इसको देखे, और इन्तक़ाम ले।"
\s5
\v 23 ~उसी साल के आख़िर में ऐसा हुआ कि अरामियों की फ़ौज ने उस पर चढ़ाई की, और यहूदाह और यरूशलीम में आकर लोगों में से क़ौम के सब सरदारों को हलाक किया और उनका सारा माल लूटकर दमिश्क़ के बादशाह के पास भेज दिया।
\v 24 अगरचे अरामियों के लश्कर से आदमियों का छोटा ही जत्था आया, तोभी ख़ुदावन्द ने एक बहुत बड़ा लश्कर उनके हाथ में कर दिया, इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा को छोड़ दिया था। इसलिए उन्होंने यूआस को उसके किए का बदला दिया।
\s5
\v 25 ~और जब वह उसके पास से लौट गए (उन्होंने उसे बड़ी बीमारियों में मुब्तला छोड़ा), तो उसी के मुलाज़िमों ने यहूयदा' काहिन के बेटों के ख़ून की वजह से उसके ख़िलाफ़ साज़िश की और उसे उसके बिस्तर पर क़त्ल किया, और वह मर गया; और उन्होंने उसे दाऊद के शहर में तो दफ़न किया, लेकिन उसे बादशाहों की कब्रों में दफ़न न किया।
\v 26 उसके ख़िलाफ़ साज़िश करने वाले यह हैं: 'अम्मूनिया समा'अत का बेटा ज़बद, और मो'आबिया सिमरियत का बेटा यहूज़बद।
\s5
\v 27 अब रहे उसके बेटे और वह बड़े बोझ जो उस पर रखे गए, और ख़ुदा के घर का दोबारा बनाना; इसलिए देखो, यह सब कुछ बादशाहों की किताब की तफ़सीर में लिखा है। और उसका बेटा अमसियाह उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\c 25
\p
\v 1 अमसियाह पच्चीस साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने उनतीस साल यरूशलीम में हुकूमत की। उसकी माँ का नाम यहूअद्दान था, जो यरूशलीम की थी।
\v 2 ~उसने वही किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक है, लेकिन कामिल दिल से नहीं।
\s5
\v 3 जब वह हुकूमत पर जम गया तो उसने अपने उन मुलाज़िमों को, जिन्होंने उसके बाप बादशाह को मार डाला था क़त्ल किया,
\v 4 ~लेकिन उनकी औलाद को जान से नहीं मारा बल्कि उसी के मुताबिक़ किया जो मूसा की किताब तौरेत में लिखा है, जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया कि बेटों के बदले बाप-दादा न मारे जाएँ, और न बाप-दादा के बदले बेटे मारे जाएँ, बल्कि हर आदमी अपने ही गुनाह के लिए मारा जाए।
\s5
\v 5 इसके 'अलावा अमसियाह ने यहूदाह को इकट्ठा किया, और उनको उनके आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ तमाम मुल्क-ए-यहूदाह और बिनयमीन में हज़ार हज़ार के सरदारों और सौ सौ के सरदारों के नीचे ठहराया; और उनमें से जिनकी 'उम्र बीस साल या उससे ऊपर थी उनको शुमार किया, और उनको तीन लाख चुने हुए जवान पाया जो जंग में जाने के क़ाबिल और बर्छी और ढाल से काम ले सकते थे।
\v 6 और उसने सौ क़िन्तार चाँदी देकर इस्राईल में से एक लाख ज़बरदस्त सूर्मा नौकर रखे।
\s5
\v 7 ~लेकिन एक नबी ने उसके पास आकर कहा, "ऐ बादशाह, इस्राईल की फ़ौज तेरे साथ जाने न पाए, क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल या'नी सब बनी इफ़्राईम के साथ नहीं है।
\v 8 लेकिन अगर तू जाना ही चाहता है तो जा और लड़ाई के लिए मज़बूत हो, ख़ुदा तुझे दुश्मनों के आगे गिराएगा क्यूँकि ख़ुदा में संभालनेऔर गिराने की ताक़त है।"
\s5
\v 9 अमसियाह ने उस नबी से कहा, "लेकिन सौ क़िन्तारों के लिए जो मैंने इस्राईल के लश्कर को दिए, हम क्या करें?" उस नबी ने जवाब दिया, "ख़ुदावन्द तुझे इससे बहुत ज़्यादा दे सकता है।"
\v 10 ~तब अमसियाह ने उस लश्कर को जो इफ़्राईम में से उसके पास आया था जुदा किया, ताकि वह फिर अपने घर जाएँ। इस वजह से उनका गु़स्सा यहूदाह पर बहुत भड़का, और वह बहुत गु़स्से में घर को लौटे।
\s5
\v 11 ~और अमसियाह ने हौसला बाँधा और अपने लोगों को लेकर वादी-ए-शोर को गया, और बनी श'ईर में से दस हज़ार को मार दिया;
\v 12 और दस हज़ार को बनी यहूदाह ज़िन्दा पकड़ कर ले गए, और उनको एक चट्टान की चोटी पर पहुँचाया और उस चट्टान की चोटी पर से उनको नीचे गिरा दिया, ऐसा कि सब के सब टुकड़े टुकड़े हो गए।
\s5
\v 13 लेकिन उस लश्कर के लोग जिनको अमसियाह ने लौटा दिया था कि उसके साथ जंग में न जाएँ, सामरिया से बैतहौरून तक यहूदाह के शहरों पर टूट पड़े और उनमें से तीन हज़ार जवानों को मार डाला और बहुत सी लूट ले गए।
\s5
\v 14 जब अमसियाह अदूमियों के क़िताल से लौटा, तो बनी श'ईर के मा'बूदों को लेता आया और उनको नस्ब किया ताकि वह उसके मा'बूद हों, और उनके आगे सिज्दा किया और उनके आगे ख़ुशबू जलाया।
\v 15 ~इसलिए ख़ुदावन्द का ग़ज़ब अमसियाह पर भड़का और उसने एक नबी को उसके पास भेजा, जिसने उससे कहा, "तू उन लोगों के मा'बूदों का तालिब क्यूँ हुआ, जिन्होंने अपने ही लोगों को तेरे हाथ से न छुड़ाया?"
\s5
\v 16 वह उससे बातें कर ही रहा था कि उसने उससे कहा कि क्या हम ने तुझे बादशाह का सलाहकार बनाया है? चुप रह, तू क्यूँ मार खाए? तब वह नबी यह कहकर चुप हो गया कि मैं जानता हूँ कि ख़ुदा का इरादा यह है कि तुझे हलाक करे, इसलिए कि तू ने यह किया है और मेरी सलाह नहीं मानी।
\s5
\v 17 तब यहूदाह के बादशाह अमसियाह ने सलाह करके इस्राईल के बादशाह यूआस बिन यहूआख़ज़ बिन याहू के पास कहला भेजा कि ज़रा आ तो, हम एक दूसरे का मुक़ाबिला करें।
\s5
\v 18 इसलिए इस्राईल के बादशाह यूआस ने यहूदाह के बादशाह अमसियाह को कहला भेजा, कि लुबनान के ऊँट-कटारे ने लुबनान के देवदार को पैग़ाम भेजा कि अपनी बेटी मेरे बेटे को ब्याह दे; इतने में एक जंगली दरिंदा जो लुबनान में रहता था, गुज़रा और उसने ऊँटकटारे को रौंद डाला।
\v 19 तू कहता है, "देख मैंने अदोमियों को मारा, इसलिए तेरे दिल में घमण्ड समाया है कि फ़ख़्र करे; घर ही में बैठा रह तू क्यूँ अपने नुक़सान के लिए दस्तअन्दाज़ी करता है कि तू भी गिरे और तेरे साथ यहूदाह भी?”
\s5
\v 20 ~लेकिन अमसियाह ने न माना; क्यूँकि यह ख़ुदा की तरफ़ से था कि वह उनको उनके दुश्मनों के हाथ में कर दे, इसलिए कि वह अदूमियों के मा'बूदों के तालिब हुए थे।
\v 21 ~इसलिए इस्राईल का बादशाह यूआस चढ़ आया, और वह और शाह-ए-यहूदाह अमसियाह यहूदाह के बैतशम्स में एक दूसरे के मुक़ाबिल हुए।
\v 22 और यहूदाह ने इस्राईल के मुक़ाबिले में शिकस्त खाई, और उनमें से हर एक अपने डेरे को भागा।
\s5
\v 23 और शाह-ए-इस्राईल यूआस ने शाह-ए-यहूदाह अमसियाह बिन यूआस बिन यहूआखज़ को बैतशम्स में पकड़ लिया और उसे यरूशलीम में लाया, और यरूशलीम की दीवार इफ़्राईम के फाटक से कोने के फाटक तक चार सौ हाथ ढा दी।
\v 24 और सारे सोने और चाँदी और सब बर्तनों को जो 'ओबेद अदोम के पास ख़ुदा के घर में मिले, और शाही महल के खज़ानों और कफ़ीलों को भी लेकर सामरिया को लौटा।
\s5
\v 25 ~और शाह-ए-यहूदाह अमसियाह बिन यूआस, शाह-ए-इस्राईल यूआस बिन यहूआख़ज़ के मरने के बाद पंद्रह साल ज़िन्दा रहा।
\v 26 अमसियाह के बाक़ी काम शुरू' से आख़िर तक, क्या वह यहूदाह और इस्राईल के बादशाहों की किताब में क़लमबन्द नहीं हैं?
\s5
\v 27 ~जब से अमसियाह ख़ुदावन्द की पैरवी से फिरा, तब ही से यरूशलीम के लोगों ने उसके ख़िलाफ़ साज़िश की,इसलिए वह लकीस को भाग गया। लेकिन उन्होंने लकीस में उसके पीछे लोग भेजकर उसे वहाँ क़त्ल किया।
\v 28 और वह उसे घोड़ों पर ले आए, और यहूदाह के शहर में उसके बाप-दादा के साथ उसे दफ़्न किया।
\s5
\c 26
\p
\v 1 ~तब यहूदाह के सब लोगों ने 'उज़्ज़ियाह को जो सोलह साल का था, लेकर उसे उसके बाप अमसियाह की जगह बादशाह बनाया।
\v 2 उसने बादशाह के अपने बाप-दादा के साथ सो जाने के बा'द ऐलूत को ता'मीर किया और उसे फिर यहूदाह में शामिल कर दिया।
\v 3 ~'उज़्ज़ियाह सोलह साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने यरूशलीम में बावन साल हुकूमत की। उसकी माँ का नाम यकूलियाह था, जो यरूशलीम की थी।
\s5
\v 4 उसने वही जो ख़ुदावन्द की नज़र में दुरुस्त है, ठीक उसी के मुताबिक़ किया जो उसके बाप अमसियाह ने किया था।
\v 5 और वह ज़करियाह के दिनों में जो ख़ुदा के ख़्वाबो ~में माहिर था, ख़ुदा का तालिब रहा और जब तक वह ख़ुदावन्द का तालिब रहा ख़ुदा ने उसे कामयाब रखा।
\s5
\v 6 और ~वह निकला और फ़िलिस्तियों से लड़ा, और जात की दीवार को और यबना की दीवार को और अशदूद की दीवार को ढा दिया, और अशदूद के मुल्क में और फ़िलिस्तियों के बीच शहर ता'मीर किए।
\v 7 और ख़ुदा ने फिलिस्तियों और जूरबाल के रहने वाले 'अरबों और मऊनियों के मुक़ाबिले में उसकी मदद की।
\v 8 ~और 'अम्मूनी 'उज़्ज़ियाह को नज़राने देने लगे और उसका नाम मिस्र की सरहद तक फैल गया, क्यूँकि वह बहुत ताक़तवर हो गया था।
\s5
\v 9 और उज़्ज़ियाह ने यरूशलीम में कोने के फाटक और वादी के फाटक और दीवार के मोड़ पर बुर्ज बनवाए और उनको मज़बूत किया।
\v 10 और उसने वीरान में बुर्ज बनवाए और बहुत से हौज़ खुदवाए, क्यूँकि नशेब की ज़मीन में भी और मैदान में उसके बहुत चौपाए थे। और पहाड़ों और ज़रखेज़ खेतों में उसके किसान और ताकिस्तानों के माली थे, क्यूँकि काश्त कारी उसे बहुत पसंद थी।
\s5
\v 11 ~इसके 'अलावा उज़्ज़ियाह के पास जंगी जवानों का लश्कर था जो य'ईएल मुन्शी और मासियाह नाज़िम के शुमार के मुताबिक़, ग़ोल ग़ोल होकर बादशाह के एक सरदार हनानियाह के मातहत लड़ाई पर जाता था।
\v 12 और आबाई ख़ान्दानों के सरदारों या'नी ज़बरदस्त सूर्माओं का कुल शुमार दो हज़ार छ: सौ था।
\v 13 और उनके मातहत तीन लाख साढ़े सात हज़ार का ज़बरदस्त लश्कर था, जो दुश्मन के मुक़ाबिले में बादशाह की मदद करने को बड़े ज़ोर से लड़ता था।
\s5
\v 14 और उज़्ज़ियाह ने उनके लिए या'नी सारे लश्कर के लिए ढालें और बर्छे और ख़ूद और बकतर और कमानें और फ़लाख़न के लिए पत्थर तैयार किए
\v 15 और उसने यरूशलीम में हुनरमंद लोगों की ईजाद की हुई कीलें बनवायीं ताकि वह तीर चलाने और बड़े बड़े पत्थर फेंकने के लिए बुर्जों और फ़सीलों पर हों। इसलिए उसका नाम दूर तक फ़ैल गया क्यूँकि उसकी मदद ऐसी 'अजीब तरह से हुई कि वह ताक़तवर हो गया
\s5
\v 16 ~लेकिन जब वह ताक़तवर हो गया, तो उसका दिल इस क़दर फूल गया कि वह ख़राब हो गया और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की नाफ़रमानी करने लगा; चुनाँचे वह ख़ुदावन्द की हैकल में गया ताकि ख़ुशबू की क़ुर्बानगाह पर ख़ुशबू जलाए।
\v 17 ~तब 'अज़्ज़रियाह काहिन उसके पीछे पीछे गया और उसके साथ ख़ुदावन्द के अस्सी काहिन और थे जो बहादुर आदमी थे,
\v 18 और उन्होंने 'उज़्ज़ियाह बादशाह का सामना किया और उससे कहने लगे, "ऐ 'उज़्ज़ियाह, ख़ुदावन्द के लिए ख़ुशबू जलाना तेरा काम नहीं, बल्कि काहिनों या'नी हारून के बेटों का काम है, जो ख़ुशबू जलाने के लिए पाक किए गए हैं। इसलिए मक़दिस से बाहर जा, क्यूँकि तू ने ख़ता की है, और ख़ुदावन्द~ख़ुदा की तरफ़ से यह तेरी 'इज़्ज़त का ज़रिया' न होगा।"
\s5
\v 19 तब 'उज़्ज़ियाह गु़स्सा हुआ, और ख़ुशबू जलाने को बख़ूरदान अपने हाथ में लिए हुए था; और जब वह काहिनों पर झुंझला रहा था, तो काहिनों के सामने ही ख़ुदावन्द के घर के अन्दर ख़ुशबू की कु़र्बानगाह के पास उसकी पेशानी पर कोढ़ फूट निकला।
\v 20 और सरदार काहिन 'अज़रियाह और सब काहिनों ने उस पर नज़र की और क्या देखा कि उसकी पेशानी पर कोढ़ निकला है। इसलिए उन्होंने उसे जल्द वहाँ से निकाला, बल्कि उसने खु़द भी बाहर जाने में जल्दी की क्यूँकि ख़ुदावन्द की मार उस पर पड़ी थी।
\s5
\v 21 ~चुनाँचे 'उज़्ज़ियाह बादशाह अपने मरने के दिन तक कोढ़ी रहा, और कोढ़ी होने की वजह से एक अलग घर में रहता था; क्यूँकि वह ख़ुदावन्द के घर से काट डाला गया था। और उसका बेटा यूताम बादशाह के घर का मुख़्तार था और मुल्क के लोगों का इन्साफ़ करता था।
\s5
\v 22 और 'उज़्ज़ियाह के बाक़ी काम शुरू' से आख़िर तक आमूस के बेटे यसायाह नबी ने लिखे।
\v 23 इसलिए 'उज़्ज़ियाह अपने बाप-दादा के साथ सो गया; और उन्होंने क़ब्रिस्तान के मैदान में जो बादशाहों का था, उसके बाप-दादा के साथ उसे दफ़न किया क्यूँकि वह कहने लगे, "वह कोढ़ी है।” और उसका बेटा यूताम उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\c 27
\p
\v 1 यूताम पच्चीस साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने सोलह साल यरूशलीम में हुकूमत की। उसकी माँ का नाम यरूसा था जो सदोक़ की बेटी थी।
\v 2 और उसने वही जो ख़ुदावन्द की नज़र में दुरुस्त है, ठीक ऐसा ही किया जैसा उसके बाप उज़्ज़ियाह ने किया था, मगर वह ख़ुदावन्द की हैकल में न घुसा, लेकिन लोग गुनाह करते ही रहे।
\s5
\v 3 और उसने ख़ुदावन्द के घर का बालाई दरवाज़ा बनाया, और ओफ़ल की दीवार पर उसने बहुत कुछ ता'मीर किया।
\v 4 और यहूदाह के पहाड़ी मुल्क में उसने शहर ता'मीर किए, और जंगलों में क़िले' और बुर्ज बनवाए।
\s5
\v 5 ~वह बनी 'अम्मून के बादशाह से भी लड़ा और उन पर ग़ालिब हुआ। और उसी साल बनी 'अम्मून ने एक सौ क़िन्तार चाँदी और दस हज़ार कुर गेहूँ और दस हज़ार कुर जौ उसे दिए, और उतना ही बनी 'अम्मून ने दूसरे और तीसरे साल भी उसे दिया ।
\s5
\v 6 इसलिए यूताम ज़बरदस्त हो गया, क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के आगे अपने रास्ते दुरुस्त किए थे।
\v 7 और यूताम के बाक़ी काम और उसकी सब लड़ाईयां और उसके तौर तरीक़े इस्राईल और ~यहूदाह के बादशाहों की किताब में लिखा हैं।
\s5
\v 8 वह पच्चीस साल का था जब हुकूमत करने लगा और उसने सोलह साल यरूशलीम में हुकूमत की।
\v 9 और यूताम अपने बाप दादा के साथ सो गया, और उन्होंने उसे दाऊद के शहर में दफ़न किया; और उसका बेटा आखज़ उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\c 28
\p
\v 1 आखज़ बीस साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने सोलह साल यरूशलीम में हुकूमत की। और उसने वह न किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में दुरुस्त है जैसा उसके बाप-दादा ने किया था
\v 2 बल्कि इस्राईल के बादशाहों के रास्तों पर चला,और बा'लीम की ढाली हुई मूरतें भी बनवाई।
\s5
\v 3 इसके 'अलावा उसने हिनूम के बेटे की वादी में ख़ुशबू जलाया, और उन क़ौमों के नफ़रती दस्तूरों के मुताबिक़ जिनको ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के सामने से ख़ारिज किया था, अपने ही बेटों को आग में झोंका।
\v 4 उसने ऊँचे मक़ामों और पहाड़ों पर, और हर एक हरे दरख़्त के नीचे क़ुर्बानियाँ कीं और ख़ुशबू जलायी।
\s5
\v 5 इसलिए ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा ने उसको शाह-ए-अराम के हाथ में कर दिया, इसलिए उन्होंने उसे मारा और उसके लोगों में से ग़ुलामों की भीड़ की भीड़ ले गए, और उनको दमिश्क़ में लाए; और वह शाह-ए-इस्राईल के हाथ में भी कर दिया गया, जिसने उसे मारा और बड़ी ख़ूनरेज़ी की।
\v 6 और फ़िक़ह बिन रमलिया ने एक ही दिन में यहूदाह में से एक लाख बीस हज़ार को, जो सब के सब सूर्मा थे क़त्ल किया, क्यूँकि उन्होंने ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा को छोड़ दिया था।
\s5
\v 7 और ज़िकरी ने जो इफ़्राईम का एक पहलवान था, मासियाह शाहज़ादे को और महल के नाज़िम 'अज़रीकाम को और बादशाह के वज़ीर इल्क़ाना को मार डाला।
\v 8 और बनी-इस्राईल अपने भाइयों में से दो लाख 'औरतों और बेटे-बेटियों को ग़ुलाम करके ले गए, और उनका बहुत सा माल लूट लिया और लूट को सामरिया में लाए।
\s5
\v 9 लेकिन वहाँ ख़ुदावन्द का एक नबी था जिसका नाम 'ओदिद था, वह उस लश्कर के इस्तक़बाल को गया जो सामरिया को आ रहा था और उनसे कहने लगा, "देखो, इसलिए कि ख़ुदावन्द तुम्हारे बाप-दादा का ख़ुदा यहूदाह से नाराज़ था, उसने उनको तुम्हारे हाथ में कर दिया और तुम ने उनको ऐसे तैश में क़त्ल किया है जो आसमान तक पहुँचा।
\v 10 और अब तुम्हारा 'इरादा है कि बनी यहूदाह और यरूशलीम को अपने ग़ुलाम और लौंडियाँ बना कर उनको दबाए रखो। लेकिन क्या तुम्हारे ही गुनाह जो तुमने ख़ुदा वन्द अपने ख़ुदा के ख़िलाफ़ किए हैं, तुम्हारे सिर नहीं हैं?
\v 11 इसलिए तुम अब मेरी सुनो और उन ग़ुलामों को, जिनको तुम ने अपने भाइयों में से ग़ुलाम कर लिया है, आज़ाद करके लौटा दो क्यूँकि ख़ुदावन्द का क़हर-ए-शदीद तुम पर है।"
\s5
\v 12 तब बनी इफ़ाईम के सरदारों में से 'अज़रियाह बिन यूहनान और बरकियाह बिन मसल्लीमोत और यहज़क़ियाह बिन सलूम और 'अमासा बिन ख़दली, उनके सामने जो जंग से आ रहे थे खड़े हो गए
\v 13 और उनसे कहा कि तुम ग़ुलामों को यहाँ नहीं लाने पाओगे, क्यूँकि जो तुम ने ठाना है उससे हम ख़ुदावन्द के गुनाहगार बनेंगे और हमारे गुनाह और खताएं बढ़ जायेंगी क्यूँकि हमारी ख़ता बड़ी है और इस्राईल पर क़हर-ए-शदीद है।
\s5
\v 14 इसलिए उन हथियारबन्द लोगों ने गु़लामों और माल-ए- ग़नीमत को, अमीरों और सारी जमा'अत के आगे छोड़ दिया।
\v 15 और वह आदमी जिनके नाम मज़कूर हुए, उठे और ग़ुलामों को लिया और लूट के माल में से उन सभों को जो उनमें नंगे थे, लिबास से आरास्ता किया और उनको जूते पहनाए और उनको खाने-पीने को दिया और उन पर तेल मला, और जितने उनमें कमज़ोर थे उनको गधों पर चढ़ा कर खजूर के दरख़्तों के शहर यरीहू में उनके भाइयों के पास पहुँचा दिया। तब सामरिया को लौट गए।
\s5
\v 16 उस वक़्त आखज़ बादशाह ने असूर के बादशाहों के पास कहला भेजा के उसकी मदद करें।
\v 17 इसलिए कि अदूमियों ने फिर चढ़ाई करके यहूदाह को मार लिया और ग़ुलामों को ले गए थे।
\v 18 और फ़िलिस्तियों ने भी नशेब की ज़मीन के और यहूदाह के जुनूब के शहरों पर हमला करके बैतशम्स और अय्यालोन और जदीरोत को, और शोको और उसके देहात को, और तिमना और उसके देहात को, और जिमसू और उसके देहात को भी ले लिया था और उनमें बस गए थे।
\s5
\v 19 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द ने शाह-ए-इस्राईल आख़ज़ की वजह से यहूदाह को पस्त किया, इसलिए कि उसने यहूदाह में बेहयाई की चाल चलकर ख़ुदावन्द का बड़ा गुनाह किया था;
\v 20 ~और शाह-ए- असूर तिगलतपिलनासर उसके पास आया, लेकिन उसने उसको तंग किया और उसकी मदद न की।
\v 21 क्यूँकि आख़ज़ ने ख़ुदावन्द के घर और बादशाह और सरदारों के महलों से माल लेकर शाह-ए-असूर को दिया, तो भी उसकी कुछ मदद न हुई।
\s5
\v 22 अपनी तंगी के वक़्त में भी उसने, या'नी इसी आख़ज़ बादशाह ने ख़ुदावन्द का और भी ज़्यादा गुनाह किया;
\v 23 क्यूँकि उसने दमिश्क़ के मा'बूदों के लिए जिन्होंने उसे मारा था, क़ुर्बानियाँ कीं और कहा, "चूँकि अराम के बादशाहों के मा'बूदों ने उनकी मदद की है, इसलिए मैं उनके लिए क़ुर्बानी करूंगा ताकि वह मेरी मदद करें।" लेकिन वह उसकी और सारे इस्राईल की तबाही की वजह हुए।
\s5
\v 24 ~और आखज़ ने ख़ुदा के घर के बर्तनों को जमा' किया और ख़ुदा के घर के बर्तनों को टुकड़े टुकड़े किया और ख़ुदावन्द के घर के दरवाज़ों को बन्द किया और अपने लिए यरूशलीम के हर कोने में मज़बहे बनाए।
\v 25 और यहूदाह के एक एक शहर में ग़ैर-मा'बूदों के आगे ख़ुशबू जलाने के लिए ऊँचे मक़ाम बनाए, और ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा को गु़स्सा दिलाया।
\s5
\v 26 और उसके बाक़ी काम और उसके सब तौर तरीके़ शुरू' से आख़िर तक यहूदाह और इस्राईल के बादशाहों की किताब में लिखा हैं।
\v 27 और आखज़ अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और उन्होंने उसे शहर में या'नी यरूशलीम में दफ़्न किया क्यूँकि वह उसे इस्राईल के बादशाहों की क़ब्रों में न लाए और उसका बेटा हिज़कियाह उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\c 29
\p
\v 1 हिज़कियाह पच्चीस साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने उन्तीस साल यरूशलीम में हुकूमत की। उसकी माँ का नाम अबियाह था, जो ज़करियाह की बेटी थी।
\v 2 उसने वही काम जो ख़ुदावन्द की नज़र में दुरुस्त है, ठीक उसी के मुताबिक़ जो उसके बाप-दादा ने किया था, किया।
\s5
\v 3 उसने अपनी हुकूमत के पहले साल के पहले महीने में, ख़ुदावन्द के घर के दरवाज़ों को खोला और उनकी मरम्मत की।
\v 4 और वह काहिनों और लावियों को ले आया और उनको मशरिक़ की तरफ़ मैदान में इकट्ठा किया,
\v 5 और उनसे कहा, "ऐ लावियो, मेरी सुनो! तुम अब अपने को पाक करो और ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा के घर को पाक करो, और इस पाक मक़ाम में से सारी नापाकी को निकाल डालो;
\s5
\v 6 क्यूँकि हमारे बाप-दादा ने गुनाह किया और जो ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा की नज़र में बुरा है वही किया, और ख़ुदा को छोड़ दिया और ख़ुदावन्द के घर से मुँह फेर लिया और अपनी पीठ उसकी तरफ़ कर दी
\v 7 और उसारे के दरवाज़ों को भी बन्द कर दिया, और चिराग़ बुझा दिए, और इस्राईल के ख़ुदा के मक़दिस में न तो ख़ुशबू जलायी और न सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश कीं
\s5
\v 8 इस वजह से ख़ुदावन्द का क़हर यहूदाह और यरूशलीम पर नाज़िल हुआ, और उसने उनको ऐसा हवाले किया कि मारे मारे फिरें और हैरत और सुसकार का ज़रिए' हों, जैसा तुम अपनी आँखों से देखते हो।
\v 9 देखो, इसी वजह से हमारे बाप-दादा तलवार से मारे गए, और हमारे बेटे बेटियाँ और हमारी बीवियाँ ग़ुलामी में हैं।
\s5
\v 10 अब मेरे दिल में है कि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के साथ 'अहद बाँधूं, ताकि उसका क़हर-ए-शदीद हम पर से टल जाए।
\v 11 ~ऐ मेरे फ़र्ज़न्दो, तुम अब ग़ाफ़िल न रहो; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने तुम को चुन लिया है कि उसके सामने खड़े रहो और उसकी ख़िदमत करो और उसके ख़ादिम बनो और ख़ुशबू जलाओ।
\s5
\v 12 ~तब यह लावी उठे : या'नी बनी क़िहात में से महत बिन 'अमासी और यूएल बिन 'अज़रियाह, और बनी मिरारी में से क़ीस बिन 'अबदी और अज़रियाह बिन यहलीएल और जैरसोनियों में से यूआख़ बिन ज़िम्मा और 'अदन बिन यूआख़,
\v 13 और बनी इलीसफ़न में से सिमरी और य'ऊएल, और बनी आसफ़ में से ज़करियाह और मत्तनियाह,
\v 14 और बनी हैमान में से यहीएल और सिमई, और बनी यदूतून में से समा'याह और 'उज़िएल।
\s5
\v 15 और उन्होंने अपने भाइयों को इकट्ठा करके अपने को पाक किया, और बादशाह के हुक्म के मुताबिक़ जो ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ था, ख़ुदावन्द के घर को पाक करने के लिए अन्दर गए।
\v 16 और काहिन ख़ुदावन्द के घर के अन्दरूनी हिस्से में उसे पाक-साफ़ करने को दाख़िल हुए, और सारी नापाकी को जो ख़ुदावन्द की हैकल में उनको मिली निकाल कर बाहर ख़ुदावन्द के घर के सहन में ले आए, और लावियों ने उसे उठा लिया ताकि उसे बाहर क़िद्रून के नाले में पहुँचा दें।
\v 17 ~पहले महीने की पहली तारीख़ को उन्होंने तक़्दीस का काम शुरू किया, और उस महीने की आठवीं तारीख़ को ख़ुदावन्द के उसारे तक पहुँचे, और उन्होंने आठ दिन में ख़ुदावन्द के घर को पाक किया; इसलिए पहले महीने की सोलहवीं तारीख़ को उसे पूरा किया।
\s5
\v 18 तब उन्होंने महल के अन्दर हिज़कियाह बादशाह के पास जाकर कहा कि हमने ख़ुदावन्द के सारे घर को, और सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह को और उसके सब बर्तन को, और नज़्र की रोटियों की मेज़ को और उसके सब बर्तन को पाक-साफ़ कर दिया।
\v 19 इसके 'अलावा हम ने उन सब बर्तन को जिनकी आख़ज़ बादशाह ने अपने दौर-ए-हुकूमत में ख़ता करके रद्द कर दिया था, फिर तैयार करके उनको पाक किया है, और देख, वह ख़ुदावन्द के मज़बह के सामने हैं।"
\s5
\v 20 ~तब हिज़कियाह बादशाह सवेरे उठकर और शहर के रईसों को इकठ्ठा करके ख़ुदावन्द के घर को गया।
\v 21 और वह सात बैल और सात मेंढ़े और सात बर्रे और सात बकरे मुल्क के लिए और मक़दिस के लिए और यहूदाह के लिए ख़ता की क़ुर्बानी के लिए ले आए, और उसने काहिनों या'नी बनी हारून को हुक्म किया के उनको ख़ुदावन्द के मज़बह पर चढ़ाएँ।
\s5
\v 22 इसलिए उन्होंने बैलों को ज़बह किया और काहिनों ने ख़ून को लेकर उसे मज़बह पर छिड़का, फिर उन्होंने मेंढों को ज़बह किया और ख़ून को मज़बह पर छिड़का, और बर्रों को भी ज़बह किया और ख़ून मज़बह पर छिड़का।
\v 23 और वह ख़ता की क़ुर्बानी के बकरों को बादशाह और जमा'अत के आगे नज़दीक ले आए और उन्होंने अपने हाथ उन पर रखे।
\v 24 ~फिर काहिनों ने उनको ज़बह किया और उनके ख़ून को मज़बह पर छिड़क कर ख़ता की क़ुर्बानी की, ताकि सारे इस्राईल के लिए कफ़्फ़ारा हो; क्यूँकि बादशाह ने फ़रमाया था कि सोख़्तनी क़ुर्बानी और ख़ता की क़ुर्बानी सारे इस्राईल के लिए पेश की जाएँ।
\s5
\v 25 और उसने दाऊद और बादशाह के ग़ैबबीन जाद और नातन नबी के हुक्म के मुताबिक़ ख़ुदावन्द के घर में लावियों को झाँझ और सितार और बरबत के साथ मुक़र्रर किया, क्यूँकि यह नबियों के ज़रिए' ख़ुदावन्द का हुक्म था।
\v 26 और लावी दाऊद ने बाजों को और काहिन नरसिंगों को लेकर खड़े हुए,
\s5
\v 27 और हिज़क़ियाह ने मज़बह पर सोख़्तनी क़ुर्बानी अदा करने ~का हुक्म दिया, और जब सोख़तनी क़ुर्बानी शुरू' हुई तो ख़ुदावन्द का हम्द भी नरसिंगों और शाह-ए-इस्राईल दाऊद ने बाजों ~के साथ शुरू' हुआ,
\v 28 और सारी जमा'अत ने सिज्दा किया, और गानेवाले गाने और नरसिंगे वाले नरसिंगे फूंकने लगे। जब तक सोख़्तनी क़ुर्बानी जल न चुकी, यह सब होता रहा;
\s5
\v 29 और जब वह क़ुर्बानी अदा कर ~चुके, तो बादशाह और उसके साथ सब हाज़रीन ने झुक कर सिज्दा किया।
\v 30 ~फिर हिज़क़ियाह बादशाह और रईसों ने लावियों को हुक्म किया कि दाऊद और आसफ़ ग़ैबबीन के हम्द गाकर ख़ुदावन्द की हम्द करें; और उन्होंने ख़ुशी से बड़ाई की और सिर झुकाए और सिज्दा किया।
\s5
\v 31 और हिज़कियाह कहने लगा, "अब तुम ने अपने आपको ख़ुदावन्द के लिए पाक कर लिया है। इसलिए नज़दीक आओ, और ख़ुदावन्द के घर में ज़बीहे और शुक्रगुज़ारी की क़ुर्बानियाँ लाओ।" तब जमा'अत ज़बीहे और शुक्रगुज़ारी की क़ुर्बानियाँ लाई, और जितने दिल से राज़ी थे सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ लाए।
\s5
\v 32 ~और सोख़्तनी क़ुर्बानियों का शुमार जो जमा'अत लाई यह था: सत्तर बैल और सौ मेंढे और दो सौ बर्रे, यह सब ख़ुदावन्द की सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए थे।
\v 33 और पाक किए हुए जानवर यह थे : छ:सौ बैल और तीन हज़ार भेड़-बकरियाँ।
\s5
\v 34 मगर काहिन ऐसे थोड़े थे कि वह सारी सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवरों की खालें उतार न सके, इसलिए उनके भाई लावियों ने उनकी मदद की जब तक काम पूरा~न हो गया; और काहिनों ने अपने को पाक न कर लिया, क्यूँकि लावी अपने आपको पाक करने में काहिनों से ज़्यादा सच्चे दिल थे।
\s5
\v 35 और सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ भी कसरत से थीं, और उनके साथ सलामती की ~क़ुर्बानियों की चर्बी और सोख़्तनी क़ुर्बानियों के तपावन थे। यूँ ख़ुदावन्द के घर की ख़िदमत की तरतीब दुरुस्त हुई।
\v 36 और हिज़क़ियाह और सब लोग उस काम की वजह से, जो ख़ुदा ने लोगों के लिए तैयार किया था, बाग़ बाग़ हुए क्यूँकि वह काम यकबारगी किया गया था ।
\s5
\c 30
\p
\v 1 और हिज़क़ियाह ने सारे इस्राईल और यहूदाह को कहला भेजा, और इफ़्राईम और मनस्सी के पास भी ख़त लिख भेजे कि वह ख़ुदावन्द के घर में यरूशलीम को, ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के लिए 'ईद-ए-फ़सह करने को आएँ;
\v 2 ~क्यूँकि बादशाह और सरदारों और यरूशलीम की सारी जमा'अत ने दूसरे महीने में 'ईद-ए-फ़सह मनाने की सलाह कर लिया था।
\v 3 क्यूँकि वह उस वक़्त उसे इसलिए नहीं मना सके कि काहिनों ने काफ़ी ता'दाद में अपने आपको पाक नहीं किया था, और लोग भी यरूशलीम में इकट्ठे नहीं हुए थे।
\s5
\v 4 ~यह बात बादशाह और सारी जमा'अत की नज़र में अच्छी थी।
\v 5 इसलिए उन्होंने हुक्म जारी किया कि बैरसबा' से दान तक सारे इस्राईल में 'ऐलान किया जाए कि लोग यरूशलीम में आकर ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के लिए 'ईद-ए- फ़सह करें, क्यूँकि उन्होंने ऐसी बड़ी तादाद में उसको नहीं मनाया था जैसे लिखा है।
\s5
\v 6 इसलिए बादशाह के क़ासिद और उसके सरदारों से ख़त लेकर बादशाह के हुक्म के मुताबिक़ सारे इस्राईल और यहूदाह में फिरे, और कहते गए, "ऐ बनी-इस्राईल! इब्राहीम और इस्हाक़ और इस्राईल के ख़ुदावन्द ख़ुदा की तरफ़ दोबारा फिर जाओ, ताकि वह तुम्हारे बाक़ी लोगों की तरफ़ जो असूर के बादशाहों के हाथ से बच रहे हैं, फिर मुतवज्जिह हों।
\s5
\v 7 और तुम अपने बाप-दादा और अपने भाइयों की तरह मत हो, जिन्होंने ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा की नाफ़रमानी की, यहाँ तक कि उसने उनको छोड़ दिया कि बर्बाद हो जाएँ, जैसा तुम देखते हो।
\v 8 ~तब तुम अपने बाप-दादा की तरह मग़रूर न बनो, बल्कि ख़ुदावन्द के ताबे' हो जाओ और उसके मक़दिस में आओ, जिसे उसने हमेशा के लिए पाक किया है, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की 'इबादत करो ताकि उसका क़हर-ए-शदीद तुम पर से टल जाए।
\v 9 ~क्यूँकि अगर तुम ख़ुदावन्द की तरफ़ दोबारा मुड़ो , तो तुम्हारे भाई और तुम्हारे बेटे अपने ग़ुलाम करने वालों की नज़र में क़ाबिल-ए-रहम ठहरेंगे और इस मुल्क में फिर आएँगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा ग़फ़ूर-ओ-रहीम है, और अगर तुम उसकी तरफ़ फिरो तो वह तुम से अपना मुँह फेर न लेगा।"
\s5
\v 10 इसलिए क़ासिद इफ़्राईम और मनस्सी के मुल्क में शहर-ब-शहर होते हुए ज़बूलून तक गए, पर उन्होंने उनका मज़ाक़ किया और उनको ठठ्ठों में उड़ाया।
\v 11 ~फिर भी आशर और मनस्सी और ज़बूलून में से कुछ लोगों ने फ़िरोतनी की और यरूशलीम को आए।
\v 12 और यहूदाह पर भी ख़ुदावन्द का हाथ था कि उनको यकदिल बना दे, ताकि वह ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ बादशाह और सरदारों के हुक्म पर 'अमल करें।
\s5
\v 13 इसलिए बहुत से लोग यरूशलीम में जमा' हुए कि दूसरे महीने में फ़तीरी रोटी की 'ईद करें; यूँ बहुत बड़ी जमा'अत हो गई।
\v 14 वह उठे और उन मज़बहों को जो यरूशलीम में थे और ख़ुशबू की सब कु़र्बानगाहों को दूर किया, और उनकी क़िद्रून न के नाले में डाल दिया।
\v 15 फिर दूसरे महीने की चौदहवीं तारीख़ को उन्होंने फ़सह को ज़बह किया, और काहिनों और लावियों ने शर्मिन्दा होकर अपने आपको पाक किया और ख़ुदावन्द के घर में सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ लाए।
\s5
\v 16 वह अपने दस्तूर पर मर्द-ए-ख़ुदा मूसा की शरी'अत के मुताबिक़ अपनी अपनी जगह खड़े हुए, और काहिनों ने लावियों के हाथ से ख़ून लेकर छिड़का।
\v 17 क्यूँकि जमा'अत में बहुत से लोग ~ऐसे थे जिन्होंने अपने आपको पाक नहीं किया था, इसलिए यह काम लावियों के सुपुर्द हुआ कि वह सब नापाक शख़्सों के लिए फ़सह के बर्रों को ज़बह करें, ताकि वह ख़ुदावन्द के लिए पाक हों।
\s5
\v 18 ~क्यूँकि इफ़्राईम और मनस्सी और इश्कार और ज़बूलून में से बहुत से लोगों ने अपने आपको पाक नहीं किया था, तो भी उन्होंने फ़सह को जिस तरह लिखा है उस तरह से न खाया, क्यूँकि हिज़क़ियाह ने उनके लिए यह दु'आ की थी, कि ख़ुदावन्द जो नेक है, हर एक को
\v 19 जिसने ख़ुदावन्द ख़ुदा अपने बाप-दादा के ख़ुदा की तलब में दिल लगाया है मु'आफ़ करे, अगर वह मक़दिस की तहारत के मुताबिक़ पाक न हुआ हो।
\v 20 और ख़ुदावन्द ने हिज़क़ियाह की सुनी और लोगों को शिफ़ा दी।
\s5
\v 21 और जो बनी-इस्राईल यरूशलीम में हाज़िर थे, उन्होंने बड़ी ख़ुशी से सात दिन तक 'ईद-ए-फ़तीर मनाई, और लावी और काहिन बलन्द आवाज़ के बाजों के साथ ख़ुदावन्द के सामने गा गाकर हर दिन ख़ुदावन्द की हम्द करते रहे।
\v 22 और हिज़क़ियाह ने सब लावियों से जो ख़ुदावन्द की ख़िदमत में माहिर थे, तसल्लीबख़्श बातें कीं। इसलिए वह 'ईद के सातों दिन तक खाते और सलामती के ज़बीहों की क़ुर्बानियाँ पेश करते और ख़ुदावन्द अपने बाप दादा के ख़ुदा के सामने इक़रार करते रहे।
\s5
\v 23 फिर सारी जमा'अत ने और सात दिन मानने की सलाह की, और ख़ुशी से और सात दिन माने।
\v 24 क्यूँकि शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह ने जमा'अत को क़ुर्बानियों के लिए~एक हज़ार बछड़े और सात हज़ार भेड़ें 'इनायत~कीं, और सरदारों ने जमा'अत को एक हज़ार बछड़े और दस हज़ार भेड़ें दीं, और बहुत से काहिनों ने अपने आपको पाक किया।
\s5
\v 25 और यहूदाह की सारी जमा'अत ने काहिनों और लावियों समेत और उस सारी जमा'अत ने जो इस्राईल में से आई थी, और उन परदेसियों ने जो इस्राईल के मुल्क से आए थे, और जो यहूदाह में रहते थे ख़ुशी मनाई।
\v 26 इसलिए यरूशलीम में बड़ी ख़ुशी हुई, क्यूँकि शाह-ए- इस्राईल सुलेमान बिन दाऊद के ज़माने से यरूशलीम में ऐसा नहीं हुआ था।
\v 27 ~तब लावी काहिनों ने उठ कर लोगों को बरकत दी, और उनकी सुनी गई, और उनकी दु'आ उसके पाक मकान, आसमान तक पहुँची।
\s5
\c 31
\p
\v 1 जब यह हो चुका तो सब इस्राईली जो हाज़िर थे, यहूदाह के शहरों में गए और सारे यहूदाह और बिनयमीन के बल्कि इफ़्राईम और मनस्सी के भी सुतूनों को टुकड़े-टुकड़े किया, और यसीरतों को काट डाला, और ऊँचे मक़ामों और मज़बहों को ढा दिया; यहाँ तक कि उन सभों को मिटा दिया। तब सब बनी-इस्राईल अपने अपने शहर में अपनी अपनी मिल्कियत को लौट गए।
\s5
\v 2 ~और हिज़क़ियाह ने काहिनों के फ़रीक़ों को और लावियों को उनके फ़रीक़ों के मुताबिक़, या'नी काहिनों और लावियों दोनों के हर शख़्स को उसकी ख़िदमत के मुताबिक़ ख़ुदावन्द की ख़ेमागाह के फाटकों के अन्दर सोख़्तनी क़ुर्बानियों और सलामती की क़ुर्बानियों के लिए, और 'इबादत और शुक्रगुज़ारी और ता'रीफ़ ~करने के लिए मुक़र्रर किया।
\v 3 उसने अपने माल में से बादशाही हिस्सा सोख़्तनी क़ुर्बानियों के लिए, या'नी सुबह-ओ-शाम की सोख़्तनी क़ुर्बानियों के लिए, और सब्तों और नए चाँदों और मुक़र्ररा 'ईदों की सोख़्तनी क़ुर्बानियों के लिए ठहराया, जैसा ख़ुदावन्द की शरी'अत में लिखा है।
\s5
\v 4 ~और उसने उन लोगों को जो यरूशलीम में रहते थे, हुक्म किया कि काहिनों और लावियों का हिस्सा दें ताकि वह ख़ुदावन्द की शरी'अत में लगे रहें।
\v 5 इस फ़रमान के जारी होते ही बनी-इस्राईल अनाज और मय और तेल और शहद और खेत की सब पैदावार के पहले फल बहुतायत से देने, और सब चीज़ों का दसवाँ हिस्सा कसरत से लाने लगे।
\s5
\v 6 और बनी-इस्राईल और यहूदाह जो यहूदाह के शहरों में रहते थे, वह भी बैलों और भेड़ बकरियों का दसवाँ हिस्सा, और उन पाक चीज़ों का दसवाँ हिस्सा जो ख़ुदावन्द उनके ख़ुदा के लिए पाक की गई थीं, लाए और उनको ढेर ढेर करके लगा दिया।
\v 7 उन्होंने तीसरे महीने में ढेर लगाना शुरू' किया और सातवें महीने में पूरा~किया।
\v 8 ~जब हिज़क़ियाह और सरदारों ने आकर ढेरों को देखा, तो ख़ुदावन्द को और उसकी क़ौम इस्राईल को मुबारक कहा|
\s5
\v 9 और हिज़क़ियाह ने काहिनों और लावियों से उन ढेरों के बारे में पूछा।
\v 10 तब सरदार काहिन 'अज़रियाह ने जो सदूक़ के ख़ान्दान का था, उसे जवाब दिया, "जब से लोगों ने ख़ुदावन्द के घर में हदिये लाना शुरू' किया, तब से हम खाते रहे और हम को काफ़ी मिला और बहुत बच रहा है; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने अपने लोगों को बरकत बख़्शी है, और वही बचा हुआ यह बड़ा ढेर है।"
\v 11 तब हिज़कियाह ने हुक्म किया कि ख़ुदावन्द के घर में कोठरियाँ तैयार करें, इसलिए उन्होंने उनको तैयार किया।
\v 12 और वह हदिये और वह दहेकियाँ और पाक की हुई चीज़ें ईमानदारी से लाते रहे, और उन पर कनानियाह लावी मुख़्तार था और उसका भाई सिम'ई नाइब था,
\v 13 और यहीएल और अज़ज़ियाह और नहात और 'असाहील और यरीमोत और यूज़बद और इलीएल और इस्माकियाह और महत और बिनायाह हिज़क़ियाह बादशाह और ख़ुदा के घर के सरदार 'अज़रियाह के हुक्म से कनानियाह और उसके भाई सिम'ई के मातहत पेशकार थे।
\s5
\v 14 और मशरिक़ी फाटक का दरबान यिमना लावी का बेटा कोरे ख़ुदा की ख़ुशी की क़ुर्बानियों पर मुक़र्रर था, ताकि ख़ुदावन्द के हदियों और पाक तरीन चीज़ों को बाँट दिया करे।
\v 15 और उसके मातहत 'अदन और बिनयमीन और यशू'अ और समा'याह और अमरियाह और सकनियाह, काहिनों के शहरों में इस 'उहदे पर मुक़र्रर थे कि~अपने भाइयों को, क्या बड़े क्या छोटे उनके फ़रीक़ों के मुताबिक़ हिस्सा दिया करें,
\s5
\v 16 और इनके 'अलावा उनको भी दें जो तीन साल की 'उम्र से और उससे ऊपर ऊपर मर्दों ~के नसबनामे में शुमार किए गए, या'नी उनको जो अपने अपने फ़रीक़ की बारियों पर अपने अपने ज़िम्मे की ख़िदमत को हर दिन के फ़र्ज़ के मुताबिक़ अन्जाम देने को ख़ुदावन्द के घर में जाते थे।
\s5
\v 17 ~और उनको भी जो अपने अपने आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ काहिनों के नसबनामे में शुमार किए गए, और उन लावियों को जो बीस साल के और उससे ऊपर थे, और अपने अपने फ़रीक़ की बारी पर ख़िदमत करते थे।
\v 18 और उनको जो सारी जमा'अत में से अपने अपने बाल-बच्चों और बीवियों और बेटों और बेटियों के नसबनामे के मुताबिक़ शुमार किए गए, क्यूँकि अपने अपने मुक़र्ररा काम पर वह अपने आप को तक़द्दुस के लिए पाक करते थे।
\v 19 और बनी हारून के काहिनों के लिए भी, जो शहर-ब- शहर अपने शहरों के चारोंतरफ़ के खेतों में थे, कई आदमी जिनके नाम बता दिए गए थे, मुक़र्रर हुए कि काहिनों के सब आदमियों को और उन सभों को जो लावियों के बीच नसबनामे के मुताबिक़ शुमार किए गए थे, हिस्सा दें।
\s5
\v 20 इसलिए हिज़क़ियाह ने सारे यहूदाह में ऐसा ही किया, और जो कुछ ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा की नज़र में भला और सच्चा और हक़ था वही किया।
\v 21 ~और ख़ुदा के घर की ख़िदमत और शरी'अत और अहकाम के ऐतबार से जिस जिस काम को उसने अपने ख़ुदा का तालिब होने के लिए किया, उसे अपने सारे दिल से किया और कामयाब हुआ।
\s5
\c 32
\p
\v 1 इन बातों और इस ईमानदारी के बा'द शाह-ए-असूर सनहेरिब चढ़ आया और यहूदाह में दाख़िल हुआ, और फ़सीलदार शहरों के मुक़ाबिल ख़ेमाज़न हुआ और उनको अपने क़ब्ज़े में लाना चाहा।
\s5
\v 2 जब हिज़क़ियाह ने देखा कि सनहेरिब आया है और उसका 'इरादा है कि यरूशलीम से लड़े
\v 3 तो उसने अपने सरदारों और बहादुरों के साथ सलाह ~की कि उन चश्मों के पानी को जो शहर से बाहर थे बन्द कर दे, और उन्होंने उसकी मदद की।
\v 4 बहुत लोग जमा' हुए और सब चश्मों को और उस नदी को जो उस सरज़मीन के बीच बहती थी, यह कह कर बन्द कर दिया, "असूर के बादशाह आकर बहुत सा पानी क्यूँ पाएँ?"
\s5
\v 5 और उसने हिम्मत बाँधी और सारी दीवार को जो टूटी थी बनाया, और उसे बुर्जों के बराबर ऊँचा किया और बाहर से एक दूसरी दीवार उठाई, और दाऊद के शहर में मिल्लो को मज़बूत किया और बहुत से हथियार और ढालें बनाई।
\s5
\v 6 ~और उसने लोगों पर सर लश्कर ठहराए और शहर के फाटक के पास के मैदान में उनको अपने पास इकट्ठा किया, और उनसे हिम्मत अफज़ाई की बातें कीं और कहा,
\v 7 "हिम्मत बाँधो और हौसला रखो, और असूर के बादशाह और उसके साथ के सारे गिरोह की वजह से न डरो न हिरासा न हो; क्यूँकि वह जो हमारे साथ है, उससे बड़ा है जो उसके साथ है।
\v 8 ~उसके साथ बशर का हाथ है लेकिन हमारे साथ ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा है कि हमारी मदद करे और हमारी लड़ाईयाँ लड़े।" तब लोगों ने शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह की बातों पर भरोसा किया।
\s5
\v 9 उसके बा'द शाह-ए-असूर सनहेरिब ने जो अपने सारे लश्कर' के साथ लकीस के मुक़ाबिल पड़ा था, अपने नौकर यरूशलीम को शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह के पास और पूरे ~यहूदाह के पास जो यरूशलीम में थे, यह कहने को भेजे कि;
\v 10 शाह-ए-असूर सनहेरिब यू फ़रमाता है कि तुम्हारा किस पर भरोसा है कि तुम यरूशलीम में घेरे को झेल रहे हो?
\s5
\v 11 क्या हिज़क़ियाह तुम को कहत और प्यास की मौत के हवाले करने को तुम को नहीं बहका रहा है कि "ख़ुदा वन्द हमारा ख़ुदा हम को शाह-ए-असूर के हाथ से बचा लेगा"?
\v 12 ~क्या इसी हिज़क़ियाह ने उसके ऊँचे मक़ामों और मज़बहों को दूर करके, यहूदाह और यरूशलीम को हुक्म नहीं दिया कि तुम एक ही मज़बह के आगे सिज्दा करना और उसी पर ख़ुशबू जलाना?
\s5
\v 13 क्या तुम नहीं जानते कि मैंने और मेरे बाप-दादा ने और मुल्कों के सब लोगों से क्या क्या किया है? क्या उन मुल्कों की क़ौमों के मा'बूद अपने मुल्क को किसी तरह से मेरे हाथ से बचा सके?
\v 14 जिन क़ौमों को मेरे बाप-दादा ने बिल्कुल हलाक कर डाला, उनके मा'बूदों में कौन ऐसा निकला जो अपने लोगों को मेरे हाथ से बचा सका कि तुम्हारा मा'बूद तुम को मेरे हाथ से बचा सकेगा?
\v 15 फिर हिज़क़ियाह तुम को फ़रेब न देने पाए और न इस तौर पर बहकाए और न तुम उसका यक़ीन करो; क्यूँकि किसी क़ौम या मुल्क का मा'बूद अपने लोगों को मेरे हाथ से और मेरे बाप-दादा के हाथ से बचा नहीं सका, तो कितना कम तुम्हारा मा'बूद तुम को मेरे हाथ से बचा सकेगा।
\s5
\v 16 ~उसके नौकरों ने ख़ुदावन्द ख़ुदा के ख़िलाफ़ और उसके बन्दे हिज़क़ियाह के ख़िलाफ़ बहुत सी और बातें कहीं।
\v 17 और उसने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की बे'इज्ज़ती करने और उसके हक़ में कुफ़्र बकने के लिए, इस मज़मून के ख़त भी लिखे : "जैसे और मुल्कों की क़ौमों के मा'बूदों ने अपने लोगों को मेरे हाथ से नहीं बचाया है, वैसे ही हिज़क़ियाह का मा'बूद भी अपने लोगों को मेरे हाथ से नहीं बचा सकेगा।"
\s5
\v 18 और उन्होंने बड़ी आवाज़ से पुकार कर यहूदियों की ज़बान में यरूशलीम के लोगों को जो दीवार पर थे यह बातें कह सुनाये ताकि उनको डराएँ और परेशान करें और शहर को ले लें।
\v 19 उन्होंने यरूशलीम के ख़ुदा का ज़िक्र ज़मीन की क़ौमों के मा'बूदों की तरह किया, जो आदमी के हाथ की कारीगरी हैं।
\s5
\v 20 इसी वजह से हिज़क़ियाह बादशाह और आमूस के बेटे यसायाह नबी ने दु'आ की, और आसमान की तरफ़ चिल्लाए।
\v 21 और ख़ुदावन्द ने एक फ़रिश्ते को भेजा, जिसने शाह-ए-असूर के लश्कर में सब ज़बरदत सूर्माओं और रहनुमाओं और सरदारों को हलाक कर डाला। फिर वह शर्मिन्दा होकर अपने मुल्क को लौटा; और जब वह अपने मा'बूद के 'इबादत खाना ~में गया तो उन ही ने जो उसके सुल्ब से निकले थे, उसे वहीं तलवार से क़त्ल किया।
\s5
\v 22 यूँ ख़ुदावन्द ने हिज़क़ियाह को और यरूशलीम के बाशिन्दों को शाह-ए-असूर सनहेरिब के हाथ से और सभों के हाथ से बचाया और हर तरफ़ उनकी रहनुमाई की।
\v 23 और बहुत लोग यरूशलीम में ख़ुदावन्द के लिए हदिये और शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह के लिए क़ीमती चीजें लाए, यहाँ तक कि वह उस वक़्त से सब क़ौमों की नज़र में मुम्ताज़ हो गया।
\s5
\v 24 ~उन दिनों में हिज़क़ियाह ऐसा बीमार पड़ा कि मरने के क़रीब हो गया, और उसने ख़ुदावन्द से दु'आ की तब उसने उससे बातें कीं और उसे एक निशान दिया।
\v 25 लेकिन हिज़क़ियाह ने उस एहसान के लायक़ जो उस पर किया गया 'अमल न किया, क्यूँकि उसके दिल में घमण्ड समा गया; इसलिए उस पर, और यहूदाह और यरूशलीम पर क़हर भड़का।
\v 26 तब हिज़क़ियाह और यरूशलीम के बाशिन्दों ने अपने दिल के ग़ुरूर के बदले ख़ाकसारी इख़्तियार की, इसलिए हिज़क़ियाह के दिनों में ख़ुदावन्द का क़हर उन पर नाज़िल न हुआ।
\s5
\v 27 और हिज़क़ियाह की दौलत और 'इज़्ज़त बहुत फ़रावान थी और उसने चाँदी और सोने और जवाहर और मसाले और ढालों और सब तरह की क़ीमती चीज़ों के लिए ख़ज़ाने
\v 28 और अनाज और शराब और तेल के लिए अम्बारख़ाने, और सब क़िस्म के जानवरों के लिए थान, और भेड़-बकरियों के लिए बाड़े बनाए।
\v 29 इसके 'अलावा उसने अपने लिए शहर बसाए और भेड़ बकरियों और गाय-बैलों को कसरत से मुहय्या किया, क्यूँकि ख़ुदा ने उसे बहुत माल बख़्शा था।
\s5
\v 30 इसी हिज़क़ियाह ने जैहून के पानी के ऊपर के सोते को बंद कर दिया, और उसे दाऊद के शहर के मग़रिब की तरफ़ सीधा पहुँचाया, और हिज़क़ियाह अपने सारे काम में क़ामयाब हुआ।
\v 31 तो भी बाबुल के हाकिमों के मु'आमिले में, जिन्होंने अपने क़ासिद उसके पास भेजे ताकि उस मोजिज़ा का हाल जो उस मुल्क में किया गया था दरियाफ़्त करें; ख़ुदा ने उसे आज़माने के लिए छोड़ दिया, ताकि मा'लूम करे के उसके दिल में क्या है।
\s5
\v 32 और हिज़क़ियाह के बाक़ी काम और उसके नेक आ'माल आमूस के बेटे यासयाह नबी की ख़्वाब में और यहूदाह और इस्राईल के बादशाहों की किताब में लिखा है|
\v 33 और हिज़क़ियाह अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और उन्होंने उसे बनी दाऊद की क़ब्रों की चढ़ाई पर दफ़्न किया, और सारे यहूदाह और यरूशलीम के सब बाशिन्दों ने उसकी मौत पर उसकी ताज़ीम की; और उसका बेटा मनस्सी उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\c 33
\p
\v 1 ~मनस्सी बारह साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने यरूशलीम में पचपन साल हुकूमत की।
\v 2 उसने उन क़ौमों के नफ़रतअंगेज़ कामों के मुताबिक़ जिनको ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के आगे से हटा दिया था, वही किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में बुरा था।
\v 3 क्यूँकि उसने उन ऊँचे मक़ामों को, जिनको उसके बाप हिज़क़ियाह ने ढाया था, फिर बनाया और बा'लीम के लिए मज़बहे बनाए और यसीरतें तैयार कीं और सारे आसमानी लश्कर को सिज्दा किया और उनकी 'इबादत की।
\s5
\v 4 और उसने ख़ुदा~वन्द के घर में जिसके बारे में ख़ुदावन्द ने फ़रमाया था कि मेरा नाम यरूशलीम में हमेशा रहेगा, मज़बहे बनाए;
\v 5 ~और उसने ख़ुदावन्द के घर के दोनों सहनों में, सारे आसमानी लश्कर के लिए मज़बहे बनाए।
\v 6 और उसने बिन हलूम की वादी में अपने फ़र्ज़न्दों को भी आग में चलवाया, और वह शगून मानता और जादू और अफ़सून करता और बदरूहों के आशनाओं और जादूगरों से ता'अल्लुक रखता था। उसने ख़ुदावन्द की नज़र में बहुत बदकारी की, जिससे उसे ग़ुस्सा दिलाया;
\s5
\v 7 और जो तराशी हुई मूरत उसने बनवाई थी उसको ख़ुदा के घर में नस्ब किया, जिसके बारे में ख़ुदा ने दाऊद और उसके बेटे सुलेमान से कहा था कि मैं इस घर में और यरूशलीम में जिसे मैंने बनी-इस्राईल के सब क़बीलों में से चुन लिया है, अपना नाम हमेशा तक रखूँगा;
\v 8 और मैं बनी-इस्राईल के पाँव को उस सरज़मीन से जो मैंने उनके बाप-दादा को 'इनायत की है, फिर कभी नहीं हटाऊँगा बशर्ते कि वह उन सब बातों को जो मैंने उनकी फ़रमाई, या'नी उस सारी शरी'अत और क़ानून और हुक्मों को जो मूसा के जरिए ~मिले, मानने की एहतियात रखें।
\v 9 और मनस्सी ने यहूदाह और यरूशलीम के बाशिन्दों को यहाँ तक गुमराह किया कि उन्होंने उन क़ौमों से भी ज़्यादा बुरायी की, जिनको ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के सामने से हलाक किया था।
\s5
\v 10 और ख़ुदा वन्द ने मनस्सी और उसके लोगों से बातें की लेकिन उन्होंने कुछ ध्यान न दिया।
\v 11 इसलिए ख़ुदावन्द उन पर शाह-ए-असूर के सिपह सालारों को चढ़ा लाया, जो मनस्सी को ज़ॅजीरों से जकड़ कर और बेड़ियाँ डाल कर बाबुल को ले गए।
\s5
\v 12 जब वह मुसीबत में पड़ा तो उसने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मिन्नत की और अपने बाप-दादा के ख़ुदा के सामने बहुत ख़ाकसार बना,
\v 13 और उसने उससे दु'आ की; तब उसने उसकी दु'आ उसे क़बूल करके ~उसकी फ़रयाद सुनी ममलुकत में यरूशलीम को वापस लाया। तब मनस्सी ने जान लिया कि ख़ुदा वन्द ही ख़ुदा है।
\s5
\v 14 इसके बा'द उसने दाऊद के शहर के लिए जैहून के मग़रिब की तरफ़ वादी में मछली फाटक के मदखल तक एक बाहर की दीवार उठाई, और 'ओफ़ल को घेरा और उसे बहुत ऊँचा किया; और यहूदाह के सब फ़सीलदार शहरों में बहादुर जंगी सरदार रखे।
\v 15 और उसने अजनबी मा'बूदों को, और ख़ुदावन्द के घर से उस मूरत को, और सब मज़बहों को जो उसने ख़ुदावन्द के घर के पहाड़ पर और यरूशलीम में बनवाए थे दूर किया और उनको शहर के बाहर फेंक दिया।
\s5
\v 16 और उसने ख़ुदावन्द के मज़बह की मरम्मत की और उस पर सलामती के ज़बीहों की और शुक्रगुज़ारी की क़ुर्बानियाँ अदा कीं और यहूदाह को ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की 'इबादत का हुक्म दिया।
\v 17 ~तो भी लोग ऊँचे मक़ामों में क़ुर्बानी करते रहे, लेकिन सिर्फ़ ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए।
\s5
\v 18 और मनस्सी के बाक़ी काम और अपने ख़ुदा से उसकी दु'आ, और उन ग़ैबबीनों की बातें जिन्होंने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के नाम से उसके साथ कलाम किया, वह सब इस्राईल के बादशाहों के आ'माल के साथ लिखा हैं।
\v 19 उसकी दु'आ और उसका क़बूल होना, और उसकी ख़ाकसारी से पहले की सब ख़ताएँ और उसकी बेईमानी और वह जगह जहाँ उसने ऊंचे मक़ाम बनवाये और ~यसीरतें और तराशी हुई मूरतें खड़ी कीं, यह सब बातें हूज़ी की तारीख़ में क़लमबन्द हैं।
\v 20 और मनस्सी अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और उन्होंने उसे उसी के घर में दफ़्न किया; और उसका बेटा अमून उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\v 21 अमून बाइस साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने दो साल यरूशलीम में हुकूमत की।
\v 22 और जो ख़ुदावन्द की नज़र में बुरा है वही उसने किया, जैसा उसके बाप मनस्सी ने किया था। और अमून ने उन सब तराशी हुई मूरतों के आगे जो उसके बाप मनस्सी ने बनवाई थीं, क़ुर्बानियाँ कीं और उनकी 'इबादत की।
\v 23 और वह ख़ुदा वन्द के सामने ख़ाकसार न बना, जैसा उसका बाप मनस्सी ख़ाकसार बना था; बल्कि अमून ने गुनाह पर गुनाह किया।
\s5
\v 24 तब उसके ख़ादिमों ने उसके ख़िलाफ़ साज़िश की और उसी के घर में उसे मार डाला।
\v 25 लेकिन अहल-ए-मुल्क ने उन सबको क़त्ल किया जिन्होंने अमून बादशाह के ख़िलाफ़ साज़िश की थी, और अहल-ए-मुल्क ने उसके बेटे यूसियाह को उसकी जगह बादशाह बनाया|
\s5
\c 34
\p
\v 1 यूसियाह आठ साल का था,जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने इकतीस साल यरूशलीम में हुकूमत की।
\v 2 ~उसने वह काम किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक था, और अपने बाप दाऊद के रास्तों पर चला और दहने या बाएँ हाथ को न मुड़ा।
\v 3 क्यूँकि अपनी हुकूमत के आठवें साल जब वह लड़का ही था, वह अपने बाप दाऊद के ख़ुदा का तालिब हुआ, और बारहवें साल में यहूदाह और यरूशलीम को ऊँचे मक़ामों और यसीरतों और तराशे हुए बुतों और ढाली हुई मूरतों से पाक करने लगा।
\s5
\v 4 और लोगों ने उसके सामने बा'लीम के मज़बहों को ढा दिया, और सूरज की मूरतों को जो उनके ऊपर ऊँचे पर थीं उसने काट डाला, और यासीरतों और तराशी हुई और ढाली हुई मूरतों को उसने टुकड़े टुकड़े करके उनको धूल बना दिया, और उसको उनकी क़ब्रों पर बिथराया जिन्होंने उनके लिए क़ुर्बानियाँ अदा की थीं।
\v 5 उसने उन काहिनों की हड्डियाँ उन्हीं के मज़बहों पर जलाई, और यहूदाह और यरूशलीम को पाक किया।
\s5
\v 6 और मनस्सी और इफ़्राईम और शमा'ऊन के शहरों में, बल्कि नफ़्ताली तक उनके आस -पास ~खण्डरों में उसने ऐसा ही किया,
\v 7 और मज़बहों को ढा दिया, और यसीरतों और तराशी हुई मूरतों को तोड़ कर धूल कर दिया, और इस्राईल के पूरे मुल्क में सूरज की सब मूरतों को काट डाला, तब यरूशलीम को लोटा।
\s5
\v 8 अपनी हुकूमत के अठारहवें बरस, जब वह मुल्क और हैकल को पाक कर चुका, तो उसने असलियाह के बेटे साफ़न को और शहर के हाकिम मासियाह और यूआख़ज़ के बेटे यूआख मुवरिंख को भेजा कि ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के घर की मरम्मत करें।
\v 9 वह ख़िलक़ियाह सरदार काहिन के पास आए, और वह नक़दी जो ख़ुदा के घर में लाई गई थी जिसे दरबान लावियों ने मनस्सी और इफ़ाईमऔर इस्राईल के सब बाक़ी लोगों से और पूरे यहूदाह और बिनयमीन और यरूशलीम के बाशिंदों से लेकर जमा' किया था, उसके सुपुर्द की।
\s5
\v 10 और उन्होंने उसे उन कारिंदों के हाथ में सौंपा जो ख़ुदावन्द के घर की निगरानी करते थे, और उन कारिंदों ने जो ख़ुदावन्द के घर में काम करते थे उसे उस घर की मरम्मत और दुरुस्त करने में लगाया;
\v 11 या'नी उसे बढ़इयों और राजगीर को दिया की गढ़े हुए पत्थर और जोड़ों के लिए लकड़ी ख़रीदें, और उन घरों के लिए जिनको यहूदाह के बादशाहों ने उजाड़ दिया था शहतीर बनाई।
\s5
\v 12 वह आदमी दियानत से काम करते थे, और यहत और 'अबदियाह लावी जो बनी मिरारी में से थे उनकी निगरानी करते थे, और बनी क़िहात में से ज़करियाह और मुसल्लाम काम कराते थे, और लावियों में से वह लोग थे जो बाजों में माहिर थे।
\v 13 और वह बारबरदारों के भी दारोग़ा थे और सब क़िस्म क़िस्म के काम करने वालों से काम कराते थे, और मुन्शी और मुहतमिम और दरबान लावियों में से थे।
\s5
\v 14 ~जब वह उस नक़दी को जो ख़ुदावन्द के घर में लाई गई थी निकाल रहे थे, तो ख़िलक़ियाह काहिन को ख़ुदावन्द की तौरेत की किताब, जो मूसा की ज़रिए' दी गई थी मिली।
\v 15 तब ख़िलक़ियाह ने साफ़न मुन्शी से कहा, "मैंने ख़ुदा वन्द के घर में तौरेत की किताब पाई है।" और ख़िलक़ियाह ने वह किताब साफ़न को दी।
\v 16 और साफ़न वह किताब बादशाह के पास ले गया; फिर उसने बादशाह को यह बताया कि सब कुछ जो तू ने अपने नौकरों के सुपुर्द किया था, उसे वह कर रहे हैं।
\s5
\v 17 और वह नक़दी जो ख़ुदावन्द के घर में मौजूद थी, उन्होंने लेकर नाज़िरों और कारिंदों के हाथ में सौंपी है।
\v 18 फिर साफ़न मुन्शी ने बादशाह से कहा कि ख़िलक़िययाह काहिन ने मुझे यह किताब दी है। और साफ़न ने उसमें से बादशाह के सामने ~पढ़ा।
\v 19 और ऐसा हुआ कि जब बादशाह ने तौरेत की बातें सुनीं तो अपने कपड़े फाड़े।
\s5
\v 20 फिर बादशाह ने ख़िलक़ियाह और अख़ीक़ाम बिन साफ़न और अबदून बिन ~मीकाह और साफ़न मुन्शी और बादशाह के नौकर असायाह को यह हुक्म दिया,
\v 21 कि जाओ, और मेरी तरफ़ से और उन लोगों की तरफ़ से जो इस्राईल और यहूदाह में बाक़ी रह गए हैं, इस किताब की बातों के हक़ में जो मिली है ख़ुदावन्द से पूछो; क्यूँकि ख़ुदावन्द का क़हर जो हम पर नाज़िल हुआ है बड़ा है, इसलिए कि हमारे बाप-दादा ने ख़ुदावन्द के कलाम को नहीं माना है कि सब कुछ जो इस किताब में लिखा है उसके मुताबिक़ करते।
\s5
\v 22 तब ख़िलक़ियाह और वह जिनकी बादशाह ने हुक्म किया था, खुल्दा नबिया के पास जो तोशाख़ाने के दारोग़ा सलूम बिन तोकहत बिन ख़सरा की बीवी थी गए। वह यरूशलीम में मिशना नामी महल्ले में रहती थी, इसलिए उन्होंने उससे वह बातें कहीं।
\s5
\v 23 उसने उनसे कहा, "ख़ुदा वन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि तुम उस शख़्स से जिसने तुम को मेरे पास भेजा है कहो कि;
\v 24 ~'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है देख, मैं इस जगह पर और इसके बाशिंदों पर आफ़त लाऊँगा, या'नी सब लानते जो इस किताब में लिखी हैं जो उन्होंने शाह-ए-यहूदाह के आगे पढ़ी है।
\v 25 ~क्यूँकि उन्होंने मुझे छोड़ दिया और ग़ैर-मा'बूदों के आगे ख़ुशबू जलाई और अपने हाथों के सब कामों से मुझे ग़ुस्सा दिलाया, तब मेरा क़हर इस मक़ाम पर नाज़िल हुआ है और धीमा न होगा।
\s5
\v 26 रहा शाह-ए- यहूदाह जिसने तुम को ख़ुदावन्द से दरियाफ़्त करने को भेजा है, तब तुम उससे ऐसा कहना कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा ऐसा फ़रमाता है कि उन बातों के बारे में जो तूने सुनी हैं,
\v 27 चूँकि तेरा दिल मोम हो गया, और तू ने ख़ुदा के सामने आजिज़ी की जब तू ने उसकी वह बातें सुनीं जो उसने इस मक़ाम और इसके बाशिंदों के ख़िलाफ़ कही हैं, और अपने को मेरे सामने ख़ाकसार बनाया और अपने कपड़े फाड़ कर मेरे आगे रोया, इसलिए मैंने भी तेरी सुन ली है। ख़ुदावन्द फ़रमाता है,
\v 28 देख, मैं तुझे तेरे बाप-दादा के साथ मिलाऊँगा और तू अपनी क़ब्र ~में सलामती से पहुँचाया जाएगा, और सारी आफ़त को जो मैं इस मक़ाम और इसके बाशिंदों पर लाऊँगा तेरी आँखें नहीं देखेंगी।'" इसलिए उन्होंने यह जवाब बादशाह को पहुँचा दिया।
\s5
\v 29 तब बादशाह ने यहूदाह और यरूशलीम के सब बुज़ुर्गों को बुलवा कर इकट्ठा किया।
\v 30 और बादशाह और सब अहल-ए-यहूदाह और यरूशलीम के बाशिंदे, काहिन और लावी और सब लोग क्या छोटे क्या बड़े, ख़ुदावन्द के घर को गए, और उसने जो 'अहद की किताब ख़ुदावन्द के घर में मिली थी, उसकी सब बातें उनको पढ़ सुनाई।
\s5
\v 31 और बादशाह अपनी जगह खड़ा हुआ, और ख़ुदावन्द के आगे 'अहद किया के वह ख़ुदावन्द की पैरवी करेगा और उसके हुक्मों और उसकी शहादतों और क़ानून को अपने सारे दिल और सारी जान से मानेगा, ताकि उस 'अहद की उन बातों को जो उस किताब में लिखी थीं पूरा करे।
\v 32 ~और उसने उन सबको जो यरूशलीम और बिनयमीन में मौजूद थे, उस 'अहद में शरीक किया; और यरूशलीम के बाशिंदों ने ख़ुदा अपने बाप-दादा के ख़ुदा के 'अहद के मुताबिक़ 'अमल किया।
\s5
\v 33 और यूसियाह ने बनी-इस्राईल के सब 'इलाक़ों में से सब मकरूहात को दफ़ा' किया और जितने इस्राईल में मिले उन सभों से 'इबादत, या'नी ख़ुदा वन्द उनके ख़ुदा की 'इबादत, कराई और वह उसके जीते जी ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा की पैरवी से न हटे।
\s5
\c 35
\p
\v 1 और यूसियाह ने यरुशलीम में ख़ुदावन्द के लिए ईद-ए-फ़सह की, और उन्होंने फ़सह को पहले महीने की चौदहवीं तारीख़ को ज़बह किया।
\v 2 उसने काहिनों को उनकी ख़िदमत पर मुक़र्रर किया, और उनको ख़ुदावन्द के घर की ख़िदमत की तरग़ीब दी;
\s5
\v 3 और उन लावियों से जो ख़ुदावन्द के लिए पाक ~होकर तमाम इस्राईल को ता'लीम देते थे कहा कि पाक सन्दूक़ को उस घर में, जिसे शाह-ए- इस्राईल सुलेमान बिन दाऊद ने बनाया था रखो; आगे को तुम्हारे कंधों पर कोई बोझ न होगा। इसलिए अब तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की और उसकी क़ौम इस्राईल की ख़िदमत करो।
\v 4 और अपने आबाई ख़ान्दानों और फ़रीक़ों के मुताबिक़ जैसा शाह-ए-इस्राईल दाऊद ने लिखा और जैसा उसके बेटे सुलेमान ने लिखा है, अपने आपको तैयार कर लो।
\s5
\v 5 ~और तुम मक़दिस में अपने भाइयों या'नी क़ौम के फ़र्ज़न्दों के आबाई ख़ान्दानों की तक़सीम के मुताबिक़ खड़े हो, ताकि उनमें से हर एक के लिए लावियों के किसी न किसी आबाई ख़ान्दान की कोई शाख़ हो।
\v 6 और फ़सह को ज़बह करो, और ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ जो मूसा के ज़रिए' मिला, 'अमल करने के लिए अपने आपको पाक करके अपने भाइयों के लिए तैयार हो।
\s5
\v 7 और यूसियाह ने लोगों के लिए जितने वहाँ मौजूद थे, रेवड़ों में से बर्रे और हलवान सब के सब फ़सह की क़ुर्बानियों के लिए दिए, जो गिनती में तीस हज़ार थे और तीन हज़ार बछड़े थे; यह सब बादशाही माल में से दिए गए।
\v 8 और उसके सरदारों ने ख़ुशी की क़ुर्बानी के तौर पर लोगों को और काहिनों को और लावियों को दिया। ख़िलक़ियाह और ज़करियाह और यहीएल ने जो ख़ुदा के घर के नाज़िम थे, काहिनों को फ़सह की क़ुर्बानी के लिए दो हज़ार छ: सौ बकरी और तीन सौ बैल दिए।
\v 9 और कनानियाह ने भी और उसके भाइयों समा'याह और नतनीएल ने, और हसबियाह और यईएल और यूज़बद ने जो लावियों के सरदार थे, लावियों को फ़सह की क़ुर्बानी के लिए पाँच हज़ार भेड़ बकरी और पाँच सौ बैल दिए।
\s5
\v 10 ~ऐसी 'इबादत की तैयारी हुई, और बादशाह के हुक्म के मुताबिक़ काहिन अपनी अपनी जगह पर और लावी अपने अपने फ़रीक़ के मुताबिक़ खड़े हुए।
\v 11 ~उन्होंने फ़सह को ज़बह किया, और काहिनों ने उनके हाथ से ख़ून लेकर छिड़का और लावी खाल खींचते गए।
\v 12 फिर उन्होंने सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ अलग कीं ताकि वह लोगों के आबाई ख़ान्दानों की तक़सीम के मुताबिक़ ख़ुदावन्द के सामने पेश करने को उनको दें, जैसा मूसा की किताब में लिखा है; और बैलों से भी उन्होंने ऐसा ही किया।
\s5
\v 13 ~और उन्होंने दस्तूर के मुताबिक़ फ़सह को आग पर भूना और पाक हड्डियों ~को देगों और हण्डों और कढ़ाइयों में पकाया और उनको जल्द लोगों को पहुँचा दिया।
\v 14 इसके बा'द उन्होंने अपने लिए और काहिनों के लिए तैयार किया, क्यूँकि काहिन या'नी बनी हारून सोख़्तनी क़ुर्बानियों और चर्बी के चढ़ाने में रात तक मशग़ूल रहे। इसलिए लावियों ने अपने लिए और काहिनों के लिए जो बनी हारून थे तैयार किया।
\s5
\v 15 और गानेवाले जो बनी आसफ़ थे, दाऊद और आसफ़ और हैमान और बादशाह के ग़ैबबीन यदूतोन के हुक्म के मुताबिक़ अपनी अपनी जगह में थे, और हर दरवाज़े पर दरबान थे। उनको अपना अपना काम छोड़ना न पड़ा, क्यूँकि उनके भाई लावियों ने उनके लिए तैयार किया।
\s5
\v 16 ~इसलिए उसी दिन यूसियाह बादशाह के हुक्म के मुताबिक़ फ़सह मानने और ख़ुदावन्द के मज़बह पर सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश करने के लिए ख़ुदावन्द की पूरी 'इबादत की तैयारी की गई।
\v 17 और बनी-इस्राईल ने जो हाज़िर थे, फ़सह को उस वक़्त और फ़तीरी रोटी की 'ईद की सात दिन तक मनाया।
\s5
\v 18 ~इसकी तरह कोई फ़सह समुएल नबी के दिनों से इस्राईल में नहीं मनाया गया था, और न शाहान-ए-इस्राईल में से किसी ने ऐसी ईद फ़सह की जैसी यूसियाह और काहिनों और लावियों और सारे यहूदाह और इस्राईल ने जो हाज़िर थे, और यरूशलीम के बाशिंदों ने की।
\v 19 ~ये फ़सह यूसियाह की हुकूमत के अठारहवें साल में मनाया गया।
\s5
\v 20 इस सबके बा'द जब यूसियाह हैकल को तैयार कर चुका, तो शाह-ए-मिस्र निकोह ने करकमीस से जो फुरात के किनारे है, लड़ने के लिए चढ़ाई की और यूसियाह उसके मुक़ाबिला को निकला।
\v 21 लेकिन उसने उसके पास क़ासिदों से कहला भेजा कि ऐ यहूदाह के बादशाह, तुझ से मेरा क्या काम? मैं आज के दिन तुझ पर नहीं बल्कि उस ख़ान्दान पर चढ़ाई कर रहा हूँ जिससे मेरी जंग है, और ख़ुदा ने मुझ को जल्दी करने का हुक्म दिया है; इसलिए तू ख़ुदा से जो मेरे साथ है मुज़ाहिम न हो, ऐसा न हो कि वह तुझे हलाक कर दे।
\s5
\v 22 लेकिन यूसियाह ने उससे मुँह न मोड़ा, बल्कि उससे लड़ने के लिए अपना भेस बदला, और निकोह की बात जो ख़ुदा के मुँह से निकली थी न मानी और मजिद्दो की वादी में लड़ने को गया।
\s5
\v 23 ~और तीरअंदाज़ों ने यूसियाह बादशाह को तीर मारा, और बादशाह ने अपने नौकरों से कहा, "मुझे ले चलो, क्यूँकि मैं बहुत ज़ख़्मी हो गया हूँ।"
\v 24 इसलिए उसके नौकरों ने उसे उस रथ पर से उतार कर उसके दूसरे रथ पर चढ़ाया, और उसे यरूशलीम को ले गए; और वह मर गया और अपने बाप-दादा की क़ब्रों में दफ़्न हुआ, और सारे यहूदाह और यरूशलीम ने यूसियाह के लिए मातम किया।
\s5
\v 25 और यरमियाह ने यूसियाह पर नौहा किया, और गानेवाले और गानेवालियाँ सब अपने मर्सियों में आज के दिन तक यूसियाह का ज़िक्र करते हैं। यह उन्होंने इस्राईल में एक दस्तूर बना दिया, और देखो वह बातें नौहों में लिखी हैं।
\v 26 ~यूसियाह के बाक़ी काम, और जैसा ख़ुदावन्द की शरी'अत में लिखा है उसके मुताबिक़ उसके नेक आ'माल,
\v 27 ~और उसके काम, शुरू' से आख़िर तक इस्राईल और यहूदाह के बादशाहों की किताब में लिखा हैं।
\s5
\c 36
\p
\v 1 और मुल्क के लोगों ने यूसियाह के बेटे यहूआख़ज़ को उसके बाप की जगह यरूशलीम में बादशाह बनाया।
\v 2 ~यहूआख़ज़ तेईस साल का था जब वह हुकूमत करने लगा; उसने तीन महीने यरूशलीम में हुकूमत की।
\s5
\v 3 और शाह-ए-मिस्र ने उसे यरूशलीम में तख़्त से उतार दिया, और मुल्क पर सौ क़िन्तार' चाँदी और एक क़िन्तार सोना जुर्माना किया।
\v 4 और शाह-ए-मिस्र ने उसके भाई इल्याक़ीम को यहूदाह और यरूशलीम का बादशाह बनाया, और उसका नाम बदलकर यहूयक़ीम रखा; और निकोह उसके भाई यहूआखज़ को पकड़कर मिस्र को ले गया।
\s5
\v 5 यहूयक़ीम पच्चीस साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने ग्यारह साल यरूशलीम में हुकूमत की। उसने वही किया जो ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा की नज़र में बुरा था।
\v 6 उस पर शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र ने चढ़ाई की और उसे बाबुल ले जाने के लिए उसके बेड़ियाँ डालीं
\v 7 और नबूकदनज़र ख़ुदावन्द के घर के कुछ बर्तन भी बाबुल को ले गया और उनको बाबुल में अपने मन्दिर में रख्खा,
\s5
\v 8 यहूयक़ीम के बाक़ी काम और उसके नफ़रतअंगेज़ 'आमाल, और जो कुछ उसमें पाया गया, वह इस्राईल और यहूदाह के बादशाहों की किताब में लिखा हैं; और उसका बेटा यहूयाकीन उसकी जगह बादशाह हुआ।
\s5
\v 9 यहूयाकीन आठ साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने तीन महीने दस दिन यरूशलीम में हुकूमत की। उसने वही किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में बुरा था।
\v 10 और नए साल के शुरू' होते ही नबूकदनज़र बादशाह ने उसे ख़ुदावन्द के घर के नफ़ीस बर्तनों के साथ बाबुल को बुलवा लिया, और उसके भाई सिदक़ियाह को यहूदाह और यरूशलीम का बादशाह बनाया।
\s5
\v 11 सिदक़ियाह इक्कीस साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने ग्यारह साल यरूशलीम में हुकूमत की।
\v 12 उसने वही किया जो ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा की नज़र में बुरा था। और उसने यरमियाह नबी के सामने जिसने ख़ुदावन्द के मुँह की बातें उससे कहीं, 'आजिज़ी न की।
\s5
\v 13 ~उसने नबूकदनज़र बादशाह से भी जिसने उसे ख़ुदा की क़सम खिलाई थी, बग़ावत की बल्कि वह गर्दनकश हो गया, और उसने अपना दिल ऐसा सख़्त कर लिया कि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की तरफ़ न मुड़ा।
\v 14 इसके 'अलावा काहिनों के सब सरदारों और लोगों ने और क़ौमों के सब नफ़रती कामों के मुताबिक़ बड़ी बदकारियाँ कीं, और उन्होंने ख़ुदावन्द के घर को जिसे उसने यरूशलीम में पाक ठहराया था नापाक किया।
\s5
\v 15 ख़ुदावन्द उनके बाप-दादा के ख़ुदा ने अपने पैग़म्बरों को उनके पास बर वक़्त भेज ~भेज कर पैग़ाम भेजा क्यूँकि उसे अपने लोगों और अपने घर पर तरस आता था;
\v 16 ~लेकिन उन्होंने ख़ुदा के पैग़म्बरों को ट्ठठों में उड़ाया, और उसकी बातों को नाचीज़ जाना और उसके नबियों की हँसी उड़ाई यहाँ तक कि ख़ुदावन्द का ग़ज़ब अपने लोगों पर ऐसा भड़का कि कोई चारा न रहा।
\s5
\v 17 चुनाँचे वह कसदियों के बादशाह को उन पर चढ़ा लाया, जिसने उनके मक़दिस के घर में उनके जवानों को तलवार से क़त्ल किया; और उसने क्या जवान मर्द क्या कुंवारी, क्या बुड्ढा या 'उम्र दराज़, किसी पर तरस न खाया।उसने सबको उसके हाथ में दे दिया।
\s5
\v 18 ~और ख़ुदा के घर के सब बर्तन, क्या बड़े क्या छोटे, और ख़ुदावन्द के घर के ख़ज़ाने और बादशाह और उसके सरदारों के खज़ाने;यह सब वह बाबुल को ले गया।
\v 19 और उन्होंने ख़ुदा के घर को जला दिया, और यरूशलीम की फ़सील ढा दी, और उसके सारे महल आग से जला दिए और उसके सब क़ीमती बर्तन को बर्बाद किया।
\s5
\v 20 ~जो तलवार से बचे वह उनको बाबुल ले गया, और वहाँ वह उसके और उसके बेटों के ग़ुलाम रहे, जब तक फ़ारस की हुकूमत शुरू' न हुई
\v 21 ताकि ख़ुदावन्द का वह कलाम जो यरमियाह की ज़बानी आया था पूरा हो कि मुल्क अपने सब्तों का आराम पा ले; क्यूँकि जब तक वह सुनसान पड़ा रहा तब तक, या'नी सत्तर साल तक उसे सब्त का आराम मिला।
\s5
\v 22 और शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस की हुकूमत के पहले साल, इसलिए के ख़ुदावन्द का कलाम जो यरमियाह की ज़बानी आया था पूरा हो, ख़ुदावन्द ने शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस का दिल उभारा; तो उसने अपनी सारी ममलुकत में 'ऐलान करवाया और इस मज़मून का फ़रमान भी लिखा कि :
\v 23 शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस ऐसा फ़रमाता है, 'ख़ुदावन्द आसमान के ख़ुदा ने ज़मीन की सब हुकूमतें मुझे बख़्शी हैं, और उसने मुझ को ताकीद की है कि मैं यरूशलीम में, जो यहूदाह में है उसके लिए एक घर बनाऊँ; इसलिए तुम्हारे बीच जो कोई उसकी सारी क़ौम में से हो, ख़ुदावन्द उसका ख़ुदा उसके साथ हो और वह रवाना हो जाए।

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\toc2 अज़्रा
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\mt1 अज़्रा
\s5
\c 1
\p
\v 1 ~और शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस की सल्तनत के पहले साल में ~इसलिए कि ख़ुदावन्द का कलाम जो यरमियाह की ज़बानी आया था पूरा हुआ, ख़ुदावन्द ने शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस का दिल उभारा, इसलिए उस ने अपने पूरे मुल्क में 'ऐलान कराया और इस मज़मून का फ़रमान लिखा कि|
\v 2 शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस यूँ फ़रमाता है कि ख़ुदावन्द आसमान के ख़ुदा ने ज़मीन की सब मुल्कें मुझें बख़्शी हैं ,और मुझें ताकीद की है कि मैं यरुशलीम में जो यहूदाह में है उसके लिए एक घर बनाऊँ |
\s5
\v 3 तब तुम्हारे बीच जो कोई उसकी सारी क़ौम में से हो~उसका ख़ुदा उसके साथ~हो और वह यरुशलीम~को जो यहूदाह में है जाए,और ख़ुदावन्द इस्राईल~के ख़ुदा का घर जो यरूशलीम में है, बनाए~~(ख़ुदा वही है);
\v 4 और जो कोई किसी जगह जहाँ उसने क़याम किया बाक़ी रहा हो तो उसी जगह के लोग चाँदी और सोने और ~माल मवेशी से उसकी मदद करें, और 'अलावा इसके वह ख़ुदा के घर के लिए जो यरूशलीम में है ख़ुशी के हदिये दें।
\s5
\v 5 ~तब यहूदाह और बिनयमीन के आबाई ख़ानदानों के सरदार और काहिन और लावी ~और वह सब जिनके दिल को ख़ुदा ने उभारा, उठे कि जाकर ख़ुदावन्द का घर जो यरूशलीम में है बनाएँ,
\v 6 और उन सभों ने जो उनके पड़ोस में थे, 'अलावा उन सब चीज़ों के जो ख़ुशी से दी गई, चाँदी के बर्तनों और सोने और सामान और मवाशी और क़ीमती चीज़ों से उनकी मदद की।
\s5
\v 7 ~और~ख़ोरस~बादशाह ने भी ख़ुदावन्द के घर के उन बर्तनों को निकलवाया जिनको नबूकदनज़र यरुशलीम से ले आया था और अपने मा'बूदों के 'इबादत खाने ~में रखा था|
\v 8 इन ही को शाह-ए- फ़ारस ख़ोरस ने ख़ज़ान्ची मित्रदात के हाथ से निकलवाया, और उनको गिनकर यहूदाह के अमीर शेसबज़्ज़र को दिया।
\s5
\v 9 और उनकी गिनती ये है : सोने की तीस थालियाँ, और चाँदी की हजार थालियाँ और उनतीस छुरियाँ |
\v 10 ~और सोने के तीस प्याले, और चाँदी के दूसरी क़िस्म के चार सौ दस प्याले और, और क़िस्म के बर्तन एक हज़ार।
\v 11 सोने और चाँदी के कुल बर्तन पाँच हज़ार चार सौ थे। शेसबज़्ज़र इन सभों को, जब ग़ुलामी के लोग बाबुल से यरूशलीम को पहुँचाए गए, ले आया।
\s5
\c 2
\p
\v 1 मुल्क के जिन लोगों को शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र बाबुल को ले गया था, उन ग़ुलामों की ग़ुलामी में से वह जो निकल आए और यरूशलीम और यहूदाह में अपने अपने शहर को वापस आए ये हैं:
\v 2 ~वह ज़रुब्बाबुल, यशू'अ, नहमियाह, सिराया, रा'लायाह, मर्दकी, बिलशान, मिसफ़ार, बिगवई, रहूम और बा'ना के साथ आए| इस्राईली क़ौम के आदमियों का ये शुमार हैं |
\s5
\v 3 ~बनी पर'ऊस, दो हज़ार एक सौ बहत्तर ;
\v 4 ~बनी सफ़तियाह, तीन सौ बहत्तर;
\v 5 बनी अरख़, सात सौ पिच्छत्तर;
\v 6 बनी पख़तमोआब, जो यशू'अ और यूआब की औलाद में से थे, दो हज़ार आठ सौ बारह;
\s5
\v 7 बनी 'ऐलाम, एक हज़ार दो सौ चव्वन ,
\v 8 बनी ज़त्तू, नौ सौ पैंतालीस;
\v 9 ~बनी ज़क्की, सात सौ साठ
\v 10 बनी बानी, छ: सौ बयालीस;
\s5
\v 11 बनी बबई, छः सौ तेइस;
\v 12 बनी 'अज़जाद, एक हज़ार दो सौ बाईस
\v 13 बनी अदूनिक़ाम, छ: सौ छियासठ:
\v 14 बनी बिगवई, दो हज़ार छप्पन;
\s5
\v 15 बनी 'अदीन, चार सौ चव्वन ,
\v 16 ~बनी अतीर, हिज़क़ियाह के घराने के अठानवे
\v 17 ~बनी बज़ई, तीन सौ तेईस;
\v 18 बनी यूरह, एक सौ बारह;
\s5
\v 19 ~बनी हाशूम, दो सौ तेईस;
\v 20 बनी जिब्बार, पच्चानवे,
\v 21 बनी बैतलहम, एक सौ तेईस,
\v 22 ~अहल-ए-नतूफ़ा, छप्पन:
\s5
\v 23 अहल-ए-'अन्तोत, एक सौ अट्ठाईस;
\v 24 बनी 'अज़मावत, बयालीस;
\v 25 क़रयत-'अरीम और कफ़रा और बैरोत के लोग, सात सौ तैंतालीस,
\v 26 रामा और जिबा' के लोग, छः सौ इक्कीस,
\s5
\v 27 ~अहल-ए-मिक्मास, एक सौ बाईस;
\v 28 बैतएल और 'ऐ के लोग, दो सौ तेईस;
\v 29 बनी नबू, बावन,
\v 30 ~बनी मजबीस, एक सौ छप्पन;
\s5
\v 31 दूसरे 'ऐलाम की औलाद, एक हज़ार दो सौ चव्वन ;
\v 32 बनी हारेिम, तीन सौ बीस;
\v 33 लूद ~और हादीद और ओनू की औलाद सात सौ पच्चीस :
\s5
\v 34 ~यरीहू के लोग, तीन सौ पैन्तालीस;
\v 35 सनाआह के लोग, तीन हज़ार छ: सौ तीस।
\s5
\v 36 फिर काहिनों या'नी यशू'अ के ख़ानदान में से : यद'अयाह की औलाद, नौ सौ तिहत्तर;
\v 37 ~बनी इम्मेर, एक हज़ार बावन;
\v 38 बनी फ़शहूर, एक हज़ार दो सौ सैंतालीस;
\v 39 बनी हारिम, एक हज़ार सत्रह।
\s5
\v 40 लावियों या'नी हूदावियाह की नस्ल में से यशूअ और क़दमीएल की औलाद, चौहत्तर,
\v 41 गानेवालों में से बनी आसफ़, एक सौ अट्ठाइस;
\v 42 दरबानों की नसल में से बनी सलूम, बनी अतीर, बनी तलमून, बनी 'अक़्क़ोब, बनी ख़तीता, बनी सोबै सब मिल ~कर, एक सौ उन्तालीस ।
\s5
\v 43 और नतीनीम' में से बनी ज़िहा, बनी हसूफ़ा, बनी तब'ऊत,
\v 44 ~बनी क़रूस, बनी सीहा, बनी फ़दून,
\v 45 ~बनी लिबाना, बनी हजाबा, बनी 'अक़्बक़ूब,
\v 46 ~बनी हजाब, बनी शमलै, बनी हनान,
\s5
\v 47 बनी जिद्देल, बनी हजर, बनी रआयाह,
\v 48 बनी रसीन, बनी नक़्क़ूदा बनी जज़्ज़ाम,
\v 49 ~बनी 'उज़्ज़ा, बनी फ़ासेख़, बनी बसैई,
\v 50 बनी असनाह, बनी म'ओनीम, बनी नफ़ीसीम,
\s5
\v 51 बनी बक़बोक़, बनी हक़ूफ़ा, बनी हरहूर,
\v 52 बनी बज़लूत, बनी महीदा, बनी हरशा,
\v 53 बनी बरक़ूस, बनी सीसरा, बनी तामह,
\v 54 बनी नज़याह, बनी ख़तीफ़ा।
\s5
\v 55 ~सुलेमान के ख़ादिमों की औलाद बनी सूती बनी हसूफ़िरत बनी फ़रूदा :
\v 56 बनी या'ला, बनी दरक़ून, बनी जिद्देल,
\v 57 बनी सफ़तियाह, बनी ख़ित्तेल, बनी फ़ूकरत ज़बाइम, बनी अमी।
\v 58 सब नतीनीम और सुलेमान के ख़ादिमों की औलाद तीन सौ बानवे।
\s5
\v 59 ~और जो लोग तल-मिलह और तल-हरसा और करुब और अद्दान और अमीर से गए थे, वह ये हैं; लेकिन ये लोग अपने अपने आबाई ख़ान्दान और नस्ल का पता नहीं दे सके कि ~इस्राईल के हैं या नहीं :
\v 60 या'नी बनी दिलायाह, बनी तूबियाह, बनी नक़ूदा छ: सौ बावन।
\s5
\v 61 और काहिनों की औलाद में से बनी हबायाह, बनी हक़ूस, बनी बरज़िल्ली जिसने जिल'आदी बरज़िल्ली की बेटियों में से एक को ब्याह लिया और उनके नाम से कहलाया
\v 62 ~उन्होंने अपनी सनद उनके बीच जो नसबनामों के मुताबिक़ गिने गए थे ढूँडी लेकिन न पाई, इसलिए वह नापाक समझे गए और कहानत से ख़ारिज हुए;
\v 63 ~और हाकिम ने उनसे कहा कि जब तक कोई काहिन ऊरीम-ओ-तम्मीम लिए हुए न उठे, तब तक वह पाक तरीन चीज़ों में से न खाएँ।
\s5
\v 64 ~सारी जमा'अत मिल कर बयालीस हज़ार तीन सौ साठ की थी।
\v 65 इनके 'अलावा उनके ग़ुलामों और लौंडियों का शुमार सात हज़ार तीन सौ सैंतीस था, और उनके साथ दो सौ गानेवाले और गानेवालियाँ थीं।
\s5
\v 66 उनके घोड़े, सात सौ छत्तीस; उनके खच्चर, दो सौ पैंतालीस;
\v 67 उनके ऊँट, चार सौ पैंतीस और उनके गधे, छ: हज़ार सात सौ बीस थे।
\s5
\v 68 और आबाई ख़ान्दानों के कुछ सरदारों ने जब वह ख़ुदावन्द के घर में जो यरूशलीम में है आए, तो ख़ुशी से ख़ुदा के मस्कन के लिए हदिये दिए, ताकि ~वह फिर अपनी जगह पर ता'मीर किया जाए।
\v 69 उन्होंने अपने ताक़त के मुताबिक़ काम के ख़ज़ाना में सोने के इकसठ हज़ार दिरहम और चाँदी के पाँच हज़ार मनहाँ और काहिनों के एक सौ लिबास दिए।
\s5
\v 70 इसलिए काहिन, और लावी, और कुछ लोग, और गानेवाले और दरबान, और नतीनीम अपने अपने शहर में और सब इस्राइली अपने अपने शहर में बस गए।
\s5
\c 3
\p
\v 1 ~जब सातवाँ महीना आया, और बनी इस्राईल अपने अपने शहर में बस गए तो लोग यकतन होकर यरूशलीम में इकट्ठे हुए।
\v 2 तब यशू'अ बिन यूसदक़ और उसके भाई जो काहिन थे, और ज़रुब्बाबुल बिन सियालतिएल और उसके भाई उठ खड़े हुए और उन्होंने इस्राईल के ख़ुदा का मज़बह बनाया ताकि उस पर सोख़्तनी कुर्बानियाँ चढ़ाएँ, जैसा मर्द-ए- ख़ुदा मूसा की शरी'अत में लिखा है।
\s5
\v 3 और ~उन्होंने मज़बह को उसकी जगह पर रखा, क्यूँकि ~उन अतराफ़ की क़ौमों की वजह से उनको ख़ौफ़ रहा; और वह उस पर ~ख़ुदावन्द के लिए सोख़्तनी ~क़ुर्बानियाँ या'नी सुबह ~और शाम की~सोख़्तनी~क़ुर्बानियाँ~ पेश करने लगे।
\v 4 और उन्होंने लिखे हुए के मुताबिक़ ख़ैमों की 'ईद मनाई, और रोज़ की सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ गिन गिन कर जैसा ~जिस दिन का फ़र्ज़ था, दस्तूर के मुताबिक़ पेश कीं:
\v 5 उसके बा'द दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी, और नये चाँद की, और ख़ुदावन्द की उन सब मुक़र्ररा 'ईदों की जो मुक़द्दस ठहराई गई थीं, और हर शख़्स की तरफ़ से ऐसी क़ुर्बनियाॅ पेश कीं जो रज़ा की क़ुर्बानी ख़ुशी से ख़ुदावन्द के लिए अदा करता` था |
\s5
\v 6 ~सातवें महीने की पहली तारीख़ से वह ख़ुदावन्द के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश करने लगे। लेकिन ख़ुदावन्द की हैकल की बुनियाद अभी तक डाली न गई थी।
\v 7 और उन्होंने मिस्त्रियों और बढ़इयों को नक़दी दी, और सैदानियों और सूरियों को खाना-पीना और तेल दिया, ताकि वह देवदार के लट्ठे लुबनान से याफ़ा को समन्दर की राह से लाएँ, जैसा उनको शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस से परवाना मिला था।
\s5
\v 8 फिर उनके ख़ुदा के घर में जो यरूशलीम में है आ पहुँचने के बा'द, दूसरे बरस के दूसरे महीने में, ज़रुब्बाबुल बिन सिआलतिएल और यशू'अ बिन यूसदक़ ने, और उनके बाक़ी भाई काहिनों और लावियों और सभों ने जो ग़ुलामी से लौट कर यरूशलीम को आए थे काम शुरू' किया और लावियों को जो बीस बरस के और उससे ऊपर थे मुक़र्रर किया कि ख़ुदावन्द के घर के काम की निगरानी करें |
\v 9 तब यशू'अ और उसके बेटे और भाई, और क़दमीएल और उसके बेटे जो यहूदाह की नसल से थे, मिल कर उठे कि ~ख़ुदा के घर में कारीगरों की निगरानी करें; और बनी हनदाद भी और उनके बेटे और भाई जो लावी थे उनके साथ थे।
\s5
\v 10 इसलिए जब मिस्त्री ख़ुदावन्द की हैकल की बुनियाद डालने लगे, तो उन्होंने काहिनों को अपने अपने लिबास पहने और नरसिंगे लिए हुए और आसफ़ की नसल के लावियों को झाँझ लिए हुए खड़ा किया, कि शाह-ए- इस्राईल दाऊद की तरतीब के मुताबिक़ ख़ुदावन्द की हम्द करें।
\v 11 इसलिए वह एक हो कर बारी-बारी से ~ख़ुदावन्द की ता'रीफ़ और शुक्रगुज़ारी में गा-गा कर कहने लगे कि वह भला है, क्यूँकि उसकी रहमत हमेशा इस्राईल पर है। जब वह ख़ुदावन्द की ता'रीफ़ कर रहे थे, तो सब लोगों ने बलन्द आवाज़ से नारा मारा, इसलिए कि ख़ुदावन्द के घर की बुनियाद पड़ी थी।
\s5
\v 12 लेकिन काहिनों और लावियों और आबाई ख़ान्दानों के सरदारों में से बहुत से 'उम्र दराज़ लोग, जिन्होंने पहले घर को देखा था, उस वक़्त जब इस घर की बुनियाद उनकी आँखों के सामने डाली गई, तो बड़ी आवाज़ से ज़ोर से रोने लगे; और बहुत से ख़ुशी के मारे ज़ोर ज़ोर से ललकारे।
\v 13 इसलिए लोग ख़ुशी की आवाज़ के शोर और लोगों के रोने की आवाज़ में फ़र्क़ न कर सके, क्यूँकि ~लोग बुलन्द आवाज़ से नारे मार रहे थे, और आवाज़ दूर तक सुनाई देती थी।
\s5
\c 4
\p
\v 1 जब यहुदाह और बिनयमीन के दुश्मनों ~ने सुना कि वह जो ग़ुलाम हुए थे, ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के लिए हैकल को बना रहे हैं;
\v 2 तो वह ज़रुब्बाबुल और आबाई क़बीलों के सरदारों के पास आकर उनसे कहने लगे कि हम को भी अपने साथ बनाने दो; क्यूँकि हम भी तुम्हारे ख़ुदा के तालिब हैं जैसे तुम हो, और हम शाह-ए-असूर असर-हद्दून के दिनों से जो हम को यहाँ लाया, उसके लिए क़ुर्बानी पेश करते ~हैं।
\s5
\v 3 लेकिन ज़रुब्बाबुल और यशू'अ और इस्राईल के आबाई ख़ानदानों के बाक़ी सरदारों ने उनसे कहा कि तुम्हारा काम नहीं, कि हमारे साथ हमारे ख़ुदा के लिए घर बनाओ, बल्कि हम खुद ही मिल कर ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के लिए उसे बनाएँगे, जैसा शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस ने हम को हुक्म किया है।
\s5
\v 4 तब मुल्क के लोग यहूदाह के लोगों की मुखालिफ़त करने और बनाते वक़्त उनको तकलीफ़ देने लगे।
\v 5 और शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस के जीते जी, बल्कि शाह-ए-फ़ारस दारा की सल्तनत तक उनके मक़सदों को रद ~करने ~के लिए उनके ख़िलाफ़ सलाहकारों को उजरत देते रहे।
\v 6 ~और अख़्सूयरस के हुकूमत के ज़माने, या'नी उसकी सल्तनत के शुरू' में उन्होंने यहूदाह और यरूशलीम के बाशिन्दों की शिकायत लिख भेजी।
\s5
\v 7 फिर अरतख़शशता के दिनों में बिशलाम और मित्रदात और ताबिएल और उसके बाक़ी साथियों ~ने शाह-ए-फ़ारस अरतख़शशता को लिखा। उनका ख़त अरामी हुरूफ़ और अरामी ज़बान में लिखा था।
\v 8 ~रहूम दीवान और शम्सी मुन्शी ने अरतख़शाशता ~बादशाह को यरूशलीम के ख़िलाफ़ यूँ ख़त लिखा।
\s5
\v 9 इसलिए रहूम दीवान और शम्सी मुन्शी और उनके बाक़ी साथियों ने जो दीना और अफ़ार-सतका और तरफ़ीला और फ़ारस और अरक और बाबुल और सोसन और दिह और 'ऐलाम के थे,
\v 10 और बाक़ी उन कौमों ने जिनको उस बुज़ुर्ग-ओ-शरीफ़ असनफ़्फ़र ने पार लाकर शहर-ए-सामरिया और दरिया के इस पार के बाक़ी 'इलाक़े में बसाया था, वगै़रा वग़ैरा इसको लिखा।
\s5
\v 11 उस ख़त की नक़ल जो उन्होंने अरतख़शशता बादशाह के पास भेजा। ये है: "आपके ग़ुलाम, या'नी वह लोग जो दरिया पार रहते हैं, वग़ैरा।
\v 12 बादशाह को मा'लूम हो कि यहूदी लोग जो हुज़ूर के पास से हमारे बीच यरूशलीम में आए हैं, वह उस बाग़ी और फ़सादी शहर को बना रहे हैं; चुनाँचे दीवारों को ख़त्म और बुनियादों की मरम्मत कर चुके हैं।
\s5
\v 13 इसलिए बादशाह को मा'लूम हो जाए कि अगर ये शहर बन जाए और फ़सील तैयार हो जाए, तो वह ख़िराज चुंगी, या महसूल नहीं देंगे और आख़िर बादशाहों को नुक्सान होगा।
\s5
\v 14 इसलिए चूँकि हम हुज़ूर के दौलतख़ाने का नमक खाते हैं और मुनासिब नहीं कि ~हमारे सामने बादशाह की तहक़ीर हो, इसलिए हम ने लिखकर बादशाह को ख़बर दी है।
\v 15 ताकि हुज़ूर के बाप-दादा के दफ़्तर की किताब से मा'लूम की जाए, तो उस दफ़्तर की किताब से हुज़ूर को मा'लूम होगा और यक़ीन हो जाएगा कि ये शहर फ़ितना अंगेज है जो बादशाहों और सूबों ~को नुक़सान पहुँचाता रहा है; और पुराने ज़माने से उसमें फ़साद खड़ा करते रहे हैं। इसी वजह से ये शहर उजाड़ दिया गया था।
\v 16 और हम बादशाह को यक़ीन दिलाते हैं कि ~अगर ये शहर तामीर हो और इसकी फ़सील बन जाए, तो इस सूरत में हुज़ूर का हिस्सा दरिया पार कुछ न रहेगा।"
\s5
\v 17 तब बादशाह ने रहूम दीवान और शम्सी मुन्शी और उनके बाक़ी साथियों को, जो सामरिया और दरिया पार के बाक़ी मुल्क में रहते हैं यह जवाब भेजा कि "सलाम वगै़रा।
\v 18 जो ख़त तुम ने हमारे पास भेजा, वह मेरे सामने साफ़ साफ़ पढ़ा गया।
\v 19 और मैंने हुक्म दिया और मा'लूमात की गयी, और मा'लूम हुआ कि इस शहर ने पुराने ज़माने से बादशाहों से बग़ावत की है, और फ़ितना और फ़साद उसमें होता रहा है।
\s5
\v 20 और यरूशलीम में ताक़तवर बादशाह भी हुए हैं जिन्होंने दरिया पार के सारे मुल्क पर हुकूमत की है, और ख़िराज, चुंगी और महसूल उनको दिया जाता था।
\v 21 इसलिए तुम हुक्म जारी करो कि ~ये लोग काम बन्द करें और ये शहर न बने, जब तक मेरी तरफ़ से फ़रमान जारी न हों।
\v 22 ख़बरदार, इसमें सुस्ती न करना; बादशाहों के नुक्सान के लिए ख़राबी क्यूँ बढ़ने पाए?"
\s5
\v 23 इसलिए जब अरतख़शशता बादशाह के ख़त की नक़ल रहूम और शम्सी मुन्शी और उनके साथियों के सामने पढ़ी गई, तो वह जल्द यहूदियों के पास यरूशलीम को गए, और अपनी ताक़त से उनको रोक दिया।
\v 24 तब ख़ुदा के घर का जो यरूशलीम में है काम बन्द हुआ, और शाह-ए-फ़ारस दारा की सल्तनत के दूसरे बरस तक बन्द रहा।
\s5
\c 5
\p
\v 1 फिर नबी या'नी हज्जे नबी और ज़करियाह बिन 'इद्दूउन यहूदियों के सामने जो यहूदाह और यरूशलीम में थे, नबुव्वत करने लगे; उन्होंने इस्राईल के ख़ुदा के नाम से उनके सामने नबुव्वत की।
\v 2 तब ज़रुब्बाबुल बिन सियालतिएल और यशू'अ बिन यूसदक़ उठे, और ख़ुदा के घर को जो यरूशलीम में है बनाने लगे; और ख़ुदा के वह नबी उनके साथ होकर उनकी मदद करते थे।
\s5
\v 3 उन्हीं दिनों दरिया पार का हाकिम, तत्तनै और शतर-बोज़नै और उनके साथी उनके पास आकर उनसे कहने लगे कि किसके फ़रमान से तुम इस घर को बनाते, और इस फ़सील को पूरा करते हो?
\v 4 ~तब हम ने उनसे इस तरह कहा कि उन लोगों के क्या नाम हैं, जो इस 'इमारत को बना रहे हैं?
\v 5 लेकिन यहूदियों के बुज़ुर्गों पर उनके ख़ुदा की नज़र थी; इसलिए उन्होंने उनको न रोका जब तक कि वह मुआ'मिला दारा तक न पहुँचा, और फिर इसके बारे में ख़त के ज़रिए' से जवाब न आया |
\s5
\v 6 ~उस ख़त की नक़ल जो दरिया पार के हाकिम तत्तनै और शतर-बोज़नै और उसके अफ़ारसकी साथियों ने जो दरिया पार थे, दारा बादशाह को भेजा,
\v 7 ~उन्होंने उसके पास एक खत भेजा जिसमें यूँ लिखा था: "दारा बादशाह की हर तरह सलामती हो!
\s5
\v 8 बादशाह को मा'लूम हो कि हम यहूदाह के सूबा में ख़ुदा-ए- ताला के घर को गए; वह बड़े बड़े पत्थरों से बन रहा है और दीवारों पर कड़ियाँ धरी जा रही हैं, और काम ख़ूब मेहनत से हो रहा है और उनके हाथों तरक़्क़ी पा रहा है।
\v 9 तब हम ने उन बुज़ुर्गों से सवाल किया और उनसे यूँ कहा, 'कि तुम किस के फ़रमान से इस घर को बनाते, और इस दीवार को पूरा करते हो?
\v 10 और हम ने उनके नाम भी पूछे, ताकि हम उन लोगों के नाम लिख कर हुज़ूर को ख़बर दें कि उनके सरदार कौन हैं।
\s5
\v 11 और उन्होंने हम को यूँ जवाब दिया कि हम ज़मीन-ओ-आसमान के ख़ुदा के बन्दे हैं, और वही घर बना रहे हैं जिसे बने बहुत बरस हुए, और जिसे इस्राईल के एक बड़े बादशाह ने बना कर तैयार किया था।
\s5
\v 12 लेकिन जब हमारे बाप-दादा ने आसमान के ख़ुदा को ग़ुस्सा दिलाया, तो उसने उनको शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र कसदी के हाथ में कर दिया; जिसने इस घर को उजाड़ दिया, और लोगों को बाबुल को ले गया।
\v 13 लेकिन शाह-ए-बाबुल ख़ोरस के पहले साल ख़ोरस बादशाह ने हुक्म दिया कि ख़ुदा का ये घर बनाया जाए।
\s5
\v 14 और ख़ुदा के घर के सोने और चाँदी के बर्तनों को भी, जिनको नबूकदनज़र यरूशलीम की हैकल से निकाल कर बाबुल के 'इबादत गाह में ले आया था, उनको ख़ोरस बादशाह ने बाबुल के इबादत गाह से निकाला और उनको शेसबज़्ज़र नामी एक शख़्स को जिसे उसने हाकिम बनाया था सौंप दिया,
\v 15 और उससे कहा कि इन बर्तनों को ले और जा, और इनको यरूशलीम की हैकल में रख, और ख़ुदा का मस्कन अपनी जगह पर बनाया जाए।
\s5
\v 16 तब उसी शेसबज़्ज़र ने आकर ख़ुदा के घर की जो यरुशलीम में है बुनियाद डाली; और उस वक़्त से अब तक ये बन रहा है, लेकिन अभी तैयार नहीं हुआ।
\s5
\v 17 इसलिए अब अगर बादशाह मुनासिब जाने, तो बादशाह के दौलतख़ाने में जो बाबुल में है, मा'लूमात की जाए कि ख़ोरस बादशाह ने ख़ुदा के इस घर को यरूशलीम में बनाने का हुक्म दिया था या नहीं। और इस मुआ'मिले में बादशाह अपनी मर्ज़ी हम पर ज़ाहिर करे।"
\s5
\c 6
\p
\v 1 तब दारा बादशाह के हुक्म से बाबुल के उस तवारीख़ी कुतुबख़ाने में जिसमें ख़ज़ाने धरे थे, मा'लुमात की गई।
\v 2 चुनाँचें ~अखमता के महल में जो मादै के सूबे में वाक़े' है, एक तूमार मिला जिसमें ये हुक्म लिखा हुआ था:
\s5
\v 3 "ख़ोरस बादशाह के पहले साल ख़ोरस बादशाह ने ख़ुदा के घर के बारे में जो यरूशलीम में है हुक्म किया, कि वह घर या'नी वह मक़ाम जहाँ क़ुर्बानियां करते है बनाया जाए और उसकी बुनियादें मज़बूती से डाली जाएँ। उसकी ऊँचाई साठ हाथ और चौड़ाई साठ हाथ हो,
\v 4 तीन रद्दे भारी पत्थरों के और एक रद्दा नई लकड़ी का हो; और ख़र्च शाही महल से दिया जाए।
\v 5 और ख़ुदा के घर के सोने और चाँदी के बर्तन भी, जिनको नबूकदनज़र उस हैकल से जो यरूशलीम में है निकालकर बाबुल को लाया, वापस दिए जाएँ और यरूशलीम की हैकल में अपनी अपनी जगह पहुँचाए जाएँ, और तू उनको ख़ुदा के घर में रख देना।"
\s5
\v 6 इसलिए तू ऐ दरिया पार के हाकिम, तत्तनै और शतर-बोज़नै और तुम्हारे अफ़ारसकी साथी जो दरिया पार हैं तुम वहाँ से दूर रहो।
\v 7 ख़ुदा के इस घर के काम में दख़्लअन्दाज़ी न करो। यहूदियों का हाकिम और यहूदियों के ~बुज़ुर्ग ख़ुदा के घर को उसकी जगह पर ता'मीर करें।
\s5
\v 8 'अलावा इसके ख़ुदा के इस घर के बनाने में यहूदियों के बुज़ुर्गों के साथ तुम को क्या करना है, इसलिए उसके बारे में मेरा ये हुक्म है कि शाही माल में से, या'नी दरिया पार के ख़िराज में से उन लोगों को बिला देरी किये ख़र्च दिया जाए, ताकि उनको रुकना न पड़े।
\v 9 और आसमान के ख़ुदा की सोख़्तनी क़ुर्बानियों के लिए जिस जिस चीज़ की उनको ज़रूरत हो - या'नी बछड़े और मेंढ़े और हलवान और जितना गेंहूं और नमक और मय और तेल, वह काहिन जो यरूशलीम में हैं बताएँ, वह सब बिला-नाग़ा रोज़-ब-रोज़ उनको दिया जाए;
\v 10 ताकि वह आसमान के ख़ुदा के हुज़ूर राहत अंगेज क़ुर्बानियाँ पेश करें और बादशाह और शहज़ादों की 'उम्रदराज़ी के लिए दु'आ करें।
\s5
\v 11 ~मैंने ये हुक्म भी दिया है, कि जो शख़्स इस फ़रमान को बदल दे, उसके घर में से कड़ी निकाली जाए और उसे उसी पर चढ़ाकर सूली दी जाए, और इस बात की वजह से उसका घर कूड़ाख़ाना बना दिया जाए।
\v 12 और वह ख़ुदा जिसने अपना नाम वहाँ रखा है, सब बादशाहों और लोगों को जो ख़ुदा के उस घर को जो यरूशलीम में है, ढाने की ग़रज़ से इस हुक्म को बदलने के लिए अपना हाथ बढ़ाएँ, ग़ारत करे। मुझ दारा ने हुक्म दे दिया, इस पर बड़ी कोशिश से 'अमल हो।
\s5
\v 13 तब दरिया पार के हाकिम, तत्तनै और शतर-बोज़नै, और उनके साथियों ने दारा बादशाह के फ़रमान भेजने की वजह से बिना देर किये हुए उसके मुताबिक़ 'अमल किया।
\v 14 ~तब यहूदियों के बुज़ुर्ग, हज्जै नबी और ज़करियाह बिन इद्दू की नबुव्वत की वजह से, ता'मीर करते और कामयाब होते रहे। उन्होंने इस्राईल के ख़ुदा के हुक्म, और ख़ोरस और दारा, और शाह-ए-फ़ारस अरतख़शशता के हुक्म के मुताबिक़ उसे बनाया और पूरा किया।
\v 15 इसलिए ये घर अदार के महीने की तीसरी तारीख़ में, दारा बादशाह की सल्तनत के छठे बरस पूरा हुआ।
\s5
\v 16 और बनी-इस्राईल, और काहिनों और लावियों और ग़ुलामी के बाक़ी लोगों ने ख़ुशी के साथ ख़ुदा के इस घर की हम्द की।
\v 17 ~और उन्होंने ख़ुदा के इस घर की तक़्दीस के मौक़े' पर सौ बैल और दो सौ मेंढे और चार सौ बर्रे, और सारे इस्राईल की ख़ता की क़ुर्बानी के लिए इस्राईल के क़बीलों के शुमार के मुताबिक़ बारह बकरे पेश किये ।
\v 18 और जैसा मूसा की किताब में लिखा है, उन्होंने काहिनों को उनकी तक़्सीम, और लावियों को उनके फ़रीक़ों के मुताबिक़, ख़ुदा की 'इबादत के लिए जो यरूशलीम में होती है मुक़र्रर किया।
\s5
\v 19 ~और पहले महीने की चौदहवीं तारीख़ को उन लोगों ने जो ग़ुलामी से आए थे 'ईद-ए-फ़सह मनाई:
\v 20 क्यूँकि काहिनों और लावियों ने यकतन होकर अपने आपको पाक किया था, वह सबके सब पाक थे, और उन्होंने उन सब लोगों के लिए जो ग़ुलामी से आए थे, और अपने भाई काहिनों के लिए और अपने वास्ते फ़सह को ज़बह किया।
\s5
\v 21 और बनी-इस्राईल ने जो ग़ुलामी से लौटे थे, और उन सभों ने जो ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के तालिब होने के लिए उस सरज़मीन की अजनबी क़ौमों की नापाकियों से अलग हो गए थे, फ़सह खाया,
\v 22 और ख़ुशी के साथ सात दिन तक फ़तीरी रोटी की 'ईद मनाई, क्यूँकि ~ख़ुदावन्द ने उनको ख़ुश किया था, और शाह-ए-असूर के दिल को उनकी तरफ़ मोड़ा था ताकि वह ख़ुदा या'नी इस्राईल के ख़ुदा के घर के बनाने में उनकी मदद करें।
\s5
\c 7
\p
\v 1 ~इन बातों के बा'द शाह-ए-फ़ारस अरतख़शशता के दौर-ए-हुकूमत में 'अज़्रा बिन शिरायाह बिन अज़रियाह बिन ख़िलक़ियाह
\v 2 ~बिन सलूम बिन सदूक़ बिन अख़ीतोब,
\v 3 बिन अमरियाह बिन 'अज़रियाह बिन मिरायोत
\v 4 ~बिन ज़राख़ियाह बिन 'उज़्ज़ी बिन बुक़्क़ी
\v 5 बिन अबीसू'अ बिन फ़ीन्हास बिन इली'अज़र बिन हारून सरदार काहिन।
\s5
\v 6 यही 'अज़्रा बाबुल से गया और वह मूसा की शरी'अत में, जिसे ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने दिया था, माहिर 'आलिम था; और चूँकि ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा का हाथ उस पर था, बादशाह ने उसकी सब दरख़्वास्तें मन्ज़ूर कीं।
\v 7 और बनी-इस्राईल और काहिनों और लावियों और गाने वालों और दरबानों नतीनीम में से कुछ लोग, अरतख़शशता बादशाह के सातवें साल यरूशलीम में आए।
\s5
\v 8 और वह बादशाह की हुकूमत के सातवें बरस के पाँचवे महीने यरूशलीम में पहुंचा।
\v 9 क्यूँकि पहले महीने की पहली तारीख़ को तो बाबुल से चला और पांचवें महीने की पहली तारीख़ को यरुशलीम में आ पहुँचा। क्यूँकि उसके ख़ुदा की शफ़क़त का हाथ उसपर था |
\v 10 इसलिए कि 'अज़्रा आमादा हो गया था कि ख़ुदावन्द की शरी'अत का तालिब हो, और उस पर 'अमल करे और इस्राईल में आईन और अहकाम की तालीम दे।
\s5
\v 11 और 'अज़्रा~काहिन और 'आलिम, या'नी ख़ुदावन्द के इस्राईल को दिए हुए अहकाम और आईन की बातों के 'आलिम को जो ख़त अरतख़शशता बादशाह ने 'इनायत किया, उसकी नक़ल ये है:
\v 12 ~"अरतख़शशता शहंशाह की तरफ़ से 'अज़्रा~काहिन, या'नी आसमान के ख़ुदा की शरी'अत के 'आलिम-ए-कामिल वग़ैरा वग़ैरा को।
\v 13 ~मैं ये फ़रमान जारी करता हूँ कि इस्राईल के जो लोग और उनके काहिन और लावी मेरे मुल्क में हैं, उनमें से जितने अपनी ख़ुशी से यरुशलीम को जाना चाहते हैं तेरे साथ जाएँ।
\s5
\v 14 ~चूँकि तू बादशाह और उसके सातों सलाहकारों की तरफ़ से भेजा जाता है, ताकि अपने ख़ुदा की शरी'अत के मुताबिक़ जो तेरे हाथ में है, यहूदाह और यरुशलीम का हाल दरियाफ़्त करे;
\v 15 और जो चाँदी और सोना बादशाह और उसके सलाहकारों ने इस्राईल के ख़ुदा को, जिसका घर यरुशलीम में है, अपनी ख़ुशी से नज़्र किया है ले जाए;
\v 16 और जिस क़दर चाँदी सोना बाबुल के सारे सूबे से तुझे मिलेगा, और जो ख़ुशी के हदिये लोग और काहिन अपने ख़ुदा के घर के लिए जो यरुशलीम में है अपनी ख़ुशी से दें उनको ले जाए।
\s5
\v 17 इसलिए उस रुपये से बैल और मेंढे और हलवान और उनकी नज़्र की क़ुर्बानियाँ, और उनके तपावन की चीज़ें तू बड़ी कोशिश से ख़रीदना, और उनको अपने ख़ुदा के घर के मज़बह पर जो यरुशलीम में है पेश करना।
\v 18 और तुझे और तेरे भाइयों को बाक़ी चाँदी सोने के साथ जो कुछ करना मुनासिब मा'लूम हो, वही अपने ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ करना।
\s5
\v 19 ~और जो बर्तन तुझे तेरे ख़ुदा के घर की 'इबादत के लिए सौंपे जाते हैं, उनको यरुशलीम के ख़ुदा के सामने दे देना।
\v 20 और जो कुछ और तेरे ख़ुदा के घर के लिए ज़रूरी हो जो तुझे देना पड़े, उसे शाही ख़ज़ाने से देना।
\s5
\v 21 ~और मैं अरतख़शशता बादशाह, ख़ुद दरिया पार के सब ख़ज़ान्चियों को हुक्म करता हूँ, कि जो कुछ 'अज़्रा काहिन, आसमान के ख़ुदा की शरी'अत का 'आलिम, तुम से चाहे वह बिना देर किये किया जाए;
\v 22 ~या'नी सौ क़िन्तार चाँदी, और सौ कुर गेहूँ, और सौ बत मय, और सौ बत तेल तक, और नमक बेअन्दाज़ा।
\v 23 जो कुछ आसमान के ख़ुदा ने हुक्म किया है, इसलिए ठीक वैसा ही आसमान के ख़ुदा के घर के लिए किया जाए; क्यूँकि बादशाह और शाहजादों की ममलुकत पर ग़ज़ब क्यूँ भड़के?
\s5
\v 24 ~और तुम को हम आगाह करते हैं कि काहिनों और लावियों और गानेवालों और दरबानों और नतीनीम और ख़ुदा के इस घर के ख़ादिमों में से किसी पर ख़िराज, चुंगी या महसूल लगाना जायज़ न होगा।
\s5
\v 25 ~और ऐ~'अज़्रा, तू अपने ख़ुदा की उस समझ के मुताबिक़ जो तुझ को 'इनायत हुई हाकिमों और क़ाज़ियों को मुक़र्रर कर, ताकि दरिया पार के सब लोगों का जो तेरे ख़ुदा की शरी'अत को जानते हैं इन्साफ़ करें; और तुम उसको जो न जानता हो सिखाओ।
\v 26 और जो कोई तेरे ख़ुदा की शरी'अत पर और बादशाह के फ़रमान पर 'अमल न करे, उसको बिना देर किये क़ानूनी सज़ा दी जाए, चाहे मौत या जिलावतनी या माल की ज़ब्ती या क़ैद की।"
\s5
\v 27 ख़ुदावन्द हमारे बाप-दादा का ख़ुदा मुबारक हो, जिसने ये बात बादशाह के दिल में डाली कि ख़ुदावन्द के घर को जो यरूशलीम में है आरास्ता करे;
\v 28 और बादशाह और उसके सलाहकारों के सामने, और बादशाह के सब 'आली क़द्र सरदारों के आगे अपनी रहमत मुझ पर की; और मैंने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हाथ से जो मुझ पर था, ताक़त पाई और मैंने इस्राईल में से ख़ास लोगों को इकट्ठा किया कि वह मेरे हमराह चलें।
\s5
\c 8
\p
\v 1 अरतख़शशता बादशाह के दौर-ए-सल्तनत में जो लोग मेरे साथ बाबुल से निकले, उनके अबाई ख़ान्दानों के सरदार ये हैं और उनका नसबनामा ये है :
\v 2 ~बनी फ़ीन्हास में से, जैरसोन; बनी इतमर में से, दानीएल; बनी दाऊद में से हत्तूश;
\v 3 बनी सिकनियाह की नस्ल के बनी पर'ऊस में से, ज़करियाह, और उसके साथ डेढ़ सौ आदमी नसबनामे के तौर से गिने हुए थे;
\s5
\v 4 बनी पख़त-मोआब में से, इलीहू'ऐनी बिन ज़राखियाह, और उसके साथ दो सौ आदमी;
\v 5 और बनी सिकनियाह में से, यहज़ीएल का बेटा, और उसके साथ तीन सौ~आदमी:
\v 6 और बनी 'अदीन में से, 'अबद-बिन यूनतन, और उसके साथ पचास~आदमी,
\v 7 और बनी 'ऐलाम में से, यसायाह बिन 'अतलियाह, और उसके साथ सत्तर~आदमी;
\s5
\v 8 और बनी सफ़तियाह में से, जबदियाह बिन मीकाएल, और उसके साथ अस्सी~आदमी,
\v 9 और बनी योआब में से 'अबदियाह बिन यहीएल, और उसके साथ दो सौ अट्ठारह~आदमी,
\v 10 ~और बनी सलूमीत में से, यूसिफ़ियाह का बेटा, और उसके साथ एक सौ साठ~आदमी ;
\v 11 और बनी बबई में से ज़करियाह बिन बबई, और उसके साथ अट्ठाईस~आदमी ;
\s5
\v 12 और बनी 'अज़जाद में से यूहनान बिन हक्कातान, और उसके साथ एक सौ दस~आदमी,
\v 13 और बनी अदुनिक़ाम में से जो सबसे पीछे गए, उनके नाम ये हैं : इलीफ़लत, और य'ईएल, और समा'याह, और उनके साथ साठ~आदमी ;
\v 14 ~और बनी बिगवई में से, ऊती और ज़ब्बूद, और उनके साथ सत्तर~आदमी।
\s5
\v 15 फिर मैंने उनको उस दरिया के पास जो अहावा की सिम्त को बहता है इकट्ठा किया, और वहाँ हम तीन दिन ख़ैमों में रहे; और मैंने लोगों और काहिनों का मुलाहज़ा किया पर बनी लावी में से किसी को न पाया।
\v 16 तब मैंने इली'अज़र और अरीएल और समा'याह और इलनातन और यरीब अौर इलनातन अौर नातन अौर ज़करियाह और मसुल्लाम को जो रईस थे, और यूयरीब और इलनातन को जो मु'अल्लिम थे बुलवाया।
\s5
\v 17 ~और मैंने उनको क़सीफ़िया नाम एक मक़ाम में इद्दो सरदार के पास भेजा; और जो कुछ उनको इद्दो और उसके भाइयों नतीनीम से क़सीफ़िया में कहना था बताया, कि वह हमारे ख़ुदा के घर के लिए ख़िदमत करने वाले हमारे पास ले आएँ।
\s5
\v 18 और चूँकि हमारे ख़ुदा की शफ़क़त का हाथ हम पर था, इसलिए वह महली बिन लावी बिन इस्राईल की औलाद में से एक 'अक़्लमन्द शख़्स को, और सरीबियाह को और उसके बेटों और भाइयों, या'नी अट्ठारह आदमियों को
\v 19 और हसबियाह की, और उसके साथ बनी मिरारी में से यसा'याह को, और उसके भाइयों और उनके बेटों को, या'नी बीस आदमियों को;
\v 20 और नतीनीम में से, जिनको दाऊद और अमीरों ने लावियों की ख़िदमत के लिए मुक़र्रर किया था, दो सौ बीस नतीनीम को ले आए। इन सभों के नाम बता दिए गए थे।
\s5
\v 21 तब मैंने अहावा के दरिया पर रोज़े का ऐलान कराया, ताकि हम अपने ख़ुदा के सामने उस से अपने और अपने बाल बच्चों और अपने माल के लिए सीधी राह तलब करने को फ़रोतन बने।
\v 22 क्यूँकि मैंने शर्म की वजह से बादशाह से सिपाहियों के जत्थे और सवारों के लिए दरख़्वास्त न की थी, ताकि वह राह में दुश्मन के मुक़ाबिले में हमारी मदद करें; क्यूँकि हम ने बादशाह से कहा था, "कि हमारे ख़ुदा का हाथ भलाई के लिए उन सब के साथ है जो उसके तालिब हैं, और उसका ज़ोर और क़हर उन सबके ख़िलाफ़ है जो उसे छोड़ देते हैं।"
\v 23 ~इसलिए हम ने रोज़ा रखकर इस बात के लिए अपने ख़ुदा से मिन्नत की, और उसने हमारी सुनी।
\s5
\v 24 तब मैंने सरदार काहिनों में से बारह को, या'नी सरीबियाह और हसबियाह और उनके साथ उनके भाइयों में से दस को अलग किया,
\v 25 और उनको वह चाँदी सोना और बर्तन, या'नी वह हदिया जो हमारे ख़ुदा के घर के लिए बादशाह और उसके वज़ीरों और अमीरों और तमाम इस्राईल ने जो वहाँ हाज़िर थे, नज़्र किया था तोल दिया।
\s5
\v 26 मैं ही ने उनके हाथ में साढ़े छ: सौ क़िन्तार चाँदी, और सौ क़िन्तार चाँदी के बर्तन, और सौ क़िन्तार सोना,
\v 27 और सोने के बीस प्याले जो हज़ार दिरहम के थे, और चोखे चमकते हुए पीतल के दो बर्तन जो सोने की तरह क़ीमती थे तौल कर दिए।
\s5
\v 28 और मैंने उनसे कहा, "कि तुम ख़ुदावन्द के लिए मुक़द्दस हो, और ये बर्तन भी मुक़द्दस हैं, और ये चाँदी और सोना ख़ुदावन्द तुम्हारे बाप-दादा के ख़ुदा के लिए ख़ुशी की क़ुर्बानी है।
\v 29 ~इसलिए होशियार रहना, जब तक यरूशलीम में ख़ुदावन्द के घर की कोठरियों में सरदार काहिनों और लावियों और इस्राईल के आबाई ख़ान्दानों के अमीरों के सामने उनको तौल न दो, उनकी हिफ़ाज़त करना।"
\v 30 तब काहिनों और लावियों ने सोने और चाँदी और बर्तनों को तौलकर लिया, ताकि उनको यरूशलीम में हमारे ख़ुदा के घर में पहुँचाएँ।
\s5
\v 31 फिर हम पहले महीने की बारहवीं तारीख़ को अहावा के दरिया से रवाना हुए कि यरूशलीम को जाएँ, और हमारे ख़ुदा का हाथ हमारे साथ था, और उसने हम को दुश्मनों और रास्ते में घात लगानेवालों के हाथ से बचाया।
\v 32 और हम यरूशलीम पहुँचकर तीन दिन तक ठहरे रहे।
\s5
\v 33 ~और चौथे दिन वह चाँदी और सोना और बर्तन हमारे ख़ुदा के घर में तौल कर काहिन मरीमोत बिन ऊरियाह के हाथ में दिए गए, और उसके साथ इली'अज़र बिन फ़ीन्हास था, और उनके साथ ये लावी थे, या'नी यूज़बाद बिन यशू'अ और नौ इंदियाह बिन बिनवी।
\v 34 ~सब चीज़ों को गिन कर और तौल कर पूरा वज़न उसी वक़्त लिख लिया गया।
\s5
\v 35 और ग़ुलामों में से उन लोगों ने जो जिलावतनी से लौट आए थे, इस्राईल के ख़ुदा के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश कीं; या'नी सारे इस्राईल के लिए बारह बछड़े और छियानवे मेंढ़े और सतत्तर बर्रे, और ख़ता की क़ुर्बानी के लिए बारह बकरे; ये सब ख़ुदावन्द के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानी थी।
\v 36 और~उन्होंने ~बादशाह के फ़रमानों को बादशाह के नाइबों, और दरिया पार के हाकिमों के हवाले किया; और उन्होंने लोगों की और ख़ुदा के घर की हिमायत की।
\s5
\c 9
\p
\v 1 जब ये सब काम हो चुके तो सरदारों ने मेरे पास आकर कहा कि इस्राईल के लोग और काहिन और लावी इन अतराफ़ की क़ौमों ~से अलग नहीं रहे, क्यूँकि कना'नियों और हित्तियों और फ़रिज़्ज़ियों और यबूसियों ~'अम्मोनियों और मोआबियों और मिस्रियों और अमोरियों के से नफ़रती काम करते हैं।
\v 2 ~चुनाँचे उन्होंने अपने और अपने बेटों के लिए उनकी बेटियाँ ली हैं; इसलिए मुक़द्दस नसल इन अतराफ़ की क़ौमों के साथ ख़ल्त-मल्त हो गई, और सरदारों और हाकिमों का हाथ इस बदकारी में सब से बढ़ा हुआ है।
\s5
\v 3 ~जब मैंने ये बात सुनी तो अपने लिबास और अपनी चादर को फाड़ दिया, और सिर और दाढ़ी के बाल नोचे और हैरान हो बैठा।
\v 4 तब वह सब जो इस्राईल के ख़ुदा की बातों से काँपते थे, ग़ुलामों की इस बदकारी के ज़रिए' मेरे पास जमा' हुए; और मैं शाम की क़ुर्बानी तक हैरान बैठा रहा।
\s5
\v 5 ~और शाम की क़ुर्बानी के वक़्त मैं अपना फटा लिबास पहने, और अपनी फटी चादर ओढ़े हुए अपनी शर्मिन्दगी की हालत से उठा, और अपने घुटनों पर गिर कर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ अपने हाथ फैलाए,
\v 6 और कहा, "ऐ मेरे ख़ुदा, मैं शर्मिन्दा हूँ, और तेरी तरफ़, ऐ मेरे ख़ुदा, अपना मुँह उठाते मुझे शर्म आती है; क्यूँकि हमारे गुनाह बढ़ते बढ़ते हमारे सिर से बुलन्द हो गए, और हमारी ख़ताकारी आसमान तक पहुँच गई है।
\s5
\v 7 ~अपने बाप-दादा के वक़्त से आज तक हम बड़े ख़ताकार रहे; और अपनी बदकारी के ज़रिए' हम और हमारे बादशाह और हमारे काहिन, और मुल्कों के बादशाहों और तलवार और ग़ुलामी और ग़ारत और शर्मिन्दगी के हवाले हुए हैं, जैसा आज के दिन है।
\s5
\v 8 अब थोड़े दिनों से ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा की तरफ़ से हम पर फ़ज़ल हुआ है, ताकि हमारा कुछ बक़िया बच निकलने को छूटे, और उसके मकान-ए-मुक़द्दस में हम को एक खूँटी मिले,और हमारा ख़ुदा हमारी आँखें रोशन करे और हमारी ग़ुलामी में हम को कुछ ताज़गी बख़्शे।
\v 9 ~क्यूँकि हम तो ग़ुलाम हैं लेकिन हमारे ख़ुदा ने हमारी ग़ुलामी में हम को छोड़ा नहीं, बल्कि हम को ताज़गी बख़्शने और अपने ख़ुदा के घर को बनाने और उसके खण्डरों की मरम्मत करने, और यहूदाह और यरूशलीम में हम को शहर-ए-पनाह देने को फ़ारस के बादशाहों के सामने हम पर रहमत की।
\s5
\v 10 और अब ऐ हमारे ख़ुदा, हम इसके बा'द क्या कहें? क्यूँकि हम ने तेरे उन हुक्मों को छोड़ दिया है,
\v 11 जो तू ने अपने ख़ादिमों या'नी नबियों के ज़रिए' फ़रमाए कि वह मुल्क जिसे तुम मीरास में लेने को जाते हो और मुल्कों की क़ौमों की नापाकी और नफ़रती कामों की वजह से नापाक मुल्क है, क्यूँकि उन्होंने अपनी नापाकी से उसको इस सिरे से उस सिरे तक भर दिया है।
\v 12 इसलिए तुम अपनी बेटियाँ उनके बेटों को न देना और उनकी बेटियाँ अपने बेटों के लिए न लेना, और न कभी उनकी सलामती या भलाई चाहना, ताकि तुम मज़बूत बनो और उस मुल्क की अच्छी-अच्छी चीज़ें खाओ, और अपनी औलाद के वास्ते हमेशा की मीरास के लिए उसे छोड़ जाओ।
\s5
\v 13 और हमारे बुरे कामों और बड़े गुनाह की वजह से जो कुछ हम पर गुज़रा, उसके बा'द ऐ हमारे ख़ुदा, हक़ीक़त ये है कि तू ने हमारे गुनाहों के अन्दाज़े से हम को कम सज़ा दी और हम में से ऐसा बक़िया छोड़ा;
\v 14 ~क्या हम फिर तेरे हुक्मों को तोड़ें, और उन क़ौमों से नाता जोड़ें जो इन नफ़रती कामों को करती हैं? क्या तू हम से ऐसा ग़ुस्सा न होगा कि हम को बर्बाद कर दे, यहाँ तक कि न कोई बक़िया रहे और न कोई बचे?
\s5
\v 15 ~ऐ ख़ुदावन्द, इस्राईल के ख़ुदा! तू सादिक़ है, क्यूँकि हम एक बक़िया हैं जो बच निकला है, जैसा आज के दिन है। देख, हम अपनी ख़ताकारी में तेरे सामने हाज़िर हैं, क्यूँकि इसी वजह से कोई तेरे सामने खड़ा रह नहीं सकता।
\s5
\c 10
\p
\v 1 जब~'अज़्रा ख़ुदा के घर के आगे रो रो कर~और सिज्दा में गिरकर दु'आ और इक़रार कर रहा था, तो इस्राईल में से मर्दों और 'औरतों और बच्चों की एक बहुत बड़ी जमा'अत उसके पास इकठ्ठा हो गई; और लोग फूट फूटकर रो रहे थे।
\v 2 तब सिकनियाह बिन यहीएल जो बनी 'ऐलाम में से था, 'अज़्रा से कहने लगा, "हम अपने ख़ुदा के गुनाहगार तो हुए हैं, और इस सरज़मीन की क़ौमों में से अजनबी 'औरतें ब्याह ली हैं, तो भी इस मु'आमिले में अब भी इस्राईल के लिए उम्मीद है।
\s5
\v 3 इसलिए अब हम अपने मख़दूम की और उनकी सलाह के मुताबिक़, जो हमारे ख़ुदा के हुक्म से काँपते हैं, सब बीवियों और उनकी औलाद को दूर करने के लिए अपने ख़ुदा से 'अहद बाँधे, और ये शरी'अत के मुताबिक़ किया जाए।
\v 4 ~अब उठ, क्यूँकि ये तेरा ही काम है, और हम तेरे साथ हैं, हिम्मत बाँध कर काम में लग जा।"
\s5
\v 5 ~तब 'अज़्रा ने उठकर सरदार काहिनों और लावियों और सारे इस्राईल से क़सम ली कि वह इस इक़रार के मुताबिक़ 'अमल करेंगे; और उन्होंने क़सम खाई।
\v 6 तब 'अज़्रा ख़ुदा के घर के सामने से उठा और यहूहानान बिन इलियासिब की कोठरी में गया, और वहाँ जाकर न रोटी खाई न पानी पिया; क्यूँकि वह ग़ुलामी के लोगों की ख़ता की वजह से मातम करता रहा।
\s5
\v 7 फिर उन्होंने यहूदाह और यरुशलीम में ग़ुलामी के सब लोगों के बीच 'ऐलान किया, कि वह यरूशलीम में इकट्ठे हो जाएँ;
\v 8 और जो कोई सरदारों और बुज़ुर्गों की सलाह के मुताबिक़ तीन दिन के अन्दर न आए, उसका सारा माल ज़ब्त हो और वह ख़ुद ग़ुलामों की जमा'अत से अलग किया जाए।
\s5
\v 9 तब यहूदाह और बिनयमीन के सब आदमी उन तीन दिनों के अन्दर यरुशलीम में इकट्ठे हुए; महीना नवाँ था, और उसकी बीसवीं तारीख़ थी; और सब लोग इस मु'आमिले और बड़ी बारिश की वजह से ख़ुदा के घर के सामने के मैदान में बैठे काँप रहे थे।
\v 10 ~तब~'अज़्रा काहिन खड़ा होकर उनसे कहने लगा कि तुम ने ख़ता की है और इस्राईल का गुनाह बढ़ाने को अजनबी 'औरतें ब्याह ली हैं।
\s5
\v 11 ~फिर ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा के आगे इक़रार करो, और उसकी मर्ज़ी पर 'अमल करो, और इस सरज़मीन के लोगों और अजनबी 'औरतों से अलग हो जाओ।
\s5
\v 12 तब सारी जमा'अत ने जवाब दिया, और बुलन्द आवाज़ से कहा कि जैसा तू ने कहा, वैसा ही हम को करना लाज़िम है।
\v 13 लेकिन लोग बहुत हैं, और इस वक़्त ज़ोर की बारिश हो रही है और हम बाहर खड़े नहीं रह सकते, और न ये एक दो दिन का काम है; क्यूँकि हम ने इस मु'आमिले में बड़ा ग़ुनाह किया है।
\s5
\v 14 अब सारी जमा'अत के लिए हमारे सरदार मुक़र्रर हों, और हमारे शहरों में जिन्होंने अजनबी 'औरतें ब्याह ली हैं, वह सब मुक़र्ररा वक़्तों पर आएँ और उनके साथ हर शहर के बुज़ुर्ग और क़ाज़ी हों, जब तक कि हमारे ख़ुदा का क़हर-ए-शदीद हम पर से टल न जाए और इस मु'आमिले का फ़ैसला न हो जाए।
\v 15 ~सिर्फ़ यूनतन बिन 'असाहेल और यहाज़ियाह बिन तिकवह इस बात के ख़िलाफ़ खड़े हुए, और मसुल्लाम और सब्बती लावी ने उनकी मदद की।
\s5
\v 16 ~लेकिन ग़ुलामी के लोगों ने वैसा ही किया। और 'अज़्रा काहिन और आबाई खान्दानों के सरदारों में से कुछ अपने अपने आबाई खान्दानों की तरफ़ से सब नाम-ब-नाम अलग किए गए, और वह दसवें महीने की पहली तारीख़ को इस बात की तहक़ीक़ात के लिए बैठे;
\v 17 और पहले महीने के पहले दिन तक, उन सब आदमियों के मु'आमिले का फ़ैसला किया जिन्होंने अजनबी 'औरतें ब्याह ली थीं।
\s5
\v 18 और काहिनों की औलाद में ये लोग मिले जिन्होंने अजनबी 'औरतें ब्याह ली थीं : या'नी, बनी यशू'अ में से, यूसदक़ का बेटा, और उसके भाई मासियाह और इली'अज़र और यारिब और जिदलियाह।
\v 19 उन्होंने अपनी बीवियों को दूर करने का वा'दा किया, और गुनाहगार होने की वजह से उन्होंने अपने गुनाह के लिए अपने अपने रेवड़ में से एक एक मेंढा क़ुर्बान किया।
\s5
\v 20 ~और बनी इम्मेर में से, हनानी और ज़बदियाह;
\v 21 और बनी हारिम में से, मासियाह और इलियाह, और समा'याह और यहीएल और 'उज़्ज़ियाह;
\v 22 और बनी फ़शहूर में से, इल्यू'ऐनी और मासियाह और इस्मा'ईल और नतनीएल और यूज़बाद और 'इलिसा।
\s5
\v 23 और लावियों में से, यूज़बाद और सिमई और क़िलायाह (जो क़लीता भी कहलाता है), फ़तहयाह और यहूदाह और इली'अज़र;
\v 24 ~और गानेवालों में से, इलियासिब; और दरबानों में से, सलूम और तलम और ऊरी।
\v 25 और इस्राईल में से: बनी पर'ऊस में से, रमियाह और यज़ियाह और मलकियाह और मियामीन और इली'अज़र और मलकियाह और बिनायाह
\s5
\v 26 और बनी 'ऐलाम में से, मतनियाह और ज़करियाह और यहीएल और 'अबदी और यरीमोत और इलियाह;
\v 27 और बनी ज़त्तू में से, इल्यू'ऐनी और इलियासिब और मत्तनियाह और यरीमोत और ज़ाबाद और 'अज़ीज़ा,
\v 28 और बनी बबई में से, यहूहानान और हननियाह और ज़ब्बी और 'अतलै
\v 29 और बनी बानी में से, मसुल्लाम और मलूक और 'अदायाह और यासूब और सियाल और यरामोत।
\s5
\v 30 ~और बनी पख़त-मोआब में से, 'अदना और किलाल और बिनायाह और मासियाह और मत्तनियाह और बज़लीएल और बिनवी और मनस्सी,
\v 31 ~और बनी हारिम में से, इली'अज़र और यशियाह और मलकियाह और समा'याह और शमा'ऊन,
\v 32 बिनयमीन और मलूक और समरियाह;
\s5
\v 33 और बनी हाशूम में से, मत्तनै और मतताह और ज़ाबाद और इलीफ़लत और यरीमै और मनस्सी और सिमई,
\v 34 और बनी बानी में से, मा'दै और 'अमराम और ऊएल,
\v 35 बिनायाह और बदियाह और कलूह,
\v 36 अौर वनियाह अौर मरीमोत अौर इलियासिब,
\s5
\v 37 और मत्तनियाह और मतनै और या'सौ,
\v 38 और बानी और बिनवी और सिम'ई,
\v 39 और सलमियाह और नातन और 'अदायाह,
\v 40 ~मकनदबै, सासै, सारै
\s5
\v 41 ~'अज़रिएल और सलमियाह, समरियाह,
\v 42 सलूम, अमरियाह, यूसुफ़।
\v 43 ~बनी नबू में से, य'ईएल, मतित्तियाह, ज़ाबाद, ज़बीना, यद्दो और यूएल, बिनायाह।
\v 44 ये सब अजनबी 'औरतों को ब्याह लाए थे, और कुछ की बीवियाँ ऐसी थीं जिनसे उनके औलाद थी।

617
16-NEH.usfm Normal file
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\id NEH
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\h नहमियाह
\toc1 नहमियाह
\toc2 नहमियाह
\toc3 neh
\mt1 नहमियाह
\s5
\c 1
\p
\v 1 नहमियाह बिन हकलियाह का कलाम। बीसवें बरस किसलेव के महीने में, जब मैं क़स्र-ए-सोसन में था तो ऐसा हुआ,
\v 2 ~कि हनानी जो मेरे भाइयों में से एक है और चन्द आदमी यहूदाह से आए; और मैंने उनसे उन यहूदियों के बारे में जो बच निकले थे और ग़ुलामों में से बाक़ी रहे थे, और यरुशलीम के बारे में पूछा।
\s5
\v 3 ~उन्होंने मुझ से कहा कि वह बाक़ी लोग जो ग़ुलामी से छूट कर उस सूबे में रहते हैं, बहुत मुसीबत और ज़िल्लत में पड़े हैं; और यरुशलीम की फ़सील टूटी हुई, और उसके फाटक आग से जले हुए हैं।
\s5
\v 4 जब मैंने ये बातें सुनीं तो बैठ कर रोने लगा और कई दिनों तक मातम करता रहा, और रोज़ा रख्खा और आसमान के ख़ुदा के सामने दु'आ की,
\v 5 और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, आसमान के ख़ुदा~ख़ुदा-ए-'अज़ीम-ओ-मुहीब जो उनके साथ जो तुझसे मुहब्बत रखते और तेरे हुक्मों को मानते है 'अहद-ओ-फ़ज़्ल को क़ायम रखता है, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ,
\s5
\v 6 कि तू कान लगा और अपनी आँखें खुली रख ताकि तू अपने बन्दे की उस दु'आ को सुने जो मैं अब रत दिन तेरे सामने तेरे बन्दों बनी इस्राईल के लिए करता हूँ और बनी इस्राईल की ख़ताओं को जो हमने तेरे बर ख़िलाफ़ कीं मान लेता हूँ, और मैं और मेरे आबाई ख़ान्दान दोनों ने गुनाह किया है|"
\v 7 हमने तेरे ख़िलाफ़ बड़ी बुराई की है और उन हुक्मों और क़ानून और फ़रमानों को जो तूने अपने बन्दे मूसा को दिए नहीं माना
\s5
\v 8 मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि अपने उस क़ौल को याद कर जो तूने अपने बन्दे मूसा को फ़रमाया अगर तुम नाफ़रमानी करो, मैं तुम को क़ौमों में तितर-बितर करूँगा
\v 9 लेकिन अगर तुम मेरी तरफ़ फिरकर मेरे हुक्मों को मानों और उन पर 'अमल करो तो गो तुम्हारे आवारागर्द आसमान के किनारों पर भी हो मैं उनको वहाँ से इकट्ठा करके उस मक़ाम में पहुँचाऊँगा जिसे मैंने चुन लिया ताकि अपना नाम वहाँ रखूँ
\s5
\v 10 वह तो तेरे बन्दे और तेरे लोग है जिनको तूने अपनी बड़ी क़ुदरत और क़वी हाथ से छुड़ाया है
\v 11 ऐ ख़ुदावन्द मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि अपने बन्दे की दु'आ पर, और अपने बन्दों की दु'आ पर जो तेरे नाम से डरना पसन्द करते है कान लगा~और आज ~मैं तेरे मिन्नत करता हूँ अपने ~बन्दे को कामयाब कर और इस शख़्स के सामने उसपर फ़ज़्ल कर |"{मै तो बादशाह का साक़ी था |}
\s5
\c 2
\p
\v 1 अरतख़शशता बादशाह के बीसवें बरस नैसान के महीने में, जब मय उसके आगे थी तों मैंने मय उठा कर बादशाह को दी| इससे पहले मैं कभी उसके सामने मायूस नहीं हुआ था|
\v 2 इसलिए बादशाह ने मुझसे कहा, "तेरा चेहरा क्यूँ मायूस है, बावजूद ये कि तू बीमार नहीं है? तब ये दिल के ग़म के अलावा और कुछ न होगा|" तब मैं बहुत डर गया|
\s5
\v 3 मैंने बादशाह से कहा कि "बादशाह हमेशा ज़िन्दा रहे! मेरा चेहरा मायूस क्यूँ न हो, जबकि वह शहर जहाँ मेरे बाप-दादा की क़ब्रे हैं उजाड़ पड़ा है, और उसके फाटक आग से जले हुए हैं?"
\s5
\v 4 बादशाह ने मुझसे फ़रमाया, "किस बात के लिए तेरी दरख़्वास्त है?" तब मैंने आसमान के ख़ुदा से दु'आ की,
\v 5 फिर मैंने बादशाह से कहा, "अगर बादशाह की मर्ज़ी हो, और अगर तेरे ख़ादिम पर तेरे करम की नज़र है, तो तू मुझे यहूदाह में मेरे बाप-दादा की क़ब्रों के शहर को भेज दे ताकि मैं उसे ता'मीर करूँ|"
\v 6 तब बादशाह ने {मलिका भी उस के पास बैठी थी }मुझ से कहा, "तेरा सफ़र कितनी मुद्दत का होगा और तू कब लौटेगा?" ग़रज़ बादशाह की मर्ज़ी हुई कि मुझे भेजे: और मैंने वक़्त मुक़र्रर करके उसे बताया |
\s5
\v 7 और मैंने बादशाह से ये भी कहा, "अगर बादशाह की मर्ज़ी हो, तो दरिया पार हाकिमों के लिए मुझे परवाने 'इनायत हों कि वह मुझे यहूदाह तक पहुँचने ~के लिए गुज़र जाने दें|"
\v 8 और आसफ़ के लिए जो शाही जंगल का निगहबान है, एक शाही ख़त मिले कि वह हैकल के क़िले' के फाटकों के लिए, और शहरपनाह और उस घर के लिए जिस में रहूँगा, कड़ियाँ बनाने को मुझे लकड़ी दे और चूँकि मेरे ख़ुदा की शफ़क़त का हाथ मुझ पर था, बादशाह ने 'अर्ज़ क़ुबूल की |
\s5
\v 9 ~तब मैंने दरिया पार के हाकिमों के पास पहुँचकर बादशाह के परवाने उनको दिए और बादशाह ने फ़ौजी सरदारों और सवारों को मेरे साथ कर दिया था।
\v 10 ~जब सनबल्लत हूरूनी और 'अम्मोनी ग़ुलाम तूबियाह ने ये सुना, कि एक शख़्स बनी-इस्राईल की बहबूदी का तलबगार आया है, तो वह बहुत रंजीदा हुए।
\s5
\v 11 ~और यरुशलीम पहुँच कर तीन दिन रहा।
\v 12 ~फिर मैं रात को उठा, मैं भी और मेरे साथ चन्द आदमी; लेकिन जो कुछ यरुशलीम के लिए करने को मेरे ख़ुदा ने मेरे दिल में डाला था, वह मैंने किसी को न बताया; और जिस जानवर पर मैं सवार था, उसके अलावा और कोई जानवर मेरे साथ न था।
\s5
\v 13 ~मैं रात को वादी के फाटक से निकल कर अज़दहा के कुएँ और कूड़े के फाटक को गया; और यरुशलीम की फ़सील को, जो तोड़ दी गई थी और उसके फाटकों को, जो आग से जले हुए थे देखा।
\v 14 ~फिर मैं चश्मे के फाटक और बादशाह के तालाब को गया, लेकिन वहाँ उस जानवर के लिए जिस पर मैं सवार था, गुज़रने की जगह न थी।
\s5
\v 15 फिर मैं रात ही को नाले की तरफ़ से फ़सील को देखकर लौटा, और वादी के फाटक से दाख़िल हुआ और यूँ वापस आ गया।
\v 16 ~और हाकिमों को मा'लूम न हुआ कि मैं कहाँ-कहाँ गया, या मैंने क्या-क्या किया; और मैंने उस वक़्त तक न यहूदियों, न काहिनों, न अमीरों, न हाकिमों, न बाक़ियों को जो कारगुज़ार थे कुछ बताया था।
\s5
\v 17 ~तब मैंने उनसे कहा, "तुम देखते हो कि हम कैसी मुसीबत में हैं, कि यरुशलीम उजाड़ पड़ा है, और उसके फाटक आग से जले हुए हैं। आओ, हम यरुशलीम की फ़सील बनाएँ, ताकि आगे को हम ज़िल्लत का निशान न रहें।”
\v 18 और मैंने उनको बताया कि ख़ुदा की शफ़क़त का हाथ मुझ पर कैसे रहा, और ये कि बादशाह ने मुझ से क्या क्या बातें कहीं थीं। उन्होंने कहा, "हम उठकर बनाने लगें।” इसलिए इस अच्छे काम के लिए उन्होंने अपने हाथों को मज़बूत किया।
\s5
\v 19 लेकिन जब सनबल्लत हूरूनी और अम्मूनी ग़ुलाम तूबियाह और अरबी जशम ने सुना, तो वह हम को ठट्ठों में उड़ाने और हमारी हिक़ारत करके कहने लगे, "तुम ये क्या काम करते हो? क्या तुम बादशाह से बग़ावत करोगे?”
\v 20 तब मैंने जवाब देकर उनसे कहा, "आसमान का ख़ुदा, वही हम को कामयाब करेगा; इसी वजह से हम जो उसके बन्दे हैं, उठकर ता'मीर करेंगे; लेकिन यरुशलीम में तुम्हारा न तो कोई हिस्सा, न हक़, न यादगार है।"
\s5
\c 3
\p
\v 1 ~तब इलियासिब सरदार काहिन अपने भाइयों या'नी काहिनों के साथ उठा, और उन्होंने भेड़ फाटक को बनाया; और उसे पाक किया, और उसके किवाड़ों को लगाया। उन्होंने हमियाह के बुर्ज बल्कि हननएल के बुर्ज तक उसे पाक किया।
\v 2 ~उससे आगे यरीहू के लोगों ने बनाया, और उनसे आगे ज़क्कूर बिन इमरी ने बनाया।
\s5
\v 3 मछली फाटक को बनी हसन्नाह ने बनाया उन्होंने उसकी कड़ियाँ रख्खीं और उसके किवाड़े और चटकनियाँ और अड़बंगे लगाए।
\v 4 ~और उनसे आगे मरीमोत बिन ऊरियाह बिन हक्कूस ने मरम्मत की। और उनसे आगे मुसल्लाम बिन बरकियाह बिन मशीज़बेल ने मरम्मत की। और उनसे आगे सदोक़ बिन बा'ना ने मरम्मत की।
\v 5 ~और उनसे आगे तक़ू'इयों ने मरम्मत की, लेकिन उनके अमीरों ने अपने मालिक के काम के लिए गर्दन न झुकाई।
\s5
\v 6 ~और पुराने फाटक की यहूयदा बिन फ़ासख़ और मुसल्लाम बिन बसूदियाह ने मरम्मत की ~उन्होंने उसकी कड़ियाँ रख्खीं और उसके किवाड़े और चटकनियाँ और अड़बंगे लगाए।
\v 7 और उनसे आगे मलतियाह जिबा'ऊनी और यदून मरूनोती, और जिबा'ऊन और मिस्फ़ाह ~के लोगों ने जो दरिया पार के हाकिम की 'अमलदारी में से थे मरम्मत की।
\s5
\v 8 और उनसे आगे सुनारों की तरफ़ से उज़्ज़ीएल बिन हररहियाह ने, और उससे आगे 'अत्तारों में से हननियाह ने मरम्मत की, और उन्होंने यरुशलीम को चौड़ी दीवार तक मज़बूत किया।
\v 9 और उनसे आगे रिफ़ायाह ने, जो हूर का बेटा और यरुशलीम के आधे हल्क़े का सरदार था मरम्मत की।
\v 10 ~और उससे आगे यदायाह बिन हरुमफ़ ने अपने ही घर के सामने तक की मरम्मत की। और उससे आगे हतूश बिन हसबनियाह ने मरम्मत की।
\s5
\v 11 मलकियाह बिन हारिम और हसूब बिन पख़त-मोआब ने दूसरे हिस्से की और तनूरों के बुर्ज की मरम्मत की।
\v 12 और उससे आगे सलूम बिन हलूहेश ने जो यरुशलीम के आधे हल्क़े का सरदार था, और उसकी बेटियों ने मरम्मत की।
\s5
\v 13 ~वादी के फाटक की मरम्मत हनून और ज़नुवाह के बाशिन्दों ने की; उन्होंने उसे बनाया और उसके किवाड़े और चटकनियाँ और अड़बंगे लगाए, और कूड़े के फाटक तक एक हज़ार हाथ दीवार तैयार की।
\s5
\v 14 और कूड़े के फाटक की मरम्मत मलकियाह बिन रैकाब ने की जो बैत-हक्करम के हल्क़े का सरदार था; उसने उसे बनाया और उसके किवाड़े और चटकनियाँ और अड़बंगे लगाए।
\v 15 और चश्मा फाटक की सलूम बिन कलहूज़ा ने जो मिस्फ़ाह के हल्क़े का सरदार था, मरम्मत की; उसने उसे बनाया और उसको पाटा और उसके किवाड़े चिटकनियाँ और उसके अड़बंगे लगाये और बादशाही बाग़ के पास शीलोख़ के हौज़ की दीवार को उस सीढ़ी तक, जो दाऊद के शहर से नीचे आती है बनाया।
\s5
\v 16 ~फिर नहमियाह बिन 'अज़बूक ने जो बैतसूर के आधे हल्क़े का सरदार था, दाऊद की क़ब्रों के सामने की जगह और उस हौज़ तक जो बनाया गया था, और सूर्माओं के घर तक मरम्मत की।
\v 17 ~फिर लावियों में से रहूम बिन बानी ने मरम्मत की। उससे आगे हसबियाह ने जो क'ईलाह के आधे हल्क़े का सरदार था, अपने हल्क़े की तरफ़ से मरम्मत की।
\s5
\v 18 फिर उनके भाइयों में से बवी बिन हनदाद ने जो क़'ईलाह के आधे हल्क़े का सरदार था, मरम्मत की।
\v 19 ~और उससे आगे ईज़र बिन यशू'अ मिस्फ़ाह के सरदार ने दूसरे टुकड़े की जो मोड़ के पास सिलाहख़ाने की चढ़ाई के सामने है, मरम्मत की।
\s5
\v 20 ~फिर बारूक बिन ज़ब्बी ने सरगर्मी से उस मोड़ से सरदार काहिन इलियासिब के घर के दरवाज़े तक, एक और टुकड़े की मरम्मत की।
\v 21 ~फिर मरीमोत बिन ऊरियाह बिन हक्कूस ने एक और टुकड़े की इलियासिब के घर के दरवाज़े से इलियासिब के घर के आख़िर तक मरम्मत की।
\s5
\v 22 ~फिर नशेब के रहनेवाले काहिनों ने मरम्मत की।
\v 23 फिर बिनयमीन और हसूब ने अपने घर के सामने तक मरम्मत की। फिर 'अज़रियाह बिन मा'सियाह बिन 'अननियाह ने अपने घर के बराबर तक मरम्मत की।
\v 24 ~फिर बिनवी बिन हनदाद ने 'अज़रियाह के घर से दीवार के मोड़ और कोने तक, एक और टुकड़े की मरम्मत की।
\s5
\v 25 ~फ़ालाल बिन ऊज़ी ने मोड़ के सामने के हिस्से की, और उस बुर्ज की जो क़ैदख़ाने के सहन के पास के शाही महल से बाहर निकला हुआ है मरम्मत की। फिर फ़िदायाह बिन पर'ऊस ने मरम्मत की।
\v 26 ~(और नतीनीम" पूरब की तरफ़ ओफ़ल में पानी फाटक के सामने और उस बुर्ज तक बसे हुए थे, जो बाहर निकला हुआ है)
\v 27 ~फिर तक़ू'इयों ने उस बड़े बुर्ज के सामने जो बाहर निकला हुआ है, और ओफ़ल की दीवार तक एक और टुकड़े की मरम्मत की।
\s5
\v 28 ~घोड़ा फाटक के ऊपर काहिनों ने अपने अपने घर के सामने मरम्मत की।
\v 29 ~उनके पीछे सदोक़ बिन इम्मीर ने अपने घर के सामने मरम्मत की। और फिर पूरबी फाटक के दरबान समा'याह बिन सिकनियाह ने मरम्मत की।
\v 30 ~फिर हननियाह बिन सलमियाह और हनून ने जो सलफ़ का छठा बेटा था, एक और टुकड़े की मरम्मत की। फिर मुसल्लाम बिन बरकियाह ने अपनी कोठरी के सामने मरम्मत की।
\s5
\v 31 ~फिर सुनारों में से एक शख़्स मलकियाह ने नतीनीम" और सौदागरों के घर तक हिम्मीफ़क़ाद के फाटक के सामने और कोने की चढ़ाई तक मरम्मत की।
\v 32 ~और उस कोने की चढ़ाई और भेड़ फाटक के बीच सुनारों और सौदागरों ने मरम्मत की।
\s5
\c 4
\p
\v 1 लेकिन ऐसा हुआ जब सनबल्लत ने सुना के हम शहरपनाह बना रहे हैं, तो वह जल गया और बहुत ग़ुस्सा हुआ और यहूदियों को ठट्ठों में उड़ाने लगा।
\v 2 ~और वह अपने भाइयों और सामरिया के लश्कर के आगे यूँ कहने लगा, "ये कमज़ोर यहूदी क्या कर रहे हैं? क्या ये अपने गिर्द मोर्चाबन्दी करेंगे? क्या वह क़ुर्बानी चढ़ाएँगे? क्या वह एक ही दिन में सब कुछ कर चुकेंगे? क्या वह जले हुए पत्थरों को कूड़े के ढेरों में से निकाल कर फिर नये कर देंगे?"
\v 3 और तूबियाह 'अम्मोनी उसके पास खड़ा था, तब वह कहने लगा, "जो कुछ वह बना रहे हैं, अगर उसपर लोमड़ी चढ़ जाए तो वह उनके पत्थर की शहरपनाह को गिरा देगी।"
\s5
\v 4 ~सुन ले, ऐ हमारे ख़ुदा क्यूँकि हमारी हिक़ारत होती है और उनकी मलामत उन ही के सिर पर डाल: और ग़ुलामी के मुल्क में उनको ग़ारतगरों के हवाले कर दे।
\v 5 और उनकी बुराई को न ढाँक, और उनकी ख़ता तेरे सामने से मिटाई न जाए; क्यूँकि उन्होंने मे'मारों के सामने तुझे ग़ुस्सा दिलाया है।
\v 6 ~ग़रज़ हम दीवार बनाते रहे, और सारी दीवार आधी बलन्दी तक जोड़ी गई; क्यूँकि लोग दिल लगा कर काम करते थे।
\s5
\v 7 लेकिन जब सनबल्लत और तूबियाह और अरबों ~और 'अम्मोनियों और अशदूदियों ने सुना कि यरुशलीम की फ़सील मरम्मत होती जाती है, और दराड़े बन्द होने लगीं, तो वह जल गए।
\v 8 और सभों ने मिल कर बन्दिश बाँधी कि आकर यरुशलीम से लड़ें, और वहाँ परेशानी पैदा कर दें।
\v 9 ~लेकिन हम ने अपने ख़ुदा से दु'आ की, और उनकी वजह से दिन और रात उनके मुक़ाबले में पहरा बिठाए रखा
\s5
\v 10 ~और यहूदाह कहने लगा कि बोझ उठाने वालों की ताक़त घट गयी और मलबा बहुत है, इसलिए हम दीवार नहीं बना सकते हैं।
\v 11 ~और हमारे दुश्मन कहने लगे, "जब तक हम उनके बीच पहुँच कर उनको क़त्ल न कर डालें और काम ख़त्म न कर दें, तब तक उनको न मा'लूम होगा न वह देखेंगे।"
\s5
\v 12 ~और जब वह यहूदी जो उनके आस-पास रहते थे आए, तो उन्होंने सब जगहों से दस बार आकर हम से कहा कि तुम को हमारे पास लौट आना ज़रूर है।
\v 13 इसलिए मैंने शहरपनाह के पीछे की जगह के सबसे नीचे हिस्सों में जहाँ जहाँ खुला था, लोगों को अपनी अपनी तलवार और बर्छी और कमान लिए हुए उनके घरानों के मुताबिक़ बिठा दिया।
\v 14 ~तब मैं देख कर उठा, और अमीरों और हाकिमों और बाक़ी लोगों से कहा कि तुम उनसे मत डरो; ख़ुदावन्द को जो बुज़ुर्ग और बड़ा है याद करो, और अपने भाइयों और बेटे बेटियों और अपनी बीवियों और घरों के लिए लड़ो।
\s5
\v 15 ~और जब हमारे दुश्मनों ने सुना कि ये बात हम को मा'लूम हो गई और ख़ुदा ने उनका मन्सूबा बेकार कर दिया, तो हम सबके सब शहरपनाह को अपने अपने काम पर लौटे।
\v 16 और ऐसा हुआ कि उस दिन से मेरे आधे नौकर काम में लग जाते, और आधे बर्छियाँ और और ढालें और कमाने लिए और बख़्तर पहने ~रहते थे; और वह जो हाकिम थे यहूदाह के सारे ख़ान्दान के पीछे मौजूद रहते थे।
\s5
\v 17 इसलिए जो लोग दीवार बनाते थे और जो बोझ उठाते और ढोते थे, हर एक अपने एक हाथ से काम करता था और दूसरे में अपना हथियार लिए रहता था।
\v 18 और मे'मारों में से हर एक आदमी अपनी तलवार अपनी कमर से बाँधे हुए काम करता था, और वह जो नरसिंगा फूँकता था मेरे पास रहता था।
\s5
\v 19 ~और मैंने अमीरों और हाकिमों और बाक़ी लोगों से कहा कि काम तो बड़ा और फैला हुआ है, और हम दीवार पर अलग अलग एक दूसरे से दूर रहते हैं।
\v 20 इसलिए जिधर से नरसिंगा तुम को सुनाई दे, उधर ही तुम हमारे पास चले आना। हमारा ख़ुदा हमारे लिए लड़ेगा।
\s5
\v 21 ~यूँ हम काम करते रहे, और उनमें से आधे लोग पौ फटने के वक़्त से तारों के दिखाई देने तक बर्छियाँ लिए रहते थे।
\v 22 ~और मैंने उसी मौक़े' पर लोगों से ये भी कह दिया था कि हर शख़्स अपने नौकर को लेकर यरुशलीम में रात काटा करे, ताकि रात को वह हमारे लिए पहरा दिया करें और दिन को काम करें।
\v 23 ~इसलिए न तो मैं न मेरे भाई न मेरे नौकर और न पहरे के लोग जो मेरे पैरौ थे, कभी अपने कपड़े उतारते थे; बल्कि हर शख़्स अपना हथियार लिए हुए पानी के पास जाता था।
\s5
\c 5
\p
\v 1 फिर लोगों और उनकी बीवियों की तरफ़ से उनके यहूदी भाइयों पर बड़ी शिकायत हुई।
\v 2 ~क्यूँकि कई ऐसे थे जो कहते थे कि हम और हमारे बेटे-बेटियाँ बहुत हैं; इसलिए हम अनाज ले लें, ताकि खाकर ज़िन्दा रहें।
\v 3 और कुछ ऐसे भी थे जो कहते थे कि हम अपने खेतों और अंगूरिस्तानों और मकानों को गिरवी रखते हैं, ताकि हम काल में अनाज ले लें।
\s5
\v 4 और कितने कहते थे कि हम ने अपने खेतों और अंगूरिस्तानों पर बादशाह के ख़िराज के लिए रुपया क़र्ज़ लिया है।
\v 5 ~लेकिन हमारे जिस्म तो हमारे भाइयों के जिस्म की तरह हैं, और हमारे बाल बच्चे ऐसे जैसे उनके बाल बच्चे और देखो, हम अपने बेटे-बेटियों को नौकर होने के लिए ग़ुलामी के सुपुर्द करते हैं, और हमारी बेटियों में से कुछ लौंडियाँ बन चुकी हैं; और हमारा कुछ बस नहीं चलता, क्यूँकि हमारे खेत और अंगूरिस्तान औरों के क़ब्ज़े में हैं।
\s5
\v 6 ~जब मैंने उनकी फ़रियाद और ये बातें सुनीं, तो मैं बहुत ग़ुस्सा हुआ।
\v 7 और मैंने अपने दिल में सोचा, और अमीरों और हाकिमों को मलामत करके उनसे कहा, "तुम में से हर एक अपने भाई से सूद लेता है।" और मैंने एक बड़ी जमा'अत को उनके ख़िलाफ़ जमा' किया;
\v 8 और मैंने उनसे कहा कि हम ने अपने मक़दूर के मुवाफ़िक़ अपने यहूदी भाइयों को जो और क़ौमों के हाथ बेच दिए गए थे, दाम देकर छुड़ाया; इसलिए क्या तुम अपने ही भाइयों को बेचोगे? और क्या वह हमारे ही हाथ में बेचे जाएँगें? तब वह चुप रहे और उनको कुछ जवाब न सूझा।
\s5
\v 9 ~और मैंने ये भी कहा कि ये काम जो तुम करते हो ठीक नहीं; क्या और क़ौमों की मलामत की वजह से जो हमारी दुश्मन हैं, तुम को ख़ुदा के ख़ौफ़ में चलना लाज़िम नहीं?
\v 10 ~मैं भी और मेरे भाई और मेरे नौकर भी उनको ~रुपया और ग़ल्ला सूद पर देते हैं, लेकिन मैं तुम्हारी मिन्नत करता हूँ कि हम सब सूद लेना छोड़ दें।
\v 11 ~मैं तुम्हारी मिन्नत करता हूँ कि आज ही के दिन उनके खेतों और अंगूरिस्तानों और ज़ैतून के बाग़ों और घरों को, और उस रुपये और अनाज और मय और तेल के सौवें हिस्से को, जो तुम उनसे जबरन लेते हो उनको वापस कर दो।
\s5
\v 12 ~तब उन्होंने कहा कि हम इनको वापस कर देंगे और उनसे कुछ न माँगेंगे, जैसा तू कहता है हम वैसा ही करेंगें। फिर मैंने काहिनों को बुलाया और उनसे क़सम ली कि वह इसी वा'दे के मुताबिक़ करेंगे।
\v 13 ~फिर मैंने अपना दामन झाड़ा और कहा कि इसी तरह से ख़ुदा हर शख़्स को जो अपने इस वा'दे पर 'अमल न करे, उसके घर से और उसके कारोबार से झाड़ डाले; वह इसी तरह झाड़ दिया और निकाल फेंका जाए। तब सारी जमा'अत ने कहा, "आमीन!" और ख़ुदावन्द की हम्द की। और लोगों ने इस वा'दे के मुताबिक़ काम किया।
\s5
\v 14 'अलावा इसके जिस वक़्त से मैं यहूदाह के मुल्क में हाकिम मुक़र्रर हुआ, या'नी अरतख़शशता बादशाह के बीसवें बरस से बत्तीसवें बरस तक, ग़रज़ बारह बरस मैंने और मेरे भाइयों ने हाकिम होने की रोटी न खाई।
\v 15 ~लेकिन अगले हाकिम जो मुझ से पहले थे र'इयत पर एक बार थे, और 'अलावा चालीस मिस्क़ाल चाँदी के रोटी और मय उनसे लेते थे, बल्कि उनके नौकर भी लोगों पर हुकूमत जताते थे; लेकिन मैंने ख़ुदा के ख़ौफ़ की वजह से ऐसा न किया।
\s5
\v 16 ~बल्कि मैं इस शहरपनाह के काम में बराबर मशग़ूल रहा, और हम ने कुछ ज़मीन भी नहीं ख़रीदी, और मेरे सब नौकर वहाँ काम के लिए इकट्ठे रहते थे।
\v 17 ~इसके अलावा उन लोगों के 'अलावा जो हमारे आस पास की क़ौमों में से हमारे पास आते थे, यहूदियों और सरदारों में से डेढ़ सौ आदमी मेरे दस्तरख़्वान पर होते थे।
\s5
\v 18 ~और एक बैल और छ: मोटी मोटी भेड़ें एक दिन के लिए तैयार होती थी, मुर्ग़ियाँ भी मेरे लिए तैयार की जाती थीं, और दस दस दिन के बा'द हर क़िस्म की मय का ज़ख़ीरा तैयार होता था, बावजूद इस सबके मैंने हाकिम होने की रोटी तलब न की क्यूँकि इन लोगों पर ग़ुलामी गिराँ थी।
\v 19 ~ऐ मेरे ख़ुदा, जो कुछ मैंने इन लोगों के लिए किया है, उसे तू मेरे हक़ में भलाई के लिए याद रख।
\s5
\c 6
\p
\v 1 जब सनबल्लत और तूबियाह और जशम 'अरबी और हमारे बाक़ी दुश्मनों ने सुना कि मैं शहरपनाह को बना चुका, और उसमें कोई रख़ना बाक़ी नहीं रहा (अगरचे उस वक़्त तक मैंने फाटकों में किवाड़े नहीं लगाए थे)।
\v 2 ~तो सनबल्लत और जशम ने मुझे ये कहला भेजा कि आ, हम ओनू के मैदान के किसी गाँव में आपस में मुलाक़ात करें। लेकिन वह मुझ से बुराई करने की फ़िक्र में थे।
\s5
\v 3 इसलिए मैंने उनके पास कासिदों से कहला भेजा कि मैं बड़े काम में लगा हूँ और आ नहीं सकता; मेरे इसे छोड़कर तुम्हारे पास आने से ये काम क्यूँ बन्द रहे?
\v 4 ~उन्होंने चार बार मेरे पास ऐसा ही पैग़ाम भेजा और मैंने उनको इसी तरह का जवाब दिया।
\s5
\v 5 ~फिर सनबल्लत ने पाँचवीं बार उसी तरह से अपने नौकर को मेरे पास हाथ में खुली चिट्ठी लिए हुए भेजा:
\v 6 ~जिसमें लिखा था कि और क़ौमों में ये अफ़वाह है और जशम यही कहता है, कि तेरा और यहूदियों का इरादा बग़ावत करने का है, इसी वजह से तू शहरपनाह बनाता है; और तू इन बातों के मुताबिक़ उनका बादशाह बनना चाहता है।
\s5
\v 7 और तूने नबियों को भी मुक़र्रर किया कि यरुशलीम में तेरे हक़ में 'ऐलान करें और कहें, 'यहूदाह में एक बादशाह है।' तब इन बातों के मुताबिक़ बादशाह को इत्तला' की जाएगी। इसलिए अब आ हम आपस में मशवरा करें।
\s5
\v 8 ~तब मैंने उसके पास कहला भेजा, "जो तू कहता है, इस तरह की कोई बात नहीं हुई, बल्कि तू ये बातें अपने ही दिल से बनाता है।"
\v 9 ~वह सब तो हम को डराना चाहते थे, और कहते थे कि इस काम में उनके हाथ ऐसे ढीले पड़ जाएँगे कि वह होने ही का नहीं। लेकिन अब ऐ ख़ुदा, तू मेरे हाथों को ताक़त बख़्श।
\s5
\v 10 फिर मैं समा'याह बिन दिलायाह बिन मुहेतबेल के घर गया, वह घर में बन्द था; उसने कहा, "हम ख़ुदा के घर में, हैकल के अन्दर मिलें, और हैकल के दरवाज़ों को बन्द कर लें। क्यूँकि वह तुझे क़त्ल करने को आएँगे, वह ज़रूर रात को तुझे क़त्ल करने को आएँगे।"
\v 11 ~मैंने कहा, "क्या मुझसा आदमी भागे? और कौन है जो मुझ सा हो और अपनी जान बचाने को हैकल में घुसे'? मैं अन्दर नहीं जाने का।”
\s5
\v 12 और मैंने मा'लूम कर लिया कि ख़ुदा ने उसे नहीं भेजा था, लेकिन उसने मेरे ख़िलाफ़ पेशीनगोई की बल्कि सनबल्लत और तूबियाह ने उसे मज़दूरी पर रख्खा था।
\v 13 और उसको इसलिए मज़दूरी दी गई ताकि मैं डर जाऊँ और ऐसा काम करके ख़ताकार ठहरूँ, और उनको बुरी ख़बर फैलाने का मज़मून मिल जाए, ताकि मुझे मलामत करें।
\v 14 ~ऐ मेरे ख़ुदा! तूबियाह और सनबल्लत को उनके इन कामों के लिहाज़ से, और नौ'ईदियाह नबिया को भी और बाक़ी नबियों को जो मुझे डराना चाहते थे याद रख।
\s5
\v 15 ~ग़रज़ बावन दिन में, अलूल महीने की पच्चीसवीं तारीख़ को शहरपनाह बन चुकी।
\v 16 ~जब हमारे सब दुश्मनों ने ये सुना, तो हमारे आस-पास की सब क़ौमें डरने लगीं और अपनी ही नज़र में ख़ुद ज़लील हो गईं; क्यूँकि उन्होंने जान लिया कि ये काम हमारे ख़ुदा की तरफ़ से हुआ।
\s5
\v 17 इसके अलावा उन दिनों में यहूदाह के अमीर बहुत से ख़त तूबियाह को भेजते थे, और तूबियाह के ख़त उनके पास आते थे।
\v 18 ~क्यूँकि यहूदाह में बहुत लोगों ने उससे क़ौल-ओ-क़रार किया था, इसलिए कि वह सिकनियाह बिन अरख़ का दामाद था; और उसके बेटे यहूहानान ने मुसल्लाम बिन बरकियाह की बेटी को ब्याह लिया था।
\v 19 और वह मेरे आगे उसकी नेकियों का बयान भी करते थे और मेरी बातें उसे सुनाते थे, और तूबियाह मुझे डराने को चिट्ठियाँ भेजा करता था।
\s5
\c 7
\p
\v 1 जब शहरपनाह बन चुकी और मैंने दरवाज़े लगा लिए, और दरबान और गानेवाले और लावी मुक़र्रर हो गए,
\v 2 तो मैंने यरुशलीम को अपने भाई हनानी और क़िले' के हाकिम हनानियाह के सुपुर्द किया, क्यूँकि वह अमानतदार और बहुतों से ज़्यादा ख़ुदा तरस था।
\s5
\v 3 और मैंने उनसे कहा कि जब तक धूप तेज़ न हो यरुशलीम के फाटक न खुलें, और जब वह पहरे पर खड़े हों तो किवाड़े बन्द किए जाएँ, और तुम उनमें अड़बंगे लगाओ और यरुशलीम के बाशिन्दों में से पहरेवाले मुक़र्रर करो कि हर एक अपने घर के सामने अपने पहरे पर रहे।
\v 4 और शहर तो वसी' और बड़ा था, लेकिन उसमें लोग कम थे और घर बने न थे।
\s5
\v 5 और मेरे ख़ुदा ने मेरे दिल में डाला कि अमीरों और सरदारों और लोगों को इकठ्ठा करूँ ताकि नसबनामे के मुताबिक़ उनका शुमार किया जाए और मुझे उन लोगों का नसबनामा मिला जो पहले आए थे, और उसमें ये लिखा हुआ पाया :
\s5
\v 6 मुल्क के जिन लोगों को शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र बाबुल को ले गया था, उन ग़ुलामों की ग़ुलामी में से वह जो निकल आए, और यरुशलीम और यहूदाह में अपने अपने शहर को गए ये हैं,
\v 7 ~जो ज़रुब्बाबुल, यशू'अ, नहमियाह, 'अज़रियाह, रा'मियाह, नहमानी, मर्दकी बिलशान मिसफ़रत, बिगवई, नहूम और बा'ना के साथ आए थे।बनी-इस्राईल के लोगों का शुमार ये था :
\s5
\v 8 बनी पर'ऊस, दो हज़ार एक सौ बहतर;
\v 9 बनी सफ़तियाह, तीन सौ बहतर;
\v 10 ~बनी अरख़, छ: सौ बावन;
\s5
\v 11 ~बनी पख़त-मोआब जो यशू'अ और योआब की नसल में से थे, दो हज़ार आठ सौ अठारह;
\v 12 ~बनी 'ऐलाम, एक हज़ार दो सौ चव्वन,
\v 13 बनी ज़त्तू, आठ सौ पैन्तालीस;
\v 14 ~बनी ज़क्की, सात सौ साठ;
\s5
\v 15 ~बनी बिनबी, छ: सौ अड़तालीस;
\v 16 ~बनी बबई, छ: सौ अठाईस;
\v 17 ~बनी 'अज़जाद, दो हज़ार तीन सौ बाईस;
\v 18 ~बनी अदूनिक़ाम, छ: सौ सड़सठ;
\s5
\v 19 ~बनी बिगवई, दो हज़ार सड़सठ;
\v 20 ~बनी 'अदीन, छ: सौ पचपन,
\v 21 हिज़कियाह के ख़ान्दान में से बनी अतीर, अट्ठानवे;
\v 22 ~बनी हशूम, तीन सौ अठाईस;
\s5
\v 23 ~बनी बज़ै, तीन सौ चौबीस;
\v 24 ~बनी ख़ारिफ़, एक सौ बारह,
\v 25 ~बनी जिबा'ऊन, पचानवे;
\v 26 ~बैतलहम और नतूफ़ाह के लोग, एक सौ अठासी,
\s5
\v 27 ~'अन्तोत के लोग, एक सौ अटठाईस;
\v 28 ~बैत 'अज़मावत के लोग, बयालीस,
\v 29 करयतया'रीम, कफ़ीरा और बैरोत के लोग, सात सौ तैन्तालीस;
\v 30 ~रामा और जिबा' के लोग, छ: सौ इक्कीस;
\s5
\v 31 ~मिक्मास के लोग, एक सौ बाईस;
\v 32 ~बैतएल और 'ए के लोग, एक सौ तेईस;
\v 33 दूसरे नबू के लोग, बावन;
\v 34 ~दूसरे 'ऐलाम की औलाद, एक हज़ार दो सौ चव्वन;
\s5
\v 35 ~बनी हारिम, तीन सौ बीस;
\v 36 ~यरीहू के लोग, तीन सौ पैन्तालीस;
\v 37 ~लूद और हादीद और ओनू के लोग, सात सौ इक्कीस;
\v 38 बनी सनाआह, तीन हज़ार नौ सौ तीस।
\s5
\v 39 ~फिर काहिन या'नी यशू'अ के घराने में से बनी यदा'याह, नौ सौ तिहत्तर;
\v 40 ~बनी इम्मेर, एक हज़ार बावन;
\v 41 ~बनी फ़शहूर, एक हज़ार दो सौ सैन्तालीस;
\v 42 ~बनी हारिम, एक हज़ार सत्रह।
\s5
\v 43 ~फिर लावी या'नी बनी होदावा में से यशू'अ और क़दमीएल की औलाद, चौहत्तर;
\v 44 ~और गानेवाले या'नी बनी आसफ़, एक सौ अड़तालीस;
\v 45 ~और दरबान जो सलूम और अतीर और तलमून और 'अक़्क़ूब और ख़तीता और सोबै की औलाद थे, एक सौ अड़तीस।
\s5
\v 46 और नतीनीम, या'नी बनी ज़ीहा, बनी हसूफ़ा, बनी तब'ओत,
\v 47 ~बनी क़रूस, बनी सीगा, बनी फ़दून,
\v 48 ~बनी लिबाना, बनी हजाबा, बनी शलमी,
\v 49 ~बनी हनान, बनी जिद्देल, बनी जहार,
\s5
\v 50 ~बनी रियायाह, बनी रसीन, बनी नकूदा,
\v 51 ~बनी जज़्ज़ाम, बनी उज़्ज़ा, बनी फ़ासख़,
\v 52 बनी बसै, बनी म'ऊनीम, बनी नफ़ूशसीम
\s5
\v 53 बनी बक़बूक़, बनी हक़ूफ़ा, बनी हरहूर,
\v 54 ~बनी बज़लीत, बनी महीदा, बनी हरशा
\v 55 ~बनी बरक़ूस, बनी सीसरा, बनी तामह,
\v 56 ~बनी नज़ियाह, बनी ख़तीफ़ा।
\s5
\v 57 सुलेमान के ख़ादिमों की औलाद : बनी सूती, बनी सूफ़िरत, बनी फ़रीदा,
\v 58 बनी या'ला, बनी दरक़ून, बनी जिद्देल,
\v 59 बनी सफ़तियाह, बनी ख़तील, बनी फूक़रत ज़बाइम और बनी अमून।
\v 60 सबनतीनीम और सुलेमान के ख़ादिमों की औलाद, तीन सौ बानवे।
\s5
\v 61 और जो लोग तल-मलह और तलहरसा और करोब और उद्दून और इम्मेर से गए थे, लेकिन अपने आबाई ख़ान्दानों और नसल का पता न दे सके कि इस्राईल में से थे या नहीं, सो ये हैं:
\v 62 ~बनी दिलायाह, बनी तूबियाह, बनी नक़ूदा, छ: सौ बयालिस।
\v 63 और काहिनों में से बनी हबायाह, बनी हक़्क़ूस और बरज़िल्ली की औलाद जिसने ~जिल'आदी बरज़िल्ली की बेटियों में से एक लड़की को ब्याह लिया और उनके नाम से कहलाया।
\s5
\v 64 ~उन्होंने अपनी सनद उनके बीच जो नसबनामों के मुताबिक़ गिने गए थे ढूँडी, लेकिन वह न मिली। इसलिए वह नापाक माने गए और कहानत से ख़ारिज हुए;
\v 65 और हाकिम ने उनसे कहा कि वह पाकतरीन चीज़ों में से न खाएँ, जब तक कोई काहिन ऊरीम-ओ-तुम्मीम लिए हुए खड़ा न हो।
\s5
\v 66 ~सारी जमा'अत के लोग मिलकर बयालीस हज़ार तीन सौ साठ थे;
\v 67 'अलावा उनके ग़ुलामों और लौंडियों का शुमार सात हज़ार तीन सौ सैन्तीस था, और उनके साथ दो सौ पैन्तालिस गानेवाले और गानेवालियाँ थीं।
\s5
\v 68 उनके घोड़े, सात सौ छत्तीस; उनके खच्चर, दो सौ पैन्तालीस;
\v 69 ~उनके ऊँट, चार सौ पैन्तीस; उनके गधे, छः हज़ार सात सौ बीस थे।
\s5
\v 70 और आबाई ख़ान्दानों के सरदारों में से कुछ ने उस काम के लिए दिया। हाकिम ने एक हज़ार सोने के दिरहम, और पचास प्याले, और काहिनों के पाँच सौ तीस लिबास ख़ज़ाने में दाख़िल किए।
\v 71 और आबाई ख़ान्दानों के सरदारों में से कुछ ने उस कम के ख़ज़ाने में बीस हज़ार सोने के दिरहम, और दो हज़ार दो सौ मना चाँदी दी।
\v 72 और बाक़ी लोगों ने जो दिया वह बीस हज़ार सोने के दिरहम, और दो हज़ार मना चाँदी, और काहिनों के सड़सठ पैराहन थे।
\s5
\v 73 ~इसलिए काहिन ओर लावी और दरबान और गाने वाले और कुछ लोग, और नतीनीम, और तमाम इस्राईल अपने-अपने शहर में बस गए।
\s5
\c 8
\p
\v 1 और जब सातवाँ महीना आया, तो बनी-इस्राईल अपने-अपने शहर में थे। और सब लोग यकतन होकर पानी फाटक के सामने के मैदान में इकट्ठा हुए, और उन्होंने 'अज़्रा फ़क़ीह से 'अर्ज़ की कि मूसा की शरी'अत की किताब को, जिसका ख़ुदावन्द ने इस्राईल को हुक्म दिया था लाए।
\v 2 ~और सातवें महीने की पहली तारीख़ को 'अज़्रा काहिन तौरेत को जमा'अत के, या'नी मर्दों और 'औरतों और उन सबके सामने ले आया जो सुनकर समझ सकते थे।
\v 3 ~और वह उसमें से पानी फाटक के सामने के मैदान में, सुबह से दोपहर तक मर्दों और 'औरतों और सभों के आगे जो समझ सकते थे पढ़ता रहा; और सब लोग शरी'अत की किताब पर कान लगाए रहे।
\s5
\v 4 और 'अज़्रा~फ़कीह एक चोबी मिम्बर पर, जो उन्होंने इसी काम के लिए बनाया था खड़ा हुआ; और उसके पास मत्तितियाह, और समा', और 'अनायाह, और ~ऊरियाह, और ख़िलक़ियाह, और मासियाह उसके दहने खड़े थे; और उसके बाएँ फ़िदायाह, और मिसाएल, और मलकियाह, और हाशूम, और हसबदाना, और ज़करियाह और मुसल्लाम थे।
\v 5 ~और 'अज़्रा~ने सब लोगों के सामने किताब खोली (क्यूँकि वह सब लोगों से ऊपर था), और जब उसने उसे खोला तो सब लोग उठ खड़े हुए;
\s5
\v 6 और 'अज़्रा~ने ख़ुदावन्द ख़ुदा-ए-'अज़ीम को मुबारक कहा; और सब लोगों ने अपने हाथ उठाकर जवाब दिया, "आमीन-आमीन" और उन्होंने औंधे मुँह ज़मीन तक ~झुककर ख़ुदावन्द को सिज्दा किया।
\v 7 ~यशू'अ, और बानी, और सरीबियाह, और यामिन और 'अक़्क़ूब, और सब्बती, और हूदियाह, और मासियाह, और क़लीता, और 'अज़रियाह, और यूज़बद, और हनान, और फ़िलायाह और लावी लोगों को शरी'अत समझाते गए; और लोग अपनी-अपनी जगह पर खड़े रहे।
\v 8 ~और उन्होंने उस किताब या'नी ख़ुदा की शरी'अत में से साफ़ आवाज़ से पढ़ा, फिर उसके मानी बताए और उनको 'इबारत समझा दी।
\s5
\v 9 ~और नहमियाह ने जो हाकिम था, और 'अज़्रा~काहिन और फ़क़ीह ने, और उन लावियों ने जो लोगों को सिखा रहे थे सब लोगों से कहा, "आज का दिन ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा के लिए पाक है, न ग़म करो न रो।" क्यूँकि सब लोग शरी'अत की बातें सुनकर रोने लगे थे।
\v 10 ~फिर उसने उनसे कहा, "अब जाओ, और जो मोटा है खाओ, और जो मीठा है पियो और जिनके लिए कुछ तैयार नहीं हुआ उनके पास भी भेजो; क्यूँकि आज का दिन हमारे ख़ुदावन्द के लिए पाक है; और तुम मायूस मत हो, क्यूँकि ख़ुदावन्द की ख़ुशी तुम्हारी पनाहगाह है।”
\s5
\v 11 और लावियों ने सब लोगों को चुप कराया और कहा, "ख़ामोश हो जाओ, क्यूँकि आज का दिन पाक है; और ग़म न करो।”
\v 12 ~तब सब लोग खाने पीने और हिस्सा भेजने और बड़ी ख़ुशी करने को चले गए; क्यूँकि वह उन बातों को जो उनके आगे पढ़ी गई, समझे थे।
\s5
\v 13 और ~दूसरे दिन सब लोगों के आबाई ख़ान्दानों के सरदार और काहिन और लावी, 'अज़्रा~फ़क़ीह के पास इकट्ठे हुए कि तौरेत की बातों पर ध्यान लगाएँ।
\v 14 ~और उनको शरी'अत में ये लिखा मिला, कि ख़ुदावन्द ने मूसा के ज़रिए' फ़रमाया है कि बनी-इस्राईल सातवें महीने की 'ईद में झोपड़ियों में रहा करें,
\v 15 और अपने सब शहरों में और यरुशलीम में ये 'ऐलान और मनादी कराएँ कि पहाड़ पर जाकर ज़ैतून की डालियाँ और जंगली ज़ैतून की डालियाँ और मेहंदी की डालियाँ और खजूर की शाख़ें, और घने दरख़्तों की डालियाँ झोपड़ियों के बनाने को लाओ, जैसा लिखा है।
\s5
\v 16 ~तब लोग जा-जा कर उनको लाए, और हर एक ने अपने घर की छत पर, और अपने अहाते में, और ख़ुदा के घर के सहनों में, और पानी फाटक के मैदान में, और इफ़्राइमी फाटक के मैदान में अपने लिए झोपड़ियाँ बनाई।
\v 17 और उन लोगों की सारी जमा'अत ने जो ग़ुलामी से फिर आए थे, झोपड़ियाँ बनाई और उन्हीं झोपड़ियों में रहे; क्यूँकि यशू'अ बिन नून के दिनों से उस दिन तक बनी-इस्राईल ने ऐसा नहीं किया था। चुनाँचे बहुत बड़ी ख़ुशी हुई।
\s5
\v 18 और पहले दिन से आख़िरी दिन तक रोज़-ब-रोज़ उसने ख़ुदा की शरी'अत की किताब पढ़ी। और उन्होंने सात दिन 'ईद मनाई, और आठवें दिन दस्तूर के मुवाफ़िक़ पाक मजमा' इकठ्ठा हुआ।
\s5
\c 9
\p
\v 1 ~फिर इसी महीने की चौबीसवीं तारीख़ को बनी-इस्राईल रोज़ा रखकर और टाट ओढ़कर और मिट्टी अपने सिर पर डालकर इकट्ठे हुए।
\v 2 और इस्राईल की नसल के लोग सब परदेसियों से अलग हो गए, और ~खड़े होकर अपने गुनाहों और अपने बाप-दादा की ख़ताओं का इक़रार किया।
\s5
\v 3 ~और उन्होंने अपनी अपनी जगह पर खड़े होकर एक पहर तक ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की ~किताब पढ़ी; और दूसरे पहर में, इक़रार करके ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को सिज्दा करते रहे।
\v 4 ~तब क़दमीएल, यशू'आ, और बानी, और सबनियाह, बुन्नी और सरबियाह, और ~ बानी, और कना'नी ने लावियों की सीढ़ियों पर खड़े होकर बलन्द आवाज़ से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से फ़रियाद की।
\s5
\v 5 ~फिर यशू'अ, और क़दमिएल और बानी और हसबनियाह और सरबियाह और हूदियाह, और सबनियाह, और फ़तहियाह लावियों ने कहा, "खड़े हो जाओ, और कहो, ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा इब्तिदा से हमेशा तक मुबारक है; तेरा जलाली नाम मुबारक हो, जो सब हम्द-ओ-ता'रीफ़ से बाला है।
\v 6 तू ही अकेला ख़ुदावन्द है; तूने आसमान और आसमानों के आसमान को और उनके सारे लश्कर को, और ज़मीन को और जो कुछ उसपर है, और समन्दरों को और जो कुछ उनमें है बनाया और तू उन सभों का परवरदिगार है; और आसमान का लश्कर तुझे सिज्दा करता है।
\s5
\v 7 ~तू वह ख़ुदावन्द ख़ुदा है जिसने अब्राम को चुन लिया, और उसे कसदियों के ऊर से निकाल लाया, और उसका नाम इब्राहीम रख्खा;
\v 8 ~तूने उसका दिल अपने सामने वफ़ादार पाया, और कना'नियों हित्तियों और अमोरियों फ़रिज़्ज़ियों और यबूसियों और जिरजासियों का मुल्क देने का 'अहद उससे बाँधा ताकि उसे उसकी नसल को दे; और तूने अपने सुख़न पूरे किए क्यूँकि तू सादिक़ है।
\s5
\v 9 ~"और तूने मिस्र में हमारे बाप-दादा की मुसीबत पर नज़र की, और बहर-ए-क़ुलज़ुम के किनारे उनकी फ़रियाद सुनी।
\v 10 और फ़िर'औन और उसके सब नौकरों, और उसके मुल्क की सब र'इयत पर निशान और 'अजाइब कर दिखाए; क्यूँकि तू जानता था कि वह ग़ुरूर के साथ उनसे पेश आए। इसलिए तेरा बड़ा नाम हुआ, जैसा आज है।
\s5
\v 11 ~और तूने उनके आगे समन्दर को दो हिस्से किया, ऐसा कि वह समन्दर के बीच सूखी ज़मीन पर होकर चले; और तूने उनका पीछा करनेवालों को गहराओ में डाला, जैसा पत्थर समन्दर में फेंका जाता है।
\s5
\v 12 और तूने दिन को बादल के सुतून में होकर उनकी रहनुमाई की और रात को आग के सुतून में, ताकि जिस रास्ते उनको चलना था उसमें उनको रोशनी मिले।
\v 13 ~और तू कोह-ए-सीना पर उतर आया, और तूने आसमान पर से उनके साथ बातें कीं, और रास्त अहकाम और सच्चे क़ानून और अच्छे आईन-ओ-फ़रमान उनको दिए,
\s5
\v 14 और उनको अपने पाक सबत से वाक़िफ़ किया, और अपने बन्दे मूसा के ज़रिए' उनको अहकाम और आईन और शरी'अत दी।
\v 15 ~और तूने उनकी भूक मिटाने को आसमान पर से रोटी दी, और उनकी प्यास बुझाने को चट्टान में से उनके लिए पानी निकाला, और उनको फ़रमाया कि वह जाकर उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करें जिसको उनको देने की तूने क़सम खाई थी।
\s5
\v 16 "लेकिन उन्होंने और हमारे बाप-दादा ने ग़ुरूर किया, और बाग़ी बने और तेरे हुक्मों को न माना;
\v 17 और फ़रमाँबरदारी से इन्कार किया, और तेरे 'अजाइब को जो तूने उनके बीच किए याद न रख्खा; बल्कि बाग़ी बने और अपनी बग़ावत में अपने लिए एक सरदार मुक़र्रर किया, ताकि अपनी ग़ुलामी की तरफ़ लौट जाएँ। लेकिन तू वह ख़ुदा है जो रहीम-ओ-करीम मु'आफ़ करने को तैयार, और क़हर करने में धीमा, और शफ़क़त में ग़नी है, इसलिए तूने उनको छोड़ न दिया|
\s5
\v 18 ~लेकिन जब उन्होंने अपने लिए ढाला हुआ बछड़ा बनाकर कहा, 'ये तेरा ख़ुदा है, जो तुझे मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, " और यूँ ग़ुस्सा दिलाने के बड़े बड़े काम किए;
\v 19 ~तो भी तूने अपनी गूँनागूँ रहमतों से उनको वीराने में छोड़ न दिया; दिन को बादल का सुतून उनके ऊपर से दूर न हुआ, ताकि रास्ते में उनकी रहनुमाई करे, और न रात को आग का सुतून दूर हुआ, ताकि वह उनको रोशनी और वह रास्ता दिखाए जिससे उनको चलना था।
\s5
\v 20 और तूने अपनी नेक रूह भी उनकी तरबियत के लिए बख़्शी, और मन को उनके मुँह से न रोका, और उनको प्यास को बुझाने को पानी दिया।
\v 21 ~चालीस बरस तक तू वीराने में उनकी परवरिश करता रहा; वह किसी चीज़ के मुहताज न हुए, न तो उनके कपड़े पुराने हुए और न उनके पाँव सूजे।
\s5
\v 22 इसके सिवा तूने उनको ममलुकतें और उम्मतें बख़्शीं, जिनको तूने उनके हिस्सों के मुताबिक़ उनको बाँट दिया; चुनाँचे वह सीहून के मुल्क, और शाह-ए-हस्बोन के मुल्क, और बसन के बादशाह 'ओज के मुल्क पर क़ाबिज़ हुए।
\s5
\v 23 ~तूने उनकी औलाद को बढ़ाकर आसमान के सितारों की तरह कर दिया, और उनको उस मुल्क में लाया जिसके बारे में तूने उनके बाप-दादा से कहा था कि वह जाकर उसपर क़ब्ज़ा करें।
\v 24 तब उनकी औलाद ने आकर इस मुल्क पर क़ब्ज़ा किया, और तूने उनके आगे इस मुल्क के बाशिन्दों या'नी कना'नियों को मग़लूब किया, और उनको उनके बादशाहों और इस मुल्क के लोगों के साथ उनके हाथ में कर दिया कि जैसा चाहें वैसा उनसे करें।
\s5
\v 25 ~तब उन्होंने फ़सीलदार शहरों और ज़रख़ेज़ मुल्क को ले लिया, और वह सब तरह के अच्छे माल से भरे हुए घरों और खोदे हुए कुँवों, और बहुत से अंगूरिस्तानों और ज़ैतून के बाग़ों और फलदार दरख़्तों के मालिक हुए; फिर वह खा कर सेर हुए और मोटे ताज़े हो गए, और तेरे बड़े एहसान से बहुत हज़ उठाया।
\s5
\v 26 ~"तो भी वह ना-फ़रमान होकर तुझ से बाग़ी हुए, और उन्होंने तेरी शरी'अत को पीठ पीछे फेंका, और तेरे नबियों को जो उनके ख़िलाफ़ गवाही देते थे ताकि उनको तेरी तरफ़ फिरा लायें क़त्ल किया और उन्होंने ग़ुस्सा दिलाने के बड़े-बड़े काम किए।
\v 27 इसलिए तूने उनको उनके दुश्मनों के हाथ में कर दिया, जिन्होंने उनको सताया; और अपने दुख के वक़्त में जब उन्होंने तुझ से फ़रियाद की, तो तूने आसमान पर से सुन लिया और अपनी गूँनागूँ रहमतों के मुताबिक़ उनको छुड़ाने वाले दिए जिन्होंने उनको उनके दुश्मनों के ~हाथ से छुड़ाया।
\s5
\v 28 ~लेकिन जब उनको आराम मिला तो उन्होंने फिर तेरे आगे बदकारी की, इसलिए तूने उनको उनके दुश्मनों के क़ब्ज़े में छोड़ दिया इसलिए वह उन पर मुसल्लत रहे; तो भी जब वह रुजू' लाए और तुझ से फ़रियाद की, तो तूने आसमान पर से सुन लिया और अपनी रहमतों के मुताबिक़ उनको बार-बार छुड़ाया;
\v 29 और तूने उनके ख़िलाफ़ गवाही दी, ताकि अपनी शरी'अत की तरफ़ उनको फेर लाए। लेकिन उन्होंने ग़ुरूर किया और तेरे फ़रमान न माने, बल्कि तेरे अहकाम के बरख़िलाफ़ गुनाह किया (जिनको अगर कोई माने, तो उनकी वजह से जीता रहेगा), और अपने कन्धे को हटाकर बाग़ी बन गए और न सुना।
\s5
\v 30 तो भी तू बहुत बरसों तक उनकी बर्दाश्त करता रहा, और अपनी रूह से अपने नबियों के ज़रिए' उनके ख़िलाफ़ गवाही देता रहा; तो भी उन्होंने कान न लगाया, इसलिए तूने उनको और मुल्को के लोगों के हाथ में कर दिया।
\v 31 ~बावजूद इसके तूने अपनी गूँनागूँ रहमतों के ज़रिए' उनको नाबूद न कर दिया और न उनको छोड़ा, क्यूँकि तू रहीम-ओ-करीम ख़ुदा है।
\s5
\v 32 "इसलिए अब, ऐ हमारे ख़ुदा, बुज़ुर्ग, और क़ादिर-ओ-मुहीब ख़ुदा जो 'अहद-ओ-रहमत को क़ायम रखता है। वह दुख जो हम पर और हमारे बादशाहों पर, और हमारे सरदारों और हमारे काहिनों पर, और हमारे नबियों और हमारे बाप-दादा पर, और तेरे सब लोगों पर असूर के बादशाहों के ज़माने से आज तक पड़ा है, इसलिए तेरे सामने हल्का न मा'लूम हो;
\v 33 ~तो भी जो कुछ हम पर आया है उस सब में तू 'आदिल है क्यूँकि तू सच्चाई से पेश आया, लेकिन हम ने शरारत की।
\v 34 और हमारे बादशाहों और सरदारों और हमारे काहिनों और बाप-दादा ने न तो तेरी शरी'अत पर 'अमल किया और न तेरे अहकाम और शहादतों को माना, जिनसे तू उनके ख़िलाफ़ गवाही देता रहा।
\s5
\v 35 ~क्यूँकि उन्होंने अपनी ममलुकत में, और तेरे बड़े एहसान के वक़्त जो तूने उन पर किया, और इस वसी' और ज़रख़ेज़ मुल्क में जो तूने उनके हवाले कर दिया, तेरी 'इबादत न की और न वह अपनी बदकारियों से बाज़ आए।
\s5
\v 36 ~देख, आज हम ग़ुलाम हैं, बल्कि उसी मुल्क में जो तूने हमारे बाप-दादा को दिया कि उसका फल और पैदावार खाएँ; इसलिए देख, हम उसी में ग़ुलाम हैं।
\v 37 ~वह अपनी कसीर पैदावार उन बादशाहों को देता है, जिनको तूने हमारे गुनाहों की वजह से हम पर मुसल्लत किया है; वह हमारे जिस्मों और हमारी मवाशी पर भी जैसा चाहते हैं इख़्तियार रखते हैं, और हम सख़्त मुसीबत में हैं।
\s5
\v 38 ~"इन सब बातों की वजह से हम सच्चा 'अहद करते और लिख भी देते हैं, और हमारे हाकिम, और हमारे लावी, और हमारे काहिन उसपर मुहर करते हैं।"
\s5
\c 10
\p
\v 1 और वह जिन्होंने मुहर लगाई ये हैं: नहमियाह बिन हकलियाह हाकिम, और सिदक़ियाह
\v 2 ~सिरायाह, 'अज़रियाह, यरमियाह,
\v 3 फ़शहूर, अमरियाह, मलकियाह,
\s5
\v 4 ~हत्तूश, सबनियाह, मल्लूक,
\v 5 ~हारिम, मरीमोत, 'अबदियाह,
\v 6 ~दानीएल, जिन्नतून, बारूक़,
\v 7 ~मुसल्लाम, अबियाह, मियामीन,
\v 8 ~माज़ियाह, बिलजी, समा'याह; ये काहिन थे।
\s5
\v 9 ~और लावी ये थे: यशू'अ बिन अज़नियाह, बिनवी बनी हनदाद में से क़दमीएल
\v 10 और उनके भाई सबनियाह, हूदियाह, कलीताह, फ़िलायाह, हनान,
\v 11 मीका, रहोब, हसाबियाह,
\v 12 ~ज़क्कूर, सरिबियाह, सबनियाह,
\v 13 ~हूदियाह, बानी, बनीनू।
\v 14 लोगों के रईस ये थे : पर'ऊस, पख़त-मोआब, 'ऐलाम, ज़त्तू, बानी,
\s5
\v 15 ~बुनी, 'अज़जाद, बबई,
\v 16 अदूनियाह, बिगवई, 'अदीन,
\v 17 ~अतीर, हिज़क़ियाह, 'अज़्जूर,
\v 18 हूदियाह, हाशम, बज़ी,
\v 19 ख़ारीफ़, 'अन्तोत, नूबै,
\v 20 ~मगफ़ी'आस, मुसल्लाम, हज़ीर,
\v 21 ~मशेज़बेल, सदोक़, यद्दू'
\s5
\v 22 ~फ़िलतियाह, हनान, 'अनायाह,
\v 23 ~होसे', हननियाह, हसूब,
\v 24 ~हलूहेस, फ़िलहा, सोबेक,
\v 25 ~रहूम, हसबनाह, मासियाह,
\v 26 ~अखियाह, हनान, 'अनान,
\v 27 ~मल्लूक, हारिम, बानाह।
\s5
\v 28 ~बाक़ी लोग, और काहिन, और लावी, और दरबान और गाने वाले और नतनीम और ~सब जो ख़ुदा की शरी'अत की ख़ातिर और मुल्कों की क़ौमों से अलग हो गए थे, और उनकी बीवियाँ और उनके बेटे और बेटियाँ ग़रज़ जिनमें समझ और 'अक़्ल थी
\v 29 ~वह सबके सब अपने भाई अमीरों के साथ मिलकर ला'नत ओ क़सम में शामिल हुए, ताकि ख़ुदा की शरी'अत पर जो बन्दा-ए-ख़ुदा मूसा के ज़रिए' मिली, चलें और यहोवाह हमारे ख़ुदावन्द के सब हुक्मों और फ़रमानों और आईन को मानें और उन पर 'अमल करें।
\s5
\v 30 और हम अपनी बेटियाँ मुल्क के बाशिन्दों को न दें, और न अपने बेटों के लिए उनकी बेटियाँ लें;
\v 31 ~और अगर मुल्क के लोग सबत के दिन कुछ माल या खाने की चीज़ बेचने को लाएँ, तो हम सबत को या किसी पाक दिन को उनसे मोल न लें। और सातवाँ साल और हर क़र्ज़ का मुतालबा छोड़ दें।
\s5
\v 32 और हम ने अपने लिए क़ानून ठहराए कि अपने ख़ुदा के घर की ख़िदमत के लिए साल-ब-साल मिस्क़ाल का तीसरा हिस्सा' दिया करें;
\v 33 या'नी सबतों और नये चाँदों की नज़्र की रोटी, और हमेशा की नज़्र~की क़ुर्बानी, और हमेशा की सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए~और मुक़र्ररा 'ईदों और पाक चीज़ों और ख़ता की क़ुर्बानियों के लिए कि इस्राईल के वास्ते कफ़्फ़ारा हो, और अपने ख़ुदा के घर के सब कामों के लिए।
\s5
\v 34 और हम ने या'नी काहिनों, और लावियों, और लोगों ने, लकड़ी के हदिए के बारे में पर्ची डाली, ताकि उसे अपने ख़ुदा के घर में बाप-दादा के घरानों के मुताबिक़ मुक़र्ररा वक़्तों पर साल-ब-साल ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के मज़बह पर जलाने को लाया करें, जैसा शरी'अत में लिखा है।
\v 35 ~और साल-ब-साल अपनी-अपनी ज़मीन के पहले फल, और सब दरख़्तों के सब मेवों में से पहले फल ख़ुदावन्द के घर में लाएँ;
\v 36 और जैसा शरी'अत में लिखा है, अपने पहलौठे बेटों को और अपनी मवाशी या'नी गाय, बैल और भेड़-बकरी के पहलौठे बच्चों को अपने ख़ुदा के घर में काहिनों के पास जो हमारे ख़ुदा के घर में ख़िदमत करते हैं लाएँ।
\s5
\v 37 और अपने गूँधे हुए आटे और अपनी उठाई हुई क़ुर्बानियों और सब दरख़्तों के मेवों, और मय और तेल में से पहले फल को अपने ख़ुदा के घर की कोठरियों में काहिनों के पास, और अपने खेत की दहेकी लावियों के पास लाया करें; क्यूँकि लावी सब शहरों में जहाँ हम काश्तकारी करते हैं, दसवाँ हिस्सा लेते हैं।
\v 38 और जब लावी दहेकी लें तो कोई काहिन जो हारून की औलाद से हो, लावियों के साथ हो, और लावी दहेकियों का दसवाँ हिस्सा हमारे ख़ुदा के बैत-उल-माल की कोठरियों में लाएँ।
\s5
\v 39 ~क्यूँकि बनी-इस्राईल और बनी लावी अनाज और मय और तेल की उठाई हुई क़ुर्बानियाँ उन कोठरियों में लाया करेंगे जहाँ हैकल के बर्तन और ख़िदमत गुज़ार काहिन और दरबान और गानेवाले हैं; और हम अपने ख़ुदा के घर को नहीं छोड़ेंगे।
\s5
\c 11
\p
\v 1 और लोगों के सरदार यरुशलीम में रहते थे; और बाक़ी लोगों ने पर्ची डाली कि हर दस शख़्सों में से एक को शहर-ए-पाक, यरुशलीम, में बसने के लिए लाएँ; और नौ बाक़ी शहरों में रहें।
\v 2 और लोगों ने उन सब आदमियों को, जिन्होंने ख़ुशी से अपने आपको यरुशलीम में बसने के लिए पेश किया दु'आ दी।
\s5
\v 3 उस सूबे के सरदार, जो यरुशलीम में आ बसे ये हैं; (लेकिन यहूदाह के शहरों में हर एक अपने शहर में अपनी ही मिल्कियत में रहता था, या'नी~अहल-ए-इस्राईल और काहिन और लावी और~नतीनीम, और सुलेमान के मुलाज़िमों की औलाद।)
\v 4 और यरुशलीम में कुछ बनी यहूदाह और कुछ बनी बिनयमीन रहते थे। बनी यहूदाह में से, 'अतायाह बिन 'उज्ज़ियाह बिन ज़करियाह बिन अमरियाह बिन सफ़तियाह बिन महललएल बनी फ़ारस में से;
\s5
\v 5 और मा'सियाह बिन बारूक बिन कुलहोज़ा, बिन हजायाह, बिन 'अदायाह, बिन यूयरीब बिन ज़करियाह बिन शिलोनी।
\v 6 ~सब बनी फ़ारस जो यरुशलीम में बसे चार सौ अड़सठ सूर्मा थे।
\s5
\v 7 ~और ये बनी बिनयमीन हैं, सल्लू बिन मुसल्लाम बिन यूऐद बिन फ़िदायाह बिन क़ूलायाह बिन मासियाह बिन एतीएल बिन यसा'याह।
\v 8 ~फिर जब्बै सल्लै और नौ सौ अट्ठाईस आदमी।
\v 9 और यूएल बिन ज़िकरी उनका नाज़िम था, और यहूदाह बिन हस्सनूह शहर के हाकिम का नाइब था।
\s5
\v 10 काहिनों में से यदा'याह बिन यूयरीब और याकीन,
\v 11 ~शिरायाह बिन ख़िलक़ियाह बिन मुसल्लाम बिन सदोक़ बिन मिरायोत बिन अख़ीतोब, ख़ुदा के घर का नाज़िम,
\v 12 ~और उनके भाई जो हैकल में काम करते थे, आठ सौ बाईस; और 'अदाया बिन यरोहाम, बिन फ़िल्लियाह बिन अम्ज़ी बिन ज़क़रियाह, बिन फ़शहूर बिन मलकियाह,
\s5
\v 13 और उसके भाई आबाई ख़ान्दानों के रईस, दो सौ बयालीस; और अमसी बिन 'अज़्राएल बिन अख़सी बिन ~मसल्लीमोत बिन इम्मेर,
\v 14 ~और उनके भाई ज़बरदस्त सूर्मा, एक सौ अट्ठाईस; और उनका सरदार ज़बदीएल बिन हजदूलीम था।
\s5
\v 15 और लावियों में से, समा'याह बिन हुसूक बिन 'अजरिक़ाम बिन हसबियाह ~बिन बूनी;
\v 16 और सब्बतै और यूज़बाद लावियों के रईसों में से, ख़ुदा के घर के बाहर के काम पर मुक़र्रर थे;
\s5
\v 17 ~और मत्तनियाह बिन मीका बिन ज़ब्दी बिन आसफ़ सरदार था, जो दु'आ के वक़्त शुक्रगुज़ारी शुरू' करने में पेशवा था; और बक़बूक़ियाह उसके भाइयों में से दूसरे दर्जे पर था, और 'अबदा बिन सम्मू' बिन जलाल बिन यदूतून।
\v 18 ~पाक शहर में कुल दो सौ चौरासी लावी थे।
\s5
\v 19 और दरबान 'अक़्क़ब, तलमून और उनके भाई जो फाटकों की निगहबानी करते थे, एक सौ बहतर थे।
\v 20 ~और इस्राईलियों और काहिनों और लावियों के बाक़ी लोग यहूदाह के सब शहरों में अपनी-अपनी मिल्कियत में रहते थे।
\v 21 ~लेकिन नतीनीम 'ओफ़ल में बसे हुए थे; और ज़ीहा और जिसफ़ा नतीनीम पर मुक़र्रर थे।
\s5
\v 22 और उज़्ज़ी बिन बानी बिन हसबियाह बिन मत्तनियाह बिन मीका जो आसफ़ की औलाद या'नी गानेवालों में से था, यरुशलीम में उन लावियों का नाज़िम था, जो ख़ुदा के घर के काम पर मुक़र्रर थे।
\v 23 ~क्यूँकि उनके बारे में बादशाह की तरफ़ से हुक्म हो चुका था, और गानेवालों के लिए हर रोज़ की ज़रूरत के मुताबिक़ मुक़र्ररा रसद थी।
\v 24 ~और फ़तहयाह बिन मशेज़बेल जो ज़ारह बिन यहूदाह की औलाद में से था, र'इयत के सब मुआ'मिलात के लिए बादशाह के सामने रहता था।
\s5
\v 25 ~रहे गाँव और उनके खेत, इसलिए बनीयहूदाह में से कुछ लोग क़रयत-अरबा' और उसके क़स्बों में, और दीबोन और उसके क़स्बों में, और यक़बज़ीएल और उसके गाँवों में रहते थे;
\v 26 ~और यशू'अ और मोलादा और बैत फ़लत में,
\v 27 और हसर-सू'आल और बैरसबा' और उसके कस्बों में,
\s5
\v 28 ~और सिक़लाज ~और मक़ुनाह ~और उस के कस्बों में
\v 29 और 'ऐन-रिम्मोन और सार'आह में, और यारमोत में,
\v 30 ~ज़ानवाह, 'अदुल्लाम, और उनके गाँवों में; लकीस और उसके खेतों में, 'अज़ीक़ा और उसके क़स्बों में, यूँ वह बैरसबा' से हिनूम की वादी तक डेरों में रहते थे।
\v 31 ~बनी बिनयमीन भी जिबा' से लेकर आगे मिकमास और 'अय्याह और बैतएल और उसके क़स्बों में,
\v 32 ~और 'अन्तोत और नूब और 'अननियाह,
\v 33 और हासूर और रामा और जितेम,
\v 34 और हादीद और ज़िबोईम और नबल्लात,
\v 35 ~और लूद और ओनू, या'नी कारीगरों की वादी में रहते थे।
\v 36 ~और लावियों में से कुछ फ़रीक़ जो यहूदाह में थे, वह बिनयमीन से मिल गए।
\s5
\c 12
\p
\v 1 ~वह काहिन और लावी जो ज़रुब्बाबुल बिन सियालतीएल और यशू'अ के साथ गए, सो ये हैं: सिरायाह, यरमियाह, 'अज़्रा,
\v 2 ~अमरियाह, मल्लूक, हत्तूश,
\v 3 ~सिकनियाह, रहूम, मरीमोत,
\s5
\v 4 इद्द, जिन्नतू, अबियाह,
\v 5 ~मियामीन, मा'दियाह, बिल्जा,
\v 6 समा'याह और यूयरीब, यदा'याह
\v 7 सल्लू, 'अमुक़ ख़िलक़ियाह, यदा'याह, ये यशू'अ के ~दिनों में ~काहिनों और उनके भाईयों के सरदार थे
\s5
\v 8 ~और लावी ये थे: यशू'अ, बिनवी, क़दमिएल सेरबियाह यहूदाह और मत्तिनियाह जो अपने भाइयों के साथ शुक्रगुज़ारी पर मुक़र्रर था;
\v 9 ~और उनके भाई बक़बूक़ियाह और 'उन्नी उनके सामने अपने-अपने पहरे पर मुक़र्रर थे।
\s5
\v 10 और यशू'अ से यूयक़ीम पैदा हुआ, और यूयक़ीम से इलियासिब पैदा हुआ, और इलियासिब से यूयदा' पैदा हुआ,
\v 11 ~और यूयदा' से यूनतन पैदा हुआ, और यूनतन से यद्दू' पैदा हुआ,
\s5
\v 12 ~और यूयक़ीम के दिनों में ये काहिन आबाई ख़ान्दानों के सरदार थे: सिरायाह से मिरायाह; यरमियाह से हननियाह;
\v 13 ~'अज़्रा से मुसल्लाम; अमरियाह से यहूहनान;
\v 14 मलकू से योनतन, सबनियाह से यूसुफ़;
\s5
\v 15 ~हारिम से 'अदना; मिरायोत से ख़लक़ै;
\v 16 ~इद्दू से ज़करियाह; जिन्नतून से मुसल्लाम:
\v 17 अबियाह से ज़िकरी; मिनयमीन से' मौ'अदियाह से फ़िल्ती;
\v 18 ~बिलजाह से सम्मू'आ; समा'याह से यहूनतन;
\v 19 ~यूयरीब से मत्तनै; यद'अयाह से 'उज़्ज़ी;
\v 20 ~सल्लै से कल्लै; 'अमोक से इब्र;
\v 21 ~ख़िलक़ियाह से हसबियाह; यदा'याह से नतनीएल।
\s5
\v 22 इलियासिब और यूयदा' और यूहनान और यद्दू' के दिनों में, लावियों के आबाई ख़ान्दानों के सरदार लिखे जाते थे; और काहिनों के, दारा फ़ारसी की सल्तनत में।
\v 23 ~बनी लावी के आबाई ख़ान्दानों के सरदार यूहनान बिन इलियासिब के दिनों तक, तवारीख़ की किताब में लिखे जाते थे।
\s5
\v 24 और लावियों के रईस: हसबियाह, सेरबियाह और यशू'अ बिन क़दमीएल, अपने भाइयों के साथ आमने सामने बारी-बारी से मर्द-ए-ख़ुदा दाऊद के हुक्म के मुताबिक़ हम्द और शुक्रगुज़ारी के लिए मुक़र्रर थे।
\v 25 ~मत्तनियाह और बक़बूक़ियाह और अब्दियाह और मुसल्लाम और तलमून और अक़्क़ूब दरबान थे, जो फाटकों के मख़ज़नों के पास पहरा देते थे।
\v 26 ~ये यूयक़ीम बिन यशू'अ बिन यूसदक़ के दिनों में, और नहमियाह हाकिम और 'अज़्रा~काहिन और फ़कीह के दिनों में थे।
\s5
\v 27 और यरूशलीम की शहरपनाह की तक़्दीस के वक़्त, उन्होंने लावियों को उनकी सब जगहों से ढूंड निकाला कि उनको यरुशलीम में लाएँ, ताकि वह ख़ुशी-ख़ुशी झाँझ और सितार और बरबत के साथ शुक्रगुज़ारी करके और गाकर तक़दीस करें।
\v 28 इसलिए गानेवालों की नसल के लोग यरुशलीम को आस-पास के मैदान से और नतूफ़ातियों के देहात से,
\s5
\v 29 ~और बैत-उल-जिलजाल से भी, और जिबा' और 'अज़मावत के खेतों से इकट्ठे हुए; क्यूँकि गानेवालों ने यरुशलीम के चारों तरफ़ अपने लिए देहात बना लिए थे।
\v 30 ~और काहिनों और लावियों ने अपने आपको पाक किया, और उन्होंने लोगों को और फाटकों को और शहरपनाह को पाक किया।
\s5
\v 31 ~तब मैं यहूदाह के अमीरों को दीवार पर लाया, और मैंने दो बड़े ग़ोल मुक़र्रर किए जो हम्द करते हुए जुलूस में निकले। एक उनमें से दहने हाथ की तरफ़ दीवार के ऊपर-ऊपर से कूड़े के फाटक की तरफ़ गया,
\s5
\v 32 ~और ये उनके पीछे-पीछे गए, या'नी हुसा'याह और यहूदाह के आधे सरदार।
\v 33 ~'अज़रियाह, 'अज़्रा और मुसल्लाम,
\v 34 ~यहूदाह और बिनयमीन और समा'याह और यरमियाह,
\v 35 और कुछ काहिनज़ादे नरसिंगे लिए हुए, या'नी ज़करियाह बिन यूनतन, बिन समा'याह, बिन मत्तिनियाह, बिन मीकायाह, बिन जक्कूर बिन आसफ़;
\s5
\v 36 और उसके भाई समा'याह और 'अज़रएल, मिल्ले, जिल्लै, मा'ऐ, नतनीएल और यहूदाह और हनानी, मर्द-ए- ख़ुदा दाऊद के बाजों को लिए हुए जाते थे और 'अज़्रा~फ़क़ीह उनके आगे-आगे था।
\v 37 और वह चश्मा फाटक से होकर सीधे आगे गए, और दाऊद के शहर की सीढ़ियों पर चढ़कर शहरपनाह की ऊँचाई पर पहुँचे, और दाऊद के महल के ऊपर होकर पानी फाटक तक पूरब की तरफ़ गए।
\s5
\v 38 ~और शुक्रगुज़ारी करनेवालों का दूसरा ग़ोल और उनके पीछे-पीछे मैं और आधे लोग उनसे मिलने को दीवार पर तनूरों के बुर्ज के ऊपर चौड़ी दीवार तक
\v 39 ~और इफ़्राईमी फाटक के ऊपर पुराने फाटक और मछली फाटक, और हननएल के बुर्ज और हमियाह के बुर्ज पर से होते हुए भेड़ फाटक तक गए; और पहरेवालों के फाटक पर खड़े हो गए।
\s5
\v 40 तब शुक्रगुज़ारी करनेवालों के दोनों ग़ोल और मैं और मेरे साथ आधे हाकिम ख़ुदा के घर में खड़े हो गए |
\v 41 ~और काहिन इलियाक़ीम, मासियाह, बिनयमीन, मीकायाह, इल्यूऐनी, ज़करियाह, हननियाह नरसिंगे लिए हुए थे;
\v 42 ~और मासियाह और समा'याह और इली'अज़र और 'उज़्ज़ी और यूहहनान और मल्कियाह और 'ऐलाम और 'अज़्रा अपने सरदार गानेवाले, इज़रखियाह के साथ बलन्द आवाज़ से गाते थे।
\s5
\v 43 और उस दिन उन्होंने बहुत सी क़ुर्बानियाँ चढ़ाईं और उसी दिन ख़ुशी की क्यूँकि ख़ुदा ने ऐसी ख़ुशी उनको बख़्शी कि वह बहुत ख़ुश हुए; और 'औरतों और बच्चों ने भी ख़ुशी मनाई। इसलिए यरुशलीम की ख़ुशी की आवाज़ दूर तक सुनाई देती थी।
\s5
\v 44 ~उसी ~दिन लोग ख़ज़ाने की, और उठाई हुई क़ुर्बानियों और पहले फलों और दहेकियों की कोठरियों पर मुक़र्रर हुए, ताकि उनमें शहर शहर के खेतों के मुताबिक़, जो हिस्से काहिनों और लावियों के लिए शरा' के मुताबिक़ मुक़र्रर हुए उनको जमा' करें क्यूँकि बनी यहूदाह काहिनों और लावियों की वजह से जो हाज़िर रहते थे ख़ुश थे।
\v 45 इसलिए वह अपने ख़ुदा के इन्तज़ाम और तहारत के इन्तज़ाम की निगरानी करते रहे; और गानेवालों और दरबानों ने भी दाऊद और उसके बेटे सुलेमान के हुक्म के मुताबिक़ ऐसा ही किया |
\s5
\v 46 क्यूँकि पुराने ज़माने से दाऊद और आसफ़ के दिनों में एक सरदार मुग़न्नी होता था, और ख़ुदा की हम्द और शुक्र के गीत गाए जाते थे।
\v 47 ~और तमाम इस्राईल ज़रुब्बाबुल के और नहमियाह के दिनों में हर रोज़ की ज़रूरत के मुताबिक़ गानेवालों और दरबानों के हिस्से देते थे; यूँ वह लावियों के लिए चीज़ें मख़्सूस करते, और लावी बनी हारून के लिए मख़्सूस करते थे।
\s5
\c 13
\p
\v 1 उस दिन उन्होंने लोगों को मूसा की किताब में से पढ़कर सुनाया, और उसमें ये लिखा मिला कि 'अम्मोनी और मोआबी ख़ुदा की जमा'अत में कभी न आने पाएँ;
\v 2 ~इसलिए कि वह रोटी और पानी लेकर बनी-इस्राईल के इस्तक़बाल को न निकले, बल्कि बल'आम को उनके ख़िलाफ़ मज़दूरी पर बुलाया ताकि उन पर ला'नत करे - लेकिन हमारे ख़ुदा ने उस ला'नत को बरकत से बदल दिया।
\v 3 और ऐसा हुआ कि शरी'अत को सुनकर उन्होंने सारी मिली जुली भीड़ को इस्राईल से जुदा कर दिया।
\s5
\v 4 ~इससे पहले इलियासिब काहिन ने जो हमारे ख़ुदा के घर की कोठरियों का मुख़्तार था, तूबियाह का रिश्तेदार होने की वजह से,
\v 5 उसके लिए एक बड़ी कोठरी तैयार की थी जहाँ पहले नज़्र की क़ुर्बानियाँ और लुबान और बर्तन, और अनाज की और मय की और तेल की दहेकियाँ, जो हुक्म के मुताबिक़ लावियों और गानेवालों और दरबानों को दी जाती थीं, और काहिनों के लिए उठाई हुई क़ुर्बानियाँ भी रख्खी जाती थीं।
\s5
\v 6 ~लेकिन इन दिनों में मैं यरुशलीम में न था, क्यूँकि शाह-ए-बाबुल अरतख़शशता के बत्तीसवें बरस में बादशाह के पास गया था। और कुछ दिनों के बा'द मैंने बादशाह से रुख़्सत की दरख़्वास्त की,
\v 7 और मैं यरुशलीम में आया, और मा'लूम किया कि ख़ुदा के घर के सहनों में तूबियाह के वास्ते एक कोठरी तैयार करने से इलियासिब ने कैसी ख़राबी की है।
\s5
\v 8 ~इससे मैं बहुत रंजीदा हुआ इसलिए मैंने तूबियाह के सब ख़ानगी सामान को उस कोठरी से बाहर फेंक दिया।
\v 9 ~फिर मैंने हुक्म दिया और उन्होंने उन कोठरियों को साफ़ किया, और मैं ख़ुदा के घर के बर्तनों और नज़्र की क़ुर्बानियों और लुबान को फिर वहीं ले आया।
\s5
\v 10 ~फिर मुझे मा'लूम हुआ कि लावियों के हिस्से उनको नहीं दिए गए, इसलिए ख़िदमतगुज़ार लावी और गानेवाले अपने अपने खेत को भाग गए हैं।
\v 11 ~तब मैंने हाकिमों से झगड़कर कहा कि ख़ुदा का घर क्यूँ छोड़ दिया गया है? और मैंने उनको इकट्ठा करके उनको उनकी जगह पर मुक़र्रर किया।
\s5
\v 12 ~तब सब अहल-ए-यहूदाह ने अनाज और मय और तेल का दसवाँ हिस्सा ख़ज़ानों में दाख़िल किया।
\v 13 ~और मैंने सलमियाह काहिन और सदोक़ फ़क़ीह, और लावियों में से फ़िदायाह को ख़ज़ानों के ख़ज़ांची मुक़र्रर किया; और हनान बिन ज़क्कूर बिन मत्तनियाह उनके साथ था; क्यूँकि वह दियानतदार माने जाते थे, और अपने भाइयों में बाँट देना उनका काम था।
\v 14 ऐ मेरे ख़ुदा इसके लिए याद कर और मेरे नेक कामों को जो मैंने अपने ख़ुदा के घर और उसके रसूम के लिए किये मिटा न डाल|
\s5
\v 15 उन ही दिनों में मैंने यहूदाह में कुछ को देखा, जो सबत के दिन हौज़ों में पाँव से अंगूर कुचल रहे थे, और पूले लाकर उनको गधों पर लादते थे। इसी तरह मय और अंगूर और अन्जीर, और हर क़िस्म के बोझ सबत को यरुशलीम में लाते थे; और जिस दिन वह खाने की चीज़ें बेचने लगे मैंने उनको टोका।
\s5
\v 16 वहाँ सूर के लोग भी रहते थे, जो मछली और हर तरह का सामान लाकर सबत के दिन यरुशलीम में यहूदाह के लोगों के हाथ बेचते थे।
\v 17 ~तब मैंने यहूदाह के हाकिम से झगड़कर कहा, "ये क्या बुरा काम है जो तुम करते, और सबत के दिन की बेहुरमती करते हो?
\v 18 ~क्या तुम्हारे बाप-दादा ने ऐसा ही नहीं किया? और क्या हमारा ख़ुदा हम पर और इस शहर पर ये सब आफ़तें नहीं लाया? तो भी तुम सबत की बेहुरमती करके इस्राईल पर ज़्यादा ग़ज़ब लाते हो।"
\s5
\v 19 ~इसलिए जब सबत से पहले यरुशलीम के फाटकों के पास अन्धेरा होने लगा, तो मैंने हुक्म दिया कि फाटक बन्द कर दिए जाएँ, और हुक्म दे दिया कि जब तक सबत गुज़र न जाए, वह न खुलें, और मैंने अपने कुछ नौकरों को फाटकों पर रख्खा कि सबत के दिन कोई बोझ अन्दर आने न पाए।
\v 20 इसलिए ताजिर और तरह-तरह के माल के बेचनेवाले एक या दो बार यरुशलीम के बाहर टिके।
\s5
\v 21 ~तब मैंने उनको टोका, और उनसे कहा कि तुम दीवार के नज़दीक क्यूँ टिक जाते हो? अगर फिर ऐसा किया तो मैं तुम को गिरफ़्तार कर लूँगा। उस वक़्त से वह सबत को फिर न आए।
\v 22 और मैंने लावियों को हुक्म किया कि अपने आपको पाक करें, और सबत के दिन की तक़्दीस की ग़रज़ से आकर फाटकों की रखवाली करें। ऐ मेरे ख़ुदा, इसे भी मेरे हक़ में याद कर, और अपनी बड़ी रहमत के मुताबिक़ मुझ पर तरस खा।
\s5
\v 23 ~उन्ही दिनों में मैंने उन यहूदियों को भी देखा, जिन्होंने अशदूदी और 'अम्मोनी और मोआबी 'औरतें ब्याह ली थीं।
\v 24 ~और उनके बच्चों की ज़बान आधी अशदूदी थी और वह यहूदी ज़बान में बात नहीं कर सकते थे, बल्कि हर क़ौम की बोली के मुताबिक़ बोलते थे।
\s5
\v 25 ~इसलिए मैंने उनसे झगड़कर उनको ला'नत की, और उनमें से कुछ को मारा, और उनके बाल नोच डाले, और उनको ख़ुदा की क़सम खिलाई, "कि तुम अपनी बेटियाँ उनके बेटों को न देना, और न अपने बेटों के लिए और न अपने लिए उनकी बेटियाँ लेना।
\v 26 ~क्या शाह-ए-इस्राईल सुलेमान ने इन बातों से गुनाह नहीं किया? अगरचे अकसर क़ौमों में उसकी तरह कोई बादशाह न था, और वह अपने ख़ुदा का प्यारा था, और ख़ुदा ने उसे सारे इस्राईल का बादशाह बनाया, तो भी अजनबी 'औरतों ने उसे भी गुनाह में फँसाया।
\v 27 ~इसलिए क्या हम तुम्हारी सुनकर ऐसी बड़ी बुराई करें कि अजनबी 'औरतों को ब्याह कर अपने ख़ुदा का गुनाह करें?"
\s5
\v 28 और इलियासिब सरदार काहिन के बेटे यूयदा' के बेटों में से एक बेटा, हूरोनी सनबल्लत का दामाद था, इसलिए मैंने उसको अपने पास से भगा दिया
\v 29 ऐ मेरे ख़ुदा, उनको याद कर, इसलिए कि उन्होंने कहानत को और कहानत और लावियों के 'अहद को नापाक किया है।
\s5
\v 30 ~यूँ ही मैंने उनको कुल अजनबियों से पाक किया, और काहिनों और लावियों के लिए उनकी ख़िदमत के मुताबिक़,
\v 31 ~और मुक़र्ररा वक़्तों पर लकड़ी के हदिए और पहले फलों के लिए हल्क़े मुक़र्रर कर दिए। ऐ मेरे ख़ुदा, भलाई के लिए मुझे याद कर।

