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\id MAT
\ide UTF-8
\h मुक़द्दस मत्ती की मा'रिफ़त इन्जील
\toc1 मुक़द्दस मत्ती की मा'रिफ़त इन्जील
\toc2 मुक़द्दस मत्ती की मा'रिफ़त इन्जील
\toc3 mat
\mt1 मुक़द्दस मत्ती की मा'रिफ़त इन्जील
\s5
\c 1
\p
\v 1 ईसा' मसीह इब्न- ए दाऊद इब्न- ए इब्राहीम का नसबनामा।
\v 2 इब्राहीम से इज़्हाक़ पैदा हुआ, और इज़्हाक़ से या'क़ूब पैदा हुआ, और या'क़ूब से यहूदा और उस के भाई पैदा हुए;
\v 3 और यहूदा से फ़ारस और ज़ारह तमर से पैदा हुए, और फ़ारस से हसरोंन पैदा हुआ, और हसरोन से राम पैदा हुआ;
\s5
\v 4 और राम से अम्मीनदाब पैदा हुआ, और अम्मीनदाब से नह्सोन पैदा हुआ, और नह्सोन से सलमोन पैदा हुआ;
\v 5 और सलमोन से बो'अज़ राहब से पैदा हुआ, और बो'अज़ से ओबेद रूत से पैदा हुआ, और ओबेद से यस्सी पैदा हुआ;
\v 6 और यस्सी से दाऊद बादशाह पैदा हुआ| और दाऊद से सुलैमान उस 'औरत से पैदा हुआ जो पहले ऊरिय्याह की बीवी थी;
\s5
\v 7 और सुलैमान से रहुब'आम पैदा हुआ, और रहुब'आम से अबियाह पैदा हुआ, और अबियाह से आसा पैदा हुआ;
\v 8 और आसा से यहूसफ़त पैदा हुआ,और यहूसफ़त से यूराम पैदा हुआ, और यूराम से उज़्ज़ियाह पैदा हुआ;
\s5
\v 9 उज़्ज़ियाह से यूताम पैदा हुआ,और यूताम से आख़ज़ पैदा हुआ, और आख़ज़ से हिज़क़ियाह पैदा हुआ;
\v 10 और हिज़क़ियाह से मनस्सी पैदा हुआ, और मनस्सी से अमून पैदा हुआ, और अमून से यूसियाह पैदा हुआ;
\v 11 और गिरफ़्तार होकर बाबुल जाने के ज़माने में यूसियाह से यकुनियाह और उस के भाई पैदा हुए;
\s5
\v 12 और गिरफ़्तार होकर बाबुल जाने के बा'द यकूनियाह से सियाल्तीएल पैदा हुआ, और सियाल्तीएल से ज़रुब्बाबुल पैदा हुआ।
\v 13 और ज़रुब्बाबुल से अबीहूद पैदा हुआ, और अबिहूद से इलियाक़ीम पैदा हुआ, और इलियाक़ीम से आज़ोर पैदा हुआ;
\v 14 और आज़ोर से सदोक़ पैदा हुआ, और सदोक़ से अख़ीम पैदा हुआ, और अख़ीम से इलीहूद पैदा हुआ;
\s5
\v 15 और इलीहूद से इलीअज़र पैदा हुआ, और अलीअज़र से मत्तान पैदा हुआ, और मत्तान से याक़ूब पैदा हुआ;
\v 16 और याक़ूब से यूसुफ़ पैदा हुआ,ये उस मरियम का शौहर था जिस से ईसा' पैदा हुआ, जो मसीह कहलाता है|
\v 17 पस सब पुश्तें इब्राहीम से दाऊद तक चौदह पुश्तें हुईं, और दाऊद से लेकर गिरफ़्तार होकर बाबुल जाने तक चौदह पुश्तें, और गिरफ़्तार होकर बाबुल जाने से लेकर मसीह तक चौदह पुश्तें हुईं।
\s5
\v 18 अब ईसा' मसीह की पैदाइश इस तरह हुई कि जब उस की माँ मरियम की मंगनी यूसुफ़ के साथ हो गई: तो उन के एक साथ होने से पहले वो रूह-उल क़ुद्स की क़ुदरत से हामिला पाई गई।
\v 19 पस उस के शौहर यूसुफ़ ने जो रास्तबाज़ था, और उसे बदनाम नहीं करना चाहता था। उसे चुपके से छोड़ देने का इरादा किया।
\s5
\v 20 वो ये बातें सोच ही रहा था, कि ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उसे ख़्वाब में दिखाई देकर कहा,"ऐ यूसुफ़" इब्न -ए दाऊद अपनी बीवी मरियम को अपने यहाँ ले आने से न डर; क्यूँकि जो उस के पेट में है, वो रूह- उल -कुद्दूस की क़ुदरत से है।
\v 21 उस के बेटा होगा और तू उस का नाम ईसा' रखना, क्योंकि वह अपने लोगों को उन के गुनाहों से नजात देगा।
\s5
\v 22 यह सब कुछ इस लिए हुआ कि जो ख़ुदावन्द ने नबी के ज़रिये कहा था, वो पूरा हो कि |
\v 23 “देखो एक कुंवारी हामिला होगी। और बेटा जनेंगी और उस का नाम इम्मानुएल रखेंगे,” जिसका मतलब है- ख़ुदा हमारे साथ।
\s5
\v 24 पस यूसुफ़ ने नींद से जाग कर वैसा ही किया जैसा ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उसे हुक्म दिया था, और अपनी बीवी को अपने यहाँ ले गया।
\v 25 और उस को न जाना जब तक उस के बेटा न हुआ और उस का नाम ईसा' रख्खा ।
\s5
\c 2
\v 1 जब ईसा' हेरोदेस बादशाह के ज़माने में यहूदिया के बैत-लहम में पैदा हुआ। तो देखो कई मजूसी पूरब से यरूशलीम में ये कहते हुए आए।
\v 2 “ यहूदियों का बादशाह जो पैदा हुआ है, वो कहाँ है ? क्यूँकि पूरब में उस का सितारा देखकर हम उसे सज्दा करने आए हैं।”
\v 3 यह सुन कर हेरोदेस बादशाह और उस के साथ यरूशलीम के सब लोग घबरा गए।
\s5
\v 4 और उस ने क़ौम के सब सरदार काहिनों और आलिमों को जमा' करके उन से पूछा, “मसीह की पैदाइश कहाँ होनी चाहिए?”
\v 5 उन्हों ने उस से कहा, “यहूदिया के बैत-लहम में, क्यूँकि नबी के ज़रिये यूँ लिखा गया है,कि
\v 6 ‘ऐ बैत-लहम, यहूदिया के 'इलाक़े तू यहूदाह के हाकिमों में हरगिज़ सब से छोटा नहीं। क्यूँकि तुझ में से एक सरदार निकलेगा जो मेरी क़ौम इस्राईल की निगेहबानी करेगा|
\s5
\v 7 इस पर हेरोदेस ने मजूसियों को चुपके से बुला कर उन से मालूम किया कि वह सितारा किस वक़्त दिखाई दिया था।
\v 8 और उन्हें ये कह कर “बैतलहम भेजा कि जा कर उस बच्चे के बारे मे ठीक ठीक मालूम करो और जब वो मिले तो मुझे ख़बर दो ताकि मैं भी आ कर उसे सिज्दा करूँ।”
\s5
\v 9 वो बादशाह की बात सुनकर रवाना हुए "और देखो, जो सितारा उन्होंने पूरब में देखा था; वो उनके आगे आगे चला; यहाँ तक कि उस जगह के ऊपर जाकर ठहर गया जहाँ वो बच्चा था।
\v 10 वो सितारे को देख कर निहायत ख़ुश हुए।
\s5
\v 11 और उस घर में पहुँचकर बच्चे को उस की माँ मरियम के पास देखा; और उसके आगे गिर कर सिज्दा किया। और अपने डिब्बे खोल कर सोना, और लुबान और मुर उसको नज़्र किया।
\v 12 और हेरोदेस के पास फिर न जाने की हिदायत ख़्वाब में पाकर दूसरी राह से अपने मुल्क को रवाना हुए।
\s5
\v 13 जब वो रवाना हो गए तो देखो ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने यूसुफ़ को ख़्वाब में दिखाई देकर कहा,“उठ बच्चे और उस की माँ को साथ लेकर मिस्र को भाग जा: और जब तक कि मैं तुझ से न कहूँ वहीं रहना; क्यूँकि हेरोदेस इस बच्चे को तलाश करने को है, ताकि इसे हलाक करे।”
\v 14 पस वो उठा और रात के वक़्त बच्चे और उस की माँ को साथ ले कर मिस्र के लिए रवाना हो गया।
\v 15 और हेरोदेस के मरने तक वहीं रहा ताकि जो ख़ुदावन्द ने नबी के ज़रिये कहा था, वो पूरा हो “कि मिस्र से मैंने अपने बेटे को बुलाया।”
\s5
\v 16 जब हेरोदेस ने देखा कि मजूसियों ने मेरे साथ हँसी की तो निहायत ग़ुस्सा हुआ और आदमी भेजकर बैतलहम और उसकी सब सरहदों के अन्दर के उन सब लड़कों को क़त्ल करवा दिया जो दो दो बरस के या इस से छोटे थे, उस वक़्त के हिसाब से जो उसने मजूसियों से तहक़ीक़ की थी।
\s5
\v 17 उस वक़्त वो बात पूरी हुई जो यर्मियाह नबी के ज़रिये कही गई थी।
\v 18 “रामा में आवाज़ सुनाई दी, रोना और बड़ा मातम। राख़िल अपने बच्चे को रो रही है और तसल्ली क़बूल नहीं करती , इसलिए कि वो नहीं हैं।”
\s5
\v 19 जब हेरोदेस मर गया, तो देखो ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने मिस्र में यूसुफ़ को ख़्वाब में दिखाई देकर कहा कि ।
\v 20 उठ इस बच्चे और इसकी माँ को लेकर इस्राईल के मुल्क मे चला जा, क्यूंकि जो बच्चे की जान लेने वाले थे वो मर गए
\v 21 पस वो उठा और बच्चे और उस की माँ को ले कर मुल्क-ए-इस्राईल में लौट आया।
\s5
\v 22 मगर जब सुना कि अर्ख़िलाउस अपने बाप हेरोदेस की जगह यहूदिया में बादशाही करता है तो वहाँ जाने से डरा, और ख़्वाब में हिदायत पाकर गलील के 'इलाक़े को रवाना हो गया।
\v 23 और नासरत नाम एक शहर में जा बसा, ताकि जो नबियों की मारफ़त कहा गया थावो पूरा हो, “वह नासरी कहलाएगा।”
\s5
\c 3
\v 1 उन दिनों में युहन्ना बपतिस्मा देने वाला आया और यहूदिया के वीराने में ये ऐलान करने लगा कि ,
\v 2 “तौबा करो, क्यूँकि आस्मान की बादशाही नज़दीक आ गई है।”
\v 3 ये वही है जिस का ज़िक्र यसायाह नबी के ज़रिये यूँ हुआ कि वीराने में पुकारने वाले की आवाज़ आती है, कि ख़ुदावन्द की राह तैयार करो! उसके रास्ते सीधे बनाओ।
\s5
\v 4 ये यूहन्ना ऊँटों के बालों की पोशाक पहने और चमड़े का पटका अपनी कमर से बाँधे रहता था। और इसकी ख़ुराक टिड्डियाँ और जंगली शहद था।
\v 5 उस वक़्त यरूशलीम, और सारे यहूदिया और यरदन और उसके आस पास क़े सब लोग निकल कर उस के पास गये।
\v 6 और अपने गुनाहों का इक़रार करके। यरदन नदी में उस से बपतिस्मा लिया?
\s5
\v 7 मगर जब उसने बहुत से फ़रीसियों और सदूक़ियों को बपतिस्मे के लिए अपने पास आते देखा तो उनसे कहा कि , "ऐ साँप के बच्चो" तुम को किस ने बता दिया कि आने वाले ग़ज़ब से भागो ?
\v 8 पस तौबा के मुताबिक़ फल लाओ।
\v 9 और अपने दिलों में ये कहने का ख़याल न करो कि अब्रहाम हमारा बाप है क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ, कि "ख़ुदा" इन पत्थरों से अब्रहाम के लिए औलाद पैदा कर सकता है।
\s5
\v 10 अब दरख़्तों की जड़ पर कुल्हाड़ा रख्खा हुआ है पस, जो दरख़्त अच्छा फ़ल नहीं लाता वो काटा और आग में डाला जाता है।
\v 11 “मैं तो तुम को तौबा के लिए पानी से बपतिस्मा देता हूँ, लेकिन जो मेरे बाद आता है मुझ से बड़ा है; मैं उसकी जूतियाँ उठाने के लायक़ नहीं| वो तुम को रूह -उल कुददूस और आग से बपतिस्मा देगा।
\v 12 उस का छाज उसके हाथ में है और वो अपने खलियान को ख़ूब साफ़ करेगा, और अपने गेहूँ को तो खत्ते में जमा' करेगा, मगर भूसी को उस आग में जलाएगा जो बुझने वाली नहीं।”
\s5
\v 13 उस वक़्त "ईसा" गलील से यर्दन के किनारे यूहन्ना के पास उस से बपतिस्मा लेने आया।
\v 14 मगर यूहन्ना ये कह कर उसे मना करने लगा,“मैं आप तुझ से बपतिस्मा लेने का मोहताज हूँ, और तू मेरे पास आया है?”
\v 15 ईसा' ने जवाब में उस से कहा, “अब तू होने ही दे, क्यूंकि हमें इसी तरह सारी रास्तबाज़ी पूरी करना मुनासिब है। इस पर उस ने होने दिया।”
\s5
\v 16 और "ईसा" बपतिस्मा लेकर फ़ौरन पानी के ऊपर आया। और देखो, उस के लिए आस्मान खुल गया और उस ने "ख़ुदा" की रूह को कबूतर की शक्ल मे उतरते और अपने ऊपर आते देखा।
\v 17 और देखो आसमान से ये आवाज़ आई: “ये मेरा प्यारा बेटा है जिससे मैं ख़ुश हूँ।”
\s5
\c 4
\v 1 उस वक़्त रूह "ईसा" को जंगल में ले गया ताकि इब्लीस से आज़माया जाए।
\v 2 और चालीस दिन और चालीस रात फ़ाक़ा कर के आख़िर को उसे भूख लगी।
\v 3 और आज़माने वाले ने पास आकर उस से कहा “अगर तू "ख़ुदा" का बेटा है तो फ़रमा कि ये पत्थर रोटियाँ बन जाएँ।”
\v 4 उस ने जवाब में कहा, “लिखा है आदमी सिर्फ़ रोटी ही से ज़िन्दा न रहेगा; बल्कि हर एक बात से जो "ख़ुदा" के मुँह से निकलती है।”
\s5
\v 5 तब इब्लीस उसे मुक़द्दस शहर में ले गया और हैकल के कंगूरे पर खड़ा करके उस से कहा।
\v 6 “अगर तू "ख़ुदा" का बेटा है तो अपने आपको नीचे गिरा दे; क्यूँकि लिखा है कि ‘वह तेरे बारे में अपने फ़रिश्तों को हुक्म देगा, और वह तुझे अपने हाथों पर उठा लेंगे ताकि ऐसा न हो कि तेरे पैर को पत्थर से ठेस लगे’।”
\s5
\v 7 ईसा' ने उस से कहा, “ये भी लिखा है; ‘तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आज़माइश न कर।’”
\v 8 फिर इब्लीस उसे एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर ले गया, और दुनिया की सब सल्तनतें और उन की शान -ओ शौकत उसे दिखाई।
\v 9 और उससे कहा कि अगर तू झुक कर मुझे सज्दा करे तो ये सब कुछ तुझे दे दूंगा
\s5
\v 10 ईसा' ने उस से कहा, “ऐ शैतान दूर हो क्यूंकि लिखा है, ‘तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को सज्दा कर और सिर्फ़ उसी की 'इबादत कर|’”
\v 11 तब इब्लीस उस के पास से चला गया; और देखो फ़रिश्ते आ कर उस की ख़िदमत करने लगे।
\s5
\v 12 जब उस ने सुना कि यूहन्ना पकड़वा दिया गया तो गलील को रवाना हुआ;
\v 13 और नासरत को छोड़ कर कफ़रनहूम में जा बसा जो झील के किनारे ज़बलून और नफ़्ताली की सरहद पर है।
\s5
\v 14 ताकि जो यसा'याह नबी की मारफ़त कहा गया था, वो पूरा हो।
\v 15 “ज़बूलून का इलाक़ा,और नफ़्ताली का इलाक़ा, दरिया की राह यर्दन के पार, ग़ैर क़ौमों की गलील :
\v 16 या'नी जो लोग अन्धेरे में बैठे थे, उन्होंने बड़ी रौशनी देखी; और जो मौत के मुल्क और साये में बैठे थे, उन पर रोशनी चमकी।”
\s5
\v 17 उस वक़्त से ईसा' ने एलान करना और ये कहना शुरू किया “तौबा करो, क्यूँकि आस्मान की बादशाही नज़दीक आ गई है।”
\s5
\v 18 उस ने गलील की झील के किनारे फिरते हुए दो भाइयों या'नी शमाऊन को जो पतरस कहलाता है; और उस के भाई अन्द्रियास को। झील में जाल डालते देखा , क्यूँकि वह मछली पकड़ने वाले थे।
\v 19 और उन से कहा, “मेरे पीछे चले आओ, मैं तुम को आदमी पकड़ने वाला बनाऊँगा।”
\v 20 वो फ़ौरन जाल छोड़ कर उस के पीछे हो लिए।
\s5
\v 21 वहाँ से आगे बढ़ कर उस ने और दो भाइयों या'नी, ज़ब्दी के बेटे याक़ूब और उस के भाई यूहन्ना को देखा। कि अपने बाप ज़ब्दी के साथ नाव पर अपने जालों की मरम्मत कर रहे हैं । और उन को बुलाया।
\v 22 वह फ़ौरन नाव और अपने बाप को छोड़ कर उस के पीछे हो लिए।
\s5
\v 23 ईसा' पुरे गलील में फिरता रहा, और उनके इबादतख़ानों में तालीम देता, और बादशाही की ख़ुशख़बरी का एलान करता और लोगों की हर तरह की बीमारी और हर तरह की कमज़ोरी को दूर करता रहा।
\v 24 और उस की शोहरत पूरे सूब-ए-सूरिया में फैल गई, और लोग सब बिमारों को जो तरह तरह की बीमारियों और तक्लीफ़ों में गिरिफ़्तार थे; और उन को जिन में बदरूहें थी, और मिर्गी वालों और मफ़्लूजों को उस के पास लाए और उसने उन को अच्छा किया।
\v 25 और गलील, और दिकपुलिस, और यरूशलम, और यहूदिया और यर्दन के पार से बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली।
\s5
\c 5
\v 1 वो इस भीड़ को देख कर ऊँची जगह पर चढ़ गया। और जब बैठ गया तो उस के शागिर्द उस के पास आए।
\v 2 और वो अपनी ज़बान खोल कर उन को यूँ ता'लीम देने लगा।
\v 3 मुबारक हैं वो जो दिल के ग़रीब हैं क्यूँकि आस्मान की बादशाही उन्ही की है।
\v 4 मुबारक हैं वो जो ग़मगीन हैं, क्यूँकि वो तसल्ली पाँएगे।
\s5
\v 5 मुबारक हैं वो जो हलीम हैं, क्यूँकि वो ज़मीन के वारिस होंगे।
\v 6 मुबारक हैं वो जो रास्तबाज़ी के भूखे और प्यासे हैं , क्यूँकि वो सेर होंगे।
\v 7 मुबारक हैं वो जो रहमदिल हैं, क्यूँकि उन पर रहम किया जाएगा।
\v 8 मुबारक हैं वो जो पाक दिल हैं, क्यूँकि वह "ख़ुदा" को देखेंगे।
\s5
\v 9 मुबारक हैं वो जो सुलह कराते हैं, क्यूँकि वह "ख़ुदा" के बेटे कहलाएँगे।
\v 10 मुबारक हैं वो जो रास्तबाज़ी की वजह से सताये गए हैं, क्यूँकि आस्मान की बादशाही उन्ही की है।
\s5
\v 11 जब लोग मेरी वजह से तुम को लान-तान करेंगे, और सताएँगे; और हर तरह की बुरी बातें तुम्हारी निस्बत नाहक़ कहेंगे; तो तुम मुबारक होगे।
\v 12 ख़ुशी करना और निहायत शादमान होना क्यूँकि आस्मान पर तुम्हारा अज्र बड़ा है। इसलिए कि लोगों ने उन नबियों को जो तुम से पहले थे, इसी तरह सताया था।
\s5
\v 13 तुम ज़मीन के नमक हो। लेकिन अगर नमक का मज़ा जाता रहे तो वो किस चीज़ से नमकीन किया जाएगा? फिर वो किसी काम का नहीं सिवा इस के कि बाहर फेंका जाए और आदमियों के पैरों के नीचे रौंदा जाए।
\v 14 तुम दुनिया के नूर हो। जो शहर पहाड़ पर बसा है वो छिप नहीं सकता।
\s5
\v 15 और चिराग़ जलाकर पैमाने के नीचे नहीं बल्कि चिराग़दान पर रखते हैं; तो उस से घर के सब लोगों को रोशनी पहुँचती है।
\v 16 इसी तरह तुम्हारी रोशनी आदमियों के सामने चमके, ताकि वो तुम्हारे नेक कामों को देखकर तुम्हारे बाप की जो आसमान पर है बड़ाई करें।
\s5
\v 17 “ये न समझो कि मैं तौरेत या नबियों की किताबों को मन्सूख़ करने आया हूँ , मन्सूख़ करने नहीं बल्कि पूरा करने आया हूँ |
\v 18 क्यूँकि मैं तुम से सच कहता हूँ, जब तक आस्मान और ज़मीन टल न जाएँ, एक नुक़्ता या एक शोशा तौरेत से हरगिज़ न टलेगा जब तक सब कुछ पूरा न हो जाए।
\s5
\v 19 पस जो कोई इन छोटे से छोटे हुक्मों में से किसी भी हुक्म को तोड़ेगा, और यही आदमियों को सिखाएगा। वो आसमान की बादशाही में सब से छोटा कहलाएगा; लेकिन जो उन पर अमल करेगा, और उन की ता'लीम देगा; वो आसमान की बादशाही में बड़ा कहलाएगा।
\v 20 क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ, कि अगर तुम्हारी रास्तबाज़ी आलिमों और फ़रीसियों की रास्तबाज़ी से ज़्यादा न होगी, तो तुम आसमान की बादशाही में हरग़िज़ दाख़िल न होगे।
\s5
\v 21 तुम सुन चुके हो कि अगलों से कहा गया था कि ख़ून ना करना जो कोई ख़ून करेगा वो 'अदालत की सजा के लायक़ होगा |
\v 22 लेकिन मैं तुम से ये कहता हूँ कि , 'जो कोई अपने भाई पर ग़ुस्सा होगा, वो 'अदालत की सज़ा के लायक़ होगा; कोई अपने भाई को पागल कहेगा, वो सद्रे-ऐ ‘अदालत की सज़ा के लायक़ होगा; और जो उसको बेवकूफ़ कहेगा, वो जहन्नुम की आग का सज़ावार होगा।’
\s5
\v 23 पस अगर तू क़ुर्बानगाह पर अपनी क़ुर्बानी करता है और वहाँ तुझे याद आए कि मेरे भाई को मुझ से कुछ शिकायत है।
\v 24 तो वहीं क़ुर्बानगाह के आगे अपनी नज़्र छोड़ दे और जाकर पहले अपने भाई से मिलाप कर तब आकर अपनी क़ुर्बानी कर।
\s5
\v 25 जब तक तू अपने मुद्द'ई के साथ रास्ते में है, उससे जल्द सुलह कर ले, कहीं ऐसा न हो कि मुद्द'ई तुझे मुन्सिफ़ के हवाले कर दे और मुन्सिफ़ तुझे सिपाही के हवाले कर दे; और तू क़ैद खाने में डाला जाए।
\v 26 मैं तुझ से सच कहता हूँ, कि जब तक तू कौड़ी कौड़ी अदा न करेगा वहाँ से हरगिज़ न छूटेगा।
\s5
\v 27 तुम सुन चुके हो कि कहा गया था,‘ज़िना न करना।’
\v 28 लेकिन मैं तुम से ये कहता हूँ कि जिस किसी ने बुरी ख़्वाहिश से किसी 'औरत पर निगाह की वो अपने दिल में उस के साथ ज़िना कर चुका।
\s5
\v 29 पस अगर तेरी दहनी आँख तुझे ठोकर खिलाए तो उसे निकाल कर अपने पास से फेंक दे; क्यूँकि तेरे लिए यही बेहतर है; कि तेरे आ'ज़ा में से एक जाता रहे और तेरा सारा बदन जहन्नुम में न डाला जाए।
\v 30 और अगर तेरा दाहिना हाथ तुझे ठोकर खिलाए तो उस को काट कर अपने पास से फेंक दे। क्यूँकि तेरे लिए यही बेहतर है; कि तेरे आ'ज़ा में से एक जाता रहे और तेरा सारा बदन जहन्नुम में न जाए।
\s5
\v 31 ये भी कहा गया था, ,जो कोई अपनी बीवी को छोड़े उसे तलाक़नामा लिख दे |
\v 32 लेकिन मैं तुम से ये कहता हूँ, कि जो कोई अपनी बीवी को हरामकारी के सिवा किसी और वजह से छोड़ दे वो उस से ज़िना करता है; और जो कोई उस छोड़ी हुई से शादी करे वो भी ज़िना करता है।
\s5
\v 33 फिर तुम सुन चुके हो कि अगलों से कहा गया था‘झूटी क़सम न खाना; बल्कि अपनी क़समें "ख़ुदावन्द" के लिए पूरी करना।’
\v 34 लेकिन मैं तुम से ये कहता हूँ कि बिल्कुल क़सम न खाना ‘न तो आस्मान की ’क्यूँकि वो "ख़ुदा" का तख़्त है,
\v 35 न ‘ज़मीन की’ क्यूँकि वो उस के पैरों की चौकी है।‘न यरूशलीम की ’क्यूँकि वो बुज़ुर्ग बादशाह का शहर है।
\s5
\v 36 न अपने सर की क़सम खाना क्यूँकि तू एक बाल को भी सफ़ेद या काला नहीं कर सकता।
\v 37 बल्कि तुम्हारा कलाम ‘हाँ हाँ ’या ‘नहीं नहीं में’ हो क्यूँकि जो इस से ज़्यादा है वो बदी से है।
\s5
\v 38 तुम सुन चुके हो कि कहा गया था,‘आँख के बदले आँख, और दाँत के बदले दाँत।’
\v 39 लेकिन मैं तुम से ये कहता हूँ कि शरीर का मुक़ाबला न करना बल्कि जो कोई तेरे दहने गाल पर तमाचा मारे दूसरा भी उसकी तरफ़ फेर दे।
\s5
\v 40 और अगर कोई तुझ पर नालिश कर के तेरा कुर्ता लेना चाहे; तो चोग़ा भी उसे ले लेने दे।
\v 41 और जो कोई तुझे एक कोस बेगार में ले जाए; उस के साथ दो कोस चला जा।
\v 42 जो कोई तुझ से माँगे उसे दे; और जो तुझ से क़र्ज़ चाहे उस से मुँह न मोड़।
\s5
\v 43 तुम सुन चुके हो कि कहा गया था,‘अपने पड़ोसी से मुहब्बत रख और अपने दुश्मन से दुश्मनी ।’
\v 44 लेकिन मैं तुम से ये कहता हूँ, अपने दुश्मनों से मुहब्बत रखो और अपने सताने वालों के लिए दुआ करो।
\v 45 ताकि तुम अपने बाप के जो आसमान पर है, बेटे ठहरो; क्यूँकि वो अपने सूरज को बदों और नेकों दोनों पर चमकाता है; और रास्तबाज़ों और नारास्तों दोनों पर मेंह बरसाता है।
\s5
\v 46 क्यूँकि अगर तुम अपने मुहब्बत रखने वालों ही से मुहब्बत रख्खो तो तुम्हारे लिए क्या अज्र है? क्या महसूल लेने वाले भी ऐसा नहीं करते।
\v 47 अगर तुम सिर्फ़ अपने भाइयों को सलाम करो; तो क्या ज़्यादा करते हो? क्या ग़ैर क़ौमों के लोग भी ऐसा नहीं करते?
\v 48 पस चाहिए कि तुम कामिल हो जैसा तुम्हारा आस्मानी बाप कामिल है।
\s5
\c 6
\v 1 "ख़बरदार! अपने रास्तबाज़ी के काम आदमियों के सामने दिखावे के लिए न करो, नहीं तो तुम्हारे बाप के पास जो आसमान पर है; तुम्हारे लिए कुछ अज्र नहीं है|”
\v 2 पस जब तुम ख़ैरात करो तो अपने आगे नरसिंगा न बजाओ, जैसा रियाकार 'इबादतख़ानों और कूचों में करते हैं; ताकि लोग उनकी बड़ाई करें मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वो अपना अज्र पा चुके।
\s5
\v 3 बल्कि जब तू ख़ैरात करे तो जो तेरा दहना हाथ करता है; उसे तेरा बाँया हाथ न जाने।
\v 4 ताकि तेरी ख़ैरात पोशीदा रहे, इस सूरत में तेरा आसमानी बाप जो पोशीदगी में देखता है तुझे बदला देगा।
\s5
\v 5 जब तुम दु'आ करो तो रियाकारों की तरह न बनो; क्यूँकि वो 'इबादतख़ानों में और बाज़ारों के मोड़ों पर खड़े होकर दु'आ करना पसंद करते हैं; ताकि लोग उन को देखें; मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वो अपना बदला पा चुके।
\v 6 बल्कि जब तू दु'आ करे तो अपनी कोठरी में जा और दरवाज़ा बंद करके अपने आसमानी बाप से जो पोशीदगी में है ; दु'आ कर इस सूरत में तेरा आसमानी बाप जो पोशीदगी में देखता है तुझे बदला देगा।
\v 7 और दु'आ करते वक़्त ग़ैर क़ौमों के लोगों की तरह बक बक न करो क्यूँकि वो समझते हैं; कि हमारे बहुत बोलने की वजह से हमारी सुनी जाएगी।
\s5
\v 8 पस उन की तरह न बनो; क्यूँकि तुम्हारा आसमानी बाप तुम्हारे माँगने से पहले ही जानता है कि तुम किन किन चीज़ों के मोहताज हो।
\v 9 पस तुम इस तरह दुआ किया करो, " ऐ हमारे बाप, तू जो आसमान पर है तेरा नाम पाक माना जाए।
\v 10 तेरी बादशाही आए। तेरी मर्ज़ी जैसी आस्मान पर पूरी होती है ज़मीन पर भी हो।
\s5
\v 11 हमारी रोज़ की रोटी आज हमें दे।
\v 12 और जिस तरह हम ने अपने क़ुसूरवारों को मु'आफ़ किया है; तू भी हमारे कुसूरों को मु'आफ़ कर।
\v 13 और हमें आज़्माइश में न ला, बल्कि बुराई से बचा; क्यूँकि बादशाही और क़ुदरत और जलाल हमेशा तेरे ही हैं; " आमीन।
\s5
\v 14 इसलिए कि अगर तुम आदमियों के क़ुसूर मु'आफ़ करोगे तो तुम्हारा आसमानी बाप भी तुम को मु'आफ़ करेगा।
\v 15 और अगर तुम आदमियों के क़ुसूर मु'आफ़ न करोगे तो तुम्हारा आसमानी बाप भी तुम को मु'आफ़ न करेगा।।
\s5
\v 16 जब तुम रोज़ा रख्खो तो रियाकारों की तरह अपनी सूरत उदास न बनाओ; क्यूँकि वो अपना मुँह बिगाड़ते हैं; ताकि लोग उन को रोज़ादार जाने। मैं तुम से सच कहता हूँ कि वो अपना अज्र पा चुके।
\v 17 बल्कि जब तू रोज़ा रख्खे तो अपने सिर पर तेल डाल और मुँह धो।
\v 18 ताकि आदमी नहीं बल्कि तेरा बाप जो पोशीदगी में है तुझे रोज़ादार जाने। इस सूरत में तेरा बाप जो पोशीदगी में देखता है तुझे बदला देगा।
\s5
\v 19 अपने वास्ते ज़मीन पर माल जमा' न करो, जहाँ पर कीड़ा और ज़ंग ख़राब करता है; और जहाँ चोर नक़ब लगाते और चुराते हैं।
\v 20 बल्कि अपने लिए आसमान पर माल जमा' करो; जहाँ पर न कीड़ा ख़राब करता है; न ज़ंग और न वहाँ चोर नक़ब लगाते और चुराते हैं।
\v 21 क्यूँकि जहाँ तेरा माल है वहीं तेरा दिल भी लगा रहेगा।
\s5
\v 22 बदन का चराग़ आँख है। पस अगर तेरी आँख दुरुस्त हो तो तेरा पूरा बदन रोशन होगा।
\v 23 अगर तेरी आँख ख़राब हो तो तेरा सारा बदन तारीक होगा। पस अगर वो रोशनी जो तुझ में है तारीक हो तो तारीकी कैसी बड़ी होगी।
\v 24 कोई आदमी दो मालिकों की ख़िदमत नहीं कर सकता; क्यूँकि या तो एक से दुश्मनी रख्खे और दूसरे से मुहब्बत या एक से मिला रहेगा और दूसरे को नाचीज़ जानेगा; तुम "ख़ुदा" और दौलत दोनों की ख़िदमत नहीं कर सकते।
\s5
\v 25 इसलिए मैं तुम से कहता हूँ; कि अपनी जान की फ़िक्र न करना कि हम क्या खाएँगे या क्या पीएँगे, और न अपने बदन की कि क्या पहनेंगे; क्या जान ख़ूराक से और बदन पोशाक से बढ़ कर नहीं।
\v 26 हवा के परिन्दों को देखो कि न बोते हैं न काटते न कोठियों में जमा' करते हैं; तोभी तुम्हारा आसमानी बाप उनको खिलाता है क्या तुम उस से ज़्यादा क़द्र नहीं रखते?
\s5
\v 27 तुम में से ऐसा कौन है जो फ़िक्र करके अपनी उम्र एक घड़ी भी बढ़ा सके?
\v 28 और पोशाक के लिए क्यों फ़िक्र करते हो; जंगली सोसन के दरख़्तों को ग़ौर से देखो कि वो किस तरह बढ़ते हैं; वो न मेहनत करते हैं न कातते हैं।
\v 29 तोभी मैं तुम से कहता हूँ; कि सुलेमान भी बावजूद अपनी सारी शानो शौकत के उन में से किसी की तरह कपड़े पहने न था।
\s5
\v 30 पस जब "ख़ुदा" मैदान की घास को जो आज है और कल तंदूर में झोंकी जाएगी; ऐसी पोशाक पहनाता है, तो "ऐ कम ईमान वालो " तुम को क्यों न पहनाएगा?
\v 31 "इस लिए फ़िक्रमन्द होकर ये न कहो, ‘हम क्या खाएँगे ? या क्या पिएँगे ? या क्या पहनेंगे?’”
\s5
\v 32 क्यूँकि इन सब चीज़ों की तलाश में ग़ैर क़ौमें रहती हैं; और तुम्हारा आसमानी बाप जानता है, कि तुम इन सब चीज़ों के मोहताज हो।
\v 33 बल्कि तुम पहले उसकी बादशाही और उसकी रास्बाज़ी की तलाश करो तो ये सब चीज़ें भी तुम को मिल जाएँगी।
\v 34 पस कल के लिए फ़िक्र न करो क्यूँकि कल का दिन अपने लिए आप फ़िक्र कर लेगा; आज के लिए आज ही का दु:ख काफ़ी है।
\s5
\c 7
\v 1 बुराई न करो, कि तुम्हारी भी बुराई न की जाए।
\v 2 क्यूँकि जिस तरह तुम बुराई करते हो उसी तरह तुम्हारी भी बुराई की जाएगी और जिस पैमाने से तुम नापते हो उसी से तुम्हारे लिए नापा जाएगा।
\s5
\v 3 तू क्यूँ अपने भाई की आँख के तिनके को देखता है और अपनी आँख के शहतीर पर ग़ौर नहीं करता?
\v 4 और जब तेरी ही आँख में शहतीर है तो तू अपने भाई से क्यूँ कर कह सकता है, 'ला, तेरी आँख में से तिनका निकाल दूँ '?
\v 5 ऐ रियाकार, पहले अपनी आँख में से तो शहतीर निकाल, फिर अपने भाई की आँख में से तिनके को अच्छी तरह देख कर निकाल सकता है।
\s5
\v 6 पाक चीज़ कुत्तों को ना दो, और अपने मोती सुअरों के आगे न डालो, ऐसा न हो कि वो उनको पाँवों के तले रौंदें और पलट कर तुम को फाड़ें।
\s5
\v 7 माँगो तो तुम को दिया जाएगा। ढूँडो तो पाओगे; दरवाज़ा खटखटाओ तो तुम्हारे लिए खोला जाएगा।
\v 8 क्यूँकि जो कोई माँगता है उसे मिलता है; और जो ढूँडता है वो पाता है और जो खटखटाता है उसके लिए खोला जाएगा।
\v 9 तुम में ऐसा कौन सा आदमी है, कि अगर उसका बेटा उससे रोटी माँगे तो वो उसे पत्थर दे?
\v 10 या अगर मछली माँगे तो उसे साँप दे!
\s5
\v 11 पस जबकि तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी चीज़ें देना जानते हो, तो तुम्हारा बाप जो आसमान पर है; अपने माँगने वालों को अच्छी चीज़ें क्यूँ न देगा।
\v 12 पस जो कुछ तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें वही तुम भी उनके साथ करो; क्यूँकि तौरेत और नबियों की ता'लीम यही है।
\s5
\v 13 तंग दरवाज़े से दाख़िल हो, क्यूँकि वो दरवाज़ा चौड़ा है, और वो रास्ता चौड़ा है जो हलाकत को पहुँचाता है; और उससे दाख़िल होने वाले बहुत हैं।
\v 14 क्यूँकि वो दरवाज़ा तंग है और वो रास्ता सुकड़ा है जो ज़िन्दगी को पहुँचाता है और उस के पाने वाले थोड़े हैं।
\s5
\v 15 झूटे नबियों से ख़बरदार रहो! जो तुम्हारे पास भेड़ों के भेस में आते हैं; मगर अन्दर से फाड़ने वाले भेड़िये की तरह हैं।
\v 16 उनके फलों से तुम उनको पहचान लोगे; क्या झाड़ियों से अंगूर या ऊँट कटारों से अंजीर तोड़ते हैं?
\v 17 इसी तरह हर एक अच्छा दरख़्त अच्छा फल लाता है और बुरा दरख़्त बुरा फल लाता है।
\s5
\v 18 अच्छा दरख़्त बुरा फल नहीं ला सकता, न बुरा दरख़्त अच्छा फल ला सकता है।
\v 19 जो दरख़्त अच्छा फल नहीं लाता वो काट कर आग में डाला जाता है।
\v 20 पस उनके फ़लों से तुम उनको पहचान लोगे।
\s5
\v 21 “जो मुझ से ऐ ख़ुदावन्द! ऐ ख़ुदावन्द! कहते हैं उन में से हर एक आस्मान की बादशाही में दाख़िल न होगा। मगर वही जो मेरे आस्मानी बाप की मर्ज़ी पर चलता है।
\v 22 उस दिन बहुत से मुझसे कहेंगे, ‘ऐ ख़ुदावन्द! ख़ुदावन्द! क्या हम ने तेरे नाम से नबुव्वत नहीं की, और तेरे नाम से बदरुहों को नहीं निकाला और तेरे नाम से बहुत से मोजिज़े नहीं दिखाए?
\v 23 उस दिन मैं उन से साफ़ कह दूँगा, ‘मेरी तुम से कभी वाक़फ़ियत न थी, ऐ बदकारो! मेरे सामने से चले जाओ।’”
\s5
\v 24 “पस जो कोई मेरी यह बातें सुनता और उन पर अमल करता है वह उस अक़्लमन्द आदमी की तरह ठहरेगा जिस ने चट्टान पर अपना घर बनाया।
\v 25 और मेंह बरसा और पानी चढ़ा और आन्धियाँ चलीं और उस घर पर टक्करे लगीं; लेकिन वो न गिरा क्यूँकि उस की बुन्याद चट्टान पर डाली गई थी।
\s5
\v 26 और जो कोई मेरी यह बातें सुनता है और उन पर अमल नहीं करता वह उस बेवक़ूफ़ आदमी की तरह ठहरेगा जिस ने अपना घर रेत पर बनाया।
\v 27 और मेंह बरसा और पानी चढ़ा और आन्धियाँ चलीं, और उस घर को सदमा पहुँचा और वो गिर गया, और बिल्कुल बर्बाद हो गया।”
\s5
\v 28 जब ईसा' ने यह बातें ख़त्म कीं तो ऐसा हुआ कि भीड़ उस की तालीम से हैरान हुई।
\v 29 क्यूँकि वह उन के आलिमों की तरह नहीं बल्कि साहिब- ए- इख़्तियार की तरह उनको ता'लीम देता था।
\s5
\c 8
\v 1 जब वो उस पहाड़ से उतरा तो बहुत सी भीड़ उस के पीछे हो ली।
\v 2 और देखो : एक कोढ़ी ने पास आकर उसे सज्दा किया और कहा, “ऐ ख़ुदावन्द! अगर तू चाहे तो मुझे पाक साफ़ कर सकता है|”
\v 3 उसने हाथ बढ़ा कर उसे छुआ और कहा,“मैं चाहता हूँ, तू पाक-साफ़ हो जा|” वह फ़ौरन कोढ़ से पाक-साफ़ हो गया।
\s5
\v 4 ईसा' ने उस से कहा, “ख़बरदार! किसी से न कहना बल्कि जाकर अपने आप को काहिन को दिखा; और जो नज़्र मूसा ने मुक़र्रर की है उसे गुज़रान ; ताकि उन के लिए गवाही हो।”
\s5
\v 5 जब वो कफ़र्नहूम में दाख़िल हुआ तो एक सूबेदार उसके पास आया; और उसकी मिन्नत करके कहा।
\v 6 “ऐ ख़ुदावन्द, मेरा ख़ादिम फ़ालिज का मारा घर में पड़ा है; और बहुत ही तक्लीफ़ में है।”
\v 7 उस ने उस से कहा, “मैं आ कर उसे शिफ़ा दूँगा।”
\s5
\v 8 सूबेदार ने जवाब में कहा “ऐ ख़ुदावन्द, मैं इस लायक़ नहीं कि तू मेरी छत के नीचे आए; बल्कि सिर्फ़ ज़बान से कह दे तो मेरा ख़ादिम शिफ़ा पाएगा।
\v 9 क्यूँकि मैं भी दूसरे के इख़्तियार में हूँ; और सिपाही मेरे मातहत हैं; जब एक से कहता हूँ, ‘जा! तो वह जाता है और दूसरे से‘आ! तो वह आता है। और अपने नौकर से‘ ये कर ’तो वह करता है।”
\v 10 ईसा' ने ये सुनकर त'अज्जुब किया और पीछे आने वालों से कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मैं ने इस्राईल में भी ऐसा ईमान नहीं पाया।
\s5
\v 11 और मैं तुम से कहता हूँ कि बहुत सारे पूरब और पश्चिम से आ कर अब्राहम, इज़्हाक़ और याक़ूब के साथ आसमान की बादशाही की ज़ियाफ़त में शरीक होंगे।
\v 12 मगर बादशाही के बेटे बाहर अंधेरे में डाले जायगें; जहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।”
\v 13 और ईसा' ने सूबेदार से कहा, “जा! जैसा तू ने यक़ीन किया तेरे लिए वैसा ही हो|” और उसी घड़ी ख़ादिम ने शिफ़ा पाई।
\s5
\v 14 और ईसा' ने पतरस के घर में आकर उसकी सास को बुख़ार में पड़ी देखा।
\v 15 उस ने उसका हाथ छुआ और बुख़ार उस पर से उतर गया ; और वो उठ खड़ी हुई और उसकी ख़िदमत करने लगी।
\s5
\v 16 जब शाम हुई तो उसके पास बहुत से लोगों को लाए; जिन में बदरूहें थी उसने बदरूहों को ज़बान ही से कह कर निकाल दिया; और सब बीमारों को अच्छा कर दिया।
\v 17 ताकि जो यसायाह नबी के ज़रिये कहा गया था, वो पूरा हो: “उसने आप हमारी कमज़ोरियाँ ले लीं और बीमारियाँ उठा लीं ।”
\s5
\v 18 जब ईसा' ने अपने चारो तरफ़ बहुत सी भीड़ देखी तो पार चलने का हुक्म दिया।
\v 19 और एक आलिम ने पास आकर उस से कहा “ऐ उस्ताद, जहाँ कहीं भी तू जाएगा मैं तेरे पीछे चलूँगा।”
\v 20 ईसा' ने उस से कहा, “लोमड़ियों के भट होते हैं और हवा के परिन्दों के घोंसले, मगर इबने आदम के लिए सर रखने की भी जगह नहीं|”
\s5
\v 21 एक और शागिर्द ने उस से कहा, “ऐ ख़ुदावन्द, मुझे इजाज़त दे कि पहले जाकर अपने बाप को दफ़न करूँ।”
\v 22 ईसा' ने उससे कहा, “तू मेरे पीछे चल और मुर्दों को अपने मुर्दे दफ़न करने दे|”
\s5
\v 23 जब वो नाव पर चढ़ा तो उस के शागिर्द उसके साथ हो लिए।
\v 24 और देखो झील में ऐसा बड़ा तूफ़ान आया कि नाव लहरों से छिप गई, मगर वो सोता रहा |
\v 25 उन्होंने पास आकर उसे जगाया और कहा “ऐ ख़ुदावन्द, हमें बचा, हम हलाक हुए जाते हैं”|
\s5
\v 26 उसने उनसे कहा “ऐ कम ईमान वालो ! डरते क्यूँ हो?”तब उसने उठकर हवा और पानी को डाँटा और बड़ा अम्न हो गया।
\v 27 और लोग ता'अज्जुब करके कहने लगे “ये किस तरह का आदमी है कि हवा और पानी सब इसका हुक्म मानते हैं।”
\s5
\v 28 जब वो उस पार गदरीनियों के मुल्क में पहुँचा तो दो आदमी जिन में बदरूहें थी; क़ब्रों से निकल कर उससे मिले: वो ऐसे तंग मिज़ाज थे कि कोई उस रास्ते से गुज़र नहीं सकता था।
\v 29 और देखो उन्होंने चिल्लाकर कहा “ऐ "ख़ुदा" के बेटे हमें तुझ से क्या काम? क्या तू इसलिए यहाँ आया है कि वक़्त से पहले हमें अज़ाब में डाले?”
\s5
\v 30 उनसे कुछ दूर बहुत से सूअरों का ग़ोल चर रहा था।
\v 31 पस बदरूहों ने उसकी मिन्नत करके कहा“अगर तू हम को निकालता है तो हमें सूअरों के ग़ोल में भेज दे।”
\v 32 उसने उनसे कहा “जाओ।”वो निकल कर सुअरों के अन्दर चली गईं; और देखो; सारा ग़ोल किनारे पर से झपट कर झील में जा पड़ा और पानी में डूब मरा।
\s5
\v 33 और चराने वाले भागे और शहर में जाकर सब माजरा और उनके हालात जिन में बदरूहें थी बयान किया।
\v 34 और देखो सारा शहर ईसा' से मिलने को निकला और उसे देख कर मिन्नत की, कि हमारी सरहदों से बाहर चला जा।
\s5
\c 9
\v 1 फिर वो नाव पर चढ़ कर पार गया; और अपने शहर में आया।
\v 2 और देखो, लोग एक फ़ालिज मारे हुए को जो चारपाई पर पड़ा हुआ था उसके पास लाए; ईसा' ने उसका ईमान देखकर मफ़्लूज से कहा “बेटा, इत्मीनान रख। तेरे गुनाह मुआफ़ हुए।”
\s5
\v 3 और देखो कुछ आलिमों ने अपने दिल में कहा, “ये कुफ़्र बकता है”
\v 4 ईसा' ने उनके ख़याल मा'लूम करके कहा,“तुम क्यूँ अपने दिल में बुरे ख़याल लाते हो?
\v 5 आसान क्या है? ये कहना तेरे गुनाह मु'आफ़ हुए; या ये कहना; उठ और चल फिर|
\v 6 लेकिन इसलिए कि तुम जान लो कि इबने आदम को ज़मीन पर गुनाह मु'आफ़ करने का इख़्तियार है,” उसने फ़ालिज मारे हुए से कहा, “उठ, अपनी चारपाई उठा और अपने घर चला जा।”
\s5
\v 7 वो उठ कर अपने घर चला गया।
\v 8 लोग ये देख कर डर गए; और "ख़ुदा" की बड़ाई करने लगे; जिसने आदमियों को ऐसा इख़्तियार बख़्शा।
\v 9 ईसा' ने वहाँ से आगे बढ़कर मत्ती नाम एक शख़्स को महसूल की चौकी पर बैठे देखा; और उस से कहा, "मेरे पीछे हो ले।"वो उठ कर उसके पीछे हो लिया।
\s5
\v 10 जब वो घर में खाना खाने बैठा; तो ऐसा हुआ कि बहुत से महसूल लेने वाले और गुनहगार आकर "ईसा" और उसके शागिर्दों के साथ खाना खाने बैठे।
\v 11 फ़रीसियों ने ये देख कर उसके शागिर्दों से कहा,“तुम्हारा उस्ताद महसूल लेने वालों और गुनहगारों के साथ क्यूँ खाता है?”
\s5
\v 12 उसने ये सुनकर कहा, “तंदरूस्तों को हकीम की ज़रुरत नहीं बल्कि बीमारों को।
\v 13 मगर तुम जाकर उसके मा'ने मा'लूम करो: मैं क़ुर्बानी नहीं बल्कि रहम पसन्द करता हूँ।क्यूँकि मैं रास्तबाज़ों को नहीं बल्कि गुनाहगारों को बुलाने आया हूँ।”
\s5
\v 14 उस वक़्त यूहन्ना के शागिर्दों ने उसके पास आकर कहा, “क्या वजह है कि हम और फ़रीसी तो अक्सर रोज़ा रखते हैं, और तेरे शागिर्द रोज़ा नहीं रखते?”
\v 15 ईसा' ने उस से कहा, “क्या बाराती जब तक दुल्हा उनके साथ है,मातम कर सकते हैं? मगर वो दिन आएँगे; कि दुल्हा उनसे जुदा किया जाएगा; उस वक़्त वो रोज़ा रखेंगे।
\s5
\v 16 कोरे कपड़े का पैवंद पुरानी पोशाक में कोई नहीं लगाता क्यूँकि वो पैवंद पोशाक में से कुछ खींच लेता है और वो ज़्यादा फट जाती है।
\s5
\v 17 और नई मय पुरानी मश्कों में नहीं भरते वरना मश्कें फट जाती हैं; और मय बह जाती है, और मश्कें बर्बाद हो जाती हैं; बल्कि नई मय नई मश्को में भरते हैं; और वो दोनों बची रहती हैं।”
\s5
\v 18 वो उन से ये बातें कह ही रहा था, कि देखो एक सरदार ने आकर उसे सज्दा किया और कहा,“ मेरी बेटी अभी मरी है लेकिन तू चलकर अपना हाथ उस पर रख तो वो ज़िन्दा हो जाएगी|”
\v 19 ईसा' उठ कर अपने शागिर्दों समेत उस के पीछे हो लिया।
\s5
\v 20 और देखो; एक 'औरत ने जिसके बारह बरस से ख़ून जारी था; उसके पीछे आकर उस की पोशाक का किनारा छुआ।
\v 21 क्यूँकि वो अपने जी में कहती थी; अगर सिर्फ़ उसकी पोशाक ही छू लूँगी “तो अच्छी हो जाऊँगी।”
\v 22 ईसा' ने फिर कर उसे देखा और कहा, “बेटी,इत्मिनान रख! तेरे ईमान ने तुझे अच्छा कर दिया|” पस वो 'औरत उसी घड़ी अच्छी हो गई।
\s5
\v 23 जब ईसा' सरदार के घर में आया और बाँसुरी बजाने वालों को और भीड़ को शोर मचाते देखा।
\v 24 तो कहा, “हट जाओ! क्यूँकि लड़की मरी नहीं बल्कि सोती है।” वो उस पर हँसने लगे।
\s5
\v 25 मगर जब भीड़ निकाल दी गई तो उस ने अन्दर जाकर उसका हाथ पकड़ा और लड़की उठी।
\v 26 और इस बात की शोहरत उस तमाम इलाक़े में फ़ैल गई।
\s5
\v 27 जब ईसा' वहाँ से आगे बढ़ा तो दो अन्धे उसके पीछे ये पुकारते हुए चले“ऐ इब्न-ए-दाऊद, हम पर रहम कर ।”
\v 28 जब वो घर में पहुँचा तो वो अन्धे उसके पास आए और 'ईसा' ने उनसे कहा “क्या तुम को यक़ीन है कि मैं ये कर सकता हूँ?” उन्हों ने उस से कहा “हां ख़ुदावन्द।”
\s5
\v 29 फिर उस ने उन की आँखें छू कर कहा, “तुम्हारे यक़ीन के मुताबिक़ तुम्हारे लिए हो।”
\v 30 और उन की आँखें खुल गईं और ईसा' ने उनको ताकीद करके कहा, “ख़बरदार, कोई इस बात को न जाने!”
\v 31 मगर उन्होंने निकल कर उस तमाम इलाक़े में उसकी शोहरत फैला दी।
\s5
\v 32 जब वो बाहर जा रहे थे, तो देखो लोग एक गूँगे को जिस में बदरूह थी उसके पास लाए।
\v 33 और जब वो बदरूह निकाल दी गई तो गूँगा बोलने लगा; और लोगों ने ता'अज्जुब करके कहा, “इस्राईल में ऐसा कभी नहीं देखा गया|”
\v 34 मगर फ़रीसियों ने कहा, “ये तो बदरूहों के सरदार की मदद से बदरूहों को निकालता है|”
\s5
\v 35 ईसा' सब शहरों और गाँव में फिरता रहा, और उनके इबादतख़ानों में ता'लीम देता और बादशाही की ख़ुशख़बरी का एलान करता और और हर तरह की बीमारी और हर तरह की कमज़ोरी दूर करता रहा।
\v 36 और जब उसने भीड़ को देखा तो उस को लोगों पर तरस आया; क्यूँकि वो उन भेड़ों की तरह थे जिनका चरवाहा न हो बुरी हालत में पड़े थे।
\s5
\v 37 उस ने अपने शागिर्दों से कहा, “फ़सल बहुत है, लेकिन मज़दूर थोड़े हैं।
\v 38 पस फ़सल के मालिक से मिन्नत करो कि वो अपनी फ़सल काटने के लिए मजदूर भेज दे|”
\s5
\c 10
\v 1 फिर उस ने अपने बारह शागिर्दों को पास बुला कर उनको बदरूहों पर इख़्तियार बख़्शा कि उनको निकालें और हर तरह की बीमारी और हर तरह की कमज़ोरी को दूर करें।
\s5
\v 2 और बारह रसूलों के नाम ये हैं; पहला शमा'ऊन, जो पतरस कहलाता है और उस का भाई अन्द्रियास ज़बदी का बेटा या'कूब और उसका भाई यूहन्ना।
\v 3 फ़िलिप्पुस, बरतुल्माई, तोमा,और मत्ती महसूल लेने वाला।
\v 4 हल्फ़ई का बेटा या'कूब और तद्दी शमा'ऊन कनानी और यहूदाह इस्करियोती जिस ने उसे पकड़वा भी दिया|
\s5
\v 5 इन बारह को ईसा' ने भेजा और उनको हुक्म देकर कहा, “ग़ैर क़ौमों की तरफ़ न जाना और सामरियों के किसी शहर में भी दाख़िल न होना।
\v 6 बल्कि इस्राईल के घराने की खोई हुई भेड़ों के पास जाना।
\v 7 और चलते चलते ये एलान करना ‘आस्मान की बादशाही नज़दीक आ गई है।’
\s5
\v 8 बीमारों को अच्छा करना; मुर्दों को जिलाना कोढ़ियों को पाक साफ़ करना बदरूहों को निकालना; तुम ने मुफ़्त पाया मुफ़्त ही देना।
\v 9 न सोना अपने कमरबन्द में रखना -न चाँदी और न पैसे।
\v 10 रास्ते के लिए न झोली लेना न दो दो कुर्ते न जूतियाँ न लाठी; क्यूँकि मज़दूर अपनी ख़ूराक का हक़दार है।
\s5
\v 11 जिस शहर या गाँव में दाख़िल हो मालूम करना कि उस में कौन लायक़ है और जब तक वहाँ से रवाना न हो उसी के यहाँ रहना।
\v 12 और घर में दाख़िल होते वक़्त उसे दु'आ-ए-ख़ैर देना।
\v 13 अगर वो घर लायक़ हो तो तुम्हारा सलाम उसे पहुँचे; और अगर लायक़ न हो तो तुम्हारा सलाम तुम पर फिर आए।
\s5
\v 14 और अगर कोई तुम को क़ुबूल न करे, और तुम्हारी बातें न सुने तो उस घर या शहर से बाहर निकलते वक़्त अपने पैरों की धूल झाड़ देना।
\v 15 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि 'अदालत के दिन उस शहर की निस्बत सदूम और अमूरा के इलाक़े का हाल ज़्यादा बर्दाश्त के लायक़ होगा।
\s5
\v 16 देखो, मैं तुम को भेजता हूँ ; गोया भेड़ों को भेड़ियों के बीच पस साँपों की तरह होशियार और कबूतरों की तरह सीधे बनो।
\v 17 मगर आदमियों से ख़बरदार रहो, क्यूँकि वह तुम को अदालतों के हवाले करेंगे; और अपने इबादतख़ानों में तुम को कोड़े मारेंगे।
\v 18 और तुम मेरी वजह से हाकिमों और बादशाहों के सामने हाज़िर किए जाओगे; ताकि उनके और ग़ैर क़ौमों के लिए गवाही हो।
\s5
\v 19 लेकिन जब वो तुम को पकड़वाएँगे; तो फ़िक्र न करना कि हम किस तरह कहें या क्या कहें; क्यूँकि जो कुछ कहना होगा उसी वक़्त तुम को बताया जाएगा।
\v 20 क्यूँकि बोलने वाले तुम नहीं बल्कि तुम्हारे आसमानी बाप का रूह है; जो तुम में बोलता है।
\s5
\v 21 भाई को भाई क़त्ल के लिए हवाले करेगा और बेटे को बाप और बेटा अपने माँ बाप के बरख़िलाफ़ खड़े होकर उनको मरवा डालेंगे।
\v 22 और मेरे नाम के ज़रिए से सब लोग तुम से अदावत रखेंगे; मगर जो आख़िर तक बर्दाश्त करेगा वही नजात पाएगा।
\v 23 लेकिन जब तुम को एक शहर सताए तो दूसरे को भाग जाओ; क्यूँकि मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तुम इस्राईल के सब शहरों में न फिर चुके होगे कि 'इब्न-ए-आदम आजाएगा|
\s5
\v 24 शागिर्द अपने उस्ताद से बड़ा नहीं होता, न नौकर अपने मालिक से।
\v 25 शागिर्द के लिए ये काफ़ी है कि अपने उस्ताद की तरह हो; और नौकर के लिए ये कि अपने मालिक की तरह जब उन्होंने घर के मालिक को बा'लज़बूल कहा; तो उसके घराने के लोगों को क्यूँ न कहेंगे।
\s5
\v 26 पस उनसे न डरो; क्यूँकि कोई चीज़ ढकी नहीं जो खोली न जाएगी और न कोई चीज़ छिपी है जो जानी न जाएगी।
\v 27 जो कुछ मैं तुम से अन्धेरे में कहता हूँ; उजाले में कहो और जो कुछ तुम कान में सुनते हो छतो पर उसका एलान करो।
\s5
\v 28 जो बदन को क़त्ल करते हैं और रूह को क़त्ल नहीं कर सकते उन से न डरो बल्कि उसी से डरो जो रूह और बदन दोनों को जहन्नुम में हलाक कर सकता है।
\v 29 क्या पैसे की दो चिड़ियाँ नहीं बिकतीं? और उन में से एक भी तुम्हारे बाप की मर्ज़ी के बग़ैर ज़मीन पर नहीं गिर सकती।
\v 30 बल्कि तुम्हारे सर के बाल भी सब गिने हुए हैं।
\v 31 पस डरो नहीं; तुम्हारी क़द्र तो बहुत सी चिड़ियों से ज़्यादा है।
\s5
\v 32 पस जो कोई आदमियों के सामने मेरा इक़रार करेगा; मैं भी अपने बाप के सामने जो आसमान पर है उसका इक़रार करूँगा।
\v 33 मगर जो कोई आदमियों के सामने मेरा इन्कार करेगा मैं भी अपने बाप के जो आस्मान पर है उसका इन्कार करूँगा।
\s5
\v 34 ये न समझो कि मैं ज़मीन पर सुलह करवाने आया हूँ; सुलह करवाने नहीं बल्कि तलवार चलवाने आया हूँ।
\v 35 क्यूँकि मैं इसलिए आया हूँ, कि आदमी को उसके बाप से और बेटी को उस की माँ से और बहू को उसकी सास से जुदा कर दूँ।
\v 36 और आदमी के दुश्मन उसके घर के ही लोग होंगे।
\s5
\v 37 जो कोई बाप या माँ को मुझ से ज़्यादा अज़ीज़ रखता है वो मेरे लायक़ नहीं; और जो कोई बेटे या बेटी को मुझ से ज़्यादा अज़ीज़ रखता है वो मेरे लायक़ नहीं।
\v 38 जो कोई अपनी सलीब न उठाए और मेरे पीछे न चले वो मेरे लायक़ नहीं।
\v 39 जो कोई अपनी जान बचाता है उसे खोएगा; और जो कोई मेरी ख़ातिर अपनी जान खोता है उसे बचाएगा।
\s5
\v 40 जो तुम को क़ुबूल करता है वो मुझे क़ुबूल करता है और जो मुझे क़ुबूल करता है वो मेरे भेजने वाले को क़ुबूल करता है ।
\v 41 जो नबी के नाम से नबी को क़ुबूल करता है; वो नबी का अज्र पाएगा; और जो रास्तबाज़ के नाम से रास्तबाज़ को क़ुबूल करता है वो रास्तबाज़ का अज्र पाएगा।
\s5
\v 42 और जो कोई शागिर्द के नाम से इन छोटों मे से किसी को सिर्फ़ एक प्याला ठंडा पानी ही पिलाएगा; मैं तुम से सच कहता हूँ वो अपना अज्र हरगिज़ न खोएगा|”
\s5
\c 11
\v 1 जब ईसा' अपने बारह शागिर्दों को हुक्म दे चुका, तो ऐसा हुआ कि वहाँ से चला गया ताकि उनके शहरों में ता'लीम दे और एलान करे।
\v 2 यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने क़ैदख़ाने में मसीह के कामों का हाल सुनकर अपने शागिर्दों के ज़रिये उससे पुछवा भेजा।
\v 3 “आने वाला तू ही है या हम दूसरे की राह देखें?”
\s5
\v 4 ईसा' ने जवाब में उनसे कहा, “जो कुछ तुम सुनते हो और देखते हो जाकर यूहन्ना से बयान कर दो।
\v 5 ‘कि अन्धे देखते और लंगड़े चलते फिरते हैं; कोढ़ी पाक साफ़ किए जाते हैं और बहरे सुनते हैं और मुर्दे ज़िन्दा किए जाते हैं और ग़रीबों को ख़ुशख़बरी सुनाई जाती है।’
\v 6 और मुबारक वो है जो मेरी वजह से ठोकर न खाए।”
\s5
\v 7 जब वो रवाना हो लिए तो ईसा' ने यूहन्ना के बारे मे लोगों से कहना शुरू किया कि “तुम वीराने में क्या देखने गए थे? क्या हवा से हिलते हुए सरकंडे को?
\v 8 तो फिर क्या देखने गए थे क्या महीन कपड़े पहने हुए शख़्स को? देखो जो महीन कपड़े पहनते हैं वो बादशाहों के घरों में होते हैं।
\s5
\v 9 तो फिर क्यूँ गए थे? क्या एक नबी को देखने? हाँ मैं तुम से कहता हूँ बल्कि नबी से बड़े को।
\v 10 ये वही है जिसके बारे मे लिखा है कि ‘देख मैं अपना पैग़म्बर तेरे आगे भेजता हूँ जो तेरा रास्ता तेरे आगे तैयार करेगा’
\s5
\v 11 मैं तुम से सच कहता हूँ; जो औरतों से पैदा हुए हैं, उन में यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले से बड़ा कोई नहीं हुआ, लेकिन जो आसमान की बादशाही में छोटा है वो उस से बड़ा है।
\v 12 और यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के दिनों से अब तक आसमान की बादशाही पर ज़ोर होता रहा है; और ताक़तवर उसे छीन लेते हैं।
\s5
\v 13 क्यूँकि सब नबियों और तौरेत ने यूहन्ना तक नबुव्वत की।
\v 14 और चाहो तो मानो; एलिया जो आनेवाला था; यही है।
\v 15 जिसके सुनने के कान हों वो सुन ले!
\s5
\v 16 "पस इस ज़माने के लोगों को मैं किस की मिसाल दूँ? वो उन लड़कों की तरह हैं, जो बाज़ारों में बैठे हुए अपने साथियों को पुकार कर कहते हैं।
\v 17 ‘हम ने तुम्हारे लिए बाँसुली बजाई और तुम न नाचे। हम ने मातम किया और तुम ने छाती न पीटी’
\s5
\v 18 क्यूँकि यूहन्ना न खाता आया न पीता और वो कहते हैं उस में बदरूह है।
\v 19 इब्न-ए-आदम खाता पीता आया। और वो कहते हैं, ‘देखो खाऊ और शराबी आदमी महसूल लेने वालों और गुनाहगारों का यार । मगर हिक्मत अपने कामों से रास्त साबित हुई है|’”
\s5
\v 20 वो उस वक़्त उन शहरों को मलामत करने लगा जिनमें उसके अकसर मो'जिज़े ज़ाहिर हुए थे; क्यूँकि उन्होंने तौबा न की थी।
\v 21 “ऐ ख़ुराज़ीन, तुझ पर अफ़्सोस ! ऐ बैत-सैदा, तुझ पर अफ़्सोस ! क्यूँकि जो मोजिज़े तुम में हुए अगर सूर और सैदा में होते तो वो टाट ओढ़ कर और ख़ाक में बैठ कर कब के तौबा कर लेते।
\v 22 मैं तुम से सच कहता हूँ; कि 'अदालत के दिन सूर और सैदा का हाल तुम्हारे हाल से ज़्यादा बर्दाश्त के लायक़ होगा।
\s5
\v 23 और ऐ कफ़रनहूम, क्या तू आस्मान तक बुलन्द किया जाएगा? तू तो आलम -ए अर्वाह में उतरेगा क्यूँकि जो मो'जिज़े तुम में ज़ाहिर हुए अगर सदूम में होते तो आज तक क़ायम रहता।
\v 24 मगर मैं तुम से कहता हूँ कि 'अदालत के दिन सदूम के इलाक़े का हाल तेरे हाल से ज़्यादा बर्दाश्त के लायक़ होगा।”
\s5
\v 25 उस वक़्त ईसा' ने कहा, “ऐ बाप, आस्मान-ओ-ज़मीन के ख़ुदावन्द मैं तेरी हम्द करता हूँ कि तू ने यह बातें समझदारों और अक़लमन्दों से छिपाईं और बच्चों पर ज़ाहिर कीं ।
\v 26 हाँ ऐ बाप!, क्यूँकि ऐसा ही तुझे पसन्द आया।
\v 27 मेरे बाप की तरफ़ से सब कुछ मुझे सौंपा गया और कोई बेटे को नहीं जानता सिवा बाप के और कोई बाप को नहीं जानता सिवा बेटे के और उसके जिस पर बेटा उसे ज़ाहिर करना चाहे।
\s5
\v 28 'ऐ मेहनत उठाने वालो और बोझ से दबे हुए लोगो, सब मेरे पास आओ! मैं तुम को आराम दूँगा।
\v 29 मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो और मुझ से सीखो, क्यूँकि मैं हलीम हूँ और दिल का फ़िरोतन तो तुम्हारी जानें आराम पाएँगी,
\v 30 क्यूँकि मेरा जूआ मुलायम है और मेरा बोझ हल्का।”
\s5
\c 12
\v 1 उस वक़्त ईसा' सबत के दिन खेतों में हो कर गया, और उसके शागिर्दों को भूक लगी और वो बालियां तोड़ तोड़ कर खाने लगे।
\v 2 फ़रीसियों ने देख कर उससे कहा “देख तेरे शागिर्द वो काम करते हैं जो सबत के दिन करना जायज़ नहीं।”
\s5
\v 3 उसने उनसे कहा “क्या तुम ने ये नहीं पढ़ा कि जब दाऊद और उस के साथी भूके थे; तो उसने क्या किया?
\v 4 वो क्यूँकर "ख़ुदा" के घर में गया और नज़्र की रोटियाँ खाईं जिनको खाना उसको जायज़ न था; न उसके साथियों को मगर सिर्फ़ काहिनों को?
\s5
\v 5 क्या तुम ने तौरेत में नहीं पढ़ा कि काहिन सबत के दिन हैकल में सबत की बेहुरमती करते हैं; और बेक़ुसूर रहते हैं?
\v 6 लेकिन मैं तुम से कहता हूँ कि यहाँ वो है जो हैकल से भी बड़ा है।
\s5
\v 7 लेकिन अगर तुम इसका मतलब जानते कि ,‘मैं क़ुर्बानी नहीं बल्कि, रहम पसन्द करता हूँ| तो बेक़ुसूरों को क़ुसूरवार न ठहराते।
\v 8 क्यूँकि इब्न-ए-आदम सबत का मालिक है।”
\s5
\v 9 वो वहाँ से चलकर उन के इबादतख़ाने में गया।
\v 10 और देखो; वहाँ एक आदमी था जिस का हाथ सूखा हुआ था उन्होंने उस पर इल्ज़ाम लगाने के 'इरादे से ये पुछा, “क्या सबत के दिन शिफ़ा देना जायज़ है|”
\s5
\v 11 उसने उनसे कहा, “तुम में ऐसा कौन है जिसकी एक भेड़ हो और वो सबत के दिन गड्ढे में गिर जाए तो वो उसे पकड़कर न निकाले?
\v 12 पस आदमी की क़द्र तो भेड़ से बहुत ही ज़्यादा है; इसलिए सबत के दिन नेकी करना जायज़ है|”
\s5
\v 13 तब उसने उस आदमी से कहा “अपना हाथ बढ़ा।” उस ने बढ़ाया और वो दूसरे हाथ की तरह दुरुस्त हो गया।
\v 14 इस पर फ़रीसियों ने बाहर जाकर उसके बरख़िलाफ़ मशवरा किया कि उसे किस तरह हलाक़ करें।
\s5
\v 15 ईसा' ये मा'लूम करके वहाँ से रवाना हुआ; और बहुत से लोग उसके पीछे हो लिए और उसने सब को अच्छा कर दिया,
\v 16 और उनको ताकीद की, कि मुझे ज़ाहिर न करना।
\v 17 ताकि जो यसायाह नबी की मा'रिफ़त कहा गया था वो पूरा हो।
\s5
\v 18 'देखो, ये मेरा ख़ादिम है जिसे मैं ने चुना मेरा प्यारा जिससे मेरा दिल ख़ुश है। मैं अपना रूह इस पर डालूँगा, और ये ग़ैर क़ौमों को इन्साफ़ की ख़बर देगा।
\s5
\v 19 ये न झगड़ा करेगा न शोर, और न बाज़ारों में कोई इसकी आवाज़ सुनेगा।
\v 20 ये कुचले हुए सरकन्डे को न तोड़ेगा और धुवाँ उठते हुए सन को न बुझाएगा; जब तक कि इन्साफ़ की फ़तह न कराए।
\v 21 और इसके नाम से ग़ैर क़ौमें उम्मीद रख्खेंगी।'
\s5
\v 22 उस वक़्त लोग उसके पास एक अंधे गूंगे को लाए; उसने उसे अच्छा कर दिया चुनाचे वो गूँगा बोलने और देखने लगा।
\v 23 “सारी भीड़ हैरान होकर कहने लगी; क्या ये इब्न-ए- आदम है?”
\s5
\v 24 फ़रीसियों ने सुन कर कहा,“ये बदरूहों के सरदार बा'लज़बूल की मदद के बग़ैर बदरूहों को नहीं निकालता।”
\v 25 उसने उनके ख़यालों को जानकर उनसे कहा, “जिस बादशाही में फ़ूट पड़ती है वो वीरान हो जाती है और जिस शहर या घर में फ़ूट पड़ेगी वो क़ायम न रहेगा।
\s5
\v 26 और अगर शैतान ही शैतान को निकाले तो वो आप ही अपना मुख़ालिफ़ हो गया; फिर उसकी बादशाही क्यूँकर क़ायम रहेगी?
\v 27 अगर मैं बा'लज़बूल की मदद से बदरूहों को निकालता हूँ तो तुम्हारे बेटे किस की मदद से निकालते हैं? पस वही तुम्हारे मुन्सिफ़ होंगे।
\s5
\v 28 लेकिन अगर मैं "ख़ुदा" के रूह की मदद से बदरूहों को निकालता हूँ तो "ख़ुदा" की बादशाही तुम्हारे पास आ पहुँची।
\v 29 या क्यूँकर कोई आदमी किसी ताक़तवर के घर में घुस कर उसका माल लूट सकता है; जब तक कि पहले उस ताक़तवर को न बाँध ले? फिर वो उसका घर लूट लेगा।
\v 30 जो मेरे साथ नहीं वो मेरे ख़िलाफ़ है और जो मेरे साथ जमा' नहीं करता वो बिखेरता है।
\s5
\v 31 इसलिए मैं तुम से कहता हूँ कि आदमियों का हर गुनाह और कुफ़्र तो मुआफ़ किया जाएगा; मगर जो कुफ़्र रूह के हक़ में हो वो मु'आफ़ न किया जाएगा।
\v 32 और जो कोई इब्न-ए-आदम के ख़िलाफ़ कोई बात कहेगा वो तो उसे मु'आफ़ की जाएगी; मगर जो कोई रूह- उल -कुद्दूस के ख़िलाफ़ कोई बात कहेगा; वो उसे मु'आफ़ न की जाएगी न इस आलम में न आने वाले में।
\s5
\v 33 या तो दरख़्त को भी अच्छा कहो; और उसके फ़ल को भी अच्छा, या दरख़्त को भी बुरा कहो और उसके फ़ल को भी बुरा; क्यूँकि दरख़्त फ़ल से पहचाँना जाता है।
\v 34 ऐ साँप के बच्चो! तुम बुरे होकर क्यूँकर अच्छी बातें कह सकते हो? क्यूँकि जो दिल में भरा है वही मुँह पर आता है।
\v 35 अच्छा आदमी अच्छे ख़ज़ाने से अच्छी चीज़ें निकालता है; बुरा आदमी बुरे ख़ज़ाने से बुरी चीज़ें निकालता है।
\s5
\v 36 मैं तुम से कहता हूँ ;कि जो निकम्मी बात लोग कहेंगे; 'अदालत के दिन उसका हिसाब देंगे।
\v 37 क्यूँकि तू अपनी बातों की वजह से रास्तबाज़ ठहराया जाएगा; और अपनी बातों की वजह से क़ुसूरवार ठहराया जाएगा।”
\s5
\v 38 इस पर कुछ आलिमों और फ़रीसियों ने जवाब में उससे कहा,“ऐ उस्ताद हम तुझ से एक निशान देखना चहते हैं।”
\v 39 उस ने जवाब देकर उनसे कहा, “इस ज़माने के बुरे और बे ईमान लोग निशान तलब करते हैं; मगर यूनाह नबी के निशान के सिवा कोई और निशान उनको न दिया जाएगा।
\v 40 क्यूँकि जैसे यूनाह तीन रात तीन दिन मछली के पेट में रहा; वैसे ही इबने आदम तीन रात तीन दिन ज़मीन के अन्दर रहेगा।
\s5
\v 41 निनवे शहर के लोग 'अदालत के दिन इस ज़माने के लोगों के साथ खड़े होकर इनको मुजरिम ठहराएँगे; क्यूँकि उन्होंने यूनाह के एलान पर तौबा कर ली; और देखो, यह वो है जो यूनाह से भी बड़ा है।
\s5
\v 42 दक्खिन की मलिका 'अदालत के दिन इस ज़माने के लोगों के साथ उठकर इनको मुजरिम ठहराएगी; क्यूँकि वो दुनिया के किनारे से सुलेमान की हिकमत सुनने को आई; और देखो यहाँ वो है जो सुलेमान से भी बड़ा है।
\s5
\v 43 जब बदरूह आदमी में से निकलती है तो सूखे मक़ामों में आराम ढूँडती फिरती है, और नहीं पाती।
\v 44 तब कहती है, ‘मैं अपने उस घर में फिर जाऊँगी जिससे निकली थी| और आकर उसे ख़ाली और झड़ा हुआ और आरास्ता पाती है।
\v 45 फिर जा कर और सात रूहें अपने से बुरी अपने साथ ले आती है और वो दाख़िल होकर वहाँ बसती हैं; और उस आदमी का पिछला हाल पहले से बदतर हो जाता है, इस ज़माने के बुरे लोगों का हाल भी ऐसा ही होगा|”
\s5
\v 46 जब वो भीड़ से ये कह रहा था, उसकी माँ और भाई बाहर खड़े थे, और उससे बात करना चहते थे।
\v 47 किसी ने उससे कहा,“देख तेरी माँ और भाई बाहर खड़े हैं और तुझ से बात करना चाहते हैं।”
\s5
\v 48 उसने ख़बर देने वाले को जवाब में कहा “कौन है मेरी माँ और कौन हैं मेरे भाई?”
\v 49 फिर अपने शागिर्दों की तरफ़ हाथ बढ़ा कर कहा, “देखो, मेरी माँ और मेरे भाई ये हैं।
\v 50 क्यूँकि जो कोई मेरे आस्मानी बाप की मर्ज़ी पर चले वही मेरा भाई, मेरी बहन और माँ है।”
\s5
\c 13
\v 1 उसी रोज़ ईसा' घर से निकलकर झील के किनारे जा बैठा।
\v 2 उस के पास एसी बड़ी भीड़ जमा' हो गई, कि वो नाव पर चढ़ बैठा, और सारी भीड़ किनारे पर खड़ी रही।
\s5
\v 3 और उसने उनसे बहुत सी बातें मिसालों में कहीं “देखो एक बोने वाला बीज बोने निकला।
\v 4 और बोते वक़्त कुछ दाने राह के किनारे गिरे और परिन्दों ने आकर उन्हें चुग लिया।
\v 5 और कुछ पथरीली ज़मीन पर गिरे जहाँ उनको बहुत मिट्टी न मिली और गहरी मिट्टी न मिलने की वजह से जल्द उग आए।
\v 6 और जब सूरज निकला तो जल गए और जड़ न होने की वजह से सूख गए |
\s5
\v 7 और कुछ झाड़ियों में गिरे और झाड़ियों ने बढ़ कर उनको दबा लिया।
\v 8 और कुछ अच्छी ज़मीन पर गिरे और फल लाए; कुछ सौ गुना कुछ साठ गुना कुछ तीस गुना।
\v 9 जो सुनना चाहता है वो सुन ले!”
\s5
\v 10 शागिर्दों ने पास आ कर उससे पूछा “तू उनसे मिसालों में क्या बातें करता है?”
\v 11 उस ने जवाब में उनसे कहा “इसलिए कि तुम को आस्मान की बादशाही के राज़ की समझ दी गई है, मगर उनको नहीं दी गई।
\v 12 क्यूँकि जिस के पास है उसे दिया जाएगा और उसके पास ज़्यादा हो जाएगा; और जिसके पास नहीं है उस से वो भी ले लिया जाएगा; जो उसके पास है।
\s5
\v 13 मैं उनसे मिसालों में इसलिए बातें कहता हूँ; कि वो देखते हुए नहीं देखते और सुनते हुए नहीं सुनते और नहीं समझते।
\v 14 उनके हक़ में यसायाह की ये नबूव्वत पूरी होती है कि ‘तुम कानों से सुनोगे पर हरगिज़ न समझोगे, और आँखों से देखोगे और हरगिज़ मा'लूम न करोगे।
\s5
\v 15 क्यूँकि इस उम्मत के दिल पर चर्बी छा गई है, और वो कानों से ऊँचा सुनते हैं; और उन्होंने अपनी आँखें बन्द कर ली हैं; ताकि ऐसा न हो कि आँखों से मा'लूम करें और कानों से सुनें और दिल से समझें और रुजू लाएँ और में उनको शिफ़ा बख़्शूं।’
\s5
\v 16 लेकिन मुबारक हैं तुम्हारी आँखें क्यूँकि वो देखती हैं और तुम्हारे कान इसलिए कि वो सुनते हैं।
\v 17 क्यूँकि मैं तुम से सच कहता हूँ कि बहुत से नबियों और रास्तबाज़ों की आरज़ू थी कि जो कुछ तुम देखते हो देखें मगर न देखा और जो बातें तुम सुनते हो सुनें मगर न सुनीं।
\s5
\v 18 पस बोनेवाले की मिसाल सुनो।
\v 19 जब कोई बादशाही का कलाम सुनता है और समझता नहीं तो जो उसके दिल में बोया गया था उसे वो शैतान छीन ले जाता है ये वो है जो राह के किनारे बोया गया था।
\s5
\v 20 और वो पथरीली ज़मीन में बोया गया; ये वो है जो कलाम को सुनता है, और उसे फ़ौरन ख़ुशी से क़ुबूल कर लेता है।
\v 21 लेकिन अपने अन्दर जड़ नहीं रखता बल्कि चंद रोज़ा है, और जब कलाम के वजह से मुसीबत या ज़ुल्म बर्पा होता है तो फ़ौरन ठोकर खाता है।
\s5
\v 22 और जो झाड़ियों में बोया गया, ये वो है जो कलाम को सुनता है और दुनिया की फ़िक्र और दौलत का फ़रेब उस कलाम को दबा देता है; और वो बे फल रह जाता है।
\v 23 और जो अच्छी ज़मीन में बोया गया, ये वो है जो कलाम को सुनता और समझता है और फल भी लाता है; कोई सौ गुना फलता है, कोई साठ गुना, और कोई तीस गुना।”
\s5
\v 24 उसने एक और मिसाल उनके सामने पेश करके कहा, “आसमान की बादशाही उस आदमी की तरह है; जिसने अपने खेत में अच्छा बीज बोया।
\v 25 मगर लोगों के सोते में उसका दुश्मन आया और गेहूँ में कड़वे दाने भी बो गया।
\v 26 पस जब पत्तियाँ निकलीं और बालें आईं तो वो कड़वे दाने भी दिखाई दिए।
\s5
\v 27 नौकरों ने आकर घर के मालिक से कहा, ‘ऐ ख़ुदावन्द क्या तू ने अपने खेत में अच्छा बीज न बोया था? उस में कड़वे दाने कहाँ से आ गए?
\v 28 उस ने उनसे कहा, ‘ये किसी दुश्मन का काम है, नौकरों ने उससे कहा, तो क्या तू चाहता है कि हम जाकर उनको जमा' करें।’
\s5
\v 29 उस ने कहा, ‘नहीं, ऐसा न हो कि कड़वे दाने जमा' करने में तुम उनके साथ गेहूँ भी उखाड़ लो।
\v 30 कटाई तक दोनों को इकट्ठा बढ़ने दो, और कटाई के वक़्त में काटने वालों से कह दूँगा कि पहले कड़वे दाने जमा कर लो और जलाने के लिए उनके गठ्ठे बाँध लो और गेहूँ मेरे खत्ते में जमा' कर दो|’”
\s5
\v 31 उसने एक और मिसाल उनके सामने पेश करके कहा, “आसमान की बादशाही उस राई के दाने की तरह है जिसे किसी आदमी ने लेकर अपने खेत में बो दिया।
\v 32 वो सब बीजों से छोटा तो है मगर जब बढ़ता है तो सब तरकारियों से बड़ा और ऐसा दरख़्त हो जाताहै, कि हवा के परिन्दे आकर उसकी डालियों पर बसेरा करते हैं|”
\s5
\v 33 उस ने एक और मिसाल उनको सुनाई। “आस्मान की बादशाही उस ख़मीर की तरह है जिसे किसी 'औरत ने ले कर तीन पैमाने आटे में मिला दिया और वो होते होते सब ख़मीर हो गया।”
\s5
\v 34 ये सब बातें ईसा' ने भीड़ से मिसालों में कहीं और बग़ैर मिसालों के वो उनसे कुछ न कहता था।
\v 35 ताकि जो नबी के ज़रिये कहा गया थ वो पूरा हो “मैं मिसालों में अपना मुँह खोलूँगा; में उन बातों को ज़ाहिर करूँगा जो बिना -ए- आलम से छिपी रही हैं।”
\s5
\v 36 उस वक़्त वो भीड़ को छोड़ कर घर में गया और उस के शागिर्दों ने उस के पास आकर कहा, “खेत के कड़वे दाने की मिसाल हमें समझा दे। ”
\v 37 उस ने जवाब में उन से कहा, “अच्छे बीज का बोने वाला इबने आदम है।
\v 38 और खेत दुनिया है और अच्छा बीज बादशाही के फ़र्ज़न्द और कड़वे दाने उस शैतान के प़र्ज़न्द हैं।
\v 39 जिस दुश्मन ने उन को बोया वो इब्लीस है। और कटाई दुनिया का आख़िर है और काटने वाले फ़िरिश्ते हैं।
\s5
\v 40 पस जैसे कड़वे दाने जमा' किए जाते और आग में जलाए जाते हैं।
\v 41 इब्न-ए- आदम अपने फ़िरिश्तों को भेजेगा; और वो सब ठोकर खिलाने वाली चीज़ें और बदकारों को उस की बादशाही में से जमा' करेंगे।
\v 42 और उनको आग की भट्टी में डाल देंगे वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।
\v 43 उस वक़्त रास्तबाज़ अपने बाप की बादशाही में सूरज की तरह चमकेंगे; जिसके कान हों वो सुन ले!
\s5
\v 44 आसमान की बादशाही खेत में छिपे ख़ज़ाने की तरह है जिसे किसी आदमी ने पाकर छिपा दिया और ख़ुशी के मारे जाकर जो कुछ उसका था; बेच डाला और उस खेत को ख़रीद लिया|”
\v 45 “फिर आसमान की बादशाही उस सौदागर की तरह है, जो उम्दा मोतियों की तलाश में था ।
\v 46 जब उसे एक बेशक़ीमती मोती मिला तो उस ने जाकर जो कुछ उस का था बेच डाला और उसे ख़रीद लिया।
\s5
\v 47 फिर आसमान की बादशाही उस बड़े जाल की तरह है; जो दरिया में डाला गया और उस ने हर क़िस्म की मछलियाँ समेट लीं।
\v 48 और जब भर गया तो उसे किनारे पर खींच लाए; और बैठ कर अच्छी अच्छी तो बर्तनों में जमा' कर लीं और जो ख़राब थी फ़ेंक दीं।
\s5
\v 49 दुनिया के आख़िर में ऐसा ही होगा; फ़रिश्ते निकलेंगे और शरीरों को रास्तबाज़ों से जुदा करेंगे; और उनको आग की भट्टी में डाल देंगे।
\v 50 वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।”
\s5
\v 51 “क्या तुम ये सब बातें समझ गए?” उन्होंने उससे कहा,“हाँ|”
\v 52 उसने उससे कहा,“इसलिए हर आलिम जो आसमान की बादशाही का शागिर्द बना है उस घर के मालिक की तरह है जो अपने ख़ज़ाने में से नई और पुरानी चीज़ें निकालता है।”
\v 53 जब ईसा' ये मिसाल ख़त्म कर चुका तो ऐसा हुआ कि वहाँ से रवाना हो गया।
\s5
\v 54 और अपने वतन में आकर उनके इबादतख़ाने में उनको ऐसी ता'लीम देने लगा; कि वो हैरान होकर कहने लगे, “इसमें ये हिकमत और मो'जिज़े कहाँ से आए?
\v 55 क्या ये बढ़ई का बेटा नहीं? और इस की माँ का नाम मरियम और इस के भाई या'कूब और यूसुफ़ और शमा'ऊन और यहूदा नहीं?
\v 56 और क्या इस की सब बहनें हमारे यहाँ नहीं? फिर ये सब कुछ इस में कहाँ से आया?”
\s5
\v 57 और उन्होंने उसकी वजह से ठोकर खाई मगर ईसा' ने उन से कहा “नबी अपने वतन और अपने घर के सिवा कहीं बेइज़्ज़त नहीं होता।”
\v 58 और उसने उनकी बेऐ'तिक़ादी की वजह से वहाँ बहुत से मो'जिज़े न दिखाए।
\s5
\c 14
\v 1 उस वक़्त चौथाई मुल्क के हाकिम हेरोदेस ने ईसा' की शोहरत सुनी।
\v 2 और अपने ख़ादिमों से कहा “ये यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला है वो मुर्दों में से जी उठा है; इसलिए उससे ये मो'जिज़े ज़ाहिर होते हैं।”
\s5
\v 3 क्यूँकि हेरोदेस ने अपने भाई फ़िलिप्पुस की बीवी हेरोदियास की वजह से यूहन्ना को पकड़ कर बाँधा और क़ैद ख़ाने में डाल दिया था।
\v 4 क्योंकि यूहन्ना ने उससे कहा था कि इसका रखना तुझे जायज़ नहीं।
\v 5 और वो हर चंद उसे क़त्ल करना चाहता था, मगर आम लोगों से डरता था क्यूँकि वो उसे नबी मानते थे।
\s5
\v 6 लेकिन जब हेरोदेस की साल गिरह हुई तो हेरोदियास की बेटी ने महफ़िल में नाच कर हेरोदेस को ख़ुश किया।
\v 7 इस पर उसने क़सम खाकर उससे वा'दा किया “जो कुछ तू माँगेगी तुझे दूँगा।”
\s5
\v 8 उसने अपनी माँ के सिखाने से कहा,“मुझे यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का सिर थाल में यहीं मँगवा दे।”
\v 9 बादशाह ग़मगीन हुआ; मगर अपनी क़समों और मेहमानों की वजह से उसने हुक्म दिया कि " दे दिया जाए।
\s5
\v 10 और आदमी भेज कर क़ैद ख़ाने में यूहन्ना का सिर कटवा दिया।
\v 11 और उस का सिर थाल में लाया गया और लड़की को दिया गया; और वो उसे अपनी माँ के पास ले गई।
\v 12 और उसके शागिर्दों ने आकर लाश उठाई और उसे दफ़्न कर दिया, और जा कर ईसा' को ख़बर दी।
\s5
\v 13 जब ईसा' ने ये सुना तो वहाँ से नाव पर अलग किसी वीरान जगह को रवाना हुआ और लोग ये सुनकर शहर शहर से पैदल उसके पीछे गए।
\v 14 उसने उतर कर बड़ी भीड़ देखी और उसे उन पर तरस आया; और उसने उनके बीमारों को अच्छा कर दिया।
\s5
\v 15 जब शाम हुई तो शागिर्द उसके पास आकर कहने लगे “जगह वीरान है और वक़्त गुज़र गया है लोगों को रुख़्सत कर दे ताकि गाँव में जाकर अपने लिए खाना खरीद लें।”
\s5
\v 16 ईसा' ने उनसे कहा , “इन्हें जाने की ज़रूरत नहीं, तुम ही इनको खाने को दो।”
\v 17 उन्होंने उससे कहा “यहाँ हमारे पास पाँच रोटियाँ और दो मछलियों के सिवा और कुछ नहीं।”
\v 18 उसने कहा “वो यहाँ मेरे पास ले आओ,”
\s5
\v 19 और उसने लोगों को घास पर बैठने का हुक्म दिया। फिर उस ने वो पाँच रोटियों और दो मछलियाँ लीं और आसमान की तरफ़ देख कर बर्कत दी और रोटियाँ तोड़ कर शागिर्दों को दीं और शागिर्दों ने लोगो को।
\v 20 और सब खाकर सेर हो गए; और उन्होंने बिना इस्तेमाल बचे हुए खाने से भरी हुई बारह टोकरियाँ उठाईं।
\v 21 और खानेवाले औरतों और बच्चों के सिवा पाँच हज़ार मर्द के क़रीब थे।
\s5
\v 22 और उसने फ़ौरन शागिर्दों को मजबूर किया कि नाव में सवार होकर उससे पहले पार चले जाएँ जब तक वो लोगों को रुख़्सत करे।
\v 23 और लोगों को रुख़्सत करके तन्हा दुआ करने के लिए पहाड़ पर चढ़ गया; और जब शाम हुई तो वहाँ अकेला था।
\v 24 मगर नाव उस वक़्त झील के बीच में थी और लहरों से डगमगा रही थी; क्यूँकि हवा मुख़ालिफ़ थी।
\s5
\v 25 और वो रात के चौथे पहर झील पर चलता हुआ उनके पास आया।
\v 26 शागिर्द उसे झील पर चलते हुए देखकर घबरा गए और कहने लगे “भूत है,”और डर कर चिल्ला उठे।
\v 27 ईसा' ने फ़ौरन उन से कहा “इत्मिनान रख्खो! मैं हूँ। डरो मत।”
\s5
\v 28 पतरस ने उससे जवाब में कहा “ऐ ख़ुदावन्द, अगर तू है तो मुझे हुक्म दे कि पानी पर चलकर तेरे पास आऊँ।”
\v 29 उस ने कहा ,“आ।”पतरस नाव से उतर कर ईसा' के पास जाने के लिए पानी पर चलने लगा।
\v 30 मगर जब हवा देखी तो डर गया और जब डूबने लगा तो चिल्ला कर कहा “ऐ ख़ुदावन्द, मुझे बचा!”
\s5
\v 31 ईसा' ने फ़ौरन हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ लिया। और उससे कहा,“ऐ कम ईमान तूने क्यूँ शक किया ?”
\v 32 जब वो नाव पर चढ़ आए तो हवा थम गई;
\v 33 जो नाव पर थे, उन्होंने सज्दा करके कहा “यक़ीनन तू "ख़ुदा" का बेटा है!”
\s5
\v 34 वो नदी पार जाकर गनेसरत के इलाक़े में पहुँचे।
\v 35 और वहाँ के लोगों ने उसे पहचान कर उस सारे इलाके में ख़बर भेजी; और सब बीमारों को उस के पास लाए।
\v 36 और वो उसकी मिन्नत करने लगे कि उसकी पोशाक का किनारा ही छू लें और जितनों ने उसे छुआ वो अच्छे हो गए।
\s5
\c 15
\v 1 उस वक़्त फ़रीसियों और आलिमों ने यरूशलीम से ईसा' के पास आकर कहा।
\v 2 “तेरे शागिर्द हमारे बुज़ुर्गों की रिवायत को क्यूँ टाल देते हैं; कि खाना खाते वक़्त हाथ नहीं धोते? ”
\v 3 उस ने जवाब में उनसे कहा “ तुम अपनी रिवायात से "ख़ुदा" का हुक्म क्यूँ टाल देते हो?
\s5
\v 4 क्यूँकि "ख़ुदा" ने फ़रमाया है,‘तू अपने बाप की और अपनी माँ की 'इज़्ज़त करना, और ‘जो बाप या माँ को बुरा कहे वो ज़रूर जान से मारा जाए|
\v 5 मगर तुम कहते हो कि जो कोई बाप या माँ से कहे, 'जिस चीज़ का तुझे मुझ से फ़ायदा पहुँच सकता था, ‘वो "ख़ुदा" की नज़्र हो चुकी,
\v 6 तो वो अपने बाप की इज्ज़त न करे; पस तुम ने अपनी रिवायत से "ख़ुदा" का कलाम बातिल कर दिया।
\s5
\v 7 ऐ रियाकारो! यसायाह ने तुम्हारे हक़ में क्या ख़ूब नबूव्वत की है,
\v 8 ‘ये उम्मत ज़बान से तो मेरी 'इज़्ज़त करती है मगर इन का दिल मुझ से दूर है।
\v 9 और ये बेफ़ाइदा मेरी इबादत करते हैं क्यूँकि इन्सानी अहकाम की ता'लीम देते हैं|’”
\s5
\v 10 फिर उस ने लोगों को पास बुला कर उनसे कहा, “सुनो और समझो।
\v 11 जो चीज़ मुँह में जाती है, वो आदमी को नापाक नहीं करती मगर जो मुँह से निकलती है वही आदमी को नापाक करती है।”
\s5
\v 12 इस पर शागिर्दों ने उसके पास आकर कहा, “क्या तू जानता है कि फ़रीसियों ने ये बात सुन कर ठोकर खाई?”
\v 13 उसने जवाब में कहा, “जो पौदा मेरे आसमानी बाप ने नहीं लगाया, जड़ से उखाड़ा जाएगा।
\v 14 उन्हें छोड़ दो, वो अन्धे राह बताने वाले हैं; और अगर अन्धे को अन्धा राह बताएगा तो दोनों गड्ढे में गिरेंगे।”
\s5
\v 15 पतरस ने जवाब में उससे कहा “ये मिसाल हमें समझा दे।”
\v 16 उस ने कहा, “क्या तुम भी अब तक नासमझ हो?
\v 17 क्या नहीं समझते कि जो कुछ मुँह में जाता है; वो पेट में पड़ता है और गंदगी में फेंका जाता है?
\s5
\v 18 मगर जो बातें मुँह से निकलती हैं वो दिल से निकलती हैं और वही आदमी को नापाक करती हैं।
\v 19 क्यूँकि बुरे ख़याल, ख़ू रेज़ियाँ, ज़िनाकारियाँ, हरामकारियाँ, चोरियाँ, झूटी, गवाहियाँ, बदगोईयाँ, दिल ही से निकलती हैं।”
\v 20 “यही बातें हैं जो आदमी को नापाक करती हैं, मगर बग़ैर हाथ धोए खाना खाना आदमी को नापाक नहीं करता|”
\s5
\v 21 फिर ईसा' वहाँ से निकल कर सूर और सैदा के इलाक़े को रवाना हुआ।
\v 22 और देखो, एक कनानी 'औरत उन सरहदों से निकली और पुकार कर कहने लगी,“ऐ ख़ुदावन्द! इबने दाऊद मुझ पर रहम कर! एक बदरूह मेरी बेटी को बहुत सताती है|”
\v 23 मगर उसने उसे कुछ जवाब न दिया “उसके शागिर्दों ने पास आकर उससे ये अर्ज़ किया कि ; उसे रुख़्सत कर दे, क्यूँकि वो हमारे पीछे चिल्लाती है ।”
\s5
\v 24 उसने जवाब में कहा , “में इस्राईल के घराने की खोई हुई भेड़ों के सिवा और किसी के पास नहीं भेजा गया।”
\v 25 मगर उसने आकर उसे सज्दा किया और कहा “ऐ ख़ुदावन्द, मेरी मदद कर!”
\v 26 उस ने जवाब में कहा “लड़कों की रोटी लेकर कुत्तों को डाल देना अच्छा नहीं।”
\s5
\v 27 उसने कहा “हाँ ख़ुदावन्द,। क्यूँकि कुत्ते भी उन टुकड़ों में से खाते हैं जो उनके मालिकों की मेज़ से गिरते हैं।”
\v 28 इस पर ईसा' ने जवाब में कहा, “ऐ 'औरत, तेरा ईमान बहुत बड़ा है। जैसा तू चाहती है तेरे लिए वैसा ही हो; और उस की बेटी ने उसी वक़्त शिफ़ा पाई”।
\s5
\v 29 फिर ईसा' वहाँ से चल कर गलील की झील के नज़दीक आया और पहाड़ पर चढ़ कर वहीं बैठ गया।
\v 30 और एक बड़ी भीड़ लंगड़ों, अन्धों, गूँगों, टुन्डों और बहुत से और बीमारों को अपने साथ लेकर उसके पास आई और उनको उसके पाँवों में डाल दिया; उसने उन्हें अच्छा कर दिया।
\v 31 चुनाँचे जब लोगों ने देखा कि गूँगे बोलते, टुन्डे तन्दुरुस्त होते, लंगड़े चलते फिरते और अन्धे देखते हैं तो ता'ज्जुब किया; और इस्राईल के "ख़ुदा" की बड़ाई की।
\s5
\v 32 और ईसा' ने अपने शागिर्दों को पास बुला कर कहा, “मुझे इस भीड़ पर तरस आता है। क्यूँकि ये लोग तीन दिन से बराबर मेरे साथ हैं और इनके पास खाने को कुछ नहीं और मैं इनको भूखा रुख़्सत करना नहीं चाहता; कहीं ऐसा न हो कि रास्ते में थककर रह जाएँ।”
\v 33 शागिर्दों ने उससे कहा, “वीराने में हम इतनी रोटियाँ कहाँ से लाएँ; कि ऐसी बड़ी भीड़ को सेर करें?”
\v 34 ईसा' ने उनसे कहा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने कहा, “सात और थोड़ी सी छोटी मछलियाँ हैं|”
\v 35 उसने लोगों को हुक्म दिया कि ज़मीन पर बैठ जाएँ।
\s5
\v 36 और उन सात रोटियों और मछलियों को लेकर शुक्र किया और उन्हें तोड़ कर शागिर्दों को देता गया और शागिर्द लोगों को।
\v 37 और सब खाकर सेर हो गए; और बिना इस्तेमाल बचे हुए खाने से भरे हुए सात टोकरे उठाए।
\v 38 और खाने वाले सिवा औरतों और बच्चों के चार हज़ार मर्द थे।
\v 39 फिर वो भीड़ को रुख़्सत करके नाव पर सवार हुआ और मगदन की सरहदों में आ गया।
\s5
\c 16
\v 1 फिर फ़रीसियों और सदूक़ियों ने 'ईसा के पास आकर आज़माने के लिए उससे दरख़्वास्त की;कि हमें कोई आसमानी निशान दिखा।
\v 2 उसने जवाब में उनसे कहा “शाम को तुम कहते हो, ‘खुला रहेगा , क्यूँकि आसमान लाल है’
\s5
\v 3 और सुबह को ये कि ‘आज आन्धी चलेगी क्यूँकि आसमान लाल धुन्धला है ’तुम आसमान की सूरत में तो पहचान करना जानते हो मगर ज़मानों की अलामतों में पहचान नहीं कर सकते ।
\v 4 इस ज़माने के बुरे और बे ईमान लोग निशान तलब करते हैं; मगर यूनाह के निशान के सिवा कोई और निशान उनको न दिया जाएगा। और वो उनको छोड़ कर चला गया ”।
\s5
\v 5 शागिर्द पार जाते वक़्त रोटी साथ लेना भूल गए थे।
\v 6 ईसा' ने उन से कहा, “ख़बरदार, फ़रीसियों और सदूक़ियों के ख़मीर से होशियार रहना।”
\v 7 वो आपस में चर्चा करने लगे, “हम रोटी नहीं लाए।”
\v 8 ईसा' ने ये मालूम करके कहा, "ऐ कम-ऐ'तिक़ादों तुम आपस मे क्योँ चर्चा करते हो कि हमारे पास रोटी नहीं?
\s5
\v 9 क्या अब तक नहीं समझते और उन पाँच हज़ार आदमियों की पाँच रोटियाँ तुम को याद नहीं? और न ये कि कितनी टोकरियाँ उठाईं?
\v 10 और न उन चार हज़ार आदमियों की सात रोटियाँ? और न ये कि कितने टोकरे उठाए।
\s5
\v 11 क्या वजह है कि तुम ये नहीं समझते कि मैंने तुम से रोटी के बारे मे नहीं कहा “फ़रीसियों और सदूक़ियों के ख़मीर से होशियार रहो|”
\v 12 जब उनकी समझ में न आया कि उसने रोटी के खमीर से नहीं; बल्कि फ़रीसियों और सदूक़ियों की ता'लीम से ख़बरदार रहने को कहा था।
\s5
\v 13 जब ईसा' क़ैसरिया फ़िलप्पी के इलाक़े में आया तो उसने अपने शागिर्दों से ये पूछा,“ लोग इब्न-ए- आदम को क्या कहते हैं?”
\v 14 उन्होंने कहा, “कुछ यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला कहते हैं। कुछ एलिया और कुछ यरमियाह या नबियों में से कोई।”
\v 15 उसने उनसे कहा,“मगर तुम मुझे क्या कहते हो?”
\v 16 शमा'ऊन पतरस ने जवाब में कहा,“तू ज़िन्दा ख़ुदा का बेटा मसीह है।”
\s5
\v 17 ईसा' ने जवाब में उससे कहा,“मुबारक है तू शमा'ऊन बर-यूनाह, क्यूँकि ये बात गोश्त और ख़ून ने नहीं, बल्कि मेरे बाप ने जो आसमान पर है; तुझ पर ज़ाहिर की है।
\v 18 और मैं भी तुम से कहता हूँ; कि तू पतरस है; और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊँगा। और आलम- ए-अरवाह के दरवाज़े उस पर ग़ालिब न आएँगे।
\s5
\v 19 मैं आसमान की बादशाही की कुन्जियाँ तुझे दूँगा; और जो कुछ तू ज़मीन पर बाँधे गा वो आसमान पर बाँधेगा और जो कुछ तू ज़मीन पर खोले गा वो आसमान पर खुलेगा|”
\v 20 उस वक़्त उसने शागिर्दों को हुक्म दिया कि किसी को न बताना कि मैं मसीह हूँ।
\s5
\v 21 उस वक़्त से ईसा' अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर करने लगा “कि उसे ज़रूर है कि यरूशलीम को जाए और बुज़ुर्गों और सरदार काहिनों और आलिमों की तरफ़ से बहुत दु:ख उठाए; और क़त्ल किया जाए और तीसरे दिन जी उठे।”
\v 22 इस पर पतरस उसको अलग ले जाकर मलामत करने लगा “ऐ ख़ुदावन्द, "ख़ुदा" न करे ये तुझ पर हरगिज़ नहीं आने का।”
\v 23 उसने फिर कर पतरस से कहा, “ऐ शैतान, मेरे सामने से दूर हो ! तू मेरे लिए ठोकर का बा'इस है; क्यूँकि तू "ख़ुदा" की बातों का नहीं बल्कि आदमियों की बातों का ख़याल रखता है।”
\s5
\v 24 उस वक़्त ईसा' ने अपने शागिर्दों से कहा, “अगर कोई मेरे पीछे आना चाहे तो अपने आपका इन्कार करे; अपनी सलीब उठाए और मेरे पीछे हो ले।
\v 25 क्यूँकि जो कोई अपनी जान बचाना चाहे उसे खोएगा; और जो कोई मेरी ख़ातिर अपनी जान खोएगा उसे पाएगा।
\v 26 अगर आदमी सारी दुनिया हासिल करे और अपनी जान का नुक़्सान उठाए तो उसे क्या फ़ाइदा होगा?
\s5
\v 27 क्यूँकि इब्न-ए-आदम अपने बाप के जलाल में अपने फ़रिश्तों के साथ आएगा; उस वक़्त हर एक को उसके कामों के मुताबिक़ बदला देगा।
\v 28 मैं तुम से सच कहता हूँ कि जो यहाँ खड़े हैं उन में से कुछ ऐसे हैं कि जब तक इब्न-ए-आदम को उसकी बादशाही में आते हुए न देख लेंगे; मौत का मज़ा हरगिज़ न चखेंगे।”
\s5
\c 17
\v 1 छः दिन के बाद ईसा' ने पतरस, को और याक़ूब और उसके भाई यूहन्ना को साथ लिया और उन्हें एक ऊँचे पहाड़ पर ले गया।
\v 2 और उनके सामने उसकी सूरत बदल गई; और उसका चेहरा सूरज की तरह चमका और उसकी पोशाक नूर की तरह सफ़ेद हो गई।
\s5
\v 3 और देखो; मूसा और एलियाह उसके साथ बातें करते हुए उन्हें दिखाई दिए।
\v 4 पतरस ने ईसा' से कहा “ ऐ ख़ुदावन्द, हमारा यहाँ रहना अच्छा है; मर्ज़ी हो तो मैं यहाँ तीन डेरे बनाऊँ। एक तेरे लिए; एक मूसा के लिए; और एक एलियाह के लिए।”
\s5
\v 5 वो ये कह ही रहा था कि देखो; “एक नूरानी बादल ने उन पर साया कर लिया और उस बादल में से आवाज़ आई; ये मेरा प्यारा बेटा है जिससे मैं ख़ुश हूँ; उसकी सुनो।”
\v 6 शागिर्द ये सुनकर मुँह के बल गिरे और बहुत डर गए।
\v 7 ईसा' ने पास आ कर उन्हें छुआ और कहा, “उठो डरो मत ।”
\v 8 जब उन्होंने अपनी आँखें उठाईं तो ईसा' के सिवा और किसी को न देखा।
\s5
\v 9 जब वो पहाड़ से उतर रहे थे तो ईसा' ने उन्हें ये हुक्म दिया “जब तक इब्न-ए- आदम मुर्दों में से जी न उठे; जो कुछ तुम ने देखा है किसी से इसका ज़िक्र न करना।”
\v 10 शागिर्दों ने उस से पूछा, “फिर आलिम क्यूँ कहते हैं कि एलियाह का पहले आना ज़रूर है?”
\s5
\v 11 उस ने जवाब में कहा, “एलियाह अलबत्ता आएगा और सब कुछ बहाल करेगा।
\v 12 लेकिन मैं तुम से कहता हूँ; कि एलियाह तो आ चुका और उन्हों ने उसे नहीं पहचाना बल्कि जो चाहा उसके साथ किया; इसी तरह इबने आदम भी उनके हाथ से दु:ख उठाएगा।”
\v 13 और शागिर्द समझ गए; कि उसने उनसे यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के बारे में कहा है।
\s5
\v 14 और जब वो भीड़ के पास पहुँचे तो एक आदमी उसके पास आया; और उसके आगे घुटने टेक कर कहने लगा।
\v 15 “ऐ ख़ुदावन्द, मेरे बेटे पर रहम कर, क्यूँकि उसको मिर्गी आती है और वो बहुत दु:ख उठाता है; इसलिए कि अक्सर आग और पानी में गिर पड़ता है।
\v 16 और मैं उसको तेरे शागिर्दों के पास लाया था; मगर वो उसे अच्छा न कर सके।”
\s5
\v 17 ईसा' ने जवाब में कहा, “ऐ बे ऐ'तिक़ाद और टेढ़ी नस्ल मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? कब तक तुम्हारी बर्दाशत करूँगा? उसे यहाँ मेरे पास लाओ|”
\v 18 ईसा' ने उसे झिड़का और बदरूह उससे निकल गई; वो लड़का उसी वक़्त अच्छा हो गया।
\s5
\v 19 तब शागिर्दों ने ईसा' के पास आकर तन्हाई में कहा “हम इस को क्यूँ न निकाल सके?”
\v 20 उस ने उनसे कहा, “अपने ईमान की कमी की वजह से ‘क्यूँकि मैं तुम से सच कहता हूँ, कि अगर तुम में राई के दाने के बराबर भी ईमान होगा’तो इस पहाड़ से कह सकोगे; यहाँ से सरक कर वहाँ चला जा, और वो चला जाएगा; और कोई बात तुम्हारे लिए नामुमकिन न होगी।”
\v 21 (लेकिन ये क़िस्म दुआ और रोज़े के सिवा और किसी तरह नहीं निकल सकती)।
\s5
\v 22 जब वो गलील में ठहरे हुए थे, ईसा' ने उनसे कहा, “'इब्न-ए-आदम आदमियों के हवाले किया जाएगा।
\v 23 और वो उसे क़त्ल करेंगे और तीसरे दिन ज़िन्दा किया जाएगा|” इस पर वो बहुत ही ग़मगीन हुए।
\s5
\v 24 और जब कफ़रनहूम में आए तो नीम मिस्काल लेनेवालों ने पतरस के पास आकर कहा, “क्या तुम्हारा उस्ताद नीम मिस्क़ाल नहीं देता?”
\v 25 उसने कहा, “हाँ देता है|” और जब वो घर में आया तो ईसा' ने उसके बोलने से पहले ही कहा,“ऐ शमा'ऊन तू क्या समझता है? दुनिया के बादशाह किनसे महसूल या जिज़िया लेते हैं; अपने बेटों से या ग़ैरों से?”
\s5
\v 26 जब उसने कहा, “ग़ैरों से,” तो ईसा' ने उनसे कहा, “ पस बेटे बरी हुए।
\v 27 लेकिन मुबादा हम इनके लिए ठोकर का बा'इस हों तू झील पर जाकर बन्सी डाल और जो मछली पहले निकले उसे ले और जब तू उसका मुँह खोलेगा; तो एक चाँदी का सिक्का पाएगा; वो लेकर मेरे और अपने लिए उन्हें दे।”
\s5
\c 18
\v 1 उस वक़्त शागिर्द ईसा' के पास आ कर कहने लगे, “पस आस्मान की बादशाही में बड़ा कौन है?”
\v 2 उसने एक बच्चे को पास बुलाकर उसे उनके बीच में खड़ा किया।
\v 3 और कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ कि अगर तुम तौबा न करो और बच्चों की तरह न बनो तो आस्मान की बादशाही में हरग़िज़ दाख़िल न होगे।
\s5
\v 4 पस जो कोई अपने आपको इस बच्चे की तरह छोटा बनाएगा; वही आसमान की बादशाही में बड़ा होगा।
\v 5 और जो कोई ऐसे बच्चे को मेरे नाम पर क़ुबूल करता है; वो मुझे क़ुबूल करता है।
\v 6 लेकिन जो कोई इन छोटों में से जो मुझ पर ईमान लाए हैं; किसी को ठोकर खिलाता है उसके लिए ये बेहतर है कि बड़ी चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाए और वो गहरे समुन्दर में डुबो दिया जाए।
\s5
\v 7 ठोकरों की वजह से दुनिया पर अफ़्सोस है; क्यूँकि ठोकरों का होना ज़रूर है; लेकिन उस आदमी पर अफ़्सोस है; जिसकी वजह से ठोकर लगे।
\v 8 पस अगर तेरा हाथ या तेरा पाँव तुझे ठोकर खिलाए तो उसे काट कर अपने पास से फेंक दे; टुन्डा या लंगड़ा होकर ज़िन्दगी में दाख़िल होना तेरे लिए इससे बेहतर है; कि दो हाथ या दो पाँव रखता हुआ तू हमेशा की आग में डाला जाए।
\s5
\v 9 और अगर तेरी आँख तुझे ठोकर खिलाए तो उसे निकाल कर अपने से फेंक दे ; काना हो कर ज़िन्दगी में दाख़िल होना तेरे लिए इससे बेहतर है कि दो आँखें रखता हुआ तू जहन्नुम कि आग में डाला जाए।
\s5
\v 10 ख़बरदार! इन छोटों में से किसी को नाचीज़ न जानना। क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ; कि आसमान पर उनके फ़रिश्ते मेरे आसमानी बाप का मुँह हर वक़्त देखते हैं।
\v 11 [क्यूँकि इब्न-ए-आदम खोए हुओं को ढूँडने और नजात देने आया है।]
\s5
\v 12 तुम क्या समझते हो? अगर किसी आदमी की सौ भेड़ें हों और उन में से एक भटक जाए; तो क्या वो निनानवें को छोड़कर और पहाड़ों पर जाकर उस भटकी हुई को न ढूँडेगा?।
\v 13 और अगर ऐसा हो कि उसे पाए; तो मैं तुम से सच कहता हूँ; कि वो उन निनानवें से जो भटकी हुई नहीं इस भेड़ की ज़्यादा ख़ुशी करेगा।
\v 14 इस तरह तुम्हारा आसमानी बाप ये नहीं चाहता कि इन छोटों में से एक भी हलाक हो।
\s5
\v 15 अगर तेरा भाई तेरा गुनाह करे तो जा और अकेले में बात चीत करके उसे समझा; और अगर वो तेरी सुने तो तूने अपने भाई को पा लिया।
\v 16 और अगर न सुने, तो एक दो आदमियों को अपने साथ ले जा, ताकि हर एक बात दो तीन गवाहों की ज़बान से साबित हो जाए।
\s5
\v 17 और अगर वो उनकी भी सुनने से इन्कार करे, तो कलीसिया से कह, और अगर कलीसिया की भी सुनने से इन्कार करे तो तू उसे ग़ैर क़ौम वाले और महसूल लेने वाले के बराबर जान।
\s5
\v 18 मैं तुम से सच कहता हूँ; कि जो कुछ तुम ज़मीन पर बाँधोगे वो आसमान पर बँधेगा; और जो कुछ तुम ज़मीन पर खोलोगे; वो आसमान पर खुलेगा।
\v 19 फिर मैं तुम से कहता हूँ; कि अगर तुम में से दो शख़्स ज़मीन पर किसी बात के लिए जिसे वो चाहते हों इत्तफ़ाक़ करें तो वो मेरे बाप की तरफ़ से जो आसमान पर है, उनके लिए हो जाएगी।
\v 20 क्यूँकि जहाँ दो या तीन मेरे नाम से इकट्ठे हैं, वहाँ मैं उनके बीच में हूँ।”
\s5
\v 21 उस वक़्त पतरस ने पास आकर उससे कहा“ऐ ख़ुदावन्द, अगर मेरा भाई मेरा गुनाह करता रहे, तो मैं कितनी मर्तबा उसे मु'आफ़ करूँ? क्या सात बार तक?”
\v 22 ईसा' ने उससे कहा, “मैं तुझ से ये नहीं कहता कि सात बार,बल्कि सात दफ़ा के सत्तर बार तक।
\s5
\v 23 पस आसमान की बादशाही उस बादशाह की तरह है जिसने अपने नौकरों से हिसाब लेना चाहा।
\v 24 और जब हिसाब लेने लगा तो उसके सामने एक क़र्ज़दार हाज़िर किया गया; जिस पर उसके दस हज़ार चाँदी के सिक्के आते थे।
\v 25 मगर चूँकि उसके पास अदा करने को कुछ न था; इसलिए उसके मालिक ने हुक्म दिया कि, ये और इसकी बीवी और बच्चे और जो कुछ इसका है सब बेचा जाए और कर्ज़ वसूल कर लिया जाए।
\s5
\v 26 पस नौकर ने गिरकर उसे सज्दा किया और कहा, ‘ऐ ख़ुदावन्द मुझे मोहलत दे, मैं तेरा सारा क़र्ज़ा अदा करूँगा।’
\v 27 उस नौकर के मालिक ने तरस खाकर उसे छोड़ दिया, और उसका क़र्ज़ बख़्श दिया।
\s5
\v 28 जब वो नौकर बाहर निकला तो उसके हम ख़िदमतों में से एक उसको मिला जिस पर उसके सौ चाँदी के सिक्के आते थे| उसने उसको पकड़ कर उसका गला घोंटा और कहा,‘जो मेरा आता है अदा कर दे!
\v 29 पस उसके हमख़िदमत ने उसके सामने गिरकर मिन्नत की और कहा,‘मुझे मोहलत दे; मैं तुझे अदा कर दूँगा|
\s5
\v 30 उसने न माना; बल्कि जाकर उसे क़ैदख़ाने में डाल दिया; कि जब तक क़र्ज़ अदा न कर दे क़ैद रहे।
\v 31 पस उसके हमख़िदमत ये हाल देखकर बहुत ग़मगीन हुए; और आकर अपने मालिक को सब कुछ जो हुआ था; सुना दिया।
\s5
\v 32 इस पर उसके मालिक ने उसको पास बुला कर उससे कहा,‘ऐ शरीर नौकर; मैं ने वो सारा क़र्ज़ तुझे इसलिए मु'आफ़ कर दिया; कि तूने मेरी मिन्नत की थी।
\v 33 क्या तुझे ज़रूरी न था, कि जैसे मैं ने तुझ पर रहम किया; तू भी अपने हमख़िदमत पर रहम करता?
\s5
\v 34 उसके मालिक ने ख़फ़ा होकर उसको जल्लादों के हवाले किया; कि जब तक तमाम क़र्ज़ अदा न कर दे क़ैद रहे।
\v 35 मेरा आसमानी बाप भी तुम्हारे साथ इसी तरह करेगा; अगर तुम में से हर एक अपने भाई को दिल से मु'आफ़ न करे।”
\s5
\c 19
\v 1 जब ईसा' ये बातें ख़त्म कर चुका तो ऐसा हुआ कि गलील को रवाना होकर यरदन के पार यहूदिया की सरहदों में आया।
\v 2 और एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली; और उस ने उन्हें वहीं अच्छा किया।
\s5
\v 3 और फ़रीसी उसे आज़माने को उसके पास आए और कहने लगे “क्या हर एक वजह से अपनी बीवी को छोड़ देना जायज़ है?”
\v 4 उस ने जवाब में कहा , “क्या तुम ने नहीं पढ़ा कि जिसने उन्हें बनाया उसने शुरू ही से उन्हें मर्द और 'औरत बना कर कहा?
\s5
\v 5 कि इस वजह से मर्द बाप से और माँ से जुदा होकर अपनी बीवी के साथ रहेगा;‘और वो दोनों एक जिस्म होंगे।’
\v 6 पस वो दो नहीं, बल्कि एक जिस्म हैं; इसलिए जिसे "ख़ुदा" ने जोड़ा है उसे आदमी जुदा न करे।”
\s5
\v 7 उन्होंने उससे कहा, “फिर मूसा ने क्यूँ हुक्म दिया है; कि तलाक़नामा देकर छोड़ दी जाए?”
\v 8 उस ने उनसे कहा , “मूसा ने तुम्हारी सख़्त दिली की वजह से तुम को अपनी बीवियों को छोड़ देने की इजाज़त दी; मगर शुरू से ऐसा न था।
\v 9 और मैं तुम से कहता हूँ; कि जो कोई अपनी बीवी को हरामकारी के सिवा किसी और वजह से छोड़ दे; और दूसरी शादी करे, वो ज़िना करता है; और जो कोई छोड़ी हुई से शादी कर ले, वो भी ज़िना करता है|”
\s5
\v 10 शागिर्दों ने उससे कहा, “अगर मर्द का बीवी के साथ ऐसा ही हाल है, तो शादी करना ही अच्छा नहीं।”
\v 11 उसने उनसे कहा,“सब इस बात को क़ुबूल नहीं कर सकते मगर वही जिनको ये क़ुदरत दी गई है।
\v 12 क्यूँकि कुछ ख़ोजे ऐसे हैं 'जो माँ के पेट ही से ऐसे पैदा हुए, और कुछ ख़ोजे ऐसे हैं जिनको आदमियों ने ख़ोजा बनाया; और कुछ ख़ोजे ऐसे हैं, जिन्होंने आसमान की बादशाही के लिए अपने आप को ख़ोजा बनाया, जो क़ुबूल कर सकता है करे।
\s5
\v 13 उस वक़्त लोग बच्चों को उसके पास लाए, ताकि वो उन पर हाथ रख्खे और दुआ दे मगर शागिर्दों ने उन्हें झिड़का।
\v 14 लेकिन ईसा' ने उनसे कहा,”बच्चों को मेरे पास आने दो और उन्हें मना न करो, क्यूँकि आसमान की बादशाही ऐसों ही की है।
\v 15 और वो उन पर हाथ रखकर वहीं से चला गया।
\s5
\v 16 और देखो; एक शख़्स ने पास आकर उससे कहा “मैं कौन सी नेकी करूँ, ताकि हमेशा की ज़िन्दगी पाऊँ?”
\v 17 उसने उससे कहा, “तू मुझ से नेकी की वजह क्यूँ पूछता है? नेक तो एक ही है लेकिन अगर तू ज़िन्दगी में दाख़िल होना चाहता है तो हुक्मों पर अमल कर।”
\s5
\v 18 उसने उससे कहा, “कौन से हुक्म पर? ” ईसा' ने कहा , “ये कि ख़ून न कर ज़िना न कर चोरी न कर, झूटी गवाही न दे।
\v 19 अपने बाप की और माँ की 'इज़्ज़त कर और अपने पड़ौसी से अपनी तरह मुहब्बत रख।”
\s5
\v 20 उस जवान ने उससे कहा कि “मैंने उन सब पर अमल किया है अब मुझ में किस बात की कमी है?”
\v 21 ईसा' ने उससे कहा,“अगर तू कामिल होना चाहे तो जा अपना माल-ओ- अस्बाब बेच कर ग़रीबों को दे, तुझे आसमान पर ख़ज़ाना मिलेगा; और आकर मेरे पीछे होले|”
\v 22 मगर वो जवान ये बात सुनकर उदास होकर चला गया, क्यूँकि बड़ा मालदार था।
\s5
\v 23 ईसा' ने अपने शागिर्दों से कहा "मैं तुम से सच कहता हूँ कि दौलतमन्द का आस्मान की बादशाही में दाख़िल होना मुश्किल है।
\v 24 और फिर तुम से कहता हूँ, 'कि ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना इससे आसान है कि दौलतमन्द "ख़ुदा" की बादशाही में दाख़िल हो।
\s5
\v 25 शागिर्द ये सुनकर बहुत ही हैरान हुए और कहने लगे “फिर कौन नजात पा सकता है?”
\v 26 ईसा' ने उनकी तरफ देखकर कहा" ये आदमियों से तो नहीं हो सकता; लेकिन "ख़ुदा" से सब कुछ हो सकता है |"
\v 27 इस पर पतरस ने जवाब में उससे कहा “देख हम तो सब कुछ छोड़ कर तेरे पीछे हो लिए हैं ; पस हम को क्या मिलेगा?”
\s5
\v 28 ईसा' ने उस से कहा,“मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब इबने आदम नई पैदाइश में अपने जलाल के तख़्त पर बैठेगा, तो तुम भी जो मेरे पीछे हो लिए हो बारह तख़्तों पर बैठ कर इस्राईल के बारह क़बीलों का इन्साफ़ करोगे।
\s5
\v 29 और जिस किसी ने घरों, या भाइयों, या बहनों, या बाप, या माँ, या बच्चों, या खेतों को मेरे नाम की ख़ातिर छोड़ दिया है, उसको सौ गुना मिलेगा और हमेशा की ज़िन्दगी का वारिस होगा।
\v 30 लेकिन बहुत से पहले आख़िर हो जाएँगे और आख़िर पहले।
\s5
\c 20
\v 1 ” क्यूँकि आस्मान की बादशाही उस घर के मालिक की तरह है, जो सवेरे निकला ताकि अपने बाग़ में मज़दूर लगाए।
\v 2 उसने मज़दूरों से एक दीनार रोज़ तय करके उन्हें अपने बाग़ में भेज दिया।
\s5
\v 3 फिर पहर दिन चढ़ने के क़रीब निकल कर उसने औरों को बाज़ार में बेकार खड़े देखा,
\v 4 और उन से कहा, 'तुम भी बाग़ में चले जाओ, जो वाजिब है तुम को दूँगा|' पस वो चले गए।
\s5
\v 5 फिर उसने दोपहर और तीसरे पहर के क़रीब निकल कर वैसा ही किया।
\v 6 और कोई एक घंटा दिन रहे फिर निकल कर औरों को खड़े पाया, और उनसे कहा, 'तुम क्यूँ यहाँ तमाम दिन बेकार खड़े हो?'
\v 7 उन्होंने उससे कहा, 'इस लिए कि किसी ने हम को मज़दूरी पर नहीं लगाया|' उस ने उनसे कहा, 'तुम भी बाग़ में चले जाओ|'
\s5
\v 8 जब शाम हुई तो बाग़ के मालिक ने अपने कारिन्दे से कहा, 'मज़दूरों को बुलाओ और पिछलों से लेकर पहलों तक उनकी मज़दूरी दे दो|'
\v 9 जब वो आए जो घंटा भर दिन रहे लगाए गए थे, तो उनको एक एक दीनार मिला।
\v 10 जब पहले मज़दूर आए तो उन्होंने ये समझा कि हम को ज़्यादा मिलेगा; और उनको भी एक ही दीनार मिला।
\s5
\v 11 जब मिला तो घर के मालिक से ये कह कर शिकायत करने लगे,
\v 12 'इन पिछलों ने एक ही घंटा काम किया है और तूने इनको हमारे बराबर कर दिया जिन्होंने दिन भर बोझ उठायाऔर सख़्त धूप सही?'
\s5
\v 13 उसने जवाब देकर उन में से एक से कहा,'मियाँ, मैं तेरे साथ बे इन्साफ़ी नहीं करता; क्या तेरा मुझ से एक दीनार नहीं ठहरा था?
\v 14 जो तेरा है उठा ले और चला जा मेरी मर्ज़ी ये है कि जितना तुझे देता हूँ इस पिछले को भी उतना ही दूँ।
\s5
\v 15 क्या मुझे ठीक नहीं कि अपने माल से जो चाहूँ सो करूँ? तू इसलिए कि मैं नेक हूँ बुरी नज़र से देखता है।'
\v 16 इसी तरह आख़िर पहले हो जाएँगे और पहले आख़िर।”
\s5
\v 17 और यरूशलीम जाते हुए ईसा' बारह शागिर्दों को अलग ले गया; और रास्ते में उनसे कहा।
\v 18 “देखो; हम यरूशलीम को जाते हैं; और इबने आदम सरदार काहिनों और फ़क़ीहों के हवाले किया जाएगा; और वो उसके क़त्ल का हुक्म देंगे।
\v 19 और उसे ग़ैर क़ौमों के हवाले करेंगे ताकि वो उसे ठट्ठों में उड़ाएँ, और कोड़े मारें और मस्लूब करें और वो तीसरे दिन ज़िन्दा किया जाएगा।”
\s5
\v 20 उस वक़्त ज़ब्दी की बीवी ने अपने बेटों के साथ उसके सामने आकर सिज्दा किया और उससे कुछ अर्ज़ करने लगी |
\v 21 उसने उससे कहा, “तू क्या चाहती है?” उस ने उससे कहा, “फ़रमा कि ये मेरे दोनों बेटे तेरी बादशाही में तेरी दहनी और बाईं तरफ़ बैठें।”
\s5
\v 22 ईसा' ने जवाब में कहा, “तुम नहीं जानते कि क्या माँगते हो? जो प्याला मैं पीने को हूँ क्या तुम पी सकते हो?" उन्होंने उससे कहा, "पी सकते हैं|”
\v 23 उसने उनसे कहा “मेरा प्याला तो पियोगे, लेकिन अपने दहने बाएँ किसी को बिठाना मेरा काम नहीं; मगर जिनके लिए मेरे बाप की तरफ़ से तैय्यार किया गया उन्ही के लिए है।”
\v 24 जब शागिर्दों ने ये सुना तो उन दोनों भाइयों से ख़फ़ा हुए।
\s5
\v 25 मगर ईसा' ने उन्हें पास बुलाकर कहा “तुम जानते हो कि ग़ैर क़ौमों के सरदार उन पर हुक्म चलाते और अमीर उन पर इख़्तियार जताते हैं।
\v 26 तुम में ऐसा न होगा; बल्कि जो तुम में बड़ा होना चाहे वो तुम्हारा ख़ादिम बने।
\v 27 और जो तुम में अव्वल होना चाहे वो तुम्हारा ग़ुलाम बने।
\v 28 चुनाँचे; इबने आदम इसलिए नहीं आया कि ख़िदमत ले; बल्कि इसलिए कि ख़िदमत करे और अपनी जान बहुतों के बदले फ़िदिये में दें।”
\s5
\v 29 जब वो यरीहू से निकल रहे थे; एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली।
\v 30 और देखो; दो अँधों ने जो रास्ते के किनारे बैठे थे ये सुनकर कि 'ईसा' जा रहा है चिल्ला कर कहा, “ऐ ख़ुदावन्द इब्ने-ए- दाऊद हम पर रहम कर।”
\v 31 लोगों ने उन्हें डांटा कि चुप रहें; लेकिन वो और भी चिल्ला कर कहने लगे,“ऐ ख़ुदावन्द इबने दाऊद हम पर रहम कर।”
\s5
\v 32 ईसा' ने खड़े होकर उन्हें बुलाया और कहा, “तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए करूँ?”
\v 33 उन्होंने उससे कहा “ऐ ख़ुदावन्द हमारी आँखें खुल जाएँ।”
\v 34 ईसा' को तरस आया। और उसने उन की आँखों को छुआ और वो फ़ौरन देखने लगे और उसके पीछे हो लिए।
\s5
\c 21
\v 1 जब वो यरूशलीम के नज़दीक पहुँचे और ज़ैतून के पहाड़ पर बैतफ़गे के पास आए; तो ईसा' ने दो शागिर्दों को ये कह कर भेजा,
\v 2 “अपने सामने के गाँव में जाओ। वहाँ पहुँचते ही एक गधी बंधी हुई और उसके साथ बच्चा पाओगे| उन्हें खोल कर मेरे पास ले आओ।
\v 3 और अगर कोई तुम से कुछ कहे तो कहना कि ‘ख़ुदावन्द को इन की ज़रूरत है।’वो फ़ौरन इन्हें भेज देगा।”
\s5
\v 4 ये इसलिए हुआ जो नबी की मा'रिफ़त कहा गया था वो पूरा हो:
\v 5 “सिय्यून की बेटी से कहो, ‘देख, तेरा बादशाह तेरे पास आता है; वो हलीम है और गधे पर सवार है, बल्कि लादू के बच्चे पर|’”
\s5
\v 6 पस शागिर्दों ने जाकर जैसा ईसा' ने उनको हुक्म दिया था; वैसा ही किया।
\v 7 गधी और बच्चे को लाकर अपने कपड़े उन पर डाले और वो उस पर बैठ गया।
\v 8 और भीड़ में से अक्सर लोगों ने अपने कपड़े रास्ते में बिछाए; औरों ने दरख़्तों से डालियाँ काट कर राह में फैलाइं।
\s5
\v 9 और भीड़ जो उसके आगे आगे जाती और पीछे पीछे चली आती थी “पुकार पुकार कर कहती थी " इबने दाऊद को हो शा'ना ! मुबारक है वो जो ख़ुदावन्द के नाम से आता है। आलम -ऐ बाला पर होशाना।”
\v 10 और वो जब यरूशलम में दाख़िल हुआ तो सारे शहर मे हलचल मच गई और लोग कहने लगे “ये कौन है?”
\v 11 भीड़ के लोगों ने कहा “ये गलील के नासरत का नबी ईसा' है।”
\s5
\v 12 और ईसा' ने ख़ुदा की हैकल में दाख़िल होकर उन सब को निकाल दिया; जो हैकल में ख़रीद- ओ फ़रोख़्त कर रहे थे; और सरार्फ़ों के तख़्त और कबूतर फ़रोशों की चौकियां उलट दीं।
\v 13 और उन से कहा, “लिखा है ‘मेरा घर दुआ का घर कहलाएगा।’मगर तुम उसे डाकुओं की खो बनाते हो।”
\v 14 और अंधे और लंगड़े हैकल में उसके पास आए, और उसने उन्हें अच्छा किया।
\s5
\v 15 लेकिन जब सरदार काहिनों और फ़क़ीहों ने उन अजीब कामों को जो उसने किए; और लड़कों को हैकल में इबने दाऊद को हो शा'ना पुकारते देखा तो ख़फ़ा होकर उससे कहने लगे,
\v 16 “तू सुनता है कि ये क्या कहते हैं?” ईसा' ने उन से कहा,“हाँ; क्या तुम ने ये कभी नहीं पढ़ा: ‘बच्चों और शीरख़्वारों के मुँह से तुम ने हम्द को कामिल कराया?’”
\v 17 और वो उन्हें छोड़ कर शहर से बाहर बैत अन्नियाह में गया; और रात को वहीं रहा।
\s5
\v 18 और जब सुबह को फिर शहर को जा रहा था; तो उसे भूक लगी।
\v 19 और रास्ते के किनारे अंजीर का एक दरख़्त देख कर उसके पास गया; और पत्तों के सिवा उस में कुछ न पाकर उससे कहा; “आइन्दा कभी तुझ में फल न लगे!”और अंजीर का दरख़्त उसी दम सूख गया।
\s5
\v 20 शागिर्दों ने ये देख कर ताअ'ज्जुब किया और कहा “ये अन्जीर का दरख़्त क्यूँकर एक दम में सूख गया?”
\v 21 ईसा' ने जवाब में उनसे कहा, "तुम से सच कहता हूँ“ कि अगर ईमान रखो और शक न करो तो न सिर्फ़ वही करोगे जो अंजीर के दरख़्त के साथ हुआ; बल्कि अगर इस पहाड़ से कहो उखड़ जा और समुन्दर में जा पड़ तो यूँ ही हो जाएगा।
\v 22 और जो कुछ दुआ में ईमान के साथ माँगोगे वो सब तुम को मिलेगा ”
\s5
\v 23 जब वो हैकल में आकर ता'लीम दे रहा था; तो सरदार काहिनों और क़ौम के बुज़ुर्गों ने उसके पास आकर कहा, “तू इन कामों को किस इख़्तियार से करता है? और ये इख़्तियार तुझे किसने दिया है।”
\v 24 ईसा' ने जवाब में उनसे कहा, “मैं भी तुम से एक बात पूछता हूँ; अगर वो मुझे बताओगे तो मैं भी तुम को बताऊँगा कि इन कामों को किस इख़्तियार से करता हूँ।
\s5
\v 25 यूहन्ना का बपतिस्मा कहाँ से था? आसमान की तरफ़ से या इन्सान की तरफ़ से?” वो आपस में कहने लगे,“ अगर हम कहें, ‘आसमान की तरफ़ से, तो वो हम को कहेगा, ‘फिर तुम ने क्यूँ उसका यक़ीन न किया?
\v 26 और अगर कहें इन्सान की तरफ़ से तो हम अवाम से डरते हैं? क्यूँकि सब यूहन्ना को नबी जानते थे?।”
\v 27 पस उन्होंने जवाब में ईसा' से कहा, “ हम नहीं जानते।” उसने भी उनसे कहा, “मैं भी तुम को नहीं बताता कि मैं इन कामों को किस इख़तियार से करता हूँ|”
\s5
\v 28 “तुम क्या समझते हो? एक आदमी के दो बेटे थे उसने पहले के पास जाकर कहा, बेटा जा! , और बाग़ में जाकर काम कर।’
\v 29 उसने जवाब में कहा, 'मैं नहीं जाऊँगा,' मगर पीछे पछता कर गया।
\v 30 फिर दूसरे के पास जाकर उसने उसी तरह कहा, उसने जवाब दिया, 'अच्छा जनाब ,मगर गया नहीं।
\s5
\v 31 इन दोनों में से कौन अपने बाप की मर्ज़ी बजा लाया?” उन्होंने कहा, “पहला|” ईसा' ने उन से कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ कि महसूल लेने वाले और कस्बियाँ तुम से पहले ख़ुदा की बादशाही में दाख़िल होती हैं।
\v 32 क्यकि यूहन्ना रास्तबाज़ी के तरीक़े पर तुम्हारे पास आया; और तुम ने उसका यक़ीन न किया; मगर महसूल लेने वाले और कस्बियों ने उसका यक़ीन किया; और तुम ये देख कर भी न पछताए; कि उसका यक़ीन कर लेते।
\s5
\v 33 एक और मिसाल सुनो: एक घर का मालिक था; जिसने बाग़ लगाया और उसकी चारों तरफ़ अहाता और उस में हौज़ खोदा और बुर्ज बनाया और उसे बाग़बानों को ठेके पर देकर परदेस चला गया।
\v 34 जब फल का मौसम क़रीब आया तो उसने अपने नौकरों को बाग़बानों के पास अपना फल लेने को भेजा।
\s5
\v 35 बाग़बानों ने उसके नौकरों को पकड़ कर किसी को पीटा किसी को क़त्ल किया और किसी को पथराव किया।
\v 36 फिर उसने और नौकरों को भेजा, जो पहलों से ज़्यादा थे; उन्होंने उनके साथ भी वही सुलूक किया।
\v 37 आख़िर उसने अपने बेटे को उनके पास ये कह कर भेजा कि ‘वो मेरे बेटे का तो लिहाज़ करेंगे।’
\s5
\v 38 जब बाग़बानों ने बेटे को देखा, तो आपस में कहा, ‘ये ही वारिस है! आओ इसे क़त्ल करके इसी की जायदाद पर क़ब्ज़ा कर लें|
\v 39 और उसे पकड़ कर बाग़ से बाहर निकाला और क़त्ल कर दिया।
\s5
\v 40 पस जब बाग़ का मालिक आएगा, तो उन बाग़बानों के साथ क्या करेगा?”
\v 41 उन्होंने उससे कहा, “उन बदकारों को बूरी तरह हलाक करेगा; और बाग़ का ठेका दूसरे बाग़बानों को देगा, जो मौसम पर उसको फल दें।”
\s5
\v 42 ईसा' ने उन से कहा, “क्या तुम ने किताबे मुक़द्दस में कभी नहीं पढ़ा: ‘जिस पत्थर को मे'मारों ने रद्द किया, वही कोने के सिरे का पत्थर हो गया ; ये "ख़ुदावन्द" की तरफ़ से हुआ और हमारी नज़र में 'अजीब है’?
\s5
\v 43 इसलिए मैं तुम से कहता हूँ कि "ख़ुदा" की बादशाही तुम से ले ली जाएगी और उस क़ौम को जो उसके फल लाए, दे दी जाए गी।
\v 44 और जो इस पत्थर पर गिरेगा; ”टुकड़े टुकड़े हो जाएगा; लेकिन जिस पर वो गिरेगा उसे पीस डालेगा।
\s5
\v 45 जब सरदार काहिनों और फ़रीसियों ने उसकी मिसाल सुनी, तो समझ गए, कि हमारे हक़ में कहता है।
\v 46 और वो उसे पकड़ने की कोशिश में थे, लेकिन लोगों से डरते थे; क्यूँकि वो उसे नबी जानते थे।
\s5
\c 22
\v 1 और ईसा' फिर उनसे मिसालों में कहने लगा,
\v 2 “आस्मान की बादशाही उस बादशाह की तरह है जिस ने अपने बेटे की शादी की।
\v 3 और अपने नौकरों को भेजा कि बुलाए हुओं को शादी में बुला लाएँ, मगर उन्होंने आना न चाहा।
\s5
\v 4 फिर उस ने और नौकरों को ये कह कर भेजा, ‘बुलाए हुओं से कहो: देखो, मैंने ज़ियाफ़त तैयार कर ली है, मेरे बैल और मोटे मोटे जानवर ज़बह हो चुके हैं और सब कुछ तैयार है; शादी में आओ|
\s5
\v 5 मगर वो बे परवाई करके चल दिए; कोई अपने खेत को, कोई अपनी सौदागरी को।
\v 6 और बाक़ियों ने उसके नौकरों को पकड़ कर बे'इज़्ज़त किया और मार डाला।
\v 7 बादशाह ग़ज़बनाक हुआ और उसने अपना लश्कर भेजकर उन ख़ूनियों को हलाक कर दिया, और उन का शहर जला दिया।
\s5
\v 8 तब उस ने अपने नौकरों से कहा, शादी का खाना तो तैयार है‘मगर बुलाए हुए लायक़ न थे।
\v 9 पस रास्तों के नाकों पर जाओ, और जितने तुम्हें मिलें शादी में बुला लाओ।’
\v 10 और वो नौकर बाहर रास्तों पर जा कर, जो उन्हें मिले क्या बूरे क्या भले सब को जमा' कर लाए और शादी की महफ़िल मेहमानों से भर गई।
\s5
\v 11 जब बादशाह मेहमानों को देखने को अन्दर आया, तो उसने वहाँ एक आदमी को देखा, जो शादी के लिबास में न था।
\v 12 उसने उससे कहा‘ मियाँ तू शादी की पोशाक पहने बग़ैर यहाँ क्यूँ कर आ गया?’लेकिन उस का मुँह बन्द हो गया।
\s5
\v 13 इस पर बादशाह ने ख़ादिमों से कहा ‘उस के हाथ पाँव बाँध कर बाहर अँधेरे में डाल दो, वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।
\v 14 क्यूँकि बुलाए हुए बहुत हैं, मगर चुने हुए थोड़े।”
\s5
\v 15 उस वक़्त फ़रीसियों ने जा कर मशवरा किया कि उसे क्यूँ कर बातों में फँसाएँ।
\v 16 पस उन्होंने अपने शागिर्दों को हेरोदियों के साथ उस के पास भेजा, और उन्होंने कहा “ऐ उस्ताद हम जानते हैं कि तू सच्चा है और सच्चाई से "ख़ुदा" की राह की तालीम देता है। और किसी की परवाह नहीं करता क्यूँकि तू किसी आदमी का तरफ़दार नहीं।
\v 17 पस हमें बता तू क्या समझता है? क़ैसर को जिज़िया देना जायज़ है या नहीं?”
\s5
\v 18 "ईसा" ने उन की शरारत जान कर कहा, “ऐ रियाकारो, मुझे क्यूँ आज़माते हो?
\v 19 जिज़िये का सिक्का मुझे दिखाओ” वो एक दीनार उस के पास लाए।
\s5
\v 20 उसने उनसे कहा “ये सूरत और नाम किसका है?”
\v 21 उन्होंने उससे कहा,“क़ैसर का|” उस ने उनसे कहा, “ पस जो क़ैसर का है क़ैसर को और जो ख़ुदा का है ख़ुदा को अदा करो|”
\v 22 उन्होंने ये सुनकर ता'अज्जुब किया, और उसे छोड़ कर चले गए।
\s5
\v 23 उसी दिन सदूक़ी जो कहते हैं कि क़यामत नहीं होगी उसके पास आए, और उससे ये सवाल किया|
\v 24 “ऐ उस्ताद, मूसा ने कहा था, कि अगर कोई बे औलाद मर जाए, तो उसका भाई उसकी बीवी से शादी कर ले, और अपने भाई के लिए नस्ल पैदा करे।
\s5
\v 25 अब हमारे दर्मियान सात भाई थे, और पहला शादी करके मर गया; और इस वजह से कि उसके औलाद न थी, अपनी बीवी अपने भाई के लिए छोड़ गया।
\v 26 इसी तरह दूसरा और तीसरा भी सातवें तक।
\v 27 सब के बा'द वो 'औरत भी मर गई।
\v 28 पस वो क़यामत में उन सातों में से किसकी बीवी होगी? क्यूँकि सब ने उससे शादी की थी।”
\s5
\v 29 ईसा' ने जवाब में उनसे कहा, “तुम गुमराह हो; इसलिए कि न किताबे मुक़द्दस को जानते हो न "ख़ुदा" की क़ुद्रत को।
\v 30 क्यूँकि क़यामत में शादी बारात न होगी; बल्कि लोग आसमान पर फ़िरिश्तों की तरह होंगे।
\s5
\v 31 मगर मुर्दों के जी उठने के बारे मे "ख़ुदा" ने तुम्हें फ़रमाया था, क्या तुम ने वो नहीं पढ़ा?
\v 32 ‘मैं इब्राहीम का ख़ुदा, और इज़्हाक़ का ख़ुदा और याक़ूब का ख़ुदा हूँ? वो तो मुर्दों का "ख़ुदा" नहीं ’बल्कि जिन्दो का ख़ुदा है।”
\v 33 लोग ये सुन कर उसकी ता'लीम से हैरान हुए।
\s5
\v 34 जब फ़रीसियों ने सुना कि उसने सदूक़ियों का मुँह बन्द कर दिया, तो वो जमा' हो गए।
\v 35 और उन में से एक आलिम- ऐ शरा ने आज़माने के लिए उससे पूछा;
\v 36 “ऐ उस्ताद, तौरेत में कौन सा हुक्म बड़ा है?”
\s5
\v 37 उसने उस से कहा “‘ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से अपने सारे दिल, और अपनी सारी जान और अपनी सारी अक़्ल से मुहब्बत रख।’
\v 38 बड़ा और पहला हुक्म यही है।
\s5
\v 39 और दूसरा इसकी तरह ये है‘कि अपने पड़ोसी से अपने बराबर मुहब्बत रख।’
\v 40 इन्ही दो हुक्मों पर तमाम तौरेत और अम्बिया के सहीफ़ों का मदार है।”
\s5
\v 41 जब फ़रीसी जमा' हुए तो ईसा' ने उनसे ये पूछा;
\v 42 “तुम मसीह के हक़ में क्या समझते हो? वो किसका बेटा है ”उन्होंने उससे कहा “दाऊद का।”
\s5
\v 43 उसने उनसे कहा, “पस दाऊद रूह की हिदायत से क्यूँकर उसे ख़ुदावन्द कहता है,
\v 44 ख़ुदावन्द ने मेरे ख़ुदावन्द से कहा, ‘मेरी दहनी तरफ़ बैठ, जब तक में तेरे दुश्मनों को तेरे पाँव के नीचे न कर दूँ’।
\s5
\v 45 पस जब दाऊद उसको ख़ुदावन्द कहता है तो वो उसका बेटा क्यूँकर ठहरा?”
\v 46 कोई उसके जवाब में एक हर्फ़ न कह सका, और न उस दिन से फिर किसी ने उससे सवाल करने की जुरअत की।
\s5
\c 23
\v 1 उस वक़्त ईसा ने भीड़ से और अपने शागिर्दों से ये बातें कहीं,
\v 2 “फ़क़ीह और फ़रीसी मूसा के शरी'अत की गद्दी पर बैठे हैं।
\v 3 पस जो कुछ वो तुम्हें बताएँ वो सब करो और मानो, लेकिन उनकी तरह काम न करो; क्यूँकि वो कहते हैं, और करते नहीं।
\s5
\v 4 वो ऐसे भारी बोझ जिनको उठाना मुश्किल है, बाँध कर लोगों के कँधों पर रखते हैं, मगर ख़ुद उनको अपनी उंगली से भी हिलाना नहीं चाहते।
\v 5 वो अपने सब काम लोगों को दिखाने को करते हैं; क्यूँकि वो अपने ता'वीज़ बड़े बनाते और अपनी पोशाक के किनारे चौड़े रखते हैं।
\s5
\v 6 ज़ियाफ़तों में सद्र नशीनी और इबादतख़ानों में आ'ला दर्जे की कुर्सियाँ।
\v 7 और बाज़ारों में सलाम‘और आदमियों से रब्बी कहलाना पसंद करते हैं।’
\s5
\v 8 मगर तुम रब्बी न कहलाओ, क्यूँकि तुम्हारा उसताद एक ही है और तुम सब भाई हो
\v 9 और ज़मीन पर किसी को अपना बाप न कहो, क्यूँकि तुम्हारा‘बाप ’एक ही है जो आसमानी है।
\v 10 और न तुम हादी कहलाओ, क्यूँकि तुम्हारा हादी एक ही है, या'नी मसीह।
\s5
\v 11 लेकिन जो तुम में बड़ा है, वो तुम्हारा ख़ादिम बने।
\v 12 जो कोई अपने आप को बड़ा बनायेगा,वो छोटा किया जायेगा; और जो अपने आप को छोटा बनायेगा,वो बड़ा किया जायेगा |
\s5
\v 13 ऐ रियाकार; आलिमों और फ़रीसियो तुम पर अफ़सोस कि आसमान की बादशाही लोगों पर बन्द करते हो, क्यूँकि न तो आप दाख़िल होते हो, और न दाख़िल होने वालों को दाख़िल होने देते हो।
\v 14 ऐ रियाकार; आलिमों और फ़रीसियो तुम पर अफ़सोस, कि तुम बेवाओं के घरों को दबा बैठते हो, और दिखावे के लिए नमाज़ को तूल देते हो; तुम्हें ज़्यादा सज़ा होगी।
\v 15 ऐ रियाकार; फ़क़ीहो और फ़रीसियो तुम पर अफ़सोस, कि एक मुरीद करने के लिए तरी और ख़ुश्की का दौरा करते हो, और जब वो मुरीद हो चुकता है तो उसे अपने से दूना जहन्नुम का फ़र्ज़न्द बना देते हो।
\s5
\v 16 ऐ अंधे राह बताने वालो , तुम पर अफ़्सोस! जो कहते हो, ‘अगर कोई मक़दिस की क़सम खाए तो कुछ बात नहीं; लेकिन अगर मक़दिस के सोने की क़सम खाए तो उसका पाबँद होगा।’
\v 17 ऐ अहमक़ों ! और अँधों सोना बड़ा है, या मक़्दिस जिसने सोने को मुक़द्दस किया।
\s5
\v 18 फिर कहते हो ‘अगर कोई क़ुर्बानगाह की क़सम खाए तो कुछ बात नहीं; लेकिन जो नज़्र उस पर चढ़ी हो अगर उसकी क़सम खाए तो उसका पाबन्द होगा।’
\v 19 ऐ अंधो! नज़्र बड़ी है या क़ुर्बानगाह जो नज़्र को मुक़द्दस करती है?
\s5
\v 20 पस , जो क़ुर्बानगाह की क़सम खाता है, वो उसकी और उन सब चीज़ों की जो उस पर हैं क़सम खाता है।
\v 21 और जो मक़दिस की क़सम खाता है वो उसकी और उसके रहनेवाले की क़सम खाता है।
\v 22 और जो आस्मान की क़सम खाता है वह "ख़ुदा" के तख़्त की और उस पर बैठने वाले की क़सम भी खाता है।
\s5
\v 23 ऐ रियाकार; आलिमों और फ़रीसियो तुम पर अफ़सोस कि पुदीना सौंफ़ और ज़ीरे पर तो दसवां हिस्सा देते हो, पर तुम ने शरी'अत की ज़्यादा भारी बातों या'नी इन्साफ़, और रहम, और ईमान को छोड़ दिया है; लाज़िम था ये भी करते और वो भी न छोड़ते।
\v 24 ऐ अंधे राह बताने वालो; जो मच्छर को तो छानते हो, और ऊँट को निगल जाते हो।
\s5
\v 25 ऐ रियाकार; आलिमों और फ़रीसियो तुम पर अफ़सोस कि प्याले और रक़ाबी को ऊपर से साफ़ करते हो, मगर वो अन्दर लूट और ना'परहेज़गारी से भरे हैं।
\v 26 ऐ अंधे फ़रीसी; पहले प्याले और रक़ाबी को अन्दर से साफ़ कर ताकि ऊपर से भी साफ़ हो जाए।
\s5
\v 27 ऐ रियाकार; आलिमों और फ़रीसियो तुम पर अफ़सोस कि तुम सफ़ेदी फिरी हुई क़ब्रों की तरह हो, जो ऊपर से तो ख़ूबसूरत दिखाई देती हैं, मगर अन्दर मुर्दों की हड्डियों और हर तरह की नापाकी से भरी हैं।
\v 28 इसी तरह तुम भी ज़ाहिर में तो लोगों को रास्तबाज़ दिखाई देते हो, मगर बातिन में रियाकारी और बेदीनी से भरे हो।
\s5
\v 29 ऐ रियाकार; आलिमों और फ़रीसियो तुम पर अफ़सोस, कि नबियों की क़ब्रें बनाते और रास्तबाज़ों के मक़बरे आरास्ता करते हो।
\v 30 और कहते हो, ‘अगर हम अपने बाप दादा के ज़माने में होते तो नबियों के ख़ून में उनके शरीक न होते।’
\v 31 इस तरह तुम अपनी निस्बत गवाही देते हो, कि तुम नबियों के क़ातिलों के फ़र्ज़न्द हो।
\s5
\v 32 ग़रज़ अपने बाप दादा का पैमाना भर दो।
\v 33 ऐ साँपो, ऐ अफ़'ई के बच्चो; तुम जहन्नुम की सज़ा से क्यूँकर बचोगे?
\s5
\v 34 इसलिए देखो मैं नबियों, और दानाओं और आलिमों को तुम्हारे पास भेजता हूँ, उन में से तुम कुछ को क़त्ल और मस्लूब करोगे, और कुछ को अपने इबादतख़ानों में कोड़े मारोगे, और शहर ब शहर सताते फिरोगे।
\v 35 ताकि सब रास्तबाज़ों का ख़ून जो ज़मीन पर बहाया गया तुम पर आए, रास्तबाज़ हाबिल के ख़ून से लेकर बरकियाह के बेटे ज़करियाह के ख़ून तक जिसे तुम ने मक़दिस और कुर्बानगाह के दर्मियान क़त्ल किया।
\v 36 मैं तुम से सच कहता हूँ कि ये सब कुछ इसी ज़माने के लोगों पर आएगा।
\s5
\v 37 " ऐ यरूशलीम " ऐ यरूशलीम तू जो नबियों को क़त्ल करता और जो तेरे पास भेजे गए, उनको संगसार करता है, कितनी बार मैंने चाहा कि जिस तरह मुर्ग़ी अपने बच्चों को परों तले जमा कर लेती है, इसी तरह मैं भी तेरे लड़कों को जमा' कर लूँ; मगर तुम ने न चाहा।
\v 38 देखो; तुम्हारा घर तुम्हारे लिए वीरान छोड़ा जाता है।
\v 39 क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ, कि "अब से मुझे फिर हरगिज़ न देखोगे; जब तक न कहोगे कि मुबारक है वो जो "ख़ुदावन्द" के नाम से आता है।”
\s5
\c 24
\v 1 और ईसा' हैकल से निकल कर जा रहा था, कि उसके शागिर्द उसके पास आए, ताकि उसे हैकल की इमारतें दिखाएँ।
\v 2 उसने जवाब में उनसे कहा,“क्या तुम इन सब चीज़ों को नहीं देखते? मैं तुम से सच कहता हूँ, कि यहाँ किसी पत्थर पर पत्थर बाक़ी न रहेगा; जो गिराया न जाएगा।”
\s5
\v 3 जब वो ज़ैतून के पहाड़ पर बैठा था, उसके शागिर्दों ने अलग उसके पास आकर कहा,“हम को बता ये बातें कब होंगी ? और तेरे आने और दुनिया के आख़िर होने का निशान क्या होगा?”
\v 4 ईसा' ने जवाब में उनसे कहा , “ख़बरदार! कोई तुम को गुमराह न कर दे,
\v 5 क्यूँकि बहुत से मेरे नाम से आएँगे और कहेंगे,‘मैं मसीह हूँ।’ और बहुत से लोगों को गुमराह करेंगे।
\s5
\v 6 और तुम लड़ाइयाँ और लड़ाइयों की अफ़वाह सुनोगे, ख़बरदार, घबरा न जाना, क्यूँकि इन बातों का वाक़े होना ज़रूर है।
\v 7 क्यूँकि क़ौम पर क़ौम और सल्तनत पर सल्तनत चढ़ाई करेगी, और जगह जगह काल पड़ेंगे, और भूचाल आएँगे।
\v 8 लेकिन ये सब बातें मुसीबतों का शुरू ही होंगी।
\s5
\v 9 उस वक़्त लोग तुम को तकलीफ़ देने के लिए पकड़वाएँगे, और तुम को क़त्ल करेंगे; और मेरे नाम की ख़ातिर सब क़ौमें तुम से दुश्मनी रख्खेंगी।
\v 10 और उस उक़्त बहुत से ठोकर खाएँगे, और एक दूसरे को पकड़वाएँगे; और एक दूसरे से दुश्मनी रख्खेंगे।
\v 11 और बहुत से झूटे नबी उठ खड़े होंगे, और बहुतों को गुमराह करेंगे।
\s5
\v 12 और बेदीनी के बढ़ जाने से बहुतेरों की मुहब्बत ठंडी पड़ जाएगी।
\v 13 लेकिन जो आख़िर तक बर्दाशत करेगा वो नजात पाएगा। ।
\v 14 और बादशाही की इस ख़ुशख़बरी का एलान तमाम दुनिया में होगा, ताकि सब क़ौमों के लिए गवाही हो, तब ख़ात्मा होगा।
\s5
\v 15 पस जब तुम उस उजाड़ने वाली मकरूह चीज़ जिसका ज़िक्र दानीएल नबी की ज़रिये हुआ, मुक़द्दस मुकामों में खड़ा हुआ देखो (पढ़ने वाले संमझ लें ) |
\v 16 तो जो यहूदिया में हों वो पहाड़ों पर भाग जाएँ।
\v 17 जो छत पर हो वो अपने घर का माल लेने को नीचे न उतरे।
\v 18 और जो खेत में हो वो अपना कपड़ा लेने को पीछे न लौटे
\s5
\v 19 मगर अफ़सोस उन पर जो उन दिनों में हामिला हों और जो दूध पिलाती हों।
\v 20 पस, दुआ करो कि तुम को जाड़ों में या सबत के दिन भागना न पड़े।
\v 21 क्यूँकि उस वक़्त ऐसी बड़ी मुसीबत होगी कि दुनिया के शुरू से न अब तक हुई न कभी होगी।
\v 22 अगर वो दिन घटाए न जाते तो कोई बशर न बचता मगर चुने हुवों की ख़ातिर वो दिन घटाए जाएँगे।
\s5
\v 23 उस वक़्त अगर कोई तुम को कहे , ‘देखो, मसीह यहाँ है’ या ‘वह वहाँ है’ तो यक़ीन न करना।
\v 24 क्यूँकि झूटे मसीह और झूटे नबी उठ खड़े होंगे और ऐसे बड़े निशान और अजीब काम दिखाएँगे कि अगर मुम्किन हो तो बरगुज़ीदों को भी गुमराह कर लें।
\v 25 देखो, मैं ने पहले ही तुम को कह दिया है।
\s5
\v 26 पस अगर वो तुम से कहें , ‘देखो, वो वीरानो में है’तो बाहर न जाना । या देखो, कोठरियों में है तो यक़ीन न करना।‘
\v 27 क्यूँकि जैसे बिजली पूरब से कौंध कर पच्छिम तक दिखाई देती है वैसे ही इबने आदम का आना होगा।
\v 28 जहाँ मुर्दार है, वहाँ गिद्ध जमा' हो जाएँगे।
\s5
\v 29 फ़ौरन इन दिनों की मुसीबत के बा'द सूरज तारीक हो जाएगा। और चाँद अपनी रौशनी न देगा, और सितारे आसमान से गिरेंगे और आस्मान की क़ुव्वतें हिलाई जाएँगी।
\s5
\v 30 और उस वक़्त इब्न-ए-आदम का निशान आस्मान पर दिखाई देगा। और उस वक़्त ज़मीन की सब क़ौमें छाती पीटेंगी; और इबने आदम को बड़ी क़ुदरत और जलाल के साथ आसमान के बादलों पर आते देखेंगी।
\v 31 और वो नरसिंगे की बड़ी आवाज़ के साथ अपने फ़रिश्तों को भेजेगा और वो उसके चुने हुवों को चारों तरफ़ से आसमान के इस किनारे से उस किनारे तक जमा' करेंगे।
\s5
\v 32 अब अन्जीर के दरख़्त से एक मिसाल सीखो,। जैसे ही उसकी डाली नर्म होती और पत्ते निकलते हैं तुम जान लेते हो कि गर्मी नज़दीक है।
\v 33 इसी तरह जब तुम इन सब बातों को देखो, तो जान लो कि वो नज़दीक बल्कि दरवाज़े पर है।
\s5
\v 34 मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तक ये सब बातें न हो लें ये नस्ल हरगिज़ तमाम न होगी।
\v 35 आसमान और ज़मीन टल जाएँगी लेकिन मेरी बातें हरगिज़ न टलेंगी
\s5
\v 36 लेकिन उस दिन और उस वक़्त के बारे मे कोई नहीं जानता, न आसमान के फ़रिश्ते न बेटा मगर, सिर्फ़ बाप।
\s5
\v 37 जैसा नूह के दिनों में हुआ वैसा ही इबन-ए- आदम के आने के वक़्त होगा।
\v 38 क्यूँकि जिस तरह तूफ़ान से पहले के दिनों में लोग खाते पीते और ब्याह शादी करते थे, उस दिन तक कि नूह नाव में दाख़िल हुआ।
\v 39 और जब तक तूफ़ान आकर उन सब को बहा न ले गया, उन को ख़बर न हुई, उसी तरह इबने आदम का आना होगा।
\s5
\v 40 उस वक़्त दो आदमी खेत में होंगे, एक ले लिया जाएगा, और दूसरा छोड़ दिया जाएगा,
\v 41 दो औरतें चक्की पीसती होंगी, एक ले ली जाएगी और दूसरी छोड़ दी जाएगी।
\v 42 पस जागते रहो, क्यूँकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा ख़ुदावन्द किस दिन आएगा
\s5
\v 43 लेकिन ये जान रख्खो, कि अगर घर के मालिक को मा'लूम होता कि चोर रात के कौन से पहर आएगा, तो जागता रहता और अपने घर में नक़ब न लगाने देता।
\v 44 इसलिए तुम भी तैयार रहो, क्यूँकि जिस घड़ी तुम को गुमान भी न होगा इबने आदम आ जाएगा।
\s5
\v 45 पस वो ईमानदार और अक़्लमन्द नौकर कौन सा है, जिसे मालिक ने अपने नौकर चाकरों पर मुक़र्रर किया ताकि वक़्त पर उनको खाना दे।
\v 46 मुबारक है वो नौकर जिसे उस का मालिक आकर ऐसा ही करते पाए।
\v 47 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वो उसे अपने सारे माल का मुख़्तार कर देगा।
\s5
\v 48 लेकिन अगर वो ख़राब नौकर अपने दिल में ये कह कर कि मेरे मालिक के आने में देर है।’
\v 49 अपने हमख़िदमतों को मारना शुरू करे, और शराबियों के साथ खाए पिए।
\v 50 तो उस नौकर का मालिक ऐसे दिन कि वो उसकी राह न देखता हो और ऐसी घड़ी कि वो न जानता हो आ मौजूद होगा।
\v 51 और ख़ूब कोड़े लगा कर उसको रियाकारों में शामिल करेगा वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।”
\s5
\c 25
\v 1 “उस वक़्त आसमान की बादशाही उन दस कुँवारियों की तरह होगी जो अपनी मशा'लें लेकर दुल्हा के इस्तक़बाल को निकलीं।
\v 2 उन में पाँच बेवक़ूफ़ और पाँच अक़्लमन्द थीं।
\v 3 जो बेवक़ूफ़ थीं उन्होंने अपनी मशा'लें तो ले लीं मगर तेल अपने साथ न लिया।
\v 4 मगर अक़्लमन्दों ने अपनी मशा'लों के साथ अपनी कुप्पियों में तेल भी ले लिया।
\s5
\v 5 और जब दुल्‍हा ने देर लगाई तो सब ऊँघने लगीं और सो गई।
\v 6 आधी रात को धूम मची, ‘देखो! दूल्हा आ गया, उसके इस्तक़बाल को निकलो!
\s5
\v 7 उस वक़्त वो सब कुंवारियाँ उठकर अपनी अपनी मशा'लों को दुरुस्त करने लगीं।
\v 8 और बेवक़ूफ़ों ने 'अक़्लमन्दों से कहा, ‘अपने तेल में से कुछ हम को भी दे दो, क्यूँकि हमारी मशा'लें बुझी जाती हैं।’
\v 9 'अक़्लमन्दों ने जवाब दिया, ‘शायद हमारे तुम्हारे दोनों के लिए काफ़ी न ह बेहतर; ये है कि बेचने वालों के पास जाकर, अपने लिए मोल ले लो।’
\s5
\v 10 जब वो मोल लेने जा रही थी, तो दुल्हा आ पहुँचा और जो तैयार थीं, वो उस के साथ शादी के जश्न में अन्दर चली गईं, और दरवाज़ा बन्द हो गया।
\v 11 फिर वो बाक़ी कुँवारियाँ भी आईं और कहने लगीं ‘ऐ ख़ुदावन्द ऐ ख़ुदावन्द। हमारे लिए दरवाज़ा खोल दे।’
\v 12 उसने जवाब में कहा ‘मैं तुम से सच कहता हूँ कि मैं तुम को नहीं जानता।’
\v 13 पस जागते रहो, क्यूँकि तुम न उस दिन को जानते हो न उस वक़्त को।
\s5
\v 14 क्यूँकि ये उस आदमी जैसा हाल है, जिसने परदेस जाते वक़्त अपने घर के नौकरों को बुला कर अपना माल उनके सुपुर्द किया।
\v 15 एक को पाँच चाँदी के सिक्के दिए, दूसरे को दो, और तीसरे को एक या'नी हर एक को उसकी क़ाबिलियत के मुताबिक़ दिया और परदेस चला गया।
\v 16 जिसको पाँच सिक्के मिले थे, उसने फ़ौरन जाकर उनसे लेन देन किया, और पाँच तोड़े और पैदा कर लिए।
\s5
\v 17 इसी तरह जिसे दो मिले थे, उसने भी दो और कमाए।
\v 18 मगर जिसको एक मिला था, उसने जाकर ज़मीन खोदी और अपने मालिक का रुपया छिपा दिया।
\s5
\v 19 बड़ी मुद्दत के बा'द उन नौकरों का मालिक आया और उनसे हिसाब लेने लगा।
\v 20 जिसको पाँच तोड़े मिले थे, वो पाँच सिक्के और लेकर आया, और कहा, ‘ऐ ख़ुदावन्द! तूने पाँच सिक्के मुझे सुपुर्द किए थे; देख, मैंने पाँच सिक्के और कमाए।’
\v 21 उसके मालिक ने उससे कहा, ‘ऐ अच्छे और ईमानदार नौकर शाबाश; तू थोड़े में ईमानदार रहा मैं तुझे बहुत चीज़ों का मुख़्तार बनाउँगा; अपने मालिक की ख़ुशी में शरीक हो।’
\s5
\v 22 और जिस को दो सिक्के मिले थे, उस ने भी पास आकर कहा, ‘तूने दो सिक्के मुझे सुपुर्द किए थे, देख मैंने दो सिक्के और कमाए।’
\v 23 उसके मालिक ने उससे कहा, ‘ऐ अच्छे और दियानतदार नौकर शाबाश; तू थोड़े में ईमानदार रहा मैं तुझे बहुत चीज़ों का मुख़्तार बनाउँगा; अपने मालिक की ख़ुशी में शरीक हो।’
\s5
\v 24 और जिसको एक तोड़ा मिला था, वो भी पास आकर कहने लगा, ‘ऐ ख़ुदावन्द! मैं तुझे जानता था, कि तू सख़्त आदमी है, और जहाँ नहीं बोया वहाँ से काटता है, और जहाँ नहीं बिखेरा वहाँ से जमा' करता है।
\v 25 पस मैं डरा और जाकर तेरा तोड़ा ज़मीन में छिपा दिया देख, जो तेरा है वो मौजूद है।’
\s5
\v 26 उसके मालिक ने जवाब में उससे कहा,'ऐ शरीर और सुस्त नौकर तू जानता था कि जहाँ मैंने नहीं बोया वहाँ से काटता हूँ, और जहाँ मैंने नहीं बिखेरा वहाँ से जमा' करता हूँ;
\v 27 पस तुझे लाज़िम था,कि मेरा रुपया साहूकारों को देता, तो मैं आकर अपना माल सूद समेत ले लेता।
\s5
\v 28 पस इससे वो सिक्का ले लो और जिस के पास दस सिक्के हैं‘ उसे दे दो।
\v 29 क्यूँकि जिस के पास है उसे दिया जाएगा और उस के पास ज़्यादा हो जाएगा, मगर जिस के पास नहीं है उससे वो भी जो उसके पास है, ले लिया जाएगा।
\v 30 और इस निकम्मे नौकर को बाहर अँधेरे में डाल दो, और वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।’
\s5
\v 31 जब इबने आदम अपने जलाल में आएगा, और सब फ़रिश्ते उसके साथ आएँगे; तब वो अपने जलाल के तख़्त पर बैठेगा।
\v 32 और सब क़ौमें उस के सामने जमा' की जाएँगी। और वो एक को दूसरे से जुदा करेगा।
\v 33 और भेड़ों को अपने दाहिनें और बकरियों को बाँए जमा' करेगा।
\s5
\v 34 उस वक़्त बादशाह अपनी तरफ़ वालों से कहेगा ‘आओ, मेरे बाप के मुबारक लोगो, जो बादशाही दुनियां बनाने से पहले से तुम्हारे लिए तैयार की गई है उसे मीरास में ले लो।
\v 35 क्यूँकि मैं भूखा था, तुमने मुझे खाना खिलाया; मैं प्यासा था, तुमने मुझे पानी पिलाया; मैं परदेसी था तूने मुझे अपने घर में उतारा।
\v 36 नंगा था तुमने मुझे कपड़ा पहनाया, बीमार था तुमने मेरी ख़बर ली ,मैं क़ैद में था, तुम मेरे पास आए।’
\s5
\v 37 तब रास्तबाज़ जवाब में उससे कहेंगे, ‘ऐ ख़ुदावन्द, हम ने कब तुझे भूका देख कर खाना खिलाया, या प्यासा देख कर पानी पिलाया?
\v 38 हम ने कब तुझे मुसाफ़िर देख कर अपने घर में उतारा? या नंगा देख कर कपड़ा पहनाया।
\v 39 हम कब तुझे बीमार या क़ैद में देख कर तेरे पास आए।?
\v 40 बादशाह जवाब में उन से कहेगा, ‘मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुम ने मेरे सब से छोटे भाइयों में से किसी के साथ ये सुलूक किया, तो मेरे ही साथ किया।’
\s5
\v 41 फिर वो बाएँ तरफ़ वालों से कहेगा, ‘मला'ऊनो मेरे सामने से उस हमेशा की आग में चले जाओ, जो इब्लीस और उसके फ़रिश्तों के लिए तैयार की गई है।
\v 42 क्यूँकि, मैं भूखा था, तुमने मुझे खाना न खिलाया, प्यासा था, तुमने मुझे पानी न पिलाया।
\v 43 मुसाफिर था, तुम ने मुझे घर में न उतारा नंगा था, तुम ने मुझे कपड़ा न पहनाया, बीमार और क़ैद में था, तुम ने मेरी ख़बर न ली।’
\s5
\v 44 तब वो भी जवाब में कहेंगे, ‘ऐ ख़ुदावन्द हम ने कब तुझे भूखा,या प्यासा, या मुसाफिर,या नंगा, या बीमार या क़ैद में देखकर तेरी ख़िदमत न की?
\v 45 उस वक़्त वो उनसे जवाब में कहेगा ‘मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तुम ने इन सब से छोटों में से किसी के साथ ये सुलूक न किया, तो मेरे साथ न किया|
\v 46 और ये हमेशा की सज़ा पाएँगे, मगर रास्तबाज़ हमेशा की ज़िन्दगी।”
\s5
\c 26
\v 1 जब ईसा' ये सब बातें ख़त्म कर चुका, तो ऐसा हुआ कि उसने अपने शागिर्दों से कहा।
\v 2 “तुम जानते हो कि दो दिन के बाद ईद-ए-फ़सह होगी। और इब्न-ए-आदम मस्लूब होने को पकड़वाया जाएगा।”
\s5
\v 3 उस वक़्त सरदार काहिन और क़ौम के बुज़ुर्ग काइफ़ा नाम सरदार काहिन के दिवान ख़ाने में जमा' हुए।
\v 4 और मशवरा किया कि ईसा' को धोखे से पकड़ कर क़त्ल करें।
\v 5 मगर कहते थे, “ 'ईद में नहीं, ऐसा न हो कि लोगों में बलवा हो जाए।”
\s5
\v 6 और जब ईसा' बैत अन्नियाह में शमा'ऊन जो पहले कोढ़ी था के घर में था।
\v 7 तो एक 'औरत संग-मरमर के इत्रदान में क़ीमती इत्र लेकर उसके पास आई, और जब वो खाना खाने बैठा तो उस के सिर पर डाला।
\v 8 शागिर्द ये देख कर खफ़ा हुए और कहने लगे,“ये किस लिए बर्बाद किया गया?
\v 9 ये तो बड़ी क़ीमत में बिक कर ग़रीबों को दिया जा सकता था।”
\s5
\v 10 ईसा' ने ये जान कर उन से कहा, “इस 'औरत को क्यूँ दुखी करते हो ? इस ने तो मेरे साथ भलाई की है।
\v 11 क्यूँकि ग़रीब ग़ुरबे तो हमेशा तुम्हारे पास हैं लेकिन मैं तुम्हारे पास हमेशा न रहूँगा।
\s5
\v 12 और इस ने तो मेरे दफ़्न की तैयारी के लिए इत्र मेरे बदन पर डाला।
\v 13 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तमाम दुनिया में जहाँ कहीं इस ख़ुशख़बरी का एलान किया जाएगा, ये भी जो इस ने किया; इस की यादगारी में कहा जाएगा।”
\s5
\v 14 उस वक़्त उन बारह में से एक ने जिसका नाम यहूदाह इस्करियोती था; सरदार काहिनों के पास जा कर कहा,
\v 15 “अगर मैं उसे तुम्हारे हवाले कर दूँ तो मुझे क्या दोगे? उन्होंने उसे तीस रुपये तौल कर दे दिया|”
\v 16 और वो उस वक़्‍त से उसके पकड़वाने का मौक़ा ढूँडने लगा।
\s5
\v 17 ईद-'ए-फ़ितर के पहले दिन शागिर्दों ने ईसा' के पास आकर कहा, “तू कहाँ चाहता है कि हम तेरे लिए फ़सह के खाने की तैयारी करें।”
\v 18 उस ने कहा, “शहर में फ़लाँ शख़्स के पास जा कर उससे कहना‘उस्ताद फ़रमाता है ’कि मेरा वक़्त नज़दीक है मैं अपने शागिर्दों के साथ तेरे यहाँ ईद'ए फ़सह करूँगा।”
\v 19 और जैसा ईसा' ने शागिर्दों को हुक्म दिया था, उन्होंने वैसा ही किया और फ़सह तैयार किया।
\s5
\v 20 जब शाम हुई तो वो बारह शागिर्दों के साथ खाना खाने बैठा था।
\v 21 जब वो खा रहा था, तो उसने कहा,“मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।”
\v 22 वो बहुत ही ग़मगीन हुए और हर एक उससे कहने लगे “ख़ुदावन्द, क्या मैं हूँ?”
\s5
\v 23 उस ने जवाब में कहा,“जिस ने मेरे साथ रक़ाबी में हाथ डाला है वही मुझे पकड़वाएगा।
\v 24 इबने आदम तो जैसा उसके हक़ में लिखा है जाता ही है लेकिन उस आदमी पर अफ़सोस जिसके वसीले से इबने आदम पकड़वाया जाता है अगर वो आदमी पैदा न होता तो उसके लिए अच्छा होता।”
\v 25 उसके पकड़वाने वाले यहूदाह ने जवाब में कहा “ऐ रब्बी क्या मैं हूँ?” उसने उससे कहा “तूने ख़ुद कह दिया।”
\s5
\v 26 जब वो खा रहे थे तो ईसा' ने रोटी ली और और बरकत देकर तोड़ी “और शागिर्दों को देकर कहा," लो, खाओ, ये मेरा बदन है।”
\s5
\v 27 फिर प्याला लेकर शुक्र किया और उनको देकर कहा “तुम सब इस में से पियो।
\v 28 क्यूँकि ये मेरा वो अहद का ख़ून है जो बहुतों के गुनाहों की मु'आफ़ी के लिए बहाया जाता है।
\v 29 मैं तुम से कहता हूँ, कि अंगूर का ये शीरा फिर कभी न पियूँगा, उस दिन तक कि तुम्हारे साथ अपने बाप की बादशाही में नया न पियूँ।”
\s5
\v 30 फिर वो हम्द करके बाहर ज़ैतून के पहाड़ पर गए।
\v 31 उस वक़्त ईसा' ने उनसे कहा “तुम सब इसी रात मेरी वजह से ठोकर खाओगे क्यूँकि लिखा है; मैं चरवाहे को मारूँगा‘और गल्ले की भेंड़े बिखर जाएँगी।’
\v 32 लेकिन मैं अपने जी उठने के बा'द तुम से पहले गलील को जाऊँगा।”
\s5
\v 33 पतरस ने जवाब में उससे कहा, “चाहे सब तेरी वजह से ठोकर खाएँ, लेकिन में कभी ठोकर न खाऊँगा।”
\v 34 ईसा' ने उससे कहा, “मैं तुझसे सच कहता हूँ, इसी रात मुर्ग़ के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा |”
\v 35 पतरस ने उससे कहा, “अगर तेरे साथ मुझे मरना भी पड़े। तोभी तेरा इन्कार हरगिज़ न करूँगा|” और सब शागिर्दो ने भी इसी तरह कहा।
\s5
\v 36 उस वक़्त ईसा' उनके साथ गतसिमनी नाम एक जगह में आया और अपने शागिर्दों से कहा ।“यहीं बैठे रहना जब तक कि मैं वहाँ जाकर दुआ करूँ।”
\v 37 और पतरस और ज़बदी के दोनों बेटों को साथ लेकर ग़मगीन और बेकरार होने लगा।
\v 38 उस वक़्त उसने उनसे कहा, “मेरी जान निहायत ग़मगीन है यहाँ तक कि मरने की नौबत पहुँच गई है, तुम यहाँ ठहरो, और मेरे साथ जागते रहो।”
\s5
\v 39 फिर ज़रा आगे बढ़ा और मुँह के बल गिर कर यूँ दुआ की,“ऐ मेरे बाप, अगर हो सके तो ये दुःख का प्याला मुझ से टल जाए, तोभी न जैसा मैं चाहता हूँ; बल्कि जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।”
\v 40 फिर शागिर्दों के पास आकर उनको सोते पाया और पतरस से कहा, “क्या तुम मेरे साथ एक घड़ी भी न जाग सके?
\v 41 जागते और दु'आ करते रहो ताकि आज़्माइश में न पड़ो, रूह तो मुस्त'इद है मगर जिस्म कमज़ोर है।”
\s5
\v 42 फिर दोबारा उसने जाकर यूँ दुआ की “ऐ मेरे बाप अगर ये मेरे पिये बग़ैर नहीं टल सकता तो तेरी मर्ज़ी पूरी हो।”
\v 43 और आकर उन्हें फिर सोते पाया, क्यूँकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं।
\v 44 और उनको छोड़ कर फिर चला गया, और फिर वही बात कह कर तीसरी बार दुआ की।
\s5
\v 45 तब शागिर्दों के पास आकर उसने कहा “अब सोते रहो, और आराम करो, देखो वक़्त आ पहुँचा है, और इबने आदम गुनाहगारों के हवाले किया जाता है।
\v 46 उठो चलें, देखो, मेरा पकड़वाने वाला नज़दीक आ पहुँचा है। ”
\s5
\v 47 वो ये कह ही रहा था, कि यहूदाह जो उन बारह में से एक था, आया, और उसके साथ एक बड़ी भीड़ तलवारें और लाठियाँ लिए सरदार काहिनों और क़ौम के बुज़ुर्गों की तरफ़ से आ पहुँची।
\v 48 और उसके पकड़वाने वाले ने उनको ये निशान दिया था, जिसका मैं बोसा लूँ वही है उसे पकड़ लेना।
\s5
\v 49 और फ़ौरन उसने ईसा' के पास आ कर कहा, “ऐ रब्बी सलाम! ”और उसके बोसे लिए।
\v 50 ईसा' ने उससे कहा, “मियाँ! जिस काम को आया है वो कर ले”| इस पर उन्होंने पास आकर ईसा' पर हाथ डाला और उसे पकड़ लिया।
\s5
\v 51 और देखो, ईसा' के साथियों में से एक ने हाथ बढ़ा कर अपनी तलवार खींची और सरदार काहिन के नौकर पर चला कर उसका कान उड़ा दिया।
\v 52 ईसा' ने उससे कहा, “अपनी तल वार को मियान में कर क्यूँकि जो तलवार खींचते हैं वो सब तलवार से हलाक किए जाएँगे।
\v 53 क्या तू नहीं समझता कि मैं अपने बाप से मिन्नत कर सकता हूँ, और वो फ़रिश्तों के बारह पलटन से ज़्यादा मेरे पास अभी मौजूद कर देगा?
\v 54 मगर वो लिखे हुए का यूँ ही होना ज़रूर है क्यूँ कर पूरे होंगे?”
\s5
\v 55 उसी वक़्त ईसा' ने भीड़ से कहा, “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे डाकू की तरह पकड़ने निकले हो? मैं हर रोज़ हैकल में बैठकर ता'लीम देता था,और तुमने मुझे नहीं पकड़ा |
\v 56 मगर ये सब कुछ इसलिए हुआ कि नबियों की नबूव्वत पूरी हों।” इस पर सब शागिर्द उसे छोड़ कर भाग गये|
\s5
\v 57 और ईसा' के पकड़ने वाले उसको काइफ़ा नाम सरदार काहिन के पास ले गए, जहाँ आलिम और बुज़ुर्ग जमा' हुए थे।
\v 58 और पतरस दूर दूर उसके पीछे पीछे सरदार काहिन के दिवानख़ाने तक गया, और अन्दर जाकर प्यादों के साथ नतीजा देखने को बैठ गया।
\s5
\v 59 सरदार काहिन और सब सद्रे-ए 'अदालत वाले ईसा' को मार डालने के लिए उसके ख़िलाफ़ झूठी गवाही ढूँडने लगे।
\v 60 मगर न पाई, गरचे बहुत से झूठे गवाह आए, लेकिन आख़िरकार दो गवाहों ने आकर कहा,
\v 61 “इस ने कहा है,कि मैं ख़ुदा के मक़दिस को ढा सकता और तीन दिन में उसे बना सकता हूँ।”
\s5
\v 62 और सरदार काहिन ने खड़े होकर उससे कहा, “तू जवाब नहीं देता? ये तेरे ख़िलाफ़ क्या गवाही देते हैं?”
\v 63 मगर ईसा' ख़ामोश ही रहा, सरदार काहिन ने उससे कहा, मैं तुझे ज़िन्दा ख़ुदा की क़सम देता हूँ,“कि अगर तू ख़ुदा का बेटा मसीह है तो हम से कह दे?”
\v 64 ईसा' ने उससे कहा, "तू ने ख़ुद कह दिया“ बल्कि मैं तुम से कहता हूँ, कि इसके बा'द इबने आदम को क़ादिर- ए मुतलक़ की दहनी तरफ़ बैठे और आसमान के बादलों पर आते देखोगे।”
\s5
\v 65 इस पर सरदार काहिन ने ये कह कर अपने कपड़े फाड़े उसने कुफ़्र बका है अब हम को गवाहों की क्या ज़रूरत रही? देखो, तुम ने अभी ये कुफ़्र सुना है।
\v 66 तुम्हारी क्या राय है? उन्होंने जवाब में कहा,“वो क़त्ल के लायक़ है।”
\s5
\v 67 इस पर उन्होंने उसके मुँह पर थूका और उसके मुक्के मारे और कुछ ने तमांचे मार कर कहा।
\v 68 “ऐ मसीह, हमें नुबुव्वत से बता कि तुझे किस ने मारा।”
\s5
\v 69 पतरस बाहर सहन में बैठा था, कि एक लौंडी ने उसके पास आकर कहा,“तू भी ईसा' गलीली के साथ था।”
\v 70 उसने सबके सामने ये कह कर इन्कार किया “मैं नहीं जानता तू क्या कहती है।”
\s5
\v 71 और जब वो ड्योढ़ी में चला गया तो दूसरी ने उसे देखा, और जो वहाँ थे , उनसे कहा, “ये भी ईसा' नासरी के साथ था|”
\v 72 उसने क़सम खा कर फिर इन्कार किया “मैं इस आदमी को नहीं जानता।”
\s5
\v 73 थोड़ी देर के बा'द जो वहाँ खड़े थे, उन्होंने पतरस के पास आकर कहा,“बेशक तू भी उन में से है, क्यूँकि तेरी बोली से भी ज़ाहिर होता है।”
\v 74 इस पर वो ला'नत करने और क़सम खाने लगा “मैं इस आदमी को नहीं जानता!”और फ़ौरन मुर्ग़ ने बाँग दी।
\v 75 पतरस को ईसा' की वो बात याद आई जो उसने कही थी: “मुर्ग़ के बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा|”और वो बाहर जाकर ज़ार ज़ार रोया।
\s5
\c 27
\v 1 जब सुबह हुई तो सब सरदार काहिनों और क़ौम के बुज़ुर्गों ने ईसा' के ख़िलाफ़ मशवरा किया कि उसे मार डालें।
\v 2 और उसे बाँध कर ले गए, और पीलातुस हाकिम के हवाले किया।
\s5
\v 3 जब उसके पकड़वाने वाले यहूदाह ने ये देखा, कि वो मुजरिम ठहराया गया, तो अफ़्सोस किया और वो तीस रुपये सरदार काहिन और बुज़ुर्गों के पास वापस लाकर कहा।
\v 4 मैंने गुनाह किया,“कि बेक़ुसूर को क़त्ल के लिए पकड़वाया ।”उन्हों ने कहा “हमें क्या! तू जान।”
\v 5 वो रुपयों को मक़दिस में फेंक कर चला गया। और जाकर अपने आपको फाँसी दी।
\s5
\v 6 सरदार काहिन ने रुपये लेकर कहा “इनको हैकल के ख़ज़ाने में डालना जायज़ नहीं; क्यूँकि ये ख़ून की क़ीमत है।”
\v 7 पस उन्होंने मशवरा करके उन रुपयों से कुम्हार का खेत परदेसियों के दफ़्न करने के लिए ख़रीदा।
\v 8 इस वजह से वो खेत आज तक ख़ून का खेत कहलाता है।
\s5
\v 9 उस वक़्त वो पूरा हुआ जो यरमियाह नबी के ज़रिये कहा गया था “कि जिसकी क़ीमत ठहराई गई थी, उन्होंने उसकी क़ीमत के वो तीस रुपये ले लिए, (उसकी क़ीमत कुछ बनी इस्राईल ने ठहराई थी)।
\v 10 और उसको कुम्हार के खेत के लिए दिया, जैसा "ख़ुदावन्द" ने मुझे हुक्म दिया।”
\s5
\v 11 ईसा' हाकिम के सामने खड़ा था, और हाकिम ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का बादशाह है?” ईसा' ने उस से कहा , “तू ख़ुद कहता है।”
\v 12 जब सरदार काहिन और बुज़ुर्ग उस पर इल्ज़ाम लगा रहे थे, उसने कुछ जवाब न दिया।
\v 13 इस पर पीलातुस ने उस से कहा “क्या तू नहीं सुनता, ये तेरे ख़िलाफ़ कितनी गवाहियाँ देते हैं?”
\v 14 उसने एक बात का भी उसको जवाब न दिया, यहाँ तक कि हाकिम ने बहुत ता'ज्जुब किया।
\s5
\v 15 और हाकिम का दस्तूर था,कि ईद पर लोगों की ख़ातिर एक क़ैदी जिसे वो चाहते थे छोड़ देता था।
\v 16 उस वक़्त बरअब्बा नाम उन का एक मशहूर क़ैदी था।
\s5
\v 17 पस जब वो इकटठे हुए तो पीलातुस ने उस से कहा, “तुम किसे चाहते हो कि तुम्हारी ख़ातिर छोड़ दूँ? बरअब्बा को या ईसा' को जो मसीह कहलाता है?”
\v 18 क्यूँकि उसे मा'लूम था, कि उन्होंने उसको जलन से पकड़वाया है।
\v 19 और जब वो तख़्त- ए आदालत पर बैठा था तो उस की बीवी ने उसे कहला भेजा “तू इस रास्तबाज़ से कुछ काम न रख क्यूँकि मैंने आज ख़्वाब में इस की वजह से बहुत दु:ख उठाया है।”
\s5
\v 20 लेकिन सरदार काहिनों और बुज़ुर्गों ने लोगों को उभारा कि बरअब्बा को माँग लें, और ईसा' को हलाक कराएँ।
\v 21 हाकिम ने उनसे कहा इन दोनों में से किसको चाहते हो कि तुम्हारी ख़ातिर छोड़ दूँ,? उन्होंने कहा “बरअब्बा को।”
\v 22 पीलातुस ने उनसे कहा “फिर ईसा' को जो मसीह कहलाता है क्या करूँ?”सब ने कहा “वो मस्लूब हो।”
\s5
\v 23 उसने कहा “क्यूँ? उस ने क्या बुराई की है?”मगर वो और भी चिल्ला चिल्ला कर कहने लगे “वो मस्लूब हो!”
\v 24 जब पीलातुस ने देखा कि कुछ बन नहीं पड़ता बल्कि उल्टा बलवा होता जाता है तो पानी लेकर लोगों के रूबरू अपने हाथ धोए “और कहा, मैं इस रास्तबाज़ के ख़ून से बरी हूँ; तुम जानो।”
\s5
\v 25 सब लोगों ने जवाब में कहा“इसका ख़ून हमारी और हमारी औलाद की गर्दन पर।”
\v 26 इस पर उस ने बरअब्बा को उनकी ख़ातिर छोड़ दिया, और ईसा' को कोड़े लगवा कर हवाले किया कि मस्लूब हो।
\s5
\v 27 इस पर हाकिम के सिपाहियों ने ईसा' को क़िले में ले जाकर सारी पलटन उसके आस पास जमा' की।
\v 28 और उसके कपड़े उतार कर उसे क़िरमिज़ी चोग़ा पहनाया।
\v 29 और काँटों का ताज बना कर उसके सिर पर रख्खा, और एक सरकन्डा उस के दहने हाथ में दिया और उसके आगे घुटने टेक कर उसे ठट्ठों में उड़ाने लगे; “ऐ यहूदियों के बादशाह, आदाब!”
\s5
\v 30 और उस पर थूका, और वही सरकन्डा लेकर उसके सिर पर मारने लगे।
\v 31 और जब उसका ठट्ठा कर चुके तो चोग़े को उस पर से उतार कर फिर उसी के कपड़े उसे पहनाए; और मस्लूब करने को ले गए।
\s5
\v 32 जब बाहर आए तो उन्होंने शमा'ऊन नाम एक कुरेनी आदमी को पाकर उसे बेगार में पकड़ा,कि उसकी सलीब उठाए।
\v 33 और उस जगह जो गुलगुता या'नी खोपड़ी की जगह कहलाती है पहुँचकर।
\v 34 पित मिली हुई मय उसे पीने को दी, मगर उसने चख कर पीना न चाहा।
\s5
\v 35 और उन्होंने उसे मस्लूब किया; और उसके कपड़े पर्चा डाल कर बाँट लिए।
\v 36 और वहाँ बैठ कर उसकी निगहबानी करने लगे।
\v 37 और उस का इल्ज़ाम लिख कर उसके सिर से ऊपर लगा दिया “ कि ये यहूदियों का बादशाह ईसा' है।”
\s5
\v 38 उस वक़्त उसके साथ दो डाकू मस्लूब हुए, एक दहने और एक बाएँ।
\v 39 और राह चलने वाले सिर हिला हिला कर उसको ला'न ता'न करते और कहते थे।
\v 40 “ऐ मक़दिस के ढानेवाले और तीन दिन में बनाने वाले अपने आप को बचा; अगर तू "ख़ुदा" का बेटा है तो सलीब पर से उतर आ।”
\s5
\v 41 इसी तरह सरदार कहिन भी फ़क़ीहों और बुज़ुर्गों के साथ मिलकर ठट्ठे से कहते थे,
\v 42 “इसने औरों को बचाया, अपने आप को नहीं बचा सकता, ये तो इस्राईल का बादशाह है; अब सलीब पर से उतर आए, तो हम इस पर ईमान लाएँ।
\s5
\v 43 इस ने ख़ुदा पर भरोसा किया है, अगरचे इसे चाहता है तो अब इस को छुड़ा ले, क्यूँकि इस ने कहा था,‘मैं ख़ुदा का बेटा हूँ।’”
\v 44 इसी तरह डाकू भी जो उसके साथ मस्लूब हुए थे, उस पर ला'न ता'न करते थे।
\s5
\v 45 और दोपहर से लेकर तीसरे पहर तक तमाम मुल्क में अन्धेरा छाया रहा।
\v 46 और तीसरे पहर के क़रीब ईसा' ने बड़ी आवाज़ से चिल्ला कर कहा “एली, एली, लमा शबक़ तनी ”ऐ मेरे ख़ुदा, ऐ मेरे ख़ुदा,“तू ने मुझे क्यूँ छोड़ दिया?”
\v 47 जो वहाँ खड़े थे उन में से कुछ ने सुन कर कहा “ये एलियाह को पुकारता है।”
\s5
\v 48 और फ़ौरन उनमें से एक शख़्स दौड़ा और सोख़ते को लेकर सिरके में डुबोया और सरकन्डे पर रख कर उसे चुसाया।
\v 49 मगर बाक़ियों ने कहा, “ठहर जाओ, देखें तो एलियाह उसे बचाने आता है या नहीं।”
\v 50 ईसा' ने फिर बड़ी आवाज़ से चिल्ला कर जान दे दी।
\s5
\v 51 और मक़दिस का पर्दा ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया, और ज़मीन लरज़ी और चट्टानें तड़क गईं।
\v 52 और क़ब्रें खुल गईं। और बहुत से जिस्म उन मुक़द्दसों के जो सो गए थे, जी उठे।
\v 53 और उसके जी उठने के बाद क़ब्रों से निकल कर मुक़द्दस शहर में गए, और बहुतों को दिखाई दिए।
\s5
\v 54 पस सुबेदार और जो उस के साथ ईसा' की निगहबानी करते थे, भोंचाल और तमाम माजरा देख कर बहुत ही डर कर कहने लगे “बै -शक ये "ख़ुदा" का बेटा था।”
\v 55 और वहाँ बहुत सी औरतें जो गलील से ईसा' की ख़िदमत करती हुई उसके पीछे पीछे आई थी, दूर से देख रही थीं।
\v 56 उन में मरियम मग्दलीनी थी, और या'क़ूब और योसेस की माँ मरियम और ज़ब्दी के बेटों की माँ।
\s5
\v 57 जब शाम हुई तो यूसुफ़ नाम अरिमतियाह का एक दौलतमन्द आदमी आया जो ख़ुद भी ईसा' का शागिर्द था।
\v 58 उस ने पीलातुस के पास जा कर ईसा' की लाश माँगी, इस पर पीलातुस ने दे देने का हुक्म दे दिया।
\s5
\v 59 यूसुफ़ ने लाश को लेकर साफ़ महीन चादर में लपेटा।
\v 60 और अपनी नई क़ब्र में जो उस ने चट्टान में खुदवाई थी रख्खा, फिर वो एक बड़ा पत्थर क़ब्र के मुँह पर लुढ़का कर चला गया।
\v 61 और मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम वहाँ क़ब्र के सामने बैठी थीं।
\s5
\v 62 दूसरे दिन जो तैयारी के बा'द का दिन था, सरदार काहिन और फ़रीसियों ने पीलातुस के पास जमा' होकर कहा।
\v 63 ख़ुदावन्द हमें याद है “कि उस धोकेबाज़ ने जीते जी कहा था, मैं तीन दिन के बा'द जी उठूँगा ।
\v 64 पस हुक्म दे कि तीसरे दिन तक क़ब्र की निगहबानी की जाए, कहीं ऐसा न हो कि उसके शागिर्द आकर उसे चुरा ले जाएँ, और लोगों से कह दें, वो मुर्दों में से जी उठा, और ये पिछला धोखा पहले से भी बुरा हो।”
\s5
\v 65 पीलातुस ने उनसे कहा “तुम्हारे पास पहरे वाले हैं" जाओ, जहाँ तक तुम से हो सके उसकी निगहबानी करो।”
\v 66 पस वो पहरेवालों को साथ लेकर गए, और पत्थर पर मुहर करके क़ब्र की निगहबानी की।
\s5
\c 28
\v 1 सबत के बा'द हफ़्ते के पहले दिन धूप निकलते वक़्त मरियम मग्दलीनी और दूसरी मरियम क़ब्र को देखने आईं।
\v 2 और देखो, एक बड़ा भूचाल आया क्यूँकि "ख़ुदा" का फ़रिश्ता आसमान से उतरा और पास आकर पत्थर को लुढ़का दिया; और उस पर बैठ गया।
\s5
\v 3 उसकी सूरत बिजली की तरह थी, और उसकी पोशाक बर्फ़ की तरह सफ़ेद थी।
\v 4 और उसके डर से निगहबान काँप उठे,और मुर्दा से हो गए।
\s5
\v 5 फ़रिश्ते ने औरतों से कहा,“तुम न डरो। क्यूँकि मैं जानता हूँ कि तुम ईसा' को ढूँड रही हो जो मस्लूब हुआ था।
\v 6 वो यहाँ नहीं है, क्यूँकि अपने कहने के मुताबिक़ जी उठा है; आओ ये जगह देखो जहाँ "ख़ुदावन्द" पड़ा था।
\v 7 और जल्दी जा कर उस के शागिर्दों से कहो वो मुर्दों में से जी उठा है, और देखो; वो तुम से पहले गलील को जाता है वहाँ तुम उसे देखोगे, देखो मैंने तुम से कह दिया है।”
\s5
\v 8 और वो ख़ौफ़ और बड़ी ख़ुशी के साथ क़ब्र से जल्द रवाना होकर उसके शागिर्दों को ख़बर देने दौड़ीं।
\v 9 और देखो ईसा' उन से मिला, और उस ने कहा, “सलाम।”उन्होंने पास आकर उसके क़दम पकड़े और उसे सज्दा किया।
\v 10 इस पर ईसा' ने उन से कहा, “डरो नहीं। जाओ, मेरे भाइयों से कहो कि गलील को चले जाएँ, वहाँ मुझे देखेंगे।”
\s5
\v 11 जब वो जा रही थीं, तो देखो; पहरेवालों में से कुछ ने शहर में आकर तमाम माजरा सरदार काहिनों से बयान किया।
\v 12 और उन्होंने बुज़ुर्गों के साथ जमा' होकर मशवरा किया और सिपाहियों को बहुत सा रुपया दे कर कहा,
\v 13 "ये कह देना, कि रात को जब हम सो रहे थे “उसके शागिर्द आकर उसे चुरा ले गए।”
\s5
\v 14 “अगर ये बात हाकिम के कान तक पहुँची तो हम उसे समझाकर तुम को ख़तरे से बचा लेंगे”
\v 15 पस उन्होंने रुपया लेकर जैसा सिखाया गया था, वैसा ही किया; और ये बात यहूदियों में मशहूर है।
\s5
\v 16 और ग्यारह शागिर्द गलील के उस पहाड़ पर गए, जो ईसा' ने उनके लिए मुक़र्रर किया था।
\v 17 उन्होंने उसे देख कर सज्दा किया, मगर कुछ ने शक़ किया।
\s5
\v 18 ईसा' ने पास आ कर उन से बातें की और कहा “आस्मान और ज़मीन का कुल इख़तियार मुझे दे दिया गया है।
\v 19 पस तुम जा कर सब क़ौमों को शागिर्द बनाओ और उन को बाप और बेटे और रूह-उल-कुद्दूस के नाम से बपतिस्मा दो।
\s5
\v 20 और उन को ये ता'लीम दो, कि उन सब बातों पर अमल करें जिनका मैंने तुम को हुक्म दिया; और देखो, मैं दुनिया के आख़िर तक हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।”

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\h मुक़द्दस मरकुस की मा'रिफ़त इन्जील
\toc1 मुक़द्दस मरकुस की मा'रिफ़त इन्जील
\toc2 मुक़द्दस मरकुस की मा'रिफ़त इन्जील
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\mt1 मुक़द्दस मरकुस की मा'रिफ़त इन्जील
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\c 1
\p
\v 1 ईसा' मसीह इब्ने ख़ुदा की ख़ुशख़बरी की शुरुआत|
\v 2 जैसा यसायाह नबी की किताब में लिखा है: “देखो, मैं अपना पैग़ंबर पहले भेजता हूँ, जो तुम्हारे लिए रास्ता तैयार करेगा।
\v 3 वीराने में पूकारने वाले की आवाज़ आती है कि ख़ुदावन्द के लिए राह तैयार करो, और उसके रास्ते सीधे बनाओ|”
\s5
\v 4 यूहन्ना आया और वीरानों में बपितस्मा देता और गुनाहों की मुआफ़ी। के लिए तौबा के बपितस्मे का ऐलान करता था
\v 5 और यहूदिया के मुल्क के सब लोग, और यरूशलीम के सब रहनेवाले निकल कर उस के पास गए, और उन्होंने अपने गुनाहों को कुबूल करके दरिया-ए-यर्दन में उससे बपतिस्मा लिया ।
\v 6 ये यूहन्ना ऊँटों के बालों से बनी पोशाक पहनता और चमड़े का पटटा अपनी कमर से बाँधे रहता था। और वो टिड्डियाँ और जंगली शहद खाता था।
\s5
\v 7 और ये ऐलान करता था,“कि मेरे बा'द वो शख़्स आनेवाला है जो मुझ से ताक़तवर है मैं इस लायक़ नहीं कि झुक कर उसकी जूतियों का फीता खोलूँ।
\v 8 मैंने तो तुम को पानी से बपतिस्मा दिया मगर वो तुम को रूह-उल-क़ुद्स से बपतिस्मा देगा।”
\s5
\v 9 उन दिनों में ऐसा हुआ कि ईसा' ने गलील के नासरत नाम कि जगह से आकर यरदन नदी में यहून्ना से बपतिस्मा लिया।
\v 10 और जब वो पानी से निकल कर ऊपर आया तो फ़ौरन उसने आसमान को खुलते और रूह को कबूतर की तरह अपने ऊपर आते देखा।
\v 11 और आसमान से ये आवाज़ आई, “तू मेरा प्यारा बेटा है, तुझ से मैं ख़ुश हूँ।”
\s5
\v 12 और उसके बाद रूह ने उसे वीराने में भेज दिया।
\v 13 और वो उस सूनसान जगह में चालीस दिन तक शैतान के ज़रिए आज़माया गया, और वह जंगली जानवरों के साथ रहा किया और फ़रिश्ते उसकी ख़िदमत करते रहे।
\s5
\v 14 फिर यूहन्ना के पकड़वाए जाने के बा'द ईसा' गलील में आया और ख़ुदा की ख़ुशख़बरी का ऐलान करने लगा।
\v 15 “और उसने कहा ”कि वक़्त पूरा हो गया है और ख़ुदा की बादशाही नज़दीक आ गई है, तौबा करो और ख़ुशख़बरी पर ईमान लाओ।
\s5
\v 16 गलील की झील के किनारे किनारे जाते हुए, शमा'ऊन और शमा'ऊन के भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते हुए देखा; क्यूंकि वो मछली पकड़ने वाले थे।
\v 17 और ईसा' ने उन से कहा, “मेरे पीछे चले आओ ,तो मैं तुम को आदमी पकड़ने वाला बनाऊँगा।”
\v 18 वो फ़ौरन जाल छोड़ कर उस के पीछे हो लिए।
\s5
\v 19 और थोड़ी दूर जाकर कर उसने ज़ब्दी के बेटे याक़ूब और उसके भाई यूहन्ना को नाव पर जालों की मरम्मत करते देखा।
\v 20 उसने फौरन उनको अपने पास बुलाया, और वो अपने बाप ज़ब्दी को नाव पर मज़दूरों के साथ छोड़ कर उसके पीछे हो लिए।
\s5
\v 21 फिर वो कफ़रनहूम में दाख़िल हुए, और वो फ़ौरन सब्त के दिन इबादतख़ाने में जाकर ता'लीम देने लगा।
\v 22 और लोग उसकी ता'लीम से हैरान हुए, क्यूंकि वो उनको आलिमों की तरह नहीं बल्कि इख़्तियार के साथ ता'लीम देता था।
\s5
\v 23 और फ़ौरन उनके इबादतख़ाने में एक आदमी ऐसा मिला जिस के अंदर बदरूह थी वो यूँ कह कर पुकार उठा।
\v 24 “ऐ ईसा' नासरी हमें तुझ से क्या काम? क्या तू हमें तबाह करने आया है में तुझको जानता हूँ कि तू कौन है? ख़ुदा का क़ुद्दूस है।”
\v 25 ईसा' ने उसे झिड़क कर कहा, “चुप रह , और इस में से निकल जा!।”
\v 26 तब वो बदरूह उसे मरोड़ कर बड़ी आवाज़ से चिल्ला कर उस में से निकल गई।
\s5
\v 27 और सब लोग हैरान हुए “और आपस में ये कह कर बहस करने लगे " ये कौन है । ये तो नई ता'लीम है? वो बदरूहों को भी इख़्तियार के साथ हुक्म देता है, और वो उसका हुक्म मानती हैं।”
\v 28 और फ़ौरन उसकी शोहरत गलील के आस पास में हर जगह फैल गई।
\s5
\v 29 और वो फ़ौरन इबादतख़ाने से निकल कर शमा'ऊन और अन्द्रियास के घर आए।
\v 30 शमाऊन की सास बुखार में पड़ी थी,और उन्होंने फ़ौरन उसकी ख़बर उसे दी।
\v 31 उसने पास जाकर और उसका हाथ पकड़ कर उसे उठाया, और बुखार उस पर से उतर गया, और वो उठकर उसकी ख़िदमत करने लगी।
\s5
\v 32 शाम को सूरज डूबने के बाद लोग बहुत से बीमारों को उसके पास लाए।
\v 33 और सारे शहर के लोग दरवाज़े पर जमा हो गए ।
\v 34 और उसने बहुतों को जो तरह तरह की बीमारियों में गिरफ़्तार थे, अच्छा किया और बहुत सी बदरूहों को निकाला और बदरूहों को बोलने न दिया, क्यूंकि वो उसे पहचानती थीं।
\s5
\v 35 और सुबह होने से बहुत पहले वो उठा , और एक वीरान जगह में गया, और वहाँ दुआ की।
\v 36 और शमा'ऊन और उसके साथी उसके पीछे गए।
\v 37 और जब वो मिला तो उन्होंने उससे कहा,“सब लोग तुझे ढूँड रहे हैं!”
\s5
\v 38 उसने उनसे कहा“आओ हम और कहीं आस पास के शहरों में चलें ताकि में वहाँ भी ऐलान करूँ, क्यूंकि में इसी लिए निकला हूँ।”
\v 39 और वो पूरे गलील में उनके इबादतख़ाने में जा जाकर ऐलान करता और बदरूहों को निकालता रहा।
\s5
\v 40 और एक कोढ़ी ने उस के पास आकर उसकी मिन्नत की और उसके सामने घुटने टेक कर उस से कहा “अगर तू चाहे तो मुझे पाक साफ़ कर सकता है।”
\v 41 उसने उसपर तरस खाकर हाथ बढ़ाया और उसे छूकर उस से कहा।“मैं चाहता हूँ, तू पाक साफ हो जा।”
\v 42 और फ़ौरन उसका कोढ़ जाता रहा और वो पाक साफ हो गया।
\s5
\v 43 और उसने उसे हिदायत कर के फ़ौरन रुख़्सत किया।
\v 44 और उससे कहा “ख़बरदार! किसी से कुछ न कहना जाकर अपने आप को इमामों को दिखा, और अपने पाक साफ़ हो जाने के बारे में उन चीज़ो को जो मूसा ने मुक़रर्र की हैं नज़्र गुजार ताकि उनके लिए गवाही हो।”
\s5
\v 45 लेकिन वो बाहर जाकर बहुत चर्चा करने लगा, और इस बात को इस क़दर मशहूर किया कि ईसा शहर में फिर खुलेआम दाख़िल न हो सका; बल्कि बाहर वीरान मुक़ामों में रहा, और लोग चारों तरफ़ से उसके पास आते थे।
\s5
\c 2
\v 1 कई दिन बा'द जब 'ईसा कफ़रनहूम में फिर दाख़िल हुआ तो सुना गया कि वो घर में है।
\v 2 फिर इतने आदमी जमा हो गए, कि दरवाज़े के पास भी जगह न रही और वो उनको कलाम सुना रहा था।
\s5
\v 3 और लोग एक फ़ालिज मारे हुए को चार आदमियों से उठवा कर उस के पास लाए।
\v 4 मगर जब वो भीड़ की वजह से उसके नज़दीक न आ सके तो उन्होने उस छत को जहाँ वो था, खोल दिया और उसे उधेड़ कर उस चारपाई को जिस पर फ़ालिज का मारा हुआ लेटा था, लटका दिया।
\s5
\v 5 ईसा' ने उन लोंगो का ईमान देख कर फ़ालिज मारे हुए से कहा,“बेटा, तेरे गुनाह मुआफ़ हुए।”
\v 6 मगर वहाँ कुछ आलिम जो बैठे थे, वो अपने दिलों में सोचने लगे।
\v 7 “ये क्यूँ ऐसा कहता है? कुफ़्र बकता है, ख़ुदा के सिवा गुनाह कौन मु'आफ़ कर सकता है।”
\s5
\v 8 और फ़ौरन ईसा' ने अपनी रूह में मा'लूम करके कि वो अपने दिलों में यूँ सोचते हैं उनसे कहा,“तुम क्यूँ अपने दिलों में ये बातें सोचते हो?
\v 9 ‘आसान क्या है ’फ़ालिज मारे हुए से ये कहना कि तेरे गुनाह मु'आफ़ हुए,‘या ये कहना कि उठ और अपनी चारपाई उठा कर चल फिर।’?
\s5
\v 10 लेकिन इस लिए कि तुम जानों कि इब्ने आदम को ज़मीन पर गुनाह मु'आफ़ करने का इख़्तियार है (उसने उस फालिज मारे हुए से कहा)।”
\v 11 “मैं तुम से कहता हूँ उठ अपनी चारपाई उठाकर अपने घर चला जा।”
\v 12 और वो उठा; फ़ौरन अपनी चारपाई उठाकर उन सब के सामने बाहर चला गया, चुनाँचे वो सब हैरान हो गए, और ख़ुदा की तम्जीद करके कहने लगे “हम ने ऐसा कभी नहीं देखा था!”
\s5
\v 13 वो फिर बाहर झील के किनारे गया, और सारी भीड़ उसके पास आई और वो उनको ता'लीम देने लगा।
\v 14 जब वो जा रहा था, तो उसने हल्फ़ई के बेटे लावी को महसूल की चौकी पर बैठे देखा,,और उस से कहा “मेरे पीछे हो ले।”पस वो उठ कर उस के पीछे हो लिया।
\s5
\v 15 और यूँ हुआ कि वो उस के घर में खाना खाने बैठा | बहुत से महसूल लेने वाले और गुनाहगार लोग ईसा' और उसके शागिर्दों के साथ खाने बैठे,क्यूंकि वो बहुत थे, और उसके पीछे हो लिए थे।
\v 16 फ़रीसियों ने फ़क़ीहों ने उसे गुनाहगारों और महसूल लेने वालों के साथ खाते देखकर उसके शागिर्दों से कहा, “ये तो महसूल लेने वालों और गुनाहगारों के साथ खाता पीता है।”
\s5
\v 17 ईसा' ने ये सुनकर उनसे कहा, तन्दरुस्तों को हकीम की ज़रुरत नहीं “बल्कि बीमारों को; में रास्तबाज़ों को नहीं बल्कि गुनाहगारों को बुलाने आया हूँ।”
\s5
\v 18 और यूहन्ना के शागिर्द और फ़रीसी रोज़े से थे, उन्होंने आकर उस से कहा, “यूहन्ना के शागिर्द और फ़रीसियों के शागिर्द तो रोज़ा रखते हैं? लेकिन तेरे शागिर्द क्यूँ रोज़ा नहीं रखते।”
\v 19 ईसा' ने उनसे कहा “क्या बाराती जब तक दुल्हा उनके साथ है रोज़ा रख सकते हैं? जिस वक़्त तक दुल्हा उनके साथ है वो रोज़ा नहीं रख सकते।
\s5
\v 20 मगर वो दिन आएँगे कि दुल्हा उनसे जुदा किया जाएगा, उस वक़्त वो रोज़ा रखेंगे।
\v 21 कोरे कपड़े का पैवन्द पुरानी पोशाक पर कोई नहीं लगाता नहीं तो वो पैवन्द उस पोशाक में से कुछ खींच लेगा, या'नी नया पुरानी से और वो ज़ियादा फट जाएगी।
\s5
\v 22 और नई मय को पुरानी मश्कों में कोई नहीं भरता नहीं तो मश्कें मय से फ़ट जाएँगी और मय और मश्कें दोनों बरबाद हो जाएँगी बल्कि नई मय को नई मश्कों मे भरते हैं।”
\s5
\v 23 और यूँ हुआ कि वो सब्त के दिन खेतों में से होकर जा रहा था, और उसके शागिर्द राह में चलते होए बालें तोड़ने लगे।
\v 24 और फ़रीसियों ने उस से कहा “देख ये सब्त के दिन वो काम क्यूँ करते हैं जो जाएज़ नहीं।”
\s5
\v 25 उसने उनसे कहा,“क्या तुम ने कभी नहीं पढ़ा कि दाऊद ने क्या किया जब उस को और उस के साथियों को ज़रूरत हुई और वो भूखे हुए ?
\v 26 वो क्यूँकर अबियातर सरदार काहिन के दिनों में ख़ुदा के घर में गया, और उस ने नज़्र की रोटियाँ खाईं जिनको खाना काहिनों के सिवा और किसी को जाएज़ नहीं था और अपने साथियों को भी दीं”|?
\s5
\v 27 और उसने उनसे कहा “सबत आदमी के लिए बना है न आदमी सब्त के लिए।
\v 28 इस लिए इब्न-ए-आदम सबत का भी मालिक है।”
\s5
\c 3
\v 1 और वो इबादतख़ाने में फिर दाख़िल हुआ और वहाँ एक आदमी था, जिसका हाथ सूखा हुआ थ।
\v 2 और वो उसके इंतिज़ार में रहे, कि अगर वो उसे सब्त के दिन अच्छा करे तो उस पर इल्ज़ाम लगाएँ।
\s5
\v 3 उसने उस आदमी से जिसका हाथ सूखा हुआ था कहा “बीच में खड़ा हो।”
\v 4 और उसने कहा“सब्त के दिन नेकी करना जाएज़ है या बदी करना?जान बचाना या क़त्ल करना”वो चुप रह गए।
\s5
\v 5 उसने उनकी सख़्त दिली की वजह से ग़मगीन होकर और चारों तरफ़ उन पर ग़ुस्से से नज़र करके उस आदमी से कहा, “अपना हाथ बढ़ा।”उस ने बढ़ा दिया, और उसका हाथ दुरुस्त हो गया।
\v 6 फिर फ़रीसी फ़ौरन बाहर जाकर हेरोदियों के साथ उसके ख़िलाफ़ मशवरा करने लगे।कि उसे किस तरह हलाक करें |
\s5
\v 7 और ईसा' अपने शागिर्दों के साथ झील की तरफ़ चला गया,और गलील से एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली।
\v 8 और यहूदिया और यरूशलीम इदूमया से और यरदन के पार सूर और सैदा के शहरों के आस पास से एक बड़ी भीड़ ये सुन कर कि वो कैसे बड़े काम करता है उसके पास आई।
\s5
\v 9 पस उसने अपने शागिर्दों से कहा भीड़ की वजह से एक छोटी नाव मेरे लिए तैयार रहे“ताकि वो मुझे दबा न दें।”
\v 10 क्यूंकि उसने बहुत लोगों को अच्छा किया था, चुनाँचे जितने लोग जो सख़्त बीमारियों में गिरफ़्तार थे,उस पर गिरे पड़ते थे, कि उसे छू लें।
\s5
\v 11 और बदरूहें जब उसे देखती थीं उसके आगे गिर पड़ती और पुकार कर कहती थीं,“तू ख़ुदा का बेटा है।।”
\v 12 और वो उनको बड़ी ताकीद करता था, मुझे ज़ाहिर न करना।
\s5
\v 13 फिर वो पहाड़ पर चढ़ गया, और जिनको वो आप चाहता था उनको पास बुलाया, और वो उसके पास चले गए।
\v 14 और उसने बारह को मुक़र्रर किया, ताकि उसके साथ रहें और वो उनको भेजे कि मनादी करें।
\v 15 और बदरूहों को निकालने का इख़्तियार रखे ।
\v 16 वो ये हैं शमा'ऊन जिसका नाम पतरस रखा ।
\s5
\v 17 और ज़ब्दी का बेटा याक़ूब और याक़ूब का भाई यूहन्ना जिस का नाम बु'आनर्गिस या'नी गरज के बेटे रखा ।
\v 18 और अन्द्रियास, फ़िलिप्पुस, बरतुल्माई, और मत्ती, और तोमा, और हलफ़ाई का बेटा और तद्दी और शमा'ऊन कना'नी।
\v 19 और यहूदाह इस्करियोती जिस ने उसे पकड़वा भी दिया।
\s5
\v 20 वो घर में आया और इतने लोग फिर जमा हो गए, कि वो खाना भी न खा सके।
\v 21 जब उसके अज़ीज़ों ने ये सुना तो उसे पकड़ने को निकले ,क्यूंकि वो कहते थे “ वो बेख़ुद है।”
\v 22 और आलिम जो यरूशलीम से आए थे,“ये कहते थे उसके साथ बा'लज़बूल है और ये भी कि वो बदरूहों के सरदार की मदद से बदरूहों को निकालता है।”
\s5
\v 23 वो उनको पास बुलाकर उनसे मिसालों में कहने लगा“कि शैतान को शैतान किस तरह निकाल सकता है?
\v 24 और अगर किसी सल्तनत में फ़ूट पड़ जाए तो वो सल्तनत क़ायम नहीं रह सकती।
\v 25 और अगर किसी घर में फ़ूट पड़ जाए तो वो घर क़ायम न रह सकेगा।
\s5
\v 26 और अगर शैतान अपना ही मुख़ालिफ़ होकर अपने में फ़ूट डाले तो वो क़ायम नहीं रह सकता, बल्कि उसका ख़ातमा हो जाएगा।
\v 27 लेकिन कोई आदमी किसी ताक़तवर के घर में घुसकर उसके माल को लूट नहीं सकता जब तक वो पहले उस ताक़तवर को न बाँध ले तब उसका घर लूट लेगा।
\s5
\v 28 मैं तुम से सच् कहता हूँ, कि बनी आदम के सब गुनाह और जितना कुफ़्र वो बकते हैं मु'आफ़ किया जाएगा।
\v 29 लेकिन जो कोई रूह -उल -क़ुददूस के हक़ में कुफ़्र बके वो हसेशा तक मु'आफ़ी न पाएगा; बल्कि वो हमेशा गुनाह का क़ुसूरवार है।”
\v 30 क्यूंकि वो कहते थे, कि उस में बदरूह है।
\s5
\v 31 फिर उसकी माँ और भाई आए और बाहर खड़े होकर उसे बुलवा भेजा।
\v 32 और भीड़ उसके आसपास बैठी थी, उन्होंने उस से कहा“देख तेरी माँ और तेरे भाई बाहर तुझे पूछते हैं”
\s5
\v 33 उसने उनको जवाब दिया “मेरी माँ और मेरे भाई कौन हैं?”
\v 34 और उन पर जो उसके पास बैठे थे नज़र करके कहा “देखो,मेरी माँ और मेरे भाई ये हैं।
\v 35 क्यूंकि जो कोई ख़ुदा की मर्ज़ी पर चले वही मेरा भाई और मेरी बहन और माँ है।”
\s5
\c 4
\v 1 वो फिर झील के किनारे ता'लीम देने लगा ; और उसके पास ऐसी बड़ी भीड़ जमा हो गई, वो झील में एक नाव में जा बैठा और सारी भीड़ ख़ुश्की पर झील के किनारे रही।
\v 2 और वो उनको मिसालों में बहुत सी बातें सिखाने लगा,और अपनी ता'लीम में उनसे कहा।
\s5
\v 3 “सुनो! देखो; एक बोने वाला बीज बोने निकला।
\v 4 और बोते वक़्त यूँ हुआ कि कुछ राह के किनारे गिरा और परिन्दों ने आकर उसे चुग लिया।
\v 5 ओर कुछ पत्थरीली ज़मीन पर गिरा, जहाँ उसे बहुत मिट्टी न मिली और गहरी मिट्टी न मिलने की वजह से जल्द उग आया।
\s5
\v 6 और जब सुरज निकला तो जल गया और जड़ न होने की वजह से सूख गया।
\v 7 और कुछ झाड़ियों में गिरा और झाड़ियों ने बढ़कर दबा लिया, और वो फल न लाया।
\s5
\v 8 और कुछ अच्छी ज़मीन पर गिरा और वो उगा और बढ़कर फला; और कोई तीस गुना कोई साठ गुना कोई सौ गुना फल लाया।”
\v 9 “फिर उसने कहा! जिसके सुनने के कान हों वो सुन ले।”
\s5
\v 10 जब वो अकेला रह गया तो उसके साथियों ने उन बारह समेत उसे इन मिसालों के बारे मे पूछा।?
\v 11 उसने उनसे कहा “तुम को ख़ुदा की बादशाही का भी राज़ दिया गया है; मगर उनके लिए जो बाहर हैं सब बातें मिसालों में होती हैं
\v 12 ताकि वो देखते हुए देखें और मा'लूम न करें‘ और सुनते हुए सुनें और न समझें’ऐसा न हो कि वो फिर जाएँ और मु'आफ़ी पाएँ।”
\s5
\v 13 फिर उसने उनसे कहा “क्या तुम ये मिसाल नहीं समझे? फिर सब मिसालो को क्यूँकर समझोगे।?
\v 14 बोनेवाला कलाम बोता है।
\v 15 जो राह के किनारे हैं जहाँ कलाम बोया जाता है ये वो हैं कि जब उन्होंने सुना तो शैतान फ़ौरन आकर उस कलाम को जो उस में बोया गया था, उठा ले जाता है।
\s5
\v 16 और इसी तरह जो पत्थरीली ज़मीन में बोए गए, ये वो हैं जो कलाम को सुन कर फ़ौरन खुशी से क़बूल कर लेते हैं।
\v 17 और अपने अन्दर जड़ नहीं रखते, बल्कि चन्द रोज़ा हैं, फिर जब कलाम की वजह से मुसीबत या ज़ुल्म बर्पा होता है तो फ़ौरन ठोकर खाते हैं।
\s5
\v 18 और जो झाड़ियो में बोए गए, वो और हैं ये वो हैं जिन्होंने कलाम सुना।
\v 19 और दुनिया की फ़िक्र और दौलत का धोका और और चीज़ों का लालच दाख़िल होकर कलाम को दबा देते हैं, और वो बेफल रह जाता है|”
\v 20 और जो अच्छी ज़मीन में बोए गए, ये वो हैं जो कलाम को सुनते और क़ुबूल करते और फल लाते हैं; कोई तीस गुना कोई साठ गुना और कोई सौ गुना।
\s5
\v 21 और उसने उनसे कहा क्या चराग़ इसलिए जलाते हैं कि पैमाना या पलंग के नीचे रख्खा जाए? क्या इसलिए नहीं कि चिराग़दान पर रख्खा जाए“।
\v 22 क्यूंकि कोई चीज़ छिपी नहीं मगर इसलिए कि ज़ाहिर हो जाए, और पोशीदा नहीं हुई, मगर इसलिए कि सामने में आए।
\v 23 अगर किसी के सुनने के कान हों तो सुन लें।”
\s5
\v 24 फिर उसने उनसे कहा “ख़बरदार रहो; कि क्या सुनते हो जिस पैमाने से तुम नापते हो उसी से तुम्हारे लिए नापा जाएगा, और तुम को ज़्यादा दिया जाएगा।
\v 25 क्यूंकि जिसके पास है उसे दिया जाएगा और जिसके पास नहीं है उस से वो भी जो उसके पास है ले लिया जाएगा।”
\s5
\v 26 और उसने कहा“ख़ुदा की बादशाही ऐसी है जैसे कोई आदमी ज़मीन में बीज डाले।
\v 27 और रात को सोए और दिन को जागे और वो बीज इस तरह उगे और बढ़े कि वो न जाने।
\v 28 ज़मीन आप से आप फल लाती है, पहले पत्ती फिर बालों में तैयार दाने। ”
\v 29 फिर जब अनाज पक चुका तो वो फ़ौरन दरांती लगाता है क्यूंकि काटने का वक़्त आ पहुँचा।
\s5
\v 30 फिर उसने कहा“हम ख़ुदा की बादशाही को किससे मिसाल दें और किस मिसाल में उसे बयान करें?
\v 31 वो राई के दाने की तरह है कि जब ज़मीन में बोया जाता है तो ज़मीन के सब बीजों से छोटा होता है।
\v 32 मगर जब बो दिया गया तो उग कर सब तरकारियों से बड़ा हो जाता है और ऐसी बड़ी डालियाँ निकालता है कि हवा के परिन्दे उसके साये में बसेरा कर सकते हैं।”
\s5
\v 33 और वो उनको इस क़िस्म की बहुत सी मिसालें दे दे कर उनकी समझ के मुताबिक़ कलाम सुनाता था।
\v 34 और बे मिसाल उनसे कुछ न कहता था, लेकिन तन्हाई में अपने ख़ास शागिर्दों से सब बातों के मा'ने बयान करता था।
\s5
\v 35 उसी दिन जब शाम हुई तो उसने उनसे कहा“आओ पार चलें।”
\v 36 और वो भीड़ को छोड़ कर उसे जिस हाल में वो था, नाव पर साथ ले चले,और उसके साथ और नावें भी थीं।
\v 37 तब बड़ी आँधी चली और लहरें नाव पर यहाँ तक आईं कि नाव पानी से भरी जाती थी।
\s5
\v 38 और वो ख़ुद पीछे की तरफ़ गद्दी पर सो रहा था“पस उन्होंने उसे जगा कर कहा? ऐ उस्ताद क्या तुझे फ़िक्र नहीं कि हम हलाक हुए जाते हैं।”
\v 39 उसने उठकर हवा को डांटा और पानी से कहा“साकित हो या'नी थम जा!”पस हवा बन्द हो गई, और बडा अमन हो गया।
\s5
\v 40 फिर उसने कहा“तुम क्यूँ डरते हो? अब तक ईमान नहीं रखते।”
\v 41 और वो निहायत डर गए और आपस में कहने लगे “ये कौन है कि हवा और पानी भी इसका हुक्म मानते हैं।”
\s5
\c 5
\v 1 और वो झील के पार गिरासीनियों के इलाक़े में पहुँचे।
\v 2 जब वो नाव से उतरा तो फ़ौरन एक आदमी जिस में बदरूह थी, क़ब्रों से निकल कर उससे मिला।
\s5
\v 3 वो क़ब्रों में रहा करता था और अब कोई उसे ज़ंजीरो से भी न बाँध सकता था।
\v 4 क्यूंकि वो बार बार बेड़ियों और जंजीरों से बाँधा गया था, लेकिन उसने जंजीरों को तोड़ा और बेड़ियों के टुकड़े टुकड़े किया था, और कोई उसे क़ाबू में न ला सकता था।
\s5
\v 5 वो हमेशा रात दिन क़ब्रों और पहाड़ों में चिल्लाता और अपने आपको पत्थरों से ज़ख़्मी करता था।
\v 6 वो ईसा' को दूर से देखकर दौड़ा और उसे सजदा किया।
\s5
\v 7 और बड़ी आवाज़ से चिल्ला कर कहा“ऐ ईसा' ख़ुदा ता'ला के फ़र्ज़न्द मुझे तुझ से क्या काम? तुझे ख़ुदा की क़सम देता हूँ, मुझे अज़ाब में न डाल।”
\v 8 क्यूंकि उसने उससे कहा था,“ऐ बदरूह! इस आदमी में से निकल आ।”
\s5
\v 9 फिर उसने उससे पूछा “तेरा नाम क्या है?”उस ने उससे कहा “मेरा नाम लश्कर, है क्यूंकि हम बहुत हैं।”
\v 10 फिर उसने उसकी बहुत मिन्नत की, कि हमें इस इलाक़े से बाहर न भेज।
\s5
\v 11 और वहाँ पहाड़ पर ख़िन्जीरों का एक बड़ा ग़ोल चर रहा था।
\v 12 पस उन्होंने उसकी मिन्नत करके कहा, “हम को उन ख़िन्जीरों में भेज दे,ताकि हम इन में दाख़िल हों।”
\v 13 पस उसने उनको इजाज़त दी और बदरूहें निकल कर ख़िन्जीरों में दाख़िल हो गईं, और वो ग़ोल जो कोई दो हज़ार का था किनारे पर से झपट कर झील में जा पड़ा और झील में डूब मरा।
\s5
\v 14 और उनके चराने वालों ने भागकर शहर और देहात में ख़बर पहुँचाई।
\v 15 पस लोग ये माजरा देखने को निकलकर ईसा' के पास आए, और जिस में बदरूहें या'नी बदरूहों का लश्कर था, उसको बैठे और कपड़े पहने और होश में देख कर डर गए।
\s5
\v 16 देखने वालों ने उसका हाल जिस में बदरुहें थीं और ख़िन्जीरों का माजरा उनसे बयान किया।
\v 17 वो उसकी मिन्नत करने लगे कि हमारी सरहद से चला जा।
\s5
\v 18 जब वो नाव में दाख़िल होने लगा तो जिस में बदरूहें थीं उसने उसकी मिन्नत की“ मै तेरे साथ रहूँ।”
\v 19 लेकिन उसने उसे इजाज़त न दी बल्कि उस से कहा“अपने लोगों के पास अपने घर जा और उनको ख़बर दे कि ख़ुदावन्द ने तेरे लिए कैसे बड़े काम किए, और तुझ पर रहम किया।”
\v 20 वो गया और दिकापुलिस में इस बात की चर्चा करने लगा, कि ईसा' ने उसके लिए कैसे बड़े काम किए,और सब लोग ताअ'ज्जुब करते थे।
\s5
\v 21 जब ईसा' फिर नाव में पार आया तो बड़ी भीड़ उसके पास जमा हुई और वो झील के किनारे था।
\v 22 और इबादतख़ाने के सरदारों में से एक शख़्स याईर नाम का आया और उसे देख कर उसके क़दमों में गिरा।
\v 23 और ये कह कर मिन्नत की, “ मेरी छोटी बेटी मरने को है तू आकर अपना हाथ उस पर रख ताकि वो अच्छी हो जाए और ज़िन्दा रहे।”
\v 24 पस वो उसके साथ चला और बहुत से लोग उसके पीछे हो लिए और उस पर गिरे पड़ते थे।
\s5
\v 25 फिर एक औरत जिसके बारह बरस से ख़ून जारी था।
\v 26 और कई हकीमो से बड़ी तकलीफ़ उठा चुकी थी, और अपना सब माल ख़र्च करके भी उसे कुछ फ़ाइदा न हुआ था, बल्कि ज़्यादा बीमार हो गई थी।
\v 27 ईसा' का हाल सुन कर भीड़ में उसके पीछे से आई और उसकी पोशाक को छुआ।
\s5
\v 28 क्यूँकि वो कहती थी, “ अगर में सिर्फ़ उसकी पोशाक ही छू लूँगी तो अच्छी होजाऊँगी”
\v 29 और फ़ौरन उसका ख़ून बहना बन्द हो गया और उसने अपने बदन में मा'लूम किया कि मैंने इस बीमारी से शिफ़ा पाई।
\s5
\v 30 ईसा' को फ़ौरन अपने में मा'लूम हुआ कि मुझ में से क़ुव्वत निकली, उस भीड़ में पीछे मुड़ कर कहा, “ किसने मेरी पोशाक छुई?”
\v 31 उसके शागिर्दो ने उससे कहा, “तू देखता है कि भीड़ तुझ पर गिरी पड़ती है फिर तू कहता है, मुझे किसने छुआ?”
\v 32 उसने चारों तरफ़ निगाह की ताकि जिसने ये काम किया; उसे देखे।
\s5
\v 33 वो औरत जो कुछ उससे हुआ था, महसूस करके डरती और काँपती हुई आई और उसके आगे गिर पड़ी और सारा हाल सच सच उससे कह दिया।
\v 34 उसने उससे कहा, “बेटी तेरे ईमान से तुझे शिफ़ा मिली; सलामती से जा और अपनी इस बीमारी से बची रह।”
\s5
\v 35 वो ये कह ही रहा था कि इबादतख़ाने के सरदार के यहाँ से लोगों ने आकर कहा, “तेरी बेटी मर गई अब उस्ताद को क्यूँ तक्लीफ़ देता है?”
\s5
\v 36 जो बात वो कह रहे थे, उस पर ईसा' ने ग़ौर न करके 'इबादतख़ाने के सरदार से कहा, “ख़ौफ़ न कर, सिर्फ़ ऐ'तिक़ाद रख।”
\v 37 फिर उसने पतरस और या'क़ूब और या'क़ूब के भाई यूहन्ना के सिवा और किसी को अपने साथ चलने की इजाज़त न दी।
\v 38 और वो इबादतख़ाने के सरदार के घर में आए, और उसने देखा कि शोर हो रहा है और लोग बहुत रो पीट रहे हैं
\s5
\v 39 और अन्दर जाकर उसने कहा, “तुम क्यूँ शोर मचाते और रोते हो, लड़की मरी नहीं बल्कि सोती है।”
\v 40 वो उस पर हँसने लगे, लेकिन वो सब को निकाल कर लड़की के माँ बाप को और अपने साथियों को लेकर जहाँ लड़की पड़ी थी अन्दर गया।
\s5
\v 41 और लड़की का हाथ पकड़ कर उससे कहा, “तलीता क़ुमी जिसका तर्जुमा, ऐ लड़की! मैं तुझ से कहता हूँ उठ।”
\v 42 वो लड़की फ़ौरन उठ कर चलने फिरने लगी, क्यूंकि वो बारह बरस की थी इस पर लोग बहुत ही हैरान हुए।
\v 43 फिर उसने उनको ताकीद करके हुक्म दिया कि ये कोई न जाने और फ़रमाया; लड़की को कुछ खाने को दिया जाए।
\s5
\c 6
\v 1 फिर वहाँ से निकल कर 'ईसा अपने शहर में आया और उसके शागिर्द उसके पीछे हो लिए।
\v 2 जब सब्त का दिन आया “तो वो इबादतख़ाने में ता'लीम देने लगा और बहुत लोग सुन कर हैरान हुए और कहने लगे, "ये बातें इस में कहाँ से आ गईं? और ये क्या हिकमत है जो इसे बख़्शी गई और कैसे मो'जिज़े इसके हाथ से ज़ाहिर होते हैं।?
\v 3 क्या ये वही बढ़ई नहीं जो मरियम का बेटा और या'क़ूब और योसेस और यहूदाह और शमा'ऊन का भाई है और क्या इसकी बहनें यहाँ हमारे हाँ नहीं?” पस उन्होंने उसकी वजह से ठोकर खाई।
\s5
\v 4 ईसा' ने उन से कहा,“नबी अपने वतन और अपने रिशतेदारों और अपने घर के सिवा और कहीँ बेइज़्ज़त नहीं होता |
\v 5 और वो कोई मो'जिज़ा वहाँ न दिखा सका, सिर्फ़ थोड़े से बीमारों पर हाथ रख कर उन्हे अच्छा कर दिया।
\v 6 और उस ने उनकी बे'ऐतिक़ादी पर ता'अज्जुब किया और वो चारों तरफ़ के गावँ में ता'लीम देता फिरा।
\s5
\v 7 उसने बारह को अपने पास बुलाकर दो दो करके भेजना शुरू किया और उनको बदरूहों पर इख़्तियार बख़्शा।
\v 8 और हुक्म दिया ” रास्ते के लिए लाठी के सिवा कुछ न लो, न रोटी, न झोली, न अपने कमरबन्द में पैसे।
\v 9 मगर जूतियां पहनों और दो दो कुर्ते न पहनों।"
\s5
\v 10 और उसने उनसे कहा,“जहाँ तुम किसी घर में दाख़िल हो तो उसी में रहो, जब तक वहाँ से रवाना न हो।
\v 11 जिस जगह के लोग तुम्हें क़बूल न करें और तुम्हारी न सुनें, वहाँ से चलते वक़्त अपने तलुओं की मिट्टी झाड़ दो ताकि उन पर गवाही हो।”
\s5
\v 12 और बारह शागिर्दों ने रवाना होकर ऐलान किया, "कि तौबा करो।"
\v 13 और बहुत सी बदरूहों को निकाला और बहुत से बीमारों को तेल मल कर अच्छा कर दिया।
\s5
\v 14 और हेरोदेस बादशाह ने उसका ज़िक्र सुना“क्यूँकि उसका नाम मशहूर होगया था और उसने कहा, "यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला मुर्दों में से जी उठा है, क्यूँकि उससे मो'जिज़े ज़ाहिर होते हैं।”
\v 15 मगर बा'ज़ कहते थे, एलियाह है और बा'ज़ ये नबियों में से किसी की मानिन्द एक नबी है।
\s5
\v 16 मगर हेरोदेस ने सुनकर कहा, “यूहन्ना जिस का सिर मैंने कटवाया वही जी उठा है ”
\v 17 क्यूंकि हेरोदेस ने अपने आदमी भेजकर यूहन्ना को पकड़वाया और अपने भाई फ़िलिपुस की बीवी हेरोदियास की वजह से उसे क़ैदख़ाने में बाँध रखा था, क्यूंकि हेरोदेस ने उससे शादी कर ली थी।
\s5
\v 18 और यूहन्ना ने उससे कहा था, “अपने भाई की बीवी को रखना तुझे जाएज नहीं।”
\v 19 पस हेरोदियास उस से दुश्मनी रखती और चाहती थी कि उसे क़त्ल कराए, मगर न हो सका।
\v 20 क्यूंकि हेरोदेस यूहन्ना को रास्तबाज़ और मुक़द्दस आदमी जान कर उससे डरता और उसे बचाए रखता था और उसकी बातें सुन कर बहुत हैरान हो जाता था, मगर सुनता ख़ुशी से था।
\s5
\v 21 और मौक़े के दिन जब हेरोदेस ने अपनी सालगिराह में अमीरों और फ़ौजी सरदारों और गलील के रईसों की दावत की ।
\v 22 और उसी हेरोदियास की बेटी अन्दर आई और नाच कर हेरोदेस और उसके मेहमानो को ख़ुश किया तो बादशाह ने उस लड़की से कहा, “जो चाहे मुझ से माँग मैं तुझे दूँगा।”
\s5
\v 23 और उससे क़सम खाई “जो कुछ तू मुझ से माँगेगी अपनी आधी सल्तन्त तक तुझे दूँगा।”
\v 24 और उसने बाहर आकर अपनी माँ से कहा, “मै क्या माँगू?” उसने कहा, “यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का सिर।”
\v 25 वो फ़ौरन बादशाह के पास जल्दी से अन्दर आई और उस से अर्ज़ किया, “मैं चाहती हूँ कि तू यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का सिर एक थाल में अभी मुझे मंगवा दें।”
\s5
\v 26 बादशाह बहुत ग़मगीन हुआ मगर अपनी क़समों और मेहमानों की वजह से उसे इन्कार करना न चाहा।
\v 27 पस बादशाह ने फ़ौरन एक सिपाही को हुक्म देकर भेजा कि उसका सिर लाए, उसने जाकर क़ैद ख़ाने में उस का सिर काटा।
\v 28 और एक थाल में लाकर लड़की को दिया और लड़की ने माँ को दिया।
\v 29 फिर उसके शागिर्द सुन कर आए, उस की लाश उठा कर क़ब्र में रख्खी।
\s5
\v 30 और रसूल ईसा' के पास जमा हुए और जो कुछ उन्होंने किया और सिखाया था, सब उससे बयान किया।
\v 31 उसने उनसे कहा, “तुम आप अलग वीरान जगह में चले आओ और ज़रा आराम करो इसलिए कि बहुत लोग आते जाते थे और उनको खाना खाने को भी फुर्सत न मिलती थी।”
\v 32 पस वो नाव में बैठ कर अलग एक वीरान जगह में चले आए।
\s5
\v 33 लोगों ने उनको जाते देखा और बहुतेरों ने पहचान लिया और सब शहरों से इकट्ठे हो कर पैदल उधर दौड़े और उन से पहले जा पहुँचे।
\v 34 और उसने उतर कर बड़ी भीड़ देखी और उसे उनपर तरस आया क्यूँकि वो उन भेड़ों की मानिन्द थे, जिनका चरवाहा न हो; और वो उनको बहुत सी बातों की ता'लीम देने लगा।
\s5
\v 35 जब दिन बहुत ढल गया तो उसके शागिर्द उसके पास आकर कहने लगे, “ये जगह वीरान है, और दिन बहुत ढल गया है।
\v 36 इनको रुख़्सत कर ताकि चारों तरफ़ की बस्तियों और गाँव में जाकर, अपने लिए कुछ खाना मोल लें|”
\s5
\v 37 उसने उनसे जवाब में कहा, “तुम ही इन्हें खाने को दो।”उन्होंने उससे कहा“क्या हम जाकर दो सौ दिन की मज़दूरी से रोटियाँ मोल लाएँ और इनको खिलाएँ?”
\v 38 उसने उनसे पूछा, “ तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने दरियाफ़्त करके कहा, “ पाँच और दो मछलियाँ ।”
\s5
\v 39 उसने उन्हें हुक्म दिया कि, “ सब हरी घास पर कतार में होकर बैठ जाएँ|”
\v 40 पस वो सौ सौ और पचास पचास की कतारें बाँध कर बैठ गए।
\v 41 फिर उसने वो पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं और आसमान की तरफ़ देखकर बरकत दी; और रोटियाँ तोड़ कर शागिर्दों को देता गया कि उनके आगे रख्खें, और वो दो मछलियाँ भी उन सब में बाँट दीं।
\s5
\v 42 पस वो सब खाकर सेर हो गए।
\v 43 और उन्होंने बे इस्तेमाल खाने और मछलियों से बारह टोकरियाँ भरकर उठाईं।
\v 44 और खानेवाले पाँच हज़ार मर्द थे।
\s5
\v 45 और फ़ौरन उसने अपने शागिर्दों को मजबूर किया कि नाव पर बैठ कर उस से पहले उस पार बैत सैदा को चले जाएँ जब तक वो लोगों को रुख़्सत करे।
\v 46 उनको रुख़्सत करके पहाड़ पर दुआ करने चला गया।
\v 47 जब शाम हुई तो नाव झील के बीच में थी और वो अकेला ख़ुश्की पर था।
\s5
\v 48 जब उसने देखा कि वो खेने से बहुत तंग हैं क्यूंकि हवा उनके मुख़ालिफ़ थी तो रात के पिछले पहर के क़रीब वो झील पर चलता हुआ उनके पास आया और उनसे आगे निकल जाना चाहता था।
\v 49 लेकिन उन्होंने उसे झील पर चलते देखकर ख़याल किया कि “भूत है” और चिल्ला उठे।
\v 50 क्यूँकि सब उसे देख कर घबरा गए थे ,मगर उसने फ़ौरन उनसे बातें कीं और कहा, “मुतमईन रहो ! मैं हूँ डरो मत।”
\s5
\v 51 फिर वो नाव पर उनके पास आया और हवा थम गई। और वो अपने दिल में निहायत हैरान हुए।
\v 52 इसलिए कि वो रोटियों के बारे में न समझे थे, बल्कि उनके दिल सख़्त हो गए थे।
\s5
\v 53 और वो पार जाकर गनेसरत के इलाक़े में पहुँचे और नाव किनारे पर लगाई।
\v 54 और जब नाव पर से उतरे तो फ़ौरन लोग उसे पहचान कर।
\v 55 उस सारे इलाक़े में चारों तरफ़ दौड़े और बीमारों को चारपाइयों पर डाल कर जहाँ कहीं सुना कि वो है वहाँ लिए फिरे।
\s5
\v 56 और वो गावँ शहरों और बस्तियों में जहाँ कहीं जाता था लोग बीमारों को राहों में रख कर उसकी मिन्नत करते थे कि वो सिर्फ़ उसकी पोशाक का किनारा छू लें और जितने उसे छूते थे शिफ़ा पाते थे।
\s5
\c 7
\v 1 फिर फ़रीसी और कुछ आलिम उसके पास जमा हुए, वो यरूशलीम से आए थे।
\s5
\v 2 और उन्होंने देखा कि उसके कुछ शागिर्द नापाक या'नी बिना धोए हाथो से खाना खाते हैं
\v 3 क्यूकि फ़रीसी और सब यहूदी बुज़ुर्गों की रिवायत के मुताबिक़ जब तक अपने हाथ ख़ूब न धोलें नहीं खाते।
\v 4 और बाज़ार से आकर जब तक ग़ुस्ल न कर लें नहीं खाते, और बहुत सी और बातों के जो उनको पहुँची हैं पाबन्द हैं, जैसे प्यालों और लोटों और ताँबे के बर्तनों को धोना।
\s5
\v 5 पस फ़रीसियों और आलिमों ने उस से पूछा, “क्या वजह है कि तेरे शागिर्द बुज़ुर्गों की रिवायत पर नहीं चलते बल्कि नापाक हाथों से खाना खाते हैं?”
\s5
\v 6 उसने उनसे कहा, “ यसा'याह ने तुम रियाकारों के हक़ में क्या ख़ूब नबुव्वत की; जैसे लिखा है कि: ये लोग होंटों से तो मेरी ता'ज़ीम करते हैं लेकिन इनके दिल मुझ से दूर है।
\v 7 ये बे फ़ाइदा मेरी इबादत करते हैं, क्यूँकि इनसानी अहकाम की ता'लीम देते हैं ।’
\s5
\v 8 तुम ख़ुदा के हुक्म को छोड़ करके आदमियों की रिवायत को क़ायम रखते हो|”
\v 9 उसने उनसे कहा, “तुम अपनी रिवायत को मानने के लिए ख़ुदा के हुक्म को बिल्कुल रद्द कर देते हो।
\v 10 क्यूँकि मूसा ने फ़रमाया है, ‘अपने बाप की अपनी माँ की 'इज़्ज़त कर, और जो कोई बाप या माँ को बुरा कहे, वो ज़रूर जान से मारा जाए।’
\s5
\v 11 लेकिन तुम कहते हो, 'अगर कोई बाप या माँ से कहे' कि जिसका तुझे मुझ से फ़ाइदा पहुँच सकता था, 'वो कुर्बान या'नी ख़ुदा की नज़्र हो चुकी।'
\v 12 तो तुम उसे फिर बाप या माँ की कुछ मदद करने नहीं देते।
\v 13 यूँ तुम ख़ुदा के कलाम को अपनी रिवायत से, जो तुम ने जारी की है बेकार कर देते हो, और ऐसे बहुतेरे काम करते हो|”
\s5
\v 14 और वो लोगों को फिर पास बुला कर उनसे कहने लगा, “ तुम सब मेरी सुनो और समझो।
\v 15 कोई चीज़ बाहर से आदमी में दाख़िल होकर उसे नापाक नहीं कर सकती मगर जो चीज़ें आदमी में से निकलती हैं वही उसको नापाक करती हैं ।”
\v 16 [अगर किसी के सुनने के कान हों तो सुन लें।]
\s5
\v 17 जब वो भीड़ के पास से घर में आया “तो उसके शागिर्दों ने उससे इस मिसाल का मतलब पूछा ?”
\v 18 उस ने उनसे कहा, “क्या तुम भी ऐसे ना समझ हो? क्या तुम नहीं समझते कि कोई चीज़ जो बाहर से आदमी के अन्दर जाती है उसे नापाक नहीं कर सकती?
\v 19 इसलिए कि वो उसके दिल में नहीं बल्कि पेट में जाती है और गंदगी में निकल जाती है”ये कह कर उसने तमाम खाने की चीज़ों को पाक ठहराया।
\s5
\v 20 फिर उसने कहा, “जो कुछ आदमी में से निकलता है वही उसको नापाक करता है।
\v 21 क्यूँकि अन्दर से, या'नी आदमी के दिल से बुरे ख्याल निकलते हैं हरामकारियाँ
\v 22 चोरियाँ. ख़ून रेज़ियाँ, ज़िनाकारियाँ। लालच, बदियाँ, मक्कारी, शहवत परस्ती, बदनज़री, बदगोई, शेख़ी,बेवक़ूफ़ी।
\v 23 ये सब बुरी बातें अन्दर से निकल कर आदमी को नापाक करती हैं”
\s5
\v 24 फिर वहाँ से उठ कर सूर और सैदा की सरहदों में गया और एक घर में दाख़िल हुआ और नहीं चाहता था कि कोई जाने मगर छुपा न रह सका।
\v 25 बल्कि फ़ौरन एक औरत जिसकी छोटी बेटी में बदरूह थी, उसकी ख़बर सुनकर आई और उसके क़दमों पर गिरी।
\v 26 ये 'औरत यूनानी थी और क़ौम की सूरूफ़ेनेकी| उसने उससे दरख़्वास्त की कि बदरूह को उसकी बेटी में से निकाले।
\s5
\v 27 उसने उससे कहा, “ पहले लड़कों को सेर होने दे क्यूँकि लड़कों की रोटी लेकर कुत्तों को डाल देना अच्छा नहीं। ”
\v 28 उस ने जवाब में कहा “हाँ ख़ुदावन्द, कुत्ते भी मेज़ के तले लड़कों की रोटी के टुकड़ों में से खाते हैं। ”
\s5
\v 29 उसने उससे कहा “इस कलाम की ख़ातिर जा बदरूह तेरी बेटी से निकल गई है।”
\v 30 और उसने अपने घर में जाकर देखा कि लड़की पलंग पर पड़ी है और बदरूह निकल गई है।
\s5
\v 31 और वो फिर सूर शहर की सरहदों से निकल कर सैदा शहर की राह से दिकापुलिस की सरहदों से होता हुआ गलील की झील पर पहुँचा।
\v 32 और लोगों ने एक बहरे को जो हकला भी था, उसके पास लाकर उसकी मिन्नत की कि अपना हाथ उस पर रख।
\s5
\v 33 वो उसको भीड़ में से अलग ले गया, और अपनी उंगलियाँ उसके कानों में डालीं और थूक कर उसकी ज़बान छूई।
\v 34 और आसमान की तरफ़ नज़र करके एक आह भरी और उससे कहा “इफ़्फ़त्तह!” (या'नी “खुल जा!”)
\v 35 और उसके कान ख़ुल गए, और उसकी ज़बान की गिरह ख़ुल गई और वो साफ़ बोलने लगा।
\s5
\v 36 उसने उसको हुक्म दिया कि किसी से न कहना, लेकिन जितना वो उनको हुक्म देता रहा उतना ही ज़्यादा वो चर्चा करते रहे।
\v 37 और उन्हों ने निहायत ही हैरान होकर कहा “जो कुछ उसने किया सब अच्छा किया वो बहरों को सुनने की और गूँगों को बोलने की ताक़त देता है। ”
\s5
\c 8
\v 1 उन दिनों में जब फिर बड़ी भीड़ जमा हुई, और उनके पास कुछ खाने को न था, तो उसने अपने शागिर्दों को पास बुलाकर उनसे कहा।
\v 2 “मुझे इस भीड़ पर तरस आता है, क्यूँकि ये तीन दिन से बराबर मेरे साथ रही है और इनके पास कुछ खाने को नहीं।
\v 3 अगर मैं इनको भूखा घर को रुख़्सत करूँ तो रास्ते में थक कर रह जाएँगे और कुछ इन में से दूर के हैं।”
\v 4 उस के शागिर्दों ने उसे जवाब दिया,“इस वीराने में कहाँ से कोई इतनी रोटियाँ लाए कि इनको खिला सके?”
\s5
\v 5 उसने उनसे पूछा, “ तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने कहा, “सात।”
\v 6 फिर उसने लोगों को हुक्म दिया कि ज़मीन पर बैठ जाएँ| उसने वो सात रोटियाँ लीं और शुक्र करके तोड़ीं, और अपने शागिर्दों को देता गया कि उनके आगे रख्खें, और उन्होंने लोगों के आगे रख दीं।
\s5
\v 7 उनके पास थोड़ी सी छोटी मछलियाँ भी थीं उसने उन पर बरकत देकर कहा कि ये भी उनके आगे रख दो।
\v 8 पस वो खा कर सेर हुए और बचे हुए बे इस्तेमाल खाने के सात टोकरे उठाए।
\v 9 और वो लोग चार हज़ार के क़रीब थे, फिर उसने उनको रुख़्सत किया।
\v 10 वो फ़ौरन अपने शागिर्दों के साथ नाव में बैठ कर दलमनूता के सूबा में गया।
\s5
\v 11 फिर फ़रीसी निकल कर उस से बहस करने लगे, और उसे आज़माने के लिए उससे कोई आसमानी निशान तलब किया।
\v 12 उसने अपनी रूह में आह खीच कर कहा,“ इस ज़माने के लोग क्यूँ निशान तलब करते हैं? मै तुम से सच कहता हूँ, कि इस ज़माने के लोगों को कोई निशान न दिया जाएगा|”
\v 13 और वो उनको छोड़ कर फिर नाव में बैठा और पार चला गया।
\s5
\v 14 वो रोटी लेना भूल गए थे, और नाव में उनके पास एक से ज़्यादा रोटी न थी।
\v 15 और उसने उनको ये हुक्म दिया;“ख़बरदार, फ़रीसियों के तालीम और हेरोदेस की तालीम से होशियार रहना।”
\s5
\v 16 वो आपस में चर्चा करने और कहने लगे,“हमारे पास रोटियाँ नहीं।”
\v 17 मगर ईसा' ने ये मा'लूम करके कहा,“तुम क्यूँ ये चर्चा करते हो कि हमारे पास रोटी नहीं? क्या अब तक नहीं जानते, और नहीं समझते हो? क्या तुम्हारा दिल सख़्त हो गया है?
\s5
\v 18 आखें हैं और तुम देखते नहीं कान हैं और सुनते नहीं और क्या तुम को याद नहीं।
\v 19 जिस वक़्त मैने वो पाँच रोटियाँ पाँच हज़ार के लिए तोड़ीं तो तुम ने कितनी टोकरियाँ बे इस्तेमाल खाने से भरी हुई उठाईं?” उन्हों ने उस से कहा “बारह”।
\s5
\v 20 “और जिस वक़्त सात रोटियाँ चार हज़ार के लिए तोड़ीं तो तुम ने कितने टोकरे बे इस्तेमाल खाने से भरे हुए उठाए?” उन्हों ने उस से कहा “सात।”
\v 21 उस ने उनसे कहा “क्या तुम अब तक नहीं समझते?”
\s5
\v 22 फिर वो बैत सैदा में आये और लोग एक अँधे को उसके पास लाए और उसकी मिन्नत की, कि उसे छूए।
\v 23 वो उस अँधे का हाथ पकड़ कर उसे गांव से बाहर ले गया, और उसकी आखों में थूक कर अपने हाथ उस पर रख्खे और उस से पूछा, “क्या तू कुछ देखता है?”
\s5
\v 24 उसने नज़र उठा कर कहा “मैं आदमियों को देखता हूँ क्यूँकि वो मुझे चलते हुए ऐसे दिखाई देते हैं जैसे दरख़्त।”
\v 25 उसने फिर दोबारा उसकी आँखों पर अपने हाथ रख्खे और उसने ग़ौर से नज़र की और अच्छा हो गया और सब चीज़ें साफ़ साफ़ देखने लगा।
\v 26 फिर उसने उसको उसके घर की तरफ़ रवाना किया और कहा, “ इस गावँ के अन्दर क़दम न रखना|”
\s5
\v 27 फिर ईसा' और उसके शागिर्द क़ैसरिया फ़िलिप्पी के गावँ में चले आए और रास्ते में उसने अपने शागिर्दों से पूछा, “लोग मुझे क्या कहते हैं?”
\v 28 उन्हों ने जवाब दिया,“यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला; कुछ एलियाह और कुछ नबियों में से कोई|”
\s5
\v 29 उसने उनसे पूछा, “लेकिन तुम मुझे क्या कहते हो?” पतरस ने जवाब में उस से कहा,“तू मसीह है|”
\v 30 फिर उसने उनको ताकीद की कि मेरे बारे में किसी से ये न कहना।
\s5
\v 31 फिर वो उनको ता'लीम देने लगा, कि ज़रूर है कि इबने आदम बहुत दु:ख उठाए और बुज़ुर्ग और सरदार काहिन और आलिम उसे रद्द करें, और वो क़त्ल किया जाए, और तीन दिन के बा'द जी उठे।
\v 32 उसने ये बात साफ़ साफ़ कही पतरस उसे अलग ले जाकर उसे मलामत करने लगा।
\s5
\v 33 मगर उसने मुड़ कर अपने शागिर्दों पर निगाह करके पतरस को मलामत की और कहा“,"ऐ शैतान मेरे सामने से दूर हो; क्यूँकि तू ख़ुदा की बातों का नहीं बल्कि आदमियों की बातों का ख़याल रखता है। ।”
\v 34 फिर उसने भीड़ को अपने शागिर्दों समेत पास बुला कर उनसे कहा,“अगर कोई मेरे पीछे आना चाहे तो अपने आप से इन्कार करे और अपनी सलीब उठाए, और मेरे पीछे हो ले।
\s5
\v 35 क्यूँकि जो कोई अपनी जान बचाना चाहे वो उसे खोएगा, और जो कोई मेरी और इन्जील की ख़ातिर अपनी जान खोएगा, वो उसे बचाएगा।
\v 36 आदमी अगर सारी दुनिया को हासिल करे और अपनी जान का नुक़्सान उठाए, तो उसे क्या फ़ाइदा होगा?
\v 37 और आदमी अपनी जान के बदले क्या दे?
\s5
\v 38 क्यूँकि जो कोई इस बे ईमान और बुरी क़ौम में मुझ से और मेरी बातों से शरमाए गा, इबने आदम भी अपने बाप के जलाल में पाक फ़रिश्तों के साथ आएगा तो उस से शरमाएगा।”
\s5
\c 9
\v 1 और उसने उनसे कहा' मै तुम से सच कहता हूँ “जो यहाँ खड़े हैं उन में से कुछ ऐसे हैं जब तक ख़ुदा की बादशाही को क़ुदरत के साथ आया हुआ देख न लें मौत का मज़ा हरगिज़ न चखेंगे। ”
\v 2 छ: दिन के बा'द ईसा' ने पतरस और या'क़ूब यूहन्ना को अपने साथ लिया और उनको अलग एक ऊँचे पहाड़ पर तन्हाई में ले गया और उनके सामने उसकी सूरत बदल गई।
\v 3 उसकी पोशाक ऐसी नूरानी और निहायत सफ़ेद हो गई, कि दुनिया में कोई धोबी वैसी सफ़ेद नहीं कर सकता।
\s5
\v 4 और एलियाह मूसा के साथ उनको दिखाई दिया, और वो ईसा' से बातें करते थे।
\v 5 पतरस ने ईसा' से कहा “रब्बी हमारा यहाँ रहना अच्छा है पस हम तीन तम्बू बनाएँ एक तेरे लिए एक मूसा के लिए, और एक एलियाह के लिए ।”
\v 6 क्यूँकि वो जानता न था कि क्या कहे इसलिए कि वो बहुत डर गए थे।
\s5
\v 7 फिर एक बादल ने उन पर साया कर लिया और उस बादल में से आवाज़ आई“ये मेरा प्यारा बेटा है; इसकी सुनो।”
\v 8 और उन्हों ने यकायक जो चारों तरफ़ नज़र की तो ईसा' के सिवा और किसी को अपने साथ न देखा।
\s5
\v 9 जब वो पहाड़ से उतर रहे थे तो उसने उनको हुक्म दिया कि “जब तक इबने आदम मुर्दों में से जी न उठे जो कुछ तुम ने देखा है किसी से न कहना। ”
\v 10 उन्होंने इस कलाम को याद रखा और वो आपस में बहस करते थे, कि मुर्दों में से जी उठने के क्या मतलब हैं।
\s5
\v 11 फिर उन्हों ने उस से ये पूछा,“आलिम क्यूँ कहते हैं कि एलियाह का पहले आना ज़रूर है?”
\v 12 उसने उनसे कहा,“एलियाह अलबत्ता पहले आकर सब कुछ बहाल करेगा मगर क्या वजह है कि इबने आदम के हक़ में लिखा है कि वो बहुत से दु:ख उठाएगा और ज़लील किया जाएगा?
\v 13 लेकिन मै तुम से कहता हूँ, कि एलियाह तो आ चुका”और जैसा उसके हक़ में लिखा है उन्होंने जो कुछ चाहा उसके साथ किया।
\s5
\v 14 जब वो शागिर्दों के पास आए तो देखा कि उनके चारों तरफ़ बड़ी भीड़ है, और आलिम लोग उनसे बहस कर रहे हैं।
\v 15 और फ़ौरन सारी भीड़ उसे देख कर निहायत हैरान हुई और उसकी तरफ़ दौड़ कर उसे सलाम करने लगे।
\v 16 उसने उनसे पूछा, “तुम उन से क्या बहस करते हो?”
\s5
\v 17 और भीड़ में से एक ने उसे जवाब दिया,“ऐ उस्ताद! मै अपने बेटे को जिसमे गूंगी रूह है तेरे पास लाया था |
\v 18 वो जहाँ उसे पकड़ती है, पटक देती है; और वो क़फ़ भर लाता और दाँत पीसता और सूखता जाता है| मैने तेरे शागिर्दों से कहा था, वो उसे निकाल दें मगर वो न निकाल सके|”
\v 19 उसने जवाब में उनसे कहा, “ऐ बेऐ'तिक़ाद क़ौम! मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? कब तक तुम्हारी बर्दाश्त करूँगा उसे मेरे पास लाओ|”
\s5
\v 20 पस वो उसे उसके पास लाए, और जब उसने उसे देखा तो फ़ौरन रूह ने उसे मरोड़ा और वो ज़मीन पर गिरा और क़फ़ भर लाकर लोटने लगा।
\v 21 उसने उसके बाप से पूछा“ये इस को कितनी मुद्दत से है?”उसने कहा “बचपन ही से।
\v 22 और उसने उसे अक्सर आग और पानी में डाला ताकि उसे हलाक करे लेकिन अगर तू कुछ कर सकता है तो हम पर तरस खाकर हमारी मदद कर।”
\s5
\v 23 ईसा' ने उस से कहा“क्या‘जो तू कर सकता है ’जो ऐ'तिक़ाद रखता है? उस के लिए सब कुछ हो सकता है।”
\v 24 उस लड़के के बाप ने फ़ौरन चिल्लाकर कहा. “मैं ऐ'तिक़ाद रखता हूँ, मेरी बे ऐ'तिक़ादी का इलाज कर।”
\v 25 जब ईसा' ने देखा कि लोग दौड़ दौड़ कर जमा हो रहे हैं ,तो उस बद रूह को झिड़क कर कहा,मै तुझ से कहता हूँ ,इसमे से बाहर आ और इसमें फिर दाख़िल न होना|
\s5
\v 26 वो चिल्लाकर और उसे बहुत मरोड़ कर निकल आई और वो मुर्दा सा हो गया“ऐसा कि अक्सरों ने कहा कि वो मर गया।”
\v 27 मगर ईसा' ने उसका हाथ पकड़कर उसे उठाया और वो उठ खड़ा हुआ।
\s5
\v 28 जब वो घर में आया तो उसके शागिर्दों ने तन्हाई में उस से पूछा “हम उसे क्यूँ न निकाल सके?”
\v 29 उसने उनसे कहा,“ये सिर्फ़ दुआ के सिवा और किसी तरह नहीं निकल सकती।”
\s5
\v 30 फिर वहाँ से रवाना हुए और गलील से हो कर गुज़रे और वो न चाहता था कि कोई जाने।
\v 31 इसलिए कि वो अपने शागिर्दों को ता'लीम देता और उनसे कहता था, “इब्ने आदम आदमियों के हवाले किया जाएगा और वो उसे क़त्ल करेंगे और वो क़त्ल होने के तीन दिन बा'द जी उठेगा।”
\v 32 लेकिन वो इस बात को समझते न थे, और उस से पूछते हुए डरते थे।
\s5
\v 33 फिर वो कफ़रनहूम में आए और जब वो घर में था तो उसने उनसे पूछा, “तुम रास्ते में क्या बहस करते थे?”
\v 34 वो चुप रहे क्यूँकि उन्होंने रास्ते में एक दूसरे से ये बहस की थी कि बड़ा कौन है?
\v 35 फिर उसने बैठ कर उन बारह को बुलाया और उनसे कहा“अगर कोई अव्वल होना चाहे तो वो सब से पिछला और सब का ख़ादिम बने।”
\s5
\v 36 और एक बच्चे को लेकर उन के बीच में खड़ा किया फिर उसे गोद में लेकर उनसे कहा।
\v 37 “जो कोई मेरे नाम पर ऐसे बच्चों में से एक को क़बूल करता है वो मुझे क़बूल करता है और जो कोई मुझे क़बूल करता है वो मुझे नहीं बल्कि उसे जिस ने मुझे भेजा है क़बूल करता है।”
\s5
\v 38 यूहन्ना ने उस से कहा “ऐ उस्ताद हम ने एक शख़्स को तेरे नाम से बदरूहों को निकालते देखा और हम उसे मना करने लगे ”क्यूँकि वो हमारी पैरवी नहीं करता था।
\v 39 लेकिन ईसा' ने कहा“उसे मना न करना क्यूँकि ऐसा कोई नहीं जो मेरे नाम से मो'जिज़े दिखाए और मुझे जल्द बुरा कह सके।
\s5
\v 40 क्यूँकि जो हमारे ख़िलाफ़ नहीं वो हमारी तरफ़ है।
\v 41 जो कोई एक प्याला पानी तुम को इसलिए पिलाए कि तुम मसीह के हो मैं तुम से सच कहता हूँ कि वो अपना अज्र हरगिज़ न खोएगा।
\s5
\v 42 और जो कोई इन छोटों में से जो मुझ पर ईमान लाए हैं किसी को ठोकर खिलाए, उसके लिए ये बेहतर है कि एक बड़ी चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाए और वो समुन्दर में फेंक दिया जाए।
\v 43 अगर तेरा हाथ तुझे ठोकर खिलाए तो उसे काट डाल टुंडा हो कर ज़िन्दगी में दाख़िल होना तेरे लिए इससे बेहतर है कि दो हाथ होते जहन्नुम के बीच उस आग में जाए जो कभी बुझने की नहीं।।
\v 44 जहाँ उनका कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती।
\s5
\v 45 और अगर तेरा पावँ तुझे ठोकर खिलाए तो उसे काट डाल लंगड़ा हो कर ज़िन्दगी में दाख़िल होना तेरे लिए इससे बेहतर है कि दो पावँ होते जहन्नुम में डाला जाए।
\v 46 जहाँ उनका कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती।
\s5
\v 47 और अगर तेरी आँख तुझे ठोकर खिलाए तो उसे निकाल डाल काना हो कर ज़िन्दगी में दाख़िल होना तेरे लिए इससे बेहतर है कि दो आँखें होते जहन्नुम में डाला जाए।
\v 48 जहाँ उनका कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती।
\s5
\v 49 क्यूँकि हर शख़्स आग से नमकीन किया जाएगा [और हर एक क़ुर्बानी नमक से नमकीन की जाएगी]।
\v 50 नमक अच्छा है लेकिन अगर नमक की नमकीनी जाती रहे तो उसको किस चीज़ से मज़ेदार करोगे? अपने में नमक रख्खो और एक दूसरे के साथ मेल मिलाप से रहो।”
\s5
\c 10
\v 1 फिर वो वहाँ से उठ कर यहूदिया की सरहदों में और यरदन के पार आया और भीड़ उसके पास फिर जमा हो गई और वो अपने दस्तूर के मुवाफ़िक़ फिर उनको ता'लीम देने लगा।
\v 2 और फ़रीसियों ने पास आकर उसे आज़माने के लिए उससे पूछा,“क्या ये जायज़ है कि मर्द अपनी बीवी को छोड़ दे?”
\v 3 उसने जवाब में कहा, “मूसा ने तुम को क्या हुक्म दिया है?”
\v 4 उन्हों ने कहा, “मूसा ने तो इजाज़त दी है कि तलाक नामा लिख कर छोड़ दें?”
\s5
\v 5 मगर ईसा' ने उनसे कहा,“उस ने तुम्हारी सख़्तदिली की वजह से तुम्हारे लिए ये हुक्म लिखा था।
\v 6 लेकिन पैदाइश के शुरू से उसने उन्हें मर्द और औरत बनाया।
\s5
\v 7 ‘इस लिए मर्द अपने-बाप से और माँ से जुदा हो कर अपनी बीवी के साथ रहेगा।
\v 8 और वो और उसकी बीवी दोनों एक जिस्म होंगे ’पस वो दो नहीं बल्कि एक जिस्म हैं। ।
\v 9 इसलिए जिसे ख़ुदा ने जोड़ा है उसे आदमी जुदा न करे।”
\s5
\v 10 और घर में शागिर्दों ने उससे इसके बारे में फिर पूछा।
\v 11 उसने उनसे कहा“जो कोई अपनी बीवी को छोड़ दे और दूसरी से शादी करे वो उस पहली के बरख़िलाफ़ ज़िना करता है।
\v 12 और अगर औरत अपने शौहर को छोड़ दे और दूसरे से शादी करे तो ज़िना करती है।”
\s5
\v 13 फिर लोग बच्चों को उसके पास लाने लगे ताकि वो उनको छुए मगर शगिर्दों ने उनको झिड़का |
\v 14 “ईसा' ये देख कर ख़फ़ा हुआ और उन से कहा बच्चों को मेरे पास आने दो उन को मना न करो क्यूँकि ख़ुदा की बादशाही ऐसों ही की है
\s5
\v 15 मैं तुम से सच् कहता हूँ, कि जो कोई ख़ुदा की बादशाही को बच्चे की तरह क़ुबूल न करे वो उस में हरगिज़ दाख़िल नहीं होगा।”
\v 16 फिर उसने उन्हें अपनी गोद में लिया और उन पर हाथ रखकर उनको बरकत दी।
\s5
\v 17 जब वो बाहर निकल कर रास्ते में जा रहा था तो एक शख़्स दौड़ता हुआ उसके पास आया और उसके आगे घुटने टेक कर उससे पूछने लगा“ऐ नेक उस्ताद; में क्या करूँ कि हमेशा की ज़िन्दगी का वारिस बनूँ?”
\v 18 ईसा' ने उससे कहा “तू मुझे क्यूँ नेक कहता है? कोई नेक नहीं मगर एक या'नी ख़ुदा।
\v 19 तू हुक्मों को तो जानता है ख़ून न कर, चोरी न कर, झूठी गवाही न दे, धोका देकर नुक़्सान न कर, अपने बाप की और माँ की इज़्ज़त कर।”
\s5
\v 20 उसने उससे कहा “ऐ उस्ताद मैंने बचपन से इन सब पर अमल किया है।”
\v 21 ईसा' ने उसको देखा और उसे उस पर प्यार आया, और उससे कहा, “एक बात की तुझ में कमी है; जा, जो कुछ तेरा है बेच कर ग़रीबों को दे, तुझे आसमान पर ख़ज़ाना मिलेगा और आकर मेरे पीछे हो ले।”
\v 22 इस बात से उसके चहरे पर उदासी छा गई, और वो ग़मगीन हो कर चला गया; क्यूँकि बड़ा मालदार था।
\s5
\v 23 फिर ईसा' ने चारों तरफ़ नज़र करके अपने शागिर्दों से कहा, “दौलतमन्द का ख़ुदा की बादशाही में दाख़िल होना कैसा मुश्किल है|”
\v 24 शागिर्द उस की बातों से हैरान हुए ईसा' ने फिर जवाब में उनसे कहा,“बच्चो जो लोग दौलत पर भरोसा रखते हैं उन के लिए ख़ुदा की बादशाही में दाख़िल होना क्या ही मुश्किल है।
\v 25 ऊँट का सूई के नाके में से गुज़र जाना इस से आसान है कि दौलतमन्द ख़ुदा की बादशाही में दाख़िल हो ।”
\s5
\v 26 वो निहायत ही हैरान हो कर उस से कहने लगे, “फिर कौन नजात पा सकता है?”
\v 27 ईसा' ने उनकी तरफ़ नज़र करके कहा, “ये आदमियों से तो नहीं हो सकता लेकिन ख़ुदा से हो सकता है क्यूँकि ख़ुदा से सब कुछ हो सकता है।”
\v 28 पतरस उस से कहने लगा “देख हम ने तो सब कुछ छोड़ दिया और तेरे पीछे हो लिए हैं।”
\s5
\v 29 ईसा' ने कहा,“मैं तुम से सच कहता हूँ कि ऐसा कोई नहीं जिसने घर या भाइयों या बहनों या माँ बाप या बच्चों या खेतों को मेरी ख़ातिर और इन्जील की ख़ातिर छोड़ दिया हो।
\v 30 और अब इस ज़माने में सौ गुना न पाए घर और भाई और बहनें और माएँ और बच्चे और खेत मगर ज़ुल्म के साथ और आने वाले आलम में हमेशा की ज़िन्दगी।
\v 31 ”लेकिन बहुत से अव्वल आख़िर हो जाएँगे और आख़िर अव्वल।
\s5
\v 32 और वो यरूशलीम को जाते हुए रास्ते में थे और ईसा' उनके आगे जा रहा था वो हैरान होने लगे और जो पीछे पीछे चलते थे डरने लगे पस वो फिर उन बारह को साथ लेकर उनको वो बातें बताने लगा जो उस पर आने वाली थीं,
\v 33 “देखो हम यरूशलीम को जाते हैं और इब्ने आदम सरदार काहिनों फ़क़ीहों के हवाले किया जाएगा, और वो उसके क़त्ल का हुक्म देंगे और उसे ग़ैर क़ौमों के हवाले करेंगे।
\v 34 और वो उसे ठटठों में उड़ाएँगे और उस पर थूकेंगे और उसे कोड़े मारेंगे और क़त्ल करेंगे और वो तीन दिन के बा'द जी उठेगा|”
\s5
\v 35 तब ज़ब्दी के बेटों या'क़ूब और यूहन्ना ने उसके पास आकर उससे कहा“ऐ उस्ताद हम चाहते हैं कि जिस बात की हम तुझ से दरक़्वास्त करें”तू हमारे लिए करे।
\v 36 उसने उनसे कहा तुम क्या चाहते हो“कि मैं तुम्हारे लिए करूँ?”
\v 37 उन्होंने उससे कहा“हमारे लिए ये कर कि तेरे जलाल में हम में से एक तेरी दाहिनी और एक बाईं तरफ़ बैठे।”
\s5
\v 38 ईसा' ने उनसे कहा “तुम नहीं जानते कि क्या माँगते हो? जो प्याला में पीने को हूँ क्या तुम पी सकते हो? और जो बपतिस्मा में लेने को हूँ तुम ले सकते हो?”
\v 39 उन्होंने उससे कहा,“हम से हो सकता है|” ईसा' ने उनसे कहा, “जो प्याला मैं पीने को हूँ तुम पियोगे? और जो बपतिस्मा मैं लेने को हूँ तुम लोगे।
\v 40 लेकिन अपनी दाहिनी या बाईं तरफ़ किसी को बिठा देना मेरा काम नहीं मगर जिन के लिए तैयार किया गया उन्ही के लिए है।”
\s5
\v 41 जब उन दसों ने ये सुना तो या'क़ूब और यूहन्ना से ख़फ़ा होने लगे।
\v 42 ईसा' ने उन्हें पास बुलाकर उनसे कहा, “तुम जानते हो कि जो ग़ैर क़ौमों के सरदार समझे जाते हैं वो उन पर हुकूमत चलाते है और उनके अमीर उन पर इख़्तियार जताते हैं।
\s5
\v 43 मगर तुम में ऐसा कौन है बल्कि जो तुम में बड़ा होना चाहता है वो तुम्हारा ख़ादिम बने।
\v 44 और जो तुम में अव्वल होना चाहता है वो सब का ग़ुलाम बने।
\v 45 क्यूँकि इब्ने आदम भी इसलिए नहीं आया कि ख़िदमत ले बल्कि इसलिए कि ख़िदमत करे और अपनी जान बहुतेरों के बदले फ़िदिये में दे।”
\s5
\v 46 और वो यरीहू में आए और जब वो और उसके शागिर्द और एक बड़ी भीड़ यरीहू से निकलती थी तो तिमाई का बेटा बरतिमाई अँधा फ़क़ीर रास्ते के किनारे बैठा हुआ था।
\v 47 और ये सुनकर कि ईसा' नासरी है चिल्ला चिल्लाकर कहने लगा, “ ऐ इब्ने दाऊद ऐ ईसा' मुझ पर रहम कर!”
\v 48 और बहुतों ने उसे डाँटा कि चुप रह, मगर वो और ज़्यादा चिल्लाया, “ऐ इब्ने दाऊद मुझ पर रहम कर!”
\s5
\v 49 ईसा' ने खड़े होकर कहा, “उसे बुलाओ|” पस उन्हों ने उस अँधे को ये कह कर बुलाया, “कि इत्मिनान रख। उठ, वो तुझे बुलाता है।”
\v 50 वो अपना चोगा फेंक कर उछल पड़ा और ईसा' के पास आया।
\s5
\v 51 ईसा' ने उस से कहा,“तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ?”अँधे ने उससे कहा,“ऐ रब्बूनी, ये कि मैं देखने लगूं|”
\v 52 ईसा' ने उस से कहा जा तेरे ईमान ने तुझे अच्छा कर दिया“और वो फ़ौरन देखने लगा ”और रास्ते में उसके पीछे हो लिया
\s5
\c 11
\v 1 जब वो यरूशलीम के नज़दीक ज़ैतून के पहाड़ पर बैतफ़िगे और बैत अन्नियाह के पास आए तो उसने अपने शागिर्दों में से दो को भेजा।
\v 2 और उनसे कहा,“अपने सामने के गावँ में जाओ और उस में दाख़िल होते ही एक गधी का जवान बच्चा बँधा हुआ तुम्हें मिलेगा, जिस पर कोई आदमी अब तक सवार नही हुआ; उसे खोल लाओ।
\v 3 और अगर कोई तुम से कहे, ‘तुम ये क्यूँ करते हो? तो कहना,‘ख़ुदावन्द को इस की ज़रूरत है| वो फ़ौरन उसे यहाँ भेजेगा।”
\s5
\v 4 पस वो गए,और बच्चे को दरवाज़े के नज़दीक बाहर चौक में बाँधा हुआ पाया और उसे खोलने लगे।
\v 5 मगर जो लोग वहाँ खड़े थे उन में से कुछ ने उन से कहा “ये क्या करते हो? कि गधी का बच्चा खोलते हो?”
\v 6 उन्हों ने जैसा ईसा' ने कहा था, वैसा ही उनसे कह दिया और उन्होंने उनको जाने दिया।
\s5
\v 7 पस वो गधी के बच्चे को ईसा' के पास लाए और अपने कपड़े उस पर डाल दिए और वो उस पर सवार हो गया।
\v 8 और बहुत लोगों ने अपने कपड़े रास्ते में बिछा दिए, औरों ने खेतों में से डालियाँ काट कर फ़ैला दीं।
\v 9 जो उसके आगे आगे जाते और पीछे पीछे चले आते थे ये पुकार पुकार कर कहते जाते थे “होशा'ना मुबारक है वो जो ख़ुदावन्द के नाम से आता है।
\v 10 मुबारक है हमारे बाप दाऊद की बादशाही जो आ रही है आलम -ए बाला पर होशा'ना।”
\s5
\v 11 और वो यरूशलीम में दाख़िल होकर हैकल में आया और चारों तरफ़ सब चीज़ों का मुआइना करके उन बारह के साथ बैत'अन्नियाह को गया क्यूँकि शाम हो गई थी।
\v 12 दूसरे दिन जब वो बैत'अन्नियाह से निकले तो उसे भूख लगी।
\s5
\v 13 और वो दूर से अंजीर का एक दरख़्त जिस में पत्ते थे देख कर गया कि शायद उस में कुछ पाए मगर जब उसके पास पहुँचा तो पत्तों के सिवा कुछ न पाया क्यूँकि अंजीर का मोसम न था।
\v 14 उसने उस से कहा“आइन्दा कोई तुझ से कभी फ़ल न खाए!”और उसके शागिर्दों ने सुना।
\s5
\v 15 फिर वो यरूशलीम में आए, और ईसा' हैकल में दाख़िल होकर उन को जो हैकल में ख़रीदो फ़रोख़्त कर रहे थे बाहर निकालने लगा और सराफ़ों के तख़्त और कबूतर फ़रोंशों की चौकियों को उलट दिया।
\v 16 और उसने किसी को हैकल में से होकर कोई बर्तन ले जाने न दिया।
\s5
\v 17 और अपनी ता'लीम में उनसे कहा, “क्या ये नहीं लिखा कि मेरा घर सब क़ौमों के लिए दुआ का घर कहलाएगा? मगर तुम ने उसे डाकूओं की खोह बना दिया है|”
\v 18 और सरदार काहिन और फ़क़ीह ये सुन कर उसके हलाक करने का मौक़ा ढूँडने लगे क्यूँकि उस से डरते थे इसलिए कि सब लोग उस की ता'लीम से हैरान थे।
\v 19 और हर रोज़ शाम को वो शहर से बाहर जाया करता था,
\s5
\v 20 फिर सुबह को जब वो उधर से गुज़रे तो उस अंजीर के दरख़्त को जड़ तक सूखा हुआ देखा।
\v 21 पतरस को वो बात याद आई और उससे कहने लगा“ऐ रब्बी देख ये अंजीर का दरख़्त जिस पर तूने ला'नत की थी सूख गया है।”
\s5
\v 22 ईसा' ने जवाब में उनसे कहा,“ख़ुदा पर ईमान रखो।
\v 23 मैं तुम से सच कहता हूँ‘ कि जो कोई इस पहाड़ से कहे उखड़ जा और समुन्दर में जा पड़’और अपने दिल में शक न करे बल्कि यक़ीन करे कि जो कहता है वो हो जाएगा तो उसके लिए वही होगा।
\s5
\v 24 इसलिए मैं तुम से कहता हूँ कि जो कुछ तुम दु'आ में माँगते हो यक़ीन करो कि तुम को मिल गया और वो तुम को मिल जाएगा।
\v 25 और जब कभी तुम खड़े हुए दु'आ करते हो, अगर तुम्हें किसी से कुछ शिकायत हो तो उसे मु'आफ़ करो ताकि तुम्हारा बाप भी जो आसमान पर है तुम्हारे गुनाह मु'आफ़ करे।
\v 26 [अगर तुम मु'आफ़ न करोगे तो तुम्हारा बाप जो आसमान पर है तुम्हारे गुनाह भी मु'आफ़ न करेगा ]”
\s5
\v 27 वो फिर यरूशलीम में आए और जब वो हैकल में टहल रहा था तो सरदार काहिन और फ़क़ीह और बुज़ुर्ग उसके पास आए।
\v 28 और उससे कहने लगे, “तू इन कामों को किस इख़्तियार से करता है? या किसने तुझे इख़्तियार दिया है कि इन कामों को करे?”
\s5
\v 29 ईसा' ने उनसे कहा,“मैं तुम से एक बात पूछता हूँ तुम जवाब दो तो मैं तुमको बताऊँगा कि इन कामों को किस इख़्तियार से करता हूँ।
\v 30 यूहन्ना का बपतिस्मा आसमान की तरफ़ से था या इन्सान की तरफ़ से? मुझे जवाब दो।”
\s5
\v 31 वो आपस में कहने लगे, “अगर हम कहें ‘आस्मान की तरफ़ से ’तो वो कहेगा‘फिर तुम ने क्यूँ उसका यक़ीन न किया?
\v 32 और अगर कहें इन्सान की तरफ़ से? तो लोगों का डर था ”इसलिए कि सब लोग वाक़'ई यूहन्ना को नबी जानते थे
\v 33 पस उन्होंने जवाब में ईसा' से कहा,“हम नहीं जानते।ईसा' ने उनसे कहा”में भी तुम को नहीं बताता“कि इन कामों को किस इख़्तियार से करता हूँ।”
\s5
\c 12
\v 1 फिर वो उनसे मिसालों में बातें करने लगा“एक शख़्स ने बाग़ लगाया और उसके चारों तरफ़ अहाता घेरा और हौज़ खोदा और बुर्ज बनाया और उसे बाग़बानों को ठेके पर देकर परदेस चला गया।
\v 2 फिर फल के मोसम में उसने एक नौकर को बाग़बानों के पास भेजा ताकि बाग़बानों से बाग़ के फलों का हिसाब ले ले।
\v 3 लेकिन उन्होने उसे पकड़ कर पीटा और ख़ाली हाथ लौटा दिया।
\s5
\v 4 उसने फिर एक और नौकर को उनके पास भेजा मगर उन्होंने उसका सिर फोड़ दिया और बे'इज़्ज़त किया।
\v 5 फिर उसने एक और को भेजा उन्होंने उसे क़त्ल किया फिर और बहुतेरों को भेजा उन्होंने उन में से कुछ को पीटा और कुछ को क़त्ल किया।
\s5
\v 6 अब एक बाकी था जो उसका प्यारा बेटा था‘उसने आख़िर उसे उनके पास ये कह कर भेजा कि वो मेरे बेटे का तो लिहाज़ करेंगे।’
\v 7 लेकिन उन बाग़बानों ने आपस में कहा यही वारिस है‘आओ इसे क़त्ल कर डालें मीरास हमारी हो जाएगी।’
\s5
\v 8 पस उन्होंने उसे पकड़ कर क़त्ल किया और बाग़ के बाहर फेंक दिया।
\v 9 अब बाग़ का मालिक क्या करेगा?वो आएगा और उन बाग़बानों को हलाक करके बाग़ औरों को देगा।
\s5
\v 10 क्या तुम ने ये लिखे हुए को नहीं पढ़ा‘जिस पत्थर को मे'मारों ने रद्द किया वही कोने के सिरे का पत्थर हो गया।
\v 11 ये ख़ुदावन्द की तरफ़ से हुआ ’और हमारी नज़र में अजीब है।”
\v 12 इस पर वो उसे पकड़ने की कोशिश करने लगे मगर लोगों से डरे, क्यूँकि वो समझ गए थे कि उसने ये मिसाल उन्ही पर कही पस वो उसे छोड़ कर चले गए।
\s5
\v 13 फिर उन्होंने कुछ फ़रीसियों और सदूक़ियों ने हेरोदेस को उसके पास भेजा ताकि बातों में उसको फँसाएँ।
\v 14 और उन्होंने आकर उससे कहा,“ऐ उस्ताद हम जानते हैं कि तू सच्चा है और किसी की परवाह नहीं करता क्यूँकि तू किसी आदमी का तरफ़दार नहीं बल्कि सच्चाई से ख़ुदा के रास्ते की ता'लीम देता है?
\v 15 पस क़ैसर को जिज़या देना जायज़ है या नहीं? हम दें या न दें?” उसने उनकी मक्कारी मा'लूम करके उनसे कहा, “तुम मुझे क्यूँ आज़माते हो? मेरे पास एक दीनार लाओ कि मैं देखूँ|”
\s5
\v 16 वो ले आए उसने उनसे कहा “ये सूरत और नाम किसका है?”उन्होंने उससे कहा “क़ैसर का।”
\v 17 ईसा' ने उनसे कहा“जो क़ैसर का है क़ैसर को और जो ख़ुदा का है ख़ुदा को अदा करो”वो उस पर बड़ा ता'अज्जुब करने लगे।
\s5
\v 18 फिर सदूक़ियों ने जो कहते थे कि क़यामत नहीं होगी, उसके पास आकर उससे ये सवाल किया।
\v 19 ऐ उस्ताद “हमारे लिए मूसा ने लिखा है कि अगर किसी का भाई बे-औलाद मर जाए और उसकी बीवी रह जाए तो उस का भाई उसकी बीवी को लेले ताकि अपने भाई के लिए नस्ल पैदा करे।
\s5
\v 20 सात भाई थे पहले ने बीवी की और बे-औलाद मर गया।
\v 21 दूसरे ने उसे लिया और बे-औलाद मर गया इसी तरह तीसरे ने।
\v 22 यहाँ तक कि सातों बे-औलाद मर गए,सब के बाद वह औरत भी मर गई |
\v 23 क़यामत मे ये उन में से किसकी बीवी होगी? क्यूँकि वो सातो की बीवी बनी थी।”
\s5
\v 24 ईसा' ने उनसे कहा,“क्या तुम इस वजह से गुमराह नहीं हो कि न किताब -ए-मुक़द्दस को जानते हो और न ख़ुदा की क़ुदरत को।
\v 25 क्यूँकि जब लोगों में से मुर्दे जी उठेंगे तो उन में ब्याह शादी न होगी बल्कि आसमान पर फ़रिश्तों की तरह होंगे।
\s5
\v 26 मगर इस बारे में कि मुर्दे जी उठते हैं‘क्या तुम ने मूसा की किताब में झाड़ी के ज़िक्र में नहीं पढ़ा’कि ख़ुदा ने उससे कहा मै अब्रहाम का ख़ुदा और इज़्हाक़ का ख़ुदा और या'क़ूब का ख़ुदा हूँ।
\v 27 वो तो मुर्दों का खु़दा नहीं बल्कि ज़िन्दों का ख़ुदा है, पस तुम बहुत ही गुमराह हो। ”
\s5
\v 28 और आलिमों मे से एक ने उनको बहस करते सुनकर जान लिया कि उसने उनको अच्छा जवाब दिया है“वो पास आया और उस से पूछा? सब हुक्मों में पहला कौन सा है।”
\v 29 ईसा' ने जवाब दिया “पहला ये है ‘ऐ इस्राइल सुन ! ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा एक ही ख़ुदावन्द है।
\v 30 और तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से अपने सारे दिल,और अपनी सारी जान सारी अक़्ल और अपनी सारी ताक़त से मुहब्बत रख।’
\v 31 दूसरा हुक्म ये है :‘अपने पड़ोसी से अपने बराबर मुहब्बत रख ’इस से बड़ा कोई हुक्म नहीं।”
\s5
\v 32 आलिम ने उससे कहा ऐ उस्ताद“बहुत ख़ूब; तू ने सच् कहा कि वो एक ही है और उसके सिवा कोई नहीं
\v 33 और उसे सारे दिल और सारी अक़्ल और सारी ताक़त से मुहब्बत रखना और अपने पड़ौसी से अपने बराबर मुहब्बत रखना सब सोख़्तनी क़ुर्बानियों और ज़बीहों से बढ़ कर है।”
\v 34 जब ईसा' ने देखा कि उसने अक़्लमंदी से जवाब दिया तो उससे कहा, “तू ख़ुदा की बादशाही से दूर नहीं |” और फिर किसी ने उससे सवाल करने की जुर'अत न की।
\s5
\v 35 फिर ईसा' ने हैकल में तालीम देते वक़्त ये कहा, “फ़क़ीह क्यूँकर कहते हैं कि मसीह दाऊद का बेटा है ?
\v 36 दाऊद ने ख़ुद रूह -उल -क़ुद्दूस की हिदायत से कहा है‘ख़ुदावन्द ने मेरे ख़ुदावन्द से कहा; मेरी दाहिनी तरफ़ बैठ जब तक में तेरे दुश्मनों को तेरे पावँ के नीचे की चौकी न कर दूँ।’
\v 37 दाऊद तो आप से ख़ुदावन्द कहता है, फिर वो उसका बेटा कहाँ से ठहरा? आम लोग ख़ुशी से उसकी सुनते थे।”
\s5
\v 38 फिर उसने अपनी ता'लीम में कहा“आलिमों से ख़बरदार रहो, जो लम्बे लम्बे जामे पहन कर फिरना और बाज़ारों में सलाम।
\v 39 और इबादतख़ानों में आ'ला दर्जे की कुर्सियाँ और ज़ियाफ़तों में सद्रनशीनी चाहते हैं।
\v 40 और वो बेवाओं के घरों को दबा बैठते हैं और दिखावे के लिए लम्बी लम्बी दुआएँ करते हैं।”
\s5
\v 41 फिर वो हैकल के ख़जाने के सामने बैठा देख रहा था कि लोग हैकल के ख़ज़ाने में पैसे किस तरह डालते हैं और बहुतेरे दौलतमन्द बहुत कुछ डाल रहे थे।
\v 42 इतने में एक कंगाल बेवा ने आ कर दो दमड़ियाँ या'नी एक धेला डाला।
\s5
\v 43 उसने अपने शागिर्दों को पास बुलाकर उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ कि जो हैकल के ख़ज़ाने में डाल रहे हैं इस कंगाल बेवा ने उन सब से ज़्यादा डाला।
\v 44 क्यूँकि सभों ने अपने माल की ज़ियादती से डाला; मगर इस ने अपनी ग़रीबी की हालत में जो कुछ इस का था या'नी अपनी सारी रोज़ी डाल दी।”
\s5
\c 13
\v 1 जब वो हैकल से बाहर जा रहा था तो उसके शागिर्दों में से एक ने उससे कहा “ऐ उस्ताद देख ये कैसे कैसे पत्थर और कैसी कैसी इमारतें हैं!”
\v 2 ईसा' ने उनसे कहा, “तू इन बड़ी बड़ी इमारतों को देखता है? यहाँ किसी पत्थर पर पत्थर बाक़ी न रहेगा जो गिराया न जाए। ”
\s5
\v 3 जब वो ज़ैतून के पहाड़ पर हैकल के सामने बैठा था तो पतरस और या'क़ूब और यूहन्ना और अन्द्रियास ने तन्हाई में उससे पूछा।
\v 4 “हमें बता कि ये बातें कब होंगी? और जब ये सब बातें पूरी होने को हों उस वक़्त का क्या निशान है।”
\s5
\v 5 ईसा' ने उनसे कहना शुरू किया“ख़बरदार कोई तुम को गुमराह न कर दे।
\v 6 बहुतेरे मेरे नाम से आएँगे और कहेंगे‘वो मैं ही हूँ।’और बहुत से लोगों को गुमराह करेंगे।
\s5
\v 7 जब तुम लड़ाइयाँ और लड़ाइयों की अफ़वाहें सुनो तो घबरा न जाना इनका वाक़े होना ज़रूर है लेकिन उस वक़्त ख़ातिमा न होगा।
\v 8 क्यूँकि क़ौम पर क़ौम और सल्तनत पर सल्तनत चढ़ाई करेगी जगह जगह भूचाल आएँगे और काल पड़ेंगे ये बातें मुसीबतों की शुरुआत ही होंगी।
\s5
\v 9 लेकिन तुम ख़बरदार रहो क्यूँकि लोग तुम को अदालतों के हवाले करेंगे और तुम इबादतख़ानों में पीटे जाओगे; और हाकिमों और बादशाहों के सामने मेरी ख़ातिर हाज़िर किए जाओगे ताकि उनके लिए गवाही हो।
\v 10 और ज़रूर है कि पहले सब क़ौमों में इन्जील की मनादी की जाए।
\s5
\v 11 लेकिन जब तुम्हें ले जा कर हवाले करें तो पहले से फ़िक्र न करना कि हम क्या कहें बल्कि जो कुछ उस घड़ी तुम्हें बताया जाए वही करना क्यूँकि कहने वाले तुम नहीं हो बल्कि रूह- उल क़ुद्दूस है।
\v 12 भाई को भाई और बेटे को बाप क़त्ल के लिए हवाले करेगा और बेटे माँ बाप के बरख़िलाफ़ ख़ड़े हो कर उन्हें मरवा डालेंगे।
\v 13 और मेरे नाम की वजह से सब लोग तुम से अदावत रखेंगे मगर जो आख़िर तक बर्दाशत करेगा वो नजात पाएगा।
\s5
\v 14 पस जब तुम उस उजाड़ने वाली नापसन्द चीज़ को उस जगह खड़ी हुई देखो जहाँ उसका खडा होना जायज़ नहीं पढ़ने वाला समझ ले उस वक़्त जो यहूदिया में हों वो पहाड़ों पर भाग जाएँ।
\v 15 जो छत पर हो वो अपने घर से कुछ लेने को न नीचे उतरे न अन्दर जाए।
\v 16 और जो खेत में हो वो आपना कपड़ा लेने को पीछे न लोटे।
\s5
\v 17 मगर उन पर अफ़सोस जो उन दिनों में हामिला हों और जो दूध पिलाती हों।
\v 18 और दुआ करो कि ये जाड़ों में न हो।
\v 19 क्यूँकि वो दिन एसी मुसीबत के होंगे कि पैदाइश के शुरू से जिसे ख़ुदा ने पैदा किया न अब तक हुई है न कभी होगी।
\v 20 अगर ख़ुदावन्द उन दिनों को न घटाता तो कोई इन्सान न बचता मगर उन चुने हुवों की ख़ातिर जिनको उसने चुना है उन दिनों को घटाया।
\s5
\v 21 और उस वक़्त अगर कोई तुम से कहे‘देखो, मसीह यहाँ है,’या ‘देखो वहाँ है’तो यक़ीन न करना।
\v 22 क्यूँकि झूठे मसीह और झूठे नबी उठ खड़े होंगे और निशान और अजीब काम दिखाएँगे ताकि अगर मुमकिन हो तो चुने हुवों को भी गुमराह कर दें।
\v 23 लेकिन तुम ख़बरदार रहो; देखो मैंने तुम से सब कुछ पहले ही कह दिया है।
\s5
\v 24 मगर उन दिनों में उस मुसीबत के बा'द सूरज अँधेरा हो जाएगा और चाँद अपनी रोशनी न देगा।
\v 25 और आसमान के सितारे गिरने लगेंगे और जो ताकतें आसमान में हैं वो हिलाई जाएँगी।
\v 26 और उस वक़्त लोग इब्ने आदम को बड़ी क़ुदरत और जलाल के साथ बादलों में आते देखेंगे।
\v 27 उस वक़्त वो फ़रिश्तों को भेज कर अपने चुने हुए को ज़मीन की इन्तिहा से आसमान की इन्तहा तक चारो तरफ़ से जमा करेगा।
\s5
\v 28 अब अन्जीर के दरख़्त से एक तम्सील सीखो; जूँ ही उसकी डाली नर्म होती और पत्ते निकलते हैं तुम जान लेते हो कि गर्मी नज़दीक है।
\v 29 इसी तरह जब तुम इन बातों को होते देखो तो जान लो कि वो नज़दीक बल्कि दरवाज़े पर है।
\s5
\v 30 मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तक ये सब बातें न हों लें ये नस्ल हरगिज़ खत्म न होगी।
\v 31 आसमान और ज़मीन टल जाएँगे लेकिन मेरी बातें न टलेंगी।
\v 32 लेकिन उस दिन या उस वक़्त के बारे कोई नहीं जानता न आसमान के फ़रिश्ते न बेटा मगर "बाप।
\s5
\v 33 ख़बरदार; जागते और दुआ करते रहो, क्यूँकि तुम नहीं जानते कि वो वक़्त कब आएगा।
\v 34 ये उस आदमी का सा हाल है जो परदेस गया और उस ने घर से रुख़्सत होते वक़्त अपने नौकरों को इख़्तियार दिया या'नी हर एक को उस का काम बता दिया और दरबान को हुक्म दिया कि जागता रहे।
\s5
\v 35 पस जागते रहो क्यूँकि तुम नहीं जानते कि घर का मालिक कब आएगा शाम को या आधी रात को या मुर्ग़ के बाँग देते वक़्त या सुबह को ।
\v 36 ऐसा न हो कि अचानक आकर वो तुम को सोते पाए।
\v 37 और जो कुछ मैं तुम से कहता हूँ, वही सब से कहता हूँ जागते रहो!”
\s5
\c 14
\v 1 दो दिन के बा'द फ़सह और 'ईद-ए-फ़ितर होने वाली थी और सरदार काहिन और फ़क़ीह मौक़ा ढूँड रहे थे कि उसे क्यूँकर धोखे से पकड़ कर क़त्ल करें।
\v 2 क्यूँकि कहते थे ई'द में नहीं “ऐसा न हो कि लोगों में बलवा हो जाए”
\s5
\v 3 जब वो बैत अन्नियाह में शमा'ऊन जो पहले कोढ़ी था उसके घर में खाना खाने बैठा तो एक औरत जटामासी का बेशक़ीमती इत्र संगे मरमर के इत्र दान में लाई और इत्र दान तोड़ कर इत्र को उसके सिर पर डाला।
\v 4 मगर कुछ अपने दिल में ख़फ़ा हो कर कहने लगे“ये इत्र किस लिए ज़ाया किया गया|
\v 5 क्यूँकि”ये इत्र तक़रीबन तीन सौ दिन की मज़दूरी से ज़्यादा की क़ीमत में बिक कर ग़रीबों को दिया जा सकता था; और वो उसे मलामत करने लगे।
\s5
\v 6 ईसा' ने कहा उसे छोड़ दो उसे क्यूँ दिक़ करते हो“उसने मेरे साथ भलाई की है ।
\v 7 क्यूँकि ग़रीब और ग़ुरबा तो हमेशा तुम्हारे पास हैं जब चाहो उनके साथ नेकी कर सकते हो; लेकिन मैं तुम्हारे पास हमेशा न रहूँगा।
\v 8 जो कुछ वो कर सकी उसने किया उसने दफ़न के लिए मेरे बदन पर पहले ही से इत्र मला।
\v 9 मैं तुम से सच कहता हूँ कि "तमाम दुनिया में जहाँ कहीं इन्जील की मनादी की जाएगी, ये भी जो इस ने किया उस की यादगारी में बयान किया जाएगा।”
\s5
\v 10 फिर यहूदाह इस्करियोती जो उन बारह में से था, सरदार काहिन के पास चला गया ताकि उसे उनके हवाले कर दे।
\v 11 वो ये सुन कर ख़ुश हुए और उसको रुपये देने का इक़रार किया और वो मौक़ा ढूँडने लगा कि किस तरह क़ाबू पाकर उसे पकड़वा दे।
\s5
\v 12 ई'द 'ए फ़ितर के पहले दिन या'नी जिस रोज़ फ़सह को ज़बह किया करते थे“उसके शागिर्दों ने उससे कहा? तू कहाँ चाहता है कि हम जाकर तेरे लिए फ़सह खाने की तैयारी करें।”
\v 13 उसने अपने शागिर्दो में से दो को भेजा और उनसे कहा शहर में जाओ एक शख़्स पानी का घड़ा लिए हुए तुम्हें मिलेगा“उसके पीछे हो लेना।
\v 14 और जहाँ वो दाख़िल हो उस घर के मालिक से कहना‘उस्ताद कहता है? मेरा मेहमानख़ाना जहाँ मैं अपने शागिर्दों के साथ फ़सह खाउँ कहाँ है।’
\s5
\v 15 वो आप तुम को एक बड़ा मेहमानख़ाना आरास्ता और तैयार दिखाएगा वहीं हमारे लिए तैयारी करना।”
\v 16 पस शागिर्द चले गए और शहर में आकर जैसा ईसा' ने उन से कहा था वैसा ही पाया और फ़सह को तैयार किया।
\s5
\v 17 जब शाम हुई तो वो उन बारह के साथ आया।
\v 18 और जब वो बैठे खा रहे थे तो ईसा' ने कहा“मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुम में से एक जो मेरे साथ खाता है मुझे पकड़वाएगा।”
\v 19 वो दुखी होकर और एक एक करके उससे कहने लगे,“क्या मैं हूँ?”
\s5
\v 20 उसने उनसे कहा, “वो बारह में से एक है जो मेरे साथ थाल में हाथ डालता है।
\v 21 क्यूँकि इब्ने आदम तो जैसा उसके हक़ में लिखा है जाता ही है लेकिन उस आदमी पर अफ़सोस जिसके वसीले से इब्ने आदम पकड़वाया जाता है,अगर वो आदमी पैदा ही न होता तो उसके लिए अछा था|”
\s5
\v 22 और वो खा ही रहे थे कि उसने रोटी ली “और बरकत देकर तोड़ी और उनको दी और कहा लो ये मेरा बदन है।”
\v 23 फिर उसने प्याला लेकर शुक्र किया और उनको दिया और उन सभों ने उस में से पिया।
\v 24 उसने उनसे कहा “ये मेरा वो अहद का ख्नून है जो बहुतेरों के लिए बहाया जाता है।
\v 25 मैं तुम से सच कहता हूँ कि अंगूर का शीरा फिर कभी न पिऊँगा; उस दिन तक कि ख़ुदा की बादशाही में नया न पिऊँ।”
\s5
\v 26 फिर हम्द गा कर बाहर ज़ैतून के पहाड़ पर गए।
\v 27 और ईसा' ने उनसे कहा “तुम सब ठोकर खाओगे क्यूँकि लिखा है, मैं चरवाहे को मारूँगा‘और भेड़ें इधर उधर हो जाएँगी।’
\s5
\v 28 मगर मैं अपने जी उठने के बा'द तुम से पहले गलील को जाउँगा।”
\v 29 पतरस ने उससे कहा, “चाहे सब ठोकर खाएँ लेकिन मैं न खाउँगा|”
\s5
\v 30 ईसा' ने उससे कहा, “ मैं तुझ से सच कहता हूँ। कि तू आज इसी रात मुर्ग़ के दो बार बाँग देने से पहले तीन बार मेरा इन्कार करेगा|”
\v 31 लेकिन उसने बहुत ज़ोर देकर कहा, “अगर तेरे साथ मुझे मरना भी पड़े तोभी तेरा इन्कार हरगिज़ न करूँगा|” इसी तरह और सब ने भी कहा।
\s5
\v 32 “फिर वो एक जगह आए जिसका नाम गतसिमनी था और उसने अपने शागिर्दों से कहा,यहाँ बैठे रहो जब तक मैं दुआ करूँ।”
\v 33 और पतरस और या'क़ूब और यूहन्ना को अपने साथ लेकर निहायत हैरान और बेक़रार होने लगा।
\v 34 “और उसने कहा मेरी जान निहायत ग़मगीन है यहाँ तक कि मरने की नौबत पहुँच गई है तुम यहाँ ठहरो और जागते रहो।”
\s5
\v 35 और वो थोड़ा आगे बढ़ा और ज़मीन पर गिर कर दुआ करने लगा, कि अगर हो सके तो ये वक़्त मुझ पर से टल जाए।
\v 36 “और कहा ऐ अब्बा ऐ बाप तुझ से सब कुछ हो सकता है इस प्याले को मेरे पास से हटा ले तोभी जो मैं चाहता हूँ वो नहीं बल्कि जो तू चाहता है वही हो।”
\s5
\v 37 फिर वो आया और उन्हें सोते पाकर पतरस से कहा“ऐ शमा'ऊन तू सोता है? क्या तू एक घड़ी भी न जाग सका।
\v 38 जागो और दुआ करो, ताकि आज़माइश में न पड़ो रूह तो मुसतैद है मगर जिस्म कमज़ोर है।”
\v 39 वो फिर चला गया और वही बात कह कर दुआ की।
\s5
\v 40 और फिर आकर उन्हें सोते पाया क्यूँकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं और वो न जानते थे कि उसे क्या जवाब दें।
\v 41 फिर तीसरी बार आकर उनसे कहा “अब सोते रहो और आराम करो बस वक़्त आ पहुँचा है देखो; इब्ने आदम गुनाहगारों के हाथ में हवाले किया जाता है।
\v 42 उठो चलो देखो मेरा पकड़वाने वाला नज़दीक आ पहुँचा है।”
\s5
\v 43 वो ये कह ही रहा था कि फ़ौरन यहूदाह जो उन बारह में से था और उसके साथ एक बड़ी भीड़ तलवारें और लाठियाँ लिए हुए सरदार काहिनों और फ़क़ीहों की तरफ़ से आ पहुँची।
\v 44 और उसके पकड़वाने वाले ने उन्हें ये निशान दिया था जिसका मैं बोसा लूँ वही है उसे पकड़ कर हिफ़ाज़त से ले जाना।
\v 45 वो आकर फ़ौरन उसके पास गया और कहा,“ऐ रब्बी!” और उसके बोसे लिए।
\v 46 उन्होंने उस पर हाथ डाल कर उसे पकड़ लिया।
\s5
\v 47 उन में से जो पास खड़े थे एक ने तलवार खींचकर सरदार काहिन के नौकर पर चलाई और उसका कान उड़ा दिया।
\v 48 ईसा' ने उनसे कहा क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे “डाकू की तरह पकड़ने निकले हो?
\v 49 मैं हर रोज़ तुम्हारे पास हैकल में ता'लीम देता था, और तुम ने मुझे नहीं पकड़ा लेकिन ये इसलिए हुआ कि लिखा हुआ पूरा हों।”
\v 50 इस पर सब शगिर्द उसे छोड़कर भाग गए।
\s5
\v 51 मगर एक जवान अपने नंगे बदन पर महीन चादर ओढ़े हुए उसके पीछे हो लिया, उसे लोगों ने पकड़ा।
\v 52 मगर वो चादर छोड़ कर नंगा भाग गया।
\s5
\v 53 फिर वो ईसा' को सरदार काहिन के पास ले गए; और अब सरदार काहिन और बुज़ुर्ग और फ़क़ीह उसके यहाँ जमा हुए।
\v 54 पतरस फ़ासले पर उसके पीछे पीछे सरदार काहिन के दिवानख़ाने के अन्दर तक गया और सिपाहियों के साथ बैठ कर आग तापने लगा।
\s5
\v 55 और सरदार काहिन सब सद्रे-अदालत वाले ईसा' को मार डालने के लिए उसके ख़िलाफ़ गवाही ढूँडने लगे मगर न पाई।
\v 56 क्यूँकि बहुतेरों ने उस पर झूठी गवाहियाँ तो दीं लेकिन उनकी गवाहियाँ सहीह न थीं।
\s5
\v 57 फिर कुछ ने उठकर उस पर ये झूठी गवाही दी।
\v 58 “हम ने उसे ये कहते सुना है मैं इस मक़दिस को जो हाथ से बना है ढाऊँगा और तीन दिन में दूसरा बनाऊँगा जो हाथ से न बना हो।”
\v 59 लेकिन इस पर भी उसकी गवाही सही न निकली।
\s5
\v 60 “फिर सरदार काहिन ने बीच में खड़े हो कर ईसा' से पूछा तू कुछ जवाब नहीं देता? ये तेरे ख़िलाफ़ क्या गवाही देते हैं ।”
\v 61 “मगर वो ख़ामोश ही रहा और कुछ जवाब न दिया? सरदार काहिन ने उससे फिर सवाल किया और कहा क्या तू उस यूसुफ़ का बेटा मसीह है।”
\v 62 ईसा' ने कहा, “हाँ मैं हूँ। और तुम इब्ने आदम को क़ादिर ए मुतलक़ की दहनी तरफ़ बैठे और आसमान के बादलों के साथ आते देखोगे।”
\s5
\v 63 सरदार काहिन ने अपने कपड़े फ़ाड़ कर कहा“अब हमें गवाहों की क्या ज़रूरत रही।
\v 64 तुम ने ये कुफ़्र सुना तुम्हारी क्या राय है? उन सब ने फ़तवा दिया कि वो क़त्ल के लायक़ है।”
\v 65 तब कुछ उस पर थूकने और उसका मुँह ढाँपने और उसके मुक्के मारने और उससे कहने लगे “नबुव्वत की बातें सुना !और सिपाहियों ने उसे तमाँचे मार मार कर अपने क़ब्ज़े में लिया।”
\s5
\v 66 जब पतरस नीचे सहन में था तो सरदार काहिन की लौडीयों में से एक वहाँ आई।
\v 67 “और पतरस को आग तापते देख कर उस पर नज़र की”और कहने लगी तू भी उस नासरी ईसा' के साथ था।
\v 68 उसने इन्कार किया और कहा“मैं तो न जानता और न समझता हूँ।” कि तू क्या कहती है फिर वो बाहर सहन में गया [ और मुर्ग़ ने बाँग दी।]
\s5
\v 69 वो लौंडी उसे देख कर उन से जो पास खड़े थे, फिर कहने लगी “ये उन में से है।”
\v 70 “मगर उसने फिर इन्कार किया और थोड़ी देर बा'द उन्होंने जो पास खड़े थे पतरस से फिर कहा बेशक़ तू उन में से है क्यूँकि तू गलीली भी है।”
\s5
\v 71 “मगर वो ला'नत करने और क़सम खाने लगा में इस आदमी को जिसका तुम ज़िक्र करते हो नहीं जानता ।”
\v 72 और फ़ौरन मुर्ग़ ने दूसरी बार बाँग दी पतरस को वो बात जो ईसा' ने उससे कही थी याद आई मुर्ग़ के दो बार बाँग देने से पहले “तू तीन बार इन्कार करेगा और उस पर ग़ौर करके रो पड़ा।”
\s5
\c 15
\v 1 और फ़ौरन सुब्ह होते ही सरदार काहिनों ने और बुज़ुर्गों और फ़क़ीहों और सब सद्र 'ए अदालत वालों समेत सलाह करके ईसा' को बन्धवाया और ले जा कर पीलातुस के हवाले किया।
\v 2 और पीलातुस ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का बादशाह है?” उसने जवाब में उस से कहा,“तू ख़ुद कहता है|”
\v 3 और सरदार काहिन उस पर बहुत सी बातों का इल्ज़ाम लगाते रहे|
\s5
\v 4 पीलातुस ने उस से दोबारा सवाल करके ये कहा“तू कुछ जवाब नहीं देता देख ये तुझ पर कितनी बातों का इल्ज़ाम लगाते है।”
\v 5 ईसा' ने फिर भी कुछ जवाब न दिया यहाँ तक कि पीलातुस ने ताअ'ज्जुब किया।
\s5
\v 6 और वो 'ईद पर एक क़ैदी को जिसके लिए लोग अर्ज़ करते थे छोड़ दिया करता था।
\v 7 और बर'अब्बा नाम एक आदमी उन बाग़ियों के साथ क़ैद में पड़ा था जिन्होंने बग़ावत में ख़ून किया था।
\v 8 और भीड़ उस पर चढ़कर उस से अर्ज़ करने लगी कि जो तेरा दस्तूर है वो हमारे लिए कर।
\s5
\v 9 पीलातुस ने उन्हें ये जवाब दिया, “क्या तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी ख़ातिर यहूदियों के बादशाह को छोड़ दूँ?”