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\id EST
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\h आस्तर
\toc1 आस्तर
\toc2 आस्तर
\toc3 est
\mt1 आस्तर
\s5
\c 1
\p
\v 1 ~अख़्सूयरस के दिनों में ऐसा हुआ (यह वही अख़्सूयरस है जो हिन्दोस्तान से कूश तक एक सौ सताईस सूबों पर हुकूमत करता था)
\v 2 ~कि उन दिनों में जब अख़्सूयरस बादशाह अपने तख़्त-ए-हुकूमत पर, जो क़स्र-सोसन में था बैठा।
\s5
\v 3 ~तो उसने अपनी हुकूमत के तीसरे साल अपने सब हाकिमों और ख़ादिमों की मेहमान नवाज़ी की। और फ़ारस और मादै की ताक़त और सूबों के हाकिम और सरदार उसके सामने हाज़िर थे।
\v 4 ~तब वह बहुत दिन या'नी एक सौ अस्सी दिन तक अपनी जलीलुल क़द्र हुकूमत की दौलत अपनी 'आला 'अज़मत की शान उनको दिखाता रहा
\s5
\v 5 जब यह दिन गुज़र गए तो बादशाह ने सब लोगों की, क्या बड़े क्या छोटे जो क़स्र-ए- सोसन में मौजूद थे, शाही महल के बाग़ के सहन में सात दिन तक मेहमान नवाज़ी ~की।
\v 6 ~वहाँ सफ़ेद और सब्ज़ और आसमानी रंग के पर्दे थे, जो कतानी और अर्गवानी डोरियों से चाँदी के हल्कों और संग-ए-मरमर के सुतूनों से बन्धे थे; और सुर्ख़ और सफ़ेद और ज़र्द और सियाह संग-ए-मरमर के फ़र्श पर सोने और चाँदी के तख़्त थे।
\s5
\v 7 ~उन्होंने उनको सोने के प्यालों में, जो अलग अलग शक्लों के थे, पीने को दिया और शाही मय बादशाह के करम के मुताबिक़ कसरत से पिलाई।
\v 8 ~और मय नौशी इस क़ाइदे से थी कि कोई मजबूर नहीं कर सकता था; क्यूँकि बादशाह ने अपने महल के सब 'उहदे दारों को नसीहत फ़रमाई थी, कि वह हर शख़्स की मर्ज़ी के मुताबिक़ करें।
\s5
\v 9 वश्ती मलिका ने भी अख़्सूयरस बादशाह के शाही महल में 'औरतों की मेहमान नवाज़ी की।
\v 10 ~सात दिन जब बादशाह का दिल मय से मसरूर था, तो उसने सातों ख़्वाजा सराओं या'नी महूमान और बिज़ता और ख़रबूनाह और बिगता और अबग्ता और ज़ितार और करकस को, जो अख़्सूयरस बादशाह के सामने ख़िदमत करते थे हुक्म दिया,
\v 11 ~कि वश्ती मलिका को शाही ताज पहनाकर बादशाह के सामने लाएँ, ताकि उसकी ख़ूबसूरती लोगों और हाकिमों ~को दिखाए क्यूँकि वह देखने में ख़ूबसूरत थी।
\s5
\v 12 ~लेकिन वशती मलिका ने शाही हुक्म पर जो ख़्वाजासराओं की ज़रिए' मिला था, आने से इन्कार किया। इसलिए ~बादशाह बहुत झल्लाया और दिल ही दिल में उसका ग़ुस्सा भड़का।
\s5
\v 13 ~तब बादशाह ने उन 'अक़्लमन्दों से जिनको वक़्तों के जानने का 'इल्म था पूछा, (क्यूँकि बादशाह का दस्तूर सब क़ानून दानों और 'अदलशनासों के साथ ऐसा ही था,
\v 14 और फ़ारस और मादै के सातों अमीर या'नी कारशीना और सितार और अदमाता और तरसीस और मरस और मरसिना और ममूकान उसके नज़दीकी थे, जो बादशाह का दीदार हासिल करते और ममलुकत में 'उहदे पर थे)
\v 15 ~क़ानून के मुताबिक़ वश्ती मलिका से क्या करना चाहिए; क्यूँकि उसने अख़्सूयरस बादशाह का हुक्म जो ख़वाजासराओं के ज़रिए' मिला नहीं माना है?"
\s5
\v 16 और ममूकान ने बादशाह और अमीरों के सामने जवाब दिया, "वश्ती मलिका ने सिर्फ़ ~बादशाह ही का नहीं, बल्कि सब उमरा और सब लोगों का भी जो अख़्सूयरस बादशाह के~कुल सूबों में हैं क़ुसूर किया है।
\v 17 ~क्यूँकि मलिका ~की यह बात बाहर सब 'औरतों तक पहुँचेगी जिससे उनके शौहर उनकी नज़र में ज़लील हो जाएँगे, जब यह ख़बर फैलेगी, 'अख़्सूयरस बादशाह ने हुक्म दिया कि वश्ती मलिका उसके सामने लाई जाए, लेकिन वह न आई।'
\v 18 और आज के दिन फ़ारस और मादै की सब बेग़में जो मलिका की बात सुन चुकी हैं, बादशाह के सब उमरा से ऐसा ही कहने लगेंगी। यूँ बहुत नफ़रत और ग़ुस्सा पैदा होगा।
\s5
\v 19 ~अगर बादशाह को मन्ज़ूर हो तो उसकी तरफ़ से शाही फ़रमान निकले, और वो फ़ारसियों और मादियों के क़ानून में दर्ज हो, ताकि बदला न जाए कि वश्ती अख़्सूयरस बादशाह के सामने फिर कभी न आए, और बादशाह उसका शाहाना रुतबा किसी और को जो उससे बेहतर है 'इनायत करे।
\v 20 ~और जब बादशाह का फ़रमान जिसे वह लागू करेगा, उसकी सारी हुकूमत में (जो बड़ी है) शोहरत पाएगा तो सब बीवियाँ अपने अपने शौहर की क्या बड़ा क्या छोटा 'इज़्ज़त करेंगी |
\s5
\v 21 ~यह बात बादशाह और हाकिमों को पसन्द आई, और बादशाह ने ममूकान के कहने के मुताबिक़ किया;
\v 22 क्यूँकि उसने सब शाही सूबों में सूबे-सूबे के हुरूफ़, और क़ौम-क़ौम की बोली के मुताबिक़ ख़त भेज दिए, कि हर आदमी अपने घर में हुकूमत करे, और अपनी क़ौम की ज़बान में इसका चर्चा करे।
\s5
\c 2
\p
\v 1 इन बातों के बा'द जब अख़्सूयरस बादशाह ~का ग़ुस्सा ~ठंडा हुआ, तो उसने वश्ती को और जो कुछ उसने किया था, और जो कुछ उसके ख़िलाफ़ हुक्म हुआ था याद किया।
\v 2 ~तब बादशाह के मुलाज़िम जो उसकी ख़िदमत करते थे कहने लगे, बादशाह के लिए जवान ख़ूबसूरत कुंवारियाँ ढूँढी जाएँ।
\s5
\v 3 और बादशाह अपनी बादशाहत के सब सूबों में मन्सबदारों को मुक़र्रर करे, ताकि वह सब जवान ख़ूबसूरत कुँवारियों को क़स्र-ए-सोसन के बीच हरमसरा में इकट्ठा करके बादशाह के ख़्वाजासरा हैजा के ज़िम्मा ~करें, जो 'औरतों का मुहाफ़िज़ है; और पाकी के लिए उनका सामान उनको दिया जाए।
\v 4 और जो कुँवारी बादशाह को पसन्द हो, वह वश्ती की जगह मलिका हो।" यह बात बादशाह को पसन्द आई, और उसने ऐसा ही किया।
\s5
\v 5 क़स्र-ए-सोसन में एक यहूदी था जिसका नाम मर्दकै था, जो या'इर बिन सिम'ई बिन क़ीस का बेटा था, जो बिनयमीनी था;
\v 6 और यरूशलीम से उन ग़ुलामों के साथ गया था जो शाह-ए-यहूदाह यकूनियाह के साथ ग़ुलामी में गए थे, जिनको शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र ग़ुलाम करके ले गया था।
\s5
\v 7 ~उसने अपने चचा की बेटी हदस्साह या'नी आस्तर को पाला था; क्यूँकि उसके माँ-बाप न थे, और वह लड़की हसीन और ख़ूबसूरत थी; और जब उसके माँ-बाप मर गए तो मर्दकै ने उसे अपनी बेटी करके पाला।
\s5
\v 8 तब ऐसा हुआ कि जब बादशाह का हुक्म और फ़रमान सुनने में आया, और बहुत सी कुँवारियाँ क़स्र-ए-सोसन में इकट्ठी होकर हैजा के ज़िम्मा हुईं, तो आस्तर भी बादशाह के महल में पहुँचाई गई, और 'औरतों के मुहाफ़िज़ हैजा के ज़िम्मा हुई।
\v 9 और वह लड़की उसे पसन्द आई और उसने उस पर महेरबानी की, और फ़ौरन उसे शाही महल में से पाकी के लिए उसके सामान और खाने के हिस्से, और ऐसी सात सहेलियाँ जो उसके लायक़ थीं उसे दीं, और उसे और उसकी सहेलियों को हरमसरा की सबसे अच्छी जगह में ले जाकर रख्खा।
\s5
\v 10 आस्तर ने न अपनी क़ौम न अपना ख़ान्दान ज़ाहिर किया था; क्यूँकि मर्दकै ने उसे नसीहत कर दी थी कि न बताए;
\v 11 और मर्दकै हर रोज़ हरमसरा के सहन के आगे फिरता था, ताकि मा'लूम करे कि आस्तर कैसी है और उसका क्या हाल होगा।
\s5
\v 12 जब एक एक कुँवारी की बारी आई कि 'औरतों के दस्तूर के मुताबिक़ बारह महीने की सफ़ाई के बा'द अख़्सूयरस बादशाह के पास जाए (क्यूँकि इतने ही दिन उनकी पाकिज़गी में लग जाते थे, या'नी छ: महीने मुर्र का तेल लगाने में और छ: महीने इत्र और 'औरतों की सफ़ाई की चीज़ों के लगाने में)
\v 13 तब इस तरह से वह कुँवारी बादशाह के पास जाती थी कि जो कुछ वो चाहती कि हरमसरा से बादशाह के महल में ले जाए, वह उसको दिया जाता था।
\s5
\v 14 ~शाम को वह जाती थी और सुबह को लौटकर दूसरे बाँदीसरा में बादशाह के ख़्वाजासरा शासजज़ के ज़िम्मा हो जाती थी, जो बाँदियों का मुहाफ़िज़ था; वह बादशाह के पास फिर नहीं जाती थी, मगर जब बादशाह उसे चाहता तब वह नाम लेकर बुलाई जाती थी।
\s5
\v 15 ~जब मर्दकै के चचा अबीख़ल की बेटी आस्तर की, जिसे मर्दकै ने अपनी बेटी करके रख्खा था, बादशाह के पास जाने की बारी आई तो जो कुछ बादशाह के ख़्वाजासरा और 'औरतों के मुहाफ़िज़ हैजा ने ठहराया था, उसके अलावा उसने और कुछ न माँगा। और आस्तर उन सबकी जिनकी निगाह उस पर पड़ी, मन्ज़ूर-ए-नज़र हुई।
\v 16 ~इसलिए आस्तर अख़्सूयरस बादशाह के पास उसके शाही महल में उसकी हुकूमत के सातवें साल के दसवें महीने में, जो तैबत महीना है पहुँचाई गई।
\s5
\v 17 ~और बादशाह ने आस्तर को सब 'औरतों से ज़्यादा प्यार किया, और वह उसकी नज़र में उन सब कुँवारियों से ज़्यादा प्यारी और पसंदीदा ठहरी; तब उसने शाही ताज उसके सिर पर रख दिया, और वश्ती की जगह उसे मलिका बनाया।
\v 18 और बादशाह ने अपने सब हाकिमों और मुलाज़िमों के लिए एक बड़ी मेहमान नवाज़ी , या'नी आस्तर की मेहमान नवाज़ी की; और सूबों में मु'आफ़ी की, और शाही करम के मुताबिक़ इन'आम बाँटे।
\s5
\v 19 जब कुँवारियाँ दूसरी बार इकट्ठी की गईं, तो मर्दकै बादशाह के फाटक पर बैठा था।
\v 20 आस्तर ने न तो अपने ख़ान्दान और न अपनी क़ौम का पता दिया था, जैसा मर्दकै ने उसे नसीहत कर दी थी; इसलिए कि आस्तर मर्दकै का हुक्म ऐसा ही मानती थी जैसा उस वक़्त जब वह उसके यहाँ परवरिश पा रही थी।
\v 21 ~उन ही दिनों में, जब मर्दकै बादशाह के फाटक पर बैठा करता था, बादशाह के ख़्वाजासराओं में से जो दरवाज़े पर पहरा देते थे, दो शख़्सों या'नी बिगतान और तरश ने बिगड़कर चाहा कि अख़्सूयरस बादशाह पर हाथ चलाएँ।
\s5
\v 22 ~यह~बात मर्दके को मा'लूम हुई और उसने आस्तर मलिका को बताई, और आस्तर ने मर्दकै का नाम लेकर बादशाह को ख़बर दी।
\v 23 ~जब उस मु'आमिले की तहक़ीक़ात की गई और वह बात साबित हुई, तो वह दोनों एक दरख़्त पर लटका दिए गए; और यह बादशाह के सामने तवारीख़ की किताब में लिख लिया गया।
\s5
\c 3
\p
\v 1 इन बातों के बा'द अख़्सूयरस बादशाह ने अजाजी हम्मदाता के बेटे हामान को मुम्ताज़ और सरफ़राज़ किया और उसकी कुर्सी को सब हाकिम से जो उसके साथ थे ऊँचा किया।
\v 2 ~और बादशाह के सब मुलाज़िम जो बादशाह के फाटक पर थे, हामान के आगे झुककर उसकी ता'ज़ीम करते थे; क्यूँकि बादशाह ने उसके बारे में ऐसा ही हुक्म किया था। लेकिन~मर्दकै न झुकता, न उसकी ताज़ीम करता था।
\s5
\v 3 ~तब बादशाह के मुलाज़िमों ने जो बादशाह के फाटक पर थे मर्दकै से कहा, "तू क्यूँ बादशाह के हुक्म को तोड़ता है?”
\v 4 ~जब वो उससे रोज़ कहते रहे, और उसने उनकी न मानी, तो उन्होंने हामान को बता दिया, ताकि देखें कि मर्दकै की बात चलेगी या नहीं, क्यूँकि उसने उनसे कह दिया था कि मैं यहूदी हूँ।
\s5
\v 5 ~जब हामान ने देखा कि मर्दकै न झुकता, न मेरी ताज़ीम करता है, तो हामान गुस्से से भर गया।
\v 6 लेकिन सिर्फ़ मर्दकै ही पर हाथ चलाना अपनी शान से नीचे समझा; क्यूँकि उन्होंने उसे मर्दकै की क़ौम बता दी थी, इसलिए हामान ने चाहा कि मर्दकै की क़ौम, या'नी सब यहूदियों को जो अख़्सूयरस की पूरी बादशाहत ~ में रहते थे। हलाक करे।
\s5
\v 7 अख़्सूयरस बादशाह की बादशाहत के बारहवें बरस के पहले महीने से, जो नैसान महीना है, वह रोज़-ब-रोज़ और माह-ब-माह बारहवें महीने या'नी अदार के महीने तक हामान के सामने पर या'नी पर्ची डालते रहे।
\s5
\v 8 और हामान ने अख़्सूयरस बादशाह से दरख़्वास्त की ~कि "हुज़ूर की बादशाहत के सब सूबों में एक क़ौम सब क़ौमों के दर्मियान इधर उधर फैली हुई है, उसके काम हर क़ौम से निराले हैं, और वह बादशाह के क़वानीन नहीं मानते हैं, इसलिए उनको रहने देना बादशाह के लिए फ़ाइदे मन्द नहीं।
\v 9 अगर बादशाह को मन्ज़ूर हो, तो उनको हलाक करने का हुक्म लिखा जाए; और मैं तहसीलदारों के हाथ में शाही ख़ज़ानों में दाख़िल करने के लिए चाँदी के दस हज़ार तोड़े दूँगा।”
\s5
\v 10 ~और बादशाह ने अपने हाथ से अंगूठी उतार कर यहूदियों के दुश्मन अजाजी हम्मदाता के बेटे हामान को दी।
\v 11 ~और बादशाह ने हामान से कहा, "वह चाँदी तुझे बख़्शी गई और वह लोग भी, ताकि जो तुझे अच्छा मा'लूम हो उनसे करे।"
\s5
\v 12 ~तब बादशाह के मुंशी पहले महीने की तेरहवीं तारीख़ को बुलाए गए, और जो कुछ हामान ने बादशाह के नवाबों, और हर सूबे के हाकिमों, और हर क़ौम के सरदारों को हुक्म किया उसके मुताबिक़ लिखा गया; सूबे सूबे के हुरूफ़ और क़ौम क़ौम की ज़बान मे अख़्सूयरस के नाम से यह लिखा गया, और उस पर बादशाह की अँगूठी की मुहर की गई।
\v 13 ~और क़ासिदों के हाथ बादशाह के सब सूबों में ख़त भेजे गए कि बारहवें महीने, या'नी अदार महीने की तेरहवीं तारीख़ को सब यहूदियों को, क्या जवान क्या बुड्ढे क्या बच्चे क्या 'औरतें, एक ही दिन में हलाक और क़त्ल करें और मिटा दें और उनका माल लूट लें।
\s5
\v 14 ~इस लिखाई की एक एक नक़ल सब क़ौमों के लिए जारी की गई, कि इस फ़रमान का ऐलान हर सूबे में किया जाए, ताकि उस दिन के लिए तैयार हो जाएँ।
\v 15 ~बादशाह के हुक्म से क़ासिद फ़ौरन रवाना हुए और वह हुक्म क़स्र-ए-सोसन में दिया गया। बादशाह और हामान मय नौशी करने को बैठ गए, पर सोसन शहर परेशान था।
\s5
\c 4
\p
\v 1 जब मर्दकै को वह सब जो किया गया था मा'लूम हुआ, तो मर्दकै ने अपने कपड़े फाड़े और टाट पहने और सिर पर राख डालकर शहर के बीच में चला गया, और ऊँची ~और पुरदर्द आवाज़ से चिल्लाने लगा;
\v 2 और वह बादशाह के फाटक के सामने भी आया, क्यूँकि टाट पहने कोई बादशाह के फाटक के अन्दर जाने न पाता था।
\v 3 और हर सूबे में जहाँ कहीं बादशाह का हुक्म और फ़रमान पहुँचा, यहूदियों के दर्मियान बड़ा मातम और रोज़ा और गिरयाज़ारी और नौहा शुरू' हो गया, और बहुत से टाट पहने राख में बैठ गए।
\s5
\v 4 और आस्तर की सहेलियों और उसके ख़्वाजासराओं ने आकर उसे ख़बर दी तब मलिका बहुत ग़मगीन हुई, और उसने कपड़े भेजे कि मर्दकै को पहनाएँ और टाट उस पर से उतार लें, लेकिन उसने उनको न लिया।
\v 5 तब आस्तर ने बादशाह के ख़्वाजासराओं में से हताक को, जिसे उसने आस्तर के पास हाज़िर रहने को मुक़र्रर किया था बुलवाया, और उसे ताकीद की कि मर्दकै के पास जाकर दरियाफ़त करे कि यह क्या बात है और किस वजह से है।
\s5
\v 6 इसलिए हताक निकल कर शहर के चौक में, जो बादशाह के फाटक के सामने था मर्दकै के पास गया।
\v 7 तब मर्दकै ने अपनी पूरी आप बीती, और रुपये की वह ठीक रक़म उसे बताई जिसे हामान ने यहूदियों को हलाक करने के लिए बादशाह के ख़ज़ानों में दाख़िल करने का वा'दा किया था।
\v 8 ~और उस फ़रमान की लिखी हुइ तहरीर की एक नक़ल भी, जो उनको हलाक करने के लिए सोसन में दी गई थी उसे दी, ताकि उसे आस्तर को दिखाए और बताए और उसे ताकीद करे कि बादशाह के सामने जाकर उससे मिन्नत करे, और उसके सामने अपनी क़ौम के लिए दरख़्वास्त करे।
\s5
\v 9 ~चुनाँचे हताक ने आकर आस्तर को मर्दकै की बातें कह सुनाई।
\v 10 ~तब आस्तर हताक से बातें करने लगी, और उसे मर्दकै के लिए यह पैग़ाम दिया कि
\v 11 ~"बादशाह के सब मुलाज़िम और बादशाही सूबों के सब लोग जानते हैं कि जो कोई, मर्द हो या 'औरत बिन बुलाए बादशाह की बारगाह-ए-अन्दरूनी में जाए, उसके लिए बस एक ही क़ानून है कि वह मारा जाए, अलावा उसके जिसके लिए बादशाह सोने की लाठी उठाए ताकि वह जीता रहे, लेकिन तीस दिन हुए कि मैं बादशाह के सामने नहीं बुलाई गई।"
\v 12 उन्होंने मर्दकै से आस्तर की बातें कहीं|
\s5
\v 13 तब मर्दकै ने उनसे कहा कि "आस्तर के पास यह जवाब ले जायें कि तू अपने दिल में यह न समझ कि सब यहूदियों मेंसे तू बादशाह के महल में बची रहेगी |
\v 14 क्यूँकि अगर तू इस वक़्त ख़ामोशी अख़्तियार करे तो छुटकारा और नजात यहूदियों के लिए किसी और जगह से आएगी, लेकिन तू अपने बाप के ख़ान्दान के साथ हलाक हो जाएगी। और क्या जाने कि तू ऐसे ही वक़्त ~के लिए बादशाहत को पहुँची है?"
\s5
\v 15 तब आस्तर ने उनको मर्दकै के पास यह जवाब ले जाने का हुक्म दिया,
\v 16 कि "जा, और सोसन में जितने यहूदी मौजूद हैं उनको इकट्ठा कर, और तुम मेरे लिए रोज़ा रख्खो, और तीन रोज़ तक दिन और रात न कुछ खाओ न पियो। मैं भी और मेरी सहेलियाँ इसी तरह से रोज़ा रख्खेंगी; और ऐसे ही मैं बादशाह के सामने जाऊँगी जो क़ानून के ख़िलाफ़ है; और अगर मैं हलाक हुई तो हलाक हुई।"
\v 17 ~चुनाँचे मर्दकै रवाना हुआ और आस्तर के हुक्म के मुताबिक़ सब कुछ किया।
\s5
\c 5
\p
\v 1 ~और तीसरे दिन ऐसा हुआ कि आस्तर शाहाना लिबास पहन कर शाही महल की बारगाह-ए-अन्दरूनी में शाही महल के सामने खड़ी हो गई। और बादशाह अपने शाही महल में अपने तख़्त-ए-हुकूमत पर महल के सामने के दरवाज़े पर बैठा था।
\v 2 और ऐसा हुआ कि जब बादशाह ने आस्तर मलिका को बारगाह में खड़ी देखा, तो वह उसकी नज़र में मक़्बूल ठहरी और बादशाह ने वह सुनहली लाठी जो उसके हाथ में थी आस्तर की तरफ़ बढ़ाया। तब आस्तर ने नज़दीक जाकर लाठी की नोक को छुआ।
\s5
\v 3 ~तब बादशाह ने उससे कहा, "आस्तर मलिका तू क्या चाहती है और किस चीज़ की दरख़्वास्त करती है? आधी बादशाहत तक वह तुझे बख़्शी जाएगी।"
\v 4 ~आस्तर ने दरख़्वास्त की "अगर बादशाह को मन्ज़ूर हो, तो बादशाह उस जश्न में जो मैंने उसके लिए तैयार किया है, हामान को साथ लेकर आज तशरीफ़ लाए।”
\s5
\v 5 ~बादशाह ने फ़रमाया कि "हामान को जल्द लाओ, ताकि आस्तर के कहे के मुताबिक़ किया जाए।" तब बादशाह और हामान उस जश्न में आए, जिसकी तैयारी आस्तर ने की थी
\v 6 और बादशाह ने जश्न में मयनौशी के वक़्त आस्तर से पूछा, "तेरा क्या सवाल है? वह मन्ज़ूर होगा। तेरी क्या दरख़्वास्त है? आधी बादशाहत तक वह पूरी की जाएगी।”
\s5
\v 7 आस्तर ने जवाब दिया, "मेरा सवाल और मेरी दरख़्वास्त यह है,
\v 8 अगर मैं बादशाह की नज़र में मक़बूल हूँ, और बादशाह को मन्ज़ूर हो कि मेरा सवाल क़ुबूल और मेरी दरख़्वास्त पूरी करे, तो बादशाह और हामान मेरे जश्न में जो मैं उनके लिए तैयार करूँगी आयें और कल जैसा बादशाह ने इरशाद किया है मैं करूँगी।”
\s5
\v 9 उस दिन हामान शादमान और ख़ुश होकर निकला। लेकिन जब हामान ने बादशाह के फाटक पर मर्दकै को देखा कि उसके लिए न खड़ा हुआ न हटा, तो हामान मर्दकै के खिलाफ़ गुस्से से भर गया।
\v 10 ~तोभी हामान अपने आपको बरदाश्त करके घर गया, और लोग भेजकर अपने दोस्तों को और अपनी बीवी ज़रिश को बुलवाया।
\v 11 और हामान उनके आगे अपनी शान-ओ-शौकत, और बेटों की कसरत का क़िस्सा कहने लगा, और किस किस तरह बादशाह ने उसकी तरक़्क़ी की, और उसको हाकिम और बादशाही मुलाज़िमों से ज़्यादा सरफ़राज़ किया।
\s5
\v 12 हामान ने यह भी कहा, "देखो, आस्तर मलिका ने अलावा मेरे किसी को बादशाह के साथ अपने जश्न में, जो उसने तैयार किया था आने न दिया; और कल के लिए भी उसने बादशाह के साथ मुझे दा'वत दी है।
\v 13 ~तोभी जब तक मर्दकै यहूदी मुझे बादशाह के फाटक पर बैठा दिखाई देता है, इन बातों से मुझे कुछ हासिल नहीं।"
\s5
\v 14 ~तब उसकी बीवी ज़रिश और उसके सब दोस्तों ने उससे कहा, "पचास हाथ ऊँची सूली बनाई जाए, और कल बादशाह से 'दरख़्वास्त करके मर्दकै उस पर चढ़ाया जाए; तब ख़ुशी ख़ुशी बादशाह के साथ जश्न में जाना।" यह बात हामान को पसन्द आई, और उसने एक सूली बनवाई
\s5
\c 6
\p
\v 1 उस रात बादशाह को नींद न आई, तब उसने तवारीख़ की किताबों के लाने का हुक्म दिया और वह बादशाह के सामने पढ़ी गईं।
\v 2 और यह लिखा मिला कि मर्दकै ने दरबानों में से बादशाह के दो ख़्वाजासराओं, बिगताना और तरश की मुख़बरी की थी, जो अख़्सूयरस बादशाह पर हाथ चलाना चाहते थे।
\v 3 ~बादशाह ने कहा, "इसके लिए मर्दकै की क्या इज़्ज़त-ओ-हुरमत की गई है?" बादशाह के मुलाज़िमों ने जो उसकी ख़िदमत करते थे कहा, "उसके लिए कुछ नहीं किया गया।"
\s5
\v 4 ~और बादशाह ने पूछा, "बारगाह में कौन हाज़िर है?" उधर हामान शाही महल की बाहरी बारगाह में आया हुआ था कि मर्दकै को उस सूली पर चढ़ाने के लिए, जो उसने उसके लिए तैयार की थी। बादशाह से दरख़्वास्त करे।
\v 5 इसलिए बादशाह के मुलाज़िमों ने उससे कहा, "हुज़ूर बारगाह में हामान खड़ा है।" बादशाह ने फ़रमाया, "उसे अन्दर आने दो।”
\v 6 ~तब ~हामान अन्दर आया, और बादशाह ने उससे कहा, "जिसकी ता'ज़ीम बादशाह करना चाहता है, उस शख़्स से क्या किया जाए?” हामान ने अपने दिल में कहा, "मुझ से ज़्यादा बादशाह किसकी ता'ज़ीम करना चाहता होगा?”
\s5
\v 7 ~इसलिए ~हामान ने बादशाह से कहा कि "उस शख़्स के लिए, जिसकी ता'ज़ीम बादशाह को मन्ज़ूर हो,
\v 8 शाहाना लिबास जिसे बादशाह पहनता है, और वह घोड़ा जो बादशाह की सवारी का है, और शाही ताज जो उसके सिर पर रख्खा जाता है लाया जाए।
\v 9 और वह लिबास और वह घोड़ा बादशाह के सबसे ऊँचे 'ओहदा के उमरा में से एक के हाथ में ज़िम्मा हों, ताकि उस लिबास से उस शख़्स को पहनायी जाए जिसकी ता'ज़ीम बादशाह को मन्ज़ूर है; और उसे उस घोड़े पर सवार करके शहर के 'आम रास्तों में फिराएँ और उसके आगे आगे 'एलान करें, "जिस शख़्स की ता'ज़ीम बादशाह करना चाहता है, उससे ऐसा ही किया जाएगा।' "
\s5
\v 10 ~तब बादशाह ने हामान से कहा, "जल्दी कर, और अपने कहे के मुताबिक़ वह लिबास और घोड़ा ले, और मर्दकै यहूदी से जो बादशाह के फाटक पर बैठा है ऐसा ही कर। जो कुछ तूने कहा है उसमें कुछ भी कमी न होने पाए।"
\v 11 ~तब हामान ने वह लिबास और घोड़ा लिया और मर्दकै को पहना करके घोड़े पर सवार शहर के 'आम रास्तों में फिराया, और उसके आगे आगे ऐलान करता गया कि "जिस शख़्स की ताज़ीम बादशाह करना चाहता है, उससे ऐसा ही किया जाएगा।"
\s5
\v 12 और मर्दकै तो फिर बादशाह के फाटक पर लौट आया, लेकिन हामान ग़मगीन और सिर ढाँके हुए जल्दी जल्दी अपने घर गया।
\v 13 और हामान ने अपनी बीवी ज़रिश और अपने सब दोस्तों को एक एक बात जो उस पर गुज़री थी बताई। तब उसके दानिशमन्दों और उसकी बीवी ज़रिश ने उससे कहा, "अगर मर्दकै, जिसके आगे तू पस्त होने लगा है, यहूदी नसल में से है तो तू उस पर ग़ालिब न होगा,बल्कि उसके आगे ज़रूर पस्त होता जाएगा।”
\v 14 ~वह उससे अभी बातें कर ही रहे थे कि बादशाह के ख़्वाजासरा आ गए, और हामान को उस जश्न में ले जाने की जल्दी की जिसे आस्तर ने तैयार किया था।
\s5
\c 7
\p
\v 1 तब बादशाह और हामान आए कि आस्तर मलिका के साथ खाएँ-पिएँ।
\v 2 और बादशाह ने दूसरे दिन मेहमान नवाज़ी पर मयनौशी के वक़्त आस्तर से फिर पूछा, "आस्तर मलिका, तेरा क्या सवाल है? वह मन्ज़ूर होगा। और तेरी क्या दरख़्वास्त है? आधी बादशाहत तक वह पूरी की जाएगी।"
\s5
\v 3 आस्तर मलिका ने जवाब दिया, "ऐ बादशाह, अगर मैं तेरी नज़र में मक़्बूल हूँ और बादशाह को मंज़ूर हो, तो मेरे सवाल पर मेरी जान बख़्शी हो और मेरी दरख़्वास्त पर मेरी क़ौम मुझे मिले।
\v 4 ~क्यूँकि मैं और मेरे लोग हलाक और क़त्ल किए जाने, और नेस्त-ओ-नाबूद होने को बेच दिए गए हैं। अगर हम लोग ग़ुलाम और लौंडियाँ बनने के लिए बेच डाले जाते तो मैं चुप रहती, अगरचे उस दुश्मन को बादशाह के नुक़्सान का मु'आवज़ा देने की ताक़त न होती।”
\v 5 ~तब अख़्सूयरस बादशाह ने आस्तर मलिका से कहा वह कौन है और कहाँ ~है जिसने अपने दिल में ऐसा ख़्याल करने की हिम्मत की?”
\s5
\v 6 आस्तर ने कहा, "वह मुख़ालिफ़ और वह दुश्मन, यही ख़बीस हामान है!" तब हामान बादशाह और मलिका के सामने परेशान ~हुआ।
\v 7 ~और बादशाह ग़ुस्सा होकर मयनौशी से उठा, और महल के बाग़ में चला गया; और हामान आस्तर मलिका से अपनी जान बख़्शी की दरख़्वास्त करने को उठ खड़ा हुआ, क्यूँकि उसने देखा कि बादशाह ने मेरे ख़िलाफ़ बदी की ठान ली है।
\s5
\v 8 ~और बादशाह महल के बाग़ से लौटकर मयनौशी की जगह आया, और हामान उस तख़्त के ऊपर जिस पर आस्तर बैठी थी पड़ा था। तब बादशाह ने कहा, "क्या यह घर ही में मेरे सामने मलिका पर जब्र करना चाहता है?" इस बात का बादशाह के मुँह से निकलना था कि उन्होंने हामान का मुँह ढाँक दिया।
\s5
\v 9 फिर उन ख़्वाजासराओं में से जो ख़िदमत करते थे, एक ख़्वाजासरा ख़रबूनाह ने दरख़्वास्त की, "हुज़ूर! इसके अलावा हामान के घर में वह पचास हाथ ऊँची सूली खड़ी है, जिसको हामान ने मर्दकै के लिए तैयार किया जिसने बादशाह के फ़ाइदे की बात बताई।" बादशाह ने फ़रमाया, "उसे उस पर टाँग दो।"
\v 10 तब उन्होंने हामान को उसी सूली पर, जो उसने मर्दकै के लिए तैयार की थी टाँग दिया। तब बादशाह का ग़ुस्सा ठंडा हुआ।
\s5
\c 8
\p
\v 1 उसी दिन अख़्सूयरस बादशाह ने यहूदियों के दुश्मन हामान का घर आस्तर मलिका को बख़्शा। और मर्दकै बादशाह के सामने आया, क्यूँकि आस्तर ने बता दिया था कि उसका उससे क्या रिश्ता था।
\v 2 ~और बादशाह ने अपनी अँगूठी जो उसने हामान से ले ली थी, उतार कर मर्दकै को दी। और आस्तर ने मर्दकै को हामान के घर पर मुख़्तार बना दिया।
\s5
\v 3 और आस्तर ने फिर बादशाह के सामने ~दरख़्वास्त ~की और उसके क़दमों पर गिरी और आँसू बहा बहाकर उसकी मिन्नत की कि हामान अजाजी की बदख़्वाही और साज़िश को, जो उसने यहूदियों के बरख़िलाफ़ की थी बातिल कर दे।
\v 4 ~तब बादशाह ने आस्तर की तरफ़ सुनहली लाठी ~बढ़ाई, फिर आस्तर बादशाह के सामने ~उठ खड़ी हुई
\s5
\v 5 और कहने लगी, "अगर बादशाह को मन्ज़ूर हो और मैं उसकी नज़र में मक़बूल ~हूँ, और यह बात बादशाह को मुनासिब मा'लूम हो और मैं उसकी निगाह में प्यारी हूँ, तो उन फ़रमानों को रद करने को लिखा जाए जिनकी अजाजी हम्मदाता के बेटे हामान ने, उन सब यहूदियों को हलाक करने के लिए जो बादशाह के सब सूबों में बसते हैं, पसन्द किया था।
\v 6 ~क्यूँकि मैं उस बला को जो मेरी क़ौम पर नाज़िल होगी, क्यूँकर देख सकती हूँ? या कैसे मैं अपने रिश्तेदारों की हलाकत देख सकती हूँ?"
\s5
\v 7 तब अख़्सूयरस बादशाह ने आस्तर मलिका और मर्दकै यहूदी से कहा कि "देखो, मैंने हामान का घर आस्तर को बख़्शा है, और उसे उन्होंने सूली पर टाँग दिया, इसलिए कि उसने यहूदियों पर हाथ चलाया।
\v 8 ~तुम भी बादशाह के नाम से यहूदियों को जैसा चाहते हो लिखो, और उस पर बादशाह की अँगूठी से मुहर करो, क्यूँकि जो लिखाई ~बादशाह के नाम से लिखी जाती है, उस पर बादशाह की अँगूठी से मुहर की जाती है, उसे कोई रद नहीं कर सकता।"
\s5
\v 9 ~तब उसी वक़्त तीसरे महीने, या'नी सैवान महीने की तेइसवीं तारीख़ को, बादशाह के मुन्शी तलब किए गए और जो कुछ मर्दकै ने हिन्दोस्तान से कूश तक एक सौ सताईस सूबों के यहूदियों और नवाबों और हाकिमों और सूबों के अमीरों को हुक्म दिया, वह सब हर सूबे को उसी के हुरूफ़ और हर क़ौम को उसी की ज़बान, और यहूदियों को उनके हुरूफ़ और उनकी ज़बान के मुताबिक़ लिखा गया।
\s5
\v 10 ~और उसने अख़्सूयरस बादशाह के नाम से ख़त लिखे, और बादशाह की अँगूठी से उन पर मुहर की, और उनको सवार कासिदों के हाथ रवाना किया, जो अच्छी नसल के तेज़ रफ़्तार शाही घोड़ों पर सवार थे।
\v 11 ~इनमें बादशाह ने यहूदियों को जो हर शहर में थे, इजाज़त दी कि इकट्ठे होकर अपनी जान बचाने के लिए मुक़ाबिले पर अड़ जाएँ, और उस क़ौम और उस सूबे की सारी फ़ौज को जो उन पर और उनके छोटे बच्चों और बीवियों पर हमलावर हो हलाक और क़त्ल करें और बरबाद कर दें, और उनका माल लूट लें।
\v 12 यह अख़्सूयरस बादशाह के सब सूबों में बारहवें महीने, या'नी अदार महीने की तेरहवीं तारीख़ की एक ही दिन में हो।
\s5
\v 13 ~इस तहरीर की एक एक नक़ल सब क़ौमों के लिए जारी की गई कि इस फ़रमान का ऐलान हर सूबे में किया जाए, ताकि यहूदी इस दिन अपने दुश्मनों से अपना इन्तक़ाम लेने को तैयार रहें।
\v 14 ~इसलिए वह क़ासिद ~जो तेज़ रफ़्तार शाही घोड़ों पर सवार थे रवाना हुए,और बादशाह के हुक्म की वजह से तेज़ निकले चले गए, और वह फ़रमान सोसन के महल में दिया गया।
\s5
\v 15 और मर्दकै बादशाह के सामने से आसमानी और सफ़ेद रंग का शाहाना लिबास और सोने का एक बड़ा ताज, और कतानी और अर्ग़वानी चोग़ा पहने निकला और सोसन शहर ने ना'रा मारा और ख़ुशी मनाई।
\v 16 ~यहूदियों को रौनक़ और ख़ुशी और शादमानी और इज़्ज़त हासिल हुई।
\v 17 ~और हर सूबे और हर शहर में जहाँ कहीं बादशाह का हुक्म और उसका फ़रमान पहुँचा, यहूदियों को खुर्रमी और शादमानी और ईद और ख़ुशी का दिन नसीब हुआ; और उस मुल्क के लोगों में से बहुतेरे यहूदी हो गए, क्यूँकि यहूदियों का ख़ौफ़ उन पर छा गया था ।
\s5
\c 9
\p
\v 1 अब बारहवें महीने या'नी अदार महीने की तेरहवीं तारीख़ को, जब बादशाह के हुक्म और फ़रमान पर 'अमल करने का वक़्त नज़दीक आया, और उस दिन यहूदियों के दुश्मनों को उन पर ग़ालिब होने की उम्मीद थी, हालाँकि इसके अलावा यह हुआ कि यहूदियों ने अपने नफ़रत करनेवालों पर ग़लबा पाया;
\v 2 तो अख़्सूयरस बादशाह के सब सूबों के यहूदी अपने अपने शहर में इकट्ठे हुए कि उन पर जो उनका नुक़्सान चाहते थे, हाथ चलाएँ और कोई आदमी उनका सामना न कर सका, क्यूँकि उनका ख़ौफ़ सब क़ौमों पर छा गया था।
\s5
\v 3 और सूबों के सब अमीरों और नवाबों और हाकिमों और बादशाह के कार गुज़ारों ने यहूदियों की मदद की, इसलिए कि मर्दकै का रौब उन पर छा गया था।
\v 4 ~क्यूँकि मर्दकै शाही महल में ख़ास 'ओहदे पर ~था, और सब सूबों में उसकी शोहरत फैल गई थी, इसलिए कि यह आदमी या'नी मर्दकै बढ़ता ही चला गया।
\v 5 ~और यहूदियों ने अपने सब दुश्मनों को तलवार की धार से काट डाला और क़त्ल और हलाक किया, और अपने नफ़रत करने वालों से जो चाहा किया।
\s5
\v 6 और सोसन के महल में यहूदियों ने पाँच सौ आदमियों को क़त्ल और हलाक किया,
\v 7 और परशन्दाता और दलफ़ून और असपाता,
\v 8 ~और पोरता और अदलियाह और अरीदता,
\v 9 ~और परमश्ता और अरीसै और अरीदै और वैज़ाता,
\v 10 ~या'नी यहूदियों के दुश्मन हामान-बिन-हम्मदाता के दसों बेटों को उन्होंने क़त्ल किया, पर लूट पर उन्होंने हाथ न बढ़ाया।
\s5
\v 11 ~उसी दिन उन लोगों का शुमार जो सोसन के महल में क़त्ल हुए बादशाह के सामने पहुँचाया गया।
\v 12 ~और बादशाह ने आस्तर मलिका से कहा, "यहूदियों ने सोसन के महल ही में पाँच सौ आदमियों और हामान के दसों बेटों को कत्ल और हलाक किया है, तो बादशाह के बाक़ी सूबों में उन्होंने क्या कुछ न किया होगा! अब तेरा क्या सवाल है? वह मंजूर होगा, और तेरी और क्या दरख़्वास्त है? वह पूरी की जाएगी।"
\s5
\v 13 आस्तर ने कहा, "अगर बादशाह को मंजूर हो तो उन यहूदियों को जो सोसन में हैं इजाज़त मिले कि आज के फ़रमान के मुताबिक़ कल भी करें, और हामान के दसों बेटे सूली पर चढ़ाए जाएँ।"
\v 14 इसलिए ~बादशाह ने हुक्म दिया, "ऐसा ही किया जाए।” और सोसन में उस फ़रमान का ऐलान किया गया; और हामान के दसों बेटों को उन्होंने टाँग दिया।
\s5
\v 15 और वह यहूदी जो सोसन में रहते थे, अदार महीने की चौदहवीं तारीख़ को इकट्ठे हुए और उन्होंने सोसन में तीन सौ आदमियों को क़त्ल किया, लेकिन लूट के माल को हाथ न लगाया।
\v 16 ~बाक़ी यहूदी जो बादशाह के सूबों में रहते थे, इकट्ठे होकर अपनी अपनी जान बचाने के लिए मुक़ाबिले को अड़ गए, और अपने दुश्मनों से आराम पाया और अपने नफ़रत करनेवालों में से पच्छत्तर हज़ार को क़त्ल किया, लेकिन लूट पर उन्होंने हाथ न बढ़ाया।
\s5
\v 17 यह अदार महीने की तेरहवीं तारीख़ थी, और उसी की चौदहवीं तारीख़ को उन्होंने आराम किया, और उसे मेहमान नवाज़ी और ख़ुशी का दिन ठहराया।
\v 18 लेकिन वह यहूदी जो सोसन में थे, उसकी तेरहवीं और चौदहवीं तारीख़ को इकट्ठे हुए, और उसकी पन्द्रहवीं तारीख़ को आराम किया और उसे मेहमान नवाज़ी और ख़ुशी का दिन ठहराया।
\v 19 ~इसलिए देहाती यहूदी जो बिना दीवार ~बस्तियों में रहते हैं, अदार महीने की चौदहवीं तारीख़ की शादमानी और मेहमान नवाज़ी का और ख़ुशी का और एक दूसरे को तोहफ़े भेजने का दिन मानते हैं।
\s5
\v 20 मर्दकै ने यह सब अहवाल लिखकर, उन यहूदियों को जो अख़्सूयरस बादशाह के सब सूबों में क्या नज़दीक क्या दूर रहते थे ख़त भेजे,
\v 21 ताकि उनको ताकीद करे कि वह अदार महीने की चौदहवीं तारीख़ को, और उसी की पन्द्रहवीं को हर साल,
\v 22 ~ऐसे दिनों की तरह मानें जिनमें यहूदियों को अपने दुश्मनों से चैन मिला; और वह महीने उनके लिए ग़म से शादमानी में और मातम से ख़ुशी के दिन में बदल ~गए; इसलिए वह उनको मेहमान नवाज़ी ~और ख़ुशी और आपस में तोहफ़े भेजने और गरीबों को ख़ैरात देने के दिन ठहराएँ।
\s5
\v 23 यहूदियों ने जैसा शुरू किया था और जैसा मर्दकै ने उनको लिखा था, वैसा ही करने का ज़िम्मा लिया।
\v 24 क्यूँकि अजाजी हम्मदाता के बेटे हामान, सब यहूदियों के दुश्मन, ने यहूदियों के ख़िलाफ़ उनको हलाक करने की तदबीर की थी, और उसने पूर ~या'नी पर्ची ~डाला था कि उनको मिटाये ~और हलाक करे।
\v 25 ~तब जब वह मु'आमिला बादशाह के सामने पेश हुआ, तो उसने ख़तों के ज़रिए से हुक्म किया कि वह बुरी तजवीज़, जो उसने यहूदियों के बरख़िलाफ़ की थी उल्टी उस ही के सिर पर पड़े, और वह और उसके बेटे सूली पर चढ़ाए जाएँ।
\s5
\v 26 ~इसलिए उन्होंने उन दिनों को पूर के नाम की वजह से पूरीम कहा। इसलिए ~इस ख़त की सब बातों की वजह ~से, और जो कुछ उन्होंने इस मु'आमिले में ख़ुद देखा था और जो उनपर गुज़रा था ~उसकी वजह ~से भी
\v 27 ~यहूदियों ने ठहरा दिया, और अपने ऊपर और अपनी नस्ल के लिए और उन सभों के लिए जो उनके साथ मिल गए थे, यह ज़िम्मा लिया ताकि बात अटल हो जाए कि वह उस ख़त की तहरीर के मुताबिक़ हर साल उन दोनों दिनों को मुक़र्ररा वक़्त पर मानेंगे।
\v 28 ~और यह दिन नसल-दर-नसल हर ख़ान्दान और सूबे और शहर में याद रख्खें और माने जाएँगे, और पूरीम के दिन यहूदियों में कभी मौकू़फ़ न होंगे, न उनकी यादगार उनकी नसल से जाती रहेगी।
\s5
\v 29 और अबीख़ेल की बेटी आस्तर मलिका, और यहूदी मर्दकै ने पूरीम के बाब के ख़त पर ज़ोर देने के लिए पूरे इख़्तियार से लिखा।
\s5
\v 30 और उसने सलामती और सच्चाई की बातें लिख कर अख़्सूयरस की बादशाहत ~के एक सौ सताईस सूबों में सब यहूदियों के पास ख़त भेजे
\v 31 ताकि पूरीम के इन दिनों को उनके मुक़र्ररा वक़्त के लिए बरक़रार करे जैसा यहूदी मर्दकै और आस्तर मलिका ने उनको हुक्म किया था; और जैसा उन्होंने अपने और अपनी नसल के लिए रोज़ा रखने और मातम करने के बारे में ठहराया था।
\v 32 और आस्तर के हुक्म से पूरीम की इन रस्मों की तसदीक़ हुई और यह किताब में लिख लिया गया।
\s5
\c 10
\p
\v 1 और अख़्सूयरस बादशाह ने ज़मीन पर और समुन्दर के जज़ीरों पर मेह्सूल मुक़र्रर किया।
\v 2 ~और उसकी ताक़त ~और हुकूमत के सब काम, और मर्दकै की 'अज़मत का तफ़सीली हाल जहाँ तक बादशाह ने ~उसे तरक़्क़ी दी थी, क्या वह मादै और फ़ारस के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे नहीं?
\s5
\v 3 क्यूँकि यहूदी मर्दकै अख़्सूयरस बादशाह से दूसरे दर्जे पर था, और सब यहूदियों में ख़ास 'ओहदे और अपने भाइयों की सारी जमा'अत में मक़्बूल था, और अपनी क़ौम का ख़ैर ख़्वाह रहा, और अपनी सारी औलाद से सलामती की बातें करता था।

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\h अय्यूब
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\toc2 अय्यूब
\toc3 job
\mt1 अय्यूब
\s5
\c 1
\p
\v 1 ~ऊज़ की सर ज़मीन में अय्यूब नाम का एक शख़्स था। वह शख़्स कामिल और रास्तबाज़ था और ख़ुदा से डरता और गुनाह से दूर रहता था।
\v 2 उसके यहाँ सात बेटे और तीन बेटियाँ पैदा हुईं।
\v 3 उसके पास सात हज़ार भेंड़े और तीन हज़ार ऊँट और पाँच सौ जोड़ी बैल और पाँच सौ गधियाँ और बहुत से नौकर चाकर थे, ऐसा कि अहल-ए-मशरिक़ में वह सबसे बड़ा आदमी था।
\s5
\v 4 उसके बेटे एक दूसरे के घर जाया करते थे और हर एक अपने दिन पर मेहमान नवाज़ी करते थे , और अपने साथ खाने-पीने को अपनी तीनों बहनों को बुलवा भेजते थे|
\v 5 और जब उनकी मेहमान नवाज़ी के दिन पूरे हो जाते, तो अय्यूब उन्हें बुलवाकर पाक करता और सुबह को सवेरे उठकर उन सभों की ता'दाद के मुताबिक़ सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ अदा करता था, क्यूँकि अय्यूब कहता था, कि "शायद मेरे बेटों ने कुछ ख़ता की हो और अपने दिल में ख़ुदा की बुराई की हो। " अय्यूब हमेशा ऐसा ही किया करता था।
\s5
\v 6 और एक दिन ख़ुदा के बेटे आए कि ख़ुदावन्द के सामने हाज़िर हों, और उनके बीच ~शैतान" भी आया।
\v 7 और ख़ुदावन्द ने शैतान से पूछा, कि "तू कहाँ से आता है?" शैतान ने ख़ुदावन्द को जवाब दिया, कि"ज़मीन पर इधर-उधर घूमता फिरता और उसमें सैर करता हुआ आया हूँ। ”
\v 8 ख़ुदावन्द ने शैतान से कहा, "क्या तू ने मेरे बन्दे अय्यूब के हाल पर भी कुछ ग़ौर किया? क्यूँकि ज़मीन पर उसकी तरह कामिल और रास्तबाज़ आदमी, जो ख़ुदा से डरता , और गुनाह से दूर रहता हो, कोई नहीं। "
\s5
\v 9 शैतान ने ख़ुदावन्द को जवाब दिया, "क्या अय्यूब यूँ ही ख़ुदा से डरता' है?
\v 10 ~क्या तू ने उसके और उसके घर के चारों तरफ़, और जो कुछ उसका है उस सबके ~चारों तरफ़ बाड़ नहीं बनाई है? तू ने उसके हाथ के काम में बरकत बख़्शी है, और उसके गल्ले मुल्क में बढ़ गए हैं।
\v 11 लेकिन तू ज़रा अपना हाथ बढ़ा कर जो कुछ उसका है उसे छू ही दे; तो क्या वह तेरे मुँह पर तेरी बुराई न करेगा?”
\v 12 ख़ुदावन्द ने शैतान से कहा, "देख, उसका सब कुछ तेरे इख़्तियार में है, सिर्फ़ उसको हाथ न लगाना। " तब शैतान ख़ुदावन्द के सामने से चला गया।
\s5
\v 13 और एक दिन जब उसके बेटे और बेटियाँ अपने बड़े भाई के घर में खाना खा रहे और मयनोशी कर रहे थे।
\v 14 तो एक क़ासिद ने अय्यूब के पास आकर कहा, कि "बैल हल में जुते थे और गधे उनके पास चर रहे थे,
\v 15 कि सबा के लोग उन पर टूट पड़े और उन्हें ले गए, और नौकरों को हलाक किया और सिर्फ़ मैं ही अकेला बच निकला कि तुझे ख़बर दूँ। ”
\s5
\v 16 वह अभी यह कह ही रहा था कि एक और भी आकर कहने लगा, कि "ख़ुदा की आग आसमान से नाज़िल हुई और भेड़ों और नौकरों को जलाकर भस्म कर दिया, और सिर्फ़ मैं ही अकेला बच निकला कि तुझे ख़बर दूँ। "
\v 17 वह अभी यह कह ही रहा था कि एक और भी आकर कहने लगा, 'कसदी तीन ग़ोल होकर ऊँटों पर आ गिरे और उन्हें ले गए, और नौकरों को हलाक किया और सिर्फ़ मैं ही अकेला बच निकला कि तुझे ख़बर दूँ। ”
\s5
\v 18 वह अभी यह कह ही रहा था कि एक और भी आकर कहने लगा, कि "तेरे बेटे बेटियाँ अपने बड़े भाई के घर में खाना खा रहे और मयनोशी कर रहे थे,
\v 19 और देख, वीरान से एक बड़ी आँधी चली और उस घर के चारों कोनों पर ऐसे ज़ोर से टकराई कि वह उन जवानों पर गिर पड़ा, और वह मर गए और सिर्फ़ मैं ही अकेला बच निकला कि तुझे ख़बर दूँ। "
\s5
\v 20 तब अय्यूब ने उठकर अपना लिबास चाक किया और सिर मुंडाया और ज़मीन पर गिरकर सिज्दा किया
\v 21 और कहा, "नंगा मैं अपनी माँ के पेट से निकला, और नंगा ही वापस जाऊँगा। ख़ुदावन्द ने दिया और ख़ुदावन्द ने ले लिया। ख़ुदावन्द का नाम मुबारक हो। "
\v 22 इन सब बातों में अय्यूब ने न तो गुनाह किया और न ख़ुदा पर ग़लत काम का 'ऐब लगाया।
\s5
\c 2
\p
\v 1 ~फिर एक दिन ख़ुदा के बेटे आए कि ख़ुदावन्द के सामने हाज़िर हों, और शैतान भी उनके बीच आया कि ख़ुदावन्द के आगे हाज़िर हो।
\v 2 और ख़ुदावन्द ने शैतान से पूछा, कि "तू कहाँ से आता है?" शैतान ने ख़ुदावन्द को जवाब दिया, कि "ज़मीन पर इधर-उधर घूमता फिरता और उसमें सैर करता हुआ आया हूँ। "
\s5
\v 3 ख़ुदावन्द ने शैतान से कहा, "क्या तू ने मेरे बन्दे अय्यूब के हाल पर भी कुछ ग़ौर किया; क्यूँकि ज़मीन पर उसकी तरह कामिल और रास्तबाज़ आदमी जो ख़ुदा से डरता और गुनाह ~से दूर रहता हो, कोई नहीं और गो तू ने मुझको उभारा कि बे वजह उसे हलाक करूँ , तोभी वह अपनी रास्तबाज़ी पर क़ायम है?”
\s5
\v 4 शैतान ने ख़ुदावन्द को जवाब दिया, कि 'खाल के बदले खाल, बल्कि ~इन्सान अपना सारा माल अपनी जान के लिए दे डालेगा।
\v 5 अब सिर्फ़ अपना हाथ बढ़ाकर उसकी हड्डी और उसके गोश्त को छू दे, तो वह तेरे मुँह पर तेरी बुराई करेगा। ”
\v 6 ख़ुदावन्द ने शैतान से कहा, कि "देख, वह तेरे इख़्तियार में है, सिर्फ़ उसकी जान महफ़ूज़ रहे। "
\s5
\v 7 तब शैतान ख़ुदावन्द के सामने से चला गया और अय्यूब को तलवे से चाँद तक दर्दनाक फोड़ों से दुख दिया।
\v 8 और वहअपने को खुजलाने के लिए एक ठीकरा लेकर राख पर बैठ गया।
\s5
\v 9 तब उसकी बीवी उससे कहने लगी, कि "क्या तू अब भी अपनी रास्ती पर क़ायम रहेगा? ख़ुदा की बुराई कर और मर जा। "
\v 10 ~लेकिन उसने उससे कहा, कि "तू नादान 'औरतों की जैसी बातें करती है; क्या हम ख़ुदा के हाथ से सुख पाएँ और दुख न पाएँ?" इन सब बातों में अय्यूब ने अपने लबों से ख़ता न की।
\s5
\v 11 जब अय्यूब के तीन दोस्तों, तेमानी अलीफ़ज़ और सूखी बिलदद और नामाती जूफ़र, ने उस सारी आफ़त का हाल जो उस पर आई थीं सुना, तो वह अपनी-अपनी जगह से चले और उन्होंने आपस में 'अहद किया कि जाकर उसके साथ रोएँ और उसे तसल्ली दें।
\s5
\v 12 और जब उन्होंने दूर से निगाह की और उसे न पहचाना, तो वह चिल्ला-चिल्ला कर रोने लगे और हर एक ने अपना लिबास चाक किया और अपने सिर के ऊपर आसमान की तरफ़ धूल उड़ाई।
\v 13 और वह सात दिन और सात रात उसके साथ ज़मीन पर बेठे रहे और किसी ने उससे एक बात न कही क्यूँकि उन्होंने देखा कि उसका ग़म बहुत बड़ा |
\s5
\c 3
\p
\v 1 इसके बा'द अय्यूब ने अपना मुँह खोल कर अपने पैदाइश के दिन पर ला'नत की।
\v 2 और अय्यूब कहने लगा :
\v 3 ~ "मिट जाए वह दिन जिसमें मैं पैदा हुआ, और वह रात भी जिसमें कहा गया, 'कि देखो, बेटा हुआ। "
\s5
\v 4 वह दिन अँधेरा हो जाए। ख़ुदा ऊपर से उसका लिहाज़ न करे, और न उस पर रोशनी पड़े।
\v 5 अँधेरा और मौत का साया उस पर क़ाबिज़ हो"। बदली उस पर छाई रहे और दिन को तारीक कर देनेवाली चीज़ें उसे दहशत ज़दा करें।
\s5
\v 6 गहरी तारीकी उस रात को दबोच ले। वह साल के दिनों के बीच ख़ुशी न करने पाए, और न महीनों की ता'दाद में आए।
\v 7 वह रात बाँझ हो जाए; उसमें ख़ुशी की कोई आवाज़ न आए।
\s5
\v 8 ~दिन पर ला'नत करने वाले उस पर ला'नत करें और वह भी जो अज़दहा" को छेड़ने को तैयार हैं।
\v 9 उसकी शाम के तारे तारीक हो जाएँ, वह रोशनी की राह देखे, जबकि वह है नहीं, और न वह सुबह की पलकों को देखे।
\v 10 क्यूँकि उसने मेरी माँ के रहम के दरवाज़ों को बंद न किया और दुख को मेरी आँखों से छिपा न रख्खा।
\s5
\v 11 मैं रहम ही में क्यूँ न मर गया? मैंने पेट से निकलते ही जान क्यूँ न दे दी?
\v 12 ~मुझे क़ुबूल करने को घुटने क्यूँ थे, और छातियाँ कि मैं उनसे पियूँ ~?
\s5
\v 13 नहीं तो इस वक़्त मैं पड़ा होता, और बेख़बर रहता, मैं सो जाता। तब मुझे आराम मिलता।
\v 14 ज़मीन के बादशाहों और सलाहकारों के साथ, जिन्होंने अपने लिए मक़बरे बनाए।
\s5
\v 15 या उन शाहज़ादों के साथ होता, जिनके पास सोना था। जिन्होंने अपने घर चाँदी से भर लिए थे;
\v 16 या पोशीदा गिरते हमल की तरह , मैं वजूद में न आता या उन बच्चों की तरह जिन्होंने रोशनी ही न देखी।
\s5
\v 17 वहाँ शरीर फ़साद से बाज़ आते हैं, और थके मांदे राहत पाते हैं।
\v 18 वहाँ क़ैदी मिलकर आराम करते हैं, और दरोग़ा की आवाज़ सुनने में नहीं आती।
\v 19 छोटे और बड़े दोनों वहीं हैं, और नौकर अपने मालिक से आज़ाद है। "
\s5
\v 20 दुखियारे को रोशनी, और तल्ख़जान को ज़िन्दगी क्यूँ मिलती है?
\v 21 जो मौत की राह देखते हैं लेकिन वह आती नहीं, और छिपे ख़ज़ाने से ज़्यादा उसकी ~तलाश करते ~हैं।
\v 22 जो निहायत शादमान और ख़ुश होते हैं, जब क़ब्र को पा लेते हैं।
\s5
\v 23 ऐसे आदमी को रोशनी क्यूँ मिलती है, जिसकी राह छिपी है, और जिसे ख़ुदा ने हर तरफ़ से बंद कर दिया है?
\v 24 क्यूँकि मेरे खाने की जगह मेरी आहें हैं, और मेरा कराहना पानी की तरह जारी है।
\s5
\v 25 क्यूँकि जिस बात से मैं डरता हूँ, वही मुझ पर आती है, और जिस बात का मुझे ख़ौफ़ होता है, वही मुझ पर गुज़रती है।
\v 26 क्यूँकि मुझे न चैन है, न आराम है, न मुझे कल पड़ती है; बल्कि मुसीबत ही आती है। "
\s5
\c 4
\p
\v 1 ~तब तेमानी अलीफ़ज़ कहने लगा,
\v 2 अगर कोई तुझ से बात चीत करने की कोशिश करे तो क्या तू अफ़सोस करेगा?, लेकिन बोले बगै़र कौन रह सकता है?
\v 3 देख, तू ने बहुतों को सिखाया, और कमज़ोर हाथों को मज़बूत किया।
\s5
\v 4 तेरी बातों ने गिरते हुए को संभाला, और तू ने लड़खड़ाते" घुटनों को मज़बूत किया।
\v 5 लेकिन अब तो तुझी पर आ पड़ी और तू कमज़ोर हुआ जाता है। उसने तुझे छुआ और तू घबरा उठा।
\v 6 क्या तेरे ख़ुदा का डर ही तेरा भरोसा नहीं? क्या तेरी राहों की रास्ती तेरी उम्मीद नहीं?
\s5
\v 7 क्या तुझे याद है कि कभी कोई मा'सूम भी हलाक हुआ है? या कहीं रास्तबाज़ भी काट डाले गए?
\v 8 मेरे देखने में तो जो गुनाह को जोतते और दुख बोते हैं, वही उसको काटते हैं।
\v 9 वह ख़ुदा के दम से हलाक होते, और उसके ग़ुस्से के झोंके से भस्म होते हैं।
\s5
\v 10 बबर की ग़रज़ और खू़ँख़्वार बबर की दहाड़, और बबर के बच्चों के दाँत, यह सब तोड़े जाते हैं।
\v 11 शिकार न पाने से बूढ़ा बबर हलाक होता, और शेरनी के बच्चे तितर-बितर हो जाते हैं।
\s5
\v 12 एक बात चुपके से मेरे पास पहुँचाई गई, उसकी भनक मेरे कान में पड़ी।
\v 13 रात के ख़्वाबों ~के ख़्यालों के बीच, जब लोगों को गहरी नींद आती है।
\s5
\v 14 मुझे ख़ौफ़ और कपकपी ने ऐसा पकड़ा, कि मेरी सब हड्डियों को हिला डाला।
\v 15 तब एक रूह मेरे सामने से गुज़री, और मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
\s5
\v 16 वह चुपचाप खड़ी हो गई लेकिन मैं उसकी शक्ल पहचान न सका; एक सूरत मेरी आँखों के सामने थी और सन्नाटा था। फिर मैंने एक आवाज़ सुनी:
\v 17 कि क्या फ़ानी इन्सान खु़दा से ज़्यादा होगा? क्या आदमी अपने ख़ालिक़ से ज़्यादा पाक ठहरेगा?
\s5
\v 18 देख, उसे अपने ख़ादिमों का 'ऐतबार नहीं, और वह अपने फ़रिश्तों पर हिमाक़त को 'आइद करता है।
\v 19 फिर भला उनकी क्या हक़ीक़त है, जो मिट्टी के मकानों में रहते हैं। जिनकी बुन्नियाद ख़ाक में है, और जो पतंगे से भी जल्दी पिस जाते हैं।
\s5
\v 20 वह सुबह से शाम तक हलाक होते हैं, वह हमेशा के लिए फ़ना हो जाते हैं, और कोई उनका ख़याल भी नहीं करता।
\v 21 क्या उनके ख़ेमे की डोरी उनके अन्दर ही अन्दर तोड़ी नहीं जाती? वह मरते हैं और यह भी बगै़र दानाई के। '
\s5
\c 5
\p
\v 1 ~ज़रा पुकार ~क्या कोई है जो तुझे जवाब देगा? और मुक़द्दसों में से तू किसकी तरफ़ फिरेगा?
\v 2 क्यूँकि कुढ़ना बेवकू़फ़ को मार डालता है, और जलन~बेवकू़फ़~की जान ले लेती है।
\v 3 मैंने बेवकू़फ़ को जड़ पकड़ते देखा है, लेकिन बराबर उसके घर पर ला'नत की।
\s5
\v 4 उसके बाल-बच्चे सलामती से दूर हैं; वह फाटक ही पर कुचले जाते हैं, और कोई नहीं जो उन्हें छुड़ाए।
\v 5 भूका उसकी फ़सल को खाता है, बल्कि उसे काँटों में से भी निकाल लेता है। और प्यासा उसके माल को निगल जाता है।
\s5
\v 6 क्यूँकि मुसीबत मिट्टी में से नहीं उगती। न दुख ज़मीन में से निकलता है।
\v 7 बस जैसे चिंगारियाँ ऊपर ही को उड़ती हैं, वैसे ही इन्सान दुख के लिए पैदा हुआ है।
\s5
\v 8 लेकिन मैं तो ख़ुदा ही का तालिब रहूँगा, और अपना मु'आमिला ख़ुदा ही पर छोड़ूँगा।
\v 9 जो ऐसे बड़े बड़े काम जो बयान नहीं हो सकते, और बेशुमार 'अजीब काम करता है।
\v 10 वही ज़मीन पर पानी बरसाता, और खेतों में पानी भेजता है।
\s5
\v 11 ~इसी तरह वह हलीमों को ऊँची जगह पर बिठाता है, और मातम करनेवाले सलामती की सरफ़राज़ी पाते हैं।
\v 12 वह 'अय्यारों की तदबीरों को बातिल कर देता है। यहाँ तक कि उनके हाथ उनके मक़सद को पूरा नहीं कर सकते।
\v 13 वह होशियारों की उन ही की चालाकियों में फसाता है, और टेढ़े लोगों की मशवरत जल्द जाती रहती है।
\s5
\v 14 उन्हें दिन दहाड़े अँधेरे से पाला पड़ता है, और वह दोपहर के वक़्त ऐसे टटोलते फिरते हैं जैसे रात को।
\v 15 लेकिन मुफ़लिस को उनके मुँह की तलवार, और ज़बरदस्त के हाथ से वह बचालेता है।
\v 16 ~जो ग़रीब को उम्मीद रहती है, और बदकारी अपना मुँह बंद कर लेती है।
\s5
\v 17 देख, वह आदमी जिसे ख़ुदा तम्बीह देता है ख़ुश क़िस्मत है। इसलिए क़ादिर-ए-मुतलक़ की तादीब को बेकार न जान।
\v 18 क्यूँकि वही मजरूह करता और पट्टी बाँधता है। वही ज़ख़्मी करता है और उसी के हाथ शिफ़ा देते हैं।
\v 19 ~वह तुझे छ: मुसीबतों से छुड़ाएगा, बल्कि सात में भी कोई आफ़त तुझे छूने न पाएगी।
\s5
\v 20 काल में वह तुझ को मौत से बचाएगा, और लड़ाई में तलवार की धार से।
\v 21 तू ज़बान के कोड़े से महफ़ूज़" रखा जाएगा, और जब हलाकत आएगी तो तुझे डर नहीं लगेगा।
\v 22 तू हलाकत और ख़ुश्क साली पर हँसेगा, और ज़मीन के दरिन्दों से तुझे कुछ ख़ौफ़ न होगा।
\s5
\v 23 मैदान के पत्थरों के साथ तेरा एका होगा, और जंगली जानवर तुझ से मेल रखेंगे।
\v 24 और तू जानेगा कि तेरा ख़ेमा महफ़ूज़ है, और तू अपने घर में जाएगा और कोई चीज़ ग़ाएब न पाएगा।
\v 25 तुझे यह भी मा'लूम होगा कि तेरी नसल बड़ी, और तेरी औलाद ज़मीन की घास की तरह बढ़ेगी।
\s5
\v 26 ~तू पूरी 'उम्र में अपनी क़ब्र में जाएगा, जैसे अनाज के पूले अपने वक़्त पर जमा' किए जाते हैं।
\v 27 देख, हम ने इसकी तहक़ीक़ की और यह बात यूँ ही है। इसे सुन ले और अपने फ़ायदे के लिए इसे याद रख। ”
\s5
\c 6
\p
\v 1 तब अय्यूब ने जवाब दिया
\v 2 काश कि मेरा कुढ़ना तोला जाता, और मेरी सारी मुसीबत तराजू़ में रख्खी जाती!
\v 3 तो वह समन्दर की रेत से भी भारी होती; इसी लिए मेरी बातें घबराहट की हैं।
\s5
\v 4 क्यूँकि क़ादिर-ए-मुतलक़ के तीर मेरे अन्दर लगे हुए हैं; मेरी रूह उन ही के ज़हर को पी रही हैं'। ख़ुदा की डरावनी बातें मेरे ख़िलाफ़ सफ़ बाँधे हुए हैं।
\v 5 क्या जंगली गधा उस वक़्त भी चिल्लाता है जब उसे घास मिल जाती है? या क्या बैल चारा पाकर डकारता है?
\v 6 क्या फीकी चीज़ बे नमक खायी जा सकता है? या क्या अंडे की सफ़ेदी में कोई मज़ा है?
\s5
\v 7 मेरी रूह को उनके छूने से भी इंकार है, वह मेरे लिए मकरूह गिज़ा हैं।
\v 8 काश कि मेरी दरख़्वास्त मंज़ूर होती, और ख़ुदा मुझे वह चीज़ बख़्शता जिसकी मुझे आरजू़ है।
\v 9 या'नी ख़ुदा को यही मंज़ूर होता कि मुझे ~कुचल डाले, और अपना हाथ चलाकर मुझे काट डाले।
\s5
\v 10 तो मुझे तसल्ली होती, बल्कि ~मैं उस अटल दर्द में भी शादमान रहता; क्यूँकि मैंने उस पाक बातों का इन्कार नहीं किया।
\v 11 मेरी ताक़त ही क्या है जो मैं ठहरा रहूँ? और मेरा अन्जाम ही क्या है जो मैं सब्र करूँ ?
\s5
\v 12 क्या मेरी ताक़त पत्थरों की ताक़त है? या मेरा जिस्म पीतल का है?
\v 13 ~क्या बात यही नहीं कि मैं लाचार हूँ, और काम करने की ताक़त मुझ से जाती रही है?
\s5
\v 14 उस पर जो कमज़ोर होने को है उसके दोस्त की तरफ़ से मेहरबानी होनी चाहिए, बल्कि उस पर भी जो क़ादिर-ए-मुतलक़ का ख़ौफ़ छोड़ देता है।
\v 15 मेरे भाइयों ने नाले की तरह दग़ा की, उन वादियों के नालों की तरह जो सूख जाते हैं।
\v 16 जो जड़ की वजह से काले हैं, और जिनमें बर्फ़ छिपी है।
\v 17 जिस वक़्त वह गर्म होते हैं तो ग़ायब हो जाते हैं, और जब गर्मी पड़ती है तो अपनी जगह से उड़ जाते हैं।
\s5
\v 18 क़ाफ़िले अपने रास्ते से मुड़ जाते हैं, और वीराने में जाकर हलाक हो जाते हैं।
\v 19 तैमा के क़ाफ़िले देखते रहे, सबा के कारवाँ उनके इन्तिज़ार में रहे।
\v 20 वह शर्मिन्दा हुए क्यूँकि उन्होंने उम्मीद की थी, वह वहाँ आए और पशेमान हुए।
\s5
\v 21 इसलिए तुम्हारी भी कोई हक़ीक़त नहीं;तुम डरावनी चीज़ देख कर डर जाते हो।
\v 22 ~क्या मैंने कहा, 'कुछ मुझे दो?'या 'अपने माल में से मेरे लिए रिश्वत दो ?'
\v 23 या 'मुख़ालिफ़ के हाथ से मुझे बचाओ?' या' ज़ालिमों के हाथ से मुझे छुड़ाओ?'
\s5
\v 24 मुझे समझाओ और मैं ख़ामोश रहूँगा, और मुझे समझाओ कि मैं किस बात में चूका।
\v 25 रास्ती की बातों में कितना असर होता है, बल्कि तुम्हारी बहस से क्या फ़ायदा होता है।
\s5
\v 26 क्या तुम इस ख़्याल में हो कि लफ़्ज़ों की तक़रार' करो? इसलिए कि मायूस की बातें हवा की तरह होती हैं।
\v 27 हाँ, तुम तो यतीमों पर कुर'आ डालने वाले, और अपने दोस्त को तिजारत का माल बनाने वाले हो।
\s5
\v 28 इसलिए ज़रा मेरी तरफ़ निगाह करो, क्यूँकि ~तुम्हारे मुँह पर मैं हरगिज़ झूट न बोलूँगा।
\v 29 मैं तुम्हारी मिन्नत करता हूँ बाज़ आओ बे इंसाफ़ी न करो| ~मैं हक़ पर हूँ |
\v 30 क्या मेरी ज़बान पर बे इन्साफ़ी है ? क्या फ़ितना अंगेज़ी की बातों के पहचानने का मुझे सलीक़ा नहीं ?
\s5
\c 7
\p
\v 1 "क्या इन्सान के लिए ज़मीन पर जंग-ओ-जदल नहीं?~और क्या उसके दिन मज़दूर के जैसे नहीं होते?
\v 2 जैसे नौकर साये की बड़ी आरज़ू करता है, और मज़दूर अपनी उजरत का मुंतज़िर रहता है;
\v 3 वैसे ही मैं बुतलान के महीनों का मालिक बनाया गया हूँ, और मुसीबत की रातें मेरे लिए ठहराई गई हैं।
\s5
\v 4 जब मैं लेटता हूँ तो कहता हूँ, 'कब उठूँगा?' लेकिन रात लम्बी होती है; और दिन निकलने तक इधर-उधर करवटें बदलता रहता हूँ।
\v 5 मेरा जिस्म कीड़ों और मिट्टी के ढेलों से ढका है। मेरी खाल सिमटती और फिर नासूर हो जाती है।
\s5
\v 6 मेरे दिन जुलाहे की ढरकी से भी तेज़ और बगै़र उम्मीद के गुज़र जाते हैं।
\v 7 'आह, याद कर कि मेरी ज़िन्दगी हवा है, और मेरी आँख ख़ुशी को फिर न देखेगी।
\s5
\v 8 ~जो मुझे अब देखता है उसकी आँख मुझे फिर न देखेगी। तेरी आँखें तो मुझ पर होंगी लेकिन मैं न हूँगा।
\v 9 जैसे बादल फटकर ग़ायब हो जाता है, वैसे ही वह जो क़ब्र में उतरता है फिर कभी ऊपर नहीं आता;
\v 10 वह अपने घर को फिर न लौटेगा, न उसकी जगह उसे फिर पहचानेगी।
\s5
\v 11 इसलिए मैं अपना मुँह बंद नहीं रख्खूँगा; मैं अपनी रूह की तल्ख़ी में बोलता जाऊँगा। मैं अपनी जान के 'अज़ाब में शिकवा करूँगा।
\v 12 क्या मैं समन्दर हूँ या मगरमच्छ', जो तू मुझ पर पहरा बिठाता है?
\s5
\v 13 जब मैं कहता हूँ। मेरा बिस्तर मुझे आराम पहुँचाएगा, मेरा बिछौना मेरे दुख को हल्का करेगा।
\v 14 तो तू ख़्वाबों से मुझे डराता, और दीदार से मुझे तसल्ली देता है;
\v 15 यहाँ तक कि मेरी जान फाँसी, और मौत को मेरी इन हड्डियों पर तरजीह देती है।
\s5
\v 16 मुझे अपनी जान से नफ़रत है; मैं हमेशा तक ज़िन्दा रहना नहीं चाहता। मुझे छोड़ दे क्यूँकि मेरे दिन ख़राब हैं।
\v 17 इन्सान की औकात~ही क्या है जो तू उसे सरफ़राज़ करे, और अपना दिल उस पर लगाए;
\v 18 और हर सुबह उसकी ख़बर ले, और हर लम्हा उसे आज़माए?
\s5
\v 19 तू कब तक अपनी निगाह मेरी तरफ़ से नहीं हटाएगा, और मुझे इतनी भी मोहलत नहीं देगा कि अपना थूक निगल लें?
\v 20 ~ऐ बनी आदम के नाज़िर, अगर मैंने गुनाह किया है तो तेरा क्या बिगाड़ता हूँ? तूने क्यूँ मुझे अपना निशाना बना लिया है, यहाँ तक कि मैं अपने आप पर बोझ हूँ?
\s5
\v 21 तू मेरा गुनाह क्यूँ नहीं मु'आफ़ करता, और मेरी बदकारी क्यूँ नहीं दूर कर देता? अब तो मैं मिट्टी में सो जाऊँगा, और तू मुझे ख़ूब ढूँडेगा लेकिन मैं न हूँगा। "
\s5
\c 8
\p
\v 1 तब बिलदद सूखी कहने लगा,
\v 2 तू कब तक ऐसे ही बकता रहेगा, और तेरे मुँह की बातें कब तक आँधी की तरह होंगी?
\v 3 क्या ख़ुदा बेइन्साफ़ी करता है? क्या क़ादिर-ए-मुतलक़ इन्साफ़ का खू़न करता है?
\s5
\v 4 अगर तेरे फ़र्ज़न्दों ने उसका गुनाह किया है, और उसने उन्हें उन ही की ~ख़ता के हवाले कर दिया।
\v 5 ~तोभी अगर तू ख़ुदा को खू़ब ढूँडता, और क़ादिर-ए-मुतलक़ के सामने मिन्नत करता,
\s5
\v 6 तो अगर तू पाक दिल और रास्तबाज़ होता, तो वह ज़रूर अब तेरे लिए बेदार हो जाता, और तेरी रास्तबाज़ी के घर को बढ़ाता।
\v 7 और अगरचे तेरा आग़ाज़ छोटा सा था, तोभी तेरा अंजाम बहुत बड़ा होता
\s5
\v 8 ज़रा पिछले ज़माने के लोंगों से पूँछ और जो कुछ उनके बाप दादा ने तहक़ीक़ की है उस पर ध्यान कर|
\v 9 क्यूँकि हम तो कल ही के हैं, और कुछ नहीं जानते और हमारे दिन ज़मीन पर साये की तरह हैं|
\v 10 क्या वह तुझे न सिखाएँगे और न बताएँगे और अपने दिल की बातें नहीं करेंगे?
\s5
\v 11 क्या नागरमोंथा बग़ैर कीचड़ के उग सकता है क्या ~सरकंडा बिना पानी ~के बढ़ सकता है ?
\v 12 जब वह हरा ही है और काटा भी नहीं गया तोभी और पौदों से पहले सूख जाता है|
\s5
\v 13 ऐसी ही उन सब की राहें हैं, जो ख़ुदा को भूल जाते हैं बे ख़ुदा आदमी की उम्मीद टूट जाएगी
\v 14 उसका ऐतमा'द जाता रहेगा और उसका भरोसा मकड़ी का जाला है |
\v 15 वह अपने घर पर टेक लगाएगा लेकिन वह खड़ा न रहेगा, वह उसे मज़बूती से थामेगा लेकिन वह क़ायम न रहेगा |
\s5
\v 16 वह धूप पाकर हरा भरा हो जाता है और उसकी डालियाँ उसी के बाग़ में फैलतीं हैं
\v 17 उसकी जड़ें ढेर में लिपटी हुई रहती हैं, ~वह पत्थर की जगह को देख लेता है|
\v 18 अगर वह अपनी जगह से हलाक किया जाए तो वह उसका इन्कार करके कहने लगेंगी, कि मैंने तुझे देखा ही नहीं |
\s5
\v 19 देख उसके रस्ते की ख़ुशी इतनी ही है, और मिटटी में से दूसरे उग आएगें|
\v 20 देख ख़ुदा कामिल आदमी को छोड़ न देगा, न वह बदकिरदारों को सम्भालेगा|
\s5
\v 21 वह अब भी तेरे मुँह को हँसी से भर देगा और तेरे लबों की ललकार की आवाज़ से|
\v 22 तेरे नफ़रत करने वाले शर्म का जामा' पहनेंगे और शरीरों का ख़ेमा क़ायम न रहेगा
\s5
\c 9
\p
\v 1 फ़िर अय्यूब ने जवाब दिया
\v 2 दर हक़ीक़त में मैं जानता हूँ कि बात यूँ ही है, लेकिन इन्सान ख़ुदा के सामने कैसे रास्तबाज़ ठहरे|
\v 3 अगर वह उससे बहस करने को राज़ी भी हो, यह तो हज़ार बातों में से उसे एक का भी जवाब न दे सकेगा|
\s5
\v 4 वह दिल का 'अक़्लमन्द और ताक़त में ज़ोरआवर है, किसी ने हिम्मत करके उसका सामना किया है और बढ़ा हो|
\v 5 वह पहाड़ों को हटा देता है और उन्हें पता भी नहीं लगता वह अपने क़हर में उलट देता है|
\v 6 वह ज़मीन को उसकी जगह से हिला देता है, और उसके सुतून काँपने लगते हैं|
\s5
\v 7 वह सूरज को हुक्म करता है और वह तुलू' नहीं होता है, और सितारों पर मुहर लगा देता है
\v 8 वह आसमानों को अकेला तान देता है, और समन्दर की लहरों पर चलता है
\v 9 उसने बनात-उन-नाश और जब्बार और सुरैया और जुनूब के बुजों' को बनाया।
\s5
\v 10 वह बड़े बड़े काम जो बयान नहीं हो सकते, और बेशुमार अजीब काम करता है।
\v 11 देखो, वह मेरे पास से गुज़रता है लेकिन मुझे दिखाई नहीं देता; वह आगे भी बढ़ जाता है लेकिन मैं उसे नहीं देखता।
\v 12 देखो, वह शिकार पकड़ता है; कौन उसे रोक सकता है? कौन उससे कहेगा कि तू क्या करता है?
\s5
\v 13 ~"ख़ुदा अपने ग़ुस्से को नहीं हटाएगा। रहब' के मददगार उसके नीचे झुकजाते हैं।
\v 14 फिर मेरी क्या हक़ीक़त है कि मैं उसे जवाब दूँ और उससे बहस करने को अपने लफ़्ज़ छाँट छाँट कर निकालूँ?
\v 15 उसे तो मैं अगर सादिक़ भी होता तो जवाब न देता। मैं अपने मुख़ालिफ़ की मिन्नत करता।
\s5
\v 16 अगर वह मेरे पुकारने पर मुझे जवाब भी देता, तोभी मैं यक़ीन न करता कि उसने मेरी आवाज़ सुनी।
\v 17 वह तूफ़ान से मुझे तोड़ता है, और बे वजह मेरे ज़ख़्मों को ज़्यादा करता है।
\v 18 वह मुझे दम नहीं लेने देता, बल्कि मुझे तल्ख़ी से भरपूर करता है।
\s5
\v 19 अगर ज़ोरआवर की ताक़त का ज़िक्र हो, तो देखो वह है। और अगर इन्साफ़ का, तो मेरे लिए वक़्त कौन ठहराएगा?
\v 20 अगर मैं सच्चा भी हूँ, तोभी मेरा ही मुँह मुझे मुल्ज़िम ठहराएगा। और अगर मैं कामिल भी हूँ तोभी यह मुझे आलसी साबित करेगा।
\s5
\v 21 मैं कामिल तो हूँ, लेकिन अपने को कुछ नहीं समझता; मैं अपनी ज़िन्दगी को बेकार जानता हूँ।
\v 22 यह सब एक ही बात है, इसलिए मैं कहता हूँ कि वह कामिल और शरीर दोनों को ~हलाक कर देता है।
\v 23 अगर वबा अचानक हलाक करने लगे, तो वह बेगुनाह की आज़माइश का मज़ाक़ उड़ाता है।
\v 24 ज़मीन शरीरों को हवाले कर दी गई है। वह उसके हाकिमों के मुँह ढाँक देता है। अगर वही नहीं तो और कौन है?
\s5
\v 25 मेरे दिन हरकारों से भी तेज़रू हैं। वह उड़े चले जाते हैं और ख़ुशी नहीं देखने पाते।
\v 26 ~वह तेज़ जहाज़ों की तरह निकल गए, और उस उक़ाब की तरह जो शिकार पर झपटता हो।
\s5
\v 27 अगर मैं कहूँ, कि 'मैं अपना ग़म भुला दूँगा, और उदासी" छोड़कर दिलशाद हूँगा,
\v 28 तो मैं अपने दुखों से डरता हूँ, मैं जानता हूँ कि तू मुझे बेगुनाह न ठहराएगा।
\v 29 मैं तो मुल्ज़िम ठहरूँगा; फिर मैं 'तो मैं ज़हमत क्यूँ उठाऊँ?
\s5
\v 30 अगर मैं अपने को बर्फ़ के पानी से धोऊँ, और अपने हाथ कितने ही साफ़ करूँ |
\v 31 तोभी तू मुझे खाई में ग़ोता देगा, और मेरे ही कपड़े मुझ से घिन खाएँगे।
\s5
\v 32 क्यूँकि वह मेरी तरह आदमी नहीं कि मैं उसे जवाब दूँ, और हम 'अदालत में एक साथ हाज़िर हों।
\v 33 हमारे बीच कोई बिचवानी नहीं, जो हम दोनों पर अपना हाथ रख्खे।
\s5
\v 34 वह अपनी लाठी मुझ से हटा ले, और उसकी डरावनी बात मुझे ~परेशान न करे।
\v 35 तब मैं कुछ कहूँगा और उससे डरने का नहीं, क्यूँकि अपने आप में तो मैं ऐसा नहीं हूँ।
\s5
\c 10
\p
\v 1 'मेरी रूह मेरी ज़िन्दगी से परेशान है; मैं अपना शिकवा ख़ूब दिल खोल कर करूँगा। मैं अपने दिल की तल्ख़ी में बोलूँगा”।
\v 2 मैं ख़ुदा से कहूँगा, मुझे मुल्ज़िम न ठहरा; मुझे बता कि तू मुझ से क्यूँ झगड़ता है।
\v 3 क्या तुझे अच्छा लगता है, कि अँधेर करे, और अपने हाथों की बनाई हुई चीज़ को बेकार जाने, और शरीरों की बातों की रोशनी करे?
\s5
\v 4 क्या तेरी आँखें गोश्त की हैं? या तू ऐसे देखता है जैसे आदमी देखता है?
\v 5 क्या तेरे दिन आदमी के दिन की तरह, और तेरे साल इन्सान के दिनों की तरह हैं,
\v 6 कि तू मेरी बदकारी को पूछता, और मेरा गुनाह ढूँडता है?
\v 7 क्या तुझे मा'लूम है कि मैं शरीर नहीं हूँ, और कोई नहीं जो तेरे हाथ से छुड़ा सके?
\s5
\v 8 तेरे ही हाथों ने मुझे बनाया और सरासर जोड़ कर कामिल किया। फिर भी तू मुझे हलाक करता है।
\v 9 याद कर कि तूने गुंधी हुई मिट्टी की तरह मुझे बनाया, और क्या तू मुझे फिर ख़ाक में मिलाएगा?
\s5
\v 10 क्या तूने मुझे दूध की तरह नहीं उंडेला, और पनीर की तरह नहीं जमाया?
\v 11 फिर तूने मुझ पर चमड़ा और गोश्त चढ़ाया, और हड्डियों और नसों से मुझे जोड़ दिया।
\s5
\v 12 तूने मुझे जान बख़्शी और मुझ पर करम किया, और तेरी निगहबानी ने मेरी रूह सलामत रख्खी।
\v 13 तोभी तूने यह बातें तूने अपने दिल में छिपा रख्खी थीं। मैं जानता हूँ कि तेरा यही इरादा है कि
\v 14 अगर मैं गुनाह करूँ, तो तू मुझ पर निगरान होगा; और तू मुझे मेरी बदकारी से बरी नहीं करेगा।
\s5
\v 15 अगर मैं गुनाह करूँ तो मुझ पर अफ़सोस! अगर मैं सच्चा बनूँ तोभी अपना सिर नहीं उठाने का, क्यूँकि मैं ज़िल्लत से भरा हूँ, और अपनी मुसीबत को देखता रहता हूँ।
\v 16 और अगर सिर उठाऊँ, तो तू शेर की तरह मुझे शिकार करता है और फिर 'अजीब सूरत में मुझ पर ज़ाहिर होता है।
\s5
\v 17 तू मेरे ख़िलाफ़ नए नए गवाह लाता है, और अपना क़हर मुझ पर बढ़ाता है; नई नई फ़ौजें मुझ पर चढ़ आती हैं।
\s5
\v 18 इसलिए तूने मुझे रहम से निकाला ही क्यूँ? मैं जान दे देता और कोई आँख मुझे देखने न पाती।
\v 19 मैं ऐसा होता कि गोया मैं था ही नहीं मैं रहम ही से क़ब्र में पहुँचा दिया जाता।
\s5
\v 20 क्या मेरे दिन थोड़े से नहीं? बाज़ आ, और मुझे छोड़ दे ताकि मैं कुछ राहत पाऊँ।
\v 21 इससे पहले कि मैं वहाँ जाऊँ, जहाँ से फिर न लौटूँगा या'नी तारीकी और मौत और साये की सर ज़मीन को :
\v 22 गहरी तारीकी की सर ज़मीन जो खु़द तारीकी ही है; मौत के साये की सर ज़मीन जो बे तरतीब है, और जहाँ रोशनी भी ऐसी है जैसी तारीकी। ”
\s5
\c 11
\p
\v 1 तब जूफ़र नामाती ने जवाब दिया,
\v 2 क्या इन बहुत सी बातों का जवाब न दिया जाए? और क्या बकवासी आदमी रास्त ठहराया जाए?
\v 3 क्या तेरे बड़े बोल लोगों को ख़ामोश करदे? और जब तू ठठ्ठा करे तो क्या कोई तुझे शर्मिन्दा न करे?
\s5
\v 4 क्यूँकि तू कहता है, 'मेरी ता'लीम पाक है, और मैं तेरी निगाह में बेगुनाह हूँ। '
\v 5 काश ख़ुदा ख़ुद बोले, और तेरे ख़िलाफ़ अपने लबों को खोले।
\v 6 और हिकमत के आसार तुझे दिखाए कि वह तासीर में बहुत बड़ा है। इसलिए जान ले कि तेरी बदकारी जिस लायक़ है उससे कम ही ख़ुदा तुझ से मुतालबा करता है।
\s5
\v 7 क्या तू तलाश से ख़ुदा को पा सकता है? क्या तू क़ादिर-ए-मुतलक़ का राज़ पूरे तौर से बयान कर सकता है?
\v 8 वह आसमान की तरह ऊँचा है, तू क्या कर सकता है? वह पाताल सा ~गहरा है, तू क्या जान सकता है?
\v 9 उसकी नाप ज़मीन से लम्बी और समन्दर से चौड़ी है
\s5
\v 10 अगर वह बीच से गुज़र कर बंद कर दे, और 'अदालत में बुलाए तो कौन उसे रोक सकता है?
\v 11 क्यूँकि वह बेहूदा आदमियों को पहचानता है, और बदकारी को भी देखता है, चाहे उसका ख़्याल न करे?
\v 12 लेकिन बेहूदा आदमी समझ से ख़ाली होता है, बल्कि ~इन्सान गधे के बच्चे की तरह पैदा होता है।
\s5
\v 13 अगर तू अपने दिल को ठीक करे, और अपने हाथ उसकी तरफ़ फैलाए,
\v 14 अगर तेरे हाथ में बदकारी हो तो उसे दूर करे, और नारास्ती को अपने ख़ेमों में रहने न दे,
\s5
\v 15 तब यक़ीनन तू अपना मुँह बे दाग़ उठाएगा, बल्कि तू साबित क़दम हो जाएगा और डरने का नहीं।
\v 16 क्यूँकि तू अपनी ख़स्ताहाली को भूल जाएगा, तू उसे उस पानी की तरह याद करेगा जो बह गया हो।
\v 17 और तेरी ज़िन्दगी दोपहर से ज़्यादा रोशन होगी, और अगर तारीकी हुई तो वह सुबह की तरह होगी।
\s5
\v 18 और तू मुतम'इन रहेगा, क्यूँकि उम्मीद होगी और अपने चारों तरफ़ देख देख कर सलामती से आराम करेगा।
\v 19 और तू लेट जाएगा, और कोई तुझे डराएगा नहीं बल्कि ~बहुत से लोग तुझ से फ़रियाद करेंगे।
\s5
\v 20 लेकिन शरीरों की आँखें रह जाएँगी, उनके लिए भागने को भी रास्ता न होगा, और जान दे देना ही उनकी उम्मीद होगी। ”
\s5
\c 12
\p
\v 1 तब अय्यूब ने जवाब दिया,
\v 2 बेशक आदमी तो तुम ही हो"और हिकमत तुम्हारे ही साथ मरेगी।
\v 3 लेकिन मुझ में भी समझ है, जैसे तुम में है, मैं तुम से कम नहीं। भला ऐसी बातें जैसी यह हैं, कौन नहीं जानता?
\s5
\v 4 मैं उस आदमी की तरह हूँ जो अपने पड़ोसी के लिए हँसी का निशाना बना है। मैं वह आदमी था जो ख़ुदा से दु'आ करता और वह उसकी सुन लेता था। रास्तबाज़ और कामिल आदमी हँसी का निशाना होता ही है।
\v 5 जो चैन से है उसके ख़्याल में दुख के लिए हिकारत होती है; यह उनके लिए तैयार रहती है जिनका पाँव फिसलता है।
\v 6 डाकुओं के ख़ेमे सलामत रहते हैं, और जो ख़ुदा को गु़स्सा दिलाते हैं, वह महफू़ज़ रहते हैं; उन ही के हाथ को ख़ुदा ख़ूब भरता है।
\s5
\v 7 हैवानों से पूछ और वह तुझे सिखाएँगे, और हवा के परिन्दों से दरियाफ़्त कर और वह तुझे बताएँगे।
\v 8 या ज़मीन से बात कर, वह तुझे सिखाएगी; और समन्दर की मछलियाँ तुझ से बयान करेंगी।
\s5
\v 9 कौन नहीं जानता कि इन सब बातों में ख़ुदावन्द ही का हाथ है जिसने यह सब बनाया?
\v 10 उसी के हाथ में हर जानदार की जान, और कुल बनी आदम की जान ~ताक़त ~है।
\s5
\v 11 क्या कान बातों को नहीं परख लेता, जैसे ज़बान खाने को चख लेती है?
\v 12 बुड्ढों में समझ होती है, और 'उम्र की दराज़ी में समझदारी।
\s5
\v 13 ख़ुदा में समझ और कु़व्वत है, उसके पास मसलहत और समझ है।
\v 14 देखो, वह ढा देता है तो फिर बनता नहीं। वह आदमी को बंद कर देता है, तो फिर खुलता नहीं।
\v 15 देखो, वह मेंह को रोक लेता है, तो पानी सूख जाता है। फिर जब वह उसे भेजता है, तो वह ज़मीन को उलट देता है।
\s5
\v 16 उसमें ताक़त और ता'सीर की कु़व्वत है। धोका खाने वाला और धोका देने वाला दोनों उसी के हैं।
\v 17 वह सलाहकारों को लुटवा कर ग़ुलामी में ले जाता है, और 'अदालत करने वालों को बेवकू़फ़ बना देता है।
\v 18 वह शाही बन्धनों को खोल डालता है, और बादशाहों की कमर पर पटका बाँधता है।
\s5
\v 19 वह काहिनों को लुटवाकर ग़ुलामी में ले जाता, और ज़बरदस्तों को पछाड़ देता है।
\v 20 वह 'ऐतमाद वाले की क़ुव्वत-ए-गोयाई दूर करता और बुज़ुर्गों की समझदारी को' छीन लेता है।
\v 21 वह हाकिमों पर हिकारत बरसाता, और ताक़तवरों की कमरबंद को खोल डालता' है।
\s5
\v 22 वह अँधेरे में से गहरी बातों को ज़ाहिर करता, और मौत के साये को भी रोशनी में ले आता है
\v 23 वह क़ौमों को बढ़ाकर उन्हें हलाक कर डालता है; वह क़ौमों को फैलाता और फिर उन्हें समेट लेता है।
\s5
\v 24 वह ज़मीन की क़ौमों के सरदारों की 'अक़्ल उड़ा देता ~और उन्हें ऐसे वीरान में भटका देता है जहाँ रास्ता नहीं।
\v 25 वह रोशनी के बगै़र तारीकी में टटोलते फिरते हैं, और वह उन्हें ऐसा बना देता है कि मतवाले की तरह लड़खड़ाते हुए चलते हैं।
\s5
\c 13
\p
\v 1 "मेरी आँख ने तो यह सब कुछ देखा है, मेरे कान ने यह सुना और समझ भी लिया है।
\v 2 जो कुछ तुम जानते हो उसे मैं भी जानता हूँ, मैं तुम से कम नहीं।
\s5
\v 3 मैं तो क़ादिर-ए-मुतलक़ से गुफ़्तगू करना चाहता हूँ, मेरी आरज़ू है कि ख़ुदा के साथ बहस करूँ
\v 4 लेकिन तुम लोग तो झूटी बातों के गढ़ने वाले हो; तुम सब के सब निकम्मे हकीम हो।
\v 5 काश तुम बिल्कुल ख़ामोश हो जाते, यही तुम्हारी 'अक़्लमन्दी होती।
\s5
\v 6 अब मेरी दलील सुनो, और मेरे मुँह के दा'वे पर कान लगाओ।
\v 7 क्या तुम ख़ुदा के हक़ में नारास्ती से बातें करोगे, और उसके हक़ में धोके से बोलोगे?
\v 8 क्या तुम उसकी तरफ़दारी करोगे? क्या तुम ख़ुदा की तरफ़ से झगड़ोगे?
\s5
\v 9 क्या यह अच्छ होगा कि वह तुम्हारा जाएज़ा करें? क्या तुम उसे धोका दोगे जैसे आदमी को?
\v 10 ~वह ज़रूर तुम्हें मलामत करेगा जो तुम ख़ुफ़िया तरफ़दारी करो , ~|
\s5
\v 11 क्या उसका जलाल तुम्हें डरा न देगा, और उसका रौ'ब तुम पर छा न जाएगा?
\v 12 तुम्हारी छुपी बातें राख की कहावतें हैं, तुम्हारी दीवारें मिटटी की दीवारें हैं|
\s5
\v 13 तुम चुप रहो, मुझे छोड़ो ताकि मैं बोल सकूँ, और फिर मुझ पर जो बीते सो बीते।
\v 14 मैं अपना ही गोश्त अपने दाँतों से क्यूँ चबाऊँ; और अपनी जान अपनी हथेली पर क्यूँ रख्खूँ?
\v 15 देखो, वह मुझे क़त्ल करेगा, मैं इन्तिज़ार नहीं करूँगा। बहर हाल मैं अपनी राहों की ता'ईद उसके सामने करूँगा।
\s5
\v 16 यह भी मेरी नजात के ज़रिए' होगा, क्यूँकि ~कोई बेख़ुदा उसके बराबर आ नहीं सकता।
\v 17 मेरी तक़रीर को ग़ौर से सुनो, और मेरा बयान तुम्हारे कानों में पड़े।
\s5
\v 18 देखो, मैंने अपना दा'वा दुरुस्त कर लिया है; मैं जानता हूँ कि मैं सच्चा हूँ।
\v 19 कौन है जो मेरे साथ झगड़ेगा? क्यूँकि फिर तो मैं चुप हो कर अपनी जान दे दूँगा।
\s5
\v 20 सिर्फ़ दो ही काम मुझ से न कर, तब मैं तुझ से नहीं छिपूँगा :
\v 21 अपना हाथ मुझ से दूर हटाले, और तेरी हैबत मुझे ख़ौफ़ ज़दा न करे।
\v 22 तब तेरे बुलाने पर मैं जवाब दूँगा; या मैं बोलूँ और तू मुझे जवाब दे।
\s5
\v 23 मेरी बदकारियाँ और गुनाह कितने हैं? ऐसा कर कि मैं अपनी ख़ता और गुनाह को जान लूँ।
\v 24 तू अपना मुँह क्यूँ छिपाता है, और मुझे अपना दुश्मन क्यूँ जानता है?
\v 25 ~क्या तू उड़ते पत्ते को परेशान करेगा? क्या तू सूखे डंठल के पीछे पड़ेगा?
\s5
\v 26 क्यूँकि तू मेरे ख़िलाफ़ तल्ख़ बातें लिखता है, और मेरी जवानी की बदकारियाँ मुझ पर वापस लाता है"।
\v 27 तू मेरे पाँव काठ में ठोंकता, और मेरी सब राहों की निगरानी करता है; और मेरे पाँव के चारों तरफ़ बाँध खींचता ~है।
\v 28 अगरचे मैं सड़ी हुई चीज़ की तरह हूँ, जो फ़ना हो जाती है। या उस कपड़े की तरह ~हूँ जिसे कीड़े ने खा लिया हो।
\s5
\c 14
\p
\v 1 इन्सान जो 'औरत से पैदा होता है थोड़े दिनों का है, और दुख से भरा है।
\v 2 वह फूल की तरह निकलता, और काट डाला जाता है। वह साए की तरह उड़ जाता है और ठहरता नहीं।
\v 3 इसलिए क्या तू ऐसे पर अपनी आँखें खोलता है;और मुझे अपने साथ 'अदालत में घसीटता है?
\s5
\v 4 नापाक चीज़ में से पाक चीज़ कौन निकाल सकता है? कोई नहीं।
\v 5 उसके दिन तो ठहरे हुए हैं, और उसके महीनों की ता'दाद तेरे पास है; और तू ने उसकी हदों को मुक़र्रर कर दिया है, जिन्हें वह पार नहीं कर सकता।
\v 6 इसलिए उसकी तरफ़ से नज़र हटा ले ताकि वह आराम करे, जब तक वह मज़दूर की तरह अपना दिन पूरा न कर ले।
\s5
\v 7 "क्यूँकि दरख़्त की तो उम्मीद रहती है कि अगर वह काटा जाए तो फिर फूट निकलेगा, और उसकी नर्म नर्म डालियाँ ख़त्म न होंगी।
\v 8 अगरचे उसकी जड़ ज़मीन में पुरानी हो जाए, और उसका तना मिट्टी में गल जाए,
\v 9 तोभी पानी की बू पाते ही वह नए अखुवे लाएगा, और पौदे की तरह शाख़ें निकालेगा।
\s5
\v 10 लेकिन इन्सान मर कर पड़ा रहता है, बल्कि ~इन्सान जान छोड़ देता है, और फिर वह कहाँ रहा?
\v 11 जैसे झील" का पानी ख़त्म हो जाता, और दरिया उतरता और सूख जाता है,
\v 12 वैसे आदमी लेट जाता है और उठता नहीं; जब तक आसमान टल न जाए, वह बेदार न होंगे; और न अपनी नींद से जगाए जाएँगे।
\s5
\v 13 काश कि तू मुझे पाताल में छिपा दे, और जब तक तेरा क़हर टल न जाए, मुझे पोशीदा रख्खे; और कोई मुक़र्ररा वक़्त मेरे लिए ठहराए और मुझे याद करे।
\v 14 अगर आदमी मर जाए तो क्या वह फिर जिएगा? मैं अपनी जंग के सारे दिनों में मुन्तज़िर रहता जब तक मेरा छुटकारा" न होता।
\s5
\v 15 तू मुझे पुकारता और मैं तुझे जवाब देता; तुझे अपने हाथों की सन'अत की तरफ़ ख्वाहिश होती।
\v 16 लेकिन अब तो तू मेरे क़दम गिनता है; क्या तू मेरे गुनाह की ताक में लगा नहीं रहता?
\v 17 मेरी ख़ता थैली में सरब-मुहर है, तू ने मेरे गुनाह को सी रख्खा है।
\s5
\v 18 यक़ीनन पहाड़ गिरते गिरते ख़त्म हो जाता है, और चट्टान अपनी जगह से हटा दी जाती है।
\v 19 पानी पत्थरों को घिसा डालता है, उसकी बाढ़ ज़मीन की ख़ाक को बहाले जाती है; इसी तरह तू इन्सान की उम्मीद को मिटा देता है।
\s5
\v 20 तू हमेशा उस पर ग़ालिब होता है, इसलिए वह गुज़र जाता है। तू उसका चेहरा बदल डालता और उसे ख़ारिज कर देता है।
\v 21 उसके बेटों की 'इज़्ज़त होती है, लेकिन उसे ख़बर नहीं। वह ज़लील होते हैं लेकिन वह उनका हाल‘ नहीं जानता।
\v 22 बल्कि उसका गोश्त जो उसके ऊपर है, दुखी रहता;और उसकी जान उसके अन्दर ही अन्दर ग़म खाती रहती है। ”
\s5
\c 15
\p
\v 1 तब अलीफ़ज़ तेमानी ने जवाब दिया,
\v 2 क्या 'अक़्लमन्द को चाहिए कि फ़ुज़ूल बातें जोड़ कर जवाब दे, और पूरबी हवा से अपना पेट भरे ?
\v 3 क्या वह बेफ़ाइदा बक़वास से बहस करे या ऐसी तक़रीरों से जो बे फ़ाइदा हैं ?
\s5
\v 4 बल्कि तू ख़ौफ़ को नज़र अन्दाज़ करके, ख़ुदा के सामने 'इबादत को ज़ायल करता है।
\v 5 क्यूँकि तेरा गुनाह तेरे मुँह को सिखाता है, और तू रियाकारों की ज़बान इख़्तियार करता है।
\v 6 तेरा ही मुँह तुझे मुल्ज़िम ठहराता है न कि मैं, बल्कि तेरे ही होंट तेरे ख़िलाफ़ गवाही देते हैं।
\s5
\v 7 क्या पहला इन्सान तू ही पैदा हुआ? या पहाड़ों से पहले तेरी पैदाइश हुई?
\v 8 क्या तू ने ख़ुदा की पोशीदा मसलहत सुन ली है, और अपने लिए 'अक़्लमन्दी का ठेका ले रख्खा है?
\v 9 तू ऐसा क्या जानता है, जो हम नहीं जानते? तुझ में ऐसी क्या समझ है जो हम में नहीं?
\s5
\v 10 हम लोगों में सिर सफ़ेद बाल वाले और बड़े बूढ़े भी हैं, जो तेरे बाप से भी बहुत ज़्यादा 'उम्र के हैं।
\v 11 ~क्या ख़ुदा की तसल्ली तेरे नज़दीक कुछ कम है, और वह कलाम जो तुझ से नरमी के साथ किया जाता है?
\s5
\v 12 तेरा दिल तुझे क्यूँ खींच ले जाता है, और तेरी आँखें क्यूँ इशारा करती हैं?
\v 13 क्या तू अपनी रूह को ख़ुदा की मुख़ालिफ़त पर आमादा करता है, और अपने मुँह से ऐसी बातें निकलने देता है?
\v 14 इन्सान है क्‍या कि वह पाक हो? और वह जो 'औरत से पैदा हुआ क्‍या है, कि सच्चा हो|
\s5
\v 15 देख, वह अपने फ़रिर्श्तों का 'एतिबार नहीं करता बल्कि आसमान भी उसकी नज़र में पाक नहीं।
\v 16 फ़िर भला उसका क्या ज़िक्र जो घिनौना और ख़राब है या'नी वह आदमी जो बुराई को पानी की तरह पीता है|
\s5
\v 17 "मैं तुझे बताता हूँ, तू मेरी सुन;और जो मैंने देखा है उसका बयान करूँगा।
\v 18 (जिसे 'अक़्लमन्दों ने अपने बाप-दादा से सुनकर बताया है, और उसे छिपाया नहीं;
\s5
\v 19 सिर्फ़ उन ही को मुल्क दिया गया था, और कोई परदेसी उनके बीच नहीं आया)
\v 20 ~शरीर आदमी अपनी सारी 'उम्र दर्द से कराहता है, या'नी सब बरस जो ज़ालिम के लिए रख्खे गए हैं।
\v 21 डरावनी आवाजें उसके कान में गूँजती रहती हैं, इक़बालमंदी के वक़्त ग़ारतगर उस पर आ पड़ेगा।
\s5
\v 22 उसे यक़ीन नहीं कि वह अँधेरे से बाहर निकलेगा, और तलवार उसकी मुन्तज़िर है।
\v 23 वह रोटी के लिए मारा मारा फिरता है कि कहाँ मिलेगी। वह जानता है, कि अँधेरे के दिन मेरे पास ही है।
\v 24 मुसीबत और सख़्त तकलीफ़ उसे डराती है; ऐसे बादशाह की तरह जो लड़ाई के लिए तैयार हो, वह उस पर ग़ालिब होते है।
\s5
\v 25 इसलिए कि उसने ख़ुदा के ख़िलाफ़ अपना हाथ बढ़ाया और क़ादिर-ए-मुतलक़ के ख़िलाफ़ फ़ख़्र करता है;
\v 26 ~वह अपनी ~ढालों की मोटी-मोटी गुलमैखों के साथ बाग़ी होकर उसपर हमला करता है ~:
\s5
\v 27 इसलिए कि उसके मुँह पर मोटापा छा गया है, और उसके पहलुओं पर चर्बी ~की तहें जम गई हैं।
\v 28 और वह वीरान शहरों में बस गया है, ऐसे मकानों में जिनमें कोई आदमी न बसा और जो वीरान होने को थे।
\s5
\v 29 वह दौलतमन्द न होगा, उसका माल बना न रहेगा और ऐसों की पैदावार ज़मीन की तरफ़ न झुकेगी।
\v 30 वह अँधेरे से कभी न निकलेगा, और शोले उसकी शाखों को ख़ुश्क कर देंगे, और वह ख़ुदा के मुँह से ताक़त से जाता रहेगा।
\s5
\v 31 वह अपने आप को धोका देकर बतालत का भरोसा न करे, क्यूँकि बतालत ही उसका मज़दूरी ठहरेगी।
\v 32 यह उसके वक़्त से पहले पूरा हो जाएगा, और उसकी शाख़ हरी न रहेगी।
\v 33 ताक की तरह उसके अंगूर कच्चे ही और जै़तून की तरह उसके फूल गिर जाएँगे।
\s5
\v 34 क्यूँकि बे ख़ुदा लोगों की जमा'अत बेफल रहेगी, और रिशवत के ख़ेमों को आग भस्म कर देगी।
\v 35 वह शरारत से ताक़तवर होते हैं और गुनाह पैदा होता है, और उनका पेट धोका को तैयार करता है। "
\s5
\c 16
\p
\v 1 तब अय्यूब ने जवाब जवाब दिया ,
\v 2 "ऐसी बहुत सी बातें मैं सुन चुका हूँ, तुम सब के सब निकम्मे तसल्ली देने वाले हो|
\v 3 क्या बेकार बातें कभी ख़त्म होंगी? तू कौन सी बात से झिड़क कर जवाब देता है?
\s5
\v 4 मैं भी तुम्हारी तरह बात बना सकता हूँ: अगर तुम्हारी जान मेरी जान की जगह होती तो मैं तुम्हारे ख़िलाफ़ बातें बना सकता, और तुम पर अपना सिर हिला सकता।
\v 5 बल्कि मैं अपनी ज़बान से तुम्हें ताक़त देता, और मेरे लबों की तकलीफ़ तुम को तसल्ली देती।
\s5
\v 6 अगर्चे मैं बोलता हूँ लेकिन मुझ को तसल्ली नहीं होती, और मैं चुप भी हो जाता हूँ, लेकिन मुझे क्या राहत होती है |
\v 7 ~लेकिन उसने तो मुझे दुखी कर डाला है, तूने मेरे सारे गिरोह को तबाह कर दिया है|
\v 8 तूने मुझे मज़बूती से पकड़ लिया है, यही मुझ पर गवाह है। मेरी लाचारी मेरे ख़िलाफ़ खड़ी होकर मेरे मुँह पर गवाही देती है।
\s5
\v 9 उसने अपने ग़ुस्से से मुझे फाड़ा और मेरा पीछा किया है; उसने मुझ पर दाँत पीसे, मेरा मुख़ालिफ़ मुझे आँखें दिखाता है।
\v 10 उन्होंने मुझ पर मुँह पसारा हैं, उन्होंने तनज़न मुझे गाल पर मारा है; वह मेरे ख़िलाफ़ इकट्ठे होते हैं।
\s5
\v 11 ख़ुदा मुझे बेदीनों के हवाले करता है, और शरीरों के हाथों में मुझे हवाले करता है।
\v 12 मैं आराम से था, और उसने मुझे चूर चूरकर डाला; उसने मेरी गर्दन पकड़ ली और मुझे पटक कर टुकड़े टुकड़े कर दिया: और उसने मुझे अपना निशाना बनाकर खड़ा किया है |
\s5
\v 13 उसके तीर अंदाज़ मुझे चारों तरफ़ से घेर लेते हैं, वह मेरे गुर्दों को चीरता है, और रहम नहीं करता, और मेरे पित को ज़मीन पर बहा देता है।
\v 14 वह मुझे ज़ख़्म पर ज़ख़्म लगा कर खस्ता करता है वह पहलवान की तरह मुझ पर हमला करता है:
\s5
\v 15 मैंने अपनी खाल पर टाट को सी लिया है, और अपना सींग ख़ाक में रख दिया है।
\v 16 मेरा मुँह रोते रोते सूज गया है, और मेरी पलकों पर मौत का साया है।
\v 17 अगर्चे मेरे हाथों~ज़ुल्म नहीं , और मेरी दु'आ बुराई से पाक है।
\s5
\v 18 ऐ ज़मीन, मेरे ख़ून को न ढाँकना, और मेरी फ़रियाद को आराम की जगह न मिले।
\v 19 अब भी देख, मेरा गवाह आसमान पर है, और मेरा ज़ामिन 'आलम-ए-बाला पर है।
\s5
\v 20 मेरे दोस्त मेरी हिकारत करते हैं, लेकिन मेरी आँख ख़ुदा के सामने ~आँसू बहाती है;
\v 21 ताकि वह आदमी के हक़ को अपने साथ और आदम ज़ाद के हक़ को उसके पड़ोसी के साथ क़ायम रख्खे
\v 22 क्यूँकि जब चंद साल निकल जाएँगे, तो मैं उस रास्ते से चला जाऊँगा जिससे फिर लौटने का नहीं |
\s5
\c 17
\p
\v 1 ~मेरी जान तबाह हो गई मेरे दिन हो चुके क़ब्र मेरे लिए तैय्यार है |
\v 2 यक़ीनन हँसी उड़ाने वाले मेरे साथ साथ हैं, और मेरी आँख उनकी छेड़छाड़ पर लगी रहती है।
\v 3 "ज़मानत दे, अपने और मेरे बीच में तू ही ज़ामिन हो। कौन है जो मेरे हाथ पर हाथ मारे?
\s5
\v 4 क्यूँकि तूने इनके दिल को समझ से रोका है, इसलिए तू इनको सरफ़राज़ न करेगा।
\v 5 जो लूट की ख़ातिर अपने दोस्तों को मुल्ज़िम ठहराता है, उसके बच्चों की आँखें भी जाती रहेंगी।
\s5
\v 6 "उसने मुझे लोगों के लिए ज़रबुल मिसाल बना दिया हैं:और मैं ऐसा हो गया कि लोग मेरे मुँह पर थूकें।
\v 7 मेरी आँखे ~ग़म के मारे धुंदला गई, और मेरे सब 'आज़ा परछाईं की तरह है|
\v 8 रास्तबाज़ आदमी इस बात से हैरान होंगे और मा'सूम आदमी ~बे ख़ुदा लोगों के ख़िलाफ़ जोश में आएगा
\s5
\v 9 तोभी सच्चा अपनी राह में साबित क़दम रहेगा और जिसके हाथ साफ़ हैं, वह ताक़तवर ही होता जाएगा
\v 10 लेकिन तुम सब के सब आते हो तो आओ, मुझे तुम्हारे बीच एक भी आदमी 'अक़्लमन्द न मिलेगा |
\s5
\v 11 मेरे दिन तो बीत चुके, और मेरे मक़सद मिट गए और जो मेरे दिल में था, वह बर्बाद हुआ है |
\v 12 वह रात को दिन से बदलते हैं, वह कहतें है रोशनी तारीकी के नज़दीक है|
\s5
\v 13 अगर में उम्मीद करूँ कि पाताल मेरा घर है, अगर मैंने अँधेरे में अपना बिछौना बिछा लिया है|
\v 14 अगर मैंने सड़ाहट से कहा है कि तू मेरा बाप है, और कीड़े से कि तू मेरी माँ और बहन है
\v 15 तोमेरी उम्मीद कहाँ रही, और जो मेरी उम्मीद है, उसे कौन देखेगा
\v 16 वह पाताल के फाटकों तक नीचे उतर जाएगी जब हम मिलकर ख़ाक में आराम पाएँगे
\s5
\c 18
\p
\v 1 तब ~बिलदद शूखी ने जवाब दिया ,
\v 2 तुम कब तक लफ़्ज़ों की जुस्तुजू में रहोगे ग़ौर कर लो फ़िर हम बोलेंगे
\s5
\v 3 हम क्यूँ जानवरों की तरह समझे जाते हैं, और तुम्हारी नज़र में नापाक ठहरे हैं|
\v 4 तू जो अपने क़हर में अपने को फाड़ता है तो क्या ज़मीन तेरी वजह से उजड़ जाएगी या चट्टान अपनी जगह से हटा दी जाएगी
\s5
\v 5 बल्कि शरीर का चराग़ गुल कर दिया जाएगा और उसकी आग का शो'ला बे नूर हो जाएगा
\v 6 रोशनी उसके ख़ेमे में तरीकी हो जाएगी और जो चराग ऊसके उपर है, बुझा दिया जाएगा
\s5
\v 7 उसकी क़ुव्वत के क़दम छोटे किए जाएँगे और उसी की मसलहत उसे नेचे गिराएगी|
\v 8 क्यूँकि वह अपने ही पाँव से जाल में फँसता है और फँदों पर चलता है
\s5
\v 9 ~ दाम उसकी एड़ी को पकड़ेगा, और जाल उसको फँसा लेगा|
\v 10 कमन्द उसके लिए ज़मीन में छिपा दी गई है, और~फंदा उसके लिए ~रास्ते में रख्खा गया है|
\v 11 दहशत नाक चीज़ें हर तरफ़ से उसे डराएँगी, और उसके दर पे होकर उसे भगाएंगी|
\s5
\v 12 उसका ज़ोर भूक का मारा होगा और आफ़त उसके शामिल-ए-हाल रहेगी|
\v 13 वह उसके जिस्म के आ'ज़ा को खा जाएगी बल्कि मौत का पहलौठा उसके आ'ज़ा को चट कर जाएगी|
\s5
\v 14 वह अपने ख़ेमे से जिस पर उसको भरोसा है उखाड़ दिया जाएगा, ~और दहशत के बादशाह के पास पहुंचाया जाएगा|
\v 15 ~और वह जो उसका नहीं, उसके ख़ेमे में बसेगा; उसके मकान पर गंधक छितराई जाएगी।
\s5
\v 16 ~नीचे उसकी जड़ें सुखाई जाएँगी, और ऊपर उसकी डाली काटी जाएगी।
\v 17 उसकी यादगार ज़मीन पर से मिट जाएगी, और कूचों' में उसका नाम न होगा।
\s5
\v 18 वह रोशनी से अंधेरे में हँका दिया जाएगा, और दुनिया से खदेड़ दिया जाएगा।
\v 19 उसके लोगों में उसका न कोई बेटा होगा न पोता, और जहाँ वह टिका हुआ था, वहाँ कोई उसका बाक़ी न रहेगा।
\v 20 वह जो पीछे आनेवाले हैं, उसके दिन पर हैरान होंगे, जैसे वह जो पहले हुए डर गए थे।
\s5
\v 21 नारास्तों के घर यक़ीनन ऐसे ही हैं, और जो ख़ुदा को नहीं पहचानता उसकी जगह ऐसी ही है।
\s5
\c 19
\p
\v 1 तब अय्यूब ने जवाब दिया
\v 2 तुम कब तक मेरी जान खाते रहोगे, और बातों से मुझे चूर-चूर करोगे?
\s5
\v 3 अब दस बार तुम ने मुझे मलामत ही की ; तुम्हें शर्म नहीं आती की तुम मेरे साथ सख़्ती से पेश आते हो।
\v 4 और माना कि मुझ से ख़ता हुई; मेरी ख़ता मेरी ही है।
\s5
\v 5 अगर तुम मेरे सामने में अपनी बड़ाई करते हो, और मेरे नंग को मेरे ख़िलाफ़ पेश करते हो;
\v 6 तो जान लो कि ख़ुदा ने मुझे पस्त किया, और अपने जाल से मुझे घेर लिया है।
\s5
\v 7 देखो, मैं जु़ल्म जु़ल्म पुकारता हूँ, लेकिन मेरी सुनी नहीं जाती। मैं मदद के लिए दुहाई देता हूँ, लेकिन कोई इन्साफ़ नहीं होता।
\v 8 उसने मेरा रास्ता ऐसा शख़्त कर दिया है, कि मैं गुज़र नहीं सकता। उसने मेरी राहों पर तारीकी को बिठा दिया है।
\v 9 उसने मेरी हशमत मुझ से छीन ली, और मेरे सिर पर से ताज उतार लिया।
\s5
\v 10 उसने मुझे हर तरफ़ से तोड़कर नीचे गिरा दिया, बस मैं तो हो लिया, और मेरी उम्मीद को उसने पेड़ की तरह उखाड़ डाला है।
\v 11 उसने अपने ग़ज़ब को भी मेरे ख़िलाफ़ भड़काया है, और वह मुझे अपने मुख़ालिफ़ों में शुमार करता है।
\v 12 उसकी फ़ौजें इकट्ठी होकर आती और मेरे ख़िलाफ़ अपनी राह तैयार करती और मेरे ख़ेमे के चारों तरफ़ ख़ेमा ज़न होती हैं।
\s5
\v 13 "उसने मेरे भाइयों को मुझ से दूर कर दिया है, और मेरे जान पहचान मुझ से बेगाना हो गए हैं।
\v 14 मेरे रिश्तेदार काम न आए, और मेरे दिली दोस्त मुझे भूल गए हैं।
\s5
\v 15 मैं अपने घर के रहनेवालों और अपनी लौंडियों की नज़र में अजनबी हूँ। मैं उनकी निगाह में परदेसी हो गया हूँ।
\v 16 मैं अपने नौकर को बुलाता हूँ और वह मुझे जवाब नहीं देता, अगरचे मैं अपने मुँह से उसकी मिन्नत करता हूँ।
\s5
\v 17 मेरी साँस मेरी बीवी के लिए मकरूह है, और मेरी मित्रत मेरी माँ की औलाद" के लिए।
\v 18 ~छोटे बच्चे भी मुझे हक़ीर जानते हैं; जब मैं खड़ा होता हूँ तो वह मुझ पर आवाज़ कसते हैं।
\v 19 मेरे सब हमराज़ दोस्त मुझ से नफ़रत करते हैं और जिनसे मैं मुहब्बत करता था वह मेरे ख़िलाफ़ हो गए हैं।
\s5
\v 20 मेरी खाल और मेरा गोश्त मेरी हड्डियों से चिमट गए हैं, और मैं बाल बाल बच निकला हूँ।
\v 21 ऐ मेरे दोस्तो! मुझ पर तरस खाओ, तरस खाओ, क्यूँकि ख़ुदा का हाथ मुझ पर भारी है!
\v 22 तुम क्यूँ ख़ुदा की तरह मुझे सताते हो? और मेरे गोश्त पर कना'अत नहीं करते?
\s5
\v 23 काश कि मेरी बातें अब लिख ली जातीं, काश कि वह किसी किताब में लिखी होतीं;
\v 24 काश कि वह लोहे के क़लम और सीसे से, हमेशा के लिए चट्टान पर खोद दी जातीं।
\s5
\v 25 लेकिन मैं जानता हूँ कि मेरा छुड़ाने वाला ज़िन्दा है। और आ़खिर कार ज़मीन पर खड़ा होगा।
\v 26 और अपनी खाल के इस तरह बर्बाद हो जाने के बा'द भी, मैं अपने इस जिस्म में से ख़ुदा को देखूँगा।
\v 27 जिसे मैं खुद देखूँगा, और मेरी ही आँखें देखेंगी न कि ग़ैर की; मेरे गुर्दे मेरे अंदर ही फ़ना हो गए हैं।
\s5
\v 28 अगर तुम कहो हम उसे कैसा-कैसा सताएँगे; हालाँकि असली बात मुझ में पाई गई है।
\v 29 तो तुम तलवार से डरो, क्यूँकि क़हर तलवार की सज़ाओं को लाता है ताकि तुम जान लो कि इन्साफ़ होगा। ”
\s5
\c 20
\p
\v 1 तब ज़ूफ़र नामाती ने जवाब दिया|
\v 2 "इसीलिए मेरे ख़्याल मुझे जवाब सिखाते हैं, उस जल्दबाज़ी की वजह से जो मुझ में है।
\v 3 मैंने वह झिड़की सुन ली जो मुझे शर्मिन्दा करती है, और मेरी 'अक़्ल की रूह ~मुझे जवाब देती है।
\s5
\v 4 क्या तू पुराने ज़माने की यह बात नहीं जानता, जब से इन्सान ज़मीन पर बसाया गया,
\v 5 कि शरीरों की फ़तह चंद रोज़ा है, और बेदीनों की ख़ुशी दम भर की है?
\s5
\v 6 चाहे उसका जाह-ओ-जलाल आसमान तक बुलन्द हो जाए, और उसका सिर बादलों तक पहुँचे|
\v 7 तोभी वह अपने ही फुज़ले की तरह हमेशा के लिए बर्बाद हो जाएगा; जिन्होंने उसे देखा है कहेंगे, वह कहाँ है?
\s5
\v 8 वह ख़्वाब की तरह उड़ जाएगा और फिर न मिलेगा, जो वह रात को रोये की तरह दूर कर दिया जाएगा।
\v 9 जिस आँख ने उसे देखा, वह उसे फिर न देखेगी; न उसका मकान उसे फिर कभी देखेगा।
\s5
\v 10 उसकी औलाद ग़रीबों की ख़ुशामद करेगी, और उसी के हाथ उसकी दौलत को वापस देंगे।
\v 11 ~ उसकी हड्डियाँ उसकी जवानी से पुर हैं, लेकिन वह उसके साथ ख़ाक में मिल जाएँगी।
\s5
\v 12 ~"चाहे शरारत उसको मीठी लगे, चाहे वह उसे अपनी ज़बान के नीचे छिपाए।
\v 13 चाहे वह उसे बचा रख्खे और न छोड़े, बल्कि उसे अपने मुँह के अंदर दबा रख्खे,
\v 14 तोभी उसका खाना उसकी अंतड़ियों में बदल गया है; वह उसके अंदर~अज़दहा का ज़हर है।
\s5
\v 15 वह दौलत को निगल गया है, लेकिन वह उसे फिर उगलेगा; ख़ुदा उसे उसके पेट से बाहर निकाल देगा।
\v 16 वह अज़दहा का ज़हर चूसेगा; अज़दहा~की ज़बान उसे मार डालेगी।
\s5
\v 17 ~वह दरियाओं को देखने न पाएगा, या'नी शहद और मख्खन की बहती नदियों को।
\v 18 जिस चीज़ के लिए उसने मशक़्क़त खींची, उसे वह वापस करेगा और निगलेगा नहीं; जो माल उसने जमा' किया उसके मुताबिक़ वह ख़ुशी न करेगा |
\v 19 ~क्यूँकि उसने ग़रीबों पर जु़ल्म किया और उन्हें छोड़ दिया, उसने ज़बरदस्ती घर छीना लेकिन वह उसे बताने न पाएगा।
\s5
\v 20 इस वजह से कि वह अपने बातिन में आसूदगी से वाक़िफ़ न हुआ , ~वह अपनी दिलपसंद चीज़ों में से कुछ नहीं बचाएगा।
\v 21 कोई चीज़ ऐसी बाक़ी ~न रही जिसको उसने निगला न हो। इसलिए उसकी इक़बालमन्दी क़ायम न रहेगी।
\v 22 अपनी अमीरी में भी वह तंगी ~में होगा; हर दुखियारे का हाथ उस पर पड़ेगा।
\s5
\v 23 जब वह अपना पेट भरने पर होगा तो ख़ुदा अपना क़हर-ए-शदीद उस पर नाज़िल करेगा, और जब वह खाता होगा तब यह उसपर बरसेगा।
\v 24 वह लोहे के हथियार से भागेगा, लेकिन पीतल की कमान उसे छेद डालेगी।
\v 25 वह तीर निकालेगा और वह उसके जिस्म से बाहर आएगा, उसकी चमकती नोक उसके पित्ते से निकलेगी;दहशत उस पर छाई हुई है।
\s5
\v 26 सारी तारीकी उसके ख़ज़ानों के लिए रख्खी हुई है। वह आग जो किसी इन्सान की सुलगाई हुई नहीं, उसे खा जाएगी। वह उसे जो उसके ख़ेमे में बचा हुआ होगा, भस्म कर देगी।
\v 27 आसमान उसके गुनाह को ज़ाहिर कर देगा, और ज़मीन उसके ख़िलाफ़ खड़ी ~हो जाएगी।
\s5
\v 28 उसके घर की बढ़ती जाती रहेगी, ख़ुदा के ग़ज़ब के दिन उसका माल जाता रहेगा।
\v 29 ख़ुदा की तरफ़ से शरीर आदमी का हिस्सा, और उसके लिए ख़ुदा की मुक़र्रर की हुई मीरास यही है। ”
\s5
\c 21
\p
\v 1 तब अय्यूब ने जवाब दिया,
\v 2 "ग़ौर से मेरी बात सुनो, और यही तुम्हारा तसल्ली देना हो |
\v 3 मुझे इजाज़त दो तो मैं भी कुछ कहूँगा, और जब मैं कह चुकूँ तो ठठ्ठा मारलेना।
\s5
\v 4 लेकिन मैं, क्या मेरी फ़रियाद इन्सान से है? फिर मैं बेसब्री क्यूँ न करूँ ?
\v 5 मुझ पर ग़ौर करो और मुत'अज्जिब हो, और अपना हाथ अपने मुँह पर रखो।
\v 6 जब मैं याद करता हूँ तो घबरा जाता हूँ, और मेरा जिस्म थर्रा उठता है।
\s5
\v 7 शरीर क्यूँ जीते रहते, 'उम्र रसीदा होते, बल्कि ~कु़व्वत में ज़बरदस्त होते हैं?
\v 8 उनकी औलाद उनके साथ उनके देखते देखते, और उनकी नसल उनकी आँखों के सामने क़ायम हो जाती है।
\v 9 उनके घर डर से महफ़ूज़ हैं, और ख़ुदा की छड़ी उन पर नहीं है।
\s5
\v 10 उनका साँड बरदार कर देता है और चूकता नहीं, उनकी गाय ब्याती है और अपना बच्चा नहीं गिराती।
\v 11 वह अपने छोटे छोटे बच्चों को रेवड़ की तरह बाहर भेजते हैं, और उनकी औलाद नाचती है।
\v 12 वह ख़जरी और सितार के ताल पर गाते, और बाँसली की आवाज़ से ख़ुश होते हैं।
\s5
\v 13 ~वह ख़ुशहाली में अपने दिन काटते, और दम के दम में पाताल में उतर जाते हैं।
\v 14 हालाँकि उन्होंने ख़ुदा से कहा था, कि 'हमारे पास से चला जा; क्यूँकि हम तेरी राहों के 'इल्म के ~ख़्वाहिशमन्द नहीं।
\v 15 क़ादिर-ए-मुतलक़ है क्या कि हम उसकी 'इबादत करें? और अगर हम उससे दु'आ करें तो हमें क्या फ़ायदा होगा?
\s5
\v 16 देखो, उनकी इक़बालमन्दी ~उनके हाथ में नहीं है। ~शरीरों की मशवरत ~मुझ से दूर है।
\v 17 "कितनी बार शरीरों का चराग़ बुझ जाता है? और उनकी आफ़त उन पर आ पड़ती है? और ख़ुदा अपने ग़ज़ब में उन्हें ग़म पर ग़म देता है?
\v 18 और वह ऐसे हैं जैसे हवा के आगे डंठल, और जैसे भूसा जिसे आँधी उड़ा ले जाती है?
\s5
\v 19 ~'ख़ुदा उसका गुनाह उसके बच्चों के लिए रख छोड़ता है, " वह उसका बदला उसी को दे ताकि वह ~जान ले।
\v 20 उसकी हलाकत को उसी की आँखें देखें, और वह क़ादिर-ए-मुतलक के ग़ज़ब में से पिए।
\v 21 क्यूँकि ~अपने बा'द उसको अपने घराने से क्या ख़ुशी है, जब उसके महीनों का सिलसिला ही काट डाला गया?
\s5
\v 22 क्या कोई ख़ुदा को 'इल्म सिखाएगा? जिस हाल की वह सरफ़राज़ों की 'अदालत ~करता है।
\v 23 कोई तो अपनी पूरी ताक़त में, चैन और सुख से रहता हुआ मर जाता है।
\v 24 उसकी दोहिनियाँ दूध से भरी हैं, और उसकी हड्डियों का गूदा तर है;
\s5
\v 25 और कोई अपने जी में कुढ़ कुढ़ कर मरता है, और कभी सुख नहीं पाता।
\v 26 वह दोनों मिट्टी में यकसाँ पड़ जाते हैं, और कीड़े उन्हें ढाँक लेते हैं।
\s5
\v 27 "देखो, मैं तुम्हारे ख़यालों को जानता हूँ, और उन मंसूबों को भी जो तुम बे इन्साफ़ी से मेरे ख़िलाफ़ बाँधते हो।
\v 28 क्यूँकि ~तुम कहते हो, 'अमीर का घर कहाँ रहा ? और वह ख़ेमा कहाँ है जिसमें शरीर बसते थे?
\s5
\v 29 क्या तुम ने रास्ता चलने वालों से कभी नहीं पूछा?और उनके आसार नहीं पहचानते
\v 30 कि शरीर आफ़त के दिन के लिए रख्खा जाता है, और ग़ज़ब के दिन तक पहुँचाया जाता है?
\s5
\v 31 कौन उसकी राह को उसके मुँह पर बयान करेगा? और उसके किए का बदला कौन उसे देगा?
\v 32 तोभी वह क़ब्र में पहुँचाया जाएगा, और उसकी क़ब्र पर पहरा दिया जाएगा।
\v 33 वादी के ढेले उसे पसंद हैं;और सब लोग उसके पीछे चले जाएँगे, जैसे उससे पहले बेशुमार लोग गए।
\s5
\v 34 ~इसलिए तुम क्यूँ मुझे झूठी तसल्ली देते हो, जिस हाल कि तुम्हारी बातों में झूँठ ही झूँठ है |
\s5
\c 22
\p
\v 1 तब अलीफ़ज़ तेमानी ने जवाब दिया,
\v 2 "क्या कोई इन्सान ख़ुदा के काम आ सकता है? यक़ीनन 'अक़्लमन्द अपने ही काम का है।
\v 3 क्या तेरे सादिक़ होने से क़ादिर-ए-मुतलक को कोई ख़ुशी है? या इस बात से कि तू अपनी राहों को कामिल करता है उसे कुछ फ़ायदा है?
\s5
\v 4 क्या इसलिए कि तुझे उसका ख़ौफ़ है, वह तुझे झिड़कता और तुझे 'अदालत में लाता है?
\v 5 क्या तेरी शरारत बड़ी नहीं? क्या तेरी बदकारियों की कोई हद है?
\s5
\v 6 क्यूँकि तू ने अपने भाई की चीज़ें बे वजह गिरवी रख्खी, नंगों का लिबास उतार लिया।
\v 7 तूने थके माँदों को पानी न पिलाया, और भूखों से रोटी को रोक रखा।
\v 8 लेकिन ज़बरदस्त आदमी ज़मीन का मालिक बना, और 'इज़्ज़तदार आदमी उसमें बसा।
\s5
\v 9 तू ने बेवाओं को ख़ाली चलता किया, और यतीमों के बाज़ू~तोड़े गए।
\v 10 इसलिए फंदे तेरी चारों तरफ़ हैं, और नागहानी ख़ौफ़ तुझे सताता है।
\v 11 या ऐसी तारीकी कि तू देख नहीं सकता, और पानी की बाढ़ तुझे छिपाए लेती है।
\s5
\v 12 क्या आसमान की बुलन्दी में ख़ुदा नहीं?और तारों की बुलन्दी को देख वह कैसे ऊँचे हैं।
\v 13 ~फिर तू कहता है, कि 'ख़ुदा क्या जानता है? क्या वह गहरी तारीकी में से 'अदालत करेगा?
\v 14 पानी से भरे हुए बादल उसके लिए पर्दा हैं कि वह देख नहीं सकता; वह आसमान के दाइरे में सैर करता फिरता है। '
\s5
\v 15 क्या तू उसी पुरानी राह पर चलता रहेगा, जिस पर शरीर लोग चले हैं?
\v 16 जो अपने वक़्त से पहले उठा लिए गए, और सैलाब उनकी बुनियाद को बहा ले गया।
\v 17 जो ख़ुदा से कहते थे, 'हमारे पास से चला जा, 'और यह कि, 'क़ादिर-ए-मुतलक़ हमारे लिए कर क्या सकता है?'
\s5
\v 18 तोभी उसने उनके घरों को अच्छी अच्छी चीज़ों से भर दिया - लेकिन शरीरों की मशवरत मुझ से दूर है।
\v 19 सादिक़ यह देख कर ख़ुश होते हैं, और बे गुनाह उनकी हँसी उड़ाते हैं|
\v 20 और कहते हैं, कि "यक़ीनन वह जो हमारे ख़िलाफ़ उठे थे कट गए, और जो उनमें से बाक़ी रह गए थे, उनको आग ने भस्म कर दिया है।'
\s5
\v 21 ~"उससे मिला रह, तो सलामत रहेगा;और इससे तेरा भला होगा।
\v 22 मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, कि शरी'अत को उसी की ज़बानी क़ुबूल कर और उसकी बातों को अपने दिल में रख ले।
\s5
\v 23 अगर तू क़ादिर-ए-मुतलक़ की तरफ़ फिरे तो बहाल किया जाएगा। बशर्ते कि तू नारास्ती को अपने ख़ेमों ~से दूर कर दे।
\v 24 तू अपने ख़ज़ाने' को मिट्टी में, और ओफ़ीर के सोने को नदियों के पत्थरों में डाल दे,
\v 25 तब क़ादिर-ए-मुतलक़ तेरा ख़ज़ाना, और तेरे लिए बेश क़ीमत चाँदी होगा।
\s5
\v 26 क्यूँकि तब ही तू क़ादिर-ए-मुतलक़ में मसरूर रहेगा, और ख़ुदा की तरफ़ अपना मुँह उठाएगा।
\v 27 तू उससे दु'आ करेगा, वह तेरी सुनेगा; और तू अपनी मिन्नतें पूरी करेगा।
\v 28 जिस बात को तू कहेगा, वह तेरे लिए हो जाएगी और नूर तेरी राहों को रोशन करेगा।
\s5
\v 29 जब वह पस्त करेंगे, तू कहेगा, 'बुलन्दी होगी। ' और वह हलीम आदमी को बचाएगा।
\v 30 वह उसको भी छुड़ा लेगा, जो बेगुनाह नहीं है;हाँ वह तेरे हाथों की पाकीज़गी की वजह से छुड़ाया जाएगा।"
\s5
\c 23
\p
\v 1 तब अय्यूब ने जवाब दिया,
\v 2 "मेरी शिकायत आज भी तल्ख़ है; मेरी मार मेरे कराहने से भी भारी है।
\s5
\v 3 काश कि मुझे मा'लूम होता कि वह मुझे कहाँ मिल सकता है ताकि ~मैं ऐन उसकी मसनद तक पहुँच जाता।
\v 4 मैं अपना मु'आमिला उसके सामने ~पेश करता, और अपना मुँह दलीलों से भर लेता।
\v 5 मैं उन लफ़्ज़ों को जान लेता जिनमें वह ~मुझे जवाब देता और जो कुछ वह मुझ से कहता मैं समझ लेता।
\s5
\v 6 क्या वह अपनी क़ुदरत की 'अज़मत में मुझ से लड़ता? नहीं, बल्कि वह मेरी तरफ़ तवज्जुह करता।
\v 7 रास्तबाज़ वहाँ उसके साथ बहस कर सकते, यूँ मैं अपने मुन्सिफ़ के हाथ से हमेशा के लिए रिहाई पाता।
\s5
\v 8 "देखो, मैं आगे जाता हूँ लेकिन वह वहाँ नहीं, और पीछे हटता हूँ लेकिन मैं उसे देख नहीं सकता।
\v 9 बाएँ हाथ फिरता हूँ जब वह काम करता है, लेकिन वह मुझे दिखाई नहीं देता; वह दहने हाथ की तरफ़ छिप जाता है, ऐसा कि मैं उसे देख नहीं सकता।
\s5
\v 10 लेकिन वह उस रास्ते को जिस पर मैं चलता हूँ जानता है; जब वह मुझे पालेगा तो मैं सोने के तरह निकल आऊँगा।
\v 11 मेरा पाँव उसके क़दमों से लगा रहा है। मैं उसके रास्ते पर चलता रहा हूँ और नाफ़रमान नहीं हुआ।
\v 12 ~मैं उसके लबों के हुक्म से हटा नहीं;मैंने उसके मुँह की बातों को अपनी ज़रूरी ख़ुराक से भी ज़्यादा ज़ख़ीरा किया।
\s5
\v 13 लेकिन वह एक ख़याल में रहता है, और कौन उसको फिरा सकता है? और जो कुछ उसका जी चाहता है ~करता है।
\v 14 क्यूँकि जो कुछ मेरे लिए मुक़र्रर है, वह पूरा करता है; और बहुत सी ऐसी बातें उसके हाथ में हैं।
\s5
\v 15 इसलिए मैं उसके सामने घबरा जाता हूँ, मैं जब सोचता हूँ तो उससे डर जाता हूँ।
\v 16 क्यूँकि ख़ुदा ने मेरे दिल को बूदा कर डाला है, और क़ादिर-ए-मुतलक़ ने मुझ को घबरा दिया है।
\v 17 इसलिए कि मैं इस ज़ुल्मत से पहले काट डाला न गया और उसने बड़ी तारीकी को मेरे सामने से न छिपाया।
\s5
\c 24
\p
\v 1 "क़ादिर-ए-मुतलक़ ने वक़्त क्यूँ नहीं ठहराए, और जो उसे जानते हैं वह उसके दिनों को क्यूँ नहीं देखते?
\s5
\v 2 ऐसे लोग भी हैं जो ज़मीन की हदों को सरका देते हैं, वह रेवड़ों को ज़बरदस्ती ले जाते और उन्हें चराते हैं।
\v 3 वह यतीम के गधे को हाँक ले जाते हैं; वह बेवा के बैल को गिरा ~लेते हैं।
\v 4 वह मोहताज को रास्ते से हटा देते हैं, ज़मीन के ग़रीब इकट्ठे छिपते हैं।
\s5
\v 5 देखो, वह वीरान के गधों की तरह अपने काम को जाते और मशक़्क़त उठाकर' ख़ुराक ढूँडते हैं। वीरान उनके बच्चों के लिए ख़ुराक बहम पहुँचाता है।
\v 6 वह खेत में अपना चारा काटते हैं, और शरीरों के अंगूर की खू़शा चीनी करते हैं।
\v 7 वह सारी रात बे कपड़े नंगे पड़े रहते हैं, और जाड़ों में उनके पास कोई ओढ़ना नहीं होता।
\s5
\v 8 ~वह पहाड़ों की बारिश से भीगे रहते हैं, और किसी आड़ के न होने से चट्टान से लिपट जाते हैं।
\v 9 ऐसे लोग भी हैं जो यतीम को छाती पर से हटा लेते हैं और ग़रीबों से गिरवी लेते हैं।
\v 10 इसलिए वह ~बेकपड़े नंगे फिरते, और भूक के मारे पौले ढोते हैं।
\s5
\v 11 वह इन लोगों के अहातों में तेल निकालते हैं। वह उनके कुण्डों में अंगूर रौदते और प्यासे रहते हैं।
\v 12 आबाद शहर में से निकल कर लोग कराहते हैं, और ज़ख्मियों की जान फ़रियाद करती है। तोभी ख़ुदा इस हिमाक़त' का ख़्याल नहीं करता।
\s5
\v 13 "यह उनमें से हैं जो नूर से बग़ावत करते हैं; वह उसकी राहों को नहीं जानते, न उसके रास्तों पर क़ायम रहते हैं।
\v 14 खू़नी रोशनी होते ही उठता है। वह ग़रीबों और मोहताजों को मारडालता है, और रात को वह चोर की तरह है।
\s5
\v 15 ज़ानी की आँख भी शाम की मुन्तज़िर रहती है। वह कहता है किसी की नज़र मुझ पर न पड़ेगी, और वह अपना मुँह ढाँक लेता है।
\v 16 ~अंधेरे में वह घरों में सेंध मारते हैं, वह दिन के वक़्त छिपे रहते हैं; वह नूर को नहीं जानते।
\v 17 क्यूँकि सुबह उन लोगों के लिए ऐसी है जैसे मौत का साया इसलिए कि उन्हें मौत के साये की दहशत मा'लूम है।
\s5
\v 18 वह पानी की सतह पर तेज़ रफ़्तार हैं, ज़मीन पर उनके ज़मीन पर उनका ~हिस्सा मलऊन हैं वह ताकिस्तानों की राह पर नहीं चलते |
\v 19 ख़ुश्की और गर्मी बरफ़ानी पानी के नालों को सुखा देती हैं, ऐसा ही क़ब्र गुनहगारों के साथ करती है।
\s5
\v 20 रहम उसे भूल जाएगा, कीड़ा उसे मज़े ~सिखाएगा, उसकी याद फिर न होगी; नारास्ती दरख़्त की तरह तोड़ दी जाएगी।
\v 21 वह ~बाँझ को जो जनती नहीं, निगल जाता है, और बेवा के साथ भलाई नहीं करता।
\s5
\v 22 ख़ुदा अपनी कु़व्वत से ज़बरदस्तों को भी खींच लेता है; वह उठता है, और किसी को ज़िन्दगी का यक़ीन नहीं रहता।
\v 23 ख़ुदा उन्हें अम्न बख़्शता है और वह उसी में क़ायम रहते हैं, और उसकी आँखें उनकी राहों पर लगी रहती हैं।
\s5
\v 24 वह सरफ़राज़ तो होते हैं, लेकिन थोड़ी ही देर में जाते रहते हैं; बल्कि वह पस्त किए जाते हैं और सब दूसरों की तरह रास्ते से उठा लिए जाते, और अनाज की बालों की तरह काट डाले जाते हैं।
\v 25 ~और अगर यह यूँ ही नहीं है, तो कौन मुझे झूटा साबित करेगा और मेरी तकरीर को नाचीज़ ठहराएगा?”
\s5
\c 25
\p
\v 1 तब बिलदद सूखी ने जवाब दिया
\v 2 "हुकूमत और दबदबा उसके साथ है वह अपने बुलन्द मक़ामों में अमन रखता है।
\v 3 क्या उसकी फ़ौजों की कोई ता'दाद है? और कौन है जिस पर उसकी रोशनी नहीं पड़ती?
\s5
\v 4 फिर इन्सान क्यूँकर ख़ुदा के सामने रास्त ठहर सकता है? या वह जो 'औरत से पैदा हुआ है क्यूँकर पाक हो सकता है?
\v 5 देख, चाँद में भी रोशनी नहीं, और तारे उसकी नज़र में पाक नहीं।
\v 6 फिर भला इन्सान का जो महज़ कीड़ा है, और आदमज़ाद जो सिर्फ़ किरम है क्या ज़िक्र|"
\s5
\c 26
\p
\v 1 तब अय्यूब ने जवाब दिया,
\v 2 जो बे ताक़त उसकी तूने कैसी मदद की; जिस बाज़ू में कु़व्वत न थी, उसको तू ने कैसा संभाला।
\v 3 नादान को तूने कैसी सलाह दी, और हक़ीक़ी पहचान ख़ूब ही बताई।
\v 4 तू ने जो बातें कहीं? इसलिए किस से और किसकी रूह तुझ में से हो कर निकली ?"
\s5
\v 5 ‘मुर्दों की रूहें पानी और उसके रहने वालों के नीचे काँपती हैं।
\v 6 पाताल उसके सामने खुला है, और जहन्नुम बेपर्दा है।
\s5
\v 7 वह शिमाल को फ़ज़ा में फैलाता है, और ज़मीन को ख़ला में लटकाता है।
\v 8 वह अपने पानी से भरे हुए बादलों पानी को बाँध देता और बादल उसके बोझ से फटता नहीं।
\s5
\v 9 वह अपने तख़्त को ढांक लेता है और उसके ऊपर अपने बादल को तान देता है।
\v 10 उसने रोशनी और अंधेरे के मिलने की जगह तक, पानी की सतह पर हद बाँध दी है।
\s5
\v 11 आसमान के सुतून काँपते, और और झिड़की से हैरान होते हैं।
\v 12 वह अपनी क़ुदरत से समन्दर को तूफ़ानी करता, और अपने फ़हम से रहब को छेद देता है।
\s5
\v 13 उसके दम से आसमान आरास्ता होता है, उसके हाथ ने तेज़रू साँप को छेदा है।
\v 14 देखो, यह तो उसकी राहों के सिर्फ़ किनारे हैं, और उसकी कैसी धीमी आवाज़ हम सुनते हैं। लेकिन कौन उसकी क़ुदरत की गरज़ को समझ सकता है?”
\s5
\c 27
\p
\v 1 और अय्यूब ने फिर अपनी मिसाल शुरू' की और कहने लगा,
\v 2 "ज़िन्दा ख़ुदा की क़सम, जिसने मेरा हक़ छीन लिया; और क़ादिर-ए-मुतलक़ की क़सम, जिसने मेरी जान को दुख दिया है।
\v 3 (क्यूँकि मेरी जान मुझ में अब तक सालिम है और ख़ुदा का रूह मेरे नथनों में है)।
\s5
\v 4 यक़ीनन मेरे लब नारास्ती की बातें न कहेंगे, न मेरी ज़बान से फ़रेब की बात निकलेगी।
\v 5 ख़ुदा न करे कि मैं तुम्हें रास्त ठहराऊँ, मैं मरते दम तक अपनी रास्ती ~को छोड़ूँगा।
\s5
\v 6 मैं अपनी सदाक़त पर क़ायम हूँ और उसे न छोड़ूँगा, जब तक मेरी ज़िन्दगी है, मेरा दिल मुझे मुजरिम न ठहराएगा।
\v 7 "मेरा दुश्मन शरीरों की तरह हो, और मेरे ख़िलाफ़ उठने वाला नारास्तों की तरह।
\s5
\v 8 क्यूँकि गो बे दीन दौलत हासिल कर ले तोभी उसकी क्या उम्मीद है, ? जब ख़ुदा उसकी जान ले ले,
\v 9 क्या ख़ुदा उसकी फ़रियाद सुनेगा, जब मुसीबत उस पर आए?
\v 10 क्या वह क़ादिर-ए-मुतलक में ख़ुश रहेगा, और हर वक़्त ख़ुदा से दु'आ करेगा?
\s5
\v 11 मैं तुम्हें ख़ुदा के बर्ताव" की तालीम दूँगा, और क़ादिर-ए-मुतलक़ की बात न छिपाऊँगा।
\v 12 देखो, तुम सभों ने ख़ुद यह देख चुके हो, फिर तुम ख़ुद बीन कैसे हो गए |"
\s5
\v 13 ~"ख़ुदा की तरफ़ से शरीर आदमी का हिस्सा, और ज़ालिमों की मीरास जो वह क़ादिर-ए-मुतलक़ की तरफ़ से पाते हैं, यही है।
\v 14 अगर उसके बच्चे बहुत हो जाएँ तो वह तलवार के लिए हैं, और उसकी औलाद रोटी से सेर न होगी।
\s5
\v 15 उसके बाक़ी लोग मर कर दफ़्न होंगे, और उसकी बेवाएँ नौहा न करेंगी।
\v 16 चाहे वह ख़ाक की तरह चाँदी जमा' कर ले, और कसरत से लिबास तैयार कर रख्खें
\v 17 वह तैयार कर ले, लेकिन जो रास्त हैं वह उनको पहनेंगे और जो बेगुनाह हैं वह उस चाँदी को बाँट लेंगे।
\s5
\v 18 उसने मकड़ी की तरह अपना घर बनाया, और उस झोंपड़ी की तरह जिसे रखवाला बनाता है।
\v 19 वह लेटता है दौलतमन्द, लेकिन वह दफ़न न किया जाएगा। वह अपनी आँख खोलता है और वह है ही नहीं।
\s5
\v 20 दहशत उसे पानी की तरह आ लेती है; रात को तूफ़ान उसे उड़ा ले जाता है।
\v 21 पूरबी हवा उसे उड़ा ले जाती है, और वह जाता रहता है। वह उसे उसकी जगह से उखाड़ फेंकती है|
\s5
\v 22 क्यूँकि ख़ुदा उस पर बरसाएगा और छोड़ने का नहीं वह उसके हाथ से निकल भागना चाहेगा|
\v 23 लोग उस पर तालियाँ बजाएँगे, और सुस्कार कर उसे उसकी जगह से निकाल देंगे|
\s5
\c 28
\p
\v 1 यक़ीनन चाँदी की कान होती है, और सोने के लिए जगह होती है, जहाँ ताया जाता है |
\v 2 लोहा ज़मीन से निकाला जाता है, और पीतल पत्थर में से गलाया ~जाता है|
\s5
\v 3 इन्सान तारीकी की तह तक पहुँचता है, और ज़ुल्मात और मौत के साए की इन्तिहा तक पत्थरों की तलाश करता है|
\v 4 आबादी से दूर वह सुरंग लगाता है, आने जाने वालों के पाँव से बे ख़बर और लोगों से दूर वह लटकते और झूलते हैं |
\s5
\v 5 और ज़मीन उस से ख़ूराक पैदा होती है, और उसके अन्दर गोया आग से इन्क़लाब होता रहता है |
\v 6 उसके पत्थरों में नीलम है, और उसमें सोने के ज़र्रे हैं
\s5
\v 7 उस राह को कोई शिकारी परिन्दा नहीं जानता न कुछ की आँख ने उसे देखा है |
\v 8 न मुतक़ब्बिर जानवर उस पर चले हैं, न खू़नख़्वार बबर उधर से गुज़रा है|
\s5
\v 9 वह चकमक की चट्टान पर हाथ लगाता है, वह पहाड़ों को जड़ ही से उखाड़ देता है|
\v 10 वह चट्टानों में से नालियाँ काटता है, उसकी आँख हर एक बेशक़ीमत चीज़ को देख लेती है|
\v 11 वह नदियों को मसदूद करता है, कि वह टपकती भी नहीं और छिपी चीज़ को वह रोशनी में निकाल लाता है|
\s5
\v 12 लेकिन हिकमत कहाँ मिलेगी? और 'अक़्लमन्दी की जगह कहाँ है
\v 13 न इन्सान उसकी क़द्र जानता है, न वह ज़िन्दों की सर ज़मीन में मिलती है|
\v 14 गहराव कहता है, वह मुझ में नहीं है, और समन्दर भी कहता है वह मेरे पास नहीं है|
\s5
\v 15 न वह सोने के बदले मिल सकती है, न चाँदी उसकी क़ीमत के लिए तुलेगी|
\v 16 न ओफ़ीर का सोना उसका मोल हो सकता है और न क़ीमती सुलैमानी पत्थर या नीलम|
\v 17 न सोना और काँच उसकी बराबरी कर सकते हैं, न चोखे सोने के ज़ेवर उसका बदल ठहरेंगे|
\s5
\v 18 मोंगे और बिल्लौर का नाम भी नहीं लिया जाएगा, बल्कि हिकमत की क़ीमत मरजान से बढ़कर है|
\v 19 न कूश का पुखराज उसके बराबर ठहरेगा न चोखा सोना उसका मोल होगा|
\s5
\v 20 फिर हिकमत कहाँ ~से आती है, और 'अक़्लमन्दी~की जगह कहाँ है|
\v 21 जिस हाल कि वह सब ज़िन्दों की आँखों से छिपी है, और हवा के परिंदों से पोशीदा रख्खी गई है
\v 22 हलाकत और मौत कहती है, 'हम ने अपने कानों से उसकी अफ़वाह तो सुनी है। "
\s5
\v 23 "ख़ुदा उसकी राह को जानता है, और उसकी जगह से वाक़िफ़ है।
\v 24 क्यूँकि वह ज़मीन की इन्तिहा तक नज़र करता है, और सारे आसमान के नीचे देखता है;
\v 25 ताकि वह हवा का वज़न ठहराए, बल्कि वह पानी को पैमाने से नापता है।
\s5
\v 26 जब उसने बारिश के लिए क़ानून, और रा'द की बर्क़ के लिए रास्ता ठहराया,
\v 27 तब ही उसने उसे देखा और उसका बयान किया, उसने उसे ~क़ायम और ढूँड निकाला।
\v 28 और उसने इन्सान से कहा, देख, ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ ही हिकमत है; और बदी से दूर रहना यही 'अक़्लमन्दी~है। ' "
\s5
\c 29
\p
\v 1 और अय्यूब फिर अपनी मिसाल लाकर कहने लगा,
\v 2 "काश कि मैं ऐसा होता जैसे गुज़रे महीनों में, या'नी जैसा उन दिनों में जब ख़ुदा मेरी हिफ़ाज़त करता था।
\v 3 जब उसका चराग़ मेरे सिर पर रोशन रहता था, और मैं अँधेरे में उसके नूर के ज़रिए' से चलता था |
\s5
\v 4 जैसा में अपनी बरोमन्दी के दिनों में था, जब ख़ुदा की ख़ुशनूदी ~मेरे ख़ेमे पर थी |
\v 5 जब क़ादिर-ए-मुतलक़ भी मेरे साथ था, और मेरे बच्चे मेरे साथ थे।
\v 6 जब मेरे क़दम मख्खन से धुलते थे, और चट्टान मेरे लिए तेल की नदियाँ बहाती थी।
\s5
\v 7 जब मैं शहर के फाटक पर जाता और अपने लिए चौक में बैठक ~तैयार करता था;
\v 8 तो जवान मुझे देखते और छिप जाते, और ~'उम्र रसीदा उठ खड़े होते थे।
\s5
\v 9 ~हाकिम बोलना बंद कर देते, और अपने हाथ अपने मुँह पर रख लेते थे।
\v 10 रईसों की आवाज़ थम जाती, और उनकी ज़बान तालू से चिपक जाती थी।
\s5
\v 11 क्यूँकि ~कान जब मेरी सुन लेता तो मुझे मुबारक कहता था, और आँख जब मुझे देख लेती तो मेरी गावाही देती थी;
\v 12 क्यूँकि मैं ग़रीब को जब वह फ़रियाद करता~छुड़ाता था और यतीमों को भी जिसका कोई मददगार न था।
\v 13 हलाक होनेवाला मुझे दु'आ देता था, और मैं बेवा के दिल को ऐसा ख़ुश करता था कि वह गाने लगती थी।
\s5
\v 14 मैंने सदाक़त को पहना और उससे मुलब्बस हुआ: ~मेरा इन्साफ़ गोया जुब्बा और 'अमामा था।
\v 15 ~मैं अंधों के लिए आँखें था, और लंगड़ों के लिए पाँव।
\v 16 मैं मोहताज का बाप था, और मैं अजनबी के मु'आमिले की भी तहक़ीक़ करता था।
\s5
\v 17 मैं नारास्त के जबड़ों को तोड़ डालता, और उसके दाँतों से शिकार छुड़ालेता था।
\v 18 तब मैं कहता था, ~कि मैं अपने आशियाने में हूँगा और मैं अपने दिनों को रेत की तरह बे शुमार करूँगा,
\v 19 मेरी जड़ें पानी तक फैल गई हैं, और रात भर ओस मेरी शाखों पर रहती है;
\s5
\v 20 मेरी शौकत मुझ में ताज़ा है, और मेरी कमान मेरे हाथ में नई की जाती है। '
\v 21 'लोग मेरी तरफ़ कान लगाते और मुन्तज़िर रहते, और मेरी मशवरत के लिए ख़ामोश हो जाते थे।
\v 22 मेरी बातों के बा'द, वह फिर न बोलते थे; और मेरी तक़रीर उन पर टपकती थी
\s5
\v 23 वह मेरा ऐसा इन्तिज़ार करते थे जैसा बारिश का; और अपना मुँह ऐसा फैलाते थे जैसे पिछले मेंह के लिए।
\v 24 जब वह मायूस होते थे तो मैं उन पर मुस्कराता था, और मेरे चेहरे की रोनक की उन्होंने कभी न बिगाड़ा।
\s5
\v 25 मैं उनकी राह को चुनता, और सरदार की तरह बैठता, और ऐसे रहता था जैसे फ़ौज में बादशाह, और जैसे वह जो ग़मज़दों को तसल्ली देता है।
\s5
\c 30
\p
\v 1 "लेकिन अब तो वह जो मुझ से कम 'उम्र हैं मेरा मज़ाक़ करते हैं, जिनके बाप-दादा को अपने गल्ले के कुत्तों के साथ रखना भी मुझे नागवार था।
\v 2 बल्कि उनके हाथों की ताक़त मुझे किस बात का फ़ायदा पहुँचाएगी? वह ऐसे आदमी हैं जिनकी जवानी का ज़ोर ज़ाइल हो गया।
\v 3 वह ग़ुरबत और क़हत के मारे दुबले हो गए हैं, वह वीरानी और सुनसानी की तारीकी में ख़ाक चाटते हैं।
\s5
\v 4 वह झाड़ियों के पास लोनिये का साग तोड़ते हैं, और झाऊ की जड़ें उनकी ख़ूराक है।
\v 5 वह लोगों के बीच दौड़ाये गए हैं, लोग उनके पीछे ऐसे चिल्लाते हैं जैसे चोर के पीछे।
\v 6 उनको वादियों के दरख़्तों में, और ग़ारों और ज़मीन के भट्टों में रहना पड़ता है।
\s5
\v 7 वह झाड़ियों के बीच ~रैंकते, और झंकाड़ों के नीचे इकट्ठे पड़े रहते हैं।
\v 8 वह बेवक़ूफ़ों बल्कि कमीनों की औलाद हैं, वह मुल्क से मार-मार कर निकाले गए थे।
\s5
\v 9 और अब मैं उनका गीत बना हूँ, बल्कि उनके लिए एक मिसाल की तरह हूँ।
\v 10 वह मुझ से नफ़रत करते; वह मुझ से दूर खड़े होते, और मेरे मुँह पर थूकने से बाज़ नहीं रहते हैं।
\v 11 क्यूँकि खु़दा ने मेरा चिल्ला ढीला कर दिया और मुझ पर आफ़त भेजी, इसलिए वह मेरे सामने बेलगाम हो गए हैं।
\s5
\v 12 मेरे दहने हाथ पर लोगों का मजमा' उठता है; वह मेरे पाँव को एक तरफ़ सरका देते हैं, और मेरे ख़िलाफ़ अपनी मुहलिक राहें निकालते हैं |
\v 13 ~ऐसे लोग भी जिनका कोई मददगार नहीं, मेरे रास्ते को बिगाड़ते, और मेरी मुसीबत को बढ़ाते हैं'।
\s5
\v 14 वह गोया बड़े सुराख़ में से होकर आते हैं, और तबाही में मुझ पर टूट पड़ते हैं।
\v 15 ~दहशत मुझ पर तारी हो गई'| वह हवा की तरह मेरी आबरू को उड़ाती है। मेरी 'आफ़ियत बादल की तरह जाती रही।
\s5
\v 16 "अब तो मेरी जान मेरे अंदर गुदाज़ हो गई, दुख के दिनों ने मुझे जकड़ लिया है।
\v 17 ~रात के वक़्त मेरी हड्डियाँ मेरे अंदर छिद जाती हैं और वह दर्द जो मुझे खाए जाते हैं, दम नहीं लेते।
\s5
\v 18 मेरे मरज़ की शिद्दत से मेरी पोशाक बदनुमा हो गयी; वह मेरे पैराहन के गिरेबान की तरह मुझ से लिपटी हुई है।
\v 19 उसने मुझे कीचड़ में धकेल दिया है, मैं ख़ाक और राख की तरह हो गया हूँ।
\s5
\v 20 मैं तुझ से फ़रियाद करता हूँ, और तू मुझे जवाब नहीं देता; मैं खड़ा होता हूँ, और तू मुझे घूरने लगता है।
\v 21 तू बदल कर मुझ पर बे रहम हो गया है; अपने बाज़ू की ताक़त से तू मुझे सताता है।
\s5
\v 22 तू मुझे ऊपर उठाकर हवा पर सवार करता है, और मुझे आँधी में घुला देता है।
\v 23 क्यूँकि मैं जानता हूँ कि तू मुझे मौत और उस घर तक जो सब ज़िन्दों के लिए मुक़र्रर है।
\s5
\v 24 'तोभी क्या तबाही के वक़्त कोई अपना हाथ न बढ़ाएगा, और मुसीबत में फ़रियाद न करेगा?
\v 25 क्या मैं दर्दमन्द के लिए रोता न था? क्या मेरी जान मोहताज के लिए ग़मग़ीन न होती थी?
\v 26 जब मैं भलाई का मुन्तज़िर था, तो बुराई पेश आई जब मैं रोशनी के लिए ठहरा था, तो तारीकी आई।
\s5
\v 27 मेरी अंतड़ियाँ उबल रही हैं और आराम नहीं पातीं; मुझ पर मुसीबत के दिन आ पड़े हैं।
\v 28 मैं बगै़र धूप के काला हो गया हूँ। मैं मजमे' में खड़ा होकर मदद के लिए फ़रियाद करता हूँ।
\v 29 मैं गीदड़ों का भाई, और शुतर मुर्ग़ों का साथी हूँ।
\s5
\v 30 मेरी खाल काली होकर मुझ पर से गिरती जाती है और मेरी हड्डियाँ हरारत से जल गई।
\v 31 इसी लिए मेरे सितार से मातम, और मेरी बाँसली से रोने की आवाज़ निकलती है।
\s5
\c 31
\p
\v 1 "मैंने अपनी आँखों से 'अहद किया है। फिर मैं किसी कुँवारी पर क्यूँकर नज़र करूँ|
\v 2 क्यूँकि ऊपर से ख़ुदा की तरफ़ से क्या हिस्सा है और 'आलम-ए-बाला से क़ादिर-ए-मुतलक़ की तरफ़ से क्या मीरास ~है?
\s5
\v 3 क्या वह नारास्तों के लिए आफ़त और बदकिरदारों के लिए तबाही नहीं है|
\v 4 क्या वह मेरी राहों को नहीं देखता, और मेरे सब क़दमों को नहीं गिनता?
\s5
\v 5 अगर मैं बतालत से चला हूँ, और मेरे पाँव ने दग़ा के लिए जल्दी की है|
\v 6 (तो मैं ठीक तराज़ू में तोला जाऊँ, ताकि ख़ुदा मेरी रास्ती को जान ले)।
\s5
\v 7 अगर मेरा क़दम रास्ते से फिरा हुआ है, और मेरे दिल ने मेरी आँखों की पैरवी की है, और अगर मेरे हाथों पर दाग़ लगा है;
\v 8 तो मैं बोऊँ और दूसरा खाए, और मेरे खेत की पैदावार उखाड़ दी जाए।
\s5
\v 9 "अगर मेरा दिल किसी 'औरत पर फ़रेफ़्ता हुआ, और मैं अपने पड़ोसी के दरवाज़े पर घात में बैठा;
\v 10 ~तो मेरी बीवी दूसरे के लिए पीसे, और गै़र मर्द उस पर झुकें।
\s5
\v 11 क्यूँकि यह बहुत बड़ा जुर्म होता, बल्कि ऐसी बुराई होती जिसकी सज़ा क़ाज़ी देते हैं।
\v 12 ~क्यूँकि वह ऐसी आग है जो जलाकर भस्म कर देती है, और मेरे सारे हासिल को जड़ से बर्बाद कर डालती है।
\s5
\v 13 "अगर मैंने अपने ख़ादिम या अपनी ख़ादिमा का हक़ मारा हो, जब उन्होंने मुझ से झगड़ा किया;
\v 14 तो जब ख़ुदा उठेगा, तब मैं क्या करूँगा? और जब वह आएगा, तो मैं उसे क्या जवाब दूँगा?
\v 15 क्या वही उसका बनाने वाला नहीं, जिसने मुझे पेट में बनाया? और क्या एक ही ने हमारी सूरत रहम में नहीं बनाई?
\s5
\v 16 अगर मैंने मोहताज से उसकी मुराद रोक रखी, या ऐसा किया कि बेवा की आँखें रह गई
\v 17 या अपना निवाला अकेले ही खाया हो, और यतीम उसमें से खाने न पाया
\v 18 (नहीं, बल्कि मेरे लड़कपन से वह मेरे साथ ऐसे पला जैसे बाप के साथ, और मैं अपनी माँ के बतन ही से बेवा का रहनुमा रहा हूँ)।
\s5
\v 19 ~अगर मैंने देखा कि कोई बेकपड़े मरता है, या किसी मोहताज के पास ओढ़ने को नहीं;
\v 20 अगर उसकी कमर ने मुझ को दु'आ न दी हो, और अगर वह मेरी भेड़ों की ऊन से गर्म न हुआ हो।
\v 21 अगर मैंने किसी यतीम पर हाथ उठाया हो, क्यूँकि फाटक पर मुझे अपनी मदद दिखाई दी;
\s5
\v 22 तो मेरा कंधा मेरे शाने से उतर जाए, और मेरे बाज़ू की हड्डी टूट जाए।
\v 23 क्यूँकि ~मुझे ख़ुदा की तरफ़ से आफ़त का ख़ौफ़ था, और उसकी बुजु़र्गी की वजह से मैं कुछ न कर सका।
\s5
\v 24 "अगर मैंने सोने पर भरोसा किया हो, और ख़ालिस सोने से कहा, मेरा ऐ'तिमाद तुझ पर है।
\v 25 अगर मैं इसलिए कि मेरी दौलत फ़िरावान थी, और मेरे हाथ ने बहुत कुछ हासिल कर लिया था, नाज़ाँ हुआ।
\s5
\v 26 अगर मैंने सूरज पर जब वह चमकता है, नज़र की हो या चाँद पर जब वह आब-ओ-ताब में चलता है,
\v 27 और मेरा दिल चुपके से 'आशिक़ हो गया हो, और मेरे मुँह ने मेरे हाथ को चूम लिया हो;
\v 28 तो यह भी ऐसा गुनाह है जिसकी सज़ा क़ाज़ी देते हैं क्यूँकि ~यूँ मैंने ख़ुदा का जो 'आलम-ए-बाला पर है, इंकार किया होता।
\s5
\v 29 ~'अगर मैं अपने नफ़रत करने वाले की हलाकत से ख़ुश हुआ, या जब उस पर आफ़त आई तो ख़ुश हुआ;
\v 30 (हाँ, मैंने तो अपने मुँह को इतना भी गुनाह न करने दिया के ला'नत दे कर उसकी मौत के लिए दु'आ करता);
\s5
\v 31 अगर मेरे ख़ेमे के लोगों ने यह न कहा हो, 'ऐसा कौन है जो उसके यहाँ गोश्त से सेर न हुआ?'
\v 32 (परदेसी को गली कूचों में टिकना न पड़ा, बल्कि ~मैं मुसाफ़िर के लिए अपने दरवाज़े खोल देता था)।
\s5
\v 33 अगर आदम की तरह अपने गुनाह अपने सीने में छिपाकर, मैंने अपनी ग़लतियों पर पर्दा डाला हो;
\v 34 इस वजह से कि मुझे 'अवाम के लोगों का ख़ौफ़ था, और मैं ख़ान्दानों की हिकारत से डर गया, यहाँ तक कि मैं ख़ामोश हो गया और दरवाज़े से बाहर न निकला
\s5
\v 35 काश कि कोई मेरी सुनने वाला होता! (यह लो मेरा दस्तख़त। क़ादिर-ए-मुतलक़ मुझे जवाब दे)। काश कि मेरे मुख़ालिफ़ के दा'वे का सुबूत होता।
\v 36 यक़ीनन मैं उसे अपने कंधे पर लिए फिरता; और उसे अपने लिए 'अमामे की तरह बाँध लेता।
\v 37 मैं उसे अपने क़दमों की ता'दाद बताता; अमीर की तरह मैं उसके पास जाता।
\s5
\v 38 "अगर मेरी ज़मीन मेरे ख़िलाफ़ फ़रियाद करती हों, और उसकी रेघारियाँ मिलकर रोती हों,
\v 39 अगर मैंने बेदाम उसके फल खाए हों, या ऐसा किया कि उसके मालिकों की जान गई;
\v 40 ~तो गेहूँ के बदले ऊँट कटारे, और जौ के बदले कड़वे दाने उगें। ”अय्यूब की बातें तमाम हुई।
\s5
\c 32
\p
\v 1 तब उन तीनों आदमी ने अय्यूब को जवाब देना छोड़ दिया, इसलिए कि वह अपनी नज़र में सच्चा था।
\v 2 तब इलीहू बिन-बराकील बूज़ी का, जुराम के ख़ान्दान से था, क़हर से भड़का। उसका क़हर अय्यूब पर भड़का, इसलिए कि उसने ख़ुदा को नहीं बल्कि अपने आप को रास्त ठहराया।
\s5
\v 3 और उसके तीनों दोस्तों पर भी उसका क़हर भड़का, इसलिए कि उन्हें जवाब तो सूझा नहीं, तोभी उन्होंने अय्यूब को मुजरिम ठहराया।
\v 4 और इलीहू अय्यूब से बात करने से इसलिए रुका रहा कि वह उससे बड़े थे।
\v 5 जब इलीहू ने देखा कि उन तीनों के मुँह में जवाब न रहा, तो उसका क़हर भड़क उठा।
\s5
\v 6 और बराकील बूज़ी का बेटा इलीहू कहने लगा, "मैं जवान हूँ और तुम बहुत बुज़ुर्ग हो, इसलिए मैं रुका रहा और अपनी राय देने की हिम्मत न की।
\v 7 मैं कहा साल खूरदह लोग बोलें और 'उम्र रसीदा हिकमत से खायें
\s5
\v 8 लेकिन इन्सान में रूह है, और क़ादिर-ए-मुतलक़ का दम~अक़्ल~बख़्शता है।
\v 9 बड़े आदमी ही 'अक़्लमन्द नहीं होते, और बुज़ुर्ग ही इन्साफ़ को नहीं समझते।
\v 10 इसलिए मैं कहता हूँ, 'मेरी सुनो, मैं भी अपनी राय दूँगा। '
\s5
\v 11 ~"देखो, मैं तुम्हारी बातों के लिए रुका रहा, जब तुम अल्फ़ाज़ की तलाश में थे; मैं तुम्हारी दलीलों का मुन्तज़िर रहा।
\v 12 बल्कि मैं तुम्हारी तरफ़ तवज्जुह करता रहा, और देखो, तुम में कोई न था जो अय्यूब को क़ायल करता, या उसकी बातों का जवाब देता।
\s5
\v 13 ख़बरदार, यह न कहना कि हम ने हिकमत को पा लिया है, ख़ुदा ही उसे लाजवाब कर सकता है न कि इन्सान।
\v 14 क्यूँकि न उसने मुझे अपनी बातों का निशाना बनाया, न मैं तुम्हारी तरह तक़रीरों से उसे जवाब दूँगा।
\s5
\v 15 वह हैरान हैं, वह अब जवाब नहीं देते;उनके पास कहने को कोई बात न रही।
\v 16 और क्या मैं रुका रहूँ, इसलिए कि वह बोलते नहीं? इसलिए कि वह चुपचाप खड़े हैं और अब जवाब नहीं देते?
\s5
\v 17 मैं भी अपनी बात कहूँगा, मैं भी अपनी राय दूँगा।
\v 18 क्यूँकि मैं बातों से भरा हूँ, और जो रूह मेरे अंदर है वह ~मुझे मज़बूर करती है।
\v 19 देखो, मेरा पेट बेनिकास शराब की तरह ~है, वह नई मश्कों की तरह फटने ही को है।
\s5
\v 20 ~मैं बोलूँगा ताकि तुझे तसल्ली हो: मैं अपने लबों को खोलूँगा और जवाब दूँगा।
\v 21 न मैं किसी आदमी की तरफ़दारी करूँगा, न मैं किसी शख़्स को ख़ुशामद के ख़िताब दूँगा।
\v 22 क्यूँकि मुझे ख़ुश करने का ख़िताब देना नहीं आता, वर्ना मेरा बनाने वाला मुझे जल्द उठा लेता।
\s5
\c 33
\p
\v 1 "तोभी ऐ अय्यूब ~ज़रा मेरी तक़रीर सुन ले, और मेरी सब बातों पर कान लगा।
\v 2 देख, मैंने अपना मुँह खोला है; मेरी ज़बान ने मेरे मुँह में सुखन आराई की है।
\v 3 मेरी बातें मेरे दिल की रास्तबाज़ी को ज़ाहिर करेंगी। और मेरे लब जो कुछ जानते हैं, उसी को सच्चाई से कहेंगे।
\s5
\v 4 ख़ुदा की रूह ने मुझे बनाया है, और क़ादिर-ए-मुतलक़ का दम मुझे ज़िन्दगी बख़्शता है।
\v 5 अगर तू मुझे जवाब दे सकता है तो दे, और अपनी बातों को मेरे सामने तरतीब देकर खड़ा हो जा।
\s5
\v 6 ~देख, ख़ुदा के सामने मैं तेरे बराबर हूँ। मैं भी मिट्टी से बना हूँ।
\v 7 देख, मेरा रौ'ब तुझे परेशान न करेगा, मेरा दबाव तुझ पर भारी न होगा।
\s5
\v 8 "यक़ीनन तू मेरे सुनते ही कहा है, और मैंने तेरी बातें सुनी हैं,
\v 9 कि 'मैं साफ़ और में बे तकसीर हूँ, मैं बे गुनाह हूँ, और मुझ में गुनाह नहीं।
\s5
\v 10 वह मेरे ख़िलाफ़ मौक़ा' ढूँडता है, वह मुझे अपना दुश्मन समझता है;
\v 11 वह मेरे दोनों पाँव को काठ में ठोंक देता है, वह मेरी सब राहों की निगरानी करता है। '
\v 12 ~"देख, मैं तुझे जवाब देता हूँ, इस बात में तू हक़ पर नहीं। क्यूँकि ख़ुदा इन्सान से बड़ा है।
\s5
\v 13 तू क्यूँ उससे झगड़ता है? क्यूँकि वह अपनी बातों में से किसी का हिसाब नहीं देता।
\v 14 क्यूँकि ख़ुदा एक बार बोलता है, बल्कि दो बार, चाहे इन्सान इसका ख़याल न करे।
\v 15 ख़्वाब में, रात के ख़्वाब में, जब लोगों को गहरी नींद आती है, और बिस्तर पर सोते वक़्त ;
\s5
\v 16 तब वह लोगों के कान खोलता है, और उनकी ता'लीम पर मुहर लगाता है,
\v 17 ताकि इन्सान को उसके मक़सद से रोके, और गु़रूर को इन्सान में से दूर करे।
\v 18 वह उसकी जान को गढ़े से बचाता है, और उसकी ज़िन्दगी तलवार की मार से।
\s5
\v 19 ~"वह अपने बिस्तर पर दर्द से तम्बीह पाता है, और उसकी हड्डियों में दाइमी जंग है।
\v 20 यहाँ तक कि उसका जी रोटी से, और उसकी जान लज़ीज़ खाने से नफ़रत करने लगती है।
\s5
\v 21 उसका गोश्त ऐसा सूख जाता है कि दिखाई नहीं देता; और उसकी हड्डियाँ जो दिखाई नहीं देती थीं, निकल आती हैं'।
\v 22 बल्कि उसकी जान गढ़े के क़रीब पहुँचती है, और उसकी ज़िन्दगी हलाक करने वालों के नज़दीक।
\s5
\v 23 वहाँ अगर उसके साथ कोई फ़रिश्ता हो, या हज़ार में एक ता'बीर करने वाला, जो इन्सान को बताए कि उसके लिए क्या ठीक है;
\v 24 तो वह उस पर रहम करता और कहता है, कि 'उसे गढ़े में जाने से बचा ले; मुझे फ़िदिया मिल गया है।
\s5
\v 25 तब उसका जिस्म बच्चे के जिस्म से भी ताज़ा होगा; और उसकी जवानी के दिन लौट आते हैं। '
\v 26 वह ख़ुदा से दु'आ करता है। और वह उस पर महेरबान होता है, ऐसा कि वह ख़ुशी से उसका मुँह देखता है; और वह इन्सान की सच्चाई को बहाल कर देता है।
\s5
\v 27 वह लोगों के सामने गाने और कहने लगता है, कि'मैंने गुनाह किया और हक़ को उलट दिया, और इससे मुझे फ़ायदा न हुआ।
\v 28 ~उसने मेरी जान को गढ़े में जाने से बचाया, और मेरी ज़िन्दगी रोशनी को देखेगी। '
\s5
\v 29 "देखो, ख़ुदा आदमी के साथ यह सब काम, दो बार बल्कि तीन बार करता है;
\v 30 ताकि उसकी जान को गढ़े से लौटा लाए, और वह ज़िन्दों के नूर से मुनव्वर हो।
\s5
\v 31 ऐ अय्यूब! ग़ौर से मेरी सुन; ख़ामोश रह और मैं बोलूँगा।
\v 32 ~अगर तुझे कुछ कहना है तो मुझे जवाब दे; बोल, क्यूँकि मैं तुझे रास्त ठहराना चाहता हूँ।
\v 33 अगर नहीं, तो मेरी सुन; ख़ामोश रह और मैं तुझे समझ सिखाऊँगा।
\s5
\c 34
\p
\v 1 इसके 'अलावा इलीहू ने यह भी कहा,
\v 2 "ऐ तुम 'अक़्लमन्द लोगों, मेरी बातें सुनो, और ऐ तुम जो अहल-ए-'इल्म हो, मेरी तरफ़ कान लगाओ;
\v 3 क्यूँकि कान बातों को परखता है, जैसे ज़बान' खाने को चखती है।
\s5
\v 4 जो कुछ ठीक है, हम अपने लिए चुन लें, जो भला है, हम आपस में जान लें।
\v 5 क्यूँकि अय्यूब ने कहा, 'मैं सादिक़ हूँ, और ख़ुदा ने मेरी हक़ तल्फ़ी की है।
\v 6 अगरचे मैं हक़ पर हूँ, तोभी झूटा ठहरता हूँ जबकि मैं बेक़ुसूर हूँ, मेरा ज़ख़्म ला 'इलाज है। '
\s5
\v 7 अय्यूब जैसा बहादुर कौन है, जो मज़ाक़ को पानी की तरह पी जाता है?
\v 8 जो बदकिरदारों की रफ़ाफ़त में चलता है, और शरीर लोगों के साथ फिरता है।
\v 9 क्यूँकि ~उसने कहा है, कि 'आदमी को कुछ फ़ायदा नहीं कि वह ख़ुदा में ख़ुश है। "
\s5
\v 10 "इसलिए ऐ अहल-ए-अक़्ल~मेरी सुनो, यह हरगिज़ हो नहीं सकता कि ख़ुदा शरारत का काम करे, और क़ादिर-ए-मुतलक़ गुनाह करे।
\v 11 वह इन्सान को उसके आ'माल के मुताबिक़ बदला देगा, वह ऐसा करेगा कि हर किसी को अपनी ही राहों के मुताबिक़ बदला मिलेगा।
\v 12 यक़ीनन ख़ुदा बुराई नहीं करेगा;क़ादिर-ए-मुतलक़ से बेइन्साफ़ी न होगी।
\s5
\v 13 किसने उसको ज़मीन पर इख़्तियार दिया? या किसने सारी दुनिया का इन्तिज़ाम किया है?
\v 14 अगर वह इन्सान से अपना दिल लगाए, अगर वह अपनी रूह और अपने दम को वापस ले ले;
\v 15 तो तमाम बशर इकट्ठे फ़ना हो जाएँगे, और इन्सान फिर मिट्टी में मिल जाएगा।
\s5
\v 16 "इसलिए अगर तुझ में समझ है तो इसे सुन ले, और मेरी बातों पर तवज्जुह कर।
\v 17 ~क्या वह जो हक़ से 'अदावत रखता है, हुकूमत करेगा? और क्या तू उसे जो 'आदिल और क़ादिर है, मुल्ज़िम ठहराएगा?
\s5
\v 18 वह तो बादशाह से कहता है, 'तू रज़ील है';और शरीफ़ों से, कि 'तुम शरीर हो'।
\v 19 वह उमर की तरफ़दारी नहीं करता, और अमीर को ग़रीब से ज़्यादा नहीं मानता, क्यूँकि वह सब उसी के हाथ की कारीगरी हैं।
\v 20 ~वह दम भर में आधी रात को मर जाते हैं, लोग हिलाए जाते हैं और गुज़र जाते हैं और ज़बरदस्त लोग बगै़र हाथ लगाए उठा लिए जाते हैं।
\s5
\v 21 "क्यूँकि उसकी आँखें आदमी की राहों पर लगीं हैं, और वह उसकी आदतों को देखता है;
\v 22 न कोई ऐसी तारीकी न मौत का साया है, जहाँ बद किरदार छिप सकें।
\v 23 क्यूँकि उसे ज़रूरी नहीं कि आदमी का ज़्यादा ख़याल करे ताकि वह ख़ुदा के सामने 'अदालत में जाए।
\s5
\v 24 वह बिला तफ़तीश ज़बरदस्तों को टुकड़े-टुकड़े करता, और उनकी जगह औरों को खड़ा करता है।
\v 25 इसलिए वह उनके कामों का ख़याल रखता है, और वह उन्हें रात को उलट देता है ऐसा कि वह हलाक हो जाते हैं।
\s5
\v 26 वह औरों को देखते हुए, उनको ऐसा मारता है जैसा शरीरों को;
\v 27 इसलिए कि वह उसकी पैरवी से फिर गए, और उसकी किसी राह का ख़याल न किया।
\v 28 यहाँ तक कि उनकी वजह से ग़रीबों की फ़रियाद उसके सामने पहुँची और उसने मुसीबत ज़दों की फ़रियाद सुनी।
\s5
\v 29 जब वह राहत बख़्शे तो कौन मुल्ज़िम ठहरा सकता है? जब वह मुँह छिपा ले तो कौन उसे देख सकता है? चाहे कोई क़ौम हो या आदमी, दोनों के साथ यकसाँ सुलूक है।
\v 30 ताकि बेदीन आदमी सल्तनत न करे, और लोगों को फंदे में फंसाने के लिए कोई न हो।
\s5
\v 31 "क्यूँकि क्या किसी ने ख़ुदा से कहा है, मैंने सज़ा उठा ली है, मैं अब बुराई न करूँगा;
\v 32 जो मुझे दिखाई नहीं देता, वह तू मुझे सिखा; अगर मैंने गुनाह किया है तो अब ऐसा नहीं करूँगा'?
\v 33 क्या उसका बदला तेरी मर्ज़ी पर हो कि तू उसे ना मंज़ूर करता है? क्यूँकि तुझे फ़ैसला करना है न कि मुझे; इसलिए जो कुछ तू जानता है, कह दे।
\s5
\v 34 अहल-ए-अक़्लमुझ से कहेंगे, बल्कि हर 'अक़्लमन्द जो मेरी सुनता है कहेगा,
\v 35 ~'अय्यूब नादानी से बोलता है, और उसकी बातें हिकमत से ख़ाली हैं। '
\s5
\v 36 काश कि अय्यूब आख़िर तक आज़माया जाता, क्यूँकि वह शरीरों की तरह जवाब देता है।
\v 37 इसलिए कि वह अपने गुनाहों पर बग़ावत को बढ़ाता है; वह हमारे बीच तालियाँ बजाता है, और ख़ुदा के ख़िलाफ़ बहुत बातें बनाता है। ”
\s5
\c 35
\p
\v 1 इसके 'अलावा एलीहू ने यह भी कहा ,
\v 2 ~"क्या तू इसे अपना हक़ समझता है, या यह दा'वा करता है कि तेरी सदाक़त ख़ुदा की सदाक़त से ज़्यादा है?
\v 3 जो तू कहता है कि मुझे इससे क्या फ़ायदा मिलेगा? और मुझे इसमें गुनहगार न होने की निस्बत कौन सा ज़्यादा फ़ायदा होगा?
\s5
\v 4 मैं तुझे और तेरे साथ तेरे दोस्तों को जवाब दूँगा।
\v 5 आसमान की तरफ़ नज़र कर और देख; और आसमानों पर जो तुझ से बलन्द हैं, निगाह कर।
\s5
\v 6 अगर तू गुनाह करता है तो उसका क्या बिगाड़ता है? और अगर तेरी ख़ताएँ बढ़ जाएँ तो तू उसका क्या करता है?
\v 7 अगर तू सादिक़ है तो उसको क्या दे देता है? या उसे तेरे हाथ से क्या मिल जाता है?
\v 8 तेरी शरारत तुझ जैसे आदमी के लिए है, और तेरी सदाक़त आदमज़ाद के लिए।
\s5
\v 9 "जु़ल्म की कसरत की वजह से वह चिल्लाते हैं; ज़बरदस्त के बाज़ू की वजह से वह मदद के लिए दुहाई देतें हैं।
\v 10 लेकिन कोई नहीं कहता, कि 'ख़ुदा मेरा ख़ालिक़ कहाँ है, जो रात के वक़्त नगमें 'इनायत करता है?
\v 11 जो हम को ज़मीन के जानवरों से ज़्यादा ता'लीम देता है, और हमें हवा के परिन्दों से ज़्यादा 'अक़्लमन्द बनाता है?'
\s5
\v 12 वह दुहाई देते हैं लेकिन कोई जवाब नहीं देता, यह बुरे आदमियों के ग़ुरूर की वजह से है।
\v 13 यक़ीनन ख़ुदा बतालत को नहीं सुनेगा, और क़ादिर-ए-मुतलक़ उसका लिहाज़ न करेगा।
\v 14 ख़ासकर जब तू कहता है, कि तू उसे देखता नहीं। मुकद्दमा उसके सामने है और तू उसके लिए ठहरा हुआ है।
\s5
\v 15 ~लेकिन अब चूँकि उसने अपने ग़ज़ब में सज़ा न दी, और वह ~गु़रूर का ज़्यादा ख़याल नहीं करता;
\v 16 इसलिए अय्यूब ख़ुदबीनी की वजह से अपना मुँह खोलता है और नादानी से बातें बनाता है|"
\s5
\c 36
\p
\v 1 फ़िर इलीहू ने यह भी कहा,
\v 2 मुझे ज़रा इजाज़त दे और मैं तुझे बताऊँगा, क्यूँकि ख़ुदा की तरफ़ से मुझे कुछ और भी कहना है
\v 3 मैं अपने 'इल्म को दूर से लाऊँगा और रास्ती अपने खालिक़ से मनसूब करूँगा
\s5
\v 4 क्यूँकि हक़ीक़त में मेरी बातें झूटी नहीं हैं, और जो तेरे साथ है 'इल्म में कामिल हैं|
\v 5 देख ख़ुदा क़ादिर है, और किसी को बेकार नहीं जानता वह समझ की क़ुव्वत में ग़ालिब है |
\s5
\v 6 वह शरीरों की जिंदगी को बरक़रार नहीं रखता, बल्कि मुसीबत ज़दों को उनका हक़ अदा करता है|
\v 7 वह सादिक़ों से अपनी आँखे नहीं फेरता, बल्कि उन्हें बादशाहों के साथ हमेशा के लिए तख़्त पर बिठाता है|
\s5
\v 8 और वह सरफ़राज़ होते हैं और अगर वह बेड़ियों से जकड़े जाएं और मुसीबत की रस्सियों से बंधें,
\v 9 तो वह उन्हें उनका 'अमल और उनकी तक्सीरें दिखाता है, कि उन्होंने घमण्ड किया है|
\s5
\v 10 वह उनके कान को ता'लीम के लिए खोलता है, और हुक्म देता है कि वह गुनाह से बाज़ आयें|
\v 11 अगर वह सुन लें और उसकी 'इबादत करें तो अपने दिन इक़बालमंदी में और अपने बरस खु़शहाली में बसर करेंगे
\v 12 लेकिन अगर न सुनें तो वह तलवार से हलाक होंगे, और जिहालत में मरेंगे|
\s5
\v 13 लेकिन वह जो दिल में बे दीन ~हैं, ग़ज़ब को रख छोड़ते जब वह उन्हें बांधता है तो वह मदद के लिए दुहाई नहीं देते,
\v 14 वह जवानी में मरतें हैं और उनकी ज़िन्दगी छोटों के बीच में बर्बाद होता है|
\s5
\v 15 वह मुसीबत ज़दह को मुसीबत से छुड़ाता है, और ज़ुल्म में उनके कान खोलता है|
\v 16 बल्कि वह तुझे ~भी दुख से छुटकारा दे कर ऐसी वसी' जगह में जहाँ तंगी नहीं है पहुँचा देता और जो कुछ तेरे दस्तरख़्वान पर चुना जाता है वह चिकनाई से पुर होता है|
\s5
\v 17 लेकिन तू तो शरीरों के मुक़द्दमा की ता'ईद करता है, इसलिए 'अदल और इन्साफ़ तुझ पर क़ाबिज़ हैं |
\v 18 ख़बरदार तेरा क़हर तुझ से तक्फ़ीर न कराए और फ़िदया ~की फ़रादानी तुझे गुमराह न करे |
\s5
\v 19 क्या तेरा रोना या तेरा ज़ोर व तवानाई ~इस बात के लिए काफ़ी है कि तू मुसीबत में न पड़े|
\v 20 उस रात की ख़्वाहिश न कर, जिसमें क़ौमें अपने घरों से उठा ली जाती हैं।
\v 21 होशियार रह, गुनाह की तरफ़ राग़िब न हो, क्यूँकि तू ने मुसीबत को नहीं बल्कि इसी को चुना है।
\s5
\v 22 देख, ख़ुदा अपनी क़ुदरत से बड़े-बड़े काम करता है। कौन सा उस्ताद उसकी तरह है?
\v 23 किसने उसे उसका रास्ता बताया? या कौन कह सकता है कि तू ने नारास्ती की है?
\v 24 'उसके काम की बड़ाई करना याद रख, जिसकी ता'रीफ़ लोग करते रहे हैं।
\s5
\v 25 सब लोगों ने इसको देखा है, इन्सान उसे दूर से देखता है।
\v 26 देख, ख़ुदा बुज़ुर्ग है और हम उसे नहीं जानते, उसके बरसों का शुमार दरियाफ़्त से बाहर है।
\s5
\v 27 क्यूँकि वह पानी के क़तरों को ऊपर खींचता है, जो उसी के अबख़िरात से मेंह की सूरत में टपकते हैं;
\v 28 जिनकी अफ़लाक उंडेलते, और इन्सान पर कसरत से बरसाते हैं।
\v 29 बल्कि क्या कोई बादलों के फैलाव, और उसके शामियाने की गरजों को समझ सकता है?
\s5
\v 30 देख, वह अपने नूर को अपने चारों तरफ़ फैलाता है, और समन्दर की तह को ढाँकता है।
\v 31 क्यूँकि इन्हीं से वह क़ौमों का इन्साफ़ करता है, और ख़ूराक इफ़रात से 'अता फ़रमाता है।
\s5
\v 32 वह बिजली को अपने हाथों में लेकर, उसे हुक्म देता है कि दुश्मन पर गिरे।
\v 33 इसकी कड़क उसी की ख़बर देती है, चौपाये भी तूफ़ान की आमद बताते हैं।
\s5
\c 37
\p
\v 1 इस बात से भी मेरा दिल काँपता है और अपनी जगह से उछल पड़ता है।
\v 2 ज़रा उसके बोलने की आवाज़ को सुनो, और उस ज़मज़मा को जो उसके मुँह से निकलता है।
\v 3 वह उसे सारे आसमान के नीचे, और अपनी बिजली को ज़मीन की इन्तिहा तक भेजता है।
\s5
\v 4 इसके बा'द कड़क की आवाज़ आती है; वह अपने जलाल की आवाज़ से गरजता है, और जब उसकी आवाज़ सुनाई देती है तो वह उसे रोकता है।
\v 5 ख़ुदा 'अजीब तौर पर अपनी आवाज़ से गरजता है। वह बड़े बड़े काम करता है जिनको हम समझ नहीं सकते।
\v 6 क्यूँकि वह बर्फ़ को फ़रमाता है कि तू ज़मीन पर गिर, इसी तरह वह बारिश से और मूसलाधार मेह से कहता है।
\s5
\v 7 वह हर आदमी के हाथ पर मुहर कर देता है, ताकि सब लोग जिनको उसने बनाया है, इस बात को जान लें।
\v 8 तब दरिन्दे ग़ारों में घुस जाते, और अपनी अपनी माँद में पड़े रहते हैं।
\v 9 ऑधी दख्खिन की कोठरी से, और सर्दी उत्तर" से आती है।
\s5
\v 10 ख़ुदा के दम से बर्फ़ जम जाती है, और पानी का फैलाव तंग हो जाता है।
\v 11 बल्कि वह घटा पर नमी को लादता है, और अपने बिजली वाले बादलों को दूर तक फैलाता है।
\s5
\v 12 उसी की हिदायत से वह इधर उधर फिराए जाते हैं, ताकि जो कुछ वह उन्हें फ़रमाए, उसी को वह दुनिया के आबाद हिस्से पर अंजाम दें।
\v 13 चाहे तम्बीह के लिए या अपने मुल्क के लिए, या रहमत के लिए वह उसे भेजे।
\s5
\v 14 "ऐ अय्यूब, इसको सुन ले;चुपचाप खड़ा रह, और ख़ुदा के हैरतअंगेज़ कामों पर ग़ौर कर।
\v 15 क्या तुझे मा'लूम है कि ख़ुदा क्यूँकर उन्हें ताकीद करता है और अपने बादल की बिजली को चमकाता है?
\s5
\v 16 क्या तू बादलों के मुवाज़ने से वाक़िफ़ है? यह उसी के हैरतअंगेज़ काम हैं जो 'इल्म में कामिल है।
\v 17 जब ज़मीन पर दख्खिनी हवा की वजह से सन्नाटा होता है तो तेरे कपड़े क्यूँ गर्म हो जाते हैं?
\s5
\v 18 ~क्या तू उसके साथ फ़लक को फैला सकता है जो ढले हुए आइने की तरह मज़बूत है?
\v 19 हम को सिखा कि हम उस से क्या कहें, क्यूँकि अंधेरे की वजह से हम अपनी तक़रीर को दुरुस्त नहीं कर सकते?
\v 20 क्या उसको बताया जाए कि मैं बोलना चाहता हूँ? या क्या कोई आदमी यह ख़्वाहिश करे कि वह निगल लिया जाए?
\s5
\v 21 "अभी तो आदमी उस नूर को नहीं देखते जो असमानों पर रोशन है, लेकिन हवा चलती है और उन्हें साफ़ कर देती है।
\v 22 दख्खिनी से सुनहरी रोशनी आती है, ख़ुदा मुहीब शौकत से मुलब्बस है।
\s5
\v 23 हम क़ादिर-ए-मुतलक़ को पा नहीं सकते, वह क़ुदरत और 'अद्ल में शानदार है, और इन्साफ़ की फ़िरावानी में ज़ुल्म न करेगा।
\v 24 इसीलिए लोग उससे डरते हैं; वह~अक़्लमन्ददिलों की परवाह नहीं करता |
\s5
\c 38
\p
\v 1 ~तब ख़ुदावन्द ने अय्यूब को बगोले में से यूँ जवाब दिया,
\v 2 ~"यह कौन है जो नादानी की बातों से, मसलहत पर पर्दा डालता है"?
\v 3 मर्द की तरह अब अपनी कमर कस ले, क्यूँकि मैं तुझ से सवाल करता हूँ और तू मुझे बता।
\s5
\v 4 ~"तू कहाँ था, जब मैंने ज़मीन की बुनियाद डाली? तू~'अक़्लमन्द~है तो बता।
\v 5 क्या तुझे मा'लूम है किसने उसकी नाप ठहराई? या किसने उस पर सूत खींचा?
\s5
\v 6 किस चीज़ पर उसकी बुनियाद डाली गई', या किसने उसके कोने का पत्थर बिठाया,
\v 7 जब सुबह के सितारे मिलकर गाते थे, और ख़ुदा के सब बेटे ख़ुशी से ललकारते ~थे?
\s5
\v 8 "या किसने समन्दर को दरवाज़ों से बंद किया, जब वह ऐसा फूट निकला जैसे रहम से,
\v 9 जब मैंने बादल को उसका लिबास बनाया, और गहरी तारीकी को उसका लपेटने का कपड़ा,
\s5
\v 10 और उसके लिए हद ठहराई", और बेन्डू और किवाड़ लगाए,
\v 11 और कहा, 'यहाँ तक तू आना, लेकिन आगे नहीं, और यहाँ तक तेरी बिछड़ती हुई मौजें रुक जाएँगी'?
\s5
\v 12 "क्या तू ने अपनी 'उम्र में कभी सुबह पर हुकमरानी की, दिया ~और क्या तूने फ़ज्र को उसकी जगह बताई,
\v 13 ताकि वह ज़मीन के किनारों पर क़ब्ज़ा करे, और शरीर लोग उसमें से झाड़ दिए जाएँ?
\s5
\v 14 वह ऐसे बदलती है जैसे मुहर के नीचे चिकनी मिटटी
\v 15 और तमाम चीज़ें कपड़े की तरह नुमाया हो जाती हैं, और और शरीरों से उसकी बन्दगी रुक जाती है और बुलन्द बाज़ू तोड़ा जाता है।
\s5
\v 16 "क्या तू समन्दर के सोतों में दाख़िल हुआ है? या गहराव की थाह में चला है?
\v 17 ~क्या मौत के फाटक तुझ पर ज़ाहिर कर दिए गए हैं? या तू ने मौत के साये के फाटकों को देख लिया है?
\v 18 क्या तू ने ज़मीन की चौड़ाई को समझ लिया है?अगर तू यह सब जानता है तो बता।
\s5
\v 19 "नूर के घर का रास्ता कहाँ है? रही तारीकी, इसलिए उसका मकान कहाँ है?
\v 20 ताकि तू उसे उसकी हद तक पहुँचा दे, और उसके मकान की राहों को पहचाने?
\v 21 बेशक तू जानता होगा; क्यूँकि तू उस वक़्त पैदा हुआ था, और तेरे दिनों का शुमार बड़ा है।
\s5
\v 22 क्या तू बर्फ़ के मख़ज़नों में दाख़िल हुआ है, या ओलों के मखज़नों को तूने देखा है,
\v 23 जिनको मैंने तकलीफ़ के वक़्त के लिए, और लड़ाई और जंग के दिन की ख़ातिर रख छोड़ा है?
\v 24 रोशनी किस तरीक़े से तक़सीम होती है, या पूरबी हवा ज़मीन पर फैलाई जाती है?
\s5
\v 25 सैलाब के लिए किसने नाली काटी, या कड़क की बिजली के लिए रास्ता,
\v 26 ताकि उसे गै़र आबाद ज़मीन पर बरसाए और वीरान पर जिसमें इन्सान नहीं बसता,
\v 27 ताकि उजड़ी और सूनी ज़मीन को सेराब करे, और नर्म-नर्म घास उगाए?
\s5
\v 28 क्या बारिश का कोई बाप है, या शबनम के क़तरे किससे तवल्लुद हुए?
\v 29 ~यख़ किस के बतन निकला से निकला है, और आसमान के सफ़ेद पाले को किसने पैदा किया?
\v 30 पानी पत्थर सा हो जाता है, और गहराव की सतह जम जाती है।
\s5
\v 31 ~"क्या तू 'अक़्द-ए-सुरैया को बाँध सकता, या जब्बार के बंधन को खोल सकता है,
\v 32 क्या तू मिन्तक़्तू-उल-बुरूज को उनके वक़्तों पर निकाल सकता है? या बिनात-उन-ना'श की उनकी सहेलियों के साथ रहबरी कर सकता है?
\v 33 क्या तू आसमान के क़वानीन को जानता है, और ज़मीन पर उनका इख़्तियार क़ायम कर सकता है?
\s5
\v 34 क्या तू बादलों तक अपनी आवाज़ बुलन्द कर सकता है, ताकि पानी की फ़िरावानी तुझे छिपा ले?
\v 35 क्या तू बिजली को रवाना कर सकता है कि वह जाए, और तुझ से कहे मैं हाज़िर हूँ?
\s5
\v 36 बातिन में हिकमत किसने रख्खी, और दिल को~अक़्ल किसने बख़्शी?
\v 37 बादलों को हिकमत से कौन गिन सकता है? या कौन आसमान की मश्कों को उँडेल सकता है,
\v 38 जब गर्द मिलकर तूदा बन जाती है, और ढेले एक साथ मिल जाते हैं?
\s5
\v 39 "क्या तू शेरनी के लिए शिकार मार देगा, या बबर के बच्चों को सेर करेगा,
\v 40 जब वह अपनी माँदों में बैठे हों, और घात लगाए आड़ में दुबक कर बैठे हों?
\s5
\v 41 पहाड़ी कौवे के लिए कौन ख़ूराक मुहैया करता है, जब उसके बच्चे ख़ुदा से फ़रियाद करते, और ख़ूराक न मिलने से उड़ते फिरते हैं?
\s5
\c 39
\p
\v 1 क्या तू जनता है कि पहाड़ पर की जंगली बकरियाँ कब बच्चे देती हैं? या जब हिरनियाँ बियाती हैं, तो क्या तू देख सकता है?
\v 2 क्या तू उन महीनों को जिन्हें वह पूरा करती हैं, गिन सकता है? या तुझे वह वक़्त मा'लूम है जब वह बच्चे देती हैं?
\s5
\v 3 वह झुक जाती हैं; वह अपने बच्चे देती हैं, और अपने दर्द से रिहाई पाती हैं।
\v 4 उनके बच्चे मोटे ताज़े होते हैं; वह खुले मैदान में बढ़ते हैं। वह निकल जाते हैं और फिर नहीं लौटते।
\s5
\v 5 गधे को किसने आज़ाद किया? जंगली गधे के बंद किसने खोले ?
\v 6 वीरान को मैंने उसका मकान बनाया, और ज़मीन-ए-शोर को उसका घर।
\s5
\v 7 वह शहर के शोर-ओ-गु़ल को हेच समझता है, और हाँकने वाले की डॉट को नहीं सुनता।
\v 8 पहाड़ों का सिलसिला उसकी चरागाह है, और वह हरियाली की तलाश में रहता है।
\s5
\v 9 "क्या जंगली साँड तेरी ख़िदमत पर राज़ी होगा? क्या वह तेरी चरनी के पास रहेगा?
\v 10 क्या तू जंगली साँड को रस्से से बाँधकर रेघारी में चला सकता है? या वह तेरे पीछे-पीछे वादियों में हेंगा फेरेगा?
\s5
\v 11 क्या तू उसकी बड़ी ताक़त की वजह से उस पर भरोसा करेगा ? या क्या तू अपना काम उस पर छोड़ देगा?
\v 12 क्या तू उस पर भरोसा करेगा कि वह तेरा ग़ल्ला घर ले आए, और तेरे खलीहान का अनाज इकट्ठा करे?
\s5
\v 13 "शुतरमुर्ग़ के बाज़ू आसूदा हैं, लेकिन क्या उसके पर-ओ-बाल से शफ़क़त ज़ाहिर होती है?
\v 14 क्यूँकि वह तो अपने अंडे ज़मीन पर छोड़ देती है, और रेत से उनको गर्मी पहुँचाती है;
\v 15 और भूल जाती है कि वह पाँव से कुचले जाएँगे, या कोई जंगली जानवर उनको रौंद डालेगा।
\s5
\v 16 वह अपने बच्चों से ऐसी सख़्तदिली करती है कि जैसे वह उसके नहीं। चाहे उसकी मेहनत रायगाँ जाए उसे कुछ ख़ौफ़ नहीं।
\v 17 क्यूँकि ख़ुदा ने उसे 'अक़्ल से महरूम रखा, और उसे समझ नहीं दी।
\v 18 जब वह तनकर सीधी खड़ी हो जाती है, तो घोड़े और उसके सवार दोनों को नाचीज़ समझती हैं।
\s5
\v 19 ~"क्या घोड़े को उसका ताक़त तू ने दी है? क्या उसकी गर्दन की लहराती अयाल से तूने मुलब्बस किया?
\v 20 क्या उसे टिड्डी की तरह तूने कुदाया है? उसके फ़राने की शान मुहीब है।
\s5
\v 21 वह वादी में टाप मारता है और अपने ज़ोर में ख़ुश है। वह हथियारबंद आदमियों का सामना करने को निकलता है।
\v 22 वह ख़ौफ़ को नाचीज़ जानता है और घबराता नहीं, और वह तलवार से मुँह नहीं मोड़ता।
\v 23 तर्कश उस पर खड़खड़ाता है, चमकता हुआ भाला और साँग भी;
\s5
\v 24 वह तुन्दी और क़हर में ज़मीन पैमाई करता है, और उसे यक़ीन नहीं होता कि यह तुर ही की आवाज़ है।
\v 25 जब जब तुरही बजती है, वह हिन हिन करता है, और लड़ाई को दूर से सूँघ लेता है; सरदारों की गरज़ और ललकार को भी।
\s5
\v 26 "क्या बा'ज़ तेरी हिकमत से उड़ता है, और दख्खिन की तरफ़ अपने बाज़ू फैलाता है?
\s5
\v 27 क्या 'उक़ाब तेरे हुक्म से ऊपर चढ़ता है, और बुलन्दी पर अपना घोंसला बनाता है?
\v 28 वह चट्टान पर रहता और वहीं बसेरा करता है; या'नी चट्टान की चोटी पर और पनाह की जगह में।
\s5
\v 29 वहीं से वह शिकार ताड़ लेता है, उसकी आँखें उसे दूर से देख लेती हैं।
\v 30 उसके बच्चे भी खू़न चूसते हैं, और जहाँ मक़्तूल हैं वहाँ वह भी है। ”
\s5
\c 40
\p
\v 1 ख़ुदावन्द ने अय्यूब से यह भी कहा,
\v 2 "क्या जो फु़जू़ल हुज्जत करता है वह क़ादिर-ए-मुतलक़ से झगड़ा करे? जो ख़ुदा से बहस करता है, वह इसका जवाब दे।
\s5
\v 3 ” अय्यूब का जवाब तब अय्यूब ने ख़ुदावन्द को जवाब दिया,
\v 4 "देख, मैं नाचीज़ ~हूँ! मैं तुझे क्या जवाब दूँ? मैं अपना हाथ अपने मुँह पर रखता हूँ।
\v 5 अब जवाब न दूँगा; एक बार मैं बोल चुका, बल्कि दो बार लेकिन अब आगे न बढ़ूँगा। "
\s5
\v 6 तब ख़ुदावन्द ने अय्यूब को बगोले में से जवाब दिया,
\v 7 "मर्द की तरह अब अपनी कमर कस ले, मैं तुझ से सवाल करता हूँ और तू मुझे बता।
\s5
\v 8 क्या तू मेरे इन्साफ़ को भी बातिल ठहराएगा?
\v 9 क्या तू मुझे मुजरिम ठहराएगा ताकि ख़ुद रास्त ठहरे ? या क्या तेरा बाज़ू ख़ुदा के जैसा है?और क्या तू उसकी तरह आवाज़ से गरज़ सकता है?
\s5
\v 10 'अब अपने को शान-ओ-शौकत से आरास्ता कर, और 'इज़्जत-ओ-जलाल से मुलब्बस हो जा।
\v 11 अपने क़हर के सैलाबों को बहा दे, और हर मग़रूर को देख और ज़लील कर।
\s5
\v 12 हर मग़रूर को देख और उसे नीचा कर, और शरीरों को जहाँ खड़े हों पामाल कर दे।
\v 13 उनको इकट्ठा मिट्टी में छिपा दे, और उस पोशीदा मक़ाम में उनके मुँह बाँध दे।
\v 14 तब मैं भी तेरे बारे में मान लूँगा, कि तेरा ही दहना हाथ तुझे बचा सकता है।
\s5
\v 15 'अब हिप्पो पोटीमस' को देख, जिसे मैंने तेरे साथ बनाया; वह बैल की तरह घास खाता है।
\v 16 देख, उसकी ताक़त उसकी कमर में है, और उसका ज़ोर उसके पेट के पट्ठों में।
\s5
\v 17 वह अपनी दुम को देवदार की तरह हिलाता है, उसकी रानों की नसे एक साथ पैवस्ता हैं।
\v 18 उसकी हड्डियाँ पीतल के नलों की तरह हैं, उसके आ'ज़ा लोहे के बेन्डों की तरह हैं।
\s5
\v 19 ~वह ख़ुदा की ख़ास सन'अत' है; उसके ख़ालिक़ ही ने उसे तलवार बख़्शी है।
\v 20 यक़ीनन टीले उसके लिए ख़ूराक एक साथ पहुँचाते हैं जहाँ मैदान के सब जानवर खेलते कूदते हैं।
\v 21 वह कंवल के दरख़्त के नीचे लेटता है, सरकंडों की आड़ और दलदल में।
\s5
\v 22 कंवल के दरख़्त उसे अपने साये के नीचे ~छिपा लेते हैं। नाले के बीदे उसे घेर लेतीं हैं |
\v 23 देख, अगर दरिया में बाढ़ हो तो वह नहीं काँपता चाहे यर्दन उसके मुँह तक चढ़ आये वह बे खौफ़ है।
\v 24 जब वह होशियार हो, तो क्या कोई उसे पकड़ लेगा; या फंदा लगाकर उसकी नाक को छेदेगा?
\s5
\c 41
\p
\v 1 क्या तू मगर कोशिस्त से बाहर निकाल सकता है या रस्सी से उसकी ज़बान को दबा सकता है?
\v 2 क्या तू उसकी नाक में रस्सी डाल सकता है? या उसका जबड़ा मेख़ से छेद सकता है?
\v 3 क्या वह तेरी बहुत मिन्नत समाजत करेगा? या तुझ से मीठी मीठी बातें कहेगा?
\s5
\v 4 क्या वह तेरे साथ 'अहद बांधेगा, कि तू उसे हमेशा के लिए नौकर बना ले?
\v 5 क्या तू उससे ऐसे खेलेगा जैसे परिन्दे से? या क्या तू उसे अपनी लड़कियों के लिए बाँध देगा?
\v 6 क्या लोग उसकी तिजारत करेंगे? क्या वह उसे सौदागरों में तक़सीम करेंगे?
\s5
\v 7 क्या तू उसकी खाल को भालों से, या उसके सिर को माहीगीर के तरसूलों से भर सकता है?
\v 8 तू अपना हाथ उस पर धरे, तो लड़ाई को याद रख्खेगा और फिर ऐसा न करेगा।
\v 9 देख, उसके बारे में उम्मीद बेफ़ायदा है। क्या कोई उसे देखते ही गिर न पड़ेगा?
\s5
\v 10 कोई ऐसा तुन्दख़ू नहीं जो उसे छेड़ने की हिम्मत न करे। फिर वह कौन है जो मेरे सामने खड़ा होसके?
\v 11 किस ने मुझे पहले कुछ दिया है कि मैं उसे अदा करूँ? जो कुछ सारे आसमान के नीचे है वह मेरा है।
\v 12 न मैं उसके 'आज़ा के बारे में ख़ामोश रहूँगा न उसकी ताक़त और ख़ूबसूरत डील डोल के बारे में।
\s5
\v 13 उसके ऊपर का लिबास कौन उतार सकता है? उसके जबड़ों के बीच कौन आएगा?
\v 14 उसके मुँह के किवाड़ों को कौन खोल सकता है? उसके दाँतों का दायरा दहशत नाक है।
\v 15 उसकी ढालें उसका फ़ख़्र हैं; जो जैसा सख़्त मुहर से पैवस्ता की गई हैं।
\s5
\v 16 वह एक दूसरी से ऐसी जुड़ी हुई हैं, कि उनके बीच हवा भी नहीं आ सकती।
\v 17 वह एक दूसरी से एक साथ पैवस्ता हैं; वह आपस में ऐसी जुड़ी हैं कि जुदा नहीं हो सकतीं।
\v 18 उसकी छींकें नूर अफ़्शानी करती हैं उसकी आँखें सुबह के पपोटों की तरह हैं।
\s5
\v 19 उसके मुँह से जलती मश'अलें निकलती हैं, और आग की चिंगारियाँ उड़ती हैं।
\v 20 उसके नथनों से धुवाँ निकलता है, जैसे खौलती देग और सुलगते सरकंडे से।
\v 21 उसका साँस से ~कोयलों को दहका देता है, और उसके मुँह से शो'ले निकलते हैं।
\s5
\v 22 ताक़त उसकी गर्दन में बसती है, और दहशत उसके आगे आगे चलती" है।
\v 23 उसके गोश्त की तहें आपस में जुड़ी हुई हैं; वह उस पर ख़ूब जुड़ी हैं और हट नहीं सकतीं।
\v 24 उसका दिल पत्थर की तरह मज़बूत है, बल्कि चक्की के निचले पाट की तरह।
\s5
\v 25 जब वह उठ खड़ा होता है, तो ज़बरदस्त लोग डर जाते हैं, और घबराकर ख़ौफ़ज़दा हो जाते हैं।
\v 26 अगर कोई उस पर तलवार चलाए, तो उससे कुछ नहीं बनता: न भाले, न तीर, न बरछी से।
\v 27 वह लोहे को भूसा समझता है, और पीतल को गली हुई लकड़ी।
\s5
\v 28 तीर उसे भगा नहीं सकता, फ़लाख़न के पत्थर उस पर तिनके से हैं।
\v 29 लाठियाँ जैसे तिनके हैं, वह बर्छी के चलने पर हँसता है।
\v 30 उसके नीचे के हिस्से तेज़ ठीकरों की तरह हैं; वह कीचड़ पर जैसे हेंगा फेरता है।
\s5
\v 31 वह गहराव को देग की तरह खौलाता, और समुन्दर को मरहम की तरह बना देता है।
\v 32 वह अपने पीछे चमकीला निशान छोड़ जाता है; गहराव गोया सफ़ेद नज़र आने लगता है।
\s5
\v 33 ज़मीन पर उसका नज़ीर नहीं, जो ऐसा बेख़ौफ़ पैदा हुआ हो।
\v 34 वह हर ऊँची चीज़ को देखता है, और सब मग़रूरों का बादशाह है। "
\s5
\c 42
\p
\v 1 तब अय्यूब ने ख़ुदावन्द यूँ जवाब दिया
\v 2 ~"मैं जानता हूँ कि तू सब कुछ कर सकता है, और तेरा कोई इरादा रुक नहीं सकता।
\v 3 यह कौन है जो नादानी से मसलहत पर पर्दा डालता है" ? लेकिन मैंने जो न समझा वही कहा, या'नी ऐसी बातें जो मेरे लिए बहुत 'अजीब थीं जिनको ~मैं जानता न था।
\s5
\v 4 ~'मैं तेरी मिन्नत करता हूँ सुन, मैं कुछ कहूँगा। मैं तुझ से सवाल करूँगा, तू मुझे बता। '
\v 5 मैंने तेरी ख़बर कान से सुनी थी, लेकिन अब मेरी आँख तुझे देखती है;
\v 6 इसलिए मुझे अपने आप से नफ़रत है, और मैं ख़ाक और राख में तौबा करता हूँ। "
\s5
\v 7 और ऐसा हुआ कि जब ख़ुदावन्द यह बातें अय्यूब से कह चुका, तो उसने अलीफ़ज़ तेमानी से कहा कि "मेरा ग़ज़ब तुझ पर और तेरे दोनों दोस्तों पर भड़का है, क्यूँकि तुम ने मेरे बारे में वह बात न कही जो हक़ है, जैसे मेरे बन्दे अय्यूब ने कही।
\v 8 इसलिए अब अपने लिए सात बैल और सात मेंढे लेकर, मेरे बन्दे अय्यूब के पास जाओ और अपने लिए सोख़्तनी कु़र्बानी पेश करो, और मेरा बन्दा अय्यूब तुम्हारे लिए दु'आ करेगा; क्यूँकि उसे तो मैं क़ुबूल करूँगा ताकि तुम्हारी जिहालत के मुताबिक़ तुम्हारे साथ सुलूक न करूँ, क्यूँकि तुम ने मेरे बारे में वह बात न कही जो हक़ है, जैसे मेरे बन्दे अय्यूब ने कही। "
\v 9 इसलिए अलीफ़ज़ तेमानी , और ~बिलदद सूखी और जूफ़र ना'माती ~ने जाकर जैसा ख़ुदावन्द ने उनको फ़रमाया था किया, और ख़ुदावन्द ने अय्यूब को क़ुबूल किया।
\s5
\v 10 ~और ख़ुदावन्द ने अय्यूब की ग़ुलामी को जब उसने अपने दोस्तों के लिए दु'आ की बदल दिया और ख़ुदावन्द ने अय्यूब को जितने उसके पास पहले था उसका दो गुना दे दिया |
\v 11 तब उसके सब भाई और सब बहनें और उसके सब अगले जान-पहचान उसके पास आए, और उसके घर में उसके साथ खाना खाया; और उस पर नौहा किया और उन सब बलाओं ~के बारे में, जो ख़ुदावन्द ने उस पर नाज़िल की थीं, उसे तसल्ली दी। हर शख़्स ने उसे एक सिक्का भी दिया और हर एक ने सोने की एक बाली।
\s5
\v 12 यूँ खुदावन्द ने अय्यूब के आख़िरी दिनों में शुरू'आत की निस्बत ज़्यादा बरकत बख़्शी; और उसके पास चौदह हज़ार भेड़ बकरियाँ, और छ: हज़ार ऊँट, और हज़ार जोड़ी बैल, और हज़ार गधियाँ, हो गईं।
\v 13 उसके सात बेटे और तीन बेटियाँ भी हुई।
\v 14 और उसने पहली का नाम यमीमा और दूसरी का नाम क़स्याह और तीसरी का नाम क़रन-हप्पूक रख्खा।
\s5
\v 15 और उस सारी सर ज़मीन में ऐसी 'औरतें कहीं न थीं, जो अय्यूब की बेटियों की तरह ख़ूबसूरत हों, और उनके बाप ने उनको उनके भाइयों के बीच मीरास दी।
\v 16 और इसके बा'द अय्यूब एक सौ चालीस बरस ज़िन्दा रहा, और अपने बेटे और पोते चौथी पुश्त तक देखे।
\v 17 और अय्यूब ने बुड्ढा और बुज़ुर्ग होकर वफ़ात पाई।