\v 10 क्यूँकि उसे मा'लूम था कि सरदार काहिन ने इसको हसद से मेरे हवाले किया है।
\v 11 मगर सरदार काहिनों ने भीड़ को उभारा ताकि पीलातुस उनकी ख़ातिर बर'अब्बा ही को छोड़ दे।
\s5
\v 12 “पीलातुस ने दोबारा उनसे कहा फिर जिसे तुम यहूदियों का बादशाह कहते हो?उसे मैं क्या करूँ।”
\v 13 वो फिर चिल्लाए“वो मस्लूब हो।”
\s5
\v 14 पीलातुस ने उनसे कहा “क्यूँ? उस ने क्या बुराई की है?”वो और भी चिल्लाए “वो मस्लूब हो!”
\v 15 पीलातुस ने लोगों को ख़ुश करने के इरादे से उनके लिए बर'अब्बा को छोड़ दिया और ईसा' को कोड़े लगवाकर हवाले किया कि मस्लूब हो।
\s5
\v 16 और सिपाही उसको उस सहन में ले गए, जो प्रैतोरियुन कहलाता है और सारी पलटन को बुला लाए।
\v 17 और उन्हों ने उसे इर्ग़वानी चोग़ा पहनाया और काँटों का ताज बना कर उसके सिर पर रख्खा।
\v 18 और उसे सलाम करने लगे“ऐ यहूदियों के बादशाह! आदाब।”
\s5
\v 19 और वो उसके सिर पर सरकंडा मारते और उस पर थूकते और घुटने टेक टेक कर उसे सज्दा करते रहे।
\v 20 और जब उसे ठठ्ठों में उड़ा चुके तो उस पर से इर्ग़वानी चोग़ा उतार कर उसी के कपड़े उसे पहनाए फिर उसे मस्लूब करने को बाहर ले गए।
\v 21 और शमा'ऊन नाम एक कुरेनी आदमी सिकन्दर और रुफ़स का बाप देहात से आते हुए उधर से गुजरा उन्होंने उसे बेग़ार में पकड़ा कि उसकी सलीब उठाए।
\s5
\v 22 और वो उसे मुक़ाम'ए गुलगुता पर लाए जिसका तरजुमा ( खोपड़ी की जगह ) है।
\v 23 और मुर मिली होई मय उसे देने लगे मगर उसने न ली।
\v 24 और उन्होंने उसे मस्लूब किया और उसके कपड़ों पर पर्ची डाली कि किसको क्या मिले उन्हें बाँट लिया।
\s5
\v 25 और पहर दिन चढ़ा था जब उन्होंने उसको मस्लूब किया।
\v 26 और उसका इल्ज़ाम लिख कर उसके ऊपर लगा दिया गया:“यहूदियों का बादशाह|”
\v 27 और उन्होंने उसके साथ दो डाकू, एक उसकी दाहिनी और एक उसकी बाईं तरफ़ मस्लूब किया।
\v 28 [ तब इस मज़्मून का वो लिखा हुआ कि वो बदकारों में गिना गया पूरा हुआ]
\s5
\v 29 “और राह चलनेवाले सिर हिला हिला कर उस पर लानत करते और कहते थे वाह मक़दिस के ढाने वाले और तीन दिन में बनाने वाले।
\v 30 सलीब पर से उतर कर अपने आप को बचा!”
\s5
\v 31 “इसी तरह सरदार काहिन भी फ़क़ीहों के साथ मिलकर आपस में ठटठे से कहते थे इसने औरों को बचाया अपने आप को नहीं बचा सकता।
\v 32 इस्राइल का बादशाह मसीह; अब सलीब पर से उतर आए ताकि हम देख कर ईमान लाएँ और जो उसके साथ मस्लूब हुए थे वो उस पर लानतान करते थे।”
\s5
\v 33 जब दो पहर हुई तो पूरे मुल्क में अँधेरा छा गया और तीसरे पहर तक रहा।
\v 34 तीसरे पहर ईसा' बड़ी आवाज़ से चिल्लाया, “ इलोही, इलोही लमा शबक़तनी?” जिसका तर्जुमा है, “ऐ मेरे ख़ुदा, ऐ मेरे खु़दा, तूने मुझे क्यूँ छोड़ दिया?”
\v 35 जो पास खड़े थे उन में से कुछ ने ये सुनकर कहा“देखो ये एलियाह को बुलाता है।”
\s5
\v 36 और एक ने दौड़ कर सोकते को सिरके में डबोया और सरकंडे पर रख कर उसे चुसाया और कहा, “ठहर जाओ देखें तो एलियाह उसको उतारने आता है या नहीं।”
\v 37 फिर ईसा' ने बड़ी आवाज़ से चिल्ला कर जान दे दिया।
\v 38 और हैकल का पर्दा उपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया।
\s5
\v 39 और जो सिपाही उसके सामने खड़ा था उसने उसे यूँ जान देते हुए देखकर कहा “बेशक़ ये आदमी ख़ुदा का बेटा था”
\v 40 कई औरतें दूर से देख रही थी उन में मरियम मगदलिनी और छोटे या'क़ूब और योसेस की माँ मरियम और सलोमी थीं
\v 41 जब वो गलील में था ये उसके पीछे हो लीं और उसकी ख़िदमत करती थीं और और भी बहुत सी औरतें थीं जो उसके साथ यरूशलीम से आई थीं।
\s5
\v 42 जब शाम हो गई तो इसलिए कि तैयारी का दिन था जो सब्त से एक दिन पहले होता है।
\v 43 अरिमतियाह का रहने वाला यूसुफ़ आया जो इज़्ज़तदार मुशीर और ख़ुद भी ख़ुदा की बादशाही का मुन्तज़िर था और उसने हिम्मत से पीलातुस के पास जाकर ईसा' की लाश माँगी
\v 44 और पीलातुस ने ता'अज्जुब किया कि वो ऐसे जल्द मर गया?और सिपाही को बुला कर उस से पूछा उसको मरे देर हो गई?
\s5
\v 45 जब सिपाही से हाल मा'लूम कर लिया तो लाश यूसुफ़ को दिला दी।
\v 46 उसने एक महीन चादर मोल ली और लाश को उतार कर उस चादर में कफ़्नाया और एक क़ब्र के अन्दर जो चट्टान में खोदी गई थी रख्खा और क़ब्र के मुँह पर एक पत्थर लुढका दिया।
\v 47 और मरियम मग़दलिनी और योसेस की माँ मरियम देख रही थी कि वो कहाँ रख्खा गया है।
\s5
\c 16
\v 1 जब सबत का दिन गुज़र गया तो मरियम मग़दलिनी और या'क़ूब की माँ मरियम और सलोमी ने ख़ुशबूदार चीज़ें मोल लीं ताकि आकर उस पर मलें।
\v 2 वो हफ़्ते के पहले दिन बहुत सवेरे जब सूरज निकला ही था क़ब्र पर आईं।
\s5
\v 3 और आपस में कहती थी“हमारे लिए पत्थर को क़ब्र के मुँह पर से कौन लुढ़काएगा।?”
\v 4 जब उन्हों ने निगाह की तो देखा कि पत्थर लुढ़का हुआ है क्यूँकि वो बहुत ही बड़ा था ।
\s5
\v 5 क़ब्र के अन्दर जाकर उन्हों ने एक जवान को सफ़ेद जामा पहने हुए दहनी तरफ़ बैठे देखा और निहायत हैरान हुईं।
\v 6 उसने उनसे कहा ऐसी हैरान न हो तुम ईसा' नासरी को“जो मस्लूब हुआ था तलाश रही हो; जी उठा है वो यहाँ नहीं है देखो ये वो जगह है जहाँ उन्होने उसे रख्खा था।
\v 7 लेकिन तुम जाकर उसके शागिर्दों और पतरस से कहो कि वो तुम से पहले गलील को जाएगा तुम वहीं उसको देखोगे जैसा उसने तुम से कहा।”
\s5
\v 8 और वो निकल कर क़ब्र से भागीं क्यूँकि कपकपी और हैबत उन पर ग़ालिब आ गई थी और उन्होंने किसी से कुछ न कहा क्यूँकि वो डरती थीं।
\s5
\v 9 हफ़्ते के पहले दिन जब वो सवेरे जी उठा तो पहले मरियम मग़दलिनी को जिस में से उसने सात बदरूहें निकाली थीं दिखाई दिया।
\v 10 उसने जाकर उसके शागिर्दो को जो मातम करते और रोते थे ख़बर दी।
\v 11 उन्होंने ये सुनकर कि वो जी उठा है और उसने उसे देखा है यक़ीन न किया।
\s5
\v 12 इसके बा'द वो दूसरी सूरत में उन में से दो को जब वो देहात की तरफ़ जा रहे थे दिखाई दिया।
\v 13 उन्होंने भी जाकर बाक़ी लोगों को ख़बर दी ; मगर उन्होंने उन का भी यक़ीन न किया।
\s5
\v 14 फिर वो उन गयारह शागिर्दों को भी जब खाना खाने बैठे थे दिखाई दिया और उसने उनकी बे'ऐ'तिक़ादी और सख़्त दिली पर उनको मलामत की क्यूँकि जिन्हों ने उसके जी उठने के बा'द उसे देखा था उन्होंने उसका यक़ीन न किया था।
\v 15 और उसने उनसे कहा, “तुम सारी दुनियाँ में जाकर सारी मख़लूक़ के सामने इन्जील की मनादी करो।
\v 16 जो ईमान लाए और बपतिसमा ले वो नजात पाएगा और जो ईमान न लाए वो मुजरिम ठहराया जाएगा।
\s5
\v 17 और ईमान लाने वालों के दर्मियान ये मोजिज़े होंगे वो मेरे नाम से बदरूहों को निकालेंगे; नई नई ज़बाने बोलेंगे।
\v 18 साँपों को उठा लेंगे और अगर कोई हलाक करने वाली चीज़ पीएँगे तो उन्हें कुछ तकलीफ़ न पहुँचेगी वो बीमारों पर हाथ रखेंगे तो अच्छे हो जाएँगे।”
\s5
\v 19 ग़रज़ ख़ुदावन्द उनसे कलाम करने के बा'द आसमान पर उठाया गया और ख़ुदा की दहनी तरफ़ बैठ गया।
\v 20 फिर उन्होंने निकल कर हर जगह मनादी की और ख़ुदावन्द उनके साथ काम करता रहा और कलाम को उन मोजिज़ों के वसीले से जो साथ साथ होते थे साबित करता रहा; आमीन।

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\id LUK
\ide UTF-8
\h मुक़द्दस लूका की मा'रिफ़त इन्जील
\toc1 मुक़द्दस लूका की मा'रिफ़त इन्जील
\toc2 मुक़द्दस लूका की मा'रिफ़त इन्जील
\toc3 luk
\mt1 मुक़द्दस लूका की मा'रिफ़त इन्जील
\s5
\c 1
\p
\v 1 चूँकि बहुतों ने इस पर कमर बाँधी है कि जो बातें हमारे दरमियान वाक़े ' हुईं उनको सिलसिलावार बयान करें .
\v 2 जैसा कि उन्होंने जो शुरू ' से ख़ुद देखने वाले और कलाम के ख़ादिम थे उनको हम तक पहुँचाया।
\v 3 इसलिए ऐ मु'अज़्ज़िज़ थियुफ़िलूस ! मैंने भी मुनासिब जाना कि सब बातों का सिलसिला शुरू ' से ठीक-ठीक मालूम करके उनको तेरे लिए तरतीब से लिखूँ ।
\v 4 ताकि जिन बातों की तूने तालीम पाई है उनकी पुख़्तगी तुझे मालूम हो जाए।
\s5
\v 5 यहूदिया के बादशाह हेरोदेस के ज़माने में अबिय्याह के फ़रीक़ में से ज़करियाह नाम एक काहिन था और उसकी बीवी हारून की औलाद में से थी और उसका नाम इलीशिबा 'था ।
\v 6 और वो दोनों ख़ुदा के सामने रास्तबाज़ और ख़ुदावन्द के सब अहकाम-ओ-क़वानीन पर बे- 'ऐब चलने वाले थे .
\v 7 और उनके औलाद न थी क्यूँकि इलीशिबा ' बाँझ थी और दोनों 'उम्र रसीदा थे।
\s5
\v 8 जब वो ख़ुदा के हुज़ूर अपने फ़रीक़ की बारी पर इमामत का काम अन्जाम देता था तो ऐसा हुआ , ।
\v 9 कि इमामत के दस्तूर के मुवाफिक उसके नाम की पर्ची निकली कि ख़ुदावन्द के हुज़ूरी में जाकर ख़ुशबू जलाए ।
\v 10 और लोगों की सारी जमा 'अत ख़ुशबू जलाते वक़्त बाहर दुआ कर रही थी ।
\s5
\v 11 अचानक ख़ुदा का एक फ़रिश्ता ज़ाहिर हुआ जो ख़ुशबू जलाने की क़ुर्बानगाह के दहनी तरफ़ खड़ा हुआ उसको दिखाई दिया ।
\v 12 उसे देख कर ज़करियाह घबराया और बहुत डर गया।
\v 13 लेकिन फ़रिश्ते ने उस से कहा, “ज़करियाह, मत डर! ख़ुदा ने तेरी दुआ सुन ली है। तेरी बीवी इलीशिबा के बेटा होगा। उस का नाम युहन्ना रखना।
\s5
\v 14 वह न सिर्फ़ तेरे लिए ख़ुशी और मुसर्रत का बाइस होगा, बल्कि बहुत से लोग उस की पैदाइश पर ख़ुशी मनाएँगे।
\v 15 क्यूँकि वह ख़ुदा के नज़्दीक अज़ीम होगा। ज़रूरी है कि वह मय और शराब से परहेज़ करे। वह पैदा होने से पहले ही रूह-उल-क़ुद्दूस से भरपूर होगा|
\s5
\v 16 और इस्राईली क़ौम में से बहुतों को ख़ुदा उन के ख़ुदा के पास वापस लाएगा।
\v 17 वह एलियाह की रूह और क़ुव्वत से ख़ुदावन्द के आगे आगे चलेगा। उस की ख़िदमत से वालिदों के दिल अपने बच्चों की तरफ़ माइल हो जाएँगे और नाफ़रमान लोग रास्तबाज़ों की अक़्लमंदी की तरफ़ फिरेंगे | यूँ वह इस क़ौम को ख़ुदा के लिए तय्यार करेगा।”
\s5
\v 18 ज़करियाह ने फ़रिश्ते से पूछा, “मैं किस तरह जानूँ कि यह बात सच् है? मैं ख़ुद बूढ़ा हूँ और मेरी बीवी भी उम्र रसीदा है।”
\v 19 फ़रिश्ते ने जवाब दिया, “मैं जिब्राईल हूँ जो ख़ुदावंद के सामने खड़ा रहता हूँ। मुझे इसी मक़्सद के लिए भेजा गया है कि तुझे यह ख़ुशख़बरी सुनाऊँ।
\v 20 लेकिन तूने मेरी बात का यक़ीन नहीं किया इस लिए तू ख़ामोश रहेगा और उस वक़्त तक बोल नहीं सकेगा जब तक तेरे बेटा पैदा न हो। मेरी यह बातें अपने वक़्त पर ही पूरी होंगी।”
\s5
\v 21 इस दौरान बाहर के लोग ज़करियाह के इन्तिज़ार में थे। वह हैरान होते जा रहे थे कि उसे वापस आने में क्यूँ इतनी देर हो रही है।
\v 22 आख़िरकार वह बाहर आया, लेकिन वह उन से बात न कर सका। तब उन्हों ने जान लिया कि उस ने ख़ुदा के घर में ख़्वाब देखा है। उस ने हाथों से इशारे तो किए, लेकिन ख़ामोश रहा।
\v 23 ज़करियाह अपने वक़्त तक ख़ुदा के घर में अपनी ख़िदमत अन्जाम देता रहा, फिर अपने घर वापस चला गया।
\s5
\v 24 थोड़े दिनों के बाद उस की बीवी इलीशिबा हामिला हो गई और वह पाँच माह तक घर में छुपी रही।
\v 25 उस ने कहा, “ख़ुदावन्द ने मेरे लिए कितना बड़ा काम किया है, क्यूँकि अब उस ने मेरी फ़िक्र की और लोगों के सामने से मेरी रुस्वाई दूर कर दी।”
\s5
\v 26 इलीशिबा छः माह से हामिला थी जब ख़ुदा ने जिब्राईल फ़रिश्ते को एक कुंवारी के पास भेजा जो नासरत में रहती थी। नासरत गलील का एक शहर है और कुंवारी का नाम मरियम था।
\v 27 उस की मंगनी एक मर्द के साथ हो चुकी थी जो दाऊद बादशाह की नसल से था और जिस का नाम यूसुफ़ था।
\v 28 फ़रिश्ते ने उस के पास आ कर कहा, “ऐ ख़ातून जिस पर ख़ुदा का ख़ास फ़ज़्ल हुआ है, सलाम! ख़ुदा तेरे साथ है।”
\v 29 मरियम यह सुन कर घबरा गई और सोचा, “यह किस तरह का सलाम है?”
\s5
\v 30 लेकिन फ़रिश्ते ने अपनी बात जारी रखी और कहा, “ऐ मरियम, मत डर, क्यूँकि तुझ पर ख़ुदा का फ़ज़ल हुआ है।
\v 31 तू हमिला हो कर एक बेटे को पैदा करेगी । तू उस का नाम ईसा (नजात देने वाला) रखना।
\v 32 वह बड़ा होगा और ख़ुदावंद का बेटा कहलाएगा। ख़ुदा हमारा ख़ुदा उसे उस के बाप दाऊद के तख़्त पर बिठाएगा
\v 33 और वह हमेशा तक इस्राईल पर हुकूमत करेगा। उस की सल्तनत कभी ख़त्म न होगी।”
\s5
\v 34 मरियम ने फ़रिश्ते से कहा, “यह क्यूँकर हो सकता है? अभी तो मैं कुंवारी हूँ।”
\v 35 फ़रिश्ते ने जवाब दिया, “रूह-उल-क़ुद्दूस तुझ पर नाज़िल होगा, ख़ुदावंद की क़ुदरत का साया तुझ पर छा जाएगा। इस लिए यह बच्चा क़ुद्दूस होगा और ख़ुदा का बेटा कहलाएगा।
\s5
\v 36 और देख, तेरी रिश्तेदार इलीशिबा के भी बेटा होगा हालाँकि वह उम्ररसीदा है। गरचे उसे बाँझ क़रार दिया गया था, लेकिन वह छः माह से हामिला है।
\v 37 क्यूँकि ख़ुदा के नज़्दीक कोई काम नामुम्किन नहीं है।”
\v 38 मरियम ने जवाब दिया, “मैं ख़ुदा की ख़िदमत के लिए हाज़िर हूँ। मेरे साथ वैसा ही हो जैसा आप ने कहा है।” इस पर फ़रिश्ता चला गया।
\s5
\v 39 उन दिनों में मरियम यहूदिया के पहाड़ी इलाक़े के एक शहर के लिए रवाना हुई। उस ने जल्दी जल्दी सफ़र किया।
\v 40 वहाँ पहुँच कर वह ज़करियाह के घर में दाख़िल हुई और इलीशिबा को सलाम किया।
\v 41 मरियम का यह सलाम सुन कर इलीशिबा का बच्चा उस के पेट में उछल पड़ा और इलीशिबा ख़ुद रूह-उल-क़ुद्दूस से भर गई।
\s5
\v 42 उस ने बुलन्द आवाज़ से कहा, “तू तमाम औरतों में मुबारक है और मुबारक है तेरा बच्चा!
\v 43 मैं कौन हूँ कि मेरे ख़ुदावन्द की माँ मेरे पास आई!
\v 44 जैसे ही मैं ने तेरा सलाम सुना बच्चा मेरे पेट में ख़ुशी से उछल पड़ा।
\v 45 तू कितनी मुबारक है, क्यूँकि तू ईमान लाई कि जो कुछ ख़ुदा ने फ़रमाया है वह पूरा होगा ।”
\s5
\v 46 इस पर मरियम ने कहा, “मेरी जान ख़ुदा की बड़ाई करती है
\v 47 और मेरी रूह मेरे मुन्जी ख़ुदावंद से बहुत ख़ुश है।
\s5
\v 48 क्यूँकि उस ने अपनी ख़ादिमा की पस्ती पर नज़र की है। हाँ, अब से तमाम नसलें मुझे मुबारक कहेंगी,
\v 49 क्यूँकि उस क़ादिर ने मेरे लिए बड़े-बड़े काम किए हैं, और उसका नाम पाक है |
\s5
\v 50 और ख़ौफ़ रहम उन पर जो उससे डरते हैं, पुश्त-दर-पुश्त रहता है |
\v 51 उसने अपने बाज़ू से ज़ोर दिखाया, और जो अपने आपको बड़ा समझते थे उनको तितर बितर किया |
\s5
\v 52 उसने इख़्तियार वालों को तख़्त से गिरा दिया, और पस्तहालों को बुलंद किया |
\v 53 उसने भूखों को अच्छी चीज़ों से सेर कर दिया, और दौलतमंदों को ख़ाली हाथ लौटा दिया |
\s5
\v 54 उसने अपने ख़ादिम इस्राईल को संभाल लिया, ताकि अपनी उस रहमत को याद फ़रमाए |
\v 55 जो अब्राहम और उसकी नस्ल पर हमेशा तक रहेगी, जैसा उसने हमारे बाप-दादा से कहा था |”
\s5
\v 56 और मरियम तीन महीने के क़रीब उसके साथ रहकर अपने घर को लौट गई |
\v 57 और इलीशिबा' के वज़'ए हम्ल का वक़्त आ पहुँचा और उसके बेटा हुआ |
\v 58 उसके पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने ये सुनकर कि ख़ुदावन्द ने उस पर बड़ी रहमत की, उसके साथ ख़ुशी मनाई |
\s5
\v 59 और आठवें दिन ऐसा हुआ कि वो लड़के का ख़तना करने आए और उसका नाम उसके बाप के नाम पर ज़करियाह रखने लगे |
\v 60 मगर उसकी माँ ने कहा, "नहीं बल्कि उसका नाम युहन्ना रखा जाए |"
\v 61 उन्होंने कहा, "तेरे ख़ानदान में किसी का ये नाम नहीं |"
\s5
\v 62 और उन्होंने उसके बाप को इशारा किया कि तू उसका नाम क्या रखना चाहता है?
\v 63 उसने तख़्ती माँग कर ये लिखा, "उसका नाम युहन्ना है," और सब ने ता'ज्जुब किया |
\s5
\v 64 उसी दम उसका मुँह और ज़बान खुल गई और वो बोलने और ख़ुदा की हम्द करने लगा |
\v 65 और उनके आसपास के सब रहने वालों पर दहशत छा गई और यहूदिया के तमाम पहाड़ी मुल्क में इन सब बातों की चर्चा फैल गई |
\v 66 और उनके सब सुनने वालों ने उनको सोच कर दिलों में कहा, "तो ये लड़का कैसा होने वाला है?" क्यूँकि ख़ुदावन्द का हाथ उस पर था |
\s5
\v 67 और उस का बाप ज़किरयाह रुह-उल-क़ुद्दूस से भर गया और नबुव्वत की राह से कहने लगा कि :
\v 68 ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की हम्द हो क्यूँकि उसने अपनी उम्मत पर तवज्जो करके उसे छुटकारा दिया |
\s5
\v 69 और अपने ख़ादिम दाऊद के घराने में हमारे लिए नजात का सींग निकाला,
\v 70 (जैसा उसने अपने पाक नबियों की ज़बानी कहा था जो कि दुनिया के शुरू' से होते आए है )
\v 71 या'नी हम को हमारे दुश्मनों से और सब बुग़्ज़ रखने वालों के हाथ से नजात बख्शी |
\s5
\v 72 ताकि हमारे बाप-दादा पर रहम करे और अपने पाक 'अहद को याद फ़रमाए |
\v 73 या'नी उस कसम को जो उसने हमारे बाप अब्राहम से खाई थी,
\v 74 कि वो हमें ये बख़्शिश देगा कि अपने दुश्मनों के हाथ से छूटकर,
\v 75 उसके सामने पाकीज़गी और रास्तबाज़ी से 'उम्र भर बेख़ौफ़ उसकी 'इबादत करें
\s5
\v 76 और ऐ लड़के तू ख़ुदा ता'ला का नबी कहलाएगा क्यूँकि तू ख़ुदावन्द की राहें तैयार करने को उसके आगे आगे चलेगा,
\v 77 ताकि उसकी उम्मत को नजात का 'इल्म बख़्शे जो उनको गुनाहों की मु'आफ़ी से हासिल हो |
\s5
\v 78 ये हमारे ख़ुदा की 'ऐन रहमत से होगा; जिसकी वजह से 'आलम-ए-बाला का सूरज हम पर निकलेगा,
\v 79 ताकि उनको जो अन्धेरे और मौत के साये में बैठे हैं रोशनी बख़्शे, और हमारे क़दमों को सलामती की राह पर डाले |"
\s5
\v 80 और वो लड़का बढ़ता और रूह में क़ुव्वत पाता गया, और इस्राईल पर ज़ाहिर होने के दिन तक जंगलों में रहा |
\s5
\c 2
\v 1 उन दिनों में ऐसा हुआ कि क़ैसर औगुस्तुस की तरफ़ से ये हुक्म जारी हुआ कि सारी दुनियाँ के लोगों के नाम लिखे जाएँ |
\v 2 ये पहली इस्म नवीसी सूरिया के हाकिम कोरिन्युस के 'अहद में हुई |
\v 3 और सब लोग नाम लिखवाने के लिए अपने-अपने शहर को गए |
\s5
\v 4 पस यूसुफ भी गलील के शहर नासरत से दाऊद के शहर बैतलहम को गया जो यहूदिया में है, इसलिए कि वो दाऊद के घराने और औलाद से था |
\v 5 ताकि अपनी होने वाली बीवी मरियम के साथ जो हामिला थी, नाम लिखवाए |
\s5
\v 6 जब वो वहाँ थे तो ऐसा हुआ कि उसके वज़ा-ए-हम्ल का वक़्त आ पहुँचा,
\v 7 और उसका पहलौठा बेटा पैदा हुआ और उसने उसको कपड़े में लपेट कर चरनी में रख्खा क्यूँकि उनके लिए सराय में जगह न थी |
\s5
\v 8 उसी 'इलाक़े में चरवाहे थे, जो रात को मैदान में रहकर अपने गल्ले की निगहबानी कर रहे थे |
\v 9 और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उनके पास आ खड़ा हुआ, और ख़ुदावन्द का जलाल उनके चारोंतरफ़ चमका, और वो बहुत डर गए |
\s5
\v 10 मगर फ़रिश्ते ने उनसे कहा, "डरो मत ! क्यूँकि देखो, मैं तुम्हें बड़ी ख़ुशी की बशारत देता हूँ जो सारी उम्मत के वास्ते होगी,
\v 11 कि आज दाऊद के शहर में तुम्हारे लिए एक मुन्जी पैदा हुआ है, या'नी मसीह ख़ुदावन्द |
\v 12 इसका तुम्हारे लिए ये निशान है कि तुम एक बच्चे को कपड़े में लिपटा और चरनी में पड़ा हुआ पाओगे |'
\s5
\v 13 और यकायक उस फ़रिश्ते के साथ आसमानी लश्कर की एक गिरोह ख़ुदा की हम्द करती और ये कहती ज़ाहिर हुई कि :
\v 14 " 'आलम-ए-बाला पर ख़ुदा की तम्जीद हो और ज़मीन पर आदमियों में जिनसे वो राज़ी है सुलह |"
\s5
\v 15 जब फ़रिश्ते उनके पास से आसमान पर चले गए तो ऐसा हुआ कि चरवाहों ने आपस में कहा, "आओ, बैतलहम तक चलें और ये बात जो हुई है और जिसकी ख़ुदावन्द ने हम को ख़बर दी है देखें |"
\v 16 पस उन्होंने जल्दी से जाकर मरियम और यूसुफ़ को देखा और इस बच्चे को चरनी में पड़ा पाया |
\s5
\v 17 उन्हें देखकर वो बात जो उस लड़के के हक़ में उनसे कही गई थी मशहूर की,
\v 18 और सब सुनने वालों ने इन बातों पर जो चरवाहों ने उनसे कहीं ता'ज्जुब किया |
\v 19 मगर मरियम इन सब बातों को अपने दिल में रखकर ग़ौर करती रही |
\v 20 और चरवाहे, जैसा उनसे कहा गया था वैसा ही सब कुछ सुन कर और देखकर ख़ुदा की तम्जीद और हम्द करते हुए लौट गए |
\s5
\v 21 जब आठ दिन पुरे हुए और उसके ख़तने का वक़्त आया, तो उसका नाम ईसा' रख्खा गया | जो फ़रिश्ते ने उसके रहम में पड़ने से पहले रख्खा था |
\s5
\v 22 फिर जब मूसा की शरि'अत के मुवाफ़िक़ उनके पाक होने के दिन पुरे हो गए, तो वो उसको यरूशलीम में लाए ताकि ख़ुदावन्द के आगे हाज़िर करें
\v 23 (जैसा कि ख़ुदावन्द की शरी'अत में लिखा है कि हर एक पहलौठा ख़ुदावन्द के लिए मुक़द्दस ठहरेगा)
\v 24 और ख़ुदावन्द की शरी'अत के इस क़ौल के मुवाफ़िक़ क़ुर्बानी करें, कि फ़ाख़्ता का एक जोड़ा या कबूतर के दो बच्चे लाओ |
\s5
\v 25 और देखो, यरूशलीम में शमा'ऊन नाम एक आदमी था, और वो आदमी रास्तबाज़ और ख़ुदातरस और इस्राईल की तसल्ली का मुन्तिज़र था और रूह-उल-क़ुद्दूस उस पर था |
\v 26 और उसको रूह-उल-क़ुद्दूस से आगाही हुई थी कि जब तक तू ख़ुदावन्द के मसीह को देख न ले, मौत को न देखेगा |
\s5
\v 27 वो रूह की हिदायत से हैकल में आया और जिस वक़्त माँ-बाप उस लड़के ईसा ' को अन्दर लाए ताकि उसके शरी'अत के दस्तूर पर 'अमल करें |
\v 28 तो उसने उसे अपनी गोद में लिया और ख़ुदा की हम्द करके कहा :
\v 29 "ऐ मालिक अब तू अपने ख़ादिम को अपने क़ौल के मुवाफ़िक़ सलामती से रुख़्सत करता है,
\s5
\v 30 क्यूँकि मेरी आँखों ने तेरी नजात देख ली है,
\v 31 जो तूने सब उम्मतों के रु-ब-रु तैयार की है,
\v 32 ताकि ग़ैर कौमों को रौशनी देने वाला नूर और तेरी उम्मत इस्राईल का जलाल बने |"
\s5
\v 33 और उसका बाप और उसकी माँ इन बातों पर जो उसके हक़ में कही जाती थीं, ता'ज्जुब करते थे |
\v 34 और शमा'ऊन ने उनके लिए दु'आ-ए-ख़ैर की और उसकी माँ मरियम से कहा, "देख, ये इस्राईल में बहुतों के गिरने और उठने के लिए मुक़र्रर हुआ है, जिसकी मुख़ालिफ़त की जाएगी |
\v 35 बल्कि तेरी जान भी तलवार से छिद जाएगी, ताकि बहुत लोगों के दिली ख़याल खुल जाएँ |"
\s5
\v 36 और आशर के क़बीले में से हन्ना नाम फ़नूएल की बेटी एक नबीया थी - वो बहुत 'बूढी थी - और उसने अपने कूँवारेपन के बा'द सात बरस एक शौहर के साथ गुज़ारे थे |
\v 37 वो चौरासी बरस से बेवा थी, और हैकल से जुदा न होती थी बल्कि रात दिन रोज़ों और दु'आओं के साथ 'इबादत किया करती थी |
\v 38 और वो उसी घड़ी वहाँ आकर ख़ुदा का शुक्र करने लगी और उन सब से जो यरूशलीम के छुटकारे के मुन्तज़िर थे उसके बारे मे बातें करने लगी |
\s5
\v 39 और जब वो ख़ुदावन्द की शरी'अत के मुवाफ़िक़ सब कुछ कर चुके तो गलील में अपने शहर नासरत को लौट गए |
\v 40 और वो लड़का बढ़ता और ताक़त पाता गया और हिकमत से मा'मूर होता गया और ख़ुदा का फ़ज़ल उस पर था |
\s5
\v 41 उसके माँ-बाप हर बरस 'ईद-ए-फ़सह पर यरूशलीम को जाया करते थे |
\v 42 और जब वो बारह बरस का हुआ तो वो 'ईद के दस्तूर के मुवाफ़िक़ यरूशलीम को गए |
\v 43 जब वो उन दिनों को पूरा करके लौटे तो वो लड़का ईसा' यरूशलीम में रह गया - और उसके माँ-बाप को ख़बर न हुई |
\v 44 मगर ये समझ कर कि वो क़ाफ़िले में है, एक मंज़िल निकल गए - और उसके रिश्तेदारों और उसके जान पहचानों मे ढूँढने लगे |
\s5
\v 45 जब न मिला तो उसे ढूँदते हुए यरूशलीम तक वापस गए |
\v 46 और तीन रोज़ के बा'द ऐसा हुआ कि उन्होंने उसे हैकल में उस्तादों के बीच में बैठा उनकी सुनते और उनसे सवाल करते हुए पाया |
\v 47 जितने उसकी सुन रहे थे उसकी समझ और उसके जवाबों से दंग थे |
\s5
\v 48 और वो उसे देखकर हैरान हुए | उसकी माँ ने उससे कहा, "बेटा, तू ने क्यूँ हम से ऐसा किया? देख तेरा बाप और मैं घबराते हुए तुझे ढूँढ़ते थे ?"
\v 49 उसने उनसे कहा, "तुम मुझे क्यूँ ढूँढ़ते थे? क्या तुम को मा'लूम न था कि मुझे अपने बाप के यहाँ होना ज़रूर है?"
\v 50 मगर जो बात उसने उनसे कही उसे वो न समझे |
\s5
\v 51 और वो उनके साथ रवाना होकर नासरत में आया और उनके साथ' रहा और उसकी माँ ने ये सब बातें अपने दिल में रख्खीं |
\v 52 और ईसा' हिकमत और क़द-ओ-क़ामत में और ख़ुदा की और इंसान की मक़बूलियत में तरक़्क़ी करता गया |
\s5
\c 3
\v 1 तिब्रियुस क़ैसर की हुकूमत के पंद्रहवें बरस पुनित्युस पिलातुस यहूदिया का हाकिम था, हेरोदेस गलील का और उसका भाई फिलिप्पुस इतुरिय्या और त्र्खोनीतिस का और लिसानियास अबलेने का हाकिम था |
\v 2 और हन्ना और काइफ़ा सरदार काहिन थे, उस वक़्त ख़ुदा का कलाम वीराने में ज़क्ररियाह के बेटे युहन्ना पर नाज़िल हुआ |
\s5
\v 3 और वो यरदन के आस पास में जाकर गुनाहों की मु'आफ़ी के लिए तौबा के बपतिस्मे का एलान करने लगा |
\s5
\v 4 जैसा यसा'याह नबी के कलाम की किताब में लिखा है : "वीराने में पुकारने वाले की आवाज़ आती है, 'ख़ुदावन्द की राह तैयार करो, उसके रास्ते सीधे बनाओ |
\s5
\v 5 हर एक घाटी भर दी जाएगी, और हर एक पहाड़ और टीला नीचा किया जाएगा; और जो टेढ़ा है सीधा, और जो ऊँचा - नीचा है बराबर रास्ता बनेगा |
\v 6 और हर बशर ख़ुदा की नजात देखेगा'|"
\s5
\v 7 पस जो लोग उससे बपतिस्मा लेने को निकलकर आते थे वो उनसे कहता था, "ऐ साँप के बच्चो ! तुम्हें किसने जताया कि आने वाले ग़ज़ब से भागो?"
\s5
\v 8 पस तौबा के मुवाफ़िक़ फल लाओ- और अपने दिलों में ये कहना शुरू' न करो कि अब्राहाम हमारा बाप है क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ कि ख़ुदा इन पत्थरों से अब्राहाम के लिए औलाद पैदा कर सकता है |
\s5
\v 9 और अब तो दरख़्तों की जड़ पर कुल्हाड़ा रख्खा है पस जो दरख़्त अच्छा फल नहीं लाता वो काटा और आग में डाला जाता है |"
\s5
\v 10 लोगों ने उस से पूछा, "हम क्या करें?"
\v 11 उसने जवाब में उनसे कहा, "जिसके पास दो कुर्ते हों वो उसको जिसके पास न हो बाँट दे, और जिसके पास खाना हो वो भी ऐसा ही करे |"
\s5
\v 12 और महसूल लेने वाले भी बपतिस्मा लेने को आए और उससे पुछा, "ऐ उस्ताद, हम क्या करें?"
\v 13 उसने उनसे कहा, "जो तुम्हारे लिए मुक़र्रर है उससे ज़्यादा न लेना |"
\s5
\v 14 और सिपाहियों ने भी उससे पूछा, "हम क्या करें?" उसने उनसे कहा, "न किसी पर तुम ज़ुल्म करो और न किसी से नाहक़ कुछ लो, और अपनी तनख़्वाह पर किफ़ायत करो |"
\s5
\v 15 जब लोग इन्तिज़ार मे थे और सब अपने अपने दिल में युहन्ना के बारे में सोच रहे थे कि आया वो मसीह है या नहीं |
\v 16 तो युहन्ना ने उन से जवाब में कहा, "मैं तो तुम्हें पानी से बपतिस्मा देता हूँ, मगर जो मुझ से ताक़तवर है वो आनेवाला है, मैं उसकी जूती का फ़ीता खोलने के लायक़ नहीं; वो तुम्हें रूह-उल-क़ुद्दूस और आग से बपतिस्मा देगा | "
\s5
\v 17 उसका सूप उसके हाथ में है; ताकि वो अपने खलिहान को ख़ूब साफ़ करे और गेहूँ को अपने खत्ते में जमा' करे, मगर भूसी को उस आग में जलाएगा जो बुझने की नहीं |"
\s5
\v 18 पस वो और बहुत सी नसीहत करके लोगों को ख़ुशख़बरी सूनाता रहा |
\v 19 लेकिन चौथाई मुल्क के हाकिम हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप्पुस की बीवी हेरोदियास की वजह से और उन सब बुराईयों के बा'इस जो हेरोदेस ने की थी, युहन्ना से मलामत उठाकर,
\v 20 इन सब से बढ़कर ये भी किया कि उसको क़ैद में डाला |
\s5
\v 21 जब सब लोगों ने बपतिस्मा लिया और ईसा' भी बपतिस्मा पाकर दु'आ कर रहा था तो ऐसा हुआ कि आसमान खुल गया,
\v 22 और रूह-उल-क़ुद्दूस जिस्मानी सूरत में कबूतर की तरह उस पर नाज़िल हुआ और आसमान से ये आवाज़ आई : "तू मेरा प्यारा बेटा है, तुझ से मैं ख़ुश हूँ |"
\s5
\v 23 जब ईसा' ख़ुद ता'लीम देने लगा, क़रीबन तीस बरस का था और (जैसा कि समझा जाता था) यूसुफ़ का बेटा था; और वो 'एली का,
\v 24 और वो मत्तात का, और वो लावी का, और वो मलकी का, और वो यन्ना का, और वो यूसुफ़ का,
\s5
\v 25 और वो मत्तितियाह का, और वो 'आमूस का और नाहूम का, और वो असलियाह का, और वो नोगा का,
\v 26 और वो म'अत का, और मतितियाह का, और वो शिम'ई का, और वो योसेख़ का, और वो यहुदाह का,
\s5
\v 27 और वो युह्न्ना का, और वो रोसा का, और वो ज़रुब्बाबूल का, और वो सियालतीएल का और वो नेरी का,
\v 28 और वो मलकि का, और वो अद्दी का, और वो क़ोसाम का, और वो इल्मोदाम का, और वो 'एर का,
\v 29 और वो यशु'अ का, और वो इली'अज़र का, और वो योरीम का, और वो मतात का, और वो लावी का,
\s5
\v 30 और वो शमा'ऊन का, और वो यहूदाह का, और वो यूसुफ़ का, और वो योनाम का और वो इलियाक़ीम का,
\v 31 और वो मलेआह का, और वो मिन्नाह का, और वो मत्तितियाह का, और वो नातन का, और वो दाऊद का,
\v 32 और वो यस्सी का, और वो ओबेद का, और वो बोअज़ का, और वो सल्मोन का, और वो नह्सोन का,
\s5
\v 33 और वो 'अम्मीनदाब का, और वो अदमीन का, और वो अरनी का, और वो हस्रोन का, और वो फ़ारस का, और वो यहूदाह का,
\v 34 और वो याक़ूब का, और वो इस्हाक़ का, और वो इब्राहीम का, और वो तारह का, और वो नहूर का,
\v 35 और वो सरूज का, और वो र'ऊ का, और वो फ़लज का, और वो इबर का, और वो सिलह का,
\s5
\v 36 और वो क़ीनान का और वो अर्फ़क्सद का, और वो सिम का, और वो नूह का, और वो लमक का,
\v 37 और वो मतूसिलह का और वो हनूक का, और वो यारिद का, और वो महलल-एल का, और वो क़ीनान का,
\v 38 और वो अनूस का, और वो सेत का, और आदम ख़ुदा से था |
\s5
\c 4
\v 1 फिर ईसा' रूह-उल-कुद्दूस से भरा हुआ यरदन से लौटा, और चालीस दिन तक रूह की हिदायत से वीराने में फिरता रहा;
\v 2 और शैतान उसे आज़माता रहा | उन दिनों में उसने कुछ न खाया, जब वो दिन पुरे हो गए तो उसे भूख लगी |
\s5
\v 3 और शैतान ने उससे कहा, "अगर तू ख़ुदा का बेटा है तो इस पत्थर से कह कि रोटी बन जाए |"
\v 4 ईसा' ने उसको जवाब दिया, "कलाम में लिखा है कि, आदमी सिर्फ़ रोटी ही से जीता न रहेगा |"
\s5
\v 5 और शैतान ने उसे ऊँचे पर ले जाकर दुनिया की सब सल्तनतें पल भर में दिखाईं |
\v 6 और उससे कहा, "ये सारा इख़्तियार और उनकी शान-ओ-शौकत मैं तुझे दे दूँगा, क्यूँकि ये मेरे सुपुर्द है और जिसको चाहता हूँ देता हूँ |"
\v 7 पस अगर तू मेरे आगे सज्दा करे, तो ये सब तेरा होगा |"
\s5
\v 8 ईसा' ने जवाब में उससे कहा, "लिखा है कि, तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को सिज्दा कर और सिर्फ़ उसकी 'इबादत कर |"
\s5
\v 9 और वो उसे यरूशलीम में ले गया और हैकल के कंगूरे पर खड़ा करके उससे कहा, "अगर तू ख़ुदा का बेटा है तो अपने आपको यहाँ से नीचे गिरा दे |
\v 10 क्यूँकि लिखा है कि, वो तेरे बारे मे अपने फ़रिश्तों को हुक्म देगा कि तेरी हिफाज़त करें |
\v 11 और ये भी कि वो तुझे हाथों पर उठा लेंगे, काश की तेरे पाँव को पत्थर से ठेस लगे |'
\s5
\v 12 ईसा' ने जवाब में उससे कहा, "फ़रमाया गया है कि, तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आज़माइश न कर |"
\v 13 जब इब्लीस तमाम आज़माइशें कर चूका तो कुछ अर्से के लिए उससे जुदा हुआ|
\s5
\v 14 फिर ईसा पाक रूह की क़ुव्वत से भरा हुआ गलील को लौटा और आसपास में उसकी शोहरत फ़ैल गई |
\v 15 और वो उनके 'इबादतख़ानों में ता'लीम देता रहा और सब उसकी बड़ाई करते रहे |
\s5
\v 16 और वो नासरत में आया जहाँ उसने परवरिश पाई थी और अपने दस्तूर के मुवाफ़िक़ सबत के दिन 'इबादतख़ाने में गया और पढ़ने को खड़ा हुआ |
\v 17 और यसाया नबी की किताब उसको दी गई, और किताब खोलकर उसने वो वर्क़ खोला जहाँ ये लिखा था :
\s5
\v 18 "ख़ुदावन्द का रूह मुझ पर है, इसलिए कि उसने मुझे ग़रीबों को ख़ुशख़बरी देने के लिए मसह किया; उसने मुझे भेजा है क़ैदियों को रिहाई और अन्धों को बीनाई पाने की ख़बर सूनाऊँ, कुचले हुओं को आज़ाद करूँ |
\v 19 और ख़ुदावन्द के साल-ए-मक़बूल का ऐलान करूँ |
\s5
\v 20 फिर वो किताब बन्द करके और ख़ादिम को वापस देकर बैठ गया; जितने 'इबादतख़ाने में थे सबकी आँखें उस पर लगी थीं |
\v 21 वो उनसे कहने लगा, "आज ये लिखा हुआ तुम्हारे सामने पूरा हुआ |"
\v 22 और सबने उस पर गवाही दी और उन पुर फ़ज़ल बातों पर जो उसके मुँह से निकली थी, ता'ज्जुब करके कहने लगे, "क्या ये यूसुफ़ का बेटा नहीं?"
\s5
\v 23 उसने उनसे कहा "तुम अलबता ये मसल मुझ पर कहोगे कि, 'ऐ हकीम, अपने आप को तो अच्छा कर ! जो कुछ हम ने सुना है कि कफ़रनहुम में किया गया, यहाँ अपने वतन में भी कर'|"
\v 24 और उसने कहा, "मैं तुम से सच कहता हूँ, कि कोई नबी अपने वतन में मक़बूल नहीं होत्ता |"
\s5
\v 25 और मैं तुम से कहता हूँ, कि एलियाह के दिनों में जब साढ़े तीन बरस आसमान बन्द रहा, यहाँ तक कि सारे मुल्क में सख़्त काल पड़ा, बहुत सी बेवायें इस्राईल में थीं |
\v 26 लेकिन एलियाह उनमें से किसी के पास न भेजा गया, मगर मुल्क-ए-सैदा के शहर सारपत में एक बेवा के पास
\v 27 और इलिशा नबी के वक़्त में इस्राईल के बीच बहुत से कोढ़ी थे, लेकिन उनमे से कोई पाक साफ़ न किया गया मगर ना'मान सूरयानी |"
\s5
\v 28 जितने 'इबादतख़ाने में थे, इन बातों को सुनते ही ग़ुस्से से भर गए,
\v 29 और उठकर उस को बाहर निकाले और उस पहाड़ की चोटी पर ले गए जिस पर उनका शहर आबाद था, ताकि उसको सिर के बल गिरा दें |
\v 30 मगर वो उनके बीच में से निकलकर चला गया |
\s5
\v 31 फिर वो गलील के शहर कफ़रनहूम को गया और सबत के दिन उन्हें ता'लीम दे रहा था |
\v 32 और लोग उसकी ता'लीम से हैरान थे क्यूँकि उसका कलाम इख़्तियार के साथ था |
\s5
\v 33 इबादतख़ाने में एक आदमी था, जिसमें बदरूह थी | वो बड़ी आवाज़ से चिल्ला उठा कि,
\v 34 "ऐ ईसा' नासरी हमें तुझ से क्या काम? क्या तू हमें हलाक करने आया है? मैं तुझे जानता हूँ कि तू कौन है -ख़ुदा का क़ुद्दूस है |"
\s5
\v 35 ईसा' ने उसे झिड़क कर कहा, "चुप रह और उसमें से निकल जा |" इस पर बदरुह उसे बीच में पटक कर बग़ैर नुक़सान पहूँचाए उसमें से निकल गई |
\v 36 और सब हैरान होकर आपस में कहने लगे, "ये कैसा कलाम है?" क्यूँकि वो इख़्तियार और क़ुदरत से नापाक रूहों को हुक्म देता है और वो निकल जाती हैं |"
\v 37 और आस पास में हर जगह उसकी धूम मच गई |
\s5
\v 38 फिर वो 'इबादतख़ाने से उठकर शमा'ऊन के घर में दाख़िल हुआ और शमा'ऊन की सास जो बुख़ार मे पड़ी हुई थी और उन्होंने उस के लिए उससे 'अर्ज़ की |
\v 39 वो खड़ा होकर उसकी तरफ़ झुका और बुख़ार को झिड़का तो वो उतर गया, वो उसी दम उठकर उनकी ख़िदमत करने लगी |
\s5
\v 40 और सूरज के डूबते वक़्त वो सब लोग जिनके यहाँ तरह-तरह की बीमारियों के मरीज़ थे, उन्हें उसके पास लाए और उसने उनमें से हर एक पर हाथ रख कर उन्हें अच्छा किया |
\v 41 और बदरूहें भी चिल्लाकर और ये कहकर कि, "तू ख़ुदा का बेटा है" बहुतों में से निकल गई, और वो उन्हें झिड़कता और बोलने न देता था, क्यूँकि वो जानती थीं के ये मसीह है |
\s5
\v 42 जब दिन हुआ तो वो निकल कर एक वीरान जगह में गया, और भीड़ की भीड़ उसको ढूँढती हुई उसके पास आई, और उसको रोकने लगी कि हमारे पास से न जा |
\v 43 उसने उनसे कहा, "मुझे और शहरों में भी ख़ुदा की बादशाही की ख़ुशख़बरी सुनाना ज़रूर है, क्यूँकि मैं इसी लिए भेजा गया हूँ |"
\v 44 और वो गलील के 'इबाद्तखानों में एलान करता रहा |
\s5
\c 5
\v 1 जब भीड़ उस पर गिरी पड़ती थी और ख़ुदा का कलाम सुनती थी, और वो गनेसरत की झील के किनारे खड़ा था तो ऐसा हुआ कि
\v 2 उसने झील के किनारे दो नाव लगी देखीं, लेकिन मछली पकड़ने वाले उन पर से उतर कर जाल धो रहे थे
\v 3 और उसने उस नावों में से एक पर चढ़कर जो शमा'ऊन की थी, उससे दरख़्वास्त की कि किनारे से ज़रा हटा ले चल और वो बैठकर लोगों को नाव पर से ता'लीम देने लगा |
\s5
\v 4 जब कलाम कर चुका तो शमा'ऊन से कहा, " गहरे में ले चल, और तुम शिकार के लिए अपने जाल डालो |"
\v 5 शमा'ऊन ने जवाब में कहा, "ऐ ख़ुदावन्द ! हम ने रात भर मेहनत की और कुछ हाथ न आया, मगर तेरे कहने से जाल डालता हूँ |"
\v 6 ये किया और वो मछलियों का बड़ा घेर लाए, और उनके जाल फ़टने लगे |
\v 7 और उन्होंने अपने साथियों को जो दूसरी नाव पर थे इशारा किया कि आओ हमारी मदद करो | पस उन्होंने आकर दोनों नावे यहाँ तक भर दीं कि डूबने लगीं |
\s5
\v 8 शमा'ऊन पतरस ये देखकर ईसा' के पांव में गिरा और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द ! मेरे पास से चला जा, क्यूँकि मैं गुनहगार आदमी हूँ |"
\v 9 क्यूँकि मछलियों के इस शिकार से जो उन्होंने किया, वो और उसके सब साथी बहुत हैरान हुए |
\v 10 और वैसे ही ज़ब्दी के बेटे या'क़ूब और युहन्ना भी जो शमा'ऊन के साथी थे, हैरान हुए | ईसा' ने शमा'ऊन से कहा, " ख़ौफ़ न कर, अब से तू आदमियों का शिकार करेगा |"
\v 11 वो नावों को किनारे पर ले आए और सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए |
\s5
\v 12 जब वो एक शहर में था, तो देखो, कोढ़ से भरा हुआ एक आदमी ईसा' को देखकर मुँह के बल गिरा और उसकी मिन्नत करके कहने लगा, "ऐ ख़ुदावन्द, अगर तू चाहे तो मुझे पाक साफ़ कर सकता है |"
\v 13 उसने हाथ बढ़ा कर उसे छुआ और कहा, "मैं चाहता हूँ, तू पाक साफ़ हो जा |" और फ़ौरन उसका कोढ़ जाता रहा |
\s5
\v 14 और उसने उसे ताकीद की, "किसी से न कहना बल्कि जाकर अपने आपको काहिन को दिखा | और जैसा मूसा ने मुक़र्रर किया है अपने पाक साफ़ हो जाने के बारे मे गुज़रान ताकि उनके लिए गवाही हो |"
\s5
\v 15 लेकिन उसकी चर्चा ज़्यादा फ़ैली और बहुत से लोग जमा' हुए कि उसकी सुनें और अपनी बीमारियों से शिफ़ा पाएँ
\v 16 मगर वो जंगलों में अलग जाकर दु'आ किया करता था |
\s5
\v 17 और एक दिन ऐसा हुआ कि वो ता'लीम दे रहा था और फ़रीसी और शरा' के मु'अल्लिम वहाँ बैठे हुए थे जो गलील के हर गावँ और यहूदिया और यरूशलीम से आए थे | और ख़ुदावन्द की क़ुदरत शिफ़ा बख़्शने को उसके साथ थी |
\s5
\v 18 और देखो, कोई मर्द एक आदमी को जो फ़ालिज का मारा था चारपाई पर लाए और कोशिश की कि उसे अन्दर लाकर उसके आगे रख्खें |
\v 19 और जब भीड़ की वजह से उसको अन्दर ले जाने की राह न पाई तो छत पर चढ़ कर खपरैल में से उसको खटोले समेत बीच में ईसा' के सामने उतार दिया |
\s5
\v 20 उसने उनका ईमान देखकर कहा, "ऐ आदमी ! तेरे गुनाह मु'आफ़ हुए !"
\v 21 इस पर फ़क़ीह और फ़रीसी सोचने लगे, "ये कौन है जो कुफ्र बकता है? ख़ुदा के सिवा और कौन गुनाह मु'आफ़ कर सकता है ?"
\s5
\v 22 ईसा' ने उनके ख़यालों को मा'लूम करके जवाब में उनसे कहा, "तुम अपने दिलों में क्या सोचते हो?"
\v 23 आसान क्या है? ये कहना कि 'तेरे गुनाह मु'आफ़ हुए' या ये कहना कि 'उठ और चल फिर'?
\v 24 लेकिन इसलिए कि तुम जानो कि इब्न-ए-आदम को ज़मीन पर गुनाह मु'आफ़ करने का इख़्तियार है; (उसने मफ़्लूज से कहा) मैं तुझ से कहता हूँ, उठ और अपनी चारपाई उठाकर अपने घर जा |"
\s5
\v 25 वो उसी दम उनके सामने उठा और जिस पर पड़ा था उसे उठाकर ख़ुदा की तम्जीद करता हुआ अपने घर चला गया |
\v 26 वो सब के सब बहुत हैरान हुए और ख़ुदा की तम्जीद करने लगे, और बहुत डर गए और कहने लगे, "आज हम ने 'अजीब बातें देखीं !"
\s5
\v 27 इन बातों के बा'द वो बाहर गया और लावी नाम के एक महसूल लेनेवाले को महसूल की चौकी पर बैठे देखा और उससे कहा, "मेरे पीछे हो ले |"
\v 28 वो सब कुछ छोड़कर उठा, और उसके पीछे हो लिया |
\s5
\v 29 फिर लावी ने अपने घर में उसकी बड़ी ज़ियाफ़त की; और महसूल लेनेवालों और औरों की जो उनके साथ खाना खाने बैठे थे, बड़ी भीड़' थी |
\v 30 और फ़रीसी और उनके आलिम उसके शागिर्दों से ये कहकर बुदबुदाने लगे, "तुम क्यूँ महसूल लेनेवालों और गुनाहगारों के साथ खाते-पीते हो?"
\v 31 ईसा' ने जवाब में उनसे कहा, "तन्दुरुस्तों को हकीम की ज़रूरत नहीं है बल्कि बीमारों को |"
\v 32 मैं रास्तबाज़ों को नहीं बल्कि गुनाहगारों को तौबा के लिए बुलाने आया हूँ |
\s5
\v 33 और उन्होंने उससे कहा, "युहन्ना के शागिर्द अक्सर रोज़ा रखते और दु'आएँ किया करते हैं, और इसी तरह फ़रीसियों के भी; मगर तेरे शागिर्द खाते पीते है |"
\v 34 ईसा' ने उनसे कहा, "क्या तुम बरातियों से, जब तक दूल्हा उनके साथ है, रोज़ा रखवा सकते हो?
\v 35 मगर वो दिन आएँगे; और जब दूल्हा उनसे जुदा किया जाएगा तब उन दिनों में वो रोज़ा रख्खेंगे |"
\s5
\v 36 और उसने उनसे एक मिसाल भी कही: "कोई आदमी नई पोशाक में से फाड़कर पुरानी में पैवन्द नहीं लगाता,वरना नई भी फटेगी और उसका पैवन्द पुरानी में मेल भी न खाएगा |"
\s5
\v 37 और कोई शख़्स नई मय पूरानी मशकों में नहीं भरता, नहीं तो नई मय मशकों को फाड़ कर ख़ुद भी बह जाएगी और मशकें भी बर्बाद हो जाएँगी |
\v 38 बल्कि नई मय नयी मशकों में भरना चाहिए |
\v 39 और कोई आदमी पुरानी मय पीकर नई की ख़्वाहिश नहीं करता, क्यूँकि कहता है कि पुरानी ही अच्छी है |"
\s5
\c 6
\v 1 फिर सबत के दिन यूँ हुआ कि वो खेतों में से होकर जा रहा था, और उसके शागिर्द बालें तोड़-तोड़ कर और हाथों से मल-मलकर खाते जाते थे |
\v 2 और फ़रीसियों में से कुछ लोग कहने लगे, "तुम वो काम क्यूँ करते हो जो सबत के दिन करना ठीक नहीं |"
\s5
\v 3 ईसा' ने जवाब में उनसे कहा, "क्या तुम ने ये भी नहीं पढ़ा कि जब दाऊद और उसके साथी भूखे थे तो उसने क्या किया?"
\v 4 वो क्यूँकर ख़ुदा के घर में गया, और नज्र की रोटियाँ लेकर खाई जिनको खाना कहिनों के सिवा और किसी को ठीक नहीं, और अपने साथियों को भी दीं |"
\v 5 फिर उसने उनसे कहा, "इब्न-ए-आदम सबत का मालिक है |"
\s5
\v 6 और यूँ हुआ कि किसी और सबत को वो 'इबादतख़ाने में दाख़िल होकर ता'लीम देने लगा | वहाँ एक आदमी था जिसका दाहिना हाथ सूख गया था |
\v 7 और आलिम और फ़रीसी उसकी ताक में थे, कि आया सबत के दिन अच्छा करता है या नहीं, ताकि उस पर इल्ज़ाम लगाने का मौक़ा' पाएँ |
\v 8 मगर उसको उनके ख़याल मा'लूम थे; पस उसने उस आदमी से जिसका हाथ सूखा था कहा, "उठ, और बीच में खड़ा हो !"
\s5
\v 9 ईसा' ने उनसे कहा, "मैं तुम से ये पूछता हूँ कि आया सबत के दिन नेकी करना ठीक है या बदी करना? जान बचाना या हलाक करना?"
\v 10 और उन सब पर नज़र करके उससे कहा, "अपना हाथ बढ़ा ! "उसने बढ़ाया और उसका हाथ दुरुस्त हो गया |
\v 11 वो आपे से बाहर होकर एक दूसरे से कहने लगे कि हम ईसा' के साथ क्या करें |
\s5
\v 12 और उन दिनों में ऐसा हुआ कि वो पहाड़ पर दु'आ करने को निकला और ख़ुदा से दु'आ करने में सारी रात गुज़ारी |
\v 13 जब दिन हुआ तो उसने अपने शागिर्दों को पास बुलाकर उनमे से बारह चुन लिए और उनको रसूल का लक़ब दिया :
\s5
\v 14 या'नी शमा'ऊन जिसका नाम उसने पतरस भी रख्खा, और अन्द्रियास, और या'क़ूब, और युहन्ना, और फ़िलिप्पुस, और बरतुल्माई,
\v 15 और मत्ती, और तोमा, और हलफ़ई का बेटा या'क़ूब, और शमा'ऊन जो ज़ेलोतेस कहलाता था,
\v 16 और या'क़ूब का बेटा यहुदाह, और यहुदाह इस्करियोती जो उसका पकड़वाने वाला हुआ |
\s5
\v 17 और वो उनके साथ उतर कर हमवार जगह पर खड़ा हुआ, और उसके शागिर्दों की बड़ी जमा'अत और लोगों की बड़ी भीड़ वहाँ थी, जो सारे यहुदिया और यरूशलीम और सूर और सैदा के बहरी किनारे से उसकी सुनने और अपनी बीमारियों से शिफ़ा पाने के लिए उसके पास आई थी |
\v 18 और जो बदरूहों से दुख पाते थे वो अच्छे किए गए |
\v 19 और सब लोग उसे छूने की कोशिश करते थे, क्यूँकि क़ूव्वत उससे निकलती और सब को शिफ़ा बख़्शती थी |
\s5
\v 20 फिर उसने अपने शागिर्दों की तरफ़ नज़र करके कहा, “मुबारक हो तुम जो ग़रीब हो, क्यूँकि ख़ुदा की बादशाही तुम्हारी है |”
\v 21 "मुबारक हो तुम जो अब भूखे हो, क्यूँकि आसूदा होगे "मुबारक हो तुम जो अब रोते हो, क्यूँकि हँसोगे
\s5
\v 22 "जब इब्न-ए-आदम की वजह से लोग तुम से 'दुश्मनी रख्खेंगे, और तुम्हें निकाल देंगे, और ला'न-ता'न करेंगे,"
\v 23 "उस दिन ख़ुश होना और ख़ुशी के मारे उछलना, इसलिए कि देखो आसमान पर तुम्हारा अज्र बड़ा है; क्यूँकि उनके बाप-दादा नबियों के साथ भी ऐसा ही किया करते थे |
\s5
\v 24 "मगर अफ़सोस तुम पर जो दौलतमन्द हो, क्यूँकि तुम अपनी तसल्ली पा चुके |
\v 25 "अफ़सोस तुम पर जो अब सेर हो, क्यूँकि भूखे होगे | "अफ़सोस तुम पर जो अब हँसते हो, क्यूँकि मातम करोगे और रोओगे |"
\s5
\v 26 "अफ़सोस तुम पर जब सब लोग तुम्हें अच्छा कहें, क्यूँकि उनके बाप-दादा झूटे नबियों के साथ भी ऐसा ही किया करते थे |
\s5
\v 27 "लेकिन मैं सुनने वालों से कहता हूँ कि अपने दुश्मनों से मुहब्बत रख्खो, जो तुम से 'दुश्मनी रख्खें उसके साथ नेकी करो |
\v 28 जो तुम पर ला'नत करें उनके लिए बरकत चाहो, जो तुमसे नफरत करें उनके लिए दु'आ करो |
\s5
\v 29 जो तेरे एक गाल पर तमाँचा मारे दूसरा भी उसकी तरफ़ फेर दे, और जो तेरा चोग़ा ले उसको कुर्ता लेने से भी मना' न कर |
\v 30 जो कोई तुझ से माँगे उसे दे, और जो तेरा माल ले ले उससे तलब न कर |
\s5
\v 31 और जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो |
\v 32 "अगर तुम अपने मुहब्बत रखनेवालों ही से मुहब्बत रख्खो, तो तुम्हारा क्या अहसान है? क्यूँकि गुनाहगार भी अपने मुहब्बत रखनेवालों से मुहब्बत रखते हैं |
\v 33 और अगर तुम उन ही का भला करो जो तुम्हारा भला करें, तो तुम्हारा क्या अहसान है? क्यूँकि गुनहगार भी ऐसा ही करते हैं |
\v 34 और अगर तुम उन्हीं को क़र्ज़ दो जिनसे वसूल होने की उम्मीद रखते हो, तो तुम्हारा क्या अहसान है? गुनहगार भी गुनहगारों को क़र्ज़ देते हैं ताकि पूरा वसूल कर लें
\s5
\v 35 मगर तुम अपने दुश्मनों से मुहब्बत रख्खो, और नेकी करो, और बग़ैर न उम्मीद हुए क़र्ज़ दो तो तुम्हारा अज्र बड़ा होगा और तुम ख़ुदा के बेटे ठहरोगे, क्यूँकि वो न-शुक्रों और बदों पर भी महरबान है |
\v 36 जैसा तुम्हारा आसमानी बाप रहीम है तुम भी रहम दिल हो |
\s5
\v 37 'ऐबजोई ना करो, तुम्हारी भी 'ऐबजोई न की जाएगी | मुजरिम न ठहराओ,तुम भी मुजरिम ना ठहराये जाओगे | इज्ज़त दो, तुम भी इज्ज़त पाओगे |
\s5
\v 38 दिया करो, तुम्हें भी दिया जाएगा | अच्छा पैमाना दाब-दाब कर और हिला-हिला कर और लबरेज़ करके तुम्हारे पल्ले में डालेंगे, क्यूँकि जिस पैमाने से तुम नापते हो उसी से तुम्हारे लिए नापा जाएगा |"
\s5
\v 39 और उसने उनसे एक मिसाल भी दी" क्या अंधे को अँधा राह दिखा सकता है ? क्या दोनों गड्ढे में न गिरेंगे?"
\v 40 शागिर्द अपने उस्ताद से बड़ा नहीं, बल्कि हर एक जब कामिल हुआ तो अपने उस्ताद जैसा होगा |
\s5
\v 41 तू क्यूँ अपने भाई की आँख के तिनके को देखता है, और अपनी आँख के शहतीर पर ग़ौर नहीं करता?
\v 42 और जब तू अपनी आँख के शहतीर को नहीं देखता तो अपने भाई से क्यूँकर कह सकता है, कि भाई ला उस तिनके को जो तेरी आँख में है निकाल दूँ? ऐ रियाकार | पहले अपनी आँख में से तो शहतीर निकाल, फिर उस तिनके को जो तेरे भाई की आँख में है अच्छी तरह देखकर निकाल सकेगा |
\s5
\v 43 "क्यूँकि कोई अच्छा दरख्त नहीं जो बुरा फल लाए, और न कोई बुरा दरख़्त है जो अच्छा फल लाए |
\v 44 हर दरख़्त अपने फल से पहचाना जाता है, क्यूँकि झाड़ियों से अंजीर नहीं तोड़ते और न झड़बेरी से अंगूर |
\s5
\v 45 "अच्छा आदमी अपने दिल के अच्छे ख़ज़ाने से अच्छी चीज़ें निकालता है, और बुरा आदमी बुरे ख़ज़ाने से बुरी चीज़ें निकालता है; क्यूँकि जो दिल में भरा है वही उसके मुँह पर आता है |"
\s5
\v 46 जब तुम मेरे कहने पर 'अमल नहीं करते तो क्यूँ मुझे 'ख़ुदावन्द, ख़ुदावन्द' कहते हो |
\v 47 जो कोई मेरे पास आता और मेरी बातें सुनकर उन पर 'अमल करता है, मैं तुम्हें बताता हूँ कि वो किसकी तरह है |
\v 48 वो उस आदमी की तरह है जिसने घर बनाते वक़्त ज़मीन गहरी खोदकर चट्टान पर बुनियाद डाली, जब तूफ़ान आया और सैलाब उस घर से टकराया, तो उसे हिला न सका क्यूँकि वो मज़बूत बना हुआ था ||
\s5
\v 49 लेकिन जो सुनकर 'अमल में नहीं लाता वो उस आदमी की तरह है जिसने ज़मीन पर घर को बे-बुनियाद बनाया, जब सैलाब उस पर ज़ोर से आया तो वो फ़ौरन गिर पड़ा और वो घर बिलकुल बर्बाद हुआ |"
\s5
\c 7
\v 1 जब वो लोगों को अपनी सब बातें सुना चुका तो कफ़रनहूम में आया |
\s5
\v 2 और किसी सूबेदार का नौकर जो उसको 'प्यारा था, बीमारी से मरने को था |
\v 3 उसने ईसा' की ख़बर सुनकर यहूदियों के कई बुज़ुर्गों को उसके पास भेजा और उससे दरखास्त की कि आकर मेरे नौकर को अच्छा कर |
\v 4 वो ईसा' के पास आए और उसकी बड़ी ख़ुशामद कर के कहने लगे, "वो इस लायक़ है कि तू उसकी ख़ातिर ये करे |"
\v 5 क्यूँकि वो हमारी क़ौम से मुहब्बत रखता है और हमारे 'इबादतख़ाने को उसी ने बनवाया |"
\s5
\v 6 ईसा' उनके साथ चला मगर जब वो घर के क़रीब पहुँचा तो सूबेदार ने कुछ दोस्तों के ज़रिये उसे ये कहला भेजा, "ऐ ख़ुदावन्द तक्लीफ़ न कर, क्यूँकि मैं इस लायक़ नहीं कि तू मेरी छत के नीचे आए |"
\v 7 इसी वजह से मैंने अपने आप को भी तेरे पास आने के लायक़ न समझा, बलकि ज़बान से कह दे तो मेरा ख़ादिम शिफ़ा पाएगा |
\v 8 क्यूँकि मैं भी दूसरे के ताबे में हूँ, और सिपाही मेरे मातहत हैं; जब एक से कहता हूँ कि 'जा' वो जाता है, और दूसरे से कहता हूं 'आ' तो वो आता है; और अपने नौकर से कि 'ये कर' तो वो करता है |"
\s5
\v 9 ईसा' ने ये सुनकर उस पर ता'ज्जुब किया, और मुड़ कर उस भीड़ से जो उसके पीछे आती थी कहा, "मैं तुम से कहता हूँ कि मैंने ऐसा ईमान इस्राईल में भी नहीं पाया |"
\v 10 और भेजे हुए लोगों ने घर में वापस आकर उस नौकर को तन्दुरुस्त पाया |
\s5
\v 11 थोड़े 'अरसे के बा'द ऐसा हुआ कि वो नाईंन नाम एक शहर को गया | उसके शागिर्द और बहुत से लोग उसके हमराह थे |
\v 12 जब वो शहर के फाटक के नज़दीक पहुँचा तो देखो, एक मुर्दे को बाहर लिए जाते थे | वो अपनी माँ का इकलौता बेटा था और वो बेवा थी, और शहर के बहुतरे लोग उसके साथ थे |
\v 13 उसे देखकर ख़ुदावन्द को तरस आया और उससे कहा, "मत रो !"
\v 14 फिर उसने पास आकर जनाज़े को छुआ और उठाने वाले खड़े हो गए | और उसने कहा, ऐ जवान, मैं तुझ से कहता हूँ, उठ !"
\v 15 वो मुर्दा उठ बैठा और बोलने लगा |और उसने उसे उसकी माँ को सुपुर्द किया |
\s5
\v 16 और सब पर ख़ौफ़ छा गया और वो ख़ुदा की तम्जीद करके कहने लगे, "एक बड़ा नबी हम में आया हुआ है, ख़ुदा ने अपनी उम्मत पर तवज्जुह की है |
\v 17 और उसकी निस्बत ये ख़बर सारे यहूदिया और तमाम आस पास में फैल गई |
\s5
\v 18 और युहन्ना को उसके शागिर्दों ने इन सब बातों की ख़बर दी |
\v 19 इस पर युहन्ना ने अपने शागिर्दों में से दो को बुला कर ख़ुदावन्द के पास ये पूछने को भेजा,कि "आने वाला तू ही है, या हम किसी दूसरे की राह देखें |"
\v 20 उन्होंने उसके पास आकर कहा, "युहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने हमें तेरे पास ये पूछने को भेजा है कि आने वाला तू ही है या हम दूसरे की राह देखें |
\s5
\v 21 उसी घड़ी उसने बहुतों को बीमारियों और आफ़तों और बदरूहों से नजात बख़्शी और बहुत से अन्धों को बीनाई 'अता की |
\v 22 उसने जवाब में उनसे कहा, "जो कुछ तुम ने देखा और सुना है जाकर युहन्ना से बयान कर दो कि अन्धे देखते, लंगड़े चलते फिरते हैं, कोढ़ी पाक साफ़ किए जाते हैं, बहरे सुनते हैं मुर्दे ज़िन्दा किए जाते हैं, ग़रीबों को ख़ुशख़बरी सुनाई जाती है |
\v 23 मुबारक है वो जो मेरी वजह से ठोकर न खाए |
\s5
\v 24 जब युहन्ना के क़ासिद चले गए तो ईसा' युहन्ना' के हक़ में कहने लगा, "तुम वीराने में क्या देखने गए थे? क्या हवा से हिलते हुए सरकंडे को?"
\v 25 तो फिर क्या देखने गए थे? क्या महीन कपड़े पहने हुए शख़्स को? देखो, जो चमकदार पोशाक पहनते और 'ऐश-ओ-'इशरत में रहते हैं, वो बादशाही महलों में होते हैं|
\v 26 तो फिर तुम क्या देखने गए थे? क्या एक नबी? हाँ, मैं तुम से कहता हूँ, बल्कि नबी से बड़े को |
\s5
\v 27 ये वही है जिसके बारे मे लिखा है : 'देख, मैं अपना पैग़म्बर तेरे आगे भेजता हूँ, जो तेरी राह तेरे आगे तैयार करेगा |'
\v 28 मैं तुम से कहता हूँ कि जो 'औरतों से पैदा हुए है, उनमें युहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से कोई बड़ा नहीं लेकिन जो ख़ुदा की बादशाही में छोटा है वो उससे बड़ा है |"
\s5
\v 29 और सब 'आम लोगों ने जब सुना, तो उन्होंने और महसूल लेने वालों ने भी युहन्ना का बपतिस्मा लेकर ख़ुदा को रास्तबाज़ मान लिया |
\v 30 मगर फरीसियों और शरा' के 'आलिमों ने उससे बपतिस्मा न लेकर ख़ुदा के इरादे को अपनी निस्बत बातिल कर दिया |
\s5
\v 31 "पस इस ज़माने के आदमियों को मैं किससे मिसाल दूँ, वो किसकी तरह हैं?"
\v 32 उन लड़कों की तरह हैं जो बाज़ार में बैठे हुए एक दूसरे को पुकार कर कहते हैं कि हम ने तुम्हारे लिए बांसली बजाई और तुम न नाचे, हम ने मातम किया और तुम न रोए |
\s5
\v 33 क्यूँकि युहन्ना बपतिस्मा देनेवाला न तो रोटी खाता हुआ आया न मय पीता हुआ और तुम कहते हो कि उसमें बदरूह है |
\v 34 इब्न-ए-आदम खाता पीता आया और तुम कहते हो कि देखो, खाऊ और शराबी आदमी, महसूल लेने वालों और गुनाहगारों का यार |
\v 35 लेकिन हिक्मत अपने सब लड़कों की तरफ़ से रास्त साबित हुई |"
\s5
\v 36 फिर किसी फ़रीसी ने उससे दरख़्वास्त की कि मेरे साथ खाना खा, पस वो उस फ़रीसी के घर जाकर खाना खाने बैठा |
\v 37 तो देखो, एक बदचलन 'औरत जो उस शहर की थी, ये जानकर कि वो उस फ़रीसी के घर में खाना खाने बैठा है, संग-ए-मरमर के 'इत्रदान में 'इत्र लाई;
\v 38 और उसके पाँव के पास रोती हुई पीछे खड़े होकर, उसके पाँव आँसुओं से भिगोने लगी और अपने सिर के बालों से उनको पोंछा, और उसके पाँव बहुत चूमे और उन पर इत्र डाला |
\s5
\v 39 उसकी दा'वत करने वाला फ़रीसी ये देख कर अपने जी में कहने लगा, "अगर ये शख़्स नबी "होता तो जानता कि जो उसे छूती है वो कौन और कैसी 'औरत है, क्यूँकि बदचलन है |"
\v 40 ईसा,ने जवाब में उससे कहा, "ऐ शमा'ऊन ! मुझे तुझ से कुछ कहना है |" उसने कहा, "ऐ उस्ताद कह |"
\s5
\v 41 "किसी साहूकार के दो क़र्ज़दार थे, एक पाँच सौ दीनार का दूसरा पचास का |"
\v 42 जब उनके पास अदा करने को कुछ न रहा तो उसने दोनों को बख़्श दिया |पस उनमें से कौन उससे ज़्यादा मुहब्बत रख्खेगा?"
\v 43 शमा'ऊन ने जवाब में कहा, "मेरी समझ में वो जिसे उसने ज़्यादा बख़्शा |" उसने उससे कहा, "तू ने ठीक फ़ैसला किया है |"
\s5
\v 44 और उस 'औरत की तरफ़ फिर कर उसने शमा'ऊन से कहा, "क्या तू इस 'औरत को देखता है? मैं तेरे घर में आया, तू ने मेरे पाँव धोने को पानी न दिया; मगर इसने मेरे पावँ आँसुओं से भिगो दिए, और अपने बालों से पोंछे |"
\v 45 तू ने मुझ को बोसा न दिया, मगर इसने जब से मैं आया हूँ मेरे पावँ चूमना न छोड़ा |
\s5
\v 46 तू ने मेरे सिर में तेल न डाला, मगर इसने मेरे पाँव पर 'इत्र डाला है |
\v 47 इसी लिए मैं तुझ से कहता हूँ कि इसके गुनाह जो बहुत थे मु'आफ़ हुए क्यूँकि इसने बहुत मुहब्बत की, मगर जिसके थोड़े गुनाह मु'आफ़ हुए वो थोड़ी मुहब्बत करता है |"
\s5
\v 48 और उस 'औरत से कहा, "तेरे गुनाह मु'आफ़ हुए !"
\v 49 इसी पर वो जो उसके साथ खाना खाने बैठे थे अपने जी में कहने लगे, "ये कौन है जो गुनाह भी मु'आफ़ करता है?"
\v 50 मगर उसने 'औरत से कहा, "तेरे ईमान ने तुझे बचा लिया, सलामत चली जा |"
\s5
\c 8
\v 1 थोड़े 'अरसे के बा'द यूँ हुआ कि वो ऐलान करता और ख़ुदा की बादशाही की ख़ुशख़बरी सुनाता हुआ शहर-शहर और गावँ-गावँ फिरने लगा, और वो बारह उसके साथ थे |
\v 2 और कुछ 'औरतें जिन्होंने बुरी रूहों और बिमारियों से शिफ़ा पाई थी, या'नी मरियम जो मगद्लीनी कहलाती थी, जिसमें से सात बदरुहें निकली थीं,
\v 3 और युहन्ना हेरोदेस के दीवान ख़ूज़ा की बीवी, और सूसन्ना, और बहुत सी और 'औरतें भी थीं; जो अपने माल से उनकी ख़िदमत करती थी |
\s5
\v 4 फिर जब बड़ी भीड़ उसके पास जमा' हुई और शहर के लोग उसके पास चले आते थे, उसने मिसाल में कहा,
\v 5 “एक बोने वाला अपने बीज बोने निकला, और बोते वक़्त कुछ राह के किनारे गिरा और रौंदा गया और हवा के परिन्दों ने उसे चुग लिया|
\v 6 और कुछ चट्टान पर गिरा और उग कर सूख गया, इसलिए कि उसको नमी न पहुँची |
\s5
\v 7 और कुछ झाड़ियों में गिरा और झाड़ियों ने साथ-साथ बढ़कर उसे दबा लिया |
\v 8 और कुछ अच्छी ज़मीन में गिरा और उग कर सौ गुना फल लाया|” ये कह कर उसने पुकारा, "जिसके सुनने के कान हों वो सुन ले|"
\s5
\v 9 उसके शागिर्दों ने उससे पूछा कि ये मिसाल क्या है |
\v 10 उसने कहा, "तुम को ख़ुदा की बादशाही के राज़ों की समझ दी गई है, मगर औरों को मिसाल में सुनाया जाता है, ताकि 'देखते हुए न देखें, और सुनते हुए न समझें|'
\s5
\v 11 वो मिसाल ये है, कि बीज ख़ुदा का कलाम है|
\v 12 राह के किनारे के वो हैं, जिन्होंने सुना फिर शैतान आकर कलाम को उनके दिल से छीन ले जाता है ऐसा न हो कि वो ईमान लाकर नजात पाएँ |
\v 13 और चट्टान पर वो हैं जो सुनकर कलाम को ख़ुशी से क़ुबूल कर लेते हैं, लेकिन जड़ नहीं पकड़ते मगर कुछ 'अरसे तक ईमान रख कर आज़माइश के वक़्त मुड़ जाते हैं |
\s5
\v 14 और जो झाड़ियों में पड़ा उससे वो लोग मुराद हैं, जिन्होंने सुना लेकिन होते होते इस ज़िन्दगी की फ़िक्रों और दौलत और 'ऐश-ओ-'इशरत में फँस जाते हैं और उनका फल पकता नहीं |
\v 15 मगर अच्छी ज़मीन के वो हैं, जो कलाम को सुनकर 'उम्दा और नेक दिल में सम्भाले रहते है और सब्र से फल लाते हैं |
\s5
\v 16 कोई शख़्स चराग़ जला कर बर्तन से नहीं छिपाता न पलंग के नीचे रखता है, बल्कि चिराग़दान पर रखता है ताकि अन्दर आने वालों को रौशनी दिखाई दे|
\v 17 क्यूँकि कोई चीज़ छिपी नहीं जो ज़ाहिर न हो जाएगी, और न कोई ऐसी छिपी बात है जो माँ'लूम न होगी और सामने न आए
\v 18 पस ख़बरदार रहो कि तुम किस तरह सुनते हो? क्यूँकि जिसके पास नहीं है वो भी ले लिया जाएगा जो अपना समझता है|"
\s5
\v 19 फिर उसकी माँ और उसके भाई उसके पास आए, मगर भीड़ की वजह से उस तक न पहुँच सके |
\v 20 और उसे ख़बर दी गई, " तेरी माँ और तेरे भाई बाहर खड़े हैं, और तुझ से मिलना चाहते हैं |"
\v 21 उसने जवाब में उनसे कहा, "मेरी माँ और मेरे भाई तो ये हैं, जो ख़ुदा का कलाम सुनते और उस पर 'अमल करते हैं |"
\s5
\v 22 फिर एक दिन ऐसा हुआ कि वो और उसके शागिर्द नाव में सवार हुए | उसने उनसे कहा, "आओ, झील के पार चलें वो सब रवाना हुए |"
\v 23 मगर जब नाव चली जाती थी तो वो सो गया | और झील पर बड़ी आँधी आई और नाव पानी से भरी जाती थी और वो ख़तरे में थे |
\s5
\v 24 उन्होंने पास आकर उसे जगाया और कहा, "साहेब ! साहेब ! हम हलाक हुए जाते हैं !" उसने उठकर हवा को और पानी के ज़ोर-शोर को झिड़का और दोनों थम गए और अम्न हो गया |
\v 25 उसने उनसे कहा, "तुम्हारा ईमान कहाँ गया? वो डर गए और ता'अज्जुब करके आपस में कहने लगे, "ये कौन है? ये तो हवा और पानी को हुक्म देता है और वो उसकी मानते हैं !"
\s5
\v 26 फिर वो गिरासीनियों के 'इलाक़े में जा पहुँचे जो उस पार गलील के सामने है |
\v 27 जब वो किनारे पर उतरा तो शहर का एक मर्द उसे मिला जिसमें बदरूहें थीं, और उसने बड़ी मुद्दत से कपड़े न पहने थे और वो घर में नहीं बल्कि क़ब्रों में रहा करता था |
\s5
\v 28 वो ईसा' को देख कर चिल्लाया और उसके आगे गिर कर बुलन्द आवाज़ से कहने लगा, "ऐ ईसा' ! ख़ुदा के बेटे, मुझे तुझ से क्या काम? मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि मुझे 'अजाब में न डाल |"
\v 29 क्यूँकि वो उस बदरूह को हुक्म देता था कि इस आदमी में से निकल जा, इसलिए कि उसने उसको अक्सर पकड़ा था; और हर चन्द लोग उसे ज़ंजीरो और बेड़ियों से जकड़ कर क़ाबू में रखते थे, तो भी वो जंजीरों को तोड़ डालता था और बदरुह उसको वीरानों में भगाए फिरती थी |
\s5
\v 30 ईसा' ने उससे पूछा, "तेरा क्या नाम है ? उसने कहा, "लश्कर !" क्यूँकि उसमें बहुत सी बदरुहें थीं |
\v 31 और वो उसकी मिन्नत करने लगीं कि हमें गहरे गड्ढे में जाने का हुक्म न दे |
\s5
\v 32 वहाँ पहाड़ पर सूअरों का एक बड़ा ग़ोल चर रहा था | उन्होंने उसकी मिन्नत की कि हमें उनके अन्दर जाने दे; उसने उन्हें जाने दिया |
\v 33 और बदरुहें उस आदमी में से निकल कर सूअरों के अन्दर गईं और ग़ोल किनारे पर से झपट कर झील में जा पड़ा और डूब मरा |
\s5
\v 34 ये माजरा देख कर चराने वाले भागे और जाकर शहर और गांव में ख़बर दी |
\v 35 लोग उस माजरे को देखने को निकले, और ईसा' के पास आकर उस आदमी को जिसमें से बदरुहें निकली थीं, कपड़े पहने और होश में ईसा' के पाँव के पास बैठे पाया और डर गए |
\s5
\v 36 और देखने वालों ने उनको ख़बर दी कि जिसमें बदरुहें थीं वो किस तरह अच्छा हुआ |
\v 37 गिरासीनियों के आस पास के सब लोगों ने उससे दरख़्वास्त की कि हमारे पास से चला जा; क्यूँकि उन पर बड़ी दहशत छा गई थी | पस वो नाव में बैठकर वापस गया |
\s5
\v 38 लेकिन जिस शख़्स में से बदरुहें निकल गई थीं, वो उसकी मिन्नत करके कहने लगा कि मुझे अपने साथ रहने दे, मगर ईसा' ने उसे रुख़्सत करके कहा,
\v 39 "अपने घर को लौट कर लोगों से बयान कर, कि ख़ुदा ने तेरे लिए कैसे बड़े काम किए हैं |" वो रवाना होकर तमाम शहर में चर्चा करने लगा कि ईसा' ने मेरे लिए कैसे बड़े काम किए |
\s5
\v 40 जब ईसा' वापस आ रहा था तो लोग उससे ख़ुशी के साथ मिले, क्यूँकि सब उसकी राह देखते थे |
\v 41 और देखो, याईर नाम एक शख़्स जो 'इबादतख़ाने का सरदार था, आया और ईसा' के क़दमों पे गिरकर उससे मिन्नत की कि मेरे घर चल,
\v 42 क्यूँकि उसकी इकलौती बेटी जो तक़रीबन बारह बरस की थी, मरने को थी | और जब वो जा रहा था तो लोग उस पर गिरे पड़ते थे |
\s5
\v 43 और एक 'औरत ने जिसके बारह बरस से ख़ून जारी था, और अपना सारा माल हकीमों पर ख़र्च कर चुकी थी, और किसी के हाथ से अच्छी न हो सकी थी;
\v 44 उसके पीछे आकर उसकी पोशाक का किनारा हुआ, और उसी दम उसका ख़ून बहना बन्द हो गया |
\s5
\v 45 इस पर ईसा' ने कहा, "वो कौन है जिसने मुझे छुआ?" जब सब इन्कार करने लगे तो पतरस और उसके साथियों ने कहा, "ऐ साहेब ! लोग तुझे दबाते और तुझ पर गिरे पड़ते हैं |"
\v 46 मगर ईसा' ने कहा, "किसी ने मुझे छुआ तो है, क्यूँकि मैंने मा'लूम किया कि क़ुव्वत मुझ से निकली है |"
\s5
\v 47 जब उस 'औरत ने देखा कि मैं छिप नहीं सकती, तो वो काँपती हुई आई और उसके आगे गिरकर सब लोगों के सामने बयान किया कि मैंने किस वजह से तुझे छुआ, और किस तरह उसी दम शिफ़ा पा गई |
\v 48 उसने उससे कहा, "बेटी ! तेरे ईमान ने तुझे अच्छा किया है, सलामत चली जा |"
\s5
\v 49 वो ये कह ही रहा था कि 'इबादतख़ाने के सरदार के यहाँ से किसी ने आकर कहा, "तेरी बेटी मर गई : उस्ताद को तकलीफ़ न दे |"
\v 50 ईसा' ने सुनकर जवाब दिया, ख़ौफ़ न कर; फ़क़त 'ऐतिक़ाद रख, वो बच जाएगी |"
\s5
\v 51 और घर में पहुँचकर पतरस, युहन्ना और या'क़ूब और लड़की के माँ बाप के सिवा किसी को अपने साथ अन्दर न जाने दिया |
\v 52 और सब उसके लिए रो पीट रहे थे, मगर उसने कहा, "मातम न करो ! वो मर नहीं गई बल्कि सोती है |"
\v 53 वो उस पर हँसने लगे क्यूँकि जानते थे कि वो मर गई है |
\s5
\v 54 मगर उसने उसका हाथ पकड़ा और पुकार कर कहा, "ऐ लड़की, उठ !"
\v 55 उसकी रूह वापस आई और वो उसी दम उठी | फिर ईसा' ने हुक्म दिया," लड़की को कुछ खाने को दिया जाए |"
\v 56 माँ बाप हैरान हुए | उसने उन्हें ताकीद की कि ये माजरा किसी से न कहना |
\s5
\c 9
\v 1 फिर उसने उन बारह को बुलाकर उन्हें सब बदरुहों पर इख़्तियार बख़्शा और बीमारियों को दूर करने की क़ुदरत दी|
\v 2 और उन्हें ख़ुदा की बादशाही का ऐलान करने और बीमारों को अच्छा करने के लिए भेजा,
\s5
\v 3 और उनसे कहा, " राह के लिए कुछ न लेना, न लाठी, न झोली, न रोटी, न रूपये, न दो दो कुरते रखना |"
\v 4 और जिस घर में दाख़िल हो वहीं रहना और वहीं से रवाना होना;
\s5
\v 5 और जिस शहर के लोग तुम्हे क़ुबूल ना करें, उस शहर से निकलते वक़्त अपने पावोँ की धूल झाड़ देना ताकि उन पर गवाही हो |"
\v 6 पस वो रवाना होकर गाँव गाँव ख़ुशख़बरी सुनाते और हर जगह शिफ़ा देते फिरे |
\s5
\v 7 चौथाई मुल्क का हाकिम हेरोदेस सब अहवाल सुन कर घबरा गया, इसलिए कि कुछ ये कहते थे कि युहन्ना मुर्दों मे से जी उठा है, |
\v 8 और कुछ ये कि एलियाह ज़ाहिर हुआ, और कुछ ये कि क़दीम नबियों मे से कोई जी उठा है |
\v 9 मगर हेरोदेस ने कहा, "युहन्ना का तो मैं ने सिर कटवा दिया, अब ये कौन जिसके बारे मे ऐसी बातें सुनता हूँ?" पस उसे देखने की कोशिश में रहा |
\s5
\v 10 फिर रसूलों ने जो कुछ किया था लौटकर उससे बयान किया; और वो उनको अलग लेकर बैतसैदा नाम एक शहर को चला गया |
\v 11 ये जानकर भीड़ उसके पीछे गई और वो ख़ुशी के साथ उनसे मिला और उनसे ख़ुदा की बादशाही की बातें करने लगा, और जो शिफ़ा पाने के मुहताज थे उन्हें शिफ़ा बख़्शी |
\s5
\v 12 जब दिन ढलने लगा तो उन बारह ने आकर उससे कहा, "भीड़ को रुख़्सत कर के चारों तरफ़ के गावँ और बस्तियों में जा टिकें और खाने का इन्तिज़ाम करें |"क्यूँकि हम यहाँ वीरान जगह में हैं |
\v 13 उसने उनसे कहा, "तुम ही उन्हें खाने को दो "उन्होंने कहा,“ हमारे पास सिर्फ़ पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ है, मगर हाँ हम जा जाकर इन सब लोगों के लिए खाना मोल ले आएँ |”
\v 14 क्यूँकि वो पाँच हज़ार मर्द के क़रीब थे | उसने अपने शागिर्दों से कहा, "उनको तक़रीबन पचास-पचास की क़तारों में बिठाओ |"
\s5
\v 15 उन्होंने उसी तरह किया और सब को बिठाया |
\v 16 फिर उसने वो पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं और आसमान की तरफ़ देख कर उन पर बरकत बख़्शी, और तोड़कर अपने शागिर्दों को देता गया कि लोगों के आगे रख्खें |
\v 17 उन्होंने खाया और सब सेर हो गए, और उनके बचे हुए बे इस्तेमाल खाने की बारह टोकरियाँ उठाई गईं |
\s5
\v 18 जब वो तन्हाई में दु'आ कर रहा था और शागिर्द उसके पास थे, तो ऐसा हुआ कि उसने उनसे पूछा, "लोग मुझे क्या कहते हैं ?
\v 19 उन्होंने जवाब में कहा, "युहन्ना बपतिस्मा देनेवाला और कुछ एलियाह कहते हैं, और कुछ ये कि पुराने नबियों में से कोई जी उठा है |"
\s5
\v 20 उसने उनसे कहा, " लेकिन तुम मुझे क्या कहते हो?" पतरस ने जवाब में कहा, "ख़ुदावन्द का मसीह |"
\v 21 उसने उनको हिदायत करके हुक्म दिया कि ये किसी से न कहना,
\v 22 और कहा,“ ज़रूर है इब्न-ए-आदम बहुत दुख उठाए और बुज़ुर्ग और सरदार काहिन और आलिम उसे रद्द करें और वो क़त्ल किया जाए और तीसरे दिन जी उठे |”
\s5
\v 23 और उसने सब से कहा, "अगर कोई मेरे पीछे आना चाहे तो अपने आप से इनकार करे और हर रोज़ अपनी सलीब उठाए और मेरे पीछे हो ले |
\v 24 क्यूँकि जो कोई अपनी जान बचाना चाहे, वो उसे खोएगा और जो कोई मेरी ख़ातिर अपनी जान खोए वही उसे बचाएगा |
\v 25 और आदमी अगर सारी दुनिया को हासिल करे और अपनी जान को खो दे या नुक़सान उठाए तो उसे क्या फ़ायदा होगा?
\s5
\v 26 क्यूँकि जो कोई मुझ से और मेरी बातों से शरमाएगा, इब्न-ए-आदम भी जब अपने और अपने बाप के और पाक फ़रिश्तों के जलाल में आएगा तो उस से शरमाएगा |
\v 27 लेकिन मैं तुम से सच कहता हूँ कि उनमें से जो यहाँ खड़े हैं कुछ ऐसे हैं कि जब तक ख़ुदा की बादशाही को देख न लें मौत का मज़ा हरगिज़ न चखेंगें |
\s5
\v 28 फिर इन बातों के कोई आठ रोज़ बा'द ऐसा हुआ, कि वो पतरस और युहन्ना और या'क़ूब को साथ लेकर पहाड़ पर दु'आ करने गया |`
\v 29 जब वो दु'आ कर रहा था, तो ऐसा हुआ कि उसके चेहरे की सूरत बदल गई, और उसकी पोशाक सफ़ेद बर्राक़ हो गई |
\s5
\v 30 और देखो, दो शख़्स या'नी मूसा और एलियाह उससे बातें कर रहे थे |
\v 31 ये जलाल में दिखाई दिए और उसके इन्तक़ाल का ज़िक्र करते थे, जो यरूशीलम में वाक़े' होने को था |
\s5
\v 32 मगर पतरस और उसके साथी नींद में पड़े थे और जब अच्छी तरह जागे, तो उसके जलाल को और उन दो शख़्शों को देखा जो उसके साथ खड़े थे |
\v 33 जब वो उससे जुदा होने लगे तो ऐसा हुआ कि पतरस ने ईसा ' से कहा, “ऐ उस्ताद ! हमारा यहाँ रहना अच्छा है : पस हम तीन डेरे बनाएँ, एक तेरे लिए एक मूसा के लिए और एक एलियाह के लिए।” लेकिन वो जानता न था कि क्या कहता है।
\s5
\v 34 वो ये कहता ही था कि बादल ने आकर उन पर साया कर लिया, और जब वो बादल में घिरने लगे तो डर गए |
\v 35 और बादल में से एक आवाज़ आई, "ये मेरा चुना हुआ बेटा है, इसकी सुनो |"|
\v 36 ये आवाज़ आते ही ईसा' अकेला दिखाई दिया; और वो चुप रहे, और जो बातें देखी थीं उन दिनों में किसी को उनकी कुछ ख़बर न दी |
\s5
\v 37 दूसरे दिन जब वो पहाड़ से उतरे थे, तो ऐसा हुआ कि एक बड़ी भीड़ उससे आ मिली |
\v 38 और देखो एक आदमी ने भीड़ में से चिल्लाकर कहा, "ऐ उस्ताद ! मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि मेरे बेटे पर नज़र कर;क्यूँकि वो मेरा इकलौता है |
\v 39 और देखो, एक रूह उसे पकड़ लेती है, और वो यकायक चीख़ उठता है; और उसको ऐसा मरोड़ती है कि क़फ भर लाता है, और उसको कुचल कर मुश्किल से छोड़ती है |
\v 40 मैंने तेरे शागिर्दों की मिन्नत की कि उसे निकाल दें, लेकिन वो न निकाल सके |"
\s5
\v 41 ईसा' ने जवाब में कहा, “ऐ कम ईमान वालों मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा और तुम्हारी बर्दाश्त करूँगा? अपने बेटे को ले आ।”
\v 42 वो आता ही था कि बदरूह ने उसे पटक कर मरोड़ा और ईसा' ने उस नापाक रूह को झिड़का और लड़के को अच्छा करके उसके बाप को दे दिया |
\s5
\v 43 और सब लोग ख़ुदा की शान देखकर हैरान हुए | लेकिन जिस वक़्त सब लोग उन सब कामों पर जो वो करता था ता'ज्जुब कर रहे थे, उसने अपने शागिर्दों से कहा,
\v 44 "तुम्हारे कानों में ये बातें पड़ी रहें, क्यूँकि इब्न-ए-आदम आदमियों के हवाले किए जाने को है |"
\v 45 लेकिन वो इस बात को समझते न थे, बल्कि ये उनसे छिपाई गई ताकि उसे मा'लूम न करें; और इस बात के बारे मे उससे पूछते हुए डरते थे |
\s5
\v 46 फिर उनमें ये बहस शुरू' हुई, कि हम में से बड़ा कौन है?
\v 47 लेकिन ईसा' ने उनके दिलों का ख़याल मा'लूम करके एक बच्चे को लिया, और अपने पास खड़ा करके उनसे कहा,
\v 48 “जो कोई इस बच्चे को मेरे नाम से क़ुबूल करता है, वो मुझे क़ुबूल करता है; और जो मुझे क़ुबूल करता है, वो मेरे भेजनेवाले को क़ुबूल करता है; क्यूँकि जो तुम में सब से छोटा है वही बड़ा है”
\s5
\v 49 युहन्ना ने जवाब में कहा, "ऐ उस्ताद ! हम ने एक शख़्स को तेरे नाम से बदरूह निकालते देखा, और उसको मना' करने लगे, क्यूँकि वो हमारे साथ तेरी पैरवी नही करता |"
\v 50 लेकिन ईसा ' ने उससे कहा, “उसे मना' न करना, क्यूँकि जो तुम्हारे खिलाफ़ नहीं वो तुम्हारी तरफ़ है |”
\s5
\v 51 जब वो दिन नज़दीक आए कि वो ऊपर उठाया जाए, तो ऐसा हुआ कि उसने यरूशलीम जाने को कमर बाँधी |
\v 52 और आगे क़ासिद भेजे, वो जाकर सामरियों के एक गावँ में दाख़िल हुए ताकि उसके लिए तैयारी करें
\v 53 लेकिन उन्होंने उसको टिकने न दिया, क्यूँकि उसका रुख यरूशलीम की तरफ़ था |
\s5
\v 54 ये देखकर उसके शागिर्द या'क़ूब और युहन्ना ने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, क्या तू चाहता है कि हम हुक्म दें कि आसमान से आग नाज़िल होकर उन्हें भस्म कर दे [जैसा एलियाह ने किया?"]
\v 55 मगर उसने फिरकर उन्हें झिड़का [और कहा, "तुम नहीं जानते कि तुम कैसी रूह के हो |क्यूँकि इब्न-ए-आदम लोगों की जान बर्बाद करने नहीं बल्कि बचाने आया है |"]
\v 56 फिर वो किसी और गावँ में चले गए|
\s5
\v 57 जब वो राह में चले जाते थे तो किसी ने उससे कहा, "जहाँ कहीं तू जाए, मैं तेरे पीछे चलूँगा |"
\v 58 ईसा' ने उससे कहा, "लोमड़ियों के भट्ट होते हैं और हवा के परिन्दों के घोंसले, मगर इब्न-ए-आदम के लिए सिर रखने की भी जगह नहीं |"
\s5
\v 59 फिर उसने दूसरे से कहा, "ऐ ख़ुदावन्द ! मुझे इजाज़त दे कि पहले जाकर अपने बाप को दफ़्न करूँ |"
\v 60 उसने उससे कहा, "मुर्दों को अपने मुर्दे दफ्न करने दे, लेकिन तू जाकर ख़ुदा की बादशाही की ख़बर फैला |"
\s5
\v 61 एक और ने भी कहा,"ऐ ख़ुदावन्द ! मैं तेरे पीछे चलूँगा, लेकिन पहले मुझे इजाज़त दे कि अपने घर वालों से रुख़्सत हो आऊँ |"
\v 62 ईसा' ने उससे कहा, "जो कोई अपना हाथ हल पर रख कर पीछे देखता है वो ख़ुदा की बादशाही के लायक़ नहीं |"
\s5
\c 10
\v 1 इन बातों के बा'द ख़ुदावन्द ने सत्तर आदमी और मुक़र्रर किए, और जिस जिस शहर और जगह को ख़ुद जाने वाला था वहाँ उन्हें दो दो करके अपने आगे भेजा |
\v 2 और वो उनसे कहने लगा, " फ़सल तो बहुत है, लेकिन मज़दूर थोड़े हैं; इसलिए फ़सल के मालिक की मिन्नत करो कि अपनी फ़सल काटने के लिए मज़दूर भेजे |"
\s5
\v 3 जाओ; देखो, मैं तुम को गोया बर्रों को भेड़ियों के बीच मैं भेजता हूँ |
\v 4 न बटुवा ले जाओ न झोली, न जूतियाँ और न राह में किसी को सलाम करो |
\s5
\v 5 और जिस घर में दाखिल हो पहले कहो,'इस घर की सलामती हो।'
\v 6 अगर वहाँ कोई सलामती का फ़र्ज़न्द होगा तो तुम्हारा सलाम उस पर ठहरेगा, नहीं तो तुम पर लौट आएगा |
\v 7 उसी घर में रहो और जो कुछ उनसे मिले खाओ-पीओ, क्यूँकि मज़दूर अपनी मज़दूरी का हक़दार है, घर घर न फिरो |
\s5
\v 8 जिस शहर में दाख़िल हो वहाँ के लोग तुम्हें क़ुबूल करें, तो जो कुछ तुम्हारे सामने रखा जाए खाओ;
\v 9 और वहाँ के बीमारों को अच्छा करो और उनसे कहो, 'ख़ुदा की बादशाही तुम्हारे नज़दीक आ पहुँची है |'
\s5
\v 10 लेकिन जिस शहर में तुम दाख़िल हो और वहाँ के लोग तुम्हें क़ुबूल न करें, तो उनके बाज़ारों में जाकर कहो कि,
\v 11 'हम इस गर्द को भी जो तुम्हारे शहर से हमारे पैरों में लगी है तुम्हारे सामने झाड़ देते हैं, मगर ये जान लो कि ख़ुदा की बादशाही नज़दीक आ पहुँची है |'
\v 12 मैं तुम से कहता हूँ कि उस दिन सदोम का हाल उस शहर के हाल से ज़्यादा बर्दाश्त के लायक़ होगा |
\s5
\v 13 "ऐ ख़ुराज़ीन शहर , तुझ पर अफ़सोस ! ऐ बैतसैदा शहर , तुझ पर अफ़सोस ! क्यूँकि जो मो'जिज़े तुम में ज़ाहिर हुए अगर सूर और सैदा शहर में ज़ाहिर होते , तो वो टाट ओढ़कर और ख़ाक में बैठकर कब के तौबा कर लेते |"
\v 14 मगर 'अदालत में सूर और सैदा शहर का हाल तुम्हारे हाल से ज़्यादा बर्दाश्त के लायक़ होगा |
\v 15 और तू ऐ कफ़र्नहूम, क्या तू आसमान तक बुलन्द किया जाएगा? नहीं, बल्कि तू 'आलम-ए-अर्वाह में उतारा जाएगा |
\s5
\v 16 "जो तुम्हारी सुनता है वो मेरी सुनता है, और जो तुम्हें नहीं मानता वो मुझे नहीं मानता, और जो मुझे नहीं मानता वो मेरे भेजनेवाले को नहीं मानता |"
\s5
\v 17 वो सत्तर ख़ुश होकर फिर आए और कहने लगे, "ऐ ख़ुदावन्द, तेरे नाम से बदरूहें भी हमारे ताबे' हैं |"
\v 18 उसने उनसे कहा, "मैं शैतान को बिजली की तरह आसमान से गिरा हुआ देख रहा था |"
\v 19 देखो, मैंने तुम को इख़्तियार दिया कि साँपों और बिच्छुओं को कुचलो और दुश्मन की सारी क़ुदरत पर ग़ालिब आओ, और तुम को हरगिज़ किसी चीज़ से नुक़सान न पहुंचेगा |
\v 20 तोभी इससे ख़ुश न हो कि रूहें तुम्हारे ताबे' हैं बल्कि इससे ख़ुश हो कि तुम्हारे नाम आसमान पर लिखे हुए है |"
\s5
\v 21 उसी घड़ी वो रु-उल-क़ुद्दूस से ख़ुशी में भर गया और कहने लगा, "ऐ बाप ! आसमान और ज़मीन के ख़ुदावन्द, में तेरी हम्द करता हूँ कि तूने ये बातें होशियारों और 'अक़्लमन्दों से छिपाई और बच्चों पर ज़ाहिर कीं हाँ, ऐ, बाप क्यूँकि ऐसा ही तुझे पसंद आया |"
\s5
\v 22 मेरे बाप की तरफ़ से सब कुछ मुझे सौंपा गया; और कोई नहीं जानता कि बेटा कौन है सिवा बाप के, और कोई नहीं जानता कि बाप कौन है सिवा बेटे के और उस शख़्स के जिस पर बेटा उसे ज़ाहिर करना चाहे |"
\s5
\v 23 और शागिर्दों की तरफ़ मूख़ातिब होकर ख़ास उन्हीं से कहा, "मुबारक है वो आँखें जो ये बातें देखती हैं जिन्हें तुम देखते हो |"
\v 24 क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ कि बहुत से नबियों और बादशाहों ने चाहा कि जो बातें तुम देखते हो देखें मगर न देखी, और जो बातें तुम सुनते हो सुनें मगर न सुनीं |"
\s5
\v 25 और देखो, एक शरा का आलिम उठा, और ये कहकर उसकी आज़माइश करने लगा, "ऐ उस्ताद, मैं क्या करूँ कि हमेशा की ज़िन्दगी का बारिस बनूँ?"
\v 26 उसने उससे कहा, "तौरेत में क्या लिखा है? तू किस तरह पढ़ता है?"
\v 27 उसने जवाब में कहा, "ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से अपने सारे दिल और अपनी सारी जान और अपनी सारी ताक़त और अपनी सारी 'अक़्ल से मुहब्बत रख और अपने पड़ोसी से अपने बराबर मुहब्बत रख |"
\v 28 उसने उससे कहा, "तूने ठीक जवाब दिया, यही कर तो तू जिएगा |"
\s5
\v 29 मगर उसने अपने आप को रास्तबाज़ ठहराने की ग़रज़ से ईसा' से पूछा, "फिर मेरा पड़ोसी कौन है?"
\v 30 ईसा' ने जवाब में कहा, “ एक आदमी यरूशलीम से यरीहू की तरफ़ जा रहा था कि डाकुओं में घिर गया| उन्होंने उसके कपड़े उतार लिए और मारा भी और अधमरा छोड़कर चले गए|
\s5
\v 31 इत्तफ़ाक़न एक काहिन उसी राह से जा रहा था, और उसे देखकर कतरा कर चला चला गया |
\v 32 इसी तरह एक लावी उस जगह आया, वो भी उसे देखकर कतरा कर चला गया |
\s5
\v 33 लेकिन एक सामरी सफ़र करते करते वहाँ आ निकला, और उसे देखकर उसने तरस खाया |
\v 34 और उसके पास आकर उसके ज़ख़्मों को तेल और मय लगा कर बाँधा, और अपने जानवर पर सवार करके सराय में ले गया और उसकी देखरेख की |
\v 35 दूसरे दिन दो दीनार निकालकर भटयारे को दिए और कहा, 'इसकी देख भाल करना और जो कुछ इससे ज़्यादा ख़र्च होगा मैं फिर आकर तुझे अदा कर दूँगा |
\s5
\v 36 इन तीनों में से उस शख़्स का जो डाकुओं में घिर गया था तेरी नज़र में कौन पड़ोसी ठहरा?”
\v 37 उसने कहा, "वो जिसने उस पर रहम किया ईसा' ने उससे कहा, "जा तू भी ऐसा ही कर |"
\s5
\v 38 फिर जब जा रहे थे तो वो एक गाँव में दाख़िल हुआ और मर्था नाम 'औरत ने उसे अपने घर में उतारा |
\v 39 और मरियम नाम उसकी एक बहन थी, वो ईसा' के पाँव के पास बैठकर उसका कलाम सुन रही थी |
\s5
\v 40 लेकिन मर्था ख़िदमत करते करते घबरा गई, पस उसके पास आकर कहने लगी, "ऐ ख़ुदावन्द, क्या तुझे ख़याल नहीं कि मेरी बहन ने ख़िदमत करने को मुझे अकेला छोड़ दिया है, पस उसे कह कि मेरी मदद करे |"
\v 41 ख़ुदावन्द ने जवाब में उससे कहा, "मर्था, मर्था, तू बहुत सी चीज़ों की फ़िक्र-ओ-तरद्दुद में है |
\v 42 लेकिन एक चीज़ ज़रूर है और मरियम ने वो अच्छा हिस्सा चुन लिया है जो उससे छीना न जाएगा |"
\s5
\c 11
\v 1 फिर ऐसा हुआ कि वो किसी जगह दु'आ कर रहा था; जब कर चुका तो उसके शागिर्दों में से एक ने उससे कहा, "ऐ ख़ुदावन्द! जैसा युहन्ना ने अपने शागिर्दों को दु'आ करना सिखाया, तू भी हमें सिखा |"
\s5
\v 2 उसने उनसे कहा, "जब तुम दु'आ करो तो कहो, ! ऐ बाप ! तेरा नाम नाम पाक माना जाए, तेरी बादशाही आए |
\s5
\v 3 'हमारी रोज़ की रोटी हर रोज़ हमें दिया कर |
\v 4 ' और हमारे गुनाह मु'आफ़ कर, क्यूंकि हम भी अपने हर क़र्ज़दार को मु'आफ़ करतें हैं, और हमें आज़माइश में न ला' |"
\s5
\v 5 फिर उसने उनसे कहा, "तुम में से कौन है जिसका एक दोस्त हो, और वो आधी रात को उसके पास जाकर उससे कहे, 'ऐ दोस्त, मुझे तीन रोटियाँ दे |
\v 6 क्यूँकि मेरा एक दोस्त सफ़र करके मेरे पास आया है, और मेरे पास कुछ नहीं कि उसके आगे रख्खूँ |'
\v 7 और वो अन्दर से जवाब में कहे, 'मुझे तक्लीफ़ न दे, अब दरवाज़ा बंद है और मेरे लड़के मेरे पास बिछोने पर हैं, मैं उठकर तुझे दे नहीं सकता |'
\v 8 मैं तुम से कहता हूँ, कि अगरचे वो इस वजह से कि उसका दोस्त है उठकर उसे न दे, तोभी उसकी बेशर्मी की वजह से उठकर जितनी दरकार है उसे देगा |
\s5
\v 9 पस मैं तुम से कहता हूँ, माँगो तो तुम्हें दिया जाएगा, ढूँढो तो पाओगे, दरवाज़ा खटखटाओ तो तुम्हारे लिए खोला जाएगा |
\v 10 क्यूँकि जो कोई माँगता है उसे मिलता है, और जो ढूँढता है वो पाता है, और जो खटखटाता है उसके लिए खोला जाएगा |
\s5
\v 11 तुम में से ऐसा कौन सा बाप है, कि जब उसका बेटा रोटी माँगे तो उसे पत्थर दे; या मछली माँगे तो मछली के बदले उसे साँप दे ?
\v 12 या अंडा माँगे तो उसे बिच्छू दे?
\v 13 पस जब तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी चीज़ें देना जानते हो, तो आसमानी बाप अपने माँगने वालों को रूह-उल-कुद्दूस क्यूँ न देगा |
\s5
\v 14 फिर वो एक गूँगी बदरुह को निकाल रहा था, और जब वो बदरूह निकल गई तो ऐसा हुआ कि गूँगा बोला और लोगों ने ता'ज्जुब किया |
\v 15 लेकिन उनमें से कुछ ने कहा, "ये तो बदरूहों के सरदार बा'लज़बूल की मदद से बदरूहों को निकालता है |"
\s5
\v 16 कुछ और लोग आज़माइश के लिए उससे एक आसमानी निशान तलब करने लगे |
\v 17 मगर उसने उनके ख़यालात को जानकर उनसे कहा, "जिस सल्तनत में फूट पड़े, वो वीरान हो जाती है; और जिस घर में फूट पड़े, वो बर्बाद हो जाता है |
\s5
\v 18 और अगर शैतान भी अपना मुख़ालिफ़ हो जाए, तो उसकी सल्तनत किस तरह क़ायम रहेगी? क्यूँकि तुम मेरे बारे मे कहते हो, कि ये बदरूहों को बा'लज़बूल की मदद से निकालता है |
\v 19 और अगर में बदरूहों को बा'लज़बूल की मदद से निकलता हूँ, तो तुम्हारे बेटे किसकी मदद से निकालते हैं? पस वही तुम्हारा फ़ैसला करेंगे |
\v 20 लेकिन अगर मैं बदरूहों को ख़ुदा की क़ुदरत से निकालता हूँ, तो ख़ुदा की बादशाही तुम्हारे पास आ पहुँची |
\s5
\v 21 जब ताक़तवर आदमी हथियार बाँधे हुए अपनी हवेली की रखवाली करता है, तो उसका माल महफ़ूज़ रहता है |
\v 22 लेकिन जब उससे कोई ताक़तवर हमला करके उस पर ग़ालिब आता है, तो उसके सब हथियार जिन पर उसका भरोसा था छीन लेता और उसका माल लूट कर बाँट देता है |
\v 23 जो मेरी तरफ़ नहीं वो मेरे ख़िलाफ़ है, और जो मेरे साथ जमा' नहीं करता वो बिखेरता है |
\s5
\v 24 “जब नापाक रूह आदमी में से निकलती है तो सूखे मुक़ामों में आराम ढूँढती फिरती है, और जब नहीं पाती तो कहती है, 'मैं अपने उसी घर में लौट जाऊँगी जिससे निकली हूँ |”
\v 25 और आकर उसे झड़ा हुआ और आरास्ता पाती है |
\v 26 फिर जाकर और सात रूहें अपने से बुरी अपने साथ ले आती है और वो उसमें दाख़िल होकर वहाँ बसती हैं, और उस आदमी का पिछला हाल पहले से भी ख़राब हो जाता है |
\s5
\v 27 जब वो ये बातें कह रहा था तो ऐसा हुआ कि भीड़ में से एक 'औरत ने पुकार कर उससे कहा, “मुबारक है वो पेट जिसमें तू रहा और वो आंचल जो तू ने पिये |”
\v 28 उसने कहा, "हाँ; मगर ज़्यादा मुबारक वो है जो ख़ुदा का कलाम सुनते और उस पर 'अमल करते हैं |"
\s5
\v 29 जब बड़ी भीड़ जमा' होती जाती थी तो वो कहने लगा, "इस ज़माने के लोग बुरे हैं, वो निशान तलब करते हैं; मगर युनाह के निशान के सिवा कोई और निशान उनको न दिया जाएगा |"
\v 30 क्यूँकि जिस तरह युनाह नीनवे के लोगों के लिए निशान ठहरा, उसी तरह इब्न-ए-आदम भी इस ज़माने के लोगों के लिए ठहरेगा |
\s5
\v 31 दक्खिन की मलिका इस ज़माने के आदमियों के साथ 'अदालत के दिन उठकर उनको मुजरिम ठहराएगी, क्यूँकि वो दुनिया के किनारे से सुलेमान की हिकमत सुनने को आई, और देखो, यहाँ वो है जो सुलेमान से भी बड़ा है |
\s5
\v 32 नीनवे के लोग इस ज़माने के लोगों के साथ, 'अदालत के दिन खड़े होकर उनको मुजरिम ठहराएँगे; क्यूँकि उन्होंने युनाह के एलान पर तौबा कर ली, और देखो, यहाँ वो है जो युनाह से भी बड़ा है |
\s5
\v 33 "कोई शख़्स चराग़ जला कर तहखाने में या पैमाने के नीचे नहीं रखता, बल्कि चराग़दान पर रखता है ताकि अन्दर जाने वालों को रोशनी दिखाई दे |"
\v 34 तेरे बदन का चराग़ तेरी आँख है, जब तेरी आँख दुरुस्त है तो तेरा सारा बदन भी रोशन है, और जब ख़राब है तो तेरा बदन भी तारीक है |
\v 35 पस देख, जो रोशनी तुझ में है तारीकी तो नहीं !
\v 36 पस अगर तेरा सारा बदन रोशन हो और कोई हिस्सा तारीक न रहे, तो वो तमाम ऐसा रोशन होगा जैसा उस वक़्त होता है जब चराग़ अपने चमक से रोशन करता है |
\s5
\v 37 जो वो बात कर रहा था तो किसी फ़रीसी ने उसकी दा'वत की |पस वो अन्दर जाकर खाना खाने बैठा |
\v 38 फ़रीसी ने ये देखकर ता'अज्जुब किया कि उसने खाने से पहले ग़ुस्ल नहीं किया |
\s5
\v 39 ख़ुदावन्द ने उससे कहा, "ऐ फ़रीसियों ! तुम प्याले और तश्तरी को ऊपर से तो साफ़ करते हो, लेकिन तुम्हारे अन्दर लूट और बदी भरी है |"
\v 40 ऐ नादानों ! जिसने बाहर को बनाया क्या उसने अन्दर को नहीं बनाया ?
\v 41 हाँ ! अन्दर की चीज़ें ख़ैरात कर दो, तो देखो, सब कुछ तुम्हारे लिए पाक होगा |
\s5
\v 42 "लेकिन ऐ फ़रीसियों ! तुम पर अफ़सोस, कि पुदीने और सुदाब और हर एक तरकारी पर दसवां हिस्सा देते हो, और इन्साफ़ और ख़ुदा की मुहब्बत से ग़ाफ़िल रहते हो; लाज़िम था कि ये भी करते और वो भी न छोड़ते |"
\s5
\v 43 ऐ फ़रीसियों ! तुम पर अफ़सोस, कि तुम 'इबादतख़ानों में आ'ला दर्जे की कुर्सियाँ और और बाज़ारों में सलाम चाहते हो |
\v 44 तुम पर अफ़सोस ! क्यूँकि तुम उन छिपी हुई क़ब्रों की तरह हो जिन पर आदमी चलते है, और उनको इस बात की ख़बर नहीं |
\s5
\v 45 फिर शरा' के 'आलिमों में से एक ने जवाब में उससे कहा, "ऐ उस्ताद ! इन बातों के कहने से तू हमें भी बे'इज़्ज़त करता है |"
\v 46 उसने कहा, "ऐ शरा' के 'आलिमो ! तुम पर भी अफ़सोस, कि तुम ऐसे बोझ जिनको उठाना मुश्किल है,आदमियों पर लादते हो और तुम एक उंगली भी उन बोझों को नहीं लगाते |"
\s5
\v 47 तुम पर अफ़सोस, कि तुम तो नबियों की क़ब्रों को बनाते हो और तुम्हारे बाप-दादा ने उनको क़त्ल किया था |
\v 48 पस तुम गवाह हो और अपने बाप-दादा के कामों को पसन्द करते हो, क्यूँकि उन्होंने तो उनको क़त्ल किया था और तुम उनकी क़ब्रें बनाते हो |
\s5
\v 49 इसी लिए ख़ुदा की हिक्मत ने कहा है, "मैं नबियों और रसूलों को उनके पास भेजूँगी, वो उनमें से कुछ को क़त्ल करेंगे और कुछ को सताएँगे |'
\v 50 ताकि सब नबियों के ख़ून का जो बिना-ए-'आलम से बहाया गया, इस ज़माने के लोगों से हिसाब किताब लिया जाए|
\v 51 हाबिल के ख़ून से लेकर उस ज़करियाह के ख़ून तक, जो क़ुर्बानगाह और मक़्दिस के बीच में हलाक हुआ |मैं तुम से सच कहता हूँ कि इसी ज़माने के लोगों से सब का हिसाब किताब लिया जाएगा |
\s5
\v 52 ऐ शरा' के 'आलिमो ! तुम पर अफ़सोस, कि तुम ने मा'रिफ़त की कुंजी छीन ली, तुम ख़ुद भी दाख़िल न हुए और दाख़िल होने वालों को भी रोका |"
\s5
\v 53 जब वो वहाँ से निकला, तो आलिम और फ़रीसी उसे बे-तरह चिपटने और छेड़ने लगे ताकि वो बहुत से बातों का ज़िक्र करे,
\v 54 और उसकी घात में रहे ताकि उसके मुँह की कोई बात पकड़े |
\s5
\c 12
\v 1 इतने में जब हज़ारों आदमियों की भीड़ लग गई, यहाँ तक कि एक दूसरे पर गिरा पड़ता था, तो उसने सबसे पहले अपने शागिर्दों से ये कहना शुरू' किया, “उस ख़मीर से होशियार रहना जो फ़रीसियों की रियाकारी है |
\s5
\v 2 क्यूँकि कोई चीज़ ढकी नहीं जो खोली न जाएगी, और न कोई चीज़ छिपी है जो जानी न जाएगी |
\v 3 इसलिए जो कुछ तुम ने अंधेरे में कहा है वो उजाले में सुना जाएगा; और जो कुछ तुम ने कोठरियों के अन्दर कान में कहा है, छतों पर उसका एलान किया जाएगा |”
\s5
\v 4 "मगर तुम दोस्तों से मैं कहता हूँ कि उनसे न डरो जो बदन को क़त्ल करते हैं, और उसके बा'द और कुछ नहीं कर सकते "
\v 5 लेकिन मैं तुम्हें जताता हूँ कि किससे डरना चाहिए, उससे डरो जिसे इख़्तियार है कि क़त्ल करने के बा'द जहन्नुम में डाले; हाँ, मैं तुम से कहता हूँ कि उसी से डरो |
\s5
\v 6 क्या दो पैसे की पाँच चिड़िया नहीं बिकती? तो भी ख़ुदा के सामने उनमें से एक भी फ़रामोश नहीं होती |
\v 7 बल्कि तुम्हारे सिर के सब बाल भी गिने हुए है; डरो, मत तुम्हारी क़द्र तो बहुत सी चिड़ियों से ज़्यादा है |
\s5
\v 8 "और मैं तुम से कहता हूँ कि जो कोई आदमियों के सामने मेरा इक़रार करे, इब्न-ए-आदम भी ख़ुदा के फ़रिश्तों के सामने उसका इक़रार करेगा |"
\v 9 मगर जो आदमियों के सामने मेरा इन्कार करे, ख़ुदा के फ़रिश्तों के सामने उसका इन्कार किया जाएगा |
\v 10 "और जो कोई इब्न-ए-आदम के ख़िलाफ़ कोई बात कहे, उसको मु'आफ़ किया जाएगा; लेकिन जो रूह-उल-कुद्दूसके हक में कुफ़्र बके, उसको मु'आफ़ न किया जाएगा |"
\s5
\v 11 "और जब वो तुम को 'इबादतख़ानों में और हाकिमों और इख़्तियार वालों के पास ले जाएँ, तो फ़िक्र न करना कि हम किस तरह या क्या जवाब दें या क्या कहें |"
\v 12 क्यूँकि रूह-उल-कुद्दूस उसी वक़्त तुम्हें सिखा देगा कि क्या कहना चाहिए |"
\s5
\v 13 "फिर भीड़ में से एक ने उससे कहा, "ऐ उस्ताद ! मेरे भाई से कह कि मेरे बाप की जायदाद का मेरा हिस्सा मुझे दे |"
\v 14 उसने उससे कहा, "मियाँ ! किसने मुझे तुम्हारा मुन्सिफ़ या बाँटने वाला मुक़र्रर किया है?"
\v 15 और उसने उनसे कहा, "ख़बरदार ! अपने आप को हर तरह के लालच से बचाए रख्खो, क्यूँकि किसी की ज़िन्दगी उसके माल की ज़्यादती पर मौक़ूफ़ नहीं |"
\s5
\v 16 और उसने उनसे एक मिसाल कही, "किसी दौलतमन्द की ज़मीन में बड़ी फ़सल हुई |"
\v 17 पस वो अपने दिल में सोचकर कहने लगा, 'मैं क्या करूँ?क्यूँकि मेरे यहाँ जगह नहीं जहाँ अपनी पैदावार भर रख्खूँ?'
\v 18 उसने कहा, 'मैं यूँ करूँगा कि अपनी कोठियाँ ढा कर उनसे बड़ी बनाऊँगा;
\v 19 और उनमें अपना सारा अनाज और माल भर दूंगा और अपनी जान से कहूँगा, कि ऐ जान ! तेरे पास बहुत बरसों के लिए बहुत सा माल जमा' है; चैन कर, खा पी ख़ुश रह |'
\s5
\v 20 मगर ख़ुदा ने उससे कहा, 'ऐ नादान ! इसी रात तेरी जान तुझ से तलब कर ली जाएगी, पस जो कुछ तू ने तैयार किया है वो किसका होगा?'
\v 21 ऐसा ही वो शख़्स है जो अपने लिए ख़ज़ाना जमा' करता है, और ख़ुदा के नज़दीक दौलतमन्द नहीं
\s5
\v 22 फिर उसने अपने शागिर्दों से कहा, "इसलिए मैं तुम से कहता हूँ कि अपनी जान की फ़िक्र न करो कि हम क्या खाएँगे, और न अपने बदन की कि क्या पहनेंगे |"
\v 23 क्यूँकि जान ख़ुराक से बढ़ कर है और बदन पोशाक से |
\s5
\v 24 परिंदों पर ग़ौर करो कि न बोते हैं और न काटते, न उनके खत्ता होता है न कोठी; तोभी ख़ुदा उन्हें खिलाता है | तुम्हारी क़द्र तो परिन्दों से कहीं ज़्यादा है |
\v 25 तुम में ऐसा कोन है जो फ़िक्र करके अपनी 'उम्र में एक घड़ी बढ़ा सके?
\v 26 पस जब सबसे छोटी बात भी नहीं कर सकते, तो बाक़ी चीज़ों की फ़िक्र क्यूँ करते हो?
\s5
\v 27 सोसन के दरख़्तों पर ग़ौर करो कि किस तरह बढ़ते है; वो न मेहनत करते हैं न कातते हैं, तोभी मैं तुम से कहता हूँ कि सुलेमान भी बावजूद अपनी सारी शान-ओ-शौकत के उनमें से किसी की तरह मुलब्बस न था |
\v 28 पस जब ख़ुदा मैदान की घास को जो आज है कल तन्दूर में झोंकी जाएगी, ऐसी पोशाक पहनाता है; तो ऐ कम ईमान वालो ! तुम को क्यूँ न पहनाएगा?
\s5
\v 29 और तुम इसकी तलाश में न रहो कि क्या खाएँगे या क्या पीएँगे, और न शक्की बनो |
\v 30 क्यूँकि इन सब चीज़ों की तलाश में दुनिया की क़ौमें रहती हैं, लेकिन तुम्हारा आसमानी बाप जानता है कि तुम इन चीज़ों के मुहताज हो |
\s5
\v 31 हाँ, उसकी बादशाही की तलाश में रहो तो ये चीज़ें भी तुम्हें मिल जाएँगी |
\v 32 "ऐ छोटे गल्ले, न डर; क्यूँकि तुम्हारे आसमानी बाप को पसन्द आया कि तुम्हें बादशाही दे |
\s5
\v 33 अपना माल अस्बाब बेचकर ख़ैरात कर दो, और अपने लिए ऐसे बटवे बनाओ जो पुराने नहीं होते; या'नि आसमान पर ऐसा ख़ज़ाना जो ख़ाली नही होता, जहाँ चोर नज़दीक नहीं जाता, और कीड़ा ख़राब नहीं करता |
\v 34 क्यूँकि जहाँ तुम्हारा ख़ज़ाना है, वहीं तुम्हारा दिल भी रहेगा |
\s5
\v 35 "तुम्हारी कमरें बँधी रहें और तुम्हारे चराग़ जलते रहें |
\v 36 और तुम उन आदमियों की तरह बनो जो अपने मालिक की राह देखते हों कि वो शादी में से कब लौटेगा, ताकि जब वो आकर दरवाज़ा खटखटाए तो फ़ौरन उसके लिए खोल दें |
\s5
\v 37 मुबारक है वो नौकर जिनका मालिक आकर उन्हें जागता पाए; मैं तुम से सच कहता हूँ कि वो कमर बाँध कर उन्हें खाना खाने को बिठाएगा, और पास आकर उनकी ख़िदमत करेगा |
\v 38 अगर वो रात के दूसरे पहर में या तीसरे पहर में आकर उनको ऐसे हाल में पाए, तो वो नौकर मुबारक हैं |
\s5
\v 39 लेकिन ये जान रखो कि अगर घर के मालिक को मा'लूम होता कि चोर किस घड़ी आएगा तो जागता रहता और अपने घर में नक़ब लगने न देता |
\v 40 तुम भी तैयार रहो; क्यूँकि जिस घड़ी तुम को गुमान भी न होगा, इब्ने-ए-आदम आ जाएगा |"
\s5
\v 41 पतरस ने कहा," ऐ ख़ुदावन्द, तू ये मिसाल हम ही से कहता है या सबसे |"
\v 42 ख़ुदावन्द ने कहा, "कौन है वो ईमानदार और 'अक़्लमन्द, जिसका मालिक उसे अपने नौकर चाकरों पर मुक़र्रर करे हर एक की ख़ुराक वक़्त पर बाँट दिया करे |
\v 43 मुबारक है वो नौकर जिसका मालिक आकर उसको ऐसा ही करते पाए |
\v 44 मैं तुम से सच कहता हूँ ,कि वो उसे अपने सारे माल पर मुख़्तार कर देगा |
\s5
\v 45 लेकिन अगर वो नौकर अपने दिल में ये कहकर मेरे मालिक के आने में देर है, ग़ुलामों और लौंडियों को मारना और खा पी कर मतवाला होना शुरू' करे |
\v 46 तो उस नौकर का मालिक ऐसे दिन, कि वो उसकी राह न देखता हो, आ मौजूद होगा और ख़ूब कोड़े लगाकर उसे बेईमानों में शामिल करेगा |
\s5
\v 47 और वो नौकर जिसने अपने मालिक की मर्ज़ी जान ली, और तैयारी न की और न उसकी मर्ज़ी के मुताबिक़ 'अमल किया, बहुत मार खाएगा |
\v 48 मगर जिसने न जानकर मार खाने के काम किए वो थोड़ी मार खाएगा; और जिसे बहुत दिया गया उससे बहुत तलब किया जाएगा, और जिसे बहुत सौंपा गया उससे ज़्यादा तलब करेंगे |
\s5
\v 49 "मैं ज़मीन पर आग भड़काने आया हूँ, और अगर लग चुकी होती तो मैं क्या ही ख़ुश होता |"
\v 50 लेकिन मुझे एक बपतिस्मा लेना है, और जब तक वो हो न ले मैं बहुत ही तंग रहूँगा |
\s5
\v 51 क्या तुम गुमान करते हो कि मैं ज़मीन पर सुलह कराने आया हूँ? मैं तुम से कहता हूँ कि नहीं, बल्कि जुदाई कराने |
\v 52 क्यूँकि अब से एक घर के पाँच आदमी आपस में दुश्मनी रख्खेंगे, दो से तीन और तीन से दो |
\v 53 बाप बेटे से दुश्मनी रख्खेगा और बेटा बाप से, सास बहु से और बहु सास से |"
\s5
\v 54 फिर उसने लोगों से भी कहा, "जब बादल को पच्छिम से उठते देखते हो तो फ़ौरन कहते हो कि पानी बरसेगा, और ऐसा ही होता है;
\v 55 और जब तुम मा'लूम करते हो कि दख्खिना चल रही है तो कहते हो कि लू चलेगी, और ऐसा ही होता है |
\v 56 ऐ रियाकारो ! ज़मीन और आसमान की सूरत में फ़र्क़ करना तुम्हें आता है, लेकिन इस ज़माने के बारे मे फ़र्क़ करना क्यूँ नहीं आता?
\s5
\v 57 "और तुम अपने आप ही क्यूँ फ़ैसला नहीं कर लेते कि ठीक क्या है?"
\v 58 जब तू अपने दुशमन के साथ हाकिम के पास जा रहा है तो रास्ते में कोशिस करके उससे छूट जाए, ऐसा न हो कि वो तुझको फैसला करने वाले के पास खींच ले जाए, और फ़ैसला करने वाला तुझे सिपाही के हवाले करे और सिपाही तुझे क़ैद में डाले |
\v 59 मैं तुझ से कहता हूँ कि जब तक तू दमड़ी-दमड़ी अदा न कर देगा वहाँ से हरगिज़ न छूटेगा |"
\s5
\c 13
\v 1 उस वक़्त कुछ लोग हाज़िर थे, जिन्होंने उसे उन गलीलियों की ख़बर दी जिनका ख़ून पिलातुस ने उनके ज़बीहों के साथ मिलाया था |
\v 2 उसने जवाब में उनसे कहा, "इन गलीलियों ने ऐसा दुख पाया, क्या वो इसलिए तुम्हारी समझ में और सब गलीलियों से ज़्यादा गुनहगार थे?"
\v 3 मैं तुम से कहता हूँ कि नहीं; बल्कि अगर तुम तौबा न करोगे, तो सब इसी तरह हलाक होंगे |
\s5
\v 4 या, क्या वो अठारह आदमी जिन पर शेलोख़ का गुम्बद गिरा और दब कर मर गए, तुम्हारी समझ में यरूशलीम के और सब रहनेवालों से ज़्यादा क़ुसूरवार थे?
\v 5 मैं तुम से कहता हूँ कि नहीं; बल्कि अगर तुम तौबा न करोगे, तो सब इसी तरह हलाक होगे |"
\s5
\v 6 फिर उसने ये मिसाल कही, "किसी ने अपने बाग़ में एक अंजीर का दरख़्त लगाया था | वो उसमें फल ढूँढने आया और न पाया |"
\v 7 इस पर उसने बाग़बान से कहा, 'देख तीन बरस से मैं इस अंजीर के दरख़्त में फल ढूँढने आता हूँ और नहीं पाता | इसे काट डाल, ये ज़मीन को भी क्यूँ रोके रहे ?
\s5
\v 8 उसने जवाब में उससे कहा, 'ऐ ख़ुदावन्द, इस साल तू और भी उसे रहने दे, ताकि मैं उसके चारों तरफ़ थाला खोदूँ और खाद डालूँ |
\v 9 अगर आगे फला तो ख़ैर, नहीं तो उसके बा'द काट डालना' "
\s5
\v 10 फिर वो सबत के दिन किसी 'इबादतख़ाने में ता'लीम देता था |
\v 11 और देखो, एक 'औरत थी जिसको अठारह बरस से किसी बदरूह की वजह से कमज़ोरी थी; वो झुक गई थी और किसी तरह सीधी न हो सकती थी |
\s5
\v 12 ईसा' ने उसे देखकर पास बुलाया और उससे कहा, "ऐ 'औरत, तू अपनी कमज़ोरी से छूट गयी "
\v 13 और उसने उस पर हाथ रख्खे, उसी दम वो सीधी हो गई और ख़ुदा की बड़ाई करने लगी |
\v 14 'इबादतख़ाने का सरदार, इसलिए कि ईसा' ने सबत के दिन शिफ़ा बख़्शी, ख़फ़ा होकर लोगों से कहने लगा, "छ: दिन हैं जिनमें काम करना चाहिए, पस उन्हीं में आकर शिफ़ा पाओ न कि सबत के दिन |"
\s5
\v 15 ख़ुदावन्द ने उसके जवाब में कहा, 'ऐ रियाकारो ! क्या हर एक तुम में से सबत के दिन अपने बैल या गधे को खूंटे से खोलकर पानी पिलाने नहीं ले जाता?
\v 16 पस क्या वाजिब न था कि ये जो अब्राहम की बेटी है जिसको शैतान ने अठारह बरस से बाँध कर रख्खा था, सबत के दिन इस क़ैद से छुड़ाई जाती?"
\s5
\v 17 जब उसने ये बातें कहीं तो उसके सब मुख़ालिफ़ शर्मिन्दा हुए, और सारी भीड़ उन 'आलीशान कामों से जो उससे होते थे, ख़ुश हुई |
\s5
\v 18 पस वो कहने लगा, "ख़ुदा की बादशाही किसकी तरह है ? मैं उसको किससे मिसाल दूँ ?"
\v 19 वो राई के दाने की तरह है, जिसको एक आदमी ने लेकर अपने बाग़ में डाल दिया : वो उगकर बड़ा दरख़्त हो गया, और हवा के परिन्दों ने उसकी डालियों पर बसेरा किया |"
\s5
\v 20 उसने फिर कहा, "मैं ख़ुदा की बादशाही को किससे मिसाल दूँ ?"
\v 21 वो ख़मीर की तरह है, जिसे एक 'औरत ने तीन पैमाने आटे में मिलाया, और होते होते सब ख़मीर हो गया |"
\s5
\v 22 वो शहर-शहर और गाँव-गाँव ता'लीम देता हुआ यरूशलीम का सफ़र कर रहा था |
\v 23 किसी शख़्स ने उससे पुछा, "ऐ ख़ुदावन्द ! क्या नजात पाने वाले थोड़े हैं ?"
\v 24 उसने उनसे कहा, "मेहनत करो कि तंग दरवाज़े से दाख़िल हो, क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ कि बहुत से दाख़िल होने की कोशिश करेंगे और न हो सकेंगे |"
\s5
\v 25 जब घर का मालिक उठ कर दरावाज़ा बन्द कर चुका हो, और तुम बाहर खड़े दरवाज़ा खटखटाकर ये कहना शुरू' करो, 'ऐ ख़ुदावन्द ! हमारे लिए खोल दे, और वो जवाब दे, 'मैं तुम को नहीं जानता कि कहाँ के हो |'
\v 26 उस वक़्त तुम कहना शुरू करोगे, 'हम ने तो तेरे रु-ब-रु खाया-पिया और तू ने हमारे बाज़ारों में ता'लीम दी |'
\v 27 मगर वो कहेगा, 'मैं तुम से कहता हूँ, कि मैं नहीं जानता तुम कहाँ के हो | ऐ बदकारो, तुम सब मुझ से दूर हो |
\s5
\v 28 वहाँ रोना और दांत पीसना होगा; तुम अब्राहम और इज़्हाक़ और या'क़ूब और सब नबियों को ख़ुदा की बादशाही में शामिल, और अपने आपको बाहर निकाला हुआ देखोगे;
\v 29 और पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्खिन से लोग आकर ख़ुदा की बादशाही की ज़ियाफ़त में शरीक होंगे |
\v 30 और देखो, कुछ आख़िर ऐसे हैं जो अव्वल होंगे और कुछ अव्वल हैं जो आख़िर होंगे |"
\s5
\v 31 उसी वक़्त कुछ फ़रीसियों ने आकर उससे कहा, "निकल कर यहाँ से चल दे, क्यूँकि हेरोदेस तुझे क़त्ल करना चाहता है |"
\v 32 उसने उनसे कहा, "जाकर उस लोमड़ी से कह दो कि देख, मैं आज और कल बदरूहों को निकालता और शिफ़ा का काम अन्जाम देता रहूँगा, और तीसरे दिन पूरा करूँगा |
\v 33 मगर मुझे आज और कल और परसों अपनी राह पर चलना ज़रूर है, क्यूँकि मुमकिन नहीं कि नबी यरूशलीम से बाहर हलाक हो |
\s5
\v 34 "ऐ यरूशलीम ! ऐ यरूशलीम ! तू जो नबियों को क़त्ल करती है, और जो तेरे पास भेजे गए उन पर पथराव करती है | कितनी ही बार मैंने चाहा कि जिस तरह मुर्ग़ी अपने बच्चों को परों तले जमा' कर लेती है, उसी तरह मैं भी तेरे बच्चों को जमा' कर लूँ, मगर तुम ने न चाहा |"
\v 35 देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे ही लिए छोड़ा जाता है, और मैं तुम से कहता हूँ, कि मुझ को उस वक़्त तक हरगिज़ न देखोगे जब तक न कहोगे, 'मुबारक है वो, जो ख़ुदावन्द के नाम से आता है' |"
\s5
\c 14
\v 1 फिर ऐसा हुआ कि वो सबत के दिन फ़रीसियों के सरदारों में से किसी के घर खाना खाने को गया; और वो उसकी ताक में रहे |
\v 2 और देखो, एक शख़्स उसके सामने था जिसे जलन्दर था |
\v 3 ईसा' ने शरा' के 'आलिमों और फ़रीसियों से कहा, "सबत के दिन शिफ़ा बख़्शना जायज़ है या नहीं ?"
\s5
\v 4 वो चुप रह गए | उसने उसे हाथ लगा कर शिफ़ा बख़्शी और रुख़्सत किया,
\v 5 और उनसे कहा, "तुम में ऐसा कौन है, जिसका गधा या बैल कूएँ में गिर पड़े और वो सबत के दिन उसको फ़ौरन न निकाल ले ?"
\v 6 वो इन बातों का जवाब न दे सके |
\s5
\v 7 जब उसने देखा कि मेहमान सद्र जगह किस तरह पसन्द करते हैं तो उनसे एक मिसाल कही,
\v 8 “जब कोई तुझे शादी में बुलाए तो सद्र जगह पर न बैठ, कि शायद उसने तुझ से भी किसी ज़्यादा 'इज़्ज़तदार को बुलाया हो;
\v 9 और जिसने तुझे और उसे दोनों को बुलाया है, आकर तुझ से कहे, 'इसको जगह दे, 'फिर तुझे शर्मिन्दा होकर सबसे नीचे बैठना पड़े |
\s5
\v 10 बल्कि जब तू बुलाया जाए तो सबसे नीची जगह जा बैठ, ताकि जब तेरा बुलाने वाला आए तो तुझ देखे, 'ऐ दोस्त, आगे बढ़कर बैठ, 'तब उन सब की नज़र में जो तेरे साथ खाने बैठे हैं तेरी इज़्ज़त होगी |
\v 11 क्यूँकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वो छोटा किया जाएगा; और जो अपने आप को छोटा बनाएगा,वो बड़ा किया जाएगा।”
\s5
\v 12 फिर उसने अपने बुलानेवाले से कहा, "जब तू दिन का या रात का खाना तैयार करे, तो अपने दोस्तों या भाइयों या रिश्तेदारों या दौलतमन्द पड़ोसियों को न बुला; ताकि ऐसा न हो कि वो भी तुझे बुलाएँ और तेरा बदला हो जाए |"
\s5
\v 13 बल्कि जब तू दावत करे तो ग़रीबों, लुन्जों, लंगड़ों,अन्धों को बुला |
\v 14 और तुझ पर बरकत होगी, क्यूँकि उनके पास तुझे बदला देने को कुछ नहीं, और तुझे रास्त्बाज़ों की क़यामत में बदला मिलेगा |"
\s5
\v 15 जो उसके साथ खाना खाने बैठे थे उनमें से एक ने ये बातें सुनकर उससे कहा, "मुबारक है वो जो ख़ुदा की बादशाही में खाना खाए |"
\v 16 उसने उसे कहा, "एक शख़्स ने बड़ी दावत की और बहुत से लोगों को बुलाया |"
\v 17 और खाने के वक़्त अपने नौकर को भेजा कि बुलाए हुओं से कहे, 'आओ, अब खाना तैयार है |'
\s5
\v 18 इस पर सब ने मिलकर मु'आफ़ी मांगना शुरू किया | पहले ने उससे कहा, 'मैंने खेत ख़रीदा है, मुझे ज़रूर है कि जाकर उसे देखूँ; मैं तेरी ख़ुशामद करता हूँ, मुझे मु'आफ़ कर |'
\v 19 दूसरे ने कहा, 'मैंने पाँच जोड़ी बैल ख़रीदे हैं, और उन्हें आज़माने जाता हूँ; मैं तुझसे ख़ुशामद करता हूँ, मुझे मु'आफ़ कर|'
\v 20 एक और ने कहा, "मैंने शादी की है, इस वजह से नहीं आ सकता |'"
\s5
\v 21 पस उस नौकर ने आकर अपने मालिक को इन बातों की ख़बर दी | इस पर घर के मालिक ने ग़ुस्सा होकर अपने नौकर से कहा, 'जल्द शहर के बाज़ारों और कूचों में जाकर ग़रीबों, लुन्जों, और लंगड़ों को यहाँ ले आओ |
\v 22 नौकर ने कहा, 'ऐ ख़ुदावन्द, जैसा तूने फ़रमाया था वैसा ही हुआ; और अब भी जगह है |'
\s5
\v 23 मालिक ने उस नौकर से कहा, 'सड़कों और खेत की बाड़ी की तरफ़ जा और लोगों को मजबूर करके ला ताकि मेरा घर भर जाए |
\v 24 क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ कि जो बुलाए गए थे उनमें से कोई शख़्स मेरा खाना चखने न पाएगा |"
\s5
\v 25 जब बहुत से लोग उसके साथ जा रहे थे, तो उसने पीछे मुड़कर उनसे कहा,
\v 26 “अगर कोई मेरे पास आए, और बच्चों और भाइयों और बहनों बल्कि अपनी जान से भी दुश्मनी न करे तो मेरा शागिर्द नहीं हो सकता|
\v 27 जो कोई अपनी सलीब उठाकर मेरे पीछे न आए, वो मेरा शागिर्द नहीं हो सकता|
\s5
\v 28 क्यूँकि तुम में ऐसा कौन है कि जब वो एक गुम्बद बनाना चाहे, तो पहले बैठकर लागत का हिसाब न कर ले कि आया मेरे पास उसके तैयार करने का सामान है या नहीं ?
\v 29 ऐसा न हो कि जब नीव डालकर तैयार न कर सके, तो सब देखने वाले ये कहकर उस पर हँसना शुरू' करें कि,
\v 30 ' इस शख़्स ने 'इमारत शुरू तो की मगर मुकम्मल न कर सका|'
\s5
\v 31 या कौन सा बादशाह है जो दूसरे बादशाह से लड़ने जाता हो और पहले बैठकर मशवरा न कर ले कि आया मैं दस हज़ार से उसका मुक़ाबला कर सकता हूँ या नहीं जो बीस हज़ार लेकर मुझ पर चढ़ आता है ?
\v 32 नहीं तो उसके दूर रहते ही एल्ची भेजकर सुलह की गुज़ारिश करेगा |
\v 33 पस इसी तरह तुम में से जो कोई अपना सब कुछ छोड़ न दे, वो मेरा शागिर्द नहीं हो सकता |
\s5
\v 34 नमक अच्छा तो है, लेकिन अगर नमक का मज़ा जाता रहे तो वो किस चीज़ से मज़ेदार किया जाएगा |
\v 35 न वो ज़मीन के काम का रहा न खाद के, लोग उसे बाहर फेंक देते हैं | जिसके कान सुनने के हों वो सुन ले|”
\s5
\c 15
\v 1 सब महसूल लेनेवाले और गुनहगार उसके पास आते थे ताकि उसकी बातें सुनें|
\v 2 और उलमा और फ़रीसी बुदबुदाकर कहने लगे, “ये आदमी गुनाहगारों से मिलता और उनके साथ खाना खाता है|”
\s5
\v 3 उसने उनसे ये मिसाल कही ,
\v 4 " तुम में से कौन है जिसकी सौ भेड़ें हों, और उनमें से एक गुम हो जाये तो निन्नानवे को जंगल मे छोड़कर उस खोई हुई को जब तक मिल न जाये ढूंढता न रहेगा?
\v 5 फिर मिल जाती है तो वो ख़ुश होकर उसे कन्धे पर उठा लेता है,
\s5
\v 6 और घर पहुँचकर दोस्तों और पड़ोसियों को बुलाता और कहता है, 'मेरे साथ ख़ुशी करो, क्यूँकि मेरी खोई हुई भेड़ मिल गई |'
\v 7 मैं तुम से कहता हूँ कि इसी तरह निन्नानवे, रास्तबाज़ों की निस्बत जो तौबा की हाजत नहीं रखते, एक तौबा करने वाले गुनहगार के बा'इस आसमान पर ज़्यादा ख़ुशी होगी |
\s5
\v 8 "या कौन ऐसी "औरत है जिसके पास दस दिरहम हों और एक खो जाए तो वो चराग़ जलाकर घर में झाडू न दे, और जब तक मिल न जाए कोशिश से ढूंडती न रहे |
\v 9 और जब मिल जाए तो अपनी दोस्तों और पड़ोसियों को बुलाकर न कहे, 'मेरे साथ ख़ुशी करो, क्यूँकि 'मेरा खोया हुआ दिरहम मिल गया |'
\v 10 मैं तुम से कहता हूँ कि इसी तरह एक तौबा करनेवाला गुनाहगार के बारे में ख़ुदा के फ़रिश्तों के सामने ख़ुशी होती है |'
\s5
\v 11 फिर उसने कहा, "किसी शख़्स के दो बेटे थे |
\v 12 उनमें से छोटे ने बाप से कहा, 'ऐ बाप ! माल का जो हिस्सा मुझ को पहुँचता है मुझे दे दे |'उसने अपना माल-ओ-अस्बाब उन्हें बाँट दिया|
\s5
\v 13 और बहुत दिन न गुज़रे कि छोटा बेटा अपना सब कुछ जमा' करके दूर दराज़ मुल्क को रवाना हुआ, और वहाँ अपना माल बदचलनी में उड़ा दिया |
\v 14 जब सब ख़र्च कर चुका तो उस मुल्क में सख़्त काल पड़ा, और वो मुहताज होने लगा |
\s5
\v 15 फिर उस मुल्क के एक बाशिन्दे के वहां जा पड़ा | उसने उसको अपने खेत में खिंजीर चराने भेजा |
\v 16 और उसे आरज़ू थी कि जो फलियाँ खिंजीर खाते थे उन्हीं से अपना पेट भरे, मगर कोई उसे न देता था |
\s5
\v 17 फिर उसने होश में आकर कहा, 'मेरे बाप के बहुत से मज़दूरों को इफ़रात से रोटी मिलती है, और मैं यहाँ भूखा मर रहा हूँ |
\v 18 मैं उठकर अपने बाप के पास जाऊँगा और उससे कहूँगा, 'ऐ बाप ! मैं आसमान का और तेरी नज़र में गुनहगार हुआ |
\v 19 अब इस लायक़ नहीं रहा कि फिर तेरा बेटा कहलाऊँ | मुझे अपने मज़दूरों जैसा कर ले |'
\s5
\v 20 "पस वो उठकर अपने बाप के पास चला | वो अभी दूर ही था कि उसे देखकर उसके बाप को तरस आया, और दौड़कर उसको गले लगा लिया और चूमा |
\v 21 बेटे ने उससे कहा, 'ऐ बाप ! मैं आसमान का और तेरी नज़र मैं गुनहगार हुआ | अब इस लायक़ नहीं रहा कि फिर तेरा बेटा कहलाऊँ |'
\s5
\v 22 बाप ने अपने नौकरों से कहा, 'अच्छे से अच्छा लिबास जल्द निकाल कर उसे पहनाओ और उसके हाथ में अँगूठी और पैरों में जूती पहनाओ;
\v 23 और तैयार किए हुए जानवर को लाकर ज़बह करो, ताकि हम खाकर ख़ुशी मनाएँ |
\v 24 क्यूँकि मेरा ये बेटा मुर्दा था, अब ज़िन्दा हुआ; खो गया था, अब मिला है |' पस वो ख़ुशी मनाने लगे |
\s5
\v 25 "लेकिन उसका बड़ा बेटा खेत में था | जब वो आकर घर के नज़दीक पहुँचा, तो गाने बजाने और नाचने की आवाज़ सुनी |
\v 26 और एक नौकर को बुलाकर मालूम करने लगा, 'ये क्या हो रहा है? '
\v 27 उसने उससे कहा, 'तेरा भाई आ गया है, और तेरे बाप ने तैयार किया हुआ जानवर ज़बह कराया है, क्यूँकि उसे भला चंगा पाया |'
\s5
\v 28 वो ग़ुस्सा हुआ और अन्दर जाना न चाहा, मगर उसका बाप बाहर जाकर उसे मनाने लगा |
\v 29 उसने अपने बाप से जवाब में कहा, 'देख, इतने बरसों से मैं तेरी ख़िदमत करता हूँ और कभी तेरी नाफ़रमानी नहीं की, मगर मुझे तूने कभी एक बकरी का बच्चा भी न दिया कि अपने दोस्तों के साथ ख़ुशी मनाता |
\v 30 लेकिन जब तेरा ये बेटा आया जिसने तेरा माल-ओ-अस्बाब कस्बियों में उड़ा दिया, तो उसके लिए तूने तैयार किया हुआ जानवर ज़बह कराया है' |
\s5
\v 31 उसने उससे कहा, बेटा, तू तो हमेशा मेरे पास है और जो कुछ मेरा है वो तेरा ही है |
\v 32 लेकिन ख़ुशी मनाना और शादमान होना मुनासिब था, क्यूँकि तेरा ये भाई मुर्दा था अब ज़िन्दा हुआ, खोया था अब मिला है' |"
\s5
\c 16
\v 1 फिर उसने शागिर्दों से भी कहा, "किसी दौलतमन्द का एक मुख़्तार था; उसकी लोगों ने उससे शिकायत की कि ये तेरा माल उड़ाता है |
\v 2 पस उसने उसको बुलाकर कहा, 'ये क्या है जो मैं तेरे हक़ में सुनता हूँ? अपनी मुख़्तारी का हिसाब दे क्यूँकि आगे को तू मुख़्तार नही रह सकता |'
\s5
\v 3 उस मुख़्तार ने अपने जी में कहा, 'क्या करूँ? क्यूँकि मेरा मालिक मुझ से ज़िम्मेदारी छीन लेता है | मिट्टी तो मुझ से खोदी नहीं जाती और भीख माँगने से शर्म आती है |
\v 4 मैं समझ गया कि क्या करूँ, ताकि जब ज़िम्मेदारी से निकाला जाऊँ तो लोग मुझे अपने घरों में जगह दें |'
\s5
\v 5 पस उसने अपने मालिक के एक एक क़र्ज़दार को बुलाकर पहले से पूछा, 'तुझ पर मेरे मालिक का क्या आता है?'
\v 6 उसने कहा, 'सौ मन तेल |' उसने उससे कहा, 'अपनी दस्तावेज़ ले और जल्द बैठकर पचास लिख दे'|
\v 7 फिर दूसरे से कहा, 'तुझ पर क्या आता है?' उसने कहा, 'सौ मन गेहुँ |' उसने उससे कहा, 'अपनी दस्तावेज़ लेकर अस्सी लिख दे |'
\s5
\v 8 "और मालिक ने बेईमान मुख़्तार की ता'रीफ़ की, इसलिए कि उसने होशियारी की थी |क्यूँकि इस जहान के फ़र्ज़न्द अपने हमवक़्तों के साथ मु'आमिलात में नूर के फ़र्ज़न्द से ज़्यादा होशियार हैं |
\v 9 और मैं तुम से कहता हूँ कि नारास्ती की दौलत से अपने लिए दोस्त पैदा करो, ताकि जब वो जाती रहे तो ये तुम को हमेशा के मुक़ामों में जगह दें |
\s5
\v 10 जो थोड़े में ईमानदार है, वो बहुत में भी ईमानदार है; और जो थोड़े में बेईमान है, वो बहुत में भी बेईमान है |
\v 11 पस जब तुम नारास्त दौलत में ईमानदार न ठहरे तो हक़ीक़ी दौलत कौन तुम्हारे ज़िम्मे करेगा |
\v 12 और अगर तुम बेगाना माल में ईमानदार न ठहरे तो जो तुम्हारा अपना है उसे कौन तुम्हें देगा ?