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\id PRO
\ide UTF-8
\h अम्साल
\toc1 अम्साल
\toc2 अम्साल
\toc3 pro
\mt1 अम्साल
\s5
\c 1
\p
\v 1 ~इस्राईल के बादशाह सुलेमान बिन दाऊद की अम्साल:
\v 2 हिकमत और तरबियत हासिल करने, और समझ की बातों का फ़र्क़ करने के लिए,
\v 3 ~'अक़्लमंदी और सदाक़त और 'अद्ल, और रास्ती में तरबियत हासिल करने के लिए;
\s5
\v 4 सादा दिलों को होशियारी, जवान को 'इल्म और तमीज़ बख़्शने के लिए,
\v 5 ताकि 'अक़्लमंद आदमी सुनकर 'इल्म में तरक़्क़ी करे और समझदार आदमी दुरुस्त मश्वरत तक पहुँचे,
\v 6 ~जिस से मसल और तम्सील को, 'अक़्लमंदों की बातों और उनके पोशीदा राज़ो को समझ सके।
\s5
\v 7 ~ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ 'इल्म की शुरू'आत है; लेकिन बेवक़ूफ़ हिकमत और तरबियत की हिक़ारत करते हैं।
\v 8 ~ऐ मेरे बेटे, अपने बाप की तरबियत पर कान लगा, और अपनी माँ की ता'लीम को न ~छोड़;
\v 9 क्यूँकि वह तेरे सिर के लिए ज़ीनत का सेहरा, और तेरे गले के लिए तौक़ होंगी।
\s5
\v 10 ऐ मेरे बेटे, अगर गुनहगार तुझे फुसलाएँ, तू रज़ामंद न होना।
\v 11 ~अगर वह कहें, "हमारे साथ चल, हम खू़न करने के लिए ताक में बैठे, और छिपकर बेगुनाह के लिए नाहक़ घात लगाएँ,
\s5
\v 12 ~हम उनको इस तरह ज़िन्दा और पूरा निगल जाएँ जिस तरह पाताल मुर्दों को निगल जाता है।
\v 13 ~हम को हर क़िस्म का 'उम्दा माल मिलेगा, हम अपने घरों को लूट से भर लेंगे;
\v 14 ~तू हमारे साथ मिल जा, हम सबकी एक ही थैली होगी, "
\s5
\v 15 ~तो ऐ मेरे बेटे, तू उनके साथ न जाना, उनकी राह से अपना पाँव रोकना।
\v 16 क्यूँकि उनके पाँव बदी की तरफ़ दौड़ते हैं, और खू़न बहाने के लिए जल्दी करते हैं।
\v 17 क्यूँकि परिंदे की आँखों के सामने, जाल बिछाना बेकार है।
\s5
\v 18 ~और यह लोग तो अपना ही खू़न करने के लिए ताक में बैठते हैं, और छिपकर अपनी ही जान की घात लगाते हैं।
\v 19 ~नफ़े' के लालची की राहें ऐसी ही हैं, ऐसा नफ़ा' उसकी जान लेकर ही छोड़ता है।
\s5
\v 20 ~हिकमत कूचे में ज़ोर से पुकारती है, वह रास्तों में अपनी आवाज़ बलन्द करती है;
\v 21 ~वह बाज़ार की भीड़ में चिल्लाती है; वह फाटकों के दहलीज़ पर और शहर में यह कहती है:
\v 22 "ऐ नादानो, तुम कब तक नादानी को दोस्त रख्खोगे? और ठट्ठाबाज़ कब तक ठठ्ठाबाज़ी से और बेवक़ूफ़ कब तक 'इल्म से 'अदावत रख्खेंगे?
\s5
\v 23 तुम मेरी मलामत को सुनकर बाज़ आओ, देखो, मैं अपनी रूह तुम पर उँडेलूँगी, मैं तुम को अपनी बातें बताऊँगी।
\v 24 चूँकि मैंने बुलाया और तुम ने इंकार किया मैंने हाथ फैलाया और किसी ने ख़याल न किया,
\v 25 बल्कि तुम ने मेरी तमाम मश्वरत को नाचीज़ जाना, और मेरी मलामत की बेक़द्री की;
\s5
\v 26 ~इसलिए मैं भी तुम्हारी मुसीबत के दिन हसूँगी; और जब तुम पर दहशत छा जाएगी तो ठठ्ठा मारूँगी।
\v 27 ~या'नी जब दहशत तूफ़ान की तरह आ पड़ेगी, और आफ़त बगोले की तरह तुम को आ लेगी, जब मुसीबत और जाँकनी तुम पर टूट पड़ेगी।
\s5
\v 28 ~तब वह मुझे पुकारेंगे, लेकिन मैं जवाब न दूँगी; और दिल ओ जान से मुझे ढूंडेंगे, लेकिन न पाएँगे।
\v 29 ~इसलिए कि उन्होंने 'इल्म से 'अदावत रख्खी, और ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ को इख़्तियार न किया।
\v 30 ~उन्होंने मेरी तमाम मश्वरत की बेक़द्री की, और मेरी मलामत को बेकार जाना।
\s5
\v 31 ~तब वह अपनी ही चाल चलन का फल खाएँगे, और अपने ही मन्सूबों से पेट भरेंगे।
\v 32 क्यूँकि नादानों की नाफ़रमानी, उनको क़त्ल करेगी, और बेवक़ूफ़ों की बेवक़ूफ़ी उनकी हलाकत का ज़रिया' होगी।
\v 33 ~लेकिन जो मेरी सुनता है, वह महफ़ूज़ होगा, और आफ़त से निडर होकर इत्मिनान से रहेगा।"
\s5
\c 2
\p
\v 1 ऐ मेरे बेटे, अगर तू मेरी बातों को क़ुबूल करे, और मेरे फ़रमान को निगाह में रख्खे,
\v 2 ~ऐसा कि तू हिकमत की तरफ़ कान ~लगाए, और समझ से दिल लगाए,
\s5
\v 3 बल्कि अगर तू 'अक़्ल को पुकारे, और समझ के लिए आवाज़ बलन्द करे
\v 4 ~और उसको ऐसा ढूँढे जैसे चाँदी को, और उसकी ऐसी तलाश करे जैसी पोशीदा ख़ज़ानों की;
\v 5 ~तो तू ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ को समझेगा, और ख़ुदा के ज़रिए' को हासिल करेगा।
\s5
\v 6 क्यूँकि ख़ुदावन्द हिकमत बख़्शता है; 'इल्म-ओ-समझ उसी के मुँह से निकलते हैं।
\v 7 ~वह रास्तबाज़ों के लिए मदद तैयार रखता है, और रास्तरौ के लिए सिपर है।
\v 8 ताकि वह 'अद्ल की राहों की निगहबानी करे, और अपने मुक़द्दसों की राह को महफ़ूज़ रख्खे।
\s5
\v 9 ~तब तू सदाक़त और 'अद्ल और रास्ती को, बल्कि हर एक अच्छी राह को समझेगा।
\v 10 क्यूँकि हिकमत तेरे दिल में दाख़िल होगी, और 'इल्म तेरी जान को पसंद होगा,
\s5
\v 11 ~तमीज़ तेरी निगहबान होगी, समझ तेरी हिफ़ाज़त करेगा;
\v 12 ताकि तुझे शरीर की राह से, और कजगो से बचाएँ।
\v 13 ~जो रास्तबाज़ी की राह को छोड़ते हैं, ताकि तारीकी की राहों में चलें,
\s5
\v 14 ~जो बदकारी से ख़ुश होते हैं, और शरारत की कजरवी में खु़श रहते हैं,
\v 15 ~जिनका चाल चलन ना हमवार, और जिनकी राहें टेढ़ी हैं।
\s5
\v 16 ताकि तुझे बेगाना 'औरत से बचाएँ, या'नी चिकनी चुपड़ी बातें करने वाली पराई 'औरत से,
\v 17 ~जो अपनी जवानी के साथी को छोड़ देती है, और अपने ख़ुदा के 'अहद को भूल जाती है।
\s5
\v 18 क्यूँकि उसका घर मौत की उतराई पर है, और उसकी राहें पाताल को जाती हैं।
\v 19 ~जो कोई उसके पास जाता है, वापस नहीं आता; और ज़िन्दगी की राहों तक नहीं पहुँचता।
\s5
\v 20 ताकि तू नेकों की राह पर चले, और सादिक़ों की राहों पर क़ायम रहे।
\v 21 क्यूँकि रास्तबाज़ मुल्क में बसेंगे, और कामिल उसमें आबाद रहेंगे।
\v 22 ~लेकिन शरीर ज़मीन पर से काट डाले जाएँगे, और दग़ाबाज़ उससे उखाड़ फेंके जाएँगे।
\s5
\c 3
\p
\v 1 ऐ मेरे बेटे, मेरी ता'लीम को फ़रामोश न कर, बल्कि तेरा दिल मेरे हुक्मों ~को माने,
\v 2 क्यूँकि तू इनसे 'उम्र की दराज़ी और बुढ़ापा, और सलामती हासिल करेगा।
\s5
\v 3 ~शफ़क़त और सच्चाई तुझ से जुदा न हों, तू उनको अपने गले का तौक़ बनाना, और अपने दिल की तख़्ती पर लिख लेना।
\v 4 ~यूँ तू ख़ुदा और इन्सान की नज़र में, मक़्बूलियत और 'अक़्लमन्दी ~हासिल करेगा।
\s5
\v 5 सारे दिल से ख़ुदावन्द पर भरोसा कर, और अपनी समझ पर इत्मिनान न कर।
\v 6 अपनी सब राहों में उसको पहचान, और वह तेरी रहनुमाई करेगा।
\s5
\v 7 ~तू अपनी ही निगाह में 'अक़्लमन्द न बन, ख़ुदावन्द से डर और बदी से किनारा कर ।
\v 8 ~ये तेरी नाफ़ की सिहत, और तेरी हड़िडयों की ताज़गी होगी।
\s5
\v 9 ~अपने माल से और अपनी सारी पैदावार के पहले फलों से, ख़ुदावन्द की ता'ज़ीम कर।
\v 10 ~यूँ तेरे खत्ते भरे रहेंगे, और तेरे हौज़ नई मय से लबरेज़ होंगे।
\s5
\v 11 ~ऐ मेरे बेटे, ख़ुदावन्द की तम्बीह को हक़ीर न जान, और उसकी मलामत से बेज़ार न हो;
\v 12 क्यूँकि ख़ुदावन्द उसी को मलामत करता है जिससे उसे मुहब्बत है, जैसे बाप उस बेटे को जिससे वह ख़ुश है।
\s5
\v 13 ~मुबारक है वह आदमी जो हिकमत को पाता है, ~और वह जो समझ हासिल करता है,
\v 14 क्यूँकि इसका हासिल चाँदी के हासिल से, और इसका नफ़ा' कुन्दन से बेहतर है।
\s5
\v 15 ~वह मरजान से ज़्यादा बेशबहा है, और तेरी पसंदीदा चीज़ों में बेमिसाल।
\v 16 उसके दहने हाथ में 'उम्र की दराज़ी है, और उसके बाएँ हाथ में दौलत ओ-'इज़्ज़त।
\s5
\v 17 ~उसकी राहें खु़श गवार राहें हैं, और उसके सब रास्ते सलामती के हैं।
\v 18 ~जो उसे पकड़े रहते हैं, वह उनके लिए ज़िन्दगी का दरख़्त है, और हर एक जो उसे लिए रहता है, मुबारक है।
\s5
\v 19 ख़ुदावन्द ने हिकमत से ज़मीन की बुनियाद डाली; और समझ से आसमान को क़ायम किया।
\v 20 ~उसी के 'इल्म से गहराओ के सोते फूट निकले, और अफ़लाक शबनम टपकाते हैं।
\s5
\v 21 ~ऐ मेरे बेटे, 'अक़्लमंदी और तमीज़ की हिफ़ाज़त कर, उनको अपनी आँखों से ओझल न होने दे;
\v 22 ~यूँ वह तेरी जान की हयात, और तेरे गले की ज़ीनत होंगी।
\s5
\v 23 तब तू बेखटके अपने रास्ते पर चलेगा, और तेरे पाँव को ठेस न लगेगी।
\v 24 ~जब तू लेटेगा तो ख़ौफ़ न खाएगा, बल्कि तू लेट जाएगा और तेरी नींद मीठी होगी।
\s5
\v 25 ~अचानक दहशत से ख़ौफ़ न खाना, और न शरीरों की हलाकत से, जब वह आए;
\v 26 क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा सहारा होगा, और तेरे पाँव को फँँस जाने से महफ़ूज़ रख्खेगा।
\s5
\v 27 ~भलाई के हक़दार से उसे किनारा न करना जब तेरे मुक़द्दर में हो।
\v 28 जब तेरे पास देने को कुछ हो, तो अपने पड़ोसी से यह न कहना, अब जा, फिर आना मैं तुझे कल दूँगा।
\s5
\v 29 ~अपने पड़ोसी के खि़लाफ़ बुराई का मन्सूबा न बाँधना, जिस हाल कि वह तेरे पड़ोस में बेखटके रहता है।
\v 30 अगर किसी ने तुझे नुक़सान न पहुँचाया हो, तू उससे बे वजह झगड़ा न करना।
\s5
\v 31 ~तुन्दख़ू आदमी पर जलन न करना, और उसके किसी चाल चलन को इख़्तियार न करना;
\v 32 क्यूँकि कजरौ से ख़ुदावन्द को नफ़रत लेकिन रास्तबाज़ उसके महरम-ए-राज़ हैं।
\s5
\v 33 ~शरीरों के घर पर ख़ुदावन्द की ला'नत है, लेकिन सादिक़ों के मस्कन पर उसकी बरकत है।
\v 34 यक़ीनन वह ठठ्ठाबाज़ों पर ठठ्ठे मारता है, लेकिन फ़रोतनों पर फ़ज़ल करता है।
\s5
\v 35 ~'अक़्लमंद जलाल के वारिस होंगे, लेकिन बेवक़ूफ़ों की तरक़्क़ी शर्मिन्दगी होगी।
\s5
\c 4
\p
\v 1 ~ऐ मेरे बेटो, बाप की तरबियत पर कान लगाओ, और समझ हासिल करने के लिए तवज्जुह करो।
\v 2 क्यूँकि मैं तुम को अच्छी तल्क़ीन करता तुम मेरी ता'लीम को न छोड़ना।
\s5
\v 3 क्यूँकि मैं भी अपने बाप का बेटा था, और अपनी माँ की निगाह में नाज़ुक और अकेला लाडला।
\v 4 ~बाप ने मुझे सिखाया और मुझ से कहा, "मेरी बातें तेरे दिल में रहें, मेरे फ़रमान बजा ला और ज़िन्दा रह।
\s5
\v 5 हिकमत हासिल कर, समझ हासिल कर, भूलना मत और मेरे मुँह की बातों से नाफ़रमान न होना।
\v 6 ~हिकमत को न छोड़ना, वह तेरी हिफ़ाज़त करेगी; उससे मुहब्बत रखना, वह तेरी निगहबान होगी।~।
\s5
\v 7 ~हिकमत अफ़ज़ल असल है, फिर हिकमत हासिल कर; बल्किअपने तमाम हासिलात से समझ हासिल कर;
\v 8 ~उसकी ता'ज़ीम कर, वह तुझे सरफ़राज़ करेगी; जब तू उसे गले लगाएगा, वह तुझे 'इज़्ज़त बख़्शेगी।
\v 9 ~वह तेरे सिर पर ज़ीनत का सेहरा बाँधेगी; और तुझ को ख़ूबसूरती का ताज 'अता करेगी।"
\s5
\v 10 ~ऐ मेरे बेटे, सुन और मेरी बातों को कु़बूल कर, और तेरी ज़िन्दगी के दिन बहुत से होंगे।
\v 11 मैंने तुझे हिकमत की राह बताई है; और राह-ए-रास्त पर तेरी राहनुमाई की है।
\v 12 ~जब तू चलेगा तेरे क़दम कोताह न होंगे; और अगर तू दौड़े तो ठोकर न खाएगा।~~|
\s5
\v 13 तरबियत को मज़बूती से पकड़े रह, उसे जाने न दे; उसकी हिफ़ाज़त कर क्यूँकि वह तेरी ज़िन्दगी है।
\v 14 ~शरीरों के रास्ते में न जाना, और बुरे आदमियों की राह में न चलना |
\v 15 ~उससे बचना, उसके पास से न गुज़रना, उससे मुड़कर आगे बढ़ जाना;
\s5
\v 16 क्यूँकि वह जब तक बुराई न कर लें सोते नहीं; और जब तक किसी को गिरा न दें उनकी नींद जाती रहती है।
\v 17 क्यूँकि वह शरारत की रोटी खाते, और जु़ल्म की मय पीते हैं।
\s5
\v 18 ~लेकिन सादिक़ों की राह सुबह की रोशनी की तरह है, जिसकी रोशनी दो पहर तक बढ़ती ही जाती है।
\v 19 शरीरों की राह तारीकी की तरह है; वह नहीं जानते कि किन चीज़ों से उनको ठोकर लगती है।
\s5
\v 20 ऐ मेरे बेटे, मेरी बातों पर तवज्जुह कर, मेरे कलाम पर कान लगा।
\v 21 ~उसको अपनी आँख से ओझल न होने दे, उसको अपने दिल में रख।
\s5
\v 22 क्यूँकि जो इसको पा लेते हैं, यह उनकी ज़िन्दगी, और उनके सारे जिस्म की सिहत है।
\v 23 ~अपने दिल की खू़ब हिफ़ाज़त कर; क्यूँकि ज़िन्दगी का सर चश्मा वही हैं|
\s5
\v 24 ~कजगो मुँह तुझ से अलग रहे, दरोग़गो लब तुझ से दूर हों।
\v 25 तेरी आँखें सामने ही नज़र करें, और तेरी पलके सीधी रहें।
\s5
\v 26 अपने पाँव के रास्ते को हमवार बना, और तेरी सब राहें क़ायम रहें।
\v 27 ~न दहने मुड़ न बाएँ; और पाँव को बदी से हटा ले।
\s5
\c 5
\p
\v 1 ऐ मेरे बेटे! मेरी हिकमत पर तवज्जुह कर, मेरे समझ पर कान लगा;
\v 2 ताकि तू तमीज़ को महफ़ूज़ रख्खें, और तेरे लब 'इल्म के निगहबान हों:
\s5
\v 3 क्यूँकि बेगाना 'औरत के होटों से शहद टपकता है, और उसका मुँह तेल से ज़्यादा चिकना है;
\v 4 ~लेकिन उसका अन्जाम अज़दहे की तरह तल्ख़, और दो धारी तलवार की तरह तेज़ है।
\s5
\v 5 ~उसके पाँव मौत की तरफ़ जाते हैं, उसके क़दम पाताल तक पहुँचते हैं।
\v 6 ~इसलिए उसे ज़िन्दगी का हमवार रास्ता नहीं मिलता; उसकी राहें बेठिकाना हैं, पर वह बेख़बर है।
\s5
\v 7 ~इसलिए ऐ मेरे बेटो, मेरी सुनो, और मेरे मुँह की बातों से नाफ़रमान न हो।
\v 8 उस 'औरत से अपनी राह दूर रख, और उसके घर के दरवाज़े के पास भी न जा;
\s5
\v 9 ~ऐसा न हो कि तू अपनी आबरू किसी गै़र के, और अपनी 'उम्र बेरहम के हवाले करे।
\v 10 ~ऐसा न हो कि बेगाने तेरी कु़व्वत से सेर हों, और तेरी कमाई किसी गै़र के घर जाए;
\s5
\v 11 और जब तेरा गोश्त और तेरा जिस्म घुल जाये तो तू अपने अन्जाम पर नोहा करे;
\v 12 ~और कहे, 'मैंने तरबियत से कैसी 'अदावत रख्खी, ~और मेरे दिल ने मलामत को हक़ीर जाना |
\s5
\v 13 ~न मैंने अपने उस्तादों का कहा माना, न अपने तरबियत करने वालों की सुनी।
\v 14 ~मैं जमा'अत और मजलिस के बीच, क़रीबन सब बुराइयों में मुब्तिला हुआ।"
\s5
\v 15 ~तू पानी अपने ही हौज़ से और बहता पानी अपने ही चश्मे से पीना
\v 16 ~क्या तेरे चश्मे बाहर बह जाएँ, और पानी की नदियाँ कूचों में?
\v 17 ~वह सिर्फ़ तेरे ही लिए हों, न तेरे साथ गै़रों के लिए भी |
\s5
\v 18 तेरा सोता मुबारक हो और तू अपनी जवानी की बीवी के साथ ख़ुश रह |
\v 19 प्यारी हिरनी और दिल फ़रेब गजाला की तरह उसकी छातियाँ तुझे हर वक़्त आसूदह करें और उसकी मुहब्बत तुझे हमेशा फ़रेफ्ता रखे |
\s5
\v 20 ऐ मेरे बेटे, तुझे ~बेगाना 'औरत क्यों फ़रेफ्ता करे और तू ग़ैर 'औरत से क्यों हम आग़ोश हो ?
\v 21 क्यूँकि इन्सान की राहें ख़ुदावन्द कीआँखों के सामने हैं और वही सब रास्तों को हमवार बनाता है |
\s5
\v 22 ~शरीर को उसी की बदकारी पकड़ेगी, ~और वह अपने ही गुनाह की रस्सियों से जकड़ा जाएगा।
\v 23 ~वह तरबियत न पाने की वजह से मर जायेगा~~और अपनी सख़्त बेवक़ूफ़ी की वजह से~गुमराह हो जायेगा|
\s5
\c 6
\p
\v 1 ऐ मेरे बेटे, अगर तू अपने पड़ोसी ~का ज़ामिन हुआ है, अगर तू हाथ पर हाथ मारकर किसी बेगाने का ज़िम्मेदार हुआ है,
\v 2 ~तो तू अपने ही मुँह की बातों में फंसा, ~तू अपने ही मुँह की बातों से~पकड़ा गया।
\s5
\v 3 ~इसलिए ऐ मेरे बेटे, क्यूँकि तू अपने पड़ोसी ~के हाथ में फँस गया है, अब यह कर और अपने आपको बचा ले, ~जा, ख़ाकसार बनकर अपने पड़ोसी ~से इसरार कर।
\s5
\v 4 ~तू न अपनी आँखों में नींद आने दे, और न अपनी पलकों में झपकी।
\v 5 ~अपने आपको हरनी की तरह और सय्याद के हाथ से, और चिड़िया की तरह चिड़ीमार के हाथ से छुड़ा।
\s5
\v 6 ऐ काहिल, चींटी के पास जा, ~चाल चलन पर ग़ौर कर और 'अक़्लमंद बन।
\v 7 जो बावजूद यह कि उसका न कोई सरदार, न नाज़िर न हाकिम है,
\v 8 गर्मी के मौसिम में अपनी खू़राक मुहय्या करती है, और फ़सल कटने के वक़्त अपनी ख़ुराक जमा' करती है।
\s5
\v 9 ऐ काहिल, तू कब तक पड़ा रहेगा? तू नींद से कब उठेगा?
\v 10 थोड़ी सी नींद, एक और झपकी, ज़रा पड़े रहने को हाथ पर हाथ:
\v 11 इसी तरह तेरी ग़रीबी राहज़न की तरह, और तेरी तंगदस्ती हथियारबन्द आदमी की तरह आ पड़ेगी।
\s5
\v 12 ख़बीस-ओ-बदकार आदमी, टेढ़ी तिरछी ज़बान लिए फिरता है।
\v 13 ~वह आँख मारता है, वह पाँव से बातें, और ऊँगलियों से इशारा करता है।
\s5
\v 14 उसके दिल में कजी है, वह बुराई के मन्सूबे बाँधता रहता है, वह फ़ितना अंगेज़ है।
\v 15 इसलिए आफ़त उस पर अचानक आ पड़ेगी, वह एकदम तोड़ दिया जाएगा और कोई चारा न होगा।
\s5
\v 16 छ: चीजें हैं जिनसे ख़ुदावन्द को नफ़रत है, बल्कि सात हैं जिनसे उसे नफ़रत है:
\s5
\v 17 ऊँची आँखें, झूटी ज़बान, बेगुनाह का खू़न बहाने वाले हाथ,
\v 18 ~बुरे मन्सूबे बाँधने वाला दिल, शरारत के लिए तेज़ ~रफ़्तार पाँव,
\v 19 झूटा गवाह जो दरोग़गोई करता है, और जो भाइयों में निफ़ाक़ डालता है।
\s5
\v 20 ~ऐ मेरे बेटे, अपने बाप के फ़रमान को बजा ला, और अपनी माँ की ता'लीम को न छोड़।
\v 21 इनको अपने दिल पर बाँधे रख, और अपने गले का तौक़ बना ले।
\s5
\v 22 यह चलते वक़्त तेरी रहबरी, और सोते वक़्त तेरी निगहबानी, और जागते वक़्त तुझ से बातें करेगी।
\v 23 क्यूँकि फ़रमान चिराग़ है और ता'लीम नूर, और तरबियत की मलामत ज़िन्दगी की राह है,
\s5
\v 24 ताकि तुझ को बुरी 'औरत से बचाए, या'नी बेगाना 'औरत की ज़बान की चापलूसी से।
\v 25 तू अपने दिल में उसके हुस्न पर 'आशिक़ न हो, और वह तुझ को अपनी पलकों से शिकार न करे।
\s5
\v 26 क्यूँकि धोके की वजह से आदमी टुकड़े का मुहताज हो जाता है, और ज़ानिया क़ीमती जान का शिकार करती है।
\v 27 क्या मुम्किन है कि आदमी अपने सीने में आग रख्खे, और उसके कपड़े न जलें ?
\s5
\v 28 या कोई अंगारों पर चले, और उसके पाँव न झुलसें?
\v 29 वह भी ऐसा है जो अपने पड़ोसी की बीवी के पास जाता है; जो कोई उसे छुए बे सज़ा न रहेगा।
\s5
\v 30 ~चोर अगर भूक के मारे अपना पेट भरने को चोरी करे, तो लोग उसे हक़ीर नहीं जानते;
\v 31 ~लेकिन अगर वह पकड़ा जाए तो सात गुना भरेगा, उसे अपने घर का सारा माल देना पड़ेगा।
\s5
\v 32 जो किसी 'औरत से ज़िना करता है वह बे'अक़्ल है; वही ऐसा करता है जो अपनी जान को हलाक करना चाहता है।
\v 33 ~वह ज़ख़्म और ज़िल्लत उठाएगा, और उसकी रुस्वाई कभी न मिटेगी।
\s5
\v 34 क्यूँकि गै़रत से आदमी ग़ज़बनाक होता है, और वह इन्तिक़ाम के दिन नहीं छोड़ेगा।
\v 35 ~वह कोई फ़िदिया मंजूर नहीं करेगा, और चाहे तू बहुत से इन'आम भी दे तोभी वह राज़ी न होगा।
\s5
\c 7
\p
\v 1 ऐ मेरे बेटे, मेरी बातों को मान, और मेरे फ़रमान को निगाह में रख।
\v 2 ~मेरे फ़रमान को बजा ला और ज़िन्दा रह, और मेरी ता'लीम को अपनी आँख की पुतली जानः
\v 3 ~उनको अपनी उँगलियों पर बाँध ले, उनको अपने दिल की तख़्ती पर लिख ले।
\s5
\v 4 ~हिकमत से कह, "तू मेरी बहन है, " और समझ को अपना रिश्तेदार क़रार दे;
\v 5 ताकि वह तुझ को पराई 'औरत से बचाएँ, या'नी बेगाना 'औरत से जो चापलूसी की बातें करती है।
\s5
\v 6 क्यूँकि मैंने अपने घर की खिड़की से, या'नी झरोके में से बाहर निगाह की,
\v 7 ~और मैंने एक बे'अक़्ल जवान को नादानों के बीच देखा, या'नी नौजवानों के बीच वह मुझे नज़रआया,
\s5
\v 8 ~कि उस 'औरत के घर के पास गली के मोड़ से जा रहा है, और उसने उसके घर का रास्ता लिया;
\v 9 ~दिन छिपे शाम के वक़्त, रात के अंधेरे और तारीकी में।
\s5
\v 10 ~और देखो, वहाँ उससे एक 'औरत आ मिली, जो दिल की चालाक और कस्बी का लिबास पहने थी।
\v 11 ~वह गौग़ाई और ख़ुदसर है, उसके पाँव अपने घर में नहीं टिकते;
\v 12 अभी वह गली में है, अभी बाज़ारों में, और हर मोड़ पर घात में बैठती है।
\s5
\v 13 ~इसलिए उसने उसको पकड़ कर चूमा, और बेहया मुँह से उससे कहने लगी,
\v 14 ~"सलामती की कु़र्बानी के ज़बीहे मुझ पर फ़र्ज़ थे, आज मैंने अपनी नज्रे़ अदा की हैं।
\v 15 ~इसीलिए मैं तेरी मुलाक़ात को निकली, कि किसी तरह तेरा दीदार हासिल करूँ, इसलिए ~तू मुझे मिल गया।
\s5
\v 16 ~मैंने अपने पलंग पर कामदार गालीचे, और मिस्र के सूत के धारीदार कपड़े बिछाए हैं।
\v 17 ~मैंने अपने बिस्तर को मुर और ऊद, और दारचीनी से मु'अत्तर किया है।
\v 18 ~आ हम सुबह तक दिल भर कर इश्क़ बाज़ी करें और मुहब्बत की बातों से दिल बहलाएँ
\s5
\v 19 क्यूँकि मेरा शौहर घर में नहीं, उसने दूर का सफ़र किया है।
\v 20 ~वह अपने साथ रुपये की थैली ले गया;और पूरे चाँद के वक़्त घर आएगा।"
\v 21 ~उसने मीठी मीठी बातों से उसको फुसला लिया, और अपने लबों की चापलूसी से उसको बहका लिया।
\s5
\v 22 ~वह फ़ौरन उसके पीछे हो लिया, जैसे बैल ज़बह होने को जाता है; या बेड़ियों में बेवक़ूफ़ सज़ा पाने को।
\v 23 ~जैसे परिन्दा जाल की तरफ़ तेज़ जाता है, और नहीं जानता कि वह उसकी जान के लिए है, हत्ता कि तीर उसके जिगर के पार हो जाएगा।
\s5
\v 24 ~इसलिए अब ऐ बेटो, मेरी सुनो, और मेरे मुँह की बातों पर तवज्जुह ~करो।
\v 25 ~तेरा दिल उसकी राहों की तरफ़ मायल न हो, तू उसके रास्तों में गुमराह न होना;
\s5
\v 26 क्यूँकि उसने बहुतों को ज़ख़्मी करके गिरा दिया है, बल्कि उसके मक़्तूल बेशुमार हैं।
\v 27 ~उसका घर पाताल का रास्ता है, और मौत की कोठरियों को जाता है।
\s5
\c 8
\p
\v 1 क्या हिकमत पुकार नहीं रही, और समझ आवाज़ बलंद नहीं कर रहा ?
\v 2 ~वह राह के किनारे की ऊँची जगहों की चोटियों पर, जहाँ सड़कें मिलती हैं, खड़ी होती है।
\v 3 फाटकों के पास शहर के दहलीज़ पर, या'नी दरवाज़ों के मदख़ल पर वह ज़ोर से पुकारती है,
\s5
\v 4 ~"ऐ आदमियो, मैं तुम को पुकारती हूँ, और बनी आदम को आवाज़ देती
\v 5 ~ऐ सादा दिली होशियारी सीखो;और ऐ बेवक़ूफ़़ों, 'अक़्ल दिल बनो ।
\s5
\v 6 सुनो, क्यूँकि मैं लतीफ़ बातें कहूँगी, और मेरे लबों से रास्ती की बातें निकलेगी;
\v 7 ~इसलिए कि मेरा मुँह सच्चाई को बयान करेगा; और मेरे होंटों को शरारत से नफ़रत है।
\s5
\v 8 ~मेरे मुँह की सब बातें सदाक़त की हैं, उनमें कुछ टेढ़ा तिरछा नहीं है।
\v 9 समझने वाले के लिए वह सब साफ़ हैं, और 'इल्म हासिल करने वालों के लिए रास्त हैं।
\s5
\v 10 ~चाँदी को नहीं, बल्कि मेरी तरबियत को कु़बूल करो, और कुंदन से बढ़कर 'इल्म को;
\v 11 क्यूँकि हिकमत मरजान से अफ़ज़ल है, और सब पसन्दीदा चीज़ों में बेमिसाल।
\s5
\v 12 ~मुझ हिकमत ने होशियारी को अपना मस्कन बनाया है, और 'इल्म और तमीज़ को पा लेती हूँ।
\v 13 ~ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ बदी से 'अदावत है। गु़रूर और घमण्ड और बुरी राह, और टेढ़ी बात से मुझे नफ़रत है।
\s5
\v 14 मशवरत और हिमायत मेरी है, समझ मैं ही हूँ मुझ में क़ुदरत है|
\v 15 ~मेरी बदौलत बादशाह सल्तनत करते, और उमरा इन्साफ़ का फ़तवा देते हैं।
\v 16 ~मेरी ही बदौलत हाकिम हुकूमत करते हैं, और सरदार या'नी दुनिया के सब काज़ी भी।
\s5
\v 17 ~जो मुझ से मुहब्बत रखते हैं मैं उनसे मुहब्बत रखती हूँ, और जो मुझे दिल से ढूंडते हैं, वह मुझे पा लेंगे।
\v 18 दौलत-ओ-'इज़्ज़त मेरे साथ हैं, बल्कि हमेशा दौलत और सदाक़त भी।
\s5
\v 19 ~मेरा फल सोने से बल्कि कुन्दन से भी बेहतर है, और मेरा हासिल ख़ालिस चाँदी से।
\v 20 ~मैं सदाक़त की राह पर, इन्साफ़ के रास्तों में चलती हूँ।
\v 21 ताकि मैं उनको जो मुझ से मुहब्बत रखते हैं, माल के वारिस बनाऊँ, और उनके ख़ज़ानों को भर दूँ।
\s5
\v 22 ~"ख़ुदावन्द ने इन्तिज़ाम-ए-'आलम के शुरू' में, अपनी क़दीमी सन'अतों से पहले मुझे पैदा किया।
\v 23 मैं अज़ल से या'नी इब्तिदा ही से मुक़र्रर हुई, इससे पहले के ज़मीन थी।
\s5
\v 24 ~मैं उस वक़्त पैदा हुई जब गहराओ न थे; जब पानी से भरे हुए चश्मे भी न थे।
\v 25 ~मैं पहाड़ों के क़ायम किए जाने से पहले, और टीलों से पहले पैदा हुई।
\s5
\v 26 जब कि उसने अभी न ज़मीन को बनाया था न मैदानों को, और न ज़मीन की ख़ाक की शुरु'आत थी।
\v 27 ~जब उसने आसमान को क़ायम किया मैं वहीं थी; जब उसने समुन्दर की सतह पर दायरा खींचा;
\s5
\v 28 ~जब उसने ऊपर अफ़लाक को बराबर किया, और गहराओ के सोते मज़बूत हो गए;
\v 29 ~जब उसने समुन्दर की हद ठहराई, ताकि पानी उसके हुक्म को न तोड़े; जब उसने ज़मीन की बुनियाद के निशान लगाए।
\s5
\v 30 ~उस वक़्त माहिर कारीगर की तरह मैं उसके पास थी, और मैं हर रोज़ उसकी ख़ुशनूदी थी, और हमेशा उसके सामने शादमान रहती थी।
\v 31 ~आबादी के लायक़ ज़मीन से शादमान थी, और मेरी ख़ुशनूदी बनी आदम की सुहबत में थी।
\s5
\v 32 ~"इसलिए ऐ बेटो, मेरी सुनो, क्यूँकि मुबारक हैं वह जो मेरी राहों पर चलते हैं।
\v 33 तरबियत की बात सुनो, और 'अक़्लमंद बनो, और इसको रद्द न करो।
\v 34 ~मुबारक है वह आदमी जो मेरी सुनता है, और हर रोज़ मेरे फाटकों पर इन्तिज़ार करता है, और मेरे दरवाज़ों की चौखटों पर ठहरा रहता है।
\s5
\v 35 क्यूँकि जो मुझ को पाता है, ज़िन्दगी पाता है, और वह ख़ुदावन्द का मक़बूल होगा।
\v 36 लेकिन जो मुझ से भटक जाता है, अपनी ही जान को नुक़सान पहुँचाता है;मुझ से 'अदावत रखने वाले, सब मौत से मुहब्बत रखते हैं।"
\s5
\c 9
\p
\v 1 ~हिकमत ने अपना घर बना लिया, उसने अपने सातों सुतून तराश लिए हैं।
\v 2 ~उसने अपने जानवरों को ज़बह कर लिया, और अपनी मय मिला कर तैयार कर ली; उसने अपना दस्तरख़्वान भी चुन लिया।
\s5
\v 3 ~उसने अपनी सहेलियों को रवाना किया है; वह ख़ुद शहर की ऊँची जगहों पर पुकारती है,
\v 4 ~"जो सादा दिल है, इधर आ जाए!" और बे'अक़्ल से वह यह कहती है,
\s5
\v 5 ~'आओ, मेरी रोटी में से खाओ, और मेरी मिलाई हुई मय में से पियो।
\v 6 ~ऐ सादा दिलो, बाज़ आओ और ज़िन्दा रहो, और समझ की राह पर चलो।"
\s5
\v 7 ठठ्ठा बाज़ को तम्बीह करने वाला ला'नतान उठाएगा, और शरीर को मलामत करने वाले पर धब्बा लगेगा।
\v 8 ठठ्ठाबाज़ को मलामत न कर, ऐसा न हो कि वह तुझ से 'अदावत रखने लगे; 'अक़्लमंद को मलामत कर, और वह तुझ से मुहब्बत रख्खेगा।
\v 9 ~'अक़्लमंद की तरबियत कर, और वह और भी 'अक़्लमंद बन जाएगा; सादिक़ को सिखा और वह 'इल्म में तरक़्क़ी करेगा।
\s5
\v 10 ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ हिकमत का शुरू' है, और उस क़ुद्दुस की पहचान समझ है।
\v 11 क्यूँकि मेरी बदौलत तेरे दिन बढ़ जाएँगे, और तेरी ज़िन्दगी के साल ज़्यादा होंगे।
\v 12 ~अगर तू 'अक़्लमंदहै तो अपने लिए, और अगर तू ठठ्ठाबाज़ है तो ख़ुद ही भुगतेगा।
\s5
\v 13 ~बेवक़ूफ़ 'औरत गौग़ाई है; वह नादान है और कुछ नहीं जानती।
\v 14 ~वह अपने घर के दरवाज़े पर, शहर की ऊँची जगहों में बैठ जाती है;
\v 15 ताकिआने जाने वालों को बुलाए, जो अपने अपने रास्ते पर सीधे जा रहें हैं,
\s5
\v 16 ~"सादा दिल इधर आ जाएँ, और बे'अक़्ल से वह यह कहती है,
\v 17 "चोरी का पानी मीठा है, और पोशीदगी की रोटी लज़ीज़।'
\v 18 ~लेकिन वह नहीं जानता कि वहाँ मुर्दे पड़े हैं, और उस 'औरत के मेहमान पाताल की तह में हैं।
\s5
\c 10
\p
\v 1 ~सुलेमान की अम्साल| 'अक़्लमंद बेटा बाप को ख़ुश रखता है, लेकिन बेवक़ूफ़ बेटा अपनी माँ का ग़म है।
\v 2 ~शरारत के ख़ज़ाने बेकार हैं, लेकिन सदाक़त मौत से छुड़ाती है।
\v 3 ~ख़ुदावन्द सादिक़ की जान को फ़ाक़ा न करने देगा, लेकिन शरीरों की हवस को दूर-ओ-दफ़ा' करेगा।
\s5
\v 4 ~जो ढीले हाथ से काम करता है, कंगाल हो जाता है; लेकिेन मेहनती का हाथ दौलतमंद बना देता है।
\v 5 ~वह जो गर्मी में जमा' करता है, 'अक़्लमंद बेटा है; लेकिन वह बेटा जो दिरौ के वक़्त सोता रहता है, शर्म का ज़रिया' है।
\s5
\v 6 ~सादिक़ के सिर पर बरकतें होती हैं, लेकिन शरीरों के मुँह को जु़ल्म ढाँकता है।
\v 7 ~रास्त आदमी की यादगार मुबारक है, लेकिन शरीरों का नाम सड़ जाएगा।
\s5
\v 8 ~'अक़्लमंद दिल फ़रमान बजा लाएगा, लेकिन बकवासी बेवक़ूफ़ पछाड़ खाएगा ।
\v 9 ~रास्त रौ बेखट के चलता है, लेकिन जो कजरवी करता है ज़ाहिर हो जाएगा।
\s5
\v 10 आँख मारने वाला रंज पहुँचाता है, और बकवासी~बेवक़ूफ़~पछाड़ खाएगा।*
\v 11 ~सादिक़ का मुँह ज़िन्दगी का चश्मा है, लेकिन शरीरों के मुँह को जु़ल्म ढाँकता है।
\s5
\v 12 'अदावत झगड़े पैदा करती है, लेकिन मुहब्बत सब ख़ताओं को ढाँक देती है।
\v 13 ~'अक़्लमंद के लबों पर हिकमत है, लेकिन बे'अक़्ल की पीठ के लिए लठ है।
\s5
\v 14 ~'अक़्लमंद आदमी 'इल्म जमा' करते हैं, लेकिन~बेवक़ूफ़ का मुँह क़रीबी हलाकत है।
\v 15 ~दौलतमंद की दौलत उसका मज़बूत शहर है, कंगाल की हलाकत उसी की तंगदस्ती है |
\s5
\v 16 ~सादिक़ की मेहनत ज़िन्दगानी का ज़रिया' है, शरीर की इक़बालमंदी गुनाह कराती है।
\v 17 ~तरबियत पज़ीर ज़िन्दगी की राह पर ~है, लेकिन मलामत को छोड़ने ~वाला गुमराह हो जाता है।
\s5
\v 18 ~'अदावत को छिपाने वाला दरोग़गो है, और तोहमत लगाने वाला~बेवक़ूफ़है।
\v 19 ~कलाम की कसरत ख़ता से ख़ाली नहीं, , लेकिन होंटों को क़ाबू में रखने वाला 'अक़्लमंद है|
\s5
\v 20 ~सादिक़ की ज़बान खालिस चाँदी है; शरीरों के दिल बेक़द्र हैं
\v 21 ~सादिक़ के होंट बहुतों को गिज़ा पहुँचाते है लेकिन~बेवक़ूफ़~बे'अक़्ली से मरते हैं।
\s5
\v 22 ~खुदावन्द ही की बरकत दौलत बख़्शती है, और वह उसके साथ दुख नहीं मिलाता।
\v 23 ~बेवक़ूफ़~के लिए शरारत खेल है, लेकिन हिकमत 'अक़्लमंद के लिए है।
\s5
\v 24 ~शरीर का ख़ौफ़ उस पर आ पड़ेगा, और सादिक़ों की मुराद पूरी होगी।
\v 25 ~जब बगोला गुज़रता है तो शरीर हलाक हो जाता है, लेकिन~~सादिक़ हमेशा की ~बुनियाद है।
\s5
\v 26 जैसा दाँतों के लिए सिरका, और आँखों के लिए धुआँ~वैसा ही काहिल अपने भेजने वालों के लिए है।
\v 27 ~ख़ुदावन्द का ख़ौफ़' उम्र की दराज़ी बख़्शता है लेकिन शरीरों की ज़िन्दगी कोताह कर दी जायेगी|
\s5
\v 28 सादिक़ो की उम्मीद ख़ुशी लाएगी लेकिन शरीरों की उम्मीद ख़ाक में मिल जाएगी।
\v 29 ख़ुदावन्द की राह रास्तबाज़ों के लिए पनाहगाह लेकिन बदकिरादारों के लिए हलाक़त ~है,
\v 30 सादिक़ों को कभी जुम्बिश न होगी लेकिन शरीर ज़मीन पर क़ायम नहीं रहेंगे |
\s5
\v 31 सादिक़ के मुँह से हिकमत निकलती है लेकिन झूठी ज़बान काट डाली जायेगी |
\v 32 ~सादिक़ के होंट पसन्दीदा बात से आशना है लेकिन शरीरों के मुंह झूट से|
\s5
\c 11
\p
\v 1 ~दग़ा के तराजू़ से ख़ुदावन्द को नफ़रत~है, ~लेकिन पूरा बाट उसकी खु़शी है।
\v 2 ~तकब्बुर के साथ बुराई आती है, ~लेकिन ख़ाकसारों के साथ हिकमत है।
\s5
\v 3 ~रास्तबाज़ों की रास्ती उनकी राहनुमा होगी, लेकिन दग़ाबाज़ों की टेढ़ी राह उनको बर्बाद करेगी।
\v 4 ~क़हर के दिन माल काम नहीं आता, लेकिन सदाक़त मौत से रिहाई देती~है|
\s5
\v 5 ~कामिल की सदाक़त उसकी राहनुमाई करेगी~~लेकिन शरीर अपनी ही शरारत से~गिर पड़ेगा।
\v 6 ~रास्तबाज़ों की सदाक़त उनको रिहाई देगी, ~लेकिन दग़ाबाज़ अपनी ही बद नियती में फँँस जाएँगे।
\s5
\v 7 ~मरने पर शरीर का उम्मीद ख़ाक~में मिल जाता है, और ज़ालिमों की उम्मीद बर्बाद हो जाती है |
\v 8 ~सादिक़ मुसीबत से रिहाई पाता है, और शरीर उसमें पड़ जाता है।
\s5
\v 9 ~बेदीन अपनी बातों से अपने पड़ोसी को हलाक करता है लेकिन सादिक़ 'इल्म के ज़रिए' से रिहाई पाएगा।
\v 10 ~सादिक़ों की खु़शहाली से शहर ख़ुश होता है। और शरीरों की हलाकत पर ख़ुशी की ललकार होती है।
\v 11 ~रास्तबाज़ों की दु'आ से शहर सरफ़राज़ी पाता है, लेकिन शरीरों की बातों से बर्बाद ~होता है।
\s5
\v 12 अपने पड़ोसी की बे'इज़्ज़ती करने वाला बे'अक़्ल है, लेकिन समझदार ख़ामोश रहता है।
\v 13 जो कोई लुतरापन करता फिरता है राज़ ~खोलता है, लेकिन जिसमें वफ़ा की रूह है वह राज़दार है।
\s5
\v 14 नेक सलाह के बगै़र लोग तबाह होते हैं, लेकिन सलाहकारों की कसरत में सलामती है।
\s5
\v 15 ~जो बेगाने का ज़ामिन होता है सख़्त नुक़्सान उठाएगा, लेकिन जिसको ज़मानत से नफ़रत है वह बेख़तर है।
\v 16 ~नेक सीरत 'औरत 'इज़्ज़त पाती है, और तुन्दखू़ आदमी माल हासिल करते हैं।
\s5
\v 17 ~रहम दिल अपनी जान के साथ नेकी करता है, लेकिन बे रहम अपने जिस्म को दुख देता है।
\v 18 ~शरीर की कमाई बेकार है, लेकिन सदाक़त बोलने वाला हक़ीक़ी अज्र पता है |
\s5
\v 19 ~सदाक़त पर क़ायम रहने वाला ज़िन्दगी हासिल करता है, और बदी का हिमायती अपनी मौत को पहुँचता ~है।
\v 20 ~कज दिलों से ख़ुदावन्द को नफ़रत है, लेकिन कामिल रफ़्तार उसकी ख़ुशनूदी हैं।
\s5
\v 21 ~यक़ीनन शरीर बे सज़ा न छूटेगा, लेकिन सादिक़ों की नसल रिहाई पाएगी।
\v 22 ~बेतमीज़ 'औरत में खू़बसूरती, जैसे सूअर की नाक में सोने की नथ है।
\s5
\v 23 ~सादिक़ों की तमन्ना सिर्फ़ नेकी है; लेकिन शरीरों की उम्मीद ग़ज़ब है।
\v 24 ~कोई तो बिथराता है, लेकिन तो भी तरक़्क़ी करता है; और कोई सही ख़र्च से परहेज़ करता है, लेकिन तोभी कंगाल है।
\s5
\v 25 ~सख़ी दिल मोटा हो जाएगा, और सेराब करने वाला ख़ुद भी सेराब होगा।
\v 26 जो ग़ल्ला रोक रखता है, लोग उस पर ला'नत करेंगे; लेकिन जो उसे बेचता है उसके सिर पर बरकत होगी।
\s5
\v 27 ~जो दिल से नेकी की तलाश में है मक़्बूलियत का तालिब है, लेकिन जो बदी की तलाश में है वह उसी के आगे आएगी।
\v 28 ~जो अपने माल पर भरोसा करता है गिर पड़ेगा, लेकिन सादिक़ हरे पत्तों की तरह सरसब्ज़ होंगे।
\s5
\v 29 जो अपने घराने को दुख देता है, हवा का वारिस होगा, और बेवकू़फ़ 'अक़्ल दिल का ख़ादिम बनेगा।
\s5
\v 30 ~सादिक़ का फल ज़िन्दगी का दरख़्त है, और जो 'अक़्लमंद है दिलों को मोह लेता है।
\v 31 ~देख, सादिक़ को ज़मीन पर बदला दिया जाएगा, तो कितना ज़्यादा शरीर और गुनहगार को।
\s5
\c 12
\p
\v 1 ~जो तरबियत को दोस्त रखता है, वह 'इल्म को दोस्त रखता है; लेकिन जो तम्बीह से नफ़रत रखता है, वह हैवान है।
\v 2 ~नेक आदमी ख़ुदावन्द का मक़बूल होगा, लेकिन बुरे मन्सूबे बाँधने वाले को वह मुजरिम ठहराएगा।
\s5
\v 3 आदमी शरारत से पायेदार नहीं होगा लेकिन सादिक़ों की जड़ को कभी जुम्बिश न होगी |
\v 4 नेक ~'औरत अपने शौहर के लिए ताज है लेकिन नदामत लाने वाली उसकी हड्डियों में बोसीदगी की तरह है |
\s5
\v 5 सादिक़ों के ख़यालात दुरुस्त हैं, लेकिन शरीरों की मश्वरत धोखा है।
\v 6 ~शरीरों की बातें यही हैं कि खू़न करने के लिए ताक में बैठे, लेकिन सादिक़ों की बातें उनको रिहाई देंगी।
\s5
\v 7 शरीर पछाड़ खाते और हलाक ~होते हैं, लेकिन सादिक़ों का घर क़ायम रहेगा।
\v 8 ~आदमी की ता'रीफ़ उसकी 'अक़्लमंदी के मुताबिक़ की जाती है, लेकिन बे'अक़्ल ज़लील होगा।
\s5
\v 9 ~जो छोटा समझा जाता है लेकिन उसके पास एक नौकर है, उससे बेहतर है जो अपने आप को बड़ा जानता और रोटी का मोहताज है।
\v 10 ~सादिक़ अपने चौपाए की जान का ख़याल रखता है, लेकिन शरीरों की रहमत भी 'ऐन जु़ल्म है।
\s5
\v 11 ~जो अपनी ज़मीन में काश्तकारी करता है, रोटी से सेर होगा; लेकिन बेकारी का हिमायती बे'अक़्ल है।
\v 12 ~शरीर बदकिरदारों के दाम का मुश्ताक़ है, लेकिन सादिक़ों की जड़ फलती है।
\s5
\v 13 लबों की ख़ताकारी में शरीर के लिए फंदा है, लेकिन सादिक़ मुसीबत से बच निकलेगा।
\v 14 ~आदमी के कलाम का फल उसको नेकी से आसूदा करेगा, और उसके हाथों के किए का बदला उसको मिलेगा।
\s5
\v 15 ~बेवक़ूफ़ का चाल चलन उसकी नज़र में दुरस्त है, लेकिन 'अक़्लमंद नसीहत को सुनता है।
\v 16 ~बेवक़ूफ़~का ग़ज़ब फ़ौरन ज़ाहिर हो जाता है, लेकिन होशियार शर्मिन्दगी को छिपाता है।
\s5
\v 17 रास्तगो सदाक़त ज़ाहिर करता है, लेकिन झूटा गवाह दग़ाबाज़ी।
\v 18 ~बिना समझे बोलने वाले की बातें तलवार की तरह छेदती हैं, लेकिन 'अक़्लमंद~की ज़बान सेहत बख़्श है।
\s5
\v 19 ~सच्चे होंट हमेशा तक क़ायम रहेंगे.लेकिन झूटी ज़बान सिर्फ़ दम भर की है।
\v 20 बदी के मन्सूबे बाँधने वालों के दिल में दग़ा है, लेकिन सुलह की मश्वरत देने वालों के लिए ख़ुशी है।
\s5
\v 21 सादिक़ पर कोई आफ़त नहीं आएगी, लेकिन शरीर बला में मुब्तिला होंगे।
\v 22 ~झूटे लबों से ख़ुदावन्द को नफ़रत है, लेकिन रास्तकार उसकी ख़ुशनूदी, हैं।
\s5
\v 23 ~होशियार आदमी 'इल्म को छिपाता है, लेकिन~बेवक़ूफ़ का दिल~बेवक़ूफ़ी~का 'ऐलान करता है।
\v 24 ~मेहनती आदमी का हाथ हुक्मराँ होगा, लेकिन सुस्त आदमी बाज गुज़ार बनेगा।
\s5
\v 25 आदमी का दिल फ़िक्रमंदी से दब जाता है, लेकिन अच्छी बात से ख़ुश होता है।
\v 26 ~सादिक़ अपने पड़ोसी की रहनुमाई करता है, लेकिन शरीरों का चाल चलन उनको गुमराह कर देता है।
\s5
\v 27 सुस्त आदमी शिकार पकड़ कर कबाब नहीं करता, लेकिन इन्सान की गिरानबहा दौलत मेहनती पाता है।
\v 28 ~सदाक़त की राह में ज़िन्दगी है, और उसके रास्ते में हरगिज़ मौत नहीं।
\s5
\c 13
\p
\v 1 ~'अक़्लमंद बेटा अपने बाप की ता'लीम को सुनता है, लेकिन ठठ्ठा बाज़ सरज़निश पर कान नहीं लगाता।
\v 2 ~आदमी अपने कलाम के फल से अच्छा खाएगा, लेकिन दग़ाबाज़ों की जान के लिए सितम है।
\s5
\v 3 अपने मुँह की निगहबानी करने वाला अपनी जान की हिफ़ाज़त करता है लेकिन जो अपने होंट पसारता है, हलाक होगा।
\v 4 सुस्त आदमी आरजू़ करता है लेकिन कुछ नहीं पाता, लेकिन मेहनती की जान सेर होगी।
\s5
\v 5 ~सादिक़ को झूट से नफ़रत है, लेकिन शरीर नफरत अंगेज़-ओ-रुस्वा होता है।
\v 6 सदाक़त रास्तरौ की हिफाज़त करती ~है, लेकिन शरारत शरीर को गिरा देती है।
\s5
\v 7 ~कोई अपने आप को दौलतमंद जताता है लेकिन ग़रीब है, और कोई अपने आप को कंगाल बताता है लेकिन बड़ा मालदार है।
\v 8 आदमी की जान का कफ़्फ़ारा उसका माल है, लेकिन कंगाल धमकी को नहीं सुनता।
\s5
\v 9 ~सादिक़ों का चिराग़ रोशन रहेगा, लेकिन शरीरों का दिया बुझाया जाएगा।
\v 10 ~तकब्बुर से सिर्फ़ झगड़ा पैदा होताहै, लेकिन मश्वरत पसंद के साथ हिकमत है।
\s5
\v 11 ~जो दौलत बेकारी से हासिल की जाए कम हो जाएगी, लेकिन मेहनत से जमा' करने वाले की दौलत बढ़ती रहेगी।
\v 12 ~उम्मीद के पूरा होने में ताख़ीर दिल को बीमार करती है, लेकिन आरजू़ का पूरा होना ज़िन्दगी का दरख़्त है।
\s5
\v 13 ~जो कलाम की तहक़ीर करता है, अपने आप पर हलाकत लाता है; लेकिन जो फ़रमान से डरता है, अज्र पाएगा।
\v 14 'अक़्लमंद की ता'लीम ज़िन्दगी का चश्मा है, जो मौत के फंदो से छुटकारे का ज़रिया' हो।
\s5
\v 15 ~समझ की दुरुस्ती मक़्बूलियत बख़्शती है, लेकिन दग़ाबाज़ों की राह कठिन है।
\v 16 ~हर एक होशियार आदमी 'अक़्लमंदी से काम करता है, पर~बेवक़ूफ़~अपनी~बेवक़ूफ़ी~को फैला देता है।
\s5
\v 17 ~शरीर क़ासिद बला में गिरफ़्तार होता है, लेकिन ईमानदार एल्ची सिहत बख़्श है।
\v 18 ~तरबियत को रद्द करने वाला कंगालऔर रुस्वा होगा, लेकिन वह जो तम्बीह का लिहाज़ रखता है, 'इज़्ज़त पाएगा।
\s5
\v 19 जब मुराद पूरी होती है तब जी बहुत ख़ुश होता है, लेकिन बदी को ~छोड़ने से~बेवक़ूफ़~को नफ़रत है।
\v 20 ~वह जो 'अक़्लमंदों~के साथ चलता है 'अक़्लमंद~होगा, पर~बेवक़ूफ़ों~का साथी हलाक किया जाएगा।
\s5
\v 21 ~बदी गुनहगारों का पीछा करती है, लेकिन सादिक़ों को नेक बदला मिलेगा।
\v 22 ~नेक आदमी अपने पोतों के लिए मीरास छोड़ता है, लेकिन गुनहगार की दौलत सादिक़ों के लिए फ़राहम की जाती है
\s5
\v 23 कंगालों की खेती में बहुत ख़ुराक होती है, लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो बे इन्साफ़ी से बर्बाद हो जाते हैं।
\v 24 ~वह जो अपनी छड़ी को बाज़ रखता है, अपने बेटे से नफ़रत रखता है, लेकिन वह जो उससे मुहब्बत रखता है, बरवक़्त उसको तम्बीह करता है।
\s5
\v 25 ~सादिक़ खाकर सेर हो जाता है, लेकिन शरीर का पेट नहीं भरता।
\s5
\c 14
\p
\v 1 ~'अक़्लमंद~~'औरत अपना घर बनाती है, लेकिन बेवक़ूफ़~उसे अपने ही~हाथों से बर्बाद करती है।
\v 2 ~रास्तरौ ख़ुदावन्द से डरता है, लेकिन कजरौ उसकी हिक़ारत करता है।
\s5
\v 3 ~बेवक़ूफ़~में से गु़रूर फूट निकलता है, लेकिन 'अक़्लमंदों~के लब उनकी निगहबानी करते हैं।
\v 4 जहाँ बैल नहीं, वहाँ चरनी साफ़ है, लेकिन ग़ल्ला की अफ़ज़ा इस ~बैल के ज़ोर से है।
\s5
\v 5 ईमानदार गवाह झूट नहीं बोलता, लेकिन झूटा गवाह झूटी बातें बयान करता है।
\v 6 ~ठठ्ठा बाज़ हिकमत की तलाश करता और नहीं पाता, लेकिन समझदार को 'इल्म आसानी से हासिल होता है।
\s5
\v 7 ~बेवक़ूफ़~से किनारा कर, क्यूँकि तू उस में 'इल्म की बातें नहीं पाएगा।
\v 8 होशियार की हिकमत यह है कि अपनी राह पहचाने, लेकिन~बेवक़ूफ़~की~बेवक़ूफ़ी~धोका है।
\s5
\v 9 ~बेवक़ूफ़~गुनाह करके हँसते हैं, । लेकिन रास्तकारों में रज़ामंदी है।
\v 10 ~अपनी तल्ख़ी को दिल ही खू़ब जानता है, और बेगाना उसकी खु़शी में दख़्ल नहीं रखता।
\s5
\v 11 ~शरीर का घर बर्बाद हो जाएगा, लेकिन रास्त आदमी का खे़मा आबाद रहेगा।
\v 12 ~ऐसी राह भी है जो इंसान को सीधी मा'लूम होती है, लेकिन उसकी इन्तिहा में मौत की राहें हैं।
\s5
\v 13 हँसने में भी दिल ग़मगीन है, और शादमानी का अंजाम ग़म है।
\v 14 ~नाफ़रमान दिल अपने चाल चलन ~का बदला पाता है, और नेक आदमी अपने काम का।
\s5
\v 15 ~नादान हर बात का यक़ीन कर लेता है, लेकिन होशियार आदमी अपने चाल चलन को देखता भालता है।
\v 16 ~'अक़्लमंद ~डरता है और बदी से अलग रहता है, लेकिन बेवक़ूफ़~झुंझलाता है और बेख़ौफ़ रहता है।
\s5
\v 17 ~जूद रंज बेवक़ूफ़ी करता है, और बुरे मन्सुबे बाँधने वाला घिनौना है।
\v 18 ~नादान हिमाक़त की मीरास पाते हैं, लेकिन होशियारों के सिर लेकिन 'इल्म का ताज है।
\s5
\v 19 शरीर नेकों के सामने झुकते हैं, और ख़बीस सादिक़ों के दरवाज़ों पर ।
\v 20 ~कंगाल से उसका पड़ोसी भी बेज़ार है, लेकिन मालदार के दोस्त बहुत हैं।
\s5
\v 21 ~अपने पड़ोसी को हक़ीर जानने वाला गुनाह करता है, लेकिन कंगाल पर रहम करने वाला मुबारक है।
\v 22 क्या बदी के मूजिद गुमराह नहीं होते? लेकिन शफ़क़त और सच्चाई नेकी के मूजिद के लिए हैं।
\s5
\v 23 हर तरह की मेहनत में नफ़ा' है, लेकिन मुँह की बातों में महज़ मुहताजी है।
\v 24 ~'अक़्लमंदों~~का ताज उनकी दौलत है, लेकिन~बेवक़ूफ़~की~बेवक़ूफ़ी~ही~बेवक़ूफ़ी~है।
\s5
\v 25 ~सच्चा गवाह जान बचाने वाला है, ~लेकिन झूठा गवाह दग़ाबाज़ी करता है।
\s5
\v 26 ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ में क़वी उम्मीद है, और उसके फ़र्ज़न्दों को पनाह की जगह मिलती है।
\v 27 ~ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ ज़िन्दगी का चश्मा है, जो मौत के फंदों से छुटकारे का ज़रिया' है।
\s5
\v 28 रि'आया की कसरत में बादशाह की शान है, लेकिन लोगों की कमी में हाकिम की तबाही है।
\v 29 जो क़हर करने में धीमा है, बड़ा 'अक़्लमन्द है लेकिन वह जो झक्की है हिमाकत को बढ़ाता है।
\s5
\v 30 ~मुत्मइन दिल, जिस्म की जान है, लेकिन जलन हड्डियों की बूसीदिगी है।
\v 31 ~ग़रीब पर जु़ल्म करने वाला उसके ख़ालिक़ की इहानत करता है, लेकिन उसकी ता'ज़ीम करने वाला मुहताजों पर रहम करता है।
\s5
\v 32 ~शरीर अपनी शरारत में पस्त किया जाता है, लेकिन सादिक़ मरने पर भी उम्मीदवार है।
\v 33 ~हिकमत 'अक़्लमंद के दिल में क़ायम रहती है, लेकिन बेवक़ूफ़ों~का~दिली राज़ खुल जाता है।
\s5
\v 34 ~सदाक़त कौम को सरफ़राज़ी बख़्शती है, लकिन~गुनाह से उम्मतों की रुस्वाई है।
\v 35 'अक़्लमंद ख़ादिम पर बादशाह की नज़र-ए-इनायत है, लेकिन उसका क़हर उस पर है जो रुस्वाई का ज़रिया' है।
\s5
\c 15
\p
\v 1 ~नर्म जवाब क़हर को दूर कर देता है, लेकिन कड़वी ~बातें ग़ज़ब अंगेज़ हैं।
\v 2 ~'अक़्लमंदों~~की ज़बान 'इल्म का दुरुस्त बयान करती है, लेकिन बेवक़ूफ़ों~का मुँह हिमाक़त उगलता है।
\s5
\v 3 ख़ुदावन्द की आँखें हर जगह हैं और नेकों और बदों की निगरान हैं।
\v 4 सिहत बख़्श ज़बान ज़िन्दगी का दरख़्त है, लेकिन उसकी कजगोई रूह की शिकस्तगी का ज़रिया है।
\s5
\v 5 ~बेवक़ूफ़~अपने बाप की तरबियत को हक़ीर जानता है, लेकिन तम्बीह का लिहाज़ रखने वाला होशियार हो जाता है।
\v 6 सादिक़ के घर में बड़ा ख़ज़ाना है, लेकिन शरीर की आमदनी में परेशानी है।
\s5
\v 7 ~'अक़्लमंदों के लब 'इल्म फैलाते हैं, लेकिन बेवक़ूफ़ों~के दिल ऐसे नहीं।
\v 8 ~शरीरों के ज़बीहे से ख़ुदावन्द को नफ़रत है, लेकिन रास्तकार की दु'आ उसकी ख़ुशनूदी है।
\s5
\v 9 ~शरीरों का चाल चलन से ख़ुदावन्द को नफ़रत है, लेकिन वह सदाकत के पैरौ से मुहब्बत रखता है।
\v 10 राह से भटकने वाले के लिए सख़्त तादीब है, और तम्बीह से नफ़रत करने वाला मरेगा।
\s5
\v 11 ~जब पाताल और जहन्नुम ख़ुदावन्द के सामने खुले हैं, तो बनी आदम के दिल का क्या ज़िक्र ?
\v 12 ~ठठ्ठाबाज़ तम्बीह को दोस्त नहीं रखता, और 'अक़्लमंदों की मजलिस में हरगिज़ नहीं जाता।
\s5
\v 13 ~ख़ुश दिली चेहरे की रौनक पैदा करती है, लेकिन दिल की ग़मगीनी से इन्सान शिकस्ता ख़ातिर होता है।
\v 14 ~समझदार का दिल 'इल्म का तालिब है, लेकिन बेवक़ूफ़ों~की ख़ुराक~बेवक़ूफ़ी~है।
\s5
\v 15 मुसीबत ज़दा के तमाम दिन बुरे हैं, लेकिन ख़ुश दिल हमेशा जश्न करता है।
\v 16 ~थोड़ा जो ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ के साथ हो, उस बड़े ख़ज़ाने से जो परेशानी के साथ हो, बेहतर है।
\s5
\v 17 ~मुहब्बत वाले घर में ज़रा सा सागपात, 'अदावत वाले घर में पले हुए बैल से बेहतर है।
\v 18 ~ग़ज़बनाक आदमी फ़ितना खड़ा करता है, लेकिन जो क़हर में धीमा है झगड़ा मिटाता है।
\s5
\v 19 काहिल की राह काँटो की आड़ सी है, लेकिन रास्तकारों का चाल चलन शाहराह की तरह है।
\v 20 ~'अक़्लमंद बेटा बाप को ख़ुश रखता है, लेकिन बेवक़ूफ़~अपनी माँ की~तहक़ीर करता है।
\s5
\v 21 ~बे'अक़्ल के लिए~बेवक़ूफ़ी~शादमानी का ज़रिया' है, लेकिन समझदार ~अपने चाल चलन को दुरुस्त करता है
\v 22 ~सलाह के बगै़र ~इरादे पूरे नहीं होते, लेकिन सलाहकारों की कसरत से क़याम पाते हैं।
\s5
\v 23 आदमी अपने मुँह के जवाब से ख़ुश होता है, और बामौक़ा' बात क्या खू़ब है।
\v 24 'अक़्लमंद के लिए ज़िन्दगी की राह ऊपर को जाती है, ताकि वह पाताल में उतरने से बच जाए।
\s5
\v 25 ख़ुदावन्द मग़रूरों का घर ढा देता है, लेकिन वह बेवा के सिवाने को क़ायम करता है।
\v 26 बुरे मन्सूबों से ख़ुदावन्द को नफ़रत है लेकिन पाक लोगों का कलाम पसंदीदा है।
\s5
\v 27 ~नफ़े' का लालची अपने घराने को परेशान करता है, लेकिन वह जिसकी रिश्वत से नफ़रत है ज़िन्दा रहेगा।
\v 28 ~सादिक़ का दिल सोचकर जवाब देता ~है, लेकिन शरीरों का मुँह बुरी बातें उगलता है।
\s5
\v 29 ख़ुदावन्द शरीरों से दूर है, लेकिन वह सादिक़ों की दु'आ सुनता है।
\v 30 आँखों का नूर दिल को ख़ुश करता है, और ख़ुश ख़बरी हड्डियों में फ़रबही पैदा करती है।
\s5
\v 31 ~जो ज़िन्दगी बख़्श तम्बीह पर कान लगाता है, 'अक़्लमंदों के बीच सुकूनत करेगा।
\v 32 तरबियत को रद्द करने वाला अपनी ही जान का दुश्मन है, लेकिन तम्बीह पर कान लगाने वाला समझ हासिल करता है।
\s5
\v 33 ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ हिकमत की तरबियत है, और सरफ़राज़ी से पहले फ़रोतनी है।
\s5
\c 16
\p
\v 1 दिल की तदबीरें इन्सान से हैं, लेकिन ज़बान का जवाब ख़ुदावन्द की तरफ़ से है।
\v 2 ~इन्सान की नज़र में उसके सब चाल चलन पाक हैं, लेकिन ख़ुदावन्द रूहों को जाँचता है।
\s5
\v 3 ~अपने सब काम ख़ुदावन्द पर छोड़ दे, तो तेरे इरादे क़ायम रहेंगे।
\v 4 ~ख़ुदावन्द ने हर एक चीज़ ख़ास मक़सद के लिए बनाई, हाँ शरीरों को भी उसने बुरे दिन के लिए बनाया |
\s5
\v 5 हर एक से जिसके दिल में गु़रूर है, ख़ुदावन्द को नफ़रत है; यक़ीनन वह बे सज़ा न छूटेगा।
\v 6 शफ़क़त और सच्चाई से बदी का और लोग ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ की वजह से बदी से बाज़ आते हैं।
\s5
\v 7 ~जब इन्सान का चाल चलन ख़ुदावन्द को पसंद आता है तो वह उसके दुश्मनों को भी उसके दोस्त बनाता है।
\v 8 सदाक़त के साथ थोड़ा सा माल, बे इन्साफ़ी की बड़ी आमदनी से बेहतर है।
\s5
\v 9 ~आदमी का दिल आपनी राह ठहराता है लेकिन ख़ुदावन्द उसके क़दमों की रहनुमाई करता है।
\v 10 ~कलाम-ए-रब्बानी बादशाह के लबों से निकलता है, और उसका मुँह 'अदालत करने में ख़ता नहीं करता।
\s5
\v 11 ~ठीक तराजू़ और पलड़े ख़ुदावन्द के हैं, थैली के सब बाट उसका काम हैं।
\v 12 ~शरारत करने से बादशाहों को नफ़रत है, क्यूँकि तख़्त का क़याम सदाक़त से है।
\s5
\v 13 ~सादिक़ लब बादशाहों की ख़ुशनूदी हैं, और वह सच बोलने वालों को दोस्त रखते हैं।
\v 14 ~बादशाह का क़हर मौत का क़ासिद है, लेकिन 'अक़्लमंद आदमी उसे ठंडा करता है।
\s5
\v 15 बादशाह के चेहरे के नूर में ज़िन्दगी है, और उसकी नज़र-ए-'इनायत आख़री बरसात के बादल की तरह है।
\v 16 ~हिकमत का हुसूल सोने से बहुत ~बेहतर है, और समझ का हुसूल चाँदी से बहुत पसन्दीदा है।
\s5
\v 17 ~रास्तकार आदमी की शाहराह यह है कि बदी से भागे, और अपनी राह का निगहबान अपनी जान की हिफ़ाजत करता है।
\v 18 हलाकत से पहले तकब्बुर, और ज़वाल से पहले ख़ुदबीनी है।
\s5
\v 19 ~ग़रीबों के साथ फ़रोतन बनना, मुतकब्बिरों के साथ लूट का माल तक़सीम करने से बेहतर है।
\v 20 ~जो कलाम पर तवज्जुह करता है, भलाई देखेगा: और जिसका भरोसा ख़ुदावन्द पर है, मुबारक है।
\s5
\v 21 ~'अक़्लमंद दिल होशियार कहलाएगा, और शीरीन ज़बानी से 'इल्म की फ़िरावानी होती है।
\v 22 'अक्लमंद के लिए 'अक़्ल हयात का चश्मा है, लेकिन~बेवक़ूफ़ों~की~तरबियत~बेवक़ूफ़ी~है।
\s5
\v 23 ~'अक़्लमंद का दिल उसके मुँह की तरबियत करता है, और उसके लबों को 'इल्म बख़्शता है।
\v 24 दिलपसंद बातें शहद का छत्ता हैं, वह जी को मीठी लगती हैं और हड्डियों के लिए शिफ़ा हैं।
\s5
\v 25 ~ऐसी राह भी है, जो इन्सान को सीधी मा'लूम होती है; लेकिन उसकी इन्तिहा में मौत की राहें हैं।
\v 26 मेहनत करने वाले की ख़्वाहिश उससे काम कराती है, क्यूँकि उसका पेट उसको उभारता है।
\s5
\v 27 ख़बीस आदमी शरारत को ~ख़ुद कर निकालता है, और उसके लबों में जैसे जलाने वाली आग है।
\v 28 टेढ़ा आदमी फ़ितना ओंगेज़ है, और ग़ीबत करने वाला दोस्तों में जुदाई डालता है।
\s5
\v 29 ~तुन्दखू़ आदमी अपने पड़ोसियों को वरग़लाता है, और उसको बुरी राह पर ले जाता है।
\v 30 ~आँख मारने वाला कजी ईजाद करता है, और लब चबाने वाला फ़साद खड़ा करता है।
\s5
\v 31 ~सफ़ेद सिर शौकत का ताज है;वह सदाक़त की राह पर पाया जाएगा।
\v 32 ~जो क़हर करने में धीमा है पहलवान से बेहतर है, और वह जो अपनी रूह पर ज़ाबित है उस से जो शहर को ले लेता है।
\s5
\v 33 ~पर्ची गोद में डाली जाती है, लेकिन उसका सारा इन्तिज़ाम ख़ुदावन्द की तरफ़ से है।
\s5
\c 17
\p
\v 1 ~सलामती के साथ ख़ुश्क निवाला इस से बेहतर है, कि घर ने'मत से भरा हो और उसके साथ झगड़ा हो।
\v 2 ~'अक्लमन्द नौकर उस बेटे पर जी रुस्वा करता है हुक्मरान होगा, और भाइयों में शमिल होकर मीरास का हिस्सा लेगा।
\s5
\v 3 ~चाँदी के लिए कुठाली है और सोने केलिए भट्टी, लेकिन दिलों को ख़ुदावन्द जांचता है।
\v 4 बदकिरदार झूटे लबों की सुनता है, और झूठा मुफ़सिद ज़बान का शनवा होता है।
\s5
\v 5 ~गरीब पर हँसने वाला, उसके ख़ालिक की बेक़द्री करता है; और जो औरों की मुसीबत से ख़ुश होता है, बे सज़ा न छूटेगा।
\v 6 बेटों के बेटे बूढ़ों के लिए ताज हैं;और बेटों के फ़ख़्र का ज़रिया' उनके बाप-दादा हैं।
\s5
\v 7 ~ख़ुश गोई~बेवक़ूफ़~को नहीं सजती, तो किस क़दर कमदरोग़गोई~शरीफ़ को सजेगी।
\v 8 ~रिश्वत जिसके हाथ में है उसकी नज़रमें गिरान बहा जौहर है, और वह जिधर तवज्जुह करता है कामयाब होता है।
\s5
\v 9 जो ख़ता पोशी करता है दोस्ती का तालिब है, लेकिन जो ऐसी बात को बार बार छेड़ता है, दोस्तों में जुदाई डालता है।
\v 10 ~समझदार ~पर एक झिड़की, बेवक़ूफ़ों~पर सौ कोड़ों से ज़्यादा असर करती है।
\s5
\v 11 ~शरीर महज़ सरकशी का तालिब है, उसके मुक़ाबले में संगदिल क़ासिद भेजा जाएगा।
\v 12 ~जिस रीछनी के बच्चे पकड़े गए हों आदमी का उस से दो चार होना, इससे बेहतर है के~बेवक़ूफ़~की~बेवक़ूफ़ी~में उसके~सामने~आए।
\s5
\v 13 ~जो नेकी के बदले में बदी करता है, उसके घर से बदी हरगिज़ जुदा न होगी।
\v 14 ~झगड़े का शुरू' पानी के फूट निकलने की तरह है, इसलिए लड़ाई से पहले झगड़े को छोड़ दे |
\s5
\v 15 ~जो शरीर को सादिक़ और जो सादिक़ को शरीर ठहराता है, ख़ुदावन्द को उन दोनों से नफ़रत है।
\v 16 ~हिकमत ख़रीदने को~बेवक़ूफ़~के हाथ में क़ीमत से क्या फ़ाइदा है, ~हालाँकि उसका दिल उसकी तरफ़ नहीं?
\s5
\v 17 ~दोस्त हर वक़्त मुहब्बत दिखाता है, और भाई मुसीबत के दिन के लिए पैदा हुआ है।
\v 18 ~बे'अक़्ल आदमी हाथ पर हाथ मारता है, और अपने पड़ोसी के सामने ज़ामिन होता है।
\s5
\v 19 फ़साद पसंद ख़ता पसंद है, और अपने दरवाज़े को बलन्द करने वाला हलाकत का तालिब।
\v 20 ~कजदिला भलाई को न देखेगा, और जिसकी ज़बान कजगो है मुसीबत में पड़ेगा।
\s5
\v 21 ~बेवकूफ़ के वालिद के लिए ग़म है, क्यूँकि~बेवक़ूफ़~के बाप को ख़ुशी~नहीं।
\v 22 ~शादमान दिल शिफ़ा बख़्शता है, लेकिन अफ़सुर्दा दिली हड्डियों को ख़ुश्क कर देती है।
\s5
\v 23 ~शरीर बगल में रिश्वत रख लेता है, ताकि 'अदालत की राहें बिगाड़े।
\v 24 ~हिकमत समझदार ~के आमने सामने है, लेकिन~बेवक़ूफ़~की आँख~ज़मीन के किनारों पर लगी हैं।
\s5
\v 25 ~बेवक़ूफ़~बेटा अपने बाप के लिए ग़म, और अपनी माँ के लिए तल्ख़ी है।
\v 26 ~सादिक़ को सज़ा देना, और शरीफ़ों को उनकी रास्ती की वजह से मारना, खूब नहीं।
\s5
\v 27 ~साहिब-ए-इल्म कमगो है, और समझदार ~मतीन है।
\v 28 बेवक़ूफ़~भी जब तक ख़ामोश है, 'अक्लमन्द गिना जाता है; जो अपने लब बलंद रखता है, होशियार है।
\s5
\c 18
\p
\v 1 जो अपने आप को सब से अलग रखता है, अपनी ख़्वाहिश का तालिब है, और हर मा'कूल बात से बरहम होता है।
\v 2 बेवक़ूफ़~समझ से ख़ुश नहीं होता, लेकिन सिर्फ़ इस से कि अपने दिल का हाल ज़ाहिर करे।
\s5
\v 3 ~शरीर के साथ हिकारत आती है, और रुस्वाई के साथ ना क़द्री।
\v 4 ~इन्सान के मुँह की बातें गहरे पानी की तरह है और हिकमत का चश्मा बहता नाला है।
\s5
\v 5 ~शरीर की तरफ़दारी करना, या 'अदालत में सादिक़ से बेइन्साफ़ी करना, अच्छा नहीं।
\v 6 ~बेवक़ूफ़~के होंट फ़ितनाअंगेज़ी करते हैं, और उसका मुँह तमाँचों के लिए पुकारता है।
\s5
\v 7 बेवक़ूफ़~का मुँह उसकी हलाकत है, और उसके होंट उसकी जान के लिए फन्दा हैं।
\v 8 ग़ैबतगो की बातें लज़ीज़ निवाले हैं और वह खू़ब हज़्म हो जाती हैं।
\s5
\v 9 ~काम में सुस्ती करने वाला, फ़ुज़ूल ख़र्च का भाई है।
\v 10 ~ख़ुदावन्द का नाम मज़बूत बुर्ज है, सादिक़ उस में भाग जाता है और अम्न में रहता है
\s5
\v 11 ~दौलतमन्द आदमी का माल उसका मज़बूत शहर, और उसके तसव्वुर में ऊँची दीवार की तरह है।
\v 12 ~आदमी के दिल में तकब्बुर हलाकत का पेशरौ है, और फ़रोतनी 'इज़्ज़त की पेशवा।
\s5
\v 13 ~जो बात सुनने से पहले उसका जवाब दे, यह उसकी~बेवक़ूफ़ी~और शर्मिन्दगी है।
\v 14 ~इन्सान की रूह उसकी नातवानी में उसे संभालेगी, लेकिन अफ़सुर्दा दिली को कौन बर्दाश्त कर सकता है?
\s5
\v 15 ~होशियार का दिल 'इल्म हासिल करता है, और 'अक़्लमन्द के कान 'इल्म के तालिब हैं।
\v 16 ~आदमी का नज़राना उसके लिए जगह कर लेता है, और बड़े आदमियों के सामने उसकी रसाई कर देता है।
\s5
\v 17 ~जो पहले अपना दा'वा बयान करता है रास्त मा'लूम होता है, लेकिन दूसरा आकर उसकी हक़ीक़त ज़ाहिर करता है।
\v 18 पर्ची झगड़ों को ख़त्म करती है, और ज़बरदस्तों के बीच फ़ैसला कर देती है।
\s5
\v 19 ~नाराज़ भाई को राज़ी करना मज़बूत शहर ले लेने से ज़्यादा मुश्किल है, और झगड़े क़िले' के बेंडों की तरह हैं।
\v 20 ~आदमी की पेट उसके मुँह के फल से भरता है, और वहअपने लबों की पैदावार से सेर होता है।
\s5
\v 21 ~मौत और ज़िन्दगी ज़बान के क़ाबू में हैं, और जो उसे दोस्त रखते हैं उसका फल खाते हैं।
\v 22 ~जिसको बीवी मिली उसने तोहफ़ा पाया, और उस पर ख़ुदावन्द का फ़ज़ल हुआ।
\s5
\v 23 ~मुहताज मिन्नत समाजत करता है, लेकिन दौलतमन्द सख़्त जवाब देता है।
\v 24 जो बहुतों से दोस्ती करता है अपनी बर्बादी के लिए करता है, लेकिन ऐसा दोस्त भी है जो भाई से ज़्यादा मुहब्बत रखता है।
\s5
\c 19
\p
\v 1 ~रास्तरौ ग़रीब, कजगो और~बेवक़ूफ़~से बेहतर है।
\v 2 ~ये भी अच्छा नहीं कि रूह 'इल्म से खाली रहे? जो चलने में जल्द बाज़ी करता है, भटक जाता है।
\s5
\v 3 ~आदमी की~बेवक़ूफ़ी~उसे गुमराह करती है, और उसका दिल~ख़ुदावन्द से बेज़ार होता है।
\v 4 ~दौलत बहुत से दोस्त पैदा करती है, लेकिन ग़रीब अपने ही दोस्त से बेगाना है।
\s5
\v 5 ~झूटा गवाह बे सज़ा न छूटेगा, और झूट बोलने वाला रिहाई न पाएगा।
\v 6 ~बहुत से लोग सख़ी की ख़ुशामद करते हैं, और हर एक आदमी इना'म देने वाले का दोस्त है।
\s5
\v 7 जब मिस्कीन के सब भाई ही उससे नफ़रत करते है, तो उसके दोस्त कितने ज़्यादा उससे दूर भागेंगे। वह बातों से उनका पीछा करता है, लेकिन उनको नहीं पाता।
\v 8 जो हिकमत हासिल करता है अपनी जान को 'अज़ीज़ रखता है; जो समझ की मुहाफ़िज़त करता है फ़ाइदा उठाएगा।
\s5
\v 9 झूटा गवाह बे सज़ा न छूटेगा, और जो झूठ बोलता है फ़ना होगा।
\v 10 ~जब~बेवक़ूफ़~के लिए नाज़-ओ-ने'मत ज़ेबा नहीं तो ख़ादिम का~शहज़ादों पर हुक्मरान होनाऔर भी ~मुनासिब नहीं।
\s5
\v 11 ~आदमी की तमीज़ उसको क़हर करने में धीमा बनाती है, और ख़ता से दरगुज़र करने में उसकी शान है।
\v 12 ~बादशाह का ग़ज़ब शेर की गरज की तरह है, और उसकी नज़र-ए-'इनायत घास पर शबनम की तरह|
\s5
\v 13 ~बेवक़ूफ़~बेटा अपने बाप के लिए बला है, और बीवी का झगड़ा रगड़ा सदा का टपका।
\v 14 ~घर और माल तो बाप दादा से मीरास में मिलते हैं, लेकिन ~अक़्लमंद बीवी ख़ुदावन्द से मिलती है।
\s5
\v 15 ~काहिली नींद में गर्क़ कर देती है, और काहिल आदमी भूका रहेगा।
\v 16 जो फ़रमान बजा लाता है अपनी जान की मुहाफ़ज़त पर जो अपनी राहों से ग़ाफ़िल है, मरेगा।
\s5
\v 17 जो ग़रीबों पर रहम करता है, ख़ुदावन्द को क़र्ज़ देता है, और वह अपनी नेकी का बदला पाएगा।
\v 18 ~जब तक उम्मीद है अपने बेटे की तादीब किए जा और उसकी बर्बादी पर दिल न लगा।
\s5
\v 19 ~ग़ुस्सावर आदमी सज़ा पाएगा; क्यूँकि अगर तू उसे रिहाई दे तो तुझे बार बार ऐसा ही करना होगा।
\v 20 ~मश्वरत को सुन और तरबियत पज़ीर हो, ताकि तू आख़िर कार 'अक़्लमन्द हो जाए।
\s5
\v 21 ~आदमी के दिल में बहुत से मन्सूबे हैं, लेकिन सिर्फ़ ख़ुदावन्द का इरादा ही क़ायम रहेगा।
\v 22 ~आदमी की मक़बूलियत उसके एहसान से है, और कंगाल झूठे आदमी से बेहतर है।
\s5
\v 23 ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ ज़िन्दगी बख़्श है, और ख़ुदा तरस सेर होगा, और बदी से महफ़ूज़ रहेगा।
\v 24 ~सुस्त आदमी अपना हाथ थाली में डालता है, और इतना भी नहीं करता की फिर उसे अपने मुँह तक लाए।
\s5
\v 25 ठट्ठा करने वाले को मार, इससे सादा दिल होशियार हो जाएगा, और समझदार को तम्बीह कर, वह 'इल्म हासिल करेगा।
\s5
\v 26 ~जो अपने बाप से बदसुलूकी करता और माँ को निकाल देता है, शर्मिन्दगी का ज़रिया'और रुस्वाई लाने वाला बेटा है।
\v 27 ~ऐ मेरे बेटे, अगर तू 'इल्म से बरगश्ता होता है, तो ता'लीम सुनने से क्या फ़ायदा?
\s5
\v 28 ~ख़बीस गवाह 'अद्ल पर हँसता है, और शरीर का मुँह बदी निगलता रहता है।
\v 29 ठठ्ठा करने वालों के लिए सज़ाएँ ठहराई जाती हैं, और~बेवक़ूफ़ों~की~पीठ के लिए कोड़े हैं।
\s5
\c 20
\p
\v 1 ~मय मसख़रा और शराब हंगामा करने वाली है, और जो कोई इनसे फ़रेब खाता है, 'अक़्लमन्द नहीं।
\v 2 बादशाह का रो'ब शेर की गरज की तरह है: जो कोई उसे गु़स्सा दिलाता है, अपनी जान से बदी करता है।
\s5
\v 3 ~झगड़े से अलग रहने में आदमी की 'इज्ज़त है, लेकिन हर एक~बेवक़ूफ़ झगड़ता रहता है, |
\v 4 ~काहिल आदमी जाड़े की वजह हल नहीं चलाता; इसलिए फ़सल काटने के वक़्त वह भीक माँगेगा, और कुछ न पाएगा।
\s5
\v 5 आदमी के दिल की बात गहरे पानी की तरह है, लेकिन समझदार आदमी उसे खींच निकालेगा।
\v 6 ~अक्सर लोग अपना अपना एहसान जताते हैं, लेकिन वफ़ादार आदमी किसको मिलेगा?
\s5
\v 7 ~रास्तरौ सादिक़ के बा'द, उसके बेटे मुबारक होते हैं।
\v 8 ~बादशाह जो तख़्त-ए-'अदालत पर बैठता है, खुद देखकर हर तरह की बदी को फटकता है।
\s5
\v 9 ~कौन कह सकता है कि मैंने अपने दिल को साफ़ कर लिया है; और मैं अपने गुनाह से पाक हो गया हूँ?
\v 10 ~दो तरह के बाट और दो तरह के पैमाने, इन दोनों से ख़ुदा को नफ़रत है।
\s5
\v 11 बच्चा भी अपनी हरकतों से पहचाना जाता है, कि उसके काम नेक-ओ-रास्त हैं कि नहीं।
\v 12 ~सुनने वाले कान और देखने वाली आँख दोनों को ख़ुदावन्द ने बनाया है।
\s5
\v 13 ~ख़्वाब दोस्त न हो, कहीं ऐसा तू कंगाल हो जाए; अपनी आँखें खोल कि तू रोटी से सेर होगा।
\v 14 ~ख़रीदार कहता है, "रद्दी है, रद्दी, "लेकिन जब चल पड़ता है तो फ़ख़्र करता है।
\s5
\v 15 ~ज़र-ओ-मरजान की तो कसरत है, लेकिन बेशबहा सरमाया 'इल्म वाले होंट हैं।
\v 16 ~जो बेगाने का ज़ामिन हो, उसके कपड़े छीन ले, और जो अजनबी का ज़ामिन हो, उससे कुछ गिरवी रख ले।
\s5
\v 17 दग़ा की रोटी आदमी को मीठी लगती है, लेकिन आख़िर को उसका मुँह कंकरों से भरा जाता है।
\v 18 ~हर एक काम मश्वरत से ठीक होता है, और तू नेक सलाह लेकर जंग कर।
\s5
\v 19 ~जो कोई लुतरापन करता फिरता है, राज़ खोलता है; इसलिए तू मुँहफट से कुछ वास्ता न रख
\v 20 ~जो अपने बाप या अपनी माँ पर ला'नत करता है, उसका चिराग़ गहरी तारीकी में बुझाया जाएगा।
\s5
\v 21 ~अगरचे 'इब्तिदा में मीरास यकलख़्त हासिल हो, तो भी उसका अन्जाम मुबारक न होगा।
\v 22 ~तू यह न कहना, कि मैं बदी का बदला लूँगा। ख़ुदावन्द की आस रख और वह तुझे बचाएगा।
\s5
\v 23 ~दो तरह के बाट से ख़ुदावन्द को नफ़रत है, और दग़ा के तराजू ठीक नहीं।
\v 24 आदमी की रफ़्तार ख़ुदावन्द की तरफ़ से है, लेकिन इन्सान अपनी राह को क्यूँकर जान सकता है?
\s5
\v 25 ~जल्द बाज़ी से किसी चीज़ को मुक़द्दस ठहराना, और मिन्नत मानने के बा'द दरियाफ़्त करना, आदमी के लिए फंदा है।
\v 26 'अक़्लमन्द बादशाह शरीरों को फटकता है, और उन पर दावने का पहिया फिरवाता है।
\s5
\v 27 आदमी का ज़मीर ख़ुदावन्द का चिराग़ है: जो उसके तमाम अन्दरूनी हाल को दरियाफ़्त करता है।
\v 28 ~शफ़क़त और सच्चाई बादशाह की निगहबान हैं, बल्कि ~शफ़क़त ही से उसका तख़्त क़ायम रहता है।
\s5
\v 29 जवानों का ज़ोर उनकी शौकत है, और बूढ़ों के सफ़ेद बाल उनकी ज़ीनत हैं।
\v 30 ~कोड़ों के ज़ख़्म से बदी दूर होती है, और मार खाने से दिल साफ़ होता
\s5
\c 21
\p
\v 1 ~बादशाह क़ा दिल खुदावन्द के हाथ में है वह उसको पानी के नालों की तरह जिधर चाहता है फेरता है।
\v 2 ~इन्सान का हर एक चाल चलन उसकी नज़र में रास्त है, लेकिन ख़ुदावन्द दिलों को जाँचता है।
\s5
\v 3 ~सदाक़त और 'अद्ल, ख़ुदावन्द के नज़दीक कु़र्बानी से ज़्यादा पसन्दीदा हैं।
\v 4 ~बलन्द नज़री और दिल का तकब्बुर, है।और शरीरों की इक़बालमंदी गुनाह है |
\s5
\v 5 ~मेहनती की तदबीरें यक़ीनन फ़िरावानी की वजह हैं, लेकिन हर एक जल्दबाज़ का अंजाम मोहताजी है।
\v 6 ~दरोग़गोई से ख़ज़ाने हासिल करना, बेठिकाना बुख़ारात और उनके तालिब मौत के तालिब हैं।
\s5
\v 7 ~शरीरों का जु़ल्म उनको उड़ा ले जाएगा, क्यूँकि उन्होंने इन्साफ़ करने से इंकार किया है।
\v 8 ~गुनाह आलूदा आदमी की राह बहुत टेढ़ी है, लेकिन जो पाक है उसका काम ठीक है।
\s5
\v 9 ~घर की छत पर एक कोने में रहना, झगड़ालू बीवी के साथ बड़े घर में रहने से बेहतर है।
\v 10 शरीर की जान बुराई की मुश्ताक़ है, उसका पड़ोसी उसकी निगाह में मक़्बूल नहीं होता
\s5
\v 11 ~जब ठठ्ठा करने वाले को सज़ा दी जाती है, तो सादा दिल हिकमत हासिल करता है, और जब 'अक़्लमंद तरबियत पाता है, तो 'इल्म हासिल करता है।
\v 12 ~सादिक़ शरीर के घर पर ग़ौर करता है; शरीर कैसे गिर कर बर्बाद हो गए हैं।
\s5
\v 13 जो ग़रीब की आह सुन कर अपने कान बंद कर लेता है, वह आप भी आह करेगा और कोई न सुनेगा।
\v 14 पोशीदगी में हदिया देना क़हर को ठंडा करता है, और इना'म बग़ल में दे देना ग़ज़ब-ए-शदीद को।
\s5
\v 15 ~इन्साफ़ करने में सादिक़ की शादमानी है, लेकिन बदकिरदारों की हलाकत।
\v 16 जो समझ की राह से भटकता है, मुर्दों के ग़ोल में पड़ा रहेगा।
\s5
\v 17 ~'अय्याश~कंगाल रहेगा;जो मय और तेल का मुश्ताक है मालदार न होगा।
\v 18 ~शरीर सादिक़ का फ़िदिया होगा, और दग़ाबाज़ रास्तबाज़ों के बदले में दिया जाएगा।
\s5
\v 19 ~वीराने में रहना, झगड़ालू और चिड़चिड़ी बीवी के साथ रहने से बेहतर है।
\v 20 ~क़ीमती ख़ज़ाना और तेल 'अक़्लमन्दों के घर में हैं, लेकिन~बेवक़ूफ़~उनको उड़ा देता है।
\s5
\v 21 ~जो सदाक़त और शफ़क़त की पैरवी करता है, ज़िन्दगी और सदाक़त-ओ-'इज़्ज़त पाता है।
\v 22 ~'अक़्लमन्द आदमी ज़बरदस्तों के शहर पर चढ़ जाता है, और जिस कु़व्वत पर उनका भरोसा है, उसे गिरा देता है।
\s5
\v 23 ~जो अपने मुँह और अपनी ज़बान की निगहबानी करता है, अपनी जान को मुसीबतों से महफ़ूज़ रखता है।
\v 24 मुतकब्बिर-ओ-मग़रूर शख़्स जो बहुत तकब्बुर से काम करता है।
\s5
\v 25 ~काहिल की तमन्ना उसे मार डालती है, क्यूँकि उसके हाथ मेहनत से इंकार करते हैं।
\v 26 ~वह दिन भर तमन्ना में रहता है, लेकिन सादिक़ देता है और दरेग़ नहीं करता।
\s5
\v 27 ~शरीर की कु़र्बानी क़ाबिले नफ़रत है, ख़ासकर जब वह बुरी नियत से लाता है।
\v 28 ~झूटा गवाह हलाक होगा, लेकिन जिस शख़्स ने बात सुनी है, वह~ख़ामोश न रहेगा।
\s5
\v 29 ~शरीर अपने चहरे को सख़्त करता है, लेकिन सादिक़ अपनी राह पर ग़ौर करता है।
\s5
\v 30 ~कोई हिकमत, कोई समझ और कोई मश्वरत नहीं, जो ख़ुदावन्द के सामने ठहर सके।
\v 31 ~जंग के दिन के लिए घोड़ा तो तैयार किया जाता है, लेकिन फ़तहयाबी ख़ुदावन्द की तरफ़ से है।
\s5
\c 22
\p
\v 1 ~नेक नाम बेक़यास ख़ज़ाने से और एहसान सोने चाँदी से बेहतर है।
\v 2 ~अमीर-ओ-ग़रीब एक दूसरे से मिलते हैं; उन सबका ख़ालिक़ ख़ुदावन्द ही है।
\s5
\v 3 ~होशियार बला को देख कर छिप जाता है; लेकिन नादान बढ़े चले जाते और नुक़्सान उठाते हैं।
\v 4 ~दौलत और 'इज़्ज़त-ओ-हयात, ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ और फ़रोतनी का अज्र हैं।
\s5
\v 5 ~टेढ़े आदमी की राह में काँटे और फन्दे हैं; जो अपनी जान की निगहबानी करता है, उनसे दूर रहेगा।
\v 6 ~लड़के की उस राह में तरबियत कर जिस पर उसे जाना है; वह बूढ़ा होकर भी उससे नहीं मुड़ेगा।
\s5
\v 7 ~मालदार ग़रीब पर हुक्मरान होता है, और क़र्ज़ लेने वाला कर्ज़ देने वाले का नौकर है।
\v 8 ~जो बदी बोता है मुसीबत काटेगा, और उसके क़हर की लाठी टूट जाएगी।
\s5
\v 9 ~जो नेक नज़र है बरकत पाएगा, क्यूँकि वह अपनी रोटी में से ग़रीबों को देता है।
\v 10 ~ठठ्ठा करने वाले को निकाल दे तो फ़साद जाता रहेगा; हाँ झगड़ा रगड़ा और रुस्वाई दूर हो जाएँगे।
\s5
\v 11 ~जो पाक दिली को चाहता है उसके होंटों में लुत्फ़ है, और बादशाह उसका दोस्तदार होगा।
\v 12 ~ख़ुदावन्द की आँखें 'इल्म की हिफ़ाज़त करती हैं; वह दग़ाबाज़ों के कलाम को उलट देता है।
\s5
\v 13 सुस्त आदमी कहता है बाहर शेर खड़ा है! मैं गलियों में फाड़ा जाऊँगा।
\v 14 ~बेगाना 'औरत का मुँह गहरा गढ़ा है; उसमें वह गिरता है जिससे ख़ुदावन्द को नफ़रत है।
\s5
\v 15 ~हिमाक़त लड़के के दिल से वाबस्ता है, लेकिन तरबियत की छड़ी उसको उससे दूर कर देगी।
\v 16 ~जो अपने फ़ायदे के लिए ग़रीब पर ज़ुल्म करता है, और जो मालदार को देता है, यक़ीनन मोहताज हो जाएगा।
\s5
\v 17 अपना कान झुका और 'अक़्लमंदों की बातें सुन, और मेरी ता'लीम पर दिल लगा;
\v 18 क्यूँकि यह पसंदीदा है कि तू उनको अपने दिल में रख्खे, और वह तेरे लबों पर क़ायम रहें;
\v 19 ताकि तेरा भरोसा ख़ुदावन्द पर हो, मैंने आज के दिन तुझ को हाँ तुझ ही को जता दिया है।
\s5
\v 20 ~क्या मैंने तेरे लिए मश्वरत और 'इल्म की लतीफ़ बातें इसलिए नहीं लिखी हैं, कि
\v 21 ~सच्चाई की बातों की हक़ीक़त तुझ पर ज़ाहिर कर दूँ, ताकि तू सच्ची बातें हासिल करके अपने भेजने वालों के पास वापस जाए?
\s5
\v 22 ग़रीब को इसलिए न लूट की वह ग़रीब है, और मुसीबत ज़दा पर 'अदालत गाह में ज़ुल्म न कर;
\v 23 क्यूँकि ख़ुदावन्द उनकी वकालत करेगा, और उनके ग़ारतगरों की जान को ग़ारत करेगा।
\s5
\v 24 ~गु़स्से वर आदमी से दोस्ती न कर, और ग़ज़बनाक शख़्स के साथ न जा,
\v 25 ~ऐसा ना हो ~तू उसका चाल चलन सीखे, और अपनी जान को फंदे में फंसाए।-
\s5
\v 26 तू उनमें शामिल न हो जो हाथ पर हाथ मारते हैं, और न उनमें जो क़र्ज़ के ज़ामिन होते हैं।
\v 27 क्यूँकि अगर तेरे पास अदा करने को कुछ न हो, तो वह तेरा बिस्तर तेरे नीचे से क्यूँ खींच ले जाए?
\s5
\v 28 ~उन पुरानी हदों को न सरका, जो तेरे बाप-दादा ने बाँधी हैं।
\v 29 ~तू किसी को उसके काम में मेहनती देखता है, वह बादशाहों के सामने खड़ा होगा; वह कम क़द्र लोगों की ख़िदमत न करेगा।
\s5
\c 23
\p
\v 1 ~जब तू हाकिम के साथ खाने बैठे, तो खू़ब ग़ौर कर, कि तेरे सामने कौन है?
\v 2 ~अगर तू खाऊ है, तो अपने गले पर छुरी रख दे।
\v 3 उसके मज़ेदार खानों की तमन्ना न कर, क्यूँकि वह दग़ा बाज़ी का खाना है।
\s5
\v 4 मालदार होने के लिए परेशान न हो; अपनी इस 'अक़्लमन्दी से बाज़ आ।
\v 5 क्या तू उस चीज़ पर आँख लगाएगा जो है ही नहीं? लेकिन लगा कर आसमान की तरफ़ उड़ जाती है?
\s5
\v 6 तू तंग चश्म की रोटी न खा, और उसके मज़ेदार खानों की तमन्ना न कर;
\v 7 क्यूँकि जैसे उसके दिल के ख़याल हैं वह वैसा ही है। वह तुझ से कहता है खा और पी, लेकिन उसका दिल तेरी तरफ़ नहीं
\v 8 ~जो निवाला तूने खाया है तू उसे उगल देगा, और तेरी मीठी बातें बे मतलब होंगी
\s5
\v 9 अपनी बातें~बेवक़ूफ़~को न सुना, क्यूँकि वह तेरे 'अक़्लमंदी ~के कलाम की ना क़द्री करेगा।
\v 10 ~पुरानी हदों को न सरका, और यतीमों के खेतों में दख़ल न कर,
\v 11 क्यूँकि उनका रिहाई बख़्शने वाला ज़बरदस्त है; वह खुद ही तेरे ख़िलाफ़ उनकी वक़ालत करेगा।
\s5
\v 12 ~तरबियत पर दिल लगा, और 'इल्म की बातें सुन।
\s5
\v 13 लड़के से तादीब को दरेग़ न कर; अगर तू उसे छड़ी से मारेगा तो वह मर न जाएगा।
\v 14 ~तू उसे छड़ी से मारेगा, और उसकी जान को पाताल से बचाएगा।
\s5
\v 15 ऐ मेरे बेटे, अगर तू 'अक़्लमंद दिल है, तो मेरा दिल, हाँ मेरा दिल ख़ुश होगा।
\v 16 और जब तेरे लबों से सच्ची बातें निकलेंगी, तो मेरा दिल शादमान होगा।
\s5
\v 17 तेरा दिल गुनहगारों पर रश्क न करे, बल्कि तू दिन भर ख़ुदावन्द से डरता रह।
\v 18 क्यूँकि बदला यक़ीनी है, और तेरी आस नहीं टूटेगी।
\s5
\v 19 ~ऐ मेरे बेटे, तू सुन और 'अक़्लमंद बन, और अपने दिल की रहबरी कर।
\v 20 ~तू शराबियों में शामिल न हो, और न हरीस कबाबियों में,
\v 21 क्यूँकि शराबी और खाऊ कंगाल हो जाएँगे और नींद उनको चीथड़े पहनाएगी।
\s5
\v 22 अपने बाप का जिससे तू पैदा हुआ सुनने वाला हो, और अपनी माँ को उसके बुढ़ापे में हक़ीर न जान।
\v 23 ~सच्चाई की मोल ले और उसे बेच न डाल; हिकमत और तरबियत और समझ को भी।
\s5
\v 24 सादिक़ का बाप निहायत ख़ुश होगा; और अक़्लमंद का बाप उससे शादमानी करेगा।
\v 25 ~अपने माँ बाप को ख़ुश कर, अपनी वालिदा को शादमान रख।
\s5
\v 26 ~ऐ मेरे बेटे, अपना दिल मुझ को दे, और मेरी राहों से तेरी आँखें ख़ुश हों।
\v 27 क्यूँकि फ़ाहिशा गहरी ख़न्दक़ है, और बेगाना 'औरत तंग गढ़ा है।
\v 28 ~वह राहज़न की तरह घात में लगी है, और बनी आदम में बदकारों का शुमार बढ़ाती है।
\s5
\v 29 ~कौन अफ़सोस करता है? कौन ग़मज़दा है? कौन झगड़ालू है? कौन शाकी है? कौन बे वजह घायल है?और किसकी आँखों में सुर्ख़ी है?
\v 30 ~वही जो देर तक मयनोशी करते हैं; वही जो मिलाई हुई मय की तलाश में रहते हैं।
\s5
\v 31 ~जब मय लाल लाल हो, जब उसका 'अक्स जाम पर पड़े, और जब वह रवानी के साथ नीचे उतरे, तो उस पर नज़र न कर।
\v 32 क्यूँकि अन्जाम कार वह साँप की तरह काटती, और अजदहे की तरह डस जाती है।
\v 33 तेरी आँखें 'अजीब चीज़ें देखेंगी, और तेरे मुँह से उलटी सीधी बातें निकलेगी।
\s5
\v 34 बल्कि तू उसकी तरह होगा जो समन्दर के बीच में लेट जाए, या उसकी तरह जो मस्तूल के सिरे पर सो रहे।
\v 35 ~तू कहेगा उन्होंने तो मुझे मारा है, लेकिन मुझ को चोट नहीं लगी; उन्होंने मुझे पीटा है लेकिन मुझे मा'लूम भी नहीं हुआ। मैं कब बेदार हूँगा? मैं फिर उसका तालिब हूँगा।
\s5
\c 24
\p
\v 1 ~तू शरीरों पर रश्क न करना, और उनकी सुहबत की ख़्वाहिश न रखना;
\v 2 क्यूँकि उनके दिल जुल्म की फ़िक्र करते हैं, और उनके लब शरारत का ज़िक्र।
\s5
\v 3 ~हिकमत से घर ता'मीर किया जाता है, और समझ से उसको क़याम होता है।
\v 4 ~और 'इल्म के वसीले से कोठरियाँ, नफ़ीस-ओ-लतीफ़ माल से मा'मूर की जाती हैं।
\s5
\v 5 ~'अक़्लमंद आदमी ताक़तवर है, बल्कि साहिब-ए-'इल्म का ताक़त बढ़ती रहती है।
\v 6 ~क्यूँकि तू नेक सलाह लेकर जंग कर सकता है, और सलाहकारों की कसरत में सलामती है।
\s5
\v 7 हिकमत~बेवक़ूफ़~के लिए बहुत बलन्द है; वह फाटक पर मुँह नहीं~खोल सकता।
\s5
\v 8 जो बदी के मन्सूबे बाँधता है, फ़ितनाअंगेज़ कहलाएगा।
\v 9 बेवक़ूफ़ी~का मन्सूबा भी गुनाह है, और ठठ्ठा करने वाले से लोगों को नफ़रत है।
\s5
\v 10 अगर तू मुसीबत के दिन बेदिल हो जाए, तो तेरी ताक़त बहुत कम है।
\s5
\v 11 ~जो क़त्ल के लिए घसीटे जाते हैं, उनको छुड़ा; जो मारे जाने को हैं उनको हवाले न कर ।
\v 12 ~अगर तू कहे, देखो, हम को यह मा'लूम न था, तो क्या दिलों को जाँचने वाला यह नहीं समझता? और क्या तेरी जान का निगहबान यह नहीं जानता? और क्या वह हर शख़्स को उसके काम के मुताबिक़ बदला न देगा?
\s5
\v 13 ऐ मेरे बेटे, तू शहद खा, क्यूँकि वह अच्छा है, और शहद का छत्ता भी क्यूँकि वह तुझे मीठा लगता है।
\v 14 हिकमत भी तेरी जान के लिए ऐसी ही होगी; अगर वह तुझे मिल जाए तो तेरे लिए बदला होगा, और तेरी उम्मीद नहीं टूटेगी।
\s5
\v 15 ~ऐ शरीर, तू सादिक़ के घर की घात में न बैठना, उसकी आरामगाह को ग़ारत न करना;
\v 16 क्यूँकि सादिक़ सात बार गिरता है और फिर उठ खड़ा होता है; लेकिन शरीर बला में गिर कर पड़ा ही रहता है।
\s5
\v 17 ~जब तेरा दुश्मन गिर पड़े तो ख़ुशी न करना, और जब वह पछाड़ खाए तो दिलशाद न होना।
\v 18 ~ऐसा न हो ख़ुदावन्द इसे देखकर नाराज़ हो, और अपना क़हर उस पर से उठा ले।
\s5
\v 19 ~तू बदकिरदारों की वजह से बेज़ार न हो, और शरीरों पे रश्क न कर;
\v 20 क्यूँकि बदकिरदार के लिए कुछ बदला नहीं। शरीरों का चिराग़ बुझा दिया जाएगा।
\s5
\v 21 ~ऐ मेरे बेटे, ख़ुदावन्द से और बादशाह से डर; और मुफ़सिदों के साथ सुहबत न रख;
\v 22 क्यूँकि उन पर अचानक आफ़त आएगी, और उन दोनों की तरफ़ से आने वाली हलाकत को कौन जानता है?
\s5
\v 23 ~ये भी 'अक़्लमंदों की~बातें हैं : 'अदालत में तरफ़दारी करना अच्छा नहीं।
\s5
\v 24 ~जो शरीर से कहता है तू सादिक़ है, लोग उस पर ला'नत करेंगे और उम्मतें उस से नफ़रत रख्खेंगी;
\v 25 ~लेकिन जो उसको डाँटते हैं ख़ुश होंगे, और उनकी बड़ी बरकत मिलेगी।
\s5
\v 26 ~जो हक़ बात कहता है, लबों पर बोसा देता है।
\v 27 ~अपना काम बाहर तैयार कर, उसे अपने लिए खेत में दुरूस्त कर ले; और उसके बा'द अपना घर बना।
\s5
\v 28 ~बेवजह अपने पड़ोसी के ख़िलाफ़ गावाही न देना, और अपने लबों से धोखा न देना।
\v 29 ~यूँ न कह, "मैं उससे वैसा ही करूंगा जैसा उसने मुझसे किया; मैं उस आदमी से उसके काम के मुताबिक़ सुलूक करूँगा।"
\s5
\v 30 ~मैं काहिल के खेत के और बे'अक़्ल के ताकिस्तान के पास से गुज़रा,
\v 31 ~और देखो, वह सब का सब काँटों से भरा था, और बिच्छू बूटी से ढका था; और उसकी संगीन दीवार गिराई गई थी।
\s5
\v 32 ~तब मैंने देखा और उस पर ख़ूब ग़ौर किया; हाँ, मैंने उस पर निगह की और 'इब्रत पाई।
\v 33 ~थोड़ी सी नींद, एक और झपकी, ज़रा पड़े रहने को हाथ पर हाथ,
\v 34 ~इसी तरह तेरी मुफ़लिसी राहज़न की तरह, और तेरी तंगदस्ती हथियारबंद आदमी की तरह, आ पड़ेगी।
\s5
\c 25
\p
\v 1 ~ये भी सुलेमान की अम्साल हैं; जिनकी शाह-ए-यहूदाह हिज़कियाह के लोगों ने नक़ल की थी:
\v 2 ख़ुदा का जलाल राज़दारी में है, लेकिन बादशाहों का जलाल मुआ'मिलात की तफ़्तीश में।
\v 3 ~आसमान की ऊँचाई और ज़मीन की गहराई, और बादशाहों के दिल की इन्तिहा नहीं मिलती।
\s5
\v 4 ~चाँदी की मैल दूर करने से, सुनार के लिए बर्तन बन जाता है।
\v 5 ~शरीरों को बादशाह के सामने से दूर करने से, उसका तख़्त सदाक़त पर क़ायम हो जाएगा।
\s5
\v 6 ~बादशाह के सामने अपनी बड़ाई न करना, और बड़े आदमियों की जगह खड़ा न होना;
\s5
\v 7 क्यूँकिये बेहतर है कि हाकिम के आमने-सामने जिसको तेरी आँखों ने देखा है, तुझ से कहा जाए, "आगे बढ़ कर बैठ। न कि तू पीछे हटा दिया जाए।
\v 8 ~झगड़ा करने में जल्दी न कर, आख़िरकार जब तेरा पड़ोसी तुझको ज़लील करे, तब तू क्या करेगा?
\s5
\v 9 ~तू~पड़ोसी~के साथ अपने दा'वे का ज़िक्र कर, लेकिन किसी दूसरे का~राज़ ~न खोल;
\v 10 ~ऐसा न हो जो कोई उसे सुने तुझे रुस्वा करे, और तेरी बदनामी होती रहे।
\s5
\v 11 ~बामौक़ा' बातें, रूपहली टोकरियों में सोने के सेब हैं।
\v 12 ~'अक़्लमंद मलामत करने वाले की बात, सुनने वाले के कान में सोने की बाली और कुन्दन का ज़ेवर है।
\s5
\v 13 ~वफ़ादार क़ासिद अपने भेजने वालों के लिए, ऐसा है जैसे फ़सल काटने के दिनों में बर्फ़ की ठंडक, क्यूँकि वह अपने मालिकों की जान को ताज़ा दम करता है।
\v 14 ~जो किसी झूटी लियाक़त पर फ़ख़्र करता है, वह बेबारिश बादल और हवा की तरह है।
\s5
\v 15 ~तहम्मुल करने से हाकिम राज़ी हो जाता है, और नर्म ज़बान हड्डी को भी तोड़ डालती है।
\s5
\v 16 क्या तूने शहद पाया? तू इतना खा जितना तेरे लिए काफ़ी है। ऐसा न हो तू ज़्यादा खा जाए और उगल डाल्ले
\v 17 अपने~पड़ोसी~के घर बार बार जाने से अपने पाँवों को रोक, ऐसा न हो कि वह दिक़ होकर तुझ से नफ़रत करे।
\s5
\v 18 ~जो अपने~पड़ोसी~के खिलाफ़ झूटी गवाही देता है वह गुर्ज़ और~तलवार और तेज़ तीर है।
\v 19 ~मुसीबत के वक़्त बेवफ़ा आदमी पर 'ऐतमाद, टूटा दाँत और उखड़ा पाँव है।
\s5
\v 20 जो किसी ग़मगीन के सामने गीत गाता है, वह गोया जाड़े में किसी के कपड़े उतारता और सज्जी पर सिरका डालता है।
\s5
\v 21 ~अगर तेरा दुश्मन भूका हो तो उसे रोटी खिला, और अगर वह प्यासा हो तो उसे पानी पिला;
\v 22 क्यूँकि तू उसके सिर पर अंगारों का ढेर लगाएगा, और ख़ुदावन्द तुझ को बदला देगा।
\s5
\v 23 उत्तरी हवा मेह को लाती है, और ग़ैबत गो ज़बान तुर्शरूई को।
\v 24 ~घर की छत पर एक कोने में रहना, झगड़ालू बीवी के साथ कुशादा मकान में रहने से बेहतर है।
\s5
\v 25 ~वह ख़ुशख़बरी जो दूर के मुल्क से आए, ऐसी है जैसे थके मांदे की जान के लिए ठंडा पानी।
\v 26 ~सादिक़ का शरीर के आगे गिरना, गोया गन्दा नाला और नापाक सोता है।
\s5
\v 27 बहुत शहद खाना अच्छा नहीं, और अपनी बुज़ुर्गी का तालिब होना ज़ेबा नहीं है।
\v 28 जो अपने नफ़्स पर ज़ाबित नहीं, वह बेफ़सील और मिस्मारशुदा शहर की तरह है।
\s5
\c 26
\p
\v 1 जिस तरह गर्मी के दिनों में बर्फ़ और दिरौ के वक्त बारिश, उसी तरह बेवक़ूफ़ को 'इज़्ज़त ज़ेब नहीं देती।
\v 2 ~जिस तरह गौरय्या आवारा फिरती और अबाबील उड़ती रहती है, उसी तरह बे वजह ला'नत बेमतलब है।
\s5
\v 3 ~घोड़े के लिए चाबुक और गधे के लिए लगाम, लेकिन बेवक़ूफ़ की पीठ के लिए छड़ी है।
\v 4 ~बेवक़ूफ़~को उसकी हिमाक़त के मुताबिक़ जवाब न दे, मबादा तू भी उसकी तरह हो जाए।
\s5
\v 5 ~बेवक़ूफ़~को उसकी हिमाक़त के मुताबिक जवाब दे, ऐसा न हो कि वह अपनी नज़र में 'अक़्लमंद ठहरे।
\v 6 ~जो~बेवक़ूफ़~के हाथ पैग़ाम भेजता है, अपने पाँव पर कुल्हाड़ा मारता~और नुक़सान का प्याला पीता है।
\s5
\v 7 ~जिस तरह लंगड़े की टाँग लड़खड़ाती है, उसी तरह~बेवक़ूफ़~के मुँह~में तमसील है।
\v 8 ~बेवक़ूफ़~की ता'ज़ीम करने वाला, गोया जवाहिर को पत्थरों के ढेर में रखता है।
\s5
\v 9 ~बेवक़ूफ़~के मुँह में तमसील, शराबी के हाथ में चुभने वाले काँटे की तरह है।
\v 10 ~जो~बेवक़ूफ़ों~और राहगुज़रों को मज़दूरी पर लगाता है, उस तीरंदाज़~की तरह है जो सबको ज़ख़्मी करता है।
\s5
\v 11 ~जिस तरह कुत्ता अपने उगले हुए को फिर खाता है, उसी तरह~बेवक़ूफ़~अपनी~बेवक़ूफ़ी~को दोहराता है।
\v 12 ~क्या तू उसको जो अपनी नज़र में 'अक़्लमंद है देखता है? उसके मुक़ाबिले में~बेवक़ूफ़~से ज़्यादा उम्मीद है।
\s5
\v 13 ~सुस्त आदमी कहता है, "राह में शेर है, शेर-ए-बबर गलियों में है!"
\v 14 ~जिस तरह दरवाज़ा अपनी चूलों पर फिरता है, उसी तरह सुस्त आदमी अपने बिस्तर पर करवट बदलता रहता है।
\s5
\v 15 सुस्त आदमी अपना हाथ थाली में डालता है, और उसे फिर मुँह तक लाना उसको थका देता है।
\v 16 ~काहिल अपनी नज़र में 'अक़्लमंद है, बल्कि दलील लाने वाले सात शख्सों से बढ़ कर।
\s5
\v 17 ~जो रास्ता चलते हुए पराए झगड़े में दख़्ल देता है, उसकी तरह है जो कुत्ते को कान से पकड़ता है।
\s5
\v 18 ~जैसा वह दीवाना जो जलती लकड़ियाँ और मौत के तीर फेंकता है,
\v 19 ~वैसा ही वह शख़्स है जो अपने पड़ोसी को दग़ा देता है, और कहता है, "मैं तो दिल्लगी कर रहा था।"
\s5
\v 20 ~लकड़ी न होने से आग बुझ जाती है, इसलिए जहाँ चुगलख़ोर नहीं वहाँ झगड़ा मौकूफ़ हो जाता है।
\v 21 ~जैसे अंगारों पर कोयले और आग पर ईंधन है, वैसे ही झगड़ालू झगड़ा खड़ा करने के लिए है।
\s5
\v 22 ~चुगलख़ोरकी बातें लज़ीज़ निवाले हैं, और वह खूब हज़म हो जाती हैं।
\v 23 उलफ़ती, लब बदख़्वाह दिल के साथ, उस ठीकरे की तरह है जिस पर खोटी चाँदी मेंढ़ी हो।
\s5
\v 24 ~कीनावर दिल में दग़ा रखता है, लेकिन अपनी बातों से छिपाता है;
\v 25 ~जब वह मीठी मीठी बातें करे तो उसका यक़ीन न कर, क्यूँकि उसके दिल में कमाल नफ़रत है।
\v 26 अगरचे उसकी बदख़्वाही मक्र में छिपी है, तो भी उसकी बदी जमा'अत के आमने सामने खोल दी जाएगी।
\s5
\v 27 ~जो गढ़ा खोदता है, आप ही उसमें गिरेगा; और जो पत्थर ढलकाता है, वह पलटकर उसी पर पड़ेगा।
\v 28 झूटी ज़बान उनका कीना रखती है जिनको उस ने घायल किया है, और चापलूस मुँह तबाही करता है।
\s5
\c 27
\p
\v 1 ~कल की बारे में घमण्ड़ न कर, क्यूँकि तू नहीं जानता कि एक ही दिन में क्या होगा।
\v 2 ~ग़ैर तेरी सिताइश करे न कि तेरा ही मुँह, बेगाना करे न कि तेरे ही लब।
\s5
\v 3 ~पत्थर भारी है और रेत वज़नदार है, लेकिन बेवक़ूफ़ का झुंझलाना इन दोनों से गिरॉतर है।
\v 4 ~ग़ुस्सा ~सख़्त बेरहमी और क़हर सैलाब है, लेकिन जलन के सामने कौन खड़ा रह सकता है?
\s5
\v 5 ~छिपी मुहब्बत से, खुली मलामत बेहतर है।
\v 6 जो ज़ख़्म दोस्त के हाथ से लगें वफ़ा से भरे है, लेकिन दुश्मन के बोसे बाइफ़्रात हैं।
\s5
\v 7 आसूदा जान को शहद के छत्ते से भी नफ़रत है, लेकिन भूके के लिए हर एक कड़वी चीज़ मीठी है।
\v 8 अपने मकान से आवारा इन्सान, उस चिड़िया की तरह है जो अपने आशियाने से भटक जाए।
\s5
\v 9 जैसे तेल और इत्र से दिल को फ़रहत होती है, वैसे ही दोस्त की दिली मश्वरत की शीरीनी से।
\v 10 अपने दोस्त और अपने बाप के दोस्त को छोड़ न दे, और अपनी मुसीबत के दिन अपने भाई के घर न जा; क्यूँकि पड़ोसी जो नज़दीक हो उस भाई से जो दूर हो बेहतर है।
\s5
\v 11 ~ऐ मेरे बेटे, 'अक़्लमंद बन और मेरे दिल को शाद कर, ताकि मैं अपने मलामत करने वाले को जवाब दे सकूं।
\v 12 होशियार बला को देखकर छिप जाता है; लेकिन नादान बढ़े चले जाते और नुक़सान उठाते हैं।
\s5
\v 13 जो बेगाने का ज़ामिन हो उसके कपड़े छीन ले, और जो अजनबी का ज़ामिन हो उससे कुछ गिरवी रख ले।
\v 14 ~जो सुबह सवेरे उठकर अपने दोस्त के लिए बलन्द आवाज़ से दु'आ-ए-ख़ैर करता है, उसके लिए यह ला'नत महसूब होगी।
\s5
\v 15 ~झड़ी के दिन का लगातार टपका, और झगड़ालू बीवी यकसाँ हैं;
\v 16 ~जो उसको रोकता है, हवा को रोकता है; और उसका दहना हाथ तेल को पकड़ता है।
\s5
\v 17 ~जिस तरह लोहा लोहे को तेज़ करता है, उसी तरह आदमी के दोस्त के चहरे की आब उसी से है।
\v 18 ~जो अंजीर के दरख़्त की निगहबानी करता है उसका मेवा खाएगा, और जो अपने आक़ा की खिदमत करता है 'इज़्ज़त पाएगा।
\s5
\v 19 ~जिस तरह पानी में चेहरा चेहरे से मुशाबह है, उसी तरह आदमी का दिल आदमी से।
\v 20 ~जिस तरह पाताल और हलाकत को आसूदगी नहीं, उसी तरह इन्सान की आँखे सेर नहीं होतीं।
\s5
\v 21 ~जैसे चाँदी के लिए कुठाली और सोने के लिए भट्टी है, वैसे ही आदमी के लिए उसकी ता'रीफ़ है।
\v 22 ~अगरचे तू बेवक़ूफ़ को अनाज के साथ उखली में डाल कर मूसल से कूटे, तोभी उसकी हिमाक़त उससे कभी जुदा ~न होगी।
\s5
\v 23 ~अपने रेवड़ों का हाल दरियाफ़त करने में दिल लगा, और अपने ग़ल्लों को अच्छी तरह से देख;
\v 24 क्यूँकि दौलत हमेशा नहीं रहती; और क्या ताजवरी नसल-दर-नसल क़ायम रहती है?
\v 25 ~सूखी घास जमा' की जाती है, फिर सब्ज़ा नुमायाँ होता है; और पहाड़ों पर से चारा काट कर जमा' किया जाता है।
\s5
\v 26 बरें तेरी परवरिश के लिए हैं, और बक़रियाँँ तेरे मैदानों की क़ीमत हैं,
\v 27 और बकरियों का दूध तेरी और तेरे ख़ान्दान की खू़राक और तेरी लौंडियों की गुज़ारा के लिए काफ़ी है।
\s5
\c 28
\p
\v 1 ~अगरचे कोई शरीर का पीछा न करे तोभी वह भागता है, लेकिन सादिक़ शेर-ए-बबर की तरह दिलेर है।
\v 2 ~मुल्क की ख़ताकारी की वजह से हाकिम बहुत से हैं, लेकिन साहिब-ए- 'इल्म-ओ-समझ से इन्तिज़ाम बहाल रहेगा।
\s5
\v 3 ~ग़रीब पर ज़ुल्म करने वाला कंगाल, मूसलाधार मेंह है जो एक 'अक़्लमंद भी नहीं छोड़ता।
\v 4 शरी'अत को छोड़ने वाले, शरीरों की तारीफ़ करते हैं लेकिन शरी'अत पर 'अमल करनेवाले, उनका मुक़ाबला करते हैं
\s5
\v 5 शरीर 'अद्ल से आगाह नहीं, लेकिन ख़ुदावन्द के तालिब सब कुछ समझते हैं।
\v 6 ~रास्तरौ ग़रीब, टेढ़ा आदमी दौलतमंद से बेहतर है।
\s5
\v 7 ~ता'लीम पर 'अमल करने वाला 'अक़्लमंद बेटा है, लेकिन फ़ुज़ूलख़र्चों का दोस्त अपने बाप को रुस्वा करता है।
\v 8 ~जो नाजाइज़ सूद और नफ़े' से अपनी दौलत बढ़ाता है, वह ग़रीबों पर रहम करने वाले के लिए जमा' करता है।
\s5
\v 9 ~जो कान फेर लेता है कि शरी'अत को न सुने, उसकी दु'आ भी नफ़रतअंगेज़ है।
\v 10 ~जो कोई सादिक़ को गुमराह करता है, ताकि वह बुरी राह पर चले, वह अपने गढ़े में आप ही गिरेगा; लेकिन कामिल लोग अच्छी चीज़ों के वारिस होंगे।
\s5
\v 11 ~मालदार अपनी नज़र में 'अक़्लमंद है, लेकिन 'अक्लमंद ग़रीब उसे परख लेता है।
\v 12 ~जब सादिक़ फ़तहयाब होते हैं, तो बड़ी धूमधाम होती है; लेकिन जब शरीर खड़े होते हैं, तो आदमी ढूँँडे नहीं मिलते।
\s5
\v 13 ~जो अपने गुनाहों को छिपाता है, कामयाब न होगा; लेकिन जो उनका इक़रार करके, उनको छोड़ देता है; उस पर रहमत होगी।
\v 14 ~मुबारक है वह आदमी जो सदा डरता रहता है, लेकिन जो अपने दिल को सख़्त करता है, मुसीबत में पड़ेगा।
\s5
\v 15 गरीबों पर शरीर हाकिम, गरजते हुए शेर और शिकार के तालिब रीछ की तरह है।
\v 16 बे'अक़्ल हाकिम भी बड़ा ज़ालिम है, लेकिन जो लालच से नफ़रत रखता है, उसकी 'उम्र दराज़ होगी।
\s5
\v 17 जिसके सिर पर किसी का खू़न है, वह गढ़े की तरफ़ भागेगा, उसे कोई न रोके।
\v 18 ~जो रास्तरौ है रिहाई पाएगा, लेकिन टेढ़ा आदमी नागहान गिर पड़ेगा।
\s5
\v 19 ~जो अपनी ज़मीन में काश्तकारी करता है, रोटी से सेर होगा, लेकिन बेमतलब के पीछे चलने वाला बहुत कंगाल हो जाएगा।
\v 20 ~दियानतदार आदमी बरकतों से मा'मूर होगा, लेकिन जो दौलतमंद होने के लिए जल्दी करता है, बे सज़ा न छूटेगा।
\s5
\v 21 ~तरफ़दारी करना अच्छा नहीं; और न यह कि आदमी रोटी के टुकड़े के लिए गुनाह करे।
\v 22 ~तंग चश्म दौलत जमा' करने में जल्दी करता है, और यह नहीं जानता कि मुफ़लिसी उसे आ दबाएगा।
\s5
\v 23 आदमी को सरज़निश करनेवाला आखिरकार, ज़बानी ख़ुशामद करनेवाले से ज़्यादा मक्बूल ठहरेगा।
\v 24 ~जो कोई अपने वालिदैन को लूटता हैऔर कहता है, कि यह गुनाह नहीं, वह गारतगर का साथी है।
\s5
\v 25 जिसके दिल में लालच है वह झगड़ा खड़ा करता है, लेकिन जिसका भरोसा ख़ुदावन्द पर है वह तारो-ताज़ा किया जाएगा।
\v 26 ~जो अपने ही दिल पर भरोसा रखता है, बेवक़ूफ़ है; लेकिन जो 'अक़्लमंदी से चलता है, रिहाई पाएगा।
\s5
\v 27 जो ग़रीबों को देता है, मुहताज न होगा; लेकिन जो आँख चुराता है, बहुत मला'ऊन होगा।
\v 28 जब शरीर खड़े होते हैं, तो आदमी ढूँडे नहीं मिलते, लेकिन जब वह फ़ना होते हैं, तो सादिक़ तरक़्क़ी करते हैं।
\s5
\c 29
\p
\v 1 ~जो बार बार तम्बीह पाकर भी गर्दनकशी करता है, अचानक बर्बाद किया जाएगा, और उसका कोई चारा न होगा।
\v 2 जब सादिक़ इकबालमंद होते हैं, तो लोग ख़ुश होते हैं ~लेकिन जब शरीर इख़्तियार पाते हैं तो लोग आहें भरते हैं।
\s5
\v 3 ~जो कोई हिकमत से उलफ़त रखता है, अपने बाप को ख़ुश करता है, लेकिन जो कस्बियों से सुहबत रखता है, अपना माल उड़ाता है।
\v 4 ~बादशाह 'अद्ल से अपनी ममलुकत को क़याम बख़्शता है लेकिन रिश्वत सितान उसको वीरान करता है।
\s5
\v 5 ~जो अपने पड़ोसी की ख़ुशामद करता है, उसके पाँव के लिए जाल बिछाता है।
\v 6 बदकिरदार के गुनाह में फंदा है, लेकिन सादिक़ गाता और ख़ुशी करता है।
\s5
\v 7 सादिक़ ग़रीबों के मु'आमिले का ख़याल रखता है, लेकिन शरीर में उसको जानने की लियाकत नहीं।
\v 8 ठठ्टेबाज़ शहर में आग लगाते हैं, लेकिन 'अक़्लमंद क़हर को दूर कर देते हैं |
\s5
\v 9 ~अगर 'अक़्लमंद बेवक़ूफ़ से बहस करे, तो ख़्वाह वह क़हर करे ख़्वाह हँसे, कुछ इत्मिनान होगा।
\v 10 ~खू़ँरेज़ लोग कामिल आदमी से कीना रखते हैं, लेकिन रास्तकार उसकी जान बचाने का इरादा करते हैं।
\s5
\v 11 ~बेवक़ूफ़ अपना क़हर उगल देता है, लेकिन 'अक़्लमंद उसको रोकता और पी जाता है।
\v 12 ~अगर कोई हाकिम झूट पर कान लगाता है, तो उसके सब ख़ादिम शरीर हो जाते हैं।
\s5
\v 13 ~ग़रीब और ज़बरदस्त एक दूसरे से मिलते हैं, और ख़ुदावन्द दोनों की आँखे रोशन करता है।
\v 14 ~जो बादशाह ईमानदारी से गरीबों की 'अदालत करता है, उसका तख़्त हमेशा क़ायम रहता है।
\s5
\v 15 ~छड़ी और तम्बीह हिकमत बख़्शती हैं, लेकिन जो लड़का बेतरबियत छोड़ दिया जाता है, अपनी माँ को रुस्वा करेगा।
\v 16 ~जब शरीर कामयाब होते हैं, तो बदी ज़्यादा होती है; लेकिन सादिक़ उनकी तबाही देखेंगे।
\s5
\v 17 ~अपने बेटे की तरबियत कर;और वह तुझे आराम देगा, और तेरी जान को शादमान करेगा।
\v 18 ~जहाँ रोया नहीं वहाँ लोग बेकैद हो जाते हैं, लेकिन शरी'अत पर 'अमल करने वाला मुबारक है।
\s5
\v 19 ~नौकर बातों ही से नहीं सुधरता, क्यूँकि अगरचे वह समझता है तो भी परवा नहीं करता।
\v 20 ~क्या तू बेताम्मुल बोलने वाले को देखता है? उसके मुक़ाबले में बेवक़ूफ़ से ज़्यादा उम्मीद है।
\s5
\v 21 ~जो अपने घर के लड़के को लड़कपन से नाज़ में पालता है, वह आखिरकार उसका बेटा बन बैठेगा।
\v 22 ~क़हर आलूदा आदमी फ़ितना खड़ा करता है, और ग़ज़बनाक गुनाह में ज़ियादती करता है।
\s5
\v 23 ~आदमी का ग़ुरूर उसको पस्त करेगा, लेकिन जो दिल से फ़रोतन है 'इज़्ज़त ~हासिल करेगा।
\v 24 ~जो कोई चोर का शरीक होता है, अपनी जान से दुश्मनी रखता है; वह हल्फ़ उठाता है और हाल बयान नहीं करता ।
\s5
\v 25 ~इन्सान का डर फंदा है, लेकिन जो कोई खुदावन्द पर भरोसा करता है महफ़ूज़ रहेगा।
\v 26 हाकिम की मेहरबानी के तालिब बहुत हैं, लेकिन इन्सान का फैसला खुदावन्द की तरफ़ से है।
\s5
\v 27 ~सादिक़ को बेइन्साफ़ से नफ़रत है, और शरीर को रास्तरौ से।
\s5
\c 30
\p
\v 1 ~याक़ा के बेटे अजूर के पैग़ाम की बातें: उस आदमी ने इतीएल, हाँ इतीएलऔर उकाल से कहा: ।
\v 2 यक़ीनन मैं हर एक इन्सान से ज़्यादा और इन्सान का सा समझ मुझ में नहीं
\v 3 मैंने हिकमत नहीं सीखी और न मुझे उस क़ुद्दूस का 'इरफ़ान हासिल है।
\s5
\v 4 ~कौन आसमान पर चढ़ा और फिर नीचे उतरा? किसने हवा को अपनी मुट्ठी में जमा'कर लिया? किसने पानी की चादर में बाँधा? किसने ज़मीन की हदें ठहराई? अगर तू जानता है, तो बता उसका क्या नाम है, और उसके बेटे का क्या नाम है?
\s5
\v 5 ~ख़ुदा का हर एक बात पाक है, वह उनकी सिपर है जिनका भरोसा उस पर है।
\v 6 ~तू उसके कलाम में कुछ न बढ़ाना, ऐसा न हो वह तुझ को तम्बीह करे और तू झूटा ठहरे।
\s5
\v 7 ~मैंने तुझ से दो बातों की दरख़्वास्त की है, मेरे मरने से पहले उनको मुझ से दरेग न कर।
\v 8 ~बतालत और दरोग़गोई को मुझ से दूर कर दे; और मुझ को न कंगाल कर न दौलतमंद, मेरी ज़रूरत के मुताबिक़ मुझे रोज़ी दे।
\v 9 ~ऐसा न हो कि मैं सेर होकर इन्कार करूं और कहूँ, ख़ुदावन्द कौन है? या ऐसा न हो मुहताज होकर चोरी करूं, और अपने ख़ुदा के नाम की तकफ़ीर करूं ।
\s5
\v 10 ~ख़ादिम पर उसके आक़ा के सामने तोहमत न लगा, ऐसा न हो कि वह तुझ पर ला'नत करे, और तू मुजरिम ठहरे।
\s5
\v 11 ~एक नसल ऐसी है, जो अपने बाप पर ला'नत करती है और अपनी माँ को मुबारक नहीं कहती।
\v 12 ~एक नसल ऐसी है, जो अपनी निगाह में पाक है, लेकिन उसकी गंदगी उससे धोई नहीं गई।
\s5
\v 13 ~एक नसल ऐसी है, कि वाह वाह क्या ही बलन्द नज़र है, और उनकी पलकें ऊपर को उठी रहती हैं।
\v 14 ~एक नसल ऐसी है, जिसके दाँत तलवारें है, और डाढ़े छुरियाँ ताकि ज़मीन के ग़रीबों और बनी आदम के कंगालों को खा जाएँ।
\s5
\v 15 ~जोंक की दो बेटियाँ हैं, जो "दे दे" चिल्लाती हैं; तीन हैं जो कभी सेर नहीं होतीं, बल्कि चार हैं जो कभी "बस" नहीं कहतीं।
\v 16 पाताल और बाँझ का रिहम, और ज़मीन जो सेराब नहीं हुई, और आग जो कभी "बस" नहीं कहती।
\v 17 ~वह आँख जो अपने बाप की हँसी करती है, और अपनी माँ की फ़रमाँबरदारी को हक़ीर जानती है, वादी के कौवे उसको उचक ले जाएँगे, और गिद्ध के बच्चे उसे खाएँगे।
\s5
\v 18 ~तीन चीज़े मेरे नज़दीक़ बहुत ही 'अजीब हैं, बल्कि चार हैं, जिनको मैं नहीं जानता:
\v 19 ~'उकाब की राह हवा में, और साँप की राह चटान पर, और जहाज़ की राह समन्दर में, और मर्द का चाल चलन जवान 'औरत के साथ।
\s5
\v 20 ~ज़ानिया की राह ऐसी ही है;वह खाती है और अपना मुँह पोंछती है, और कहती है, मैंने कुछ बुराई नहीं की।
\s5
\v 21 ~तीन चीज़ों से ज़मीन लरज़ाँ है; बल्कि चार हैं, जिनकी वह बर्दाश्त नहीं कर सकती:
\v 22 गुलाम से जो बादशाही करने लगे, और बेवक़ूफ़ से जब उसका पेट भरे,
\v 23 ~और नामक़बूल 'औरत से जब वह ब्याही जाए, और लौंडी से जो अपनी बीबी की वारिस हो।
\s5
\v 24 ~चार हैं, जो ज़मीन पर ना चीज़ हैं, लेकिन बहुत 'अक़्लमंद हैं:
\v 25 चीटियाँ कमज़ोर मख़लूक़ हैं, तौ भी गर्मी में अपने लिए ख़ुराक जमा' कर रखती हैं;
\v 26 ~और साफ़ान अगरचे नातवान मख़्लूक़ हैं, तो भी चटानों के बीच अपने घर बनाते हैं;
\s5
\v 27 और टिड्डियाँ जिनका कोई बादशाह नहीं, तोभी वह परे बाँध कर निकलती हैं;
\v 28 और छिपकली जो अपने हाथों से पकड़ती है, और तोभी शाही महलों में है।
\s5
\v 29 ~तीन ख़ुश रफ़्तार हैं, बल्कि चार जिनका चलना ख़ुश नुमा है:
\v 30 ~एक तो शेर-ए-बबर जो सब हैवानात में बहादुर है, और किसी को पीठ नहीं दिखाता:
\v 31 ~जंगली घोड़ा और बकरा, और बादशाह, जिसका सामना कोई न करे।
\s5
\v 32 अगर तूने बेवक़ूफ़ी से अपने आपको बड़ा ठहराया है, या तूने कोई बुरा मन्सूबा बाँधा है, तो हाथ अपने मुँह पर रख।
\v 33 क्यूँकि यक़ीनन दूध बिलोने से मक्खन निकलता है, और नाक मरोड़ने से लहू, इसी तरह क़हर भड़काने से फ़साद खड़ा होता है।
\s5
\c 31
\p
\v 1 लमविएल बादशाह के पैग़ाम की बातें जो उसकी माँ ने उसको सिखाई:
\v 2 ~ऐ मेरे बेटे, ऐ मेरे रिहम के बेटे, तुझे, जिसे मैंने नज़्रे ~माँग कर पाया क्या कहूँ?
\v 3 अपनी क़ुव्वत 'औरतों को न दे, और अपनी राहें बादशाहों को बिगाड़ने वालियों की तरफ़ न निकाल।
\s5
\v 4 ~बादशाहों को ऐ लमविएल, बादशाहों को मयख़्वारी ज़ेबा नहीं, और शराब की तलाश हाकिमों को शायान नहीं।
\v 5 ~ऐसा न हो ~वह पीकर क़वानीन को भूल जाए, और किसी मज़लूम की हक़ तलफ़ी करें।
\s5
\v 6 शराब उसको पिलाओ जो मरने पर है, और मय उसको जो तल्ख़~जान है
\v 7 ताकि वह पिए और अपनी तंगदस्ती फ़रामोश करे, और अपनी तबाह हाली को फिर याद न करे
\s5
\v 8 अपना मुँह गूँगे के लिए खोल उन सबकी वकालत को जो बेकस हैं।
\v 9 ~अपना मुँह खोल, रास्ती से फ़ैसलाकर, और ग़रीबों और मुहताजों का इन्साफ़ कर।
\s5
\v 10 नेकोकार बीवी किसको मिलती है? क्यूँकि उसकी क़द्र मरजान से भी बहुत ज़्यादा है।
\v 11 ~उसके शौहर के दिल को उस पर भरोसा है, और उसे मुनाफ़े' की कमी न होगी।
\v 12 ~वह अपनी 'उम्र के तमाम दिनों में, उससे नेकी ही करेगी, बदी न करेगी।
\s5
\v 13 वह ऊन और कतान ढूंडती है, और ख़ुशी के साथ अपने हाथों से काम करती है।
\v 14 वह सौदागरों के जहाज़ों की तरह है, वह अपनी ख़ुराक दूर से ले आती है।
\v 15 ~वह रात ही को उठ बैठती है, और अपने घराने को खिलाती है, और अपनी लौंडियों को काम देती है।
\s5
\v 16 वह किसी खेत की बारे में सोचती हैऔर उसे ख़रीद लेती है; और अपने हाथों के नफ़े' से ताकिस्तान लगाती है।
\v 17 ~वह मज़बूती से अपनी कमर बाँधती है, और अपने बाज़ुओं को मज़बूत करती है।
\s5
\v 18 ~वह अपनी सौदागरी को सूदमंद पाती है। रात को उसका चिराग़ नहीं बुझता।
\v 19 ~वह तकले पर अपने हाथ चलाती है, और उसके हाथ अटेरन पकड़ते हैं।
\s5
\v 20 ~वह ग़रीबों की तरफ़ अपना हाथ बढ़ाती है, हाँ, वह अपने हाथ मोहताजों की तरफ़ बढ़ाती है।
\v 21 ~वह अपने घराने के लिए बर्फ़ से नहीं डरती, क्यूँकि उसके ख़ान्दान में हर एक सुर्ख पोश है।
\s5
\v 22 ~वह अपने लिए निगारीन बाला पोश बनाती है; उसकी पोशाक महीन कतानी और अर्गवानी है।
\v 23 ~उसका शौहर फाटक में मशहूर है, जब वह मुल्क के बुज़ुगों के साथ बैठता है।
\s5
\v 24 ~वह महीन कतानी कपड़े बनाकर बेचती है; और पटके सौदागरों के हवाले करती है।
\v 25 ~'इज़्ज़त और हुर्मत उसकी पोशाक हैं, और वह आइंदा दिनों पर हँसती है।
\s5
\v 26 ~उसके मुँह से हिकमत की बातें निकलती हैं, उसकी ज़बान पर शफ़क़त की ता'लीम है।
\v 27 ~वह अपने घराने पर बख़ूबी निगाह रखती है, और काहिली की रोटी नहीं खाती।
\s5
\v 28 उसके बेटे उठते हैं और उसे मुबारक कहते हैं; उसका शौहर भी उसकी ता'रीफ़ करता है:
\v 29 ~"कि बहुतेरी बेटियों ने फ़ज़ीलत दिखाई है, लेकिन तू सब से आगे बढ़ गई।"
\s5
\v 30 ~हुस्न, धोका और जमाल बेसबात है, लेकिन वह 'औरत जो ख़ुदावन्द से डरती है, सतुदा होगी।
\v 31 ~उसकी मेहनत का बदला उसे दो, और उसके कामों से मजलिस में उसकी ता'रीफ़ हो।|

380
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\h वाइज़
\toc1 वाइज़
\toc2 वाइज़
\toc3 ecc
\mt1 वाइज़
\s5
\c 1
\p
\v 1 शाह-ए-यरुशलीम दाऊद के बेटे वा'इज़ की बातें।
\v 2 ~"बेकार ही बेकार," वा'इज़ कहता है, "बेकार ही बेकार! सब कुछ बेकार है।"
\v 3 ~इन्सान को उस सारी मेहनत से जो वह दुनिया' में करता है, क्या हासिल है?
\s5
\v 4 ~एक नसल जाती है और दूसरी नसल आती है, लेकिन~ज़मीन हमेशा क़ायम रहती है।
\v 5 ~सूरज निकलता है और सूरज ढलता भी है, और अपने तुलू' की जगह को जल्द चला जाता है।
\v 6 ~हवा दख्खिन की तरफ़ चली जाती है और चक्कर खाकर उत्तर की तरफ़ फिरती है; ये हमेशा चक्कर मारती है, और अपनी गश्त के मुताबिक़ दौरा करती है।
\s5
\v 7 ~सब नदियाँ समन्दर में गिरती हैं, लेकिन समन्दर भर नहीं जाता; नदियाँ जहाँ से निकलती हैं उधर ही को फिर जाती हैं।
\v 8 ~सब चीजें मान्दगी से भरी हैं, आदमी इसका बयान नहीं कर सकता। आँख देखने से आसूदा नहीं होती, और कान सुनने से नहीं भरता।
\s5
\v 9 ~जो हुआ वही फिर होगा, और जो चीज़ बन चुकी है वही है जो बनाई जाएगी, और दुनिया में कोई चीज़ नई नहीं।
\v 10 ~क्या कोई चीज़ ऐसी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि देखो ये तो नई है? वह तो साबिक़ में हम से पहले के ज़मानों में मौजूद थी।
\v 11 अगलों की कोई यादगार नहीं,और आनेवालों की अपने बा'द के लोगों के बीच कोई याद न होगी।
\s5
\v 12 ~मैं वा'इज़ यरुशलीम में बनी-इस्राईल का बा'दशाह था।
\v 13 ~और मैंने अपना दिल लगाया कि जो कुछ आसमान के नीचे किया जाता है, उस सब की तफ़्तीश-ओ-तहक़ीक़ करूँ। ख़ुदा ने बनी आदम को ये सख़्त दुख दिया है कि वह दुख़ दर्द में मुब्तिला रहें।
\v 14 ~मैंने सब कामों पर जो दुनिया में किए जाते हैं नज़र की; और देखो, ये सब कुछ बेकार और हवा की चरान है।
\v 15 वह जो टेढ़ा है सीधा नहीं हो सकता, और नाक़िस का शुमार नहीं हो सकता।
\s5
\v 16 ~मैंने ये बात अपने दिल में कही, "देख, मैंने बड़ी तरक़्क़ी की बल्कि उन सभों से जो मुझ से पहले यरुशलीम में थे, ज़्यादा हिकमत हासिल की; हाँ, मेरा दिल हिकमत और दानिश में बड़ा कारदान हुआ।"
\v 17 ~लेकिन जब मैंने हिकमत के जानने और हिमाक़त-ओ-जहालत के समझने पर दिल लगाया, तो मा'लूम किया कि ये भी हवा की चरान है।
\v 18 ~क्यूँकि बहुत हिकमत में बहुत ग़म है,और 'इल्म में~तरक़्क़ी~दुख की ज़्यादती है।
\s5
\c 2
\p
\v 1 मैंने अपने दिल से कहा, "आ, मैं तुझ को ख़ुशी में आज़माऊँगा, इसलिए 'इश्रत कर ले," लो ये भी बेकार है।
\v 2 मैंने हँसी को "दीवाना" कहा और ख़ुशी के बारे में कहा, "इससे क्या हासिल?"
\s5
\v 3 ~मैंने दिल में सोचा कि जिस्म को मयनोशी से क्यूँकर ताज़ा करूँ और अपने दिल को हिकमत की तरफ़ मायल रखूँ और क्यूँ कर हिमाक़त को पकड़े रहूँ, जब तक मा'लूम करूँ कि बनी आदम की बहबूदी किस बात में है कि वह आसमान के नीचे 'उम्र भर यही किया करे।
\s5
\v 4 ~मैंने बड़े-बड़े काम किए मैंने अपने लिए 'इमारतें बनाईं और मैंने अपने लिए ताकिस्तान लगाए।
\v 5 ~मैंने अपने लिए बाग़ीचे और बाग़ तैयार किए और उनमें हर क़िस्म के मेवादार दरख़्त लगाए।
\v 6 मैंने अपने लिए तालाब बनाए कि उनमें से बाग़ के दरख़्तों का ज़ख़ीरा सींचूँ।
\s5
\v 7 ~मैंने ग़ुलामों और लौंडियों को ख़रीदा और नौकर-चाकर मेरे घर में पैदा हुए, और जितने मुझ से पहले यरुशलीम में थे मैं उनसे कहीं ज़्यादा गाय-बैल और भेड़-बकरियों का मालिक था।
\v 8 ~मैंने सोना और चाँदी और बा'दशाहों और सूबों का ख़ास ख़ज़ाना अपने लिए जमा' किया; मैंने गानेवालों और गाने वालियों को रख्खा और बनी आदम के अस्बाब-ए-'ऐश या'नी लौंडियों को अपने लिए कसरत से इकठ्ठा किया।
\s5
\v 9 इसलिए मैं बुज़ुर्ग हुआ और उन सभों से जो मुझ से पहले यरुशलीम में थे ज़्यादा बढ़ गया। मेरी हिकमत भी मुझ में क़ायम रही।
\v 10 ~और सब कुछ जो मेरी आँखें चाहती थीं मैंने उनसे बाज़ न रख्खा। मैंने अपने दिल को किसी तरह की ख़ुशी से न रोका, क्यूँकि मेरा दिल मेरी सारी मेहनत से ख़ुश हुआ और मेरी सारी मेहनत से मेरा हिस्सा यही था।
\s5
\v 11 फिर मैंने उन सब कामों पर जो मेरे हाथों ने किए थे, और उस मशक़्क़त पर जो मैंने काम करने में खींची थी, नज़र की और देखा कि सब बेकार और हवा की चरान है, और दुनिया में कुछ फ़ायदा नहीं।
\v 12 और मैं हिकमत और दीवानगी और हिमाक़त के देखने पर मुतवज्जिह हुआ, क्यूँकि वह शख़्स जो बा'दशाह के बा'द आएगा क्या करेगा? वही जो होता चला आया है।
\s5
\v 13 और मैंने देखा कि जैसी रोशनी को तारीकी पर फ़ज़ीलत है, वैसी ही हिकमत हिमाक़त से अफ़ज़ल है।
\v 14 'अक़्लमन्द अपनी आँखें अपने सिर में रखता है, लेकिन बेवक़ूफ़ अंधेरे में चलता है; तोभी मैं जान गया कि एक ही हादसा उन सब पर गुज़रता है।
\s5
\v 15 ~तब मैंने दिल में कहा, 'जैसा बेवक़ूफ़ पर हादसा होता है, वैसा ही मुझ पर भी होगा; फिर मैं क्यूँ ज़्यादा 'अक़्लमन्द हुआ?" इसलिए मैंने दिल में कहा कि ये भी बेकार है।
\v 16 क्यूँकि न 'अक़्लमन्द और न बेवक़ूफ़ की यादगार हमेशा तक रहेगी, इसलिए कि आने वाले दिनों में सब कुछ फ़रामोश हो चुकेगा और 'अक़्लमन्द क्यूँकर बेवक़ूफ़ की तरह मरता है!
\s5
\v 17 ~फिर मैं ज़िन्दगी से बेज़ार हुआ, क्यूँकि जो काम दुनिया में किया जाता है मुझे बहुत बुरा मा'लूम हुआ; क्यूँकि सब बेकार और हवा की चरान है।
\v 18 ~बल्कि मैं अपनी सारी मेहनत से जो दुनिया में की थी बेज़ार हुआ, क्यूँकि ज़रूर है कि मैं उसे उस आदमी के लिए जो मेरे बा'द आएगा छोड़ जाऊँ;
\s5
\v 19 और कौन जानता है कि वह 'अक़्लमन्द होगा या बेवक़ूफ़? बहरहाल वह मेरी सारी मेहनत के काम पर, जो मैंने किया और जिसमें मैंने दुनिया में अपनी हिकमत ज़ाहिर की, ज़ाबित होगा। ये भी~बेकार~है।
\v 20 ~तब मैं फिरा कि अपने दिल को उस सारे काम से जो मैंने दुनिया' में किया था ना उम्मीद करूँ,
\s5
\v 21 ~क्यूँकि ऐसा शख़्स भी है, जिसके काम हिकमत और दानाई और कामयाबी के साथ हैं, लेकिन वह उनको दूसरे आदमी के लिए जिसने उनमे कुछ मेहनत नहीं की उसकी मीरास के लिए छोड़ जाएगा। ये भी~बेकार~और बला-ए-'अज़ीम है।
\v 22 ~क्यूँकि आदमी को उसकी सारी मशक़्क़त और जानफ़िशानी से, जो उसने दुनिया' में की क्या हासिल है?
\v 23 क्यूँकि उसके लिए 'उम्र भर ग़म है, और उसकी मेहनत मातम हैं; बल्कि उसका दिल रात को भी आराम नहीं पाता। ये भी~बेकार~है।
\s5
\v 24 फिर इन्सान के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं कि वह खाए और पिए और अपनी सारी मेहनत के बीच ख़ुश होकर अपना जी बहलाए। मैंने देखा ये भी ख़ुदा के हाथ से है;
\v 25 ~इसलिए कि मुझ से ज़्यादा कौन खा सकता और कौन मज़ा उड़ा सकता है?
\s5
\v 26 ~क्यूँकि वह उस आदमी को जो उसके सामने अच्छा है, हिकमत और दानाई और ख़ुशी बख़्शता है; लेकिन गुनहगार को ज़हमत देता है कि वह जमा' करे और अम्बार लगाए, ताकि उसे दे जो ख़ुदा का पसंदीदा है। ये भी~बेकार~और हवा की चरान है।
\s5
\c 3
\p
\v 1 हर चीज़ का एक मौक़ा' और हर काम का ~जो आसमान के नीचे होता है एक वक़्त है।
\v 2 पैदा होने का एक वक़्त है,और मर जाने का एक वक़्त है; दरख़्त लगाने का एक वक़्त है,और लगाए हुए को उखाड़ने का एक वक़्त है;
\v 3 मार डालने का एक वक़्त है, और शिफ़ा देने का एक वक़्त है; ढाने का एक वक़्त है,और ता'मीर करने का एक वक़्त है;
\s5
\v 4 ~रोने का एक वक़्त है, और हँसने का एक वक़्त है; ग़म खाने का एक वक़्त है, और नाचने का एक वक़्त है;
\v 5 ~पत्थर फेंकने का एक वक़्त है, और पत्थर बटोरने का एक वक़्त है; एक साथ होने का एक वक़्त है, और एक साथ होने से बाज़ रहने का एक वक़्त है;
\s5
\v 6 हासिल करने का एक वक़्त है, और खो देने का एक वक़्त है; रख छोड़ने का एक वक़्त है, और फेंक देने का एक वक़्त है;
\v 7 ~फाड़ने का एक वक़्त है, और सोने का एक वक़्त है; चुप रहने का एक वक़्त है, और बोलने का एक वक़्त है;
\s5
\v 8 ~मुहब्बत का एक वक़्त है, और 'अदावत का एक वक़्त है; जंग का एक वक़्त है,और सुलह का एक वक़्त है।
\v 9 काम करनेवाले को उससे जिसमें वह मेहनत करता है, क्या हासिल होता है?
\v 10 ~मैंने उस सख़्त दुख को देखा, जो ख़ुदा ने बनी आदम को दिया है कि वह मशक्क़त में मुब्तिला रहें।
\s5
\v 11 ~उसने हर एक चीज़ को उसके वक़्त में खू़ब बनाया और उसने अबदियत को भी उनके दिल में जागुज़ीन किया है; इसलिए कि इन्सान उस काम को जो ख़ुदा शुरू' से आख़िर तक करता हैं दरियाफ़्त नहीं कर सकता।
\s5
\v 12 ~मैं यक़ीनन जानता हूँ कि इन्सान के लिए यही बेहतर है कि खु़श वक़्त हो, और जब तक ज़िन्दा रहे नेकी करे ;
\v 13 और ये भी कि हर एक इन्सान खाए और पिए और अपनी सारी मेहनत से फ़ायदा उठाए: ये भी ख़ुदा की बख़्शिश है।
\s5
\v 14 और मुझ को यक़ीन है कि सब कुछ जो ख़ुदा करता है हमेशा के लिए है;उसमे कुछ कमी बेशी ~नहीं हो सकती और ख़ुदा ने ये इसलिए किया है कि लोग उसके सामने डरते रहें।
\v 15 ~जो कुछ है वह पहले हो चुका; और जो कुछ होने को है, वह भी हो चुका; और ख़ुदा गुज़िश्ता को फिर तलब करता है।
\s5
\v 16 ~फिर मैंने दुनिया में देखा कि 'अदालतगाह में ज़ुल्म है, और सदाक़त के मकान में शरारत है।
\v 17 ~तब मैंने दिल मे कहा कि ~ख़ुदा रास्तबाज़ों और शरीरों की 'अदालत करेगा क्यूँकि हर एक अम्र और ~हर काम का एक वक़्त है।
\s5
\v 18 ~मैंने दिल में कहा कि "ये बनी आदम के लिए है कि ख़ुदा उनको जाँचे और वह समझ लें कि हम ख़ुद हैवान हैं।"
\s5
\v 19 क्यूँकि जो कुछ बनी आदम पर गुज़रता है, वही हैवान पर गुज़रता है; एक ही हादसा दोनों पर गुज़रता है, जिस तरह ये मरता है उसी तरह वह मरता है। हाँ, सब में एक ही साँस है, और इन्सान को ~हैवान पर कुछ मर्तबा नहीं; क्यूँकि सब~बेकार~है।
\v 20 ~सब के सब एक ही जगह जाते हैं; सब के सब ख़ाक से हैं, और सब के सब फिर ख़ाक से जा मिलते हैं।
\s5
\v 21 ~कौन जानता है कि इन्सान की रूह ऊपर चढ़ती और हैवान की रूह ज़मीन की तरफ़ नीचे को जाती है?
\v 22 ~फिर मैंने देखा कि इन्सान के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं कि वह अपने कारोबार में ख़ुश रहे, इसलिए कि उसका हिस्सा यही है; क्यूँकि कौन उसे वापस लाएगा कि जो कुछ उसके बा'द होगा देख ले?
\s5
\c 4
\p
\v 1 तब मैंने फिर कर उस तमाम ज़ुल्म पर, जो दुनिया में होता है नज़र की। और मज़लूमों के आँसूओं को देखा, और उनको तसल्ली देनेवाला कोई न था; और उन पर ज़ुल्म करनेवाले ज़बरदस्त थे, लेकिन उनको तसल्ली देनेवाला कोई न था।
\s5
\v 2 ~तब मैंने मुर्दों को जो आगे मर चुके, उन ज़िन्दों से जो अब जीते हैं ज़्यादा मुबारक जाना;
\v 3 बल्कि दोनों से नेक बख़्त वह है जो अब तक हुआ ही नहीं, जिसने वह बुराई जो दुनिया' में होती है नहीं देखी।
\s5
\v 4 ~फिर मैंने सारी मेहनत के काम और हर एक अच्छी दस्तकारी को देखा कि इसकी वजह से आदमी अपने पड़ोसी से हसद करता है। ये भी~बेकार~और हवा की चरान~है।
\s5
\v 5 ~बे-दानिश अपने हाथ समेटता' है और आप ही अपना गोश्त खाता है।
\v 6 एक मुट्ठी भर जो चैन के साथ हो, उन दो मुट्ठियों से बेहतर है जिनके साथ मेहनत और हवा की चरान हो |
\s5
\v 7 और मैंने फिर कर दुनिया' के~बेकारी~को देखा :
\v 8 ~कोई अकेला है और उसके साथ कोई दूसरा नहीं; उसके न बेटा है न भाई, तोभी उसकी सारी मेहनत की इन्तिहा नहीं; और उसकी आँख दौलत से सेर नहीं होती; वह कहता है मैं किसके लिए मेहनत करता और अपनी जान को 'ऐश से महरूम रखता हूँ? ये भी~बेकार~है; हाँ,~ये सख़्त दुख है।
\s5
\v 9 ~एक से दो बेहतर हैं, क्यूँकि उनकी मेहनत से उनको बड़ा फ़ायदा होता है।
\v 10 क्यूँकि अगर वह गिरें तो एक अपने साथी को उठाएगा; लेकिन उस पर अफ़सोस जो अकेला है जब वह गिरता है, क्यूँकि कोई दूसरा नहीं जो उसे उठा खड़ा करे।
\v 11 फिर अगर दो इकट्ठे लेटें तो गर्म होते हैं, लेकिन अकेला क्यूँकर गर्म हो सकता है?
\s5
\v 12 ~और अगर कोई एक पर ग़ालिब हो तो दो उसका सामना कर सकते है और तिहरी डोरी जल्द नहीं टूटती।
\s5
\v 13 ~ग़रीब और 'अक़्लमन्द लड़का उस बूढ़े बेवक़ूफ़ बा'दशाह से, जिसने नसीहत सुनना छोड़ दिया बेहतर है;
\v 14 ~क्यूँकि वह कै़द ख़ाने से निकल कर बा'दशाही करने आया बावजूद ये कि वह जो सल्तनत ही में पैदा हुआ ग़रीब हो चला।
\s5
\v 15 ~मैंने सब ज़िन्दों को जो दुनिया' में चलते फिरते हैं देखा कि वह उस दूसरे जवान के साथ थे जो उसका जानशीन होने के लिए खड़ा हुआ।
\v 16 ~उन सब लोगों का या'नी उन सब का जिन पर वह हुक्मरान था कुछ शुमार न था, तोभी वह जो उसके बा'द उठेंगे उससे ख़ुश न होंगे। यक़ीनन ये भी~बेकार~और~हवा की चरान है।
\s5
\c 5
\p
\v 1 जब तू ख़ुदा के घर को जाता है तो संजीदगी से क़दम रख, क्यूँकि सुनने के लिए जाना बेवक़ूफ़ों के जैसे ज़बीहे पेश करने से बेहतर है, इसलिए कि वह नहीं समझते कि बुराई करते हैं।
\s5
\v 2 ~बोलने में जल्दबाज़ी न कर और तेरा दिल जल्दबाज़ी से ख़ुदा के सामने कुछ न कहे; क्यूँकि ख़ुदा आसमान पर है और तू ज़मीन पर, इसलिए तेरी बातें मुख़्तसर हों।
\v 3 क्यूँकि काम की कसरत की वजह से ख़्वाब देखा जाता है और बेवक़ूफ़ की आवाज़ बातों की कसरत होती है।
\s5
\v 4 ~जब तू ख़ुदा के लिए मन्नत माने, तो उसके अदा करने में देर न कर; क्यूँकि वह बेवकूफ़ों से ख़ुश नहीं है। तू अपनी मन्नत को पूरा कर।
\v 5 ~तेरा मन्नत न मानना इससे बेहतर है कि तू मन्नत माने और अदा न करे।
\s5
\v 6 ~तेरा मुँह तेरे जिस्म को गुनहगार न बनाए, और फ़िरिश्ते के सामने मत कह कि भूल-चूक थी; ख़ुदा तेरी आवाज़ से क्यूँ बेज़ार हो और तेरे हाथों का काम बर्बा'द करे?
\v 7 ~क्यूँकि ख़्वाबों की ज़ियादिती और बतालत और बातों की कसरत से ऐसा होता है; लेकिन तू ख़ुदा से डर।
\s5
\v 8 ~अगर तू मुल्क में ग़रीबों को मज़लूम और अद्ल-ओ-इन्साफ़ को मतरुक देखे, तो इससे हैरान न हो; क्यूँकि एक बड़ों से बड़ा है जो निगाह करता है, और कोई इन सब से भी बड़ा है।
\v 9 ज़मीन का हासिल सब के लिए है, बल्कि काश्तकारी से बा'दशाह का भी काम निकलता है।
\s5
\v 10 ~ज़रदोस्त रुपये से आसूदा न होगा, और दौलत का चाहनेवाला उसके बढ़ने से सेर न होगा : ये भी~बेकार~है।
\v 11 जब माल की ज़्यादती होती है, तो उसके खानेवाले भी बहुत हो जाते हैं; और उसके मालिक को अलावा इसके कि उसे अपनी आँखों से देखे और क्या फ़ायदा है?
\s5
\v 12 ~मेहनती की नींद मीठी है, चाहे वह थोड़ा खाए चाहे बहुत; लेकिन दौलत की फ़िरावानी दौलतमन्द को सोने नहीं देती।
\s5
\v 13 ~एक बला-ए-'अज़ीम है जिसे मैंने दुनिया में देखा, या'नी दौलत जिसे उसका मालिक अपने नुक़सान के लिए रख छोड़ता है,
\v 14 और वह माल किसी बुरे हादसे से बर्बा'द होता है, और अगर उसके घर में बेटा पैदा होता है तो उस वक़्त ~उसके हाथ में कुछ नहीं होता।
\s5
\v 15 ~जिस तरह से वह अपनी माँ के पेट से निकला उसी तरह नंगा जैसा कि आया था फिर जाएगा, और अपनी मेहनत की मज़दूरी में कुछ न पाएगा जिसे वह अपने हाथ में ले जाए।
\v 16 ~और ये भी बला-ए-'अज़ीम है कि ठीक जैसा वह आया था वैसा ही जाएगा, और उसे इस फ़ुज़ूल मेहनत से क्या हासिल है?
\v 17 ~वह 'उम्र भर बेचैनी में खाता है, और उसकी दिक़दारी और बेज़ारी और ख़फ़्गी की इन्तिहा नहीं|
\s5
\v 18 लो! मैंने देखा कि ये खू़ब है, बल्कि ख़ुशनुमा है कि आदमी खाए और पिये और अपनी सारी मेहनत से जो वह दुनिया में करता है, अपनी तमाम 'उम्र जो ख़ुदा ने उसे बख़्शी है राहत उठाए; क्यूँकि उसका हिस्सा यही है।
\s5
\v 19 ~नीज़ हर एक आदमी जिसे ख़ुदा ने माल-ओ-अस्बाब बख़्शा, और उसे तौफ़ीक़ दी कि उसमें से खाए और अपना हिस्सा ले और अपनी मेहनत से ख़ुश रहे; ये तो ख़ुदा की बख़्शिश है।
\v 20 फिर वह अपनी ज़िन्दगी के दिनों को बहुत याद न करेगा, इसलिए कि ख़ुदा उसकी ख़ुशदिली के मुताबिक़ उससे सुलूक करता है।
\s5
\c 6
\p
\v 1 एक ज़ुबूनी है जो मैंने दुनिया में देखी, और वह लोगों पर गिराँ है:
\v 2 कोई ऐसा है कि ख़ुदा ने उसे धन दौलत और 'इज़्ज़त बख़्शी है, यहाँ तक कि उसकी किसी चीज़ की जिसे उसका जी चाहता है कमी नहीं; तोभी ख़ुदा ने उसे तौफ़ीक़ नहीं दी कि उससे खाए, बल्कि कोई अजनबी उसे खाता है। ये~बेकार~और सख़्त बीमारी है।
\s5
\v 3 ~अगर आदमी के सौ फ़र्ज़न्द हों, और वह बहुत बरसों तक जीता रहे यहाँ तक कि उसकी 'उम्र के दिन बेशुमार हों, लेकिन उसका जी ख़ुशी से सेर न हो और उसका दफ़न न हो, तो मैं कहता हूँ कि वह हमल जो गिर जाए उससे बेहतर है।
\v 4 ~क्यूँकि वह बतालत के साथ आया और तारीकी में जाता है, और उसका नाम अंधेरे में छिपा रहता है।
\s5
\v 5 ~उसने सूरज को भी न देखा, न किसी चीज़ को जाना, फिर वह उस दूसरे से ज़्यादा आराम में है।
\v 6 ~हाँ, अगरचे वह दो हज़ार बरस तक ज़िन्दा रहे और उसे कुछ राहत न हो। क्या सब के सब एक ही जगह नहीं जाते?
\s5
\v 7 आदमी की सारी मेहनत उसके मुँह के लिए है, तोभी उसका जी नहीं भरता;
\v 8 क्यूँकि 'अक़्लमन्द को बेवक़ूफ़ पर क्या फ़ज़ीलत है? और ग़रीब को जी ज़िन्दों के सामने चलना जानता है, क्या हासिल है?
\s5
\v 9 आँखों से देख लेना आरज़ू की आवारगी से बेहतर है: ये भी~बेकार~और हवा की चरान है।
\v 10 जो कुछ हुआ है उसका नाम ज़माना-ए-क़दीम में रख्खा गया, और ये भी मा'लूम है कि वह इन्सान है, और वह उसके साथ जो उससे ताक़तवर है झगड़ नहीं सकता।
\v 11 ~चूँकि बहुत सी चीज़ें हैं जिनसे~बेकार~बहुतायत होती है,~फिर इन्सान को क्या फ़ायदा है?
\v 12 ~क्यूँकि कौन जानता है कि इन्सान के लिए उसकी ज़िन्दगी में, या'नी उसकी बेकार ज़िन्दगी के तमाम दिनों में जिनको वह परछाई की तरह बसर करता है, कौन सी चीज़ फ़ाइदेमन्द है? क्यूँकि इन्सान को कौन बता सकता है कि उसके बा'द दुनिया में क्या वाके़' होगा ?
\s5
\c 7
\p
\v 1 नेक नामी बेशबहा 'इत्र से बेहतर है, और मरने का दिन पैदा होने के दिन से।
\v 2 मातम के घर में जाना दावत के घर में दाख़िल होने से बेहतर है क्यूँकि सब लोगों का अन्जाम यही है, और जो ज़िन्दा है अपने दिल में इस पर सोचेगा।
\s5
\v 3 ~ग़मगीनी हँसी से बेहतर है,क्यूँकि चेहरे की उदासी से दिल सुधर जाता है।
\v 4 दाना का दिल मातम के घर में है लेकिन बेवक़ूफ़ का जी 'इश्रतखाने से लगा है।
\s5
\v 5 ~इन्सान के लिए 'अक़्लमन्द की सरज़निश सुनना बेवकूफ़ों का राग सुनने से बेहतर है।
\v 6 ~जैसा हाँडी के नीचे काँटों का चटकना वैसा ही बेवकूफ़ का हँसना है; ये भी~बेकार~है।
\s5
\v 7 यक़ीनन ज़ुल्म 'अक़्लमन्द आदमी को दीवाना बना देता है और रिश्वत 'अक़्ल ~को तबाह करती है।
\s5
\v 8 ~किसी बात का अन्जाम उसके आग़ाज़ से बेहतर है और बुर्दबार मुतकब्बिर मिज़ाज से अच्छा है।
\v 9 ~तू अपने जी में ख़फ़ा होने में जल्दी न कर, क्यूँकि ख़फ़्गी बेवक़ूफ़ों के सीनों में रहती है।
\s5
\v 10 ~तू ये न कह कि, "अगले दिन इनसे क्यूँकर बेहतर थे?" क्यूँकि तू 'अक़्लमन्दी से इस अम्र की तहक़ीक़ नहीं करता।
\s5
\v 11 ~हिकमत खू़बी में मीरास के बराबर है, और उनके लिए जो सूरज को देखते हैं ज़्यादा सूदमन्द है।
\v 12 ~क्यूँकि हिकमत वैसी ही पनाहगाह है जैसे रुपया, लेकिन 'इल्म की ख़ास खू़बी ये है कि हिकमत साहिब-ए-हिकमत की जान की मुहाफ़िज़ है।
\s5
\v 13 ख़ुदा के काम पर ग़ौर कर, क्यूँकि कौन उस चीज़ को सीधा कर सकता है जिसको उसने टेढ़ा किया है?
\s5
\v 14 ~इक़बालमन्दी के दिन ख़ुशी में मशग़ूल हो, लेकिन मुसीबत के दिन में सोच; बल्कि ख़ुदा ने इसको उसके मुक़ाबिल बना रख्खा है, ताकि इन्सान अपने बा'द की किसी बात को दरियाफ़्त न कर सके।
\s5
\v 15 ~मैंने अपनी बेकारी के दिनों में ये सब कुछ देखा; कोई~रास्तबाज़ अपनी रास्तबाज़ी में मरता है, और कोई बदकिरदार अपनी बदकिरदारी में 'उम्रदराज़ी पाता है।
\v 16 हद से ज़्यादा नेकोकार न हो, और हिकमत में 'एतदाल से बाहर न जा; इसकी क्या ज़रूरत है कि तू अपने आप को बर्बाद करे?
\s5
\v 17 ~हद से ज़्यादा बदकिरदार न हो, और बेवक़ूफ़ न बन; तू अपने वक़्त से पहले काहे को मरेगा?
\v 18 अच्छा है कि तू इसको भी पकड़े रहे, और उस पर से भी हाथ न उठाए; क्यूँकि जो ख़ुदा तरस है इन सब से बच निकलेगा।
\s5
\v 19 ~हिकमत साहिब-ए-हिकमत को शहर के दस हाकिमों से ज़्यादा ताक़तवर बना देती है।
\v 20 ~क्यूँकि ज़मीन पर ऐसा कोई रास्तबाज़ इन्सान नहीं कि नेकी ही करे और ख़ता न करे।
\s5
\v 21 नीज़ उन सब बातों के सुनने पर जो कही जाएँ कान न लगा, ऐसा न हो कि तू सुन ले कि तेरा नौकर तुझ पर ला'नत करता है;
\v 22 क्यूँकि तू तो अपने दिल से जानता है कि तूने आप इसी तरह से औरों पर ला'नत की है
\s5
\v 23 ~मैंने हिकमत से ये सब कुछ आज़माया है। मैंने कहा, "मैं 'अक़्लमन्द बनूँगा," लेकिन वह मुझ से कहीं दूर थी।
\v 24 ~जो कुछ है सो दूर और बहुत गहरा है, उसे कौन पा सकता
\v 25 ~मैंने अपने दिल को मुतवज्जिह किया कि जानूँ और तफ़्तीश करूँ और हिकमत और ख़िरद को दरियाफ़्त करूँ और समझूँ कि बुराई हिमाक़त है और हिमाक़त दीवानगी |
\s5
\v 26 ~तब मैंने मौत से तल्ख़तर उस 'औरत को पाया, जिसका दिल फंदा और जाल है और जिसके हाथ हथकड़ियाँ हैं। जिससे ख़ुदा ख़ुश है वह उस से बच जाएगा, लेकिन गुनहगार उसका शिकार होगा।
\s5
\v 27 ~देख, वा'इज़ कहता है, मैंने एक दूसरे से मुक़ाबला करके ये दरियाफ़्त किया है |
\v 28 ~जिसकी मेरे दिल को अब तक तलाश है पर मिला नहीं। मैंने हज़ार में एक मर्द पाया, लेकिन उन सभों में 'औरत एक भी न मिली।
\s5
\v 29 ~लो मैंने सिर्फ़ इतना पाया कि ख़ुदा ने इन्सान को रास्त बनाया, लेकिन उन्होंने बहुत सी बन्दिशें तज्वीज़ कीं।
\s5
\c 8
\p
\v 1 'अक़्लमन्द के बराबर कौन है? और किसी बात की तफ़्सीर करना कौन जानता है? इन्सान की हिकमत उसके चेहरे को रोशन करती है, और उसके चेहरे की सख़्ती उससे बदल जाती है।
\s5
\v 2 मैं तुझे सलाह देता हूँ कि तू बा'दशाह के हुक्म को ख़ुदा की क़सम की वजह से मानता रह।
\v 3 ~तू जल्दबाज़ी करके उसके सामने से ग़ायब न हो और किसी बुरी बात पर इसरार न कर, क्यूँकि वह जो कुछ चाहता है करता है।
\v 4 ~इसलिए कि बा'दशाह का हुक्म बाइख़्तियार है, और उससे कौन कहेगा कि तू ये क्या करता है?
\s5
\v 5 जो कोई हुक्म मानता है, बुराई को न देखेगा और दानिशमंद का दिल मौक़े' और इन्साफ को समझता है|
\v 6 ~इसलिए कि हर अम्र का मौक़ा' और क़ायदा है, लेकिन इन्सान की मुसीबत उस पर भारी है।
\v 7 ~क्यूँकि जो कुछ होगा उसको मा'लूम नहीं, और कौन उसे बता सकता है कि क्यूँकर होगा?
\s5
\v 8 ~किसी आदमी को रूह पर इख़्तियार नहीं कि उसे रोक सके, और मरने का दिन भी उसके इख़्तियार से बाहर है; और उस लड़ाई से छुट्टी नहीं मिलतीऔर न शरारत उसको~जो उसमे~ग़र्क़ हैं छुड़ाएगी
\v 9 ~ये सब मैंने देखा और अपना दिल सारे काम पर जो दुनिया' में किया जाता है लगाया। ऐसा वक़्त है जिसमें एक शख़्स दूसरे पर हुकूमत करके अपने ऊपर बला लाता है।
\s5
\v 10 इसके 'अलावा मैंने देखा कि शरीर गाड़े गए, और लोग भी आए और रास्तबाज़ पाक मक़ाम से निकले और अपने शहर में फ़रामोश हो गए; ये भी~बेकारहै।
\v 11 ~क्यूँकि बुरे काम पर सज़ा का हुक्म फ़ौरन नहीं दिया जाता, इसलिए बनी आदम का दिल उनमें बुराई पर बाशिद्दत मायल है।
\s5
\v 12 अगरचे गुनहगार सौ बार बुराई करें और उसकी 'उम्रदराज़ हो, तोभी मैं यक़ीनन जानता हूँ कि उन ही का भला होगा जो ख़ुदा तरस हैं और उसके सामने काँपते हैं;
\v 13 लेकिन गुनहगार का भला कभी न होगा, और न वह अपने दिनों को साये की तरह बढ़ाएगा, इसलिए कि वह ख़ुदा के सामने काँपता नहीं।
\s5
\v 14 ~एक~बेकार~है जो ज़मीन पर वकू' में आती है, कि~नेकोकार लोग हैं जिनको वह कुछ पेश आता है जो चाहिए था कि बदकिरदारों को पेश आता; और शरीर लोग हैं जिनको वह कुछ मिलता है, जो चाहिये था कि नेकोकारों को मिलता। मैंने कहा कि ये भी~बेकार~है।
\v 15 तब मैंने ख़ुर्रमी की ता'रीफ़ की, क्यूँकि दुनिया' में इन्सान के लिए कोई चीज़ इससे बेहतर नहीं कि खाए और पिए और ख़ुश रहे, क्यूँकि ये उसकी मेहनत के दौरान में उसकी ज़िन्दगी के तमाम दिनों में जो ख़ुदा ने दुनिया में उसे बख़्शी उसके साथ रहेगी।
\s5
\v 16 ~जब मैंने अपना दिल लगाया कि हिकमत सीखूँ और उस कामकाज को जो ज़मीन पर किया जाता है देखूँ (क्यूँकि कोई ऐसा भी है जिसकी आँखों में न रात को नींद आती है न दिन को)।
\v 17 ~तब मैंने ख़ुदा के सारे काम पर निगाह की और जाना कि इन्सान उस काम को, जो दुनिया में किया जाता है, दरियाफ़्त नहीं कर सकता। अगरचे इन्सान कितनी ही मेहनत से उसकी तलाश करे, लेकिन कुछ दरियाफ़्त न करेगा; बल्कि हर तरह 'अक़्लमन्द को गुमान हो कि उसको मा'लूम कर लेगा, लेकिन वह कभी उसको दरियाफ़्त नहीं कर सकेगा।
\s5
\c 9
\p
\v 1 इन सब बातों पर मैंने दिल से ग़ौर किया और सब हाल की तफ़्तीश की, और मा'लूम हुआ कि सादिक़ और 'अक़्लमन्द और उनके काम ख़ुदा के हाथ में हैं; सब कुछ इन्सान के सामने है, लेकिन वह न मुहब्बत जानता है न 'अदावत।
\s5
\v 2 ~सब कुछ सब पर एक जैसा गुज़रता है, सादिक़ और शरीर पर, नेकोकार, और पाक और नापाक पर, उस पर जो कु़र्बानी पेश करता है और उस पर जो क़ुर्बानी नहीं पेश करता एक ही हादसा वाक़े' होता है। जैसा नेकोकार है, वैसा ही गुनहगार है; जैसा वह जो क़सम खाता है, वैसा ही वह जो क़सम से डरता है।
\s5
\v 3 ~सब चीज़ों में जो दुनिया में होती हैं एक जुबूनी ये है कि एक ही हादसा सब पर गुज़रता है; हाँ, बनी आदम का दिल भी शरारत से भरा है, और जब तक वह जीते हैं हिमाक़त उनके दिल में रहती है, और इसके बा'द मुर्दों में शामिल होते हैं।
\s5
\v 4 चूँकि जो ज़िन्दों के साथ है उसके लिए उम्मीद है, इसलिए ज़िन्दा कुत्ता मुर्दा शेर से बेहतर है।
\v 5 ~क्यूँकि ज़िन्दा जानते हैं कि वह मरेंगे, लेकिन मुर्दे कुछ भी नहीं जानते और उनके लिए और कुछ अज्र नहीं क्यूँकि उनकी याद जाती रही है ।
\s5
\v 6 ~अब उनकी मुहब्बत और 'अदावत-ओ-हसद सब हलाक हो गए, और ता हमेशा उन सब कामों में जो दुनिया में किए जाते हैं, उनका कोई हिस्सा ~नहीं।
\v 7 अपनी राह चला जा, ख़ुशी से अपनी रोटी खा और ख़ुशदिली से अपनी मय पी; ~क्यूँकि ख़ुदा तेरे 'आमाल को क़ुबूल कर चुका है।
\v 8 ~तेरा लिबास हमेशा सफ़ेद हो, और तेरा सिर चिकनाहट से ख़ाली न रहे।
\s5
\v 9 अपनी~बेकार~की ज़िन्दगी के सब दिन जो उसने दुनिया में~तुझे बख़्शी है, हाँ, अपनी~बेकारी~के सब दिन, उस~बीवी के साथ जो तेरी प्यारी है 'ऐश कर ले कि इस ज़िन्दगी में और तेरी उस मेहनत के दौरान में जो तू ने दुनिया में की तेरा यही हिस्सा है।
\v 10 ~जो काम तेरा हाथ करने को पाए उसे मक़दूर भर कर क्यूँकि पाताल में जहाँ तू जाता है न काम है न मन्सूबा, न 'इल्म न हिकमत |
\s5
\v 11 ~फिर मैंने तवज्जुह की और देखा कि दुनिया' में न तो दौड़ में तेज़ रफ़्तार को सबक़त है न जंग में ज़ोरआवर को फ़तह, और न रोटी 'अक़्लमन्द को मिलती है न दौलत 'अक़्लमन्दों को, और न 'इज़्ज़त 'अक़्ल वालों को; बल्कि उन सब के लिए वक़्त और हादिसा है।
\v 12 ~क्यूँकि इन्सान अपना वक़्त भी नहीं पहचानता; जिस तरह मछलियाँ जो मुसीबत के जाल में गिरफ़्तार होती हैं, और जिस तरह चिड़ियाँ फंदे में फसाई जाती है उसी तरह बनी आदम भी बदबख़्ती में, जब अचानक उन पर आ पड़ती है, फँस जाते हैं।
\s5
\v 13 ~मैंने ये भी देखा कि दुनिया में हिकमत है और ये मुझे बड़ी चीज़ मा'लूम हुई।
\v 14 ~एक छोटा शहर था और उसमें थोड़े से लोग थे, उस पर एक बड़ा बा'दशाह चढ़ आया और उसका घिराव किया और उसके मुक़ाबिल बड़े-बड़े दमदमे बाँधे।
\v 15 ~मगर उस शहर में एक कंगाल 'अक़्लमन्द मर्द पाया गया और उसने अपनी हिकमत से उस शहर को बचा लिया, तोभी किसी शख़्स ने इस ग़रीब मर्द को याद न किया।
\s5
\v 16 तब मैंने कहा कि हिकमत ज़ोर से बेहतर है; तोभी ग़रीब की हिकमत की तहक़ीर होती है, और उसकी बातें सुनी नहीं जातीं।
\s5
\v 17 ~'अक़्लमन्दों की बातें जो आहिस्तगी से कही जाती हैं, बेवक़ूफ़ों के सरदार के शोर से ज़्यादा सुनी जाती है|
\v 18 हिकमत लड़ाई के ~हथियारों से बेहतर है, लेकिन एक गुनहगार बहुत सी नेकी को बर्बा'द कर देता है ।
\s5
\c 10
\p
\v 1 मुर्दा मक्खियाँ 'अत्तार के 'इत्र को बदबूदार कर देती हैं, और थोड़ी सी हिमाक़त हिकमत-ओ-'इज्ज़त को मात कर देती है।
\v 2 ~'अक़्लमन्द का दिल उसके दहने हाथ है, लेकिन बेवक़ूफ़ का दिल उसकी बाईं तरफ़।
\v 3 ~हाँ, बेवक़ूफ़ जब राह चलता है तो उसकी अक़्ल उड़ जाती है और वह सब से कहता है कि मैं बेवकूफ़ हूँ।
\s5
\v 4 ~अगर हाकिम तुझ पर क़हर करे तो अपनी जगह न छोड़, क्यूँकि बर्दाश्त बड़े बड़े गुनाहों को दबा देती है।
\s5
\v 5 ~एक ज़ुबूनी है जो मैंने दुनिया में देखी, जैसे वह एक ख़ता है जो हाकिम से सरज़द होती है।
\v 6 ~हिमाक़त बालानशीन होती है, लेकिन दौलतमंद नीचे बैठते हैं।
\v 7 ~मैंने देखा कि नौकर घोड़ों पर सवार होकर फिरते हैं, और सरदार नौकरों की तरह ज़मीन पर पैदल चलते हैं।
\s5
\v 8 गढ़ा खोदने वाला उसी में गिरेगा और दीवार में रख़ना करने वाले को साँप डसेगा।
\v 9 ~जो कोई पत्थरों को काटता है उनसे चोट खाएगा और जो लकड़ी चीरता है उससे ख़तरे में है।
\s5
\v 10 अगर कुल्हाड़ा कुन्द हैं और आदमी धार तेज़ न करे तो बहुत ज़ोर लगाना पड़ता है, लेकिन हिकमत हिदायत के लिए मुफ़ीद है।
\v 11 ~अगर साँप ने अफ़सून से पहले डसा है तो अफ़सूँनगर को कुछ फ़ायदा न होगा।
\s5
\v 12 'अक़्लमन्द के मुँह की बातें लतीफ़ हैं लेकिन बेवक़ूफ़ के होंट उसी को निगल जाते हैं।
\s5
\v 13 ~उसके मुँह की बातों की इब्तिदा हिमाक़त है और उसकी बातों की इन्तिहा फ़ितनाअंगेज़ अबलही।
\v 14 बेवक़ूफ़ भी बहुत सी बातें बनाता है लेकिन आदमी नहीं बता सकता है कि क्या होगा और जो कुछ उसके बा'द होगा उसे कौन समझा सकता है?
\s5
\v 15 बेवक़ूफ़ों की मेहनत उसे थकाती है, क्यूँकि वह शहर को जाना भी नहीं जानता।
\s5
\v 16 ~ऐ ममलुकत तुझ पर अफ़सोस, जब नाबालिग़ तेरा बा'दशाह हो और तेरे सरदार सुबह को खाएँ।
\v 17 ~नेकबख़्त है तू ऐ सरज़मीन जब तेरा बा'दशाह शरीफ़ज़ादा हो और तेरे सरदार मुनासिब वक़्त पर तवानाई के लिए खाएँ और न इसलिए कि बदमस्त हों।
\s5
\v 18 ~काहिली की वजह से कड़ियाँ झुक जाती हैं, और हाथों के ढीले होने से छत टपकती है।
\v 19 ~हँसने के लिए लोग दावत करते हैं, और मय जान को ख़ुश करती है, और रुपये से सब मक़सद पूरे होते हैं।
\s5
\v 20 ~तू अपने दिल में भी बा'दशाह पर ला'नत न कर और अपनी ख़्वाबगाह में भी मालदार पर ला'नत न कर क्यूँकि हवाई चिड़िया बात को ले उड़ेगी और परदार उसको खोल देगा।
\s5
\c 11
\p
\v 1 अपनी रोटी पानी में डाल दे क्यूँकि तू बहुत दिनों के बा'द उसे पाएगा।
\v 2 ~सात को बल्कि आठ को हिस्सा दे क्यूँकि तू नहीं जानता कि ज़मीन पर क्या बला आएगी।
\v 3 ~जब बादल पानी से भरे होते हैं तो ज़मीन पर बरस कर ख़ाली हो जाते हैं और अगर दरख़्त दख्खिन की तरफ़ या उत्तर की तरफ़ गिरे तो जहाँ दरख़्त गिरता है वहीं पड़ा रहता है।
\s5
\v 4 जो हवा का रुख़ देखता रहता है वह बोता नहीं और जो बा'दलों को देखता है वह काटता नहीं।
\v 5 ~जैसा तू नहीं जानता है कि हवा की क्या राह है और हामिला के रिहम में हड्डियाँ क्यूँकर बढ़ती हैं, वैसा ही तू ख़ुदा के कामों को जो सब कुछ करता है नहीं जानेगा।
\s5
\v 6 ~सुबह को अपना बीज बो और शाम को भी अपना हाथ ढीला न होने दे, क्यूँकि तू नहीं जानता कि उनमें से कौन सा कामयाब होगा, ये या वह या दोनों के दोनों बराबर कामयाब होंगे।
\v 7 नूर शीरीन है और आफ़ताब को देखना आँखों को अच्छा लगता है।
\v 8 ~हाँ, अगर आदमी बरसों ज़िन्दा रहे, तो उनमें ख़ुशी करे; लेकिन तारीकी के दिनों को याद रख्खे, क्यूँकि वह बहुत होंगे। सब कुछ जो आता है~बेकार~है।
\s5
\v 9 ~ऐ जवान, तू अपनी जवानी में ख़ुश हो, और उसके दिनों में अपना जी बहला। और अपने दिल की राहों में, और अपनी आँखों की मन्ज़ूरी में चल। लेकिन याद रख~कि इन सब बातों के लिए ख़ुदा तुझ को 'अदालत में लाएगा।
\v 10 फिर ग़म को अपने दिल से दूर कर, और बुराई अपने जिस्म से निकाल डाल; क्यूँकि लड़कपन और जवानी दोनों बेकार हैं।
\s5
\c 12
\p
\v 1 और अपनी जवानी के दिनों में अपने ख़ालिक़ को याद कर, जब कि बुरे दिन हुनूज़ नहीं आए और वह बरस नज़दीक नहीं हुए, जिनमें तू कहेगा कि इनसे मुझे कुछ ख़ुशी नहीं।
\v 2 ~जब कि हुनूज़ सूरज और रोशनी चाँद सितारे तारीक नहीं हुए, और बा'दल बारिश के बा'द फिर जमा' नहीं हुए;
\s5
\v 3 ~जिस रोज़ घर के निगाहबान थरथराने लगे और ताक़तवर लोग कुबड़े हो जाएँ और पीसने वालियाँ रुक जाएँ इसलिए कि वह थोड़ी सी हैं, और वह जो खिड़कियों से झाँकती हैं धुंदला जाए,
\s5
\v 4 ~और गली के किवाड़े बन्द हो जाएँ, जब चक्की की आवाज़ धीमी हो जाए और इन्सान चिड़िया की आवाज़ से चौंक उठे, और नग़मे की सब बेटियाँ ज़ईफ़ हो जाएँ।
\s5
\v 5 ~हाँ, जब वह चढ़ाई से भी डर जाए और दहशत राह में हो, और बा'दाम के फूल निकलें और टिड्डी एक बोझ मा'लूम हो, और ख़्वाहिश मिट जाए क्यूँकि इन्सान अपने हमेशा के मकान में चला जायेगा और मातम करने वाले गली गली फिरेंगें |
\s5
\v 6 ~पहले इससे कि चाँदी की डोरी खोली जाए,और सोने की कटोरी तोड़ी जाए और घड़ा चश्मे पर फोड़ा जाए, और हौज़ का चर्ख़ टूट जाए,
\v 7 ~और ख़ाक-ख़ाक से जा मिले जिस तरह आगे मिली हुई थी, और रूह ख़ुदा के पास जिसने उसे दिया था वापस जाए।
\s5
\v 8 बेकार ही बेकार वा'इज़ कहता है, सब कुछ बेकार है।
\v 9 ग़रज़ अज़बस की वा'इज़ 'अक़्लमन्द था, उसने लोगों को तालीम दी; हाँ, उसने बख़ूबी ग़ौर किया और ख़ूब तजवीज़ की और बहुत सी मसलें क़रीने से बयान कीं।
\s5
\v 10 ~वा'इज़ दिल आवेज़ बातों की तलाश में रहा, उन सच्ची बातों की जो रास्ती से लिखी गई।
\v 11 ~'अक़्लमन्द की बातें पैनों की तरह हैं, और उन खूँटियों की तरह जो साहिबान-ए-मजलिस ने लगाई हों, और जो एक ही चरवाहे की तरफ़ से मिली हों।
\s5
\v 12 ~इसलिए अब ऐ मेरे बेटे, इनसे नसीहत पज़ीर हो, बहुत किताबे बनाने की इन्तिहा नहीं है और बहुत पढ़ना जिस्म को थकाता है।
\s5
\v 13 ~अब सब कुछ सुनाया गया; हासिल-ए-कलाम ये है: ख़ुदा से डर और उसके हुक्मों को मान कि इन्सान का फ़र्ज़-ए-कुल्ली यही है।
\v 14 ~क्यूँकि ख़ुदा हर एक फ़े'ल को हर एक पोशीदा चीज़ के साथ, चाहे भली हो चाहे बुरी, 'अदालत में लाएगा।

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\id SNG
\ide UTF-8
\h ग़ज़ल-उल-ग़ज़लात
\toc1 ग़ज़ल-उल-ग़ज़लात
\toc2 ग़ज़ल-उल-ग़ज़लात
\toc3 sng
\mt1 ग़ज़ल-उल-ग़ज़लात
\s5
\c 1
\p
\v 1 ~सुलेमान की ग़ज़ल-उल-ग़ज़लात।
\v 2 ~वह अपने मुँह के लबों से मुझे चूमे, क्यूँकि तेरा इश्क़ मय से बेहतर है।
\v 3 ~तेरे 'इत्र की खु़श्बू ख़ुशगवार है तेरा नाम 'इत्र रेख़्ता है; इसीलिए कुँवारियाँ तुझ पर 'आशिक़ हैं।
\v 4 ~मुझे खींच ले, हम तेरे पीछे दौड़ेंगी।~बादशाह मुझे अपने महल में ले आया।~हम तुझ में शादमान और मसरूर होंगी, हम तेरे 'इश्क़ का बयान मय से ज़्यादा करेंगी। वह सच्चे दिल से तुझ पर 'आशिक़ हैं।
\s5
\v 5 ~ऐ यरूशलीम की बेटियो, मैं सियाहफ़ाम लेकिन खू़बसूरत हूँ क़ीदार के खे़मों और सुलेमान के पर्दों की तरह।
\v 6 ~मुझे मत देखो कि मैं सियाहफ़ाम हूँ, क्यूँकि मैं धूप की जली हूँ।” मेरी माँ के बेटे मुझ से नाख़ुश थे, उन्होंने मुझ से खजूर के बाग़ों की निगाहबानी कराई; लेकिन मैंने अपने खजूर के बाग़ की निगहबानी नहीं की
\s5
\v 7 ~ऐ मेरी जान के प्यारे! मुझे बता, तू अपने ग़ल्ले को कहाँ चराता है, और दोपहर के वक़्त कहाँ बिठाता है? क्यूँकि मैं तेरे दोस्तों के ग़ल्लों के पास क्यूँ मारी-मारी फिरूँ?
\s5
\v 8 ~ऐ 'औरतों में सब से ख़ूबसूरत, अगर तू नहीं जानती तो ग़ल्ले के नक़्श-ए-क़दम पर चली जा, और अपने बुज़ग़ालों को चरवाहों के खे़मों के पास पास चरा।
\s5
\v 9 ~ऐ मेरी प्यारी, मैंने तुझे फ़िर'औन के रथ की घोड़ियों में से एक के साथ मिसाल दी है।
\v 10 ~तेरे गाल लगातार जु़ल्फ़ों में खु़शनुमाँ हैं, और तेरी गर्दन मोतियों के हारों में।
\v 11 हम तेरे लिए सोने के तौक़ बनाएँगे, और उनमें चाँदी के फूल जड़ेंगे।
\s5
\v 12 ~जब तक बादशाह तनावुल फ़रमाता रहा, मेरे सुम्बुल की महक उड़ती रही।
\v 13 ~मेरा महबूब मेरे लिए दस्ता-ए-मुर है, जो रात भर मेरी सीने के बीच पड़ा रहता है।
\v 14 ~मेरा महबूब मेरे लिए ऐनजदी के अंगूरिस्तान से मेहन्दी के फूलों का गुच्छा है।
\s5
\v 15 ~देख, तू खू़बसूरत है ऐ मेरी प्यारी, देख तू ख़ूबसूरत है। तेरी आँखें दो कबूतर हैं।
\s5
\v 16 ~देख, तू ही खू़बसूरत है ऐ मेरे महबूब, बल्कि दिल पसन्द है;हमारा पलंग भी सब्ज़ है।
\v 17 ~हमारे घर के शहतीर देवदार के और हमारी कड़ियाँ सनोबर की हैं।
\s5
\c 2
\p
\v 1 मैं शारून की नर्गिस, और वादियों की सोसन हूँ।
\v 2 ~जैसी सोसन झाड़ियों में, वैसी ही मेरी महबूबा कुँँवारियों में है।
\s5
\v 3 जैसा सेब का दरख़्त जंगल के दरख़्तों में, वैसा ही मेरा महबूब नौजवानों में है। मैं निहायत शादमानी से उसके साये में बैठी, और उसका फल मेरे मुँह में मीठा लगा।
\v 4 ~वह मुझे मयख़ाने के अंदर लाया, और उसकी मुहब्बत का झंडा मेरे ऊपर था|
\s5
\v 5 ~किशमिश से मुझे क़रार दो, सेबों से मुझे ताज़ादम करो, क्यूँकि मैं 'इश्क की बीमार हूँ।
\v 6 ~उसका बायाँ हाथ मेरे सिर के नीचे है, और उसका दहना हाथ मुझे गले से लगाता है।
\s5
\v 7 ~ऐ यरूशलीम की बेटियो, मैं तुम को ग़ज़ालों और मैदान की हिरनियों की क़सम देती हूँ ~तुम मेरे प्यारे को न जगाओ न उठाओ, जब तक कि वह उठना न चाहे।
\s5
\v 8 ~मेरे महबूब की आवाज़! देख, वह आ रहा है। पहाड़ों पर से कूदता और टीलों पर से फाँदता हुआ चला आता है।
\v 9 ~मेरा महबूब आहू या जवान हिरन की तरह है। देख, वह हमारी दीवार के पीछे खड़ा है, वह खिड़कियों से झाँकता है, वह झाड़ियों से ताकता है।
\s5
\v 10 ~मेरे महबूब ने मुझ से बातें कीं और कहा, "उठ मेरी प्यारी, मेरी नाज़नीन चली आ!
\v 11 ~क्यूँकि देख जाड़ा गुज़र गया, मेंह बरस चुका और निकल गया।
\s5
\v 12 ~ज़मीन पर फूलों की बहार है, परिन्दों के चहचहाने का वक़्त आ पहुँचा, और हमारी सरज़मीन में कुमरियों की आवाज़ सुनाई देने लगी।
\v 13 ~अंजीर के दरख़्तों में हरे अंजीर पकने लगे, और ताकें फूलने लगीं; उनकी महक फैल रही है। इसलिए उठ मेरी प्यारी, मेरी जमीला, चली आ।
\s5
\v 14 ~ऐ मेरी कबूतरी, जो चट्टानों की दरारों में और कड़ाड़ों की आड़ में छिपी है; मुझे अपना चेहरा दिखा, मुझे अपनी आवाज़ सुना, क्यूँकि तू माहजबीन और तेरी आवाज़ मीठी है।
\s5
\v 15 ~हमारे लिए लोमड़ियों को पकड़ो, उन लोमड़ी बच्चों को जो खजूर के बाग़ को ख़राब करते हैं; क्यूँकि हमारी ताकों में फूल लगे हैं।"
\s5
\v 16 ~मेरा महबूब मेरा है और मैं उसकी हूँ, वह सोसनों के बीच ~चराता है।
\v 17 जब तक दिन ढले और साया बढ़े, तू फिर आ ऐ मेरे महबूब। तू ग़ज़ाल या जवान हिरन की तरह होकर आ, जो बातर के पहाड़ों पर है।
\s5
\c 3
\p
\v 1 ~मैंने रात को अपने ~पलंग पर उसे ढूँँडा जो मेरी जान का प्यारा है;मैंने उसे ढूँडा पर न पाया।
\v 2 ~अब मैं उठूँगी और शहर में फिरूँगी, गलियों में और बाज़ारों में, उसको ढूँडूंगी जो मेरी जान का प्यारा है।मैंने उसे ढूँडा पर न पाया।
\s5
\v 3 ~पहरेवाले जो शहर में फिरते हैं मुझे मिले। मैंने पूछा, "क्या तुम ने उसे देखा है, जो मेरी जान का प्यारा है?”
\v 4 ~अभी मैं उनसे थोड़ा ही आगे बढ़ी थी, कि मेरी जान का प्यारा मुझे मिल गया। मैंने उसे पकड़ रख्खा और उसे न छोड़ा; जब तक कि मैं उसे अपनी माँ के घर में और अपनी वालिदा के आरामगाह में न ले गई।
\s5
\v 5 ~ऐ यरूशलीम की बेटियो, मैं तुम को ग़ज़ालों और मैदान की हिरनियों की क़सम देती हूँ कि तुम मेरे प्यारे को न जगाओ न उठाओ, जब तक कि वह उठना न चाहे।
\s5
\v 6 ~यह~कौन है जो मुर और लुबान से और सौदागरों के तमाम 'इत्रों से मु'अत्तर होकर, बियाबान से धुंवे के खम्बे की तरह चला आता है।
\v 7 देखो, यह सुलेमान की पालकी है! जिसके साथ इस्राईली बहादुरों में से साठ पहलवान हैं।
\s5
\v 8 ~वह सब के सब शमशीरज़न और जंग में माहिर हैं। रात के ख़तरे की वजह से हर एक की तलवार उसकी रान पर लटक रही है।
\v 9 ~सुलेमान बादशाह ने लुबनान की लकड़ियों से. अपने लिए एक पालकी बनवाई।
\s5
\v 10 ~उसके डंडे चाँदी के बनवाए, उसके बैठने की जगह सोने की और गद्दीअर्ग़वानी बनवाई; और उसके अंदर का फ़र्श, यरूशलीम की बेटियों ने 'इश्क़ से आरास्ता किया।
\v 11 ~ऐ सिय्यून की बेटियो, बाहर निकलो और सुलेमान बादशाह को देखो; उस ताज के साथ जो उसकी माँ ने उसके शादी के दिन और उसके दिल की शादमानी के दिन उसके सिर पर रख्खा।
\s5
\c 4
\p
\v 1 देख, तू ख़ूबसूरत है ऐ मेरी प्यारी! देख, तू ख़ूबसूरत है; तेरी आँखें तेरे नक़ाब के नीचे दो कबूतर हैं, तेरे बाल बकरियों के गल्ले की तरह हैं, जो कोह-ए-जिल्'आद पर बैठी हों।
\s5
\v 2 ~तेरे दाँत भेड़ों के ग़ल्ले की तरह हैं, जिनके बाल कतरे गए हों और जिनको गु़स्ल दिया गया हो, जिनमें से हर एक ने दो बच्चे दिए हों, और उनमें एक भी बाँझ न हो।
\s5
\v 3 ~तेरे होंठ किर्मिज़ी डोरे हैं, तेरा मुँह दिल फ़रेब है, तेरी कनपटियाँ तेरे नक़ाब के नीचे अनार के टुकड़ों की तरह हैं।
\s5
\v 4 तेरी गर्दन दाऊद का बुर्ज है जो सिलाहख़ाने के लिए बना जिस पर हज़ार ढाल लटकाई गई हैं, वह सब की सब पहलवानों की ढालें हैं।
\v 5 ~तेरी दोनों छातियाँ दो तोअम आहू बच्चे हैं, जो सोसनों में चरते हैं।
\s5
\v 6 ~जब तक दिन ढले और साया बढ़े, मैं मुर के पहाड़ और लुबान के टीले पर जा रहूँगा।
\v 7 ~ऐ मेरी प्यारी, तू सरापा जमाल है; तुझ में कोई 'ऐब नहीं।
\s5
\v 8 ~लुबनान से मेरे साथ, ऐ दुल्हन! तू लुबनान से मेरे साथ चली आ। अमाना की चोटी पर से, सनीर और हरमून की चोटी पर से, शेरों की मांदों से, और चीतों के पहाड़ों पर से नज़र दौड़ा।
\s5
\v 9 ~ऐ मेरी प्यारी, मेरी ज़ोजा, तू ने मेरा दिल लूट लिया। अपनी एक नज़र से, अपनी गर्दन के एक तौक़ से तू ने मेरा दिल ग़ारत कर लिया।
\s5
\v 10 ~ऐ मेरी प्यारी, मेरी ज़ौजा, तेरा 'इश्क क्या ख़ूब है। तेरी मुहब्बत मय से ज़्यादा लज़ीज़ है, और तेरे इत्रों की महक हर तरह की ख़ुश्बू से बढ़कर है।
\v 11 ~ऐ मेरी ज़ोजा, तेरे होटों से शहद टपकता है; शहद-ओ-शीर तेरे ज़बान तले है तेरी पोशाक की खु़श्बू लुबनान की जैसी है।
\s5
\v 12 ~मेरी प्यारी, मेरी ज़ोजा एक महफ़ूज़ बाग़ीचा है; वह महफ़ूज़ सोता और सर बमुहर चश्मा है।
\v 13 ~तेरे बाग़ के पौधे लज़ीज़ मेवादार अनार हैं, मेहन्दी और सुम्बुल भी हैं।
\v 14 ~जटामासी और ज़ा'फ़रान, बेदमुश्क और दारचीनी और लोबान के तमाम दरख़्त, मुर और ऊद और हर तरह की ख़ास खु़श्बू।
\s5
\v 15 ~तू बाग़ों में एक मम्बा', आब-ए-हयात का चश्मा, और लुबनान का झरना है।
\v 16 ~ऐ शिमाली हवा बेदार हो, ऐ दख्खिनी हवा चली आ! मेरे बाग़ पर से गुज़र, ताकि उसकी ख़ुशबू फैले।मेरा महबूब अपने बाग़ में आए, और अपने लज़ीज़ मेवे खाए।
\s5
\c 5
\p
\v 1 मै अपने बाग़ में आया हूँ ऐ मेरी प्यारी ऐ मेरी ज़ौजा; मैंने अपना मुर अपने बलसान समेत जमा' कर लिया; मैंने अपना शहद छत्ते समेत खा लिया, मैंने अपनी मय दूध समेत पी ली है। ऐ दोस्तो, खाओ, पियो। पियो! हाँ, ऐ 'अज़ीज़ो, खू़ब जी भर के पियो!
\s5
\v 2 ~मैं सोती हूँ, लेकिन मेरा दिल जागता है। मेरे महबूब की आवाज़ है जो खटखटाता है, और कहता है, मेरे लिए दरवाज़ा खोल, मेरी महबूबा, मेरी प्यारी! मेरी कबूतरी, मेरी पाकीज़ा, क्यूँकि मेरा सिर शबनम से तर है, और मेरी जु़ल्फे़ रात की बूँदों से भरी हैं।"
\s5
\v 3 मैं तो कपड़े उतार चुकी, अब फिर कैसे पहनूँ? मैं तो अपने पाँव धो चुकी, अब उनको क्यूँ मैला करूँ?
\v 4 ~मेरे महबूब ने अपना हाथ सूराख़ से अन्दर किया, और मेरे दिल-ओ-जिगर में उसके लिए हरकत हुई।
\s5
\v 5 ~मैं अपने महबूब के लिए दरवाज़ा खोलने को उठी, और मेरे हाथों से मुर टपका, और मेरी उँगलियों से रक़ीक़ मुर टपका, और कु़फ़्ल के दस्तों पर पड़ा।
\s5
\v 6 ~मैंने अपने महबूब के लिए दरवाज़ा खोला, लेकिन मेरा महबूब मुड़ कर चला गया था। जब वह बोला, तो मैं बदहवास हो गई। मैंने उसे ढूँडा पर न पाया; मैंने उसे पुकारा पर उसने मुझे कुछ जवाब न दिया।
\s5
\v 7 ~पहरेवाले जो शहर में फिरते हैं, मुझे मिले; उन्होंने मुझे मारा और घायल किया; शहरपनाह के मुहाफ़िज़ों ने मेरी चादर मुझ से छीन ली।
\s5
\v 8 ~ऐ यरूशलीम की बेटियो! मैं तुम को क़सम देती हूँ कि अगर मेरा महबूब तुम को मिल जाए, तो उससे कह देना कि मैं इश्क़ की बीमार हूँ।
\s5
\v 9 ~तेरे महबूब को किसी दूसरे महबूब पर क्या फ़ज़ीलत है, ऐ 'औरतों में सब से जमीला? तेरे महबूब को किसी दूसरे महबूब पर क्या फ़ौकियत है? जो तू हम को इस तरह क़सम देती है।
\s5
\v 10 ~मेरा महबूब सुर्ख़-ओ-सफ़ेद है, वह दस हज़ार में मुम्ताज़ है।
\v 11 उसका सिर ख़ालिस सोना है, उसकी जुल्फें पेच-दर-पेचऔर कौवे सी काली हैं।
\s5
\v 12 ~उसकी आँखें उन कबूतरों की तरह हैं, जो दूध में नहाकर लब-ए-दरिया तमकनत से बैठे हों।
\s5
\v 13 ~उसके गाल फूलों के चमन और बलसान की उभरी हुई क्यारियाँ हैं। उसके होंट सोसन हैं, जिनसे रक़ीक़ मुर टपकता है।
\s5
\v 14 ~उसके हाथ ज़बरजद से आरास्ता सोने के हल्के हैं। उसका पेट हाथी दाँत का काम है, जिस पर नीलम के फूल बने हो।
\s5
\v 15 ~उसकी टांगे ~कुन्दन के पायों पर संग-ए-मरमर के खम्बे हैं। वह देखने में लुबनान और खू़बी में रश्क-ए-सरो है।
\s5
\v 16 ~उसका मुँह अज़बस शीरीन है; हाँ, वह सरापा 'इश्क अंगेज़ है। ऐ यरूशलीम की बेटियो, यह है मेरा महबूब, यह है मेरा प्यारा।
\s5
\c 6
\p
\v 1 तेरा महबूब कहाँ गया ऐ 'औरतों में सब से जमीला? तेरा महबूब किस तरफ़ को निकला कि हम तेरे साथ उसकी तलाश में जाएँ?
\s5
\v 2 ~मेरा महबूब अपने बोस्तान में बलसान की क्यारियों की तरफ़ गया है, ताकि बागों में चराये और सोसन जमा' करे।
\v 3 ~मैं अपने महबूब की हूँ और मेरा महबूब मेरा है। वह सोसनों में चराता है।
\s5
\v 4 ~ऐ मेरी प्यारी, तू तिर्ज़ा की तरह खू़बसूरत है।यरूशलीम की तरह खु़शमंज़र और 'अलमदार लश्कर की तरह दिल पसन्द है।
\s5
\v 5 ~अपनी आँखें मेरी तरफ़ से फेर ले, क्यूँकि वह मुझे घबरा देती हैं; तेरे बाल बकरियों के गल्ले की तरह हैं, जो कोह-ए-जिल्आद पर बैठी हों।
\s5
\v 6 ~तेरे दाँत भेड़ों के गल्ले की तरह हैं, जिनको गु़स्ल दिया गया हो; जिनमें से हर एक ने दो बच्चे दिए हों, और उनमें एक भी बाँझ न हो।
\v 7 तेरी कनपटियाँ तेरे नक़ाब के नीचे, अनार के टुकड़ों की तरह हैं।
\s5
\v 8 ~साठ रानियाँ और अस्सी हरमें, और बेशुमार कुंवारियाँ भी हैं;
\v 9 लेकिन मेरी कबूतरी, मेरी पाकीज़ा बेमिसाल है; वह अपनी माँ की इकलौती, वह अपनी वालिदा की लाडली है। बेटियों ने उसे देखा और उसे मुबारक कहा। रानियों और हरमों ने देखकर उसकी बड़ाई की।
\s5
\v 10 ~यह कौन है जिसका ज़हूर सुबह की तरह है, जो हुस्न में माहताब, और नूर में आफ़ताब, 'अलमदार लश्कर की तरह दिल पसन्द है?
\s5
\v 11 ~मैं चिलगोज़ों के बाग में गया, कि वादी की नबातात पर नज़र करूँ, और देखें कि ताक में गुंचे, और अनारों में फूल निकलें हैं कि नहीं।
\v 12 ~मुझे अभी ख़बर भी न थी कि मेरे दिल ने मुझे मेरे उमरा के रथों पर चढ़ा दिया।
\s5
\v 13 ~लौट आ, लौट आ, ऐ शूलिमीत!”लौट आ, लौट आ कि हम तुझ पर नज़र करें। तुम शूलिमीत पर क्यूँ नज़र करोगे, जैसे वह दो लश्करों का नाच है।
\s5
\c 7
\p
\v 1 ~ऐ अमीरज़ादी तेरे पाँव जूतियों में कैसे खू़बसूरत हैं! तेरी रानों की गोलाई उन ज़ेवरों की तरह है, जिनको किसी उस्ताद कारीगर ने बनाया हो।
\s5
\v 2 ~तेरी नाफ़ गोल प्याला है, जिसमें मिलाई हुई मय की कमी नहीं। तेरा पेट गेहूँ का अम्बार है, जिसके आस-पास सोसन हों।
\s5
\v 3 ~तेरी दोनों छातियाँ दो आहू बच्चे हैं जो तोअम पैदा हुए हों।
\v 4 ~तेरी गर्दन हाथी दाँत का बुर्ज है।तेरी आँखें बैत-रबीम के फाटक के पास हस्बून के चश्मे हैं।~तेरी नाक लुबनान के बुर्ज की मिसाल है~जो दमिश्क़ के रुख़ बना है।
\s5
\v 5 ~तेरा सिर तुझ पर कर्मिल की तरह है, और तेरे सिर के बाल अर्ग़वानी हैं;बादशाह तेरी जुल्फ़ों में क़ैदी है।
\v 6 ~ऐ महबूबा" ऐश-ओ-इश्रत के लिए तू कैसी जमीला और जाँफ़ज़ा है।
\s5
\v 7 ~यह तेरी क़ामत खजूर की तरह है, और तेरी छातियाँ अंगूर के गुच्छे हैं।
\v 8 ~मैंने कहा, "मैं इस खजूर पर चढूँगा, और इसकी शाख़ों को पकड़ूँगा।~तेरी छातियाँ अंगूर के गुच्छे हों और तेरे साँस की ख़ुशबू सेब के जैसी हो,
\s5
\v 9 और तेरा मुँह' बेहतरीन शराब की तरह हो~जो मेरे महबूब की तरफ़ सीधी चली जाती है, और सोने वालों के होंटों पर से आहिस्ता~आहिस्ता बह जाती है|~
\s5
\v 10 ~मैं अपने महबूब की हूँऔर वह मेरा मुश्ताक़ है।
\v 11 ऐ मेरे महबूब, चल हम खेतों में सैर करेंऔर गाँव में रात काटें ।,
\s5
\v 12 ~फिर तड़के अंगूरिस्तानों में चलें, और देखें कि आया ताक शिगुफ़्ता है, और उसमे फूल निकले हैं, और अनार की कलियाँ खिली हैं या नहीं। वहाँ मैं तुझे अपनी मुहब्बत दिखाउंगी |
\s5
\v 13 मर्दुमग्याह की ख़ुशबू फ़ैल रही है, और हमारे दरवाज़ों पर हर क़िस्म के तर-ओ-ख़ुश्क मेवे हैं जो मैंने तेरे लिए जमा' कर रख्खे हैं, ऐ मेरे महबूब|
\s5
\c 8
\p
\v 1 ~काश कि तू मेरे भाई की तरह होता, जिसने मेरी माँ की छातियों से दूध पिया।~मैं जब तुझे बाहर पाती, तो तेरी मच्छियाँ लेती, और कोई मुझे हक़ीर न जानता।
\s5
\v 2 ~मैं तुझ को अपनी माँ के घर में ले जाती, वह मुझे सिखाती।~मैं अपने अनारों के रस से तुझे मम्जूज मय पिलाती।
\v 3 ~उसका बायाँ हाथ मेरे सिर के नीचे होता, और दहना मुझे गले से लगाता!
\s5
\v 4 ~ऐ यरूशलीम की बेटियो, मैं तुम को क़सम देती हूँ कि तुम मेरे प्यारे को न जगाओ न उठाओ, जब तक कि वह उठना न चाहे।
\s5
\v 5 ~यह कौन है जो वीराने से, अपने महबूब पर तकिया किए~चली आती है?~मैंने तुझे सेब के दरख़्त के नीचे जगाया।~जहाँ तेरी पैदाइश हुई, जहाँ तेरी माँ ने तुझे पैदा किया।
\s5
\v 6 ~नगीन की तरह मुझे अपने दिल में लगा रख और~तावीज़ की तरह अपने बाज़ू पर, क्यूँकि 'इश्क़ मौत की तरह ज़बरदस्त है, और गै़रत पाताल सी बेमुरव्वत है~उसके शो'ले आग के शोले हैं, और ख़ुदावन्द के शोले की तरह।
\s5
\v 7 ~सैलाब 'इश्क़ को बुझा नहीं सकता, बाढ़ उसको डुबा नहीं सकती, अगर आदमी मुहब्बत के बदले अपना सब कुछ दे डाले~तो वह सरासर हिकारत के लायक़ ठहरेगा।
\s5
\v 8 ~हमारी एक छोटी बहन है, अभी उसकी छातियाँ नहीं उठीं।~जिस रोज़ उसकी बात चले, हम अपनी बहन के लिए क्या करें?
\s5
\v 9 अगर वह दीवार हो, तो हम उस पर चाँदी का बुर्ज बनाएँगेऔर अगर वह दरवाज़ा हो;~हम उस पर देवदार के तख़्ते लगाएँगे।
\s5
\v 10 मैं दीवार हूँ और मेरी छातियाँ बुर्ज हैं~और मैं उसकी नज़र में सलामती याफ़्ता, की तरह थी।
\s5
\v 11 ~बाल हामून में सुलेमान का खजूर का बाग़ था~उसने उस खजूर के बाग़ को बाग़बानों के सुपुर्द किया कि उनमें से हर एक उसके फल के बदले ~हज़ार मिस्क़ाल चाँदी अदा करे।
\v 12 ~मेरा खजूर का बाग़ जो मेरा ही है मेरे सामने है ऐ सुलेमान तू तो हज़ार ले, और उसके फल के निगहबान दो सौ पाएँ।
\s5
\v 13 ~ऐ बूस्तान में रहनेवाली, दोस्त तेरी आवाज़ सुनते हैं;~मुझ को भी सुना।
\s5
\v 14 ~ऐ मेरे महबूब जल्दी कर~और उस ग़ज़ाल या आहू बच्चे की~तरह हो जा, जो बलसानी पहाड़ियों पर है।