\s5
\v 13 कोई नौकर दो मालिकों की ख़िदमत नहीं कर सकता: क्यूंकि या तो एक से 'दुश्मनी रख्खेगा और दूसरे से मुहब्बत, या एक से मिला रहेगा और दूसरे को नाचीज़ जानेगा | तुम ख़ुदा और दौलत दोनों की ख़िदमत नहीं कर सकते|
\s5
\v 14 फ़रीसी जो दौलत दोस्त थे, इन सब बातों को सुनकर उसे ठट्ठे में उड़ाने लगे |
\v 15 उसने उनसे कहा, "तुम वो हो कि आदमियों के सामने अपने आपको रास्तबाज़ ठहराते हो, लेकिन ख़ुदा तुम्हारे दिलों को जानता है; क्यूँकि जो चीज़ आदमियों की नज़र में 'आला कद्र है, वो ख़ुदा के नज़दीक मकरूह है |
\s5
\v 16 "शरी'अत और अम्बिया युहन्ना तक रहे; उस वक़्त से ख़ुदा की बादशाही की ख़ुशख़बरी दी जाती है, और हर एक ज़ोर मारकर उसमें दाख़िल होता है |
\v 17 लेकिन आसमान और ज़मीन का टल जाना, शरी'अत के एक नुक्ते के मिट जाने से आसान है |
\s5
\v 18 "जो कोई अपनी बीवी को छोड़कर दूसरी से शादी करे, वो ज़िना करता है; और जो शख़्स शौहर की छोड़ी हुई 'औरत से शादी करे, वो भी ज़िना करता है |
\s5
\v 19 "एक दौलतमन्द था, जो इर्ग़वानी और महीन कपड़े पहनता और हर रोज़ ख़ुशी मनाता और शान-ओ-शौकत से रहता था |
\v 20 और ला'ज़र नाम एक ग़रीब नासूरों से भरा हुआ उसके दरवाज़े पर डाला गया था |
\v 21 उसे आरज़ू थी कि दौलतमन्द की मेज़ से गिरे हुए टुकड़ों से अपना पेट भरे; बल्कि कुत्ते भी आकर उसके नासूर को चाटते थे |
\s5
\v 22 और ऐसा हुआ कि वो ग़रीब मर गया, और फ़रिश्तों ने उसे ले जाकर अब्राहाम की गोद में पहुँचा दिया | और दौलतमन्द भी मरा और दफ्न हुआ;
\v 23 उसने 'आलम-ए-अर्वाह के दरमियान 'अज़ाब में मुब्तिला होकर अपनी आँखें उठाई, और अब्राहम को दूर से देखा और उसकी गोद में ला'ज़र को |
\s5
\v 24 और उसने पुकार कर कहा, 'ऐ बाप अब्राहम !मुझ पर रहम करके ला'ज़र को भेज, कि अपनी ऊँगली का सिरा पानी में भिगोकर मेरी ज़बान तर करे; क्यूँकि मैं इस आग में तड़पता हूँ |'
\s5
\v 25 अब्राहम ने कहा, 'बेटा ! याद कर ले तू अपनी ज़िन्दगी में अपनी अच्छी चीज़ें ले चुका, और उसी तरह ला'ज़र बुरी चीज़ें ले चुका; लेकिन अब वो यहाँ तसल्ली पाता है, और तू तड़पता है |
\v 26 और इन सब बातों के सिवा हमारे तुम्हारे दरमियान एक बड़ा गड्ढा बनाया गया' है, कि जो यहाँ से तुम्हारी तरफ़ पार जाना चाहें न जा सकें और न कोई उधर से हमारी तरफ़ आ सके |'
\s5
\v 27 उसने कहा, 'पस ऐ बाप ! मैं तेरी गुज़ारिश करता हूँ कि तू उसे मेरे बाप के घर भेज,
\v 28 क्यूँकि मेरे पाँच भाई हैं; ताकि वो उनके सामने इन बातों की गवाही दे, ऐसा न हो कि वो भी इस 'अज़ाब की जगह में आएँ |'
\s5
\v 29 अब्राहम ने उससे कहा, 'उनके पास मूसा और अम्बिया तो हैं उनकी सुनें |'
\v 30 उसने कहा, 'नहीं, ऐ बाप अब्राहम ! अगर कोई मुर्दों में से उनके पास जाए तो वो तौबा करेंगे |'
\v 31 उसने उससे कहा, "जब वो मूसा और नबियों ही की नहीं सुनते, तो अगर मुर्दों में से कोई जी उठे तो उसकी भी न सुनेंगे' |"
\s5
\c 17
\v 1 फिर उसने अपने शागिर्दों से कहा, "ये नहीं हो सकता कि ठोकरें न लगें, लेकिन उस पर अफ़सोस है कि जिसकी वजह से लगें |
\v 2 इन छोटों में से एक को ठोकर खिलाने की बनिस्बत, उस शख़्स के लिए ये बेहतर होता है कि चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाता और वो समुन्द्र में फेंका जाता |
\s5
\v 3 ख़बरदार रहो ! अगर तेरा भाई गुनाह करे तो उसे डांट दे, अगर वो तौबा करे तो उसे मु'आफ़ कर |
\v 4 और वो एक दिन में सात दफ़ा'' तेरा गुनाह करे और सातों दफ़ा' तेरे पास फिर आकर कहे कि तौबा करता हूँ, तो उसे मु'आफ़ कर |"
\s5
\v 5 इस पर रसूलों ने ख़ुदावन्द से कहा, "हमारे ईमान को बढ़ा |"
\v 6 ख़ुदावन्द ने कहा, "अगर तुम में राई के दाने के बराबर भी ईमान होता और तुम इस तूत के दरख़्त से कहते, कि जड़ से उखड़ कर समुन्द्र में जा लग, तो तुम्हारी मानता |
\s5
\v 7 "मगर तुम में ऐसा कौन है, जिसका नौकर हल जोतता या भेड़ें चराता हो, और जब वो खेत से आए तो उससे कहे, जल्द आकर खाना खाने बैठ !'
\v 8 और ये न कहे, 'मेरा खाना तैयार कर, और जब तक मैं खाऊँ-पियूँ कमर बाँध कर मेरी ख़िदमत कर; उसके बा'द तू भी खा पी लेना'?
\s5
\v 9 क्या वो इसलिए उस नौकर का एहसान मानेगा कि उसने उन बातों को जिनका हुक्म हुआ ता'मील की?
\v 10 इसी तरह तुम भी जब उन सब बातों की, जिनका तुम को हुक्म हुआ ता'मील कर चुको, तो कहो, 'हम निकम्मे नौकर हैं जो हम पर करना फ़र्ज़ था वही किया है' |"
\s5
\v 11 और अगर ऐसा कि यरूशलीम को जाते हुए वो सामरिया और गलील के बीच से होकर जा रहा था
\v 12 और एक गाँव में दाख़िल होते वक़्त दस कोढ़ी उसको मिले |
\v 13 उन्होंने दूर खड़े होकर बुलन्द आवाज़ से कहा, "ऐ ईसा' ! ऐ ख़ुदावंद ! हम पर रहम कर |
\s5
\v 14 उसने उन्हें देखकर कहा, "जाओ ! अपने आपको काहिनों को दिखाओ !" और ऐसा हुआ कि वो जाते-जाते पाक साफ़ हो गए |
\v 15 फिर उनमें से एक ये देखकर कि मैं शिफ़ा पा गया हूँ, बुलन्द आवाज़ से ख़ुदा की बड़ाई करता हुआ लौटा;
\v 16 और मुँह के बल ईसा' के पाँव पर गिरकर उसका शुक्र करने लगा; और वो सामरी था |
\s5
\v 17 ईसा' ने जवाब मे कहा ,“क्या दसों पाक साफ़ न हुए ; फिर वो नौ कहाँ है ?
\v 18 क्या इस परदेसी के सिवा और न निकले जो लौटकर ख़ुदा की बड़ाई करते?”
\v 19 फिर उससे कहा, "उठ कर चला जा ! तेरे ईमान ने तुझे अच्छा किया है |"
\s5
\v 20 जब फ़रीसियों ने उससे पूछा कि ख़ुदा की बादशाही कब आएगी, तो उसने जवाब में उनसे कहा, "ख़ुदा की बादशाही ज़ाहिरी तौर पर न आएगी |
\v 21 और लोग ये न कहेंगे, 'देखो, यहाँ है या वहाँ है !' क्यूँकि देखो, ख़ुदा की बादशाही तुम्हारे बीच है |"
\s5
\v 22 उसने शागिर्दों से कहा, "वो दिन आएँगे, कि तुम इब्न-ए-आदम के दिनों में से एक दिन को देखने की आरज़ू होगी, और न देखोगे |
\v 23 और लोग तुम से कहेंगे, 'देखो, वहाँ है !' या देखो, यहाँ है !' मगर तुम चले न जाना न उनके पीछे हो लेना |
\v 24 क्यूँकि जैसे बिजली आसमान में एक तरफ़ से कौंध कर आसमान कि दूसरी तरफ़ चमकती है,वैसे ही इब्ने-ए-आदम अपने दिन मे ज़ाहिर होगा |
\s5
\v 25 लेकिन पहले ज़रूर है कि वो बहुत दुख उठाए, और इस ज़माने के लोग उसे रद्द करें |
\v 26 और जैसा नूह के दिनों में हुआ था, उसी तरह इब्न-ए-आदम के दिनों में होगा;
\v 27 कि लोग खाते पीते थे और उनमें ब्याह शादी होती थीं, उस दिन तक जब नूह नाव में दाख़िल हुआ; और तूफ़ान ने आकर सबको हलाक़ किया |"
\s5
\v 28 और जैसा लूत के दिनों में हुआ था, कि लोग खाते-पीते और खरीद-ओ-फ़रोख्त करते, और दरख़्त लगाते और घर बनाते थे |
\v 29 लेकिन जिस दिन लूत सदूम से निकला, आग और गन्धक ने आसमान से बरस कर सबको हलाक किया |
\s5
\v 30 इब्न-ए-आदम के ज़ाहिर होने के दिन भी ऐसा ही होगा |
\v 31 "इस दिन जो छत पर हो और उसका अस्बाब घर में हो, वो उसे लेने को न उतरे; और इसी तरह जो खेत में हो वो पीछे को न लौटे |"
\s5
\v 32 लूत की बीवी को याद रख्खो |
\v 33 जो कोई अपनी जान बचाने की कोशिश करे वो उसको खोएगा, और जो कोई उसे खोए वो उसको ज़िंदा रख्खेगा |
\s5
\v 34 मैं तुम से कहता हूँ कि उस रात दो आदमी एक चारपाई पर सोते होंगे, एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा |
\v 35 दो 'औरतें एक साथ चक्की पीसती होंगी, एक ले ली जाएगी और दूसरी छोड़ दी जाएगी |
\v 36 [दो आदमी जो खेत में होंगे, एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा |"]
\v 37 उन्होंने जवाब में उससे कहा, " ऐ ख़ुदावन्द ! ये कहाँ होगा?" उसने उनसे कहा, "जहाँ मुरदार हैं, वहाँ गिद्ध भी जमा' होंगे |"
\s5
\c 18
\v 1 फिर उसने इस ग़रज़ से कि हर वक़्त दु'आ करते रहना और हिम्मत न हारना चाहिए, उसने ये मिसाल कही :
\v 2 "किसी शहर में एक क़ाज़ी था, न वो ख़ुदा से डरता, न आदमी की कुछ परवा करता था |
\s5
\v 3 और उसी शहर में एक बेवा थी, जो उसके पास आकर ये कहा करती थी, 'मेरा इन्साफ़ करके मुझे मुद्द'ई से बचा |'
\v 4 उसने कुछ 'अरसे तक तो न चाहा, लेकिन आख़िर उसने अपने जी में कहा, 'गरचे मैं न ख़ुदा से डरता और न आदमियों की कुछ परवा करता हूँ |
\v 5 तोभी इसलिए कि ये बेवा मुझे सताती है, मैं इसका इन्साफ़ करूँगा; ऐसा न हो कि ये बार-बार आकर आख़िर को मेरी नाक में दम करे '|"
\s5
\v 6 ख़ुदावन्द ने कहा, "सुनो ये बेइन्साफ़ क़ाज़ी क्या कहता है ?
\v 7 पस क्या ख़ुदा अपने चुने हुए का इन्साफ़ न करेगा, जो रात दिन उससे फ़रियाद करते हैं ?
\v 8 मैं तुम से कहता हूँ कि वो जल्द उनका इन्साफ़ करेगा | तोभी जब इब्न-ए-आदम आएगा, तो क्या ज़मीन पर ईमान पाएगा?
\s5
\v 9 फिर उसने कुछ लोगों से जो अपने पर भरोसा रखते थे, कि हम रास्तबाज़ हैं और बाक़ी आदमियों को नाचीज़ जानते थे, ये मिसाल कही,
\v 10 "दो शख़्स हैकल में दू'आ करने गए: एक फ़रीसी, दूसरा महसूल लेनेवाला |
\s5
\v 11 फ़रीसी खड़ा होकर अपने जी में यूँ दु'आ करने लगा, 'ऐ ख़ुदा मैं तेरा शुक्र करता हूँ कि बाक़ी आदमियों की तरह ज़ालिम, बेइन्साफ़, ज़िनाकार या इस महसूल लेनेवाले की तरह नहीं हूँ |
\v 12 मैं हफ़्ते में दो बार रोज़ा रखता, और अपनी सारी आमदनी पर दसवां हिस्सा देता हूँ |'
\s5
\v 13 “लेकिन महसूल लेने वाले ने दूर खड़े होकर इतना भी न चाहा कि आसमान की तरफ़ आँख उठाए, बल्कि छाती पीट पीट कर कहा ऐ ख़ुदा|,मुझ गुनहगार पर रहम कर |”
\v 14 मैं तुम से कहता हूँ कि ये शख़्स दूसरे की निस्बत रास्तबाज़ ठहरकर अपने घर गया, क्यूँकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा वो छोटा किया जाएगा और जो अपने आपको छोटा बनाएगा वो बड़ा किया जाएगा |"
\s5
\v 15 फिर लोग अपने छोटे बच्चों को भी उसके पास लाने लगे ताकि वो उनको छूए; और शागिर्दों ने देखकर उनको झिड़का |
\v 16 मगर ईसा' ने बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा, "बच्चों को मेरे पास आने दो, और उन्हें मना' न करो; क्यूँकि ख़ुदा की बादशाही ऐंसों ही की है |
\v 17 मैं तुम से सच कहता हूँ कि जो कोई ख़ुदा की बादशाही को बच्चे की तरह क़ुबूल न करे, वो उसमें हरगिज़ दाख़िल न होगा |"
\s5
\v 18 फिर किसी सरदार ने उससे ये सवाल किया, "ऐ उस्ताद ! मैं क्या करूँ ताकि हमेशा की ज़िन्दगी का वारिस बनूँ |
\v 19 ईसा' ने उससे कहा, "तू मुझे क्यूँ नेक कहता है ? कोई नेक नहीं, मगर एक या'नी ख़ुदा |
\v 20 तू हुक्मों को जानता है : ज़िना न कर, ख़ून न कर, चोरी न कर, झूटी गवाही न दे; अपने बाप और माँ की 'इज़्ज़त कर |"
\v 21 उसने कहा, "मैंने लड़कपन से इन सब पर 'अमल किया है |"
\s5
\v 22 ईसा' ने ये सुनकर उससे कहा, "अभी तक तुझ में एक बात की कमी है, अपना सब कुछ बेचकर ग़रीबों को बाँट दे; तुझे आसमान पर ख़ज़ाना मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले |"
\v 23 ये सुन कर वो बहुत ग़मगीन हुआ, क्यूँकि बड़ा दौलतमन्द था |
\s5
\v 24 ईसा' ने उसको देखकर कहा, "दौलतमन्द का ख़ुदा की बादशाही में दाख़िल होना कैसा मुश्किल है !
\v 25 क्यूँकि ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना इससे आसान है, कि दौलतमन्द ख़ुदा की बादशाही में दाख़िल हो |"
\s5
\v 26 सुनने वालो ने कहा, "तो फिर कौन नजात पा सकता है?|
\v 27 उसने कहा, "जो इन्सान से नहीं हो सकता, वो ख़ुदा से हो सकता है |"
\s5
\v 28 पतरस ने कहा, "देख ! हम तो अपना घर-बार छोड़कर तेरे पीछे हो लिए हैं |"
\v 29 उसने उनसे कहा, 'मैं तुम से सच कहता हूँ, कि ऐसा कोई नहीं जिसने घर या बीवी या भाइयों या माँ बाप या बच्चों को ख़ुदा की बादशाही की ख़ातिर छोड़ दिया हो;
\v 30 और इस ज़माने में कई गुना ज़्यादा न पाए, और आने वाले 'आलम में हमेशा की ज़िन्दगी |"
\s5
\v 31 फिर उसने उन बारह को साथ लेकर उनसे कहा, "देखो, हम यरूशलीम को जाते हैं, और जितनी बातें नबियों के ज़रिये लिखी गईं हैं, इब्न-ए-आदम के हक़ में पूरी होंगी |
\v 32 क्यूँकि वो ग़ैर क़ौम वालों के हवाले किया जाएगा; और लोग उसको ठटठों में उड़ाएँगे और बे'इज़्ज़त करेंगे, और उस पर थूकेगे,
\v 33 और उसको कोड़े मारेंगे और क़त्ल करेंगे और वो तीसरे दिन जी उठेगा |
\s5
\v 34 लेकिन उन्होंने इनमें से कोई बात न समझी, और ये कलाम उन पर छिपा रहा और इन बातों का मतलब उनकी समझ में न आया |
\s5
\v 35 जो वो चलते-चलते यरीहू के नज़दीक पहुँचा, तो ऐसा हुआ कि एक अन्धा रास्ते के किनारे बैठा हुआ भीख माँग रहा था |
\v 36 वो भीड़ के जाने की आवाज़ सुनकर पूछने लगा, "ये क्या हो रहा है?"
\v 37 उन्होंने उसे ख़बर दी, "ईसा' नासरी जा रहा है |"
\s5
\v 38 उसने चिल्लाकर कहा, "ऐ ईसा' इब्न-ए-दाऊद, मुझ पर रहम कर !"
\v 39 जो आगे जाते थे, वो उसको डाँटने लगे कि चुप रह; मगर वो और भी चिल्लाया, 'ऐ इब्न-ए-दा,ऊद, मुझ पर रहम कर !"
\s5
\v 40 'ईसा' ने खड़े होकर हुक्म दिया कि उसको मेरे पास ले आओ,जब वो नज़दीक आया तो उसने उससे ये पूंछा|
\v 41 "तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ? उसने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द ! मैं देखने लगूं |"
\s5
\v 42 ईसा' ने उससे कहा, "बीना हो जा, तेरे ईमान ने तुझे अच्छा किया, "
\v 43 वो उसी वक़्त देखने लगा, और ख़ुदा की बड़ाई करता हुआ उसके पीछे हो लिया; और सब लोगों ने देखकर ख़ुदा की तारीफ़ की | " "
\s5
\c 19
\v 1 फिर ईसा' यरीहू में दाख़िल हुआ और उस में से होकर गुज़रने लगा।
\v 2 उस शहर में एक अमीर आदमी ज़क्काई नाम का रहता था जो महसूल लेने वालों का अफ़्सर था।
\s5
\v 3 वह जानना चाहता था कि यह ईसा' कौन है, लेकिन पूरी कोशिश करने के बावुजूद उसे देख न सका, क्यूँकि ईसा' के आस पास बड़ा हुजूम था और ज़क्काई का क़द छोटा था।
\v 4 इस लिए वह दौड़ कर आगे निकला और उसे देखने के लिए गूलर के दरख़्त पर चढ़ गया जो रास्ते में था।
\s5
\v 5 जब ईसा' वहाँ पहुँचा तो उस ने नज़र उठा कर कहा, “ज़क्काई, जल्दी से उतर आ, क्यूँकि आज मुझे तेरे घर में ठहरना है।”
\v 6 ज़क्काई फ़ौरन उतर आया और ख़ुशी से उस की मेहमान-नवाज़ी की।
\v 7 जब लोगों ने ये देखा तो सब बुदबुदाने लगे, “कि वह एक गुनाहगार के यहाँ मेहमान बन गया है ।”
\s5
\v 8 लेकिन ज़क्काई ने ख़ुदावन्द के सामने खड़े हो कर कहा, “ख़ुदावन्द, मैं अपने माल का आधा हिस्सा ग़रीबों को दे देता हूँ। और जिससे मैं ने नाजायज़ तौर से कुछ लिया है उसे चार गुना वापस करता हूँ।”
\v 9 ईसा' ने उस से कहा, “आज इस घराने को नजात मिल गई है, इस लिए कि यह भी इब्राहम का बेटा है।
\v 10 क्यूँकि इब्न-ए-आदम खोये हुए को ढूँडने और नजात देने के लिए आया है।”
\s5
\v 11 अब ईसा' यरूशलम के क़रीब आ चुका था, इस लिए लोग अन्दाज़ा लगाने लगे कि ख़ुदा की बादशाही ज़ाहिर होने वाली है। इस के पेश-ए-नज़र ईसा' ने अपनी यह बातें सुनने वालों को एक मिसाल सुनाई।
\v 12 उस ने कहा, “एक जागीरदार किसी दूरदराज़ मुल्क को चला गया ताकि उसे बादशाह मुक़र्रर किया जाए। फिर उसे वापस आना था।
\s5
\v 13 रवाना होने से पहले उस ने अपने नौकरों में से दस को बुला कर उन्हें सोने का एक एक सिक्का दिया। साथ साथ उस ने कहा, ‘यह पैसे ले कर उस वक़्त तक कारोबार में लगाओ जब तक मैं वापस न आऊँ।’
\v 14 लेकिन उस की रिआया उस से नफ़रत रखती थी, इस लिए उस ने उस के पीछे एलची भेज कर इत्तिला दी, ‘हम नहीं चाहते कि यह आदमी हमारा बादशाह बने।’
\v 15 तो भी उसे बादशाह मुक़र्रर किया गया। इस के बाद जब वापस आया तो उस ने उन नौकरों को बुलाया जिन्हें उस ने पैसे दिए थे ताकि मालूम करे कि उन्हों ने यह पैसे कारोबार में लगा कर कितना मुनाफ़ा किया है।
\s5
\v 16 पहला नौकर आया। उस ने कहा, ‘जनाब, आप के एक सिक्के से दस हो गए हैं।’
\v 17 मालिक ने कहा, ‘शाबाश, अच्छे नौकर। तू थोड़े में वफ़ादार रहा, इस लिए अब तुझे दस शहरों पर इख़तियार दिया।’
\s5
\v 18 फिर दूसरा नौकर आया। उस ने कहा, ‘जनाब, आप के एक सिक्के से पाँच हो गए हैं।’
\v 19 मालिक ने उस से कहा, ‘तुझे पाँच शहरों पर इख़तियार दिया।’
\s5
\v 20 फिर एक और नौकर आ कर कहने लगा, ‘जनाब, यह आप का सिक्का है। मैं ने इसे कपड़े में लपेट कर मह्फ़ूज़ रखा,
\v 21 क्यूँकि मैं आप से डरता था, इस लिए कि आप सख़्त आदमी हैं। जो पैसे आप ने नहीं लगाए उन्हें ले लेते हैं और जो बीज आप ने नहीं बोया उस की फ़सल काटते हैं।’
\s5
\v 22 मालिक ने कहा, ‘शरीर नौकर! मैं तेरे अपने अल्फ़ाज़ के मुताबिक़ तेरा फ़ैसला करूँगा। जब तू जानता था कि मैं सख़्त आदमी हूँ, कि वह पैसे ले लेता हूँ जो ख़ुद नहीं लगाए और वह फ़सल काटता हूँ जिस का बीज नहीं बोया,
\v 23 तो फिर तूने मेरे पैसे साहूकार के यहाँ क्यों न जमा कराए? अगर तू ऐसा करता तो वापसी पर मुझे कम अज़ कम वह पैसे सूद समेत मिल जाते।’
\s5
\v 24 और उसने उनसे कहा, "यह सिक्का इससे ले कर उस नौकर को दे दो जिस के पास दस सिक्के हैं।"
\v 25 उन्होंने उससे कहा , ‘ऐ ख़ुदावंद , उस के पास तो पहले ही दस सिक्के हैं।’
\s5
\v 26 उस ने जवाब दिया, ‘मैं तुम्हें बताता हूँ कि हर शख़्स जिस के पास कुछ है उसे और दिया जाएगा, लेकिन जिस के पास कुछ नहीं है उस से वह भी छीन लिया जाएगा जो उस के पास है।
\v 27 अब उन दुश्मनों को ले आओ जो नहीं चाहते थे कि मैं उन का बादशाह बनूँ। उन्हें मेरे सामने फाँसी दे दो’।”
\s5
\v 28 इन बातों के बाद ईसा दूसरों के आगे आगे यरूशलीम की तरफ़ बढ़ने लगा।
\s5
\v 29 जब वह बैत-फ़गे और बैत-अनियाह गाँव के क़रीब पहुँचा जो ज़ैतून के पहाड़ पर आबाद थे तो उस ने दो शागिर्दों को अपने आगे भेज कर कहा?,
\v 30 “सामने वाले गाँव में जाओ। वहाँ तुम एक जवान गधा देखोगे। वह बंधा हुआ होगा और अब तक कोई भी उस पर सवार नहीं हुआ है। उसे खोल कर ले आओ।
\v 31 अगर कोई पूछे कि गधे को क्यूँ खोल रहे हो तो उसे बता देना कि ख़ुदावन्द को इस की ज़रूरत है।”
\s5
\v 32 दोनों शागिर्द गए तो देखा कि सब कुछ वैसा ही है जैसा ईसा' ने उन्हें बताया था।
\v 33 जब वह जवान गधे को खोलने लगे तो उस के मालिकों ने पूछा, “तुम गधे को क्यूँ खोल रहे हो?”
\v 34 उन्हों ने जवाब दिया, “ख़ुदावन्द को इस की ज़रूरत है।”
\v 35 वह उसे ईसा' के पास ले आए, और अपने कपड़े गधे पर रख कर उसको उस पर सवार किया।
\v 36 जब वह चल पड़ा तो लोगों ने उस के आगे आगे रास्ते में अपने कपड़े बिछा दिए।
\s5
\v 37 चलते चलते वह उस जगह के क़रीब पहुँचा जहाँ रास्ता ज़ैतून के पहाड़ पर से उतरने लगता है। इस पर शागिर्दों का पूरा हुजूम ख़ुशी के मारे ऊँची आवाज़ से उन मोजिज़ों के लिए ख़ुदा की बड़ाई करने लगा जो उन्होंने देखे थे,
\v 38 “मुबारक है वह बादशाह जो ख़ुदावंद के नाम से आता है। आस्मान पर सलामती हो और बुलन्दियों पर इज़्ज़त-ओ-जलाल।”
\s5
\v 39 कुछ फ़रीसी भीड़ में थे उन्होंने ईसा' से कहा, “उस्ताद, अपने शागिर्दों को समझा दें।”
\v 40 उस ने जवाब दिया, “मैं तुम्हें बताता हूँ, अगर यह चुप हो जाएँ तो पत्थर पुकार उठेंगे।”
\s5
\v 41 जब वह यरूशलीम के क़रीब पहुँचा तो शहर को देख कर रो पड़ा
\v 42 और कहा, “काश तू भी उस दिन पहचान लेती कि तेरी सलामती किस में है। लेकिन अब यह बात तेरी आँखों से छुपी हुई है।
\s5
\v 43 क्यूँकि तुझ पर ऐसा वक़्त आएगा कि तेरे दुश्मन तेरे चारों तरफ बन्द बाँध कर तेरा घेरा करेंगे और यूँ तुझे तंग करेंगे।
\v 44 वह तुझे तेरे बच्चों समेत ज़मीन पर पटकेंगे और तेरे अन्दर एक भी पत्थर दूसरे पर नहीं छोड़ेंगे। और वजह यही होगी कि तू ने वह वक़्त नहीं पहचाना जब ख़ुदावंद ने तेरी नजात के लिए तुझ पर नज़र की।”
\s5
\v 45 फिर ईसा' बैत-उल-मुक़द्दस में जा कर बेचने वालों को निकालने लगा,
\v 46 और उसने कहा, “ लिखा है, 'मेरा घर दु'आ का घर होगा' मगर तुम ने उसे डाकुओं के अड्डे में बदल दिया है।”
\s5
\v 47 और वह रोज़ाना बैत-उल-मुक़द्दस में तालीम देता रहा। लेकिन बैत-उल-मुक़द्दस के रहनुमा इमाम, शरीअत के आलिम और अवामी रहनुमा उसे क़त्ल करने की कोशिश में थे|
\v 48 अलबत्ता उन्हें कोई मौक़ा न मिला, क्यूँकि तमाम लोग ईसा' की हर बात सुन सुन कर उस से लिपटे रहते थे।
\s5
\c 20
\v 1 एक दिन जब वह बैत-उल-मुक़द्दस में लोगों को तालीम दे रहा और ख़ुदावंद की ख़ुशख़बरी सुना रहा था तो रहनुमा इमाम, शरीअत के उलमा और बुज़ुर्ग उस के पास आए।
\v 2 उन्हों ने कहा, “हमें बताएँ, आप यह किस इख़्तियार से कर रहे हैं? किस ने आप को यह इख़्तियार दिया है?”
\s5
\v 3 ईसा' ने जवाब दिया, “मेरा भी तुम से एक सवाल है। तुम मुझे बताओ?”,
\v 4 “कि क्या युहन्ना का बपतिस्मा आस्मानी था या इन्सानी?”
\s5
\v 5 वह आपस में बह्स करने लगे, “अगर हम कहें ‘आस्मानी’ तो वह पूछेगा, ‘तो फिर तुम उस पर ईमान क्यूँ न लाए?
\v 6 लेकिन अगर हम कहें ‘इन्सानी’ तो तमाम लोग हम पर पत्थर मारेंगे, क्यूँकि वह तो यक़ीन रखते हैं कि युहन्ना नबी था।”
\s5
\v 7 इस लिए उन्हों ने जवाब दिया, “हम नहीं जानते कि वह कहाँ से था।”
\v 8 ईसा' ने कहा, “तो फिर मैं भी तुम को नहीं बताता कि मैं यह सब कुछ किस इख़्तियार से कर रहा हूँ।”
\s5
\v 9 फिर ईसा' लोगों को यह मिसाल सुनाने लगा, “किसी आदमी ने अंगूर का एक बाग़ लगाया। फिर वह उसे बाग़बानों को ठेके पर देकर बहुत दिनों के लिए बाहरी मुल्क चला गया।
\v 10 जब अंगूर पक गए तो उस ने अपने नौकर को उन के पास भेज दिया ताकि वह मालिक का हिस्सा वसूल करे। लेकिन बाग़बानों ने उस की पिटाई करके उसे ख़ाली हाथ लौटा दिया।
\s5
\v 11 इस पर मालिक ने एक और नौकर को उन के पास भेजा। लेकिन बागबानों ने उसे भी मार मार कर उस की बे'इज़्ज़ती की और ख़ाली हाथ निकाल दिया।
\v 12 फिर मालिक ने तीसरे नौकर को भेज दिया। उसे भी उन्होंने मार कर ज़ख़्मी कर दिया और निकाल दिया।
\s5
\v 13 बाग़ के मालिक ने कहा, ‘अब मैं क्या करूँ? मैं अपने प्यारे बेटे को भेजूँगा, शायद वह उस का लिहाज़ करें।’
\v 14 लेकिन मालिक के बेटे को देख कर बाग़बानों ने आपस में मशवरा किया और कहा , ‘यह ज़मीन का वारिस है। आओ, हम इसे मार डालें। फिर इस की मीरास हमारी ही होगी।’”
\s5
\v 15 उन्होंने उसे बाग़ से बाहर फैंक कर क़त्ल किया। ईसा' ने पूछा, “अब बताओ, बाग़ का मालिक क्या करेगा?
\v 16 वह वहाँ जा कर बाग़बानों को हलाक करेगा और बाग़ को दूसरों के हवाले कर देगा।” यह सुन कर लोगों ने कहा, “ख़ुदा ऐसा कभी न करे।”
\s5
\v 17 ईसा' ने उन पर नज़र डाल कर पूछा, “तो फिर कलाम-ए-मुक़द्दस के इस हवाले का क्या मतलब है कि ‘जिस पत्थर को राजगीरों ने रद्द किया, वह कोने का बुन्यादी पत्थर बन गया’?
\v 18 जो इस पत्थर पर गिरेगा वह टुकड़े टुकड़े हो जाएगा, जबकि जिस पर वह ख़ुद गिरेगा उसे पीस डालेगा।”
\s5
\v 19 शरीअत के उलमा और राहनुमा इमामों ने उसी वक़्त उसे पकड़ने की कोशिश की, क्यूँकि वह समझ गए थे कि मिसाल में बयान होने वाले हम ही हैं। लेकिन वह अवाम से डरते थे।
\v 20 चुनाँचे वह उसे पकड़ने का मौक़ा ढूँडते रहे। इस मक़्सद के तहत उन्होंने उस के पास जासूस भेज दिए। यह लोग अपने आप को ईमानदार ज़ाहिर करके ईसा' के पास आए ताकि उस की कोई बात पकड़ कर उसे रोमी हाकिम के हवाले कर सकें।
\s5
\v 21 इन जासूसों ने उस से पूछा, “उस्ताद, हम जानते हैं कि आप वही कुछ बयान करते और सिखाते हैं जो सहीह है। आप तरफ़दारी नहीं करते बल्कि दियानतदारी से ख़ुदा की राह की तालीम देते हैं।
\v 22 अब हमें बताएँ कि क्या रोमी हाकिम को महसूल देना जायज़ है या नाजायज़?”
\s5
\v 23 लेकिन ईसा' ने उन की चालाकी भाँप ली और कहा,
\v 24 “मुझे चाँदी का एक रोमी सिक्का दिखाओ। किस की सूरत और नाम इस पर बना है?” उन्हों ने जवाब दिया, “ क़ैसर का।”
\s5
\v 25 उस ने कहा, “तो जो क़ैसर का है क़ैसर को दो और जो ख़ुदा का है ख़ुदा को।”
\v 26 यूँ वह अवाम के सामने उस की कोई बात पकड़ने में नाकाम रहे। उस का जवाब सुन कर वह हक्का-बक्का रह गए और मज़ीद कोई बात न कर सके।
\s5
\v 27 फिर कुछ सदूक़ी उस के पास आए। सदूक़ी नहीं मानते थे कि रोज़-ए-क़यामत में मुर्दे जी उठेंगे। उन्हों ने ईसा' से एक सवाल किया,
\v 28 “उस्ताद, मूसा ने हमें हुक्म दिया कि अगर कोई शादीशुदा आदमी बेऔलाद मर जाए और उस का भाई हो तो भाई का फ़र्ज़ है कि वह बेवा से शादी करके अपने भाई के लिए औलाद पैदा करे।
\s5
\v 29 अब फ़र्ज़ करें कि सात भाई थे। पहले ने शादी की, लेकिन बेऔलाद मर गया।
\v 30 इस पर दूसरे ने उस से शादी की, लेकिन वह भी बेऔलाद मर गया।
\v 31 फिर तीसरे ने उस से शादी की। यह सिलसिला सातवें भाई तक जारी रहा। इसके बाद हर भाई बेवा से शादी करने के बाद मर गया।
\v 32 आख़िर में बेवा की भी मौत हो गई।
\v 33 अब बताएँ कि क़यामत के दिन वह किस की बीवी होगी? क्यूँकि सात के सात भाइयों ने उस से शादी की थी।”
\s5
\v 34 ईसा' ने जवाब दिया, “इस ज़माने में लोग ब्याह-शादी करते और कराते हैं।
\v 35 लेकिन जिन्हें ख़ुदा आने वाले ज़माने में शरीक होने और मुर्दों में से जी उठने के लायक़ समझता है वह उस वक़्त शादी नहीं करेंगे, न उन की शादी किसी से कराई जाएगी।
\v 36 वह मर भी नहीं सकेंगे, क्यूँकि वह फ़रिश्तों की तरह होंगे और क़यामत के फ़र्ज़न्द होने के बाइस ख़ुदा के फ़र्ज़न्द होंगे।
\s5
\v 37 और यह बात कि मुर्दे जी उठेंगे मूसा से भी ज़ाहिर की गई है। क्यूँकि जब वह काँटेदार झाड़ी के पास आया तो उस ने ख़ुदा को यह नाम दिया, ‘अब्राहम का ख़ुदा, इस्हाक़ का ख़ुदा और याक़ूब का ख़ुदा, हालाँकि उस वक़्त तीनों बहुत पहले मर चुके थे। इस का मतलब है कि यह हक़ीक़त में ज़िन्दा हैं।
\v 38 क्यूँकि ख़ुदा मुर्दों का नहीं बल्कि ज़िन्दों का ख़ुदा है। उस के नज़्दीक यह सब ज़िन्दा हैं।”
\s5
\v 39 यह सुन कर शरीअत के कुछ उलमा ने कहा, “शाबाश उस्ताद, आप ने अच्छा कहा है।”
\v 40 इस के बाद उन्हों ने उस से कोई भी सवाल करने की हिम्मत न की।
\s5
\v 41 फिर ईसा' ने उन से पूछा, “मसीह के बारे में क्यूँ कहा जाता है कि वह दाऊद का बेटा है?
\v 42 क्यूँकि दाऊद ख़ुद ज़बूर की किताब में फ़रमाता है, ‘ख़ुदा ने मेरे ख़ुदा से कहा, मेरे दाहिने हाथ बैठ,
\v 43 जब तक मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पैरों की चौकी न बना दूँ।’
\v 44 दाऊद तो ख़ुद मसीह को ख़ुदा कहता है। तो फिर वह किस तरह दाऊद का बेटा हो सकता है?”
\s5
\v 45 जब लोग सुन रहे थे तो उस ने अपने शागिर्दों से कहा,
\v 46 “शरीअत के उलमा से ख़बरदार रहो! क्यूँकि वह शानदार चोग़े पहन कर इधर उधर फिरना पसन्द करते हैं। जब लोग बाज़ारों में सलाम करके उन की इज़्ज़त करते हैं तो फिर वह ख़ुश हो जाते हैं। उन की बस एक ही ख़्वाहिश होती है कि इबादतख़ानों और दावतों में इज़्ज़त की कुर्सियों पर बैठ जाएँ।
\v 47 यह लोग बेवाओं के घर हड़प कर जाते और साथ साथ दिखावे के लिए लम्बी लम्बी दुआएँ माँगते हैं। ऐसे लोगों को निहायत सख़्त सज़ा मिलेगी।”
\s5
\c 21
\v 1 ईसा' ने नज़र उठा कर देखा, कि अमीर लोग अपने हदिए बैत-उल-मुक़द्दस के चन्दे के बक्से में डाल रहे हैं।
\v 2 एक ग़रीब बेवा भी वहाँ से गुज़री जिस ने उस में ताँबे के दो मामूली से सिक्के डाल दिए।
\v 3 ईसा' ने कहा, “मैं तुम को सच बताता हूँ कि इस ग़रीब बेवा ने तमाम लोगों की निस्बत ज़्यादा डाला है।
\v 4 क्यूँकि इन सब ने तो अपनी दौलत की कसरत से कुछ डाला जबकि इस ने ज़रूरत मन्द होने के बावजूद भी अपने गुज़ारे के सारे पैसे दे दिए हैं।”
\s5
\v 5 उस वक़्त कुछ लोग हैकल की तारीफ़ में कहने लगे कि वह कितने ख़ूबसूरत पत्थरों और मिन्नत के तोह्फ़ों से सजा हुआ है। यह सुन कर ईसा' ने कहा,
\v 6 “जो कुछ तुम को यहाँ नज़र आता है उस का पत्थर पर पत्थर नहीं रहेगा। आने वाले दिनों में सब कुछ ढा दिया जाएगा।”
\s5
\v 7 उन्हों ने पूछा, “उस्ताद, यह कब होगा? क्या क्या नज़र आएगा जिस से मालूम हो कि यह अब होने को है?”
\v 8 ईसा' ने जवाब दिया, “ख़बरदार रहो कि कोई तुम्हें गुमराह न कर दे। क्यूँकि बहुत से लोग मेरा नाम ले कर आएँगे और कहेंगे, ‘मैं ही मसीह हूँ’ और कि ‘वक़्त क़रीब आ चुका है।’ लेकिन उन के पीछे न लगना।
\v 9 और जब जंगों और फ़ितनों की ख़बरें तुम तक पहुँचेंगी तो मत घबराना। क्यूँकि ज़रूरी है कि यह सब कुछ पहले पेश आए। तो भी अभी आख़िरत न होगी।”
\s5
\v 10 उस ने अपनी बात जारी रखी, “एक क़ौम दूसरी के ख़िलाफ़ उठ खड़ी होगी, और एक बादशाही दूसरी के ख़िलाफ़।
\v 11 बहुत ज़ल्ज़ले आएँगे, जगह जगह काल पड़ेंगे और वबाई बीमारियाँ फैल जाएँगी। हैबतनाक वाक़िआत और आस्मान पर बड़े निशान देखने में आएँगे।
\s5
\v 12 लेकिन इन तमाम वाक़िआत से पहले लोग तुम को पकड़ कर सताएँगे। वह तुम को यहूदी इबादतख़ानों के हवाले करेंगे, क़ैदख़ानों में डलवाएँगे और बादशाहों और हुक्मरानों के सामने पेश करेंगे। और यह इस लिए होगा कि तुम मेरे पैरोकार हो।
\v 13 नतीजे में तुम्हें मेरी गवाही देने का मौक़ा मिलेगा।
\s5
\v 14 लेकिन ठान लो, कि तुम पहले से अपनी फ़िक्र करने की तैय्यारी न करो,
\v 15 क्यूँकि मैं तुम को ऐसे अल्फ़ाज़ और हिक्मत अता करूँगा, कि तुम्हारे तमाम मुख़ालिफ़ न उस का मुक़ाबला और न उस का जवाब दे सकेंगे।
\s5
\v 16 तुम्हारे वालिदैन, भाई, रिश्तेदार और दोस्त भी तुम को दुश्मन के हवाले कर देंगे, बल्कि तुम में से कुछ को क़त्ल किया जाएगा।
\v 17 सब तुम से नफ़रत करेंगे, इस लिए कि तुम मेरे मानने वाले हो।
\v 18 तो भी तुम्हारा एक बाल भी बीका नहीं होगा।
\v 19 साबितक़दम रहने से ही तुम अपनी जान बचा लोगे।
\s5
\v 20 जब तुम यरूशलीम को फ़ौजों से घिरा हुआ देखो तो जान लो, कि उस की तबाही क़रीब आ चुकी है।
\v 21 उस वक़्त यहूदिया के रहनेवाले भाग कर पहाड़ी इलाक़े में पनाह लें। शहर के रहने वाले उस से निकल जाएँ और दिहात में आबाद लोग शहर में दाख़िल न हों।
\v 22 क्यूँकि यह इलाही ग़ज़ब के दिन होंगे जिन में वह सब कुछ पूरा हो जाएगा जो कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है।
\s5
\v 23 उन औरतों पर अफ़्सोस जो उन दिनों में हामिला हों या अपने बच्चों को दूध पिलाती हों, क्यूँकि मुल्क में बहुत मुसीबत होगी और इस क़ौम पर ख़ुदा का ग़ज़ब नाज़िल होगा।
\v 24 लोग उन्हें तल्वार से क़त्ल करेंगे और क़ैद करके तमाम ग़ैरयहूदी ममालिक में ले जाएँगे। ग़ैरयहूदी यरूशलीम को पाँवों तले कुचल डालेंगे। यह सिलसिला उस वक़्त तक जारी रहेगा जब तक ग़ैरयहूदियों का दौर पूरा न हो जाए।
\s5
\v 25 सूरज, चाँद और तारों में अजीब-ओ-ग़रीब निशान ज़ाहिर होंगे। क़ौमें समुन्दर के शोर और ठाठें मारने से हैरान-ओ-परेशान होंगी।
\v 26 लोग इस अन्देशे से कि क्या क्या मुसीबत दुनिया पर आएगी इस क़दर ख़ौफ़ खाएँगे कि उन की जान में जान न रहेगी, क्यूँकि आस्मान की ताक़तें हिलाई जाएँगी।
\s5
\v 27 और फिर वह इब्न-ए-आदम को बड़ी क़ुद्रत और जलाल के साथ बादल में आते हुए देखेंगे।
\v 28 चुनाँचे जब यह कुछ पेश आने लगे तो सीधे खड़े हो कर अपनी नज़र उठाओ, क्यूँकि तुम्हारी नजात नज़्दीक होगी।”
\s5
\v 29 इस सिलसिले में ईसा' ने उन्हें एक मिसाल सुनाई। “अन्जीर के दरख़्त और बाक़ी दरख़्तों पर ग़ौर करो।
\v 30 जैसे ही कोंपलें निकलने लगती हैं तुम जान लेते हो कि गर्मियों का मौसम नज़्दीक है।
\v 31 इसी तरह जब तुम यह वाक़िआत देखोगे तो जान लोगे कि ख़ुदा की बादशाही क़रीब ही है।
\s5
\v 32 मैं तुम को सच बताता हूँ कि इस नस्ल के ख़त्म होने से पहले पहले यह सब कुछ वाक़े होगा।
\v 33 आस्मान-ओ-ज़मीन तो जाते रहेंगे, लेकिन मेरी बातें हमेशा तक क़ायम रहेंगी।
\s5
\v 34 ख़बरदार रहो ताकि तुम्हारे दिल अय्याशी, नशाबाज़ी और रोज़ाना की फ़िक़्रों तले दब न जाएँ। वर्ना यह दिन अचानक तुम पर आन पड़ेगा,
\v 35 और फंदे की तरह तुम्हें जकड़ लेगा। क्यूँकि वह दुनिया के तमाम रहनेवालों पर आएगा।
\s5
\v 36 हर वक़्त चौकस रहो और दुआ करते रहो कि तुम को आने वाली इन सब बातों से बच निकलने की तौफ़ीक़ मिल जाए और तुम इब्न-ए-आदम के सामने खड़े हो सको।”
\s5
\v 37 हर रोज़ ईसा' बैत-उल-मुक़द्दस में तालीम देता रहा और हर शाम वह निकल कर उस पहाड़ पर रात गुज़ारता था जिस का नाम ज़ैतून का पहाड़ है।
\v 38 और सुबह सवेरे सब लोग उस की बातें सुनने को हैकल में उस के पास आया करते थे |
\s5
\c 22
\v 1 बेख़मीरी रोटी की ईद यानी फ़सह की ईद क़रीब आ गई थी।
\v 2 रेहनुमा इमाम और शरीअत के उलमा ईसा' को क़त्ल करने का कोई मौज़ूँ मौक़ा ढूँड रहे थे, क्यूँकि वह अवाम के रद्द-ए-अमल से डरते थे।
\s5
\v 3 उस वक़्त इब्लीस यहूदाह इस्करियोती में समा गया जो बारह रसूलों में से था।
\v 4 अब वह रेहनुमा इमामों और बैत-उल-मुक़द्दस के पहरेदारों के अफ़्सरों से मिला और उन से बात करने लगा कि वह ईसा' को किस तरह उन के हवाले कर सकेगा।
\s5
\v 5 वह ख़ुश हुए और उसे पैसे देने पर मुत्तफ़िक़ हुए।
\v 6 यहूदाह रज़ामन्द हुआ। अब से वह इस तलाश में रहा कि ईसा' को ऐसे मौक़े पर उन के हवाले करे जब मजमा उस के पास न हो।
\s5
\v 7 बेख़मीरी रोटी की ईद आई जब फ़सह के मेमने को क़ुर्बान करना था।
\v 8 ईसा' ने पतरस और यूहन्ना को आगे भेज कर हिदायत की, “जाओ, हमारे लिए फ़सह का खाना तैय्यार करो ताकि हम जा कर उसे खा सकें।”
\v 9 उन्हों ने पूछा, “हम उसे कहाँ तैय्यार करें?”
\s5
\v 10 उस ने जवाब दिया, “जब तुम शहर में दाख़िल होगे तो तुम्हारी मुलाक़ात एक आदमी से होगी जो पानी का घड़ा उठाए चल रहा होगा। उस के पीछे चल कर उस घर में दाख़िल हो जाओ जिस में वह जाएगा।
\v 11 वहाँ के मालिक से कहना, ‘उस्ताद आप से पूछते हैं कि वह कमरा कहाँ है जहाँ मैं अपने शागिर्दों के साथ फ़सह का खाना खाऊँ?
\s5
\v 12 वह तुम को दूसरी मन्ज़िल पर एक बड़ा और सजा हुआ कमरा दिखाएगा। फ़सह का खाना वहीं तैय्यार करना।”
\v 13 दोनों चले गए तो सब कुछ वैसा ही पाया जैसा ईसा' ने उन्हें बताया था। फिर उन्हों ने फ़सह का खाना तैयार किया।
\s5
\v 14 मुक़र्ररा वक़्त पर ईसा' अपने शागिर्दों के साथ खाने के लिए बैठ गया।
\v 15 उस ने उन से कहा, “मेरी बहुत आरजू थी कि दुख उठाने से पहले तुम्हारे साथ मिल कर फ़सह का यह खाना खाऊँ।”
\v 16 “ क्यूँकि मैं तुम को बताता हूँ कि उस वक़्त तक इस खाने में शरीक नहीं हूँगा जब तक इस का मक़्सद ख़ुदा की बादशाही में पूरा न हो गया हो।”
\s5
\v 17 फिर उस ने मय का प्याला ले कर शुक्रगुज़ारी की दुआ की और कहा, “इस को ले कर आपस में बाँट लो।
\v 18 मैं तुम को बताता हूँ कि अब से मैं अंगूर का रस नहीं पियूँगा, क्यूँकि अगली दफ़ा इसे ख़ुदा की बादशाही के आने पर पियूँगा।”
\s5
\v 19 फिर उस ने रोटी ले कर शुक्रगुज़ारी की दुआ की और उसे टुकड़े करके उन्हें दे दिया। उस ने कहा, “यह मेरा बदन है, जो तुम्हारे लिए दिया जाता है। मुझे याद करने के लिए यही किया करो।”
\v 20 इसी तरह उस ने खाने के बाद प्याला ले कर कहा, “मय का यह प्याला वह नया अह्द है जो मेरे ख़ून के ज़रिए क़ाइम किया जाता है, वह ख़ून जो तुम्हारे लिए बहाया जाता है।
\s5
\v 21 लेकिन जिस शख़्स का हाथ मेरे साथ खाना खाने में शरीक है वह मुझे दुश्मन के हवाले कर देगा।
\v 22 इब्न-ए-आदम तो ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ कूच कर जाएगा, लेकिन उस शख़्स पर अफ़्सोस जिस के वसीले से उसे दुश्मन के हवाले कर दिया जाएगा।”
\v 23 यह सुन कर शागिर्द एक दूसरे से बह्स करने लगे कि हम में से यह कौन हो सकता है जो इस क़िस्म की हरकत करेगा।
\s5
\v 24 फिर एक और बात भी छिड़ गई। वह एक दूसरे से बह्स करने लगे कि हम में से कौन सब से बड़ा समझा जाए।
\v 25 लेकिन ईसा' ने उन से कहा, “ग़ैरयहूदी क़ौमों में बादशाह वही हैं जो दूसरों पर हुकूमत करते हैं, और इख़्तियार वाले वही हैं जिन्हें ‘मोहसिन’ का लक़ब दिया जाता है।
\s5
\v 26 लेकिन तुम को ऐसा नहीं होना चाहिए। इस के बजाय जो सब से बड़ा है वह सब से छोटे लड़के की तरह हो और जो रेहनुमाई करता है वह नौकर जैसा हो।
\v 27 क्यूँकि आम तौर पर कौन ज़्यादा बड़ा होता है, वह जो खाने के लिए बैठा है या वह जो लोगों की ख़िदमत के लिए हाज़िर होता है? क्या वह नहीं जो खाने के लिए बैठा है? बेशक। लेकिन मैं ख़िदमत करने वाले की हैसियत से ही तुम्हारे बीच हूँ।
\s5
\v 28 देखो, तुम वही हो जो मेरी तमाम आज़्माइशों के दौरान मेरे साथ रहे हो।
\v 29 चुनाँचे मैं तुम को बादशाही अता करता हूँ जिस तरह बाप ने मुझे बादशाही अता की है।
\v 30 तुम मेरी बादशाही में मेरी मेज़ पर बैठ कर मेरे साथ खाओ और पियोगे, और तख़्तों पर बैठ कर इस्राईल के बारह क़बीलों का इन्साफ़ करोगे।
\s5
\v 31 शमाऊन, शमाऊन! इब्लीस ने तुम लोगों को गन्दुम की तरह फटकने का मुतालबा किया है।
\v 32 लेकिन मैंने तेरे लिए दुआ की है ताकि तेरा ईमान जाता न रहे। और जब तू मुड़ कर वापस आए तो उस वक़्त अपने भाइयों को मज़्बूत करना।”
\s5
\v 33 पतरस ने जवाब दिया, “ख़ुदावन्द, मैं तो आप के साथ जेल में भी जाने बल्कि मरने को तय्यार हूँ।”
\v 34 ईसा' ने कहा, “पतरस, मैं तुझे बताता हूँ कि कल सुबह मुर्ग़ के बाँग देने से पहले पहले तू तीन बार मुझे जानने से इन्कार कर चुका होगा।”
\s5
\v 35 फिर उसने उनसे कहा जब मैंने तुम्हे बटुए और झोली और जूती के बिना भेजा था तो क्या तुम किसी चीज़ में मोहताज रहे थे ,उन्होंने कहा किसी चीज़ के नहीं |
\v 36 उस ने कहा, “लेकिन अब जिस के पास बटूवा या थैला हो वह उसे साथ ले जाए, बल्कि जिस के पास तलवार न हो वह अपनी चादर बेच कर तलवार ख़रीद ले।
\s5
\v 37 कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है, ‘उसे मुल्ज़िमों में शुमार किया गया’ और मैं तुम को बताता हूँ, ज़रूरी है कि यह बात मुझ में पूरी हो जाए। क्यूँकि जो कुछ मेरे बारे में लिखा है उसे पूरा ही होना है।”
\v 38 उन्हों ने कहा, “ख़ुदावन्द, यहाँ दो तलवारें हैं।” उस ने कहा, “बस! काफ़ी है!”
\s5
\v 39 फिर वह शहर से निकल कर रोज़ के मुताबिक़ ज़ैतून के पहाड़ की तरफ़ चल दिया। उस के शागिर्द उस के पीछे हो लिए।
\v 40 वहाँ पहुँच कर उस ने उन से कहा, “दुआ करो ताकि आज़्माइश में न पड़ो।”
\s5
\v 41 फिर वह उन्हें छोड़ कर कुछ आगे निकला, तक़रीबन इतने फ़ासिले पर जितनी दूर तक पत्थर फैंका जा सकता है। वहाँ वह झुक कर दुआ करने लगा,
\v 42 “ऐ बाप, अगर तू चाहे तो यह प्याला मुझ से हटा ले। लेकिन मेरी नहीं बल्कि तेरी मर्ज़ी पूरी हो।”
\s5
\v 43 उस वक़्त एक फ़रिश्ते ने आस्मान पर से उस पर ज़ाहिर हो कर उस को ताक़त दी।
\v 44 वह सख़्त परेशान हो कर ज़्यादा दिलसोज़ी से दुआ करने लगा। साथ साथ उस का पसीना ख़ून की बूँदों की तरह ज़मीन पर टपकने लगा।
\s5
\v 45 जब वह दुआ से फ़ारिग़ हो कर खड़ा हुआ और शागिर्दों के पास वापस आया तो देखा कि वह ग़म के मारे सो गए हैं।
\v 46 उस ने उन से कहा, “तुम क्यूँ सो रहे हो? उठ कर दुआ करते रहो ताकि आज़्माइश में न पड़ो।”
\s5
\v 47 वह अभी यह बात कर ही रहा था कि एक हुजूम आ पहुँचा जिस के आगे आगे यहूदाह चल रहा था। वह ईसा' को बोसा देने के लिए उस के पास आया।
\v 48 लेकिन उस ने कहा, “यहूदाह, क्या तू इब्न-ए-आदम को बोसा दे कर दुश्मन के हवाले कर रहा है?”
\s5
\v 49 जब उस के साथियों ने भाँप लिया कि अब क्या होने वाला है तो उन्हों ने कहा, “ख़ुदावन्द, क्या हम तलवार चलाएँ?”
\v 50 और उनमें से एक ने अपनी तलवार से इमाम-ए-आज़म के ग़ुलाम का दहना कान उड़ा दिया।
\v 51 लेकिन ईसा' ने कहा, “बस कर!” उस ने ग़ुलाम का कान छू कर उसे शिफ़ा दी।
\s5
\v 52 फिर वह उन रेहनुमा इमामों, बैत-उल-मुक़द्दस के पहरेदारों के अफ़्सरों और बुज़ुर्गों से मुख़ातिब हुआ जो उस के पास आए थे, “क्या मैं डाकू हूँ कि तुम तलवारें और लाठियाँ लिए मेरे ख़िलाफ़ निकले हो?
\v 53 मैं तो रोज़ाना बैत-उल-मुक़द्दस में तुम्हारे पास था, मगर तुम ने वहाँ मुझे हाथ नहीं लगाया। लेकिन अब यह तुम्हारा वक़्त है, वह वक़्त जब तारीकी हुकूमत करती है।”
\s5
\v 54 फिर वह उसे गिरिफ़्तार करके इमाम-ए-आज़म के घर ले गए। पतरस कुछ फ़ासिले पर उन के पीछे पीछे वहाँ पहुँच गया।
\v 55 लोग सहन में आग जला कर उस के इर्दगिर्द बैठ गए। पतरस भी उन के बीच बैठ गया।
\s5
\v 56 किसी नौकरानी ने उसे वहाँ आग के पास बैठे हुए देखा। उस ने उसे घूर कर कहा, “यह भी उस के साथ था।”
\v 57 लेकिन उस ने इन्कार किया, “ख़ातून, मैं उसे नहीं जानता।”
\v 58 थोड़ी देर के बाद किसी आदमी ने उसे देखा और कहा, “तुम भी उन में से हो।” लेकिन पतरस ने जवाब दिया, “नहीं भाई! मैं नहीं हूँ।”
\s5
\v 59 तक़रीबन एक घंटा गुज़र गया तो किसी और ने इस्रार करके कहा, “यह आदमी यक़ीनन उस के साथ था, क्यूँकि यह भी गलील का रहने वाला है।”
\v 60 लेकिन पतरस ने जवाब दिया, “यार, मैं नहीं जानता कि तुम क्या कह रहे हो!” वह अभी बात कर ही रहा था कि अचानक मुर्ग़ की बाँग सुनाई दी।
\s5
\v 61 ख़ुदावन्द ने मुड़ कर पतरस पर नज़र डाली। फिर पतरस को ख़ुदावन्द की वह बात याद आई जो उस ने उस से कही थी कि “कल सुबह मुर्ग़ के बाँग देने से पहले पहले तू तीन बार मुझे जानने से इन्कार कर चुका होगा।”
\v 62 पतरस वहाँ से निकल कर टूटे दिल से ख़ूब रोया।
\s5
\v 63 पहरेदार ईसा' का मज़ाक़ उड़ाने और उस की पिटाई करने लगे।
\v 64 उन्होंने उस की आँखों पर पट्टी बाँध कर पूछा, “नबुव्वत कर कि किस ने तुझे मारा?”
\v 65 इस तरह की और बहुत सी बातों से वह उस की बेइज़्ज़ती करते रहे।
\s5
\v 66 जब दिन चढ़ा तो रेहनुमा इमामों और शरीअत के आलिमों पर मुश्तमिल क़ौम के मजमा ने जमा हो कर उसे यहूदी अदालत-ए-आलिया में पेश किया।
\v 67 उन्हों ने कहा, “अगर तू मसीह है तो हमें बता!” ईसा' ने जवाब दिया, “अगर मैं तुम को बताऊँ तो तुम मेरी बात नहीं मानोगे,
\v 68 और अगर तुम से पूछूँ तो तुम जवाब नहीं दोगे।
\s5
\v 69 लेकिन अब से इब्न-ए-आदम ख़ुदा तआला के दहने हाथ बैठा होगा।”
\v 70 सब ने पूछा, “तो फिर क्या तू ख़ुदा का फ़र्ज़न्द है?” उस ने जवाब दिया, “जी, तुम ख़ुद कहते हो।”
\v 71 इस पर उन्हों ने कहा, “अब हमें किसी और गवाही की क्या ज़रूरत रही? क्यूँकि हम ने यह बात उस के अपने मुँह से सुन ली है।”
\s5
\c 23
\v 1 फिर पूरी मज्लिस उठी और 'ईसा को पीलातुस के पास ले आई।
\v 2 और उन्होंने उस पर इल्ज़ाम लगा कर कहने लगे, “हम ने मालूम किया है कि यह आदमी हमारी क़ौम को गुमराह कर रहा है। यह क़ैसर को ख़िराज देने से मना करता और दा'वा करता है कि मैं मसीह और बादशाह हूँ।”
\s5
\v 3 पीलातुस ने उस से पूछा, “अच्छा, तुम यहूदियों के बादशाह हो?” ईसा' ने जवाब दिया, “जी, आप ख़ुद कहते हैं।”
\v 4 फिर पीलातुस ने रहनुमा इमामों और हुजूम से कहा, “मुझे इस आदमी पर इल्ज़ाम लगाने की कोई वजह नज़र नहीं आती।”
\v 5 मगर वो और भी ज़ोर देकर कहने लगे कि ये तमाम यहूदिया में बल्कि गलील से लेकर यहाँ तक लोगो को सिखा सिखा कर उभारता है
\s5
\v 6 यह सुन कर पीलातुस ने पूछा, “क्या यह शख़्स गलील का है?”
\v 7 जब उसे मालूम हुआ कि ईसा' गलील यानी उस इलाक़े से है, जिस पर हेरोदेस अनतिपास की हुकूमत है तो उस ने उसे हेरोदेस के पास भेज दिया, क्यूँकि वह भी उस वक़्त यरूशलीम में था।
\s5
\v 8 हेरोदेस ईसा' को देख कर बहुत ख़ुश हुआ, क्यूँकि उस ने उस के बारे में बहुत कुछ सुना था, और इस लिए काफ़ी दिनों से उस से मिलना चाहता था। अब उस की बड़ी ख़्वाहिश थी, कि ईसा' को कोई मोजिज़ा करते हुए देख सके।
\v 9 उस ने उस से बहुत सारे सवाल किए, लेकिन ईसा' ने एक का भी जवाब न दिया।
\v 10 रहनुमा इमाम और शरीअत के उलमा साथ खड़े बड़े जोश से उस पर इल्ज़ाम लगाते रहे।
\s5
\v 11 फिर हेरोदेस और उस के फ़ौजियों ने उसको ज़लील करते हुए उस का मज़ाक़ उड़ाया और उसे चमकदार लिबास पहना कर पीलातुस के पास वापस भेज दिया।
\v 12 उसी दिन हेरोदेस और पीलातुस दोस्त बन गए, क्यूँकि इस से पहले उन की दुश्मनी चल रही थी।
\s5
\v 13 फिर पीलातुस ने रहनुमा इमामों, सरदारों और अवाम को जमा करके;
\v 14 उन से कहा, “तुम ने इस शख़्स को मेरे पास ला कर इस पर इल्ज़ाम लगाया है कि यह क़ौम को उकसा रहा है। मैं ने तुम्हारी मौजूदगी में इस का जायज़ा ले कर ऐसा कुछ नहीं पाया जो तुम्हारे इल्ज़ामात की तस्दीक़ करे।
\s5
\v 15 हेरोदेस भी कुछ नहीं मालूम कर सका, इस लिए उस ने इसे हमारे पास वापस भेज दिया है। इस आदमी से कोई भी ऐसा गुनाह नहीं हुआ कि यह सज़ा-ए-मौत के लायक़ है।
\v 16 इस लिए मैं इसे कोड़ों की सज़ा दे कर रिहा कर देता हूँ।”
\v 17 [अस्ल में यह उस का फ़र्ज़ था कि वह ईद के मौक़े पर उन की ख़ातिर एक क़ैदी को रिहा कर दे।]
\s5
\v 18 लेकिन सब मिल कर शोर मचा कर कहने लगे, “इसे ले जाएँ! इसे नहीं बल्कि बर-अब्बा को रिहा करके हमें दें।”
\v 19 (बर-अब्बा को इस लिए जेल में डाला गया था कि वह क़ातिल था और उस ने शहर में हुकूमत के ख़िलाफ़ बग़ावत की थी।)
\s5
\v 20 पीलातुस ईसा' को रिहा करना चाहता था, इस लिए वह दुबारा उन से मुख़ातिब हुआ।
\v 21 लेकिन वह चिल्लाते रहे, “इसे मस्लूब करें, इसे मस्लूब करें।”
\v 22 फिर पीलातुस ने तीसरी दफ़ा उन से कहा, “क्यूँ? उस ने क्या जुर्म किया है? मुझे इसे सज़ा-ए-मौत देने की कोई वजह नज़र नहीं आती। इस लिए मैं इसे कोड़े लगवा कर रिहा कर देता हूँ।”
\s5
\v 23 लेकिन वह बड़ा शोर मचा कर उसे मस्लूब करने का तक़ाज़ा करते रहे, और आख़िरकार उन की आवाज़ें ग़ालिब आ गईं।
\v 24 फिर पीलातुस ने फ़ैसला किया कि उन का मुतालबा पूरा किया जाए।
\v 25 उस ने उस आदमी को रिहा कर दिया जो अपनी हुकूमत के ख़िलाफ़ हरकतों और क़त्ल की वजह से जेल में डाल दिया गया था जबकि ईसा' को उस ने उन की मर्ज़ी के मुताबिक़ उन के हवाले कर दिया।
\s5
\v 26 जब फ़ौजी ईसा को ले जा रहे थे तो उन्हों ने एक आदमी को पकड़ लिया जो लिबिया के शहर कुरेन का रहने वाला था। उस का नाम शमाऊन था। उस वक़्त वह देहात से शहर में दाख़िल हो रहा था। उन्हों ने सलीब को उस के कंधों पर रख कर उसे ईसा' के पीछे चलने का हुक्म दिया।
\s5
\v 27 एक बड़ा हुजूम उस के पीछे हो लिया जिस में कुछ ऐसी औरतें भी शामिल थीं जो सीना पीट पीट कर उस का मातम कर रही थीं।
\v 28 ईसा' ने मुड़ कर उन से कहा, “यरूशलम की बेटियो! मेरे वास्ते न रोओ बल्कि अपने और अपने बच्चों के वास्ते रोओ।
\s5
\v 29 क्यूँकि ऐसे दिन आएँगे जब लोग कहेंगे, ‘मुबारक हैं वह जो बाँझ हैं, जिन्हों ने न तो बच्चों को जन्म दिया, न दूध पिलाया।’
\v 30 फिर लोग पहाड़ों से कहने लगेंगे, ‘हम पर गिर पड़ो, और पहाड़ियों से कि ‘हमें छुपा लो।’
\v 31 क्यूँकि अगर हरे दरख़्त से ऐसा सुलूक किया जाता है तो फिर सूखे के साथ क्या कुछ न किया जायेगा ?”
\s5
\v 32 दो और मर्दों को भी मस्लूब करने के लिए बाहर ले जाया जा रहा था। दोनों मुजरिम थे।
\s5
\v 33 चलते चलते वह उस जगह पहुँचे जिस का नाम खोपड़ी था। वहाँ उन्हों ने ईसा' को दोनों मुजरिमों समेत मस्लूब किया। एक मुजरिम को उस के दाएँ हाथ और दूसरे को उस के बाएँ हाथ लटका दिया गया।
\v 34 ईसा' ने कहा, “ऐ बाप, इन्हें मुआफ़ कर, क्यूँकि यह जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं।” उन्हों ने पर्ची डाल कर उस के कपड़े आपस में बाँट लिए।
\s5
\v 35 हुजूम वहाँ खड़ा तमाशा देखता रहा जबकि क़ौम के सरदारों ने उस का मज़ाक़ भी उड़ाया। उन्हों ने कहा, “उस ने औरों को बचाया है। अगर यह ख़ुदा का चुना हुआ और मसीह है तो अपने आप को बचाए।”
\s5
\v 36 फ़ौजियों ने भी उसे लान-तान की। उस के पास आ कर उन्हों ने उसे मय का सिरका पेश किया
\v 37 और कहा, “अगर तू यहूदियों का बादशाह है तो अपने आप को बचा ले।”
\v 38 उस के सर के ऊपर एक तख़्ती लगाई गई थी जिस पर लिखा था, “यह यहूदियों का बादशाह है।”
\s5
\v 39 जो मुजरिम उस के साथ मस्लूब हुए थे उन में से एक ने कुफ़्र बकते हुए कहा, “क्या तू मसीह नहीं है? तो फिर अपने आप को और हमें भी बचा ले।”
\v 40 लेकिन दूसरे ने यह सुन कर उसे डाँटा, “क्या तू ख़ुदा से भी नहीं डरता? जो सज़ा उसे दी गई है वह तुझे भी मिली है।
\v 41 हमारी सज़ा तो वाजिबी है, क्यूँकि हमें अपने कामों का बदला मिल रहा है, लेकिन इस ने कोई बुरा काम नहीं किया।”
\s5
\v 42 फिर उस ने ईसा' से कहा, “जब आप अपनी बादशाही में आएँ तो मुझे याद करें।”
\v 43 ईसा' ने उस से कहा, “मैं तुझे सच बताता हूँ कि तू आज ही मेरे साथ फ़िर्दौस में होगा।”
\s5
\v 44 बारह बजे से दोपहर तीन बजे तक पूरा मुल्क अंधेरे में डूब गया।
\v 45 सूरज तारीक हो गया और बैत-उल-मुक़द्दस के पाकतरीन कमरे के सामने लटका हुआ पर्दा दो हिस्सों में फट गया।
\s5
\v 46 ईसा' ऊँची आवाज़ से पुकार उठा, “ऐ बाप, मैं अपनी रूह तेरे हाथों में सौंपता हूँ।” यह कह कर उस ने दम तोड़ दिया।
\v 47 यह देख कर वहाँ खड़े फ़ौजी अफ़्सर ने ख़ुदा की बड़ाई करके कहा, “यह आदमी वाक़ई रास्तबाज़ था।”
\s5
\v 48 और हुजूम के तमाम लोग जो यह तमाशा देखने के लिए जमा हुए थे यह सब कुछ देख कर छाती पीटने लगे और शहर में वापस चले गए।
\v 49 लेकिन ईसा" के जानने वाले कुछ फ़ासिले पर खड़े देखते रहे। उन में वह औरतें भी शामिल थीं जो गलील में उस के पीछे चल कर यहाँ तक उस के साथ आई थीं।
\s5
\v 50 वहाँ एक नेक और रास्तबाज़ आदमी बनाम यूसुफ़ था। वह यहूदी अदालत-ए-अलिया का रुकन था
\v 51 लेकिन दूसरों के फ़ैसले और हरकतो पर रज़ामन्द नहीं हुआ था। यह आदमी यहूदिया के शहर अरिमतियाह का रहने वाला था और इस इन्तिज़ार में था कि ख़ुदा की बादशाही आए।
\s5
\v 52 अब उस ने पिलातुस के पास जा कर उस से ईसा' की लाश ले जाने की इजाज़त माँगी।
\v 53 फिर लाश को उतार कर उस ने उसे कतान के कफ़न में लपेट कर चटान में तराशी हुई एक क़ब्र में रख दिया जिस में अब तक किसी को दफ़नाया नहीं गया था।
\s5
\v 54 यह तैयारी का दिन यानी जुमआ था, लेकिन सबत का दिन शुरू होने को था ।
\v 55 जो औरतें ईसा' के साथ गलील से आई थीं वह यूसुफ़ के पीछे हो लीं। उन्हों ने क़ब्र को देखा और यह भी कि ईसा' की लाश किस तरह उस में रखी गई है।
\v 56 फिर वह शहर में वापस चली गईं और उस की लाश के लिए ख़ुश्बूदार मसाले तैयार करने लगीं।
\s5
\c 24
\v 1 सबत का दिन शुरू हुआ, इस लिए उन्हों ने शरीअत के मुताबिक़ आराम किया। इतवार के दिन यह औरतें अपने तैयारशुदा मसाले ले कर सुबह-सवेरे क़ब्र पर गईं।
\v 2 वहाँ पहुँच कर उन्हों ने देखा कि क़ब्र पर का पत्थर एक तरफ़ लुढ़का हुआ है।
\v 3 लेकिन जब वह क़ब्र में गईं तो वहाँ ख़ुदावन्द ईसा' की लाश न पाई।
\s5
\v 4 वह अभी उलझन में वहाँ खड़ी थीं कि अचानक दो मर्द उन के पास आ खड़े हुए जिन के लिबास बिजली की तरह चमक रहे थे।
\v 5 औरतें ख़ौफ़ खा कर मुँह के बल झुक गईं, लेकिन उन मर्दों ने कहा, “तुम क्यूँ ज़िन्दा को मुर्दों में ढूँड रही हो?
\s5
\v 6 वह यहाँ नहीं है, वह तो जी उठा है। वह बात याद करो जो उस ने तुम से उस वक़्त कही जब वह गलील में था।
\v 7 ‘जरूरी है कि इब्न-ए-आदम को गुनाहगारों के हवाले कर के, मस्लूब किया जाए और कि वह तीसरे दिन जी उठे’।”
\s5
\v 8 फिर उन्हें यह बात याद आई।
\v 9 और क़ब्र से वापस आ कर उन्हों ने यह सब कुछ ग्यारह रसूलों और बाक़ी शागिर्दों को सुना दिया।
\v 10 मरियम मग्दलीनी, यूना, याक़ूब की माँ मरियम और चन्द एक और औरतें उन में शामिल थीं जिन्हों ने यह बातें रसूलों को बताईं।
\s5
\v 11 लेकिन उन को यह बातें बेतुकी सी लग रही थीं, इस लिए उन्हें यक़ीन न आया।
\v 12 तो भी पतरस उठा और भाग कर क़ब्र के पास आया। जब पहुँचा तो झुक कर अन्दर झाँका, लेकिन सिर्फ़ कफ़न ही नज़र आया। यह हालात देख कर वह हैरान हुआ और चला गया।
\s5
\v 13 उसी दिन ईसा' के दो पैरोकार एक गांव बनाम इम्माउस की तरफ़ चल रहे थे। यह गाँव यरूशलीम से तक़रीबन दस किलोमीटर दूर था।
\v 14 चलते चलते वह आपस में उन वाक़ेआत का ज़िक्र कर रहे थे जो हुए थे।
\s5
\v 15 और ऐसा हुआ कि जब वह बातें और एक दूसरे के साथ बह्स-ओ-मुबाहसा कर रहे थे तो ईसा' ख़ुद क़रीब आ कर उन के साथ चलने लगा।
\v 16 लेकिन उन की आँखों पर पर्दा डाला गया था, इस लिए वह उसे पहचान न सके।
\s5
\v 17 ईसा' ने कहा, “यह कैसी बातें हैं जिन के बारे में तुम चलते चलते तबादला-ए-ख़याल कर रहे हो?” यह सुन कर वह ग़मगीन से खड़े हो गए।
\v 18 उन में से एक बनाम क्लियुपास ने उस से पूछा, “क्या आप यरूशलीम में वाहिद शख़्स हैं जिसे मालूम नहीं कि इन दिनों में क्या कुछ हुआ है?”
\s5
\v 19 उस ने कहा, “क्या हुआ है?” उन्हों ने जवाब दिया, “वह जो ईसा' नासरी के साथ हुआ है। वह नबी था जिसे कलाम और काम में ख़ुदा और तमाम क़ौम के सामने ज़बरदस्त ताक़त हासिल थी।
\v 20 लेकिन हमारे रहनुमा इमामों और सरदारों ने उसे हुक्मरानों के हवाले कर दिया ताकि उसे सज़ा-ए-मौत दी जाए, और उन्हों ने उसे मस्लूब किया।
\s5
\v 21 लेकिन हमें तो उम्मीद थी कि वही इस्राईल को नजात देगा। इन वाक़ेआत को तीन दिन हो गए हैं।
\s5
\v 22 लेकिन हम में से कुछ औरतों ने भी हमें हैरान कर दिया है। वह आज सुबह-सवेरे क़ब्र पर गईं थीं|
\v 23 तो देखा कि लाश वहाँ नहीं है। उन्हों ने लौट कर हमें बताया कि हम पर फ़रिश्ते ज़ाहिर हुए जिन्हों ने कहा कि ईसा" ज़िन्दा है।
\v 24 हम में से कुछ क़ब्र पर गए और उसे वैसा ही पाया जिस तरह उन औरतों ने कहा था। लेकिन उसे ख़ुद उन्हों ने नहीं देखा।”
\s5
\v 25 फिर ईसा' ने उन से कहा, “अरे नादानो! तुम कितने कुन्दज़हन हो कि तुम्हें उन तमाम बातों पर यक़ीन नहीं आया जो नबियों ने फ़रमाई हैं।
\v 26 क्या ज़रूरी नहीं था कि मसीह यह सब कुछ झेल कर अपने जलाल में दाख़िल हो जाए?”
\v 27 फिर मूसा और तमाम नबियों से शुरू करके ईसा' ने कलाम-ए-मुक़द्दस की हर बात की तशरीह की जहाँ जहाँ उस का ज़िक्र है।
\s5
\v 28 चलते चलते वह उस गाँव के क़रीब पहुँचे जहाँ उन्हें जाना था। ईसा' ने ऐसा किया गोया कि वह आगे बढ़ना चाहता है,
\v 29 लेकिन उन्हों ने उसे मज्बूर करके कहा, “हमारे पास ठहरें, क्यूँकि शाम होने को है और दिन ढल गया है।” चुनाँचे वह उन के साथ ठहरने के लिए अन्दर गया।
\s5
\v 30 और ऐसा हुआ कि जब वह खाने के लिए बैठ गए तो उस ने रोटी ले कर उस के लिए शुक्रगुज़ारी की दुआ की। फिर उस ने उसे टुकड़े करके उन्हें दिया।
\v 31 अचानक उन की आँखें खुल गईं और उन्हों ने उसे पहचान लिया। लेकिन उसी लम्हे वह ओझल हो गया।
\v 32 फिर वह एक दूसरे से कहने लगे, “क्या हमारे दिल जोश से न भर गए थे जब वह रास्ते में हम से बातें करते करते हमें सहीफ़ों का मतलब समझा रहा था?”
\s5
\v 33 और वह उसी वक़्त उठ कर यरूशलीम वापस चले गए। जब वह वहाँ पहुँचे तो ग्यारह रसूल अपने साथियों समेत पहले से जमा थे
\v 34 और यह कह रहे थे, “ख़ुदावन्द वाक़ई जी उठा है! वह शमाऊन पर ज़ाहिर हुआ है।”
\v 35 फिर इम्माउस के दो शागिर्दों ने उन्हें बताया कि गाँवों की तरफ़ जाते हुए क्या हुआ था और कि ईसा' के रोटी तोड़ते वक़्त उन्हों ने उसे कैसे पहचाना।
\s5
\v 36 वह अभी यह बातें सुना रहे थे कि ईसा' ख़ुद उन के दर्मियान आ खड़ा हुआ और कहा, “तुम्हारी सलामती हो।”
\v 37 वह घबरा कर बहुत डर गए, क्यूँकि उन का ख़याल था कि कोई भूत-प्रेत देख रहे हैं।
\s5
\v 38 उस ने उन से कहा, “तुम क्यूँ परेशान हो गए हो? क्या वजह है कि तुम्हारे दिलों में शक उभर आया है?
\v 39 मेरे हाथों और पैरों को देखो कि मैं ही हूँ। मुझे टटोल कर देखो, क्यूँकि भूत के गोश्त और हड्डियाँ नहीं होतीं जबकि तुम देख रहे हो कि मेरा जिस्म है।”
\v 40 यह कह कर उस ने उन्हें अपने हाथ और पैर दिखाए।
\s5
\v 41 जब उन्हें ख़ुशी के मारे यक़ीन नहीं आ रहा था और ता'अज्जुब कर रहे थे तो ईसा' ने पूछा, “क्या यहाँ तुम्हारे पास कोई खाने की चीज़ है?”
\v 42 उन्हों ने उसे भुनी हुई मछली का एक टुकड़ा दिया
\v 43 उस ने उसे ले कर उन के सामने ही खा लिया।
\s5
\v 44 फिर उस ने उन से कहा, “यही है जो मैं ने तुम को उस वक़्त बताया था जब तुम्हारे साथ था कि जो कुछ भी मूसा की शरीअत, नबियों के सहीफ़ों और ज़बूर की किताब में मेरे बारे में लिखा है उसे पूरा होना है।”
\s5
\v 45 फिर उस ने उन के ज़हन को खोल दिया ताकि वह ख़ुदा का कलाम समझ सकें।
\v 46 उस ने उन से कहा, “कलाम-ए-मुक़द्दस में यूँ लिखा है, मसीह दुख उठा कर तीसरे दिन मुर्दों में से जी उठेगा।
\v 47 फिर यरूशलम से शुरू करके उस के नाम में यह पैग़ाम तमाम क़ौमों को सुनाया जाएगा कि वह तौबा करके गुनाहों की मुआफ़ी पाएँ।
\s5
\v 48 तुम इन बातों के गवाह हो।
\v 49 और मैं तुम्हारे पास उसे भेज दूँगा जिस का वादा मेरे बाप ने किया है। फिर तुम को आस्मान की ताक़त से भर दिया जाएगा। उस वक़्त तक शहर से बाहर न निकलना।”
\s5
\v 50 फिर वह शहर से निकल कर उन्हें बैत-अनियाह तक ले गया। वहाँ उस ने अपने हाथ उठा कर उन्हें बर्कत दी।
\v 51 और ऐसा हुआ कि बर्कत देते हुए वह उन से जुदा हो कर आस्मान पर उठा लिया गया।
\s5
\v 52 उन्हों ने उसे सिज्दा किया और फिर बड़ी ख़ुशी से यरूशलम वापस चले गए।
\v 53 वहाँ वह अपना पूरा वक़्त बैत-उल-मुक़द्दस में गुज़ार कर ख़ुदा की बड़ाई करते रहे।

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\id JHN
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\h मुक़द्दस यूहन्ना की मा'रिफ़त इन्जील
\toc1 मुक़द्दस यूहन्ना की मा'रिफ़त इन्जील
\toc2 मुक़द्दस यूहन्ना की मा'रिफ़त इन्जील
\toc3 jhn
\mt1 मुक़द्दस यूहन्ना की मा'रिफ़त इन्जील
\s5
\c 1
\p
\v 1 इब्तिदा में कलाम था, और कलाम ख़ुदा के साथ था, और कलाम ही ख़ुदा था।
\v 2 यही शुरू में ख़ुदा के साथ था।
\v 3 सब चीज़ें उसके वसीले से पैदा हुईं, और जो कुछ पैदा हुआ है उसमें से कोई चीज़ भी उसके बग़ैर पैदा नहीं हुई ।
\s5
\v 4 उसमें ज़िन्दगी थी और वो ज़िन्दगी आदमियों का नूर थी।
\v 5 और नूर तारीकी में चमकता है, और तारीकी ने उसे क़ुबूल न किया |
\s5
\v 6 एक आदमी युहन्ना नाम आ मौजूद हुआ, जो ख़ुदा की तरफ़ से भेजा गया था;
\v 7 ये गवाही के लिए आया कि नूर की गवाही दे, ताकि सब उसके वसीले से ईमान लाएँ।
\v 8 वो ख़ुद तो नूर न था, मगर नूर की गवाही देने आया था |
\s5
\v 9 हक़ीक़ी नूर जो हर एक आदमी को रौशन करता है, दुनियाँ में आने को था |
\s5
\v 10 वो दुनियाँ में था, और दुनियाँ उसके वसीले से पैदा हुई, और दुनियाँ ने उसे न पहचाना |।
\v 11 वो अपने घर आया और और उसके अपनों ने उसे क़ुबूल न किया।
\s5
\v 12 लेकिन जितनों ने उसे क़ुबूल किया, उसने उन्हें ख़ुदा के फ़र्ज़न्द बनने का हक़ बख़्शा, या'नी उन्हें जो उसके नाम पर ईमान लाते हैं |
\v 13 वो न खून से, न जिस्म की ख़्वाहिश से, न इंसान के इरादे से, बल्कि ख़ुदा से पैदा हुए |
\s5
\v 14 और कलाम मुजस्सिम हुआ फ़ज़ल और सच्चाई से भरकर हमारे दरमियान रहा, और हम ने उसका ऐसा जलाल देखा जैसा बाप के इकलौते का जलाल |
\v 15 युहन्ना ने उसके बारे में गवाही दी, और पुकार कर कहा है, "ये वही है, जिसका मैंने ज़िक्र किया कि जो मेरे बा'द आता है, वो मुझ से मुक़द्दम ठहरा क्यूँकि वो मुझ से पहले था |"
\s5
\v 16 क्यूँकि उसकी भरपूरी में से हम सब ने पाया, या'नी फ़ज़ल पर फ़ज़ल।
\v 17 इसलिए कि शरी'अत तो मूसा के ज़रिये दी गई, मगर फ़ज़ल और सच्चाई ईसा' मसीह के ज़रिये पहुँची।
\v 18 ख़ुदा को किसी ने कभी नहीं देखा, इकलौता बेटा जो बाप की गोद में है उसी ने ज़ाहिर किया |
\s5
\v 19 और युहन्ना की गवाही ये है, कि जब यहूदी अगुवो ने यरूशलीम से काहिन और लावी ये पूछने को उसके पास भेजे, "तू कौन है? "
\v 20 तो उसने इक़रार किया, "और इन्कार न किया बल्कि , इक़रार किया, "मैं तो मसीह नहीं हूँ |"
\v 21 उन्होंने उससे पूछा, " फिर तू कौन है ? क्या तू एलियाह है?" उसने कहा, "मैं नहीं हूँ |" "क्या तू वो नबी है?" उसने जवाब दिया,कि "नहीं |"
\s5
\v 22 पस उन्होंने उससे कहा, "फिर तू है कौन? ताकि हम अपने भेजने वालों को जवाब दें कि, तू अपने हक़ में क्या कहता है?"
\v 23 “मैं जैसा यसायाह नबी ने कहा ,वीराने में एक पुकारने वाले की आवाज़ हूँ ,'तुम ख़ुदा वन्द की राह को सीधा करो' ।”
\s5
\v 24 ये फ़रीसियों की तरफ़ से भेजे गए थे |
\v 25 उन्होंने उससे ये सवाल किया, "अगर तू न मसीह है, न एलियाह, न वो नबी, तो फिर बपतिस्मा क्यूँ देता है ?"
\s5
\v 26 युहन्ना ने जवाब में उनसे कहा, "मैं पानी से बपतिस्मा देता हूँ, तुम्हारे बीच एक शख़्स खड़ा है जिसे तुम नहीं जानते।
\v 27 या'नी मेरे बा'द का आनेवाला, जिसकी जूती का फ़ीता मैं खोलने के लायक़ नहीं |"
\v 28 ये बातें यरदन के पार बैत'अन्नियाह में वाक़े' हुईं, जहाँ युहन्ना बपतिस्मा देता था |
\s5
\v 29 दूसरे दिन उसने ईसा' 'को अपनी तरफ़ आते देखकर कहा, "देखो, ये ख़ुदा का बर्रा है जो दुनियाँ का गुनाह उठा ले जाता है !
\v 30 ये वही है जिसके बारे मैंने कहा था, 'एक शख़्स मेरे बा'द आता है, जो मुझ से मुक़द्दम ठहरा है, क्योंकि वो मुझ से पहले था |'
\v 31 और मैं तो उसे पहचानता न था, मगर इसलिए पानी से बपतिस्मा देता हुआ आया कि वो इस्राईल पर ज़ाहिर हो जाए |"
\s5
\v 32 और युहन्ना ने ये गवाही दी : "मैंने रूह को कबूतर की तरह आसमान से उतरते देखा है, और वो उस पर ठहर गया।
\v 33 मैं तो उसे पहचानता न था, मगर जिसने मुझे पानी से बपतिस्मा देने को भेजा उसी ने मुझ से कहा, 'जिस पर तू रूह को उतरते और ठहरते देखे, वही रूह-उल-क़ुद्दूस से बपतिस्मा देनेवाला है।'
\v 34 चुनाँचे मैंने देखा, और गवाही दी है कि ये ख़ुदा का बेटा है |"
\s5
\v 35 दूसरे दिन फिर युहन्ना और उसके शागिर्दों में से दो शख़्स खड़े थे,।
\v 36 उसने ईसा' पर जो जा रहा था निगाह करके कहा, "देखो, ये ख़ुदा का बर्रा है !"
\s5
\v 37 वो दोनों शागिर्द उसको ये कहते सुनकर ईसा' के पीछे हो लिए |
\v 38 ईसा' ने फिरकर और उन्हें पीछे आते देखकर उनसे कहा, "तुम क्या ढूँढ़ते हो ?" उन्होंने उससे कहा, "ऐ रब्बी (या'नी ऐ उस्ताद), तू कहाँ रहता है? "
\v 39 उसने उनसे कहा, "चलो, देख लोगे |" पस उन्होंने आकर उसके रहने की जगह देखी और उस रोज़ उसके साथ रहे, और ये चार बजे के क़रीब था|
\s5
\v 40 उन दोनों में से जो यूहन्ना की बात सुनकर ईसा' के पीछे हो लिए थे, एक शमा'ऊन पतरस का भाई अन्द्रियास था।
\v 41 उसने पहले अपने सगे भाई शमा'ऊन से मिलकर उससे कहा, "हम को ख़्रितुस, या'नी मसीह मिल गया |"
\v 42 वो उसे ईसा' के पास लाया ईसा' ने उस पर निगाह करके कहा, "तू यूहन्ना का बेटा शमा'ऊन है; तू कैफ़ा या'नी पतरस कहलाएगा |"
\s5
\v 43 दूसरे दिन ईसा ने गलील में जाना चाहा, और फिलिप्पुस से मिलकर कहा,"मेरे पीछे हो ले |"
\v 44 फ़िलिप्पुस, अन्द्रियास और पतरस के शहर, बैतसैदा का रहने वाला था।
\v 45 फ़िलिप्पुस से नतनएल से मिलकर उससे कहा, "जिसका ज़िक्र मूसा ने तौरेत में और नबियों ने किया है, वो हम को मिल गया; वो यूसुफ़ का बेटा ईसा' नासरी है |"
\s5
\v 46 नतनएल ने उससे कहा, "क्या नासरत से कोई अच्छी चीज़ निकल सकती है ?" फिलिप्पुस ने कहा, "चलकर देख ले |"
\v 47 ईसा' ने नतनएल को अपनी तरफ़ आते देखकर उसके हक़ में कहा, "देखो, ये फ़िल हक़ीक़त इस्राईली है ! इसमें मक्र नहीं |"
\v 48 नतनएल ने उससे कहा, "तू मुझे कहाँ से जानता है?" ईसा' ने उसके जवाब में कहा, "इससे पहले के फ़िलिप्पुस ने तुझे बुलाया, जब तू अंजीर के दरख़्त के नीचे था, मैंने तुझे देखा |"
\s5
\v 49 नतनएल ने उसको जवाब दिया, "ऐ रब्बी, तू ख़ुदा का बेटा है ! तू बादशाह का बादशाह है !"
\v 50 ईसा' ने जवाब में उससे कहा, "मैंने जो तुझ से कहा, 'तुझ को अंजीर के दरख़्त के नीचे देखा, 'क्या। तू इसीलिए ईमान लाया है? तू इनसे भी बड़े-बड़े मो'जिज़े देखेगा |"
\v 51 फिर उससे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि आसमान को खुला और ख़ुदा के फ़रिश्तों को ऊपर जाते और इब्न-ए-आदम पर उतरते देखोगे।”
\s5
\c 2
\v 1 फिर तीसरे दिन काना-ए-गलील में एक शादी हुई और ईसा' की माँ वहाँ थी |
\v 2 ईसा' और उसके शागिर्दों की भी उस शादी मे दा'वत थी।
\s5
\v 3 और जब मय ख़त्म हो चुकी, तो ईसा' की माँ ने उससे कहा, "उनके पास मय नहीं रही |"
\v 4 ईसा' ने उससे कहा, "ऐ माँ मुझे तुझ से क्या काम है? अभी मेरा वक़्त नहीं आया है |"
\v 5 उसकी माँ ने ख़ादिमों से कहा, “जो कुछ ये तुम से कहे वो करो।”
\s5
\v 6 वहाँ यहूदियों की पाकी के दस्तूर के मुवाफ़िक़ पत्थर के छे:मटके रख्खे थे, और उनमें दो-दो, तीन-तीन मन की गुंजाइश थी।
\v 7 ईसा' ने उनसे कहा, "मटकों में पानी भर दो |" पस उन्होंने उनको पूरा भर दिया।
\v 8 फिर उसने उन से कहा, "अब निकाल कर मीरे मजलिस के पास ले जाओ |" पस वो ले गए।
\s5
\v 9 जब मजलिस के सरदार ने वो पानी चखा, जो मय बन गया था और जानता न था कि ये कहाँ से आई है (मगर ख़ादिम जिन्होंने पानी भरा था जानते थे), तो मजलिस के सरदार ने दूल्हा को बुलाकर उससे कहा,
\v 10 "हर शख़्स पहले अच्छी मय पेश करता है और नाक़िस उस वक़्त जब पीकर छक गए, मगर तूने अच्छी मय अब तक रख छोड़ी है |"
\s5
\v 11 ये पहला मो'जिज़ा ईसा' ने क़ाना-ए-गलील में दिखाकर, अपना जलाल ज़ाहिर किया और उसके शागिर्द उस पर ईमान लाए |
\s5
\v 12 इसके बा'द वो और उसकी माँ और भाई और उसके शागिर्द कफ़रनहूम को गए और वहाँ चन्द रोज़ रहे |
\s5
\v 13 यहूदियों की 'ईद-ए-फसह नज़दीक थी, और ईसा' यरूशलीम को गया |
\v 14 उसने हैकल में बैल और भेड़ और कबूतर बेचनेवालों को, और सार्राफ़ों को बैठे पाया;
\s5
\v 15 फिर ईसा' ने रस्सियों का कोड़ा बना कर सब को बैत -उल-मुक़द्दस से निकाल दिया ,उसने भेड़ों और गाय-बैलों को बाहर निकाल कर हाँक दिया,पैसे बदलने वालों के सिक्के बिखेर दिए और उनकी मेंजें उलट दीं |
\v 16 और कबूतर फ़रोशों से कहा, "इनको यहाँ से ले जाओ ! मेरे आसमानी बाप के घर को तिजारत का घर न बनाओ |"
\s5
\v 17 उसके शागिर्दों को याद आया कि लिखा है, "तेरे घर की ग़ैरत मुझे खा जाएगी |"
\v 18 पस कुछ यहूदी अगुवों ने जवाब में उनसे कहा, "तू जो इन कामों को करता है, हमें कौन सा निशान दिखाता है ?"
\v 19 ईसा' ने जवाब में उससे कहा, "इस हैकल को ढा दो, तो मैं इसे तीन दिन में खड़ा कर दूँगा |"
\s5
\v 20 यहूदी अगुवों ने कहा, "छियालीस बरस में ये बना है, और क्या तू उसे तीन दिन में खड़ा कर देगा ?"
\v 21 मगर उसने अपने बदन के ``मक़्दिस के बारे में कहा था"।
\v 22 "पस जब वो मुर्दों में से जी उठा तो उसके शागिर्दों को याद आया कि उसने ये कहा था; और उन्होंने किताब-ए-मुक़द्दस और उस क़ौल का जो ईसा' ने कहा था, यक़ीन किया" |
\s5
\v 23 जब वो यरूशलीम में फसह के वक़्त 'ईद में था, तो बहुत से लोग उन मो'जिज़ों को देखकर जो वो दिखाता था उसके नाम पर ईमान लाए |
\v 24 लेकिन ईसा' अपनी निस्बत उस पर 'ऐतबार न करता था, इसलिए कि वो सबको जानता था |
\v 25 और इसकी ज़रूरत न रखता था कि कोई इन्सान के हक़ में गवाही दे, क्यूँकि वो आप जानता था कि इन्सान के दिल में क्या क्या है।
\s5
\c 3
\v 1 फ़रीसियों में से एक शख़्स निकुदेमुस नाम यहूदियों का एक सरदार था ।
\v 2 उसने रात को ईसा' के पास आकर उससे कहा, "ऐ रब्बी ! हम जानते हैं कि तू ख़ुदा की तरफ़ से उस्ताद होकर आया है, क्यूंकि जो मो'जिज़े तू दिखाता है कोई शख़्स नहीं दिखा सकता, जब तक ख़ुदा उसके साथ न हो |"
\s5
\v 3 ईसा' ने जवाब में उससे कहा, "मैं तुझ से सच कहता हूँ, कि जब तक कोई नए सिरे से पैदा न हो, वो ख़ुदा की बादशाही को देख नहीं सकता |"
\v 4 नीकुदेमुस ने उससे कहा, "आदमी जब बूढ़ा हो गया, तो क्यूँकर पैदा हो सकता है? क्या वो दोबारा अपनी माँ के पेट में दाख़िल होकर पैदा हो सकता है ?"
\s5
\v 5 ईसा' ने जवाब दिया, "मैं तुझ से सच कहता हूँ, जब तक कोई आदमी पानी और रूह से पैदा न हो, वो ख़ुदा की बादशाही में दाख़िल नहीं हो सकता।
\v 6 जो जिस्म से पैदा हुआ है जिस्म है, और जो रूह से पैदा हुआ है रूह है।
\s5
\v 7 ता'अज्जुब न कर कि मैंने तुझ से कहा, 'तुम्हें नए सिरे से पैदा होना ज़रूर है।'
\v 8 हवा जिधर चाहती है चलती है और तू उसकी आवाज़ सुनता है, मगर नहीं कि वो कहाँ से आती और कहाँ को जाती है | जो कोई रूह से पैदा हुआ ऐसा ही है |"
\s5
\v 9 नीकुदेमुस ने जवाब में उससे कहा, "ये बातें क्यूँकर हो सकती हैं?"
\v 10 ईसा' ने जवाब में उससे कहा, “बनी-इस्राईल का उस्ताद होकर क्या तू इन बातों को नहीं जानता ?
\v 11 मैं तुझ से सच कहता हूँ कि जो हम जानते हैं वो कहते हैं, और जिसे हम ने देखा है उसकी गवाही देते हैं, और तुम हमारी गवाही क़ुबूल नहीं करते।
\s5
\v 12 जब मैंने तुम से ज़मीन की बातें कहीं और तुम ने यक़ीन नहीं किया, तो अगर मैं तुम से आसमान की बातें कहूँ तो क्यूँकर यक़ीन करोगे ?
\v 13 आसमान पर कोई नहीं चढ़ा, सिवा उसके जो आसमान से उतरा या'नी इब्न-ए-आदम जो आसमान में है |
\s5
\v 14 और जिस तरह मूसा ने पीतल के साँप को वीराने में ऊँचे पर चढ़ाया, उसी तरह ज़रूर है कि इब्न-ए-आदम भी ऊँचें पर चढ़ाया जाए;
\v 15 ताकि जो कोई ईमान लाए उसमें हमेशा की ज़िन्दगी पाए।
\s5
\v 16 क्यूंकि ख़ुदा ने दुनियाँ से ऐसी मुहब्बत रख्खी कि उसने अपना इकलौता बेटा बख़्श दिया, ताकि जो कोई उस पर ईमान लाए हलाक़ न हो, बल्कि हमेशा की ज़िन्दगी पाए।
\v 17 क्यूँकि ख़ुदा ने बेटे को दुनियाँ में इसलिए नहीं भेजा कि दुनियाँ पर सज़ा का हुक्म करे, बल्कि इसलिए कि दुनियाँ उसके वसीले से नजात पाए |
\v 18 जो उस पर ईमान लाता है उस पर सज़ा का हुक्म नहीं होता, जो उस पर ईमान नहीं लाता उस पर सज़ा का हुक्म हो चुका; इसलिए कि वो ख़ुदा के इकलौते बेटे के नाम पर ईमान नहीं लाया।
\s5
\v 19 और सज़ा के हुक्म की वजह ये है कि नूर दुनियाँ में आया है, और आदमियों ने तारीकी को नूर से ज़्यादा पसन्द किया इसलिए कि उनके काम बुरे थे।
\v 20 क्यूँकि जो कोई बदी करता है वो नूर से दुश्मनी रखता है और नूर के पास नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर मलामत की जाए |
\v 21 मगर जो सचाई पर 'अमल करता है वो नूर के पास आता है, ताकि उसके काम ज़ाहिर हों कि वो ख़ुदा में किए गए हैं |”
\s5
\v 22 इन बातों के बा'द ईसा' और शागिर्द यहूदिया के मुल्क में आए, और वो वहाँ उनके साथ रहकर बपतिस्मा देने लगा |
\v 23 और युहन्ना भी 'एनोन में बपतिस्मा देता था जो यरदन नदी के पास था, क्यूँकि वहाँ पानी बहुत था और लोग आकर बपतिस्मा लेते थे।
\v 24 (क्योंकि यहुन्ना उस वक़्त तक क़ैदख़ाने में डाला न गया था) |
\s5
\v 25 पस युहन्ना के शागिर्दों की किसी यहूदी के साथ पाकीज़गी के बारे में बहस हुई |
\v 26 उन्होंने युहन्ना के पास आकर कहा, "ऐ रब्बी ! जो शख़्स यरदन के पार तेरे साथ था, जिसकी तूने गवाही दी है ; देख, वो बपतिस्मा देता है और सब उसके पास आते हैं |"
\s5
\v 27 युहन्ना ने जवाब मे कहा, "इन्सान कुछ नहीं पा सकता, जब तक उसको आसमान से न दिया जाए।
\v 28 तुम ख़ुद मेरे गवाह हो कि मैंने कहा, 'मैं मसीह नहीं, मगर उसके आगे भेजा गया हूँ।'
\s5
\v 29 जिसकी दुल्हन है वो दूल्हा है, मगर दूल्हा का दोस्त जो खड़ा हुआ उसकी सुनता है, दूल्हा की आवाज़ से बहुत ख़ुश होता है; पस मेरी ये ख़ुशी पूरी हो गई।
\v 30 ज़रूर है कि वो बढ़े और मैं घटूँ |
\s5
\v 31 “जो ऊपर से आता है वो सबसे ऊपर है |जो ज़मीन से है वो ज़मीन ही से है और ज़मीन ही की कहता है 'जो आसमान से आता है वो सबसे ऊपर है |
\v 32 जो कुछ उस ने ख़ुद देखा और सुना है उसी की गवाही देता है। तो भी कोई उस की गवाही क़ुबूल नही करता |
\v 33 जिसने उसकी गवाही क़ुबूल की उसने इस बात पर मुहर कर दी, कि ख़ुदा सच्चा है।
\s5
\v 34 क्यूँकि जिसे ख़ुदा ने भेजा वो ख़ुदा की बातें कहता है ,इसलिए कि वो रूह नाप नाप कर नही देता ।
\v 35 बाप बेटे से मुहब्बत रखता है और उसने सब चीज़े उसके हाथ में दे दी है ।
\v 36 जो बेटे पर ईमान लाता है हमेशा की ज़िन्दगी उसकी है ;लेकिन जो बेटे की नही मानता 'ज़िन्दगी को न देखगा बल्कि उसपर ख़ुदा का ग़ज़ब रहता है |”
\s5
\c 4
\v 1 फिर जब ख़ुदावन्द को मा'लूम हुआ, कि फ़रीसियों ने सुना है कि ईसा' युहन्ना से ज़्यादा शागिर्द बनाता है और बपतिस्मा देता है ,
\v 2 (अगरचे ईसा' आप नहीं बल्कि उसके शागिर्द बपतिस्मा देते थे),
\v 3 तो वो यहूदिया को छोड़कर फिर गलील को चला गया।
\s5
\v 4 और उसको सामरिया से होकर जाना ज़रूर था |
\v 5 पस वो सामरिया के एक शहर तक आया जो सूख़ार कहलाता है, वो उस क़त'ए के नज़दीक है जो या'क़ूब ने अपने बेटे यूसुफ़ को दिया था;
\s5
\v 6 और या'कूब का कुआँ वहीं था | चुनाँचे ईसा' सफ़र से थका-माँदा होकर उस कुँए पर यूँ ही बैठ गया | ये छठे घंटे के क़रीब था |
\v 7 सामरिया की एक 'औरत पानी भरने आई | ईसा' ने उससे कहा, “मुझे पानी पिला ”
\v 8 क्यूँकि उसके शागिर्द शहर में खाना ख़रीदने को गए थे |
\s5
\v 9 उस सामरी 'औरत ने उससे कहा, "तू यहूदी होकर मुझ सामरी 'औरत से पानी क्यूँ माँगता है?" (क्यूँकि यहूदी सामरियों से किसी तरह का बर्ताव नहीं रखते |)
\v 10 ईसा' ने जवाब में उससे कहा, "अगर तू ख़ुदा की बख़्शिश को जानती, और ये भी जानती कि वो कौन है जो तुझ से कहता है, 'मुझे पानी पिला, 'तो तू उससे माँगती और वो तुझे ज़िन्दगी का पानी देता |"
\s5
\v 11 'औरत ने उससे कहा, “ऐ ख़ुदावन्द ! तेरे पास पानी भरने को तो कुछ है नहीं और कुआँ गहरा है, फिर वो ज़िन्दगी का पानी तेरे पास कहाँ से आया ?
\v 12 क्या तू हमारे बाप या'क़ूब से बड़ा है जिसने हम को ये कुआँ दिया, और ख़ुद उसने और उसके बेटों ने और उसके जानवरों ने उसमें से पिया ?”
\s5
\v 13 ईसा' ने जवाब में उससे कहा,"जो कोई इस पानी में से पीता है वो फिर प्यासा होगा,
\v 14 मगर जो कोई उस पानी में से पिएगा जो मैं उसे दूँगा, वो अबद तक प्यासा न होगा ! बल्कि जो पानी मैं उसे दूँगा, वो उसमें एक चश्मा बन जाएगा जो हमेशा की ज़िन्दगी के लिए जारी रहेगा |"
\s5
\v 15 "औरत ने उस से कहा, “ऐ ख़ुदावन्द ! वो पानी मुझ को दे ताकि मैं न प्यासी होऊँ, न पानी भरने को यहाँ तक आऊँ |"
\v 16 ईसा' ने उससे कहा ,"जा ,अपने शौहर को यहाँ बुला ला |"
\s5
\v 17 'औरत ने जवाब में उससे कहा ,”मैं बे शौहर हूँ |" ईसा' ने उससे कहा, "तुने ख़ूब कहा ,'मैं बे शौहर हूँ ,'
\v 18 क्यूँकि तू पाँच शौहर कर चुकी है, और जिसके पास तू अब है वो तेरा शौहर नहीं; ये तूने सच कहा |"
\s5
\v 19 'औरत ने उससे कहा, "ऐ ख़ुदावन्द ! मुझे मा'लूम होता है कि तू नबी है |
\v 20 हमारे बाप-दादा ने इस पहाड़ पर इबादत की, और तुम कहते हो कि वो जगह जहाँ पर इबादत करना चाहिए यरूशलीम में है |"'
\s5
\v 21 ईसा' ने उससे कहा, “ऐ बहन ! मेरी बात का यक़ीन कर, कि वो वक़्त आता है कि तुम न तो इस पहाड़ पर बाप की इबादत करोगे और न यरूशीलम में |”
\v 22 तुम जिसे नहीं जानते उसकी इबादत करते हो; और हम जिसे जानते हैं उसकी इबादत करते हैं ;क्यूँकि नजात यहुदियों में से है |
\s5
\v 23 मगर वो वक़्त आता है बल्कि अब ही है, कि सच्चे इबादतगार ख़ुदा बाप की इबादत रूह और सच्चाई से करेंगे, क्यूँकि ख़ुदा बाप अपने लिए ऐसे ही इबादतगार ढूँढता है |
\v 24 ख़ुदा रूह है, और ज़रूर है कि उसके इबादतगार रूह और सच्चाई से इबादत करें |
\s5
\v 25 'औरत ने उससे कहा, “मैं जानती हूँ कि मसीह जो ख़्रिस्तुस कहलाता है आने वाला है, जब वो आएगा तो हमें सब बातें बता देगा |”
\v 26 ईसा ने उससे कहा, "मैं जो तुझ से बोल रहा हूँ, वही हूँ |"
\s5
\v 27 इतने में उसके शागिर्द आ गए और ताअ'ज्जुब करने लगे कि वो 'औरत से बातें कर रहा है, तोभी किसी ने न कहा, "तू क्या चाहता है?" या, "उससे किस लिए बातें करता है |"
\s5
\v 28 पस 'औरत अपना घड़ा छोड़कर शहर में चली गई और लोगों से कहने लगी,
\v 29 “आओ, एक आदमी को देखो, जिसने मेरे सब काम मुझे बता दिए | क्या मुम्किन है कि मसीह यही है ?”
\v 30 वो शहर से निकल कर उसके पास आने लगे |
\s5
\v 31 इतने में उसके शागिर्द उससे ये दरख़्वास्त करने लगे, "ऐ रब्बी ! कुछ खा ले |"
\v 32 लेकिन उसने कहा, "मेरे पास खाने के लिए ऐसा खाना है जिसे तुम नहीं जानते |"
\v 33 पस शागिर्दों ने आपस में कहा, "क्या कोई उसके लिए कुछ खाने को लाया है ?"
\s5
\v 34 ईसा' ने उनसे कहा, "मेरा खाना, ये है, कि अपने भेजनेवाले की मर्ज़ी के मुताबिक़ 'अमल करूं और उसका काम पूरा करूं |।
\v 35 क्या तुम कहते नहीं, 'फ़सल के आने में अभी चार महीने बाक़ी हैं'? देखो, मैं तुम से कहता हूँ, अपनी आँखें उठाकर खेतों पर नज़र करो कि फ़सल पक गई है।
\v 36 और काटनेवाला मज़दूरी पाता और हमेशा की ज़िन्दगी के लिए फल जमा' करता है, ताकि बोनेवाला और काटनेवाला दोनों मिलकर ख़ुशी करें |
\s5
\v 37 क्यूँकि इस पर ये मसल ठीक आती है, 'बोनेवाला और काटनेवाला और |'
\v 38 मैंने तुम्हें वो खेत काटने के लिए भेजा जिस पर तुम ने मेहनत नहीं की, औरों ने मेहनत की और तुम उनकी मेहनत के फल में शरीक हुए |"
\s5
\v 39 और उस शहर के बहुत से सामरी उस 'औरत के कहने से, जिसने गवाही दी, "उसने मेरे सब काम मुझे बता दिए, "उस पर ईमान लाए |
\v 40 पस जब वो सामरी उसके पास आए, तो उससे दरख़्वास्त करने लगे कि हमारे पास रह | चुनांचे वो दो रोज़ वहाँ रहा |
\s5
\v 41 और उसके कलाम के ज़रिये से और भी बहुत सारे ईमान लाए
\v 42 और उस औरत से कहा "अब हम तेरे कहने ही से ईमान नहीं लाते क्यूँकि हम ने ख़ुद सुन लिया और जानते हैं कि ये हक़ीक़त में दुनियाँ का मुन्जी है |"
\s5
\v 43 फिर उन दो दिनों के बा'द वो वहाँ से होकर गलील को गया |
\v 44 क्यूँकि ईसा' ने ख़ुद गवाही दी कि नबी अपने वतन में इज़्ज़त नहीं पाता |
\v 45 पस जब वो गलील में आया तो गलीलियों ने उसे क़ुबूल किया, इसलिए कि जितने काम उसने यरूशीलम में 'ईद के वक़्त किए थे, उन्होंने उनको देखा था क्यूँकि वो भी 'ईद में गए थे |
\s5
\v 46 पस फिर वो क़ाना-ए-गलील में आया, जहाँ उसने पानी को मय बनाया था, और बादशह का एक मुलाज़िम था जिसका बेटा कफरनहुम में बीमार था |
\v 47 वो ये सुनकर कि ईसा यहुदिया से गलील में आ गया है, उसके पास गया और उससे दरख़्वास्त करने लगा, कि चल कर मेरे बेटे को शिफ़ा बख़्श क्यूँकि वो मरने को था |
\s5
\v 48 ईसा' ने उससे कहा,"जब तक तुम निशान और 'अजीब काम न देखो, हरगिज़ ईमान न लाओगे |"
\v 49 बादशाह के मुलाज़िम ने उससे कहा, "ऐ ख़ुदावन्द ! मेरे बच्चे के मरने से पहले चल |"
\v 50 ईसा ने उससे कहा, "जा; तेरा बेटा ज़िन्दा है |" उस शख़्स ने उस बात का यक़ीन किया जो ईसा ने उससे कही और चला गया |
\s5
\v 51 वो रास्ते ही में था कि उसके नौकर उसे मिले और कहने लगे, "तेरा बेटा ज़िन्दा है |"
\v 52 उसने उनसे पूछा, "उसे किस वक़्त से आराम होने लगा था ?" उन्होंने कहा, "कल एक बजे उसका बुख़ार उतर गया |"
\s5
\v 53 पस बाप जान गया कि वही वक़्त था जब ईसा' ने उससे कहा, "तेरा बेटा ज़िन्दा है |" और वो ख़ुद और उसका सारा घराना ईमान लाया |
\v 54 ये दूसरा करिश्मा है जो ईसा' ने यहूदिया से गलील में आकर दिखाया |
\s5
\c 5
\v 1 इन बातों के बा'द यहूदियों की एक 'ईद हुई और ईसा' यरूशलीम को गया |
\v 2 यरूशलीम में भेड़ दरवाज़े के पास एक हौज़ है जो 'इब्रानी में बैत हस्दा कहलाता है, और उसके पाँच बरामदे हैं |
\v 3 इनमें बहुत से बीमार और अन्धे और लंगड़े और कमज़ोर लोग [ जो पानी के हिलने के इंतज़ार मे पड़े थे |
\v 4 [क्यूकि वक़्त पर ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता हौज़ पर उतर कर पानी हिलाया करता था | पानी हिलते ही जो कोई पहले उतरता सो शिफ़ा पाता, उसकी जो कुछ बीमारी क्यूँ न हो |]
\s5
\v 5 वहाँ एक शख़्स था जो अड़तीस बरस से बीमारी में मुब्तिला था |
\v 6 उसको 'ईसा' ने पड़ा देखा और ये जानकर कि वो बड़ी मुद्दत से इस हालत में है, उससे कहा, "क्या तू तन्दरुस्त होना चाहता है ?"
\s5
\v 7 उस बीमार ने उसे जवाब दिया, "ऐ ख़ुदावन्द ! मेरे पास कोई आदमी नहीं कि जब पानी हिलाया जाए तो मुझे हौज़ में उतार दे, बल्कि मेरे पहुँचते पहुँचते दूसरा मुझ से पहले उतर पड़ता है |"
\v 8 'ईसा'ने उससे कहा, "उठ, और अपनी चारपाई उठाकर चल फिर |"
\s5
\v 9 वो शख़्स फ़ौरन तन्दरुस्त हो गया, और अपनी चारपाई उठाकर चलने फिरने लगा |
\s5
\v 10 वो दिन सबत का था | पस यहूदी अगुवे उससे जिसने शिफा पाई थी कहने लगे, "आज सबत का दिन है, तुझे चारपाई उठाना जायज़ नहीं |"
\v 11 उसने उन्हें जवाब दिया, "जिसने मुझे तन्दरुस्त किया, उसी ने मुझे फ़रमाया, 'अपनी चारपाई उठाकर चल फिर |' "
\s5
\v 12 उन्होंने उससे पूछा, "वो कौन शख़्स है जिसने तुझ से कहा, 'चारपाई उठाकर चल फिर' ?"
\v 13 लेकिन जो शिफ़ा पा गया था वो न जानता था कि वो कौन है, क्यूँकि भीड़ की वजह से 'ईसा' वहाँ से टल गया था |
\s5
\v 14 इन बातों के बा'द वो ईसा' को हैकल में मिला; उसने उससे कहा, "देख, तू तन्दरुस्त हो गया है ! फिर गुनाह न करना, ऐसा न हो कि तुझपर इससे भी ज़्यादा आफत आए |"
\v 15 उस आदमी ने जाकर यहूदियों को ख़बर दी कि जिसने मुझे तन्दुरुस्त किया वो ईसा' है |
\s5
\v 16 इसलिए यहूदी ईसा' को सताने लगे, क्यूँकि वो ऐसे काम सबत के दिन करता था |
\v 17 लेकिन ईसा' ने उनसे कहा, "मेरा आसमानी बाप अब तक काम करता है, और मैं भी काम करता हूँ |"
\v 18 इस वजह से यहूदी और भी ज़्यादा उसे क़त्ल करने की कोशिश करने लगे, कि वो न फ़क़त सबत का हुक्म तोड़ता, बल्कि ख़ुदा को ख़ास अपना बाप कह कर अपने आपको ख़ुदा के बराबर बनाता था
\s5
\v 19 पस ईसा' ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ कि बेटा आप से कुछ नहीं कर सकता, सिवा उसके जो बाप को करते देखता है; क्यूँकि जिन कामों को वो करता है, उन्हें बेटा भी उसी तरह करता है |
\v 20 इसलिए कि बाप बेटे को 'अज़ीज़ रखता है, और जितने काम ख़ुद करता है उसे दिखाता है; बल्कि इनसे भी बड़े काम उसे दिखाएगा, ताकि तुम ता'ज्जुब करो |
\s5
\v 21 क्यूँकि जिस तरह बाप मुर्दों को उठाता और ज़िन्दा करता है, उसी तरह बेटा भी जिन्हें चाहता है ज़िन्दा करता है |
\v 22 क्यूँकि बाप किसी की 'अदालत भी नहीं करता, बल्कि उसने 'अदालत का सारा काम बेटे के सुपुर्द किया है;
\v 23 ताकि सब लोग बेटे की 'इज़्ज़त करें जिस तरह बाप की 'इज़्ज़त करते हैं | जो बेटे की 'इज़्ज़त नहीं करता,वो बाप की जिसने उसे भेजा 'इज़्ज़त नहीं करता |
\s5
\v 24 मैं तुम से सच कहता हूँ कि जो मेरा कलाम सुनता और मेरे भेजने वाले का यक़ीन करता है, हमेशा की ज़िन्दगी उसकी है और उस पर सज़ा का हुक्म नहीं होता बल्कि वो मौत से निकलकर ज़िन्दगी में दाख़िल हो गया है |”
\s5
\v 25 “मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि वो वक़्त आता है बल्कि अभी है, कि मुर्दे ख़ुदा के बेटे की आवाज़ सुनेंगे और जो सुनेंगे वो जिएँगे |
\s5
\v 26 क्यूँकि जिस तरह बाप अपने आप में ज़िन्दगी रखता है, उसी तरह उसने बेटे को भी ये बख़्शा कि अपने आप में ज़िन्दगी रख्खे |
\v 27 बल्कि उसे 'अदालत करने का भी इख़्तियार बख़्शा, इसलिए कि वो आदमज़ाद है |
\s5
\v 28 इससे ता'अज्जुब न करो; क्यूँकि वो वक़्त आता है कि जितने क़ब्रों में हैं उसकी आवाज़ सुनकर निकलेंगे,
\v 29 जिन्होंने नेकी की है ज़िन्दगी की क़यामत, के वास्ते, और जिन्होंने बदी की है सज़ा की क़यामत के वास्ते |”
\s5
\v 30 “मैं अपने आप से कुछ नहीं कर सकता; जैसा सुनता हूँ 'अदालत करता हूँ और मेरी 'अदालत रास्त है, क्यूँकि मैं अपनी मर्ज़ी नहीं बल्कि अपने भेजने वाले की मर्ज़ी चाहता हूँ |
\v 31 अगर मैं ख़ुद अपनी गवाही दूँ, तो मेरी गवाही सच्ची नहीं |
\v 32 एक और है जो मेरी गवाही देता है, और मैं जानता हूँ कि मेरी गवाही जो वो देता है सच्ची है |
\s5
\v 33 तुम ने युहन्ना के पास पयाम भेजा, और उसने सच्चाई की गवाही दी है |
\v 34 लेकिन मैं अपनी निस्बत इन्सान की गवाही मंज़ूर नहीं करता, तोभी मैं ये बातें इसलिए कहता हूँ कि तुम नजात पाओ |
\v 35 वो जलता और चमकता हुआ चराग़ था, और तुम को कुछ 'अर्से तक उसकी रौशनी में ख़ुश रहना मंज़ूर हुआ |
\s5
\v 36 लेकिन मेरे पास जो गवाही है वो युहन्ना की गवाही से बड़ी है, क्यूँकि जो काम बाप ने मुझे पूरे करने को दिए, या'नी यही काम जो मैं करता हूँ, वो मेरे गवाह हैं कि बाप ने मुझे भेजा है |
\v 37 और बाप जिसने मुझे भेजा है, उसी ने मेरी गवाही दी है | तुम ने न कभी उसकी आवाज़ सुनी है और न उसकी सूरत देखी ;
\v 38 और उस के कलाम को अपने दिलों में क़ायम नही रखते, क्यूँकि जिसे उसने भेजा है उसका यक़ीन नहीं करते |
\s5
\v 39 तुम किताब-ए-मुक़द्दस में ढूँढ़ते हो , क्यूँकि समझते हो कि उसमें हमेशा की ज़िन्दगी तुम्हें मिलती है, और ये वो है जो मेरी गवाही देती है;
\v 40 फिर भी तुम ज़िन्दगी पाने के लिए मेरे पास आना नहीं चाहते |
\s5
\v 41 मैं आदमियों से 'इज़्ज़त नहीं चाहता |
\v 42 लेकिन मैं तुमको जानता हूँ कि तुम में ख़ुदा की मुहब्बत नहीं |
\s5
\v 43 मैं अपने आसमानी बाप के नाम से आया हूँ और तुम मुझे क़ुबूल नहीं करते, अगर कोई और अपने ही नाम से आए तो उसे क़ुबूल कर लोगे |
\v 44 तुम जो एक दूसरे से 'इज़्ज़त चाहते हो और वो 'इज़्ज़त जो ख़ुदा-ए-वाहिद की तरफ़ से होती है नहीं चाहते, क्यूँकर ईमान ला सकते हो ?
\s5
\v 45 ये न समझो कि मैं बाप से तुम्हारी शिकायत करूँगा; तुम्हारी शिकायत करनेवाला तो है, या'नी मूसा जिस पर तुम ने उम्मीद लगा रख्खी है |
\v 46 क्यूँकि अगर तुम मूसा का यक़ीन करते तो मेरा भी यक़ीन करते, इसलिए कि उसने मेरे हक़ में लिखा है |
\v 47 लेकिन जब तुम उसके लिखे हुए का यक़ीन नहीं करते, तो मेरी बात का क्यूँकर यक़ीन करोगे ?”
\s5
\c 6
\v 1 इन बातों के बा'द 'ईसा' गलील की झील या'नी तिबरियास की झील के पार गया |
\v 2 और बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली क्यूँकि जो मो'जिज़े वो बीमारों पर करता था उनको वो देखते थे |
\v 3 ईसा' पहाड़ पर चढ़ गया और अपने शागिर्दों के साथ वहाँ बैठा |
\s5
\v 4 और यहूदियों की 'ईद-ए-फ़सह नज़दीक थी |
\v 5 पस जब 'ईसा' ने अपनी आँखें उठाकर देखा कि मेरे पास बड़ी भीड़ आ रही है, तो फ़िलिप्पुस से कहा, "हम इनके खाने के लिए कहाँ से रोटियाँ ख़रीद लें ?"
\v 6 मगर उसने उसे आज़माने के लिए ये कहा, क्यूँकि वो आप जानता था कि मैं क्या करूँगा |
\s5
\v 7 फ़िलिप्पुस ने उसे जवाब दिया, "दो सौ दिन मज़दूरी की रोटियाँ इनके लिए काफ़ी न होंगी, कि हर एक को थोड़ी सी मिल जाए |"
\v 8 उसके शागिर्दों में से एक ने, या'नी शमा'ऊन पतरस के भाई अन्द्रियास ने, उससे कहा,
\v 9 "यहाँ एक लड़का है जिसके पास जौ की पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं, मगर ये इतने लोगों में क्या हैं ?"
\s5
\v 10 ईसा' ने कहा, "लोगों को बिठाओ |" और उस जगह बहुत घास थी | पस वो मर्द जो तक़रीबन पाँच हज़ार थे बैठ गए |
\v 11 ईसा' ने वो रोटियाँ ली और शुक्र करके उन्हें जो बैठे थे बाँट दीं, और इसी तरह मछलियों में से जिस क़दर चाहते थे बाँट दिया |
\v 12 जब वो सेर हो चुके तो उसने अपने शागिर्दों से कहा, "बचे हुए बे इस्तेमाल खाने को जमा' करो, ताकि कुछ ज़ाया न हो |"
\s5
\v 13 चुनाँचे उन्होंने जमा' किया, और जौ की पाँच रोटियों के टुकड़ों से जो खानेवालों से बच रहे थे बारह टोकरियाँ भरीं
\v 14 पस जो मो'जिज़ा उसने दिखाया, वो लोग उसे देखकर कहने लगे, "जो नबी दुनियाँ में आने वाला था हक़ीक़त में यही है |"
\v 15 पस ईसा' ये मा'लूम करके कि वो आकर मुझे बादशाह बनाने के लिए पकड़ना चाहते हैं, फिर पहाड़ पर अकेला चला गया |
\s5
\v 16 फिर जब शाम हुई तो उसके शागिर्द झील के किनारे गए,
\v 17 और नाव में बैठकर झील के पार कफ़रनहूम को चले जाते थे | उस वक़्त अन्धेरा हो गया था, और 'ईसा' अभी तक उनके पास न आया था |
\v 18 और आँधी की वजह से झील में मौजें उठने लगीं |
\s5
\v 19 पस जब वो खेते-खेते तीन-चार मील के क़रीब निकल गए, तो उन्होंने 'ईसा' को झील पर चलते और नाव के नज़दीक आते देखा और डर गए |
\v 20 मगर उसने उनसे कहा, "मैं हूँ, डरो मत |"
\v 21 पस वो उसे नाव में चढ़ा लेने को राज़ी हुए, और फ़ौरन वो नाव उस जगह जा पहुँची जहाँ वो जाते थे |
\s5
\v 22 दूसरे दिन उस भीड़ ने जो झील के पार खड़ी थी, ये देखा कि यहाँ एक के सिवा और कोई छोटी नाव न थी; और 'ईसा' अपने शागिर्दों के साथ नाव पर सवार न हुआ था, बल्कि सिर्फ़ उसके शागिर्द चले गए थे |
\v 23 (लेकिन कुछ छोटी नावें तिबरियास से उस जगह के नज़दीक आईं, जहाँ उन्होंने ख़ुदावन्द के शुक्र करने के बा'द रोटी खाई थी |)
\s5
\v 24 पस जब भीड़ ने देखा कि यहाँ न 'ईसा' है न उसके शागिर्द, तो वो ख़ुद छोटी नावों में बैठकर 'ईसा' की तलाश में कफ़रनहुन को आए |
\v 25 और झील के पार उससे मिलकर कहा, "ऐ रब्बी ! तू यहाँ कब आया ?"
\s5
\v 26 ईसा' ने उनके जवाब में कहा, "मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तुम मुझे इसलिए नहीं ढूँढ़ते कि मो'जिज़े देखे, बल्कि इसलिए कि तुम रोटियाँ खाकर सेर हुए |"
\v 27 फ़ानी ख़ुराक के लिए मेहनत न करो, बल्कि उस खुराक के लिए जो हमेशा की ज़िन्दगी तक बाक़ी रहती है जिसे इब्न-ए-आदम तुम्हें देगा; क्यूँकि बाप या'नी ख़ुदा ने उसी पर मुहर की है |"
\s5
\v 28 पस उन्होंने उससे कहा, "हम क्या करें ताकि ख़ुदा के काम अन्जाम दें ?"
\v 29 ईसा' ने जवाब में उनसे कहा, "ख़ुदा का काम ये है कि जिसे उसने भेजा है उस पर ईमान लाओ |"
\s5
\v 30 पस उन्होंने उससे कहा, "फिर तू कौन सा निशान दिखाता है, ताकी हम देखकर तेरा यक़ीन करें ? तू कौन सा काम करता है ?"
\v 31 हमारे बाप-दादा ने वीराने में मन्ना खाया, चुनांचे लिखा है, 'उसने उन्हें खाने के लिए आसमान से रोटी दी |' "
\s5
\v 32 ईसा' ने उनसे कहा, "मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि मूसा ने तो वो रोटी आसमान से तुम्हें न दी, लेकिन मेरा बाप तुम्हें आसमान से हक़ीक़ी रोटी देता है |"
\v 33 क्यूँकि ख़ुदा की रोटी वो है जो आसमान से उतरकर दुनियाँ को ज़िन्दगी बख़्शती है |"
\v 34 उन्होंने उससे कहा, "ऐ ख़ुदावन्द ! ये रोटी हम को हमेशा दिया कर |"
\s5
\v 35 ईसा' ने उनसे कहा, "ज़िन्दगी की रोटी मैं हूँ; जो मेरे पास आए वो हरगिज़ भूखा न होगा, और जो मुझ पर ईमान लाए वो कभी प्यासा ना होगा |"
\v 36 लेकिन मैंने तुम से कहा कि तुम ने मुझे देख लिया है फिर भी ईमान नहीं लाते |
\v 37 जो कुछ बाप मुझे देता है मेरे पास आ जाएगा, और जो कोई मेरे पास आएगा उसे मैं हरगिज़ निकाल न दूँगा |
\s5
\v 38 क्यूँकि मैं आसमान से इसलिए नहीं उतरा हूँ कि अपनी मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ 'अमल करूँ, बल्कि इसलिए कि अपने भेजनेवाले की मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ 'अमल करूँ |
\v 39 और मेरे भेजनेवाले की मर्ज़ी ये है, कि जो कुछ उसने मुझे दिया है मैं उसमें से कुछ खो न दूँ, बल्कि उसे आख़िरी दिन फिर ज़िन्दा करूँ |
\v 40 क्यूँकि मेरे बाप की मर्ज़ी ये है, कि जो कोई बेटे को देखे और उस पर ईमान लाए, और हमेशा की ज़िन्दगी पाए और मैं उसे आख़िरी दिन फिर ज़िन्दा करूँ |"
\s5
\v 41 पस यहूदी उस पर बुदबुदाने लगे, इसलिए कि उसने कहा, था, "जो रोटी आसमान से उतरी वो मैं हूँ |"
\v 42 और उन्होंने कहा, "क्या ये युसूफ़ का बेटा 'ईसा' नहीं, जिसके बाप और माँ को हम जानते हैं? अब ये क्यूँकर कहता है कि मैं आसमान से उतरा हूँ?"
\s5
\v 43 ईसा' ने जवाब में उनसे कहा, "आपस में न बुदबुदाओ |"
\v 44 कोई मेरे पास नहीं आ सकता जब तक कि बाप जिसने मुझे भेजा है उसे खींच न ले, और मैं उसे आख़िरी दिन फिर ज़िन्दा करूँगा |
\v 45 नबियों के सहीफ़ों में ये लिखा है : 'वो सब ख़ुदा से ता'लीम पाये हुए लोग होंगे |' जिस किसी ने बाप से सुना और सीखा है वो मेरे पास आता है -
\s5
\v 46 ये नहीं कि किसी ने बाप को देखा है, मगर जो ख़ुदा की तरफ़ से है उसी ने बाप को देखा है |
\v 47 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो ईमान लाता है हमेशा की ज़िन्दगी उसकी है |
\s5
\v 48 ज़िन्दगी की रोटी मैं हूँ |
\v 49 तुम्हारे बाप-दादा ने वीराने मैं मन्ना खाया और मर गए |
\s5
\v 50 ये वो रोटी है कि जो आसमान से उतरती है, ताकि आदमी उसमें से खाए और न मरे |
\v 51 मैं हूँ वो ज़िन्दगी की रोटी जो आसमान से उतरी | अगर कोई इस रोटी में से खाए तो हमेशा तक ज़िन्दा रहेगा, बल्कि जो रोटी मैं दुनियाँ की ज़िन्दगी के लिए दूँगा वो मेरा गोश्त है |"
\s5
\v 52 पस यहूदी ये कहकर आपस में झगड़ने लगे, "ये शख़्स आपना गोश्त हमें क्यूँकर खाने को दे सकता है?"
\v 53 ईसा' ने उनसे कहा, "मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक तुम इब्न-ए-आदम का गोश्त न खाओ और उसका का ख़ून न पियो, तुम में ज़िन्दगी नहीं |"
\s5
\v 54 जो मेरा गोश्त खाता और मेरा ख़ून पीता है, हमेशा की ज़िन्दगी उसकी है; और मैं उसे आख़िरी दिन फिर ज़िन्दा करूँगा |
\v 55 क्यूँकि मेरा गोश्त हक़ीक़त में खाने की चीज़ और मेरा खून हक़ीक़त में पीनी की चीज़ है |
\v 56 जो मेरा गोश्त खाता और मेरा ख़ून पीता है, वो मुझ में क़ायम रहता है और मैं उसमें |
\s5
\v 57 जिस तरह ज़िन्दा बाप ने मुझे भेजा, और मैं बाप के ज़रिये से ज़िन्दा हूँ, इसी तरह वो भी जो मुझे खाएगा मेरे ज़रिये से ज़िन्दा रहेगा |"
\v 58 जो रोटी आसमान से उतरी यही है, बाप-दादा की तरह नहीं कि खाया और मर गए; जो ये रोटी खाएगा वो हमेशा तक ज़िन्दा रहेगा |"
\v 59 ये बातें उसने कफ़रनहूम के एक 'इबादतख़ाने में ता'लीम देते वक़्त कहीं |
\s5
\v 60 इसलिए उसके शागिर्दों में से बहुतों ने सुनकर कहा, "ये कलाम नागवार है, इसे कौन सुन सकता है ?"
\v 61 ईसा' ने अपने जी में जानकर कि मेरे शागिर्द आपस में इस बात पर बुदबुदाते हैं, उनसे कहा, "क्या तुम इस बात से ठोकर खाते हो ?
\s5
\v 62 अगर तुम इब्न-ए-आदम को ऊपर जाते देखोगे, जहाँ वो पहले था तो क्या होगा?
\v 63 ज़िन्दा करने वाली तो रूह है, जिस्म से कुछ फ़ायदा नहीं; जो बातें मैंने तुम से कहीं हैं, वो रूह हैं और ज़िन्दगी भी हैं |
\s5
\v 64 मगर तुम में से कुछ ऐसे हैं जो ईमान नहीं लाए |" क्यूँकि ईसा' शुरू' से जानता था कि जो ईमान नहीं लाते वो कौन हैं, और कौन मुझे पकड़वाएगा |
\v 65 फिर उसने कहा, "इसी लिए मैंने तुम से कहा था कि मेरे पास कोई नहीं आ सकता जब तक बाप की तरफ़ से उसे ये तौफ़ीक़ न दी जाए |"
\s5
\v 66 इस पर उसके शागिर्दों में से बहुत से लोग उल्टे फिर गए और इसके बा'द उसके साथ न रहे |
\v 67 पस ईसा' ने उन बारह से कहा, "क्या तुम भी चले जाना चाहते हौ?"
\v 68 शमा'ऊन पतरस ने उसे जवाब दिया, "ऐ ख़ुदावन्द ! हम किसके पास जाएँ? हमेशा की ज़िन्दगी की बातें तो तेरे ही पास हैं ?"
\v 69 और हम ईमान लाए और जान गए हैं कि, ख़ुदा का क़ुद्दूस तू ही है |"
\s5
\v 70 ईसा' ने उन्हें जवाब दिया , “क्या मैंने तुम बारह को नहीं चुन लिया? और तुम में से एक शख़्स शैतान है।”
\v 71 उसने ये शमा'ऊन इस्करियोती के बेटे यहुदाह की निस्बत कहा, क्यूँकि यही जो उन बारह में से था उसे पकड़वाने को था |
\s5
\c 7
\v 1 इन बातों के बा'द 'ईसा' गलील में फिरता रहा क्योंकि यहूदिया में फिरना न चाहता था, इसलिये कि यहूदी अगुवे उसके क़त्ल की कोशिश में थे
\v 2 और यहूदियों की 'ईद-ए-खियाम नज़दीक थी |
\s5
\v 3 पस उसके भाइयों ने उससे कहा, "यहाँ से रवाना होकर यहूदिया को चला जा, ताकि जो काम तू करता है उन्हें तेरे शागिर्द भी देखें |"
\v 4 क्यूँकि ऐसा कोई नहीं जो मशहूर होना चाहे और छिपकर काम करे | अगर तू ये काम करता है, तो अपने आपको दुनियाँ पर ज़ाहिर कर |"
\s5
\v 5 क्यूँकि उसके भाई भी उस पर ईमान न लाए थे |
\v 6 पस ईसा' ने उनसे कहा, "मेरा तो अभी वक़्त नहीं आया, मगर तुम्हारे लिए सब वक़्त है |
\v 7 दुनियाँ तुम से 'दुश्मनी नहीं रख सकती लेकिन मुझ से रखती है, क्यूँकि मैं उस पर गवाही देता हूँ कि उसके काम बुरे हैं |
\s5
\v 8 तुम 'ईद में जाओ; मैं अभी इस 'ईद में नहीं जाता, क्यूँकि अभी तक मेरा वक़्त पूरा नहीं हुआ |"
\v 9 ये बातें उनसे कहकर वो गलील ही में रहा |
\s5
\v 10 लेकिन जब उसके भाई 'ईद में चले गए उस वक़्त वो भी गया, खुले तौर पर नहीं बल्कि पोशीदा |
\v 11 पस यहूदी उसे 'ईद में ये कहकर ढूंढने लगे, "वो कहाँ है?"
\s5
\v 12 और लोगों में उसके बारे मे चुपके-चुपके बहुत सी गुफ़्तगू हुई; कुछ कहते थे, "वो नेक है |"और कुछ कहते थे, "नहीं बल्कि वो लोगों को गुमराह करता है |"
\v 13 तो भी यहूदियों के डर से कोई शख़्स उसके बारे मे साफ़ साफ़ न कहता था |
\s5
\v 14 जब 'ईद के आधे दिन गुज़र गए, तो 'ईसा' हैकल में जाकर ता'लीम देने लगा |
\v 15 पस यहुदियों ने ता'ज्जुब करके कहा, "इसको बग़ैर पढ़े क्यूँकर 'इल्म आ गया ?"
\v 16 ईसा' ने जवाब में उनसे कहा, "मेरी ता'लीम मेरी नहीं, बल्कि मेरे भेजने वाले की है |"
\s5
\v 17 अगर कोई उसकी मर्ज़ी पर चलना चाहे, तो इस ता'लीम की वजह से जान जाएगा कि ख़ुदा की तरफ़ से है या मैं अपनी तरफ़ से कहता हूँ |
\v 18 जो अपनी तरफ़ से कुछ कहता है, वो अपनी 'इज़्ज़त चाहता है; लेकिन जो अपने भेजनेवाले की 'इज़्ज़त चाहता है, वो सच्चा है और उसमें नारास्ती नहीं |
\s5
\v 19 क्या मूसा ने तुम्हें शरी'अत नहीं दी? तोभी तुम में शरी'अत पर कोई 'अमल नहीं करता | तुम क्यूँ मेरे क़त्ल की कोशिश में हो?"
\v 20 लोगों ने जवाब दिया, "तुझ में तो बदरूह है ! कौन तेरे क़त्ल की कोशिश में है ?"
\s5
\v 21 ईस' ने जवाब में उससे कहा, "मैंने एक काम किया, और तुम सब ताअ'ज्जुब करते हो |"
\v 22 इस बारे मे मूसा ने तुम्हें ख़तने का हुक्म दिया है (हालाँकि वो मूसा की तरफ़ से नहीं, बल्कि बाप-दादा से चला आया है), और तुम सबत के दिन आदमी का ख़तना करते हो |
\s5
\v 23 जब सबत को आदमी का ख़तना किया जाता है ताकि मूसा की शरी'अत का हुक्म न टूटे; तो क्या मुझ से इसलिए नाराज़ हो कि मैंने सबत के दिन एक आदमी को बिलकुल तन्दरुस्त कर दिया?
\v 24 ज़ाहिर के मुवाफ़िक़ फैसला न करो, बल्कि इंसाफ से फैसला करो |
\s5
\v 25 तब कुछ यरूशलीमी कहने लगे, "क्या ये वही नहीं जिसके क़त्ल की कोशिश हो रही है?"
\v 26 लेकिन देखो, ये साफ़-साफ़ कहता है और वो इससे कुछ नहीं कहते | क्या हो सकता है कि सरदारों से सच जान लिया कि मसीह यही है?
\v 27 इसको तो हम जानते हैं कि कहाँ का है, मगर मसीह जब आएगा तो कोई न जानेगा कि वो कहाँ का है ""
\s5
\v 28 पस ईसा' ने हैकल में ता'लीम देते वक़्त पुकार कर कहा, "तुम मुझे भी जानते हो, और ये भी जानते हो कि मैं कहाँ का हूँ; और मैं आप से नहीं आया, मगर जिसने मुझे भेजा है वो सच्चा है, उसको तुम नहीं जानते |
\v 29 मैं उसे जानता हूँ, इसलिए कि मैं उसकी तरफ़ से हूँ और उसी ने मुझे भेजा है |"
\s5
\v 30 पस वो उसे पकड़ने की कोशिश करने लगे, लेकिन इसलिए कि उसका वक़्त अभी न आया था, किसी ने उस पर हाथ न डाला |
\v 31 मगर भीड़ में से बहुत सारे उस पर ईमान लाए, और कहने लगे, "मसीह जब आएगा, तो क्या इनसे ज़्यादा मो'जिज़े दिखाएगा ?"जो इसने दिखाए |
\v 32 फ़रीसियों ने लोगों को सुना कि उसके बारे मे चुपके-चुपके ये बातें करते हैं, पस सरदार काहिनों और फरीसियों ने उसे पकड़ने को प्यादे भेजे |
\s5
\v 33 ईसा' ने कहा, "मैं और थोड़े दिनों तक तुम्हारे पास हूँ, फिर अपने भेजनेवाले के पास चला जाऊँगा |"
\v 34 तुम मुझे ढूँढोगे मगर न पाओगे, और जहाँ मैं हूँ तुम नहीं आ सकते |"
\s5
\v 35 हमारे यहूदियों ने आपस में कहा, "ये कहाँ जाएगा कि` हम इसे न पाएँगे? क्या उनके पास जाएगा कि हम इसे न पाएँगे? क्या उनके पास जाएगा जो यूनानियों में अक्सर रहते हैं, और यूनानियों को ता'लीम देगा?"
\v 36 ये क्या बात है जो उसने कही, 'तुम मुझे तलाश करोगे मगर न पाओगे, 'और, 'जहाँ मैं हूँ तुम नहीं आ सकते'?"
\s5
\v 37 फिर 'ईद के आख़िरी दिन जो ख़ास दिन है, ईसा' खड़ा हुआ और पुकार कर कहा, "अगर कोई प्यासा हो तो मेरे पास आकर पिये |
\v 38 जो मुझ पर ईमान लाएगा उसके अन्दर से, जैसा कि किताब-ए-मुक़द्दस में आया है, ज़िन्दगी के पानी की नदियाँ जारी होंगी |"
\s5
\v 39 उसने ये बात उस रूह के बारे में कही, जिसे वो पाने को थे जो उस पर ईमान लाए; क्यूँकि रूह अब तक नाज़िल न हुई थी, इसलिए कि ईसा' अभी अपने जलाल को न पहुँचा था |
\s5
\v 40 पस भीड़ में से कुछ ने ये बातें सुनकर कहा, ""बेशक यही वो नबी है |"
\v 41 औरों ने कहा, "ये मसीह है |"और कुछ ने कहा, "क्यूँ? क्या मसीह गलील से आएगा?
\v 42 क्या किताब-ए-मुक़द्दस में से नहीं आया, कि मसीह दाऊद की नस्ल और बैतलहम के गॉव से आएगा, जहाँ का दाऊद था?"
\s5
\v 43 पस लोगों में उसके बारे में इख़्तिलाफ़ हुआ |
\v 44 और उनमें से कुछ उसको पकड़ना चाहते थे, मगर किसी ने उस पर हाथ न डाला |
\s5
\v 45 पस प्यादे सरदार काहिनों और फ़रीसियों के पास आए; और उन्होंने उनसे कहा, "तुम उसे क्यूँ न लाए?"
\v 46 प्यादों ने जवाब दिया कि , "इन्सान ने कभी ऐसा कलाम नहीं किया |"
\s5
\v 47 फ़रीसियों ने उन्हें जवाब दिया, "क्या तुम भी गुमराह हो गए?"
\v 48 भला इख़्तियार वालों या फ़रीसियों मैं से भी कोई उस पर ईमान लाया?
\v 49 मगर ये 'आम लोग जो शरी'अत से वाक़िफ़ नहीं ला'नती हैं |"
\s5
\v 50 नीकुदेमुस ने, जो पहले उसके पास आया था, उनसे कहा,
\v 51 " क्या हमारी शरी'अत किसी शख़्स को मुजरिम ठहराती है, जब तक पहले उसकी सुनकर जान न ले कि वो क्या करता है ?"
\v 52 उन्होंने उसके जवाब में कहा, "क्या तू भी गलील का है? तलाश कर और देख, कि गलील में से कोई नबी नाजिल नहीं होने का |"
\s5
\v 53 [फिर उनमें से हर एक अपने घर चला गया |
\s5
\c 8
\v 1 तब ईसा' जैतून के पहाड़ पर गया |
\v 2 दूसरे दिन सुबह सवेरे ही वो फिर हैकल में आया, और सब लोग उसके पास आए और वो बैठकर उन्हें ता'लीम देने लगा |
\v 3 और फ़क़ीह और फ़रीसी एक 'औरत को लाए जो ज़िना में पकड़ी गई थी, और उसे बीच में खड़ा करके ईसा' से कहा,
\s5
\v 4 "ऐ उस्ताद! ये 'औरत ज़िना में 'ऐन वक़्त पकड़ी गई है|
\v 5 तौरेत में मूसा ने हम को हुक्म दिया है, कि ऐसी 'औरतों पर पथराव करें | पस तू इस 'औरत के बारे में क्या कहता है?"
\v 6 उन्होंने उसे आज़माने के लिए ये कहा, "ताकि उस पर इल्ज़ाम लगाने की कोई वजह निकालें | मगर ईसा' झुक कर उंगली से ज़मीन पर लिखने लगा |"
\s5
\v 7 जब वो उससे सवाल करते ही रहे, तो उसने सीधे होकर उनसे कहा, "जो तुम में बेगुनाह हो, वही पहले उसको पत्थर मारे |"
\v 8 और फिर झुककर ज़मीन पर उंगली से लिखने लगा |
\s5
\v 9 वो ये सुनकर बड़ों से लेकर छोटों तक एक-एक करके निकल गए, और ईसा ' अकेला रह गया और 'औरत वहीं बीच में रह गई |
\v 10 ईसा ' ने सीधे होकर उससे कहा, "ऐ 'औरत, ये लोग कहाँ गए? क्या किसी ने तुझ पर सज़ा का हुक्म नहीं लगाया?"
\v 11 उसने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द ! किसी ने नहीं |"ईसा ' ने कहा, "मैं भी तुझ पर सज़ा का हुक्म नहीं लगाता; जा, फिर गुनाह न करना |"]
\s5
\v 12 ईसा ' ने फिर उनसे मुख़ातिब होकर कहा, "दुनियाँ का नूर मैं हूँ; जो मेरी पैरवी करेगा वो अन्धेरे में न चलेगा, बल्कि ज़िन्दगी का नूर पाएगा |"
\v 13 फ़रीसियों ने उससे कहा,"तू अपनी गवाही आप देता है, तेरी गवाही सच्ची नहीं |"
\s5
\v 14 ईसा' ने जवाब में उनसे कहा, "अगरचे मैं अपनी गवाही आप देता हूँ, तो भी मेरी गवाही सच्ची है; क्यूंकि मुझे मा'लूम है कि मैं कहाँ से आता हूँ या कहाँ को जाता हूँ |"
\v 15 तुम जिस्म के मुताबिक़ फ़ैसला करते हो, मैं किसी का फ़ैसलानहीं करता |
\v 16 और अगर मैं फ़ैसला करूं भी तो मेरा फ़ैसला सच है; क्यूंकि मैं अकेला नहीं, बल्कि मैं हूँ और मेरा बाप है जिसने मुझे भेजा है |
\s5
\v 17 और तुम्हारी तौरेत में भी लिखा है, कि दो आदमियों की गवाही मिलकर सच्ची होती है |
\v 18 एक मैं ख़ुद अपनी गवाही देता हूँ, और एक बाप जिसने मुझे भेजा मेरी गवाही देता है|"
\s5
\v 19 उन्होंने उससे कहा, "तेरा बाप कहाँ है?" ईसा' ने जवाब दिया, "न तुम मुझे जानते हो न मेरे बाप को, अगर मुझे जानते तो मेरे बाप को भी जानते |"
\v 20 उसने हैकल में ता'लीम देते वक़्त ये बातें बैत-उल-माल में कहीं; और किसी ने इसको न पकड़ा, क्यूंकि अभी तक उसका वक़्त न आया था |
\s5
\v 21 उसने फिर उनसे कहा, "मैं जाता हूँ, और तुम मुझे ढूँढोगे और अपने गुनाह में मरोगे |"
\v 22 पस यहूदियों ने कहा, "क्या वो अपने आपको मार डालेगा, जो कहता है, 'जहाँ मैं जाता हूँ, तुम नहीं आ सकते'?"
\s5
\v 23 उसने उनसे कहा, "तुम नीचे के हो मैं ऊपर का हूँ, तुम दुनियाँ के हो मैं दुनियाँ का नहीं हूँ |"
\v 24 इसलिए मैंने तुम से ये कहा, कि अपने गुनाहों में मरोगे; क्यूंकि अगर तुम ईमान न लाओगे कि मैं वही हूँ, तो अपने गुनाहों में मरोगे |"
\s5
\v 25 उन्होंने उस से कहा, "तू कौन है? ईसा' ने उनसे कहा, "वही हूँ जो शुरू' से तुम से कहता आया हूँ |
\v 26 मुझे तुम्हारे बारे में बहुत कुछ कहना है और फ़ैसला करना है; लेकिन जिसने मुझे भेजा वो सच्चा है, और जो मैंने उससे सुना वही दुनियाँ से कहता हूँ |"
\v 27 वो न समझे कि हम से बाप के बारे में कहता है |
\s5
\v 28 पस ईसा' ने कहा, "जब तुम इब्न-ए-आदम को ऊँचे पर चढाओगे तो जानोगे कि मैं वही हूँ, और अपनी तरफ़ से कुछ नहीं करता, बल्कि जिस तरह बाप ने मुझे सिखाया उसी तरह ये बातें कहता हूँ |"
\v 29 और जिसने मुझे भेजा वो मेरे साथ है; उसने मुझे अकेला नहीं छोड़ा, क्यूंकि मैं हमेशा वही काम करता हूँ जो उसे पसंद आते हैं |"
\v 30 जब ईसा ये बातें कह रहा था तो बहुत से लोग उस पर ईमान लाए |
\s5
\v 31 पस ईसा' ने उन यहूदियों से कहा, जिन्होंने उसका यक़ीन किया था, "अगर तुम कलाम पर क़ायम रहोगे, तो हक़ीक़त में मेरे शागिर्द ठहरोगे |
\v 32 और सच्चाई को जानोगे और सच्चाई तुम्हे आज़ाद करेगी|"
\v 33 उन्होंने उसे जवाब दिया, "हम तो अब्राहम की नस्ल से हें, और कभी किसी की ग़ुलामी में नहीं रहे | तू क्यूँकर कहता है कि तुम आज़ाद किए जाओगे?"
\s5
\v 34 ईसा' ने उन्हें जवाब दिया, "मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो कोई गुनाह करता है गुनाह का ग़ुलाम है |"
\v 35 और ग़ुलाम हमेशा तक घर में नहीं रहता, बेटा हमेशा रहता है |
\v 36 पस अगर बेटा तुम्हें आज़ाद करेगा, तो तुम वाक़'ई आज़ाद होगे |
\s5
\v 37 मैं जानता हूँ तुम अब्राहम की नस्ल से हो, तभी मेरे क़त्ल की कोशिश में हो क्यूंकि मेरा कलाम तुम्हारे दिल में जगह नहीं पाता |
\v 38 मैंने जो अपने बाप के यहाँ देखा है वो कहता हूँ ,और तुम ने जो अपने बाप से सुना वो करते हो |"
\s5
\v 39 उन्होंने जवाब में उससे कहा,"हमारा बाप तो अब्रहाम है| ईसा' ने उनसे कहा, "अगर तुम अब्रहाम के फ़र्ज़न्द होते तो अब्रहाम के से काम करते |
\v 40 लेकिन अब तुम मुझ जैसे शख़्स को क़त्ल की कोशिश में हो, जिसने तुम्हे वही हक़ बात बताई जो ख़ुदा से सुनी; अब्रहाम ने तो ये नहीं किया था |
\v 41 तुम अपने बाप के से काम करते हो |"उन्होंने उससे कहा, "हम हराम से पैदा नहीं हुए | हमारा एक बाप है या'नी ख़ुदा |"
\s5
\v 42 ईसा' ने उनसे कहा, "अगर ख़ुदा तुम्हारा होता, तो तुम मुझ से मुहब्बत रखते; इसलिए कि मैं ख़ुदा में से निकला और आया हूँ, क्यूंकि मैं आप से नहीं आया बल्कि उसी ने मुझे भेजा |"
\v 43 तुम मेरी बातें क्यूँ नहीं समझते? इसलिए कि मेरा कलाम सुन नहीं सकते |
\v 44 तुम अपने बाप इब्लीस से हो और अपने बाप की ख़्वाहिशों को पूरा करना चाहते हो | वो शुरू' ही से खूनी है और सच्चाई पर क़ाइम नहीं रहा, क्यूंकि उसमें सच्चाई नहीं है | जब वो झूठ बोलता है तो अपनी ही सी कहता है, क्यूँकि वो झूठा है बल्कि झूट का बाप है |
\s5
\v 45 लेकिन मैं जो सच बोलता हूँ, इसी लिए तुम मेरा यक़ीन नहीं करते |
\v 46 तुम में से कौन मुझ पर गुनाह साबित करता है ?अगर मैं सच बोलता हूँ, तो मेरा यक़ीन क्यूँ नहीं करते?
\v 47 जो ख़ुदा से होता है वो ख़ुदा की बातें सुनता है; तुम इसलिए नहीं सुनते कि ख़ुदा से नहीं हो |"
\s5
\v 48 यहूदियों ने जवाब में उससे कहा, "क्या हम सच नही कहते, कि तू सामरी है और तुझ में बदरूह है |"
\v 49 ईसा ' ने जवाब दिया, "मुझ में बदरूह नहीं; मगर मैं अपने बाप की 'इज़्ज़त करता हूँ, और तुम मेरी बे'इज़्ज़ती करते हो "
\s5
\v 50 लेकिन मैं अपनी तारीफ़ नहीं चाहता; हाँ, एक है जो उसे चाहता और फ़ैसला करता है |
\v 51 मैं तुम से सच कहता हूँ कि अगर कोई इन्सान मेरे कलाम पर 'अमल करेगा, तो हमेशा तक कभी मौत को न देखेगा |"
\s5
\v 52 यहूदियों ने उससे कहा, "अब हम ने जान लिया कि तुझ में बदरूह है ! अब्रहाम मर गया और नबी मर गए, मगर तू कहता है, 'अगर कोई मेरे कलाम पर 'अमल करेगा, तो हमेशा तक कभी मौत का मज़ा न चखेगा |'
\v 53 हमारे बुजुर्ग अब्रहाम जो मर गये , क्या तू उससे बड़ा है? और नबी भी मर गए |' तू अपने आपको क्या ठहराता है?"
\s5
\v 54 ईसा' ने जवाब दिया, "अगर मैं आप अपनी बड़ाई करूं, तो मेरी बड़ाई कुछ नहीं; लेकिन मेरी बड़ाई मेरा बाप करता है, जिसे तुम कहते हो कि हमारा ख़ुदा है |
\v 55 तुम ने उसे नहीं जाना, लेकिन मैं उसे जानता हूँ; और अगर कहूँ कि उसे नहीं जानता, तो तुम्हारी तरह झूठा बनूँगा | मगर मैं उसे जानता और उसके कलाम पर 'अमल करता हूँ |
\v 56 तुम्हारा बाप अब्रहाम मेरा दिन देखने की उम्मीद पर बहुत ख़ुश था, चुनांचे उसने देखा और ख़ुश हुआ |"
\s5
\v 57 यहूदियों ने उससे कहा, "तेरी 'उम्र तो अभी पचास बरस की नहीं, फिर क्या तूने अब्रहाम को देखा है?"
\v 58 ईसा' ने उनसे कहा, "मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि पहले उससे कि अब्रहाम पैदा हुआ मैं हूँ |"
\v 59 पस उन्होंने उसे मारने को पत्थर उठाए, मगर ईसा' छिपकर हैकल से निकल गया |
\s5
\c 9
\v 1 चलते चलते ईसा' ने एक आदमी को देखा जो पैदाइशी अंधा था।
\v 2 उस के शागिर्दों ने उस से पूछा, “उस्ताद, यह आदमी अंधा क्यूँ पैदा हुआ? क्या इस का कोई गुनाह है या इस के वालिदैन का?”
\s5
\v 3 ईसा' ने जवाब दिया, “न इस का कोई गुनाह है और न इस के वालिदैन का। यह इस लिए हुआ कि इस की ज़िन्दगी में ख़ुदा का काम ज़ाहिर हो जाए।
\v 4 अभी दिन है। ज़रुरी है कि हम जितनी देर तक दिन है उस का काम करते रहें जिस ने मुझे भेजा है। क्यूँकि रात आने वाली है, उस वक़्त कोई काम नहीं कर सकेगा।
\v 5 लेकिन जितनी देर तक मैं दुनियाँ में हूँ उतनी देर तक मैं दुनियाँ का नूर हूँ।”
\s5
\v 6 यह कह कर उस ने ज़मीन पर थूक कर मिट्टी सानी और उस की आँखों पर लगा दी।
\v 7 उस ने उस से कहा, “जा, शिलोख़ के हौज़ में नहा ले।” (शिलोख़ का मतलब 'भेजा हुआ' है।) अंधे ने जा कर नहा लिया। जब वापस आया तो वह देख सकता था।
\s5
\v 8 उस के साथी और वह जिन्हों ने पहले उसे भीख माँगते देखा था पूछने लगे, “क्या यह वही नहीं जो बैठा भीख माँगा करता था?”
\v 9 कुछ ने कहा, “हाँ, वही है।”
\s5
\v 10 उन्हों ने उस से सवाल किया, “तेरी आँखें किस तरह सही हुईं?”
\v 11 उस ने जवाब दिया, “वह आदमी जो ईसा' कहलाता है उस ने मिट्टी सान कर मेरी आँखों पर लगा दी। फिर उस ने मुझे कहा, ‘शिलोख़ के हौज़ पर जा और नहाले।’ मैं वहाँ गया और नहाते ही मेरी आँखें सही हो”गई |
\v 12 उन्हों ने पूछा, “वह कहाँ है?उसने कहा, मैं नहीं जानता”
\s5
\v 13 तब वह सही हुए अंधे को फ़रीसियों के पास ले गए।
\v 14 जिस दिन ईसा' ने मिट्टी सान कर उस की आँखों को सही किया था वह सबत का दिन था।
\v 15 इस लिए फ़रीसियों ने भी उस से पूछ-ताछ की कि उसे किस तरह आँख की रौशनी मिल गई। आदमी ने जवाब दिया, “उस ने मेरी आँखों पर मिट्टी लगा दी, फिर मैं ने नहा लिया और अब देख सकता हूँ।”
\s5
\v 16 फ़रीसियों में से कुछ ने कहा, “यह शख़्स ख़ुदा की तरफ़ से नहीं है, क्यूँकि सबत के दिन काम करता है।”
\v 17 फिर वह दुबारा उस आदमी से मुख़ातिब हुए जो पहले अंधा था, “तू ख़ुद उस के बारे में क्या कहता है? उस ने तो तेरी ही आँखों को सही किया है।”
\v 18 यहूदी अगुवों को यक़ीन नहीं आ रहा था कि वह सच में अंधा था और फिर सही हो गया है। इस लिए उन्हों ने उस के वालिदैन को बुलाया।
\s5
\v 19 उन्हों ने उन से पूछा, “क्या यह तुम्हारा बेटा है, वही जिस के बारे में तुम कहते हो कि वह अंधा पैदा हुआ था? अब यह किस तरह देख सकता है?”
\v 20 उस के वालिदैन ने जवाब दिया, “हम जानते हैं कि यह हमारा बेटा है और कि यह पैदा होते वक़्त अंधा था।
\v 21 लेकिन हमें मालूम नहीं कि अब यह किस तरह देख सकता है या कि किस ने इस की आँखों को सही किया है। इस से ख़ुद पता करें, यह बालिग़ है। यह ख़ुद अपने बारे में बता सकता है।”
\s5
\v 22 उस के वालिदैन ने यह इस लिए कहा कि वह यहूदियों से डरते थे। क्यूँकि वह फ़ैसला कर चुके थे कि जो भी ईसा' को मसीह क़रार दे उसे यहूदी जमाअत से निकाल दिया जाए।
\v 23 यही वजह थी कि उस के वालिदैन ने कहा था, “यह बालिग़ है, इस से ख़ुद पूछ लें।”
\s5
\v 24 एक बार फिर उन्हों ने सही हुए अंधे को बुलाया, “ख़ुदा को जलाल दे, हम तो जानते हैं कि यह आदमी गुनाहगार है।”
\v 25 आदमी ने जवाब दिया, “मुझे क्या पता है कि वह गुनाहगार है या नहीं, लेकिन एक बात मैं जानता हूँ, पहले मैं अंधा था, और अब मैं देख सकता हूँ!”
\s5
\v 26 फिर उन्हों ने उस से सवाल किया, “उस ने तेरे साथ क्या किया? उस ने किस तरह तेरी आँखों को सही कर दिया?”
\v 27 उस ने जवाब दिया, “मैं पहले भी आप को बता चुका हूँ और आप ने सुना नहीं। क्या आप भी उस के शागिर्द बनना चाहते हैं?”
\v 28 इस पर उन्हों ने उसे बुरा-भला कहा, “तू ही उस का शागिर्द है, हम तो मूसा के शागिर्द हैं।
\v 29 हम तो जानते हैं कि ख़ुदा ने मूसा से बात की है, लेकिन इस के बारे में हम यह भी नहीं जानते कि वह कहाँ से आया है।”
\s5
\v 30 आदमी ने जवाब दिया, “अजीब बात है, उस ने मेरी आँखों को शिफ़ा दी है और फिर भी आप नहीं जानते कि वह कहाँ से है।
\v 31 हम जानते हैं कि ख़ुदा गुनाहगारों की नहीं सुनता। वह तो उस की सुनता है जो उस का ख़ौफ़ मानता और उस की मर्ज़ी के मुताबिक़ चलता है।
\s5
\v 32 शुरू ही से यह बात सुनने में नहीं आई कि किसी ने पैदाइशी अंधे की आँखों को सही कर दिया हो।
\v 33 अगर यह आदमी ख़ुदा की तरफ़ से न होता तो कुछ न कर सकता।”
\v 34 जवाब में उन्हों ने उसे बताया, “तू जो गुनाह की हालत में पैदा हुआ है क्या तू हमारा उस्ताद बनना चाहता है?” यह कह कर उन्हों ने उसे जमाअत में से निकाल दिया।
\s5
\v 35 जब ईसा' को पता चला कि उसे निकाल दिया गया है तो वह उस को मिला और पूछा, “क्या तू इब्न-ए-आदम पर ईमान रखता है?”
\v 36 उस ने कहा, “ख़ुदावन्द, वह कौन है? मुझे बताएँ ताकि मैं उस पर ईमान लाऊँ।”
\v 37 ईसा' ने जवाब दिया, “तू ने उसे देख लिया है बल्कि वह तुझ से बात कर रहा है।”
\v 38 उस ने कहा, “ख़ुदावन्द, मैं ईमान रखता हूँ” और उसे सज्दा किया।
\s5
\v 39 ईसा' ने कहा, “मैं अदालत करने के लिए इस दुनियाँ में आया हूँ, इस लिए कि अंधे देखें और देखने वाले अंधे हो जाएँ।”
\v 40 कुछ फ़रीसी जो साथ खड़े थे यह कुछ सुन कर पूछने लगे, “अच्छा, हम भी अंधे हैं?”
\v 41 ईसा' ने उन से कहा, “अगर तुम अंधे होते तो तुम गुनेहगार न ठहरते। लेकिन अब चूँकि तुम दावा करते हो कि हम देख सकते हैं इस लिए तुम्हारा गुनाह क़ाइम रहता है।
\s5
\c 10
\v 1 ”मैं तुम को सच बताता हूँ कि जो दरवाज़े से भेड़ों के बाड़े में दाख़िल नहीं होता बल्कि किसी ओर से कूद कर अन्दर घुस आता है वह चोर और डाकू है।
\v 2 लेकिन जो दरवाज़े से दाख़िल होता है वह भेड़ों का चरवाहा है।
\s5
\v 3 चौकीदार उस के लिए दरवाज़ा खोल देता है और भेड़ें उस की आवाज़ सुनती हैं। वह अपनी हर एक भेड़ का नाम ले कर उन्हें बुलाता और बाहर ले जाता है।
\v 4 अपने पूरे गल्ले को बाहर निकालने के बाद वह उन के आगे आगे चलने लगता है और भेड़ें उस के पीछे पीछे चल पड़ती हैं, क्यूँकि वह उस की आवाज़ पहचानती हैं।
\s5
\v 5 लेकिन वह किसी अजनबी के पीछे नहीं चलेंगी बल्कि उस से भाग जाएँगी, क्यूँकि वह उस की आवाज़ नहीं पहचानतीं।”
\v 6 ईसा' ने उन्हें यह मिसाल पेश की, लेकिन वह न समझे कि वह उन्हें क्या बताना चाहता है।
\s5
\v 7 इस लिए ईसा' दुबारा इस पर बात करने लगा, “मैं तुम को सच बताता हूँ कि भेड़ों के लिए दरवाज़ा मैं हूँ।
\v 8 जितने भी मुझ से पहले आए वह चोर और डाकू हैं। लेकिन भेड़ों ने उन की न सुनी।
\s5
\v 9 मैं ही दरवाज़ा हूँ। जो भी मेरे ज़रिए अन्दर आए उसे नजात मिलेगी। वह आता जाता और हरी चरागाहें पाता रहेगा।
\v 10 चोर तो सिर्फ़ चोरी करने, ज़बह करने और तबाह करने आता है। लेकिन मैं इस लिए आया हूँ कि वह ज़िन्दगी पाएँ, बल्कि कस्रत की ज़िन्दगी पाएँ।
\s5
\v 11 अच्छा चरवाहा मैं हूँ। अच्छा चरवाहा अपनी भेड़ों के लिए अपनी जान देता है।
\v 12 मज़दूर चरवाहे का किरदार अदा नहीं करता, क्यूँकि भेड़ें उस की अपनी नहीं होतीं। इस लिए जूँ ही कोई भेड़िया आता है तो मज़दूर उसे देखते ही भेड़ों को छोड़ कर भाग जाता है। नतीजे में भेड़िया कुछ भेड़ें पकड़ लेता और बाक़ियों को इधर उधर कर देता है।
\v 13 वजह यह है कि वह मज़दूर ही है और भेड़ों की फ़िक्र नहीं करता।
\s5
\v 14 अच्छा चरवाहा मैं हूँ। मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ और वह मुझे जानती हैं,
\v 15 बिलकुल उसी तरह जिस तरह बाप मुझे जानता है और मैं बाप को जानता हूँ। और मैं भेड़ों के लिए अपनी जान देता हूँ।
\v 16 मेरी और भी भेड़ें हैं जो इस बाड़े में नहीं हैं। ज़रुरी है कि उन्हें भी ले आऊँ। वह भी मेरी आवाज़ सुनेंगी। फिर एक ही गल्ला और एक ही गल्लाबान होगा।
\s5
\v 17 मेरा बाप मुझे इस लिए मुहब्बत करता है कि मैं अपनी जान देता हूँ ताकि उसे फिर ले लूँ।
\v 18 कोई मेरी जान मुझ से छीन नहीं सकता बल्कि मैं उसे अपनी मर्ज़ी से दे देता हूँ। मुझे उसे देने का इख़तियार है और उसे वापस लेने का भी। यह हुक्म मुझे अपने बाप की तरफ़ से मिला है।”
\s5
\v 19 इन बातों पर यहूदियों में दुबारा फूट पड़ गई।
\v 20 बहुतों ने कहा, “यह बदरुह के क़ब्ज़े में है, यह दीवाना है। इस की क्यूँ सुनें!”
\v 21 लेकिन औरों ने कहा, “यह ऐसी बातें नहीं हैं जो इन्सान बदरूह के क़ब्ज़े में हो । क्या बदरूह अंधों की आँखें सही कर सकती हैं?”
\s5
\v 22 सर्दियों का मौसम था और ईसा बैत-उल-मुक़द्दस की ख़ास 'ईद तज्दीद के दौरान यरूशलम में था।
\v 23 वह बैत-उल-मुक़द्दस के उस बरामदे में टहेल रहा था जिस का नाम सुलेमान का बरामदा था।
\v 24 यहूदी उसे घेर कर कहने लगे, “आप हमें कब तक उलझन में रखेंगे? अगर आप मसीह हैं तो हमें साफ़ साफ़ बता दें।”
\s5
\v 25 ईसा' ने जवाब दिया, “मैं तुम को बता चुका हूँ, लेकिन तुम को यक़ीन नहीं आया। जो काम मैं अपने बाप के नाम से करता हूँ वह मेरे गवाह हैं।
\v 26 लेकिन तुम ईमान नहीं रखते क्यूँकि तुम मेरी भेड़ें नहीं हो।
\s5
\v 27 मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ सुनती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ और वह मेरे पीछे चलती हैं।
\v 28 मैं उन्हें हमेशा की ज़िन्दगी देता हूँ, इस लिए वह कभी हलाक नहीं होंगी। कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा,
\s5
\v 29 क्यूँकि मेरे बाप ने उन्हें मेरे सपुर्द किया है और वही सब से बड़ा है। कोई उन्हें बाप के हाथ से छीन नहीं सकता।
\v 30 मैं और बाप एक हैं।”
\v 31 यह सुन कर यहूदी दुबारा पत्थर उठाने लगे ताकि ईसा' पर पथराव करें।
\s5
\v 32 उस ने उन से कहा, “मैं ने तुम्हें बाप की तरफ़ से कई ख़ुदाई करिश्मे दिखाए हैं। तुम मुझे इन में से किस करिश्मे की वजह से पथराव कर रहे हो?”
\v 33 यहूदियों ने जवाब दिया, “हम तुम पर किसी अच्छे काम की वजह से पथराव नहीं कर रहे बल्कि कुफ़्र बकने की वजह से। तुम जो सिर्फ़ इन्सान हो ख़ुदा होने का दावा करते हो।”
\s5
\v 34 ईसा' ने कहा, “क्या यह तुम्हारी शरीअत में नहीं लिखा है कि ख़ुदा ने फ़रमाया, ‘तुम ख़ुदा हो’?
\v 35 उन्हें ‘ख़ुदा’ कहा गया जिन तक यह पैग़ाम पहुँचाया गया। और हम जानते हैं कि कलाम-ए-मुक़द्दस को रद नहीं किया जा सकता।
\v 36 तो फिर तुम कुफ़्र बकने की बात क्यूँ करते हो जब मैं कहता हूँ कि मैं ख़ुदा का फ़र्ज़न्द हूँ? आख़िर बाप ने ख़ुद मुझे ख़ास करके दुनियाँ में भेजा है।
\s5
\v 37 अगर मैं अपने बाप के काम न करूँ तो मेरी बात न मानो।
\v 38 लेकिन अगर उस के काम करूँ तो बेशक मेरी बात न मानो, लेकिन कम से कम उन कामों की गवाही तो मानो। फिर तुम जान लोगे और समझ जाओगे कि बाप मुझ में है और मैं बाप में हूँ।”
\v 39 एक बार फिर उन्हों ने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वह उन के हाथ से निकल गया।
\s5
\v 40 फिर ईसा' दुबारा दरया-ए-यर्दन के पार उस जगह चला गया जहाँ युहन्ना शुरू में बपतिस्मा दिया करता था। वहाँ वह कुछ देर ठहरा।
\v 41 बहुत से लोग उस के पास आते रहे। उन्हों ने कहा, “युहन्ना ने कभी कोई ख़ुदाई करिश्मा न दिखाया, लेकिन जो कुछ उस ने इस के बारे में बयान किया, वह बिलकुल सही निकला।”
\v 42 और वहाँ बहुत से लोग ईसा' पर ईमान लाए।
\s5
\c 11
\v 1 उन दिनों में एक आदमी बीमार पड़ गया जिस का नाम लाज़र था। वह अपनी बहनों मरियम और मर्था के साथ बैत-अनियाह में रहता था।
\v 2 यह वही मरियम थी जिस ने बाद में ख़ुदावन्द पर ख़ुश्बू डाल कर उस के पैर अपने बालों से ख़ुश्क किए थे। उसी का भाई लाज़र बीमार था।
\s5
\v 3 चुनाँचे बहनों ने ईसा' को ख़बर दी, “ख़ुदावन्द, जिसे आप मुहब्बत करते हैं वह बीमार है।”
\v 4 जब ईसा' को यह ख़बर मिली तो उस ने कहा, “इस बीमारी का अन्जाम मौत नहीं है, बल्कि यह ख़ुदा के जलाल के वास्ते हुआ है, ताकि इस से ख़ुदा के फ़र्ज़न्द को जलाल मिले।”
\s5
\v 5 ईसा' मर्था, मरियम और लाज़र से मुहब्बत रखता था।
\v 6 तो भी वह लाज़र के बारे में ख़बर मिलने के बाद दो दिन और वहीं ठहरा।
\v 7 फिर उस ने अपने शागिर्दों से बात की, “आओ, हम दुबारा यहूदिया चले जाएँ।”
\s5
\v 8 शागिर्दों ने एतिराज़ किया, “उस्ताद, अभी अभी वहाँ के यहूदी आप पर पथराव करने की कोशिश कर रहे थे, फिर भी आप वापस जाना चाहते हैं?”
\v 9 ईसा' ने जवाब दिया, “क्या दिन में रोशनी के बारह घंटे नहीं होते? जो शख़्स दिन के वक़्त चलता फिरता है वह किसी भी चीज़ से नहीं टकराएगा, क्यूँकि वह इस दुनियाँ की रोशनी के ज़रिए देख सकता है।
\s5
\v 10 लेकिन जो रात के वक़्त चलता है वह चीज़ों से टकरा जाता है, क्यूँकि उस के पास रोशनी नहीं है।”
\v 11 फिर उस ने कहा, “हमारा दोस्त लाज़र सो गया है। लेकिन मैं जा कर उसे जगा दूँगा।”
\s5
\v 12 शागिर्दों ने कहा, “ख़ुदावन्द, अगर वह सो रहा है तो वह बच जाएगा।”
\v 13 उन का ख़याल था कि ईसा' लाज़र की दुनयावी नींद का ज़िक्र कर रहा है जबकि हक़ीक़त में वह उस की मौत की तरफ़ इशारा कर रहा था।
\v 14 इस लिए उस ने उन्हें साफ़ बता दिया, “लाज़र की मौत हो गयी है
\s5
\v 15 और तुम्हारी ख़ातिर मैं ख़ुश हूँ कि मैं उस के मरते वक़्त वहाँ नहीं था, क्यूँकि अब तुम ईमान लाओगे। आओ, हम उस के पास जाएँ।”
\v 16 तोमा ने जिस का लक़ब जुड़वाँ था अपने साथी शागिर्दों से कहा, “चलो, हम भी वहाँ जा कर उस के साथ मर जाएँ।”
\s5
\v 17 वहाँ पहुँच कर ईसा' को मालूम हुआ कि लाज़र को क़ब्र में रखे चार दिन हो गए हैं।
\v 18 बैत-अनियाह का यरूशलम से फ़ासिला तीन किलोमीटर से कम था,
\v 19 और बहुत से यहूदी मर्था और मरियम को उन के भाई के बारे में तसल्ली देने के लिए आए हुए थे।
\v 20 यह सुन कर कि ईसा' आ रहा है मर्था उसे मिलने गई। लेकिन मरियम घर में बैठी रही।
\s5
\v 21 मर्था ने कहा, “ख़ुदावन्द, अगर आप यहाँ होते तो मेरा भाई न मरता।
\v 22 लेकिन मैं जानती हूँ कि अब भी ख़ुदा आप को जो भी माँगेंगे देगा।”
\v 23 ईसा' ने उसे बताया, “तेरा भाई जी उठेगा।”
\s5
\v 24 मर्था ने जवाब दिया, “जी, मुझे मालूम है कि वह क़यामत के दिन जी उठेगा, जब सब जी उठेंगे।”
\v 25 ईसा' ने उसे बताया, “क़यामत और ज़िन्दगी तो मैं हूँ। जो मुझ पर ईमान रखे वह ज़िन्दा रहेगा, चाहे वह मर भी जाए।
\v 26 और जो ज़िन्दा है और मुझ पर ईमान रखता है वह कभी नहीं मरेगा। मर्था, क्या तुझे इस बात का यक़ीन है?”
\s5
\v 27 मर्था ने जवाब दिया, “जी ख़ुदावन्द, मैं ईमान रखती हूँ कि आप ख़ुदा के फ़र्ज़न्द मसीह हैं, जिसे दुनियाँ में आना था।”
\v 28 यह कह कर मर्था वापस चली गई और चुपके से मरियम को बुलाया, “उस्ताद आ गए हैं, वह तुझे बुला रहे हैं।”
\v 29 यह सुनते ही मरियम उठ कर ईसा' के पास गई।
\s5
\v 30 वह अभी गाँव के बाहर उसी जगह ठहरा था जहाँ उस की मुलाक़ात मर्था से हुई थी।
\v 31 जो यहूदी घर में मरियम के साथ बैठे उसे तसल्ली दे रहे थे, जब उन्हों ने देखा कि वह जल्दी से उठ कर निकल गई है तो वह उस के पीछे हो लिए। क्यूँकि वह समझ रहे थे कि वह मातम करने के लिए अपने भाई की क़ब्र पर जा रही है।
\v 32 मरियम ईसा' के पास पहुँच गई। उसे देखते ही वह उस के पैरों में गिर गई और कहने लगी, “ख़ुदावन्द, अगर आप यहाँ होते तो मेरा भाई न मरता।”
\s5
\v 33 जब ईसा' ने मरियम और उस के लोगों को रोते देखा तो उसे दुख हुआ । और उसने ताअज्जुब होकर
\v 34 उस ने पूछा, “तुम ने उसे कहाँ रखा है?”
\v 35 ईसा" रो पड़ा।
\s5
\v 36 यहूदियों ने कहा, “देखो, वह उसे कितना प्यारा था।”
\v 37 लेकिन उन में से कुछ ने कहा, “इस आदमी ने अंधे को सही किया । क्या यह लाज़र को मरने से नहीं बचा सकता था?”
\s5
\v 38 फिर ईसा' दुबारा बहुत ही मायूस हो कर क़ब्र पर आया। क़ब्र एक ग़ार थी जिस के मुँह पर पत्थर रखा गया था।
\v 39 ईसा' ने कहा, “पत्थर को हटा दो।”
\v 40 ईसा' ने उस से कहा, “क्या मैंने तुझे नहीं बताया कि अगर तू ईमान रखे तो ख़ुदा का जलाल देखेगी?”
\s5
\v 41 चुनाँचे उन्हों ने पत्थर को हटा दिया। फिर ईसा' ने अपनी नज़र उठा कर कहा, “ऐ बाप, मैं तेरा शुक्र करता हूँ कि तू ने मेरी सुन ली है।
\v 42 मैं तो जानता हूँ कि तू हमेशा मेरी सुनता है। लेकिन मैं ने यह बात पास खड़े लोगों की ख़ातिर की, ताकि वह ईमान लाएँ कि तू ने मुझे भेजा है।”
\s5
\v 43 फिर ईसा' ज़ोर से पुकार उठा, “लाज़र, निकल आ!”
\v 44 और मुर्दा निकल आया। अभी तक उस के हाथ और पाँओ पट्टियों से बंधे हुए थे जबकि उस का चेहरा कपड़े में लिपटा हुआ था। ईसा' ने उन से कहा, “इस के कफ़न को खोल कर इसे जाने दो।”
\s5
\v 45 उन यहूदियों में से जो मरियम के पास आए थे बहुत से ईसा' पर ईमान लाए जब उन्हों ने वह देखा जो उस ने किया।
\v 46 लेकिन कुछ फ़रीसियों के पास गए और उन्हें बताया कि ईसा' ने क्या किया है।
\s5
\v 47 तब राहनुमा इमामों और फ़रीसियों ने यहूदियों ने सदरे अदालत का जलसा बुलाया । उन्हों ने एक दूसरे से पूछा, “हम क्या कर रहे हैं? यह आदमी बहुत से ख़ुदाई करिश्मे दिखा रहा है।”
\v 48 “अगर हम उसे यूँही छोड़ें तो आख़िरकार सब उस पर ईमान ले आएँगे। फिर रोमी हाकिम आ कर हमारे बैत-उल-मुक़द्दस और हमारे मुल्क को तबाह कर देंगे।”
\s5
\v 49 उन में से एक काइफ़ा था जो उस साल इमाम-ए-आज़म था। उस ने कहा, “आप कुछ नहीं समझते
\v 50 और इस का ख़याल भी नहीं करते कि इस से पहले कि पूरी क़ौम हलाक हो जाए बेहतर यह है कि एक आदमी उम्मत के लिए मर जाए।”
\s5
\v 51 उस ने यह बात अपनी तरफ़ से नहीं की थी। उस साल के इमाम-ए-आज़म की हैसियत से ही उस ने यह पेशेनगोई की कि ईसा' यहूदी क़ौम के लिए मरेगा।
\v 52 और न सिर्फ़ इस के लिए बल्कि ख़ुदा के बिखरे हुए फ़र्ज़न्दों को जमा करके एक करने के लिए भी।
\v 53 उस दिन से उन्हों ने ईसा' को क़त्ल करने का इरादा कर लिया।
\s5
\v 54 इस लिए उस ने अब से एलानिया यहूदियों के दरमियान वक़्त न गुज़ारा, बल्कि उस जगह को छोड़ कर रेगिस्तान के क़रीब एक इलाक़े में गया। वहाँ वह अपने शागिर्दों समेत एक गाँव बनाम इफ़्राईम में रहने लगा।
\v 55 फिर यहूदियों की ईद-ए-फ़सह क़रीब आ गई। देहात से बहुत से लोग अपने आप को पाक करवाने के लिए ईद से पहले पहले यरूशलम पहुँचे।
\s5
\v 56 वहाँ वह ईसा' का पता करते और हैकल में खड़े आपस में बात करते रहे, “क्या ख़याल है? क्या वह ईद पर नहीं आएगा?”
\v 57 लेकिन राहनुमा इमामों और फ़रीसियों ने हुक्म दिया था, “अगर किसी को मालूम हो जाए कि ईसा' कहाँ है तो वह ख़बर दे ताकि हम उसे गिरिफ़्तार कर लें।”
\s5
\c 12
\v 1 फ़सह की ईद में अभी छः दिन बाक़ी थे कि ईसा बैत-अनियाह पहुँचा। यह वह जगह थी जहाँ उस लाज़र का घर था जिसे ईसा ने मुर्दों में से ज़िन्दा किया था।
\v 2 वहाँ उस के लिए एक ख़ास खाना बनाया गया। मर्था खाने वालों की ख़िदमत कर रही थी जबकि लाज़र ईसा' और बाक़ी मेहमानों के साथ खाने में शरीक था।
\v 3 फिर मरियम ने आधा लीटर ख़ालिस जटामासी का बेशक़ीमती इत्र ले कर ईसा' के पैरों पर डाल दिया और उन्हें अपने बालों से पोंछ कर ख़ुश्क किया। ख़ुश्बू पूरे घर में फैल गई।
\s5
\v 4 लेकिन ईसा' के शागिर्द यहूदाह इस्करियोती ने एतिराज़ किया (बाद में उसी ने ईसा' को दुश्मन के हवाले कर दिया)। उस ने कहा,
\v 5 “इस इत्र की क़ीमत लगभग एक साल की मज़दूरी के बराबर थी। इसे क्यूँ नहीं बेचा गया ताकि इस के पैसे ग़रीबों को दिए जाते?”
\v 6 उस ने यह बात इस लिए नहीं की कि उसे ग़रीबों की फ़िक्र थी। असल में वह चोर था। वह शागिर्दों का ख़ज़ान्ची था और जमाशुदा पैसों में से ले लिया करता था।
\s5
\v 7 लेकिन ईसा' ने कहा, “उसे छोड़ दे! उस ने मेरी दफ़नाने की तय्यारी के लिए यह किया है।
\v 8 ग़रीब तो हमेशा तुम्हारे पास रहेंगे, लेकिन मैं हमेशा तुम्हारे पास नहीं रहूँगा।”
\s5
\v 9 इतने में यहूदियों की बड़ी तादाद को मालूम हुआ कि ईसा' वहाँ है। वह न सिर्फ़ ईसा' से मिलने के लिए आए बल्कि लाज़र से भी जिसे उस ने मुर्दों में से ज़िन्दा किया था।
\v 10 इस लिए राहनुमा इमामों ने लाज़र को भी क़त्ल करने का इरादा बनाया।
\v 11 क्यूँकि उस की वजह से बहुत से यहूदी उन में से चले गए और ईसा' पर ईमान ले आए थे।
\s5
\v 12 अगले दिन ईद के लिए आए हुए लोगों को पता चला कि ईसा' यरूशलम आ रहा है। एक बड़ा मजमा
\v 13 खजूर की डालियाँ पकड़े शहर से निकल कर उस से मिलने आया। चलते चलते वह चिल्ला कर नारे लगा रहे थे,
\s5
\v 14 ईसा' को कहीं से एक जवान गधा मिल गया और वह उस पर बैठ गया, जिस तरह कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है,
\v 15 “ऐ सिय्यून की बेटी, मत डर!”
\s5
\v 16 उस वक़्त उस के शागिर्दों को इस बात की समझ न आई। लेकिन बाद में जब ईसा' अपने जलाल को पहुँचा तो उन्हें याद आया कि लोगों ने उस के साथ यह कुछ किया था और वह समझ गए कि कलाम-ए-मुक़द्दस में इस का ज़िक्र भी है।
\s5
\v 17 जो मजमा उस वक़्त ईसा' के साथ था जब उस ने लाज़र को मुर्दों में से ज़िन्दा किया था, वह दूसरों को इस के बारे में बताता रहा था।
\v 18 इसी वजह से इतने लोग ईसा' से मिलने के लिए आए थे, उन्हों ने उस के इस ख़ुदाई करिश्मे के बारे में सुना था।
\v 19 यह देख कर फ़रीसी आपस में कहने लगे, “आप देख रहे हैं कि बात नहीं बन रही। देखो, तमाम दुनियाँ उस के पीछे हो ली है।”
\s5
\v 20 कुछ यूनानी भी उन में थे जो फ़सह की ईद के मौक़े पर इबादत करने के लिए आए हुए थे।
\v 21 अब वह फ़िलिप्पुस से मिलने आए जो गलील के बैत-सैदा से था। उन्हों ने कहा, “जनाब, हम ईसा' से मिलना चाहते हैं।”
\v 22 फ़िलिप्पुस ने अन्द्रियास को यह बात बताई और फिर वह मिल कर ईसा' के पास गए और उसे यह ख़बर पहुँचाई।
\s5
\v 23 लेकिन ईसा' ने जवाब दिया, “अब वक़्त आ गया है कि इब्न-ए-आदम को जलाल मिले।
\v 24 मैं तुम को सच बताता हूँ कि जब तक गन्दुम का दाना ज़मीन में गिर कर मर न जाए वह अकेला ही रहता है। लेकिन जब वह मर जाता है तो बहुत सा फल लाता है।
\s5
\v 25 जो अपनी जान को प्यार करता है वह उसे खो देगा, और जो इस दुनियाँ में अपनी जान से दुश्मनी रखता है वह उसे हमेशा तक बचाए रखेगा।
\v 26 अगर कोई मेरी ख़िदमत करना चाहे तो वह मेरे पीछे हो ले, क्यूँकि जहाँ मैं हूँ वहाँ मेरा ख़ादिम भी होगा। और जो मेरी ख़िदमत करे मेरा बाप उस की इज़्ज़त करेगा।
\s5
\v 27 अब मेरा दिल घबराता है। मैं क्या कहूँ? क्या मैं कहूँ, ‘ऐ बाप, मुझे इस वक़्त से बचाए रख’? नहीं, मैं तो इसी लिए आया हूँ।
\v 28 ऐ बाप, अपने नाम को जलाल दे।”पस आसमान से आवाज़ आई कि मैंने उस को जलाल दिया है और भी दूंगा
\v 29 मजमा के जो लोग वहाँ खड़े थे उन्हों ने यह सुन कर कहा, “बादल गरज रहे हैं।” औरों ने ख़याल पेश किया, “कोई फ़रिश्ते ने उस से बातें की ”
\s5
\v 30 ईसा' ने उन्हें बताया, “यह आवाज़ मेरे वास्ते नहीं बल्कि तुम्हारे वास्ते थी।
\v 31 अब दुनियाँ की अदालत करने का वक़्त आ गया है, अब दुनियाँ पे हुकूमत करने वालों को निकाल दिया जाएगा।
\s5
\v 32 और मैं ख़ुद ज़मीन से ऊँचे पर चढ़ाए जाने के बाद सब को अपने पास बुला लूँगा।”
\v 33 इन बातों से उस ने इस तरफ़ इशारा किया कि वह किस तरह की मौत मरेगा।
\s5
\v 34 मजमा बोल उठा, “कलाम-ए-मुक़द्दस से हम ने सुना है कि मसीह हमेशा तक क़ायम रहेगा। तो फिर आप की यह कैसी बात है कि इब्न-ए-आदम को ऊँचे पर चढ़ाया जाना है? आख़िर इब्न-ए-आदम है कौन?”
\v 35 ईसा' ने जवाब दिया, “रोशनी थोड़ी देर और तुम्हारे पास रहेगी। जितनी देर वह मौजूद है इस रोशनी में चलते रहो ताकि अँधेरा तुम पर छा न जाए। जो अंधेरे में चलता है उसे नहीं मालूम कि वह कहाँ जा रहा है।
\v 36 रोशनी तुम्हारे पास से चले जाने से पहले पहले उस पर ईमान लाओ ताकि तुम ख़ुदा के फ़र्ज़न्द बन जाओ।”
\s5
\v 37 अगरचे ईसा' ने यह तमाम ख़ुदाई करिश्मे उन के सामने ही दिखाए तो भी वह उस पर ईमान न लाए।
\v 38 यूँ यसायाह नबी की पेशेनगोई पूरी हुई,
\s5
\v 39 चुनाँचे वह ईमान न ला सके, जिस तरह यसायाह नबी ने कहीं और फ़रमाया है,
\v 40 “ख़ुदा ने उन की आँखों को अंधा किया”
\s5
\v 41 यसायाह ने यह इस लिए फ़रमाया क्यूँकि उस ने ईसा' का जलाल देख कर उस के बारे में बात की।
\v 42 तो भी बहुत से लोग ईसा' पर ईमान रखते थे। उन में कुछ राहनुमा भी शामिल थे। लेकिन वह इस का खुला इक़्ररार नहीं करते थे, क्यूँकि वह डरते थे कि फ़रीसी हमें यहूदी जमाअत से निकाल देंगे।
\v 43 असल में वह ख़ुदा की इज़्ज़त के बजाये इन्सान की इज़्ज़त को ज़्यादा अज़ीज़ रखते थे।
\s5
\v 44 फिर ईसा' पुकार उठा, “जो मुझ पर ईमान रखता है वह न सिर्फ़ मुझ पर बल्कि उस पर ईमान रखता है जिस ने मुझे भेजा है।
\v 45 और जो मुझे देखता है वह उसे देखता है जिस ने मुझे भेजा है।
\s5
\v 46 मैं रोशनी की तरह से इस दुनियाँ में आया हूँ ताकि जो भी मुझ पर ईमान लाए वह अँधेरे में न रहे।
\v 47 जो मेरी बातें सुन कर उन पर अमल नहीं करता मैं उसका इंसाफ़ नहीं करूँगा, क्यूँकि मैं दुनियाँ का इंसाफ़ करने के लिए नहीं आया बल्कि उसे नजात देने के लिए।
\s5
\v 48 तो भी एक है जो उस का इंसाफ़ करता है। जो मुझे रद्द करके मेरी बातें क़ुबूल नहीं करता मेरा पेश किया गया कलाम ही क़यामत के दिन उस का इंसाफ़ करेगा।
\v 49 क्यूँकि जो कुछ मैं ने बयान किया है वह मेरी तरफ़ से नहीं है। मेरे भेजने वाले बाप ही ने मुझे हुक्म दिया कि क्या कहना और क्या सुनाना है।
\v 50 और मैं जानता हूँ कि उस का हुक्म हमेशा की ज़िन्दगी तक पहुँचाता है। चुनाँचे जो कुछ मैं सुनाता हूँ वही है जो बाप ने मुझे बताया है।”
\s5
\c 13
\v 1 फ़सह की ईद अब शुरू होने वाली थी। ईसा' जानता था कि वह वक़्त आ गया है कि मुझे इस दुनियाँ को छोड़ कर बाप के पास जाना है। अगरचे उस ने हमेशा दुनियाँ में अपने लोगों से मुहब्बत रखी थी, लेकिन अब उस ने आख़िरी हद तक उन पर अपनी मुहब्बत का इज़हार किया।
\v 2 फिर शाम का खाना तय्यार हुआ। उस वक़्त इब्लीस शमाऊन इस्करियोती के बेटे यहूदाह के दिल में ईसा' को दुश्मन के हवाले करने का इरादा डाल चुका था।
\s5
\v 3 ईसा' जानता था कि बाप ने सब कुछ मेरे हवाले कर दिया है और कि मैं ख़ुदा से निकल आया और अब उस के पास वापस जा रहा हूँ।
\v 4 चुनाँचे उस ने दस्तरख़्वान से उठ कर अपना चोगा उतार दिया और कमर पर तौलिया बांध लिया।
\v 5 फिर वह बासन में पानी डाल कर शागिर्दों के पैर धोने और बंधे हुए तौलिया से पोंछ कर ख़ुश्क करने लगा।
\s5
\v 6 जब पतरस की बारी आई तो उस ने कहा, “ख़ुदावन्द, आप मेरे पैर धोना चाहते हैं?”
\v 7 ईसा' ने जवाब दिया, “इस वक़्त तू नहीं समझता कि मैं क्या कर रहा हूँ, लेकिन बाद में यह तेरी समझ में आ जाएगा।”
\v 8 पतरस ने एतिराज़ किया, “मैं कभी भी आप को मेरे पैर धोने नहीं दूँगा!” ईसा' ने जवाब दिया “अगर मैं तुझे न धोऊँ तो मेरे साथ तेरी कोई शराकत नहीं |”
\v 9 यह सुन कर पतरस ने कहा, “तो फिर ख़ुदावन्द, न सिर्फ़ मेरे पैर बल्कि मेरे हाथों और सर को भी धोएँ!”
\s5
\v 10 ईसा' ने जवाब दिया, “जिस शख़्स ने नहा लिया है उसे सिर्फ़ अपने पैरो को धोने की ज़रूरत होती है, क्यूँकि वह पूरे तौर पर पाक-साफ़ है। तुम पाक-साफ़ हो, लेकिन सब के सब नहीं।”
\v 11 (ईसा' को मालूम था कि कौन उसे दुश्मन के हवाले करेगा। इस लिए उस ने कहा कि सब के सब पाक-साफ़ नहीं हैं।)
\s5
\v 12 उन सब के पैरो को धोने के बाद ईसा' दुबारा अपना लिबास पहन कर बैठ गया। उस ने सवाल किया, “क्या तुम समझते हो कि मैं ने तुम्हारे लिए क्या किया है?
\v 13 तुम मुझे ‘उस्ताद’ और ‘ख़ुदावन्द’ कह कर मुख़ातिब करते हो और यह सही है, क्यूँकि मैं यही कुछ हूँ।
\v 14 मैं, तुम्हारे ख़ुदावन्द और उस्ताद ने तुम्हारे पैर धोए। इस लिए अब तुम्हारा फ़र्ज़ भी है कि एक दूसरे के पैर धोया करो।
\v 15 मैंने तुम को एक नमूना दिया है ताकि तुम भी वही करो जो मैं ने तुम्हारे साथ किया है।
\s5
\v 16 मैं तुम को सच बताता हूँ कि ग़ुलाम अपने मालिक से बड़ा नहीं होता, न पैग़म्बर अपने भेजने वाले से।
\v 17 अगर तुम यह जानते हो तो इस पर अमल भी करो, तभी तुम मुबारक होगे।
\v 18 मैं तुम सब की बात नहीं कर रहा। जिन्हें मैंने चुन लिया है उन्हें मैं जानता हूँ। लेकिन कलाम-ए-मुक़द्दस की उस बात का पूरा होना ज़रूर है, ‘जो मेरी रोटी खाता है उस ने मुझ पर लात उठाई है।’
\s5
\v 19 मैं तुम को इस से पहले कि वह पेश आए यह अभी बता रहा हूँ, ताकि जब वह पेश आए तो तुम ईमान लाओ कि मैं वही हूँ।
\v 20 मैं तुम को सच बताता हूँ कि जो शख़्स उसे क़ुबूल करता है जिसे मैंने भेजा है वह मुझे क़ुबूल करता है। और जो मुझे क़ुबूल करता है वह उसे क़ुबूल करता है जिस ने मुझे भेजा है।”
\s5
\v 21 इन अल्फ़ाज़ के बाद ईसा' बेहद दुखी हुआ और कहा, “मैं तुम को सच बताता हूँ कि तुम में से एक मुझे दुश्मन के हवाले कर देगा।”
\v 22 शागिर्द उलझन में एक दूसरे को देख कर सोचने लगे कि ईसा' किस की बात कर रहा है।
\s5
\v 23 एक शागिर्द जिसे ईसा' मुहब्बत करता था उस के बिलकुल क़रीब बैठा था।
\v 24 पतरस ने उसे इशारा किया कि वह उस से पूछे कि वह किस की बात कर रहा है।
\v 25 उस शागिर्द ने ईसा' की तरफ़ सर झुका कर पूछा, “ख़ुदावन्द,वह कौन है?”
\s5
\v 26 ईसा' ने जवाब दिया, “जिसे मैं रोटी का निवाला शोर्बे में डुबो कर दूँ, वही है।” फिर निवाले को डुबो कर उस ने शमाऊन इस्करियोती के बेटे यहूदाह को दे दिया।
\v 27 जैसे ही यहूदाह ने यह निवाला ले लिया इब्लीस उस में समा गया। ईसा' ने उसे बताया, “जो कुछ करना है वह जल्दी से कर ले।”
\s5
\v 28 लेकिन मेज़ पर बैठे लोगों में से किसी को मालूम न हुआ कि ईसा' ने यह क्यूँ कहा।
\v 29 कुछ का ख़याल था कि चूँकि यहूदाह ख़ज़ान्ची था इस लिए वह उसे बता रहा है कि ईद के लिए ज़रुरी चीज़ें ख़रीद ले या ग़रीबों में कुछ बांट दे।
\v 30 चुनाँचे ईसा' से यह निवाला लेते ही यहूदाह बाहर निकल गया। रात का वक़्त था।
\s5
\v 31 यहूदाह के चले जाने के बाद ईसा' ने कहा, “अब इब्न-ए-आदम ने जलाल पाया और ख़ुदा ने उस में जलाल पाया है।
\v 32 हाँ, चूँकि ख़ुदा को उस में जलाल मिल गया है इस लिए ख़ुदा अपने में फ़र्ज़न्द को जलाल देगा। और वह यह जलाल फ़ौरन देगा।
\v 33 मेरे बच्चो, मैं थोड़ी देर और तुम्हारे पास ठहरूँगा। तुम मुझे तलाश करोगे, और जो कुछ मैं यहूदियों को बता चुका हूँ वह अब तुम को भी बताता हूँ, जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते।
\s5
\v 34 मैं तुम को एक नया हुक्म देता हूँ, यह कि एक दूसरे से मुहब्बत रखो। जिस तरह मैं ने तुम से मुहब्बत रखी उसी तरह तुम भी एक दूसरे से मुहब्बत करो।
\v 35 अगर तुम एक दूसरे से मुहब्बत रखोगे तो सब जान लेंगे कि तुम मेरे शागिर्द हो।”
\s5
\v 36 पतरस ने पूछा, “ख़ुदावन्द, आप कहाँ जा रहे हैं?”ईसा' ने जवाब दिया जहाँ में जाता हूँ अब तो तू मेरे पीछे आ नहीं सकता लेकिन बाद में तू मेरे पीछे आ जायेगा" |
\v 37 पतरस ने सवाल किया, “ख़ुदावन्द, मैं आप के पीछे अभी क्यूँ नहीं जा सकता? मैं आप के लिए अपनी जान तक देने को तय्यार हूँ।”
\v 38 लेकिन ईसा' ने जवाब दिया, “तू मेरे लिए अपनी जान देना चाहता है? मैं तुझे सच बताता हूँ कि मुर्ग़ के बाँग देने से पहले पहले तू तीन मर्तबा मुझे जानने से इन्कार कर चुका होगा।
\s5
\c 14
\v 1 ”तुम्हारा दिल न घबराए। तुम ख़ुदा पर ईमान रखते हो, मुझ पर भी ईमान रखो।
\v 2 मेरे आसमानी बाप के घर में बेशुमार मकान हैं। अगर ऐसा न होता तो क्या मैं तुम को बताता कि मैं तुम्हारे लिए जगह तय्यार करने के लिए वहाँ जा रहा हूँ?
\v 3 और अगर मैं जा कर तुम्हारे लिए जगह तय्यार करूँ तो वापस आ कर तुम को अपने साथ ले जाऊँगा ताकि जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम भी हो।
\s5
\v 4 और जहाँ मैं जा रहा हूँ उस की राह तुम जानते हो।”
\v 5 तोमा बोल उठा, “ख़ुदावन्द, हमें मालूम नहीं कि आप कहाँ जा रहे हैं। तो फिर हम उस की राह किस तरह जानें?”
\v 6 ईसा' ने जवाब दिया, “राह हक़ और ज़िन्दगी मैं हूँ। कोई मेरे वसीले के बग़ैर बाप के पास नहीं आ सकता।
\v 7 अगर तुम ने मुझे जान लिया है तो इस का मतलब है कि तुम मेरे बाप को भी जान लोगे। और अब तुम उसे जानते हो और तुम ने उस को देख लिया है।”
\s5
\v 8 फ़िलिप्पुस ने कहा, “ऐ ख़ुदावन्द, बाप को हमें दिखाएँ। बस यही हमारे लिए काफ़ी है।”
\v 9 ईसा' ने जवाब दिया, “फ़िलिप्पुस, मैं इतनी देर से तुम्हारे साथ हूँ, क्या इस के बावुजूद तू मुझे नहीं जानता? जिस ने मुझे देखा उस ने बाप को देखा है। तो फिर तू क्यूँकर कहता है, ‘बाप को हमें दिखाएँ’?
\s5
\v 10 क्या तू ईमान नहीं रखता कि मैं बाप में हूँ और बाप मुझ में है? जो बातें में तुम को बताता हूँ वह मेरी नहीं बल्कि मुझ में रहने वाले बाप की तरफ़ से हैं। वही अपना काम कर रहा है।
\v 11 मेरी बात का यक़ीन करो कि मैं बाप में हूँ और बाप मुझ में है। या कम से कम उन कामों की बिना पर यक़ीन करो जो मैंने किए हैं।
\s5
\v 12 मैं तुम को सच बताता हूँ कि जो मुझ पर ईमान रखे वह वही करेगा जो मैं करता हूँ। न सिर्फ़ यह बल्कि वह इन से भी बड़े काम करेगा, क्यूँकि मैं बाप के पास जा रहा हूँ।
\v 13 और जो कुछ तुम मेरे नाम में माँगो मैं दूँगा ताकि बाप को बेटे में जलाल मिल जाए।
\v 14 जो कुछ तुम मेरे नाम में मुझ से चाहो वह मैं करूँगा।
\s5
\v 15 अगर तुम मुझे मुहब्बत करते हो तो मेरे हुक्मो के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारोगे।
\v 16 और मैं बाप से गुज़ारिश करूँगा तो वह तुम को एक और मददगार देगा जो हमेशा तक तुम्हारे साथ रहेगा
\v 17 यानी सच्चाई की रूह, जिसे दुनियाँ पा नहीं सकती, क्यूँकि वह न तो उसे देखती न जानती है। लेकिन तुम उसे जानते हो, क्यूँकि वह तुम्हारे साथ रहती है और आइन्दा तुम्हारे अन्दर रहेगी ।
\s5
\v 18 मैं तुम को यतीम छोड़ कर नहीं जाऊँगा बल्कि तुम्हारे पास वापस आऊँगा।
\v 19 थोड़ी देर के बाद दुनियाँ मुझे नहीं देखेगी, लेकिन तुम मुझे देखते रहोगे। चूँकि मैं ज़िन्दा हूँ इस लिए तुम भी ज़िन्दा रहोगे।
\v 20 जब वह दिन आएगा तो तुम जान लोगे कि मैं अपने बाप में हूँ, तुम मुझ में हो और मैं तुम में।
\s5
\v 21 जिस के पास मेरे हुक्म हैं और जो उन के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारता है, वही मुझे प्यार करता है। और जो मुझे प्यार करता है उसे मेरा बाप प्यार करेगा। मैं भी उसे प्यार करूँगा और अपने आप को उस पर ज़ाहिर करूँगा।”
\v 22 यहूदाह (यहूदाह इस्करियोती नहीं) ने पूछा, “ख़ुदावन्द, क्या वजह है कि आप अपने आप को सिर्फ़ हम पर ज़ाहिर करेंगे और दुनियाँ पर नहीं?”
\s5
\v 23 ईसा' ने जवाब दिया, “अगर कोई मुझे मुहब्बत करे तो वह मेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारेगा। मेरा बाप ऐसे शख़्स को मुहब्बत करेगा और हम उस के पास आ कर उस के साथ रहा करेंगे।
\v 24 जो मुझ से मुहब्बत नहीं करता, वह मेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िन्दगी नहीं गुज़ारता। और जो कलाम तुम मुझ से सुनते हो, वह मेरा अपना कलाम नहीं है बल्कि बाप का है जिस ने मुझे भेजा है।
\s5
\v 25 यह सब कुछ मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए तुम को बताया है।
\v 26 लेकिन बाद में रूह-ए पाक, जिसे बाप मेरे नाम से भेजेगा, तुम को सब कुछ सिखाएगा। यह मददगार तुम को हर बात की याद दिलाएगा जो मैं ने तुम को बताई है।
\v 27 मैं तुम्हारे पास सलामती छोड़े जाता हूँ, अपनी ही सलामती तुम को दे देता हूँ। और मैं इसे यूँ नहीं देता जिस तरह दुनियाँ देती है। तुम्हारा दिल न घबराए और न डरे।
\s5
\v 28 तुम ने मुझ से सुन लिया है कि मैं जा रहा हूँ और तुम्हारे पास वापस आऊँगा।अगर तुम मुझ से मुहब्बत रखते तो तुम इस बात पर ख़ुश होते कि मैं बाप के पास जा रहा हूँ, क्यूँकि बाप मुझ से बड़ा है।
\v 29 मैं ने तुम को पहले से बता दिया है, कि यह हो, ताकि जब पेश आए तो तुम ईमान लाओ।
\v 30 अब से मैं तुम से ज़्यादा बातें नहीं करूँगा, क्यूँकि इस दुनियाँ का बादशाह आ रहा है। उसे मुझ पर कोई क़ाबू नहीं है,
\v 31 लेकिन दुनियाँ यह जान ले कि मैं बाप को प्यार करता हूँ और वही कुछ करता हूँ जिस का हुक्म वह मुझे देता है।
\s5
\c 15
\v 1 ”अंगूर का हक़ीक़ी दरख़्त मैं हूँ और मेरा बाप बाग़बान है।
\v 2 वह मेरी हर डाल को जो फल नहीं लाती काट कर फैंक देता है। लेकिन जो डाली फल लाती है उस की वह काँट-छाँट करता है ताकि ज़्यादा फल लाए।
\s5
\v 3 उस कलाम के वजह से जो मैं ने तुम को सुनाया है तुम तो पाक-साफ़ हो चुके हो।
\v 4 मुझ में कायम रहो तो मैं भी तुम में क़ायम रहूँगा। जो डाल दरख़्त से कट गई है वह फल नहीं ला सकती। बिलकुल इसी तरह तुम भी अगर तुम मुझ में क़ायम नहीं रहो तो फल नहीं ला सकते।
\s5
\v 5 मैं ही अंगूर का दरख़्त हूँ, और तुम उस की डालियां हो। जो मुझ में क़ायम रहता है और मैं उस में वह बहुत सा फल लाता है, क्यूँकि मुझ से अलग हो कर तुम कुछ नहीं कर सकते।
\v 6 जो मुझ में क़ायम नहीं रहता और न मैं उस में उसे सूखी डाल की तरह बाहर फैंक दिया जाता है। और लोग उन का ढेर लगा कर उन्हें आग में झोंक देते हैं जहाँ वह जल जाती हैं।
\v 7 अगर तुम मुझ में क़ायम रहो और मैं तुम में तो जो जी चाहे माँगो, वह तुम को दिया जाएगा।
\s5
\v 8 जब तुम बहुत सा फल लाते और यूँ मेरे शागिर्द साबित होते हो तो इस से मेरे बाप को जलाल मिलता है।
\v 9 जिस तरह बाप ने मुझ से मुहब्बत रखी है उसी तरह मैं ने तुम से भी मुहब्बत रखी है। अब मेरी मुहब्बत में क़ायम रहो।
\s5
\v 10 जब तुम मेरे हुक्म के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारते हो तो तुम मुझ में क़ायम रहते हो। मैं भी इसी तरह अपने बाप के अह्काम के मुताबिक़ चलता हूँ और यूँ उस की मुहब्बत में क़ायम रहता हूँ।
\v 11 मैं ने तुम को यह इस लिए बताया है ताकि मेरी ख़ुशी तुम में हो बल्कि तुम्हारा दिल ख़ुशी से भर कर छलक उठे।
\s5
\v 12 मेरा हुक्म यह है कि एक दूसरे को वैसे प्यार करो जैसे मैं ने तुम को प्यार किया है।
\v 13 इस से बड़ी मुहब्बत है नहीं कि कोई अपने दोस्तों के लिए अपनी जान दे दे।
\s5
\v 14 तुम मेरे दोस्त हो अगर तुम वह कुछ करो जो मैं तुम को बताता हूँ।
\v 15 अब से मैं नहीं कहता कि तुम ग़ुलाम हो, क्यूँकि ग़ुलाम नहीं जानता कि उस का मालिक क्या करता है। इस के बजाए मैं ने कहा है कि तुम दोस्त हो, क्यूँकि मैं ने तुम को सब कुछ बताया है जो मैं ने अपने बाप से सुना है।
\s5
\v 16 तुम ने मुझे नहीं चुना बल्कि मैं ने तुम को चुन लिया है। मैं ने तुम को मुक़र्रर किया कि जा कर फल लाओ, ऐसा फल जो क़ायम रहे। फिर बाप तुम को वह कुछ देगा जो तुम मेरे नाम से माँगोगे।
\v 17 मेरा हुक्म यही है कि एक दूसरे से मुहब्बत रखो।
\s5
\v 18 अगर दुनियाँ तुम से दुश्मनी रखे तो यह बात ज़हन में रखो कि उस ने तुम से पहले मुझ से दुश्मनी रखी है।
\v 19 अगर तुम दुनियाँ के होते तो दुनियाँ तुम को अपना समझ कर प्यार करती। लेकिन तुम दुनियाँ के नहीं हो। मैं ने तुम को दुनियाँ से अलग करके चुन लिया है। इस लिए दुनियाँ तुम से दुश्मनी रखती है।
\s5
\v 20 वह बात याद करो जो मैं ने तुम को बतायी कि 'ग़ुलाम अपने मालिक से बड़ा नहीं होता।' अगर उन्हों ने मुझे सताया है तो तुम्हें भी सताएँगे। और अगर उन्हों ने मेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारी तो वह तुम्हारी बातों पर भी अमल करेंगे।
\v 21 लेकिन तुम्हारे साथ जो कुछ भी करेंगे, मेरे नाम की वजह से करेंगे, क्योकि वह उसे नहीं जानते जिस ने मुझे भेजा है।
\v 22 अगर मैं आया न होता और उन से बात न की होती तो वह क़ुसूरवार न ठहरते। लेकिन अब उन के गुनाह का कोई भी उज़्र बाक़ी नहीं रहा।
\s5
\v 23 जो मुझ से दुश्मनी रखता है वह मेरे बाप से भी दुश्मनी रखता है।
\v 24 अगर मैं ने उन के दरमियान ऐसा काम न किया होता जो किसी और ने नहीं किया तो वह क़ुसूरवार न ठहरते। लेकिन अब उन्हों ने सब कुछ देखा है और फिर भी मुझ से और मेरे बाप से दुश्मनी रखी है।
\v 25 और ऐसा होना भी था ताकि कलाम-ए-मुक़द्दस की यह नबूवत पूरी हो जाए कि ‘उन्होने कहा है
\s5
\v 26 जब वह मददगार आएगा जिसे मैं बाप की तरफ़ से तुम्हारे पास भेजूँगा तो वह मेरे बारे में गवाही देगा। वह सच्चाई का रूह है जो बाप में से निकलता है।
\v 27 तुम को भी मेरे बारे में गवाही देना है, क्योकि तुम शुरु से ही मेरे साथ रहे हो।
\s5
\c 16
\v 1 ”मैं ने तुम को यह इस लिए बताया है ताकि तुम गुमराह न हो जाओ।
\v 2 वह तुम को यहूदी जमाअतों से निकाल देंगे, बल्कि वह वक़्त भी आने वाला है कि जो भी तुम को मार डालेगा वह समझेगा, ‘मैं ने ख़ुदा की ख़िदमत की है।’
\s5
\v 3 वह इस क़िस्म की हरकतें इस लिए करेंगे कि उन्हों ने न बाप को जाना है, न मुझे।
\v 4 (जिस ने यह देखा है उस ने गवाही दी है और उस की गवाही सच्ची है। वह जानता है कि वह हक़ीक़त बयान कर रहा है और उस की गवाही का मक़्सद यह है कि आप भी ईमान लाएँ।)
\s5
\v 5 लेकिन अब मैं उस के पास जा रहा हूँ जिस ने मुझे भेजा है। तो भी तुम में से कोई मुझ से नहीं पूछता, ‘आप कहाँ जा रहे हैं?
\v 6 इस के बजाए तुम्हारे दिल उदास हैं कि मैं ने तुम को ऐसी बातें बताई हैं।
\v 7 लेकिन मैं तुम को सच बताता हूँ कि तुम्हारे लिए फ़ाइदामन्द है कि मैं जा रहा हूँ। अगर मैं न जाऊँ तो मददगार तुम्हारे पास नहीं आएगा। लेकिन अगर मैं जाऊँ तो मैं उसे तुम्हारे पास भेज दूँगा।
\s5
\v 8 और जब वह आएगा तो गुनाह, रास्तबाज़ी और अदालत के बारे में दुनियाँ की ग़लती को बेनिक़ाब करके यह ज़ाहिर करेगा :
\v 9 गुनाह के बारे में यह कि लोग मुझ पर ईमान नहीं रखते,
\v 10 रास्तबाज़ी के बारे में यह कि मैं बाप के पास जा रहा हूँ और तुम मुझे अब से नहीं देखोगे,
\v 11 और अदालत के बारे में यह कि इस दुनियाँ के हाकिम की अदालत हो चुकी है।
\s5
\v 12 मुझे तुम को बहुत कुछ बताना है, लेकिन इस वक़्त तुम उसे बर्दाश्त नहीं कर सकते।
\v 13 जब सच्चाई का रूह आएगा तो वह पूरी सच्चाई की तरफ़ तुम्हारी राहनुमाई करेगा। वह अपनी मर्ज़ी से बात नहीं करेगा बल्कि सिर्फ़ वही कुछ कहेगा जो वह ख़ुद सुनेगा। वही तुम को भी ।मुस्तक़बिल के बारे में बताएगा
\v 14 और वह इस में मुझे जलाल देगा कि वह तुम को वही कुछ सुनाएगा जो उसे मुझ से मिला होगा।
\s5
\v 15 जो कुछ भी बाप का है वह मेरा है। इस लिए मैं ने कहा, ‘रूह तुम को वही कुछ सुनाएगा जो उसे मुझ से मिला होगा।’
\v 16 थोड़ी देर के बाद तुम मुझे नहीं देखोगे। फिर थोड़ी देर के बाद तुम मुझे दुबारा देख लोगे।”
\s5
\v 17 उस के कुछ शागिर्द आपस में बात करने लगे, “ईसा के यह कहने से क्या मुराद है कि थोड़ी देर के बा'द तुम मुझे नहीं देखोगे, फिर थोड़ी देर के बा'द मुझे दुबारा देख लोगे? और इस का क्या मतलब है, ‘मैं बाप के पास जा रहा हूँ?’”
\v 18 और वह सोचते रहे, “यह किस क़िस्म की ‘थोड़ी देर’ है जिस का ज़िक्र वह कर रहे हैं? हम उन की बात नहीं समझते|”
\s5
\v 19 ईसा' ने जान लिया कि वह मुझ से इस के बारे में सवाल करना चाहते हैं। इस लिए उस ने कहा, “क्या तुम एक दूसरे से पूछ रहे हो कि मेरी इस बात का क्या मतलब है कि ‘थोड़ी देर के बाद तुम मुझे नहीं देखोगे, फिर थोड़ी देर के बाद मुझे दुबारा देख लोगे?
\v 20 मैं तुम को सच बताता हूँ कि तुम रो रो कर मातम करोगे जबकि दुनियाँ ख़ुश होगी। तुम ग़म करोगे, लेकिन तुम्हारा ग़म ख़ुशी में बदल जाएगा।
\v 21 जब किसी औरत के बच्चा पैदा होने वाला होता है तो उसे ग़म और तक्लीफ़ होती है क्यूँकि उस का वक़्त आ गया है। लेकिन जूँ ही बच्चा पैदा हो जाता है तो माँ ख़ुशी के मारे कि एक इन्सान दुनियाँ में आ गया है अपनी तमाम मुसीबत भूल जाती है।
\s5
\v 22 यही तुम्हारी हालत है। क्योकि अब तुम उदास हो, लेकिन मैं तुम से दुबारा मिलूँगा। उस वक़्त तुम को ख़ुशी होगी, ऐसी ख़ुशी जो तुम से कोई छीन न लेगा।
\v 23 उस दिन तुम मुझ से कुछ नहीं पूछोगे। मैं तुम को सच बताता हूँ कि जो कुछ तुम मेरे नाम में बाप से माँगोगे वह तुम को देगा।
\v 24 अब तक तुम ने मेरे नाम में कुछ नहीं माँगा। माँगो तो तुम को मिलेगा। फिर तुम्हारी ख़ुशी पूरी हो जाएगी।
\s5
\v 25 मैं ने तुम को यह मिसालो में बताया है। लेकिन एक दिन आएगा जब मैं ऐसा नहीं करूँगा। उस वक़्त मैं मिसालो में बात नहीं करूँगा बल्कि तुम को बाप के बारे में साफ़ साफ़ बता दूँगा।
\s5
\v 26 उस दिन तुम मेरा नाम ले कर माँगोगे। मेरे कहने का मतलब यह नहीं कि मैं ही तुम्हारी ख़ातिर बाप से दरख़्वास्त करूँगा।
\v 27 क्योकि बाप ख़ुद तुम को प्यार करता है, इस लिए कि तुम ने मुझे प्यार किया है और ईमान लाए हो कि मैं ख़ुदा में से निकल आया हूँ।
\v 28 मैं बाप में से निकल कर दुनियाँ में आया हूँ, और अब मैं दुनियाँ को छोड़ कर बाप के पास वापस जाता हूँ।”
\s5
\v 29 इस पर उस के शागिर्दों ने कहा, “अब आप मिसालो में नहीं बल्कि साफ़ साफ़ बात कर रहे हैं।
\v 30 अब हमें समझ आई है कि आप सब कुछ जानते हैं और कि इस की ज़रूरत नहीं कि कोई आप की पूछ-ताछ करे। इस लिए हम ईमान रखते हैं कि आप ख़ुदा में से निकल कर आए हैं।”
\v 31 ईसा ने जवाब दिया, “अब तुम ईमान रखते हो?
\s5
\v 32 देखो, वह वक़्त आ रहा है बल्कि आ चुका है जब तुम तितर-बितर हो जाओगे। मुझे अकेला छोड़ कर हर एक अपने घर चला जाएगा। तो भी मैं अकेला नहीं हूँगा क्यूँकि बाप मेरे साथ है।
\v 33 मैं ने तुम को इस लिए यह बात बताई ताकि तुम मुझ में सलामती पाओ। दुनियाँ में तुम मुसीबत में फंसे रहते हो। लेकिन हौसला रखो, मैं दुनियाँ पर ग़ालिब आया हूँ।”
\s5
\c 17
\v 1 यह कह कर ईसा ने अपनी नज़र आसमान की तरफ़ उठाई और दुआ की, “ऐ बाप, वक़्त आ गया है। अपने बेटे को जलाल दे ताकि बेटा तुझे जलाल दे।
\v 2 क्यूँकि तू ने उसे तमाम इन्सानों पर इख़तियार दिया है ताकि वह उन सब को हमेशा की ज़िन्दगी दे जो तू ने उसे दिया हैं।
\s5
\v 3 और हमेशा की ज़िन्दगी यह है कि वह तुझे जान लें जो वाहिद और सच्चा ख़ुदा है और ईसा मसीह को भी जान लें जिसे तू ने भेजा है।
\v 4 मैं ने तुझे ज़मीन पर जलाल दिया और उस काम को पूरा किया जिस की ज़िम्मेंदारी तू ने मुझे दी थी।
\v 5 और अब मुझे अपने हुज़ूर जलाल दे, ऐ बाप, वही जलाल जो मैं दुनियाँ की पैदाइश से पहले तेरे साथ रखता था
\s5
\v 6 मैं ने तेरा नाम उन लोगों पर ज़ाहिर किया जिन्हें तू ने दुनियाँ से अलग करके मुझे दिया है। वह तेरे ही थे। तू ने उन्हें मुझे दिया और उन्हों ने तेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारी है।
\v 7 अब उन्होंने जान लिया है कि जो कुछ भी तू ने मुझे दिया है वह तेरी तरफ़ से है।
\v 8 क्यूँकि जो बातें तू ने मुझे दीं मैं ने उन्हें दी हैं। नतीजे में उन्हों ने यह बातें क़बूल करके हक़ीक़ी तौर पर जान लिया कि मैं तुझ में से निकल कर आया हूँ। साथ साथ वह ईमान भी लाए कि तू ने मुझे भेजा है।
\s5
\v 9 मैं उन के लिए दुआ करता हूँ, दुनियाँ के लिए नहीं बल्कि उन के लिए जिन्हें तू ने मुझे दिया है, क्यूँकि वह तेरे ही हैं।
\v 10 जो भी मेरा है वह तेरा है और जो तेरा है वह मेरा है। चुनाँचे मुझे उन में जलाल मिला है।
\v 11 अब से मैं दुनियाँ में नहीं हूँगा। लेकिन यह दुनियाँ में रह गए हैं जबकि मैं तेरे पास आ रहा हूँ। क़ुद्दूस बाप, अपने नाम में उन्हें मह्फ़ूज़ रख, उस नाम में जो तू ने मुझे दिया है, ताकि वह एक हों जैसे हम एक हैं।
\s5
\v 12 जितनी देर मैं उन के साथ रहा मैं ने उन्हें तेरे नाम में मह्फ़ूज़ रखा, उसी नाम में जो तू ने मुझे दिया था। मैं ने यूँ उन की निगहबानी की कि उन में से एक भी हलाक नहीं हुआ सिवाए हलाकत के फ़र्ज़न्द के। यूँ कलाम की पेशीनगोई पूरी हुई।
\v 13 अब तो मैं तेरे पास आ रहा हूँ। लेकिन मैं दुनियाँ में होते हुए यह बयान कर रहा हूँ ताकि उन के दिल मेरी ख़ुशी से भर कर छलक उठें।
\v 14 मैं ने उन्हें तेरा कलाम दिया है और दुनियाँ ने उन से दुश्मनी रखी, क्यूँकि यह दुनियाँ के नहीं हैं, जिस तरह मैं भी दुनियाँ का नहीं हूँ।
\s5
\v 15 मेरी दुआ यह नहीं है कि तू उन्हें दुनियाँ से उठा ले बल्कि यह कि उन्हें इब्लीस से मह्फ़ूज़ रखे।
\v 16 वह दुनियाँ के नहीं हैं जिस तरह मैं भी दुनियाँ का नहीं हूँ।
\v 17 उन्हें सच्चाई के वसीले से मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस कर। तेरा कलाम ही सच्चाई है।
\s5
\v 18 जिस तरह तू ने मुझे दुनियाँ में भेजा है उसी तरह मैं ने भी उन्हें दुनियाँ में भेजा है।
\v 19 उन की ख़ातिर मैं अपने आप को मख़्सूस करता हूँ, ताकि उन्हें भी सच्चाई के वसीले से मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस किया जाए।
\s5
\v 20 मेरी दुआ न सिर्फ़ इन ही के लिए है, बल्कि उन सब के लिए भी जो इन का पैग़ाम सुन कर मुझ पर ईमान लाएँगे
\v 21 ताकि सब एक हों। जिस तरह तू ऐ बाप, मुझ में है और मैं तुझ में हूँ उसी तरह वह भी हम में हों ताकि दुनियाँ यक़ीन करे कि तू ने मुझे भेजा है।
\s5
\v 22 मैं ने उन्हें वह जलाल दिया है जो तू ने मुझे दिया है ताकि वह एक हों जिस तरह हम एक हैं,
\v 23 मैं उन में और तू मुझ में। वह कामिल तौर पर एक हों ताकि दुनियाँ जान ले कि तू ने मुझे भेजा और कि तू ने उन से मुहब्बत रखी है जिस तरह मुझ से रखी है।
\s5
\v 24 ऐ बाप, मैं चाहता हूँ कि जो तू ने मुझे दिए हैं वह भी मेरे साथ हों, वहाँ जहाँ मैं हूँ, कि वह मेरे जलाल को देखें, वह जलाल जो तू ने इस लिए मुझे दिया है कि तू ने मुझे दुनियाँ को बनाने से पहले प्यार किया है।
\s5
\v 25 ऐ रास्तबाज़, दुनियाँ तुझे नहीं जानती, लेकिन मैं तुझे जानता हूँ। और यह शागिर्द जानते हैं कि तू ने मुझे भेजा है।
\v 26 मैं ने तेरा नाम उन पर ज़ाहिर किया और इसे ज़ाहिर करता रहूँगा ताकि तेरी मुझ से मुहब्बत उन में हो और मैं उन में हूँ।”
\s5
\c 18
\v 1 यह कह कर ईसा अपने शागिर्दों के साथ निकला और वादी-ए-क़िद्रोन को पार करके एक बाग़ में दाख़िल हुआ।
\v 2 यहूदाह जो उसे दुश्मन के हवाले करने वाला था वह भी इस जगह से वाक़िफ़ था, क्यूँकि ईसा वहाँ अपने शागिर्दों के साथ जाया करता था।
\v 3 राहनुमा इमामों और फ़रीसियों ने यहूदाह को रोमी फ़ौजियों का दस्ता और बैत-उल-मुक़द्दस के कुछ पहरेदार दिए थे। अब यह मशालें, लालटैन और हथियार लिए बाग़ में पहुँचे।
\s5
\v 4 ईसा को मालूम था कि उसे क्या पेश आएगा। चुनाँचे उस ने निकल कर उन से पूछा, “तुम किस को ढूँड रहे हो?”
\v 5 उन्हों ने जवाब दिया, “ईसा नासरी को।”
\s5
\v 6 जब "ईसा" ने एलान किया, “मैं ही हूँ,” तो सब पीछे हट कर ज़मीन पर गिर पड़े।
\v 7 एक और बार "ईसा" ने उन से सवाल किया, “तुम किस को ढूँड रहे हो?”
\s5
\v 8 उस ने कहा, “मैं तुम को बता चुका हूँ कि मैं ही हूँ। अगर तुम मुझे ढूढ रहे हो तो इन को जाने दो।”
\v 9 यूँ उस की यह बात पूरी हुई, “मैं ने उन में से जो तू ने मुझे दिए हैं एक को भी नहीं खोया।”
\s5
\v 10 शमाऊन पतरस के पास तलवार थी। अब उस ने उसे मियान से निकाल कर इमाम-ए-आज़म के ग़ुलाम का दहना कान उड़ा दिया (ग़ुलाम का नाम मलख़ुस था)।
\v 11 लेकिन "ईसा" ने पतरस से कहा, “तलवार को मियान में रख। क्या मैं वह प्याला न पियूँ जो बाप ने मुझे दिया है?”
\s5
\v 12 फिर फ़ौजी दस्ते, उन के अफ़्सर और बैत-उल-मुक़द्दस के यहूदी पहरेदारों ने "ईसा" को गिरिफ़्तार करके बांध लिया।
\v 13 पहले वह उसे हन्ना के पास ले गए। हन्ना उस साल के इमाम-ए-आज़म काइफ़ा का ससुर था।
\v 14 काइफ़ा ही ने यहूदियों को यह मशवरा दिया था कि बेहतर यह है कि एक ही आदमी उम्मत के लिए मर जाए।
\s5
\v 15 शमाऊन पतरस किसी और शागिर्द के साथ "ईसा" के पीछे हो लिया था। यह दूसरा शागिर्द इमाम-ए-आज़म का जानने वाला था, इस लिए वह ईसा के साथ इमाम-ए-आज़म के सहन में दाख़िल हुआ।
\v 16 पतरस बाहर दरवाज़े पर खड़ा रहा। फिर इमाम-ए-आज़म का जानने वाला शागिर्द दुबारा निकल आया। उस ने दरवाज़े की निगरानी करने वाली औरत से बात की तो उसे पतरस को अपने साथ अन्दर ले जाने की इजाज़त मिली।
\s5
\v 17 उस औरत ने पतरस से पूछा, “तुम भी इस आदमी के शागिर्द हो कि नहीं?”
\v 18 ठंड थी, इस लिए ग़ुलामों और पहरेदारों ने लकड़ी के कोयलों से आग जलाई। अब वह उस के पास खड़े ताप रहे थे। पतरस भी उन के साथ खड़ा ताप रहा था।
\s5
\v 19 इतने में इमाम-ए-आज़म "ईसा" की पूछ-ताछ करके उस के शागिर्दों और तालीमों के बारे में पूछ-ताछ करने लगा।
\v 20 ईसा ने जवाब में कहा, “मैं ने दुनियाँ में खुल कर बात की है। मैं हमेशा यहूदी इबादतख़ानों और हैकल में तालीम देता रहा, वहाँ जहाँ तमाम यहूदी जमा हुआ करते हैं। पोशीदगी में तो मैं ने कुछ नहीं कहा।
\v 21 आप मुझ से क्यूँ पूछ रहे हैं? उन से दरयाफ़्त करें जिन्हों ने मेरी बातें सुनी हैं। उन को मालूम है कि मैं ने क्या कुछ कहा है।”
\s5
\v 22 इस पर साथ खड़े हैकल के पहरेदारों में से एक ने ईसा के मुँह पर थप्पड़ मार कर कहा, “क्या यह इमाम-ए-आज़म से बात करने का तरीक़ा है जब वह तुम से कुछ पूछे?”
\v 23 ईसा ने जवाब दिया, “अगर मैं ने बुरी बात की है तो साबित कर। लेकिन अगर सच कहा, तो तू ने मुझे क्यूँ मारा?”
\v 24 फिर हन्ना ने ईसा को बंधी हुई हालत में इमाम-ए-आज़म काइफ़ा के पास भेज दिया।
\s5
\v 25 शमाऊन पतरस अब तक आग के पास खड़ा ताप रहा था। इतने में दूसरे उस से पूछने लगे, “तुम भी उस के शागिर्द हो कि नहीं?”
\v 26 फिर इमाम-ए-आज़म का एक ग़ुलाम बोल उठा जो उस आदमी का रिश्तेदार था जिस का कान पतरस ने उड़ा दिया था, “क्या मैं ने तुम को बाग़ में उस के साथ नहीं देखा था?”
\v 27 पतरस ने एक बार फिर इन्कार किया, और इन्कार करते ही मुर्ग़ की बाँग सुनाई दी।
\s5
\v 28 फिर यहूदी ईसा को काइफ़ा से ले कर रोमी गवर्नर के महल बनाम प्रैटोरियुम के पास पहुँच गए। अब सुबह हो चुकी थी और चूँकि यहूदी फ़सह की ईद के खाने में शरीक होना चाहते थे, इस लिए वह महल में दाख़िल न हुए, वर्ना वह नापाक हो जाते।
\v 29 चुनाँचे पिलातुस निकल कर उन के पास आया और पूछा, “तुम इस आदमी पर क्या इल्ज़ाम लगा रहे हो?”
\v 30 उन्हों ने जवाब दिया, “अगर यह मुजरिम न होता तो हम इसे आप के हवाले न करते।”
\s5
\v 31 पिलातुस ने अगुवों से कहा, “फिर इसे ले जाओ और अपनी शरई अदालतों में पेश करो।”
\v 32 ईसा ने इस तरफ़ इशारा किया था कि वह किस तरह की मौत मरेगा और अब उस की यह बात पूरी हुई।
\s5
\v 33 तब पिलातुस फिर अपने महल में गया। वहाँ से उस ने ईसा को बुलाया और उस से पूछा, “क्या तुम यहूदियों के बादशाह हो?”
\v 34 ईसा ने पूछा, “क्या आप अपनी तरफ़ से यह सवाल कर रहे हैं, या औरों ने आप को मेरे बारे में बताया है?”
\v 35 पिलातुस ने जवाब दिया, “क्या मैं यहूदी हूँ? तुम्हारी अपनी क़ौम और राहनुमा इमामों ही ने तुम्हें मेरे हवाले किया है। तुम से क्या कुछ हुआ है?”
\s5
\v 36 ईसा ने कहा, “मेरी बादशाही इस दुनियाँ की नहीं है। अगर वह इस दुनियाँ की होती तो मेरे ख़ादिम सख़्त जद्द-ओ-जह्द करते ताकि मुझे यहूदियों के हवाले न किया जाता। लेकिन ऐसा नहीं है। अब मेरी बादशाही यहाँ की नहीं है।”
\v 37 पिलातुस ने कहा, “तो फिर तुम वाक़ई बादशाह हो?”
\s5
\v 38 पिलातुस ने पूछा, “सच्चाई क्या है?”
\v 39 “लेकिन तुम्हारी एक रस्म है जिस के मुताबिक़ मुझे ईद-ए-फ़सह के मौक़े पर तुम्हारे लिए एक क़ैदी को रिहा करना है। क्या तुम चाहते हो कि मैं ‘यहूदियों के बादशाह’ को रिहा कर दूँ?”
\v 40 लेकिन जवाब में लोग चिल्लाने लगे, “नहीं, इस को नहीं बल्कि बर-अब्बा को।” (बर-अब्बा डाकू था।)
\s5
\c 19
\v 1 फिर पिलातुस ने ईसा को कोड़े लगवाए।
\v 2 फ़ौजियों ने काँटेदार टहनियों का एक ताज बना कर उस के सर पर रख दिया। उन्हों ने उसे इर्ग़वानी रंग का चोगा भी पहनाया।
\v 3 फिर उस के सामने आ कर वह कहते, “ऐ यहूदियों के बादशाह, आदाब!” और उसे थप्पड़ मारते थे।
\s5
\v 4 एक बार फिर पिलातुस निकल आया और यहूदियों से बात करने लगा, “देखो, मैं इसे तुम्हारे पास बाहर ला रहा हूँ ताकि तुम जान लो कि मुझे इसे मुजरिम ठहराने की कोई वजह नहीं मिली।”
\v 5 फिर ईसा काँटेदार ताज और इर्ग़वानी रंग का लिबास पहने बाहर आया। पिलातुस ने उन से कहा, “लो यह है वह आदमी।”
\v 6 उसे देखते ही राहनुमा इमाम और उन के मुलाज़िम चीख़ने लगे, “इसे मस्लूब करें, इसे मस्लूब करें!”
\s5
\v 7 यहूदियों ने इसरार किया, “हमारे पास शरीअत है और इस शरीअत के मुताबिक़ लाज़िम है कि वह मारा जाए। क्यूँकि इस ने अपने आप को ख़ुदा का फ़र्ज़न्द क़रार दिया है।”
\v 8 यह सुन कर पिलातुस बहुत डर गया।
\v 9 दुबारा महल में जा कर ईसा से पूछा, “तुम कहाँ से आए हो?”
\s5
\v 10 पिलातुस ने उस से कहा, “अच्छा, तुम मेरे साथ बात नहीं करते? क्या तुम्हें मालूम नहीं कि मुझे तुम्हें रिहा करने और मस्लूब करने का इख़तियार है?”
\v 11 ईसा ने जवाब दिया, “आप को मुझ पर इख़तियार न होता अगर वह आप को ऊपर से न दिया गया होता। इस वजह से उस शख़्स से ज़्यादा संगीन गुनाह हुआ है जिस ने मुझे दुश्मन के हवाले कर दिया है।”
\s5
\v 12 इस के बाद पिलातुस ने उसे छोड़ने की कोशिश की। लेकिन यहूदी चीख़ चीख़ कर कहने लगे, “अगर आप इसे रिहा करें तो आप रोमी शहन्शाह क़ैसर के दोस्त साबित नहीं होंगे। जो भी बादशाह होने का दावा करे वह कैसर की मुख़ालफ़त करता है।”
\v 13 इस तरह की बातें सुन कर पिलातुस ईसा को बाहर ले आया। फिर वह जज की कुर्सी पर बैठ गया। उस जगह का नाम “पच्चीकारी” था। (अरामी ज़बान में वह गब्बता कहलाती थी।)
\s5
\v 14 अब दोपहर के तक़रीबन बारह बज गए थे। उस दिन ईद के लिए तैयारियाँ की जाती थीं, क्यूँकि अगले दिन ईद का आग़ाज़ था। पिलातुस बोल उठा, “लो, तुम्हारा बादशाह!”
\v 15 लेकिन वह चिल्लाते रहे, “ले जाएँ इसे, ले जाएँ! इसे मस्लूब करें!”
\v 16 फिर पिलातुस ने ईसा को उन के हवाले कर दिया ताकि उसे मस्लूब किया जाए।
\s5
\v 17 वह अपनी सलीब उठाए शहर से निकला और उस जगह पहुँचा जिस का नाम खोपड़ी (अरामी ज़बान में गुल्गुता) था।
\v 18 वहाँ उन्हों ने उसे सलीब पर चढ़ा दिया। साथ साथ उन्हों ने ईसा के बाएँ और दाएँ हाथ दो डाकू को मस्लूब किया।
\s5
\v 19 पिलातुस ने एक तख़्ती बनवा कर उसे ईसा की सलीब पर लगवा दिया। तख़्ती पर लिखा था, 'ईसा नासरी, यहूदियों का बादशाह।'
\v 20 बहुत से यहूदियों ने यह पढ़ लिया, क्यूँकि सलीब पर चढाये जाने की जगह शहर के क़रीब थी और यह जुमला अरामी, लातीनी और यूनानी ज़बानों में लिखा था।
\s5
\v 21 यह देख कर यहूदियों के राहनुमा इमामों ने ऐतराज़ किया, “‘यहूदियों का बादशाह’ न लिखें बल्कि यह कि ‘इस आदमी ने यहूदियों का बादशाह होने का दावा किया’।”
\v 22 पिलातुस ने जवाब दिया, “जो कुछ मैं ने लिख दिया सो लिख दिया।”
\s5
\v 23 ईसा को सलीब पर चढ़ाने के बाद फ़ौजियों ने उस के कपड़े ले कर चार हिस्सों में बाँट लिए, हर फ़ौजी के लिए एक हिस्सा। लेकिन चोग़ा बेजोड़ था। वह ऊपर से ले कर नीचे तक बुना हुआ एक ही टुकड़े का था।
\v 24 इस लिए फ़ौजियों ने कहा, “आओ, इसे फाड़ कर तक़्सीम न करें बल्कि इस पर पर्ची डालें।” यूँ कलाम-ए-मुक़द्दस की यह पेशीनगोई पूरी हुई, “उन्हों ने आपस में मेरे कपड़े बाँट लिए और मेरे लिबास पर पर्ची डाला।” फ़ौजियों ने यही कुछ किया।
\s5
\v 25 ईसा की सलीब के क़रीब : उस की माँ, उस की ख़ाला, क्लोपास की बीवी मरियम और मरियम मग्दलीनी खड़ी थीं।
\v 26 जब ईसा ने अपनी माँ को उस शागिर्द के साथ खड़े देखा जो उसे प्यारा था तो उस ने कहा, “ऐ ख़ातून, देखें आप का बेटा यह है।”
\v 27 और उस शागिर्द से उस ने कहा, “देख, तेरी माँ यह है।” उस वक़्त से उस शागिर्द ने ईसा की माँ को अपने घर रखा।
\s5
\v 28 इस के बाद जब ईसा ने जान लिया कि मेरा काम मुकम्मल हो चुका है तो उस ने कहा, “मुझे प्यास लगी है।” (इस से भी कलाम-ए-मुक़द्दस की एक पेशीनगोई पूरी हुई।)
\v 29 वहां सिरके से भरा हुआ एक बर्तन रखा था, उन्होंने सिरके में स्पंज डुबोकर ज़ूफ़े की डाली पर रख कर उसके मुंह से लगाया|
\v 30 यह सिरका पीने के बाद ईसा बोल उठा, “काम मुकम्मल हो गया है।” और सर झुका कर उस ने अपनी जान ख़ुदा के सपुर्द कर दी।
\s5
\v 31 फ़सह की तैयारी का दिन था और अगले दिन ईद का आग़ाज़ और एक ख़ास सबत था। इस लिए यहूदी नहीं चाहते थे कि मस्लूब हुई लाशें अगले दिन तक सलीबों पर लटकी रहें। चुनाँचे उन्हों ने पिलातुस से गुज़ारिश की कि वह उन की टाँगें तुड़वा कर उन्हें सलीबों से उतारने दे।
\v 32 तब फ़ौजियों ने आ कर ईसा के साथ मस्लूब किए जाने वाले आदमियों की टाँगें तोड़ दीं, पहले एक की फिर दूसरे की।
\v 33 जब वह ईसा के पास आए तो उन्हों ने देखा कि उसकी मौत हो चुकी है, इस लिए उन्हों ने उस की टाँगें न तोड़ीं।
\s5
\v 34 इस के बजाए एक ने भाले से ईसा का पहलू छेद दिया। ज़ख़्म से फ़ौरन ख़ून और पानी बह निकला।
\v 35 (जिस ने यह देखा है उस ने गवाही दी है और उस की गवाही सच्ची है। वह जानता है कि वह हक़ीक़त बयान कर रहा है और उस की गवाही का मक़्सद यह है कि आप भी ईमान लाएँ।)
\s5
\v 36 यह यूँ हुआ ताकि कलाम-ए-मुक़द्दस की यह नबूवत पूरी हो जाए, “उस की एक हड्डी भी तोड़ी नहीं जाएगी।”
\v 37 कलाम-ए-मुक़द्दस में यह भी लिखा है, “वह उस पर नज़र डालेंगे जिसे उन्हों ने छेदा है।”
\s5
\v 38 बाद में अरिमतियाह के रहने वाले यूसुफ़ ने पिलातुस से ईसा की लाश उतारने की इजाज़त माँगी। (यूसुफ़ ईसा का ख़ुफ़िया शागिर्द था, क्यूँकि वह यहूदियों से डरता था।) इस की इजाज़त मिलने पर वह आया और लाश को उतार लिया।
\v 39 नीकुदेमुस भी साथ था, वह आदमी जो गुज़रे दिनों में रात के वक़्त ईसा से मिलने आया था। नीकुदेमुस अपने साथ मुर और ऊद की तक़रीबन 34 किलो ख़ुश्बू ले कर आया था।
\s5
\v 40 यहूदी जनाज़े की रुसूमात के मुताबिक़ उन्हों ने लाश पर ख़ुश्बू लगा कर उसे पट्टियों से लपेट दिया।
\v 41 सलीबों के क़रीब एक बाग़ था और बाग़ में एक नई क़ब्र थी जो अब तक इस्तेमाल नहीं की गई थी।
\v 42 उस के क़रीब होने के वजह से उन्हों ने ईसा को उस में रख दिया, क्यूँकि फ़सह की तय्यारी का दिन था और अगले दिन ईद की शुरआत होने वाली थी ।
\s5
\c 20
\v 1 हफ़्ते का दिन गुज़र गया तो इतवार को मरियम मग्दलीनी सुबह-सवेरे क़ब्र के पास आई। अभी अंधेरा था। वहाँ पहुँच कर उस ने देखा कि क़ब्र के मुँह पर का पत्थर एक तरफ़ हटाया गया है।
\v 2 मरियम दौड़ कर शमाऊन पतरस और ईसा के प्यारे शागिर्द के पास आई। उस ने ख़बर दी, “वह ख़ुदावन्द को क़ब्र से ले गए हैं, और हमें मालूम नहीं कि उन्हों ने उसे कहाँ रख दिया है।”
\s5
\v 3 तब पतरस दूसरे शागिर्द समेत क़ब्र की तरफ़ चल पड़ा।
\v 4 दोनों दौड़ रहे थे, लेकिन दूसरा शागिर्द ज़्यादा तेज़ रफ़्तार था। वह पहले क़ब्र पर पहुँच गया।
\v 5 उस ने झुक कर अन्दर झाँका तो कफ़न की पट्टियाँ वहाँ पड़ी नज़र आईं। लेकिन वह अन्दर न गया।
\s5
\v 6 फिर शमाऊन पतरस उस के पीछे पहुँच कर क़ब्र में दाख़िल हुआ। उस ने भी देखा कि कफ़न की पट्टियाँ वहाँ पड़ी हैं
\v 7 और साथ वह कपड़ा भी जिस में ईसा का सर लिपटा हुआ था। यह कपड़ा तह किया गया था और पट्टियों से अलग पड़ा था।
\s5
\v 8 फिर दूसरा शागिर्द जो पहले पहुँच गया था, वह भी दाख़िल हुआ। जब उस ने यह देखा तो वह ईमान लाया।
\v 9 (लेकिन अब भी वह कलाम-ए-मुक़द्दस की नबूवत नहीं समझते थे कि उसे मुर्दों में से जी उठना है।)
\v 10 फिर दोनों शागिर्द घर वापस चले गए।
\s5
\v 11 लेकिन मरियम रो रो कर क़ब्र के सामने खड़ी रही। और रोते हुए उस ने झुक कर क़ब्र में झाँका
\v 12 तो क्या देखती है कि दो फ़रिश्ते सफ़ेद लिबास पहने हुए वहाँ बैठे हैं जहाँ पहले ईसा की लाश पड़ी थी, एक उस के सिरहाने और दूसरा उस के पैताने थे।
\v 13 फ़रिश्तों ने मरियम से पूछा, “ऐ ख़ातून, तू क्यूँ रो रही है?”
\s5
\v 14 फिर उस ने पीछे मुड़ कर ईसा को वहाँ खड़े देखा, लेकिन उस ने उसे न पहचाना।
\v 15 ईसा ने पूछा, “ऐ ख़ातून, तू क्यूँ रो रही है, किस को ढूँड रही है?”उसने बाग़बान समझ कर उस से कहा मियाँ अगर तूने उसको यहाँ से उठाया हो तू मुझे बता दे कि उसे कहा रखा है ताकि मै उसे ले जाऊ
\s5
\v 16 ईसा ने उस से कहा, “मरियम ! उसने मुड़कर उससे इबरानी जुबान में कहा रब्बोनी ए उस्स्ताद ”
\v 17 ईसा ने कहा, “मुझे मत छू , क्यूँकि अभी मैं ऊपर, बाप के पास नहीं गया। लेकिन भाइयों के पास जा और उन्हें बता, ‘मैं अपने बाप और तुम्हारे बाप के पास वापस जा रहा हूँ, अपने ख़ुदा और तुम्हारे ख़ुदा के पास’।”
\v 18 चुनाँचे मरियम मग्दलीनी शागिर्दों के पास गई और उन्हें इत्तिला दी, “मैं ने ख़ुदावन्द को देखा है और उस ने मुझ से यह बातें कहीं।”
\s5
\v 19 उस इतवार की शाम को शागिर्द जमा थे। उन्हों ने दरवाज़ों पर ताले लगा दिए थे क्यूँकि वह यहूदियों से डरते थे। अचानक ईसा उन के दरमियान आ खड़ा हुआ और कहा, “तुम्हारी सलामती हो,”
\v 20 और उन्हें अपने हाथों और पहलू को दिखाया। ख़ुदावन्द को देख कर वह निहायत ख़ुश हुए।
\s5
\v 21 ईसा ने दुबारा कहा, “तुम्हारी सलामती हो! जिस तरह बाप ने मुझे भेजा उसी तरह मैं तुम को भेज रहा हूँ।”
\v 22 फिर उन पर फूँक कर उस ने फ़रमाया, “रूह-उल-कुद्दुस को पा लो।
\v 23 अगर तुम किसी के गुनाहों को मुआफ़ करो तो वह मुआफ़ किए जाएंगे। और अगर तुम उन्हें मुआफ़ न करो तो वह मुआफ़ नहीं किए जाएंगे।”
\s5
\v 24 बारह शागिर्दों में से तोमा जिस का लक़ब जुड़वाँ था ईसा के आने पर मौजूद न था।
\v 25 चुनाँचे दूसरे शागिर्दों ने उसे बताया, “हम ने ख़ुदावन्द को देखा है!” लेकिन तोमा ने कहा, “मुझे यक़ीन नहीं आता। पहले मुझे उस के हाथों में कीलों के निशान नज़र आएँ और मैं उन में अपनी उंगली डालूँ, पहले मैं अपने हाथ को उस के पहलू के ज़ख़्म में डालूँ। फिर ही मुझे यक़ीन आएगा।”
\s5
\v 26 एक हफ़्ता गुज़र गया। शागिर्द दुबारा मकान में जमा थे। इस मर्तबा तोमा भी साथ था। अगरचे दरवाज़ों पर ताले लगे थे फिर भी ईसा उन के दरमियान आ कर खड़ा हुआ। उस ने कहा, “तुम्हारी सलामती हो!”
\v 27 फिर वह तोमा से मुख़ातिब हुआ, “अपनी उंगली को मेरे हाथों और अपने हाथ को मेरे पहलू के ज़ख़्म में डाल और बेएतिक़ाद न हो बल्कि ईमान रख।”
\s5
\v 28 तोमा ने जवाब में उस से कहा, “ऐ मेरे ख़ुदावन्द! ऐ मेरे ख़ुदा!”
\v 29 फिर ईसा ने उसे बताया, “क्या तू इस लिए ईमान लाया है कि तू ने मुझे देखा है? मुबारक हैं वह जो मुझे देखे बग़ैर मुझ पर ईमान लाते हैं।”
\s5
\v 30 ईसा ने अपने शागिर्दों की मौजूदगी में मज़ीद बहुत से ऐसे ख़ुदाई करिश्मे दिखाए जो इस किताब में दर्ज नहीं हैं।
\v 31 लेकिन जितने दर्ज हैं उन का मक़्सद यह है कि आप ईमान लाएँ कि ईसा ही मसीह यानी ख़ुदा का फ़र्ज़न्द है और आप को इस ईमान के वसीले से उस के नाम से ज़िन्दगी हासिल हो।
\s5
\c 21
\v 1 इस के बाद ईसा एक बार फिर अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर हुआ जब वह तिबरियास यानी गलील की झील पर थे। यह यूँ हुआ।
\v 2 कुछ शागिर्द शमाऊन पतरस के साथ जमा थे, तोमा जो जुड़वाँ कहलाता था, नतन-एल जो गलील के क़ाना से था, ज़ब्दी के दो बेटे और मज़ीद दो शागिर्द।
\v 3 शमाऊन पतरस ने कहा, “मैं मछली पकड़ने जा रहा हूँ।”
\s5
\v 4 सुबह-सवेरे ईसा झील के किनारे पर आ खड़ा हुआ। लेकिन शागिर्दों को मालूम नहीं था कि वह ईसा ही है।
\v 5 उस ने उन से पूछा, “बच्चो, क्या तुम्हें खाने के लिए कुछ मिल गया?”
\v 6 उस ने कहा, “अपना जाल नाव के दाएँ हाथ डालो, फिर तुम को कुछ मिलेगा।” उन्हों ने ऐसा किया तो मछलियों की इतनी बड़ी तादाद थी कि वह जाल नाव तक न ला सके।
\s5
\v 7 इस पर ख़ुदावन्द के प्यारे शागिर्द ने पतरस से कहा, “यह तो ख़ुदावन्द है।” यह सुनते ही कि ख़ुदावन्द है शमाऊन पतरस अपनी चादर ओढ़ कर पानी में कूद पड़ा (उस ने चादर को काम करने के लिए उतार लिया था।)
\v 8 दूसरे शागिर्द नाव पर सवार उस के पीछे आए। वह किनारे से ज़्यादा दूर नहीं थे, तक़रीबन सौ मीटर के फ़ासिले पर थे। इस लिए वह मछलियों से भरे जाल को पानी खींच खींच कर ख़ुश्की तक लाए।
\v 9 जब वह नाव से उतरे तो देखा कि लकड़ी के कोयलों की आग पर मछलियाँ भुनी जा रही हैं और साथ रोटी भी है।
\s5
\v 10 ईसा ने उन से कहा, “उन मछलियों में से कुछ ले आओ जो तुम ने अभी पकड़ी हैं।”
\v 11 शमाऊन पतरस नाव पर गया और जाल को ख़ुश्की पर घसीट लाया। यह जाल 153 बड़ी मछलियों से भरा हुआ था, तो भी वह न फटा।
\s5
\v 12 ईसा ने उन से कहा, “आओ, खा लो ।” किसी भी शागिर्द ने सवाल करने की जुरअत न की कि “आप कौन हैं?” क्योंकि वह तो जानते थे कि यह ख़ुदावन्द ही है।
\v 13 फिर ईसा आया और रोटी ले कर उन्हें दी और इसी तरह मछली भी उन्हें खिलाई।
\v 14 ईसा के जी उठने के बाद यह तीसरी बार था कि वह अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर हुआ।
\s5
\v 15 खाने के बाद ईसा शमाऊन पतरस से मुख़ातिब हुआ, “यूहन्ना के बेटे शमाऊन, क्या तू इन की निस्बत मुझ से ज़्यादा मुहब्बत करता है?”
\v 16 तब ईसा ने एक और मर्तबा पूछा, “शमाऊन यूहन्ना के बेटे, क्या तू मुझ से मुहब्बत करता है?”
\s5
\v 17 तीसरी बार ईसा ने उस से पूछा, “शमाऊन यूहन्ना के बेटे, क्या तू मुझे प्यार करता है?”
\v 18 “मैं तुझे सच बताता हूँ कि जब तू जवान था तो तू ख़ुद अपनी कमर बांध कर जहाँ जी चाहता घूमता फिरता था। लेकिन जब तू बूढ़ा होगा तो तू अपने हाथों को आगे बढ़ाएगा और कोई और तेरी कमर बांध कर तुझे ले जाएगा जहाँ तेरा दिल नहीं करेगा।”
\s5
\v 19 (ईसा की यह बात इस तरफ़ इशारा था कि पतरस किस क़िस्म की मौत से ख़ुदा को जलाल देगा।) फिर उस ने उसे बताया, “मेरे पीछे चल।”
\s5
\v 20 पतरस ने मुड़ कर देखा कि जो शागिर्द ईसा को प्यारा था वह उन के पीछे चल रहा है। यह वही शागिर्द था जिस ने शाम के खाने के दौरान ईसा की तरफ़ सर झुका कर पूछा था, “ख़ुदावन्द, कौन आप को दुश्मन के हवाले करेगा?”
\v 21 अब उसे देख कर पतरस ने सवाल किया, “ख़ुदावन्द, इस के साथ क्या होगा?”
\s5
\v 22 ईसा ने जवाब दिया, “अगर मैं चाहूँ कि यह मेरे वापस आने तक ज़िन्दा रहे तो तुझे क्या? बस तू मेरे पीछे चलता रह।”
\v 23 नतीजे में भाइयों में यह ख़याल फैल गया कि यह शागिर्द नहीं मरेगा। लेकिन ईसा ने यह बात नहीं की थी। उस ने सिर्फ़ यह कहा था, “अगर मैं चाहूँ कि यह मेरे वापस आने तक ज़िन्दा रहे तो तुझे क्या?”
\s5
\v 24 यह वह शागिर्द है जिस ने इन बातों की गवाही दे कर इन्हें क़लमबन्द कर दिया है। और हम जानते हैं कि उस की गवाही सच्ची है।
\v 25 ईसा ने इस के अलावा भी बहुत कुछ किया। अगर उस का हर काम क़लमबन्द किया जाता तो मेरे ख़याल में पूरी दुनियाँ में यह किताबें रखने की गुन्जाइश न होती।

1472
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\id ACT
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\h रसूलों के आ'माल
\toc1 रसूलों के आ'माल
\toc2 रसूलों के आ'माल
\toc3 act
\mt1 रसूलों के आ'माल
\s5
\c 1
\p
\v 1 ऐ थियुफ़िलुस" मैने पहली किताब उन सब बातों के बयान में लिखी जो ईसा' शुरू; में करता और सिखाता रहा |
\v 2 उस दिन तक जिसमें वो उन रसूलों को जिन्हें उसने चुना था रूह-उल- क़ुद्दूस के वसीले से हुक्म देकर ऊपर उठाया गया |
\v 3 ईसा ने तकलीफ़ सहने के बा'द बहुत से सबूतों से अपने आपको उन पर ज़िन्दा ज़ाहिर भी किया, चुनाँचे वो चालीस दिन तक उनको नज़र आता और ख़ुदा की बादशाही की बातें कहता रहा।
\s5
\v 4 और उनसे मिलकर उन्हें हुक्म दिया, “यरूशलीम से बाहर न जाओ, बल्कि बाप के उस वा'दे के पूरा होने का इन्तिज़ार करो, जिसके बारे में तुम मुझ से सुन चुके हो ,
\v 5 क्यूँकि युहन्ना ने तो पानी से बपतिस्मा दिया मगर तुम थोड़े दिनों के बाद रुह-उल-क़ुद्दूस से बपतिस्मा पाओगे।”
\s5
\v 6 पस उन्होंने इकठठा होकर पूछा, “ऐ ख़ुदावन्द! क्या तू इसी वक्त़ इस्राईल को बादशाही फिर' अता करेगा?”
\v 7 उसने उनसे कहा, “ उन वक़्तों और मी'आदों का जानना, जिन्हें बाप ने अपने ही इख़्तियार में रख्खा है, तुम्हारा काम नहीं|”
\v 8 लेकिन जब रूह-उल-क़ुद्दूस तुम पर नाज़िल होगा तो तुम ताकत पाओगे; और यरूशलीम और तमाम यहूदिया और सामरिया में, बल्कि ज़मीन के आख़ीर तक मेरे गवाह होगे|
\s5
\v 9 ये कहकर वो उनको देखते देखते ऊपर उठा लिया गया, और बादलो ने उसे उनकी नज़रों से छिपा लिया|
\v 10 उसके जाते वक़्त वो आसमान की तरफ़ ग़ौर से देख रहे थे, तो देखो, दो मर्द सफ़ेद पोशाक पहने उनके पास आ खड़े हुए,
\v 11 और कहने लगे, “ ऐ गलीली मर्दो। तुम क्यूँ खड़े आसमान की तरफ़ देखते हो ?यही ईसा' जो तुम्हारे पास से आसमान पर उठाया गया है, इसी तरह फिर आएगा जिस तरह तुम ने उसे आसमान पर जाते देखा है।”
\s5
\v 12 तब वो उस पहाड़ से जो ज़ैतून का कहलाता है और यरूशलीम के नज़दीक सबत की मन्ज़िल के फ़ासले पर है यरूशलीम को फिरे।
\v 13 और जब उसमें दाख़िल हुए तो उस बालाख़ाने पर चढ़े जिस में वो या'नी पतरस और यूहन्ना, और या'क़ूब और अन्द्रियास और फ़िलिप्युस, तोमा, बरतुलमाई, मत्ती, हलफ़ी का बेटा या'कूब, शमा'ऊन ज़ेलोतेस और या'कूब का बेटा यहूदाह रहते थे।
\v 14 ये सब के सब चन्द 'औरतों और ईसा' की माँ मरियम और उसके भाइयों के साथ एक दिल होकर दु'आ में मशग़ूल रहे|
\s5
\v 15 उन्ही दिनों पतरस भाइयों में जो तक़रीबन एक सौ बीस शख़्सों की जमा'अत थी खड़ा होकर कहने लगा,
\v 16 “ऐ भाइयों उस नबूव्वत का पूरा होना ज़रूरी था जो रूह -उल -क़ुद्दूस ने दाऊद के ज़बानी उस यहूदा के हक़ में पहले कहा था, जो ईसा' के पकड़ने वालों का रहनुमा हुआ।
\s5
\v 17 क्यूँकि वो हम में शुमार किया गया और उस ने इस ख़िदमत का हिस्सा पाया।”
\v 18 उस ने बदकारी की कमाई से एक खेत ख़रीदा ,और सिर के बल गिरा और उसका पेट फ़ट गया और उसकी सब आँतें निकल पड़ीं।
\v 19 और ये यरूशलीम के सब रहने वालों को मा'लूम हुआ, यहां तक कि उस खेत का नाम उनकी ज़बान में हैक़लेदमा पड़ गया या'नी [ख़ून का खेत] |
\s5
\v 20 क्यूँकि ज़बूर में लिखा है, 'उसका घर उजड़ जाए , और उसमें कोई बसनें वाला न रहे और उसका मर्तबा दुसरा ले ले।'
\s5
\v 21 पस जितने 'अर्से तक ख़ुदावन्द ईसा' हमारे साथ आता जाता रहा, यानी यूहन्ना के बपतिस्मे से लेकर ख़ुदावन्द के हमारे पास से उठाए जाने तक-जो बराबर हमारे साथ रहे,।
\v 22 चाहिए कि उन में से एक आदमी हमारे साथ उसके जी उठने का गवाह बने।
\v 23 फिर उन्होंने दो को पेश किया। एक यूसुफ़ को जो बरसबा कहलाता है और जिसका लक़ब यूसतुस है। दूसरा मत्तय्याह को।
\s5
\v 24 और ये कह कर दु'आ की, “ऐ ख़ुदावन्द! तू जो सब के दिलों को जानता है, ये ज़ाहिर कर कि इन दोनों में से तूने किस को चुना है
\v 25 ताकि वह इस ख़िदमत और रसूलो की जगह ले, जिसे यहूदाह छोड़ कर अपनी जगह गया।”
\v 26 फिर उन्होंने उनके बारे में पर्ची डाली, और पर्ची मत्तय्याह के नाम की निकली। पस वो उन ग्यारह रसूलों के साथ शुमार किया गया।
\s5
\c 2
\v 1 जब ईद-ए-पन्तिकुस्त का दिन आया। तो वो सब एक जगह जमा थे।
\v 2 एकाएक आस्मान से ऐसी आवाज़ आई जैसे ज़ोर की आँधी का सन्नाटा होता है।और उस से सारा घर जहां वो बैठे थे गूँज गया।
\v 3 और उन्हें आग के शो'ले की सी फ़टती हुई ज़बानें दिखाई दीं और उन में से हर एक पर आ ठहरीं।
\v 4 और वो सब रूह-उल-क़ुद्दूस से भर गए और ग़ैर ज़बान बोलने लगे, जिस तरह रूह ने उन्हें बोलने की ताक़त बख़्शी ।
\s5
\v 5 और हर क़ौम में से जो आसमान के नीचे ख़ुदा तरस यहूदी यरूशलीम में रहते थे।
\v 6 जब यह आवाज़ आई तो भीड़ लग गई और लोग दंग हो गए ,क्यूँकि हर एक को यही सुनाई देता था कि ये मेरी ही बोली बोल रहे हैं।
\v 7 और सब हैरान और ता'ज्जुब हो कर कहने लगे, “देखो ये बोलने वाले क्या सब गलीली नहीं?
\s5
\v 8 फिर क्यूँकर हम में से हर एक कैसे अपने ही वतन की बोली सुनता है।
\v 9 हालांकि हम हैं : पार्थि, मादि, ऐलामी, मसोपुतामिया, यहूदिया, और कप्पदुकिया, और पुन्तुस, और आसिया,
\v 10 और फ़रूगिया, और पम्फ़ीलिया, और मिस्र और लिबुवा,के इलाक़े के रहने वाले हैं ,जो कुरेने की तरफ़ है और रोमी मुसाफ़िर
\v 11 चाहे यहूदी चाहे उनके मुरीद, करेती और 'अरब हैं। मगर अपनी अपनी ज़बान में उन से ख़ुदा के बड़े बड़े कामों का बयान सुनते हैं ।”
\s5
\v 12 और सब हैरान हुए और घबराकर एक दूसरे से कहने लगे, “ये क्या हुआ चाहता है?”
\v 13 और कुछ ने ठट्ठा मार कर कहा , “ये तो ताज़ा मय के नशे में हैं ।”
\s5
\v 14 लेकिन पतरस उन ग्यारह रसूलों के साथ खड़ा हूआ "और अपनी आवाज़ बूलन्द करके लोगो से कहा कि "ऐ यहूदियो और ऐ यरूशलीम के सब रहने वालो ये जान लो, और कान लगा कर मेरी बातें सुनो !
\v 15 कि जैसा तुम समझते हो ये नशे में नहीं।क्यूँकि अभी तो सुबह के नौ ही बजे है।
\s5
\v 16 बल्कि ये वो बात है जो योएल नबी के ज़रि'ए कही गई है कि,
\v 17 ख़ुदा फ़रमाता है, कि आख़िरी दिनों में ऐसा होगा कि मैं अपनी रूह में से हर आदमियों पर डालूंगा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारी बेटियां नुबुव्वत करें गी और तुम्हारे जवान रोया और तुम्हारे बुड्ढे ख़्वाब देखेंगे।
\s5
\v 18 बल्कि मै अपने बन्दों पर और अपनी बन्दियों पर भी उन दिनों में अपने रूह में से डालूंगा और वह नुबुव्वत करेंगी।
\v 19 और मैं ऊपर आस्मान पर 'अजीब काम और नीचे ज़मीन पर निशानियां या'नी ख़ून और आग और धुएँ का बादल दिखाऊंगा।
\s5
\v 20 सूरज तारीक और, चाँद ख़ून हो जाएगा पहले इससे कि खु़दावन्द का अज़ीम और जलील दिन आए।
\v 21 और यूं होगा कि जो कोई खु़दावन्द का नाम लेगा, नजात पाएगा।
\s5
\v 22 ऐ इस्राईलियों! ये बातें सुनो ईसा' नासरी एक शख़्स था जिसका खु़दा की तरफ़ से होना तुम पर उन मो'जिज़ों और 'अजीब कामों और निशानों से साबित हुआ; जो खु़दा ने उसके ज़रिये तुम में दिखाए।चुनांचे तुम आप ही जानते हो।
\v 23 जब वो खु़दा के मुक़र्ररा इन्तिज़ाम और इल्में साबिक़ के मुवाफ़िक़ पकड़वाया गया तो तुम ने बेशरा लोगों के हाथ से उसे मस्लूब करवा कर मार डाला।
\v 24 लेकिन खु़दा ने मौत के बंद खोल कर उसे जिलाया क्यूंकि मुम्किन ना था कि वो उसके क़ब्ज़े में रहता।
\s5
\v 25 क्यूँकि दाऊद उसके हक़ में कहता है।कि मैं खु़दावन्द को हमेशा अपने सामने देखता रहा; क्यूँकि वो मेरी दहनी तरफ़ है ताकि मुझे जुम्बिश ना हो।
\v 26 इसी वजह से मेरा दिल खु़श हुआ; और मेरी ज़बान शाद , बल्कि मेरा जिस्म भी उम्मीद में बसा रहेगा।
\s5
\v 27 इसलिए कि तू मेरी जान को 'आलम-ए-अर्वाह में ना छोड़ेगा , और ना अपने पाक के सड़ने की नौबत पहुंचने देगा।
\v 28 तू ने मुझे ज़िन्दगी की राहें बताईं तू मुझे अपने दीदार के ज़रिए ख़ुशी से भर देगा।'
\s5
\v 29 ऐ भाइयों! मैं क़ौम के बुज़ुर्ग, दाऊद के हक़ में तुम से दिलेरी के साथ कह सकता हूं कि वो मरा और दफ़न भी हुआ; और उसकी क़ब्र आज तक हम में मौजूद है।
\v 30 पस नबी होकर और ये जान कर कि ख़ुदा ने मुझ से क़सम खाई है कि तेरी नस्ल से एक शख़्स को तेरे तख़्त पर बिठाऊंगा।
\v 31 उसने नबूव्वत के तौर पर मसीह के जी उठने का ज़िक्र किया कि ना वो ' आलम' ए' अर्वाह में छोड़ेगा, ना उसके जिस्म के सड़ने की नौबत पहुंचेगी ।
\s5
\v 32 इसी ईसा' को ख़ुदा ने जिलाया; जिसके हम सब गवाह हैं।
\v 33 पस ख़ुदा के दहने हाथ से सर बलन्द होकर, और बाप से वो रूह-ुउल-क़ुद्दूस हासिल करके जिसका वा'दा किया गया था, उसने ये नाज़िल किया जो तुम देखते और सुनते हो ।
\s5
\v 34 क्योकि दाऊद बादशाह तो आस्मान पर नहीं चढ़ा, लेकिन वो खु़द कहता है, कि ख़ुदावन्द ने मेरे ख़ुदा से कहा, “मेरी दहनी तरफ़ बैठ।
\v 35 ‘जब तक मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाँओ तले की चौकी न कर दूँ।’
\v 36 पस इस्राईल का सारा घराना यक़ीन जान ले कि ख़ुदा ने उसी ईसा' को जिसे तुम ने मस्लूब किया ख़ुदावन्द भी किया और मसीह भी|”
\s5
\v 37 जब उन्हों ने ये सुना तो उनके दिलों पर चोट लगी ,और पतरस और बाक़ी रसूलों से कहा, “ऐ भाइयों हम क्या करें?”
\v 38 पतरस ने उन से कहा, “तौबा करो और तुम में से हर एक अपने गुनाहों की मु'आफ़ी के लिऐ ईसा' मसीह के नाम पर बपतिस्मा ले तो तुम रूह-उल-क़ुद्दूस इना'म में पाओ गे।
\v 39 इसलिए कि ये वा'दा तुम और तुम्हारी औलाद और उन सब दूर के लोगों से भी है; जिनको ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा अपने पास बुलाएगा।”
\s5
\v 40 उसने और बहुत सी बातें जता जता कर उन्हें ये नसीहत की, कि अपने आपको इस टेढ़ी क़ौम से बचाओ ।
\v 41 पस जिन लोगों ने उसका क़लाम क़ुबूल किया,उन्होंने बपतिसमा लिया और उसी रोज़ तीन हज़ार आदमियों के क़रीब उन में मिल गए।
\v 42 और ये रसूलों से तालीम पाने और रिफ़ाक़त रखने में , और रोटी तोड़ने और दु'आ करने में मशगूल रहे।
\s5
\v 43 और हर शख़्स पर ख़ौफ़ छा गया और बहुत से 'अजीब काम और निशान रसूलों के ज़रिए से ज़ाहिर होते थे।
\v 44 और जो ईमान लाए थे वो सब एक जगह रहते थे और सब चीज़ों में शरीक थे।
\v 45 और अपना माल-ओर अस्बाब बेच बेच कर हर एक की ज़रुरत के मुवाफ़िक़ सब को बांट दिया करते थे।
\s5
\v 46 और हर रोज़ एक दिल होकर हैकल में जमा हुआ करते थे , और घरों में रोटी तोड़कर ख़ुशी और सादा दिली से खाना खाया करते थे ।
\v 47 और ख़ुदा की हम्द करते और सब लोगों को अज़ीज़ थे; और जो नजात पाते थे उनको ख़ुदावन्द हर रोज़ जमात में मिला देता था।
\s5
\c 3
\v 1 पतरस और यूहन्ना दु'आ के वक़्त या'नी दो पहर तीन बजे हैकल को जा रहे थे।
\v 2 और लोग एक पैदाइशी लंगड़े को ला रहे थे, जिसको हर रोज़ हैकल के उस दरवाज़े पर बिठा देते थे, जो ख़ूबसूरत कलहाता है ताकि हैकल में जाने वालों से भीख मांगे।
\v 3 जब उस ने पतरस और यूहन्ना को हैकल जाते देखा तो उन से भीख मांगी।
\s5
\v 4 पतरस और यूहन्ना ने उस पर ग़ौर से नज़र की और पतरस ने कहा, “हमारी तरफ़ देख।”
\v 5 वो उन से कुछ मिलने की उम्मीद पर उनकी तरफ़ मुतवज्जह हुआ ।
\v 6 पतरस ने कहा, “चांदी सोना तो मेरे पास है नहीं! मगर जो मेरे पास है वो तुझे दे देता हूं ईसा' मसीह नासरी के नाम से चल फ़िर”
\s5
\v 7 और उसका दाहिना हाथ पकड़ कर उसको उठाया,और उसी दम उसके पांव और टख़ने मज़बूत हो गए।
\v 8 और वो कूद कर खड़ा हो गया और चलने फिरने लगा; और चलता और कूदता और ख़ुदा की हम्द करता हुआ उनके साथ हैकल में गया।
\s5
\v 9 और सब लोगों ने उसे चलते फिरते और ख़ुदा की हम्द करते देख कर।
\v 10 उसको पहचाना, कि ये वही है जो हैकल के ख़ूबसूरत दरवाज़े पर बैठ कर भीख मांगा करता था;और उस माजरे से जो उस पर वाक़े' हुआ था, बहुत दंग ओर हैरान हुए ।
\s5
\v 11 जब वो पतरस और यूहन्ना को पकड़े हुए था, तो सब लोग बहुत हैरान हो कर उस बरामदह की तरफ़ जो सुलेमान का कहलाता है; उनके पास दौड़े आए।
\v 12 पतरस ने ये देख कर लोगों से कहा; "ऐ इस्राईलियों इस पर तुम क्यूं ताअज्जुब करते हो और हमें क्यूं इस तरह देख रहे हो; कि गोया हम ने अपनी क़ुदरत या दीनदारी से इस शख़्स को चलता फिरता कर दिया?
\s5
\v 13 अब्राहम, इज़्हाक़ और या'क़ूब के खु़दा या'नी हमारे बाप दादा के खु़दा ने अपने ख़ादिम ईसा' को जलाल दिया, जिसे तुम ने पकड़वा दिया और जब पीलातुस ने उसे छोड़ देने का इरादा किया तो तुम ने उसके सामने उसका इन्कार किया।
\v 14 तुम ने उस क़ुद्दूस और रास्तबाज़ का इन्कार किया; और पीलातुस से दरख़्वास्त की कि एक खताकार तुम्हारी ख़ातिर छोड़ दिया जाए।
\s5
\v 15 मगर ज़िन्दगी के मालिक को क़त्ल किया जाए; जिसे खु़दा ने मुर्दों में से जिलाया; इसके हम गवाह हैं।
\v 16 उसी के नाम से उस ईमान के वसीले से जो उसके नाम पर है,इस शख़्स को मज़बूत किया जिसे तुम देखते और जानते हो।बेशक उसी ईमान ने जो उसके वसीला से है ये पूरी तरह से तन्दरूस्ती तुम सब के सामने उसे दी।"
\s5
\v 17 ऐ भाइयो! मैं जानता हूँ कि तुम ने ये काम नादानी से किया; और ऐसा ही तुम्हारे सरदारों ने भी।
\v 18 मगर जिन बातों की ख़ुदा ने सब नबियो की ज़बानी पहले ख़बर दी थी, कि उसका मसीह दुख उठाएगा ; वो उसने इसी तरह पूरी कीं।
\s5
\v 19 पस तौबा करो और फिर जाओ ताकि तुम्हारे गुनाह मिटाए जाऐं ,और इस तरह "ख़ुदावन्द के हुज़ूर से ताज़गी के दिन आएं ।
\v 20 और वो उस मसीह को जो तुम्हारे वास्ते मुक़र्रर हुआ है, या'नी ईसा' को भेजे ।
\s5
\v 21 जरूरी है कि वो असमान में उस वक़्त तक रहे ; जब तक कि वो सब चीज़ें बहाल न की जाएं ,जिनका ज़िक्र "ख़ुदा" ने अपने पाक नबियों की ज़बानी किया है; जो दुनिया के शुरू से होते आए हैं।
\v 22 चुनांचे मूसा ने कहा, कि “ख़ुदावन्द ख़ुदा तुम्हारे भाइयों में से तुम्हारे लिए मुझसा एक नबी पैदा करेगा जो कुछ वो तुम से कहे उसकी सुनना ।
\v 23 और यूं होगा कि जो शख़्स उस नबी की न सुनेगा वो उम्मत में से नेस्त-ओ-नाबूद कर दिया जाएगा।
\s5
\v 24 बल्कि समुएल से लेकर पिछलों तक जितने नबियों ने क़लाम किया , उन सब ने इन दिनों की ख़बर दी है ।
\v 25 तुम नबियों की औलाद और उस अहद के शरीक हो, जो "ख़ुदा" ने तुम्हारे बाप दादा से बांधा, जब इब्रहाम से कहा, कि तेरी औलाद से दुनिया के सब घराने बरकत पाएंगे।
\v 26 ख़ुदा ने अपने ख़ादिम को उठा कर पहले तुम्हारे पास भेजा; ताकि तुम में से हर एक को उसकी बुराइयों से हटाकर उसे बरकत दे।”
\s5
\c 4
\v 1 जब वो लोगों से ये कह रहे थे तो काहिन और हैकल का मालिक और सदूक़ी उन पर चढ़ आए।
\v 2 वो . ग़मगीन हुए क्यूंकि ये लोगों को ता'लीम देते और ईसा की मिसाल देकर मुर्दों के जी उठने का ऐलान करते थे।
\v 3 और उन्होंने उन को पकड़ कर दुसरे दिन तक हवालात में रख्खा; क्यूँकि शाम हो गेई थी।
\v 4 मगर कलाम के सुनने वालों में से बहुत से ईमान लाए ; यहां तक कि मर्दो की ता'दाद पांच हज़ार के क़रीब हो गेई।
\s5
\v 5 दुसरे दिन यूं हुआ कि उनके सरदार और बुज़ुर्ग और आलिम।
\v 6 और सरदार काहिन हन्ना और काइफ़ा, यूहन्ना, और इस्कंदर और जितने सरदार काहिन के घराने के थे, यरूशलीम में जमा हुए।
\v 7 और उनको बीच में खड़ा करके पूछने लगे कि “तुम ने ये काम किस क़ुदरत और किस नाम से किया?”
\s5
\v 8 उस वक़्त पतरस ने रूह-उल-कुददूस से भरपूर होकर उन से कहा ।
\v 9 “ऐ उम्मत के सरदारों और बुज़ुर्गो; अगर आज हम से उस एहसान के बारे में पूछ-ताछ की जाती है ,जो एक कमज़ोर आदमी पर हुआ; कि वो क्यूंकर अच्छा हो गया?
\v 10 तो तुम सब और इस्राईल की सारी उम्मत को मा'लूम हो कि ईसा' मसीह नासरी जिसको तुम ने मस्लूब किया , औए ख़ुदा ने मुर्दों में से जिलाया, उसी के नाम से ये शख़्स तुम्हारे सामने तन्दुरुस्त खड़ा है।
\s5
\v 11 ये वही पत्थर है जिसे तुमने हक़ीर जाना और वो कोने के सिरे का पत्थर हो गया ।
\v 12 और किसी दूसरे के वसीले से नजात नहीं, क्यूँकि आसमान के तले आदमियों को कोई दुसरा नाम नहीं बख्शा गया , जिसके वसीले से हम नजात पा सकें।”
\s5
\v 13 जब उन्होंने पतरस और युहन्ना की हिम्मत देखी, और मा'लूम किया कि ये अनपढ़ और नावाक़िफ़ आदमी हैं, तो ता'अज्जुब किया; फिर ऊन्हें पहचाना कि ये ईसा' के साथ रहे हैं ।
\v 14 और उस आदमी को जो अच्छा हुआ था, उनके साथ खड़ा देखकर कुछ ख़िलाफ़ न कह सके।
\s5
\v 15 मगर उन्हें सद्रे-ए-अदालत से बाहर जाने का हुक्म देकर आपस में मशवरा करने लगे ।
\v 16 “कि हम इन आदमियों के साथ क्या करें? क्यूँकि यरूशलीम के सब रहने वालों पर यह रोशन है।कि उन से एक खुला मो'जिज़ा ज़ाहिर हुआ और हम इस का इन्कार नहीं कर सकते।
\v 17 लेकिन इसलिए कि ये लोगों में ज़्यादा मशहूर न हो , हम उन्हें धमकाएं कि फिर ये नाम लेकर किसी से बात न करें।”
\v 18 पस उन्हें बुला कर ताकीद की कि ईसा' का नाम लेकर हरगिज़ बात न करना और न तालीम देना।
\s5
\v 19 मगर पतरस और यूहन्ना ने जवाब में उनसे कहा, “कि तुम ही इन्साफ़ करो , आया खु़दा के नज़दीक ये वाजिब है कि हम खु़दा की बात से तुम्हारी बात ज़्यादा सुनें?
\v 20 क्यूंकि मुम्किन नहीं कि जो हम ने देखा और सुना है वो न कहें।”
\s5
\v 21 उन्होंने उनको और धमकाकर छोड़ दिया; क्यूकि लोगों कि वजह से उनको सज़ा देने का कोई मौक़ा; न मिला इसलिए कि सब लोग उस माजरे कि वजह से खु़दा की बड़ाई करते थे।
\v 22 क्यूँकि वो शख़्स जिस पर ये शिफ़ा देने का मो'जिज़ा हुआ था, चालीस बरस से ज़्यादा का था।
\s5
\v 23 वो छूटकर अपने लोगों के पास गए, और जो कुछ सरदार काहिनों और बुज़ुर्गों ने उन से कहा था बयान किया।
\v 24 जब उन्होंने ये सुना तो एक दिल होकर बुलन्द आवाज़ से खु़दा से गुज़ारिश की, 'ऐ' मालिक तू वो है जिसने आसमान और ज़मीन और समुन्दर और जो कुछ उन में है पैदा किया।
\v 25 तूने रूह-उल-क़ुद्दूस के वसीले से हमारे बाप अपने ख़ादिम दाऊद की ज़ुबानी फ़रमाया कि, “क़ौमों ने क्यूं धुम मचाई ? और उम्मतों ने क्यूं बातिल ख़याल किए ?
\s5
\v 26 ‘खु़दावन्द और उसके मसीह की मुख़ालिफ़त को ज़मीन के बादशाह उठ खड़े हुए, और सरदार जमा हो गए ।’
\s5
\v 27 क्यूंकि वाक़ई तेरे पाक ख़ादिम ईसा' के बरख़िलाफ़ जिसे तूने मसह किया ।” हेरोदेस, और, पुन्तियुस पीलातुस, ग़ैर क़ौमों और इस्राईलियों के साथ इस शहर में जमा हुए।
\v 28 ताकि जो कुछ पहले से तेरी क़ुदरत और तेरी मसलेहत से ठहर गया था, वही 'अमल में लाएं।
\s5
\v 29 अब ,ऐ ख़ुदावन्द“ उनकी धमकियों को देख़, और अपने बन्दों को ये तौफ़ीक़ दे, कि वो तेरा कलाम कमाल दिलेरी से सुनाएं।
\v 30 और तू अपना हाथ शिफ़ा देने को बढ़ा और तेरे पाक ख़ादिम ईसा' के नाम से मो'जिज़े और अजीब काम ज़हूर में आएं।”
\v 31 जब वो दु'आ कर चुके, तो जिस मकान में जमा थे, वो हिल गया और वो सब रूह-उल-क़ुद्दूस से भर गए, और "ख़ुदा" का कलाम दिलेरी से सुनाते रहे।
\s5
\v 32 और ईमानदारों की जमा'अत एक दिल और एक जान थी; और किसी ने भी अपने माल को अपना न कहा, बल्कि उनकी सब चीज़ें मुश्तरका थीं।
\v 33 और रसूल बड़ी क़ुदरत से ख़ुदावन्द ईसा' के जी उठने की गवाही देते रहे, और उन सब पर बड़ा फ़ज़ल था।
\s5
\v 34 क्यूंकि उन में कोई भी मुहताज न था, इसलिए कि जो लोग ज़मीनों और घरों के मालिक थे,उनको बेच बेच कर बिकी हुई चीजों की क़ीमत लाते।
\v 35 और रसूलों के पावं में रख देते थे, फिर हर एक को उसकी ज़रुरत के मुवाफ़िक़ बांट दिया जाता था।
\s5
\v 36 और यूसुफ़ नाम एक लावी था, जिसका लक़ब रसूलों ने बरनबास : या'नी नसीहत का बेटा रख़्खा था, और जिसकी पैदाइश कुप्रुस टापू की थी।
\v 37 उसका एक ख़ेत था, जिसको उसने बेचा और क़ीमत लाकर रसूलों के पांव में रख दी ।
\s5
\c 5
\v 1 और एक शख़्स हननियाह नाम और उसकी बीवी सफ़ीरा ने जायदाद बेची ।
\v 2 और उसने अपनी बीवी के जानते हुए क़ीमत में से कुछ रख छोड़ा और एक हिस्सा लाकर रसूलों के पांव में रख दिया ।
\s5
\v 3 मगर पतरस ने कहा, “ऐ हन्नियाह! क्यूं शैतान ने तेरे दिल में ये बात डाल दी, कि तू रूह-उल-क़ुद्दूस से झूट बोले और ज़मीन की क़ीमत में से कुछ रख छोड़े।
\v 4 क्या जब तक वो तेरे पास थी वो तेरी न थी? और जब बेची गई तो तेरे इख़्तियार में न रही, तूने क्यूँ अपने दिल में इस बात का ख़याल बांधा ? तू आदमियों से नहीं बल्कि खु़दा से झूठ बोला।”
\v 5 ये बातें सुनते ही हननियाह गिर पड़ा, और उसका दम निकल गया, और सब सुनने वालों पर बड़ा ख़ौफ़ छा गया।
\v 6 कुछ जवानों ने उठ कर उसे कफ़्नाया और बाहर ले जाकर दफ़्न किया।
\s5
\v 7 तक़रीबन तीन घन्टे गुज़र जाने के बा'द उसकी बीवी इस हालात से बेख़बर अन्दर आई।
\v 8 पतरस ने उस से कहा , “मुझे बता; क्या तुम ने इतने ही की ज़मीन बेची थी?” उसने कहा हां इतने ही की।
\s5
\v 9 पतरस ने उससे कहा, “तुम ने क्यूं ख़ुदावन्द की रूह को आज़माने के लिए ये क्या किया? देख तेरे शौहर को दफ़्न करने वाले दरवाज़े पर खड़े हैं, और तुझे भी बाहर ले जाएँग|”
\v 10 वो उसी वक़्त उसके क़दमों पर गिर पड़ी और उसका दम निकल गया, और जवानों ने अन्दर आकर उसे मुर्दा पाया और बाहर ले जाकर उसके शौहर के पास दफ़्न कर दिया।
\v 11 और सारी कलीसिया बल्कि इन बातों के सब सुननेवालों पर बड़ा ख़ौफ़ छा गया।
\s5
\v 12 और रसूलों के हाथों से बहुत से निशान और अजीब काम लोगों में ज़ाहिर होते थे, और वो सब एक दिल होकर सुलेमान के बरामदे में जमा हुआ करते थे।
\v 13 लेकिन बे ईमानों में से किसी को हिम्मत न हुई, कि उन में जा मिले, मगर लोग उनकी बड़ाई करते थे।
\s5
\v 14 और ईमान लाने वाले मर्द -ओ -औरत "ख़ुदावन्द"की कलीसिया में और भी कसरत से आ मिले।
\v 15 यहां तक कि लोग बीमारों को सड़कों पर ला लाकर चार पाइयों और ख़टोलो पर लिटा देते थे, ताकि जब पतरस आए तो उसका साया ही उन में से किसी पर पड़ जाए ।
\v 16 और यरूशलीम के चारो तरफ़ के कस्बों से भी लोग बीमारों और नापाक रूहों के सताए हुवो को लाकर कसरत से जमा होते थे, और वो सब अच्छे कर दिये जाते थे।
\s5
\v 17 फिर सरदार काहिन और उसके सब साथी जो सदूक़ियों के फ़िरके़ के थे, हसद के मारे उठे।
\v 18 और रसूलों को पकड़ कर हवालात में रख दिया।
\s5
\v 19 मगर ख़ुदावन्द के एक फ़रिश्ते ने रात को क़ैदख़ाने के दरवाज़े खोले और उन्हें बाहर लाकर कहा कि।
\v 20 “जाओ, हैकल में ख़ड़े होकर इस ज़िन्दगी की सब बातें लोगों को सुनाओ।”
\v 21 वो ये सुनकर सुबह होते ही हैकल में गए, और ता'लीम देने लगे; मगर सरदार काहिन और उसके साथियों ने आकर सद्रे-ऐ-अदालत वालों और बनी इस्राईल के सब बुज़ुर्गों को जमा किया, और क़ैद ख़ाने में कहला भेजा उन्हें लाएं।
\s5
\v 22 लेकिन सिपाहियों ने पहुंच कर उन्हें क़ैद ख़ाने में न पाया, और लौट कर ख़बर दी
\v 23 “हम ने क़ैद ख़ाने को तो बड़ी हिफ़ाज़त से बन्द किया हुआ, और पहरेवालों को दरवाज़ों पर खड़े पाया; मगर जब खोला तो अन्दर कोई न मिला!”
\s5
\v 24 जब हैकल के सरदार और सरदार काहिनों ने ये बातें सुनी तो उनके बारे में हैरान हुए, कि इसका क्या अंजाम होगा?
\v 25 इतने में किसी ने आकर उन्हें ख़बर दी कि “देखो, वो आदमी जिन्हें तुम ने क़ैद किया था; हैकल में ख़ड़े लोगों को ता'लीम दे रहे हैं।”
\s5
\v 26 तब सरदार सिपाहियों के साथ जाकर उन्हें ले आया; लेकिन ज़बरदस्ती नहीं, क्यूंकि लोगों से डरते थे, कि हम पर पथराव न करें।
\v 27 फिर उन्हें लाकर 'अदालत में ख़ड़ा कर दिया, और सरदार काहिन ने उन से ये कहा।
\v 28 “ हम ने तो तुम्हें सख़्त ताकीद की थी,कि ये नाम लेकर ता'लीम न देना; मगर देखो तुम ने तमाम यरूशलीम में अपनी ता'लीम फैला दी,और उस शख़्स का ख़ून हमारी गर्दन पर रखना चहते हो।”
\s5
\v 29 पतरस और रसूलों ने जवाब में कहा , कि ; “हमें आदमियों के हुक्म की निस्बत ख़ुदा का हुक्म मानना ज़्यादा फ़र्ज़ है।
\v 30 हमारे बाप दादा के ख़ुदा ने ईसा' को जिलाया, जिसे तुमने सलीब पर लटका कर मार डाला था।
\v 31 उसी को ख़ुदा ने मालिक और मुन्जी ठहराकर अपने दहने हाथ से सर बलन्द किया, ताकि इस्राईल को तौबा की तौफ़ीक़ और गुनाहों की मु'आफ़ी बख़्शे ।
\v 32 और हम इन बातों के गवाह हैं; रूह-ुउल-क़ुद्दूस भी जिसे ख़ुदा ने उन्हें बख़्शा है जो उसका हुक्म मानते हैं ।”
\s5
\v 33 वो ये सुनकर जल गए, और उन्हें क़त्ल करना चाहा।
\v 34 मगर गमलीएल नाम एक फ़रीसी ने जो शरा' का मु'अल्लिम और सब लोगों में इज़्ज़तदार था; अदालत में खड़े होकर हुक्म दिया कि इन आदमियों को थोड़ी देर के लिए बाहर कर दो।
\s5
\v 35 फिर उस ने कहा, “ऐ इस्राईलियो; इन आदमियों के साथ जो कुछ करना चाहते हो होशियारी से करना ।
\v 36 क्यूँकि इन दिनों से पहले थियूदास ने उठ कर दा'वा किय था,कि मैं भी कुछ हूं; और तक़रीबन चार सौ आदमी उसके साथ हो गए थे, मगर वो मारा गया और जितने उसके मानने वाले थे, सब इधर उधर हुए; और मिट गए।
\v 37 इस शख़्स के बा'द यहूदाह गलीली नाम लिखवाने के दिनों में उठा; और उस ने कुछ लोग अपनी तरफ़ कर लिए; वो भी हलाक हुआ और जितने उसके मानने वाले थे सब इधर उधर हो गए।
\s5
\v 38 पस अब में तुम से कहता हूं कि इन आदमियों से किनारा करो और उन से कुछ काम न रख्खो, कहीं ऐसा न हो कि ख़ुदा से भी लड़ने वाले ठहरो क्यूकि ये तदबीर या काम अगर आदमियों की तरफ़ से है तो आप बर्बाद हो जाएगा ।
\v 39 लेकिन अगर खु़दा की तरफ़ से है तो तुम इन लोगों को मगलूब न कर सकोगे ”।
\s5
\v 40 उन्होंने उसकी बात मानी और रसूलों को पास बुला उनको पिटवाया और ये हुक्म देकर छोड़ दिया कि ईसा' का नाम लेकर बात न करना
\v 41 पस वो अदालत से इस बात पर ख़ुश होकर चले गए; कि हम उस नाम की ख़ातिर बेइज़्ज़त होने के लायक़ तो ठहरे।
\v 42 और वो हैकल में और घरों में हर रोज़ ता'लीम देने और इस बात की ख़ुश्ख़बरी सुनाने से कि ईसा' ही मसीह है बाज़ न आए।
\s5
\c 6
\v 1 उन दिनों में जब शागिर्द बहुत होते जाते थे,तो यूनानी माइल यहूदी इब्रानियों की शिकायत करने लगे; इसलिए कि रोज़ाना ख़बरगीरी में उनकी बेवाओं के बारे में लापरवाही होती थी।
\s5
\v 2 और उन बारह ने शागिर्दों की जमा'अत को अपने पास बुलाकर कहा, "मुनासिब नहीं कि हम ख़ुदा के कलाम को छोड़कर खाने पीने का इन्तिज़ाम करें।
\v 3 पस, ऐ भाइयों! अपने में से सात नेक नाम शख़्सों को चुन लो जो रूह और दानाई से भरे हुए हों; कि हम उनको इस काम पर मुक़र्रर करें।
\v 4 लेकिन हम तो दु'आ में और कलाम की ख़िदमत में मशग़ूल रहेंगे।
\s5
\v 5 ये बात सारी जमा'अत को पसन्द आई, पस उन्होंने स्तिफ़नुस नाम एक शख़्स को जो ईमान और रूह -उल-क़ुद्दूस से भरा हुआ था और फ़िलिप्पुस, व प्रुख़ुरुस, और नीकानोर, और तीमोन, और पर्मिनास और नीकुलाउस। को जो नौ मुरीद यहूदी अन्ताकी था, चुन लिया ।
\v 6 और उन्हें रसूलों के आगे खड़ा किया; उन्होंने दु'आ करके उन पर हाथ रखे ।
\s5
\v 7 और "ख़ुदा" का कलाम फैलता रहा, और यरूशलीम में शागिर्दों का शुमार बहुत ही बढ़ता गया, और काहिनों की बड़ी गिरोह इस दीन के तहत में हो गई।
\s5
\v 8 स्तिफ़नुस फ़ज़ल और क़ुव्वत से भरा हुआ लोगों में बड़े बड़े अजीब काम और निशान ज़ाहिर किया करता था; ।
\v 9 कि उस इबादतख़ाने से जो लिबिरतीनों का कहलाता है; और कुरेनियों शहर और इस्कन्दरियों क़स्बा और उन में से जो किलकिया और आसिया सूबे के थे,ये कुछ लोग उठ कर स्तिफ़नुस से बहस करने लगे।
\s5
\v 10 मगर वो उस दानाई और रूह का जिससे वो कलाम करता था, मुक़ाबला न कर सके।
\v 11 इस पर उन्होंने कुछ आदमियों को सिखाकर कहलवा दिया “ हम ने इसको मूसा और ख़ुदा केबर-ख़िलाफ़ कुफ़्र की बातें करते सुना ।”
\s5
\v 12 फिर वो 'अवाम और बुज़ुर्गों और आलिमों को उभार कर उस पर चढ़ गए; और पकड़ कर सद्रे-ए-'अदालत में ले गए।
\v 13 और झूठे गवाह ख़ड़े किये जिन्होंने कहा, " ये शख़्स इस पाक मुक़ाम और शरी'अत के बरख़िलाफ़ बोलने से बाज़ नहीं आता।
\v 14 क्यूँकि हम ने उसे ये कहते सुना है; कि “वही ईसा' नासरी इस मुक़ाम को बर्बाद कर देगा, और उन रस्मों को बदल डालेगा, जो मूसा ने हमें सौंपी हैं।”
\v 15 और उन सब ने जो अदालत में बैठे थे, उस पर ग़ौर से नज़र की तो देखा कि उसका चेहरा फ़रिश्ते के जैसा है।
\s5
\c 7
\v 1 फिर सरदार काहिन ने कहा, “ क्या ये बातें इसी तरह पर हैं?”
\v 2 उस ने कहा, “ऐ भाइयों! और बुज़ुर्गो, सुनें। ख़ुदा ऐ' ज़ुल- जलाल हमारे बुज़ुर्ग अब्राहम पर उस वक़्त ज़ाहिर हुआ जब वो हारान शहर में बसने से पहले मसोपोतामिया मुल्क में था।
\v 3 और उस से कहा कि 'अपने मुल्क और अपने कुन्बे से निकल कर उस मुल्क में चला जा'जिसे मैं तुझे दिखाऊंगा।
\s5
\v 4 इस पर वो कसदियों के मुल्क से निकल कर हारान में जा बसा; और वहां से उसके बाप के मरने के बा'द ख़ुदा ने उसको इस मुल्क में लाकर बसा दिया, जिस में तुम अब बसते हो।
\v 5 और उसको कुछ मीरास बल्कि क़दम रखने की भी उस में जगह न दी मगर वा'दा किया कि में ये ज़मीन तेरे और तेरे बा'द तेरी नस्ल के क़ब्ज़े में कर दूंगा, हालांकि उसके औलाद न थी।
\s5
\v 6 और ख़ुदा ने ये फ़रमाया, तेरी नस्ल ग़ैर मुल्क में परदेसी होगी, वो उसको ग़ुलामी में रख्खेंगे और चार सौ बरस तक उन से बदसुलूकी करेंगे‘।
\v 7 फिर ख़ुदा ने कहा, जिस क़ौम की वो ग़ुलामी में रहेंगे उसको मैं सज़ा दूंगा; और उसके बा'द वो निकलकर इसी जगह मेरी इबादत करेंगे।’
\v 8 और उसने उससे ख़तने का 'अहद बांधा; और इसी हालत में अब्राहम से इज़्हाक़ पैदा हुआ, और आठवें दिन उसका ख़तना किया गया; और इज़्हाक़ से या'कूब और या'कूब से बारह क़बीलों के बुज़ुर्ग पैदा हुए।
\s5
\v 9 और बुज़ुर्गों ने हसद में आकर युसुफ़ को बेचा कि मिस्र में पहुंच जाए; मगर ख़ुदा उसके साथ था ।
\v 10 और उसकी सब मुसीबतों से उसने उसको छुड़ाया; और मिस्र के बादशाह फ़िर'औन के नज़दीक उसको मक़बूलियत और हिक़मत बख़्शी, और उसने उसे मिस्र और अपने सारे घर का सरदार कर दिया ।
\s5
\v 11 फिर मिस्र के सारे मुल्क और कना'न में काल पड़ा, और बड़ी मुसीबत आई; और हमारे बाप दादा को खाना न मिलता था।
\v 12 लेकिन याक़ूब ने ये सुनकर कि, मिस्र में अनाज है; हमारे बाप दादा को पहली बार भेजा।
\v 13 और दूसरी बार यूसुफ़ अपने भाइयों पर ज़ाहिर हो गया और यूसुफ़ की क़ौमियत फ़िर'औन को मा'लूम हो गई ।
\s5
\v 14 फिर यूसुफ़ ने अपने बाप या'क़ूब और सारे कुन्बे को जो पछहत्तर जाने थीं; बुला भेजा।
\v 15 और या'क़ूब मिस्र में गया वहां वो और हमारे बाप दादा मर गए।
\v 16 और वो शहर ऐ" सिकम में पहुंचाए गए और उस मक़्बरे में दफ़्न किए गए' जिसको अब्राहंम ने सिक्म में रुपये देकर बनी हमूर से मोल लिया था।
\s5
\v 17 लेकिन जब उस वादे की मी'आद पुरी होने को थी, जो ख़ुदा ने अब्राहम से फ़रमाया था तो मिस्र में वो उम्मत बढ़ गई; और उनका शुमार ज़्यादा होता गया।
\v 18 उस वक़्त तक कि दूसरा बादशाह मिस्र पर हुक्मरान हुआ; जो यूसुफ़ को न जानता था।
\v 19 उसने हमारी क़ौम से चालाकी करके हमारे बाप दादा के साथ यहाँ तक बदसुलूकी की कि उन्हें अपने बच्चे फेंकने पड़े ताकि ज़िन्दा न रहें।
\s5
\v 20 इस मौक़े पर मूसा पैदा हुआ; जो निहायत ख़ूबसूरत था, वो तीन महीने तक अपने बाप के घर में पाला गया।
\v 21 मगर जब फेंक दिया गया, तो फ़िर'औन की बेटी ने उसे उठा लिया और अपना बेटा करके पाला।
\s5
\v 22 और मूसा ने मिस्रयों के ,तमाम इल्मो की ता'लीम पाई, और वो कलाम और काम में ताकत वाला था।
\v 23 और जब वो तक़रीबन चालीस बरस का हुआ, तो उसके जी में आया कि मैं अपने भाइयों बनी इस्राईल का हाल देखूँ।
\v 24 चुनांचे उन में से एक को ज़ुल्म उठाते देखकर उसकी हिमायत की, और मिस्री को मार कर मज़्लूम का बदला लिया।
\v 25 उसने तो ख़याल किया कि मेरे भाई समझ लेंगे, कि ख़ुदा मेरे हाथों उन्हें छुटकारा देगा, मगर वो न समझे।
\s5
\v 26 फिर दूसरे दिन वो उन में से दो लड़ते हुओं के पास आ निकला और ये कहकर उन्हें सुलह करने की तरग़ीब दी कि ‘ऐ जवानों तुम तो भाई भाई हो, क्यूं एक दूसरे पर ज़ुल्म करते हो?
\v 27 लेकिन जो अपने पड़ोसी पर ज़ुल्म कर रहा था, उसने ये कह कर उसे हटा दिया तुझे किसने हम पर हाकिम और क़ाज़ी मुक़र्रर किया?
\v 28 क्या तू मुझे भी क़त्ल करना चहता है ? जिस तरह कल उस मिस्री को क़त्ल किया था।
\s5
\v 29 मूसा ये बात सुन कर भाग गया, और मिदियान के मुल्क में परदेसी रहा, और वहाँ उसके दो बेटे पैदा हुए।
\v 30 और जब पूरे चालीस बरस हो गए, तो कोह-ए-सीना के वीराने में जलती हुई झाड़ी के शो'ले में उसको एक फ़रिश्ता दिखाई दिया।
\s5
\v 31 जब मूसा ने उस पर नज़र की तो उस नज़ारे से ताअज़्जुब किया, और जब देखने को नज़दीक गया तौ ख़ुदावन्द की आवाज़ आई कि
\v 32 मैं तेरे बाप दादा का ख़ुदा या'नी अब्रहाम इज़्हाक़ और या'क़ूब का ख़ुदा हूँ तब मूसा काँप गया और उसको देखने की हिम्मत न रही।
\s5
\v 33 ख़ुदावन्द ने उससे कहा कि अपने पाव से जूती उतार ले, क्यूँकि जिस जगह तू खड़ा है, वो पाक ज़मीन है।
\v 34 मैंने वाक़ई अपनी उस उम्मत की मुसीबत देखी जो मिस्र में है। और उनका आह-व नाला सुना पस उन्हें छुड़ाने उतरा हूँ, अब आ मैं तुझे मिस्र में भेजूँगा।
\s5
\v 35 जिस मूसा का उन्होंने ये कह कर इन्कार किया था, तुझे किसने हाकिम और क़ाज़ी मुक़र्रर किया 'उसी को "ख़ुदा " ने हाकिम और छुड़ाने वाला ठहरा कर, उस फ़रिश्ते के ज़रि'ए से भेजा जो उस झाड़ी में नज़र आया था ।
\v 36 यही शख़्स उन्हें निकाल लाया और मिस्र और बहर-ए-क़ुलज़ुम और वीराने में चालीस बरस तक अजीब काम और निशान दिखाए।
\v 37 ये वही मूसा है, जिसने बनी इस्राईल से कहा, ख़ुदा तुम्हारे भाइयों में से तुम्हारे लिए मुझ सा एक नबी पैदा करेगा ।
\s5
\v 38 ये वही है, जो वीराने की कलीसिया में उस फ़रिश्ते के साथ जो कोह-ए-सीना पर उससे हम कलाम हुआ, और हमारे बाप दादा के साथ था उसी को ज़िन्दा कलाम मिला कि हम तक पहुँचा दे।
\v 39 मगर हमारे बाप दादा ने उसके फ़रमाँबरदार होना न चाहा, बल्कि उसको हटा दिया और उनके दिल मिस्र की तरफ़ माइल हुए ।
\v 40 और उन्होंने हारून से कहा, हमारे लिए ऐसे मा'बूद बना‘ जो हमारे आगे आगे चलें, क्यूँकि ये मूसा जो हमें मुल्क-ए मिस्र से निकाल लाया, हम नहीं जानते कि वो क्या हुआ।
\s5
\v 41 और उन दिनों में उन्होंने एक बछड़ा बनाया, और उस बुत को क़ुर्बानी चढ़ाई, और अपने हाथों के कामों की ख़ुशी मनाई।
\v 42 पस ख़ुदा ने मुंह मोड़कर उन्हें छोड़ दिया कि आसमानी फौज को पूजें चुनांचे नबियो की किताबों में लिखा है ऐ इस्राईल के घराने क्या तुम ने वीराने में चालीस बरस मुझको ज़बीहे और क़ुर्बानियां गुज़रानी?
\s5
\v 43 बल्कि तुम मोलक के ख़ेमे और रिफ़ान देवता के तारे को लिए फिरते थे,या'नी उन मूरतों को जिन्हें तुम ने सज्दा करने के लिए बनाया था। पस में तुम्हें बाबुल के परे ले जाकर बसाऊँगा ।
\s5
\v 44 शहादत का ख़ेमा वीराने में हमारे बाप दादा के पास था, जैसा कि मूसा से कलाम करने वाले ने हुक्म दिया था, जो नमूना तूने देखा है, उसी के मुवाफ़िक़ इसे बना।
\v 45 उसी ख़ेमे को हमारे बाप दादा अगले बुज़ुर्गों से हासिल करके ईसा' के साथ लाए जिस वक़्त उन क़ौमों की मिल्कियत पर क़ब्ज़ा किया जिनको ख़ुदा ने हमारे बाप दादा के सामने निकाल दिया, और वो दाऊद के ज़माने तक रहा।
\v 46 उस पर ख़ुदा की तरफ़ से फ़ज़ल हुआ, और उस ने दरख़्वास्त की, कि में या'क़ूब के ख़ुदा के वास्ते घर तैयार करूँ।
\s5
\v 47 मगर सुलेमान ने उस के लिए घर बनाया, ।
\v 48 लेकिन ख़ुदा हाथ के बनाए हुए घरों में नहीं रहता "चुनाँचे " नबी कहता है कि
\v 49 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, आसमान मेरा तख़्त और ज़मीन मेरे पाँव तले की चौकी है, तुम मेरे लिए कैसा घर बनाओगे, या मेरी आरामगाह कौन सी है?
\v 50 क्या ये सब चीज़ें मेरे हाथ से नहीं बनीं
\s5
\v 51 ऐ गर्दन कशो , दिल और कान के नामख़्तूनों, तुम हर वक़्त रूह-उल-क़ुद्दूस की मुख़ालिफ़त करते हो; जैसे तुम्हारे बाप दादा करते थे,वैसे ही तुम भी करते हो।
\v 52 नबियों में से किसको तुम्हारे बाप दादा ने नहीं सताया? उन्हों ने तो उस रास्तबाज़ के आने की पेश-ख़बरी देनेवालों को क़त्ल किया, और अब तुम उसके पकड़वाने वाले और क़ातिल हुए।
\v 53 तुम ने फ़रिश्तों के ज़रिये से शरी'अत तो पाई, पर अमल नहीं किया।”
\s5
\v 54 जब उन्होंने ये बातें सुनीं तो जी में जल गए, और उस पर दांत पीसने लगे।
\v 55 मगर उस ने रूह -उल-क़ुद्दूस से भरपूर होकर आसमान की तरफ़ ग़ौर से नज़र की, और ख़ुदा का जलाल और ईसा' को ख़ुदा की दहनी तरफ़ खड़ा देख कर कहा ।
\v 56 “देखो मैं आसमान को खुला, और इब्न- ए-आदम को ख़ुदा की दहनी तरफ़ खड़ा देखता हूँ ”
\s5
\v 57 मगर उन्होंने बड़े ज़ोर से चिल्लाकर अपने कान बन्द कर लिए, और एक दिल होकर उस पर झपटे।
\v 58 और शहर से बाहर निकाल कर उस पर पथराव करने लगे, और गवाहों ने अपने कपड़े साऊल नाम एक जवान के पाँव के पास रख दिए।
\s5
\v 59 पस स्तिफ़नूस पर पथराव करते रहे, और वो ये कह कर दु'आ करता रहा “ऐ ख़ुदावन्द ईसा' मेरी रूह को क़ुबूल कर।”
\v 60 फिर उस ने घुटने टेक कर बड़ी आवाज़ से पुकारा, “ऐ ख़ुदावन्द ये गुनाह इन के ज़िम्मे न लगा।” और ये कह कर सो गया।
\s5
\c 8
\v 1 और साऊल उस के क़त्ल में शामिल था| उसी दिन उस कलीसिया पर जो यरूशलीम में थी,बड़ा ज़ुल्म बर्पा हुआ, और रसूलों के सिवा सब लोग यहूदिया और सामरिया के चारों तरफ़ फैल गये।
\v 2 और दीनदार लोग स्तिफ़नुस को दफ़न करने कि लिए ले गए, और उस पर बड़ा मातम किया।
\v 3 और साऊल कलीसिया को इस तरह तबाह करता रहा, कि घर घर घुसकर और ईमानदार मर्दों और औरतों को घसीट कर क़ैद करता था,।
\s5
\v 4 जो इधर उधर हो गए थे, वो कलाम की ख़ुशख़बरी देते फिरे।
\v 5 और फ़िलिप्पुस सूब- ए सामरिया में जाकर लोगों में मसीह का ऐलान करने लगा।
\s5
\v 6 और जो मो'जिज़े फ़िलिप्पुस दिखाता था, लोगों ने उन्हें सुनकर और देख कर बिल-इत्तफ़ाक़ उसकी बातों पर जी लगाया।
\v 7 क्यूँकि बहुत सारे लोगों में से बदरूहें बड़ी आवाज़ से चिल्ला चिल्लाकर निकल गईं, और बहुत से मफ़्लूज और लंगड़े अच्छे किए गए।
\v 8 और उस शहर में बड़ी ख़ुशी हुई।
\s5
\v 9 उस से पहले शामा'ऊन नाम का एक शख़्स उस शहर में जादूगरी करता था, और सामरिया के लोगों को हैरान रखता और ये कहता था, कि मैं भी कोई बड़ा शख़्स हूँ।
\v 10 और छोटे से बड़े तक सब उसकी तरफ़ मुतवज्जह होते और कहते थे, ये शख़्स ख़ुदा की वो क़ुदरत है, जिसे बड़ी कहते हैं।
\v 11 वह इस लिए उस की तरफ़ मुतवज्जह होते थे, कि उस ने बड़ी मुद्दत से अपने जादू की वजह से उनको हैरान कर रखा था,।
\s5
\v 12 लेकिन जब उन्होंने फ़िलिप्पुस का यक़ीन किया जो "ख़ुदा" की बादशाही और ईसा' मसीह के नाम की ख़ुशख़बरी देता था, तो सब लोग चाहे मर्द हो चाहे औरत बपतिस्मा लेने लगे।
\v 13 और शमा'ऊन ने खुद भी यक़ीन किया और बपतिस्मा लेकर फ़िलिप्पुस के साथ रहा, और निशान और मो'जिज़े देखकर हैरान हुआ।
\s5
\v 14 जब रसूलों ने जो यरूशलीम में थे सुना, कि सामरियों ने "ख़ुदा" का कलाम क़ुबूल कर लिया है, तो पतरस और यूहन्ना को उन के पास भेजा ।
\v 15 उन्हों ने जाकर उनके लिए दु'आ की कि रूह- उल -क़ुद्दूस पाएँ।
\v 16 क्यूँकि वो उस वक़्त तक उन में से किसी पर नाज़िल ना हु,आ था, उन्होंने सिर्फ़ ख़ुदावन्द ईसा' के नाम पर बपतिस्मा लिया था ।
\v 17 फ़िर उन्होंने उन पर हाथ रख्खे, और उन्होंने रूह-उल-क़ुद्दूस पाया।
\s5
\v 18 जब शामा'ऊन ने देखा कि रसूलों के हाथ रखने से रूह-उल-क़ुद्दूस दिया जाता है, तो उनके पास रुपये लाकर कहा,
\v 19 “ मुझे भी यह इख़्तियार दो, कि जिस पर मैं हाथ रख्खूँ, वो रूह-उल-क़ुद्दूस पाए।”
\s5
\v 20 पतरस ने उस से कहा, “ तेरे रुपये तेरे साथ ख़त्म हो , इस लिए कि तू ने ख़ुदा की बख्शिश को रुपियों से हासिल करने का ख़याल किया।
\v 21 तेरा इस काम में न हिस्सा है न बख़रा क्यूँकि तेरा दिल ख़ुदा के नज़दीक ख़ालिस नहीं ।
\v 22 पस अपनी इस बुराई से तौबा कर और ख़ुदा से दु'आ कर शायद तेरे दिल के इस ख़याल की मु'आफ़ी हो।
\v 23 क्यूकि मैं देखता हूँ कि तू पित की सी कड़वाहट और नारासती के बन्द में ग़िरफ़तार है।”
\s5
\v 24 शमा'ऊन ने जवाब में कहा, “तुम मेरे लिए ख़ुदावन्द से दु'आ करो कि जो बातें तुम ने कही उन में से कोई मुझे पेश ना आए।”
\s5
\v 25 फिर वो गवाही देकर और ख़ुदावन्द का कलाम सुना कर यरूशलीम को वापस हुए, और सामरियों के बहुत से गाँव में ख़ुशख़बरी देते गए।
\s5
\v 26 फिर ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने फ़िलिप्पुस से कहा, “उठ कर दक्खिन की तरफ़ उस राह तक जा जो यरूशलीम से ग़ज़्ज़ा शहर को जाती है, और जंगल में है,।”
\v 27 वो उठ कर रवाना हुआ, तो देखो एक हब्शी ख़ोजा आ रहा था, वो हब्शियों की मलिका कन्दाके का एक वज़ीर और उसके सारे ख़ज़ाने का मुख़्तार था, और यरूशलीम में इबादत के लिए आया था।
\v 28 वो अपने रथ पर बैठा हुआ और यसा'याह नबी के सहीफ़े को पढ़ता हुआ वापस जा रहा था।
\s5
\v 29 पाक रूह ने फ़िलिप्पुस से कहा, “नज़दीक जाकर उस रथ के साथ होले।”
\v 30 पस फ़िलिप्पुस ने उस तरफ़ दौड़ कर उसे यसा'याह नबी का सहीफ़ा पढ़ते सुना और कहा, “जो तू पढ़ता है उसे समझता भी है?”