2188
23-ISA.usfm Normal file
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\id ISA
\ide UTF-8
\h यसायाह
\toc1 यसायाह
\toc2 यसायाह
\toc3 isa
\mt1 यसायाह
\s5
\c 1
\p
\v 1 यसा'याह बिन आमूस का ख़्वाब जो उसने यहूदाह और यरुशलीम के ज़रिए' यहूदाह के बादशाहों उज़ियाह और यूताम और आख़ज़ और हिज़क़ियाह के दिनों में देखा।
\s5
\v 2 सुन ऐ आसमान,~और कान लगा ऐ ज़मीन,~कि~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: "कि मैंने लड़कों को पाला और पोसा,~लेकिन उन्होंने मुझ से सरकशी की।
\v 3 बैल अपने मालिक को पहचानता है और गधा अपने मालिक की चरनी को,~लेकिन बनी-इस्राईल नहीं जानते; मेरे लोग कुछ नहीं सोचते।"
\s5
\v 4 आह,~ख़ताकार गिरोह,~बदकिरदारी से लदी हुई क़ौम बदकिरदारों की नसल मक्कार औलाद;~जिन्होंने ख़ुदावन्द को छोड़ दिया,~इस्राईल के क़ुददूस को हक़ीर जाना,~और गुमराह-ओ-बरगश्ता हो गए~!'
\s5
\v 5 ~तुम क्यूँ ज़्यादा बग़ावत करके और मार खाओगे? तमाम सिर बीमार है और दिल बिल्कुल सुस्त है।
\v 6 ~ तलवे से लेकर चाँदी तक उसमें कहीं सेहत नहीं सिर्फ़ ज़ख़्म और चोट और सड़े हुए घाव ही हैं; जो न दबाए गए, न बाँधे गए, न तेल से नर्म किए गए हैं।
\s5
\v 7 ~ तुम्हारा मुल्क उजाड़ है, तुम्हारी बस्तियाँ जल गईं; लेकिन परदेसी तुम्हारी ज़मीन को तुम्हारे सामने निगलते हैं, वह वीरान है, जैसे उसे अजनबी लोगों ने उजाड़ा है।
\v 8 और सिय्यून की बेटी छोड़ दी गई है, जैसे झोपड़ी बाग़ में और छप्पर ककड़ी के खेत में या उस शहर की तरह जो महसूर हो गया हो।
\s5
\v 9 ~अगर रब्ब-उल-अफ़वाज हमारा थोड़ा सा बक़िया बाक़ी न छोड़ता, तो हम सदूम की तरह और 'अमूरा की तरह हो जाते।
\s5
\v 10 सदूम के हाकिमो, का कलाम सुनो! के लोगों, ख़ुदा की शरी'अत पर कान लगाओ !
\v 11 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "तुम्हारे ज़बीहों की कसरत से मुझे क्या काम? मैं मेण्ढों की सोख़्तनी कु़र्बानियों से और फ़र्बा बछड़ों की चर्बी से बेज़ार हूँ; और बैलों और भेड़ों और बकरों के ख़ून में मेरी ख़ुशनूदी नहीं।
\s5
\v 12 "जब तुम मेरे सामने आकर मेरे दीदार के तालिब होते हो, तो कौन तुम से ये चाहता है कि मेरी बारगाहों को रौंदो ?
\v 13 आइन्दा को बातिल हदिये न लाना, ख़ुशबू से मुझे नफ़रत है, नये चाँद और सबत और 'ईदी जमा'अत से भी; क्यूँकि मुझ में बदकिरदारी के साथ 'ईद की बर्दाश्त नहीं।
\s5
\v 14 ~मेरे दिल को तुम्हारे नये चाँदों और तुम्हारी मुक़र्ररा 'ईदों से नफ़रत है; वह मुझ पर बार हैं; मैं उनकी बर्दाश्त नहीं कर सकता।
\v 15 ~जब तुम अपने हाथ फैलाओगे, तो मैं तुम से आँख फेर लूँगा; हाँ, जब तुम दु'आ पर दु'आ करोगे, तो मैं न सुनूँगा; तुम्हारे हाथ तो ख़ून आलूदा हैं।
\s5
\v 16 अपने आपको धो, अपने आपको पाक करो; अपने बुरे कामों को मेरी आँखों के सामने से दूर करो, बदफ़ेली से बाज़ आओ,
\v 17 ~नेकोकारी सीखो; इन्साफ़ के तालिब हो मज़लूमों की मदद करो यतीमों की फ़रियादरसी करो, बेवाओं के हामी हो।"
\s5
\v 18 अब ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "आओ, हम मिलकर हुज्जत करें; अगरचे तुम्हारे गुनाह क़िर्मिज़ी हों, वह बर्फ़ की तरह सफ़ेद हो जाएँगे; और हर चन्द वह अर्ग़़वानी हों, तोभी ऊन की तरह उजले होंगे।
\s5
\v 19 अगर तुम राज़ी और फ़रमाबरदार हो, तो ज़मीन के अच्छे~अच्छे फल खाओगे;
\v 20 ~ लेकिन अगर तुम इन्कार करो और बाग़ी हो तो तलवार का लुक़्मा हो जाओगे क्यूँकि ख़ुदावन्द ने अपने मुँह से ये फ़रमाया है।”
\s5
\v 21 ~वफ़ादार बस्ती कैसी बदकार हो गई ! वह तो इन्साफ़ से मा'मूर थी और रास्तबाज़ी उसमें बसती थी, लेकिन अब ख़ूनी रहते हैं।
\v 22 तेरी चाँदी मैल हो गई, तेरी मय में पानी मिल गया।
\s5
\v 23 तेरे सरदार गर्दनकश और चोरों के साथी हैं। उनमें से हर एक रिश्वत दोस्त और इन'आम का तालिब है। वह यतीमों का इन्साफ़ नहीं करते और बेवाओं की फ़रियाद उन तक नहीं पहुँचती।
\s5
\v 24 ~इसलिए ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का क़ादिर, यूँ फ़रमाता है : कि "आह मैं ज़रूर अपने मुख़ालिफ़ों से आराम पाऊँगा, और अपने दुश्मनों से इन्तक़ाम लूँगा।
\v 25 और मैं तुझ पर अपना हाथ बढ़ाऊँगा, और तेरी गन्दगी बिल्कुल दूर कर दूँगा, और उस राँगे को जो तुझ में मिला है जुदा करूँगा;
\s5
\v 26 और मैं तेरे क़ाज़ियों को पहले की तरह और तेरे सलाहकारों को पहले के मुताबिक़ बहाल करूँगा। इसके बा'द तू रास्तबाज़ बस्ती और वफ़ादार आबादी कहलाएगी।”
\s5
\v 27 सिय्यून 'अदालत की वजह से और वह जो उसमें गुनाह से बाज़ आए हैं, रास्तबाज़ी के ज़रिए' नजात पाएँगे;
\v 28 लेकिन गुनाहगार और बदकिरदार सब इकट्ठे हलाक होंगे, और जो ख़ुदावन्द से बाग़ी हुए फ़ना किए जाएँगे।
\s5
\v 29 क्यूँकि वह उन बलूतों से, जिनको तुम ने चाहा शर्मिन्दा होंगे; और तुम उन बाग़ों से, ~जिनको तुम ने पसन्द किया है ख़जिल होगे।
\v 30 और तुम उस बलूत की तरह हो जाओगे जिसके पत्ते झड़ जाएँ, और उस बाग़ की तरह जो बेआबी से सूख जाए।
\s5
\v 31 वहाँ का पहलवान ऐसा हो जाएगा जैसा सन, और उसका काम चिंगारी हो जाएगा; वह दोनों एक साथ जल जाएँगे, और कोई उनकी आग न बुझाएगा।
\s5
\c 2
\p
\v 1 वह बात जो यसा'याह बिन आमूस ने यहूदाह और यरुशलीम के हक़ में ख़्वाब में देखा।
\v 2 आख़िरी दिनों में यूँ होगा कि ख़ुदावन्द के घर का पहाड़ पहाड़ों की चोटी पर क़ायम किया जाएगा, और टीलों से बुलन्द होगा,और ~सब क़ौमें वहाँ पहुँचेंगी;
\s5
\v 3 बल्कि बहुत सी उम्मतें आयेंगी और कहेंगी आओ~ख़ुदावन्द~के पहाड़ पर चढ़ें, या'नी या'क़ूब के ख़ुदा के घर में दाख़िल हों और वह अपनी राहें हम को बताएगा, और हम उसके रास्तों पर चलेंगे।" क्यूँकि शरी'अत सिय्यून से, और ख़ुदावन्द का कलाम यरुशलीम से सादिर होगा।
\s5
\v 4 ~और वह क़ौमों के बीच 'अदालत करेगा और बहुत सी उम्मतों को डांटेगा और वह अपनी तलवारों को तोड़ कर फालें, और अपने भालों को हँसुए बना डालेंगे और क़ौम क़ौम पर तलवार न चलाएगी और वह फिर कभी जंग करना न सींखेंगे |
\s5
\v 5 ~ऐ या'क़ूब के घराने, आओ हम ख़ुदावन्द की रोशनी में चलें।
\v 6 तूने तो अपने लोगों या'नी या'क़ूब के घराने को छोड़ दिया, इसलिए कि वह अहल-ए-मशरिक़ की रसूम से पुर हैं और फ़िलिस्तियों की तरह शगुन लेते हैं और बेगानों की औलाद के साथ हाथ पर हाथ मारते हैं।
\s5
\v 7 और उनका मुल्क सोने-चाँदी से मालामाल है, और उनके ख़ज़ाने बे शुमार हैं और उनका मुल्क घोड़ों से भरा है, उनके रथों का कुछ शुमार नहीं।
\v 8 उनकी सरज़मीन बुतों से भी पुर है वह अपने ही हाथों की सन'अत, या'नी अपनी ही उगलियों की कारीगरी को सिज्दा करते हैं।
\s5
\v 9 ~इस वजह से छोटा आदमी पस्त किया जाता है,और बड़ा आदमी ज़लील होता है;और ~तू उनको हरगिज़ मुआफ़ न करेगा।
\v 10 ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ से और उसके जलाल की शौकत से, चट्टान में घुस जा और ख़ाक में छिप जा |
\v 11 ~इन्सान की ऊँची निगाह नीची की जाएगी और बनी आदम का तकब्बुर पस्त हो जाएगा; और उस रोज़ ख़ुदावन्द ही सरबलन्द होगा|
\s5
\v 12 क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़्वाज ~का दिन तमाम मग़रूरों बुलन्द नज़रों और मुतकब्बिरों पर आएगा और वह पस्त किए जाएँगे;
\v 13 और ~लुबनान के सब देवदारों पर जो बुलन्द और ऊँचे हैं और बसन के सब बुलूतों पर |
\s5
\v 14 और सब ऊँचे पहाड़ों और सब बुलन्द टीलों पर,
\v 15 और हर एक ऊँचे बुर्ज पर, और हर एक फ़सीली दीवार पर,
\v 16 ~और तरसीस के सब जहाज़ों पर, ग़रज़ हर एक ख़ुशनुमा मन्ज़र पर;
\s5
\v 17 ~और आदमी का तकब्बुर ज़ेर किया जाएगा और लोगों की बुलंद बीनी पस्त की जायेगी और उस रोज़ ख़ुदावन्द ही सरबलन्द होगा।
\v 18 तमाम बुत बिल्कुल फ़ना हो जायेंगे
\v 19 ~और जब ख़ुदावन्द उठेगा कि ज़मीन को शिद्दत से हिलाए, तो लोग उसके डर से और उसके जलाल की शौकत से पहाड़ों के ग़ारों और ज़मीन के शिगाफ़ों में घुसेंगे |
\s5
\v 20 उस रोज़ लोग अपनी सोने-चाँदी की मूरतों को जो उन्होंने 'इबादत के लिए बनाई,छछुन्दारों और चमगादड़ों के आगे फेंक देंगे |
\v 21 ~ताकि जब ख़ुदावन्द ज़मीन को शिद्दत से हिलाने के लिए उठे, तो उसके ख़ौफ़ से और उसके जलाल की शौकत से चट्टानों के ग़ारों और नाहमवार पत्थरों के शिगाफ़ों में घुस जाएँ।
\v 22 ~तब तुम इन्सान से जिसका दम उसके नथनों में है बाज़ रहो,क्यूँकि उसकी क्या क़द्र है?
\s5
\c 3
\p
\v 1 ~क्यूँकि देखो ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़्वाज यरुशलीम और यहूदाह से सहारा और भरोसा", रोटी का तमाम सहारा और पानी का तमाम भरोसा दूर कर देगा;
\v 2 ~या'नी बहादुर और साहिब-ए-जंग को क़ाज़ी और नबी को, फ़ालगीरों और बुज़ुर्ग को |
\v 3 पचास ~पचास के सरदारों और 'इज्ज़तदारों और सलाहकारों और होशियार कारीगरों और माहिर जादूगरों को|
\s5
\v 4 और मैं लड़कों को उनके सरदार बनाऊँगा और नन्हे बच्चे उन पर हुक्मरानी करेंगे |
\v 5 लोगों ~में से हर एक दूसरे पर और हर एक अपने पड़ोसी पर सितम करेगा|और बच्चे बूढ़ों की और रज़ील शरीफ़ों की गुस्ताख़ी करेंगे |
\s5
\v 6 ~जब कोई आदमी अपने बाप के घर में अपने भाई का दामन पकड़कर कहे, कि तू पोशाकवाला है; आ तू हमारा हाकिम हो, और इस उजड़े देस पर क़ाबिज़ हो जा|
\v 7 उस रोज़ वह बुलन्द आवाज़ से कहेगा, कि मुझसे इन्तिज़ाम नहीं होगा; क्यूँकि मेरे घर में न रोटी है न कपड़ा, मुझे लोगों का हाकिम न बनाओ।"
\s5
\v 8 क्यूँकि यरुशलीम की बर्बादी हो गई और यहूदाह गिर गया, इसलिए कि उनकी बोल-चाल और चाल-चलन ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ हैं कि उसकी जलाली आँखों को ग़ज़बनाक करें|
\v 9 ~उनके मुँह की सूरत उन पर गवाही देती है वह अपने गुनाहों को सदूम की तरह ज़ाहिर करते हैं और छिपाते नहीं उनकी जानों पर वावैला है! क्यूँकि वह आप अपने ऊपर बला लाते हैं।
\s5
\v 10 रास्तबाज़ों के ज़रिए' कहो कि भला होगा, क्यूँकि वह अपने कामों का फल खाएँगे।
\v 11 शरीरों पर वावैला है कि उनको बदी पेश आयेगी क्यूँकि वह अपने हाथों का किया पाएँगे।
\v 12 मेरे लोगों की ये हालत है कि लड़के उन पर ज़ुल्म करते हैं,और 'औरतें उन पर हुक्मरान हैं। ऐ मेरे लोगों तुम्हारे रहनुमा तुम को गुमराह करते हैं,और तुम्हारे चलने की राहों को बिगाड़ते हैं।
\s5
\v 13 ~ख़ुदावन्द खड़ा है कि मुक़द्दमा लड़े, और लोगों की 'अदालत करे|
\v 14 ~ख़ुदावन्द अपने लोगों के बुज़ुर्गों और उनके सरदारों की 'अदालत करने को~आएगा, तुम ही हो जो बाग़ चट कर गए हो और ग़रीबों की लूट तुम्हारे घरों में है।"
\v 15 ~ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़्वाज फ़रमाता है कि इसके क्या क्या मा'ना हैं कि तुम मेरे लोगों को दबाते और ग़रीबों के सिर कुचलते हो |
\s5
\v 16 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, चूँकि सिय्यून की बेटियाँ मुतकब्बिर हैं और गर्दनकशी और शोख़ चश्मी से ख़िरामाँ होती हैं और अपने पाँव से नाज़रफ़्तारी करती और घुंघरू बजाती जाती हैं |
\v 17 इसलिए ख़ुदावन्द सिय्यून की बेटियों के सिर गंजे, और यहोवाह उनके बदन बेपर्दा कर देगा|
\s5
\v 18 उस दिन ख़ुदावन्द उनके ख़लख़ाल की ज़ेबाइश, जालियाँ और चाँद ले लेगा,
\v 19 ~और आवेज़े और पहुँचियाँ, और नक़ाब|
\v 20 और ताज और पाज़ेब और पटके और 'इत्रदान और ता'वीज़ |
\s5
\v 21 और अंगूठियाँ और नथ |
\v 22 ~और नफ़ीस पोशाकें,और ओढ़नियाँ ,और दोपट्टे और कीसे ,
\v 23 ~और आर्सियाँ और बारीक़ कतानी लिबास और दस्तारे़ और बुर्के़ भी।
\s5
\v 24 और ~यूँ होगा कि ख़ुशबू के बदले सड़ाहट होगी, और पटके के बदले रस्सी, और गुंधे हुए बालों की जगह चंदलापन और नफ़ीस लिबास के बदले टाट और हुस्न के बदले दाग़।
\v 25 तेरे बहादुर हलाक होंगे और तेरे पहलवान जंग में क़त्ल होंगे।
\v 26 ~उसके फाटक मातम और नौहा करेंगे,और वह उजाड़ होकर ख़ाक पर बैठेगी।
\s5
\c 4
\p
\v 1 उस वक़्त सात 'औरतें एक मर्द को पकड़ कर कहेंगी, कि हम अपनी रोटी खाएँगी और अपने कपड़े पहनेंगी; तू हम सबसे सिर्फ़ इतना कर कि तेरे नाम से कहलायें ताकि हमारी शर्मिंदगी मिटे|
\v 2 तब ख़ुदावन्द की तरफ़ से रोएदगी ख़ूबसूरत-ओ-शानदार होगी,~और ज़मीन का फल उनके लिए जो बनी-इस्राईल में से बच निकले,~लज़ीज़ और ख़ुशनुमा होगा।
\s5
\v 3 और यूँ होगा कि जो कोई सिय्यून में छूट जाएगा,~और जो कोई यरुशलीम में बाक़ी रहेगा,~बल्कि हर एक जिसका नाम यरुशलीम के ज़िन्दों में लिखा होगा,~मुक़द्दस कहलाएगा।
\v 4 ~जब ख़ुदावन्द सिय्यून की बेटियों की गन्दगी को दूर करेगा और यरुशलीम का ख़ून रूह-ए-'अद्ल और रूह-ए-सोज़ान के ज़रिए' से धो डालेगा।
\s5
\v 5 ~तब ख़ुदावन्द फिर सिय्यून पहाड़ के हर एक मकान पर और उसकी मजलिसगाहों पर, दिन को बादल और धुवाँ और रात को रोशन शोला पैदा करेगा; तमाम जलाल पर एक सायबान होगा।
\v 6 ~और एक ख़ेमा होगा जो दिन को गर्मी में सायादार मकान, और आँधी और झड़ी के वक़्त आरामगाह और पनाह की जगह हो ।
\s5
\c 5
\p
\v 1 अब ~मैं अपने महबूब के लिए अपने महबूब का एक गीत, उसके बाग़ के ज़रिए' गाऊँगा : मेरे महबूब का बाग़ एक ज़रखे़ज़ पहाड़ पर था।
\v 2 ~और उसने उसे खोदा और उससे पत्थर निकाल फेंके और अच्छी से अच्छी ताकि उसमें लगाई, और उसमें बुर्ज बनाया और एक कोल्हू भी उसमें तराशा; और इन्तिज़ार किया कि उसमें अच्छे अंगूर लगें लेकिन उसमें जंगली अंगूर लगे।
\s5
\v 3 अब ऐ यरुशलीम के बाशिन्दो और यहूदाह के लोगों,मेरे ~और मेरे बाग़ में तुम ही इन्साफ़ करो,
\v 4 ~कि मैं अपने बाग़ के लिए और क्या कर सकता था जो मैंने न किया? और अब जो मैंने अच्छे अंगूरों की उम्मीद की, तो इसमें जंगली अंगूर क्यूँ लगे?
\s5
\v 5 ~मैं तुम को बताता हूँ कि ~अब मैं अपने बाग़ से क्या करूँगा; मैं उसकी बाड़ गिरा दूँगा, और वह चरागाह होगा; उसका अहाता तोड़ डालूँगा, और वह पामाल किया जाएगा;
\v 6 और ~मैं उसे बिल्कुल वीरान कर दूँगा वह न छाँटा जाएगा न निराया जाएगा, उसमें ऊँट कटारे और कॉटे उगेंगे; और मैं बादलों को हुक्म करूँगा कि उस पर मेंह न बरसाएँ।
\s5
\v 7 ~इसलिए रब्ब-उल-अफ़्वाज का बाग़ बनी-इस्राईल का घराना है, और बनी यहूदाह उसका ख़ुशनुमा पौधा है उसने इन्साफ़ का इन्तिज़ार किया, लेकिन ख़ूँरेज़ी देखी; वह दाद का मुन्तज़िर रहा,लेकिन फ़रियाद सुनी।
\s5
\v 8 ~उनपर अफ़सोस, जो घर से घर और खेत से खेत मिला देते हैं, यहाँ तक कि कुछ जगह बाक़ी न बचे, और मुल्क में वही अकेले बसें।
\v 9 ~रब्ब-उल-अफ़्वाज ने मेरे कान में कहा,यक़ीनन बहुत से घर उजड़ जाएँगे और बड़े बड़े आलीशान और ख़ूबसूरत मकान भी बे चराग़ होंगे।
\v 10 ~क्यूँकि पन्द्रह बीघे बाग़ से सिर्फ़ एक बत मय हासिल होगी, और एक ख़ोमर' बीज से एक ऐफ़ा ग़ल्ला|
\s5
\v 11 ~उनपर अफ़सोस,जो सुबह सवेरे उठते हैं ताकि नशेबाज़ी के दरपै हों और जो रात को जागते हैं जब तक शराब उनको भड़का न दे!
\v 12 ~और उनके जश्न की महफ़िलों में बरबत और सितार और दफ़ और बीन और शराब हैं; लेकिन वह ख़ुदावन्द के काम को नहीं सोचते और उसके हाथों की कारीगरी पर ग़ौर नहीं करते।
\s5
\v 13 ~इसलिए मेरे लोग जहालत की वजह से ग़ुलामी में जाते हैं; उनके बुज़ुर्ग भूके मरते, और 'अवाम प्यास से जलते हैं।
\v 14 फिर पाताल अपनी हवस बढ़ाता है और अपना मुँह बे इन्तहा फाड़ता है और उनके शरीफ़ और 'आम लोग और ग़ौग़ाई और जो कोई उनमें घमण्ड करता है, उसमें उतर जाएँगे।
\s5
\v 15 ~और छोटा आदमी झुकाया जाएगा, और बड़ा आदमी पस्त होगा और मग़रूरों की आँखे नीची हो जाएँगी।
\v 16 ~लेकिन रब्ब-उल-अफ़्वाज 'अदालत~में सरबलन्द होगा, और ख़ुदा-ए-क़ुद्दूस की तक़्दीस सदाक़त से की जाएगी।
\v 17 ~तब बर्रे जैसे अपनी चरागाहों में चरेंगे और दौलतमन्दों के वीरान खेत परदेसियों के गल्ले खाएँगे।
\s5
\v 18 ~उनपर अफ़सोस, जो बतालत की तनाबों से बदकिरदारी को और जैसे गाड़ी के रस्सों से गुनाह को खींच लाते हैं,
\v 19 ~और जो कहते हैं, कि जल्दी करें और फुर्ती से अपना काम करें कि हम देखें; और इस्राईल के क़ुद्दूस की मशवरत नज़दीक हो और आ पहुँचे ताकि हम उसे जानें।"
\s5
\v 20 उन पर अफ़सोस, जो बदी को नेकी और नेकी को बदी कहते हैं, और नूर की जगह तारीकी को और तारीकी की जगह नूर को देते हैं; और शीरीनी के बदले तल्ख़ी और तल्ख़़ी के बदले शीरीनी रखते हैं!
\v 21 ~उनपर अफ़सोस,जो ~अपनी नज़र में अक़्लमन्द और अपनी निगाह में साहिब-ए-इम्तियाज़ हैं|
\s5
\v 22 ~उनपर अफ़सोस, जो मय पीने में ताक़तवर और शराब मिलाने में पहलवान हैं;
\v 23 जो रिश्वत लेकर शरीरों की सादिक़ और सादिक़ों को नारास्त ठहराते हैं!
\s5
\v 24 ~फिर जिस तरह आग भूसे को खा जाती है और जलता हुआ फूस बैठ जाता है, उसी तरह उनकी जड़ बोसीदा होगी और उनकी कली गर्द की तरह उड़ जाएगी; क्यूँकि उन्होंने रब्ब-उल-अफ़वाज की शरी'अत को छोड़ दिया, और इस्राईल के क़ुददूस के कलाम को हक़ीर जाना।
\s5
\v 25 ~इसलिए ख़ुदावन्द का क़हर उसके लोगों पर भड़का, और उसने उनके ख़िलाफ़ अपना हाथ बढ़ाया और उनको मारा; चुनाँचे पहाड़ कॉप गए और उनकी लाशें बाज़ारों में ग़लाज़त की तरह पड़ी हैं। बावजूद इसके उसका क़हर टल नहीं गया बल्कि उसका हाथ अभी बढ़ा हुआ है।
\s5
\v 26 और वह क़ौमों के लिए दूर से झण्डा खड़ा करेगा, और उनको ज़मीन की इन्तिहा से सुसकार कर बुलाएगा; और देख वह ~दौड़े चले आएँगें।
\s5
\v 27 ~न कोई उनमें थकेगा न फिसलेगा, न कोई ऊँघेगा न सोएगा, न उनका कमरबन्द खुलेगा और न उनकी जूतियों का तस्मा टूटेगा।
\v 28 उनके तीर तेज़ हैं और उनकी सब कमानें कशीदा होंगी, उनके घोड़ों के सुम चक़माक़ और उनकी गाड़ियाँ गिर्दबाद की तरह होंगी।
\s5
\v 29 ~वह शेरनी की तरह गरजेंगे,हाँ वह जवान शेरों की तरह दहाड़ेंगे; वह गु़र्रा कर शिकार पकड़ेंगे और उसे बे रोकटोक ले जाएँगे, कोई बचानेवाला न होगा।
\v 30 और उस रोज़ वह उन पर ऐसा शोर मचाएँगे जैसा समन्दर का शोर होता है;~और अगर कोई इस मुल्क पर नज़र करे,~तो बस,~अन्धेरा और तंगहाली है,~और रोशनी उसके बादलों से तारीक हो जाती है।
\s5
\c 6
\p
\v 1 जिस साल में उज़्ज़ियाह बादशाह ने वफ़ात पाई मैंने ख़ुदावन्द को एक बड़ी बुलन्दी पर ऊँचे तख़्त पर बैठे देखा, और उसके लिबास के दामन से हैकल मा'मूर हो गई।
\v 2 ~उसके आस-पास सराफ़ीम खड़े थे, जिनमें से हर एक के छ: बाज़ू थे; और हर एक दो से अपना मुँह ढाँपे था और दो से पाँव और दो से उड़ता था।
\s5
\v 3 और एक ने दूसरे को पुकारा और कहा ,क़ुद्दूस ,क़ुद्दूस, क़ुद्दूस रब्ब-उल-अफ़वाज है; सारी ज़मीन उसके जलाल से मा'मूर है।"
\s5
\v 4 ~और पुकारने वाले की आवाज़ के ज़ोर से आस्तानों की बुनियादें हिल गईं, और मकान धुँवें से भर गया।
\v 5 तब मैं बोल उठा, कि मुझ पर अफ़सोस! मैं तो बर्बाद हुआ! क्यूँकि मेरे होंट नापाक हैं और नजिस लब ~लोगों में बसता हूँ, क्यूँकि मेरी आँखों ने बादशाह रब्ब-उल-अफ़वाज को देखा!”
\s5
\v 6 ~उस वक़्त सराफ़ीम में से एक सुलगा हुआ कोयला जो उसने दस्तपनाह से मज़बह पर से उठा लिया, अपने हाथ में लेकर उड़ता हुआ मेरे पास आया,
\v 7 और उससे मेरे मुँह को छुआ और कहा, "देख, इसने तेरे लबों को छुआ; इसलिए तेरी बदकिरदारी दूर हुई, और तेरे गुनाह का कफ़्फ़ारा हो गया।"
\s5
\v 8 उस वक़्त मैंने ख़ुदावन्द की आवाज़ सुनी जिसने फ़रमाया मैं किसको भेजूँ और हमारी तरफ़ से कौन जाएगा?" तब मैंने 'अर्ज़ की, "मैं हाज़िर हूँ! मुझे भेज।"
\v 9 और उसने फ़रमाया, "जा, और इन लोगों से कह, कि 'तुम सुना करो लेकिन समझो नहीं, तुम देखा करो लेकिन बूझो नहीं।'
\s5
\v 10 ~तू इन लोगों के दिलों को चर्बा दे, और उनके कानों को भारी कर, और उनकी आँखें बन्द कर दे; ऐसा न हो कि वह अपनी आँखों से देखें और अपने कानों से सुनें और अपने दिलों से समझ लें, और बाज़ आएँ और शिफ़ा पाएँ।"
\s5
\v 11 ~तब मैंने कहा, ऐ ख़ुदावन्द ये कब तक? "उसने जवाब दिया, जब तक बस्तियाँ वीरान न हों और कोई बसनेवाला न रहे, और घर बे-चराग़ न हों, और~ज़मीन सरासर उजाड़ न हो जाए;
\v 12 और ख़ुदावन्द आदमियों को दूर कर दे, और इस सरज़मीन में मतरूक मक़ाम बकसरत हों।
\s5
\v 13 ~और अगर उसमें दसवाँ हिस्सा बाक़ी भी बच जाए, तो वह फिर भसम किया जाएगा; लेकिन वह बुत्म और बलूत की तरह होगा कि बावजूद यह कि वह काटे जाएँ तोभी उनका टुन्ड बच रहता है, इसलिए उसका टुन्ड एक मुक़द्दस तुख़्म होगा।"
\s5
\c 7
\p
\v 1 ~और शाह-ए-यहूदाह आख़ज़ बिन यूताम बिन उज़्ज़ियाह के दिनों में यूँ हुआ कि रज़ीन,शाह-ए-इराम फ़िक़ह बिन रमलियाह,शाह-ए-इस्राईल ने यरुशलीम पर चढ़ाई की; लेकिन उस पर ग़ालिब न आ सके।
\v 2 ~उस वक़्त दाऊद के घराने को यह ख़बर दी गई कि अराम इफ़्राईम के साथ मुत्तहिद है इसलिए उसके दिल ने और उसके लोगों के दिलों ने यूँ जुम्बिश खाई, जैसे जंगल के दरख़्त आँधी से जुम्बिश खाते हैं।
\s5
\v 3 तब ख़ुदावन्द ने यसा'याह को हुक्म किया, कि "तू अपने बेटे शियार याशूब को लेकर ऊपर के चश्मे की नहर के सिरे पर, जो धोबियों के मैदान के रास्ते में है, आख़ज़ से मुलाक़ात कर,
\v 4 और उसे कह, 'ख़बरदार हो, और बेक़रार न हो; इन लुक्टियों के दो धुवें वाले टुकड़ों से, या'नी अरामी रज़ीन और रमलियाह के बेटे की क़हरअंगेज़ी से न डर, और तेरा दिल न घबराए।
\s5
\v 5 ~चूँकि अराम और इफ़्राईम और रमलियाह का बेटा तेरे ख़िलाफ़ मश्वरत करके कहते हैं,
\v 6 कि आओ, हम यहूदाह पर चढ़ाई करें और उसे तंग करें, और अपने लिए उसमें रख़ना पैदा करे और ताबील के बेटे को उसके बीच तख़्तनशीन करें।
\s5
\v 7 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है कि इसको पायदारी नहीं, बल्कि ऐसा हो भी नहीं सकता।
\v 8 ~क्यूँकि अराम का दारुस-सल्तनत दमिश्क़ ही होगा, और दमिश्क़ का सरदार रज़ीन; और पैंसठ बरस के अन्दर इफ़्राईम ऐसा कट जाएगा कि क़ौम न रहेगी।
\v 9 इफ़्राईम का भी दारुस-सल्तनत सामरिया ही होगा, और सामरिया का सरदार रमलियाह का बेटा। अगर तुम ईमान न लाओगे तो यक़ीनन तुम भी क़ायम न रहोगे।'
\s5
\v 10 फिर ~ख़ुदावन्द ने आख़ज़ से फ़रमाया,
\v 11 ~ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से कोई निशान तलब कर चाहे नीचे पाताल में चाहे ऊपर बुलन्दी पर।"
\v 12 ~लेकिन आख़ज़ ने कहा, कि मैं तलब नहीं करूँगा और ख़ुदावन्द को नहीं,आज़माऊँगा।”
\s5
\v 13 तब उसने कहा, ऐ दाऊद के खान्दान, अब सुनो क्या तुम्हारा इन्सान को बेज़ार करना कोई हल्की बात है कि मेरे ख़ुदा को भी बेज़ार करोगे?
\v 14 लेकिन ख़ुदावन्द आप तुम को एक निशान बख़्शेगा। देखो, एक कुँवारी हामिला होगी, और बेटा पैदा होगा और वह उसका नाम ' इम्मानुएल रख्खेगी।
\v 15 ~ वह दही और शहद खाएगा, जब तक कि वह नेकी और बदी के रद्द-ओ-क़ुबूल के क़ाबिल न हो।
\s5
\v 16 लेकिन इससे पहले कि ये लड़का नेकी और बदी के रद्द-ओ-क़ुबूल के क़ाबिल हो, ये मुल्क जिसके दोनों बादशाहों से तुझ को नफ़रत है, वीरान हो जाएगा।
\v 17 ~ख़ुदावन्द तुझ पर और तेरे लोगों और तेरे बाप के घराने पर ऐसे दिन लाएगा जैसे उस दिन से जब इफ़्राईम यहूदाह से जुदा हुआ, आज तक कभी न लाया या'नी शाह-ए-असूर के दिन।
\s5
\v 18 और उस वक़्त यूँ होगा कि ख़ुदावन्द मिस्र की नहरों के उस सिरे पर से मक्खियों को, और असूर के मुल्क से ज़म्बूरों को सुसकार कर बुलाएगा।
\v 19 इसलिए वह सब आएँगे और वीरान वादियों में, और चटटानों की दराड़ों में, और सब ख़ारिस्तानों में, और सब चरागाहों में छा जाएँगे।
\s5
\v 20 ~उसी रोज़ ख़ुदावन्द उस उस्तरे से जो दरिया-ए-फ़रात के पार से किराये पर लिया या'नी असूर के बादशाह से, सिर और पाँव के बाल मूण्डेगा और इससे दाढ़ी भी खुर्ची जाएगी।
\v 21 ~और उस वक़्त यूँ होगा कि आदमी सिर्फ़ एक गाय और दो भेड़ें पालेगा,
\v 22 ~और उनके दूध की फ़िरावानी से लोग मक्खन खाएँगे; क्यूँकि हर एक जो इस मुल्क में बच रहेगा मख्खन और शहद ही खाया करेगा |
\s5
\v 23 ~और उस वक़्त यह हालत हो जाएगी कि हर जगह हज़ारों रुपये के बाग़ों की जगह ख़ारदार झाड़ियाँ होंगी।
\v 24 ~लोग तीर और कमाने लेकर वहाँ आयेंगे क्यूँकि तमाम मुल्क काँटों और झाड़ियों से पुर होगा |
\v 25 ~मगर उन सब पहाड़ियों पर जो कुदाली से खोदी जाती थीं, झाड़ियों और काँटों के ख़ौफ़ से तू फिर न चढ़ेगा लेकिन वह गाय बैल और भेड़ बकरियों की चरागाह होंगी।
\s5
\c 8
\p
\v 1 फिर ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, कि एक बड़ी तख़्ती ले और उस पर साफ़ साफ़ लिख महीर शालाल हाश्बज़ के लिए,'
\v 2 और दो दियानतदार गवाहों को या'नी ऊरियाह काहिन को और ज़करियाह बिन यबरकियाह को गवाह बना।"
\s5
\v 3 और मैं नबीय्या के पास गया; तब वह हामिला हुई और बेटा पैदा हुआ। तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, कि उसका नाम महीर-शालाल हाशबज़ रख,
\v 4 क्यूँकि इससे पहले कि ये लड़का अब्बा और अम्मा कहना सीखे दमिश्क़ का माल और सामरिया की लूट को उठवाकर शाह-ए-असूर के सामने ले जाएँगे।"
\s5
\v 5 ~फिर ख़ुदावन्द ने मुझ से फ़रमाया,
\v 6 "चूँकि इन लोगों ने चश्मा-ए-शीलोख़ के आहिस्ता रो पानी को रद्द किया, और रज़ीन और रमलियाह के बेटे पर माइल हुए;
\v 7 इसलिए अब देख, ख़ुदावन्द दरिया-ए-फ़रात के सख़्त शदीद सैलाब को या 'नी शाह-ए-असूर और उसकी सारी शौकत को, इन पर चढ़ा लाएगा; और वह अपने सब नालों पर और अपने सब किनारों से बह निकलेगा;
\s5
\v 8 और वह यहूदाह में बढ़ता चला जाएगा, और उसकी तुग़ियानी बढ़ती जाएगी, वह गर्दन तक पहुँचेगा; और उसके परों के फैलाव से तेरे मुल्क की सारी वुस'अत ऐ इम्मानुएल, छिप जायेगी |
\s5
\v 9 ऐ लोगों, धूम मचाओ, लेकिन तुम टुकड़े-टुकड़े किए जाओगे; और ऐ दूर-दूर के मुल्कों के बाशिन्दो, सुनो: कमर बाँधों, लेकिन तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े किए जाएँगे; कमर बाँधो, लेकिन तुम्हारे पुर्जे़-पुर्जे़ होंगे।
\v 10 तुम मन्सूबा बाँधो, लेकिन वह बातिल होगा; तुम कुछ कहो, और उसे क़याम न होगा; क्यूँकि ख़ुदा हमारे साथ है।
\s5
\v 11 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द ने जब उसका हाथ मुझ पर ग़ालिब हुआ, और इन लोगों के रास्ते में चलने से मुझे मना' किया तो मुझ से यूँ फ़रमाया कि ,
\v 12 "तुम उस सबको जिसे यह लोग साज़िश कहते हैं, साज़िश न कहो, और जिससे वह डरते हैं, तुम न डरो और न घबराओ।
\v 13 तुम रब्ब-उल-अफ़वाज ही को पाक जानो, और उसी से डरो और उसी से ख़ाइफ़ रहो।
\s5
\v 14 ~और वह एक मक़दिस होगा, लेकिन इस्राईल के दोनों घरानों के लिए सदमा और ठोकर का पत्थर, और यरुशलीम के बाशिन्दों के लिए फन्दा और दाम होगा।
\v 15 उनमें से बहुत से उससे ठोकर खायेंगे और गिरेंगे और पाश पाश होंगे, और दाम में फँसेंगे और पकड़े जाएँगे।
\s5
\v 16 ~शहादत नामा बन्द कर दो, और मेरे शागिर्दो के लिए शरी'अत पर मुहर करो।
\v 17 मैं भी ख़ुदावन्द की राह देखूँगा, जो अब या'क़ूब के घराने से अपना मुँह छिपाता है; मैं उसका इन्तिज़ार करूँगा।
\v 18 ~देख, मैं उन लड़कों के साथ जो ख़ुदावन्द ने मुझे बख़्शे, रब्ब-उल-अफ़वाज की तरफ़ से जो सिय्यून पहाड़ में रहता है, बनी-इस्राईल के बीच निशानों और 'अजाइब-ओ-ग़राइब के लिए हूँ।
\s5
\v 19 और जब वह तुमसे कहें, "तुम जिन्नात के यारों और अफ़सूंगरों की जो फुसफुसाते और बड़बड़ाते हैं तलाश करो," तो तुम कहो, "क्या लोगों को मुनासिब नहीं कि अपने ख़ुदा के तालिब हों? क्या ज़िन्दों के बारे में मुर्दों से सवाल करें?”
\v 20 शरी'अत और शहादत पर नज़र करो! अगर वह इस कलाम के मुताबिक़ न बोलें तो उनके लिए सुबह न होगी।
\s5
\v 21 तब वह मुल्क में भूके और ख़स्ताहाल फिरेंगे और यूँ होगा कि जब वह भूके हों तो जान से बेज़ार होंगे, और अपने बादशाह और अपने ख़ुदा पर ला'नत करेंगे और अपने मुँह आसमान की तरफ़ उठाएँगे;
\v 22 ~फिर ज़मीन की तरफ़ देखेंगे और नागहान तंगी और तारीकी, या'नी ज़ुल्मत-ए-अन्दोह और तीरगी में खदेड़े जाएँगें।
\s5
\c 9
\p
\v 1 ~लेकिन अन्दोहगीन की तीरगी जाती रहेगी। उसने पिछले ज़माने में ज़बूलून और नफ़्ताली के 'इलाक़ों को ज़लील किया, लेकिन आख़िरी ज़माने में क़ौमों के ग़लील में दरिया की तरफ़ यरदन के पार बुज़ुर्गी देगा।
\v 2 जो लोग तारीकी में चलते थे उन्होंने बड़ी रोशनी देखी, जो मौत के साये के मुल्क में रहते थे, उन पर नूर चमका।
\s5
\v 3 तूने क़ौम को बढ़ाया, तूने उनकी शादमानी को ज़्यादा किया; वह तेरे सामने ऐसे ख़ुश हैं, जैसे फ़सल काटते वक़्त और ग़नीमत की तक़सीम के वक़्त लोग ख़ुश होते हैं।
\s5
\v 4 क्यूँकि तूने उनके बोझ के जूए, उनके कन्धे के लठ, और उन पर ज़ुल्म करनेवाले की लाठी को ऐसा तोड़ा है जैसा मिदियान के दिन में किया था।
\v 5 क्यूँकि जंग में मुसल्लह मर्दों के तमाम सिलाह और ख़ून आलूदा कपड़े जलाने के लिए आग का ईन्धन होंगे।
\s5
\v 6 इसलिए हमारे लिए एक लड़का तवल्लुद हुआ और हम को एक बेटा बख़्शा गया, और सल्तनत उसके कंधे पर होगी, उसका नाम 'अजीब सलाहकार ख़ुदा-ए-क़ादिर अब्दियत ~का बाप, सलामती का शहज़ादा होगा।
\v 7 ~उसकी सल्तनत के इक़बाल और सलामती की कुछ इन्तिहा न होगी, वह दाऊद के तख़्त और उसकी ममलुकत पर आज से हमेशा तक हुक्मरान रहेगा और 'अदालत और सदाक़त से उसे क़याम बख़्शेगा रब्ब-उल-अफ़्वाज की ग़य्यूरी ये करेगी|
\s5
\v 8 ~ख़ुदावन्द ने या'क़ूब के पास पैग़ाम भेजा, और वह इस्राईल पर नाज़िल हुआ;
\v 9 ~और सब लोग मा'लूम करेंगे, या'नी बनी इफ़्राईम और अहल-ए-सामरिया जो तकब्बुर और सख़्त दिली से कहते हैं,
\v 10 कि ईंटें गिर गईं लेकिन हम तराशे हुए पत्थरों की 'इमारत बनायेंगे गूलर के दरख़्त काटे गए, लेकिन हम देवदार लगाएँगे।"
\s5
\v 11 इसलिए ख़ुदावन्द रज़ीन की मुख़ालिफ़ गिरोहों को उन पर चढ़ा लाएगा, और उनके दुश्मनों को ख़ुद मुसल्लह करेगा।
\v 12 ~आगे अरामी होंगे और पीछे फ़िलिस्ती, और वह मुँह फैलाकर इस्राईल को निगल जाएँगे; बावजूद इसके उसका क़हर टल नहीं गया, बल्कि उसका हाथ अभी बढ़ा हुआ है।
\s5
\v 13 तोभी लोग अपने मारनेवाले की तरफ़ न फिरे और रब्ब-उल-अफ़वाज के तालिब न हुए।
\v 14 इसलिए ख़ुदावन्द इस्राईल के सिर और दुम और ख़ास-ओ-'आम को एक ही दिन में काट डालेगा।
\v 15 ~बुज़ुर्ग और 'इज़्ज़तदार आदमी सिर है और जो नबी झूठी बातें सिखाता है वही दुम है;
\s5
\v 16 क्यूँकि जो इन लोगों के पेशवा हैं इनसे ख़ताकारी कराते हैं और उनके पैरौ निगले जाएँगे।
\v 17 ख़ुदावन्द उनके जवानों से ख़ुशनूद न होगा और वह उनके यतीमों और उनकी बेवाओं पर कभी रहम न करेगा क्यूँकि उनमें हर एक बेदीन और बदकिरदार है और हर एक मुँह हिमाक़त उगलता है बावजूद इसके उसका क़हर टल नहीं गया बल्कि उसका हाथ अभी बढ़ा हुआ है|
\s5
\v 18 क्यूँकि शरारत आग की तरह जलाती है, वह ख़स-ओ-ख़ार को खा जाती है; बल्कि वह जंगल की गुन्जान झाड़ियों में शोलाज़न होती है, और वह धुंवें के बादल में ऊपर को उड़ जाती है।
\v 19 रब्ब-उल-अफ़वाज~के क़हर से ये मुल्क जलाया गया, और लोग ईन्धन की तरह हैं; कोई अपने भाई पर रहम नहीं करता।
\s5
\v 20 ~और कोई दहनी तरफ़ से छीनेगा लेकिन भूका रहेगा, और वह बाएँ तरफ़ से खाएगा लेकिन सेर न होगा; उनमें से हर एक आदमी अपने बाज़ू का गोश्त खाएगा;
\v 21 मनस्सी इफ़्राईम का और इफ़्राईम मनस्सी का और वह ~मिलकर यहूदाह के मुख़ालिफ़ होंगे। बावजूद इसके उसका क़हर टल नहीं गया बल्कि उसका हाथ अभी बढ़ा हुआ है।
\s5
\c 10
\p
\v 1 उन पर अफ़सोस जो बे इन्साफ़ी से फ़ैसले करते हैं और उन पर जो ज़ुल्म की रूबकारें लिखते हैं;
\v 2 ताकि ग़रीबों को 'अदालत से महरूम करें, और जो मेरे लोगों में मोहताज हैं उनका हक़ छीन लें, और बेवाओं को लूटें, और यतीम उनका शिकार हों!
\s5
\v 3 इसलिए तुम मुताल्बे के दिन और उस ख़राबी के दिन, जो दूर से आएगी क्या करोगे? तुम मदद के लिए किसके पास दौड़ोगे? और तुम अपनी शौकत कहाँ रख छोड़ोगे?
\v 4 वह क़ैदियों में घुसेंगे और मक़तूलों के नीचे छिपेंगे।~बावजूद इसके उसका क़हर टल नहीं गया बल्कि उसका हाथ अभी बढ़ा हुआ है।
\s5
\v 5 असूर या'नी मेरे क़हर की लाठी पर अफ़सोस! जो लठ उसके हाथ में है, वह मेरे क़हर का हथियार है।
\v 6 मैं उसे एक रियाकार क़ौम पर भेजूंगा, और उन लोगों की मुख़ालिफ़त में जिन पर मेरा क़हर है; मैं उसे हुक्म-ए- क़तई दूँगा कि माल लूटे और ग़नीमत ले ले, और उनको बाज़ारों की कीचड़ की तरह लताड़े।
\s5
\v 7 ~लेकिन उसका ये ख़याल नहीं है, और उसके दिल में ये ख़्वाहिश नहीं कि ऐसा करे; बल्कि उसका दिल ये चाहता है कि क़त्ल करे और बहुत सी क़ौमों को काट डाले।
\v 8 क्यूँकि वह कहता है, "क्या मेरे हाकिम सब के सब बादशाह नहीं?
\v 9 ~क्या कलनो करकिमीस की तरह नहीं और हमात अरफ़ाद की तरह नहीं और सामरिया दमिश्क़ की तरह नहीं है?
\s5
\v 10 जिस तरह मेरे हाथ ने बुतों की ममलुकतें हासिल कीं, जिनकी खोदी हुई मूरतें यरुशलीम और सामरिया की मूरतों से कहीं बेहतर थीं;
\v 11 क्या जैसा मैंने सामरिया से और उसके बुतों से किया, वैसा ही यरुशलीम और उसके बुतों से न करूँगा?"
\s5
\v 12 ~लेकिन यूँ होगा कि जब ख़ुदावन्द सिय्यून पहाड़ पर और यरुशलीम में अपना सब काम कर चुकेगा, तब वह फ़रमाता है)मैं शाह-ए-असूर को उसके गुस्ताख़ दिल के समरह की और उसकी बुलन्द नज़री और घमण्ड की सज़ा दूँगा।
\v 13 क्यूँकि वह कहता है, "मैंने अपने बाज़ू की ताक़त से और अपनी 'अक़्ल से ये किया है, क्यूँकि मैं 'अक़्लमन्द हूँ, हाँ, मैंने क़ौमों की हदों को सरका दिया और उनके ख़ज़ाने लूट लिए, और मैंने जंगी मर्द की तरह तख़्त नशीनों को उतार दिया।
\s5
\v 14 मेरे हाथ ने लोगों की दौलत को घोंसले की तरह पाया, और जैसे कोई उन अण्डों को जो मतरूक पड़े हों समेट ले, वैसे ही मैं सारी ज़मीन पर क़ाबिज़ हुआ और किसी को ये हिम्मत न हुई कि पर हिलाए या चोंच खोले या चहचहाये~|
\s5
\v 15 क्या कुल्हाड़ा उसके रू-ब-रू जो उससे काटता है लाफ़ज़नी करेगा अर्राकश के सामने शेख़ी मारेगा जैसे 'असा अपने उठानेवाले को हरकत देता है और छड़ी आदमी को उठाती है।
\v 16 ~इस वजह से ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज उसके फ़र्बा जवानों पर लाग़री भेजेगा और उसकी शौकत के नीचे एक सोज़िश आग की सोज़िश की तरह भड़काएगा।
\s5
\v 17 बल्कि इस्राईल का नूर ही आग बन जाएगा और उसका क़ुद्दूस एक शो'ला होगा, और वह उसके ख़स-ओ-ख़ार को एक दिन में जलाकर भसम कर देगा।
\v 18 और उसके बन और बाग़ की ख़ुशनुमाई को बिल्कुल बर्बाद-ओ-हलाक कर देगा" और वह ऐसा हो जाएगा जैसा कोई मरीज़ जो ग़श खाए।
\v 19 और उसके बाग़ के दरख़्त ऐसे थोड़े बाक़ी बचेंगे कि एक लड़का भी उनको गिन कर लिख ले।
\s5
\v 20 और उस वक़्त यूँ होगा कि वह जो बनी इस्राईल में से बाक़ी रह जाएँगे और या'क़ूब के घराने में से बच रहेंगे, उस पर जिसने उनको मारा फिर भरोसा न करेंगे; बल्कि ख़ुदावन्द इस्राईल के क़ुद्दूस पर सच्चे दिल से भरोसा करेंगे।
\v 21 एक बक़िया या'नी या'क़ूब का बक़िया ख़ुदा-ए-क़ादिर की तरफ़ फिरेगा।
\s5
\v 22 क्यूँकि ऐ इस्राईल, तेरे लोग समन्दर की रेत की तरह हों, तोभी उनमें का सिर्फ़ एक बक़िया वापस आएगा; बर्बादी पूरे 'अद्ल से मुक़र्रर हो चुकी है।
\v 23 क्यूँकि ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज मुक़र्ररा बर्बादी तमाम इस ज़मीन पर ज़ाहिर करेगा।
\s5
\v 24 ~लेकिन~ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज~फ़रमाता है ऐ~मेरे लोगो, जो सिय्यून में बसते हो असूर से न डरो, अगरचे कि वह तुमको लठ से मारे और मिस्र की तरह तुम पर अपना 'असा उठाए |
\v 25 लेकिन थोड़ी ही देर है कि जोश-ओ-ख़रोश ख़त्म होगा और उनकी हलाकत से मेरे क़हर की तस्कीन होगी।
\s5
\v 26 क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज मिदियान की ख़ूँरेज़ी के मुताबिक़ जो 'ओरेब की चट्टान पर हुई, उस पर एक कोड़ा उठाएगा; उसका 'असा समन्दर पर होगा, हाँ वह उसे मिस्र की तरह उठाएगा।
\v 27 ~और उस वक़्त यूँ होगा कि उसका बोझ तेरे कंधे पर से और उसका बोझ तेरी गर्दन पर से उठा लिया जाएगा और वह बोझ मसह की वजह से तोड़ा जाएगा।"
\s5
\v 28 ~वह अय्यात में आया है, मज्रून में से होकर गुज़र गया; उसने अपना अस्बाब मिकमास में रख्खा
\v 29 वह घाटी से पार गए उन्होंने जिब'आ में रात काटी, रामा परेशान है; जिब'आ-ए-साऊल भाग निकला है।
\s5
\v 30 ऐ जल्लीम की बेटी, चीख़ मार! ऐ ग़रीब 'अन्तोत, अपनी आवाज़ लईस को सुना!
\v 31 मदमीना चल निकला, जेबीम के रहने वाले निकल भागे।
\v 32 ~ वह आज के दिन नोब में ख़ेमाज़न होगा तब वह दुख़्तर-ए-सिय्यून के पहाड़ या'नी कोह-ए-यरुशलीम पर हाथ उठा कर धमकाएगा।
\s5
\v 33 देखो, ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज हैबतनाक तौर से मार कर शाख़ों को छाँट डालेगा; क़द्दावर काट डाले जाएँगें और बलन्द पस्त किए जाएँगे।
\v 34 ~और वह जंगल की गुन्जान झाड़ियों को लोहे से काट डालेगा, और लुबनान एक ज़बरदस्त के हाथ से गिर जाएगा।
\s5
\c 11
\p
\v 1 ~और यस्सी के तने से एक कोंपल निकलेगी और उसकी जड़ों से एक बारआवर शाख़ पैदा होगी।
\v 2 और ख़ुदावन्द की रूह उस पर ठहरेगी हिकमत और ख़िरद की रूह, मसलहत और क़ुदरत की रूह, मा'रिफ़त और ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ की रूह।
\s5
\v 3 और उसकी शादमानी ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ में होगी। और वह न अपनी आँखों के देखने के मुताबिक़ इन्साफ़ करेगा, और न अपने कानों के सुनने के मुवाफ़िक़ फ़ैसला करेगा;
\v 4 बल्कि वह रास्ती से ग़रीबों का इन्साफ़ करेगा, और 'अद्ल से ज़मीन के ख़ाकसारों का फ़ैसला करेगा; और वह अपनी ज़बान के 'असा से ज़मीन को मारेगा, और अपने लबों के दम से शरीरों को फ़ना कर डालेगा।
\v 5 ~उसकी कमर का पटका रास्तबाज़ी होगी और उसके पहलू पर वफ़ादारी का पटका होगा।
\s5
\v 6 तब भेड़िया बर्रे के साथ रहेगा, और चीता बकरी के बच्चे के साथ बैठेगा, और बछड़ा और शेर बच्चा और पला हुआ बैल पेशरवी करेगा।
\v 7 गाय और रीछनी मिलकर चरेंगी उनके बच्चे इकट्ठे बैठेंगे और शेर-ए-बबर बैल की तरह भूसा खाएगा।
\s5
\v 8 और दूध पीता बच्चा सॉंप के बिल के पास खेलेगा, और वह लड़का जिसका दूध छुड़ाया गया हो अफ़ई के बिल में हाथ डालेगा।
\v 9 वह मेरे तमाम पाक पहाड़ पर न नुक़्सान पहुँचाएँगें न हलाक करेंगे क्यूँकि जिस तरह समन्दर पानी से भरा है उसी तरह ज़मीन ख़ुदावन्द के इरफ़ान से मा'मूर होगी।
\s5
\v 10 और उस वक़्त यूँ होगा कि लोग यस्सी की उस जड़ के तालिब होंगे, जो लोगों के लिए एक निशान है; और उसकी आरामगाह जलाली होगी।
\v 11 उस वक़्त यूँ होगा कि ख़ुदावन्द दूसरी मर्तबा अपना हाथ बढ़ाएगा कि अपने लोगों का बक़िया या जो बच रहा हो, असूर और मिस्र और फ़त्रूस और कूश और इलाम और सिन'आर और हमात और समन्दर की अतराफ़ से वापस लाए।
\s5
\v 12 और वह क़ौमों के लिए एक झंडा खड़ा करेगा और उन इस्राईलियों को जो ख़ारिज किए गए हों जमा' करेगा; और सब बनी यहूदाह को जो तितर बितर होंगे, ज़मीन के चारों तरफ़ से इकठ्ठा करेगा।
\v 13 तब बनी इफ़्राईम में हसद न रहेगा और बनी यहूदाह के दुश्मन काट डाले जाएँगे, बनी इफ़्राईम बनी यहूदाह पर हसद न करेंगे और बनी यहूदाह बनी इफ़्राईम से कीना न रख्खेंगे।
\s5
\v 14 और वह पश्चिम की तरफ़ फ़िलिस्तियों के कंधों पर झपटेंगे, और वह मिलकर पूरब के बसनेवालों को लूटेंगे, और अदोम और मोआब पर हाथ डालेंगे; और बनी 'अम्मोन उनके फ़रमाबरदार होंगे।
\v 15 तब ख़ुदावन्द बहर-ए-मिस्र की ख़लीज को बिल्कुल हलाक कर देगा, और अपनी बाद-ए-समूम से दरिया-ए-फ़रात पर हाथ चलाएगा और उसको सात नाले कर देगा, ऐसा करेगा कि लोग जूते पहने हुऐ पार चले जाएँगे।
\s5
\v 16 और उसके बाक़ी लोगों के लिए जो असूर में से बच रहेंगे, एक ऐसी शाहराह होगी जैसी बनी-इस्राईल के लिए थी, जब वह मुल्क-ए-मिस्र से निकले।
\s5
\c 12
\p
\v 1 और उस वक़्त तू कहेगा, ऐ ख़ुदावन्द मैं तेरी तम्जीद करूँगा; कि अगरचे तू मुझ से नाख़ुश था, तोभी तेरा क़हर टल गया और तूने मुझे तसल्ली दी।
\v 2 "देखो, ख़ुदा मेरी नजात है; मैं उस पर भरोसा करूँगा और न डरूँगा, क्यूँकि याह-यहोवाह मेरा ज़ोर और मेरा सरोद है और वह मेरी नजात हुआ है।"
\s5
\v 3 फिर तुम ख़ुश होकर नजात के चश्मों से पानी भरोगे।
\v 4 और उस वक़्त तुम कहोगे, ख़ुदावन्द की तम्जीद करो, उससे दू'आ करो लोगों के बीच उसके कामों का बयान करो, और कहो कि उसका नाम बुलन्द है।
\s5
\v 5 ~ख़ुदावन्द की मदह सराई करो; क्यूँकि उसने जलाली काम किये जिनको तमाम दुनिया जानती है |
\v 6 ऐ सिय्यून की बसनेवाली, तू चिल्ला और ललकार; क्यूँकि तुझमें इस्राईल का क़ुद्दूस बुज़ुर्ग है।"
\s5
\c 13
\p
\v 1 ~बाबुल के बारे में नबुव्वत जो यसा'याह-बिन-आमूस ने ख़्वाब में पाया।
\v 2 तुम नंगे पहाड़ पर एक झण्डा खड़ा करो, उनको बुलन्द आवाज़ से पुकारो और हाथ से इशारा करो कि वह सरदारों के दरवाज़ों के अन्दर जाएँ।
\v 3 मैंने अपने मख़्सूस लोगों को हुक्म किया; मैंने अपने बहादुरों को जो मेरी ख़ुदावन्दी से मसरूर हैं, बुलाया है कि वह मेरे क़हर को अन्जाम दें।
\s5
\v 4 ~पहाड़ों में एक हुजूम का शोर है, जैसे बड़े लश्कर का ! ममलुकत की क़ौमों के इजितमा'अ का ग़ोग़ा है। रब्ब-उल-अफ़वाज जंग के लिए लश्कर जमा' करता है|
\v 5 वह दूर मुल्क से आसमान की इन्तिहा से आते हैं, हाँ ख़ुदावन्द और उसके क़हर के हथियार, ताकि तमाम मुल्क को बर्बाद करें।
\s5
\v 6 ~अब तुम वावैला करो, क्यूँकि ख़ुदावन्द का दिन नज़दीक है; वह क़ादिर-ए-मुतलक़ की तरफ़ से बड़ी हलाकत की तरह आएगा।
\v 7 इसलिए सब हाथ ढीले होंगे, और हर एक का दिल पिघल जाएगा",
\v 8 और वह परेशान होंगे जाँकनी और ग़मगीनी उनको आ लेगी वह ऐसे दर्द में मुब्तिला होंगे जैसे 'औरत ज़िह की हालत में। वह सरासीमा होकर एक दूसरे का मुँह देखेंगे, और उनके चहरे शो'लानुमा होंगे।
\s5
\v 9 ~देखो ख़ुदावन्द का वह दिन आता है जो ग़ज़ब में और क़हर-ए-शदीद में सख़्त दुरुस्त हैं, ताकि मुल्क को वीरान करे और गुनाहगारों को उस पर से बर्बाद-ओ-हलाक कर दे।
\v 10 क्यूँकि आसमान के सितारे और कवाकिब बेनूर हो जायेंगे, और सूरज तुलू' होते होते तारीक हो जाएगा और चाँद अपनी रोशनी न देगा।
\s5
\v 11 और मैं जहान को उसकी बुराई की वजह से, और शरीरों को उनकी बदकिरदारी की सज़ा दूँगा; और मैं मग़रूरों का गु़रूर हलाक और हैबतनाक लोगों का घमण्ड पस्त कर दूँगा।
\v 12 मैं आदमी को ख़ालिस सोने से, बल्कि इन्सान को ओफ़ीर के कुन्दन से भी कमयाब बनाऊँगा।
\s5
\v 13 इसलिए मैं आसमानों को लरज़ाऊँगा, और रब्ब-उल-अफ़वाज के ग़ज़ब से और उसके क़हर-ए-शदीद के रोज़ ज़मीन अपनी जगह से झटकी जाएगी।
\v 14 और यूँ होगा कि वह खदेड़े हुए आहू, और लावारिस भेड़ों की तरह होंगे; उनमें से हर एक अपने लोगों की तरफ़ मुतवज्जिह होगा, और हर एक अपने वतन को भागेगा।
\s5
\v 15 हर एक जो मिल जाए आर-पार छेदा जाएगा, और हर एक जो पकड़ा जाए तलवार से क़त्ल किया जाएगा।
\v 16 और उनके बाल बच्चे उनकी आँखों के सामने पार-पारा होंगे; उनके घर लूटे जाएँगे, और उनकी 'औरतों की बेहुरमती होगी।
\s5
\v 17 देखो मैं मादियों को उनके ख़िलाफ़ बरअंगेख़ता ~करूँगा, जो चाँदी को ख़ातिर में नहीं लाते और सोने से ख़ुश नहीं होते।
\v 18 उनकी कमानें जवानों को टुकड़े-टुकड़े कर डालेंगी और वह शीरख़्वारों पर तरस न खाएँगे, और छोटे बच्चों पर रहम की नज़र न करेंगे।
\s5
\v 19 और बाबुल जो ममलुकतों की हशमत और कस्दियों की बुज़ुर्गी की रोनक़ है सदूम और 'अमूरा की तरह हो जाएगा जिनको ख़ुदा ने उलट दिया।
\v 20 वह हमेशा तक आबाद न होगा और नसल-दर-नसल उसमें कोई न बसेगा; हरगिज़ 'अरब खे़में न लगाएँगे, वहाँ गड़रिये गल्लों को न भटकायेंगे
\s5
\v 21 लेकिन जंगल के जंगली दरिन्दे वहाँ बैठेगे और उनके घरों में उल्लू भरे होंगे; वहाँ शुतरमुर्ग़ बसेंगे, और छगमानस वहाँ नाचेंगे।
\v 22 और गीदड़ उनके 'आलीशान मकानों में और भेड़िये उनके रंगमहलों में चिल्लाएँगे; उसका वक़्त नज़दीक आ पहुँचा है, और उसके दिनों को अब तूल नहीं होगा।
\s5
\c 14
\p
\v 1 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द या'क़ूब पर रहम फ़रमाएगा, बल्कि वह इस्राईल को भी बरगुज़ीदा करेगा और उनको उनके मुल्क में फिर क़ायम करेगा और परदेसी उनके साथ मेल करेंगे और या'क़ूब के घराने से मिल जाएँगे"।
\v 2 ~और लोग उनको लाकर उनके मुल्क में पहुंचाएगे और ~इस्राईल का घराना ख़ुदावन्द की सरज़मीन में उनका मालिक होकर उनको गु़लाम और लौंडियाँ बनाएगा क्यूँकि वह अपने ग़ुलाम करने वालों को ग़ुलाम करेंगे, और अपने ज़ुल्म करने वालों पर हुकूमत करेंगे।
\s5
\v 3 और यूँ होगा कि जब ख़ुदावन्द तुझे तेरी मेहनत-ओ-मशक़्क़त से, और सख़्त ख़िदमत से जो उन्होंने तुझ से कराई, राहत बख़्शेगा,
\v 4 तब तू शाह-ए-बाबुल के ख़िलाफ़ यह मसल लाएगा और कहेगा, कि 'ज़ालिम कैसा हलाक हो गया, और ग़ासिब कैसा हलाक हुआ।
\s5
\v 5 ख़ुदावन्द ने शरीरों का लठ, या'नी ~बेइन्साफ़ हाकिमों का 'असा तोड़ डाला;
\v 6 वही जो लोगों को क़हर से मारता रहा और क़ौमों पर ग़ज़ब के साथ हुक्मरानी करता रहा, और कोई रोक न सका।
\s5
\v 7 सारी ज़मीन पर आराम-ओ-आसाइश है, वह अचानक गीत गाने लगते हैं।
\v 8 हाँ, सनोबर के दरख़्त और लुबनान के देवदार तुझ पर यह कहते हुए ख़ुशी करते हैं, कि 'जब से तू गिराया गया, तब से कोई काटनेवाला हमारी तरफ़ नहीं आया।'
\v 9 पाताल नीचे से तेरी वजह से जुम्बिश खाता है कि तेरे आते वक़्त तेरा इस्तक़बाल करे; वह तेरे लिए मुर्दों को या'नी ज़मीन के सब सरदारों को जगाता है; वह क़ौमों के सब बादशाहों को उनके तख़्तों पर से उठा खड़ा करता है|
\s5
\v 10 वह सब तुझ से कहेंगे, क्या तू भी हमारी तरह 'आजिज़ हो गया; तू ऐसा हो गया जैसे हम हैं?'
\v 11 तेरी शान-ओ-शौकत और तेरे साज़ों की ख़ुश आवाज़ी पाताल में उतारी गई; ~तेरे नीचे कीड़ों का फ़र्श हुआ, और कीड़े ही तेरा बालापोश बने।
\s5
\v 12 ~ऐ सुबह ~के सितारे, तू क्यूँकर आसमान से गिर पड़ा। ऐ क़ौमों को पस्त करनेवाले, तू क्यूँकर ज़मीन पर पटका गया!
\v 13 तू तो अपने दिल में कहता था, मैं आसमान पर चढ़ जाऊँगा; मैं अपने तख़्त को ख़ुदा के सितारों से भी ऊँचा करूँगा, और मैं उत्तरी अतराफ़ में जमा'अत के पहाड़ पर बैठूँगा;
\v 14 मैं बादलों से भी ऊपर चढ़ जाऊँगा, मैं ख़ुदा त'आला की तरह हूँगा।'
\s5
\v 15 लेकिन तू पाताल में गढ़े की तह में उतारा जाएगा।
\v 16 और जिनकी नज़र तुझ पर पड़ेगी, तुझे ग़ौर से देखकर कहेंगे, 'क्या यह वही शख़्स है जिसने ज़मीन को लरज़ाया और ममलुकतों को हिला दिया;
\v 17 जिसने जहान को वीरान किया और उसकी बस्तियाँ उजाड़ दीं, जिसने अपने ग़ुलामों को आज़ाद न किया कि घर की तरफ़ जाएँ?"
\s5
\v 18 क़ौमों के तमाम बादशाह सब के सब अपने अपने घर में शौकत के साथ आराम करते हैं,
\v 19 लेकिन तू अपनी क़ब्र से बाहर, निकम्मी शाख़ की तरह निकाल फेंका गया; तू उन मक़तूलों के नीचे दबा है जो तलवार से छेदे गए और गढ़े के पत्थरों पर गिरे हैं, उस लाश की तरह जो पाँवों से लताड़ी गई हो।
\v 20 तू उनके साथ कभी क़ब्र में दफ़न न किया जाएगा, क्यूँकि तूने अपनी ममलुकत को वीरान किया और अपनी र'अय्यत को क़त्ल किया, "बदकिरदारों की नस्ल का नाम बाक़ी न रहेगा।
\s5
\v 21 ~उसके फ़र्ज़न्दों के लिए उनके बाप दादा के गुनाहों की वजह से क़त्ल का सामान तैयार करो, ताकि वह फिर उठ कर मुल्क के मालिक न हो जाएँ और इस ज़मीन को शहरों से मा'मूर न करें।”
\v 22 क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़्वाज~फ़रमाता है, मैं उनकी मुख़ालिफ़त को उठूँगा, और मैं बाबुल का नाम मिटाऊँगा और उनको जो बाक़ी हैं, बेटों और पोतों के साथ काट डालूँगा; यह ~ख़ुदावन्द का फ़रमान है।
\v 23 ~रब्ब-उल-अफ़्वाज फरमाता है मैं उसे ख़ार पुश्त की मीरास और तालाब बना दूँगा और उसे फ़ना के झाड़ू से साफ़ कर दूँगा।"
\s5
\v 24 ~रब्ब-उल-अफ़्वाज~क़सम खाकर फ़रमाता है, कि यक़ीनन जैसा मैंने चाहा वैसा ही हो जाएगा; और जैसा मैंने इरादा किया है, वही वजूद में आयेगा |
\v 25 मैं अपने ही मुल्क में असूरी को शिकस्त दूँगा, और अपने पहाड़ों पर उसे पाँव तले लताड़ूँगा; तब उसका जूआ उन पर से उतरेगा, और उसका बोझ उनके कंधों पर से टलेगा।"
\s5
\v 26 सारी दुनिया के ज़रिए' यही है, और सब क़ौमों पर यही हाथ बढ़ाया गया है।
\v 27 क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़्वाज~ने इरादा किया है, कौन उसे बातिल करेगा? और उसका हाथ बढ़ाया गया है, उसे कौन रोकेगा?
\s5
\v 28 जिस साल आख़ज़ बादशाह ने वफ़ात पाई उसी साल यह बार-ए-नबुव्वत आया :
\v 29 "ऐ कुल फ़िलिस्तीन, तू इस पर ख़ुश न हो कि तुझे मारने वाला लठ टूट गया; क्यूँकि साँप की अस्ल से एक नाग निकलेगा, और उसका फल एक उड़नेवाला आग का साँप होगा।
\v 30 तब ग़रीबों के पहलौठे खाएँगे, और मोहताज आराम से सोएँगे; लेकिन मैं तेरी जड़ काल से बर्बाद कर दूँगा, और तेरे बाक़ी लोग क़त्ल किए जाएँगे।
\s5
\v 31 ऐ फाटक, तू वावैला कर; ऐ शहर, तू चिल्ला; ऐ फ़िलिस्तीन, तू बिल्कुल गुदाज़ हो गई! क्यूँकि उत्तर से एक धुंवा उठेगा और उसके लश्करों में से कोई पीछे न रह जाएगा।"
\v 32 उस वक़्त क़ौम के क़ासिदों को कोई क्या जवाब देगा? कि 'ख़ुदावन्द ने सिय्यून को ता'मीर किया है, और उसमें उसके ग़रीब बन्दे पनाह लेंगे।”
\s5
\c 15
\p
\v 1 मुआब के बारे में नबुव्वत: एक ही रात में 'आर-ए-मोआब ख़राब और हलाक हो गया; एक ही रात में क़ीर-ए-मोआब ख़राब और हलाक हो गया।
\v 2 बैत और दीबोन ऊँचे मक़ामों पर रोने के लिए चढ़ गए हैं; नबू और मीदबा पर अहल-ए-मोआब वावैला करते हैं; उन सब के सिर मुण्डाए गए और हर एक की दाढ़ी काटी गई।
\s5
\v 3 ~वह अपनी राहों में टाट का कमरबन्द बाँधते हैं, और अपने घरों की छतों पर और बाज़ारों में नौहा करते हुए सब के सब ज़ार ज़ार रोते हैं।
\v 4 हस्बोन और इल्या'ला वावैला करते हैं उनकी आवाज़ यहज़ तक सुनाई देती है; इस पर मोआब के मुसल्लह सिपाही चिल्ला चिल्ला कर रोते हैं~उसकी जान उसमें थरथराती है।
\s5
\v 5 मेरा दिल मोआब के लिए फ़रियाद करता उसके भागने वाले ज़ुगर तक 'अजलत शलेशियाह तक पहुँचे हाँ वह ~लूहीत की चढ़ाई पर रोते हुए चढ़ जाते, और होरोनायम की राह में हलाकत पर वावैला करते हैं।
\v 6 क्यूँकि निमरियम की नहरें ख़राब हो गईं क्यूँकि घास कुम्ला गई और सब्ज़ा मुरझा गया और रोयदगी का नाम न रहा।
\v 7 इसलिए वह फ़िरावान माल जो उन्होंने हासिल किया था, और ज़ख़ीरा जो उन्होंने रख छोड़ा था, बेद की नदी के पार ले जाएँगे।
\s5
\v 8 क्यूँकि फ़रियाद मोआब की सरहदों तक और उनका नौहा इजलाइम तक और उनका मातम बैर एलीम तक पहुँच गया है।
\v 9 क्यूँकि ~दीमोन की नदियाँ ख़ून से भरी हैं मैं दीमोन पर ज़्यादा मुसीबत लाऊँगा क्यूँकि उस पर जो मोआब में से बचकर भागेगा और उस मुल्क के बाक़ी लोगों पर एक शेर-ए-बबर भेजूँगा |
\s5
\c 16
\p
\v 1 सिला' से वीराने ~की राह दुख़्तर-ए-सिय्यून के पहाड़ पर मुल्क के हाकिम के पास बर्रे भेजो।
\v 2 क्यूँकि अरनून के घाटों पर मोआब की बेटियाँ, आवारा परिन्दों और उनके तितर बितर बच्चों की तरह होंगी।
\s5
\v 3 सलाह दो, इन्साफ़ करो, अपना साया, दोपहर को रात की तरह बनाओ; जिलावतनों को पनाह दो; फ़रारियों को हवाले न करो।
\v 4 मेरे जिलावतन तेरे साथ रहें, तू मोआब को ग़ारतगरों से छिपा ले; क्यूँकि सितमगर ख़त्म होंगे और ग़ारतगरी तमाम हो जाएगी और सब ज़ालिम मुल्क से फ़ना होंगे।
\s5
\v 5 यूँ तख़्त रहमत से क़ायम न होगा, और एक शख़्स रास्ती से दाऊद के ख़ेमे में उस पर जुलूस फ़रमा कर 'अद्ल की पैरवी करेगा, और रास्तबाज़ी पर मुस्त'इद रहेगा|
\s5
\v 6 हम ने मोआब के घमण्ड के ज़रिए' सुना है कि वह बड़ा घमण्डी है; उसका तकब्बुर और घमण्ड और क़हर भी सुना है, उसकी शेख़ी हेच है।
\v 7 इसलिए मोआब वावैला करेगा, मोआब के लिए हर एक वावैला करेगा; क़ीर हिरासत की किशमिश की टिक्कियों पर तुम सख़्त तबाह हाली में मातम करोगे।
\s5
\v 8 क्यूँकि हस्बोन के खेत सूख गए, क़ौमों के सरदारों ने सिबमाह की ताक की बहतरीन शाख़ों को तोड़ डाला; वह या'ज़ेर तक बढ़ीं, वह जंगल में भी फैलीं; उसकी शाख़ें दूर तक फैल गईं, वह दरिया पार गुज़री।
\s5
\v 9 ~फिर मैं या'ज़ेर के आह-ओ-नाले से सिबमाह की ताक के लिए ज़ारी करूँगा ऐ हस्बून ऐ इलीया'लाह मैं तुझे अपने आँसुओं से तर कर दूँगा, क्यूँकि तेरे दिनों गर्मीं ~के मेवों और ग़ल्ले की फ़सल को ग़ोग़ा-ए-जंग ने आ लिया;
\v 10 और शादमानी छीन ली गई और हरे भरे खेतों की ख़ुशी जाती रही; और ताकिस्तानों में गाना और ललकारना बन्द हो जाएगा; पामाल करनेवाले अंगूरों को फिर हौज़ों में पामाल न करेंगे; मैंने अंगूर की फ़सल के ग़ल्ले को ख़त्म कर दिया।
\s5
\v 11 इसलिए मेरा अन्दरून मोआब पर और मेरा दिल कीर हारस पर बरबत की तरह फ़ुग़ा खेज़ है।
\v 12 ~और यूँ होगा कि जब मोआब हाज़िर हो और ऊँचे मक़ाम पर अपने आपको थकाए बल्कि अपने मा'बद में जाकर दु'आ करे, उसे कुछ फ़ायदा न होगा।
\s5
\v 13 यह वह कलाम है जो ख़ुदावन्द ने मोआब के हक़ में पिछले ज़माने में फ़रमाया था
\v 14 लेकिन अब ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तीन बरस के अन्दर जो मज़दूरों के बरसों की तरह हों, मोआब की शौकत उसके तमाम लश्करों के साथ हक़ीर हो जाएगी; और बहुत थोड़े बाक़ी बचेंगे, और वह किसी हिसाब में न होंगे।
\s5
\c 17
\p
\v 1 दमिश्क़ के बारे में बार-ए-नबुव्वत, देखो दमिश्क़ अब तो शहर न रहेगा, बल्कि खण्डर का ढेर होगा।
\v 2 'अरो'ईर की बस्तियाँ वीरान हैं और ग़ल्लों की चरागाहें होंगी; वह वहाँ बैठेगे, और कोई उनके डराने को भी वहाँ न होगा।
\v 3 और इफ़्राईम में कोई क़िला' न रहेगा, दमिश्क़ और अराम के बक़िए से सल्तनत जाती रहेगी; रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, जो हाल बनी-इस्राईल की शौकत का हुआ वही उनका होगा।
\s5
\v 4 और उस वक़्त यूँ होगा कि या'क़ूब की हश्मत घट जाएगी, और उसका चर्बीदार बदन दुबला हो जाएगा।
\v 5 यह ऐसा होगा जैसा कोई खड़े खेत काटकर ग़ल्ला जमा' करे और अपने हाथ से बालें तोड़े; बल्कि ऐसा होगा जैसा कोई रफ़ाईम की वादी में ख़ोशाचीनी करे।
\s5
\v 6 ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा फ़रमाता है कि तब उसका बक़िया बहुत ही थोड़ा होगा, जैसे ज़ैतून के दरख़्त का जब वह हिलाया जाए, या'नी दो तीन दाने चोटी की शाख़ पर, चार पाँच फलवाले दरख़्त की बैरूनी शाख़ों पर।
\v 7 उस रोज़ इन्सान अपने ख़ालिक़ की तरफ़ नज़र करेगा और उसकी आँखें इस्राईल के क़ुद्दूस ~की तरफ़ देखेंगी;
\s5
\v 8 और वह मज़बहों या'नी अपने हाथ के काम पर नज़र न करेगा, और अपनी दस्तकारी या'नी यसीरतों और बुतों की परवा न करेगा।
\v 9 उस वक़्त उसके फ़सीलदार शहर उजड़े जंगल और पहाड़ की चोटी पर के मक़ामात की तरह होंगे; जो बनी-इस्राईल के सामने उजड़ गए, और वहाँ वीरानी होगी।
\s5
\v 10 चूँकि तूने अपने नजात देनेवाले ख़ुदा को फ़रामोश किया, और अपनी तवानाई की चट्टान को याद न किया; इसलिए तू ख़ूबसूरत पौधे लगाता और 'अजीब कलमें उसमें जमाता है।
\v 11 लगाते वक़्त उसके चारों तरफ़ अहाता बनाता है, और सुबह को उसमें फूल खिलते हैं; लेकिन उसका हासिल दुख और सख़्त मुसीबत के वक़्त बेकार है।
\s5
\v 12 आह! बहुत~से लोगों का हंगामा है! जो समन्दर के शोर की तरह शोर मचाते हैं, और उम्मतों का धावा बड़े सैलाब के रेले की तरह है।
\v 13 उम्मतें सैलाब-ए-'अज़ीम की तरह आ पड़ेंगी; लेकिन वह उनको डॉंटेगा, और वह दूर भाग जाएँगी, और उस भूसे की तरह जो टीलों के ऊपर आँधी से उड़ता फिरे और उस गर्द की तरह जो बगोले में चक्कर खाए रगेदी जाएँगी।
\v 14 शाम के वक़्त तो हैबत है! सुबह होने से पहले वह हलाक हैं! ये हमारे ग़ारतगरों का हिस्सा और हम को लूटनेवालों का हिस्सा है।
\s5
\c 18
\p
\v 1 आह! परों के फड़फड़ाने की सर ज़मीन जो कूश की नदियों के पार है |
\v 2 जो दरिया की राह से बुर्दी की क़श्तियों में सतह-ए-आब पर क़ासिद भेजती है! ऐ तेज़ रफ़्तार क़ासिदों, उस क़ौम ~के पास जाओ जो ताक़तवर और ख़ूबसूरत है; उस क़ौम के पास जो शुरू' से अब तक मुहीब है, ऐसी क़ौम जो ज़बरदस्त और फ़तहयाब है जिसकी ज़मीन नदियों से मुन्क़सम है|
\s5
\v 3 ऐ जहान के तमाम बाशिन्दो, और ऐ ज़मीन के रहनेवालो, जब पहाड़ों पर झण्डा खड़ा किया जाए तो देखो और जब नरसिंगा फूँका जाए तो सुनो|
\s5
\v 4 क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मुझ से यूँ फ़रमाया है: कि अपने घर में ताबिश-ए-आफ़ताब की तरह और मौसिम-ए-दिरौ~की गर्मी में शबनम के बादल की तरह सुकून के साथ नज़र करूँगा।"
\v 5 क्यूँकि फ़सल से पहले जब कली खिल चुके और फूल की जगह अँगूर पकने पर हों, तो वह टहनियों को हसुवे से काट डालेगा और फैली हुई शाख़ों को छाँट देगा।
\s5
\v 6 और वह पहाड़ के शिकारी परिन्दों और मैदान के दरिन्दों के लिए पड़ी रहेंगी; और शिकारी परिन्दे गर्मी के मौसम में उन पर बैठेगे, ज़मीन के सब दरिन्दे जाड़े के मौसम में उन पर लेटेंगे।
\v 7 ~उस वक़्त रब्ब-उल-अफ़वाज के सामने उस क़ौम की तरफ़ से जो ताक़तवर और ख़ूबसूरत है, गिरोह की तरफ़ से जो शुरू' से आज तक मुहीब है, उस क़ौम से जो ज़बरदस्त और ज़फ़रयाब है जिसकी ज़मीन नदियों से बँटी है एक हदिया रब्ब-उल-अफ़वाज के नाम के मकान पर जो सिय्यून पहाड़ में है पहुँचाया जाएगा।
\s5
\c 19
\p
\v 1 मिस्र के बारे में नबुव्वत देखो ख़ुदावन्द एक तेज़ रू ~बादल पर सवार होकर मिस्र में आता है, और मिस्र के बुत उसके सामने लरज़ाँ होंगे और मिस्र का दिल पिघल जाएगा।
\v 2 और मैं मिस्रियों को आपस में मुख़ालिफ़ कर दूँगा; उनमें हर एक अपने भाई से और हर एक अपने पड़ोसी से लड़ेगा, शहर-शहर से और सूबे-सूबे से;
\s5
\v 3 और मिस्र की रूह अफ़सुर्दा हो जाएगी, और मैं उसके मन्सूबे को फ़ना करूँगा; और वह बुतों और अफ़सूँगरों और जिन्नात के यारों और जादूगरों की तलाश करेंगे।
\v 4 लेकिन मैं मिस्रियों को एक सितमगर हाकिम के क़ाबू में कर दूँगा, और ज़बरदस्त बादशाह उन पर सल्तनत करेगा; यह ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज का फ़रमान है।
\s5
\v 5 और दरिया का पानी सूख जाएगा, और नदी ख़ुश्क और ख़ाली हो जाएगी |
\v 6 और नाले बदबू हो जाएँगे, और मिस्र की नहरें ख़ाली होंगी और सूख जाएँगी, और बेद और नै मुरझा जाएँगे।
\s5
\v 7 दरिया-ए-नील के किनारे की चरागाहें और वह सब चीज़ें जो उसके आस-पास बोई जाती हैं मुरझा जायेंगी और बिल्कुल बर्बाद-ओ-हलाक हो जाएँगी।
\v 8 तब माहीगीर मातम करेंगे, और वह सब जो दरिया में शस्त डालते हैं ग़मगीन होंगे; और पानी में जाल डालने वाले बहुत बेताब हो जाएँगे।
\s5
\v 9 और सन झाड़ने और कतान बुननेवाले घबरा जाएँगे।
\v 10 ~हाँ उसके अरकान शिकस्ता और तमाम मज़दूर रंजीदा ख़ातिर होंगे
\s5
\v 11 सुन'आन के शहज़ादे बिल्कुल बेवक़ूफ़ हैं फ़िर'औन के ~सबसे 'अक़्लमन्द सलाहकारों की मश्वरत वहशियाना ठहरी।फिर तुम क्यूँकर फ़िर'औन से कहते हो, कि मैं 'अक़्लमन्दों का फ़र्ज़न्द और शाहान-ए-क़दीम की नसल हूँ"?
\v 12 अब तेरे 'अक़्लमन्द कहाँ है? वह तुझे ख़बर दें, अगर वह जानते होते कि रब्ब-उल-अफ़वाज ने मिस्र के हक़ में क्या इरादा किया है।
\s5
\v 13 जु़'अन के शहज़ादे बेवक़ूफ़ बन गए हैं, नूफ़ के शहज़ादों ने धोखा खाया और जिन पर मिस्री क़बाइल का भरोसा था उन्हीं ने उनको गुमराह किया।
\v 14 ~ख़ुदावन्द ने कजरवी की रूह उनमें डाल दी है और उन्होंने मिस्रियों को उनके सब कामों में उस मतवाले की तरह भटकाया जो उलटी करते हुए डगमगाता है।
\v 15 और मिस्रियों का कोई काम न होगा, जो सिर या दुम या ख़ास-ओ-'आम कर सके।
\s5
\v 16 ~उस वक़्त रब्ब-उल-अफ़वाज के हाथ चलाने से जो वह मिस्र पर चलाएगा, मिस्री 'औरतों की तरह हो जायेंगे, और हैबतज़दह और परेशान होंगे।
\v 17 तब यहूदाह का मुल्क मिस्र के लिए दहशत नाक होगा, हर एक जिससे उसका ज़िक्र हो ख़ौफ़ खाएगा; उस इरादे की वजह से जो रब्ब-उल-अफ़वाज ने उनके ख़िलाफ़ कर रख्खा है।
\s5
\v 18 उस रोज़ मुल्क-ए-मिस्र में पाँच शहर होंगे जो कना'नी ज़बान बोलेंगे, और रब्ब-उल-अफ़वाज की क़सम खाएँगे; उनमें से एक का नाम शहर-ए-आफ़ताब होगा।
\s5
\v 19 ~उस वक़्त मुल्क-ए-मिस्र के वस्त में ख़ुदावन्द का एक मज़बह और उसकी सरहद पर ख़ुदावन्द का एक सुतून होगा।
\v 20 और वह मुल्क-ए-मिस्र में रब्ब-उल-अफ़वाज के लिए निशान और गवाह होगा; इसलिए कि वह सितमगरों के ज़ुल्म से ख़ुदावन्द से फ़रियाद करेंगे, और वह उनके लिए रिहाई देने वाला और हामी भेजेगा, और वह उनको रिहाई देगा।
\s5
\v 21 और ख़ुदावन्द अपने आपको मिस्रियों पर ज़ाहिर करेगा और उस वक़्त मिस्री ख़ुदावन्द को पहचानेंगे, और ज़बीहे और हदिये पेश करेंगे; हाँ, वह ख़ुदावन्द के लिए मिन्नत माँनेंगे और अदा करेंगे।
\v 22 और ख़ुदावन्द मिस्रियों को मारेगा, मारेगा और शिफ़ा बख़्शेगा; और वह ख़ुदावन्द की तरफ़ रूजू' लाएँगे और वह उनकी दु'आ सुनेगा, और उनको सेहत बख़्शेगा।
\s5
\v 23 उस वक़्त मिस्र से असूर तक एक शाह-ए-राह होगी और असूरी मिस्र में आएँगें और मिस्री असूर को जाएँगे, मिस्री असूरियों के साथ मिलकर 'इबादत करेंगे।
\s5
\v 24 तब इस्राईल मिस्र और असूर के साथ तीसरा होगा, और इस ज़मीन पर बरकत का ज़रिए' आ ठहरेगा।
\v 25 क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज उनको बरकत बख़्शेगा और फ़रमाएगा मुबारक हो मिस्री मेरी उम्मत असूर मेरे हाथ की सन'अत और इस्राईल मेरी मीरास।
\s5
\c 20
\p
\v 1 ~जिस साल सरजून शाह-ए-असूर ने तरतान को अशदूद की तरफ़ भेजा, और उसने आकर अशदूद से लड़ाई की और उसे फ़तह कर लिया;
\v 2 ~उस वक़्त ख़ुदावन्द ने यसा'याह बिन आमूस के ज़रिए' यूँ फ़रमाया, "कि जा और टाट का लिबास अपनी कमर से खोल डाल और अपने पाँवों से जूते उतार," तब उसने ऐसा ही किया, वह बरहना और नंगे पाँव फिरा करता था |
\s5
\v 3 ~तब ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, जिस तरह मेरा बन्दा यसा'याह तीन बरस तक बरहना और नंगे पाँव फिरा किया, ताकि मिस्रियों और कूशियों के बारे में निशान और ता'अज्जुब हो |
\v 4 उसी तरह शाह-ए-असूर मिस्री ग़ुलामों और कूशी जिलावतनों को क्या बूढ़े क्या जवान बरहना और नंगे पाँव और बेपर्दा सुरनियों के साथ मिस्रियों की रुस्वाई के लिए ले जाएगा।
\s5
\v 5 तब वह परेशान होंगे और कूश से जो उनकी उम्मीदगाह थी, और मिस्र से जो उनका घमण्ड था, शर्मिन्दा होंगे|
\v 6 और उस वक़्त इस साहिल के बाशिन्दे कहेंगे देखो हमारी उम्मीदगाह का यह हाल हुआ जिसमें हम मदद के लिए भागे ताकि असूर के बादशाह से बच जाएँ फिर हम किस तरह रिहाई पायें |
\s5
\c 21
\p
\v 1 दश्त-ए-दरिया के बारे में नबुवत: जिस तरह दक्खिनी हवा ज़ोर से चली आती है, उसी तरह वह दश्त से और मुहीब सरज़मीन से नज़दीक आ रहा है।
\v 2 एक हौलनाक ख़्वाब मुझे नज़र आया; दग़ाबाज़ दग़ाबाज़ी करता है; और ग़ारतगर ग़ारत करता है ऐ ऐलाम, चढ़ाई कर; ऐ मादै, मुहासिरा कर; मैं वह सब कराहना जो उसकी वजह से हुआ, ख़त्म करता हूँ।
\s5
\v 3 ~इसलिए मेरी कमर में सख़्त दर्द है, मैं जैसे दर्द-ए-ज़िह में तड़पता हूँ, मैं ऐसा परेशान हूँ कि सुन नहीं सकता; मैं ऐसा परेशान हूँ कि देख नहीं सकता|~
\v 4 मेरा दिल धड़कता है, और ख़ौफ़ अचानक मुझ पर ग़ालिब आ गया; शफ़क़-ए-शाम जिसका मैं आरज़ूमन्द था, मेरे लिए ख़ौफ़नाक हो गई।
\s5
\v 5 दस्तरख़्वान बिछाया गया, निगहबान खड़ा किया गया, वह खाते हैं और पीते हैं; उठो ऐ सरदारो सिपर पर तेल मलो !
\s5
\v 6 क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मुझे यूँ फ़रमाया, कि "जा निगहबान बिठा; वह जो कुछ देखे वही बताए।
\v 7 उसने सवार देखे, जो दो-दो आते थे, और गधों और ऊँटों पर सवार और उसने बड़े ग़ौर से सुना।"
\s5
\v 8 तब उसने शेर की तरह आवाज़ से पुकारा, "ऐ ख़ुदावन्द, मैं अपनी दीदगाह पर तमाम दिन खड़ा रहा, और मैंने हर रात पहरे की जगह पर काटी।
\v 9 और देख, सिपाहियों के ग़ोल और उनके सवार दो-दो करके आते हैं!" फिर उसने यूँ कहा, "कि बाबुल गिर पड़ा, गिर पड़ा; और उसके मा'बूदों की सब तराशी हुई मूरतें बिल्कुल टूटी पड़ी हैं।"
\s5
\v 10 ~ऐ मेरे गाहे हुए और मेरे खलीहान के ग़ल्ले, जो कुछ मैंने रब्ब-उल-अफ़वाज इस्राईल के ख़ुदा से सुना, तुमसे कह दिया।
\s5
\v 11 ~दूमा के बारे में नबुव्वत किसी ने मुझ को श'ईर से पुकारा कि ऐ निगहबान, रात की क्या ख़बर है?
\v 12 ~निगाहबान ने कहा, सुबह होती है और रात भी अगर तुम पूछना चाहते हो तो पूछो तुम फिर आना?
\s5
\v 13 'अरब के बारे में नबुव्वत ऐ ददानियों के क़ाफ़िलों, तुम 'अरब के जंगल में रात काटोगे।
\v 14 वह प्यासे के पास पानी लाए, तीमा की सरज़मीन के बाशिन्दे, रोटी लेकर भागने वाले से मिलने को निकले।
\v 15 क्यूँकि वह तलवारों के सामने से नंगी तलवार से, और खेंची हुई कमान से, और जंग की शिद्दत से भागे हैं।
\s5
\v 16 क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मुझ से यूँ कहा कि मज़दूर के बरसों के मुताबिक़, एक बरस के अन्दर अन्दर क़ीदार की सारी हशमत जाती रहेगी |
\v 17 और तीर अन्दाज़ों की ता'दाद का बक़िया या'नी बनी क़ीदार के बहादुर थोड़े से होंगे; क्यूँकि इस्राईल के ख़ुदा ने यूँ फ़रमाया है|
\s5
\c 22
\p
\v 1 ~ख़्वाब की वादी के बारे में नबुव्वत अब तुम को क्या हुआ कि तुम सब के सब कोठों पर चढ़ गए?
\v 2 ऐ पुर शोर और ग़ौग़ाई शहर ऐ शादमान बस्ती तेरे मक़तूल न तलवार से क़त्ल हुए और न लड़ाई में मारे गए।
\s5
\v 3 ~तेरे सब सरदार इकट्ठे भाग निकले, उनको तीर अन्दाज़ों ने ग़ुलाम कर लिया; जितने तुझ में पाए गए सब के सब, बल्कि वह भी जो दूर से भाग गए थे ग़ुलाम किए गए हैं।
\v 4 ~इसीलिए मैंने कहा, मेरी तरफ़ मत देखो, क्यूँकि मैं ज़ार-ज़ार रोऊँगा मेरी तसल्ली की फ़िक्र मत करो, क्यूँकि मेरी दुख़्तर-ए-क़ौम बर्बाद हो गई।"
\s5
\v 5 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज की तरफ़ से ख़्वाब की वादी में, यह दुख और पामाली ओ-बेक़रारी और दीवारों को गिराने और पहाड़ों तक फ़रियाद पहुँचाने का दिन है।
\v 6 ~क्यूँकि ऐलाम ने जंगी रथों और सवारों के साथ तरकश उठा लिया और क़ीर ने सिपर का ग़िलाफ़ उतार दिया।
\v 7 और यूँ हुआ कि तेरी बेहतरीन वादियाँ जंगली रथों से मा'मूर हो गईं और सवारों ने फाटक पर सफ़आराई की;
\s5
\v 8 और यहूदाह का नक़ाब उतारा गया। और तू अब दश्त-ए-महल के सिलाहख़ाने पर निगाह करता है,
\v 9 ~और तुम ने दाऊद के शहर के रख़ने देखे कि बेशुमार हैं; और तुम ने नीचे के हौज़ में पानी जमा' किया|
\s5
\v 10 और तुम ने यरुशलीम के घरों को गिना और उनको गिराया ताकि शहर पनाह को मज़बूत करो,
\v 11 और तुम ने पुराने हौज़ के पानी के लिए दोनों दीवारों के बीच एक और हौज़ बनाया; लेकिन तुम ने उसके पानी पर निगाह न की और उसकी तरफ़ जिसने पहले से उसकी तदबीर की मुतवज्जह न हुए।
\s5
\v 12 और उस वक़्त ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज ने रोने और मातम करने, और सिर मुन्डाने और टाट से कमर बाँधने का हुक्म दिया था;
\v 13 ~लेकिन देखो, ख़ुशी और शादमानी, गाय बैल को ज़बह करना और भेड़-बकरी को हलाल करना और गोश्त ख़्वारी-ओ-मयनोशी कि आओ खाएँ और पियें क्यूँकि कल तो हम मरेंगे।
\v 14 और रब्ब-उल-अफ़्वाज ने मेरे कान में कहा, कि तुम्हारी इस बदकिरदारी का कफ़्फ़ारा तुम्हारे मरने तक भी न हो सकेगा यह ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज का फ़रमान है।
\s5
\v 15 ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज यह फ़रमाता है कि उस ख़ज़ान्ची शबनाह के पास जो महल पर मु'अय्यन है, जा और कह:
\v 16 ~तू यहाँ क्या करता है? और तेरा यहाँ कौन है कि तू यहाँ अपने लिए क़ब्र तराश्ता है? बुलन्दी पर अपनी क़ब्र तराश्ता है और चट्टान में अपने लिए घर खुदवाता है|
\s5
\v 17 ~देख, ऐ ज़बरदस्त, ख़ुदावन्द तुझ को ज़ोर से दूर फेंक देगा; वह यक़ीनन तुझे पकड़ रख्खेगा।
\v 18 वह बेशक तुझ को गेंद की तरह घुमा-घुमाकर बड़े मुल्क में उछालेगा; वहाँ तू मरेगा और तेरी हश्मत के रथ वहीं रहेंगे, ऐ अपने आक़ा के घर की रुस्वाई।
\v 19 ~और मैं तुझे तेरे मन्सब से बरतरफ़ करूँगा, हाँ वह तुझे तेरी जगह से खींच उतारेगा।
\s5
\v 20 ~और उस रोज़ यूँ होगा कि मैं अपने बन्दे इलियाक़ीम-बिन-ख़िलक़ियाह को बुलाऊँगा,
\v 21 ~और मैं तेरा ख़िल'अत उसे पहनाऊँगा और तेरा पटका उस पर कसूँगा, और तेरी हुकूमत उसके हाथ में हवाले कर दूँगा; और वह अहल-ए-यरुशलीम का और बनी यहूदाह का बाप होगा।
\v 22 और मैं दाऊद के घर की कुंजी उसके कन्धे पर रख्खूँगा, तब वह खोलेगा और कोई बन्द न करेगा; और वह बन्द करेगा और कोई न खोलेगा।
\s5
\v 23 और मैं उसको खूँटी की तरह मज़बूत जगह में मुहकम करूँगा, और वह अपने बाप के घराने के लिए जलाली तख़्त होगा।
\v 24 ~और उसके बाप के ख़ान्दान की सारी हशमत या'नी आल-ओ-औलाद और सब छोटे-बड़े बर्तन प्यालों से लेकर क़राबों तक सबको उसी से मन्सूब करेंगे।
\s5
\v 25 रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है,उस वक़्त वह खूँटी जो मज़बूत जगह में लगाई गई थी हिलाई जाएगी, और वह काटी जाएगी और गिर जाएगी, और उस पर का बोझ गिर पड़ेगा; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने यूँ फ़रमाया है|
\s5
\c 23
\p
\v 1 सूर के बारे में नबुव्वत ऐ तरसीस के जहाज़ो, वावैला करो क्यूँकि वह उजड़ गया, वहाँ कोई घर और कोई दाख़िल होने की जगह नहीं! कित्तीम की ज़मीन से उनको ये ख़बर पहुँची है|
\v 2 ~ऐ साहिल के बाशिन्दों, जिनको सैदानी सौदागरों ने जो समन्दर के पार आते जाते हैं मालामाल कर दिया है, ख़ामोश रहो |
\v 3 समन्दर के पार से सीहोर' का ग़ल्ला और वादी-ए-नील की फ़सल उसकी आमदनी थी, तब वह क़ौमों की तिजारत-गाह बना।
\s5
\v 4 ऐ सैदा, तू शरमा, क्यूँकि समन्दर ने कहा है, समन्दर की गढ़ी ने कहा, "मुझे दर्द-ए-ज़िह नहीं लगा, और मैंने बच्चे नहीं जने; मैं जवानों को नहीं पालती, और कुँवारियों की परवरिश नहीं करती हूँ।”
\v 5 ~जब अहल-ए-मिस्र को यह ख़बर पहुँचेगी, तो वह सूर की ख़बर से बहुत ग़मगीन होंगे |
\s5
\v 6 ऐ साहिल के बाशिन्दो, तुम ज़ार-ज़ार रोते हुए तरसीस को चले जाओ।
\v 7 क्या यह तुम्हारी शादमान बस्ती है, जिसकी हस्ती पहले से है? उसी के पाँव उसे दूर-दूर ले जाते हैं कि परदेस में रहे।
\s5
\v 8 ~किसी ने यह~मंसूबा सूर के ख़िलाफ़ बाँधा जो ताज बख़्श है जिसके सौदागर 'उमरा और जिसके ताजिर दुनिया भर के 'इज़्ज़तदार हैं|
\v 9 रब्ब-उल-अफ़वाज ने ये इरादा किया है कि सारी हशमत के घमण्ड को हलाक करे और दुनिया भर के इज़्ज़तदारों को ज़लील करे।
\s5
\v 10 ऐ दूख़्तर-ए-तरसीस दरया-ए-नील ~की तरह अपनी सरज़मीन पर फैल जा अब कोई बन्द बाक़ी नहीं रहा।
\v 11 ~ उसने समन्दर पर अपना हाथ बढ़ाया, उसने ममलुकतों को हिला दिया; ख़ुदावन्द ने कना'न के हक़ में हुक्म किया है कि उसके क़िले' मिस्मार किए जाएँ।
\v 12 और उसने कहा, "ऐ मज़लूम कुँवारी, दुख़्तर-ए-सैदा, तू फिर कभी घमण्ड न करेगी; उठ क़ित्तीम में चली जा, तुझे वहाँ भी चैन न मिलेगा।"
\s5
\v 13 कसदियों के मुल्क को देख! यह क़ौम मौजूद न थी; असूर ने उसे वीरान के रहनेवालों का हिस्सा ठहराया। उन्होंने अपने बुर्ज बनाए उन्होंने उसके महल ग़ारत किये और उसे वीरान किया।
\v 14 ऐ तरसीस के जहाज़ों वावैला करो क्यूँकि तुम्हारा क़िला' उजाड़ा गया|
\s5
\v 15 और उस वक़्त यूँ होगा कि सूर किसी बादशाह के दिनों के मुताबिक़, सत्तर बरस तक फ़रामोश हो जाएगा; और ~सत्तर बरस के बा'द सूर की हालत फ़ाहिशा के गीत के मुताबिक़ होगी |
\v 16 ऐ फ़ाहिशा तू जो फ़रामोश हो गई है, बर्बत उठा ले और शहर में फिरा कर राग को छेड़ और बहुत-सी ग़ज़लें गा कि लोग तुझे याद करें|
\s5
\v 17 और सत्तर बरस के बा'द यूँ होगा कि ख़ुदावन्द सूर की ख़बर लेगा, और वह उजरत पर जाएगी और इस ज़मीन पर की तमाम ममलुकतों से बदकारी करेगी |
\v 18 ~ लेकिन उसकी तिजारत और उसकी उजरत ख़ुदावन्द के लिए मुक़द्दस होगी और उसका माल न ज़ख़ीरा किया जाएगा और न जमा' रहेगा बल्कि उसकी तिजारत का हासिल उनके लिए होगा, जो ख़ुदावन्द के सामने रहते हैं कि खाकर सेर हों और नफ़ीस पोशाक पहने |
\s5
\c 24
\p
\v 1 ~देखो ख़ुदावन्द ज़मीन को ख़ाली और सरनगूँ करके वीरान करता है और उसके बाशिन्दों को तितर-बितर कर देता है।
\v 2 और यूँ होगा कि जैसा र'इयत का हाल, वैसा ही काहिन का; जैसा नौकर का, वैसा ही उसके साहिब का; जैसा लौंडी का, वैसा ही उसकी बीबी का; जैसा ख़रीदार का, वैसा ही बेचनेवाले का; जैसा क़र्ज़ देनेवाले का, वैसा ही क़र्ज़ लेनेवाले का; जैसा सूद देनेवाले का, वैसा ही सूद लेनेवाले का।
\s5
\v 3 ज़मीन बिल्कुल ख़ाली की जाएगी, और बशिद्दत ग़ारत होगी; क्यूँकि यह कलाम ख़ुदावन्द का है।
\v 4 ज़मीन ग़मगीन होती और मुरझाती है, जहाँ बेताब और पज़मुर्दा होता है, ज़मीन के 'आली क़द्र लोग नातवान होते हैं।
\v 5 ज़मीन अपने बाशिन्दों से नापाक हुई, क्यूँकि उन्होंने शरी'अत को 'उदूल किया, क़ानून से मुन्हरिफ़ हुए, हमेशा के 'अहद को तोड़ा।
\s5
\v 6 इस वजह से ला'नत ने ज़मीन को निगल लिया और उसके बाशिन्दे मुजरिम ठहरे, और इसीलिए ज़मीन के लोग भसम हुए और थोड़े से आदमी बच गए।
\v 7 मय ग़मज़दा, ताक पज़मुर्दा है; और सब जो दिलशाद थे आह भरते हैं।
\s5
\v 8 ढोलकों की ख़ुशी बन्द हो गई, ख़ुशी मनानेवालों का गु़ल-ओ-शोर तमाम हुआ, बरबत की शादमानी जाती रही।
\v 9 वह फिर गीत के साथ मय नहीं पीते, पीनेवालों को शराब तल्ख़ मा'लूम होगी।
\s5
\v 10 ~सुनसान शहर वीरान हो गया, हर एक घर बन्द हो गया कि कोई अन्दर न जा सके।
\v 11 ~मय के लिए बाज़ारों में वावैला हो रहा है; सारी ख़ुशी पर तारीकी छा गई, मुल्क की 'इश्रत जाती रही।
\s5
\v 12 ~शहर में वीरानी ही वीरानी है, और फाटक तोड़ फोड़ दिए गए।
\v 13 क्यूँकि ज़मीन में लोगों के बीच यूँ होगा जैसा जै़तून का दरख़्त झाड़ा जाए, जैसे अंगूर तोड़ने के बा'द ख़ोशा-चीनी।
\s5
\v 14 वह अपनी आवाज़ बलन्द करेंगे, वह गीत गाएँगे; ख़ुदावन्द के जलाल की वजह से समन्दर से ललकारेंगे।
\v 15 तुम पूरब में ख़ुदावन्द की और समन्दर के जज़ीरों में ख़ुदावन्द के नाम की, जो इस्राईल का ख़ुदा है, तम्जीद करो|
\s5
\v 16 ~इन्तिहा-ए-ज़मीन से नग़मों की आवाज़ हम को सुनाई देती है, जलाल-ओ-'अज़मत सादिक़ के लिए। लेकिन मैंने कहा, "मैं गुदाज़ हो गया, मैं हलाक हुआ; मुझ पर अफ़सोस! दग़ाबाज़ों ने दग़ा की; हाँ, दग़ाबाज़ों ने बड़ी दग़ा की।”
\s5
\v 17 ऐ ज़मीन के बाशिन्दे, ख़ौफ़ और गढ़ा और दाम तुझ पर मुसल्लित हैं।
\v 18 ~और यूँ होगा कि जो ख़ौफ़नाक आवाज़ सुन कर भागे, गढ़े में गिरेगा; और जो गढ़े से निकल आए, दाम में फँसेगा; क्यूँकि आसमान की खिड़कियाँ खुल गईं, और ज़मीन की बुनियादें हिल रही हैं |
\s5
\v 19 ज़मीन बिल्कुल उजड़ गई, ज़मीन यकसर शिकस्ता हुई, और शिद्दत से हिलाई गई।
\v 20 ~वह मतवाले की तरह डगमगाएगी और झोपड़ी की तरह आगे पीछे सरकाई जाएगी; क्यूँकि उसके गुनाह का बोझ उस पर भारी हुआ, वह गिरेगी और फिर न उठेगी।
\s5
\v 21 और उस वक़्त यूँ होगा कि ख़ुदावन्द आसमानी लश्कर को आसमान पर और ज़मीन के बादशाहों को ज़मीन पर सज़ा देगा।
\v 22 और वह उन कै़दियों की तरह जो गढ़े में डाले जाएँ, जमा' किए जाएँगे और वह कै़दख़ाने में कै़द किए जाएँगे, और बहुत दिनों के बा'द उनकी ख़बर ली जाएगी।
\v 23 और जब रब्ब-उल-अफ़वाज सिय्यून पहाड़ पर और यरुशलीम में अपने बुज़ुर्ग बन्दों के सामने हश्मत के साथ सल्तनत करेगा, तो चाँद मुज़्तरिब' सूरज शर्मिन्दा होगा।
\s5
\c 25
\p
\v 1 ऐ ख़ुदावन्द तू मेरा ख़ुदा है; मैं तेरी तम्जीद करूँगा; तेरे नाम की 'इबादत करूँगा क्यूँकि तूने 'अजीब काम किए हैं, तेरी मसलहत क़दीम से वफ़ादारी और सच्चाई हैं।
\v 2 क्यूँकि तूने शहर को ख़ाक का ढेर किया; हाँ, फ़सीलदार शहर को खण्डर बना दिया और परदेसियों के महल को भी, यहाँ तक कि शहर न रहा; वह फिर ता'मीर न किया जाएगा।
\v 3 ~इसलिए ज़बरदस्त लोग तेरी 'इबादत करेंगे और हैबतनाक क़ौमों का शहर तुझ से डरेगा।
\s5
\v 4 क्यूँकि तू ग़रीब के लिए क़िला' और मोहताज के लिए परेशानी के वक़्त मल्जा और ऑधी से पनाहगाह और गर्मी ~से बचाने को साया हुआ, जिस वक़्त ज़ालिमों की साँस दिवारकन तूफ़ान की तरह हो।
\v 5 तू परदेसियों के शोर को ख़ुश्क मकान की गर्मी की तरह दूर करेगा और जिस तरह अब्र के साये से गरमी हलाक होती है उसी तरह ज़ालिमों का शादियाना बजाना ख़त्म होगा|
\s5
\v 6 और~~रब्ब-उल-अफ़वाज इस पहाड़ पर सब क़ौमों के लिए फ़रबा चीज़ों से एक ज़ियाफ़त तैयार करेगा बल्कि एक ज़ियाफ़त तलछट पर से निथरी हुई मय से; हाँ फ़रबा चीज़ों से जो पुरमग़्ज़ हों और मय से जो तलछट पर से ख़ूब निथरी हुई हो।
\v 7 और वह इस पहाड़ पर उस पर्दे को, जो तमाम लोगों पर पड़ा है और उस नक़ाब को, जो सब क़ौमों पर लटक रहा है, दूर कर देगा।
\v 8 वह मौत को हमेशा के लिए हलाक करेगा और~ख़ुदावन्द खुदा सब के~चहरों से आँसू पोंछ डालेगा, और अपने लोगों की रुस्वाई तमाम सरज़मीन पर से मिटा देगा; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने यह फ़रमाया है।
\s5
\v 9 और उस वक़्त यूँ कहा जाएगा, "लो, यह हमारा ख़ुदा है; हम उसकी राह तकते थे और वही हम को बचाएगा। यह ख़ुदावन्द है, हम उसके इन्तिज़ार में थे। हम उसकी नजात से ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम होंगे।"
\v 10 क्यूँकि इस पहाड़ पर ख़ुदावन्द का हाथ बरक़रार रहेगा और मोआब अपनी ही जगह में ऐसा कुचला जाएगा जैसे मज़बले के पानी में घास कुचली जाती है।
\s5
\v 11 ~और वह उसमें उसकी तरह जो तैरते हुए हाथ फैलाता है, अपने हाथ फैलाएगा; लेकिन वह उसके ग़ुरूर को उसके हाथों के फ़न-धोखे के साथ पस्त करेगा।
\v 12 और वह तेरी फ़सील के ऊँचे बुर्जों को तोड़कर पस्त करेगा, और ज़मीन के बल्कि ख़ाक के बराबर कर देगा।
\s5
\c 26
\p
\v 1 ~उस वक़्त यहूदाह के मुल्क में ये गीत गाया जाएगा: हमारा एक मुहकम शहर है, जिसकी फ़सील और नसलों ~की जगह वह नजात ही को मुक़र्रर करेगा।
\v 2 ~तुम दरवाज़े खोलो ताकि सादिक़ क़ौम जो वफ़ादार रही दाख़िल हो।
\s5
\v 3 ~जिसका दिल क़ायम है तू उसे सलामत रख्खेगा क्यूँकि उसका भरोसा तुझ पर है।
\v 4 ~हमेशा तक ख़ुदावन्द पर ऐ'तमाद रख्खो क्यूँकि ख़ुदावन्द यहूदाह हमेशा की चट्टान है।
\s5
\v 5 ~क्यूँकि उसने बुलन्दी पर बसनेवालों को नीचे उतारा, बुलन्द शहर को ज़ेर किया, उसने उसे ज़ेर करके ख़ाक में मिलाया।
\v 6 वह पाँव तले रौदा जाएगा; हाँ, ग़रीबों के पाँव और मोहताजों के क़दमों से।"
\s5
\v 7 ~सादिक़ की राह रास्ती है; तू जो हक़ है, सादिक़ की रहबरी करता है।
\v 8 ~हाँ तेरी 'अदालत की राह में, ऐ ख़ुदावन्द, हम तेरे मुन्तज़िर रहे; हमारी जान का इश्तियाक़ तेरे नाम और तेरी याद की तरफ़ है।
\v 9 रात को मेरी जान तेरी मुश्ताक़ है; हाँ, मेरी रूह तेरी जुस्तजू में कोशाँ रहेगी; क्यूँकि जब तेरी 'अदालत ज़मीन पर जारी है, तो दुनिया के बाशिन्दे सदाक़त सीखते हैं।
\s5
\v 10 ~हर चन्द शरीर पर मेहरबानी की जाए, लेकिन वह सदाक़त न सीखेगा; रास्ती के मुल्क में नारास्ती करेगा, और ख़ुदावन्द की 'अज़मत को न देखेगा।
\s5
\v 11 ~ ऐ ख़ुदावन्द, तेरा हाथ बुलन्द है लेकिन वह नहीं देखते, लेकिन वह लोगों के लिए तेरी गै़रत को देखेंगे और शर्मसार होंगे, बल्कि आग तेरे दुश्मनों को खा जाएगी।
\v 12 ~ऐ ख़ुदावन्द, तू ही हम को सलामती बख़्शेगा; क्यूँकि तू ही ने हमारे सब कामों को हमारे लिए अन्जाम दिया है।
\s5
\v 13 ~ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा, तेरे अलावा दूसरे हाकिमों ने हम पर हुकूमत की है; लेकिन तेरी मदद से हम सिर्फ़ तेरा ही नाम लिया करेंगे।
\v 14 वह मर गए, फिर ज़िन्दा न होंगे; वह रहलत कर गए, फिर न उठेंगे; क्यूँकि तूने उन पर नज़र की और उनको हलाक किया, और उनकी याद को भी मिटा दिया है।
\s5
\v 15 ऐ ख़ुदावन्द तूने इस क़ौम को कसरत बख़्शी है; तूने इस क़ौम को बढ़ाया है, तूही ज़ुल-जलाल है तूही ने मुल्क की हदों को बढ़ा दिया है।
\s5
\v 16 ~ऐ ख़ुदावन्द, वह मुसीबत में तेरे तालिब हुए जब तूने उनको तादीब की तो उन्होंने गिरया-ओ-ज़ारी की।
\v 17 ~ऐ ख़ुदावन्द तेरे~सामने हम उस हामिला की तरह हैं, जिसकी ~विलादत का वक़्त नज़दीक हो, जो दुख में है और अपने दर्द से चिल्लाती है।
\s5
\v 18 ~हम हामिला हुए, हम को दर्द-ए-ज़िह लगा, लेकिन पैदा क्या हुआ? हवा! हम ने ज़मीन पर आज़ादी को क़ायम नहीं किया, और न दुनिया में बसनेवाले ही पैदा हुए।
\s5
\v 19 ~तेरे मुर्दे जी उठेंगे,मेरी ~लाशें उठ खड़ी होंगी। तुम जो ख़ाक में जा बसे हो, जागो और गाओ! क्यूँकि तेरी ओस उस ओस की तरह है जो नबातात पर पड़ती है, और ज़मीन मुर्दों को उगल देगी।
\s5
\v 20 ऐ ~मेरे लोगो! अपने ख़िलवत ख़ानों में दाख़िल हो, और अपने पीछे दरवाज़े बन्द कर लो और अपने आपको थोड़ी देर तक छिपा रख्खो जब तक कि ग़ज़ब टल न जाए।
\v 21 ~क्यूँकि देखो, ख़ुदावन्द अपने मक़ाम से चला आता है, ताकि ज़मीन के बाशिन्दों को उनकी बदकिरदारी की सज़ा दे; और ज़मीन उस ख़ून को ज़ाहिर करेगी जो उसमें है और अपने मक़तूलों को हरगिज़ न छिपाएगी।
\s5
\c 27
\p
\v 1 ~उस वक़्त ख़ुदावन्द अपनी सख़्त और बड़ी और मज़बूत तलवार से अज़दहा या'नी तेज़रू साँप को और अज़दहा या'नी पेचीदा साँप को सज़ा देगा; और दरियाई अज़दहे को क़त्ल करेगा।
\v 2 ~उस वक़्त तुम ख़ुशनुमा ताकिस्तान का गीत गाना।
\v 3 ~मैं ख़ुदावन्द उसकी हिफ़ाज़त करता हूँ, मैं उसे हर दम सींचता रहूँगा। मैं दिन रात उसकी निगहबानी करूँगा कि उसे नुक़्सान न पहुँचे।
\s5
\v 4 ~मुझ में क़हर नहीं; तोभी काश के जंगगाह में झाड़ियाँ और काँटे मेरे ख़िलाफ़ होते, मैं उन पर ख़ुरूज करता और उनको बिल्कुल जला देता।
\v 5 लेकिन अगर कोई मेरी ताक़त का दामन पकड़े तो मुझ से सुलह करे; हाँ वह मुझ से सुलह करे।
\s5
\v 6 अब आइन्दा दिनों में या'क़ूब जड़ पकड़ेगा, और इस्राईल पनपेगा और फूलेगा और इस ज़मीन को मेवों से मालामाल करेगा।
\s5
\v 7 ~क्या उसने उसे मारा, जिस तरह उसने उसके मारनेवालों को मारा है? या क्या वह क़त्ल हुआ, जिस तरह उसके क़ातिल क़त्ल हुए?
\v 8 ~तूने इन्साफ़ के साथ उसको निकालते वक़्त उससे हुज्जत की; उसने पूरबी हवा के दिन अपने सख़्त तूफ़ान से उसको निकाल दिया |
\s5
\v 9 इसलिए इससे या'क़ूब के गुनाह का कफ़्फ़ारा होगा और उसका गुनाह दूर करने का कुल नतीजा यही है; जिस ~वक़्त वह मज़बह के सब पत्थरों को टूटे कंकरों की तरह टुकड़े-टुकड़े करे कि यसीरतें और सूरज के बुत फिर क़ायम न हों।
\s5
\v 10 क्यूँकि फ़सीलदार शहर वीरान है, और वह बस्ती उजाड़ और वीरान की तरह ख़ाली है; वहाँ बछड़ा चरेगा और वहीं लेट रहेगा और उसकी डालियाँ बिलकुल काट खायेगा|
\v 11 जब उसकी शाख़े मुरझा जायेंगी तो तोड़ी जायेंगी 'औरतें आयेंगी और उनको जलाएँगी; क्यूँकि लोग अक़्ल से ख़ाली हैं, इसलिए उनका ख़ालिक़ उन पर रहम नहीं करेगा और उनका बनाने वाला उन पर तरस नहीं खाएगा|
\s5
\v 12 ~और उस वक़्त यूँ होगा कि ख़ुदावन्द दरया-ए-फ़रात की गुज़रगाह से रूद-ए-मिस्र तक झाड़ डालेगा; और तुम ऐ बनी इस्राईल एक एक करके जमा' किए जाओगे |
\v 13 और उस वक़्त यूँ होगा कि बड़ा नरसिंगा फूँका जाएगा, और वह जो असूर के मुल्क में क़रीब-उल-मौत थे, और वह जो मुल्क-ए-मिस्र में जिला वतन थे आएँगें और यरुशलीम के मुक़द्दस पहाड़ पर ख़ुदावन्द की 'इबादत करेंगे।
\s5
\c 28
\p
\v 1 अफ़सोस इफ़्राईम के मतवालों के घमण्ड के ताज पर और उसकी शानदार शौकत के मुरझाये हुए फूल पर जो उन लोगों की शादाब वादी के सिरे पर है जो मय के मग़लूब हैं|
\v 2 देखो ख़ुदावन्द के पास एक ज़बरदस्त और ताक़तवर शख़्स है, जो उस आँधी की तरह जिसके साथ ओले हों और बाद समूम की तरह और सैलाब-ए-शदीद की तरह ज़मीन पर हाथ से पटक देगा।
\s5
\v 3 इफ़्राईम के मतवालों के घमण्ड का ताज पामाल किया जाएगा;
\v 4 और उस शानदार शौकत का मुरझाया हुआ फूल जो उस शादाब वादी के सिरे पर है, पहले पक्के अंजीर की तरह होगा जो गर्मी के दिनों से पहले ~लगे; जिस पर किसी की निगाह पड़े और वह उसे देखते ही और हाथ में लेते ही निगल जाए।
\s5
\v 5 उस ~वक़्त रब्ब-उल-अफ़वाज अपने लोगों के बक़िये के लिए शौकत का अफ़सर और हुस्न का ताज होगा|
\v 6 और 'अदालत की कुर्सी पर बैठने वाले के लिए इन्साफ़ की रूह, और फाटकों से लड़ाई को दूर करने वालों के लिए ताक़त होगा।
\s5
\v 7 ~लेकिन यह भी मयख़्वारी से डगमगाते और नशे में लड़खड़ाते हैं; काहिन और नबी भी नशे में चूर और मय में ग़र्क़ हैं, वह नशे में झूमते हैं; वह रोया में ख़ता करते और 'अदालत में लगज़िश खाते हैं|
\v 8 ~क्यूँकि सब दस्तरख़्वान क़य और गन्दगी से भरे हैं कोई जगह बाक़ी नहीं|
\s5
\v 9 वह ~किसको अक़्ल सिखाएगा? किसको तक़रीर करके समझाएगा? क्या उनको ~जिनका दूध छुड़ाया गया,जो छातियों से जुदा किए गए?
\v 10 ~क्यूँकि हुक्म पर हुक्म, हुक्म पर हुक्म; क़ानून पर क़ानून, क़ानून पर क़ानून है; थोड़ा यहाँ थोड़ा वहाँ |
\s5
\v 11 लेकिन वह बेगाना लबों और अजनबी ज़बान से इन लोगों से कलाम करेगा|
\v 12 जिनको उसने फ़रमाया, यह आराम है, तुम थके मान्दों को आराम दो,और ~यह ताज़गी है;" लेकिन वह सुनने वाले न हुए।
\s5
\v 13 ~तब ख़ुदावन्द का कलाम उनके लिए हुक्म पर हुक्म, हुक्म पर हुक्म, क़ानून पर क़ानून, क़ानून पर क़ानून, थोड़ा यहाँ, थोड़ा वहाँ होगा; ताकि वह चले जाएँ और पीछे गिरें और सिकश्त खाएँ और दाम में फसें और गिरफ़्तार हों|
\s5
\v 14 इसलिए ऐ ठट्ठा करने वालो,जो यरुशलीम के इन बाशिन्दों पर हुक्मरानी करते हो; ख़ुदावन्द का कलाम सुनो:
\v 15 चूँकि तुम कहा करते हो, कि "हम ने मौत से 'अहद बाँधा, और पाताल से पैमान कर लिया है; जब सज़ा का सैलाब आएगा तो हम तक नहीं पहुँचेगा, क्यूँकि हम ने झूठ को अपनी पनाहगाह बनाया है और दरोग़गोई की आड़ में छिप गए हैं;"
\s5
\v 16 इसलिए~ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है देखो मैं सिय्यून~में बुनियाद के लिए एक पत्थर रख्खूँगा, आज़मूदा पत्थर मुहकम बुनियाद के लिए कोने के सिरे का क़ीमती पत्थर: जो कोई ईमान लाता है क़ायम रहेगा |
\s5
\v 17 और मैं 'अदालत को सूत, सदाक़त को साहूल बनाऊँगा; और ओले झूठ की पनाहगाह को साफ़ कर देंगे, और पानी छिपने के मकान पर फैल जायेगा|
\s5
\v 18 और तुम्हारा 'अहद जो मौत से हुआ मन्सूख़ हो जाएगा और तुम्हारा पैमान जो पाताल से हुआ क़ायम न रहेगा; जब सज़ा का सैलाब आएगा, तो तुम को पामाल करेगा।
\v 19 और ~गुज़रते वक़्त तुम को बहा ले जाएगा सुबह और शब-ओ-रोज़ आएगा ~बल्कि उसका ज़िक्र सुनना भी ख़ौफ़नाक होगा|
\s5
\v 20 ~क्यूँकि पलंग ऐसा छोटा है कि आदमी उस पर दराज़ नहीं हो सकता; और लिहाफ़ ऐसा तंग है कि वह अपने आपको उसमें लपेट नहीं सकता।
\v 21 क्यूँकि ख़ुदावन्द उठेगा जैसा कोह-ए-पराज़ीम में, और वह ग़ज़बनाक होगा जैसा जिबा'ऊन की वादी में; ताकि अपना काम बल्कि अपना 'अजीब काम करे और अपना काम, हाँ अपना अनोखा, काम पूरा करे।
\s5
\v 22 ~इसलिए अब तुम ठठ्ठा न करो, ऐसा न हो कि तुम्हारे बंद सख़्त हो जाएं क्यूँकि मैंने ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़्वाज से सुना है कि उसने कामिल और मुसमम्म इरादा किया है कि सारी सर ज़मीन को तबाह करे |
\s5
\v 23 कान लगा कर मेरी आवाज़ सुनो, सुनने वाले होकर मेरी बात पर दिल लगाओ।
\v 24 ~क्या किसान बोने के लिए हर रोज़ हल चलाया करता है? क्या वह हर वक़्त अपनी ज़मीन को खोदता और उसके ढेले फोड़ा करता है?
\s5
\v 25 ~जब उसको हमवार कर चुका, तो क्या वह अजवायन को नहीं छांटता, और ज़ीरे को डाल नहीं देता, और गेहूँ को कतारों में नहीं बोता, और जौ को उसके मु'अय्यन मकान में, और कठिया गेहूँ को उसकी ख़ास क्यारी में नहीं बोता?
\v 26 ~क्यूँकि उसका ख़ुदा उसको तरबियत करके उसे सिखाता है।
\s5
\v 27 कि अजवाइन को दावने के हेंगे से नहीं दावते, और ज़ीरे के ऊपर गाड़ी के पहिये नहीं घुमाते; बल्कि अजवाइन को लाठी से झाड़ते है और ज़ीरे को छड़ी से।
\v 28 ~रोटी के ग़ल्ले पर दाँय चलाता है,लेकिन वह हमेशा उसे कूटता नहीं रहता; और अपनी गाड़ी के पहियों और घोड़ों को उस पर हमेशा फिराता नहीं उसे सरासर नहीं कुचलेगा।
\s5
\v 29 ~यह भी रब्ब-उल-अफ़वाज से मुक़र्रर हुआ है, जिसकी मसलहत 'अजीब और दानाई 'अज़ीम है।
\s5
\c 29
\p
\v 1 ~अरीएल पर अफ़सोस अरीएल उस शहर पर जहाँ दाऊद ख़ेमाज़न हुआ साल पर साल ज़्यादा करो, 'ईद पर 'ईद मनाई जाए।
\v 2 तोभी मैं अरीएल को दुख दूँगा,~और वहाँ नौहा और मातम होगा लेकिन मेरे लिए वह अरीएल ही ठहरेगा।
\s5
\v 3 ~मैं तेरे ख़िलाफ़ चारों तरफ़ ख़ेमाज़न हूँगा और मोर्चा बंदी करके तेरा मुहासरा करूँगा और तेरे ख़िलाफ़ दमदमा बाँधूँगा |
\v 4 ~और तू पस्त होगा, और ज़मीन पर से बोलेगा, और ख़ाक पर से तेरी आवाज़ धीमी आयेगी तेरी सदा भूत की सी होगी जो ज़मीन के अन्दर से निकलेगी, और तेरी बोली ख़ाक पर से चुरुगने की आवाज़ मा'लूम होगी।
\s5
\v 5 ~लेकिन तेरे दुश्मनों का ग़ोल बारीक गर्द की तरह होगा, और उन ज़ालिमों के गिरोह उड़नेवाले भूसे की तरह होगी; और यह अचानक एक दम में वाके़' होगा
\v 6 रब्ब-उल-अफ़वाज ख़ुद गरजने और ज़लज़ले के साथ,और बड़ी आवाज़ और बड़ी आँधी और तूफ़ान और आग के मुहलिक़ शो'ले के साथ तुझे सज़ा देने को आएगा।
\s5
\v 7 ~और उन सब क़ौमों का गिरोह जो अरीएल से लड़ेगा, या'नी वह सब जो उससे और उसके क़िले' से जंग करेंगे और उसे दुख देंगे, ख़्वाब या रात के ख़्वाब की तरह हो जायेंगे |
\v 8 ~जैसे भूका आदमी ख़्वाब में देखे कि खा रहा है, जाग उठे और उसका जी न भरा हो; प्यासा आदमी ख़्वाब में देखे कि पानी पी रहा है, जाग उठे और प्यास से बेताब हो' उसकी जान आसूदा न हो; ऐसा ही उन सब क़ौमों के गिरोह का हाल होगा जो सिय्यून पहाड़ से जंग करती हैं।
\s5
\v 9 ठहर जाओ और त'अज्जुब करो, ऐश-ओ-'इशरत करो और अन्धे हो जाओ, वह मस्त हैं लेकिन मय से नहीं, वह लड़खड़ाते हैं लेकिन नशे में नहीं|
\v 10 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द ने तुम पर गहरी नींद की रूह भेजी है, और तुम्हारी आँखों या'नी नबियों को नाबीना कर दिया; और तुम्हारे सिरों या'नी ग़ैबबीनों पर हिजाब डाल दिया:
\s5
\v 11 और सारी रोया तुम्हारे नज़दीक सरबमुहर किताब के मज़मून की तरह होगी, जिसे लोग किसी पढ़े लिखे को दें और कहें कि इसको पढ़ और वह कहे, पढ़ नहीं सकता,क्यूँकि यह सर-ब-मुहर है|
\v 12 और ~फिर वह किताब किसी नाख़्वान्दा को दें और कहें, इसको पढ़ और वह कहे,मैं तो पढ़ना नहीं जानता।"
\s5
\v 13 फिर ख़ुदावन्द फ़रमाता है, चूँकि यह लोग ज़बान से मेरी नज़दीकी चाहते हैं और होठों से मेरी ता'ज़ीम करते हैं लेकिन इनके दिल मुझसे दूर हैं मेरा ख़ौफ़ जो इनको हुआ सिर्फ़ आदियों की ता'लीम सुनने से हुआ |
\v 14 ~इसलिए मैं इन लोगों के साथ 'अजीब सुलूक करूँगा, जो हैरत अंगेज़ और ता'अज्जुब ख़ेज़ होगा और इनके 'आक़िलों की 'अक़्ल ज़ायल हो जाएगी और इनके समझदारों की समझ जाती रहेगी।”
\s5
\v 15 उन पर अफ़सोस जो अपनी मश्वरत ख़ुदावन्द से छिपाते हैं', जिनका कारोबार अन्धेरे में होता है और कहते हैं, कौन हम को देखता है? कौन हम को पहचानता है?"
\s5
\v 16 ~आह तुम कैसे टेढे हो! क्या कुम्हार मिट्टी के बराबर गिना जाएगा या मसनू'अ अपने सानि'अ से कहेगा, कि मैं तेरी सन'अत नहीं क्या मख़लूक़ अपने ख़ालिक़ से कहेगा, कि तू कुछ नहीं जानता"?
\s5
\v 17 ~क्या थोड़ा ही 'अरसा बाक़ी नहीं कि लुबनान शादाब मैदान हो जाएगा, शादाब मैदान जंगल गिना जाएगा?
\v 18 ~और उस वक़्त बहरे किताब की बातें सुनेंगे और अंधों की आँखें तारीकी और अन्धेरे में से देखेंगी।
\v 19 तब ग़रीब ख़ुदावन्द में ज़्यादा ख़ुश होंगे~और ग़रीब मोहताज इस्राईल के क़ुद्दूस में शादमान होंगे |
\s5
\v 20 क्यूँकि ज़ालिम फ़ना हो जाएगा, और ठठ्ठा करनेवाला हलाक होगा; और सब जो बदकिरदारी के लिए बेदार रहते हैं, काट डाले जाएँगे;
\v 21 या'नी जो आदमी को उसके मुक़द्दमे में मुजरिम ठहराते, और उसके लिए जिसने 'अदालत से फाटक पर मुक़द्दमा फै़सल किया फंदा लगाते और रास्तबाज़ को बेवजह बरगश्ता करते हैं।
\s5
\v 22 इसलिए ख़ुदावन्द जो इब्राहीम का नजात देनेवाला है, या'क़ूब के ख़ान्दान के हक़ में यूँ फ़रमाता है, कि या'क़ूब अब शर्मिन्दा न होगा, वह हरगिज़ ज़र्द रू न होगा।
\v 23 बल्कि ~उसके फ़र्ज़न्द अपने बीच मेरी दस्तकारी देख कर मेरे नाम की तक़दीस करेंगे; हाँ या'क़ूब के क़ुद्दूस ~की तक़्दीस करेंगे और इस्राईल के ख़ुदा से डरेंगे।
\v 24 ~और वह भी जो रूह में गुमराह हैं, फ़हम हासिल करेंगे और बुड़बुड़ाने वाले ता'लीम पज़ीर होंगे।"
\s5
\c 30
\p
\v 1 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उन बाग़ी लड़कों पर अफ़सोस जो ऐसी तदबीर करते हैं जो मेरी तरफ़ से नहीं,और 'अहद-ओ-पेमान ~करते हैं जो मेरी रूह की हिदायत से नहीं; ताकि गुनाह पर गुनाह करें।
\v 2 वह मुझ से पूँछे बग़ैर मिस्र को जाते हैं ताकि फ़िर'औन के पास पनाह लें और मिस्र के साये में अम्न से रहें।
\s5
\v 3 लेकिन फ़िरऔन की हिमायत तुम्हारे लिए ख़जालत होगी और मिस्र के साये में पनाह लेना तुम्हारे वास्ते रुस्वाई होगा|
\v 4 ~क्यूँकि उसके सरदार जु़'अन में हैं और उसके कासिद हनीस में जा पहुँचे।
\v 5 ~वह उस क़ौम से जो उनको कुछ फ़ाइदा न पहुँचा सके, और मदद ओयारी नहीं बल्कि खजालत और मलामत का ज़रि'आ हो शर्मिन्दा होंगे।"
\s5
\v 6 दक्खिन के जानवरों के बारे में दुख और मुसीबत की सरज़मीन में, जहाँ से नर-ओ-मादा शेर-ए-बबर और अफ़'ई और उड़नेवाले आग के साँप आते हैं वह अपनी दौलत गधों की पीठ पर, और अपने ख़ज़ाने ऊँटों के कोहान पर लाद कर उस क़ौम के पास ले जाते हैं जिससे उनको कुछ फ़ायदा न पहुँचेगा।
\v 7 ~क्यूँकि मिस्रियों की मदद बातिल और बेफ़ायदा होगी, इसी वजह से मैंने उसे, राहब कहा जो सुस्त बैठी है।"
\s5
\v 8 ~अब जाकर उनके सामने इसे तख़्ती पर लिख और किताब में लिख ताकि आइन्दा हमेशा से हमेशा ~तक क़ायम रहे|
\v 9 क्यूँकि यह बाग़ी लोग और झूठे फ़र्ज़न्द हैं, जो ख़ुदावन्द की शरी'अत को सुनने से इन्कार करते हैं;
\s5
\v 10 जो गै़बबीनों से कहते हैं, "ग़ैबबीनी न करो," और नबियों से, कि "हम पर सच्ची नबुव्वतें ज़ाहिर न करो, हम को ~ ख़ुशगवार बातें सुनाओ, और हम से झूठी नबुव्वत करो,
\v 11 रास्ते से बाहर जाओ, रास्ते से बरगश्ता हो, और इस्राईल के क़ुद्दूस ~को हमारे बीच से ख़त्म करो।"
\s5
\v 12 ~फिर इस्राईल का क़ुददूस यूँ फ़रमाता है, "चूँकि ~तुम इस कलाम को हक़ीर जानते, और ज़ुल्म और कजरवी पर भरोसा रखते, और उसी पर क़ायम हो;
\v 13 इसलिए यह बदकिरदारी तुम्हारे लिए ऐसी होगी जैसे फटी हुई दीवार जो गिरना चाहती है ऊँची उभरी हुई दीवार जिसका गिरना अचानक एक दम में हो।
\s5
\v 14 ~वह इसे कुम्हार के बर्तन की तरह तोड़ डालेगा, इसे बे दरेग़ चकनाचूर करेगा; चुनाँचे ~इसके टुकड़ों में एक ठीकरा भी न मिलेगा जिसमें चूल्हे पर से आग उठाई जाए,या होज़ से पानी लिया जाए।"
\s5
\v 15 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द यहोवाह, इस्राईल का क़ुददूस यूँ फ़रमाता है, कि वापस आने और ख़ामोश बैठने में तुम्हारी सलामती है; ख़ामोशी और भरोसे में तुम्हारी ताक़त है।" लेकिन तुम ने यह न चाहा।
\v 16 ~तुम ने कहा, "नहीं, हम तो घोड़ों पर चढ़ के भागेंगे;" इसलिए तुम भागोगे; और कहा, "हम तेज़ रफ़्तार जानवरों पर सवार होंगे; "फिर तुम्हारा पीछा करनेवाले तेज़ रफ़्तार होंगे।
\s5
\v 17 एक की झिड़की से एक हज़ार भागेंगे पाँच की झिडकी से तुम ऐसा भागोगे कि तुम उस 'अलामत की तरह जो पहाड़ की चोटी पर और उस निशान की तरह जो कोह पर नसब किया गया हो रह जाओगे।
\s5
\v 18 ~तोभी ख़ुदावन्द तुम पर मेहरबानी करने के लिए इन्तिज़ार करेगा, और तुम पर रहम करने के लिए बुलन्द होगा। क्यूँकि ख़ुदावन्द ~इन्साफ़ करने वाला ख़ुदा है, मुबारक हैं वह सब जो उसका इन्तिज़ार करते हैं।
\v 19 क्यूँकि ऐ सिय्यूनी क़ौम, जो यरुशलीम में बसेगी,तो ~फिर न रोएगी; वह तेरी फ़रियाद की आवाज़ सुन कर यक़ीनन तुझ पर रहम फ़रमाएगा; वह सुनते ही तुझे जवाब देगा।
\s5
\v 20 और अगरचे ख़ुदावन्द तुझ को तंगी की रोटी और मुसीबत का पानी देता है, तोभी तेरा मु'अल्लिम फिर तुझ से रूपोश न होगा; बल्कि तेरी ऑखें उसको देखेंगी।
\v 21 और जब तू दहनी या बाँई तरफ़ मुड़े, तो तेरे कान तेरे पीछे से यह आवाज़ सुनेंगे, कि "राह यही है, इस पर चल।”
\s5
\v 22 उस ~वक़्त तू अपनी खोदी हुई मूरतों पर मढ़ी हुई चाँदी, और ढाले हुए बुतों पर चढ़े हुए सोने को नापाक करेगा। तू उसे हैज़ के लते की तरह फेंक देगा तू उसे कहेगा, निकल दूर हो|
\s5
\v 23 ~तब वह तेरे बीज के लिए जो तू ज़मीन में बोए, बारिश भेजेगा; और ज़मीन की अफ़ज़ाइश की रोटी का ग़ल्ला, 'उम्दा और कसरत से होगा। उस वक़्त तेरे जानवर वसी' चरागाहों में चरेंगे।
\v 24 और ~बैल और जवान गधे जिनसे ज़मीन जोती जाती है, लज़ीज़ चारा खाएँगे जो बेल्चे और छाज से फटका गया हो।
\s5
\v 25 ~और जब बुर्ज गिर जाएँगे और बड़ी ख़ूँरेज़ी होगी, तो हर एक ऊँचे पहाड़ और बुलन्द टीले पर चश्मे और पानी की नदियाँ होंगी।
\v 26 ~और जिस वक़्त ख़ुदावन्द अपने लोगों की शिकस्तगी को दुरुस्त करेगा और उनके ज़ख़्मों को अच्छा करेगा; तो चाँद की चाँदनी ऐसी होगी जैसी सूरज की रोशनी, और सूरज की रोशनी सात गुनी बल्कि सात दिन की रोशनी के बराबर होगी।
\s5
\v 27 देखो ख़ुदावन्द दूर से चला आता है, उसका ग़ज़ब भड़का और धुंवें का बादल उठा उसके लब क़हर आलूदा और उसकी ज़बान भसम करने वाली आग की तरह है|
\v 28 ~उसका दम नदी के सैलाब की तरह है, जो गर्दन तक पहुँच जाए; वह क़ौमों को हलाकत के छाज में फटकेगा और लोगों के जबड़ों में लगाम डालेगा, ताकि उनको गुमराह करे।
\s5
\v 29 ~तब तुम गीत गाओगे, जैसे उस रात गाते हो जब मुक़द्दस 'ईद मनाते हो; और दिल की ऐसी ख़ुशी होगी जैसी उस शख़्स की जो बाँसुरी लिए हुए खिरामान हो कि ख़ुदावन्द के पहाड़ में इस्राईल की चट्टान के पास जाए।
\s5
\v 30 क्यूँकि ख़ुदावन्द अपनी जलाली आवाज़ सुनाएगा,~और अपने क़हर की शिद्दत और आतिश-ए-सोज़ान के शो'ले,~और सैलाब और आँधी और ओलों के साथ अपना बाज़ू नीचे लाएगा।
\s5
\v 31 हाँ ख़ुदावन्द की आवाज़ ही से असूर तबाह हो जाएगा वह उसे लठ से मारेगा।
\v 32 और उस क़ज़ा के लठ की हर एक ज़र्ब जो ख़ुदावन्द उस पर लगाएगा,~दफ़ और बरबत के साथ होगी और वह उससे सख़्त लड़ाई लड़ेगा।
\s5
\v 33 क्यूँकि तूफ़त मुद्दत से तैयार किया गया है;~हाँ, वह बादशाह के लिए गहरा और वसी'~बनाया गया है;~उसका ढेर आग और बहुत सा ईधन है,~और ख़ुदावन्द की साँस गन्धक के सैलाब की तरह उसको सुलगाती है।
\s5
\c 31
\p
\v 1 ~उसपर अफ़सोस, जो मदद के लिए मिस्र को जाते और घोड़ों पर एतमाद करते हैं और रथों पर भरोसा रखते हैं इसलिए कि वह बहुत हैं, और सवारों पर इसलिए कि वह बहुत ताक़तवर हैं; लेकिन इस्राईल के क़ुददूस पर निगाह नहीं करते और ख़ुदावन्द के तालिब नहीं होते।
\v 2 ~लेकिन वह भी तो 'अक़्लमन्द है और बला नाज़िल करेगा, और अपने कलाम को बातिल न होने देगा वह शरीरों के घराने पर और उन पर जो बदकिरदारों की हिमायत करते हैं चढ़ाई करेगा|
\s5
\v 3 ~क्यूँकि मिस्री तो इन्सान हैं ख़ुदा नहीं। और उनके घोड़े गोश्त हैं रूह नहीं सो जब ख़ुदावन्द अपना हाथ बढ़ाएगा तो हिमायती गिर जाएगा , और वह जिसकी हिमायत की गई पस्त हो जाएगा, और वह सब के सब इकट्ठे हलाक हो जायेंगे |
\s5
\v 4 क्यूँकि ~ख़ुदावन्द ने मुझ से यूँ फ़रमाया है कि जिस तरह शेर बबर हाँ जवान शेर बबर अपने शिकार पर से ग़ुर्राता है और अगर बहुत से गड़रिये उसके मुक़ाबिले को बुलाए जाएँ तो उनकी ललकार से नहीं डरता,और ~उनके हुजूम से दब नहीं जाता; उसी तरह रब्ब-उल-अफ़वाज सिय्यून पहाड़ और उसके टीले पर लड़ने को उतरेगा |
\s5
\v 5 ~मंडलाते हुए परिन्दे की तरह रब्ब-उल-अफ़्वाज यरुशलीम की हिमायत करेगा;वह ~हिमायत करेगा और रिहाई बख़्शेगा, रहम करेगा और बचा लेगा।”
\v 6 ~ऐ बनी इस्राईल तुम उसकी तरफ़ फिरो जिससे तुम ने सख़्त बग़ावत की है।
\v 7 ~क्यूँकि उस वक़्त उनमें से हर एक अपने चाँदी के बुत और अपनी सोने की मूरतें, जिनको तुम्हारे हाथों ने ख़ताकारी के लिए बनाया, निकाल फेंकेगा
\v 8 ~तब असूर उसी तलवार से गिर जाएगा जो इन्सान की नहीं, और वही तलवार जो आदमी की नहीं उसे हलाक करेगी; वह तलवार के सामने से भागेगा और उसके जवान मर्द ख़िराज गुज़ार बनेंगे |
\v 9 ~और वह ख़ौफ़ की वजह से अपने हसीन मकान से गुज़र जाएगा, और उसके सरदार झण्डे से ख़ौफ़ज़दह हो जाएँगे," ये ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जिसकी आग सिय्यून में और भट्टी यरुशलीम में है।
\s5
\c 32
\p
\v 1 ~देख एक बादशाह सदाक़त से सल्तनत करेगा और शहज़ादे 'अदालत से हुक्मरानी करेंगे।
\v 2 और ~एक शख़्स ऑधी से पनाहगाह की तरह होगा, और तूफ़ान से छिपने की जगह; और ख़ुश्क ज़मीन में पानी की नदियों की तरह और मान्दिगी की ज़मीन में ~बड़ी चट्टान के साये की तरह होगा
\v 3 ~उस वक़्त देखनेवालों की आँखें धुन्धली न होंगी, और सुननेवालों के कान सुनने वाले होंगे |
\s5
\v 4 जल्दबाज़ ~का दिल इरफ़ान हासिल करेगा, और लुकनती की ज़बान साफ़ बोलने में मुस्त'इद होगी।
\v 5 ~तब बेवक़ूफ़ बा-मुरव्वत न कहलाएगा और बख़ील को कोई सखी न कहेगा।
\v 6 ~क्यूँकि बेवक़ूफ़ हिमाक़त की बातें करेगा और उसका दिल बदी का मंसूबा बाँधेगा कि बेदीनी करे और ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ दरोग़गोई करे और भूके के पेट को ख़ाली करे और प्यासे को पानी से महरूम रख्खे
\s5
\v 7 ~और बख़ील के हथियार ज़बून हैं; वह बुरे मंसूबे बाँधा करता है ताकि झूटी बातों से ग़रीब को और मोहताज को, जब कि ~ वह हक़ बयान करता हो, हलाक करे |
\v 8 ~लेकिन साहब-ए-मुरव्वत सख़ावत की बातें सोचता है, और वह सख़ावत के कामों में साबित क़दम रहेगा।
\s5
\v 9 ~ऐ 'औरतों तुम जो आराम में हो, उठो मेरी आवाज़ सुनो;ऐ बे परवा बेटियो, मेरी बातों पर कान लगाओ।
\v 10 ~ऐ बे परवाह 'औरतो, साल से कुछ ज़्यादा 'अर्से में तुम बेआराम हो जाओगी; क्यूँकि अंगूर की फ़स्ल जाती रहेगी फल जमा' करने की नौबत न आयेगी |
\s5
\v 11 ऐ 'औरतों तुम जो आराम में हो थरथराओ , ऐ बेपर्वाओ मुज़्तरिब हो कपड़े उतार कर बरहना हो जाओ, कमर पर टाट बाँधो।
\v 12 वह ~दिल पज़ीर खेतों और मेवादार ताकों के लिए छाती पीटेंगी।
\v 13 ~मेरे लोगों की सर ज़मीन में काँटे और झाड़ियाँ होंगी बल्कि ख़ुशवक़्त शहर के तमाम ख़ुश घरों में भी।
\s5
\v 14 ~क्यूँकि क़स्र ~ख़ाली हो जाएगा,और आबाद शहर तर्क ~किया जाएगा; 'ओफल और दीद बानी का बुर्ज हमेशा तक मांद बनकर गोख़रों की आरामगाहें और गल्लों की चरागाहें होंगे |
\v 15 ~ता वक़्त ये कि आलम-ए-बाला~से हम पर रूह नाज़िल न हो और वीरान शादाब मैदान न बने, और शादाब मैदान जंगल न गिना जाए।
\s5
\v 16 तब ~वीरान में 'अद्ल बसेगा और सदाक़त शादाब मैदान में रहा करेगी।
\v 17 ~और सदाक़त का अंजाम सुलह होगा, और सदाक़त का फल हमेशा आराम-ओ-इत्मीनान होगा
\v 18 ~और मेरे लोग सलामती के मकानों में और बेख़तर घरों में, और आसूदगी और आसाइश के काशानों में रहेंगे |
\s5
\v 19 ~लेकिन जंगल की बर्बादी के वक़्त ओले पड़ेंगे औए शहर बिलकुल पस्त हो जायेगा |
\v 20 ~तुम ख़ुशनसीब हो, जो सब नहरों के आसपास बोते हो और बैलों और गधों को उधर ले जाते हो |
\s5
\c 33
\p
\v 1 ~तुझ पर अफ़सोस कि तू ग़ारत करता है, और ~ग़ारत न किया गया था! तू दगाबाज़ी करता है और किसी ने तुझ से दग़ाबाज़ी न की थी? जब तू ग़ारत~कर चुकेगा तो तू~ग़ारत~ किया जाएगा; और जब तू दग़ाबाज़ी कर चुकेगा, तो और लोग तुझ से दग़ाबाज़ी करेंगे।
\s5
\v 2 ऐ ख़ुदावन्द हम ~पर रहम कर; क्यूँकि ~हम तेरे मुन्तज़िर हैं। तू हर सुबह उनका बाज़ू हो और मुसीबत के वक़्त हमारी नजात।
\s5
\v 3 हंगामे ~की आवाज़ सुनते ही लोग भाग गए, तेरे उठते ही क़ौमें तितर-बितर हो गई।
\v 4 और ~तुम्हारी लूट का माल इसी तरह बटोरा जायेगा जिस तरह कीड़े बटोर लेते हैं, लोग उस पर टिड्डी की तरह टूट पड़ेंगे।
\s5
\v 5 ख़ुदावन्द ~सरफ़राज़ है, क्यूँकि वह बलन्दी पर रहता है; उसने 'अदालत और सदाक़त से सिय्यून को मा'मूर कर दिया है।
\v 6 और तेरे ज़माने में अमन होगा नजात व हिकमत और 'अक़्ल ~की फ़िरावानी होगी;~ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ उसका ख़ज़ाना है।
\s5
\v 7 ~देख उनके बहादुर बाहर फ़रियाद करते हैं और सुलह के क़ासिद फूट-फूटकर रोते हैं।
\v 8 ~शाहराहें सुनसान हैं,कोई ~चलनेवाला न रहा; उसने 'अहद शिकनी की शहरों को हक़ीर जाना,और ~इन्सान को हिसाब में नहीं लाता |
\s5
\v 9 ~ज़मीन कुढ़ती और मुरझाती है। लुबनान रुस्वा हुआ और मुरझा गया,शादून वीराने की तरह है; बसन और कर्मिल बे-बर्ग हो गए |
\s5
\v 10 ख़ुदावन्द~फ़रमाता है, अब मैं उठूँगा; अब मैं सरफ़राज़ हूँगा; अब मैं सर बलन्द हूँगा।
\v 11 ~तुम भूसे से बारदार होगे, फूस तुम से पैदा होगा; तुम्हारा दम आग की तरह तुम को भसम करेगा।
\v 12 और ~लोग जले चूने की तरह होंगे; वह उन काँटों की तरह होंगे,जो ~काटकर आग में जलाए जाएँ।”
\s5
\v 13 तुम जो दूर हो, सुनो कि मैंने क्या किया; और तुम जो नज़दीक हो, मेरी क़ुदरत का इक़रार करो।
\v 14 ~ वह गुनाहगार जो सिय्यून में हैं डर गए; कपकपी ने बेदीनों को आ दबाया है : 'कौन हम में से उस मुहलिक़ आग में रह सकता है? और कौन हम में से हमेशा के शो'लों के बीच बस सकता है?"
\s5
\v 15 जो रास्तरफ़्तार और दुरुस्तगुफ़्तार हैं जो ~ज़ुल्म के नफ़े' हक़ीर जानता है, जो रिश्वत से दस्तबरदार है, जो अपने कान बन्द करता है ताकि ख़ूँरेज़ी के मज़मून न सुने, और आँखें मून्दता है ताकि बुराई न देखे।
\v 16 वह बलन्दी पर रहेगा, उसकी पनाहगाह पहाड़ का क़िला' होगी, उसको रोटी दी जाएगी, उसका पानी मुक़र्रर होगा।
\s5
\v 17 ~तेरी आँखें बादशाह का जमाल देखेंगी: वह बहुत दूर तक वसी' मुल्क पर नज़र करेंगी।
\v 18 ~तेरा दिल उस दहशत पर सोचेगा कहाँ है वह गिनने वाला कहाँ हैं वह ~तोलनेवाला? कहाँ है वह जो बुर्जों को गिनता था?
\v 19 तू ~फिर उन तुन्दर्खूँ लोगों को न देखेगा जिनकी बोली तू समझ नहीं सकता उनकी ज़बान बेगाना है जो तेरी समझ में नहीं आती।
\s5
\v 20 ~हमारी ईदगाह सिय्यून पर नज़र कर; तेरी आँखें यरुशलीम को देखेंगी जो सलामती का मक़ाम है, बल्कि ऐसा ख़ेमा जो हिलाया न जाएगा, जिसकी मेख़ों में से एक भी उखाड़ी न जाएगी, और उसकी डोरियों में से एक भी तोड़ी न जाएगी।
\v 21 ~बल्कि वहाँ ज़ुलजलाल ख़ुदावन्द, बड़ी नदियों और नहरों के बदले हमारी गुन्जाइश के लिए आप मौजूद होगा कि वहाँ डॉंड की कोई नाव न जाएगी, और न शानदार जहाज़ों का गुज़र उसमें होगा।
\s5
\v 22 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द हमारा हाकिम है,ख़ुदावन्द हमारा शरी'अत देने वाला है~ख़ुदावन्द हमारा बादशाह है~~वही हम को बचाएगा।
\s5
\v 23 ~तेरी रस्सियाँ ढीली हैं; लोग मस्तूल की चूल को मज़बूत न कर सके, वह बादबान न फैला सके; सो लूट का वाफ़िर माल तक़सीम किया गया, लंगड़े भी ग़नीमत पर क़ाबिज़ हो गए।
\v 24 वहाँ के बाशिन्दों में भी कोई न कहेगा, कि ‘मैं बीमार हूँ;"~और उनके गुनाह बख़्शे जाएँगे।
\s5
\c 34
\p
\v 1 ~ऐ क़ौमों नज़दीक आकर सुनो, ऐ उम्मतों कान लगाओ ! ज़मीन और उसकी मा'मूरी, दुनिया और सब चीजें जो उसमें हैं सुने ,
\v 2 क्यूँकि ~ख़ुदावन्द का क़हर तमाम क़ौमों पर और उसका ग़ज़ब उनकी सब फ़ौजों पर है;उसने ~उनको हलाक कर दिया, उसने उनको ज़बह होने के लिए हवाले किया|
\s5
\v 3 ~और उनके मक़तूल फेंक दिए जायेंगे बल्कि उनकी लाशों से बदबू उठेगी और पहाड़ उनके ख़ून से बह जाएँगे।
\v 4 और ~तमाम अजराम-ए-फ़लक गुदाज़ हो जायेंगे और आसमान तूमार की ~तरह लपेटे जाएँगे; और उनकी तमाम अफ़्वाज ~ताक और अंजीर के मुरझाये हुए पत्तों की तरह गिर जाएँगी।
\s5
\v 5 ~क्यूँकि मेरी तलवार आसमान में मस्त हो गई है; देखो, वह अदोम पर और उन लोगों पर जिनको मैंने मल'ऊन किया है सज़ा देने को नाज़िल होगी।
\v 6 ख़ुदावन्द की तलवार ख़ून आलूदा है; वह चर्बी ~और बर्रों और बकरों के ख़ून से, और मेढ़ों के गुर्दों ~की चर्बी से चिकना गई। क्यूँकि ख़ुदावन्द के लिए बुसराह में एक क़ुर्बानी और अदोम के मुल्क में बड़ी ख़ूँरेज़ी है।
\s5
\v 7 ~और उनके साथ जंगली साँड और बछड़े और बैल ज़बह होंगे और उनका मुल्क ख़ून से सेराब हो जाएगा और उनकी गर्द चर्बी ~से चिकना जाएगी।
\s5
\v 8 ~क्यूँकि ये ख़ुदावन्द का इन्तक़ाम लेने का दिन और बदला लेने का साल है, जिसमें वह सिय्यून का इन्साफ़ करेगा।
\v 9 ~और उसकी नदियाँ राल होजाएगी और उसकी ख़ाक गंधक और उसकी ज़मीन जलती हुई राल होगी।
\v 10 ~जो शब-ओ-रोज़ कभी न बुझेगी; उससे हमेशा तक धुँवा उठता रहेगा। नस्ल-दर-नस्ल वह उजाड़ रहेगी, हमेशा से हमेशा तक कोई उधर से न गुज़रेगा।
\s5
\v 11 ~लेकिन हवासिल और ख़ारपुश्त उसके मालिक होंगे उल्लू और कौवे उसमें बसेंगे; और उस पर वीरानी का सूत' पड़ेगा, और सुनसानी का साहूल डाला जाएगा।
\v 12 उसके ~अशराफ़ में से कोई न होगा जिसे वह बुलाएँ कि हुक्मरानी करे और उसके सब सरदार नाचीज़ होंगे।
\s5
\v 13 ~और उसके क़स्रों ~में कॉटे और उसके क़िलों' में बिच्छू बूटी और ऊँट कटारे उगेंगे और वह गीदड़ों की माँदें और शुतरमुर्ग़ के रहने का मक़ाम होगा|
\v 14 ~और दश्ती दरिन्दे भेड़ियों से मुलाक़ात करेंगे और छगमास अपने साथी को पुकारेगा;हाँ इफ़रात-ए-शब ~वहाँ आराम करेगा और अपने टिकने की जगह पायेगा |
\v 15 ~वहाँ उड़नेवाले साँप का आशियाना होगा और अंडे देना और सैना और अपने साए में जमा' करना होगा वहाँ गिद्ध जमा' होंगे और हर एक के साथ उसकी मादा होगी।
\s5
\v 16 तुम ख़ुदावन्द की किताब में ढूंडो और पढ़ो ~: इनमें से एक भी कम न होगा, और कोई बेजुफ़्त न होगा; क्यूँकि मेरे मुँह ने यही हुक्म किया है और उसकी रूह ने इनको जमा' किया है।
\v 17 ~और उसने इनके लिए पर्ची डाली और उसके हाथ ने इनके लिए उसको ~जरीब से तक़सीम किया। इसलिए वह हमेशा तक उसके मालिक होंगे और नसल दर नसल उसमें बसेगे।
\s5
\c 35
\p
\v 1 ~जंगल और वीराना शादमान होंगे दश्त ~ख़ुशी करेगा और नरगिस की तरह शगुफ़्ता होगा।
\v 2 उसमें कसरत से कलियाँ निकलेंगी, वह शादमानी से गा कर ख़ुशी करेगा। लुबनान की शौकत और कर्मिल और शारून की ज़ीनत उसे दी जाएगी; वह ख़ुदावन्द का जलाल और हमारे ख़ुदा की हश्मत देखेंगे।
\s5
\v 3 ~कमज़ोर हाथों को ताक़त और नातवान घुटनों को तवानाई दो।
\v 4 उनको ~जो घबराने वाले हैं कहो, हिम्मत बांधो मत डरो देखो तुम्हारा ख़ुदा सज़ा और जज़ा लिए आता है। हाँ, ख़ुदा ही आएगा और तुम को बचाएगा।"
\s5
\v 5 ~उस वक़्त अन्धों की आँखें खोली जायेगी और बहरों के कान खोले जाएँगे।
\v 6 तब ~लंगड़े हरन की तरह चौकड़ियाँ भरेंगे और गूँगे की ज़बान गाएगी क्यूँकि वीरान में पानी और दश्त में नदियाँ फूट निकलेंगी।
\v 7 बल्कि ~सराब तालाब हो जाएगा और प्यासी ज़मीन चश्मा बन जाएगी; गीदड़ों की मान्दों में जहाँ वह पड़े थे ने और नल का ठिकाना होगा।
\s5
\v 8 और ~वहाँ एक शाहराह और गुज़रगाह होगी जो पाक राह कहलाएगी; जिससे कोई नापाक गुज़र न करेगा लेकिन ये मुसाफ़िरों के लिए होगी, बेवक़ूफ़ भी उसमें गुमराह न होंगे।
\v 9 ~वहाँ शेर बबर न होगा और न कोई दरिन्दा उस पर चढ़ेगा न वहाँ पाया जाएगा; लेकिन जिनका फ़िदया दिया गया वहाँ सैर करेंगे |
\s5
\v 10 और ~जिनको ख़ुदावन्द ने मख़लसी बख़्शी लौटेंगे और सिय्यून में गाते हुए आएँगे, और हमेशा सुरूर उनके सिरों पर होगा वह ख़ुशी और शादमानी हासिल करेंगे, और ग़म व अंदोह काफू़र हो जाएँगे।
\s5
\c 36
\p
\v 1 और ~हिज़क़ियाह बादशाह की सल्तनत के चौदहवें बरस यूँ हुआ कि शाह-ए-असूर ~सनहेरिब ने यहूदाह के सब फ़सीलदार शहरों पर चढ़ाई की और उनको ले लिया।
\v 2 और~शाह-ए-असूर~~ने रबशाक़ी को एक बड़े लश्कर के साथ लकीस से हिज़क़ियाह के पास यरुशलीम को भेजा, और उसने ऊपर के तालाब की नाली पर धोबियों के मैदान की राह में मक़ाम किया।
\v 3 ~तब इलयाक़ीम बिन ख़िलक़ियाह जो घर का दीवान था, और शबनाह मुंशी और मुहर्रिर यूआख़ बिन आसिफ़ निकल कर उसके पास आए।
\s5
\v 4 ~और रबशाक़ी ने उनसे कहा,तुम ~हिज़क़ियाह से कहो : कि मलिक-ए-मु'अज्ज़म शाह-ए-असूर यूँ ~फ़रमाता है कि तू क्या एतमाद किए बैठा है?
\v 5 ~क्या मशवरत और जंग की ताक़त मुँह की बातें ही हैं आख़िर किस के भरोसे पर तूने मुझ से सरकशी की है?
\s5
\v 6 ~देख, तुझे उस मसले हुए सरकंडे के 'असा या'नी मिस्र पर भरोसा है; उस पर अगर कोई टेक लगाए, तो वह उसके हाथ में गड़ जाएगा और उसे छेद देगा। शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन उन सब के लिए, जो उस पर भरोसा करते हैं ऐसा ही है।
\v 7 फ़िर अगर तू मुझ से यूँ कहे कि हमारा तवक्कुल ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा पर है,तो क्या वह वही नहीं है जिसके ऊँचे मक़ामों और मज़बहों को ढाकर हिज़क़ियाह ने यहूदाह और यरुशलीम से कहा है कि तुम इस मज़बह के आगे सिज्दा किया करो|
\s5
\v 8 ~इसलिए अब ज़रा मेरे आक़ा शाह-ए-असूर के साथ शर्त बाँध और मैं तुझे दो हज़ार घोड़े दूँगा, बशर्ते कि तू अपनी तरफ़ से उन पर सवार चढ़ा सके।
\s5
\v 9 ~भला तू क्यूँकर मेरे आक़ा के कमतरीन मुलाज़िमों में से एक सरदार का भी मुँह फेर सकता है? और तू रथों और सवारों के लिए मिस्र पर भरोसा करता है?
\v 10 ~और क्या अब मैंने ख़ुदावन्द के बे कहे ही इस मक़ाम को ग़ारत करने के लिए इस पर चढ़ाई की है? ख़ुदावन्द ही ने तो मुझ से कहा कि इस मुल्क पर चढ़ाई कर और इसे ग़ारत करदे
\s5
\v 11 ~तब इलियाक़ीम और शबनाह और यूआख़ ने रबशाक़ी से 'अर्ज़ की कि अपने ख़ादिमों से अरामी ज़बान में बात कर, क्यूँकि हम उसे समझते हैं, और दीवार पर के लोगों के सुनते हुए यहूदियों की ज़बान में हम से बात न कर।"
\v 12 लेकिन रबशाक़ी ने कहा, "क्या मेरे आक़ा ने मुझे ये बातें कहने को तेरे आक़ा के पास या तेरे पास भेजा है? क्या उसने मुझे उन लोगों के पास नहीं भेजा, जो तुम्हारे साथ अपनी ही नजासत खाने और अपना ही क़ारूरा पीने को दीवार पर बैठे हैं?
\s5
\v 13 ~फिर रबशाक़ी खड़ा हो गया और यहूदियों की ज़बान में बलन्द आवाज़ से यूँ कहने लगा, कि मुल्क-ए-मु'अज्ज़म शाह-ए-असूर का कलाम सुनो!
\v 14 ~ बादशाह यूँ फ़रमाता है : कि हिज़क़ियाह तुम को धोखा न दे, क्यूँकि वह तुम को छुड़ा नहीं सकेगा।
\v 15 ~और न वह ये कह कर तुम से ख़ुदावन्द पर भरोसा कराए कि ख़ुदावन्द ज़रूर हम को छुड़ाएगा, और ये शहर शाह-ए-असूर के हवाले न किया जाएगा।
\s5
\v 16 हिज़क़ियाह~की न सुनो; क्यूँकि~ शाह-ए-असूर यूँ फ़रमाता है कि तुम मुझ से सुलह कर लो,और ~निकलकर मेरे पास आओ; तुम में से हर एक अपनी ताक और अपने अँजीर के दरख़्त का मेवा खाता और अपने हौज़ का पानी पीता रहे।
\v 17 जब तक कि मैं आकर तुम को ऐसे मुल्क में न ले जाऊँ, जो तुम्हारे मुल्क की तरह ग़ल्ला ~और मय का मुल्क, रोटी और ताकिस्तानों का मुल्क है।
\s5
\v 18 ~ख़बरदार ऐसा न हो कि हिज़क़ियाह तुम को ये कह कर तरग़ीब दे, कि ख़ुदावन्द हम को छुड़ाएगा। क्या क़ौमों के मा'बूदों में से किसी ने भी अपने मुल्क को~ शाह-ए-असूर के हाथ से छुड़ाया है?
\v 19 ~हमात और अरफ़ाद के मा'बूद कहाँ हैं? सिफ़वाईम के मा'बूद कहाँ हैं? क्या उन्होंने सामरिया को मेरे हाथ से बचा लिया?
\v 20 ~इन मुल्कों के तमाम मा'बूदों में से किस किस ने अपना मुल्क मेरे हाथ से छुड़ा लिया, जो ख़ुदावन्द भी यरुशलीम को मेरे हाथ से छुड़ा लेगा?" "
\s5
\v 21 ~लेकिन वह ख़ामोश रहे और उसके जवाब में उन्होंने एक बात भी न कही; क्यूँकि बादशाह का हुक्म ये था कि उसे जवाब न देना।
\v 22 ~और इलियाक़ीम-बिन-ख़िलक़ियाह जो घर का दीवान था, और शबनाह मुंशी और यूआख़-बिन-आसफ़ मुहर्रिर अपने कपड़े चाक किए हुए हिज़क़ियाह के पास आए और रबशाक़ी की बातें उसे सुनाई।
\s5
\c 37
\p
\v 1 जब हिज़क़ियाह बादशाह ने ये सुना तो अपने कपड़े फाड़े और टाट ओढ़कर ~ख़ुदावन्द के घर में गया।
\v 2 और उसने घर के दीवान इलियाक़ीम और शबनाह मुंशी और काहिनों के बुज़ुर्गों को टाट उढ़ा कर आमूस के बेटे यसा'याह नबी के पास भेजा।
\s5
\v 3 ~और उनहोंने उससे कहा कि~हिज़क़ियाह यूँ कहता है कि आज का~दिन दुख और मलामत और तौहीन का दिन है क्यूँकि बच्चे पैदा होने पर हैं और विलादत की ताक़त नहीं।
\v 4 ~शायद ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा रबशाक़ी की बातें सुनेगा जिसे उसके आक़ा~शाह-ए-असूर ने भेजा है कि ज़िन्दा ख़ुदा की तौहीन करे; और जो बातें ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने सुनीं, उनपर वह मलामत करेगा। फिर तू उस बक़िये के लिए जो मौजूद है दू'आ कर | ''
\s5
\v 5 ~तब ~हिज़क़ियाह बादशाह के मुलाज़िम यसा'याह के पास आए।
\v 6 और यसा'याह ने उनसे कहा, "तुम अपने आक़ा से यूँ कहना, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू उन बातों से जो तूने सुनी हैं,~जिनसे शाह-ए-असूर के मुलाज़िमों ने मेरी तकफ़ीर की है,~परेशान न हो।
\v 7 ~देख मैं उसमें एक रूह डाल दूँगा,और वह एक अफ़वाह सुनकर अपने मुल्क को लौट जाएगा, मैं उसे उसी के मुल्क में तलवार से मरवा डालूँगा।'
\s5
\v 8 इसलिए रबशाक़ी लौट गया और उसने~शाह-ए-असूर को लिबनाह से लड़ते पाया, क्यूँकि उसने सुना था कि वह लकीस से चला गया है।
\v 9 और उसने कूश के बादशाह तिरहाक़ा के ज़रिए' सुना कि वह तुझ से लड़ने को निकला है; और जब उसने ये सुना, तो हिज़क़ियाह के पास क़ासिद भेजे और कहा,
\v 10 ~"शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह से यूँ कहना, कि तेरा ख़ुदा जिस पर तेरा यक़ीन है, तुझे ये कह कर धोखा न दे कि यरुशलीम शाह-ए-असूर के क़ब्ज़े में न किया जाएगा।
\s5
\v 11 देख तूने सुना है कि असूर के बादशाहों ने तमाम मुल्कों को बिलकुल ग़ारत करके उनका क्या हाल बनाया है; इसलिए क्या तू बचा रहेगा?
\v 12 क्या ~उन क़ौमों के मा'बूदों ने उनको, या'नी जूज़ान और हारान और रसफ़ और बनी 'अदन को जो तिलसार में थे, जिनको हमारे बाप-दादा ने हलाक किया, छुड़ाया|
\v 13 ~हमात का बादशाह, और अरफ़ाद का बादशाह, और शहर सिफ्रवाईम और हेना' और 'इवाह का बादशाह कहाँ है|
\s5
\v 14 हिज़क़ियाह~ने क़ासिदों के हाथ से ख़त लिया और उसे पढ़ा और~हिज़क़ियाह ने ~ख़ुदावन्द के घर जाकर उसे ख़ुदावन्द के सामने फैला दिया।
\v 15 ~और हिज़क़ियाह ने ख़ुदावन्द से यूँ दु'आ की,
\v 16 ~"ऐ रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल के ख़ुदा करूबियों के ऊपर बैठनेवाले; तू ही अकेला ज़मीन की सब सल्तनतों का ख़ुदा है, तू ही ने आसमान और ज़मीन को पैदा किया।
\s5
\v 17 ~ऐ ख़ुदावन्द कान लगा और सुन; ऐ ख़ुदावन्द अपनी आँखें खोल और देख;और ~सनहेरिब की इन सब बातों को जो उसने ज़िन्दा ख़ुदा की तौहीन करने के लिए कहला भेजी हैं,सुनले
\v 18 ~ऐ ख़ुदावन्द, दर-हक़ीक़त असूर के बादशाहों ने सब क़ौमों को उनके मुल्कों" के साथ तबाह किया,
\s5
\v 19 और उनके मा'बूदों को आग में डाला, क्यूँकि वह ख़ुदा न थे बल्कि आदमियों की दस्तकारी थे, लकड़ी और पत्थर; इसलिए उन्होंने उनको हलाक किया है।
\v 20 इसलिए अब ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा, हम को उसके हाथ से बचा ले, ताकि ज़मीन की सब सल्तनतें जान लें कि तू ही अकेला ख़ुदावन्द है।
\s5
\v 21 ~तब यसा'याह बिन आमूस ने हिज़क़ियाह को कहला भेजा,कि ख़ुदावन्द ~इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है ~चूँकि तूने शाह-ए-असूर सनहेरिब के ख़िलाफ़ मुझ से दु'आ की है,
\v 22 ~इसलिए ख़ुदावन्द ने उसके हक़ में यूँ फ़रमाया है, कि 'कुँवारी दुख़्तर-ए-सिय्यून ने तेरी तहक़ीर की और तेरा मज़ाक़ उड़ाया है। यरुशलीम की बेटी ने तुझ पर सिर हिलाया है।
\v 23 ~तूने किस की तौहीन-ओ-तक्फ़ीर की है? तूने किसके ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बलन्द की और अपनी आँखें ऊपर उठाई? इस्राईल के क़ुददूस के ख़िलाफ़।
\s5
\v 24 ~तूने अपने ख़ादिमों के ज़रीए से ख़ुदावन्द की तौहीन की और कहा कि मैं अपने बहुत से रथों को साथ लेकर पहाड़ों की चोटियों पर बल्कि लुबनान के बीच ~हिस्सों तक चढ़ आया हूँ, और मैं उसके ऊँचे ऊँचे देवदारों और अच्छे से अच्छे सनोबर के दरख़्तों को काट डालूँगा, और मैं उसके चोटी पर के ज़रखे़ज़ जंगल में जा घुसूंगा।
\v 25 ~मैंने खोद खोद कर पानी पिया है और मैं अपने पाँव के तल्वे से मिस्र की सब नदियाँ सुखा डालूँगा।
\s5
\v 26 ~क्या तूने नहीं सुना कि मुझे ये किए हुए मुद्दत हुई;~और मैंने पिछले दिनों से ठहरा दिया था?~अब मैंने उसी को पूरा किया है कि तू फ़सीलदार शहरों को उजाड़ कर खण्डर बना देने के लिए खड़ा हो।
\v 27 इसी वजह से उनके बाशिन्दे कमज़ोर हुए और घबरा गए, और शर्मिन्दा हुए; और मैदान की घास और पौध, छतों पर की घास , खेत के अनाज की तरह हो गए जो अभी बढ़ा न हो।
\s5
\v 28 मैं तेरी निशस्त और आमद-ओ-रफ़्त और तेरा मुझ पर झुंझलाना जानता हूँ|
\v 29 ~तेरे मुझ पर झुंझलाने की वजह से और इसलिए कि तेरा घमण्ड मेरे कानों तक पहुँचा है, मैं अपनी नकेल तेरी नाक में और अपनी लगाम तेरे मुँह में डालूँगा , और तू जिस राह से आया है मैं तुझे उसी राह से वापस लौटा दूँगा।'
\s5
\v 30 और तेरे लिए ये निशान होगा कि तुम इस साल वह चीज़ें जो अज़-ख़ुद उगती हैं,और दूसरे साल वह चीज़ें जो उनसे पैदा हों खाओगे; और तीसरे साल तुम बोना और काटना और बाग़ लगा कर उनका फल खाना|
\s5
\v 31 और वह बक़िया जो यहूदाह के घराने से बच रहा है, फिर नीचे की तरफ जड़ पकड़ेगा और ऊपर की तरफ़ फल लाएगा;
\v 32 ~क्यूँकि एक बक़िया यरुशलीम में से और वह जो बच रहे हैं। सिय्यून पहाड़ से निकलेंगे; रब्ब-उल-अफ़वाज की ग़य्यूरी ये कर दिखाएगी।
\s5
\v 33 ~"इसलिए ख़ुदावन्द शाह-ए-असूर के हक़ में यूँ फ़रमाता है कि वह इस शहर में आने या यहाँ तीर चलाने न पाएगा; वह न तो सिपर लेकर उसके सामने आने और न उसके सामने दमदमा बाँधने पाएगा।
\v 34 ~बल्कि ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि जिस रास्ते से वह आया उसी रास्ते से लौट जाएगा, और इस शहर में आने न पाएगा।
\s5
\v 35 ~क्यूँकि मैं अपनी ख़ातिर और अपने बन्दे दाऊद की ख़ातिर, इस शहर की हिमायत करके इसे बचाऊँगा।"
\s5
\v 36 ~फिर ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने असूरियों की लश्करगाह में जाकर एक लाख पिच्चासी हज़ार आदमी जान से मार डाले; और सुबह ~को जब लोग सवेरे उठे, तो देखा कि वह सब पड़े हैं।
\v 37 ~तब शाह-ए-असूर सनहेरिब रवानगी करके वहाँ से चला गया और लौटकर नीनवाह में रहने लगा |
\s5
\v 38 और ~जब वह अपने ~मा'बूद निसरूक के मंदिर में 'इबादत कर रहा था तो अदरम्मलिक और शराज़र, उसके बेटों ने उसे तलवार से क़त्ल किया और अरारात की सर ज़मीन को भाग गए। और उसका बेटाअसरहद्दन उसकी जगह बादशाह हुआ
\s5
\c 38
\p
\v 1 उन ही दिनों में~हिज़क़ियाह ऐसा बीमार पड़ा कि मरने के क़रीब हो गया और यसा'याह नबी आमूस के बेटे ने उसके पास आकर उससे कहा कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू अपने घर का इन्तिज़ाम करदे क्यूँकि तू मर जाएगा और बचने का नहीं |
\v 2 तब~हिज़क़ियाह ने अपना मुँह दीवार की तरफ़ किया और ख़ुदावन्द से दु'आ की |
\v 3 ~और कहा ऐ ख़ुदावन्द मैं ~तेरी मिन्नत करता हूँ याद फ़रमा कि ~मैं तेरे सामने सच्चाई और पूरे दिल से चलता रहा हूँ, और जो तेरी नज़र में अच्छा ~है वही किया है और ~हिज़क़ियाह ज़ार-ज़ार रोया|
\s5
\v 4 तब ~ख़ुदावन्द का ये कलाम यसायाह पर नाज़िल हुआ
\v 5 ~कि जा और हिज़क़ियाह~से कह कि~ख़ुदावन्द तेरे बाप दाऊद का ख़ुदा यूँ~फ़रमाता है कि मैंने तेरी~दू'आ सुनी,मैंने तेरे आँसू देखे इसलिए देख मैं तेरी 'उम्र पन्द्रह बरस और बढ़ा दूँगा |
\v 6 और ~मैं तुझ को और इस शहर को~शाह-ए-असूर के हाथ से बचा लूँगा;और मैं इस शहर की हिमायत करूँगा।
\s5
\v 7 और ख़ुदावन्द की तरफ़ से तेरे लिए ये निशान ~होगा कि ख़ुदावन्द इस बात को जो उसने फ़रमाई पूरा करेगा|
\v 8 देख मैं आफ़ताब के ढले हुए साए के दर्जों में से आख़ज़ की धूप घड़ी के मुताबिक़ दस दर्जे पीछे को लौटा दूँगा चुनाँचे आफ़ताब जिन दर्जों से ढल गया था उनमें के दस दर्जे फिर लौट गया |
\s5
\v 9 शाह-ए-यहूदाह ~हिज़क़ियाह की तहरीर, जब ~वह बीमार था और अपनी बीमारी से शिफ़ायाब हुआ |
\v 10 ~मैंने कहा मैं अपनी आधी 'उम्र में पाताल के फाटकों में दाख़िल हूँगा, मेरी ज़िन्दगी के बाक़ी बरस मुझसे छीन लिए गए|
\v 11 मैंने कहा मैं ख़ुदावन्द को हाँ ख़ुदावन्द को ज़िन्दों की ज़मीन में फिर न देखूँगा, इन्सान और दुनिया के बाशिन्दे मुझे फिर दिखाई न देंगे|
\s5
\v 12 मेरा घर उजड़ गया है और गडरिए के ख़ेमा की तरह मुझसे दूर किया गया मैंने जुलाहे की तरह अपनी ज़िन्दगानी को लपेट लिया है वह मुझको तांत से काट डालेगा सुबह से शाम तक तू मुझको तमाम कर डालता है|
\v 13 मैंने ~सुबह तक तहम्मुल किया;तब वह शेर बबर की तरह मेरी सब हड्डियाँ चूर कर डालता है सुबह से शाम तक तू मुझे तमाम कर डालता है |
\s5
\v 14 मैं अबाबील और सारस की तरह चीं-चीं करता रहा; मैं कबूतर की तरह कुढ़ता रहा; मेरी ऑखें ऊपर देखते-देखते पथरा गईं ऐ ख़ुदावन्द, मैं बे-कस हूँ, तू मेरा कफ़ील हो।
\v 15 मैं क्या कहूँ? उसने तो मुझ से वा'दा किया, और उसी ने उसे पूरा किया; मैं अपनी बाक़ी उम्र अपनी जान की तल्ख़ी की वजह से आहिस्ता आहिस्ता बसर करूँगा|
\s5
\v 16 ऐ ख़ुदावन्द, इन्हीं चीज़ों से इन्सान की ज़िन्दगी है, और इन्ही में मेरी रूह की हयात है; इसलिए तू ही शिफ़ा बख़्श और मुझे ज़िन्दा रख।
\v 17 देख, मेरा सख़्त रन्ज राहत से तब्दील हुआ;और मेरी जान पर मेहरबान होकर तूने उसे हलाकी के गढे से रिहाई दी; क्यूँकि तूने मेरे सब गुनाहों को अपनी पीठ के पीछे फेंक दिया।
\s5
\v 18 इसलिए कि पाताल तेरी 'इबादत नहीं कर सकता; और मौत से तेरी हम्द नहीं हो सकती। वह जो क़ब्र में उतरने वाले हैं तेरी सच्चाई के उम्मीदवार नहीं हो सकते।
\v 19 ज़िन्दा,' हाँ, ज़िन्दा ही तेरी तम्जीद करेगा~जैसा आज के दिन मैं करता हूँ, बाप अपनी औलाद को तेरी सच्चाई की ख़बर देगा।
\s5
\v 20 ख़ुदावन्द मुझे बचाने को तैयार है; इसलिए हम अपने तारदार साज़ों के साथ 'उम्र भर ख़ुदावन्द के घर में सरोदख़्वानी करते रहेंगे।
\s5
\v 21 यसा'याह ने कहा था, कि'अंजीर की टिकिया लेकर फोड़े पर बाँधे, और वह शिफ़ा पाएगा।"
\v 22 और हिज़क़ियाह ने कहा था, इसका क्या निशान है कि मैं ख़ुदावन्द के घर में जाऊँगा|
\s5
\c 39
\p
\v 1 उस वक़्त मरूदक बल्दान-बिन-बल्दान,शाह-ए-बाबुल ने हिज़क़ियाह के लिए नामे और तहाइफ़ भेजे; क्यूँकि उसने सुना था कि वह बीमार था और शिफ़ायाब हुआ।
\v 2 और हिज़क़ियाह उनसे बहुत ख़ुश हुआ और अपने ख़ज़ाने, या'नी चाँदी और सोना और मसालेह और बेश क़ीमत 'इत्र और तमाम सिलाह ख़ाना, और जो कुछ उसके ख़ज़ानों में मौजूद था उनको दिखाया। उसके घर में और उसकी सारी ममलुकत में ऐसी कोई चीज़ न थी, जो हिज़क़ियाह ने उनको न दिखाई।
\s5
\v 3 तब यसा'याह नबी ने हिज़क़ियाह बादशाह के पास आकर उससे कहा, कि "ये लोग क्या कहते थे, और ये कहाँ से तेरे पास आए?" हिज़क़ियाह ने जवाब दिया, कि "ये एक दूर के मुल्क, या'नी बाबुल से मेरे पास आए हैं।"
\v 4 तब उसने पूछा, कि "उन्होंने तेरे घर में क्या-क्या देखा?" हिज़क़ियाह ने जवाब दिया, "सब कुछ जो मेरे घर में है, उन्होंने देखा : मेरे ख़ज़ानों में ऐसी कोई चीज़ नहीं जो मैंने उनको दिखाई न हो।"
\s5
\v 5 तब यसा'याह ने हिज़क़ियाह से कहा, 'रब्ब-उल-अफ़वाज का कलाम सुन ले :
\v 6 देख, वह दिन आते हैं कि सब कुछ जो तेरे घर में है, और जो कुछ तेरे बाप दादा ने आज के दिन तक जमा' कर रख्खा है बाबुल को ले जायेंगे ;ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कुछ भी बाक़ी न रहेगा।
\s5
\v 7 और वह तेरे बेटों में से जो तुझ से पैदा होंगे और जिनका बाप तू ही होगा, कितनों को ले जाएँगे; और वह शाह-ए-बाबुल के महल में ख्वाजासरा होंगे |
\v 8 तब हिज़क़ियाह ने यसा'याह से कहा, 'ख़ुदावन्द का कलाम जो तूने सुनाया भला है।" और उसने ये भी कहा, "मेरे दिनों में तो सलामती और अम्न होगा।
\s5
\c 40
\p
\v 1 तसल्ली दो तुम मेरे लोगों को तसल्ली दो; तुम्हारा ख़ुदा फ़रमाता है।
\v 2 यरुशलीम को दिलासा दो; और उसे पुकार कर कहो कि उसकी मुसीबत के दिन जो जंग-ओ-जदल के थे गुज़र गए, उसके गुनाह का कफ़्फ़ारा हुआ; और उसने ख़ुदावन्द के हाथ से अपने सब गुनाहों का बदला दो चन्द पाया ।
\s5
\v 3 पुकारनेवाले की आवाज़ : "वीरान में ख़ुदावन्द की राह दुरुस्त करो, सहरा में हमारे ख़ुदा के लिए शाहराह हमवार करो ।
\v 4 हर एक नशेब ऊँचा किया जाए, और हर एक पहाड़ और टीला पस्त किया जाए; और हर एक टेढ़ी चीज़ सीधी और हर एक नाहमवार जगह हमवार की जाए।
\v 5 और ख़ुदावन्द का जलाल आशकारा होगा और तमाम बशर उसको देखेगा क्यूँकि ख़ुदावन्द ने अपने मुँह से फ़रमाया है |
\s5
\v 6 एक आवाज़ आई कि 'ऐलान कर, और मैंने कहा मैं क्या 'ऐलान करूँ, हर बशर घास की तरह है और उसकी सारी रौनक़ मैदान के फूल की तरह |
\v 7 घास मुरझाती है, फूल कुमलाता है; क्यूँकि ख़ुदावन्द की हवा उस पर चलती है; यक़ीनन लोग घास हैं।
\v 8 हाँ, घास मुरझाती है, फूल कुमलाता है; लेकिन हमारे ख़ुदा का कलाम हमेशा तक क़ायम है।
\s5
\v 9 ऐ सिय्यून को ख़ुशख़बरी सुनाने वाली, ऊँचे पहाड़ पर चढ़ जा; और ऐ यरुशलीम को बशारत देनेवाली, ज़ोर से अपनी आवाज़ बलन्द कर, ख़ूब पुकार, और मत डर; यहूदाह की बस्तियों से कह, 'देखो, अपना ख़ुदा !"
\v 10 देखो, ख़ुदावन्द ख़ुदा बड़ी कु़दरत के साथ आएगा, और उसका बाज़ू उसके लिए सल्तनत करेगा; देखो, उसका सिला उसके साथ है, और उसका अज्र उसके सामने।
\s5
\v 11 वह चौपान की तरह अपना गल्ला चराएगा, वह बर्रों को अपने बाज़ूओं में जमा' करेगा और अपनी बग़ल में लेकर चलेगा, और उनको जो दूध पिलाती हैं आहिस्ता आहिस्ता ले जाएगा।
\s5
\v 12 किसने समन्दर को चुल्लू से नापा और आसमान की पैमाइश बालिश्त से की,और ज़मीन की गर्द को पैमाने में भरा, और पहाड़ों को पलड़ों में वज़न किया और टीलों को तराजू़ में तोला।
\s5
\v 13 किसने ख़ुदावन्द की रूह की हिदायत की, या उसका सलाहकार होकर उसे सिखाया?
\v 14 उसने किससे मश्वरत ली है जो उसे ता'लीम दे, और उसे 'अदालत की राह सुझाए और उसे मा'रिफ़त की बात बताए, और उसे हिकमत की राह से आगाह करे?
\s5
\v 15 देख, क़ौमें डोल की एक बूँद की तरह हैं, और तराजू़ की बारीक गर्द की तरह गिनी जाती हैं; देख, वह जज़ीरों को एक ज़र्रें की तरह उठा लेता है।
\v 16 लुबनान ईंधन के लिए काफ़ी नहीं और उसके जानवर सोख्तनी क़ुर्बानी के लिए बस नहीं।
\v 17 इसलिए सब क़ौमें उसकी नज़र में हेच हैं, बल्कि वह उसके नज़दीक बतालत और नाचीज़ से भी कमतर गिनी जाती हैं।
\s5
\v 18 तुम ख़ुदा को किससे तशबीह दोगे और कौन सी चीज़ उससे मुशाबह ठहराओगे?
\v 19 तराशी हुई मूरत! कारीगर ने उसे ढाला, और सुनार उस पर सोना मढ़ता है और उसके लिए चाँदी की जज़ीरें बनाता है।
\v 20 और जो ऐसा तहीदस्त है कि उसके पास नजर गुज़रानने को कुछ नहीं, वह ऐसी लकड़ी चुन लेता है जो सड़ने वाली न हो; वह होशियार कारीगर की तलाश करता है, ताकि ऐसी मूरत बनाए जो क़ायम रह सके।
\s5
\v 21 क्या तुम नहीं जानते? क्या तुम ने नहीं सुना? क्या ये बात इब्तिदा ही से तुम को बताई नहीं गई? क्या तुम बिना-ए-'आलम से नहीं समझे?
\v 22 वह मुहीत-ए-ज़मीन पर बैठा है, और उसके बाशिन्दे टिड्डों की तरह हैं; वह आसमान को पर्दे की तरह तानता है, और उसको सुकूनत के लिए खे़मे की तरह फैलाता है।
\s5
\v 23 जो शहज़ादों को नाचीज़ कर डालता, और दुनिया के हाकिमों को हेच ठहराता है।
\v 24 वह अभी लगाए न गए, वह अभी बोए न गए; उनका तना अभी ज़मीन में जड़ न पकड़ चुका कि वह सिर्फ़ उन पर फूँक मारता है और वह ख़ुश्क हो जाते है और हवा का झोंका ~उनको भूसे की तरह उड़ा ले जाता है।
\s5
\v 25 वह क़ुद्दूस फ़रमाता है तुम मुझे किससे तशबीह दोगे और मैं किस चीज़ से मशाबह हूँगा|
\v 26 अपनी आँखें ऊपर उठाओ और देखो कि इन सबका ख़ालिक़ कौन है? वही जो इनके लश्कर को शुमार करके निकालता है, और उन सबको नाम-ब-नाम बुलाता है। उसकी क़ुदरत की 'अज़मत और उसके बाज़ू की ~तवानाई की वजह से एक भी ग़ैर हाज़िर नहीं रहता।
\s5
\v 27 तब ऐ या'क़ूब ! तू क्यूँ यूँ कहता है; और ऐ इस्राईल! तू किस लिए ऐसी बात करता है, कि "मेरी राह ख़ुदावन्द से पोशीदा है और मेरी 'अदालत मेरे ख़ुदा से गुज़र गई"?
\v 28 क्या तू नहीं जानता, क्या तूने नहीं सुना ? कि ख़ुदावन्द हमेशा का ख़ुदा~व तमाम ज़मीन का ख़ालिक़ थकता नहीं और मांदा नहीं होता उसकी हिकमत इदराक से बाहर है।
\s5
\v 29 वह थके हुए को ज़ोर बख़्शता है और नातवान की तवानाई को ज़्यादा करता है।
\v 30 नौजवान भी थक जाएँगे,और ~मान्दा होंगे और सूर्मा बिल्कुल गिर पड़ेंगे;
\v 31 लेकिन ख़ुदावन्द का इन्तिज़ार करने वाले, अज़-सर-ए-नौ ज़ोर हासिल करेंगे; वह उक़ाबों की तरह बाल-ओ-पर से उड़ेंगे", वह दौड़ेंगे और न थकेंगे, वह चलेंगे और मान्दा न होंगे।
\s5
\c 41
\p
\v 1 ऐ जज़ीरो, मेरे सामने ख़ामोश रहो; और उम्मतें अज़-सर-ए-नौ-ज़ोर ~हासिल करें; वह नज़दीक आकर 'अर्ज़ करें; आओ, हम मिलकर 'अदालत के लिए नज़दीक हों।
\v 2 किसने पूरब से उसको खड़ा किया, जिसको वह सदाक़त से अपने क़दमों में बुलाता है? वह क़ौमों को उसके हवाले करता और उसे बादशाहों पर मुसल्लित करता है; और उनको ख़ाक की तरह उसकी तलवार की तरफ़ उड़ती हुई भूसी की तरह उसकी कमान के हवाले करता है, |
\s5
\v 3 वह उनका पीछा करता और उस राह से जिस पर पहले क़दम न रख्खा था, सलामत गुज़रता है।
\v 4 ये किसने किया और इब्तिदाई नस्लों को तलब करके अन्जाम दिया? मैं ख़ुदावन्द ने, जो अव्वल-ओ-आख़िर हूँ, वह मैं ही हूँ।
\s5
\v 5 ज़मीन के किनारे थर्रा गए वह नज़दीक आते गए |
\v 6 उनमें से हर एक ने अपने पड़ौसी की मदद की और अपने भाई से कहा, "हौसला रख!”
\v 7 बढ़ई ने सुनार की और उसने जो हथौड़ी से साफ़ करता है उसकी जो निहाई पर पीटता है, हिम्मत बढ़ाई और कहा जोड़ तो अच्छा है, इसलिए उनहोंने उसको मैंख़ों से मज़बूत किया ताकि क़ायम रहे|
\s5
\v 8 ~लेकिन तू ऐ इस्राईल, मेरे बन्दे! ऐ या'क़ूब, जिसको मैंने पसन्द किया, जो मेरे दोस्त इब्राहीम की नस्ल से है।~ܗ
\v 9 तू जिसको मैंने ज़मीन की इन्तिहा से बुलाया और उसके अतराफ़ से तलब किया और तुझको कहा कि तू मेरा बंदा है मैंने तुझको पसन्द किया और तुझको रद्द न किया |
\s5
\v 10 तू मत डर, क्यूँकि मैं तेरे साथ हूँ; परेशान न हो, क्यूँकि मैं तेरा ख़ुदा हूँ, मैं तुझे ज़ोर बख़्शूँगा, मैं यक़ीनन तेरी मदद करूँगा , और मैं अपनी सदाक़त के दहने हाथ से तुझे संभालूँगा।
\s5
\v 11 देख, वह सब जो तुझ पर ग़ज़बनाक हैं, पशेमान और रूस्वा होंगे; वह जो तुझ से झगड़ते हैं, नाचीज़ हो जाएँगे और हलाक होंगे।
\s5
\v 12 तू अपने मुख़ालिफ़ों को ढूँड़ेगा और न पाएगा, तुझ से लड़नेवाले नाचीज़-ओ-हलाक हो जाएँगे।
\v 13 क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरा दहना हाथ पकड़ कर कहूँगा "मत डर, मैं तेरी मदद करूँगा ।
\s5
\v 14 परेशान न हो, ऐ कीड़े या'क़ूब ! ऐ ~इस्राईल की क़लील जमा'अत मैं तेरी मदद करूँगा ,~ख़ुदावन्द फ़रमाता है; हाँ मैं जो इस्राईल~का कु़ददूस तेरा फ़िदिया देनेवाला हूँ।~,
\v 15 देख, मैं तुझे गहाई का नया और तेज़ दन्दानादार आला बनाऊँगा; तू पहाड़ों को कूटेगा और उनको रेज़ा-रेज़ा करेगा, और टीलों को भूसे की तरह बनाएगा।
\s5
\v 16 तू उनको उसाएगा और हवा उनको उड़ा ले जाएगी, धूल उनको तितर-बितर करेगी; लेकिन तू ख़ुदावन्द से ख़ुश होगा और इस्राईल के क़ुददूस पर फ़ख्ऱ करेगा।
\s5
\v 17 मुहताज और ग़रीब पानी ढूँडते फिरते हैं लेकिन मिलता नहीं, उनकी ज़बान प्यास से ख़ुश्क है; मैं ख़ुदावन्द उनकी सुनूँगा, मैं इस्राईल का ख़ुदा उनको तर्क न करूँगा ।
\v 18 मैं नंगे टीलों पर नहरें और वादियों में चश्मे खोलूँगा, सहरा को तालाब और ख़ुश्क ज़मीन को पानी का चश्मा बना दूँगा।
\s5
\v 19 वीराने में देवदार और बबूल और आस और जै़तून के दरख़्त लगाऊँगा" सेहरा में चीड़ और सरो व सनोबर इकठ्ठा लगाऊँगा|,
\v 20 ताकि वह सब देखें और जानें और ग़ौर करें, और समझे के ख़ुदावन्द ही के हाथ ने ये बनाया और इस्राईल के कु़ददूस ने ये पैदा किया।
\s5
\v 21 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "अपना दा'वा पेश करो," या'क़ूब का बादशाह फ़रमाता है, "अपनी मज़बूत दलीलें लाओ।"
\v 22 वह उनको हाज़िर करें ताकि वह हम को होने वाली चीज़ों की ख़बर दें: हम से अगली बातें बयान करो कि क्या थीं, ताकि हम उन पर सोचें और उनके अंजाम को समझें या आइंदा की होने वाली बातों से हम को आगाह करो।
\s5
\v 23 बताओ कि आगे को क्या होगा, ताकि हम जानें कि तुम इलाह हो; हाँ, भला या बुरा कुछ तो करो ताकि हम मुताज्जिब हों और एक साथ उसे देखें।
\v 24 देखो, तुम हेच और बेकार हो, तुम को पसन्द करनेवाला मकरूह है।
\s5
\v 25 मैंने उत्तर से एक को खड़ा किया है, वह आ पहुँचा; वह आफ़ताब के मतले' से होकर मेरा नाम लेगा, और शाहज़ादों को गारे की तरह लताड़ेगा जैसे कुम्हार मिट्टी गूँधता है।
\v 26 किसने ये इब्तिदा से बयान किया कि हम जानें? और किसने आगे से ख़बर दी कि हम कहें कि सच है? कोई उसका बयान करने वाला नहीं, कोई उसकी ख़बर देने वाला नहीं कोई नहीं जो तुम्हारी बातें सुने।
\s5
\v 27 मैं ही ने पहले सिय्यून से कहा, कि "देख, उनको देख!” और मैं ही यरुशलीम को एक बशारत देनेवाला बख़्शूँगा ।
\v 28 क्यूँकि मैं देखता हूँ कि उनमें कोई सलाहकार नहीं जिससे पूछूँ ,और वह मुझे जवाब दे।
\v 29 देखो, वह सब के सब बतालत हैं; उनके काम हेच हैं; उनकी ढाली हुई मूरतें बिल्कुल नाचीज़ हैं।
\s5
\c 42
\p
\v 1 देखो मेरा ख़ादिम, जिसको मैं संभालता हूँ, मेरा बरगुज़ीदा, जिससे मेरा दिल ख़ुश है; मैंने अपनी रूह उस पर डाली, वह क़ौमों में 'अदालत जारी करेगा।
\v 2 वह न चिल्लाएगा और न शोर करेगा और न बाज़ारों में उसकी आवाज़ सुनाई देगी।
\s5
\v 3 वह मसले हुए सरकंडे को न तोड़ेगा और टमटमाती बत्ती को न बुझाएगा, वह रास्ती से 'अदालत करेगा।
\v 4 वह थका न होगा और हिम्मत न हारेगा, जब तक कि 'अदालत को ज़मीन पर क़ायम न करे; जज़ीरे उसकी शरी'अत का इन्तिज़ार करेंगे।
\s5
\v 5 जिसने आसमान को पैदा किया और तान दिया, जिसने ज़मीन को और उनको जो उसमें से निकलते हैं फैलाया, जो उसके बाशिन्दों को साँस और उस पर चलनेवालों को रूह 'इनायत करता है, या'नी ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है
\v 6 "मैं ख़ुदावन्द ने तुझे सदाक़त से बुलाया, मैं ही तेरा हाथ पकडुंगा और तेरी हिफ़ाज़त करूँगा , और लोगों के 'अहद और क़ौमों के नूर के लिए तुझे दूँगा;
\s5
\v 7 कि तू अन्धों की आँखें खोले, और ग़ुलामों को क़ैद से निकाले, और उनको जो अन्धेरे में बैठे हैं क़ैदखाने से छुड़ाए।
\s5
\v 8 यहोवाह मैं हूँ, यही मेरा नाम है; मैं अपना जलाल किसी दूसरे के लिए, और अपनी हम्द खोदी हुई मूरतों के लिए रवा न रखखूँगा।
\v 9 देखो, पुरानी बातें पूरी हो गईं और मैं नई बातें बताता हूँ, इससे पहले कि वाक़े' हों, मैं तुम से बयान करता हूँ।"
\s5
\v 10 ऐ समन्दर पर गुज़रने वालो और उसमें बसनेवालों, ऐ जज़ीरो और उनके बाशिन्दों, ख़ुदावन्द के लिए नया गीत गाओ, ज़मीन पर सिर-ता-सिर उसी की 'इबादत करो।
\v 11 वीराना और उसकी बस्तियाँ, क़ीदार के आबाद गाँव, अपनी आवाज़ बलन्द करें; सिला' के बसनेवाले गीत गाएँ, पहाड़ों की चोटियों~पर से ललकारें।
\s5
\v 12 वह ख़ुदावन्द का जलाल ज़ाहिर करें और जज़ीरों में उसकी सनाख़्वानी करें।
\v 13 ख़ुदावन्द बहादुर की तरह निकलेगा, वह जंगी मर्द की तरह अपनी गै़रत दिखाएगा; वह ना'रा मारेगा, हाँ, वह ललकारेगा; वह अपने दुश्मनों पर ग़ालिब आएगा।
\s5
\v 14 मैं बहुत मुद्दत से चुप रहा, मैं ख़ामोश हो रहा और ज़ब्त करता रहा; लेकिन अब मैं दर्द-ए-ज़िह वाली की तरह चिल्लाऊँगा; मैं हॉपूँगा और ज़ोर-ज़ोर से साँस लूँगा।
\v 15 मैं पहाड़ों और टीलों को वीरान कर डालूँगा और उनके सब्ज़ाज़ारों को ख़ुश्क करूँगा ; और उनकी नदियों को जज़ीरे बनाऊँगा और तालाबों को सुखा दूँगा।
\s5
\v 16 और अन्धों को उस राह से जिसे वह नहीं जानते ले जाऊँगा, मैं उनको उन रास्तों पर जिनसे वह आगाह नहीं ले चलूँगा; मैं उनके आगे तारीकी को रोशनी और ऊँची नीची जगहों को हमवार कर दूँगा, मैं उनसे ये सुलूक करूँगा और उनको तर्क न करूँगा ।
\s5
\v 17 जो खोदी हुई मूरतों पर भरोसा करते और ढाले हुए बुतों से कहते हैं तुम हमारे मा'बूद हो वह पीछे हटेंगे और बहुत शर्मिन्दा होंगे |
\s5
\v 18 ऐ बहरो सुनो ऐ अन्धो नज़र करो ताकि तुम देखो |
\v 19 मेरे ख़ादिम के सिवा अँधा कौन है और कौन ऐसा बहरा है जैसा मेरा रसूल जिसे मैं भेजता हूँ मेरे दोस्त की और ख़ुदावन्द के ख़ादिम की तरह नाबीना कौन है|
\s5
\v 20 तू बहुत सी चीज़ों पर नज़र करता है पर देखता नहीं कान तो खुले हैं पर सुनता नहीं |
\v 21 ख़ुदावन्द को पसन्द आया कि अपनी सदाक़त की ख़ातिर शरी'अत को बुज़ुर्गी दे, और उसे क़ाबिल-ए-ता'ज़ीम बनाए।
\s5
\v 22 लेकिन ये वह लोग हैं जो लुट गए और ग़ारत हुए, वह सब के सब ज़िन्दानों में गिरफ़्तार और कै़दख़ानों में छिपे हैं; वह शिकार हुए और कोई नहीं छुड़ाता; वह लुट गए और कोई नहीं कहता, 'फेर दो!"
\s5
\v 23 तुम में कौन है जो इस पर कान लगाए? जो आइन्दा के बारे में तवज्जुह से सुने?
\v 24 किसने या'क़ूब को हवाले किया के ग़ारत हो, और इस्राईल को कि लुटेरों के हाथ में पड़े? क्या ख़ुदावन्द ने नहीं, जिसके ख़िलाफ़ हम ने गुनाह किया? क्यूँकि उन्होंने न चाहा कि उसकी राहों पर चलें, और वह उसकी शरी'अत के ताबे' न हुए।
\s5
\v 25 इसलिए उसने अपने क़हर की शिद्दत, और जंग की सख़्ती को उस पर डाला ~; और उसे हर तरफ़ से आग लग गई पर वह उसे दरियाफ़्त नहीं करता, वह उससे जल जाता है पर ख़ातिर में नहीं लाता।
\s5
\c 43
\p
\v 1 और अब, ऐ या'क़ूब, ख़ुदावन्द जिसने तुझ को पैदा किया, और जिसने, ऐ इस्राईल, तुझ को बनाया यूँ फ़रमाता है कि ख़ौफ़ न कर क्यूँकि तेरा फ़िदया दिया है~~मैंने तेरा नाम लेकर तुझे बुलाया है, तू मेरा है।
\s5
\v 2 जब तू सैलाब में से गुज़रेगा, तो मैं तेरे साथ हूँगा; और जब तू नदियों को उबूर करेगा, तो वह तुझे न डुबाएँगी; जब तू आग पर चलेगा, तो तुझे आँच न लगेगी और शोला तुझे न जलाएगा।
\v 3 क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द तेरा खुदा, इस्राईल का क़ुददूस, तेरा नजात देनेवाला हूँ। मैंने तेरे फ़िदिये में मिस्र को और तेरे बदले कूश और सबा को दिया।
\s5
\v 4 चूँकि तू मेरी निगाह में बेशक़ीमत और मुकर्रम ठहरा और मैंने तुझ से मुहब्बत रख्खी, इसलिए मैं तेरे बदले लोग और तेरी जान के बदले में उम्मतें दे दूँगा।
\v 5 तू ख़ौफ़ न कर, क्यूँकि मैं तेरे साथ हूँ; मैं तेरी नस्ल को पूरब से ले आऊँगा, और मग़रिब से तुझे फ़राहम करूँगा ।
\s5
\v 6 मैं उत्तर से कहूँगा कि दे डाल, और जुनूब से कि रख न छोड़; मेरे बेटों को दूर से और मेरी बेटियों को ज़मीन की इन्तिहा से लाओ
\v 7 हर एक को जो मेरे नाम से कहलाता है और जिसको मैंने अपने जलाल के लिए पैदा किया, जिसे मैंने पैदा किया; हाँ, जिसे मैंने ही बनाया।”
\s5
\v 8 उन अन्धे लोगों को जो आँखें रखते हैं और उन बहरों को जिनके कान हैं बाहर लाओ।
\v 9 तमाम क़ौमें फ़राहम की जाएँ और सब उम्मतें जमा' हों। उनके बीच कौन है जो उसे बयान करे या हम को पिछली बातें बताए? वह अपने गवाहों को लाएँ ताकि वह सच्चे साबित हों, और लोग सुनें और कहें कि ये सच है।
\s5
\v 10 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "तुम मेरे गवाह हो और मेरे ख़ादिम भी, जिन्हें मैंने बरगुज़ीदा किया, ताकि तुम जानो और मुझ पर ईमान लाओ और समझो कि मैं वही हूँ। मुझ से पहले कोई ख़ुदा न हुआ और मेरे बा'द भी कोई न होगा।
\v 11 मैं ही यहोवाह हूँ और मेरे सिवा कोई बचानेवाला नहीं।
\s5
\v 12 मैंने 'ऐलान किया और मैंने नजात बख्शी और मैं ही ने ज़ाहिर किया, जब तुम में कोई अजनबी मा'बूद न था; इसलिए तुम मेरे गवाह हो," ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि "मैं ही ख़ुदा हूँ।
\v 13 आज से मैं ही हूँ; और कोई नहीं जो मेरे हाथ से छुड़ा सके; मैं काम करूँगा , कौन है जो उसे रद्द कर सके ?”
\s5
\v 14 ख़ुदावन्द तुम्हारा नजात देनेवाला इस्राईल का क़ुद्दूस यूँ फ़रमाता है, कि "तुम्हारी ख़ातिर मैंने बाबुल पर ख़ुरूज कराया, और मैं उन सबको फ़रारियों की हालत में और कसदियों को भी जो अपने जहाज़ों में ललकारते थे, ले आऊँगा।
\v 15 मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा क़ुददूस, इस्राईल का ख़ालिक़, तुम्हारा बादशाह हूँ।
\s5
\v 16 जिसने समन्दर में राह और सैलाब में गुज़रगाह बनाई,
\v 17 जो जंगी रथों और घोड़ों और लश्कर और बहादुरों को निकाल लाता है, ( वह सब के सब लेट गए, वह फिर न उठेगे, वह बुझ गए, हाँ, वह बत्ती की तरह बुझ गए।)
\s5
\v 18 या'नी ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि पिछली बातों को याद न करो और पुरानी बातों पर सोचते न रहो।
\v 19 देखो, मैं एक नया काम करूँगा ; अब वह ज़हूर में आएगा, क्या तुम उससे ना-वाक़िफ़ रहोगे? हाँ, मैं वीराने में एक राह और सहरा में नदियाँ जारी करूँगा ।
\s5
\v 20 जंगली जानवर, गीदड़ और शुतरमुर्ग़, मेरी ताज़ीम करेंगे; क्यूँकि मैं वीराने में पानी और सहरा में नदियाँ जारी करूँगा ताकि मेरे लोगों के लिए, या'नी मेरे बरगुज़ीदों के पीने के लिए हों;
\v 21 मैंने इन लोगों को अपने लिए बनाया ताकि वह मेरी हम्द करें।
\s5
\v 22 "तोभी , ऐ या'क़ूब, तूने मुझे न पुकारा; बल्कि ऐ इस्राईल, तू मुझ से तंग आ गया।
\v 23 तू बर्रों को अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए मेरे सामने नहीं लाया, और तूने अपने ज़बीहों से मेरी ताज़ीम नहीं की। मैंने तुझे हदिया लाने पर मजबूर नहीं किया, और लुबान जलाने की तक्लीफ़ नहीं दी।
\s5
\v 24 तूने रुपये से मेरे लिए अगर को नहीं ख़रीदा, और तूने मुझे अपने ज़बीहों की चर्बी से सेर नहीं किया; लेकिन तूने अपने गुनाहों से मुझे ज़ेरबार किया और अपनी ख़ताओं से मुझे बेज़ार कर दिया।
\s5
\v 25 "मैं ही वह हूँ जो अपने नाम की ख़ातिर तेरे गुनाहों को मिटाता हूँ, और मैं तेरी ख़ताओं को याद नहीं रख्खूंगा।
\v 26 मुझे याद दिला, हम आपस में बहस करें; अपना हाल बयान कर ताकि तू सादिक़ ठहरे।
\s5
\v 27 तेरे बड़े बाप ने गुनाह किया, और तेरे तफ़्सीर करनेवालों ने मेरी मुख़ालिफ़त की है।
\v 28 इसलिए मैंने मक़दिस के अमीरों को नापाक ठहराया, और या'क़ूब को ला'नत और इस्राईल को तानाज़नी के हवाले किया।
\s5
\c 44
\p
\v 1 "लेकिन अब ऐ या'क़ूब, मेरे ख़ादिम और इस्राईल, मेरे बरगुज़ीदा, सुन!
\v 2 ख़ुदावन्द तेरा ख़ालिक़ जिसने रहम ही से तुझे बनाया और तेरी मदद करेगा, यूँ फ़रमाता है :कि ऐ या'क़ूब, मेरे ख़ादिम और यसूरून मेरे बरगुज़ीदा, ख़ौफ़ न कर!
\s5
\v 3 क्यूँकि मैं प्यासी ज़मीन पर पानी उँडेलूँगा, और ख़ुश्क ज़मीन में नदियाँ जारी करूँगा ; मैं अपनी रूह तेरी नस्ल पर और अपनी बरकत तेरी औलाद पर नाज़िल करूँगा
\v 4 और वह घास के बीच उगेंगे, जैसे बहते पानी के किनारे पर बेद हो।
\s5
\v 5 एक तो कहेगा, 'मैं ख़ुदावन्द का हूँ," और दूसरा अपने आपको या'क़ूब के नाम का ठहराएगा, और तीसरा अपने हाथ पर लिखेगा, 'मैं ख़ुदावन्द का हूँ,' और अपने आपको इस्राईल के नाम से मुलक़्क़ब करेगा।"
\s5
\v 6 ख़ुदावन्द, इस्राईल का बादशाह और उसका फिदया देने वाला रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है, कि "मैं ही अव्वल और मैं ही आख़िर हूँ; और मेरे सिवा कोई ख़ुदा नहीं।
\s5
\v 7 और जब से मैंने पुराने लोगों की बिना डाली, कौन मेरी तरह बुलाएगा और उसको बयान करके मेरे लिए तरतीब देगा? हाँ, जो कुछ हो रहा है और जो कुछ होने वाला है, उसका बयान करे।
\s5
\v 8 तुम न डरो, और परेशान न हो; क्या मैंने पहले ही से तुझे ये नहीं बताया और ज़ाहिर नहीं किया? तुम मेरे गवाह हो। क्या मेरे 'अलावाह कोई और ख़ुदा है? नहीं, कोई चट्टान नहीं; मैं तो कोई नहीं जानता।"
\s5
\v 9 खोदी हुई मूरतों के बनानेवाले, सबके सब बेकार हैं और उनकी पसंदीदा चीज़ें बे नफ़ा"; उन ही के गवाह देखते नहीं और समझते नहीं, ताकि पशेमाँ हों।
\v 10 किसने कोई बुत बनाया या कोई मूरत ढाली जिससे कुछ फ़ाइदा हो?
\s5
\v 11 देख, उसके सब साथी शर्मिन्दा होंगे क्यूँकि बनानेवाले तो इन्सान हैं; वह सब के सब जमा' होकर खड़े हों, वह डर जाएँगे, वह सब के सब शर्मिन्दा होंगे।
\s5
\v 12 लुहार कुल्हाड़ा बनाता है और अपना काम अंगारों से करता है, और उसे हथौड़ों से दुरुस्त करता और अपने बाज़ू की क़ुव्वत से गढ़ता है; हाँ वह भूका हो जाता हैं और उसका ज़ोर घट जाता है वह पानी नहीं पीता और थक जाता है |
\s5
\v 13 बढ़ई सूत फैलाता है और नुकेले हथियार से उसकी सूरत खींचता है, वह उसको रंदे से साफ़ करता है और परकार से उस पर नक़्श बनाता है; वह उसे इन्सान की शक्ल बल्कि आदमी की ख़ूबसूरत शबीह बनाता है, ताकि उसे घर में खड़ा करें।
\s5
\v 14 वह देवदारों को अपने लिए काटता है और क़िस्म-क़िस्म के बलूत को लेता है, और जंगल के दरख़्तों से जिसको पसन्द करता है; वह सनोबर का दरख़्त लगाता है और मेंह उसे सींचता है।
\s5
\v 15 तब वह आदमी के लिए ईधन होता है; वह उसमें से कुछ सुलगाकर तापता है, वह उसको जलाकर रोटी पकाता है, बल्कि उससे बुत बना कर उसको सिज्दा करता~ वह खोदी हुई मूरत बनाता है और उसके आगे मुँह के बल गिरता है।
\v 16 उसका एक टुकड़ा लेकर आग में जलाता है, और उसी के एक टुकड़े पर गोश्त कबाब करके खाता और सेर होता है; फिर वह तापता और कहता है, अहा, मैं गर्म हो गया, मैंने आग देखी!"
\s5
\v 17 फिर उसकी बाक़ी लकड़ी से देवता या'नी खोदी हुई मूरत बनाता है, और उसके आगे मुँह के बल गिर जाता है और उसे सिज्दा करता है और उससे इल्तिजा करके कहता है "मुझे नजात दे, क्यूँकि तू मेरा ख़ुदा है!"
\s5
\v 18 वह नहीं जानते और नहीं समझते; क्यूँकि उनकी आँखें बन्द हैं तब वह देखते नहीं, और उनके दिल सख़्त हैं लेकिन वह समझते नहीं।
\s5
\v 19 बल्कि कोई अपने दिल में नहीं सोचता़ और न किसी को मा'रिफ़त और तमीज़ है कि "मैंने तो इसका एक टुकड़ा आग में जलाया, और मैंने इसके अंगारों पर रोटी भी पकाई, और मैंने गोश्त भूना और खाया; अब क्या मैं इसके बक़िये" से एक मकरूह चीज़ बनाऊँ? क्या मैं दरख़्त के कुन्दे को सिज्दा करूँ?"
\s5
\v 20 वह राख खाता है; फ़रेबख़ुर्दा ने उसको ऐसा गुमराह कर दिया है कि वह अपनी जान बचा नहीं सकता और नहीं कहता ~क्या मेरे दहने हाथ में बतालत नहीं?"
\s5
\v 21 ऐ या'क़ूब, ऐ इस्राईल, इन बातों को याद रख; क्यूँकि तू मेरा बन्दा है, मैंने तुझे बनाया है, तू मेरा ख़ादिम है; ऐ इस्राईल, मैं तुझ को फ़रामोश न करूँगा ।
\v 22 मैंने तेरी ख़ताओं को घटा की तरह और तेरे गुनाहों को बादल की तरह मिटा डाला; मेरे पास वापस आ जा, क्यूँकि मैंने तेरा फ़िदिया दिया है।
\s5
\v 23 ऐ आसमानो, गाओ कि ख़ुदावन्द ने ये किया, ऐ असफ़ल-ए-ज़मीन, ललकार; ऐ पहाड़ो, ऐ जंगल और उसके सब दरख़्तो, नग़मापरदाज़ी करो! क्यूँकि ख़ुदावन्द ने या'क़ूब का फ़िदिया दिया, और इस्राईल में अपना जलाल ज़ाहिर करेगा।
\s5
\v 24 ख़ुदावन्द तेरा फ़िदिया देनेवाला, जिसने रहम ही से तुझे बनाया यूँ फ़रमाता है, कि "मैं ख़ुदावन्द सबका ख़ालिक़ हूँ, मैं ही अकेला आसमान को तानने और ज़मीन को बिछाने वाला हूँ, कौन मेरा शरीक है?
\v 25 मैं झूटों के निशानों को बातिल करता, और फ़ालगीरों को दीवाना बनाता हूँ और हिकमत वालों को रद्द करता और उनकी हिकमत को हिमाक़त ठहराता हूँ
\s5
\v 26 अपने ख़ादिम के कलाम को साबित करता, और अपने रसूलों की मसलहत को पूरा करता हूँ जो यरुशलीम के ज़रिए' कहता हूँ, कि ' वह आबाद हो जाएगा," और यहूदाह के शहरों के ज़रिए' , कि ' वह ता'मीर किए जाएँगे, और मैं उसके खण्डरों को ता'मीर करूँगा ।
\v 27 जो समन्दर को कहता हूँ, 'सूख जा और मैं तेरी नदियाँ सुखा डालूँगा ;"
\s5
\v 28 जो ख़ोरस के हक़ में कहता हूँ, कि ~वह मेरा चरवाहा है और मेरी मर्ज़ी ~बिल्कुल पूरी करेगा;' और यरुशलीम के ज़रिए' कहता हूँ, ' वह ता'मीर किया जाएगा,"और हैकल के ज़रिए' कि उसकी बुनियाद डाली जायेगी |
\s5
\c 45
\p
\v 1 ख़ुदावन्द अपने मम्सूह ख़ोरस के हक़ में यूँ फ़रमाता है कि मैंने उसका दहना हाथ पकड़ा कि उम्मतों को उसके सामने ज़ेर करूँ और बादशाहों की कमरें खुलवा डालूँ और दरवाज़ों को उसके लिए खोल दूँ और फाटक बन्द न किए जाएँ,
\s5
\v 2 "मैं तेरे आगे आगे चलूँगा और ना-हमवार जगहों को हमवार बना दूँगा, मैं पीतल के दरवाज़ों को टुकड़े-टुकड़े करूँगा और लोहे के बेन्डों को काट डालूँगा ;
\v 3 ~और मैं ज़ुल्मात के ख़ज़ाने और छिपे मकानों के दफ़ीने तुझे दूँगा, ताकि तू जाने कि मैं ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा हूँ जिसने तुझे नाम लेकर बुलाया है।
\s5
\v 4 मैंने अपने ख़ादिम या'क़ूब और अपने बरगुज़ीदा इस्राईल की ख़ातिर तुझे नाम लेकर बुलाया; मैंने तुझे एक लक़ब बख़्शा अगरचे तू मुझ को नहीं जानता।
\v 5 मैं ही ख़ुदावन्द हूँ और कोई नहीं,मेरे अलावाह कोई ख़ुदा नहीं मैंने तेरी कमर बाँधी अगरचे तूने मुझे न पहचाना;
\v 6 ताकि पूरब से पश्चिम तक लोग जान ले कि मेरे अलावह कोई नहीं; मैं ही ख़ुदावन्द हूँ, मेरे अलावाह कोई दूसरा नहीं।
\s5
\v 7 मैं ही रोशनी का मूजिद और तारीकी का ख़ालिक़ हूँ, मैं सलामती का बानी और बला को पैदा करने वाला हूँ, मैं ही ख़ुदावन्द ये सब कुछ करनेवाला हूँ।
\v 8 "ऐ आसमान, ऊपर से टपक पड़; हाँ बादल रास्तबाज़ी बरसाएँ," ज़मीन खुल जाए, और नजात और सदाक़त का फल लाए; वह उनको इकट्ठे उगाए; मैं ख़ुदावन्द उसका पैदा करनेवाला हूँ।
\s5
\v 9 "अफ़सोस उस पर जो अपने ख़ालिक़ से झगड़ता है! ठीकरा तो ज़मीन के ठीकरों में से है! क्या मिट्टी कुम्हार से कहे, 'तू क्या बनाता है?" क्या तेरी दस्तकारी कहे, 'उसके तो हाथ नहीं?"
\s5
\v 10 उस पर अफ़सोस जो बाप से कहे, 'तू किस चीज़ का वालिद है?' और माँ से कहे, 'तू किस चीज़ की वालिदा है?' "
\s5
\v 11 ख़ुदावन्द इस्राईल का क़ुददूस और ख़ालिक़ यूँ फ़रमाता है, कि"क्या तुम आनेवाली चीज़ों के ज़रिए' मुझ से पूछोगे? क्या तुम मेरे बेटों या मेरी दस्तकारी के ज़रिए' मुझे हुक्म दोगे?
\s5
\v 12 मैंने ज़मीन बनाई, और उस पर इन्सान को पैदा किया; और मैं ही ने, हाँ, मेरे हाथों ने आसमान को ताना, और उसके सब लश्करों पर मैंने हुक्म किया।"
\s5
\v 13 रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है मैंने उसको सदाक़त में खड़ा किया है और मैं उसकी तमाम राहों को हमवार करूँगा ; वह मेरा शहर बनाएगा, और मेरे ग़ुलामों को बगै़र क़ीमत और इवज़ लिए आज़ाद कर देगा।"
\s5
\v 14 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि"मिस्र की दौलत, और कूश की तिजारत, और सबा के कद्दावर लोग तेरे पास आएँगे और तेरे होंगे; वह तेरी पैरवी करेंगे, वह बेड़ियाँ पहने हुए अपना मुल्क छोड़कर आयेंगे और तेरे सामने सिज्दा करेंगे; वह तेरी मिन्नत करेंगे और कहेंगे,यक़ीनन ख़ुदा तुझमें है और कोई दूसरा नहीं और उसके सिवा कोई ख़ुदा नहीं।' "
\v 15 ऐ इस्राईल के ख़ुदा, ऐ नजात देनेवाले, यक़ीनन तू पोशीदा ख़ुदा है।
\s5
\v 16 बुत बनानेवाले सब के सब पशेमाँ और सरासीमा होंगे, वह सब के सब शर्मिन्दा होंगे।
\v 17 लेकिन ख़ुदावन्द इस्राईल को बचा कर हमेशा की नजात बख़्शेगा; तुम हमेशा से हमेशा तक कभी पशेमाँ और सरासीमा न होगे।
\s5
\v 18 क्यूँकि ख़ुदावन्द जिसने आसमान पैदा किए, वही ख़ुदा है; उसी ने ज़मीन बनाई और तैयार की, उसी ने उसे क़ायम किया; उसने उसे सुन्सान पैदा नहीं किया बल्कि उसको आबादी के लिए आरास्ता किया। वह यूँ फ़रमाता है, कि "मैं ख़ुदावन्द हूँ, और मेरे 'अलावाह और कोई नहीं।
\s5
\v 19 मैंने ज़मीन की किसी तारीक जगह में, पोशीदगी में तो कलाम नहीं किया; मैंने या'क़ूब की नस्ल को नहीं फ़रमाया कि 'अबस मेरे तालिब हो। मैं ख़ुदावन्द सच कहता हूँ, और रास्ती की बातें बयान फ़रमाता हूँ।
\s5
\v 20 "तुम जो क़ौमों में से बच निकले हो! जमा' होकर आओ मिलकर नज़दीक हो वह जो अपनी लकड़ी की खोदी हुई मूरत लिए फिरते हैं, और ऐसे मा'बूद से जो बचा नहीं सकता दु'आ करते हैं, अक़्ल से ख़ाली हैं।
\s5
\v 21 तुम 'ऐलान करो और उनको नज़दीक लाओ; हाँ, वह एक साथ मशवरत करें, किसने पहले ही से ये ज़ाहिर किया? किसने पिछले दिनों में इसकी ख़बर पहले ही से दी है? क्या मैं ख़ुदावन्द ही ने ये नहीं किया? इसलिए मेरे 'अलावाह कोई ख़ुदा नहीं है; सादिक़-उल-क़ौल और नजात देनेवाला ख़ुदा मेरे 'अलावाह कोई नहीं।
\s5
\v 22 'ऐ इन्तिहा-ए-ज़मीन के सब रहनेवालो, तुम मेरी तरफ़ मुत्वज्जिह हो और नजात पाओ, क्यूँकि मैं ख़ुदा हूँ और मेरे 'अलावाह कोई नहीं।
\v 23 मैंने अपनी ज़ात की क़सम खाई है, कलाम-ए-सिद्क़ मेरे मुँह से निकला है और वह टलेगा नहीं', कि 'हर एक घुटना मेरे सामने झुकेगा और हर एक ज़बान मेरी क़सम खाएगी।'
\s5
\v 24 "मेरे हक़ में हर एक कहेगा कि यक़ीनन ख़ुदावन्द ही में रास्तबाज़ी और तवानाई है, उसी के पास वह आएगा और सब जो उससे बेज़ार थे पशेमाँ होंगे।
\v 25 इस्राईल की कुल नस्ल ख़ुदावन्द में सादिक़ ठहरेगी और उस पर फ़ख़्र करेगी।
\s5
\c 46
\p
\v 1 बेल झुकता है नबूख़म होता उनके बुत जानवरों और चौपायों पर लदे हैं; जो चीजें तुम उठाए फिरते थे, थके हुए चौपायों पर लदी हैं।
\v 2 वह झुकते और एक साथ ख़म होते हैं; वह उस बोझ को बचा न सके, और वह आप ही ग़ुलामी में चले गए हैं।
\s5
\v 3 "ऐ या'क़ूब के घराने, और ऐ इस्राईल~के घर के सब बाक़ी थके लोगो, जिनको बत्न ही से मैंने उठाया और जिनको रहम ही से मैंने गोद में लिया, मेरी सुनो
\v 4 मैं तुम्हारे बुढ़ापे तक वही हूँ और सिर सफ़ेद होने तक तुम को उठाए फिरूँगा। मैंने तुम्हें बनाया और मैं ही उठाता रहूँगा, मैं ही लिए चलूँगा और रिहाई दूँगा।
\s5
\v 5 "तुम मुझे किससे तशबीह दोगे, और मुझे किसके बराबर ठहराओगे, और मुझे किसकी तरह कहोगे ताकि हम मुशाबह हों?
\v 6 जो थैली से बाइफ़रात सोना निकालते और चाँदी को तराज़ू में तोलते हैं, वह सुनार को उजरत पर लगाते हैं और वह उससे एक बुत बनाता है; फिर वह उसके सामने झुकते, बल्कि सिज्दा करते हैं।
\s5
\v 7 वह उसे कँधे पर उठाते हैं, वह उसे ले जाकर उसकी जगह पर खड़ा करते हैं और वह खड़ा रहता है, वह अपनी जगह से सरकता नहीं; बल्कि अगर कोई उसे पुकारे, तो वह न जवाब दे सकता है और न उसे मुसीबत से छुड़ा सकता है |
\s5
\v 8 "ऐ गुनाहगारो, इसको याद रख्खो और मर्द बनो, इस पर फिर सोचो ।
\v 9 पहली बातों को जो क़दीम से हैं, याद करो कि मैं ख़ुदा हूँ और कोई दूसरा नहीं ~मैं ख़ुदा हूँ और मुझ सा कोई नहीं।
\s5
\v 10 जो इब्तिदा ही से अंजाम की ख़बर देता हूँ, और पहले ~दिनों से वह बातें जो अब तक वजूद में नहीं आई, बताता हूँ; और कहता हूँ, कि 'मेरी मसलहत क़ायम रहेगी और मैं अपनी मर्ज़ी ~बिल्कुल पूरी करूँगा ।'
\v 11 जो पूरब से उक़ाब को या'नी उस शख़्स को जो मेरे इरादे को पूरा करेगा, दूर के मुल्क से बुलाता हूँ, मैंने ही ~कहा और मैं ही इसको वजूद में लाऊँगा; मैंने इसका इरादा किया और मैं ही इसे पूरा करूँगा |
\s5
\v 12 "ऐ सख़्त दिलो, जो सदाक़त से दूर हो मेरी सुनो,
\v 13 मैं अपनी सदाक़त को नज़दीक लाता हूँ, वह दूर नहीं होगी और मेरी नजात ताख़ीर न करेगी; और मैं सिय्यून को नजात और इस्राईल को अपना जलाल बख़्शूँगा ।"
\s5
\c 47
\p
\v 1 ऐ कुँवारी दूख़्तर-ए-बाबुल उतर आ और ख़ाक पर बैठ ऐ कसदियों की दुख़्तर, तू बे-तख़्त ज़मीन पर बैठ; क्यूँकि अब तू नर्म अन्दाम और नाज़नीन न कहलाएगी।
\v 2 चक्की ले और आटा पीस, अपना निक़ाब उतार और दामन समेट ले, टाँगे नंगी करके नदियों को पार कर।
\s5
\v 3 तेरा बदन बे-पर्दा किया जाएगा, बल्कि तेरा सत्र भी देखा जाएगा। मैं बदला लूँगा और किसी पर शफ़क़त न करूँगा ”।
\v 4 हमारा फ़िदिया देनेवाले का नाम रब्ब-उल-अफ़वाज या'नी इस्राईल का क़ुददूस है।
\v 5 ऐ कसदियों की बेटी, चुप होकर बैठ और अन्धेरे में दाख़िल हो; क्यूँकि अब तू मम्लुकतों की ख़ातून न कहलाएगी।
\s5
\v 6 मैं अपने लोगों पर ग़ज़बनाक हुआ, मैंने अपनी मीरास को नापाक किया और उनको तेरे हाथ में सौंप दिया; तूने उन पर रहम न किया, तूने बूढ़ों पर भी अपना भारी जूआ रख्खा।
\v 7 और तूने कहा भी, कि "मैं हमेशा तक ख़ातून बनी रहूँगी," इसलिए तूने अपने दिल में इन बातों का ख़याल न किया और इनके अन्जाम को न सोचा।
\s5
\v 8 इसलिए अब ये बात सुन, ऐ तू जो 'इश्रत में ग़र्क है, जो बेपर्वा रहती है, जो अपने दिल में कहती है, कि"मैं हूँ, और मेरे 'अलावाह कोई नहीं; मैं बेवा की तरह न बैठूँगी, और न बेऔलाद होने की हालत से वाक़िफ़ हूँगी;"
\v 9 इसलिए अचानक एक ही दिन में ये दो मुसीबतें तुझ पर आ पड़ेंगी, या'नी तू बेऔलाद और बेवा हो जाएगी। तेरे जादू की इफ़रात और तेरे सहर की कसरत के बावजूद ये मुसीबतें पूरे तौर से तुझ पर आ पड़ेंगी।
\s5
\v 10 क्यूँकि तूने अपनी शरारत पर भरोसा किया, तूने कहा, "मुझे कोई नहीं देखता; "तेरी हिकमत और तेरी अक़्ल ने तुझे बहकाया, और तूने अपने दिल में कहा, "मैं ही हूँ। मेरे 'अलावाह और कोई नहीं।"
\v 11 इसलिए तुझ पर मुसीबत आ पड़ेगी जिसका मंतर तू नहीं जानती, और ऐसी बला तुझ पर नाज़िल होगी जिसको तू दूर न कर सकेगी; यकायक तबाही तुझ पर आएगी जिसकी तुझ को कुछ ख़बर नहीं।
\s5
\v 12 अब अपना जादू और अपना सारा सेहर, जिसकी तूने बचपन ही से मश्क कर"रख्खी है इस्ते'माल कर; शायद तू उनसे नफ़ा' पाए, शायद तू ग़ालिब आए।
\v 13 तू अपनी मश्वरतों की कसरत से थक गई, अब अफ़लाक-पैमा और मुनज्जिम और वह जो माह-ब-माह आइन्दा हालात दरियाफ़त करते हैं, उठें और जो कुछ तुझ पर आनेवाला है उससे तुझ को बचाएँ।
\s5
\v 14 देख, वह भूसे की तरह होंगे; आग उनको जलाएगी। वह अपने आपको शो'ले की शिद्दत से बचा न सकेंगे, ये आग न तापने के अंगारे होगी, न उसके पास बैठ सकेंगे।
\v 15 जिनके लिए तूने मेहनत की, तेरे लिए ऐसे ही होंगे; जिनके साथ तूने अपनी जवानी ही से तिजारत की, उनमें से हर एक अपनी राह लेगा; तुझ को बचानेवाला कोई न रहेगा।
\s5
\c 48
\p
\v 1 ये बात सुनो ऐ या'क़ूब के घराने जो इस्राईल के नाम से कहलाते हो और यहूदाह के चश्मे से निकले हो, जो ख़ुदावन्द का नाम लेकर क़सम खाते हो, और इस्राईल के ख़ुदा का इक़रार करते हो, बल्कि अमानत और सदाक़त से नहीं।
\v 2 क्यूँकि वह शहर-ए- क़ुददूस के लोग कहलाते हैं और इस्राईल के ख़ुदा पर तवक्कुल करते हैं जिसका नाम रब्ब-उल-अफ़वाज है |
\s5
\v 3 'मैंने पहले से होने वाली बातों की ख़बर दी है हाँ वह मेरे मुंह से निकली मैंने उनको ज़ाहिर किया मैं नागहा उनको 'अमल में लाया और वह ज़हूर में आईं |
\v 4 चूँकि मैं जानता था कि तू ज़िद्दी है और तेरी गर्दन का पट्ठा लोहे का है और तेरी पेशानी पीतल की है।
\v 5 इसलिए मैंने पहले ही से ये बातें तुझे कह सुनाई, और उनके बयान" होने से पहले तुझ पर ज़ाहिर कर दिया; ता न हो कि तू कहे, 'मेरे बुत ने ये काम किया, और मेरे खोदे हुए सनम ने और मेरी ढाली हुई मूरत ने ये बातें फ़रमाईं।"
\s5
\v 6 "तूने ये सुना है, इसलिए इस सब पर तवज्जुह कर; क्या तुम इसका इक़रार न करोगे? अब मैं तुझे नई चीजें और छिपी बातें, जिनसे तू वाक़िफ़ न था दिखाता हूँ।
\v 7 वह अभी ख़ल्क की गई हैं, पहले से नहीं; बल्कि आज से पहले तूने उनको सुना भी न था; ता न हो कि तू कहे, 'देख, मैं जानता था।
\s5
\v 8 हाँ, तूने न सुना न जाना; हाँ, पहले ही से तेरे कान खुले न थे। क्यूँकि मैं जानता था कि तू भी बिल्कुल बेवफ़ा है, और रहम ही से ख़ताकार कहलाता है।
\s5
\v 9 'मैं अपने नाम की ख़ातिर अपने ग़ज़ब में ताख़ीर करूँगा , और अपने जलाल की ख़ातिर तुझ से बाज़ रहूँगा, कि तुझे काट न डालूँ।
\v 10 देख, मैंने तुझे साफ़ किया, लेकिन चाँदी की तरह नहीं; मैंने मुसीबत की कुठाली से तुझे साफ़ किया |
\v 11 मैंने अपनी ख़ातिर, हाँ, अपनी ही ख़ातिर ये किया है; क्यूँकि मेरे नाम की तक्फ़ीर क्यूँ हो? मैं तो अपनी शौकत दूसरे को नहीं देने का।
\s5
\v 12 "ऐ या'क़ूब, आ मेरी सुन, और ऐ इस्राईल जो मेरा बुलाया हुआ है; मैं वही हूँ, मैं ही अव्वल और मैं ही आख़िर हूँ।
\v 13 यक़ीनन मेरे ही हाथ ने ज़मीन की बुनियाद डाली, और मेरे दहने हाथ ने आसमान को फैलाया; मैं उनको पुकारता हूँ और वह हाज़िर हो जाते हैं।
\s5
\v 14 "तुम सब जमा' होकर सुनो। उनमें~किसने इन बातों की ख़बर दी है? वह जिसे ख़ुदावन्द ने पसन्द किया है; उसकी ख़ुशी को बाबुल के मुताल्लिक 'अमल में लाएगा, और उसी का हाथ कसदियों की मुख़ालिफ़त में होगा।
\v 15 मैंने, हाँ मैं ही ने कहा; मैंने ही उसे बुलाया, मैं उसे लाया हूँ; और वह अपनी चाल चलन में बरोमन्द होगा।
\s5
\v 16 मेरे नज़दीक आओ और ये सुनो, मैंने शुरू' ही से पोशीदगी में कलाम नहीं किया, जिस वक़्त से कि वह था मैं वहीं था।” और अब ख़ुदावन्द ख़ुदा ने और उसकी रूह ने मुझ को भेजा है।
\s5
\v 17 ख़ुदावन्द तेरा फ़िदिया देनेवाला, इस्राईल का क़ुददूस , यूँ फ़रमाता है, कि"मैं ही ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा हूँ। जो तुझे मुफ़ीद ता'लीम देता हूँ और तुझे उस राह में जिसमें तुझे जाना है, ले चलता हूँ।
\v 18 काश कि तू मेरे हुक्मों का सुनने वाला होता, और तेरी सलामती नहर की तरह और तेरी सदाक़त समन्दर की मौजों की तरह होती;
\s5
\v 19 तेरी नस्ल रेत की तरह होती और तेरे सुल्बी फ़र्ज़न्द उसके ज़र्रों की तरह बा-कसरत होते; और उसका नाम मेरे सामने से काटा और मिटाया न जाता।”,
\s5
\v 20 तुम बाबुल से निकलो, कसदियों के बीच से भागो; नग़मे की आवाज़ से बयान करो इसे मशहूर करों हाँ इसकी ख़बर ज़मीन के ~किनारों तक पहुँचाओ; कहते जाओ, कि "ख़ुदावन्द ने अपने ख़ादिम या'क़ूब का फ़िदिया दिया।"
\s5
\v 21 और जब वह उनको वीराने में से ले गया, तो वह प्यासे न हुए; उसने उनके लिए चटटान में से पानी निकाला, उसने चटटान को चीरा और पानी फूट निकला।
\v 22 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि "शरीरों के लिए सलामती नहीं।"
\s5
\c 49
\p
\v 1 ऐ जज़ीरों मेरी सुनों ऐ उम्मतों जो दो हो कान लगाओ ख़ुदावन्द ने मुझे रहम ही से बुलाया, बत्न-ए-मादर ही से उसने मेरे नाम का ज़िक्र किया।
\v 2 और उसने मेरे मुँह को तेज़ तलवार की तरह बनाया, और मुझ को अपने हाथ के साये तले छिपाया; उसने मुझे तीर-ए-आबदार किया और अपने तरकश में मुझे छिपा रख्खा;
\s5
\v 3 और उसने मुझ से कहा, "तू मेरा ख़ादिम है, तुझ में ऐ इस्राईल, मैं अपना जलाल ज़ाहिर करूँगा ।”
\v 4 तब मैंने कहा, "मैंने बेफ़ाइदा मशक्क़त उठाई मैंने अपनी क़ुव्वत बेफ़ाइदा बतालत में सर्फ़ की; तोभी यक़ीनन मेरा हक़ ख़ुदावन्द के साथ और मेरा 'अज्र मेरे ख़ुदा के पास है।"
\s5
\v 5 चूँकि मैं ख़ुदावन्द की नज़र में जलील-उल-क़द्र हूँ और वह मेरी तवानाई है, इसलिए वह जिसने मुझे रहम ही से बनाया, ताकि उसका ख़ादिम होकर या'क़ूब को उसके पास वापस लाऊँ और इस्राईल को उसके पास जमा' करूँ, यूँ फ़रमाता है।
\v 6 हाँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि "ये तो हल्की सी बात है कि तू या'क़ूब के क़बाइल को खड़ा करने और महफ़ूज़ इस्राईलियों को वापस लाने के लिए मेरा ख़ादिम हो, बल्कि मैं तुझ को क़ौमों के लिए नूर बनाऊँगा कि तुझ से मेरी नजात ज़मीन के किनारों तक पहुँचे।"
\s5
\v 7 ख़ुदावन्द इस्राईल का फ़िदिया देने वाला और उसका क़ुददूस उसको जिसे इन्सान हक़ीर जानता है और जिससे क़ौम को नफ़रत है और जो हाकिमों का चाकर है, यूँ फ़रमाता है, कि 'बादशाह देखेंगे और उठ खड़े होंगे, और उमरा सिज्दा करेंगे; ख़ुदावन्द के लिए जो सादिक़-उल-क़ौल और इस्राईल का क़ुददूस है, जिसने तुझे बरगुज़ीदा किया है।"
\s5
\v 8 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि"मैंने क़ुबूलियत के वक़्त तेरी सुनी, और नजात के दिन तेरी मदद की; और मैं तेरी हिफ़ाज़त करूँगा और लोगों के लिए तुझे एक 'अहद ठहराऊँगा, ताकि मुल्क को बहाल करे और वीरान मीरास वारिसों को दे;
\s5
\v 9 ताकि तू कै़दियों को कहे, कि 'निकल चलो,' और उनको जो अन्धेरे में हैं, कि 'अपने आपको दिखलाओ।" वह रास्तों में चरेंगे और सब नंगे टीले उनकी चरागाहें होंगे।
\s5
\v 10 वह न भूके होंगे न प्यासे, और न गर्मी और धूप से उनको ज़रर पहुँचेगा; क्यूँकि वह जिसकी रहमत उन पर है उनका रहनुमा होगा, और पानी के सोतों की तरफ़ उनकी रहबरी करेगा।
\v 11 और मैं अपने सारे पहाड़ों को एक रास्ता बना दूँगा, और मेरी शाहराहें ऊँची की जाएँगी।
\s5
\v 12 देख, ये दूर से और ये उत्तर और मग़रिब से, और ये सिनीम के मुल्क से आएँगे।"
\v 13 ऐ आसमानो, गाओ; ऐ ज़मीन, ख़ुश हो; ऐ पहाड़ो, नग़मा परदाज़ी करो! क्यूँकि ख़ुदावन्द ने अपने लोगों को तसल्ली बख़्शी है और अपने रंजूरों पर रहम फ़रमाएगा।
\s5
\v 14 लेकिन सिय्यून कहती है, "यहोवाह ने मुझे छोड़ दिया है, और ख़ुदावन्द मुझे भूल गया है।”
\v 15 ~'क्या ये मुम्किन है कि कोई माँ अपने शीरख़्वार बच्चे को भूल जाए, और अपने रहम के फ़र्ज़न्द पर तरस न खाए? हाँ, वह शायद भूल जाए, पर मैं तुझे न भूलूँगा।
\s5
\v 16 ~देख, मैंने तेरी सूरत अपनी हथेलियों पर खोद रख्खी है; और तेरी शहरपनाह हमेशा मेरे सामने है।
\v 17 ~तेरे फ़र्ज़न्द जल्दी करते हैं, और वह जो तुझे बर्बाद करने और उजाड़ने वाले थे, तुझ से निकल जाएँगे।
\v 18 अपनी आँखें उठा कर चारों तरफ़ नज़र कर, ये सब के सब मिलकर इकट्ठे होते हैं और तेरे पास आते हैं। ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम कि तू यक़ीनन इन सबको ज़ेवर की तरह पहन लेगी, और इनसे दुल्हन की तरह आरास्ता होगी।
\s5
\v 19 ~"क्यूँकि तेरी वीरान और उजड़ी जगहों में, और तेरे बर्बाद मुल्क में अब यक़ीनन बसनेवाले गुंजाइश से ज़्यादा होंगे, और तुझ को ग़ारत करनेवाले दूर हो जाएँगे।
\v 20 बल्कि तेरे वह बेटे जो तुझ से ले लिए गए थे, तेरे कानों में फिर कहेंगे, कि बसने की जगह बहुत तंग है, हम को बसने की जगह दे।'
\s5
\v 21 तब तू अपने दिल में कहेगी, 'कौन मेरे लिए इनका बाप हुआ? कि मैं तो बेऔलाद हो गई और अकेली थी, मैं तो जिलावतनी और आवारगी में रही, सो किसने इनको पाला? देख, मैं तो अकेली रह गई थी; फिर ये कहाँ थे?' "
\s5
\v 22 ~ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि "देख, मैं क़ौमों पर हाथ उठाऊँगा, और उम्मतों पर अपना झण्डा खड़ा करूँगा ; और वह तेरे बेटों को अपनी गोद में लिए आएँगे, और तेरी बेटियों को अपने कंधों पर बिठाकर पहुँचाएँगे।
\s5
\v 23 और बादशाह तेरे मुरब्बी होंगे और उनकी बीवियाँ तेरी दाया होंगी। वह तेरे सामने मुँह के बल ज़मीन पर गिरेंगे, और तेरे पाँव की खाक चाटेंगे; और तू जानेगी कि मैं ही ख़ुदावन्द हूँ, जिसके मुन्तज़िर शर्मिन्दा न होंगे।”
\s5
\v 24 ~क्या ज़बरदस्त से शिकार छीन लिया जाएगा? और क्या रास्तबाज़ के कै़दी छुड़ा लिए जाएँगे?
\v 25 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि 'ताक़तवर के ग़ुलाम भी ले लिए जाएँगे, और मुहीब का शिकार छुड़ा लिया जाएगा; क्यूँकि मैं उससे जो तेरे साथ झगड़ता है, झगड़ा करूँगा और तेरे बच्चों को बचा लूँगा।
\s5
\v 26 ~और मैं तुम पर ज़ुल्म करनेवालों को उन ही का गोश्त खिलाऊँगा, और वह मीठी शराब की तरह अपना ही ख़ून पीकर बदमस्त हो जाएँगे; और हर फ़र्द-ए-बशर जानेगा कि मैं ख़ुदावन्द तेरा नजात देनेवाला, और या'क़ूब का क़ादिर तेरा फ़िदिया देनेवाला हूँ।
\s5
\c 50
\p
\v 1 ख़ुदावन्दयूँ फ़रमाता है कि तेरी माँ का तलाक़ नामा जिसे लिख कर मैंने उसे~छोड़ दिया कहाँ है? या अपने क़र्ज़ ख़्वाहों में से किसके हाथ मैंने तुम को बेचा? देखो, तुम अपनी शरारतों की वजह से बिक गए, और तुम्हारी ख़ताओं के ज़रिए' तुम्हारी माँ को तलाक़ दी गई।
\s5
\v 2 ~फ़िर किस लिए, जब मैं आया तो कोई आदमी न था? और जब मैंने पुकारा, तो कोई जवाब देनेवाला न हुआ? क्या मेरा हाथ ऐसा कोताह हो गया है कि छुड़ा नहीं सकता? और क्या मुझ में नजात देने की क़ुदरत नहीं? देखो, मैं अपनी एक धमकी से समन्दर को सुखा देता हूँ, और नहरों को सहरा कर डालता हूँ, उनमें की मछलियाँ पानी के न होने से बदबू हो जाती हैं और प्यास से मर जाती हैं।
\v 3 मैं आसमान को सियाह पोश करता हूँ और उसको टाट उढाता हूँ
\s5
\v 4 ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मुझ को शागिर्द की ज़बान बख़्शी, ताकि मैं जानूँ कि कलाम के वसीले से किस तरह थके माँदे की मदद करूँ । वह मुझे हर सुबह जगाता है, और मेरा कान लगाता है ताकि शागिदों की तरह सुनूँ।
\s5
\v 5 ~ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मेरे कान खोल दिए, और मैं बाग़ी -ओ-बरगश्ता न हुआ।
\v 6 मैंने अपनी पीठ पीटने वालों के और अपनी दाढ़ी नोचने वालों के हवाले की, मैंने अपना मुँह रुस्वाई और थूक से नहीं छिपाया।
\s5
\v 7 लेकिन ख़ुदावन्द ख़ुदा मेरी हिमायत करेगा, और इसलिए मैं शर्मिन्दा न हूँगा; और इसीलिए मैंने अपना मुँह संग-ए-ख़ारा की तरह बनाया और मुझे यक़ीन है कि मैं शर्मसार न हूँगा।
\s5
\v 8 मुझे रास्तबाज़ ठहरानेवाला नज़दीक है। कौन मुझ से झगड़ा करेगा? आओ, हम आमने-सामने खड़े हों, मेरा मुख़ालिफ़ कौन है? वह मेरे पास आए।
\v 9 ~देखो, ख़ुदावन्द ख़ुदा मेरी हिमायत करेगा; कौन मुझे मुजरिम ठहराएगा? देख, वह सब कपड़े की तरह पुराने हो जाएँगे, उनको कीड़े खा जाएँगे।
\s5
\v 10 ~तुम्हारे बीच कौन है जो ख़ुदावन्द से डरता और उसके ख़ादिम की बातें सुनता है? जो अन्धेरे में चलता और रोशनी नहीं पाता, वह ख़ुदावन्द ~के नाम पर तवक्कुल करे और अपने ख़ुदा पर भरोसा रख्खे।
\s5
\v 11 ~देखो, तुम सब जो आग सुलगाते हो और अपने आपको अँगारों से घेर लेते हो, अपनी ही आग के शोलों में और अपने सुलगाए हुए अंगारों में चलो। तुम मेरे हाथ से यही पाओगे, तुम 'अज़ाब में लेट रहोगे।
\s5
\c 51
\p
\v 1 "ऐ लोगो, जो सदाक़त की पैरवी करते हो और ख़ुदावन्द के जोयान हो, मेरी सुनो। उस चटटान पर जिसमें से तुम काटे गए हो और उस गढ़े के सूराख़ पर जहाँ से तुम खोदे गए हो, नज़र करो।
\s5
\v 2 अपने बाप इब्राहीम पर और सारा पर जिससे तुम पैदा हुए निगाह करो कि जब मैंने उसे बुलाया वह अकेला था, पर मैंने उसको बरकत दी और उसको कसरत बख़्शी।
\s5
\v 3 यक़ीनन ख़ुदावन्द सिय्यून को तसल्ली देगा, वह उसके तमाम वीरानों की दिलदारी करेगा, वह उसका वीराना 'अदन की तरह और उसका सहरा ख़ुदावन्द के बाग़ की तरह बनाएगा; ख़ुशी और शादमानी उसमें पाई जाएगी, शुक्रगुज़ारी और गाने की आवाज़ उसमें होगी।
\s5
\v 4 "मेरी तरफ़ मुत्वज्जिह हो, ऐ मेरे लोगो; मेरी तरफ़ कान लगा, ऐ मेरी उम्मत: क्यूँकि शरी'अत मुझ से सादिर होगी और मैं अपने 'अद्ल को लोगों की रोशनी के लिए क़ायम करूँगा ।
\v 5 मेरी सदाक़त नज़दीक है, मेरी नजात ज़ाहिर है, और मेरे बाज़ू लोगों पर हुक्मरानी करेंगे, जज़ीरे मेरा इन्तिज़ार करेंगे और मेरे बाज़ू पर उनका तवक्कुल होगा।
\s5
\v 6 अपनी आँखें आसमान की तरफ़ उठाओ और नीचे ज़मीन पर निगाह करो; क्यूँकि आसमान धुँवें ~की तरह ग़ायब हो जायेंगे और ज़मीन कपड़े की तरह पुरानी हो जाएगी, और उसके बाशिन्दे मच्छरों की तरह मर जाएँगे; लेकिन मेरी नजात हमेशा तक रहेगी, और मेरी सदाक़त ख़त्म न होगी।
\s5
\v 7 "ऐ सच्चाई के जाननेवालों, मेरी सुनो, ऐ लोगो, जिनके दिल में मेरी शरी'अत है; इन्सान की मलामत से न डरो और उनकी ता'नाज़नी से परेशान न हो।
\v 8 क्यूँकि कीड़ा उनको कपड़े की तरह खाएगा और किर्म उनको पश्मीने की तरह खा जाएगा, लेकिन मेरी सदाक़त हमेशा तक रहेगी और मेरी नजात नस्ल-दर-नस्ल।"
\s5
\v 9 जाग, जाग, ऐ ख़ुदावन्द के बाज़ू तवानाई से मुलब्बस हो; जाग जैसा पुराने ज़माने में और गुज़िश्ता नस्लों में क्या तू वही नहीं जिसने रहब' को टुकड़े-टुकड़े किया और अज़दहे को छेदा?
\v 10 क्या तू वही नहीं जिसने समन्दर या'नी बहर-ए-'अमीक़ के पानी को सुखा डाला; जिसने बहर की तह को रास्ता बना डाला, ताकि जिनका फ़िदिया दिया गया उसे उबूर करें?
\s5
\v 11 फ़िर वह जिनको ख़ुदावन्द ने मख़लसी बख़्शी लौटेंगे और गाते हुए सिय्यून में आएँगे, और हमेशा सुरूर उनके सिरों पर होगा; वह ख़ुशी और शादमानी हासिल करेंगे और ग़म-ओ-अन्दोह काफ़ूर हो जाएँगे।
\s5
\v 12 "तुम को तसल्ली देनेवाला मैं ही हूँ, तू कौन है जो फ़ानी इन्सान से, और आदमज़ाद से जो घास की तरह हो जाएगा डरता है,
\s5
\v 13 और ख़ुदावन्द अपने ख़ालिक़ को भूल गया है, जिसने आसमान को ताना और ज़मीन की बुनियाद डाली; और तू हर वक़्त ज़ालिम के जोश-ओ-ख़रोश से कि जैसे वह हलाक करने को तैयार है, डरता है? पर ज़ालिम का जोश-ओ-ख़रोश कहाँ है?
\s5
\v 14 जिलावतन ग़ुलाम जल्दी से आज़ाद किया जाएगा, वह ग़ार में न मरेगा और उसकी रोटी कम न होगी।
\v 15 क्यूँकि मैं ही ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा हूँ, जो मौजज़न समन्दर को थमा देता हूँ; मेरा नाम रब्ब-उल-अफ़वाज है।
\s5
\v 16 और मैंने अपना कलाम तेरे मुँह में डाला, और तुझे अपने हाथ के साये तले छिपा रख्खा ताकि अफ़लाक को खड़ा करूँ” और ज़मीन की बुनियाद डालूँ, और अहल-ए-सिय्यून से कहूँ, 'तुम मेरे लोग हो।'
\s5
\v 17 जाग, जाग, उठ ऐ यरुशलीम ; तूने ख़ुदावन्द के हाथ से उसके ग़ज़ब का प्याला पिया, तूने डगमगाने का जाम तलछट के साथ पी लिया।
\v 18 उन सब बेटों में जो उससे पैदा हुए, कोई नहीं जो उसका रहनुमा हो; और उन सब बेटों में जिनको उसने पाला, एक भी नहीं जो उसका हाथ पकड़े।
\s5
\v 19 ये दो हादिसे तुझ पर आ पड़े, कौन तेरा ग़मख़्वार होगा? वीरानी और हलाकत, काल और तलवार; मैं क्यूँकर तुझे तसल्ली दूँ?
\v 20 तेरे बेटे हर कूंचे के मदख़ल में ऐसे बेहोश पड़े हैं, जैसे हरन दाम में, वह ख़ुदावन्द के ग़ज़ब और तेरे ख़ुदा की धमकी से बेख़ुद हैं'।
\s5
\v 21 इसलिए अब तू जो बदहाल और मस्त है पर मय से नहीं, ये बात सुन;
\v 22 तेरा"ख़ुदावन्द यहोवाह हाँ तेरा ख़ुदा जो ~अपने लोगों की वकालत करता है यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं डगमगाने का प्याला और अपने क़हर का जाम तेरे हाथ से ले लूँगा; तू उसे फिर कभी न पिएगी।
\s5
\v 23 और मैं उसे उनके हाथ में दूँगा जो तुझे दुख देते, और जो तुझ से कहते थे, 'झुक जा ताकि हम तेरे ऊपर से गुज़रें', और तूने अपनी पीठ को जैसे ज़मीन, बल्कि गुज़रने वालों के लिए सड़क बना दिया।"
\s5
\c 52
\p
\v 1 जाग जाग ऐ सिय्यून, अपनी शौकत से मुलब्बस हो; ऐ यरुशलीम पाक शहर, अपना ख़ुशनुमा लिबास पहन ले; क्यूँकि आगे को कोई नामख़्तून या नापाक तुझ में कभी दाख़िल न होगा।
\s5
\v 2 अपने ऊपर से गर्द झाड़ दे, उठकर बैठ; ऐ यरुशलीम , ऐ ग़ुलाम दुख़्तर -ए-सिय्यून, अपनी गर्दन के बंधनों को खोल डाल।
\v 3 क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "तुम मुफ़्त बेचे गए, और तुम बेज़र ही आज़ाद किए जाओगे।"
\s5
\v 4 ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि "मेरे लोग इब्तिदा में मिस्र को गए कि वहाँ मुसाफ़िर होकर रहें, असूरियों ने भी बे वजह उन पर ज़ुल्म किया।"
\s5
\v 5 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि"अब मेरा यहाँ क्या काम, हालाँकि मेरे लोग मुफ़्त ग़ुलामी में गए हैं? वह जो उन पर मुसल्लत हैं लल्कारतें हैं ख़ुदावन्द फ़रमाता हैं और हर रोज़ मुतवातिर मेरे नाम की तकफ़ीर की जाती है।
\v 6 यक़ीनन मेरे लोग मेरा नाम जानेंगे, और उस रोज़ समझेंगे कि कहनेवाला मैं ही हूँ, देखो, मैं हाज़िर हूँ।"
\s5
\v 7 उसके पाँव पहाड़ों पर क्या ही ख़ुशनुमा हैं जो ख़ुशख़बरी लाता है और सलामती का 'ऐलान करता है और खैरियत की ख़बर और नजात का इश्तिहार देता है जो सिय्यून से कहता है तेरा ख़ुदा सल्तनत करता है |
\v 8 अपने निगहबानों की आवाज़ सुन, वह अपनी आवाज़ बलन्द करते हैं, वह आवाज़ मिलाकर गाते हैं; क्यूँकि जब ख़ुदावन्द सिय्यून को वापस आएगा तो वह उसे रू-ब-रू देखेंगे।
\s5
\v 9 ऐ यरुशलीम के वीरानो, ख़ुशी से ललकारो, मिलकर नग़मा सराई करो, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने अपनी क़ौम को दिलासा दिया उसने यरुशलीम का फ़िदिया दिया।
\v 10 ख़ुदावन्द ने अपना पाक बाज़ू तमाम क़ौमों की आँखों के सामने नंगा किया है और ज़मीन सरासर हमारे ख़ुदा की नजात को देखेगी |
\s5
\v 11 ऐ ख़ुदावन्द के ज़ुरूफ़ उठाने वालो , रवाना हो, रवाना हो; वहाँ से चले जाओ, नापाक चीज़ों को हाथ न लगाओ, उसके बीच से निकल जाओ और पाक हो।
\v 12 क्यूँकि तुम न तो जल्द निकल जाओगे, और न भागनेवाले की तरह चलोगे; क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा हरावल, और इस्राईल का खुदा तुम्हारा चन्डावल होगा।
\s5
\v 13 देखो, मेरा ख़ादिम इक़बालमन्द होगा, वह आला-ओ-बरतर और निहायत बलन्द होगा।
\v 14 जिस तरह बहुतेरे तुझ को देखकर दंग हो गए (उसका चहरा हर एक बशर से ज़ाइद, और उसका जिस्म बनी आदम से ज़्यादा बिगड़ गया था),
\s5
\v 15 उसी तरह वह बहुत सी क़ौमों को पाक करेगा और बादशाह उसके सामने ख़ामोश होंगे; क्यूँकि जो कुछ उनसे कहा न गया था, वह देखेंगे; और जो कुछ उन्होंने सुना न था, वह समझेंगे।
\s5
\c 53
\p
\v 1 हमारे पैग़ाम पर कौन ईमान लाया? और ख़दावन्द का बाज़ू किस पर ज़ाहिर हुआ?
\v 2 लेकिन वह उसके आगे कोंपल की तरह, और ख़ुश्क ज़मीन से जड़ की तरह फूट निकला है; न उसकी कोई शक्ल और सूरत है, न ख़ूबसूरती; और जब हम उस पर निगाह करें, तो कुछ हुस्न-ओ-जमाल नहीं कि हम उसके मुश्ताक़ हों।
\s5
\v 3 वह आदमियों में हक़ीर-ओ-मर्दूद; मर्द-ए-ग़मनाक, और रंज का आशना था; लोग उससे जैसे रूपोश थे। उसकी तहक़ीर की गई, और हम ने उसकी कुछ क़द्र न जानी।
\s5
\v 4 तोभी उसने हमारी मशक़्क़तें उठा लीं, और हमारे हमारे ग़मों को बर्दाश्त किया; लेकिन हमने उसे ख़ुदा का मारा-कूटा और सताया हुआ समझा।
\s5
\v 5 हालाँकी वह हमारी ख़ताओं की वजह से घायल किया गया, और हमारी बदकिरदारी के ज़रिए' कुचला गया। हमारी ही सलामती के लिए उस पर सियासत हुई, ताकि उसके मार खाने से हम शिफ़ा पाएँ।
\s5
\v 6 हम सब भेड़ों की तरह भटक गए, हम में से हर एक अपनी राह को फिरा; लेकिन ख़ुदावन्द ने हम सबकी बदकिरदारी उस पर लादी।
\s5
\v 7 वह सताया गया, तोभी उसने बर्दाश्त की और मुँह न खोला; जिस तरह बर्रा जिसे ज़बह करने को ले जाते हैं, और जिस तरह भेड़ अपने बाल कतरनेवालों के सामने बेज़बान है, उसी तरह वह ख़ामोश रहा।
\s5
\v 8 वह ज़ुल्म करके और फ़तवा लगाकर उसे ले गए; फ़िर उसके ज़माने के लोगों में से किसने ख़याल किया कि वह ज़िन्दों की ज़मीन से काट डाला गया? मेरे लोगों की ख़ताओं की वजह से उस पर मार पड़ी।
\v 9 उसकी क़ब्र भी शरीरों के बीच ठहराई गई, और वह अपनी मौत में दौलतमन्दों के साथ हुआ; हालाँकि उसने किसी तरह का ज़ुल्म न किया, और उसके मुँह में हरगिज़ छल न था।
\s5
\v 10 लेकिन ख़ुदावन्द को पसन्द आया कि उसे कुचले, उसने उसे ग़मगीन किया; जब उसकी जान गुनाह की क़ुर्बानी के लिए पेश की जाएगी, तो वह अपनी नस्ल को देखेगा; उसकी 'उम्र दराज़ होगी और ख़ुदावन्द की मर्ज़ी उसके हाथ के वसीले से पूरी होगी।
\v 11 अपनी जान ही का दुख उठाकर वह उसे देखेगा और सेर होगा; अपने ही इरफ़ान से मेरा सादिक़ ख़ादिम बहुतों को रास्तबाज़ ठहराएगा, क्यूँकि वह उनकी बदकिरदारी खुद उठा लेगा।
\s5
\v 12 इसलिए मैं उसे बुज़ुर्गों के साथ हिस्सा दूँगा, और वह लूट का माल ताक़तवरों के साथ बाँट लेगा; क्यूँकि उसने अपनी जान मौत के लिए उडेल दी, और वह ख़ताकारों के साथ शुमार किया गया, तोभी उसने बहुतों के गुनाह उठा लिए और ख़ताकारों की शफ़ा'अत की।
\s5
\c 54
\p
\v 1 ऐ बाँझ, तू जो बे-औलाद थी नग़मा सराई ~कर, तू जिसने विलादत का दर्द बर्दाश्त नहीं किया, ख़ुशी से गा और ज़ोर से चिल्ला," क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि बे कस छोड़ी हुई औलाद शौहर वाली की औलाद से ज़्यादा है।
\s5
\v 2 अपनी ख़ेमागाह को वसी' कर दे, हाँ, अपने घरों के पर्दे फैला; दरेग़ न कर, अपनी डोरियाँ लम्बी और अपनी मेंख़ें मज़बूत कर।
\v 3 इसलिए कि तू दहनी और बाँई तरफ़ बढ़ेगी और तेरी नस्ल क़ौमों की वारिस होगी और वीरान शहरों को बसाएगी।
\s5
\v 4 ख़ौफ़ न कर, क्यूँकि तू फिर पशेमाँ न होगी; तू न घबरा, क्यूँकि तू फिर रूस्वा न होगी; और अपनी जवानी का नंग भूल जाएगी, और अपनी बेवगी की 'आर को फिर याद न करेगी।
\s5
\v 5 क्यूँकि तेरा ख़ालिक़ तेरा शौहर है, उसका नाम रब्ब-उल-अफ़वाज है; और तेरा फ़िदिया देनेवाला इस्राईल का क़ुददूस है, वह तमाम इस ज़मीन का ख़ुदा कहलाएगा।
\v 6 क्यूँकि तेरा ख़ुदा फ़रमाता है कि ख़ुदावन्द ने तुझ को मतरूका और दिल आज़ुर्दा बीवी की तरह; हाँ, जवानी की मतलूक़ा बीवी की तरह फिर बुलाया है।
\s5
\v 7 मैंने एक दम के लिए तुझे छोड़ दिया, लेकिन रहमत की फ़िरावानी से तुझे ले लूँगा।”
\v 8 ख़ुदावन्द तेरा नजात देनेवाला फ़रमाता है, कि क़हर की शिद्दत में मैंने एक दम के लिए तुझ से मुँह छिपाया, लेकिन अब मैं हमेशा शफ़क़त से तुझ पर रहम करूँगा ।
\s5
\v 9 क्यूँकि मेरे लिए ये तूफ़ान-ए-नूह का सा मु'आमिला है, कि जिस तरह मैंने क़सम खाई थी कि फिर ज़मीन पर नूह जैसा तूफ़ान कभी न आएगा, उसी तरह अब मैंने क़सम खाई है कि मैं तुझ से फिर कभी आज़ुर्दा न हूँगा और तुझ को न घुड़कूँगा।"
\v 10 ख़ुदावन्द तुझ पर रहम करने वाला यूँ फ़रमाता है कि पहाड़ तो जाते रहें और टीले टल जाएँ लेकिन मेरी शफ़क़त कभी तुझ पर से जाती न रहेगी, और मेरा सुलह का 'अहद न टलेगा।
\s5
\v 11 "ऐ मुसीबतज़दा और तूफ़ान की मारी और तसल्ली से महरूम! देख, मैं तेरे पत्थरों को स्याह रेख्ता में लगाऊँगा और तेरी बुनियाद नीलम से डालूँगा।
\v 12 मैं तेरे कुंगुरों को लालों, और तेरे फाटकों को शब चिराग़, और तेरी सारी फ़सील बेशक़ीमत पत्थरों से बनाऊँगा।
\s5
\v 13 और तेरे सब फ़र्ज़न्द ख़ुदावन्द से तालीम पाएँगे और तेरे फ़र्ज़न्दों की सलामती कामिल होगी।
\v 14 तू रास्तबाज़ी से पायदार हो जाएगी, तू ज़ुल्म से दूर रहेगी क्यूँकि तू बेख़ौफ़ होगी, और दहशत से दूर रहेगी क्यूँकि वह तेरे क़रीब न आएगी।
\s5
\v 15 मुम्किन है कि वह कभी इकट्ठे हों, लेकिन मेरे हुक्म से नहीं, जो तेरे ख़िलाफ़ जमा' होंगे, वह तेरे ही वजह से गिरेंगे।
\v 16 देख, मैंने लुहार को पैदा किया जो कोयलों की आग धौंकता और अपने काम के लिए हथियार निकालता है; और ग़ारतगरों को मैंने ही पैदा किया कि लूट मार करें।
\s5
\v 17 ~ कोई हथियार जो तेरे ख़िलाफ़ बनाया जाए काम न आएगा, और जो ज़बान 'अदालत में तुझ पर चलेगी तू उसे मुजरिम ठहराएगी। ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ये मेरे बन्दों की मीरास है और उनकी रास्तबाज़ी मुझ से है।"
\s5
\c 55
\p
\v 1 ऐ सब प्यासो, पानी के पास आओ, और वह भी जिसके पास पैसा न हो, आओ, मोल लो, और खाओ, हाँ आओ! शराब और दूध बेज़र और बेक़ीमत ख़रीदो।
\s5
\v 2 तुम किस लिए अपना रुपया उस चीज़ के लिए जो रोटी नहीं, और अपनी मेहनत उस चीज़ के वास्ते जो आसूदा नहीं करती, ख़र्च करते हो? तुम ग़ौर से मेरी सुनो, और वह चीज़ जो अच्छी है खाओ; और तुम्हारी जान फ़रबही से लज़्ज़त उठाए।
\s5
\v 3 कान लगाओ और मेरे पास आओ, सुनो और तुम्हारी जान ज़िन्दा रहेगी; और मैं तुम को अबदी 'अहद या'नी दाऊद की सच्ची नेमतें बख़्शूँगा ।
\v 4 देखो, मैंने उसे उम्मतों के लिए गवाह मुक़र्रर किया, बल्कि उम्मतों का पेशवा और फ़रमॉंरवा।
\s5
\v 5 देख, तू एक ऐसी क़ौम को जिसे तू नहीं जानता बुलाएगा, और एक ऐसी क़ौम जो तुझे नहीं जानती थी, ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा और इस्राईल के क़ुददूस की ख़ातिर तेरे पास दौड़ी आएगी; क्यूँकि उसने तुझे जलाल बख्शा है।
\s5
\v 6 "जब तक ख़ुदावन्द मिल सकता है उसके तालिब हो, जब तक वह नज़दीक है उसे पुकारो।
\v 7 शरीर अपनी राह को तर्क करे और बदकिरदार अपने ख़यालों को, और वह ख़ुदावन्द की तरफ़ फिरे और वह उस पर रहम करेगा; और हमारे ख़ुदा की तरफ़ क्यूँकि वह कसरत से मु'आफ़ करेगा।
\s5
\v 8 ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि मेरे ख़याल तुम्हारे ख़याल नहीं, और न तुम्हारी राहें मेरी राहें हैं।
\v 9 क्यूँकि जिस क़दर आसमान ज़मीन से बलन्द है, उसी क़दर मेरी राहें तुम्हारी राहों से और मेरे ख़याल तुम्हारे ख़यालों से बलन्द हैं।
\s5
\v 10 "क्यूँकि जिस तरह आसमान से बारिश होती और बर्फ़ पड़ती है, और फिर वह वहाँ वापस नहीं जाती बल्कि ज़मीन को सेराब करती है, और उसकी शादाबी और रोईदगी ~का ज़रि'आ होती है ताकि बोनेवाले को बीज और खाने वाले को रोटी दे;
\v 11 उसी तरह मेरा कलाम जो मेरे मुँह से निकलता है होगा, वह बेअन्जाम मेरे पास वापस न आएगा, बल्कि जो कुछ मेरी ख़्वाहिश होगी वह उसे पूरा करेगा और उस काम में जिसके लिए मैंने उसे भेजा मो'अस्सिर होगा।
\s5
\v 12 क्यूँकि तुम ख़ुशी से निकलोगे और सलामती के साथ रवाना किए जाओगे; पहाड़ और टीले तुम्हारे सामने नग़मापर्दाज़ होंगे, और मैदान के सब दरख़्त ताल देंगे
\v 13 काँटों की जगह सनौबर निकलेगा, और झाड़ी के बदले उसका दरख़्त होगा; और ये ख़ुदावन्द के लिए नाम और हमेशा निशान होगा जो कभी' न मिटेगा।"
\s5
\c 56
\p
\v 1 ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि 'अद्ल को क़ायम रख्खो, और सदाक़त को 'अमल में लाओ, क्यूँकि मेरी नजात नज़दीक है और मेरी सदाक़त ज़ाहिर होने वाली है।
\v 2 मुबारक है वह इन्सान, जो इस पर 'अमल करता है और वह आदमज़ाद जो इस पर क़ायम रहता है, जो सबत को मानता और उसे नापाक नहीं करता, और अपना हाथ हर तरह की बुराई से बाज़ रखता है।"
\s5
\v 3 और बेगाने का फ़र्ज़न्द जो ख़ुदावन्द से मिल गया हरगिज़ न कहे, "ख़ुदावन्द मुझ को अपने लोगों से जुदा कर देगा;" और ख़ोजा न कहे, कि "देखो, मैं तो सूखा दरख़्त हूँ।”
\s5
\v 4 क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है,कि " वह ख़ोजे जो मेरे सबतों को मानते हैं और उन कामों को जो मुझे पसन्द हैं ~इख्तियार करते हैं
\v 5 मैं उनको अपने घर में और अपनी चार दीवारी के अन्दर, ऐसा नाम-ओ-निशान बख़्शूँगा जो बेटों और बेटियों से भी बढ़ कर होगा; मैं हर एक को एक अबदी नाम दूँगा जो मिटाया न जाएगा।
\s5
\v 6 'और बेगाने की औलाद भी जिन्होंने अपने आपको ख़ुदावन्द से पैवस्ता किया है कि उसकी ख़िदमत करें, और ख़ुदावन्द के नाम को 'अज़ीज़ रख्खें और उसके बन्दे हों, वह सब जो सबत को हिफ़्ज़ करके उसे नापाक न करें और मेरे 'अहद पर क़ायम रहें;
\v 7 मैं उनको भी अपने पाक पहाड़ पर लाऊँगा और अपनी 'इबादतगाह में उनको शादमान करूँगा और उनकी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और उनके ज़बीहे मेरे मज़बह पर मक़बूल होंगे; क्यूँकि मेरा घर सब लोगों की 'इबादतगाह कहलाएगा।”
\s5
\v 8 ख़ुदावन्द ख़ुदा, जो इस्राईल के तितर-बितर लोगों को जमा' करनेवाला है, यूँ फ़रमाता है, कि "मैं उनके सिवा जो उसी के होकर जमा' हुए हैं, औरों को भी उसके पास जमा' करूँगा ।"
\s5
\v 9 ऐ दश्ती हैवानो, तुम सब के सब खाने को आओ ! हाँ, ऐ जंगल के सब दरिन्दो।
\v 10 उसके निगहबान अन्धे हैं, वह सब जाहिल हैं, वह सब गूँगे कुत्ते हैं जो भौंक नहीं सकते, वह ख़्वाब देखनेवाले हैं जो पड़े रहते हैं और ऊँघते रहना पसन्द करते हैं।
\s5
\v 11 और वह लालची कुत्ते हैं जो कभी सेर नहीं होते। वह नादान चरवाहे हैं, वह सब अपनी अपनी राह को फिर गए; हर एक हर तरफ़ से अपना ही नफ़ा' ढूंडता है।
\v 12 हर एक कहता है, "तुम आओ, मैं शराब लाऊँगा, और हम ख़ूब नशे में चूर होंगे; और कल भी आज ही की तरह होगा बल्कि इससे बहुत बेहतर।"
\s5
\c 57
\p
\v 1 सादिक़ हलाक होता है, और कोई इस बात को ख़ातिर में नहीं लाता; और नेक लोग उठा लिए जाते हैं और कोई नहीं सोचता कि सादिक़ उठा लिया गया ताकि आनेवाली आफ़त से बचे;
\v 2 वह सलामती में दाख़िल होता है। हर एक रास्त रू अपने बिस्तर पर आराम पाएगा।
\s5
\v 3 लेकिन तुम, ऐ जादूगरनी के बेटो, ऐ ज़ानी और फ़ाहिशा के बच्चों , इधर आगे आओ।
\v 4 तुम किस पर ठट्ठा मारते हो? तुम किस पर मुँह फाड़ते और ज़बान निकालते हो? क्या तुम बाग़ी औलाद और दग़ाबाज़ नस्ल नहीं हो,
\s5
\v 5 जो बुतों के साथ हर एक हरे दरख़्त के नीचे अपने आपको बरअंगेख़्ता करते और वादियों में चट्टानों के शिगाफ़ों के नीचे बच्चों को ज़बह करते हो?
\s5
\v 6 वादी के चिकने पत्थर तेरा हिस्सा हैं, वही तेरा हिस्सा हैं"; हाँ, तूने उनके लिए तपावन दिया और हदिया पेश किया है; क्या मुझे इन कामों से तिस्कीन होगी?
\s5
\v 7 एक ऊँचे और बलन्द पहाड़ पर तूने अपना बिस्तर बिछाया है, और उसी पर ज़बीहा ज़बह करने को चढ़ गई।
\v 8 और तूने दरवाज़ों और चौखटों के पीछे अपनी यादगार की 'अलामतें नस्ब कीं, और तू मेरे सिवा दूसरे के आगे बेपर्दा हुई; हाँ, तू चढ़ गई और तूने अपना बिछौना भी बड़ा बनाया और उनके साथ 'अहद कर लिया है; तूने उनके बिस्तर को जहाँ देखा पसन्द किया।
\s5
\v 9 तू ख़ुशबू लगाकर बादशाह के सामने चली गई और अपने आपको ख़ूब मु'अत्तर किया, और अपने क़ासिद दूर दूर भेजे बल्कि तूने अपने आपको पाताल तक पस्त किया।
\v 10 तू अपने सफ़र की दराज़ी से थक गई, तोभी तूने न कहा, कि "इससे कुछ फ़ाइदा नहीं", तूने अपनी क़ुव्वत की ताज़गी पाई इसलिए तू अफ़सुर्दा न हुई।
\s5
\v 11 तब तू किससे डरी और किसके ख़ौफ़ से तूने झूट बोला, और मुझे याद न किया और ख़ातिर में न लाई? क्या मैं एक मुद्दत से ख़ामोश नहीं रहा? तोभी तू मुझ से न डरी।
\v 12 मैं तेरी सदाक़त की तरफ़ तेरे कामों को फ़ाश करूँगा और उनसे तुझे कुछ नफ़ा' न होगा |
\s5
\v 13 जब तू फ़रियाद करे, तो जिनको तूने जमा' किया है वह तुझे छुड़ाएँ; ये हवा उन~सबको उड़ा ले जाएगी, एक झोंका उनको ले जाएगा; लेकिन मुझ पर तवक्कुल करनेवाला ज़मीन का मालिक होगा और मेरे पाक पहाड़ का वारिस होगा।
\s5
\v 14 तब यूँ कहा जाएगा, "राह ऊँची करो, ऊँची करो, हमवार करो, मेरे लोगों के रास्ते से ठोकर का ज़रि'आ दूर करो।"
\v 15 क्यूँकि वह जो 'आली और बलन्द है और हमेशा से हमेशा ~तक क़ायम है, जिसका नाम क़ुददूस है, यूँ फ़रमाता है, "मैं बलन्द और मुक़द्दस मक़ाम में रहता हूँ, और उसके साथ भी जो शिकस्ता दिल और फ़रोतन है; ताकि फ़रोतनों की रूह को ज़िन्दा करूँ और शिकस्ता दिलों को हयात बख़्शूँ।
\s5
\v 16 क्यूँकि मैं हमेशा न झगड़ूँगा और हमेशा ग़ज़बनाक न रहूँगा, इसलिए कि मेरे सामने रूह और जानें जो मैंने पैदा की हैं बेताब हो जाती हैं।
\v 17 कि मैं उसके लालच के गुनाह से ग़ज़बनाक हुआ, इसलिए मैंने उसे मारा, मैंने अपने आपको छिपाया और ग़ज़बनाक हुआ; इसलिए कि वह उस राह पर जो उसके दिल ने निकाली, भटक गया था।
\s5
\v 18 मैंने उसकी राहें देखीं, और मैं ही उसे शिफ़ा बख़्शूँगा ; मैं उसकी रहबरी करूँगा , और उसको और उसके ग़मख़्वारों को फिर दिलासा दूँगा।
\v 19 ख़ुदावन्द फ़रमाता हैं, "मैं लबों का फल पैदा करता हूँ, सलामती! सलामती उसको जो दूर है, और उसको जो नज़दीक है, और मैं ही उसे सिहत बख़्शूँगा ।
\s5
\v 20 लेकिन शरीर तो समन्दर की तरह हैं जो हमेशा~मौजज़न और बेक़रार है, जिसका पानी कीचड़ और गन्दगी उछालता है।
\v 21 मेरा ख़ुदा फ़रमाता है, कि "शरीरों के लिए सलामती नहीं।"
\s5
\c 58
\p
\v 1 गला फाड़ कर चिल्ला दरेग़ न कर नरसिंगे की तरह अपनी आवाज़ बलन्द कर,और मेरे लोगों पर उनकी ख़ता और या'क़ूब के घराने पर उनके गुनाहों को ज़ाहिर कर।
\v 2 वह रोज़-ब-रोज़ मेरे तालिब हैं और उस क़ौम की तरह जिसने सदाक़त के काम किए और अपने ख़ुदा के अहकाम को तर्क न किया, मेरी राहों को दरियाफ़्त करना चाहते हैं; वह मुझ से सदाक़त के अहकाम तलब करते हैं, वह ख़ुदा की नज़दीकी चाहते हैं।
\s5
\v 3 वह कहते है, 'हम ने किस लिए रोज़े रख्खे, जब कि तू नज़र नहीं करता; और हम ने क्यूँ अपनी जान को दुख दिया, जब कि तू ख़याल में नहीं लाता?" देखो, तुम अपने रोज़े के दिन में अपनी ख़ुशी के तालिब रहते हो, और सब तरह की सख़्त मेहनत लोगों से कराते हो।
\s5
\v 4 देखो, तुम इस मक़सद से रोज़ा रखते हो कि झगड़ा-रगड़ा करो, और शरारत के मुक्के मारो; फ़िर अब तुम इस तरह का रोज़ा नहीं रखते हो कि तुम्हारी आवाज़ 'आलम-ए-बाला पर सुनी जाए।
\v 5 क्या ये वह रोज़ा है जो मुझ को पसन्द है? ऐसा दिन कि उसमें आदमी अपनी जान को दुख दे और अपने सिर को झाऊ की तरह झुकाए, और अपने नीचे टाट और राख बिछाए; क्या तू इसको रोज़ा और ऐसा दिन कहेगा जो ख़ुदावन्द का मक़बूल हो ?
\s5
\v 6 "क्या वह रोज़ा जो मैं चाहता हूँ ये नहीं कि ज़ुल्म की ज़ंजीरें तोड़ें और जूए के बन्धन खोलें, और मज़लूमों को आज़ाद करें बल्कि हर एक जूए को तोड़ डालें?
\v 7 क्या ये नहीं कि तू अपनी रोटी भूकों को खिलाए, और ग़रीबों को जो आवारा हैं अपने घर में लाए; और जब किसी को नंगा देखे तो उसे पहिनाए, और तू अपने हमजिन्स से रूपोशी न करे?
\s5
\v 8 तब तेरी रोशनी सुबह की तरह फूट निकलेगी और तेरी सेहत की तरक्की जल्द जाहिर होगी; तेरी सदाक़त तेरी हरावल होगी और ख़ुदावन्द का जलाल तेरा चन्डावल होगा।
\s5
\v 9 तब तू पुकारेगा और ख़ुदावन्द जवाब देगा, तू चिल्लाएगा और वह फ़रमाएगा, 'मैं यहाँ हूँ"। अगर तू उस जूए को और उंगलियों से इशारा करने की, और हरज़ागोई को अपने बीच से दूर करेगा,
\v 10 और अगर तू अपने दिल को भूके की तरफ़ माइल करे और आज़ुर्दा दिल को आसूदा करे, तो तेरा नूर तारीकी में चमकेगा और तेरी तीरगी दोपहर की तरह हो जाएगी।
\s5
\v 11 और ख़ुदावन्द हमेशा तेरी रहनुमाई करेगा, और ख़ुश्क साली में तुझे सेर करेगा और तेरी हड्डियों को कु़व्वत बख़्शेगा; तब तू सेराब बाग़ की तरह होगा और उस चश्मे की तरह जिसका पानी कम न हो |
\s5
\v 12 और तेरे लोग पुराने वीरान मकानों को ता'मीर करेंगे, और तू पुश्त-दर-पुश्त की बुनियादों को खड़ा करेगा, और तू रख़ने का~बन्द करनेवाला और आबादी के लिए राह का दुरुस्त करने वाला कहलाएगा।
\s5
\v 13 "अगर तू सबत के रोज़ अपना पाँव रोक रख्खे, और मेरे मुक़द्दस दिन में अपनी ख़ुशी का तालिब न हो, और सबत को राहत और ख़ुदावन्द का मुक़द्दस और मु'अज़्ज़म कहे और उसकी ता'ज़ीम करे, अपना कारोबार न करे, और अपनी ख़ुशी और बेफ़ाइदा बातों से दस्तबरदार रहे;
\s5
\v 14 तब तू ख़ुदावन्द में मसरूर होगा और मैं तुझे दुनिया की बलन्दियों पर ले चलूँगा, और मैं तुझे तेरे बाप या'क़ूब की मीरास से खिलाऊँगा; क्यूँकि ख़ुदावन्द ही के मुँह से ये इरशाद हुआ है।”
\s5
\c 59
\p
\v 1 देखो ख़ुदावन्द का हाथ छोटा नहीं हो गया कि बचा न सके, और उसका कान भारी नहीं कि सुन न सके;
\v 2 ~बल्कि तुम्हारी बदकिरदारी ने तुम्हारे और तुम्हारे ख़ुदा के बीच जुदाई कर दी है, और तुम्हारे गुनाहों ने उसे तुम से छिपा लिया , ऐसा कि वह नहीं सुनता।
\s5
\v 3 क्यूँकि तुम्हारे हाथ ख़ून से और तुम्हारी उंगलियाँ बदकिरदारी से आलूदा हैं तुम्हारे लब झूट बोलते और तुम्हारी ज़बान शरारत की बातें बकती है।
\v 4 कोई इन्साफ़ की बातें पेश नहीं करता और कोई सच्चाई से हुज्जत नहीं करता, वह झूट पर भरोसा करते हैं और झूट बोलते हैं वह ज़ियानकारी से बारदार होकर बदकिरदारी को जन्म देते हैं ।
\s5
\v 5 वह अज़दहे ~के अण्डे सेते और मकड़ी का जाला तनते हैं; जो उनके अण्डों में से कुछ खाए मर जाएगा, और जो उनमें से तोड़ा जाए उससे अज़दहा निकलेगा।
\v 6 उनके जाले से पोशाक नहीं बनेगी, वह अपनी दस्तकारी से मुलब्बस न होंगे। उनके आ'माल बदकिरदारी के हैं, और ज़ुल्म का काम उनके हाथों में है।
\s5
\v 7 उनके पाँव बुराई की तरफ़ दौड़ते हैं, और वह बेगुनाह का ख़ून बहाने के लिए जल्दी करते हैं; उनके ख़यालात बदकिरदारी के हैं, तबाही और हलाकत उनकी राहों में है।
\v 8 वह सलामती का रास्ता नहीं जानते, और उनके चाल चलन ~में इन्साफ़ नहीं; वह अपने लिए टेढ़ी राह बनाते हैं जो कोई उसमें जाएगा सलामती को न देखेगा।
\s5
\v 9 इसलिए इन्साफ़ हम से दूर है, और सदाक़त हमारे नज़दीक नहीं आती; हम नूर का ~इन्तिज़ार करते हैं, लेकिन देखो तारीकी है; और रोशनी का, लेकिन अन्धेरे में चलते हैं।
\v 10 हम दीवार को अन्धे की तरह टटोलते हैं, हाँ, यूँ टटोलते हैं कि जैसे हमारी ऑखें नहीं; हम दोपहर को यूँ ठोकर खाते हैं जैसे रात हो गई, हम तन्दरुस्तों के बीच जैसे मुर्दा हैं।
\s5
\v 11 हम सब के सब रीछों की तरह गु़र्राते हैं और कबूतरों की तरह कुढ़ते हैं, हम इन्साफ़ की राह तकते हैं, लेकिन वह कहीं नहीं; और नजात के मुन्तज़िर हैं, लेकिन वह हम से दूर है।
\s5
\v 12 क्यूँकि हमारी खताएँ तेरे सामने बहुत हैं और हमारे गुनाह हम पर गवाही देते हैं, क्यूँकि हमारी ख़ताएँ हमारे साथ हैं और हम अपनी बदकिरदारी को जानते हैं;
\v 13 कि हम ने ख़ता की, ख़ुदावन्द का इन्कार किया, और अपने ख़ुदा की पैरवी से बरगश्ता हो गए; हम ने ज़ुल्म और सरकशी की बातें कीं, और दिल में झूठ तसव्वुर करके दरोग़ोई की।
\s5
\v 14 'अदालत हटाई गई और इन्साफ़ दूर खड़ा हो रहा; सदाक़त बाज़ार में गिर पड़ी, और रास्ती दाख़िल नहीं हो सकती।
\v 15 ~हाँ, रास्ती गुम हो गई, और वह जो बुराई से भागता है शिकार हो जाता है।ख़ुदावन्द ने ये देखा और उसकी नज़र में बुरा मा'लूम हुआ कि 'अदालत जाती रही |
\s5
\v 16 और उसने देखा कि कोई आदमी नहीं, और ता'अज्जुब किया कि कोई शफ़ा'अत करने वाला नहीं; इसलिए उसी के बाज़ू ने उसके लिए नजात हासिल की और उसी की रास्तबाज़ी ने उसे सम्भाला।
\s5
\v 17 हाँ, उसने रास्तबाज़ी का बक्तर पहना और नजात का खूद अपने सिर पर रख्खा, और उसने लिबास की जगह इन्तक़ाम की पोशाक पहनी और गै़रत के जुब्बे से मुलब्बस हुआ।
\v 18 वह उनको उनके 'आमाल के मुताबिक़ बदला देगा, अपने मुख़ालिफ़ों पर क़हर करेगा और अपने दुश्मनों को सज़ा देगा, और जज़ीरों को बदला देगा।
\s5
\v 19 तब पश्चिम के बाशिन्दे ख़ुदावन्द के नाम से डरेंगे, और पूरब के बाशिन्दे उसके जलाल से; क्यूँकि वह दरिया के सैलाब की तरह आएगा जो ख़ुदावन्द के दम से रवाँ हो।
\v 20 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है,कि "सिय्यून में और उनके पास जो या'क़ूब में ख़ताकारी से बाज़ आते हैं, एक फ़िदिया देनेवाला आएगा।
\s5
\v 21 क्यूँकि उनके साथ मेरा 'अहद ये है," ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि"मेरी रूह जो तुझ पर है और मेरी बातें जो मैंने तेरे मुँह में डाली हैं,तेरे मुँह से और तेरी नस्ल के मुँह से, और तेरी नस्ल की नस्ल के मुँह से अब से लेकर हमेशा तक जाती न रहेंगी;" ख़ुदावन्द का यही इरशाद है।
\s5
\c 60
\p
\v 1 उठ मुनव्वर हो क्यूँकि तेरा नूर आगया और ख़ुदावन्द का जलाल तुझ पर ज़ाहिर हुआ।
\s5
\v 2 क्यूँकि देख, तारीकी ज़मीन पर छा जाएगी और तीरगी उम्मतों पर; लेकिन ख़ुदावन्द तुझ पर ताले' होगा और उसका जलाल तुझ पर नुमायाँ होगा।
\v 3 और क़ौमें तेरी रोशनी की तरफ़ आयेंगी और सलातीन तेरे तुलू की तजल्ली में चलेंगे।
\s5
\v 4 अपनी आँखें उठाकर चारों तरफ़ देख, वह सब के सब इकट्ठे होते हैं और तेरे पास आते हैं; तेरे बेटे दूर से आएँगे और तेरी बेटियों को गोद में उठाकर लाएँगे।
\v 5 तब तू देखेगी और मुनव्वर होगी; हाँ, तेरा दिल उछलेगा और कुशादा होगा क्यूँकि समन्दर की फ़िरावानी तेरी तरफ फिरेगी और क़ौमों की दौलत तेरे पास फ़राहम होगी।
\s5
\v 6 ऊँटों की कतारें और मिदयान और 'ऐफ़ा की सांडनियाँ आकर तेरे गिर्द बेशुमार होंगी; वह सब सबा से आएँगे,और सोना और लुबान लायेंगे और ख़ुदावन्द की हम्द का 'ऐलान करेंगे।
\v 7 क़ीदार की सब भेड़ें तेरे पास जमा' होंगी, नबायोत के मेंढे तेरी ख़िदमत में हाज़िर होंगे; वह मेरे मज़बह पर मक़बूल होंगे और मैं अपनी शौकत के घर को जलाल बख़्शूँगा।
\s5
\v 8 ये कौन हैं जो बादल की तरह उड़े चले आते हैं, और जैसे कबूतर अपनी काबुक की तरफ़?
\v 9 यक़ीनन जज़ीरे मेरी राह देखेंगे,और तरसीस के जहाज़ पहले आएँगे कि तेरे बेटों को उनकी चाँदी और उनके सोने के साथ दूर से ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा और इस्राईल के क़ुददूस के नाम के लिए लाएँ; क्यूँकि उसने तुझे बुज़ुर्गी बख़्शी है।
\s5
\v 10 और बेगानों के बेटे तेरी दीवारें बनाएँगे और उनके बादशाह तेरी ख़िदमत गुज़ारी करेंगे अगरचे मैंने अपने क़हर से तुझे मारा पर अपनी महरबानी से मैं तुझ पर रहम करूँगा ।
\v 11 और तेरे फाटक हमेशा खुले रहेंगे, वह दिन रात कभी बन्द न होंगे; ताकि क़ौमों की दौलत और उनके बादशाहों को तेरे पास लाएँ।
\s5
\v 12 क्यूँकि वह क़ौम और वह ममलुकत जो तेरी ख़िदमत गुज़ारी न करेगी, बर्बाद हो जाएगी; हाँ, वह क़ौमें बिल्कुल हलाक की जाएँगी।
\v 13 लुबनान का जलाल तेरे पास आएगा, सरौ और सनौबर और देवदार सब आएँगे ताकि मेरे घर को आरास्ता करें; और मैं अपने पाँव की कुर्सी को रौनक़ बख़्शूँगा।
\s5
\v 14 और तेरे ग़ारत गरों के बेटे तेरे सामने झुकते हुए आयेंगे और तेरी तह्क़ीर करने वाले सब तेरे कदमों पर गिरेंगे; और वह तेरा नाम ख़ुदावन्द का शहर, इस्राईल के क़ुददूस का सिय्यून रखेंगे।
\s5
\v 15 इसलिए कि तू तर्क की गई और तुझसे नफ़रत हुई ऐसा कि~किसी आदमी ने~तेरी तरफ़ गुज़र भी न किया मैं तुझे हमेशा की ~फ़ज़ीलत और नसल दर नसल की ख़ुशी का ज़रिया' बनाऊंगा|
\v 16 तू क़ौमों का दूध भी पी लेगी;हाँ बादशाहों की छाती चूसेगी और तू जानेगी कि मैं ख़ुदावन्द तेरा नजात देनेवाला और या'क़ूब का क़ादिर तेरा फ़िदिया देने वाला हूँ।
\s5
\v 17 मैं पीतल के बदले सोना लाऊँगा,और लोहे के बदले चाँदी और लकड़ी के बदले पीतल और पत्थरों के बदले लोहा; और मैं तेरे हाकिमों को सलामती, और तेरे 'आमिलों को सदाक़त बनाऊँगा
\v 18 फिर कभी तेरे मुल्क में ज़ुल्म का ज़िक्र न होगा, और न तेरी हदों के अन्दर ख़राबी या बर्बादी का; बल्कि तू अपनी दीवारों का नाम नजात और अपने फाटकों का हम्द रख्खेगी।
\s5
\v 19 फिर तेरी रोशनी न दिन को सूरज से होगी न चाँद के चमकने से, बल्कि ख़ुदावन्द तेरा हमेशा का ~नूर और तेरा ख़ुदा तेरा जलाल होगा।
\v 20 तेरा सूरज फिर कभी न ढलेगा और तेरे चाँद को ज़वाल न होगा", क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा हमेशा का नूर होगा और तेरे मातम के दिन ख़त्म हो जाएँगे।
\s5
\v 21 और तेरे लोग सब के सब रास्तबाज़ होंगे; वह हमेशा तक मुल्क के वारिस होंगे, या'नी मेरी लगाई हुई शाख़ और मेरी दस्तकारी ठहरेंगे ताकि मेरा जलाल ज़ाहिर हो।
\v 22 ~सबसे छोटा एक हज़ार हो जाएगा और सबसे हक़ीर एक ज़बरदस्त क़ौम। मैं ख़ुदावन्द ठीक वक़्त पर ये सब कुछ जल्द करूँगा ।
\s5
\c 61
\p
\v 1 ख़ुदावन्द ख़ुदा की रूह मुझ पर है क्यूँकि उसने मुझे मसह किया ताकि हलीमों को ख़ुशख़बरी सुनाऊँ; उसने मुझे भेजा है कि शिकस्ता दिलों को तसल्ली दूँ, ़कैदियों के लिए रिहाई और ग़ुलामों के लिए आज़ादी का 'ऐलान करूँ,
\s5
\v 2 ताकि ख़ुदावन्द के साल-ए- मक़बूल का और अपने ख़ुदा के इन्तक़ाम के दिन का इश्तिहार दूँ, और सब ग़मगीनों को दिलासा दूँ।
\s5
\v 3 सिय्यून के ग़मज़दों के लिए ये मुक़र्रर कर दूँ कि उनको राख के बदले सेहरा और मातम की जगह ख़ुशी का रौग़न, और उदासी के बदले 'इबादत का ख़िल'अत बख़्शूं, ताकि वह सदाक़त के दरख़्त और ख़ुदावन्द के लगाए हुए कहलाएँ कि उसका जलाल ज़ाहिर हो।
\s5
\v 4 तब वह पुराने उजाड़ मकानों को ता'मीर करेंगे और पुरानी वीरानियों को फिर बिना करेंगे, और उन उजड़े शहरों की मरम्मत करेंगे जो नसल -दर-नसल उजाड़ पड़े थे।
\v 5 परदेसी आ खड़े होंगे और तुम्हारे गल्लों को चराएँगे, और बेगानों के बेटे तुम्हारे हल चलानेवाले और ताकिस्तानों में काम करनेवाले होंगे।
\s5
\v 6 लेकिन तुम ख़ुदावन्द के काहिन कहलाओगे, वह तुम को हमारे खुदा के ख़ादिम कहेंगे; तुम क़ौमों का माल खाओगे और तुम उनकी शौकत पर फ़ख़्र करोगे।
\v 7 तुम्हारी शर्मिन्दगी का बदले दो चन्द मिलेगा, वह अपनी रुस्वाई के बदले अपने हिस्से से ख़ुश होंगे; तब वह अपने मुल्क में दो चन्द के मालिक होंगे और उनको हमेशा की ~ख़ुशी होगी।
\s5
\v 8 क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द इन्साफ़ को 'अज़ीज़ रखता हूँ और ग़ारतगरी और ज़ुल्म से नफ़रत करता हूँ; सो मैं सच्चाई से उनके कामों का अज्र दूँगा और उनके साथ हमेशा का 'अहद बाँधुंगा।
\v 9 उनकी नस्ल क़ौमों के बीच नामवर होगी, और उनकी औलाद लोगों के बीच ; वह सब जो उनको देखेंगे, इक़रार करेंगे कि ये वह नस्ल है जिसे ख़ुदावन्द ने बरकत बख़्शी है।
\s5
\v 10 मैं ख़ुदावन्द से बहुत खुश हूँगा, मेरी जान मेरे ख़ुदा में मसरूर होगी, क्यूँकि उसने मुझे नजात के कपड़े पहनाए, उसने रास्तबाज़ी के ख़िल'अत से मुझे मुलब्बस किया जैसे दूल्हा सेहरे से अपने आपको आरास्ता करता है और दुल्हन अपने ज़ेवरों से अपना सिंगार करती है।
\v 11 ~क्यूँकि जिस तरह ज़मीन अपने नबातात को पैदा करती है, और जिस तरह बाग़ उन चीज़ों को जो उसमें बोई गई हैं उगाता है; उसी तरह ख़ुदावन्द ख़ुदा सदाक़त और 'इबादत को तमाम क़ौमों के सामने ज़हूर में लाएगा।
\s5
\c 62
\p
\v 1 सिय्यून की ख़ातिर मैं चुप न रहूँगा और यरुशलीम की ख़ातिर मैं दम न लूँगा, जब तक कि उसकी सदाक़त नूर की तरह न चमके और उसकी नजात रोशन चराग़ की तरह जलवागर न हो।
\v 2 तब क़ौमों पर तेरी सदाक़त और सब बादशाहों पर तेरी शौकत ज़ाहिर होगी, और तू एक नये नाम से कहलाएगी जो ख़ुदावन्द के मुँह से निकलेगा।
\s5
\v 3 और तू ख़ुदावन्द के हाथ में जलाली ताज और अपने ख़ुदा की हथेली में शाहाना अफ़सर होगी।
\v 4 तू आगे को मतरूका न कहलाएगी, और तेरे मुल्क का नाम फिर कभी ख़राब न होगाः बल्कि तू प्यारी' और तेरी सरज़मीन सुहागन कहलाएगी; क्यूँकि ख़ुदावन्द तुझ से ख़ुश है, और तेरी ज़मीन ख़ाविन्द वाली होगी।
\s5
\v 5 क्यूँकि जिस तरह जवान मर्द कुँवारी 'औरत को ब्याह लाता है, उसी तरह तेरे बेटे तुझे ब्याह लेंगे; और जिस तरह दुल्हा दुल्हन में राहत पाता है, उसी तरह तेरा ख़ुदा तुझ में मसरूर होगा।
\s5
\v 6 ऐ यरुशलीम , मैंने तेरी दीवारों पर निगहबान मुक़र्रर किए हैं; वह दिन रात कभी ~ख़ामोश न होंगे। ऐ ख़ुदावन्द का ज़िक्र करनेवालो , ख़ामोश न हो|
\v 7 और जब तक वह यरुशलीम को क़ायम करके इस ज़मीन पर महमूद न बनाए, उसे आराम न लेने दो।
\s5
\v 8 ख़ुदावन्द ने अपने दहने हाथ और अपने क़वी बाज़ू की क़सम खाई है, कि"यक़ीनन मैं आगे को तेरा ग़ल्ला तेरे दुश्मनों के खाने को न दूँगा; और बेगानों के बेटे तेरी मय, जिसके लिए तूने मेहनत की, नहीं पीएँगे;
\v 9 बल्कि वही जिन्होंने फ़स्ल जमा' की है, उसमें से खाएँगे और ख़ुदावन्द की हम्द करेंगे, और वह जो ज़ख़ीरे में लाए हैं उसे मेरे मक़दिस की बारगाहों में पीएँगे।
\s5
\v 10 गुज़र जाओ, फाटकों में से गुज़र जाओ, लोगों के लिए राह दुरुस्त करो, और शाहराह ऊँची और बलन्द करो, पत्थर चुनकर साफ़ कर दो, लोगों के लिए झण्डा खड़ा करो।
\s5
\v 11 देख, ख़ुदावन्द ने इन्तिहा-ए-ज़मीन तक ऐलान कर दिया है, दुख़्तर-ए-सिय्यून से कहो, "देख, तेरा नजात देनेवाला आता है; देख, उसका बदला उसके साथ और उसका काम उसके सामने है।"
\v 12 ~~और वह पाक लोग और ख़ुदावन्द के ख़रीदे हुए कहलाएँगे, और तू मत्लूबा या'नी ग़ैर -मतरूक शहर कहलाएगी।
\s5
\c 63
\p
\v 1 ये कौन है जो अदोम से और सुर्ख़ लिबास पहने बुसराह से आता है? ये जिसका लिबास दरखशां है और अपनी तवानाई की बुज़ुर्गी से ख़रामान है ये मैं हूँ, जो सादिक़-उल-क़ौल और नजात देने पर क़ादिर हूँ।”
\v 2 तेरी लिबास क्यूँ सुर्ख़ ~है? तेरा लिबास क्यूँ उस शख़्स की तरह है जो अँगूर हौज़ में रौंदता है?
\s5
\v 3 "मैंने तन-ए-तन्हा अंगूर हौज़ में रौंदें और लोगों में से मेरे साथ कोई न था; हाँ, मैंने उनको अपने क़हर में लताड़ा, और अपने जोश में उनको रौंदा; और उनका ख़ून मेरे लिबास पर छिड़का गया, और मैंने अपने सब कपड़ों को आलूदा किया।
\v 4 क्यूँकि इन्तक़ाम का दिन मेरे दिल में है, और मेरे ख़रीदे हुए लोगों का साल आ पहुँचा है।
\s5
\v 5 मैंने निगाह की और कोई मददगार न था, और मैंने ता'अज्जुब किया कि कोई संभालने वाला न था; पस मेरे ही बाज़ू से नजात आई, और मेरे ही क़हर ने मुझे संभाला।
\v 6 हाँ, मैंने अपने क़हर से लोगों को लताड़ा, और अपने ग़ज़ब से उनको मदहोश किया और उनका ख़ून ज़मीन पर बहा दिया।”
\s5
\v 7 मैं ख़ुदावन्द की शफ़क़त का ज़िक्र करूँगा , ख़ुदावन्द ही की 'इबादत का, उस सबके मुताबिक़ जो ख़ुदावन्द ने हम को इनायत किया है; और उस बड़ी मेहरबानी का जो उसने इस्राईल के घराने पर अपनी ख़ास रहमत और फ़िरावान शफ़क़त के मुताबिक़ ज़ाहिर की है।
\v 8 क्यूँकि उसने फ़रमाया, यक़ीनन वह मेरे ही लोग हैं, ऐसी औलाद जो बेवफ़ाई न करेगी; चुनाँचे वह उनका बचानेवाला हुआ।
\s5
\v 9 उनकी तमाम मुसीबतों में वह मुसीबतज़दा हुआ और उसके सामने के फ़रिश्ते ने उनको बचाया, उसने अपनी उलफ़त और रहमत से उनका फ़िदिया दिया; उसने उनको उठाया और पहले से हमेशा उनको लिए फिरा।
\s5
\v 10 लेकिन वह बाग़ी हुए, और उन्होंने उसकी रूह-ए-क़ुद्दूस को ग़मगीन किया; इसलिए वह उनका दुश्मन हो गया और उनसे लड़ा।
\s5
\v 11 फिर उसने अगले दिनों को और मूसा को और अपने लोगों को याद किया, और फ़रमाया, वह कहाँ है, जो उनको अपने गल्ले के चौपानों के साथ समन्दर में से निकाल लाया ? वह कहाँ है, जिसने अपनी रूह-ए-क़ुददूस उनके अन्दर डाली?
\s5
\v 12 जिसने मूसा के दहने हाथ पर अपने जलाली बाज़ू को साथ कर दिया”, और उनके आगे पानी को चीरा ताकि अपने लिए हमेशा का नाम पैदा करे,
\v 13 जो गहराओ में से उनको इस तरह ले गया जिस तरह वीराने में से घोड़ा, ऐसा कि उन्होंने ठोकर न खाई?
\s5
\v 14 जिस तरह मवेशी वादी में चले जाते हैं, उसी तरह ख़ुदावन्द की रूह उनको आरामगाह में लाई; और उसी तरह तूने अपनी क़ौम को हिदायत की, ताकि तू अपने लिए जलील नाम पैदा करे।
\s5
\v 15 आसमान पर से निगाह कर, और अपने पाक और जलील घर से देख। तेरी गै़रत और तेरी क़ुदरत के काम कहाँ हैं? तेरी दिली रहमत और तेरी शफ़क़त जो मुझ पर थी ख़त्म हो गई।
\v 16 यक़ीनन तू हमारा बाप है, अगरचे इब्राहीम हम से नावाक़िफ़ हो और इस्राईल हम को न पहचाने; तू, ऐ ख़ुदावन्द,हामारा बाप और फ़िदया देने वाला है तेरा नाम अज़ल से यही है।
\s5
\v 17 ऐ ख़ुदावन्द, तूने हम को अपनी राहों से क्यूँ गुमराह किया, और हमारे दिलों को सख़्त किया कि तुझ से न डरें? अपने बन्दों की ख़ातिर अपनी मीरास के क़बाइल की ख़ातिर बाज़ आ।
\s5
\v 18 तेरे पाक लोग थोड़ी देर तक क़ाबिज़ रहे; अब हमारे दुश्मनों ने तेरे मक़दिस को पामाल कर डाला है।
\v 19 हम तो उनकी तरह हुए जिन पर तूने कभी हुकूमत न की, और जो तेरे नाम से नहीं कहलाते।
\s5
\c 64
\p
\v 1 काश कि तू आसमान को फाड़े और उतर आए कि तेरे सामने पहाड़ लरज़िश खाएँ।
\v 2 जिस तरह आग सूखी डालियों को जलाती है और पानी आग से जोश मारता है ताकि तेरा नाम तेरे मुख़ालिफ़ों में मशहूर हो और क़ौमें तेरे सामने में लरज़ाँ हों।
\s5
\v 3 जिस वक़्त तूने बड़े काम किए जिनके हम मुन्तज़िर न थे, तू उतर आया और पहाड़ तेरे सामने काँप गए।
\v 4 क्यूँकि शुरू' ही से न किसी ने सुना, न किसी के कान तक पहुँचा और न आँखों ने तेरे सिवा ऐसे ख़ुदा को देखा, जो अपने इन्तिज़ार करनेवाले के लिए कुछ कर दिखाए।
\s5
\v 5 तू उससे मिलता है जो ख़ुशी से सदाक़त के काम करता है, और उनसे जो तेरी राहों में तुझे याद रखते हैं; देख, तू ग़ज़बनाक हुआ क्यूँकि हम ने गुनाह किया, और मुद्दत तक उसी में रहे; क्या हम नजात पाएँगे?
\s5
\v 6 और हम तो सब के सब ऐसे हैं जैसे नापाक चीज़ और हमारी तमाम रस्तबाज़ी नापाक लिबास की तरह है। और हम सब पत्ते की तरह कुमला जाते हैं, और हमारी बदकिरदारी आँधी की तरह हम को उड़ा ले जाती है।
\v 7 और कोई नहीं जो तेरा नाम ले, जो अपने आपको आमादा करे कि तुझ से लिपटा ~रहे; क्यूँकि हमारी बदकिरदारी की वजह से तू हम से ~छिपा रहा और हम को पिघला डाला।
\s5
\v 8 तोभी ऐ ख़ुदावन्द, तू हमारा बाप है; हम मिट्टी है और तू हमारा कुम्हार है, और हम सब के सब तेरी दस्तकारी हैं।
\v 9 ऐ ख़ुदावन्द, ग़ज़बनाक न हो और बदकिरदारी को हमेशा तक याद न रख; देख, हम तेरी मिन्नत करते हैं, हम सब तेरे लोग हैं।
\s5
\v 10 तेरे पाक शहर वीराने बन गए, सिय्यून सुनसान और यरुशलीम वीरान है।
\v 11 हमारा ख़ुशनुमा मक़दिस जिसमें हमारे बाप दादा तेरी 'इबादत करते थे, आग से जलाया गया और हमारी उम्दा चीज़ें बर्बाद हो गईं।
\v 12 ~ऐ ख़ुदावन्द, क्या तू इस पर भी अपने आप को रोकेगा? क्या तू ख़ामोश रहेगा और हम को यूँ बदहाल करेगा?
\s5
\c 65
\p
\v 1 जो मेरे तालिब न थे, मैं उनकी तरफ़ मुतवज्जिह हुआ; जिन्होंने मुझे ढूँढा न था, मुझे पा लिया; मैंने एक क़ौम से जो मेरे नाम से नहीं कहलाती थी, फ़रमाया, "देख, मैं हाज़िर हूँ।"
\v 2 मैंने नाफ़रमान लोगों की तरफ़ जो अपनी फ़िक्रों की पैरवी में बुरी राह पर चलते हैं, हमेशा हाथ फैलाए;
\s5
\v 3 ऐसे लोग जो हमेशा मेरे सामने, बाग़ों में क़ुर्बानियाँ करने और ईटों पर ख़ुशबू जलाने से मुझे ग़ुस्सा दिलाते ~हैं;
\v 4 जो क़ब्रों में बैठते, और पोशीदा जगहों में रात काटते, और सूअर का गोश्त खाते हैं; और जिनके बर्तनों में नफ़रती चीज़ों का शोर्बा मौजूद है;
\s5
\v 5 जो कहते तू अलग ही खड़ा रह मेरे नज़दीक न आ ~क्यूँकि मैं तुझ से ज़्यादा पाक हूँ।" ये मेरी नाक में धुंवें की तरह और दिन भर जलने वाली आग की तरह हैं।
\s5
\v 6 देखो, मेरे सामने ही लिखा हुआ है तब मैं ख़ामोश न रहूँगा~बल्कि बदला दूँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है; हाँ,उनकी गोद में डाल दूँगा
\v 7 तुम्हारी और तुम्हारे बाप ~दादा की बदकिरदारी का बदला इकट्ठा दूँगा, जो पहाड़ों पर ख़ुशबू जलाते और टीलों पर मेरा इन्कार करते थे; इसलिए मैं पहले उनके कामों को उनकी गोद में नाप कर दूँगा।"
\s5
\v 8 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "जिस तरह शीरा ख़ोशा-ए-अँगूर में मौजूद है, और कोई कहे, उसे ख़राब न कर क्यूँकि उसमें बरकत है, उसी तरह मैं अपने बन्दों की ख़ातिर करूँगा ताकि उन सबको हलाक न करूँ ।
\s5
\v 9 और मैं या'क़ूब में से एक नस्ल और यहूदाह में से अपने कोहिस्तान का वारिस खड़ा करूँगा ~और मेरे बर्गुज़ीदा लोग उसके वारिस होंगे और मेरे बन्दे वहाँ बसेंगे।
\v 10 और शारून गल्लों का घर होगा, और 'अकूर की वादी बैलों के बैठने का मक़ाम , मेरे उन लोगों के लिए जो मेरे तालिब हुए।
\s5
\v 11 लेकिन तुम जो ख़ुदावन्द को छोड़ देते और उसके पाक पहाड़ को फ़रामोश करते, और मुश्तरी के लिए दस्तरख़्वान चुनते और ज़ुहरा के लिए शराब-ए-मम्जू़ज का जाम पुर करते हो;
\s5
\v 12 मैं तुम को गिन गिनकर तलवार के हवाले करूँगा , और तुम सब ज़बह होने के लिए ~झुकोगे; क्यूँकि जब मैंने बुलाया तो तुम ने जवाब न दिया, जब मैंने कलाम किया तो तुम ने न सुना; बल्कि तुम ने वही किया जो मेरी नज़र में बुरा था, और वह चीज़ पसन्द की जिससे मैं ख़ुश न था।”
\s5
\v 13 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि "देखो, मेरे बन्दे खाएँगे, लेकिन तुम भूके रहोगे; मेरे बन्दे पिएँगे, लेकिन तुम प्यासे रहोगे;मेरे बन्दे ख़ुश होंगे लेकिन तुम शर्मिंदा होगे |
\v 14 और मेरे बन्दे दिल की ख़ुशी से गाएँगे, लेकिन तुम दिलगीरी की वजह से नालाँ होगे और जान का ही मातम करोगे|
\s5
\v 15 और तुम अपना नाम मेरे बरगुज़ीदों की ला'नत के लिए छोड़ जाओगे, ख़ुदावन्द ख़ुदा तुम को क़त्ल करेगा; और अपने बन्दों को एक दूसरे नाम से बुलाएगा
\v 16 यहाँ तक कि जो कोई इस ज़मीन पर अपने लिए दु'आ-ए-ख़ैर करे, ख़ुदाए-बरहक़ के नाम से करेगा और जो कोई ज़मीन में क़सम खाए, ख़ुदा-ए-बरहक़ के नाम से खाएगा; क्यूँकि गुज़री हुई मुसीबतें फ़रामोश हो गईं और वह मेरी आँखों से पोशीदा हैं।
\s5
\v 17 क्यूँकि देखो, मैं नये आसमान और नई ज़मीन को पैदा करता हूँ; और पहली चीज़ों का फिर ज़िक्र न होगा और वह ख़याल में न आएँगी।
\v 18 बल्कि तुम मेरी इस नई पैदाइश से हमेशा की ख़ुशी और शादमानी करो, क्यूँकि देखो, मैं यरुशलीम को ख़ुशी और उसके लोगों को खु़र्रमी बनाऊँगा।
\v 19 और मैं यरुशलीम से ख़ुश और अपने लोगों से मसरूर हूँगा,और उसमें रोने की पुकार और नाला की आवाज़ फिर कभी सुनाई न देगी।
\s5
\v 20 फिर कभी वहाँ कोई ऐसा लड़का न होगा जो कम 'उम्र रहे, और न कोई ऐसा बूढ़ा जो अपनी 'उम्र पूरी न करे; क्यूँकि लड़का सौ बरस का होकर मरेगा, और जो गुनाहगार सौ बरस का हो जाए, मला'ऊन होगा।
\v 21 वह घर बनाएँगे और उनमें बसेंगे, वह ताकिस्तान लगाएँगे और उनके मेवे खाएँगे;
\s5
\v 22 न कि वह बनाएँ और दूसरा बसे, वह लगाएँ और दूसरा खाए; क्यूँकि मेरे बन्दों के दिन दरख़्त के दिनों की तरह होंगे, और मेरे बरगुज़ीदा अपने हाथों के काम से मुद्दतों तक फ़ायदा उठाएंगे
\v 23 उनकी मेहनत बेकार न होगी, और उनकी औलाद अचानक हलाक न होगी; क्यूँकि वह अपनी औलाद के साथ ख़ुदावन्द के मुबारक लोगों की नसल हैं |
\s5
\v 24 और यूँ होगा कि मैं उनके पुकारने से पहले जवाब दूँगा, और वह अभी कह न चुकेंगे कि मैं सुन लूँगा।
\v 25 ~भेड़िया और बर्रा इकट्ठे चरेंगे, और शेर-ए-बबर बैल की तरह भूसा खाएगा, और साँप की ख़ुराक ख़ाक होगी। वह मेरे तमाम पाक पहाड़ पर न ज़रर पहुँचाएँगे न हलाक करेंगे," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\c 66
\p
\v 1 ख़ुदावन्द यूँ फरमाता है कि आसमान मेरा तख़्त है और ज़मीन मेरे पाँव की चौकी ; तुम मेरे लिए कैसा घर बनाओगे, और कौन सी जगह मेरी आरामगाह होगी?
\s5
\v 2 क्यूँकि ये सब चीजें तो मेरे हाथ ने बनाई और यूँ मौजूद हुई, ख़ुदावन्द फ़रमाता है। लेकिन मैं उस शख़्स पर निगाह करूँगा , उसी पर जो ~ग़रीब और शिकश्ता दिल है और मेरे कलाम से कॉप जाता है।
\s5
\v 3 "जो बैल ज़बह करता है, उसकी तरह है जो किसी आदमी को मार डालता है; और जो बर्रे की क़ुर्बानी करता है, उसके बराबर है जो कुत्ते की गर्दन काटता है; जो हदिया लाता है, जैसे सूअर का ख़ून पेश करता है; जो लुबान जलाता है, उसकी तरह है जो बुत को मुबारक कहता है। हाँ, उन्होंने अपनी अपनी राहें चुन लीं और उनके दिल उनकी नफ़रती चीज़ों से मसरूर हैं |
\s5
\v 4 मैं भी उनके लिए आफ़तों को चुन लूँगा और जिन बातों से वह डरते हैं उन पर लाऊँगा क्यूँकि जब मैंने कलाम किया तो उनहोंने न सुना; बल्कि उन्होंने वही किया जो मेरी नज़र में बुरा था, और वह चीज़ पसन्द की जिससे मैं ख़ुश न था।”
\s5
\v 5 ख़ुदावन्द की बात सुनो, ऐ तुम जो उसके कलाम से काँपते हो; "तुम्हारे भाई जो तुम से कीना रखते हैं, और मेरे नाम की ख़ातिर तुम को ख़ारिज कर देते हैं, कहते हैं, 'ख़ुदावन्द की तम्जीद करो, ताकि हम तुम्हारी ख़ुशी को देखें'; लेकिन वही शर्मिन्दा होंगे।
\s5
\v 6 "शहर से भीड़ का शोर ! हैकल की तरफ़ से एक आवाज़! ख़ुदावन्द की आवाज़ है, जो अपने दुश्मनों को बदला देता है!
\s5
\v 7 पहले इससे कि उसे दर्द लगे, उसने जन्म दिया; और इससे पहले कि उसको दर्द हो, उससे बेटा पैदा हुआ।
\v 8 ऐसी बात किसने सुनी ? ऐसी चीजें किसने देखीं? क्या एक दिन में कोई मुल्क पैदा हो सकता है? क्या एक ही साथ एक क़ौम पैदा हो जाएगी? क्यूँकि सिय्यून को दर्द लगे ही थे कि उसकी औलाद पैदा हो गई।”
\s5
\v 9 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "क्या मैं उसे विलादत के वक़्त तक लाऊँ और फिर उससे विलादत न कराऊँ?" तेरा ख़ुदा फ़रमाता है, "क्या मैं जो विलादत तक लाता हूँ, विलादत से बा'ज़ रख्खूँ?"
\s5
\v 10 "तुम यरुशलीम के साथ ख़ुशी मनाओ और उसकी वजह से ख़ुश हो, उसके सब दोस्तो ; जो उसके लिए मातम करते थे, उसके साथ बहुत ख़ुश हो;
\v 11 ताकि तुम दूध पियो और उसकी तसल्ली के पिस्तानों से सेर हो; ताकि तुम निचोड़ो और उसकी शौकत की इफ़रात से फ़ायदा उठाओ।”
\s5
\v 12 क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि"देख, मैं सलामती नहर की तरह , और क़ौमों की दौलत सैलाब की तरह उसके पास रवाँ करूँगा ; तब तुम दूध पियोगे, और बग़ल में उठाए जाओगे और घुटनों पर कुदाए जाओगे।
\v 13 ~जिस तरह माँ अपने बेटे को दिलासा देती है, उसी तरह मैं तुम को दिलासा दूँगा; यरुशलीम ही में तुम तसल्ली पाओगे।
\s5
\v 14 और तुम देखोगे और तुम्हारा दिल ख़ुश होगा, और तुम्हारी हड्डियाँ सब्ज़ा की तरह नशोंनुमा पाएँगी, और ख़ुदावन्द का हाथ अपने बन्दों पर ज़ाहिर होगा, लेकिन उसका क़हर उसके दुश्मनों पर भड़केगा।
\s5
\v 15 "क्यूँकि देखो, ख़ुदावन्द आग के साथ आएगा, और उसके रथ उड़ती धूल की तरह होंगे, ताकि अपने क़हर को जोश के साथ और अपनी तम्बीह को आग के शो'ले में ज़ाहिर करे।
\v 16 क्यूँकि आग से और अपनी तलवार से ख़ुदावन्द तमाम बनी आदम का मुक़ाबिला करेगा; और ख़ुदावन्द के मक़तूल बहुत से होंगे।
\s5
\v 17 वह जो बाग़ों की वस्त में किसी के पीछे खड़े होने के लिए अपने आपको पाक-ओ-साफ़ करते हैं, जो सूअर का गोश्त और मकरूह चीजें और चूहे खाते हैं; ख़ुदावन्द फ़रमाता है, वह एक साथ फ़ना हो जाएँगे।
\s5
\v 18 और मैं उनके काम और उनके मन्सूबे जानता हूँ। वह वक़्त आता है कि मैं तमाम क़ौमों और अहल-ए-लुग़त को जमा' करूँगा और वह आयेंगे और मेरा जलाल देखेंगे,
\v 19 तब मैं उनके बीच एक निशान खड़ा करूँगा ; और मैं उनको जो उनमें से बच निकलें, क़ौमों की तरफ़ भेजूँगा, या'नी तरसीस और पूल और लूद को जो तीरअन्दाज़ हैं, और तूबल और यावान को, और दूर के जज़ीरों को जिन्होंने मेरी शोहरत नहीं सुनी और मेरा जलाल नहीं देखा; और वह क़ौमों के बीच मेरा जलाल बयान करेंगे।
\s5
\v 20 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि वह तुम्हारे सब भाइयों को तमाम क़ौमों में से घोड़ों और रथों पर, और पालकियों में और खच्चरों पर, और साँडनियों पर बिठा कर ख़ुदावन्द के हदिये के लिए यरुशलीम में मेरे पाक पहाड़ को लाएँगे, जिस तरह से बनी-इस्राईल ख़ुदावन्द के घर में पाक बर्तनों में हदिया लाते हैं।
\v 21 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि मैं उनमें से भी काहिन और लावी होने के लिए लूँगा।
\s5
\v 22 "ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जिस तरह नया आसमान और नई ज़मीन जो मैं बनाऊँगा, मेरे सामने क़ायम रहेंगे उसी तरह तुम्हारी नसल और तुम्हारा नाम बाक़ी रहेगा।
\v 23 और यूँ होगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि एक नये चाँद से दूसरे तक, और एक सबत से दूसरे तक हर फ़र्द-ए-बशर 'इबादत के लिए मेरे सामने आएगा।
\s5
\v 24 ~'और वह निकल निकल कर उन लोगों की लाशों पर जो मुझ से बाग़ी हुए नज़र करेंगे; क्यूँकि उनका कीड़ा न मरेगा और उनकी आग न बुझेगी, और वह तमाम बनी आदम के लिए नफ़रती होंगे।"

2098
24-JER.usfm Normal file
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\id JER
\ide UTF-8
\h यरमियाह
\toc1 यरमियाह
\toc2 यरमियाह
\toc3 jer
\mt1 यरमियाह
\s5
\c 1
\p
\v 1 यरमियाह-बिन-ख़िलक़ियाह की बातें जो- बिनयमीन की ममलुकत में 'अन्तोती काहिनों में से था;
\v 2 जिस पर ख़ुदावन्द का कलाम शाह-ए-यहूदाह यूसियाह-बिन-अमून के दिनों में उसकी सल्तनत के तेरहवें साल में नाज़िल हुआ।
\v 3 ~शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम बिन-यूसियाह के दिनों में भी, शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह-बिन-यूसियाह के ग्यारहवें साल के पूरे होने तक अहल-ए-यरुशलीम के ग़ुलामी में जाने तक जो पाँचवें महीने में था, नाज़िल होता रहा।
\s5
\v 4 ~तब ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ, और उसने फ़रमाया,
\v 5 ~"इससे पहले कि मैंने तुझे बत्न में ख़ल्क़ किया, मैं तुझे जानता था और तेरी पैदाइश से पहले मैंने तुझे ख़ास किया, और क़ौमों के लिए तुझे नबी ठहराया।"
\v 6 ~तब मैंने कहा, "हाय, ख़ुदावन्द ख़ुदा! देख, मैं बोल नहीं सकता, क्यूँकि मैं तो बच्चा हूँ।"
\s5
\v 7 ~लेकिन ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, "यूँ न कह कि मैं बच्चा हूँ; क्यूँकि जिस किसी के पास मैं तुझे भेजूँगा तू जाएगा, और जो कुछ मैं तुझे फ़रमाऊँगा तू कहेगा।
\v 8 ~तू उनके चेहरों को देखकर न डर क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है मैं तुझे ~छुड़ाने को तेरे साथ हूँ।"
\s5
\v 9 ~तब ख़ुदावन्द ने अपना हाथ बढ़ाकर मेरे मुँह को छुआ; और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया देख मैंने अपना कलाम तेरे मुँह में डाल दिया।
\v 10 ~देख, आज के दिन मैंने तुझे क़ौमों पर, और सल्तनतों पर मुक़र्रर किया कि उखाड़े और ढाए, और हलाक करे और गिराए, और ता'मीर करे और लगाए।"
\s5
\v 11 ~फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रमाया, "ऐ यरमियाह, तू क्या देखता है?" मैंने 'अर्ज़ की कि "बादाम के दरख़्त की एक शाख़ देखता हूँ।"
\v 12 और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, "तू ने ख़ूब देखा, क्यूँकि मैं अपने कलाम को पूरा करने के लिए बेदार' रहता हूँ।"
\s5
\v 13 ~दूसरी बार ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रामाया तू क्या देखता है मैंने अर्ज़ की कि उबलती ~हुई देग देखता हूँ, जिसका मुँह उत्तर की तरफ़ से है।"
\v 14 ~तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, "उत्तर की तरफ़ से इस मुल्क के तमाम बाशिन्दों पर आफ़त आएगी।
\s5
\v 15 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, देख, मैं उत्तर की सल्तनतों के तमाम ख़ान्दानों को बुलाऊँगा, और वह आएँगे और हर एक अपना तख़्त यरुशलीम के फाटकों के मदख़ल पर, और उसकी सब दीवारों के चारों तरफ़, और यहूदाह के तमाम शहरों के सामने क़ायम करेगा।
\v 16 ~और मैं उनकी सारी शरारत की वजह से उन पर फ़तवा दूँगा; क्यूँकि उन्होंने मुझे छोड़ दिया और ग़ैर-मा'बूदों के सामने लुबान जलाया और अपनी ही दस्तकारी को सिज्दा किया।
\s5
\v 17 ~इसलिए तू अपनी कमर कसकर उठ खड़ा हो, और जो कुछ मैं तुझे फ़रमाऊँ उनसे कह। उनके चेहरों को देखकर न डर, ऐसा न हो कि मैं तुझे उनके सामने शर्मिंदा करूँ।
\v 18 ~क्यूँकि देख, मैं आज के दिन तुझ को इस तमाम मुल्क, और यहूदाह के बादशाहों और उसके अमीरों और उसके काहिनों और मुल्क के लोगों के सामने, एक फ़सीलदार शहर और लोहे का सुतून और पीतल की दीवार बनाता हूँ।
\v 19 और वह तुझ से लड़ेंगे, लेकिन तुझ पर ग़ालिब न आएँगे; क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं तुझे छुड़ाने को तेरे साथ हूँ।"
\s5
\c 2
\p
\v 1 ~फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल~हुआ और उसने फ़रमाया कि
\v 2 ~"तू जा और यरुशलीम के कान में पुकार कर कह कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि 'मैं तेरी जवानी की उल्फ़त, और तेरी शादी की मुहब्बत को याद करता हूँ कि तू वीरान या'नी बंजर ज़मीन में मेरे पीछे पीछे चली|
\v 3 ~इस्राईल ख़ुदावन्द का पाक, और उसकी अफ़्ज़ाइश का पहला फल था; ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उसे निगलने वाले सब मुजरिम ठहरेंगे, उन पर आफ़त आएगी।"
\s5
\v 4 ~ऐ अहल-ए-या'क़ूब और अहल-ए-इस्राईल के सब ख़ानदानों ख़ुदावन्द का कलाम सुनो:
\v 5 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि "तुम्हारे बाप-दादा ने मुझ में कौन सी बे-इन्साफ़ी पाई, जिसकी वजह से वह मुझसे दूर हो गए और झूठ की पैरवी करके बेकार हुए?
\v 6 ~और उन्होंने यह न कहा कि ~'ख़ुदावन्द कहाँ है जो हमको मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, और वीरान और बंजर और गढ़ों की ज़मीन में से, ख़ुश्की और मौत के साये की सरज़मीन में से, जहाँ से न कोई गुज़रता और न कोई क़याम करता था, हमको ले आया?"
\s5
\v 7 ~और मैं तुम को बाग़ों वाली ज़मीन में लाया कि तुम उसके मेवे और उसके अच्छे फल खाओ; लेकिन जब तुम दाख़िल हुए, तो तुम ने मेरी ज़मीन को नापाक कर दिया और मेरी मीरास को मकरूह बनाया।
\v 8 ~काहिनों ने न कहा,कि 'ख़ुदावन्द कहाँ है?' और अहल-ए- शरी'अत ने मुझे न जाना; और चरवाहों ने मुझसे सरकशी की, और नबियों ने बा'ल के नाम से नबुव्वत की और उन चीज़ों की पैरवी की जिनसे कुछ फ़ायदा नहीं।
\s5
\v 9 "इसलिए ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं फिर तुम से झगड़ूँगा और तुम्हारे बेटों के बेटों से झगड़ा करूँगा।
\v 10 क्यूँकि पार गुज़रकर कित्तीम के जज़ीरों में देखो, और क़ीदार में क़ासिद भेजकर दरियाफ़्त करो, और देखो कि ऐसी बात कहीं हुई है?
\v 11 क्या किसी क़ौम ने अपने मा'बूदों को, हालाँकि वह ख़ुदा नहीं, बदल डाला? लेकिन मेरी क़ौम ने अपने जलाल को बेफ़ायदा चीज़ से बदला।
\s5
\v 12 ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ऐ आसमानो, इससे हैरान हो; शिद्दत से थरथराओ और बिल्कुल वीरान हो जाओ'।
\v 13 ~क्यूँकि मेरे लोगों ने दो बुराइयाँ कीं: उन्होंने मुझ आब-ए-हयात के चश्मे को छोड़ दिया और अपने लिए हौज़ खोदे हैं शिकस्ता हौज़ जिनमें पानी नहीं ठहर सकता।
\s5
\v 14 "क्या इस्राईल ग़ुलाम है? क्या वह ख़ानाज़ाद है? वह किस लिए लूटा गया?
\v 15 जवान शेर-ए-बबर उस पर गु़र्राए और गरजे, और उन्होंने उसका मुल्क उजाड़ दिया। उसके शहर जल गए, वहाँ कोई बसने वाला न रहा।
\v 16 बनी नूफ़ और बनी तहफ़नीस ने भी तेरी खोपड़ी फोड़ी।
\v 17 क्या तू ख़ुद ही यह अपने ऊपर नहीं लाई कि तूने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को छोड़ दिया, जब कि वह तेरी रहबरी करता था?
\s5
\v 18 और अब सीहोर" का पानी पीने को मिस्र की राह में तुझे क्या काम? और दरिया-ए-फ़रात का पानी पीने को असूर की राह में तेरा क्या मतलब?
\v 19 तेरी ही शरारत तेरी तादीब करेगी, और तेरी नाफ़रमानी तुझ को सज़ा देगी। ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज, फ़रमाता है, देख और जान ले कि यह बुरा और बहुत ही ज़्यादा बेजा काम है कि तूने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को छोड़ दिया, और तुझ को मेरा ख़ौफ़ नहीं।
\s5
\v 20 क्यूँकि मुद्दत हुई कि तूने अपने जुए को तोड़ डाला और अपने बन्धनों के टुकड़े कर डाले, और कहा, 'मैं ताबे' न रहूँगी।" हाँ, हर एक ऊँचे पहाड़ पर और हर एक हरे दरख़्त के नीचे तू बदकारी के लिए लेट गई।
\v 21 मैंने तो तुझे कामिल ताक लगाया और उम्दा बीज बोया था, फिर तू क्यूँकर मेरे लिए बेहक़ीक़त जंगली अंगूर का दरख़्त हो गई?
\v 22 हर तरह तू अपने को सज्जी से धोए और बहुत सा साबुन इस्ते'माल करे, तो भी ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, तेरी शरारत का दाग़ मेरे सामने ज़ाहिर है।
\s5
\v 23 तू क्यूँकर कहती है, 'मैं नापाक नहीं हूँ, मैंने बा'लीम की पैरवी नहीं की'? वादी में अपने चाल-चलन देख, और जो कुछ तूने किया है मा'लूम कर। तू तेज़रौ ऊँटनी की तरह है जो इधर-उधर दौड़ती है;
\v 24 मादा गोरख़र की तरह जो वीराने की 'आदी है, जो शहवत के जोश में हवा को सूँघती है; उसकी मस्ती की हालत में कौन उसे रोक सकता है? उसके तालिब मान्दा न होंगे, उसकी मस्ती के दिनों में" वह उसे पा लेंगे।
\v 25 तू अपने पाँव को नंगे पन से और अपने हलक़ को प्यास से बचा। लेकिन तूने कहा, 'कुछ उम्मीद नहीं, हरगिज़ नहीं; क्यूँकि मैं बेगानों पर आशिक़ हूँ और उन्हीं के पीछे जाऊँगी।"
\s5
\v 26 जिस तरह चोर पकड़ा जाने पर रुस्वा होता है, उसी तरह इस्राईल का घराना रुस्वा हुआ; वह और उसके बादशाह, और हाकिम और काहिन, और नबी;
\v 27 जो लकड़ी से कहते हैं, 'तू मेरा बाप है," और पत्थर से, 'तू ने मुझे पैदा किया।" क्यूँकि उन्होंने मेरी तरफ़ मुँह न किया बल्कि पीठ की; लेकिन अपनी मुसीबत के वक़्त वह कहेंगे, 'उठकर हमको बचा!"
\v 28 लेकिन तेरे बुत कहाँ हैं, जिनको तूने अपने लिए बनाया? अगर वह तेरी मुसीबत के वक़्त तुझे बचा सकते हैं तो उठें; क्यूँकि ऐ यहूदाह, जितने तेरे शहर हैं उतने ही तेरे मा'बूद हैं।
\s5
\v 29 "तुम मुझसे क्यूँ हुज्जत करोगे? तुम सब ने मुझसे बग़ावत की है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 30 मैंने बेफ़ायदा तुम्हारे बेटों को पीटा, वह तरबियत पज़ीर न हुए; तुम्हारी ही तलवार फाड़ने वाले शेर-ए-बबर की तरह तुम्हारे" नबियों को खा गई।
\v 31 ऐ इस नसल के लोगों, ख़ुदावन्द के कलाम का लिहाज़ करो। क्या मैं इस्राईल के लिए वीरान या तारीकी की ज़मीन हुआ? मेरे लोग क्यूँ कहते हैं, 'हम आज़ाद हो गए, फिर तेरे पास न आएँगे?'
\s5
\v 32 क्या कुँवारी अपने ज़ेवर, या दुल्हन अपनी आराइश भूल सकती है? लेकिन मेरे लोग तो मुद्दत-ए-मदीद से मुझ को भूल गए।
\v 33 "तू तलब-ए-इश्क़ में अपनी राह को कैसी आरास्ता करती है। यक़ीनन तूने फ़ाहिशा 'औरतों को भी अपनी राहें सिखाई हैं।
\v 34 तेरे ही दामन पर बेगुनाह ग़रीबों का ख़ून भी पाया गया; तूने उनको नक़ब लगाते नहीं पकड़ा; बल्कि इन्हीं सब बातों की वजह से,
\s5
\v 35 तो भी तू कहती है, 'मैं बेक़ुसूर हूँ, उसका ग़ज़ब यक़ीनन मुझ पर से टल जाएगा;" देख, मैं तुझ पर फ़तवा दूँगा क्यूँकि तू कहती है, 'मैंने गुनाह नहीं किया।'
\v 36 ~तू अपनी राह बदलने को ऐसी बेक़रार क्यूँ फिरती है? तू मिस्र से भी शर्मिन्दा होगी, जैसे असूर से हुई।
\v 37 वहाँ से भी तू अपने सिर पर हाथ रख कर निकलेगी; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनको जिन पर तूने भरोसा किया हक़ीर जाना, और तू उनसे कामयाब न होगी।
\s5
\c 3
\p
\v 1 कहते हैं कि 'अगर कोई मर्द अपनी बीवी को तलाक दे दे, और वह उसके यहाँ से जाकर किसी दूसरे मर्द की हो जाए, तो क्या वह पहला फिर उसके पास जाएगा? क्या वह ज़मीन बहुत नापाक न होगी? लेकिन तूने तो बहुत से यारों के साथ बदकारी की है; क्या अब भी तू मेरी तरफ़ फिरेगी? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 2 पहाड़ों की तरफ़ अपनी आँखें उठा और देख! कौन सी जगह है जहाँ तूने बदकारी नहीं की? तू राह में उनके लिए इस तरह बैठी, जिस तरह वीराने में 'अरब। तूने अपनी बदकारी और शरारत से ज़मीन को नापाक किया।
\s5
\v 3 इसलिए बारिश नहीं होती और आख़िरी बरसात नहीं हुई तेरी पेशानी ~फ़ाहिशा की है और तुझ को शर्म नहीं आती'।
\v 4 क्या तू अब से मुझे पुकार कर न कहेगी, "ऐ मेरे बाप, तू मेरी जवानी का रहबर था?
\v 5 क्या उसका क़हर हमेशा रहेगा? क्या वह उसे हमेशा तक रख छोड़ेगा?" देख, तू ऐसी बातें तो कह चुकी, लेकिन जहाँ तक तुझ से हो सका तूने बुरे काम किए।"
\s5
\v 6 और यूसियाह बादशाह के दिनों में ख़ुदावन्द ने मुझसे फ़रमाया, "क्या तूने देखा, नाफ़रमान इस्राईल ने क्या किया है? वह हर एक ऊँचे पहाड़ पर और हर एक हरे दरख़्त के नीचे गई, और वहाँ बदकारी की।
\v 7 और जब वह ये सब कुछ कर चुकी तो मैंने कहा, वह मेरी तरफ़ वापस आएगी; लेकिन वह न आई, और उसकी बेवफ़ा बहन यहूदाह ने ये हाल देखा।
\s5
\v 8 ~फिर मैंने देखा कि जब फिरे हुए इस्राईल की ज़िनाकारी की वजह से मैंने उसको तलाक़ दे दिया, और उसे तलाक़नामा लिख दिया तो भी उसकी बेवफ़ा बहन यहूदाह न डरी; बल्कि उसने भी जाकर बदकारी की।
\v 9 और ऐसा हुआ कि उसने अपनी बदकारी की बुराई से ज़मीन को नापाक किया, और पत्थर और लकड़ी के साथ ज़िनाकारी की।
\v 10 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि बावजूद इस सब के उसकी बेवफ़ा बहन यहूदाह सच्चे दिल से मेरी तरफ़ न फिरी, बल्कि रियाकारी से।"
\s5
\v 11 और ख़ुदावन्द ने मुझसे फ़रमाया, "नाफ़रमान इस्राईल ने बेवफ़ा यहूदाह से ज़्यादा अपने आपको सच्चा साबित किया है।
\v 12 जा और उत्तर की तरफ़ यह बात पुकारकर कह दे कि 'ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ऐ ~नाफ़रमान इस्राईल, वापस आ; मैं तुझ पर क़हर की नज़र नहीं करूँगा क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है मैं रहीम हूँ मेरा क़हर हमेशा का नहीं |
\s5
\v 13 सिर्फ़ अपनी बदकारी का इक़रार कर कि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से 'आसी हो गई, और हर एक हरे दरख़्त के नीचे ग़ैरों के साथ इधर-उधर आवारा फिरी; ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तुम मेरी आवाज़ के सुनने वाले न हुए।
\v 14 "ख़ुदावन्द फ़रमाता है, 'ऐ नाफ़रमान बच्चों, वापस आओ; क्यूँकि मैं ख़ुद तुम्हारा मालिक हूँ, और मैं तुम को हर एक शहर में से एक, और हर एक घराने में से दो लेकर सिय्यून में लाऊँगा।
\v 15 "और मैं तुम को अपने ख़ातिर ख़्वाह चरवाहे दूँगा, और वह तुम को समझदारी और 'अक़्लमन्दी से चराएँगे।
\s5
\v 16 और यूँ होगा कि ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि जब उन दिनों में तुम मुल्क में बढ़ोगे और बहुत होगे, तब वह फिर न कहेंगे कि 'ख़ुदावन्द के 'अहद का सन्दूक़'; उसका ख़याल भी कभी उनके दिल में न आएगा, वह हरगिज़ उसे याद न करेंगे और उसकी ज़ियारत को न जाएँगे, और उसकी मरम्मत न होगी।
\s5
\v 17 उस वक़्त यरुशलीम ख़ुदावन्द का तख़्त कहलाएगा, और उसमें या'नी यरुशलीम में, सब क़ौमें ख़ुदावन्द के नाम से जमा' होंगी; और वह फिर अपने बुरे दिल की सख़्ती की पैरवी न करेंगे।
\v 18 उन दिनों में यहूदाह का घराना इस्राईल के घराने के साथ चलेगा, वह मिलकर उत्तर के मुल्क में से उस मुल्क में जिसे मैंने तुम्हारे बाप-दादा को मीरास में दिया, आएँगे।
\s5
\v 19 'आह, मैंने तो कहा था, मैं तुझ को फ़र्ज़न्दों में शामिल करके ख़ुशनुमा मुल्क या'नी क़ौमों की नफ़ीस मीरास तुझे दूँगा; और तू मुझे बाप कह कर पुकारेगी, और तू फिर मुझसे न फिरेगी।
\v 20 लेकिन ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ऐ इस्राईल के घराने, जिस तरह बीवी बेवफ़ाई से अपने शौहर को छोड़ देती है, उसी तरह तूने मुझसे बेवफ़ाई की है।'
\s5
\v 21 पहाड़ों पर बनी-इस्राईल की गिरया-ओ-ज़ारी और मिन्नत की आवाज़ सुनाई देती है क्यूँकि उन्होंने अपनी राह टेढ़ी की और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को भूल गए।
\v 22 'ऐ नाफ़रमान फ़र्ज़न्द वापस आओ मैं तुम्हारी नाफ़रमानी का चारा करूँगा। देख, हम तेरे पास आते हैं; क्यूँकि तू ही, ऐ ख़ुदावन्द, हमारा ख़ुदा है।
\s5
\v 23 हक़ीक़त में टीलों और पहाड़ों पर के हुजूम से कुछ उम्मीद रखना बेफ़ायदा है। यक़ीनन ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ही में इस्राईल की नजात है।
\v 24 लेकिन इस रुस्वाई की वजह ने हमारी जवानी के वक़्त से हमारे बाप-दादा के माल को, और उनकी भेड़ों और उनके बैलों और उनके बेटे और बेटियों को निगल लिया है।
\v 25 ~हम अपनी शर्म में लेटें और रुस्वाई हमको छिपा ले, क्यूँकि हम और हमारे बाप-दादा अपनी जवानी के वक़्त से आज तक ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के ख़ताकार हैं। और हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आवाज़ के सुनने वाले नहीं हुए।"
\s5
\c 4
\p
\v 1 "ऐ इस्राईल, अगर तू वापस आए, ख़ुदावन्द फ़रमाता है अगर तू मेरी तरफ़ वापस आए; और अपनी मकरूहात को मेरी नज़र से दूर करे तो तू आवारा न होगा;
\v 2 और अगर तू सच्चाई और 'अदालत और सदाक़त से ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम खाए, तो क़ौमें उसकी वजह से अपने आपको मुबारक कहेंगी और उस पर फ़ख़्र करेंगी।”
\v 3 क्यूँकि ख़ुदावन्द यहूदाह और यरुशलीम के लोगों को यूँ फ़रमाता है: "अपनी उम्दा ज़मीन पर हल चलाओ, और काँटों में बीज न बोया करो।
\s5
\v 4 'ऐ यहूदाह के लोगों, और यरुशलीम के बाशिन्दो, ख़ुदावन्द के लिए अपना ख़तना कराओ; हाँ, अपने दिल का ख़तना करो; ऐसा न हो कि तुम्हारी बद'आमाली की वजह से मेरा क़हर आग की तरह शो'लाज़न हो, और ऐसा भड़के के कोई बुझा न सके।"
\v 5 यहूदाह में इश्तिहार दो, और यरुशलीम में इसका 'ऐलान करो और कहो, "तुम मुल्क में नरसिंगा फूँको, बलन्द आवाज़ से पुकारो और कहो कि "जमा' हो", कि हसीन शहरों में चलें।'
\v 6 तुम सिय्यून ही में झण्डा खड़ा करो, पनाह लेने को भागो और देर न करो, क्यूँकि मैं बला और हलाकत-ए-शदीद को उत्तर की तरफ़ से लाता हूँ।
\s5
\v 7 शेर-ए-बबर झाड़ियों से निकला है, और क़ौमों के हलाक करने वाले ने रवानगी की है; वह अपनी जगह से निकला है कि तेरी ज़मीन को वीरान करे, ताकि तेरे शहर वीरान हों और कोई बसने वाला न रहे।
\v 8 इसलिए टाट ओढ़कर छाती पीटो और वावैला करो, क्यूँकि ख़ुदावन्द का क़हर-ए- शदीद हम पर से टल नहीं गया।”
\s5
\v 9 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "उस वक़्त यूँ होगा कि बादशाह और सरदार बे-दिल हो जायेंगे और काहिन हैरतज़दा और नबी शर्मिंदा होंगे।"
\v 10 तब मैंने कहा, "अफ़सोस, ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, यक़ीनन तूने इन लोगों और यरुशलीम को ये कह कर दग़ा दी कि तुम सलामत रहोगे; हालाँकि तलवार जान तक पहुँच गई है।"
\s5
\v 11 उस वक़्त इन लोगों और यरुशलीम से ये कहा जाएगा कि 'वीराने के पहाड़ों पर से एक ख़ुश्क हवा मेरी दुख़्तर-ए-क़ौम की तरफ़ चलेगी, उसाने और साफ़ करने के लिए नहीं,
\v 12 बल्कि वहाँ से एक बहुत तुन्द हवा मेरे लिए चलेगी; अब मैं भी उन पर फ़तवा दूँगा।"
\s5
\v 13 देखो, वह घटा की तरह चढ़ आएगा, उसके रथ गिर्दबाद की तरह और उसके घोड़े 'उक़ाबों के जैसे तेज़तर हैं। हम पर अफ़सोस के हाय, हम बर्बाद हो गए!
\v 14 ~ऐ यरुशलीम, तू अपने दिल को शरारत से पाक कर ताकि तू रिहाई पाए। बुरे ख़यालात कब तक तेरे दिल में रहेंगे?
\v 15 क्यूँकि दान से एक आवाज़ आती है, और इफ़्राईम के पहाड़ से मुसीबत की ख़बर देती है;
\s5
\v 16 क़ौमों को ख़बर दो, देखो, यरुशलीम के बारे में 'ऐलान करो कि ~"घिराव करने वाले दूर के मुल्क से आते हैं, और यहूदाह के शहरों के सामने ललकारेंगे
\v 17 खेत के रखवालों की तरह वह उसे चारों तरफ़ से घेरेंगे, क्यूँकि उसने मुझसे बग़ावत की, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 18 तेरी चाल और तेरे कामों से यह मुसीबत तुझ पर आयी है। यह तेरी शरारत है, यह बहुत तल्ख़ है, क्यूँकि यह तेरे दिल तक पहुँच गई है।"
\s5
\v 19 हाय, मेरा दिल! मेरे पर्दा-ए-दिल में दर्द है! मेरा दिल बेताब है, मैं चुप नहीं रह सकता; क्यूँकि ऐ मेरी जान, तूने नरसिंगे की आवाज़ और लड़ाई की ललकार सुन ली है।
\v 20 शिकस्त पर शिकस्त की ख़बर आती है, यक़ीनन तमाम मुल्क बर्बाद हो गया; मेरे ख़ेमे अचानक और मेरे पर्दे एक दम में बर्बाद किए गए।
\s5
\v 21 मैं कब तक ये झण्डा देखूँ और नरसिंगे की आवाज़ सुनूँ?
\v 22 "हक़ीक़त में मेरे लोग बेवक़ूफ़ हैं, उन्होंने मुझे नहीं पहचाना; वह बेश'ऊर बच्चे हैं और फ़र्क़ नहीं रखते बुरे काम करने में होशियार हैं, लेकिन नेक काम की समझ नहीं रखते।"
\s5
\v 23 मैंने ज़मीन पर नज़र की, और क्या देखता हूँ कि वीरान और सुनसान है; आसमानों को भी बेनूर पाया।
\v 24 मैंने पहाड़ों पर निगाह की, और क्या देखता हूँ कि वह काँप गए, और सब टीले लर्ज़िश खा गए।
\v 25 मैंने नज़र की, और क्या देखता हूँ कि कोई आदमी नहीं, और सब हवाई परिन्दे उड़ गए।
\v 26 फिर मैंने नज़र की और क्या देखता हूँ कि ज़रखेत ज़मीन वीरान हो गई, और उसके सब शहर ख़ुदावन्द की हुज़ूरी और उसके क़हर की शिद्दत से बर्बाद हो गए।
\s5
\v 27 क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि तमाम मुल्क वीरान होगा तोभी मैं उसे बिल्कुल बर्बाद न करूँगा।
\v 28 इसीलिए ज़मीन मातम करेगी और ऊपर से आसमान तारीक हो जाएगा; क्यूँकि मैं कह चुका, मैंने इरादा किया है, मैं उससे पशेमान न हूँगा और उससे बाज़ न आऊँगा।"
\v 29 सवारों और तीरअंदाज़ों के शोर से तमाम शहरी भाग जाएँगे; वह घने जंगलों में जा घुसेंगे, और चट्टानों पर चढ़ जाएँगे, सब शहर छोड़ दिए जायेंगे और कोई आदमी उनमें न रहेगा।
\s5
\v 30 तब ऐ ग़ारतशुदा, तू क्या करेगी? अगरचे तू लाल जोड़ा पहने, अगरचे तू ज़र्रीन ज़ेवरों से आरास्ता हो, अगरचे तू अपनी आँखों में सुरमा लगाए, तू 'अबस अपने आपको ख़ूबसूरत बनाएगी; तेरे 'आशिक़ तुझ को हक़ीर जानेंगे, वह तेरी जान के तालिब होंगे।
\v 31 क्यूँकि मैंने उस 'औरत की जैसी आवाज़ सुनी है जिसे दर्द लगे हों, और उसकी जैसी दर्दनाक आवाज़ जिसके पहला बच्चा पैदा हो, या'नी दुख़्तर-ए-सिय्यून की आवाज़, जो हाँपती और अपने हाथ फैलाकर कहती है, 'हाय! क़ातिलों के सामने मेरी जान बेताब है।”
\s5
\c 5
\p
\v 1 अब यरुशलीम की गलियों में इधर-उधर गश्त करो; और देखो और दरियाफ़्त करो, और उसके चौकों में ढूँडो, अगर कोई आदमी वहाँ मिले जो इन्साफ़ करनेवाला और सच्चाई का तालिब हो, तो मैं उसे मु'आफ़ करूँगा।
\v 2 और अगरचे वह कहते हैं, "ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम," तो भी यक़ीनन वह झूटी क़सम खाते हैं।
\v 3 ऐ ख़ुदावन्द, क्या तेरी आँखें सच्चाई पर नही हैं? तूने उनको मारा है, लेकिन उन्होंने अफ़सोस नहीं किया; तूने उनको बर्बाद किया, लेकिन वह तरबियत-पज़ीर न हुए; उन्होंने अपने चेहरों को चट्टान से भी ज़्यादा सख़्त बनाया, उन्होंने वापस आने से इन्कार किया है।
\s5
\v 4 तब मैंने कहा कि "यक़ीनन ये बेचारे जाहिल हैं, क्यूँकि ये ख़ुदावन्द की राह और अपने ख़ुदा के हुक्मों को नहीं जानते।
\v 5 मैं बुज़ुर्गों के पास जाऊँगा, और उनसे कलाम करूँगा; क्यूँकि वह ख़ुदावन्द की राह और अपने ख़ुदा के हुक्मों को जानते हैं।" लेकिन इन्होंने जूआ बिल्कुल तोड़ डाला, और बन्धनों के टुकड़े कर डाले।
\v 6 इसलिए जंगल का शेर-ए-बबर उनको फाड़ेगा वीराने का भेड़िया हलाक करेगा, चीता उनके शहरों की घात में बैठा रहेगा; जो कोई उनमें से निकले फाड़ा जाएगा, क्यूँकि उनकी सरकशी बहुत हुई और उनकी नाफ़रमानी बढ़ गई।
\s5
\v 7 "मैं तुझे क्यूँकर मु'आफ़ करूँ? तेरे फ़र्ज़न्दों ने' मुझ को छोड़ा, और उनकी क़सम खाई जो ख़ुदा नहीं हैं। जब मैंने उनको सेर किया, तो उन्होंने बदकारी की और परे बाँधकर क़हबाख़ानों में इकट्ठे हुए।
\v 8 वह पेट भरे घोड़ों की तरह हो गए, हर एक सुबह के वक़्त अपने पड़ोसी की बीवी पर हिनहिनाने लगा।
\v 9 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्या मैं इन बातों के लिए सज़ा न दूँगा, और क्या मेरी रूह ऐसी क़ौमों से इन्तक़ाम न लेगी?
\s5
\v 10 'उसकी दीवारों पर चढ़ जाओ और तोड़ डालो, लेकिन बिल्कुल बर्बाद न करो, उसकी शाख़ें काट दो, क्यूँकि वह ख़ुदावन्द की नहीं हैं।
\v 11 इसलिए कि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, इस्राईल के घराने और यहूदाह के घराने ने मुझसे बहुत बेवफ़ाई की।
\v 12 "उन्होंने ख़ुदावन्द का इन्कार किया और कहा कि 'वह नहीं है, हम पर हरगिज़ आफ़त न आएगी, और तलवार और काल को हम न देखेंगे;
\v 13 और नबी महज़ हवा हो जाएँगे, और कलाम उनमें नहीं है; उनके साथ ऐसा ही होगा।"
\s5
\v 14 ~फिर इसलिए कि तुम यूँ कहते हो, " ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज़ यूँ फ़रमाता है कि, देख, मैं अपने कलाम को तेरे मुँह में आग और इन लोगों को लकड़ी बनाऊँगा और वह इनको भसम कर देगी।
\v 15 ऐ इस्राईल के घराने, देख, मैं एक क़ौम को दूर से तुझ पर चढ़ा लाऊँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है वह ज़बरदस्त क़ौम है, वह क़दीम क़ौम है, वह ऐसी क़ौम है जिसकी ज़बान तू नहीं जानता और उनकी बात को तू नहीं समझता।
\s5
\v 16 उनके तरकश खुली क़ब्रे हैं, वह सब बहादुर मर्द हैं।
\v 17 और वह तेरी फ़सल का अनाज और तेरी रोटी, जो तेरे बेटों और बेटियों के खाने की थी, खा जाएँगे; तेरे गाय-बैल और तेरी भेड़ बकरियों को चट कर जाएँगे, तेरे अंगूर और अंजीर निगल जाएँगे, तेरे हसीन शहरों को जिन पर तेरा भरोसा है, तलवार से वीरान कर देंगे।"
\s5
\v 18 ~"लेकिन ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उन दिनों में भी मैं तुम को बिल्कुल बर्बाद न करूँगा।
\v 19 और यूँ होगा कि जब वह कहेंगे, 'ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने यह सब कुछ हम से क्यूँ किया?' तो तू उनसे कहेगा, "जिस तरह तुम ने मुझे छोड़ दिया और अपने मुल्क में ग़ैर मा'बूदों की 'इबादत की, उसी तरह तुम उस मुल्क में जो तुम्हारा नहीं है, अजनबियों की ख़िदमत करोगे।' "
\s5
\v 20 ~या'क़ूब के घराने में इस बात का इश्तिहार दो, और यहूदाह में इसका 'ऐलान करो और कहो,
\v 21 "अब ज़रा सुनो, ऐ नादान और बे'अक़्ल लोगों, जो आँखें रखते हो लेकिन देखते नहीं, जो कान रखते हो लेकिन सुनते नहीं।
\v 22 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्या तुम मुझसे नहीं डरते? क्या तुम मेरे सामने थरथराओगे नहीं, जिसने रेत को समन्दर की हद पर हमेशा के हुक्म से क़ायम किया कि वह उससे आगे नहीं बढ़ सकता और हरचन्द उसकी लहरें उछलती हैं, तोभी ग़ालिब नहीं आतीं; और हरचन्द शोर करती हैं, तो भी उससे आगे नहीं बढ़ सकतीं।
\s5
\v 23 ~लेकिन इन लोगों के दिल बाग़ी और सरकश हैं; इन्होंने सरकशी की और दूर हो गए।
\v 24 इन्होंने अपने दिल में न कहा कि हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से डरें, जो पहली और पिछली बरसात वक़्त पर भेजता है, और फ़सल के मुक़र्ररा हफ़्तों को हमारे लिए मौजूद कर रखता है।
\v 25 तुम्हारी बदकिरदारी ने इन चीज़ों को तुम से दूर कर दिया, और तुम्हारे गुनाहों ने अच्छी चीज़ों को तुम से बाज़ रखा'।
\s5
\v 26 क्यूँकि मेरे लोगों में शरीर पाए जाते हैं; वह फन्दा लगाने वालों की तरह घात में बैठते हैं, वह जाल फैलाते और आदमियों को पकड़ते हैं।
\v 27 जैसे पिंजरा चिड़ियों से भरा हो, वैसे ही उनके घर फ़रेब से भरे हैं, तब वह बड़े और मालदार हो गए।
\v 28 वह मोटे हो गए, वह चिकने हैं। वह बुरे कामों में सबक़त ले जाते हैं, वह फ़रियाद या'नी यतीमों की फ़रियाद, नहीं सुनते ताकि उनका भला हो और मोहताजों का इन्साफ़ नहीं करते।
\v 29 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्या मैं इन बातों के लिए सज़ा न दूँगा? और क्या मेरी रूह ऐसी क़ौम से इन्तक़ाम न लेगी?”
\s5
\v 30 मुल्क में एक हैरतअफ़ज़ा और हौलनाक बात हुई;
\v 31 नबी झूठी नबुव्वत करते हैं, और काहिन उनके वसीले से हुक्मरानी करते हैं, और मेरे लोग ऐसी हालत को पसन्द करते हैं, अब तुम इसके आख़िर में क्या करोगे?
\s5
\c 6
\p
\v 1 ऐ बनी बिनयमीन, यरुशलीम में से पनाह के लिए भाग निकलो, और तक़ू'अ में नरसिंगा फूँको और बैत हक्करम में आतिशीन 'अलम बलन्द करो; क्यूँकि उत्तर की तरफ़ से बला और बड़ी तबाही आनेवाली है।
\v 2 मैं दुख़्तर-ए-सिय्यून को जो शकील और नाज़नीन है, हलाक करूँगा।
\v 3 चरवाहे अपने गल्लों को लेकर उसके पास आएँगे और चारों तरफ़ उसके सामने ख़ेमे खड़े करेंगे हर एक अपनी जगह में चराएगा।
\s5
\v 4 "उससे जंग के लिए अपने आपको ख़ास करो; उठो, दोपहर ही को चढ़ चलें! हम पर अफ़सोस, क्यूँकि दिन ढलता जाता है, और शाम का साया बढ़ता जाता है!
\v 5 उठो, रात ही को चढ़ चलें और उसके क़स्रों को ढा दें!"
\s5
\v 6 क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: 'दरख़्त काट डालो, और यरुशलीम के सामने दमदमा बाँधो; यह शहर सज़ा का सज़ावार है, इसमें ज़ुल्म ही ज़ुल्म हैं।
\v 7 ~जिस तरह पानी चश्मे से फूट निकलता है, उसी तरह शरारत इससे जारी है; ज़ुल्म और सितम की हमेशा इसमें सुनी जाती है, हर दम मेरे सामने दुख दर्द और ज़ख़्म हैं।
\v 8 ऐ यरुशलीम, तरबियत-पज़ीर हो; ऐसा न हो कि मेरा दिल तुझ से हट जाए, न हो कि मैं तुझे वीरान और ग़ैरआबाद ज़मीन बना दूँ।"
\s5
\v 9 रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: "वह इस्राईल के बक़िये को अंगूर की तरह ढूँडकर तोड़ लेंगे। तू अंगूर तोड़ने वाले की तरह फिर अपना हाथ शाख़ों में डाल।”
\v 10 मैं किससे कहूँ और किसको जताऊँ, ताकि वह सुनें? देख, उनके कान नामख़्तून हैं और वह सुन नहीं सकते; देख, ख़ुदावन्द का कलाम उनके लिए हिक़ारत का ज़रिया' है, वह उससे ख़ुश नहीं होते।
\s5
\v 11 इसलिए मैं ख़ुदावन्द के क़हर से लबरेज़ हूँ, मैं उसे ज़ब्त करते करते तंग आ गया। बाज़ारों में बच्चों पर और जवानों की जमा'अत पर उसे उँडेल दे, क्यूँकि शौहर अपनी बीवी के साथ और बूढ़ा कुहनसाल के साथ गिरफ़्तार होगा।
\v 12 और उनके घर खेतों और बीवियों के साथ औरों के हो जायेंगे क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "मैं अपना हाथ इस मुल्क के बाशिन्दों पर बढ़ाऊँगा।
\s5
\v 13 इसलिए कि छोटों से बड़ों तक सब के सब लालची हैं, और नबी से काहिन तक हर एक दग़ाबाज़ है।
\v 14 क्यूँकि वह मेरे लोगों के ज़ख़्म को यूँही 'सलामती सलामती' कह कर अच्छा करते हैं, हालाँकि सलामती नहीं है।
\v 15 क्या वह अपने मकरूह कामों की वजह से शर्मिन्दा हुए? वह हरगिज़ शर्मिन्दा न हुए, बल्कि वह लजाए तक नहीं; इस वास्ते वह गिरने वाले के साथ गिरेंगे ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "जब मैं उनको सज़ा दूँगा, तो पस्त हो जाएँगे।"
\s5
\v 16 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: 'रास्तों पर खड़े हो और देखो, और पुराने रास्तों के बारे में पूछो कि अच्छी राह कहाँ है, उसी पर चलो और तुम्हारी जान राहत पाएगी। लेकिन उन्होंने कहा, 'हम उस पर न चलेंगे।'
\v 17 और मैंने तुम पर निगहबान भी मुक़र्रर किए और कहा, 'नरसिंगे की आवाज़ सुनो!' लेकिन उन्होंने कहा, 'हम न सुनेंगे।"
\v 18 ~इसलिए ऐ क़ौमों, सुनो, और ऐ अहल-ए-मजमा', मा'लूम करो कि उनकी क्या हालत है।
\v 19 ऐ ज़मीन सुन; देख, मैं इन लोगों पर आफ़त लाऊँगा जो इनके अन्देशों का फल है, क्यूँकि इन्होंने मेरे कलाम को नहीं माना और मेरी शरी'अत को रद्द कर दिया है।
\s5
\v 20 इससे क्या फ़ायदा के सबा से लुबान और दूर के मुल्क से अगर मेरे सामने लाते हैं? तुम्हारी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ मुझे पसन्द नहीं, और तुम्हारी क़ुर्बानियों से मुझे ख़ुशी नहीं।
\v 21 इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि 'देख, मैं ठोकर खिलाने वाली चीजें इन लोगों की राह में रख दूँगा; और बाप और बेटे बाहम उनसे ठोकर खायेंगे पड़ोसी और उनके दोस्त हलाक होंगे।' "
\v 22 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, 'देख, उत्तरी मुल्क से एक गिरोह आती है, और इन्तिहाए-ज़मीन से एक बड़ी क़ौम बरअंगेख़्ता की जाएगी।
\s5
\v 23 वह तीरअन्दाज़ और नेज़ाबाज़ हैं, वह संगदिल और बेरहम हैं, उनके ना'रों की हमेशा समन्दर की जैसी है और वह घोड़ों पर सवार हैं; ऐ दुख़्तर-ए-सिय्यून, वह जंगी मर्दों की तरह तेरे सामने सफ़आराई करते हैं।"
\v 24 हमने इसकी शोहरत सुनी है, हमारे हाथ ढीले हो गए, हम ज़चा की तरह मुसीबत और दर्द में गिरफ़्तार हैं।
\s5
\v 25 मैदान में न निकलना और सड़क पर न जाना, क्यूँकि हर तरफ़ दुश्मन की तलवार का ख़ौफ़ है।
\v 26 ऐ मेरी बिन्त-ए-क़ौम, टाट औढ़ और राख में लेट, अपने इकलौतों पर मातम और दिलख़राश नोहा कर; क्यूँकि ग़ारतगर हम पर अचानक आएगा।
\s5
\v 27 "मैंने तुझे अपने लोगों में आज़माने वाला और बुर्ज मुक़र्रर किया ताकि तू उनके चाल चलनो~को मा'लूम करे और परखे।
\v 28 वह सब के सब बहुत सरकश हैं, वह ग़ीबत करते हैं, वह तो ताँबा और लोहा हैं, वह सब के सब मु'आमिले के खोटे हैं।
\v 29 धौंकनी जल गई, सीसा आग से भसम हो गया; साफ़ करनेवाले ने बेफ़ायदा साफ़ किया, क्यूँकि शरीर अलग नहीं हुए।
\v 30 वह मरदूद चाँदी कहलाएँगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनको रद्द कर दिया है।”
\s5
\c 7
\p
\v 1 यह वह कलाम है जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ, और उसने फ़रमाया,
\v 2 "तू ख़ुदावन्द के घर के फाटक पर खड़ा हो, और वहाँ इस कलाम का इश्तिहार दे, और कह, ऐ यहूदाह के सब लोगों, जो ख़ुदावन्द की 'इबादत के लिए इन फाटकों से दाख़िल होते हो , ख़ुदावन्द का कलाम सुनो ।
\s5
\v 3 रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है: अपने चाल चलन और अपने आ'माल दुरुस्त करो, तो मैं तुम को इस मकान में बसाऊँगा।
\v 4 झूटी बातों पर भरोसा न करो और यूँ न कहते जाओ, 'यह है ख़ुदावन्द की हैकल, ख़ुदावन्द की हैकल, ख़ुदावन्द की हैकल।'
\s5
\v 5 "क्यूँकि अगर तुम अपने चाल चलन और अपने आ'माल सरासर दुरुस्त करो, अगर हर आदमी और उसके पड़ोसी में पूरा इन्साफ़ करो,
\v 6 ~अगर परदेसी और यतीम और बेवा पर ज़ुल्म न करो, और इस मकान में बेगुनाह का ख़ून न बहाओ, और ग़ैर-मा'बूदों की पैरवी जिसमें तुम्हारा नुक़सान है, न करो,
\v 7 ~तो मैं तुम को इस मकान में और इस मुल्क में बसाऊँगा, जो मैंने तुम्हारे बाप-दादा को पहले से हमेशा के लिए दिया।
\s5
\v 8 "देखो, तुम झूटी बातों पर जो बेफ़ायदा हैं, भरोसा करते हो।
\v 9 क्या तुम चोरी करोगे, ख़ून करोगे, ज़िनाकारी करोगे, झूटी क़सम खाओगे, और बा'ल के लिए ख़ुशबू जलाओगे और ग़ैर मा'बूदों की जिनको तुम नहीं जानते थे, पैरवी करोगे।
\v 10 और मेरे सामने इस घर में जो मेरे नाम से कहलाता है, आकर खड़े होगे और कहोगे कि "हम ने छुटकारा पाया," ताकि यह सब नफ़रती काम करो?
\v 11 क्या यह घर जो मेरे नाम से कहलाता है, तुम्हारी नज़र में डाकुओं का ग़ार बन गया? देख, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैंने खु़द यह देखा है।
\s5
\v 12 इसलिए, अब मेरे उस मकान को जाओ जो सैला में था, जिस पर पहले मैंने अपने नाम को क़ायम किया था; और देखो कि मैंने अपने लोगों या'नी बनी-इस्राईल की शरारत की वजह से उससे क्या किया?
\v 13 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, अब चूँकि तुम ने यह सब काम किए, मैंने बर वक़्त' तुम को कहा और ताकीद की, लेकिन तुम ने न सुना; और मैंने तुम को बुलाया लेकिन तुम ने जवाब न दिया,
\v 14 इसलिए मैं इस घर से जो मेरे नाम से कहलाता है, जिस पर तुम्हारा ~भरोसा है, और इस मकान से जिसे मैंने तुम को और तुम्हारे बाप-दादा को दिया, वही करूँगा जो मैने सैला से किया है।
\v 15 और मैं तुम को अपने सामने से निकाल दूँगा, जिस तरह तुम्हारी सारी बिरादरी इफ़्राईम की कुल नसल को निकाल दिया है।
\s5
\v 16 "इसलिए तू इन लोगों के लिए दु'आ न कर, और इनके वास्ते आवाज़ बुलन्द न कर, और मुझसे मिन्नत और शफ़ा'अत न कर क्यूँकि मैं तेरी न सुनूँगा।
\v 17 क्या तू नहीं देखता कि वह यहूदाह के शहरों में और यरुशलीम के कूचों में क्या करते हैं?
\v 18 बच्चे लकड़ी जमा' करते हैं और बाप आग सुलगाते हैं, और औरतें आटा गूँधती हैं ताकि आसमान की मलिका के लिए रोटी पकाएँ, और ग़ैर मा'बूदों के लिए तपावन तपाकर मुझे ग़ज़बनाक करें।
\s5
\v 19 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्या वह मुझ ही को ग़ज़बनाक करते हैं? क्या वह अपनी ही रूसियाही के लिए नहीं करते?
\v 20 इसी वास्ते ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: देख, मेरा क़हर-ओ-ग़ज़ब इस मकान पर, और इन्सान और हैवान और मैदान के दरख़्तों पर, और ज़मीन की पैदावार पर उँडेल दिया जाएगा; और वह भड़केगा और बुझेगा नहीं।"
\s5
\v 21 रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: "अपने ज़बीहों पर अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ भी बढ़ाओ और गोश्त खाओ।
\v 22 क्यूँकि जिस वक़्त मैं तुम्हारे बाप दादा को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, उनको सोख़्तनी क़ुर्बानी और ज़बीहे के बारे में कुछ नहीं कहा और हुक्म नहीं दिया;
\v 23 बल्कि मैंने उनको ये हुक्म दिया, और फ़रमाया कि मेरी आवाज़ के शिनवा हो, और मैं तुम्हारा ख़ुदा हूँगा और तुम मेरे लोग होगे; और जिस राह की मैं तुम को हिदायत करूँ, उस पर चलो ताकि तुम्हारा भला हो।
\s5
\v 24 लेकिन उन्होंने न सुना, न कान लगाया, बल्कि अपनी मसलहतों और अपने बुरे दिल की सख़्ती पर चले और फिर गए और आगे न बढ़े।
\v 25 जब से तुम्हारे बाप-दादा मुल्क-ए-मिस्र से निकल आए, अब तक मैंने तुम्हारे पास अपने सब ख़ादिमों या'नी नबियों को भेजा, मैंने उनको हमेशा सही वक़्त पर भेजा।
\v 26 लेकिन उन्होंने मेरी न सुनी और कान न लगाया, बल्कि अपनी गर्दन सख़्त की; उन्होंने अपने बाप-दादा से बढ़कर बुराई की।
\s5
\v 27 "तू ये सब बातें उनसे कहेगा, लेकिन वह तेरी न सुनेंगे; तू उनको बुलाएगा, लेकिन वह तुझे जवाब न देंगे।
\v 28 तब तू उनसे कह दे, 'यह वह क़ौम है जो ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आवाज़ की शिनवा, और तरबियत पज़ीर न हुई; सच्चाई बर्बाद हो गई, और उनके मुँह से जाती रही।
\s5
\v 29 'अपने बाल काटकर फेंक दे, और पहाड़ों पर जाकर नौहा कर; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उन लोगों को जिन पर उसका क़हर है, रद्द और छोड़ दिया है।"
\v 30 "इसलिए कि बनी यहूदाह ने मेरी नज़र में बुराई की, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उन्होंने उस घर में जो मेरे नाम से कहलाता है अपनी मकरूहात रख्खी, ताकि उसे नापाक करें।
\s5
\v 31 ~और उन्होंने तूफ़त के ऊँचे मक़ाम बिन हिन्नोम की वादी में बनाए, ताकि अपने बेटे और बेटियों को आग में जलाएँ, जिसका मैंने हुक्म नहीं दिया और मेरे दिल में इसका ख़याल भी न आया था।
\v 32 ~इसलिए ख़ुदावन्द फ़रमाता है, देख, वह दिन आते हैं कि यह न तूफ़त कहलाएगी न बिन हिन्नोम की वादी, बल्कि वादी-ए-क़त्ल; और जगह न होने की वजह से तूफ़त में दफ़्न करेंगे।
\s5
\v 33 और इस क़ौम की लाशें हवाई परिन्दों और ज़मीन के दरिन्दों की ख़ुराक होंगी, और उनको कोई न हँकाएगा।
\v 34 तब मैं यहूदाह के शहरों में और यरुशलीम के बाज़ारों में ख़ुशी और ख़ुशी की आवाज़, दुल्हे और दुल्हन की आवाज़ ख़त्म करूँगा; क्यूँकि यह~मुल्क वीरान हो जाएगा।
\s5
\c 8
\p
\v 1 "ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि उस वक़्त वह यहूदाह के बादशाहों और उसके सरदारों और काहिनों और नबियों और यरुशलीम के बाशिन्दों की हड्डियाँ, उनकी क़ब्रों से निकाल लाएँगे;
\v 2 ~और उनको सूरज और चाँद और तमाम अजराम-ए-फ़लक के सामने, जिनको वह दोस्त रखते और जिनकी ख़िदमत-ओ-पैरवी करते थे जिनसे वह ~सलाह लेते थे और ~जिनको सिज्दा करते थे, बिछाएँगे; वह न जमा' की जाएँगी न दफ़्न होंगी, बल्कि इस ज़मीन पर खाद बनेंगी।
\v 3 और वह सब लोग जो इस बुरे घराने में से बाक़ी बच रहेंगे, उन सब मकानों में जहाँ जहाँ मैं उनको हाँक दूँ, मौत को ज़िन्दगी से ज़्यादा चाहेंगे, रब्ब-उल-अफ़वाज~फ़रमाता है।
\s5
\v 4 और तू उनसे कह दे कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, क्या लोग गिरकर फिर नहीं उठते? क्या कोई फिर कर वापस नहीं आता?
\v 5 फिर यरुशलीम के यह लोग क्यूँ हमेशा की नाफ़रमानी पर अड़े हैं? वह फ़रेब से लिपटे रहते हैं और वापस आने से इन्कार करते हैं।
\s5
\v 6 मैंने कान लगाया और सुना, उनकी बातें ठीक नहीं; किसी ने अपनी बुराई से तौबा करके नहीं कहा कि 'मैंने क्या किया?' हर एक अपनी राह को फिरता है, जिस तरह घोड़ा लड़ाई में सरपट दौड़ता है।
\v 7 हाँ हवाई लक़लक़ अपने मुक़र्ररा वक़्तों को जानता है, और क़ुमरी और अबाबील और कुलंग अपने आने का वक़्त पहचान लेते हैं; लेकिन मेरे लोग ख़ुदावन्द के हुक्मों को नहीं पहचानते।
\s5
\v 8 ~"तुम क्यूँकर कहते हो कि हमतो 'अक़्लमन्द हैं और ख़ुदावन्द की शरी'अत ~हमारे पास है? लेकिन देख, लिखने वालों के बेकार क़लम ने बतालत पैदा की है।
\v 9 'अक़्लमन्द शर्मिन्दा हुए, वह हैरान हुए और पकड़े गए; देख, उन्होंने ख़ुदावन्द के कलाम को रद्द किया; उनमें कैसी समझदारी है?
\v 10 तब मैं उनकी बीवियाँ औरों को, और उनके खेत उनको दूँगा जो उन पर क़ाबिज़ होंगे; क्यूँकि वह सब छोटे से बड़े तक लालची हैं, और नबी से काहिन तक हर एक दग़ाबाज़ है।
\s5
\v 11 और वह मेरी बिन्त-ए-क़ौम के ज़ख़्म को यूँ ही 'सलामती सलामती' कह कर अच्छा करते हैं, हालाँकि सलामती नहीं है।
\v 12 क्या वह अपने मकरूह कामों की वजह से शर्मिन्दा हुए? वह हरगिज़ शर्मिन्दा न हुए, बल्कि वह लजाए तक नहीं। इस लिए वह गिरने वालों के साथ गिरेंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जब उनको सज़ा मिलेगी तो वह पस्त हो जाएँगे।
\v 13 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं उनको बिल्कुल फ़ना करूँगा। न ताक में अंगूर लगेंगे और न अंजीर के दरख़्त में अंजीर, बल्कि पत्ते भी सूख जाएँगे; और जो कुछ मैंने उनको दिया, जाता रहेगा।"
\s5
\v 14 हम क्यूँ चुपचाप बैठे हैं? आओ, इकट्ठे होकर मज़बूत शहरों में भाग चलें और वहाँ चुप हो रहें क्यूँकि ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने हमको चुप कराया और हमको इन्द्रायन का पानी पीने को दिया है; इसलिए कि हम ख़ुदावन्द के गुनाहगार हैं।
\v 15 सलामती का इन्तिज़ार था पर कुछ फ़ायदा न हुआ; और शिफ़ा के वक़्त का, लेकिन देखो दहशत!
\s5
\v 16 "उसके घोड़ों के फ़र्राने की आवाज़ दान से सुनाई देती है, उसके जंगी घोड़ों के हिनहिनाने की आवाज़ से तमाम ज़मीन काँप गई; क्यूँकि वह आ पहुँचे हैं और ज़मीन को और सब कुछ जो उसमें है, और शहर को भी उसके बाशिन्दों के साथ खा जाएँगे।"
\v 17 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "देखो, मैं तुम्हारे बीच साँप और अज़दहे भेजूँगा जिन पर मन्तर कारगर न होगा और वह तुम को काटेंगे।”
\s5
\v 18 काश कि मैं फ़रियाद से तसल्ली पाता; मेरा दिल मुझ में सुस्त हो गया।
\v 19 देख, मेरी बिन्त-ए-क़ौम की ग़म की आवाज़ दूर के मुल्क से आती है,'क्या ख़ुदावन्द सिय्यून में नहीं? क्या उसका बादशाह उसमें नहीं? "उन्होंने क्यूँ अपनी तराशी हुई मूरतों से, और बेगाने मा'बूदों से मुझ को ग़ज़बनाक किया?"
\s5
\v 20 "फ़सल काटने का वक़्त गुज़रा, गर्मी के दिन ख़त्म हुए, और हम ने रिहाई नहीं पाई।"
\v 21 अपनी बिन्त-क़ौम की शिकस्तगी की वजह से मैं शिकस्ताहाल हुआ; मैं कुढ़ता रहता हूँ, हैरत ने मुझे दबा लिया।
\v 22 क्या जिल'आद में रौग़न-ए-बलसान नहीं है? क्या वहाँ कोई हकीम नहीं? मेरी बिन्त-ए-क़ौम क्यूँ शिफ़ा नहीं पाती?
\s5
\c 9
\p
\v 1 काश कि मेरा सिर पानी होता, और मेरी आँखें आँसुओं का चश्मा, ताकि मैं अपनी बिन्त-ए-क़ौम के मक़्तूलों पर रात दिन मातम करता!
\v 2 काश कि मेरे लिए वीराने में मुसाफ़िर ख़ाना होता, ताकि मैं अपनी क़ौम को छोड़ देता और उनमें से निकल जाता! क्यूँकि वह सब बदकार और दग़ाबाज़ जमा'अत हैं।
\v 3 वह अपनी ज़बान को नारास्ती की कमान बनाते हैं, वह मुल्क में ताक़तवर हो गए हैं लेकिन रास्ती के लिए नहीं; क्यूँकि वह बुराई से बुराई तक बढ़ते जाते हैं और मुझ को नहीं जानते, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 4 हर एक अपने पड़ोसी से होशियार रहे, और तुम किसी भाई पर भरोसा न करो, क्यूँकि हर एक भाई दग़ाबाज़ी से दूसरे की जगह ले लेगा, और हर एक पड़ोसी ग़ीबत करता फिरेगा।
\v 5 और हर एक अपने पड़ोसी को फ़रेब देगा और सच न बोलेगा, उन्होंने अपनी ज़बान को झूट बोलना सिखाया है; और बदकारी में जॉफ़िशानी करते हैं।
\v 6 तेरा घर फ़रेब के बीच है; ख़ुदावन्द फ़रमाता है, फ़रेब ही से वह मुझ को जानने से इन्कार करते हैं।
\s5
\v 7 इसलिए रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है:कि "देख, मैं उनको पिघला डालूँगा और उनको आज़माऊँगा; क्यूँकि अपनी बिन्त-ए-क़ौम से और क्या करूँ ?
\v 8 उनकी ज़बान हलाक करने वाला तीर है, उससे दग़ा की बातें निकलती हैं, अपने पड़ोसी को मुँह से तो सलाम कहते हैं पर बातिन में उसकी घात में बैठते हैं।
\v 9 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्या मैं इन बातों के लिए उनको सज़ा न दूँगा? क्या मेरी रूह ऐसी क़ौम से इन्तक़ाम न लेगी?
\s5
\v 10 "मैं पहाड़ों के लिए गिरया-ओ-ज़ारी, और वीराने की चरागाहों के लिए नौहा करूँगा, क्यूँकि वह यहाँ तक जल गई कि कोई उनमे क़दम नहीं रखता चौपायों की आवाज़ सुनाई नहीं देती; हवा के परिन्दे और मवेशी भाग गए, वह चले गए।
\v 11 मैं यरुशलीम को खण्डर और गीदड़ों का घर बना दूँगा, और यहूदाह के शहरों को ऐसा वीरान करूँगा कि कोई बाशिन्दा न रहेगा।"
\v 12 साहिब-ए-हिकमत आदमी कौन है कि इसे समझे? और वह जिससे ख़ुदावन्द के मुँह ने फ़रमाया कि इस बात का 'ऐलान करे।ये सरज़मीन किस लिए वीरान हुई, और वीराने की तरह जल गई कि कोई इसमें क़दम नहीं रखता?
\s5
\v 13 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "इसलिए कि उन्होंने मेरी शरी'अत को जो मैंने उनके आगे रख्खी थी, छोड़ दिया और मेरी आवाज़ को न सुना और उसके मुताबिक़ न चले,
\v 14 बल्कि उन्होंने अपने हट्टी दिलों की और बा'लीम की पैरवी की, जिसकी उनके बाप-दादा ने उनको ता'लीम दी थी।
\s5
\v 15 इसलिए रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं इनको, हाँ, इन लोगों को नागदौना खिलाऊँगा, और इन्द्रायन का पानी पिलाऊँगा।
\v 16 और इनको उन क़ौमों में, जिनको न यह न इनके बाप-दादा जानते थे, तितर-बितर करूँगा और तलवार इनके पीछे भेजकर इनको हलाक कर डालूँगा।"
\s5
\v 17 रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: "सोचो और मातम करने वाली 'औरतों को बुलाओ कि आएँ, और माहिर 'औरतों को बुलवा भेजो कि वह भी आएँ;
\v 18 और जल्दी करें और हमारे लिए नोहा उठायें ताकि हमारी ~आँखों से आँसू जारी हों और हमारी पलकों से आसुवों का सैलाब बह निकले।
\s5
\v 19 ~यक़ीनन सिय्यून से नोहे की आवाज़ सुनाई देती है, 'हम कैसे बर्बाद हुए! हम सख़्त रुस्वा हुए, क्यूँकि हम वतन से आवारा हुए और हमारे घर गिरा दिए गए।' "
\v 20 ऐ 'औरतो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो और तुम्हारे कान उसके मुँह की बात क़ुबूल करें; और तुम अपनी बेटियों को नोहागरी और अपनी पड़ोसनो को मर्सिया-ख़्वानी सिखाओ।
\s5
\v 21 क्यूँकि मौत हमारी खिड़कियों में चढ़ आई है और हमारे क़स्रों में घुस बैठी है, ताकि बाहर बच्चों को और बाज़ारों में जवानों को काट डाले।
\v 22 कह दे, "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: 'आदमियों की लाशें मैदान में खाद की तरह गिरेंगी, और उस मुट्ठी भर की तरह होंगी जो फ़सल काटनेवाले के पीछे रह जाये जिसे कोई जमा नहीं करता |
\s5
\v 23 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: "न साहिब-ए-हिकमत अपनी हिकमत पर, और न क़वी अपनी क़ुव्वत पर, और न मालदार अपने माल पर फ़ख़्र करे;
\v 24 लेकिन जो फ़ख़्र करता है, इस पर फ़ख़्र करे कि वह समझता और मुझे जानता है कि मैं ही ख़ुदावन्द हूँ, जो दुनिया में शफ़क़त-ओ-'अद्ल और रास्तबाज़ी को 'अमल में लाता हूँ; क्यूँकि मेरी ख़ुशी इन्हीं बातों में है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 25 "देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जब मैं सब मख़्तूनों को नामख़्तूनों के तौर पर सज़ा दूँगा;
\v 26 मिस्र और यहूदाह और अदोम और बनी 'अम्मोन और मोआब को, और उन सब को जो गाओदुम दाढ़ी रखते हैं, "जो वीरान के बाशिन्दे हैं; क्यूँकि यह सब क़ौमें नामख़्तून हैं, और इस्राईल का सारा घराना दिल का नामख़्तून है।"
\s5
\c 10
\p
\v 1 ऐ इस्राईल के घराने, वह कलाम जो ख़ुदावन्द तुम से करता है सुनो।
\v 2 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: "तुम दीगर क़ौमों के चाल चलन न सीखो, और आसमानी 'अलामात से हिरासान न हो; अगरचे दीगर क़ौमें उनसे हिरासान होती हैं।
\s5
\v 3 ~क्यूँकि उनके क़ानून बेकार हैं। चुनाँचे कोई जंगल में कुल्हाड़ी से दरख़्त काटता है, जो बढ़ई ~के हाथ का काम है।
\v 4 ~वह उसे चाँदी और सोने से आरास्ता करते हैं, और उसमें हथोड़ों से मेखे़ं लगाकर उसे मज़बूत करते हैं ताकि क़ायम रहे।
\v 5 वह खजूर की तरह मख़रूती सुतून हैं पर बोलते नहीं, उनको उठा कर ले जाना पड़ता है क्यूँकि वह चल नहीं सकते; उनसे न डरो क्यूँकि वह नुक़सान नहीं पहुँचा सकते, और उनसे फ़ायदा भी नहीं पहुँच सकता।"
\s5
\v 6 ऐ ख़ुदावन्द, तेरा कोई नज़ीर नहीं, तू 'अज़ीम है और क़ुदरत की वजह से तेरा नाम बुज़ुर्ग है।
\v 7 ऐ क़ौमों के बादशाह, कौन है जो तुझ से न डरे? यक़ीनन यह तुझ ही को ज़ेबा है; क्यूँकि क़ौमों के सब हकीमों में, और उनकी तमाम ममलुकतों में तेरा जैसा कोई नहीं।
\s5
\v 8 ~मगर वह सब हैवान ख़सलत और बेवक़ूफ़ हैं; बुतों की ता'लीम क्या, वह तो लकड़ी हैं।
\v 9 तरसीस से चाँदी का पीटा हुआ पत्तर, और ऊफ़ाज़ से सोना आता है जो कारीगर की कारीगरी और सुनार की दस्तकारी है; उनका लिबास नीला और अर्ग़वानी है, और ये सब कुछ माहिर उस्तादों की दस्तकारी है।
\v 10 ~लेकिन ख़ुदावन्द सच्चा ख़ुदा है, वह ज़िन्दा ख़ुदा और हमेशा का बादशाह है; उसके क़हर से ~ज़मीन ~थरथराती है और क़ौमों में उसके क़हर की ताब नहीं।
\s5
\v 11 ~तुम उनसे यूँ कहना कि "यह मा'बूद जिन्होंने आसमान और ज़मीन को नहीं बनाया, ज़मीन पर से और आसमान के नीचे से हलाक हो जाएँगे।”
\v 12 उसी ने अपनी क़ुदरत से ज़मीन को बनाया, उसी ने अपनी हिकमत से जहान को क़ायम किया और अपनी 'अक़्ल से आसमान को तान दिया है।
\v 13 उसकी आवाज़ से आसमान में पानी की बहुतायत होती है, और वह ज़मीन की इन्तिहा से बुख़ारात उठाता है। वह बारिश के लिए बिजली चमकाता है और अपने ख़ज़ानों से हवा चलाता है।
\s5
\v 14 हर आदमी हैवान ख़सलत और बे-'इल्म हो गया है; हर एक सुनार अपनी खोदी हुई मूरत से रुस्वा है क्यूँकि उसकी ढाली हुई मूरत बेकार है, उनमें दम नहीं।
\v 15 वह बेकार, फ़े'ल-ए-फ़रेब हैं, सज़ा के वक़्त बर्बाद हो जाएँगी।
\v 16 ~या'क़ूब का हिस्सा उनकी तरह नहीं, क्यूँकि वह सब चीज़ों का ख़ालिक़ है और इस्राईल उसकी मीरास का 'असा है; रब्बउल-अफ़वाज उसका नाम है।
\s5
\v 17 ऐ घिराव में रहने वाली, ज़मीन पर से अपनी गठरी उठा ले!
\v 18 क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: "देख, मैं इस मुल्क के बाशिन्दों को अब की बार जैसे फ़लाख़न में रख कर फेंक दूँगा, और उनको ऐसा तंग करूँगा कि जान लें।"
\s5
\v 19 हाय मेरी ख़स्तगी! मेरा ज़ख़्म दर्दनाक है और मैंने समझ लिया, "यक़ीनन मुझे यह दुख बरदाश्त करना है।"
\v 20 मेरा ख़ेमा बर्बाद किया गया, और मेरी सब तनाबें तोड़ दी गईं, मेरे बच्चे मेरे पास से चले गए, और वह हैं नहीं, अब कोई न रहा जो मेरा ख़ेमा खड़ा करे और मेरे पर्दे लगाए।
\s5
\v 21 क्यूँकि चरवाहे हैवान बन गए और ख़ुदावन्द के तालिब न हुए, इसलिए वह कामयाब न हुए और उनके सब गल्ले तितर-बितर हो गए।
\v 22 देख, उत्तर के मुल्क से बड़े ग़ौग़ा और हंगामे की आवाज़ आती है ताकि यहूदा के शहरों को उजाड़ कर गीदड़ों का घर बनाए।
\s5
\v 23 ऐ ख़ुदावन्द, मैं जानता हूँ कि इन्सान की राह उसके इख़्तियार में नहीं; इन्सान अपने चाल चलन में अपने क़दमों की रहनुमाई नहीं कर सकता।
\v 24 ऐ ख़ुदावन्द, मुझे हिदायत कर लेकिन अन्दाज़े से; अपने क़हर से नहीं, न हो कि तू मुझे हलाक कर दे'।
\v 25 ऐ ख़ुदावन्द, उन क़ौमों पर जो तुझे नहीं जानतीं, और उन घरानों पर जो तेरा नाम नहीं लेते, अपना क़हर उँडेल दे; क्यूँकि वह या'क़ूब को खा गए, वह उसे निगल गए और चट कर गए, और उसके घर को उजाड़ दिया।
\s5
\c 11
\p
\v 1 यह वह कलाम है जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से ~यरमियाह पर नाज़िल हुआ, और उसने फ़रमाया,
\v 2 कि "तुम इस 'अहद की बातें सुनो, और बनी यहूदाह और यरुशलीम के बाशिन्दों से बयान करो;
\s5
\v 3 और तू उनसे कह, ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि ला'नत उस इन्सान पर जो इस 'अहद की बातें नहीं सुनता।
\v 4 जो मैंने तुम्हारे बाप-दादा से उस वक़्त फ़रमाईं, जब मैं उनको मुल्क-ए-मिस्र से लोहे के तनूर से, यह कह कर निकाल लाया कि तुम मेरी आवाज़ की फ़रमाँबरदारी करो, और जो कुछ मैंने तुम को हुक्म दिया है उस पर 'अमल करो, तो तुम मेरे लोग होगे और मैं तुम्हारा ख़ुदा हूँगा;
\v 5 ताकि मैं उस क़सम को जो मैंने तुम्हारे बाप-दादा से खाई कि मैं उनको ऐसा मुल्क दूँगा जिसमें दूध और शहद बहता हो, जैसा कि आज के दिन है, पूरा करूँ।" तब मैंने जवाब में कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, आमीन।"
\s5
\v 6 फिर ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, "यहूदाह के शहरों और यरुशलीम के कूचों में इन सब बातों का 'ऐलान कर और कह: इस 'अहद की बातें सुनो और उन पर 'अमल करो।
\v 7 क्यूँकि मैं तुम्हारे बाप-दादा को जिस दिन से मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, आज तक ताकीद करता और वक़्त पर जताता और कहता रहा कि मेरी सुनो।
\v 8 लेकिन उन्होंने कान न लगाया और शिनवा न हुए, बल्कि हर एक ने अपने बुरे दिल की सख़्ती की पैरवी की; इसलिए मैंने इस 'अहद की सब बातें, जिन पर 'अमल करने का उनको हुक्म दिया था और उन्होंने न किया, उन पर पूरी कीं।”
\s5
\v 9 तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, "यहूदाह के लोगों और यरुशलीम के बाशिन्दों में साज़िश पाई जाती है।
\v 10 वह अपने बाप-दादा की तरफ़ जिन्होंने मेरी बातें सुनने से इन्कार किया, फिर गए और ग़ैर मा'बूदों के पैरौ होकर उनकी 'इबादत की, इस्राईल के घराने और यहूदाह के घराने ने उस 'अहद को जो मैंने उनके बाप-दादा से किया था तोड़ दिया।
\s5
\v 11 इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं उन पर ऐसी बला लाऊँगा जिससे वह भाग न सकेंगे, और वह मुझे पुकारेंगे पर मैं उनकी न सुनूँगा।
\v 12 तब यहूदाह के शहर और यरुशलीम के बाशिन्दे जाएँगे और उन मा'बूदों को जिनके आगे वह ख़ुशबू जलाते हैं पुकारेंगे, लेकिन वह मुसीबत के वक़्त उनको हरगिज़ न बचाएँगे।
\v 13 क्यूँकि ऐ यहूदाह, जितने तेरे शहर हैं उतने ही तेरे मा'बूद हैं, और जितने यरुशलीम के कूचे हैं उतने ही तुम ने उस रुस्वाई की वजह के लिए मज़बहे बनाए, या'नी बा'ल के लिए~ख़ुशबू~~जलाने की क़ुर्बानगाहें।
\s5
\v 14 "इसलिए तू इन लोगों के लिए दु'आ न कर और न इनके लिए अपनी आवाज़ बलन्द कर और न मिन्नत कर, क्यूँकि जब वह अपनी मुसीबत में मुझे पुकारेंगे मैं इनकी न सुनूँगा।
\v 15 मेरे घर में मेरी महबूबा को क्या काम जब कि वह बहुत ज़्यादा शरारत कर चुकी? क्या मन्नत और पाक गोश्त तेरी शरारत को दूर करेंगे? क्या तू इनके ज़रिए' से रिहाई पाएगी? तू शरारत करके ख़ुश होती है।
\v 16 ख़ुदावन्द ने ख़ुशमेवा हरा ज़ैतून, तेरा नाम रखा; उसने बड़े हंगामे की आवाज़ होते होते ही उसे आग लगा दी और उसकी डालियाँ तोड़ दी गईं।
\s5
\v 17 क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज ने जिसने तुझे लगाया, तुझ पर बला का हुक्म किया", उस बदी की वजह से जो इस्राईल के घराने और यहूदाह के घराने ने अपने हक़ में की कि बा'ल के लिए~ख़ुशबू~~जला कर मुझे ग़ज़बनाक किया।"
\s5
\v 18 ख़ुदावन्द ने मुझ पर ज़ाहिर किया और मैं जान गया, तब तूने मुझे उनके काम दिखाए।
\v 19 लेकिन मैं उस पालतू बर्रे ~की तरह था, जिसे ज़बह करने को ले जाते हैं; और मुझे मा'लूम न था कि उन्होंने मेरे ख़िलाफ़ मंसूबे बाँधे हैं कि आओ, दरख़्त को उसके फल के साथ हलाक करें और उसे ज़िन्दों की ज़मीन से काट डालें, ताकि उसके नाम का ज़िक्र तक बाक़ी न रहे।"
\v 20 ऐ रब्बउल-अफ़वाज, जो सदाक़त से 'अदालत करता है, जो दिल-ओ-दिमाग़ को जाँचता है, उनसे इन्तक़ाम लेकर मुझे दिखा क्यूँकि मैंने अपना दावा तुझ ही पर ज़ाहिर किया।
\s5
\v 21 इसलिए ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "अन्तोत के लोगों के बारे में, जो यह कहकर तेरी जान के तलबगार हैं कि ख़ुदावन्द का नाम लेकर नबुव्वत न कर, ताकि तू हमारे हाथ से न मारा जाए।"
\v 22 रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि "देख, मैं उनको सज़ा दूँगा, जवान तलवार से मारे जाएँगे, उनके बेटे-बेटियाँ काल से मरेंगे;
\v 23 और उनमें से कोई बाक़ी न रहेगा। क्यूँकि मैं 'अन्तोत के लोगों पर उनकी सज़ा के साल में आफ़त लाऊँगा।"
\s5
\c 12
\p
\v 1 ऐ ख़ुदावन्द अगर मैं तेरे साथ बहस करूँ तो तू ही सच्चा ठहरेगा; तो भी मैं तुझ से इस अम्र पर बहस करना चाहता हूँ कि शरीर अपने चाल चलन में क्यूँ कामयाब होते हैं? सब दग़ाबाज़ क्यूँ आराम से रहते हैं?
\v 2 ~तूने उनको लगाया और उन्होंने जड़ पकड़ ली, वह बढ़ गए बल्कि कामयाब हुए; तू उनके मुँह से नज़दीक पर उनके दिलों से दूर है।
\s5
\v 3 लेकिन ऐ ख़ुदावन्द, तू मुझे जानता है; तूने मुझे देखा और मेरे दिल को, जो तेरी तरफ़ है आज़माया है; तू उनको भेड़ों की तरह ज़बह होने के लिए खींच कर निकाल और क़त्ल के दिन के लिए उनको मख़्सूस कर।
\v 4 अहल-ए-ज़मीन की शरारत से ज़मीन कब तक मातम करे, और तमाम मुल्क की रोएदगी पज़मुर्दा हो? चरिन्दे और परिन्दे हलाक हो गए, क्यूँकि उन्होंने कहा, "वह हमारा अंजाम न देखेगा।"
\s5
\v 5 'अगर तू प्यादों के साथ दौड़ा और उन्होंने तुझे थका दिया, तो फिर तुझ में यह ताब कहाँ कि सवारों की बराबरी करे? तू सलामती की सरज़मीन में तो बे-ख़ौफ़ है, लेकिन यरदन के जंगल में क्या करेगा?
\v 6 क्यूँकि तेरे भाइयों और तेरे बाप के घराने ने भी तेरे साथ बेवफ़ाई की है; हाँ, उन्होंने बड़ी आवाज़ से तेरे पीछे ललकारा, उन पर भरोसा न कर, अगरचे वह तुझ से मीठी मीठी बातें करें।”
\s5
\v 7 मैंने अपने लोगों को छोड़ दिया, मैंने अपनी मीरास को रद्द कर दिया, मैंने अपने दिल की महबूबा को उसके दुश्मनों के हवाले किया।
\v 8 मेरी मीरास मेरे लिए जंगली शेर बन गई, उसने मेरे ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बलन्द की; इसलिए मुझे उससे नफ़रत है।
\v 9 क्या मेरी मीरास मेरे लिए अबलक़ शिकारी परिन्दा है? क्या शिकारी परिन्दे उसको चारों तरफ़ घेरे हैं? आओ, सब जंगली जानवरों को जमा' करो; उनको लाओ कि वह खा जाएँ।
\s5
\v 10 बहुत से चरवाहों ने मेरे ताकिस्तान को ख़राब किया, उन्होंने मेरे हिस्से को पामाल किया, मेरे दिल पसन्द हिस्से को उजाड़ कर वीरान बना दिया।
\v 11 उन्होंने उसे वीरान किया, वह वीरान होकर मुझसे फ़रयादी है। सारी ज़मीन वीरान हो गई तो भी कोई इसे ख़ातिर में नहीं लाता,
\s5
\v 12 वीराने के सब पहाड़ों पर ग़ारतगर आ गए हैं; क्यूँकि ख़ुदावन्द की तलवार मुल्क के एक सिरे से दूसरे सिरे तक निगल जाती है और किसी बशर को सलामती नहीं।
\v 13 उन्होंने गेहूँ बोया, लेकिन काँटे जमा' किये उन्होंने मशक़्क़त खींची लेकिन फ़ायदा न उठाया; ख़ुदावन्द के बहुत ग़ुस्से की वजह से अपने अंजाम से शर्मिन्दा हो।"
\s5
\v 14 मेरे सब शरीर पड़ोसियों के ख़िलाफ़ ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "देख, जिन्होंने उस मीरास को छुआ जिसका मैंने अपनी क़ौम इस्राईल को वारिस किया, मैं उनको उनकी सरज़मीन से उखाड़ डालूँगा और यहूदाह के घराने को उनके बीच से निकाल फेकूँगा।
\v 15 और इसके बा'द कि मैं उनको उखाड़ डालूँगा, यूँ होगा कि मैं फिर उन पर रहम करूँगा और हर एक को उसकी मीरास में और हर एक को उसकी ज़मीन में फिर लाऊँगा;
\s5
\v 16 और यूँ होगा कि अगर वह दिल लगा कर मेरे लोगों के तरीके़ सीखेंगे, कि मेरे नाम की क़सम खाएँ कि ख़ुदावन्द ज़िन्दा है। जैसा कि उन्होंने मेरे लोगों को सिखाया कि बा'ल की क़सम खाएँ, तो वह मेरे लोगों में शामिल होकर क़ायम हो जाएँगे'।
\v 17 ~लेकिन अगर वह शर्मिंदा न होंगे, तो मैं उस क़ौम को बिल्कुल उखाड़ डालूँगा और हलाक-ओ-बर्बाद कर दूँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है |"
\s5
\c 13
\p
\v 1 ख़ुदावन्द ने ~मुझे यूँ फ़रमाया कि "तू जाकर अपने लिए एक कतानी कमरबन्द ख़रीद ले और अपनी कमर पर बाँध, लेकिन उसे पानी में मत भिगो।"
\v 2 तब मैंने ख़ुदावन्द के कलाम के मुवाफ़िक़ एक कमरबन्द ख़रीद लिया और अपनी कमर पर बाँधा।
\v 3 और ख़ुदावन्द का कलाम दोबारा मुझ पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रमाया,
\v 4 कि "इस कमरबन्द को जो तूने ख़रीदा और जो तेरी कमर पर है, लेकर उठ और फ़रात को जा और वहाँ चट्टान के एक शिगाफ़ में उसे छिपा दे।"
\s5
\v 5 चुनाँचे मैं गया और उसे फ़रात के किनारे छिपा दिया, जैसा ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया था।
\v 6 और बहुत दिनों के बा'द यूँ हुआ कि ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया,कि "उठ, फ़रात की तरफ़ जा और उस कमरबन्द को जिसे तूने मेरे हुक्म से वहाँ छिपा रख्खा है, निकाल ले।'
\v 7 तब मैं फ़रात को गया और खोदा और कमरबन्द को उस जगह से जहाँ मैंने उसे गाड़ दिया था, निकाला और देख, वह कमरबन्द ऐसा ख़राब हो गया था कि किसी काम का न रहा।
\s5
\v 8 तब ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 9 कि "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि इसी तरह मैं यहूदाह के ग़ुरूर और यरुशलीम के बड़े ग़ुरूर को तोड़ दूँगा।
\v 10 यह शरीर लोग जो मेरा कलाम सुनने से इन्कार करते हैं और अपने ही दिल की सख़्ती के पैरौ होते, और ग़ैर मा'बूदों के तालिब होकर उनकी 'इबादत करते और उनको पूजते हैं, वह इस कमरबन्द की तरह होंगे जो किसी काम का नहीं।
\v 11 क्यूँकि जैसा कमरबन्द इन्सान की कमर से लिपटा रहता है वैसा ही, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैंने इस्राईल के तमाम घराने और यहूदाह के तमाम घराने को लिया कि मुझसे लिपटे रहें; ताकि वह मेरे लोग हों और उनकी वजह से मेरा नाम हो, और मेरी सिताइश की जाए और मेरा जलाल हो; लेकिन उन्होंने न सुना।
\s5
\v 12 तब तू उनसे ये बात भी कह दे कि ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि 'हर एक मटके में मय भरी जाएगी।' और वह तुझ से कहेंगे, 'क्या हम नहीं जानते कि हर एक मटके में मय भरी जाएगी?"
\v 13 तब तू उनसे कहना, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देखो, मैं इस मुल्क के सब बाशिन्दों को, हाँ, उन बादशाहों को जो दाऊद के तख़्त पर बैठते हैं, और कहिनों और नबियों और यरुशलीम के सब बाशिन्दों को मस्ती से भर दूँगा।
\v 14 और मैं उनको एक दूसरे पर, यहाँ तक कि बाप को बेटों पर दे मारूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं न शफ़कत करूँगा, न रि'आयत और न रहम करूँगा कि उनको हलाक न करूँ।' "
\s5
\v 15 सुनो और कान लगाओ, ग़ुरूर न करो, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है।
\v 16 ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तम्जीद करो, इससे पहले के वह तारीकी लाए और तुम्हारे पाँव गहरे अन्धेरे में ठोकर खाएँ; और जब तुम रोशनी का इन्तिज़ार करो, तो वह उसे मौत के साये से बदल डाले और उसे सख़्त तारीकी बना दे।
\v 17 लेकिन अगर तुम न सुनोगे, तो मेरी जान तुम्हारे ग़ुरूर की वजह से ख़िल्वतख़ानों में ग़म खाया करेगी; हाँ, मेरी आँखें फूट फूटकर रोएँगी और आँसू बहाएँगी, क्यूँकि ख़ुदावन्द का गल्ला ग़ुलामी में चला गया।
\s5
\v 18 बादशाह और उसकी वालिदा से कह, ''आजिज़ी करो और नीचे बैठो, क्यूँकि तुम्हारी बुज़ुर्गी का ताज तुम्हारे सिर पर से उतार लिया गया है।"
\v 19 दख्खिन के शहर बन्द हो गए और कोई नहीं खोलता, सब बनी यहूदाह ग़ुलाम हो गए; सबको ग़ुलाम करके ले गए।
\s5
\v 20 'अपनी आँखें उठा और उनको जो उत्तर से आते हैं, देख। वह गल्ला जो तुझे दिया गया था, तेरा ख़ुशनुमा गल्ला कहाँ है?
\v 21 जब वह तुझ पर उनको मुक़र्रर करेगा जिनको तूने अपनी हिमायत की ता'लीम दी है, तो तू क्या कहेगी? क्या तू उस 'औरत की तरह जिसे पैदाइश का दर्द हो, दर्द में मुब्तिला न होगी?
\s5
\v 22 और अगर तू अपने दिल में कहे कि यह हादसे मुझ पर क्यूँ गुज़रे? तेरी बदकिरदारी की शिद्दत से तेरा दामन उठाया गया और तेरी एड़ियाँ जबरन बरहना की गईं।
\v 23 हब्शी अपने चमड़े को या चीता अपने दाग़ों को बदल सके, तो तुम भी जो बदी के 'आदी हो नेकी कर सकोगे।
\v 24 इसलिए मैं उनको उस भूसे की तरह जो वीराने की हवा से उड़ता फिरता है, तितर-बितर करूँगा।
\s5
\v 25 ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि मेरी तरफ़ से यही तेरा हिस्सा, तेरा नपा हुआ हिस्सा है; क्यूँकि तूने मुझे फ़रामोश करके बेकारी पर भरोसा किया है।
\v 26 फिर मैं भी तेरा दामन तेरे सामने से उठा दूँगा, ताकि तू बेपर्दा हो।
\v 27 मैंने तेरी बदकारी, तेरा हिनहिनाना, तेरी हरामकारी और तेरे नफ़रतअंगेज़ काम जो तूने पहाड़ों पर और मैदानों में किए, देखे हैं। ऐ यरुशलीम, तुझ पर अफ़सोस! तू अपने आपको कब तक पाक-ओ-साफ़ न करेगी?”
\s5
\c 14
\p
\v 1 ख़ुदावन्द का कलाम जो~ख़ुश्कसाली के बारे में यरमियाह पर नाज़िल हुआ
\v 2 "यहूदाह मातम करता है और उसके फाटकों पर उदासी छाई है, वह मातमी लिबास में ख़ाक पर बैठे हैं; और यरुशलीम का नाला बलन्द हुआ है।
\v 3 उनके हाकिम अपने अदना लोगों को पानी के लिए भेजते हैं; वह चश्मों तक जाते हैं पर पानी नहीं पाते, और ख़ाली घड़े लिए लौट आते हैं, वह शर्मिन्दा-ओ-पशेमान होकर अपने सिर ढाँपते हैं।
\s5
\v 4 चूँकि मुल्क में बारिश न हुई, इसलिए ज़मीन फट गई और किसान सरासीमा हुए, वह अपने सिर छिपाते हैं।
\v 5 चुनाँचे हिरनी मैदान में बच्चा देकर उसे छोड़ देती है क्यूँकि घास नहीं मिलती।
\v 6 और गोरख़र ऊँची जगहों पर खड़े होकर गीदड़ों की तरह हाँफते हैं उनकी आँखे रह जाती हैं, क्यूँकि घास नहीं है।
\s5
\v 7 'अगरचे हमारी बदकिरदारी हम पर गवाही देती है, तो भी ऐ ख़ुदावन्द अपने नाम की ख़ातिर कुछ कर; क्यूँकि हमारी नाफ़रमानी बहुत है, हम तेरे ख़ताकार हैं।
\v 8 ऐ इस्राईल की उम्मीद, मुसीबत के वक़्त उसके बचानेवाले, तू क्यूँ मुल्क में परदेसी की तरह बना, और उस मुसाफ़िर की तरह जो रात काटने के लिए डेरा डाले?
\v 9 तू क्यूँ इन्सान की तरह हक्का-बक्का है, और उस बहादुर की तरह जो रिहाई नहीं दे सकता? बहर-हाल, ऐ ख़ुदावन्द, तू तो हमारे बीच है और हम तेरे नाम से कहलाते हैं; तू हमको मत छोड़।"
\s5
\v 10 ख़ुदावन्द इन लोगों से यूँ फ़रमाता है कि "इन्होंने गुमराही को यूँ दोस्त रख्खा है और अपने पाँव को नहीं रोका, इसलिए ख़ुदावन्द इनको क़ुबूल नहीं करता; अब वह इनकी बदकिरदारी याद करेगा और इनके गुनाह की सज़ा देगा।"
\v 11 और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, "इन लोगों के लिए दु'आ-ए-ख़ैर न कर।
\v 12 क्यूँकि जब यह रोज़ा रख्खें तो मैं इनकी फ़रियाद न सुनूँगा और जब सोख़्तनी क़ुर्बानी और हदिया पेश करें तो क़ुबूल न करूँगा, बल्कि मैं तलवार और काल और वबा से इनको हलाक करूँगा।"
\s5
\v 13 तब मैंने कहा, 'आह, ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, देख, अम्बिया उनसे कहते हैं, "तुम तलवार न देखोगे, और तुम में काल न पड़ेगा; बल्कि मैं इस मक़ाम में तुम को हक़ीक़ी सलामती बख्शूँगा।'
\v 14 तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया कि अम्बिया मेरा नाम लेकर झूटी नबुव्वत करते हैं; मैंने न उनको भेजा और न हुक्म दिया और न उनसे कलाम किया, वह झूठा ख़्वाब और झूठा 'इल्म-ए-ग़ैब और बतालत और अपने दिलों की मक्कारी, नबुव्वत की सूरत में तुम पर ज़ाहिर करते हैं।
\s5
\v 15 इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि वह नबी जिनको मैंने नहीं भेजा, जो मेरा नाम लेकर नबुव्वत करते और कहते हैं कि तलवार और काल इस मुल्क में न आएँगे, वह तलवार और काल ही से हलाक होंगे।
\v 16 और जिन लोगों से वह नबुव्वत करते हैं, तो काल और तलवार की वजह से यरुशलीम के गलियों में फेंक दिए जाएँगे; उनको और उनकी बीवियों और उनके बेटों और उनकी बेटियों को दफ़्न करने वाला कोई न होगा। मैं उनकी बुराई उन पर उँडेल दूँगा।
\s5
\v 17 "और तू उनसे यूँ कहना: 'मेरी आँखें रात दिन आँसू बहाएँ और हरगिज़ न थमें, क्यूँके मेरी कुँवारी दुख़्तर-ए-क़ौम ख़श्तगी और ज़र्ब-ए-शदीद से शिकस्ता है।
\v 18 अगर मैं बाहर मैदान में जाऊँ, तो वहाँ तलवार के मक़्तूल हैं; और अगर मैं शहर में दाख़िल होऊँ, तो वहाँ काल के मारे हैं! हाँ, नबी और काहिन दोनों एक ऐसे मुल्क को जाएँगे, जिसे वह नहीं जानते।' "
\s5
\v 19 क्या तूने यहूदाह को बिल्कुल रद्द कर दिया? क्या तेरी जान को सिय्यून से नफ़रत है? तूने हमको क्यूँ मारा और हमारे लिए शिफ़ा नहीं? सलामती का इन्तिज़ार था, लेकिन कुछ फ़ायदा न हुआ; और शिफ़ा के वक़्त का, लेकिन देखो, दहशत!
\v 20 ऐ ख़ुदावन्द, हम अपनी शरारत और अपने बाप-दादा की बदकिरदारी का इक़रार करते हैं; क्यूँकि हम ने तेरा गुनाह किया है।
\s5
\v 21 अपने नाम की ख़ातिर रद्द न कर, और अपने जलाल के तख़्त की तहक़ीर न कर; याद फ़रमा और हम से रिश्ता-ए-'अहद को न तोड़।
\v 22 क़ौमों के बुतों में कोई है जो मेंह बरसा सके? या आसमान बरिश पर क़ादिर हैं? ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा, क्या वह तू ही नहीं है? इसलिए हम तुझ ही पर उम्मीद रख्खेंगे, क्यूँकि तू ही ने यह सब काम किए हैं।
\s5
\c 15
\p
\v 1 तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया कि "अगरचे ~मूसा और समुएल मेरे सामने खड़े होते तो मेरा दिल इन लोगों की तरफ़ मुतवज्जिह न होता। इनको मेरे सामने से निकाल दे कि चले जाएँ!
\v 2 और जब वह तुझसे कहें कि 'हम किधर जाएँ?' तू उनसे कहना कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि जो मौत के लिए हैं वह मौत की तरफ़ जाएँ, और जो तलवार के लिए हैं वह तलवार की तरफ़, और जो काल के लिए हैं वह काल को, और जो ग़ुलामी के लिए हैं वह ग़ुलामी में।'
\s5
\v 3 और मैं चार चीज़ों' को उन पर मुसल्लत करूँगा," ख़ुदावन्द फ़रमाता है: तलवार को कि क़त्ल करे, और कुत्तों को कि फाड़ डालें, और आसमानी परिन्दों को, और ज़मीन के दरिन्दों को कि निगल जाएँ और हलाक करें।
\v 4 और मैं उनको शाह-ए-यहूदाह मनस्सी-बिन-हिज़क़ियाह की वजह से, उस काम के ज़रिये' जो उसने यरुशलीम में किया, छोड़ दूँगा कि ज़मीन की सब ममलुकतों में धक्के खाते फिरें।
\s5
\v 5 "अब ऐ यरुशलीम, कौन तुझ पर रहम करेगा? कौन तेरा हमदर्द होगा? या कौन तेरी तरफ़ आएगा कि तेरी ख़ैर-ओ- 'आफ़ियत पूछे?
\v 6 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तूने मुझे छोड़ दिया और नाफ़रमान हो गई, इसलिए मैं तुझ पर अपना हाथ बढ़ाऊँगा और तुझे बर्बाद करूँगा, मैं तो तरस खाते खाते तंग आ गया।
\v 7 और मैंने उनको मुल्क के फाटकों पर छाज से फटका, मैंने उनके बच्चे छीन लिए, मैंने अपने लोगों को हलाक किया, क्यूँकि वह अपनी राहों से न फिरे।
\s5
\v 8 उनकी बेवाएँ मेरे आगे समन्दर की रेत से ज़्यादा हो गईं; मैंने दोपहर के वक़्त जवानों की माँ पर ग़ारतगर को मुसल्लत किया; मैंने उस पर अचानक 'अज़ाब-ओ-दहशत को डाल दिया।
\v 9 सात बच्चों की वालिदा निढाल हो गई, उसने जान दे दी; दिन ही को उसका सूरज डूब गया, वह पशेमान और शर्मिंदा हो गई है; ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं उनके बाक़ी लोगों को उनके दुश्मनों के आगे तलवार के हवाले करूँगा।"
\s5
\v 10 ऐ मेरी माँ, मुझ पर अफ़सोस कि मैं तुझ से तमाम दुनिया कि लिए लड़ाका आदमी और झगड़ालू शख़्स पैदा हुआ! मैंने तो न सूद पर क़र्ज़ दिया और न क़र्ज़ लिया, तो भी उनमें से हर एक मुझ पर ला'नत करता है।
\v 11 ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, "यक़ीनन मैं तुझे ताक़त बख़्शूँगा कि तेरी ख़ैर हो; यक़ीनन मैं मुसीबत और तंगी के वक़्त दुश्मनों से तेरे सामने इल्तिजा कराऊँगा।
\v 12 क्या कोई लोहे को या'नी उत्तरी फ़ौलाद और पीतल को तोड़ सकता है?
\s5
\v 13 'तेरे माल और तेरे ख़ज़ानों को मुफ़्त लुटवा दूँगा, और यह~तेरे सब गुनाहों की वजह से तेरी तमाम सरहदों में होगा।
\v 14 और मैं तुझ को तेरे दुश्मनों के साथ ऐसे मुल्क में ले जाऊँगा जिसे तू नहीं जानता, क्यूँकि मेरे ग़ज़ब की आग भड़केगी और तुम को जलाएगी।”
\s5
\v 15 ऐ ख़ुदावन्द, तू जानता है; मुझे याद फ़रमा और मुझ पर शफ़क़त कर, और मेरे सतानेवालों से मेरा इन्तक़ाम ले। तू बर्दाश्त करते-करते मुझे न उठा ले, जान रख कि मैंने तेरी ख़ातिर मलामत उठाई है।
\v 16 तेरा कलाम मिला और मैंने उसे नोश किया, और तेरी बातें मेरे दिल की ख़ुशी और ख़ुर्रमी थीं; क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द, रब्ब-उल-अफ़वाज मैं तेरे नाम से कहलाता हूँ।
\s5
\v 17 न मैं ख़ुशी मनानेवालों की महफ़िल में बैठा और न ख़ुश हुआ,तेरे हाथ की वजह से मैं तन्हा बैठा, क्यूँकि तूने मुझे क़हर-से-लबरेज़ कर दिया है।
\v 18 ~मेरा दर्द क्यूँ हमेशा का और मेरा ज़ख़्म क्यूँ ला-'इलाज है कि सिहत पज़ीर नहीं होता? क्या तू मेरे लिए सरासर धोके की नदी के जैसा~हो गया है, उस पानी की तरह जिसको क़याम नहीं?
\s5
\v 19 इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि अगर तू बाज़ आये तों मैं तुझे फेर लाऊँगा और तू मेरे सामने खड़ा होगा। और अगर तू लतीफ़ को कसीफ़ से जुदा करे, तो तू मेरे मुँह की तरह होगा। वह तेरी तरफ़ फिरें, लेकिन तू उनकी तरफ़ न फिरना।
\v 20 और मैं तुझे इन लोगों के सामने पीतल की मज़बूत दीवार ठहराऊँगा; और यह तुझ से लड़ेंगे लेकिन तुझ पर ग़ालिब न आएँगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है मैं तेरे साथ हूँ कि तेरी हिफ़ाज़त करूँ और तुझे रिहाई दूँ।
\v 21 हाँ, मैं तुझे शरीरों के हाथ से रिहाई दूँगा और ज़ालिमों के पंजे से तुझे छुड़ाऊँगा।"
\s5
\c 16
\p
\v 1 ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ, और उसने फ़रमाया,
\v 2 "तू बीवी न करना, इस जगह तेरे यहाँ बेटे-बेटियाँ न हों।
\v 3 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द उन बेटों और बेटियों के बारे में जो इस जगह पैदा हुए हैं, और उनकी माँओं के बारे में जिन्होंने उनको पैदा किया, और उनके बापों के बारे में जिनसे वह पैदा हुए, यूँ फ़रमाता है:
\v 4 कि वह बुरी मौत मरेंगे, न उन पर कोई मातम करेगा और न वह दफ़्न किए जाएँगे, वह सतह-ए-ज़मीन पर खाद की तरह होंगे; वह तलवार और काल से हलाक होंगे और उनकी लाशें हवा के परिन्दों और ज़मीन के दरिन्दों की ख़ुराक होंगी।
\s5
\v 5 'इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू मातम वाले घर में दाख़िल न हो, और न उन पर रोने के लिए जा, न उन पर मातम कर; क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि मैंने अपनी सलामती और शफ़क़त-ओ-रहमत को इन लोगों पर से उठा लिया है।
\v 6 और इस मुल्क के छोटे बड़े सब मर जाएँगे; न वह दफ़्न किए जाएँगे, न लोग उन पर मातम करेंगे, और न कोई उनके लिए ज़ख़्मी होगा, न सिर मुण्डाएगा;
\s5
\v 7 न लोग मातम करनेवालों को खाना खिलाएँगे, ताकि उनको मुर्दों के बारे में तसल्ली दें; और न उनकी दिलदारी का प्याला देंगे कि वह अपने माँ-बाप के ग़म में पिएँ।
\v 8 और तू ज़ियाफ़त वाले घर में दाख़िल न होना कि उनके साथ बैठकर खाए पिए।
\v 9 क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं इस जगह से तुम्हारे देखते हुए और तुम्हारे ही दिनों में ख़ुशी और शादमानी की आवाज़ दुल्हे और दुल्हन की आवाज़ ख़त्म कराऊँगा।
\s5
\v 10 "और जब तू यह सब बातें इन लोगों पर ज़ाहिर करे और वह तुझ से पूछे कि 'ख़ुदावन्द ने क्यूँ यह~सब बुरी बातें हमारे ख़िलाफ़ कहीं? हमने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के ख़िलाफ़ कौन सी बुराई और कौन सा गुनाह किया है?"
\v 11 तब तू उनसे कहना, 'ख़ुदावन्द फ़रमाता है: इसलिए कि तुम्हारे बाप-दादा ने मुझे छोड़ दिया, और ग़ैरमा'बूदों के तालिब हुए और उनकी 'इबादत और परस्तिश की, और मुझे छोड़ दिया और मेरी शरी'अत पर 'अमल नहीं किया;
\s5
\v 12 और तुमने अपने बाप-दादा से बढ़कर बुराई की; क्यूँकि देखो, तुम में से हर एक अपने बुरे दिन की सख़्ती की पैरवी करता है कि मेरी न सुने,
\v 13 ~इसलिए मैं तुमको इस मुल्क से ख़ारिज करके ऐसे मुल्क में आवारा करूँगा, जिसे न तुम और न तुम्हारे बाप-दादा जानते थे; और वहाँ तुम रात दिन ग़ैर मा'बूदों की 'इबादत करोगे, क्यूँकि मैं तुम पर रहम न करूँगा।"
\s5
\v 14 "लेकिन देख," ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "वह दिन आते हैं कि लोग कभी न कहेंगे कि "ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम जो बनी-इस्राईल को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया";
\v 15 बल्कि ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम जो बनी-इस्राईल को उत्तर की सरज़मीन से और उन सब ममलुकतों से, जहाँ-जहाँ उसने उनको हॉक दिया था, निकाल लाया; और मैं उनको फिर उस मुल्क में लाऊँगा जो मैंने उनके बाप-दादा को दिया था।
\s5
\v 16 आनेवाली सज़ा~'ख़ुदावन्द फ़रमाता है: देख बहुत से माहीगीरों को बुलवाऊँगा और वह उनको शिकार करेंगे, और फिर मैं बहुत से शिकारियों को बुलवाऊँगा और वह हर पहाड़ से और हर टीले से और चट्टानों के शिगाफ़ों से उनको पकड़ निकालेंगे।
\v 17 क्यूँकि मेरी ऑखें उनके सब चाल चलन पर लगी हैं, वह मुझसे छिपी नहीं हैं और उनकी बदकिरदारी मेरी ऑखों से छिपी नहीं।
\v 18 और मैं पहले उनकी बदकिरदारी और ख़ताकारी की दूनी सज़ा दूँगा क्यूँकि उन्होंने मेरी सरज़मीन को अपनी मकरूह चीज़ों की लाशों से नापाक किया और मेरी मीरास को अपनी मकरूहात से भर दिया है।"
\s5
\v 19 यरमियाह की दु'आ~ऐ ख़ुदावन्द, मेरी क़ुव्वत और मेरे गढ़ और मुसीबत के दिन में मेरी पनाहगाह, दुनिया कि किनारों से क़ौमें तेरे पास आकर कहेंगी कि "हक़ीक़त में हमारे बाप-दादा ने महज़ झूट की मीरास हासिल की, या'नी बेकार और बेसूद चीज़ें ।
\v 20 ~क्या इन्सान अपने लिए मा'बूद बनाए जो ख़ुदा नहीं हैं!"
\v 21 ~"इसलिए देख, मैं इस मर्तबा उनको आगाह करूँगा; मैं अपने हाथ और अपना ज़ोर उनको दिखाऊँगा, और वह जानेंगे कि मेरा नाम यहोवाह है।"
\s5
\c 17
\p
\v 1 "यहूदाह का गुनाह लोहे के क़लम~और हीरे की नोक से लिखा गया है; उनके दिल की तख़्ती पर, और उनके मज़बहों के सींगों पर खुदवाया गया है;
\v 2 क्यूँकि उनके बेटे अपने मज़बहों और यसीरतों को याद करते हैं, जो हरे दरख़्तों के पास ऊँचे पहाड़ों पर हैं।
\s5
\v 3 ऐ मेरे पहाड़, जो मैदान में है; मैं तेरा माल और तेरे सब ख़ज़ाने और तेरे ऊँचे मक़ाम जिनको तूने अपनी तमाम सरहदों पर गुनाह के लिए बनाया, लुटाऊँगा।
\v 4 और तू अज़ख़ुद उस मीरास से जो मैंने तुझे दी, अपने क़ुसूर की वजह से हाथ उठाएगा; और मैं उस मुल्क में जिसे तू नहीं जानता, तुझ से तेरे दुश्मनों की ख़िदमत कराऊँगा; क्यूँकि तुमने मेरे क़हर की आग भड़का दी है जो हमेशा तक जलती रहेगी।"
\s5
\v 5 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: "मला'ऊन है वह आदमी जो इन्सान" पर भरोसा करता है, और बशर को अपना बाज़ू जानता है, और जिसका दिल ख़ुदावन्द से फिर जाता है।
\v 6 ~क्यूँकि वह रतमा की तरह, होगा जो वीराने में है और कभी भलाई न देखेगा; बल्कि वीराने की बे पानी जगहों में और ग़ैर-आबाद ज़मीन-ए-शोर में रहेगा।
\s5
\v 7 ~"मुबारक है वह आदमी जो ख़ुदावन्द पर भरोसा करता है, और जिसकी उम्मीदगाह ख़ुदावन्द है।
\v 8 ~क्यूँकि वह उस दरख़्त की तरह होगा जो पानी के पास लगाया जाए, और अपनी जड़ दरिया की तरफ़ फैलाए, और जब गर्मी आए तो उसे कुछ ख़तरा न हो बल्कि उसके पत्ते हरे रहें, और ख़ुश्कसाली का उसे कुछ ख़ौफ़ न हो, और फल लाने से बाज़ न रहे।"
\s5
\v 9 ~दिल सब चीज़ों से ज़्यादा हीलाबाज़ और ला'इलाज है, उसको कौन दरियाफ़्त कर सकता है?
\v 10 "मैं ख़ुदावन्द दिल-ओ-दिमाग़ को जाँचता और आज़माता हूँ, ताकि हर एक आदमी को उसकी चाल के मुवाफ़िक़ और उसके कामों के फल के मुताबिक़ बदला दूँ।"
\v 11 बेइन्साफ़ी से दौलत हासिल करनेवाला, उस तीतर की तरह है जो किसी दूसरे के अण्डों पर बैठे; वह आधी 'उम्र में उसे खो बैठेगा और आख़िर को बेवक़ूफ़ ठहरेगा।
\s5
\v 12 हमारे हैकल का मकान इब्तिदा ही से मुक़र्रर किया हुआ जलाली तख़्त है।
\v 13 ऐ ख़ुदावन्द, इस्राईल की उम्मीदगाह, तुझको छोड़ने वाले सब शर्मिन्दा होंगे; मुझको छोड़ने वाले ख़ाक में मिल जाएँगे, क्यूँकि उन्होंने ख़ुदावन्द को, जो आब-ए-हयात का चश्मा है छोड़ दिया।
\v 14 ऐ ख़ुदावन्द, तू मुझे शिफ़ा बख़्शे तो मैं शिफ़ा पाऊँगा; तू ही बचाए तो बचूँगा, क्यूँकि तू मेरा फ़ख़्र है'।
\s5
\v 15 देख, वह मुझे कहते हैं, "ख़ुदावन्द का कलाम कहाँ है? अब नाज़िल हो।"
\v 16 मैंने तो तेरी पैरवी में गड़रिया बनने से इन्कार नहीं किया, और मुसीबत के दिन की आरज़ू नहीं की; तू ख़ुद जानता है कि जो कुछ मेरे लबों से निकला, तेरे सामने था।
\s5
\v 17 तू मेरे लिए दहशत की वजह न हो, मुसीबत के दिन तू ही मेरी पनाह है।
\v 18 मुझ पर सितम करने वाले शर्मिन्दा हों, लेकिन मुझे शर्मिन्दा न होने दे; वह हिरासान हों, लेकिन मुझे हिरासान न होने दे; मुसीबत का दिन उन पर ला और उनको शिकस्त पर शिकस्त दे!
\s5
\v 19 ख़ुदावन्द ने मुझसे यूँ फ़रमाया है कि: 'जा और उस फाटक पर जिससे 'आम लोग और शाहान-ए-यहूदाह आते जाते हैं, बल्कि यरुशलीम के सब फाटकों पर खड़ा हो
\v 20 और उनसे कह दे, 'ऐ शाहान-ए-यहूदाह, और ऐ सब बनी यहूदाह, और यरुशलीम के सब बाशिन्दों, जो इन फाटकों में से आते जाते हो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो।
\s5
\v 21 ख़ुदावन्द यू फ़रमाता है कि तुम ख़बरदार रहो, और सबत के दिन बोझ न उठाओ और यरुशलीम के फाटकों की राह से अन्दर न लाओ;
\v 22 और तुम सबत के दिन बोझ अपने घरों से उठा कर बाहर न ले जाओ, और किसी तरह का काम न करो; बल्कि सबत के दिन को पाक जानो, जैसा मैंने तुम्हारे बाप-दादा को हुक्म दिया था।
\v 23 लेकिन उन्होंने न सुना, न कान लगाया, बल्कि अपनी गर्दन को सख़्त किया कि सुनने न हों और तरबियत न पाएँ।
\s5
\v 24 "और यूँ होगा कि अगर तुम दिल लगाकर मेरी सुनोगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और सबत के दिन तुम इस शहर के फाटकों के अन्दर बोझ न लाओगे बल्कि सबत के दिन को पाक जानोगे, यहाँ तक कि उसमें कुछ काम न करो;
\v 25 तो इस शहर के फाटकों से दाऊद के जानशीन बादशाह और हाकिम दाख़िल होंगे; वह और उनके हाकिम यहूदाह के लोग और यरुशलीम के बाशिन्दे, रथों और घोड़ों पर सवार होंगे और यह शहर हमेशा तक आबाद रहेगा।
\s5
\v 26 और यहूदाह के शहरों और यरुशलीम के 'इलाक़े और बिनयमीन की सरज़मीन, और मैदान और पहाड़ और दख्खिन से सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और ज़बीहे और हदिये और लुबान लेकर आएँगे, और ख़ुदावन्द के घर में शुक्रगुज़ारी के हदिये लाएँगे।
\v 27 ~लेकिन अगर तुम मेरी न सुनोगे कि सबत के दिन को पाक जानो,और बोझ उठा कर~सबत के दिन यरुशलीम के फाटकों में दाख़िल होने से~बाज़ न रहो; तो मैं उसके फाटकों में आग सुलगाऊँगा, जो उसके क़स्रों को भसम कर देगी और हरगिज़ न बुझेगी।"
\s5
\c 18
\p
\v 1 ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 2 कि "उठ और कुम्हार~के घर जा, और मैं वहाँ अपनी बातें तुझे सुनाऊँगा।"
\v 3 तब मैं कुम्हार के घर गया और क्या देखता हूँ कि वह चाक पर कुछ बना रहा है।
\v 4 उस वक़्त वह मिट्टी का बर्तन जो वह बना रहा था, उसके हाथ में बिगड़ गया; तब उसने उससे जैसा मुनासिब समझा एक दूसरा बर्तन बना लिया।
\s5
\v 5 तब ख़ुदावन्द का यह कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 6 "ऐ इस्राईल के घराने, क्या मैं इस कुम्हार की तरह तुम से सुलूक नहीं कर सकता हूँ? ख़ुदावन्द फ़रमाता है। देखो, जिस तरह मिट्टी कुम्हार के हाथ में है उसी तरह, ऐ इस्राईल के घराने, तुम मेरे हाथ में हो।
\v 7 अगर किसी वक़्त मैं किसी क़ौम और किसी सल्तनत के हक़ में कहूँ कि उसे उखाड़ूँ और तोड़ डालूँ और वीरान करूँ,
\v 8 और अगर वह क़ौम, जिसके हक़ में मैंने ये कहा, अपनी बुराई से बाज़ आए, तो मैं भी उस बुराई से जो मैंने उस पर लाने का इरादा किया था बाज़ आऊँगा।
\s5
\v 9 और फिर, अगर मैं किसी क़ौम और किसी सल्तनत के बारे में कहूँ कि उसे बनाऊँ और लगाऊँ;
\v 10 और वह मेरी नज़र में बुराई करे और मेरी आवाज़ को न सुने, तो मैं भी उस नेकी से बाज़ रहूँगा जो उसके साथ करने को कहा था।
\s5
\v 11 और अब तू जाकर यहूदाह के लोगों और यरुशलीम के बाशिन्दों से कह दे, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देखो, मैं तुम्हारे लिए मुसीबत तजवीज़ करता हूँ और तुम्हारी मुख़ालिफ़त में ~मनसूबा बाँधता हूँ। इसलिए अब तुम में से हर एक अपने बुरे चाल चलन से बाज़ आए, और अपनी राह और अपने 'आमाल को दुरुस्त करे।'
\v 12 लेकिन वह कहेंगे, 'यह तो फ़ुज़ूल है, क्यूँकि हम अपने मन्सूबों पर चलेंगे, और हर एक अपने बुरे दिल की सख़्ती के मुताबिक़ 'अमल करेगा।'
\s5
\v 13 "इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: दरियाफ़्त करो कि क़ौमों में से किसी ने कभी ऐसी बातें सुनी हैं? इस्राईल की कुँवारी ने बहुत हौलनाक काम किया।
\v 14 क्या लुबनान की बर्फ़ जो चट्टान से मैदान में बहती है, कभी बन्द होगी? क्या वह ठंडा बहता पानी जो दूर से आता है, सूख जाएगा?
\s5
\v 15 लेकिन मेरे लोग मुझ को भूल गए, और उन्होंने बेकार के लिए~ख़ुशबू~~जलाया; और उसने उनकी राहों में या'नी~क़दीम राहों में उनको गुमराह किया, ताकि वह पगडंडियों में जाएँ और ऐसी राह में जो बनाई न गई।
\v 16 कि वह अपनी सरज़मीन की वीरानी और हमेशा की हैरानी और सुस्कार का ज़रिया' बनाएँ; हर एक जो उधर से गुज़रे दंग होगा और सिर हिलाएगा।
\v 17 मैं उनको दुश्मन के सामने जैसे पूरबी हवा से तितर-बितर कर दूँगा; उनकी मुसीबत के वक़्त उनको मुँह नहीं, बल्कि पीठ दिखाऊँगा।"
\s5
\v 18 तब उन्होंने कहा, "आओ, हम यरमियाह की मुख़ालिफ़त में मंसूबे बाँधे, क्यूँकि शरी'अत काहिन से जाती न रहेगी, और न मश्वरत मुशीर से और न कलाम नबी से। आओ, हम उसे ज़बान से मारें, और उसकी किसी बात पर तव्ज्जुह न करें।"
\v 19 ऐ ख़ुदावन्द, तू मुझ पर तवज्जुह कर और मुझसे झगड़ने वालों की आवाज़ सुन।
\v 20 क्या नेकी के बदले बदी की जाएगी? क्यूँकि उन्होंने मेरी जान के लिए गढ़ा खोदा। याद कर कि मैं तेरे सामने खड़ा हुआ कि उनकी शफ़ा'अत करूँ और तेरा क़हर उन पर से टला दूँ।
\s5
\v 21 इसलिए उनके बच्चों को काल के हवाले कर, और उनको तलवार की धार के सुपुर्द कर, उनकी बीवियाँ बेऔलाद और बेवा हों, और उनके मर्द मारे जाएँ, उनके जवान मैदान-ए-जंग में तलवार से क़त्ल हों।
\v 22 जब तू अचानक उन पर फ़ौज चढ़ा लाएगा, उनके घरों से मातम की सदा निकले! क्यूँकि उन्होंने मुझे फँसाने को गढ़ा खोदा और मेरे पाँव के लिए फन्दे लगाए।
\v 23 लेकिन ऐ ख़ुदावन्द, तू उनकी सब साज़िशों को जो उन्होंने मेरे क़त्ल पर कीं जानता है। उनकी बदकिरदारी को मु'आफ़ न कर, और उनके गुनाह को अपनी नज़र से दूर न कर; बल्कि वह तेरे सामने पस्त हों, अपने क़हर के वक़्त तू उनसे यूँ ही कर।
\s5
\c 19
\p
\v 1 ख़ुदावन्द ने यूँ फ़रमाया है कि:"तू जाकर~कुम्हार से मिट्टी की सुराही मोल ले, और क़ौम के बुज़ुर्गों और काहिनों के सरदारों को साथ ले,
\v 2 और बिन-हिनूम की वादी में कुम्हारों के फाटक के मदख़ल पर निकल जा, और जो बातें मैं तुझ से कहूँ वहाँ उनका 'ऐलान कर,
\v 3 और कह, 'ऐ यहूदाह के बादशाहों और यरुशलीम के बाशिन्दो, ख़ुदा का कलाम सुनो। रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: देखो, मैं इस जगह पर ऐसी बला नाज़िल करूँगा कि जो कोई उसके बारे में सुने उसके कान भन्ना जाएँगे।
\s5
\v 4 क्यूँकि उन्होंने मुझे छोड़ दिया, और इस जगह को ग़ैरों के लिए ठहराया और इसमें ग़ैरमा'बूदों के लिए~ख़ुशबू~~जलायी~जिनको न वह, न उनके बाप-दादा, न यहूदाह के बादशाह जानते थे; और इस जगह को बेगुनाहों के ख़ून से भर दिया,
\v 5 और बा'ल के लिए ऊँचे मक़ाम बनाए, ताकि अपने बेटों को बा'ल की सोख़्तनी क़ुर्बानियों के लिए आग में जलाएँ जो न मैंने फ़रमाया न उसका ज़िक्र किया, और न कभी यह मेरे ख़याल में आया।
\s5
\v 6 इसलिए देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि यह जगह न तूफ़त कहलाएगी और न बिनहिनूम की वादी, बल्कि वादी-ए-क़त्ल।
\v 7 और इसी जगह मैं यहूदाह और यरुशलीम का मन्सूबा बर्बाद करूँगा और मैं ऐसा करूँगा कि वह अपने दुश्मनों के आगे और उनके हाथों से जो उनकी जान के तलबगार हैं, तलवार से क़त्ल होंगे; और मैं उनकी लाशें हवा के परिन्दों को और ज़मीन के दरिन्दों को खाने को दूँगा,
\v 8 और मैं इस शहर को हैरानी और सुस्कार का ज़रिया' बनाऊँगा; हर एक जो इधर से गुज़रे दंग होगा, और उसकी सब आफ़तों की वजह से सुस्कारेगा।
\v 9 और मैं उनको उनके बेटों और उनकी बेटियों का गोश्त खिलाऊँगा, बल्कि हर एक दूसरे का गोश्त खाएगा, घिराव के वक़्त उस तंगी में जिससे उनके दुश्मन और उनकी जान के तलबगार उनको तंग करेंगे।'
\s5
\v 10 "तब तू उस सुराही को उन लोगों के सामने जो तेरे साथ जाएँगे, तोड़ डालना
\v 11 और उनसे कहना के 'रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि मैं इन लोगों और इस शहर को ऐसा तोडूंगा, जिस तरह कोई कुम्हार के बर्तन को तोड़ डाले जो फिर दुरुस्त नहीं हो सकता; और लोग तूफ़त में दफ़्न करेंगे, यहाँ तक कि दफ़्न करने की जगह न रहेगी।
\s5
\v 12 मैं इस जगह और इसके बाशिन्दों से ऐसा ही करूँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है चुनाँचे मैं इस शहर को तूफ़त की तरह कर दूँगा;
\v 13 और यरुशलीम के घर और यहूदाह के बादशाहों के घर तूफ़त के मक़ाम की तरह नापाक हो जाएँगे; हाँ, वह सब घर जिनकी छतों पर उन्होंने तमाम अजराम-ए-फ़लक के लिए~ख़ुशबू जलायी और ग़ैरमा'बूदों के लिए तपावन~तपाए।' "
\s5
\v 14 तब यरमियाह तूफ़त से, जहाँ ख़ुदावन्द ने उसे नबुव्वत करने को भेजा था वापस आया; और ख़ुदावन्द के घर के सहन में खड़ा होकर तमाम लोगों से कहने लगा,
\v 15 रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: देखो, मैं इस शहर पर और इसकी सब बस्तियों पर वह तमाम बला, जो मैं ने उस पर भेजने को कहा था लाऊँगा: इसलिए कि उन्होंने बहुत बग़ावत की ताकि मेरी बातों को न सुनें |"
\s5
\c 20
\p
\v 1 फ़शहूर-बिन-इम्मेर काहिन ने, जो ख़ुदावन्द के घर में सरदार नाज़िम था, यरमियाह को यह बातें नबुव्वत से कहते सुना।
\v 2 तब फ़शहूर ने यरमियाह नबी को मारा और उसे उस काठ में डाला, जो बिनयमीन के बालाई फाटक में ख़ुदावन्द के घर में था।
\s5
\v 3 और दूसरे दिन यूँ हुआ कि फ़शहूर ने यरमियाह को काठ से निकाला। तब यरमियाह ने उसे कहा, "ख़ुदावन्द ने तेरा नाम फ़शहूर नहीं, बल्कि मजूरमिस्साबीब रखा है।
\v 4 क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं तुझ को तेरे लिए और तेरे सब दोस्तों के लिए दहशत का ज़रिया' बनाऊँगा; और वह अपने दुश्मनों की तलवार से क़त्ल होंगे और तेरी आँखे देखेंगी और मैं तमाम यहूदाह को शाह-ए-बाबुल के हवाले कर दूँगा, और वह उनको ग़ुलाम करके बाबुल में ले जाएगा और उनको तलवार से क़त्ल करेगा।
\s5
\v 5 और मैं इस शहर की सारी दौलत और इसके तमाम महासिल और इसकी सब नफ़ीस चीज़ों को, और यहूदाह के बादशाहों के सब ख़ज़ानों को दे डालूँगा; हाँ, मैं उनको उनके दुश्मनों के हवाले कर दूँगा, जो उनको लूटेंगे और बाबुल को ले जाएँगे।
\v 6 और ऐ फ़शहूर, तू और तेरा सारा घराना ग़ुलामी में जाओगे, और तू बाबुल में पहुँचेगा और वहाँ मरेगा और वहीं दफ़्न किया जाएगा ~तू और तेरे सब दोस्त जिनसे तूने झूटी~नबुव्वत की।"
\s5
\v 7 ऐ ख़ुदावन्द, तूने मुझे तरग़ीब दी है और मैंने मान लिया; तू मुझसे तवाना था, और तू ग़ालिब आया। मैं दिन भर हँसी का ज़रिया' बनता हूँ, हर एक मेरी हँसी उड़ाता है।
\v 8 क्यूँकि जब-जब मैं कलाम करता हूँ, ज़ोर से पुकारता हूँ, मैंने ग़ज़ब और हलाकत का 'ऐलान किया, क्यूँकि ख़ुदावन्द का कलाम दिन भर मेरी मलामत और हँसी का ज़रिया' होता है।
\v 9 और अगर मैं कहूँ कि 'मैं उसका ज़िक्र न करूँगा, न फिर कभी उसके नाम से कलाम करूँगा," तो उसका कलाम मेरे दिल में जलती आग की तरह है जो मेरी हड्डियों में छिपा है, और मैं ज़ब्त करते करते थक गया और मुझसे रहा नहीं जाता।
\s5
\v 10 क्यूँकि मैंने बहुतों की तोहमत सुनी। चारों तरफ़ दहशत है! "उसकी शिकायत करो! वह कहते हैं, हम उसकी शिकायत करेंगे," मेरे सब दोस्त मेरे ठोकर खाने के मुन्तज़िर हैं और कहते हैं, "शायद वह ठोकर खाए", तब हम उस पर ग़ालिब आएँगे और उससे बदला लेंगे।”
\v 11 लेकिन ख़ुदावन्द बड़े बहादुर की तरह मेरी तरफ़ है, इसलिए मुझे सताने वालों ने ठोकर खाई और ग़ालिब न आए, वह बहुत शर्मिन्दा हुए इसलिए कि उन्होंने अपना मक़सद न पाया; उनकी शर्मिन्दगी हमेशा तक रहेगी, कभी फ़रामोश न होगी।
\s5
\v 12 ~इसलिए, ऐ रब्बउल-अफ़वाज, तू जो सादिक़ों को आज़माता और दिल-ओ-दिमाग़ को देखता है, उनसे बदला लेकर मुझे दिखा; इसलिए कि मैंने अपना दा'वा तुझ पर ज़ाहिर किया है।
\v 13 ख़ुदावन्द की मदहसराई करो; ख़ुदावन्द की सिताइश करो! क्यूँकि उसने ग़रीब की जान को बदकिरदारों के हाथ से छुड़ाया है।
\s5
\v 14 ला'नत उस दिन पर जिसमें मैं पैदा हुआ! वह दिन जिस में मेरी माँ ने मुझ को पैदा किया, हरगिज़ मुबारक न हो!
\v 15 ला'नत उस आदमी पर जिसने मेरे बाप को ये कहकर ख़बर दी, "तेरे यहाँ बेटा पैदा हुआ," और उसे बहुत ख़ुश किया।
\s5
\v 16 हाँ, वह आदमी उन शहरों की तरह हो, जिनको ख़ुदावन्द ने शिकस्त दी और अफ़सोस न किया; और वह सुबह को ख़ौफ़नाक शोर सुने और दोपहर के वक़्त बड़ी ललकार,
\v 17 इसलिए कि उसने मुझे रिहम ही में क़त्ल न किया, कि मेरी माँ मेरी क़ब्र होती, और उसका रिहम हमेशा तक भरा रहता।
\v 18 मैं पैदा ही क्यूँ हुआ कि मशक़्क़त और रंज देखूँ, और मेरे दिन रुस्वाई में कटें?
\s5
\c 21
\p
\v 1 ~वह कलाम जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ, जब सिदक़ियाह बादशाह ने फ़शहूर-बिन-मलकियाह और सफ़नियाह-बिन-मासियाह काहिन को उसके पास ये कहने को भेजा,
\v 2 कि "हमारी ख़ातिर ख़ुदावन्द से दरियाफ़्त कर क्यूँकि शाहे-ए-बाबुल नबूकदरज़र हमारे साथ लड़ाई करता है; शायद ख़ुदावन्द हम से अपने तमाम 'अजीब कामों के मुवाफ़िक़ ऐसा सुलूक करे कि वह हमारे पास से चला जाए।"
\s5
\v 3 ~तब यरमियाह ने उनसे कहा, "तुम सिदक़ियाह से यूँ कहना,
\v 4 कि ~'ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं लड़ाई के हथियारों को जो तुम्हारे हाथ में हैं, जिनसे तुम शाह-ए-बाबुल और कसदियों के ख़िलाफ़ जो फ़सील के बाहर तुम्हारा घिराव किए हुए हैं लड़ते हो फेर दूँगा और मैं उनको इस शहर के बीच में इकट्ठे करूँगा;
\v 5 और मैं आप अपने बढ़ाए हुए हाथ से और क़ुव्वत-ए-बाज़ू से तुम्हारे ख़िलाफ़ लड़ूँगा, हाँ, क़हर-ओ-ग़ज़ब से बल्कि ग़ज़बनाक ग़ुस्से से।
\s5
\v 6 और मैं इस शहर के बाशिन्दों को, इन्सान और हैवान दोनों को मारूँगा, वह बड़ी वबा से फ़ना हो जाएँगे।
\v 7 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, फिर मैं शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह को और उसके मुलाज़िमों और 'आम लोगों को, जो इस शहर में वबा और तलवार और काल से बच जाएँगे, शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र और उनके मुख़ालिफ़ों और जानी दुश्मनों के हवाले करूँगा। और वह उनको हलाक करेगा; न उनको छोड़ेगा, न उन पर तरस खाएगा और न रहम करेगा।'
\s5
\v 8 ~'और तू इन लोगों से कहना ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देखो, मैं तुम को हयात की राह और मौत की राह दिखाता हूँ।
\v 9 ~जो कोई इस शहर में रहेगा, वह तलवार और काल और वबा से मरेगा, लेकिन जो निकलकर कसदियों में जो तुम को घेरे हुए हैं, चला जाएगा, वह जिएगा और उसकी जान उसके लिए ग़नीमत होगी।
\v 10 ~क्यूँकि मैंने इस शहर का रुख़ किया है कि इससे बुराई करूँ, और भलाई न करूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; वह शाह-ए-बाबुल के हवाले किया जाएगा और वह उसे आग से जलाएगा।
\s5
\v 11 ~'और शाह-ए-यहूदाह के ख़ान्दान के बारे में ख़ुदावन्द का कलाम सुनो,
\v 12 ~'ऐ दाऊद के घराने! ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तुम सवेरे उठ कर इन्साफ़ करो और मज़लूम को ज़ालिम के हाथ से छुड़ाओ, ऐसा तुम्हारे कामों की बुराई की वजह से मेरा क़हर आग की तरह भड़के, और ऐसा तेज़ हो कि कोई उसे ठंडा न कर सके।'
\s5
\v 13 ~ऐ वादी की बसनेवाली, ऐ मैदान की चट्टान पर रहने वाली, जो कहती है कि कौन हम पर हमला करेगा? या हमारे घरों में कौन आ घुसेगा?' ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ,
\v 14 ~और तुम्हारे कामों के फल के मुवाफ़िक़ मैं तुम को सज़ा दूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और मैं उसके बन में आग लगाऊँगा, जो उसके सारे 'इलाक़े को भसम करेगी।"
\s5
\c 22
\p
\v 1 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि "शाह-ए-यहूदाह के घर को जा, और वहाँ ये कलाम सुना
\v 2 और कह, 'ऐ शाह-ए-यहूदाह जो दाऊद के तख़्त पर बैठा है, ख़ुदावन्द का कलाम सुन, तू और तेरे मुलाज़िम और तेरे लोग जो इन दरवाज़ों से दाख़िल होते हैं।
\v 3 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: 'अदालत और सदाक़त के काम करो, और मज़लूम को ज़ालिम के हाथ से छुड़ाओ; और किसी से बदसुलूकी न करो, और मुसाफ़िर-ओ- यतीम और बेवा पर ज़ुल्म न करो, इस जगह बेगुनाह का ख़ून न बहाओ।
\s5
\v 4 ~क्यूँकि अगर तुम इस पर 'अमल करोगे, तो दाऊद के जानशीन बादशाह रथों पर और घोड़ों पर सवार होकर इस घर के फाटकों से दाख़िल होंगे, बादशाह और उसके मुलाज़िम और उसके लोग।
\v 5 ~लेकिन अगर तुम इन बातों को न सुनोगे, तो ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मुझे अपनी ज़ात की क़सम यह~घर वीरान हो जाएगा
\s5
\v 6 ~क्यूँकि शाह-ए-यहूदाह के घराने के बारे में ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: अगरचे तू मेरे लिए जिल'आद है और लुबनान की चोटी, तो भी मैं यक़ीनन तुझे उजाड़ दूंगा और ग़ैर-आबाद शहर बनाऊँगा।
\v 7 ~और मैं तेरे ख़िलाफ़ ग़ारतगरों को मुक़र्रर करूँगा ,हर एक को उसके हथियारों के साथ, और वह तेरे नफ़ीस देवदारों को काटेंगे और उनको आग में डालेंगे।
\s5
\v 8 ~और बहुत सी क़ौमें इस शहर की तरफ़ से गुज़रेंगी और उनमें से एक दूसरे से कहेगा कि 'ख़ुदावन्द ने इस बड़े शहर से ऐसा क्यूँ किया है?"
\v 9 ~तब वह जवाब देंगे, "इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के 'अहद को छोड़ दिया और ग़ैरमा'बूदों की 'इबादत और परस्तिश की।' "
\s5
\v 10 ~मुर्दे पर न रो, न नौहा करो, मगर उस पर जो चला जाता है ज़ार-ज़ार नाला करो, क्यूँकि वह फिर न आएगा, न अपने वतन को देखेगा।
\s5
\v 11 ~क्यूँकि शाह-ए-यहूदाह सलूम-बिन-यूसियाह के बारे में जो अपने बाप यूसियाह का जानशीन हुआ और इस जगह से चला गया, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि "वह फिर इस तरफ़ न आएगा;
\v 12 ~बल्कि वह उसी जगह मरेगा, जहाँ उसे ग़ुलाम करके ले गए हैं और इस मुल्क को फिर न देखेगा।"
\s5
\v 13 ~"उस पर अफ़सोस, जो अपने घर को बे-इन्साफ़ी से और अपने बालाख़ानों को ज़ुल्म से बनाता है; जो अपने पड़ोसी से बेगार लेता है, और उसकी मज़दूरी उसे नहीं देता;
\v 14 ~जो कहता है, 'मैं अपने लिए बड़ा मकान और हवादार बालाख़ाना बनाऊँगा," और वह अपने लिए इांझरियाँ बनाता है और देवदार की लकड़ी की छत लगाता हैं और उसे शंगर्फ़ी करता है।
\s5
\v 15 ~क्या तू इसीलिए सल्तनत करेगा कि तुझे देवदार के काम का शौक़ है? क्या तेरे बाप ने नहीं खाया-पिया और 'अदालत-ओ-सदाक़त नहीं की जिससे उसका भला हुआ?
\v 16 ~उसने ग़रीब और मुहताज का इन्साफ़ किया, इसी से उसका भला हुआ। क्या यही मेरा इरफ़ान न था? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 17 लेकिन तेरी आँखें और तेरा दिल, सिर्फ़ लालच और बेगुनाह का ख़ून बहाने और ज़ुल्म-ओ-सितम पर लगे हैं।"
\v 18 इसीलिए ख़ुदावन्द यहूयक़ीम शाह-ए-यहूदाह-बिन-यूसियाह के बारे में यूँ फ़रमाता है कि "उस पर 'हाय मेरे भाई! या हाय बहन!' कह कर मातम नहीं करेंगे, उसके लिए 'हाय आक़ा! या हाय मालिक!' कह कर नौहा नहीं करेंगे।
\v 19 ~उसका दफ़्न गधे के जैसा होगा, उसको घसीटकर यरुशलीम के फाटकों के बाहर फेंक देंगे।"
\s5
\v 20 ~"तू लुबनान पर चढ़ जा और चिल्ला, और बसन में अपनी आवाज़ बुलन्द कर; और 'अबारीम पर से फ़रियाद कर, क्यूँकि तेरे सब चाहने वाले मारे गए।
\v 21 ~मैंने तेरी इक़बालमन्दी के दिनों में तुझ से कलाम किया, लेकिन तूने कहा, 'मैं न सुनूँगी।' तेरी जवानी से तेरी यही चाल है कि तू मेरी आवाज़ को नहीं सुनती।
\s5
\v 22 ~एक आँधी तेरे चरवाहों को उड़ा ले जाएगी, और तेरे 'आशिक़ ग़ुलामी में जाएँगे; तब तू अपनी सारी शरारत के लिए शर्मसार और पशेमान होगी।
\v 23 ~ऐ लुबनान की बसनेवाली, जो अपना आशियाना देवदारों पर बनाती है, तू कैसी 'आजिज़ होगी, जब तू ज़च्चा की तरह पैदाइश के दर्द में मुब्तिला होगी ।"
\s5
\v 24 ~'ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मुझे अपनी हयात की क़सम, अगरचे तू ऐ शाह-ए-यहूदाह कूनियाह-बिन-यहूयक़ीम मेरे दहने हाथ की अँगूठी होता, तो भी मैं तुझे निकाल फेंकता;
\v 25 ~और मैं तुझ को तेरे जानी दुश्मनों के जिनसे तू डरता है, या'नी शाह-ए-बाबुल नबुकदरज़र और कसदियों के हवाले करूँगा।
\v 26 ~हाँ, मैं तुझे और तेरी माँ को जिससे तू पैदा हुआ, ग़ैर मुल्क में जो तुम्हारी ज़ादबूम नहीं है, हाँक दूँगा और तुम वहीं मरोगे।
\s5
\v 27 ~जिस मुल्क में वह वापस आना चाहते हैं, हरगिज़ लौटकर न आएँगे।"
\v 28 ~क्या यह शख़्स कूनियाह, नाचीज़ टूटा बर्तन है या ऐसा बर्तन जिसे कोई नहीं पूछता? वह और उसकी औलाद क्यूँ निकाल दिए गए और ऐसे मुल्क में जिलावतन किए गए जिसे वह नहीं जानते?
\s5
\v 29 ~ऐ ज़मीन, ज़मीन, ज़मीन! ख़ुदावन्द का कलाम सुन!
\v 30 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि "इस आदमी को बे-औलाद लिखो, जो अपने दिनों में इक़बालमन्दी का मुँह न देखेगा; क्यूँकि उसकी औलाद में से कभी कोई ऐसा इक़बालमन्द न होगा कि दाऊद के तख़्त पर बैठे और यहूदाह पर सल्तनत करे।"
\s5
\c 23
\p
\v 1 ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है: "उन चरवाहों पर अफ़सोस, जो मेरी चरागाह की भेड़ों को हलाक और तितर-बितर करते हैं!"
\v 2 ~इसलिए ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा उन चरवाहों की मुख़ालिफ़त में जो मेरे लोगों की चरवाही करते हैं, यूँ फ़रमाता है कि "तुमने मेरे गल्ले को तितर-बितर किया, और उनको हाँक कर निकाल दिया और निगहबानी नहीं की; देखो, मैं तुम्हारे कामों की बुराई तुम पर लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 3 ~लेकिन मैं उनको जो मेरे गल्ले से बच रहे हैं, तमाम मुमालिक से जहाँ-जहाँ मैंने~उनको हाँक दिया था जमा' कर लूँगा, और उनको फिर उनके गल्ला ख़ानों में~लाऊँगा,~और वह फैलेंगे और बढ़ेंगे।
\v 4 और मैं उन पर ऐसे चौपान मुक़र्रर करूँगा जो उनको चराएँगे; और वह फिर न डरेंगे, न घबराएँगे, न गुम होंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 5 ~"देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि: मैं दाऊद के लिए एक सादिक़ शाख़ पैदा करूँगा और उसकी बादशाही मुल्क में इक़बालमन्दी और 'अदालत और सदाक़त के साथ होगी।
\v 6 ~उसके दिनों में यहूदाह नजात पाएगा, और इस्राईल सलामती से सुकूनत करेगा; और उसका नाम यह रख्खा जाएगा, 'ख़ुदावन्द हमारी सदाक़त'।
\s5
\v 7 ~'इसी लिए देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि वह फिर न कहेंगे, "ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम, जो बनी-इस्राईल को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया,"
\v 8 ~बल्कि, "ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम, जो इस्राईल के घराने की औलाद को उत्तर की सरज़मीन से, और उन सब ममलुकतों से जहाँ-जहाँ मैंने उनको हाँक दिया था निकाल लाया," और वह अपने मुल्क में बसेंगे।"
\s5
\v 9 ~नबियों के बारे में: मेरा दिल मेरे अन्दर टूट गया, मेरी सब हड्डियाँ थरथराती हैं; ख़ुदावन्द और उसके पाक कलाम की वजह से मैं मतवाला सा हूँ, और उस शख़्स की तरह जो मय से मग़लूब हो।
\v 10 ~यक़ीनन ज़मीन बदकारों से भरी है; ला'नत की वजह से ज़मीन मातम करती है मैदान की चारागाहें सूख गयीं क्यूँकि उनके चाल चलन बुरे और उनका ज़ोर नाहक़ है।
\s5
\v 11 ~कि "नबी और काहिन, दोनों नापाक हैं, हाँ, मैंने अपने घर के अन्दर उनकी शरारत देखी, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 12 ~इसलिए उनकी राह उनके हक़ में ऐसी होगी, जैसे तारीकी में फिसलनी जगह, वह उसमे दौड़ाये जायेंगे और वहां गिरेंगे ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मैं उन पर बला लाऊँगा, या'नी उनकी सज़ा का साल।
\s5
\v 13 और मैंने सामरिया के नबियों में हिमाक़त देखी है: उन्होंने बा'ल के नाम से नबुव्वत की और मेरी क़ौम इस्राईल को गुमराह किया।
\v 14 ~मैंने यरुशलीम के नबियों में भी एक हौलनाक बात देखी: वह ज़िनाकार, झूठ के पैरौ और बदकारों के हामी हैं, यहाँ तक कि कोई अपनी शरारत से बाज़ नहीं आता; वह सब मेरे नज़दीक सदूम की तरह और उसके बाशिन्दे 'अमूरा की तरह हैं।"
\v 15 ~इसीलिए रब्ब-उल-अफ़वाज, नबियों के बारे में यूँ फ़रमाता है कि: "देख, मैं उनको नागदौना खिलाऊँगा और इन्द्रायन का पानी पिलाऊँगा; क्यूँकि यरुशलीम के नबियों ही से तमाम मुल्क में बेदीनी फैली है।"
\s5
\v 16 ~रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: "उन नबियों की बातें न सुनो, जो तुम से नबुव्वत करते हैं, वह तुम को बेकार की ता'लीम देते हैं, वह अपने दिलों के इल्हाम बयान करते हैं, न कि ख़ुदावन्द के मुँह की बातें।
\v 17 ~वह मुझे हक़ीर जाननेवालों से कहते रहते हैं, 'ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है कि: तुम्हारी सलामती होगी;" और हर एक से जो अपने दिल की सख़्ती पर चलता है, कहते हैं कि 'तुझ पर कोई बला न आएगी।' "
\v 18 लेकिन उनमें से कौन ख़ुदावन्द की मजलिस में शामिल हुआ कि उसका कलाम सुने और समझे? किसने उसके कलाम की तरफ़ तवज्जुह की और उस पर कान लगाया?
\s5
\v 19 ~देख, ख़ुदावन्द के ग़ज़बनाक ग़ुस्से का तूफ़ान जारी हुआ है, बल्कि तूफ़ान का बगोला शरीरों के सिर पर टूट पड़ेगा।
\v 20 ~ख़ुदावन्द का ग़ज़ब फिर ख़त्म न होगा, जब तक उसे अंजाम तक न पहुँचाए और उसके दिल के इरादे को पूरा न करे। तुम आने वाले दिनों में उसे बख़ूबी मा'लूम करोगे।
\s5
\v 21 'मैंने इन नबियों को नहीं भेजा, लेकिन ये दौड़ते फिरे; मैंने इनसे कलाम नहीं किया, लेकिन इन्होंने नबुव्वत की।
\v 22 लेकिन अगर वह मेरी मजलिस में शामिल होते, तो मेरी बातें मेरे लोगों को सुनाते; और उनको उनकी बुरी राह से और उनके कामों की बुराई से बाज़ रखते।
\s5
\v 23 ~"ख़ुदावन्द फ़रमाता है: क्या मैं नज़दीक ही का ख़ुदा हूँ और दूर का ख़ुदा नहीं?
\v 24 क्या कोई आदमी पोशीदा जगहों में छिप सकता है कि मैं उसे न देखूँ? ख़ुदावन्द फ़रमाता है। क्या ज़मीन-ओ-आसमान मुझसे मा'मूर नहीं हैं? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 25 ~मैंने सुना जो नबियों ने कहा, जो मेरा नाम लेकर झूटी नबुव्वत करते और कहते हैं कि 'मैंने ख़्वाब देखा, मैने ख़्वाब देखा!'
\v 26 ~कब तक ये नबियों के दिल में रहेगा कि झूटी नबुव्वत करें? हाँ, वह अपने दिल की फ़रेबकारी के नबी हैं।
\v 27 जो गुमान रखते हैं कि अपने ख़्वाबों से, जो उनमें से हर एक अपने पड़ोसी से बयान करता है, मेरे लोगों को मेरा नाम भुला दें, जिस तरह उनके बाप-दादा बा'ल की वजह से मेरा नाम भूल गए थे।
\s5
\v 28 ~जिस नबी के पास ख़्वाब है, वह ख़्वाब बयान करे; और जिसके पास मेरा कलाम है, वह मेरे कलाम को दियानतदारी से सुनाए। गेहूँ को भूसे से क्या निस्बत? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 29 ~क्या मेरा कलाम आग की तरह नहीं है? ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और हथौड़े की तरह जो चट्टान को चकनाचूर कर डालता है?
\v 30 इसलिए देख, मैं उन नबियों का मुख़ालिफ़ हूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जो एक दूसरे से मेरी बातें चुराते हैं।
\s5
\v 31 ~देख, मैं उन नबियों का मुख़ालिफ़ हूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जो अपनी ज़बान को इस्ते'माल करते हैं और कहते हैं कि ख़ुदावन्द फ़रमाता है।'
\v 32 ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, देख, मैं उनका मुख़ालिफ़ हूँ जो झूटे ख़्वाबों को नबुव्वत कहते और बयान करते हैं और अपनी झूटी बातों से और बकवास से मेरे लोगों को गुमराह करते हैं; लेकिन मैंने न उनको भेजा न हुक्म दिया; इसलिए इन लोगों को उनसे हरगिज़ फ़ायदा न होगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 33 ~"और जब यह लोग या नबी या काहिन तुझ से पूछे कि 'ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार-ए-नबुव्वत क्या है?' तब तू उनसे कहना, 'कौन सा बार-ए-नबुव्वत! ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं तुम को फेंक दूँगा।"
\v 34 और नबी और काहिन और लोगों में से जो कोई कहे, 'ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार-ए-नबुव्वत, "मैं उस शख़्स को और उसके घराने को सज़ा दूँगा।
\s5
\v 35 ~चाहिए कि हर एक अपने पड़ोसी और अपने भाई से यूँ कहे कि 'ख़ुदावन्द ने क्या जवाब दिया?' और 'ख़ुदावन्द ने क्या फ़रमाया है?"
\v 36 ~लेकिन ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार-ए-नबुव्वत का ज़िक्र तुम कभी न करना; इसलिए कि हर एक आदमी की अपनी ही बातें उस पर बार होंगी, क्यूँकि तुम ने ज़िन्दा ख़ुदा रब्ब-उलअफ़वाज, हमारे ख़ुदा के कलाम को बिगाड़ डाला है।
\s5
\v 37 ~तू नबी से यूँ कहना कि 'ख़ुदावन्द ने तुझे क्या जवाब दिया?' और 'ख़ुदावन्द ने क्या फ़रमाया?'
\v 38 लेकिन चूँकि तुम कहते हो, 'ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार-ए-नबुवत;" इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: चूँकि तुम कहते हो, ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार-ए-नबुव्वत, और मैंने तुम को कहला भेजा, 'ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार-ए-नबुव्वत न कहो;"
\v 39 इसलिए देखो, मैं तुम को बिल्कुल फ़रामोश कर दूँगा और तुमको और इस शहर को, जो मैंने तुम को और तुम्हारे बाप दादा को दिया, अपनी नज़र से दूर कर दूँगा।
\v 40 ~और मैं तुमको हमेशा की मलामत का निशाना बनाऊँगा, और हमेशा की शर्मिंदगी तुम पर लाऊँगा जो कभी फ़रामोश न होगी।"
\s5
\c 24
\p
\v 1 ~जब शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र शाह-ए- यहूदाह यकूनियाह-बिन-यहूयक़ीम को और यहूदाह के हाकिम को, कारीगरों और लुहारों के साथ यरुशलीम से ग़ुलाम करके बाबुल को ले गया, तो ख़ुदावन्द ने मुझ पर नुमायाँ किया, और क्या देखता हूँ कि ख़ुदावन्द की हैकल के सामने अंजीर की दो टोकरियाँ धरी थीं।
\v 2 ~एक टोकरी में अच्छे से अच्छे अंजीर थे, उनकी तरह जो पहले पकते हैं; और दूसरी टोकरी में बहुत ख़राब अंजीर थे, ऐसे ख़राब कि खाने के क़ाबिल न थे।
\v 3 और ख़ुदावन्द ने मुझसे फ़रमाया, "ऐ यरमियाह! तू क्या देखता है?" और मैंने 'अर्ज़ की, अंजीर अच्छे अंजीर बहुत अच्छे और ख़राब अंजीर बहुत ख़राब, ऐसे ख़राब कि खाने के क़ाबिल नहीं।"
\s5
\v 4 ~फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ कि:
\v 5 "ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: इन अच्छे अंजीरों की तरह मैं यहूदाह के उन ग़ुलामों पर जिनको मैंने इस मक़ाम से कसदियों के मुल्क में भेजा है, करम की नज़र रखूँगा।
\v 6 ~क्यूँकि उन पर मेरी नज़र-ए-'इनायत होगी, और मैं उनको इस मुल्क में वापस लाऊँगा, और मैं उनको बर्बाद नहीं बल्कि आबाद करूँगा; मैं उनको लगाऊँगा और उखाड़ूँगा नहीं।
\v 7 ~और मैं उनको ऐसा दिल दूँगा कि मुझे पहचानें कि मैं ख़ुदावन्द हूँ! और वह मेरे लोग होंगे और मैं उनका ख़ुदा हूँगा, इसलिए कि वह पूरे दिल से मेरी तरफ़ फिरेंगे।
\s5
\v 8 "लेकिन उन ख़राब अंजीरों के बारे में, जो ऐसे ख़राब हैं कि खाने के क़ाबिल नहीं; ख़ुदावन्द यक़ीनन यूँ फ़रमाता है कि इसी तरह मैं शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह को, और उसके हाकिम को, और यरुशलीम के बाक़ी लोगों को, जो इस मुल्क में बच रहे हैं और जो मुल्क-ए-मिस्र में बसते हैं, छोड़ दूँगा।
\v 9 ~हाँ, मैं उनको छोड़ दूँगा कि दुनिया की सब ममलुकतों में धक्के खाते फिरें, ताकि वह हर एक जगह में जहाँ-जहाँ मैं उनको हॉक दूँगा, मलामत और मसल और तान और ला'नत का ज़रिया' हों।
\v 10 और मैं उनमें तलवार और काल और वबा भेजूँगा यहाँ तक कि वह उस मुल्क से जो मैंने उनको और उनके बाप-दादा को दिया, हलाक हो जाएँगे।"
\s5
\c 25
\p
\v 1 ~वह कलाम जो शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम-बिन-यूसियाह के चौथे बरस में, जो शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र का पहला बरस था, यहूदाह के सब लोगों के बारे में यरमियाह पर नाज़िल हुआ;
\v 2 जो यरमियाह नबी ने यहूदाह के सब लोगों और यरुशलीम के सब बाशिन्दों को सुनाया, और कहा,
\s5
\v 3 कि "शाह-ए- यहूदाह यूसियाह-बिन-अमून के तेरहवें बरस से आज तक यह तेईस बरस ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल होता रहा, और मैं तुम को सुनाता और सही वक़्त पर" जताता रहा पर तुम ने न सुना।
\v 4 ~और ख़ुदावन्द ने अपने सब ख़िदमतगुज़ार नबियों को तुम्हारे पास भेजा, उसने उनको~सही वक़्त पर~भेजा, लेकिन तुम ने न सुना और न~कान लगाया;
\s5
\v 5 उन्होंने कहा, 'तुम सब अपनी-अपनी बुरी राह से, और अपने बुरे कामों से बाज़ आओ, और उस मुल्क में जो ख़ुदावन्द ने तुम को और तुम्हारे बाप-दादा को पहले से हमेशा के लिए दिया है, बसो;
\v 6 ~और ग़ैर मा'बूदों की पैरवी न करो कि उनकी 'इबादत-ओ-परस्तिश करो, और अपने हाथों के कामों से मुझे ग़ज़बनाक न करो; और मैं तुम को कुछ नुक़सान न पहुँचाऊँगा।'
\s5
\v 7 ~लेकिन ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तुम ने मेरी न सुनी; ताकि अपने हाथों के कामों से अपने ज़ियान के लिए मुझे ग़ज़बनाक करो।
\v 8 ~'इसलिए रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: चूँकि तुम ने मेरी बात न सुनी,
\v 9 ~देखो, मैं तमाम उत्तरी क़बीलों को और अपने ख़िदमत गुज़ार शाह-ए-बाबुल नाबूकदरज़र को बुला भेजूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और मैं उनको इस मुल्क और इसके बाशिन्दों पर, और उन सब क़ौमों पर जो आस-पास हैं चढ़ा लाऊँगा; और इनको बिल्कुल हलाक-ओ-बर्बाद कर दूँगा और इनको हैरानी और सुस्कार का ज़रिया' बनाऊँगा और हमेशा के लिए वीरान करूँगा।
\s5
\v 10 ~बल्कि मैं इनमें से ख़ुशी-ओ-शादमानी की आवाज़ दूल्हे और दूल्हन की आवाज़, चक्की की आवाज़ और चराग़ की रोशनी ख़त्म कर दूँगा।
\v 11 और यह सारी सरज़मीन वीरान और हैरानी का ज़रिया' हो जाएगी, और यह क़ौमें सत्तर बरस तक शाह-ए-बाबुल की ग़ुलामी करेंगी।
\s5
\v 12 ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जब सत्तर बरस पूरे होंगे, तो मैं शाह-ए-बाबुल को और उस क़ौम को और कसदियों के मुल्क को, उनकी बदकिरदारी की वजह से सज़ा दूँगा; और मैं उसे ऐसा उजाड़ूँगा कि हमेशा तक वीरान रहे।
\v 13 ~और मैं उस मुल्क पर अपनी सब बातें जो मैंने उसके बारे में कहीं, या'नी वह सब जो इस किताब में लिखी हैं, जो यरमियाह ने नबुव्वत करके सब क़ौमों को कह सुनाई, पूरी करूँगा
\v 14 ~कि उनसे, हाँ, उन्हीं से बहुत सी क़ौमें और बड़े-बड़े बादशाह ग़ुलाम के जैसी ख़िदमत लेंगे; तब मैं उनके आ'माल के मुताबिक़ और उनके हाथों के कामों के मुताबिक़ उनको बदला दूँगा।"
\s5
\v 15 चूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने मुझे फ़रमाया, "ग़ज़ब की मय का यह प्याला मेरे हाथ से ले और उन सब क़ौमों को जिनके पास मैं तुझे भेजता हूँ, पिला,
\v 16 ~कि वह पिएँ और लड़खड़ाएँ, और उस तलवार की वजह से जो मैं उनके बीच चलाऊँगा बेहवास हों।'
\s5
\v 17 ~इसलिए मैंने ख़ुदावन्द के हाथ से वह प्याला लिया, और उन सब क़ौमों को जिनके पास ख़ुदावन्द ने मुझे भेजा था पिलाया;
\v 18 ~या'नी यरुशलीम और यहूदाह के शहरों को और उसके बादशाहों और हाकिम को, ताकि वह बर्बाद हों और हैरानी और सुस्कार और ला'नत का ज़रिया' ठहरें, जैसे अब हैं;
\s5
\v 19 ~शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन को, और उसके मुलाज़िमों और उसके हाकिम और उसके सब लोगों को;
\v 20 और सब मिले-जुले लोगों, और 'ऊज़ की ज़मीन के सब बादशाहों और फ़िलिस्तियों की सरज़मीन के सब बादशाहों, और अश्क़लोंन और ग़ज़्ज़ा और अक्रून और अश्दूद के बाक़ी लोगों को;
\v 21 ~अदोम और मोआब और बनी 'अम्मोन को;
\s5
\v 22 और सूर के सब बादशाहों, और सैदा के सब बादशाहों, और समन्दर पार के बहरी मुल्कों के बादशाहों को;
\v 23 ~ददान और तैमा और बूज़, और उन सब को जो गाओदुम दाढ़ी रखते हैं;
\s5
\v 24 ~और 'अरब के सब बादशाहों, और उन मिले-जुले लोगों के सब बादशाहों को जो वीराने में बसते हैं;
\v 25 ~और ज़िमरी के सब बादशाहों और 'ऐलाम के सब बादशाहों और मादै के सब बादशाहों को;
\v 26 ~और उत्तर के सब बादशाहों को जो नज़दीक और जो दूर हैं, एक दूसरे के साथ, और दुनिया की सब सल्तनतों को जो इस ज़मीन पर हैं; और उनके बा'द शेशक" का बादशाह पिएगा।
\s5
\v 27 ~"और तू उनसे कहेगा कि 'इस्राईल का ख़ुदा, रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि तुम पियो और मस्त हो और तय करो, और गिर पड़ो और फिर न उठो, उस तलवार की वजह से जो मैं तुम्हारे बीच भेजूँगा।
\v 28 ~"और यूँ होगा कि अगर वह पीने को तेरे हाथ से प्याला लेने से इन्कार करें, तो उनसे कहना कि रब्ब-उल-अफ्वाज़ यूँ फ़रमाता है कि: यक़ीनन तुम को पीना होगा।
\v 29 ~क्यूँकि~देख, मैं इस शहर पर जो मेरे नाम से कहलाता है आफ़त लाना शुरू' करता हूँ और क्या तुम साफ़ बेसज़ा छूट जाओगे? तुम बेसज़ा न छूटोगे, क्यूँकि मैं ज़मीन के सब बाशिन्दों पर तलवार को तलब करता हूँ, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।"
\s5
\v 30 ~इसलिए तू यह सब बातें उनके ख़िलाफ़ नबुव्वत से बयान कर, और उनसे कह दे कि: 'ख़ुदावन्द बुलन्दी पर से गरजेगा और अपने पाक मकान से ललकारेगा, वह बड़े ज़ोर-ओ-शोर से अपनी चरागाह पर गरजेगा; अंगूर लताड़ने वालों की तरह वह ज़मीन के सब बाशिन्दों को ललकारेगा।
\v 31 ~एक ग़ौग़ा जमीन की शरहदों तक पहुँचा है क्यूँकि ख़ुदावन्द क़ौमों से झगड़ेगा, वह तमाम बशर को 'अदालत में लाएगा, वह शरीरों को तलवार के हवाले करेगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।"
\s5
\v 32 ~'रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: देख, क़ौम से क़ौम तक बला नाज़िल होगी, और ज़मीन की सरहदों से एक सख़्त तूफ़ान खड़ा होगा।
\v 33 ~और ख़ुदावन्द के मक़्तूल उस रोज़ ज़मीन के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पड़े होंगे; उन पर कोई नौहा न करेगा, न वह जमा' किए जाएँगे, न दफ़्न होंगे; वह खाद की~तरह इस ज़मीन पर पड़े रहेंगे।
\s5
\v 34 ~ऐ चरवाहो, वावैला करो और चिल्लाओ; और ऐ गल्ले के सरदारों, तुम ख़ुद राख में लेट जाओ, क्यूँकि तुम्हारे क़त्ल के दिन आ पहुँचे हैं। मैं तुम को चकनाचूर करूँगा, तुम नफ़ीस बर्तन की तरह गिर जाओगे।
\v 35 ~और न चरवाहों को भागने की कोई राह मिलेगी, न गल्ले के सरदारों को बच निकलने की।
\v 36 ~चरवाहों की फ़रियाद की आवाज़ और गल्ले के सरदारों का नौहा है; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनकी चरागाह को बर्बाद किया है,
\s5
\v 37 ~और सलामती के भेड़ ख़ाने ख़ुदावन्द के ग़ज़बनाक ग़ुस्से से बर्बाद हो गए।
\v 38 ~वह जवान शेर की तरह अपनी कमीनगाह से निकला है; यक़ीनन सितमगर के ज़ुल्म से और उसके क़हर की शिद्दत से उनका मुल्क वीरान हो गया।”
\s5
\c 26
\p
\v 1 ~ शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम-बिन-यूसियाह की बादशाही के शुरू' में यह कलाम ख़ुदावन्द की तरफ़ से नाज़िल हुआ,
\v 2 कि "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तू ख़ुदावन्द के घर के सहन में खड़ा हो, और यहूदाह के सब शहरों के लोगों से जो ख़ुदावन्द के घर में सिज्दा करने को आते हैं, वह सब बातें जिनका मैंने तुझे हुक्म दिया है कि उनसे कहे, कह दे; एक लफ़्ज़ भी कम न कर।
\v 3 ~शायद वह सुने और हर एक अपने बुरे चाल चलन से बाज़ आए, और मैं भी उस 'अज़ाब को जो उनकी बद'आमाली की वजह से उन पर लाना चाहता हूँ, बाज़ रखूँ।
\s5
\v 4 और तू उनसे कहना, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: अगर तुम मेरी न सुनोगे कि मेरी शरी'अत पर, जो मैंने तुम्हारे सामने रखी 'अमल करो,
\v 5 ~और मेरे ख़िदमतगुज़ार नबियों की बातें सुनो जिनको मैंने तुम्हारे पास भेजा मैंने उनको सही वक़्त पर" भेजा, लेकिन तुम ने न सुना;
\v 6 तो मैं~इस घर को सैला कि तरह कर डालूँगा, और इस शहर को ज़मीन की सब क़ौमों के नज़दीक ला'नत का ज़रिया' ठहराऊँगा।' "
\s5
\v 7 ~चुनाँचे काहिनों और नबियों और सब लोगों ने यरमियाह को ख़ुदावन्द के घर में यह बातें कहते सुना।
\v 8 और यूँ हुआ कि जब यरमियाह वह सब बातें कह चुका जो ख़ुदावन्द ने उसे हुक्म दिया था कि सब लोगों से कहे, तो काहिनों और नबियों और सब लोगों ने उसे पकड़ा और कहा कि तू यक़ीनन क़त्ल किया जाएगा!
\v 9 ~तू ने क्यूँ ख़ुदावन्द का नाम लेकर नबुव्वत की और कहा, 'यह घर सैला की तरह होगा, और यह शहर वीरान और ग़ैरआबाद होगा'?" और सब लोग ख़ुदावन्द के घर में यरमियाह के पास जमा' हुए।
\s5
\v 10 ~और यहूदाह के हाकिम यह बातें सुनकर बादशाह के घर से ख़ुदावन्द के घर में आए, और ख़ुदावन्द के घर के नये फाटक के मदख़ल पर बैठे।
\v 11 ~और काहिनों और नबियों ने हाकिम से और सब लोगों से मुख़ातिब होकर कहा कि यह शख़्स वाजिब-उल-क़त्ल है क्यूँकि इसने इस शहर के ख़िलाफ़ नबुव्वत की है, जैसा कि तुम ने अपने कानों से सुना।"
\v 12 ~तब यरमियाह ने सब हाकिम और तमाम लोगों से मुख़ातिब होकर कहा कि "ख़ुदावन्द ने मुझे भेजा कि इस घर और इस शहर के ख़िलाफ़ वह सब बातें जो तुम ने सुनी हैं, नबुव्वत से कहूँ।
\s5
\v 13 ~इसलिए अब तुम अपने चाल चलन और अपने आ'माल को दुरूस्त करो, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आवाज़ को सुनो, ताकि ख़ुदावन्द उस 'अज़ाब से जिसका तुम्हारे ख़िलाफ़ 'ऐलान किया है बाज़ रहे।
\v 14 ~और देखो, मैं तो तुम्हारे क़ाबू में हूँ जो कुछ तुम्हारी~नज़र में ख़ूब-ओ-रास्त हो मुझसे करो।
\v 15 ~लेकिन यक़ीन जानो कि अगर तुम मुझे क़त्ल करोगे, तो बेगुनाह का ख़ून अपने आप पर और इस शहर पर और इसके बाशिन्दों पर लाओगे; क्यूँकि हक़ीक़त में ख़ुदावन्द ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है कि तुम्हारे कानों में ये सब बातें कहूँ।"
\s5
\v 16 ~तब हाकिम और सब लोगों ने काहिनों और नबियों से कहा, "यह शख़्स वाजिब-उल-क़त्ल नहीं क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के नाम से हम से कलाम किया।"
\v 17 ~तब मुल्क के चंद बुज़ुर्ग उठे और कुल जमा'अत से मुख़ातिब होकर कहने लगे,
\s5
\v 18 कि "मीकाह मोरश्ती ने शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह के दिनों में नबुव्वत की, और यहूदाह के सब लोगों से मुख़ातिब होकर यूँ कहा, 'रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: सिय्यून खेत की तरह जोता जाएगा और यरुशलीम खण्डर हो जाएगा, और इस घर का पहाड़ जंगल की ऊँची जगहों की तरह होगा।'
\v 19 ~क्या शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह और तमाम यहूदाह ने उसको क़त्ल किया? क्या वह ख़ुदावन्द से न डरा, और ख़ुदावन्द से मुनाजात न की? और ख़ुदावन्द ने उस 'अज़ाब को जिसका उनके ख़िलाफ़ 'ऐलान किया था, बाज़ न रख्खा? तब यूँ हम अपनी जानों पर बड़ी आफ़त लाएँगे।”
\s5
\v 20 ~फिर एक और शख़्स ने ख़ुदावन्द के नाम से नबुवत की, या'नी ऊरियाह-बिनसमा'याह ने जो करयत या'रीम का था; उसने इस शहर और मुल्क के ख़िलाफ़ यरमियाह की सब बातों के मुताबिक़ नबुव्वत की;
\v 21 और जब यहूयक़ीम बादशाह और उसके सब जंगी मर्दों और हाकिम ने उसकी बातें सुनीं,~तो बादशाह ने उसे क़त्ल करना चाहा; लेकिन ऊरियाह यह सुनकर डरा और मिस्र को भाग गया।
\s5
\v 22 और यहूयक़ीम बादशाह ने चंद आदमियों या'नी इलनातन-बिन-'अक्बूर और उसके साथ कुछ और आदमियों को मिस्र में भेजा:
\v 23 और वह ऊरियाह को मिस्र से निकाल लाए, और उसे यहूयक़ीम बादशाह के पास पहुँचाया; और उसने उसको तलवार से क़त्ल किया और उसकी लाश को 'अवाम के क़ब्रिस्तान में फिकवा दिया।
\v 24 लेकिन अख़ीक़ाम-बिन-साफ़न यरमियाह का दस्तगीर था, ताकि वह क़त्ल होने के लिए लोगों के हवाले न किया जाए।
\s5
\c 27
\p
\v 1 शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह-बिन-यूसियाह~की सल्तनत के शुरू' में ख़ुदावन्द की तरफ़ से यह कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ,
\v 2 ~कि ख़ुदावन्द ने मुझे यूँ फ़रमाया कि: "बन्धन और जुए बनाकर अपनी गर्दन पर डाल,
\v 3 ~और उनको शाह-ए-अदोम, शाह-ए-मोआब, शाह-ए-बनी 'अम्मोन, शाह-ए-सूर और शाह-ए-सैदा के पास उन क़ासिदों के हाथ भेज, जो यरुशलीम में शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह के पास आए हैं;
\v 4 और तू उनको उनके आक़ाओं के वास्ते ताकीद कर, 'रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: तुम अपने आक़ाओं से यूँ कहना
\s5
\v 5 ~कि मैंने ज़मीन को और इन्सान-ओ-हैवान को जो इस ज़मीन पर हैं, अपनी बड़ी क़ुदरत और बलन्द बाज़ू से पैदा किया; और उनको जिसे मैंने मुनासिब जाना बख़्शा
\v 6 ~और अब मैंने यह सब ममलुकतें अपने ख़िदमत गुज़ार शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र के क़ब्ज़े में कर दी हैं, और मैदान के जानवर भी उसे दिए, कि उसके काम आएँ।
\v 7 ~और सब क़ौमें उसकी और उसके बेटे और उसके पोते की ख़िदमत करेंगी, जब तक कि उसकी ममलुकत का वक़्त न आए; तब बहुत सी क़ौमें और बड़े-बड़े बादशाह उससे ख़िदमत करवाएँगे।
\s5
\v 8 ~ ख़ुदावन्द फ़रमाता है: जो क़ौम और जो सल्तनत उसकी, या'नी शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र की ख़िदमत न करेगी और अपनी गर्दन शाह-ए-बाबुल के जूए तले न झूकाएगी, उस क़ौम को मैं तलवार और काल और वबा से सज़ा दूँगा, यहाँ तक कि मैं उसके हाथ से उनको हलाक कर डालूँगा।
\s5
\v 9 ~इसलिए तुम अपने नबियों और ग़ैबदानो और ख्व़ाबबीनों और शगूनियों और जादूगरों की न सुनो, जो तुम से कहते हैं कि तुम शाह-ए-बाबुल की ख़िदमतगुज़ारी न करोगे।
\v 10 क्यूँकि वह तुम से झूटी नबुव्वत करते हैं, ताकि तुम को तुम्हारे मुल्क से आवारा करें, और मैं तुम को निकाल दूँ और तुम हलाक हो जाओ।
\v 11 ~लेकिन जो क़ौम अपनी गर्दन शाह-ए-बाबुल के जूए तले रख देगी और उसकी ख़िदमत करेगी, उसको मैं उसकी ममलुकत में रहने दूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और वह उसमें खेती करेगी और उसमें बसेगी।' "
\s5
\v 12 ~इन सब बातों के मुताबिक़ मैंने शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह से कलाम किया और कहा कि "अपनी गर्दन शाह-ए-बाबुल के जूए तले रख कर उसकी और उसकी क़ौम की ख़िदमत करो और ज़िन्दा रहो।
\v 13 ~तू और तेरे लोग तलवार और काल और वबा से क्यूँ मरोगे, जैसा कि ख़ुदावन्द ने उस क़ौम के बारे में फ़रमाया है, जो शाह-ए-बाबुल की ख़िदमत न करेगी?
\s5
\v 14 ~और उन नबियों की बातें न सुनो, जो तुम से कहते हैं कि तुम शाह-ए-बाबुल की ख़िदमत न करोगे; क्यूँकि वह तुम से झूटी नबुव्वत करते हैं।
\v 15 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है मैंने उनकों नहीं भेजा , लेकिन वह मेरा नाम लेकर झूटी नबुव्वत करते हैं; ताकि मैं तुम को निकाल दूँ और तुम उन नबियों के साथ जो तुम से नबुव्वत करते हैं हलाक हो जाओ।"
\s5
\v 16 मैंने काहिनों से और उन सब लोगों से भी मुख़ातिब होकर कहा, "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: अपने नबियों की बातें न सुनो, जो तुम से नबुव्वत करते और कहते हैं कि 'देखो, ख़ुदावन्द के घर के बर्तन अब थोड़ी ही देर में बाबुल से वापस आ जाएँगे," क्यूँकि वह तुम से झूटी नबुव्वत करते हैं।
\v 17 ~उनकी न सुनो, शाह-ए-बाबुल की ख़िदमतगुज़ारी करो और ज़िन्दा रहो; यह शहर क्यूँ वीरान हो?
\v 18 ~लेकिन अगर वह नबी हैं, और ख़ुदावन्द का कलाम उनकी अमानत में है, तो वह रब्ब-उल-अफ़वाज से शफ़ा'अत करें, ताकि वह बर्तन जो ख़ुदावन्द के घर में और शाह-ए- यहूदाह के घर में और यरुशलीम में बाक़ी हैं, बाबुल को न जाएँ।
\s5
\v 19 क्यूँकि सुतूनों के बारे में और बड़े हौज़ और कुर्सियों और बर्तनों के बारे में जो इस शहर में बाक़ी हैं, रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है,
\v 20 ~या'नी जिनको शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र नहीं ले गया, जब वह यहूदाह के बादशाह यकूनियाह-बिन-यहूयक़ीम को यरुशलीम से, और यहूदाह और यरुशलीम के सब शुरफ़ा को ग़ुलाम करके बाबुल को ले गया;
\s5
\v 21 ~हाँ, रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, उन बर्तनों के बारे में जो ख़ुदावन्द के घर में और शाह-ए-यहूदाह के महल में और यरुशलीम में बाक़ी हैं, यूँ फ़रमाता है
\v 22 कि वह बाबुल में पहुँचाए जाएँगे; और उस दिन तक कि मैं उनको याद फ़रमाऊँ वहाँ रहेंगे ,ख़ुदावन्द ~फ़रमाता है उस वक़्त मैं उनको उठा लाऊँगा और फिर इस मकान में रख दूँगा।"
\s5
\c 28
\p
\v 1 और उसी साल शाह-ए-यहूदाह सिद्क़ियाह ~की सल्तनत के शुरू' में, चौथे बरस के पाँचवें महीने में, यूँ हुआ कि जिबा'ऊनी 'अज़्जूर के बेटे हननियाह नबी ने ख़ुदावन्द के घर में काहिनों और सब लोगों के सामने मुझसे मुख़ातिब होकर कहा,
\v 2 ~'रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: मैंने शाह-ए-बाबुल का जुआ तोड़ डाला है,
\s5
\v 3 ~दो ही बरस के अन्दर मैं ख़ुदावन्द के घर के सब बर्तन, जो शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र इस मकान से बाबुल को ले गया, इसी मकान में वापस लाऊँगा।
\v 4 शाह-ए-यहूदाह यकूनियाह-बिन-यहूयक़ीम को और यहूदाह के सब ग़ुलामों को जो बाबुल को गए थे, फिर इसी जगह लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; क्यूँकि मैं शाह-ए-बाबुल के जूए को तोड़ डालूँगा।"
\s5
\v 5 ~तब यरमियाह नबी ने काहिनों और सब लोगों के सामने, जो ख़ुदावन्द के घर में खड़े थे, हननियाह नबी से कहा,
\v 6 ~"हाँ," यरमियाह नबी ने कहा, "आमीन! ख़ुदावन्द ऐसा ही करे, ख़ुदावन्द तेरी बातों को जो तू ने नबुव्वत से कहीं, पूरा करे कि ख़ुदावन्द के घर के बर्तनों को और सब ग़ुलामों को बाबुल से इस मकान में वापस लाए।
\v 7 ~तो भी अब यह बात जो मैं तेरे और सब लोगों के कानों में कहता हूँ सुन;
\s5
\v 8 ~उन नबियों ने जो मुझसे और तुझ से पहले गुज़रे ज़माने में थे, बहुत से मुल्कों और बड़ी-बड़ी सल्तनतों के हक़ में, जंग और बला और वबा की नबुव्वत की है।
\v 9 ~वह नबी जो सलामती की ख़बर देता है, जब उस नबी का कलाम पूरा हो जाए तो मा'लूम होगा कि हक़ीक़त में ख़ुदावन्द ने उसे भेजा है।”
\s5
\v 10 ~तब हननियाह नबी ने यरमियाह नबी की गर्दन पर से जुआ उतारा और उसे तोड़ डाला;
\v 11 ~और हननियाह ने सब लोगों के सामने इस तरह कलाम किया, "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: मैं इसी तरह शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र का जुआ सब क़ौमों की गर्दन पर से, दो ही बरस के अन्दर तोड़ डालूँगा।" तब यरमियाह नबी ने अपनी राह ली।
\s5
\v 12 जब हननियाह नबी यरमियाह नबी की गर्दन पर से जुआ तोड़ चुका था, तो ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 13 ~कि "जा, और हननियाह से कह कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तूने लकड़ी के जुओं को तो तोड़ा, लेकिन उनके बदले में लोहे के जूए बना दिए।
\v 14 ~क्यूँकि रब्ब-उलअफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि मैंने इन सब क़ौमों की गर्दन पर लोहे का जुआ डाल दिया है, ताकि वह शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र की ख़िदमत करें; तब वह उसकी ख़िदमतगुज़ारी करेंगी, और मैंने मैदान के जानवर भी उसे दे दिए हैं।' "
\s5
\v 15 ~तब यरमियाह नबी ने हननियाह नबी से कहा, "ऐ हननियाह, अब सुन; ख़ुदावन्द ने तुझे नहीं भेजा, लेकिन तू इन लोगों को झूटी उम्मीद दिलाता है।
\v 16 इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि "देख, मैं तुझे इस ज़मीन पर से निकाल दूँगा; तू इसी साल मर जाएगा क्यूँकि तूने ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ फ़ितनाअंगेज़ बातें कही हैं।' "
\v 17 ~चुनाँचे उसी साल के सातवें महीने हननियाह नबी मर~गया।
\s5
\c 29
\p
\v 1 अब यह उस ख़त की बातें हैं जो यरमियाह नबी ने यरुशलीम से, बाक़ी बुज़ुर्गों को जो ग़ुलाम हो गए थे, और काहिनों और नबियों और उन सब लोगों को जिनको नबूकदनज़र यरुशलीम से ग़ुलाम करके बाबुल ले गया था
\v 2 (उसके बा'द के यकूनियाह बादशाह और उसकी वालिदा और ख़्वाजासरा और यहूदाह और यरुशलीम के हाकिम और कारीगर और लुहार यरुशलीम से चले गए थे)
\v 3 ~अल'आसा-बिन-साफ़न और जमरियाह-बिन-ख़िलक़ियाह के हाथ (जिनको शाह-ए- यहूदाह सिदक़ियाह ने बाबुल में शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र के पास भेजा) इरसाल किया और उसने कहा,
\s5
\v 4 'रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, उन सब ग़ुलामों से जिनको मैंने यरुशलीम से ग़ुलाम करवा कर बाबुल भेजा है, यूँ फ़रमाता है:
\v 5 ~तुम घर बनाओ और~उन में बसों ,और बाग़ लगाओ और उनके~फल खाओ,
\s5
\v 6 ~बीवियाँ करो ताकि तुम से बेटे-बेटियाँ पैदा हों, और अपने बेटों के लिए बीवियाँ लो और अपनी बेटियाँ शौहरों को दो ताकि उनसे बेटे-बेटियाँ पैदा हों, और तुम वहाँ फलो-फूलो और कम न हो।
\v 7 और उस शहर की ख़ैर मनाओ, जिसमें मैंने तुम को ग़ुलाम करवा कर भेजा है, और उसके लिए ख़ुदावन्द से दु'आ करो; क्यूँकि उसकी सलामती में तुम्हारी सलामती होगी।
\s5
\v 8 क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: वह नबी जो तुम्हारे बीच हैं और तुम्हारे ग़ैबदान तुम को गुमराह न करें, और अपने ख़्वाबबीनों को, जो तुम्हारे ही कहने से ख़्वाब देखते हैं न मानो;
\v 9 क्यूँकि वह मेरा नाम लेकर तुम से झूटी नबुव्वत करते हैं, मैंने उनको नहीं भेजा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 10 "क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: जब बाबुल में सत्तर बरस गुज़र चुकेंगे, तो मैं तुम को याद फ़रमाऊँगा और तुम को इस मकान में वापस लाने से अपने नेक क़ौल को पूरा करूँगा।
\v 11 क्यूँकि मैं तुम्हारे हक़ में अपने ख़यालात को जानता हूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, या'नी सलामती के ख़यालात, बुराई के नहीं; ताकि मैं तुम को नेक अन्जाम की उम्मीद बख़्शूँ।
\s5
\v 12 ~तब तुम मेरा नाम लोगे, और मुझसे दु'आ करोगे और मैं तुम्हारी सुनूँगा।
\v 13 ~और तुम मुझे ढूंडोगे और पाओगे, जब पूरे दिल से मेरे तालिब होगे।
\v 14 ~और मैं तुम को मिल जाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और मैं तुम्हारी ग़ुलामी को ख़त्म कराऊँगा और तुम को उन सब क़ौमों से और सब जगहों से, जिनमें मैंने तुम को हाँक दिया है, जमा' कराऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और मैं तुम को उस जगह में जहाँ से मैंने तुम को ग़ुलाम करवाकर भेजा, वापस लाऊँगा।
\s5
\v 15 ~"क्यूँकि तुम ने कहा कि 'ख़ुदावन्द ने बाबुल में हमारे लिए नबी खड़े किए।'
\v 16 ~इसलिए ख़ुदावन्द उस बादशाह के बारे में जो दाऊद के तख़्त पर बैठा है, और उन सब लोगों के बारे में जो इस शहर में बसते हैं, या'नी तुम्हारे भाइयों के बारे में जो तुम्हारे साथ ग़ुलाम होकर नहीं गए, यूँ फ़रमाता है:
\v 17 ~'रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि देखो, मैं उन पर तलवार और काल और वबा भेजूँगा और उनको ख़राब अंजीरों की तरह बनाऊँगा जो ऐसे ख़राब हैं कि खाने के क़ाबिल नहीं।
\s5
\v 18 ~और मैं तलवार और काल और वबा से उनका पीछा करूँगा, और मैं उनको ज़मीन की सब सल्तनतों के हवाले करूँगा कि धक्के खाते फिरें और सताए जाएँ, और सब क़ौमों के बीच जिनमें मैंने उनको हाँक दिया है, ला'नत और हैरत और सुस्कार और मलामत का ज़रिया' हों;
\v 19 ~इसलिए कि उन्होंने मेरी बातें नहीं सुनी ख़ुदावन्द फ़रमाता है जब मैंने अपने ख़िदमतगुज़ार नबियों को उनके पास भेजा, हाँ, मैंने उनको सही वक़्त पर भेजा, लेकिन तुम ने न सुना, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।"
\s5
\v 20 ~'इसलिए तुम, ऐ ग़ुलामी के सब लोगों, जिनको मैंने यरुशलीम से बाबुल को भेजा, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो:
\v 21 'रब्ब-उल-अफ़वाज इस्राईल का ख़ुदा अखीअब-बिन-क़ुलायाह के बारे में और सिदक़ियाह-बिन-मासियाह के बारे में, जो मेरा नाम लेकर तुम से झूटी नबुव्वत करते हैं, यूँ फ़रमाता है कि: देखो, मैं उनको शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र के हवाले करूँगा, और वह उनको तुम्हारी आँखों के सामने क़त्ल करेगा;
\s5
\v 22 ~और यहूदाह के सब ग़ुलाम जो बाबुल में हैं, उनकी ला'नती मसल बनाकर कहा करेंगे,कि ख़ुदावन्द तुझे सिद्क़ियाह और अख़ीअब की तरह करे, जिनको शाह-ए-बाबुल ने आग पर कबाब किया,"
\v 23 ~क्यूँकि उन्होंने इस्राईल में बेवक़ूफ़ी की और अपने पड़ोसियों की बीवियों से ज़िनाकारी की, और मेरा नाम लेकर झूठी बातें कहीं जिनका मैंने उनको हुक्म नहीं दिया था, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं जानता हूँ और गवाह हूँ।
\s5
\v 24 और नख़लामी समा'याह से कहना,
\v 25 कि "रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है: इसलिए कि तूने यरुशलीम के सब लोगों को, और सफ़नियाह-बिन-मासियाह काहिन और सब काहिनों को अपने नाम से यूँ ख़त लिख भेजे,
\v 26 ~कि 'ख़ुदावन्द ने यहूयदा' काहिन की जगह तुझको काहिन मुक़र्रर किया कि तू ख़ुदावन्द के घर के नाज़िमों में हो, और हर एक मजनून और नबुव्वत के मुद्द'ई को क़ैद करे और काठ में डाले।
\s5
\v 27 तब तूने 'अन्तोती यरमियाह की जो कहता है कि मैं तुम्हारा नबी हूँ, गोशमाली क्यूँ नहीं की?
\v 28 क्यूँकि उसने बाबुल में यह कहला भेजा है कि ये मुद्दत दराज़ है; तुम घर बनाओ और बसो, और बाग़ लगाओ और उनका फल खाओ।' '
\v 29 और सफ़नियाह काहिन ने यह खत पढ़ कर यरमियाह नबी को सुनाया।
\s5
\v 30 ~तब ख़ुदावन्द का यह कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ कि:
\v 31 ~"ग़ुलामी के सबलोगों को कहला भेज, 'ख़ुदावन्द नख़लामी समायाह के बारे में यूँ फ़रमाता है: इसलिए कि समा'याह ने तुम से नबुव्वत की, हालाँकि मैंने उसे नहीं भेजा, और उसने तुम को झूटी उम्मीद दिलाई;
\v 32 ~इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देखो, मैं नख़लामी समा'याह को और उसकी नसल को सज़ा दूँगा; उसका कोई आदमी न होगा जो इन लोगों के बीच बसे, और वह उस नेकी को जो मैं अपने लोगों से करूँगा हरगिज़ न देखेगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ फ़ितनाअंगेज़ बातें कही हैं |
\s5
\c 30
\p
\v 1 ~वह कलाम जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ
\v 2 ~"ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि: यह सब बातें जो मैंने तुझ से कहीं किताब में लिख।
\v 3 क्यूँकि देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि मैं अपनी क़ौम इस्राईल और यहूदाह की ग़ुलामी को ख़त्म कराऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और मैं उनको उस मुल्क में वापस लाऊँगा, जो मैंने उनके बाप-दादा को दिया, और वह उसके मालिक होंगे।"
\s5
\v 4 ~और वह बातें जो ख़ुदावन्द ने इस्राईल और यहूदाह के बारे में फ़रमाईं यह हैं:
\v 5 कि "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: हम ने हड़बड़ी की आवाज़ सुनी, ख़ौफ़ है और सलामती नहीं।
\s5
\v 6 अब पूछो और देखो, क्या कभी किसी मर्द को पैदाइश का दर्द लगा? क्या वजह है कि मैं हर एक मर्द को ज़च्चा की तरह अपने हाथ कमर पर रख्खे देखता हूँ और सबके चेहरे ज़र्द हो गए हैं?
\v 7 ~अफ़सोस! वह दिन बड़ा है, उसकी मिसाल नहीं; वह या'क़ूब की मुसीबत का वक़्त है, लेकिन वह उससे रिहाई पाएगा।
\s5
\v 8 और उस रोज़ यूँ होगा, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, कि मैं उसका जूआ तेरी गर्दन पर से तोड़ूँगा और तेरे बन्धनों को खोल डालूँगा; और बेगाने तुझ से फिर ख़िदमत न कराएँगे।
\v 9 ~लेकिन वह ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की और अपने बादशाह दाऊद की, जिसे मैं उनके लिए खड़ा करूँगा, ख़िदमत करेंगे।
\s5
\v 10 ~"इसलिए ऐ मेरे ख़ादिम या'क़ूब, हिरासान न हो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और ऐ इस्राईल, घबरा न जा; क्यूँकि देख, मैं तुझे दूर~से और तेरी औलाद को ग़ुलामी की सरज़मीन से छुड़ाऊँगा; और या'क़ूब वापस आएगा और आराम-ओ-राहत से रहेगा और कोई उसे न डराएगा।
\v 11 ~क्यूँकि मैं तेरे साथ हूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ताकि तुझे बचाऊँ: अगरचे मैं सब क़ौमों को जिनमें मैंने तुझे तितर-बितर किया तमाम कर डालूँगा तोभी तुझे तमाम न करूँगा; बल्कि तुझे मुनासिब तम्बीह करूँगा और हरगिज़ बे सज़ा न छोड़ूँगा।
\s5
\v 12 ~"क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तेरी ख़स्तगी ला-इलाज और तेरा ज़ख़्म सख़्त दर्दनाक है।
\v 13 तेरा हिमायती कोई नहीं जो तेरी मरहम पट्टी करे तेरे पास कोई शिफ़ा बख़्श दवा नहीं।
\s5
\v 14 ~तेरे सब चाहने वाले तुझे भूल गए, वह तेरे तालिब नहीं हैं, हक़ीक़त में मैंने तुझे दुश्मन की तरह घायल किया और संग दिल की तरह तादीब की; इसलिए कि तेरी बदकिरदारी बढ़ गई और तेरे गुनाह ज़्यादा हो गए।
\v 15 ~तू अपनी ख़स्तगी की वजह से क्यूँ चिल्लाती है, तेरा दर्द ला-इलाज है; इसलिए कि तेरी बदकिरदारी बहुत बढ़~गई और तेरे गुनाह ज़्यादा हो गए, मैंने तुझसे ऐसा किया।
\s5
\v 16 ~तो भी वह सब जो तुझे निगलते हैं, निगले जाएँगे, और तेरे सब दुश्मन ग़ुलामी में जाएँगे, और जो तुझे ग़ारत करते हैं, ख़ुद ग़ारत होंगे; और मैं उन सबको जो तुझे लूटते हैं लुटा दूँगा।
\v 17 क्यूँकि मैं फिर तुझे तंदुरुस्ती और तेरे ज़ख्मों से शिफ़ा बख़्शूँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है क्यूँकि उन्होंने तेरा मरदूदा रख्खा कि यह सिय्यून है, जिसे कोई नहीं पूछता
\s5
\v 18 "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं या'क़ूब के ख़ेमों की ग़ुलामी को ख़त्म~कराऊँगा, और उसके घरों पर रहमत करूँगा; और शहर अपने ही पहाड़ पर बनाया जाएगा और क़स्र अपने ही मक़ाम पर आबाद हो जाएगा।
\v 19 ~और उनमें से शुक्रगुज़ारी और ख़ुशी करने वालों की आवाज़ आएगी; और मैं उनको अफ़ज़ाइश बख़्शूँगा, और वह थोड़े न होंगे; मैं उनको शौकत बख़्शूँगा और वह हक़ीर न होंगे।
\s5
\v 20 और उनकी औलाद ऐसी होगी जैसी पहले थी, और उनकी जमा'अत मेरे हुज़ूर में क़ायम होगी, और मैं उन सबको जो उन पर ज़ुल्म करें सज़ा दूँगा।
\v 21 ~और उनका हाकिम उन्हीं में से होगा, और उनका फ़रमॉरवाँ उन्हीं के बीच से पैदा होगा और मैं उसे क़ुर्बत बख़्शूँगा, और वह मेरे नज़दीक आएगा; क्यूँकि कौन है जिसने ये जुर'अत की हो कि मेरे पास आए? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 22 ~और तुम मेरे लोग होगे,और मैं तुम्हारा ख़ुदा हूँगा।”
\s5
\v 23 ~देख, ख़ुदावन्द के ग़ज़बनाक ग़ुस्से की आँधी चलती है! यह तेज़ तूफ़ान शरीरों के सिर पर टूट पड़ेगा।
\v 24 जब तक यह सब कुछ न हो ले, और ख़ुदावन्द अपने दिल के मक़सद पूरे न कर ले, उसका ग़ज़बनाक ग़ुस्सा ख़त्म न होगा; तुम आख़िरी दिनों में इसे समझोगे।
\s5
\c 31
\p
\v 1 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "मैं उस वक़्त इस्राईल के सब घरानों का ख़ुदा हूँगा और वह मेरे लोग होंगे।"
\v 2 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: "इस्राईल में से जो लोग तलवार से बचे, जब वह राहत की तलाश में गए तो वीराने में मक़बूल ठहरे।
\v 3 ~"ख़ुदावन्द फहले से मुझ पर ज़ाहिर हुआ और कहा कि मैंने तुझ से हमेशा की मुहब्बत रख्खी; इसीलिए मैंने अपनी शफ़क़त तुझ पर बढ़ाई।
\s5
\v 4 ~ऐ इस्राईल की कुँवारी! मैं तुझे फिर आबाद करूँगा और तू आबाद हो जाएगी; तू फिर दफ़ उठाकर आरास्ता होगी, और ख़ुशी करने वालों के नाच में शामिल होने को निकलेगी।
\v 5 ~तू फिर सामरिया के पहाड़ों पर ताकिस्तान लगाएगी,बाग़ लगाने वाले लगायेंगे और उसका फल खाएँगे।
\v 6 ~क्यूँकि एक दिन आएगा कि इफ़्राईम की पहाड़ियों पर निगहबान पुकारेंगे कि 'उठो, हम सिय्यून पर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने चलें।' "
\s5
\v 7 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: "या'क़ूब के लिए ख़ुशी से गाओ और क़ौमों के सरताज के लिए ललकारो; 'ऐलान करो, हम्द करो और कहो, 'ऐ ख़ुदावन्द, अपने लोगों को, या'नी इस्राईल के बक़िये को बचा।'
\s5
\v 8 ~देखो, मैं उत्तरी मुल्क से उनको लाऊँगा, और ज़मीन की सरहदों से उनको जमा' करूँगा, और उनमें अंधे, और लंगड़े, और हामिला और ज़च्चा सब होंगे; उनकी बड़ी जमा'अत यहाँ वापस आएगी।
\v 9 ~वह रोते और मुनाजात करते हुए आएँगे, मैं उनकी रहबरी करूँगा; मैं उनको पानी की नदियों की तरफ़ राह-ए-रास्त पर चलाऊँगा, जिसमें वह ठोकर न खाएँगे; क्यूँकि मैं इस्राईल का बाप हूँ और इफ़्राईम मेरा पहलौठा है।
\s5
\v 10 "ऐ क़ौमों, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो, और दूर के जज़ीरों में 'ऐलान करो; और कहो, 'जिसने इस्राईल को तितर-बितर किया, वही उसे जमा' करेगा और उसकी ऐसी निगहबानी करेगा, जैसी गड़रिया अपने गल्ले की,"
\v 11 क्यूँकि ख़ुदावन्द ने या'क़ूब का फ़िदिया दिया है, और उसे उसके हाथ से जो उससे ताक़तवर था रिहाई बख़्शी है।
\s5
\v 12 ~तब वह आएँगे और सिय्यून की चोटी पर गाएँगे, और ख़ुदावन्द की ने'मतों या'नी अनाज और मय और तेल, और गाय-बैल के और भेड़-बकरी के बच्चों की तरफ़ इकट्ठे रवाँ होंगे; और उनकी जान सैराब बाग़ की तरह होगी, और वह फिर कभी ग़मज़दा न होंगे।
\s5
\v 13 ~उस वक़्त कुवाँरियाँ और पीर-ओ-जवान ख़ुशी से रक़्स करेंगे, क्यूँकि मैं उनके ग़म को ख़ुशी से बदल दूँगा और उनको तसल्ली देकर ग़म के बा'द ख़ुश करूँगा।
\v 14 ~मैं काहिनों की जान को चिकनाई से सेर करूँगा, और मेरे लोग मेरी ने'मतों से आसूदा होंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।"
\s5
\v 15 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: "रामा में एक आवाज़ सुनाई दी, नौहा और ज़ार-ज़ार रोना; राख़िल अपने बच्चों को रो रही है, वह अपने बच्चों के बारे में तसल्ली पज़ीर नहीं होती, क्यूँकि वह नहीं हैं।"
\s5
\v 16 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: "अपनी रोने की आवाज़ को रोक, और अपनी आँखों को आँसुओं से बाज़ रख; क्यूँकि तेरी मेहनत के लिए बदला है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और वह दुश्मन के मुल्क से वापस आएँगे।
\v 17 ~और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तेरी 'आक़बत के बारे में उम्मीद है क्यूँकि तेरे बच्चे फिर अपनी हदों में दाख़िल होंगे।
\s5
\v 18 ~हक़ीक़त में मैंने इफ़्राईम को अपने आप पर यूँ मातम करते सुना, 'तू ने मुझे तम्बीह की, और मैंने उस बछड़े की तरह जो सधाया नहीं गया तम्बीह पाई। तू मुझे फेर तो मैं फिरूँगा, क्यूँकि तू ही मेरा ख़ुदावन्द ख़ुदा है।
\v 19 ~क्यूँकि फिरने के बा'द मैंने तौबा की, और तरबियत पाने के बा'द मैंने अपनी रान पर हाथ मारा; मैं शर्मिन्दा बल्कि परेशान ख़ातिर हुआ, इसलिए कि मैंने अपनी जवानी की मलामत उठाई थी।'
\v 20 ~क्या इफ़्राईम मेरा प्यारा बेटा है? क्या वह पसन्दीदा फ़र्ज़न्द है? क्यूँकि जब-जब मैं उसके ख़िलाफ़ कुछ कहता हूँ, तो उसे जी जान से याद करता हूँ। इसलिए मेरा दिल उसके लिए बेताब है; मैं यक़ीनन उस पर रहमत करूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 21 ~"अपने लिए सुतून खड़े कर, अपने लिए खम्बे बना; उस शाहराह पर दिल लगा, हाँ, उसी राह से जिससे तू गई थी वापस आ। ऐ इस्राईल की ~कुँवारी, अपने इन शहरों में वापस आ।
\v 22 ~ऐ नाफ़रमान बेटी, तू कब तक आवारा फिरेगी? क्यूँकि ख़ुदावन्द ने ज़मीन पर एक नई चीज़ पैदा की है, कि 'औरत मर्द की हिमायत करेगी।"
\s5
\v 23 रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: "जब मैं उनके ग़ुलामों को वापस लाऊँगा, तो वह यहूदाह के मुल्क और उसके शहरों में फिर यूँ कहेंगे, "ऐ सदाक़त के घर, ऐ कोह-ए-मुक़द्दस, ख़ुदावन्द तुझे बरकत बख़्शे।"
\v 24 ~और यहूदाह और उसके सब शहर उसमें इकट्ठे आराम करेंगे, किसान और वह जो गल्ले लिए फिरते हैं।
\v 25 क्यूँकि मैंने थकी जान को आसूदा, और हर ग़मगीन रूह को सेर किया है।"
\v 26 अब मैंने बेदार होकर निगाह की, और मेरी नींद मेरे लिए मीठी थी।
\s5
\v 27 ~"देखो, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जब मैं इस्राईल के घर में और यहूदाह के घर में इन्सान का बीज और हैवान का बीज बोऊँगा।
\v 28 ~और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जिस तरह मैंने उनकी घात में बैठ कर उनको उखाड़ा और ढाया और गिराया और बर्बाद किया और दुख दिया; उसी तरह मैं निगहबानी करके उनको बनाऊँगा और लगाऊँगा।
\s5
\v 29 ~उन दिनों में फिर यूँ न कहेंगे, 'बाप-दादा ने कच्चे अंगूर खाए और औलाद के दाँत खट्टे हो गए।
\v 30 ~क्यूँकि हर एक अपनी ही बदकिरदारी की वजह से मरेगा; हर एक जो कच्चे अँगूर खाता है, उसी के दाँत खट्टे होंगे।
\s5
\v 31 ~"देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जब मैं इस्राईल के घराने और यहूदाह के घराने के साथ नया 'अहद बाँधूँगा;
\v 32 ~उस 'अहद के मुताबिक़ नहीं, जो मैंने उनके बाप-दादा से किया जब मैंने उनकी दस्तगीरी की, ताकि उनको मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाऊँ; और उन्होंने मेरे उस 'अहद को तोड़ा अगरचे मैं उनका मालिक था, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 33 ~बल्कि यह वह 'अहद है जो मैं उन दिनों के बा'द इस्राईल के घराने से बाँधूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मैं अपनी शरी'अत उनके बातिन में रख्खूँगा, और उनके दिल पर उसे लिखूँगा; और मैं उनका ख़ुदा हूँगा, और वह मेरे लोग होंगे;
\v 34 ~और वह फिर अपने-अपने पड़ोसी और अपने-अपने भाई को यह कह कर ता'लीम नहीं देंगे कि ख़ुदावन्द को पहचानो, क्यूँकि छोटे से बड़े तक वह सब मुझे जानेंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; इसलिए कि मैं उनकी बदकिरदारी को बख़्श दूँगा और उनके गुनाह को याद न करूँगा।"
\s5
\v 35 ~ख़ुदावन्द जिसने दिन की रोशनी के लिए सूरज को मुक़र्रर किया, और जिसने रात की रोशनी के लिए चाँद और सितारों का निज़ाम क़ायम किया, जो समन्दर को मौजज़न करता है जिससे उसकी लहरें शोर करतीं है यूँ फ़रमाता है; उसका नाम रब्ब-उल-अफ़वाज है।
\v 36 ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है: "अगर यह निज़ाम मेरे सामने से ख़त्म हो जाए, तो इस्राईल की नसल भी मेरे सामने से जाती रहेगी कि हमेशा तक फिर क़ौम न हो।"
\s5
\v 37 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: "अगर कोई ऊपर आसमान को नाप सके और नीचे ज़मीन की बुनियाद का पता लगा ले, तो मैं भी बनी-इस्राईल को उनके सब 'आमाल की वजह से रद्द कर दूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।”
\s5
\v 38 ~"देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि "यह शहर हननेल के बुर्ज से कोने के फाटक तक ख़ुदावन्द के लिए ता'मीर किया जाएगा।
\v 39 ~और फिर जरीब सीधी कोह-ए- जारेब पर से होती हुई जोआता को घेर लेगी।
\v 40 ~और लाशों और राख की तमाम वादी और सब खेत क़िद्रोन के नाले तक, और घोड़े फाटक के कोने तक पूरब की तरफ़ ख़ुदावन्द के लिए पाक होंगे; फिर वह हमेशा तक न कभी उखाड़ा, न गिराया जाएगा।"
\s5
\c 32
\p
\v 1 वह कलाम जो शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह के दसवें बरस में जो नबूकदरज़र का अट्ठारहवाँ बरस था, ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ।
\v 2 उस वक़्त शाह-ए-बाबुल की फ़ौज यरुशलीम का घिराव किए पड़ी थी, और यरमियाह नबी शाह-ए-यहूदाह के घर में क़ैदख़ाने के सहन में बन्द था।
\s5
\v 3 क्यूँकि शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह ने उसे यह कह कर क़ैद किया, "तू क्यूँ नबुव्वत करता और कहता है, कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं इस शहर को शाह-ए-बाबुल के हवाले कर दूँगा, और वह उसे ले लेगा;
\v 4 और शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह कसदियों के हाथ से न बचेगा, बल्कि ज़रूर शाह-ए-बाबुल के हवाले किया जाएगा, और उससे आमने-सामने बातें करेगा और दोनों की आँखें सामने होंगी।
\v 5 और वह सिदक़ियाह को बाबुल में ले जाएगा, और जब तक मैं उसको याद न फ़रमाऊँ वह वहीं रहेगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है। हरचन्द तुम कसदियों के साथ जंग करोगे, लेकिन कामयाब न होगे"?"
\s5
\v 6 तब यरमियाह ने कहा कि "ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रमाया
\v 7 देख, तेरे चचा सलूम का बेटा हनमएल तेरे पास आकर कहेगा कि 'मेरा खेत जो 'अन्तोत में है, अपने लिए ख़रीद ले; क्यूँकि उसको छुड़ाना तेरा हक़ है।'
\s5
\v 8 तब मेरे चचा का बेटा हनमएल क़ैदख़ाने के सहन में मेरे पास आया, और जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया था, मुझसे कहा कि, "मेरा खेत जो 'अन्तोत में बिनयमीन के 'इलाक़े में है, ख़रीद ले; क्यूँकि यह तेरा मौरूसी हक़ है और उसको छुड़ाना तेरा काम है, उसे अपने लिए ख़रीद ले।" तब मैंने जाना कि ये ख़ुदावन्द का कलाम है।
\v 9 'और मैंने उस खेत को जो 'अन्तोत में था, अपने चचा के बेटे हनमएल से ख़रीद लिया और नक़द सत्तर मिस्काल चांदी तोल कर उसे दी।
\s5
\v 10 और मैंने एक कबाला लिखा और उस पर मुहर की और गवाह ठहराए, और चाँदी तराजू में तोलकर उसे दी
\v 11 तब मैंने उस क़बाले को लिया, या'नी वह जो क़ानून और दस्तूर के मुताबिक़ सर-ब-मुहर था, और वह जो खुला था;
\v 12 और मैंने उस क़बाले को अपने चचा के बेटे हनमएल के सामने और उन गवाहों के सामने जिन्होंने अपने नाम क़बाले पर लिखे थे, उन सब यहूदियों के सामने जो क़ैदख़ाने के सहन में बैठे थे, बारूक-बिन-नैयिरियाह-बिन-महसियाह को सौंपा।
\s5
\v 13 और मैंने उनके सामने बारूक की ताकीद की
\v 14 कि 'रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: यह काग़ज़ात ले, या'नी यह क़बाला जो सर-ब-मुहर है, और यह जो खुला है, और उनको मिट्टी के बर्तन में रख ताकि बहुत दिनों तक महफ़ूज़ रहें।
\v 15 क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: इस मुल्क में फिर घरों और ताकिस्तानों की ख़रीद-ओ-फ़रोख्त होगी।'
\s5
\v 16 'बारूक-बिन-नैयिरियाह को क़बाला देने के बा'द, मैंने ख़ुदावन्द से यूँ दु'आ की:
\v 17 'आह, ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा! देख, तूने अपनी 'अज़ीम क़ुदरत और अपने बुलन्द बाज़ू से आसमान और ज़मीन को पैदा किया, और तेरे लिए कोई काम मुश्किल नहीं है;
\v 18 तू हज़ारों पर शफ़क़त करता है, और बाप-दादा की बदकिरदारी का बदला उनके बा'द उनकी औलाद के दामन में डाल देता है; जिसका नाम ख़ुदा-ए- 'अज़ीम-ओ-क़ादिर रब्ब-उल-अफ़वाज है;
\s5
\v 19 मश्वरत में बुज़ुर्ग, और काम में क़ुदरत वाला है; बनी-आदम की सब राहें तेरे ज़ेर-ए-नज़र हैं; ताकि हर एक को उसके चाल चलन के मुवाफ़िक़ और उसके 'आमाल के फल के मुताबिक़ बदला दे।
\v 20 जिसने मुल्क-ए-मिस्र में आज तक, और इस्राईल और दूसरे लोगों में निशान और 'अजाइब दिखाए और अपने लिए नाम पैदा किया, जैसा कि इस ज़माने में है।
\v 21 क्यूँकि तू अपनी क़ौम इस्राईल को मुल्क-ए-मिस्र से निशानों और 'अजाइब और क़वी हाथ और बलन्द बाज़ू से, और बड़ी हैबत के साथ निकाल लाया;
\s5
\v 22 और यह मुल्क उनको दिया जिसे देने की तूने उनके बाप-दादा से क़सम खायी थी ऐसा मुल्क जिसमे दूध और शहद बहता है।
\v 23 और वह आकर उसके मालिक हो गए, लेकिन वह न तेरी आवाज़ को सुना और न तेरी शरी'अत पर चले, और जो कुछ तूने करने को कहा उन्होंने नहीं किया। इसलिए तू यह सब मुसीबत उन पर लाया।
\s5
\v 24 दमदमों को देख, वह शहर तक आ पहुँचे हैं कि उसे फ़तह कर लें, और शहर तलवार और काल और वबा की वजह से कसदियों के हवाले कर दिया गया है, जो उस पर चढ़ आए और जो कुछ तूने फ़रमाया पूरा हुआ, और तू आप देखता है।
\v 25 तो भी, ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, तूने मुझसे फ़रमाया कि वह खेत रुपया देकर अपने लिए ख़रीद ले और गवाह ठहरा ले, हालाँकि यह शहर कसदियों के हवाले कर दिया गया।' "
\s5
\v 26 तब ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 27 ~"देख, मैं ख़ुदावन्द, तमाम बशर का ख़ुदा हूँ, क्या मेरे लिए कोई काम दुश्वार है?
\v 28 इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं इस शहर को कसदियों के और शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र के हवाले कर दूँगा, और वह इसे ले लेगा;
\s5
\v 29 और कसदी जो इस शहर पर चढ़ाई करते हैं, आकर इसको आग लगाएँगे और इसे उन घरों के साथ जलाएँगे, जिनकी छतों पर लोगों ने बा'ल के लिए ख़ुशबू जलायी और ग़ैरमा'बूदों के लिए तपावन तपाए कि मुझे ग़ज़बनाक करें।
\v 30 क्यूँकि बनी-इस्राईल और बनी यहूदाह अपनी जवानी से अब तक सिर्फ़ वही करते आए हैं जो मेरी नज़र में बुरा है; क्यूँकि बनी-इस्राईल ने अपने 'आमाल से मुझे ग़ज़बनाक ही किया, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 31 क्यूँकि यह शहर जिस दिन से उन्होंने इसे ता'मीर किया, आज के दिन तक मेरे क़हर और ग़ज़ब का ज़रिया' हो रहा है; ताकि मैं इसे अपने सामने से दूर करूँ
\v 32 बनी-इस्राईल और बनी यहूदाह की तमाम बुराई के ज़रिए' जो उन्होंने और उनके बादशाहों ने, और हाकिम और काहिनों और नबियों ने, और यहूदाह के लोगों और यरुशलीम के बशिन्दों ने की, ताकि मुझे ग़ज़बनाक करें।
\s5
\v 33 ~क्यूँकि उन्होंने मेरी तरफ़ पीठ की और मुँह न किया, हर चन्द मैंने उनको सिखाया और वक़्त पर ता'लीम दी, तो भी उन्होंने कान न लगाया कि तरबियत पज़ीर हों,
\v 34 बल्कि उस घर में जो मेरे नाम से कहलाता है, अपनी मकरूहात रख्खीं ताकि उसे नापाक करें।
\v 35 और उन्होंने बा'ल के ऊँचे मक़ाम जो बिन हिनूम की वादी में हैं बनाए, ताकि अपने बेटों और बेटियों को मोलक के लिए आग में से गुज़ारें, जिसका मैंने उनको हुक्म नहीं दिया और न मेरे ख़याल में आया कि वह ऐसा मकरूह काम करके यहूदाह को गुनाहगार बनाएँ।
\s5
\v 36 "और अब इस शहर के बारे में, जिसके हक़ में तुम कहते हो, 'तलवार और काल और वबा के वसीले से वह शाह-ए- बाबुल के हवाले किया जाएगा," ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है:
\v 37 देख, मैं उनको उन सब मुल्कों से जहाँ मैंने उनको गैज़-ओ-ग़ज़ब और बड़े ग़ुस्से से हॉक दिया है, जमा' करूँगा और इस मक़ाम में वापस लाऊँगा और उनको अम्न से आबाद करूँगा।
\s5
\v 38 और वह मेरे लोग होंगे और मैं उनका ख़ुदा हूँगा।
\v 39 मैं उनको यकदिल और यकरविश बना दूँगा, और वह अपनी और अपने बा'द अपनी औलाद की भलाई कि लिए हमेशा मुझसे डरते रहेंगे।
\v 40 मैं उनसे हमेशा का 'अहद करूँगा कि उनके साथ भलाई करने से बाज़ न आऊँगा, और मैं अपना ख़ौफ़ उनके दिल में डालूँगा ताकि वह मुझसे फिर न जाएँ|
\s5
\v 41 हाँ, मैं उनसे ख़ुश होकर उनसे नेकी करूँगा, और यक़ीनन दिल-ओ-जान से उनको इस मुल्क में लगाऊँगा।
\v 42 "क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: जिस तरह मैं इन लोगों पर यह तमाम बला-ए-'अज़ीम लाया हूँ, उसी तरह वह तमाम नेकी जिसका मैंने उनसे वा'दा किया है, उनसे करूँगा।
\s5
\v 43 और इस मुल्क में जिसके बारे में तुम कहते हो कि 'वह वीरान है, वहाँ न इन्सान है न हैवान, वह कसदियों के हवाले किया गया,' फिर खेत ख़रीदे जाएँगे।
\v 44 बिनयमीन के ''इलाक़े में और यरुशलीम के 'इलाक़े में और यहूदाह के शहरों में और पहाड़ी के, और वादी के, और दख्खिन के शहरों में लोग रुपया देकर खेत ख़रीदेंगे; और क़बाले लिखाकर उन पर मुहर लगाएँगे और गवाह ठहराएँगे, क्यूँकि मैं उनकी ग़ुलामी को ख़त्म कर दूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।”
\s5
\c 33
\p
\v 1 हुनुज़ यरमियाह क़ैदख़ाने के सहन में~बन्द था कि ख़ुदावन्द का कलाम दोबारा उस पर नाज़िल हुआ कि:
\v 2 "ख़ुदावन्द जो पूरा करता और बनाता और क़ायम करता है, जिसका नाम यहोवाह है, यूँ फ़रमाता है:
\v 3 कि मुझे पुकार और मैं तुझे जवाब दूँगा, और बड़ी-बड़ी और गहरी बातें जिनको तू नहीं जानता, तुझ पर ज़ाहिर करूँगा।
\s5
\v 4 क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा, इस शहर के घरों के बारे में, और शाहान-ए-यहूदाह के घरों के बारे में जो दमदमों और तलवार के ज़रिए' गिरा दिए गए हैं, यूँ फ़रमाता है:
\v 5 कि वह कसदियों से लड़ने आए हैं, और उनको आदमियों की लाशों से भरेंगे, जिनको मैंने अपने क़हर-ओ-ग़ज़ब से क़त्ल किया है, और जिनकी तमाम शरारत की वजह से मैंने इस शहर से अपना मुँह छिपाया है।
\s5
\v 6 देख, मैं उसे सिहत और तंदुरुस्ती बख़्शूँगा मैं उनको ~शिफ़ा दूँगा और अम्न-ओ-सलामती की कसरत उन पर ज़ाहिर करूँगा।
\v 7 और मैं यहूदाह और इस्राईल को ग़ुलामी से वापस लाऊँगा और उनको पहले की तरह बनाऊँगा।
\v 8 और मैं उनको उनकी सारी बदकिरदारी से जो उन्होंने मेरे ख़िलाफ़ की है, पाक करूँगा और मैं उनकी सारी बदकिरदारी जिससे वह मेरे गुनाहगार हुए और जिससे उन्होंने मेरे ख़िलाफ़ बग़ावत की है, मु'आफ़ करूँगा।
\v 9 और यह मेरे लिए इस ज़मीन की सब क़ौमों के सामने ख़ुशी बख़्श नाम और शिताइश-ओ-जलाल का ज़रिया' होगा; वह उस सब भलाई का जो मैं उनसे करता हूँ, ज़िक्र सुनेंगी और उस भलाई और सलामती की वजह से जो मैं इनके लिए मुहय्या करता हूँ, डरेंगी और काँपेंगी।
\s5
\v 10 "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: इस मक़ाम में जिसके बारे में तुम कहते हो, 'वह वीरान है, वहाँ न इन्सान है न हैवान," या'नी यहूदाह के शहरों में और यरुशलीम के बाज़ारों में जो वीरान हैं, जहाँ न इन्सान हैं न बाशिन्दे न हैवान,
\v 11 ख़ुशी और शादमानी की आवाज़, दुल्हे और दुल्हन की आवाज़, और उनकी आवाज़ सुनी जाएगी जो कहते हैं, 'रब्ब-उल-अफ़वाज की सिताइश करो क्यूँकि ख़ुदावन्द भला है और उसकी शफ़क़कत हमेशा की है!" हाँ, उनकी आवाज़ जो ख़ुदावन्द के घर में शुक्रगुजारी की क़ुर्बानी लायेंगे क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं इस मुल्क के ग़ुलामों को वापस लाकर बहाल करूँगा।
\s5
\v 12 'रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: इस वीरान जगह और इसके सब शहरों में जहाँ न इन्सान है न हैवान, फिर चरवाहों के रहने के मकान होंगे जो अपने गल्लों को बिठाएँगे।
\v 13 कोहिस्तान के शहरों में और वादी के और दख्खिन के शहरों में, और बिनयमीन के 'इलाक़ों में और यरुशलीम के 'इलाक़े में, और यहूदाह के शहरों में फिर गल्ले गिनने वाले के हाथ के नीचे से गुज़रेंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 14 "देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि 'वह नेक बात जो मैंने इस्राईल के घराने और यहूदाह के घराने के हक़ में फ़रमाई है, पूरी करूँगा।'
\v 15 उन्हीं दिनों में और उसी वक़्त मैं दाऊद के लिए सदाक़त की शाख़ पैदा करूँगा, और वह मुल्क में 'अदालत-ओ-सदाक़त से 'अमल करेगा।
\v 16 उन दिनों में यहूदाह नजात पाएगा और यरुशलीम सलामती से सुकूनत करेगा; और 'ख़ुदावन्द हमारी सदाक़त' उसका नाम होगा।
\s5
\v 17 "क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: इस्राईल के घराने के तख़्त पर बैठने के लिए दाऊद को कभी आदमी की कमी न होगी,
\v 18 और न लावी काहिनों को आदमियों की कमी होगी, जो मेरे सामने सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश करे और हदिये चढ़ाएँ और हमेशा क़ुर्बानी करें।”
\s5
\v 19 फिर ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 20 "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: अगर तुम मेरा वह 'अहद, जो मैंने दिन से और रात से किया, तोड़ सको कि दिन और रात अपने अपने वक़्त पर न हों,
\v 21 तो मेरा वह 'अहद भी जो मैंने अपने ख़ादिम दाऊद से किया, टूट सकता है कि उसके तख़्त पर बादशाही करने को बेटा न हो और वह 'अहद भी जो अपने ख़िदमतगुज़ार लावी काहिनों से किया।
\v 22 जैसे अजराम-ए-फ़लक बेशुमार हैं और समन्दर की रेत बे अन्दाज़ा है, वैसे ही मैं अपने बन्दे दाऊद की नसल की और लावियों को जो मेरी ख़िदमत करते हैं, फ़िरावानी बख्शूँगा"
\s5
\v 23 ~फिर ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 24 कि "क्या तू नहीं देखता कि ये लोग क्या कहते हैं कि ~'जिन दो घरानों को ख़ुदावन्द ने चुना, उनको उसने रद्द कर दिया'? यूँ वह मेरे लोगों को हक़ीर जानते हैं कि जैसे उनके नज़दीक वह क़ौम ही नहीं रहे।
\s5
\v 25 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: अगर दिन और रात के साथ मेरा 'अहद न हो, और अगर मैंने आसमान और ज़मीन का निज़ाम मुक़र्रर न किया हो;
\v 26 तो मैं या'क़ूब की नसल को और अपने ख़ादिम दाऊद की नसल को रद्द कर दूँगा, ताकि मैं इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब की नसल पर हुकूमत करने के लिए उसके फ़र्ज़न्दों में से किसी को न लूँ बल्कि मैं तो उनको ग़ुलामी से वापस लाऊँगा और उन पर रहम करूँगा।"
\s5
\c 34
\p
\v 1 जब शाह-ए-बाबुल नबूक़दनज़र और उसकी तमाम फ़ौज और इस ज़मीन की तमाम सल्तनतें जो उसकी फरमाँरवाई में थीं, और सब क़ौमें यरुशलीम और उसकी सब बस्तियों के ख़िलाफ़ जंग कर रही थीं, तब ख़ुदावन्द का यह कलाम यरमियाह नबी पर नाज़िल हुआ
\v 2 कि "ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: जा और शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह से कह दे, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं इस शहर को शाह-ए-बाबुल के हवाले कर दूंगा, और वह इसे आग से जलाएगा;
\v 3 और तू उसके हाथ से न बचेगा, बल्कि ज़रूर पकड़ा जाएगा और उसके हवाले किया जाएगा; और तेरी आँखें शाह-ए-बाबुल की आँखों को देखेंगी और वह सामने तुझ से बातें करेगा, और तू बाबुल को जाएगा।'
\s5
\v 4 तो भी, ऐ शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह, ख़ुदावन्द का कलाम सुन; तेरे बारे में ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तू तलवार से क़त्ल न किया जाएगा।
\v 5 तू अम्न की हालत में मरेगा और जिस तरह तेरे बाप-दादा या'नी तुझ से पहले बादशाहों के लिए ख़ुशबू जलाते थे, उसी तरह तेरे लिए भी जलाएँगे, और तुझ पर नौहा करेंगे और कहेंगे, "हाय, आक़ा!" क्यूँकि मैंने यह बात कही है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।' "
\s5
\v 6 तब यरमियाह नबी ने यह सब बातें शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह से यरुशलीम में कहीं,
\v 7 जब कि शाह-ए-बाबुल की फ़ौज यरुशलीम और यहूदाह के शहरों से जो बच रहे थे, या'नी लकीस और 'अज़ीक़ाह से लड़ रही थी; क्यूँकि यहूदाह के शहरों में से यही हसीन शहर बाक़ी थे।
\s5
\v 8 वह कलाम जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ, जब सिदक़ियाह बादशाह ने यरुशलीम के सब लोगों से 'अहद-ओ-पैमान किया कि आज़ादी का 'ऐलान किया जाए|
\v 9 कि हर एक अपने ग़ुलाम को और अपनी लौंडी को, जो 'इब्रानी मर्द या 'औरत हो, आज़ाद कर दे कि कोई अपने यहूदी भाई से ग़ुलामी न कराए।
\s5
\v 10 और जब सब हाकिम और सब लोगों ने जो इस 'अहद में शामिल थे, सुना कि हर एक को लाज़िम है कि अपने ग़ुलाम और अपनी लौंडी को आज़ाद करे और फिर उनसे ग़ुलामी न कराए, तो उन्होंने इता'अत की और उनको आज़ाद कर दिया।
\v 11 लेकिन उसके बा'द वह फिर गए और उन ग़ुलामों और लौंडियों को जिनको उन्होंने आज़ाद कर दिया था, फिर वापस ले आए और उनको ताबे' करके ग़ुलाम और लौंडियाँ बना लिया।
\s5
\v 12 इसलिए ख़ुदावन्द की तरफ़ से यह कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 13 कि ~"ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि: मैंने तुम्हारे बाप-दादा से, जिस दिन मैं उनको मुल्क-ए-मिस्र से और ग़ुलामी के घर से निकाल लाया, यह 'अहद बाँधा,
\v 14 कि 'तुम में से हर एक अपने 'इब्रानी भाई को जो उसके हाथ बेचा गया हो, सात बरस के आख़िर में या'नी जब वह छ: बरस तक ख़िदमत कर चुके, तो आज़ाद कर दे; लेकिन तुम्हारे बाप-दादा ने मेरी न सुनी और कान न लगाया।
\s5
\v 15 और आज ही के दिन तुम रूजू' लाए, और वही किया जो मेरी नज़र में भला है कि हर एक ने अपने पड़ोसी को आज़ादी का मुज़दा दिया; और तुम ने उस घर में जो मेरे नाम से कहलाता है, मेरे सामने 'अहद बाँधा;
\v 16 लेकिन तुम ने नाफ़रमान हो कर मेरे नाम को नापाक किया, और हर एक ने अपने ग़ुलाम को और अपनी लौंडी को, जिनको तुमने आज़ाद करके उनकी मर्ज़ी पर छोड़ दिया था, फिर पकड़कर ताबे' किया कि तुम्हारे लिए ग़ुलाम और लौंडियाँ हों।
\s5
\v 17 "इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तुम ने मेरी न सुनी कि हर एक अपने भाई और अपने पड़ोसी को आज़ादी का मुज़दा सुनाए, देखो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं तुम को तलवार और वबा और काल के लिए आज़ादी का मुज़दा देता हूँ और मैं ऐसा करूँगा कि तुम इस ज़मीन की सब ममलुकतों में धक्के खाते फिरोगे।
\v 18 ~और मैं उन आदमियों को जिन्होंने मुझसे 'अहदशिकनी की और उस 'अहद की बातें, जो उन्होंने मेरे सामने बाँधा है पूरी नहीं कीं, जब बछड़े को दो टुकड़े किया और उन दो टुकड़ों के बीच से होकर गुज़रे;
\v 19 या'नी यहूदाह के और यरुशलीम के हाकिम और ख़्वाजासरा और काहिन और मुल्क के सब लोग जो बछड़े के टुकड़ों के बीच से होकर गुज़रे;
\s5
\v 20 हाँ, मैं उनको उनके मुख़ालिफ़ों और जानी दुश्मनों के हवाले करूँगा, और उनकी लाशें हवाई परिन्दों और ज़मीन के दरिन्दों की ख़ुराक होंगी।
\v 21 और मैं शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह को और उसके हाकिम को, उनके ~मुख़ालिफ़ों और जानी दुश्मनों और शाह-ए-बाबुल की फ़ौज के, जो तुम को छोड़कर चली गई, हवाले कर दूँगा।
\v 22 ~देखो, मैं हुक्म करूँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है और उनको फिर इस शहर की तरफ़ वापस लाऊँगा, और वह इससे लड़ेंगे और फ़तह करके आग से जलाएँगे; और मैं यहूदाह के शहरों को वीरान कर दूँगा कि ग़ैरआबाद हों।"
\s5
\c 35
\p
\v 1 वह कलाम जो शाह-ए-यहूदाह "यहूयक़ीम-बिन-यूसियाह के दिनों में ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 2 कि "तू रैकाबियों के घर जा और उनसे कलाम कर, और उनको ख़ुदावन्द के घर की एक कोठरी में लाकर मय पिला।”
\s5
\v 3 तब मैंने याज़नियाह-बिन-यर्मियाह-बिन हबसिनयाह और उसके भाइयों और उसके सब बेटों और रैकाबियों के तमाम घराने को साथ लिया।
\v 4 और मैं उनको ख़ुदावन्द के घर में बनी हनान-बिन-यजदलियाह मर्द-ए-ख़ुदा की कोठरी में लाया, जो हाकिम की कोठरी के नज़दीक मासियाह-बिन-सलूम दरबान की कोठरी के ऊपर थी।
\s5
\v 5 और मैंने मय से लबरेज़ प्याले और जाम रैकाबियों के घराने के बेटों के आगे रख्खे और उनसे कहा, 'मय पियो।”
\v 6 लेकिन उन्होंने कहा, "हम मय न पियेंगे, क्यूँकि हमारे बाप यूनादाब-बिन-रैकाब ने हमको यूँ हुक्म दिया, 'तुम हरगिज़ मय न पीना; न तुम न तुम्हारे बेटे;
\v 7 और न घर बनाना, न बीज बोना, न ताकिस्तान लगाना, न उनके मालिक होना; बल्कि 'उम्र भर ख़ेमों में रहना ताकि जिस सरज़मीन में तुम मुसाफ़िर हो, तुम्हारी 'उम्र दराज़ हो।'
\s5
\v 8 ~ चुनाँचे हम ने अपने बाप यूनादाब-बिन-रैकाब की बात मानी; उसके हुक्म के मुताबिक़ हम और हमारी बीवियाँ और हमारे बेटे बेटियाँ कभी मय नहीं पीते|
\v 9 और हम न रहने के लिए घर बनाते और न ताकिस्तान और खेत और बीज रखते हैं |
\v 10 लेकिन हम ख़ेमों में बसे हैं, और हमने फ़रमाँबरदारी की और जो कुछ हमारे बाप यूनादाब ने हमको हुक्म दिया हम ने उस पर 'अमल किया है।
\v 11 लेकिन यूँ हुआ कि जब शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र इस मुल्क पर चढ़ आया, तो हम ने कहा कि 'आओ, हम कसदियों और अरामियों की फ़ौज के डर से यरुशलीम को चले जाएँ," यूँ हम यरुशलीम में बसते हैं।”
\s5
\v 12 तब ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 13 कि 'रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: जा, और यहूदाह के आदमियों और यरुशलीम के बाशिन्दों से यूँ कह कि क्या तुम तरबियत पज़ीर न होगे कि मेरी बातें सुनो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है?
\v 14 जो बातें यूनादाब-बिन-रैकाब ने अपने बेटों को फ़रमाईं कि मय न पियो, वह बजा लाए और आज तक मय नहीं पीते, बल्कि उन्होंने अपने बाप के हुक्म को माना; लेकिन मैंने तुम से कलाम किया और वक़्त पर तुम को फ़रमाया, और तुम ने मेरी न सुनी।
\s5
\v 15 मैंने अपने तमाम ख़िदमतगुज़ार नबियों को तुम्हारे पास भेजा, और उनको वक़्त पर ये कहते हुए भेजा कि तुम हर एक अपनी बुरी राह से बाज़ आओ, और अपने 'आमाल को दुरुस्त करो और ग़ैर मा'बूदों की पैरवी और ~'इबादत न करो, और जो मुल्क मैंने तुमको और तुम्हारे बाप-दादा को दिया है, तुम उसमें बसोगे; लेकिन तुम ने न कान लगाया न मेरी सुनी।
\v 16 इस वजह से कि यूनादाब बिन रैकाब के बेटे अपने बाप के हुक्म को जो उसने उनको दिया था बजा लाये लेकिन इन लोगों ने मेरी न सुनी |
\s5
\v 17 इसलिए ख़ुदावन्द, रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं यहूदाह पर और यरुशलीम के तमाम बाशिन्दों पर वह सब मुसीबत, जिसका मैंने उनके ख़िलाफ़ 'ऐलान किया है, लाऊँगा; क्यूँकि मैंने उनसे कलाम किया लेकिन उन्होंने न सुना, और मैंने उनको बुलाया पर उन्होंने जवाब न दिया।”
\s5
\v 18 और यरमियाह ने रैकाबियों के घराने से कहा, 'रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: चूँकि तुमने अपने बाप यूनादाब के हुक्म को माना, और उसकी सब वसीयतों पर 'अमल किया है, और जो कुछ उसने तुम को फ़रमाया तुम बजा लाए;
\v 19 इसलिए रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: यूनादाब-बिन-रैकाब के लिए मेरे सामने में खड़े होने को कभी आदमी की कमी न होगी।"
\s5
\c 36
\p
\v 1 शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम-बिन-यूसियाह~के चौथे बरस में यह कलाम ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 2 कि "किताब का एक तूमार ले और वह सब कलाम जो मैंने इस्राईल और यहूदाह और तमाम क़ौमों के ख़िलाफ़ तुझ से किया, उस दिन से लेकर जब से मैं तुझ से कलाम करने लगा, या'नी यूसियाह के दिन से आज के दिन तक उसमें लिख।
\v 3 शायद यहूदाह का घराना उस तमाम मुसीबत का हाल जो मैं उन पर लाने का इरादा रखता हूँ सुने, ताकि वह सब अपनी बुरे चाल चलन से बाज़ आएँ; और मैं उनकी बदकिरदारी और गुनाह को मु'आफ़ करूँ।"
\s5
\v 4 तब यरमियाह ने बारूक-बिन-नैयिरियाह को बुलाया, और बारूक ने ख़ुदावन्द का वह सब कलाम जो उसने यरमियाह से किया था, उसकी ज़बानी किताब के उस तूमार में लिखा।
\v 5 और यरमियाह ने बारूक को हुक्म दिया और कहा, "मैं तो मजबूर हूँ, मैं ख़ुदावन्द के घर में नहीं जा सकता;
\v 6 लेकिन तू जा और ख़ुदावन्द का वह कलाम जो तूने मेरे मुँह से इस तूमार में लिखा है, ख़ुदावन्द के घर में रोज़े के दिन लोगों को पढ़ कर सुना; और तमाम यहूदाह के लोगों को भी जो अपने शहरों से आए हों, तू वही कलाम पढ़ कर सुना।
\s5
\v 7 शायद वह ख़ुदा के सामने मिन्नत करें और सब के सब अपनी बुरे चाल चलन से बाज़ आएँ, क्यूँकि ख़ुदावन्द का क़हर-ओ-ग़ज़ब जिसका उसने इन लोगों के ख़िलाफ़ 'ऐलान किया है, शदीद है।"
\v 8 और बारूक-बिन-नैयिरियाह ने सब कुछ जैसा यरमियाह नबी ने उसको फ़रमाया था वैसा ही किया, और ख़ुदावन्द के घर में ख़ुदावन्द का कलाम उस किताब से पढ़ कर सुनाया।
\s5
\v 9 और ~शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम-बिन-यूसियाह के पाँचवें बरस के नौवें महीने में यूँ हुआ कि यरुशलीम के सब लोगों ने और उन सब ने जो यहूदाह के शहरों से यरुशलीम में आए थे, ख़ुदावन्द के सामने रोज़े का 'ऐलान किया।
\v 10 ~तब बारूक ने किताब से यरमियाह की बातें, ख़ुदावन्द के घर में जमरियाह-बिन-साफ़न मुन्शी की कोठरी में ऊपर के सहन के बीच, ख़ुदावन्द के घर के नये फाटक के मदख़ल पर सब लोगों के सामने पढ़ सुनाईं।
\s5
\v 11 जब मीकायाह-बिन-जमरियाह-बिनसाफ़न ने ख़ुदावन्द का वह सब कलाम जो उस किताब में था सुना,
\v 12 तो वह उतर कर बादशाह के घर मुन्शी की कोठरी में गया, और सब हाकिम या'नी इलीसमा' मुन्शी, और दिलायाह बिन समयाह और इलनातन बिन अक़बूर और जमरियाह बिन साफ़न और सिदक़ियाह-बिन-हननियाह, और सब हाकिम वहाँ बैठे थे।
\s5
\v 13 तब मीकायाह ने वह सब बातें जो उसने सुनी थीं, जब बारूक किताब से पढ़ कर लोगों को सुनाता था, उनसे बयान कीं।
\v 14 और सब हाकिम ने यहूदी-बिन-नतनियाह-बिन-सलमियाह-बिन-कूशी को बारूक के पास यह कहकर भेजा, कि "वह तूमार जो तूने लोगों को पढ़कर सुनाया है, अपने हाथ में ले और चला आ।” तब बारूक-बिन-नैयिरियाह वह तूमार लेकर उनके पास आया।
\v 15 और उन्होंने उसे कहा, कि "अब बैठ जा और हमको यह पढ़ कर सुना।" और बारूक ने उनको पढ़कर सुनाया।
\s5
\v 16 जब उन्होंने वह सब बातें सुनीं, तो डरकर एक दूसरे का मुँह ताकने लगे और बारूक से कहा कि "हम यक़ीनन यह सब बातें बादशाह से बयान करेंगे।”
\v 17 और उन्होंने यह कह कर बारूक से पूछा, "हम से कह कि तूने यह सब बातें उसकी ज़बानी क्यूँकर लिखीं?"
\v 18 तब बारूक ने उनसे कहा, "वह यह सब बातें मुझे अपने मुँह से कहता गया और मैं स्याही से किताब में लिखता गया।”
\v 19 तब हाकिम ने बारूक से कहा, "जा, अपने आपको और यरमियाह को छिपा, और कोई न जाने कि तुम कहाँ हो।"
\s5
\v 20 और वह बादशाह के पास सहन में गए, लेकिन उस तूमार को इलीसमा' मुन्शी की कोठरी में रख गए, और वह बातें बादशाह को कह सुनाईं।
\v 21 तब बादशाह ने यहूदी को भेजा कि तूमार लाए, और वह उसे इलीसमा' मुन्शी की कोठरी में से ले आया। और यहूदी ने बादशाह और सब हाकिम को जो बादशाह के सामने खड़े थे, उसे पढ़कर सुनाया।
\v 22 और बादशाह ज़मिस्तानी महल में बैठा था, क्यूँकि नवाँ महीना था और उसके सामने अंगेठी जल रही थी।
\s5
\v 23 जब यहूदी ने तीन चार वर्क़ पढ़े, तो उसने उसे मुन्शी के क़लम तराश से काटा और अंगेठी की आग में डाल दिया, यहाँ तक कि तमाम तूमार अंगेठी की आग में भसम हो गया।
\v 24 लेकिन वह न डरे, न उन्होंने अपने कपड़े फाड़े, न बादशाह ने न उसके मुलाज़िमों में से किसी ने जिन्होंने यह सब बातें सुनी थीं।
\s5
\v 25 लेकिन इलनातन, और दिलायाह, और जमरियाह ने बादशाह से 'अर्ज़ की कि तूमार को न जलाए, लेकिन उसने उनकी एक न सुनी।
\v 26 और बादशाह ने शाहज़ादे यरहमिएल को और शिरायाह-बिन अजरिएल और सलमियाह बिन अबदिएल ~को हुक्म दिया कि बारूक मुन्शी और यरमियाह नबी को गिरफ़्तार करें, लेकिन ख़ुदावन्द ने उनको छिपाया।
\s5
\v 27 और जब बादशाह तूमार और उन बातों को जो बारूक ने यरमियाह की ज़बानी लिखी थीं, जला चुका तो ख़ुदावन्द का यह कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 28 कि "तू दूसरा तूमार ले, और उसमें वह सब बातें लिख जो पहले तूमार में थीं, जिसे शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम ने जला दिया।
\v 29 और शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम से कह कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: तूने तूमार को जला दिया और कहा है,"तू ने उसमें यूँ क्यूँ लिखा कि शाह-ए-बाबुल यक़ीनन आएगा और इस मुल्क को हलाक करेगा, और न इसमें इन्सान बाक़ी छोड़ेगा न हैवान?"
\s5
\v 30 इसलिए शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम के बारे में ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: उसकी नसल में से कोई न रहेगा जो दाऊद के तख़्त पर बैठे, और उसकी लाश फेंकी जाएगी, ताकि दिन की गर्मी में और रात को पाले में पड़ी रहे;
\v 31 और मैं उसको और उसकी नसल को और उसके मुलाज़िमों को उनकी बदकिरदारी की सज़ा दूँगा। मैं उन पर और यरुशलीम के बाशिन्दों पर और यहूदाह के लोगों पर वह सब मुसीबत लाऊँगा, जिसका मैंने उनके ख़िलाफ़ 'ऐलान किया लेकिन उन्होंने न सुना।' "
\s5
\v 32 तब यरमियाह ने दूसरा तूमार लिया और बारूक-बिन-नैयिरियाह मुन्शी को दिया, और उसने उस किताब की सब बातें जिसे शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम ने आग में जलाया था, यरमियाह की ज़बानी उसमें लिखीं और उनके अलावा वैसी ही और बहुत सी बातें उनमें बढ़ा दी गईं।
\s5
\c 37
\p
\v 1 और सिदक़ियाह बिन यूसियाह जिसको शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र ने मुल्क-ए- यहूदाह पर बादशाह मुक़र्रर किया था, कूनियाह बिन यहुयक़ीम की जगह बादशाही~करने लगा।
\v 2 लेकिन न उसने, न उसके मुलाज़िमों ने, न मुल्क के लोगों ने ख़ुदावन्द की वह बातें सुनीं, जो उसने यरमियाह नबी के~ज़रिए' फ़रमाई थीं।
\s5
\v 3 और सिदक़ियाह बादशाह ने यहूकल-बिन सलमियाह और सफ़नियाह-बिन-मासियाह काहिन के ज़रिए' यरमियाह नबी को कहला भेजा कि अब हमारे लिए ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा से दु'आ कर।"
\v 4 हुनूज़ यरमियाह लोगों के बीच आया जाया करता था, क्यूँकि उन्होंने अभी उसे क़ैदख़ाने में नहीं डाला था।
\v 5 इस वक़्त फ़िर'औन की फ़ौज ने मिस्र से चढ़ाई की; और जब कसदियों ने जो यरुशलीम का घिराव किए थे इसकी शोहरत सुनी, तो वहाँ से चले गए।
\s5
\v 6 तब ख़ुदावन्द का यह कलाम यरमियाह नबी पर नाज़िल हुआ:
\v 7 कि "ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: तुम शाह-ए-यहूदाह से जिसने तुम को मेरी तरफ़ भेजा कि मुझसे दरियाफ़्त करो, यूँ कहना कि "देख, फ़िर'औन की फ़ौज जो तुम्हारी मदद को निकली है, अपने मुल्क-ए-मिस्र को लौट जाएगी।
\v 8 और कसदी वापस आकर इस शहर से लड़ेंगे, और इसे फ़तह करके आग से जलाएँगे।
\s5
\v 9 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तुम यह कह कर अपने आपको फ़रेब न दो, "कसदी ज़रूर हमारे पास से चले जाएँगे," क्यूँकि वह न जाएँगे।
\v 10 और अगरचे तुम कसदियों की तमाम फ़ौज को जो तुम से लड़ती है, ऐसी शिकस्त देते कि उनमें से सिर्फ़ ज़ख़्मी बाक़ी रहते, तो भी वह सब अपने-अपने ख़ेमे से उठते और इस शहर को जला देते।' "
\s5
\v 11 और जब कसदियों की फ़ौज फ़िर'औन की फ़ौज के डर से यरुशलीम के सामने से रवाना हो गई,
\v 12 तो यरमियाह यरुशलीम से निकला कि बिनयमीन के 'इलाक़े में जाकर वहाँ लोगों के बीच अपना हिस्सा ले।
\v 13 और जब वह बिनयमीन के फाटक पर पहुँचा, तो वहाँ पहरेवालों का दारोग़ा था, जिसका नाम इर्रियाह-बिन-सलमियाह-बिन-हननियाह था, और उसने यरमियाह नबी को पकड़ा और कहा तू क़सदियों की तरफ़ भागा जाता है।"
\s5
\v 14 तब यरमियाह ने कहा, "यह झूट है; मैं कसदियों की तरफ़ भागा नहीं जाता हूँ, लेकिन उसने उसकी एक न सुनी; तब इर्रियाह यरमियाह को पकड़ कर हाकिम के पास लाया।
\v 15 और हाकिम यरमियाह पर ग़ज़बनाक हुए और उसे मारा, और यूनतन मुन्शी के घर में उसे क़ैद किया; क्यूँकि उन्होंने उस घर को क़ैदख़ाना बना रख्खा था।
\s5
\v 16 जब यरमियाह क़ैदख़ाने में और उसके तहख़ानों में दाख़िल होकर बहुत दिनों तक वहाँ रह चुका;
\v 17 तो सिदक़ियाह बादशाह ने आदमी भेजकर उसे निकलवाया, और अपने महल में उससे ख़ुफ़िया तौर से दरियाफ़्त किया कि"क्या ख़ुदावन्द की तरफ़ से कोई कलाम है?" और यरमियाह ने कहा है कि "क्यूँकि उसने फ़रमाया है कि तू शाह-ए-बाबुल के हवाले किया जाएगा।"
\s5
\v 18 और यरमियाह ने सिदक़ियाह बादशाह से कहा, "मैंने तेरा, और तेरे मुलाज़िमों का, और इन लोगों का क्या गुनाह किया है कि तुमने मुझे क़ैदख़ाने में डाला है?
\v 19 अब तुम्हारे नबी कहाँ हैं, जो तुम से नबुव्वत करते और कहते थे, 'शाह-ए-बाबुल तुम पर और इस मुल्क पर चढ़ाई नहीं करेगा'?
\v 20 अब ऐ बादशाह, मेरे आक़ा मेरी सुन; मेरी दरख़्वास्त क़ुबूल फ़रमा और मुझे यूनतन मुन्शी के घर में वापस न भेज, ऐसा न हो कि मैं वहाँ मर जाऊँ।"
\s5
\v 21 तब सिदक़ियाह बादशाह ने हुक्म दिया, और उन्होंने यरमियाह को क़ैदख़ाने के सहन में रख्खा; और हर रोज़ उसे नानबाइयों के महल्ले से एक रोटी ले कर देते रहे, जब तक कि शहर में रोटी मिल सकती थी। इसलिए यरमियाह क़ैदख़ाने के सहन में रहा।
\s5
\c 38
\p
\v 1 फिर सफ़तियाह बिन मत्तान और जिदलियाह बिन फ़शहूर और यूकुल बिन सलमियाह और फ़शहूर बिन मलकियाह ने वह बातें जो यरमियाह सब लोगों से कहता था, सुनीं, वह कहता था,
\v 2 "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: जो कोई इस शहर में रहेगा, वह तलवार और काल और वबा से मरेगा; और जो कसदियों में जा मिलेगा, वह ज़िन्दा रहेगा और उसकी जान उसके लिए ग़नीमत होगी और वह ज़िन्दा रहेगा।
\v 3 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: "यह शहर यक़ीनन शाह-ए-बाबुल की फ़ौज के हवाले कर दिया जाएगा और वह इसे ले लेगा।"
\s5
\v 4 इसलिए हाकिम ने बादशाह से कहा, "हम तुझ से 'अर्ज़ करते हैं कि इस आदमी को क़त्ल करवा, क्यूँकि यह जंगी मर्दों के हाथों को, जो इस शहर में बाक़ी हैं और सब लोगों के हाथों को, उनसे ऐसी बातें कह कर सुस्त करता है। क्यूँकि यह शख़्स इन लोगों का ख़ैरख़्वाह नहीं, बल्कि बदचाहे है।"
\v 5 तब सिदक़ियाह बादशाह ने कहा, "वह तुम्हारे क़ाबू में है; क्यूँकि बादशाह तुम्हारे ख़िलाफ़ कुछ नहीं कर सकता।”
\s5
\v 6 तब उन्होंने यरमियाह को पकड़ कर मलकियाह शाहज़ादे के हौज़ में, जो क़ैदख़ाने के सहन में था डाल दिया; और उन्होंने यरमियाह को रस्से से बाँध कर लटकाया। और हौज़ में कुछ पानी न था बल्कि कीच थी; और यरमियाह कीच में धंस गया।
\s5
\v 7 जब 'अब्द मलिक कूशी ने जो शाही महल के ख़्वाजासराओं में से था, सुना कि उन्होंने यरमियाह को हौज़ में डाल दिया है - जब कि बादशाह बिनयमीन के फाटक में बैठा था।
\v 8 तो 'अब्द मलिक बादशाह के महल से निकला और बादशाह से यूँ 'अर्ज़ की,
\v 9 कि "ऐ बादशाह, मेरे आक़ा, इन लोगों ने यरमियाह नबी से जो कुछ किया बुरा किया, क्यूँकि उन्होंने उसे हौज़ में डाल दिया है, और वह वहाँ भूक से मर जाएगा क्यूँकि शहर में रोटी नहीं है।"
\s5
\v 10 तब बादशाह ने 'अब्द मलिक कूशी को यूँ हुक्म दिया,कि "तू यहाँ से तीस आदमी अपने साथ ले, और यरमियाह नबी को इससे पहले कि वह मर जाए हौज़ में से निकाल।"
\v 11 और 'अब्द मलिक उन आदमियों को जो उसके पास थे, अपने साथ लेकर बादशाह के महल में ख़ज़ाने के नीचे गया, और पुराने चीथड़े और पुराने सड़े हुए लत्ते वहाँ से लिए और उनको रस्सियों के वसीले से हौज़ में यरमियाह के पास लटकाया।
\s5
\v 12 और 'अब्द मलिक कूशी ने यरमियाह से कहा कि इन पुराने चीथड़ों और सड़े हुए लत्तों को रस्सी के नीचे अपनी बगल तले रख।” और यरमियाह ने वैसा ही किया।
\v 13 और उन्होंने रस्सियों से यरमियाह को खींचा और हौज़ से बाहर निकाला; और यरमियाह क़ैदख़ाने के सहन में रहा।
\s5
\v 14 तब सिदक़ियाह बादशाह ने यरमियाह नबी को ख़ुदावन्द के घर के तीसरे मदखल में अपने पास बुलाया; और बादशाह ने यरमियाह से कहा, "मैं तुझ से एक बात पूछता हूँ, तू मुझसे कुछ न छिपा।"
\v 15 और यरमियाह ने सिदक़ियाह से कहा, "अगर मैं तुझ से खोलकर बयान करूँ, तो क्या तू मुझे यक़ीनन क़त्ल न करेगा? और अगर मैं तुझे सलाह दूँ, तो तू न मानेगा।"
\v 16 तब सिदक़ियाह बादशाह ने यरमियाह के सामने तन्हाई में कहा, "ज़िन्दा ख़ुदा की क़सम, जो हमारी जानों का ख़ालिक़ है, कि न मैं तुझे क़त्ल करूँगा, और न उनके हवाले करूँगा जो तेरी जान के तलबगार हैं।”
\s5
\v 17 तब यरमियाह ने सिदक़ियाह से कहा कि "ख़ुदावन्द, लश्करों का ख़ुदा, इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि: यक़ीनन अगर तू निकल कर शाह-ए-बाबुल के हाकिम के पास चला जाएगा, तो तेरी जान बच जाएगी और यह शहर आग से जलाया न जाएगा, और तू और तेरा घराना ज़िन्दा रहेगा।
\v 18 लेकिन अगर तू शाह-ए-बाबुल के हाकिम के पास न जाएगा, तो यह शहर कसदियों के हवाले कर दिया जाएगा, और वह इसे जला देंगे और तू उनके हाथ से रिहाई न पाएगा।"
\s5
\v 19 सिदक़ियाह बादशाह ने यरमियाह से कहा कि "मैं उन यहूदियों से डरता हूँ जो कसदियों से जा मिले हैं, ऐसा न हो कि वह मुझे उनके हवाले करें, और वह मुझ पर ता'ना मारें।"
\s5
\v 20 और यरमियाह ने कहा, "वह तुझे हवाले न करेंगे; मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, तू ख़ुदावन्द की बात, जो मैं तुझ से कहता हूँ मान ले। इससे तेरा भला होगा और तेरी जान बच जाएगी।
\v 21 लेकिन अगर तू जाने से इन्कार करे, तो यही कलाम है जो ख़ुदावन्द ने मुझ पर ज़ाहिर किया:
\s5
\v 22 कि देख, वह सब 'औरतें जो शाह-ए-यहूदाह के महल में बाक़ी हैं शाह-ए-बाबुल के हाकिम के पास पहुँचाई जाएँगी और कहेंगी कि तेरे दोस्तों ने तुझे फ़रेब दिया और तुझ पर ग़ालिब आए; जब तेरे पाँव कीच में धँस गए, तो वह उल्टे फिर गए।'
\v 23 और वह तेरी सब बीवियों को, और तेरे बेटों को कसदियों के पास निकाल ले जाएँगे; और तू भी उनके हाथ से रिहाई न पाएगा, बल्कि शाह-ए-बाबुल के हाथ में गिरफ़्तार होगा और तू इस शहर के आग से जलाए जाने का ज़रिया' होगा।"
\s5
\v 24 तब सिदक़ियाह ने यरमियाह से कहा कि ~"इन बातों को कोई न जाने, तो तू मारा न जाएगा।
\v 25 लेकिन अगर हाकिम सुन लें कि मैंने तुझ से बातचीत की, और वह तेरे पास आकर कहें, कि "जो कुछ तूने बादशाह से कहा, और जो कुछ बादशाह ने तुझ से कहा अब हम पर ज़ाहिर कर, यह हम से न छिपा और हम तुझे क़त्ल न करेंगे;"
\v 26 तब तू उनसे कहना कि 'मैंने बादशाह से 'अर्ज़ की थी कि मुझे फिर यूनतन के घर में वापस न भेज कि वहाँ मरूँ।' "
\s5
\v 27 तब सब हाकिम यरमियाह के पास आए और उससे पूछा, और उसने इन सब बातों के मुताबिक़, जो बादशाह ने फ़रमाई थीं, उनको जवाब दिया। और वह उसके पास से चुप होकर चले गए; क्यूँकि असल मुआ'मिला उनको मा'लूम न हुआ।
\v 28 ~और जिस दिन तक यरुशलीम फ़तह न हुआ, यरमियाह क़ैदख़ाने के सहन में रहा, और जब यरुशलीम फ़तह हुआ तो वह वहीं था।
\s5
\c 39
\p
\v 1 शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह के नवें बरस के दसवें महीने में, शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र अपनी तमाम फ़ौज लेकर यरूशलीम पर चढ़ आया और उसका घिराव किया।
\v 2 सिदक़ियाह के ग्यारहवें बरस के चौथे महीने की नवीं तारीख़ को शहर-की- फ़सील में रख़ना हो गया;
\v 3 और शाह-ए- बाबुल के सब सरदार या'नी नैयिरीगल सराज़र, समगर नबू, सरसकीम, ख़्वाजासराओ का सरदार नैयिरीगल सराज़र मजूसियों का सरदार और शाह-ए-बाबुल के बाक़ी सरदार दाख़िल हुए और बीच के फाटक पर बैठे।
\s5
\v 4 और शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह और सब जंगी मर्द उनको देख कर भागे, और दोनों दीवारों के बीच जो फाटक शाही बाग़ के बराबर था, उससे वह रात ही रात भाग निकले और वीराने की राह ली।
\v 5 लेकिन कसदियों की फ़ौज ने उनका पीछा किया और यरीहू के मैदान में सिदक़ियाह को जा लिया, और उसको पकड़~कर रिब्ला में शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र के पास हमात के 'इलाक़े में ले गए; और उसने उस पर फ़तवा दिया।
\s5
\v 6 और शाह-ए-बाबुल ने सिदक़ियाह के बेटों को रिब्ला में उसकी ऑखों के सामने ज़बह किया, और यहूदाह के सब शुरफ़ा को भी क़त्ल किया।
\v 7 और उसने सिदक़ियाह की आँखें निकाल डालीं और बाबुल को ले जाने के लिए उसे ज़ंजीरों से जकड़ा।
\s5
\v 8 और कसदियों ने शाही महल को और लोगों के घरों को आग से जला दिया, और यरुशलीम की फ़सील को गिरा दिया।
\v 9 इसके बा'द जिलौदारों का सरदार नबूज़रादान बाक़ी लोगों को, जो शहर में रह गए थे और उनको जो उसकी तरफ़ होकर उसके पास भाग आए थे, या'नी क़ौम के सब बाक़ी लोगों को ग़ुलाम करके बाबुल को ले गया।
\v 10 लेकिन क़ौम के ग़रीबों को जिनके पास कुछ न था, जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान ने यहूदाह के मुल्क में रहने दिया और उसी वक़्त उनको ताकिस्तान और खेत बख़्शे।
\s5
\v 11 और शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र ने यरमियाह के बारे में जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान को ताकीद करके यूँ कहा,
\v 12 कि "उसे लेकर उस पर ख़ूब निगाह रख, और उसे कुछ दुख न दे, बल्कि तू उससे वही कर जो वह तुझे कहे।"
\v 13 तब जिलौदारों के सरदार नब्बूज़रादान, नाबूशज़बान ख़्वाजासराओं के~सरदार, और नैयिरिगल सराज़र, मजूसियों के सरदार, और बाबुल के सब सरदारों ने आदमी भेजकर
\v 14 यरमियाह को क़ैदख़ाने के सहन से~निकलवा लिया, और जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम-बिन-साफ़न के सुपुर्द किया कि उसे घर ले जाए। इसलिए वह लोगों के साथ रहने लगा।
\s5
\v 15 और जब यरमियाह क़ैदख़ाने के सहन में बन्द था, ख़ुदावन्द का यह कलाम उस पर नाज़िल हुआ:
\v 16 कि "जा, 'अब्द मलिक कूशी से कह, 'रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं अपनी बातें इस शहर की भलाई कि लिए नहीं, बल्कि ख़राबी के लिए पूरी करूँगा; और वह उस रोज़ तेरे सामने पूरी होंगी।
\s5
\v 17 लेकिन उस दिन मैं तुझे रिहाई दुँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और तू उन लोगों के हवाले न किया जाएगा जिनसे तू डरता है।
\v 18 ~क्यूँकि मैं तुझे ज़रूर बचाऊँगा और तू तलवार से मारा न जाएगा, बल्कि तेरी जान तेरे लिए ग़नीमत होगी; इसलिए कि तूने मुझ पर भरोसा किया, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।' "
\s5
\c 40
\p
\v 1 वह कलाम जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से~यरमियाह पर नाज़िल हुआ, इसके बा'द के जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान ने उसको रामा से रवाना कर दिया, जब उसने उसे हथकड़ियों से जकड़ा हुआ उन सब ग़ुलामों के बीच पाया जो यरुशलीम और यहूदाह के थे, जिनको ग़ुलाम करके बाबुल को ले जा रहे थे
\v 2 और जिलौदारों के सरदार ने यरमियाह को लेकर उससे कहा,कि "ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने इस बला की, जो इस जगह पर आई ख़बर दी थी।
\s5
\v 3 इसलिए ख़ुदावन्द ने उसे नाज़िल किया, और उसने अपने क़ौल के मुताबिक़ किया; क्यूँकि तुम लोगों ने ख़ुदावन्द का गुनाह किया और उसकी नहीं सुनी, इसलिए तुम्हारा ये हाल हुआ।
\v 4 और देख, आज मैं तुझे इन हथकड़ियों से जो तेरे हाथों में हैं रिहाई देता हूँ। अगर मेरे साथ बाबुल चलना तेरी नज़र में बेहतर हो, तो चल, और मैं तुझ पर ख़ूब निगाह रखूँगा; और अगर मेरे साथ बाबुल चलना तेरी नज़र में बुरा लगे, तो यहीं रह; तमाम मुल्क तेरे सामने है जहाँ तेरा जी चाहे और तू मुनासिब जाने वहीं चला जा।"
\s5
\v 5 वह वहीं था कि उसने फिर कहा, "तू जिदलियाह बिन अख़ीक़ाम बिन साफ़न के पास जिसे शाह-ए-बाबुल ने यहूदाह के शहरों का हाकिम किया है, चला जा और लोगों के बीच उसके साथ रह; वर्ना जहाँ तेरी नज़र में बेहतर हो वहीं चला जा।" और जिलौदारों के सरदार ने उसे ख़ुराक और इन'आम देकर रुख़्सत किया।
\v 6 तब यरमियाह जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम के पास मिस्फ़ाह में गया, और उसके साथ उन लोगों के बीच, जो उस मुल्क में बाक़ी रह गए थे रहने लगा।
\s5
\v 7 जब लश्करों के सब सरदारों ने और उनके आदमियों ने जो मैदान में रह गए थे, सुना के शाह-ए-बाबुल ने जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम को मुल्क का हाकिम मुक़र्रर किया है; और मर्दों और 'औरतों और बच्चों को, और ममलुकत के ग़रीबों को जो ग़ुलाम होकर बाबुल को न गए थे, उसके सुपुर्द किया है;
\v 8 तो इस्माईल-बिन-नतनियाह और यूहनान और यूनतन बनी क़रिह और सिरायाह- बिन-तनहुमत और बनी 'ईफ़ी नतुफ़ाती और~यज़नियाह-बिन-मा'काती अपने आदमियों के साथ जिदलियाह के पास मिस्फ़ाह में आए।
\s5
\v 9 और जिद्लियाह-बिन-अखिक़ाम-बिन-साफ़न ने उन से और उन के आदमियों से क़सम खाकर कहा, "तुम कसदियों की ख़िदमत गुज़ारी से न डरो। अपने मुल्क में बसो, और शाह-ए-बाबुल की ख़िदमत करो तो तुम्हारा भला होगा।
\v 10 देखो, मैं तो इसलिए मिस्फ़ाह में रहता हूँ कि जो कसदी हमारे पास आएँ, उनकी ख़िदमत में हाज़िर रहूँ पर तुम मय और ताबिस्तानी मेवे, और तेल जमा' करके अपने बर्तनों में रख्खो, और अपने शहरो में जिन पर तुम ने क़ब्ज़ा किया है बसो।"
\s5
\v 11 और इसी तरह जब उन सब यहूदियों ने जो मोआब और बनी 'अम्मोन और अदोम' और तमाम मुमालिक में थे, सुना कि शाह-ए-बाबुल ने यहूदाह के चन्द लोगों को रहने दिया है, और जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम-बिन-साफ़न को उन पर हाकिम मुक़र्रर किया है;
\v 12 तो सब यहूदी हर जगह से, जहाँ वह तितर-बितर किए गए थे, लौटे और यहूदाह के मुल्क में मिस्फ़ाह में जिदलियाह के पास आए, और मय और ताबिस्तानी मेवे कसरत से जमा' किए।
\s5
\v 13 और यूहनान-बिन-क़रीह और लश्करों के सब सरदार जो मैदानों में थे, मिस्फ़ाह में जिदलियाह के पास आए
\v 14 और उससे कहने लगे, "क्या तू जानता है कि बनी 'अम्मोन के बादशाह बा'लीस ने इस्माईल-बिन-नतनियाह को इसलिए भेजा है कि तुझे क़त्ल करे?" लेकिन जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम ने उनका यक़ीन न किया।
\s5
\v 15 और यूहनान-बिन-क़रीह ने मिस्फ़ाह में जिदलियाह से तन्हाई में कहा, "इजाज़त हो तो मैं इस्माईल-बिन-नतनियाह को क़त्ल करूँ, और इसको कोई न जानेगा; वह क्यूँ तुझे क़त्ल करे, और सब यहूदी जो तेरे पास जमा' हुए हैं, तितर-बितर किए जाएँ, और यहूदाह के बाक़ी मान्दा लोग हलाक हों?"
\v 16 लेकिन~जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम ने यूहनान-बिन-क़रीह से कहा, "तू ऐसा काम हरगिज़ न करना, क्यूँकि तू इस्माईल के बारे में झूट कहता है।"
\s5
\c 41
\p
\v 1 और सातवें महीने में यूँ हुआ कि इस्माईल बिन-नतनियाह-बिन-इलीसमा' जो शाही नसल से और बादशाह के सरदारों में से था, दस आदमी साथ लेकर जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम के पास मिस्फ़ाह में आया; और उन्होंने वहाँ मिस्फ़ाह में मिल कर खाना खाया।
\v 2 तब इस्मा'ईल-बिन-नतनियाह उन दस आदमियों के साथ जो उसके साथ थे उठा और~जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम बिन साफ़न को~जिसे शाह-ए-बाबुल ने मुल्क का हाकिम मुक़र्रर किया था, तलवार से मारा और उसे क़त्ल किया।
\v 3 और इस्माईल ने उन सब यहूदियों को जो जिदलियाह के साथ मिस्फ़ाह में थे, और कसदी सिपाहियों को जो वहाँ हाज़िर थे क़त्ल किया।
\s5
\v 4 जब वह जिदलियाह को मार चुका, और किसी को ख़बर न हुई, तो उसके दूसरे दिन यूँ हुआ|
\v 5 कि सिक्म और सैला और सामरिया से कुछ लोग जो सब के सब अस्सी आदमी थे, दाढ़ी मुंडाए और कपड़े फाड़े और अपने आपको घायल किए और हदिये और लुबान हाथों में लिए हुए वहाँ आए, ताकि ख़ुदावन्द के घर में पेश करें।
\s5
\v 6 और इस्मा'ईल-बिन-नतनियाह मिस्फ़ाह से उनके इस्तक़बाल को निकला, और रोता हुआ चला; और यूँ हुआ कि जब वह उनसे मिला तो उनसे कहने लगा कि जिदलियाह बिन अख़ीक़ाम के पास चलो।"
\v 7 और फिर जब वह शहर के वस्त में पहुँचे, तो इस्माईल-बिन-नतनियाह और उसके साथियों ने उनको क़त्ल करके हौज़ में फेंक दिया।
\s5
\v 8 लेकिन उनमें से दस आदमी थे जिन्होंने इस्मा'ईल से कहा, "हम को क़त्ल न कर, क्यूँकि हमारे गेहूँ और जौ और तेल और शहद के ज़ख़ीरे खेतों में पोशीदा हैं।" इसलिए वह बाज़ रहा और उनको उनके भाइयों के साथ क़त्ल न किया।
\v 9 वह हौज़ जिसमें इस्माईल ने उन लोगों की लाशों को फेंका था, जिनको उसने जिदलियाह के साथ क़त्ल किया (वही है जिसे आसा बदशाह ने शाह-ए-इस्राईल बाशा के डर से बनाया था) और इस्मा'ईल-बिन-नतनियाह ने उसको मक़्तूलों की लाशों से भर दिया।
\s5
\v 10 तब इस्माईल बाक़ी सब लोगों को, या'नी शहज़ादियों और उन सब लोगों को जो मिस्फ़ाह में रहते थे जिनको जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान ने जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम के सुपुर्द किया था, ग़ुलाम करके ले गया; इस्मा'ईल-बिन-नतनियाह उनको ग़ुलाम करके रवाना हुआ कि पार होकर बनी 'अम्मोन में जा पहुँचे।
\s5
\v 11 लेकिन जब यूहनान-बिन-क़रीह ने और लश्कर कि सब सरदारों ने जो उसके साथ थे, इस्माईल-बिन-नतनियाह की तमाम शरारत के बारे में जो उसने की थी सुना,
\v 12 तो वह सब लोगों को लेकर उससे लड़ने को गए और जिबा'ऊन के बड़े तालाब पर उसे जा लिया।
\s5
\v 13 और यूँ हुआ कि जब उन सब लोगों ने जो इस्माईल के साथ थे यूहनान-बिन-क़रीह को और उसके साथ सब फ़ौजी सरदारों को देखा, तो वह ख़ुश हुए।
\v 14 तब वह सब लोग जिनको इस्मा'ईल मिस्फ़ाह से पकड़ ले गया था, पलटे और यूहनान-बिनक़रीह के पास वापस आए।
\s5
\v 15 लेकिन इस्मा'ईल-बिन-नतनियाह आठ आदमियों के साथ यूहनान के सामने से भाग निकला और बनी 'अमोन की तरफ़ चला गया।
\v 16 तब यूहनान-बिन" क़रीह और वह फ़ौजी सरदार जो उसके हमराह थे, सब बाक़ी मान्दा लोगों को वापस लाए, जिनको इस्माइल बिन नतनियाह जिदलियाह बिन-अख़ीक़ाम को क़त्ल करने के बा'द मिस्फ़ाह से ले गया था या'नी जंगी मर्दों और 'औरतों और लड़कों और ख़्वाजासराओं को, जिनको वह जिबा'ऊन से वापस लाया था।
\s5
\v 17 और वह रवाना हुए और सराय-ए-किमहाम में जो बैतलहम के नज़दीक है,आ रहे ताकि मिस्र को जाएँ।
\v 18 क्यूँकि वह कसदियों से डरे; इसलिए कि इस्मा'ईल-बिन-नतनियाह ने जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम को, जिसे शाहए-बाबुल ने उस मुल्क पर हाकिम मुक़र्रर किया था, क़त्ल कर डाला।
\s5
\c 42
\p
\v 1 तब सब फ़ौजी सरदार और यूहनान बिन क़रीह और यजनियाह बिन हूसाइयाह और अदना-ओ-'आला, सब लोग आए
\v 2 ~और यरमियाह नबी से कहा, "तू देखता है कि हम बहुतों में से चन्द ही रह गए हैं; हमारी दरख़्वास्त क़ुबूल कर और अपने ख़ुदावन्द ख़ुदा से हमारे लिए, हाँ, इस तमाम बक़िये के लिए दु'आ कर,
\v 3 ~ताकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा, हमको, वह राह जिसमें हम चलें और वह काम जो हम करें बतला दे।"
\s5
\v 4 ~तब यरमियाह नबी ने उनसे कहा, "मैंने सुन लिया, देखो, अब मैं ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा से तुम्हारे कहने के मुताबिक़ दु'आ करूँगा; और जो जवाब ख़ुदावन्द तुम को देगा, मैं तुम को सुनाऊँगा। मैं तुम से कुछ न छिपाऊँगा।"
\v 5 ~और उन्होंने यरमियाह से कहा कि "जो कुछ ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा, तेरे ज़रिए' हम से फ़रमाए, अगर हम उस पर 'अमल न करें तो ख़ुदावन्द हमारे ख़िलाफ़ सच्चा और वफ़ादार गवाह हो।
\v 6 चाहे भला मा'लूम हो चाहे बुरा, हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का हुक्म, जिसके सामने हम तुझे भेजते हैं मानेंगे; ताकि जब हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की फ़रमाँबरदारी करें तो हमारा भला हो।"
\s5
\v 7 ~अब दस दिन के बा'द यूँ हुआ कि ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ।
\v 8 ~और उसने यूहनान-बिन-क़रीह और सब फ़ौजी सरदारों को जो उसके साथ थे, और अदना-ओ-आ'ला सबको बुलाया,
\v 9 ~और उनसे कहा, "ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा, जिसके पास तुम ने मुझे भेजा कि मैं उसके सामने तुम्हारी दरख़्वास्त पेश करूँ, यूँ फ़रमाता है:
\v 10 अगर तुम इस मुल्क में ठहरे रहोगे, तो मैं तुम को बर्बाद नहीं बल्कि आबाद करूँगा और उखाड़ूँ नहीं लगाऊँगा, क्यूँकि मैं उस बुराई से जो मैंने तुम से की है बाज़ आया।
\s5
\v 11 शाह-ए-बाबुल से, जिससे तुम डरते हो, न डरो ख़ुदावन्द फ़रमाता है; उससे न डरो, क्यूँकि मैं तुम्हारे साथ हूँ कि तुम को बचाऊँ और उसके हाथ से छुड़ाऊँ।
\v 12 मैं तुम पर रहम करूँगा, ताकि वह तुम पर रहम करे और तुम को तुम्हारे मुल्क में वापस जाने की इजाज़त दे।
\s5
\v 13 ~लेकिन अगर तुम कहो कि 'हम फिर इस मुल्क में न रहेंगे,' और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात न मानेंगे;
\v 14 ~और कहो कि 'नहीं, हम तो मुल्क-ए-मिस्र में जाएँगे, जहाँ न लड़ाई देखेंगे न तुरही की आवाज़ सुनेंगे, न भूक से रोटी को तरसेंगे और हम तो वहीं बसेंगे,"
\s5
\v 15 ~तो ऐ यहूदाह के बाक़ी लोगों, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो। रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: अगर तुम वाक़'ई मिस्र में जाकर बसने पर आमादा हो,
\v 16 तो यूँ होगा कि वह तलवार जिससे तुम डरते हो, मुल्क-ए-मिस्र में तुम को जा लेगी, और वह काल जिससे तुम हिरासान हो, मिस्र तक तुम्हारा पीछा करेगा और तुम वहीं मरोगे।
\v 17 बल्कि यूँ होगा कि वह सब लोग जो मिस्र का रुख़ करते हैं कि वहाँ जाकर रहें, तलवार और काल और वबा से मरेंगे: उनमें से कोई बाक़ी न रहेगा और न कोई उस बला से जो मैं उन पर नाज़िल करूँगा बचेगा।
\s5
\v 18 ~"क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: जिस तरह मेरा क़हर-ओ-ग़ज़ब यरुशलीम के बाशिन्दों पर नाज़िल हुआ, उसी तरह मेरा क़हर तुम पर भी, जब तुम मिस्र में दाख़िल होगे, नाज़िल होगा और तुम ला'नत-ओ-हैरत और तान-ओ-तशनी' का ज़रिया' होगे; और इस मुल्क को तुम फिर न देखोगे।
\v 19 ऐ यहूदाह के बाक़ी मान्दा लोगों, ख़ुदावन्द ने तुम्हारे बारे में फ़रमाया है, कि 'मिस्र में न जाओ," यक़ीन जानो कि मैंने आज तुम को जता दिया है।
\s5
\v 20 ~हक़ीक़त में तुमने अपनी जानों को फ़रेब दिया है, क्यूँकि तुम ने मुझ को ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने यूँ कहकर भेजा, कि 'तू ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा से हमारे लिए दु'आ कर और जो कुछ ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा कहे, हम पर ज़ाहिर कर और हम उस पर 'अमल करेंगे।'
\v 21 और मैंने आज तुम पर यह ज़ाहिर कर दिया है; तो भी तुमने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आवाज़ को, या किसी बात को जिसके लिए उसने मुझे तुम्हारे पास भेजा है, नहीं माना।
\v 22 ~अब तुम यक़ीन जानो कि तुम उस मुल्क में जहाँ जाना और रहना चाहते हो, तलवार और काल और वबा से मरोगे।"
\s5
\c 43
\p
\v 1 ~और यूँ हुआ कि जब यरमियाह सब लोगों से वह सब बातें, जो ख़ुदावन्द उनके ख़ुदा ने उसके ज़रिए' फ़रमाईं थीं, या'नी यह सब बातें कह चुका,
\v 2 ~तो अज़रियाह बिन होसियाह और यूहनान बिन क़रीह और सब मग़रूर लोगों ने यरमियाह से यूँ कहा कि, "तू झूट बोलता है; ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने तुझे यह कहने को नहीं भेजा, 'मिस्र में बसने को न जाओ,'
\v 3 ~बल्कि बारूक-बिन-नैयिरियाह तुझे उभारता है कि तू हमारे मुखालिफ़ हो, ताकि हम कसदियों के हाथ में गिरफ़्तार हों और वह हमको क़त्ल करें और ग़ुलाम करके बाबुल को ले जाएँ।"
\s5
\v 4 तब यूहनान-बिन-क़रीह और सब फ़ौजी सरदारों और सब लोगों ने ख़ुदावन्द का यह हुक्म कि वह यहूदाह के मुल्क में रहें, न माना।
\v 5 ~~लेकिन यूहनान-बिन-क़रीह और सब फ़ौजी सरदारों ने यहूदाह के सब बाक़ी लोगों को, जो तमाम क़ौमों में से जहाँ-जहाँ वह तितर-बितर किए गए थे और यहूदाह के मुल्क में बसने को वापस आए थे, साथ लिया;
\v 6 ~या'नी मर्दों और 'औरतों और बच्चों और शाहज़ादियों और जिस किसी को जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान ने जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम-बिन-साफ़न के साथ छोड़ा था, और यरमियाह नबी और बारूक-बिन-नैयिरियाह को साथ लिया;
\v 7 ~और वह मुल्क-ए-मिस्र में आए, क्यूँकि उन्होंने ख़ुदावन्द का हुक्म न माना, इसलिए वह तहफ़नहीस में पहुँचे।
\s5
\v 8 ~तब ख़ुदावन्द का कलाम तहफ़नहीस में यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 9 ~कि "बड़े पत्थर अपने हाथ में ले, और उनको फ़िर'औन के महल के मदख़ल पर जो तहफ़नहीस में है, बनी यहूदाह की आँखों के सामने चूने से फ़र्श में लगा;
\v 10 और उनसे कह कि ~'रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है: देखो, मैं अपने ख़िदमत गुज़ार शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र को बुलाऊँगा, और इन पत्थरों पर जिनको मैंने लगाया है, उसका तख़्त रख्खूंगा, और वह इन पर अपना क़ालीन बिछाएगा।
\s5
\v 11 ~और वह आकर मुल्क-ए- मिस्र को शिकस्त देगा; और जो मौत के लिए हैं मौत के, और जो ग़ुलामी के लिए हैं ग़ुलामी के, और जो तलवार के लिए हैं तलवार के हवाले करेगा।
\v 12 और मैं मिस्र के बुतख़ानों में आग भड़काऊँगा, और वह उनको जलाएगा और ग़ुलाम करके ले जाएगा; और जैसे चरवाहा अपना कपड़ा लपेटता है, वैसे ही वह ज़मीन-ए-मिस्र को लपेटेगा; और वहाँ से सलामत चला जाएगा।
\v 13 ~और वह बैतशम्स के सुतूनों को, जो मुल्क-ए-मिस्र में हैं तोड़ेगा और मिस्रियों के बुतख़ानों को आग से जला देगा।'~
\s5
\c 44
\p
\v 1 ~ वह कलाम जो उन सब यहूदियों के बारे में जो मुल्क-ए-मिस्र में मिजदाल के 'इलाक़े और तहफ़नीस और नूफ़ और फ़तरूस में बसते थे, यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 2 ~कि 'रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: तुम ने वह तमाम मुसीबत जो मैं यरुशलीम पर और यहूदाह के सब शहरों पर लाया हूँ, देखी; और देखो, अब वह वीरान और ग़ैर आबाद हैं।
\v 3 उस शरारत की वजह से जो उन्होंने मुझे गज़बनाक करने को की, क्यूँकि वह ग़ैर-मा'बूदों के आगे ख़ुशबू ~जलाने को गए, और उनकी 'इबादत की जिनको न वह जानते थे, न तुम न तुम्हारे बाप-दादा।
\s5
\v 4 और मैंने अपने तमाम ख़िदमत-गुज़ार नबियों को तुम्हारे पास भेजा, उनको वक़्त पर यूँ कह कर भेजा कि तुम यह नफ़रती काम, जिससे मैं नफ़रत रखता हूँ, न करो।
\v 5 ~लेकिन उन्होंने न सुना, न कान लगाया कि अपनी बुराई से बाज़ आएँ, और ग़ैर-मा'बूदों के आगे ख़ुशबू न जलाएँ।
\v 6 ~इसलिए मेरा क़हर-ओ-ग़ज़ब नाज़िल हुआ, और यहूदाह के शहरों और यरुशलीम के बाज़ारों पर भड़का;" और वह ख़राब और वीरान हुए जैसे अब हैं।
\s5
\v 7 और अब ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: तुम क्यूँ अपनी जानों से ऐसी बड़ी बुराई करते हो, कि यहूदाह में से मर्द-ओ-ज़न और तिफ़्ल-ओ-शीर ख़्वार काट डालें जाएँ और तुम्हारा कोई बाक़ी न रहे;
\v 8 ~कि तुम मुल्क-ए-मिस्र में, जहाँ तुम बसने को गए हो, अपने 'आमाल से और ग़ैर-मा'बूदों के आगे ख़ुशबू जलाकर मुझको ग़ज़बनाक करते हो, कि हलाक किए जाओ और इस ज़मीन की सब क़ौमों के बीच ला'नत-ओ-मलामत का ज़रिया' बनो।
\s5
\v 9 ~क्या तुम अपने बाप-दादा की शरारत और यहूदाह के बादशाहों और उनकी बीवियों की और ख़ुद अपनी और अपनी बीवियों की शरारत, जो तुम ने यहूदाह के मुल्क में और यरुशलीम के बाज़ारों में की, भूल गए हो?
\v 10 ~वह आज के दिन तक न फ़रोतन हुए, न डरे और मेरी शरी'अत-ओ-आईन पर, जिनको मैंने तुम्हारे और तुम्हारे बाप-दादा के सामने रख्खा, न चले।
\s5
\v 11 ~"इसलिए रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है: देखो, मैं तुम्हारे ख़िलाफ़ ज़ियानकारी पर आमादा हूँ ताकि तमाम यहूदाह को हलाक करूँ ।
\v 12 और मैं यहूदाह के बाक़ी लोगों को, जिन्होंने मुल्क-ए-मिस्र का रुख़ किया है कि वहाँ जाकर बसें, पकड़ूँगा; और वह मुल्क-ए-मिस्र ही में हलाक होंगे, वह तलवार और काल से हलाक होंगे; उनके अदना-ओ-'आला हलाक होंगे और वह तलवार और काल से फ़ना हो जाएँगे; और ला'नत-ओ-हैरत और ता'न-ओ-तशनी' का ज़रिया' होंगे।
\s5
\v 13 ~और मैं उनको जो मुल्क-ए- मिस्र में बसने को जाते हैं, उसी तरह सज़ा दूँगा जिस तरह मैंने यरुशलीम को तलवार और काल और वबा से सज़ा दी है;
\v 14 तब यहूदाह के बाक़ी लोगों में से, जो मुल्क-ए- मिस्र में बसने को जाते हैं, न कोई बचेगा, न बाक़ी रहेगा कि वह यहूदाह की सरज़मीन में वापस आएँ, जिसमें आकर बसने के वह मुश्ताक़ हैं; क्यूँकि भाग कर बच निकलने वालों के अलावा कोई वापस न आएगा।"
\s5
\v 15 तब सब मर्दों ने, जो जानते थे कि उनकी बीवियों ने ग़ैर-मा'बूदों के लिए ख़ुशबू ~जलायी है, और सब 'औरतों ने जो पास खड़ी थीं, एक बड़ी जमा'अत या'नी सब लोगों ने जो मुल्क-ए-मिस्र में फ़तरूस में जा बसे थे, यरमियाह को यूँ जवाब दिया:
\v 16 कि "यह बात जो तूने ख़ुदावन्द का नाम लेकर हम से कही, हम कभी न मानेंगे।
\v 17 बल्कि हम तो उसी बात पर 'अमल करेंगे, जो हम ख़ुद कहते हैं कि हम आसमान की मलिका के लिए ख़ुशबू जलाएँगे और तपावन तपाएँगे, जिस तरह हम और हमारे बाप-दादा, हमारे बादशाह और हमारे सरदार, यहूदाह के शहरों और यरुशलीम के बाज़ारों में किया करते थे; क्यूँकि उस वक़्त हम ख़ूब खाते-पीते और ख़ुशहाल और मुसीबतों से महफ़ूज़ थे।
\s5
\v 18 लेकिन जबसे हम ने आसमान की मलिका के लिए ख़ुशबू जलाना और तपावन तपाना छोड़ दिया, तब से हम हर चीज़ के मोहताज हैं, और तलवार और काल से फ़ना हो रहे हैं।
\v 19 और जब हम आसमान की मलिका के लिए ख़ुशबू जलाती और तपावन तपाती थीं, तो क्या हम ने अपने शौहरों के बग़ैर, उसकी 'इबादत के लिए कुल्चे पकाए और तपावन तपाए थे?"
\s5
\v 20 ~तब यरमियाह ने उन सब मर्दों और 'औरतों या'नी उन सब लोगों से, जिन्होंने उसे~जवाब दिया था, कहा,
\v 21 ~"क्या वह ख़ुशबू, जो तुम ने और तुम्हारे बाप दादा और तुम्हारे बादशाहों और हाकिम ने र'इयत के साथ यहूदाह के शहरों और यरुशलीम के बाज़ारों में जलाया, ख़ुदावन्द को याद नहीं? क्या वह उसके ख़याल में नहीं आया?
\s5
\v 22 इसलिए तुम्हारे बद'आमाल और नफ़रती कामों की वजह से ख़ुदावन्द बर्दाश्त न कर सका; इसलिए तुम्हारा मुल्क वीरान हुआ और हैरत-ओ-ला'नत का ज़रिया' बना, जिसमें कोई बसने वाला न रहा, जैसा कि आज के दिन है।
\v 23 ~चूँकि तुम ने ख़ुशबू जलाया और ख़ुदावन्द के गुनाहगार ठहरे, और उसकी आवाज़ को न सुना और न उसकी शरी'अत, न उसके क़ानून, न उसकी शहादतों पर चले; इसलिए यह मुसीबत जैसी कि अब है, तुम पर आ पड़ी।"
\s5
\v 24 ~और यरमियाह ने सब लोगों और~सब 'औरतों से यूँ कहा कि "ऐ तमाम बनी यहूदाह, जो मुल्क-ए-मिस्र में हो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो।
\v 25 रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: तुम ने और तुम्हारी बीवियों ने अपनी ज़बान से कहा कि 'आसमान की मलिका के लिए ख़ुशबू जलाने और तपावन तपाने की जो नज़्रें हम ने मानी हैं, ज़रूर अदा करेंगे," और तुमने अपने हाथों से ऐसा ही किया; इसलिए अब तुम अपनी~नज़्रों~को क़ायम रख्खो और अदा करो
\s5
\v 26 ~इसलिए ऐ तमाम बनी यहूदाह, जो मुल्क-ए-मिस्र में बसते हो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो; देखो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मैंने अपने बुज़ुर्ग नाम की क़सम खाई है कि अब मेरा नाम यहूदाह के लोगों में तमाम मुल्क-ए-मिस्र में किसी के मुँह से न निकलेगा, कि वह कहें ज़िन्दा ख़ुदावन्द ख़ुदा की क़सम।
\v 27 ~देखो, मैं नेकी कि लिए नहीं, बल्कि बुराई के लिए उन पर निगरान हूँगा; और यहूदाह के सब लोग, जो मुल्क-ए-मिस्र में हैं, तलवार और काल से हलाक होंगे यहाँ तक कि बिल्कुल नेस्त हो जाएँगे।
\v 28 और वह जो तलवार से बचकर मुल्क-ए-मिस्र से यहूदाह के मुल्क में वापस आएँगे, थोड़े से होंगे और यहूदाह के तमाम बाक़ी लोग, जो मुल्क-ए-मिस्र में बसने को गए, जानेंगे कि किसकी बात क़ायम रही, मेरी या उनकी।
\s5
\v 29 ~और तुम्हारे लिए यह निशान है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि मैं इसी जगह तुम को सज़ा दूँगा, ताकि तुम जानो कि तुम्हारे ख़िलाफ़ मेरी बातें मुसीबत के बारे में यक़ीनन क़ायम रहेंगी:
\v 30 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि देखो, मैं शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन हुफ़रा' को उसके मुख़ालिफ़ों और जानी दुश्मनों के हवाले कर दूँगा; जिस तरह मैंने शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह को शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र के हवाले कर दिया, जो उसका मुख़ालिफ़ और जानी दुश्मन था।"
\s5
\c 45
\p
\v 1 शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम बिन यूसियाह के चौथे बरस में, जब बारूक-बिन-नैयिरियाह यरमियाह की ज़बानी कलाम की किताब में लिख रहा था, जो यरमियाह ने उससे कहा:
\v 2 "ऐ बारूक, ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, तेरे बारे में यूँ फ़रमाता है:
\v 3 ~कि तूने कहा, 'मुझ पर अफ़सोस! कि ख़ुदावन्द ने मेरे दुख-दर्द पर ग़म भी बढ़ा दिया; मैं कराहते-कराहते थक गया और मुझे आराम न मिला।'
\s5
\v 4 ~तू उससे यूँ कहना, कि ख़ुदावन्द फ़रमाता है: देख, इस तमाम मुल्क में, जो कुछ मैंने बनाया गिरा दूँगा, और जो कुछ मैंने लगाया उखाड़ फेकूँगा।
\v 5 ~और क्या तू अपने लिए उमूर-ए-'अज़ीम की तलाश में है? उनकी तलाश छोड़ दे; क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है: देख, मैं तमाम बशर पर बला नाज़िल करूँगा ; लेकिन जहाँ कहीं तू जाए तेरी जान तेरे लिए ~ग़नीमत ठहराऊँगा।"
\s5
\c 46
\p
\v 1 ख़ुदावन्द का कलाम जो यरमियाह नबी पर क़ौमों के बारे में नाज़िल हुआ।
\v 2 मिस्र के बारे में शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन निकोह की फ़ौज के बारे में जो दरिया-ए-फ़रात के किनारे पर करकिमीस में थी, जिसको शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र ने शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम-बिन-यूसियाह के चौथे बरस में शिकस्त दी:
\v 3 सिपर और ढाल को तैयार करो, और लड़ाई पर चले आओ।
\v 4 घोड़ों पर साज़ लगाओ; ऐ सवारो, तुम सवार हो और ख़ोद पहनकर निकलो, नेज़ों को सैक़ल करो, बक्तर पहिनो!
\s5
\v 5 मैं उनको घबराए हुए क्यूँ देखता हूँ? वह पलट गए; उनके बहादुरों ने शिकस्त खाई, वह भाग निकले और पीछे फिरकर नहीं देखते क्यूँकि चारों तरफ़ खौफ़ है ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 6 न सुबुकपा भागने पाएगा, न बहादुर बच निकलेगा; उत्तर में दरिया-ए-फ़रात के किनारे उन्होंने ठोकर खाई और गिर पड़े।
\s5
\v 7 'यह~कौन है जो दरिया-ए-नील की तरह बढ़ा चला आता है, जिसका पानी सैलाब की तरह मौजज़न है?
\v 8 मिस्र नील की तरह उठता है, और उसका पानी सैलाब की तरह मौजज़न है; और वह कहता है, 'मैं चढ़ूँगा और ज़मीन को छिपा लूँगा मैं शहरों को और उनके बशिन्दों को हलाक कर दूँगा।'
\v 9 घोड़े बरअन्गेख़ता हों, रथ हवा हो जाएँ, और कूश-ओ-फ़ूत के बहादुर जो सिपरबरदार हैं, और लूदी जो कमानकशी और तीरअन्दाज़ी में माहिर हैं, निकलें।
\s5
\v 10 क्यूँकि यह ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज का दिन, या'नी इन्तक़ाम का रोज़ है, ताकि वह अपने दुश्मनों से इन्तक़ाम ले। इसलिए तलवार खा जाएगी और सेर होगी, और उनके ख़ून से मस्त होगी; क्यूँकि ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज के लिए उत्तरी सरज़मीन में दरिया-ए-फ़रात के किनारे एक ज़बीहा है।
\s5
\v 11 ऐ कुँवारी दुख़्तर-ए-मिस्र, जिल'आद को चढ़ जा और बलसान ले, तू बे-फ़ायदा तरह तरह की दवाएँ इस्ते'माल करती है तू शिफ़ा न पाएगी।
\v 12 क़ौमों ने तेरी रुस्वाई का हाल सुना, और ज़मीन तेरी फ़रियाद से मा'मूर हो गई, क्यूँकि बहादुर एक दूसरे से टकराकर एक साथ गिर गए।"
\s5
\v 13 वह कलाम जो ख़ुदावन्द ने यरमियाह नबी को शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र के आने और मुल्क-ए-मिस्र को शिकस्त देने के बारे में फ़रमाया:
\v 14 "मिस्र में आशकारा करो, मिजदाल में इश्तिहार दो; हाँ, नूफ़ और तहफ़नहीस में 'ऐलान करो; कहो कि 'अपने आपको तैयार कर; क्यूँकि तलवार तेरी चारों तरफ़ खाये जाती है।'
\s5
\v 15 तेरे बहादुर क्यूँ भाग गए? वह खड़े न रह सके, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनको गिरा दिया।
\v 16 उसने बहुतों को गुमराह किया, हाँ, वह एक दूसरे पर गिर पड़े; और उन्होंने कहा, 'उठो, हम मुहलिक तलवार के ज़ुल्म से अपने लोगों में और अपने वतन को फिर जाएँ।'
\v 17 वह वहाँ चिल्लाए कि 'शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन बर्बाद हुआ; उसने मुक़र्ररा वक़्त को गुज़र जाने दिया।'
\s5
\v 18 'वह बादशाह, जिसका नाम रब्ब-उल-अफ़वाज है, यूँ फ़रमाता है कि मुझे अपनी हयात की क़सम, जैसा तबूर पहाड़ों में और जैसा कर्मिल समन्दर के किनारे है, वैसा ही वह आएगा।
\v 19 ऐ बेटी, जो मिस्र में रहती है ग़ुलामी में जाने का सामान कर; क्यूँकि नूफ़ वीरान और भसम होगा, उसमें कोई बसने वाला न रहेगा।
\s5
\v 20 "मिस्र बहुत ख़ूबसूरत बछिया है; लेकिन उत्तर से तबाही आती है, बल्कि आ पहुँची।
\v 21 उसके मज़दूर सिपाही भी उसके बीच मोटे बछड़ों की तरह हैं; लेकिन वह भी शुमार हुए, वह इकट्ठे भागे, वह खड़े न रह सके; क्यूँकि उनकी हलाकत का दिन उन पर आ गया, उनकी सज़ा का वक़्त आ पहुँचा।
\v 22 'वह साँप की तरह चिलचिलाएगी; क्यूँकि वह फ़ौज लेकर चढ़ाई करेंगे, और कुल्हाड़े लेकर लकड़हारों की तरह उस पर चढ़ आएँगे।
\s5
\v 23 वह उसका जंगल काट डालेंगे, अगरचे वह ऐसा घना है कि कोई उसमें से गुज़र नहीं सकता ख़ुदावन्द फ़रमाता है क्यूँकि वह टिड्डियों से ज़्यादा बल्कि बेशुमार हैं।
\v 24 दुख़्तर-ए-मिस्र रुस्वा होगी, वह उत्तरी लोगों के हवाले की जाएगी।"
\s5
\v 25 रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, फ़रमाता है: "देख, मैं आमून-ए-नो को, और फ़िर'औन और मिस्र और उसके मा'बूदों, और उसके बादशाहों को; या'नी फ़िर'औन और उनको जो उस पर भरोसा रखते हैं, सज़ा दूँगा;
\v 26 और मैं उनको उनके जानी दुश्मनों, और शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र और उसके मुलाज़िमों के हवाले कर दूँगा; लेकिन इसके बा'द वह फिर ऐसी आबाद होगी, जैसी अगले दिनों में थी, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 27 "लेकिन मेरे ख़ादिम या'क़ूब, हिरासाँ न हो; और ऐ इस्राईल, घबरा न जा; क्यूँकि देख, मैं तुझे दूर से, और तेरी औलाद को उनकी ग़ुलामी की ज़मीन से रिहाई दूँगा; और या'क़ूब वापस आएगा और आराम-ओ-राहत से रहेगा, और कोई उसे न डराएगा।
\v 28 ऐ मेरे ख़ादिम या'क़ूब, हिरासाँ न हो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; क्यूँकि मैं तेरे साथ हूँ। अगरचे मैं उन सब क़ौमों को जिनमें मैंने तुझे हाँक दिया, हलाक-ओ-बर्बाद करूँ तों भी मै तुझे~हलाक-ओ-बर्बाद~न करूँगा; बल्कि मुनासिब तम्बीह करूँगा और हरगिज़ बे-सज़ा~न छोड़ूँगा
\s5
\c 47
\p
\v 1 ख़ुदावन्द का कलाम जो यरमियाह नबी पर फ़िलिस्तियों के बारे में नाज़िल हुआ, इससे पहले कि फ़िर'औन ने ग़ज़्ज़ा को फ़तह किया |
\v 2 "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देख, उत्तर से पानी चढ़ेंगे और सैलाब की तरह होंगे, और मुल्क पर और सब पर जो उसमें है, शहर पर और उसके बाशिन्दों पर, बह निकलेंगे। उस वक़्त लोग चिल्लाएँगे, और मुल्क के सब बाशिन्दे फ़रियाद करेंगे।
\s5
\v 3 उसके ताकतवर घोड़ों के खुरों की टाप की आवाज़ से, उसके रथों के रेले और उसके पहियों की गड़गड़ाहट से बाप कमज़ोरी की वजह से अपने बच्चों की तरफ़ लौट कर न देखेंगे।
\v 4 ~यह उस दिन की वजह से होगा, जो आता है कि सब फ़िलिस्तियों को ग़ारत करे, और सूर और सैदा से हर मददगार को जो बाक़ी रह गया है हलाक करे; क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़िलिस्तियों को या'नी कफ़तूर के जज़ीरे के बाक़ी लोगों को ग़ारत करेगा।
\s5
\v 5 ~ग़ज़्ज़ा पर चन्दलापन आया है, अस्क़लोन अपनी वादी के बक़िये के साथ हलाक किया गया, तू कब तक अपने आप को काटता जाएगा
\v 6 ~"ऐ ख़ुदावन्द की तलवार, तू कब तक न ठहरेगी? तू चल, अपने ग़िलाफ़ में आराम ले, और साकिन हो!
\v 7 ~वह कैसे ठहर सकती है, जब कि ख़ुदावन्द ने अस्क़लोन और समन्दर के साहिल के ख़िलाफ़ उसे हुक्म दिया है? उसने उसे वहाँ मुक़र्रर किया है।"
\s5
\c 48
\p
\v 1 मोआब के बारे में। रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: "नबू पर अफ़सोस, कि वह वीरान हो गया! क़रयताइम रुस्वा हुआ, और ले लिया गया; मिसजाब ख़जिल और पस्त हो गया।
\v 2 अब मोआब की ता'रीफ़ न होगी। हस्बोन में उन्होंने यह कह कर उसके ख़िलाफ़ मंसूबे बाँधे हैं कि: 'आओ, हम उसे बर्बाद करें कि वह क़ौम न कहलाए," ऐ मदमेन तू भी काट डाला जाएगा; तलवार तेरा पीछा करेगी।
\s5
\v 3 'होरोनायिम में चीख़ पुकार, 'वीरानी और बड़ी तबाही होगी।'
\v 4 ~मोआब बर्बाद हुआ; उसके बच्चों के नौहे की आवाज़ सुनाई देती है।
\v 5 ~क्यूँकि लूहीत की चढ़ाई पर आह-ओ-नाला करते हुए चढ़ेंगे यक़ीनन होरोनायिम की उतराई पर मुख़ालिफ़ हलाकत के जैसी आवाज़ सुनते हैं।
\s5
\v 6 भागो! अपनी जान बचाओ! वीराने में रतमा के दरख़्त की तरह हो जाओ!
\v 7 और चूँकि तूने अपने कामों और ख़ज़ानों पर भरोसा किया इसलिए तू भी गिरफ़्तार होगा; और कमोस अपने काहिनों और हाकिम के साथ ग़ुलाम होकर जाएगा।
\s5
\v 8 और ग़ारतगर हर एक शहर पर आएगा, और कोई शहर न बचेगा; वादी भी वीरान होगी, और मैदान उजाड़ हो जाएगा; जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है।
\v 9 "मोआब को पर लगा दो, ताकि उड़ जाए क्यूँकि उसके शहर उजाड़ होंगे और उनमे कोई बसनेवाला न होगा।
\v 10 "जो ख़ुदावन्द का काम बेपरवाई से करता है, और जो अपनी तलवार को ख़ूँरेज़ी से बाज़ रखता है, मला'ऊन हो।
\s5
\v 11 मोआब बचपन ही से आराम से रहा है, और उसकी तलछट तहनशीन रही, न वह एक बर्तन से दूसरे में उँडेला गया और न ग़ुलामी में गया; इसलिए उसका मज़ा उसमें क़ायम है और उसकी बू नहीं बदली।
\v 12 इसलिए देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि मैं उण्डेलने वालों को उसके पास भेजूँगा कि वह उसे उलटाएँ; और उसके बर्तनों को ख़ाली और मटकों को चकनाचूर करें।
\s5
\v 13 तब मोआब कमोस से शर्मिन्दा होगा, जिस तरह इस्राईल का घराना बैतएल से जो उसका भरोसा था, ख़जिल हुआ।
\v 14 "तुम क्यूँकर कहते हो, कि 'हम पहलवान हैं और जंग के लिए ज़बरदस्त सूर्मा हैं'?
\s5
\v 15 मोआब ग़ारत हुआ; उसके शहरों का धुवाँ उठ रहा है, और उसके चीदा जवान क़त्ल होने को उतर गए; वह बादशाह फ़रमाता है जिसका नाम रब्ब-उल-अफ़वाज है।
\v 16 नज़दीक है कि मोआब पर आफ़त आए, और उनका वबाल दौड़ा आता है।
\v 17 ऐ उसके आस-पास वालों, सब उस पर अफ़सोस करो; और तुम सब जो उसके नाम से वाक़िफ़ हो कहो कि यह मोटा 'असा और ख़ूबसूरत डंडा क्यूँकर टूट गया।'
\s5
\v 18 "ऐ बेटी, जो दीबोन में बसती है! अपनी शौकत से नीचे उतर और प्यासी बैठ; क्यूँकि मोआब का ग़ारतगर तुझ पर चढ़ आया है और उसने तेरे क़िलों' को तोड़ डाला।
\v 19 ऐ अरो'ईर की रहने वाली' तू राह पर खड़ी हो, और निगाह कर! भागने वाले से और उससे जो बच निकली हो; पूछ कि ~'क्या माजरा है?'
\v 20 मोआब रुस्वा हुआ, क्यूँकि वह पस्त कर दिया गया, तुम वावैला मचाओ और चिल्लाओ! अरनोन में इश्तिहार दो, कि मोआब ग़ारत हो गया।
\s5
\v 21 और कि "सहरा की अतराफ़ पर, होलून पर, और यहसाह पर, और मिफ़'अत पर,
\v 22 और दीबोन पर, और नबू पर, और बैत-दिब्बलताइम पर,
\v 23 और करयताइम पर, और बैत-जमूल पर, और बैत-म'ऊन पर,
\v 24 और करयोत पर, और बुसराह, और मुल्क-ए-मोआब के दूर-ओ-नज़दीक के सब शहरों पर 'अज़ाब नाज़िल हुआ है।
\v 25 मोआब का सींग काटा गया, और उसका बाज़ू तोड़ा गया, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 26 "तुम उसको मदहोश करो, क्यूँकि उसने अपने आपको ख़ुदावन्द के सामने बुलन्द किया; मोआब अपनी क़य में लोटेगा और मस्ख़रा बनेगा।
\v 27 क्या इस्राईल तेरे आगे मस्ख़रा न था? क्या वह चोरों के बीच पाया गया कि जब कभी तू उसका नाम लेता था, तू सिर हिलाता था?
\s5
\v 28 "ऐ मोआब के बाशिन्दों, शहरों को छोड़ दो और चट्टान पर जा बसो; और कबूतर की तरह बनो जो गहरे ग़ार के मुँह के किनारे पर आशियाना बनाता है।
\v 29 हम ने मोआब का तकब्बुर सुना है, वह बहुत मग़रूर है, उसकी गुस्ताख़ी भी, और उसकी शेख़ी और उसका ग़ुरूर और उसके दिल का तकब्बुर
\s5
\v 30 मैं उसका क़हर जानता हूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; वह कुछ नहीं और उसकी शेख़ी से कुछ बन न पड़ा।
\v 31 इसलिए मैं मोआब के लिए वावैला करूँगा; हाँ, सारे मोआब के लिए मैं ज़ार-ज़ार रोऊँगा; कोर हरस के लोगों के लिए मातम किया जाएगा।
\v 32 ऐ सिबमाह की ताक, मैं या'ज़ेर के रोने से ज़्यादा तेरे लिए रोऊँगा; तेरी शाख़ें समन्दर तक फैल गईं, वह या'ज़ेर के समन्दर तक पहुँच गईं, ग़ारतगर तेरे ताबिस्तानी मेवों पर और तेरे अंगूरों पर आ पड़ा है
\s5
\v 33 ख़ुशी और शादमानी हरे भरे खेतों से और मोआब के मुल्क से उठा ली गई; और मैंने अंगूर के हौज़ में मय बाक़ी नहीं छोड़ी, अब कोई ललकार कर न लताड़ेगा; उनका ललकारना, ललकारना न होगा।
\s5
\v 34 'हस्बोन के रोने से वह अपनी आवाज़ को इली'आला और यहज़ तक और ज़ुग़र से होरोनायिम तक 'इजलत शलीशियाह तक बुलन्द करते हैं; क्यूँकि नमरियम के चश्मे भी ख़राब हो गए हैं।
\v 35 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि जो कोई ऊँचे मक़ाम पर क़ुर्बानी चढ़ाता है, और जो कोई अपने मा'बूदों के आगे ख़ुशबू जलाता है, मोआब में से हलाक कर दूँगा।
\s5
\v 36 इसलिए मेरा दिल मोआब के लिए बाँसरी की तरह आहें भरता, और क़ीर हरस के लोगों के लिए शहनाओं की तरह फुग़ान करता है, क्यूँकि उसका फ़िरावान ज़ख़ीरा तलफ़ हो गया।
\v 37 हक़ीक़त में हर एक सिर मुंडा है, और हर एक दाढ़ी कतरी गई; हर एक के हाथ पर ज़ख्म है और हर एक की कमर पर टाट।
\s5
\v 38 मोआब के सब घरों की छतों पर और उसके सब बाज़ारों में बड़ा मातम होगा, क्यूँकि मैंने मोआब को उस बर्तन की तरह जो पसन्द न आए तोड़ा है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 39 वह वावैला करेंगे और कहेंगे, कि उसने कैसी शिकस्त खाई है! मोआब ने शर्म के मारे क्यूँकर अपनी पीठ फेरी! तब मोआब सब आस-पास वालों के लिए हँसी और ख़ौफ़ का ज़रिया' होगा।"
\s5
\v 40 क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि "देख, वह 'उक़ाब की तरह उड़ेगा और मोआब के ख़िलाफ़ बाज़ू फैलाएगा।
\v 41 वहाँ के शहर और क़िले' ले लिए जायेंगे और उस दिन मोआब के बहादुरों के दिल ज़च्चा के दिल की तरह होंगे।
\s5
\v 42 ~और मोआब हलाक किया जाएगा और क़ौम न कहलाएगा, इसलिए कि उसने ख़ुदावन्द के सामने अपने आपको बुलन्द किया।
\v 43 ख़ौफ़ और गढ़ा और दाम तुझ पर मुसल्लत होंगे, ऐ साकिन-ए-मोआब, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 44 जो कोई दहशत से भागे, गढ़े में गिरेगा, और जो गढ़े से निकले, दाम में फँसेगा; क्यूँकि मैं उन पर, हाँ, मोआब पर उनकी सियासत का बरस लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 45 "जो भागे, इसलिए हस्बोन के साये तले बेताब खड़े हैं; लेकिन हस्बोन से आग और सीहून के वस्त से एक शो'ला निकलेगा और मोआब की दाढ़ी के कोने को और हर एक फ़सादी की चाँद को खा जाएगा।
\s5
\v 46 हाय, तुझ पर ऐ मोआब! कमोस के लोग हलाक हुए, क्यूँकि तेरे बेटों को ग़ुलाम करके ले गए और तेरी बेटियाँ भी ग़ुलाम हुईं।
\v 47 बावजूद इसके मैं आख़री दिनों में मोआब के ग़ुलामों को वापस लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।" मोआब की 'अदालत यहाँ तक हुई।
\s5
\c 49
\p
\v 1 बनी 'अम्मोन के बारे में ख़ुदावन्द का इन्साफ़ फ़रमाता है कि: "क्या इस्राईल के बेटे नहीं हैं? क्या उसका कोई वारिस नहीं? फिर मिलकूम ने क्यूँ जद्द पर क़ब्ज़ा कर लिया, और उसके लोग उसके शहरों में क्यूँ बसते हैं?
\v 2 इसलिए देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि मैं बनी 'अम्मोन के रब्बह में लड़ाई का हुल्लड़ बर्पा करूँगा; और वह खंडर हो जाएगा और उसकी बेटियाँ आग से जलाई जाएँगी; तब इस्राईल उनका जो उसके वारिस बन बैठे थे, वारिस होगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 3 "ऐ हस्बोन, वावैला कर, कि 'ऐ बर्बाद की गई। ऐ रब्बाह की बेटियो, चिल्लाओ, और टाट ओढ़कर मातम करो और इहातों में इधर उधर दौड़ो, क्यूँकि मिलकूम ग़ुलामी में जाएगा और उसके काहिन और हाकिम भी साथ जाएँगे।
\v 4 तू क्यूँ वादियों पर फ़ख़्र करती है? तेरी वादी सेराब है, ऐ बरगश्ता बेटी, तू अपने ख़ज़ानों पर भरोसा करती है, कि ~'कौन मुझ तक आ सकता है?'
\s5
\v 5 देख, ख़ुदावन्द, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है: मैं तेरे सब इर्दगिर्द वालों का ख़ौफ़ तुझ पर ग़ालिब करूँगा; और तुम में से हर एक आगे हाँका जाएगा, और कोई न होगा जो आवारा फिरने वालों को जमा' करे।
\v 6 मगर उसके बा'द मैं बनी 'अम्मोन को ग़ुलामी से वापस लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।"
\s5
\v 7 अदोम के बारे में। रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: "क्या तेमान में ख़िरद मुतलक़ न रही? क्या तदबीरों की मसलहत जाती रही? क्या उनकी 'अक़्ल उड़ गई?
\v 8 ऐ ददान के बाशिन्दों, भागो, लौटो, और नशेबों में जा बसो! क्यूँकि मैं इन्तक़ाम के वक़्त उस पर ऐसौ की जैसी मुसीबत लाऊँगा।
\s5
\v 9 अगर अँगूर तोड़ने वाले तेरे पास आएँ, तो क्या कुछ दाने बाक़ी न छोड़ेंगे? या अगर रात को चोर आएँ, तो क्या वह हस्ब-ए-ख़्वाहिश ही न तोड़ेंगे?
\v 10 लेकिन मैं ऐसौ को बिल्कुल नंगा करूँगा, उसके पोशीदा मकानों को बे-पर्दा कर दूँगा कि वह छिप न सके; उसकी नसल और उसके भाई और उसके पड़ोसी सब बर्बाद किए जाएँगे, और वह न रहेगा।
\v 11 तू अपने यतीम फ़र्ज़न्दों को छोड़, मैं उनको ज़िन्दा रख्खूंगा; और तेरी बेवाएँ मुझ पर भरोसा करें।"
\s5
\v 12 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: कि "देख, जो सज़ावार न थे कि प्याला पीएँ, उन्होंने ख़ूब पिया; क्या तू बे-सज़ा छूट जाएगा? तू बेसज़ा न छूटेगा, बल्कि यक़ीनन उसमें से पिएगा।
\v 13 क्यूँकि मैंने अपनी ज़ात की क़सम खाई है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि बुसराह जा-ए-हैरत और मलामत और वीरानी और ला'नत होगा; और उसके सब शहर अबद-उल-आबाद वीरान रहेंगे।"
\s5
\v 14 मैंने ख़ुदावन्द से एक ख़बर सुनी है, बल्कि एक क़ासिद यह कहने को क़ौमों के बीच भेजा गया है: जमा' हो और उस पर जा पड़ो, और लड़ाई कि लिए उठो।
\v 15 क्यूँकि देख, मैंने तुझे क़ौमों के बीच हक़ीर, और आदमियों के बीच ज़लील किया।
\s5
\v 16 तेरी हैबत और तेरे दिल के ग़ुरूर ने तुझे फ़रेब दिया है। ऐ तू जो चट्टानों के शिगाफ़ों में रहती है, और पहाड़ों की चोटियों पर क़ाबिज़ है; अगरचे तू 'उक़ाब की तरह अपना आशियाना बुलन्दी पर बनाए, तो भी मैं वहाँ से तुझे नीचे उतारूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 17 "अदोम भी जा-ए-हैरत होगा, हर एक जो उधर से गुज़रेगा हैरान होगा, और उसकी सब आफ़तों की वजह से सुस्कारेगा।
\v 18 जिस तरह सदूम और 'अमूरा और उनके आस पास के शहर ग़ारत हो गए, उसी तरह उसमें भी न कोई आदमी बसेगा, न आदमज़ाद वहाँ सुकूनत करेगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 19 देख, वह शेर-ए-बबर की तरह यरदन के जंगल से निकलकर मज़बूत बस्ती पर चढ़ आएगा; लेकिन मैं अचानक उसको वहाँ से भगा दूँगा, और अपने बरगुज़ीदा को उस पर मुक़र्रर करूँगा; क्यूँकि मुझ सा कौन है? कौन है जो मेरे लिए वक़्त मुक़र्रर करे? और वह चरवाहा कौन है जो मेरे सामने खड़ा हो सके ?
\s5
\v 20 तब ख़ुदावन्द की मसलहत को, जो उसने अदोम के ख़िलाफ़ ठहराई है और उसके इरादे को जो उसने तेमान के बाशिन्दों के ख़िलाफ़ किया है, सुनो, उनके गल्ले के सबसे छोटों को भी घसीट ले जाएँगे, यक़ीनन उनका घर भी उनके साथ बर्बाद होगा।
\s5
\v 21 उनके गिरने की आवाज़ से ज़मीन काँप जाएगी, उनके चिल्लाने का शोर बहर-ए-क़ुलज़ुम तक सुनाई देगा।
\v 22 देख, वह चढ़ आएगा और 'उक़ाब की तरह उड़ेगा, और बुसराह के ख़िलाफ़ बाज़ू फैलाएगा; और उस दिन अदोम के बहादुरों का दिल ज़च्चा के दिल की तरह होगा।"
\s5
\v 23 दमिश्क़ के बारे में: "हमात और अरफ़ाद शर्मिन्दा हैं क्यूँकि उन्होंने बुरी ख़बर सुनी, वह पिघल गए समन्दर ने जुम्बिश खाई, वह ठहर नहीं सकता।
\v 24 दमिश्क़ का ज़ोर टूट गया, उसने भागने के लिए मुँह फेरा, और थरथराहट ने उसे आ लिया; ज़च्चा के से रंज-ओ-दर्द ने उसे आ पकड़ा।
\v 25 यह क्यूँकर हुआ कि वह नामवर शहर, मेरा शादमान शहर, नहीं बचा?
\s5
\v 26 ~इसलिए उसके जवान उसके बाज़ारों में गिर जाएँगे, और सब जंगी मर्द उस दिन काट डाले जाएँगे, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।
\v 27 और मैं दमिश्क़ की शहरपनाह में आग भड़काऊँगा, जो बिन-हदद के महलों को भसम कर देगी।"
\s5
\v 28 क़ीदार के बारे में और हसूर की सल्तनतों के बारे में जिनको शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र ने शिकस्त दी। ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: "उठो, क़ीदार पर चढ़ाई करो, और अहल-ए-मशरिक़ को हलाक करो।
\v 29 ~वह उनके ख़ेमों और गल्लों को ले लेंगे; उनके पर्दों और बर्तनों और ऊँटो को छीन ले जाएँगे; और वह चिल्ला कर उनसे कहेंगे कि चारों तरफ़ ख़ौफ़ है!"
\s5
\v 30 भागो, दूर निकल जाओ, नशेब में बसो, ऐ हसूर के बाशिन्दो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; क्यूँकि शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र ने तुम्हारी मुखालिफ़त में मश्वरत की और तुम्हारे ख़िलाफ़ इरादा किया है।
\v 31 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उठो, उस आसूदा क़ौम पर, जो बे-फ़िक्र रहती है, जिसके न ~किवाड़े हैं न अड्बंगे और अकेली है चढ़ाई करो
\s5
\v 32 उनके ऊँट ग़नीमत के लिए होंगे, और उनके चौपायों की कसरत लूट के लिए; और मैं उन लोगों को जो गाओदुम दाढ़ी रखते हैं, हर तरफ़ हवा में तितर-बितर करूँगा; और मैं उन पर हर तरफ़ से आफ़त लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 33 हसूर गीदड़ों का मक़ाम, हमेशा का वीराना होगा; न कोई आदमी वहाँ बसेगा, और न कोई आदमज़ाद उसमें सुकूनत करेगा।"
\s5
\v 34 ~ख़ुदावन्द का कलाम जो शाह-ए- यहूदाह सिदक़ियाह की सल्तनत के शुरू' में 'ऐलाम के बारे में यरमियाह नबी पर नाज़िल हुआ।
\v 35 ~कि रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: देख मैं एलाम की कमान उनकी बड़ी तवानाई को तोड़ डालूँगा।
\v 36 और चारों हवाओं को आसमान के चारों कोनों से ऐलाम पर लाऊँगा, और उन चारों हवाओं की तरफ़ उनको तितर-बितर करूँगा; और कोई ऐसी क़ौम न होगी, जिस तक ऐलाम के जिलावतन न पहुँचेंगे।
\s5
\v 37 क्यूँकि मैं ऐलाम को उनके मुख़ालिफ़ों और जानी दुश्मनों के आगे हिरासाँ करूँगा; और उन पर एक बला या'नी क़हर-ए-शदीद को नाज़िल करूँगा। ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और तलवार को उनके पीछे लगा दूँगा, यहाँ तक कि उनको नाबूद कर डालूँगा;
\v 38 ~और मैं अपना तख़्त 'ऐलाम में रखूंगा, और वहाँ से बादशाह और हाकिम को नाबूद करूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 39 "लेकिन आख़िरी दिनों में यूँ होगा, कि मैं ऐलाम को ग़ुलामी से वापस लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।”
\s5
\c 50
\p
\v 1 वह कलाम जो ख़ुदावन्द ने बाबुल और कसदियों के मुल्क के बारे में यरमियाह नबी की ज़रिए' फ़रमाया:
\v 2 "क़ौमों में 'ऐलान करो, और इश्तिहार दो, और झण्डा खड़ा करो, 'ऐलान करो, पोशीदा न रख्खो; कह दो कि बाबुल ले लिया गया, बेल रुस्वा हुआ, मरोदक सरासीमा हो गया; उसके बुत ख़जिल हुए, उसकी मूरतें तोड़ी गईं।
\s5
\v 3 क्यूँकि उत्तर से एक क़ौम उस पर चढ़ी चली आती है, जो उसकी सरज़मीन को उजाड़ देगी, यहाँ तक कि उसमें कोई न रहेगा, वह भाग निकले, वह चल दिए, क्या इन्सान क्या हैवान।
\v 4 'ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उन दिनों में बल्कि उसी वक़्त बनी-इस्राईल आएँगे; वह और बनी यहूदाह इकट्ठे रोते हुए चलेंगे और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के तालिब होंगे।
\v 5 वह सिय्यून की तरफ़ मुतवज्जिह होकर उसकी राह पूछेंगे, 'आओ, हम ख़ुदावन्द से मिल कर उससे अबदी 'अहद करें, जो कभी फ़रामोश न हो।'
\s5
\v 6 "मेरे लोग भटकी हुई भेड़ों की तरह हैं; उनके चरवाहों ने उनको गुमराह कर दिया, उन्होंने उनको पहाड़ों पर ले जाकर छोड़ दिया; वह पहाड़ों से टीलों पर गए और अपने आराम का मकान भूल गए हैं।
\v 7 सब जिन्होंने उनको पाया उनको निगल गए, और उनके दुश्मनों ने कहा, " हम क़ुसूरवार नहीं हैं क्यूँकि उन्होंने ख़ुदावन्द का गुनाह किया है; वह ख़ुदावन्द जो सदाक़त का मस्कन और उनके बाप-दादा की उम्मीदगाह है।
\s5
\v 8 "बाबुल में से भागो, और कसदियों की सरज़मीन से निकलो, और उन बकरों की तरह हो जो गल्लों के आगे आगे चलते हैं।
\v 9 क्यूँकि देख, मैं उत्तर की सरज़मीन से बड़ी क़ौमों के अम्बोह को बर्पा करूँगा और बाबुल पर चढ़ा लाऊँगा, और वह उसके सामने सफ़-आरा होंगे; वहाँ से उस पर क़ब्ज़ा कर लेंगे उनके तीरकार आज़मूदा बहादुर के से होंगे जो ख़ाली हाथ नहीं लौटता।
\v 10 कसदिस्तान लूटा जाएगा, उसे लूटने वाले सब आसूदा होंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 11 "ऐ मेरी मीरास को लूटनेवालों, चूँकि तुम शादमान और ख़ुश हो और दावने वाली बछिया की तरह कूदते फाँदते और ताक़तवर घोड़ों की तरह हिनहिनाते हो;
\v 12 इसलिए तुम्हारी माँ बहुत शर्मिन्दा होगी, तुम्हारी वालिदा ख़जालत उठाएगी। देखो, वह क़ौमों में सबसे आख़िरी ठहरेगी और वीरान-ओ- ख़ुश्क ज़मीन और रेगिस्तान होगी।
\v 13 ख़ुदावन्द के क़हर की वजह से वह आबाद न होगी, बल्कि बिल्कुल वीरान हो जाएगी; जो कोई बाबुल से गुज़रेगा हैरान होगा, और उसकी सब आफ़तों के बाइस सुस्कारेगा।
\s5
\v 14 ऐ सब तीरअन्दाज़ो, बाबुल को घेर कर उसके ख़िलाफ़ सफ़आराई करो, उस पर तीर चलाओ, तीरों को दरेग़ न करो, क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द का गुनाह किया है।
\v 15 उसे घेर कर तुम उस पर ललकारो, उसने इता'अत मन्ज़ूर कर ली; उसकी बुनियादें धंस गई, उसकी दीवारें गिर गई। क्यूँकि यह ख़ुदावन्द का इन्तक़ाम है, उससे इन्तक़ाम लो; जैसा उसने किया, वैसा ही तुम उससे करो।
\s5
\v 16 बाबुल में हर एक बोनेवाले को और उसे जो दिरौ के वक़्त दरॉती पकड़े, काट डालो; ज़ालिम की तलवार की हैबत से हर एक अपने लोगों में जा मिलेगा, और हर एक अपने वतन को भाग जाएगा।
\s5
\v 17 "इस्राईल तितर-बितर भेड़ों की तरह है, शेरों ने उसे रगेदा है। पहले शाह-ए- असूर ने उसे खा लिया और फिर यह शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र उसकी हड्डियाँ तक चबा गया।
\v 18 इसलिए रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं शाह-ए-बाबुल और उसके मुल्क को सज़ा दूँगा, जिस तरह मैंने शाह-ए-असूर को सज़ा दी है।
\s5
\v 19 लेकिन मैं इस्राईल को फिर उसके घर में लाऊँगा, और वह कर्मिल और बसन में चरेगा, और उसकी जान कोह-ए- इफ़्राईम और जिल'आद पर आसूदा होगी।
\v 20 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उन दिनों में और उसी वक़्त इस्राईल की बदकिरदारी ढूँडे न मिलेगी; और यहूदाह के गुनाहों का पता न मिलेगा जिनको मैं बाक़ी रखूँगा उनको मु'आफ़ करूँगा।
\s5
\v 21 "मरातायम" की सरज़मीन पर और फ़िक़ोद के बाशिन्दों पर चढ़ाई कर। उसे वीरान कर और उनको बिल्कुल नाबूद कर, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और जो कुछ मैंने तुझे फ़रमाया है, उस सब के मुताबिक़ 'अमल कर।
\v 22 मुल्क में लड़ाई और बड़ी हलाकत की आवाज़ है।
\s5
\v 23 तमाम दुनिया का हथौड़ा, क्यूँकर काटा और तोड़ा गया! बाबुल क़ौमों के बीच कैसा जा-ए-हैरत हुआ!
\v 24 मैंने तेरे लिए फन्दा लगाया, और ऐ बाबुल, तू पकड़ा गया, और तुझे ख़बर न थी। तेरा पता मिला और तू गिरफ़्तार हो गया, क्यूँकि तूने ख़ुदावन्द से लड़ाई की है।
\s5
\v 25 ख़ुदावन्द ने अपना सिलाहख़ाना खोला और अपने क़हर के हथियारों को निकाला है; क्यूँकि कसदियों की सरज़मीन में ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज को कुछ करना है।
\v 26 सिरे से शुरू' करके उस पर चढ़ो, और उसके अम्बारख़ानों को खोलो, उसको खण्डर कर डालो और उसको बर्बाद करो, उसकी कोई चीज़ बाक़ी न छोड़ो।
\s5
\v 27 उसके सब बैलों को ज़बह करो, उनको मसलख़ में जाने दो; उन पर अफ़सोस! कि उनका दिन आ गया, उनकी सज़ा का वक़्त आ पहुँचा।
\v 28 ~"सरज़मीन-ए-बाबुल से फ़रारियों की आवाज़! वह भागते और सिय्यून में ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के इन्तक़ाम, या'नी उसकी हैकल के इन्तक़ाम का ऐलान करते हैं।
\s5
\v 29 "तीरअन्दाज़ों को बुलाकर इकट्ठा करो कि बाबुल पर जाएँ, सब कमानदारों को हर तरफ़ से उसके सामने ख़ेमाज़न करो। वहाँ से कोई बच न निकले, उसके काम के मुवाफ़िक़ उसको बदला दो। सब कुछ जो उसने किया उसे करों क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द ~इस्राईल के क़ुद्दूस के सामने बहुत तकब्बुर किया।
\v 30 इसलिए उसके जवान बाज़ारों में गिर जाएँगे, और सब जंगी मर्द उस दिन काट डाले जाएँगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 31 "ऐ मग़रूर, देख, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है क्यूँकि तेरा वक़्त आ पहुँचा, हाँ, वह वक़्त जब मैं तुझे सज़ा दूँ।
\v 32 और वह मग़रूर ठोकर खाएगा, वह गिरेगा और कोई उसे न उठाएगा; और मैं उसके शहरों में आग भड़काऊँगा, और वह उसके तमाम 'इलाक़े को भसम कर देगी।
\s5
\v 33 'रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि बनी-इस्राईल और बनी यहूदाह दोनों मज़लूम हैं; और उनको ग़ुलाम करने वाले उनको क़ैद में रखते हैं, और छोड़ने से इन्कार करते हैं।
\v 34 उनका छुड़ानेवाला ज़ोरआवर है; रब्ब-उल-अफ़वाज उसका नाम है; वह उनकी पूरी हिमायत करेगा ताकि ज़मीन को राहत बख़्शे, और बाबुल के बाशिन्दों को परेशान करे।
\s5
\v 35 "ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि तलवार कसदियों पर और बाबुल के बाशिन्दों पर, और उसके हाकिम और हुक्मा पर है।
\v 36 लाफ़ज़नों पर तलवार है, वह बेवकूफ़ हो जाएँगे; उसके बहादुरों पर तलवार है, वह डर जाएँगे।
\v 37 उसके घोड़ों और रथों और सब मिले-जुले लोगों पर जो उसमें हैं, तलवार है, वह 'औरतों की तरह होंगे; उसके ख़ज़ानों पर तलवार है, वह लूटे जाएँगे।
\s5
\v 38 उसकी नहरों पर ख़ुश्कसाली है, वह सूख जाएँगी; क्यूँकि वह तराशी हुई मूरतों की ममलुकत है और वह बुतों पर शेफ़्ता हैं।
\v 39 "इसलिए दश्ती दरिन्दे गीदड़ों के साथ वहाँ बसेंगे और शुतुरमुर्ग उसमें बसेरा करेंगे, और वह फिर अबद तक आबाद न होगी, नसल-दर-नसल कोई उसमें सुकूनत न करेगा।
\v 40 जिस तरह ख़ुदा ने सदूम और 'अमूरा और उनके आसपास के शहरों को उलट दिया ख़ुदावन्द फ़रमाता है उसी तरह कोई आदमी वहाँ न बसेगा, न आदमज़ाद उसमें रहेगा।
\s5
\v 41 "देख, उत्तरी मुल्क से एक गिरोह आती है; और इन्तिहा-ए-ज़मीन से एक बड़ी क़ौम और बहुत से बादशाह बरअन्गेख़ता किए जाएँगे।
\v 42 वह तीरअन्दाज़-ओ-नेज़ा बाज़ हैं, वह संगदिल-ओ-बेरहम हैं, उनके ना'रों की आवाज़ हमेशा समन्दर की जैसी है, वह घोड़ों पर सवार हैं; ऐ दुख़्तर-ए-बाबुल, वह जंगी मर्दों की तरह तेरे सामने सफ़-आराई करते हैं।
\v 43 शाह-ए-बाबुल ने उनकी शोहरत सुनी है, उसके हाथ ढीले हो गए, वह ज़च्चा की तरह मुसीबत और दर्द में गिरफ़्तार है।
\s5
\v 44 "देख, वह शेर-ए-बबर की तरह यरदन के जंगल से निकलकर मज़बूत बस्ती पर चढ़ आएगा; लेकिन मैं अचानक उसको वहाँ से भगा दूँगा, और अपने बरगुज़ीदा को उस पर मुक़र्रर करूँगा; क्यूँकि मुझ सा कौन है? कौन है जो मेरे लिए वक़्त मुक़र्रर करे? और वह चरवाहा कौन है जो मेरे सामने खड़ा हो सके ?
\s5
\v 45 इसलिए ख़ुदावन्द की मसलहत को जो उसने बाबुल के ख़िलाफ़ ठहराई है, और उसके इरादे को जो उसने कसदियों की सरज़मीन के ख़िलाफ़ किया है, सुनो, यक़ीनन उनके गल्ले के सब से छोटों को भी घसीट ले जाएँगे; यक़ीनन उनका घर भी उनके साथ बर्बाद होगा।
\v 46 ~बाबुल की शिकस्त के शोर से ज़मीन काँपती है,और फ़रियाद को क़ौमों ने सुना है।"
\s5
\c 51
\p
\v 1 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि "देख, मैं बाबुल पर और उस मुखालिफ़ दार-उस-सल्तनत के रहनेवालों पर एक मुहलिक हवा चलाऊँगा।
\v 2 और मैं उसाने वालों को बाबुल में भेजूँगा कि उसे उसाएँ, और उसकी सरज़मीन को ख़ाली करें; यक़ीनन उसकी मुसीबत के दिन वह उसके दुश्मन बनकर उसे चारों तरफ़ से घेर लेंगे।
\s5
\v 3 उसके कमानदारों और ज़िरहपोशों पर तीरअन्दाज़ी करो; तुम उसके जवानों पर रहम न करो, उसके तमाम लश्कर को बिल्कुल हलाक करो।
\v 4 ~मक़्तूल कसदियों की सरज़मीन में गिरेंगे, और छिदे हुए उसके बाज़ारों में पड़े रहेंगे।
\s5
\v 5 क्यूँकि इस्राईल और यहूदाह को उनके ख़ुदा रब्ब-उल-अफ़वाज ने तर्क नहीं किया; अगरचे इनका मुल्क इस्राईल के क़ुद्दूस की नाफ़रमानी से पुर है।
\v 6 "बाबुल से निकल भागो, और हर एक अपनी जान बचाए, उसकी बदकिरदारी की सज़ा में शरीक होकर हलाक न हो, क्यूँकि यह ख़ुदावन्द के इन्तक़ाम का वक़्त है; वह उसे बदला देता है।
\s5
\v 7 बाबुल ख़ुदावन्द के हाथ में सोने का प्याला था, जिसने सारी दुनिया को मतवाला किया; क़ौमों ने उसकी मय पी, इसलिए वह दीवाने हैं।
\v 8 ~बाबुल अचानक गिर गया और ग़ारत हुआ, उस पर वावैला करो; उसके ज़ख़्म के लिए बलसान लो, शायद वह शिफ़ा पाए।
\s5
\v 9 हम तो बाबुल की शिफ़ायाबी चाहते थे लेकिन वह शिफ़ायाब न हुआ, तुम उसको छोड़ो, आओ, हम सब अपने अपने वतन को चले जाएँ, क्यूँकि उसकी आवाज़ आसमान तक पहुँची और अफ़लाक तक बुलन्द हुई।
\v 10 ख़ुदावन्द ने हमारी रास्तबाज़ी को आशकारा किया; आओ, हम सिय्यून में ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के काम का बयान करें।
\s5
\v 11 "तीरों को सैक़ल करो, सिपरों को तैयार रख्खो; ख़ुदावन्द ने मादियों के बादशाहों की रूह को उभारा है, क्यूँकि उसका इरादा बाबुल को बर्बाद करने का है; क्यूँकि यह ख़ुदावन्द का, या'नी उसकी हैकल का इन्तक़ाम है।
\v 12 बाबुल की दीवारों के सामने झंडा खड़ा करो पहरे की चौकियाँ मज़बूत करो, पहरेदारों को बिठाओ, कमीनगाहें तैयार करो; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने अहल-ए-बाबुल के हक़ में जो कुछ ठहराया और फ़रमाया था, इसलिए पूरा किया।
\s5
\v 13 ऐ नहरों पर सुकूनत करने वाली, जिसके ख़ज़ाने फ़िरावान हैं; तेरी तमामी का वक़्त आ पहुँचा और तेरी ग़ारतगरी का पैमाना पुर हो गया।
\v 14 ~रब्ब-उल-अफ़वाज ने अपनी ज़ात की क़सम खाई है, कि यक़ीनन मैं तुझ में लोगों को टिड्डियों की तरह भर दूँगा, और वह तुझ पर जंग का नारा मारेंगे।
\s5
\v 15 ~"उसी ने अपनी क़ुदरत से ज़मीन को बनाया, उसी ने अपनी हिकमत से जहाँ को क़ायम किया, और अपनी 'अक़्ल से आसमान को तान दिया है;
\v 16 उसकी आवाज़ से आसमान में पानी की फ़िरावानी होती है, और वह ज़मीन की इन्तिहा से बुख़ारात उठाता है; वह बारिश के लिए बिजली चमकाता है और अपने ख़ज़ानों से हवा चलाता है।
\s5
\v 17 हर आदमी हैवान ख़सलत और बे-'इल्म हो गया है, सुनार अपनी खोदी हुई मूरत से रुस्वा है; क्यूँकि उसकी ढाली हुई मूरत बातिल है, उनमें दम नहीं।
\v 18 वह बातिल-फ़े'ल-ए- फ़रेब हैं, सज़ा के वक़्त बर्बाद हो जाएँगी।
\v 19 या'क़ूब का हिस्सा उनकी तरह नहीं, क्यूँकि वह सब चीज़ों का ख़ालिक़ है और इस्राईल उसकी मीरास का 'असा है; रब्बउल-अफ़वाज उसका नाम है।
\s5
\v 20 "तू मेरा गुर्ज़ और जंगी हथियार है, और तुझी से मैं क़ौमों को तोड़ता और तुझी से सल्तनतों को बर्बाद करता हूँ।
\v 21 तुझी से मैं घोड़े और सवार को कुचलता, और तुझी से रथ और उसके सवार को चूर करता हूँ;
\s5
\v 22 तुझी से मर्द-ओ-ज़न और पीर-ओ-जवान को कुचलता, और तुझ ही से नौखेंज़ लड़कों और लड़कियों को पीस डालता हूँ;
\v 23 और तुझी से चरवाहे और उसके गल्ले को कुचलता, और तुझी से किसान और उसके जोड़ी बैल को, और तुझी से सरदारों और हाकिमों को चूर-चूर कर देता हूँ।
\s5
\v 24 और मैं बाबुल को और कसदिस्तान के सब बाशिन्दों को उस तमाम नुक़्सान का, जो उन्होंने सिय्यून को तुम्हारी आँखों के सामने पहुँचाया है इवज़ देता हूँ ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 25 "देख ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ऐ हलाक करने वाले पहाड़, जो तमाम इस ज़मीन को हलाक करता है ,मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ और मैं अपना हाथ तुझ पर बढ़ाऊँगा, और चट्टानों पर से तुझे लुढ़काऊँगा, और तुझे जला हुआ पहाड़ बना दूँगा।
\v 26 न तुझ से कोने का पत्थर, और न बुनियाद के लिए पत्थर लेंगे; बल्कि तू हमेशा तक वीरान रहेगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 27 ~'मुल्क में झण्डा खड़ा करो, क़ौमों में नरसिंगा फूँको उनको उसके ख़िलाफ़ मख़सूस करो अरारात और मिन्नी और अश्कनाज़ की ममलुकतों को उस पर चढ़ा लाओ; उसके ख़िलाफ़ सिपहसालार मुक़र्रर करो और सवारों को मुहलिक टिड्डियों की तरह चढ़ा लाओ।
\v 28 ~क़ौमों को मादियों के बादशाहों को और सरदारों और हाकिमों और उनकी सल्तनत के तमाम मुमालिक को मख़सूस करो कि उस पर चढ़ाई करें।
\s5
\v 29 ~और ज़मीन काँपती और दर्द में मुब्तिला है, क्यूँकि ख़ुदावन्द के इरादे बाबुल की मुखालिफ़त में क़ायम रहेंगे, कि बाबुल की सरज़मीन को वीरान और ग़ैरआबाद कर दे।
\s5
\v 30 ~बाबुल के बहादुर लड़ाई से दस्तबरदार और क़िलों' में बैठे हैं, उनका ज़ोर घट गया, वह 'औरतों की तरह हो गए; उसके घर जलाए गए, उसके अड़बंगें तोड़े गए।
\v 31 ~हरकारा हरकारे से मिलने को और क़ासिद क़ासिद से मिलने को दौड़ेगा कि बाबुल के बादशाह को इत्तला दे, कि उसका शहर हर तरफ़ से ले लिया गया;
\v 32 ~और गुज़रगाहें ले ली गई, और नैस्तान आग से जलाए गए और फ़ौज हड़बड़ा गईं।
\s5
\v 33 ~क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: दुख़्तर-ए-बाबुल खलीहान की तरह है, जब उसे रौंदने का वक़्त आए, थोड़ी देर है कि उसकी कटाई का वक़्त आ पहुँचेगा।
\s5
\v 34 ~"शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र ने मुझे खा लिया, उसने मुझे शिकस्त दी है, उसने मुझे ख़ाली बर्तन की तरह कर दिया अज़दहा की तरह ~वह मुझे निगल गया, उसने अपने पेट को मेरी ने'मतों से भर लिया; उसने मुझे निकाल दिया;"
\v 35 सिय्यून के रहनेवाले कहेंगे, "जो सितम हम पर और हमारे लोगों पर हुआ, बाबुल पर हो।" और यरुशलीम कहेगा, "मेरा ख़ून अहल-ए-कसदिस्तान पर हो।"
\s5
\v 36 ~इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: "देख, मैं तेरी हिमायत करूँगा और तेरा इन्तक़ाम लूँगा, और उसके बहर को सुखाऊँगा और उसके सोते को ख़ुश्क कर दूँगा;
\v 37 और बाबुल खण्डर हो जाएगा, और गीदड़ों का मक़ाम और हैरत और सुस्कार का ज़रिया' होगी और उसमें कोई न बसेगा।
\s5
\v 38 ~"वह जवान बबरों की तरह इकटठे गरजेंगे, वह शेर बच्चों की तरह ग़ुर्राएँगे।
\v 39 ~उनकी हालत-ए-तैश में मैं उनकी ज़ियाफ़त करके उनको मस्त करूँगा, कि वह जद्द में आएँ और दाइमी ख़्वाब में पड़े रहें और बेदार न हों, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 40 ~मैं उनको बर्रों और मेंढों की तरह बकरों के साथ मसलख़ पर उतार लाऊँगा।
\s5
\v 41 शेशक क्यूँकर ले लिया गया! हाँ, तमाम रु-ए-ज़मीन का खम्बा यकबारगी ले लिया गया। बाबुल क़ौमों के बीच कैसा वीरान हुआ!
\v 42 समन्दर बाबुल पर चढ़ गया है, वह उसकी लहरों की कसरत से छिप गया।
\s5
\v 43 उसकी बस्तियाँ उजड़ गईं, वह ख़ुश्क ज़मीन और सहरा हो गया ऐसी सरज़मीन जिसमें ~न कोई बसता हो और न वहाँ आदमज़ाद का गुज़र हो।
\v 44 ~क्यूँकि मैं बाबुल में बेल को सज़ा दूँगा, और जो कुछ वह निगल गया है उसके मुँह से निकालूँगा, और फिर क़ौमें उसकी तरफ़ रवाँ न होंगी; हाँ, बाबुल की फ़सील गिर जाएगी।
\s5
\v 45 ~"ऐ मेरे लोगों, उसमें से निकल आओ,और तुम में से हर एक ख़ुदावन्द के क़हर-ए- शदीद से अपनी जान बचाए।
\v 46 ~न हो कि तुम्हारा दिल सुस्त हो, और तुम उस अफ़वाह से डरो जो ज़मीन में सुनी जाएगी; एक अफ़वाह एक साल आएगी और फिर दूसरी अफ़वाह दूसरे साल में, और मुल्क में ज़ुल्म होगा और हाकिम हाकिम से लड़ेगा।
\s5
\v 47 ‘इसलिए देख, वह दिन आते हैं कि मैं बाबुल की तराशी हुई मूरतों से इन्तक़ाम लूँगा और उसकी तमाम सरज़मीँ रुस्वा होगी और उसके सब मक़्तूल उसी में पड़े रहेंगे।
\v 48 ~तब आसमान और ज़मीन और सब कुछ जो उनमें है, बाबुल पर शादियाना बजाएँगे; क्यूँकि ग़ारतगर उत्तर से उस पर चढ़ आएँगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 49 ~जिस तरह बाबुल में बनी-इस्राईल क़त्ल हुए, उसी तरह बाबुल में तमाम मुल्क के लोग क़त्ल होंगे।
\s5
\v 50 ~ "तुम जो तलवार से बच गए हो, खड़े न हो, चले जाओ! दूर ही से ख़ुदावन्द को याद करो, और यरुशलीम का ख़याल तुम्हारे दिल में आए |
\v 51 ~'हम परेशान हैं, क्यूँकि हम ने मलामत सुनी; हम शर्मआलूदा हुए, क्यूँकि ख़ुदावन्द के घर के हैकलों में अजनबी घुस आए।'
\s5
\v 52 ~"इसलिए देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि मैं उसकी तराशी हुई मूरतों को सज़ा दूँगा; और उसकी तमाम सल्तनत में घायल कराहेंगे।
\v 53 ~हरचन्द बाबुल आसमान पर चढ़ जाए और अपने ज़ोर की इन्तिहा तक मुस्तहकम हो बैठे तो भी ग़ारतगर मेरी तरफ़ से उस पर चढ़ आएँगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 54 "बाबुल से रोने की और कसदियों की सरज़मीन से बड़ी हलाकत की आवाज़ आती है।
\v 55 क्यूँकि ख़ुदावन्द बाबुल को ग़ारत करता है, और उसके बड़े शोर-ओ-ग़ुल को बर्बाद करेगा; उनकी लहरें समन्दर की तरह शोर मचाती हैं उनके शोर की आवाज़ बुलंद है;
\v 56 इसलिए कि ग़ारतगर उस पर, हाँ, बाबुल पर चढ़ आया है, और उसके ताक़तवर लोग पकड़े जायेंगे उनकी कमाने तोड़ी जायेंगी क्यूँकि ख़ुदावन्द इन्तक़ाम लेनेवाला ख़ुदा है, वह ज़रूर बदला लेगा।
\s5
\v 57 मैं हाकिम-ओ-हुक्मा को और उसके सरदारों और हाकिमों को मस्त करूँगा, और वह दाइमी ख़्वाब में पड़े रहेंगे और बेदार न होंगे, वह बादशाह फ़रमाता है, जिसका नाम रब्ब-उल-अफ़वाज है।
\v 58 "रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: बाबुल की चौड़ी फ़सील बिल्कुल गिरा दी जाएगी, और उसके बुलन्द फाटक आग से जला दिए जाएँगे। यूँ लोगों की मेहनत बे फ़ायदा ठहरेगी, और क़ौमों का काम आग के लिए होगा और वह मान्दा होंगे।"
\s5
\v 59 यह वह बात है, जो यरमियाह नबी ने सिरायाह-बिन-नैयिरियाह-बिन-महसियाह से कही, जब वह शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह के साथ उसकी सल्तनत के चौथे बरस बाबुल में गया, और यह सिरायाह ख़्वाजासराओं का सरदार था।
\v 60 और यरमियाह ने उन सब आफ़तों को जो बाबुल पर आने वाली थीं, एक किताब में क़लमबन्द किया; या'नी इन सब बातों को जो बाबुल के बारे में लिखी गई हैं।
\s5
\v 61 और यरमियाह ने सिरायाह से कहा,कि "जब तू बाबुल में पहुँचे, तो' इन सब बातों को पढ़ना,
\v 62 और कहना, 'ऐ ख़ुदावन्द, तूने इस जगह की बर्बादी के बारे में फ़रमाया है कि मैं इसको बर्बाद करूँगा, ऐसा कि कोई इसमें न बसे, न इन्सान न हैवान, लेकिन हमेशा वीरान रहे।'
\s5
\v 63 और जब तू इस किताब को पढ़ चुके, तो एक पत्थर इससे बाँधना और फ़रात में फेंक देना;
\v 64 ~और कहना, 'बाबुल इसी तरह डूब जाएगा, और उस मुसीबत की वजह से जो मैं उस पर डाल दूँगा, फिर न उठेगा और वह मान्दा होंगे।' "यरमियाह की बातें यहाँ तक हैं।
\s5
\c 52
\p
\v 1 जब सिदक़ियाह सल्तनत करने लगा,तो इक्कीस बरस का था; और उसने ग्यारह बरस यरुशलीम में सल्तनत की, और उसकी माँ का नाम हमूतल था जो लिबनाही यरमियाह की बेटी थी।
\v 2 और जो कुछ यहूयक़ीम ने किया था, उसी के मुताबिक़ उसने भी ख़ुदावन्द की नज़र में बदी की।
\v 3 क्यूँकि ख़ुदावन्द के ग़ज़ब की वजह से यरुशलीम और यहूदाह की यह नौबत आई कि आख़िर उसने उनको अपने सामने से दूर ही कर दिया।और सिदक़ियाह शाह-ए-बाबुल से मुन्हरिफ़ हो गया।
\s5
\v 4 और उसकी सल्तनत के नवें बरस के दसवें महीने के दसवें दिन यूँ हुआ कि शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र ने अपनी सारी फ़ौज के साथ यरुशलीम पर चढ़ाई की, और उसके सामने खैमाज़न हुआ और उन्होंने उसके सामने हिसार बनाए।
\v 5 और सिदक़ियाह बादशाह की सल्तनत के ग्यारहवें बरस तक शहर का घिराव रहा।
\s5
\v 6 चौथे महीने के नवें दिन से शहर में काल ऐसा सख़्त हो गया कि मुल्क के लोगों के लिए ख़ुराक न रही।
\v 7 तब शहरपनाह में रख़ना हो गया, और दोनों दीवारों के बीच जो फाटक शाही बाग़ के बराबर था, उससे सब जंगी मर्द रात ही रात भाग गए (इस वक़्त कसदी शहर को घेरे हुए थे) और वीराने की राह ली।
\v 8 लेकिन कसदियों की फ़ौज ने बादशाह का पीछा किया, और उसे यरीहू के मैदान में जा लिया, और उसका सारा लश्कर उसके पास से तितर-बितर हो गया था।
\s5
\v 9 तब वह बादशाह को पकड़ कर रिब्ला में शाह-ए-बाबुल के पास हमात के 'इलाक़े में ले गए, और उसने सिदक़ियाह पर फ़तवा दिया।
\v 10 और शाह-ए-बाबुल ने सिदक़ियाह के बेटों को उसकी आँखों के सामने ज़बह किया, और यहूदाह के सब हाकिम को भी रिब्ला में क़त्ल किया।
\v 11 और उसने सिदक़ियाह की आँखें निकाल डालीं, और शाह-ए-बाबुल उसको ज़ंजीरों से जकड़ कर बाबुल को ले गया, और उसके मरने के दिन तक उसे क़ैदख़ाने में रख्खा।
\s5
\v 12 और शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र के 'अहद के उन्नीसवें बरस के पाँचवें महीने के दसवें दिन जिलौदारों का सरदार नबूज़रादान, जो शाह-ए-बाबुल के सामने में खड़ा रहता था, यरुशलीम में आया।
\v 13 उसने ख़ुदावन्द का घर और बादशाह का महल और यरुशलीम के सब घर, या'नी हर एक बड़ा घर आग से जला दिया।
\v 14 और कसदियों के सारे लश्कर ने जो जिलौदारों के सरदार के हमराह था, यरुशलीम की फ़सील को चारों तरफ़ से गिरा दिया।
\s5
\v 15 और बाक़ी लोगों और मोहताजों को जो शहर में रह गए थे, और उनको जिन्होंने अपनों को छोड़कर शाह-ए- बाबुल की पनाह ली थी, और 'अवाम में से जितने बाक़ी रह गए थे, उन सबको नबूज़रादान जिलौदारों का सरदार ग़ुलाम करके ले गया।
\v 16 लेकिन जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान ने मुल्क के कंगालों को रहने दिया, ताकि खेती और ताकिस्तानों की बागबानी करें।
\s5
\v 17 और पीतल के उन सुतूनों को जो ख़ुदावन्द के घर में थे, और कुर्सियों को और पीतल के बड़े हौज़ को, जो ख़ुदावन्द के घर में था, कसदियों ने तोड़कर टुकड़े टुकड़े किया और उनका सब पीतल बाबुल को ले गए।
\v 18 और देगें और बेल्चे और गुलगीर और लगन और चमचे और पीतल के तमाम बर्तन,जो वहाँ काम आते थे, ले गए।
\v 19 और बासन और अंगेठियाँ और लगन और देगें और शमा'दान और चमचे और प्याले ग़र्ज़ जो सोने के थे उनके सोने को, और जो चाँदी के थे उनकी चाँदी को जिलौदारों का सरदार ले गया।
\s5
\v 20 वह दो सुतून और वह बड़ा हौज़ और वह पीतल के बारह बैल जो कुर्सियों के नीचे थे, जिनको सुलेमान बादशाह ने ख़ुदावन्द के घर के लिए बनाया था; इन सब चीज़ों के पीतल का वज़्न बेहिसाब था।
\v 21 हर सुतून अट्ठारह हाथ ऊँचा था, और बारह हाथ का सूत उसके चारों तरफ़ आता था, और वह चार ऊंगल मोटा था; यह खोखला था।
\s5
\v 22 और उसके ऊपर पीतल का एक ताज था, और वह ताज पाँच हाथ बुलन्द था, उस ताज पर चारों तरफ़ जालियाँ और अनार की कलियाँ, सब पीतल की बनी हुई थीं, और दूसरे सुतून के लवाज़िम भी जाली के साथ इन्हीं की तरह थे।
\v 23 और चारों हवाओं के रुख़ अनार की कलियाँ छियानवे थीं, और चारों तरफ़ जालियों पर एक सौ थीं।
\s5
\v 24 और जिलौदारों के सरदार ने सिरायाह सरदार काहिन को, और काहिन-ए-सानी सफ़नियाह को, और तीनों दरबानों को पकड़ लिया;
\v 25 और उसने शहर में से एक सरदार को पकड़ लिया जो जंगी मर्दों पर मुक़र्रर था, और जो लोग बादशाह के सामने हाज़िर रहते थे, उनमें से सात आदमियों को जो शहर में मिले; और लश्कर के सरदार के मुहर्रिर को जो अहल-ए-मुल्क की मौजूदात लेता था; और मुल्क के आदमियों में से साठ आदमियों को जो शहर में मिले।
\s5
\v 26 ~इनको जिलौदारों का सरदार नबूज़रादान पकड़कर शाह-ए-बाबुल के सामने रिब्ला में ले गया।
\v 27 और शाह-ए-बाबुल ने हमात के 'इलाक़े के रिब्ला में इनको क़त्ल किया। इसलिए यहूदाह अपने मुल्क से ग़ुलाम होकर चला गया।
\s5
\v 28 यह वह लोग हैं जिनको नबूकदरज़र ग़ुलाम करके ले गया: सातवें बरस में तीन हज़ार तेईस यहूदी,
\v 29 नबूकदरज़र के अट्ठारहवें बरस में वह यरुशलीम के बाशिन्दों में से आठ सौ बत्तीस आदमी ग़ुलाम करके ले गया,
\v 30 नबूकदरज़र के तेईसवें बरस में जिलौदारों का सरदार नबूज़रादान सात सौ पैंतालीस आदमी यहूदियों में से पकड़कर ले गया; यह सब आदमी चार हज़ार छ: सौ~थे ।
\s5
\v 31 और यहूयाकीन शाह-ए-यहूदाह की ग़ुलामी के सैतीसवें बरस के बारहवें महीने के पच्चीसवें दिन यूँ हुआ, कि शाह-ए-बाबुल अवील मरूदक ने अपनी सल्तनत के पहले साल यहूयाकीन शाह-ए-यहूदाह को क़ैदख़ाने से निकालकर सरफ़राज़ किया;
\s5
\v 32 और उसके साथ मेहरबानी से बातें कीं, और उसकी कुर्सी उन सब बादशाहों की कुर्सियों से जो उसके साथ बाबुल में थे, बुलन्द की।
\v 33 वह अपने क़ैदख़ाने के कपड़े बदलकर 'उम्र भर बराबर उसके सामने खाना खाता रहा।
\v 34 ~~और उसकी 'उम्र भर, या'नी मरने तक शाह-ए-बाबुल की तरफ़ से वज़ीफ़े के तौर पर हर रोज़ रसद मिलती रही।