\v 31 ये मुझ से क्यूँ कर हो सकता है जब तक कोई मुझे हिदायत ना करे? और उसने फ़िलिप्पुस से दरख़्वास्त की कि मेरे साथ आ बैठ।
\s5
\v 32 किताब-ए-मुक़द्दस की जो इबारत वो पढ़ रहा था, ये थी: " लोग उसे भेड़ की तरह ज़बह करने को ले गए, " और जिस तरह बर्रा अपने बाल कतरने वाले के सामने बे- ज़बान होता है " उसी तरह वो अपना मुहँ नहीं खोलता ।
\v 33 उसकी पस्तहाली में उसका इन्साफ़ न हुआ, और कौन उसकी नसल का हाल बयान करेगा? क्यूँकि ज़मीन पर से उसकी ज़िन्दगी मिटाई जाती है ।
\s5
\v 34 ख़ोजे ने फ़िलिप्पुस से कहा, “मैं तेरी मिन्नत करके पुछता हूँ, कि नबी ये किस के हक़ में कहता है , अपने या किसी दूसरे के हक़ में?”
\v 35 फ़िलिप्पुस ने अपनी ज़बान ख़ोलकर उसी लिखे हुए से शुरू किया और उसे ईसा' की ख़ुशख़बरी दी।
\s5
\v 36 और राह में चलते चलते किसी पानी की जगह पर पहूँचे; ख़ोजे ने कहा, “ देख पानी मौजूद है अब मुझे बपतिस्मा लेने से कौन सी चीज़ रोकती है?”
\v 37 [फ़िलिप्पुस ने कहा, “अगर तू दिल ओ -जान से ईमान लाए तो बपतिस्मा ले सकता है|" उसने जवाब में कहा, " में ईमान लाता हूँ कि ईसा' मसीह ख़ुदा का बेटा है|”]
\v 38 पस उसने रथ को ख़ड़ा करने का हुक्म दिया और फ़िलिप्पुस और ख़ोजा दोनों पानी में उतर पड़े और उसने उसको बपतिस्मा दिया।
\s5
\v 39 जब वो पानी में से निकल कर उपर आए तो "ख़ुदावन्द" का रूह फ़िलिप्पुस को उठा ले गया और ख़ोजा ने उसे फिर न देखा, क्यूँकि वो ख़ुशी करता हुआ अपनी राह चला गया ।
\v 40 और फ़िलिप्पुस अश्दूद क़स्बा में आ निकला और क़ैसरिया शहर में पहुँचने तक सब शहरों में ख़ुशख़बरी सुनाता गया।
\s5
\c 9
\v 1 और साऊल जो अभी तक ख़ुदावन्द के शागिर्दों को धमकाने और क़त्ल करने की धुन में था। सरदार काहिन के पास गया ।
\v 2 और उस से दमिश्क़ के इबादतख़ानों के लिए इस मज़्मून के ख़त माँगे कि जिनको वो इस तरीक़े पर पाए, मर्द चाहे औरत, उनको बाँधकर यरूशलीम में लाए।
\s5
\v 3 जब वो सफ़र करते करते दमिश्क़ के नज़दीक पहुँचा तो ऐसा हुआ कि यकायक आसमान से एक नूर उसके पास आ, चमका ।
\v 4 और वो ज़मीन पर गिर पड़ा और ये आवाज़ सुनी “ऐ साऊल,ऐ साऊल, तू मुझे क्यूँ सताता है?”
\s5
\v 5 उस ने पूछा, "ऐ " “ख़ुदावन्द, तू कौन हैं?” उस ने कहा,, “ मैं ईसा' हूँ जिसे तू सताता है।
\v 6 मगर उठ शहर में जा, और जो तुझे करना चाहिए वो तुझसे कहा जाएगा ।”
\v 7 जो आदमी उसके हमराह थे, वो ख़ामोश खड़े रह गए, क्यूँकि आवाज़ तो सुनते थे, मगर किसी को देखते न थे ।
\s5
\v 8 और साऊल ज़मीन पर से उठा, लेकिन जब आँखें खोलीं तो उसको कुछ दिखाई न दिया, और लोग उसका हाथ पकड़ कर दमिश्क़ शहर में ले गए ।
\v 9 और वो तीन दिन तक न देख सका, और न उसने खाया न पिया।
\s5
\v 10 दमिश्क़ में हननियाह नाम एक शागिर्द था, उस से ख़ुदावन्द ने रोया में कहा, " ऐ हननियाह" उस ने कहा, “ऐ ख़ुदावन्द, मैं हाज़िर हूँ।”
\v 11 ख़ुदावन्द ने उस से कहा, “उठ, उस गली में जा जो सीधा' कहलाता है। और यहूदाह के घर में साऊल नाम तर्सुसी शहरी को पूछ ले क्यूँकि देख वो दु'आ कर रहा है।
\v 12 और उस ने हननियाह नाम एक आदमी को अन्दर आते और अपने ऊपर हाथ रखते देखा है, ताकि फिर बीना हो।”
\s5
\v 13 हननियाह ने जावाब दिया कि “ऐ ख़ुदावन्द, मैं ने बहुत से लोगों से इस शख़्स का ज़िक्र सुना है, कि इस ने यरूशलीम में तेरे मुक़द्दसों के साथ कैसी कैसी बुराइयां की हैं।
\v 14 और यहाँ उसको सरदार काहिनों की तरफ़ से इख़्तियार मिला है, कि जो लोग तेरा नाम लेते हैं, उन सब को बाँध ले।”
\v 15 मगर ख़ुदावन्द ने उस से कहा कि तू “जा, क्यूँकि ये क़ौमों, बादशाहों और बनी इस्राईल पर मेरा नाम ज़ाहिर करने का मेरा चुना हुआ वसीला है।
\v 16 और में उसे जता दूंगा कि उसे मेरे नाम के खातिर किस क़दर दुख उठाना पड़ेगा
\s5
\v 17 पस हननियाह जाकर उस घर में दाख़िल हुआ और अपने हाथ उस पर रखकर कहा, "ऐ भाई शाऊल उस ख़ुदावन्द या'नी ईसा' जो तुझ पर उस राह में जिस से तू आया ज़ाहिर हुआ था, उसने मुझे भेजा है, कि तू बीनाई पाए, और रूहे पाक से भर जाए।"
\v 18 और फ़ौरन उसकी आँखों से छिल्के से गिरे और वो बीना हो गया, और उठ कर बपतिस्मा लिया।
\v 19 फिर कुछ खाकर ताक़त पाई,और वो कई दिन उन शागिर्दों के साथ रहा, जो दमिश्क़ में थे।
\s5
\v 20 और फ़ौरन इबादतख़ानों में ईसा' का ऐलान करने लगा, कि "वो "ख़ुदा" का बेटा है ।
\v 21 और सब सुनने वाले हैरान होकर कहने लगे कि "क्या ये वो शख़्स नहीं है, जो यरूशलीम में इस नाम के लेने वालों को तबाह करता था, और यहाँ भी इस लिए आया था, कि उनको बाँध कर सरदार काहिनों के पास ले जाए?”
\v 22 लेकिन साऊल को और भी ताक़त हासिल होती गई, और वो इस बात को साबित करके कि "मसीह यही है" दमिश्क़ के रहने वाले यहूदियों को हैरत दिलाता रहा।
\s5
\v 23 और जब बहुत दिन ग़ुज़र गए, तो यहूदियों ने उसे मार डालने का मशवरा किया।
\v 24 मगर उनकी साज़िस साऊल को मालूम हो गई, वो तो उसे मार डालने के लिए रात दिन दरवाज़ों पर लगे रहे।
\v 25 लेकिन रात को उसके शागिर्दों ने उसे लेकर टोकरे में बिठाया और दीवार पर से लटका कर उतार दिया।
\s5
\v 26 उस ने यरूशलीम में पहुँच कर शागिर्दों में मिल जाने की कोशिश की और सब उस से डरते थे, क्यूँकि उनको यक़ीन न आता था, कि ये शागिर्द है।
\v 27 मगर बरनबास ने उसे अपने साथ रसूलों के पास ले जाकर उन से बयान किया कि इस ने इस तरह राह में "ख़ुदावन्द" को देखा और उसने इस से बातें की और उस ने दमिश्क़ में कैसी दिलेरी के साथ ईसा' के नाम से एलान किया।
\s5
\v 28 पस वो यरूशलीम में उनके साथ जाता रहा।
\v 29 और दिलेरी के साथ ख़ुदावन्द के नाम का ऐलान करता था, और यूनानी माइल यहूदियों के साथ गुफ़्तगू और बहस भी करता था, मगर वो उसे मार डालने के दर पै थे।
\v 30 और भाइयों को जब ये मा'लूम हुआ, तो उसे क़ैसरिया में ले गए, और तरसुस को रवाना कर दिया।
\s5
\v 31 पस तमाम यहूदियो और गलील और सामरिया में कलीसिया को चैन हो गया और उसकी तरक़्क़ी होती गई और वो "ख़ुदावन्द" के ख़ौफ़ और रूह- उल -क़ुद्दूस की तसल्ली पर चलती और बढ़ती जाती थी।
\v 32 और ऐसा हुआ कि पतरस हर जगह फिरता हुआ उन मुक़द्दसों के पास भी पहुँचा जो लुद्दा में रहते थे।
\s5
\v 33 वहाँ ऐनियास नाम एक मफ़लूज को पाया जो आठ बरस से चारपाई पर पड़ा था।
\v 34 पतरस ने उस से कहा, ऐ “ऐनियास, ईसा' मसीह तुझे शिफ़ा देता है। उठ आप अपना बिस्तरा बिछा।” वो फ़ौरन उठ खड़ा हुआ।
\v 35 तब लुद्दा और शारून के सब रहने वाले उसे देखकर "ख़ुदावन्द" की तरफ़ रुजू लाए।
\s5
\v 36 और याफ़ा शहर में एक शागिर्द थी, तबीता नाम जिसका तर्जुमा हरनी है, वो बहुत ही नेक काम और ख़ैरात किया करती थी।
\v 37 उन्हीं दिनों में ऐसा हुआ कि वो बीमार होकर मर गई, और उसे नहलाकर बालाख़ाने में रख दिया।
\s5
\v 38 और चूंकि लुद्दा याफ़ा के नज़दीक था, शागिर्दों ने ये सुन कर कि पतरस वहाँ है दो आदमी भेजे और उस से दरख़्वास्त की कि “हमारे पास आने में देर न कर।”
\v 39 पतरस उठकर उनके साथ हो लिया, जब पहुँचा तो उसे बालख़ाने में ले गए, और सब बेवाएँ रोती हुई उसके पास आ खड़ी हुईं और जो कुर्ते और कपड़े हरनी ने उनके साथ में रह कर बनाए थे, दिखाने लगीं।
\s5
\v 40 पतरस ने सब को बाहर कर दिया और घुटने टेक कर दु'आ की, फिर लाश की तरफ़ मुतवज्जिह होकर कहा, "ऐ तबीता उठ पस उसने आँखें खोल दीं और पतरस को देखकर उठ बैठी।
\v 41 उस ने हाथ पकड़ कर उसे उठाया और मुक़द्दसों और बेवाओं को बुला कर उसे ज़िन्दा उनके सुपुर्द किया।
\v 42 ये बात सारे याफ़ा में मशहूर हो गई, और बहुत सारे "ख़ुदावन्द पर ईमान ले आए।
\v 43 और ऐसा हुआ कि वो बहुत दिन याफ़ा में शमा'ऊन नाम दब्बाग़ के यंहा रहा।
\s5
\c 10
\v 1 क़ैसरिया शहर में कुर्नेलियुस नाम एक शख़्स था। वह सौ फ़ौजियों का सूबेदार था, जो अतालियानी कहलाती है।
\v 2 वो दीनदार था, और अपने सारे घराने समेत ख़ुदा से डरता था, और यहूदियों को बहुत ख़ैरात देता और हर वक़्त ख़ुदा से दु'आ करता था
\s5
\v 3 उस ने तीसरे पहर के क़रीब रोया में साफ़ साफ़ देखा कि ख़ुदा का फ़रिश्ता मेरे पास आकर कहता है, “कुर्नेलियुस!”
\v 4 उसने उस को ग़ौर से देखा और डर कर कहा “ख़ुदावन्द क्या है?” उस ने उस से कहा, “तेरी दु'आएँ और तेरी ख़ैरात यादगारी के लिए ख़ुदा के हुज़ूर पहुँचीं।
\v 5 अब याफ़ा में आदमी भेजकर शमा'ऊन को जो पतरस कहलाता है, बुलवा ले।
\v 6 वो शमा'ऊन दब्बाग़ के यहाँ मेंहमान है, जिसका घर समुन्दर के किनारे है ।”
\s5
\v 7 और जब वो फ़रिश्ता चला गया जिस ने उस से बातें की थी, तो उस ने दो नौकरों को और उन में से जो उसके पास हाज़िर रहा करते थे, एक दीनदार सिपाही को बुलाया।
\v 8 और सब बातें उन से बयान कर के उन्हें याफ़ा में भेजा।
\s5
\v 9 दूसरे दिन जब वो राह में थे, और शहर के नज़दीक पहुँचे तो पतरस दोपहर के क़रीब छत पर दु'आ करने को चढ़ा।
\v 10 और उसे भूख लगी, और कुछ खाना चहता था, लेकिन जब लोग तैयारी कर रहे थे, तो उस पर बेख़ुदी छा गई।
\v 11 और उस ने देखा कि आस्मान खुल गया और एक चीज़ बड़ी चादर की तरह चारों कोनों से लटकती हुई ज़मीन की तरफ़ उतर रही है ।
\v 12 जिसमें ज़मीन के सब क़िस्म के चौपाए, कीड़े मकोड़े और हवा के परिन्दे हैं ।
\s5
\v 13 और उसे एक आवाज़ आई कि ऐ पतरस, उठ ज़बह कर और खा,
\v 14 मगर पतरस ने कहा, “ऐ ख़ुदावन्द हरगिज़ नहीं क्यूँकि में ने कभी कोई हराम या नापाक़ चीज़ नहीं खाई।”
\v 15 फिर दूसरी बार उसे आवाज़ आई, कि “जिनको ख़ुदा ने पाक ठहराया है तू उन्हें हराम न कह”
\v 16 तीन बार ऐसा ही हुआ, और फ़ौरन वो चीज़ आसमान पर उठा ली गई।
\s5
\v 17 जब पतरस अपने दिल में हैरान हो रहा था, कि ये रोया जो में ने देखी क्या है, तो देखो वो आदमी जिन्हें कुर्नेलियुस ने भेजा था, शमा'ऊन के घर पूछ कर के दरवाज़े पर आ खड़े हुए ।
\v 18 और पुकार कर पूछने लगे कि शमा'ऊन जो पतरस कहलाता है? “यही मेंहमान है ”
\s5
\v 19 जब पतरस उस ख़्वाब को सोच रहा था, तो रूह ने उस से कहा देख तीन आदमी तुझे पूछ रहे हैं।
\v 20 पस, उठ कर नीचे जा और बे -खटक उनके साथ हो ले ; क्यूँकि मैं ने ही उनको भेजा है ।
\v 21 पतरस ने उतर कर उन आदमियों से कहा, “देखो जिसको तुम पूछते हो वो मैं ही हूँ तुम किस वजह से आये हो|”
\s5
\v 22 उन्होंने कहा, “कुर्नेलियुस सूबेदार जो रास्तबाज़ और ख़ुदा तरस आदमी और यहूदियों की सारी क़ौम में नेक नाम है उस ने पाक़ फ़रिश्ते से हिदायत पाई कि तुझे अपने घर बुलाकर तुझ से कलाम सुने।”
\v 23 पस उस ने उन्हें अन्दर बुला कर उनकी मेंहमानी की, और दूसरे दिन वो उठ कर उनके साथ रवाना हुआ, और याफ़ा में से कुछ भाई उसके साथ हो लिए।
\s5
\v 24 वो दूसरे रोज़ क़ैसरिया में दाख़िल हुए, और कुर्नेलियुस अपने रिश्तेदारों और दिली दोस्तों को जमा कर के उनकी राह देख रहा था ।
\s5
\v 25 जब पतरस अन्दर आने लगा तो ऐसा हुआ कि कुर्नेलियुस ने उसका इस्तक़बाल किया और उसके क़दमों में गिर कर सिज्दा किया।
\v 26 लेकिन पतरस ने उसे उठा कर कहा खड़ा हो, “ मैं भी तो इन्सान हूँ।”
\s5
\v 27 और उससे बातें करता हुआ अन्दर गया और बहुत से लोगों को इकट्ठा पा कर।
\v 28 उनसे कहा तुम तो जानते हो कि “यहूदी को ग़ैर क़ौम वाले से सोहबत रखना या उसके यहाँ जाना ना जायज़ है मगर "ख़ुदा" ने मुझ पर ज़ाहिर किया कि मैं किसी आदमी को नजिस या नापाक़ न कहूँ।
\v 29 इसी लिए जब मैं बुलाया गया तो बे' उज़्र चला आया, पस अब मैं पूछता हूँ कि मुझे किस बात के लिए बुलाया है ?”
\s5
\v 30 कुर्नेलियुस ने कहा “इस वक़्त पूरे चार रोज़ हुए कि मैं अपने घर तीसरे पहर दु'आ कर रहा था। और क्या देखता हूँ। कि एक शख़्स चमकदार पोशाक पहने हुए मेरे सामने खड़ा हुआ ।”
\v 31 और कहा कि “ऐ'कुर्नेलियुस तेरी दु'आ सुन ली गई और तेरी ख़ैरात की ख़ुदा के हुज़ूर याद हुई।
\v 32 पस किसी को याफ़ा में भेज कर शमा'ऊन को जो पतरस कहलाता है अपने पास बुला, वो समुन्दर के किनारे शमा'ऊन दब्बाग़ के घर में मेंहमान है।
\v 33 पस उसी दम में ने तेरे पास आदमी भेजे और तूने ख़ूब किया जो आ गया, अब हम सब ख़ुदा के हुज़ूर हाज़िर हैं ताकि जो कुछ ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है उसे सुनें।”
\s5
\v 34 पतरस ने ज़बान खोल कर कहा, “अब मुझे पूरा यक़ीन हो गया कि ख़ुदा किसी का तरफ़दार नहीं|
\v 35 बल्कि हर क़ौम में जो उस से डरता और रास्तबाज़ी करता है, वो उसको पसन्द आता है।
\s5
\v 36 जो कलाम उस ने बनी इस्राईल के पास भेजा, जब कि ईसा' मसीह के ज़रिये जो सब का ख़ुदा है, सुलह की ख़ुशख़बरी दी।
\v 37 इस बात को तुम जानते हो जो यूहन्ना के बपतिस्मे की मनादी के बा'द गलील से शुरू होकर तमाम यहूदिया सूबा में मशहूर हो गई ।
\v 38 कि ख़ुदा ने ईसा' नासरी को रूह -उल -क़ुद्दूस और क़ुदरत से किस तरह मसह किया, वो भलाई करता और उन सब को जो इब्लीस के हाथ से ज़ुल्म उठाते थे शिफ़ा देता फिरा, क्यूकि ख़ुदा उसके साथ था।
\s5
\v 39 और हम उन सब कामों के गवाह हैं, जो उस ने यहूदियों के मुल्क और यरूशलीम में किए, और उन्हों ने उस को सलीब पर लटका कर मार डाला ।
\v 40 उस को ख़ुदा ने तीसरे दिन जिलाया और ज़ाहिर भी कर दिया।
\v 41 न कि सारी उम्मत पर बल्कि उन गवाहों पर जो आगे से ख़ुदा के चुने हुए थे, या'नी हम पर जिन्हों ने उसके मुर्दों में से जी उठने कि बा'द उसके साथ खाया पिया।
\s5
\v 42 और उस ने हमें हुक्म दिया कि उम्मत में ऐलान करो और गवाही दो कि ये वही है जो ख़ुदा की तरफ़ से ज़िन्दों और मुर्दों का मुन्सिफ़ मुक़र्रर किया गया।
\v 43 इस शख़्स की सब नबी गवाही देते हैं, कि जो कोई उस पर ईमान लाऐगा, उस के नाम से गुनाहों की मु'आफ़ी हासिल करेगा।”
\s5
\v 44 पतरस ये बातें कह ही रहा था, कि रूह -उल -क़ुद्दूस उन सब पर नाज़िल हुआ, जो कलाम सुन रहे थे।
\v 45 और पतरस के साथ जितने मख़्तून ईमानदार आए थे, वो सब हैरान हुए कि ग़ैर क़ौमों पर भी रूह-उल-क़ुद्दूस की बख़्शिश जारी हुई।
\s5
\v 46 क्यूँकि उन्हें तरह तरह की ज़बानें बोलते और ख़ुदा की तारीफ़ करते सुना; पतरस ने जवाब दिया।
\v 47 “क्या कोई पानी से रोक सकता है, कि बपतिस्मा न पाएँ, जिन्हों ने हमारी तरह रूह -उल -क़ुद्दूस पाया ?”
\v 48 और उस ने हुक्म दिया कि “उन्हें ईसा' मसीह के नाम से बपतिस्मा दिया जाए इस पर उन्हों ने उस से दरख़्वास्त की कि चन्द रोज़ हमारे पास रह।”
\s5
\c 11
\v 1 रसूलों और भाइयों ने जो यहूदिया में थे, सुना कि ग़ैर क़ौमों ने भी ख़ुदा का कलाम क़ुबूल किया है।
\v 2 जब पतरस यरूशलीम में आया तो मख़्तून ईमानदार उस से ये बहस करने लगे
\v 3 “ तू, ना मख़्तूनों ईमानदारों के पास गया और उन के साथ खाना खाया।”
\s5
\v 4 पतरस ने शुरू से वो काम तरतीबवार उन से बयान किया कि।
\v 5 “ मै याफ़ा शहर में दु'आ कर रहा था, और बेख़ुदी की हालत में एक ख़्वाब देखा। कि कोई चीज़ बड़ी चादर की तरह चारों कोनों से लटकती हुई आसमान से उतर कर मुझ तक आई।
\v 6 उस पर जब मैने ग़ौर से नज़र की तो ज़मीन के चौपाए और जंगली जानवर और कीड़े मकौड़े और हवा के परिन्दे देखे।
\s5
\v 7 और ये आवाज़ भी सुनी कि 'ऐ पतरस उठ ज़बह कर और खा!”
\v 8 लेकिन मै ने कहा “ऐ ख़ुदावन्द हरगिज़ नहीं 'क्यूँकि कभी कोई हराम या नापाक चीज़ खाया ही नहीं|”
\v 9 इसके जावाब में दूसरी बार आसमान से आवाज़ आई; “जिनको ख़ुदा ने पाक ठहराया है; तू उन्हें हराम न कह।”
\v 10 तीन बार ऐसा ही हुआ, फिर वो सब चीज़ें आसमान की तरफ़ खींच ली गई ।
\s5
\v 11 और देखो' उसी वक़्त तीन आदमी जो क़ैसरिया से मेरे पास भेजे गए थे, उस घर के पास आ खड़े हुए जिस में हम थे।
\v 12 रूह ने मुझ से कहा कि “तू बिला इम्तियाज़ उनके साथ चला जा और ये छे: भाई भी मेरे साथ हो लिए और हम उस शख़्स के घर में दाख़िल हुए।
\v 13 उस ने हम से बयान किया कि मैने फ़रिश्ते को अपने घर में खड़े हुए देखा'जिसने मुझ से कहा, याफ़ा में आदमी भेजकर शमा'ऊन को बुलवा ले जो पतरस कहलाता है।
\v 14 वो तुझ से ऐसी बातें कहेगा जिससे तू और तेरा सारा घराना नजात पाएगा।
\s5
\v 15 जब मै कलाम करने लगा तो रूह-उल-क़ुद्दूस उन पर इस तरह नाज़िल हुआ जिस तरह शुरू में हम पर नाज़िल हुआ था।”
\v 16 और मुझे ख़ुदावन्द की वो बात याद आई, जो उसने कही थी "यूहन्ना ने तो पानी से बपतिस्मा दिया मगर तुम रूह -उल -क़ुद्दूस से बपतिस्मा पाओगे।
\s5
\v 17 पस जब ख़ुदा ने उस को भी वही ने'मत दी जो हम को ख़ुदावन्द ईसा' मसीह पर ईमान लाकर मिली थी ? तो मै कौन था कि ख़ुदा को रोक सकता |
\v 18 वो ये सुनकर चुप रहे और ख़ुदा की बड़ाई करके कहने लगे, “फिर तो बेशक ख़ुदा ने ग़ैर क़ौमों को भी ज़िन्दगी के लिए तौबा की तौफ़ीक़ दी है।”
\s5
\v 19 पस, जो लोग उस मुसीबत से इधर उधर हो गए थे जो स्तिफ़नुस कि ज़रिये पड़ी थी वो फिरते फिरते फ़ीनेकि सूबा और कुप्रुस टापू और आन्ताकिया शहर में पहूँचे; मगर यहूदियों के सिवा और किसी को कलाम न सुनाते थे।
\v 20 लेकिन उन में से चन्द कुप्रुसी और कुरेनी थे, जो आन्ताकिया में आकर यूनानियों को भी ख़ुदावन्द ईसा' मसीह की ख़ुशख़बरी की बातें सुनाने लगे।
\v 21 और ख़ुदावन्द का हाथ उन पर था और बहुत से लोग ईमान लाकर ख़ुदावन्द की तरफ़ रुजू हुए।
\s5
\v 22 उन लोगों की ख़बर यरूशलीम की कलीसिया के कानों तक पहूँची और उन्हों ने बरनबास को आन्ताकिया तक भेजा।
\v 23 वो पहूँचकर और ख़ुदा का फ़ज़ल देख कर ख़ुश हुआ, और उन सब को नसीहत की कि दिली इरादे से ख़ुदावन्द से लिपटे रहो।
\v 24 क्यूँकि वो नेक मर्द और रूह -उल -क़ुद्दूस और ईमान से मा'मूर था, और बहुत से लोग ख़ुदावन्द की कलीसिया में आ मिले।
\s5
\v 25 फिर वो साऊल की तलाश में तरसुस को चला गया।
\v 26 और जब वो मिला तो उसे आन्ताकिया में लाया और ऐसा हुआ कि वो साल भर तक कलीसिया की जमा'अत में शामिल होते और बहुत से लोगों को ता'लीम देते रहे और शागिर्द पहले आन्ताकिया में ही मसीही कहलाए।
\s5
\v 27 उन ही दिनों में चन्द नबी यरूशलीम से आन्ताकिया में आए ।
\v 28 उन में से एक जिसका नाम अग्बुस था खड़े होकर रूह की हिदायत से ज़ाहिर किया कि तमाम दुनियाँ में बड़ा काल पड़ेगा और क्लदियुस के अहद में वाके हुआ|
\s5
\v 29 पस, शागिर्दों ने तजवीज़ की अपने अपने हैसियत कि मुवाफ़िक़ यहूदियो में रहने वाले भाइयों की ख़िदमत के लिए कुछ भेजें।
\v 30 चुनाँचे उन्होंने ऐसा ही किया और बरनबास और साऊल के हाथ बुज़ुर्गों के पास भेजा ।
\s5
\c 12
\v 1 तक़रीबन उसी वक़्त हेरोदेस बादशाह ने सताने के लिए कलीसिया में से कुछ पर हाथ डाला।
\v 2 और यूहन्ना के भाई या'क़ूब को तलवार से क़त्ल किया।
\s5
\v 3 जब देखा कि ये बात यहूदी अगुवों को पसन्द आई, तो पतरस को भी गिरफ़्तार कर लिया। ये ईद 'ए फ़तीर के दिन थे।
\v 4 और उसको पकड़ कर क़ैद किया और निगहबानी के लिए चार चार सिपाहियों के चार पहरों में रखा इस इरादे से कि फ़सह के बाद उसको लोगों के सामने पेश करे।
\s5
\v 5 पस, क़ैद खाने में तो पतरस की निगहबानी हो रही थी, मगर कलीसिया उसके लिए दिलो ' जान से "ख़ुदा" से दु'आ कर रही थी।
\v 6 और जब हेरोदेस उसे पेश करने को था, तो उसी रात पतरस दो ज़ंजीरों से बंधा हुआ दो सिपाहियों के बीच सोता था, और पहरे वाले दरवाज़े पर क़ैदख़ाने की निगहबानी कर रहे थे।
\s5
\v 7 कि देखो ,ख़ुदावन्द का एक फ़रिश्ता खड़ा हुआ और उस कोठरी में नूर चमक गया और उस ने पतरस की पसली पर हाथ मार कर उसे जगाया और कहा कि “जल्द उठ ! और ज़ंजीरें उसके हाथ से खुल पड़ीं ”।
\v 8 फिर फ़रिश्ते ने उस से कहा, “कमर बाँध और अपनी जूती पहन ले|” उस ने ऐसा ही किया, फिर उस ने उस से कहा, “ अपना चोग़ा पहन कर मेरे पीछे हो ले।”
\s5
\v 9 वो निकल कर उसके पीछे हो लिया, और ये न जाना कि जो कुछ फ़रिश्ते की तरफ़ से हो रहा है वो वाक़'ई है बल्कि ये समझा कि ख़्वाब देख रहा हूँ।
\v 10 पस, वो पहले और दूसरे हल्क़े में से निकलकर उस लोहे के फाटक पर पहुँचे, जो शहर की तरफ़ है। वो आप ही उन के लिए खुल गया, पस वो निकलकर गली के उस किनारे तक गए; और फ़ौरन फ़रिश्ता उस के पास से चला गया।
\s5
\v 11 और पतरस ने होश में आकर कहा कि “अब मैने सच जान लिया कि ख़ुदावन्द ने अपना फ़रिश्ता भेज कर मुझे हेरोदेस के हाथो से छुड़ा लिया, और यहूदी क़ौम की सारी उम्मीद तोड़ दी।”
\v 12 और इस पर ग़ौर कर के उस यूहन्ना की माँ मरियम के घर आया, जो मरक़ुस कहलाता है, वहाँ बहुत से आदमी जमा हो कर दु'आ कर रहे थे।
\s5
\v 13 जब उस ने फाटक की खिड़की खटखटाई, तो रुदी नाम एक लौंडी आवाज़ सुनने आई ।
\v 14 और पतरस की आवाज़ पहचान कर ख़ुशी के मारे फाटक न खोला,बल्कि दौड़कर अन्दर ख़बर की कि “पतरस फाटक पर खड़ा है!”
\v 15 उन्हों ने उस से कहा , “ तू दिवानी है लेकिन वो यक़ीन से कहती रही कि यूँ ही है!” उन्होंने कहा कि “उसका फ़रिश्ता होगा ।”
\s5
\v 16 मगर पतरस खटखटाता रहा पस, उन्हों ने खिड़की खोली और उस को देख कर हैरान हो गए ।
\v 17 उस ने उन्हें हाथ से इशारा किया कि चुप रहें। “और उन से बयान किया कि ख़ुदावन्द ने मुझे इस तरह क़ैदख़ाने से निकाला ”फिर कहा कि या'क़ूब और भाइयों को इस बात की ख़बर देना, और रवाना होकर दूसरी जगह चला गया।
\s5
\v 18 जब सुबह हुई तो सिपाही बहुत घबराए, कि पतरस क्या हुआ ।
\v 19 जब हेरोदेस ने उस की तलाश की और न पाया तो पहरे वालों की तहक़ीक़ात करके उनके क़त्ल का हुक्म दिया; और यहूदिया सूबे को छोड़ कर क़ैसरिया शहर में जा बसा।
\s5
\v 20 और वो सूर और सैदा के लोगों से निहायत नाख़ुश था, पस वो एक दिल हो कर उसके पास आए, और बादशाह के दरबान बलस्तुस को अपनी तरफ़ करके सुलह चाही, इसलिए कि उन के मुल्क को बादशाह के मुल्क से इम्दाद पहुँचती थी।
\v 21 पस, हेरोदेस एक दिन मुक़रर्र करके और शाहाना पोशाक पहन कर तख़्त- ए ,अदालत पर बैठा, और उन से कलाम करने लगा।
\s5
\v 22 लोग पुकार उठे कि “ये तो "ख़ुदा" की आवाज़ है न इन्सान की।”
\v 23 उसी वक़्त "ख़ुदा" के फ़रिश्ते ने उसे मारा; इसलिए कि उस ने "ख़ुदा" की बड़ाई नहीं की और वो कीड़े पड़ कर मर गया।
\s5
\v 24 मगर "ख़ुदा" का कलाम तरक़्क़ी करता और फैलता गया।
\v 25 और बरनबास और साऊल अपनी ख़िदमत पूरी करके और यूहन्ना को जो मरकुस कहलाता है साथ लेकर, यरूशलीम से वापस आए।
\s5
\c 13
\v 1 अन्ताकिया में उस कलीसिया के मुताअ'ल्लिक़ जो वहाँ थी, कई नबी और मु'अल्लिम थे या'नी बरनबास और शमा'ऊन जो काला कहलाता है, और लुकियुस कुरेनी और मनाहेम जो चौथाई मुल्क के हाकिम हेरोदेस के साथ पला था, और साऊल।
\v 2 जब वो ख़ुदावन्द की इबादत कर रहे और रोज़े रख रहे थे, तो रूह-उल-क़ुद्दूस ने कहा, “मेरे लिए बरनबास और साऊल को उस काम के वास्ते मख़्सूस कर दो जिसके वास्ते में ने उनको बुलाया है।”
\v 3 तब उन्हों ने रोज़ा रख कर और दु'आ करके और उन पर हाथ रखकर उन्हें रुख़्सत किया ।
\s5
\v 4 पस, वो रूह-उल-क़ुद्दूस के भेजे हुए सिलोकिया को गए, और वहाँ से जहाज़ पर कुप्रुस को चले।
\v 5 और सलमीस शहर में पहुँचकर यहूदियों के इबादतख़ानों में "ख़ुदा" का कलाम सुनाने लगे और यूहन्ना उनका ख़ादिम था।
\s5
\v 6 और उस तमाम टापू में होते हुए पाफ़ुस शहर तक पहुँचे वहाँ उन्हें एक यहूदी जादूगर और झूठा नबी बरयिसू नाम का मिला।
\v 7 वो सिरगियुस पौलुस सूबेदार के साथ था जो सहिब-ए-तमीज़ आदमी था, इस ने बरनबास और साऊल को बुलाकर "ख़ुदा" का कलाम सुनना चाहा।
\v 8 मगर इलीमास जादूगर ने (यही उसके नाम का तर्जुमा है), उनकी मुख़ालिफ़त की और सूबेदार को ईमान लाने से रोकना चाहा ।
\s5
\v 9 और साऊल ने जिसका नाम पौलुस भी है रूह-उल-क़ुद्दूस से भर कर उस पर ग़ौर से देखा ।
\v 10 और कहा "ऐ इब्लीस की औलाद “तू तमाम मक्कारी और शरारत से भरा हुआ और हर तरह की नेकी का दुश्मन है। क्या "ख़ुदावन्द" के सीधे रास्तों को बिगाड़ने से बाज़ न आएगा
\s5
\v 11 अब देख तुझ पर "ख़ुदावन्द" का ग़ज़ब है ”और तू अन्धा होकर कुछ मुद्दत तक सूरज को न देखे गा। उसी वक़्त अँधेरा उस पर छा गया, और वो ढूँढता फिरा कि कोई उसका हाथ पकड़कर ले चले।
\v 12 तब सूबेदार ये माजरा देखकर और "ख़ुदावन्द" की तालीम से हैरान हो कर ईमान ले आया ।
\s5
\v 13 फिर पौलुस और उसके साथी पाफ़ुस शहर से जहाज़ पर रवाना होकर पम्फ़ीलिया मुल्क के पिरगा शहर में आए; और यूहन्ना उनसे जुदा होकर यरूशलीम को वापस चला गया।
\v 14 और वो पिरगा शहर से चलकर पिसदिया मुल्क के अन्ताकिया शहर में पहुँचे, और सबत के दिन इबादतख़ाने में जा बैठे।
\v 15 फिर तौरेत और नबियों की किताब पढ़ने के बा'द इबादतख़ाने के सरदारों ने उन्हें कहला भेजा “ऐ भाइयों अगर लोगों की नसीहत के वास्ते तुम्हारे दिल में कोई बात हो तो बयान करो।”
\s5
\v 16 पस, पौलुस ने खड़े होकर और हाथ से इशारा करके कहा “ऐ इस्राईलियो और "ऐ "ख़ुदा"से डरनेवाले सुनो!
\v 17 इस उम्मत इस्राईल के "ख़ुदा" ने हमारे बाप दादा को चुन लिया और जब ये उम्मत मुल्के मिस्र में परदेसियों की तरह रहती थी, उसको सरबलन्द किया और ज़बरदस्त हाथ से उन्हें वहाँ से निकाल लाया।
\v 18 और कोई चालीस बरस तक वीरानों में उनकी आदतों की बर्दाश्त करता रहा,।
\s5
\v 19 और कना'न के मुल्क में सात क़ौमों को लूट करके तक़रीबन साढ़े चार सौ बरस में उनका मुल्क इन की मीरास कर दिया।
\v 20 और इन बातों के बा'द शमुएल नबी के ज़माने तक उन में क़ाज़ी मुक़रर्र किए।
\s5
\v 21 इस के बा'द उन्हों ने बादशाह के लिए दरख़्वास्त की और ख़ुदा ने बिनयामीन के क़बीले में से एक शख़्स साऊल क़ीस के बेटे को चालीस बरस के लिए उन पर मुक़रर्र किया।
\v 22 फिर उसे हटा करके दाऊद को उन का बादशाह बनाया। जिसके बारे में उस ने ये गवाही दी‘कि मुझे एक शख़्स यस्सी का बेटा दाऊद मेरे दिल के मु'वाफ़िक़ मिल गया। वही मेरी तमाम मर्ज़ी को पूरा करेगा
\s5
\v 23 इसी की नस्ल में से "ख़ुदा" ने अपने वा'दे के मुताबिक इस्राईल के पास एक मुंन्जी या'नी ईसा' को भेज दिया ।
\v 24 जिस के आने से पहले यहून्ना ने इस्राईल की तमाम उम्मत के सामने तौबा के बपतिस्मे का ऐलान किया ।
\v 25 और जब युहन्ना अपना दौर पूरा करने को था, तो उस ने कहा कि तुम मुझे क्या समझते हो?‘में वो नहीं बल्कि देखो मेरे बा'द वो शख़्स आने वाला है, जिसके पाँव की जूतियों का फीता मैं खोलने के लायक़ नहीं ।’
\s5
\v 26 ऐ भाइयों! अब्रहाम के बेटो और ऐ ख़ुदा से डरने वालों इस नजात का कलाम हमारे पास भेजा गया।
\v 27 क्यूँकि यरूशलीम के रहने वालों और उन के सरदारों ने न उसे पहचाना और न नबियों की बातें समझीं, जो हर सबत को सुनाई जाती हैं। इस लिए उस पर फ़त्वा देकर उनको पूरा किया।
\s5
\v 28 और अगरचे उस के क़त्ल की कोई वजह न मिली तोभी उन्हों ने पीलातुस से उसके क़त्ल की दरख़्वास्त की।
\v 29 और जो कुछ उसके हक़ में लिखा था, जब उसको तमाम कर चुके तो उसे सलीब पर से उतार कर क़ब्र में रख्खा।
\s5
\v 30 लेकिन "ख़ुदा" ने उसे मुर्दों में से जिलाया।
\v 31 और वो बहुत दिनों तक उनको दिखाई दिया, जो उसके साथ गलील से यरूशलीम आए थे, उम्मत के सामने अब वही उसके गवाह हैं।
\s5
\v 32 और हम तुमको उस वा'दे के बारे में जो बाप दादा से किया गया था, ये ख़ुशख़बरी देते हैं।
\v 33 कि "ख़ुदा" ने ईसा' को जिला कर हमारी औलाद के लिए उसी वा'दे को पूरा किया‘ चुनांचे दूसरे मज़मूर में लिखा है, कि तू मेरा बेटा है, आज तू मुझ से पैदा हुआ।
\v 34 और उसके इस तरह मुर्दों में से जिलाने के बारे में फिर कभी न मरे और उस ने यूँ कहा, कि मैं दाऊद की पाक़ और सच्ची ने'अमतें तुम्हें दूँगा।’
\s5
\v 35 चुनाचे वो एक और मज़मूर में भी कहता है, कि तू अपने मुक़द्दस के सड़ने की नौबत पहुँचने न देगा‘।’
\v 36 क्यूँकि दाऊद तो अपने वक़्त में "ख़ुदा" की मर्ज़ी के ताबे' दार रह कर सो गया, और अपने बाप दादा से जा मिला, और उसके सड़ने की नौबत पहुँची।
\v 37 मगर जिसको "ख़ुदा" ने जिलाया उसके सड़ने की नौबत न पहुँची।
\s5
\v 38 पस, ऐ भाइयो! तुम्हें मा' लूम हो कि उसी के वसीले से तुम को गुनाहों की मु'आफ़ी की ख़बर दी जाती है। ,
\v 39 और मूसा की शरी' अत के ज़रिये जिन बातों से तुम बरी नहीं हो सकते थे, उन सब से हर एक ईमान लाने वाला उसके जरिए बरी होता है।
\s5
\v 40 पस, ख़बरदार! ऐसा न हो कि जो नबियों की किताब में आया है वो तुम पर सच आए।
\v 41 ऐ तहकीर करने वालों, देखो, तअ'ज्जुब करो और मिट जाओ: क्यूँकि में तुम्हारे ज़माने में एक काम करता हूँ ऐसा काम कि अगर कोई तुम से बयान करे तो कभी उसका यक़ीन न करोगे।”
\s5
\v 42 उनके बाहर जाते वक़्त लोग मिन्नत करने लगे कि अगले सबत को भी ये बातें सुनाई जाएँ।
\v 43 जब मजलिस ख़त्म हुई तो बहुत से यहूदी और ख़ुदा परस्त नए मुरीद यहूदी पौलुस और बरनबास के पीछे हो लिए, उन्हों ने उन से कलाम किया और तरग़ीब दी कि ख़ुदा के फ़ज़ल पर क़ायम रहो।
\s5
\v 44 दूसरे सबत को तक़रीबन सारा शहर "ख़ुदा" का कलाम सुनने को इकट्ठा हुआ।
\v 45 मगर यहूदी इतनी भीड़ देखकर हसद से भर गए, और पौलुस की बातों की मुख़ालिफ़त करने और कुफ़्र बकने लगे।
\s5
\v 46 पौलुस और बरनबास दिलेर होकर कहने लगे" ज़रुर था, कि "ख़ुदा" का कलाम पहले तुम्हें सुनाया जाए; लेकिन चूँकि तुम उसको रद्द करते हो | और अपने आप को हमेशा की ज़िन्दगी के नाक़ाबिल ठहराते हो, तो देखो हम ग़ैर क़ौमों की तरफ़ मुत्वज्जह होते हैं।
\v 47 क्यूँकि ख़ुदा ने हमें ये हुक्म दिया है कि “मैने तुझ को ग़ैर क़ौमों के लिए नूर मुक़र्रर किया'ताकि तू ज़मीन की इन्तिहा तक नजात का ज़रिया हो।”
\s5
\v 48 ग़ैर क़ौम वाले ये सुनकर ख़ुश हुए और "ख़ुदा" के कलाम की बड़ाई करने लगे, और जितने हमेशा की ज़िन्दगी के लिए मुक़र्ऱर किए गए थे, ईमान ले आए।
\v 49 और उस तमाम इलाक़े में "ख़ुदा" का कलाम फैल गया।
\s5
\v 50 मगर यहूदियों ने "ख़ुदा" परस्त और इज़्ज़त दार औरतों और शहर के रईसों को उभारा और पौलुस और बरनबास को सताने पर आमादा करके उन्हें अपनी सरहदों से निकाल दिया।
\v 51 ये अपने पाँव की ख़ाक उनके सामने झाड़ कर इकुनियुम शहर को गए ।
\v 52 मगर शागिर्द ख़ुशी और रूह-उल-क़ुद्दूस से भरते रहे।
\s5
\c 14
\v 1 और इकुनियुम में ऐसा हुआ कि वो साथ साथ यहूदियों के इबादत ख़ाने में गए। और ऐसी तक़रीर की कि यहूदियों और यूनानियों दोनों की एक बड़ी जमा'अत ईमान ले आई।
\v 2 मगर नाफ़रमान यहूदियों ने ग़ैर क़ौमों के दिलों में जोश पैदा करके उनको भाइयों की तरफ़ बदगुमान कर दिया।
\s5
\v 3 पस, वो बहुत ज़माने तक वहाँ रहे, और ख़ुदावन्द के भरोसे पर हिम्मत से कलाम करते थे, और वो उनके हाथों से निशान और अजीब काम कराकर, अपने फ़ज़ल के कलाम की गवाही देता था।
\v 4 लेकिन शहर के लोगों में फूट पड़ गई।कुछ यहूदियों की तरफ़ हो गए।कुछ रसूलों की तरफ़।
\s5
\v 5 मगर जब ग़ैर क़ौम वाले और यहूदी उन्हें बे'इज़्ज़त और पथराव करने को अपने सरदारों समेत उन पर चढ़ आए।
\v 6 तो वो इस से वाक़िफ़ होकर लुकाउनिया मुल्क के शहरों लुस्तरा और दिरबे और उनके आस-पास में भाग गए।
\v 7 और वहाँ ख़ुशख़बरी सुनाते रहे।
\s5
\v 8 और लुस्तरा में एक शख़्स बैठा था, जो पाँव से लाचार था। वो पैदाइशी लंगड़ा था, और कभी न चला था।
\v 9 वो पौलुस को बातें करते सुन रहा था। और जब इस ने उसकी तरफ़ ग़ौर करके देखा कि उस में शिफ़ा पाने के लायक़ ईमान है।
\v 10 तो बड़ी आवाज़ से कहा कि “अपने पाँव के बल सीधा खड़ा हो पस, वो उछल कर चलने फिरने लगा|”
\s5
\v 11 लोगों ने पौलुस का ये काम देखकर लुकाउनिया की बोली में बुलन्द आवाज़ से कहा “कि आदमियों की सूरत में देवता उतर कर हमारे पास आए हैं
\v 12 और उन्होंने बरनबास को ज़ियूस कहा, और पौलुस को हरमेस इसलिए कि ये कलाम करने में सबक़त रखता था।
\v 13 और ज़ियूस कि उस मन्दिर का पुजारी जो उनके शहर के सामने था, बैल और फ़ूलों के हार फाटक पर लाकर लोगों के साथ क़ुर्बानी करना चहता था।”
\s5
\v 14 जब बरनबास और पौलुस रसूलों ने ये सुना तो अपने कपड़े फाड़ कर लोगों में जा कूदे, और पुकार पुकार कर।
\v 15 कहने लगे ,लोगो तुम ये क्या करते हो ? हम भी तुमहारे हम तबी'अत इन्सान हैं और तुम्हें ख़ुशख़बरी सुनाते हैं ताकि इन बातिल चीज़ों से किनारा करके ज़िन्दा "ख़ुदा" की तरफ़ फिरो, जिस ने आसमान और ज़मीन और समुन्दर और जो कुछ उन में है, पैदा किया।
\v 16 उस ने अगले ज़माने में सब क़ौमों को अपनी अपनी राह पर चलने दिया।
\s5
\v 17 तोभी उस ने अपने आप को बेगवाह न छोड़ा। चुनाचे, उस ने महरबानियाँ कीं और आसमान से तुम्हारे लिए पानी बरसाया और बड़ी बड़ी पैदावार के मौसम अता' किए और तुम्हारे दिलों को ख़ुराक और ख़ुशी से भर दिया ।
\v 18 ये बातें कहकर भी लोगों को मुश्किल से रोका कि उन के लिए क़ुर्बानी न करें।
\s5
\v 19 फिर कुछ यहूदी अन्ताकिया और इकुनियुम से आए और लोगों को अपनी तरफ़ करके पौलुस पर पथराव किया और उसको मुर्दा समझकर शहर के बाहर घसीट ले गए।
\v 20 मगर जब शागिर्द उसके आस पास आ खड़े हुए, तो वो उठ कर शहर में आया, और दूसरे दिन बरनबास के साथ दिरबे शहर को चला गया।
\s5
\v 21 और वो उस शहर में ख़ुशख़बरी सुना कर और बहुत से शागिर्द करके लुस्तरा और इकुनियुम और अन्ताकिया को वापस आए।
\v 22 और शागिर्दों के दिलों को मज़बूत करते, और ये नसीहत देते थे, कि ईमान पर क़ायम रहो और कहते थे “ज़रुर है कि हम बहुत मुसीबतें सहकर "ख़ुदा" की बादशाही में दाख़िल हों।”
\s5
\v 23 और उन्होंने हर एक कलीसिया में उनके लिए बुज़ुर्गों को मुक़र्रर किया और रोज़ा रखकर और दु'आ करके उन्हें "ख़ुदावन्द" के सुपुर्द किया, जिस पर वो ईमान लाए थे।
\v 24 और पिसदिया मुल्क में से होते हुए पम्फ़ीलिया मुल्क में पहुँचे।
\v 25 और पिरगे में कलाम सुनाकर अत्तलिया को गए।
\v 26 और वहाँ से जहाज़ पर उस अन्ताकिया में आए, जहाँ उस काम के लिए जो उन्होंने अब पूरा किया ख़ुदा के फ़ज़ल के सुपुर्द किए गए थे।
\s5
\v 27 वहाँ पहुँचकर उन्होंने कलीसिया को जमा किया और उन के सामने बयान किया कि "ख़ुदा" ने हमारे ज़रिये क्या कुछ किया और ये कि उस ने ग़ैर क़ौमों के लिए ईमान का दरवाज़ा खोल दिया।
\v 28 और वो ईमानदारों के पास मुद्दत तक रहे।
\s5
\c 15
\v 1 फिर कुछ लोग यहूदिया से आ कर भाइयों को यह तालीम देने लगे, “ज़रूरी है कि आप का मूसा की शरी'अत के मुताबिक़ ख़तना किया जाए, वर्ना आप नजात नहीं पा सकेंगे।”
\v 2 पस, जब पौलुस और बरनबास की उन से बहुत तकरार और बहस हुई तो कलीसिया ने ये ठहराया कि पौलुस और बरनबास और उन में से चन्द शख़्स इस मस्ले के लिए रसूलों और बुज़ुर्गों के पास यरूशलीम जाएँ।
\s5
\v 3 पस, कलीसिया ने उनको रवाना किया और वो ग़ैर क़ौमों को रुजू लाने का बयान करते हुए फ़ीनेके और सामरिया सूबे से गुज़रे और सब भाइयों को बहुत ख़ुश करते गए।
\v 4 जब यरूशलीम में पहुँचे तो कलीसिया और रसूल और बुज़ुर्ग उन से ख़ुशी के साथ मिले। और उन्हों ने सब कुछ बयान किया जो "ख़ुदा" ने उनके ज़रीये किया था।
\s5
\v 5 मगर फ़रीसियों के फ़िर्क़े में से जो ईमान लाए थे, उन में से कुछ ने उठ कर कहा “कि उनका ख़तना कराना और उनको मूसा की शरी'अत पर अमल करने का हुक्म देना ज़रूरी है।”
\v 6 पस, रसूल और बुज़ुर्ग इस बात पर ग़ौर करने के लिए जमा हुए।
\s5
\v 7 और बहुत बहस के बा'द पतरस ने खड़े होकर उन से कहा कि “ऐ भाइयों तुम जानते हो कि बहुत अर्सा हुआ जब "ख़ुदा" ने तुम लोगों में से मुझे चुना कि ग़ैर क़ौमें मेरी ज़बान से ख़ुशखबरी का कलाम सुनकर ईमान लाएँ।
\v 8 और "ख़ुदा" ने जो दिलों को जानता है उनको भी हमारी तरह रूह -उल -क़ुद्दूस दे कर उन की गवाही दी।
\v 9 और ईमान के वसीले से उन के दिल पाक करके हम में और उन में कुछ फ़र्क़ न रख्खा ।
\s5
\v 10 पस, अब तुम शागिर्दों की गर्दन पर ऐसा जुआ रख कर जिसको न हमारे बाप दादा उठा सकते थे, न हम "ख़ुदा" को क्यूँ आज़माते हो?
\v 11 हालाँकि हम को यक़ीन है कि जिस तरह वो "ख़ुदावन्द" ईसा' के फ़ज़ल ही से नजात पाएँगे, उसी तरह हम भी पाँएगे।
\s5
\v 12 फिर सारी जमा'अत चुप रही और पौलुस और बरनबास का बयान सुनने लगी, कि "ख़ुदा" ने उनके ज़रिये ग़ैर क़ौमों में कैसे कैसे निशान और अजीब काम ज़हिर किए।
\s5
\v 13 जब वो ख़ामोश हुए तो या'क़ूब कहने लगा कि "ऐ भाइयो मेरी सुनो!”
\v 14 शमा'ऊन ने बयान किया कि "ख़ुदा" ने पहले ग़ैर क़ौमों पर किस तरह तवज्जह की ताकि उन में से अपने नाम की एक उम्मत बना ले।
\s5
\v 15 और नबियों की बातें भी इस के मुताबिक़ हैं। चुनाँचे लिखा है कि।
\v 16 इन बातों के बाद मैं फिर आकर दाऊद के गिरे हुए खेमों को उठाऊँगा, और उस के फ़टे टूटे की मरम्मत करके उसे खड़ा करूँगा।
\v 17 ताकि बाक़ी आदमी या'नी सब क़ौमें जो मेरे नाम की कहलाती हैं ख़ुदावन्द को तलाश करें'
\v 18 ये वही "ख़ुदावन्द" फ़रमाता है जो दुनिया के शुरू से इन बातों की ख़बर देता आया है।
\s5
\v 19 पस, मेरा फ़ैसला ये है, कि जो ग़ैर क़ौमों में से ख़ुदा की तरफ़ रुजू होते हैं हम उन्हें तकलीफ़ न दें।
\v 20 मगर उन को लिख भेजें कि बुतों की मकरूहात और हरामकारी और गला घोंटे हुए जानवरों और लहू से परहेज़ करें।
\v 21 क्यूँकि पुराने ज़माने से हर शहर में मूसा की तौरेत का ऐलान करने वाले होते चले आए हैं :और वो हर सबत को इबादतख़ानों में सुनायी जाती हैं।
\s5
\v 22 इस पर रसूलों और बुज़ुर्गों ने सारी कलीसिया समेत मुनासिब जाना कि अपने में से चंद शख़्स चुन कर पौलुस और बरनबास के साथ अन्ताकिया को भेजें, या'नी यहूदाह को जो बरसब्बा कहलाता है। और सीलास को ये शख़्स भाइयों में मुक़द्दम थे।
\v 23 और उनके हाथ ये लिख भेजा कि "अन्ताकिया और सूरिया और किलकिया के रहने वाले भाइयों को जो ग़ैर क़ौमों में से हैं। रसूलों और बुज़ुर्ग भाइयों का सलाम पहूँचे “!
\s5
\v 24 चूँकि हम ने सुना है, कि कुछ ने हम में से जिनको हम ने हुक्म न दिया था, वहाँ जाकर तुम्हें अपनी बातों से घबरा दिया। और तुम्हारे दिलों को उलट दिया।
\v 25 इसलिए हम ने एक दिल होकर मुनासिब जाना कि कुछ चुने हुए आदमियों को अपने अज़ीज़ों बरनबास और पौलुस के साथ तुम्हारे पास भेजें।
\v 26 ये दोनों ऐसे आदमी हैं, जिन्होंने अपनी जानें हमारे "ख़ुदावन्द" ईसा' मसीह के नाम पर निसार कर रख्खी हैं।
\s5
\v 27 चुनांचे हम ने यहूदाह और सीलास को भेजा है, वो यही बातें ज़बानी भी बयान करेंगे।
\v 28 क्यूँकि रूह-उल-क़ुद्दूस ने और हम ने मुनासिब जाना कि इन ज़रुरी बातों के सिवा तुम पर और बोझ न डालें
\v 29 कि तुम बुतों की क़ुर्बानियों के गोश्त से और लहू और गला घोंटे हुए जानवरों और हरामकारी से परहेज़ करो। अगर तुम इन चीजों से अपने आप को बचाए रख्खोगे, तो सलामत रहोगे, वस्सलाम।”
\s5
\v 30 पस, वो रुख़्सत होकर अन्ताकिया में पहुँचे और जमा'अत को इकट्ठा करके ख़त दे दिया।
\v 31 वो पढ़ कर उसके तसल्ली बख़्श मज़्मून से ख़ुश हुए।
\v 32 और यहूदाह और सीलास ने जो ख़ुद भी नबी थे, भाइयों को बहुत सी नसीहत करके मज़बूत कर दिया।
\s5
\v 33 वो चँद रोज़ रह कर और भाइयों से सलामती की दु'आ लेकर अपने भेजने वालों के पास रुख़्सत कर दिए गए।
\v 34 [लेकिन सीलास को वहाँ ठहरना अच्छा लगा।]
\v 35 मगर पौलुस और बरनबास अन्ताकिया ही में रहे: और बहुत से और लोगों के साथ "ख़ुदावन्द" का कलाम सिखाते और उस का ऐलान करते रहे।
\s5
\v 36 चँद रोज़ बा'द पौलुस ने बरनबास से कहा “कि जिन जिन शहरों में हम ने "ख़ुदा" का कलाम सुनाया था, आओ फिर उन में चलकर भाइयों को देखें कि कैसे हैं।”
\v 37 और बरनबास की सलाह थी कि यूहन्ना को जो मरक़ुस कहलाता है। अपने साथ ले चलें।
\v 38 मगर पौलुस ने ये मुनासिब न जाना, कि जो शख़्स पम्फ़ीलिया में किनारा करके उस काम के लिए उनके साथ न गया था ; उस को हमराह ले चलें।
\s5
\v 39 पस, उन में ऐसी सख़्त तकरार हुई; कि एक दूसरे से जुदा हो गए। और बरनबास मरक़ुस को ले कर जहाज़ पर कुप्रुस को रवाना हुआ।
\v 40 मगर पौलुस ने सीलास को पसन्द किया, और भाइयों की तरफ़ से ख़ुदावन्द के फ़ज़ल के सुपुर्द हो कर रवाना किया।
\v 41 और कलीसिया को मज़बूत करता हुआ सूरिया और किलकिया से गुज़रा।
\s5
\c 16
\v 1 फिर वो दिरबे और लुस्तरा में भी पहूँचा। तो देखो वहाँ तीमुथियूस नाम का एक शागिर्द था। उसकी माँ तो यहूदी थी जो ईमान ले आई थी,मगर उसका बाप यूनानी था।
\v 2 वो लुस्तरा और इकुनियूम के भाइयों में नेक नाम था।
\v 3 पौलुस ने चाहा कि ये मेरे साथ चले। पस, उसको लेकर उन यहूदियों की वजह से जो उस इलाके में थे, उसका ख़तना कर दिया क्यूँकि वो सब जानते थे, कि इसका बाप यूनानी है।
\s5
\v 4 और वो जिन जिन शहरों में से गुज़रते थे, वहाँ के लोगों को वो अहकाम अमल करने के लिए पहुँचाते जाते थे, जो यरूशलीम के रसूलों और बुज़ुर्गों ने जारी किए थे।
\v 5 पस, कलीसियाएँ ईमान में मज़बूत और शुमार में रोज़-ब-रोज़ ज़्यादा होती गईं।
\s5
\v 6 और वो फ़रोगिया और गलतिया सूबे के इलाक़े में से गुज़रे, क्यूँकि रूह-उल-क़ुद्दूस ने उन्हें आसिया में कलाम सुनाने से मना किया।
\v 7 और उन्होंने मूसिया के क़रीब पहुँचकर बितूनिया सूबे में जाने की कोशिश की मगर ईसा' की रूह ने उन्हें जाने न दिया।
\v 8 पस, वो मूसिया से गुज़र कर त्रोआस शहर में आए।
\s5
\v 9 और पौलुस ने रात को ख़्वाब में देखा कि एक मकिदुनी आदमी खड़ा हुआ, उस की मिन्नत करके कहता है कि “पार उतर कर मकिदुनिया में आ, और हमारी मदद कर!”
\v 10 उस का ख़्वाब देखते ही हम ने फ़ौरन मकिदुनिया में जाने का ईरादा किया, क्यूँकि हम इस से ये समझे कि "ख़ुदा" ने उन्हें ख़ुशख़बरी देने के लिए हम को बुलाया है।
\s5
\v 11 पस, त्रोआस शहर से जहाज़ पर रवाना होकर हम सीधे सुमत्राकि टापू में और दूसरे दिन नियापुलिस शहर में आए।
\v 12 और वहाँ से फ़िलिप्पी शहर में पहुँचे, जो मकिदुनिया का सूबा में है और उस क़िस्मत का सद्र और रोंमियों की बस्ती है और हम चँद रोज़ उस शहर में रहे।
\v 13 और सबत के दिन शहर के दरवाज़े के बाहर नदी के किनारे गए, जहाँ समझे कि दु'आ करने की जगह होगी और बैठ कर उन औरतों से जो इकट्ठी हुई थीं, कलाम करने लगे।
\s5
\v 14 और थुआतीरा शहर की एक ख़ुदा परस्त औरत लुदिया नाम की, किर्मिज़ बेचने वाली भी सुनती थी, उसका दिल ख़ुदावन्द ने खोला ताकि पौलुस की बातों पर तवज्जुह करे।
\v 15 और जब उस ने अपने घराने समेत बपतिस्मा लिया तो मिन्नत कर के कहा कि "अगर तुम मुझे ख़ुदावन्द की ईमानदार बन्दी समझते हो तो चल कर मेरे घर में रहो" पस, उसने हमें मजबूर किया।
\s5
\v 16 जब हम दु'आ करने की जगह जा रहे थे, तो ऐसा हुआ कि हमें एक लौंडी मिली जिस में पोशीदा रूहै थी, वो ग़ैब गोई से अपने मालिकों के लिए बहुत कुछ कमाती थी।
\v 17 वो पौलुस के, और हमारे पीछे आकर चिल्लाने लगी “कि ये आदमी "ख़ुदा" के बन्दे हैं जो तुम्हें नजात की राह बताते हैं।”
\v 18 वो बहुत दिनों तक ऐसा ही करती रही । आख़िर पौलुस सख़्त रंजीदा हुआ और फिर कर उस रूह से कहा कि "मैं तुझे ईसा' मसीह के नाम से हुक्म देता हूँ “कि इस में से निकल जा!”वो उसी वक़्त निकल गई।
\s5
\v 19 जब उस के मालिकों ने देखा कि हमारी कमाई की उम्मीद जाती रही तो पौलुस और सीलास को पकड़कर हाकिमों के पास चौक में खींच ले गए।
\v 20 और उन्हें फ़ौजदारी के हाकिमों के आगे ले जा कर कहा “कि ये आदमी जो यहूदी हैं हमारे शहर में बड़ी खलबली डालते हैं।
\v 21 और "ऐसी रस्में बताते हैं, जिनको क़ुबूल करना और अमल में लाना हम रोंमियों को पसंद नहीं ।”
\s5
\v 22 और आम लोग भी मुत्तफ़िक़ होकर उनकी मुख़ालिफ़त पर आमादा हुए, और फ़ौजदारी के हाकिमों ने उन के कपड़े फ़ाड़कर उतार डाले और बेंत लगाने का हुक्म दिया
\v 23 और बहुत से बेंत लगवाकर उन्हें क़ैद ख़ाने में डाल दिया, और दरोग़ा को ताकीद की कि बड़ी होशियारी से उनकी निगहबानी करे।
\v 24 उस ने ऐसा हुक्म पाकर उन्हें अन्दर के क़ैद ख़ाने में डाल दिया, और उनके पाँव काठ में ठोंक दिए।
\s5
\v 25 आधी रात के क़रीब पौलुस और सीलास दु'आ कर रहे और "ख़ुदा" की हम्द के गीत गा रहे थे, और क़ैदी सुन रहे थे।
\v 26 कि यकायक बड़ा भूचाल आया, यहाँ तक कि क़ैद ख़ाने की नींव हिल गई और उसी वक़्त सब दरवाज़े खुल गए और सब की बेड़ियाँ ख़ुल पड़ीं ।
\s5
\v 27 और दरोग़ा जाग उठा, और क़ैद ख़ाने के दरवाज़े खुले देखकर समझा कि क़ैदी भाग गए, पस, तलवार खींचकर अपने आप को मार डालना चाहा।
\v 28 लेकिन पौलुस ने बड़ी आवाज़ से पुकार कर कहा “अपने को नुक़्सान न पहुँचा! क्यूँकि हम सब मौजूद हैं।”
\s5
\v 29 वो चराग़ मँगवा कर अन्दर जा कूदा । और काँपता हुआ पौलुस और सीलास के आगे गिरा।
\v 30 और उन्हें बाहर ला कर कहा “ऐ साहिबो में क्या करूं कि नजात पाँऊं?”
\v 31 उन्होंने कहा, "ख़ुदावन्द ईसा' पर ईमान ला “तो तू और तेरा घराना नजात पाएगा।”
\s5
\v 32 और उन्हों ने उस को और उस के सब घरवालों को "ख़ुदावन्द" का कलाम सुनाया।
\v 33 और उस ने रात को उसी वक़्त उन्हें ले जा कर उनके ज़ख़्म धोए और उसी वक़्त अपने सब लोगों के साथ बपतिस्मा लिया।
\v 34 और उन्हें ऊपर घर में ले जा कर दस्तरख़्वान बिछाया, और अपने सारे घराने समेत "ख़ुदा" पर ईमान ला कर बड़ी ख़ुशी की।
\s5
\v 35 जब दिन हुआ, तो फ़ौजदारी के हाकिमों ने हवालदारों के ज़रिये कहला भेजा कि उन आदमियों को छोड़ दे।
\v 36 और दरोग़ा ने पौलुस को इस बात की ख़बर दी कि फ़ौजदारी के हाकिमों ने तुम्हारे छोड़ देने का हुक्म भेज दिया है “पस अब निकल कर सलामत चले जाओ।”
\s5
\v 37 मगर पौलुस ने उससे कहा, "उन्होंने हम को जो रोमी हैं क़ुसूर साबित किए बग़ैर “ऐलानिया पिटवाकर क़ैद में डाला।और अब हम को चुपके से निकालते हैं? ये नहीं हो सकता; बल्कि वो आप आकर हमें बाहर ले जाएँ।”
\v 38 हवालदारों ने फ़ौजदारी के हाकिमों को इन बातों की ख़बर दी। जब उन्हों ने सुना कि ये रोमी हैं तो डर गए।
\v 39 और आकर उन की मिन्नत की और बाहर ले जाकर दरख़्वास्त की कि शहर से चले जाएँ।
\s5
\v 40 पस वो क़ैद ख़ाने से निकल कर लुदिया के यहाँ गए और भाइयों से मिलकर उन्हें तसल्ली दी। और रवाना हुए।
\s5
\c 17
\v 1 फिर वो अम्फ़िपुलिस और अपुल्लोनिया होकर थिस्सलुनीकि शहर में आए, जहाँ यहूदियों का इबादतख़ाना था।
\v 2 और पौलुस अपने दस्तूर के मुवाफ़िक़ उनके पास गया, और तीन सबतो को किताब-ए- मुक़द्दस से उनके साथ बहस की।
\s5
\v 3 और उनके मतलब खोल खोलकर दलीलें पेश करता था, कि “मसीह को दुख़ उठाना और मुर्दों में से जी उठना ज़रूर था और ईसा' जिसकी मैं तुम्हें ख़बर देता हूँ मसीह है।”
\v 4 उनमें से कुछ ने मान लिया और पौलुस और सीलास के शरीक हुए और "ख़ुदा" परस्त यूनानियों की एक बड़ी जमा'अत और बहुत सी शरीफ़ औरतें भी उन की शरीक हुईं।
\s5
\v 5 मगर यहूदियों ने हसद में आकर बाज़ारी आदमियों में से कई बदमा'शों को अपने साथ लिया और भीड़ लगा कर शहर में फ़साद करने लगे। और यासोन का घर घेरकर उन्हें लोगों के सामने लाना चाहा।
\v 6 और जब उन्हें न पाया तो यासोन और कई और भाइयों को शहर के हाकिमों के पास चिल्लाते हुए खींच ले गए “कि वो शख़्स जिन्हों ने जहान को बा'ग़ी कर दिया, यहाँ भी आए हैं।
\v 7 और यासोन ने उन्हें अपने यहाँ उतारा है और ये सब के सब क़ैसर के अहकाम की मुख़ालिफ़त करके कहते हैं, "कि बादशाह तो और ही है या'नी ईसा' ”
\s5
\v 8 ये सुन कर आम लोग और शहर के हाक़िम घबरा गए।
\v 9 और उन्हों ने यासोन और बाक़ियों की ज़मानत लेकर उन्हें छोड़ दिया ।
\s5
\v 10 लेकिन भाइयों ने फ़ौरन रातों रात पौलुस और सीलास को बिरिया क़स्बा में भेज दिया, वो वहाँ पहुँचकर यहूदियों के इबादतख़ाने में गए।
\v 11 ये लोग थिस्सलुनीकि कि यहूदियों से नेक ज़ात थे, क्यूँकि उन्हों ने बड़े शौक़ से कलाम को क़ुबूल किया और रोज़-ब-रोज़ किताब "ऐ मुक़द्दस में तहक़ीक़ करते थे, कि आया ये बातें इस तरह हैं ?
\v 12 पस, उन में से बहुत सारे ईमान लाए और यूनानियों में से भी बहुत सी 'इज़्ज़तदार 'औरतें और मर्द ईमान लाए।
\s5
\v 13 जब थिस्सलुनीकि कि यहूदियों को मा'लूम हुआ कि पौलुस बिरिया में भी "ख़ुदा" का कलाम सुनाता है, तो वहाँ भी जाकर लोगों को उभारा और उन में खलबली डाली ।
\v 14 उस वक़्त भाइयों ने फ़ौरन पौलुस को रवाना किया कि समुन्दर के किनारे तक चला जाए, लेकिन सीलास और तिमुथियुस वहीं रहे ।
\v 15 और पौलुस के रहबर उसे अथेने तक ले गए। और सीलास और तिमुथियुस के लिए ये हुक्म लेकर रवाना हुए। कि जहाँ तक हो सके जल्द मेरे पास आओ।
\s5
\v 16 जब पौलुस अथेने में उन की राह देख रहा था, तो शहर को बुतों से भरा हुआ देख कर उस का जी जल गया।
\v 17 इस लिए वो इबादतख़ाने में यहूदियों और "ख़ुदा" परस्तों से और चौक में जो मिलते थे, उन से रोज़ बहस किया करता था।
\s5
\v 18 और चन्द इपकूरी और स्तोइकी फ़ैलसूफ़ उसका मुक़ाबिला करने लगे कुछ ने कहा, “ये बकवासी क्या कहना चाहता है ?” औरों ने कहा “ये ग़ैर मा'बूदों की ख़बर देने वाला मा'लूम होता है इस लिए कि वो ईसा' और क़यामत की ख़ुशख़बरी देता है ”
\s5
\v 19 पस, वो उसे अपने साथ अरियुपगुस जगह पर ले गए और कहा, “आया हमको मा'लूम हो सकता है। कि ये नई ता'लीम जो तू देता है|क्या है ?”
\v 20 क्यूँकि तू हमें अनोखी बातें सुनाता है पस, हम जानना चाहते हैं, ।कि इन से ग़रज़ क्या है,
\v 21 (इस लिए कि सब अथेनवी और परदेसी जो वहाँ मुक़ीम थे, अपनी फ़ुरसत का वक़्त नई नई बातें करने सुनने के सिवा और किसी काम में सर्फ़ न करते थे ।)
\s5
\v 22 पौलुस ने अरियुपगुस के बीच में खड़े हो कर कहा “ऐ अथेने वालो, मैं देखता हूँ कि तुम हर बात में देवताओं के बड़े मानने वाले हो।
\v 23 चुनाचे मैंने सैर करते और तुम्हारे मा'बूदों पर ग़ौर करते वक़्त एक ऐसी क़ुर्बानगाह भी पाई, जिस पर लिखा था,ना मा'लूम "ख़ुदा" के लिए पस, जिसको तुम बग़ैर मा'लूम किए पूजते हो, मैं तुम को उसी की ख़बर देता हूँ।
\s5
\v 24 जिस "ख़ुदा" ने दुनिया और उस की सब चीज़ों को पैदा किया वो आसमान और ज़मीन का मालिक होकर हाथ के बनाए हुए मकदिस में नहीं रहता।
\v 25 न किसी चीज का मुहताज होकर आदमियों के हाथों से ख़िदमत लेता है। क्यूँकि वो तो ख़ुद सबको ज़िन्दगी और साँस और सब कुछ देता है।
\s5
\v 26 और उस ने एक ही नस्ल से आदमियों की हर एक क़ौम तमाम रूए ज़मीन पर रहने के लिए पैदा की और उन की 'तादाद और रहने की हदें मुक़र्रर कीं।
\v 27 ताकि "ख़ुदा" को ढूँडें, शायद कि टटोलकर उसे पाएँ, हर वक़्त वो हम में से किसी से दूर नहीं।
\s5
\v 28 क्यूँकि उसी में हम जीते और चलते फिरते और मौजूद हैं,‘जैसा कि तुम्हारे शा'यरों में से भी कुछ ने कहा है। हम तो उस की नस्ल भी हैं।’
\v 29 पस, ख़ुदा" की नस्ल होकर हम को ये ख़याल करना मुनासिब नहीं कि ज़ात-ए-इलाही उस सोने या रुपये या पत्थर की तरह है जो आदमियों के हुनर और ईजाद से गढ़े गए हों।
\s5
\v 30 पस, ख़ुदा जिहालत के वक़्तों से चश्म पोशी करके अब सब आदमियों को हर जगह हुक्म देता है । कि तौबा करें।
\v 31 क्यूँकि उस ने एक दिन ठहराया है, जिस में वो रास्ती से दुनिया की अदालत उस आदमी के ज़रिये करेगा, जिसे उस ने मुक़र्रर किया है और उसे मुर्दों में से जिला कर ये बात सब पर साबित कर दी है ।”
\s5
\v 32 जब उन्हों ने मुर्दों की क़यामत का ज़िक्र सुना तो कुछ ठट्ठा मारने लगे, और कुछ ने कहा कि “ये बात हम तुझ से फिर कभी सुनेंगे।”
\v 33 इसी हालत में पौलुस उनके बीच में से निकल गया
\v 34 मगर कुछ आदमी उसके साथ मिल गए और ईमान ले आए, उन में दियुनुसियुस, अरियुपगुस, का एक हाकिम और दमरिस नाम की एक औरत थी, और कुछ और भी उन के साथ थे।
\s5
\c 18
\v 1 इन बातों के बा'द पौलुस अथेने से रवाना हो कर कुरिन्थुस शहर में आया।
\v 2 और वहाँ उसको अक्विला नाम का एक यहूदी मिला जो पुन्तुस शहर की पैदाइश था, और अपनी बीवी प्रिस्किल्ला समेत इतालिया से नया नया आया था; क्यूँकि क्लौदियुस ने हुक्म दिया था, कि सब यहूदी रोमा से निकल जाएँ। पस, वो उसके पास गया।
\v 3 और चूँकि उनका हम पेशा था, उन के साथ रहा और वो काम करने लगे; और उन का पेशा ख़ेमा दोज़ी था।
\s5
\v 4 और वो हर सबत को इबादतख़ाने में बहस करता और यहूदियों और यूनानियों को तैयार करता था।
\v 5 और जब सीलास और तीमुथियुस मकिदुनिया से आए, तो पौलुस कलाम सुनाने के जोश से मजबूर हो कर यहूदियों के आगे गवाही दे रहा था कि ईसा' ही मसीह है।
\v 6 जब लोग मुख़ालिफ़त करने और कुफ़्र बकने लगे, तो उस ने अपने कपड़े झाड़ कर उन से कहा, “तुम्हारा ख़ून तुम्हारी गर्दन पर मैं पाक हूँ, अब से ग़ैर क़ौमों के पास जाऊँगा।”
\s5
\v 7 पस, वहाँ से चला गया, और तितुस युस्तुस नाम के एक "ख़ुदा" परस्त के घर चला गया, जो इबादतख़ाने से मिला हुआ था।
\v 8 और इबादतख़ाने का सरदार क्रिसपुस अपने तमाम घराने समेत "ख़ुदावन्द" पर ईमान लाया; और बहुत से कुरिन्थी सुनकर ईमान लाए, और बपतिस्मा लिया।
\s5
\v 9 और ख़ुदावन्द ने रात को रोया में पौलुस से कहा, “ख़ौफ़ न कर, बल्कि कहे जा और चुप न रह।
\v 10 इसलिए कि मैं तेरे साथ हूँ, और कोई शख़्स तुझ पर हमला कर के तकलीफ़ न पहुँचा सकेगा; क्यूँकि इस शहर में मेरे बहुत से लोग हैं|”
\v 11 पस, वो डेढ़ बरस उन में रहकर ख़ुदा का कलाम सिखाता रहा।
\s5
\v 12 जब गल्लियो अख़िया सूबे का सुबेदार था, यहूदी एका करके पौलुस पर चढ़ आए, और उसे अदालत में ले जा कर।
\v 13 कहने लगे “कि ये शख़्स लोगों को तरग़ीब देता है, कि शरी'अत के बरख़िलाफ़ ख़ुदा की इबादत करें।”
\s5
\v 14 जब पौलुस ने बोलना चाहा, तो गल्लियो ने यहूदियों से कहा, “ऐ यहूदियो, अगर कुछ ज़ुल्म या बड़ी शरारत की बात होती तो वाजिब था, कि मैं सब्र करके तुम्हारी सुनता।
\v 15 लेकिन जब ये ऐसे सवाल हैं जो लफ़्ज़ों और नामों और ख़ास तुम्हारी शरी'अत से तअ'ल्लुक रखते हैं तो तुम ही जानो।मैं ऐसी बातों का मुन्सिफ़ बनना नहीं चाहता।”
\s5
\v 16 और उस ने उन्हें अदालत से निकलवा दिया।
\v 17 फिर सब लोगों ने इबादतख़ाने के सरदार सोस्थिनेस को पकड़ कर अदालत के सामने मारा, मगर गल्लियो ने इन बातों की कुछ परवाह न की।
\s5
\v 18 पस, पौलुस बहुत दिन वहाँ रहकर भाइयों से रुख़्सत हुआ ; चूँकि उस ने मन्नत मानी थी, इसलिए किन्ख़रिया शहर में सिर मुंडवाया और जहाज़ पर सूरिया सूबे को रवाना हुआ ; और प्रिसकिल्ला और अक्विला उस के साथ थे।
\v 19 और इफ़िसुस में पहुँच कर उस ने उन्हें वहाँ छोड़ा और आप इबादतख़ाने में जाकर यहूदियों से बहस करने लगा।
\s5
\v 20 जब उन्होंने उस से दरख़्वास्त की, "और कुछ अरसे हमारे साथ रह" तो उस ने मंज़ूर न किया।
\v 21 बल्कि ये कह कर उन से रुख़्सत हुआ“अगर "ख़ुदा" ने चाहा तो तुम्हारे पास फिर आऊँगा ”और इफ़िसुस से जहाज़ पर रवाना हुआ।
\s5
\v 22 फिर क़ैसरिया में उतर कर यरूशलीम को गया, और कलीसिया को सलाम करके अन्ताकिया में आया।
\v 23 और चन्द रोज़ रह कर वहाँ से रवाना हुआ, और तरतीब वार गलतिया सूबे के इलाक़े और फ्रूगिया सूबे से गुज़रता हुआ सब शागिर्दों को मज़बूत करता गया।
\s5
\v 24 फिर अपुल्लोस नाम के एक यहूदी इसकन्दरिया शहर की पैदाइश ख़ुशतक़रीर किताब-ए-मुक़द्दस का माहिर इफ़िसुस में पहुँचा ।
\v 25 इस शख़्स ने "ख़ुदावन्द" की राह की ता'लीम पाई थी, और रूहानी जोश से कलाम करता और ईसा' की वजह से सहीह सहीह ता'लीम देता था। मगर सिर्फ़ यूहन्ना के बपतिस्मे से वाक़िफ़ था।
\v 26 वो इबादतख़ाने में दिलेरी से बोलने लगा, मगर प्रिस्किल्ला और अक्विला उसकी बातें सुनकर उसे अपने घर ले गए। और उसको ख़ुदा की राह और अच्छी तरह से बताई।
\s5
\v 27 जब उस ने इरादा किया कि पार उतर कर अख़िया को जाए तो भाइयों ने उसकी हिम्मत बढ़ाकर शागिर्दों को लिखा कि उससे अच्छी तरह मिलना। उस ने वहाँ पहुँचकर उन लोगों की बड़ी मदद की जो फ़ज़ल की वजह से ईमान लाए थे।
\v 28 क्यूँकि वो किताब -ए -मुक़द्दस से ईसा' का मसीह होना साबित करके बड़े ज़ोर शोर से यहूदियों को ऐलानिया क़ायल करता रहा।
\s5
\c 19
\v 1 और जब अपुल्लोस कुरिन्थुस में था, तो ऐसा हुआ कि पौलुस ऊपर के पहाड़ी मुल्कों से गुज़र कर इफ़िसुस में आया और कई शागिर्दों को देखकर।
\v 2 उन से कहा “क्या तुमने ईमान लाते वक़्त रूह-उल-क़ुद्दूस पाया?”उन्हों ने उस से कहा “कि हम ने तो सुना नहीं । कि रूह- उल-क़ुद्दूस नाज़िल हुआ है।”
\s5
\v 3 उस ने कहा “तुम ने किस का बतिस्मा लिया?”उन्हों ने कहा “यूहन्ना का बपतिस्मा।”
\v 4 पौलुस ने कहा, “यूहन्ना ने लोगों को ये कह कर तौबा का बपतिस्मा दिया‘कि जो मेरे पीछे आने वाला है ’उस पर या'नी ईसा' पर ईमान लाना।”
\s5
\v 5 उन्हों ने ये सुनकर "ख़ुदावन्द" ईसा' के नाम का बपतिस्मा लिया।
\v 6 जब पौलुस ने अपने हाथ उन पर रखे तो रूह-उल-क़ुद्दूस उन पर नाज़िल हुआ, और वह तरह तरह की ज़बानें बोलने और नबुव्वत करने लगे।
\v 7 और वो सब तक़रीबन बारह आदमी थे।
\s5
\v 8 फिर वो इबादतख़ाने में जाकर तीन महीने तक दिलेरी से बोलता और "ख़ुदा" की बादशाही के बारे में बहस करता और लोगों को क़ायल करता रहा।
\v 9 लेकिन जब कुछ सख़्त दिल और नाफ़रमान हो गए। बल्कि लोगों के सामने इस तरीक़े को बुरा कहने लगे, तो उस ने उन से किनारा करके शागिर्दों को अलग कर लिया, और हर रोज़ तुरन्नुस के मदरसे में बहस किया करता था।
\v 10 दो बरस तक यही होता रहा, यहाँ तक कि आसिया के रहने वालों क्या यहूदी क्या यूनानी सब ने "ख़ुदावन्द" का कलाम सुना।
\s5
\v 11 और "ख़ुदा" पौलुस के हाथों से ख़ास ख़ास मो'जिज़े दिखाता था।
\v 12 यहाँ तक कि रूमाल और पटके उसके बदन से छुआ कर बीमारों पर डाले जाते थे, और उन की बीमारियाँ जाती रहती थीं, और बदरूहें उन में से निकल जाती थीं।
\s5
\v 13 मगर कुछ यहूदियों ने जो झाड़ फूँक करते फिरते थे। ये इख़्तियार किया कि जिन में बदरूहें हों “उन पर "ख़ुदावन्द" ईसा' का नाम ये कह कर फूँकें। कि जिस ईसा' की पौलुस ऐलान करता है, मैं तुम को उसकी क़सम देता हूँ ”
\v 14 और सिकवा, यहूदी सरदार काहिन, के सात बेटे ऐसा किया करते थे।
\s5
\v 15 बदरूह ने जवाब में उन से कहा, ईसा' को तो मै जानती हूँ, और पौलुस से भी वाक़िफ़ हूँ “मगर तुम कौन हो?”
\v 16 और वो शख़्स जिस में बदरूह थी, कूद कर उन पर जा पड़ा और दोनों पर ग़ालिब आकर ऐसी ज़्यादती की कि वो नंगे और ज़ख़्मी होकर उस घर से निकल भागे।
\v 17 और ये बात इफ़िसुस के सब रहने वाले यहूदियों और यूनानियों को मा'लूम हो गई। पस, सब पर ख़ौफ़ छा गया, और "ख़ुदावन्द" ईसा' के नाम की बड़ाई हुई ।
\s5
\v 18 और जो ईमान लाए थे, उन में से बहुतों ने आकर अपने अपने कामों का इक़रार और इज़्हार किया।
\v 19 और बहुत से जादूगरों ने अपनी अपनी किताबें इकट्ठी करके सब लोगों के सामने जला दीं, जब उन की क़ीमत का हिसाब हुआ तो पचास हज़ार रुपये की निकली।
\v 20 इसी तरह "ख़ुदा" का कलाम ज़ोर पकड़ कर फैलता और ग़ालिब होता गया।
\s5
\v 21 जब ये हो चुका तो पौलुस ने पाक रूह में हिम्मत पाई कि “मकिदुनिया और आख़िया से हो कर यरूशलीम को जाऊँगा। और कहा, वहाँ जाने के बा'द मुझे रोमा भी देखना ज़रूर है।”
\v 22 पस, अपने ख़िदमतगुज़ारों में से दो शख़्स या'नी तीमुथियुस और इरास्तुस को मकिदुनिया में भेजकर आप कुछ अर्सा, आसिया में रहा।
\s5
\v 23 उस वक़्त इस तरीक़े की वजह से बड़ा फ़साद हुआ।
\v 24 क्यूँकि देमेत्रियुस नाम एक सुनार था, जो अरतमिस कि रूपहले मन्दिर बनवा कर उस पेशेवालों को बहुत काम दिलवा देता था।
\v 25 उस ने उन को और उनके मुताअ'ल्लिक़ और पेशेवालों को जमा कर के कहा,“ऐ लोगों! तुम जानते हो कि हमारी आसूदगी इसी काम की बदौलत है ।
\s5
\v 26 तुम देखते और सुनते हो कि सिर्फ़ इफ़िसुस ही में नहीं बल्कि तक़रीबन तमाम आसिया में इस पौलुस ने बहुत से लोगों को ये कह कर समझा बुझा कर और गुमराह कर दिया है, कि हाथ के बनाए हुए हैं, "ख़ुदा" नहीं हैं।
\v 27 पस, सिर्फ़ यही ख़तरा नहीं कि हमारा पेशा बेक़द्र हो जाएगा, बल्कि बड़ी देवी अरतमिस का मन्दिर भी नाचीज़ हो जाएगा, और जिसे तमाम आसिया और सारी दुनिया पूजती है,ख़ुद उसकी अज़मत भी जाती रहेगी।”
\s5
\v 28 वो ये सुन कर क़हर से भर गए और चिल्ला चिल्ला कर कहने लगे,“कि इफ़िसियों की अरतमिस बड़ी है!”
\v 29 और तमाम शहर में हलचल पड़ गई, और लोगों ने गयुस और अरिस्तरख़ुस मकिदुनिया वालों को जो पौलुस के हम-सफ़र थे, पकड़ लिया और एक दिल हो कर तमाशा गाह को दौड़े।
\s5
\v 30 जब पौलुस ने मज्मे में जाना चाहा तो शागिर्दों ने जाने न दिया।
\v 31 और आसिया के हाकिमों में से उस के कुछ दोस्तों ने आदमी भेजकर उसकी मिन्नत की कि तमाशा गाह में जाने की हिम्मत न करना।
\v 32 और कुछ चिल्लाए और मजलिस दरहम बरहम हो गई थी, और अक्सर लोगों को ये भी ख़बर न थी, कि हम किस लिए इकटठे हुए हैं।
\s5
\v 33 फिर उन्हों ने इस्कन्दर को जिसे यहूदी पेश करते थे, भीड़ में से निकाल कर आगे कर दिया, और इस्कन्दर ने हाथ से इशारा करके मज्मे कि सामने उज़्र बयान करना चाहा।
\v 34 जब उन्हें मा'लूम हुआ कि ये यहूदी है, तो सब हम आवाज़ होकर कोई दो घन्टे तक चिल्लाते रहे “कि इफ़िसियों की अरतमिस बड़ी है!”
\s5
\v 35 फिर शहर के मुहर्रिर ने लोगों को ठन्डा करके कहा, “ऐ इफ़िसियो! कौन सा आदमी नहीं जानता कि इफ़िसियों का शहर बड़ी देवी अरतमिस के मन्दिर और उस मूरत का मुहाफ़िज़ है,जो ज़्यूस की तरफ़ से गिरी थी।
\v 36 पस, जब कोई इन बातों के ख़िलाफ़ नहीं कह सकता तो वाजिब है कि तुम इत्मीनान से रहो, और बे सोचे कुछ न करो।
\v 37 क्यूँकि ये लोग जिन को तुम यहाँ लाए हो न मन्दिर को लूटने वाले हैं, न हमारी देवी की बदगोई करनेवाले।
\s5
\v 38 पस, अगर देमेत्रियुस और उसके हम पेशा किसी पर दा'वा रखते हों तो अदालत खुली है, और सुबेदार मौजूद हैं, एक दूसरे पर नालिश करें।
\v 39 और अगर तुम किसी और काम की तहक़ीक़ात चाहते हो तो बाज़ाब्ता मजलिस में फ़ैसला होगा।
\v 40 क्यूँकि आज के बवाल की वजह से हमें अपने ऊपर नालिश होने का अन्देशा है, इसलिए कि इसकी कोई वजह नहीं है, और इस सूरत में हम इस हंगामे की जवाबदेही न कर सकेंगे।”
\v 41 ये कह कर उसने मजलिस को बरख़ास्त किया।
\s5
\c 20
\v 1 जब बवाल कम हो गया तो पौलुस ने ईमानदारों को बुलवा कर नसीहत की, और उन से रुख़्सत हो कर मकीदुनिया को रवाना हुआ।
\v 2 और उस इलाक़े से गुज़र कर और उन्हें बहुत नसीहत करके यूनान में आया।
\v 3 जब तीन महीने रह कर सूरिया की तरफ़ जहाज़ पर रवाना होने को था, तो यहूदियों ने उस के बरखिलाफ़ साज़िश की, फिर उसकी ये सलाह हुई कि मकिदुनिया होकर वापस जाए।
\s5
\v 4 और पुरुस का बेटा सोपत्रुस जो बिरिया कसबे का था, और थिस्सलुनिकियों में से अरिस्तरख़ुस और सिकुन्दुस और गयुस जो दिरबे शहर का था, और तीमुथियुस और आसिया का तुख़िकुस और त्रुफ़िमुस आसिया तक उसके साथ गए।
\v 5 ये आगे जा कर त्रोआस में हमारी राह देखते रहे।
\v 6 और ईद-ए-फ़तीर के दिनों के बा'द हम फ़िलिप्पी से जहाज़ पर रवाना होकर पाँच दिन के बा'द त्रोआस में उन के पास पहुँचे और सात दिन वहीं रहे।
\s5
\v 7 सबत की शाम जब हम रोटी तोड़ने के लिए जमा हुए, तो पौलुस ने दूसरे दिन रवाना होने का इरादा करके उन से बातें कीं और आधी रात तक कलाम करता रहा।
\v 8 जिस बालाख़ाने पर हम जमा थे, उस में बहुत से चराग़ जल रहे थे।
\s5
\v 9 और यूतुख़ुस नाम एक जवान खिड़की में बैठा था, उस पर नींद का बड़ा ग़ल्बा था, और जब पौलुस ज़्यादा देर तक बातें करता रहा तो वो नींद के ग़ल्बे में तीसरी मंज़िल से गिर पड़ा, और उठाया गया तो मुर्दा था।
\v 10 पौलुस उतर कर उस से लिपट गया, और गले लगा कर कहा, “घबराओ नहीं इस में जान है।”
\s5
\v 11 फिर ऊपर जा कर रोटी तोड़ी और खा कर इतनी देर तक बातें करता रहा कि सुबह हो गई, फिर वो रवाना हो गया।
\v 12 और वो उस लड़के को जिंदा लाए और उनको बड़ा इत्मिनान हुआ।
\s5
\v 13 हम जहाज़ तक आगे जाकर इस इरादा से अस्सुस शहर को रवाना हुए कि वहाँ पहुँच कर पौलुस को चढ़ा लें, क्यूँकि उस ने पैदल जाने का इरादा करके यही तज्वीज़ की थी।
\v 14 पस, जब वो अस्सुस में हमें मिला तो हम उसे चढ़ा कर मितुलेने शहर में आए।
\s5
\v 15 वहाँ से जहाज़ पर रवाना होकर दूसरे दिन ख़ियुस टापू के सामने पहुँचे और तीसरे दिन सामुस टापू तक आए और अगले दिन मिलेतुस शहर में आ गए।
\v 16 क्यूँकि पौलुस ने ये ठान लिया था, कि इफ़िसुस के पास से गुज़रे, ऐसा न हो कि उसे आसिया में देर लगे; इसलिए कि वो जल्दी करता था, कि अगर हो सके तो पिन्तेकुस्त के दिन यरूशलीम में हो।
\s5
\v 17 और उस ने मिलेतुस से इफ़िसुस में कहला भेजा, और कलीसिया के बुज़ुर्गों को बुलाया।
\v 18 जब वो उस के पास आए तो उन से कहा, "तुम ख़ुद जानते हो कि पहले ही दिन से कि मैंने आसिया में क़दम रख्खा हर वक़्त तुम्हारे साथ किस तरह रहा।
\v 19 या'नी कमाल फ़रोतनी से और आँसू बहा बहा कर और उन आज़माइशों में जो यहूदियों की साज़िश की वजह से मुझ पर वा'क़े हुई ख़ुदावन्द की ख़िदमत करता रहा।
\v 20 और जो जो बातें तुम्हारे फ़ायदे की थीं उनके बयान करने और एलानिया और घर घर सिखाने से कभी न झिझका।
\v 21 बल्कि यहूदियों और यूनानियों के रू-ब-रू गवाही देता रहा कि "ख़ुदा" के सामने तौबा करना और हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह पर ईमान लाना चाहिए।
\s5
\v 22 और अब देखो में रूह में बँधा हुआ यरूशलीम को जाता हूँ, और न मा'लूम कि वहाँ मुझ पर क्या क्या गुज़रे।
\v 23 सिवा इसके कि रूह-उल-क़ुद्दूस हर शहर में गवाही दे दे कर मुझ से कहता है। कि क़ैद और मुसीबतें तेरे लिए तैयार हैं ।
\v 24 लेकिन मैं अपनी जान को अज़ीज़ नहीं समझता कि उस की कुछ क़द्र करूँ; बावजूद इसके कि अपना दौर और वो ख़िदमत जो "ख़ुदावन्द ईसा' से पाई है, पूरी करूँ। या'नी ख़ुदा के फ़ज़ल की ख़ुशख़बरी की गवाही दूँ।
\s5
\v 25 और अब देखो मैं जानता हूँ कि तुम सब जिनके दर्मियान मैं बादशाही का एलान करता फिरा, मेरा मुँह फिर न देखोगे।
\v 26 पस, मैं आज के दिन तुम्हें क़तई कहता हूँ कि सब आदमियों के ख़ून से पाक हूँ।
\v 27 क्यूँकि मैं ख़ुदा की सारी मर्ज़ी तुम से पूरे तौर से बयान करने से न झिझका।
\s5
\v 28 पस, अपनी और उस सारे गल्ले की ख़बरदारी करो जिसका रूह -उल क़ुद्दूस ने तुम्हें निगहबान ठहराया ताकि "ख़ुदा" की कलीसिया की गल्ले कि रख वाली करो, जिसे उस ने ख़ास अपने ख़ून से ख़रीद लिया ।
\v 29 मैं ये जानता हूँ कि मेरे जाने के बाद फाड़ने वाले भेड़िये तुम में आयेंगे जिन्हें गल्ले पर कुछ तरस न आएगा ;
\v 30 आप के बीच से भी आदमी उठ कर सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर बयान करेंगे ताकि शागिर्दों को अपने पीछे लगा लें।
\s5
\v 31 इसलिए जागते रहो, और याद रखो कि मैं तीन बरस तक रात दिन आँसू बहा बहा कर हर एक को समझाने से बा'ज न आया।
\v 32 अब मैं तुम्हें "ख़ुदा" और उसके फ़ज़ल के कलाम के सुपुर्द करता हूँ, जो तुमहारी तरक़्क़ी कर सकता है, और तमाम मुक़द्दसों में शरीक करके मीरास दे सकता है।
\s5
\v 33 मैंने किसी के पैसे या कपड़े का लालच नहीं किया।
\v 34 तुम आप जानते हो कि इन्हीं हाथों ने मेरी और मेरे साथियों की हाजतपूरी कीं।
\v 35 मैंने तुम को सब बातें करके दिखा दीं कि इस तरह मेंहनत करके कमज़ोरों को सम्भालना और "ख़ुदावन्द ईसा" की बातें याद रखना चाहिये,उस ने ख़ुद कहा, देना लेने से मुबारक है।
\s5
\v 36 उस ने ये कह कर घुटने टेके और उन सब के साथ दु'आ की।
\v 37 और वो सब बहुत रोए और पौलुस के गले लग लगकर उसके बोसे लिए।
\v 38 और ख़ास कर इस बात पर ग़मगीन थे, जो उस ने कही थी,“कि तुम फिर मेरा मुँह न देखोगे” फिर उसे जहाज़ तक पहुँचाया ।
\s5
\c 21
\v 1 जब हम उनसे बमुश्किल जुदा हो कर जहाज़ पर रवाना हुए, तो ऐसा हुआ की सीधी राह से कोस टापू में आए, और दूसरे दिन रूदुस में, और वहाँ से पतरा शहर में।
\v 2 फिर एक जहाज़ सीधा फ़ीनेके को जाता हुआ मिला, और उस पर सवार होकर रवाना हुए।
\s5
\v 3 जब कुप्रुस शहर नज़र आया तो उसे बाएँ हाथ छोड़कर सुरिया को चले, और सूर शहर में उतरे, क्यूँकि वहाँ जहाज़ का माल उतारना था।
\v 4 जब शागिर्दों को तलाश कर लिया तो हम सात रोज़ वहाँ रहे; उन्हों ने रूह के ज़रिये पौलुस से कहा, कि यरूशलीम में क़दम न रखना।
\s5
\v 5 और जब वो दिन गुज़र गए, तो ऐसा हुआ कि हम निकल कर रवाना हुए, और सब ने बीवियों बच्चों समेत हम को शहर से बाहर तक पहुँचाया। फिर हम ने समुन्दर के किनारे घुटने टेककर दु'आ की।
\v 6 और एक दूसरे से विदा होकर हम तो जहाज़ पर चढ़े, और वो अपने अपने घर वापस चले गए। ।
\s5
\v 7 और हम सूर से जहाज़ का सफ़र पूरा कर के पतुलिमयिस सूबा में पहुँचे, और भाइयों को सलाम किया, और एक दिन उनके साथ रहे।
\v 8 दूसरे दिन हम रवाना होकर क़ैसरिया में आए, और फ़िलिप्पुस मुबश्शिर के घर जो उन सातों में से था,उतर कर उसके साथ रहे,।
\v 9 उस की चार कुँवारी बेटियां थीं, जो नबुव्वत करती थीं ।
\s5
\v 10 जब हम वहाँ बहुत रोज़ रहे, तो अगबुस नाम एक नबी यहूदिया से आया।
\v 11 उस ने हमारे पास आकर पौलुस का कमरबन्द लिया और अपने हाथ पाँव बाँध कर कहा, “रूह-उल-क़ुद्दूस यूँ फ़रमाता है” “कि जिस शख़्स का ये कमरबन्द है उस को यहूदी यरूशलीम में इसी तरह बाँधेगे और ग़ैर क़ौमों के हाथ में सुपुर्द करेंगे।”
\s5
\v 12 जब ये सुना तो हम ने और वहाँ के लोगों ने उस की मिन्नत की, कि यरूशलीम को न जाए।
\v 13 मगर पौलुस ने जवाब दिया, “कि तुम क्या करते हो? क्यूँ रो रो कर मेरा दिल तोड़ते हो? में तो यरूशलीम में "ख़ुदावन्द ईसा मसीह" के नाम पर न सिर्फ़ बांधे जाने बल्कि मरने को भी तैयार हूँ।”
\v 14 जब उस ने न माना तो हम ये कह कर चुप हो गए “कि "ख़ुदावन्द" की मर्ज़ी पूरी हो।”
\s5
\v 15 उन दिनों के बा'द हम अपने सफ़र का सामान तैयार करके यरूशलीम को गए।
\v 16 और क़ैसरिया से भी कुछ शागिर्द हमारे साथ चले और एक पुराने शागिर्द मनासोन कुप्री को साथ ले आए, ताकि हम उस के मेंहमान हों।
\s5
\v 17 जब हम यरूशलीम में पहुँचे तो ईमानदार भाई बड़ी ख़ुशी के साथ हम से मिले।
\v 18 और दूसरे दिन पौलुस हमारे साथ या'क़ूब के पास गया, और सब बुज़ुर्ग वहाँ हाज़िर थे।
\v 19 उस ने उन्हें सलाम करके जो कुछ ख़ुदा ने उस की ख़िदमत से ग़ैर क़ौमों में किया था, एक एक कर के बयान किया।
\s5
\v 20 “उन्होंने ये सुन कर ख़ुदा की तारीफ की फिर उस से कहा, ऐ भाई तू देखता है, कि यहूदियों में हज़ारहा आदमी ईमान ले आए हैं, और वो सब शरी'अत के बारे में सरगर्म हैं।
\v 21 और उन को तेरे बारे में सिखा दिया गया है, कि तू ग़ैर क़ौमों में रहने वाले सब यहूदियों को ये कह कर मूसा से फिर जाने की ता'लीम देता है, कि न अपने लड़कों का ख़तना करो न मूसा की रस्मों पर चलो।
\s5
\v 22 पस, क्या किया जाए? लोग ज़रूर सुनेंगे, कि तू आया है।
\v 23 इसलिए जो हम तुझ से कहते हैं वो कर; हमारे यहां चार आदमी ऐसे हैं, जिन्हों ने मन्नत मानी है।
\v 24 उन्हें ले कर अपने आपको उन के साथ पाक कर और उनकी तरफ़ से कुछ ख़र्च कर, ताकि वो सिर मुंडाएँ, तो सब जान लेंगे कि जो बातें उन्हें तेरे बारे मे सिखाई गयीं हैं, उन की कुछ असल नहीं बल्कि तू ख़ुद भी शरी'अत पर अमल करके दुरुस्ती से चलता है।
\s5
\v 25 मगर ग़ैर क़ौमों में से जो ईमान लाए उनके बारे में हम ने ये फ़ैसला करके लिखा था, कि वो सिर्फ़ बुतों की क़ुर्बानी के गोश्त से और लहू और गला घोंटे हुए जानवारों और हरामकारी से अपने आप को बचाए रखें।”
\v 26 इस पर पौलुस उन आदमियों को लेकर और दूसरे दिन अपने आपको उनके साथ पाक करके हैकल में दाख़िल हुआ और ख़बर दी कि जब तक हम में से हर एक की नज़्र न चढ़ाई जाए तक़द्दुस के दिन पूरे करेंगे।
\s5
\v 27 जब वो सात दिन पूरे होने को थे, तो आसिया के यहूदियों ने उसे हैकल में देखकर सब लोगों में हलचल मचाई और यूँ चिल्लाकर उस को पकड़ लिया।
\v 28 कि "ऐ इस्राईलियो; मदद करो “ ये वही आदमी है, जो हर जगह सब आदमियों को उम्मत और शरी'अत और इस मुक़ाम के ख़िलाफ़ ता'लीम देता है, बल्कि उस ने यूनानियों को भी हैकल में लाकर इस पाक मुक़ाम को नापाक किया है।”
\v 29 ( उन्होंने उस से पहले त्रुफ़िमुस इफ़िसी को उसके साथ शहर में देखा था। उसी के बारे में उन्होंने ख़याल किया कि पौलुस उसे हैक़ल में ले आया है।)
\s5
\v 30 और तमाम शहर में हलचल मच गई, और लोग दौड़ कर जमा हुए, और पौलुस को पकड़ कर हैक़ल के दरवाज़े के फाटक से बाहर घसीट कर ले गए, और फ़ौरन दरवाज़े बन्द कर लिए गए।
\v 31 जब वो उसे क़त्ल करना चहते थे, तो ऊपर सौ फ़ौजियों के सरदार के पास ख़बर पहुँची “कि तमाम यरूशलीम में खलबली पड़ गई है।”
\s5
\v 32 वो उसी वक़्त सिपाहियों और सूबेदारों को ले कर उनके पास नीचे दौड़ा आया। और वो पलटन के सरदार और सिपाहियों को देख कर पौलुस की मार पीट से बाज़ आए।
\v 33 इस पर पलटन के सरदार ने नज़दीक आकर उसे गिरफ़्तार किया“और दो ज़ंजीरों से बाँधने का हुक्म देकर पूछने लगा, "ये कौन है, और इस ने क्या किया है?”
\s5
\v 34 भीड़ में से कुछ चिल्लाए और कुछ पस जब हुल्लड़ की वजह से कुछ हक़ीक़त दरियाफ़्त न कर सका, तो हुक्म दिया कि उसे क़िले में ले जाओ।
\v 35 जब सीढ़ियों पर पहुँचा तो भीड़ की ज़बरदस्ती की वजह से सिपाहियों को उसे उठाकर ले जाना पड़ा।
\v 36 क्यूकि लोगों की भीड़ ये चिल्लाती हुई उसके पीछे पड़ी "कि उसका काम तमाम कर"
\s5
\v 37 “और जब पौलुस को क़िले के अन्दर ले जाने को थे? उस ने पलटन के सरदार से कहा क्या मुझे इजाज़त है कि तुझ से कुछ कहूँ? उस ने कहा तू यूनानी जानता है?
\v 38 क्या तू वो मिस्री नहीं? जो इस से पहले ग़ाज़ियों में से चार हज़ार आदमियों को बाग़ी करके जंगल में ले गया ”
\s5
\v 39 पौलुस ने कहा “मैं यहूदी आदमी किलकिया के मशहूर सूबा तरसुस शहर का बाशिन्दा हूँ, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि मुझे लोगों से बोलने की इजाज़त दे।”
\v 40 जब उस ने उसे इजाज़त दी तो पौलुस ने सीढ़ियों पर खड़े होकर लोगों को इशारा किया। जब वो चुप चाप हो गए, तो इब्रानी ज़बान में यूँ कहने लगा।
\s5
\c 22
\v 1 ऐ भाइयों और बुज़ुर्गो, “मेरी बात सुनो, जो अब तुम से बयान करता हूँ।”
\v 2 जब उन्होंने सुना कि हम से इब्रानी ज़बान में बोलता है तो और भी चुप चाप हो गए। पस उस ने कहा।
\s5
\v 3 “मैं यहूदी हूँ, और किलकिया के शहर तरसुस में पैदा हुआ हूँ, मगर मेरी तरबियत इस शहर में गमलीएल के क़दमों में हुई, और मैंने बा'प दादा की शरी'अत की ख़ास पाबन्दी की ता'लीम पाई, और "ख़ुदा" की राह में ऐसा सरगर्म रहा था, जैसे तुम सब आज के दिन हो।
\v 4 चुनांचे मैंने मर्दों और औरतों को बांध बांधकर और क़ैदख़ाने में डाल डालकर मसीही तरीक़े वालों को यहाँ तक सताया है कि मरवा भी डाला |
\v 5 चुनाँचे " सरदार काहिन और सब बुज़ुर्ग मेरे गवाह हैं, कि उन से मैं भाइयों के नाम ख़त ले कर दमिश्क़ को रवाना हुआ, ताकि जितने वहाँ हों उन्हें भी बाँध कर यरूशलीम में सज़ा दिलाने को लाऊँ।
\s5
\v 6 जब में सफ़र करता करता दमिश्क़ शहर के नज़दीक पहुँचा तो ऐसा हुआ कि दोपहर के क़रीब यकायक एक बड़ा नूर आसमान से मेरे आस-पास आ चमका।
\v 7 और में ज़मीन पर गिर पड़ा, और ये आवाज़ सुनी कि‘ऐ साऊल, ऐ साऊल ।, तू मुझे क्यूँ सताता है?
\v 8 मैं ने जवाब दिया कि ‘ऐ ख़ुदावन्द, तू कौन हैं?’उस ने मुझ से कहा ‘मैं ईसा' नासरी हूँ जिसे तू सताता है?
\s5
\v 9 और मेरे साथियों ने नूर तो देखा लेकिन जो मुझ से बोलता था, उस की आवाज़ न समझ सके ।
\v 10 मैं ने कहा,'ऐ " ख़ुदावन्द, मैं क्या करूँ?ख़ुदावन्द ने मुझ से कहा, "उठ कर दमिश्क़ में जा। और जो कुछ तेरे करने के लिए मुक़र्रर हुआ है, वहाँ तुझ से सब कहा जाए गा।”
\v 11 जब मुझे उस नूर के जलाल की वजह से कुछ दिखाई न दिया तो मेरे साथी मेरा हाथ पकड़ कर मुझे दमिश्क़ में ले गए।
\s5
\v 12 और हनिन्याह नाम एक शख़्स जो शरी'अत के मुवाफ़िक़ दीनदार और वहां के सब रहने वाले यहूदियों के नज़्दीक नेक नाम था
\v 13 मेरे पास आया और खड़े होकर मुझ से कहा,'भाई साऊल फिर बीना हो!'उसी वक़्त बीना हो कर मैंने उस को देखा।
\s5
\v 14 उस ने कहा, 'हमारे बाप दादा के "ख़ुदा" ने तुझ को इसलिए मुक़र्रर किया है कि तू उस की मर्ज़ी को जाने और उस रास्तबाज़ को देखे और उस के मुँह की आवाज़ सुने।
\v 15 क्यूँकि तू उस की तरफ़ से सब आदमियों के सामने उन बातों का गवाह होगा, जो तूने देखी और सुनी हैं।
\v 16 अब क्यूँ देर करता है? उठ बपतिस्मा ले, और उस का नाम ले कर अपने गुनाहों को धो डाल।'
\s5
\v 17 जब मैं फिर यरूशलीम में आकर हैकल में दुआ कर रहा था, तो ऐसा हुआ कि मैं बेख़ुद हो गया।
\v 18 और उस को देखा कि मुझ से कहता है, “जल्दी कर और फ़ौरन यरूशलीम से निकल जा, क्यूँकि वो मेरे हक़ में तेरी गवाही क़ुबूल न करेंगे।”
\s5
\v 19 मैंने कहा, 'ऐ ख़ुदावन्द! वो ख़ुद जानते हैं, कि जो तुझ पर ईमान लाए हैं, उन को क़ैद कराता और जा'बजा इबादतख़ानों में पिटवाता था।
\v 20 और जब तेरे शहीद स्तिफ़नुस का ख़ून बहाया जाता था, तो मैं भी वहाँ खड़ा था। और उसके क़त्ल पर राज़ी था, और उसके क़ातिलों के कपड़ों की हिफ़ाज़त करता था।'
\v 21 उस ने मुझ से कहा,“जा मैं तुझे ग़ैर कौमों के पास दूर दूर भेजूँगा।”
\s5
\v 22 वो इस बात तक तो उसकी सुनते रहे फिर बुलन्द आवाज़ से चिल्लाए कि “ऐसे शख़्स को ज़मीन पर से ख़त्म कर दे! उस का ज़िन्दा रहना मुनासिब नहीं ”
\v 23 जब वो चिल्लाते और अपने कपड़े फ़ेंकते और ख़ाक उड़ाते थे।
\v 24 तो पलटन के सरदार ने हुक्म दे कर कहा, कि उसे क़िले में ले जाओ, और कोड़े मार कर उस का इज़हार लो ताकि मुझे मा'लूम हो कि वो किस वजह से उसकी मुख़ालिफ़त में यूँ चिल्लाते हैं।
\s5
\v 25 जब उन्होंने उसे रस्सियों से बाँध लिया तो, पौलुस ने उस सिपाही से जो पास खड़ा था कहा, “क्या तुम्हें जायज़ है कि एक रोमी आदमी को कोड़े मारो और वो भी क़ुसूर साबित किए बग़ैर?”
\v 26 सिपाही ये सुन कर पलटन के सरदार के पास गया और उसे ख़बर दे कर कहा, “तू क्या करता है? ये तो रोमी आदमी है”
\s5
\v 27 पलटन के सरदार ने उस के पास आकर कहा, “मुझे बता तो क्या तू रोमी है?” उस ने कहा, “हाँ।”
\v 28 पलटन के सरदार ने जवाब दिया “कि मैं ने बड़ी रक़म दे कर रोमी होने का रुत्बा हासिल किया" पौलुस ने कहा, "मैं तो पैदाइशी हूँ”
\v 29 पस, जो उस का इज़्हार लेने को थे, फ़ौरन उस से अलग हो गए। और पलटन का सरदार भी ये मा'लूम करके डर गया, कि जिसको मैंने बाँधा है, वो रोमी है।
\s5
\v 30 सुबह को ये हक़ीक़त मा'लूम करने के इरादे से कि यहूदी उस पर क्या इल्ज़ाम लगाते हैं। उस ने उस को खोल दिया। और सरदार काहिन और सब सद्र- ए-आदालत वालों को जमा होने का हुक्म दिया, और पौलुस को नीचे ले जाकर उनके सामने खड़ा कर दिया।
\s5
\c 23
\v 1 पौलुस ने सद्र- ऐ आदालत वालों को ग़ौर से देख कर कहा “ऐ भाइयों, मैंने आज तक पूरी नेक नियती से "ख़ुदा" के वास्ते अपनी उम्र गुज़ारी है।”
\v 2 सरदार काहिन हननियाह ने उन को जो उस के पास खड़े थे, हुक्म दिया कि उस के मुँह पर तमाँचा मारो।
\v 3 पौलुस ने उस से कहा, “ऐ सफ़ेदी फिरी हुई दीवार! "ख़ुदा" तुझे मारेगा! तू शरी'अत के मुवाफ़िक़ मेरा इन्साफ़ करने को बैठा है, और क्या शरी'अत के बर -ख़िलाफ़ मुझे मारने का हुक्म देता है ”
\s5
\v 4 जो पास खड़े थे, उन्होंने कहा, “क्या तू "ख़ुदा" के सरदार काहिन को बुरा कहता है?”
\v 5 पौलुस ने कहा,“ऐ भाइयो, मुझे मालूम न था कि ये सरदार काहिन है, क्यूँकि लिखा है कि अपनी क़ौम के सरदार को बुरा न कह।”
\s5
\v 6 जब पौलुस ने ये मा'लूम किया कि कुछ सदूक़ी हैं और कुछ फ़रीसी तो अदालत में पुकार कर कहा, “ऐ भाइयों, मैं फ़रीसी और फ़रीसियों की औलाद हूँ । मुर्दों की उम्मीद और क़यामत के बारे में मुझ पर मुक़द्दमा हो रहा है”
\v 7 जब उस ने ये कहा तो फ़रीसियों और सदूक़ियों में तकरार हुई, और मजमें में फ़ूट पड़ गई।
\v 8 क्यूँकि सदूक़ी तो कहते हैं कि न क़यामत होगी, न कोई फ़रिश्ता है, न रूह मगर फ़रीसी दोनों का इक़रार करते हैं।
\s5
\v 9 पस, बड़ा शोर हुआ। और फ़रीसियों के फ़िरक़े के कुछ आलिम उठे “और यूँ कह कर झगड़ने लगे कि हम इस आदमी में कुछ बुराई नहीं पाते और अगर किसी रूह या फ़िरिश्ते ने इस से कलाम किया हो तो फिर क्या?”
\v 10 और जब बड़ी तकरार हुई तो पलटन के सरदार ने इस ख़ौफ़ से कि उस वक़्त पौलुस के टुकड़े कर दिए जाएँ, फ़ौज को हुक्म दिया कि उतर कर उसे उन में से ज़बरदस्ती निकालो और क़िले में ले जाओ।
\s5
\v 11 उसी रात ख़ुदावन्द उसके पास आ खड़ा हुआ, और कहा, “इत्मिनान रख; कि जैसे तू ने मेरे बारे में यरूशलीम में गवाही दी है वैसे ही तुझे रोमा में भी गवाही देनी होगी।”
\s5
\v 12 जब दिन हुआ तो यहूदियों ने एका कर के और ला'नत की क़सम खाकर कहा“कि जब तक हम पौलुस को क़त्ल न कर लें न कुछ खाएँगे न पीएँगे।”
\v 13 और जिन्हों ने आपस में ये साज़िश की वो चालीस से ज़्यादा थे।
\s5
\v 14 पस, उन्हों ने सरदार काहिनों और बुज़ुर्गों के पास जाकर कहा “कि हम ने सख़्त ला'नत की क़सम खाई है कि जब तक हम पौलुस को क़त्ल न कर लें कुछ न चखेंगे।
\v 15 पस, अब तुम सद्र-ए-अदालत वालों से मिलकर पलटन के सरदार से अर्ज़ करो कि उसे तुम्हारे पास लाए। गोया तुम उसके मु'अमिले की हक़ीक़त ज़्यादा मालूम करना चाहते हो, और हम उसके पहुँचने से पहले उसे मार डालने को तैयार हैं ”
\s5
\v 16 लेकिन पौलुस का भांजा उनकी घात का हाल सुन कर आया और क़िले में जाकर पौलुस को ख़बर दी।
\v 17 पौलुस ने सुबेदारों में से एक को बुला कर कहा “इस जवान को पलटन के सरदार के पास ले जाऐ उस से कुछ कहना चाहता है।”
\s5
\v 18 उस ने उस को पलटन के सरदार के पास ले जा कर कहा कि “पौलुस क़ैदी ने मुझे बुला कर दरख़्वास्त की कि जवान को तेरे पास लाऊँ। कि तुझ से कुछ कहना चाहता है।”
\v 19 पलटन के सरदार ने उसका हाथ पकड़ कर और अलग जा कर पूछा “कि मुझ से क्या कहना चाहता है?”
\s5
\v 20 उस ने कहा “यहूदियों ने मशवरा किया है, कि तुझ से दरख़्वास्त करें कि कल पौलुस को सद्र-ए-अदालत में लाए। गोया तू उस के हाल की और भी तहक़ीक़ात करना चाहता है ।
\v 21 लेकिन तू उन की न मानना, क्यूँकि उन में चालीस शख़्स से ज़्यादा उस की घात में हैं जिन्होंने ला'नत की क़सम खाई है, कि जब तक उसे मार न डालें न खाएँगे न पिएँगे और अब वो तैयार हैं, सिर्फ़ तेरे वादे का इन्तज़ार है।”
\s5
\v 22 पस, सरदार ने जवान को ये हुक्म दे कर रुख़्सत किया “कि किसी से न कहना कि तू ने मुझ पर ये ज़ाहिर किया |
\v 23 और दो सुबेदारों को पास बुला कर कहा कि "दो सौ सिपाही और सत्तर सवार और दो सौ नेज़ा बरदार पहर रात गए, क़ैसरिया जाने को तैयार कर रखना।
\v 24 और हुक्म दिया पौलुस की सवारी के लिए जानवरों को भी हाज़िर करें, ताकि उसे फ़ेलिक्स हाकिम के पास सहीह सलामत पहुँचा दें।”
\s5
\v 25 और इस मज़्मून का ख़त लिखा।
\v 26 “क्लौदियुस लूसियास का फ़ेलिक्स बहादुर हाकिम को सलाम।
\v 27 इस शख़्स को यहूदियों ने पकड़ कर मार डालना चाहा मगर जब मुझे मा'लूम हुआ कि ये रोमी है तो फ़ौज समेत चढ़ गया, और छुड़ा लाया।
\s5
\v 28 और इस बात की दरियाफ़्त करने का इरादा करके कि वो किस वजह से उस पर लानत करते हैं; उसे उन की सद्र-ए-अदालत में ले गया।
\v 29 और मा'लूम हुआ कि वो अपनी शरी'अत के मस्लों के बारे में उस पर नालिश करते हैं; लेकिन उस पर कोई ऐसा इल्ज़ाम नहीं लगाया गया कि क़त्ल या क़ैद के लायक़ हो।
\v 30 और जब मुझे इत्तला हुई कि इस शख़्स के बर-ख़िलाफ़ साज़िश होने वाली है, तो मैंने इसे फ़ौरन तेरे पास भेज दिया है और इस के मुद्द,इयों को भी हुक्म दे दिया है कि तेरे सामने इस पर दा'वा करें| ”
\s5
\v 31 पस, सिपाहियों ने हुक्म के मुवाफ़िक़ पौलुस को लेकर रातों रात अन्तिपत्रिस में पहुँचा दिया।
\v 32 और दूसरे दिन सवारों को उसके साथ जाने के लिए छोड़ कर आप क़िले की तरफ मुड़े।
\v 33 उन्हों ने क़ैसरिया में पहुँच कर हाकिम को ख़त दे दिया, और पौलुस को भी उस के आगे हाज़िर किया।
\s5
\v 34 उस ने ख़त पढ़ कर पूछा “कि ये किस सूबे का है ”और ये मा'लूम करके “कि किलकिया का है ।”
\v 35 उस से कहा “कि जब तेरे मुद्द'ई भी हाज़िर होंगे; मैं तेरा मुक़द्दमा करूँगा ।”और उसे हेरोदेस के क़िले में क़ैद रखने का हुक्म दिया ।
\s5
\c 24
\v 1 पाँच दिन के बा'द हननियाह सरदार काहिन के कुछ बुज़ुर्गों और तिरतुलुस नाम एक वकील को साथ ले कर वहाँ आया, और उन्होंने हाकिम के सामने पौलुस के ख़िलाफ़ फ़रियाद की।
\v 2 जब वो बुलाया गया तो तिरतुलुस इल्ज़ाम लगा कर कहने लगा कि “ऐ फ़ेलिक्स बहादुर चूँकि तेरे वसीले से हम बड़े अमन में हैं और तेरी दूर अन्देशी से इस क़ौम के फ़ायदे के लिए ख़राबियों की इस्लाह होती है।
\v 3 हम हर तरह और हर जगह क़माल शुक्र गुज़ारी के साथ तेरा एहसान मानते हैं।
\s5
\v 4 मगर इस लिए कि तुझे ज़्यादा तकलीफ़ न दूँ, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि तू मेहरबानी से दो एक बातें हमारी सुन ले।
\v 5 क्यूँकि हम ने इस शख़्स को फ़साद करने वाला और दुनिया के सब यहूदियों में फ़ितना अंगेज़ और नासरियों की बिद'अती फ़िरक़े का सरगिरोह पाया।
\v 6 इस ने हैकल को नापाक करने की भी कोशिश की थी, और हम ने इसे पकड़ा। और हम ने चाहा कि अपनी शरी'अत के मुवाफ़िक़ इस की अदालत करें।
\s5
\v 7 लेकिन लूसियास सरदार आकर बड़ी ज़बरदस्ती से उसे हमारे हाथ से छीन ले गया।
\v 8 और उसके मुद्दइयों को हुक्म दिया कि तेरे पास जाएँ इसी से तहक़ीक़ करके तू आप इन सब बातों को मालूम कर सकता है, जिनका हम इस पर इल्ज़ाम लगाते हैं।”
\v 9 और दूसरे यहूदियों ने भी इस दा'वे में मुत्तफ़िक़ हो कर कहा कि ये बातें इसी तरह हैं।
\s5
\v 10 जब हाकिम ने पौलुस को बोलने का इशारा किया तो उस ने जवाब दिया,“चूँकि मैं जानता हूँ, कि तू बहुत बरसों से इस क़ौम की अदालत करता है, इसलिए मैं ख़ुद से अपना उज़्र बयान करता हूँ।
\v 11 तू मालूम कर सकता है, कि बारह दिन से ज़्यादा नहीं हुए कि मैं यरूशलीम में इबादत करने गया था।
\v 12 और उन्होंने मुझे न हैकल में किसी के साथ बहस करते या लोगों में फ़साद कराते पाया न इबादतख़ानों में न शहर में।
\v 13 और न वो इन बातों को जिन का मुझ पर अब इल्ज़ाम लगाते हैं, तेरे सामने साबित कर सकते हैं।
\s5
\v 14 लेकिन तेरे सामने ये इक़रार करता हूँ, कि जिस तरीके को वो बिद'अत कहते हैं, उसी के मुताबिक़ मैं अपने बाप दादा के "ख़ुदा" की इबादत करता हूँ, और जो कुछ तौरेत और नबियों के सहीफ़ों में लिखा है, उस सब पर मेरा ईमान है।
\v 15 और "ख़ुदा" से उसी बात की उम्मीद रखता हूँ, जिसके वो ख़ुद भी मुन्तज़िर हैं, कि रास्तबाज़ों और नारास्तों दोनों की क़यामत होगी।
\v 16 इसलिए मैं ख़ुद भी कोशिश में रहता हूँ, कि "ख़ुदा" और आदमियों के बारे में मेरा दिल मुझे कभी मलामत न करे।
\s5
\v 17 बहुत बरसों के बा'द मैं अपनी क़ौम को ख़ैरात पहुँचाने और नज़्रें चढ़ाने आया था।
\v 18 उन्होंने बग़ैर हंगामे या बवाल के मुझे तहारत की हालत में ये काम करते हुए हैकल में पाया, यहाँ आसिया के चन्द यहूदी थे ।
\v 19 और अगर उन का मुझ पर कुछ दा'वा था, तो उन्हें तेरे सामने हाज़िर हो कर फ़रियाद करना वाजिब था।
\s5
\v 20 या यही ख़ुद कहें, कि जब मैं सद्र-ए- अदालत के सामने खड़ा था, तो मुझ में क्या बुराई पाई थी ।”
\v 21 सिवा इस बात के कि मैं ने उन में खड़े हो कर बुलन्द आवाज़ से कहा था कि “मुर्दों की क़यामत के बारे में आज मुझ पर मुक़द्दमा हो रहा है। ”
\s5
\v 22 फ़ेलिक्स ने जो सहीह तौर पर इस तरीक़े से वाक़िफ़ था “ये कह कर मुक़द्दमे को मुल्तवी कर दिया कि जब पलटन का सरदार लूसियास आएगा तो मैं तुम्हारा मुक़द्दमा फ़ैसला करूँगा।”
\v 23 और सुबेदार को हुक्म दिया कि उस को क़ैद तो रख मगर आराम से रखना और इसके दोस्तों में से किसी को इसकी ख़िदमत करने से मना' न करना।
\s5
\v 24 और चन्द रोज़ के बा'द फ़ेलिक्स अपनी बीवी दुसिल्ला को जो यहूदी थी, साथ ले कर आया, और पौलुस को बुलवा कर उस से मसीह ईसा' के दीन की कैफ़ियत सुनी।
\v 25 और जब वो रास्तबाज़ी और परहेज़गारी और आइन्दा अदालत का बयान कर रहा था, तो फ़ेलिक्स ने दहशत खाकर जवाब दिया, “कि इस वक़्त तू जा; फ़ुरसत पाकर तुझे फिर बुलाउँगा । ”
\s5
\v 26 उसे पौलुस से कुछ रुपये मिलने की उम्मीद भी थी, इसलिए उसे और भी बुला बुला कर उस के साथ ग़ुफ़्तगू किया करता था।
\v 27 लेकिन जब दो बरस गुज़र गये तो पुरकियुस फ़ेस्तुस फ़ेलिक्स की जगह मुक़र्रर हुआ और फ़ेलिक्स यहूदियों को अपना एहसान मन्द करने की ग़रज़ से पौलुस को क़ैद ही में छोड़ गया।
\s5
\c 25
\v 1 पस, फ़ेस्तुस सूबे में दाख़िल होकर तीन रोज़ के बा'द क़ैसरिया से यरूशलीम को गया।
\v 2 और सरदार काहिनों और यहूदियों के रईसों ने उस के यहाँ पौलुस के ख़िलाफ़ फ़रियाद की।
\v 3 और उस की मुख़ालिफ़त में ये रि'आयत चाही कि उसे यरूशलीम में बुला भेजे; और घात में थे, कि उसे राह में मार डालें ।
\s5
\v 4 मगर फ़ेस्तुस ने जवाब दिया कि “पौलुस तो क़ैसरिया में क़ैद है और मैं आप जल्द वहाँ जाऊँगा।
\v 5 पस तुम में से जो इख़्तियार वाले हैं वो साथ चलें और अगर इस शख़्स में कुछ बेजा बात हो तो उस की फ़रियाद करें।”
\s5
\v 6 वो उन में आठ दस दिन रह कर क़ैसरिया को गया, और दूसरे दिन तख़्त -ए-अदालत पर बैठकर पौलुस के लाने का हुक्म दिया।
\v 7 जब वो हाज़िर हुआ तो जो यहूदी यरूशलीम से आए थे, वो उस के आस पास खड़े होकर उस पर बहुत सख़्त इल्ज़ाम लगाने लगे, मगर उन को साबित न कर सके।
\v 8 लेकिन पौलुस ने ये उज़्र किया “मैंने न तो कुछ यहूदियों की शरी'अत का गुनाह किया है, न हैकल का न क़ैसर का।”
\s5
\v 9 मगर फ़ेस्तुस ने यहूदियों को अपना एहसानमन्द बनाने की ग़रज़ से पौलुस को जवाब दिया “क्या तुझे यरूशलीम जाना मन्ज़ूर है? कि तेरा ये मुक़द्दमा वहाँ मेरे सामने फ़ैसला हो ”
\v 10 पौलुस ने कहा, “ मैं क़ैसर के तख़्त- ए -अदालत के सामने खड़ा हूँ, मेरा मुक़द्दमा यहीँ फ़ैसला होना चाहिए यहूदियों का मैं ने कुछ क़ुसूर नहीं किया। चुनाँचे तू भी ख़ूब जानता है।
\s5
\v 11 अगर बदकार हूँ, या मैंने क़त्ल के लायक़ कोई काम किया है तो मुझे मरने से इन्कार नहीं !लेकिन जिन बातों का वो मुझ पर इल्ज़ाम लगाते हैं अगर उनकी कुछ अस्ल नहीं तो उनकी रि'आयत से कोई मुझ को उनके हवाले नहीं कर सकता। मैं क़ैसर के यहाँ दरख़्वास्त करता हूँ। ”
\v 12 फिर फ़ेस्तुस ने सलाहकारों से मशवरा करके जवाब दिया,“कि तू ने क़ैसर के यहाँ फरियाद की है, तो क़ैसर ही के पास जाएगा।”
\s5
\v 13 और कुछ दिन गुज़रने के बा'द अग्रिप्पा बादशाह और बिरनीकि ने क़ैसरिया में आकर फ़ेस्तुस से मुलाक़ात की।
\v 14 और उनके कुछ अर्से वहाँ रहने के बा'द फ़ेस्तुस ने पौलुस के मुक़द्दमे का हाल बादशाह से ये कह कर बयान किया। कि एक शख़्स को फ़ेलिक्स क़ैद में छोड़ गया है |
\v 15 जब मैं यरूशलीम में था, तो सरदार काहिनों और यहूदियों के बुज़ुर्गों ने उसके ख़िलाफ़ फ़रियाद की; और सज़ा के हुक्म की दरख़्वास्त की।
\v 16 उनको मैंने जवाब दिया'कि “रोमियों का ये दस्तूर नहीं कि किसी आदमियों को रि'आयतन सज़ा के लिए हवाले करें, जब कि मुद्द'अलिया को अपने मुद्द'इयों के रू-ब-रू हो कर दा,वे के जवाब देने का मौक़ा न मिले।”
\s5
\v 17 पस, जब वो यहाँ जमा हुए तो मैंने कुछ देर न की बल्कि दूसरे ही दिन तख़्त -ए अदालत पर बैठ कर उस आदमी को लाने का हुक्म दिया।
\v 18 मगर जब उसके मुद्द'ई खड़े हुए तो जिन बुराइयों का मुझे गुमान था, उनमें से उन्होंने किसी का इल्ज़ाम उस पर न लगाया।
\v 19 बल्कि अपने दीन और किसी शख़्स ईसा' के बारे में उस से बहस करते थे, जो मर गया था, और पौलुस उसको ज़िन्दा बताता है।
\v 20 चूँकि मैं इन बातों की तहक़ीक़ात के बारे में उलझन में था,इस लिए उस से पूछा क्या तू यरूशलीम जाने को राज़ी है, कि वहाँ इन बातों का फ़ैसला हो?
\s5
\v 21 मगर जब पौलुस ने फरियाद की, कि मेरा मुक़द्दमा शहंशाह की अदालत में फ़ैसला हो तो , मैंने हुक्म दिया कि जब तक उसे क़ैसर के पास न भेजूँ, क़ैद में रहे।
\v 22 अग्रिप्पा ने फ़ेस्तुस से कहा,“मैं भी उस आदमी की सुनना चाहता हूँ,।”उस ने कहा “तू कल सुन लेगा।”
\s5
\v 23 पस, दूसरे दिन जब अग्रिप्पा और बिरनीकि बड़ी शान- ओ शौकत से पलटन के सरदारों और शहर के र'ईसों के साथ दिवान ख़ाने में दाख़िल हुए। तो फ़ेस्तुस के हुक्म से पौलुस हाज़िर किया गया।
\v 24 फिर फ़ेस्तुस ने कहा, “ऐ अग्रिप्पा बादशाह और ऐ सब हाज़रीन तुम इस शख़्स को देखते हो, जिसके बारे में यहूदियों के सारे गिरोह ने यरूशलीम में और यहाँ भी चिल्ला चिल्ला कर मुझ से अर्ज़ की कि इस का आगे को ज़िन्दा रहना मुनासिब नहीं।
\s5
\v 25 लेकिन मुझे मा'लूम हुआ कि उस ने क़त्ल के लायक़ कुछ नहीं किया; और जब उस ने ख़ुद शहंशाह के यहाँ फरियाद की तो मैं ने उस को भेजने की तज्वीज़ की।
\v 26 उसके बारे में मुझे कोई ठीक बात मा'लूम नहीं कि सरकार -ए -आली को लिखूँ इस वास्ते मैंने उस को तुम्हारे आगे और ख़ासकर -ऐ -अग्रिप्पा बादशाह तेरे हुज़ूर हाज़िर किया है, ताकि तहक़ीक़ात के बा'द लिखने के क़ाबिल कोई बात निकले।
\v 27 क्यूँकि क़ैदी के भेजते वक़्त उन इल्ज़ामों को जो उस पर लगाए गये है, ज़ाहिर न करना मुझे ख़िलाफ़-ए-अक़्ल मा'लूम होता है।”
\s5
\c 26
\v 1 अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “तुझे अपने लिए बोलने की इजाज़त है;” पौलुस अपना हाथ बढ़ाकर अपना जवाब यूँ पेश करने लगा कि,
\v 2 “ऐ अग्रिप्पा बादशाह जितनी बातों की यहूदी मुझ पर लानत करते हैं; आज तेरे सामने उनकी जवाबदेही करना अपनी ख़ुशनसीबी जानता हूँ।
\v 3 ख़ासकर इसलिए कि तू यहूदियों की सब रस्मों और मसलों से वाक़िफ़ है; पस, मैं मिन्नत करता हूँ, कि तहम्मुल से मेरी सुन ले।
\s5
\v 4 सब यहूदी जानते हैं कि अपनी क़ौम के दर्मियान और यरूशलीम में शुरू जवानी से मेरा चालचलन कैसा रहा है।
\v 5 चूँकि वो शुरू से मुझे जानते हैं, अगर चाहें तो गवाह हो सकते हैं, कि में फ़रीसी होकर अपने दीन के सब से ज़्यादा पाबन्द मज़हबी फ़िरक़े की तरह ज़िन्दगी गुज़ारता था।
\s5
\v 6 और अब उस वा'दे की उम्मीद की वजह से मुझ पर मुक़द्दमा हो रहा है, जो "ख़ुदा" ने हमारे बाप दादा से किया था।
\v 7 उसी वा'दे के पूरा होने की उम्मीद पर हमारे बारह के बारह क़बीले दिल'ओ जान से रात दिन इबादत किया करते हैं, इसी उम्मीद की वजह से "ऐ बादशाह यहूदी मुझ पर नालिश करते हैं।
\v 8 जब कि "ख़ुदा" मुर्दों को जिलाता है, तो ये बात तुम्हारे नज़दीक क्यूँ ग़ैर मो'तबर समझी जाती है?
\s5
\v 9 मैंने भी समझा था, कि ईसा' नासरी के नाम की तरह तरह से मुख़ालिफ़त करना मुझ पर फ़र्ज़ है ।
\v 10 चुनाँचे मैंने यरूशलीम में ऐसा ही किया, और सरदार काहिनों की तरफ़ से इख़्तियार पाकर बहुत से मुक़द्दसों को क़ैद में डाला और जब वो क़त्ल किए जाते थे, तो मैं भी यही मशवरा देता था ।
\v 11 और हर इबादत ख़ाने में उन्हें सज़ा दिला दिला कर ज़बरदस्ती उन से कूफ़्र कहलवाता था, बल्कि उन की मुख़ालिफ़त में ऐसा दिवाना बना कि ग़ैर शाहरों में भी जाकर उन्हें सताता था।
\s5
\v 12 इसी हाल में सरदार काहिनों से इख़्तियार और परवाने लेकर दमिश्क़ को जाता था।
\v 13 तो ऐ बादशाह मैंने दो पहर के वक़्त राह में ये देखा कि सूरज के नूर से ज़्यादा एक नूर आसमान से मेरे और मेरे हमसफ़रों के गिर्द आ चमका।
\v 14 जब हम सब ज़मीन पर गिर पड़े तो मैंने इब्रानी ज़बान में ये आवाज़ सुनी' कि ऐ साऊल, ऐ साऊल, तू मुझे क्यूँ सताता है? अपने आप पर लात मारना तेरे लिए मुश्किल है।'
\s5
\v 15 मैं ने कहा 'ऐ ख़ुदावन्द, तू कौन हैं?'ख़ुदावन्द ने फ़रमाया ‘मैं ईसा' हूँ, जिसे तू सताता है।
\v 16 लेकिन उठ अपने पाँव पर खड़ा हो, क्यूकि मैं इस लिए तुझ पर ज़ाहिर हुआ हूँ, कि तुझे उन चीज़ों का भी ख़ादिम और गवाह मुक़र्रर करूँ जिनकी गवाही के लिए तू ने मुझे देखा है, और उन का भी जिनकी गवाही के लिए में तुझ पर ज़ाहिर हुआ करूँगा।
\v 17 और मैं तुझे इस उम्मत और ग़ैर क़ौमों से बचाता रहूँगा। जिन के पास तुझे इसलिए भेजता हूँ।
\v 18 कि तू उन की आँखें खोल दे ताकि अन्धेरे से रोशनी की तरफ़ और शैतान के इख़्तियार से "ख़ुदा" की तरफ़ रुजू लाएँ, और मुझ पर ईमान लाने के ज़रिये गुनाहों की मु'आफ़ी और मुक़द्दसों में शरीक हो कर मीरास पाएँ।’
\s5
\v 19 इसलिए ऐ अग्रिप्पा बादशाह! मैं उस आसमानी रोया का नाफ़रमान न हुआ।
\v 20 बल्कि पहले दमिश्क़ियों को फिर यरूशलीम और सारे मुल्क यहूदिया के बाशिन्दों को और ग़ैर क़ौमों को समझाता रहा। कि तौबा करें और "ख़ुदा" की तरफ़ रजू लाकर तौबा के मुवाफ़िक़ काम करें।
\v 21 इन्ही बातों की वजह से कुछ यहूदियों ने मुझे हैकल में पकड़ कर मार डालने की कोशिश की।
\s5
\v 22 लेकिन "ख़ुदा "की मदद से मैं आज तक क़ायम हूँ, और छोटे बड़े के सामने गवाही देता हूँ, और उन बातों के सिवा कुछ नहीं कहता जिनकी पेशीनगोई नबियों और मूसा ने भी की है।
\v 23 कि "मसीह को दुख: उठाना ज़रूर है और सब से पहले वही मुर्दों में से ज़िन्दा हो कर इस उम्मत को और ग़ैर क़ौमों को भी नूर का इश्तिहार देगा।”
\s5
\v 24 जब वो इस तरह जवाबदेही कर रहा था, तो फ़ेस्तुस ने बड़ी आवाज़ से कहा “ऐ पौलुस तू दिवाना है; बहुत इल्म ने तुझे दिवाना कर दिया है।”
\v 25 पौलुस ने कहा “ ऐ फ़ेस्तुस बहादुर; मैं दिवाना नहीं बल्कि सच्चाई और होशियारी की बातें कहता हूँ।
\v 26 चुनाँचे बादशाह जिससे मैं दिलेराना कलाम करता हूँ, ये बातें जानता है और मुझे यक़ीन है कि इन बातों में से कोई उस से छिपी नहीं। क्यूकि ये माजरा कहीं कोने में नहीं हुआ।
\s5
\v 27 ऐ अग्रिप्पा बादशाह, क्या तू नबियों का यक़ीन करता है? मैं जानता हूँ, कि तू यक़ीन करता है ।”
\v 28 अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “तू तो थोड़ी ही सी नसीहत कर के मुझे मसीह कर लेना चाहता है।”
\v 29 पौलुस ने कहा, “मैं तो "ख़ुदा" से चाहता हूँ, कि थोड़ी नसीहत से या बहुत से सिर्फ़ तू ही नहीं बल्कि जितने लोग आज मेरी सुनते हैं, मेरी तरह हो जाएँ, सिवा इन ज़ंजीरों के।”
\s5
\v 30 तब बादशाह और हाकिम और बरनीकि और उनके हमनशीन उठ खड़े हुए,।
\v 31 और अलग जाकर एक दूसरे से बातें करने और कहने लगे, “कि ये आदमी ऐसा तो कुछ नहीं करता जो क़त्ल या क़ैद के लायक़ हो।”
\v 32 अग्रिप्पा ने फ़ेस्तुस से कहा, “कि अगर ये आदमी क़ैसर के यहाँ फरियाद न करता तो छूट सकता था।”
\s5
\c 27
\v 1 जब जहाज़ पर इतालिया को हमारा जाना ठहराया गया तो उन्होंने पौलुस और कुछ और क़ैदियों को शहंशाही पलटन के एक सुबेदार अगस्तुस ने यूलियुस नाम के हवाले किया।
\v 2 और हम अद्रमुतय्युस के एक जहाज़ पर जो आसिया के किनारे के बन्दरगाहों में जाने को था। सवार होकर रवाना हुए और थिस्लुनीकि का अरिस्तर्ख़ुस मकिदुनी हमारे साथ था।
\s5
\v 3 दूसरे दिन सैदा में जहाज़ ठहराया, और यूलियुस ने पौलुस पर मेंहरबानी करके दोस्तों के पास जाने की इजाज़त दी। ताकि उस की ख़ातिरदारी हो।
\v 4 वहाँ से हम रवाना हुए और कुप्रुस की आड़ में होकर चले इसलिए कि हवा मुखालिफ़ थी ।
\v 5 फिर किलिकिया और पम्फ़ीलिया सूबे के समुन्दर से गुज़र कर लूकिया के शहर मूरा में उतरे।
\v 6 वहाँ सुबेदार को इस्कन्दरिया का एक जहाज़ इतालिया जाता हुआ, मिला पस, हमको उस में बैठा दिया।
\s5
\v 7 और हम बहुत दिनों तक आहिस्ता आहिस्ता चलकर मुश्किल से कनिदुस शहर के सामने पहुँचे तो इसलिए कि हवा हम को आगे बढ़ने न देती थी सलमूने के सामने से हो कर करेते टापू की आड़ में चले।
\v 8 और बमुश्किल उसके किनारे किनारे चलकर हसीन-बन्दर नाम एक मक़ाम में पहुँचे जिस से लसया शहर नज़दीक था।
\s5
\v 9 जब बहुत अरसा गुज़र गया और जहाज़ का सफ़र इसलिए ख़तरनाक हो गया कि रोज़ा का दिन गुज़र चुका था। तो पौलुस ने उन्हें ये कह कर नसीहत की।
\v 10 कि “ऐ साहिबो। मुझे मालूम होता है, कि इस सफ़र में तक्लीफ़ और बहुत नुक़सान होगा, न सिर्फ़ माल और जहाज़ का बल्कि हमारी जानों का भी।”
\v 11 मगर सुबेदार ने नाख़ुदा और जहाज़ के मालिक की बातों पर पौलुस की बातों से ज़्यादा लिहाज़ किया।
\s5
\v 12 और चूँकि वो बन्दरगाह जाड़ों में रहने कि लिए अच्छा न था, इसलिए अक्सर लोगों की सलाह ठहरी कि वहाँ से रवाना हों, और अगर हो सके तो फ़ेनिक्स शहर में पहुँच कर जाड़ा काटें; वो करेते का एक बन्दरगाह है जिसका रुख़ शिमाल मशरिक़ और जुनूब मशरिक़ को है।
\v 13 जब कुछ कुछ दक्खिना हवा चलने लगी तो उन्हों ने ये समझ कर कि हमारा मतलब हासिल हो गया लंगर उठाया और करेते के किनारे के क़रीब क़रीब चले।
\s5
\v 14 लेकिन थोड़ी देर बा'द एक बड़ी तूफ़ानी हवा जो यूरकुलोन कहलाती है करेते पर से जहाज़ पर आई ।
\v 15 और जब जहाज़ हवा के काबू में आ गया, और उस का सामना न कर सका, तो हम ने लाचार होकर उसको बहने दिया।
\v 16 और कौदा नाम एक छोटे टापू की आड़ में बहते बहते हम बड़ी मुश्किल से डोंगी को क़ाबू में लाए।
\s5
\v 17 और जब मल्लाह उस को उपर चढ़ा चुके तो जहाज़ की मज़बूती की तदबीरें करके उसको नीचे से बाँधा, और सूरतिस के चोर बालू में धंस जाने के डर से जहाज़ का साज़ो सामान उतार लिया। और उसी तरह बहते चले गए।
\v 18 मगर जब हम ने आँधी से बहुत हिचकोले खाए तो दूसरे दिन वो जहाज़ का माल फेंकने लगे ।
\s5
\v 19 और तीसरे दिन उन्हों ने अपने ही हाथों से जहाज़ के कुछ आलात-ओ-'असबाब भी फेंक दिये।
\v 20 जब बहुत दिनों तक न सूरज नज़र आया न तारे और शिद्दत की आँधी चल रही थी, तो आख़िर हम को बचने की उम्मीद बिल्कुल न रही।
\s5
\v 21 और जब बहुत फ़ाक़ा कर चुके तो पौलुस ने उन के बीच में खड़े हो कर कहा “ऐ साहिबो; लाज़िम था, कि तुम मेरी बात मान कर करेते से रवाना न होते और ये तकलीफ़ और नुक़्सान न उठाते।
\v 22 मगर अब मैं तुम को नसीहत करता हूँ कि इत्मीनान रख्खो; क्यूँकि तुम में से किसी का नुक़्सान न होगा" मगर जहाज़ का।
\s5
\v 23 क्यूँकि "ख़ुदा" जिसका मैं हूँ, और जिसकी इबादत भी करता हूँ, उसके फ़रिश्ते ने इसी रात को मेरे पास आकर।
\v 24 कहा, ‘पौलुस, न डर। ज़रूरी है कि तू क़ैसर के सामने हाज़िर हो, और देख जितने लोग तेरे साथ जहाज़ में सवार हैं, उन सब की ख़ुदा ने तेरी ख़ातिर जान बख़्शी की।’
\v 25 इसलिए "ऐ साहिबो; इत्मिनान रख्खो; क्यूकि मैं "ख़ुदा" का यक़ीन करता हूँ, कि जैसा मुझ से कहा गया है, वैसा ही होगा।
\v 26 लेकिन ये ज़रूर है कि हम किसी टापू में जा पड़ें”
\s5
\v 27 जब चौधवीं रात हुई और हम बहर-ए-अद्रिया में टकराते फिरते थे, तो आधी रात के क़रीब मल्लाहों ने अंदाज़े से मा'लूम किया कि किसी मुल्क के नज़दीक पहुँच गए।
\v 28 और पानी की थाह लेकर बीस पुर्सा पाया और थोड़ा आगे बढ़ कर और फिर थाह लेकर पन्द्रह पुर्सा पाया।
\v 29 और इस डर से कि पथरीली चटानों पर जा पड़ें, जहाज़ के पीछे से चार लंगर डाले और सुबह होने के लिए दुआ करते रहे।
\s5
\v 30 और जब मल्लाहों ने चाहा कि जहाज़ पर से भाग जाएँ, और इस बहाने से कि गलही से लंगर डालें, डोंगी को समुन्द्र में उतारें।
\v 31 तो पौलुस ने सुबेदार और सिपाहियों से कहा “अगर ये जहाज़ पर न रहेंगे तो तुम नहीं बच सकते।”
\v 32 इस पर सिपाहियों ने डोंगी की रस्सियाँ काट कर उसे छोड़ दिया।
\s5
\v 33 और जब दिन निकलने को हुआ तो पौलुस ने सब की मिन्नत की कि खाना खालो और कहा कि “तुम को इन्तज़ार करते करते और फ़ाक़ा करते करते आज चौदह दिन हो गए; और तुम ने कुछ नहीं खाया।
\v 34 इसलिए तुम्हारी मिन्नत करता हूँ कि खाना खालो, इसी में तुम्हारी बहतरी मौक़ूफ़ है, और तुम में से किसी के सिर का बाल बाका न होगा।”
\v 35 ये कह कर उस ने रोटी ली और उन सब के सामने "ख़ुदा" का शुक्र किया, और तोड़ कर खाने लगा।
\s5
\v 36 फिर उन सब की ख़ातिर जमा हुई, और आप भी ख़ाना ख़ाने लगे।
\v 37 और हम सब मिलकर जहाज़ में दो सौ छिहत्तर आदमी थे।
\v 38 जब वो ख़ा कर सेर हुए तो गेहूँ को समुन्द्र में फ़ेंक कर जहाज़ को हल्का करने लगे।
\s5
\v 39 जब दिन निकल आया तो उन्होंने उस मुल्क को न पहचाना, मगर एक खाड़ी देखी, जिसका किनारा साफ़ था, और सलाह की कि अगर हो सके तो जहाज़ को उस पर चढ़ा लें।
\v 40 पस, लंगर खोल कर समुन्द्र में छोड़ दिए, और पत्वारों की भी रस्सियाँ खोल दी; और अगला पाल हवा के रुख पर चढ़ा कर उस किनारे की तरफ़ चले।
\v 41 लेकिन एक ऐसी जगह जा पड़े जिसके दोनों तरफ़ समुन्द्र का ज़ोर था; और जहाज़ ज़मीन पर टिक गया, पस गलही तो धक्का खाकर फंस गई; मगर दुम्बाला लहरों के ज़ोर से टूटने लगा।
\s5
\v 42 और सिपाहियों की ये सलाह थी, कि क़ैदियों को मार डालें, कि ऐसा न हो कोई तैर कर भाग जाए:।
\v 43 लेकिन सुबेदार ने पौलुस को बचाने की ग़रज़ से उन्हें इस इरादे से बाज़ रख्खा; और हुक्म दिया कि जो तैर सकते हैं, पहले कूद कर किनारे पर चले जाएँ।
\v 44 बाक़ी लोग कुछ तख़्तों पर और कुछ जहाज़ की और चीज़ों के सहारे से चले जाएँ; इसी तरह सब के सब ख़ुश्की पर सलामत पहुँच गए।
\s5
\c 28
\v 1 जब हम पहुँच गए तो जाना कि इस टापू का नाम मिलिते है,।
\v 2 और उन अजनबियों ने हम पर ख़ास महरबानी की, क्यूँकि बारिश की झड़ी और जाड़े की वजह से उन्होंने आग जलाकर हम सब की ख़ातिर की।
\s5
\v 3 जब पौलुस ने लकड़ियों का गट्ठा जमा करके आग में डाला तो एक साँप गर्मी पा कर निकला और उसके हाथ पर लिपट गया।
\v 4 जिस वक़्त उन अजनबियों ने वो कीड़ा उसके हाथ से लटका हुआ देखा तो एक दूसरे से कहने लगे, “बेशक ये आदमी ख़ूनी है: अगरचे समुन्द्र से बच गया तो भी अदल उसे जीने नहीं देता।”
\s5
\v 5 पस, उस ने कीड़े को आग में झटक दिया और उसे कुछ तकलीफ न पहुँची।
\v 6 मगर वो मुन्तज़िर थे, कि इस का बदन सूज जाएगा: या ये मरकर यकायक गिर पड़ेगा लेकिन जब देर तक इन्तज़ार किया और देखा कि उसको कुछ तकलीफ न पहुँची तो और ख़याल करके कहा,“ये तो कोई देवता है।”
\s5
\v 7 वहाँ से क़रीब पुबलियुस नाम उस टापू के सरदार की मिलकियत थी; उस ने घर लेजाकर तीन दिन तक बड़ी महरबानी से हमारी मेंहमानी की।
\v 8 और ऐसा हुआ, कि पुबलियुस का बाप बुख़ार और पेचिश की वजह से बीमार पड़ा था; पौलुस ने उसके पास जाकर दुआ की और उस पर हाथ रखकर शिफ़ा दी।
\v 9 जब ऐसा हुआ तो बाक़ी लोग जो उस टापू में बीमार थे, आए और अच्छे किए गए।
\v 10 और उन्होंने हमारी बड़ी 'इज़्ज़त की और चलते वक़्त जो कुछ हमें दरकार था; जहाज़ पर रख दिया।
\s5
\v 11 तीन महीने के बा'द हम इसकन्दरिया के एक जहाज़ पर रवाना हुए जो जाड़े भर 'उस टापू में रहा था जिसका निशान दियुसकूरी था
\v 12 और सुरकूसा में जहाज़ ठहरा कर तीन दिन रहे।
\s5
\v 13 और वहाँ से फेर खाकर रेगियूम बन्दरगाह में आए। एक रोज़ बा'द दक्खिन हवा चली तो दूसरे दिन पुतियुली शहर में आए।
\v 14 वहाँ हम को भाई मिले, और उनकी मिन्नत से हम सात दिन उन के पास रहे; और इसी तरह रोमा तक गए।
\v 15 वहाँ से भाई हमारी ख़बर सुनकर अप्पियुस के चौक और तीन सराय तक हमारे इस्तक़बाल को आए। पौलुस ने उनहें देखकर ख़ुदा का शुक्र किया और उसके ख़ातिर जमा' हुई।
\s5
\v 16 जब हम रोम में पहुँचे तो पौलुस को इजाज़त हुई, कि अकेला उस सिपाही के साथ रहे, जो उस पर पहरा देता था।
\v 17 तीन रोज़ के बा'द ऐसा हुआ कि उस ने यहूदियों के रईसों को बुलवाया और जब जमा हो गए, तो उन से कहा, “ऐ भाइयों हर वक़्त पर मैंने उम्मत और बाप दादा की रस्मों के ख़िलाफ़ कुछ नहीं किया। तोभी यरूशलीम से क़ैदी होकर रोमियों के हाथ हवाले किया गया।
\v 18 उन्होंने मेरी तहक़ीक़ात करके मुझे छोड़ देना चाहा; क्यूँकि मेरे क़त्ल की कोई वजह न थी।
\s5
\v 19 मगर जब यहूदियों ने मुख़ालिफ़त की तो मैंने लाचार होकर क़ैसर के यहाँ फ़रियाद की मगर इस वास्ते नहीं कि अपनी क़ौम पर मुझे कुछ इल्ज़ाम लगाना है, ।
\v 20 पस, इसलिए मैंने तुम्हें बुलाया है कि तुम से मिलूँ और गुफ़्तगू करूँ, क्यूँकि इस्राईल की उम्मीद की वजह से मैं इस ज़ंजीर से जकड़ा हुआ हूँ,।”
\s5
\v 21 उन्होंने कहा “न हमारे पास यहूदिया से तेरे बारे में ख़त आए, न भाइयों में से किसी ने आ कर तेरी कुछ ख़बर दी न बुराई बयान की।
\v 22 मगर हम मुनासिब जानते हैं कि तुझ से सुनें, कि तेरे ख़यालात क्या हैं; क्यूँकि इस फ़िर्के की वजह हम को मा'लूम है कि हर जगह इसके ख़िलाफ़ कहते हैं।”
\s5
\v 23 और वो उस से एक दिन ठहरा कर कसरत से उसके यहाँ जमा हुए, और वो "ख़ुदा" की बादशाही की गवाही दे दे कर और मूसा की तौरेत और नबियों के सहीफ़ों से ईसा' की वजह समझा समझा कर सुबह से शाम तक उन से बयान करता रहा।
\v 24 और कुछ ने उसकी बातों को मान लिया, और कुछ ने न माना।
\s5
\v 25 जब आपस में मुत्तफ़िक़ न हुए, तो पौलुस की इस एक बात के कहने पर रुख़्सत हुए; कि रूह -उल क़ुद्दूस ने यसा'याह नबी के ज़रिये तुम्हारे बाप दादा से ख़ूब कहा कि।
\v 26 इस उम्मत के पास जाकर कह कि “तुम कानों से सुनोगे और हर्गिज न समझोगे और आँखों से देखोगे और हर्गिज़ मा'लूम न करोगे।
\s5
\v 27 क्यूँकि इस उम्मत के दिल पर चर्बी छा गई है,'और वो कानों से ऊँचा सुनते हैं, और उन्होंने अपनी आँखें बन्द कर ली हैं,।कहीं ऐसा न हो कि आँखों से मा'लूम करें, और कानों से सुनें, और दिल से समझें, और रुजू लाएँ, और मैं उन्हें शिफ़ा बख़्शूँ”
\s5
\v 28 “पस, तुम को मा'लूम हो कि ख़ुदा! की इस नजात का पैग़ाम ग़ैर क़ौमों के पास भेजा गया है, और वो उसे सुन भी लेंगी ”
\v 29 [जब उस ने ये कहा तो यहूदी आपस में बहुत बहस करते चले गए।]
\s5
\v 30 और वो पूरे दो बरस अपने किराये के घर में रहा।
\v 31 और जो उसके पास आते थे, उन सब से मिलता रहा; और कमाल दिलेरी से बग़ैर रोक टोक के "ख़ुदा" की बादशाही का ऐलान करता और "ख़ुदावन्द" ईसा' मसीह की बातें सिखाता रहा।

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\h रोमियों के नाम पौलूस रसूल का ख़त
\toc1 रोमियों के नाम पौलूस रसूल का ख़त
\toc2 रोमियों के नाम पौलूस रसूल का ख़त
\toc3 rom
\mt1 रोमियों के नाम पौलूस रसूल का ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 पौलुस की तरफ़ से जो ईसा' मसीह का बन्दा है और रसूल होने के लिए बुलाया गया और ख़ुदा की उस ख़ुशख़बरी के लिए अलग किया गया |
\v 2 पस मैं तुम को भी जो रोमा में हों ख़ुशख़बरी सुनाने को जहाँ तक मेरी ताक़त है मैं तैयार हुँ।
\v 3 अपने बेटे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह के बारे में वा'दा किया था जो जिस्म के ऐ'तिबार से तो दाऊद की नस्ल से पैदा हुआ।
\s5
\v 4 लेकिन पाकीज़गी की रूह के ऐतबार से मुर्दों में से जी उठने की वजह से क़ुदरत के साथ ख़ुदा का बेटा ठहरा।
\v 5 जिस के ज़रिए हम को फ़ज़ल और रिसालत मिली ताकि उसके नाम की ख़ातिर सब क़ौमों में से लोग ईमान के ताबे हों।
\v 6 जिन में से तुम भी ईसा' मसीह के होने के लिए बुलाए गए हो।
\s5
\v 7 उन सब के नाम जो रोम में ख़ुदा के प्यारे हैं और मुक़द्दस होने के लिए बुलाए गए हैं; हमारे बाप ख़ुदा और ख़ुदावन्द ईसा' मसीह की तरफ़ से तुम्हें फ़ज़ल और इत्मीनान हासिल होता रहे।
\s5
\v 8 पहले , तो मैं तुम सब के बारे में ईसा' मसीह के वसीले से अपने ख़ुदा का शुक्र करता हूँ कि तुम्हारे ईमान का तमाम दुनिया में नाम हो रहा है।
\v 9 चुनाँचे ख़ुदा जिस की इबादत में अपनी रूह से उसके बेटे की ख़ुशख़बरी देने में करता हूँ वही मेरा गवाह है कि में बिला नाग़ा तुम्हें याद करता हूँ।
\v 10 और अपनी दुआओं में हमेशा ये गुज़ारिश करता हूँ कि अब आख़िरकार ख़ुदा की मर्ज़ी से मुझे तुम्हारे पास आने में किसी तरह कामयाबी हो।
\s5
\v 11 क्यूँकि में तुम्हारी मुलाक़ात का मुश्ताक़ हूँ, ताकि तुम को कोई रूहानी ने'मत दूँ जिस से तुम मज़बूत हो जाओ।
\v 12 ग़रज़ मैं भी तुम्हारे दर्मियान हो कर तुम्हारे साथ उस ईमान के ज़रिए तसल्ली पाऊँ जो तुम में और मुझ में दोनों में है।
\s5
\v 13 और ऐ भाइयो; मैं इस से तुम्हारा ना वाक़िफ़ रहना नहीं चाहता कि मैंने बार बार तुम्हारे पास आने का इरादा किया ताकि जैसा मुझे और ग़ैर क़ौमों में फल मिला वैसा ही तुम में भी मिले मगर आज तक रुका रहा।
\v 14 मैं युनानियों और ग़ैर यूनानियों दानाओं और नादानों का क़र्ज़दार हूँ|
\v 15 पस मैं तुम को भी जो रोमा में हों ख़ुशख़बरी सुनाने को जहाँ तक मेरी ताक़त है मैं तैयार हूँ।
\s5
\v 16 क्यूँकि मैं इन्जील से शर्माता नहीं इसलिए कि वो हर एक ईमान लानेवाले के वास्ते पहले यहूदियों फिर यूनानी के वास्ते नजात के लिए ख़ुदा की क़ुदरत है।
\v 17 इस वास्ते कि उसमें ख़ुदा की रास्तबाज़ी ईमान से “और ईमान के लिए ज़ाहिर होती है जैसा लिखा है ”रास्तबाज़ ईमान से जीता रहेगा'
\s5
\v 18 क्यूँकि ख़ुदा का ग़ज़ब उन आदमियों की तमाम बेदीनी और नारास्ती पर आसमान से ज़ाहिर होता है।
\v 19 क्यूँकि जो कुछ ख़ुदा के बारे में मालूम हो सकता है वो उनको बातिन में ज़ाहिर है इसलिए कि ख़ुदा ने उनको उन पर ज़ाहिर कर दिया।
\s5
\v 20 क्यूँकि उसकी अनदेखी सिफ़तें या'नी उसकी अज़ली क़ुदरत और खुदाइयत दुनिया की पैदाइश के वक़्त से बनाई हुई चीज़ों के ज़रि'ए मा'लूम हो कर साफ़ नज़र आती हैं यहाँ तक कि उन को कुछ बहाना बाक़ी नहीं।
\v 21 इसलिए कि अगर्चे ख़ुदाई के लायक़ उसकी बड़ाई और शुक्रगुज़ारी न की बल्कि बेकार के ख़याल में पड़ गए, और उनके नासमझ दिलों पर अँधेरा छा गया।
\s5
\v 22 वो अपने आप को अक़्लमन्द समझ कर बेवक़ूफ़ बन गए।
\v 23 और ग़ैर फ़ानी ख़ुदा के जलाल को फ़ानी इन्सान और परिन्दों और चौपायों और कीड़ों मकोड़ों की सूरत में बदल डाला
\s5
\v 24 इस वास्ते ख़ुदा ने उनके दिलों की ख़्वाहिशों के मुताबिक़ उन्हें नापाकी में छोड़ दिया कि उन के बदन आपस में बेइज़्ज़त किए जाएँ।
\v 25 इसलिए कि उन्होंने ख़ुदा की सच्चाई को बदल कर झूठ बना डाला और मख़्लूक़ात की ज़्यादा 'इबादत की बनिस्बत उस ख़ालिक़ के जो हमेशा तक महमूद है; आमीन।
\s5
\v 26 इसी वजह से ख़ुदा ने उनको गन्दी आदतों में छोड़ दिया यहाँ तक कि उनकी औरतों ने अपने तब;ई काम को ख़िलाफ़'ए तब'आ काम से बदल डाला।
\v 27 इसी तरह मर्द भी औरतों से तब;ई काम छोड़ कर आपस की शहवत से मस्त हो गए; या'नी आदमियों ने आदमियों के साथ रुसिहाई का काम कर के अपने आप में अपने काम के मुआफ़िक़ बदला पाया।
\s5
\v 28 और जिस तरह उन्होंने ख़ुदा को पहचानना नापसन्द किया उसी तरह ख़ुदा ने भी उनको नापसन्दीदा अक़्ल के हवाले कर दिया कि नालायक़ हरक़तें करें।
\s5
\v 29 पस वो हर तरह की नारासती बदी लालच और बदख़्वाही से भर गए, ख़ूनरेजी, झगड़े, मक्कारी और अदावत से मा'मूर हो गए, और ग़ीबत करने वाले।
\v 30 बदग़ो ख़ुदा की नज़र में नफ़रती औरो को बे'इज़्ज़त करनेवाला, मग़रूर, शेख़ीबाज़, बदियों के बानी, माँ बाप के नाफ़रमान,
\v 31 बेवक़ूफ़, वादा ख़िलाफ़, तबई तौर से मुहब्बत से ख़ाली और बे रहम हो गए।
\s5
\v 32 हालाँकि वो ख़ुदा का हुक्म जानते हैं कि ऐसे काम करने वाले मौत की सज़ा के लायक़ हैं फिर भी न सिर्फ़ ख़ुद ही ऐसे काम करते हैं बल्कि और करनेवालो से भी ख़ुश होते हैं।
\s5
\c 2
\v 1 पस ऐ इल्ज़ाम लगाने वाले तू कोई क्यूँ न हो तेरे पास कोई बहाना नहीं क्यूँकि जिस बात से तू दूसरे पर इल्ज़ाम लगाता है उसी का तू अपने आप को मुजरिम ठहराता है इसलिए कि तू जो इल्ज़ाम लगाता है ख़ुद वही काम करता है।
\v 2 और हम जानते हैं कि ऐसे काम करने वालों की अदालत ख़ुदा की तरफ़ से हक़ के मुताबिक़ होती है।
\s5
\v 3 ऐ भाई ! तू जो ऐसे काम करने वालों पर इल्ज़ाम लगाता है और ख़ुद वही काम करता है क्या ये समझता है कि तू ख़ुदा की अदालत से बच जाएगा।
\v 4 या तू उसकी महरबानी और बरदाश्त और सब्र की दौलत को नाचीज़ जानता है और नहीं समझता कि ख़ुदा की महरबानी तुझ को तौबा की तरफ़ माएल करती है।
\s5
\v 5 बल्कि तू अपने सख़्त और न तोबा करने वाले दिल के मुताबिक़ उस क़हर के दिन के लिए अपने वास्ते ग़ज़ब का काम कर रहा है जिस में ख़ुदा की सच्ची अदालत ज़ाहिर होगी।
\v 6 वो हर एक को उस के कामो के मुवाफ़िक़ बदला देगा।
\v 7 जो अच्छे काम में साबित क़दम रह कर जलाल और इज़्ज़त और बक़ा के तालिब होते हैं उनको हमेशा की ज़िन्दगी देगा।
\s5
\v 8 मगर जो ना इत्तफ़ाक़ी अन्दाज़ और हक़ के न माननेवाले बल्कि नारास्ती के माननेवाले हैं उन पर ग़ज़ब और क़हर होगा।
\v 9 और मुसीबत और तंगी हर एक बदकार की जान पर आएगी पहले यहूदी की फिर यूनानी की।
\s5
\v 10 मगर जलाल और इज़्ज़त और सलामती हर एक नेक काम करने वाले को मिलेगी; पहले यहूदी को फिर यूनानी को।
\v 11 क्यूँकि ख़ुदा के यहाँ किसी की तरफ़दारी नहीं।
\v 12 इसलिए कि जिन्होंने बग़ैर शरी'अत पाए गुनाह किया वो बग़ैर शरी'अत के हलाक भी होगा और जिन्होंने शरी'अत के मातहत होकर गुनाह किया उन की सज़ा शरी'अत के मुवाफ़िक़ होगी
\s5
\v 13 क्यूँकि शरी'अत के सुननेवाले ख़ुदा के नज़दीक रास्तबाज़ नहीं होते बल्कि शरी'अत पर अमल करनेवाले रास्तबाज़ ठहराए जाएँगे।
\v 14 इसलिए कि जब वो क़ौमें जो शरी'अत नहीं रखतीं अपनी तबी'अत से शरी'अत के काम करती हैं तो बावजूद शरी'अत रखने के अपने लिए ख़ुद एक शरी'अत हैं।
\s5
\v 15 चुनाँचे वो शरी'अत की बातें अपने दिलों पर लिखी हुई दिखाती हैं और उन का दिल भी उन बातों की गवाही देता है और उनके आपसी ख़यालात या तो उन पर इल्ज़ाम लगाते हैं या उन को माज़ूर रखते हैं।
\v 16 जिस रोज़ ख़ुदा ख़ुशख़बरी के मुताबिक़ जो मै ऐलान करता हूँ ईसा' मसीह की मारिफ़त आदमियों की छुपी बातों का इन्साफ़ करेगा।
\s5
\v 17 पस अगर तू यहूदी कहलाता और शरी'अत पर भरोसा और ख़ुदा पर फ़ख़्र करता है।
\v 18 और उस की मर्ज़ी जानता और शरी'अत की ता'लीम पाकर उम्दा बातें पसन्द करता है।
\v 19 और अगर तुझको इस बात पर भी भरोसा है कि मैं अँधों का रहनुमा और अँधेरे में पड़े हुओं के लिए रोशनी।
\v 20 और नादानों का तरबियत करनेवाला और बच्चो का उस्ताद हूँ'और 'इल्म और हक़ का जो नमूना शरी'अत में है वो मेरे पास है।
\s5
\v 21 पस तू जो औरों को सिखाता है अपने आप को क्यूँ नहीं सिखाता? तू जो बताता है कि चोरी न करना तब तू ख़ुद क्यूँ चोरी करता है? तू जो कहता है ज़िना न करना; तब तू क्यूँ ज़िना करता है।?