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25-LAM.usfm Normal file
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\c 1
\p
\v 1 वह बस्ती जो लोगों से भरी थी, कैसी ख़ाली पड़ी है! वह क़ौमों की 'ख़ातून बेवा की तरह ~हो गई! वह कुछ गुज़ारे के लिए मुल्क की ~मलिका बन गई!
\v 2 वह रात को ज़ार-ज़ार रोती है, उसके आँसू चेहरे पर बहते हैं; उसके चाहने वालों में कोई नहीं जो उसे तसल्ली दे; उसके सब दोस्तों ने उसे धोका दिया, वह उसके दुश्मन हो गए।
\s5
\v 3 यहूदाह ज़ुल्म और सख़्त मेहनत की वजह ~से जिलावतन हुआ, वह क़ौमों के बीच रहते और बे-आराम है, उसके सब सताने वालों ने उसे घाटियों में जा लिए।
\s5
\v 4 सिय्यून के रास्ते मातम करते हैं, क्यूँकि ख़ुशी के लिए कोई नहीं आता; उसके सब दरवाज़े सुनसान हैं, उसके काहिन आहें भरते हैं;उसकी कुँवारियाँ मुसीबत ज़दा हैं और वह ख़ुद ग़मगीन है |
\v 5 ~उसके मुख़ालिफ़ ग़ालिब आए और दुश्मन खु़शहाल हुए; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उसके गुनाहों की ज़्यादती ~के ज़रिए' उसे ग़म में डाला; उसकी औलाद को दुश्मन ग़ुलामी में पकड़ ले गए।
\s5
\v 6 ~सिय्यून की बेटियों की सब शान-ओ-शौकत जाती रही; उसके हाकिम उन हरनों की तरह हो गए हैं,जिनको चरागाह नहीं मिलती, और शिकारियों के सामने बे बस हो जाते हैं।
\s5
\v 7 यरुशलीम को अपने ग़म-ओ-मुसीबत के दिनों में, जब उसके रहने वाले दुश्मन का शिकार हुए,और किसी ने मदद न की, अपने गुज़रे ~ज़माने की सब ने'मतें याद आईं, दुश्मनों ने उसे देखकर उसकी बर्बादी पर हँसी उड़ाई।
\s5
\v 8 ~यरुशलीम सख़्त गुनाह करके नापाक हो गया; जो उसकी 'इज़्ज़त करते थे, सब उसे हक़ीर जानते हैं, हाँ, वह ख़ुद आहें भरता, और मुँह फेर लेता है।
\v 9 उसकी नापाकी उसके दामन में है,उसने अपने अंजाम का ख़्याल न किया; इसलिए वह बहुत बेहाल हुआ;और उसे तसल्ली देने वाला कोई न रहा; ऐ ख़ुदावन्द, मेरी मुसीबत पर नज़र कर; क्यूँकि दुश्मन ने ग़ुरूर किया है।
\s5
\v 10 दुश्मन ने उसकी तमाम 'उम्दा चीज़ों पर हाथ बढ़ाया है; उसने अपने मक़्दिस में क़ौमों को दाख़िल होते देखा है। जिनके बारे में तू ने फ़रमाया था, कि वह तेरी जमा'अत में~दाख़िल न हों।
\s5
\v 11 उसके सब रहने वाले ~कराहते और रोटी ढूंडते हैं, उन्होंने अपनी 'उम्दा चीज़े दे डालीं, ताकि रोटी से ताज़ा दम हों;ऐ ख़ुदावन्द, मुझ पर नज़र कर; क्यूँकि मैं ज़लील हो गया
\v 12 ऐ सब आने जाने वालों, क्या तुम्हारे नज़दीक ये कुछ नहीं? नज़र करो और देखो; क्या कोई ग़म मेरे ग़म की तरह है, जो मुझ पर आया है जिसे ख़ुदावन्द ने अपने बड़े ग़ज़ब के वक़्त नाज़िल किया।
\s5
\v 13 उसने 'आलम-ए-बाला से मेरी हड्डियों में आग भेजी, और वह उन पर ग़ालिब आई; उसने मेरे पैरों के लिए जाल बिछाया,उस ने मुझे पीछे लौटाया: उसने मुझे दिन भर वीरान-ओ-बेताब किया।
\v 14 मेरी ख़ताओं का बोझ उसी के हाथ से बाँधा गया है; वह बाहम पेचीदा मेरी गर्दन पर हैं उसने मुझे कमज़ोर कर दिया है; ख़ुदावन्द ने मुझे उनके हवाले किया है, जिनके मुक़ाबिले की मुझ में हिम्मत नहीं।
\s5
\v 15 ~ख़ुदावन्द ने मेरे अन्दर ही मेरे बहादुरों को नाचीज़ ठहराया; उसने मेंरे ख़िलाफ़ एक ख़ास जमा'अत को बुलाया, कि मेरे बहादुरों को कुचले; ख़ुदावन्द ने यहूदाह की कुँवारी बेटी को गोया कोल्हू में कुचल डाला।
\s5
\v 16 ~इसीलिए मैं रोती हूँ, मेरी आँखें आँसू से भरी हैं, जो मेरी रूह को ताज़ा करे, मुझ से दूर है; मेरे बाल-बच्चे बे सहारा हैं, क्यूँकि दुश्मन ग़ालिब आ गया।
\v 17 ~सिय्यून ने हाथ फैलाए; उसे तसल्ली देने वाला कोई नहीं; या'कू़ब के बारे में ख़ुदावन्द ने हुक्म दिया है, कि उसके इर्दगिर्द वाले उसके दुश्मन हों, यरुशलीम उनके बीच नजासत की तरह है।
\s5
\v 18 ~ख़ुदावन्द सच्चा है, क्यूँकि मैंने उसके हुक्म से नाफ़रमानी की है; ऐ सब लोगों, मैं मिन्नत करता हूँ, सुनो, और मेरे दुख़ पर नज़र करो, मेरी कुँवारिया और जवान ग़ुलाम होकर चले गए।
\v 19 मैंने अपने दोस्तों को पुकारा, उन्होंने मुझे धोका दिया; मेरे काहिन और बुज़ुर्ग अपनी रूह को ताज़ा करने के लिए, शहर में खाना ढूंडते-ढूंडते हलाक हो गए।
\s5
\v 20 ऐ ख़ुदावन्द देख: मैं तबाह हाल हूँ, मेरे अन्दर पेच-ओ-ताब है; मेरा दिल मेरे अन्दर मुज़तरिब है; क्यूँकि मैंने सख़्त बग़ावत की है; बाहर तलवार बे-औलाद करती है और घर में मौत का सामना है।
\s5
\v 21 उन्होंने मेरी आहें सुनी हैं; मुझे तसल्ली देनेवाला कोई नहीं; मेरे सब दुश्मनों ने मेरी मुसीबत सुनी; वह ख़ुश हैं कि तू ने ऐसा किया; तू वह दिन लाएगा, जिसका तू ने 'ऐलान किया है, और वह मेरी तरह हो जाएँगे।
\v 22 उनकी तमाम शरारत तेरे सामने आयें; उनसे वही कर जो तू ने मेरी तमाम ख़ताओं के ज़रिए' मुझसे किया है; क्यूँकि मेरी आहें बेशुमार हैं और मेरा दिल बेबस है|
\s5
\c 2
\p
\v 1 ख़ुदावन्द ने अपने क़हर में ~सिय्यून की बेटी को कैसे बादल से छिपा दिया! उसने इस्राईल की खू़बसूरती को आसमान से ज़मीन पर गिरा दिया, और अपने ग़ज़ब के दिन भी अपने पैरों की चौकी को याद न किया।
\v 2 ख़ुदावन्द ने या'कू़ब के तमाम घर हलाक किए, और रहम न किया; उसने अपने क़हर में ~यहूदाह की बेटी के तमाम क़िले' गिराकर ख़ाक में मिला दिए उसने मुल्कों और उसके हाकिमों को नापाक ठहराया ।
\s5
\v 3 उसने बड़े ग़ज़ब में इस्राईल का सींग बिल्कुल काट डाला; उसने दुश्मन के सामने से दहना हाथ खींच लिया; और उसने जलाने वाली आग की तरह, जो चारों तरफ़ ख़ाक करती है, या'कू़ब को जला दिया।
\v 4 उसने दुश्मन की तरह कमान खींची, मुख़ालिफ़ की तरह दहना हाथ बढ़ाया, और सिय्यून की बेटी के खे़में में सब हसीनों को क़त्ल किया! उसने अपने क़हर की आग को उँडेल दिया।
\s5
\v 5 ख़ुदावन्द दुश्मन की तरह हो गया, वह इस्राईल को निगल गया, वह उसके तमाम महलों को निगल गया, उसने उसके क़िले' मिस्मार कर दिए, और उसने दुख़्तर-ए-यहूदाह में मातम-ओ नौहा बहुतायत से कर दिया।
\v 6 ~और उसने अपने घर को एक बार में ही बर्बाद कर दिया, गोया ख़ैमा-ए-बाग़ था; और अपने मजमे' के मकान को बर्बाद कर दिया; ख़ुदावन्द ने मुक़द्दस 'ईदों और सबतों को सिय्यून से फ़रामोश करा दिया, और अपने क़हर के जोश में बादशाह और काहिन को ज़लील किया।
\s5
\v 7 ~ख़ुदावन्द ने अपने मज़बह को रद्द किया, उसने अपने मक़दिस से नफ़रत की, उसके महलों की दीवारों को दुश्मन के हवाले कर दिया; उन्होंने ख़ुदावन्द के घर में ऐसा शोर मचाया, जैसा 'ईद के दिन।
\s5
\v 8 ~ख़ुदावन्द ने दुख़्तर-ए-सिय्यून की दीवार गिराने का इरादा किया है; उसने डोरी डाली है, और बर्बाद करने से दस्तबरदार नहीं हुआ; उसने फ़सील और दीवार को मग़मूम किया; वह एक साथ ~मातम करती हैं।
\v 9 ~उसके दरवाज़े ज़मीन में गर्क़ हो गए; उसने उसके बेन्डों को तोड़कर बर्बाद कर दिया; उसके बादशाह और उमरा बे-शरी'अत क़ौमों में हैं; उसके नबी भी ख़ुदावन्द की तरफ़ से कोई ख़्वाब नहीं देखते।
\s5
\v 10 दुख़्तर-ए-सिय्यून के बुज़ुर्ग ख़ाक नशीन और ख़ामोश हैं; वह अपने सिरों पर ख़ाक डालते और टाट ओढ़ते हैं; यरुशलीम की कुँवारियाँ ज़मीन पर सिर झुकाए हैं।
\s5
\v 11 मेरी आँखें रोते-रोते धुंदला गईं, मेरे अन्दर पेच-ओ-ताब है, मेरी दुख़्तर-ए-क़ौम की बर्बादी के ज़रिए' मेरा कलेजा निकल आया; क्यूँकि छोटे बच्चे और दूध पीने वाले शहर की गलियों में बेहोश हैं।
\v 12 ~जब वह शहर की गलियों में के ज़ख्मियों की तरह ग़श खाते, और जब अपनी माँओं की गोद में जाँ बलब होते हैं; तो उनसे कहते हैं, कि ग़ल्ला और मय कहाँ है?
\s5
\v 13 ऐ दुख़्तर-ए-यरुशलीम, मैं तुझे क्या नसीहत करूँ, और किससे मिसाल दूँ? ऐ कुँवारी दुख्त़र-ए-सिय्यून, तुझे किस की तरह जान कर तसल्ली दूँ? क्यूँकि तेरा ज़ख़्म समुन्दर सा बड़ा है; तुझे कौन शिफ़ा देगा?
\v 14 तेरे नबियों ने तेरे लिए, बातिल और बेहूदा ख़्वाब देखे: और तेरी बदकिरदारी ज़ाहिर न की,ताकि तुझे ग़ुलामी ~से वापस लाते: बल्कि तेरे लिए झूटे पैग़ाम और जिलावतनी के सामान देखे।
\s5
\v 15 सब आने जानेवाले तुझ पर तालियाँ बजाते हैं; वह दुख़्तर-ए-यरुशलीम पर सुसकारते और सिर हिलाते हैं, के क्या, ये वही शहर है, जिसे लोग कमाल-ए-हुस्न और फ़रहत-ए-जहाँ कहते थे?
\v 16 तेरे सब दुश्मनों ने तुझ पर मुँह पसारा है; वह सुसकारते और दाँत पीसते हैं;वो कहते हैं, हम उसे निगल गए; बेशक हम इसी दिन के मुन्तज़िर थे; इसलिए आ पहुँचा, और हम ने देख लिया
\s5
\v 17 ख़ुदावन्द ने जो तय किया वही किया; उसने अपने कलाम को, जो पुराने दिनों में फ़रमाया था, पूरा किया; उसने गिरा दिया, और रहम न किया; और उसने दुश्मन को तुझ पर शादमान किया, उसने तेरे मुख़ालिफ़ों का सींग बलन्द किया।
\s5
\v 18 उनके दिलों ने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की, ऐ दुख़्तर-ए-सिय्यून की फ़सील,शब-ओ-रोज़ ऑसू नहर की तरह जारी रहें; तू बिल्कुल आराम न ले; तेरी आँख की पुतली आराम न करे।
\v 19 उठ रात को पहरों के शुरू' में फ़रियाद कर; ख़ुदावन्द के हुजू़र अपना दिल पानी की तरह उँडेल दे; अपने बच्चों की ज़िन्दगी के लिए, जो सब गलियों में भूक से बेहोश पड़े हैं, उसके सामने में दस्त-ए-दु'आ बलन्द कर।
\s5
\v 20 ~ऐ ख़ुदावन्द, नज़र कर, और देख, कि तू ने किससे ये किया ! क्या 'औरतें अपने फल या'नी अपने लाडले बच्चों को खाएँ? क्या काहिन और नबी ख़ुदावन्द के मक़्दिस में क़त्ल किए जाएँ?
\s5
\v 21 बुज़ुर्ग-ओ-जवान गलियों में ख़ाक पर पड़े हैं; मेरी कुँवारियाँ और मेरे जवान तलवार से क़त्ल हुए; तू ने अपने क़हर के दिन उनको क़त्ल किया; तूने उनको काट डाला, और रहम न किया।
\v 22 तूने मेरी दहशत को हर तरफ से गोया 'ईद के दिन बुला लिया, और ख़ुदावन्द के क़हर के दिन न कोई बचा, न बाक़ी रहा; जिनको मैंने गोद में खिलाया और पला पोसा, मेरे दुश्मनों ने फ़ना कर दिया|
\s5
\c 3
\p
\v 1 ~मैं ही वह शख़्स हूँ जिसने उसके ग़ज़ब की लाठी से दुख पाया।
\v 2 वह मेरा रहबर हुआ, और मुझे रौशनी में नहीं, बल्कि तारीकी में चलाया;
\v 3 यक़ीनन उसका हाथ दिन भर मेरी मुख़ालिफ़त करता रहा।
\v 4 ~उसने मेरा गोश्त और चमड़ा ख़ुश्क कर दिया, और मेरी हड्डियाँ तोड़ डालीं,
\s5
\v 5 उसने मेरे चारों तरफ़ दीवार खेंची और मुझे कड़वाहट और-मशक़्क़त से घेर लिया;
\v 6 ~उसने मुझे लम्बे वक़्त से मुर्दों की तरह तारीक मकानों में रख्खा।
\v 7 ~उसने मेरे गिर्द अहाता बना दिया,कि मैं बाहर नहीं निकल सकता; उसने मेरी ज़ंजीर भारी कर दी।
\v 8 बल्कि जब मैं पुकारता और दुहाई देता हूँ, तो वह मेरी फ़रियाद नहीं सुनता।
\s5
\v 9 ~उसने तराशे हुए पत्थरों से मेरे रास्तेबन्द कर दिए, उसने मेरी राहें टेढ़ी कर दीं।
\v 10 वह मेरे लिए घात में बैठा हुआ रीछ और कमीनगाह का शेर-ए-बब्बर है।
\v 11 उसने मेरी राहें तंग कर दीं और मुझे रेज़ा-रेज़ा करके बर्बाद कर दिया।
\s5
\v 12 उसने अपनी कमान खींची और मुझे अपने तीरों का निशाना बनाया।
\v 13 उसने अपने तर्कश के तीरों से मेरे गुर्दों को छेद डाला।
\v 14 मैं अपने सब लोगों के लिए मज़ाक़, और दिन भर उनका चर्चा हूँ।
\v 15 उसने मुझे तल्ख़ी से भर दिया और नाग़दोने ~से मदहोश किया।
\s5
\v 16 उसने संगरेज़ों से मेरे दाँत तोड़े और मुझे ज़मीन की तह में लिटाया।
\v 17 ~तू ने मेरी जान को सलामती से दूरकर दिया, मैं ख़ुशहाली को भूल गया;
\v 18 और मैंने कहा, "मैं नातवाँ हुआ, और ख़ुदावन्द से मेरी उम्मीद जाती रही।"
\s5
\v 19 ~मेरे दुख का ख़्याल कर; मेरी मुसीबत, या'नी तल्ख़ी और नाग़दोने को याद कर।
\v 20 इन बातों की याद से मेरी जान मुझ में बेताब है।
\v 21 ~मैं इस पर सोचता रहता हूँ, इसीलिए मैं उम्मीदवार हूँ।
\s5
\v 22 ये ख़ुदावन्द की शफ़क़त है, कि हम फ़ना नहीं हुए, क्यूँकि उसकी रहमत ला ज़वाल है।
\v 23 वह हर सुबह ताज़ा है; तेरी वफ़ादारी 'अज़ीम है
\v 24 ~मेरी जान ने कहा, "मेरा हिस्सा ख़ुदावन्द है, इसलिए मेरी उम्मीद उसी से है।”
\s5
\v 25 ख़ुदावन्द उन पर महरबान है, जो उसके मुन्तज़िर हैं; उस जान पर जो उसकी तालिब है।
\v 26 ~ये खू़ब है कि आदमी उम्मीदवार रहे और ख़ामोशी से ख़ुदावन्द की नजात का इन्तिज़ार करे।
\v 27 आदमी के लिए बेहतर है कि अपनी जवानी के दिनों में फ़रमॉबरदारी करे।
\v 28 ~वह तन्हा बैठे और ख़ामोश रहे, क्यूँकि ये ख़ुदा ही ने उस पर रख्खा है।
\v 29 वह अपना मुँह ख़ाक पर रख्खे, कि शायद कुछ उम्मीद की सूरत निकले।
\s5
\v 30 ~वह अपना गाल उसकी तरफ़ फेर दे, जो उसे तमाँचा मारता है और मलामत से खू़ब सेर हो
\v 31 क्यूँकि ख़ुदावन्द हमेशा के लिए रद्द न करेगा,
\v 32 क्यूँकि अगरचे वह दुख़ दे, तोभी अपनी शफ़क़त की दरयादिली से रहम करेगा।
\v 33 ~क्यूँकि वह बनी आदम पर खु़शी से दुख़ मुसीबत नहीं भेजता।
\s5
\v 34 रू-ए-ज़मीन के सब कै़दियों को पामाल करना
\v 35 हक़ ताला के सामने किसी इन्सान की हक़ तल्फ़ी करना,
\v 36 और किसी आदमी का मुक़द्दमा बिगाड़ना,ख़ुदावन्द देख नहीं सकता।
\s5
\v 37 ~वह कौन है जिसके कहने के मुताबिक़ होता है, हालाँकि ख़ुदावन्द नहीं फ़रमाता?
\v 38 ~क्या भलाई और बुराई हक़ ताला ही के हुक्म से नहीं हैं ?
\v 39 ~इसलिए आदमी जीते जी क्यूँ शिकायत करे, जब कि उसे गुनाहों की सज़ा मिलती हो?
\s5
\v 40 हम अपनी राहों को ढूंडें और जाँचें, और ख़ुदावन्द की तरफ़ फिरें।
\v 41 हम अपने हाथों के साथ दिलों को भी ख़ुदा के सामने आसमान की तरफ़ उठाएँ:
\v 42 हम ने ख़ता और सरकशी की, तूने मु'आफ़ नहीं किया।
\v 43 तू ने हम को क़हर से ढाँपा और रगेदा; तूने क़त्ल किया, और रहम न किया।
\s5
\v 44 तू बादलों में मस्तूर हुआ, ताकि हमारी दु'आ तुझ तक न पहुँचे।
\v 45 ~तूने हम को क़ौमों के बीच कूड़े करकट और नजासत सा बना दिया।
\v 46 हमारे सब दुश्मन हम पर मुँह पसारते हैं;
\v 47 ख़ौफ़-और-दहशत और वीरानी-और-हलाकत ने हम को आ दबाया।
\s5
\v 48 ~मेरी दुख़्तर-ए-क़ौम की तबाही के ज़रिए' मेरी आँखों से आँसुओं की नहरें जारी हैं।
\v 49 मेरी ऑखें अश्कबार हैं और थमती नहीं, उनको आराम नहीं,
\v 50 जब तक ख़ुदावन्द आसमान पर से नज़र करके न देखे;
\s5
\v 51 मेरी आँखें मेरे शहर की सब बेटियों के लिए मेरी जान को आज़ुर्दा करती हैं।
\v 52 ~मेरे दुश्मनों ने बे वजह मुझे परिन्दे की तरह दौड़ाया;
\v 53 उन्होंने चाह-ए-ज़िन्दान में मेरी जान लेने को मुझ पर पत्थर रख्खा;
\v 54 पानी मेरे सिर से गुज़र गया, मैंने कहा, 'मैं मर मिटा।'
\s5
\v 55 ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तह दिल से तेरे नाम की दुहाई दी;
\v 56 तू ने मेरी आवाज़ सुनी है, मेरी आह-ओ- फ़रियाद से अपना कान बन्द न कर"।
\v 57 जिस रोज़ मैने तुझे पुकारा, तू नज़दीक आया; और तू ने फ़रमाया, "परेशान न हो!"
\s5
\v 58 ऐ ख़ुदावन्द, तूने मेरी जान की हिमायत की और उसे छुड़ाया।
\v 59 ~ऐ ख़ुदावन्द, तू ने मेरी मज़लूमी देखी; मेरा इन्साफ़ कर।
\v 60 ~तूने मेरे ख़िलाफ़ उनके तमाम इन्तक़ामऔर सब मन्सूबों को देखा है।
\v 61 ऐ ख़ुदावन्द, तूने मेरे ख़िलाफ़ उनकी मलामत और उनके सब मन्सूबों को सुना है;
\s5
\v 62 जो मेरी मुख़ालिफ़त को उठे उनकी बातें और दिन भर मेरी मुख़ालिफ़त में उनके मन्सूबे।
\v 63 उनकी महफ़िल-ओ-बरख़ास्त को देख कि मेरा ही ज़िक्र है।
\s5
\v 64 ऐ ख़ुदावन्द, उनके 'आमाल के मुताबिक़ उनको बदला दे।
\v 65 ~उनको कोर दिल बना कि तेरी ला'नत उन पर हो।
\v 66 क़हर से उनको भगा और रू-ए-ज़मीन से नेस्त-ओ-नाबूद कर दे|"
\s5
\c 4
\p
\v 1 ~सोना कैसा बेआब हो गया! कुन्दन कैसा बदल गया! मक़्दिस के पत्थर तमाम गली कूचों में पड़े हैं!
\v 2 सिय्यून के 'अज़ीज़ फ़र्ज़न्द,जो ख़ालिस सोने की तरह थे, कैसे कुम्हार के बनाए हुए बर्तनों के बराबर ठहरे!
\s5
\v 3 गीदड़ भी अपनी छातियों से अपने बच्चों को दूध पिलाते हैं; लेकिन मेरी दुख़्तर-ए-क़ौम वीरानी शुतरमुर्ग़ की तरह बे-रहम है।
\s5
\v 4 दूध पीते बच्चों की ज़बान प्यास के मारे तालू से जा लगी; बच्चे रोटी मांगते हैं लेकिन उनको कोई नहीं देता।
\v 5 जो नाज़ पर्वरदा थे, गलियों में तबाह हाल हैं; जो बचपन से अर्ग़वानपोश थे, मज़बलों पर पड़े हैं।
\s5
\v 6 ~क्यूँकि मेरी दुख़्तर-ए-क़ौम की बदकिरदारी सदूम के गुनाह से बढ़कर है, जो एक लम्हे में बर्बाद हुआ,और किसी के हाथ उस पर दराज़ न हुए।
\s5
\v 7 उसके शुर्फ़ा बर्फ़ से ज़्यादा साफ़ और दूध से सफ़ेद थे, उनके बदन मूंगे से ज़्यादा सुर्ख थे, उन की झलक नीलम की सी थी;
\v 8 अब उनके चेहरे सियाही से भी काले हैं; वह बाज़ार में पहचाने नहीं जाते; उनका चमड़ा हड्डियों से सटा है; वह सूख कर लकड़ी सा हो गया।
\s5
\v 9 ~तलवार से क़त्ल होने वाले, भूकों मरने वालों से बहतर हैं; क्यूँकि ये खेत का हासिल न मिलने से कुढ़कर हलाक होते हैं।
\v 10 ~रहमदिल 'औरतों के हाथों ने अपने बच्चों को पकाया; मेरी दुख़्तर-ए-क़ौम की तबाही में वही उनकी खू़राक हुए।
\s5
\v 11 ~ख़ुदावन्द ने अपने ग़ज़ब को अन्जाम दिया; उसने अपने क़हर-ए-शदीद को नाज़िल किया। और उसने सिय्यून में आग भड़काई जो उसकी बुनियाद को चट कर गई।
\s5
\v 12 ~रू-ए-ज़मीन के बादशाह और दुनिया के बाशिन्दे बावर नहीं करते थे, कि मुख़ालिफ़ और दुश्मन यरुशलीम के फाटकों से घुस आएँगे।
\v 13 ये उसके नबियों के गुनाहों और काहिनों की बदकिरदारी की वजह से हुआ, जिन्होंने उसमें सच्चों का खू़न बहाया।
\s5
\v 14 वह अन्धों की तरह गलियों में भटकते, और खू़न से आलूदा होते हैं, ऐसा कि कोई उनके लिबास को भी छू नहीं सकता।
\v 15 ~वह उनको पुकार कर कहते थे, "दूर रहो! नापाक, दूर रहो! दूर रहो, छूना मत!" जब वह भाग जाते और आवारा फिरते, तो लोग कहते थे, 'अब ये यहाँ न रहेंगे।"
\s5
\v 16 ~ख़ुदावन्द के क़हर ने उनको पस्त किया, अब वह उन पर नज़र नहीं करेगा; उन्होंने काहिनों की 'इज़्ज़त न की, और बुज़ुगों का लिहाज़ न किया।
\s5
\v 17 ~हमारी आँखें बातिल मदद के इन्तिज़ार में थक गईं, हम उस क़ौम का इन्तिज़ार करते रहे जो बचा नहीं सकती थी।
\v 18 उन्होंने हमारे पाँव ऐसे बाँध रख्खे हैं, कि हम बाहर नहीं निकल सकते; हमारा अन्जाम नज़दीक है, हमारे दिन पूरे हो गए; हमारा वक़्त आ पहुँचा।
\s5
\v 19 हम को दौड़ाने वाले आसमान के उक़ाबों से भी तेज़ हैं; उन्होंने पहाड़ों पर हमारा पीछा किया; वह वीराने में हमारी घात में बैठे।
\v 20 ~हमारी ज़िन्दगी का दम ख़ुदावन्द का मम्सूह,उनके गढ़ों में गिरफ़्तार हो गया; जिसकी वजह हम कहते थे, कि उसके साये तले हम क़ौमों के बीच ज़िन्दगी बसर करेंगे।
\s5
\v 21 ~ऐ दुख़्तर-ए-अदोम, जो 'ऊज़ की सरज़मीन में बसती है, ख़ुश-और-ख़ुर्रम हो; ये प्याला तुझ तक भी पहुँचेगा; तू मस्त और बरहना हो जाएगी।
\v 22 ऐ दुख़्तर-ए-सिय्यून, तेरी बदकिरदारी की सज़ा तमाम हुई; वह मुझे फिर ग़ुलाम करके नहीं ले जाएगा; ऐ~दुख़्तर-ए-अदोम, वह तेरी बदकिरदारी की सज़ा देगा; वह तेरे गुनाह वाश करेगा|
\s5
\c 5
\p
\v 1 ~ऐ ख़ुदावन्द, जो कुछ हम पर गुज़रा~उसे याद कर; नज़र कर और हमारी रुस्वाई को देख।
\v 2 ~हमारी मीरास अजनबियों के हवाले की गई, हमारे घर बेगानों ने ले लिए।
\v 3 हम यतीम हैं, हमारे बाप नहीं,~हमारी माँए बेवाओं की तरह हैं।
\v 4 ~हम ने अपना पानी मोल लेकर पिया;~अपनी लकड़ी भी हम ने दाम देकर ली।
\s5
\v 5 ~हम को रगेदने वाले हमारे सिर पर हैं;~हम थके हारे और बेआराम हैं।
\v 6 हम ने मिस्रियों और असूरियों की इता'अत क़ुबूल की ताकि रोटी से सेर और आसूदा हों।
\v 7 ~हमारे बाप दादा गुनाह करके चल बसे, और हम उनकी बदकिरदारी की सज़ा पा रहे हैं।
\s5
\v 8 गु़लाम हम पर हुक्मरानी करते हैं;~उनके हाथ से छुड़ाने वाला कोई नहीं।
\v 9 सहरा नशीनों की तलवार के ज़रिए',~हम जान पर खेलकर रोटी हासिल करते हैं।
\v 10 क़हत की झुलसाने वाली आग के ज़रिए',हमारा चमड़ा तनूर की तरह ~सियाह हो गया है।
\s5
\v 11 ~उन्होंने सिय्यून में 'औरतों को बेहुरमत किया और यहूदाह के शहरों में कुँवारी~लड़कियों को ।
\v 12 हाकिम को उनके हाथों से लटका दिया;~बुज़ुगों की रू-दारी न की गई।
\s5
\v 13 जवानों ने चक्की पीसी,~और बच्चों ने गिरते पड़ते लकड़ियाँ ढोईं।
\v 14 बुज़ुर्ग फाटकों पर दिखाई नहीं देते,~जवानों की नग़मा परदाज़ी सुनाई नहीं देती।
\s5
\v 15 हमारे दिलों से खुशी जाती रही;~हमारा रक़्स मातम से बदल गया।
\v 16 ताज हमारे सिर पर से गिर पड़ा;~हम पर अफ़सोस! कि हम ने गुनाह किया।
\s5
\v 17 ~इसीलिए हमारे दिल बेताब हैं;~इन्हीं बातों के ज़रिए' हमारी आँखें धुंदला गई,
\v 18 कोह-ए-सिय्यून की वीरानी के ज़रिए', उस पर गीदड़ फिरते हैं।
\s5
\v 19 लेकिन तू, ऐ ख़ुदावन्द, हमेशा तक क़ायम है;~और तेरा तख़्त नसल-दर-नसल।
\v 20 फिर तू क्यूँ हम को हमेशा के लिए भूल जाता है, और हम को लम्बे वक़्त तक तर्क करता है?
\v 21 ~ऐ ख़ुदावन्द, हम को अपनी तरफ़ फिरा,~तो हम फिरेंगे; हमारे दिन बदल दे, जैसे पहले से थे।
\v 22 क्या तू ने हमको बिल्कुल रद्द कर दिया है? क्या तू हमसे शख़्त नाराज़ है?

1974
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\h हिज़्क़ीएल
\toc1 हिज़्क़ीएल
\toc2 हिज़्क़ीएल
\toc3 ezk
\mt1 हिज़्क़ीएल
\s5
\c 1
\p
\v 1 तेइसवीं बरस के चौथे महीने की पाँचवीं तारीख़ को यूँ हुआ कि जब मैं नहर-ए-किबार के किनारे पर ग़ुलामों के बीच था तो आसमान खुल गया और मैंने ख़ुदा की रोयतें देखीं|
\v 2 उस महीने की पाँचवीं को यहूयाकीम बादशाह की ग़ुलामी के पाँचवीं बरस|
\v 3 ख़ुदावन्द का कलाम बूज़ी के बेटे हिज़क़िएल काहिन पर जो कसदियों के मुल्क में नहर-ए-किबार के किनारे पर था नाज़िल हुआ, और वहाँ ख़ुदावन्द का हाथ उस पर था|
\s5
\v 4 और मैंने नज़र की तो क्या देखता हूँ कि उत्तर से आँधी उठी एक बड़ी घटा और लिपटती हुई आग और उसके चारों तरफ़ रोशनी चमकती थी और उसके बीच से या'नी उस आग में से सैक़ल किये हुए पीतल की तरह सूरत जलवागर हुई|
\v 5 और उसमें से चार जानदारों की एक शबीह नज़र आई और उनकी शक्ल यूँ थी कि वह इंसान से मुशाबह थे|
\v 6 और हर एक चार चेहरे और चार पर थे |
\s5
\v 7 और उनकी टाँगे सीधी थीं और उनके पाँव के तलवे बछड़े की पाँव के तलवे की तरह थे और वह मंजे हुए पीतल की तरह झलकते थे|
\v 8 और उनके चारों तरफ़ परों के नीचे इन्सान के हाथ थे और चारों के चेहरे और पर यूँ थे |
\v 9 कि उनके पर एक दूसरे के साथ जुड़े थे और वह चलते हुए मुड़ते न थे बल्कि सब सीधे आगे बढ़े चले जाते थे|
\s5
\v 10 उनके चेहरों की मुशाबिहत यूँ थी कि उन चारों का एक एक चेहरा इन्सान का एक शेर बबर का उनकी दहिनी तरफ़ और उन चारों का एक एक चेहरा सांड का बाईं तरफ़ और उन चारों का एक एक चेहरा 'उक़ाब का था|
\v 11 उनके चेहरे यूँ थे और उनके पर ऊपर से अलग-अलग थे हर एक के ऊपर दूसरे के दो परों से मिले हुए थे और दो दो से उनका बदन छिपा हुआ था|
\v 12 उनमें से हर एक सीधा आगे को चला जाता था जिधर को जाने की ख़्वाहिश होती थी वह जाते थे, वह चलते हुए मुड़ते न थे|
\s5
\v 13 रही उन जानदारों की सूरत तो उनकी शक्ल आग के सुलगे हुए कोयलों और मशा'लों की तरह थी, वह उन जानदारों के बीच इधर उधर आती जाती थी और वह आग नूरानी थी और उसमे से बिजली निकलती थी |
\v 14 और वह जानदार ऐसे हटते बढ़ते थे जैसे बिजली कौंध जाती है|
\s5
\v 15 जब मैंने उन जानदारों की तरफ़ नज़र की तो क्या देखता हूँ कि उन चार चार चेहरों वाले जानदारों के हर चेहरे के पास ज़मीन पर एक पहिया है|
\v 16 उन पहियों की सूरत और और बनावट ज़बरजद के जैसी थी और वह चारों एक ही वज़ा' के थे और उनकी शक्ल और उनकी बनावट ऐसी थी जैसे पहिया पहटे के बीच में है|
\s5
\v 17 वह चलते वक़्त अपने चारों पहलुओं पर चलते थे और पीछे नहीं मुड़ते थे |
\v 18 और उनके हलक़े बहुत ऊँचे और डरावने थे और उन चारों के हलक़ों के चारों तरफ़ आँखें ही आँखें थीं|
\s5
\v 19 जब वह जानदार चलते थे तो पहिये भी उनके साथ चलते थे और जब वह जानदार ज़मीन पर से उठाये जाते थे तो पहिये भी उठाये जाते थे|
\v 20 जहाँ कहीं जाने की ख़्वाहिश होती थी जाते थे, उनकी ख़्वाहिश उनको उधर ही ले जाती थी और पहिये उनके साथ उठाये जाते थे, क्यूँकि जानदार की रूह पहियों में थी|
\v 21 जब वह चलते थे, यह चलते थे; और जब वह ठहरते थे, यह ठरते थे; और जब वह ज़मीन पर से उठाये जाते थे तो पहिये भी उनके साथ उठाये जाते थे, क्यूँकि पहियों में जानदार की रूह थी|
\s5
\v 22 जानदारों के सरो के ऊपर की फ़ज़ा बिल्लोर की तरह चमक थी और उनके सरों के ऊपर फ़ैली थी|
\v 23 और उस फ़ज़ा के नीचे उनके पर एक दूसरे की सीध में थे हर एक दो परों से उनके बदनो का एक पहलू और दो परों से दूसरा हिस्सा छिपा था
\s5
\v 24 और जब वह चले तो मैंने उनके परों की आवाज़ सुनी जैसे बड़े सैलाब की आवाज़ या'नी क़ादिर-ए-मुतलक़ की आवाज़ और ऐसी शोर की आवाज़ हुई जैसी लश्कर की आवाज़ होती है जब वह ठहरते थे तो अपने परों को लटका देते थे|
\v 25 और उस फ़ज़ा के ऊपर से जो उनके सरो के ऊपर थी, एक आवाज़ आती थी और वह जब ठहरते थे तो अपने बाज़ुओं को लटका देते थे|
\s5
\v 26 और उस फ़ज़ा से ऊपर जो उनके सरों के ऊपर थी तख़्त की सूरत थी और उसकी सूरत नीलम के पत्थर की तरह थी और उस तख़्त नुमा सूरत पर किसी इन्सान की तरह शबीह उसके ऊपर नज़र आयी|
\s5
\v 27 और मैंने उसकी कमर से लेकर ऊपर तक सैक़ल किये हुए पीतल के जैसा रंग और शो'ला सा जलवा उसके बीच और चारों तरफ़ देखा और उसकी कमर से लेकर नीचे तक मैंने शो'ला की तरह तजल्ली देखी, और उसकी चारों तरफ़ जगमगाहट थी|
\v 28 जैसी उस कमान की सूरत है जो बारिश के दिन बादलों में दिखाई देती है वैसी ही आस-पास की उस जगमगाहट ज़ाहिर थी यह ख़ुदावन्द के जलाल का इज़हार था, और देखते ही मैं सिज्दे में गिरा और मैंने एक आवाज़ सुनी जैसे कोई बातें करता है|
\s5
\c 2
\p
\v 1 और उसने मुझे कहा, ऐ आदमज़ाद अपने पाँव पर खड़ा हो कि मैं तुझसे बातें करूँ।"
\v 2 जब उसने मुझे यूँ कहा, तो रूह मुझ में दाख़िल हुई और मुझे पाँव पर खड़ा किया; तब मैंने उसकी सुनी जो मुझ से बातें करता था।
\v 3 चुनाँचे उसने मुझ से कहा, कि "ऐआदमज़ाद , मैं तुझे बनी-इस्राईल के पास, या'नी उस सरकश क़ौम के पास जिसने मुझ से सरकशी की है भेजता हूँ वह और उनके बाप दादा आज के दिन तक मेरे गुनाहगार होते आए हैं।
\s5
\v 4 क्यूँकि जिनके पास मैं तुझ को भेजता हूँ, वह सख़्त दिल और बेहया फ़र्ज़न्द हैं; तू उनसे कहना, 'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है।"
\v 5 तो चाहे वह सुनें या न सुने (क्यूँकि वह तो सरकश ख़ान्दान हैं) तोभी इतना तो होगा कि वह जानेंगे कि उनमें से एक नबी खड़ा हुआ।
\s5
\v 6 तू ऐ आदमज़ाद उनसे परेशान न हो और उनकी बातों से न डर, हर वक़्त तू ऊँट कटारों और काँटों से घिरा है और बिच्छुओं के बीच रहता है। उनकी बातों से तरसान न हो और उनके चेहरों से न घबरा, अगरचे वह बाग़ी ख़ान्दान हैं।
\s5
\v 7 तब तू मेरी बातें उनसे कहना, चाहे वह सुनें चाहे न सुनें, क्यूँकि वह बहुत बाग़ी हैं।
\v 8 "लेकिन ऐ आदमज़ाद , तू मेरा कलाम सुन। तू उस सरकश ख़ान्दान की तरह सरकशी न कर, अपना मुँह खोल और जो कुछ मैं तुझे देता हूँ खा ले।"
\s5
\v 9 और मैंने निगाह की, तो क्या देखता हूँ कि एक हाथ मेरी तरफ़ बढ़ाया हुआ है, और उसमें किताब का तूमार है।
\v 10 ~और उसने उसे खोल कर मेरे सामने रख दिया। उसमें अन्दर बाहर लिखा हुआ था,और उसमें नोहा और मातम और आह और नाला मरकूम था।
\s5
\c 3
\p
\v 1 फिर उसने मुझे कहा, कि "ऐ आदमज़ाद , जो कुछ तूने पाया सो खा। इस तूमार को निगल जा, और जा कर इस्राईल के ख़ान्दान से कलाम कर।"
\v 2 तब मैंने मुँह खोला और उसने वह तूमार मुझे खिलाया।
\v 3 फिर उसने मुझे कहा, कि "ऐ आदमज़ाद , इस तूमार को जो मैं तुझे देता हूँ खा जा, और उससे अपना पेट भर ले।" तब मैंने खाया और वह मेरे मुँह में शहद की तरह मीठा था।
\s5
\v 4 फिर उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद , तू बनी-इस्राईल के पास जा और मेरी यह बातें उनसे कह।
\v 5 क्यूँकि तू ऐसे लोगों की तरफ़ नहीं भेजा जाता जिनकी ज़बान बेगाना और जिनकी बोली सख़्त है; बल्कि इस्राईल के ख़ान्दान की तरफ़;
\v 6 न बहुत सी उम्मतों की तरफ़ जिनकी ज़बान बेगाना और जिनकी बोली सख़्त है; जिनकी बात तू समझ नहीं सकता। यक़ीनन अगर मैं तुझे उनके पास भेजता, तो वह तेरी सुनतीं।
\v 7 लेकिन बनी इस्राईल तेरी बात न सुनेंगे, क्यूँकि वह मेरी सुनना नहीं चाहते, क्यूँकि सब बनी-इस्राईल सख़्त पेशानी और पत्थर दिल हैं।
\s5
\v 8 देख, मैंने उनके चेहरों के सामने तेरा चेहरा दुरुश्त किया है, और तेरी पेशानी उनकी पेशानियों के सामने सख़्त कर दी है।
\v 9 मैंने तेरी पेशानी को हीरे की तरह चकमाक से भी ज़्यादा सख़्त कर दिया है; उनसे न डर और उनके चेहरों से परेशान न हो, अगरचे वह सरकश ख़ान्दान हैं।"
\s5
\v 10 फिर उसने मुझ से कहा, कि "ऐ आदमज़ाद , मेरी सब बातों को जो मैं तुझ से कहूँगा, अपने दिल से कु़बूल कर और अपने कानों से सुन।
\v 11 अब उठ, ग़ुलामों या'नी अपनी क़ौम के लोगों के पास जा, और उनसे कह, 'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है,' चाहे वह सुनें चाहे न सुनें।"
\s5
\v 12 और रूह ने मुझे उठा लिया, और मैंने अपने पीछे एक बड़ी कड़क की आवाज़ सुनी जो कहती थी: कि 'ख़ुदावन्द का जलाल उसके घर से मुबारक हो।"
\v 13 और जानदारों के परों के एक दूसरे से लगने की आवाज़ और उनके सामने पहियों की आवाज़ और एक बड़े धड़ाके की आवाज़ सुनाई दी।
\s5
\v 14 और रूह मुझे उठा कर ले गई, इसलिए मैं तल्ख़ दिल और ग़ज़बनाक होकर रवाना हुआ, और ख़ुदावन्द का हाथ मुझ पर ग़ालिब था;
\v 15 ~और मैं तल अबीब में ग़ुलामों के पास, जो नहर-ए-किबार के किनारे बसते थे पहुँचा; और जहाँ वह रहते थे, मैं सात दिन तक उनके बीच परेशान बैठा रहा।
\s5
\v 16 और सात दिन के बा'द ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 17 कि "ऐ आदमज़ाद, मैंने तुझे बनी-इस्राईल का निगहबान मुक़र्रर किया। इसलिए तू मेरे मुँह का कलाम सुन, और मेरी तरफ़ से उनको आगाह कर दे।
\v 18 जब मैं शरीर से कहूँ, कि 'तू यक़ीनन मरेगा," और तू उसे आगाह न करे और शरीर से न कहे कि वह अपनी बुरी चाल चलन से ख़बरदार हो, ताकि वह उससे बाज़ आकर अपनी जान बचाए, तो वह शरीर अपनी शरारत में मरेगा, लेकिन मैं उसके खू़न का सवाल-ओ-जवाब तुझ से करूँगा।
\v 19 लेकिन अगर तूने शरीर को आगाह कर दिया और वह अपनी शरारत और अपनी बुरी चाल चलन से बाज़ न आया तो वह अपनी बदकिरदारी में मरेगा पर तूने अपनी जान को बचा लिया |
\s5
\v 20 और अगर रास्तबाज़ अपनी रास्तबाज़ी छोड़ दे और गुनाह करे, और मैं उसके आगे ठोकर खिलाने वाला पत्थर रख्खूँ तो वह मर जाएगा; इसलिए कि तूने उसे आगाह नहीं किया, तो वह अपने गुनाह में मरेगा और उसकी सदाक़त के कामों का लिहाज़ न किया जाएगा, लेकिन मैं उसके खू़न का सवाल-ओ-जवाब तुझ से करूँगा।
\v 21 लेकिन अगर तू उस रास्तबाज़ को आगाह कर दे, ताकि गुनाह न करे और वह गुनाह से बाज़ रहे तो वह यक़ीनन जिएगा; इसलिए के नसीहत पज़ीर हुआ और तूने अपनी जान बचा ली।"
\s5
\v 22 और वहाँ ख़ुदावन्द का हाथ मुझ पर था, और उसने मुझे फ़रमाया, "उठ, मैदान में निकल जा और वहाँ मैं तुझ से बातें करूँगा।"
\v 23 तब मैं उठ कर मैदान में गया, और क्या देखता हूँ कि ख़ुदावन्द का जलाल उस शौकत~की तरह , जो मैंने नहर-ए-किबार के किनारे देखी थी खड़ा है; और मैं मुँह के बल गिरा।
\s5
\v 24 तब रूह मुझ में दाख़िल हुई और उसने मुझे मेरे पाँव पर खड़ा किया, और मुझ से हमकलाम होकर फ़रमाया, कि"अपने घर जा, और दरवाज़ा बन्द करके अन्दर बैठ रह।
\v 25 और ऐ आदमज़ाद देख, वह तुझ पर बंधन डालेंगे और उनसे तुझे बाँधेंगे और तू उनके बीच बाहर न जाएगा।
\s5
\v 26 और मैं तेरी ज़बान तेरे तालू से चिपका दूँगा कि तू गूँगा~~हो जाए; और उनके लिए नसीहत गो न हो, क्यूँकि वह बाग़ी ख़ान्दान हैं।
\v 27 ~~लेकिन जब मैं तुझ से हमकलाम हूँगा, तो तेरा मुँह खोलूँगा, तब तू उनसे कहेगा, कि 'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है," जो सुनता है सुने और जो नहीं सुनता न सुने, क्यूँकि वह बाग़ी ख़ान्दान हैं।
\s5
\c 4
\p
\v 1 और ऐ आदमज़ाद , तू एक खपरा ले और अपने सामने रख कर उस पर एक शहर, हाँ, यरुशलीम ही की तस्वीर खींच।
\v 2 और उसका घेराव कर, और उसके सामने बुर्ज बना, और उसके सामने दमदमा बाँध और उसके चारों तरफ़ ख़ेमें खड़े कर और उसके चारों तरफ़ मन्जनीक लगा।
\v 3 फिर तू लोहे का एक तवा ले, और अपने और शहर के बीच उसे नस्ब कर कि वह लोहे की दीवार ठहरे और तू अपना मुँह उसके सामने कर और वह घेराव की हालत में हो, और तू उसको घेरने वाला होगा; यह बनी इस्राईल के लिए निशान है।
\s5
\v 4 "फिर तू अपनी ईं करवट पर लेट रह और बनी-इस्राईल की बदकिरदारी इस पर रख दे; जितने दिनों तक तू लेटा रहेगा, तू उनकी बदकिरदारी बर्दाश्त करेगा।
\v 5 और मैंने उनकी बदकिरदारी के बरसों को उन दिनों के शुमार के मुताबिक़ जो तीन-सौ- नब्बे दिन हैं तुझ पर रख्खा है, इसलिए तू बनी-इस्राईल की बदकिरदारी बर्दाश्त करेगा।
\s5
\v 6 और जब तू इनको पूरा कर चुके तो फिर अपनी दहनी करवट पर लेट रह, और चालीस दिन तक बनी यहूदाह की बदकिरदारी को बर्दाश्त कर; मैंने तेरे लिए एक एक साल के बदले एक एक दिन मुक़र्रर किया है।
\v 7 फिर तू यरुशलीम के घेराव की तरफ़ मुँह कर और अपना बाज़ू नंगा कर और उसके ख़िलाफ़ नबुव्वत कर।
\v 8 और देख, मैं तुझ पर बन्धन डालूँगा कि तू करवट न ले सके, जब तक अपने घेराव के दिनों को पूरा न कर ले।
\s5
\v 9 "और तू अपने लिए गेहूँ और जौ और बाक़ला और मसूर और चना और बाजरा ले, और उनको एक ही बर्तन में रख, और उनकी इतनी रोटियाँ पका जितने दिनों तक तू पहली करवट पर लेटा रहेगा; तू तीन सौ नब्बे दिन तक उनको खाना।
\v 10 और तेरा खाना वज़न करके बीस मिस्काल" रोज़ाना होगा जो तू खाएगा, तू थोड़ा-थोड़ा खाना।
\v 11 तू पानी भी नाप कर एक हीन का छटा हिस्सा पिएगा, तू थोड़ा-थोड़ा पीना।
\s5
\v 12 और तू जौ के फुल्के खाना, और तू उनकी आँखों के सामने इन्सान की नजासत से उनको पकाना।”
\v 13 और ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, कि "इसी तरह से बनी-इस्राईल अपनी नापाक रोटियों को उन क़ौमों के बीच जिनमें मैं उनको आवारा करूँगा, खाया करेंगे।”
\s5
\v 14 तब मैंने कहा,कि "हाय, ख़ुदावन्द ख़ुदा! देख, मेरी जान कभी नापाक नहीं हुई; और अपनी जवानी से अब तक कोई मुरदार चीज़ जो आप ही मर जाए या किसी जानवर से फाड़ी जाए, मैंने हरगिज़ नहीं खाई, और हराम गोश्त मेरे मुँह में कभी नहीं गया।"
\v 15 तब उसने मुझे फ़रमाया, "देख, मैं इन्सान की नजासत के बदले तुझे गोबर देता हूँ, इसलिए तू अपनी रोटी उससे पकाना।"
\s5
\v 16 ~उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद , देख, मैं यरुशलीम में रोटी का 'असा तोड़ डालूँगा; और वह रोटी तौल कर फ़िक्रमन्दी से खाएँगे, और पानी नाप कर हैरत से पिएँगे।
\v 17 ताकि~वह रोटी पानी के मोहताज हों, और एक साथ शर्मिन्दा हों और अपनी बदकिरदारी में हलाक हों।
\s5
\c 5
\p
\v 1 ऐ~आदमज़ाद , तू एक तेज़ तलवार ले और हज्जाम के उस्तरे की तरह उस से अपना सिर और अपनी दाढी मुड़ा और तराज़ू ले और बालों को तौल कर उनके हिस्से बना।
\v 2 फिर जब घेराव के दिन पूरे हो जाएँ, तो शहर के बीच में उनका एक हिस्सा लेकर आग में जला। और दूसरा हिस्सा लेकर तलवार से इधर उधर बिखेर दे। और तीसरा हिस्सा हवा में उड़ा दे, और मैं तलवार खींच कर उनका पीछा करूँगा।
\s5
\v 3 और उनमें से थोड़े से बाल गिन कर ले और उनको अपने दामन में बाँध।
\v 4 फिर उनमें से कुछ निकाल कर आग में डाल और जला दे; इसमें से एक आग निकलेगी जो इस्राईल के तमाम घराने में फैल जाएगी।
\s5
\v 5 ~"ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि यरुशलीम यही है। मैंने उसे क़ौमों और मम्लुकतों के बीच, जो उसके आस-पास हैं रख्खा है।
\v 6 लेकिन उसने दीगर क़ौमों से ज़्यादा शरारत कर के मेरे हुक्मों की मुख़ालिफ़त की और मेरे क़ानून को आसपास की मम्लुकतों से ज़्यादा रद्द किया, क्यूँकि उन्होंने मेरे हुक्मों को रद्द किया और मेरे क़ानून की पैरवी न की।
\s5
\v 7 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि तुम अपने आस-पास की क़ौम से बढ़ कर फ़ितना अंगेज़ हो और मेरे क़ानून की पैरवी नहीं की और मेरे हुक्मों पर 'अमल नहीं किया, और अपने आस-पास की क़ौम के क़ानून और हुक्मों पर भी 'अमल नहीं किया;
\v 8 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं, हाँ मैं ही तेरा मुख़ालिफ़ हूँ और तेरे बीच सब क़ौमों की आँखों के सामने तुझे सज़ा दूँगा।
\s5
\v 9 और मैं तेरे सब नफ़रती कामों की वजह से तुझमें वही करूँगा, जो मैंने अब तक नहीं किया और कभी न करूँगा।
\v 10 अगर तुझमें बाप बेटे को और बेटा बाप को खा जाएगा, और मैं तुझे सज़ा दूँगा और तेरे बक़िये को हर तरफ़ तितर-बितर करूँगा।
\s5
\v 11 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: कि ~मुझे अपनी हयात की क़सम, चूँकि तूने अपनी तमाम मकरूहात से और अपने नफ़रती कामों से मेरे मक़्दिस को नापाक किया है, इसलिए मैं भी तुझे घटाऊँगा, मेरी आँखें रि'आयत न करेंगी, मैं हरगिज़ रहम न करूँगा।
\v 12 तेरा एक हिस्सा वबा से मर जाएगा और काल से तेरे अन्दर हलाक हो जाएगा और दूसरा हिस्सा तेरी चारों तरफ़ तलवार से मारा जाएगा, और तीसरे हिस्से को मैं हर तरफ़ तितर बितर करूँगा और तलवार खींच कर उनका पीछा करूँगा।
\s5
\v 13 "मेरा क़हर यूँ पूरा होगा, तब मेरा ग़ज़ब उन पर धीमा हो जाएगा और मेरी तस्कीन होगी; और जब मैं उन पर अपना क़हर पूरा करूँगा, तब वह जानेंगे कि मुझ ख़ुदावन्द ने अपनी गै़रत से यह सब कुछ फ़रमाया था।
\v 14 इसके 'अलावा मैं तुझको उन क़ौमों के बीच जो तेरे आस-पास हैं, और उन सब की निगाहों में जो उधर से गुज़र करेंगे वीरान और मलामत की वजह बनाऊँगा।
\s5
\v 15 इसलिए जब मैं क़हर-ओ-ग़ज़ब और सख़्त मलामत से तेरे बीच 'अदालत करूँगा, तो तू अपने आसपास की क़ौम के लिए जा-ए-मलामत-ओ-इहानत और मक़ाम-ए-'इबरत-ओ-हैरत होगी; मैं ख़ुदावन्द ने यह फ़रमाया है।
\v 16 या'नी जब मैं सख़्त सूखे के तीर जो उनकी हलाकत के लिए हैं, उनकी तरफ़ रवाना करूँगा जिनको मैं तुम्हारे हलाक करने के लिए चलाऊँगा, और मैं तुम में सूखे को ज़्यादा करूँगा और तुम्हारी रोटी की लाठी को तोड़ डालूँगा।
\v 17 और मैं तुम में सूखा और बुरे दरिन्दे भेजूँगा, और वह तुझे बेऔलाद करेंगे; और मेरी और ख़ूँरेज़ी तेरे बीच आएगी मैं तलवार तुझ पर लाऊँगा; मैं ख़ुदावन्द ही ने फ़रमाया है।”
\s5
\c 6
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ|
\v 2 ~कि "ऐ आदमज़ाद, इस्राईल के पहाड़ों की तरफ़ मुँह करके उनके ख़िलाफ़~नबुव्वत कर
\v 3 और यूँ कह, कि ऐ इस्राईल के पहाड़ों, खु़दावन्द खु़दा का कलाम सुनो! खु़दावन्द ख़ुदा पहाड़ों और टीलों को और नहरों और वादियों को यूँ फ़रमाता है: कि देखो, मैं, हाँ मैं ही तुम पर तलवार चलाऊँगा, और तुम्हारे ऊँचे मक़ामों को ग़ारत करूँगा।
\s5
\v 4 ~और तुम्हारी कु़र्बानगाहें उजड़ जाएँगी और तुम्हारी सूरज की मूरतें तोड़ डाली जाएगी और मैं तुम्हारे मक़तूलों को तुम्हारे बुतों के आगे डाल दूँगा।
\v 5 और बनी-इस्राईल की लाशें उनके बुतों के आगे फेंक दूँगा, और मैं तुम्हारी हड्डियों को तुम्हारी कु़र्बानगाहों के चारों तरफ़ तितर-बितर करूँगा।
\s5
\v 6 ~तुम्हारे क़याम के तमाम इलाक़ों के शहर वीरान होंगे और ऊँचे मक़ाम उजाड़े जायेंगे ताकि तुम्हारी क़ुर्बानगाहें ख़राब और वीरान हों और तुम्हारे बुत तोड़े जाएँ और बाक़ी न रहें और तुम्हारी सूरज की मूरतें काट डाली जाएँ और तुम्हारी दस्तकारियाँ हलाक हों।
\v 7 और मक़्तूल तुम्हारे बीच गिरेंगे, और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 8 "लेकिन मैं एक बक़िया छोड़ दूँगा, या'नी वह चन्द लोग जो क़ौमों के बीच तलवार से बच निकलेंगे जब तुम ग़ैर मुल्कों में तितर बितर हो जाओगे।
\v 9 और जो तुम में से बच रहेंगे उन क़ौमों के बीच जहाँ जहाँ वह ग़ुलाम होकर जाएँगे मुझको याद करेंगे, जब मैं उनके बेवफ़ा दिलों को जो मुझ से दूर हुए और उनकी आँखों को जो बुतों की पैरवी में नाफ़रमान हुईं, शिकस्त करूँगा और वह ख़ुद अपनी तमाम बद'आमाली की वजह से जो उन्होंने अपने तमाम घिनौने कामों में की, अपनी ही नज़र में नफ़रती ठहरेंगे।
\v 10 तब वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ, और मैंने यूँ ही नहीं फ़रमाया था कि मैं उन पर यह बला लाऊँगा।"
\s5
\v 11 ~ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि "हाथ पर हाथ मार और पाँव ज़मीन पर पटक कर कह, कि बनी-इस्राईल के तमाम घिनौने कामों पर अफ़सोस! क्यूँकि वह तलवार और काल और वबा से हलाक होंगे।
\v 12 जो दूर हैं वह वबा से मरेगा और जो नज़दीक है तलवार से क़त्ल किया जाएगा, और जो बाक़ी रहे और महसूर हो वह काल से मरेगा, और मैं उन पर अपने क़हर को यूँ पूरा करूँगा।
\s5
\v 13 ~और जब उनके मक़्तूल हर ऊँचे टीले पर और पहाड़ों की सब चोटियों पर, और हर एक हरे दरख़्त और घने बलूत के नीचे, हर जगह जहाँ वह अपने सब बुतों के लिए ख़ुशबू जलाते थे; उनके बुतों के पास उनकी कु़र्बानगाहों के चारों तरफ़ पड़े हुए होंगे, तब वह पहचानेंगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।
\v 14 और मैं उन पर हाथ चलाऊँगा, और वीराने से दिबला तक उनके मुल्क की सब बस्तियाँ वीरान और सुनसान करूँगा। तब वह पहचानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।”
\s5
\c 7
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ
\v 2 ~कि "ऐ आदमज़ाद, ख़ुदावन्द ख़ुदा इस्राईल के मुल्क से यूँ फ़रमाता है: कि तमाम हुआ! मुल्क के चारों कोनों पर ख़ातिमा आन पहुँचा है।
\s5
\v 3 अब तेरी मौत आई और मैं अपना ग़ज़ब तुझ पर नाज़िल करूँगा, और तेरी चाल चलन के मुताबिक़ तेरी 'अदालत करूँगा और तेरे सब घिनौने कामों की सज़ा तुझ पर लाऊँगा।
\v 4 मेरी आँख तेरी रि'आयत न करेगी और मैं तुझ पर रहम न करूँगा, बल्कि मैं तेरी चाल चलन के मुताबिक़ तुझे सज़ा दूँगा और तेरे घिनौने कामों के अन्जाम तेरे बीच होंगे, ताकि तुम जानो कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 5 "ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि एक बला या'नी बला-ए-'अज़ीम! देख, वह आती है।
\v 6 ख़ातमा आया, ख़ातमा आ गया! वह तुझ पर आ पहुँचा, देख वह आ पहुँचा।
\v 7 ऐ ज़मीन पर बसने वाले, तेरी शामत आ गई, वक़्त आ पहुँचा, हँगामे का दिन क़रीब हुआ; यह पहाड़ों पर ख़ुशी की ललकार का दिन नहीं।
\s5
\v 8 अब मैं अपना क़हर तुझ पर उँडेलने को हूँ और अपना ग़ज़ब तुझ पर पूरा करूँगा और तेरे चाल चलन के मुताबिक़ तेरी 'अदालत करूँगा और तेरे सब घिनौने कामों की सज़ा तुझ पर लाऊँगा |
\v 9 मेरी आँख रिआयत न करेगी और मैं हरगिज़ रहम न करूँगा, मैं तुझे तेरी चाल चलन के मुताबिक़ सज़ा दूँगा और तेरे घिनौने कामों के अन्जाम तेरे बीच होंगे, और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द सज़ा देने वाला हूँ|
\s5
\v 10 ~"देख, वह दिन, देख वह आ पहुँचा है तेरी शामत आ गई, 'असा में कलियाँ निकलीं, गु़रूर में गुन्चे निकले।
\v 11 सितमगरी निकली कि शरारत के लिए छड़ी हो, कोई उनमें से न बचेगा, न उनके गिरोह में से कोई और न उनके माल में से कुछ, और उन पर मातम न होगा।
\s5
\v 12 वक़्त आ गया, दिन क़रीब है, न ख़रीदने वाला खु़श हो न बेचने वाला उदास, क्यूँकि उनके तमाम गिरोह पर ग़ज़ब नाज़िल होने को है।
\v 13 क्यूँकि बेचने वाला बिकी हुई चीज़ तक फिर न पहुँचेगा, अगरचे अभी वह ज़िन्दों के बीच हों, क्यूँकि यह ख़्वाब उनके तमाम गिरोह के लिए है, एक भी न लौटेगा और न कोई बदकिरदारी से अपनी जान को क़ायम रख्खेगा।
\s5
\v 14 नरसिंगा फूंका गया और सब कुछ तैयार है, लेकिन कोई जंग को नहीं निकलता, क्यूँकि मेरा ग़ज़ब उनके तमाम गिरोह पर है।
\v 15 ~बाहर तलवार है और अन्दर वबा और क़हत हैं, जो खेत में है तलवार से क़त्ल होगा, और जो शहर में है सूखा और वबा उसे निगल जाएँगे।
\v 16 लेकिन जो उनमें से भाग जाएँगे वह बच निकलेंगे, और वादियों के~कबूतरों की तरह पहाड़ों पर रहेंगे और सब के सब फ़रियाद करेंगे, हर एक अपनी बदकिरदारी की वजह से।
\s5
\v 17 सब हाथ ढीले होंगे और सब घुटने पानी की तरह कमज़ोर हो जाएँगे।
\v 18 वह टाट से कमर कसेंगे और ख़ौफ़ उन पर छा जाएगा, और सब के मुँह पर शर्म होगी और उन सब के सिरों पर चन्दलापन होगा।
\v 19 ~और वह अपनी चाँदी सड़कों पर फेंक देंगे और उनका सोना नापाक चीज़ की तरह ~होगा~ख़ुदावन्द के ग़ज़ब के दिन में उनका सोना चाँदी उनको न बचा सकेगा। उनकी जानें आसूदा न होंगी और उनके पेट न भरेंगे, क्यूँकि उन्होंने उसी से ठोकर खाकर बदकिरदारी की थी।
\s5
\v 20 और उनके खू़बसूरत ज़ेवर शौकत के लिए थे लेकिन उन्होंने उनसे अपनी नफ़रती मूरतें और मकरूह चीज़े बनाई, इसलिए मैंने उनके लिए उनको नापाक चीज़ की तरह कर दिया।
\v 21 ~और मैं उनको ग़नीमत के लिए परदेसियों के हाथ में और लूट के लिए ज़मीन के शरीरों के हाथ में सौंप दूँगा, और वह उनको नापाक करेंगे।
\v 22 और मैं उनसे मुँह फेर लूँगा और वह मेरे ख़िल्वतखाने को नापाक करेंगे। उसमें ग़ारतगर आएँगे और उसे नापाक करेंगे।
\s5
\v 23 'ज़न्जीर बना क्यूँकि मुल्क खू़ँरेज़ी के गुनाहों से पुर है और शहर जु़ल्म से भरा है।
\v 24 इसलिए मैं गै़र क़ौमों में से बुराई को लाऊँगा और वह उनके घरों के मालिक होंगे, और मैं ज़बरदस्तों का घमण्ड मिटाऊँगा और उनके पाक मक़ाम नापाक किए जाएँगे।
\v 25 हलाकत आती है, और वह सलामती को ढूँढेंगे लेकिन न पाएँगे।
\s5
\v 26 बला पर बला आएगी और अफ़वाह पर अफ़वाह होगी, तब वह नबी से ख़्वाब की तलाश करेंगे, लेकिन शरी'अत काहिन से और मसलहत बुजु़र्गों से जाती रहेगी।
\v 27 बादशाह मातम करेगा और हाकिम पर हैरत छा जाएगी, और र'अय्यत के हाथ काँपेंगे। मैं उनके चाल चलन के मुताबिक़ उनसे सुलूक करूँगा और उनके 'आमाल के मुताबिक़ उन पर फ़तवा दूँगा, ताकि वह जानें कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।"
\s5
\c 8
\p
\v 1 और ~छठे बरस के छठे महीने की पाँचवी तारीख़ को यूँ हुआ कि मैं अपने घर में बैठा था, और यहूदाह के बुज़ुर्ग मेरे सामने बैठे थे कि वहाँ ख़ुदावन्द ख़ुदा का हाथ मुझ पर ठहरा।
\v 2 तब मैंने निगाह की और क्या देखता हूँ कि एक शबीह आग की तरह नज़र आती है; उसकी कमर से नीचे तक आग और उसकी कमर से ऊपर तक जल्वा-ए-नूर ज़ाहिर हुआ जिसका रंग शैकल किए हुए पीतल की तरह था|
\s5
\v 3 और उसने एक हाथ को शबीह की तरह बढ़ा कर मेरे सिर के बालों से मुझे पकड़ा, और रूह ने मुझे आसमान और ज़मीन के बीच बुलन्द किया और मुझे इलाही ख़्वाब में यरुशलीम में उत्तर की तरफ़ अन्दरूनी फाटक पर, जहाँ गै़रत की मूरत का घर था जो गै़रत भड़काती है ले आई।
\v 4 और क्या देखता हूँ कि वहाँ इस्राईल के ख़ुदा का जलाल, उस ख़्वाब के मुताबिक़ जो मैंने उस वादी में देखा था मौजूद है।
\s5
\v 5 तब उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद अपनी आँखें उत्तर की तरफ उठा और मैंने उस तरफ़ आँखें उठाई और क्या देखता हूँ कि उत्तर की तरफ़ मज़बह के दरवाज़े पर गै़रत की वही मूरत दहलीज़ में हैं।
\v 6 और उसने मुझे फिर फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद, तू उनके काम देखता है? या'नी वह मकरूहात-ए-'अज़ीम जो बनी-इस्राईल यहाँ करते हैं, ताकि मैं अपने हैकल को छोड़ कर उससे दूर हो जाऊँ; लेकिन तू अभी इनसे भी बड़ी मकरूहात देखेगा।"
\s5
\v 7 तब वह मुझे सहन के फाटक पर लाया, और मैंने नज़र की और क्या देखता हूँ कि दीवार में एक छेद है।
\v 8 तब उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद, दीवार खोद।" और जब मैंने दीवार को खोदा, तो एक दरवाज़ा देखा।
\v 9 ~फिर उसने मुझे फ़रमाया, "अन्दर जा, और जो नफ़रती काम वह यहाँ करते हैं देख।”
\s5
\v 10 तब मैंने अन्दर जा कर देखा। और क्या देखता हूँ कि हरनू' के सब रहने वाले कीड़ों और मकरूह जानवरों की सब सूरतें और बनी-इस्राईल के बुत चारों तरफ़ दीवार पर मुनक़्क़श हैं |
\v 11 और बनी-इस्राईल के बुजु़र्गों में से सत्तर शख़्स उनके आगे खड़े हैं और याज़नियाह-बिन-साफ़न उनके बीच में खड़ा है, और हर एक के हाथ में एक ख़ुशबू दान है और ख़ुशबू का बादल उठ रहा है।
\s5
\v 12 तब उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐआदमज़ाद, क्या तूने देखा कि बनी-इस्राईल के सब बुज़ुर्ग तारीकी में या'नी अपने मुनक्क़्श काशानों में क्या करते हैं? क्यूँकि वह कहते हैं कि ख़ुदावन्द हम को नहीं देखता; ख़ुदावन्द ने मुल्क को छोड़ दिया है।"
\v 13 और उसने मुझे यह भी फ़रमाया, कि "तू अभी इनसे भी बड़ी मकरूहात, जो वह करते हैं देखेगा।"
\s5
\v 14 तब वह मुझे ख़ुदावन्द के घर के उत्तरी फाटक पर लाया, और क्या देखता हूँ कि वहाँ 'औरतें बैठी तम्मूज़ पर नोहा कर रही हैं।
\v 15 तब उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद, क्या तूने यह देखा है? तू अभी इनसे भी बड़ी मकरूहात देखेगा।”
\s5
\v 16 ~फिर वह मुझे ख़ुदावन्द के घर के अन्दरूनी सहन में ले गया, और क्या देखता हूँ कि ख़ुदावन्द की हैकल के दरवाज़े पर आस्ताने और मज़बह के बीच, क़रीबन पच्चीस लोग हैं जिनकी पीठ ख़ुदावन्द की हैकल की तरफ़ है और उनके मुँह पूरब की तरफ़ हैं ; और पूरब का रुख़ करके आफ़ताब को सिज्दा कर रहे हैं।
\s5
\v 17 ~तब उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद, क्या तूने यह देखा है? क्या बनी यहूदाह के नज़दीक यह छोटी सी बात है कि वह यह मकरूह काम करें जो यहाँ करते हैं क्यूँकि उन्होंने तो मुल्क को जु़ल्म से भर दिया और फिर मुझे ग़ज़बनाक किया, और देख, वह अपनी नाक से डाली लगाते हैं ।
\v 18 फिर मैं भी क़हर से पेश आऊँगा। मेरी आँख रि'आयत न करेगी और मैं हरगिज़ रहम न करूँगा, और अगरचे वह चिल्ला चिल्ला कर मेरे कानों में आह-व-नाला करें तोभी में उनकी न सुनूँगा "
\s5
\c 9
\p
\v 1 फिर उसने बुलन्द आवाज़ से पुकार कर मेरे कानों में कहा कि , "उनको जो शहर के मुन्तज़िम हैं मैं नज़दीक बुला हर एक शख़्स अपना मुहलिक हथियार हाथ में लिए हो|"
\v 2 और देखो छ: मर्द ऊपर के फाटक के रास्ते से जो उत्तर की तरफ़ है चले आए और हर एक मर्द के हाथ में उसका खूँरेज़ हथियार था और उनके बीच एक आदमी कतानी लिबास पहने था और उसकी कमर पर लिखने की दवात थी तब वह अन्दर गए और पीतल के मज़बह के पास खड़े हुए|
\s5
\v 3 और इस्राईल के ख़ुदावन्द का जलाल करूबी पर से जिस पर वह था उठ कर घर के आस्ताना पर गया और उसने उस मर्द को जो कतानी लिबास पहने था और जिसके पास लिखने की दवात थी पुकारा|
\v 4 और ख़ुदावन्द ने उसे फ़रमाया, कि "शहर के बीच से, हाँ, यरुशलीम के बीच से गुज़र और उन लोगों की पेशानी पर जो उन सब नफ़रती कामों की वजह से जो उसके बीच किए जाते हैं, आहें मारते और रोते हैं, निशान कर दे।”
\s5
\v 5 और उसने मेरे सुनते हुए दूसरों से फ़रमाया, "उसके पीछे पीछे शहर में से गुज़र करो और मारो। तुम्हारी आँखें रि'आयत न करें, और तुम रहम न करो।
\v 6 तुम बूढ़ों और जवानों और लड़कियों और नन्हें बच्चों और 'औरतों को बिल्कुल मार डालो, लेकिन जिनपर निशान है उनमें से किसी के पास न जाओ; और मेरे हैकल से शुरू' करो।" तब उन्होंने उन बुजुर्गों से जो हैकल के सामने थे शुरू' किया।
\s5
\v 7 और उसने उनको फ़रमाया, "हैकल को नापाक करो, और मक़्तूलों से सहनों को भर दो। चलो, बाहर निकलो।" इसलिए वह निकल गए और शहर में क़त्ल करने लगे।
\v 8 और जब वह उनको क़त्ल कर रहे थे और मैं बच रहा था, तो यूँ हुआ कि मैं मुँह के बल गिरा और चिल्ला कर कहा, "आह! ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, क्या तू अपना क़हर-ए-शदीद यरुशलीम पर नाज़िल कर के इस्राईल के सब बाक़ी लोगों को हलाक करेगा?"
\s5
\v 9 तब उसने मुझे फ़रमाया, कि "इस्राईल और यहूदाह के ख़ान्दान की बदकिरदारी बहुत 'अज़ीम है, मुल्क खू़ँरेज़ी से पुर है और शहर बे इन्साफ़ी से भरा है; क्यूँकि वह कहते हैं, कि 'ख़ुदावन्द ने मुल्क को छोड़ दिया है और वह नहीं देखता।'
\v 10 फिर मेरी आँख रि'आयत न करेगी, और मैं हरगिज़ रहम न करूँगा; मैं उनकी चाल चलन का बदला उनके सिर पर लाऊँगा।”
\v 11 और देखो, उस आदमी ने जो कतानी लिबास पहने था और जिसके पास लिखने की दवात थी, यूँ कै़फ़ियत बयान की, "जैसा तूने मुझे हुक्म दिया, मैंने किया।”
\s5
\c 10
\p
\v 1 तब मैंने निगाह की और क्या देखता हूँ,कि उस फ़ज़ा पर जो करूबियों के सिर के ऊपर थी, एक चीज़ नीलम की तरह दिखाई दी और उसकी सूरत तख़्त की जैसी थी।
\v 2 और उसने उस आदमी को जो कतानी लिबास पहने था फ़रमाया, "उन पहियों के अन्दर जा जो करूबी के नीचे हैं, और आग के अंगारे जो करूबियों के बीच हैं मुट्ठी भर कर उठा और शहर के ऊपर बिखेर दे।” और वह गया और मैं देखता था।
\s5
\v 3 जब वह शख़्स अन्दर गया, तब करूबी हैकल की दहनी तरफ़ खड़े थे, और अन्दरूनी सहन बादल से भर गया।
\v 4 तब ख़ुदावन्द का जलाल करूबी पर से बुलन्द होकर हैकल के आस्ताने पर आया, और हैकल बादल से भर गई; और सहन ख़ुदावन्द के जलाल के नूर से मा'मूर हो गया।
\v 5 और करूबियों के परों की आवाज़ बाहर के सहन तक सुनाई देती थी, जैसे क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा की आवाज़ जब वह कलाम करता है।
\s5
\v 6 और यूँ हुआ कि जब उसने उस शख़्स को, जो कतानी लिबास पहने था, हुक्म किया कि वह पहिए के अन्दर से और करूबियों के बीच से आग ले; तब वह अन्दर गया और पहिए के पास खड़ा हुआ।
\v 7 और करूबियों में से एक करूबी ने अपना हाथ उस आग की तरफ़, जो करूबियों के बीच थी, बढ़ाया और आग लेकर उस शख़्स के हाथों पर, जो कतानी लिबास पहने था रख्खी; वह लेकर बाहर चला गया।
\v 8 और करूबियों के बीच उनके परों के नीचे इन्सान के हाथ की तरह सूरत नज़र आई
\s5
\v 9 और मैंने निगाह की तो क्या देखता हूँ कि चार पहिए करूबियों के आस पास हैं, एक करूबी के पास एक पहिया और दूसरे करूबी के पास दूसरा पहिया था; और उन पहियों का जलवा देखने में ज़बरजद की तरह था।
\v 10 और उनकी शक्ल एक ही तरह की थी, जैसे पहिया पहिये के अन्दर हो।
\v 11 जब वह चलते थे तो अपनी चारों तरफ़ पर चलते थे; वह चलते हुए मुड़ते न थे, जिस तरफ़ को सिर का रुख़ होता था उसी तरफ़ उसके पीछे पीछे जाते थे; वह चलते हुए मुड़ते न थे।
\s5
\v 12 और उनके तमाम बदन और पीठ और हाथों और परों और उन पहियों में चारों तरफ़ आँखें ही आँखें थीं, या'नी उन चारों के पहियों में।
\v 13 इन पहियों को मेरे सुनते हुए चर्ख कहा गया।
\v 14 और हर एक के चार चेहरे थे: पहला चेहरा करूबी का, दूसरा इन्सान का, तीसरा शेर-ए-बबर का, और चौथा 'उक़ाब का|
\s5
\v 15 और करूबी बुलन्द हुए। यह वह जानदार था, जो मैंने नहर-ए-किबार के पास देखा था।
\v 16 और जब करूबी चलते थे, तो पहिए भी उनके साथ-साथ चलते थे; और जब करूबियों ने अपने बाज़ू फैलाए ताकि ज़मीन से ऊपर बुलन्द हों, तो वह पहिए उनके पास से जुदा न हुए।
\v 17 जब वह ठहरते थे, तो यह भी ठहरते थे; और जब वह बुलन्द होते थे, तो यह भी उनके साथ बुलन्द हो जाते थे; क्यूँकि जानदार की रूह उनमें थी।
\s5
\v 18 और ख़ुदावन्द का जलाल घर के आस्ताने पर से रवाना हो कर करूबियों के ऊपर ठहर गया।
\v 19 तब करूबियों ने अपने बाज़ू फैलाए, और मेरी आँखों के सामने ज़मीन से बुलन्द हुए और चले गए; और पहिए उनके साथ साथ थे, और वह ख़ुदावन्द के घर के पूरबी फाटक के आसताने पर ठहरे और इस्राईल के ख़ुदा का जलाल उनके ऊपर जलवागर था ।
\s5
\v 20 यह वह जानदार है जो ~मैंने इस्राईल के ख़ुदा के नीचे नहर-ए-किबार के किनारे पर देखा था और मुझे मा'लूम था कि करूबी हैं|
\v 21 हर एक के चार चेहरे थे और चार बाज़ू और उनके बाजु़ओं के नीचे इन्सान के जैसा हाथ था।
\v 22 रही उनके चेहरों की सूरत, यह वही चेहरे थे जो मैंने नहर-ए-किबार के किनारे पर देखे थे, या'नी उनकी सूरत और वह ख़ुद, वह सब के सब सीधे आगे ही को चले जाते थे।
\s5
\c 11
\p
\v 1 ~और रूह मुझ को उठा कर ख़ुदावन्द के घर के पूरबी फाटक पर जिसका रुख़ पूरब की तरफ़ है ले गई, और क्या देखता हूँ कि उस फाटक के आस्ताने पर पच्चीस शख़्स हैं। और मैंने उनके बीच याज़नियाह बिन अज़ूर और फ़िल्तियाह बिन बिनायाह, लोगों के हाकिमों को देखा।
\s5
\v 2 और उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद, यह वह लोग हैं जो इस शहर में बदकिरदारी की तदबीर और बुरी मश्वरत करते हैं।
\v 3 जो कहते हैं, कि 'घर बनाना नज़दीक नहीं है, यह शहर तो देग है और हम गोश्त हैं।'
\v 4 इसलिए तू उनके ख़िलाफ़ नबुव्वत कर; ऐ आदमज़ाद, नबुव्वत कर।"
\s5
\v 5 और ख़ुदावन्द की रूह मुझ पर नाज़िल हुई और उसने मुझे कहा कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: कि ऐ बनी-इस्राईल तुम ने यूँ कहा है, मैं तुम्हारे दिल के ख़्यालात को जानता हूँ।
\v 6 तुम ने इस शहर में बहुतों को क़त्ल किया,बल्कि उसकी सड़कों को मक़तूलों से भर दिया है|
\v 7 ~इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि तुम्हारे मक़्तूल जिनकी लाशें तुम ने शहर में रख छोड़ी हैं, यह वही गोश्त है और यह शहर वही देग है; लेकिन तुम इस से बाहर निकाले जाओगे।
\s5
\v 8 तुम तलवार से डरे हो, और ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, कि मैं तलवार तुम पर लाऊँगा।
\v 9 और मैं तुम को उस से बाहर निकालूँगा और तुम को परदेसियों के हवाले कर दूँगा, और तुम को सज़ा दूँगा।
\v 10 तुम तलवार से क़त्ल होगे, इस्राईल की हदों के अन्दर मैं तुम्हारी 'अदालत करूँगा, और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 11 यह शहर तुम्हारे लिए देग न होगा, न तुम इसमें का गोश्त होगे; बल्कि मैं बनी-इस्राईल की हदों के अन्दर तुम्हारा फ़ैसला करूँगा।
\v 12 और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ, जिसके क़ानून पर तुम नहीं चले और जिसके हुक्मों पर तुम ने 'अमल नहीं किया; बल्कि तुम उन क़ौमों के हुक्मों पर जो तुम्हारे आस पास हैं ~'अमल किया।”
\s5
\v 13 और जब मैं नबुव्वत कर रहा था, तो यूँ हुआ कि~फ़लतियाह-बिन-बिनायाह मर गया। तब मैं मुँह के बल गिरा और बुलन्द आवाज़ से चिल्ला कर कहा, कि "ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा ! क्या तू बनी-इस्राईल के बक़िये को बिल्कुल मिटा डालेगा?"
\s5
\v 14 तब ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 15 कि "ऐ आदमज़ाद, तेरे भाइयों, हाँ, तेरे भाइयों या'नी तेरे क़राबतियों बल्कि सब बनी-इस्राईल से, हाँ, उन सब से यरुशलीम के बाशिन्दों ने कहा है, 'ख़ुदावन्द से दूर रहो। यह मुल्क हम को मीरास में दिया गया है।'
\s5
\v 16 इसलिए तू कह, 'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि हर चन्द मैंने उनको क़ौमों के बीच हाँक दिया है और गै़र-मुल्कों में तितर बितर किया लेकिन मैं उनके लिए थोड़ी देर तक उन मुल्कों में जहाँ जहाँ वह गए एक हैकल हूँगा|
\v 17 ~इसलिए तू कह, 'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: मैं तुम को उम्मतों में से जमा' कर लूँगा, और उन मुल्कों में से जिनमें तुम~तितर बितर हुए तुम को जमा' करूँगा और इस्राईल का मुल्क तुम को दूँगा।'
\v 18 और वह वहाँ आयेंगे और उसकी तमाम नफ़रती और मकरूह चीज़ें उस से दूर कर देंगे।
\s5
\v 19 ~और मैं उनको नया दिल दूँगा और नई रूह तुम्हारे बातिन में डालूँगा, और संगीन दिल उनके जिस्म से निकाल कर दूँगा और उनको गोश्त का दिल 'इनायत करूँगा;
\v 20 ताकि वह मेरे तौर तरीक़े पर चलें और मेरे हुक्मों पर 'अमल करें और उन पर 'अमल करें, और वह मेरे लोग होंगे और मैं उनका ख़ुदा हूँगा।
\v 21 लेकिन जिनका दिल अपनी नफ़रती और मकरूह चीज़ों का तालिब होकर उनकी पैरवी में है, उनके बारे में ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: कि मैं उनके चाल चलन को उन ही के सिर पर लाऊँगा।"
\s5
\v 22 ~तब करूबियों ने अपने अपने बाज़ू बुलन्द किए, और पहिए उनके साथ साथ चले, और इस्राईल के ख़ुदा का जलाल उनके ऊपर जलवागर था।
\v 23 और ख़ुदावन्द का जलाल शहर में से उठा, और शहर की पूरबी तरफ़ के पहाड़ पर जा ठहरा।
\s5
\v 24 तब रूह ने मुझे उठाया और ख़ुदा के रूह ने ख़्वाब में मुझे फिर कसदियों के मुल्क में ग़ुलामों के पास पहुँचा दिया। और वह ख़्वाब जो मैंने देखा था मुझ से ग़ायब हो गया।
\v 25 और मैंने ग़ुलामों से ख़ुदावन्द की वह सब बातें बयान कीं, जो उसने मुझ पर ज़ाहिर की थीं।
\s5
\c 12
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ|
\v 2 ~ कि "ऐ आदमज़ाद, तू एक बाग़ी घराने के बीच रहता है, जिनकी आँखें हैं कि देखें पर वह नहीं देखते, और उनके कान हैं कि~सुनें पर वह नहीं सुनते; क्यूँकि वह बाग़ी ख़ान्दान हैं।
\s5
\v 3 इसलिए ऐ आदमज़ाद, सफ़र का सामान तैयार कर और दिन को उनके देखते हुए अपने मकान से रवाना हो, तू उनके सामने अपने मकान से दूसरे मकान को जा; मुम्किन है कि वह सोचें, अगरचे वह बाग़ी ख़ान्दान हैं।
\s5
\v 4 और तू दिन को उनकी आँखों के सामने अपना सामान बाहर निकाल, जिस तरह नक़्ल-ए-मकान के लिए सामान निकालते हैं और शाम को उनके सामने उनकी तरह जो ग़ुलाम होकर निकल जाते हैं निकल जा |
\v 5 उनकी आँखों के सामने दीवार में सूराख़ कर और उस रास्ते से सामान निकाल।
\v 6 उनकी आँखों के सामने तू उसे अपने कान्धे पर उठा, और अन्धेरे में उसे निकाल ले जा, तू अपना चेहरा छिपा ताकि ज़मीन को न देख सके; क्यूँकि मैंने तुझे बनी-इस्राईल के लिए एक निशान मुक़र्रर किया है।
\s5
\v 7 चुनाँचे जैसा मुझे हुक्म हुआ था वैसा ही मैंने किया। मैंने दिन को अपना सामान निकाला, जैसे नक़्ल-ए-मकान के लिए निकालते हैं; और शाम को मैंने अपने हाथ से दीवार में सूराख किया, मैंने अन्धेरे में उसे निकाला और उनके देखते हुए काँधे पर उठा लिया।
\s5
\v 8 और ~सुबह को ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 9 कि "ऐ आदमज़ाद, क्या बनी इस्राईल ने जो बाग़ी ख़ान्दान हैं, तुझ से नहीं~पूछा, 'तू क्या करता है?"
\v 10 उनको जवाब दे, कि 'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि ~यरुशलीम के हाकिम और तमाम बनी-इस्राईल के लिए जो उसमें हैं, यह बार-ए-नबुव्वत है।'
\s5
\v 11 उनसे कह दे, कि 'मैं तुम्हारे लिए निशान हूँ: जैसा मैंने किया, वैसा ही उनसे सुलूक किया जाएगा। वह जिलावतन होंगे और ग़ुलामी में जाएँगे।"
\v 12 और जो उनमें हाकिम हैं, वह शाम को अन्धेरे में उठ कर अपने काँधे पर सामान उठाए हुए निकल जाएगा। वह दीवार में सूराख़ करेंगे कि उस रास्ते से निकाल ले जाएँ। वह अपना चेहरा छिपाएगा, क्यूँकि अपनी आँखों से ज़मीन को न देखेगा।
\v 13 और मैं अपना जाल उस पर बिछाऊँगा और वह मेरे फन्दे में फंस जाएगा। और मैं उसे कसदियों के मुल्क में~बाबुल में पहुचाऊँगा, लेकिन वह उसे न देखेगा, अगरचे वहीं मरेगा।
\s5
\v 14 और मैं उसके आस पास के सब हिमायत करने वालों और उसके सब ग़ोलों की तमाम अतराफ़ में तितर बितर करूँगा, और मैं तलवार खींच कर उनका पीछा करूँगा।
\v 15 और जब मैं उनकी क़ौम में तितर बितर और मुल्कों में तितर-बितर करूँगा, तब वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\v 16 लेकिन मैं उनमें से कुछ को तलवार और काल से और वबा से बचा रख्खूँगा, ताकि वह क़ौमों के बीच जहाँ कहीं जाएँ अपने तमाम नफ़रती कामों को बयान करें, और वह मा'लूम करेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
\s5
\v 17 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 18 कि "ऐआदमज़ाद! तू थरथराते हुए रोटी खा, और काँपते हुए फ़िक्रमन्दी से पानी पी।
\s5
\v 19 और इस मुल्क के लोगों से कह कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यरुशलीम और मुल्क-ए- इस्राईल के बाशिन्दों के हक़ में यूँ फ़रमाता है: कि वह फ़िक्रमन्दी से रोटी खाएँगे और परेशानी से पानी पिएँगे, ताकि उसके बाशिन्दों की सितमगरी की वजह से मुल्क अपनी मा'मूरी से ख़ाली हो जाए।
\v 20 और वह बस्तियाँ जो आबाद हैं उजाड़ हो जायेंगी और मुल्क वीरान होगा और तुम जानोगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।"
\s5
\v 21 ~फिर ख़ुदा वन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 22 कि "ऐ आदमज़ाद! मुल्क-ए-इस्राईल में यह क्या मिसाल जारी है, कि 'वक़्त गुज़रता जाता है, और किसी ख़्वाब का कुछ अन्जाम नहीं होता'?
\v 23 इसलिए उनसे कह दे, कि 'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि मैं इस मिसाल को ख़त्म करूँगा और फिर इसे इस्राईल में इस्ते'माल न करेंगे।' बल्कि तू उनसे कह, वक़्त आ गया है और हर ख़्वाब का अन्जाम क़रीब है |
\s5
\v 24 क्यूँकि आगे को बनी इस्राईल के बीच बेमतलब के ख़्वाब और ख़ुशामद की ग़ैबदानी न होगी |
\v 25 क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द हूँ मैं कलाम करूँगा और मेरा कलाम ज़रूर पूरा होगा उसके पूरा होने में देर न होगी बल्कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि ऐ बाग़ी ख़ान्दान मैं तुम्हारे दिनों में कलाम करके उसे पूरा करूँगा |
\s5
\v 26 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ |
\v 27 कि "ऐ आदमज़ाद देख बनी इस्राईल कहते हैं कि जो ख़्वाब उसने देखा है बहुत ज़मानों में ज़ाहिर होगा और वह उन दिनों की ख़बर देता है जो बहुत दूर हैं|
\v 28 इसलिए उनसे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँफ़रमाता है: कि आगे की मेरी किसी बात को पूरा होने में देर न होगी, बल्कि ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, कि जो बात मैं कहूँगा पूरी हो जाएगी।"
\s5
\c 13
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ |
\v 2 कि "ऐ आदमज़ाद, इस्राईल के नबी जो नबुव्वत करते हैं, उनके ख़िलाफ़ नबुव्वत कर और जो अपने दिल से बात बनाकर नबुव्वत करते हैं उनसे कह, 'ख़ुदावन्द का कलाम सुनो!"
\v 3 ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि ~बेवक़ूफ़ नबियों पर अफ़सोस जो अपनी ही रूह की पैरवी करते हैं और उन्होंने कुछ नहीं देखा।
\v 4 ऐ इस्राईल, तेरे नबी उन लोमड़ियों की तरह हैं, जो वीरानों में रहती हैं।
\s5
\v 5 तुम रुखनों पर नहीं गए और न बनी-इस्राईल के लिए फ़सील बनाई, ताकि वह ख़ुदावन्द के दिन जंगगाह में खड़े हों।
\v 6 उन्होंने बातिल और झूठा शगुन देखा है, जो कहते हैं, कि 'ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "अगरचे ख़ुदावन्द ने उनको नहीं भेजा, और लोगों को उम्मीद दिलाते हैं कि उनकी बात पूरी हो जाएगी।
\v 7 क्या तुम ने बातिल ख़्वाब नहीं देखा? क्या तुम ने झूठी गै़बदानी नहीं की? क्यूँकि तुम कहते हो कि ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है, अगरचे मैंने नहीं फ़रमाया।"
\s5
\v 8 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: "चूँकि ~तुम ने झूट कहा है और बुतलान देखा, इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है कि मैं तुम्हारा मुख़ालिफ़ हूँ।
\v 9 और मेरा हाथ उन नबियों पर, जो बुतलान देखते हैं और झूटी ग़ैबदानी करते हैं, चलेगा; न वह मेरे लोगों के मजमे' में शामिल होंगे और न इस्राईल के ख़ान्दान के दफ़्तर में लिखे जाएँगे और न वह इस्राईल के मुल्क में दाख़िल होंगे, और तुम जान लोगे कि मैं ख़ुदावन्द ख़ुदा हूँ।
\s5
\v 10 इस वजह से कि उन्होंने मेरे लोगों को यह कह कर वरग़लाया है कि सलामती है हालाँकि सलामती नहीं; जब कोई दीवार बनाता है, तो वह उस पर कच्चा गारा लगाते हैं।
\v 11 तू उनसे जो उस पर गारा लगाते हैं कह, वह गिर जाएगी क्यूँकि मूसलाधार बारिश होगी और बड़े बड़े ओले पड़ेंगे और आँधी उसे गिरा देगी।
\v 12 और जब वह दीवार गिरेगी तो क्या लोग तुम से न पूछेगे, कि 'वह गारा कहाँ है, जो तुम ने उस पर की थी?"
\s5
\v 13 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि मैं अपने ग़ज़ब के तूफ़ान से उसे तोड़ दूँगा, और मेरे क़हर से झमाझम मेंह बरसेगा और मेरे क़हर के ओले पड़ेंगे ताकि उसे हलाक करें।
\v 14 इसलिए मैं उस दीवार को जिस पर तुम ने कच्चा गारा किया है तोड़ डालूँगा और ज़मीन पर गिराऊँगा, यहाँ तक कि उसकी बुनियाद ज़ाहिर हो जाएगी। हाँ, वह गिरेगी और तुम उसी में हलाक होगे, और जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 15 मैं अपना क़हर उस दीवार पर और उन पर जिन्होंने उस पर कच्चा गारा किया है पूरा करूँगा, और तब मैं तुम से कहूँगा, कि न दीवार रही और न वह रहे जिन्होंने उस पर गारा किया,
\v 16 या'नी इस्राईल के नबी जो यरुशलीम के बारे में नबुव्वत करते हैं, और उसकी सलामती के ख़्वाब देखते हैं हालाँकि सलामती नहीं है ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\s5
\v 17 ~"और ऐ आदमज़ाद, तू अपनी क़ौम की बेटियों की तरफ़, जो अपने दिल बात बना कर नबुव्वत करती हैं मुतवज्जह हो कर उनके ख़िलाफ़ नबुव्वत कर,
\v 18 और कह ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि अफ़सोस तुम पर जो सब कोहनियों के नीचे की गद्दी सीते हो, और हर एक क़द के मुवाफ़िक़ सिर के लिए बुर्क़ा' बनाती हो कि जानों को शिकार करो! क्या तुम मेरे लोगों की जानों का शिकार करोगी और अपनी जान बचाओगी?
\s5
\v 19 और तुम ने मुट्ठी भर जौ के लिए और रोटी के टुकड़ों के लिए मुझे मेरे लोगों में नापाक ठहराया, ताकि तुम उन जानों को मार डालो जो मरने के लायक़ नहीं, और उनको ज़िन्दा रख्खो जो ज़िन्दा रहने के लायक़ नहीं हैं; क्यूँकि तुम मेरे लोगों से जो झूट सुनते हैं झूट बोलती हो।
\s5
\v 20 'फिर ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देखो, मैं तुम्हारी गद्दियों का दुश्मन हूँ जिनसे तुम जानों को परिन्दों की तरह शिकार करती हो, और मैं उनको तुम्हारी कोहनियों के नीचे से फाड़ डालूँगा, और उन जानों को जिनको तुम परिन्दों की तरह शिकार करती हो आज़ाद कर दूँगा।
\v 21 मैं तुम्हारे बुरक़ों को भी फाड़ूँगा और अपने लोगों को तुम्हारे हाथ से छुड़ाऊँगा, और फिर कभी तुम्हारा बस न चलेगा कि उनको शिकार करो, और तुम जानोगी कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 22 इसलिए कि तुम ने झूट बोलकर सादिक़ के दिल को उदास किया, जिसको मैंने ग़मगीन नहीं किया; और शरीर की मदद की है, ताकि वह अपनी जान बचाने के लिए अपनी बुरी चाल चलन से बाज़ न आए।
\v 23 इसलिए तुम आगे को न बतालत देखोगी और न गै़बगोई करोगी, क्यूँकि मैं अपने लोगों को तुम्हारे हाथ से छुड़ाऊँगा, तब तुम जानोगी कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।"
\s5
\c 14
\p
\v 1 फिर इस्राईल के बुज़ुर्गों में से चन्द आदमी मेरे पास आए और मेरे सामने बैठ गए।
\v 2 तब ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ
\v 3 कि "ऐ आदमज़ाद, इन मर्दों ने अपने बुतों को अपने दिल में नसब किया है, और अपनी ठोकर खिलाने वाली बदकिरदारी को अपने सामने रख्खा है; क्या ऐसे लोग मुझ से कुछ दरियाफ़्त कर सकते हैं?
\s5
\v 4 इसलिए तू उनसे बातें कर और उनसे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: बनी इस्राईल में से हर एक जो अपने बुतों को अपने दिल में नस्ब करता है, और अपनी ठोकर खिलाने वाली बदकिरदारी को अपने सामने रखता है और नबी के पास आता है, मैं ख़ुदावन्द उसके बुतों की कसरत के मुताबिक़ उसको जवाब दूँगा;
\v 5 ताकि मैं बनी-इस्राईल को उन्हीं के ख़्यालात में पकड़ें, क्यूँकि वह सब के सब अपने बुतों की वजह से मुझ से दूर हो गए हैं।
\s5
\v 6 इसलिए तू बनी-इस्राईल से कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: तोबा करो और अपने बुतों से बाज़ आओ, और अपनी तमाम मकरूहात से मुँह मोड़ो।
\s5
\v 7 क्यूँकि हर एक जो बनी-इस्राईल में से या उन बेगानों में से जो इस्राईल में रहते हैं, मुझ से जुदा हो जाता है और अपने दिल में अपने बुत को नसब करता है, और अपनी ठोकर खिलाने वाली बदकिरदारी को अपने सामने रखता है, और नबी के पास आता है कि उसके ज़रिए' मुझ से दरियाफ़्त करे, उसको मैं ख़ुदावन्द ख़ुद ही जवाब दूँगा।
\v 8 और मेरा चेहरा उसके ख़िलाफ़ होगा और मैं उसको हैरत की वजह और अन्गुश्तनुमा और जरब-उल-मिसाल बनाउँगा और अपने लोगों में से काट डालूँगा; और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 9 और अगर नबी धोका खाकर कुछ कहे, तो मैं ख़ुदावन्द ने उस नबी को धोका दिया, और मैं अपना हाथ उस पर चलाऊँगा और उसे अपने इस्राइली लोगों में से हलाक कर दूँगा।
\v 10 और वह अपनी बदकिरदारी की सज़ा को बर्दाश्त करेंगे, ~नबी की बदकिरदारी की सज़ा वैसी ही होगी, जैसी सवाल करने वाले की बदकिरदारी की -
\v 11 ताकि बनी-इस्राईल फिर मुझ से भटक न जाएँ, और अपनी सब ख़ताओं से फिर अपने आप को नापाक न करें; बल्कि: ख़ुदा वन्द ख़ुदा फ़रमाता है, कि वह मेरे लोग हों और मैं उनका ख़ुदा हूँ|
\s5
\v 12 ~और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 13 कि "ऐ आदमज़ाद, जब कोई मुल्क सख़्त ख़ता करके मेरा गुनाहगार हो, और मैं अपना हाथ उस पर चलाऊँ और उसकी रोटी का 'असा तोड़ डालें, और उसमें सूखा भेज़ें और उसके इन्सान और हैवान को हलाक करूँ|,
\v 14 तो अगरचे यह तीन शख़्स, नूह और दानीएल और अय्यूब, उसमें मौजूद हों तोभी ख़ुदावन्द फ़रमाता है, वह अपनी सदाक़त से सिर्फ़ अपनी ही जान बचाएँगे।
\s5
\v 15 'अगर मैं किसी मुल्क में मुहलिक दरिन्दे भेजे कि उसमें गश्त करके उसे तबाह करें, और वह यहाँ तक वीरान हो जाए कि दरिन्दों की वजह से कोई उसमें से गुज़र न सके,
\v 16 तो ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम, अगरचे यह तीन शख़्स उसमें हों तोभी वह न बेटों को बचा सकेंगे न बेटियों को; सिर्फ़ वह खु़द ही बचेंगे और मुल्क वीरान हो जाएगा।
\s5
\v 17 "या अगर मैं उस मुल्क पर तलवार भेजूँ और कहूँ कि ऐ तलवार मुल्क में गुज़र कर और मैं उसके इन्सान और हैवान को काट डालें,
\v 18 तो ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम अगरचे यह तीन शख़्स उसमें हों, तोभी न बेटों को बचा सकेंगे न बेटियों को, बल्कि सिर्फ वह ख़ुद ही बच जाएँगे।
\s5
\v 19 ‘या अगर मैं उस मुल्क में वबा भेजूँ और खू़ँरेज़ी करा कर अपना क़हर उस पर नाज़िल' करूँ कि वहाँ के इन्सान और हैवान को काट डालें,
\v 20 अगरचे नूह और दानिएल और अय्यूब उसमें हों तो भी ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है मुझे अपनी हयात की क़सम वह न बेटे को बचा सकेंगे न बेटी को, बल्कि अपनी सदाक़त से सिर्फ़ अपनी ही जान बचाएँगे।
\s5
\v 21 फिर ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: जब मैं अपनी चार बड़ी बलाएँ, या'नी तलवार और सूखा और मुहलिक दरिन्दे और वबा यरुशलीम पर भेजूँ कि उसके इन्सान और हैवान को काट डालें, तो क्या हाल होगा?
\s5
\v 22 तोभी वहाँ थोड़े से बेटे-बेटियाँ बच रहेंगे जो निकालकर तुम्हारे पास पहुँचाए जाएँगे, और तुम उनके चाल चलन और उनके कामों को देखकर उस आफ़त के बारे में, जो मैंने यरुशलीम पर भेजी और उन सब आफ़तों के बारे में जो मैं उस पर लाया हूँ तसल्ली पाओगे।
\v 23 और वह भी जब तुम उनके चाल चलन को और उनके कामों को देखोगे, तुम्हारी तसल्ली का ज़रिया' होंगे और तुम जानोगे कि जो कुछ मैंने उसमें किया है बे वजह नहीं किया, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।"
\s5
\c 15
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 2 कि "ऐ आदमज़ाद, क्या ताक की लकड़ी और दरख़्तों की लकड़ी से, या'नी शाख़-ए-अंगूर जंगल के दरख़्तों से कुछ बेहतर है?
\v 3 क्या उसकी लकड़ी कोई लेता है कि उससे कुछ बनाए, या लोग उसकी खूंटियाँ बना लेते हैं कि उन पर बर्तन लटकाएँ?
\v 4 देख, वह आग में ईन्धन के लिए डाली जाती है, जब आग उसके दोनों सिरों को खा गई और बीच के हिस्से को भसम कर चुकी, तो क्या वह किसी काम की है?
\s5
\v 5 देख, जब वह सही थी तो किसी काम की न थी, और जब आग से जल गई तो किस काम की है?
\v 6 फिर ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: जिस तरह मैंने जंगल के दरख़्तों में से अंगूर के दरख़्त को आग का ईन्धन बनाया, उसी तरह यरुशलीम के बाशिन्दों को बनाऊँगा।
\s5
\v 7 और मेरा चेहरा उनके ख़िलाफ़ होगा, वह आग से निकल भागेंगे पर आग उनको भसम करेगी; और जब मेरा चेहरा उनके ख़िलाफ़ होगा, तो तुम जानोगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।
\v 8 और मैं मुल्क को उजाड़ डालूँगा, इसलिए कि उन्होंने बड़ी बेवफ़ाई की है, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।"
\s5
\c 16
\p
\v 1 ~फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 2 कि "ऐ आदमज़ाद! यरुशलीम को उसके नफ़रती कामों से आगाह कर,
\v 3 और कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यरुशलीम से यूँ फ़रमाता है: तेरी विलादत और तेरी पैदाइश कना'न की सरज़मीन की है; तेरा बाप अमूरी था और तेरी माँ हित्ती थी।
\s5
\v 4 और तेरी पैदाइश का हाल यूँ है कि जिस दिन तू पैदा हुई तेरी नाफ़ काटी न गई, और न सफ़ाई के लिए तुझे पानी से गु़स्ल मिला, और न तुझ पर नमक मला गया, और तू कपड़ों में लपेटी न गई।
\v 5 किसी की आँख ने तुझ पर रहम न किया कि तेरे लिए यह काम करे और तुझ पर मेहरबानी दिखाए बल्कि तू अपनी विलादत के दिन बाहर मैदान में फेंकी गई, क्यूँकि तुझ से नफ़रत रखते थे।
\s5
\v 6 "तब मैंने तुझ पर गुज़र किया और तुझे तेरे ही ख़ून में लोटती देखा, और मैंने तुझे जब तू अपने खू़न में आग़िश्ता थी कहा, 'जीती रह!" हाँ, मैंने तुझ खू़न आलूदा से कहा, 'जीती रह!"
\v 7 मैंने तुझे चमन के शगूफ़ों की तरह हज़ार चन्द बढ़ाया, इसलिए तू बढ़ीं, और कमाल और जमाल को पहुँची तेरी छातियाँ उठीं और तेरी ज़ुल्फें बढ़ीं लेकिन तू नंगी और बरहना थी।
\s5
\v 8 फिर मैंने तेरी तरफ़ गुज़र किया और तुझ पर नज़र की, और क्या देखता हूँ कि तू 'इश्क़ अंगेज़ 'उम्र को पहुँच गई है; फिर मैंने अपना दामन तुझ पर फैलाया और तेरी बरहनगी को छिपाया, और क़सम खाकर तुझ से 'अहद बाँधा ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है और तू मेरी हो गई।
\s5
\v 9 फिर मैंने तुझे पानी से गु़स्ल दिया, और तेरा खू़न बिल्कुल धो डाला और तुझ पर 'इत्र मला।
\v 10 और मैंने तुझे ज़र-दोज़ लिबास से मुलब्बस किया, और तुख़स की खाल की जूती पहनाई, नफ़ीस कतान से तेरा कमरबन्द बनाया और तुझे सरासर रेशम से मुलब्बस किया।
\v 11 मैंने तुझे ज़ेवर से आरास्ता किया, तेरे हाथों में कंगन पहनाए और तेरे गले में तौक़ डाला।
\v 12 और मैंने तेरी नाक में नथ और तेरे कानों में बालियाँ पहनाई, और एक खू़बसूरत ताज तेरे सिर पर रख्खा।
\s5
\v 13 और तू सोने-चाँदी से आरास्ता हुई, और तेरी पोशाक कतानी और रेशमी और चिकन-दोज़ी की थी; और तू मैदा और शहद और चिकनाई खाती थी, और तू बहुत खू़बसूरत और इक़बालमन्द मलिका हो गई।
\v 14 और क़ौम-ए-'आलम में तेरी खू़बसूरती की शोहरत फैल गई, क्यूँकि , ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, कि तू मेरे उस जलाल से जो मैंने तुझे बख़्शा कामिल हो गई थी।
\s5
\v 15 "लेकिन तूने अपनी खू़बसूरती पर भरोसा किया और अपनी शोहरत के वसीले से बदकारी करने लगी, और हर एक के साथ जिसका तेरी तरफ़ गुज़र हुआ ख़ूब फ़ाहिशा बनी और उसी की हो गई।
\v 16 तूने अपनी पोशाक से अपने ऊँचे मक़ाम मुनक़्क़श और आरास्ता किए, और उन पर ऐसी बदकारी की, कि न कभी हुई और न होगी।
\s5
\v 17 और तूने अपने सोने-चाँदी के नफ़ीस ज़ेवरों से जो मैंने तुझे दिए थे, अपने लिए मर्दों की मूरतें बनाई और उनसे बदकारी की।
\v 18 और अपनी ज़र-दोज़ पोशाकों से उनको मुलब्बस किया, और मेरा 'इत्र और ख़ुशबू उनके सामने रख्खा।
\v 19 और मेरा खाना जो मैंने तुझे दिया, या'नी मैदा और चिकनाई और शहद जो मैं तुझे खिलाता था, तूने उनके सामने ख़ुशबू के लिए रख्खा: ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है कि यूँ ही हुआ।
\s5
\v 20 और तूने अपने बेटों और अपनी बेटियों को, जिनको तूने मेरे लिए पैदा किया लेकर उनके आगे कु़र्बान किया, ताकि वह उनको खा जाएँ, क्या तेरी बदकारी कोई छोटी बात थी,
\v 21 कि तूने मेरे बच्चों को भी ज़बह किया और उनको बुतों के लिए आग के हवाले किया?
\v 22 और तूने अपनी तमाम मकरूहात और बदकारी में अपने बचपन के दिनों को, जब कि तू नंगी और बरहना अपने खू़न में लोटती थी, कभी याद न किया|
\s5
\v 23 'और ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है कि अपनी इस सारी बदकारी के 'अलावा अफ़सोस! तुझ पर अफ़सोस!
\v 24 तूने अपने लिए गुम्बद बनाया और हर एक बाज़ार में ऊँचा मक़ाम तैयार किया।
\s5
\v 25 ~तूने रास्ते के हर कोने पर अपना ऊँचा मक़ाम ता'मीर किया, और अपनी खू़बसूरती को नफ़रत अंगेज़ किया, और हर एक राह गुज़र के लिए अपने पाँव पसारे और बदकारी में तरक़्क़ी की।
\v 26 तूने अहल-ए-मिस्र और अपने पड़ोसियों से जो बड़े क़दआवर हैं बदकारी की और अपनी बदकारी की ज़्यादती से मुझे ग़ज़बनाक किया।
\s5
\v 27 फिर देख, मैंने अपना हाथ तुझ पर चलाया और तेरे वज़ीफ़े को कम कर दिया, और तुझे तेरी बदख़्वाह फ़िलिस्तियों की बेटियों के क़ाबू में कर दिया जो तेरी ख़राब चाल चलन से शर्मिन्दा होती थीं।
\v 28 फिर तूने अहल-ए-असूर से बदकारी की, क्यूँकि तू सेर न हो सकती थी; हाँ, तूने उन से भी बदकारी की लेकिन तोभी तू आसूदा न हुई।
\v 29 और तूने मुल्क-ए-कन'आन से कसदियों के मुल्क तक अपनी बदकारी को फैलाया, लेकिन इस से भी सेर न हुई।
\s5
\v 30 "ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, तेरा दिल कैसा बे-इख़्तियार है कि तू यह सब कुछ करती है, जो बेलगाम फ़ाहिशा 'औरत का काम है,
\v 31 इसलिए कि तू हर एक सड़क के सिरे पर अपना गुम्बद बनाती है, और हर एक बाज़ार में अपना ऊँचा मक़ाम तैयार करती है, और तू कस्बी की तरह नहीं क्यूँकि तू उजरत लेना बेकार जानती है।
\s5
\v 32 बल्कि बदकार बीवी की तरह है, जो अपने शौहर के बदले गै़रों को कु़बूल करती है।
\v 33 लोग सब कस्बियों को हदिए देते हैं; लेकिन तू अपने यारों को हदिए और तोहफ़े देती है, ताकि वह चारों तरफ़ से तेरे पास आएँ और तेरे साथ बदकारी करें।
\v 34 और तू बदकारी में और 'औरतों की तरह नहीं, क्यूँकि बदकारी के लिए तेरे पीछे कोई नहीं आता। तू उजरत नहीं लेती बल्कि ख़ुद उजरत देती है, इसलिए तू अनोखी है।
\s5
\v 35 "इसलिए ऐ बदकार, तू ख़ुदावन्द का कलाम सुन,
\v 36 ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि तेरी नापाकी बह निकली और तेरी बरहनगी तेरी बदकारी के ज़रिए' जो तूने अपने यारों से की, और तेरे सब नफ़रती बुतों की वजह से और तेरे बच्चों के खू़न की वजह से जो तूने उनके आगे पेश किया, ज़ाहिर हो गई।
\v 37 इसलिए देख, मैं तेरे सब यारों को तू लज़ीज़ थी, और उन सब को जिनको तू चाहती थी और उन सबको जिनसे तू कीना रखती है जमा' करूँगा; मैं उनको चारों तरफ़ से तेरी मुख़ालिफ़त पर जमा' करूँगा और उनके आगे तेरी बरहनगी खोल दूँगा ताकि वह तेरी तमाम बरहनगी देखें।
\s5
\v 38 और मैं तेरी ऐसी 'अदालत करूँगा जैसी बेवफ़ा और ख़ूनी बीवी की और मैं ग़ज़ब और ग़ैरत की मौत तुझ पर लाऊँगा।
\v 39 और मैं तुझे उनके हवाले कर दूँगा, और वह तेरे गुम्बद और ऊँचे मक़ामों को मिस्मार करेंगे और तेरे कपड़े उतारेंगे और तेरे ख़ुशनुमा ज़ेवर छीन लेंगे, और तुझे नंगी और बरहना छोड़ जाएँगे।
\s5
\v 40 वह तुझ पर एक हुजूम चढ़ा लाएँगे, और तुझे संगसार करेंगे और अपनी तलवारों से तुझे छेद डालेंगे।
\v 41 और वह तेरे घर आग से जलाएँगे और बहुत सी 'औरतों के सामने तुझे सज़ा देंगे, और मैं तुझे बदकारी से रोक दूँगा और तू फिर उजरत न देगी।
\v 42 तब मेरा क़हर तुझ पर धीमा हो जाएगा, और मेरी गै़रत तुझ से जाती रहेगी; और मैं तस्कीन पाऊँगा और फिर ग़ज़बनाक न हूँगा।
\s5
\v 43 चूँकि ~तूने अपने बचपन के दिनों को याद न किया, और इन सब बातों से मुझ को अफ़रोख़्ता किया, इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, देख, मैं तेरी बदराही का नतीजा तेरे सिर पर लाऊँगा और तू आगे को अपने सब घिनौने कामों के 'अलावा ऐसी बदज़ाती नहीं कर सकेगी।
\s5
\v 44 ‘देख, सब मिसाल कहने वाले तेरे बारे में यह मिसाल कहेंगे, कि 'जैसी माँ, वैसी बेटी।
\v 45 ~तू अपनी उस माँ की बेटी है जो अपने शौहर और अपने बच्चों से घिन खाती थी, और तू अपनी उन बहनों की बहन है जो अपने शौहरों और अपने बच्चों से नफ़रत रखती थीं; तेरी माँ हित्ती और तेरा बाप अमूरी था।
\s5
\v 46 और तेरी बड़ी बहन सामरिया है जो तेरी बाईं तरफ़ रहती है, वह और उसकी बेटियाँ, और तेरी छोटी बहन जो तेरी दहनी तरफ़ रहती हैं, सदूम और उसकी बेटियाँ हैं।
\s5
\v 47 लेकिन तू सिर्फ उनकी राह पर नहीं चली और सिर्फ़ उन ही के जैसे घिनौने काम नहीं किए, क्यूँकि यह तो अगरचे छोटी बात थी, बल्कि तू अपनी तमाम चाल चलन में उनसे बदतर हो गई।
\v 48 ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम कि तेरी बहन सदूम ने ऐसा नहीं किया, न उसने न उसकी बेटियों ने जैसा तूने और तेरी बेटियों ने किया है।
\s5
\v 49 देख, तेरी बहन सदूम की तक़्सीर यह थी, गु़रूर और रोटी की सेरी और राहत की कसरत उसमें और उसकी बेटियों में थी; उसने ग़रीब और मोहताज की दस्तगीरी न की।
\v 50 वह मग़रूर थीं और उन्होंने मेरे सामने घिनौने काम किए, इसलिए जब मैंने देखा तो उनको उखाड़ फेंका।
\s5
\v 51 और सामरिया ने तेरे गुनाहों के आधे भी नहीं किए, तूने उनके बदले अपनी मकरूहात को फ़िरावान किया है, और तूने अपनी इन मकरूहात से अपनी बहनों को बेक़ुसूर ठहराया है।
\v 52 फिर तू ख़ुद जो अपनी बहनों को मुजरिम ठहराती है, इन गुनाहों की वजह से जो तूने किए जो उनके गुनाहों से ज़्यादा नफ़रतअंगेज़ हैं, मलामत उठा; वह तुझ से ज़्यादा बेकु़सूर हैं। इसलिए तू भी रूस्वा हो और शर्म खा, क्यूँकि तूने अपनी बहनों को बेकु़सूर ठहराया है।
\s5
\v 53 'और मैं उनकी ग़ुलामी को बदल दूँगा, या'नी सदूम और उसकी बेटियों की ग़ुलामी को और सामरिया और उसकी बेटियों की ग़ुलामी की, और उनके बीच तेरे ग़ुलामों की ग़ुलामी को,
\v 54 ताकि तू अपनी रूस्वाई उठाए और अपने सब कामों से शर्मिंदा हो, क्यूँकि तू उनके लिए तसल्ली के ज़रिए' है।
\v 55 तेरी बहनें सदूम और सामरिया, अपनी अपनी बेटियों के साथ अपनी पहली हालत पर बहाल हो जाएँगी, और तू और तेरी बेटियाँ अपनी पहली हालत पर बहाल हो जाओगी।
\s5
\v 56 तू अपने ग़ुरूर के दिनों में, अपनी बहन सदूम का नाम तक ज़बान पर न लाती थी।
\v 57 उससे पहले कि तेरी शरारत फ़ाश हुई, जब अराम की बेटियों ने और उन सब ने जो उनके आस-पास थीं तुझे मलामत की, और फ़िलिस्तियों की बेटियों ने चारों तरफ़ से तेरी हिकारत की।
\v 58 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तूने अपनी बदज़ाती और घिनौने कामों की सज़ा पाई।
\s5
\v 59 "क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि मैं तुझ से जैसा तूने किया वैसा ही सुलूक करूँगा, इसलिए कि तूने क़सम को बेकार जाना और 'अहद शिकनी की|
\s5
\v 60 लेकिन मैं अपने उस 'अहद को जो मैंने तेरी जवानी के दिनों में तेरे साथ बाँधा, याद रख्खूँगा और हमेशा का 'अहद तेरे साथ क़ायम करूँगा।
\v 61 और जब तू अपनी बड़ी और छोटी बहनों को कु़बूल करेगी, तब तू अपनी राहों को याद करके शर्मिंदा होगी और मैं उनको तुझे दूँगा कि तेरी बेटियाँ हों, लेकिन यह तेरे 'अहद के मुताबिक़ नहीं।
\s5
\v 62 और मैं अपना 'अहद तेरे साथ क़ायम करूँगा, और तू जानेगी कि ख़ुदावन्द मैं हूँ|
\v 63 ~ताकि तू याद करे और शर्मिंदा हो और शर्म के मारे फिर कभी मुँह न खोले, जब कि मैं सब कुछ जो तूने किया मु'आफ़ कर दूँ, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।"
\s5
\c 17
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ|
\v 2 ~"कि ऐ आदमज़ाद, एक पहेली निकाल और अहल-ए-इस्राईल से एक मिसाल बयान कर,
\v 3 और कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: एक बड़ा उक़ाब जो बड़े बाज़ू और लम्बे पर रखता था, अपने रंगा-रंग के बाल-ओ-पर में छिपा हुआ लुबनान में आया, और उसने देवदार की चोटी तोड़ ली।
\v 4 वह सब से ऊँची डाली तोड़ कर सौदागरी के मुल्क में ले गया, और सौदागरों के शहर में उसे लगाया।
\s5
\v 5 और वह उस सर-ज़मीन में से बीज ले गया और उसे ज़रखेज़ ज़मीन में बोया; उसने उसे आब-ए-फ़िरावाँ के किनारे, बेद के दरख़्त की तरह लगाया।
\v 6 और वह उगा और अंगूर का एक पस्त-क़द शाख़दार दरख़्त हो गया और उसकी शाख़ें उसकी तरफ़ झुकी थीं, और उसकी जड़ें उसके नीचे थीं, चुनाँचे वह अँगूर का एक दरख़्त हुआ; उसकी शाख़ें निकलीं और उसकी कोपलें बढ़ीं
\s5
\v 7 'और एक और बड़ा 'उक़ाब था, जिसके बाज़ू बड़े बड़े और पर-ओ-बाल बहुत थे, और इस ताक ने अपनी जड़ें उसकी तरफ़ झुकाई और अपनी क्यारियों से अपनी शाख़ें उसकी तरफ़ बढ़ईं ताकि वह उसे सींचे।
\v 8 यह आब-ए-फ़िरावाँ के किनारे ज़रखेज़ ज़मीन में लगाई गई थी, ताकि उसकी शाख़ें निकलें और इसमें फल लगें और यह नफ़ीस ताक हो।
\s5
\v 9 तू कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि क्या यह कामयाब होगी? क्या वह इसको उखाड़ न डालेगा और इसका फल न तोड़ डालेगा कि यह ख़ुश्क हो जाए, और इसके सब ताज़ा पत्ते मुरझा जाएँ? इसे जड़ से उखाड़ने के लिए बहुत ताक़त और बहुत से आदमियों की ज़रूरत न होगी।
\v 10 देख, यह लगाई तो गई, पर क्या यह कामयाब होगी? क्या यह पूरबी हवा लगते ही बिल्कुल सूख न जाएगी? यह अपनी क्यारियों ही में पज़मुर्दा हो जाएगी।"
\s5
\v 11 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ
\v 12 ~"इस बाग़ी ख़ान्दान से कह, क्या तुम इन बातों का मतलब नहीं जानते? इनसे कह, देखो, शाह-ए-बाबुल ने यरुशलीम पर चढ़ाई की और उसके बादशाह को और उसके ''हाकिमों को ग़ुलाम करके अपने साथ बाबुल को ले गया।
\s5
\v 13 और उसने शाही नसल में से एक को लिया और उसके साथ 'अहद बाँधा और उससे क़सम ली और मुल्क के बहादुरों को भी ले गया,
\v 14 ताकि वह मम्लकत पस्त हो जाए और फिर सिर न उठा सके, बल्कि उसके 'अहद को क़ायम रखने से क़ायम रहे।
\s5
\v 15 लेकिन उसने बहुत से आदमी और घोड़े लेने के लिए मिस्र में क़ासिद भेज कर उससे शरकशी की क्या वह कामयाब होगा क्या ऐसे काम करने वाला बच सकता है क्या वह 'अहद शिकनी करके बच जाएगा |
\v 16 "ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम, वह उसी जगह जहाँ उस बादशाह का घर है जिसने उसे बादशाह बनाया और जिसकी क़सम को उसने बेकार जाना और जिसका 'अहद उसने तोड़ा, या'नी बाबुल में उसी के पास मरेगा।
\s5
\v 17 और फ़िर'औन अपने बड़े लश्कर और बहुत से लोगों को लेकर लड़ाई में उसके साथ शरीक न होगा, जब दमदमा बाँधते हों और बुर्ज बनाते हों कि बहुत से लोगों को क़त्ल करें।
\v 18 चूँकि उसने क़सम को बेकार जाना और उस 'अहद को तोड़ा, और हाथ पर हाथ मार कर भी यह सब कुछ किया, इसलिए वह बच न सकेगा।
\s5
\v 19 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि ~मुझे अपनी हयात की क़सम वह मेरी ही क़सम है, जिसको उसने बेकार जाना और वह मेरा ही 'अहद है जो उसने तोड़ा; मैं ज़रूर यह उसके सिर पर लाऊँगा।
\v 20 और मैं अपना जाल उस पर फैलाऊँगा और वह मेरे फन्दे में पकड़ा जाएगा, और मैं उसे बाबुल को ले आऊँगा, और जो मेरा गुनाह उसने किया है उसके बारे मैं वहाँ उससे हुज्जत करूँगा।
\v 21 और उसके लश्कर के सब फ़रारी तलवार से क़त्ल होंगे, और जो बच रहेंगे वह चारों तरफ़ तितर बितर हो जाएँगे; और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द ने यह फ़रमाया है।
\s5
\v 22 ~ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: "मैं भी देवदार की बुलन्द चोटी लूँगा और उसे लगाऊँगा, फिर उसकी नर्म शाख़ों में से एक कोंपल काट लूँगा और उसे एक ऊँचे और बुलन्द पहाड़ पर लगाऊँगा।
\v 23 मैं उसे इस्राईल के ऊँचे पहाड़ पर लगाऊँगा, और वह शाख़ें निकालेगा और फल लाएगा और 'आलीशान देवदार होगा। और हर क़िस्म के परिन्दे उसके नीचे बसेंगे, वह उसकी डालियों के साये में बसेरा करेंगे।
\s5
\v 24 और मैदान के सब दरख़्त जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द ने बड़े दरख़्त को पस्त किया और छोटे दरख़्त को बुलन्द किया; हरे दरख़्त को सुखा दिया और सूखे दरख़्त को हरा किया; मैं ख़ुदावन्द ने फ़रमाया और कर दिखाया।"
\s5
\c 18
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 2 " कि तुम इस्राईल के मुल्क के हक़ में क्यूँ यह मिसाल कहते हो, कि 'बाप-दादा ने कच्चे अँगूर खाए और औलाद के दाँत खट्टे हुए'?
\s5
\v 3 ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम कि तुम फिर इस्राईल में यह मिसाल न कहोगे।
\v 4 देख, सब जाने मेरी हैं,जैसी बाप की जान वैसी ही बेटे की जान भी मेरी है; जो जान गुनाह करती है वही मरेगी।
\s5
\v 5 'लेकिन जो इन्सान सादिक़ है, और उसके काम 'अदालत और इन्साफ़ के मुताबिक़ हैं।
\v 6 जिसने बुतों की कु़र्बानी से नहीं खाया, और बनी-इस्राईल के बुतों की तरफ़ अपनी आँखें नहीं उठाई; और अपने पड़ोसी की बीवी को नापाक नहीं किया, और 'औरत की नापाकी के वक़्त उसके पास नहीं गया,
\s5
\v 7 और किसी पर सितम नहीं किया, और क़र्ज़दार का गिरवी वापस कर दिया और जु़ल्म से कुछ छीन नहीं लिया; भूकों को अपनी रोटी खिलाई और नंगों को कपड़ा पहनाया;
\v 8 सूद पर लेन-देन नहीं किया, बदकिरदारी से दस्तबरदार हुआ और लोगों में सच्चा इन्साफ़ किया;
\v 9 मेरे क़ानून पर चला और मेरे हुक्मों पर 'अमल किया, ताकि रास्ती से मु'आमिला करे; वह सादिक़़ है, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, वह यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा।
\s5
\v 10 'लेकिन अगर उसके यहाँ बेटा पैदा हो, जो राहज़नी या खू़ँरेज़ी करे और इन गुनाहों में से कोई गुनाह करे,
\v 11 और इन फ़राइज़ को बजा न लाए, बल्कि बुतों की कु़र्बानी से खाए और अपने पड़ोसी की बीवी को नापाक करे;
\s5
\v 12 ग़रीब और मोहताज पर सितम करे, जु़ल्म करके छीन ले, गिरवी वापस न दे, और बुतों की तरफ़ अपनी आँखें उठाये और घिनौने काम करे;
\v 13 सूद पर लेन देन करे, तो क्या वह ज़िन्दा रहेगा ? वह ज़िन्दा न रहेगा, उसने यह सब नफ़रती काम किए हैं; वह यक़ीनन मरेगा, उसका खू़न उसी पर होगा।
\s5
\v 14 "लेकिन अगर उसके यहाँ ऐसा बेटा पैदा हो, जो उन तमाम गुनाहों को जो उसका बाप करता है देखे और ख़ौफ़ खाकर उसके से काम न करे
\v 15 और बुतों की कु़र्बानी से न खाए, और बनी-इस्राईल के बुतों की तरफ़ अपनी आँखें न उठाए और अपने पड़ोसी की बीवी को नापाक न करे;
\s5
\v 16 और किसी पर सितम न करे, गिरवी न ले, और जु़ल्म करके कुछ छीन न ले, भूके को अपनी रोटी खिलाए और नंगे को कपड़े पहनाए;
\v 17 ग़रीब से दस्तबरदार हो, और सूद पर लेन-देन न करे, लेकिन मेरे हुक्मों पर 'अमल करे और मेरे क़ानून पर चले, वह अपने बाप के गुनाहों के लिए न मरेगा; वह यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा।
\s5
\v 18 लेकिन उसका बाप, क्यूँकि उसने बेरहमी से सितम किया और अपने भाई को जु़ल्म से लूटा, और अपने लोगों के बीच बुरे काम किए; इसलिए वह अपनी बदकिरदारी के ज़रिए' मरेगा।
\s5
\v 19 "तोभी तुम कहते हो, 'बेटा बाप के गुनाह का बोझ क्यूँ नहीं उठाता?" जब बेटे ने वही जो जाएज़ और रवा है किया, और मेरे सब क़ानून को याद करके उन पर 'अमल किया; तो वह यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा।
\v 20 जो जान गुनाह करती है वही मरेगी, बेटा बाप के गुनाह का बोझ न उठाएगा और न बाप बेटे के गुनाह का बोझ; सादिक़ की सदाक़त उसी के लिए होगी, और शरीर की शरारत शरीर के लिए।
\s5
\v 21 "लेकिन अगर शरीर अपने तमाम गुनाहों से जो उसने किए हैं, बाज़ आए और मेरे सब तौर तरीक़े पर चलकर, जो जाएज़ और रवा है करे तो वह यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा, वह न मरेगा।
\v 22 वह सब गुनाह जो उसने किए हैं, उसके ख़िलाफ़ महसूब न होंगे। वह अपनी रास्तबाज़ी में जो उसने की ज़िन्दा रहेगा।
\s5
\v 23 ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, क्या शरीर की मौत में मेरी खु़शी है, और इसमें नहीं कि वह अपनी चाल चलन से बाज़ आए और ज़िन्दा रहे?
\s5
\v 24 लेकिन अगर सादिक़ अपनी सदाक़त से बाज़ आए, और गुनाह करे और उन सब घिनौने कामों के मुताबिक़ जो शरीर करता है करे, तो क्या वह ज़िन्दा रहेगा? उसकी तमाम सदाक़त जो उसने की फ़रामोश होगी; वह अपने गुनाहों में जो उसने किए हैं और अपनी ख़ताओं में जो उसने की हैं मरेगा।
\s5
\v 25 ~"तोभी तुम कहते हो, 'ख़ुदावन्द की रविश रास्त नहीं।' ऐ बनी-इस्राईल सुनो तो, क्या मेरा चाल चलन रास्त नहीं? क्या तुम्हारा चाल चलन नारास्त नहीं?
\v 26 जब सादिक़ अपनी सदाक़त से बाज़ आए और बदकिरदारी करे और उसमें मरे, तो वह अपनी बदकिरदारी की वजह से जो उसने की है मरेगा।
\s5
\v 27 और अगर शरीर अपनी शरारत से, जो वह करता है बा'ज़ आए, और वह काम करे जो जाएज़ और रवा है; तो वह अपनी जान ज़िन्दा रख्खेगा।
\v 28 इसलिए कि उसने सोचा और अपने सब गुनाहों से जो करता था बा'ज़ आया; वह यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा, वह न मरेगा।
\s5
\v 29 तोभी बनी-इस्राईल कहते हैं, 'ख़ुदावन्द की रविश रास्त नहीं?" ऐ बनी इस्राईल, क्या मेरा चाल चलन रास्त नहीं? क्या तुम्हारा चाल चलन नारास्त नहीं?
\v 30 इसलिए ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ऐ बनी इस्राईल मैं हर एक के चाल चलन के मुताबिक़ तुम्हारी 'अदालत करूँगा; तोबा करो और अपने तमाम गुनाहों से बाज़ आओ, ताकि बदकिरदारी तुम्हारी हलाकत का ज़रिया' न हो।
\s5
\v 31 उन तमाम गुनाहों को, जिनसे तुम गुनहगार हुए दूर करो और अपने लिए नया दिल और नई रूह पैदा करो! ऐ बनी-इस्राईल, तुम क्यूँ हलाक होगे?
\v 32 क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे मरने वाले की मौत से ख़ुशी नहीं, इसलिए बाज़ आओ और ज़िन्दा रहो।"
\s5
\c 19
\p
\v 1 अब तू इस्राईल के ''हाकिमों पर नौहा कर,
\v 2 और कह, तेरी माँ कौन थी? एक शेरनी जो शेरों के बीच लेटी थी और जवान शेरों के बीच उसने अपने बच्चों को पाला।
\v 3 और उसने अपने बच्चों में से एक को पाला, तो वह जवान शेर हुआ और शिकार करना सीख गया और आदमियों को निगलने लगा।
\v 4 और क़ौमों के बीच उसका ज़िक्र हुआ तो वह उनके गढ़े में पकड़ा गया, और वह उसे ज़न्जीरों से जकड़ कर ज़मीन-ए-मिस्र में लाए।
\s5
\v 5 और जब शेरनी ने देखा कि उसने बेफ़ाइदा इन्तिज़ार किया और उसकी उम्मीद जाती रही, तो उसने अपने बच्चों में से दूसरे को लिया और उसे पाल कर जवान शेर किया।
\v 6 और वह शेरों के बीच सैर करता फिरा और जवान शेर हुआ, और शिकार करना सीख गया और आदमियों को निगलने लगा।
\v 7 और उसने उनके महलों को बर्बाद किया, और उनके शहरों को वीरान किया; उसकी ग़रज़ से मुल्क उजड़ गया और उसकी आबादी न रही।
\s5
\v 8 तब बहुत सी क़ौमें तमाम मुल्कों से उसकी घात में बैठीं, और उन्होंने उस पर अपना जाल फैलाया; वह उनके गढ़े में पकड़ा गया।
\v 9 और उन्होंने उसे ज़न्जीरों से जकड़ कर पिंजरे में डाला और शाह-ए-बाबुल के पास ले आए। उन्होंने उसे क़िले' में बन्द किया, ताकि उसकी आवाज़ इस्राईल के पहाड़ों पर फिर सुनी न जाए।
\s5
\v 10 तेरी माँ उस ताक से' मुशाबह थी, जो तेरी तरह पानी के किनारे लगाई गई; वह पानी की बहुतायत के ज़रिए' फलदार और शाख़दार हुई।
\v 11 और उसकी शाख़ें ऐसी मज़बूत हो गई के बादशाहों के 'असा उन से बनाए गए, और घनी शाख़ों में उसका तना बुलन्द हुआ और वह अपनी घनी शाख़ों के साथ ऊँची दिखाई देती थी |
\s5
\v 12 लेकिन वह ग़ज़ब से उखाड़ कर ज़मीन पर गिराई गई, और पूरबी हवा ने उसका फल खु़श्क कर डाला, और उसकी मज़बूत डालियाँ तोड़ी गई और सूख गई और आग से भसम हुई।
\v 13 और अब वह वीरान में सूखी और प्यासी ज़मीन में लगाई गई।
\s5
\v 14 और एक छड़ी से जो उसकी डालियों से बनी थी, आग निकलकर उसका फल खा गई और उसकी कोई ऐसी मज़बूत डाली न रही कि सल्तनत का 'असा हो। यह नोहा है और नोहे के लिए रहेगा।
\s5
\c 20
\p
\v 1 और सातवें बरस के पाँचवें महीने की दसवीं तारीख को यूँ हुआ कि इस्राईल के चन्द बुजु़र्ग ख़ुदावन्द से कुछ दरियाफ़्त करने को आए और मेरे सामने बैठ गए।
\s5
\v 2 तब ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ
\v 3 कि "ऐ आदमज़ाद! इस्राईल के बुजु़र्गों से कलाम कर और उनसे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि क्या तुम मुझ से दरियाफ़्त करने आए हो? ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है कि मुझे अपनी हयात की क़सम, तुम मुझ से कुछ दरियाफ़्त न कर सकोगे।
\s5
\v 4 क्या तू उन पर हुज्जत क़ायम करेगा? ऐ आदमज़ाद, क्या तू उन पर हुज्जत क़ायम करेगा? उनके बाप दादा के नफ़रती कामों से उनको आगाह कर।
\v 5 उनसे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि जिस दिन मैंने इस्राईल को बरगुज़ीदा किया, और बनी या'कू़ब से क़सम खाई और मुल्क-ए-मिस्र में अपने आपको उन पर ज़ाहिर किया; मैंने उनसे क़सम खा कर कहा, मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ |
\v 6 जिस दिन मैंने उनसे क़सम खाई, ताकि उनको मुल्क-ए-मिस्र से उस मुल्क में लाऊँ जो मैंने उनके लिए देख कर ठहराया था, जिसमें दूध और शहद बहता है और जो तमाम मुल्कों की शौकत है।
\s5
\v 7 और मैंने उनसे कहा, तुम में से हर एक शख़्स उन नफ़रती चीज़ों को जो उसकी मन्जू़र-ए-नज़र हैं, दूर करे और तुम अपने आपको मिस्र के बुतों से नापाक न करो; मैं ख़ुदावन्द, तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
\s5
\v 8 लेकिन वह मुझ से बाग़ी हुए और न चाहा कि मेरी सुनें। उनमें से किसी ने उन नफ़रती चीज़ों को, जो उसकी मंजू़र-ए-नज़र थीं, छोड़ न दिया और मिस्र के बुतों को न छोड़ा।" तब मैंने कहा,कि मैं अपना क़हर उन पर उण्डेल दूँगा, ताकि अपने ग़ज़ब को मुल्क-ए- मिस्र में उन पर पूरा करूँ ।
\v 9 लेकिन मैंने अपने नाम की ख़ातिर ऐसा किया ताकि मेरा नाम उन क़ौमों की नज़र में, जिनके बीच वह रहते थे और जिनकी निगाहों में मैं उन पर ज़ाहिर हुआ जब उनको मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, नापाक न किया जाए।
\s5
\v 10 इसलिए मैं उनको मुल्क-ए-मिस्र से निकालकर वीरान में लाया।
\v 11 और मैंने अपने क़ानून उनको दिए और अपने हुक्मों को ~उनको सिखाए कि इन्सान उन पर 'अमल करने से ज़िन्दा रहे।
\v 12 और मैंने अपने सबत भी उनको दिए, ताकि वह मेरे और उनके बीच निशान हों; ताकि वह जानें कि मैं ख़ुदावन्द उनका पाक करने वाला हूँ।
\s5
\v 13 लेकिन बनी-इस्राईल वीरान में मुझ से बाग़ी हुए, वह मेरे क़ानून पर न चले और मेरे हुक्मों को रद्द किया, जिन पर अगर इन्सान 'अमल करे तो उनकी वजह से ज़िन्दा रहे, और उन्होंने मेरे सबतों को बहुत ही नापाक किया।"तब मैंने कहा,कि मैं वीरान में अपना क़हर उन पर नाज़िल कर के उनको फ़ना करूँगा।
\v 14 ~लेकिन मैंने अपने नाम की ख़ातिर ऐसा किया, ताकि वह उन क़ौमों की नज़र में जिनकी आँखों के सामने मैं उनको निकाल लाया नापाक न किया जाए।
\s5
\v 15 और मैंने वीरान में भी उनसे क़सम खाई कि मैं उनको उस मुल्क में न लाऊँगा जो मैंने उनको दिया, जिसमें दूध और शहद बहता है और जो तमाम मुल्कों की शौकत है।
\v 16 क्यूँकि उन्होंने मेरे हुक्मों को रद्द किया और मेरे क़ानून पर न चले और मेरे सबतों को नापाक किया, इसलिए कि उनके दिल उनके बुतों के मुश्ताक़ थे।
\v 17 तोभी मेरी आँखों ने उनकी रि'आयत की और मैंने उनको हलाक न किया, और मैंने वीरान में उनको बिल्कुल बर्बाद-ओ-हलाक न किया।
\s5
\v 18 और मैंने वीरान में उनके फ़र्ज़न्दों से कहा, तुम अपने बाप-दादा के क़ानून-ओ-हुक्मों पर न चलो और उनके बुतों से अपने आपको नापाक न करो।
\v 19 मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ, मेरे क़ानून पर चलो और मेरे हुक्मों को मानो और उन पर 'अमल करो।
\v 20 और मेरे सबतों को पाक जानो कि वह मेरे और तुम्हारे बीच निशान हों, ताकि तुम जानो कि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
\s5
\v 21 लेकिन फ़र्ज़न्दों ने भी मुझ से बग़ावत की; वह मेरे क़ानून पर न चले, न मेरे हुक्मों को मानकर उन पर 'अमल किया जिन पर अगर इन्सान 'अमल करे तो उनकी वजह से ज़िन्दा रहे; उन्होंने मेरे सबतों को नापाक किया।"तब मैंने कहा कि मैं अपना क़हर उन पर नाज़िल करूँगा और वीरान में अपने ग़ज़ब को उन पर पूरा करूँगा।
\v 22 ~तोभी मैंने अपना हाथ खींचा और अपने नाम की ख़ातिर ऐसा किया, ताकि वह उन क़ौमों की नज़र में जिनके देखते हुए मैं उनको निकाल लाया, नापाक न किया जाए।
\s5
\v 23 फिर मैंने वीराने में उनसे क़सम खाई कि मैं उनको क़ौमों में आवारा और मुल्कों में तितर बितर करूँगा।
\v 24 इसलिए कि वह मेरे हुक्मों पर 'अमल न करते थे, बल्कि मेरे क़ानून को रद्द करते थे और मेरे सबतों को नापाक करते थे, और उनकी आँखें उनके बाप-दादा के बुतों पर थीं।
\s5
\v 25 इसलिए मैंने उनको बुरे क़ानून और ऐसे अहकाम दिए जिनसे वह ज़िन्दा न रहें;
\v 26 और मैंने उनको उन्हीं के हदियों से या'नी सब पहलौठों को आग पर से गुज़ार कर, नापाक किया ताकि मैं उनको वीरान करूँ और वह जानें कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।
\s5
\v 27 इसलिए, ऐ आदमज़ाद, तू बनी इस्राईल से कलाम कर और उनसे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि इसके 'अलावा तुम्हारे बाप-दादा ने ऐसे काम करके मेरी बुराई की और मेरा गुनाह करके ख़ताकार हुए;
\v 28 कि जब मैं उनको उस मुल्क में लाया जिसे उनको देने की मैंने क़सम खाई थी, तो उन्होंने जिस ऊँचे पहाड़ और जिस घने दरख़्त को देखा वहीं अपने ज़बीहों को ज़बह किया, और वहीं अपनी ग़ज़ब अंगेज़ नज़र को गुज़राना, और वहीं अपनी ख़ुशबू जलाई और अपने तपावन तपाए।
\v 29 तब मैंने उनसे कहा, यह कैसा ऊँचा मक़ाम है जहाँ तुम जाते हो? और उन्होंने उसका नाम बामाह रख्खा जो आज के दिन तक है।
\s5
\v 30 'इसलिए, तू बनी-इस्राईल से कह, कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: क्या तुम भी अपने बाप-दादा की तरह नापाक होते हो? और उनके नफ़रत अंगेज़ कामों की तरह तुम भी बदकारी करते हो?
\v 31 ~और जब अपने हदिए चढ़ाते और अपने बेटों को आग पर से गुज़ार कर अपने सब बुतों से अपने आपको आज के दिन तक नापाक करते हो, तो ऐ बनी-इस्राईल क्या तुम मुझ से कुछ दरियाफ़्त कर सकते हो? ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: मुझे अपनी हयात की क़सम, मुझ से कुछ दरियाफ़्त न कर सकोगे।
\v 32 "और वह जो तुम्हारे जी में आता है हरगिज़ वजूद में न आएगा, क्यूँकि तुम सोचते हो, 'तुम भी दीगर क़ौम-ओ-क़बाइल-ए- 'आलम की तरह लकड़ी और पत्थर की 'इबादत करोगे ।'ख़ुदावन्द सज़ा देता और मु'आफ़ भी करता है
\s5
\v 33 "ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: मुझे अपनी हयात की क़सम, मैं ताक़तवर हाथ से और बुलन्द बाज़ू से क़हर नाज़िल' कर के तुम पर सल्तनत करूँगा।
\v 34 और मैं ताक़तवर हाथ और बुलन्द बाज़ू से क़हर नाज़िल' करके तुम को क़ौमों में से निकाल लाऊँगा, और उन मुल्कों में से जिनमें तुम तितर बितर हुए हो जमा' करूँगा।
\v 35 और मैं तुम को क़ौमों के वीराने में लाऊँगा और वहाँ आमने सामने तुम से हुज्जत करूँगा।
\s5
\v 36 जिस तरह मैंने तुम्हारे बाप-दादा के साथ मिस्र के वीरान में हुज्जत की, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, उसी तरह मैं तुम से भी हुज्जत करूँगा।
\v 37 और मैं तुम को छड़ी के नीचे से गुज़ारूँगा और 'अहद के बन्द में लाऊँगा।
\v 38 और मैं तुम में से उन लोगों को जो सरकश और मुझ से बाग़ी हैं, जुदाकरूँगा; मैं उनको उस मुल्क से जिसमें उन्होंने क़याम किया, निकाल लाऊँगा पर वह इस्राईल के मुल्क में दाख़िल न होंगे और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 39 ~और "तुम से ऐ बनी-इस्राईल, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि जाओ और अपने अपने बुत की 'इबादत करो, और आगे को भी, अगर तुम मेरी न सुनोगे; लेकिन अपनी कु़र्बानियों और अपने बुतों से मेरे पाक नाम की बुराई न करोगे।
\s5
\v 40 'क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि मेरे पाक पहाड़ या'नी इस्राईल के ऊँचे पहाड़ पर तमाम बनी-इस्राईल, सब के सब मुल्क में मेरी 'इबादत करेंगे; वहाँ मैं उनको कु़बूल करूँगा, और तुम्हारी कु़र्बानियाँ और तुम्हारी नज़रों के पहले फल और तुम्हारी सब मुक़द्दस चीज़ें तलब करूँगा।
\v 41 जब मैं तुम को क़ौमों में से निकाल लाऊँगा और उन मुल्कों में से जिनमें मैंने तुम को तितर बितर किया जमा' करूँगा, तब मैं तुम को ख़ुशबू के साथ कु़बूल करूँगा और क़ौमों के सामने तुम मेरी तक़्दीस करोगे।
\s5
\v 42 ~और जब मैं तुम को इस्राईल के मुल्क में या'नी उस सरज़मीन में जिसके लिए मैंने क़सम खाई कि तुम्हारे बाप-दादा को दूँ, ले आऊँगा तब तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\v 43 और वहाँ तुम अपने चाल चलन और अपने सब कामों को, जिनसे तुम नापाक हुए हो, याद करोगे और तुम अपनी तमाम बुराई की वजह से जो तुम ने की है, अपनी ही नज़र में घिनौने होगे।
\v 44 ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, ऐ बनी-इस्राईल जब मैं तुम्हारे बुरे चाल चलन और बद-आ'माली के मुताबिक़ नहीं बल्कि अपने नाम के ख़ातिर तुम से सुलूक करूँगा, तो तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
\s5
\v 45 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 46 कि "ऐ आदमज़ाद, दक्खिन का रुख़ कर और दक्खिन ही से मुख़ातिब हो कर उसके मैदान के जंगल के ख़िलाफ़ नबुव्वत कर;
\v 47 और दक्खिन के जंगल से कह, ख़ुदावन्द का कलाम सुन, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: देख, मैं तुझ में आग भड़काऊँगा और वह हर एक हरा दरख़्त और हर एक सूखा दरख़्त जो तुझ में है, खा जाएगी; भड़कता हुआ शो'ला न बुझेगा और दक्खिन से उत्तर तक सबके मुँह उससे झुलस जाएँगे।
\s5
\v 48 और हर इन्सान देखेगा कि मैं ख़ुदावन्द ने उसे भड़काया है, वह न बुझेगी।"
\v 49 तब मैंने कहा, 'हाय ख़ुदावन्द ख़ुदा! वह तो मेरे बारे में कहते हैं,क्या वह मिसालें नहीं कहता?"
\s5
\c 21
\p
\v 1 ~फिर ख़ुदा वन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 2 कि~"ऐ आदमज़ाद, यरुशलीम का रुख़ कर और पाक मकानों से मुख़ातिब होकर मुल्क-ए-इस्राईल के ख़िलाफ़ नबुव्वत कर
\v 3 और उस से कह, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: कि देख मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ और अपनी तलवार मियान से निकाल लूँगा, और तेरे सादिक़ों और तेरे शरीरों को तेरे बीच से काट डालूँगा।
\s5
\v 4 इसलिए चूँकि मैं तेरे बीच से सादिक़ों और शरीरों को काट डालूँगा, इसलिए मेरी तलवार अपने मियान से निकल कर दक्खिन से उत्तर तक तमाम बशर पर चलेगी|
\v 5 और सब जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द ने अपनी तलवार मियान से खींची है वह फिर उसमें न जायेगी |
\s5
\v 6 इसलिए "ऐ आदमज़ाद कमर की शिगास्तगी से आँहें ~मार और तल्ख़ कामी से उनकी आँखों के सामने ठण्डी साँस भर |
\v 7 और जब वह पूँछें कि तू क्यूँ हाए हाए करता है तो यूँ जवाब देना कि उसकी आमद की अफ़वाह की वजह से और हर एक दिल पिघल जायेगा और सब हाथ ढीले हो जायेंगे और हर एक जी डूब जाएगा और सब घुटने पानी की तरह कमज़ोर हो जायेंगे ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है उसकी आमद आमद है यह वजूद में आएगा |
\s5
\v 8 फिर~ख़ुदावन्द का कलाम मुझपर नाज़िल हुआ |
\v 9 "ऐ आदमज़ाद, ~नबुव्वत कर और कह ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू कह तलवार बल्कि तेज़ और सैकल की हुई तलवार है |
\s5
\v 10 वह तेज़ की गई है ताकि उससे बड़ी खूंरेज़ी की जाये वह सैकल की गई है ताकि चमके फिर क्या हम ख़ुश हो सकते हैं मेरे बेटे का 'असा हर लकड़ी को बेकार जानता है |
\v 11 और उसने उसे सैकल करने को दिया है ताकि हाथ में ली जाये वह तेज़ और सैकल की गई ताकि क़त्ल करने वाले के हाथ में दी जाए |
\s5
\v 12 ~"ऐ आदमज़ाद, तू रो और नाला कर क्यूँकि वह मेरे लोगों पर चलेगी वह इस्राईल के सब हाकिमों पर होगी वह मेरे लोगों के सात तलवार के हवाले किए गए हैं इसलिए तू अपनी रान पर हाथ मार |
\v 13 यक़ीनन वह आज़माई गई और अगर लाठी उसे बेकार जाने तो क्या वह हलाक होगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है |
\s5
\v 14 और~"ऐ आदमज़ाद, तू नबुव्वत कर और ताली बजा और तलवार दो गुना बल्कि तीन गुना हो जाए वह तलवार जो मक़तूलों पर कारगर हुई बड़ी खूँरेज़ी की तलवार है जो उनको घेरती है|
\s5
\v 15 मैंने यह तलवार उनके सब फाटकों के ख़िलाफ़ क़ायम की है ताकि उनके दिल पिघल जायें और उनके गिरने के सामान ज़्यादा हों हाए बर्क़ तेग यह क़त्ल करने को खींची गई|
\v 16 तैयार हो; दाहनी तरफ़ जा, आमादा हो ,बाईं तरफ़ जा ,जिधर तेरा रुख़ ,|
\v 17 और मैं भी ताली बजाऊँगा और अपने क़हर को ठण्डा करूँगा मैं ख़ुदावन्द ने यह फ़रमाया है|
\s5
\v 18 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझपर नाज़िल हुआ|
\v 19 कि~"ऐ आदमज़ाद, तू दो रास्ते खींच जिनसे शाह-ए-बाबुल की तलवार आये एक ही मुल्क से वह दोनों रास्ते निकाल और एक हाथ निशान के लिए शहर की रास्ते के सिरे पर लगा|
\v 20 एक रास्ता निकाल जिससे तलवार बनी'अम्मून की रब्बा पर और फिर एक और जिससे यहूदाह के मासूर शहर यरुशलीम पर आये|
\s5
\v 21 क्यूँकि शाह-ए-बाबुल दोनों रास्तों के नुक़्त-ए-इतसाल पर फ़ालगीरी के लिए खड़ा हुआ और तीरों को हिला कर बुत से सवाल करेगा और जिगर पर नज़र करेगा|
\v 22 उसके दहने हाथ में यरुशलीम का पर्ची पड़ेगी कि मंजनीक़ लगाये और कुश्त-ओ-ख़ून के लिए मुँह खोले ललकार की आवाज़ बुलन्द करे और फाटकों पर मंजनीक़ लगाए और दमदमा बांधे और बुर्ज़ बनाए|
\v 23 ~लेकिन उनकी नज़र में यह ऐसा होगा जैसा झूटा शगुन या'नी उनके लिए जिन्होंने क़सम खाई थी, पर वह बदकिरदारी को याद करेगा ताकि वह गिरफ़्तार हों।
\s5
\v 24 "इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि तुम ने अपनी बदकिरदारी याद दिलाई और तुम्हारी ख़ताकारी ज़ाहिर हुई यहाँ तक कि तुम्हारे सब कामों में तुम्हारे गुनाह अयाँ हैं; और चूँकि तुम ख़याल में आ गए इसलिए गिरफ़्तार हो जाओगे।
\s5
\v 25 और तू ऐ मजरूह शरीर शाह-ए-इस्राईल, जिसका ज़माना बदकिरदारी के अन्जाम को पहुँचने पर आया है।
\v 26 ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि कुलाह दूर कर और ताज उतार, यह ऐसा न रहेगा, पस्त को बलन्द कर और उसे जो बुलन्द है पस्त कर।
\v 27 मैं ही उसे उलट उलट उलट दूँगा, पर यूँ भी न रहेगा और वह आएगा जिसका हक़ है, और मैं उसे दूँगा।
\s5
\v 28 "और तू ऐ आदमज़ाद नबुव्वत कर और कह ख़ुदावन्द ख़ुदा बनी अम्मून और उनकी ताना ज़नी के बारे में यूँ फ़रमाता है: कि तू कह तलवार बल्कि खींची हुई तलवार खूंरेजी के लिए सैकल की गई है, ताकि बिजली की तरह भसम करे।
\v 29 जबकि वह तेरे लिए धोका देखते हैं और झूटे फ़ाल निकालते हैं कि तुझ को उन शरीरों की गर्दनों पर डाल दें जो मारे गए, जिनका ज़माना उनकी बदकिरदारी के अंजाम को पहुँचने पर आया है।
\s5
\v 30 उसको मियान में कर। मैं तेरी पैदाइश के मकान में और तेरी ज़ाद बूम में तेरी 'अदालत करूँगा।
\v 31 और मैं अपना क़हर तुझ पर नाज़िल करूँगा और अपने ग़ज़ब की आग तुझ पर भड़काऊँगा, और तुझ को हैवान ख़सलत आदमियों के हवाले करूँगा जो बर्बाद करने में माहिर हैं।
\s5
\v 32 तू आग के लिए ईधन होगा और तेरा खू़न मुल्क में बहेगा, और फिर तेरा ज़िक्र भी न किया जाएगा, क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है।"
\s5
\c 22
\p
\v 1 फिर ख़ुदा वन्द का कलाम मुझ पर नाजिल हुआ:
\v 2 ~कि "ऐ आदमज़ाद, क्या तू इल्ज़ाम न लगाएगा? क्या तू इस खू़नी शहर को मुल्ज़िम न ठहराएगा? तू इसके सब नफ़रती काम इसको दिखा,
\v 3 और कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि ऐ शहर, तू अपने अन्दर खूँरेज़ी करता है ताकि तेरा वक़्त आजाए और तू अपने वास्ते बुतों को अपने नापाक करने के लिए बनाता है।
\s5
\v 4 तू उस खू़न की वजह से जो तूने बहाया मुजरिम ठहरा, और तू बुतों के ज़रिए' जिनको तूने बनाया है नापाक हुआ; तू अपने वक़्त को नज़दीक लाता है और अपने दिनों के ख़ातिमे तक पहुँचा है इसलिए मैंने तुझे क़ौमों की मलामत का निशाना और मुल्कों का ठठ्ठा बनाया है।
\v 5 तुझ से दूर-ओ-नज़दीक के सब लोग तेरी हँसी उड़ायेंगे क्यूँकि तू झगड़ालू और बदनाम मशहूर है।
\s5
\v 6 "देख, इस्राईल के हाकिम सब के सब जो तुझ में हैं, मक़दूर भर खू़ँरेज़ी पर मुसत'इद थे।
\v 7 तेरे अन्दर उन्होंने माँ बाप को बेकार ~जाना है, तेरे अन्दर उन्होंने परदेसियों पर ज़ुल्म किया तेरे अन्दर उन्होंने यतीमों और बेवाओं पर सितम किया है।
\v 8 तूने मेरी पाक चीज़ों को नाचीज़ जाना, और मेरे सबतों को नापाक किया।
\v 9 तेरे अन्दर वह लोग हैं जो चुगलखोरी करके खू़न करवाते हैं, और तेरे अन्दर वह हैं जो बुतों की क़ुर्बानी से खाते हैं; तेरे अन्दर वह हैं जो बुराई करते हैं।
\s5
\v 10 ~तेरे अन्दर वह भी हैं जिन्होंने अपने बाप की लौंडी शिकनी की, तुझ में उन्होंने उस 'औरत से जो नापाकी की हालत में थी मुबाश्रत की।
\v 11 किसी ने दूसरे की बीवी से बदकारी की, और किसी ने अपनी बहू से बदज़ाती की, और किसी ने अपनी बहन अपने बाप की बेटी को तेरे अन्दर रुस्वा किया।
\v 12 तेरे अन्दर उन्होंने खूँरेज़ी के लिए रिश्वत ख़्वारी की तूने ब्याज और सूद लिया और ज़ुल्म करके अपने पड़ोसी को लूटा और मुझे फ़रामोश किया ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है|
\s5
\v 13 "देख, तेरे नारवा नफ़े' की वजह से जो तूने लिया, और तेरी खू़ँरेज़ी के ज़रिए' जो तेरे अन्दर हुई, मैंने ताली बजाई।
\v 14 क्या तेरा दिल बर्दाश्त करेगा और तेरे हाथों में ज़ोर होगा, जब मैं तेरा मु'आमिले का फ़ैसला करूँगा? मैं ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, और मैं ही कर दिखाऊँगा।
\v 15 ~हाँ, मैं तुझ को क़ौमों में तितर बितर और मुल्कों में तितर-बितर करूँगा, और तेरी गन्दगी तुझ में से हलाक कर दूँगा |
\v 16 ~और तू क़ौमों के सामने अपने आप में नापाक ठहरेगा, और मा'लूम करेगा कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
\s5
\v 17 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 18 कि ऐ आदमज़ाद, बनी इस्राईल मेरे लिए मैल हो गए हैं; वह सब के सब पीतल और रॉगा और लोहा और सीसा हैं जो भट्टी में हैं, वह चाँदी की मैल हैं।
\v 19 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि तुम सब मैल हो गए हो, इसलिए देखो, मैं तुम को यरुशलीम में जमा' करूँगा।
\s5
\v 20 ~जिस तरह लोग चाँदी और पीतल और लोहा और शीशा और राँगा भट्ठी में जमा' करते हैं और उनपर धौंकते हैं ताकि उनको ~पिघला डालें, उसी तरह मैं अपने क़हर और अपने ग़ज़ब में तुम को जमा' करूँगा, और तुम को वहाँ रखकर पिघलाऊँगा।
\v 21 हाँ, मैं तुम को इकट्ठा करूँगा और अपने ग़ज़ब की आग तुम पर धौंकूँगा, और तुम को उसमें पिघला डालूँगा।
\v 22 ~जिस तरह चाँदी भट्टी में पिघलाई जाती है, उसी तरह तुम उसमें पिघलाए जाओगे, और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द ने अपना क़हर तुम पर नाज़िल किया है।
\s5
\v 23 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 24 कि "ऐ आदमज़ाद, उससे कह, तू वह सरज़मीन है जो पाक नहीं की गई और जिस पर ग़ज़ब के दिन में बारिश नहीं हुई।
\v 25 जिसमें उसके नबियों ने साज़िश की है, शिकार को फाड़ते हुए गरजने वाले शेर-ए-बबर की तरह वह जानों को खा गए हैं; वह माल और क़ीमती चीज़ों को छीन लेते हैं; उन्होंने उसमें बहुत सी 'औरतों को बेवा बना दिया है।
\s5
\v 26 उसके काहिनों ने मेरी शरी'अत को तोड़ा और मेरी पाक चीज़ों को नापाक किया है। उन्होंने पाक और 'आम में कुछ फ़र्क़ नहीं रख्खा और मैं उनमें बे'इज़्ज़त हुआ |
\v 27 उसके हाकिम उसमें शिकार को फाड़ने वाले भेड़ियों की तरह हैं, जो नाजाएज़ नफ़ा' की ख़ातिर खूँरेज़ी करते हैं और जानों को हलाक करते हैं।
\v 28 और उसके नबी उनके लिए कच्च गारा करते हैं; बातिल ख़्वाब देखते और झूटी फ़ालगीर करते हैं और कहते हैं कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, "हालाँकि ख़ुदावन्द ने नहीं फ़रमाया।
\s5
\v 29 इस मुल्क के लोगों ने सितमगरी और लूट मार की है, और ग़रीब और मोहताज को सताया है और परदेसियों पर नाहक सख़्ती की है।
\s5
\v 30 मैंने उनके बीच तलाश की, कि कोई ऐसा आदमी मिले जो फ़सील बनाए, और उस सरज़मीन के लिए उसके रखने में मेरे सामने खड़ा हो ताकि मैं उसे वीरान न करूँ, लेकिन कोई न मिला।
\v 31 इसलिए मैंने अपना क़हर उन पर नाज़िल किया, और अपने ग़ज़ब की आग से उनको फ़ना कर दिया; और मैं उनके चाल चलन को उनके सिरों पर लाया, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।"
\s5
\c 23
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 2 कि "ऐ आदमज़ाद, दो 'औरतें एक ही माँ की बेटियाँ थीं।
\v 3 उन्होंने मिस्र में बदकारी की, वह अपनी जवानी में बदकार बनी वहाँ उनकी छातियाँ मली गईं और वहीं उनकी ~दोशीज़गी के पिस्तान मसले गए।
\v 4 उनमें से बड़ी का नाम ओहोला और उसकी बहन का नाम ओहोलीबा था वह दोनों मेरी हो गईं और उनसे बेटे बेटियाँ पैदा हुए और उनके यह नाम ओहोला और ओहोलीबा सामरिया व यरुशलीम हैं|
\s5
\v 5 और ओहोला जब कि वह मेरी थी, बदकारी करने लगी और अपने यारों पर या'नी असूरियों पर जो पड़ोसी थे, 'आशिक़ हुई।
\v 6 वह सरदार और हाकिम और सबके सब दिल पसन्द जवाँ मर्द और सवार थे, जो घोड़ों पर सवार होते और अर्गवानी पोशाक पहनते थे।
\v 7 और उसने उन सबके साथ जो असूर के बरगुज़ीदा मर्द थे बदकारी की, और उन सबके साथ जिनसे वह 'इश्कबाज़ी करती थी, और उनके सब बुतों के साथ नापाक हुई।
\s5
\v 8 उसने जो बदकारी मिस्र में की थी उसे न छोड़ा , क्यूँकि उसकी जवानी में वह उससे हम-अगोश हुए और उन्होंने उसकी दोशीज़्गी के पिस्तानों को मसला और अपनी बदकारी उस पर उण्डेल दी।
\v 9 इसलिए मैंने उसे उसके यारों या'नी असूरियों के हवाले कर दिया जिन पर वह मरती थी।
\v 10 उन्होंने उसको बरहना किया और उसके बेटों-बेटियों को छीन लिया और उसे तलवार से क़त्ल किया; इसलिए वह 'औरतों में अंगुश्त नुमा हुई क्यूँकि उन्होंने उसे 'अदालत से सज़ा दी।
\s5
\v 11 'और उसकी बहन अहोलीबा ने यह सब कुछ देखा, लेकिन वह शहवत परस्ती में उससे बदतर हुई और उसने अपनी बहन से बढ़ कर बदकारी की।
\v 12 वह असूरियों पर 'आशिक़ हुई जो सरदार और हाकिम और उसके पड़ोसी थे, जो भड़कीली पोशाक पहनते और घोड़ों पर सवार होते और सबके सब दिल पसन्द जवान मर्द थे।
\v 13 और मैंने देखा, कि वह भी नापाक हो गई; उन दोनों की एक ही चाल चलन थी।
\s5
\v 14 और उसने बदकारी में तरक़्क़ी की क्यूँकि जब उसने दीवार पर मर्दों की सूरतें देखीं, या'नी कसदियों की तस्वीरें जो शन्गर्फ़ से खिंची हुई थीं,
\v 15 जो पटकों से कमरबस्ता और सिरों पर रंगीन पगड़ियाँ पहने थे, और सब के सब देखने में हाकिम अहल-ए-बाबुल की तरह थे जिनका वतन कसदिस्तान है।
\s5
\v 16 तो देखते ही वह उन पर मरने लगी, और उनके पास कसदिस्तान में क़ासिद भेजे।
\v 17 तब अहल-ए-बाबुल उसके पास आकर 'इश्क़ के बिस्तर पर चढ़े, और उन्होंने उससे बदकारी करके उसे आलूदा किया और वह उनसे नापाक हुई, तो उसकी जान उनसे बेज़ार हो गई।
\s5
\v 18 तब उसकी बदकारी 'ऐलानिया हुई और उसकी बरहनगी बेसत्र हो गई; तब मेरी जान उससे बेज़ार हुई जैसी उसकी बहन से बेज़ार हो चुकी थी।
\v 19 तोभी उसने अपनी जवानी के दिनों की याद करके जब वह मिस्र की सरज़मीन में बदकारी करती थी, बदकारी पर बदकारी की।
\s5
\v 20 ~इसलिए वह फिर अपने उन यारों पर मरने लगी, जिनका बदन गधों के जैसा बदन और जिनका इन्ज़ाल घोड़ों के जैसा इन्ज़ाल था।
\v 21 इस तरह तूने अपनी जवानी की शहवत परस्ती को, जबकि मिस्री तेरी जवानी की छातियों की वजह से तेरे पिस्तान मलते थे, फिर याद किया।”
\s5
\v 22 इसलिए ऐ अहोलीबा, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि "देख, मैं उन यारों को जिनसे तेरी जान बेज़ार हो गई है उभारूंगा कि तुझ से मुख़ालिफ़त करें, और उनको बुला लाऊँगा कि तुझे चारों तरफ़ से घेर लें।
\v 23 अहल-ए-बाबुल और सब कसदियों को फ़िकू़द और शो'अ और को'अ और उनके साथ तमाम असूरियों को, सब के सब दिल पसन्द जवाँ मर्दों को, सरदारों और हाकिमों को, और बड़े बड़े अमीरों और नामी लोगों को जो सबके सब घोड़ों पर सवार होते हैं तुझ पर चढ़ा लाऊँगा।
\s5
\v 24 और वह असलह-ए-जंग और रथों और छकड़ों और उम्मतों के गिरोह के साथ तुझ पर हमला करेंगे, और ढाल और फरी पकड़ कर और खू़द पहनकर चारों तरफ़ से तुझे घेर लेंगे; मैं 'अदालत उनको ~सुपुर्द करूँगा, और वह अपने क़ानून के मुताबिक़ तेरा फ़ैसला करेंगे।
\v 25 और मैं अपनी गै़रत को तेरी मुख़ालिफ़ बनाऊँगा और वह ग़ज़बनाक होकर तुझ से पेश आयेंगे और तेरी नाक और तेरे कान काट डालेंगे और तेरे बाक़ी लोग तलवार से मारे जाएँगे। वह तेरे बेटे और बेटियों को पकड़ लेंगे. और तेरा बक़िया आग से भसम होगा।
\s5
\v 26 वह तेरे कपड़े भी उतार लेंगे और तेरे नफ़ीस ज़ेवर लूट ले जायेंगे
\v 27 और मैं तेरी शहवत परस्ती और तेरी बदकारी जो तूने मुल्क-ए-मिस्र में सीखी मौकू़फ़ करूँगा, यहाँ तक कि तू उनकी तरफ़ फिर आँख न उठाएगी और फिर मिस्र को याद न करेगी।
\s5
\v 28 'क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं तुझे उनके हाथ में जिनसे तुझे नफ़रत है, हाँ, उन्हीं के हाथ में जिनसे तेरी जान बेज़ार है दे दूँगा।
\v 29 और वह तुझ से नफ़रत के साथ पेश आएँगे, और तेरा सब माल जो तूने मेहनत से पैदा किया है छीन लेंगे और तुझे 'ऊरियान और बरहना छोड़ जायेंगे यहाँ तक कि तेरी शहवत परस्ती-ओ-ख़बासत और तेरी बदकारी फ़ाश हो जाएगी।
\s5
\v 30 यह सब कुछ तुझ से इसलिए होगा कि तूने बदकारी के लिए दीगर क़ौम का पीछा किया और उनके बुतों से नापाक हुई।
\v 31 तू अपनी बहन के रस्ते पर चली, इसलिए मैं उसका प्याला तेरे हाथ में दूँगा।
\s5
\v 32 ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि तू अपनी बहन के प्याले से जो गहरा और बड़ा है पियेगी तेरी हँसी होगी और तू ठठ्ठों में उड़ाई जाएगी, क्यूँकि उसमें बहुत सी समाई है।
\s5
\v 33 तू मस्ती और सोग से भर जाएगी; वीरानी और हैरत का प्याला, तेरी बहन सामरिया का प्याला है।
\v 34 ~तू उसे पियेगी और निचोड़ेगी और उसकी ठेकरियाँ भी चबाई जाएगी, और अपनी छातियाँ नोचेगी क्यूँकि मैं ही ने यह फ़रमाया है, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\s5
\v 35 फिर ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि चूँकि तू मुझे भूल गई और मुझे अपनी पीठ के पीछे फेंक दिया इसलिए अपनी बदज़ाती और बदकारी की सज़ा उठा।”
\s5
\v 36 फिर ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया: कि "ऐ आदमज़ाद, क्या तू अहोला और अहोलीबा पर इल्ज़ाम न लगाएगा? तू उनके घिनौने काम उन पर ज़ाहिर कर।
\v 37 क्यूँकि उन्होंने बदकारी की और उनके हाथ ख़ूनआलूदा हैं हाँ उन्होंने अपने बुतों से बदकारी की और अपने बेटों को जो मुझ से पैदा हुए आग से गुज़ारा कि बुतों की नज़र होकर हलाक हों।
\s5
\v 38 इसके 'अलावा उन्होंने मुझ से यह किया कि उसी दिन उन्होंने मेरे हैकल को नापाक किया, और मेरे सबतों की बेहुर्मती की।
\v 39 क्यूँकि जब वह अपनी औलाद को बुतों के लिए ज़बह कर चुकीं, तो उसी दिन मेरे हैकल में दाख़िल हुई, ताकि उसे नापाक करें और देख, उन्होंने मेरे घर के अन्दर ऐसा काम किया।
\s5
\v 40 ~बल्कि तुम ने दूर से मर्द बुलाए जिनके पास क़ासिद भेजा, और देख, वह आए जिनके लिए तूने गु़स्ल किया और आँखों में काजल लगाया और बनाओ सिंगार किया;
\v 41 और तू नफ़ीस पलंग पर बैठी और उसके पास दस्तरख़्वान तैयार किया, और उस पर तूने मेरी ख़ुशबू और मेरा 'इत्र रख्खा।
\s5
\v 42 और एक 'अय्याशी जमा'अत की आवाज़ उसके साथ थी और आम लोगों के 'अलावा वीरान से शराबियों को लाए और उन्होंने उनके हाथों में कंगन और सिरों पर ख़ुशनुमा ताज पहनाए।
\s5
\v 43 "तब मैंने उसके ज़रिए' जो बदकारी करते करते बुढ़िया हो गई थीं, कहा, अब यह लोग उससे बदकारी करेंगे और वह उनसे करेगी।
\v 44 और वह उसके पास गए जिस तरह किसी कस्बी के पास जाते हैं, उसी तरह वह उन बदज़ात 'औरतों, अहोला और अहोलीबा के पास गए।
\v 45 लेकिन सादिक़ आदमी उन पर वह फ़तवा देंगे जो बदकार और खू़नी 'औरतों पर दिया जाता है, क्यूँकि वह बदकार 'औरतें हैं और उनके हाथ खू़न आलूदा हैं।"
\s5
\v 46 क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि "मैं उन पर एक गिरोह चढ़ा लाऊँगा, और उनको छोड़ दूँगा कि ~इधर-उधर धक्के खाती फिरें और ग़ारत हों।
\v 47 और वह गिरोह से उनको पथराव करेगी और अपनी तलवारों से क़त्ल करेगी, उनके बेटों-बेटियों को हलाक करेगी और उनके घरों को आग से जला देगी।
\s5
\v 48 ~यूँ मैं बदकारी को मुल्क से ख़त्म करूँगा ताकि सब 'औरतें 'इबरत पज़ीर हों और तुम्हारी तरह बदकारी न करें।
\v 49 ~और वह तुम्हारे बुराई का बदला तुम को देंगे, और तुम अपने बुतों के गुनाहों की सज़ा का बोझ उठाओगे, ताकि तुम जानों कि ख़ुदावन्द ख़ुदा मैं ही हूँ।"
\s5
\c 24
\p
\v 1 फिर नवें बरस के दसवें महीने की दसवीं तारीख़ को ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ
\v 2 कि "ऐ आदमज़ाद, आज के दिन, हाँ, इसी दिन का नाम लिख रख; शाह-ए-बाबुल ने ऐन इसी दिन यरुशलीम पर ख़रूज किया।
\s5
\v 3 और इस बाग़ी ख़ान्दान के लिए एक मिसाल बयान कर और इनसे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि एक देग चढ़ा दे, हाँ, उसे चढ़ा और उसमें पानी भर दे।
\v 4 टुकड़े उसमें इकट्ठे कर, हर एक अच्छा टुकड़ा या'नी रान और शाना और अच्छी अच्छी हड्डियाँ उसमें भर दे|
\v 5 और गल्ले में से चुन-चुन कर ले, और उसके नीचे लकड़ियों का ढेर लगा दे, और ख़ूब जोश दे ताकि उसकी हड्डियाँ उसमें ख़ूब उबल जाएँ।
\s5
\v 6 ~"इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि उस खू़नी शहर पर अफ़सोस और उस देग पर जिसमें ज़न्ग लगा है, और उसका ज़न्ग उस पर से उतारा नहीं गया! एक एक टुकड़ा करके उसमें से निकाल, और उस पर पर्ची पड़े।
\s5
\v 7 क्यूँकि उसका खू़न उसके बीच है, उसने उसे साफ़ चट्टान पर रख्खा, ज़मीन पर नहीं गिराया ताकि खाक में छिप जाए।
\v 8 इसलिए कि ग़ज़ब नाज़िल हो और इन्तक़ाम लिया जाए, मैंने उसका खू़न साफ़ चट्टान पर रख्खा ताकि वह छिप न जाए।
\s5
\v 9 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि खू़नी शहर पर अफ़सोस ! मैं भी बड़ा ढेर लगाऊँगा।
\v 10 लकड़ियाँ ख़ूब झोंक, आग सुलगा, गोश्त को ख़ूब उबाल और शोरबा गाढ़ा कर और हड्डियाँ भी जला दे |
\s5
\v 11 तब उसे ख़ाली करके अँगारों पर रख, ताकि उसका पीतल गर्म हो और जल जाए और उसमें की नापाकी गल जाए और उसका ज़न्ग दूर हो।
\v 12 वह सख़्त मेहनत से हार गई, लेकिन उसका बड़ा ज़न्ग उससे दूर नहीं हुआ; आग से भी उसका ज़न्ग दूर नहीं होता।
\s5
\v 13 तेरी नापाकी में ख़बासत है, क्यूँकि मैं तुझे पाक करना चाहता हूँ लेकिन तू पाक होना नहीं चाहती, तू अपनी नापाकी से फिर पाक न होगी, जब तक मैं अपना क़हर तुझ पर पूरा न कर चुकूँ।
\s5
\v 14 ~मैं ख़ुदावन्द ने यह फ़रमाया है, यूँ ही होगा और मैं कर दिखाऊँगा, न दस्तबरदार हूँगा न रहम करूँगा न बाज़ आऊँगा; तेरे चाल चलन और तेरे कामों के मुताबिक़ वह तेरी 'अदालत करेंगे ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है|
\s5
\v 15 फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 16 कि "ऐ आदमज़ाद, देख, मैं तेरी मन्जूर-ए-नज़र को एक ही मार में तुझ से जुदा करूँगा, लेकिन तू न मातम करना, न रोना और न आँसू बहाना।
\v 17 ~चुपके चुपके ऑहें भरना, मुर्दे पर नोहा न करना, सिर पर अपनी पगड़ी बाँधना और पाँव में जूती पहनना और अपने होटों को न छिपाना और लोगों की रोटी न खाना।”
\s5
\v 18 इसलिए मैंने सुबह को लोगों से कलाम किया और शाम को मेरी बीवी मर गई, और सुबह को मैंने वही किया जिसका मुझे हुक्म मिला था।
\s5
\v 19 तब लोगों ने मुझ से पूछा, "क्या तू हमें न बताएगा कि जो तू करता है उसको हम से क्या रिश्ता है?"
\v 20 तब मैंने उनसे कहा, कि "ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 21 ~कि 'इस्राईल के घराने से कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है,कि देखो, मैं अपने हैकल को जो तुम्हारे ज़ोर का फ़ख़्र और तुम्हारा मंज़ूर-ए-नज़र है जिसके लिए तुम्हारे दिल तरसते हैं नापाक करूँगा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारी बेटियाँ, जिनको तुम पीछे छोड़ आए हो, तलवार से मारे जाएँगे।
\s5
\v 22 और तुम ऐसा ही करोगे जैसा मैंने किया; तुम अपने होटों को न छिपाओगे, और लोगों की रोटियाँ न खाओगे।
\v 23 और तुम्हारी पगड़ियाँ तुम्हारे सिरों पर और तुम्हारी जूतियाँ तुम्हारे पाँव में होंगी, और तुम नोहा और ज़ारी न करोगे लेकिन अपनी शरारत की वजह से घुलोगे, और एक दूसरे को देख देख कर ठन्डी साँस भरोगे।
\v 24 चुनाँचे हिज़क़ीएल तुम्हारे लिए निशान है; सब कुछ जो उसने किया तुम भी करोगे, और जब यह वजूद में आएगा तो तुम जानोगे कि ख़ुदावन्द ख़ुदा मैं हूँ।'
\s5
\v 25 ~"और तू ऐ आदमज़ाद, देख, कि जिस दिन मैं उनसे उनका ज़ोर और उनकी शान-ओ-शौकत और उनके मन्जूर-ए-नज़र को, और उनके मरगू़ब-ए-ख़ातिर उनके बेटे और उनकी बेटियाँ ले लूँगा,
\v 26 उस दिन वह जो भाग निकले, तेरे पास आएगा कि तेरे कान में कहे।
\v 27 उस दिन तेरा मुँह उसके सामने, जो बच निकला है खुल जाएगा और तू बोलेगा, और फिर गूँगा न रहेगा; इसलिए तू उनके लिए एक निशान होगा और वह जानेंगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।"
\s5
\c 25
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द ख़ुदा का कलाम मुझपर नाज़िल हुआ|
\v 2 कि "ऐ आदमज़ाद~बनी 'अम्मून की तरफ़ मुतवज्जिह हो और उनके ख़िलाफ़ नबुव्वत कर।
\s5
\v 3 और बनी 'अम्मून से कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा का कलाम सुनो, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: चूँकि तूने मेरे हैकल पर जब वह नापाक किया गया, और इस्राईल के मुल्क पर जब वह उजाड़ा गया, और बनी यहूदाह पर जब वह ग़ुलाम हो कर गए, अहा हा ! कहा।
\v 4 इसलिए मैं तुझे अहल-ए-पूरब के हवाले कर दूँगा कि तू उनकी मिल्कियत हो, और वह तुझ में अपने ख़ेमे लगाएँगे और तेरे अन्दर अपने मकान बनाएँगे, और तेरे मेवे खाएँगे और तेरा दूध पिएँगे।
\v 5 और मैं रब्बा को ऊँटों का अस्तबल और बनी 'अम्मून की सर-ज़मीन को भेड़साला बना दूँगा, और तू जानेगा कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 6 क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि चूँकि तूने तालियाँ बजाई और पाँव पटके, और इस्राईल की मम्लकत की बर्बादी पर अपनी कमाल 'अदावत से बड़ी ख़ुशी की;
\v 7 इसलिए देख, मैं अपना हाथ तुझ पर चलाऊँगा और तुझे दीगर क़ौम के हवाले करूँगा, ताकि वह तुझ को लूट लें और मैं तुझे उम्मतों में से काट डालूँगा, और मुल्कों में से तुझे बर्बाद-ओ-हलाक करूँगा; मैं तुझे हलाक करूँगा और तू जानेगा कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।
\s5
\v 8 "ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि मोआब और श'ईर कहते हैं कि बनी यहूदाह तमाम क़ौमों की तरह हैं,
\v 9 इसलिए देख, मैं मोआब के पहलू को उसके शहरों से, उसकी सरहद के शहरों से जो ज़मीन की शौकत हैं, बैत-यसीमोत और बालम'ऊन और क़रयताइम से खोल दूँगा।
\v 10 ~और मैं अहल-ए-पूरब को उसके और बनी 'अम्मून के ख़िलाफ़ चढ़ा लाऊँगा कि उन पर क़ाबिज़ हों, ताकि क़ौमों के बीच बनी 'अम्मून का ज़िक्र बाक़ी न रहे।
\v 11 और मैं मोआब को सज़ा दूँगा, और वह जानेंगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।
\s5
\v 12 ~'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि अदोम ने बनी यहूदाह से कीना कशी की, और उनसे इन्तक़ाम लेकर बड़ा गुनाह किया।
\v 13 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि मैं अदोम पर हाथ चलाऊँगा; उसके इन्सान और हैवान को हलाक करूँगा, और तीमान से लेकर उसे वीरान करूँगा और वह ददान तक तलवार से क़त्ल होंगे।
\s5
\v 14 ~और मैं अपनी क़ौम बनी-इस्राईल के हाथ से अदोम से इन्तक़ाम लूँगा, और वह मेरे ग़ज़ब-ओ-क़हर के मुताबिक़ अदोम से सुलूक करेंगे, और वह मेरे इन्तक़ाम को मा'लूम करेंगे, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\s5
\v 15 'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि फ़िलिस्तियों ने कीनाकशी की, और दिल की कीना वरी से इन्तक़ाम लिया, ताकि दाइमी 'अदावत से उसे हलाक करें।
\v 16 ~इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि देख, मैं फ़िलिस्तियों पर हाथ चलाऊँगा और करेतियों को काट डाल्लूँगा, और समन्दर के साहिल के बाक़ी लोगों को हलाक करूँगा|
\v 17 और मैं सख़्त सज़ा देकर उनसे बड़ा इन्तक़ाम लूँगा, और जब मैं उनसे इन्तक़ाम लूँगा तो वह जानेंगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।"
\s5
\c 26
\p
\v 1 ~और ग्यारवें बरस में महीने के पहले दिन ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 2 कि "ऐ आदमज़ाद, चूँकि सूर ने यरुशलीम पर कहा है, 'अहा हा! वह क़ौमों का फाटक तोड़ दिया गया है, अब वह मेरी तरफ़ मुतवज्जिह होगी, अब उसकी बर्बादी से मेरी मा'मूरी होगी।'
\s5
\v 3 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है,कि देख, ऐ सूर मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ और बहुत सी क़ौमों को तुझ पर चढ़ा लाऊँगा, जिस तरह समन्दर अपनी मौजों को चढ़ाता है।
\v 4 और वह सूर की शहर पनाह को तोड़ डालेंगे, और उसके बुरजों को ढादेंगे और मैं उसकी मिट्टी तक ख़ुर्च फेंकूँगा और उसे साफ़ चट्टान बना दूँगा।
\s5
\v 5 वह समन्दर में जाल फैलाने की जगह होगा क्यूँकि मैं ही ने फ़रमाया, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, और वह क़ौमों के लिए ग़नीमत होगा।
\v 6 और उसकी बेटियाँ जो मैदान में हैं, तलवार से क़त्ल होंगी और वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 7 "क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र को जो शहनशाह है, घोड़ों और रथों और सवारों और फ़ौजों और बहुत से लोगों के गिरोह के साथ उत्तर से सूर पर चढ़ा लाऊँगा;
\v 8 वह तेरी बेटियों को मैदान में तलवार से क़त्ल करेगा और तेरे चारों तरफ़ मोर्चाबन्दी करेगा, और तेरे सामने दमदमा बाँधेगा और तेरी मुख़ालिफ़त में ढाल उठाएगा।
\s5
\v 9 वह अपने मन्जनीक को तेरी शहर पनाह पर चलाएगा, और अपने तबरों से तेरे बुर्जों को ढा देगा।
\v 10 उसके घोड़ों की कसरत की वजह से इतनी गर्द उड़ेगी कि तुझे छिपा लेगी जब वह तेरे फाटकों में घुस आएगा, जिस तरह रखना करके शहर में घुस जाते हैं, तो सवारों और गाड़ियों और रथों की गड़गड़ाहट की आवाज़ से तेरी शहरपनाह हिल जाएगी।
\v 11 ~वह अपने घोड़ों के सुमों से तेरी सब सड़कों को रौन्द डालेगा, और तेरे लोगों की तलवार से क़त्ल करेगा और तेरी ताक़त के सुतून ज़मीन पर गिर जाएँगे।
\s5
\v 12 और वह तेरी दौलत लूट लेंगे, और तेरे माल-ए-तिजारत को ग़ारत करेंगे और तेरे शहर पनाह तोड़ डालेंगे तेरे रंगमहलों को ढा देंगे, और तेरे पत्थर और लकड़ी और तेरी मिट्टी समन्दर में डाल देंगे।
\v 13 और तेरे गाने की आवाज़ बंद कर दूँगा और तेरी सितारों की आवाज़ फिर सुनी न जायेगी |
\v 14 ~और मैं तुझे साफ़ चट्टान बना दूँगा तू जाल फैलाने की जगह होगा और फिर ता'मीर न किया जाएगा क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द ने यह फ़रमाया है, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\s5
\v 15 "ख़ुदावन्द ख़ुदा सूर से यूँ फ़रमाता है: कि जब तुझ में क़त्ल का काम जारी होगा और ज़ख्मी कराहते होंगे, तो क्या बहरी मुल्क तेरे गिरने के शोर से न थरथराएँगे?
\v 16 ~तब समन्दर के हाकिम अपने तख़्तों पर से उतरेंगे और अपने जुब्बे उतार डालेंगे और अपने ज़रदोज़ पैराहन उतार फेकेंगे, वह थरथराहट से मुलब्बस होकर ख़ाक पर बैठेगे, वह हरदम काँपेंगे और तेरी वजह से हैरत ज़दा होंगे।
\s5
\v 17 और वह तुझ पर नोहा करेंगे और कहेंगे, 'हाय, तू कैसा हलाक हुआ जो बहरी मुल्कों से आबाद और मशहूर शहर था, जो समन्दर में ताक़तवर था; जिसके बाशिन्दों से सब उसमें आमद-ओ-रफ़त करने वाले ख़ौफ़ खाते थे !
\v 18 अब बहरी मुल्क तेरे गिरने के दिन थरथरायेंगे हाँ, समन्दर के सब बहरी मुल्क तेरे अन्जाम से परेशान होंगे।'
\s5
\v 19 ~"क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि जब मैं तुझे उन शहरों की तरह जो बे चराग़ हैं, वीरान कर दूँगा; जब मैं तुझ पर समन्दर बहा दूँगा और जब समन्दर तुझे छिपा लेगा,
\v 20 तब मैं तुझे उनके साथ जो पाताल में उतर जाते हैं, पुराने वक़्त के लोगों के बीच नीचे उतारूँगा, और ज़मीन के तह में और उन उजाड़ मकानों में जो पहले से हैं, उनके साथ जो पाताल में उतर जाते हैं; तुझे बसाऊँगा ताकि तू फिर आबाद न हो, लेकिन मैं ज़िन्दों के मुल्क को जलाल बख़्सूँगा।
\v 21 मैं तुझे जा-ए-'इबरत करूँगा और तू हलाक होगा, हर चन्द तेरी तलाश की जाए तो तू कहीं हमेशा तक न मिलेगा, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।”
\s5
\c 27
\p
\v 1 फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझपर नाज़िल हुआ|
\v 2 कि "ऐ आदमज़ाद, तू सूर पर नोहा शुरू' कर|
\v 3 और सूर से कह तुझे, जिसने समन्दर के मदख़ल में जगह पाई और बहुत से बहरी मुल्क ~के लोगों के लिए तिजारत गाह है, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि "ऐ सूर, तू कहता है, "मेरा हुस्न ~कामिल है।' किया।
\s5
\v 4 तेरी सरहदें समन्दर के बीच हैं, तेरे मिस्तिरियों ने तेरी ख़ुशनुमाई को कामिल किया है|
\v 5 ~उन्होंने सनीर के सरोओं से लाकर तेरे~जहाज़ों के तख़्ते बनाए,और लुबनान से देवदार काटकर तेरे लिए मस्तूल बनाए |
\s5
\v 6 ~बसन के बलूत से टाट बनाए तेरे तख़्ते~जज़ाइर-ए-कित्तीम के सनूबर से हाथी दांत जड़कर तैयार किये गए|
\v 7 तेरा ~बादबान मिस्री मुनक़्क़श कतान का था ताकि तेरे लिए झन्डे का काम दे, तेरा शामियाना जज़ाईरे इलीशा के कबूदी व अर्गवानी रंग का था |
\s5
\v 8 ~सैदा और अर्वद के रहने वाले तेरे मल्लाह थे~और ऐ सूर तेरे 'अक़्लमन्द तुझ में तेरे नाख़ुदा थे।
\v 9 ~जबल के बुजु़र्ग और 'अक़्लमन्द तुझ में थे कि~रखना बन्दी करें,समन्दर के सब जहाज़ और उनके मल्लाह तुझमें हाज़िर थे कि तेरे लिए तिजारत का काम करें|
\s5
\v 10 ~"फ़ारस और लूद और फूत के लोग तेरे लिए लश्कर के जंगी बहादुर थे। वह तुझ में सिपर और खूद को लटकाते और तुझे रौनक बख़्शाते थे।
\v 11 अर्वद के मर्द तेरी ही फ़ौज के साथ चारों तरफ़ तेरी शहरपनाह पर मौजूद थे और बहादुर तेरे बुर्जों पर हाज़िर थे,उन्होंने अपनी सिप्परें चारों तरफ़ तेरी दीवारों पर लटकाई और तेरे जमाल को कामिल किया |
\s5
\v 12 'तरसीस ने हर तरह के माल की कसरत की वजह से तेरे साथ तिजारत की, ~वह चाँदी और लोहा और रॉगा और सीसा लाकर तेरे~बाज़ारों में सौदागरी करते थे।
\v 13 ~यावान तूबल और मसक तेरे ताजिर थे, वह तेरे बाज़ारों में और लुबनान ~तेरे बाज़ारों में गु़लामों और पीतल के बर्तनों की सौदागरी करते थे।
\s5
\v 14 अहल-ए-तजर्मा ने तेरे बाज़ारों में घोड़ों, जंगी घोड़ों और खच्चरों की तिजारत की।
\v 15 अहल~ए-ददान तेरे ताजिर थे बहुत से बहरी मुल्क तिजारत के लिए~~तेरे इख़्तियार में वह~हाथी दान्त~और आबनूस मुबादला के लिए तेरे पास लाते थे
\s5
\v 16 अरामी तेरी दस्तकारी की ~कसरत की वजह से तेरे साथ तिजारत करते थे वह गौहर-ए-शब-चराग़ और अर्गवानी रंग और चिकनदोज़ी और कतान और मूंगा और मल्लाह थे लाल लाकर तुझ से ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त करते थे|
\v 17 यहूदाह और इस्राईल का मुल्क तेरे ताजिर थे, वह मिनीत और पन्नग का गेहूँ और शहद और रोगन और बिलसान लाकर तेरे साथ तिजारत करते थे|
\v 18 ~अहल-ए-दमिश्क़ तेरी दस्तकारी की कसरत की वजह से, और क़िस्म क़िस्म के माल की ज़्यादती के ज़रिए' हलबून की मय और सफ़ेद ऊन की तिजारत तेरे यहाँ करते थे|
\s5
\v 19 ~ददान और यावान ऊज़ाल से तज और आबदार फ़ौलाद और अगर तेरे बाज़ारों में लाते थे।
\v 20 ददान तेरा ताजिर था, जो सवारी के चार-जामे तेरे हाथ बेचता था।
\v 21 ~'अरब और कीदार के सब अमीर तिजारत की राह से तेरे हाथ में थे, वह बर्रे ~और मेंढे और बकरियाँ लाकर तेरे साथ तिजारत करते थे।
\s5
\v 22 सबा और रा'माह के सौदागर तेरे साथ सौदागरी करते थे; वह हर क़िस्म के नफ़ीस मसाल्हे और हर तरह के क़ीमती पत्थर और सोना, तेरे बाज़ारों में लाकर ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त करते थे।
\v 23 हरान और कन्ना और 'अदन और सबा के सौदागर, और असूर और किलमद के बाशिन्दे तेरे साथ सौदागरी करते थे।
\s5
\v 24 यही तेरे सौदागर थे, जो लाजूर्दी कपड़े और कम ख़्वाब और नफ़ीस लिबासों से भरे देवदार के सन्दूक़, डोरी से कसे हुए तेरी तिजारतगाह में बेचने को लाते थे।
\v 25 तरसीस के जहाज़ तेरी तिजारत के कारवान थे, तू मा'मूर और वस्त-ए-बहर में बहुत शान-ओ-शौकत रखता था।
\s5
\v 26 ~"तेरे मल्लाह तुझे गहरे पानी में लाए,पूरबी हवा ने तुझ को वस्त-ए-बहर में तोड़ा है।
\v 27 तेरा माल-ओ-अस्बाब और तेरी अजनास-ए-तिजारत और तेरे अहल-ए-जहाज़ व ना ख़ुदा तेरे रखना बन्दी करनेवाले और तेरे कारोबार के गुमाश्ते और सब जंगी मर्द जो तुझ में हैं, उस तमाम जमा'अत के साथ जो तुझ में है,तेरी तबाही के दिन समन्दर के बीच में गिरेंगे।
\s5
\v 28 तेरे नाख़ुदाओं के चिल्लाने के शोर से तमाम 'इलाक़े थर्रा जायेंगे।
\v 29 और तमाम मल्लाह और अहल-ए-जहाज़ और समन्दर के सब नाख़ुदा,अपने जहाज़ों पर से उतर आएँगे; वह ख़ुश्की पर खड़े होंगे।
\v 30 और अपनी आवाज़ बुलन्द करके तेरी वजह से चिल्लाएँगे,और अपने सिरों पर ख़ाक डालेंगे और राख में लोटेंगे।
\s5
\v 31 ~वह तेरी वजह से सिर मुंडाएँगे और टाट ओढेंगे वह तेरे लिए दिल शिकस्ता होकर रोएँगे और जॉगुदाज़ नोहा करेंगे।
\v 32 और नोहा करते हुए तुझ पर मरसिया ख़वानी करेंगे और तुझ पर यूँ रोएँगे; 'कौन सूर की तरह है,जो समन्दर के बीच में तबाह हुआ?
\v 33 जब तेरा माल-ए-तिजारत समन्दर पर से जाता था,तब तुझ से बहुत सी क़ौमें मालामाल होती थीं; तू अपनी दौलत और अजनास-ए-तिजारत की कसरत से इस ज़मीन के बादशाहों को दौलतमन्द बनाता था।
\s5
\v 34 लेकिन अब तू समन्दर की गहराई में पानी के ज़ोर से टूट गया है, तेरी अजनास-ए-तिजारत।और तेरे अन्दर की तमाम जमा'अत गिर गई।
\v 35 बहरी मुल्क के सब रहने वाले तेरे ज़रिए' हैरत ~ज़दह होंगे~और उनके बादशाह बहुत तरसान होंगे और उनका चेहरा ज़र्द हो जाएगा।
\v 36 क़ौमों के सौदागर तेरा ज़िक्र सुनकर सुसकारेंगे, तू जा-ए-'इबरत होगा और बाक़ी न रहेगा।"
\s5
\c 28
\p
\v 1 फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ|
\v 2 ~कि "ऐआदमज़ाद, वाली-ए-सूर से कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, इसलिए कि तेरे दिल में ग़ुरूर समाया और तूने कहा, 'मैं ख़ुदा हूँ, और समन्दर के किनारे में इलाही तख़्त पर बैठा हूँ," और तूने अपना दिल इलाह के जैसा बनाया है, अगरचे तू इलाह नहीं बल्कि इन्सान है।
\v 3 देख, तू दानीएल से ज़्यादा 'अक़्लमन्द है, ऐसा कोई राज़ नहीं जो तुझ से छिपा हो।
\s5
\v 4 तूने अपनी हिकमत और ख़िरद से माल हासिल किया, और सोने चाँदी से अपने ख़ज़ाने भर लिए।
\v 5 तूने अपनी बड़ी हिकमत से और अपनी सौदागरी से अपनी दौलत बहुत बढ़ाई, और तेरा दिल तेरी दौलत के ज़रिए' फूल गया है।
\s5
\v 6 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: चूँकि तूने अपना दिल इलाह के जैसा बनाया।
\v 7 इसलिए देख, मैं तुझ पर परदेसियों को जो क़ौमों में हैबतनाक हैं, चढ़ा लाऊँगा; वह तेरी समझदारी की ख़ूबी के ख़िलाफ़ तलवार खींचेंगे और तेरे जमाल को ख़राब करेंगे।
\s5
\v 8 ~वह तुझे पाताल में उतारेंगे और तू उनकी मौत मरेगा जो समन्दर के बीच में क़त्ल होते हैं।
\v 9 क्या तू अपने क़ातिल के सामने यूँ कहेगा, कि 'मैं इलाह हूँ'? हालाँकि तू अपने क़ातिल के हाथ में इलाह नहीं, बल्कि इन्सान है।
\v 10 तू अजनबी के हाथ से नामख़्तून की मौत मरेगा, क्यूँकि मैंने फ़रमाया है ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है |
\s5
\v 11 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ
\v 12 कि "ऐआदमज़ाद, सूर के बादशाह पर यह नोहा कर और उससे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि तू ख़ातिम-उल-कमाल 'अक़्ल से मा'मूर और हुस्न में कामिल है।
\v 13 ~तू 'अदन में बाग़-ए-ख़ुदा में रहा करता था, हर एक क़ीमती पत्थर तेरी पोशिश के लिए था; मसलन याकू़त-ए-सुर्ख़ और पुखराज और इल्मास और फ़िरोज़ा और संग-ए-सुलेमानी और ज़बरजद और नीलम और जुमर्रद और गौहर-ए-शबचराग़ और सोने से, तुझ में ख़ातिमसाज़ी और नगीनाबन्दी की सन'अत तेरी पैदाइश ही के रोज़ से जारी रही।
\s5
\v 14 तू मम्सूह करूबी था जो साया।अफ़गन था, और मैंने तुझे ख़ुदा के कोह-ए-मुक़द्दस पर क़ायम किया; तू वहाँ आतिशी पत्थरों के बीच चलता फिरता था।
\v 15 तू अपनी पैदाइश ही के रोज़ से अपनी राह-ओ-रस्म में कामिल था, जब तक कि तुझ में नारास्ती न पाई गई।
\s5
\v 16 तेरी सौदागरी की फ़िरावानी की वजह से उन्होंने तुझ में ज़ुल्म भी भर दिया और तूने गुनाह किया; इसलिए मैंने तुझ को ख़ुदा के पहाड़ पर से गन्दगी की तरह फेंक दिया, और तुझ साया-अफ़गन करूबी को आतिशी पत्थरों के बीच से फ़ना कर दिया।
\v 17 तेरा दिल तेरे हुस्न पर ग़ुरूर करता था, तूने अपने जमाल की वजह से अपनी हिकमत खो दी; मैंने तुझे ज़मीन पर पटख दिया और बादशाहों के सामने रख दिया है, ताकि वह तुझे देख लें।
\s5
\v 18 तूने अपनी बदकिरदारी की कसरत, और अपनी सौदागरी की नारास्ती से अपने हैकलों को नापाक किया है। इसलिए मैं तेरे अन्दर से आग निकालूँगा जो तुझे भसम करेगी, और मैं तेरे सब देखने वालों की आँखों के सामने तुझे ज़मीन पर राख कर दूँगा।
\v 19 क़ौमों के बीच वह सब जो तुझ को जानते हैं, तुझे देख कर हैरान होंगे; तू जा-ए-'इबरत होगा और बाक़ी न रहेगा।"
\s5
\v 20 ~फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 21 कि "ऐआदमज़ाद, सैदा का रुख़ करके उसके ख़िलाफ़ नबुव्वत कर |
\v 22 और कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ, ऐ सैदा; और तेरे अन्दर मेरी तम्जीद होगी, और जब मैं उसको सज़ा दूँगा तो लोग मा'लूम कर लेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ, और उसमें मेरी तक़्दीस होगी।
\s5
\v 23 मैं उसमें वबा भेजूँगा, और उसकी गलियों में खू़ँरेज़ी करूँगा, और मक़्तूल उसके बीच उस तलवार से जो चारों तरफ़ से उस पर चलेगी गिरेंगे, और वह मा'लूम करेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\v 24 "तब बनी-इस्राईल के लिए उनके चारों तरफ़ के सब लोगों में से, जो उनको बेकार जानते थे, कोई चुभने वाला काँटा या दुखाने वाला ख़ार न रहेगा, और वह जानेंगे कि ख़ुदावन्द ख़ुदा मैं हूँ।
\s5
\v 25 "ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: जब मैं बनी-इस्राईल को क़ौमों में से, जिनमें वह तितर बितर हो गए जमा' करूँगा, तब मैं क़ौमों की आँखों के सामने उनसे अपनी तक़दीस कराऊँगा; और वह अपनी सरज़मीन में जो मैंने अपने बन्दे या'क़ूब को दी थी बसेंगे।
\v 26 ~और वह उसमें अम्न से सकूनत करेंगे, बल्कि मकान बनाएँगे और अंगूरिस्तान लगाएँगे और अम्न से सकूनत करेंगे; जब मैं उन सब को जो चारों तरफ़ से उनकी हिक़ारत करते थे, सज़ा दूँगा तो वह जानेंगे के मैं ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हूँ।
\s5
\c 29
\p
\v 1 ~दसवें बरस के दसवें महीने की बारहवीं तारीख़ को ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 2 कि "ऐ आदमज़ाद, तू शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन के ख़िलाफ़ हो, और उसके और तमाम मुल्क-ए-मिस्र के ख़िलाफ़ नबुव्वत कर
\v 3 कलाम कर और कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि "देख, ऐ शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ; उस बड़े घड़ियाल का जो अपने दरियाओं में लेट रहता है और कहता है कि 'मेरा दरिया मेरा ही है,और मैंने उसे अपने लिए बनाया है।'
\s5
\v 4 लेकिन मैं तेरे जबड़ों में काँटे ~अटकाऊँगा,और तेरी~~दरियाओं की मछलियाँ तेरी~खाल पर चिमटाऊँगा,और तुझे~तेरी~तेरे दरियाओं~से बाहर से बाहर खींच निकालूँगा और ~तेरे दरियाओं की सब ~मछलियाँ तेरी खाल पर चिमटी होंगी।
\v 5 ~और मैं तुझ को और तेरे दरियाओं की मछलियों को वीराने में फेंक दूँगा, तू खुले मैदान में पड़ा रहेगा,तू न बटोरा जाएगा न जमा' किया जाएगा; मैंने तुझे मैदान के दरिन्दों और आसमान के परिन्दों की ख़ुराक कर दिया है।
\s5
\v 6 और मिस्र के तमाम बाशिन्दे जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।'इसलिए कि वह बनी-इस्राईल के लिए सिर्फ़ सरकंडे का 'असा थे |
\v 7 जब उन्होंने तुझे हाथ में लिया, तो तू टूट गया और उन सबके कन्धे ज़ख्मी कर डाले; फिर जब उन्होंने तुझ पर भरोसा किया, तो तू टुकड़े-टुकड़े हो गया और उन सब की कमरें हिल गई।
\s5
\v 8 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं एक तलवार तुझ पर लाऊँगा और तुझ में इन्सान और हैवान को काट डालूँगा।
\v 9 और मुल्क-ए-मिस्र उजाड़ और वीरान हो जाएगा, और वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"क्यूँकि उसने कहा है, कि 'दरिया मेरा ही है, और मैंने ही उसे बनाया है।'
\v 10 ~इसलिए देख, मैं तेरा और तेरे दरियाओं का मुख़ालिफ़ हूँ, और मुल्क-ए-मिस्र को मिजदाल से असवान बल्कि कूश की सरहद तक महज़ वीरान और उजाड़ कर दूँगा।
\s5
\v 11 किसी इन्सान का पाँव उधर न पड़ेगा और न उसमें किसी हैवान के पाँव का गुज़र होगा क्यूँकि वह चालीस बरस तक आबाद न होगा |
\v 12 और मैं वीरान मुल्कों के साथ मुल्क-ए-मिस्र को वीरान करूँगा, और उजड़े शहरों के साथ उसके शहर चालीस बरस तक उजाड़ रहेंगे। और मैं मिस्रियों को क़ौमों में तितर बितर और मुख़तलिफ़ मुल्कों में तितर-बितर करूँगा।
\s5
\v 13 "क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चालीस बरस के आख़िर में मैं मिस्रियों की उन क़ौमों के बीच से, जहाँ वह तितर बितर हुए जमा' करूँगा;
\v 14 और मैं मिस्र के ग़ुलामों को वापस लाऊँगा, और उनकी फ़तरूस की ज़मीन उनके वतन में वापस पहुँचाऊँगा, और वह वहाँ बेकार मम्लुकत होंगे।
\s5
\v 15 यह ममलुकत तमाम मम्लुकतों से ज़्यादा बेकार होगी, और फिर क़ौमों पर अपने आप बुलन्द न करेगी;क्यूँकि मैं उनको पस्त करूँगा ताकि फिर क़ौमों पर हुक्मरानी न करें।
\v 16 और वह आइंदा को बनी-इस्राईल की भरोसे की जगह न होगी, जब वह उनकी तरफ़ देखने लगे तो उनकी बदकिरदारी याद दिलाएँगें और जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।”
\s5
\v 17 सत्ताइसवें बरस के पहले महीने की पहली तारीख़ को, ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 18 कि "ऐ आदमज़ाद, शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र ने अपनी फ़ौज से सूर की मुख़ालिफ़त में बड़ी ख़िदमत करवाई है; हर एक सिर बेबाल हो गया और हर एक का कन्धा छिल गया, लेकिन न उसने न उसके लश्कर ने सूर से उस ख़िदमत के वास्ते, जो उसने उसकी मुख़ालिफ़त में की थी कुछ मजदूरी पाई |
\s5
\v 19 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं मुल्क-ए-मिस्र शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र के हाथ में कर दूँगा, वह उसके लोगों को पकड़ ले जाएगा, और उसको लूट लेगा और उसकी ग़नीमत को ले लेगा, और यह उसके लश्कर की मजदूरी होगी।
\v 20 ~मैंने मुल्क-ए-मिस्र उस मेहनत के सिले में जो उसने की उसे दिया क्यूँकि उन्होंने मेरे लिए मशक़्क़त खींची थी; ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है
\s5
\v 21 "मैं उस वक़्त इस्राईल के ख़ान्दान का सींग उगाऊँगा और उनके बीच तेरा मुँह खोलूँगा; और वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
\s5
\c 30
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ|
\v 2 कि "ऐ आदमज़ाद, नबुव्वत कर और कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि चिल्ला कर कहो: अफ़सोस उस दिन पर !'
\v 3 इसलिए कि वह दिन क़रीब है,हाँ, ख़ुदावन्द का दिन या'नी बादलों का दिन क़रीब है।वह क़ौमों की सज़ा का वक़्त होगा।
\s5
\v 4 क्यूँकि तलवार मिस्र पर आएगी,और जब लोग मिस्र में क़त्ल होंगे और ग़ुलामी में जाएँगे और उसकी बुनियादें बर्बाद की जायेंगी तो अहल-ए-कूश सख़्त दर्द में मुब्तिला होंगे।
\v 5 कूश और फूत और लूद और तमाम मिले जुले लोग, और कूब और उस सरज़मीन के रहने वाले जिन्होंने मु'आहिदा किया है, उनके साथ तलवार से क़त्ल होंगे।
\s5
\v 6 "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: कि मिस्र के मददगार गिर जाएँगे और उसके ताक़त का ग़ुरूर जाता रहेगा", मिजदाल से असवान तक वह उसमें तलवार से क़त्ल होंगे, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\v 7 ~और वह वीरान मुल्कों के साथ वीरान होंगे,और उसके शहर उजड़े शहरों के साथ उजाड़ रहेंगे।
\s5
\v 8 और जब मैं मिस्र में आग भड़काऊँगा, और उसके सब मददगार हलाक किए जाएँगे तो वह मा'लूम करेंगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।
\v 9 उस रोज़ बहुत से क़ासिद जहाज़ों पर सवार होकर, मेरी तरफ़ से रवाना होंगे कि ग़ाफ़िल कूशियों को डराएँ, और वह सख़्त दर्द में मुब्तिला होंगे जैसे मिस्र की सज़ा के वक़्त, क्यूँकि देख वह दिन आता है।
\s5
\v 10 "ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि "मैं मिस्र के गिरोह को शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र के हाथ से बर्बाद-ओ-हलाक कर दूँगा।
\v 11 ~वह और उसके साथ उसके लोग जो क़ौमों में हैबतनाक हैं, मुल्क उजाड़ने को भेजे जाएँगे और वह मिस्र पर तलवार खींचेंगे और मुल्क को मक़्तूलों से भर देंगे।
\s5
\v 12 और मैं नदियों को सुखा दूँगा और मुल्क को शरीरों के हाथ बेचूँगा और मैं उस सर ज़मीन को और उसकी तमाम मा'मूरी को अजनबियों के हाथ से वीरान करूँगा, मैं ~ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है।
\s5
\v 13 "ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि "मैं बुतों को भी~बर्बाद-ओ-हलाक~करूँगा और नूफ़ में से मूरतों को मिटा डालूँगा और आइंदा को मुल्क-ए-मिस्र से कोई बादशाह खड़ा न होगा, और मैं मुल्क-ए-मिस्र में दहशत डाल दूँगा।
\v 14 और फ़तरूस को वीरान करूँगाऔर जुअन में आग भड़काऊँगा और नो पर फ़तवा दूँगा।
\s5
\v 15 और मैं सीन पर जो मिस्र का किला' है,अपना क़हर नाज़िल करूँगा और नो के गिरोह को काट डालूँगा।
\v 16 ~और मैं मिस्र में आग लगा दूँगा,सीन को सख़्त दर्द होगा, और नो में रखने हो जाएँगे और नूफ़ पर हर दिन मुसीबत होगी।
\s5
\v 17 आवन और फ़ीबसत के जवान तलवार से क़त्ल होंगे और यह दोनों बस्तियाँ ग़ुलामी में जाएँगी।
\v 18 और तहफ़नहीस में भी दिन अँधेरा होगा, जिस वक़्त मैं वहाँ मिस्र के जूओं को तोडूँगा और उसकी क़ुव्वत की शौकत मिट जाएगी और उस पर घटा छा जाएगी और उसकी बेटियाँ ग़ुलाम होकर जाएँगी।
\v 19 इसी तरह से मिस्र को सज़ा दूँगा और वह जानेंगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।"
\s5
\v 20 ग्यारहवें बरस के पहले महीने की सातवीं तारीख़ को, ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 21 कि "ऐ आदमज़ाद, मैंने शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन का बाज़ू तोड़ा, और देख, वह बाँधा न गया, दवा लगा कर उस पर पट्टियाँ न कसी गई कि तलवार पकड़ने के लिए मज़बूत हो।
\s5
\v 22 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन का मुख़ालिफ़ हूँ, और उसके बाज़ू ओं को या'नी मज़बूत और टूटे को तोडूँगा, और तलवार उसके हाथ से गिरा दूँगा।
\v 23 ~और मिस्रियों को क़ौमों में तितर बितर और मुमालिक में तितर बितर करूँगा।
\v 24 और मैं शाह-ए-बाबुल के बाज़ूओं को कु़व्वत बख़्शूँगा और अपनी तलवार उसके हाथ में दूँगा, लेकिन फ़िर'औन के बाज़ूओं को तोडूँगा और वह उसके आगे, उस घायल की तरह जो मरने पर ही आहें मारेगा।
\s5
\v 25 हाँ शाह-ए-बाबुल के बाज़ूओं को सहारा दूँगा और फिर'औन के बाज़ू गिर जायेंगे और जब मैं अपनी तलवार शाह-ए-बाबुल के हाथ में दूँगा और वह उसको मुल्क-ए-मिस्र पर चलाएगा, तो वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\v 26 और मैं मिस्रियों को क़ौमों में तितर बितर और ममलिक में तितर-बितर कर दूँगा, और वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
\s5
\c 31
\p
\v 1 ~फिर ग्यारहवें बरस के तीसरे महीने की पहली तारीख़ को, ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 2 ~कि "ऐ आदमज़ाद शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन और उसके लोगों से कह,"तुम अपनी बुजु़र्गी में किसकी तरह हो?
\s5
\v 3 देख असूर लुबनान का बुलन्द देवदार था, जिसकी डालियाँ ख़ूबसूरत थीं, और पत्तियों की कसरत से वह ~ख़ूब सायादार था और उसका क़द बुलन्द था, और उसकी चोटी घनी शाख़ों के बीच थी।
\v 4 पानी ने उसकी परवरिश की, गहराव ने उसे बढ़ाया,उसकी नहरें चारों तरफ़ जारी थीं,और उसने अपनी नालियों को मैदान के सब दरख़्तों तक पहुँचाया।
\s5
\v 5 ~इसलिए पानी की कसरत से उसका क़द मैदान के सब दरख़्तों से बुलन्द हुआ, और जब वह लहलहाने लगा, तो उसकी शाख़ें फ़िरावान और उसकी डालियाँ दराज़ हुई।
\v 6 हवा के सब परिन्दे उसकी शाख़ों परअपने घोंसले बनाते थे, और उसकी डालियों के नीचे सब दश्ती हैवान बच्चे देते थे, और सब बड़ी बड़ी क़ौमें उसके साये में बसती थीं।
\v 7 यूँ वह अपनी बुजु़र्गी में अपनी डलियों की दराज़ी की वजह से ख़ुशनुमा था, क्यूँकि उसकी जड़ों के पास पानी की कसरत थी।
\s5
\v 8 ख़ुदा के बाग़ के देवदार उसे छिपा न सके, सरो उसकी शाख़ों और चिनार उसकी डालियों के बराबर न थे और ख़ुदा के बाग़ का कोई दरख़्त ख़ूबसूरती में उसकी तरह न था।
\v 9 ~मैंने उसकी डालियों की फ़िरावानी से उसे हुस्न बख़्शा, यहाँ तक कि 'अदन के सब दरख़्तों को जो ख़ुदा के बाग़ में थे उस पर रश्क आता था।
\s5
\v 10 "इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि उसने आपको बुलन्द और अपनी चोटी को घनी शाख़ों के बीच ऊँचा किया, और उसके दिल में उसकी बूलन्दी पर गु़रूर समाया।
\v 11 इसलिए मैं उसको क़ौमों में से एक ज़बरदस्त के हवाले कर दूँगा, यक़ीनन वह उसका फ़ैसला करेगा, मैंने उसे उसकी शरारत की वजह से निकाल दिया।
\s5
\v 12 और अजनबी लोग जो क़ौमों में से हैबतनाक हैं,उसे काट डालेंगे और फेंक देंगे पहाड़ों और सब वादियों पर उसकी शाख़ें गिर पड़ेगी, और ज़मीन की सब नहरों के आस-पास उसकी डालियाँ तोड़ी जाएँगी, और इस ज़मीन के सब लोग उसके साये से निकल जाएँगे और उसे छोड़ देंगे।
\s5
\v 13 हवा के सब परिन्दे उसके टूटे तने में बसेंगे, और तमाम दश्ती जानवर उसकी शाख़ों पर होंगे।
\v 14 ताकि लब-ए-आब के सब दरख़्तों में से कोई अपनी बुलन्दी पर मग़रूर न हो, और अपनी चोटी घनी शाख़ों के बीच ऊँची न करे, और उनमें से बड़े बड़े और पानी जज़्ब करने वाले सीधे खड़े न हों, क्यूँकि वह सबके सब मौत के हवाले किए जाएँगे, या'नी ज़मीन के तह में बनी आदम के बीच जो पाताल में उतरते हैं।
\s5
\v 15 ~"ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि जिस रोज़ वह पाताल में उतरे मैं मातम कराऊँगा, मैं उसकी वजह से गहराव को छिपा दूँगा और उसकी नहरों को रोक दूँगा और बड़े सैलाब थम जाएँगे; हाँ, मैं लुबनान को उसके लिए सियाह पोश कराऊँगा, और उसके लिए मैदान के सब दरख़्त ग़शी में आएँगे।
\s5
\v 16 जिस वक़्त मैं उसे उन सब के साथ जो गढ़े में गिरते हैं, पाताल में डालूँगा, तो उसके गिरने के शोर से तमाम क़ौम लरज़ाँ होंगी; और 'अदन के सब दरख़्त, लुबनान के चीदा और नफ़ीस, वह सब जो पानी जज़्ब करते हैं ज़मीन के तह में तसल्ली पाएँगे।
\s5
\v 17 वह भी उसके साथ उन तक, जो तलवार से मारे गए, पाताल में उतर जाएँगे और वह भी जो उसके बाज़ू थे, और क़ौमों के बीच उसके साये में बसते थे वहीं होंगे।
\v 18 ~"तू शान-ओ-शौकत में 'अदन के दरख़्तों में से किसकी तरह है? लेकिन तू 'अदन के दरख़्तों के साथ ज़मीन के तह में डाला जाएगा, तू उनके साथ जो तलवार से क़त्ल हुए, नामख़्तूनों के बीच पड़ा रहेगा; ~यही फ़िर'औन और उसके सब लोग हैं, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।”
\s5
\c 32
\p
\v 1 ~बारहवें बरस के~बारहवें~महीने की पहली तारीख़ को, ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 2 कि "ऐ आदमज़ाद, शाह-ए-मिस्र फिर'औन पर नोहा उठा और उसे कह: "तू क़ौमों के बीच जवान शेर-ए-बबर~की तरह था,और तू दरियाओं के घड़ियाल जैसा है;~तू अपनी नहरों में से नागाह निकल~आता है,~तूने अपने पाँव से पानी को तह-बाला किया और उनकी नहरों को गदला कर दिया |
\s5
\v 3 ~ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि~मैं उम्मतों के गिरोह के साथ तुझ पर~अपना जाल डालूँगा और वह तुझे मेरे ही जाल में बाहर निकालेंगे |
\v 4 ~तब मैं तुझे खु़श्की में छोड़ दूँगा और खुले मैदान पर तुझे फेकूँगा, और हवा के सब परिन्दों को तुझ पर बिठाऊँगा और तमाम इस ज़मीन के दरिन्दों को तुझ से सेर करूँगा।
\s5
\v 5 और तेरा गोश्त पहाड़ों पर डालूँगा,और वादियों को तेरी बुलन्दी से भर दूँगा |
\v 6 और मैं उस सरज़मीन को जिसे पानी में तू तैरता था,~पहाड़ों तक तेरे ख़ून से तर करूँगा और नहरें तुझ से लबरेज़ होंगी।
\s5
\v 7 और जब मैं तुझे हलाक करूँगा, तो आसमान को तारीक~और उसके सितारों को बे-नूर करूँगा सूरज को बादल से छिपाऊँगा और चाँद अपनी रोशनी न देगा|
\v 8 और मैं तमाम नूरानी अजराम-ए-फ़लक को तुझपर तारीक करूँगा और मेरी तरफ़ से तेरी ज़मीन पर तारीकी छा जायेगी ख़ुदावन्द खुदा फ़रमाता |
\s5
\v 9 और जब मैं तेरी शिकस्ता हाली की ख़बर को क़ौमों के बीच उन मुल्कों में जिनसे तू ना वाक़िफ़ है पहुँचाऊँगा तो उम्मतों का दिल~आज़ुर्दा करूँगा
\v 10 ~बल्कि बहुत सी उम्मतों को तेरे हाल से हैरान करूँगा, और उनके बादशाह तेरी वजह से सख़्त परेशान होंगे;~~जब मैं उनके सामने अपनी तलवार~चमकाऊँगा, तो उनमें से हर एक अपनी जान की ख़ातिर तेरे गिरने के दिन हर दम थरथराएगा
\s5
\v 11 क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि शाह-ए-बाबुल की तलवार तुझ पर चलेगी।
\v 12 ~मैं तेरी जमियत को ज़बरदस्तों की तलवार से, जो सब के सब क़ौमों में हैबतनाक हैं हलाक करूँगा,वह मिस्र की शौकत को ख़त्म और उसकी तमाम जमियत को मिटा देंगे।
\s5
\v 13 और मैं उसके सब जानवरों को आब-ए-कसीर के पास से हलाक करूँगा, और आगे को न इन्सान के पाँव उसे गदला करेंगे न हैवान के खुर।
\v 14 तब मैं उनका पानी साफ़ कर दूँगा,और उनकी नदियाँ रौग़न की तरह जारी होंगी, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\s5
\v 15 जब मैं मुल्क-ए-मिस्र को वीरान और सूनसान करूँगा और वह अपनी मा'मूरी से ख़ाली हो जाएगा, जब मैं उसके तमाम बाशिन्दों को हलाक करूँगा तब वह जानेंगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।
\v 16 ~ये वह नोहा है जिससे उस पर मातम करेंगे क़ौमों की बेटियाँ इससे मातम करेंगी वह मिस्र और उसकी तमाम जमियत पर इसी से मातम करेंगी, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।"
\s5
\v 17 फिर बारहवें बरस में महीने के पन्द्रहवें दिन, ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 18 कि "ऐ आदमज़ाद, मिस्र की जमियत पर वावैला कर, और उसको और नामदार क़ौमों की बेटियों को पाताल में उतरने वालों के साथ ज़मीन की तह में गिरा दे
\s5
\v 19 "तू हुस्न ~में किस से बढ़कर था? उतर और नामख़्तूनों के साथ पड़ा रह।
\v 20 वह उनके बीच गिरेंगे जो तलवार से क़त्ल हुए, वह तलवार के हवाले किया गया है, उसे और उसकी तमाम जमियत को घसीट ले जा।
\v 21 वह जो ताक़तवरो में सब से तवाना हैं, पाताल में उस से और उसके मददगारों से मुख़ातिब होंगे: 'वह पाताल में उतर गए, वह बे हिस पड़े हैं, या'नी वह नामख़्तून जो तलवार से क़त्ल हुए।'
\s5
\v 22 "असूर और उसकी तमाम जमियत वहाँ हैं उसकी चारों तरफ़ उनकी क़ब्रें हैं सब के सब तलवार से क़त्ल हुए हैं,
\v 23 ~जिनकी क़ब्रें ~पाताल की तह में हैं और उसकी तमाम जमियत उसकी क़ब्र ~के चारो तरफ़ है; सब के सब तलवार से क़त्ल हुए, जो ज़िन्दों की ज़मीन में हैबत का ज़रि'अ थे।
\s5
\v 24 'ऐलाम और उसकी तमाम गिरोह, जो उसकी क़ब्र के चारो तरफ़ हैं वहाँ हैं; सब के सब तलवार से क़त्ल हुए हैं, वह ~ज़मीन की तह में नामख़्तून उतर गए जो ज़िन्दों की ज़मीन में हैबत के ज़रिए' थे, और उन्होंने पाताल में उतरने वालों के साथ ख़जालत उठाई है।
\v 25 उन्होंने उसके लिए और उसकी तमाम गिरोह के लिए मक़्तूलों के बीच बिस्तर लगाया है, उसकी क़ब्रें उसके चारों तरफ़ हैं, सब के सब नामख़्तून तलवार से क़त्ल हुए हैं; वह ज़िन्दों की ज़मीन में हैबत की वजह थे, और उन्होंने पाताल में उतरने वालों के साथ रुस्वाई उठाई, वह मक़्तूलों में रख्खे गए।
\s5
\v 26 "मस्क और तूबल और उसकी तमाम ज'मिय्यत वहाँ हैं, उसकी क़ब्रें उसके चारों तरफ़ हैं, सब के सब नामख़्तून और तलवार के मक़्तूल हैं; अगरचे ज़िन्दों की ज़मीन में हैबत के ज़रिए' थे।
\v 27 क्या वह उन बहादुरों के साथ जो नामख़्तूनों में से क़त्ल हुए, जो अपने जंग के हथियारों के साथ पाताल में उतर गए पड़े न रहेंगे? उनकी तलवारें उनके सिरों के नीचे रख्खी हैं, और उनकी बदकिरदारी उनकी हड्डियों पर है; क्यूँकि वह ~ज़िन्दों की ज़मीन में बहादुरों के लिए हैबत का ज़रि'अ थे।
\s5
\v 28 और तू नामख़्तूनों के बीच तोड़ा जाएगा, और तलवार के मक़्तूलों के साथ पड़ा रहेगा।
\v 29 "वहाँ अदूम भी है, उसके बादशाह और उसके सब 'उमरा जो बावजूद अपनी कुव्वत के तलवार के मक़्तूलोंमें रख्खे गए हैं; वह नामख़्तूनों और पाताल में उतरने वालों के साथ पड़े रहेंगे।
\s5
\v 30 "उत्तर के तमाम 'उमरा और तमाम सैदानी, जो मक़्तूलों के साथ पाताल में उतर गए, बावजूद अपने रौब के अपनी ताक़तवरों से शर्मिन्दा हुए; वह तलवार के मक़्तूलों के साथ नामख्तून~पड़े रहेंगे और पाताल में उतरने वालों के साथ रुसवाई उठायेंगे
\s5
\v 31 "फ़िर'औन उनको देख कर अपनी तमाम जमियत के ज़रिए' तसल्ली पज़ीर होगा हाँ~~फ़िर'औन और तमाम लश्कर~जो तलवार से क़त्ल हुए, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\v 32 क्यूँकि मैंने ज़िन्दों की ज़मीन में उसकी हैबत क़ायम की और वह तलवार के मक़्तूलों के साथ नामख़्तूनों में रख्खा जाएगा; हाँ, फ़िर'औन और~उसकी जमियत, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।”
\s5
\c 33
\p
\v 1 ~फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 2 कि "ऐआदमज़ाद, तू अपनी क़ौम के फ़र्ज़न्दों से मुख़ातिब हो और उनसे कह, जिस वक़्त मैं किसी सरज़मीन पर तलवार चलाऊँ, और उसके लोग अपने बहादुरों में से एक को लें और उसे अपना निगहबान ठहराएँ।
\v 3 और वह तलवार को अपनी सरज़मीन पर आते देख कर नरसिंगा फूँके और लोगों को होशियार करे।
\v 4 तब जो कोई नरसिंगे की आवाज़ सुने और होशियार न हो, और तलवार आए और उसे क़त्ल करे, तो उसका खू़न उसी की गर्दन पर होगा।
\s5
\v 5 उसने नरसिंगे की आवाज़ सुनी और होशियार न हुआ, उसका खू़न उसी पर होगा, हालाँकि अगर वह होशियार होता तो अपनी जान बचाता।
\v 6 लेकिन अगर निगहबान तलवार को आते देखे और नरसिंगा न फूँके, और लोग होशियार न किए जाएँ, और तलवार आए और उनके बीच से किसी को ले जाए, तो वह तो अपनी बदकिरदारी में हलाक हुआ लेकिन मैं निगहबान से उसके ख़ून का सवाल-ओ-जवाब करूँगा |
\s5
\v 7 ~"फ़िर तू ऐ आदमज़ाद, इसलिए कि मैंने तुझे बनी-इस्राईल का निगहबान मुक़र्रर किया, मेरे मुँह का कलाम सुन रख और मेरी तरफ़ से उनको होशियार कर।
\v 8 जब मैं शरीर से कहूँ, ऐ शरीर, तू यक़ीनन मरेगा, उस वक़्त अगर तू शरीर से न कहे और उसे उसके चाल चलन से आगाह न करे, तो वह शरीर तो अपनी बदकिरदारी में मरेगा लेकिन मैं तुझ से उसके खू़न की सवाल-ओ-जवाब करूँगा।
\v 9 लेकिन अगर तू उस शरीर को जताए कि वह अपनी चाल चलन से बाज़ आए और वह अपनी चाल चलन से बाज़ न आए, तो वह तो अपनी बदकिरदारी में मरेगा लेकिन तूने अपनी जान बचा ली।
\s5
\v 10 "इसलिए ऐ आदमज़ाद, तू बनी इस्राईल से कह तुम यूँ कहते हो कि हक़ीक़त में हमारी ख़ताएँ और हमारे गुनाह हम पर हैं और हम उनमें घुलते रहते हैं पस हम क्यूँकर ज़िन्दा रहेंगे |
\v 11 तू उनसे कह ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम शरीर के मरने में मुझे कुछ ख़ुशी नहीं बल्कि इसमें है कि शरीर अपनी राह से बाज़ आए और ज़िन्दा रहे ऐ बनी इस्राईल ~बाज़ आओ तुम अपनी बुरी चाल चलन से बाज़ आओ तुम क्यूँ मरोगे |
\s5
\v 12 ~"इसलिए ऐ आदमज़ाद, अपनी क़ौम के फ़र्ज़न्दों से यूँ कह, कि सादिक़़ की सदाक़त उसकी ख़ताकारी के दिन उसे न बचाएगी, और शरीर की शरारत जब वह उससे बाज़ आए तो उसके गिरने की वजह न होगी; और सादिक़ जब गुनाह करे तो अपनी सदाक़त की वजह से ज़िन्दा न रह सकेगा।
\v 13 जब मैं सादिक़़ से कहूँ कि तू यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा, अगर वह अपनी सदाक़त पर भरोसा करके बदकिरदारी करे तो उसकी सदाक़त के काम फ़रामोश हो जाएँगे, और वह उस बदकिरदारी की वजह से जो उसने की है मरेगा।
\s5
\v 14 और जब शरीर से कहूँ, तू यक़ीनन मरेगा, अगर वह अपने गुनाह से बाज़ आए और वही करे जायज़-ओ- रवा है|
\v 15 अगर वह शरीर गिरवी वापस कर दे और जो उसने लूट लिया है वापस दे दे, और ज़िन्दगी के क़ानून पर चले और नारास्ती न करे, तो वह यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा वह नहीं मरेगा।
\v 16 ~जो गुनाह उसने किए हैं उसके ख़िलाफ़ महसूब न होंगे, उसने वही किया जो जायज़-ओ-रवा है, वह यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा।
\s5
\v 17 'लेकिन तेरी क़ौम के फ़र्ज़न्द कहते हैं, कि ख़ुदावन्द के चाल चलन रास्त नहीं," हालाँकि ख़ुद उन ही के चाल चलन नारास्त है |'
\v 18 ~अगर सादिक़ अपनी सदाक़त छोड़कर बदकिरदारी करे, तो वह यक़ीनन उसी की वजह से मरेगा।
\v 19 और अगर शरीर अपनी शरारत से बाज़ आए और वही करे जो जायज़-ओ-रवा है, तो उसकी वजह से ज़िन्दा रहेगा।
\v 20 फिर भी तुम कहते हो कि ख़ुदावन्द के चाल चलन रास्त नहीं है। ऐ बनी-इस्राईल मैं तुम में से हर एक की चाल चलन के मुताबिक़ तुम्हारी 'अदालत करूँगा।"
\s5
\v 21 हमारी ग़ुलामी के बारहवें बरस के दसवें महीने की पाँचवीं तारीख़ को, यूँ हुआ कि एक शख़्स जो यरुशलीम से भाग निकला था, मेरे पास आया और कहने लगा, कि "शहर मुसख़र हो गया।”
\v 22 ~और शाम के वक़्त उस भगोड़े के पहुँचने से पहले ख़ुदावन्द का हाथ मुझ पर था; और उसने मेरा मुँह खोल दिया। उसने सुबह ~को उसके मेरे पास आने से पहले मेरा मुँह खोल दिया और मैं फिर गूंगा न रहा।
\s5
\v 23 तब ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 24 ~कि "ऐ आदमज़ाद, मुल्क-ए- इस्राईल के वीरानों के बाशिन्दे यूँ कहते हैं, कि इब्राहीम एक ही था और वह इस मुल्क का वारिस हुआ, लेकिन हम तो बहुत से हैं; मुल्क हम को मीरास में दिया गया है।'
\s5
\v 25 इसलिए तू उनसे कह दे, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि तुम ख़ून के साथ खाते और अपने बुतों की तरफ़ आँख उठाते हो और खूँरेज़ी करते हो क्या तुम मुल्क के वारिस होगे?
\v 26 तुम अपनी तलवार पर भरोसा करते हो, तुम मकरूह काम करते हो और तुम में से हर एक अपने पड़ोसी की बीवी को नापाक करता है; क्या तुम मुल्क के वारिस होगे?
\s5
\v 27 ~तू उनसे यूँ कहना, कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि मुझे अपनी हयात की क़सम वह जो वीरानों में हैं, तलवार से क़त्ल होंगे; और उसे जो खुले मैदान में हैं, दरिन्दों को दूँगा कि निगल जाएँ; और वह जो किलों' और गारों में हैं, वबा से मरेंगे।
\v 28 क्यूँकि मैं इस मुल्क को उजाड़ा और हैरत का ज़रि'अ बनाऊँगा, और इसकी ताक़त का ग़ुरूर जाता रहेगा, और इस्राईल के पहाड़ वीरान होंगे यहाँ तक कि कोई उन पर से गुज़र नहीं करेगा।
\v 29 और जब मैं उनके तमाम मकरूह कामों की वजह से जो उन्होंने किए हैं, मुल्क को वीरान और हैरत का ज़रि'अ बनाऊँगा, तो वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 30 ~'लेकिन ऐ आदमज़ाद, फ़िलहाल तेरी कौम के फ़र्ज़न्द दीवारों के पास और घरों के आस्तानों पर तेरे ज़रिए' गुफ़्तगू करते हैं, और एक दूसरे से कहते हैं, हाँ, हर एक अपने भाई से यूँ कहता है, 'चलो, वह कलाम सुनें जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से नाज़िल हुआ है।'
\v 31 वह उम्मत की तरह तेरे पास आते और मेरे लोगों की तरह तेरे आगे बैठते और तेरी बातें सुनते हैं, लेकिन उन लेकिन 'अमल नहीं करते; क्यूँकि वह अपने मुँह से तो बहुत मुहब्बत ज़ाहिर करते हैं, पर उनका दिल लालच पर दौड़ता है।
\s5
\v 32 और देख, तू उनके लिए बहुत मरगू़ब सरोदी की तरह है, जो ख़ुश इल्हान और माहिर साज़ बजाने वाला हो, क्यूँकि वह तेरी बातें सुनते हैं लेकिन उन पर 'अमल नहीं करते।
\v 33 और जब यह बातें वजूद में आएँगी (देख, वह जल्द वजूद में आने वाली हैं), तब वह जानेंगे कि उनके बीच एक नबी था।"
\s5
\c 34
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द का कलाम उसपर नाज़िल हुआ |
\v 2 ~कि "ऐ आदमज़ाद, इस्राईल के चरवाहों के ख़िलाफ़ नबुव्वत कर, हाँ नबुव्वत कर और उनसे कह~ख़ुदावन्द ख़ुदा,चरवाहों को यूँ फ़रमाता है: कि इस्राईल के चरवाहों पर अफ़सोस, जो अपना ही पेट भरते हैं! क्या चरवाहों को मुनासिब नहीं कि भेड़ों को चराएँ?
\v 3 तुम चिकनाई खाते और ऊन पहनते हो और जो मोटे हैं उनको ज़बह करते हो, लेकिन गल्ला नहीं चराते।
\s5
\v 4 तुम ने कमज़ोरों को तवानाई और बीमारों की शिफ़ा नहीं दी और टूटे हुए को नहीं बाँधा, और वह जो निकाल दिए गए उनको वापस नहीं लाए और गुमशुदा की तलाश नहीं की, बल्कि ज़बरदस्ती और सख़्ती से उन पर हुकूमत की।
\v 5 और वह तितर-बितर हो गए क्यूँकि कोई पासबान न था, और वह तितर बितर होकर मैदान के सब दरिन्दों की ख़ुराक हुए।
\v 6 मेरी भेड़े तमाम पहाड़ों पर और हर एक ऊँचे टीले पर भटकती फिरती थीं; हाँ, मेरी भेड़े तमाम इस ~ज़मीन पर तितर-बितर हो गई और किसी ने न उनको ढूँढा न उनकी तलाश की।
\s5
\v 7 इसलिए ऐ पासबानो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो:
\v 8 ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम चूँकि मेरी भेंड़े शिकार हो गई; हाँ, मेरी भेड़े हर एक जंगली दरिन्दे की ख़ुराक हुई, क्यूँकि कोई पासबान न था और मेरे पासबानों ने मेरी भेड़ों की तलाश न की, बल्कि उन्होंने अपना पेट भरा और मेरी भेड़ों को न चराया।
\s5
\v 9 इसलिए ऐ पासबानो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो
\v 10 ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं चरवाहों का मुख़ालिफ़ हूँ और अपना गल्ला उनके हाथ से तलब करूँगा और उनको गल्लेबानी से माजूल करूँगा, और चरवाहे आइंदा को अपना पेट न भर सकेंगे क्यूँकि मैं अपना गल्ला उनके मुँह से छुड़ा लूँगा, ताकि वह उनकी ख़ुराक न हो।
\s5
\v 11 ~"क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: देख, मैं ख़ुद अपनी भेड़ों की तलाश करूँगा और उनको ढूँढ निकालूगा।
\v 12 जिस तरह चरवाहा अपने गल्ले की तलाश करता है, जबकि वह अपनी भेड़ों के बीच हो जो तितर बितर हो गई हैं; उसी तरह मैं अपनी भेड़ों को ढूँढूँगा, और उनको हर जगह से जहाँ वह बादल तारीकी के दिन तितर बितर हो गई हैं छुड़ा लाऊँगा।
\v 13 और मैं उनको सब उम्मतों के बीच से वापस लाऊँगा, और सब मुल्कों में से जमा' करूँगा और उन ही के मुल्क में पहुचाऊँगा, और इस्राईल के पहाड़ों पर नहरों के किनारे और ज़मीन के तमाम आबाद मकानों में चराऊँगा।
\s5
\v 14 और उनको अच्छी चरागाह में चराऊँगा और उनकी आरामगाह इस्राईल के ऊँचे पहाड़ों पर होगी, वहाँ वह 'उम्दा आरामगाह में लेटेंगी और हरी चराहगाह में इस्राईल के पहाड़ों पर चरेंगी।
\v 15 मैं ही अपने गल्ले को चराऊँगा और उनको लिटाऊँगा~ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\v 16 मैं गुमशुदा की तलाश करूँगा और ख़ारिज शुदा को वापस लाऊँगा और शिकस्ता को बाँधूँगा और बीमारों को तक़वियत दूँगा,लेकिन मोटों और ज़बरदस्तों को हलाक करूँगा, मैं उनकी सियासत का खाना खिलाऊँगा।
\s5
\v 17 "और तुम्हारे हक़ में ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: ऐ मेरी भेड़ो, देखो, मैं भेड़ बकरियों और मेंढों और बकरों के बीच इम्तियाज़ करके इन्साफ़ करूँगा।
\v 18 क्या तुम को यह हल्की सी बात मा'लूम हुई कि तुम अच्छा सब्ज़ाज़ार खाजाओ और बाक़ी मान्दा को पाँवों से लताड़ो, और साफ़ पानी में से पिओ और बाक़ी मान्दा को पाँवों से गंदला करो?
\v 19 ~और जो तुम ने पाँव से लताड़ा है वह मेरी भेड़ें खाती हैं, और जो तुम ने पाँव से गंदला किया पीती हैं।
\s5
\v 20 'इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा उनको यूँ फ़रमाता है: देखो, मैं हाँ मैं, मोटी और दुबली भेड़ों के बीच इन्साफ़ करूँगा।
\v 21 क्यूँकि तुम ने पहलू और कन्धे से धकेला है और तमाम बीमारों को अपने सींगों से रेला है, यहाँ तक कि वह तितर-बितर हुए।
\s5
\v 22 इसलिए मैं अपने गल्ले को बचाऊँगा, वह फिर कभी शिकार न होंगे और मैं भेड़ बकरियों के बीच इन्साफ़ करूँगा।
\v 23 और मैं उनके लिए एक चौपान मुक़र्रर करूँगा और वह उनको चराएगा, या'नी मेरा बन्दा दाऊद, वह उनको चराएगा और वही उनका चौपान होगा।
\v 24 और मैं ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हूँगा और मेरा बन्दा दाऊद उनके बीच फ़रमारवा होगा, मैं ख़ुदावन्द ने यूँ फ़रमाया है।
\s5
\v 25 "मैं उनके साथ सुलह का 'अहद बाँधूँगा और सब बुरे दरिन्दों को मुल्क से हलाक करूँगा, और वह वीरान में सलामती से रहा करेंगे और जंगलों में सोएँगे।
\v 26 और मैं उनको और उन जगहों को जो मेरे पहाड़ के आसपास हैं, बरकत का ज़रि'अ बनाऊँगा; और मैं वक़्त पर मेंह बरसाऊँगा, बरकत की बारिश होगी।
\v 27 और मैदान के दरख़्त अपना मेवा देंगे और ज़मीन अपनी पैदावार देगी, और वह सलामती के साथ अपने मुल्क में बसेंगे और जब मैं उनके जुए का बन्धन तोड़ूँगा और उनके हाथ से जो उनसे ख़िदमत करवाते हैं छुड़ाऊँगा, तो वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 28 और वह आगे को क़ौमों का शिकार न होंगे और ज़मीन के दरिन्दे उनको निगल न सकेंगे, बल्कि वह अम्न से बसेंगे और उनको कोई न डराएगा।
\v 29 और मैं उनके लिए एक नामवर पौदा खड़ा करूँगा, और वह फिर कभी अपने मुल्क में सूखे से हलाक न होंगे और आगे को क़ौमों का ताना न उठाएँगे।
\s5
\v 30 और वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा उनके साथ हूँ, और वह या'नी बनी-इस्राईल मेरे लोग हैं, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\v 31 और तुम ऐ मेरे भेंड़ो मेरी चरागाह की भेड़ो इंसान हो और मैं तुम्हारा ख़ुदा हूँ फ़रमाता है~ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।।
\s5
\c 35
\p
\v 1 ~और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ
\v 2 कि "ऐ आदमज़ाद, कोह-ए-श'ईर की तरफ़ मुतवज्जिह हो और उसके ख़िलाफ़ नबुव्वत कर,
\v 3 और उससे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, ऐ कोह-ए-श'ईर, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ और तुझ पर अपना हाथ चलाऊँगा, और तुझे वीरान और बेचराग़ करूँगा।
\s5
\v 4 मैं तेरे शहरों को उजाडूँगा, और तू वीरान होगा और जानेगा कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।
\v 5 चूँकि तू पहले से 'अदावत रखता है, और तूने बनी-इस्राईल को उनकी मुसीबत के दिन उनकी बदकिरदारी के आख़िर में तलवार की धार के हवाले किया है।
\v 6 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: कि मुझे अपनी हयात की क़सम, मैं तुझे खू़न के लिए हवाले करूँगा और खू़न तुझे दौड़ाएगा; चूँकि तूने खू़ँरेज़ी से नफ़रत न रख्खी, इसलिए खू़न तेरा पीछा करेगा।
\s5
\v 7 यूँ मैं कोह-ए-श'ईर को वीरान और बेचराग़ करूँगा, और उसमें से गुज़रने वाले और वापस आने वाले को हलाक करूँगा।
\v 8 और उसके पहाड़ों को उसके मक़्तूलों से भर दूँगा, तलवार के मक़्तूल तेरे टीलों और तेरी वादियों और तेरी तमाम नदियों में गिरेंगे।
\v 9 मैं तुझे हमेशा तक वीरान रख्खूँगा और तेरी बस्तियाँ फिर आबाद न होंगी, और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 10 "चूँकि तूने कहा, कि 'यह दो क़ौमें और यह दो मुल्क मेरे होंगे, और हम उनके मालिक होंगे," बावजूद यह कि ख़ुदावन्द वहाँ था।
\v 11 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम, मैं तेरे क़हर और हसद के मुताबिक़, जो तूने अपनी कीनावरी से उनके ख़िलाफ़ ज़ाहिर किया, तुझ से सुलूक करूँगा और जब मैं तुझ पर फ़तवा दूँगा तो उनके बीच मशहूर हूँगा।
\s5
\v 12 ~"और तू जानेगा कि मैं ख़ुदावन्द ने तेरी तमाम हिक़ारत की बातें, जो तूने इस्राईल के पहाड़ों की मुख़ालिफ़त में कहीं, कि 'वह वीरान हुए, और हमारे क़ब्ज़े में कर दिए गए कि हम उनको निगल जाएँ,' सुनी हैं।
\v 13 इसी तरह तुम ने मेरे ख़िलाफ़ अपनी ज़बान से लाफ़ज़नी की और मेरे सामने बकवास की है, जो मैं सुन चुका हूँ।
\s5
\v 14 ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि जब तमाम दुनिया खु़शी करेगी, मैं तुझे वीरान करूँगा।
\v 15 जिस तरह तूने बनी इस्राईल की मीरास पर, इसलिए कि वह वीरान थी, ख़ुशी की उसी तरह मैं भी तुझ से करूँगा, ऐ कोह-ए-श'ईर, तू और तमाम अदोम बिल्कुल वीरान होगे, और लोग जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\c 36
\p
\v 1 ~कि "ऐ आदमज़ाद! इस्राईल के पहाड़ों से नबुव्वत कर और कह, ऐ इस्राईल के पहाड़ो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो।
\v 2 ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि दुश्मन ने तुम पर, 'अहा हा!' कहा और यह कि, 'वह ऊँचे ऊँचे पुराने मक़ाम हमारे ही हो गए।'
\v 3 इसलिए नबुव्वत कर और कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि इस वजह से, हाँ, इसी वजह से कि उन्होंने तुम को वीरान किया और हर तरफ़ से तुम को निगल गए, ताकि जो क़ौमों में से बाक़ी हैं तुम्हारे मालिक हों और तुम्हारे हक़ में बकवासियों ने ज़बान खोली है, और तुम लोगों में बदनाम हुए हो।
\s5
\v 4 इसलिए ऐ इस्राईल के पहाड़ो, ख़ुदावन्द ख़ुदा का कलाम सुनो,ख़ुदावन्द ख़ुदा पहाड़ों और टीलों नालों और वादियों और उजाड़ वीरानों से और मत्रूक शहरों से जो आसपास की क़ौमों के बाक़ी लोगों के लिए लूट और मज़ाक़ की जगह हुए हैं, यूँ फ़रमाता है।
\v 5 हाँ, इसी लिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि यक़ीनन मैंने क़ौम के बाक़ी लोगों का और तमाम अदोम का मुख़ालिफ़ होकर जिन्होंने अपने पूरे दिल की खु़शी से और क़ल्बी 'अदावत से अपने आपको मेरी सर-ज़मीन के मालिक ठहराया ताकि उनके लिए ग़नीमत हो, अपनी गै़रत के जोश में फ़रमाया है।
\v 6 इसलिए तू इस्राईल के मुल्क के बारे में नबुव्वत कर और पहाड़ों और टीलों और नालों और वादियों से कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देखो, मैंने अपनी गै़रत और अपने क़हर में कलाम किया, कि इसलिए कि तुम ने क़ौमों की मलामत उठाई है।
\s5
\v 7 तब ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि मैंने क़सम खाई है" कि यक़ीनन तुम्हारे आसपास की क़ौम ख़ुद ही मलामत उठाएँगीं।
\s5
\v 8 "लेकिन तुम ऐ इस्राईल के पहाड़ों, अपनी शाख़ें निकालोगे और मेरी उम्मत इस्राईल के लिए फल लाओगे, क्यूँकि वह जल्द आने वाले हैं।
\v 9 ~इसलिए देखो, मैं तुम्हारी तरफ़ हूँ और तुम पर तवज्जुह करूँगा, और तुम जोते और बोए जाओगे;
\s5
\v 10 और मैं आदमियों को, हाँ, इस्राईल के तमाम घराने को, तुम पर बहुत बढ़ाऊँगा और शहर आबाद होंगे और खंडर फिर ता'मीर किए जाएँगे।
\v 11 और मैं तुम पर इन्सान-ओ-हैवान की फ़िरावानी करूँगाऔर वह बहुत होंगे, और फैलेंगे और मैं तुम को ऐसे आबाद करूँगा जैसे तुम पहले थे, और तुम पर तुम्हारी शुरू' के दिनों से ज़्यादा एहसान करूँगा, और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\v 12 ~हाँ, मैं ऐसा करूँगा कि आदमी या'नी मेरे इस्राइली लोग तुम पर चलें फिरेंगे, और तुम्हारे मालिक होंगे और तुम उनकी मीरास होगे और फिर उनको बेऔलाद न करोगे।
\s5
\v 13 ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि वह तुझ से कहते हैं, 'ऐ ज़मीन, तू इन्सान को निगलती है और तूने अपनी क़ौमों को बेऔलाद किया।'
\v 14 इसलिए आइन्दा न तू इन्सान को निगलेगी न अपनी क़ौमों को बेऔलाद करेगी, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\v 15 और मैं ऐसा करूँगा कि लोग तुझ पर कभी दीगर क़ौम का ता'ना न सुनेंगे, और तू क़ौमों की मलामत न उठाएगी और फिर अपने लोगों की ग़लती का ज़रि'अ न होगी, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।”
\s5
\v 16 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 17 ~कि "ऐ आदमज़ाद, जब बनी इस्राईल अपने मुल्क में बसते थे उन्होंने अपनी चाल चलन और अपने 'आमाल से उसको नापाक किया उनके चाल चलन मेरे नज़दीक 'औरत की नापाकी की हालत की तरह थी|
\v 18 ~इसलिए मैंने उस खू़ँरेज़ी की वजह से जो उन्होंने उस मुल्क में की थी, और उन बुतों की वजह से जिनसे उन्होंने उसे नापाक किया था, अपना क़हर उन पर नाज़िल किया।
\s5
\v 19 और मैंने उनको क़ौमों में तितर बितर किया, और वह मुल्कों में तितर-बितर हो गए, और उनके चाल चलन और उनके 'आमाल के मुताबिक़ मैंने उनकी 'अदालत की।
\v 20 और जब वह दीगर क़ौमों के बीच जहाँ-जहाँ वह गए थे पहुँचे, तो उन्होंने मेरे मुक़द्दस नाम को नापाक किया, क्यूँकि लोग उनकी बारे में कहते थे, 'यह ख़ुदावन्द के लोग हैं, और उसके मुल्क से निकल आए हैं।'
\v 21 लेकिन मुझे अपने पाक नाम पर, जिसको बनी-इस्राईल ने उन क़ौमों के बीच जहाँ वह गए थे नापाक किया, अफ़सोस हुआ।
\s5
\v 22 "इसलिए तू बनी-इस्राईल से कह दे, कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: ऐ बनी इस्राईल तुम्हारी ख़ातिर नहीं बल्कि अपने पाक नाम की ख़ातिर, जिसको तुम ने उन क़ौमों के बीच जहाँ तुम गए थे नापाक किया, यह करता हूँ।
\v 23 मैं अपने बुजु़र्ग़ नाम की, जो क़ौमों के बीच नापाक किया गया, जिसको तुम ने उनके बीच नापाक किया था तक़दीस करूँगा और जब उनकी आँखों के सामने तुम से मेरी तक़दीस होगी तब वह क़ौमें जानेंगी कि मैं ख़ुदावन्द हूँ, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\s5
\v 24 क्यूँकि मैं तुम को उन क़ौमों में से निकाल लूँगा और तमाम मुल्कों में से जमा'~करूँगा, और तुम को तुम्हारे वतन में वापस लाऊँगा।
\v 25 ~तब तुम पर साफ़ पानी छिड़कूँगा और तुम पाक साफ़ होगे, और मैं तुम को तुम्हारी तमाम गन्दगी से और तुम्हारे सब बुतों से पाक करूँगा।
\s5
\v 26 और मैं तुम को नया दिल बख़्शूँगा और नई रूह तुम्हारे बातिन में डालूँगा, और तुम्हारे जिस्म में से शख़्त दिल को निकाल डालूँगा और गोश्त का दिल तुम को 'इनायत करूँगा।
\v 27 और मैं अपनी रूह तुम्हारे बातिन में डालूँगा, और तुम सेअपने क़ानून की पैरवी कराऊँगा और तुम मेरे हुक्मों पर 'अमल करोगे और उनको बजा लाओगे।
\v 28 तुम उस मुल्क में जो मैंने तुम्हारे बाप-दादा को दिया सुकूनत करोगे, और तुम मेरे लोग होगे और मैं तुम्हारा ख़ुदा हूँगा।
\s5
\v 29 और मैं तुम को तुम्हारी तमाम नापाकी से छुड़ाऊँगा और अनाज मंगवाऊँगा और इफ़रात बख़्शूँगा और तुम पर सूखा न भेजूँगा।
\v 30 और मैं दरख़्त के फलों में और खेत के हासिल में अफ़ज़ाइश बख़्शूँगा, यहाँ तक कि तुम आइंदा को क़ौमों के बीच क़हत की वजह से मलामत न उठाओगे।
\v 31 तब तुम अपनी बुरी चाल चलन और बद'आमाली को याद करोगे और अपनी बदकिरदारी व मकरूहात~की वजह से अपनी नज़र में घिनौने ठहरोगे।
\s5
\v 32 मैं यह तुम्हारी ख़ातिर नहीं करता हूँ, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, यह तुम को याद रहे। तुम अपनी राहों की वजह से ख़िजालत उठाओ और शर्मिन्दा हो, ऐ बनी इस्राईल।
\v 33 "ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: जिस दिन मैं तुम को तुम्हारी तमाम बदकिरदारी से पाक करूँगा, उसी दिन तुम को तुम्हारे शहरों में बसाऊँगा और तुम्हारे खण्डर ता'मीर हो जाएँगे।
\v 34 और वह वीरान ज़मीन जो तमाम राह गुज़रों की नज़र में वीरान पड़ी थी जोती जाएगी।
\s5
\v 35 और वह कहेंगे, कि 'ये सरज़मीन जो ख़राब पड़ी थी, बाग-ए-'अदन की तरह हो गई, और उजाड़ और वीरान और ख़राब शहर मुहकम और आबाद हो गए।
\v 36 तब वह क़ौमें जो तुम्हारे आसपास बाक़ी हैं, जानेंगी कि मैं ख़ुदावन्द ने उजाड़ मकानों को ता'मीर किया है और वीराने को बाग़ बनाया है; मैं ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है और मैं ही कर दिखाऊँगा।
\s5
\v 37 "ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि बनी-इस्राईल मुझ से यह दरख़्वास्त भी कर सकेंगे, और मैं उनके लिए ऐसा करूँगा कि उनके लोगों को भेड़-बकरियों की तरह फ़िरावान करूँ ।
\v 38 जैसा पाक गल्ला था और जिस तरह यरुशलीम का गल्ला उसकी मुक़र्ररा 'ईदों में था, उसी तरह उजाड़ शहर आदमियों के ग़ोलों से मा'मूर होंगे, और वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
\s5
\c 37
\p
\v 1 ~ख़ुदावन्द का हाथ मुझ पर था, और उसने मुझे अपनी रूह में उठा लिया और उस वादी में जो हड्डियों से पुर थी, मुझे उतार दिया।
\v 2 और मुझे उनके आसपास चारों तरफ़ फिराया, और देख, वह वादी के मैदान में ब-कसरत और बहुत सूखी थीं।
\v 3 और उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद, क्या यह हड्डियाँ ज़िन्दा हो सकती हैं मेंने जवाब दिया, कि "ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, तू ही जानता है।”
\s5
\v 4 फिर उसने मुझे फ़रमाया, "तू इन हड्डियों पर नबुव्वत कर और इनसे कह, ऐ सूखी हड्डियों, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो।
\v 5 ख़ुदावन्द ख़ुदा इन हड्डियों को यूँ फ़रमाता है: कि मैं तुम्हारे अन्दर रूह डालूँगा और तुम ज़िन्दा हो जाओगी।
\v 6 और तुम पर नसें फैलाऊँगा और गोश्त चढ़ाऊँगा, और तुम को चमड़ा पहनाऊँगा और तुम में दम फूकूँगा, और तुम ज़िन्दा होगी और जानोगी कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
\s5
\v 7 तब मैंने हुक्म के मुताबिक़ नबुव्वत की, और जब मैं नबुव्वत कर रहा था तो एक शोर हुआ, और देख, ज़लज़ला आया और हड्डियाँ आपस में मिल गई, हर एक हड्डी अपनी हड्डी से।
\v 8 और मैंने निगाह की तो क्या देखता हूँ कि नसें और गोश्त उन पर चढ़ आए, और उन पर चमड़े की पोशिश हो गई, लेकिन उनमें दम न था।
\s5
\v 9 तब उसने मुझे फ़रमाया, "नबुव्वत कर, तू हवा से नबुव्वत कर ऐ आदमज़ाद, और हवा से कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि ऐ दम, तू चारों तरफ़ से आ और इन मक़्तूलों पर फूँक कि ज़िन्दा हो जाएँ।"
\v 10 ~इसलिए मैंने हुक्म के मुताबिक़ नबुव्वत की और उनमें दम आया, और वह ज़िन्दा होकर अपने पाँव पर खड़ी हुई; एक बहुत बड़ा लश्कर !
\s5
\v 11 तब उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद, यह हड्डियाँ तमाम बनी-इस्राईल हैं; देख, यह कहते हैं, 'हमारी हड्डियाँ सूख गई और हमारी उम्मीद जाती रही, हम तो बिल्कुल फ़ना हो गए।'
\v 12 इसलिए तू नबुव्वत कर और इनसे कह ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि ऐ मेरे ~लोगो, देखो मैं तुम्हारी क़ब्रों को खोलूँगा और तुम को उनसे बाहर निकालूँगा और इस्राईल के मुल्क में लाऊँगा |
\s5
\v 13 और ऐ मेरे लोगों जब मैं तुम्हारी क़ब्रों को खोलूँगा~और तुम को उनसे बाहर निकालूँगा, तब तुम जानोगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।
\v 14 और मैं अपनी रूह तुम में डालूँगा और तुम ज़िन्दा हो जाओगे, और मैं तुम को तुम्हारे मुल्क में बसाऊँगा, तब तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द ने फ़रमाया और पूरा किया, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।"
\s5
\v 15 ~फिर ख़ुदा वन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 16 कि "ऐ आदमज़ाद, एक छड़ी ले और उस पर लिख, 'यहूदाह और उसके~रफ़ीक़ बनी-इस्राईल के लिए; फिर दूसरी छड़ी ले और उस पर यह लिख, 'इफ़्राईम की छड़ी यूसुफ़ और उसके रफ़ीक़ तमाम बनी इस्राईल के लिए।'
\v 17 और उन दोनों को जोड़ दे कि एक ही छड़ी तेरे लिए हों, और वह तेरे हाथ में एक होंगी।
\s5
\v 18 और जब तेरी क़ौम के लोग तुझ से पूछे और कहें, कि "इन कामों से तेरा क्या मतलब है? क्या तू हमें नहीं बताएगा?"
\v 19 तो तू उनसे कहना, कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं यूसुफ़ की छड़ी को जो इफ़्राईम ~के हाथ में है, और उसके रफ़ीकों को जो इस्राईल के क़बीले हैं, लूँगा और यहूदाह की छड़ी के साथ जोड़ दूँगा और उनको एक ही छड़ी बना दूँगा और वह मेरे हाथ में एक होंगी।
\v 20 और वह छड़ियाँ जिन पर तू लिखता है, उनकी आँखों के सामने तेरे हाथ में होंगी।
\s5
\v 21 और तू उनसे कहना, कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि मैं बनी इस्राईल को क़ौमों के बीच से जहाँ जहाँ वह गए हैं निकाल लाऊँगा और हर तरफ़ से उनको इकठ्ठा करूँगा और उनको उनके मुल्क में लाऊँगा|
\v 22 और मैं उनको उस मुल्क में इस्राईल के पहाड़ों पर एक ही क़ौम बनाऊँगा, और उन सब पर एक ही बादशाह होगा, और वह आगे को न दो क़ौमें होंगे और न दो मम्लकतों में तक़सीम किए जाएँगे।
\v 23 और वह फिर अपने बुतों से और अपनी नफ़रत अन्गेज़ चीज़ों से और अपनी ख़ताकारी से, अपने आपको नापाक न करेंगे बल्कि मैं उनको उनके तमाम घरों से, जहाँ उन्होंने गुनाह किया है, छुड़ाऊँगा और उनको पाक करूँगा और वह मेरे लोग होंगे और मैं उनका ख़ुदा हूँगा।
\s5
\v 24 'और मेरा बन्दा दाऊद उनका बादशाह होगा और उन सबका एक ही चरवाहा होगा, और वह मेरे हुक्मों पर चलेंगे और मेरे क़ानून को मानकर उन पर 'अमल करेंगे।
\v 25 और वह उस मुल्क में जो मैंने अपने बन्दा या'क़ूब को दिया जिसमें तुम्हारे बाप दादा बसते थे, बसेंगे और वह और उनकी औलाद और उनकी औलाद की औलाद हमेशा तक उसमें सुकूनत करेंगे और मेरा बन्दा दाऊद हमेशा के लिए उनका फरमारवा होगा |
\s5
\v 26 ~और मैं उनके साथ सलामती का 'अहद बाँधूँगा जो उनके साथ हमेशा का 'अहद होगा, और मैं उनको बसाऊँगा और फ़िरावानी बख्शूँगा और उनके बीच अपने हैकल को हमेशा के लिए क़ायम करूँगा।
\v 27 मेरा खे़मा भी उनके साथ होगा, मैं उनका ख़ुदा हूँगा और वह मेरे लोग होंगे।
\v 28 और जब मेरा हैकल हमेशा के लिए उनके बीच रहेगा तो क़ौमें जानेंगी कि मैं ख़ुदावन्द इस्राईल को पाक करता हूँ |
\s5
\c 38
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 2 कि "ऐ आदमज़ाद, जूज की तरफ़ जो माजूज की सरज़मीन का है, और रोश और मसक और तूबल का फ़रमारवा है, मुतवज्जिह हो और उसके ख़िलाफ़ नबुव्वत कर,
\v 3 और कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यू फ़रमाता है: कि देख, ऐ जूज, रोश और मसक और तूबल के फ़रमारवा, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ।
\s5
\v 4 और मैं तुझे फिरा दूँगा, और तेरे जबड़ों में आँकड़े डालकर तुझे और तेरे तमाम लश्कर और घोड़ों और सवारों को, जो सब के सब मुसल्लह लश्कर हैं, जो फरियाँ और सिपरे लिए हैं और सब के सब तेग़ज़न हैं खींच निकालूँगा।
\v 5 और उनके साथ फ़ारस और कूश और फूत, जो सब के सब सिपर बरदार और खू़दपोश हैं,
\v 6 जु़मर और उसका तमाम लश्कर, और उत्तर की दूर अतराफ़ के अहल-ए-तुजर्मा और उनका तमाम लश्कर, या'नी बहुत से लोग जो तेरे साथ हैं।
\s5
\v 7 "तू तैयार हो और अपने लिए तैयारी कर, तू और तेरी तमाम जमा'अत जो तेरे पास जमा' हुई है, और तू उनका रहनुमा ~हो।
\v 8 और बहुत दिनों के बा'द तू याद किया जाएगा, और आख़िरी बरसों में उस सरज़मीन पर जो तलवार के ग़ल्बे से छुड़ाई गई है और जिसके लोग बहुत सी क़ौमों के बीच से जमा' किए गए हैं, इस्राईल के पहाड़ों पर जो पहले से वीरान थे, चढ़ आएगा; लेकिन वह तमाम क़ौम से आज़ाद है, और वह सब के सब अमन-ओ-अमान से सुकूनत करेंगे।
\v 9 और तू चढ़ाई करेगा और आँधी की तरह आएगा, तू बादल की तरह ज़मीन को छिपाएगा, तू और तेरा तमाम लश्कर और बहुत से लोग तेरे साथ।
\s5
\v 10 "ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि उस वक़्त यूँ होगा कि बहुत से ख़याल तेरे दिल में आएँगे और तू एक बुरा मंसूबा बाँधेगा;
\v 11 ~और तू कहेगा, कि 'मैं देहात की सरज़मीन पर हमला करूँगा, मैं उन पर हमला करूँगा जो राहत-ओ-आराम से बसते हैं; जिनकी न फ़सील है और न अड़बंगे और न फाटक हैं।'
\v 12 ताकि तू लूटे और माल को छीन ले, और उन वीरानों पर जो अब आबाद हैं, और उन लोगों पर जो तमाम क़ौमों में से जमा' हुए हैं, जो मवेशी और माल के मालिक हैं और ज़मीन की नाफ़ पर बसते हैं, अपना हाथ चलाए।
\s5
\v 13 सबा और ददान और तरसीस के सौदागर और उनके तमाम जवान शेर-ए-बबर तुझ से पूछेंगे, 'क्या तू ग़ारत करने आया है? क्या तूने अपना ग़ोल इसलिए जमा' किया है कि माल छीन ले, और चाँदी सोना लूटे और मवेशी और माल ले जाए और बड़ी ग़नीमत हासिल करे।'
\s5
\v 14 'इसलिए, ऐ आदमज़ाद, नबुव्वत कर और जूज से कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि जब मेरी उम्मत इस्राईल, अम्न से बसेगी क्या तुझे ख़बर न होगी|
\v 15 और तू अपनी जगह से उत्तर की दूर अतराफ़ से आएगा, तू और बहुत से लोग तेरे साथ, जो सब के सब घोड़ों पर सवार होंगे एक बड़ी फ़ौज और भारी लश्कर।
\v 16 तू मेरी उम्मत इस्राईल के सामनेे को निकलेगा और ज़मीन को बादल की तरह छिपा लेगा; यह आख़िरी दिनों में होगा और मैं तुझे अपनी सरज़मीन पर चढ़ा लाऊँगा, ताकि क़ौमें मुझे जाने जिस वक़्त मैं ऐ जूज उनकी आँखों के सामने तुझसे अपनी तक़दीस कराऊँ
\s5
\v 17 "ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि क्या में वही नहीं जिसके बारे में मैंने पहले ज़माने में अपने ख़िदमत गुज़ार इस्राइली नबियों के ज़रिए', जिन्होंने उन दिनों में सालों साल तक नबुव्वत की फ़रमाया था कि मैं तुझे उन पर चढ़ा लाऊँगा?
\v 18 और यूँ होगा कि जब जूज इस्राईल की मम्लुकत पर चढ़ाई करेगा तो मेरा क़हर मेरे चेहरे से नुमाया होगा, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है|
\s5
\v 19 क्यूँकि मैंने अपनी ग़ैरत और आतिशी क़हर में फ़रमाया कि यक़ीनन उस रोज़ इस्राईल की सरज़मीन में सख़्त ज़लज़ला आएगा।
\v 20 ~ यहाँ तक कि समन्दर की मछलियाँ और आसमान के परिन्दे और मैदान के चरिन्दे, और सब कीड़े मकौड़े जो ज़मीन पर रेंगते फिरते हैं और तमाम इन्सान जो इस ज़मीन पर हैं, मेरे सामने थरथराएँगे और पहाड़ गिर पड़ेंगे और किनारे बैठ जायेंगे और हर एक दीवार ज़मीन पर गिर पड़ेगी।
\s5
\v 21 और मैं अपने सब पहाड़ों से उस पर तलवार तलब करूँगा, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, और हर एक इन्सान की तलवार उसके भाई पर चलेगी ।
\v 22 और मैं वबा भेजकर और खू़ँरेज़ी करके उसे सज़ा दूँगा, और उस पर और उसके लश्करों पर और उन बहुत से लोगों पर जो उसके साथ हैं शिद्दत का मेंह और बड़े- बड़े -ओले और आग और गन्धक बरसाऊँगा।
\v 23 और अपनी बुज़ुर्ग़ी और अपनी तक़्दीस कराऊँगा, और बहुत सी क़ौमों की नज़रों में मशहूर होंगे और वह जानेगे कि~ख़ुदावन्द मैं हूँ |
\s5
\c 39
\p
\v 1 इसलिए ऐ आदमज़ाद, तू जूज के ख़िलाफ़ नबुव्वत कर और कह, कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: देख, ऐ जूज, रोश और मसक और तूबल के फ़रमारवा, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ।
\v 2 और मैं तुझे फिरा दूँगा और तुझे लिए फिरूँगा और उत्तर की दूर 'अतराफ़ से चढ़ा लाऊँगा और तुझे इस्राईल के पहाड़ों पर पहुचाऊँगा।
\v 3 और तेरी कमान तेरे बाएँ हाथ से छुड़ा दूँगा और तेरे तीर तेरे दहने हाथ से गिरा दूँगा।
\s5
\v 4 तू इस्राईल के पहाड़ों पर अपने सब लश्कर और हिमायतियों के साथ गिर जाएगा, और मैं तुझे हर क़िस्म के शिकारी परिन्दों और मैदान के दरिन्दों को दूँगा कि खा जाएँ।
\v 5 तू खुले मैदान में गिरेगा, क्यूँकि मैंने ही कहा, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\v 6 और मैं माजूज पर और उन पर जो समन्दरी मुल्कों में अमन से सुकूनत करते हैं, आग भेजूँगा और वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
\s5
\v 7 ~और मैं अपने मुक़द्दस नाम को अपनी उम्मत इस्राईल में ज़ाहिर करूँगा, और फिर अपने मुक़द्दस नाम की बेहुरमती न होने दूँगा; और क़ौमे जानेंगी कि मैं ख़ुदावन्द इस्राईल का क़ुददूस हूँ।
\v 8 देख, वह पहुँचा और वजूद में आया, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है; यह वही दिन है जिसके ज़रिए' मैंने फ़रमाया था।
\s5
\v 9 तब इस्राईल के शहरों के बसने वाले निकलेंगे और आग लगाकर हथियारों को जलाएँगे, या'नी सिपरों और फरियों को, कमानों और तीरों को, और भालों और बर्छियों को, और वह सात बरस तक उनको जलाते रहेंगे।
\v 10 यहाँ तक कि न वह मैदानों से लकड़ी लाएँगे और न जंगलों से काटेंगे क्यूँकि वह हथियार ही जलाएँगे, और वह अपने लूटने वालों को लूटेंगे और अपने ग़ारत करने वालों को ग़ारत करेंगे, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\s5
\v 11 ~"और उसी दिन यूँ होगा कि मैं वहाँ इस्राईल में जूज को एक क़ब्रिस्तान दूँगा, या'नी रहगुज़रों की वादी जो समन्दर के पूरब में वहाँ जूज को और उसकी तमाम जमियत को दफ़न करेंगे, और जमियत-ए-जूज की वादी उसका नाम रख्खेंगे।
\s5
\v 12 और सात महीनों तक बनी इस्राइल उनको दफ़न करते रहेंगे ताकि मुल्क को साफ़ करें।
\v 13 हाँ, उस मुल्क के सब लोग उनको दफ़न करेंगे; और यह उनके लिए उनका भी नाम ~होगा जिस रोज़ मेरी बड़ाई होगी, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\s5
\v 14 और वह चन्द आदमियों को चुन लेंगे जो इस काम में हमेशा मशगू़ल रहेंगे, और वह ज़मीन पर से गुज़रते हुए रहगुज़रों की मदद से, उनको जो सतह-ए-ज़मीन पर पड़े रह गए हों, दफ़न करेंगे ताकि उसे साफ़ करें, पूरे सात महीनों के बा'द तलाश करेंगे।
\v 15 और जब वह मुल्क में से गुज़रें और उनमें से कोई किसी आदमी की हड्डी देखे, तो उसके पास एक निशान खड़ा करेगा, जब तक दफ़न करने वाले जमियत-ए-जूज की वादी में उसे दफ़न न करें ।
\v 16 और शहर भी ज'मिय्यत कहलाएगा। यूँ वह ज़मीन को पाक करेंगे।
\s5
\v 17 "और ऐ आदमज़ाद, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: कि हर क़िस्म के परिन्दे और मैदान के हर एक जानवर से कह, जमा' होकर आओ, मेरे उस ज़बीहे पर जिसे मैं तुम्हारे लिए ज़बह करता हूँ; हाँ, इस्राईल के पहाड़ों पर एक बड़े ज़बीहे पर हर तरफ़ से जमा' हो, ताकि तुम गोश्त खाओ और खू़न पियो।
\v 18 ~तुम बहादुरों का गोश्त खाओगे और ज़मीन के 'उमरा का खू़न पिओगे, हाँ, मेंढों, बर्रों, बकरों और बैलों का वह सब के सब बसन के फ़र्बा हैं।
\s5
\v 19 और तुम मेरे ज़बीहे की जिसे मैंने तुम्हारे लिए ज़बह किया यहाँ तक खाओगे कि सेर हो जाओगे, और इतना खू़न पिओगे कि मस्त हो जाओगे।
\v 20 और तुम मेरे दस्तरख़्वान पर घोड़ों और सवारों से, और बहादुरों और तमाम जंगीमर्दों से सेर होगे, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\s5
\v 21 'और मैं क़ौमों के बीच अपनी बुज़ुर्गी ज़ाहिर करूँगा और तमाम क़ोमें मेरी सज़ा को जो मैंने दी और मेरे हाथ को जो मैंने उन पर रख्खा देखेंगी।
\v 22 और बनी-इस्राईल जानेंगे कि उस दिन से लेकर आगे को मैं ही ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हूँ।
\s5
\v 23 और क़ौमें जानेंगी कि बनी-इस्राईल अपनी बदकिरदारी की वजह से ग़ुलामी में गए, चूँकि वह मुझ से बाग़ी हुए, इसलिए मैंने उनसे मुँह छिपाया; और उनको उनके दुश्मनों के हाथ में कर दिया, और वह सब के सब तलवार से क़त्ल हुए।
\v 24 उनकी नापाकी और ख़ताकारी के मुताबिक़, मैंने उनसे सुलूक किया और उनसे अपना मुँह छिपाया।
\s5
\v 25 "लेकिन ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि अब मैं या'क़ूब की ग़ुलामी को ख़त्म करूँगा, और तमाम बनी इस्राईल पर रहम करूँगा और अपने पाक नाम के लिए ग़य्यूर हूँगा।
\v 26 और वह अपनी रुस्वाई और तमाम ख़ताकारी, जिससे वह मेरे गुनहगार हुए बर्दाश्त करेंगे; जब वह अपनी सरज़मीन में अमन से क़याम करेंगे, तो कोई उनको न डराएगा।
\v 27 जब मैं उनकी उम्मतों में से वापस लाऊँगा, और उनके दुश्मनों के मुल्कों से जमा' करूँगा, और बहुत सी क़ौमों की नज़रों में उनके बीच मेरी तक़दीस होगी।
\s5
\v 28 तब वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हूँ, इसलिए कि मैंने उनको क़ौम के बीच ग़ुलामी में भेजा और मैं ही ने उनको उनके मुल्क में जमा' किया और उनमें से एक को भी वहाँ न छोड़ा।
\v 29 और मैं फिर कभी उनसे मुँह न छिपाऊँगा, क्यूँकि मैंने अपनी रूह बनी-इस्राईल पर नाज़िल की है ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है|
\s5
\c 40
\p
\v 1 ~हमारी ग़ुलामी के पच्चीसवें बरस के शुरू' में और महीने की दसवीं तारीख़ को, जो शहर की तस्ख़ीर का चौदहवाँ साल था, उसी दिन ख़ुदावन्द का हाथ मुझ पर था, और वह मुझे वहाँ ले गया।
\v 2 वह मुझे ख़ुदा की रोयतों में इस्राईल के मुल्क में ले गया और उसने मुझे एक बहुत बुलन्द पहाड़ पर उतारा, और उसी पर दक्खिन की तरफ़ जैसे एक शहर का सा नक़्शा था।
\s5
\v 3 जब वह मुझे वहाँ ले गया तो क्या देखता हूँ कि एक शख़्स है जिसकी झलक पीतल के जैसी है, और वह सन की डोरी और पैमाइश का सरकण्डा हाथ में लिए फाटक पर खड़ा है।
\v 4 और उस शख़्स ने मुझे कहा, कि "ऐ आदमज़ाद, अपनी आँखों से देख और कानों से सुन, और जो कुछ मैं तुझे दिखाऊँ उस सब पर ख़ूब ग़ौर कर, क्यूँकि तू इसी लिए यहाँ पहुँचाया गया है कि मैं यह सब कुछ तुझे दिखाऊँ; इसलिए जो कुछ तू देखता है, बनी इस्राईल से बयान कर।"
\s5
\v 5 और क्या देखता हूँ कि घर के चारों तरफ़ दीवार है, और उस शख़्स के हाथ में पैमाइश का सरकण्डा है, छ: हाथ लम्बा और हर एक हाथ पूरे हाथ से चार उँगल बड़ा था; इसलिए उसने उस दीवार की चौड़ाई नापी, वह एक सरकण्डा हुई और ऊँचाई एक सरकण्डा।
\v 6 तब वह पूरब रूया फाटक पर आया, और उसकी सीढ़ी पर चढ़ा और उस फाटक के आस्ताने को नापा, जो एक सरकण्डा चौड़ा था और दूसरे आस्ताने का 'अर्ज़ भी एक सरकण्डा था।
\v 7 ~और हर एक कोठरी एक सरकण्डा लम्बी और एक सरकण्डा चौड़ी थी, और कोठरियों के बीच पाँच पाँच हाथ का फ़ासिला था, और फाटक की डयोढ़ी के पास अन्दर की तरफ़ फाटक का आस्ताना एक सरकण्डा था|
\s5
\v 8 और उसने फाटक के आँगन अन्दर से एक सरकण्डा नापी।
\v 9 तब उसने फाटक के~आँगन~~आठ हाथ नापी, और उसके सुतून दो हाथ और फाटक~के~आँगन~अन्दर की तरफ़ थी।
\v 10 और पूरब रूया फाटक की कोठरियाँ तीन इधर और तीन उधर थीं, यह तीनों पैमाइश में बराबर थीं, और इधर-उधर के सुतूनों का एक ही नाप था।
\s5
\v 11 और उसने फाटक के दरवाज़े की चौड़ाई दस हाथ और लम्बाई तेरह हाथ नापी।
\v 12 और कोठरियों के आगे का हाशिया हाथ भर इधर और हाथ भर उधर था, और कोठरियाँ छ: हाथ इधर और छ: हाथ उधर थीं।
\v 13 तब उसने फाटक की एक कोठरी की छत से दूसरी की छत तक पच्चीस हाथ चौड़ा नापा दरवाज़े के सामने का दरवाज़ा |
\s5
\v 14 ~और उसने सुतून साठ हाथ नापे और सहन के सुतून दरवाज़े के चारों तरफ़ थे।
\v 15 और मदख़ल के फाटक के सामने से~लेकर, अन्दरूनी फाटक~के~आँगन~तक पचास हाथ का फ़ासिला था।
\v 16 ~और कोठरियों में और उनके सुतूनों में फाटक के अन्दर चारों तरफ़ झरोके थे, वैसे ही~~आँगन~के अन्दर भी चारों तरफ़ झरोके थे, और सुतूनों पर खजूर की सूरतें थीं।
\s5
\v 17 फिर वह मुझे बाहर के सहन में ले गया, और क्या देखता हूँ कि कमरे हैं और चारों तरफ़ सहन में फ़र्श लगा था, और उस फ़र्श पर तीस कमरे थे।
\v 18 और वह फ़र्श या'नी नीचे का फ़र्श फाटकों के साथ साथ बराबर लगा था।
\v 19 ~तब उसने उसकी चौड़ाई नीचे के फाटक के सामने से अन्दर के सहन के आगे, पूरब और उत्तर की तरफ़ बाहर बाहर सौ हाथ नापी ।
\s5
\v 20 फिर उसने बाहर के सहन के उत्तर रूया फाटक की लम्बाई और चौड़ाई नापी।
\v 21 और उसकी कोठरियाँ तीन इस तरफ़ और तीन उस तरफ़ और उसके सुतून और मेहराब पहले फाटक के नाप के मुताबिक़ थे; उसकी लम्बाई पचास हाथ और चौड़ाई पच्चीस हाथ थी।
\s5
\v 22 और उसके दरीचे और आँगन और खजूर के दरख़्त पूरब रूया फाटक के नाप के मुताबिक़ थे, और ऊपर जाने के लिए सात ज़ीने थे; उसके आँगन उनके आगे थी |
\v 23 ~और अन्दर के सहन का फाटक उत्तर रूया और पूरब रूया फाटकों के सामने था, और उसने फाटक से फाटक तक सौ हाथ नापा ।
\s5
\v 24 और वह मुझे दक्खिन की राह से ले गया, और क्या देखता हूँ कि दक्खिन की तरफ़ एक फाटक है, और उसने उसके सुतूनों को और उसके आँगन को इन्हीं नापों के मुताबिक़ नापा।
\v 25 और उसमें और उसके आँगन में चारों तरफ़ उन दरीचों की तरह दरीचे थे; लम्बाई पचास हाथ, चौड़ाई पच्चीस हाथ।
\s5
\v 26 और उसके ऊपर जाने के लिए सात ज़ीने थे, और उसके आँगन उनके आगे थी और सुतूनों~पर खजूर की सूरते थीं, एक इस तरफ़ और एक उस तरफ़।
\v 27 और दक्खिन की तरफ़ अन्दरूनी सहन का फाटक था, और उसने दक्खिन की तरफ़ फाटक से फाटक तक सौ हाथ नापा |
\s5
\v 28 ~और वह दक्खिनी फाटक की रास्ते से मुझे अन्दरूनी सहन में लाया, और इन्हीं नापों के मुताबिक़ उसने दक्खिनी फाटक को नापा |
\v 29 और उसकी कोठरियों और उसके सुतूनों और उसके आँगन को इन्हीं नापों के मुताबिक पाया और उसमें और उसके आँगन में चारों तरफ़ दरीचे थे; लम्बाई पचास हाथ और चौड़ाई पच्चीस हाथ थी।
\v 30 और आँगन चारों तरफ़ पच्चीस हाथ लम्बी और पाँच हाथ चौड़ी थी।
\v 31 उसकी आँगन बैरूनी सहन की तरफ़ थी और उसके सुतूनों पर खजूर की सूरतें थीं और ऊपर जाने के लिए आठ ज़ीने थे।
\s5
\v 32 और वह मुझे पूरब की तरफ़ अन्दरूनी सहन में लाया और इन्हीं नापों के मुताबिक़ फाटक को पाया।
\v 33 और उसकी कोठरियों और सुतूनों और आँगन को इन्हीं नापों के मुताबिक़ पाया, और उसमें और उसके आँगन में चारों तरफ़ दरीचे थे; लम्बाई पचास हाथ चौड़ाई पच्चीस हाथ थी।
\v 34 और उसका आँगन बैरूनी सहन की तरफ़ था और उसके~सुतूनों पर इधर-उधर खजूर की सूरतें थीं, और ऊपर जाने के लिए आठ ज़ीने थे।
\s5
\v 35 और वह मुझे उत्तरी फाटक की तरफ़ ले गया और इन्हीं नापों के मुताबिक़ उसे पाया|
\v 36 उसकी कोठरियों और उसके सुतूनों और उसके आँगन को जिनमें चारों तरफ़ दरीचे थे, लम्बाई पचास हाथ चौड़ाई पच्चीस हाथ थी।
\v 37 और उसके सुतून बैरूनी सहन की तरफ़ थे, और उसके सुतूनों ~पर इधर उधर खजूर की सूरतें थीं और ऊपर जाने के लिए आठ जीने थे |
\s5
\v 38 ~और फाटकों के सुतूनों के पास दरवाज़ेदार हुजरा था, जहाँ सोख़्तनी कु़र्बानियाँ धोते थे।
\v 39 और फाटक के आँगन में दो मेज़े इस तरफ़ और दो उस तरफ़ थीं, कि उन पर सोख़्तनी क़ुर्बानी और ख़ता की क़ुर्बानी और जुर्म की क़ुर्बानी ज़बह करें।
\s5
\v 40 और बाहर की तरफ़ उत्तरी फाटक के मदख़ल के पास दो मेज़ें थीं, और फाटक की डयोढ़ी की दूसरी तरफ़ दो मेजें।
\v 41 फाटक के पास चार मेज़ें इस तरफ़ और चार उस तरफ़ थीं, या'नी आठ मेज़े जिन पर ज़बह करें।
\s5
\v 42 सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए तराशे हुए पत्थरों की चार मेजें थीं, जो डेढ़ हाथ लम्बी और डेढ़ हाथ चौड़ी और एक हाथ ऊँची थीं, जिन पर वह सोख़्तनी क़ुर्बानी और ज़बीहे को ज़बह करने के हथियार रखते थे।
\v 43 और उसके अन्दर चारों तरफ़ चार उंगल लम्बी अंकड़ियाँ लगी थीं और क़ुर्बानी का गोश्त मेज़ों पर था।
\s5
\v 44 और अन्दरूनी फाटक से बाहर अन्दरूनी सहन में जो उत्तरी फाटक की जानिब था, गाने वालों के कमरे थे और उनका रुख़ दक्खिन की तरफ़ था, और एक पूरबी फाटक की जानिब था जिसका रुख़ उत्तर की तरफ़ था।
\v 45 और उसने मुझ से कहा, कि "यह कमरा जिसका रुख़ दक्खिन की तरफ़ है, उन काहिनों के लिए है जो घर की निगहबानी करते हैं;
\s5
\v 46 और वह कमरा जिसका रुख़ उत्तर की तरफ़ है, उन काहिनों के लिए है जो मज़बह की मुहाफ़िज़त में हाज़िर हैं; यह बनी सदूक़ हैं जो बनी लावी में से ख़ुदावन्द के सामने आते हैं कि उसकी ख़िदमत करें।”
\v 47 और उसने सहन को सौ हाथ लम्बा और सौ हाथ चौड़ा मुरब्बा नापा और मज़बह घर के सामने था।
\s5
\v 48 फिर वह मुझे घर के आँगन में लाया और आँगन को नापा; पाँच हाथ इधर पाँच हाथ उधर और फाटक की चौड़ाई तीन हाथ इस तरफ़ थी और तीन हाथ उस तरफ़।
\v 49 आँगन की लम्बाई बीस हाथ और चौड़ाई ग्यारह हाथ की और सीढ़ी के ज़ीने जिनसे उस पर चढ़ते थे और सुतूनों ~के पास पील पाए थे, एक इस तरफ़ और एक उस तरफ़|
\s5
\c 41
\p
\v 1 और वह मुझे हैकल में लाया और सुतूनों को नापा, छ: हाथ की चौड़ाई एक तरफ़ और छ: हाथ की दूसरी तरफ़, यही ख़ेमे की चौड़ाई थी।
\v 2 और दरवाज़े की चौड़ाई दस हाथ, और उसका एक पहलू पाँच हाथ का और दूसरा भी पाँच हाथ का था; और उसने उसकी लम्बाई चालीस हाथ और चौड़ाई बीस हाथ नापी।
\s5
\v 3 तब वह अन्दर गया और दरवाज़े के हर सुतून को दो हाथ नापा, और दरवाज़े को छ: हाथ और दरवाज़े की चौड़ाई सात हाथ थी।
\v 4 और उसने हैकल के सामने की लम्बाई को बीस हाथ और चौड़ाई को बीस हाथ नापा, और मुझ से कहा, कि "यही पाक-तरीन मक़ाम है।
\s5
\v 5 और उसने घर की दीवार छ: हाथ नापी, और पहलू के हर एक कमरे की चौड़ाई घर के चारों तरफ़ चार हाथ थी।
\v 6 और पहलू के कमरे तीन मंज़िला थे; कमरे के ऊपर कमरा क़तार में तीस, और वह उस दीवार में जो घर के चारों तरफ़ के कमरों के लिए थी, दाख़िल किए गए थे ताकि मज़बूत हों; लेकिन वह घर की दीवार से मिले हुए न थे।
\v 7 और वह पहलू पर के कमरे ऊपर तक चारों तरफ़ ज़्यादा चौड़े होते जाते थे, क्यूँकि घर चारों तरफ़ से ऊँचा होता चला जाता था। घर की चौड़ाई ऊपर तक बराबर थी, और ऊपर के कमरों का रास्ता बीच के कमरों के बीच से था।
\s5
\v 8 और मैंने घर के चारों तरफ़ ऊँचा चबूतरा देखा, पहलू के कमरों की बुनियाद छ: बड़े हाथ के पूरे सरकण्डे की थी।
\v 9 और पहलू के कमरों की बैरूनी दीवार की चौड़ाई पाँच हाथ थी, और जो जगह बाक़ी बची वह घर के पहलू के कमरों के बीच थी।
\s5
\v 10 और कमरों के बीच घर के चारों तरफ़ बीस हाथ का फ़ासला था।
\v 11 और पहलू के कमरों के दरवाज़े उस ख़ाली जगह की तरफ़ थे, एक दरवाज़ा उत्तर की तरफ़ और एक दक्खिन की तरफ़ और ख़ाली जगह की चौड़ाई चारों तरफ़ पाँच हाथ थी।
\s5
\v 12 और वह 'इमारत जो अलग जगह के सामने पश्चिम की तरफ़ थी उसकी चौड़ाई सत्तर हाथ थी और उस 'इमारत की दीवार चारों तरफ़ पाँच हाथ मोटी और नब्बे हाथ लम्बी थी।
\v 13 इसलिए उसने घर को सौ हाथ लम्बा नापा और अलग जगह और 'इमारत उसकी दीवारों के साथ सौ हाथ लम्बी थी।
\v 14 नेज़, घर के सामने की तरफ़ उस पूरबी जानिब की अलग जगह की चौड़ाई सौ हाथ थी।
\s5
\v 15 और अलग जगह के सामने की 'इमारत की लम्बाई को, जो उसके पीछे थी, और उसकी जानिब के बरामदे इस तरफ़ से और उस तरफ़ से, और अन्दर की तरफ़ हैकल को और सहन के आँगनों को उसने सौ हाथ नापा।
\v 16 आस्तानों और झरोकों और चारों तरफ़ के बरामदों को जो सहमंज़िला और आस्तानों के सामने थे, और चारों तरफ़ लकड़ी से मढ़े हुए थे, और ज़मीन से खिड़कियों तक और खिड़कियाँ भी मढ़ी हुई थीं।
\v 17 दरवाज़े के ऊपर तक और अन्दरूनी घर तक और उसके बाहर भी, चारों तरफ़ की तमाम दीवार तक घर के अन्दर बाहर सब ठीक अन्दाज़े से थे।
\s5
\v 18 और करूबी और खजूर बने थे, और एक खजूर दो करूबियों के बीच में था और हर एक करूबी के दो चेहरे थे।
\v 19 चुनाँचे एक तरफ़ इन्सान का चेहरा खजूर की तरफ़ था, और दूसरी तरफ़ जवान शेर-ए-बबर का चेहरा भी खजूर की तरफ़ था; घर की चारों तरफ़ इसी तरह का काम था।
\v 20 ज़मीन से दरवाजे के ऊपर तक, और हैकल की दीवार पर करूबी और खजूर बने थे।
\s5
\v 21 और हैकल के दरवाज़े के सुतून चहार गोशा थे, और हैकल के सामने की सूरत भी इसी तरह की थी।
\v 22 मज़बह लकड़ी का था, उसकी ऊँचाई तीन हाथ और लम्बाई दो हाथ थी, और उसके कोने और उसकी कुर्सी और उसकी दीवारें लकड़ी की थीं, और उसने मुझ से कहा, "यह ख़ुदावन्द के सामने की मेज़ है।"
\v 23 और हैकल और हैकल के दो दो दरवाज़े थे।
\v 24 और दरवाज़ों के दो दो पल्ले थे जो मुड़ सकते थे; दो पल्ले एक दरवाज़े के लिए और दो दूसरे के लिए।
\s5
\v 25 और उन पर या'नी हैकल के दरवाज़ों पर करूबी और खजूर बने थे, जैसे कि दीवारों पर बने थे और बाहर के आँगन के रुख़ पर तख़्ता बन्दी थी।
\v 26 और आँगन की अन्दरूनी और बैरूनी जानिब पहलू में झरोके और खजूर के दरख़्त बने थे, और हैकल के पहलू के कमरों और तख़्ता बन्दी की यही सूरत थी।
\s5
\c 42
\p
\v 1 फिर वह मुझे उत्तरी रास्ते से बैरूनी सहन में ले गया, और उस कोठरी में जो अलग जगह और 'इमारत के सामने उत्तर की तरफ़ थी ले आया।
\v 2 सौ हाथ की लम्बाई की जगह के सामने उत्तरी दरवाज़ा था, और उसकी चौड़ाई पचास हाथ थी।
\v 3 बीस हाथ के सामने जो अन्दरूनी सहन के लिए थे, और बैरूनी सहन के फ़र्श के सामने कोठरियाँ तीन तबक़ों में एक दूसरे के सामने थीं।
\s5
\v 4 और कोठरियों के सामने अन्दर की तरफ़ दस हाथ चौड़ा रास्ता था, और एक रास्ता एक हाथ का और उनके दरवाज़े उत्तर की तरफ़ थे।
\v 5 ऊपर की कोठरियाँ छोटी थीं, क्यूँकि उनके बरामदों ने 'इमारत की निचली और बीच की मंज़िल के सामनेे इनसे ज़्यादा जगह रोक ली थी।
\v 6 क्यूँकि वह तीन दर्जों की थीं, लेकिन उनके सुतून सहन के सुतूनों की तरह न थे; इसलिए वह निचली और बीच मंज़िन्ल से तंग थीं |
\s5
\v 7 और कोठरियों के पास की बैरूनी सहन की तरफ़, कोठरियों के सामने की बैरूनी दीवार पचास हाथ लम्बी थी।
\v 8 क्यूँकि बैरूनी सहन की कोठरियों की लम्बाई पचास हाथ थी, और हैकल के सामने सौ हाथ की लम्बाई थी।
\v 9 और उन कोठरियों के नीचे पूरब की तरफ़ वह मदख़ल था, जहाँ से बैरूनी सहन से दाख़िल होते थे।
\s5
\v 10 पूरबी सहन की चौड़ी दीवार में और अलग जगह और उस 'इमारत के सामने कोठरियाँ थीं।
\v 11 और उनके सामने एक ऐसा रास्ता था, जैसा उत्तर की तरफ़ की कोठरियों के सामने था; उनकी लम्बाई और चौड़ाई बराबर थी, और उनके तमाम~मख़रज उनकी तरतीब और उनके दरवाज़ों के मुताबिक़ थे।
\v 12 और दक्खिन की तरफ़ की कोठरियों के दरवाज़ों के मुताबिक़ एक दरवाज़ा रास्ते के सिरे पर था, या'नी सीधी दीवार के रास्ते पर पूरब की तरफ़ जहाँ से उनमें दाख़िल होते थे।
\s5
\v 13 और उसने मुझ से कहा, कि "उत्तरी और दक्खिनी कोठरियाँ जो अलग जगह के मुक़ाबिल हैं पाक कोठरियाँ हैं जहाँ काहिन जो ख़ुदावन्द के सामने जाते हैं अक़दस चीजें खायेंगे और अक़दस चीज़ें और नज़र की क़ुर्बानी और ख़ता की क़ुर्बानी और जुर्म की क़ुर्बानी वहाँ रख्खेंगे, क्यूँकि वह मकान पाक है।
\v 14 जब काहिन दाख़िल हों तो वह हैकल से बैरूनी सहन में न जाएँ, बल्कि अपनी ख़िदमत के लिबास वहीं उतार दें क्यूँकि वह पाक हैं, और वह दूसरे कपड़े पहन कर 'आम मकान में जाएँ।”
\s5
\v 15 फिर जब वह अन्दरूनी घर को नाप चुका, तो मुझे उस फाटक के रास्ते से लाया जिसका रुख़ पूरब की तरफ़ है और घर को चारों तरफ़ से नापा।
\s5
\v 16 उसने पैमाइश के सरकण्डे से पूरब की तरफ़ चारो तरफ़ पाँच सौ सरकण्डे नापे।
\v 17 उसने पैमाइश के सरकण्डे से उत्तर की तरफ़ चारो तरफ़ पाँच सौ सरकण्डे नापे।
\v 18 उसने पैमाइश के सरकण्डे से दक्खिन की तरफ़ भी पाँच सौ सरकण्डे नापे।
\v 19 उसने पच्छिम की तरफ़ मुड़ कर पैमाइश के सरकण्डे से पाँच सौ सरकण्डे नापे।
\s5
\v 20 उसने उसको चारों तरफ़ से नापा, उसकी चारों तरफ़ एक दीवार पाँच सौ सरकण्डे लम्बी और पाँच सौ चौड़ी थी, ताकि पाक को 'आम से जुदा करे।
\s5
\c 43
\p
\v 1 ~फिर वह मुझे फाटक पर ले आया, या'नी उस फाटक पर जिसका रुख़ पूरब की तरफ़ है,;
\v 2 और क्या देखता हूँ कि इस्राईल के ख़ुदा का जलाल पूरब की तरफ़ से आया, और उसकी आवाज़ सैलाब के शोर के जैसी थी, और ज़मीन उसके जलाल से मुनव्वर हो गई।
\s5
\v 3 और यह उस ख़्वाब की नुमाइश के मुताबिक़ था जो मैंने देखा था, हाँ, उस ख़्वाब के मुताबिक़ जो मैंने उस वक़्त देखा था जब मैं शहर को बर्बाद करने आया था, और यह रोयतें उस ख़्वाब की तरह थीं जो मैंने नहर-ए-किबार के किनारे पर देखा था; तब मैं मुँह के बल गिरा।
\v 4 और ख़ुदावन्द का जलाल उस फाटक की राह से, जिसका रुख़ पूरब की तरफ़ है हैकल में दाख़िल हुआ |
\v 5 और रूह ने मुझे उठा कर अन्दरूनी सहन में पहुँचा दिया, और क्या देखता हूँ कि हैकल ख़ुदावन्द के जलाल से मा'मूर है।
\s5
\v 6 और मैंने किसी की आवाज़ सुनी, जो हैकल में से मेरे साथ बातें करता था, और एक शख़्स मेरे पास खड़ा था।
\v 7 और उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद, यह मेरी तख़्तगाह और मेरे पाँव की कुर्सी है जहाँ मैं बनी-इस्राईल के बीच हमेशा तक रहूँगा और बनी इस्राईल और उनके बादशाह फिर कभी मेरे पाक नाम को अपनी बदकारी और अपने बादशाहों की लाशों से उनके मरने पर नापाक न करेंगे।
\v 8 क्यूँकि वह अपने आस्ताने मेरे आस्तानों के पास, और अपनी चौखटें मेरी चौखटों के पास लगाते थे, और मेरे और उनके बीच सिर्फ़ एक दीवार थी; उन्होंने अपने उन घिनौने कामों से जो उन्होंने किए मेरे पाक नाम को नापाक किया, इसलिए मैंने अपने क़हर में उनको हलाक किया।
\s5
\v 9 अगरचे अब वह अपनी बदकारी और अपने बादशाहों की लाशें मुझ से दूर कर दें, तो मैं हमेशा तक उनके बीच रहूँगा।
\s5
\v 10 ~"ऐ आदमज़ाद, तू बनी-इस्राईल को यह घर दिखा, ताकि वह अपनी बदकिरदारी से शर्मिन्दा हो जाएँ और इस नमूने को नापें।
\v 11 और अगर वह अपने सब कामों से शर्मिंदा हों, तो उस घर का नक़्शा और उसकी तरतीब और उसके मख़ारिज और मदख़ल और उसकी तमाम शक्ल और उसके कुल हुक्मों और उसकी पूरी वज़ह और तमाम क़वानीन उनको दिखा, और उनकी आँखों के सामने उसको लिख, ताकि वह उसका कुल~नक़्शा~~और उसके तमाम हुक्मों को मानकर उन पर 'अमल करें।
\s5
\v 12 इस घर का क़ानून यह है कि इसकी तमाम सरहदें पहाड़ की चोटी पर और इसके चारों तरफ़ बहुत पाक होंगी; देख, यही इस घर का क़ानून है।
\s5
\v 13 'और हाथ के नाप से मज़बह के यह नाप हैं, और इस हाथ की लम्बाई एक हाथ चार उँगल है। पाया एक हाथ का होगा, और चौड़ाई एक हाथ और उसके चारो तरफ़ बालिश्त भर चौड़ा हाशिया, और मज़बह का पाया यही है।
\v 14 और ज़मीन पर के इस पाये से लेकर नीचे की कुर्सी तक दो हाथ, और उसकी चौड़ाई एक हाथ और छोटी कुर्सी से बड़ी कुर्सी तक चार हाथ और चौड़ाई एक हाथ।
\s5
\v 15 और ऊपर का मज़बह चार हाथ का होगा, और मज़बह के ऊपर चार सींग होंगे।
\v 16 और मज़बह बारह हाथ लम्बा होगा और बारह हाथ चौड़ा मुरब्बा"।
\v 17 और कुर्सी चौदह हाथ लम्बी और चौदह हाथ चौड़ी मुरब्बा' और चारों तरफ़ उसका किनारा आधा हाथ, उसका पाया चारो तरफ़ एक हाथ और उसका ज़ीना पूरब रू होगा।”
\s5
\v 18 और उसने मुझ से कहा, ~"ऐ आदमज़ाद, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि मज़बह के यह हुक्म उस दिन~जारी होंगे जब वह उसे बनाएँगे, ताकि उस पर सोख़्तनी क़ुर्बानी पेश करें और उस पर ख़ून छिड़कें।
\v 19 और तू लावी काहिनों को जो सदूक़ की नसल से हैं, जो मेरी ख़िदमत के लिए मेरे सामने आते हैं,ख़ता की क़ुर्बानी के लिए बछड़ा देना, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\s5
\v 20 और तू उसके खू़न में से लेना और मज़बह के चारों सींगों पर, उसकी कुर्सी के चारों कोनों पर और उसके चारो तरफ़ के हाशिए पर लगाना; इसी तरह कफ़्फ़ारा देकर उसे पाक-ओ-साफ़ करना।
\v 21 और ख़ता की क़ुर्बानी के लिए बछड़ा लेना, और वह घर की मुक़र्रर जगह में हैकल के बाहर जलाया जाएगा।
\s5
\v 22 और तू दूसरे दिन एक बे'ऐब बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए पेश करना, और वह मज़बह को कफ़्फ़ारा देकर उसी तरह पाक करेंगे, जिस तरह बछड़े से पाक किया था।
\v 23 और जब तू उसे पाक कर चुके तो एक बे'ऐब बछड़ा और गल्ले का एक बे'ऐब मेंढा पेश करना।
\v 24 और तू उनको ख़ुदावन्द के सामने लाना और काहिन उनपर नमक छिड़कें और उनको सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए ख़ुदावन्द के सामने पेश करें।
\s5
\v 25 और तू सात दिन तक हर रोज़ एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए तैयार कर रखना, वह एक बछड़ा और गल्ले का एक मेंढा भी जो बे'ऐब हों तैयार कर रख्खें।
\v 26 सात दिन तक वह मज़बह को कफ़्फ़ारा देकर ~पाक-ओ-साफ़ करेंगे और उसको मख़्सूस करेंगे।
\v 27 और जब यह दिन पूरे होंगे, तो यूँ होगा कि आठवें दिन और आइन्दा काहिन तुम्हारी सोख़्तनी कुर्बानियों को और तुम्हारी सलामती की कु़र्बानियों को मज़बह पर पेश करूँगे, और मैं तुम को क़ुबूल करूँगा; ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।”
\s5
\c 44
\p
\v 1 तब वह मुझको हैकल के बैरूनी फाटक के रास्ते से, जिसका रुख़ पूरब की तरफ़ है वापस लाया, और वह बन्द था।
\v 2 और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, कि "यह फाटक बन्द रहेगा और खोला न जाएगा, और कोई इन्सान इससे दाख़िल न होगा; चूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा इससे दाख़िल हुआ है, इसलिए यह बन्द रहेगा।
\v 3 मगर फ़रमारवाँ~इसलिए कि फ़रमारवाँ है, ख़ुदावन्द के सामने रोटी खाने को इसमें बैठेगा; वह इस फाटक के आस्ताने के रास्ते से अन्दर आएगा, और इसी रास्ते से बाहर जाएगा।”
\s5
\v 4 फिर वह मुझे उत्तरी फाटक के रास्ते से हैकल के सामने लाया, और मैंने निगाह की और क्या देखता हूँ कि ख़ुदावन्द के जलाल ने ख़ुदावन्द के घर को मा'मूर कर दिया; और मैं मुँह के बल गिरा।
\v 5 और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, ~"ऐ आदमज़ाद, ख़ूब ग़ौर कर और अपनी आँखों से देख, और जो कुछ ख़ुदावन्द के घर के हुक्मों और क़वानीन के ज़रिए' तुझ से कहता हूँ अपने कानों से सुन, और घर के मदख़ल को और हैकल के सब मख़रजों को ख़याल में रख।
\s5
\v 6 और तू बनी इस्राईल के बाग़ी लोगों से कहना कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता कि ऐ बनी इस्राईल तुम अपनी मकरूहात को अपने लिए काफ़ी समझो |
\v 7 चुनाँचे जब तुम मेरी रोटी और चर्बी ~और ख़ून अदा करते ~थे, तो दिल के नामख़्तून और जिस्म के नामख़्तून अजनबीज़ादों को मेरे हैकल में लाए, ताकि वह मेरी हैकल में आकर मेरे घर को नापाक करें, और उन्होंने तुम्हारे तमाम नफ़रतअंगेज़ कामों की वजह से मेरे 'अहद को तोड़ा।
\s5
\v 8 और तुम ने मेरी पाक चीज़ों की हिफ़ाज़त न की, बल्कि तुम ने गै़रों को अपनी तरफ़ से मेरी हैकल में निगहबान मुक़र्रर किया।
\v 9 "ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि उन अजनबीज़ादों में से जो बनी इस्राईल के बीच हैं, कोई दिल का नामख़्तून या जिस्म का नामख़्तून अजनबीज़ादा मेरी हैकल में दाख़िल न होगा।
\s5
\v 10 "और बनी लावी जो मुझ से दूर हो गए जब इस्राईल गुमराह हुआ, क्यूँकि वह अपने बुतों की पैरवी करके मुझ से गुमराह हुए वह भी अपनी बदकिरदारी की सज़ा पाएँगे।
\v 11 तोभी वह मेरे हैकल में ख़ादिम होंगे और मेरे घर के फाटकों पर निगहबानी करेंगे और मेरे घर में ख़िदमत गुज़ारी करेंगे; वह लोगों के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानी और ज़बीहा ज़बह करेंगे और उनके सामने उनकी ख़िदमत के लिए खड़े रहेंगे।
\v 12 चूँकि उन्होंने उनके लिए बुतों की ख़िदमत की और बनी इस्राईल के लिए बदकिरदारी में ठोकर का जरि'अ हुए, इसलिए मैंने उन पर हाथ चलाया और वह अपनी बदकिरदारी की सज़ा पाएँगे; ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है:
\s5
\v 13 और वह मेरे नज़दीक न आ सकेंगे कि मेरे सामने कहानत करें, न वह मेरी पाक चीज़ों के पास आएँगे या'नी पाक तरीन चीज़ों के पास; बल्कि वह अपनी रुसवाई उठायेंगे और अपने घिनौने कामों ~की, जो उन्होंने किए हैं सज़ा पाएँगे।
\v 14 तोभी मैं उनको हैकल की हिफ़ाज़त के लिए और उसकी तमाम ख़िदमत के लिए, और उस सब के लिए जो उसमें किया जाएगा, निगहबान मुक़र्रर करूँगा।
\s5
\v 15 लेकिन लावी काहिन या'नी बनी सदूक़ जो मेरी हैकल की हिफ़ाज़त करते थे, जब बनी इस्राईल मुझ से गुमराह हो गए, मेरी ख़िदमत के लिए मेरे नज़दीक आएँगे और मेरे सामने खड़े रहेंगे ताकि मेरे सामने चर्बी और ख़ून पेश करेंगे, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\v 16 वही मेरे हैकल में दाख़िल होंगे और वही ख़िदमत के लिए मेरी मेज़ के पास आएँगे और मेरे अमानतदार होंगे।
\s5
\v 17 और यूँ होगा कि जिस वक़्त वह अन्दरूनी सहन के फाटकों से दाख़िल होंगे, तो कतानी लिबास से मुलब्बस होंगे, और जब तक अन्दरूनी सहन के फाटकों के बीच और घर में ख़िदमत करेंगे कोई ऊनी चीज़ न पहनेंगे।
\v 18 वह अपने सिरों पर कतानी 'अमामे और कमरों पर कतानी पायजामे पहनेंगे, और जो कुछ पसीने के ज़रिए' हो उसे अपनी कमर पर न बाँधे।
\s5
\v 19 और जब बैरूनी सहन में या'नी 'अवाम के बैरूनी सहन में निकल आएँ, तो अपनी ख़िदमत की पोशाक उतार कर पाक कमरों में रख्खेंगे; और दूसरी पोशाक पहनेंगे, ताकि अपने लिबास से 'अवाम की तक़दीस न करें।
\s5
\v 20 और वह न सिर मुंडाएँगे और न बाल बढ़ाएँगे, वह सिर्फ़ अपने सिरों के बाल कतराएँगे।
\v 21 और जब अन्दरूनी सहन में दाख़िल हों, तो कोई काहिन शराब न पिए।
\v 22 और वह बेवा या मुतल्लक़ा से ब्याह न करेंगे, बल्कि बनी-इस्राईल की नसल की कुँवारियों से या उस बेवा से जो किसी काहिन की बेवा हो।
\s5
\v 23 और वह मेरे लोगों को पाक और 'आम में फ़र्क बताएँगे, और उनको नजिस और ताहिर में इम्तियाज़ करना सिखाएँगे।
\v 24 और वह झगड़ों के फ़ैसले के लिए खड़े होंगे, और मेरे हुक्मों के मुताबिक़ 'अदालत करेंगे, और वह मेरी तमाम मुक़र्ररा 'ईदों में मेरी शरी'अत और मेरे क़ानून पर 'अमल करेंगे, और मेरे सबतों को पाक जानेंगे।
\s5
\v 25 और वह किसी मुर्दे के पास जाने से अपने आपको नापाक न करेंगे; मगर सिर्फ़ बाप या माँ या बेटे या बेटी या भाई या कुँवारी बहन के लिए वह अपने आपको नापाक कर सकते हैं।
\v 26 और वह उसके पाक होने के बा'द उसके लिए और सात दिन शुमार करेंगे,
\v 27 और जिस रोज़ वह हैकल के अन्दर अन्दरूनी सहन में ख़िदमत करने को जाए, तो अपने लिए ख़ता की क़ुर्बानी पेश करेगा; ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\s5
\v 28 और उनके लिए एक मीरास होगी मैं ही उनकी मीरास हूँ, और तुम इस्राईल में उनकी कोई मिल्क़ियत न देना - मैं ही उनकी मिल्क़ियत हूँ।
\v 29 और वह नज़र की क़ुर्बानी और ख़ता की क़ुर्बानी और जुर्म की क़ुर्बानी खाएँगे, और हर एक चीज़ जो इस्राईल में मख़्सूस की जाए उन ही की होगी।
\s5
\v 30 और सब पहले फलों का पहला और तुम्हारी तमाम चीज़ों की हर एक क़ुर्बानी काहिन के लिए हों, और तुम अपने पहले गुन्धे आटे से कहिन को देना, ताकि तेरे घर पर बरकत हो।
\v 31 अगर वह जो अपने आप ही मर गया हो या दरिन्दों का फाड़ा हुआ, क्या परिन्द क्या चरिन्द, काहिन उसे न खाएँ।
\s5
\c 45
\p
\v 1 और जब तुम ज़मीन को पर्ची डाल कर मीरास के लिए तक़सीम करो तो उसका एक पाक हिस्सा ख़ुदावन्द के सामने हदिया देना उसकी लम्बाई पच्चीस हज़ार और चौड़ाई दस हज़ार होगी वह अपने चारों तरफ़ की तमाम हदों में पाक होगा।
\v 2 उसमें से एक कित'आ जिसकी लम्बाई पाँच सौ और चौड़ाई पाँच सौ, जो चारों तरफ़ बराबर है हैकल के लिए होगा, और उसके अहाते के लिए चारों तरफ़ पचास पचास हाथ की चौड़ाई होगी।
\s5
\v 3 और तू इस पैमाइश की पच्चीस हज़ार की लम्बाई और दस हज़ार की चौड़ाई नापेगा और उसमें हैकल होगा जो बहुत पाक है।
\v 4 ज़मीन का यह पाक हिस्सा उन काहिनों के लिए होगा जो हैकल के ख़ादिम हैं, और जो ख़ुदावन्द के सामने ख़िदमत करने को आते हैं; और यह मक़ाम उनके घरों के लिए होगा, और हैकल के लिए पाक जगह होगी।
\v 5 और पच्चीस हज़ार लम्बा और दस हज़ार चौड़ा, बनी लावी हैकल के ख़ादिमों के लिए होगा, ताकि बीस बस्तियों की जगह उनकी मिल्यक़ित हो।
\s5
\v 6 "और तुम शहर का हिस्सा पाँच हज़ार चौड़ा और पच्चीस हज़ार लम्बा हैकल के हदिये वाले हिस्से के पास मुक़र्रर करना, यह तमाम बनी इस्राईल के लिए होगा।
\v 7 "और पाक हदिये वाले हिस्से की तरफ़ शहर के हिस्से की दोनों तरफ़, पाक हदिये वाले हिस्से के सामने और शहर के हिस्से के सामने दक्खिनी गोशे ~मग़रिब की तरफ़ और पूरबी गोशे पूरब की तरफ़ फ़रमरवाँ के लिए होगा; और लम्बाई में पच्छिमी सरहद से पूरबी सरहद तक उन हिस्सों में से एक के सामने होगा।
\s5
\v 8 इस्राईल के बीच ज़मीन में से उसका यही हिस्सा होगा, और मेरे हाकिम फिर मेरे लोगों पर सितम न करेंगे; और ज़मीन को बनी-इस्राईल में उनके क़बीले के मुताबिक़ तक़सीम करेंगे।
\s5
\v 9 "ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि ऐ इस्राईल के हाकिमों, तुम्हारे लिए यही काफ़ी है; ज़ुल्म और लूट मार को दूर करो, 'अदालत-ओ-सदाक़त को 'अमल में लाओ, और मेरे लोगों पर से अपनी ज़ियादिती को ख़त्म करो; ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\v 10 "और तुम पूरी तराज़ू और पूरा एफ़ा और पूरा बत रख्खा करो।
\v 11 एफ़ा और बत एक ही वज़न का हो, ताकि बत में ख़ोमर का दसवाँ हिस्सा हो; और एफ़ा भी ख़ोमर का दसवाँ हिस्सा हो, उसका अन्दाज़ा ख़ोमर के मुताबिक़ हो।
\v 12 और मिस्क़ाल बीस जीरा हो; और बीस मिस्क़ाल, पच्चीस मिस्क़ाल, पन्द्रह मिस्क़ाल का तुम्हारा माना होगा।
\s5
\v 13 'और हदिया जो तुम पेश करोगे फ़िर यह है: गेहूँ के ख़ोमर से एफ़ा का छटा हिस्सा, और जौ के ख़ोमर से एफ़ा का छटा हिस्सा देना।
\v 14 और तेल या'नी तेल के बत के बारे में यह हुक्म है कि तुम कुर में से, जो दस बत का ख़ोमर है, एक बत का दसवाँ हिस्सा देना क्यूँकि खोमर में दस बत हैं |
\v 15 और गल्ला में से हर दोसो पीछे इस्राईल की सेराब चरागाह का एक बर्रा नज़र की क़ुर्बानी के लिए और सलामती की क़ुर्बानी के लिए ताकि उनके लिए कफ़्फ़ारा हो ख़ुदावन्द फ़रमाता है|
\s5
\v 16 मुल्क के सब लोग उस फ़रमारवाँ के लिए जो इस्राईल में है यही हदिया देंगे|
\v 17 और फ़रमारवाँ सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और नज़र की क़ुर्बानियाँ और तपावन 'अहदों और नए चाँद के वक़्तों और सबतों और बनी इस्राईल की तमाम मुक़र्रा~'ईदों में देगा वह ख़ता की क़ुर्बानी और नज़र की क़ुर्बानी और सोख़्तनी क़ुर्बानी और सलामती की क़ुर्बानियाँ बनी इस्राईल के~कफ़्फ़ाराके लिए तैयार होगा |
\s5
\v 18 ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि पहले महीने की पहली तारीख़ को तू एक बे 'ऐब बछड़ा लेना और हैकल को पाक करना
\v 19 और काहिन ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े का ख़ून लेगा और उसमें से कुछ घर के सुतूनों पर और मज़बह की कुर्सी के चारों कोनों पर और अंदरूनी सहन के दरवाज़े की चौखटों पर लगाएगा |
\v 20 और तू महीने की सातवीं तारीख़ को हर एक के लिए जो ख़ता करे और उसके लिए भी जो नादान है ऐसा ही करेगा इसी तरह तुम घर का कफ़्फ़ारा ~दिया करोगे |
\s5
\v 21 तुम पहले महीने की चौदवीं तारीख़ को 'ईद फ़सह मनाना जो सात दिन की 'ईद है और उसमें बेख़मीरी रोटी खाई जाएगी |
\v 22 और उसी दिन फ़रमारवाँ अपने लिए और तमाम अहल-ए-मम्लुकत के लिए ख़ता की क़ुर्बानी के वास्ते एक बछड़ा तैयार कर रख्खेगा|
\s5
\v 23 और 'ईद के सातों दिन में वह हर रोज़ या'नी सात दिन तक सात बे'ऐब बछड़े और सात मेंढे मुहय्या करेगा ताकि ख़ुदावन्द के सामने सोख़्तनी क़ुर्बानी हों और हर रोज़ ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा|
\v 24 और हर एक बछड़े के लिए एक एफ़ा भर नज़र की क़ुर्बानी और हर मेंढे के लिए एक एफ़ा और फ़ी एफ़ा एक हींन तेल तैयार करेगा |
\s5
\v 25 सातवें महीने की पन्दर्वीं तारीख़ को भी वह 'ईद के लिए जिस तरह से उसने इन सात दिनों में किया था तैयारी करेगा ख़ता की क़ुर्बानी और सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़र की क़ुर्बानी और तेल के मुताबिक़ |
\s5
\c 46
\p
\v 1 ~ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि अन्दरूनी सहन का फाटक जिसका रुख़ पूरब की तरफ़ है,काम काज के छ: बन्द रहेगा;लेकिन सबत के दिन खोला जाएगा,और नए चाँद के दिन भी खोला जाएगा।
\v 2 ~और फ़रमारवा बैरूनी फाटक के आस्ताने के रास्ते से दाख़िल होगा, फाटक की चौखट के पास खड़ा रहेगा;और काहिन उसकी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी सलामती की क़ुर्बानियाँ पेशकरेंगे, वह फाटक के आसताने पर सिज्दा करके बाहर निकलेगा लेकिन फाटक शाम तक बन्द न होगा|
\s5
\v 3 और मुल्क के लोग उसी फाटक के दरवाज़े पर, सबतों और नए चाँद के वक़्तों में ख़ुदावन्द के सामने सिज्दा किया करेंगे
\v 4 और सोख़्तनी क़ुर्बानी जो फ़रमारवा सबत के दिन ख़ुदावन्द के सामने पेश करेगा , छ: बे'ऐब बर्रे और एक बे'ऐब बर्रा|
\v 5 और नज़र की कु़र्बानी मेंढे के लिए एक एफ़ा और बर्रों के लिए नज़र की कु़र्बानी उसकी तौफ़ीक़ के एक एफ़ा के लिए एक हीन तेल।
\s5
\v 6 ~और नए चाँद के रोज़ एक बे'ऐब बछड़ा और छ: बर्रे और एक मेंढा, सब के सब बे'ऐब
\v 7 ~और वह नज़र की कु़र्बानी तैयार करेगा या'नी बछड़े के लिए एक एफ़ा और मेंढे के लिए एक एफ़ा और बर्रों के लिए उसकी तौफ़ीक़ के मुताबिक़, हर एक एफ़ा के लिए एक हीन तेल।
\v 8 जब फ़रमारवा अन्दर आए, फाटक के आस्ताने के रास्ते से दाख़िल होगा और उसी रास्ते से निकलेगा|
\s5
\v 9 लेकिन जब मुल्क के लोग मुक़र्ररा ईदों के वक़्त ख़ुदावन्द के सामने हाज़िर होंगे, जो उत्तरी फाटक के रास्ते से सिज्दा करने को दाख़िल होगा वह दक्खिन फाटक के रास्ते से बाहर जाएगा, जो दक्खिनी फाटक के रास्ते से अन्दर आता है वह उत्तरी फाटक के रास्ते से बाहर जाएगा; जिस फाटक के रास्ते से वह अन्दर आया उससे वापस न जाएगा, बल्कि सीधा अपने सामने के फाटक के रास्ते से निकल जाएगा।
\v 10 ~और जब वह अन्दर जाएँगे तो फ़रमारवा भी उनके बीच होकर जाएगा, और जब वह बाहर निकलेंगे तो सब इकट्ठे जाएँगे।
\s5
\v 11 और ईदों और मज़हबी तहवारों के वक़्त में नज़र की कु़र्बानी बैल के लिए एक एफ़ा, मेंढे के लिए एक एफ़ा होगी, और बर्रों के लिए उसकी तौफ़ीक़ के मुताबिक़ और हर एक एफ़ा के लिए एक हीन तेल।
\v 12 ~और जब फ़रमारवा रज़ा की कु़र्बानी तैयार करे या'नी सोख़्तनी कु़बानी या सलामती की कु़र्बानी ख़ुदावन्द के सामने रज़ा की कु़र्बानी के तौर पर लाए तो वह फाटक जिसका रुख पूरब की तरफ़ उसके लिए खोला जाएगा और सबत के दिन की तरह वह अपनी सोख़्तनी कु़र्बानी और सलामती की कु़र्बानी पेश करेगा, तब वह बाहर निकल आएगा और उसके निकलने के बा'द फाटक बन्द किया जाएगा।
\s5
\v 13 तो हर रोज़ ख़ुदावन्द के सामने पहले साल का एक बे'ऐब बर्रा सोख़्तनी कु़र्बानी के लिए पेश करेगा, तू हर सुबह पेश करेगा।
\v 14 और तू उसके साथ हर सुबह नज़र की कु़र्बानी पेश करेगा या'नी एफ़ा का छटा हिस्सा, और मैदे के साथ मिलाने को तेल के हीन की एक तिहाई,दाइमी हुक्म के मुताबिक़ हमेशा के लिए ख़ुदावन्द के सामने यह नज़र की कु़र्बानी होगी।
\v 15 इसी तरह वह बर्रे और नज़र की कु़र्बानी और तेल हर सुबह हमेशा की~सोख़्तनी कु़र्बानी के लिए अदा करेंगे।
\s5
\v 16 ~ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि अगर फ़रमारवा अपने बेटों में से किसी को कोई हदिया दे, वह उसकी मीरास उसके बेटों की होगी; वह उनका मौरूसी माल है।
\v 17 लेकिन अगर वह अपने गु़लामों में से किसी को अपनी मीरास में से हदिया दे, तो वह आज़ादी के साल तक उसका होगा; उसके बा'द फिर फ़रमारवा का हो जाएगा। मगर उसकी मीरास उसके बेटों के लिए होगी।
\v 18 और फ़रमारवा लोगों की मीरास में से ज़ुल्म करके न लेगा, ताकि उनको उनकी मिल्कियत से बेदख़्ल करे; लेकिन वह अपनी ही मिल्कियत में से अपने बेटों को मीरास देगा, ताकि मेरे लोग अपनी अपनी मिलिकयत से जुदा न हो जाएँ।"
\s5
\v 19 फिर वह मुझे उस मदख़ल के रास्ते से जो फाटक के पहलू में था, काहिनों के पाक कमरों में जिनका रुख उत्तर की तरफ़ था, लाया और क्या देखता हूँ कि पच्छिम की तरफ़ पीछे कुछ ख़ाली जगह है।
\v 20 तब उसने मुझे फ़रमाया, "देख, यह वह जगह है जिसमें काहिन जुर्म की क़ुर्बानी और ख़ता की क़ुर्बानी को जोश देंगे और नज़र की क़ुर्बानी पकायेंगे ताकि उनको ~बैरूनी सहन में ले जाकर लोगों की तक़दीस करें।”
\s5
\v 21 फिर वह मुझे बैरूनी सहन में लाया और सहन के चारों कोनों की तरफ़ मुझे ले गया, और देखो, सहन के हर कोने में एक और सहन था;
\v 22 सहन के चारों कोनों में चालीस चालीस हाथ लम्बे और तीस तीस हाथ चौड़े सहन मुत्तसिल थे, यह चारों कोने वाले एक ही नाप के थे।
\v 23 और उनके चारों तरफ़ या'नी उन चारों के चारों ~तरफ़ दीवार थी, और चारों तरफ़ दीवार के नीचे चूल्हे बने थे।
\v 24 ~तब उसने मुझे फ़रमाया, कि "यह चूल्हे हैं, जहाँ हैकल के ख़ादिम लोगों के ज़बीहे उबालेंगे।”
\s5
\c 47
\p
\v 1 फिर वह मुझे हैकल के दरवाज़े पर वापस लाया, और क्या देखता हूँ कि हैकल के आस्ताने के नीचे से पानी पूरब की तरफ़ निकल रहा है क्यूँकि हैकल का सामना पूरब की तरफ़ था और पानी हैकल के दाहनी तरफ़ के नीचे से मज़बह के दक्खिनी जानिब से बहता था |
\v 2 तब वह मुझे उत्तरी फाटक की राह से बाहर लाया, और मुझे उस राह से जिसका रुख़ पूरब की तरफ़ है, बैरूनी फाटक पर वापस लाया या'नी पूरब रूया फाटक पर; और क्या देखता हूँ कि दहनी तरफ़ से पानी जारी है।
\s5
\v 3 और उस मर्द ने जिसके हाथ में पैमाइश की डोरी थी, पूरब की तरफ़ बढ़ कर हज़ार हाथ नापा, और मुझे पानी में से चलाया और पानी टखनों तक था।
\v 4 फिर उसने हज़ार हाथ और नापा और मुझे उसमें से चलाया, और पानी घुटनों तक था; फिर उसने एक हज़ार हाथ और नापा और मुझे उसमें से चलाया, और पानी कमर तक था।
\v 5 फिर उसने एक हज़ार और नापा, और वह ऐसा दरिया था कि मैं उसे पार नहीं कर सकता था, क्यूँकि पानी चढ़ कर तैरने के दर्जे को पहुँच गया और ऐसा दरिया बन गया जिसको पार करना मुम्किन न था।
\s5
\v 6 और उसने मुझ से कहा, ~"ऐ आदमज़ाद ! क्या तूने यह देखा?"तब वह मुझे लाया और दरिया के किनारे पर वापस पहुँचाया।
\v 7 और जब मैं वापस आया तो क्या देखता हूँ कि दरिया के किनारे दोनों तरफ़ बहुत से दरख़्त हैं।
\v 8 तब उसने मुझे फ़रमाया कि यह पानी पूरबी 'इलाक़े ~की तरफ़ बहता है, और मैदान में से होकर समन्दर में जा मिलता है, और समन्दर में मिलते ही उसके पानी को शीरीं कर देगा |
\s5
\v 9 और यूँ होगा कि जहाँ कहीं यह दरिया" पहुँचेगा, हर एक चलने फिरने वाला जानदार ज़िन्दा रहेगा और मछलियों की बड़ी कसरत ~होगी क्यूँकि यह पानी वहाँ पहुँचा और वह शीरीं हो गया इसलिए जहाँ कहीं यह दरया पहुँचेगा ज़िन्दगी बख्शेगा |
\v 10 और यूँ होगा कि शिकारी उसके किनारे खड़े रहेंगे, 'ऐन जदी से ऐन 'अजलईम तक जाल बिछाने की जगह होगी, उसकी मछलियाँ अपनी अपनी जिन्स के मुताबिक़ बड़े समन्दर की मछलियों की तरह कसरत से होंगी।
\s5
\v 11 लेकिन उसकी कीच की जगहें और दलदले शीरीं न की जायेंगी वह नमक ज़ार ही रहेंगी |
\v 12 और दरया के क़रीब उसके दोनों किनारों पर हर क़िस्म के मेवादार दरख़्त उगेंगे जिनके पत्ते कभी न मुरझायेंगे और जिनके मेवे कभी ख़त्म न होंगे वह हर महीने नए मेवे लायेंगे क्यूँकि उनका पानी हैकल में से जारी है और उनके मेवे खाने के लिए और उनके पत्ते दवा के लिए होंगे |
\s5
\v 13 ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि "यह वह सरहद है जिसके मुताबिक़ तुम ज़मीन को तक़सीम करोगे, ताकि इस्राईल के बारह क़बीलों की मीरास हो; यूसुफ़ के लिए दो हिस्से होंगे।
\v 14 और तुम सब यकसाँ उसे मीरास में पाओगे, जिसके ज़रिए मैंने क़सम खाई" कि तुम्हारे बाप-दादा को दूँ और यह ज़मीन तुम्हारी मीरास होगी।
\s5
\v 15 'और ज़मीन की हदें यह होंगी: उत्तर की तरफ़ बड़े समन्दर से लेकर हतलून से होती हुई सिदाद के मदख़ल तक,
\v 16 हमात बैरूत-सिबरैम जो दमिश्क़ की सरहद और हमात की सरहद के बीच है, और हसर हतीकून जो हौरान के किनारे पर है।
\v 17 और समन्दर से सरहद यह होगी: या'नी हसर 'ऐनान दमिश्क़ की सरहद, और उत्तर की उत्तरी अतराफ़, हमात की सरहद उत्तरी जानिब यही है ।
\s5
\v 18 और पूरबी सरहद हौरान और दमिश्क़, और जिल'आद के बीच से और इस्राईल की सरज़मीन के बीच से यरदन पर होगी; उत्तरी सरहद से पूरबी समन्दर तक नापना पूरबी जानिब यही है।
\v 19 और दक्खिन की तरफ़ दक्खिनी सरहद यह है: या'नी तमर से मरीबूत के क़ादिस के पानी से और नहर-ए-मिस्र से होकर बड़े समन्दर तक, पच्छिमी जानिब यही है।
\v 20 और उसी सरहद से हमात के मदख़ल के सामने बड़ा समन्दर दक्खिनी सरहद होगा दक्खिनी जानिब यही है।
\s5
\v 21 इसी तरह तुम क़बाइल-ए-इस्राईल के मुताबिक़ ज़मीन को आपस में तक़सीम करोगे।
\v 22 और यूँ होगा कि तुम अपने और उन बेगानों के बीच, जो तुम्हारे साथ बसते हैं और जिनकी औलाद तुम्हारे बीच पैदा हुई जो तुम्हारे लिए देसी बनी-इस्राईल की तरह होंगे; मीरास तक़सीम करने के लिए पर्ची डालोगे, वह तुम्हारे साथ क़बाइल-ए-इस्राईल के बीच मीरास पाएँगे।
\v 23 और यूँ होगा कि जिस जिस क़बीले में कोई बेगाना बसता होगा, उसी में तुम उसे मीरास दोगे। ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\s5
\c 48
\p
\v 1 "और क़बीलों के नाम यह हैं: इन्तिहा-ए- उत्तर पर हतल्लून के रास्ते के साथ साथ हमात के मदख़ल से होते हुए हसर 'ऐनान तक, जो दमिश्क़ की उत्तरी सरहद पर हमात के पास है, पूरब से पच्छिम तक दान के लिए एक हिस्सा।
\v 2 और दान की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, आशर के लिए एक हिस्सा।
\v 3 और आशर की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, नफ़्ताली के लिए एक हिस्सा।
\s5
\v 4 और नफ़्ताली की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, मनस्सी के लिए एक हिस्सा।
\v 5 और मनस्सी की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, इफ़्राईम के लिए एक हिस्सा।
\v 6 और इफ़्राईम की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, रूबिन के लिए एक हिस्सा।
\v 7 और रूबिन की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, यहूदाह के लिए एक हिस्सा।
\s5
\v 8 "और यहूदाह की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, हदिये का हिस्सा होगा जो तुम वक्फ़ करोगे; उसकी चौड़ाई पच्चीस हज़ार और लम्बाई बाक़ी हिस्सों ~में से एक के बराबर पूरबी सरहद से दक्खिनी सरहद तक और हैकल उसके बीच में होगा |
\v 9 हदिये का हिस्सा जो तुम ख़ुदावन्द के लिए वक़्फ़ करोगे, पच्चीस हज़ार लम्बा और दस हज़ार चौड़ा होगा।
\s5
\v 10 और यह पाक हदिये का हिस्सा उनके लिए, हाँ, काहिनों के लिए होगा; उत्तर की तरफ़ पच्चीस हज़ार उसकी लम्बाई होगी और दस हज़ार उसकी चौड़ाई पच्छिम की तरफ़ और दस हज़ार उसकी चौडाई पूरब की तरफ़ और पच्चीस हज़ार उसकी लम्बाई दक्खिन की तरफ़ और ख़ुदावन्द का हैकल उसके बीच में होगा।
\v 11 यह उन काहिनों के लिए होगा जो सदूक़ के बेटों में से पाक किए गए हैं; जिन्होंने मेरी अमानतदारी की तरफ़ गुमराह न हुए, जब बनी-इस्राईल गुमराह हो गए जैसे बनी लावी गुमराह हुए।
\v 12 और ज़मीन के हदिये में से बनी लावी के हिस्से से मुत्तसिल , यह उनके लिए हदिया होगा जो बहुत पाक ठहरेगा।
\s5
\v 13 और काहिनों की सरहद के सामने बनी लावी के लिए एक हिस्सा होगा, पच्चीस हज़ार लम्बा और दस हज़ार चौड़ा; उसकी कुल लम्बाई पच्चीस हज़ार और चौड़ाई दस हज़ार होगी।
\v 14 और वह उसमें से न बेचे और न बदलें और न ज़मीन का पहला फल अपने क़ब्ज़े से निकलने दें, क्यूँकि वह ख़ुदावन्द के लिए पाक है।
\s5
\v 15 और वह पाँच हज़ार की चौड़ाई का बाक़ी हिस्सा, उस पच्चीस हज़ार के सामने बस्ती और उसकी 'इलाक़े के लिए 'आम जगह होगी; और शहर उसके बीच में होगा।
\v 16 और~उसकी पैमाइश यह होगी, उत्तर की तरफ़ चार हज़ार पाँच सौ ,और दक्खिन की तरफ़ चार हज़ार पाँच सौ,और पूरब ~की तरफ़ चार हज़ार पाँच सौ,और पच्छिम की तरफ़ चार हज़ार पाँच सौ,
\s5
\v 17 और शहर के 'इलाक़े उत्तर की तरफ़ दो सौ पचास, और दक्खिन की तरफ़ दो सौ पचास, और पूरब की तरफ़ दो सौ पचास, और पच्छिम की तरफ़ दो सौ पचास।
\v 18 और वह पाक हदिये के सामने बाक़ी लम्बाई पूरब की तरफ़ दस हज़ार और~पच्छिम की तरफ़ दस हज़ार होगी,~और वह पाक हदिये के सामने~होगी और उसका हासिल उनकी ख़ुराक के लिए होगा जो शहर में काम करते हैं |
\s5
\v 19 और शहर में काम करने वाले इस्राईल के सब क़बीलों में से उसमें काश्तकारी करेंगे।
\v 20 हदिये के तमाम हिस्से की लम्बाई पच्चीस हज़ार और चौड़ाई~पच्चीस हज़ार होगी; तुम पाक हदिये के हिस्से को मुरब्बा' शक्ल में शहर की मिल्क़ियत के साथ वक़्फ़ करोगे।
\s5
\v 21 "और बाक़ी जो पाक हदिये का हिस्सा और शहर की मिल्क़ियत की दोनों तरफ़ जो हदिये के हिस्से के पच्चीस हज़ार के सामने पच्छिम की तरफ़ फ़रमरवा के हिस्सों के सामने है; वह फ़रमारवा के लिए होगा और वह पाक हदिये का हिस्सा होगा, और पाक ~घर उसके बीच में होगा।
\v 22 और बनी लावी की मिल्क़ियत से और शहर की मिल्क़ियत से जो फ़रमरवा की मिल्क़ियत के बीच में है, यहूदाह की सरहद और बिनयमीन की सरहद के बीच फ़रमरवा के लिए होगी।
\s5
\v 23 और बाक़ी क़बाइल के लिए यूँ होगा: कि पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, बिनयमीन के लिए एक हिस्सा।
\v 24 और बिनयमीन की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, शमा'ऊन के लिए एक हिस्सा।
\v 25 और शमाऊन की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, इश्कार के लिए एक हिस्सा |
\v 26 और इश्कार की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, ज़बूलून के लिए एक हिस्सा।
\s5
\v 27 और ज़बूलून की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, जद्द के लिए एक हिस्सा।
\v 28 और जद्द की सरहद से मुत्तसिल दक्खिन की तरफ़ दक्खिनी किनारे की सरहद तमर से लेकर मरीबूत क़ादिस के पानी से नहर-ए- मिस्र से होकर बड़े समन्दर तक होगी।
\v 29 यह वह सरज़मीन है जिसको तुम मीरास के लिए पर्ची डालकर क़बाइल-ए-इस्राईल में तक्सीम करोगे और यह उनके हिस्से हैं, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\s5
\v 30 और शहर के मख़ारिज यह हैं: उत्तर की तरफ़ की पैमाइश चार हज़ार पाँच सौ।
\v 31 और शहर के फाटक क़बाइल-ए-इस्राईल से नामज़द होंगे: तीन फाटक उत्तर की तरफ़ - एक फाटक रूबिन का, एक यहूदाह का, एक लावी का;
\v 32 और~पूरब की तरफ़ की पैमाईश चार हज़ार पाँच सौ,और तीन फाटक एक यूसुफ़ का एक बिनयमीन का और एक दान का |
\s5
\v 33 और दक्खिन की तरफ़ की पैमाईश चार हज़ार पाँच सौ, ~और तीन फाटक - एक शमा'ऊन का, एक इश्कार का, और एक ज़बूलून का|
\v 34 और पच्छिम की तरफ़ की पैमाइश चार हज़ार पाँच सौ और तीन फाटक - एक जद्द का, एक आशर का और एक नफ़्ताली का।
\v 35 उसका मुहीत अठारह हज़ार और शहर का नाम उसी दिन से यह होगा कि "ख़ुदावन्द वहाँ है"।

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27-DAN.usfm Normal file
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\h दान्याल
\toc1 दान्याल
\toc2 दान्याल
\toc3 dan
\mt1 दान्याल
\s5
\c 1
\p
\v 1 ~शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम की सल्तनत के तीसरे साल में शाह-ए-बाबुल नबूकद नज़र ने यरूशलीम पर चढ़ाई करके उसका घिराव किया।
\v 2 ~और ख़ुदावन्द ने शाह ~यहूदाह यहूयक़ीम को और ख़ुदा के घर के बा'ज़ ~बर्तनों को उसके हवाले कर दिया और उनको ~सिन'आर की सरज़मीन में अपने बुतख़ाने ~में ले गया, चुनाँचे उसने बर्तनों ~को अपने बुत के ख़ज़ाने ~में दाख़िल किया।
\s5
\v 3 ~और बादशाह ने अपने ख़्वाजासराओं के सरदार असपनज़ को हुक्म किया कि बनी इस्राईल में से और बादशाह की नस्ल में से और शरीफ़ों में से लोगों को हाज़िर करे।
\v 4 वह बे'ऐब जवान बल्कि खू़बसूरत और हिकमत में माहिर और हर तरह से 'अक़्लमन्द और 'आलिम हों, जिनमें ये लियाक़त हो कि शाही महल ~में खड़े रहें, और वह उनको क़सदियों के 'इल्म और उनकी ज़बान की ता'लीम दें।
\v 5 और बादशाह ने उनके लिए शाही ख़ुराक में से और अपने पीने की मय में से रोज़ाना वज़ीफ़ा मुक़र्रर किया कि तीन साल तक उनकी परवरिश हो, ताकि इसके बा'द वह बादशाह के सामने खड़े हो सकें।
\s5
\v 6 और उनमें बनी यहूदाह में से दानीएल और हननियाह और मीसाएल और 'अज़रियाह थे।
\v 7 और ख़्वाजासराओं के सरदार ने उनके नाम रख्खे; उसने दानीएल को बेल्तशज़र, हननियाह को सदरक, और मीसाएल को मीसक, और 'अज़रियाह को 'अबदनजू कहा।
\s5
\v 8 लेकिन दानीएल ने अपने दिल में इरादा किया कि अपने आप को शाही खु़राक से और उसकी शराब से, जो वह पीता था, नापाक न करे; तब उसने ख़्वाजासराओं के सरदार से दरख़्वास्त की कि वह अपने आप को नापाक करने से मा'जू़र रखा जाए।
\v 9 ~और ख़ुदा ने दानीएल को ख़्वाजासराओं के सरदार की नज़र में मक़्बूल-ओ-महबूब ठहराया।
\v 10 चुनाँचे ख़्वाजासराओं के सरदार ने दानीएल से कहा, "मैं अपने ख़ुदावन्द बादशाह से, जिसने तुम्हारा खाना पीना मुक़र्रर किया है डरता हूँ; तुम्हारे चेहरे उसकी नज़र में तुम्हारे हम 'उम्रों के चेहरों से क्यूँ ज़बून हों, और यूँ तुम मेरे सिर को बादशाह के सामने ख़तरे में डालो।"
\s5
\v 11 तब दानीएल ने दारोग़ा से जिसको ख़्वाजासराओं के सरदार ने दानीएल और~हननियाह और मीसाएल और 'अज़रियाह पर मुक़र्रर किया था कहा,
\v 12 "मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि तू दस दिन तक अपने ख़ादिमों को आज़मा कर देख, और खाने को साग-पात और पीने को पानी हम को दिलवा।
\v 13 ~तब हमारे चेहरे और उन जवानों के चेहरे जो शाही खाना खाते हैं, तेरे सामने देखें जाएँ फिर अपने ख़ादिमों से जो तू मुनासिब समझे वह कर।"
\s5
\v 14 ~चुनाँचे उसने उनकी ये बात क़ुबूल की और दस दिनों तक उनको आज़माया।
\v 15 ~और दस दिन के बा'द उनके चेहरों पर उन सब जवानों के चेहरों की निस्बत जो शाही खाना खाते थे, ज़्यादा रौनक़ और ताज़गी नज़र आई।
\v 16 तब दारोग़ा ने उनकी ख़ुराक और शराब को जो उनके लिए मुक़र्रर थी रोक दिया, और उनको साग-पात खाने को दिया।
\s5
\v 17 ~तब ख़ुदा ने उन चारों जवानों को मा'रिफ़त और हर तरह की हिकमत और 'इल्म में महारत बख़्शी, और दानीएल हर तरह की रोया और ख़्वाब में साहब-ए-'इल्म था।
\v 18 ~और जब वह दिन गुज़र गए जिनके बा'द बादशाह के फ़रमान के मुताबिक़ उनको हाज़िर होना था, तो ख़्वाजासराओं का सरदार उनको नबूकदनज़र के सामने ले गया।
\s5
\v 19 और बादशाह ने उनसे बातें कीं और उनमें से दानीएल और हननियाह और मीसाएल और 'अज़रियाह की तरह कोई न था, इसलिए वह बादशाह के सामने खड़े रहने लगे।
\v 20 और हर तरह की ख़ैरमन्दी और अक़्लमन्दी के बारे ~में जो कुछ बादशाह ने उनसे पूछा, उनको तमाम फ़ालगीरों और नजूमियों से जो उसके तमाम मुल्क में थे, दस दर्जा बेहतर पाया।
\v 21 और दानीएल ख़ोरस बादशाह के पहले साल तक ज़िन्दा था।
\s5
\c 2
\p
\v 1 और नबूकदनज़र ने अपनी सल्तनत के दूसरे साल में ऐसे ख़्वाब देखे जिनसे उसका दिल घबरा गया और उसकी नींद जाती रही।
\v 2 ~तब बादशाह ने हुक्म दिया कि फ़ालगीरों और नजूमियों और जादूगरों और कसदियों को बुलाएँ कि बादशाह के ख़्वाब उसे बताएँ। चुनाँचे वह आए और बादशाह के सामने खड़े हुए।
\s5
\v 3 और बादशाह ने उनसे कहा, कि "मैने एक ख़्वाब देखा है, और उस ख़्वाब को दरियाफ़्त करने के लिए मेरी जान बेताब है।”
\v 4 तब कसदियों ने बादशाह के सामने अरामी ज़बान में 'अर्ज़ किया, "कि ऐ बादशाह, हमेशा ~तक जीता रह! अपने ख़ादिमों से ख़्वाब बयान कर, और हम उसकी ता'बीर करेंगे।"
\s5
\v 5 बादशाह ने कसदियों को जवाब दिया, 'मैं तो ये हुक्म दे चुका हूँ कि अगर तुम ख़्वाब न बताओ और उसकी ता'बीर न करो, तो टुकड़े टुकड़े किए जाओगे और तुम्हारे घर मज़बले हो जाएँगे।
\v 6 लेकिन अगर ख़्वाब और उसकी ता'बीर बताओ, तो मुझ से इन'आम और बदला और बड़ी 'इज़्ज़त हासिल करोगे; इसलिए ख़्वाब और उसकी ता'बीर मुझ से बयान करो।"
\s5
\v 7 उन्होंने फिर 'अर्ज़ किया, कि "बादशाह अपने ख़ादिमों से ख़्वाब बयान करे, तो हम उसकी ता'बीर करेंगे।"
\v 8 बादशाह ने जवाब दिया, कि "मैं खू़ब जानता हूँ कि तुम टालना चाहते हो, क्यूँकि तुम जानते हो कि मैं हुक्म दे चुका हूँ।
\v 9 लेकिन अगर तुम मुझ को ख़्वाब न बताओगे, तो तुम्हारे लिए एक ही हुक्म है, क्यूँकि तुम ने झूट और बहाने की बातें बनाई ताकि मेरे सामने बयान करो कि वक़्त टल जाए; इसलिए ख़्वाब बताओ तो मैं जानूँ कि तुम उसकी ता'बीर भी बयान कर सकते हो।”
\s5
\v 10 कसदियों ने बादशाह से 'अर्ज़ किया, कि "इस ज़मीन पर ऐसा तो कोई भी नहीं जो बादशाह की बात बता सके, और न कोई बादशाह या अमीर या हाकिम ऐसा हुआ है जिसने कभी ऐसा सवाल किसी फ़ालगीर या नजूमी या कसदी से किया हो।
\v 11 और जो बात बादशाह तलब करता है, निहायत मुश्किल है, और मा'बूदों के सिवा जिनकी सुकूनत इन्सान के साथ नहीं, बादशाह के सामने कोई उसको बयान नहीं कर सकता।"
\s5
\v 12 ~इसलिए ~बादशाह ग़ज़बनाक और सख़्त ग़ुस्सा हुआ और उसने हुक्म किया कि बाबुल के तमाम हकीमों को हलाक करें।
\v 13 ~तब यह हुक्म जगह जगह पहुँचा कि हकीम क़त्ल किए जाएँ, तब दानीएल और उसके साथियों को भी ढूँडने लगे कि उनको क़त्ल करें।
\s5
\v 14 तब दानीएल ने बादशाह के जिलौदारों के सरदार अरयूक को, जो बाबुल के हकीमों को क़त्ल करने को निकला था, खै़रमन्दी और 'अक़्ल से जवाब दिया।
\v 15 ~उसने बादशाह के जिलौदारों के सरदार अरयूक से पूछा, "बादशाह ने ऐसा सख़्त हुक्म क्यूँ जारी किया?" तब अरयूक ने दानीएल से इसकी हक़ीक़त बताई।
\v 16 और दानीएल ने अन्दर जाकर बादशाह से 'अर्ज़ किया कि मुझे मुहलत मिले, तो मैं बादशाह के सामने ता'बीर बयान करूँगा।
\s5
\v 17 तब दानीएल ने अपने घर जाकर हननियाह और मीसाएल और 'अज़रियाह अपने साथियों को ख़बर दी,
\v 18 ~ताकि वह इस राज़ के बारे में आसमान के ख़ुदा से रहमत तलब करें कि दानीएल और उसके साथी बाबुल के बाक़ी हकीमों के साथ हलाक न हों।
\s5
\v 19 फिर रात को ख़्वाब में दानीएल पर वह राज़ खुल गया, और उसने आसमान के ख़ुदा को मुबारक कहा।
\v 20 ~दानीएल ने कहा: "ख़ुदा का नाम हमेशा तक मुबारक हो, क्यूँकि हिकमत और कु़दरत उसी की है।
\s5
\v 21 ~वही वक़्तों और ज़मानों को तब्दील करता है, वही बादशाहों को मा'जू़ल और क़ायम करता है, वही हकीमों को हिकमत और अक़्लमन्दों को 'इल्म इनायत करता है।
\v 22 ~वही गहरी और छुपी चीज़ों को ज़ाहिर करता है, और जो कुछ अँधेरे में है उसे जानता है और नूर उसी के साथ है।
\s5
\v 23 मैं तेरा शुक्र करता हूँ और तेरी 'इबा'दत करता हूँ ऐ मेरे बाप-दादा के ख़ुदा, जिसने मुझे हिकमत और कु़दरत बख़्शी और जो कुछ हम ने तुझ से माँगा तू ने मुझ पर ज़ाहिर किया, क्यूँकि तू ने बादशाह का मुआ'मिला हम पर ज़ाहिर किया है।"
\s5
\v 24 तब दानीएल अरयूक के पास गया, जो बादशाह की तरफ़ से बाबुल के हकीमों के क़त्ल पर मुक़र्रर हुआ था, और उस से यूँ कहा, कि "बाबुल के हकीमों को हलाक न कर, मुझे बादशाह के सामने ले चल, मैं बादशाह को ता'बीर बता दूँगा।"
\s5
\v 25 तब अरयूक दानीएल को जल्दी से बादशाह के सामने ले गया और 'अर्ज़ किया, कि "मुझे यहूदाह के ग़ुलामों ~में एक शख़्स मिल गया है, जो बादशाह को ता'बीर बता देगा।"
\v 26 बादशाह ने दानीएल से जिसका लक़ब बेल्तशज़र था पूछा, "क्या तू उस ख़्वाब को जो मैने देखा, और उसकी ता'बीर को मुझ से बयान कर सकता है?"
\s5
\v 27 दानीएल ने बादशाह के सामने 'अर्ज़ किया, कि "वह राज़ जो बादशाह ने पूछा, हुक्मा और नजूमी और जादूगर और फ़ालगीर बादशाह को बता नहीं सकते।
\v 28 ~लेकिन आसमान पर एक ख़ुदा है जो राज़ की बातें ज़ाहिर करता है, और उसने नबूकदनज़र बादशाह पर ज़ाहिर किया है कि आख़िरी दिनों में क्या होने को आएगा; तेरा ख़्वाब और तेरे दिमाग़ी ख़्याल जो तू ने अपने पलंग पर देखे यह हैं:
\s5
\v 29 ~ऐ बादशाह, तू अपने पलंग पर लेटा हुआ ख़्याल करने लगा कि आइन्दा को क्या होगा, तब~वह जो राज़ों का खोलने वाला है, तुझ पर ज़ाहिर करता है कि क्या कुछ होगा।
\v 30 लेकिन इस राज़ के मुझ पर ज़ाहिर होने की वजह यह नहीं कि मुझ में किसी और ज़ी हयात से ज़्यादा हिकमत है, बल्कि यह कि इसकी ता'बीर बादशाह से बयान की जाए और तू अपने दिल के ख़्यालात ~को पहचाने।
\s5
\v 31 ~"ऐ बादशाह, तू ने एक बड़ी मूरत देखी; वह बड़ी मूरत जिसकी रौनक़ बेनिहायत थी, तेरे सामने खड़ी हुई और उसकी सूरत हैबतनाक थी।
\v 32 ~उस मूरत का सिर ख़ालिस सोने का था, उसका सीना और उसके बाज़ू चाँदी के, उसका शिकम और उसकी राने तॉम्बे की थीं;
\v 33 ~उसकी टाँगे लोहे की, और उसके पाँव कुछ लोहे के और कुछ मिट्टी के थे।
\s5
\v 34 तू उसे देखता रहा, यहाँ तक कि एक पत्थर हाथ लगाए बगै़र ही काटा गया, और उस मूरत के पाँव पर जो लोहे और मिट्टी के थे लगा और उनको टुकड़े-टुकड़े कर दिया।
\v 35 ~तब लोहा और मिट्टी और ताँम्बा और चाँदी और सोना, टुकड़े टुकड़े किए गए और ताबिस्तानी खलीहान के भूसे की तरह ~हुए, और हवा उनको उड़ा ले गई, यहाँ तक कि उनका पता न मिला; और वह पत्थर जिसने उस मूरत को तोड़ा, एक बड़ा पहाड़ बन गया और सारी ~ज़मीन में फैल गया।
\s5
\v 36 "वह ख़्वाब यह है; और उसकी ता'बीर बादशाह के सामने बयान करता हूँ।
\v 37 ~ऐ बादशाह, तू शहनशाह है, जिसको आसमान के ख़ुदा ने बादशाही और-तवानाई और कु़दरत-ओ-शौकत बख़्शी है।
\v 38 और जहाँ कहीं बनी आदम रहा करते हैं, उसने मैदान के जानवर और हवा के परिन्दे तेरे हवाले करके तुझ को उन सब का हाकिम बनाया है; वह सोने का सिर तू ही है।
\s5
\v 39 ~और तेरे बा'द एक और सल्तनत खड़ी होगी, जो तुझ से छोटी होगी और उसके बा'द एक और सल्तनत ताम्बे की जो पूरी ज़मीन पर हुकूमत करेगी।
\s5
\v 40 ~और चौथी सल्तनत लोहे की तरह मज़बूत होगी, और जिस तरह लोहा तोड़ डालता है और सब चीज़ों पर ग़ालिब आता है; हाँ, जिस तरह लोहा सब चीज़ों को टुकड़े-टुकड़े करता और कुचलता है उसी तरह वह टुकड़े-टुकड़े करेगी और कुचल डालेगी।
\s5
\v 41 और जो तू ने देखा कि उसके पाँव और उँगलियाँ, कुछ तो कुम्हार की मिट्टी की और कुछ लोहे की थी; इसलिए उस सल्तनत में फ़ूट होगी, मगर जैसा तू ने देखा कि उसमें लोहा मिट्टी से मिला हुआ था, उसमें लोहे की मज़बूती होगी।
\v 42 और चूँकि पाँव की उँगलियाँ कुछ लोहे की और कुछ मिट्टी की थीं,~इसलिए सल्तनत कुछ मज़बूत और कुछ कमज़ोर होगी।
\v 43 ~और जैसा तूने देखा कि लोहा मिट्टी से मिला हुआ था, वह बनी आदम से मिले हुए होंगे, लेकिन जैसे लोहा मिट्टी से मेल नहीं खाता वैसे ही वह भी आपस में मेल न खाएँगे।
\s5
\v 44 और उन बादशाहों के दिनों में आसमान का ख़ुदा एक सल्तनत खड़ा करेगा, जो हमेशा बर्बाद न होगी और उसकी हुकूमत किसी दूसरी क़ौम के हवाले न की जाएगी, बल्कि वह इन तमाम हुकूमतों को टुकड़े-टुकड़े और बर्बाद करेगी, और वही हमेशा तक क़ायम रहेगी।
\v 45 ~जैसा तू ने देखा कि वह पत्थर हाथ लगाए बगै़र ही पहाड़ से काटा गया, और उसने लोहे और ताँम्बे और मिट्टी और चाँदी और सोने को टुकड़े-टुकड़े किया; ख़ुदा त'आला ने बादशाह को वह कुछ दिखाया जो आगे को होने वाला हैं, और यह ख़्वाब यक़ीनी है और उसकी ता'बीर यक़ीनी।"
\s5
\v 46 ~तब नबूकदनज़र बादशाह ने मुँह के बल गिर कर दानीएल को सिज्दा किया, और हुक्म दिया कि उसे हदिया दें और उसके सामने ख़ुशबू जलाएँ।
\v 47 बादशाह ने दानीएल से कहा, "हक़ीक़त में तेरा ख़ुदा मा'बूदों का मा'बूद और बादशाहों का ख़ुदावन्द और राज़ों का खोलने वाला है, क्यूँकि तू इस राज़ को खोल सका।"
\s5
\v 48 ~तब बादशाह ने दानीएल को सरफ़राज़ किया, और उसे बहुत से बड़े-बड़े तोहफ़े 'अता किए; और उसको बाबुल के तमाम सूबों पर इख़्तियार दिया, और बाबुल के तमाम हकीमों पर हुक्मरानी 'इनायत की।
\v 49 तब दानीएल ने बादशाह से दरख़्वास्त की और उसने सदरक मीसक और 'अबदनजू को बाबुल के सूबे की ज़िम्मेदारी पर मुक़र्रर किया, लेकिन दानीएल बादशाह के दरबार में रहा।
\s5
\c 3
\p
\v 1 नबूकदनज़र बादशाह ने एक सोने की मूरत बनवाई जिसकी लम्बाई साठ हाथ और चौड़ाई छ: हाथ थी, और उसे दूरा के मैदान सूबा-ए-बाबुल में खड़ा किया।
\v 2 तब नबूकदनज़र बादशाह ने लोगों को भेजा कि नाज़िमों और हाकिमों और सरदारों और क़ाज़ियों और ख़ज़ाँचियों और सलाहकारों और मुफ़्तियों और तमाम सूबों के 'उहदेदारों को जमा' करें, ताकि वह उस मूरत की 'इज़्ज़त को हाज़िर हों जिसको नबूकदनज़र बादशाह ने खड़ा किया था।
\s5
\v 3 तब नाज़िम, और हाकिम, और सरदार, और क़ाज़ी, और ख़ज़ाँची, और सलाहकार, और मुफ़्ती और सूबों के तमाम 'उहदेदार, उस मूरत की 'इज़्ज़त के लिए जिसे नबूकदनज़र बादशाह ने खड़ा किया था जमा' हुए; और वह उस मूरत के सामने जिसको नबूकदनज़र ने खड़ा किया था, खड़े हुए।
\v 4 ~तब एक 'ऐलान करने वाले ने बलन्द आवाज़ से पुकार कर कहा, "ऐ लोगों, ऐ उम्मतों, और ऐ मुख़्तलिफ़ ज़बानें बोलने वालों! तुम्हारे लिए यह हुक्म है कि
\v 5 जिस वक़्त क़रना, और नै, और सितार, और रबाब, और बरबत, और चग़ाना, और हर तरह के साज़ की आवाज़ सुनो, तो उस सोने की मूरत के सामने जिसको नबूकदनज़र बादशाह ने खड़ा किया है गिर कर सिज्दा करो।
\s5
\v 6 और जो कोई गिर कर सिज्दा न करे, उसी वक़्त आग की जलती भट्टी में डाला जाएगा।”
\v 7 इसलिए जिस वक़्त सब लोगों ने क़रना, और नै, और सितार, और रबाब, और बरबत, और हर तरह के साज़ की आवाज़ सुनी, तो सब लोगों और उम्मतों और मुख़्तलिफ़ ज़बानें बोलने वालों ने उस मूरत के सामने , जिसको नबूकदनज़र बादशाह ने खड़ा किया था, गिर कर सिज्दा किया।
\s5
\v 8 ~तब उस वक़्त चन्द कसदियों ने आकर यहूदियों पर इल्ज़ाम लगाया।
\v 9 उन्होंने नबूकदनज़र बादशाह से कहा, "ऐ बादशाह, हमेशा तक जीता रह!
\v 10 ~ऐ बादशाह, तूने यह फ़रमान जारी किया है कि जो कोई क़रना, और नै, और सितार, और रबाब, और बरबत, और चुग़ाना, और हर तरह के साज़ की आवाज़ सुने, गिर कर सोने की मूरत को सिज्दा करे।
\s5
\v 11 और जो कोई गिर कर सिज्दा न करे, आग की जलती भट्टी में डाला जाएगा।
\v 12 अब चन्द यहूदी हैं, जिनको तू ने बाबुल के सूबे की ज़िम्मेदारी पर मुक़र्रर किया है, या'नी सदरक और मीसक और 'अबदनजू, इन आदमियों ने, ऐ बादशाह, तेरी ता'ज़ीम नहीं की। वह तेरे मा'बूदों की 'इबादत नहीं करते, और उस सोने की मूरत को जिसे तू ने खड़ा किया सिज्दा नहीं करते।"
\s5
\v 13 तब नबूकदनज़र ने क़हर-ओ-ग़ज़ब से हुक्म किया कि सदरक और मीसक और 'अबदनजू को हाज़िर करें। और उन्होंने उन आदमियों को बादशाह के सामने हाज़िर किया।
\v 14 नबूकदनज़र ने उनसे कहा, "ऐ सदरक और मीसक और 'अबदनजू क्या यह सच है कि तुम मेरे मा'बूदों की 'इबादत नहीं करते हो, और उस सोने की मूरत को जिसे मैने खड़ा किया सिज्दा नहीं करते?
\s5
\v 15 अब अगर तुम तैयार रहो कि जिस वक़्त क़रना, और नै, और सितार, और रबाब, और बरबत, और चग़ाना, और हर तरह के साज़ की आवाज़ सुनो, तो उस मूरत के सामने जो मैने बनवाई है गिर कर सिज्दा करो तो बेहतर, लेकिन अगर सिज्दा न करोगे, तो उसी वक़्त आग की जलती भट्टी में डाले जाओगे और कौन सा मा'बूद तुम को मेरे हाथ से छुड़ाएगा?"
\s5
\v 16 ~सदरक और मीसक और 'अबदनजू ने बादशाह से 'अर्ज़ किया कि "ऐ नबूकदनज़र, इस हुक्म में हम तुझे जवाब देना ज़रूरी नहीं समझते।
\v 17 ~देख, हमारा ख़ुदा जिसकी हम 'इबादत करते हैं, हम को आग की जलती भट्टी से छुड़ाने की क़ुदरत रखता है, और ऐ बादशाह वही हम को तेरे हाथ से छुड़ाएगा।
\v 18 और नहीं, तो ऐ बादशाह तुझे मा'लूम हो कि हम तेरे मा'बूदों की 'इबादत नहीं करेंगे, और उस सोने की मूरत को जो तूने खड़ी की है सिज्दा नहीं करेंगे।
\s5
\v 19 तब नबूकदनज़र ग़ुस्से से भर गया, और उसके चेहरे का रंग सदरक और मीसक और 'अबदनजू पर बदल गया, और उसने हुक्म दिया कि भट्टी की आँच मा'मूल से सात गुना ज़्यादा करें।
\v 20 और उसने अपने लश्कर के चन्द ~ताक़तवर ~पहलवानों को हुक्म दिया कि सदरक और मीसक और 'अबदनजू को बाँध कर आग की जलती भट्टी में डाल दें।
\s5
\v 21 ~तब यह मर्द अपने पैजामों-क़मीसों और 'अमामों के साथ बाँधे गए, और आग की जलती भट्टी में फेंक दिए गए।
\v 22 इसलिए चूँकि बादशाह का हुक्म ताकीदी था और भट्टी की ऑच निहायत तेज़ थी, इसलिए सदरक और मीसक और अबदनजू को उठाने वाले आग के शो'लों से हलाक हो गए;
\v 23 और यह तीन आदमी या'नी सदरक और मीसक और अबदनजू, बँधे हुए आग की जलती भट्टी में जा पड़े।
\s5
\v 24 तब नबूकदनज़र बादशाह सरासीमा होकर जल्द उठा, और अरकान-ए-दौलत से मुख़ातिब होकर कहने लगा, "क्या हम ने तीन शख़्सों को बँधवा कर आग में नहीं डलवाया?" उन्होंने जवाब दिया,"बादशाह ने सच फ़रमाया है।"
\v 25 उसने कहा, "देखो, मैं चार शख़्स आग में खुले फिरते देखता हूँ, और उनको कुछ नुक़सान नहीं पहुँचा; और चौथे की सूरत इलाहज़ादे की तरह है।"
\s5
\v 26 तब नबूकदनज़र ने आग की जलती भट्टी के दरवाज़े पर आकर कहा, "ऐ सदरक और मीसक और अबदनजू, ख़ुदा-त'आला के बन्दो! बाहर निकलो और इधर आओ!” इसलिए सदरक और मीसक और अबदनजू आग से निकल आए।
\v 27 ~तब नाज़िमों और हाकिमों और सरदारों और बादशाह के सलाहकारों ने जमा' होकर उन शख़्सों पर नज़र की, और देखा कि आग ने उनके बदनों पर कुछ असर न किया और उनके सिर का एक बाल भी न जलाया, और उनकी पोशाक में कुछ फ़र्क़ न आया और उनसे आग से जलने की बू भी न आती थी।
\s5
\v 28 तब नबूकदनज़र ने पुकार कर कहा, कि "सदरक और मीसक और 'अबदनजू का ख़ुदा मुबारक हो, जिसने अपना फ़रिश्ता भेज कर अपने बन्दों को रिहाई बख़्शी, जिन्होंने उस पर भरोसा करके बादशाह के हुक्म को टाल दिया, और अपने बदनों को निसार किया कि अपने ख़ुदा के अलावा किसी दूसरे मा'बूद की 'इबादत और बन्दगी न करें।
\s5
\v 29 ~इसलिए मैं यह फ़रमान जारी करता हूँ कि जो क़ौम या उम्मत या अहल-ए-ज़ुबान, सदरक और मीसक और 'अबदनजू के ख़ुदा के हक़ में कोई ना मुनासिब बात कहें उनके टुकड़े-टुकड़े किए जाएँगे और उनके घर मज़बला हो जाएँगे, क्यूँकि कोई दूसरा मा'बूद नहीं जो इस तरह रिहाई दे सके।"
\v 30 फिर बादशाह ने सदरक और मीसक और 'अबदनजू को सूबा-ए-बाबुल में सरफ़राज़ किया।
\s5
\c 4
\p
\v 1 नबूकदनज़र बादशाह की तरफ़ से तमाम लोगों, उम्मतों और अहल-ए-ज़ुबान के लिए जो तमाम इस ज़मीन पर रहते हैं: तुम्हारी सलामती होती रहे।
\v 2 ~मैने मुनासिब जाना कि उन निशानों और 'अजाइब को ज़ाहिर करूँ जो ख़ुदा-त'आला ने मुझ पर ज़ाहिर ~किए हैं।
\v 3 ~उसके निशान कैसे 'अज़ीम, और उसके 'अजाइब कैसे पसंदीदा हैं! उसकी ममलुकत ~हमेशा की ममलुकत है,और उसकी सल्तनत नसल-दर-नसल।
\s5
\v 4 ~मैं, नबूकदनज़र, अपने घर में मुतम'इन और अपने महल में कामयाब था।
\v 5 ~मैने एक ख़्वाब देखा, जिससे मैं परेशान ~हो गया और उन ख़्यालात से जो मैने पलंग पर किए और उन ख़्यालों से जो मेरे दिमाग़ में आए, मुझे परेशानी हुई।
\v 6 ~इसलिए मैने फ़रमान जारी किया कि बाबुल के तमाम हकीम मेरे सामने हाज़िर किए जाएँ, ताकि मुझसे उस ख़्वाब की ता'बीर बयान करें।
\s5
\v 7 ~चुनाँचे जादूगर और नजूमी और कसदी और फ़ालगीर हाज़िर हुए, और मैने उनसे अपने ख़्वाब का बयान किया, पर उन्होंने उसकी ता'बीर मुझ से बयान न की।
\v 8 आख़िरकार दानीएल मेरे सामने आया, जिसका नाम बेल्तशज़र है, जो मेरे मा'बूद का भी नाम है, उसमें मुक़द्दस इलाहों की रूह है; इसलिए मैने उसके आमने-सामने ख़्वाब का बयान किया और कहा :
\v 9 ~"ऐ बेल्तशज़र, जादूगरों के सरदार, चूँकि मैं जानता हूँ कि मुक़द्दस इलाहों की रूह तुझमे है, और कि कोई राज़ की बात तेरे लिए मुश्किल नहीं;~इसलिए~जो ख़्वाब मैने देखा उसकी कैफ़ियत और ता'बीर बयान कर।
\s5
\v 10 पलंग पर मेरे दिमाग़ की रोया ये थी: मैने निगाह की और क्या देखता हूँ कि ज़मीन के तह में एक निहायत ऊँचा दरख़्त है।
\v 11 ~वह दरख़्त बढ़ा और मज़बूत हुआ और उसकी चोटी आसमान तक पहुँची, और वह ज़मीन की इन्तिहा तक दिखाई देने लगा।
\v 12 उसके पत्ते खु़शनुमा थे और मेवा फ़िरावान था, और उसमें सबके लिए ख़ुराक थी; मैदान के जानवर उसके साये में और हवा के परिन्दे उसकी शाखों पर बसेरा करते थे, और तमाम बशर ने उस से परवरिश पाई।
\s5
\v 13 "मैने अपने पलंग पर अपनी दिमाग़ी रोया पर निगाह की, और क्या देखता हूँ कि एक निगहबान, हाँ एक फ़रिश्ता आसमान से उतरा।
\v 14 ~उसने बलन्द आवाज़ से पुकार कर यूँ कहा कि 'दरख़्त को काटो, उसकी शाखें तराशो, और उसके पत्ते झाड़ो, और उसका फल बिखेर दो; जानवर उसके नीचे से चले जाएँ और परिन्दे उसकी शाखों पर से उड़ जाएँ।
\s5
\v 15 ~लेकिन उसकी जड़ों का हिस्सा ज़मीन में बाक़ी रहने दो, हाँ, लोहे और ताँम्बे के बन्धन से बन्धा हुआ मैदान की हरी घास में रहने दो, और वह आसमान की शबनम से तर हो, और उसका हिस्सा ज़मीन की घास में हैवानों के साथ हो।
\v 16 ~उसका दिल इन्सान का दिल न रहे, बल्कि उसको हैवान का दिल दिया जाए; और उस पर सात दौर गुज़र जाएँ।
\s5
\v 17 यह हुक्म निगहबानों के फ़ैसले से है, और यह हुक्म फ़रिश्तों के कहने के मुताबिक़ है, ताकि सब जानदार पहचान लें कि हक़ त'आला आदमियों की ममलुकत में हुक्मरानी करता है और जिसको चाहता है उसे देता है, बल्कि आदमियों में से अदना आदमी को उस पर क़ायम करता है।'
\v 18 मैं नबूकदनज़र बादशाह ने यह ख़्वाब देखा है। ऐ बेल्तशज़र, तू इसकी ता'बीर बयान कर, क्यूँकि मेरी ममलुकत के तमाम हकीम मुझसे उसकी ता'बीर बयान नहीं कर सकते, लेकिन तू कर सकता है; क्यूँकि मुक़द्दस इलाहों की रूह तुझमें मौजूद है।"
\s5
\v 19 तब दानीएल जिसका नाम बेल्तशज़र है, एक वक़्त तक ख़ामोश रहा, और अपने ख़्यालात में परेशान हुआ। बादशाह ने उससे कहा, "ऐ बेल्तशज़र, ख़्वाब और उसकी ता'बीर से तू परेशान न हो।" बेल्तशज़र ने जवाब दिया, "ऐ मेरे ख़ुदावन्द, ये ख़्वाब तुझसे कीना रखने वालों के लिए और उसकी ता'बीर तेरे दुश्मनों के लिए हो!
\s5
\v 20 ~वह दरख़्त जो तूने देखा कि बढ़ा और मज़बूत हुआ, जिसकी चोटी आसमान तक पहुँची और ज़मीन की इन्तिहा तक दिखाई देता था;
\v 21 जिसके पत्ते ख़ुशनुमा थे और मेवा फ़रावान था, जिसमें सबके लिए ख़ुराक थी। जिसके साये में मैदान के जानवर और शाखों पर हवा के परिन्दे बसेरा करते थे।
\v 22 ऐ बादशाह, वह तू ही है जो बढ़ा और मज़बूत हुआ, क्यूँकि तेरी बुज़ुर्गी बढ़ी और आसमान तक पहुँची और तेरी सल्तनत ज़मीन की इन्तिहा तक।
\s5
\v 23 और जो बादशाह ने देखा कि एक निगहबान, यहाँ, एक फ़रिश्ता आसमान से उतरा और कहने लगा, 'दरख़्त को काट डालों और उसे बर्बाद करो, लेकिन उसकी जड़ों का हिस्सा ज़मीन में बाक़ी रहने दो; बल्कि उसे लोहे और ताँम्बे के बन्धन से बन्धा हुआ, मैदान की हरी घास में रहने दो कि वह आसमान की शबनम से तर हो, और जब तक उस पर सात दौर न गुज़र जाएँ उसका हिस्सा ज़मीन के हैवानों के साथ हो।'
\s5
\v 24 ऐ बादशाह, इसकी ता'बीर और हक़-त'आला का वह हुक्म, जो बदशाह मेरे खुदावन्द के हक़ में हुआ है यही है,
\v 25 ~कि तुझे आदमियों में से हाँक कर निकाल देंगे, और तू मैदान के हैवानों के साथ रहेगा, और तू बैल की तरह घास खाएगा और आसमान की शबनम से तर होगा, और तुझ पर सात दौर गुज़र जाएँगे, तब तुझको मा'लूम होगा कि हक़ त'आला इन्सान की ममलुकत में हुक्मरानी करता है और उसे जिसको चाहता है देता है|
\s5
\v 26 और यह जो उन्होंने हुक्म किया कि दरख़्त की जड़ों के हिस्से को बाक़ी रहने दो, उसका मतलब ये है कि जब तू मा'लूम कर चुकेगा कि बादशाही का इख़्तियार आसमान की तरफ़ से है, तो तू अपनी सल्तनत पर फिर क़ायम हो जाएगा।
\v 27 इसलिए~ऐ बादशाह, तेरे सामने मेरी सलाह क़ुबूल हो और तू अपनी ख़ताओं को सदाक़त से और अपनी बदकिरदारी को मिस्कीनों पर रहम करने से दूर कर, मुम्किन है इससे तेरा इत्मिनान ज़्यादा हो।"
\s5
\v 28 यह सब कुछ नबूकदनज़र बादशाह पर गुज़रा।
\v 29 ~एक साल बा'द वह बाबुल के शाही महल में टहल रहा था।
\v 30 ~बादशाह ने फ़रमाया, "क्या यह बाबुल-ए-आज़म नहीं, जिसको मैने अपनी तवानाई ~की कु़दरत से ता'मीर किया है कि दार-उस-सल्तनत और मेरे जाह-ओ-जलाल का नमूना हो?”
\s5
\v 31 ~बादशाह यह बात कह ही रहा था कि आसमान से आवाज़ आई, "ऐ नबूकदनज़र बादशाह, तेरे हक़ में यह फ़तवा है कि सल्तनत तुझ से जाती रही।
\v 32 और तुझे आदमियों में से हाँक कर निकाल देंगे, और तू मैदान के हैवानों के साथ रहेगा और बैल की तरह घास खाएगा, और सात दौर तुझ पर गुज़ेरेंगे, तब तुझको मा'लूम होगा कि हक़ त'आला आदमियों की ममलुकत में हुक्मरानी करता है, और उसे जिसको चाहता है, देता है।"
\s5
\v 33 ~उसी वक़्त नबूकदनज़र बादशाह पर यह बात पूरी हुई, और वह आदमियों में से निकाला गया और बैलों की तरह घास खाता रहा और उसका बदन आसमान की शबनम से तर हुआ, यहाँ तक कि उसके बाल उक़ाब के परों की तरह और उसके नाख़ून परिन्दों के चँगुल की तरह बढ़ गए।
\s5
\v 34 और इन दिनों के गुज़रने के बा'द, मैं ~नबूकदनज़र ने आसमान की तरफ़ आँखें उठाई~और मेरी 'अक़्ल मुझमे फिर आई और मैने हक़-त'आला का शुक्र किया, और उस हय्युल-क़य्यूम ~की बड़ाई-ओ-सना की, जिसकी सल्तनत हमेशा और जिसकी ममलुकत नसल-दर-नसल है।
\s5
\v 35 ~और ज़मीन के तमाम बाशिन्दे नाचीज़ गिने जाते हैं और वह आसमानी लश्कर और ज़मीन के रहने वालों के साथ जो कुछ चाहता है करता है; और कोई नहीं जो उसका हाथ रोक सके। या उससे कहे कि "तू क्या करता है?"
\s5
\v 36 उसी वक़्त मेरी 'अक़्ल मुझ में फिर आई, और मेरी सल्तनत की शौकत के लिए मेरा रौ'ब और दबदबा फिर मुझमे बहाल हो गया, और मेरे सलाहकारों और अमीरों ने मुझे फिर ढूँडा और मैं अपनी ममलुकत में क़ायम हुआ और मेरी 'अज़मत में अफ़ज़ूनी हुई।
\v 37 ~अब मैं नबूकदनज़र, आसमान के बादशाह की बड़ाई और 'इज़्ज़त-ओ-ता'ज़ीम करता हूँ, क्यूँकि वह अपने सब कामों में रास्त और अपनी सब राहों में 'इन्साफ़ करता है; और जो मग़रूरी में चलते हैं उनको ज़लील कर सकता है।
\s5
\c 5
\p
\v 1 ~बेलशज़र बादशाह ने अपने एक हज़ार हाकिमों की बड़ी धूमधाम से मेहमान नवाज़ी ~की, और उनके सामने शराबनोशी की।
\v 2 बेलशज़र ने शराब से मसरूर होकर हुक्म किया कि सोने चाँदी के बर्तन जो नबूकदनज़र उसका बाप यरुशलीम की~हैकल से निकाल लाया था, लाएँ ताकि बादशाह और उसके हाकिमों और उसकी बीवियाँ और बाँदियाँ उनमें मयख़्वारी करें।
\s5
\v 3 ~तब सोने के बर्तन को जो हैकल से, या'नी ख़ुदा के घर से जो यरूशलीम में हैं ले गए थे, लाए और बादशाह और उसके हाकिमों और उसकी बीवियों और बाँदियों ~ने उनमें शराब पी।
\v 4 उन्होंने शराब पी और सोने और चाँदी और पीतल और लोहे और लकड़ी और पत्थर के बुतों की बड़ाई की।
\s5
\v 5 ~उसी वक़्त आदमी के हाथ की उंगलियाँ ज़ाहिर हुईं और उन्होंने शमा'दान के मुक़ाबिल बादशाही महल की दीवार के गच पर लिखा, और बादशाह ने हाथ का वह ~हिस्सा जो लिखता था देखा।
\v 6 ~तब बादशाह के चेहरे का रंग उड़ गया और उसके ख़्यालात उसको परेशान करने लगे, यहाँ तक कि उसकी कमर के जोड़ ढीले हो गए और उसके घुटने एक दूसरे से टकराने लगे।
\s5
\v 7 ~बादशाह ने चिल्ला कर कहा कि नजूमियों और कसदियों और फ़ालगीरों को हाज़िर करें। बादशाह ने बाबुल के हकीमों से कहा, "जो कोई इस लिखे हुए को पढ़े और इसका मतलब मुझ से बयान करे, अर्ग़वानी ख़िल'अत पाएगा और उसकी गर्दन में ज़र्रीन तौक़ पहनाया जाएगा, और वह ममलुकत में तीसरे दर्जे का हाकिम होगा।"
\s5
\v 8 तब बादशाह के तमाम हकीम हाज़िर हुए, लेकिन न उस लिखे हुए को पढ़ सके और न बादशाह से उसका मतलब बयान कर सके।
\v 9 ~तब बेलशज़र बादशाह बहुत घबराया और उसके चेहरे का रंग उड़ गया, और उसके हाकिम परेशान हो गए।
\s5
\v 10 अब बादशाह और उसके हाकिमों की बातें सुनकर बादशाह की वालिदा जश्नगाह में आई और कहने लगी, "ऐ बादशाह, हमेशा तक जीता रह! तेरे ख़्यालात तुझको परेशान न करें और तेरा चेहरा उदास न हो।
\s5
\v 11 ~तेरी ममलुकत में एक शख़्स है जिसमें पाक इलाहों की रूह है, और तेरे बाप के दिनों में नूर और 'अक़्ल और हिकमत, इलाहों की हिकमत की तरह उसमें पाई जाती थी; और उसको नबूकदनज़र बादशाह, तेरे बाप ने जादूगरों और नजूमियों और कसदियों और फ़ालगीरों का सरदार बनाया था।
\v 12 ~क्यूँकि उसमें एक फ़ाज़िल रूह और दानिश और 'अक़्ल और ख़्वाबों की ता'बीर और 'उक़्दा कुशाई और मुश्किलात के हल की ताक़त थी-उसी दानीएल में जिसका नाम बादशाह ने बेल्तशज़र रख्खा था - इसलिए दानीएल को बुलवा, वह मतलब बताएगा।"
\s5
\v 13 ~तब दानीएल बादशाह के सामने हाज़िर किया गया। बादशाह ने दानीएल से पूछा, "क्या तू वही दानीएल है जो यहूदाह के ग़ुलामों में से है, जिनको बादशाह मेरा बाप यहूदाह से लाया?
\v 14 मैने तेरे बारे में सुना है कि इलाहों की रूह तुझमें है, और नूर और~'अक़्ल~और कामिल हिकमत तुझ में है।
\s5
\v 15 हकीम और नजूमी मेरे सामने हाज़िर किए गए, ताकि इस लिखे हुए को पढ़ें और इसका मतलब मुझ से बयान करें, लेकिन वह इसका मतलब बयान नहीं कर सके।
\v 16 ~और मैने तेरे बारे में सुना है कि तू ता'बीर और मुश्किलात के हल पर क़ादिर है। इसलिए अगर तू इस लिखे हुए को पढ़े और इसका मतलब मुझ से बयान करे, तो अर्ग़वानी खिल'अत पाएगा और तेरी गर्दन में ज़र्रीन तौक़ पहनाया जाएगा और तू ममलुकत में तीसरे दर्जे का हाकिम होगा।”
\s5
\v 17 ~तब दानीएल ने बादशाह को जवाब दिया, "तेरा इन'आम तेरे ही पास रहे और अपना सिला किसी दूसरे को दे, तोभी मैं बादशाह के लिए इस लिखे हुए को पढूँगा और इसका मतलब उससे बयान करूँगा।
\v 18 ऐ बादशाह, ख़ुदा त'आला ने नबूकदनज़र, तेरे बाप को सल्तनत और हशमत और शौकत और 'इज़्ज़त बख़्शी।
\v 19 ~और उस हशमत की वजह ~से जो उसने उसे बख़्शी तमाम लोग और उम्मतें और अहल-ए-ज़ुबान उसके सामने काँपने और डरने लगे। उसने जिसको चाहा हलाक किया और जिसको चाहा ज़िन्दा रख्खा, जिसको चाहा सरफ़राज़ किया और जिसको चाहा ज़लील किया ।
\s5
\v 20 लेकिन जब उसकी तबी'अत में ग़ुरूर समाया और उसका दिल ग़ुरूर से सख़्त हो गया, तो वह तख़्त-ए-सल्तनत से उतार दिया गया और उसकी हशमत जाती रही।
\v 21 ~और वह बनी आदम के बीच से हॉक कर निकाल दिया गया, और उसका दिल हैवानों का सा बना और गोरख़रों के साथ रहने लगा और उसे बैलों की तरह घास खिलाते थे और उसका बदन आसमान की शबनम से तर हुआ; जब तक उसने मा'लूम न किया कि ख़ुदा-त'आला इन्सान की ममलुकत में हुक्मरानी करता है, और जिसको चाहता है उस पर क़ायम करता है।
\s5
\v 22 लेकिन तू, ऐ बेलशज़र, जो उसका बेटा है; बावजूद यह कि तू इस सब को जानता था तोभी तूने अपने दिल से 'आजिज़ी न की।
\v 23 बल्कि आसमान के ख़ुदावन्द के सामने अपने आप को बलन्द किया, और उसकी हैकल के बर्तन तेरे पास लाए और तूने अपने हाकिमों और अपनी बीवियों और बाँदियों के साथ उनमें मय-ख़्वारी की, और तूने सोने और चाँदी और पीतल और लोहे और लकड़ी और पत्थर के बुतों की बड़ाई की, जो न देखते न सुनते और न जानते हैं; और उस ख़ुदा की तम्जीद न की जिसके हाथ में तेरा दम है, और जिसके क़ाबू में तेरी सब राहें हैं।
\v 24 "इसलिए उसकी तरफ से हाथ का वह ~हिस्सा भेजा गया, और यह नविश्ता लिखा गया।
\s5
\v 25 और यूँ लिखा है: मिने, मिने, तक़ील-ओ-फ़रसीन।
\v 26 और उसके मानी यह हैं : मिने, या'नी ख़ुदा ने तेरी ममलुकत महसूब किया और उसे तमाम कर डाला |
\v 27 ~तक़ील, या'नी तू तराज़ू में तोला गया और कम निकला।
\v 28 फ़रीस, या'नी तेरी ममलुकत फ़ारसियों को दी गई।"
\s5
\v 29 ~तब बेलशज़र ने हुक्म किया, और दानीएल को अर्ग़वानी लिबास पहनाया गया और ज़र्रीन तौक़ उसके गले में डाला गया, और 'ऐलान कराया गया कि वह ममलुकत में तीसरे दर्जे का हाकिम हो।
\v 30 उसी रात को बेलशज़र, कसदियों का बादशाह क़त्ल हुआ।
\v 31 ~और दारा मादी ने बासठ बरस की 'उम्र में उसकी सल्तनत हासिल की।
\s5
\c 6
\p
\v 1 दारा को पसन्द आया कि ममलुकत पर एक सौ बीस नाज़िम मुक़र्रर करे, जो सारी ममलुकत पर हुकूमत करें।
\v 2 और उन पर तीन वज़ीर हों जिनमें से एक दानीएल था, ताकि नाज़िम उनको हिसाब दें और बादशाह नुक़सान न उठाए।
\v 3 और चूँकि दानीएल में फ़ाज़िल रूह थी, इसलिए वह उन वज़ीरों और नाज़िमों पर सबक़त ले गया और बादशाह ने चाहा कि उसे सारे मुल्क पर मुख़्तार ठहराए।
\s5
\v 4 तब उन वज़ीरों और नाज़िमों ने चाहा कि हाकिमदारी में दानीएल पर कु़सूर साबित करें, लेकिन वह कोई मौक़ा' या कु़सूर न पा सके, क्यूँकि वह ईमानदार था और उसमें कोई ख़ता या बुराई~न थी।
\v 5 तब उन्होंने कहा, कि "हम इस दानीएल को उसके ख़ुदा की शरी'अत के अलावा किसी और बात में कु़सूरवार न पाएँगे।”
\s5
\v 6 इसलिए यह वज़ीर और नाज़िम बादशाह के ~सामने जमा' हुए और उससे इस तरह कहने लगे, कि "ऐ दारा बादशाह, हमेशा ~तक जीता रह !
\v 7 ममलुकत के तमाम वज़ीरों और हाकिमों और नाज़िमों और सलाहकारों और सरदारों ने एक साथ मशवरा किया है कि एक ख़ुस्रवाना तरीक़ा मुक़र्रर करें, और एक इम्तिनाई फ़रमान जारी करें, ताकि ऐ बादशाह, तीस रोज़ तक जो कोई तेरे अलावा किसी मा'बूद या आदमी से कोई दरख़्वास्त करे, शेरों की माँद में डाल दिया जाए।
\s5
\v 8 अब ऐ बादशाह, इस फ़रमान को क़ायम कर और लिखे हुए पर दस्तख़त कर, ताकि तब्दील न हो जैसे मादियों और फ़ारसियों के तौर तरीक़े जो तब्दील नहीं होते।"
\v 9 तब दारा बदशाह ने उस लिखे हुए और फ़रमान पर दस्तख़त कर दिए।
\s5
\v 10 और जब दानीएल ने मा'लूम किया कि उस लिखे हुए पर दस्तख़त हो गए, तो अपने घर में आया और उसकी कोठरी का दरीचा यरूशलीम की तरफ़ खुला था, वह दिन में तीन मरतबा हमेशा की तरह ~घुटने टेक कर ख़ुदा के ~सामने दु'आ और उसकी शुक्रगुज़ारी करता रहा।
\v 11 तब यह लोग जमा' हुए और देखा कि दानीएल अपने ख़ुदा के ~सामने दु'आ और इल्तिमास कर रहा है।
\s5
\v 12 ~तब उन्होंने बादशाह के पास आकर उसके ~सामने उसके फ़रमान का यूँ ज़िक्र किया, कि "ऐ बादशाह, क्या तूने इस फ़रमान पर दस्तख़त नहीं किए, कि~तीस रोज़ तक जो कोई तेरे अलावा किसी मा'बूद या आदमी से कोई दरख़्वास्त करे, शेरों की मान्द में डाल दिया जाएगा?" बादशाह ने जवाब दिया, "मादियों और फ़ारसियों के ना बदलने वाले तौर तरीक़े के मुताबिक़ यह बात सच है।"
\s5
\v 13 ~तब उन्होंने बादशाह के सामने 'अर्ज़ किया, कि "ऐ बादशाह, यह दानीएल जो यहूदाह के ग़ुलामों में से है, न तेरी परवा करता है और न उस इम्तिनाई फ़रमान को जिस पर तूने दस्तख़त किए हैं काम में लाता है, बल्कि हर रोज़ तीन बार दु'आ करता है।"
\v 14 जब बादशाह ने यह बातें सुनीं, तो निहायत रन्जीदा हुआ और उसने दिल में चाहा कि दानीएल को छुड़ाए, और सूरज डूबने तक उसके छुड़ाने में कोशिश करता रहा।
\s5
\v 15 ~फिर यह लोग बादशाह के ~सामने जमा' ~हुए और बादशाह से कहने लगे, कि "ऐ बादशाह, तू समझ ले कि मादियों और फ़ारसियों के तौर तरीक़े यूँ हैं कि जो फ़रमान और क़ानून बादशाह मुक़र्रर करे कभी नहीं बदलता।"
\s5
\v 16 ~तब बादशाह ने हुक्म दिया, और वह दानीएल को लाए और शेरों की माँद में डाल दिया, पर बादशाह ने दानीएल से कहा, 'तेरा खुदा, जिसकी तू हमेशा 'इबादत करता है तुझे छुड़ाएगा।"
\s5
\v 17 ~और एक पत्थर लाकर उस माँद के मुँह पर रख दिया, और बादशाह ने अपनी और अपने अमीरों की मुहर उस पर कर दी, ताकि वह बात जो दानीएल के हक़ में ठहराई गई थी न बदले।
\v 18 तब बादशाह अपने महल में गया और उसने सारी रात फ़ाक़ा किया, और मूसीक़ी के साज़ उसके सामने न लाए और उसकी नींद जाती रही।
\s5
\v 19 और बादशाह सुबह बहुत सवेरे उठा, और जल्दी से शेरों की माँद की तरफ़ चला।
\v 20 ~और जब माँद पर पहुँचा, तो ग़मनाक आवाज़ से दानीएल को पुकारा। बादशाह ने दानीएल को ख़िताब करके कहा, "ऐ दानीएल, ज़िन्दा ख़ुदा के बन्दे, क्या तेरा ख़ुदा जिसकी तू हमेशा 'इबादत करता है, क़ादिर हुआ कि तुझे शेरों से छुड़ाए?"
\s5
\v 21 ~तब दानीएल ने बादशाह से कहा, "ऐ बादशाह, हमेशा तक जीता रह!
\v 22 ~मेरे ख़ुदा ने अपने फ़रिश्ते को भेजा और शेरों के मुँह बन्द कर दिए, और उन्होंने मुझे नुक़सान नहीं पहुँचाया क्यूँकि मैं उसके सामने बे-गुनाह साबित हुआ, और तेरे सामने भी ऐ बादशाह, मैने ख़ता नहीं की।"
\s5
\v 23 इसलिए बादशाह निहायत ख़ुश हुआ और हुक्म दिया कि दानीएल को उस माँद से निकालें। तब दानीएल उस माँद से निकाला गया, और मा'लूम हुआ कि उसे कुछ नुक़सान नहीं पहुँचा, क्यूँकि उसने अपने ख़ुदा पर भरोसा किया था।
\s5
\v 24 और बादशाह ने हुक्म दिया और वह उन शख़्सों को जिन्होंने दानीएल की शिकायत की थी लाए, और उनके बच्चों और बीवियों के साथ उनको शेरों की मान्द में डाल दिया; और शेर उन पर ग़ालिब आए और इससे पहले कि मान्द की तह तक पहुँचें, शेरों ने उनकी सब हड्डियाँ तोड़ डालीं।
\v 25 ~तब दारा बादशाह ने सब लोगों और क़ौमों और अहल-ए-ज़ुबान को जो इस ज़मीन पर बसते थे, ख़त लिखा: "तुम्हारी सलामती बढ़ती जाये !
\s5
\v 26 मैं यह फ़रमान जारी करता हूँ कि मेरी ममलुकत के हर एक सूबे के लोग, दानीएल के ख़ुदा के सामने डरते और काँपते हों क्यूँकि वही ज़िन्दा ख़ुदा है और हमेशा क़ायम है; और उसकी सल्तनत लाज़वाल है और उसकी ममलुकत हमेशा तक रहेगी।
\v 27 वही छुड़ाता और बचाता है, और आसमान और ज़मीन में वही निशान और 'अजाइब दिखाता है, उसीने दानीएल को शेरों के पंजों से छुड़ाया है।"
\s5
\v 28 इसलिए यह दानीएल दारा की सल्तनत और ख़ोरस फ़ारसी की सल्तनत में कामयाब रहा।,
\s5
\c 7
\p
\v 1 ~शाह-ए-बाबुल बेलशज़र के पहले साल में दानीएल ने अपने बिस्तर पर ख़्वाब में अपने सिर के दिमाग़ी ख़्यालात की रोया देखी। तब उसने उस ख़्वाब को लिखा, और उन ख़्यालात का मुकम्मल बयान किया।
\v 2 दानीएल ने यूँ कहा, कि "मैने रात को एक ख्व़ाब देखा, और क्या देखता हूँ कि आसमान की चारों हवाएँ समन्दर पर ज़ोर से चलीं।
\v 3 और समन्दर से चार बड़े हैवान, जो एक दूसरे से मुख़्तलिफ़ थे निकले।
\s5
\v 4 पहला शेर-ए-बबर की तरह था, और उक़ाब के से बाज़ू रखता था; और मैं देखता रहा, जब तक उसके पर उखाड़े गए और वह ज़मीन से उठाया गया, और आदमी की तरह पाँव पर खड़ा किया गया और इन्सान का दिल उसे दिया गया।
\v 5 और क्या देखता हूँ कि एक दूसरा हैवान रीछ की तरह है, और वह एक तरफ़ सीधा खड़ा हुआ; और उसके मुँह में उसके दाँतों के बीच तीन पसलियाँ थीं, और उन्होंने उससे कहा, 'कि उठ, और कसरत से गोश्त खा।'
\s5
\v 6 फिर मैने निगाह की, और क्या देखता हूँ कि एक और हैवान तेंदवे की तरह उठा, जिसकी पीठ पर परिन्दे के से चार बाज़ू थे और उस हैवान के चार सिर थे; और सल्तनत उसे दी गई।
\v 7 फिर मैने रात को ख़्वाब में देखा, और क्या देखता हूँ कि चौथा हैवान हौलनाक और हैबतनाक और निहायत ज़बरदस्त है, और उसके दाँत लोहे के बड़े-बड़े थे; वह निगल जाता और टुकड़े टुकड़े करता था, और जो कुछ बाक़ी बचता उसको पाँव से लताड़ता था, और यह उन सब पहले हैवानों से मुख़्तलिफ़ था और उसके दस सींग थे।
\s5
\v 8 ~मैं ने उन सींगो पर ग़ौर से नज़र की, और क्या देखता हूँ कि उनके बीच ~से एक और छोटा सा सींग निकला, जिसके आगे पहलों में से तीन सींग जड़ से उखाड़े गए, और क्या देखता हूँ कि उस सींग में इन्सान के सी आँखे ~हैं और एक मुँह है जिस से ग़ुरूर की बातें निकलती हैं।
\s5
\v 9 "मेरे देखते हुए तख़्त लगाए गए, और पुराने दिनों में बैठ गया; उसका लिबास बर्फ़ की तरह सफ़ेद था, और उसके सिर के बाल ख़ालिस ऊन की तरह थे; उसका तख़्त आग के शोले की तरह था, और उसके पहिये जलती आग की तरह थे।
\s5
\v 10 ~उसके सामने से एक आग का दरिया जारी था, हज़ारों हज़ार उसकी ख़िदमत में हाज़िर थे और लाखों लाख उसके सामने खड़े थे, 'अदालत हो रही थी, और किताबें खुली थी।
\s5
\v 11 'मैं देख ही रहा था कि उस सींग की ग़ुरूर की बातों की आवाज़ की वजह से, मेरे देखते हुए वह हैवान मारा गया और उसका बदन हलाक करके शोलाज़न आग में डाला गया।
\v 12 ~और बाक़ी हैवानों की सल्तनत भी उन से ले ली गई, लेकिन वह एक ज़माना और एक दौर ज़िन्दा रहे।
\s5
\v 13 ~'मैने रात को ख़्वाब में देखा, और क्या देखता हूँ एक शख़्स आदमज़ाद की तरह आसमान के बा'दलों के साथ आया और गुज़रे दिनों तक पहुँचा,वह उसे उसके सामने लाए।
\v 14 और सल्तनत और हशमत और ममलुकत उसे दी गई, ताकि सब लोग और उम्मतें और अहल-ए-ज़ुबान उसकी ख़िदमत गुज़ारी करें उसकी सल्तनत हमेशा की सल्तनत है जो जाती न रहेगी और उसकी ममलुकत लाज़वाल होगी।
\s5
\v 15 ~"मुझ दानीएल की रूह मेरे बदन में मलूल हुई, और मेरे दिमाग़ के ख़्यालात ने मुझे परेशान कर दिया।
\v 16 जो मेरे नज़दीक खड़े थे, मैं उनमें से एक के पास गया और उससे इन सब बातों की हक़ीक़त दरियाफ़्त की, इसलिए उसने मुझे बताया और इन बातों का मतलब समझा दिया,
\s5
\v 17 ~'यह चार बड़े हैवान चार बादशाह हैं, जो ज़मीन पर बर्पा ~होंगे।
\v 18 लेकिन हक़-त'आला के पाक लोग सल्तनत ले लेंगे और हमेशा तक हाँ हमेशा से हमेशा तक उस सल्तनत के मालिक रहेंगे।
\s5
\v 19 " तब मैने चाहा कि चौथे हैवान की हक़ीक़त समझूँ, जो उन सब से मुख़्तलिफ़ और निहायत हौलनाक था, जिसके दाँत लोहे के और नाख़ून पीतल के थे, जो निगलता और टुकड़े-टुकड़े करता और जो कुछ बचता उसको पाँव से लताड़ता था।
\v 20 और दस सींगों की हक़ीक़त जो उसके सिर पर थे, और उस सींग की जो निकला और जिसके आगे तीन गिर गए, या'नी जिस सींग की आँखें थीं और एक मुँह था जो बड़े ग़ुरूर की बातें करता था, और जिसकी सूरत उसके साथियों से ज़्यादा रो'ब दार थी।
\s5
\v 21 ~मैं ने देखा कि वही सींग मुक़द्दसों से जंग करता और उन पर ग़ालिब आता रहा।
\v 22 जब तक कि पुराने दिन न आये, और हक़ त'आला के पाक लोगों का इन्साफ़ न किया गया, और वक़्त आ न पहुँचा कि पाक लोग सल्तनत के मालिक हों।
\s5
\v 23 ~"उसने कहा, कि चौथा हैवान दुनिया की चौथी सल्तनत जो तमाम सल्तनतों से मुख़तलिफ़ है,और ज़मीन को निगल जायेगी और उसे लताड़ कर टुकड़े-टुकड़े करेगी।
\v 24 और वह दस सींग दस बादशाह हैं, जो उस सल्तनत में खड़े होंगे; और उनके बा'द एक और खड़ा होगा, और वह पहलों से मुख़्तलिफ़ होगा और तीन बादशाहों को पस्त करेगा।
\s5
\v 25 और वह हक़-त'आला के ख़िलाफ़ बातें करेगा, और हक़ त'आला के मुक़द्दसों को तंग करेगा और मुक़र्ररा वक़्त व शरी'अत को बदलने की कोशिश करेगा, और वह एक दौर और दौरों और नीम दौर तक उसके हवाले किए जाएँगे।
\v 26 ~तब 'अदालत क़ायम होगी,और उसकी सल्तनत उससे ले लेंगे कि उसे हमेशा के लिए नेस्त-ओ-नाबूद करें।
\s5
\v 27 और तमाम आसमान के नीचे सब मुल्कों की सल्तनत और ममलुकत और सल्तनत की हशमत हक़ त'आला के मुक़द्दस लोगों को बख़्शी जाएगी, उसकी सल्तनत हमेशा की सल्तनत है और तमाम ममलुकत उसकी ,ख़िदमत गुज़ार और फ़रमाबरदार होंगी |
\v 28 "यहाँ पर यह हुक्म पूरा हुआ, मैं दानीएल अपने शकों से निहायत घबराया और मेरा चेहरा मायूस हुआ, लेकिन मैने यह बात दिल ही में रख्खी।"
\s5
\c 8
\p
\v 1 बेलशज़र बादशाह की सल्तनत के तीसरे साल में मुझ को, हाँ, मुझ दानीएल को एक ख़्वाब नज़र आया, या'नी मेरे पहले~ख़्वाब~के बा'द।
\v 2 और मैंने~'आलम-ए-रोया~में देखा, और जिस वक़्त मैने देखा, ऐसा मा'लूम हुआ कि मैं महल-ए-सोसन में था, जो सूबा-ए- 'ऐलाम में है। फिर मैने 'आलम-ए-रोया ही में देखा कि मैं दरिया-ए-ऊलाई के किनारे पर हूँ।
\s5
\v 3 ~तब मैने आँख उठा कर नज़र की, और क्या देखता हूँ कि दरिया के पास एक मेंढा खड़ा है जिसके दो सींग हैं, दोनों सींग ऊँचे थे, लेकिन एक दूसरे से बड़ा था और बड़ा दूसरे के बा'द निकला था।
\v 4 मैने उस मेंढे को देखा कि पश्चिम-और-उत्तर-और-दक्खिन की तरफ़ सींग मारता है, यहाँ तक कि न कोई जानवर उसके सामने खड़ा हो सका और न कोई उससे छुड़ा सका, पर वह जो कुछ चाहता था करता था, यहाँ तक कि वह बहुत बड़ा हो गया |
\s5
\v 5 ~और मैं सोच ही रहा था कि एक बकरा पश्चिम की तरफ़ से आकर तमाम ज़मीन पर ऐसा फिरा कि ज़मीन को भी न छुआ, और उस बकरे की दोनों आँखों के बीच एक 'अजीब सींग था।
\v 6 और वह उस दो सींग वाले मेंढ़े के पास, जिसे मैने दरिया के किनारे खड़ा देखा था आया और अपने ज़ोर के क़हर से उस पर हमलावर हुआ।
\s5
\v 7 ~और मैने देखा कि वह मेंढे के क़रीब पहुँचा और उसका ग़ज़ब उस पर भड़का और उसने मेंढे को मारा और उसके दोनों सींग तोड़ डाले और मेंढे में उसके मुक़ाबले की हिम्मत न थी, तब उसने उसे ज़मीन पर पटख़ दिया और उसे लताड़ा और कोई न था कि मेंढे को उससे छुड़ा सके।
\v 8 ~और वह बकरा निहायत बुज़ुर्ग हुआ, और जब वह निहायत ताक़तवर हुआ तो उसका बड़ा सींग टूट गया और उसकी जगह चार अजीब सींग आसमान की चारों हवाओं की तरफ़ निकले।
\s5
\v 9 और उनमें से एक से एक छोटा सींग निकला, जो दक्खिन और पूरब और जलाली मुल्क की तरफ़ बे निहायत बढ़ गया।
\v 10 और वह बढ़ कर अजराम-ए-फ़लक तक पहुँचा, और उसने कुछ अजराम-ए-फ़लक और सितारों को ज़मीन पर गिरा दिया और उनको लताड़ा।
\s5
\v 11 ~बल्कि उसने अजराम के फ़रमाँरवाँ तक अपने आप को बलन्द किया, और उससे दाइमी क़ुर्बानी को छीन लिया और उसका मक़दिस गिरा दिया।
\v 12 और अजराम ख़ताकारी की वजह से क़ायम रहने वाली क़ुर्बानी के साथ उसके हवाले किए गए, और उसने सच्चाई को ज़मीन पर पटख़ दिया और वह कामयाबी के साथ यूँ ही करता रहा।
\s5
\v 13 ~तब मैने एक फ़रिश्ते को कलाम करते सुना, और दूसरे फ़रिश्ते ने उसी फ़रिश्ते से जो कलाम करता था पूँछा कि दाइमी क़ुर्बानी और वीरान करने वाली ख़ताकारी की रोया जिसमें मक़दिस और अजराम पायमाल होते हैं, कब तक रहेगी?"
\v 14 ~और उसने मुझ से कहा, कि"दो हज़ार तीन सौ सुबह-और-शाम तक, उसके बा'द मक़दिस पाक किया जाएगा।"
\s5
\v 15 ~फिर यूँ हुआ कि जब मैं दानीएल ने यह रोया देखी, और इसकी ता'बीर की फ़िक्र में था, तो क्या देखता हूँ कि मेरे सामने कोई इन्सान सूरत खड़ा है।
\v 16 और मैने ऊलाई में से आदमी की आवाज़ सुनी, जिसने बलन्द आवाज़ से कहा, कि"ऐ जबराईल, इस शख़्स को इस रोया के मा'ने ~समझा दे।"
\v 17 चुनाँचे वह जहाँ मैं खड़ा था नज़दीक आया, और उसके आने से मैं डर गया और मुँह के बल गिरा, पर उसने मुझसे कहा, "ऐ आदमज़ाद! समझ ले कि यह रोया आख़िरी ज़माने के ज़रिए' है।"
\s5
\v 18 ~और जब वह मुझसे बातें कर रहा था, मैं गहरी नींद में मुँह के बल ज़मीन पर पड़ा था, लेकिन उसने मुझे पकड़ कर सीधा खड़ा किया,
\v 19 और कहा कि"देख, मैं तुझे समझाऊँगा कि क़हर के आख़िर में क्या होगा, क्यूँकि यह हुक्म आख़िरी मुक़र्ररा वक़्त के बारे है।
\s5
\v 20 ~जो मेंढा तू ने देखा, उसके दोनों सींग मादी और फ़ारस के बादशाह हैं।
\v 21 और वह जसीम बकरा यूनान का बादशाह है, और उसकी आँखों के बीच का बड़ा सींग पहला बादशाह है।
\s5
\v 22 ~और उसके टूट जाने के बा'द, उसकी जगह जो चार और निकले वह चार सल्तनतें हैं जो उसकी क़ौम में क़ायम होंगी, लेकिन उनका इख़्तियार उसकी तरह न होगा।
\v 23 और उनकी सल्तनत के आख़िरी दिनों में जब ख़ताकार लोग हद तक पहुँच जाएँगे, तो एक सख़्त और बेरहम बादशाह खड़ा होगा।
\s5
\v 24 ~यह बड़ा ज़बरदस्त होगा लेकिन अपनी ताक़त से नहीं, और 'अजीब तरह से बर्बाद करेगा और कामयाब होगा और काम करेगा और ताक़तवरों और मुक़द्दस लोगों को हलाक करेगा।
\v 25 ~और अपनी चतुराई से ऐसे काम करेगा कि उसकी फ़ितरत के मन्सूबे उसके हाथ में खू़ब अन्जाम पाएँगे, और दिल में बड़ा ग़ुरूर करेगा और सुलह के वक़्त में बहुतों को हलाक करेगा; वह बादशाहों के बादशाह से भी मुक़ाबिला करने के लिए उठ खड़ा होगा, लेकिन बे हाथ हिलाए ही शिकस्त खाएगा।
\s5
\v 26 ~और यह सुबह शाम की रोया जो बयान हुई यक़ीनी है, लेकिन तू इस रोया को बन्द कर रख, क्यूँकि इसका 'इलाक़ा बहुत दूर के दिनों से है।"
\s5
\v 27 और मुझ दानीएल को ग़श आया, और मैं कुछ रोज़ तक बीमार पड़ा रहा; फिर मैं उठा और बादशाह का कारोबार करने लगा, और मैं ~ख़्वाब~से परेशान था लेकिन इसको कोई न समझा।
\s5
\c 9
\p
\v 1 दारा-बिन-'अख़्सूयरस जो मादियों की नसल से था, और कसदियों की ममलुकत पर बादशाह मुक़र्रर हुआ, उसके पहले साल में,
\v 2 या'नी उसकी सल्तनत के पहले साल में, मैं दानीएल, ने किताबों में उन बरसों का हिसाब समझा, जिनके ज़रिए' ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह नबी पर नाज़िल हुआ कि यरूशलीम की बर्बादी पर सत्तर बरस पूरे गुज़रेंगे।
\s5
\v 3 और मैने ख़ुदावन्द ख़ुदा की तरफ़ रुख़ किया, और मैं मिन्नत और मुनाजात करके और रोज़ा रखकर और टाट ओढ़कर और राख पर बैठकर उसका तालिब हुआ।
\v 4 और मैने खुदावन्द अपने ख़ुदा से दु'आ की और इक़रार किया और कहा, कि"ऐ ख़ुदावन्द अज़ीम और मुहीब ख़ुदा तू अपने फ़रमाबरदार मुहब्बत रखनेवालों के लिए अपने 'अहद-ओ-रहम को क़ायम रखता है;
\s5
\v 5 ~हम ने गुनाह किया, हम बरगश्ता हुए, हम ने शरारत की, हम ने बग़ावत की बल्कि हम ने तेरे हुक्मों और तौर तरीक़े को तर्क किया है;
\v 6 और हम तेरे ख़िदमतगुज़ार नबियों के फ़रमाबरदार नहीं हुए, जिन्होंने तेरा नाम लेकर हमारे बादशाहों और हाकिमों से और हमारे बाप-दादा और मुल्क के सब लोगों से कलाम किया।
\s5
\v 7 ऐ खुदावन्द, सदाक़त तेरे लिए है और रूस्वाई हमारे लिए, जैसे अब यहूदाह के लोगों और यरूशलीम के बाशिन्दों और दूर-ओ-नज़दीक के तमाम बनी-इस्राईल के लिए है, जिनको तूने तमाम मुमालिक में हाँक दिया क्यूँकि उन्होंने तेरे ख़िलाफ़ गुनाह किया|।
\v 8 ~ऐ ख़ुदावन्द, मायूसी हमारे लिए है; हमारे बादशाहों, हमारे उमरा और हमारे बाप-दादा के लिए, क्यूँकि हम तेरे गुनहगार हुए।
\s5
\v 9 ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा रहीम-ओ-ग़फू़र है, अगरचे हमने उससे बग़ावत की।
\v 10 हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आवाज़ के सुनने वाले नहीं हुए कि उसकी शरी'अत पर, जो उसने अपने ख़िदमतगुज़ार नबियों की मा'रिफ़त हमारे लिए मुक़र्रर की, 'अमल करें।
\v 11 हाँ, तमाम बनी-इस्राईल ने तेरी शरी'अत को तोड़ा और ना फ़रमानी इख़्तियार की ताकि तेरी आवाज़ के फ़रमाबरदार न हों, इसलिए वह ला'नत और क़सम, जो ख़ुदा के ख़ादिम मूसा की तौरेत में लिखी हैं हम पर पूरी हुई, क्यूँकि हम उसके गुनहगार हुए।
\s5
\v 12 और उसने जो कुछ हमारे और हमारे क़ाज़ियों के ख़िलाफ़ जो हमारी 'अदालत करते थे फ़रमाया था, हम पर बलाए-'अज़ीम लाकर साबित कर दिखाया, क्यूँकि जो कुछ यरूशलीम से किया गया वह तमाम जहान में' और कहीं नहीं हुआ।
\v 13 जैसा मूसा की तौरेत में लिखा है, यह तमाम मुसीबत हम पर आई, तोभी हम ने अपने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से इल्तिजा न की कि हम अपनी बदकिरदारी से बा'ज़ आते और तेरी सच्चाई को पहचानते।
\v 14 ~इसलिए ख़ुदावन्द ने बला को निगाह में रखा और उसको हम पर अपने सब कामों में जो वह करता है सच्चा है, लेकिन हम उसकी आवाज़ के फरमाबरदार न हुए।
\s5
\v 15 और अब, ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा जो ताक़तवर बाज़ू से अपने लोगों को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, और अपने लिए नाम पैदा किया जैसा आज के दिन है, हमने गुनाह किया, हमने शरारत की।
\v 16 ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि तू अपनी तमाम सदाक़त के मुताबिक़ अपने क़हर-ओ-ग़ज़ब को अपने शहर यरूशलीम, या'नी अपने कोह-ए-मुक़द्दस से ख़त्म कर, क्यूँकि हमारे गुनाहों और हमारे बाप-दादा की बदकिरदारी की वजह से यरूशलीम और तेरे लोग अपने सब आसपास वालों के नज़दीक जा-ए-मलामत हुए।
\s5
\v 17 ~इसलिए अब ऐ हमारे ख़ुदा, अपने ख़ादिम की दु'आ और इल्तिमास सुन, और अपने चेहरे को अपनी ही ख़ातिर अपने मक़दिस पर जो वीरान है जलवागर फ़रमा।
\v 18 ऐ मेरे ख़ुदा, वीरानों को, और उस शहर को जो तेरे नाम से कहलाता है देख कि हम तेरे सामने अपनी रास्तबाज़ी पर नहीं बल्कि तेरी बेनिहायत रहमत पर भरोसा करके मुनाजात करते हैं।
\v 19 ऐ ख़ुदावन्द, सुन, ऐ खुदावन्द, मु'आफ़ फ़रमाए ख़ुदावन्द, सुन ले और कुछ कर; ऐ मेरे ख़ुदा, अपने नाम की ख़ातिर देर न कर, क्यूँकि तेरा शहर और तेरे लोग तेरे ही नाम से कहलाते हैं।”
\s5
\v 20 ~और जब मैं यह कहता और दु'आ करता, और अपने और अपनी क़ौम इस्राईल के गुनाहों का इक़रार करता था, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने अपने ख़ुदा के कोह-ए- मुक़द्दस के लिए मुनाजात कर रहा था;
\v 21 ~हाँ, मैं दु'आ में यह कह ही रहा था कि वही शख़्स जिबराईल जिसे मैने शुरू' में रोया में देखा था, हुक्म के मुताबिक़ तेज़ परवाज़ी करता हुआ आया, और शाम की क़ुर्बानी ~पेश करने के वक़्त के क़रीब मुझे छुआ।
\s5
\v 22 और उसने मुझे समझाया, और मुझ से बातें कीं और कहा, "ऐ दानीएल, मैं अब इसलिए आया हूँ कि तुझे अक़्ल-ओ-समझ बख़्शूँ।
\v 23 तेरी मुनाजात के शुरू' ही में हुक्म जारी हुआ, और मैं आया हूँ कि तुझे बताऊँ, क्यूँकि तू बहुत 'अज़ीज़ है; इसलिए तू ग़ौर कर और ख्व़ाब को समझ ले।
\s5
\v 24 "तेरे लोगों और तेरे मुक़द्दस शहर के लिए सत्तर हफ़्ते मुक़र्रर किए गए कि ख़ताकारी और गुनाह का ख़ातिमा हो जाए, बदकिरदारी का कफ़्फ़ारा दिया जाए, हमेशा रास्तबाज़ी क़ायम ' हो, रोया-ओ-नबुव्वत पर मुहर हो और पाक तरीन मक़ाम मम्सूह किया जाए।
\v 25 इसलिए तू मा'लूम कर और समझ ले कि यरूशलीम की बहाली और ता'मीर का हुक्म जारी~होने से मम्सूह फ़रमाँरवाँ तक सात हफ़्ते और बासठ हफ़्ते होंगे; तब फिर बाज़ार ता'मीर किए जाएँगे और फ़सील बनाई जाएगी, मगर मुसीबत के दिनों में।
\s5
\v 26 और बासठ हफ़्तों के बा'द वह मम्सूह क़त्ल किया जाएगा, और उसका कुछ न रहेगा, और एक बादशाह आएगा जिसके लोग शहर और मक़दिस को बर्बाद करेंगे, और उसका अन्जाम गोया तूफ़ान के साथ होगा, और आख़िर तक लड़ाई रहेगी; बर्बादी मुक़र्रर हो चुकी है।
\s5
\v 27 ~और वह एक हफ़्ते के लिए बहुतों से 'अहद क़ायम करेगा, और निस्फ़ हफ़्ते में ज़बीहे और हदिये मौकू़फ़ करेगा, और फ़सीलों पर उजाड़ने वाली मकरूहात रखी जाएँगी; यहाँ तक कि बर्बादी कमाल को पहुँच जाएगी, और वह बला जो मुक़र्रर की गई है उस उजाड़ने वाले पर वाके़' होगी।"
\s5
\c 10
\p
\v 1 शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस के तीसरे साल में दानीएल पर, जिसका नाम बेल्तशज़र रखा गया, एक बात ज़ाहिर की गई और वह बात सच और बड़ी लश्करकशी की थी; और उसने उस बात पर ग़ौर किया, और उस ख्व़ाब का राज़ समझा।
\s5
\v 2 ~मैं दानीएल उन दिनों में तीन हफ़्तों तक मातम करता रहा।
\v 3 न मैने लज़ीज़ खाना खाया, न गोश्त और मय ने मेरे मुँह में दख़ल पाया और न मैने तेल मला, जब तक कि पूरे तीन हफ़्ते गुज़र न गए।
\s5
\v 4 और पहले महीने की चौबीसवीं तारीख़ को जब मैं बड़े दरिया, या'नी दरिया-ए-दजला के किनारे पर था,
\v 5 ~मैने आँख उठा कर नज़र की और क्या देखता हूँ कि एक शख़्स कतानी लिबास पहने और ऊफ़ाज़ के ख़ालिस सोने का पटका कमर पर बाँधे खड़ा है।
\v 6 उसका बदन ज़बरजद की तरह, और उसका चेहरा बिजली सा था, और उसकी आँखें आग के चराग़ों की तरह थीं; उसके बाज़ू और पाँव रंगत में चमकते हुए पीतल से थे, और उसकी आवाज़ अम्बोह के शोर की तरह थी।
\s5
\v 7 ~मैं दानीएल ही ने यह ख़्वाब देखा, क्यूँकि मेरे साथियों ने~ख़्वाब न देखा, लेकिन उन पर बड़ी कपकपी तारी हुई और वह अपने आप को छिपाने को भाग गए।
\v 8 इसलिए मैं अकेला रह गया और यह बड़ा~ख्व़ाब देखा, और मुझ में हिम्मत न रही क्यूँकि मेरी ताज़गी मायूसी से बदल गई और मेरी ताक़त जाती रही।
\v 9 लेकिन मैने उसकी आवाज़ और बातें सुनीं, और मैं उसकी आवाज़ और बातें सुनते वक़्त मुँह के बल भारी नींद में पड़ गया और मेरा मुँह ज़मीन की तरफ़ था।
\s5
\v 10 और देख एक हाथ ने मुझे छुआ, और मुझे घुटनों और हथेलियों पर बिठाया।
\v 11 ~और उसने मुझ से कहा, "ऐ दानीएल, 'अज़ीज़ मर्द, जो बातें मैं तुझ से कहता हूँ समझ ले; और सीधा खड़ा हो जा, क्यूँकि अब मैं तेरे पास भेजा गया हूँ।" और जब उसने मुझ से यह बात कही, तो मैं कॉपता हुआ खड़ा हो गया।
\s5
\v 12 तब उसने मुझ से कहा, ~"ऐ दानीएल, ख़ौफ़ न कर, क्यूँकि जिस दिन से तू ने दिल लगाया कि समझे, और अपने ख़ुदा के ~सामने 'आजिज़ी करे; तेरी बातें सुनी गईं और तेरी बातों की वजह से मैं आया हूँ।
\v 13 पर फ़ारस की ममलुकत के मुवक्किल ने इक्कीस दिन तक मेरा मुक़ाबला किया। फिर मीकाएल, जो मुक़र्रब फ़रिश्तों में से है, मेरी मदद को पहुँचा और मैं शाहान-ए-फ़ारस के पास रुका रहा।
\s5
\v 14 ~लेकिन अब मैं इसलिए आया हूँ कि जो कुछ तेरे लोगों पर आख़िरी दिनों में आने को है, तुझे उसकी ख़बर दूँ क्यूँकि अभी ये रोया ज़माना-ए-दराज़ के लिए है।"
\v 15 ~और जब उसने यह बातें मुझ से कहीं, मैं सिर झुका कर ख़ामोश हो रहा।
\s5
\v 16 तब किसी ने जो आदमज़ाद की तरह था मेरे होटों को छुआ, और मैने मुँह खोला, और जो मेरे सामने खड़ा था उस से कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, इस ख्व़ाब की वजह से मुझ पर ग़म का हुजूम है, और मैं नातवाँ ~हूँ।
\v 17 इसलिए यह ख़ादिम, अपने ख़ुदावन्द से क्यूँकर हम कलाम हो सकता है? इसलिए मैं बिल्कुल बेताब-ओ-बेदम हो गया।”
\s5
\v 18 तब एक और ने जिसकी सूरत आदमी की सी थी, आकर मुझे छुआ और मुझको ताक़त दी;
\v 19 और उसने कहा, "ऐ 'अज़ीज़ मर्द, ख़ौफ़ न कर, तेरी सलामती हो, मज़बूत-और-तवाना हो।" और जब उसने मुझसे यह कहा, तो मैने तवानाई पाई और कहा, "ऐ मेरे ख़ुदावन्द, फ़रमा, क्यूँकि तू ही ने मुझे ताक़त बख़्शी है।"
\s5
\v 20 ~तब उसने कहा, "क्या तू जानता है कि मैं तेरे पास किस लिए आया हूँ? और अब मैं फ़ारस के मुवक्किल से लड़ने को वापस जाता हूँ; और मेरे जाते ही यूनान का मुवक्किल आएगा।
\v 21 ~लेकिन जो कुछ सच्चाई की किताब में लिखा है, तुझे बताता हूँ; और तुम्हारे मुवक्किल मीकाएल के सिवा इसमें मेरा कोई मददगार नहीं है।
\s5
\c 11
\p
\v 1 ~"और दारा मादी की सल्तनत के पहले साल में, मैं ही उसको क़ायम करने और ताक़त देने को खड़ा हुआ।
\v 2 ~"और अब मैं तुझको हक़ीक़त बताता हूँ। फ़ारस में अभी तीन बादशाह और खड़े होंगे, और चौथा उन सबसे ज़्यादा दौलतमन्द होगा, और जब वो अपनी दौलत से ताक़त पाएगा, तो सब को यूनान की सल्तनत के ख़िलाफ़ उभारेगा।
\s5
\v 3 ~लेकिन एक ज़बरदस्त बादशाह खड़ा होगा, जो बड़े तसल्लुत से हुक्मरान होगा और जो कुछ चाहेगा करेगा।
\v 4 और उसके खड़े होते ही उसकी सल्तनत को ज़वाल आएगा ,और आसमान की चारों हवाओं की अतराफ़ पर तक़सीम हो जाएगी लेकिन न उसकी नसल को मिलेगी न उसका एक बाल भी बाक़ी रहेगा बल्कि वह सल्तनत जड़ से उखड़ जाएगी और ग़ैरों के लिए होगी|
\s5
\v 5 ~"और शाह-ए-जुनूब ज़ोर पकड़ेगा, और उसके हाकिम में से एक उससे ज़्यादा ताक़त-ओ-इख़्तियार हासिल करेगा और उसकी सल्तनत बहुत बड़ी होगी।
\v 6 और चन्द साल के बा'द वह आपस में मेल करेंगे, क्यूँकि ~शाह-ए-जुनूब की बेटी शाह-ए-शिमाल के पास आएगी, ताकि इत्तिहाद क़ायम हो; लेकिन उसमें क़ुव्वत-ए-बाज़ू न रहेगी और न वह बादशाह क़ायम रहेगा न उसकी ताक़त, बल्कि उन दिनों में वह अपने बाप और अपने लाने वालों और ताक़त देने वाले के साथ छोड़ दी जाएगी।
\s5
\v 7 "लेकिन उसकी जड़ों की एक शाख़ से एक शख़्स उसकी जगह खड़ा ~होगा, वह सिपहसालार होकर शाह-ए-शिमाल के क़िले' में दाख़िल होगा, और उन पर हमला करेगा और ग़ालिब आएगा।
\v 8 और उनके बुतों और ढाली हुई मूरतों को, सोने चाँदी के क़ीमती बर्तन के साथ ग़ुलाम करके मिस्र को ले जाएगा; और चन्द साल तक शाह-ए-शिमाल से अलग रहेगा।
\v 9 ~फिर वह शाह-ए-जुनूब की ममलुकत में दाख़िल होगा, पर अपने मुल्क को वापस जाएगा।
\s5
\v 10 "लेकिन उसके बेटे बरअंगेख़्ता होंगे, जो बड़ा लश्कर जमा' करेंगे और वह चढ़ाई करके फैलेगा, और गुज़र जाएगा और वह लौट कर उसके क़िले' तक लड़ेंगे।
\s5
\v 11 ~और शाह-ए-जुनूब ग़ज़बनाक होकर निकलेगा और शाह-ए-शिमाल से जंग करेगा, और वह बड़ा लश्कर लेकर आएगा और वह बड़ा लश्कर उसके हवाले कर दिया जाएगा।
\v 12 और जब वह लश्कर तितर बितर कर दिया जाएगा, तो उसके दिल में ग़ुरूर समाएगा; वह लाखों को गिराएगा लेकिन ग़ालिब न आएगा।
\s5
\v 13 और शाह-ए-शिमाल फिर हमला करेगा और पहले से ज़्यादा लश्कर जमा' करेगा, और कुछ साल के बा'द बहुत से लश्कर-और-माल के साथ फिर हमलावर होगा।
\s5
\v 14 'और उन दिनों में बहुत से शाह-ए- जुनूब पर चढ़ाई करेंगे, और तेरी क़ौम के क़ज़्ज़ाक़ भी उठेंगे कि उस ख्व़ाब को पूरा करें; लेकिन वह गिर जाएँगे।
\s5
\v 15 ~चुनाँचे शाह-ए-शिमाल आएगा और दमदमा बाँधेगा और हसीन शहर ले लेगा, और जुनूब की ताक़त क़ायम न रहेगी और उसके चुने हुए मर्दों में मुक़ाबले की हिम्मत न होगी।
\v 16 ~और हमलावर जो कुछ चाहेगा करेगा, और कोई उसका मुक़ाबला न कर सकेगा; वह उस जलाली मुल्क में क़याम करेगा, और उसके हाथ में तबाही होगी।
\s5
\v 17 और वह यह इरादा करेगा कि अपनी ममलुकत की तमाम शौकत के साथ उसमें दाख़िल हो, और सच्चे उसके साथ होंगे; वह कामयाब होगा और वह उसे जवान कुँवारी देगा कि उसकी बर्बादी का ज़रिया' हो, लेकिन यह तदबीर क़ायम न रहेगी और उसको इससे कुछ फ़ाइदा न होगा।
\v 18 ~फिर वह समंदरी-मुमालिक का रुख़ करेगा और बहुत से ले लेगा, लेकिन एक सरदार उसकी मलामत को मौकू़फ़ करेगा, बल्कि उसे उसी के सिर पर डालेगा।
\v 19 तब वह अपने मुल्क के क़िलों' की तरफ़ मुड़ेगा, लेकिन ठोकर खाकर गिर पड़ेगा और मादूम हो जाएगा।
\s5
\v 20 ~"और उसकी जगह एक और खड़ा होगा, जो उस खू़बसूरत ममलुकत में महसूल लेने वाले को भेजेगा; लेकिन वह चन्द रोज़ में बे क़हर-ओ-जंग ही हलाक हो जाएगा।
\v 21 ~"फिर उसकी जगह एक पाजी खड़ा ~होगा जो सल्तनत की. 'इज़्ज़त का हक़दार न होगा, लेकिन वह अचानक आएगा और चापलूसी करके ममलुकत पर क़ाबिज़ हो जाएगा।
\v 22 और वह सैलाब-ए-अफ़वाज को अपने सामने दौड़ाएगा और शिकस्त देगा, और अमीर-ए-'अहद को भी न छोड़ेगा।
\s5
\v 23 और जब उसके साथ 'अहद-ओ-पैमान हो जाएगा तो दग़ाबाज़ी करेगा, क्यूँकि वह बढ़ेगा और एक छोटी ~जमा'अत की मदद से ताक़त हासिल करेगा।
\v 24 और हुक्म के दिनों में मुल्क के वीरान मक़ामात में दाख़िल होगा, और जो कुछ उसके बाप-दादा और उनके आबा-ओ-अजदाद से न हुआ था कर दिखाएगा; वह ग़नीमत और लूट और माल उनमें तक़सीम करेगा और कुछ 'अरसे तक मज़बूत क़िलों' के ख़िलाफ़ मन्सूबे बाँधेगा।
\s5
\v 25 ~वह अपनी ताक़त और दिल को ऊभारेगा कि बड़ी फ़ौज के साथ शाह-ए-जुनूब पर हमला करे, और शाह-ए-जुनूब निहायत बड़ा और ज़बरदस्त लश्कर लेकर उसके मुक़ाबिले को निकलेगा लेकिन वह न ठहरेगा, क्यूँकि वह उसके ख़िलाफ़ मन्सूबे बाँधेंगे।
\v 26 बल्कि जो उसका दिया खाते हैं, वही उसे शिकस्त देंगे और उसकी फ़ौज तितर बितर होगी और बहुत से क़त्ल होंगे।
\v 27 और इन दोनों बादशाहों के दिल शरारत की तरफ़ माइल होंगे, वह एक ही दस्तरख़्वान पर बैठ कर झूट बोलेंगे लेकिन कामयाबी न होगी, क्यूँकि ख़ातिमा मुक़र्ररा वक़्त पर होगा।
\s5
\v 28 ~तब वह बहुत सी ग़नीमत लेकर अपने मुल्क को वापस जाएगा; और उसका दिल 'अहद-ए-मुक़द्दस के ख़िलाफ़ होगा, और वह अपनी मर्ज़ी ~पूरी करके अपने मुल्क को वापस जाएगा।
\s5
\v 29 "मुक़र्ररा वक़्त पर वह फिर जुनूब की तरफ़ ख़ुरूज करेगा, लेकिन ये हमला पहले की तरह न होगा।
\v 30 ~क्यूँकि अहल-ए-कित्तीम के जहाज़ उसके मुक़ाबिले को निकलेंगे, और वह रंजीदा होकर मुड़ेगा और 'अहद-ए-मुक़द्दस पर उसका ग़ज़ब भड़केगा, और वह उसके मुताबिक़ 'अमल करेगा; बल्कि वह मुड़ कर उन लोगों से जो 'अहद-ए-मुक़द्दस को छोड़ देंगे , इत्तफ़ाक़ करेगा।
\s5
\v 31 ~और अफ़वाज उसकी मदद करेंगी, और वह मज़बूत मक़दिस को नापाक और दाइमी क़ुर्बानी को रोकेंगे और उजाड़ने वाली मकरूह चीज़ को उसमें नस्ब करेंगे।
\v 32 और वह 'अहद-ए-मुक़द्दस के ख़िलाफ़ शरारत करने वालों को खु़शामद करके बरगश्ता करेगा, लेकिन अपने ख़ुदा को पहचानने वाले ताक़त पाकर कुछ कर दिखाएँगे।
\s5
\v 33 ~और वह जो लोगों में 'अक़्लमन्द हैं बहुतों को ता'लीम देंगे, लेकिन वह कुछ मुद्दत तक तलवार और आग और ग़ुलामी और लूट मार से तबाह हाल रहेंगे।
\v 34 और जब तबाही में पड़ेंगे तो उनको थोड़ी सी मदद से ताक़त पहुँचेगी, लेकिन बहुतेरे खु़शामद गोई से उनमें आ मिलेंगे।
\v 35 और बा'ज़ अहल-ए-फ़हम तबाह हाल होंगे ताकि पाक और साफ़ और बुर्राक़ हो जाएँ जब तक आख़िरी वक़्त न आ जाए, क्यूँकि ये मुक़र्ररा वक़्त तक मना' है।
\s5
\v 36 "और बादशाह अपनी मर्ज़ी ~के मुताबिक़ चलेगा, और तकब्बुर करेगा और सब मा'बूदों से बड़ा बनेगा, और इलाहों के इलाह के ख़िलाफ़ बहुत सी हैरत-अंगेज़ बातें कहेगा, और इक़बाल मन्द होगा यहाँ तक कि क़हर की तस्कीन हो जाएगी; क्यूँकि जो कुछ मुक़र्रर हो चुका है वाके़' होगा।
\v 37 ~वह अपने बाप-दादा के मा'बूदों की परवाह न करेगा, और न 'औरतों की पसन्द को और न किसी और मा'बूद को मानेगा; बल्कि अपने आप ही को सबसे बेहतर जानेगा।
\s5
\v 38 ~और अपने मकान पर मा'बूद-ए-हिसार की ताज़ीम करेगा, और जिस मा'बूद को उसके बाप-दादा न जानते थे, सोना और चाँदी और क़ीमती पत्थर और नफ़ीस तोहफ़े दे कर उसकी तकरीम करेगा।
\v 39 वह बेगाना मा'बूद की मदद से मुहकम क़िलों' पर हमला करेगा; जो उसको कु़बूल करेंगे उनको बड़ी 'इज़्ज़त बख़्शेगा और बहुतों पर हाकिम बनाएगा और रिश्वत में मुल्क को तक़सीम करेगा।
\s5
\v 40 ' और ख़ातिमे के वक़्त में शाह-ए-जुनूब उस पर हमला करेगा, और शाह-ए-शिमाल रथ और सवार और बहुत से जहाज़ लेकर हवा के झोंके की तरह उस पर चढ़ आएगा, और ममालिक में दाख़िल होकर सैलाब की तरह गुज़रेगा।
\v 41 ~और जलाली मुल्क में भी दाख़िल होगा और बहुत से मग़लूब हो जाएँगे, लेकिन अदूम और मोआब और बनी- 'अम्मून के ख़ास लोग उसके हाथ से छुड़ा लिए जाएँगे।
\s5
\v 42 ~वह दीगर मुमालिक पर भी हाथ चलाएगा और मुल्क-ए-मिस्र भी बच न सकेगा।
\v 43 बल्कि वह सोने चाँदी के ख़ज़ानों और मिस्र की तमाम नफ़ीस चीज़ों पर क़ाबिज़ होगा, और लूबी और कूशी भी उसके हम-रक़ाब होंगे।
\s5
\v 44 लेकिन पश्चिमी और उत्तरी अतराफ़ से अफ़वाहें उसे परेशान करेंगी, और वह बड़े ग़ज़ब से निकलेगा कि बहुतों को नेस्त-ओ-नाबूद करे।
\v 45 और वह शानदार मुक़द्दस पहाड़ और समुन्दर के बीच शाही ख़ेमे लगाएगा, लेकिन उसका ख़ातिमा हो जाएगा और कोई उसका मददगार न होगा।
\s5
\c 12
\p
\v 1 और उस वक़्त मीकाईल मुक़र्रब फ़रिश्ता जो तेरी क़ौम के फ़रज़न्दों की हिमायत के लिए खड़ा है उठेगा और वह ऐसी तकलीफ़ का वक़्त होगा कि इब्तिदाई क़ौम से उस वक़्त तक कभी न हुआ होगा, और उस वक़्त तेरे लोगों में से हर एक, जिसका नाम किताब में लिखा होगा रिहाई पाएगा।
\v 2 और जो ख़ाक में सो रहे हैं उनमें से बहुत से जाग उठेगे, कुछ हमेशा की ज़िन्दगी के लिए और कुछ रुस्वाई और हमेशा की ज़िल्लत के लिए।
\s5
\v 3 और 'अक़्लमन्द नूर-ए-फ़लक की तरह चमकेंगे, और जिनकी कोशिश से बहुत से रास्तबाज़ हो गए, सितारों की तरह हमेशा से हमेशा तक रोशन होंगे।
\v 4 लेकिन तू ऐ दानीएल, इन बातों को बन्द कर रख, और किताब पर आख़िरी ज़माने तक मुहर लगा दे। बहुत से इसकी तफ़्तीश-ओ-तहक़ीक़ करेंगे और~'अक़्ल~बढ़ती रहेगी।"
\s5
\v 5 फिर मैं दानिएल ने नज़र की, और क्या देखता हूँ कि दो शख़्स और खड़े थे; एक दरिया के इस किनारे पर और दूसरा दरिया के उस किनारे पर।
\v 6 ~और एक ने उस शख़्स से जो कतानी लिबास पहने था और दरिया के पानी पर खड़ा था पूछा, कि "इन 'अजाइब के अन्जाम तक कितनी मुद्दत है?"
\s5
\v 7 और मैने सुना कि उस शख़्स ने जो कतानी लिबास पहने था, जो दरिया के पानी के ऊपर खड़ा था, दोनों हाथ आसमान की तरफ़ उठा कर" हय्युल क़य्यूम की क़सम खाई और कहा कि एक दौर और दौर और नीम दौर। और जब वह मुक़द्दस लोगों की ताक़त को नेस्त कर चुके तो यह सब कुछ पूरा हो जाएगा |
\s5
\v 8 और मैंने सुना लेकिन समझ न सका तब मैंने कहा ऐ मेरे ख़ुदावन्द इनका अंजाम क्या होगा |
\v 9 उसने कहा ऐ दानिएल तू अपनी राह ले क्यूँकि यह बातें आख़िरी वक़्त तक बन्द-ओ-सरबमुहर रहेंगी |
\s5
\v 10 और बहुत लोग पाक किए जायेंगे और साफ़-ओ-बर्राक़ होंगे लेकिन शरीर शरारत करते रहेंगे और शरीरों में से कोई न समझेगा लेकिन 'अक़्लमन्द~समझेंगे |
\v 11 और जिस वक़्त से दाइमी क़ुर्बानी ख़त्म की जायेगी और वह उजाड़ने वाली मकरूह चीज़ खड़ी की जायेगी एक हज़ार दो सौ नव्वे दिन होंगे |
\s5
\v 12 मुबारक है वह जो एक हज़ार तीन सौ पैतीस रोज़ तक इन्तिज़ार करता है |
\v 13 लेकिन तू अपनी राह ले जब तक कि मुद्दत पूरी न हो क्यूँकि तू आराम करेगा और दिनों के ख़ातिमे पर अपनी मीरास में उठ खड़ा होगा |