\v 22 तू जो बुतों से नफ़रत रखता है? तब ख़ुद क्यूँ बुतख़ानो को लूटता है?
\s5
\v 23 तू जो शरी'अत पर फ़ख़्र करता है? शरी'अत की मुख़ालिफ़त से ख़ुदा की क्यूँ बे'इज़्ज़ती करता है?
\v 24 क्यूँकि तुम्हारी वजह से ग़ैर क़ौमों में ख़ुदा के नाम पर कुफ़्र बका जाता है“चुनाँचे ये लिखा भी है।”
\s5
\v 25 ख़तने से फ़ाइदा तो है ब'शर्त तू शरी'अत पर अमल करे लेकिन जब तू ने शरी'अत से मुख़ालिफ़त किया तो तेरा ख़तना ना मख़्तूनी ठहरा।
\v 26 पस अगर नामख़्तून शख़्स शरी'अत के हुक्मो पर अमल करे तो क्या उसकी ना मख़्तूनी ख़तने के बराबर न गिनी जाएगी।
\v 27 और जो शख़्स क़ौमियत की वजह से ना मख़्तून रहा अगर वो शरी'अत को पूरा करे तो क्या तुझे जो बावुजूद कलाम और ख़तने के शरी'अत से मुख़ालिफ़त करता है क़ुसूरवार न ठहरेगा।
\s5
\v 28 क्यूँकि वो यहूदी नहीं जो ज़ाहिर का है और न वो ख़तना है जो ज़ाहिरी और जिस्मानी है।
\v 29 बल्कि यहूदी वही है जो बातिन में है और ख़तना वही है जो दिल का और रूहानी है न कि लफ़्ज़ी ऐसे की ता'रीफ़ आदमियों की तरफ़ से नहीं बल्कि ख़ुदा की तरफ़ से होती है।
\s5
\c 3
\v 1 उस यहूदी को क्या दर्जा है और ख़तने से क्या फ़ाइदा?
\v 2 हर तरह से बहुत ख़ास कर ये कि ख़ुदा का कलाम उसके सुपुर्द हुआ।
\s5
\v 3 मगर कुछ बेवफ़ा निकले तो क्या हुआ क्या उनकी बेवफ़ाई ख़ुदा की वफ़ादारी को बेकार करती है?।
\v 4 हरगिज़ नहीं “बल्कि ख़ुदा सच्चा ठहरे”और हर एक आदमी झूठा क्यूँकि लिखा है तू अपनी बातों में रास्तबाज़ ठहरे और अपने मुक़द्दमे में फ़तह पाए।
\s5
\v 5 अगर हमारी नारास्ती ख़ुदा की रास्तबाज़ी की ख़ूबी को ज़ाहिर करती है, तो हम क्या करें? क्या ये कि ख़ुदा बेवफ़ा है जो ग़ज़ब नाज़िल करता है मैं ये बात इन्सान की तरह करता हूँ।
\v 6 हरग़िज़ नहीं वर्ना ख़ुदा क्यूँकर दुनिया का इन्साफ़ करेगा।
\s5
\v 7 अगर मेरे झूठ की वजह से ख़ुदा की सच्चाई उसके जलाल के वास्ते ज़्यादा ज़ाहिर हुई तो फिर क्यूँ गुनाहगार की तरह मुझ पर हुक्म दिया जाता है?
\v 8 और "हम क्यूँ बुराई न करें ताकि भलाई पैदा हो “ चुनाँचे हम पर ये तोहमत भी लगाई जाती है और कुछ कहते हैं इनकी यही कहावत है मगर ऐसों का मुजरिम ठहरना इंसाफ़ है।
\s5
\v 9 पस क्या हुआ; क्या हम कुछ फ़ज़ीलत रखते हैं? बिल्कूल नहीं क्यूंकि हम यहूदियों और यूनानियों दोनों पर पहले ही ये इल्ज़ाम लगा चुके हैं कि वो सब के सब गुनाह के मातहत हैं।
\v 10 चुनाँचे लिखा है एक भी रास्तबाज़ नहीं ।
\s5
\v 11 कोई समझदार नहीं कोई ख़ुदा का तालिब नहीं ।
\v 12 सब गुमराह हैं सब के सब निकम्मे बन गए; कोई भलाई करनेवाला नहीं एक भी नहीं।
\s5
\v 13 उनका गला खुली हुई क़ब्र है उन्होंने अपनी ज़बान से धोका दिया उन के होंटों में साँपों का ज़हर है।
\v 14 उन का मुँह लानत और कड़वाहट से भरा है।
\s5
\v 15 उन के क़दम ख़ून बहाने के लिए तेज़ी से बढ़ने वाले हैं।
\v 16 उनकी राहों में तबाही और बदहाली है।
\v 17 और वह सलामती की राह से वाक़िफ़ न हुए।
\v 18 उन की आँखों में ख़ुदा का ख़ौफ़ नहीं।”
\s5
\v 19 अब हम जानते हैं कि शरीअत जो कुछ कहती है उनसे कहती है जो शरीअत के मातहत हैं ताकि हर एक का मुँह बन्द हो जाए और सारी दुनिया ख़ुदा के नज़दीक सज़ा के लायक़ ठहरे।
\v 20 क्यूँकि शरीअत के अमल से कोई बशर उसके हज़ूर रास्तबाज़ नहीं ठहरेगी इसलिए कि शरीअत के वसीले से तो गुनाह की पहचान हो सकती है।
\s5
\v 21 मगर अब शरी'अत के बग़ैर ख़ुदा की एक रास्तबाज़ी ज़ाहिर हुई है जिसकी गवाही शरीअत और नबियों से होती है।
\v 22 यानी ख़ुदा की वो रास्तबाज़ी जो ईसा' मसीह पर ईमान लाने से सब ईमान लानेवालों को हासिल होती है; क्यूँकि कुछ फ़र्क़ नहीं।
\s5
\v 23 इसलिए कि सब ने ग़ुनाह किया और ख़ुदा के जलाल से महरूम हैं।
\v 24 मगर उसके फ़ज़ल की वजह से उस मख़लसी के वसीले से जो मसीह ईसा' में है मुफ़्त रास्तबाज़ ठहराए जाते हैं।
\s5
\v 25 उसे ख़ुदा ने उसके ख़ून के ज़रिए एक ऐसा कफ़्फ़ारा ठहराया जो ईमान लाने से फ़ाइदेमन्द हो ताकि जो गुनाह पहले से हो चुके थे? और जिसे ख़ुदा ने बर्दाश्त करके तरजीह दी थी उनके बारे में वो अपनी रास्तबाज़ी ज़ाहिर करे।
\v 26 बल्कि इसी वक़्त उनकी रास्तबाज़ी ज़ाहिर हो ताकि वो ख़ुद भी आदिल रहे और जो ईसा' पर ईमान लाए उसको भी रास्तबाज़ ठहराने वाला हो।
\s5
\v 27 पस फ़ख़्र कहाँ रहा? इसकी गुन्जाइश ही नहीं कौन सी शरीअत की वजह से? क्या आमाल की शरीअत से? ईमान की शरीअत से?।
\v 28 चुनाँचे हम ये नतीजा निकालते हैं कि इन्सान शरीअत के आमाल के बग़ैर ईमान के ज़रिये से रास्तबाज़ ठहरता है।
\s5
\v 29 क्या ख़ुदा सिर्फ़ यहूदियों ही का है ग़ैर क़ौमों का नहीं? बेशक़ ग़ैर क़ौमों का भी है।
\v 30 क्यूंकि एक ही ख़ुदा है मख़्तूनों को भी ईमान से और नामख़्तूनों को भी ईमान ही के वसीले से रास्तबाज़ ठहराएगा।
\s5
\v 31 पस क्या हम शरीअत को ईमान से बातिल करते हैं। हरगिज़ नहीं बल्कि शरीअत को क़ायम रखते हैं।
\s5
\c 4
\v 1 पस हम क्या कहें कि हमारे जिस्मानी बाप अब्रहाम को क्या हासिल हुआ?।
\v 2 क्यूँकि अगर अब्रहाम आमाल से रास्तबाज़ ठहराया जाता तो उसको फ़ख़्र की जगह होती; लेकिन ख़ुदा के नज़दीक नहीं।
\v 3 किताब ए मुक़द्दस क्या कहती है “ये कि अब्रहाम ख़ुदा पर ईमान लाया|ये उसके लिए रास्तबाज़ी गिना गया।”
\s5
\v 4 काम करनेवाले की मज़दूरी बख़्शिश नहीं बल्कि हक़ समझी जाती है ।
\v 5 मगर जो शख़्स काम नहीं करता बल्कि बेदीन के रास्तबाज़ ठहराने वाले पर ईमान लाता है उस का ईमान उसके लिए रास्तबाज़ी गिना जाता है।
\s5
\v 6 चुनाँचे जिस शख़्स के लिए ख़ुदा बग़ैर आमाल के रास्तबाज़ शुमार करता है दाऊद भी उसकी मुबारक हाली इस तरह बयान करता है।
\v 7 "मुबारक वो हैं जिनकी बदकारियाँ मुआफ़ हुई और जिनके गुनाह छुपाये गए।
\v 8 मुबारक वो शख़्स है जिसके गुनाह ख़ुदावन्द शुमार न करेगा"।
\s5
\v 9 पस क्या ये मुबारकबादी मख़तूनों ही के लिए है या नामख़्तूनों के लिए भी? क्यूँकि हमारा दावा ये है कि अब्रहाम के लिए उसका ईमान रास्तबाज़ी गिना गया।
\v 10 पस किस हालत में गिना गया? मख़तूनी में या नामख़तूनी में? मख़तूनी में नहीं बल्कि नामख़तूनी में।
\s5
\v 11 और उसने ख़तने का निशान पाया कि उस ईमान की रास्तबाज़ी पर मुहर हो जाए जो उसे नामख़तूनी की हालत में हासिल था, वो उन सब का बाप ठहरे जो बावजूद नामख़तून होने के ईमान लाते हैं
\v 12 और उन मख़तूनों का बाप हो जो न सिर्फ़ मख़तून हैं बल्कि हमारे बाप अब्रहाम के उस ईमान की भी पैरवी करते हैं जो उसे ना मख़तूनी की हालत में हासिल था।
\s5
\v 13 क्यूँकि ये वादा किया वो कि दुनिया का वारिस होगा न अब्रहाम से न उसकी नस्ल से शरीअत के वसीले से किया गया था बल्कि ईमान की रास्तबाज़ी के वसीले से किया गया था ।
\v 14 क्यूँकि अगर शरीअत वाले ही वारिस हों तो ईमान बेफ़ाइदा रहा और वादा से कुछ हासिल न ठहरेगा।
\v 15 क्यूँकि शरीअत तो ग़ज़ब पैदा करती है और जहाँ शरीअत नहीं वहाँ मुख़ालिफ़त- ए- हुक्म भी नहीं।
\s5
\v 16 इसी वास्ते वो मीरास ईमान से मिलती है ताकि फ़ज़ल के तौर पर हो; और वो वादा कुल नस्ल के लिए क़ायम रहे सिर्फ़ उस नस्ल के लिए जो शरीअत वाली है बल्कि उसके लिए भी जो अब्रहाम की तरह ईमान वाली है वही हम सब का बाप है।
\v 17 चुनाँचे लिखा है (“मैंने तुझे बहुत सी क़ौमों का बाप बनाया” )उस ख़ुदा के सामने जिस पर वो ईमान लाया और जो मुर्दों को ज़िन्दा करता है और जो चीज़ें नहीं हैं उन्हें इस तरह से बुला लेता है कि गोया वो हैं |
\s5
\v 18 वो ना उम्मीदी की हालत में उम्मीद के साथ ईमान लाया ताकि इस क़ौल के मुताबिक़ कि तेरी नस्ल ऐसी ही होगी “वो बहुत सी क़ौमों का बाप हो|”
\v 19 और वो जो तक़रीबन सौ बरस का था, बावुजूद अपने मुर्दा से बदन और सारह के रहम की मुर्दगी पर लिहाज़ करने के ईमान में कमज़ोर न हुआ।
\s5
\v 20 और न बे ईमान हो कर ख़ुदा के वादे में शक़ किया बल्कि ईमान में बज़बूत हो कर ख़ुदा की बड़ाई की।
\v 21 और उसको कामिल ऐतिक़ाद हुआ कि जो कुछ उसने वादा किया है वो उसे पूरा करने पर भी क़ादिर है।
\v 22 इसी वजह से ये उसके लिए रास्बाज़ी गिना गया।
\s5
\v 23 और ये बात कि ईमान उस के लिए रास्तबाज़ी गिना गया; न सिर्फ़ उसके लिए लिखी गई।
\v 24 बल्कि हमारे लिए भी जिनके लिए ईमान रास्तबाज़ी गिना जाएगा इस वास्ते के हम उस पर ईमान लाए हैं जिस ने हमारे ख़ुदावन्द ईसा' को मुर्दों में से जिलाया।
\v 25 वो हमारे गुनाहों के लिए हवाले कर दिया गया और हम को रास्तबाज़ ठहराने के लिए जिलाया गया।
\s5
\c 5
\v 1 पस जब हम ईमान से रास्तबाज़ ठहरे, तो ख़ुदा के साथ अपने ख़ुदावन्द ईसा' मसीह के वसीले से सुलह रखें|
\v 2 जिस के वसीले से ईमान की वजह से उस फ़ज़ल तक हमारी रिसाई भी हुई जिस पर क़ायम हैं और ख़ुदा के जलाल की उम्मीद पर फ़ख़्र करें।
\s5
\v 3 और सिर्फ़ यही नहीं बल्कि मुसीबतों में भी फ़ख़्र करें ये जानकर कि मुसीबत से सब्र पैदा होता है।
\v 4 और सब्र से पुख़्तगी और पुख़्तगी से उम्मीद पैदा होती है।
\v 5 और उम्मीद से शर्मिन्दगी हासिल नहीं होती क्यूँकि रूह -उल- क़ुद्दूस जो हम को बख़्शा गया है उसके वसीले से ख़ुदा की मुहब्बत हमारे दिलों में डाली गई है।
\s5
\v 6 क्यूँकि जब हम कमज़ोर ही थे तो ऐ'न वक़्त पर मसीह बे'दीनों की ख़ातिर मरा।
\v 7 किसी रास्तबाज़ की ख़ातिर भी मुश्किल से कोई अपनी जान देगा मगर शायद किसी नेक आदमी के लिए कोई अपनी जान तक दे देने की हिम्मत करे;
\s5
\v 8 लेकिन ख़ुदा अपनी मुहब्बत की ख़ूबी हम पर यूँ ज़ाहिर करता है कि जब हम गुनाहगार ही थे, तो मसीह हमारी ख़ातिर मरा।
\v 9 पस जब हम उसके खून के ज़रिये अब रास्तबाज़ ठहरे तो उसके वसीले से ग़ज़ब 'ए इलाही से ज़रूर बचेंगे।
\s5
\v 10 क्यूँकि जब बावजूद दुश्मन होने के ख़ुदा से उसके बेटे की मौत के वसीले से हमारा मेल हो गया तो मेल होने के बा'द तो हम उसकी ज़िन्दगी की वजह से ज़रूर ही बचेंगे।
\v 11 और सिर्फ़ यही नहीं बल्कि अपने ख़ुदावन्द ईसा' मसीह के तुफ़ैल से जिसके वसीले से अब हमारा ख़ुदा के साथ मेल हो गया ख़ुदा पर फ़ख़्र भी करते हैं।
\s5
\v 12 पस जिस तरह एक आदमी की वजह से गुनाह दुनिया में आया और गुनाह की वजह से मौत आई और यूँ मौत सब आदमियों में फ़ैल गई इसलिए कि सब ने गुनाह किया।
\v 13 क्यूँकि शरी'अत के दिए जाने तक दुनिया में गुनाह तो था मगर जहाँ शरी'अत नहीं वहाँ गुनाह शूमार नहीं होता।
\s5
\v 14 तो भी आदम से लेकर मूसा तक मौत ने उन पर भी बादशाही की जिन्होंने उस आदम की नाफ़रमानी की तरह जो आनेवाले की मिसाल था गुनाह न किया था।
\v 15 लेकिन गुनाह का जो हाल है वो फ़ज़ल की नेअ'मत का नहीं क्यूंकि जब एक शख़्स के गुनाह से बहुत से आदमी मर गए तो ख़ुदा का फ़ज़ल और उसकी जो बख़्शिश एक ही आदमी या'नी ईसा' मसीह के फ़ज़ल से पैदा हुई और बहुत से आदमियों पर ज़रूर ही इफ़्रात से नाज़िल हुई ।
\s5
\v 16 और जैसा एक शख़्स के गुनाह करने का अंजाम हुआ बख़्शिश का वैसा हाल नहीं क्यूंकि एक ही की वजह से वो फ़ैसला हुआ जिसका नतीजा सज़ा का हुक्म था; मगर बहुतेरे गुनाहों से ऐसी नेअ'मत पैदा हुई जिसका नतीजा ये हुआ कि लोग रास्तबाज़ ठहरें।
\v 17 क्यूंकि जब एक शख़्स के गुनाह की वजह से मौत ने उस एक के ज़रिए से बादशाही की तो जो लोग फ़ज़ल और रास्तबाज़ी की बख़्शिश इफ़्रात से हासिल करते हैं" वो एक शख़्स या'नी ईसा" मसीह के वसीले से हमेशा की ज़िन्दगी में ज़रूर ही बादशाही करेंगे।
\s5
\v 18 ग़रज़ जैसा एक गुनाह की वजह से वो फ़ैसला हुआ जिसका नतीजा सब आदमियों की सज़ा का हुक्म था; वैसे ही रास्तबाज़ी के एक काम के वसीले से सब आदमियों को वो ने'मत मिली जिससे रास्तबाज़ ठहराकर ज़िन्दगी पाएँ।
\v 19 क्यूँकि जिस तरह एक ही शख़्स की नाफ़रमानी से बहुत से लोग गुनाहगार ठहरे, उसी तरह एक की फ़रमाँबरदारी से बहुत से लोग रास्तबाज़ ठहरे।
\s5
\v 20 और बीच में शरी'अत आ मौजूद हुई ताकि गुनाह ज़्यादा हो जाए मगर जहाँ गुनाह ज़्यादा हुआ फ़ज़ल उससे भी निहायत ज़्यादा हुआ।
\v 21 ताकि जिस तरह गुनाह ने मौत की वजह से बादशाही की उसी तरह फ़ज़ल भी हमारे ख़ुदावन्द ईसा मसीह के वसीले से हमेशा की ज़िन्दगी के लिए रास्तबाज़ी के ज़रिए से बादशाही करे।
\s5
\c 6
\v 1 पस हम क्या कहें? क्या गुनाह करते रहें ताकि फ़ज़ल ज़्यादा हो?
\v 2 हरगिज़ नहीं हम जो गुनाह के ऐ'तिबार से मर गए क्यूँकर उस में फिर से ज़िन्दगी गुज़ारें?
\v 3 क्या तुम नहीं जानते कि हम जितनों ने मसीह ईसा' में शामिल होने का बपतिस्मा लिया तो उस की मौत में शामिल होने का बपतिस्मा लिया?।
\s5
\v 4 पस मौत में शामिल होने के बपतिस्मे के वसीले से हम उसके साथ दफ़्न हुए ताकि जिस तरह मसीह बाप के जलाल के वसीले से मुर्दों में से जिलाया गया; उसी तरह हम भी नई ज़िन्दगी में चलें।
\v 5 क्यूँकि जब हम उसकी मुशाबहत से उसके साथ जुड़ गए, तो बेशक़ उसके जी उठने की मुशाबहत से भी उस के साथ जुड़े होंगे।
\s5
\v 6 चुनाँचे हम जानते हैं कि हमारी पूरानी इन्सानियत उसके साथ इसलिए मस्लूब की गई कि गुनाह का बदन बेकार हो जाए ताकि हम आगे को गुनाह की ग़ुलामी में न रहें।
\v 7 क्यूंकि जो मरा वो गुनाह से बरी हुआ।
\s5
\v 8 पस जब हम मसीह के साथ मरे तो हमें यक़ीन है कि उसके साथ जिएँगे भी।
\v 9 क्यूँकि ये जानते हैं कि मसीह जब मुर्दों में से जी उठा है तो फिर नहीं मरने का; मौत का फिर उस पर इख़्तियार नहीं होने का।
\s5
\v 10 क्यूँकि मसीह जो मरा गुनाह के ऐ'तिबार से एक बार मरा; मगर अब जो ज़िन्दा हुआ तो ख़ुदा के ऐ'तिबार से ज़िन्दा है।
\v 11 इसी तरह तुम भी अपने आपको गुनाह के ऐ'तिबार से मुर्दा ; मगर ख़ुदा के ए'तिबार से मसीह ईसा' में ज़िन्दा समझो।
\s5
\v 12 पस गुनाह तुम्हारे फ़ानी बदन में बादशाही न करे; कि तुम उसकी ख़्वाहिशों के ताबे रहो।
\v 13 और अपने आ'ज़ा नारास्ती के हथियार होने के लिए गुनाह के हवाले न करो; बल्कि अपने आपको मुर्दो में से ज़िन्दा जानकर ख़ुदा के हवाले करो और अपने आ'ज़ा रास्तबाज़ी के हथियार होने के लिए ख़ुदा के हवाले करो।
\v 14 इसलिए कि गुनाह का तुम पर इख़्तियार न होगा; क्यूंकि तुम शरी'अत के मातहत नहीं बल्कि फ़ज़ल के मातहत हो।
\s5
\v 15 पस क्या हुआ? क्या हम इसलिए गुनाह करें कि शरी'अत के मातहत नहीं बल्कि फ़ज़ल के मातहत हैं? हरगिज़ नहीं;
\v 16 क्या तुम नहीं जानते, कि जिसकी फ़रमाँबरदारी के लिए अपने आप को ग़ुलामों की तरह हवाले कर देते हो, उसी के ग़ुलाम हो जिसके फ़रमाँबरदार हो चाहे गुनाह के जिसका अंजाम मौत है चाहे फ़रमाँबरदारी के जिस का अंजाम रास्तबाज़ी है?
\s5
\v 17 लेकिन ख़ुदा का शुक्र है कि अगरचे तुम गुनाह के ग़ुलाम थे तोभी दिल से उस ता'लीम के फ़रमाँबरदार हो गए; जिसके साँचे में ढाले गए थे।
\v 18 और गुनाह से आज़ाद हो कर रास्तबाज़ी के ग़ुलाम हो गए।
\s5
\v 19 मैं तुम्हारी इन्सानी कमज़ोरी की वजह से इन्सानी तौर पर कहता हूँ; जिस तरह तुम ने अपने आ'ज़ा बदकारी करने के लिए नापाकी और बदकारी की ग़ुलामी के हवाले किए थे उसी तरह अब अपने आ'ज़ा पाक होने के लिए रास्तबाज़ी की ग़ुलामी के हवाले कर दो।
\v 20 क्यूँकि जब तुम गुनाह के ग़ुलाम थे, तो रास्तबाज़ी के ऐ'तिबार से आज़ाद थे।
\v 21 पस जिन बातों पर तुम अब शर्मिन्दा हो उनसे तुम उस वक़्त क्या फल पाते थे? क्यूंकि उन का अंजाम तो मौत है।
\s5
\v 22 मगर अब गुनाह से आज़ाद और ख़ुदा के ग़ुलाम हो कर तुम को अपना फल मिला जिससे पाकीज़गी हासिल होती है और इस का अंजाम हमेशा की ज़िन्दगी है।
\v 23 क्यूँकि गुनाह की मज़दूरी मौत है मगर ख़ुदा की बख़्शिश हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह में हमेशा की ज़िन्दगी है।
\s5
\c 7
\v 1 ऐ भाइयों, क्या तुम नहीं जानते में उन से कहता हूँ जो शरी'अत से वाक़िफ़ हैं कि जब तक आदमी जीता है उसी उक़्त तक शरी'अत उस पर इख़्तियार रखती है?
\s5
\v 2 चुनाँचे जिस औरत का शौहर मौजूद है वो शरी'अत के मुवाफ़िक़ अपने शौहर की ज़िन्दगी तक उसके बन्द में है; लेकिन अगर शौहर मर गया तो वो शौहर की शरी'अत से छूट गई।
\v 3 पस अगर शौहर के जीते जी दूसरे मर्द की हो जाए तो ज़ानिया कहलाएगी लेकिन अगर शौहर मर जाए तो वो उस शरी'अत से आज़ाद है; यहाँ तक कि अगर दुसरे मर्द की हो भी जाए तो ज़ानिया न ठहरेगी।
\s5
\v 4 पस ऐ मेरे भाइयों; तुम भी मसीह के बदन के वसीले से शरी'अत के ऐ'तिबार से इसलिए मुर्दा बन गए,कि उस दूसरे के हो; जाओ जो मुर्दों में से जिलाया गया ताकि हम सब ख़ुदा के लिए फल पैदा करें।
\v 5 क्यूंकि जब हम जिस्मानी थे गुनाह की ख़्वाहिशें जो शरी'अत के ज़रि'ए पैदा होती थीं मौत का फल पैदा करने के लिए हमारे आ'ज़ा में तासीर करती थी।
\s5
\v 6 लेकिन जिस चीज़ की क़ैद में थे उसके ऐ'तिबार से मर कर अब हम शरी'अत से ऐसे छूट गए, कि रूह के नये तौर पर न कि लफ़्ज़ों के पूराने तौर पर ख़िदमत करते हैं।
\s5
\v 7 पस हम क्या करें क्या शरी'अत गुनाह है? हरगिज़ नहीं बल्कि बग़ैर शरी'अत के मैं गुनाह को न पहचानता मसलन अगर शरी'अत ये न कहती कि तू लालच न कर तो में लालच को न जानता।
\v 8 मगर गुनाह ने मौक़ा पाकर हुक्म के ज़रिए से मुझ में हर तरह का लालच पैदा कर दिया; क्यूँकि शरी'अत के बग़ैर गुनाह मुर्दा है।
\s5
\v 9 एक ज़माने में शरी'अत के बग़ैर मैं ज़िन्दा था, मगर अब हुक्म आया तो गुनाह ज़िन्दा हो गया और मैं मर गया।
\v 10 और जिस हुक्म की चाहत ज़िन्दगी थी, वही मेरे हक़ में मौत का ज़रिया बन गया।
\s5
\v 11 क्यूँकि गुनाह ने मौका पाकर हुक्म के ज़रिए से मुझे बहकाया और उसी के ज़रिए से मुझे मार भी डाला।
\v 12 पस शरी'अत पाक है और हुक्म भी पाक और रास्ता भी अच्छा है।
\s5
\v 13 पस जो चीज़ अच्छी है क्या वो मेरे लिए मौत ठहरी? हरगिज़ नहीं बल्कि गुनाह ने अच्छी चीज़ के ज़रिए से मेरे लिए मौत पैदा करके मुझे मार डाला ताकि उसका गुनाह होना ज़ाहिर हो; और हुक्म के ज़रिए से गुनाह हद से ज़्यादा मकरूह मा'लूम हो।
\v 14 क्या हम जानते हैं कि शरी'अत तो रूहानी है मगर मैं जिस्मानी और गुनाह के हाथ बिका हुआ हूँ।
\s5
\v 15 और जो मैं करता हूँ उसको नहीं जानता क्यूँकि जिसका मैं इरादा करता हूँ वो नहीं करता बल्कि जिससे मुझको नफ़रत है वही करता हूँ।
\v 16 और अगर मैं उस पर अमल करता हूँ जिसका इरादा नहीं करता तो मैं मानता हुँ कि शरी'अत उम्दा है।
\s5
\v 17 पस इस सूरत में उसका करने वाला में न रहा बल्कि गुनाह है जो मुझ में बसा हुआ है।
\v 18 क्यूंकि मैं जानता हूँ कि मुझ में या'नी मेरे जिस्म में कोई नेकी बसी हुई नहीं; अल्बत्ता इरादा तो मुझ में मौजूद है, मगर नेक काम मुझ में बन नहीं पड़ते।
\s5
\v 19 चुनाँचे जिस नेकी का इरादा करता हूँ वो तो नहीं करता मगर जिस बदी का इरादा नहीं करता उसे कर लेता हूँ।
\v 20 पस अगर मैं वो करता हूँ जिसका इरादा नहीं करता तो उसका करने वाला मैं न रहा बल्कि गुनाह है; जो मुझ में बसा हुआ है।
\v 21 ग़रज़ मैं ऐसी शरी'अत पाता हूँ कि जब नेकी का इरादा करता हूँ तो बदी मेरे पास आ मौजूद होती है।
\s5
\v 22 क्यूंकि बातिनी इंसानियत के ऐतबार से तो मैं ख़ुदा की शरी'अत को बहुत पसन्द करता हूँ।
\v 23 मगर मुझे अपने आ'ज़ा में एक और तरह की शरी'अत नज़र आती है जो मेरी अक़्ल की शरी'अत से लड़कर मुझे उस गुनाह की शरी'अत की क़ैद में ले आती है; जो मेरे आ'ज़ा में मौजूद है।
\s5
\v 24 हाय मैं कैसा कम्बख़्त आदमी हूँ इस मौत के बदन से मुझे कौन छुड़ाएगा?।
\v 25 अपने ख़ुदावन्द ईसा' मसीह के वासीले से ख़ुदा का शुक्र करता हूँ; ग़रज़ में ख़ुद अपनी अक़्ल से तो ख़ुदा की शरी'अत का मगर जिस्म से गुनाह की शरी'अत का ग़ुलाम हूँ।
\s5
\c 8
\v 1 पस अब जो मसीह ईसा' में है उन पर सज़ा का हुक्म नहीं क्यूँकि जो जिस्म के मुताबिक़ नहीं बल्कि रूह के मुताबिक़ चलते हैं?।
\v 2 क्यूँकि ज़िन्दगी की पाक रूह को शरी'अत ने मसीह ईसा' में मुझे गुनाह और मौत की शरी'अत से आज़ाद कर दिया।
\s5
\v 3 इसलिए कि जो काम शरी'अत जिस्म की वजह से कमज़ोर हो कर न कर सकी वो ख़ुदा ने किया; या'नी उसने अपने बेटे को गुनाह आलूदा जिस्म की सूरत में और गुनाह की क़ुर्बानी के लिए भेज कर जिस्म में गुनाह की सज़ा का हुक्म दिया।
\v 4 ताकि शरी'अत का तक़ाज़ा हम में पूरा हो जो जिस्म के मुताबिक़ नहीं बल्कि रूह के मुताबिक़ चलता है।
\v 5 क्यूँकि जो जिस्मानी है वो जिस्मानी बातों के ख़याल में रहते हैं; लेकिन जो रूहानी हैं वो रूहानी बातों के ख़याल में रहते हैं।
\s5
\v 6 और जिस्मानी नियत मौत है मगर रूहानी नियत ज़िन्दगी और इत्मीनान है।
\v 7 इसलिए कि जिस्मानी नियत ख़ुदा की दुश्मन है क्यूँकि न तो ख़ुदा की शरी'अत के ताबे है न हो सकती है।
\v 8 और जो जिस्मानी है वो ख़ुदा को ख़ुश नहीं कर सकते।
\s5
\v 9 लेकिन तुम जिस्मानी नहीं बल्कि रूहानी हो बशर्ते कि ख़ुदा का रूह तुम में बसा हुआ है; मगर जिस में मसीह का रूह नहीं वो उसका नहीं।
\v 10 और अगर मसीह तुम में है तो बदन तो गुनाह की वजह से मुर्दा है मगर रूह रास्तबाज़ी की वजह से ज़िन्दा है।
\s5
\v 11 और अगर उसी का रूह तुझ में बसा हुआ है जिसने ईसा' को मुर्दों में से जिलाया वो तुम्हारे फ़ानी बदनों को भी अपने उस रूह के वसीले से ज़िन्दा करेगा जो तुम में बसा हुआ है।
\s5
\v 12 पस ऐ भाइयों! हम क़र्ज़दार तो हैं मगर जिस्म के नहीं कि जिस्म के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारें।
\v 13 क्यूँकि अगर तुम जिस्म के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारोगे तो ज़रूर मरोगे; और अगर रूह से बदन के कामों को नेस्तोनाबूद करोगे तो जीते रहोगे।
\s5
\v 14 .
\v 15 क्यूँकि तुम को ग़ुलामी की रूह नहीं मिली जिससे फिर डर पैदा हो बल्कि लेपालक होने की रूह मिली जिस में हम अब्बा“या'नी ऐ बाप ”कह कर पुकारते हैं।
\s5
\v 16 पाक रूह हमारी रूह के साथ मिल कर गवाही देता है कि हम ख़ुदा के फ़र्ज़न्द हैं।
\v 17 और अगर फ़र्ज़न्द हैं तो वारिस भी हैं या'नी ख़ुदा के वारिस और मसीह के हम मीरास बशर्ते कि हम उसके साथ दुख उठाएँ ताकि उसके साथ जलाल भी पाएँ।
\s5
\v 18 क्यूँकि मेरी समझ में इस ज़माने के दुख दर्द इस लायक़ नहीं कि उस जलाल के मुक़ाबिल हो सकें जो हम पर ज़ाहिर होने वाला है।
\v 19 क्यूँकि मख़्लूक़ात पूरी आरज़ू से ख़ुदा के बेटों के ज़ाहिर होने की राह देखती है।
\s5
\v 20 इसलिए कि मख़्लूक़ात बतालत के इख़्तियार में कर दी गई थी न अपनी ख़ुशी से बल्कि उसके ज़रिए से जिसने उसको।
\v 21 इस उम्मीद पर बतालत के इख़्तियार कर दिया कि मख़्लूक़ात भी फ़ना के क़ब्ज़े से छूट कर ख़ुदा के फ़र्ज़न्दों के जलाल की आज़ादी में दाख़िल हो जाएगी।
\v 22 क्यूँकि हम को मा'लूम है कि सारी मख़्लूक़ात मिल कर अब तक कराहती है और दर्द-ए-जेह में पड़ी तड़पती है।
\s5
\v 23 और न सिर्फ़ वही बल्कि हम भी जिन्हें रूह के पहले फल मिले हैं आप अपने बातिन में कराहते हैं और लेपालक होने या'नी अपने बदन की मख़लसी की राह देखते हैं।
\v 24 चुनाँचे हमें उम्मीद के वसीले से नजात मिली मगर जिस चीज़ की उम्मीद है जब वो नज़र आ जाए तो फिर उम्मीद कैसी? क्यूंकि जो चीज़ कोई देख रहा है उसकी उम्मीद क्या करेगा?।
\v 25 लेकिन जिस चीज़ को नहीं देखते अगर हम उसकी उम्मीद करें तो सब्र से उसकी राह देखते रहें।
\s5
\v 26 इसी तरह रूह भी हमारी कमज़ोरी में मदद करता है क्यूँकि जिस तौर से हम को दुआ करना चाहिए हम नहीं जानते मगर रूह ख़ुद ऐसी आहें भर भर कर हमारी शफ़ा'अत करता है जिनका बयान नहीं हो सकता।
\v 27 और दिलों का परखने वाला जानता है कि रूह की क्या नियत है; क्यूँकि वो खुदा की मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ मुक़द्दसों की शिफ़ा'अत करता है।
\s5
\v 28 और हम को मा'लूम है कि सब चीज़ें मिल कर ख़ुदा से मुहब्बत रखनेवालों के लिए भलाई पैदा करती है; या'नी उनके लिए जो ख़ुदा के इरादे के मुवाफ़िक़ बुलाए गए।
\v 29 क्यूँकि जिनको उसने पहले से जाना उनको पहले से मुक़र्रर भी किया कि उसके बेटे के हमशक्ल हों, ताकि वो बहुत से भाइयों में पहलौठा ठहरे।
\v 30 और जिन को उसने पहले से मुक़र्रर किया उनको बुलाया भी; और जिनको बुलाया उनको रास्तबाज़ भी ठहराया, और जिनको रास्तबाज़ ठहराया; उनको जलाल भी बख़्शा।
\s5
\v 31 पस हम इन बातो के बारे में क्या कहें?अगर ख़ुदा हमारी तरफ़ है; तो कौन हमारा मुख़ालिफ़ है?
\v 32 जिसने अपने बेटे ही की परवाह न की? बल्कि हम सब की ख़ातिर उसे हवाले कर दिया वो उसके साथ और सब चीज़ें भी हमें किस तरह न बख़्शेगा।
\s5
\v 33 ख़ुदा के बरगुज़ीदों पर कौन शिकायत करेगा? ख़ुदा वही है जो उनको रास्तबाज़ ठहराता है।
\v 34 कौन है जो मुजरिम ठहराएगा? मसीह ईसा' वो है जो मर गया बल्कि मुर्दों में से जी उठा और ख़ुदा की दहनी तरफ़ है और हमारी शिफ़ा'अत भी करता है।
\s5
\v 35 कौन हमें मसीह की मुहब्बत से जुदा करेगा? मुसीबत या तंगी या ज़ुल्म या काल या नंगापन या ख़तरा या तलवार।
\v 36 चुनाँचे लिखा है“हम तेरी ख़ातिर दिन भर जान से मारे जाते हैं; हम तो ज़बह होने वाली भेड़ों के बराबर गिने गए।”
\s5
\v 37 मगर उन सब हालतों में उसके वसीले से जिसने हम सब से मुहब्बत की हम को जीत से भी बढ़कर ग़लबा हासिल होता है।
\v 38 क्यूँकि मुझको यक़ीन है कि ख़ुदा की जो मुहब्बत हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह में है उससे हम को न मौत जुदा कर सकेगी न ज़िन्दगी,
\v 39 न फ़रिश्ते, न हुकूमतें, न मौजूदा, न आने वाली चीज़ें, न क़ुदरत, न ऊंचाई, न गहराई, न और कोई मख़्लूक़।
\s5
\c 9
\v 1 मैं मसीह में सच कहता हूँ, झूट नहीं बोलता, और मेरा दिल भी रूह-उल-क़ुद्दूस में इस की गवाही देता है
\v 2 कि मुझे बड़ा ग़म है और मेरा दिल बराबर दुखता रहता है।
\s5
\v 3 क्यूँकि मुझे यहाँ तक मंज़ूर होता कि अपने भाइयों की ख़ातिर जो जिस्म के ऐतबार से मेरे क़रीबी हैं में ख़ुद मसीह से महरूम हो जाता।
\v 4 वो इस्राइली हैं, और लेपालक होने का हक़ और जलाल और ओहदा और शरी'अत और इबादत और वा'दे उन ही के हैं।
\v 5 और क़ौम के बुज़ुर्ग उन ही के हैं और जिस्म के ऐतबार से मसीह भी उन ही में से हुआ, जो सब के ऊपर और हमेशा तक ख़ुदा'ए महमूद है; आमीन।
\s5
\v 6 लेकिन ये बात नहीं कि ख़ुदा का कलाम बातिल हो गया इसलिए कि जो इस्राईल की औलाद हैं वो सब इस्राईली नहीं।
\v 7 और न अब्रहाम की नस्ल होने की वजह से सब फ़र्ज़न्द ठहरे बल्कि ये लिखा है; कि “इज़्हाक़ ही से तेरी नस्ल कहलाएगी ।”
\s5
\v 8 या'नी कि जिस्मानी फ़र्ज़न्द ख़ुदा के फ़र्ज़न्द नहीं बल्कि वा'दे के फ़र्ज़न्द नस्ल गिने जाते हैं।
\v 9 क्यूँकि वा'दे का क़ौल ये है “मैं इस वक़्त के मुताबिक़ आऊँगा और सारा के बेटा होगा।”
\s5
\v 10 और सिर्फ़ यही नहीं बल्कि रबेका भी एक शख़्स या'नी हमारे बाप इज़्हाक़ से हामिला थी।
\v 11 और अभी तक न तो लड़के पैदा हुए थे और न उन्होने नेकी या बदी की थी, कि उससे कहा गया, " बड़ा छोटे की ख़िदमत करेगा।"
\v 12 ताकि ख़ुदा का इरादा जो चुनाव पर मुनहसिर है “आ'माल पर मबनी न ठहरे बल्कि बुलानेवाले पर।”
\v 13 चुनाँचे लिखा है “मैंने या'क़ूब से तो मुहब्बत की मगर ऐसौ को नापसन्द ।”
\s5
\v 14 पस हम क्या कहें? क्या ख़ुदा के यहाँ बे'इन्साफ़ी है? हरगिज़ नहीं;
\v 15 क्यूँकि वो मूसा से कहता है “जिस पर रहम करना मंज़ूर है और जिस पर तरस खाना मंज़ूर है उस पर तरस खाऊँगा। ”
\v 16 पर ये न इरादा करने वाले पर मुन्हसिर है न दौड़ धूप करने वाले पर बल्कि रहम करने वाले ख़ुदा पर।
\s5
\v 17 क्यूँकि किताब-ए-मुक़द्दस में ख़ुदा ने फ़िर'औन से कहा “मैंने इसी लिए तुझे खड़ा किया है कि तेरी वजह से अपनी क़ुदरत ज़ाहिर करूँ, और मेरा नाम तमाम रू'ऐ ज़मीन पर मशहूर हो।”
\v 18 पर वो जिस पर चाहता है रहम करता है, और जिसे चाहता है उसे सख्त करता है।
\s5
\v 19 पर तू मुझ से कहेगा,“ फिर वो क्यूँ ऐब लगाता है? कौन उसके इरादे का मुक़ाबिला करता है?”
\v 20 ऐ' इन्सान, भला तू कौन है जो ख़ुदा के सामने जवाब देता है? क्या बनी हुई चीज़ बनाने वाले से कह सकती है “तूने मुझे क्यूँ ऐसा बनाया?।”
\v 21 क्या कुम्हार को मिट्टी पर इख़्तियार नहीं? कि एक ही लौन्दे में से एक बर्तन इज़्ज़त के लिए बनाए और दूसरा बे'इज़्ज़ती के लिए?
\s5
\v 22 पस क्या त'अज्जुब है अगर ख़ुदा अपना ग़ज़ब ज़ाहिर करने और अपनी क़ुदरत ज़ाहिर करने के इरादे से ग़ज़ब के बर्तनों के साथ जो हलाकत के लिए तैयार हुए थे, निहायत तहम्मुल से पैश आए।
\v 23 और ये इसलिए हुआ कि अपने जलाल की दौलत रहम के बर्तनों के ज़रीए से ज़ाहिर करे जो उस ने जलाल के लिए पहले से तैयार किए थे।
\v 24 या'नी हमारे ज़रिए से जिनको उसने न सिर्फ़ यहूदियों में से बल्कि ग़ैर क़ौमों में से भी बुलाया।
\s5
\v 25 चुनाँचे होसे'अ की किताब में भी ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, “जो मेरी उम्मत नहीं थी उसे अपनी उम्मत कहूँगा'और जो प्यारी न थी उसे प्यारी कहूँगा।”
\v 26 और ऐसा होगा कि जिस जगह उनसे ये कहा गया था कि “तुम मेरी उम्मत नहीं हो, उसी जगह वो ज़िन्दा ख़ुदा के बेटे कहलायेंगे|”
\s5
\v 27 और यसायाह इस्राईल के बारे में पुकार कर कहता है चाहे बनी इस्राईल का शुमार समुन्दर की रेत के बराबर हो तोभी उन में से थोड़े ही बचेंगे।
\v 28 क्यूँकि ख़ुदावन्द अपने कलाम को मुकम्मल और ख़त्म करके उसके मुताबिक़ ज़मीन पर अमल करेगा।
\v 29 चुनांचे यसायाह ने पहले भी कहा है कि अगर रब्बुल अफ़वाज हमारी कुछ नस्ल बाक़ी न रखता तो हम सदोम की तरह और अमूरा के बराबर हो जाते।
\s5
\v 30 पस हम क्या कहें? ये कि ग़ैर क़ौमों ने जो रास्तबाज़ी की तलाश न करती थीं, रास्तबाज़ी हासिल की या'नी वो रास्तबाज़ी जो ईमान से है।
\v 31 मगर इस्राईल जो रास्बाज़ी की शरी'अत तक न पहुँचा।
\s5
\v 32 किस लिए? इस लिए कि उन्होंने ईमान से नहीं बल्कि गोया आ'माल से उसकी तलाश की; उन्होंने उसे ठोकर खाने के पत्थर से ठोकर खाई।
\v 33 चुनाँचे लिखा है देखो; “मैं सिय्यून में ठेस लगने का पत्थर और ठोकर खाने की चट्टान रखता हूँ और जो उस पर ईमान लाएगा वो शर्मिन्दा न होगा|”
\s5
\c 10
\v 1 ऐ भाइयों; मेरे दिल की आरज़ू और उन के लिए ख़ुदा से मेरी दुआ है कि वो नजात पाएँ।
\v 2 क्यूँकि मैं उनका गवाह हूँ कि वो ख़ुदा के बारे में ग़ैरत तो रखते हैं; मगर समझ के साथ नहीं।
\v 3 इसलिए कि वो खुदा की रास्तबाज़ी से नावाक़िफ़ हो कर और अपनी रास्तबाज़ी क़ायम करने की कोशिश करके ख़ुदा की रास्तबाज़ी के ताबे न हुए।
\s5
\v 4 क्यूँकि हर एक ईमान लानेवाले की रास्तबाज़ी के लिए मसीह शरी'अत का अंजाम है।
\v 5 चुनाँचे मूसा ने ये लिखा है “कि जो शख़्स उस रास्तबाज़ी पर अमल करता है जो शरी'अत से है वो उसी की वजह से ज़िन्दा रहेगा। ”
\s5
\v 6 अगर जो रास्तबाज़ी ईमान से है वो यूँ कहती है, “तू अपने दिल में ये न कह'कि आसमान पर कौन चढ़ेगा?” या'नी मसीह के उतार लाने को।
\v 7 या “गहराव में कौन उतरेगा?” यानी मसीह को मुर्दो में से जिला कर ऊपर लाने को।
\s5
\v 8 बल्कि क्या कहती है ; ये कि कलाम तेरे नज़दीक है “बल्कि तेरे मुँह और तेरे दिल में है कि ये वही ईमान का कलाम है जिसका हम ऐलान करते हैं।”
\v 9 कि अगर तू अपनी ज़बान से ईसा' के ख़ुदावन्द होने का इक़रार करे और अपने दिल से ईमान लाए कि ख़ुदा ने उसे मुर्दों में से जिलाया तो नजात पाएगा।
\v 10 क्यूँकि रास्तबाज़ी के लिए ईमान लाना दिल से होता है और नजात के लिए इक़रार मुँह से किया जाता है।
\s5
\v 11 चुनाँचे किताब-ए-मुक़द्दस ये कहती है “जो कोई उस पर ईमान लाएगा वो शर्मिन्दा न होगा।”
\v 12 क्यूँकि यहूदियों और यूनानियों में कुछ फ़र्क़ नहीं इसलिए कि वही सब का ख़ुदावन्द है और अपने सब दुआ करनेवालों के लिए फ़य्याज़ है।
\v 13 क्यूँकि “जो कोई ख़ुदावन्द का नाम लेगा नजात पाएगा।”
\s5
\v 14 मगर जिस पर वो ईमान नहीं लाए उस से क्यूँकर दुआ करें? और जिसका ज़िक्र उन्होंने सुना नहीं उस पर ईमान क्यूँ लाएँ? और बग़ैर ऐलान करने वाले की क्यूँकर सुनें?
\v 15 और जब तक वो भेजे न जाएँ ऐलान क्यूँकर करें? चुनाचे लिखा है “क्या ही ख़ुशनुमा हैं उनके क़दम जो अच्छी चीज़ों की ख़ुशख़बरी देते हैं।”
\s5
\v 16 लेकिन सब ने इस ख़ुशख़बरी पर कान न धरा चुनाँचे यसायाह कहता है“ऐ ख़ुदावन्द हमारे पैग़ाम का किसने यक़ीन किया है?”
\v 17 पस ईमान सुनने से पैदा होता है और सुनना मसीह के कलाम से।
\s5
\v 18 लेकिन मैं कहता हूँ, क्या उन्होंने नहीं सुना? चुनाँचे लिखा है, “उनकी आवाज़ तमाम रू'ए ज़मीन पर और उनकी बातें दुनिया की इन्तिहा तक पहुँची”|
\s5
\v 19 फिर मैं कहता हूँ ,क्या इस्राईल वाक़िफ़ न था? पहले तो मूसा कहता है, “उन से तुम को ग़ैरत दिलाऊँगा जो क़ौम ही नहीं एक नादान क़ौम से तुम को ग़ुस्सा दिलाऊँगा।”
\s5
\v 20 फिर यसायाह बड़ा दिलेर होकर ये कहता है जिन्होंने मुझे नहीं ढूंढा उन्होंने मुझे पा लिया जिन्होंने मुझ से नहीं पूछा उन पर में ज़ाहिर हो गया।
\v 21 लेकिन इस्राईल के हक़ में यूँ कहता है “मैं दिन भर एक नाफ़रमान और हुज्जती उम्मत की तरफ़ अपने हाथ बढ़ाए रहा।”
\s5
\c 11
\v 1 पस मैं कहता हूँ क्या ख़ुदा ने अपनी उम्मत को रद्द कर दिया ?हरगिज़ नहीं क्यूँकि मैं भी इस्राईली अब्रहाम की नस्ल और बिनयामीन के क़बीले में से हूँ।
\v 2 ख़ुदा ने अपनी उस उम्मत को रद्द नहीं किया जिसे उसने पहले से जाना क्या तुम नहीं जानते कि किताब-ए-मुक़द्दस एलियाह के ज़िक्र में क्या कहती है; कि वो ख़ुदा से इस्राईल की यूँ फ़रियाद करता है?।
\v 3 ऐ" ख़ुदावन्द उन्होंने तेरे नबियों को क़त्ल किया “और तेरी क़ुरबानगाहों को ढा दिया; अब मैं अकेला बाक़ी हूँ और वो मेरी जान के भी पीछे हैं।”
\s5
\v 4 मगर जवाब'ए 'इलाही उसको क्या मिला? ये कि मैंने “अपने लिए सात हज़ार आदमी बचा रख्खे हैं जिन्होंने बा'ल के आगे घुटने नहीं टेके।”
\v 5 पस इसी तरह इस वक़्त भी फ़ज़ल से बरगुज़ीदा होने के ज़रिए कुछ बाक़ी हैं।
\s5
\v 6 और अगर फ़ज़ल से बरगुज़ीदा हैं तो आ'माल से नहीं; वर्ना फ़ज़ल फ़ज़ल न रहा।
\v 7 पस नतीजा क्या हुआ? ये कि इस्राईल जिस चीज़ की तलाश करता है वो उस को न मिली मगर बरगुज़ीदों को मिली और बाक़ी सख़्त किए गए।
\v 8 चुनाँचे लिखा है, ख़ुदा ने उनको आज के दिन तक सुस्त तबी'अत दी और ऐसी आँखें जो न देखें और ऐसे कान जो न सुनें।
\s5
\v 9 और दाऊद कहता है, उनका दस्तरख़्वान उन के लिए जाल और फ़न्दा और ठोकर खाने और सज़ा का ज़रिया बन जाए।
\v 10 उन की आँखों पर अँधेरा छा जाए ताकि न देखें और तू उनकी पीठ हमेशा झुकाये रख।
\s5
\v 11 पस मैं पूंछता हूं क्या यहूदियों ने ऐसी ठोकर खाई कि गिर पड़ें? हरगिज़ नहीं; बल्कि उनकी गलती से ग़ैर क़ौमों को नजात मिली ताकि उन्हें ग़ैरत आए।
\v 12 पस जब उनका लड़खड़ाना दुनिया के लिए दौलत का ज़रिया और उनका घटना ग़ैर क़ौमों के लिए दौलत का ज़रिया हुआ तो उन का भरपूर होना ज़रूर ही दौलत का ज़रिया होगा
\s5
\v 13 मैं ये बातें तुम ग़ैर क़ौमों से कहता हूँ, चूँकि मैं ग़ैर क़ौमों का रसूल हूँ इसलिए अपनी ख़िदमत की बड़ाई करता हूँ।
\v 14 ताकि किसी तरह से अपनी क़ौम वालों से ग़ैरत दिलाकर उन में से कुछ को नजात दिलाऊँ।
\s5
\v 15 क्यूँकि जब उनका अलग हो जाना दुनिया के आ मिलने का ज़रिया हुआ तो क्या उन का मक़बूल होना मुर्दों में से जी उठने के बराबर न होगा?।
\v 16 जब नज़्र का पहला पेड़ा पाक ठहरा तो सारा गुंधा हुआ आटा भी पाक है, और जब जड़ पाक है तो डालियाँ भी पाक ही हैं।
\s5
\v 17 लेकिन अगर कुछ डालियाँ तोड़ी गई, और तू जंगली ज़ैतून होकर उनकी जगह पैवन्द हुआ, और ज़ैतून की रौग़नदार जड़ में शरीक हो गया।
\v 18 तो तू उन डालियों के मुक़ाबिले में फ़ख़्र न कर और अगर फ़ख़्र करेगा तो जान रख कि तू जड़ को नहीं बल्कि जड़ तुझ को संभालती है।
\s5
\v 19 पस तू कहेगा, “डालियां इसलिए तोड़ी गईं कि मैं पैवन्द हो जाऊँ। ।”
\v 20 अच्छा, वो तो बे'ईमानी की वजह से तोड़ी गई, और तू ईमान की वजह से क़ायम है; पस मग़रूर न हो बल्कि ख़ौफ़ कर।
\v 21 क्यूँकि जब ख़ुदा ने असली डालियों को न छोड़ा तो तुझ को भी न छोड़ेगा।
\s5
\v 22 पस ख़ुदा की महरबानी और सख़्ती को देख सख़्ती उन पर जो गिर गए हैं; और ख़ुदा की महरबानी तुझ पर बशर्ते कि तू उस महरबानी पर क़ायम रहे, वर्ना तू भी काट डाला जाएगा। ।
\s5
\v 23 और वो भी अगर बे'ईमान न रहें तो पैवन्द किए जाएँगे क्यूँकि ख़ुदा उन्हें पैवन्द करके बहाल करने पर क़ादिर है।
\v 24 इसलिए कि जब तू ज़ैतून के उस दरख़्त से काट कर जिसकी जड़ ही जंगली है जड़ के बरख़िलाफ़ अच्छे ज़ैतून में पैवन्द हो गया तो वो जो जड़ डालियां हैं अपने ज़ैतून में ज़रूर ही पैवन्द हो जाएँगी
\s5
\v 25 ऐ भाइयों! कहीं ऐसा न हो कि तुम अपने आपको अक़्लमन्द समझ लो इसलिए में नहीं चाहता कि तुम इस राज़ से ना वाक़िफ़ रहो कि इस्राईल का एक हिस्सा सख़्त हो गया है और जब तक ग़ैर क़ौमें पूरी पूरी दाख़िल न हों वो ऐसा ही रहेगा।
\s5
\v 26 और इस सूरत से तमाम इस्राईल नजात पाएगा; चुनाँचे लिखा है, छुड़ानेवाला सिय्यून से निकलेगा और बेदीनी को या'क़ूब से दफ़ा करेगा।
\v 27 “और उनके साथ मेरा ये अहद होगा जब कि मैं उनके गुनाहों को दूर करूँगा।”
\s5
\v 28 इंजील के ऐ'तिबार से तो वो तुम्हारी ख़ातिर दुश्मन हैं लेकिन बरगुज़ीदगी के ऐ'तिबार से बाप दादा की ख़ातिर प्यार करें।
\v 29 इसलिए कि ख़ुदा की ने'अमत और बुलावा ना बदलने वाला है।
\s5
\v 30 क्यूँकि जिस तरह तुम पहले ख़ुदा के नाफ़रमान थे मगर अब यहूदियों की नाफ़रमानी की वजह से तुम पर रहम हुआ।
\v 31 उसी तरह अब ये भी नाफ़रमान हुए ताकि तुम पर रहम होने के ज़रिए अब इन पर भी रहम हो।
\v 32 इसलिए कि ख़ुदा ने सब को नाफ़रमानी में गिरफ़तार होने दिया ताकि सब पर रहम फ़रमाए।
\s5
\v 33 वाह! ख़ुदा की दौलत और हिक्मत और इल्म क्या ही अज़ीम है उसके फ़ैसले किस क़दर पहुँच से बाहर हैं और उसकी राहें क्या ही बे'निशान हैं।
\v 34 ख़ुदावन्द की अक़्ल को किसने जाना? या कौन उसका सलाहकार हुआ?
\s5
\v 35 या किसने पहले उसे कुछ दिया है, जिसका बदला उसे दिया जाए?
\v 36 क्यूँकि उसी की तरफ़ से, और उसी के वसीले से और उसी के लिए सब चीज़ें हैं; उसकी बड़ाई हमेशा तक होती रहे आमीन।
\s5
\c 12
\v 1 ऐ भाइयो! मैं ख़ुदा की रहमतें याद दिला कर तुम से गुज़ारिश करता हूँ कि अपने बदन ऐसी कुर्बानी होने के लिए पेश करो जो ज़िन्दा और पाक और ख़ुदा को पसन्दीदा हो यही तुम्हारी मा'क़ूल इबादत है।
\v 2 और इस जहान के हमशक्ल न बनो बल्कि अक़्ल नई हो जाने से अपनी सूरत बदलते जाओ ताकि ख़ुदा की नेक और पसन्दीदा और कामिल मर्ज़ी को तजुर्बा से मा'लूम करते रहो।
\s5
\v 3 मैं उस तौफ़ीक़ की वजह से जो मुझ को मिली है तुम में से हर एक से कहता हूँ, कि जैसा समझना चाहिए उससे ज़्यादा कोई अपने आपको न समझे बलकि जैसा ख़ुदा ने हर एक को अन्दाज़े के मुवाफ़िक़ ईमान तक़्सीम किया है ऐ'तिदाल के साथ अपने आप को वैसा ही समझे।
\s5
\v 4 क्यूँकि जिस तरह हमारे एक बदन में बहुत से आ'ज़ा होते हैं और तमाम आ'ज़ा का काम एक जैसा नहीं।
\v 5 उसी तरह हम भी जो बहुत से हैं मसीह में शामिल होकर एक बदन हैं और आपस में एक दूसरे के आ'ज़ा।
\s5
\v 6 और चूँकि उस तौफ़ीक़ के मुवाफ़िक़ जो हम को दी गई; हमें तरह तरह की ने'अमतें मिली इसलिए जिस को नबुव्वत मिली हो वो ईमान के अन्दाज़े के मुवाफ़िक़ नबुव्वत करें।
\v 7 अगर ख़िदमत मिली हो तो ख़िदमत में लगा रहे अगर कोई मुअल्लिम हो तो ता'लीम में मश्ग़ूल हो।
\v 8 और अगर नासेह हो तो नसीहत में, ख़ैरात बाँटनेवाला सख़ावत से बाँटे, पेशवा सरगर्मी से पेशवाई करे, रहम करने वाला ख़ुशी से रहम करे।
\s5
\v 9 मुहब्बत बे 'रिया हो बदी से नफ़रत रक्खो नेकी से लिपटे रहो।
\v 10 बिरादराना मुहब्बत से आपस में एक दूसरे को प्यार करो इज़्ज़त के ऐतबार से एक दूसरे को बेहतर समझो।
\s5
\v 11 कोशिश में सुस्ती न करो रूहानी जोश में भरे रहो; ख़ुदावन्द की ख़िदमत करते रहो।
\v 12 उम्मीद में ख़ुश मुसीबत में साबिर दुआ करने में मशग़ूल रहो।
\v 13 मुक़द्दसों की ज़रूरतें पूरी करो।
\s5
\v 14 जो तुम्हें सताते हैं उनके वास्ते बरकत चाहो ला'नत न करो।
\v 15 ख़ुशी करनेवालों के साथ ख़ुशी करो रोने वालों के साथ रोओ।
\v 16 आपस में एक दिल रहो ऊँचे ऊँचे ख़याल न बाँधो बल्कि छोटे लोगों से रिफाक़त रखो अपने आप को अक़्लमन्द न समझो।
\s5
\v 17 बदी के बदले किसी से बदी न करो; जो बातें सब लोगों के नज़दीक अच्छी हैं उनकी तदबीर करो।
\v 18 जहाँ तक हो सके तुम अपनी तरफ़ से सब आदमियों के साथ मेल मिलाप रख्खो।
\s5
\v 19 “ऐ' अज़ीज़ो! अपना इन्तक़ाम न लो बल्कि ग़ज़ब को मौका दो क्यूँकि ये लिखा है ख़ुदावन्द फ़रमाता है इन्तिक़ाम लेना मेरा काम है बदला मैं ही दूँगा।”
\v 20 बल्कि अगर तेरा दुश्मन भूखा हो तो उस को खाना खिला “अगर प्यासा हो तो उसे पानी पिला क्यूँकि ऐसा करने से तू उसके सिर पर आग के अंगारों का ढेर लगाएगा। ”
\v 21 बदी से मग़लूब न हो बल्कि नेकी के ज़रिए से बदी पर ग़ालिब आओ।
\s5
\c 13
\v 1 हर शख़्स आ'ला हुकूमतों का ता'बेदार रहे क्यूँकि कोई हुकूमत ऐसी नहीं जो ख़ुदा की तरफ़ से न हो और जो हुकूमतें मौजूद हैं वो ख़ुदा की तरफ़ से मुक़र्रर है।
\v 2 पस जो कोई हुकूमत का सामना करता है वो ख़ुदा के इन्तिज़ाम का मुख़ालिफ़ है और जो मुख़ालिफ़ है वो सज़ा पाएगा।
\s5
\v 3 नेक कारों को हाकिमों से ख़ौफ़ नहीं बल्कि बदकार को है, पस अगर तू हाकिम से निडर रहना चाहता है तो नेकी कर उसकी तरफ़ से तेरी तारीफ़ होगी।
\v 4 क्यूँकि वो तेरी बेहतरी के लिए ख़ुदा का ख़ादिम है लेकिन अगर तू बदी करे तो डर, क्यूँकि वो तलवार बे'फ़ाइदा लिए हुए नहीं और ख़ुदा का ख़ादिम है कि उसके ग़ज़ब के मुवाफ़िक़ बदकार को सज़ा देता है
\v 5 पस ताबे दार रहना न सिर्फ़ ग़ज़ब के डर से ज़रूर है बल्कि दिल भी यही गवाही देता है।
\s5
\v 6 तुम इसी लिए लगान भी देते हो कि वो ख़ुदा का ख़ादिम है और इस ख़ास काम में हमेशा मशग़ूल रहते हैं।
\v 7 सब का हक़ अदा करो जिस को लगान चाहिए लगान दो, जिसको महसूल चाहिए महसूल जिससे डरना चाहिए उस से डरो, जिस की इज़्ज़त करना चाहिए उसकी इज़्ज़त करो।
\s5
\v 8 आपस की मुहब्बत के सिवा किसी चीज़ में किसी के क़र्ज़दार न हो क्यूँकि जो दूसरे से मुहब्बत रखता है उसने शरी'अत पर पूरा अमल किया।
\v 9 क्यूँकि ये बातें कि “ज़िना न कर, ख़ून न कर, चोरी न कर, लालच न कर और इसके सिवा और जो कोई हुक्म हो उन सब का ख़ुलासा इस बात में पाया जाता है अपने पड़ोसी से अपनी तरह मुहब्बत रख।”
\v 10 मुहब्बत अपने पड़ोसी से बदी नहीं करती इस वास्ते मुहब्बत शरी'अत की ता'मील है।
\s5
\v 11 वक़्त को पहचानकर ऐसा ही करो इसलिए कि अब वो घड़ी आ पहुँची कि तुम नींद से जागो; क्यूँकि जिस वक़्त हम ईमान लाए थे उस वक़्त की निस्बत अब हमारी नजात नज़दीक है।
\v 12 रात बहुत गुज़र गई, और दिन निकलने वाला है पस हम अँधेरे के कामों को तर्क करके रौशनी के हथियार बाँध लें।
\s5
\v 13 जैसा दिन को दस्तूर है संजीदगी से चलें न कि नाच रंग और नशेबाज़ी से न ज़िनाकारी और शहवत परस्ती से और न झगड़े और हसद से।
\v 14 बल्कि ख़ुदावन्द ईसा' मसीह को पहन लो और जिस्म की ख़वाहिशों के लिए तदबीरें न करो।
\s5
\c 14
\v 1 कमज़ोर ईमान वालों को अपने में शामिल तो कर लो, मगर शक़' और शुबह की तकरारों के लिए नहीं।
\v 2 हरएक का मानना है कि हर चीज़ का खाना जाएज़ है और कमज़ोर ईमानवाला साग पात ही खाता है।
\s5
\v 3 खाने वाला उसको जो नहीं खाता हक़ीर न जाने और जो नहीं खाता वो खाने वाले पर इल्ज़ाम न लगाए; क्यूँकि ख़ुदा ने उसको क़ुबूल कर लिया है।
\v 4 तू कौन है, जो दूसरे के नौकर पर इल्ज़ाम लगाता है? उसका क़ायम रहना या गिर पड़ना उसके मालिक ही से मुता'ल्लिक़ है; बल्कि वो क़ायम ही कर दिया जाए क्यूँकि ख़ुदावन्द उसके क़ायम करने पर क़ादिर है।
\s5
\v 5 कोई तो एक दिन को दूसरे से अफ़ज़ल जानता है और कोई सब दिनों को बराबर जानता है हर एक अपने दिल में पूरा ऐ'तिक़ाद रखे ।
\v 6 जो किसी दिन को मानता है वो ख़ुदावन्द के लिए मानता है और जो खाता है वो ख़ुदावन्द के वास्ते खाता है क्यूँकि वो ख़ुदा का शुक्र करता है और जो नहीं खाता वो भी ख़ुदावन्द के वास्ते नहीं खाता, और ख़ुदावन्द का शुक्र करता है।
\s5
\v 7 क्यूँकि हम में से न कोई अपने वास्ते जीता है, न कोई अपने वास्ते मरता है।
\v 8 अगर हम जीते हैं तो ख़ुदावन्द के वास्ते जीते हैं और अगर मरते हैं तो ख़ुदावन्द के वास्ते मरते हैं; पस हम जियें या मरें ख़ुदावन्द ही के हैं।
\v 9 क्यूँकि मसीह इसलिए मरा और ज़िन्दा हुआ कि मुर्दों और ज़िन्दों दोनों का ख़ुदावन्द हो।
\s5
\v 10 मगर तू अपने भाई पर किस लिए इल्ज़ाम लगाता है? या तू भी किस लिए अपने भाई को हक़ीर जानता है? हम तो सब ख़ुदा के तख़्त -ए-अदालत के आगे खड़े होंगे।
\v 11 चुनाँचे ये लिखा है; ख़ुदावन्द फ़रमाता है मुझे अपनी हयात की क़सम, हर एक घुटना मेरे आगे झुकेगा और हर एक ज़बान ख़ुदा का इक़रार करेगी।
\s5
\v 12 पस हम में से हर एक ख़ुदा को अपना हिसाब देगा।
\v 13 पस आइन्दा को हम एक दूसरे पर इल्ज़ाम न लगाएँ बल्कि तुम यही ठान लो कि कोई अपने भाई के सामने वो चीज़ न रख्खे जो उसके ठोकर खाने या गिरने का ज़रिया हो।
\s5
\v 14 मुझे मा'लूम है बल्कि ख़ुदावन्द ईसा' में मुझे यक़ीन है कि कोई चीज़ बजातेह हराम नहीं लेकिन जो उसको हराम समझता है उस के लिए हराम है।
\v 15 अगर तेरे भाई को तेरे खाने से रंज पहुँचता है तो फिर तू मुहब्बत के क़ा'इदे पर नहीं चलता; जिस शख़्स के वास्ते मसीह मरा तू अपने खाने से हलाक न कर।
\s5
\v 16 पस तुम्हारी नेकी की बदनामी न हो।
\v 17 क्यूँकि ख़ुदा की बादशाही खाने पीने पर नहीं बल्कि रास्तबाज़ी और मेल मिलाप और उस ख़ुशी पर मौक़ूफ़ है जो रूह -उल -क़ुद्दूस की तरफ़ से होती है।
\s5
\v 18 जो कोई इस तौर से मसीह की ख़िदमत करता है; वो ख़ुदा का पसन्दीदा और आदमियों का मक़बूल है।
\v 19 पस हम उन बातों के तालिब रहें; जिनसे मेल मिलाप और आपसी तरक्की हो।
\s5
\v 20 खाने की ख़ातिर ख़ुदा के काम को न बिगाड़ हर चीज़ पाक तो है मगर उस आदमी के लिए बुरी है; जिसको उसके खाने से ठोकर लगती है।
\v 21 यही अच्छा है कि तू न गोश्त खाए न मय पिए न और कुछ ऐसा करे जिस की वजह से तेरा भाई ठोकर खाए।
\s5
\v 22 जो तेरा ऐ'तिक़ाद है वो ख़ुदा की नज़र में तेरे ही दिल में रहे, मुबारक वो है जो उस चीज़ की वजह से जिसे वो जायज़ रखता है अपने आप को मुल्ज़िम नहीं ठहराता।
\v 23 मगर जो कोई किसी चीज़ में शक रखता है अगर उस को खाए तो मुजरिम ठहरता है इस वास्ते कि वो ऐ'तिक़ाद से नहीं खाता, और जो कुछ ऐ'तिक़ाद से नहीं वो गुनाह है।
\s5
\c 15
\v 1 ग़रज़ हम ताक़तवरों को चाहिए कि कमज़ोरों के कमज़ोरियों की रि'आयत करें न कि अपनी ख़ुशी करें।
\v 2 हम में हर शख़्स अपने पड़ोसी को उसकी बेहतरी के वास्ते ख़ुश करे; ताकि उसकी तरक़्क़ी हो।
\s5
\v 3 क्यूँकि मसीह ने भी अपनी ख़ुशी नहीं की“बल्कि यूँ लिखा है; तेरे लान तान करनेवालों के लान'तान मुझ पर आ पड़े।”
\v 4 क्यूंकि जितनी बातें पहले लिखी गईं, वो हमारी ता'लीम के लिए लिखी गईं, ताकि सब्र और किताब'ए मुक़द्दस की तसल्ली से उम्मीद रखे ।
\s5
\v 5 और ख़ुदा सब्र और तसल्ली का चश्मा तुम को ये तौफ़ीक दे कि मसीह ईसा' के मुताबिक़ आपस में एक दिल रहो।
\v 6 ताकि तुम एक दिल और यक ज़बान हो कर हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह के ख़ुदा और बाप की बड़ाई करो।
\v 7 पस जिस तरह मसीह ने ख़ुदा के जलाल के लिए तुम को अपने साथ शामिल कर लिया है उसी तरह तुम भी एक दूसरे को शामिल कर लो।
\s5
\v 8 में कहता हूँ कि ख़ुदा की सच्चाई साबित करने के लिए मख़्तूनों का ख़ादिम बना ताकि उन वा'दों को पूरा करूं जो बाप दादा से किए गए थे।
\v 9 और ग़ैर क़ौमें भी रहम की वजह से ख़ुदा की हम्द करें चुनाँचें लिखा है, “इस वास्ते मैं ग़ैर क़ौमों में तेरा इक़रार करूँगा”और तेरे नाम के गीत गाऊँगा।"
\s5
\v 10 और फिर वो फ़रमाता है“ऐ'ग़ैर क़ौमों”उसकी उम्मत के साथ ख़ुशी करो।
\v 11 फिर ये “ऐ,ग़ैर क़ौमों ख़ुदावन्द की हम्द करो और उम्मतें उसकी सिताइश करें!”
\s5
\v 12 और यसायाह भी कहता है यस्सी की जड़ ज़ाहिर होगी या'नी वो शख़्स जो ग़ैर क़ौमों पर हुकूमत करने को उठेगा, उसी से ग़ैर क़ौमें उम्मीद रख्खेंगी।
\s5
\v 13 पस ख़ुदा जो उम्मीद का चश्मा है तुम्हें ईमान रखने के ज़रिए सारी ख़ुशी और इत्मीनान से मा'मूर करे ताकि रूह- उल क़ुद्दूस की क़ुदरत से तुम्हारी उम्मीद ज़्यादा होती जाए।
\s5
\v 14 ऐ मेरे भाइयो; मैं ख़ुद भी तुम्हारी निस्बत यक़ीन रखता हूँ कि तुम आप नेकी से मा'मूर और मुकम्मल मा'रिफ़त से भरे हो और एक दूसरे को नसीहत भी कर सकते हो।
\s5
\v 15 तोभी मैं ने कुछ जगह ज़्यादा दिलेरी के साथ याद दिलाने के तौर पर इसलिए तुम को लिखा; कि मुझ को ख़ुदा की तरफ़ से ग़ैर क़ौमों के लिए मसीह ईसा' के ख़ादिम होने की तौफ़ीक़ मिली है।
\v 16 कि मैं ख़ुदा की ख़ुशख़बरी की ख़िदमत इमाम की तरह अंजाम दूँ ताकि ग़ैर क़ौमें नज़्र के तौर पर रूह- उल क़ुद्दूस से मुक़द्दस बन कर मक़्बूल हो जाएँ।
\s5
\v 17 पस मैं उन बातों में जो ख़ुदा से मुताल्लिक़ हैं मसीह ईसा' के ज़रिए फ़ख़्र कर सकता हूँ।
\v 18 क्यूंकि मुझे किसी और बात के ज़िक्र करने की हिम्मत नहीं सिवा उन बातों के जो मसीह ने ग़ैर क़ौमों के ताबे करने के लिए क़ौल और फ़े'ल से निशानों और मोजिज़ों की ताक़त से और रूह- उल क़ुद्दस की क़ुदरत से मेरे वसीले से कीं।
\v 19 यहाँ तक कि मैने यरूशलीम से लेकर चारों तरफ़ इल्लुरिकुम सूबे तक मसीह की ख़ुशख़बरी की पूरी पूरी मनादी की।
\s5
\v 20 और मैं ने यही हौसला रखा कि जहाँ मसीह का नाम नहीं लिया गया वहाँ ख़ुशख़बरी सुनाऊँ ताकि दूसरे की बुनियाद पर इमारत न उठाऊँ।
\v 21 बल्कि जैसा लिखा है वैसा ही हो जिनको उसकी ख़बर नहीं पहुँची वो देखेंगे; और जिन्होंने नहीं सुना वो समझेंगे।
\s5
\v 22 इसी लिए में तुम्हारे पास आने से बार बार रुका रहा।
\v 23 मगर चुँकि मुझ को अब इन मुल्कों में जगह बाक़ी नहीं रही और बहुत बरसों से तुम्हारे पास आने का मुश्ताक़ भी हूँ।
\s5
\v 24 इसलिए जब इस्फ़ानिया मुल्क को जाऊँगा तो तुम्हारे पास होता हुआ जाऊँगा; क्यूँकि मुझे उम्मीद है कि उस सफ़र में तुम से मिलूँगा और जब तुम्हारी सोहबत से किसी क़दर मेरा जी भर जाएगा तो तुम मुझे उस तरफ़ रवाना कर दोगे।
\v 25 लेकिन फिलहाल तो मुक़द्दसों की ख़िदमत करने के लिए यरूशलीम को जाता हूँ।
\s5
\v 26 क्यूंकि मकिदुनिया और आख़्या के लोग यरूशलीम के ग़रीब मुक़द्दसों के लिए कुछ चन्दा करने को रज़ामन्द हुए।
\v 27 किया तो रज़ामन्दी से मगर वो उनके क़र्ज़दार भी हैं क्यूँकि जब ग़ैर क़ौमें रूहानी बातों में उनकी शरीक़ हुई हैं तो लाज़िम है कि जिस्मानी बातों में उनकी ख़िदमत करें।
\s5
\v 28 पस मैं इस खिदमत को पूरा करके और जो कुछ हासिल हुआ उनको सौंप कर तुम्हारे पास होता हुआ इस्फ़ानिया को जाऊँगा।
\v 29 और मैं जानता हूँ कि जब तुम्हारे पास आऊँगा तो मसीह की कामिल बरकत लेकर आऊँगा।
\s5
\v 30 ऐ, भाइयो; मैं ईसा' मसीह का जो हमारा ख़ुदावन्द है वास्ता देकर और रूह की मुहब्बत को याद दिला कर तुम से गुज़ारिश करता हूँ कि मेरे लिए ख़ुदा से दुआ करने में मेरे साथ मिल कर मेहनत करो।
\v 31 कि मैं यहूदिया के नाफ़रमानों से बचा रहूँ, और मेरी वो ख़िदमत जो यरूशलीम के लिए है मुक़द्दसों को पसन्द आए।
\v 32 और ख़ुदा की मर्ज़ी से तुम्हारे पास ख़ुशी के साथ आकर तुम्हारे साथ आराम पाऊँ।
\s5
\v 33 ख़ुदा जो इत्मिनान का चश्मा है तुम सब के साथ रहे; आमीन।
\s5
\c 16
\v 1 मैं तुम से फ़ीबे की जो हमारी बहन और किंख्रिया शहर की कलीसिया की ख़ादिमा है सिफ़ारिश करता है।
\v 2 कि तुम उसे ख़ुदावन्द में कुबूल करो, जैसा मुक़द्दसों को चाहिए और जिस काम में वो तुम्हारी मोहताज हो उसकी मदद करो क्यूँकि वो भी बहुतों की मददगार रही है; बल्कि मेरी भी।
\s5
\v 3 प्रिस्का और अक्विला से मेरा सलाम कहो वो मसीह ईसा में मेरे हमख़िदमत हैं।
\v 4 उन्होंने मेरी जान के लिए अपना सिर दे रख्खा था; और सिर्फ़ में ही नहीं बल्कि ग़ैर क़ौमों की सब कलीसियाएँ भी उनकी शुक्रगुज़ार हैं।
\v 5 और उस कलीसिया से भी सलाम कहो जो उन के घर में है; मेरे प्यारे अपीनितुस से सलाम कहो जो मसीह के लिए आसिया का पहला फल है।
\s5
\v 6 मरियम से सलाम कहो; जिसने तुम्हारे वास्ते बहुत मेहनत की।
\v 7 अन्द्रनीकुस और यून्यास से सलाम कहो वो मेरे रिश्तेदार हैं और मेरे साथ क़ैद हुए थे, और रसूलों में नामवर हैं और मुझ से पहले मसीह में शामिल हुए।
\v 8 अम्पलियातुस से सलाम कहो जो ख़ुदावन्द में मेरा प्यारा है।
\s5
\v 9 उरबानुस से जो मसीह में हमारा हमख़िदमत है और मेरे प्यारे इस्तख़ुस से सलाम कहो ।
\v 10 अपिल्लेस से सलाम कहो जो मसीह में मक़बूल है अरिस्तुबुलुस के घर वालों से सलाम कहो।
\v 11 मेरे रिश्तेदार हेरोदियून से सलाम कहो; नरकिस्सुस के उन घरवालों से सलाम कहो जो ख़ुदावन्द में हैं।
\s5
\v 12 त्रफ़ैना त्रुफ़ोसा से सलाम कहो जो ख़ुदावन्द में मेंहनत करती है प्यारी परसिस से सलाम कहो जिसने ख़ुदावन्द में बहुत मेंहनत की।
\v 13 रूफ़ुस जो ख़ुदावन्द में बरगुज़ीदा है और उसकी माँ जो मेरी भी माँ है दोनों से सलाम कहो।
\v 14 असुंक्रितुस और फ़लिगोन और हिरमेस और पत्रुबास और हिरमास और उन भाइयों से जो उनके साथ हैं सलाम कहो।
\s5
\v 15 फ़िलुलुगुस और यूलिया और नयरयूस और उसकी बहन और उलुम्पास और सब मुक़द्दसों से जो उन के साथ हैं सलाम कहो।
\v 16 आपस में पाक बोसा लेकर एक दूसरे को सलाम करो मसीह की सब कलीसियाएँ तुम्हें सलाम कहती हैं।
\s5
\v 17 अब ऐ, भाइयो मैं तुम से गुज़ारिश करता हूँ कि जो लोग उस ता'लीम के बरख़िलाफ़ जो तुम ने पाई फूट पड़ने और ठोकर खाने का ज़रिया हैं उन को पहचान लो और उनसे किनारा करो।
\v 18 क्यूँकि ऐसे लोग हमारे ख़ुदावन्द मसीह की नहीं बल्कि अपने पेट की ख़िदमत करते हैं और चिकनी चुपड़ी बातों से सादा दिलों को बहकाते हैं;
\s5
\v 19 क्यूंकि हमारी फ़रमाबरदारी सब में मशहूर हो गई है इसलिए मैं तुम्हारे बारे में ख़ुश हूँ लेकिन ये चाहता हूँ कि तुम नेकी के ऐ'तिबार से अक़्लमंद बन जाओ और बदी के ऐ'तिबार से भोले बने रहो।
\v 20 ख़ुदा जो इत्मीनान का चश्मा है शैतान तुम्हारे पावँ से जल्द कुचलवा देगा| हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह का फ़ज़ल तुम पर होता रहे ।
\s5
\v 21 मेरे हमख़िदमत तीमुथियुस और मेरे रिश्तेदार लूकियुस और यासोन और सोसिपत्रुस तुम्हें सलाम कहते हैं।
\v 22 इस ख़त का कातिब तिरतियुस तुम को ख़ुदावन्द में सलाम कहता है।
\s5
\v 23 गयुस मेरा और सारी कलीसिया का मेंहमानदार तुम्हें सलाम कहता है इरास्तुस शहर का ख़ज़ांची और भाई क्वारतुस तुम को सलाम कहते हैं।
\v 24 हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह का फ़ज़ल तुम सब के साथ हो; आमीन।
\s5
\v 25 अब ख़ुदा जो तुम को मेरी ख़ुशख़बरी या'नी ईसा' मसीह की मनादी के मुवाफ़िक़ मज़बूत कर सकता है, उस राज़ के मुकाश्फ़े के मुताबिक़ जो अज़ल से पोशीदा रहा।
\v 26 मगर इस वक़्त ज़ाहिर हो कर ख़ुदा'ए अज़ली के हुक्म के मुताबिक़ नबियों की किताबों के ज़रिए से सब क़ौमों को बताया गया ताकि वो ईमान के ताबे हो जाएँ।
\s5
\v 27 उसी वाहिद हकीम ख़ुदा की ईसा' मसीह के वसीले से हमेशा तक बड़ाई होती रहे। आमीन।

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\id 1CO
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\h कुरिन्थियों के नाम पौलुस रसूल का पहला ख़त
\toc1 कुरिन्थियों के नाम पौलुस रसूल का पहला ख़त
\toc2 कुरिन्थियों के नाम पौलुस रसूल का पहला ख़त
\toc3 1co
\mt1 कुरिन्थियों के नाम पौलुस रसूल का पहला ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 पौलुस रसूल की तरफ़ से, जो ख़ुदा की मर्ज़ी से ईसा' मसीह का रसूल होने के लिए बुलाया गया है और भाई सोस्थिनेस की तरफ़ से,ये ख़त ,
\v 2 ख़ुदा की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्थुस शहर में है, या'नी उन के नाम जो मसीह ईसा' में पाक किए गए, और मुक़द्दस होने के लिए बुलाए गए हैं, और उन सब के नाम भी जो हर जगह हमारे और अपने ख़ुदावन्द ईसा' मसीह का नाम लेते हैं।
\v 3 हमारे बाप ख़ुदा और ख़ुदावन्द ईसा' मसीह की तरफ़ से तुम्हें फ़ज़ल और इत्मिनान हासिल होता रहे।
\s5
\v 4 मैं तुम्हारे बारे में ख़ुदा के उस फ़ज़ल के ज़रिए जो मसीह ईसा' में तुम पर हुआ हमेशा अपने ख़ुदा का शुक्र करता हूँ।
\v 5 कि तुम उस में होकर सब बातों में कलाम और इल्म की हर तरह की दौलत से दौलतमन्द हो गए, हो।
\v 6 चुनाँचे मसीह की गवाही तुम में क़ायम हुई।
\s5
\v 7 यहाँ तक कि तुम किसी ने'मत में कम नहीं, और हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह के ज़हूर के मुन्तज़िर हो।
\v 8 जो तुम को आख़िर तक क़ायम भी रख्खेगा, ताकि तुम हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा'' मसीह के दिन बे'इल्ज़ाम ठहरो।
\v 9 ख़ुदा सच्चा है जिसने तुम्हें अपने बेटे हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा मसीह की शराकत के लिए बुलाया है।
\s5
\v 10 अब ऐ भाइयो! ईसा' मसीह जो हमारा ख़ुदावन्द है, उसके नाम के वसीले से मैं तुम से इल्तिमास करता हूँ कि सब एक ही बात कहो, और तुम में तफ़्रके़ न हों, बल्कि एक साथ एक दिल और एक राय हो कर कामिल बने रहो।
\v 11 क्यूँकि ऐ भाइयों! तुम्हारे ज़रिए मुझे ख़लोए के घर वालों से मा'लूम हुआ कि तुम में झगड़े हो रहे हैं।
\s5
\v 12 मेरा ये मतलब है कि तुम में से कोई तो अपने आपको पौलुस का कहता है कोई अपुल्लोस का कोई कैफ़ा का कोई मसीह का।
\v 13 क्या मसीह बट गया? क्या पौलुस तुम्हारी ख़ातिर मस्लूब हुआ? या तुम ने पौलुस के नाम पर बपतिस्मा लिया?।
\s5
\v 14 ख़ुदा का शुक्र करता हूँ कि क्रिस्पुस और गयुस के सिवा मैंने तुम में से किसी को बपतिस्मा नहीं दिया।
\v 15 ताकि कोई ये न कहे कि तुम ने मेरे नाम पर बपतिस्मा लिया।
\v 16 हाँ स्तिफ़नास के ख़ानदान को भी मैंने बपतिस्मा दिया बाक़ी नहीं जानता कि मैंने किसी और को बपतिस्मा दिया हो।
\s5
\v 17 क्यूँकि मसीह ने मुझे बपतिस्मा देने को नहीं भेजा बल्कि ख़ुशख़बरी सुनाने को और वो भी कलाम की हिक्मत से नहीं ताकि मसीह की सलीबी मौत बे'ताशीर न हो।
\s5
\v 18 क्यूँकि सलीब का पैग़ाम हलाक होने वालों के नज़दीक तो बे'वक़ूफ़ी है मगर हम नजात पानेवालों के नज़दीक ख़ुदा की क़ुदरत है।
\v 19 क्यूँकि लिखा है, “मैं हकीमों की हिक्मत को नेस्त और अक़्लमन्दों की अक़्ल को रद्द करूँगा। ”
\s5
\v 20 कहाँ का हकीम? कहाँ का आलिम? कहाँ का इस जहान का बहस करनेवाला? क्या ख़ुदा ने दुनिया की हिक्मत को बे'वक़ूफ़ी नहीं ठहराया?।
\v 21 इसलिए कि जब ख़ुदा की हिक्मत के मुताबिक़ दुनियाँ ने अपनी हिक्मत से ख़ुदा को न जाना तो ख़ुदा को ये पसन्द आया कि इस मनादी की बेवक़ूफ़ी के वसीले से ईमान लानेवालों को नजात दे।
\s5
\v 22 चुनाँचे यहूदी निशान चाहते हैं और यूनानी हिक्मत तलाश करते हैं।
\v 23 मगर हम उस मसीह मस्लूब का ऐलान करते हैं जो यहूदियों के नज़दीक ठोकर और ग़ैर क़ौमों के नज़दीक बेवक़ूफ़ी है।
\s5
\v 24 लेकिन जो बुलाए हुए हैं यहूदी हों या यूनानी उन के नज़दीक मसीह ख़ुदा की क़ुदरत और ख़ुदा की हिक्मत है।
\v 25 क्यूँकि ख़ुदा की बेवक़ूफ़ी आदमियो की हिक्मत से ज्यादा हिक्मत वाली है और ख़ुदा की कमज़ोरी आदमियों के ज़ोर से ज़्यादा ताक़तवर है।
\s5
\v 26 ऐ भाइयो! अपने बुलाए जाने पर तो निगाह करो कि जिस्म के लिहाज़ से बहुत से हकीम बहुत से इख़्तियार वाले बहुत से अशराफ़ नहीं बुलाए गए।
\v 27 बल्कि ख़ुदा ने दुनिया के बेवक़ूफ़ों चुन लिया कि हकीमों को शर्मिन्दा करे और ख़ुदा ने दुनिया के कमज़ोरों को चुन लिया कि ज़ोरआवरों को शर्मिन्दा करे।
\s5
\v 28 और ख़ुदा ने दुनिया के कमीनों और हक़ीरों को बल्कि बे वजूदों को चुन लिया कि मौजूदों को नेस्त करे।
\v 29 ताकि कोई बशर ख़ुदा के सामने फ़ख़्र न करे।
\s5
\v 30 लेकिन तुम उसकी तरफ़ से मसीह ईसा' में हो, जो हमारे लिए ख़ुदा की तरफ़ से हिक्मत ठहरा, या'नी रास्तबाज़ी और पाकीज़गी और मख़्लसी।
\v 31 ताकि जैसा लिखा है“वैसा ही हो जो फ़ख़्र करे वो ख़ुदावन्द पर फ़ख़्र करे।”
\s5
\c 2
\v 1 ऐ भाइयों! जब मैं तुम्हारे पास आया और तुम में ख़ुदा के भेद की मनादी करने लगा तो आ'ला दर्जे की तक़रीर या हिक्मत के साथ नहीं आया।
\v 2 क्यूँकि मैंने ये इरादा कर लिया था कि तुम्हारे दर्मियान ईसा' मसीह, मसलूब के सिवा और कुछ न जानूंगा।
\s5
\v 3 और मैं कमज़ोरी और ख़ौफ़ और बहुत थरथराने की हालत में तुम्हारे पास रहा।
\v 4 और मेरी तक़रीर और मेरी मनादी में हिकमत की लुभाने वाली बातें न थीं बल्कि वो रूह और क़ुदरत से साबित होती थीं|
\v 5 ताकि तुम्हारा ईमान इंसान की हिक्मत पर नहीं बल्कि ख़ुदा की क़ुदरत पर मौक़ूफ़ हो।
\s5
\v 6 फिर भी कामिलों में हम हिक्मत की बातें कहते हैं लेकिन इस जहान की और इस जहान के नेस्त होनेवाले हाकिमों की अक़्ल नहीं।
\v 7 बल्कि हम ख़ुदा के राज़ की हक़ीक़त बातों के तौर पर बयान करते हैं, जो ख़ुदा ने जहान के शुरू से पहले हमारे जलाल के वास्ते मुक़र्रर की थी।
\s5
\v 8 जिसे इस दुनिया के सरदारों में से किसी ने न समझा क्यूँकि अगर समझते तो जलाल के ख़ुदावन्द को मस्लूब न करते।
\v 9 “बल्कि जैसा लिखा है वैसा ही हुआ जो चीज़ें न आँखों ने देखीं न कानों ने सुनी न आदमी के दिल में आईं वो सब ख़ुदा ने अपने मुहब्बत रखनेवालों के लिए तैयार कर दीं। ”
\s5
\v 10 लेकिन हम पर ख़ुदा ने उसको रूह के ज़रिए से ज़ाहिर किया क्यूँकि रूह सब बातें बल्कि ख़ुदा की तह की बातें भी दरियाफ़्त कर लेता है।
\v 11 क्यूँकि इंसानों में से कौन किसी इंसान की बातें जानता है सिवा इंसान की अपनी रूह के जो उस में है? उसी तरह ख़ुदा के रूह के सिवा कोई ख़ुदा की बातें नहीं जानता।
\s5
\v 12 मगर हम ने न दुनिया की रूह बल्कि वो रूह पाया जो ख़ुदा की तरफ़ से है; ताकि उन बातों को जानें जो ख़ुदा ने हमें इनायत की हैं।
\v 13 और हम उन बातों को उन अल्फ़ाज़ में नहीं बयान करते जो इन्सानी हिक्मत ने हम को सिखाए हों बल्कि उन अल्फ़ाज़ में जो रूह ने सिखाए हैं और रूहानी बातों का रूहानी बातों से मुक़ाबिला करते हैं।
\s5
\v 14 मगर जिस्मानी आदमी ख़ुदा के रूह की बातें क़ुबूल नहीं करता क्यूँकि वो उस के नज़दीक बेवक़ूफ़ी की बातें हैं और न वो इन्हें समझ सकता है क्यूँकि वो रूहानी तौर पर परखी जाती हैं।
\v 15 लेकिन रूहानी शख़्स सब बातों को परख लेता है; मगर ख़ुदा किसी से परखा नहीं जाता।
\v 16 “ख़ुदावन्द की अक़्ल को किसने जाना कि उसको ता'लीम दे सके? मगर हम में मसीह की अक़्ल है। ” ।
\s5
\c 3
\v 1 ऐ भाइयो! मैं तुम से उस तरह कलाम न कर सका जिस तरह रूहानियों से बल्कि जैसे जिस्मानियों से और उन से जो मसीह में बच्चे हैं।
\v 2 मैने तुम्हें दूध पिलाया और खाना न खिलाया क्यूँकि तुम को उसकी बर्दाश्त न थी, बल्कि अब भी नहीं।
\s5
\v 3 क्यूँकि अभी तक जिस्मानी हो इसलिए कि जब तुम मैं हसद और झगड़ा है तो क्या तुम जिस्मानी न हुए और इंसानी तरीक़े पर न चले ?
\v 4 “इसलिए कि जब एक कहता है मैं पौलुस का हूँ और दूसरा कहता है मैं अपुल्लोस का हूँ”तो क्या तुम इंसान न हुए?
\v 5 अपुल्लोस क्या चीज़ है? और पौलुस क्या? ख़ादिम जिनके वसीले से तुम ईमान लाए और हर एक को वो हैसियत है जो ख़ुदावन्द ने उसे बख़्शी।
\s5
\v 6 मैंने दरख़्त लगाया और अपुल्लोस ने पानी दिया मगर बढ़ाया ख़ुदा ने।
\v 7 पस न लगाने वाला कुछ चीज़ है न पानी देनेवाला मगर ख़ुदा जो बढ़ानेवाला है।
\s5
\v 8 लगानेवाला और पानी देनेवाला दोनों एक हैं लेकिन हर एक अपना अज्र अपनी मेहनत के मुवाफ़िक़ पाएगा।
\v 9 क्यूँकि हम ख़ुदा के साथ काम करनेवाले हैं तुम ख़ुदा की खेती और ख़ुदा की इमारत हो।
\s5
\v 10 मैने उस तौफ़ीक़ के मुवाफ़िक़ जो ख़ुदा ने मुझे बख़्शी अक़्लमंद मिस्त्री की तरह नींव रख्खी, और दूसरा उस पर इमारत उठाता है पस हर एक ख़बरदार रहे, कि वो कैसी इमारत उठाता है।
\v 11 क्यूँकि सिवा उस नींव के जो पड़ी हुई है और वो ईसा' मसीह है कोई शख़्स दूसरी नहीं रख सकता।
\s5
\v 12 और अगर कोई उस नींव पर सोना या चाँदी या बेशक़ीमती पत्थरों या लकड़ी या घास या भूसे का रद्दा रख्खे।
\v 13 तो उस का काम ज़ाहिर हो जाएगा क्यूँकि जो दिन आग के साथ ज़ाहिर होगा वो उस काम को बता देगा और वो आग ख़ुद हर एक का काम आज़मा लेगी कि कैसा है।
\s5
\v 14 जिस का काम उस पर बना हुआ बाक़ी रहेगा, वो अज्र पाएगा।
\v 15 और जिस का काम जल जाएगा, वो नुक़्सान उठाएगा; लेकिन ख़ुद बच जाएगा मगर जलते जलते।
\s5
\v 16 क्या तुम नहीं जानते कि तुम ख़ुदा का मक़दिस हो और ख़ुदा का रूह तुम में बसा हुआ है ?
\v 17 अगर कोई ख़ुदा के मक़दिस को बर्बाद करेगा तो ख़ुदा उसको बर्बाद करेगा, क्यूँकि ख़ुदा का मक़दिस पाक है और वो तुम हो।
\s5
\v 18 कोई अपने आप को धोका न दे अगर कोई तुम में अपने आप को इस जहान में हकीम समझे, तो बेवक़ूफ़ बने ताकि हकीम हो जाए।
\v 19 क्यूँकि दुनियाँ की हिक्मत ख़ुदा के नज़दीक बेवक़ूफ़ी है: चुनाँचे लिखा है, “वो हकीमों को उन ही की चालाकी में फँसा देता है। ”
\v 20 और ये भी, ख़ुदावन्द हकीमों के ख़यालों को जानता है“कि बातिल हैं।”,,
\s5
\v 21 पस आदमियों पर कोई फ़ख्र न करो क्यूँकि सब चीजें तुम्हारी हैं।
\v 22 चाहे पौलुस हो, चाहे अपुल्लोस, चाहे कैफ़ा, चाहे दुनिया, चाहे ज़िन्दगी, चाहे मौत, चाहे हाल, की चीजें, चाहे इस्तक़बाल की,
\v 23 सब तुम्हारी हैं और तुम मसीह के हो, और मसीह ख़ुदा का है।
\s5
\c 4
\v 1 आदमी हम को मसीह का ख़ादिम और ख़ुदा के हिकमत का मुख़्तार समझे।
\v 2 और यहाँ मुख़्तार में ये बात देखी जाती है के दियानतदार निकले।
\s5
\v 3 लेकिन मेरे नज़दीक ये निहायत छोटी बात है कि तुम या कोई इंसानी अदालत मुझे परखे: बल्कि मैं ख़ुद भी अपने आप को नहीं परखता।
\v 4 क्यूँकि मेरा दिल तो मुझे मलामत नहीं करता मगर इस से मैं रास्तबाज़ नहीं ठहरता, बल्कि मेरा परखनेवाला ख़ुदावन्द है।
\s5
\v 5 पस जब तक ख़ुदावन्द न आए, वक़्त से पहले किसी बात का फ़ैसला न करो; वही तारीकी की पोशीदा बातें रौशन कर देगा और दिलों के मन्सूबे ज़ाहिर कर देगा और उस वक़्त हर एक की ता'रीफ़ ख़ुदा की तरफ़ से होगी।
\s5
\v 6 ऐ भाइयो! मैने इन बातों में तुम्हारी ख़ातिर अपना और अपुल्लोस का ज़िक्र मिसाल के तौर पर किया है, ताकि तुम हमारे वसीले से ये सीखो कि लिखे हुए से बढ़ कर न करो और एक की ताईद में दूसरे के बरख़िलाफ़ शेख़ी न मारो।
\v 7 तुझ में और दूसरे में कौन फ़र्क़ करता है? और तेरे पास कौन सी ऐसी चीज़ है जो तू ने दूसरे से नहीं पाई? और जब तूने दूसरे से पाई तो फ़ख़्र क्यूँ करता है कि गोया नहीं पाई?
\s5
\v 8 तुम तो पहले ही से आसूदा हो और पहले ही से दौलतमन्द हो और तुम ने हमारे बग़ैर बादशाही की: और काश कि तुम बादशाही करते ताकि हम भी तुम्हारे साथ बादशाही करते।
\v 9 मेरी दानिस्त में ख़ुदा ने हम रसूलों को सब से अदना ठहराकर उन लोगों की तरह पेश किया है जिनके क़त्ल का हुक्म हो चुका हो; क्यूँकि हम दुनिया और फ़रिश्तों और आदमियों के लिए एक तमाशा ठहरे।
\s5
\v 10 हम मसीह की ख़ातिर बेवक़ूफ़ हैं मगर तुम मसीह में अक़्लमन्द हो: हम कमज़ोर हैं और तुम ताक़तवर तुम इज़्ज़त दार हो: और हम बे'इज़्ज़त।
\v 11 हम इस वक़्त तक भुखे प्यासे नंगे हैं और मुक्के खाते और आवारा फिरते हैं।
\s5
\v 12 और अपने हाथों से काम करके मशक़्क़त उठाते हैं लोग बुरा कहते हैं हम दुआ देते हैं वो सताते हैं हम सहते हैं।
\v 13 वो बदनाम करते हैं हम मिन्नत समाजत करते हैं हम आज तक दुनिया के कूड़े और सब चीज़ों की झड़न की तरह हैं।
\s5
\v 14 मैं तुम्हें शर्मिन्दा करने के लिए ये नहीं लिखता: बल्कि अपना प्यारा बेटा जानकर तुम को नसीहत करता हूँ।
\v 15 क्यूँकि अगर मसीह में तुम्हारे उस्ताद दस हज़ार भी होते तोभी तुम्हारे बाप बहुत से नहीं: इसलिए कि मैं ही इन्जील के वसीले से मसीह ईसा' में तुम्हारा बाप बना।
\v 16 पस मैं तुम्हारी मिन्नत करता हूँ कि मेरी तरह बनो।
\s5
\v 17 इसी वास्ते मैंने तीमुथियुस को तुम्हारे पास भेजा; कि वो ख़ुदावन्द में मेरा प्यारा और दियानतदार बेटा है और मेरे उन तरीक़ों को जो मसीह में हैं तुम्हें याद दिलाएगा; जिस तरह मैं हर जगह हर कलीसिया में ता'लीम देता हूँ।
\v 18 कुछ ऐसी शेख़ी मारते हैं गोया कि तुम्हारे पास आने ही का नहीं।
\s5
\v 19 लेकिन ख़ुदावन्द ने चाहा तो मैं तुम्हारे पास जल्द आऊँगा और शेख़ी बाज़ों की बातों को नहीं, बल्कि उनकी क़ुदरत को मा'लूम करूँगा।
\v 20 क्यूँकि ख़ुदा की बादशाही बातों पर नहीं, बल्कि क़ुदरत पर मौक़ूफ़ है।
\v 21 तुम क्या चाहते हो कि मैं लकड़ी लेकर तुम्हारे पास आऊँ या मुहब्बत और नर्म मीज़ाजी से?
\s5
\c 5
\v 1 यहाँ तक कि सुनने में आया है कि तुम में हरामकारी होती है बल्कि ऐसी हरामकारी जो ग़ैर क़ौमों में भी नहीं होती: चुनाँचे तुम में से एक शख़्स अपने बाप की दूसरी बीवी को रखता है।
\v 2 और तुम अफ़सोस तो करते नहीं ताकि जिस ने ये काम किया वो तुम में से निकाला जाए बल्कि शेख़ी मारते हो।
\s5
\v 3 लेकिन मैं अगरचे जिस्म के ऐ'तिबार से मौजूद न था, मगर रूह के ऐ'तिबार से हाज़िर होकर गोया बहालत'-ए-मौजूदगी ऐसा करने वाले पर ये हुक्म दे चुका हूँ।
\v 4 कि जब तुम और मेरी रूह हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह की क़ुदरत के साथ जमा हो तो ऐसा शख़्स हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा' के नाम से।
\v 5 जिस्म की हलाकत के लिए शैतान के हवाले किया जाए ताकि उस की रूह ख़ुदावन्द ईसा' के दिन नजात पाए।
\s5
\v 6 तुम्हारा फ़ख़्र करना ख़ूब नहीं क्या तुम नहीं जानते कि थोड़ा सा ख़मीर सारे गुंधे हुए आटे को ख़मीर कर देता है।
\v 7 पुराना ख़मीर निकाल कर अपने आप को पाक कर लो ताकि ताज़ा गुंधा हुआ आटा बन जाओ चुनाँचे तुम बे ख़मीर हो क्यूँकि हमारा भी फ़सह या'नी मसीह क़ुर्बान हुआ।
\v 8 पस आओ हम ईद करें न पुराने ख़मीर से और न बदी और शरारत के ख़मीर से, बल्कि साफ़ दिली और सच्चाई की बे ख़मीर रोटी से।
\s5
\v 9 मैंने अपने ख़त में तुम को ये लिखा था कि हरामकारों से सुहबत न रखना।
\v 10 ये तो नहीं कि बिल्कुल दुनिया के हरामकारों या लालचियों या ज़ालिमों या बुतपरस्तों से मिलना ही नहीं; क्यूँकि इस सूरत में तो तुम को दुनिया ही से निकल जाना पड़ता।
\s5
\v 11 यहाँ तक कि सुनने में आया है कि तुम में हरामकारी होती है बल्कि ऐसी हरामकारी जो ग़ैर क़ौमों में भी नहीं होती: चुनाँचे तुम में से एक शख़्स अपने बाप की बीवी को रखता है। लेकिन मैने तुम को दरहक़ीक़त ये लिखा था कि अगर कोई भाई कहलाकर हरामकार या लालची या बुतपरस्त या गाली देने वाला शराबी या ज़ालिम हो तो उस से सुहबत न रखो; बल्कि ऐसे के साथ खाना तक न खाना।
\v 12 क्यूँकि मुझे कलीसिया के बाहर वालों पर हुक्म करने से क्या वास्ता? क्या ऐसा नहीं है कि तुम तो कलीसिया के अन्दर वालों पर हुक्म करते हो।
\v 13 मगर बाहर वालों पर ख़ुदा हुक्म करता है, पस उस शरीर आदमी को अपने दर्मियान से निकाल दो।
\s5
\c 6
\v 1 क्या तुम में से किसी को ये जुर'अत है कि जब दूसरे के साथ मुक़द्दमा हो तो फ़ैसले के लिए बेदीन आदिलों के पास जाए; और मुक़द्दसों के पास न जाए।
\v 2 क्या तुम नहीं जानते कि मुक़द्दस लोग दुनिया का इंसाफ़ करेंगे? पस जब तुम को दुनिया का इंसाफ़ करना है तो क्या छोटे से छोटे झगड़ों के भी फ़ैसले करने के लायक़ नहीं हो ?
\v 3 क्या तुम नहीं जानते कि हम फ़रिशतो का इंसाफ़ करेंगे? तो क्या हम दुनियावी मु'आमिले के फ़ैसलें न करें?
\s5
\v 4 पस अगर तुम में दुनियावी मुक़द्दमे हों तो क्या उन को मुंसिफ़ मुक़र्रर करोगे जो कलीसिया में हक़ीर समझे जाते हैं।
\v 5 मैं तुम्हें शर्मिन्दा करने के लिए ये कहता हूँ; क्या वाक़'ई तुम में एक भी समझदार नहीं मिलता जो अपने भाइयों का फ़ैसला कर सके।
\v 6 बल्कि भाई भाइयों में मुक़द्दमा होता है और वो भी बेदीनों के आगे!
\s5
\v 7 लेकिन दर'असल तुम में बड़ा नुक़्स ये है कि आपस में मुक़द्दमा बाज़ी करते हो; ज़ुल्म उठाना क्यूँ नहीं बेहतर जानते? अपना नुक़्सान क्यूँ नहीं क़ुबूल करते?
\v 8 बल्कि तुम ही जु़ल्म करते और नुक़्सान पहुँचाते हो और वो भी भाइयों को।
\s5
\v 9 क्या तुम नहीं जानते कि बदकार ख़ुदा की बादशाही के वारिस न होंगे धोखा न खाओ न हरामकार ख़ुदा की बादशाही के वारिस होंगे न बुतपरस्त, न ज़िनाकार, न अय्याश, न लौंडे बाज़,
\v 10 न चोर, न लालची, न शराबी, न गालियाँ बकनेवाले, न ज़ालिम,
\v 11 और कुछ तुम में ऐसे ही थे भी, 'मगर तुम ख़ुदावन्द ईसा मसीह के नाम से और हमारे ख़ुदा के रूह से धुल गए और पाक हुए और रास्तबाज़ भी ठहरे।
\s5
\v 12 सब चीज़ें मेरे लिए जायज़ तो हैं मगर सब चीज़ें मुफ़ीद नहीं; सब चीज़ें मेरे लिए जायज़ तो हैं; लेकिन मैं किसी चीज़ का पाबन्द न हूँगा।
\v 13 खाना पेट के लिए हैं और पेट खाने के लिए लेकिन ख़ुदा उसको और इनको नेस्त करेगा मगर बदन हरामकारी के लिए नहीं बल्कि ख़ुदावन्द के लिए है और ख़ुदावन्द बदन के लिए।
\s5
\v 14 और ख़ुदा ने ख़ुदावन्द को भी जिलाया और हम को भी अपनी क़ुदरत से जिलाएगा।
\v 15 क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारे बदन मसीह के आ'ज़ा है? पस क्या मैं मसीह के आ'ज़ा लेकर कस्बी के आ'ज़ा बनाऊँ हरगिज़ नहीं।
\s5
\v 16 क्या तुम नहीं जानते कि जो कोई कस्बी से सुहबत करता है वो उसके साथ एक तन होता है? क्यूँकि वो फ़रमाता है, “वो दोनों एक तन होंगे।”
\v 17 और जो ख़ुदावन्द की सुहबत में रहता है वो उसके साथ एक रूह होता है।
\s5
\v 18 हरामकारी से भागो जितने गुनाह आदमी करता है वो बदन से बाहर हैं; मगर हरामकार अपने बदन का भी गुनाहगार है।
\s5
\v 19 क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारा बदन रूह- उल - क़ुद्दूस का मक़दिस है जो तुम में बसा हुआ है और तुम को ख़ुदा की तरफ़ से मिला है? और तुम अपने नहीं।
\v 20 क्यूँकि क़ीमत से ख़रीदे गए हो; पस अपने बदन से ख़ुदा का जलाल ज़ाहिर करो।
\s5
\c 7
\v 1 जो बातें तुम ने लिखी थीं उनकी वजह ये हैं मर्द के लिए अच्छा है कि औरत को न छुए।
\v 2 लेकिन हरामकारी के अन्देशे से हर मर्द अपनी बीवी और हर औरत अपना शौहर रख्खे।
\s5
\v 3 शौहर बीवी का हक़ अदा करे और वैसे ही बीवी शौहर का।
\v 4 बीवी अपने बदन की मुख़्तार नहीं बल्कि शौहर है इसी तरह शौहर भी अपने बदन का मुख़्तार नहीं बल्कि बीवी।
\s5
\v 5 तुम एक दूसरे से जुदा न रहो मगर थोड़ी मुद्दत तक आपस की रज़ामन्दी से, ताकि दुआ के लिए वक़्त मिले और फिर इकट्ठे हो जाओ ऐसा न हो कि ग़ल्बा-ए-नफ़्स की वजह से शैतान तुम को आज़माए। ।
\v 6 लेकिन मैं ये इजाज़त के तौर पर कहता हूँ हुक्म के तौर पर नहीं ।
\v 7 और मैं तो ये चाहता हूँ कि जैसा मैं हूँ वैसे ही सब आदमी हों लेकिन हर एक को ख़ुदा की तरफ़ से ख़ास तौफ़ीक़ मिली है किसी को किसी तरह की किसी को किसी तरह की।
\s5
\v 8 पस मैं बे'ब्याहों और बेवाओं के हक़ में ये कहता हूँ; कि उनके लिए ऐसा ही रहना अच्छा है जैसा मैं हूँ।
\v 9 लेकिन अगर सब्र न कर सकें तो शादी कर लें; क्यूँकि शादी करना मस्त होने से बेहतर है ।
\s5
\v 10 मगर जिनकी शादी हो गई है उनको मैं नहीं बल्कि ख़ुदावन्द हुक्म देता है कि बीवी अपने शौहर से जुदा न हो।
\v 11 (और अगर जुदा हो तो बे'निकाह रहे या अपने शौहर से फिर मिलाप कर ले) न शौहर बीवी को छोड़े।
\s5
\v 12 बाक़ियों से मैं ही कहता हूँ न ख़ुदावन्द कि अगर किसी भाई की बीवी बा ईमान न हो और उस के साथ रहने को राज़ी हो तो वो उस को न छोड़े।
\v 13 और जिस 'औरत का शौहर बा'ईमान न हो और उसके साथ रहने को राज़ी हो तो वो शौहर को न छोड़े।
\v 14 क्यूँकि जो शौहर बाईमान नहीं वो बीवी की वजह से पाक ठहरता है; और जो बीवी बाईमान नहीं वो मसीह शौहर के ज़रिये पाक ठहरती है वरना तुम्हारे बेटे नापाक होते मगर अब पाक हैं।
\s5
\v 15 लेकिन मर्द जो बा'ईमान न हो अगर वो जुदा हो तो जुदा होने दो ऐसी हालत में कोई भाई या बहन पाबन्द नहीं और ख़ुदा ने हम को मेल मिलाप के लिए बुलाया है।
\v 16 क्यूँकि ऐ 'औरत तुझे क्या ख़बर है कि शायद तू अपने शौहर को बचा ले? और ऐ मर्द तुझे क्या ख़बर है कि शायद तू अपनी बीवी को बचा ले।
\s5
\v 17 मगर जैसा ख़ुदावन्द ने हर एक को हिस्सा दिया है और जिस तरह ख़ुदा ने हर एक को बुलाया है उसी तरह वो चले; और मैं सब कलीसियाओं में ऐसा ही मुक़र्ऱर करता हूँ।
\v 18 जो मख़्तून बुलाया गया वो नामख़्तून न हो जाए जो नामख़्तूनी की हालत में बुलाया गया वो मख़्तून न हो जाए।
\v 19 न ख़तना कोई चीज़ है नामख़्तूनी बल्कि खुदा के हुक्मों पर चलना ही सब कुछ है।
\s5
\v 20 हर शख़्स जिस हालत में बुलाया गया हो उसी में रहे।
\v 21 अगर तू ग़ुलामी की हालत में बुलाया गया तो फ़िक्र न कर लेकिन अगर तू आज़ाद हो सके तो इसी को इख़्तियार कर।
\v 22 क्यूँकि जो शख़्स ग़ुलामी की हालत में ख़ुदावन्द में बुलाया गया है वो ख़ुदावन्द का आज़ाद किया हुआ है; इसी तरह जो आज़ादी की हालत में बुलाया गया है वो मसीह का ग़ुलाम है।
\v 23 तुम मसीह के ज़रिए ख़ास क़ीमत से ख़रीदे गए हो आदमियों के ग़ुलाम न बनो।
\v 24 ऐ भाइयो! जो कोई जिस हालत में बुलाया गया हो वो उसी हालत में ख़ुदा के साथ रहे।
\s5
\v 25 कुँवारियों के हक़ में मेरे पास ख़ुदावन्द का कोई हुक्म नहीं लेकिन दियानतदार होने के लिए जैसा ख़ुदावन्द की तरफ़ से मुझ पर रहम हुआ उसके मुवाफ़िक़ अपनी राय देता हूँ।
\v 26 पस मौजूदह मुसीबत के ख़याल से मेरी राय में आदमी के लिए यही बेहतर है कि जैसा है वैसा ही रहे।
\s5
\v 27 अगर तेरी बीवी है तो उस से जुदा होने की कोशीश न कर और अगर तेरी बीवी नहीं तो बीवी की तलाश न कर।
\v 28 लेकिन तू शादी करे भी तो गुनाह नहीं और अगर कुँवारी ब्याही जाए तो गुनाह नहीं मगर ऐसे लोग जिस्मानी तकलीफ़ पाएँगे, और मैं तुम्हें बचाना चाहता हूँ।
\s5
\v 29 मगर ऐ भाइयो! मैं ये कहता हूँ कि वक़्त तंग है पस आगे को चाहिए कि बीवी वाले ऐसे हों कि गोया उनकी बीवियाँ नहीं।
\v 30 और रोने वाले ऐसे हों गोया नहीं रोते; और ख़ुशी करने वाले ऐसे हों गोया ख़ुशी नहीं करते; और ख़रीदने वाले ऐसे हों गोया माल नहीं रखते।
\v 31 और दुनियावी कारोबार करनेवाले ऐसे हों कि दुनिया ही के न हो जाएँ; क्यूँकि दुनिया की शक्ल बदलती जाती है।
\s5
\v 32 पस मैं ये चाहता हूँ कि तुम बेफ़िक्र रहो, बे ब्याहा शख़्स ख़ुदावन्द की फ़िक्र में रहता है कि किस तरह ख़ुदावन्द को राज़ी करे।
\v 33 मगर शादी हुआ शख़्स दुनिया की फ़िक्र में रहता है कि किस तरह अपनी बीवी को राज़ी करे।
\v 34 शादी और बेशादी में भी फ़र्क़ है बे शादी ख़ुदावन्द की फ़िक्र में रहती है ताकि उसका जिस्म और रूह दोनों पाक हों मगर ब्याही हुई औरत दुनिया की फ़िक्र में रहती है कि किस तरह अपने शौहर को राज़ी करे।
\s5
\v 35 ये तुम्हारे फ़ाइदे के लिए कहता हूँ न कि तुम्हें फ़साँने के लिए; बल्कि इसलिए कि जो ज़ेबा है वही अमल में आए और तुम ख़ुदावन्द की ख़िदमत में बिना शक किये मशग़ूल रहो।
\s5
\v 36 अगर कोई ये समझे कि मैं अपनी उस कुँवारी लड़की की हक़तल्फ़ी करता हूँ जिसकी जवानी ढल चली है और ज़रूरत भी मा'लूम हो तो इख़्तियार है इस में गुनाह नहीं वो उसकी शादी होने दे।
\v 37 मगर जो अपने दिल में पुख़्ता हो और इस की कुछ ज़रूरत न हो बल्कि अपने इरादे के अंजाम देने पर क़ादिर हो और दिल में अहद कर लिया हो कि मैं अपनी लड़की को बेनिकाह रखूँगा वो अच्छा करता है।
\v 38 पस जो अपनी कुँवारी लड़की को शादी कर देता है वो अच्छा करता है और जो नहीं करता वो और भी अच्छा करता है।
\s5
\v 39 जब तक कि 'औरत का शौहर जीता है वो उस की पाबन्द है पर जब उसका शौहर मर जाए तो जिससे चाहे शादी कर सकती है मगर सिर्फ़ ख़ुदावन्द में।
\v 40 लेकिन जैसी है अगर वैसी ही रहे तो मेरी राय में ज़्यादा ख़ुश नसीब है और मैं समझता हूँ कि ख़ुदा का रूह मुझ में भी है।
\s5
\c 8
\v 1 अब बुतों की कुर्बानियों के बारे में ये है हम जानते हैं कि हम सब इल्म रखते हैं इल्म ग़ुरूर पैदा करता है लेकिन मुहब्बत तरक़्क़ी का ज़रिया है।
\v 2 अगर कोई गुमान करे कि मैं कुछ जानता हूँ तो जैसा जानना चाहिए वैसा अब तक नहीं जानता।
\v 3 लेकिन जो कोई ख़ुदा से मुहब्बत रखता है उस को ख़ुदा पहचानता है।
\s5
\v 4 पस बुतों की कुर्बानियों के गोश्त खाने के ज़रिए हम जानते हैं कि बुत दुनिया में कोई चीज़ नहीं और सिवा एक के और कोई ख़ुदा नहीं।
\v 5 अगरचे आसमान-ओ-ज़मीन में बहुत से ख़ुदा कहलाते हैं चुनाँचे बहुत से ख़ुदा और बहुत से ख़ुदावन्द हैं।
\v 6 लेकिन हमारे नज़दीक तो एक ही ख़ुदा है या'नी बाप जिसकी तरफ़ से सब चीज़ें हैं और हम उसी के लिए हैं और एक ही ख़ुदावन्द है या'नी 'ईसा' मसीह जिसके वसीले से सब चीज़ें मौजूद हुईं और हम भी उसी के वसीले से हैं।
\s5
\v 7 लेकिन सब को ये इल्म नहीं बल्कि कुछ को अब तक बुतपरस्ती की आदत है इसलिए उस गोश्त को बुत की क़ुर्बानी जान कर खाते हैं और उसका दिल, चुँकि कमज़ोर है, गन्दा हो जाता है।
\s5
\v 8 खाना हमें ख़ुदा से नहीं मिलाएगा; अगर न खाएँ तो हमारा कुछ नुक़्सान नहीं और अगर खाएँ तो कुछ फ़ायदा नहीं।
\v 9 लेकिन होशियार रहो ऐसा न हो कि तुम्हारी आज़ादी कमज़ोरों के लिए ठोकर का ज़रिया हो जाए।
\v 10 क्यूँकि अगर कोई तुझ साहिब'ऐ इल्म को बुत ख़ाने में खाना खाते देखे और वो कमज़ोर शख़्स हो तो क्या उस का दिल बुतों की क़ुर्बानी खाने पर मज़बूत न हो जाएगा?
\s5
\v 11 ग़रज़ तेरे इल्म की वजह से वो कमज़ोर शख़्स या'नी वो भाई जिसकी ख़ातिर मसीह मरा, हलाक हो जाएगा।
\v 12 और तुम इस तरह भाइयों के गुनाहगार होकर और उनके कमज़ोर दिल को घायल करके मसीह के गुनाहगार ठहरते हो।
\v 13 इस वजह से अगर खाना मेरे भाई को ठोकर खिलाए तो मैं कभी हरगिज़ गोश्त न खाऊँगा, ताकि अपने भाई के लिए ठोकर की वजह न बनूँ।
\s5
\c 9
\v 1 क्या मैं आज़ाद नहीं? क्या मैं रसूल नहीं? क्या मैंने 'ईसा' को नहीं देखा जो हमारा ख़ुदावन्द है? क्या तुम ख़ुदावन्द में मेरे बनाए हुए नहीं?।
\v 2 अगर मैं औरों के लिए रसूल नहीं तो तुम्हारे लिए बे'शक़ हूँ क्यूँकि तुम ख़ुदावन्द में मेरी रिसालत पर मुहर हो।
\s5
\v 3 जो मेरा इम्तिहान करते हैं उनके लिए मेरा यही जवाब है।
\v 4 क्या हमें खाने पीने का इख़्तियार नहीं?।
\v 5 क्या हम को ये इख़्तियार नहीं कि किसी मसीह बहन को शादी कर के लिए फिरें, जैसा और रसूल और ख़ुदावन्द के भाई और कैफ़ा करते हैं।
\v 6 या सिर्फ़ मुझे और बरनाबास को ही मेहनत मश्क़्क़त से बाज़ रहने का इख़्तियार नहीं।
\s5
\v 7 कौन सा सिपाही कभी अपनी गिरह से खाकर जंग करता है? कौन बाग़ लगाकर उसका फल नहीं खाता या कौन भेड़ो को चरा कर उन भेड़ो का दूध नहीं पीता?।
\v 8 क्या मैं ये बातें इंसानी अंदाज ही के मुताबिक़ कहता हूँ? क्या तौरेत भी यही नहीं कहती?
\s5
\v 9 ,चुनाँचे मूसा की तौरेत में लिखा है“दाएँ में चलते हुए बैल का मुँह न बाँधना”क्या ख़ुदा को बैलों की फ़िक्र है?
\v 10 या ख़ास हमारे वास्ते ये फ़रमाता है हाँ ये हमारे वास्ते लिखा गया क्यूँकि मुनासिब है कि जोतने वाला उम्मीद पर जोते और दाएँ चलाने वाला हिस्सा पाने की उम्मीद पर दाएँ चलाए।
\v 11 पस जब हम ने तुम्हारे लिए रूहानी चीज़ें बोईं तो क्या ये कोई बड़ी बात है कि हम तुम्हारी जिस्मानी चीज़ों की फ़सल काटें।
\s5
\v 12 जब औरों का तुम पर ये इख़्तियार है, तो क्या हमारा इस से ज़्यादा न होगा? लेकिन हम ने इस इख़्तियार से काम नहीं किया; बल्कि हर चीज़ की बर्दाश्त करते हैं, ताकि हमारी वजह मसीह की ख़ुशख़बरी में हर्ज न हो।
\v 13 क्या तुम नहीं जानते कि जो मुक़द्दस चीज़ों की ख़िदमत करते हैं वो हैकल से खाते हैं? और जो क़ुर्बानगाह के ख़िदमत गुज़ार हैं वो क़ुर्बानगाह के साथ हिस्सा पाते हैं?।
\v 14 इस तरह ख़ुदावन्द ने भी मुक़र्रर किया है कि ख़ुशख़बरी सुनाने ख़ुशख़बरी वाले के वसीले से गुज़ारा करें।
\s5
\v 15 लेकिन मैंने इन में से किसी बात पर अमल नहीं किया और न इस ग़रज़ से ये लिखा कि मेरे वास्ते ऐसा किया जाए; क्यूँकि मेरा मरना ही इस से बेहतर है कि कोई मेरा फ़ख़्र खो दे।
\v 16 अगर ख़ुशख़बरी सुनाऊँ तो मेरा कुछ फ़ख़्र नहीं क्यूँकि ये तो मेरे लिए ज़रुरी बात है बल्कि मुझ पर अफ़सोस है अगर ख़ुशख़बरी न सुनाऊँ।
\s5
\v 17 क्यूँकि अगर अपनी मर्ज़ी से ये करता हूँ तो मेरे लिए अज्र है और अगर अपनी मर्ज़ी से नही करता तो मुख़्तारी मेरे सुपुर्द हुई है।
\v 18 पस मुझे क्या अज्र मिलता है? ये कि जब इंजील का ऐलान करूँ तो ख़ुशख़बरी को मुफ़्त कर दूँ ताकि जो इख़्तियार मुझे ख़ुशख़बरी के बारे में हासिल है उसके मुवाफ़िक़ पूरा अमल न करूँ।
\s5
\v 19 अगरचे मैं सब लोगों से आज़ाद हूँ फिर भी मैंने अपने आपको सबका ग़ुलाम बना दिया है ताकि और भी ज़्यादा लोगों को खींच लाऊँ।
\v 20 मैं यहूदियों के लिए यहूदी बना, ताकि यहूदियों को खींच लाऊँ, जो लोग शरी'अत के मातहत हैं उन के लिए मैं शरी'अत के मातहत हुआ; ताकि शरी'अत के मातहतों को खींच लाऊँ अगरचे ख़ुद शरी'अत के मातहत न था।
\s5
\v 21 बेशरा लोगों के लिए बेशरा' बना ताकि बेशरा' लोगों को खींच लाऊँ;( अगरचे ख़ुदा के नज़दीक बेशरा' न था; बल्कि मसीह की शरी'अत के ताबे था)।
\v 22 कमज़ोरों के लिए कमज़ोर बना, ताकि कमज़ोरों को खींच लाऊँ; मैं सब आदमियों के लिए सब कुछ बना हुआ हूँ; ताकि किसी तरह से कुछ को बचाऊँ।
\v 23 मैं सब कुछ इन्जील की ख़ातिर करता हूँ, ताकि औरों के साथ उस में शरीक होऊँ।
\s5
\v 24 क्या तुम नहीं जानते कि दौड़ में दौड़ने वाले दौड़ते तो सभी हैं मगर इन'आम एक ही ले जाता है? तुम भी ऐसा ही दौड़ो ताकि जीतो।
\v 25 हर पहलवान सब तरह का परहेज़ करता है वो लोग तो मुरझाने वाला सेहरा पाने के लिए ये करते हैं मगर हम उस सेहरे के लिए ये करते हैं जो नहीं मुरझाता।
\v 26 पस मैं भी इसी तरह दौड़ता हूँ या'नी बेठिकाना नहीं; मैं इसी तरह मुक्कों से लड़ता हूँ; यानी उस की तरह नहीं जो हवा को मारते हैं।
\v 27 बल्कि मैं अपने बदन को मारता कूटता और उसे क़ाबू में रखता हूँ; ऐसा न हो कि औरों में ऐलान कर के आप ना मक़बूल ठहरूँ।
\s5
\c 10
\v 1 ऐ भाइयों! मैं तुम्हारा इस से नावाक़िफ़ रहना नहीं चाहता कि हमारे सब बाप दादा बादल के नीचे थे; और सब के सब लाल समुन्दर में से गुज़रे।
\v 2 और सब ही ने उस बादल और समुन्दर में मूसा का बपतिस्मा लिया।
\v 3 और सब ने एक ही रूहानी ख़ुराक खाई।
\v 4 और सब ने एक ही रूहानी पानी पिया क्यूँकि वो उस रूहानी चट्टान में से पानी पीते थे जो उन के साथ साथ चलती थी और वो चट्टान मसीह था।
\s5
\v 5 मगर उन में अक्सरों से ख़ुदा राज़ी न हुआ चुनाँचे वो वीराने में ढेर हो गए।
\v 6 ये बातें हमारे लिए इबरत ठहरीं, ताकि हम बुरी चीज़ों की ख़्वाहिश न करें, जैसे उन्हों ने की।
\s5
\v 7 और तुम बुतपरस्त न बनो जिस तरह कुछ उनमें से बन गए थे“चुनाँचे लिखा है।लोग खाने पीने को बैठे फिर नाचने कूदने को उठे।
\v 8 और हम हरामकारी न करें जिस तरह उनमें से कुछ ने की, और एक ही दिन में तेईस हज़ार मर गए।
\s5
\v 9 और हम ख़ुदा वन्द की आज़माइश न करें जैसे उन में से कुछ ने की और साँपों ने उन्हें हलाक किया।
\v 10 और तुम बड़बड़ाओ नहीं जिस तरह उन में से कुछ बड़बड़ाए और हलाक करने वाले से हलाक हुए।
\s5
\v 11 ये बातें उन पर 'इबरत के लिए वाक़े' हुईं और हम आख़री ज़माने वालों की नसीहत के वास्ते लिखी गईं।
\v 12 पस जो कोई अपने आप को क़ायम समझता है ,वो ख़बरदार रहे के गिर न पड़े।
\v 13 तुम किसी ऐसी आज़माइश में न पड़े जो इंसान की आज़माइश से बाहर हो ख़ुदा सच्चा है वो तुम को तुम्हारी ताक़त से ज्यादा आज़माइश में पड़ने न देगा, बल्कि आज़माइश के साथ निकलने की राह भी पैदा कर देगा, ताकि तुम बर्दाश्त कर सको।
\s5
\v 14 इस वजह से ऐ मेरे प्यारो! बुतपरस्ती से भागो।
\v 15 मैं अक़्लमन्द जानकर तुम से कलाम करता हूँ; जो मैं कहता हूँ, तुम आप उसे परखो।
\v 16 वो बरकत का प्याला जिस पर हम बरकत चाहते हैं क्या मसीह के ख़ून की शराकत नहीं? वो रोटी जिसे हम तोड़ते हैं क्या मसीह के बदन की शराकत नहीं?।
\v 17 चूँकि रोटी एक ही है इस लिए हम जो बहुत से हैं एक बदन हैं क्यूँकि हम सब उसी एक रोटी में शरीक होते हैं।
\s5
\v 18 जो जिस्म के ऐ'तिबार से इस्राइली हैं उन पर नज़र करो क्या क़ुर्बानी का गोश्त खानेवाले क़ुर्बानगाह के शरीक नहीं?।
\v 19 पस मैं क्या ये कहता हूँ कि बुतों की क़ुर्बानी कुछ चीज़ है या बुत कुछ चीज़ है?।
\s5
\v 20 नहीं बल्कि मैं ये कहता हूँ कि जो क़ुर्बानी ग़ैर क़ौमें करती हैं शयातीन के लिए क़ुर्बानी करती हैं; न कि ख़ुदा के लिए, और मैं नहीं चाहता कि तुम शयातीन के शरीक हो।
\v 21 तुम ख़ुदावन्द के प्याले और शयातीन के प्याले दोनों में से नहीं पी सकते; ख़ुदावन्द के दस्तरख़्वान और शयातीन के दस्तरख़्वान दोनों पर शरीक नहीं हो सकते।
\v 22 क्या हम ख़ुदावन्द की ग़ैरत को जोश दिलाते हैं? क्या हम उस से ताक़तवर हैं?
\s5
\v 23 सब चीज़ें जाएज़ तो हैं, मगर सब चीज़ें मुफ़ीद नहीं; जाएज़ तो हैं मगर तरक़्क़ी का ज़रिया नहीं।
\v 24 कोई अपनी बेहतरी न ढूँडे बल्कि दूसरे की।
\s5
\v 25 जो कुछ क़स्साबों की दुकानों में बिकता है वो खाओ और दीनी इम्तियाज़ की वजह से कुछ न पूछो।
\v 26 क्यूँकि ज़मीन और उसकी मा'मूरी ख़ुदावन्द की है। ”
\v 27 अगर बे'ईमानों में से कोई तुम्हारी दा'वत करे और तुम जाने पर राज़ी हो तो जो कुछ तुम्हारे आगे रख्खा जाए उसे खाओ और दीनी इम्तियाज़ की वजह से कुछ न पूछो।
\s5
\v 28 लेकिन अगर कोई तुम से कहे; ये क़ुर्बानी का गोश्त है, तो उस की वजह से न खाओ।
\v 29 दीनी इम्तियाज़ से मेरा मतलब तेरा इम्तियाज़ नहीं बल्कि उस दूसरे का; भला मेरी आज़ादी दूसरे शख़्स के इम्तियाज़ से क्यूँ परखी जाए?।
\v 30 अगर मैं शुक्र कर के खाता हूँ तो जिस चीज़ पर शुक्र करता हूँ उसकी वजह से किस लिए बदनाम किया जाता हूँ?।
\s5
\v 31 पस तुम खाओ या पियो जो कुछ करो ख़ुदा के जलाल के लिए करो।
\v 32 तुम न यहूदियों के लिए ठोकर का ज़रिया बनो; न यूनानियों के लिए, न ख़ुदा की कलीसिया के लिए।
\v 33 चुनाँचे मैं भी सब बातों में सब को ख़ुश करता हूँ और अपना नहीं बल्कि बहुतों का फ़ाइदा ढूँडता हूँ, ताकि वो नजात पाएँ।
\s5
\c 11
\v 1 तुम मेरी तरह बनो जैसा मैं मसीह की तरह बनता हूँ।
\v 2 मैं तुम्हारी ता'रीफ़ करता हूँ कि तुम हर बात में मुझे याद रखते हो और जिस तरह मैंने तुम्हें रिवायतें पहुँचा दीं, उसी तरह उन को बरक़रार रखो।
\v 3 पस मैं तुम्हें ख़बर करना चाहता हूँ कि हर मर्द का सिर मसीह और 'औरत का सिर मर्द और मसीह का सिर ख़ुदा है।
\v 4 जो मर्द सिर ढके हुए दुआ या नबुव्वत करता है वो अपने सिर को बेहुरमत करता है।
\s5
\v 5 और जो 'औरत बे सिर ढके दुआ या नबुव्वत करती है वो अपने सिर को बेहुरमत करती है; क्यूँकि वो सिर मुंडी के बराबर है।
\v 6 अगर 'औरत ओढ़नी न ओढे तो बाल भी कटाए; अगर 'औरत का बाल कटाना या सिर मुंडाना शर्म की बात है तो औढ़नी ओढ़े।
\s5
\v 7 अलबत्ता मर्द को अपना सिर ढाँकना न चाहिए क्यूँकि वो ख़ुदा की सूरत और उसका जलाल है, मगर 'औरत मर्द का जलाल है।
\v 8 इसलिए कि मर्द 'औरत से नहीं बल्कि 'औरत मर्द से है।
\s5
\v 9 और मर्द 'औरत के लिए नहीं बल्कि 'औरत मर्द के लिए पैदा हुई है।
\v 10 पस फ़रिशतों की वजह से 'औरत को चाहिए कि अपने सिर पर महकूम होने की अलामत रख्खे।
\s5
\v 11 तोभी ख़ुदावन्द में न 'औरत मर्द के बग़ैर है न मर्द 'औरत के बग़ैर ।
\v 12 क्यूँकि जैसे 'औरत मर्द से है वैसे ही मर्द भी 'औरत के वसीले से है मगर सब चीज़ें ख़ुदा की तरफ़ से हैं।
\s5
\v 13 तुम आप ही इंसाफ़ करो; क्या 'औरत का बे सिर ढाँके ख़ुदा से दुआ करना मुनासिब है।
\v 14 क्या तुम को तब'ई तौर पर भी मा'लूम नहीं कि अगर मर्द लम्बे बाल रख्खे तो उस की बेहुरमती है।
\v 15 अगर 'औरत के लम्बे बाल हों तो उसकी ज़ीनत है, क्यूँकि बाल उसे पर्दे के लिए दिए गए हैं।
\v 16 लेकिन अगर कोई हुज्जती निकले तो ये जान ले कि न हमारा ऐसा दस्तूर है न ख़ुदावन्द की कलीसियाओं का।
\s5
\v 17 लेकिन ये हुक्म जो देता हूँ उस में तुम्हारी ता'रीफ़ नहीं करता इसलिए कि तुम्हारे जमा होने से फ़ाइदा नहीँ, बल्कि नुक़्सान होता है।
\v 18 क्यूँकि अव्वल तो मैं ये सुनता हूँ कि जिस वक़्त तुम्हारी कलीसिया जमा होती है तो तुम में तफ़्रक़े होते हैं और मैं इसका किसी क़दर यक़ीन भी करता हूँ।
\v 19 क्यूँकि तुम में बिद'अतों का भी होना ज़रूरी है ताकि ज़ाहिर हो जाए कि तुम में मक़बूल कौन से हैं ।
\s5
\v 20 पस तुम सब एक साथ जमा होते हो तो तुम्हारा वो खाना अशा'ए -रब्बानी नहीं हो सकता।
\v 21 क्यूँकि खाने के वक़्त हर शख़्स दूसरे से पहले अपना हिस्सा खा लेता है और कोई तो भूका रहता है और किसी को नशा हो जाता है ।
\v 22 क्यूँ? खाने पीने के लिए तुम्हारे पास घर नहीं? या ख़ुदा की कलीसिया को ना चीज़ जानते और जिनके पास नहीं उन को शर्मिन्दा करते हो? मैं तुम से क्या कहूँ? क्या इस बात में तुम्हारी ता'रीफ़ करूँ? मैं ता'रीफ़ नहीं करता।
\s5
\v 23 क्यूँकि ये बात मुझे ख़ुदावन्द से पहुँची और मैंने तुमको भी पहुँचा दी कि ख़ुदावन्द ईसा' ने जिस रात वो पकड़वाया गया रोटी ली।
\v 24 और शुक्र करके तोड़ी और कहा; लो खाओ ये मेरा बदन है, जो तुम्हारे लिए तोड़ा गया है; मेरी यादगारी के वास्ते यही किया करो।
\s5
\v 25 इसी तरह उस ने खाने के बा'द प्याला भी लिया और कहा, ये प्याला मेरे ख़ून में नया अहद है जब कभी पियो मेरी यादगारी के लिए यही किया करो।
\v 26 क्यूँकि जब कभी तुम ये रोटी खाते और इस प्याले में से पीते हो तो ख़ुदावन्द की मौत का इज़्हार करते हो; जब तक वो न आए।
\s5
\v 27 इस वास्ते जो कोई नामुनासिब तौर पर ख़ुदावन्द की रोटी खाए या उसके प्याले में से पिए; वो ख़ुदा वन्द के बदन और ख़ून के बारे में क़ुसूरवार होगा।
\v 28 पस आदमी अपने आप को आज़मा ले और इसी तरह उस रोटी में से खाए और उस प्याले में से पिए।
\v 29 क्यूँकि जो खाते पीते वक़्त ख़ुदा वन्द के बदन को न पहचाने वो इस खाने पीने से सज़ा पाएगा।
\v 30 इसी वजह से तुम में बहुत सारे कमज़ोर और बीमार हैं और बहुत से सो भी गए।
\s5
\v 31 अगर हम अपने आप को जाँचते तो सज़ा न पाते।
\v 32 लेकिन ख़ुदा हमको सज़ा देकर तरबियत करता है, ताकि हम दुनिया के साथ मुजरिम न ठहरें।
\s5
\v 33 पस ऐ मेरे भाइयों! जब तुम खाने को जमा हो तो एक दूसरे की राह देखो।
\v 34 अगर कोई भूखा हो तो अपने घर में खाले, ताकि तुम्हारा जमा होना सज़ा का ज़रिया न हो; बाक़ी बातों को मैं आकर दुरुस्त कर दूंगा।
\s5
\c 12
\v 1 ऐ भाइयों! मैं नहीं चाहता कि तुम पाक रूह की ने'मतों के बारे में बेख़बर रहो।
\v 2 तुम जानते हो कि जब तुम ग़ैर क़ौम थे, तो गूँगे बुतों के पीछे जिस तरह कोई तुम को ले जाता था; उसी तरह जाते थे।
\v 3 पस मैं तुम्हें बताता हूँ कि जो कोई ख़ुदा के रूह की हिदायत से बोलता है; वो नहीं कहता कि ईसा मला'ऊन है; और न कोई रूह उल -कुद्दूस के बग़ैर कह सकता है कि ईसा' ख़ुदावन्द है।
\s5
\v 4 नेअ'मतें तो तरह तरह की हैं मगर रूह एक ही है।
\v 5 और ख़िदमतें तो तरह तरह की हैं मगर ख़ुदावन्द एक ही है।
\v 6 और तासीरें भी तरह तरह की हैं मगर ख़ुदा एक ही है जो सब में हर तरह का असर पैदा करता है।
\s5
\v 7 लेकिन हर शख़्स में पाक रूह का ज़ाहिर होना फ़ाइदा पहुँचाने के लिए होता है।
\v 8 क्यूँकि एक को रूह के वसीले से हिक्मत का कलाम इनायत होता है और दूसरे को उसी रूह की मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ इल्मियत का कलाम।
\s5
\v 9 किसी को उसी रूह से ईमान और किसी को उसी रूह से शिफ़ा देने की तौफ़ीक़।
\v 10 किसी को मोजिज़ों की क़ुदरत, किसी को नबुव्वत, किसी को रूहों का इम्तियाज़, किसी को तरह तरह की ज़बानें, किसी को ज़बानों का तर्जुमा करना।
\v 11 लेकिन ये सब तासीरें वही एक रूह करता है; और जिस को जो चाहता है बाँटता है,
\s5
\v 12 क्यूँकि जिस तरह बदन एक है और उस के आ'ज़ा बहुत से हैं, और बदन के सब आ'ज़ा गरचे बहुत से हैं, मगर हमसब मिलकर एक ही बदन हैं; उसी तरह मसीह भी है।
\v 13 क्यूँकि हम सब में चाहे यहूदी हों, चाहे यूनानी, चाहे ग़ुलाम, चाहे आज़ाद, एक ही रूह के वसीले से एक बदन होने के लिए बपतिस्मा लिया और हम सब को एक ही रूह पिलाया गया।
\s5
\v 14 चुनाँचे बदन में एक ही आ'ज़ा नहीं बल्कि बहुत से हैं
\v 15 अगर पाँव कहे चुँकि मैं हाथ नहीं इसलिए बदन का नहीं तो वो इस वजह से बदन से अलग तो नहीं।
\v 16 और अगर कान कहे चुँकि मैं आँख नहीं इसलिए बदन का नहीं तो वो इस वजह से बदन से अलग तो नहीं।
\v 17 अगर सारा बदन आँख ही होता तो सुनना कहाँ होता? अगर सुनना ही सुनना होता तो सूँघना कहाँ होता?।
\s5
\v 18 मगर हक़ीक़त में ख़ुदा ने हर एक 'उज़्व को बदन में अपनी मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ रख्खा है।
\v 19 अगर वो सब एक ही 'उज़्व होते तो बदन कहाँ होता?।
\v 20 मगर अब आ'ज़ा तो बहुत हैं लेकिन बदन एक ही है।
\s5
\v 21 पस आँख हाथ से नहीँ कह सकती,“मैं तेरी मोहताज नहीं,” और न सिर पाँव से कह सकता है, “मैं तेरा मोहताज नहीं।”
\v 22 बल्कि बदन के वो आ'ज़ा जो औरों से कमज़ोर मा'लूम होते हैं बहुत ही ज़रुरी हैं।
\v 23 और बदन के वो आ'ज़ा जिन्हें हम औरों की तरह ज़लील जानते हैं उन्हीं को ज़्यादा इज़्ज़त देते हैं और हमारे नाज़ेबा आ'ज़ा बहुत ज़ेबा हो जाते हैं।
\v 24 हालाँकि हमारे ज़ेबा आ'ज़ा मोहताज नहीं मगर ख़ुदा ने बदन को इस तरह मुरक्कब किया है, कि जो 'उज़्व मोहताज है उसी को ज़्यादा 'इज़्ज़त दी जाए।
\s5
\v 25 ताकि बदन में जुदाई न पड़े, बल्कि आ'ज़ा एक दूसरे की बराबर फ़िक्र रख्खें।
\v 26 पस अगर एक 'उज़्व दुख पाता है तो सब आ'ज़ा उस के साथ दुख पाते हैं।
\v 27 इसी तरह तुम मिल कर मसीह का बदन हो और फ़र्दन फ़र्दन आ'ज़ा हो।
\s5
\v 28 और खु़दा ने कलीसिया में अलग अलग शख़्स मुक़र्रर किए पहले रसूल दूसरे नबी तीसरे उस्ताद फिर मोजिज़े दिखाने वाले फिर शिफ़ा देने वाले मददगार मुन्तज़िम तरह तरह की ज़बाने बोलने वाले।
\v 29 क्या सब रसूल हैं? क्या सब नबी हैं? क्या सब उस्ताद हैं? क्या सब मोजिज़े दिखानेवाले हैं?
\s5
\v 30 क्या सब को शिफ़ा देने की ताक़त हासिल हुई? क्या सब तरह की ज़बाने बोलते हैं? क्या सब तर्जुमा करते हैं?