348
28-HOS.usfm Normal file
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\id HOS
\ide UTF-8
\h होसेअ
\toc1 होसेअ
\toc2 होसेअ
\toc3 hos
\mt1 होसेअ
\s5
\c 1
\p
\v 1 शाहान-ए-यहूदाह 'उज्ज़ियाह और यूताम और आख़ज़ और हिज़क़ियाह और शाह ए-इस्राईल युरब'आम-बिन-यूआस के दिनों में ख़ुदावन्द का कलाम होसे'अ-बिन-बैरी पर नाज़िल हुआ।
\v 2 जब ख़ुदावन्द ने शुरू' में होसे'अ के ज़रिए' कलाम किया, तो उसको फ़रमाया, "जा, एक बदकार बीवी और बदकारी की औलाद अपने लिए ले, क्यूँकि मुल्क ने ख़ुदावन्द को छोड़कर बड़ी बदकारी की है।"
\s5
\v 3 ~तब उसने जाकर जुमर बिन्त दिबलाईम को लिया; वह हामिला हुई, और बेटा पैदा हुआ।
\v 4 और ख़ुदावन्द ने उसे कहा, "उसका नाम यज़र'एल रख, क्यूँकि मैं 'अनक़रीब ही याहू के घराने से यज़र'एल के खू़न का बदला लूँगा, और इस्राईल के घराने की सल्तनत को ख़त्म करूँगा।
\v 5 ~और उसी वक़्त यज़र'एल की वादी में इस्राईल की कमान तोडूँगा।"
\s5
\v 6 वह फिर हामिला हुई, और बेटी पैदा हुई। और ख़ुदावन्द ने उसे फ़रमाया, कि "उसका नाम लूरहामा रख, क्यूँकि मैं इस्राईल के घराने पर फिर रहम न करूँगा कि उनको मु'आफ़ करूँ।
\v 7 लेकिन यहूदाह के घराने पर रहम करूँगा, और मैं ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा उनको रिहाई दूँगा और उनको कमान और तलवार और लड़ाई और घोड़ों और सवारों के वसीले से नहीं छुड़ाऊँगा।"
\s5
\v 8 और लूरहामा का दूध छुड़ाने के बा'द, वह फिर हामिला हुई और बेटा पैदा हुआ।
\v 9 और उसने फ़रमाया, कि उसका नाम लो'अम्मी रख; क्यूँकि तुम मेरे लोग नहीं हो, और मैं तुम्हारा नहीं हूँगा।
\s5
\v 10 तोभी बनी-इस्राईल दरिया की रेत की तरह बेशुमार-ओ-बेक़ियास होंगे, और जहाँ उनसे ये कहा जाता था, "तुम मेरे लोग नहीं हो," ज़िन्दा ख़ुदा के फ़र्ज़न्द कहलाएँगे।
\v 11 और बनी यहूदाह और बनी-इस्राईल आपस में एक होंगे,और अपने लिए एक ही सरदार ~मुक़र्रर करेंगे। और इस मुल्क से खुरूज करेंगे, क्यूँकि यज़र'एल का दिन 'अज़ीम होगा।
\s5
\c 2
\p
\v 1 अपने भाइयों से 'अम्मी कहो, और अपनी बहनों से रुहामा।
\s5
\v 2 "तुम अपनी माँ से हुज्जत करो - क्यूँकि न वह मेरी बीवी है, और न मैं उसका शौहर हूँ - वह अपनी बदकारी अपने सामने से, अपनी ज़िनाकारी अपने पिस्तानों से दूर करे;
\v 3 ऐसा न हो कि मैं उसे बेपर्दा करूँ,और उस तरह डाल दूँ जिस तरह वह अपनी पैदाइश के दिन थी, और उसको बियाबान और खु़श्क ज़मीन की तरह बना कर प्यास से मार डालूँ।
\s5
\v 4 मैं उसके बच्चों पर रहम न करूँगा, क्यूँकि वह हलालज़ादे नहीं हैं।
\v 5 उनकी माँ ने धोखा किया; उनकी वालिदा ने रूस्याही की। क्यूँकि उसने कहा, 'मैं अपने यारों के पीछे जाऊँगी, जो मुझ को रोटी-पानी और ऊनी, और कतानी कपड़े और रौग़न-ओ-शरबत देते हैं।'
\s5
\v 6 इसलिए देखो, मैं उसकी राह काँटों से बन्द करूँगा, और उसके सामने दीवार बना दूँगा, ताकि उसे रास्ता न मिले।
\v 7 और वह अपने यारों के पीछे जाएगी, पर उनसे जा न मिलेगी; और उनको ढूँडेगी पर न पाएगी। तब वह कहेगी, 'मैं अपने पहले शौहर के पास वापस जाऊँगी, क्यूँकि मेरी वह हालत अब से बेहतर थी।'
\s5
\v 8 क्यूँकि उसने न जाना कि मैं ने ही उसे ग़ल्ला-ओ-मय और रौग़न दिया,और सोने चाँदी की फ़िरवानी बख़्शी जिसको उन्होंने बा'ल पर ख़र्च किया
\v 9 इसलिए मैं अपना ग़ल्ला फ़सल के वक़्त, और अपनी मय को उसके मौसम में वापस ले लूँगा, और अपने ऊनी और कतानी कपड़े जो उसकी सत्रपोशी करते हैं, छीन लूँगा।
\s5
\v 10 अब मैं उसकी फ़ाहिशागरी उसके यारों के सामने फ़ाश करूँगा,और कोई उसको मेरे हाथ से नहीं छुड़ाएगा।
\v 11 अलावा इसके मैं उसकी तमाम ख़ुशियों,और ज़शनो और नए चाँद और सबत के दिनों और तमाम मु'अय्यन 'ईदों को ख़त्म करूँगा |
\s5
\v 12 और मैं उसके अंगूर और अंजीर के दरख़्तों को, जिनके बारे में उसने कहा है, ‘ये मेरी उजरत है, जो मेरे यारों ने मुझे दी है,' बर्बाद करूँगा और उनको जंगल बनाऊँगा, और जंगली जानवर उनको खाएँगे।
\v 13 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं उसे बा'लीम के दिनों के लिए सज़ा दूँगा जिनमें उसने उनके लिए ख़ुशबू जलाई, जब वह बालियों और ज़ेवरों से आरास्ता होकर अपने यारों के पीछे गई, और मुझे भूल गई।
\s5
\v 14 ~"तोभी मैं उसे फ़रेफ़्ता कर लूँगा,और बियावान में लाकर, उससे तसल्ली की बातें कहूँगा।
\v 15 और वहाँ से उसके ताकिस्तान उसे दूँगा, और 'अकूर की वादी भी, ताकि वह उम्मीद का दरवाज़ा हो, और वह वहाँ गाया करेगी जैसे अपनी जवानी के दिनों में,और मुल्क-ए-मिस्र से निकल आने के दिनों में गाया करती थी
\s5
\v 16 "और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तब वह मुझे ईशी कहेगी और फिर बाली न कहेगी।
\v 17 ~क्यूँकि मैं बा'लीम के नाम उसके मुँह से दूर~करूँगा, और फिर कभी उनका नाम न लिया जाएगा।
\s5
\v 18 तब मैं उनके लिए जंगली जानवरों, और हवा के परिन्दों, और ज़मीन~पर रेंगने वालों से 'अहद करूँगा; और कमान और तलवार और लड़ाई को मुल्क से नेस्त~करूँगा, और लोगों को अम्न-ओ-अमान से लेटने का मौक़ा दूँगा।
\s5
\v 19 और तुझे अपनी अबदी नामज़द करूँगा| हाँ,तुझे सदाक़त और 'अदालत और शफ़क़त-ओ-रहमत से अपनी नामज़द करूँगा।
\v 20 मैं तुझे वफ़ादारी से अपनी नामज़द बनाऊँँगा और तू ख़ुदावन्द को ~पहचानेगी।
\s5
\v 21 ~"और उस वक़्त मैं सुनूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं आसमान की सुनूँगा और आसमान ज़मीन की सुनेगा;
\v 22 और ज़मीन अनाज और मय और तेल की सुनेगी, और वह यज़र'एल की सुनेंगे;
\s5
\v 23 और मैं उसको ~उस सरज़मीन मेंअपने लिए बोऊँगा। और लूरहामा पर रहम करूँगा,और लो'अम्मी से कहूँगा, 'तुम मेरे लोग हो; और वह कहेंगे, 'ऐ हमारे ख़ुदा।'"
\s5
\c 3
\p
\v 1 ~ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, "जा,उस 'औरत से जो अपने यार की प्यारी और बदकार है, मुहब्बत रख; जिस तरह कि ख़ुदावन्द बनी-इस्राईल से जो गै़र-मा'बूदों पर निगाह करते हैं और किशमिश के कुल्चे चाहते हैं, मुहब्बत रखता है।"
\v 2 ~इसलिए, मैने उसे पन्द्रह रुपये और डेढ़ ख़ोमर जौ देकर अपने लिए मोल लिया |
\v 3 और उसे कहा,"तू मुद्दत-ए-दराज़ तक मुझ पर क़ना'अत करेगी, और हरामकारी से बाज़ रहेगी और किसी दूसरे की बीवी न बनेगी, और मैं भी तेरे लिए यूँ ही रहूँगा|"
\s5
\v 4 ~क्यूँकि बनी-इस्राईल बहुत दिनों तक बादशाह और हाकिम और कु़र्बानी और सुतून और अफू़द और तिराफ़ीम के बगै़र रहेंगे।
\v 5 ~इसके बा'द बनी-इस्राईल रुजू' लाएँगे, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को और अपने बादशाह दाउद को ढूँडेंगे और आख़िरी दिनों ~में डरते हुए ख़ुदावन्द और उसकी मेहरबानी के तालिब होंगे।
\s5
\c 4
\p
\v 1 ऐ बनी इस्राईल ख़ुदावन्द का कलाम सुनों क्यूँकि इस मुल्क में रहने वालों से ख़ुदावन्द का झगड़ा है; क्यूँकि ये मुल्क रास्ती-ओ-शफ़क़त, और ख़ुदाशनासी से ख़ाली है।
\v 2 बदज़बानी वा'दा ख़िलाफ़ी~और खु़ँरेज़ी और चोरी और हरामकारी के अलावा और कुछ नहीं होता; वह जु़ल्म करते हैं, और खू़न पर खू़न होता है।”
\s5
\v 3 ~इसलिए मुल्क मातम करेगा,और उसके तमाम रहने वाले जंगली जानवरों, और हवा के परिन्दों के साथ नातवाँ हो जाएँगे; बल्कि समन्दर की मछलियाँ भी ग़ायब हो जाएँगी।
\s5
\v 4 तोभी कोई दूसरे के साथ बहस न करे, और न कोई उसे इल्ज़ाम दे; क्यूँकि तेरे लोग उनकी तरह हैं, जो काहिन से बहस करते हैं।
\v 5 इसलिए तू दिन को गिर पड़ेगा, और तेरे साथ नबी भी रात को गिरेगा; और मैं तेरी माँ को तबाह करूँगा।
\s5
\v 6 ~मेरे लोग 'अदम-ए-मा'रिफ़त से हलाक हुए; चूँकि तू ने ज़रिए' को रद्द किया, इसलिए मैं भी तुझे रद्द करूँगा ताकि तू मेरे सामने काहिन न हो; और चूंकि तू अपने ख़ुदा की शरी'अत को भूल गया है, इसलिए मैं भी तेरी औलाद को भूल जाऊँगा।
\v 7 जैसे जैसे वह बड़ते गए, मेरे ख़िलाफ़ ज़्यादा गुनाह करने लगे; फिर मैं उनकी हश्मत को रुस्वाई से बदल डालूँगा।
\s5
\v 8 ~वह मेरे लोगों के गुनाह पर गुज़रान करते हैं; और उनकी बदकिरदारी के आरज़ूमंद हैं।
\v 9 फिर जैसा लोगों का हाल, वैसा ही काहिनों का हाल होगा; मैं उनके चालचलन की सज़ा और उनके 'आमाल का बदला उनको दूँगा।
\s5
\v 10 चूँकि उनको ख़ुदावन्द का ख़याल नहीं, इसलिए वह~खाएँगे, पर आसूदा न होंगे; वह बदकारी करेंगे, लेकिन ज़्यादा न होंगे।
\s5
\v 11 बदकारी और मय और नई मय से बसीरत जाती रहती है।
\v 12 मेरे लोग अपने काठ के पुतले से सवाल करते हैं उनकी लाठी उनको जवाब देती है। क्यूँकि बदकारी की रूह ने उनको गुमराह किया है, और अपने ख़ुदा की पनाह को छोड़ कर बदकारी करते हैं।
\s5
\v 13 पहाड़ों की चोटियों पर वह कु़र्बानियाँ और टीलों पर और बलूत-ओ-चिनार-ओ-बतम के नीचे खु़शबू जलाते हैं, क्यूँकि उनका साया अच्छा है। पस बहू बेटियाँ बदकारी करती हैं।
\v 14 जब तुम्हारी बहू बेटियाँ बदकारी करेंगी, तो मैं उनको सज़ा नहीं दूँगा; क्यूँकि वह आप ही बदकारों के साथ खि़ख़िल्वत में जाते हैं, और कस्बियों के साथ क़ुर्बानियाँ गुज़रानते हैं। तब जो लोग 'अक़्ल से ख़ाली हैं, बर्बाद किए जाएँगे।
\s5
\v 15 ~ऐ इस्राईल, अगरचे तू बदकारी करे, तोभी ऐसा न हो कि यहूदाह भी गुनहगार हो। तुम जिल्जाल में न आओ और बैतआवन पर न जाओ, और ख़ुदावन्द की हयात की क़सम न खाओ।
\v 16 क्यूँकि इस्राईल ने सरकश बछिया की तरह सरकशी की है; क्या अब खुदावन्द उनको कुशादा जगह में बर्रे की तरह चराएगा?
\s5
\v 17 इफ़्राईम बुतों से मिल गया है; उसे छोड़ दो ।
\v 18 वह मयख़्वारी से सेर होकर बदकारी में मशग़ूल होते हैं; उसके हाकिम रुस्वाई दोस्त हैं।
\v 19 ~हवा ने उसे अपने दामन में उठा लिया, वह अपनी कु़र्बानियों से शर्मिन्दा होंगे।
\s5
\c 5
\p
\v 1 ऐ काहिनो, ये बात सुनो ! ऐ बनी-इस्राईल, कान लगाओ ! ऐ बादशाह के घराने, सुनो ! इसलिए कि फ़तवा तुम पर है; क्यूँकि तुम मिस्फ़ाह में फंदा और तबूर पर दाम बने हो।
\v 2 बाग़ी खू़ँरेज़ी में ग़र्क हैं, लेकिन मैं उन सब की तादीब करूँगा।
\s5
\v 3 ~मैं इफ़्राईम को जानता हूँ, और इस्राईल भी मुझ से छिपा नहीं; क्यूँकि ऐ इफ़्राईम, तू ने बदकारी की है;इस्राईल नापाक हुआ।
\v 4 उनके 'आमाल उनको ख़ुदा की तरफ़ रुजू' नहीं होने देते क्यूँकि बदकारी की रूह उनमें मौजूद है और ख़ुदावन्द को नहीं जानते |
\s5
\v 5 और फ़र्ख़-ए-इस्राईल उनके मुँह पर गवाही देता है, और इस्राईल और इफ़्राईम अपनी बदकिरदारी में गिरेंगे, और यहूदाह भी उनके साथ गिरेगा।
\v 6 वह अपने रेवड़ों और गल्लों के वसीले से ख़ुदावन्द के तालिब होंगे, लेकिन उसको न पाएँगे; वह उनसे दूर हो गया है।
\v 7 ~उन्होंने ख़ुदावन्द के साथ बेवफ़ाई की, क्यूँकि उनसे अजनबी बच्चे पैदा हुए। अब एक महीने का 'अर्सा उनकी जायदाद के साथ उनको खा जाएगा।
\s5
\v 8 जिब'आ में क़र्ना फूँको और रामा में तुरही। बैतआवन में ललकारो, कि ऐ बिनयमीन, ख़बरदार पीछे देख!
\v 9 तादीब के दिन~इफ़्राईम~वीरान होगा। जो कुछ यक़ीनन होने वाला है मैंने इस्राईली क़बीलों को जता दिया है।
\s5
\v 10 यहूदाह के 'उमरा सरहदों को सरकाने वालों की तरह हैं। मैं उन पर अपना क़हर पानी की तरह उँडेलँगा।
\v 11 ~इफ़्राईम मज़लूम और फ़तवे से दबा है क्यूँकि उसने पैरवी पर सब्र किया।
\s5
\v 12 तब मैं~इफ़्राईम के लिए कीड़ा हूँगा और यहूदाह के घराने के लिए घुन।
\v 13 जब~इफ़्राईम ने अपनी बीमारी और यहूदाह ने अपने ज़ख़्म को देखा तो~इफ़्राईम~असूर को गया और उस मुख़ालिफ़ बादशाह को दा'वत दी लेकिन वह न तो तुम को शिफ़ा दे सकता है और न तुम्हारे ज़ख़्म का 'इलाज कर सकता है।
\s5
\v 14 क्यूँकि मैं~इफ़्राईम के लिए शेर-ए-बबर और बनी यहूदाह के लिए जवान शेर की तरह हूँगा। मैं हाँ मैं ही फाड़ूूँगा और चला जाऊँगा। मैं उठा ले जाऊँगा और कोई छुड़ाने वाला न होगा।
\v 15 मैं रवाना हूँगा और अपने घर को चला जाऊँगा जब तक कि वह अपने गुनाहों का इक़रार करके मेरे चहरे के तालिब न हों। वह अपनी मुसीबत में बड़ी सर गर्मी से मेरे तालिब होंगे।
\s5
\c 6
\p
\v 1 आओ ख़ुदवन्द की तरफ़ रुजू' करें क्यूँकि उसी ने फाड़ा है और वही हम को शिफ़ा बख़्शेगा। उसी ने मारा है और वही हमारी मरहम पट्टी करेगा।
\v 2 वह दो दिन के बा'द हम को हयात-ए-ताज़ा बख़्शेगा और तीसरे दिन उठा खड़ा करेगा और हम उसके सामने ज़िन्दगी बसर करेंगे।
\v 3 आओ हम दरियाफ़्त करें और ख़ुदावन्द के 'इरफ़ान में तरक़्क़ी करें। उसका ज़हूर सुबह की तरह यक़ीनी है और वह हमारे पास बरसात की तरह या'नी आख़िरी बरसात की तरह जो ज़मीन को सेराब करती है, आएगा।
\s5
\v 4 ऐ एफ़्राईम मैं तुझ से क्या करूँ? ऐ यहूदाह मैं तुझ से क्या करूँ? क्यूँकि तुम्हारी नेकी सुबह के बादल और शबनम की तरह जल्द जाती रहती है।
\v 5 इसलिए मैंने उनके नबियों के वसीले से काट डाला और अपने कलाम से क़त्ल किया है और मेरा 'अद्ल नूर की तरह चमकता है।
\s5
\v 6 क्यूँकि मैं क़ुर्बानी नहीं बल्कि रहम पसन्द करता हूँ और खु़दा शनासी को सोख़्तनी कु़र्बानियों से ज़्यादा चाहता हूँ।
\v 7 लेकिन वह 'अहद शिकन आदमियों की तरह हैं। उन्होंने वहाँ मुझ से बेवफ़ाई की है।
\s5
\v 8 जिलआ'द बदकिरदारी की बस्ती है। वह खू़नआलूदा है।
\v 9 ~जिस तरह के रहज़नों के ग़ोल किसी आदमी की धोखे में बैठते हैं उसी तरह काहिनों की गिरोह सिक्म की राह में क़त्ल करती है, हाँ उन्होंने बदकारी की है।
\s5
\v 10 मैंने इस्राईल के घराने में एक ख़तरनाक चीज़ देखी।इफ़्राईम में बदकारी पाई जाती है और इस्राईल नापाक हो गया।
\v 11 ~ऐ यहूदाह तेरे लिए भी कटाई का वक़्त मुक़र्रर है जब मैं अपने लोगों को ग़ुलामी से वापस लाऊँगा
\s5
\c 7
\p
\v 1 जब मैं इस्राईल को शिफ़ा बख़्शने को था तो~इफ़्राईम की बदकिरदारी और सामरिया की शरारत ज़ाहिर हुई क्यूँकि वह दग़ा करते हैं । अन्दर चोर घुस आए हैं और बाहर डाकुओं का ग़ोल लूट रहा है।
\v 2 ~वह ये नहीं सोचते के मुझे उनकी सारी शरारत मा'लूम है। अब उनके 'आमाल ने जो मुझ पर ज़ाहिर हैं उनको घेर लिया है।
\s5
\v 3 वह बादशाह को अपनी शरारत और उमरा को दरोग़ गोई से खु़श करते हैं।
\v 4 वह सब के सब बदकार हैं। वह उस तनूर की तरह हैं जिसको नानबाई गर्म करता है और आटा गूंधने के वक़्त से ख़मीर उठने तक आग भड़काने से बाज़ रहता है।
\v 5 ~हमारे बादशाह के जश्न के दिन उमरा तो गर्मी-ए-मय से बीमार हुए और वह ठठ्ठाबाज़ों के साथ बेतकल्लुफ़ हुआ।
\s5
\v 6 धोखे में बैठे उनके दिल तनूर की तरह हैं। उनका क़हर रात भर सुलगता रहता है। वह सुबह के वक़्त आग की तरह भड़कता है।
\v 7 ~वह सब के सब तनूर की तरह दहकते हैं और अपने क़ाज़ियों को खा जाते हैं। उनके सब बादशाह मारे गए। उनमें कोई न रहा जो मुझ से दु'आ करे।
\s5
\v 8 ~इफ़्राईम दूसरे लोगों से मिल जुल गया। इफ़्राईम एक चपाती है जो उलटाई न गई।
\v 9 अजनबी उसकी तवानाई को निगल गए और उसकी ख़बर नहीं और बाल सफ़ेद होने लगे पर वह बेख़बर है।
\s5
\v 10 और फ़ख़्र-ए-इस्राईल उसके मुँह पर गवाही देता है तोभी वह ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ रुजू' नहीं लाए और बावजूद इस सब के उसके तालिब नहीं हुए।
\v 11 इफ़्राईम~बेवकूफ़-ओ-नासमझ फ़ाख़्ता है वह मिस्र की दुहाई देते और असूर को जाते हैं।
\s5
\v 12 ~जब वह जाएँगे तो मैं उन पर अपना जाल फैला दूँगा। उनकी हवा के परिन्दों की तरह नीचे उतारूँगा और जैसा उनकी जमा'अत सुन चुकी है उनकी तादीब करूँगा।
\v 13 उन पर अफ़सोस क्यूँकि वह~मुझ से आवारा हो गए, वह बर्बाद हों क्यूँकि वह मुझ से बाग़ी हुए। अगरचे मैं उनका फ़िदिया देना चाहता हूँ वह मेरे खिलाफ़ दरोग़ गोई करते हैं।
\s5
\v 14 और वह हुजूर-ए-क़ल्ब के साथ मुझ से फ़रियाद नहीं करते बल्कि अपने बिस्तरों पर पड़े चिल्लाते हैं। वह अनाज और मय के लिये तो जमा' हो जाते हैं पर मुझ से बाग़ी रहते हैं।
\v 15 ~अगरचे मैंने उनकी तरबियत की और उनको ताक़तवर बाज़ू किया तोभी वह मेरे हक़ में बुरे ख़याल करते हैं।
\s5
\v 16 वह रुजू' होते हैं पर हक़ ताला की तरफ़ नहीं। वह दग़ा देने वाली कमान की तरह हैं। उनके उमरा अपनी ज़बान की गुस्ताख़ी की वजह से बर्बाद होंगे। इससे मुल्क-ए-मिस्र में उनकी हँसी होगी।
\s5
\c 8
\p
\v 1 तुरही अपने मुँह से लगा! वह 'उक़ाब की तरह ख़ुदावन्द के घर पर टूट पड़ा है, क्यूँकि उन्होंने मेरे अहद से तजावुज़ किया और मेरी शरी'अत के ख़िलाफ़ चले।
\v 2 वह मुझे यूँ पुकारते हैं कि ऐ हमारे ख़ुदा, हम बनी-इस्राईल तुझे पहचानते हैं।
\v 3 इस्राईल ने भलाई को छोड़ दिया, दुश्मन उसका पीछा करेंगे।
\s5
\v 4 उन्होंने बादशाह मुक़र्रर किए लेकिन मेरी तरफ़ से नहीं। उन्होंने उमरा को ठहराया है और मैंने उनको न जाना। उन्होंने अपने सोने चाँदी से बुत बनाए ताकि बर्बाद हों।
\v 5 ऐ सामरिया, तेरा बछड़ा मरदूद है। मेरा क़हर उन पर भड़का है। वह कब तक गुनाह से पाक न होंगे।
\s5
\v 6 क्यूँकि ये भी इस्राईल ही की करतूत है। कारीगर ने उसको बनाया है। वह ख़ुदा नहीं। सामरिया का बछड़ा यक़ीनन टुकड़े-टुकड़े किया जाएगा।
\v 7 ~बेशक उन्होंने हवा बोई। वह गर्दबाद काटेंगे, न उसमें डंठल निकलेगा न उसकी बालों से ग़ल्ला पैदा होगा और अगर पैदा हो भी तो अजनबी उसे चट कर जाएँगे।
\s5
\v 8 ~इस्राईल निगला गया। अब वह क़ौमों के बीच ना पसंदीदा बर्तन की तरह होंगे।
\v 9 क्यूँकि वह तन्हा गोरख़र की तरह असूर को चले गए हैं।~इफ़्राईम ने उजरत पर यार बुलाए।
\v 10 अगरचे उन्होंने क़ौमों को उजरत दी है तो भी अब मै उनको जमा' करूँगा और वह बादशाह-ओ-उमरा के बोझ से ग़मग़ीन होंगे।
\s5
\v 11 ~चूँकि इफ़्राईम ने गुनहगारी के लिए बहुत सी क़ुर्बानगाहें बनायीं इसलिए वह क़ुर्बानगाहें उसकी गुनहगारी का ज़रिया' हुई।
\v 12 अगरचे मैंने अपनी शरी'अत के अहकाम को उनके लिए हज़ारों बार लिखा, लेकिन वह उनको अजनबी ख़्याल करते हैं।
\s5
\v 13 वह मेरे तोहफ़ों की क़ुर्बानियों के लिए गोश्त पेश करते और खाते हैं, लेकिन ख़ुदावन्द उनको क़ुबूल नहीं करता। अब वह उनकी बदकिरदारी की याद करेगा और उनको उनके गुनाहों की सज़ा देगा। वह मिस्र को वापस जाएँगे।
\v 14 ~इस्राईल ने अपने ख़ालिक़ को फ़रामोश करके बुतख़ाने बनाए हैं और यहूदाह ने बहुत से हसीन शहर ता'मीर किए हैं, लेकिन मैं उसके शहरों पर आग भेजूँगा और वह उनके कस्रों को भसम कर देगी।
\s5
\c 9
\p
\v 1 ऐ इस्राईल, दूसरी क़ौमों की तरह ख़ुशी-ओ-शादमानी न कर, क्यूँकि तू ने अपने ख़ुदा से बेवफ़ाई की है। तूने हर एक खलीहान में उजरत तलाश की है।
\v 2 ~खलीहान और मय के हौज़ उनकी परवरिश के लिए काफ़ी न होंगे और नई मय किफ़ायत न करेगी।
\s5
\v 3 ~वह ख़ुदावन्द के मुल्क में न बसेंगे, बल्कि~इफ़्राईम मिस्र को वापस जाएगा और वह असूर में नापाक चीज़ें खाएँगे।
\v 4 ~वह मय को ख़ुदावन्द के लिए न तपाएँगे और वह उसके मक़बूल न होंगे,उनकी क़ुर्बानियाँ उनके लिए नौहागरों की रोटी की तरह होंगी। उनको खाने वाले नापाक होंगे, क्यूँकि उनकी रोटियाँ उन ही की भूक के लिए होंगी और ख़ुदावन्द के घर में दाख़िल न होंगी।
\s5
\v 5 मजमा'-ए-मुक़द्दस के दिन और ख़ुदावन्द की 'ईद के दिन क्या करोगे?
\v 6 ~क्यूँकि वो तबाही के ख़ौफ़ से चले गए, लेकिन मिस्र उनको समेटेगा। मोफ़ उनको दफ़न करेगा। उनकी चाँदी के अच्छे ख़ज़ानों पर बिच्छू बूटी क़ाबिज़ होगी। उनके खे़मों में काँटे उगेंगे।
\s5
\v 7 ~सज़ा के दिन आ गए, बदले का वक़्त आ पहुँचा। इस्राईल को मा'लूम हो जाएगा कि उसकी बदकिरदारी की कसरत और 'अदावत की ज़्यादती के ज़रिए' नबी बेवक़ूफ़ है। रूहानी आदमी दीवाना है।
\s5
\v 8 ~इफ़्राईम मेरे ख़ुदा की तरफ़ से निगहबान है। नबी अपनी तमाम राहों में चिड़ीमार का जाल है। वह अपने ख़ुदा के घर में 'अदावत है।
\v 9 उन्होंने अपने आप को निहायत ख़राब किया जैसा जिब'आ के दिनों में हुआ था। वह उनकी बदकिरदारी को याद करेगा और उनके गुनाहों की सज़ा देगा।
\s5
\v 10 मैंने इस्राईल को बियाबानी अंगूरों की तरह पाया। तुम्हारे बाप-दादा को अंजीर के पहले पक्के फल की तरह देखा जो दरख़्त के पहले मौसम में लगा हो, लेकिन वह बा'ल फ़गूर के पास गए और अपने आप को उस ज़रिए' रुस्वाई के लिए मख़्सूस किया और अपने उस महबूब की तरह मकरूह हुए।
\s5
\v 11 ~अहल-ए-इफ़्राईम की शौकत परिन्दे की तरह उड़ जाएगी, विलादत-ओ-हामिला का बुजूद उनमें न होगा और क़रार-ए-हमल ख़त्म हो जाएगा।
\v 12 अगरचे वह अपने बच्चों को पालें, तोभी मैं उनको छीन लूँगा, ताकि कोई आदमी बाकी न रहे। क्यूँकि जब मैं भी उनसे दूर हो जाऊँ, तो उनकी हालत क़ाबिल-ए-अफ़सोस~होगी।
\s5
\v 13 ~इफ़्राईम को मैं देखता हूँ कि वो सूर की तरह उम्दा जगह में लगाया गया, लेकिन इफ़्राईमअपने बच्चों को क़ातिल के सामने ले जाएगा।
\v 14 ऐ ख़ुदावन्द, उनको दे; तू उनको क्या देगा? उनको इस्क़ात-ए-हमल और ख़ुश्क पिस्तान दे।
\s5
\v 15 ~उनकी सारी शरारत जिल्जाल में है। हाँ, वहाँ मैंने उनसे नफ़रत की। उनकी बदआ'माली की वजह से मैं उनको अपने घर से निकाल दूँगा और फिर उनसे मुहब्बत न रख्खूँगा। उनके सब उमरा बाग़ी हैं।
\s5
\v 16 ~बनी~इफ़्राईम तबाह हो गए। उनकी जड़ सूख गई। उनके यहाँ औलाद न होगी और अगर औलाद हो भी तो मैं उनके प्यारे बच्चों को हलाक करूँगा।
\v 17 ~मेरा ख़ुदा उनको ~छोड़ देगा, क्यूँकि वो उसके सुनने वाले नहीं हुए और वह अक़वाम-ए-'आलम में आवारा फिरेंगे।
\s5
\c 10
\p
\v 1 इस्राईल लहलहाती ताक है जिसमें फल लगा, जिसने अपने फल की कसरत के मुताबिक़ बहुत सी कु़र्बानगाहें ता'मीर की और अपनी ज़मीन की खू़बी के मुताबिक़ अच्छे अच्छे सुतून बनाए।
\v 2 उनका दिल दग़ाबाज़ है। अब वह मुजरिम ठहरेंगे। वह उनके मज़बहों को ढाएगा और उनके सुतूनों को तोड़ेगा।
\s5
\v 3 ~यक़ीनन अब वह कहेंगे,हमारा कोई बादशाह नहीं क्यूँकि जब हम ख़ुदावन्द से नहीं डरते तो बादशाह हमारे लिए क्या कर सकता है?”
\v 4 ~उनकी बातें बेकार हैं। वह 'अहद-ओ-पैमान में झूटी क़सम खाते हैं। इसलिए बला ऐसी फूट निकलेगी जैसे खेत की रेघारियों में इन्द्रायन।
\s5
\v 5 बैतआवन की बछियों की वजह से सामरिया के रहने वाले ख़ौफ़ज़दा होंगे, क्यूँकि वहाँ के लोग उस पर मातम करेंगे, और वहाँ के काहिन भी जो उसकी पहले की शौकत की वजह से शादमान थे।
\v 6 ~इसको भी असूर में ले जाकर, उस मुख़ालिफ़ बादशाह की नज़र करेंगे।~इफ़्राईम शर्मिन्दगी उठाएगा और इस्राईल अपनी मश्वरत से शर्मिन्दा होगा।
\s5
\v 7 सामरिया का बादशाह कट गया है, वह पानी पर तैरती शाख़ की तरह है।
\v 8 ~और आवन के ऊँचे मक़ाम, जो इस्राईल का गुनाह हैं, बर्बाद किए जाएँगे; और उनके मज़बहों पर काँटे और ऊँट कटारे उगेंगे और वह पहाड़ों से कहेंगे, हम को छिपा लो,और टीलों से कहेंगे, हम पर आ गिरो।
\s5
\v 9 ऐ इस्राईल, तू जिब'आ के दिनों से गुनाह करता आया है। वो वहीं ठहरे रहे, ताकि लड़ाई जिब'आ में बदकिरदारों की नस्ल तक न पहुँचे।
\s5
\v 10 मैं जब चाहूँ उनको सज़ा दूँगा और जब मैं उनके दो गुनाहों कीे सज़ा दूँगा तो लोग उन पर हुजूम करेंगे।
\v 11 इफ़्राईम सधाई हुई बछिया है, जो दाओना पसन्द करती है, और मैंने उसकी ख़ुशनुमा गर्दन की दरेग़ किया लेकिन मैं~इफ़्राईम~पर सवार बिठाऊँगा। यहूदाह हल चलाएगा और या'कू़ब ढेले तोड़ेगा।
\s5
\v 12 ~अपने लिए सच्चाई से बीज बोया करो। शफ़क़त से फ़स्ल काटो और अपनी उफ़्तादा ज़मीन में हल चलाओ, क्यूँकि अब मौक़ा' है कि तुम ख़ुदावन्द के तालिब हो,ताकि वह आए और रास्ती को तुम पर बरसाए।
\v 13 तुम ने शरारत का हल चलाया। बदकिरदारी की फ़सल काटी और झूट का फल खाया, क्यूँकि तू ने अपने चाल चलन में अपने बहादुरों के अम्बोह पर तकिया किया।
\s5
\v 14 ~इसलिए तेरे लोगों के ख़िलाफ़ हंगामा खड़ा होगा, और तेरे सब किले' ढा दिए जाएँगे, जिस तरह शल्मन ने लड़ाई के दिन बैत अर्बेल को ढा दिया था; जब कि माँ अपने बच्चों के साथ टुकड़े-टुकड़े हो गई।
\v 15 ~तुम्हारी बेनिहायत शरारत की वजह से बैतएल में तुम्हारा यही हाल होगा। शाह-ए-इस्राईल अलस् सबाह बिल्कुल फ़ना हो जाएगा।
\s5
\c 11
\p
\v 1 जब इस्राईल अभी बच्चा ही था, मैने उससे मुहब्बत रख्खी, और अपने बेटे को मिस्र से बुलाया।
\v 2 ~उन्होंने जिस क़द्र उनको बुलाया, उसी क़द्र वह दूर होते गए; उन्होंने बा'लीम के लिए कु़र्बानियाँ पेश कीं और तराशी हुई मूरतों के लिए ख़ुशबू जलाया।
\s5
\v 3 मैंने बनी~इफ़्राईम को चलना सिखाया; मैंने उनको गोद में उठाया, लेकिन उन्होंने न जाना कि मैं ही ने उनको सेहत बख़्शी।
\v 4 मैंने उनको इंसानी रिश्तों और मुहब्बत की डोरियों से खींचा; मैं उनके हक़ में उनकी गर्दन पर से जूआ उतारने वालों की तरह हुआ, और मैंने उनके आगे खाना रख्खा।
\s5
\v 5 ~वह फिर मुल्क-ए-मिस्र में न जाएँगे, बल्कि असूर उनका बादशाह होगा; क्यूँकि वह वापस आने से इन्कार करते हैं।
\v 6 ~तलवार उनके शहरों पर आ पड़ेगी, और उनके अड़बंगों को खा जाएगी और ये उन ही की मश्वरत का नतीजा होगा।
\v 7 ~क्यूँकि मेरे लोग मुझ से नाफ़रमानी पर आमादा हैं, बावुजूद ये कि उन्होंने उनको बुलाया कि हक़ ता'ला की तरफ़ रुजू' लाए; लेकिन किसी ने न चाहा कि उसकी इबादत करें।
\s5
\v 8 ~ऐ इफ़्राईम, मैं तुझ से क्यूँकर दस्तबरदार हो जाऊँ? ऐ इस्राईल, मैं तुझे क्यूँकर तर्क करूं? मैं क्यूँकर तुझे अदमह की तरह बनाऊ?और ज़िबू'ईम तरह बनाऊँ ~मेरा दिल मुझ में पेच खाता है; मेरी शफ़क़त मौजज़न है।
\v 9 मैं अपने क़हर की शिद्दत के मुताबिक़ 'अमल नहीं करूँगा, मैं हरगिज़~इफ़्राईम को हलाक न करूँगा; क्यूँकि मैं इन्सान नहीं, ख़ुदा हूँ |तेरे बीच सुकूनत करने वाला कु़द्दूस, और मैं क़हर के साथ नहीं आऊँगा।
\s5
\v 10 वह ख़ुदावन्द की पैरवी करेंगे, जो शेर-ए-बबर की तरह गरजेगा, क्यूँकि वह गरजेगा, और उसके फ़र्ज़न्द मग़रिब की तरफ़ से काँपते हुए आएँगे।
\v 11 वह मिस्र से परिन्दे की तरह, और असूर के मुल्क से कबूतर की तरह काँपते हुए आएँगे; और मैं उनको उनके घरों में बसाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 12 ~इफ़्राईम ने दरोगगोई से और इस्राईल के घराने ने मक्कारी से मुझ को घेरा है, लेकिन यहूदाह अब तक ख़ुदा के साथ हाँ उस क़ुद्दूस वफ़ादार के साथ हुक्मरान हैं |
\s5
\c 12
\p
\v 1 ~इफ़्राईम हवा चरता है; वह पूरबी हवा के पीछे दौड़ता है। वह मुत्वातिर झूट पर झूट बोलता, और जु़ल्म करता है। वह असूरियों से 'अहद-ओ-पैमान करते, और मिस्र को तेल भेजते हैं।
\v 2 ख़ुदावन्द का यहूदाह के साथ भी झगड़ा है, और या'कू़ब को चाल चलन के मुताबिक़ उसकी सज़ा देगा; और उसके आ'माल के मुवाफ़िक़ उसका बदला देगा।
\s5
\v 3 ~उसने रिहम में अपने भाई की एड़ी पकड़ी, और वह अपनी जवानी के दिनों में ख़ुदा से कुश्ती लड़ा।
\v 4 ~हाँ, वह फ़रिश्ते से कुश्ती लड़ा और ग़ालिब आया। उसने रोकर दु'आ की। उसने उसे बैतएल में पाया और वहाँ वह हम से हम कलाम हुआ
\s5
\v 5 या'नी ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज, यहोवा उसकी यादगार है:
\v 6 "अब तू अपने ख़ुदा की तरफ़ रुजू' ला; नेकी और रास्ती पर क़ायम, और हमेशा अपने ख़ुदा का उम्मीदवार रह।”
\s5
\v 7 ~वह सौदागर है, और दग़ा की तराजू उसके हाथ में है; वह जु़ल्म दोस्त है।
\v 8 ~इफ़्राईम तो कहता है, 'मैं दौलतमंद और मैंने बहुत सा माल हासिल किया है। मेरी सारी कमाई में बदकिरदारी का गुनाह न पाएँगे।"
\s5
\v 9 लेकिन मैं मुल्क-ए-मिस्र से ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा हूँ; मैं फिर तुझ को 'ईद-ए-मुक़द्दस के दिनों के दस्तूर पर ख़ेमों में बसाऊँगा।
\v 10 मैंने तो नबियों से कलाम किया; और रोया पर रोया दिखाई, और नबियों के वसील से तशबिहात इस्तेमाल कीं।
\s5
\v 11 ~यक़ीनन जिल्आदि में बदकिरदारी है, वो बिल्कुल बतालत हैं; वो जिल्जाल में बैल क़ुर्बान करते हैं,उनकी क़ुर्बानगाहे खेत की रेखारियों ~पर के तूदों की तरह हैं।
\v 12 और याकूब अराम की ज़मीन को भाग गया; इस्राईल बीवी के ख़ातिर नौकर बना, उसने बीवी की ख़ातिर चरवाही ~की।
\s5
\v 13 ~एक नबी के वसीले से ख़ुदावन्द इस्राईल को मिस्र से निकाल लाया और नबी ही के वसीले से वह महफ़ूज़ रहा।
\v 14 ~इफ़्राईम ने बड़े सख़्त ग़ज़बअंगेज़ काम किए; इसलिए उसका खू़न उसी की गर्दन पर होगा और उसका ख़ुदावन्द उसकी मलामत उसी के सिर पर लाएगा।
\s5
\c 13
\p
\v 1 इफ़्राईम~के कलाम में ख़ौफ़ था, वह इस्राईल के बीच सरफ़राज़ किया गया; लेकिन बा'ल की वजह से गुनहगार होकर फ़ना हो गया।
\v 2 और अब वह गुनाह पर गुनाह करते हैं, उन्होंने अपने लिए चाँदी की ढाली हुई मुरते बनाई और अपनी समझ के मुताबिक़ बुत तैयार किए जो सब के सब कारीगरों का काम हैं। वो उनके बारे कहते हैं, "जो लोग क़ुर्बानी पेश करते हैं, बछड़ों को चूमें!"
\s5
\v 3 इसलिए वह सुबह के बादल और शबनम की तरह जल्द जाते रहेंगे, और भूसी की तरह, जिसको बगोला खलीहान पर से उड़ा ले जाता है, और उस धुंवें की तरह जो दूदकश से निकलता है।
\s5
\v 4 ~लेकिन मैं मुल्क-ए-मिस्र ही से, ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा हूँ और मेरे अलावा तू किसी मा'बूद को नहीं जानता था, क्यूँकि मेरे अलावा कोई और नजात देने वाला नहीं है।
\v 5 ~मैंने बियाबान में, या'नी खु़श्क ज़मीन में तेरी ख़बर गीरी की।
\v 6 वह अपनी चरागाहों में सेर हुए, और सेर होकर उनके दिल में घमंड समाया और मुझे भूल गए।
\s5
\v 7 इसलिए मैं उनके लिए शेर-ए-बबर की तरह हुआ; चीते की तरह राह में उनकी घात में बैठूँगा।
\v 8 मैं उस रीछनी की तरह जिसके बच्चे छिन गए हों, उनसे दो चार हूँगा, और उनके दिल का पर्दा चाक करके शेर-ए-बबर की तरह, उनको वहीं निगल जाऊँगा; जंगली जानवर उनको फाड़ डालेंगे।
\s5
\v 9 ऐ इस्राईल, यही तेरी हलाकत है कि तू मेरा यानी अपने मदद गार का मुख़ालिफ़ बना।
\v 10 अब तेरा बादशाह कहाँ है कि तुझे तेरे सब शहरों में बचाए और तेरे क़ाज़ी कहाँ हैं जिनके बारे तू कहता था कि मुझे बादशाह और उमरा इनायत कर?
\v 11 ~मैंने अपने क़हर में तुझे बादशाह दिया, और ग़ज़ब से उसे उठा लिया।
\s5
\v 12 ~इफ़्राईम की बदकिरदारी बाँध रखी गई, और उसके गुनाह ज़ख़ीरे में जमा' किए गए।
\v 13 ~वह जैसे दर्द-ए-ज़िह में मुब्तिला होगा, वो बे अक़्ल फ़र्ज़न्द है; अब मुनासिब है कि पैदाइश की जगह में देर न करे।
\s5
\v 14 ~मैं उनको पाताल के क़ाबू से नजात दूँगा; मैं उनकी मौत से छुड़ाऊँगा। ऐ मौत तेरी वबा कहाँ है? ऐ पाताल तेरी हलाकत कहाँ है? मैं हरगिज़ रहम न करूँगा।
\s5
\v 15 ~अगरचे वह अपने भाइयों में कामियाब हो, तोभी पूरबी हवा आएगी; ख़ुदावन्द का दम बियाबान से आएगा, और उसका सोता सूख जाएगा, और उसका चश्मा ख़ुश्क हो जाएगा। वह सब पसंदीदा बर्तनों का ख़ज़ाना लूट लेगा।
\s5
\v 16 सामरिया अपने जुर्म की सज़ा पाएगा, क्यूँकि उसने अपने ख़ुदा से बग़ावत की है; वह तलवार से गिर जाएँगे। उनके बच्चे पारा-पारा होंगे और हामला 'औरतों के पेट चाक किए जाएँगे।
\s5
\c 14
\p
\v 1 ~ऐ इस्राईल, ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ रुजू' ला, क्यूँकि तू अपनी बदकिरदारी की वजह से गिर गया है।
\v 2 कलाम लेकर ख़ुदावन्द की तरफ़ रुजू लाओ, और कहो, "हमारी तमाम बदकिरदारी को दूर कर, और फ़ज़ल से हम को कु़बूल फ़रमा; तब हम अपने लबों से कु़र्बानियाँ पेश करेंगे।
\s5
\v 3 ~असूर हम को नहीं बचाएगा; हम घोड़ों पर सवार नहीं होंगे; और अपनी दस्तकारी को ख़ुदा न कहेंगे क्यूँकि यतीमों पर रहम करने वाला तू ही है।"
\s5
\v 4 ~मैं उनकी नाफ़रमानी का चारा करूँगा; मैं कुशादा दिली से उनसे मुहब्बत रखूँगा, क्यूँकि मेरा क़हर उन पर से टल गया है।
\v 5 मैं इस्राईल के लिए ओस की तरह हूँगा; वह सोसन की तरह फूलेगा, और लुबनान की तरह अपनी जड़ें फैलाएगा;
\v 6 ~उसकी डालियाँ फैलेंगी, और उसमें ज़ैतून के दरख़्त की खू़बसूरती और लुबनान की सी खु़शबू होगी।
\s5
\v 7 उसके मातहत में रहने वाले कामियाब हो जाएँगे; वह गेहूँ की तरह तर-ओ-ताज़ा और ताक की तरह शिगुफ़्ता होंगे। उनकी शुहरत लुबनान की मय की सी होगी।
\v 8 ~इफ़्राईम कहेगा, "अब मुझे बुतों से क्या काम?' मैं ख़ुदावन्द ने उसकी सुनी है, और उस पर निगाह करूँगा। मैं सर सब्ज़ सरो की तरह हूँ, तू मुझ ही से कामयाब हुआ।
\s5
\v 9 'अक़्लमन्द कौन है कि वह ये बातें समझे और समझदार कौन है जो इनको जाने? क्यूँकि ख़ुदावन्द की राहें रास्त है और सादिक़ उनमें चलेंगे; लेकिन ख़ताकर उनमें गिर पड़ेंगे।

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\toc1 योएल
\toc2 योएल
\toc3 jol
\mt1 योएल
\s5
\c 1
\p
\v 1 ~ख़ुदावन्द का कलाम जो यूएल-बिनफ़तूएल पर नाज़िल हुआ :
\v 2 ~ऐ बूढ़ो, सुनो,ऐ ज़मीन के सब रहने वालों, कान लगाओ! क्या तुम्हारे या तुम्हारे बाप-दादा के दिनों में कभी ऐसा हुआ?
\v 3 ~तुम अपनी औलाद से इसका तज़किरा करो, और तुम्हारी औलाद अपनी औलाद से, और उनकी औलाद अपनी नसल से बयान करे।
\s5
\v 4 ~जो कुछ टिड्डियों के एक ग़ोल से बचा, उसे दूसरा ग़ोल निगल गया; और जो कुछ दूसरे से बचा, उसे तीसरा ग़ोल चट कर गया; और जो कुछ तीसरे से बचा, उसे चौथा ग़ोल खा गया।
\s5
\v 5 ~ऐ मतवालो, जागो और मातम करो; ऐ मयनौशी करने वालों,नई मय के लिए चिल्लाओ, क्यूँकि वह तुम्हारे मुँह से छिन गई है।
\v 6 ~क्यूँकि मेरे मुल्क पर एक क़ौम चढ़ आई है,उनके दाँत शेर-ए-बबर के जैसे हैं, और उनकी दाढ़ें शेरनी की जैसी हैं।
\v 7 ~उन्होंने मेरे ताकिस्तान को उजाड़ डाला, और मेरे अंजीर के दरख़्तों को तोड़ डाला; उन्होंने उनको बिल्कुल छील छालकर फेंक दिया, उनकी डालियाँ सफ़ेद निकल आईं।
\s5
\v 8 ~तुम मातम करो, जिस तरह दुल्हन अपनी जवानी के शौहर के लिए टाट ओढ़ कर मातम करती है।
\v 9 नज़्र की कु़र्बानी और तपावन ख़ुदावन्द के घर से मौकूफ़ हो गए।ख़ुदावन्द के ख़िदमत गुज़ार,काहिन मातम करते हैं।
\v 10 ~खेत उजड़ गए, ज़मीन मातम करती है, क्यूँकि ग़ल्ला ख़राब हो गया है; नई मय ख़त्म हो गई, और तेल बर्बाद हो गया।
\s5
\v 11 ~ऐ किसानो, शर्मिन्दगी उठाओ,ऐ ताकिस्तान के बाग़बानों, मातम ~करो, क्यूँकि गेहूँ और जौ और मैदान के तैयार खेत बर्बाद ~हो गए।
\v 12 ~ताक ख़ुश्क हो गई;अंजीर का दरख़्त मुरझा गया। अनार और खजूर और सेब के दरख़्त, हाँ मैदान के तमाम दरख़्त मुरझा गए; और बनी आदम से खुशी जाती रही'।
\s5
\v 13 ~ऐ काहिनो, कमरें कस कर मातम करो, ऐ मज़बह पर ख़िदमत करने वालो, वावैला करो। ऐ मेरे ख़ुदा के ख़ादिमों, आओ रात भर टाट ओढ़ो !क्यूँकि नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन तुम्हारे ख़ुदा के घर से मौक़ूफ़ हो गए।
\v 14 ~रोज़े के लिए एक दिन मुक़द्दस करो; पाक महफ़िल ~बुलाओ।बुज़ुर्गों और मुल्क के तमाम बाशिंदों को ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के घर में जमा' करके उससे फ़रियाद करो
\s5
\v 15 ~उस दिन पर अफ़सोस !क्यूँकि ख़ुदावन्द का दिन नज़दीक है, वह क़ादिर-ए-मुतलक़ की तरफ़ से बड़ी हलाकत की तरह आएगा।
\v 16 ~क्या हमारी आँखों के सामने रोज़ी मौक़ूफ़ नहीं हुई ,और हमारे ख़ुदा के घर से खु़शीओ-शादमानी जाती नहीं रही?
\v 17 ~बीज ढेलों के नीचे सड़ गया; ग़ल्लाख़ाने ख़ाली पड़े हैं, खत्ते तोड़ डाले गए; क्यूँकि खेती सूख गई।
\s5
\v 18 ~जानवर कैसे कराहते हैं! गाय-बैल के गल्ले परेशान हैं क्यूँके उनके लिए चरागाह नहीं है; हाँ, भेड़ों के गल्ले भी बर्बाद हो गए हैं।
\v 19 ~ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरे सामने फ़रियाद करता हूँ। क्यूँकि आग ने वीराने की चरागाहों को जला दिया, और शो'ले ने मैदान के सब दरख़्तों को राख कर दिया है।
\v 20 जंगली जानवर भी तेरी तरफ़ निगाह रखते हैं, क्यूँकि पानी की नदियाँ सूख गई,और आग वीराने की चरागाहों को खा गईं।
\s5
\c 2
\p
\v 1 ~सिय्यून में नरसिंगा फूँको; मेरे पाक पहाड़ी पर साँस बाँध कर ज़ोर से फूँको! मुल्क के तमाम रहने वाले थरथराएँ, क्यूँकि ख़ुदावन्द का दिन चला आता है; बल्कि आ पहुँचा है।
\v 2 ~अंधेरे और तारीकी का दिन, काले बादल और जु़ल्मात का दिन है! एक बड़ी और ज़बरदस्त उम्मत जिसकी तरह न कभी हुई और न सालों तक उसके बा'द होगी; पहाड़ों पर सुब्ह-ए-सादिक़ की तरह फैल जाएगी।
\s5
\v 3 ~जैसे उनके आगे आगे आग भसम करती जाती है, और उनके पीछे पीछे शो'ला जलाता जाता है। उनके आगे ज़मीन बाग़-ए-'अदन की तरह है और उनके पीछे वीरान बियाबान है; हाँ, उनसे कुछ नहीं बचता।
\s5
\v 4 ~उनके पैरों का निशान घोड़ों के जैसे हैं,और सवारों की तरह दौड़ते हैं।
\v 5 ~पहाड़ों की चोटियों पर रथों के खड़खड़ाने और भूसे को ख़ाक करने वाले जलाने वाली आग के शोर की तरह बलन्द होते हैं। वह जंग के लिए तरतीब में ज़बरदस्त क़ौम की तरह हैं।
\s5
\v 6 उनके आमने सामने लोग थरथराते हैं; सब चेहरों का रंग उड़ जाता है।
\v 7 ~वह पहलवानों की तरह दौड़ते,और जंगी मर्दों की तरह दीवारों पर चढ़ जाते हैं। सब अपनी अपनी राह पर चलते हैं, और लाइन नहीं तोड़ते।
\s5
\v 8 ~वह एक दूसरे को नहीं ढकेलते,हर एक अपनी राह पर चला जाता है; वो जंगी हथियारों से गुज़र जाते हैं, और बेतरतीब नहीं होते।
\v 9 ~वो शहर में कूद पड़ते,और दीवारों और घरों पर चढ़कर चोरों की तरह खिड़कियों से घुस जाते हैं।
\s5
\v 10 ~उनके सामने ज़मीन-ओ-आसमान काँपते और थरथराते हैं। सूरज और चाँद तारीक, और सितारे बेनूर हो जाते हैं।
\v 11 ~और ख़ुदावन्द अपने लश्कर के सामने ललकारता है, क्यूँकि उसका लश्कर बेशुमार है और उसके हुक्म को अंजाम देने वाला ज़बरदस्त है; क्यूँकि ख़ुदावन्द का रोज़-ए-'अज़ीम बहुत ख़ौफ़नाक है। कौन उसकी बर्दाश्त कर सकता है?
\s5
\v 12 ~लेकिन ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "अब भी पूरे दिल से और रोज़ा रख कर और गिर्या-ओ-ज़ारी-ओ-मातम करते हुए मेरी तरफ़ फ़िरो।
\v 13 ~और अपने कपड़ों को नहीं,बल्कि दिलों को चाक करके,” ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ मुतवज्जिह हो; क्यूँकि वह रहीम-ओ-मेहरबान, क़हर करने में धीमा, और शफ़क़त में ग़नी है; और 'अज़ाब नाज़िल करने से बाज़ रहता है।
\s5
\v 14 ~कौन जानता है कि वह बाज़ रहे,और बरकत बाक़ी छोड़े जो ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा के लिए नज़्र की कु़र्बानी और तपावन हो।
\s5
\v 15 ~सिय्यून में नरसिंगा फूँको,और रोज़े के लिए एक दिन पाक करो; पाक महफ़िल इकठ्ठा करो।
\v 16 ~तुम लोगों को जमा' करो। जमा'अत को पाक करो, बुज़ुर्गों को इकट्ठा करो; बच्चों और शीरख़्वारों को भी ~बुलाओ। दुल्हा अपनी कोठरी से और दुल्हन अपने तन्हाई के घर ~से निकल आए।
\s5
\v 17 काहिन या'नी ख़ुदावन्द के ख़ादिम, डयोढ़ी और कु़र्बानगाह के बीच गिर्या-ओ-ज़ारी करें कहें, "ऐ खुदावन्द, अपने लोगों पर रहम कर, और अपनी मीरास की तौहीन न होने दे। ऐसा न हो कि दूसरी क़ौमें उन पर हुकूमत करें। वह उम्मतों के बीच क्यूँ कहें, उनका ख़ुदा कहाँ है?
\s5
\v 18 ~तब ख़ुदावन्द को अपने मुल्क के लिए गै़रत आई और उसने अपने लोगो पर रहम किया।
\v 19 ~फिर ख़ुदावन्द ने अपने लोगों से फ़रमाया, "मैं तुम को अनाज और नई मय और तेल 'अता फ़रमाऊँगा ~और तुम उनसे सेर होगे और मैं फिर तुम को क़ौमों में रुस्वा न करूँगा।
\s5
\v 20 ~"और शिमाली लश्कर को तुम से दूर करूँगा और उसे खु़श्क वीराने में हाँक दूँगा; उसके अगले मशरिक़ी समुंदर में होंगे, और पिछले मग़रिबी समुंदर में होंगे; उससे बदबू उठेगी~और 'उफ़ूनत फैलेगी,क्यूँकि उसने बड़ी गुस्ताख़ी की है।
\s5
\v 21 ~'ऐ ज़मीन, न घबरा;खु़शी और शादमानी कर, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने बड़े बड़े काम किए हैं!
\v 22 ~ऐ दश्ती जानवरो, न घबरा; क्यूँकि वीरान की चारागाह सब्ज़ होती है, और दरख़्त अपना फल लाते हैं। अंजीर और ताक अपनी पूरी पैदावार देते हैं।
\v 23 ~"तब ऐ बनी सिय्यून, खुश हो, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा में शादमानी करो; क्यूँकि वह तुम को पहली बरसात कसरत से बख़्शेगा; वही तुम्हारे लिए बारिश, या'नी पहली और पिछली बरसात वक़्त पर भेजेगा।
\s5
\v 24 ~"यहाँ तक कि खलीहान गेहूँ से भर जाएँगे, और हौज़ नई मय और तेल से लबरेज़ होंगे।
\v 25 ~और उन बरसों का हासिल जो मेरी तुम्हारे ख़िलाफ़ भेजीं हुई फ़ौज़ -ए-मलख़ निगल गई, और खाकर चट कर गई; तुम को वापस दूँगा।
\s5
\v 26 "और तुम खू़ब खाओगे और सेर होगे, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के नाम की, जिसने तुम से 'अजीब सुलूक किया, 'इबादत करोगे और मेरे लोग हरगिज़ शर्मिन्दा न होंगे।
\v 27 ~तब तुम जानोगे कि मैं इस्राईल के बीच हूँ,और मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ, और कोई दूसरा नहीं; और मेरे लोग कभी शर्मिन्दा न होंगे।
\s5
\v 28 ~'और इसके बा'द मैं हर फ़र्द-ए-बशर पर अपना रूह नाज़िल करूँगा, और तुम्हारे बेटे बेटियाँ नबुव्वत करेंगे; तुम्हारे बूढे ख़्वाब और जवान रोया देखेंगे।
\v 29 ~बल्कि मैं उन दिनों में गु़लामों और लौंडियों पर अपना रूह नाज़िल करूँगा।
\s5
\v 30 ' और मैं ज़मीन-ओ-आसमान में 'अजाइब ज़ाहिर करूँगा, या'नी खू़न और आग और धुंवें के खम्बे।
\v 31 ~इस से पहले कि ख़ुदावन्द का ख़ौफ़नाक रोज़-ए-'अज़ीम आए, सूरज तारीक और चाँद ख़ून हो जाएगा।
\s5
\v 32 ~और जो कोई ख़ुदावन्द का नाम लेगा नजात पाएगा, क्यूँकि कोह-ए-सिय्यून और यरूशलीम में, जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है बच निकलने वाले होंगे, और बाक़ी लोगों में वह जिनको ख़ुदावन्द बुलाता है।
\s5
\c 3
\p
\v 1 "उन दिनों में और उसी वक़्त, जब मैं यहूदाह और यरूशलीम के क़ैदियों को वापस लाऊँगा;
\v 2 तो सब क़ौमों को जमा' करूँगा और उन्हें यहूसफ़त की वादी में उतार लाऊँगा, और वहाँ उन पर अपनी क़ौम और मीरास, इस्राईल के लिए, जिनको ~उन्होंने क़ौमों के बीच हलाक किया और मेरे मुल्क को बाँट लिया, दलील साबित करूँगा।
\v 3 ~हाँ, उन्होंने मेरे लोगों पर पर्ची डाली, और एक कस्बी के बदले एक लड़का दिया, और मय के लिए एक लड़की बेची ताकि मयख़्वारी करें।
\s5
\v 4 "फिर ऐ सूर-ओ-सैदा और फ़िलिस्तीन के तमाम 'इलाक़ो, मेरे लिए तुम्हारी क्या हक़ीक़त है? क्या तुम मुझ को बदला दोगे? और अगर दोगे, तो मैं वहीं फ़ौरन तुम्हारा बदला तुम्हारे सिर पर फेंक दूँगा।
\v 5 क्यूँकि तुम ने मेरा सोना चाँदी ले लिया है, और मेरी लतीफ़-ओ-नफ़ीस चीज़ें अपने हैकलों में ले गए हो।
\v 6 ~और तुम ने यहूदाह और यरूशलीम की औलाद को यूनानियों के हाथ बेचा है, ताकि उनको उनकी हदों से दूर करो।
\s5
\v 7 ~इसलिए मैं उनको उस जगह से जहाँ तुम ने बेचा है, बरअंगेख़्ता करूँगा और तुम्हारा बदला तुम्हारे सिर पर लाऊँगा।
\v 8 और तुम्हारे बेटे बेटियों को बनी यहूदाह के हाथ बेचूँगा, और वह उनको अहल-ए-सबा के हाथ, जो दूर के मुल्क में रहते हैं, बेचेंगे, क्यूँकि यह ख़ुदावन्द का फ़रमान है।"
\s5
\v 9 क़ौमों के बीच इस बात का 'ऐलान करो: लड़ाई की तैयारी करो" ~बहादुरों को बरअंगेख़्ता करो, जंगी जवान हाज़िर हों, वह ~चढ़ाई करें।
\v 10 अपने हल की फालों को पीटकर तलवारें बनाओ और हँसुओं को पीट कर भाले, कमज़ोर कहे, "मैं ताक़तवर हूँ।"
\s5
\v 11 ~ऐ आस पास की सब क़ौमों,जल्द आकर जमा' हो जाओ। ऐ ख़ुदावन्द, अपने बहादुरों को वहाँ भेज दे।
\s5
\v 12 ~क़ौमें बरअंगेख़्ता हों, और यहूसफ़त की वादी में आएँ;क्यूँकि मैं वहाँ बैठकर आस पास की सब क़ौमों की 'अदालत करूँगा।
\v 13 ~हँसुआ लगाओ, क्यूँकि खेत पक गया है। आओ रौंदो, क्यूँकि हौज़ लबालब।और कोल्हू लबरेज़ है क्यूँकि उनकी शरारत 'अज़ीम है।
\s5
\v 14 ~गिरोह पर गिरोह इनफ़िसाल की वादी में है, क्यूँकि ख़ुदावन्द का दिन इनफ़िसाल की वादी में आ पहुँचा।
\v 15 ~सूरज और चाँद तारीक हो जाएँगे,और सितारों का चमकना बंद हो जाएगा। अपने लोगों को ख़ुदावन्द बरकत देगा
\s5
\v 16 ~क्यूँकि खुदावन्द सिय्यून से ना'रा मारेगा, और यरूशलीम से आवाज़ बुलंद करेगा और आसमान और ज़मीन काँपेंगे। लेकिन ख़ुदावन्द अपने लोगों की पनाहगाह और बनी-इस्राईल का क़िला' है।
\v 17 "तब तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ ,जो सिय्यून में अपने पाक पहाड़ पर रहता हूँ। तब यरूशलीम भी पाक होगा और फिर उसमे किसी अजनबी का गुज़र न होगा।
\s5
\v 18 ~और उस दिन पहाड़ों पर से नई मय टपकेगी, और टीलों पर से दूध बहेगा, और यहूदाह की सब नदियों में पानी जारी होगा; और ख़ुदावन्द के घर से एक चश्मा फूट निकलेगा और वादी-ए-शित्तीम को सेराब करेगा।
\v 19 मिस्र वीराना होगा और अदूम सुनसान बियाबान, क्यूँकि उन्होंने बनी यहूदाह पर ज़ुल्म किया, और उनके मुल्क में बेगुनाहों का ख़ून बहाया।
\s5
\v 20 ~लेकिन यहूदाह हमेशा आबाद और यरुशलीम नसल-दर-नसल क़ायम रहेगा।
\v 21 ~क्यूँकि मैं उनका ख़ून पाक क़रार दूँगा, जो मैंने अब तक पाक क़रार नहीं दिया था; क्यूँकि ख़ुदावन्द सिय्यून में सुकूनत करता है|"

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30-AMO.usfm Normal file
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\id AMO
\ide UTF-8
\h आमूस
\toc1 आमूस
\toc2 आमूस
\toc3 amo
\mt1 आमूस
\s5
\c 1
\p
\v 1 ~तक़ू'अ के चरवाहों में से 'आमूस का कलाम, जो उस पर शाह-ए-यहूदाह 'उज़्जियाह और शाह-ए-इस्राईल युरब'आम- बिन-यूआस के दिनों में इस्राईल के बारे में भौंचाल से दो साल पहले ख़्वाब में नाज़िल हुआ।
\v 2 ~उसने कहा: "ख़ुदावन्द सिय्यून से नारा मारेगा और यरूशलीम से आवाज़ बलन्द करेगा; और चरवाहों की चरागाहें मातम करेंगी, और कर्मिल की चोटी सूख जायेगी|"
\s5
\v 3 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि "दमिश्क़ के तीन बल्कि चार गुनाहों~की वजह से मैं उसको बेसज़ा न छोड़ूँगा, क्यूँकि उन्होंने जिलआद को ख़लीहान में दाउने के आहनी औज़ार से रौंद डाला है |
\v 4 और मैं हज़ाएल के घराने में आग भेजूँगा, जो बिन-हदद के क़स्रों को खा जाएगी।
\s5
\v 5 ~और मैं दमिश्क़ का अड़बंगा तोड़ूँगा और वादी-ए-आवन के बाशिंदों और बैत-'अदन के फ़रमाँरवाँ को काट डालूँगा और अराम के लोग ग़ुलाम होकर क़ीर को जाएँगे," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 6 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "कि ग़ज़्ज़ा के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न छोड़ूँगा, क्यूँकि वह सब लोगों को ग़ुलाम करके ले गए ताकि उनको अदूम के हवाले करें।
\v 7 ~इसलिए मैं ग़ज़्ज़ा की शहरपनाह पर आग भेजूँगा, जो उसके क़स्रों को खा जाएगी।
\s5
\v 8 ~और अशदूद के बाशिन्दों और अस्क़लोन के फ़रमाँरवाँ को काट डलूँगा और 'अक़्रून पर हाथ चलाऊँगा और फ़िलिस्तियों के बाक़ी लोग बर्बाद हो जायेंगे| ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\s5
\v 9 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "कि सूर के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न छोड़ूँगा, क्यूँकि उन्होंने सब लोगों को अदूम के हवाले किया और बिरादराना 'अहद को याद न किया।
\v 10 ~इसलिए मैं सूर की शहरपनाह पर आग भेजूँगा, जो उसके क़स्रों को खा जाएगी।"
\s5
\v 11 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "कि अदोम के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न छोड़ूँगा, क्यूँकि उसने तलवार लेकर अपने भाई को दौड़ाया और रहमदिली को छोड़ ~दिया और उसका क़हर हमेशा फाड़ता रहा और उसका ग़ज़ब ख़त्म न हुआ |
\v 12 ~इसलिए मैं तेमान पर आग भेजूँगा,और वह बुसराह के क़स्रों को खा जाएगी।
\s5
\v 13 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है ~कि बनी 'अम्मोन ~के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न छोडूँगा, क्यूँकि उन्होंने अपनी हुदूद को बढ़ाने के लिए जिलआद की बारदार 'औरतों के पेट चाक किए।
\s5
\v 14 ~इसलिए मैं रब्बा की शहरपनाह पर आग भड़काऊँगा, जो उसके क़स्रों को लड़ाई के दिन ललकार और आँधी के दिन गिर्दबाद के साथ खा जाएगी;
\v 15 ~और उनका बादशाह बल्कि वह अपने हाकिमों के साथ ग़ुलाम होकर जाएगा," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\c 2
\p
\v 1 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: "मोआब के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न छोडूँगा, क्यूँकि उसने शाह-ए-अदूम की हड्डियों को जलाकर चूना बना दिया है।
\s5
\v 2 ~इसलिए मैं मोआब पर आग भेजूँगा,और वह करयूत के क़स्रों को खा जाएगी; और मोआब ललकार और नरसिंगे की आवाज़, और शोर-ओ-ग़ौग़ा के बीच मरेगा।
\v 3 ~और मैं क़ाज़ी को उसके बीच से काट डालूँगा और उसके तमाम हाकिमों को उसके साथ क़त्ल करूँगा,” ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 4 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है ~कि "यहूदाह के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न~छोडूँगा~क्यूँकि उन्होंने ख़ुदावन्द की शरी'अत को रद्द किया, और उसके अहकाम की पैरवी न की और उनके झूटे मा'बूदों ने जिनकी पैरवी उनके बाप-दादा ने की, उनको गुमराह किया है।
\v 5 ~इसलिए मैं यहूदाह पर आग भेजूँगा, जो यरूशलीम के क़स्रों को खा जाएगी।"
\s5
\v 6 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: "इस्राईल के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न~छोड़ूँगा, क्यूँकि उन्होंने सादिक़~को रुपये की ख़ातिर, और ग़रीब को जूतियों के जोड़े की ख़ातिर बेच डाला।
\s5
\v 7 ~वह ग़रीबों के सिर पर की गर्द का भी लालच रखते हैं, और हलीमों को उनकी राह से गुमराह करते हैं और बाप बेटा एक ही 'औरत के पास जाने से मेरे पाक नाम की तकफ़ीर करते हैं।
\v 8 और वह हर मज़बह के पास गिरवी लिए हुए कपड़ों पर लेटते हैं, और अपने ख़ुदा के घर में जुर्माने से ख़रीदी हुई मय पीते हैं।
\s5
\v 9 ~हालाँकि मैं ही ने उनके सामने से अमोरियों को हलाक किया, जो देवदारों की तरह बलंद और बलूतों की तरह मज़बूत थे; हाँ, मैं ही ने ऊपर से उनका फल बर्बाद किया,और नीचे से उनकी जड़ें काटीं।
\v 10 ~और मैं ही तुमको ~मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, और चालीस बरस तक वीराने में तुम्हारी रहबरी की, ताकि तुम अमोरियों के मुल्क पर क़ाबिज़ हो जाओ।
\s5
\v 11 ~और मैंने तुम्हारे बेटों में से नबी,और तुम्हारे जवानों में से नज़ीर खड़े किए," ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "ऐ बनी इस्राईल, क्या ये सच नहीं?
\v 12 लेकिन तुम ने नज़ीरों को मय पिलाई, और नबियों को हुक्म दिया के नबुव्वत न करें।
\s5
\v 13 ~देखो, मैं तुम को ऐसा दबाऊँगा, जैसे पूलों से लदी हुई गाड़ी दबाती है।
\v 14 ~तब तेज़ रफ़्तार से भागने की ताक़त जाती रहेगी, और ताक़तवर का ज़ोर बेकार होगा, और बहादुर अपनी जान न बचा सकेगा।
\s5
\v 15 और कमान खींचने वाला खड़ा न रहेगा, और तेज़ क़दम और सवार अपनी जान न बचा सकेंगे;
\v 16 और पहलवानों में से जो कोई दिलावर है, नंगा निकल भागेगा," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\c 3
\p
\v 1 ~ऐ बनी इस्राईल, ऐ सब लोगों जिनको मैं मिल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, ये बात सुनो जो ख़ुदावन्द तुम्हारे बारे में फ़रमाता है :
\v 2 ~"दुनिया के सब घरानों में से मैंने सिर्फ़ तुम को चुना है, इसलिए मैं तुम को तुम्हारी सारी बदकिरदारी की सज़ा दूँगा।
\s5
\v 3 ~अगर दो शख़्स आपस में मुत्तफ़िक़ न हों, तो क्या इकट्ठे चल सकेंगे?
\v 4 ~क्या शेर-ए-बबर जंगल में गरजेगा, जबकि उसे शिकार न मिला हो? और अगर जवान शेर ने कुछ न पकड़ा हो, तो क्या वह ग़ार में से अपनी आवाज़ को बलंद करेगा?
\s5
\v 5 ~क्या कोई चिड़िया ज़मीन पर दाम में फँस सकती है, जबकि उसके लिए दाम ही न बिछाया गया हो? क्या फंदा जब तक कि कुछ न कुछ उसमें फँसा न ~हो, ज़मीन पर से उछलेगा?
\v 6 ~क्या ये मुम्किन है कि शहर में नरसिंगा फूँका जाए, और लोग न काँपें? या कोई बला शहर पर आए, और ख़ुदावन्द ने उसे न भेजा हो?
\s5
\v 7 यक़ीनन ख़ुदावन्द ख़ुदा कुछ नहीं करता, जब तक अपना राज़ अपने ख़िदमत गुज़ार नबियों पर पहले आशकारा न करे।
\v 8 शेर-ए-बबर गरजा है, कौन न डरेगा? ख़ुदावन्द ख़ुदा ने फ़रमाया है, कौन नबुव्वत न करेगा?"
\s5
\v 9 ~अशदूद के क़स्रों में और मुल्क-ए-मिस्र के क़स्रों में 'ऐलान करो,और कहो, "सामरिया के पहाड़ों पर जमा' हो जाओ, और देखो उसमें कैसा हंगामा और ज़ुल्म है।
\v 10 ~क्यूँकि वह नेकी करना नहीं जानते, ख़ुदावन्द फ़रमाता है जो अपने क़स्रो में ज़ुल्म और लूट को जमा' करते हैं।"
\s5
\v 11 ~इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि "दुश्मन मुल्क का घिराव करेगा, और तेरी क़ुव्वत को तुझ से दूर करेगा, और तेरे क़स्र लूटे जाएँगे।"
\v 12 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि ~जिस तरह से चरवाहा दो टाँगें , या कान का एक टुकड़ा, शेर-ए-बबर के मुँह से छुड़ा लेता है~उसी तरह~बनी~इस्राईल~जो सामरिया में पलंग के गोशे में और रेशमीन फ़र्श पर बैठे रहते हैं, छुड़ा लिए जाएँगे।
\s5
\v 13 ~ख़ुदावन्द ख़ुदा, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, "सुनो और बनी या'क़ूब के खिलाफ़ गवाही दो।
\v 14 क्यूँकि जब मैं इस्राईल के गुनाहों की सज़ा दूँगा, तो बैतएल के मज़बहों को भी देख लूँगा, और मज़बह के सींग कट कर ज़मीन पर गिर जाएँगे।"
\s5
\v 15 ~और ख़ुदावन्द फ़रमाता है :"मैं ज़मिस्तानी और ताबिस्तानी घरों को बर्बाद करूँगा,और हाथी दाँत के घर मिस्मार किए जायेंगे और बहुत से मकान वीरान होंगे।
\s5
\c 4
\p
\v 1 ऐ बसन की गायों, जो कोह-ए-सामरिया पर रहती हो, और ग़रीबों को सताती और ग़रीबों को कुचलती और अपने मालिकों से कहती हो, 'लाओ, हम पियें,' तुम ये बात सुनो।
\v 2 ~ख़ुदावन्द ख़ुदा ने अपनी पाकीज़गी की क़सम खाई है कि तुम पर वह दिन आएँगे, जब तुम को आंकड़ियों से और तुम्हारी औलाद को शस्तों से खींच ले जाएँगे।
\s5
\v 3 ~और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तुम में से हर एक उस रख़ने से जो उसके सामने होगा निकल भागेगी, और तुम क़ैद में डाली जाओगी।
\s5
\v 4 ~बैतएल में आओ और गुनाह करो, और जिल्जाल में कसरत से गुनाह करो, और हर सुबह अपनी क़ुर्बानियाँ और तीसरे रोज़ दहेकी लाओ,
\v 5 ~और शुक्रगुज़ारी का हदिया ख़मीर के साथ आग पर पेश करो, और रज़ा की क़ुर्बानी का 'ऐलान करो, और उसको मशहूर करो, क्यूँकि ऐ बनी इस्राईल, ये सब काम तुम को पसंद हैं," ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\s5
\v 6 ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "अगरचे मैंने तुम को तुम्हारे हर शहर में दाँतों की सफ़ाई, और तुम्हारे हर मकान में रोटी की कमी दी है; तोभी तुम मेरी तरफ़ रुजू' न लाए।
\v 7 और अगरचे मैंने मेंह को, जबकि फ़सल पकने में तीन महीने बाक़ी थे तुम से रोक लिया; और एक शहर पर बरसाया और दूसरे से रोक रख्खा, एक~क़िता' ज़मीन पर बरसा और दूसरा क़िता' बारिश न होने की वजह से सूख गया;
\s5
\v 8 ~और दो तीन बस्तियाँ आवारा हो कर एक बस्ती में आईं, ताकि लोग पानी पिएँ पर वह आसूदा न हुए, तो भी तुम मेरी तरफ़ रुजू' न लाए," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 9 "फिर मैंने तुम पर बाद-ए-समूम और गेरोई की आफ़त भेजी, और तुम्हारे बेशुमार बाग़ और ताकिस्तान और अंजीर और जै़तून के दरख़्त, टिड्डियों ने खा लिए; तोभी तुम मेरी तरफ़ रुजू' न लाए," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 10 ~मैंने मिस्र के जैसी वबा तुम पर भेजी और तुम्हारे जवानों को तलवार से क़त्ल किया; तुम्हारे घोड़े छीन लिए और तुम्हारी लश्करगाह की बदबू तुम्हारे नथनों में पहुँची, तोभी तुम मेरी तरफ़ रुजू' न लाए," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 11 ~"मैंने तुम में से कुछ को उलट दिया, जैसे ख़ुदा ने सदूम और 'अमूरा को उलट दिया था; और तुम उस लुक्टी की तरह हुए जो आग से निकाली जाए, तोभी तुम मेरी तरफ़ रुजू' न लाए," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 12 ~"इसलिए ऐ इस्राईल, मैं तुझ से यूँ ही करूँगा, और चूँकि मैं तुझ से यूँ करूँगा, इसलिए ऐ इस्राईल, तू अपने ख़ुदा से मुलाक़ात की तैयारी कर!"
\v 13 ~क्यूँकि देख, उसी ने पहाड़ों को बनाया और हवा को पैदा किया, वह इन्सान पर उसके ख़यालात को ज़ाहिर करता है और सुबह को तारीक बना देता है और ज़मीन के ऊँचे मक़ामात पर चलता है; उसका नाम ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज है।
\s5
\c 5
\p
\v 1 ~ऐ इस्राईल के ख़ान्दान, इस कलाम को जिससे मैं तुम पर नौहा करता हूँ, सुनो:
\v 2 ~"इस्राईल की कुँवारी गिर पड़ी, वह फिर न उठेगी; वह अपनी ज़मीन पर पड़ी है, उसको उठाने वाला कोई नहीं।"
\s5
\v 3 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है ~कि "इस्राईल के घराने के लिए, जिस शहर से एक हज़ार निकलते थे, उसमें एक सौ रह जाएँगे; और जिससे एक सौ निकलते थे, उसमें दस रह जाएँगे।"
\s5
\v 4 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल के घराने से यूँ फ़रमाता है ~कि ~"तुम मेरे तालिब हो और ज़िन्दा रहो;
\v 5 ~लेकिन बैतएल के तालिब न हो, और जिल्जाल में दाख़िल न हो, और बैरसबा' को न जाओ, क्यूँकि जिल्जाल ग़ुलामी में जाएगा और बैतएल नाचीज़ होगा।"
\s5
\v 6 ~तुम ख़ुदावन्द के तालिब हो और ज़िन्दा रहो, ऐसा न हो कि वह यूसुफ़ के घराने में आग की तरह भड़के और उसे खा जाए और बैतएल में उसे बुझाने वाला कोई न हो।
\v 7 ~ऐ 'अदालत को नागदौना बनाने वालों, और सदाक़त को ख़ाक में मिलाने वालों!
\s5
\v 8 ~वही सुरैया और जब्बार सितारों का ख़ालिक़ है जो मौत के साये को मतला'-ए-नूर, और रोज़-ए-रोशन को शब-ए-दैजूर बना देता है, और समन्दर के पानी को बुलाता और इस ज़मीन पर फैलाता है,जिसका नाम ख़ुदावन्द है;
\v 9 ~वह जो ज़बरदस्तों पर नागहानी हलाकत लाता है, जिससे क़िलों' पर तबाही आती है।
\s5
\v 10 ~वह फाटक में मलामत करने वालों से कीना रखते हैं, और रास्तगो से नफ़रत करते हैं।
\v 11 ~इसलिए चूँकि तुम ग़रीबों को पायमाल करते हो और ज़ुल्म करके उनसे गेहूँ छीन लेते हो, इसलिए जो तराशे हुए पत्थरों के मकान तुम ने बनाए उनमें न बसोगे, और जो नफ़ीस ताकिस्तान तुम ने लगाए उनकी मय न पियोगे।
\s5
\v 12 ~क्यूँकि मैं तुम्हारी बेशुमार ख़ताओं और तुम्हारे बड़े-बड़े गुनाहों से आगाह हूँ तुम सादिक़ों को सताते और रिश्वत लेते हो, और फाटक में ग़रीबों की हक़तलफ़ी करते हो।
\v 13 ~इसलिए इन दिनों में पेशबीन ख़ामोश हो रहेंगे क्यूँकि ये बुरा वक़्त है।
\s5
\v 14 ~बुराई के नहीं बल्कि नेकी के तालिब हो, ताकि ज़िन्दा रहो और ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज ~तुम्हारे साथ रहेगा, जैसा कि तुम कहते हो।
\v 15 ~बुराई से 'अदावत और नेकी से मुहब्बत रख्खो, और फाटक में 'अदालत को क़ायम करो; शायद ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज बनी यूसुफ़ के बक़िये पर रहम करे।
\s5
\v 16 ~इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: "सब बाज़ारों में नौहा होगा, और सब गलियों में अफ़सोस अफ़सोस कहेंगे; और किसानों को मातम के लिए, और उनको जो नौहागरी में महारत रखते हैं नौहे के लिए बुलाएँगे;
\v 17 और सब ताकिस्तानों में मातम होगा, क्यूँकि मैं तुझमें से होकर गुज़रूँगा," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 18 ~तुम पर अफ़सोस जो ख़ुदावन्द के दिन की आरज़ू करते हो! तुम ख़ुदावन्द के दिन की आरजू क्यूँ करते हो? वह तो तारीकी का दिन है, रोशनी का नहीं;
\v 19 ~जैसे कोई शेर-ए-बबर से भागे और रीछ उसे मिले, या घर में जाकर अपना हाथ दीवार पर रख्खे और उसे साँप काट ले।
\v 20 ~क्या ख़ुदावन्द का दिन तारीकी न होगा? उसमें रोशनी न होगी, बल्कि सख़्त ज़ुल्मत होगी और नूर मुतलक़ न होगा।
\s5
\v 21 ~"मैं तुम्हारी 'ईदों को मकरूह जानता,और उनसे नफ़रत रखता हूँ; और मैं तुम्हारी पाक महफ़िलों से भी ख़ुश न हूँगा।
\v 22 और अगरचे तुम मेरे सामने सोख़्तनी और नज़्र की क़ुर्बानियाँ पेश करोगे तोभी मैं उनको क़ुबूल न करूँगा; और तुम्हारे फ़र्बा जानवरों की शुक्राने की क़ुर्बानियों को ख़ातिर में न लाऊँगा।
\s5
\v 23 ~तू अपने सरोद का शोर मेरे सामने से दूर कर, क्यूँकि मैं तेरे रबाब की आवाज़ न सुनूँगा।
\v 24 लेकिन 'अदालत को पानी की तरह और सदाक़त को बड़ी नहर की तरह जारी रख।
\s5
\v 25 ~ऐ बनी-इस्राईल, क्या तुम चालीस बरस तक वीराने में, मेरे सामने ज़बीहे और नज़्र की क़ुर्बानियाँ पेश करते रहे?
\v 26 ~तुम तो मिल्कूम का खे़मा और कीवान के बुत, जो तुम ने अपने लिए बनाए, उठाए फिरते थे,"
\s5
\v 27 ~इसलिए ख़ुदावन्द जिसका नाम रब्ब-उल-अफ़वाज है फ़रमाता है, "मैं तुम को दमिश्क़ से भी आगे ग़ुलामी में भेजूँगा।
\s5
\c 6
\p
\v 1 ~उन पर अफ़सोस जो सिय्यून में बा राहत और कोहिस्तान-ए-सामरिया में बेफ़िक्र हैं, या'नी क़ौमों के रईस के शुर्फ़ा जिनके पास बनी-इस्राईल आते हैं!
\v 2 ~तुम कलना तक जाकर देखो,और वहाँ से हमात-ए-'आज़म तक सैर करो, और फिर फ़िलिस्तियों के जात को जाओ। क्या वह इन ममलुकतों से बेहतर हैं? क्या उनकी हुदूद तुम्हारी हुदूद से ज़्यादा वसी' हैं? "
\s5
\v 3 ~तुम जो बुरे दिन का ख़याल मुल्तवी करके, ज़ुल्म की कुर्सी नज़दीक करते हो।
\v 4 ~'जो हाथी दाँत के पलंग पर लेटते और चारपाइयों पर दराज़ होते, और गल्ले में से बर्रों को और तवेले में से बछड़ों को लेकर खाते हो।
\s5
\v 5 ~और रबाब की आवाज़ के साथ गाते, और अपने लिये दाऊद की तरह मूसीक़ी के साज़ ईजाद करते हो;
\v 6 ~जो प्यालों में से मय पीते और अपने बदन पर बेहतरीन 'इत्र मलते हो; लेकिन यूसुफ़ की शिकस्ताहाली से ग़मगीन नहीं होते!
\s5
\v 7 ~इसलिए वह पहले ग़ुलामों के साथ ग़ुलाम होकर जाएँगे, और उनकी 'ऐश-ओ-निशात का ख़ातिमा हो जाएगा।"
\v 8 ~ख़ुदावन्द ख़ुदा ने अपनी ज़ात की क़सम खाई है, ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: "कि मैं या'क़ूब की हश्मत से नफ़रत रखता हूँ और उसके क़स्रों से मुझे 'अदावत है। इसलिए मैं शहर को उसकी सारी मा'मूरी के साथ हवाले कर दूँगा।”
\s5
\v 9 ~बल्कि यूँ होगा कि अगर किसी घर में दस आदमी बाक़ी होंगे, तो वह भी मर जाएँगे।
\v 10 ~और जब किसी का रिश्तेदार जो उसको जलाता है, उसे उठाएगा ताकि उसकी हड्डियों को घर से निकाले, और उससे जो घर के अन्दर पूछेगा, "क्या कोई और तेरे साथ ~है?" तो वह जवाब देगा, "कोई नहीं,” तब वह कहेगा, "चुप रह, ऐसा न हो कि हम ख़ुदावन्द के नाम का ज़िक्र करें।”
\s5
\v 11 ~क्यूँकि देख, ख़ुदावन्द ने हुक्म दे दिया है,और बड़े-बड़े घर रख़नों से, और छोटे शिगाफ़ों से बर्बाद होंगे।
\s5
\v 12 ~क्या चटानों पर घोड़े दौड़ेंगे,या कोई बैलों से वहाँ हल चलाएगा? तोभी तुम ने 'अदालत को इंद्रायन और समरा-ए-सदाक़त को नागदौना बना रख्खा है;
\v 13 ~तुम बेहक़ीक़त चीज़ों पर फ़ख़्र करते,और कहते हो, "क्या हम ने अपने लिए, अपनी ताक़त से सींग नहीं निकाले?"
\s5
\v 14 ~लेकिन ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, "ऐ बनी-इस्राईल, देखो, मैं तुम पर एक क़ौम को चढ़ा लाऊँगा, और वह तुम को हमात के मदख़ल से, वादी-ए-अरबा तक परेशान करेगी।”
\s5
\c 7
\p
\v 1 ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मुझे ख़्वाब दिखाया और क्या ~देखता हूँ कि उसने ज़रा'अत की आख़िरी रोईदगी की शुरू' में टिड्डियाँ पैदा कीं; और देखो, ये शाही कटाई के बा'द~आख़िरी~रोईदगी थी।
\v 2 ~और जब वह ज़मीन की घास को बिल्कुल खा चुकीं, तो मैंने~'अर्ज़ की, "कि ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, मेहरबानी से मु'आफ़ फ़रमा! या'क़ूब की क्या हक़ीक़त है कि वह क़ायम रह सके?क्यूँकि वह छोटा है!"
\v 3 ~ख़ुदावन्द इससे बाज़ आया, और उसने फ़रमाया : "यूँ न होगा।”
\s5
\v 4 ~फिर ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मुझे ख़्वाब दिखाया, और क्या देखता हूँ कि ख़ुदावन्द ख़ुदा ने आग को बुलाया कि मुक़ाबला करे, और वह बहर-ए-'अमीक़ को निगल गई, और नज़दीक था कि ज़मीन को खा जाए।
\v 5 ~तब मैंने 'अर्ज़ की, "कि ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, मेहरबानी से बाज़ आ, या'क़ूब की क्या हक़ीक़त है कि वह क़ायम रह सके? क्यूँकि वह छोटा है!"
\v 6 ~ख़ुदावन्द इससे बाज़ आया, और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने फ़रमाया: "यूँ भी न होगा।"
\s5
\v 7 ~फिर उसने मुझे ख़्वाब दिखाया, और क्या देखता हूँ कि ख़ुदावन्द एक दीवार पर, जो साहूल से बनाई गई थी खड़ा है, और साहूल उसके हाथ में है।
\v 8 ~और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, "कि ऐ 'आमूस, तू क्या देखता है?" मैंने 'अर्ज़ की, "कि साहूल।" तब ख़ुदावन्द ने फ़रमाया,"देख, मैं अपनी क़ौम इस्राईल में साहूल लटकाऊँगा, और मैं फिर उनसे दरगुज़र न करूँगा;
\s5
\v 9 ~और इस्हाक़ के ऊँचे मक़ाम बर्बाद होंगे, और इस्राईल के मक़दिस वीरान हो जाएँगे; और मैं युरब'आम के घराने के ख़िलाफ़ तलवार लेकर उढूँगा।"
\s5
\v 10 ~तब बैतएल के काहिन इम्सियाह ने शाह-ए-इस्राईल युरब'आम को कहला भेजा कि 'आमूस ने तेरे ख़िलाफ़ बनी-इस्राईल में फ़ितना खड़ा किया है, और मुल्क में उसकी बातों की बर्दाश्त नहीं।
\v 11 ~क्यूँकि 'आमूस यूँ कहता है, "'कि युरब'आम तलवार से मारा जाएगा, और इस्राईल यक़ीनन अपने वतन से ग़ुलाम होकर जाएगा।'"
\s5
\v 12 ~और इम्सियाह ने 'आमूस से कहा, "ऐ गै़बगो, तू यहूदाह के मुल्क को भाग जा; वहीं खा पी और नबुव्वत कर,
\v 13 ~लेकिन बैतएल में फिर कभी नबुव्वत न करना, क्यूँकि ये बादशाह का मक़दिस और शाही महल है।"
\s5
\v 14 ~तब 'आमूस ने इम्सियाह को जवाब दिया, "कि मैं न नबी हूँ, न नबी का बेटा; बल्कि चरवाहा और गूलर का फल बटोरने वाला हूँ।
\v 15 और जब मैं गल्ले के पीछे-पीछे जाता था, तो ख़ुदावन्द ने मुझे लिया और फ़रमाया, कि ~'जा, मेरी क़ौम इस्राईल से नबुव्वत कर।'"
\s5
\v 16 इसलिए अब तू ख़ुदावन्द का कलाम सुन। तू कहता है, ~'कि इस्राईल के ख़िलाफ़ नबुव्वत और इस्हाक़ के घराने के ख़िलाफ़ कलाम न कर।'
\v 17 इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "कि तेरी बीवी शहर में कस्बी बनेगी, और तेरे बेटे और तेरी बेटियाँ तलवार से मारे जाएँगे; और तेरी ज़मीन जरीब से बाँटी जाएगी, और तू एक नापाक मुल्क में मरेगा; और इस्राईल यक़ीनन अपने वतन से ग़ुलाम होकर जाएगा।"
\s5
\c 8
\p
\v 1 ~ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मुझे ख़्वाब दिखाया, और क्या देखता हूँ कि ताबिस्तानी मेवों की टोकरी है।
\v 2 ~और उसने फ़रमाया, "ऐ 'आमूस, तू क्या देखता है?" मैंने 'अर्ज़ की, "ताबिस्तानी मेवों की टोकरी।" तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया कि "मेरी क़ौम इस्राईल का वक़्त आ पहुँचा है; अब मैं उससे दरगुज़र न करूँगा।
\v 3 और उस वक़्त हैकल के नग़मे नौहे हो जायेंगे," ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता, " बहुत सी लाशें पड़ी होंगी वह चुपके-चुपके उनको हर जगह निकाल फेकेंगे "
\s5
\v 4 ~तुम जो चाहते हो कि मुहताजों को निगल जाओ, और ग़रीबों को मुल्क से हलाक करो,
\v 5 ~और ऐफ़ा को छोटा और मिस्क़ाल को बड़ा बनाते, और फ़रेब की तराजू से दग़ाबाज़ी करते,और कहते हो, "कि नये चाँद का दिन कब गुज़रेगा, ताकि हम ग़ल्ला बेचें, और सबत का दिन कब ख़त्म होगा के गेहूँ के खत्ते खोलें,
\v 6 ताकि ग़रीब को रुपये से और मुहताज को एक जोड़ी जूतियों से ख़रीदें, और गेहूँ की फटकन बेचें," ये बात सुनो,
\s5
\v 7 ~ख़ुदावन्द ने या'क़ूब की हश्मत की क़सम खाकर फ़रमाया है: "मैं उनके कामों में से एक को भी हरगिज़ न भूलूँगा।
\v 8 ~क्या इस वजह से ज़मीन न थरथराएगी, और उसका हर एक बाशिंदा मातम न करेगा? हाँ, वह बिल्कुल दरिया-ए-नील की तरह उठेगी और रोद-ए-मिस्र की तरह फैल कर फिर सुकड़ जाएगी।"
\s5
\v 9 और ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, "उस रोज़ आफ़ताब दोपहर ही को ग़ुरूब हो जाएगा और मैं रोज़-ए-रोशन ही में ज़मीन को तारीक कर दूँगा।
\v 10 ~तुम्हारी 'ईदों को मातम से और तुम्हारे नामों को नौहों से बदल दुँगा, और हर एक की कमर पर टाट बँधवाऊँगा और हर एक के सिर पर चँदलापन भेजूँगा और ऐसा मातम खड़ा करूँगा जैसा इकलौते बेटे पर होता है और उसका अंजाम रोज़-ए-तल्ख़ सा होगा।"
\s5
\v 11 ~ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, "देखो, वह दिन आते हैं कि मैं इस मुल्क में क़हत डालूँगा न पानी की प्यास और न रोटी का क़हत, बल्कि ख़ुदावन्द का कलाम सुनने का।
\v 12 तब लोग समन्दर से समन्दर तक और उत्तर से पूरब तक भटकते फिरेंगे,और ख़ुदावन्द के कलाम की तलाश में इधर उधर दौड़ेंगे लेकिन कहीं न पाएँगे।
\s5
\v 13 और उस रोज़ हसीन कुँवारियाँ और जवान मर्द प्यास से बेताब हो जाएँगे।
\v 14 जो सामरिया के बुत की क़सम खाते हैं, और कहते हैं, 'ऐ दान, तेरे मा'बूद की क़सम' और 'बैर सबा' के तरीक़े की क़सम,' वह गिर जाएँगे और फिर हरगिज़ न उठेंगे।"
\s5
\c 9
\p
\v 1 ~मैंने ख़ुदावन्द को मज़बह के पास खड़े देखा, और उसने फ़रमाया :"सुतूनों के सिर पर मार, ताकि आस्ताने हिल जाएँ; और उन सबके सिरों पर उनको पारा-पारा कर दे, और उनके बक़िये को मैं तलवार से क़त्ल करूँगा; उनमें से एक भी भाग न सकेगा, उनमें से एक भी बच न निकलेगा।
\v 2 अगर वह पाताल में घुस जाएँ, तो मेरा हाथ वहाँ से उनको खींच निकालेगा; और अगर आसमान पर चढ़ जाएँ, तो मैं वहाँ से उनको उतार लाऊँगा
\s5
\v 3 ~अगर वह कोह-ए-कर्मिल की चोटी पर जा छिपें, तो मैं उनको वहाँ से ढूंड निकालूँगा; और अगर समन्दर की तह में मेरी नज़र से ग़ायब हो जाए तो मैं वहाँ साँप को हुक्म करूँगा और वह उनको काटेगा।
\v 4 और अगर दुश्मन उनको ग़ुलाम करके ले जाएँ, तो वहाँ तलवार को हुक्म करूँगा, और वह उनको क़त्ल करेगी; और मैं उनकी भलाई के लिए नहीं, बल्कि बुराई के लिए उन पर निगाह रखूँगा ।"
\s5
\v 5 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज वह है कि अगर ज़मीन को छू दे तो वह गुदाज़ हो जाए, और उसकी सब मा'मूरी मातम करे; वह बिल्कुल दरिया-ए-नील की तरह उठे और रोद-ए-मिस्र की तरह फिर सुकड़ जाए।
\v 6 ~वही आसमान पर अपने बालाख़ाने ता'मीर करता है, उसी ने ज़मीन पर अपने गुम्बद की बुनियाद रख्खी है; वह समन्दर के पानी को बुलाकर इस ज़मीन पर फैला देता है; उसी का नाम ख़ुदावन्द है।
\s5
\v 7 ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "ऐ बनी-इस्राईल,क्या तुम मेरे लिए अहल-ए-कूश की औलाद की तरह नहीं हो? क्या मैं इस्राईल को मुल्क-ए-मिस्र से, और फ़िलिस्तियों को कफ़तूर से, और अरामियों को क़ीर से नहीं निकाल लाया हूँ?
\v 8 ~देखो, ख़ुदावन्द ख़ुदा की आँखें इस गुनाहगार मम्लुकत पर लगी हैं," ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "मैं उसे इस ज़मीन से हलाक-ओ-बर्बाद कर दूँगा, मगर या'क़ूब के घराने को बिल्कुल हलाक न करूँगा।
\s5
\v 9 ~क्यूँकि देखो, मैं हुक्म करूँगा और बनी-इस्राईल को सब क़ौमों में जैसे छलनी से छानते हैं, छानूँगा और एक दाना भी ज़मीन पर गिरने न पाएगा।
\v 10 ~मेरी उम्मत के सब गुनहगार लोग जो कहते हैं कि 'हम पर न पीछे से आफ़त आएगी न आगे से,' तलवार से मारे जाएँगे।
\s5
\v 11 ~मैं उस रोज़ दाऊद के गिरे हुए घर को खड़ा करके, उसके रख़नों को बंद करूँगा; और उसके खंडर की मरम्मत करके, उसे पहले की तरह ता'मीर करूँगा;
\v 12 ~ताकि वह अदूम के बक़िये और उन सब क़ौमों पर जो मेरे नाम से कहलाती हैं क़ाबिज़ हो उसको वुक़ू' में लाने वाला ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 13 ~देखो, वह दिन आते हैं," ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "जोतने वाला काटने वाले को, और अंगूर कुचलने वाला बोने वाले को जा लेगा; और पहाड़ों से नई मय टपकेगी, और सब टीले गुदाज़ होंगे।
\s5
\v 14 ~और मैं बनी-इस्राईल, अपने लोगों को ग़ुलामी से वापस लाऊँगा; वह उजड़े शहरों को ता'मीर करके उनमें क़याम करेंगे और बाग़ लगाकर उनकी मय पिएँगे। वह बाग़ लगाएँगे और उनके फल खाएँगे।
\v 15 ~क्यूँकि मैं उनको उनके मुल्क में क़ायम करूँगा और वह फिर कभी अपने वतन से जो मैने उनको बख़्शा है, निकाले न जाएँगे," ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा फ़रमाता है।

42
31-OBA.usfm Normal file
View File

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\id OBA
\ide UTF-8
\h अबदियाह
\toc1 अबदियाह
\toc2 अबदियाह
\toc3 oba
\mt1 अबदियाह
\s5
\c 1
\p
\v 1 'अबदियाह का ख़्वाब; हम ने ख़ुदावन्द से यह ख़बर सुनी, और क़ौमों के बीच क़ासिद यह पैग़ाम ले गया: कि चलो उस पर हमला करें। ”खु़दावन्द खु़दा अदोम के बारे में यूँ फ़रमाता है|
\v 2 ~कि देख मैंने तुझे क़ौमों के बीच हक़ीर कर दिया है, तू बहुत ज़लील है।
\s5
\v 3 ~ऐ चट्टानों के शिगाफ़ों में रहने वाले, तेरे दिल के घमंड ने तुझे धोका दिया है; तेरा मकान ऊँचा है और तू दिल में कहता है, "कौन मुझे नीचे उतारेगा?"
\v 4 ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, अगरचे तू 'उक़ाब की तरह ~ऊँची परवाज़ हो और सितारों में अपना आशियाना बनाए, तोभी मैं तुझे वहाँ से नीचे उतारूँगा।
\s5
\v 5 अगर तेरे घर में चोर आएँ, या रात को डाकू आ घुसें, (तेरी कैसी बर्बादी है) तो क्या वह हस्ब-ए-ख़्वाहिश ही न लेंगे? अगर अंगूर तोड़ने वाले तेरे पास आएँ, तो क्या कुछ दाने बाक़ी न छोड़ेंगे?
\v 6 ~'ऐसौ का माल कैसा ढूँड निकाला गया ,और उसके छुपे हुए ख़ज़ानों की कैसी तलाश हुई!
\s5
\v 7 ~तेरे सब हिमायतियों ने तुझे सरहद तक हाँक दिया है, और उन लोगों ने जो तुझ से मेल रखते थे तुझे धोका दिया और मग़लूब किया, और उन्होंने जो तेरी रोटी खाते थे, तेरे नीचे जाल बिछाया; उसमें थोड़े भी होशियार नहीं।
\v 8 ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्या मैं उस दिन अदोम से होशियारों को और 'अक़्लमन्दी को पहाड़ी-ए-'ऐसौ से हलाक न करूँगा?
\v 9 ~ऐ तीमान, तेरे बहादुर घबरा जाएँगे,यहाँ तक के पहाड़ी-ए-'ऐसौ के रहने वालों में से हर एक काट डाला जाएगा।
\s5
\v 10 ~उस क़त्ल की वजह और उस जु़ल्म की वजह से जो तू ने अपने भाई या'क़ूब पर किया है, तू शर्मिन्दगी से भरपूर और हमेशा के लिए बर्बाद होगा।
\v 11 ~जिस दिन तू उसके मुख़ालिफ़ों केसाथ खड़ा था, जिस दिन अजनबी उसके लश्कर को ग़ुलाम करके ले गए और बेगानों ने उसके फाटकों से दाखि़ल होकर यरूशलीम पर पर्ची डाली, तू भी उनके साथ था
\s5
\v 12 ~तुझे ज़रूरी न था कि तू उस दिन अपने भाई की जिलावतनी को खड़ा देखता रहता, और बनी यहूदाह की हलाकत के दिन ख़ुश होता और मुसीबत के रोज़ बड़ी ज़ुबान बकता ।
\v 13 ~तुझे मुनासिब न था कि तू मेरे लोगों की मुसीबत के दिन उनके फाटकों में घुसता, और उनकी मुसीबत के रोज़ उनकी बदहाली को खड़ा देखता रहता, और उनके लशकर पर हाथ बढ़ाता।
\v 14 ~तुझे ज़रूरी न था कि घाटी में खड़ा होकर, उसके फ़रारियों को क़त्ल करता, और उस दुख के दिन में उसके बाक़ी थके लोगों को हवाले करता।
\s5
\v 15 ~क्यूँकि सब क़ौमों पर ख़ुदावन्द का दिन आ पहुँचा है। जैसा तू ने किया है, वैसा ही तुझ से किया जाएगा। तेरा किया तेरे सिर पर आएगा।
\v 16 ~क्यूँकि जिस तरह तुम ने मेरे कोह-ए-मुक़द्दस पर पिया, उसी तरह सब कौमें पिया करेंगी, हाँ पीती और निगलती रहेगी; और वह ऐसी होंगी जैसे कभी थीं ही नहीं।
\s5
\v 17 ~लेकिन जो बच निकलेंगे सिय्यून पहाड़ी पर रहेंगे, और वह पाक होगा और या'कूब का घराना अपनी मीरास पर क़ाबिज़ होगा।
\v 18 ~तब या'कू़ब का घराना आग होगा,और यूसुफ़ का घराना शो'ला, और 'ऐसौ का घराना फूस; और वह उसमें भड़केंगे और उसको खा जाएँगे, और 'ऐसौ के घराने में से कोई न बचेगा; क्यूँकि ये ख़ुदावन्द का फ़रमान है।
\s5
\v 19 ~और दख्खिन के रहने वाले पहाड़ी-ए-'ऐसौ, और मैदान के रहने वाले फ़िलिस्तीन के मालिक होंगे; और वह इफ़्राईम और सामरिया के खेतों पर काबिज़ होंगे, और बिनयमीन जिलआद का वारिस होगा।
\s5
\v 20 ~और बनी-इस्राईल के लशकर के सब ग़ुलाम, जो कना'नियों में सारपत तक हैं, और यरूशलीम के ग़ुलाम जो सिफ़ाराद में हैं, दखिन के शहरों पर क़ाबिज़ हो जाएँगे।
\v 21 और रिहाई देने वाले सिय्यून की पहाड़ी पर चढ़ेंगे ताकि पहाड़ी-ए-'ऐसौ की 'अदालत करें, और बादशाही ख़ुदावन्द की होगी।

90
32-JON.usfm Normal file
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\id JON
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\h यूनुस
\toc1 यूनुस
\toc2 यूनुस
\toc3 jon
\mt1 यूनुस
\s5
\c 1
\p
\v 1 ख़ुदावन्द का कलाम यूनाह बिन अमितै पर नाज़िल हुआ |
\v 2 ~कि उठ, उस बड़े शहर निनवे को जा और उसके ख़िलाफ़ 'ऐलान कर; क्यूँकि उनकी बुराई मेरे सामने पहुँची है |
\v 3 लेकिन ~यूनाह ख़ुदावन्द के सामने से तरसीस को भागा, और याफ़ा में पहुँचा और वहाँ उसे तरसीस को जाने वाला जहाज़ मिला ;और वह किराया देकर उसमे सवार हुआ ताकि ख़ुदावन्द के सामने से तरसीस को~जहाज़ वालों के साथ जाए |
\s5
\v 4 ~लेकिन ख़ुदावन्द ने समन्दर पर बड़ी आँधी भेजी, और समन्दर में सख़्त तूफ़ान बर्पा~हुआ, और अँदेशा था कि जहाज़ तबाह हो जाए |
\v 5 तब मल्लाह हैरान हुए और हर एक ने अपने मा'बूद को ~पुकारा; और वह सामान जो जहाज़ में था समन्दर में डाल दिया ताकि उसे हल्का करें, लेकिन यूनाह जहाज़ के अन्दर पड़ा सो रहा था |
\s5
\v 6 तब ना ख़ुदा उसके पास जाकर कहने लगा, "तू क्यों पड़ा सो रहा है? उठ अपने मा'बूद को पुकार! शायद हम को याद करे और हम हलाक न हों |"
\v 7 ~और उन्होंने आपस में कहा, "आओ, हम पर्ची डालकर देखें कि यह आफ़त हम पर किस की वजह से आई|" चुनाँचे उन्होंने पर्ची डाला, और यूनाह का नाम निकला |
\s5
\v 8 ~तब उन्होंने उस से कहा, "तू हम को बता कि यह आफ़त हम पर किस की वजह से आई है ? तेरा क्या पेशा है, और तू कहाँ से आया है?, तेरा वतन कहाँ है, और तू किस क़ौम का है ?,|
\v 9 उसने उनसे कहा , "मैं इब्रानी हूँ और ख़ुदावन्द आसमान के ख़ुदा बहर-ओ-बर्र के ख़ालिक़ से डरता हूँ |"
\v 10 तब वह ख़ौफ़ज़दा होकर उस से कहने लगे, "तू ने यह क्या किया?" क्यूँकि उनको मा'लूम था कि वह ख़ुदावन्द के सामने से भागा है, इसलिए कि उस ने ख़ुद उन से कहा था|
\s5
\v 11 तब उन्होंने उस से पूछा, " हम तुझ से क्या करें कि समन्दर हमारे लिए ठहर जाए?" क्यूँकि समन्दर ज़्यादा तूफ़ानी होता जाता था
\v 12 तब उस ने उन से कहा, "मुझे उठा कर समन्दर में फ़ेंक दो, तो तुम्हारे लिए समन्दर ठहर जाएगा ;क्यूँकि मै जानता हूँ कि यह बड़ा तूफ़ान तुम पर मेरी ही वजह से आया है |"
\v 13 तो भी मल्लाहों ने डंडा चलाने में बड़ी मेहनत की कि किनारे पर पहुँचें, लेकिन न पहुँच सके, क्यूँकि समन्दर उनके ख़िलाफ़ और भी ज़्यादा तूफ़ानी होता जाता था |
\s5
\v 14 तब उन्होंने ख़ुदावन्द के सामने~गिड़गिड़ा ~कर कहा, "ऐ खुदावन्द हम तेरी मिन्नत करते हैं कि हम इस आदमी की जान की वजह से हलाक न हों ,और तू ख़ून-ए-नाहक़ को हमारी गर्दन पर न डाले; क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द, तूने जो चाहा वही किया |
\v 15 और उन्होंने यूनाह को उठा कर समन्दर में फेंक दिया और समन्दर के मौजों का ज़ोर रुक गया |
\v 16 ~तब वह ख़ुदावन्द से बहुत डर गए ,और उन्होंने उसके सामने क़ुर्बानी पेश कीं और नज़्रें मानीं
\s5
\v 17 लेकिन ख़ुदावन्द ने एक बड़ी मछली मुक़र्रर कर रख्खी थी कि यूनाह को निगल जाए; और यूनाह तीन दिन रात मछली के पेट में रहा |
\s5
\c 2
\p
\v 1 तब यूनाह ने मछली के पेट में ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से यह दु'आ की |
\v 2 "मैंने अपनी मुसीबत में ख़ुदावन्द से दु'आ की, और उसने मेरी सुनी; मैंने पताल की गहराई से दुहाई दी, तूने मेरी फ़रियाद सुनी |
\s5
\v 3 तूने मुझे गहरे समन्दर की गहराई में फेंक दिया, और सैलाब ने मुझे घेर लिया| तेरी सब मौजें और लहरें मुझ पर से गुज़र गईं
\v 4 और मै समझा कि तेरे सामने से दूर हो गया हूँ लेकिन मै फिर तेरी मुक़द्दस हैकल को देखूँगा |
\s5
\v 5 सैलाब ने मुझे घेर लिया; समन्दर मेरी चारों तरफ़ था; समन्दरी नबात मेरी सर पर लिपट गई |
\v 6 मैं पहाड़ों की गहराई तक ग़र्क हो गया ज़मीन के रास्ते हमेशा के लिए मुझ पर बंद हो गए; तो भी ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा तूने मेरी जान पाताल से बचाई |
\s5
\v 7 जब मेरा दिल बेताब हुआ, तो मै ने ख़ुदावन्द को याद ~किया; और मेरी दु'आ तेरी मुक़द्दस हैकल में तेरे सामने पहुँची
\v 8 जो लोग झूटे मा'बूदों को मानते हैं, वह शफ़क़त से महरूम हो जाते है |
\s5
\v 9 मै हम्द करता हुआ तेरे सामने क़ुर्बानी पेश करूँगा; मैं अपनी नज़्रें अदा करूँगा नजात ख़ुदावन्द की तरफ़ से है |"
\v 10 और ख़ुदावन्द ने मछली को हुक्म दिया, और उस ने यूनाह को ~खुश्की पर उगल दिया |
\s5
\c 3
\p
\v 1 और ख़ुदावन्द का कलाम दूसरी बार यूनाह पर नाज़िल हुआ |
\v 2 कि उठ उस बड़े शहर निनवा को जा और वहाँ उस बात का 'ऐलान कर जिसका मैं तुझे हुक्म देता हूँ |
\v 3 तब यूनाह ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ उठ कर निनवा को गया ,और निनवा बहुत बड़ा शहर था|उसकी~दूरी तीन दिन की राह थी
\s5
\v 4 और यूनाह शहर में दाख़िल हुआ और एक दिन की राह चला| उस ने 'ऐलान किया और कहा, " चालीस रोज़ के बा'द निनवा बर्बाद किया जायेगा |"
\v 5 ~तब निनवा के बाशिंदों ने ख़ुदा पर ईमान लाकर रोज़ा का 'ऐलान किया और छोटे और बड़े सब ने टाट ओढा |
\s5
\v 6 और यह ख़बर निनवा के बादशाह को पहुँची; और वह अपने तख़्त पर से उठा और बादशाही लिबास को उतार डाला और टाट ओढ़ कर राख पर बैठ गया |
\v 7 और बादशाह और उसके अर्कान-ए-दौलत के फ़रमान से निनवा में यह 'ऐलान किया गया और इस बात का 'ऐलान हुआ कि कोइ इन्सान या हैवान ग़ल्ला या शराब कुछ न चखें और न खाए पिए |
\s5
\v 8 लेकिन इन्सान और हैवान टाट से मुलब्बस हों और ख़ुदा के सामने रोना पीटना करें बल्कि हर शख़्स अपनी बुरे चाल चलन और अपने हाथ के ज़ुल्म से बाज़ आए |
\v 9 शायद ख़ुदा रहम करे और अपना इरादा बदले, और अपने क़हर शदीद से बाज़ आए और हम हलाक न हों ~|
\s5
\v 10 जब ख़ुदा ने उनकी ये हालत देखी कि वह अपने अपने बुरे चाल चलन से बाज़ आए, तो वह उस 'अज़ाब से जो उसने उन पर नाज़िल करने को कहा था, बाज़ आया और उसे नाज़िल न किया |
\s5
\c 4
\p
\v 1 लेकिन यूनाह इस से बहुत नाख़ुश और नाराज़ हुआ |
\v 2 और उस ने ख़ुदावन्द से यूँ दु'आ की कि ऐ ख़ुदावन्द, जब ~मैं अपने वतन ही में था और तरसीस को भागने वाला था, तो क्या मैने यही न कहा था? मैं जानता था कि तू रहीम-ओ-करीम ख़ुदा है जो क़हर करने में धीमा और शफ़क़त में ग़नी है और अज़ाब नाज़िल करने से बाज़ रहता है |
\v 3 अब ऐ ख़ुदावन्द मै तेरी मिन्नत करता हूँ कि मेरी जान ले ले, क्यूँकि मेरे इस जीने से मर जाना बेहतर है |
\s5
\v 4 तब ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, "क्या तू ऐसा नाराज़ है ?|
\v 5 और यूनाह शहर से बाहर मशरिक़ की तरफ़ जा बैठा; और वहाँ अपने लिए एक छप्पर बना कर उसके साये में बैठ रहा, कि देखें शहर का क्या हाल होता है |
\s5
\v 6 तब ख़ुदावन्द ख़ुदा ने कद्दू की बेल उगाई, और उसे यूनाह के ऊपर फैलाया कि उसके सर पर साया हो और वह तकलीफ़ से बचे और यूनाह उस बेल की वजह से निहायत ख़ुश हुआ |
\v 7 लेकिन दूसरे दिन सुबह के वक़्त ख़ुदा ने एक कीड़ा भेजा, जिस ने उस बेल को काट डाला और वह सूख़ गई |
\s5
\v 8 ~और जब आफ़ताब ~बलन्द हुआ, तो ख़ुदा ने पूरब से लू चलाई और आफ़ताब कि गर्मी ने यूनाह के सर में असर किया और वह बेताब हो गया और मौत का आरज़ूमन्द होकर कहने लगा कि मेरे इस जीने से मर जाना बेहतर है |
\v 9 और ख़ुदा ने यूनाह से फ़रमाया, "क्या तू इस बेल की वजह से ऐसा नाराज़ है ?" ~उस ने कहा," मै यहाँ तक नाराज़ हूँ कि मरना चाहता हूँ |"
\s5
\v 10 तब ख़ुदावन्द ने फ़रमाया कि तुझे इस बेल का इतना ख़याल है, जिसके लिए तूने न कुछ मेहनत की और न उसे उगाया|जो एक ही रात में उगी और एक ही रात में सूख गई |
\v 11 और क्या मुझे ज़रूरी न था कि मैं इतने बड़े शहर निनवा का ख़याल करूँ, जिस में एक लाख बीस हज़ार से ज़्यादा ऐसे हैं जो अपने दहने और बाई हाथ में फ़र्क़ नहीं कर सकते, और बे शुमार मवेशी है? |

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33-MIC.usfm Normal file
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\id MIC
\ide UTF-8
\h मीकाह
\toc1 मीकाह
\toc2 मीकाह
\toc3 mic
\mt1 मीकाह
\s5
\c 1
\p
\v 1 सामरिया और यरुशलीम के बारे में ख़ुदावन्द का कलाम जो शाहान-ए-यहूदाह यूताम, आख़ज़-ओ-हिज़क़ियाह के दिनों~में मीकाह मोरशती पर ख्व़ाब में नाज़िल हुआ।
\s5
\v 2 ~ऐ सब लोगों, सुनो! ऐ ज़मीन और उसकी मा'मूरी कान लगाओ! हाँ ख़ुदावन्द अपने मुक़द्दस घर से तुम पर गवाही दे।
\v 3 ~क्यूँकि देख, ख़ुदावन्द अपने घर से बाहर आता है, और नाज़िल होकर ज़मीन के ऊँचे मक़ामों को पायमाल करेगा।
\v 4 और पहाड़ उनके नीचे पिघल जाएँगे, और वादियाँ फट जाएँगी, जैसे मोम आग से पिघल जाता और पानी कराड़े पर से बह जाता है।
\s5
\v 5 ~ये सब या'क़ूब की ख़ता और इस्राईल के घराने के गुनाह का नतीजा है। या'क़ूब की ख़ता क्या है? क्या सामरिया नहीं? और यहूदाह के ऊँचे मक़ाम क्या हैं? क्या यरुशलीम नहीं?
\s5
\v 6 ~इसलिए मैं सामरिया को खेत के तूदे की तरह, और ताकिस्तान लगाने की जगह की तरह बनाऊँगा, और मैं उसके पत्थरों को वादी में ढलकाऊँगा और उसकी बुनियाद उखाड़ दूँगा।
\v 7 ~और उसकी सब खोदी हुई मूरतें चूर-चूर की जाएँगी, और जो कुछ उसने मज़दूरी में पाया आग से जलाया जाएगा; और मैं उसके सब बुतों को तोड़ डालूँगा क्यूँकि उसने ये सब कुछ कस्बी की मज़दूरी से पैदा किया है; और वह फिर कस्बी की मज़दूरी हो जाएगा।
\s5
\v 8 ~इसलिए मैं मातम-ओ-नौहा करूँगा ; मैं नंगा और बरहना होकर फिरूँगा; मैं गीदड़ों की तरह चिल्लाऊँगा और शुतरमुर्ग़ों की तरह ग़म करूँगा ।
\v 9 ~क्यूँकि उसका ज़ख़्म लाइलाज़ है, वह यहूदाह तक भी आया; वह मेरे लोगों के फाटक तक बल्कि यरुशलीम तक पहुँचा।
\v 10 ~जात में उसकी ख़बर न दो,और हरगिज़ नौहा न करो; बैत 'अफ़रा में ख़ाक पर लोटो।
\s5
\v 11 ~ऐ सफ़ीर की रहने वाली, तू बरहना-ओ-रुस्वा होकर चली जा; ज़ानान की रहने वाली निकल नहीं सकती। बैतएज़ल के मातम के ज़रिए' उसकी पनाहगाह तुम से ले ली जाएगी।
\v 12 ~मारोत की रहने वाली भलाई के इन्तिज़ार में तड़पती है, क्यूँकि ख़ुदावन्द की तरफ़ से बला नाज़िल हुई, जो यरुशलीम के फाटक तक पहुँची।
\s5
\v 13 ~ऐ लकीस की रहने वाली बादपा घोड़ों को रथ में जोत; तू बिन्त-ए-सिय्यून के गुनाह का आग़ाज़~हुई क्यूँकि इस्राईल की ख़ताएँ भी तुझ में पाई गईं।
\v 14 ~इसलिए तू मोरसत जात को तलाक़ देगी;अकज़ीब के घराने इस्राईल के बादशाहों से दग़ाबाज़ी करेंगे।
\s5
\v 15 ~ऐ मरेसा की रहने वाली, तुझ पर क़ब्ज़ा करने वाले को तेरे पास लाऊँगा; इस्राईल की शौकत 'अदुल्लाम में आएगी।
\v 16 अपने प्यारे बच्चों के लिए सिर मुंडाकर चंदली हो जा; गिद्ध की तरह अपने चंदलेपन को ज़्यादा कर क्यूँकि वह तेरे पास से ग़ुलाम होकर चले गए।
\s5
\c 2
\p
\v 1 ~उन पर अफ़सोस, जो बदकिरदारी के मंसूबे बाँधते और बिस्तर पर पड़े-पड़े शरारत की तदबीरें ईजाद करते हैं, और सुबह होते ही उनको 'अमल में लाते हैं; क्यूँकि उनको इसका इख़्तियार है।
\v 2 ~वह लालच से खेतों को ज़ब्त करते,और घरों को छीन लेते हैं; और यूँ आदमी और उसके घर पर, हाँ, मर्द और उसकी मीरास पर ज़ुल्म करते हैं।
\s5
\v 3 ~इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं इस घराने पर आफ़त लाने की तदबीर करता हूँ जिससे तुम अपनी गर्दन न बचा सकोगे, और गर्दनकशी से न चलोगे; क्यूँकि ये बुरा वक़्त होगा।
\v 4 ~उस वक़्त कोई तुम पर ये मसल लाएगा और पुरदर्द नौहे से मातम करेगा, और कहेगा, "हम बिल्कुल ग़ारत हुए; उसने मेरे लोगों का हिस्सा बदल डाला; उसने कैसे उसको मुझ से जुदा कर दिया! उसने हमारे खेत बाग़ियों को बाँट दिए।”
\v 5 इसलिए तुम में से कोई न बचेगा,जो ख़ुदावन्द की जमा'अत में पैमाइश की रस्सी डाले।
\s5
\v 6 ~बकवासी कहते हैं, "बकवास न करो! इन बातों के बारे में बकवास न करो। ऐसे लोगों से रुस्वाई जुदा न होगी।"
\v 7 ~ऐ बनी या'क़ूब , क्या ये कहा जाएगा कि ख़ुदावन्द की रूह क़ासिर हो गई? क्या उसके यही काम हैं? क्या मेरी बातें रास्तरौ के लिए फ़ायदेमन्द नहीं।
\v 8 ~अभी कल की बात है कि मेरे लोग दुश्मन की तरह उठे; तुम सुलह पसंद-ओ-बेफ़िक्र राहगीरों की चादर उतार लेते हो।
\s5
\v 9 ~तुम मेरे लोगों की 'औरतों को उनके मरग़ूब घरों से निकाल देते हो, और तुमने मेरे जलाल को उनके बच्चों पर से हमेशा के लिए दूर कर दिया।
\v 10 ~उठो, और चले जाओ,क्यूँकि ला'इलाज-ओ-मोहलिक नापाकी की वजह से ये तुम्हारी आरामगाह नहीं है।
\v 11 अगर कोई झूट और बतालत का पैरो कहे कि मैं शराब-ओ-नशा की बातें करूँगा, तो वही इन लोगों का नबी होगा।
\s5
\v 12 ~ऐ या'क़ूब, मैं यक़ीनन तेरे सब लोगों को इकठ्ठा करूँगा , मैं यक़ीनन इस्राईल के बक़िये को जमा' करूँगा मैं उनको बुसराह की भेड़ों और चरागाह के गल्ले की तरह इकठ्ठा करूँगा और आदमियों का बड़ा शोर होगा।
\v 13 ~तोड़ने वाला उनके आगे-आगे गया है; वह तोड़ते हुए फाटक तक चले गए, और उसमें से गुज़र गए; और उनका बादशाह उनके आगे-आगे गया, या'नी ख़ुदावन्द उनका पेशवा।
\s5
\c 3
\p
\v 1 और मैंने कहा: ऐ या'क़ूब के सरदारों और बनी-इस्राईल के हाकिमों, सुनो। क्या मुनासिब नहीं कि तुम 'अदालत से वाक़िफ़ हो?
\v 2 ~तुम नेकी से दुश्मनी और बुराई से मुहब्बत रखते हो; और लोगों की खाल उतारते, और उनकी हड्डियों पर से गोश्त नोचते हो।
\v 3 ~और मेरे लोगों का गोश्त खाते हो, और उनकी खाल उतारते, और उनकी हड्डियों को तोड़ते और उनको टुकड़े-टुकड़े करते हो; जैसे वह हाँडी और देग़ के लिए गोश्त हैं।
\s5
\v 4 तब वह ख़ुदावन्द को पुकारेंगे, लेकिन वह उनकी न सुनेगा; हाँ, वह उस वक़्त उनसे मुँह फेर लेगा क्यूँकि उनके 'आमाल बुरे हैं।
\s5
\v 5 ~उन नबियों के हक़ में जो मेरे लोगों को गुमराह करते हैं, जो लुक़्मा पाकर 'सलामती सलामती पुकारते हैं, लेकिन अगर कोई खाने को न दे तो उससे लड़ने को तैयार होते है, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है।
\v 6 "कि अब तुम पर रात हो जाएगी, जिसमें ख्व़ाब न देखोगे और तुम पर तारीकी छा जाएगी; और ग़ैबबीनी न कर सकोगे, और नबियों पर आफ़ताब ग़ुरूब होगा, और उनके लिए दिन अंधेरा हो जाएगा।
\v 7 तब ग़ैबबीन पशेमान और फ़ालगीर शर्मिन्दा होंगे, बल्कि सब लोग मुँह पर हाथ रख्खेंगे, क्यूँकि ख़ुदा की तरफ़ से कुछ जवाब न होगा।
\s5
\v 8 लेकिन मैं ख़ुदावन्द की रूह के ज़रिए' क़ुव्वत-ओ-'अदालत-ओ-दिलेरी से मा'मूर हूँ, ताकि या'क़ूब को उसका गुनाह और इस्राईल को उसकी ख़ता जताऊँ।
\s5
\v 9 ~ऐ बनी या'क़ूब के सरदारों, और ऐ बनी-इस्राईल के हाकिमों, जो 'अदालत से 'अदावत रखते हो, और सारी रास्ती को मरोड़ते हो, इस बात को सुनो।
\v 10 ~तुम जो सिय्यून को ख़ूँरेज़ी से और यरुशलीम को बेइन्साफ़ी से ता'मीर करते हो।
\v 11 उसके सरदार रिश्वत लेकर 'अदालत करते हैं, और उसके काहिन मज़दूरी लेकर ता'लीम देते हैं, और उसके नबी रुपया लेकर फ़ालगीरी करते हैं; तोभी वह ख़ुदावन्द पर भरोसा करते हैं और कहते हैं, "क्या ख़ुदावन्द हमारे बीच नहीं? इसलिए हम पर कोई बला न आएगी।"
\s5
\v 12 ~इसलिए सिय्यून तुम्हारी ही वजह से खेत की तरह जोता जाएगा; और इस घर का पहाड़ जंगल की ऊँची जगहों की तरह होगा।
\s5
\c 4
\p
\v 1 ~लेकिन आख़िरी दिनों में यूँ होगा कि ख़ुदावन्द के घर का पहाड़ पहाड़ों की चोटियों पर क़ायम किया जाएगा, और सब टीलों से बलंद होगा और उम्मतें वहाँ पहुँचेंगी।
\s5
\v 2 ~और बहुत सी क़ौमें आएँगी, और कहेंगी, 'आओ, ख़ुदावन्द के पहाड़ पर चढ़ें, और या'क़ूब के ख़ुदा के घर में दाख़िल हों, और वह अपनी राहें हम को बताएगा और हम उसके रास्तों पर चलेंगे। क्यूँकि शरी'अत सिय्यून से, और ख़ुदावन्द का कलाम यरुशलीम से सादिर होगा।
\v 3 ~और वह बहुत सी उम्मतों के बीच 'अदालत करेगा, और दूर की ताक़तवर क़ौमों को डाँटेगा; और वह अपनी तलवारों को तोड़ कर फालें, और अपने भालों को हँसुवे बना डालेंगे; और क़ौम-क़ौम पर तलवार न चलाएगी, और वह फिर कभी जंग करना न सीखेंगे।
\s5
\v 4 तब हर एक आदमी अपनी ताक और अपने अंजीर के दरख़्त के नीचे बैठेगा, और उनको कोई न डराएगा, क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज ने अपने मुँह से ये फ़रमाया है।
\v 5 ~क्यूँकि सब उम्मतें अपने-अपने मा'बूद के नाम से चलेंगी, लेकिन हम हमेशा से हमेशा तक ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के नाम से चलेंगे।
\s5
\v 6 ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "कि मैं उस रोज़ लंगड़ों को जमा' करूँगा और जो हाँक दिए गए और जिनको मैंने दुख दिया, इकठ्ठा करूँगा ;
\v 7 ~और लंगड़ों को बक़िया,और जिलावतनों को ताक़तवर क़ौम बनाऊँगा; और ख़ुदावन्द कोह-ए-सिय्यून पर अब से हमेशा हमेश तक उन पर सल्तनत करेगा।
\v 8 ~ऐ गल्ले की दीदगाह, ऐ बिन्त-ए-सिय्यून की पहाड़ी, ये तेरे ही लिए है; क़दीम सल्तनत, या'नी दुख्तर-ए- यरुशलीम की बादशाही तुझे मिलेगी।
\s5
\v 9 ~अब तू क्यूँ चिल्लाती है,जैसे ~दर्द-ए-ज़िह में मुब्तिला है? क्या तुझ में कोई बादशाह नहीं? क्या तेरा सलाहकार हलाक हो गया?
\v 10 ऐ बिन्त-ए-सिय्यून, ज़च्चा की तरह तकलीफ़ उठा और पैदाइश के दर्द में मुब्तिला हो; क्यूँकि अब तू शहर से निकल कर ~मैदान में रहेगी और बाबुल तक जाएगी वहाँ तू रिहाई पायेगी। और वहीं ख़ुदावन्द तुझ को तेरे दुश्मनों के हाथ से छुड़ाएगा।
\s5
\v 11 अब बहुत सी क़ौमें तेरे ख़िलाफ़ जमा' हुई हैं और कहती हैं सिय्यून नापाक हो और हमारी आँखें उसकी रुस्वाई देखें।"
\v 12 ~लेकिन वह ख़ुदावन्द की तदबीर से आगाह नहीं, और उसकी मसलहत को नहीं समझतीं; क्यूँकि वह उनको खलीहान के पूलों की तरह जमा' करेगा।
\s5
\v 13 ~ऐ बिन्त-ए-सिय्यून, उठ और पायमाल कर, क्यूँकि मैं तेरे सींग को लोहा और तेरे खुरों को पीतल बनाऊँगा, और तू बहुत सी उम्मतों को टुकड़े-टुकड़े करेगी; उनके ज़ख़ीरे ख़ुदावन्द को नज़्र करेगी और उनका माल रब्ब-उल-'आलमीन के सामने लाएगी।
\s5
\c 5
\p
\v 1 ऐ बिन्त-ए-अफ़वाज,अब फ़ौजों में जमा' हो; हमारा घिराव किया जाता है। वह इस्राईल के हाकिम के गाल पर छड़ी से मारते हैं।
\s5
\v 2 ~लेकिन ऐ बैतलहम इफ़राताह, अगरचे तू यहूदाह के हज़ारों में शामिल होने के लिए छोटा है, तोभी तुझ में से एक शख़्स निकलेगा; और मेरे सामने इस्राईल का हाकिम होगा, और उसका मसदर ज़माना-ए-साबिक़, हाँ क़दीम-उल-अय्याम से है।
\v 3 ~इसलिए वह उनको छोड़ देगा, जब तक कि ज़च्चा दर्द-ए-ज़िह से फ़ारिग़ न हो; तब उसके बाक़ी भाई बनी-इस्राईल में आ मिलेंगे।
\s5
\v 4 ~और वह खड़ा होगा और ख़ुदावन्द की क़ुदरत से, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के नाम की बुज़ुर्गी से गल्ले बानी करेगा। और वह क़ायम रहेंगे, क्यूँकि वह उस वक़्त इन्तिहा-ए-ज़मीन तक बुज़ुर्ग होगा।
\v 5 ~और वही हमारी सलामती होगा। जब असूर हमारे मुल्क में आएगा और हमारे क़स्रों में क़दम रख्खेगा, तो हम उसके ख़िलाफ़ सात चरवाहे और आठ सरगिरोह खड़े करेंगे;
\s5
\v 6 ~और वह असूर के मुल्क को,और नमरूद की सरज़मीन के मदखलों को तलवार से वीरान करेंगे; और जब असूर हमारे मुल्क में आकर हमारी हदों को पायमाल करेगा, तो वह हम को रिहाई बख़्शेगा।
\v 7 ~और या'क़ूब का बक़िया बहुत सी उम्मतों के लिए ऐसा होगा,जैसे ख़ुदावन्द की तरफ़ से ओस और घास पर बारिश, जो न इंसान का इन्तिज़ार करती है, और न बनी आदम के लिए ठहरती है।
\s5
\v 8 ~और या'क़ूब का~बक़िया या बहुत सी क़ौमों और उम्मतों में, ऐसा होगा जैसे शेर-ए-बबर जंगल के जानवरों में, और जवान शेर भेड़ों के गल्ले में, जब वह उनके बीच से गुज़रता है, तो पायमाल करता और फाड़ता है, और कोई छुड़ा नहीं सकता।
\v 9 ~तेरा हाथ तेरे दुश्मनों पर उठे,और तेरे सब मुख़ालिफ़ हलाक हो जाएँ।
\s5
\v 10 ~और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उस रोज़ मैं तेरे घोड़ों को जो तेरे बीच हैं काट डालूँगा, और तेरे रथों को बर्बाद करूँगा ;
\v 11 ~और तेरे मुल्क के शहरों को बर्बाद, और तेरे सब क़िलो' को मिस्मार करूँगा ।
\s5
\v 12 ~और मैं तुझ से जादूगरी दूर करूँगा , और तुझ में फ़ालगीर न रहेंगे;
\v 13 ~और तेरी खोदी हुई मूरतें और तेरे सुतून तेरे बीच से बर्बाद कर दूँगा और फिर तू अपनी दस्तकारी की 'इबादत न करेगा;
\v 14 ~और मैं तेरी यसीरतों को तेरे बीच से उखाड़ डालूँगा और तेरे शहरों को तबाह करूँगा ।
\v 15 ~और उन क़ौमों पर जिसने सुना नहीं, अपना क़हर-ओ-ग़ज़ब नाज़िल करूँगा ।
\s5
\c 6
\p
\v 1 ~अब ख़ुदावन्द का फ़रमान सुन: उठ, पहाड़ों के सामने मुबाहसा कर, और सब टीले तेरी आवाज़ सुनें।
\v 2 ~ऐ पहाड़ों, और ऐ ज़मीन की मज़बूत बुनियादों, खुदावन्द का दा'वा सुनो, क्यूँकि ख़ुदावन्द अपने लोगों पर दा'वा करता है, और वह इस्राईल पर हुज्जत साबित करेगा।
\s5
\v 3 ऐ मेरे लोगों मैंने तुम से क्या किया है और तुमको किस बात में आज़ुर्दा किया है मुझ पर साबित करो |
\v 4 ~क्यूँकि मैं तुम को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, और ग़ुलामी के घर से फ़िदिया देकर छुड़ा लाया; और तुम्हारे आगे मूसा और हारून और मरियम को भेजा।
\v 5 ~ऐ मेरे लोगों, याद करो कि शाह-ए-मोआब बलक़ ने क्या मश्वरत की, और बल'आम-बिन-ब'ऊर ने उसे क्या जवाब दिया; और शित्तीम से जिलजाल तक क्या-क्या हुआ, ताकि ख़ुदावन्द की सदाक़त से वाकिफ़ हो जाओ।
\s5
\v 6 मैं क्या लेकर ख़ुदावन्द के सामने आऊँ,और ख़ुदा ताला को क्यूँकर सिज्दा करूँ? क्या सोख़्तनी क़ुर्बानियों और यकसाला बछड़ों को लेकर उसके सामने आऊँ?
\v 7 ~क्या ख़ुदावन्द हज़ारों मेंढों से या तेल की दस हज़ार नहरों से ख़ुश होगा ? क्या मैं अपने पहलौठे को अपने गुनाह के बदले में, और अपनी औलाद को अपनी जान की ख़ता के बदले में दे दूँ?
\v 8 ~ऐ इंसान, उसने तुझ पर नेकी ज़ाहिर कर दी है; ख़ुदावन्द तुझ से इसके सिवा क्या चाहता है कि तू इंसाफ़ करे और रहमदिली को 'अज़ीज़ रख्खे, और अपने ख़ुदा के सामने फ़रोतनी से चले?
\s5
\v 9 ~ख़ुदावन्द की आवाज़ शहर को पुकारती है और 'अक़्लमंद उसके नाम का लिहाज़ रखता है: 'असा और उसके मुक़र्रर करने वाले की सुनो।
\v 10 ~क्या शरीर के घर में अब तक नाजायज़ नफ़े' के ख़ज़ाने और नाक़िस-ओ-नफ़रती पैमाने नहीं हैं |
\s5
\v 11 क्या वह दग़ा की तराज़ू और झूटे बाटों का थैला रखता हुआ, बेगुनाह ठहरेगा।
\v 12 ~क्यूँकि वहाँ के दौलतमंद ज़ुल्म से भरे हैं; और उसके बाशिन्दे झूट बोलते हैं, बल्कि उनके मुँह में दग़ाबाज़ ज़बान है।
\s5
\v 13 ~इसलिए मैं तुझे मुहलिक ज़ख़्म लगाऊँगा,और तेरे गुनाहों की वजह से तुझ को वीरान कर डालूँगा|
\v 14 ~तू खाएगा लेकिन आसूदा न होगा, क्यूँकि तेरा पेट ख़ाली रहेगा; तू छिपाएगा लेकिन बचा न सकेगा, और जो कुछ कि तू बचाएगा मैं उसे तलवार के हवाले करूँगा ।
\v 15 ~तू बोएगा, लेकिन फ़सल न काटेगा; ज़ैतून को रौदेंगा, लेकिन तेल मलने न पाएगा; तू अंगूर को कुचलेगा, लेकिन मय न पिएगा।
\s5
\v 16 ~क्यूँकि उमरी के क़वानीन और अख़ीअब के ख़ान्दान के आ'माल की पैरवी होती है, और तुम उनकी मश्वरत पर चलते हो, ताकि मैं तुम को वीरान करूँ, और उसके रहने वालों को सुस्कार का ज़रिया' बनाऊँ; इसलिए तुम मेरे लोगों की रुस्वाई उठाओगे।"
\s5
\c 7
\p
\v 1 ~मुझ पर अफ़सोस! मैं ताबिस्तानी मेवा जमा' होने और अंगूर तोड़ने के बा'द की ख़ोशाचीनी की तरह हूँ, न खाने को कोई ख़ोशा, और न पहला पक्का दिलपसंद अंजीर है।
\v 2 ~दीनदार आदमी दुनिया से जाते रहे, लोगों में कोई रास्तबाज़ नहीं; वह सब के सब घात में बैठे हैं कि ख़ून करें हर शख़्स जाल बिछा कर अपने ~भाई का शिकार करता है।
\s5
\v 3 उनके हाथ बुराई में फुर्तीले हैं; हाकिम रिश्वत माँगता है और क़ाज़ी भी यही चाहता है, और बड़े आदमी अपने दिल की हिर्स की बातें करते हैं; और यूँ साज़िश करते हैं।
\v 4 उनमें सबसे अच्छा तो ऊँट कटारे की तरह है, और सबसे रास्तबाज़ ख़ारदार झाड़ी से बदतर है। उनके निगहबानों का दिन, हाँ उनकी सज़ा का दिन आ गया है; अब उनको परेशानी होगी।
\s5
\v 5 ~किसी दोस्त पर भरोसा न करो; हमराज़ पर भरोसा न रख्खो; हाँ, अपने मुँह का दरवाज़ा अपनी बीवी के सामने बंद रख्खो
\v 6 ~क्यूँकि बेटा अपने बाप को हक़ीर जानता है,और बेटी अपनी माँ के और बहू अपनी सास के ख़िलाफ़ होती है; और आदमी के दुश्मन उसके घर ही के लोग हैं।
\s5
\v 7 ~लेकिन मैं ख़ुदावन्द की राह देखूँगा,और अपने नजात देने वाले ख़ुदा का इन्तिज़ार करूँगा, मेरा ख़ुदा मेरी सुनेगा।
\v 8 ~ऐ मेरे दुश्मन, मुझ पर ख़ुश न हो, क्यूँकि जब मैं गिरूँगा, तो उठ खड़ा हूँगा; जब अंधेरे में बैठूँगा, तो ख़ुदावन्द मेरा नूर होगा।
\s5
\v 9 ~मैं ख़ुदावन्द के क़हर को बर्दाश्त करूँगा, क्यूँकि मैंने उसका गुनाह किया है जब तक वह मेरा दा'वा साबित करके मेरा इंसाफ़ न करे। वह मुझे रोशनी में लाएगा, और मैं उसकी सदाक़त को देखूँगा।
\s5
\v 10 तब मेरा दुश्मन जो मुझ से कहता था, ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा कहाँ है ये देखकर रुस्वा होगा। मेरी आँखें उसे देखेंगी वह गलियों की कीच की तरह पायमाल किया जाएगा।
\s5
\v 11 ~तेरी फ़सील की ता'मीर के रोज़, तेरी हदें बढ़ाई जाएँगी।
\v 12 ~उसी रोज़ असूर से और मिस्र के शहरों से, और मिस्र से दरिया-ए-फ़रात तक, और समन्दर से समन्दर तक और कोहिस्तान से कोहिस्तान तक, लोग तेरे पास आएँगे।
\v 13 और ज़मीन अपने बाशिन्दों के 'आमाल की वजह से वीरान होगी।
\s5
\v 14 ~अपने 'असा से अपने लोगों, या'नी अपनी मीरास की गल्लेबानी कर, जो कर्मिल के जंगल में तन्हा रहते हैं, उनको बसन और जिलआद में पहले की तरह चरने दे।
\v 15 जैसे तेरे मुल्क-ए-मिस्र से निकलते वक़्त दिखाए, वैसे ही अब मैं उसे 'अजाइब दिखाऊँगा।
\s5
\v 16 ~क़ौमें देखकर अपनी तमाम तवानाई से शर्मिन्दा होंगी; वह मुँह पर हाथ रख्खेंगी, और उनके कान बहरे हो जाएँगे।
\v 17 ~वह साँप की तरह ख़ाक चाटेंगी, और अपने छिपने की जगहों से ज़मीन के कीड़ों की तरह थरथराती हुई आएँगी; वह ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के सामने डरती हुई आयेंगी हाँ वह तुझ से परेशान होंगी।
\s5
\v 18 ~तुझ सा ख़ुदा कौन है,जो बदकिरदारी मु'आफ़ करे और अपनी मीरास के बक़िये की ख़ताओं से दरगुज़रे? वह अपना क़हर हमेशा तक नहीं रख छोड़ता, क्यूँकि वह शफ़क़त करना पसंद करता है।
\s5
\v 19 ~वह फिर हम पर रहम फ़रमाएगा; वही हमारी बदकिरदारी को पायमाल करेगा और उनके सब गुनाह समन्दर की तह में डाल देगा।
\v 20 ~तू या'क़ूब से वफ़ादारी करेगा और इब्राहीम को वह शफ़कत दिखाएगा, जिसके बारे में तू ने पुराने ज़माने में हमारे बाप-दादा से क़सम खाई थी।

89
34-NAM.usfm Normal file
View File

@ -0,0 +1,89 @@
\id NAM
\ide UTF-8
\h नाहूम
\toc1 नाहूम
\toc2 नाहूम
\toc3 nam
\mt1 नाहूम
\s5
\c 1
\p
\v 1 नीनवा के बारे में बार-ए-नबुव्वत। इलकूशी नाहूम की रोया की किताब।
\s5
\v 2 ~ख़ुदावन्द ग़य्यूर और इन्तक़ाम लेनेवाला ख़ुदा है; हाँ ख़ुदावन्द इन्तक़ाम लेने वाला और क़ह्हार है; ख़ुदावन्द अपने मुख़ालिफ़ों से इन्तक़ाम लेता है और अपने दुश्मनों के लिए क़हर को क़ायम रखता है।
\v 3 ~ख़ुदावन्द क़हर करने में धीमा और क़ुदरत में बढ़कर है, और मुजरिम को हरगिज़ बरी न करेगा। ख़ुदावन्द की राह गिर्दबाद और आँधी ~में है,और बादल उसके पाँव की गर्द हैं।
\s5
\v 4 ~वही समन्दर को डाँटता और सुखा देता है, और सब नदियों को ख़ुश्क कर डालता है; बसन और कर्मिल कुमला जाते हैं, और लुबनान की कोंपलें मुरझा जाती हैं।
\v 5 ~उसके ख़ौफ़ से पहाड़ काँपते और टीले पिघल जाते हैं; उसके सामने ज़मीन हाँ, दुनिया और उसकी सब मा'मूरी थरथराती है।
\s5
\v 6 ~किसको उसके क़हर की ताब है? उसके ग़ज़बनाक ग़ुस्से की कौन बर्दाश्त कर सकता है? उसका क़हर आग की तरह नाज़िल होता है वह चट्टानों को तोड़ डालता है |
\s5
\v 7 ख़ुदावन्द भला है और मुसीबत के दिन पनाहगाह ~है वह अपने भरोसा करने वालों को जानता है|
\v 8 लेकिन अब वह उसके मकान को बड़े सैलाब से हलाक-ओ-बर्बाद करेगा और तारीकी उसके दुश्मनों को दौड़ायेगी |
\s5
\v 9 ~तुम ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ क्या मंसूबा बाँधते हो वह बिल्कुल हलाक कर डालेगा अज़ाब दोबारा न आएगा |
\v 10 अगरचे वह उलझे हुए काँटों की तरह पेचीदा, और अपनी मय से तर हो तो भी वह ~सूखे भूसे की तरह बिलकुल जला दिए जायेंगे |
\v 11 तुझसे एक ऐसा शख़्स निकला है जो ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ बुरे मंसूबे बाँधता और शरारत की सलाह देता है |
\s5
\v 12 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि अगरचे वह ज़बरदस्त और बहुत से हों तों भी वह काटे जायेंगे और वह बर्बाद हो जाएगा अगरचे मैंने तुझे दुख दिया तोभी फिर कभी तुझे दुख न दूँगा |
\v 13 और अब मैं उसका जुआ तुझ पर से तोड़ डालूँगा और तेरे बंधनों को टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा|
\s5
\v 14 लेकिन ख़ुदावन्द ने तेरे बारे में ये हुक्म सादिर फ़रमाया है कि तेरी नसल बाक़ी न रहे मैं तेरे बुतख़ाने से खोदी हुई और ढाली हुई मूरतों को बर्बाद करूँगा, मैं तेरे लिए क़ब्र तैयार करूँगा क्यूँकि तू निकम्मा है
\s5
\v 15 देख जो ख़ुशख़बरी लाता और सलामती का 'ऐलान करता है उसके पाँव पहाड़ों पर हैं , ऐ यहूदाह अपनी 'ईदें मना और अपनी नज़्रे अदा कर क्यूँकि फिर ख़बीस तेरे बीच से नहीं गुज़रेगा वह साफ़ काट डाला गया गया है |
\s5
\c 2
\p
\v 1 बिखेरने वाला तुझ पर चढ़ आया है, क़िले' को महफ़ूज़ रख: राह की निगहबानी कर: कमर बस्ता हो और ख़ूब मज़बूत रह।
\v 2 क्यूँकि ख़ुदावन्द या'क़ूब की रौनक़ को इस्राईल की रौनक़ की तरह, फिर बहाल करेगा: अगरचे ग़ारतगरों ने उनको ग़ारत किया है, और उनकी ताक की शाख़ें तोड़ डालीं हैं |
\s5
\v 3 उसके बहादुरों की ढालें सुर्ख़ हैं; जंगी मर्द क़िरमिज़ी वर्दी पहने हैं। उसकी तैयारी के वक़्त रथ फ़ौलाद से झलकते हैं, और देवदार के नेज़े बशिद्दत हिलते हैं।
\v 4 रथ सड़कों पर तुन्दी से दौड़ते,और मैदान में बेतहाशा जाते हैं; वह मशा'लों की तरह चमकते, और बिजली की तरह कोंदते हैं।
\s5
\v 5 ~वह अपने सरदारों को बुलाता है, वह टक्करें खाते आते हैं; वह जल्दी-जल्दी फ़सील पर चढ़ते हैं, और अड़तला तैयार किया जाता है।
\s5
\v 6 नहरों के फाटक खुल जाते हैं, और क़स्र गुदाज़ हो जाता है;
\v 7 ~हुस्सब बेपर्दा हुई और ग़ुलामी में चली गई; उसकी लौंडियाँ कुमारियों की तरह कराहती हुई मातम करती और छाती पीटती हैं।
\s5
\v 8 ~नीनवा तो पहले ही से हौज़ की तरह है, तोभी वह भागे चले जाते हैं। वह पुकारते हैं, "ठहरो, ठहरो!" लेकिन कोई मुड़कर नहीं देखता।
\v 9 ~चाँदी लूटो! सोना लूटो!~क्यूँकि माल की कुछ इन्तिहा नहीं सब नफ़ीस चीज़ें कसरत से हैं।
\v 10 वह ख़ाली, सुनसान और वीरान है! उनके दिल पिघल गए और घुटने टकराने लगे हर एक की कमर में शिद्दत से दर्द है और इन सबके चेहरे जर्द हो गए |
\s5
\v 11 ~शेरों की माँद, और जवान बबरों की खाने की जगह कहाँ है जिसमें शेर-ए-बबर और शेरनी और उनके बच्चे बेख़ौफ़ फिरते थे?
\v 12 ~शेर-ए-बबर अपने बच्चों की ख़ुराक के लिए फाड़ता था, और अपनी शेरनियों के लिए गला घोंटता था; और अपनी माँदों को शिकार से, और ग़ारों को फाड़े हुओं से भरता था।
\s5
\v 13 ~रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, देख, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ और उसके रथों को जलाकर धुवाँ बना दूँगा और तलवार तेरे जवान बबरों को खा जाएगी। और मैं तेरा शिकार ज़मीन पर से मिटा डालूँगा, और तेरे क़ासिदों की आवाज़ फिर कभी सुनाई न देगी।।
\s5
\c 3
\p
\v 1 ख़ूँरेज़ शहर पर अफ़सोस, वह झूट और लूट से बिल्कुल भरा है; वह लूटमार से बाज़ नहीं आता।
\v 2 ~सुनो, चाबुक की आवाज़, और पहियों की खड़खड़ाहट और घोड़ों का कूदना और रथों के हिचकोले!
\s5
\v 3 ~देखो, सवारों का हमला और तलवारों की चमक और भालों की झलक और मक़्तूलों के ढेर, और लाशों के तूदे; लाशों की इन्तिहा नहीं, लाशों से ठोकरें खाते हैं।
\v 4 ~ये उस ख़ूबसूरत जादूगरनी फ़ाहिशा की बदकारी की कसरत का नतीजा है, क्यूँकि वह क़ौमों को अपनी बदकारी से, और घरानों को अपनी जादूगरी से बेचती है।
\s5
\v 5 ~रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, देख, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ और तेरे सामने से तेरा दामन उठा दूँगा, और क़ौमों को तेरी बरहनगी और ममलुकतों को तेरा सत्र दिखलाऊँगा।
\v 6 ~और नजासत तुझ पर डालूँगा, और तुझे रुस्वा करूँगा, हाँ तुझे अन्गुश्तनुमा कर दूँगा।
\v 7 ~और जो कोई तुझ पर निगाह करेगा, तुझ से भागेगा और कहेगा, नीनवा वीरान हुआ; इस पर कौन तरस खाएगा? मैं तेरे लिए तसल्ली देने वाले कहाँ से लाऊँ।
\s5
\v 8 ~क्या तू नोआमून से बेहतर हैं, जो नहरों के बीच बसा था और पानी उसकी चारों तरफ़ था; जिसकी शहरपनाह दरिया-ए-नील था, और जिसकी फ़सील पानी था?
\v 9 कूश और मिस्र उसकी बेइन्तिहा तवानाई थे; फ़ूत और लूबीम उसके हिमायती थे।
\s5
\v 10 ~तोभी वह जिलावतन और ग़ुलाम हुआ; उसके बच्चे सब कूचों में पटक दिए गए, और उनके शुर्फ़ा पर पर्चा डाला गया, और उसके सब बुज़ुर्ग ज़ंजीरों से जकड़े गए।
\v 11 ~तू भी मस्त होकर अपने आप को छिपाएगा, और दुश्मन के सामने से पनाह ढूँडेगा।
\s5
\v 12 तेरे सब क़िले' अंजीर के दरख़्त की तरह हैं, जिस पर पहले पक्के फल लगे हों, जिसको अगर कोई हिलाए तो वह खाने वाले के मुँह में गिर पड़ें।
\v 13 ~देख, तेरे अन्दर तेरे मर्द 'औरतें बन गए,तेरी मम्लुकत के फाटक तेरे दुश्मनों के सामने खुले हैं; आग तेरे अड़बंगों को खा गई।
\s5
\v 14 ~तू अपने घिराव के वक़्त के लिए पानी भर ले, और अपने क़िलों' को मज़बूत कर; गढ़े में उतरकर मिट्टी तैयार कर, और ईंट का साँचा हाथ में ले।
\v 15 ~वहाँ आग तुझे खा जाएगी, तलवार तुझे काट डालेगी। वह टिड्डी की तरह तुझे चट कर जाएगी।अगरचे तू अपने आप को चट कर जाने वाली टिड्डियों की तरह फ़िरावान करे, और फ़ौज-ए-मलख़ की तरह बेशुमार हो जाए।
\s5
\v 16 ~तू ने अपने सौदागरों को आसमान के सितारों से ज़्यादा फ़िरावान किया। चट कर जाने वाली टिड्डी, ख़राब करके उड़ जाती है।
\v 17 ~तेरे हाकिम मलख़ और तेरे सरदार टिड्डियों का हुजूम हैं, जो सर्दी के वक़्त झाड़ियों में रहती हैं; और जब आफ़ताब निकलता है तो उड़ जाती हैं, और उनका मकान कोई नहीं जानता।
\s5
\v 18 ~ऐ शाह-ए-असूर, तेरे चरवाहे सो गए; तेरे सरदार लेट गए। तेरी रि'आया पहाड़ों पर बिखर गई, और उसको इकठ्ठा करने वाला कोई नहीं।
\v 19 ~तेरी शिकस्तगी ला'इलाज है, तेरा ज़ख़्म कारी है; तेरा हाल सुनकर सब ताली बजाएँगे। क्यूँकि कौन है जिस पर हमेशा तेरी शरारत का बार न था?

102
35-HAB.usfm Normal file
View File

@ -0,0 +1,102 @@
\id HAB
\ide UTF-8
\h हबक़्क़ूक़
\toc1 हबक़्क़ूक़
\toc2 हबक़्क़ूक़
\toc3 hab
\mt1 हबक़्क़ूक़
\s5
\c 1
\p
\v 1 ~हबक़्क़ूक़क़ नबी के ख़्वाब की नबुव्वत के बारे में:
\v 2 ऐ ख़ुदावन्द, मैं कब तक फ़रियाद करूँगा,और तू न सुनेगा? मैं तेरे सामने कब तक चिल्लाऊँगा "जु़ुल्म, जु़ुल्म" और तू न बचाएगा ?
\s5
\v 3 तू क्यूँ मुझे बद किरदारी और टेढ़ी रविश दिखाता है? क्यूँकि~ज़ुल्म और सितम मेरे सामने हैं फ़ितना-ओ-फ़साद खड़े होते रहते हैं।
\v 4 इसलिए शरी'अत कमज़ोर हो गई, और इन्साफ़ मुतलक़ जारी नहीं होता। क्यूँकि शरीर सादिक़ो को घेर लेते हैं; इसलिए~इन्साफ़~का खू़न हो रहा है।
\s5
\v 5 क़ौमों पर नज़र करो, और देखो; और हैरान हो; क्यूँकि मैं तुम्हारे दिनों में एक ऐसा काम करने को हूँ कि अगर कोई तुम से उसका बयान करे तो तुम हरगिज़ उम्मीद न करोगे।
\v 6 क्यूँकि देखो, मैं कसदियों को चढ़ालाऊँगा: वह गु़स्सावर और कम'अक़्ल क़ौम हैं, जो चौड़ी ज़मीन से होकर गुज़रते हैं, ताकि उन बस्तियों पर जो उनकी नहीं हैं, क़ब्ज़ा कर लें।
\v 7 ~वह डरावने और ख़ौफ़नाक हैं: वह खु़द ही अपनी 'अदालत और शान का मसदर हैं।
\s5
\v 8 उनके घोड़े चीतों से भी तेज़ रफ़्तार, और शाम को निकलने वाले भेड़ियों से ज़्यादा खू़ँख़्वार हैं; और उनके सवार कूदते फाँदते आते हैं| हाँ, वह दूर से चले आते हैं, वह उक़ाब की तरह हैं, जो अपने शिकार पर झपटता है।
\v 9 ~वह सब ग़ारतगरी को आते हैं, वह सीधे बढ़े चले आते हैं; और उनके गु़लाम रेत के ज़र्रों की तरह बेशुमार होते हैं।
\s5
\v 10 वह बादशाहों को ठठ्ठों में उड़ाते, और 'उमरा को मसख़रा बनाते हैं। वह क़िलों' को हक़ीर जानते हैं, क्यूँकि वह मिट्टी से दमदमें बाँधकर उनको फ़तह कर लेते हैं।
\v 11 ~तब वह हवा के झोंके की तरह गुज़रते और ख़ता करके गुनहगार होते हैं, क्यूँकि उनका ज़ोर ही उनका ख़ुदा है।
\s5
\v 12 ~ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, ऐ मेरे कु़द्दूस, क्या तू अज़ल से नहीं है? हम नहीं मरेंगे। ऐ ख़ुदावन्द, तूने उनको 'अदालत के लिए ठहराया है, और ऐ चट्टान, तू ने उनको तादीब के लिए मुक़र्रर किया है।
\s5
\v 13 तेरी आँखें ऐसी पाक हैं कि तू गुनाह को देख नहीं सकता, और टेढ़ी रविश पर निगाह नहीं कर सकता। फिर तू दग़ाबाज़ों पर क्यूँ नज़र करता है, और जब शरीर अपने से ज़्यादा सादिक़ को निगल जाता है, तब तू क्यूँ ख़ामोश रहता है?
\v 14 और बनी आदम को समन्दर की मछलियों, और कीड़े-मकौड़ों की तरह बनाता है जिन पर कोई हुकूमत करने वाला नहीं?
\s5
\v 15 वह उन सब को शस्त से उठा लेते हैं, और अपने जाल में फँसाते हैं; और महाजाल में जमा' करते हैं, इसलिए वह शादमान और ख़ुश वक़्त हैं।
\v 16 इसीलिए वह अपने जाल के आगे~क़ुर्बानी अदा करते हैं और अपने बड़े जाल के आगे ~ख़ुश्बू जलाते हैं, क्यूँकि इनके वसीले से उनका हिस्सा लज़ीज़, और उनकी ग़िज़ा चिकनी है।
\v 17 इसलिए क्या वह अपने जाल को ख़ाली करने और क़ौमों को बराबर क़त्ल करने से बाज़ न आएँगे?
\s5
\c 2
\p
\v 1 और मैं अपनी दीदगाह पर खड़ा रहूँगा और बुर्ज पर चढ़कर इन्तिज़ार करूँगा कि वह मुझ से क्या कहता है, और मैं अपनी फ़रियाद के बारे में क्या जवाब दूँ।
\s5
\v 2 तब ख़ुदावन्द ने मुझे जवाब दिया और फ़रमाया कि "ख्व़ाब को तख़्तियों पर ऐसी सफ़ाई से लिख कि लोग दौड़ते हुए भी पढ़ सकें।
\v 3 क्यूँकि ये ख़्वाब एक मुक़र्ररा वक़्त के लिए है; ये जल्द ज़हूर में आएगा और ख़ता न करेगा। अगरचे इसमें देर हो, तोभी इसके इन्तिज़ार में रह, क्यूँकि ये यक़ीनन नाज़िल होगा, देर ~न करेगा|
\s5
\v 4 देख, घमण्डी आदमी का दिल रास्त नहीं है, लेकिन सच्चा अपने ईमान से ज़िन्दा रहेगा।
\v 5 बेशक, घमण्डी आदमी शराब की तरह दग़ाबाज़ है, वह अपने घर में नहीं रहता। वह पाताल की तरह अपनी ख़्वाहिश बढ़ाता है; वह मौत की तरह है, कभी आसूदा नहीं होता; बल्कि सब क़ौमों को अपने पास जमा' करता है, और सब उम्मतों को अपने नज़दीक इकठ्ठा करता है।"
\s5
\v 6 क्या ये सब उस पर मिसाल न लाएँगे, और तनज़न न कहेंगे~कि "उस पर अफ़सोस, जो औरों के माल से मालदार होता है, लेकिन ये कब तक? और उस पर जो कसरत से गिरवी लेता है।"
\v 7 क्या वह मुझे खा जाने को अचानक न उठेंगे, और तुझे परेशान करने को बेदार न होंगे, और उनके लिए लूट न होगा?
\v 8 क्यूँकि तूने बहुत सी क़ौमों को लूट लिया, और मुल्क-ओ-शहर-ओ-बाशिंदों में खू़ँरेज़ी और सितमगरी की है, इसलिए बाक़ी माँदा लोग तुझे ग़ारत करेंगे|
\s5
\v 9 "उस पर अफ़सोस जो अपने घराने के लिए नाजायज़ नफ़ा' उठाता है ,ताकि अपना आशियाना बुलन्दी पर बनाये,और मुसीबत से महफ़ूज़ रहे|
\v 10 तूने बहुत सी उम्मतों को बर्बाद करके अपने घराने के लिए रुसवाई हासिल की, और अपनी जान का गुनहगार हुआ |
\v 11 क्यूँकि दीवार से पत्थर चिल्लायेंगे, और छत से शहतीर जवाब देंगे |
\s5
\v 12 उस पर अफ़सोस, जो क़स्बे को खू़ँरेज़ी से और शहर को बादकिरदारी से ता'मीर करता है !
\v 13 क्या यह रब्ब-उल-अफ़्वाज की तरफ़ से नहीं कि लोगों की मेहनत आग के लिए हो, और क़ौमों की मशक़्क़त बतालत के लिए हो?
\v 14 क्यूँकि जिस तरह समन्दर पानी से भरा है , उसी तरह ज़मीन ख़ुदावन्द के जलाल के 'इल्म से मा'मूर है|
\s5
\v 15 उस पर अफ़सोस जो अपने पड़ोसी को अपने क़हर का जाम पिलाकर मतवाला करता है, ताकि उसको बे पर्दा करे !
\v 16 तू 'इज़्ज़त के 'इवज़ रुसवाई से भर गया है। तू भी पीकर अपनी नामख़्तूनी ज़ाहिर कर! ख़ुदावन्द के दहने हाथ का प्याला अपने दौर में तुझ तक पहुँचेगा , और रुसवाई तेरी शौकत को ढाँप लेगी |
\s5
\v 17 चूँकि तूने मुल्क-ओ-शहर-ओ-बाशिन्दों में खूँरेज़ी और सितमगरी की है, इसलिए वह ज़ियादती जो लुबनान पर हुई और वह हलाकत जिसमें जानवर डर गए, तुझ पर आएगी|
\s5
\v 18 खोदी हुई मूरत से क्या हासिल कि उसके बनाने वाले ने उसे खोदकर बनाया? ढली हुई मूरत और झूट सिखाने वाले से क्या फ़ायदा कि उसका बनाने वाला उस पर भरोसा रखता और गूँगे बुतों को बनाता है?
\v 19 उस पर अफ़सोस जो लकड़ी से कहता है, जाग, और बे ज़बान पत्थर से कि उठ, क्या वह ता'लीम दे सकता है? देख वह तो सोने और चाँदी से मढ़ा है लेकिन उसमें कुछ भी ताक़त नहीं|
\v 20 ~मगर ख़ुदावन्द अपनी मुक़द्दस हैकल में है; सारी ज़मीन उसके सामने ख़ामोश रहे।"
\s5
\c 3
\p
\v 1 शिगायूनोत के सुर पर ~हबक़्क़ूक़ नबी की दु'आ:
\v 2 ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तेरी शोहरत सुनी,और डर गया; ऐ ख़ुदावन्द, इसी ज़माने में अपने काम को पूरा कर। इसी ज़माने में उसको ज़ाहिर कर; ग़ज़ब के वक़्त रहम को याद फ़रमा।
\s5
\v 3 ~ख़ुदा तेमान से आया,और कु़द्दूस फ़ारान के पहाड़ से। उसका जलाल आसमान पर छा गया, और ज़मीन उसकी ता'रीफ़ से मा'मूर हो गई ।
\s5
\v 4 ~उसकी जगमगाहट नूर की तरह थी, उसके हाथ से किरनें निकलती थीं, और इसमें उसकी क़ुदरत छिपी हुई थी,
\v 5 बीमारी उसके आगे-आगे चलती थी,और आग के तीर उसके क़दमों से निकलते थे।
\s5
\v 6 वह खड़ा हुआ और ज़मीन थर्रा गई, उसने निगाह की और क़ौमें तितर-बितर हो गईं। अज़ली पहाड़ टुकड़े-टुकड़े हो गए; पुराने टीले झुक गए, उसके रास्ते अज़ली हैं।
\s5
\v 7 मैंने कूशन के खे़मों को मुसीबत में देखा: मुल्क-ए-मिदियान के पर्दे हिल गए।
\v 8 ऐ ख़ुदावन्द, क्या तू नदियों से बेज़ार था? क्या तेरा ग़ज़ब दरियाओं पर था? क्या तेरा ग़ज़ब समन्दर पर था कि तू अपने घोड़ों और फ़तहयाब रथों पर सवार हुआ?
\s5
\v 9 तेरी कमान ग़िलाफ़ से निकाली गई, तेरा 'अहद क़बाइल के साथ उस्तवार था। सिलाह, तूने ज़मीन को नदियों से चीर डाला।
\v 10 पहाड़ तुझे देखकर काँप गए: सैलाब गुज़र गए; समन्दर से शोर उठा, और मौजें बुलन्द हुई।
\s5
\v 11 तेरे उड़ने वाले तीरों की रोशनी से, तेरे चमकीले भाले की झलक से, चाँद-ओ-सूरज अपने बुर्जों में ठहर गए।
\v 12 तू ग़ज़बनाक होकर मुल्क में से गुज़रा; तूने ग़ज़ब से क़ौमों को पस्त किया।
\s5
\v 13 ~तू अपने लोगों की नजात की ख़ातिर~निकला, हाँ, अपने मम्सूह की नजात की ख़ातिर तूने शरीर के घर की छत गिरा दी, और उसकी बुनियाद बिल्कुल खोद डाली।
\s5
\v 14 तूने उसी की लाठी से उसके बहादुरों के सिर फोड़े; वह मुझे बिखेरने को हवा के झोके की तरह आए, वह ग़रीबों को तन्हाई में निगल जाने पर ख़ुश थे।
\v 15 ~तू अपने घोड़ों पर सवार होकर समन्दर से, हाँ, बड़े सैलाब से पार हो गया।
\s5
\v 16 ~मैंने सुना और मेरा दिल दहल गया, उस शोर की वजह से मेरे लब हिलने लगे; मेरी हड्डियाँ बोसीदा हो गईं, और मैं खड़े-खड़े काँपने लगा। लेकिन मैं सुकून से उनके बुरे दिन का मुन्तज़िर हूँ, जो इकट्ठा होकर हम~पर हमला करते हैं।
\s5
\v 17 अगरचे अंजीर का दरख़्त न फूले,और डाल में फल न लगें, और जै़तून का फल ज़ाय' हो जाए, और खेतों में कुछ पैदावार न हो, और भेड़ख़ाने से भेड़ें जाती रहें, और तवेलों में जानवर न हों,
\s5
\v 18 तोभी मैं ख़ुदावन्द से ख़ुश रहूँगा, और अपनी नजात बख़्श ख़ुदा से खु़श वक़्त हूँगा।
\v 19 ख़ुदावन्द ख़ुदा, मेरी ताक़त है; वह मेरे पैर हरनी के से बना देता है, और मुझे मेरी ऊँची जगहों में चलाता है।

94
36-ZEP.usfm Normal file
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\id ZEP
\ide UTF-8
\h सफ़नियाह
\toc1 सफ़नियाह
\toc2 सफ़नियाह
\toc3 zep
\mt1 सफ़नियाह
\s5
\c 1
\p
\v 1 ख़ुदावन्द का कलाम जो यहूदाह बादशाह यूसाह बिन अमून के दिनों ~में सफ़नियाह बिन कूशी बिन जदलियाह बिन अमरयाह बिन हिज़क़ियाह पर नाज़िल हुआ|
\v 2 ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "मैं इस ज़मीन से सब कुछ बिल्कुल हलाक करूँगा।
\v 3 इन्सान और हैवान को हलाक करूँगा; हवा के परिन्दों और समन्दर की मछलियों को और शरीरों और उनके बुतों को हलाक करूँगा, और इन्सान को इस ज़मीन से फ़ना करूँगा|" ख़ुदावन्द फ़रमाता है|
\s5
\v 4 "मैं यहूदाह पर और यरूशलीम के सब रहने वालों पर हाथ चलाऊँगा, और इस मकान में से बा'ल के बक़िया को और कमारीम के नाम को पुजारियों के साथ हलाक करूँगा;
\v 5 और उनको भी जी कोठों पर चढ़ कर अज्राम-ए-फ़लक की 'इबादत ~करते हैं, और उनको जो ख़ुदावन्द की 'इबादत का 'अहद करते हैं, लेकिन मिल्कूम की क़सम खाते हैं।
\v 6 ~और उनको भी जो ख़ुदावन्द से नाफ़रमान होकर न उसके तालिब हुए और न उन्होंने उससे मश्वरत ~ली।"
\s5
\v 7 तुम ख़ुदावन्द ख़ुदा के सामने ख़ामोश रहो, क्यूँकि ख़ुदावन्द का दिन नज़दीक है; और उसने ज़बीहा तैयार किया है, और अपने मेहमानों को मख़्सूस किया है।
\v 8 और ख़ुदावन्द के ज़बीहे के दिन यूँ होगा, "कि मैं उमरा और शहज़ादों को, और उन सब को जो अजनबियों की पोशाक पहनते हैं, सज़ा दूँगा।
\v 9 ~मैं उसी रोज़ उन सब को,जो लोगों के घरों में घुस कर अपने मालिक ~के घर को लूट और धोखे से भरते हैं सज़ा दूँगा।"
\s5
\v 10 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "उसी रोज़ मछली फाटक से रोने की आवाज़, और मिशना से मातम की, और टीलों पर से बड़े शोर की आवाज़ उठेगी।
\v 11 ~ऐ मकतीस के रहने वालो, मातम करो! क्यूँकि सब सौदागर मारे गए। जो चाँदी से लदे थे, सब हलाक हुए।
\s5
\v 12 फिर मैं चराग़ लेकर यरूशलीम में तलाश करूँगा, और जितने अपनी तलछट पर जम गए हैं, और दिल में कहते हैं, ~'कि ख़ुदावन्द सज़ा-और-जज़ा न देगा,' उनको सज़ा दूँगा।
\v 13 ~तब उनका माल लुट जाएगा, और उनके घर उजड़ जाएँगे। वह घर तो बनाएँगे, लेकिन उनमें बूद-ओ-बाश न करेंगे; और बाग़ तो लगाएँगे, लेकिन उनकी मय न पिएँगे।”
\s5
\v 14 ~ख़ुदावन्द का बड़ा दिन क़रीब है, हाँ, वह नज़दीक आ गया, वह आ पहुँचा; सुनो, खुदावन्द के दिन का शोर; ज़बरदस्त आदमी फूट-फूट कर रोएगा।
\v 15 वह दिन क़हर का दिन है, दुख और ग़म का दिन, वीरानी और ख़राबी का दिन, तारीकी और उदासी का दिन, बादल और तीरगी का दिन;
\v 16 ~हसीन शहरों और ऊँचे बुर्जों के ख़िलाफ़, नरसिंगे और जंगी ललकार का दिन।
\s5
\v 17 और मैं बनी आदम पर मुसीबत लाऊँगा, यहाँ तक कि वह अंधों की तरह चलेंगे, क्यूँकि वह ख़ुदावन्द के गुनहगार हुए; उनका खू़न धूल की तरह गिराया जाएगा, और उनका गोश्त नजासत की तरह।
\v 18 ख़ुदावन्द के क़हर के दिन,उनका सोना चाँदी उनको बचा न सकेगा; बल्कि तमाम मुल्क को उसकी गै़रत की आग खा जाएगी, क्यूँकि वह एक पल में मुल्क के सब बाशिन्दों को तमाम कर डालेगा।
\s5
\c 2
\p
\v 1 ~ऐ बेहया क़ौम, जमा' हो, जमा' हो;
\v 2 ~इससे पहले के फ़रमान-ए-इलाही ज़ाहिर हो, और वह दिन भुस की तरह जाता रहे, और ख़ुदावन्द का बड़ा क़हर तुम पर नाज़िल हो, और उसके ग़ज़ब का दिन तुम पर आ पहुँचे।
\v 3 ~ऐ मुल्क के सब हलीम लोगों, जो खुदावन्द के हुक्मों पर चलते हो, उसके तालिब हो, रास्तबाज़ी को ढूँढों, फ़रोतनी की तलाश करो; शायद ख़ुदावन्द के ग़ज़ब के दिन तुम को पनाह मिले।
\s5
\v 4 ~क्यूँकि ग़ज़्ज़ा मतरूक होगा, और अस्क़लोन वीरान किया जाएगा, और अशदूद दोपहर को ख़ारिज कर दिया जाएगा, और 'अक्रू़न की बेख़कनी की जाएगी।
\v 5 ~समन्दर के साहिल के रहने वालो, या'नी करेतियों की क़ौम पर अफ़सोस! ऐ कना'न, फ़िलिस्तियों की सरज़मीन, ख़ुदावन्द का कलाम तेरे ख़िलाफ़ है; मैं तुझे हलाक-ओ-बर्बाद करूँगा यहाँ तक कि कोई बसने वाला न रहे।
\s5
\v 6 और समन्दर के साहिल, चरागाहें होंगे, जिनमें चरवाहों की झोपड़ियाँ और भेड़ख़ाने होंगे।
\v 7 और वही साहिल, यहूदाह के घराने के बक़िया के लिए होंगे; वह उनमें चराया करेंगे, वह शाम के वक़्त अस्क़लून के मकानों में लेटा करेंगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा, उन पर फिर नज़र करेगा, और उनकी ग़ुलामी को ख़त्म करेगा।
\s5
\v 8 मैंने मोआब की मलामत और बनी 'अम्मोन की लान'तान सुनी है उन्होंने मेरी क़ौम को मलामत की और उनकी हुदूद को दबा लिया है |
\v 9 ~~इसलिए रब्ब-उल-अफ़वाज इस्राईल का ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम यक़ीनन मोआब सदूम की तरह होगा, और बनी 'अम्मोन 'अमूरा की तरह; वह पुरख़ार और नमकज़ार और हमेशा से हमेशा तक बर्बाद रहेंगे। मेरे लोगों के बाक़ी ~उनको ग़ारत करेंगे, और मेरी क़ौम के बाक़ी लोग उनके वारिस होंगे।
\s5
\v 10 ये सब कुछ उनके तकब्बुर की वजह ~से उन पर आएगा, क्यूँकि उन्होंने रब्ब-उल-अफ़वाज के लोगों को मलामत की और उन पर ज़ियादती की।
\v 11 ~ख़ुदावन्द उनके लिए हैबतनाक होगा, और ज़मीन के तमाम मा'बूदों को लाग़र कर देगा, और बहरी ममालिक के सब बाशिन्दे अपनी अपनी जगह में उसकी 'इबादत करेंगे।
\s5
\v 12 ~ऐ कूश के बाशिन्दो, तुम भी मेरी तलवार से मारे जाओगे।
\v 13 और वह शिमाल की तरफ़ अपना हाथ बढ़ायेगा और असूर को हलाक करेगा, और नीनवा को वीरान और सेहरा की तरह ख़ुश्क कर देगा।
\v 14 और जंगली जानवर उसमें लेटेंगे,और हर क़िस्म के हैवान, हवासिल और ख़ारपुश्त उसके सुतूनों के सिरों पर मक़ाम करेंगे; उनकी आवाज़ उसके झरोकों में होगी, उसकी दहलीज़ों में वीरानी होगी, क्यूँकि देवदार का काम खुला छोड़ा गया है।
\s5
\v 15 ~ये वह शादमान शहर है जो बेफ़िक्र था, जिसने दिल में कहा, "मैं हूँ, और मेरे अलावा कोई दूसरा नहीं।” वह कैसा वीरान हुआ, हैवानों के बैठने की जगह! हर एक जो उधर से गुज़रेगा सुसकारेगा और हाथ हिलाएगा।
\s5
\c 3
\p
\v 1 उस सरकश और नापाक व ज़ालिम शहर पर अफ़सोस!
\v 2 उसने कलाम को न सुना, वह तरबियत पज़ीर न हुआ। उसने ख़ुदावन्द पर भरोसा न किया,और अपने ख़ुदा की क़ुरबत क़ी आरज़ू न की।
\s5
\v 3 ~उसके उमरा उसमें गरजने वाले बबर हैं; उसके क़ाज़ी भेड़िये हैं जो शाम को निकलते हैं, और सुबह तक कुछ नहीं छोड़ते।
\v 4 ~उसके नबी लाफ़ज़न और दग़ाबाज़ हैं, उसके काहिनों ने पाक को नापाक ठहराया, और उन्होंने शरी'अत को मरोड़ा है।
\s5
\v 5 ख़ुदावन्द जो सच्चा है, उसके अंदर है; वह बेइन्साफ़ी न करेगा; वह हर सुबह बिला नाग़ा अपनी 'अदालत ज़ाहिर करता है, मगर बेइन्साफ़ आदमी शर्म को नहीं जानता ।
\s5
\v 6 मैंने क़ौमों को काट डाला, उनके बुर्ज बर्बाद किए गए; मैंने उनके कूचों को वीरान किया, यहाँ तक कि उनमें कोई नहीं चलता; उनके शहर उजाड़ हुए और उनमें कोई इन्सान नहीं कोई बाशिन्दा नहीं |
\v 7 मैंने कहा, 'कि सिर्फ़ मुझ से डर, और तरबियत पज़ीर हो; ताकि उसकी बस्ती काटी न जाए। उस सब के मुताबिक़ जो मैंने उसके हक़ में ठहराया था।' लेकिन उन्होंने 'अमदन अपनी चाल को बिगाड़ा।
\s5
\v 8 ~"इसलिए," ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "मेरे मुन्तज़िर रहो, जब तक कि मैं लूट के लिए न उठूँ, क्यूँकि मैंने ठान लिया है कि क़ौमों को जमा' करूँ और ममलुकतों को इकट्ठा करूँ, ताकि अपने ग़ज़ब या'नी तमाम क़हर को उन पर नाज़िल करूँ, क्यूँकि मेरी गै़रत की आग सारी ज़मीन को खा जाएगी।
\s5
\v 9 और मैं उस वक़्त लोगों के होंट पाक कर दूँगा, ताकि वह सब ख़ुदावन्द से दु'आ करें, और एक दिल होकर उसकी 'इबादत करें।
\v 10 ~कूश की नहरों के पार से मेरे 'आबिद, या'नी मेरी बिखरी क़ौम मेरे लिए हदिया लाएगी
\v 11 ~उसी रोज़ तू अपने सब आ'माल की वजह से जिनसे तू मेरी गुनहगार हुई, शर्मिन्दा न होगी: क्यूँकि मैं उस वक़्त तेरे बीच से तेरे मग़रूर लोगों को निकाल दूँगा, और फिर तू मेरे मुक़द्दस पहाड़ पर तकब्बुर न करेगी।
\s5
\v 12 ~और मैं तुझ में एक मज़लूम और मिस्कीन बक़िया छोड़ दूँगा और वह ख़ुदावन्द के नाम पर भरोसा करेंगे,
\v 13 ~इस्राईल के बाक़ी लोग न गुनाह करेंगे, न झूट बोलेंगे और न उनके मुँह में दग़ा की बातें पाई जाएँगी बल्कि वह खाएँगे और लेट रहेंगे, और कोई उनको न डराएगा।”
\s5
\v 14 ~ऐ बिन्त-ए-सिय्यून, नग़मा सराई कर; ऐ इस्राईल, ललकार! ऐ दुख़्तर-ए-यरूशलीम, पूरे दिल से ख़ुशी मना और शादमान हो।
\v 15 ~ख़ुदावन्द ने तेरी सज़ा को दूर कर दिया, उसने तेरे दुश्मनों को निकाल दिया ख़ुदावन्द इस्राईल का बादशाह तेरे अन्दर है तू फिर मुसीबत को न देखेगी |
\v 16 उस रोज़ यरूशलीम से कहा जाएगा, "परेशान न हो, ऐ सिय्यून; तेरे हाथ ढीले न हों।
\s5
\v 17 ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा, जो तुझ में है,क़ादिर है, वही बचा लेगा; वह तेरी वजह से शादमान होकर खु़शी करेगा; वह~अपनी मुहब्बत में मसरूर रहेगा; वह गाते हुए तेरे लिए शादमानी करेगा।
\v 18 मैं तेरे उन लोगों को जो 'ईदों से महरूम होने की वजह से ग़मगीन और मलामत से ज़ेरबार हैं, जमा' करूँगा।
\s5
\v 19 देख, मैं उस वक़्त तेरे सब सतानेवालों को सज़ा दूँगा, और लंगड़ों को रिहाई दूँगा; और जो हाँक दिए गए उनको इकट्ठा करूँगा और जो तमाम जहान में रुस्वा हुए, उनको सितूदा और नामवर करूँगा।
\v 20 उस वक़्त मैं तुम को जमा' करके मुल्क में लाऊँगा; क्यूँकि जब तुम्हारी हीन हयात ही में तुम्हारी ग़ुलामी को ख़त्म करूँगा, तो तुम को ज़मीन की सब क़ौमों के बीच नामवर और सितूदा करूँगा।" ख़ुदावन्द फ़रमाता है।

68
37-HAG.usfm Normal file
View File

@ -0,0 +1,68 @@
\id HAG
\ide UTF-8
\h हज्जी
\toc1 हज्जी
\toc2 हज्जी
\toc3 hag
\mt1 हज्जी
\s5
\c 1
\p
\v 1 दारा बादशाह की सल्तनत के दूसरे साल के छठे महीने की पहली तारीख़ को, यहूदाह के नाज़िम ज़रुब्बाबुल-बिन-सियालतिएल और सरदार काहिन यशू'अ-बिन-यहूसदक़ को, हज्जी नबी के ज़रिए' ख़ुदावन्द का कलाम पहुँचा,
\v 2 कि 'रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि यह लोग कहते हैं, अभी ख़ुदावन्द के घर की ता'मीर का वक़्त नहीं आया।"
\s5
\v 3 तब ख़ुदावन्द का कलाम हज्जी नबी के ज़रिए' पहुँचा,
\v 4 "क्या तुम्हारे लिए महफ़ूज़ घरों में रहने का वक़्त है, जब कि यह घर वीरान पड़ा है?
\v 5 और अब रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: तुम अपने चाल चलन पर ग़ौर करो।
\v 6 तुम ने बहुत सा बोया, पर थोड़ा काटा। तुम खाते हो, पर आसूदा नहीं होते; तुम पीते हो, लेकिन प्यास नहीं बुझती। तुम कपड़े पहनते हो, पर गर्म नहीं होते; और मज़दूर अपनी मज़दूरी सूराख़दार थैली में जमा' करता है।
\s5
\v 7 "रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ ~फ़रमाता है: कि अपने चाल चलन पर ग़ौर करो।
\v 8 ~पहाड़ों से लकड़ी लाकर यह घर ता'मीर करो, और मैं उसको देखकर ख़ुश हूँगा और मेरी तम्जीद होगी रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है।
\v 9 तुम ने बहुत की उम्मीद रख्खी, और देखो, थोड़ा मिला; और जब तुम उसे अपने घर में लाए, तो मैंने उसे उड़ा दिया। रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है; क्यूँ? इसलिए कि मेरा घर वीरान है, और तुम में से हर एक अपने घर को दौड़ा चला जाता है।
\s5
\v 10 ~इसलिए न आसमान से शबनम गिरती है, और न ज़मीन अपनी पैदावार देती है।
\v 11 ~और मैंने ख़ुश्क साली को तलब किया कि मुल्क और पहाड़ों पर, और अनाज और नई मय और तेल और ज़मीन की सब पैदावार पर, और इंसान-ओ- हैवान पर, और हाथ की सारी मेहनत पर आए।"
\s5
\v 12 तब~ज़रुब्बाबुल-बिन-सियालतिएल~और सरदार काहिन यशू'अ-बिन-यहूसदक़~और लोगों के बक़िया ख़ुदावन्द ख़ुदा अपने कलाम और उसके भेजे हुए हज्जी नबी की बातों को सुनने लगे: और लोग ख़ुदावन्द के सामने ख़ौफ़ ज़दा हुए|
\v 13 तब ख़ुदावन्द के पैग़म्बर हज्जी ने ख़ुदावन्द का पैग़ाम उन लोगों को सुनाया, "ख़ुदावन्द फ़रमाता है : मैं तुम्हारे साथ हूँ
\s5
\v 14 ~फिर ख़ुदावन्द ने यहूदाह के नाज़िम ज़रुब्बाबुल-बिन-सियालतिएल के, सरदार काहिन यशूअ'-बिन-यहूसदक़ की और लोगों के बक़िया की रूह की हिदायत दी। इसलिए ~वह आकर रब्ब-उल-अफ़वाज, अपने ख़ुदा के घर की ता'मीर में मशगू़ल हुए;
\v 15 और यह वाक़े'आ दारा बादशाह की सल्तनत के दूसरे साल के छटे महीने की चौबीसवीं तारीख़ का है।
\s5
\c 2
\p
\v 1 सातवें महीने की इक्कीसवीं तारीख़ को ख़ुदावन्द का कलाम हज्जी नबी के ज़रिए' पहुँचा,
\v 2 कि "यहूदाह के नाज़िम ज़ारुब्बाबुल-बिन-सियालतिएल और सरदार काहिन यशूअ' बिन यहूसदक़ और लोगों के बक़िया से यूँ कह,
\s5
\v 3 कि 'तुम में से किसने इस हैकल की पहली रौनक़ को देखा? और अब कैसी दिखाई देती है? क्या यह तुम्हारी नज़र में सही नहीं है?
\v 4 लेकिन ऐ ज़रुब्बाबुल, हिम्मत रख, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और ऐ सरदार काहिन, यशू'अ-बिन यहूसदक़ हिम्मत रख, और ऐ मुल्क के सब लोगों हिम्मत रख्खो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और काम करो क्यूँकि मैं तुम्हारे साथ हूँ रब्ब-उल-अफ़वाज़ फ़रमाता है|
\v 5 मिस्र से निकलते वक़्त मैंने तुम से जो 'अहद किया था, उसके मुताबिक़ मेरी वह रूह तुम्हारे साथ रहती है; हिम्मत न हारो।
\s5
\v 6 क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि मैं थोड़ी देर में फिर एक बार~ज़मीन-ओ-आसमान-ओर-खु़श्की-ओर-तरी को हिला दूँगा।
\v 7 ~मैं सब क़ौमों को हिला दूँगा, और उनकी पसंदीदा चीज़ें आएँगी; और मैं इस घर को जलाल से मा'मूर करूँगा, रब्ब-उल-अफ़्वाज फ़रमाता है।
\s5
\v 8 ~चाँदी मेरी है और सोना मेरा है, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।
\v 9 इस पिछले घर की रौनक़, पहले घर की रौनक़ से ज़्यादा होगी; रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, और मैं इस मकान में सलामती बख़्शूँगा, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।”
\s5
\v 10 दारा बादशाह की सल्तनत के दूसरे साल के नवें महीने की चौबीसवीं तारीख़ को, ख़ुदावन्द का कलाम हज्जी नबी के ज़रिए' पहुँचा,
\v 11 ~'रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि शरी'अत के बारे में काहिनों से मा'लूम कर:
\v 12 'अगर कोई पाक गोश्त को अपनी लिबास के दामन में लिए जाता हो, और उसका दामन रोटी या दाल या शराब या तेल या किसी तरह के खाने की चीज़ को छू जाए; तो क्या वह चीज़ पाक हो जाएगी?" काहिनों ने जवाब दिया, "हरगिज़ नहीं।"
\s5
\v 13 ~फिर हज्जी ने पूछा,कि अगर कोई किसी मुर्दे को छूने से नापाक हो गया हो, और इनमें से किसी चीज़ को छूए; तो क्या वह चीज़ नापाक हो जाएगी? काहिनों ने जवाब दिया, "ज़रूर नापाक हो जाएगी।"
\v 14 ~फिर हज्जी ने कहा, कि ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मेरी नज़र में इन लोगों, और इस क़ौम और इनके आ'माल का यही हाल है,
\s5
\v 15 ~और जो कुछ इस जगह अदा करते हैं नापाक हैं ~इसलिए आइन्दा को उस वक़्त का ख़याल रख्खो, जब कि अभी ख़ुदावन्द की हैकल का पत्थर पर पत्थर न रख्खा गया था;
\v 16 ~उस पूरे ज़माने में जब कोई बीस पैमानों की उम्मीद रखता, तो दस ही मिलते थे; और जब कोई शराब के हौज़ से पचास पैमाने निकालने जाता, तो बीस ही निकलते थे।
\v 17 मैंने तुम को तुम्हारे सब कामों में ठण्डी हवा और गेरूई और ओलों से मारा, लेकिन तुम मेरी तरफ़ ध्यान न लाए, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 18 अब और आइन्दा इसका~ख़याल रख्खो, आज ख़ुदावन्द की हैकल की~बुनियाद के डाले जाने या'नी नवें महीने की चौबीसवीं तारीख़ से इसका~ख़याल~रख्खो:
\v 19 ~क्या इस वक़्त बीज खत्ते में है? अभी तो अंगूर की बेल और अंजीर और अनार और जै़तून में फल नहीं लगे। आज ही से मैं तुम को बरकत दूँगा।"
\s5
\v 20 ~फिर इसी महीने की चौबीसवीं तारीख़ को ख़ुदावन्द का कलाम हज्जी नबी पर नाज़िल हुआ,
\v 21 कि यहूदाह के नाज़िम ज़रुब्बाबुल से कह दे, कि मैं आसमान और ज़मीन को हिलाऊँगा;
\v 22 ~और सल्तनतों के तख़्त उलट दूँगा; और क़ौमों की सल्तनतों की ताक़तों को ख़त्म कर दूँगा, और रथों को सवारों के साथ उलट दूँगा और घोड़े और उनके सवार गिर जायेंगे और हर शख़्स अपने भाई की तलवार से क़त्ल होगा।
\s5
\v 23 रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, ऐ मेरे ख़ादिम ज़रुब्बाबुल-बिन-सियालतिएल, उसी दिन मैं तुझे लूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और मैं तुझे एक मिसाल ठहराऊँगा: क्यूँकि मैंने तुझे मुक़र्रर किया है, रब्ब-उल-अफ़वाज़ फ़रमाता है।

355
38-ZEC.usfm Normal file
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@ -0,0 +1,355 @@
\id ZEC
\ide UTF-8
\h ज़करियाह
\toc1 ज़करियाह
\toc2 ज़करियाह
\toc3 zec
\mt1 ज़करियाह
\s5
\c 1
\p
\v 1 ~दारा के दूसरे बरस के आठवें महीने में ख़ुदावन्द का कलाम ज़करियाह नबी बिन बरकियाह-बिन-'इददू पर नाज़िल हुआ:
\v 2 कि ख़ुदावन्द तुम्हारे बाप-दादा से सख़्त नाराज़ रहा।
\v 3 इसलिए तू उनसे कह, रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि ~तुम मेरी तरफ़ रुजू' हो, रब्ब-उल-अफ़वाज का फ़रमान है, तो मैं तुम्हारी तरफ़ से रुजू' हूँगा रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।
\s5
\v 4 तुम अपने बाप-दादा की तरह न बनो, जिनसे अगले नबियों ने बा आवाज़-ए- बुलन्द कहा, रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है,कि तुम अपनी बुरे चाल चलन और बद'आमाली से बाज़ आओ; लेकिन उन्होंने न सुना और मुझे न माना, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 5 तुम्हारे बाप दादा कहाँ हैं? क्या अम्बिया हमेशा ज़िन्दा रहते हैं?
\v 6 लेकिन मेरा कलाम और मेरे क़ानून, जो मैंने अपने ख़िदमत गुज़ार नबियों को फ़रमाए थे, क्या वह तुम्हारे बाप-दादा पर पूरे नहीं हुए? चुनाँचे उन्होंने रुजू' लाकर कहा,कि रब्ब-उल-अफ़वाज ने अपने इरादे के मुताबिक़ हमारी 'आदात और हमारे 'आमाल का बदला दिया है।"
\s5
\v 7 दारा के दूसरे बरस और ग्यारहवें महीने या'नी माह-ए-सबात की चौबीसवीं तारीख़ को ख़ुदावन्द का कलाम ज़करियाह नबी बिन-बरकियाह-बिन-'इद्दु पर नाज़िल हुआ
\v 8 कि मैंने रात को रोया में देखा कि एक शख़्स सुरंग घोड़े पर सवार, मेंहदी के दरख़्तों के बीच नशेब में खड़ा था, और उसके पीछे सुरंग और कुमैत और नुक़रह घोड़े थे।
\v 9 तब मैंने कहा, "ऐ मेरे आक़ा, यह क्या हैं?' इस पर फ़रिश्ते ने, जो मुझ से गुफ़्तगू करता था कहा, 'मैं तुझे दिखाऊँगा कि यह क्या हैं।"
\s5
\v 10 और जो शख़्स मेंहदी के दरख़्तों के बीच खड़ा था, कहने लगा, 'ये वह हैं जिनको ख़ुदावन्द ने भेजा है कि सारी दुनिया में सैर करें।'
\v 11 और उन्होंने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते से, जो मेंहदी के दरख़्तों के बीच खड़ा था कहा, "हम ने सारी दुनिया की सैर की है, और देखा कि सारी ज़मीन में अमन-ओ-अमान है।'
\s5
\v 12 ~फिर ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने कहा, 'ऐ रब्ब-उल-अफ़वाज तू यरुशलीम और यहूदाह के शहरों पर, जिनसे तू सत्तर बरस से नाराज़ है, कब तक रहम न करेगा?"
\v 13 और ख़ुदावन्द ने उस फ़रिश्ते को जो मुझ से गुफ़्तगू करता था, मुलायम और तसल्ली बख़्श जवाब दिया।
\s5
\v 14 तब उस फ़रिश्ते ने जो मुझ से गुफ़्तगू करता था, मुझ से कहा, बुलन्द आवाज़ से कह, रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि मुझे यरुशलीम और सिय्यून के लिए बड़ी गै़रत है।
\v 15 और मैं उन क़ौमों से जो आराम में हैं, निहायत नाराज़ हूँ; क्यूँकि जब मैं थोड़ा नाराज़ था, तो उन्होंने उस आफ़त को बहुत ज़्यादा कर दिया।
\s5
\v 16 इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि मैं रहमत के साथ यरुशलीम को वापस आया हूँ; उसमें मेरा घर ता'मीर किया जाएगा, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, और यरुशलीम पर फिर सूत खींचा जाएगा।
\v 17 फिर बुलन्द आवाज़ से कह, रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: मेरे शहर दोबारा ख़ुशहाली से मा'मूर होंगे, क्यूँकि खुदावन्द फिर सिय्यून को तसल्ली बख़्शेगा, और यरुशलीम को क़ुबूल फ़रमाएगा।
\s5
\v 18 ~फिर मैंने आँख उठाकर निगाह की, और क्या देखता हूँ कि चार सींग हैं।
\v 19 और मैंने उस फ़रिश्ते से जो मुझ से गुफ़्तगू करता था पूछा, कि "यह क्या हैं?" उसने मुझे जवाब दिया, 'यह वह सींग हैं, जिन्होंने यहूदाह और इस्राईल और यरुशलीम को तितर-बितर ~किया है।"
\s5
\v 20 फिर ख़ुदावन्द ने मुझे चार कारीगर दिखाए।
\v 21 ~तब मैंने कहा, "यह क्यूँ आए हैं?" उसने जवाब दिया, 'यह वह सींग हैं, जिन्होंने यहूदाह को ऐसा~तितर-बितर ~किया कि कोई सिर न उठा सका; लेकिन यह इसलिए आए हैं कि उनको डराएँ, और उन क़ौमों के सींगों को पस्त करें जिन्होंने यहूदाह के मुल्क को~तितर-बितर ~करने के लिए सींग उठाया है।"
\s5
\c 2
\p
\v 1 फिर मैने आँख उठाकर निगाह की और क्या देखता हूँ कि एक शख़्स जरीब हाथ में लिए खड़ा है।
\v 2 और मैंने पूछा, "तू कहाँ जाता है?" उसने मुझे जवाब दिया, यरुशलीम की पैमाइश को, ताकि देखें कि उसकी चौड़ाई और लम्बाई कितनी है।”
\s5
\v 3 और देखो, वह फ़रिश्ता जो मुझ से गुफ़्तगू करता था। रवाना हुआ, और दूसरा फ़रिश्ता उसके पास आया,
\v 4 और उससे कहा, "दौड़ और इस जवान से कह, कि यरुशलीम इंसान और हैवान की कसरत के ज़रिए' बेफ़सील बस्तियों की तरह आबाद होगा।
\v 5 क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है में उसके लिए चारों तरफ़ आतिशी दीवार हूँगा और उसके अन्दर उसकी शोकत|
\s5
\v 6 "सुनो "ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "शिमाल की सर ज़मीन से, जहाँ तुम आसमान की चारों हवाओं की तरह तितर-बितर ~किए गए, निकल भागो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 7 ऐ सिय्यून, तू जो दुख़्तर-ए-बाबुल के साथ बसती है, निकल भाग!
\s5
\v 8 क्यूँकि रब्बुल-अफ़वाज जिसने मुझे अपने जलाल की ख़ातिर उन क़ौमों के पास भेजा है, जिन्होंने तुम को ग़ारत किया, यूँ फ़रमाता है, जो कोई तुम को छूता है, मेरी आँख की पुतली को छूता है।
\v 9 ~क्यूँकि देख, मैं उन पर अपना हाथ हिलाऊँगा और वह अपने गु़लामों के लिए लूट होंगे। तब तुम जानोगे कि रब्बुल-अफ़वाज ने मुझे भेजा है।
\s5
\v 10 ऐ दुख़्तर-ए-सिय्यून, तू गा और ख़ुशी कर, क्यूँकि देख, मैं आकर तेरे अंदर सुकूनत करूँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 11 और उस वक़्त बहुत सी क़ौमें ख़ुदावन्द से मेल करेंगी और मेरी उम्मत होंगी, और मैं तेरे अंदर सुकूनत करूँगा, तब तू जानेगी कि रब्ब-उल-अफ़वाज ने मुझे तेरे पास भेजा है।
\s5
\v 12 और ख़ुदावन्द यहूदाह को मुल्क-ए-मुक़द्दस में अपनी मीरास का हिस्सा ठहराएगा, और यरुशलीम को क़ुबूल फ़रमाएगा।"
\v 13 ऐ बनी आदम, ख़ुदावन्द के सामने ख़ामोश रहो, क्यूँकि वह अपने मुक़द्दस घर से उठा है।
\s5
\c 3
\p
\v 1 और उसने मुझे यह दिखाया कि सरदार काहिन यशु' ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते के सामने खड़ा है और शैतान उसके दाहिने हाथ इस्तादा है ताकि उसका सामना करे|
\v 2 ~और ख़ुदावन्द ने शैतान से कहा, "ऐ शैतान, ख़ुदावन्द तुझे मलामत करे! हाँ, वह ख़ुदावन्द जिसने यरुशलीम को क़ुबूल किया है, तुझे मलामत करे ! क्या यह वह लुकटी नहीं जो आग से निकाली गई है?"
\v 3 और यशू'अ मैले कपड़े पहने फ़रिश्ते के सामने खड़ा था।
\s5
\v 4 फिर उसने उनसे जो उसके सामने खड़े थे कहा, "इसके मैले कपड़े उतार दो।" और उससे कहा, "देख, मैंने तेरी बदकिरदारी तुझ से दूर की, और मैं तुझे नफ़ीस लिबास पहनाऊँगा।”
\v 5 और उसने कहा, कि "उसके सिर पर साफ़ 'अमामा रख्खो।" तब उन्होंने उसके सिर पर साफ़ 'अमामा रख्खा और पोशाक पहनाई, और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उसके पास खड़ा रहा।
\s5
\v 6 और ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने यशू'अ से ता'कीद करके कहा,
\v 7 'रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: अगर तू मेरी राहों पर चले और मेरे अहकाम पर 'अमल करे, तो मेरे घर पर हुकूमत करेगा और मेरी बारगाहों का निगहबान होगा; और मैं तुझे इनमें खड़े हैं आने जाने की इजाज़त दूँगा|
\s5
\v 8 अब ऐ यशू'अ सरदार काहिन, सुन, तू और तेरे रफ़ीक़ जो तेरे सामने बैठे हैं, वह इस बात का ईमा हैं कि मैं अपने बन्दे या'नी शाख़ को लाने वाला हूँ।
\v 9 क्यूँकि उस पत्थर को जो मैंने यशू'अ के सामने रख्खा है, देख, उस पर सात आँखें हैं। देख, मैं इसे तितर-बितर करूँगा, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, और मैं इस मुल्क की बदकिरदारी को एक ही दिन में दूर करूँगा।
\s5
\v 10 रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, उसी दिन तुम में से हर एक अपने हम साये को ताक और अंजीर के नीचे बुलाएगा।"
\s5
\c 4
\p
\v 1 और वह फ़रिश्ता जो मुझ से बातें करता था, फिर आया और उसने जैसे मुझे नींद से जगा दिया,
\v 2 और पूछा, "तू क्या देखता है?" और मैंने कहा, कि "मैं एक सोने का शमा'दान देखता हूँ जिसके सिर पर एक कटोरा है और उसके ऊपर सात चिराग़ हैं, और उन सातों चिराग़ों पर उनकी सात सात नलियाँ।
\v 3 और उसके पास ज़ेतून के दो दरख़्त हैं, एक तो कटोरे की दहनी तरफ़ और दूसरा बाई तरफ़।”
\s5
\v 4 और मैंने उस फ़रिश्ते से जो मुझ से कलाम करता था, पूछा, "ऐ मेरे आक़ा, यह क्या हैं?"
\v 5 तब उस फ़रिश्ते ने जो मुझ से कलाम करता था कहा, "क्या तू नहीं जानता यह क्या है?" मैंने कहा, ‘नहीं, ऐ मेरे आक़ा।”
\s5
\v 6 तब उसने मुझे जवाब दिया, कि यह ज़रुब्बाबुल के लिए ख़ुदावन्द का कलाम है: कि न तो ताक़त से, और न तवानाई से, बल्कि मेरी रूह से, रब्बु-ल-अफ़वाज फ़रमाता है।
\v 7 ऐ बड़े पहाड़, तू क्या है? तू ज़रुब्बाबुल के सामने मैदान हो जाएगा, और जब वह चोटी का पत्थर निकाल लाएगा, तो लोग पुकारेंगे, कि उस पर फ़ज़ल हो फ़ज़ल हो |
\s5
\v 8 फिर खुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ,
\v 9 कि ज़रुब्बाबुल के हाथों ने इस घर की नींव डाली, और उसी के हाथ इसे तमाम भी करेंगे। तब तू जानेगा कि रब्ब-उल-अफ़वाज ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।
\v 10 क्यूँकि कौन है जिसने छोटी चीज़ों के दिन की तहक़ीर की है? "क्यूँकि ख़ुदावन्द की वह सात आँखें, जो सारी ज़मीन की सैर करती हैं, खुशी से उस साहूल को देखती हैं जो ज़रुब्बाबुल के हाथ में है।"
\v 11 तब मैंने उससे पूछा, कि यह दोनों ज़ैतून के दरख़्त जो शमा'दान के दहने बाएँ हैं, क्या हैं?"
\s5
\v 12 और मैंने दोबारा उससे पूछा, कि ज़ैतून की यह दो शाख़ क्या हैं, जो सोने की दो नलियों के मुत्तसिल हैं, जिनकी राह से सुन्हेला तेल निकला चला जाता है?"
\v 13 उसने मुझे जवाब दिया, "क्या तू नहीं जानता, यह क्या हैं?” मैंने कहा, "नहीं, ऐ मेरे आक़ा।"
\s5
\v 14 उसने कहा, 'यह वह दो मम्सूह हैं, जो रब्ब-उल-'आलमीन के सामने खड़े रहते हैं।"
\s5
\c 5
\p
\v 1 फिर मैंने आँख उठाकर नज़र की, और क्या देखता हूँ कि एक उड़ता हुआ तूमार है।
\v 2 उसने मुझ से पूछा, "तू क्या देखता है, मैंने जवाब दिया एक उड़ता हुआ तूमार देखता हूँ, जिसकी लम्बाई बीस और चौड़ाई दस हाथ है।”
\s5
\v 3 फिर उसने मुझ से कहा, "यह वह ला'नत है जो तमाम मुल्क पर नाज़िल' होने को है, और इसके मुताबिक़ हर एक चोर और झूठी क़सम खाने वाला यहाँ से काट डाला जाएगा।
\v 4 रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, मैं उसे भेजता हूँ, और वह चोर के घर में और उसके घर में, जो मेरे नाम की झूठी क़सम खाता है, घुसेगा और उसके घर में रहेगा; और उसे उसकी लकड़ी और पत्थर के साथ बर्बाद करेगा।"
\s5
\v 5 वह फिर फ़रिश्ता जो मुझ से कलाम करता था निकला, और उसने मुझ से कहा, कि "अब तू आँख उठाकर देख, क्या निकल रहा है?”
\v 6 मैंने पूछा, "यह क्या है?" उसने जवाब दिया, ~"यह एक ऐफ़ा निकल रहा है।” और उसने कहा, कि तमाम मुल्क में यही उनकी शबीह है।"
\v 7 और सीसे का एक गोल सरपोश उठाया गया, और एक 'औरत ऐफ़ा में बैठी नज़र आई!
\s5
\v 8 और उसने कहा, कि यह शरारत है।" और उसने उसको ऐफ़ा में नीचे दबाकर, सीसे के उस सरपोश को ऐफ़ा के मुँह पर रख दिया।
\v 9 फिर मैंने आँख उठाकर निगाह की, और क्या देखता हूँ कि दो 'औरतें निकल आई और हवा उनके बाजू़ओं में भरी थी, क्यूँकि उनके लक़लक़ के से बा'ज़ु थे, और वह ऐफ़ा की आसमान और ज़मीन के बीच उठा ले गई।
\s5
\v 10 तब मैंने उस फ़रिश्ते से जो मुझ से कलाम करता था, पूछा, कि "यह ऐफ़ा को कहाँ लिए जाती हैं?"
\v 11 उसने मुझे जवाब दिया कि "सिन'आर के मुल्क को, ताकि इसके लिए घर बनाएँ, और जब वह तैयार हो तो यह अपनी जगह में रख्खी जाए।”
\s5
\c 6
\p
\v 1 तब फिर मैंने ऑख उठाकर निगाह की तो क्या देखता हूँ कि दो पहाड़ों के बीच ~से चार रथ निकले, और वह पहाड़ पीतल के थे।
\v 2 पहले रथ के घोड़े सुरंग, ~दूसरे के मुशकी ,
\v 3 तीसरे के नुक़रा और चौथे के अबलक़ थे।
\v 4 तब मैंने उस फ़रिश्ते से जो मुझ से कलाम करता था पूछा, "ऐ मेरे आक़ा, यह क्या हैं?"
\s5
\v 5 और फ़रिश्ते ने मुझे जवाब दिया, कि 'यह आसमान की चार हवाएँ हैं' जो रब्बुल-'आलमीन के सामने से निकली हैं।
\v 6 और मुशकी घोड़ों वाला रथ उत्तरी मुल्क को निकला चला जाता है, और नुकरा घोड़ों वाला उसके पीछे और अबलक़ घोड़ों वाला दक्खिनी मुल्क को।”
\s5
\v 7 और सुरंग घोड़ों वाला भी निकला, और उन्होंने चाहा कि दुनिया की सैर करें; और उसने उनसे कहा, "जाओ, दुनिया की सैर करो।” और उन्होंने दुनिया की सैर की।
\v 8 तब उसने बुलन्द आवाज़ से मुझ से कहा, "देख, जो उत्तरी मुल्क को गए हैं, उन्होंने वहाँ मेरा जी ठंडा किया है।”
\s5
\v 9 फिर खुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ :
\v 10 कि तू आज ही ख़ल्दी और तूबियाह और यद'अयाह के पास जा, जो बाबुल के ग़ुलामों की तरफ़ से आकर यूसियाह-बिन-सफ़निया के घर में उतरे हैं।
\v 11 और उनसे सोना-चाँदी लेकर ताज बना, और यशू'अबिन-यहूसदक़ सरदार काहिन को पहना;
\s5
\v 12 और उससे कह, 'कि रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है, कि देख, वह शख्स जिसका नाम शाख़ है, उसके ज़ेर-ए-साया ख़ुशहाली होगी और वह ख़ुदावन्द की हैकल को ता'मीर करेगा।
\v 13 हाँ, वही ख़ुदावन्द की हैकल को बनाएगा और वह साहिब-ए-शौकत होगा, और तख़्त नशीन होकर हुकूमत करेगा और उसके साथ काहिन भी तख़्त नशीन होगा; और दोनों में सुलह-ओ-सलामती की मशवरत होगी।'
\s5
\v 14 और यह ताज हीलम और तूबियाह और यद'अयाह और हेन-बिन-सफ़नियाह के लिए ख़ुदावन्द की हैकल में यादगार होगा।
\v 15 और वह जो दूर हैं आकर ख़ुदावन्द की हैकल को ता'मीर करेंगे, तब तुम जानोगे कि रब्बु -उल-अफ़वाज ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है; और अगर तुम दिल से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की फ़रमाबरदारी करोगे तो यह बातें पूरी होंगी।"
\s5
\c 7
\p
\v 1 दारा बादशाह की सल्तनत के चौथे बरस के नवें महीने, या'नी किसलेव महीने की चौथी तारीख़ को ख़ुदावन्द का कलाम ज़करियाह पर नाज़िल हुआ।
\v 2 और बैतएल के बाशिन्दों ने शराज़र और रजममलिक और उसके लोगों को भेजा कि ख़ुदावन्द से दरख़्वास्त करें,
\v 3 और रब्ब-उल-अफ़वाज के घर के काहिनों और नबियों से पूछे, कि "क्या मैं पाँचवें महीने में गोशानशीन होकर मातम करूँ, जैसा कि मैंने सालहाँ साल से किया है?"
\s5
\v 4 तब रब्ब-उल-अफ़वाज का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ :
\v 5 कि मम्लुकत के सब लोगों और काहिनों से कह कि जब तुम ने पाँचवें और सातवें महीने में, इन सत्तर बरस तक रोज़ा रख्खा और मातम किया, तो क्या था कभी मेरे लिए ख़ास मेरे ही लिए रोज़ा रख्खा था?
\v 6 और जब तुम खाते-पीते थे तो अपने ही लिए न खाते-पीते थे?
\v 7 क्या यह वही कलाम नहीं जो ख़ुदावन्द ने गुज़िश्ता नबियों की मा'रिफ़त फ़रमाया, जब यरुशलीम आबाद और आसूदा हाल था, और उसके 'इलाक़े के शहर और दक्खिन की सर ज़मीन और सैदान आबाद थे?"
\s5
\v 8 फिर ख़ुदावन्द का कलाम जक़रियाह पर नाज़िल हुआ :
\v 9 कि रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाया था, कि रास्ती से 'अदालत करो, और हर शख़्स अपने भाई पर करम और रहम किया करे,
\v 10 और बेवा और यतीम और मुसाफ़िर और मिस्कीन पर ज़ुल्म न करो, और तुम में से कोई अपने भाई के ख़िलाफ़ दिल में बुरा मन्सूबा न बाँधे।"
\s5
\v 11 ~लेकिन वह सुनने वाले न हुए, बल्कि उन्होंने गर्दनकशी की तरफ़ अपने कानों को बंद किया ताकि न सुनें।
\v 12 और उन्होंने अपने दिलों को अल्मास की तरह सख़्त किया, ताकि शरी'अत और उस कलाम को न सुनें जो रब्बुल-अफ़वाज ने गुज़िश्ता नबियों पर अपने रूह की मा'रिफ़त नाज़िल फ़रमाया था। इसलिए रब्ब-उल-अफ़वाज की तरफ़ से क़हर-ए-शदीद नाज़िल हुआ।
\s5
\v 13 और रब्ब-उल-अफ़वाज ने फ़रमाया था: "जिस तरह मैंने पुकार कर कहा और वह सुनने वाले न हुए, उसी तरह वह पुकारेंगे और मैं नहीं सुनूँगा।
\v 14 बल्कि उनको सब क़ौमों में जिनसे वह नावाक़िफ़ हैं तितर-बितर ~करूँगा। यूँ उनके बा'द मुल्क वीरान हुआ, यहाँ तक कि किसी ने उसमें आमद-ओ-रफ़्त न की, क्यूँकि उन्होंने उस दिलकुशा मुल्क को वीरान कर दिया।”
\s5
\c 8
\p
\v 1 फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ :
\v 2 कि रब्ब-उल-अफ़्वाज़ यूँ फ़रमाता है कि मुझे सिय्यून के लिए बड़ी गै़रत है बल्कि मैं गै़रत से सख़्त ग़ज़बनाक हुआ
\v 3 ख़ुदावन्द यु फ़रमात है कि मैं सिय्यून में वापस आया हुआ और यरुशलीम में सकूनत करूँगा और यरुशलीम शहर-ए-सिदक़ होगा और रब्ब-उल-अफ़्वाज़ का पहाड़ कोहे मुक़द्दस कहलाएगा
\s5
\v 4 रब्बु-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि यरुशलीम के गलियों में 'उम्र रसीदा मर्द-ओ- ज़न बुढ़ापे की वजह से हाथ में 'असा लिए हुए फिर बैठे होंगे।
\v 5 ~और शहर की गलियों में खेलने वाले लड़के-लड़कियों से मा'मूर होंगे।
\s5
\v 6 और रब्ब-उल-अफवाज यूँ फ़रमाता है कि अगरचे उन दिनों में यह 'अम्र इन लोगों के बक़िये की नज़र में हैरत अफ़ज़ा हो, तोभी क्या मेरी नज़र में हैरत अफ़ज़ा होगा? रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।
\v 7 रब्ब उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: देख, मैं अपने लोगों को पूरबी और पश्चिमी ममालिक से छुड़ा लूगा।
\v 8 और मैं उनको वापस लाऊँगा और वह यरुशलीम में सुकूनत करेंगे, और वह मेरे लोग होंगे और मैं रास्ती-और -सदाक़त से उनका ख़ुदा हूँगा।"
\s5
\v 9 रब्बु-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: "कि ऐ लोगो, अपने हाथों को मज़बूत करो; तुम जो इस वक़्त यह कलाम सुनते हो, जो रब्ब उल-अफ़वाज के घर या'नी हैकल की ता'मीर के लिए बुन्नियाद डालते वक़्त नबियों के ज़रिए' नाज़िल हुआ।
\v 10 क्यूँकि उन दिनों से पहले, न इंसान के लिए मज़दूरी थी और न हैवान का किराया था, और दुश्मन की वजह से आने-जाने वाले महफू़ज़ न थे, क्यूँकि मैंने सब लोगों में निफ़ाक डाल दिया।
\s5
\v 11 लेकिन अब मैं इन लोगों के बक़िये के साथ पहले की तरह पेश न आऊँगा, रब्बुल-उल-अफ़वाज फ़रमाता है|
\v 12 बल्कि ज़िरा'अत सलामती से होगी, अपना फल देगी और ज़मीन अपना हासिल और आसमान से ओस पड़ेगी, मैं इन लोगों के बकिये को इन सब बरकतों का वारिस बनाऊँगा।
\s5
\v 13 ऐ बनी यहूदाह और ऐ बनी-इस्राईल, तरह तुम दूसरी क़ौमों में ला'नत तरह मैं तुम को छुड़ाऊँगा और तुम बरकत होगे। परेशान न हो, तुम्हारे हाथ मज़बूत हों।"
\v 14 क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि "जिस तरह मैंने क़स्द किया था कि तुम पर आफ़त लाऊँ, तुम्हारे बाप-दादा ने मुझे ग़ज़बनाक किया और मैं अपने इरादे से बाज़ न रहा, फ़रमाता है;
\v 15 उसी तरह मैंने अब इरादा किया है कि यरुशलीम और यहूदाह के घराने से नेकी करूँ; लेकिन तुम परेशान न हो।
\s5
\v 16 ~फ़िर लाज़िम है कि तुम इन बातों पर 'अमल करो। तुम सब अपने पड़ौसियों से सच बोलो, अपने फाटकों में रास्ती से करो ताकि सलामती हो,
\v 17 और तुम में से कोई अपने भाई के ख़िलाफ़ दिल में बुरा मंसूबा न बाँधे, झूटी क़सम को 'अज़ीज़ न रख्खे; मैं इन सब बातों से नफ़रत रखता हूँ ख़ुदावन्द फ़रमाता है |
\s5
\v 18 फिर रब्ब-उल-अफ़वाज का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 19 ~कि रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि चौथे और पाँचवें और सातवें और दसवें महीने का रोज़ा , यहूदाह के लिए खुशी और ख़ुर्रमी का दिन और शादमानी की 'ईद होगा; तुम सच्चाई और सलामती को 'अज़ीज़ रक्खो|
\s5
\v 20 रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि फिर क़ौम में और बड़े बड़े शहरों के बाशिन्दे ~आएँगे।
\v 21 एक शहर के बाशिन्दे दूसरे शहर में जाकर कहेंगे, जल्द ख़ुदावन्द से दरख़्वास्त करें और रब्ब-उल-अफ़वाज के तालिब हों, भी चलता हूँ।'
\v 22 बहुत सी उम्मातें और ज़बरदस्त क़ौमें रब्ब-उल-अफ्वाज की तालिब होंगी, ख़ुदावन्द से दरख़्वास्त करने को यरुशलीम में आएँगी।
\s5
\v 23 ~रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि उन दिनों में मुख़्तलिफ़ अहल-ए-लुग़त में से दस आदमी हाथ बढ़ाकर एक यहूदी का दामन पकड़ेंगे और कहेंगे कि हम तुम्हारे साथ जायेंगे क्यूँकि हम ने सुना है कि ख़ुदा तुम्हारे साथ है।'
\s5
\c 9
\p
\v 1 बनी आदम और ख़ुसूसन कुल क़बाइल- ए-इस्राईल की आँखें ख़ुदावन्द पर लगी हैं। ख़ुदावन्द की तरफ़ से सर ज़मीन-ए- और दमिश्क़ के ख़िलाफ़ बार-ए-नबूव्वत;
\v 2 हमात के खिलाफ़ जो उनसे सूर और सैदा के खिलाफ़ जो अपनी नज़र में बहुत 'अक़्लमन्द हैं।
\s5
\v 3 ~सूर ने अपने लिए मज़बूत क़िला' मिट्टी की तरह चाँदी के तूदे लगाए और गलियों की कीच की तरह सोने के ढेर।
\v 4 ~देखो ख़ुदावन्द उसे ख़ारिज कर देगा, उसके ग़ुरूर को समुन्दर में डाल देगा: और आग उसको खा जाएगी।
\s5
\v 5 ~अस्क़लोन देखकर डर जाएगा ग़ज़्ज़ा भी सख़्त दर्द में मुब्तिला होगा, 'अक्रून भी क्यूँकि उसकी उम्मीद टूट गई और ग़ज़्ज़ा से बादशाही जाती रहेगी,अस्क़लोन~बे चिराग़ हो जाएगा। ~
\v 6 और एक अजनबी ज़ादा अशदूद में तख़्त नशीन होगा और मैं ~फ़िलिस्तियों का ग़ुरूर मिटाऊँगा।
\v 7 ~और मैं उसके खू़न को उसके मुँह से और उसकी मकरूहात उसके दाँतों से निकाल डाललूँगा, और वह भी हमारे ख़ुदा के लिए बक़िया होगा और वह यहूदाह में सरदार होगा और 'अक्रूनी यबूसियों की तरह होंगे।
\s5
\v 8 ~और मैं मुख़ालिफ़ फ़ौज के मुक़ाबिल अपने घर की चारों तरफ़ खै़माज़न हूँगा ताकि कोई उसमें से आमद-ओ-रफ़्त न कर सके; फिर कोई ज़ालिम उनके बीच से न गुज़रेगा क्यूँकि अब मैंने अपनी आँखों से देख लिया है।
\s5
\v 9 ऐ बिन्त-ए-सिय्यून तू निहायत शादमान हो! ऐ दुख़्तर-ए-यरुशलीम, ख़ूब ललकार क्यूँकि देख तेरा बादशाह तेरे पास आता है; वह सादिक है, नजात उसके हाथ में है वह हलीम है और गधे पर बल्कि जवान गधे पर सवार है।
\v 10 और मैं इफ़्राईम से रथ, यरुशलीम से घोड़े काट डालूँगा और जंगी कमान तोड़ डाली जाएगी और वह क़ौमों को सुलह का मुज़दा देगा और उसकी सल्तनत समुन्दर से समन्दर तक और दरिया-ए-फ़ुरात से इन्तिहाए-ज़मीन तक होगी।;
\s5
\v 11 ~और तेरे बारे में यूँ है कि तेरे 'अहद के खू़न की वजह से, तेरे ग़ुलामों को अंधे कुंए से निकाल लाया।
\v 12 मैं आज बताता हूँ कि तुझ को दो बदला दूँगा, ऐ उम्मीदवार, ग़ुलामों क़िले' वापस आओ।"
\v 13 क्यूँकि मैंने यहूदाह को कमान की तरह झुकाया और इफ़्राईम को तीर की तरह लगाया, और ऐ सिय्यून, मैं तेरे फ़र्ज़न्दों को यूनान के फ़र्ज़न्दों के ख़िलाफ़ बरअन्गेख़ता करूँगा, तुझे पहलवान की तलवार की तरह बनाऊँगा।
\s5
\v 14 और ख़ुदावन्द उनके ऊपर दिखाई देगा उसके तीर बिजली की तरह निकलेंगे; हाँ ख़ुदावन्द ख़ुदा नरसिंगा फूँकेगा और दक्खिनी बगोलों के साथ खुरूज करेगा |
\v 15 और रब्ब-उल-अफ़वाज उनकी हिमायत करेगा और वह दुश्मनों को निगलेंगे,और फ़लाख़न के पत्थरों को पायमाल करेंगे और पीकर मतवालों की तरह शोर मचायेंगे और कटोरों और मज़बह के कोनों की तरह मा'मूर होंगे।
\s5
\v 16 और ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा उस दिन उनको अपनी भेंड़ों की तरह बचा लेगा, क्यूँकि वह ताज के जवाहर की तरह होंगे, जो उसके मुल्क में सरफ़राज़
\v 17 ~क्यूँकि उनकी खुशहाली 'अज़ीम और उनका जमाल खू़ब है, नौजवान ग़ल्ले से बढ़ेंगे और लड़कियाँ नई शराब से नश्व-ओ-नुमा पाएँगी|
\s5
\c 10
\p
\v 1 पिछली बरसात की बारिश के लिए ख़ुदावन्द से दू'आ करो ख़ुदावन्द से जो बिजली चमकाता है वह बारिश भेजेगा और मैदान में सबके लिए घास उगाएगा |
\v 2 क्यूँकि तराफीम ने बतालत की बातें कहीं हैं और गै़बबीनों ने बतालत देखी और झूठे ख़्वाब बयान किये हैं उनकी तसल्ली बे हक़ीक़त है ~इसलिए वह भेड़ों की तरह भटक गए। उन्होंने दुख पाया क्यूँकि उनका कोई चरवाहा न था।
\s5
\v 3 ~मेरा ग़ज़ब चरवाहों पर भड़का है, मैं पेशवाओं को सज़ा दूँगा; तोभी रब्ब-उल-अफ़वाज ने अपने गल्ले या'नी बनी यहूदाह पर नज़र की है, उनको गोया अपना खू़बसूरत जंगी घोड़ा बनाएगा।
\s5
\v 4 उन्ही में से कोने का पत्थर और खूंटी जंगी कमान और सब हाकिम निकलेंगे।
\v 5 और वह पहलवानों की तरह लड़ाई में दुश्मनों को गलियों की कीच की तरह लताड़ेंगे और वह लड़ेंगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द उनके साथ हैं और सवार सरासीमा हो जाएँगे।
\s5
\v 6 और मैं यहूदाह के घराने की तकवियत करूँगा और यूसुफ़ के घराने को रिहाई बख़्शूँगा और उनको वापस लाऊँगा,क्यूँकि मैं उन पर रहम करता हूँ, वह ऐसे होंगे गोया मैंने कभी उनको तर्क नहीं किया था, मैं ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हूँ और उनकी सुनूँगा।
\v 7 ~और बनी इफ़्राईम पहलवानों की तरह होंगे और उनके दिल गोया मय से मसरूर होंगे, बल्कि उनकी औलाद भी देखेगीऔर शादमानी करेगी; उनके दिल ख़ुदावन्द से ख़ुश होंगे।
\s5
\v 8 ~मैं सीटी बजाकर उनको इकठ्ठा करूँगा, क्यूँकि मैंने उनका फ़िदिया दिया है; वह बहुत हो जाएँगे जैसे पहले
\v 9 ~अगरचे मैंने उन्हें क़ौमों में तितर-बितर किया तोभी वह उन दूर के मुल्कों में मुझे याद करेंगे और अपने बाल बच्चों साथ ज़िन्दा रहेंगे और वापस आएँगे।
\v 10 ~मैं उनको मुल्क-ए-मिस्र से वापस लाऊँगा असूर से जमा' करूँगा और जिल'आद और लुबनान की सरज़मीन में पहुँचाऊँगा,यहाँ तक कि उनके लिए गुंजाइश न होगी।
\s5
\v 11 ~और वह मुसीबत के समुन्दर से गुज़र जाएगा और उसकी लहरों को मारेगा, और दरया-ए-नील तक सूख जाएगा, असूर का तकब्बुर टूट जाएगा और मिस्र का 'असा जाता रहेगा।
\v 12 ~और मैं उनको ख़ुदावन्द में तक़वियत बख़्शूँगा और वह उसका नाम लेकर इधर उधर चलेंगे।”~
\s5
\c 11
\p
\v 1 ऐ ~लुबनान, तू अपने दरवाज़ों को खोलदे ताकि आग तेरे देवदारों को खा जाए।
\v 2 ऐ सरो के दरख़्त, नौहा कर क्यूँकि देवदार गिर गया, शानदार गारत हो गए। ऐ बसनी बलूत के दरख़्तो, फ़ुगां करो क्यूँकि दुशवार गुज़ार जंगल साफ़ हो
\v 3 चरवाहों के नौहे की आवाज़ आती है, क्यूँकि उनकी हशमत ग़ारत हुई! जवान बबरों की गरज़ सुनाई देती है क्यूँकि यरदन का जंगल बर्बाद हो गया!
\s5
\v 4 ~ख़ुदावन्द मेरा ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: "कि जो भेड़ें ज़बह हो रही हैं उनको चरा|
\v 5 ~जिनके मालिक उनको ज़बह करते और अपने आप को बेक़ुसूर समझते हैं, और जिनके बेचने वाले कहते हैं,ख़ुदावन्द का शुक्र हो कि हम मालदार हुए," और उनके चरवाहे उन पर रहम नहीं करते |
\v 6 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मुल्क के बाशिन्दों पर फिर रहम नहीं करूँगा, बल्कि हर शख़्स को उसके हमसाये और उसके बादशाह के हवाले कर दूँगा; वह मुल्क को तबाह करेंगे और मैं उनको उनके हाथ से नहीं छुड़ाऊँगा|
\s5
\v 7 ~तब मैंने उन भेड़ों को जो ज़बह हो रही थीं, या'नी गल्ले के मिस्कीनों को चराया और मैंने दो लाठियाँ लीं; एक का नाम फ़ज़ल रख्खा और दूसरी का इत्तिहाद,और गल्ले को चराया।
\v 8 और मैंने एक महीने में तीन चरवाहों को हलाक किया, क्यूँकि मेरी जान उनसे बेज़ार थी; उनके दिल में मुझ से कराहियत थी |
\v 9 तब मैंने कहा, "कि अब मैं तुम को न चराऊँगा। मरने वाला मरजाए और हलाक होने वाला हलाक हो, बाक़ी एक दूसरे का गोश्त खाएँ।
\s5
\v 10 ~तब मैंने फ़ज़ल नामी लाठी को लिया और उसे काट डाला कि अपने 'अहद को जो मैंने सब लोगों से बाँधा था, मन्सूख़ करूँ।
\v 11 और वह उसी दिन मन्सूख़ हो गया; तब गल्ले के मिस्कीनों ने जो मेरी सुनते थे, मा'लूम किया कि यह ख़ुदावन्द का कलाम है;
\v 12 और मैंने उनसे कहा,कि "अगर तुम्हारी नज़र में ठीक हो, तो मेरी मज़दूरी मुझे दो नहीं तो मत दो।" और उन्होंने मेरी मज़दूरी के लिए तीस रुपये तोल कर दिए।
\s5
\v 13 और ख़ुदावन्द ने मुझे हुक्म दिया, कि "उसे कुम्हार के सामने फेंक दे," या'नी इस बड़ी क़ीमत को जो उन्होंने मेरे लिए ठहराई, और मैंने यह तीस रुपये लेकर ख़ुदावन्द के घर में कुम्हार के सामने फेंक दिए।
\v 14 तब मैंने दूसरी लाठी या'नी इत्तिहाद नामी को काट डाला, ताकि उस बिरादरी को जो यहूदाह और इस्राईल में है ख़त्म करूँ
\s5
\v 15 और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, कि "तू फिर नादान चरवाहे का सामान ले।
\v 16 ~क्यूँकि देख, मैं मुल्क में ऐसा चौपान बर्पा करूँगा, जो हलाक होने वाले की ख़बर गीरी, और भटके हुए की तलाश और ज़ख़्मी का 'इलाज न करेगा, और तन्दुरुस्त को न चराएगा लेकिन मोटों का गोश्त खाएगा,और उनके खुरों को तोड़ डालेगा।
\s5
\v 17 उस नाबकार चरवाहे पर अफ़सोस,जो ग़ल्ले को छोड़ जाता है, तलवार उसके बाजू़ और उसकी दहनी आँख पर आ पड़ेगी। उसका बाजू़ बिल्कुल सूख जाएगा और उसकी दहनी आँख फूट जाएगी।”
\s5
\c 12
\p
\v 1 ~इस्राईल के बारे में ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार-ए-नबुव्वत: ख़ुदावन्द जो आसमान को तानता और ज़मीन की नियु डालता और इंसान के अन्दर उसकी रूह पैदा करता है, यूँ फ़रमाता है :
\v 2 देखो, मैं यरुशलीम को चारों तरफ़ के सब लोगों के लिए लड़खड़ाहट का प्याला बनाऊँगा, और यरुशलीम के मुहासिरे के वक़्त यहूदाह का भी यही हाल होगा।
\v 3 और मैं उस दिन यरुशलीम को सब क़ौमों के लिए एक भारी पत्थर बना दूँगा, और जो उसे उठाएँगे सब घायल होंगे, और दुनिया की सब क़ौमें उसके सामने जमा' होंगी।
\s5
\v 4 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं उस दिन हर घोड़े को हैरतज़दा और उसके सवार को दीवाना कर दूँगा, लेकिन यहूदाह के घराने पर निगाह रख्खूँगा, और क़ौमों के सब घोड़ों को अंधा कर दूँगा।
\v 5 तब यहूदाह के फ़रमारवाँ दिल में कहेंगे, कि 'यरुशलीम के बाशिन्दे अपने ख़ुदा रब्ब-उल-अफ़वाज की वजह से हमारी ताक़त हैं।'
\s5
\v 6 मैं उस दिन यहूदाह के फ़रमारवाओं को लकड़ियों में जलती अंगेठी और पूलों में मश'अल की तरह बनाऊँगा, और वह दहने बाएँ चारों तरफ़ की सब क़ौमों को खा जाएँगे, और अहल-ए-यरुशलीम फिर अपने मक़ाम पर यरुशलीम में ही आबाद होंगे।
\s5
\v 7 और ख़ुदावन्द यहूदाह के ख़ैमों को पहले रिहाई बख़्शेगा, ताकि दाउद का घराना और यरुशलीम के बाशिन्दे यहूदाह के ख़िलाफ़ ग़ुरूर न करें।
\v 8 उस दिन ख़ुदावन्द यरुशलीम के बाशिन्दों की हिमायत करेगा, और उनमें का सबसे कमज़ोर उस दिन दाऊद की तरह होगा; और दाऊद का घराना ख़ुदा की तरह , या'नी ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते की तरह जो उनके आगे आगे चलता हो।
\v 9 और मैं उस दिन यरुशलीम की सब मुख़ालिफ़ क़ौमों की हलाकत का क़सद करूँगा।
\s5
\v 10 और मैं दाऊद के घराने और यरुशलीम के बाशिन्दों पर फ़ज़ल और मुनाजात की रूह नाज़िल करूँगा, और वह उस पर जिसको उन्होंने छेदा है नज़र करेंगे और उसके लिए मातम करेंगे जैसा कौई अपने एकलौते के लिए करता है और उसके लिए तल्ख़ काम होंगे जैसे कोई अपने पहलौठे के लिए होता है |
\v 11 और उस दिन यरुशलीम में बड़ा मातम होगा, हदद रिम्मोन के मातम की तरह जो मजिहोन की वादी में हुआ|
\s5
\v 12 और तमाम मुल्क मातम करेगा, हर एक घराना अलग; दाऊद का घराना अलग, और उनकी बीवियाँ अलग; नातन का घराना अलग, और उनकी बीवियाँ अलग;
\v 13 ~लावी का घराना अलग, और उनकी बीवियाँ अलग; सिम'ई का घराना अलग, और उनकी बीवियाँ अलग;
\v 14 बाक़ी सब घराने अलग-अलग, और उनकी बीवियाँ अलग अलग !'
\s5
\c 13
\p
\v 1 उस रोज़ गुनाह और नापाकी धोने को दाऊद के घराने और यरुशलीम के बशिन्दों के लिए एक सोता फूट निकले गा
\v 2 और रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, मैं उसी दिन मुल्क से बुतों का नाम मिटा दूँगा, और उनको फिर कोई याद न करेगा; और मैं नबियों को और नापाक रूह को मुल्क से ख़ारिज कर दूँगा।
\s5
\v 3 और जब कोई नबुव्वत करेगा, तो उसके माँ-बाप जिनसे वह पैदा हुआ उससे कहेंगे तू ज़िन्दा न रहेगा क्यूँकि तू ख़ुदावन्द का नाम लेकर झूठ बोलता है और जब एह नबुव्वत करेगा तो उसके माँ बाप जिनसे वह पैदा हुआ छेद डालेगें |
\s5
\v 4 और उस दिन नबियों में से हर एक नबुव्वत करते वक़्त अपनी ख़्वाब से शर्मिन्दा होगा, और कभी धोखा देने के लिए कम्बल के कपड़े न पहनेगे,
\v 5 बल्कि हर एक कहेगा, कि मैं नबी नहीं किसान हूँ, क्यूँकि मैं लड़कपन ही से गु़लाम रहा हूँ।'
\v 6 और जब कोई उससे पूछेगा, कि तेरी छाती" पर यह ज़ख़्म कैसे हैं?" तो वह जवाब देगा यह वह ज़ख्म हैं जो मेरे दोस्तों के घर में लगे |
\s5
\v 7 रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, "ऐ तलवार, तू मेरे चरवाहे, या'नी उस इन्सान पर जो मेरा रफ़ीक़ है बेदार हो। 'चरवाहे को मार कि ग़ल्ला तितर-बितर हो। जाए, और मैं छोटों पर हाथ चलाऊँगा।
\s5
\v 8 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, सारे मुल्क में दो तिहाई क़त्ल किए जाएँगे और मरेंगे, लेकिन एक तिहाई बच रहेंगे।
\v 9 और मैं इस तिहाई को आग में डालकर चाँदी की तरह साफ़ करूँगा और सोने की ताऊँगा। वह मुझ से दु'आ करेंगे, और मैं उनकी सुनूँगा। मैं कहूँगा, 'यह मेरे लोग हैं," और वह कहेंगे, 'ख़ुदावन्द ही हमारा ख़ुदा है।"
\s5
\c 14
\p
\v 1 ~देख, ख़ुदावन्द का दिन आता है, जब तेरा माल लूटकर तेरे अन्दर बाँटा जाएगा।
\v 2 क्यूँकि मैं सब क़ौमों को जमा' करूँगा कि यरुशलीम से जंग करें, और शहर ले लिया जाएगा और घर लूटे जाएँगे और 'औरतें बे हुरमत की जायेंगी और आधा शहर ग़ुलामी में जाएगा, लेकिन बाक़ी लोग शहर ही में रहेंगे।
\s5
\v 3 तब ख़ुदावन्द ख़ुरूज करेगा और उन क़ौमों से लड़ेगा, जैसे जंग के दिन लड़ा करता था।
\v 4 और उस दिन वह को-हए-जै़तून पर जो यरुशलीम के पूरब में वाक़े' है खड़ा होगा और कोह-ए-ज़ैतून बीच से फट जाएगा; और उसके पूरब से पशचिम तक एक बड़ी वादी हो जाएगी, क्यूँकि आधा पहाड़ उत्तर को सरक जाएगा और आधा दक्खिन को।
\s5
\v 5 और तुम मेरे पहाड़ों की वादी से होकर भागोगे, क्यूँकि पहाड़ों की वादी अज़ल तक होगी; जिस तरह तुम शाह-ए- यहूदाह उज़ियाह के दिनों में ज़लज़ले से भागे थे, उसी तरह भागोगे; क्यूँकि ख़ुदावन्द मेरा ख़ुदा आएगा और सब कु़दसी उसके साथ
\s5
\v 6 और उस दिन रोशनी न होगी, और अजराम-ए-फ़लक छिप जाएँगे।
\v 7 लेकिन एक दिन ऐसा आएगा जो ख़ुदावन्द ही को मा'लूम है। वह न दिन होगा न रात, लेकिन शाम के वक़्त रोशनी होगी।
\v 8 और उस दिन यरुशलीम से आब-ए- हयात जारी होगा, जिसका आधा बहर-ए- पूरब की तरफ़ बहेगा और आधा बहर-ए- पच्छिम की तरफ़, गमीं सदी में जारी रहेगा।
\s5
\v 9 और ख़ुदावन्द सारी दुनिया का बादशाह होगा। उस दिन एक ही ख़ुदावन्द होगा, और उसका नाम वाहिद होगा।
\v 10 ~और यरुशलीम के दक्खिन में तमाम मुल्क जिबा' से रिम्मोन तक मैदान की तरह हो जाएगा। लेकिन यरुशलीम बुलन्द होगा, और बिनयमीन के फाटक से पहले फाटक के मक़ाम या'नी कोने के फाटक तक, और हननएल के बुर्ज से बादशाह के अंगूरी हौज़ों तक, अपने मक़ाम पर आबाद होगा।
\v 11 और लोग इसमें सुकूनत करेंगे और फिर ला'नत मुतलक़ न होगी, बल्कि यरुशलीम ~अमन-ओ-अमान से आबाद रहेगा।
\s5
\v 12 और ख़ुदावन्द यरुशलीम से जंग करने वाली सब क़ौमों पर यह 'अज़ाब नाज़िल करेगा, कि खड़े खड़े उनका गोश्त सूख जाएगा,और उनकी आँखे चश्म खानों में गल जायेंगी और उनकी ज़बान उनके मुँह में सड़ जाएगी।
\v 13 और उस दिन ख़ुदावन्द की तरफ़ से उनके बीच बड़ी हलचल होगी और एक दूसरे का हाथ पकड़ेंगे और एक दूसरे के ख़िलाफ़ हाथ उठाएगा।
\s5
\v 14 और यहूदाह भी यरुशलीम के पास लड़ेगा, और चारों तरफ़ की सब क़ौमों का माल या'नी सोना-चाँदी और पोशाक बड़ी कसरत से इकठ्ठा किया जाएगा।
\v 15 और घोड़ों, खच्चरों, ऊँटों, गधों और सब हैवानों पर भी जो उन लश्करगाहों में होंगे, वही 'अज़ाब नाज़िल होगा
\s5
\v 16 ~और यरुशलीम से लड़ने वाली क़ौमों में से जो बच रहेंगे, साल-ब-साल बादशाह रब्ब-उल-अफ़वाज को सिज्दा करने और 'ईद-ए-ख़ियाम मनाने को आएँगे।
\v 17 और दुनिया के उन तमाम क़बाइल पर जो बादशाह रब्ब-उल-अफ़वाज के सामने सिज्दा करने को यरुशलीम में न आएँगे, मेंह न बरसेगा।
\v 18 और अगर क़बाइल-ए-मिस्र जिन पर बारिश नहीं होती न आएँ, तो उन पर वही 'अज़ाब नाज़िल होगा जिसको ख़ुदावन्द उन गै़र-क़ौमों पर नाज़िल करेगा, जो 'ईद-ए-ख़ियाम मनाने को न आएँगी।
\s5
\v 19 अहल-ए-मिस्र और उन सब क़ौमों की, जो ईद-ए-ख़ियाम मनाने की न जाएँ यही सज़ा होगी।
\s5
\v 20 उस दिन घोड़ों की घंटियों पर लिखा होगा, "ख़ुदावन्द के लिये पाक।” और ख़ुदावन्द के घर को देगें, मज़बह के प्यालों की तरह पाक ~होंगें।
\v 21 बल्कि यरुशलीम और यहूदाह में की सब देगें, रब्ब-उल-अफ़वाज के लिए पाक होंगी, और सब ज़बीहे पेश करने वाले आयेंगे और उनको लेकर उनमें पकायेंगे और उस रोज़ फिर कोई कन'आनी रब्ब-उल-अफ़वाज के घर में न होगा।|

99
39-MAL.usfm Normal file
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\id MAL
\ide UTF-8
\h मलाक़ी
\toc1 मलाक़ी
\toc2 मलाक़ी
\toc3 mal
\mt1 मलाक़ी
\s5
\c 1
\p
\v 1 ~ख़ुदावन्द की तरफ़ से मलाकी के ज़रिए' इस्राईल के लिए बार-ए-नबुव्वत :
\v 2 ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "मैंने तुम से मुहब्बत रख्खी, तोभी तुम कहते हो, 'तूने किस बात में हम से मुहब्बत ज़ाहिर की?" ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "क्या 'एसौ या'क़ूब का भाई न था? लेकिन मैंने या'क़ूब से मुहब्बत रख्खी,
\v 3 ~और 'एसौ से 'अदावत रखी, और उसके पहाड़ों को वीरान किया और उसकी मीरास वीराने के गीदड़ों को दी।”
\s5
\v 4 ~अगर अदोम कहे, "हम बर्बाद तो हुए, लेकिन वीरान जगहों को फिर आकर ता'मीर करेंगे," तो रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, "अगरचे वह ता'मीर करें, लेकिन मैं ढाऊँगा, और लोग उनका ये नाम रख्खेंगे, 'शरारत का मुल्क', 'वह लोग जिन पर हमेशा ख़ुदावन्द का क़हर है।'"
\v 5 ~और तुम्हारी आँखें देखेंगी और तुम कहोगे कि ~"ख़ुदावन्द की तम्जीद, इस्राईल की हदों से आगे तक हो।"
\s5
\v 6 रब्बुल-उल-अफ़वाज तुम को फ़रमाता है: "ऐ मेरे नाम की तहक़ीर करने वाले काहिनों, बेटा अपने बाप की, और नौकर अपने आक़ा की ता'ज़ीम करता है। इसलिए अगर मैं बाप हूँ, तो मेरी 'इज़्ज़त कहाँ है? और अगर आक़ा हूँ, तो मेरा ख़ौफ़ कहाँ है? लेकिन तुम कहते हो, 'हमने किस बात में तेरे नाम की तहक़ीर की?'
\v 7 ~तुम मेरे मज़बह पर नापाक रोटी पेश करते हो और कहते हो कि 'हमने किस बात में तेरी तौहीन की?' इसी में जो कहते हो, ख़ुदावन्द की मेज़ हक़ीर है।
\s5
\v 8 ~जब तुम अंधे की क़ुर्बानी करते हो, तो कुछ बुराई नहीं? और जब लंगड़े और बीमार को पेश करते हो, तो कुछ नुक़सान नहीं? अब यही अपने हाकिम की नज़्र कर, क्या वह तुझ से ख़ुश होगा और तू उसका मंज़ूर-ए-नज़र होगा? रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।
\v 9 ~अब ज़रा ख़ुदा को मनाओ, ताकि वह हम पर रहम फ़रमाए। तुम्हारे ही हाथों ने ये पेश किया है; क्या तुम उसके मंज़ूर-ए-नज़र होगे? रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।
\s5
\v 10 ~काश कि तुम में कोई ऐसा होता जो दरवाज़े बंद करता, और तुम मेरे मज़बह पर 'अबस आग न जलाते, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, मैं तुम से ख़ुश नहीं हूँ और तुम्हारे हाथ का हदिया हरगिज़ क़ुबूल न करूँगा।
\v 11 ~क्यूँकि आफ़ताब के तुलू' से ग़ुरुब तक क़ौमों में मेरे नाम की तम्जीद होगी, और हर जगह मेरे नाम पर ख़ुशबू जलाएँगे और पाक हदिये पेश करेंगे; क्यूँकि क़ौमों में मेरे नाम की तम्जीद होगी, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।
\v 12 ~लेकिन तुम इस बात में उसकी तौहीन करते हो, कि तुम कहते हो, 'ख़ुदावन्द की मेज़ पर क्या है, उस पर के हदिये बेहक़ीक़त हैं।'
\s5
\v 13 ~और तुम ने कहा, 'ये कैसी ज़हमत है,' और उस पर नाक चढ़ाई रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है। फिर तुम लूट का माल और लंगड़े और बीमार ज़बीहे लाए, और इसी तरह के हदिये पेश करे! क्या मैं इनको तुम्हारे हाथ से क़ुबूल करूँ? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 14 ~ला'नत उस दग़ाबाज़ पर जिसके गल्ले में नर है, लेकिन ख़ुदावन्द के लिए 'ऐबदार जानवर की नज़्र मानकर पेश करता है; क्यूँकि मैं शाह-ए-'अज़ीम हूँ और क़ौमों में मेरा नाम मुहीब है, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।
\s5
\c 2
\p
\v 1 ~"और अब ऐ काहिनों, तुम्हारे लिए ये हुक्म है।
\v 2 ~रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, अगर तुम नहीं सुनोगे, और मेरे नाम की तम्जीद को मद्द-ए-नज़र न रखोगे, तो मैं तुम को और तुम्हारी ने'मतों को मला'ऊन करूँगा; बल्कि इसलिए कि तुमने उसे मद्द-ए-नज़र न रख्खा, मैं मला'ऊन कर चुका हूँ।
\s5
\v 3 ~देखो, मैं तुम्हारे बाज़ू बेकार कर दूँगा, और तुम्हारे मुँह पर नापाकी या'नी तुम्हारी क़ुर्बानियों की नापाकी फेकूँगा, और तुम उसी के साथ फेंक दिए जाओगे।
\v 4 ~और तुम जान लोगे कि मैंने तुम को ये हुक्म इसलिए दिया है के मेरा 'अहद लावी के साथ क़ायम रहे; रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।
\s5
\v 5 उसके साथ मेरा 'अहद ज़िन्दगी और सलामती का था, और मैंने ज़िन्दगी और सलामती इसलिए बख़्शी कि वह डरता रहे; चुनाँचे वह मुझ से डरा और मेरे नाम से तरसान रहा।
\v 6 ~सच्चाई की शरी'अत उसके मुँह में थी, और उसके लबों पर नारास्ती न पाई गई। वह मेरे सामने सलामती और रास्ती से चलता रहा, और वह बहुतों को बदी की राह से वापस लाया।
\v 7 ~क्यूँकि लाज़िम है कि काहिन के लब मा'रिफ़त को महफ़ूज़ रख्खें, और लोग उसके मुँह से शर'ई मसाइल पूछें, क्यूँकि वह रब्ब-उल-अफ़वाज का रसूल है।
\s5
\v 8 ~लेकिन तुम राह से फिर गए। तुम शरी'अत में बहुतों के लिए ठोकर का ज़रिया' हुए। तुम ने लावी के 'अहद को ख़राब किया, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है,
\v 9 ~इसलिए मैंने तुम को सब लोगों की नज़र में ज़लील और हक़ीर किया, क्यूँकि तुम मेरी राहों पर क़ायम न रहे, बल्कि तुम ने शर'ई मुआ'मिलात में रूदारी की।"
\s5
\v 10 ~क्या हम सबका एक ही बाप नहीं? क्या एक ही ख़ुदा ने हम सब को पैदा नहीं किया? फिर क्यूँ हम अपने भाइयों से बेवफ़ाई करके अपने बाप-दादा के 'अहद की बेहुरमती करते हैं?
\v 11 ~यहूदाह ने बेवफ़ाई की, इस्राईल और यरुशलीम में मकरूह काम हुआ है। यहूदाह ने ख़ुदावन्द की पाकीज़गी को, जो उसको 'अज़ीज़ थी बेहुरमत किया, और एक ग़ैर मा'बूद की बेटी ब्याह लाया।
\v 12 ~ख़ुदावन्द ऐसा करने वाले को, ज़िन्दा और जवाब दहिन्दा और रब्ब-उल-अफ़वाज के सामने क़ुर्बानी पेश करने वाले, या'क़ूब के ख़ेमों से मुनक़ता' कर देगा।
\s5
\v 13 ~फिर तुम्हारे 'आमाल की वजह से, ख़ुदावन्द के मज़बह पर आह-ओ-नाला और आँसुओं की ऐसी कसरत है कि वह न तुम्हारे हदिये को देखेगा और न तुम्हारे हाथ की नज़्र को ख़ुशी से क़ुबूल करेगा।
\s5
\v 14 तोभी तुम कहते हो, "वजह क्या है?" वजह ये है कि ख़ुदावन्द तेरे और तेरी जवानी की बीवी के बीच गवाह है, तूने उससे बेवफ़ाई की है, अगरचे वह तेरी दोस्त और मनकूहा बीवी है।
\v 15 ~और क्या उसने एक ही को पैदा नहीं किया, बावजूद कि उसके पास और भी अरवाह मौजूद थीं? फिर क्यूँ एक ही को पैदा किया? इसलिए कि ख़ुदातरस नस्ल पैदा हो। इसलिए तुम अपने नफ़्स से ख़बरदार रहो, और कोई अपनी जवानी की बीवी से बेवफ़ाई न करे।
\v 16 क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा फ़रमाता है, "मैं तलाक़ से बेज़ार हूँ, और उससे भी जो अपनी बीवी पर ज़ुल्म करता है, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, इसलिए तुम अपने नफ़्स से ख़बरदार रहो ताकि बेवफ़ाई न करो।"
\s5
\v 17 ~तुमने अपनी बातों से ख़ुदावन्द को बेज़ार कर दिया; तोभी तुम कहते हो, "किस बात में हम ने उसे बेज़ार किया?" इसी में जो कहते हो कि ~"हर शख़्स जो बुराई करता है, ख़ुदावन्द की नज़र में नेक है, और वह उससे ख़ुश है," और ये के 'अद्ल का ख़ुदा कहाँ है?”
\s5
\c 3
\p
\v 1 देखो मैं अपने रसूल को भेजूँगा और वह मेरे आगे राह दुरुस्त करेगा, और ख़ुदावन्द, जिसके तुम तालिब हो, वह अचानक अपनी हैकल में आ मौजूद होगा। हाँ, 'अहद का रसूल, जिसके तुम आरज़ूमन्द हो आएगा, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।
\v 2 ~लेकिन उसके आने के दिन की किसमें ताब है? और जब उसका ज़हूर होगा, तो कौन खड़ा रह सकेगा? क्यूँकि वह सुनार की आग और धोबी के साबुन की तरह है।
\v 3 ~और~वह चाँदी को ताने और पाक-साफ़ करने वाले की तरह बैठेगा, और बनी लावी को सोने और चाँदी की तरह पाक-साफ़ करेगा ताकि रास्तबाज़ी से ख़ुदावन्द के सामने हदिये पेश करें।
\s5
\v 4 ~तब यहूदाह और यरुशलीम का हदिया ख़ुदावन्द को पसन्द आएगा, जैसा गुज़रे दिनों और गुज़रे ज़माने में।
\v 5 ~और मैं 'अदालत के लिए तुम्हारे नज़दीक आऊँगा और जादूगरों और बदकारों और झूटी क़सम खाने वालों के ख़िलाफ़, और उनके ख़िलाफ़ भी जो मज़दूरों को मज़दूरी नहीं देते, और बेवाओं और यतीमों पर सितम करते और मुसाफ़िरों की हक़ तल्फ़ी करते हैं और मुझ से नहीं डरते हैं, मुस्त'इद गवाह हूँगा, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।
\s5
\v 6 "क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द ला-तब्दील हूँ, इसीलिए ऐ बनी या'क़ूब, तुम हलाक नहीं हुए।
\v 7 ~तुम अपने बाप-दादा के दिनों से मेरे तौर तरीक़े से फिरे रहे और उनको नहीं माना। तुम मेरी तरफ़ रुजू' हो, तो मैं तुम्हारी तरफ़ रुजू' हूँगा रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है लेकिन तुम कहते हो कि ~'हम किस बात में रुजू' हों?'
\s5
\v 8 ~क्या कोई आदमी ख़ुदा को ठगेगा? लेकिन तुम मुझको ठगते हो और कहते हो, 'हम ने किस बात में तुझे ठगा?" दहेकी और हदिये में।
\v 9 ~इसलिए तुम सख़्त मला'ऊन हुए, क्यूँकि तुमने बल्कि तमाम क़ौम ने मुझे ठगा।
\s5
\v 10 ~पूरी दहेकी ज़ख़ीरेख़ाने में लाओ, ताकि मेरे घर में ख़ुराक हो। और इसी से मेरा इम्तिहान करो रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, कि मैं तुम पर आसमान के दरीचों को खोल कर बरकत बरसाता हूँ कि नहीं, यहाँ तक कि तुम्हारे पास उसके लिए जगह न रहे।
\v 11 और मैं तुम्हारी ख़ातिर टिड्डी को डाटूँगा और वह तुम्हारी ज़मीन की फ़सल को बर्बाद न करेगी, और तुम्हारे ताकिस्तानों का फल कच्चा न झड़ जाएगा, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।
\v 12 और सब क़ौमें तुम को मुबारक कहेंगी, क्यूँकि तुम दिलकुशा मम्लुकत होगे, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।
\s5
\v 13 ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "तुम्हारी बातें मेरे ख़िलाफ़ बहुत सख़्त हैं। तोभी तुम कहते हो, 'हम ने तेरी मुख़ालिफ़त में क्या कहा?'"
\v 14 तुमने तो कहा, 'ख़ुदा की 'इबादत करना 'अबस है। रब्ब-उल-अफ़वाज के हुक्मों पर 'अमल करना, और उसके सामने मातम करना बे-फ़ायदा है।
\v 15 ~और अब हम मग़रूरों को नेकबख़्त कहते हैं।शरीर कामयाब होते हैं और ख़ुदा को आज़माने पर भी रिहाई पाते हैं |
\s5
\v 16 ~तब ख़ुदातरसों ने आपस में गुफ़्तगू की, और ख़ुदावन्द ने मुतवज्जिह होकर सुना और उनके लिए जो ख़ुदावन्द से डरते और उसके नाम को याद करते थे, उसके सामने यादगार का दफ़्तर लिखा गया।
\s5
\v 17 ~रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है उस रोज़ वह मेरे लोग, बल्कि मेरी ख़ास मिल्कियत होंगे; और मैं उन पर ऐसा रहीम हूँगा जैसा बाप अपने ख़िदमतगुज़ार बेटे पर होता है।
\v 18 ~तब तुम रुजू' लाओगे, और सादिक़ और शरीर में और ख़ुदा की 'इबादत करने वाले और न करने वाले में फ़र्क़ करोगे।
\s5
\c 4
\p
\v 1 क्यूँकि देखो वह दिन आता है जो भट्टी ~की तरह सोज़ान होगा। तब सब मग़रूर और बदकिरदार भूसे की तरह होंगे और वह दिन उनको ऐसा जलाएगा कि शाख़-ओ-बुन कुछ न छोड़ेगा, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।
\v 2 "लेकिन तुम पर जो मेरे नाम की ता'ज़ीम करते हो, आफ़ताब-ए-सदाक़त ताली'अ होगा, और उसकी किरनों में शिफ़ा होगी; और तुम गावख़ाने के बछड़ों की तरह कूदो-फाँदोगे।
\v 3 ~और तुम शरीरों को पायमाल करोगे, क्यूँकि उस रोज़ वह तुम्हारे पाँव तले की राख होंगे," रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।
\s5
\v 4 ~"तुम मेरे बन्दे मूसा की शरी'अत या'नी ' उन फ़राइज़-ओ-अहकाम को, जो मैंने होरिब पर तमाम बनी-इस्राईल के लिए फ़रमाए, याद रख्खो ।
\v 5 देखो, ख़ुदावन्द के बुज़ुर्ग और ग़ज़बनाक दिन के आने से पहले, मैं एलियाह नबी को तुम्हारे पास भेजूँगा।
\v 6 ~और वह बाप का दिल बेटे की तरफ़, और बेटे का बाप की तरफ़ माइल करेगा; मुबादा मैं आऊँ और ज़मीन को मला'ऊन करूँ।"

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