\v 31 तुम बड़ी से बड़ी ने'मत की आरज़ू रख्खो, लेकिन और भी सब से उम्दा तरीक़ा तुम्हें बताता हूँ।
\s5
\c 13
\v 1 अगर मैं आदमियों और फ़रिश्तों की ज़बाने बोलूँ और मुहब्बत न रख्खूँ, तो मैं ठनठनाता पीतल या झनझनाती झाँझ हूँ।
\v 2 और अगर मुझे नबूव्वत मिले और सब भेदों और कुल इल्म की वाक़फ़ियत हो और मेरा ईमान यहाँ तक कामिल हो कि पहाड़ों को हटा दूँ और मुहब्बत न रखूँ तो मैं कुछ भी नहीं।
\v 3 और अगर अपना सारा माल ग़रीबों को खिला दूँ या अपना बदन जलाने को दूँ और मुहब्बत न रख्खूँ तो मुझे कुछ भी फ़ायदा नहीं।
\s5
\v 4 मुहब्बत साबिर है और मेहरबान, मुहब्बत हसद नहीं करती, मुहब्बत शेख़ी नहीं मारती और फ़ूलती नहीं;
\v 5 नाज़ेबा काम नहीं करती, अपनी बेहतरी नहीं चाहती, झुँझलाती नहीं, बदगुमानी नहीं करती;
\v 6 बदकारी में खुश नहीं होती, बल्कि रास्ती से ख़ुश होती है;
\v 7 सब कुछ सह लेती है, सब कुछ यक़ीन करती है, सब बातों की उम्मीद रखती है, सब बातों में बर्दाशत करती है|
\s5
\v 8 मुहब्बत को ज़वाल नहीं, नबुव्वतें हों तो मौक़ूफ़ हो जाएँगी, ज़बानें हों तो जाती रहेंगी; इल्म हो तो मिट जायेंगे।
\v 9 क्यूँकि हमारा इल्म नाक़िस है और हमारी नबुव्वत ना तमाम।
\v 10 लेकिन जब कामिल आएगा तो नाक़िस जाता रहेगा।
\s5
\v 11 जब मैं बच्चा था तो बच्चों की तरह बोलता था बच्चों की सी तबियत थी बच्चो सी समझ थी; लेकिन जब जवान हुआ तो बचपन की बातें तर्क कर दीं।
\v 12 अब हम को आइने में धुँधला सा दिखाई देता है, मगर जब मसीह दुबारा आएगा तो उस वक़्त रू ब रू देखेंगे; इस वक़्त मेरा इल्म नाक़िस है, मगर उस वक़्त ऐसे पूरे तौर पर पहचानूँगा जैसे मैं पहचानता आया हूँ।
\v 13 ग़रज़ ईमान, उम्मीद, मुहब्बत ये तीनों हमेशा हैं; मगर अफ़ज़ल इन में मुहब्बत है।
\s5
\c 14
\v 1 मुहब्बत के तालिब हो और रूहानी ने'मतों की भी आरज़ू रखो खुसूसन इसकी नबुव्वत करो।
\v 2 क्यूँकि जो बेगाना ज़बान में बातें करता है वो आदमियों से बातें नहीं करता, बल्कि ख़ुदा से; इस लिए कि उसकी कोई नहीं समझता, हालाँकि वो अपनी पाक रूह के वसीले से राज़ की बातें करता है।
\v 3 लेकिन जो नबुव्वत करता है वो आदमियों से तरक़्क़ी और नसीहत और तसल्ली की बातें करता है।
\v 4 जो बेगाना ज़बान में बातें करता है वो अपनी तरक़्क़ी करता है और जो नबुव्वत करता है वो कलीसिया की तरक़्क़ी करता है।
\s5
\v 5 अगरचे मैं ये चाहता हूँ कि तुम सब बेगाना ज़बान में बातें करो, लेकिन ज़्यादा तर यही चाहता हूँ कि नबुव्वत करो; और अगर बेगाना ज़बाने बोलने वाला कलीसिया की तरक़्क़ी के लिए तर्जुमा न करे, तो नबुव्वत करने वाला उससे बड़ा है।
\v 6 पस ऐ भाइयों! अगर मैं तुम्हारे पास आकर बेगाना ज़बानों में बातें करूँ और मुकाशिफ़ा या इल्म या नबुव्वत या ता'लीम की बातें तुम से न कहूँ; तो तुम को मुझ से क्या फ़ाइदा होगा?।
\s5
\v 7 चुनाँचे बे'जान चीज़ों में से भी जिन से आवाज़ निकलती है, मसलन बांसुरी या बरबत अगर उनकी आवाज़ों में फ़र्क़ न हो तो जो फ़ूँका या बजाया जाता है वो क्यूँकर पहचाना जाए?
\v 8 और अगर तुरही की आवाज़ साफ़ न हो तो कौन लड़ाई के लिए तैयारी करेगा?
\v 9 ऐसे ही तुम भी अगर ज़बान से कुछ बात न कहो तो जो कहा जाता है क्यूँकर समझा जाएगा? तुम हवा से बातें करनेवाले ठहरोगे।
\s5
\v 10 दुनिया में चाहे कितनी ही मुख़्तलिफ़ ज़बानें हों उन में से कोई भी बे'मानी न होगी।
\v 11 पस अगर मैं किसी ज़बान के मा' ने ना समझूँ, तो बोलने वाले के नज़दीक मैं अजनबी ठहरूँगा और बोलने वाला मेरे नज़दीक अजनबी ठहरेगा।
\s5
\v 12 पस जब तुम रूहानी नेअ'मतों की आरज़ू रखते हो तो ऐसी कोशिश करो, कि तुम्हारी नेअ'मतों की अफ़ज़ूनी से कलीसिया की तरक़्क़ी हो।
\v 13 इस वजह से जो बेगाना ज़बान से बातें करता है वो दुआ करे कि तर्जुमा भी कर सके।
\v 14 इसलिए कि अगर मैं किसी बेगाना ज़बान में दुआ करूँ तो मेरी रूह तो दुआ करती है मगर मेरी अक़्ल बेकार है।
\s5
\v 15 पस क्या करना चाहिए? मैं रूह से भी दुआ करूँगा और अक़्ल से भी दुआ करूँगा; रूह से भी गाऊँगा और अक़्ल से भी गाऊँगा।
\v 16 वरना अगर तू रूह ही से हम्द करेगा तो नावाक़िफ़ आदमी तेरी शुक्र गुज़ारी पर “आमीन” क्यूँकर कहेगा? इस लिए कि वो नहीं जानता कि तू क्या कहता है।
\s5
\v 17 तू तो बेशक अच्छी तरह से शुक्र करता है, मगर दूसरे की तरक़्क़ी नहीं होती।
\v 18 मैं ख़ुदा का शुक्र करता हूँ, कि तुम सब से ज्यादा ज़बाने बोलता हूँ।
\v 19 लेकिन कलीसिया में बेगाना ज़बान में दस हज़ार बातें करने से मुझे ये ज़्यादा पसन्द है, कि औरों की ता'लीम के लिए पाँच ही बातें अक़्ल से कहूँ।
\s5
\v 20 ऐ भाइयों! तुम समझ में बच्चे न बनो; बदी में बच्चे रहो, मगर समझ में जवान बनो।
\v 21 पाक कलाम में लिखा है“ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "मैं बेगाना ज़बान और बेगाना होंटो से इस उम्मत से बातें करूँगा तोभी वो मेरी न सुनेंगे।।”
\s5
\v 22 पस बेगाना ज़बानें ईमानदारों के लिए नहीं बल्कि बे'ईमानों के लिए निशान हैं और नबुव्वत बे'ईमानों के लिए नहीं, बल्कि ईमानदारों के लिए निशान है।
\v 23 पस अगर सारी कलीसिया एक जगह जमा हो और सब के सब बेगाना ज़बानें बोलें और नावाक़िफ़ या बे'ईमान लोग अन्दर आ जाएँ, तो क्या वो तुम को दिवाना न कहेंगे।
\s5
\v 24 लेकिन अगर जब नबुव्वत करें और कोई बे'ईमान या नावाक़िफ़ अन्दर आ जाए, तो सब उसे क़ायल कर देंगे और सब उसे परख लेंगे;
\v 25 और उसके दिल के राज़ ज़ाहिर हो जाएँगे; तब वो मुँह के बल गिर कर सज्दा करेगा, और इक़रार करेगा कि बेशक़ ख़ुदा तुम में है।
\s5
\v 26 पस ऐ भाइयों! क्या करना चाहिए? जब तुम जमा होते हो, तो हर एक के दिल में मज़्मूर या ता'लीम या मुकाशिफा, या बेगाना, ज़बान या तर्जुमा होता है; सब कुछ रूहानी तरक़्क़ी के लिए होना चाहिए।
\v 27 अगर बेगाना ज़बान में बातें करना हो तो दो दो या ज़्यादा से ज़्यादा तीन तीन शख़्स बारी बारी से बोलें और एक शख़्स तर्जुमा करे।
\v 28 और अगर कोई तर्जुमा करने वाला न हो तो बेगाना ज़बान बोलनेवाला कलीसिया में चुप रहे और अपने दिल से और ख़ुदा से बातें करे।
\s5
\v 29 नबियों में से दो या तीन बोलें और बाकी उनके कलाम को परखें।
\v 30 लेकिन अगर दूसरे पास बैठने वाले पर वही उतरे तो पहला ख़ामोश हो जाए।
\s5
\v 31 क्यूँकि तुम सब के सब एक एक करके नबुव्वत करते हो, ताकि सब सीखें और सब को नसीहत हो।
\v 32 और नबियों की रूहें नबियों के ताबे हैं।
\v 33 क्यूँकि ख़ुदा अबतरी का नहीं, बल्कि सुकून का बानी है जैसा मुक़द्दसों की सब कलीसियायों में है।
\s5
\v 34 औरतें कलीसिया के मज्में में ख़ामोश रहें, क्यूँकि उन्हें बोलने का हुक्म नहीं बल्कि ताबे रहें जैसा तौरेत में भी लिखा है।
\v 35 और अगर कुछ सीखना चाहें तो घर में अपने अपने शौहर से पूछें, क्यूँकि औरत का कलीसिया के मज्में में बोलना शर्म की बात है।
\v 36 क्या ख़ुदा का कलाम तुम में से निकला या सिर्फ़ तुम ही तक पहुँचा है।
\s5
\v 37 अगर कोई अपने आपको नबी या रूहानी समझे तो ये जान ले कि जो बातें मैं तुम्हें लिखता हूँ वो ख़ुदावन्द के हुक्म हैं।
\v 38 और अगर कोई न जाने तो न जानें।
\s5
\v 39 पस ऐ भाइयों! नबुव्वत करने की आरज़ू रख्खो और ज़बानें बोलने से मना न करो।
\v 40 मगर सब बाते शाइस्तगी और क़रीने के साथ अमल में लाएँ।
\s5
\c 15
\v 1 ऐ भाइयों! मैं तुम्हें वही ख़ुशख़बरी बताए देता हूँ जो पहले दे चुका हूँ जिसे तुम ने क़बूल भी कर लिया था और जिस पर क़ायम भी हो।
\v 2 उसी के वसीले से तुम को नजात भी मिली है बशर्ते कि वो ख़ुशख़बरी जो मैंने तुम्हें दी थी याद रखते हो वरना तुम्हारा ईमान लाना बेफ़ाइदा हुआ।
\s5
\v 3 चुनाँचे मैंने सब से पहले तुम को वही बात पहुँचा दी जो मुझे पहुँची थी; कि मसीह किताब-ए-'मुक़द्दस के मुताबिक़ हमारे गुनाहों के लिए मरा।
\v 4 और दफ़्न हुआ और तीसरे दिन किताब ऐ'मुक़द्दस के मुताबिक़ जी उठा।
\s5
\v 5 और कैफ़ा और उस के बा'द उन बारह को दिखाई दिया।
\v 6 फिर पाँच सौ से ज्यादा भाइयों को एक साथ दिखाई दिया जिन में अक्सर अब तक मौजूद हैं और कुछ सो गए ।
\v 7 फिर या'क़ूब को दिखाई दिया फिर सब रसूलों को।
\s5
\v 8 और सब से पीछे मुझ को जो गोया अधूरे दिनों की पैदाइश हूँ दिखाई दिया।
\v 9 क्यूँकि मैं रसूलों में सब से छोटा हूँ, बल्कि रसूल कहलाने के लायक़ नहीं इसलिए कि मैने ख़ुदा की कलीसिया को सताया था।
\s5
\v 10 लेकिन जो कुछ हूँ ख़ुदा के फ़ज़ल से हूँ और उसका फ़ज़ल जो मुझ पर हुआ वो बेफ़ाइदा नहीं हुआ बल्कि मैंने उन सब से ज्यादा मेंहनत की और ये मेरी तरफ़ से नहीं हुई बल्कि ख़ुदा के फ़ज़ल से जो मुझ पर था।
\v 11 पस चाहे मैं हूँ चाहे वो हों हम यही ऐलान करते हैं और इसी पर तुम ईमान भी लाए।
\s5
\v 12 पस जब मसीह की ये मनादी की जाती है कि वो मुर्दों में से जी उठा तो तुम में से कुछ इस तरह कहते हैं कि मुर्दों की क़यामत है ही नहीं।
\v 13 अगर मुर्दों की क़यामत नहीं तो मसीह भी नहीं जी उठा है।
\v 14 और अगर मसीह नहीं जी उठा तो हमारी मनादी भी बेफ़ाइदा है और तुम्हारा ईमान भी बेफ़ाइदा है।
\s5
\v 15 बल्कि हम ख़ुदा के झूठे गवाह ठहरे क्यूँकि हम ने ख़ुदा के बारे में ये गवाही दी कि उसने मसीह को जिला दिया हालाँकि नहीं जिलाया अगर बिलफ़र्ज़ मुर्दे नहीं जी उठते।
\v 16 और अगर मुर्दे नहीं जी उठते तो मसीह भी नहीं जी उठा।
\v 17 और अगर मसीह नहीं जी उठा तो तुम्हारा ईमान बे'फ़ाइदा है तुम अब तक अपने गुनाहों में गिरफ़्तार हो।
\s5
\v 18 बल्कि जो मसीह में सो गए हैं वो भी हलाक हुए।
\v 19 अगर हम सिर्फ़ इसी ज़िन्दगी में मसीह में उम्मीद रखते हैं तो सब आदमियों से ज़्यादा बदनसीब हैं।
\s5
\v 20 लेकिन फ़िलवक़्त मसीह मुर्दों में से जी उठा है और जो सो गए हैं उन में पहला फल हुआ।
\v 21 क्योंकि अब आदमी की वजह से मौत आई तो आदमी की वजह से मुर्दों की क़यामत भी आई।
\s5
\v 22 और जैसे आदम में सब मरते हैं वैसे ही मसीह में सब ज़िन्दा किए जाएँगे।
\v 23 लेकिन हर एक अपनी अपनी बारी से ; पहला फल मसीह फिर मसीह के आने पर उसके लोग।
\s5
\v 24 इसके बा'द आख़िरत होगी; उस वक़्त वो सारी हुकूमत और सारा इख़्तियार और क़ुदरत नेस्त करके बादशाही को ख़ुदा या'नी बाप के हवाले कर देगा।
\v 25 क्यूँकि जब तक कि वो सब दुश्मनों को अपने पाँव तले न ले आए उस को बादशाही करना ज़रूरी है।
\v 26 सब से पिछला दुश्मन जो नेस्त किया जाएगा वो मौत है।
\s5
\v 27 क्यूँकि ख़ुदा ने सब कुछ उसके पाँव तले कर दिया है; मगर जब वो फ़रमाता है कि सब कुछ उसके ताबे' कर दिया गया तो ज़ाहिर है कि जिसने सब कुछ उसके ताबे कर दिया; वो अलग रहा।
\v 28 और जब सब कुछ उसके ताबे' कर दिया जाएगा तो बेटा ख़ुद उसके ताबे' हो जाएगा जिसने सब चीज़ें उसके ताबे' कर दीं ताकि सब में ख़ुदा ही सब कुछ है।
\s5
\v 29 वरना जो लोग मुर्दों के लिए बपतिस्मा लेते हैं; वो क्या करेंगे? अगर मुर्दे जी उठते ही नहीं तो फिर क्यूँ उन के लिए बपतिस्मा लेते हो?।
\v 30 और हम क्यूँ हर वक़्त ख़तरे में पड़े रहते हैं?
\s5
\v 31 ऐ भाइयों! उस फ़ख़्र की क़सम जो हमारे ईसा' मसीह में तुम पर है में हर रोज मरता हूँ|
\v 32 जैसा कि कलाम में लिखा है कि अगर मैं इंसान की तरह इफ़िसुस में दरिन्दों से लड़ा तो मुझे क्या फ़ाइदा? अगर मुर्दे न जिलाए जाएँगे "तो आओ खाएँ पीएँ क्यूँकि कल तो मर ही जाएँगे।"
\s5
\v 33 धोखा न खाओ "बुरी सोहबतें अच्छी आदतों को बिगाड़ देती हैं।"
\v 34 रास्तबाज़ होने के लिए होश में आओ और गुनाह न करो, क्यूँकि कुछ ख़ुदा से नावाक़िफ़ हैं; मैं तुम्हें शर्म दिलाने को ये कहता हूँ।
\s5
\v 35 अब कोई ये कहेगा,“मुर्दे किस तरह जी उठते हैं? और कैसे जिस्म के साथ आते हैं ?”
\v 36 ऐ, नादान! तू ख़ुद जो कुछ बोता है जब तक वो न मरे ज़िन्दा नहीं किया जाता।
\s5
\v 37 और जो तू बोता है, ये वो जिस्म नहीं जो पैदा होने वाला है बल्कि सिर्फ़ दाना है; चाहे गेहूँ का चाहे किसी और चीज़ का।
\v 38 मगर ख़ुदा ने जैसा इरादा कर लिया वैसा ही उसको जिस्म देता है और हर एक बीज को उसका ख़ास जिस्म।
\v 39 सब गोश्त एक जैसा गोश्त नहीं; बल्कि आदमियों का गोश्त और है, चौपायों का गोश्त और; परिन्दों का गोश्त और है मछलियों का गोश्त और।
\s5
\v 40 आसमानी भी जिस्म हैं, और ज़मीनी भी मगर आसमानियों का जलाल और है, और ज़मीनियों का और।
\v 41 आफ़ताब का जलाल और है, माहताब का जलाल और, सितारों का जलाल और, क्यूँकि सितारे सितारे के जलाल में फ़र्क़ है।
\s5
\v 42 मुर्दों की क़यामत भी ऐसी ही है; जिस्म फ़ना की हालत में बोया जाता है, और हमेशा की हालत में जी उठता है।
\v 43 बेहुरमती की हालत में बोया जाता है, और जलाल की हालत में जी उठता है, कमज़ोरी की हालत में बोया जाता है और क़ुव्वत की हालत में जी उठता है।
\v 44 नफ़्सानी जिस्म बोया जाता है, और रूहानी जिस्म जी उठता है जब नफ़्सानी जिस्म है तो रूहानी जिस्म भी है।
\s5
\v 45 चुनाँचे कलाम लिखा भी है, "पहला आदमी या'नी आदम ज़िन्दा नफ़्स बना पिछला आदम ज़िन्दगी बख़्शने वाली रूह बना।"
\v 46 लेकिन रूहानी पहले न था बल्कि नफ़्सानी था इसके बा'द रूहानी हुआ।
\s5
\v 47 पहला आदमी ज़मीन से या'नी ख़ाकी था दूसरा आदमी आसमानी है।
\v 48 जैसा वो ख़ाकी था वैसे ही और ख़ाकी भी हैं और जैसा वो आसमानी है वैसे ही और आसमानी भी हैं।
\v 49 और जिस तरह हम इस ख़ाकी की सूरत पर हुए उसी तरह उस आसमानी की सूरत पर भी होंगे।
\s5
\v 50 ऐ भाइयों! मेरा मतलब ये है कि गोश्त और ख़ून ख़ुदा की बादशाही के वारिस नहीं हो सकते और न फ़ना बक़ा की वारिस हो सकती है।
\v 51 देखो मैं तुम से राज़ की बात कहता हूँ हम सब तो नहीं सोएँगे मगर सब बदल जाएँगे।
\s5
\v 52 और ये एक दम में, एक पल में पिछला नरसिंगा फूँकते ही होगा क्यूँकि नरसिंगा फूँका जाएगा और मुर्दे ग़ैर फ़ानी हालत में उठेंगे और हम बदल जाएँगे।
\v 53 क्यूँकि ज़रूरी है कि ये फ़ानी जिस्म बक़ा का जामा पहने और ये मरने वाला जिस्म हमेशा की जिंदगी का जामा पहने।
\s5
\v 54 जब ये फ़ानी जिस्म बक़ा का जामा पहन चुकेगा और ये मरने वाला जिस्म हमेशा हमेशा का जामा पहन चुकेगा तो वो क़ौल पूरा होगा जो कलाम लिखा है “मौत फ़तह का लुक़्मा हो जाएगी।
\v 55 ऐ मौत तेरी फ़तह कहाँ रही? ऐ मौत तेरा डंक कहाँ रहा?”
\s5
\v 56 मौत का डंक गुनाह है और गुनाह का ज़ोर शरी'अत है।
\v 57 मगर ख़ुदा का शुक्र है, जो हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह के वसीले से हम को फ़तह बख्शता है।
\s5
\v 58 पस ऐ मेरे अज़ीज़ भाइयों! साबित क़दम और क़ायम रहो और ख़ुदावन्द के काम में हमेशा बढ़ते रहो क्यूँकि ये जानते हो कि तुम्हारी मेंहनत ख़ुदावन्द में बेफ़ाइदा नहीं है।
\s5
\c 16
\v 1 अब उस चन्दे के बारे में जो मुक़द्दसों के लिए किया जाता है; जैसा मैं ने गलतिया की कलीसियाओं को हुक्म दिया वैसे ही तुम भी करो।
\v 2 हफ़्ते के पहले दिन तुम में से हर शख़्स अपनी आमदनी के मुवाफ़िक़ कुछ अपने पास रख छोड़ा करे ताकि मेरे आने पर चन्दा न करना पड़े।
\s5
\v 3 और जब मैं आऊँगा तो जिन्हें तुम मंज़ूर करोगे उनको मैं ख़त देकर भेज दूँगा कि तुम्हारी ख़ैरात यरूशलीम को पहुँचा दें।
\v 4 अगर मेरा भी जाना मुनासिब हुआ तो वो मेरे साथ जाएँगे।
\s5
\v 5 मैं मकिदूनिया होकर तुम्हारे पास आऊँगा; क्यूँकि मुझे मकिदूनिया हो कर जाना तो है ही।
\v 6 मगर रहूँगा शायद तुम्हारे पास और जाड़ा भी तुम्हारे पास ही काटूँ ताकि जिस तरफ़ मैं जाना चाहूँ तुम मुझे उस तरफ़ रवाना कर दो।
\s5
\v 7 क्यूँकि मैं अब राह में तुम से मुलाक़ात करना नहीं चाहता बल्कि मुझे उम्मीद है कि ख़ुदावन्द ने चाहा तो कुछ अरसे तुम्हारे पास रहूँगा।
\v 8 लेकिन मैं ईद'ए पिन्तेकुस्त तक इफ़िसुस में रहूँगा।
\v 9 क्यूँकि मेरे लिए एक वसी' और कार आमद दरवाज़ा खुला है और मुख़ालिफ़ बहुत से हैं।
\s5
\v 10 अगर तीमुथियुस आ जाए तो ख़्याल रखना कि वो तुम्हारे पास बेख़ौफ़ रहे क्यूँकि वो मेरी तरह ख़ुदावन्द का काम करता है।
\v 11 पस कोई उसे हक़ीर न जाने बल्कि उसको सही सलामत इस तरफ़ रवाना करना कि मेरे पास आजाए क्यूँकि मैं मुन्तज़िर हूँ कि वो भाइयों समेत आए।
\v 12 और भाई अपुल्लोस से मैंने बहुत इल्तिमास किया कि तुम्हारे पास भाइयों के साथ जाए; मगर इस वक़्त जाने पर वो अभी राज़ी न हुआ लेकिन जब उस को मौक़ा मिलेगा तो जाएगा।
\s5
\v 13 जागते रहो ईमान में क़ायम रहो मर्दानगी करो मज़बूत हो।
\v 14 जो कुछ करते हो मुहब्बत से करो।
\s5
\v 15 ऐ भाइयो! तुम स्तिफ़नास के ख़ानदान को जानते हो कि वो अख़्या के पहले फल हैं और मुक़द्दसों की ख़िदमत के लिए तैयार रहते हैं।
\v 16 पस मैं तुम से इल्तिमास करता हूँ कि ऐसे लोगों के ताबे रहो बल्कि हर एक के जो इस काम और मेंहनत में शरीक़ हैं।
\s5
\v 17 और मैं स्तिफ़नास और फ़रतूनातूस और अख़ीकुस के आने से ख़ुश हूँ क्यूँकि जो तुम में से रह गया था उन्होंने पूरा कर दिया।
\v 18 और उन्होंने मेरी और तुम्हारी रूह को ताज़ा किया पस ऐसों को मानो।
\s5
\v 19 आसिया की कलीसिया तुम को सलाम कहती है अक्विवला और प्रिस्का उस कलीसिया समेत जो उन के घर में हैं, तुम्हें ख़ुदावन्द में बहुत बहुत सलाम कहते हैं।
\v 20 सब भाई तुम्हें सलाम कहते हैं पाक बोसा लेकर आपस में सलाम करो।
\s5
\v 21 मैं पौलुस अपने हाथ से सलाम लिखता हूँ।
\v 22 जो कोई ख़ुदावन्द को अज़ीज़ नहीं रखता मला'ऊन हो हमारा ख़ुदावन्द आने वाला है।
\v 23 ख़ुदावन्द ईसा' मसीह का फ़ज़ल तुम पर होता रहे।
\v 24 मेरी मुहब्बत ईसा' मसीह में तुम सब से रहे| आमीन|

401
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\id 2CO
\ide UTF-8
\h कुरिन्थियों के नाम पौलुस रसूल का दूसरा ख़त
\toc1 कुरिन्थियों के नाम पौलुस रसूल का दूसरा ख़त
\toc2 कुरिन्थियों के नाम पौलुस रसूल का दूसरा ख़त
\toc3 2co
\mt1 कुरिन्थियों के नाम पौलुस रसूल का दूसरा ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 पौलुस की तरफ़ जो ख़ुदा की मर्ज़ी से मसीह ईसा' का रसूल है और भाई तिमुथियुस की तरफ़ से ख़ुदा की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्थुस शहर में है और तमाम अख़्या के सब मुक़द्दसों के नाम पौलुस का ख़त |
\v 2 हमारे बाप ख़ुदा और ख़ुदावन्द ईसा' मसीह की तरफ़ से तुम्हें फ़ज़ल और इत्मिनान हासिल होता रहे; आमीन।
\s5
\v 3 हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह के ख़ुदा और बाप की हम्द हो जो रहमतों का बाप और हर तरह की तसल्ली का ख़ुदा है।
\v 4 वो हमारी सब मुसीबतों में हम को तसल्ली देता है; ताकि हम उस तसल्ली की वजह से जो ख़ुदा हमें बख़्शता है उनको भी तसल्ली दे सकें जो किसी तरह की मुसीबत में हैं।
\s5
\v 5 क्यूँकि जिस तरह मसीह के दु:ख हम को ज़्यादा पहुँचते हैं; उसी तरह हमारी तसल्ली भी मसीह के वसीले से ज़्यादा होती है।
\v 6 अगर हम मुसीबत उठाते हैं तो तुम्हारी तसल्ली और नजात के वास्ते और अगर तसल्ली पाते हैं तो तुम्हारी तसल्ली के वास्ते; जिसकी तासीर से तुम सब के साथ उन दुखों को बर्दाश्त कर लेते हो; जो हम भी सहते हैं।
\v 7 और हमारी उम्मीद तुम्हारे बारे में मज़बूत है; क्यूँकि हम जानते हैं कि जिस तरह तुम दु:खों में शरीक हो उसी तरह तसल्ली में भी हो।
\s5
\v 8 ऐ, भाइयो! हम नहीं चाहते कि तुम उस मुसीबत से ना वाक़िफ़ रहो जो आसिया में हम पर पड़ी कि हम हद से ज़्यादा और ताक़त से बाहर पस्त हो गए; यहाँ तक कि हम ने ज़िन्दगी से भी हाथ धो लिए।
\v 9 बल्कि अपने ऊपर मौत के हुक्म का यक़ीन कर चुके थे ताकि अपना भरोसा न रख्खें बल्कि खुदा का जो मुर्दो को जिलाता है।
\v 10 चुनाँचे उसी ने हम को ऐसी बड़ी हलाकत से छुड़ाया और छुड़ाएगा; और हम को उसी से ये उम्मीद है कि आगे को भी छुड़ाता रहेगा।
\s5
\v 11 अगर तुम भी मिलकर दुआ से हमारी मदद करोगे ताकि जो नेअ'मत हम को बहुत लोगों के वसीले से मिली उसका शुक्र भी बहुत से लोग हमारी तरफ़ से करें।
\s5
\v 12 क्यूँकि हम को अपने दिल की इस गवाही पर फ़ख़्र है कि हमारा चाल चलन दुनिया में और ख़ासकर तुम में जिस्मानी हिकमत के साथ नहीं बल्कि ख़ुदा के फ़ज़ल के साथ ऐसी पाकीज़गी और सफ़ाई के साथ रहा जो ख़ुदा के लायक़ है।
\v 13 हम और बातें तुम्हे नहीं लिखते सिवा उन के जिन्हें तुम पढ़ते या मानते हो, और मुझे उम्मीद है कि आख़िर तक मानते रहोगे।
\v 14 चुनाँचे तुम में से कितनों ही ने मान भी लिया है कि हम तुम्हारा फ़ख़्र हैं; जिस तरह हमारे ख़ुदावन्द ईसा' के दिन तुम भी हमारा फ़ख़्र रहोगे।
\s5
\v 15 और इसी भरोसे पर मैंने ये इरादा किया था, कि पहले तुम्हारे पास आऊँ; ताकि तुम्हें एक और नेअ'मत मिले।
\v 16 और तुम्हारे शहर से होता हुआ मकिदुनिया सूबे को जाऊँ और मकिदुनिया से फिर तुम्हारे पास आऊँ,और तुम मुझे यहूदिया की तरफ़ रवाना कर दो।
\s5
\v 17 पस मैंने जो इरादा किया था शोखमिज़ाजी से किया था ? या जिन बातों का इरादा करता हूँ क्या जिस्मानी तौर पर करता हूँ कि हाँ हाँ भी करूँ और नहीं नहीं भी करूँ ?
\v 18 ख़ुदा की सच्चाई की क़सम कि हमारे उस कलाम में जो तुम से किया जाता है हाँ और नहीँ दोनों पाई नहीं जातीं।
\s5
\v 19 क्यूँकि ख़ुदा का बेटा ईसा' मसीह जिसकी मनादी हम ने या'नी मैंने और सिलवानुस और तिमुथियुस ने तुम में की उस में हाँ और नहीं दोनों न थीं बल्कि उस में हाँ ही हाँ हुई।
\v 20 क्यूँकि ख़ुदा के जितने वा'दे हैं वो सब उस में हाँ के साथ हैं | इसी लिए उसके ज़रि'ये से आमीन भी हुई ; ताकि हमारे वसीले से ख़ुदा का जलाल ज़ाहिर हो।
\s5
\v 21 और जो हम को तुम्हारे साथ मसीह में क़ायम करता है और जिस ने हम को मसह किया वो ख़ुदा है।
\v 22 जिसने हम पर मुहर भी की और पेशगी में रूह को हमारे दिलों में दिया।
\s5
\v 23 मैं ख़ुदा को गवाह करता हूँ कि मैं अब तक कुरिन्थुस में इस वास्ते नहीं आया कि मुझे तुम पर रहम आता है।
\v 24 ये नहीं कि हम ईमान के बारे में तुम पर हुकूमत जताते हैं बल्कि ख़ुशी में तुम्हारे मददगार हैं क्यूँकि तुम ईमान ही से क़ायम रहते हो।
\s5
\c 2
\v 1 मैंने अपने दिल में ये इरादा किया था कि फिर तुम्हारे पास ग़मगीन हो कर न आऊँ।
\v 2 क्यूँकि अगर मैं तुम को ग़मगीन करूँ तो मुझे कौन ख़ुश करेगा ? सिवा उसके जो मेरी वजह से ग़मगीन हुआ ।
\s5
\v 3 और मैंने तुम को वही बात लिखी थी ताकि ऐसा न हो कि मुझे आकर जिन से ख़ुश होना चाहिए था, मैं उनकी वजह से ग़मगीन होऊं; क्यूँकि मुझे तुम सब पर इस बात का भरोसा है कि जो मेरी ख़ुशी है वही तुम सब की है।
\v 4 क्यूँकि मैंने बड़ी मुसीबत और दिलगीरी की हालत में बहुत से आँसू बहा बहा कर तुम को लिखा था, लेकिन इस वास्ते नहीं कि तुमको ग़म हो बल्कि इस वास्ते कि तुम उस बड़ी मुहब्बत को मा'लूम करो जो मुझे तुम से है।
\s5
\v 5 और अगर कोई शख़्स ग़म का बा'इस हुआ है तो वो मेरे ही ग़म का नहीं बल्कि, ( ताकि उस पर ज्यादा सख़्ती न करूँ) किस क़दर तुम सब के ग़म का ज़रि'या हुआ ।
\v 6 यही सज़ा जो उसने अक्सरों की तरफ़ से पाई ऐसे शख़्स के वास्ते काफ़ी है।
\v 7 पस बर'अक्स इसके यही बेहतर है कि उस का क़ुसूर मु'आफ़ करो और तसल्ली दो ताकि वो ग़म की कसरत से तबाह न हो।
\s5
\v 8 इसलिए मैं तुम से गुजारिश करता हूँ कि उसके बारे में मुहब्बत का फ़तवा दो।
\v 9 क्यूँकि मैंने इस वास्ते भी लिखा था कि तुम्हें आज़मा लूँ; कि सब बातों में फ़रमानबरदार हो या नहीं।
\s5
\v 10 जिसे तुम मु'आफ़ करते हो उसे मैं भी मु'आफ़ करता हूँ क्यूँकि जो कुछ मैंने मु'आफ़ किया ; अगर किया, तो मसीह का क़ायम मुक़ाम हो कर तुम्हारी ख़ातिर मु'आफ़ किया।
\v 11 ताकि बुरे लोगों का हम पर दाँव न चले क्यूँकि हम उसकी चालों से नावाक़िफ़ नहीं।
\s5
\v 12 और जब मैं मसीह की ख़ुशख़बरी देने को त्राऊस शहर में आया और ख़ुदावन्द में मेरे लिए दरवाज़ा खुल गया।
\v 13 तो मेरी रूह को आराम न मिला; इसलिए कि मैंने अपने भाई तितुस को न पाया; पस उन ईमानदारों से रुख़स्त होकर मकिदुनिया सूबे को चला गया।
\s5
\v 14 मगर ख़ुदा का शुक्र है जो मसीह में हम को हमेशा क़ैदियों की तरह गश्त कराता है और अपने इल्म की ख़ुशबू हमारे वसीले से हर जगह फ़ैलाता है।
\v 15 क्यूँकि हम ख़ुदा के नज़दीक़ नजात पानेवालों और हलाक होने वालों दोनों के लिए मसीह की खुश्बू हैं।
\s5
\v 16 कुछ के वास्ते तो मरने के लिए मौत की बू और कुछ के वास्ते जीने के लिए ज़िन्दगी की बू हैं और कौन इन बातों के लायक़ हैं। ।
\v 17 क्यूँकि हम उन बहुत लोगों की तरह नहीं जो ख़ुदा के कलाम में मिलावट करते हैं बल्कि दिल की सफ़ाई से और ख़ुदा की तरफ़ से ख़ुदा को हाज़िर जान कर मसीह में बोलते हैं।
\s5
\c 3
\v 1 क्या हम फिर अपनी नेक नामी जताना शुरू करते हैं या हम को कुछ लोंगों की तरह नेक नामी के ख़त तुम्हारे पास लाने या तुम से लेने की ज़रुरत है।
\v 2 हमारा जो ख़त हमारे दिलों पर लिखा हुआ है; वो तुम हो और उसे सब आदमी जानते और पढ़ते हैं।
\v 3 ज़ाहिर है कि तुम मसीह का वो ख़त जो हम ने ख़ादिमों के तौर पर लिखा; स्याही से नहीं बल्कि ज़िन्दा ख़ुदा के रूह से पत्थर की तख़्तियों पर नहीं बल्कि गोश्त या'नी दिल की तख़्तियों पर।
\s5
\v 4 हम मसीह के ज़रि'ये ख़ुदा पर ऐसा ही भरोसा रखते हैं।
\v 5 ये नहीं कि बज़ात-ए- ख़ुद हम इस लायक़ हैं कि अपनी तरफ से कुछ ख़याल भी कर सकें बल्कि हमारी लियाक़त ख़ुदा की तरफ़ से है।
\v 6 जिसने हम को नये 'अहद के ख़ादिम होने के लायक़ भी किया लफ़्ज़ों के ख़ादिम नहीं बल्कि रूह के क्यूँकि लफ़्ज़ मार डालते हैं मगर रूह ज़िन्दा करती है।
\s5
\v 7 और जब मौत का वो अहद जिसके हुरूफ़ पत्थरों पर खोदे गए थे ऐसा जलाल वाला हुआ कि इस्राईली लोग मूसा के चेहरे पर उस जलाल की वजह से जो उसके चहरे पर था ग़ौर से नज़र न कर सके हालाँकि वो घटता जाता था।
\v 8 तो पाक रूह का अहद तो ज़रूर ही जलाल वाला होगा।
\s5
\v 9 क्यूँकि जब मुजरिम ठहराने वाला अहद जलाल वाला था तो रास्तबाज़ी का अहद तो ज़रूर ही जलाल वाला होगा।
\v 10 बल्कि इस सूरत में वो जलाल वाला इस बे'इन्तिहा जलाल की वजह से बे'जलाल ठहरा।
\v 11 क्यूँकि जब मिटने वाली चीज़ें जलाल वाली थी तो बाकी रहने वाली चीज़ें तो ज़रूर ही जलाल वाली होंगी।
\s5
\v 12 पस हम ऐसी उम्मीद करके बड़ी दिलेरी से बोलते हैं।
\v 13 और मूसा की तरह नहीं हैं जिसने अपने चेहरे पर नक़ाब डाला ताकि बनी इस्राईल उस मिटने वाली चीज़ के अन्जाम को न देख सकें।
\s5
\v 14 लेकिन उनके ख़यालात कसीफ़ हो गए, क्यूँकि आज तक पूराने 'अहदनामे को पढ़ते वक़्त उन के दिलों पर वही पर्दा पड़ा रहता है, और वो मसीह में उठ जाता है।
\v 15 मगर आज तक जब कभी मूसा की किताब पढ़ी जाती है तो उनके दिल पर पर्दा पड़ा रहता है।
\v 16 लेकिन जब कभी उन का दिल ख़ुदा की तरफ़ फिरेगा तो वो पर्दा उठ जाएगा।
\s5
\v 17 और ख़ुदावन्द रूह है, और जहाँ कहीं ख़ुदावन्द की रूह है वहाँ आज़ादी है।
\v 18 मगर जब हम सब के बे'नक़ाब चेहरों से ख़ुदावन्द का जलाल इस तरह ज़ाहिर होता है; जिस तरह आ'इने में, तो उस ख़ुदावन्द के वसीले से जो रूह है हम उसी जलाली सूरत में दर्जा ब दर्जा बदलते जाते हैं।
\s5
\c 4
\v 1 पस जब हम पर ऐसा रहम हुआ कि हमें ये ख़िदमत मिली, तो हम हिम्मत नहीं हारते।
\v 2 बल्कि हम ने शर्म की छिपी बातों को तर्क कर दिया और मक्कारी की चाल नहीं चलते न खु़दा के कलाम में मिलावट करते हैं' बल्कि हक़ ज़ाहिर करके ख़ुदा के रु-ब-रु हर एक आदमी के दिल में अपनी नेकी बिठाते हैं।
\s5
\v 3 और अगर हमारी ख़ुशख़बरी पर पर्दा पड़ा है तो हलाक होने वालों ही के वास्ते पड़ा है।
\v 4 या'नी उन बे'ईमानों के वास्ते जिनकी अक़्लों को इस जहाँन के ख़ुदा ने अँधा कर दिया है ताकि मसीह जो ख़ुदा की सूरत है उसके जलाल की ख़ुशख़बरी की रौशनी उन पर न पड़े।
\s5
\v 5 क्यूँकि हम अपनी नहीं बल्कि मसीह ईसा' का ऐलान करते हैं कि वो ख़ुदावन्द है और अपने हक़ में ये कहते हैं कि ईसा' की ख़ातिर तुम्हारे ग़ुलाम हैं।
\v 6 इसलिए कि ख़ुदा ही है जिसने फ़रमाया कि "तारीकी में से नूर चमके" और वही हमारे दिलों पर चमका ताकि ख़ुदा के जलाल की पहचान का नूर ईसा' मसीह के चहरे से जलवागर हो।
\s5
\v 7 लेकिन हमारे पास ये ख़ज़ाना मिट्टी के बर्तनों में रख्खा है ताकि ये हद से ज़्यादा क़ुदरत हमारी तरफ़ से नहीं बल्कि ख़ुदा की तरफ़ से मा'लूम हो।
\v 8 हम हर तरफ़ से मुसीबत तो उठाते हैं लेकिन लाचार नहीं होते हैरान तो होते हैं मगर ना उम्मीद नहीं होते।
\v 9 सताए तो जाते हैं मगर अकेले नहीं छोड़े जाते; गिराए तो जाते हैं, लेकिन हलाक नहीं होते।
\v 10 हम हर वक़्त अपने बदन में ईसा' की मौत लिए फिरते हैं ताकि ईसा' की ज़िन्दगी भी हमारे बदन में ज़ाहिर हो।
\s5
\v 11 क्यूँकि हम जीते जी ईसा' की ख़ातिर हमेशा मौत के हवाले किए जाते हैं ताकि ईसा' की ज़िन्दगी भी हमारे फ़ानी जिस्म में ज़ाहिर हो।
\v 12 पस मौत तो हम में असर करती है और ज़िन्दगी तुम में।
\s5
\v 13 और चूँकि हम में वही ईमान की रूह है जिसके बारे में कलाम में लिखा है कि मैं ईमान लाया और इसी लिए बोला; पस हम भी ईमान लाए और इसी लिए बोलते हैं।
\v 14 क्यूँकि हम जानते हैं कि जिसने ख़ुदावन्द ईसा' मसीह को जिलाया वो हम को भी ईसा' के साथ शामिल जानकर जिलाएगा; और तुम्हारे साथ अपने सामने हाज़िर करेगा।
\v 15 इसलिए कि सब चीज़ें तुम्हारे वास्ते हैं ताकि बहुत से लोगों के ज़रिये से फ़ज़ल ज़्यादा हो कर ख़ुदा के जलाल के लिए शुक्र गुज़ारी भी बढ़ाए।
\s5
\v 16 इसलिए हम हिम्मत नहीं हारते बल्कि चाहे हमारी ज़ाहिरी इन्सानियत ज़ा'इल हो जाती है फिर भी हमारी बातनी इन्सानियत रोज़ ब, रोज़ नई होती जाती है।
\v 17 क्यूँकि हमारी दम भर की हल्की सी मुसीबत हमारे लिए अज़, हद भारी और अबदी जलाल पैदा करती है।
\v 18 जिस हाल में हम देखी हुई चीज़ों पर नहीं बल्कि अनदेखी चीज़ों पर नज़र करते हैं; क्यूँकि देखी हुई चीज़ें चँद रोज़ हैं; मगर अनदेखी चीज़ें अबदी हैं।
\s5
\c 5
\v 1 क्यूँकि हम जानते हैं कि जब हमारा ख़ेमे का घर जो ज़मीन पर है गिराया जाएगा तो हम को ख़ुदा की तरफ़ से आसमान पर एक ऐसी इमारत मिलेगी जो हाथ का बनाया हुआ घर नहीं बल्कि अबदी है।
\v 2 चुनाँचे हम इस में कराहते हैं और बड़ी आरज़ू रखते हैं कि अपने आसमनी घर से मुलब्बस हो जाएँ।
\v 3 ताकि मुलब्बस होने के ज़रि'ये नंगे न पाए जाएँ।
\s5
\v 4 क्यूँकि हम इस ख़ेमे में रह कर बोझ के मारे कराहते हैं इसलिए नहीं कि ये लिबास उतारना चाहते हें बल्कि इस पर और पहनना चाहते हैं ताकि वो जो फ़ानी है ज़िन्दगी में ग़र्क़ हो जाए।
\v 5 और जिस ने हम को इसी बात के लिए तैयार किया वो ख़ुदा है और उसी ने हमें रूह पेशगी में दिया।
\s5
\v 6 पस हमेशा हम मुतमइन रहते हैं और ये जानते हैं कि जब तक हम बदन के वतन में हैं ख़ुदावन्द के यहाँ से जिला वतन हैं।
\v 7 क्यूँकि हम ईमान पर चलते हैं न कि आँखों देखे पर।
\v 8 गरचे, हम मुतमइन हैं और हम को बदन के वतन से जुदा हो कर ख़ुदावन्द के वतन में रहना ज़्यादा मंज़ूर है।
\s5
\v 9 इसी वास्ते हम ये हौसला रखते हैं कि वतन में हूँ चाहे जेला वतन उसको ख़ुश करें।
\v 10 क्यूँकि ज़रूरी हे कि मसीह के तख़्त-ए- अदालत के सामने जाकर हम सब का हाल ज़ाहिर किया जाए ताकि हर शख़्स अपने उन कामों का बदला पाए; जो उसने बदन के वसीले से किए हों ; चाहे भले हों चाहे बुरे हों।
\s5
\v 11 पस हम ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ को जान कर आदमियों को समझाते हैं और ख़ुदा पर हमारा हाल ज़ाहिर है और मुझे उम्मीद है कि तुम्हारे दिलों पर भी ज़ाहिर हुआ होगा।
\v 12 हम फिर अपनी नेक नामी तुम पर नहीं जताते बल्कि हम अपनी वजह से तुम को फ़ख़्र करने का मौक़ा देते हैं ताकि तुम उनको जवाब दे सको जो ज़ाहिर पर फ़ख़्र करते हैं और बातिन पर नहीं।
\s5
\v 13 अगर हम बेख़ुद हैं तो ख़ुदा के वास्ते हैं और अगर होश में हैं तो तुम्हारे वास्ते।
\v 14 क्यूँकि मसीह की मुहब्बत हम को मजबूर कर देती है इसलिए कि हम ये समझते है कि जब एक सब के वास्ते मरा तो सब मर गए।
\v 15 और वो इसलिए सब के वास्ते मरा कि जो जीते हैं वो आगे को अपने लिए न जिए बल्कि उसके लिए जो उन के वास्ते मरा और फिर जी उठा।
\s5
\v 16 पस अब से हम किसी को जिस्म की हैसियत से न पहचानेंगे; हाँ अगरचे मसीह को भी जिस्म की हैसियत से जाना था मगर अब से नहीं जानेगे।
\v 17 इसलिए अगर कोई मसीह में है तो वो नया मख़लूक़ है पूरानी चीज़ें जाती रहीं; देखो वो नई हो गईं।
\s5
\v 18 और वो सब चीज़ें ख़ुदा की तरफ़ से हैं जिसने मसीह के वसीले से अपने साथ हमारा मेल मिलाप कर लिया और मेल मिलाप की ख़िदमत हमारे सुपुर्द की।
\v 19 मतलब ये है कि ख़ुदा ने मसीह में हो कर अपने साथ दुनिया का मेल मिलाप कर लिया और उन की तक़्सीरों को उनके ज़िम्मे न लगाया और उसने मेल मिलाप का पैग़ाम हमें सौप दिया।
\s5
\v 20 पस हम मसीह के एल्ची हैं और गोया हमारे वसीले से ख़ुदा इल्तिमास करता है; हम मसीह की तरफ़ से मिन्नत करते हैं कि ख़ुदा से मेल मिलाप कर लो।
\v 21 जो गुनाह से वाक़िफ़ न था; उसी को उसने हमारे वास्ते गुनाह ठहराया ताकि हम उस में हो कर ख़ुदा के रास्तबाज़ हो जाएँ।
\s5
\c 6
\v 1 हम जो उस के साथ काम में शरीक हैं, ये भी गुज़ारिश करते हें कि ख़ुदा का फ़ज़ल जो तुम पर हुआ बे फ़ायदा न रहने दो |
\v 2 क्यूँकि वो फ़रमाता है कि मैंने क़ुबूलियत के वक़्त तेरी सुन ली और नजात के दिन तेरी मदद की; देखो अब क़बूलियत का वक़्त है; देखो ये नजात का दिन है।
\v 3 हम किसी बात में ठोकर खाने का कोई मौका नहीं देते ताकि हमारी ख़िदमत पर हर्फ़ न आए।।
\s5
\v 4 बल्कि ख़ुदा के ख़ादिमों की तरह हर बात से अपनी ख़ूबी ज़ाहिर करते हैं बड़े सब्र से मुसीबत, से एहतियात से तंगी से।
\v 5 कोड़े खाने से, क़ैद होने से, हँगामों से, मेहनतों से, बेदारी से, फ़ाकों से,
\v 6 पाकीज़गी से, इल्म से, तहम्मुल से, मेहरबानी से, रूह उल क़ुद्दूस से, बे-रिया मुहब्बत से,
\v 7 कलाम'ए हक़ से, ख़ुदा की क़ुदरत से, रास्तबाज़ी के हथियारों के वसीले से, जो दहने बाएँ हैं।
\s5
\v 8 इज़्ज़त और बे'इज़्ज़ती के वसीले से, बदनामी और नेक नामी के वसीले से, जो गुमराह करने वाले मा'लूम होते हैं फिर भी सच्चे हैं।
\v 9 गुमनामों की तरह हैं, तो भी मशहूर हैं, मरते हुओं की तरह हैं, मगर देखो जीते हैं, मार खानेवालों की तरह हैं, मगर जान से मारे नहीं जाते।
\v 10 ग़मगीनों की तरह हैं, लेकिन हमेशा ख़ुश रहते हैं, कंगालों की तरह हैं, मगर बहुतेरों को दौलतमन्द कर देतग़ हैं, नादानों की तरह हैं, तौ भी सब कुछ देखते हैं।
\s5
\v 11 ऐ कुरन्थ के ईमानदारों ; हम ने तुम से खुल कर बातें कहीं और हमारा दिल तुम्हारी तरफ़ से ख़ुश हो गया।
\v 12 हमारे दिलों में तुम्हारे लिए तंगी नहीं मगर तुम्हारे दिलों में तंगी है।
\v 13 पस मैं फ़र्ज़न्द जान कर तुम से कहता हूँ कि तुम भी उसके बदले में कुशादा दिल हो जाओ।
\s5
\v 14 बे'ईमानों के साथ ना हमवार जूए में न जुतो, क्यूंकि रास्तबाज़ी और बेदीनी में क्या मेल जोल? या रौशनी और तारीकी में क्या रिश्ता?
\v 15 वो मसीह को बली'आल के साथ क्या मुवाफ़िक़त या ईमानदार का बे'ईमान से क्या वास्ता?
\v 16 और ख़ुदा के मक़्दिस को बुतों से क्या मुनासिबत है? क्यूँकि हम ज़िन्दा ख़ुदा के मक़दिस हैं चुनाँचे ख़ुदा ने फ़रमाया है, “ मैं उनमें बसूँगा और उन में चला फिरा करूंगा और मैं उनका ख़ुदा हूँगा और वो मेरी उम्मत होंगे।”
\s5
\v 17 इस वास्ते ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि उन में से निकल कर अलग रहो और नापाक चीज़ को न छुओ तो मैं तुम को क़ुबूल करूँगा।
\v 18 मैं तुम्हारा बाप हूँगा और तुम मेरे बेटे-बेटियाँ होंगे, ख़ुदावन्द क़ादिर-ए-मुतलक़ का क़ौल है।
\s5
\c 7
\v 1 पस ऐ' अज़ीज़ो चुँकि हम से ऐसे वा'दे किए गए, आओ हम अपने आपको हर तरह की जिस्मानी और रूहानी आलूदगी से पाक करें और ख़ुदा के बेख़ौफ़ के साथ पाकीज़गी को कमाल तक पहुँचाऐँ।
\s5
\v 2 हम को अपने दिल में जगह दो हम ने किसी से बेइन्साफ़ी नहीं की किसी को नहीं बिगाड़ा किसी से दग़ा नहीं की।
\v 3 मैं तुम्हें मुजरिम ठहराने के लिए ये नहीं कहता क्यूँकि पहले ही कह चुका हूँ कि तुम हमारे दिलों में ऐसे बस गए हो कि हम तुम एक साथ मरें और जियें।
\v 4 मैं तुम से बड़ी दिलेरी के साथ बातें करता हूँ मुझे तुम पर बड़ा फ़ख़्र है मुझको पूरी तसल्ली हो गई है; जितनी मुसीबतें हम पर आती हैं उन सब में मेरा दिल ख़ुशी से लबरेज़ रहता है।
\s5
\v 5 क्यूँकि जब हम मकिदुनिया में आए उस वक़्त भी हमारे जिस्म को चैन न मिला बल्कि हर तरफ़ से मुसीबत में गिरफ़्तार रहे बाहर लड़ाइयां थीं और अन्दर दहशतें।
\v 6 तोभी आ'जिज़ों को तसल्ली बख़्शने वाले या'नी ख़ुदा ने तितुस के आने से हम को तसल्ली बख़्शी।
\v 7 और न सिर्फ़ उसके आने से बल्कि उसकी उस तसल्ली से भी जो उसको तुम्हारी तरफ़ से हुई और उसने तुम्हारा इश्तियाक़ तुम्हारा ग़म और तुम्हारा जोश जो मेरे बारे में था हम से बयान किया जिस से मैं और भी ख़ुश हुआ।
\s5
\v 8 गरचे, मैंने तुम को अपने ख़त से ग़मगीन किया मगर उससे पछताता नहीं अगरचे पहले पछताता था चुनाँचे देखता हूँ कि उस ख़त से तुम को ग़म हुआ गरचे थोड़े ही अर्से तक रहा।
\v 9 अब मैं इसलिए ख़ुश नहीं हूँ कि तुम को ग़म हुआ, बल्कि इस लिए कि तुम्हारे ग़म का अन्जाम तोबा हुआ क्यूँकि तुम्हारा ग़म ख़ुदा परस्ती का था, ताकि तुम को हमारी तरफ़ से किसी तरह का नुक़्सान न हो। ।
\v 10 क्यूँकि ख़ुदा परस्ती का ग़म ऐसी तोबा पैदा करता है; जिसका अन्जाम नजात है और उस से पछताना नहीं पड़ता मगर दुनिया का ग़म मौत पैदा करता है।
\s5
\v 11 पस देखो इसी बात ने कि तुम ख़ुदा परस्ती के तौर पर ग़मगीन हुए तो मैं किस क़दर सरगर्मी और उज़्र और ख़फ़्गी और खौफ़ और इश्तियाक़ और जोश और इन्तिक़ाम पैदा किया; तुम ने हर तरह से साबित कर दिखाया कि तुम इस काम में बरी हो।
\v 12 पस अगरचे मैंने तुम को लिखा था मगर न उसके बारे में लिखा जिसने बे इन्साफी की और न उसके ज़रिए जिस पर बे इन्साफी हुई बल्कि इस लिए कि तुम्हारी सरगर्मी जो हमारे वास्ते है ख़ुदा के हुज़ूर तुम पर ज़ाहिर हो जाए।
\s5
\v 13 इसी लिए हम को तसल्ली हुई है और हमारी इस तसल्ली में हम को तितुस की ख़ुशी की वजह से और भी ज़्यादा ख़ुशी हुई क्यूँकि तुम सब के ज़रि'ए उसकी रूह फिर ताज़ा हो गई।
\v 14 और अगर मैंने उसके सामने तुम्हारे बारे में कुछ फ़ख़्र किया तो शर्मिन्दा न हुआ बल्कि जिस तरह हम ने सब बातें तुम से सच्चाई से कहीं उसी तरह जो फ़ख़्र हम ने तितुस के सामने किया वो भी सच निकला।
\s5
\v 15 और जब उसको तुम सब की फ़रमाबरदारी याद आती है कि तुम किस तरह डरते और काँपते हुए उस से मिले तो उसकी दिली मुहब्बत तुम से और भी ज़्यादा होती जाती है।
\v 16 मैं खुश हूँ कि हर बात में तुम्हारी तरफ़ से मुतमइन हूँ।
\s5
\c 8
\v 1 ऐ, भाइयों! हम तुम को ख़ुदा के उस फ़ज़ल की ख़बर देते हैं जो मकिदुनिया सूबे की कलीसियाओं पर हुआ है।
\v 2 कि मुसीबत की बड़ी आज़माइश में उनकी बड़ी ख़ुशी और सख़्त ग़रीबी ने उनकी सख़ावत को हद से ज़्यादा कर दिया।
\s5
\v 3 और मैं गवाही देता हूँ, कि उन्होंने हैसियत के मुवाफ़िक़ बल्कि ताक़त से भी ज़्यादा अपनी ख़ुशी से दिया।
\v 4 और इस ख़ैरात और मुक़द्दसों की ख़िदमत की शिराकत के ज़रिए हम से बड़ी मिन्नत के साथ दरख़्वास्त की।
\v 5 और हमारी उम्मीद के मुवाफ़िक़ ही नहीं दिया बल्कि अपने आप को पहले ख़ुदावन्द के और फिर ख़ुदा की मर्ज़ी से हमारे सुपुर्द किया।
\s5
\v 6 इस वास्ते हम ने तितुस को नसीहत की जैसे उस ने पहले शुरू किया था वैसे ही तुम में इस ख़ैरात के काम को पूरा भी करे।
\v 7 पस जैसे तुम हर बात में ईमान और कलाम और इल्म और पूरी सरगर्मी और उस मुहब्बत में जो हम से आगे हो गए हो, वैसे ही इस ख़ैरात के काम में आगे ले जाओ।
\s5
\v 8 मैं हुक्म के तौर पर नहीं कहता बल्कि इसलिए कि औरों की सरगर्मी से तुम्हारी सच्चाई को आज़माऊँ।
\v 9 क्यूँकि तुम हमारे ख़ुदावन्द ईसा मसीह के फ़ज़ल को जानते हो कि वो अगरचे दौलतमन्द था मगर तुम्हारी ख़ातिर ग़रीब बन गया ताकि तुम उसकी ग़रीबी की वजह से दौलतमन्द हो जाओ।
\s5
\v 10 और मैं इस अम्र में अपनी राय देता हूँ, क्यूँकि ये तुम्हारे लिए फायदेमंद है, इसलिए कि तुम पिछले साल से न सिर्फ़ इस काम में बल्कि इसके इरादे में भी अव्वल थे।
\v 11 पस अब इस काम को पूरा भी करो ताकि जैसे तुम इरादा करने में मुस्त'इद थे वैसे ही हैसियत के मुवाफ़िक़ पूरा भी करो।
\v 12 क्यूँकि अगर नियत हो तो ख़ैरात उसके मुवाफ़िक़ मक़्बूल होगी जो आदमी के पास है न उसके मुवाफ़िक़ जो उसके पास नहीं।
\s5
\v 13 ये नहीं कि औरों को आराम मिले और तुम को तक्लीफ़ हो।
\v 14 बल्कि बराबरी के तौर पर इस वक़्त तुम्हारी दौलत से उनकी कमी पूरी हो ताकि उनकी दौलत से भी तुम्हारी कमी पूरी हो और इस तरह बराबरी हो जाए।
\v 15 चुनाँचे कलाम में लिखा है, “जिस ने बहुत मन्ना जमा किया उस का कुछ ज़्यादा न निकला और जिस ने थोड़ा जमा किया उसका कुछ कम न निकला।”
\s5
\v 16 ख़ुदा का शुक्र है जो तितुस के दिल में तुम्हारे वास्ते वैसी ही सरगर्मी पैदा करता है।
\v 17 क्यूँकि उसने हमारी नसीहत को मान लिया बल्कि बड़ा सरगर्म हो कर अपनी ख़ुशी से तुम्हारी तरफ़ रवाना हुआ।
\s5
\v 18 और हम ने उस के साथ उस भाई को भेजा जिस की तारीफ़ ख़ुशख़बरी की वजह से तमाम कलीसियाओं में होती है।
\v 19 और सिर्फ़ यही नहीं बल्कि वो कलीसियाओं की तरफ़ से इस ख़ैरात के बारे में हमारा हमसफ़र मुक़र्रर हुआ और हम ये ख़िदमत इसलिए करते हैं कि ख़ुदावन्द का जलाल और हमारा शौक़ ज़ाहिर हो।
\s5
\v 20 और हम बचते रहते हैं कि जिस बड़ी ख़ैरात के बारे में ख़िदमत करते हैं उसके बारे में कोई हम पर हर्फ़ न लाए।
\v 21 क्यूँकि हम ऐसी चीज़ों की तदबीर करते हैं जो न सिर्फ़ ख़ुदावन्द के नज़दीक भली हैं बल्कि आदमियों के नज़दीक भी।
\s5
\v 22 और हम ने उनके साथ अपने उस भाई को भेजा है जिसको हम ने बहुत सी बातों में बार हा आज़माकर सरगर्म पाया है मगर चूँकि उसको तुम पर बड़ा भरोसा है इसलिए अब बहुत ज़्यादा सरगर्म है।
\v 23 अगर कोई तितुस की बारे में पुछे तो वो मेरा शरीक और तुम्हारे वास्ते मेरा हम ख़िदमत है और अगर भाइयों के बारे में पूछा जाए तो वो कलीसियाओं के क़ासिद और मसीह का जलाल हैं।
\v 24 पस अपनी मुहब्बत और हमारा वो फ़ख़्र जो तुम पर है कलीसियायों के रु-ब-रु उन पर साबित करो।
\s5
\c 9
\v 1 जो ख़िदमत मुक़द्दसों के वास्ते की जाती है, उसके ज़रिए मुझे तुम को लिखना फ़ज़ूल है।
\v 2 क्यूँकि मैं तुम्हारा शौक़ जानता हूँ, जिसकी वजह से मकिदुनिया के लोगों के आगे तुम पर फ़ख़्र करता हूँ कि अख़्या के लोग पिछले साल से तैयार हैं और तुम्हारी सरगर्मी ने अक़सर लोगों को उभारा।
\s5
\v 3 लेकिन मैने भाइयों को इसलिए भेजा कि हम जो फ़ख़्र इस बारे में तुम पर करते हैं वो बे'असल न ठहरे बल्कि तुम मेरे कहने के मुवाफ़िक़ तैयार रहो।
\v 4 ऐसा न हो कि अगर मकिदुनिया के लोग मेरे साथ आयें और तुम को तैयार न पायें तो हम ये नहीं कहते कि तुम उस भरोसे की वज़ह से शर्मिन्दा हो।
\v 5 इसलिए मैंने भाइयों से ये दरख़्वास्त करना ज़रूरी समझा कि वो पहले से तुम्हारे पास जाकर तुम्हारी मो'ऊदा बख़्शिश को पहले से तैयार कर रखें ताकि वो बख़्शिश की तरह तैयार रहें न कि ज़बरदस्ती के तौर पर।
\s5
\v 6 लेकिन बात ये है कि जो थोड़ा बोता है वो थोड़ा काटेगा और जो बहुत बोता है वो बहुत काटेगा।
\v 7 जिस क़दर हर एक ने अपने दिल में ठहराया है उसी क़दर दे, न दरेग़ करके न लाचारी से क्यूँकि ख़ुदा ख़ुशी से देने वाले को अज़ीज़ रखता है।
\s5
\v 8 और ख़ुदा तुम पर हर तरह का फ़ज़ल क़सरत से कर सकता है। ताकि तुम को हमेशा हर चीज़ ज़्यादा तौर पर मिला करे और हर नेक काम के लिए तुम्हारे पास बहुत कुछ मौजूद रहा करे।
\v 9 चुनाँचे कलाम में लिखा है कि उसने बिखेरा है उसने कंगालों को दिया है उसकी रास्तबाज़ी हमेशा तक बाक़ी रहेगी।
\s5
\v 10 पस जो बोने वाले के लिए बीज और खाने के लिए रोटी एक दुसरे को पहुँचाता है वही तुम्हारे लिए बीज बहम पहुँचाएगा; और उसी में तरक़्क़ी देगा और तुम्हारी रास्तबाज़ी के फ़लों को बढ़ाएगा।
\v 11 और तुम हर चीज़ को बहुतायत से पाकर सब तरह की सख़ावत करोगे; जो हमारे वसीले से ख़ुदा की शुक्रगुज़ारी के ज़रिए होती है।
\s5
\v 12 क्यूँकि इस ख़िदमत के अन्जाम देने से न सिर्फ़ मुक़द्दसों की ज़रूरते पूरी होती हैं बल्कि बहुत लोगों की तरफ़ से ख़ुदा की शुक्रगुज़ारी होती है।
\v 13 इस लिए कि जो नियत इस ख़िदमत से साबित हुई उसकी वज़ह से वो ख़ुदा की बड़ाई करते हैं कि तुम मसीह की ख़ुशख़बरी का इक़रार करके उस पर ता'बेदारी से अमल करते हो और उनकी और सब लोगों की मदद करने में सख़ावत करते हो।
\v 14 और वो तुम्हारे लिए दुआ करते हैं और तुम्हारे मुश्ताक़ हैं इसलिए कि तुम पर ख़ुदा का बड़ा ही फ़ज़ल है।
\v 15 शुक्र ख़ुदा का उसकी उस बख़्शिश पर जो बयान से बाहर है।
\s5
\c 10
\v 1 मैं पौलुस जो तुम्हारे रू-ब-रू आजिज़ और पीठ पीछे तुम पर दिलेर हूँ मसीह का हिल्म और नर्मी याद दिलाकर ख़ूद तुम से गुज़ारिश करता हूँ।
\v 2 बल्कि मिन्नत करता हूँ कि मुझे हाज़िर होकर उस बेबाकी के साथ दिलेर न होना पड़े जिससे मैं कुछ लोगों पर दिलेर होने का क़स्द रखता हूँ जो हमें यूँ समझते हैं कि हम जिस्म के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारते हैं।
\s5
\v 3 क्यूँकि हम अगरचे जिस्म में ज़िन्दगी गुज़ारते हैं मगर जिस्म के तौर पर लड़ते नहीं।
\v 4 इस लिए कि हमारी लड़ाई के हथियार जिस्मानी नहीं बल्कि ख़ुदा के नज़दीक क़िलों को ढा देने के क़ाबिल हैं।
\s5
\v 5 चुनाँचे हम तसव्वुरात और हर एक उँची चीज़ को जो ख़ुदा की पहचान के बरख़िलाफ़ सर उठाए हुए है ढा देते हैं और हर एक ख़याल को क़ैद करके मसीह का फ़रमाँबरदार बना देते हैं।
\v 6 और हम तैयार हैं कि जब तुम्हारी फ़रमाँबरदारी पूरी हो तो हर तरह की नाफ़रमानी का बदला लें।
\s5
\v 7 तो तुम उन चीज़ों पर नज़र करते हो जो आँखों के सामने हैं अगर किसी को अपने आप पर ये भरोसा है कि वो मसीह का है तो अपने दिल में ये भी सोच ले कि जैसे वो मसीह का है वैसे ही हम भी हैं।
\v 8 क्यूँकि अगर मैं इस इख़्तियार पर कुछ ज़्यादा फ़ख़्र भी करूँ जो ख़ुदावन्द ने तुम्हारे बनाने के लिए दिया है; न कि बिगाड़ने के लिए तो मैं शर्मिन्दा न हूँगा।
\s5
\v 9 ये मैं इस लिए कहता हूँ, कि ख़तों के ज़रिए से तुम को डराने वाला न ठहरूँ।
\v 10 क्यूँकि कुछ लोग कहते हैं कि पौलुस के ख़त तो अलबत्ता असरदार और ज़बरदस्त हैं लेकिन जब ख़ुद मौजूद होता है तो कमज़ोर सा मा'लूम होता है और उसकी तक़रीर लचर है।
\s5
\v 11 पस ऐसा कहने वाला समझ रख्खे कि जैसा पीठ पीछे ख़तों में हमारा कलाम है वैसा ही मौजूदगी के वक़्त हमारा काम भी होगा।
\v 12 क्यूँकि हमारी ये हिम्मत नहीं कि अपने आप को उन चँद लोगों में शुमार करें या उन से कुछ निस्बत दें जो अपनी नेक नामी जताते हैं लेकिन वो ख़ुद अपने आप को आपस में वज़न कर के और अपने आप को एक दूसरे से निस्बत देकर नादान ठहराते हैं।
\s5
\v 13 लेकिन हम अन्दाज़े से ज़्यादा फ़ख़्र न करेंगे, बल्कि उसी इलाक़े के अन्दाज़े के मुवाफ़िक़ जो ख़ुदा ने हमारे लिए मुक़र्ऱर किया है जिस में तुम भी आगए, हो।
\v 14 क्यूँकि हम अपने आप को हद से ज़्यादा नहीं बढ़ाते जैसे कि तुम तक न पहुँचने की सूरत में होता बल्कि हम मसीह की ख़ुशख़बरी देते हुए तुम तक पहुँच गए थे।
\s5
\v 15 और हम अन्दाज़े से ज़्यादा या'नी औरों की मेहनतों पर फ़ख़्र नहीं करते लेकिन उम्मीदवार हैं कि जब तुम्हारे ईमान में तरक़्क़ी हो तो हम तुम्हारी वजह से अपने इलाक़े के मुवाफ़िक़ और भी बढ़े
\v 16 ताकि तुम्हारी सरहद से आगे बढ़ कर ख़ुशख़बरी पहुँचा दें न कि ग़ैर इलाक़ा में बनी बनाई हुई चीज़ों पर फ़ख़्र करें
\s5
\v 17 ग़रज़ जो फ़ख़्र करे वो ख़ुदावन्द पर फ़ख़्र करे।
\v 18 क्यूँकि जो अपनी नेकनामी जताता है वो मक़बूल नहीं बल्कि जिसको ख़ुदावन्द नेकनाम ठहराता है वही मक़बूल है।
\s5
\c 11
\v 1 क़ाश कि तुम मेरी थोड़ी सी बेवब़ूफ़ी की बर्दाश्त कर सकते; हाँ तुम मेरी बर्दाश्त करते तो हो।
\v 2 मुझे तुम्हारे ज़रि'ए ख़ुदा की सी ग़ैरत है क्यूँकि मैंने एक ही शौहर के साथ तुम्हारी निस्बत की है ताकि तुम को पाक दामन कुंवारी की तरह मसीह के पास हाज़िर करूँ।
\s5
\v 3 लेकिन मैं डरता हूँ कहीं ऐसा न हो कि जिस तरह साँप ने अपनी मक्कारी से हव्वा को बहकाया उसी तरह तुम्हारे ख़यालात भी उस ख़ुलूस और पाकदामनी से हट जाएँ जो मसीह के साथ होनी चाहिए। ।
\v 4 क्यूँकि जो आता है अगर वो किसी दूसरे ईसा का ऐलान करता है जिसका हमने ऐलान नहीं किया या कोई और रूह तुम को मिलती है जो न मिली थी या दूसरी ख़ुशख़बरी मिली जिसको तुम ने क़ुबूल न किया था; तो तुम्हारा बर्दाश्त करना बजा है।
\s5
\v 5 मैं तो अपने आप को उन अफ़्ज़ल रसूलों से कुछ कम नहीं समझता।
\v 6 और अगर तक़रीर में बेश'ऊर हूँ तो इल्म के एतिबार से तो नहीं बल्कि हम ने इस को हर बात में तमाम आदमियों में तुम्हारी ख़ातिर ज़ाहिर कर दिया।
\s5
\v 7 क्या ये मुझ से ख़ता हुई कि मैंने तुम्हें ख़ुदा की ख़ुशख़बरी मुफ़्त पहुँचा कर अपने आप को नीचे किया ताकि तुम बुलंद हो जाओ।
\v 8 मैंने और कलीसियाओं को लूटा या'नी उनसे उज्रत ली ताकि तुम्हारी ख़िदमत करूँ।
\v 9 और जब मैं तुम्हारे पास था और हाजत मंद हो गया था, तो भी मैंने किसी पर बोझ नहीं डाला क्यूँकि भाइयों ने मकिदुनिया से आकर मेरी ज़रूरत को पूरा कर दिया था; और मैं हर एक बात में तुम पर बोझ डालने से बाज़ रहा और रहूँगा।
\s5
\v 10 मसीह की सदाक़त की क़सम जो मुझ में है अख़्या के इलाक़ा में कोई शख़्स मुझे ये करने से न रोकेगा।
\v 11 किस वास्ते? क्या इस वास्ते कि मैं तुम से मुहब्बत नहीं रखता? इसको ख़ुदा जानता है।
\s5
\v 12 लेकिन जो करता हूँ वही करता रहूँगा ताकि मौक़ा ढूँढने वालो को मौक़ा न दूँ बल्कि जिस बात पर वो फ़ख़्र करते हैं उस में हम ही जैसे निकलें।
\v 13 क्यूँकि ऐसे लोग झूठे रसूल और दग़ा बाज़ी से काम करने वाले हैं और अपने आपको मसीह के रसूलों के हमशक्ल बना लेते हैं।
\s5
\v 14 और कुछ अजीब नहीं‍ शैतान भी अपने आपको नूरानी फ़रिश्ते का हम शक्ल बना लेता है।
\v 15 पस अगर उसके ख़ादिम भी रास्तबाज़ी के ख़ादिमों के हमशक्ल बन जाएँ तो कुछ बड़ी बात नहीं लेकिन उनका अन्जाम उनके कामों के मुवाफ़िक़ होगा।
\s5
\v 16 मैं फिर कहता हूँ कि मुझे कोई बेवक़ूफ़ न समझे और न बेवक़ूफ़ समझ कर मुझे क़ुबूल करो कि मैं भी थोड़ा सा फ़ख़्र करूँ।
\v 17 जो कुछ मैं कहता हूँ वो ख़ुदावन्द के तौर पर नहीं बल्कि गोया बेवक़ूफ़ी से और उस हिम्मत से कहता हूँ जो फ़ख़्र करने में होती है।
\v 18 जहाँ और बहुत सारे जिस्मानी तौर पर फ़ख़्र करते हैं मैं भी करूँगा।
\s5
\v 19 क्यूँकि तुम को अक़्लमन्द हो कर ख़ुशी से बेवक़ूफ़ों को बर्दाश्त करते हो।
\v 20 जब कोई तुम्हें ग़ुलाम बनाता है या खा जाता है या फँसा लेता है या अपने आपको बड़ा बनाता है या तुम्हारे मुँह पर तमाँचा मारता है तो तुम बर्दाश्त कर लेते हो।
\v 21 मेरा ये कहना ज़िल्लत के तौर पर सही कि हम कमज़ोर से थे मगर जिस किसी बात में कोई दिलेर है (अगरचे ये कहना बेवक़ूफ़ी है) मैं भी दिलेर हूँ।
\s5
\v 22 क्या वही इब्रानी हैं? मैं भी हूँ, क्या वही अब्रहाम की नस्ल से हैं? मैं भी हूँ।
\v 23 क्या वही मसीह के ख़ादिम हैं? (मेरा ये कहना दीवानगी है) मैं ज़्यादा तर हूँ मेहनतों में ज़्यादा क़ैद में ज़्यादा कोड़े खाने में हद से ज़्यादा बारहा मौत के खतरों में रहा हूँ।
\s5
\v 24 मैंने यहूदियों से पाँच बार एक कम चालीस चालीस कोड़े खाए।
\v 25 तीन बार बेँत लगे एक बार पथराव किया गया तीन मर्तबा जहाज़ टूटने की बला में पड़ा रात दिन समुन्दर में काटा।
\v 26 मैं बार बार सफ़र में दरियाओं के ख़तरों में डाकुओं के ख़तरों में अपनी क़ौम से ख़तरों में ग़ैर क़ौमों के ख़तरों में शहर के ख़तरों में वीरान के ख़तरों में समुन्दर के ख़तरों में झूठे भाइयों के ख़तरों में।
\s5
\v 27 मेहनत और मशक़्क़त में बारहा बेदारी की हालत में भूक और प्यास की मुसीबत में बारहा फ़ाक़ा कशी में सर्दी और नंगें पन की हालत में रहा हूँ।
\v 28 और बातों के अलावा जिनका मैं ज़िक्र नहीं करता सब कलीसियायों की फ़िक्र मुझे हर रोज़ आती है।
\v 29 किसी की कमज़ोरी से मैं कमज़ोर नहीं होता, किसी के ठोकर खाने से मेरा दिल नहीं दुखता?।
\s5
\v 30 अगर फ़ख़्र ही करना ज़रूर है तो उन बातों पर फ़ख़्र करूँगा जो मेरी कमज़ोरी से मुता'ल्लिक़ हैं।
\v 31 ख़ुदावन्द ईसा' का ख़ुदा और बाप जिसकी हमेशा तक हम्द हो जानता है कि मैं झूठ नहीं कहता।
\s5
\v 32 दमिश्क़ के शहर में उस हाकिम ने जो बादशाह अरितास की तरफ़ से था मेरे पकड़ने के लिए दमिश्क़यों के शहर पर पहरा बिठा रखा था।
\v 33 फिर मै टोकरे में ख़िड़की की राह दिवार पर से लटका दिया गया और मैं उसके हाथों से बच गया।
\s5
\c 12
\v 1 मुझे फ़ख़्र करना ज़रूरी हुआ अगरचे मुफ़ीद नहीं पस जो रोया और मुकाशफ़े ख़ुदावन्द की तरफ़ से इनायत हुए उनका मैं ज़िक्र करता हूँ।
\v 2 मैं मसीह में एक शख़्स को जानता हूँ चौदह बरस हुए कि वो यकायक तीसरे आसमान तक उठा लिया गया न मुझे ये मा'लूम कि बदन समेत न ये मा'लूम कि बग़ैर बदन के ये ख़ुदा को मा'लूम है।
\s5
\v 3 और मैं ये भी जानता हूँ कि उस शख़्स ने बदन समेत या बग़ैर बदन के ये मुझे मा'लूम नहीं ख़ुदा को मा'लूम है।
\v 4 यकायक फ़िरदौस में पहुँचकर ऐसी बातें सुनी जो कहने की नहीं और जिनका कहना आदमी को रवा नहीं।
\v 5 मैं ऐसे शख़्स पर तो फ़ख़्र करूँगा लेकिन अपने आप पर सिवा अपनी कमज़ोरी के फ़ख़्र करूँगा।
\s5
\v 6 और अगर फ़ख़्र करना चाहूँ भी तो बेवक़ूफ़ न ठहरूँगा इसलिए कि सच बोलूँगा मगर तोभी बा'ज़ रहता हूँ ताकि कोई मुझे इस से ज़्यादा न समझे जैसा मुझे देखा है या मुझ से सुना है।
\v 7 और मुकाश्फ़ों की ज़ियादती के ज़रि'ए मेरे फूल जाने के अन्देशे से मेरे जिस्म में कांटा चुभोया गया या'नी शैतान का क़ासिद ताकि मेरे मुक्के मारे और मैं फ़ूल न जाऊँ।
\s5
\v 8 इसके बारे में मैंने तीन बार ख़ुदावन्द से इल्तिमास किया कि ये मुझ से दूर हो जाए।
\v 9 मगर उसने मुझ से कहा कि मेरा फ़ज़ल तेरे लिए काफ़ी है क्यूँकि मेरी क़ुदरत कमज़ोरी में पूरी होती है पस मैं बड़ी ख़ुशी से अपनी कमज़ोरी पर फ़ख़्र करूँगा ताकि मसीह की क़ुदरत मुझ पर छाई रहे।
\v 10 इसलिए मैं मसीह की ख़ातिर कमज़ोरी में बे'इज़्ज़ती में, एहतियाज में, सताए जाने में, तंगी में, ख़ुश हूँ क्यूँकि जब मैं कमज़ोर होता हूँ उसी वक़्त ताक़तवर होता हूँ।
\s5
\v 11 मैं बेवक़ूफ़ तो बना मगर तुम ही ने मुझे मजबूर किया, क्यूँकि तुम को मेरी तारीफ़ करना चाहिए था इसलिए कि उन अफ़्ज़ल रसूलों से किसी बात में कम नहीं अगरचे कुछ नहीं हूँ।
\v 12 सच्चा रसूल होने की अलामतें कमाल सब्र के साथ निशानों और अजीब कामों और मोजिज़ों के वसीले से तुम्हारे दर्मियान ज़ाहिर हुईं।
\v 13 तुम कौन सी बात में और कलीसियाओं में कम ठहरे बा वजूद इसके मैंने तुम पर बौझ न डाला? मेरी ये बेइन्साफ़ी मु'आफ़ करो।
\s5
\v 14 देखो ये तीसरी बार मैं तुम्हारे पास आने के लिए तैयार हूँ और तुम पर बौझ न डालूँगा इसलिए कि मै तुम्हारे माल का नहीं बल्कि तुम्हारा चहेता हूँ, क्यूँकि लड़कों को माँ बाप के लिए जमा करना नहीं चाहिए, बल्कि माँ बाप को लड़कों के लिए।
\v 15 और मैं तुम्हारी रूहों के वास्ते बहुत ख़ुशी से खर्च करूँगा, बल्कि खुद ही खर्च हो जाऊंगा| अगर मैं तुम से ज़्यादा मुहब्बत रख़ूँ तो क्या तुम मुझ से कम मुहब्बत रखोगे।
\s5
\v 16 लेकिन मुम्किन है कि मैंने ख़ुद तुम पर बोझ न डाला हो मगर मक्कार जो हुआ इसलिए तुम को धोखा देकर फँसा लिया हो।
\v 17 भला जिन्हें मैंने तुम्हारे पास भेजा कि उन में से किसी की जरिए दग़ा के तौर पर तुम से कुछ लिया?।
\v 18 मैंने तितुस को समझा कर उनके साथ उस भाई को भेजा पस क्या तितुस ने तुम से दग़ा के तौर पर कुछ लिया? क्या हम दोनों का चाल चलन एक ही रूह की हिदायत के मुताबिक़ न था; क्या हम एक ही नक़्शे क़दम पर न चले।
\s5
\v 19 तुम अभी तक यही समझते होगे कि हम तुम्हारे सामने उज़्र कर रहे हैं? हम तो ख़ुदा को हाज़िर जानकर मसीह में बोलते हैं और ऐ, प्यारो ये सब कुछ तुम्हारी तरक़्क़ी के लिए है।
\s5
\v 20 क्यूँकि मैं डरता हूँ कहीं ऐसा न हो कि आकर जैसा तुम्हें चाहता हूँ वैसा न पाऊँ और मुझे भी जैसा तुम नहीं चाहते वैसा ही पाओ कि तुम में ,झगड़ा, हसद, गुस्सा, तफ्रक़े, बद गोइयाँ, ग़ीबत, शेख़ी और फ़साद हों।
\v 21 और फिर जब मैं आऊँ तो मेरा ख़ुदा तुम्हारे सामने आजिज़ करे और मुझे बहुतों के लिए अफ़्सोस करना पड़े जिन्होंने पहले गुनाह किए हैं और उनकी नापाकी और हरामकारी और शहवत परस्ती से जो उन से सरज़द हुई तोबा न की।
\s5
\c 13
\v 1 ये तीसरी बार मैं तुम्हारे पास आता हूँ |दो या तीन गवाहों कि ज़बान से हर एक बात साबित हो जाएगी |
\v 2 जैसे मैंने जब दूसरी दफ़ा हाज़िर था तो पहले से कह दिया था,वैसे ही अब ग़ैर हाजिरी में भी उन लोगों से जिन्होंने पहले गुनाह किए हैं और सब लोगों से, पहले से कहे देता हूँ कि अगर फिर आऊंगा तो दर गुज़र न करूँगा |
\s5
\v 3 क्यूंकि तुम इसकी दलील चाहते हो कि मसीह मुझ में बोलता हैं ,और वो तुम्हारे लिए कमज़ोर नहीं बल्कि तुम में ताक़तवर है |
\v 4 हाँ ,वो कमजोरी की वजह से मस्लूब किया गया ,लेकिन ख़ुदा की क़ुदरत की वजह से ज़िन्दा है;और हम भी उसमें कमज़ोर तो हैं ,मगर उसके साथ ख़ुदा कि उस क़ुदरत कि वजह से जिन्दा होंगे जो तुम्हारे लिए है |
\s5
\v 5 तुम अपने आप को आज़माओ कि ईमान पर हो या नहीं |अपने आप को जाँचो तुम अपने बारे में ये नहीं जानते हो कि ईसा' मसीह तुम में है ?वर्ना तुम नामक़बूल हो |
\v 6 लेकिन मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम मा'लूम कर लोगे कि हम तो नामक़बूल नहीं |
\s5
\v 7 हम ख़ुदा से दुआ करते हैं कि तुम कुछ बदी न करो ना इस वास्ते कि हम मक़बूल मालूम हों ' बल्कि इस वास्ते कि तुम नेकी करो चाहे हम नामक़बूल ही ठहरें |
\v 8 क्यूंकि हम हक़ के बारख़िलाफ़ कुछ नहीं कर सकते ,मगर सिर्फ़ हक़ के लिए कर सकते हैं |
\s5
\v 9 जब हम कमज़ोर हैं और तुम ताक़तवर हो,तो हम ख़ुश हैं और ये दुआ भी करते हैं कि तुम कामिल बनो |
\v 10 इसलिए मैं ग़ैर हाज़िरी में ये बातें लिखता हूँ ताकि हाज़िर होकर मुझे उस इख़्तियार के मुवाफ़िक़ सख़्ती न करना पड़े जो ख़ुदावन्द ने मुझे बनाने के लिए दिया है न कि बिगाड़ने के लिये|
\s5
\v 11 ग़रज़ ऐ भाइयों! ख़ुश रहो, कामिल बनो,इत्मिनान रख्खो, यकदिल रहो, मेल-मिलाप रख्खो तो ख़ुदा, मुहब्बत और मेल-मिलाप का चश्मा तुम्हारे साथ होगा |
\v 12 आपस में पाक बोसा लेकर सलाम करो |
\s5
\v 13 सब मुक़द्दस लोग तुम को सलाम कहते हैं

230
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\id GAL
\ide UTF-8
\h गलातियों के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\toc1 गलातियों के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\toc2 गलातियों के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\toc3 gal
\mt1 गलातियों के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 पौलुस की तरफ से जो ना इन्सानों की जानिब से ना इन्सान की वजह से, बल्कि ईसा 'मसीह और ख़ुदा बाप की वजह से जिसने उसको मुर्दों मे से जिलाया,रसूल है;
\v 2 और सब भाइयों की तरफ से जो मेरे साथ हैं, गलतिया सूबे की कालीसियाओ को ख़त :
\s5
\v 3 ख़ुदा बाप और हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह की तरफ़ से तुम्हें फ़ज़ल और इतमिनान हासिल होता रहे|
\v 4 उसी ने हमारे गुनाहों के लिए अपने आप को दे दिया;ताकि हमारे ख़ुदा और बाप की मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ हमें इस मौजूदा ख़राब जहान से ख़लासी बख्शे|
\v 5 उसकी बड़ाई हमेशा से हमेशा तक होती रहे आमीन |
\s5
\v 6 मैं ताअ'ज्जुब करता हूँ कि जिसने तुम्हें मसीह के फ़ज़ल से बुलाया, उससे तुम इस क़दर जल्द फिर कर किसी और तरह की ख़ुशख़बरी की तरफ़ माइल होने लगे,
\v 7 मगर वो दूसरी नही; अलबत्ता कुछ ऐसे हैं जो तुम्हें उलझा देते और मसीह की ख़ुशख़बरी को बिगाड़ना चाहते हैं|
\s5
\v 8 लेकिन हम या आसमान का कोई फ़रिश्ता भी उस ख़ुशख़बरी के सिवा जो हमने तुम्हें सुनाई,कोई और ख़ुशख़बरी सुनाए तो मला'उन हो|
\v 9 जैसा हम पहले कह चुके हैं, वैसा ही मैं अब फिर कहता हूँ कि उस ख़ुशख़बरी के सिवा जो तुम ने क़ुबूल की थी, अगर तुम्हें और कोई ख़ुशख़बरी सुनाता है तो मला'उन हो |
\v 10 अब मैं आदमियों को दोस्त बनाता हूँ या ख़ुदा को?क्या आदमियों को ख़ुश करना चाहता हूँ?अगर अब तक आदिमयों को ख़ुश करता रहता,तो मसीह का बन्दा ना होता|
\s5
\v 11 ऐ भाइयों! मैं तुम्हें बताए देता हूँ कि जो ख़ुशख़बरी मैं ने सुनाई वो इंसान की नहीं|
\v 12 क्यूँकि वो मुझे इन्सान की तरफ़ से नही पहूँची, और न मुझे सिखाई गई, बल्कि ख़ुदा' मसीह की तरफ़ से मुझे उसका मुकाशफ़ा हुआ|
\s5
\v 13 चुनांचे यहूदी तरीक़े में जो पहले मेरा चाल-चलन था, तुम सुन चुके हो कि मैं ख़ुदा की कलीसिया को अज़हद सताता और तबाह करता था |
\v 14 और मैं यहूदी तरीक़े में अपनी क़ौम के अक्सर हम 'उम्रों से बढ़ता जाता था, और अपने बुज़ुर्गों की रिवायतों में निहायत सरगर्म था |
\s5
\v 15 लेकिन जिस ख़ुदा ने मेरी माँ के पेट ही से मख़्सूस कर लिया, और अपने फ़ज़ल से बुला लिया,जब उसकी ये मर्ज़ी हुई
\v 16 कि अपने बेटे को मुझ में ज़ाहिर करे ताकि मैं ग़ैर-क़ौमों मे उसकी ख़ुशख़बरी दूँ,तो न मैंने गोश्त और ख़ून से सलाह ली,
\v 17 और न युरुशलीम में उनके पास गया जो मुझ से पहले रसूल थे, बल्कि फ़ौरन अरब मुल्क को चला गया फिर वहाँ से दमिश्क़ शहर को वापस आया
\s5
\v 18 फिर तीन बरस के बाद मै कैफ़ा से मुलाक़ात करने को गया और पन्द्र्ह दिन तक उसके पास रहा |
\v 19 मगर और रसूलों में से ख़ुदावन्द के भाई या'क़ूब के सिवा किसी से न मिला |
\v 20 जो बातें मैं तुम को लिखता हूँ, ख़ुदा को हाज़िर जान कर कहता हूँ कि वो झूठी नही |
\s5
\v 21 इसके बा'द मैं सूरिया और किलिकीया के इलाक़ों में आया;
\v 22 और यहूदिया सूबा की कालीसियाएँ, जो मसीह में थीं मुझे सूरत से न जानती थी,
\v 23 मगर ये सुना करती थीं, "जो हम को पहले सताता था, वो अब उसी दीन की ख़ुशख़बरी देता है जिसे पहले तबाह करता था | "
\v 24 और वो मेरे ज़रि'ए ख़ुदा की बड़ाई करती थी |
\s5
\c 2
\v 1 आख़िर चौदह बरस के बा'द मैं बरनबास के साथ फिर यरुशलीम को गया और तितुस को भी साथ ले गया |
\v 2 और मेरा जाना मुकाशफ़ा के मुताबिक़ हुआ; और जिस ख़ुशख़बरी की ग़ैर-क़ौमों में मनादी करता हूँ वो उन से बयान की, मगर तन्हाई मे उन्हीं के लोगों से जो कुछ समझे जाते थे, कहीं ऐसा ना हो कि मेरी इस वक़्त की या अगली दौड़ धूप बेफ़ायदा जाए |
\s5
\v 3 लेकिन तीतुस भी जो मेरे साथ था और यूनानी है ख़तना करने पर मजबूर न किया गया |
\v 4 और ये उन झूठे भाइयों की वजह से हुआ जो छिप कर दाख़िल हो गए थे,ताकि उस आज़ादी को जो तुम्हें मसीह ईसा' में हासिल है,जासूसों के तौर पर मालूम करके हमे ग़ुलामी में लाएँ|
\v 5 उनके ताबे रहना हम ने पल भर के लिए भी मंज़ूर ना किया, ताकि ख़ुशख़बरी की सच्चाई तुम में क़ायम रहे |
\s5
\v 6 और जो लोग कुछ समझे जाते थे[चाहे वो कैसे ही थे मुझे इससे कुछ भी वास्ता नही;ख़ुदा किसी आदमी का तरफ़दार नहीं] उनसे जो कुछ समझे जाते थे मुझे कुछ हासिल ना हुआ |
\v 7 लेकिन बर'अक्स इसके जब उन्होने ये देखा कि जिस तरह यहूदी मख़्तूनों को ख़ुशख़बरी देने का काम पतरस के सुपुर्द हुआ
\v 8 क्यूंकि जिसने मख़्तूनों की रिसालत के लिए पतरस में असर पैदा किया, उसी ने ग़ैर-यहूदी न मख़्तूनक़ौमों के लिए मुझ में भी असर पैदा किया];
\s5
\v 9 और जब उन्होंने उस तौफ़ीक़ को मा'लूम किया जो मुझे मिली थी,तो या'क़ूब और कैफ़ा और याहुन ने जो कलिसिया के सुतून समझे जाते थे, मुझे और बरनबास को दहना हाथ देकर शरीक कर लिया, ताकि हम ग़ैर क़ौमों के पास जाएँ और वो मख़्तूनों के पास ;
\v 10 और सिर्फ़ ये कहा कि ग़रीबों को याद रखना, मगर मैं ख़ुद ही इसी काम की कोशिश में हूँ ,
\s5
\v 11 और जब कैफ़ा अंताकिया शहर में आया तो मैने रु-ब-रु होकर उसकी मुख़ालिफ़त की ,क्यूंकि वो मलामत के लायक़ था |
\v 12 इस लिए कि या'क़ूब की तरफ़ से चन्द लोगों के आने से पहले तो वो ग़ैर-क़ौम वालों के साथ खाया करता था,मगर जब वो आ गए तो मख़्तूनों से डर कर बाज़ रहा और किनारा किया|
\s5
\v 13 और बाक़ी यहूदी ईमानदारों ने भी उसके साथ होकर रियाकारी की यहाँ तक कि बरनबास भी उसके साथ रियाकारी में पड़ गया|
\v 14 जब मैंने देखा कि वो ख़ुशख़बरी की सच्चाई के मुताबिक़ सीधी चाल नहीं चलते,तो मैने सब के सामने कैफ़ा से क़हा, "जब तू बावजूद यहूदी होने के ग़ैर क़ौमों की तरह ज़िंदगी गुज़ारता है न कि यहूदियों की तरह तो ग़ैर क़ौमों को यहूदियों की तरह चलने पर क्यूँ मजबूर करता है?"
\s5
\v 15 जबकि हम पैदाइश से यहूदी हैं, और गुनहगार ग़ैर क़ौमों में से नही|
\v 16 तोभी ये जान कर कि आदमी शरीअत के आमाल से नहीं बल्कि सिर्फ़ ईसा' मसीह पर ईमान लाने से रास्तबाज़ ठहरता है ख़ुद भी मसीह ईसा' पर ईमान लाने से रास्तबाज़ ठहरें न कि शरीअत के आमाल से क्यूंकि शरीअत के अमाल से कोई भी बशर रास्त बाज़ न ठहरेगा |
\s5
\v 17 और हम जो मसीह मे रास्तबाज़ ठहरना चाहते हैं, अगर ख़ुद ही गुनाहगार निकलें तो क्या मसीह गुनाह का ज़रि'ए है? हरगिज़ नहीं!
\v 18 क्यूंकि जो कुछ मैंने शरी'अत को ढा दिया अगर उसे फिर बनाऊँ,तो अपने आप को कुसुरवार ठहराता हूँ|
\v 19 चुनाचे मैं शरी'अत ही के वसीले से शरी'अत के ए'तिबार से मारा गया, ताकि ख़ुदा के ए'तिबार से ज़िंदा हो जाऊँ|
\s5
\v 20 मैं मसीह के साथ मसलूब हुआ हूं; और अब मैं ज़िंदा न रहा बल्कि मसीह मुझ में ज़िंदा है;और मैं जो अब जिस्म में ज़िन्दगी गुज़ारता हूँ तो ख़ुदा के बेटे पर ईमान लाने से गुज़ारता हूं,जिसने मुझ से मुहब्बत रखी और अपने आप को मेरे लिए मौत के हवाले कर दिया|
\v 21 मैं ख़ुदा के फ़ज़ल को बेकार नहीं करता,क्यूंकि रास्तबाज़ी अगर शरी'अत के वसीले से मिलती,तो मसीह का मरना बेकार होता|
\s5
\c 3
\v 1 ऐ नादान गलितियो,किसने तुम पर जादू कर दिया? तुम्हारी तो गोया आंखों के सामने ईसा' मसीह सलीब पर दिखाया गया |
\v 2 मैं तुम से सिर्फ़ ये गुज़ारिश करना चाहता हूं :कि तुम ने शरी'अत के आ'माल से पाक रूह को पाया या ईमान की ख़ुशख़बरी के पैग़ाम से?
\v 3 क्या तुम ऐसे नादान हो कि पाक रूह के तौर पर शुरू करके अब जिस्म के तौर पर काम पूरा करना चाहते हो?
\s5
\v 4 क्या तुमने इतनी तकलीफ़ें बे फ़ायदा उठाईं? मगर शायद बे फ़ायदा नहीं |
\v 5 पर जो तुम्हें पाक रूह बख़्शता और तुम में मो'जिज़े ज़ाहिर करता है,क्या वो शरी'अत के आ'माल से ऐसा करता है या ईमान के ख़ुशख़बरी के पैग़ाम से?
\s5
\v 6 चुनाचे "अब्रहाम ख़ुदा पर ईमान लाया और ये उसके लिऐ रास्तबाज़ी गिना गया |"
\v 7 पस जान लो कि जो ईमानवाले है़, वही अब्रहाम के फ़रज़न्द हैं |
\v 8 और किताब-ए- मुक़द्दस ने पहले से ये जान कर कि ख़ुदा ग़ैर क़ौमों को ईमान से रास्तबाज़ ठहराएगा,पहले से ही अब्रहाम को ये ख़ुशख़बरी सुना दी, ''तेरे ज़रिए सब क़ौमें बरकत पाएँगी|"
\v 9 इस पर जो ईमान वाले है, वो ईमानदार अब्रहाम के साथ बरकत पाते है |
\s5
\v 10 क्यूंकि जितने शरी'अत के आ'माल पर तकिया करते है, वो सब ला'नत के मातहत हैं; चुनाँचे लिखा है,जो कोई उन सब बातों को जो किताब में से लिखी है; क़ायम न रहे वो ला'नती है|"
\v 11 और ये बात साफ़ है कि शरी'अत के वसीले से कोई इन्सान ख़ुदा के नज़दीक रास्तबाज़ नहीं ठहरता,क्यूंकि कलाम में लिखा है,"रास्तबाज़ ईमान से जीता रहेगा|"
\v 12 और शरी'अत को ईमान से कुछ वास्ता नहीं,बल्कि लिखा है, "जिसने इन पर 'अमल किया, वो इनकी वजह से जीता रहेगा "
\s5
\v 13 मसीह जो हमारे लिए ला'नती बना, उसने हमे मोल लेकर शरी'अत की लानत से छुड़ाया,क्यूंकि कलाम में लिखा है, "जो कोई लकड़ी पर लटकाया गया वो ला'नती है |"
\v 14 ताकि मसीह ईसा' में अब्रहाम की बरकत ग़ैर क़ौमों तक भी पहूँचे, और हम ईमान के वसीले से उस रूह को हासिल करें जिसका वा'दा हुआ है |
\s5
\v 15 ऐ भाइयों !मैं इन्सानियत के तौर पर कहता हूँ कि अगर आदमी ही का 'अहद हो ,जब उसकी तसदीक़ हो गई हो तो कोई उसको बातिल नहीं करता और ना उस पर कुछ बढ़ाता है |
\v 16 पस अब्रहाम और उसकी नस्ल से वा'दे किए गए |वो ये नहीं कहता,नस्लों से,"जैसा बहुतों के वास्ते कहा जाता है:बल्कि जैसा एक के वास्ते,तेरी नस्ल को और वो मसीह है|
\s5
\v 17 मेरा ये मतलब है :जिस 'अहद की ख़ुदा ने पहले से तसदीक़ की थी,उसको शरी'अत चार सौ तीस बरस के बा'द आकर बातिल नहीं कर सकती कि वो वा'दा लाहासिल हो|
\v 18 क्यूंकि अगर मीरास शरी'अत की वजह से मिली है तो वा'दे की वजह से ना हुई,मगर अब्रहाम को ख़ुदा ने वा'दे ही की राह से बख़्शी|
\s5
\v 19 पस शरी'अत क्या रही?वो नाफ़रमानियों की वजह से बा'द मे दी गई कि उस नस्ल के आने तक रहे, जिससे वा'दा किया गया था;और वो फ़रिश्तों के वसीले से एक दरमियानी की मा'रिफ़त मुक़र्रर की गई|
\v 20 अब दर्मियानी एक का नहीं होता, मगर ख़ुदा एक ही है |
\s5
\v 21 पस क्या शरी'अत ख़ुदा के वा'दों के ख़िलाफ़ है? हरगिज़ नहीं! क्यूंकि अगर कोई एसी शरी'अत दी जाती जो ज़िन्दगी बख़्श सकती तो, अलबत्ता रास्तबाज़ी शरी'अत की वजह से होती|
\v 22 मगर किताब-ए-मुक़द्दस ने सबको गुनाह के मातहत कर दिया,ताकि वो वा'दा जो ईसा' मसीह पर ईमान लाने पर मौक़ूफ़ है, ईमानदारों के हक़ में पूरा किया जाए |
\s5
\v 23 ईमान के आने से पहले शरी'अत की मातहती मे हमारी निगहबानी होती थी, और उस ईमान के आने तक जो ज़ाहिर होनेवाला था, हम उसी के पाबन्द रहे|
\v 24 पस शरी'अत मसीह तक पहूँचाने को हमारा उस्ताद बनी,ताकि हम ईमान की वज़ह से रास्तबाज़ ठहरें|
\v 25 मगर जब ईमान आ चुका,तो हम उस्ताद के मातहत ना रहे|
\v 26 क्यूंकि तुम उस ईमान के वसीले से जो मसीह ईसा' में है, ख़ुदा के फ़र्ज़न्द हो|
\s5
\v 27 और तुम सब, जितनों ने मसीह मैं शामिल होने का बपतिस्मा लिया मसीह को पहन लिया
\v 28 न कोई यहूदी रहा, न कोई यूनानी, न कोई ग़ुलाम, ना आज़ाद, न कोई मर्द, न औरत, क्यूंकि तुम सब मसीह 'ईसा में एक ही हो|
\v 29 और अगर तुम मसीह के हो तो अब्राहम की नस्ल और वा'दे के मुताबिक़ वारिस हो|
\s5
\c 4
\v 1 और मैं ये कहता हूँ कि वारिस जब तक बच्चा है,अगरचे वो सब का मालिक है, उसमें और ग़ुलाम में कुछ फ़र्क़ नहीं|
\v 2 बल्कि जो मि'आद बाप ने मुक़र्रर की उस वक़्त तक सरपरस्तों और मुख़्तारों के इख़्तियार में रहता है|
\s5
\v 3 इसी तरह हम भी जब बच्चे थे,तो दुनियावी इब्तिदाई बातों के पाबन्द होकर ग़ुलामी की हालत में रहे|
\v 4 लेकिन जब वक़्त पूरा हो गया, तो ख़ुदा ने अपने बेटे को भेजा जो 'औरत से पैदा हुआ और शरी'अत के मातहत पैदा हुआ,
\v 5 ताकि शरी'अत के मातहतों को मोल लेकर छुड़ा ले और हम को लेपालक होने का दर्जा मिले|
\s5
\v 6 और चूँकि तुम बेटे हो, इसलिए ख़ुदा ने अपने बेटे का रूह हमारे दिलों में भेजा जो 'अब्बा 'या'नी ऐ बाप, कह कर पुकारता है|
\v 7 पस अब तू ग़ुलाम नहीं बल्कि बेटा है,और जब बेटा हुआ तों ख़ुदा के वसीले से वारिस भी हुआ|
\s5
\v 8 लेकिन उस वक़्त ख़ुदा से नवाक़िफ़ होकर तुम उन मा'बूदों की ग़ुलामी में थे जो अपनी ज़ात से ख़ुदा नहीं,
\v 9 मगर अब जो तुम ने ख़ुदा को पहचाना,बल्कि ख़ुदा ने तुम को पहचाना,तो उन कमज़ोर और निकम्मी शुरुआती बातों की तरफ़ किस तरह फिर रुजू' होते हो, जिनकी दुबारा ग़ुलामी करना चाहते हो?
\s5
\v 10 तुम दिनों और महीनों और मुक़र्रर वक़्तों और बरसों को मानते हो|
\v 11 मुझे तुम्हारे बारे में डर लगता है,कहीं ऐसा न हो कि जो मेहनत मैंने तुम पर की है बेकार न हो जाए
\s5
\v 12 ऐ भाइयों! मैं तुमसे गुज़ारिश करता हूँ कि मेरी तरह हो जाओ,क्यूंकि मैं भी तुम्हारी तरह हूँ;तुम ने मेरा कुछ बिगाड़ा नहीं|
\v 13 बल्कि तुम जानते हो कि मैंने पहली बार 'जिस्म की कमज़ोरी की वजह से तुम को ख़ुशख़बरी सुनाई थी|
\v 14 और तुम ने मेरी उस जिस्मानी हालत को, जो तुम्हारी आज़माईश का ज़रि'या थी, ना हक़ीर जाना,न उससे नफ़रत की; और ख़ुदा के फ़रिश्ते बल्कि मसीह ईसा' की तरह मुझे मान लिया|
\s5
\v 15 पस तुम्हारा वो ख़ुशी मनाना कहाँ गया? मैं तुम्हारा गवाह हूँ कि हो सकता तो तुम अपनी आंखे भी निकाल कर मुझे दे देते|
\v 16 तो क्या तुम से सच बोलने की वजह से मैं तुम्हारा दुश्मन बन गया?
\s5
\v 17 वो तुम्हें दोस्त बनाने की कोशिश तो करते हैं,मगर नेक नियत से नहीं;बल्कि वो तुम्हें अलग करना चाहते हैं,ताकि तुम उन्हीं को दोस्त बनाने की कोशिश करो|
\v 18 लेकिन ये अच्छी बात है कि नेक अम्र में दोस्त बनाने की हर वक़्त कोशिश की जाए,न सिर्फ़ जब मैं तुम्हारे पास मोजूद हूँ|
\s5
\v 19 ऐ मेरे बच्चों!तुम्हारी तरफ़ से मुझे फिर जनने के से दर्द लगे हैं,जब तक कि मसीह तुम में सूरत न पकड़ ले|
\v 20 जी चाहता है कि अब तुम्हारे पास मौजूद होकर और तरह से बोलूँ क्यूंकि मुझे तुम्हारी तरफ़ से शुबह है|
\s5
\v 21 मुझ से कहो तो, तुम जो शरी'अत के मातहत होना चाहते हो,क्या शरी'अत की बात को नहीं सुनते
\v 22 ये कलाम में लिखा है कि अब्रहाम के दो बेटे थे;एक लौंडी से और एक आज़ाद से|
\v 23 मगर लौंडी का जिस्मानी तौर पर, और आज़ाद का बेटा वा'दे के वजह से पैदा हुआ|
\s5
\v 24 इन बातों में मिसाल पाई जाती है :इसलिए ये 'औरतें गोया दो ;अहद हैं|एक कोह-ए-सीना पर का जिस से ग़ुलाम ही पैदा होते हैं, वो हाजरा है|
\v 25 और हाजरा 'अरब का कोह-ए-सीना है,और मौजूदा यरूशलीम उसका जवाब है,क्यूंकि वो अपने लड़कों समेत ग़ुलामी में है|
\s5
\v 26 मगर 'आलम-ए-बाला का यरुशलीम आज़ाद है, और वही हमारी माँ है|
\v 27 क्यूँकि लिखा है, ''कि ऐ बाँझ, जिसके औलाद नहीं होती ख़ुशी मना,तू जो दर्द-ए-ज़िह से नावाक़िफ़ है, आवाज़ ऊँची करके चिल्ला; क्यूँकि बेकस छोड़ी हुई की औलाद है शौहर वाली की औलाद से ज़्यादा होगी|''
\s5
\v 28 पस ऐ भाइयों! हम इज़्हाक़ की तरह वा'दे के फ़र्ज़न्द हैं|
\v 29 और जैसे उस वक़्त जिस्मानी पैदाईश वाला रूहानी पैदाईश वाले को सताता था, वैसे ही अब भी होता है |
\s5
\v 30 मगर किताब-ए-मुक़द्दस क्या कहती है?ये कि "लौंडी और उसके बेटे को निकाल दे, क्यूँकि लौंडी का बेटा आज़ाद के साथ हरगिज़ वारिस न होगा|"
\v 31 पस ऐ भाइयों!हम लौंडी के फ़र्ज़न्द नहीं, बल्कि आज़ाद के हैं|
\s5
\c 5
\v 1 मसीह ने हमे आज़ाद रहने के लिए आज़ाद किया है; पस क़ायम रहो, और दोबारा ग़ुलामी के जुवे में न जुतो|
\v 2 सुनो, मैं पौलुस तुमसे कहता हूँ कि अगर तुम ख़तना कराओगे तो मसीह से तुम को कुछ फ़ाइदा न होगा|
\s5
\v 3 बल्कि मैं हर एक ख़तना करने वाले आदमी पर फिर गवाही देता हूँ,कि उसे तमाम शरी'अत पर ' अमल करना फ़र्ज़ है|
\v 4 तुम जो शरी'अत के वसीले से रास्तबाज़ ठहरना चाहते हो, मसीह से अलग हो गए और फ़ज़ल से महरूम|
\s5
\v 5 क्यूंकि हम पाक रूह के ज़रिए , ईमान से रास्तबाज़ी की उम्मीद बर आने के मुन्तज़िर हैं|
\v 6 और मसीह ईसा' में न तो ख़तना कुछ काम का है न नामख़्तूनी मगर ईमान जो मुहब्बत की राह से असर करता है|
\v 7 तुम तो अच्छी तरह दौड़ रहे थे किसने तम्हें हक़ के मानने से रोक दिया |
\v 8 ये तरग़ीब ख़ुदा जिसने तुम्हें बुलाया उस की तरफ़ से नही है|
\s5
\v 9 थोड़ा सा ख़मीर सारे गूँधे हुए आटे को ख़मीर कर देता है|
\v 10 मुझे ख़ुदावन्द में तुम पर ये भरोसा है कि तुम और तरह का ख़याल न करोगे; लेकिन जो तुम्हे उलझा देता है, वो चाहे कोई हो सज़ा पाएगा|
\s5
\v 11 और ऐ भाइयों! अगर मैं अब तक ख़तना का एलान करता हूँ, तो अब तक सताया क्यूँ जाता हूँ?इस सूरत में तो सलीब की ठोकर तो जाती रही|
\v 12 काश कि तुम्हे बेक़रार करने वाले अपना तअ'ल्लुक़ तोड़ लेते|
\s5
\v 13 ऐ भाइयों! तुम आज़ादी के लिए बुलाए तो गए हो,मगर ऐसा न हो कि ये आज़ादी जिस्मानी बातों का मौक़ा, बने; बल्कि मुहब्बत की राह पर एक दूसरे की ख़िदमत करो|
\v 14 क्यूँकि पूरी शरी'अत पर एक ही बात से 'अमल हो जाता है, या;नी इससे कि "तू अपने पड़ौसी से अपनी तरह मुहब्बत रख|"
\v 15 लेकिन अगर तुम एक दूसरे को फाड़ खाते हो,तो ख़बरदार रहना कि एक दूसरे का सत्यानास न कर दो|
\s5
\v 16 मगर मैं तुम से ये कहता हूँ,रूह के मुताबिक़ चलो तो जिस्म की ख़्वाहिश को हरगिज़ पूरा न करोगे |
\v 17 क्यूँकि जिस्म रूह के खिलाफ़ ख़्वाहिश करता है और रूह जिस्म के ख़िलाफ़ है, और ये एक दूसरे के मुख़ालिफ़ हैं,ताकि जो तुम चाहो वो न करो|
\v 18 और अगर तुम पाक रूह की हिदायत से चलते हो,तो शरी'अत के मातहत नहीं रहे|
\s5
\v 19 अब जिस्म के काम तो ज़ाहिर हैं,या'नी कि हरामकारी , नापाकी ,शहवत परस्ती,|
\v 20 बुत परसती, जादूगरी, अदावतें, झगड़ा, हसद, ग़ुस्सा, तफ़्रक़े, जुदाइयाँ, बिद'अतें,
\v 21 अदावत ,नशाबाज़ी,नाच रंग और इनकी तरह, इनके ज़रिए तुम्हे पहले से कहे देता हूँ जिसको पहले बता चुका हूँ कि ऐसे काम करने वाले ख़ुदा की बादशाही के वारिस न होंगे |
\s5
\v 22 मगर पाक रूह का फल मुहब्बत, ख़ुशी, इत्मिनान, सब्र, मेहरबनी, नेकी, ईमानदारी
\v 23 हिल्म,परहेजगारी है;ऐसे कामों की कोई शरी;अत मुखालिफ़ नहीं|
\v 24 और जो मसीह ईसा' के हैं उन्होंने जिस्म को उसकी रगबतों और ख्वाहिशों समेत सलीब पर खींच दिया है|
\s5
\v 25 अगर हम पाक रूह की वजह से जिंदा हैं, तो रूह के मुवाफ़िक चलना भी चाहिए|
\v 26 हम बेज़ा फ़ख्र करके न एक दूसरे को चिढ़ायें,न एक दूसरे से जलें|
\s5
\c 6
\v 1 ऐ भाइयों ! अगर कोई आदमी किसी क़ुसूर में पकड़ा भी जाए तो तुम जो रूहानी हो, उसको नरम मिज़ाजी*से बहाल करो, और अपना भी ख्याल रख क़हीं तू भी आज़माइश में न पड़ जाए|
\v 2 तुम एक दूसरे का बोझ उठाओ, और यूँ मसीह की शरी' अत को पूरा करो|
\s5
\v 3 क्यूँकि अगर कोई शख्स अपने आप को कुछ समझे और कुछ भी न हो, तो अपने आप को धोखा देता है |
\v 4 पस हर शख्स अपने ही काम को आज़माले,इस सूरत में उसे अपने ही बारे में फ़ख्र करने का मौक़ा'होगा न कि दूसरे के बारे में |
\v 5 क्यूँकि हर शख़्स अपना ही बोझ उठाएगा|
\s5
\v 6 कलाम की ता'लीम पानेवाला, ता'लीम देनेवाले को सब अच्छी चीज़ों में शरीक करे|
\v 7 धोखा न खाओ; ख़ुदा ठटठों में नहीं उड़ाया जाता,क्यूँकि आदमी जो कुछ बोता है वही काटेगा|
\v 8 जो कोई अपने जिस्म के लिए बोता है,वो जिस्म से हलाकत की फ़स्ल काटेगा; और जो रूह के लिए बोता है,वो पाक रूह से हमेशा की ज़िंदिगी की फ़सल काटेगा|
\s5
\v 9 हम नेक काम करने में हिममत न हारें, क्यूँकि अगर बेदिल न होंगे तो 'सही वक़्त पर काटेंगे|
\v 10 पस जहाँ तक मौक़ा मिले सबके साथ नेकी करें खासकर अहले ईमान के साथ|
\s5
\v 11 देखो,मैंने कैसे बड़े बड़े हरफों में तुम को अपने हाथ से लिखा है|
\v 12 जितने लोग जिस्मानी ज़ाहिर होना चाहते हैं वो तुम्हे ख़तना कराने पर मजबूर करते हैं,सिर्फ़ इसलिए कि मसीह की सलीब के वजह से सताए न जायें|
\v 13 क्यूँकि ख़तना कराने वाले ख़ुद भी शरी'अत पर अमल नहीं करते, मगर तुम्हारा ख़तना इस लिए कराना चाहते हैं, कि तुम्हारी जिस्मानी हालत पर फ़ख्र करें|
\s5
\v 14 लेकिन ख़ुदा न करे कि मैं किसी चीज पर फ़ख्र ,करूं सिवा अपने ख़ुदावन्द मसीह ईसा' की सलीब के, जिससे दुनिया मेरे ए'तिबार से|
\v 15 क्यूँकि न ख़तना कुछ चीज़ है न नामख्तूनी, बल्कि नए सिरे से मख़लूक़ होना|
\v 16 और जितने इस कायदे पर चलें उन्हें,और ख़ुदा के इस्राइल को इत्मिनान और रहम हासिल होता रहे|
\s5
\v 17 आगे को कोई मुझे तकलीफ़ न दे, क्यूँकि मैं अपने जिस्म पर मसीह के दाग लिए फिरता हूँ|
\v 18 ऐ भाइयों ! हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह का फ़ज़ल तुम्हारे साथ रहे|अमीन

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\id EPH
\ide UTF-8
\h इफ़िसियों के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\toc1 इफ़िसियों के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\toc2 इफ़िसियों के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\toc3 eph
\mt1 इफ़िसियों के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 पौलुस की तरफ़ से जो ख़ुदा की मर्ज़ी से ईसा' मसीह का रसूल है, उन मुक़द्दसों के नाम ख़त जो इफ़िसुस शहर में हैं और ईसा' मसीह 'में ईमान्दार हैं:
\v 2 हमारे बाप ख़ुदा और ख़ुदावन्द ईसा' मसीह की तरफ़ से तुम्हें फ़ज़ल और इत्मिनान हासिल होता रहे ।
\s5
\v 3 हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह के ख़ुदा और बाप की हम्द हो, जिसने हम को मसीह में आसमानी मुक़ामों पर हर तरह की रूहानी बरकत बख़्शी |
\v 4 चुनाँचे उसने हम को दुनियाँ बनाने से पहले उसमें चुन लिया, ताकि हम उसके नज़दीक मुहब्बत में पाक और बे'ऐब हों!
\s5
\v 5 ख़ुदा अपनी मर्ज़ी के नेक इरादे के मुवाफ़िक़ हमें अपने लिए पहले से मुक़र्रर किया कि ईसा' मसीह के वसीले से ख़ुदा लेपालक बेटे हों,
\v 6 ताकि उसके उस फ़ज़ल के जलाल की सिताइश हो जो हमें उस 'अज़ीज़ में मुफ़्त बख़्शा।
\s5
\v 7 हम को उसमें 'ईसा के ख़ून के वसीले से मख़लसी, या'नी क़ुसूरों की मु'आफ़ी उसके उस फ़ज़ल की दौलत के मुवाफ़िक़ हासिल है,
\v 8 जो ख़ुदा ने हर तरह की हिक्मत और दानाई के साथ कसरत से हम पर नाज़िल किया
\s5
\v 9 चुनाँचे उसने अपनी मर्ज़ी के राज़ को अपने उस नेक इरादे के मुवाफ़िक़ हम पर ज़ाहिर किया, जिसे अपने में ठहरा लिया था
\v 10 ताकि ज़मानों के पूरे होने का ऐसा इन्तिज़ाम हो कि मसीह में सब चीज़ों का मजमू'आ हो जाए, चाहे वो आसमान की हों चाहे ज़मीन की।
\s5
\v 11 उसी में हम भी उसके इरादे के मुवाफ़िक़ जो अपनी मर्ज़ी की मसलेहत से सब कुछ करता है, पहले से मुक़र्रर होकर मीरास बने।
\v 12 ताकि हम जो पहले से मसीह की उम्मीद में थे, उसके जलाल की सिताइश का ज़रि'या हो
\s5
\v 13 और उसी में तुम पर भी, जब तुम ने कलाम-ए-हक़ को सुना जो तुम्हारी नजात की ख़ुशख़बरी है और उस पर ईमान लाए, वादा की हुई पाक रूह की मुहर लगी।
\v 14 पाक रूह ही ख़ुदा की मिल्कियत की मख़लसी के लिए हमारी मीरास की पेशगी है, ताकि उसके जलाल की सिताइश हो |
\s5
\v 15 इस वजह से मैं भी उस ईमान का, जो तुम्हारे दरमियान ख़ुदावन्द ईसा'' पर है और सब मुक़द्दसों पर ज़ाहिर है, हाल सुनकर |
\v 16 तुम्हारे ज़रि'ए शुक्र करने से बा'ज़ नही आता, और अपनी दु'आओं में तुम्हें याद किया करता हूँ।
\s5
\v 17 कि हमारे ख़ुदावन्द ईसा' ' मसीह का ख़ुदा जो जलाल का बाप है, तुम्हें अपनी पहचान में हिक्मत और मुकाशफ़ा की रूह बख़्शे;
\v 18 और तुम्हारे दिल की आँखें रौशन हो जाएँ ताकि तुम को मालूम हो कि उसके बुलाने से कैसी कुछ उम्मीद है, और उसकी मीरास के जलाल की दौलत मुक़द्दसों में कैसी कुछ है,
\s5
\v 19 और हम ईमान लानेवालों के लिए उसकी बड़ी क़ुदरत क्या ही अज़ीम है| उसकी बड़ी क़ुव्वत की तासीर के मुवाफ़िक़,
\v 20 जो उसने मसीह में की, जब उसे मुर्दों में से जिला कर अपनी दहनी तरफ़ आसमानी मुक़ामों पर बिठाया,
\v 21 और हर तरह की हुकूमत और इख़्तियार और क़ुदरत और रियासत और हर एक नाम से बहुत ऊँचा किया, जो न सिर्फ़ इस जहान में बल्कि आनेवाले जहान में भी लिया जाएगा;
\s5
\v 22 और सब कुछ उसके पाँव तले कर दिया; और उसको सब चीज़ों का सरदार बनाकर कलीसिया को दे दिया,
\v 23 ये 'ईसा का बदन है, और उसी की मा'मूरी जो हर तरह से सबका मा'मूर करने वाला है।
\s5
\c 2
\v 1 और उसने तुम्हें भी ज़िन्दा किया जब अपने कुसूरों और गुनाहों की वजह से मुर्दा थे।
\v 2 जिनमें तुम पहले दुनियाँ की रविश पर चलते थे, और हवा की 'अमलदारी के हाकिम या'नी उस रूह की पैरवी करते थे जो अब नाफ़रमानी के फ़रज़न्दों में तासीर करती है ।
\v 3 इनमें हम भी सबके सब पहले अपने जिस्म की ख्वाहिशों में ज़िन्दगी गुज़ारते और जिस्म और 'अक़्ल के इरादे पुरे करते थे, और दूसरों की तरह फ़ितरतन ग़ज़ब के फ़र्ज़न्द थे।
\s5
\v 4 मगर ख़ुदा ने अपने रहम की दौलत से, उस बड़ी मुहब्बत की वजह से जो उसने हम से की,
\v 5 कि अगर्चे हम अपने गुनाहों में मुर्दा थे तो भी उसने हमें मसीह के साथ ज़िन्दा कर दिया आपको ख़ुदा के फ़ज़ल ही से नजात मिली है
\v 6 और मसीह ईसा' में शामिल करके उसके साथ जिलाया, और आसमानी मुक़ामों पर उसके साथ बिठाया ।
\v 7 ताकि वो अपनी उस महरबानी से जो मसीह ईसा ' में हम पर है, आनेवाले ज़मानों में अपने फ़ज़ल की अज़ीम दौलत दिखाए ।
\s5
\v 8 क्यूँकि तुम को ईमान के वसीले फ़ज़ल ही से नजात मिली है; और ये तुम्हारी तरफ़ से नही, ख़ुदा की बाख़्शिश है,
\v 9 और न आ'माल की वजह से है, ताकि कोई फ़ख़्र न करे ।
\v 10 क्यूँकि हम उसकी कारीगरी हैं, और ईसा मसीह में उन नेक आ'माल के वास्ते पैदा हुए जिनको ख़ुदा ने पहले से हमारे करने के लिए तैयार किया था।
\s5
\v 11 पस याद करो कि तुम जो जिस्मानी तौर से ग़ैर-क़ौम वाले हो (और वो लोग जो जिस्म में हाथ से किए हुए ख़तने की वजह से कहलाते हैं, तुम को नामख़्तून कहते है) ।
\v 12 अगले ज़माने में मसीह से जुदा, और इस्राईल की सल्तनत से अलग, और वा'दे के 'अहदों से नावाक़िफ़, और नाउम्मीद और दुनियाँ में ख़ुदा से जुदा थे।
\s5
\v 13 मगर तुम जो पहले दूर थे, अब ईसा' मसीह' में मसीह के ख़ून की वजह से नज़दीक हो गए हो।
\v 14 क्यूँकि वही हमारी सुलह है, जिसने दोनों को एक कर लिया और जुदाई की दीवार को जो बीच में थी ढा दिया,
\v 15 चुनाँचे उसने अपने जिस्म के ज़री'ए से दुश्मनी, या'नी वो शरी'अत जिसके हुक्म ज़ाबितों के तौर पर थे, मौक़ूफ़ कर दी ताकि दोनों से अपने आप में एक नया इन्सान पैदा करके सुलह करा दे;
\v 16 और सलीब पर दुश्मनी को मिटा कर और उसकी वजह से दोनों को एक तन बना कर ख़ुदा से मिलाए।
\s5
\v 17 और उसने आ कर तुम यहूदी जो ख़ुदा के नज़दीक थे, और ग़ैर यहूदी जो ख़ुदा से दूर थे दोनों को सुलह की ख़ुशख़बरी दी।
\v 18 क्यूंकि उसी के वसीले से हम दोनों की, एक ही रूह में बाप के पास रसाई होती है।
\s5
\v 19 पस अब तुम परदेसी और मुसाफ़िर नहीं रहे, बल्कि मुक़द्दसों के हमवतन और ख़ुदा के घराने के हो गए।
\v 20 और रसूलों और नबियों की नींव पर, जिसके कोने के सिरे का पत्थर ख़ुद ईसा' मसीह है, तामीर किए गए हो।
\v 21 उसी में हर एक 'इमारत मिल-मिलाकर ख़ुदावन्द में एक पाक मक़्दिस बनता जाता है।
\v 22 और तुम भी उसमें बाहम ता'मीर किए जाते हो, ताकि रूह में ख़ुदा का मस्कन बनो।
\s5
\c 3
\v 1 इसी वजह से मैं पौलुस जो तुम ग़ैर-क़ौम वालों की ख़ातिर ईसा' मसीह का क़ैदी हूँ ।
\v 2 शायद तुम ने ख़ुदा के उस फ़ज़ल के इन्तज़ाम का हाल सुना होगा, जो तुम्हारे लिए मुझ पर हुआ।
\s5
\v 3 या'नी ये कि वो भेद मुझे मुकाशिफ़ा से मा'लूम हुआ। चुनाँचे मैंने पहले उसका थोड़ा हाल लिखा है,
\v 4 जिसे पढ़कर तुम मा'लूम कर सकते हो कि मैं मसीह का वो राज़ किस क़दर समझता हूँ।
\v 5 जो और ज़मानों में बनी आदम को इस तरह मा'लूम न हुआ था, जिस तरह उसके मुक़द्दस रसूलों और नबियों पर पाक रूह में अब ज़ाहिर हो गया है;
\s5
\v 6 या'नी ये कि ईसा' मसीह में ग़ैर-क़ौम ख़ुशख़बरी के वसीले से मीरास में शरीक और बदन में शामिल और वा'दों में दाख़िल हैं।
\v 7 और ख़ुदा के उस फ़ज़ल की बख़्शिश से जो उसकी क़ुदरत की तासीर से मुझ पर हुआ, मैं इस ख़ुशख़बरी का ख़ादिम बना।
\s5
\v 8 मुझ पर जो सब मुक़द्दसों में छोटे से छोटा हूँ, फ़ज़ल हुआ कि गैर-कौमों को मसीह की बेक़यास दौलत की ख़ुशख़बरी दूँ।
\v 9 और सब पर ये बात रोशन करूँ कि जो राज़ अज़ल से सब चीज़ों के पैदा करनेवाले ख़ुदा में छुपा रहा उसका क्या इन्तज़ाम है।
\s5
\v 10 ताकि अब कलीसिया के वसीले से ख़ुदा की तरह तरह की हिक्मत उन हुकूमतवालों और इख़्तियार वालों को जो आसमानी मुक़ामों में हैं, मा'लूम हो जाए।
\v 11 उस अज़ली इरादे के जो उसने हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह में किया था,
\s5
\v 12 जिसमें हम को उस पर ईमान रखने की वजह से दिलेरी है और भरोसे के साथ रसाई।
\v 13 पस मैं गुज़ारिश करता हूँ कि तुम मेरी उन मुसीबतों की वजह से जो तुम्हारी ख़ातिर सहता हूँ हिम्मत न हारो, क्यूँकि वो तुम्हारे लिए 'इज़्ज़त का ज़रि'या हैं।
\s5
\v 14 इस वजह से मैं उस बाप के आगे घुटने टेकता हूँ,
\v 15 जिससे आसमान और ज़मीन का हर एक ख़ानदान नामज़द है।
\v 16 कि वो अपने जलाल की दौलत के मुवाफ़िक़ तुम्हें ये 'इनायत करे कि तुम ख़ुदा की रूह से अपनी बातिनी इन्सानियत में बहुत ही ताक़तवर हो जाओ,
\s5
\v 17 और ईमान के वसीले से मसीह तुम्हारे दिलों में सुकूनत करे ताकि तुम मुहब्बत में जड़ पकड़ के और बुनियाद क़ायम करके,
\v 18 सब मुक़द्दसों समेत बख़ूबी मा'लूम कर सको कि उसकी चौड़ाई और लम्बाई और ऊँचाई और गहराई कितनी है,
\v 19 और मसीह की उस मुहब्बत को जान सको जो जानने से बाहर है ताकि तुम ख़ुदा की सारी मा'मूरी तक मा'मूर हो जाओ।
\s5
\v 20 अब जो ऐसा क़ादिर है कि उस क़ुदरत के मुवाफ़िक़ जो हम में तासीर करती है, हामारी गुज़ारिश और ख़याल से बहुत ज़्यादा काम कर सकता है,।
\v 21 कलीसिया में और ईसा' मसीह में पुश्त-दर-पुश्त और हमेशा हमेशा उसकी बड़ाई होती रहे| आमीन।
\s5
\c 4
\v 1 पस मैं जो ख़ुदावन्द में क़ैदी हूँ, तुम से गुज़ारिश करता हूँ कि जिस बुलावे से तुम बुलाए गए थे उसके मुवाफ़िक़ चाल चलो,।
\v 2 या'नी कमाल दरयादिली और नर्मदिल के साथ सब्र करके मुहब्बत से एक दुसरे की बर्दाश्त करो;।
\v 3 सुलह सलामती के बंधन में रहकर रूह की सौग़ात क़ायम रखने की पूरी कोशिश करें
\s5
\v 4 एक ही बदन है और एक ही रूह; चुनाँचे तुम्हें जो बुलाए गए थे, अपने बुलाए जाने से उम्मीद भी एक ही है।
\v 5 एक ही ख़ुदावन्द, है एक ही ईमान है, एक ही बपतिस्मा,
\v 6 और सब का ख़ुदा और बाप एक ही है, जो सब के ऊपर और सब के दर्मियान और सब के अन्दर है।
\s5
\v 7 और हम में से हर एक पर मसीह की बाख़्शिश के अंदाज़े के मुवाफ़िक़ फ़ज़ल हुआ है।
\v 8 इसी वास्ते वो फ़रमाता है, “जब वो 'आलम-ए-बाला पर चढ़ा तो क़ैदियों को साथ ले गया, और आदमियों को इन'आम दिए।”
\s5
\v 9 (उसके चढ़ने से और क्या पाया जाता है? सिवा इसके कि वो ज़मीन के नीचे के 'इलाक़े में उतरा भी था।
\v 10 और ये उतरने वाला वही है जो सब आसमानों से भी ऊपर चढ़ गया, ताकि सब चीज़ों को मा'मूर करे।)
\s5
\v 11 और उसी ने कुछ को रसूल, और कुछ को नबी, और कुछ को मुबश्शिर, और कुछ को चरवाहा और उस्ताद बनाकर दे दिया ।
\v 12 ताकि मुक़द्दस लोग कामिल बनें और ख़िदमत गुज़ारी का काम किया जाए,।
\v 13 जब तक हम सब के सब ख़ुदा के बेटे के ईमान और उसकी पहचान में एक न हो जाएँ और पूरा इन्सान न बनें, या'नी मसीह के पुरे क़द के अन्दाज़े तक न पहुँच जाएँ।
\s5
\v 14 ताकि हम आगे को बच्चे न रहें और आदमियों की बाज़ीगरी और मक्कारी की वजह से उनके गुमराह करनेवाले इरादों की तरफ़ हर एक ता'लीम के झोंके से मौजों की तरह उछलते बहते न फिरें
\v 15 बल्कि मुहब्बत के साथ सच्चाई पर क़ायम रहकर और उसके साथ जो सिर है, या;नी मसीह के साथ,पैवस्ता हो कर हर तरह से बढ़ते जाएँ।
\v 16 जिससे सारा बदन, हर एक जोड़ की मदद से पैवस्ता होकर और गठ कर, उस तासीर के मुवाफ़िक़ जो बक़द्र-ए-हर हिस्सा होती है, अपने आप को बढ़ाता है ताकि मुहब्बत में अपनी तरक्की करता जाए।
\s5
\v 17 इस लिए मैं ये कहता हूँ और ख़ुदावन्द में जताए देता हूँ कि जिस तरह ग़ैर-क़ौमें अपने बेहूदा ख़यालात के मुवाफ़िक़ चलती हैं,तुम आइन्दा को उस तरह न चलना |
\v 18 क्यूँकि उनकी 'अक़्ल तारीक हो गई है, और वो उस नादानी की वजह से जो उनमें है और अपने दिलों की सख़्ती के ज़रिए ख़ुदा की ज़िन्दगी से अलग हैं।
\v 19 उन्होंने ख़ामोशी के साथ शहवत परस्ती को इख़्तियार किया, ताकि हर तरह के गन्दे काम की हिर्स करें।
\s5
\v 20 मगर तुम ने मसीह की ऐसी ता'लीम नहीं पाई।
\v 21 बल्कि तुम ने उस सच्चाई के मुताबिक़ जो ईसा' में है, उसी की सुनी और उसमें ये ता'लीम पाई होगी।
\v 22 कि तुम अपने अगले चाल-चलन की पुरानी इन्सानियत को उतार डालो, जो धोके की शहवतों की वजह से ख़राब होती जाती है
\s5
\v 23 और अपनी 'अक़्ल की रूहानी हालात में नये बनते जाओ,
\v 24 और नई इन्सानियत को पहनो जो ख़ुदा के मुताबिक़ सच्चाई की रास्तबाज़ी और पाकीज़गी में पैदा की गई है।
\s5
\v 25 पस झूट .बोलना छोड़ कर हर एक शख़्स अपने पड़ोसी से सच बोले, क्यूंकि हम आपस में एक दूसरे के 'बदन हैं।
\v 26 ग़ुस्सा तो करो, मगर गुनाह न करो | सूरज के डूबने तक तुम्हारी नाराज़गी न रहे ,
\v 27 और इब्लीस को मौक़ा न दो।
\s5
\v 28 चोरी करने वाला फिर चोरी न करे, बल्कि अच्छा हुनर इख़्तियार करके हाथों से मेहनत करे ताकि मुहताज को देने के लिए उसके पास कुछ हो।
\v 29 कोई गन्दी बात तुम्हारे मुंह से न निकले, बल्कि वही जो ज़रूरत के मुवाफ़िक़ तरक़्क़ी के लिए अच्छी हो, ताकि उससे सुनने वालों पर फ़ज़ल हो।
\v 30 और ख़ुदा के पाक रूह को ग़मगीन न करो, जिससे तुम पर रिहाई के दिन के लिए मुहर हुई।
\s5
\v 31 हर तरह की गर्म मिज़ाजी, और क़हर,और ग़ुस्सा, और शोर-ओ-ग़ुल, और बुराई, हर क़िस्म की बद ख़्वाही समेत तुम से दूर की जाएँ।
\v 32 और एक दूसरे पर मेंहरबान और नर्मदिल हो, और जिस तरह ख़ुदा ने मसीह में तुम्हारे क़ुसूर मु'आफ़ किए हैं, तुम भी एक दूसरे के क़ुसूर मु'आफ़ करो।
\s5
\c 5
\v 1 पस 'अज़ीज़ बेटों की तरह ख़ुदा की तरह बनो,
\v 2 और मुहब्बत से चलो जैसे मसीह ने तुम से मुहब्बत की, और हमारे वास्ते अपने आपको ख़ुशबू की तरह ख़ुदा की नज़्र करके क़ुर्बान किया।
\s5
\v 3 जैसे के मुक़द्दसो़ को मुनासिब है, तुम में हरामकारी और किसी तरह की नापाकी या लालच का ज़िक्र तक न हो;
\v 4 और न बेशर्मी और बेहूदा गोई और ठठ्ठा बाज़ी का, क्यूंकि ये लायक़ नहीं; बल्कि बर'अक्स इसके शुक्र गुज़ारी हो।
\s5
\v 5 क्यूंकि तुम ये ख़ूब जानते हो कि किसी हरामकार, या नापाक, या लालची की जो बुत परस्त के बराबर है, मसीह और ख़ुदा की बादशाही में कुछ मीरास नहीं।
\v 6 कोई तुम को बे फ़ायदा बातों से धोका न दे, क्यूंकि इन्हीं गुनाहों की वजह से नाफ़रमानों के बेटों पर ख़ुदा का ग़ज़ब नाज़िल होता है।
\v 7 पस उनके कामों में शरीक न हो |
\s5
\v 8 क्यूंकि तुम पहले अँधेरे थे; मगर अब ख़ुदावन्द में नूर हो, पस नूर के बेटे की तरह चलो ,
\v 9 (इसलिए कि नूर का फल हर तरह की नेकी और रास्तबाज़ी और सच्चाई है)।
\v 10 और तजुरबे से मा'लूम करते रहो के खुदावन्द को क्या पसंद है।
\v 11 और अँधेरे के बे फल कामों में शरीक न हो, बल्कि उन पर मलामत ही किया करो।
\v 12 क्यूंकि उनके छुपे हुए कामों का ज़िक्र भी करना शर्म की बात है।
\s5
\v 13 और जिन चीज़ों पर मलामत होती है वो सब नूर से ज़ाहिर होती है, क्यूंकि जो कुछ ज़ाहिर किया जाता है वो रोशन हो जाता है।
\v 14 इसलिए वो कलाम में फ़रमाता है, “ऐ सोने वाले, जाग और मुर्दों में से जी उठ, तो मसीह का नूर तुझ पर चमकेगा।”
\s5
\v 15 पस ग़ौर से देखो कि किस तरह चलते हो, नादानों की तरह नहीं बल्कि अक़्लमंदों की तरह चलो;
\v 16 और वक़्त को ग़नीमत जानो क्यूंकि दिन बुरे हैं।
\v 17 इस वजह से नादान न बनो, बल्कि ख़ुदावन्द की मर्ज़ी को समझो कि क्या है।
\s5
\v 18 और शराब में मतवाले न बनो क्यूंकि इससे बदचलनी पेश ' आती है, बल्कि पाक रूह से मा'मूर होते जाओ,
\v 19 और आपस में दु'आएं और गीत और रूहानी ग़ज़लें गाया करो, और दिल से ख़ुदावन्द के लिए गाते बजाते रहा करो।
\v 20 और सब बातों में हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह के नाम से हमेशा ख़ुदा बाप का शुक्र करते रहो।
\v 21 और मसीह के ख़ौफ़ से एक दुसरे के फ़र्माबरदार रहो।
\s5
\v 22 ऐ बीवियो, अपने शौहरों की ऐसी फ़र्माबरदार रहो जैसे ख़ुदावन्द की |
\v 23 क्यूंकि शौहर बीवी का सिर है, जैसे के मसीह कलीसिया का सिर है और वो ख़ुद बदन का बचानेवाला है।
\v 24 लेकिन जैसे कलीसिया मसीह की फ़र्माबरदार है, वैसे बीवियाँ भी हर बात में अपने शौहरों की फ़र्माबरदार हों।
\s5
\v 25 ऐ शौहरो! अपनी बीवियों से मुहब्बत रख्खो, जैसे मसीह ने भी कलीसिया से मुहब्बत करके अपने आप को उसके वास्ते मौत के हवाले कर दिया,
\v 26 ताकि उसको कलाम के साथ पानी से ग़ुस्ल देकर और साफ़ करके मुक़द्दस बनाए,
\v 27 और एक ऐसी जलाल वाली कलीसिया बना कर अपने पास हाज़िर करे, जिसके बदन में दाग़ या झुर्री या कोई और ऐसी चीज़ न हो, बल्कि पाक और बे'ऐब हो।
\s5
\v 28 इसी तरह शौहरों को ज़रूरी है कि अपनी बीवियों से अपने बदन की तरह मुहब्बत रख्खें| जो अपने बीवी से मुहब्बत रखता है, वो अपने आप से मुहब्बत रखता है |
\v 29 क्यूंकि कभी किसी ने अपने जिस्म से दुश्मनी नहीं की बल्कि उसको पालता और परवरिश करता है, जैसे कि मसीह कलीसिया को।
\v 30 इसलिए कि हम उसके बदन के 'हिस्सा हैं।
\s5
\v 31 “इसी वजह से आदमी बाप से और माँ से जुदा होकर अपनी बीवी के साथ रहेगा, और वो दोनों एक जिस्म होंगे।”
\v 32 ये राज़ तो बड़ा है, लेकिन मैं मसीह और कलीसिया के ज़रिए कहता हूँ।
\v 33 बहरहाल तुम में से भी हर एक अपनी बीवी से अपनी तरह मुहब्बत रख्खे, और बीवी इस बात का ख़याल रख्खे कि अपने शौहर से डरती रहे ।
\s5
\c 6
\v 1 ऐ फ़र्ज़न्दों! ख़ुदावन्द में अपने माँ-बाप के फ़र्माबरदार रहो, क्यूंकि ये ज़रुरी है।
\v 2 "अपने बाप और माँ की 'इज़्ज़त कर (ये पहला हुक्म है जिसके साथ वा'दा भी है) "
\v 3 ताकि तेरा भला हो, और तेरी ज़मीन पर उम्र लम्बी हो|"
\s5
\v 4 ऐ औलाद वालो! तुम अपने फ़र्ज़न्दों को ग़ुस्सा न दिलाओ, बल्कि ख़ुदावन्द की तरफ़ से तरबियत और नसीहत दे देकर उनकी परवरिश करो।
\s5
\v 5 ऐ नौकरों! जो जिस्मानी तौर से तुम्हारे मालिक हैं, अपनी साफ़ दिली से डरते और काँपते हुए उनके ऐसे फ़र्माबरदार रहो जैसे मसीह के;
\v 6 और आदमियों को ख़ुश करनेवालों की तरह दिखावे के लिए ख़िदमत न करो, बल्कि मसीह के बन्दों की तरह दिल से ख़ुदा की मर्ज़ी पूरी करो।
\v 7 और ख़िदमत को आदमियों की नहीं बल्कि ख़ुदावन्द की जान कर, जी से करो।
\v 8 क्यूंकि, तुम जानते हो कि जो कोई जैसा अच्छा काम करेगा, चाहे ग़ुलाम हो या चाहे आज़ाद, ख़ुदावन्द से वैसा ही पाएगा ।
\s5
\v 9 और ऐ मलिको! तुम भी धमकियाँ छोड़ कर उनके साथ ऐसा सुलूक करो; क्यूंकि तुम जानते हो उनका और तुम्हारा दोनों का मालिक आसमान पर है, और वो किसी का तरफ़दार नहीं।
\s5
\v 10 ग़रज़ ख़ुदावन्द में और उसकी क़ुदरत के ज़ोर में मज़बूत बनो।
\v 11 ख़ुदा के सब हथियार बाँध लो ताकि तुम इब्लीस के इरादों के मुक़ाबले में क़ायम रह सको।
\s5
\v 12 क्यूंकि हमें ख़ून और गोश्त से कुश्ती नहीं करना है, बल्कि हुकूमतवालों और इख़्तियार वालों और इस दुनियाँ की तारीकी के हाकिमों और शरारत की उन रूहानी फ़ौजों से जो आसमानी मुक़ामों में है।
\v 13 इस वास्ते ख़ुदा के सब हथियार बाँध लो ताकि बुरे दिन में मुक़ाबला कर सको, और सब कामों को अंजाम देकर क़ायम रह सको।
\s5
\v 14 पस सच्चाई से अपनी कमर कसकर, और रास्तबाज़ी का बख़्तर लगाकर,
\v 15 और पाँव में सुलह की ख़ुशख़बरी की तैयारी के जूते पहन कर, ।
\v 16 और उन सब के साथ ईमान की सिपर लगा कर क़ायम रहो, जिससे तुम उस शरीर के सब जलते हुए तीरों को बुझा सको;।
\s5
\v 17 और नजात का टोप, और रूह की तलवार, जो ख़ुदा का कलाम है ले लो;
\v 18 और हर वक़्त और हर तरह से रूह में दु'आ और मिन्नत करते रहो, और इसी ग़रज़ से जागते रहो कि सब मुक़द्दसों के वास्ते बिला नागा दु'आ किया करो,
\s5
\v 19 और मेरे लिए भी ताकि बोलने के वक़्त मुझे कलाम करने की तौफ़ीक़ हो, जिससे मैं ख़ुशख़बरी के राज़ को दिलेरी से ज़ाहिर करूँ, ।
\v 20 जिसके लिए ज़ंजीर से जकड़ा हुआ एल्ची हूँ, और उसको ऐसी दिलेरी से बयान करूँ जैसा बयान करना मुझ पर फ़र्ज़ है।
\s5
\v 21 तखिकुस जो प्यारा भाई ख़ुदावन्द में दियानतदार ख़ादिम है, तुम्हें सब बातें बता देगा ताकि तुम भी मेरे हाल से वाक़िफ़ हो जाओ कि मैं किस तरह रहता हूँ।
\v 22 उसको मैं ने तुम्हारे पास इसी वास्ते भेजा है कि तुम हमारी हालत से वाक़िफ़ हो जाओ और वो तुम्हारे दिलों को तसल्ली दे।
\s5
\v 23 ख़ुदा बाप और ख़ुदावन्द ईसा' मसीह की तरफ़ से भाइयों को इत्मीनान हासिल हो, और उनमें ईमान के साथ मुहब्बत हो।
\v 24 जो हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह से लाज़वाल मुहब्बत रखते हैं, उन सब पर फ़ज़ल होता रहे।

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51-PHP.usfm Normal file
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\id PHP
\ide UTF-8
\h फ़िलिप्पियों के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\toc1 फ़िलिप्पियों के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\toc2 फ़िलिप्पियों के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\toc3 php
\mt1 फ़िलिप्पियों के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 मसीह ईसा' के बन्दों पौलुस और तिमुथियुस की तरफ़ से,फ़िलिप्पियों शहर के सब मुक़द्दसों के नाम जो मसीह ईसा में हैं;निगहबानों और ख़ादिमों समेत ख़त |
\v 2 हमारे बाप ख़ुदा और ख़ुदावान्द 'ईसा' मसीह की तरफ़ से तुम्हें फ़ज़ल और इत्मिनान हासिल होता रहे|
\s5
\v 3 मैं जब कभी तुम्हें याद करता हूँ, तो अपने ख़ुदा का शुक्र बजा लाता हूँ;
\v 4 और हर एक दु'आ में जो तुम्हारे लिए करता हूँ, हमेशा ख़ुशी के साथ तुम सब के लिए दरख़्वास्त करता हूँ|
\v 5 इस लिए कि तुम पहले दिन से लेकर आज तक ख़ुशख़बरी के फैलाने में शरीक रहे हो |
\v 6 और मुझे इस बात का भरोसा है कि जिस ने तुम में नेक काम शुरू किए है, वो उसे ईसा' मसीह के आने तक पूरा कर देगा|
\s5
\v 7 चुनांचे ज़रूरी है कि मैं तुम सब के बारे में ऐसा ही ख़याल करूँ, क्यूँकि तुम मेरे दिल में रहते हो,और क़ैद और ख़ुशख़बरी की जवाब दिही और सुबूत में तुम सब मेरे साथ फ़ज़ल में शरीक हो|
\v 8 ख़ुदा मेरा गवाह है कि मैं ईसा ' जैसी मुहबत करके तुम सब को चाहता हूँ|
\s5
\v 9 और ये दु'आ करता हूँ कि तूम्हारी मुहब्बत 'इल्म और हर तरह की तमीज़ के साथ और भी ज़्यादा होती जाए,|
\v 10 ताकि 'अच्छी अच्छी बातों को पसन्द कर सको, और मसीह के दीन में पाक साफ़ दिल रहो,और ठोकर न खाओ;|
\v 11 और रास्तबाजी के फल से जो ईसा' मसीह के ज़रिए से है, भरे रहो, ताकि ख़ुदा का जलाल ज़ाहिर हो और उसकी सिताइश की जाए|
\s5
\v 12 ए भाइयों !मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो कि जो मुझ पर गुज़रा ,वो ख़ुशख़बरी की तरक़्क़ी का ज़रिए हुआ|
\v 13 यहाँ तक कि मैं क़ैसरी सिपाहियों की सारी पलटन और बाक़ी सब लोगों में मशहूर हो गया कि मैं मसीह के वास्ते क़ैद हूँ;|
\v 14 और जो ख़ुदावन्द में भाई हैं, उनमें अक्सर मेरे क़ैद होने के ज़रिए से दिलेर होकर बेख़ौफ़ ख़ुदा का कलाम सुनाने की ज़्यादा हिम्मत करते हैं|
\s5
\v 15 कुछ तो हसद और झगड़े की वजह से मसीह का ऐलान करते हैं और कुछ नेक नियती से|
\v 16 एक तो मुहब्बत की वजह से मसीह का ऐलान करते हैं कि मैं ख़ुशख़बरी की जवाबदेही के वास्ते मुक़र्रर हूँ|
\v 17 अगर दूसरे तफ़्रक़े की वजह से न कि साफ़ दिली से,बल्कि इस ख़याल से कि मेरी क़ैद में मेरे लिए मुसीबत पैदा करें|
\s5
\v 18 पस क्या हुआ? सिर्फ़ ये की हर तरह से मसीह की मनादी होती है, चाहे बहाने से हो चाहे सच्चाई से, और इस से मैं ख़ुश हूँ और रहूँगा भी|
\v 19 क्यूँकि मैं जानता हूँ कि तूम्हारी दु;आ और 'ईसा' मसीह के रूह के इन'आम से इन का अन्जाम मेरी नजात होगा|
\s5
\v 20 चुनाँचे मेरी दिली आरज़ू और उम्मीद यही है कि, मैं किसी बात में शरमिंदा न हूँ बल्कि मेरी कमाल दिलेरी के ज़रिए जिस तरह मसीह की ताज़ीम मेरे बदन की वजह से हमेशा होती रही है उसी तरह अब भी होगी,चाहे मैं ज़िंदा रहूँ चाहे मरूँ|
\v 21 क्यूँकि ज़िंदा रहना मेरे लिए मसीह और मरना नफ़ा'|
\s5
\v 22 लेकिन अगर मेरा जिस्म में ज़िंदा रहना ही मेरे काम के लिए फ़ायदा है, तो मैं नही जानता किसे पसन्द करूँ|
\v 23 मैं दोनों तरफ़ फँसा हुआ हूँ;मेरा जी तो ये चाहता है कि कूच करके मसीह के पास जा रहूँ, क्यूँकि ये बहुत ही बेहतर है;
\v 24 मगर जिस्म में रहना तुम्हारी ख़ातिर ज़्यादा ज़रूरी है|
\s5
\v 25 और चूँकि मुझे इसका यक़ीन है इसलिए मैं जानता हूँ कि ज़िंदा रहूँगा,ताकि तुम ईमान में तरक़्क़ी करो और उस में खुश रहो;
\v 26 और जो तुम्हे मुझ पर फ़ख़्र है वो मेरे फिर तुम्हारे पास आनेसे मसीह ईसा' में ज़्यादा हो जाए
\v 27 सिर्फ़ ये करो कि मसीह में तुम्हारा चाल चलन मसीह के ख़ुशख़बरी के मुवाफ़िक़ रहे ताकि; चाहे मैं आऊँ और तूम्हें देखूँ चाहे न आऊँ,तूम्हारा हाल सुनूँ कि तुम एक रूह में क़ायम हो, और ईन्जील के ईमान के लिए एक जान होकर कोशिश करते हो,|
\s5
\v 28 और किसी बात में मुख़ालिफ़ों से दहशत नहीं खाते|ये उनके लिए हलाकत का साफ़ निशान है;लेकिन तुम्हारी नजात का और ये ख़ुदा की तरफ़ से है|
\v 29 क्यूँकि मसीह की ख़ातिर तुम पर ये फ़ज़ल हुआ कि न सिर्फ उस पर ईमान लाओ बल्कि उसकी ख़ातिर दुख भी सहो;
\v 30 और तुम उसी तरह मेहनत करते रहो जिस तरह मुझे करते देखा था,और अब भी सुनते हो की मैं वैसा ही करता हूँ|
\s5
\c 2
\v 1 पर अगर कुछ तसल्ली मसीह में और मुहब्बत की दिलजम'ई और रूह की शराकत और रहमदिली और -दर्द मन्दी है,
\v 2 तो मेरी खुशी पूरी करो कि एक दिल रहो,यकसाँ मुहब्बत रखो एक जान हो, एक ही ख़याल रख्खो|
\s5
\v 3 तफ़्रक़े और बेज़ा फ़ख़्र के बारे में कुछ न करो,बल्कि फ़रोतनी से एक दूसरे को अपने से बेहतर समझो|
\v 4 हर एक अपने ही अहवाल पर नहीं, बल्कि हर एक दूसरों के अहवाल पर भी नज़र रख्खे|
\s5
\v 5 वैसा ही मिज़ाज रखो जैसा मसीह ईसा' का भी था;
\v 6 उसने अगरचे ख़ुदा की सूरत पर था, ख़ुदा के बराबर होने को क़ब्ज़े के रखने की चीज़ न समझा|
\v 7 बल्कि अपने आप को ख़ाली कर दिया और ख़ादिम की सूरत इख़्तियार की और इन्सानों के मुशाबह हो गया|
\v 8 और इन्सानी सूरत में ज़ाहिर होकर अपने आप को पस्त कर दिया और यहाँ तक फ़रमाबरदार रहा कि मौत बल्कि सलीबी मौत गवारा की|
\s5
\v 9 इसी वास्ते ख़ुदा ने भी उसे बहुत सर बुलन्द किया और उसे वो नाम बख़्शा जो सब नामों से आ'ला है
\v 10 ताकि 'ईसा' के नाम पर हर एक घुटना झुके; चाहे आसमानियों का हो चाहे ज़मीनीयों का,चाहे उनका जो ज़मीन के नीचे हैं|
\v 11 और ख़ुदा बाप के जलाल के लिए हर एक ज़बान इक़रार करे कि 'ईसा' मसीह ख़ुदावंद है
\s5
\v 12 पस ए मेरे अज़ीज़ो जिस तरह तुम हमेशा से फ़र्माबरदारी करते आए हो उसी तरह न सिर्फ़ मेरी हाज़िरी में , बल्कि इससे बहुत ज़्यादा मेरी ग़ैर हाज़िरी में डरते और काँपते हुए अपनी नजात का काम किए जाओ;
\v 13 क्यूँकि जो तुम में नियत और 'अमल दोनों को,अपने नेक इरादे को अन्जाम देने के लिए पैदा करता वो ख़ुदा है|
\s5
\v 14 सब काम शिकायत और तकरार बग़ैर किया करो,
\v 15 ताकि तुम बे ऐब और भोले हो कर टेढ़े और कजरौ लोगों में ख़ुदा के बेनुक़्स फ़र्ज़न्द बने रहो [जिनके बीच दुनियां में तुम चराग़ों की तरह दिखाई देते हो,
\v 16 और ज़िंदिगी का कलाम पेश करते हो];ताकि मसीह के वापस के आने दिन मुझे तुम पर फ़ख़्र हो कि न मेरी दौड़-धूप बे फ़ायदा हुई, न मेरी मेहनत अकारत गई|
\s5
\v 17 और अगर मुझे तुम्हारे ईमान की क़ुर्बानी और ख़िदमत के साथ अपना ख़ून भी बहाना पड़े, तो भी खुश हूँ और तुम सब के साथ ख़ुशी करता हूँ|
\v 18 तुम भी इसी तरह ख़ुश हो और मेरे साथ ख़ुशी करो|
\s5
\v 19 मुझे ख़ुदावन्द' ईसा ' में ख़ुशी है उम्मीद है कि तिमोंथियूस को तुम्हारे पास जल्द भेजूंगा ,ताकि तुम्हारा अहवाल दरयाफ़्त करके मेरी भी ख़ातिर जमा' हो|
\v 20 क्यूँकि कोई ऐसा हम ख़याल मेरे पास नही,जो साफ़ दिली से तुम्हारे लिए फ़िक्रमन्द हो|
\v 21 सब अपनी अपनी बातों के फ़िक्र में हैं,न कि ईसा' मसीह की|
\s5
\v 22 लेकिन तुम उसकी पुख़्तगी से वाक़िफ़ हो कि जैसा बेटा बाप की ख़िदमत करता है, वैसे ही उसने मेरे साथ ख़ुशख़बरी फैलाने में ख़िदमत की|
\v 23 पस मैं उम्मीद करता हूँ कि जब अपने हाल का अन्जाम मालूम कर लूँगा तो उसे फ़ौरन भेज दूंगा|
\v 24 और मुझे ख़ुदावन्द पर भरोसा है कि मैं आप भी जल्द आऊँगा|
\s5
\v 25 लेकिन मैं ने ईपफ़्रूदीतुस को तुम्हारे पास भेजना ज़रूरी समझा |वो मेरा भाई , और हम ख़िदमत, और हम सिपाह, और तुम्हारा क़ासिद,और मेरी हाजत रफ़ा'करने के लिए ख़ादिम है|
\v 26 क्यूँकि वो तुम सब को बहुत चाहता था, और इस वास्ते बे क़रार रहता था कि तूने उसकी बीमारी का हाल सुना था|
\v 27 बेशक वो बीमारी से मरने को था, मगर ख़ुदा ने उस पर रहम किया,सिर्फ़ उस ही पर नहीं बल्कि मुझ पर भी ताकि मुझे ग़म पर ग़म न हो|
\s5
\v 28 इसी लिए मुझे उसके भेजने का और भी ज़्यादा ख़याल हुआ कि तुम भी उसकी मुलाक़ात से फिर ख़ुश हो जाओ, और मेरा भी ग़म घट जाए|
\v 29 पस तुम उससे ख़ुदावन्द में कमाल ख़ुशी के साथ मिलना, और ऐसे शख़्सों की ' इज़्ज़त किया करो,
\v 30 इसलिए कि वो मसीह के काम की ख़ातिर मरने के क़रीब हो गया था,और उसने जान लगा दी ताकि जो कमी तुम्हारी तरफ़ से मेरी ख़िदमत में हुई उसे पूरा करे |
\s5
\c 3
\v 1 ग़रज़ मेरे भाइयों! ख़ुदावन्द में ख़ुश रहो| तुम्हें एक ही बात बार-बार लिखने में मुझे तो कोई दिक़्क़त नहीं,और तुम्हारी इसमें हिफ़ाज़त है|
\v 2 कुत्तों से ख़बरदार रहो, बदकारों से ख़बरदार रहो कटवाने वालों से ख़बरदार रहो|
\v 3 क्यूँकि मख़्तून तो हम हैं जो ख़ुदा की रूह की हिदायत से ख़ुदा की इबादत करते हैं, और मसीह पर फ़ख़्र करते हैं, और जिस्म का भरोसा नहीं करते|
\s5
\v 4 अगर्चे मैं तो जिस्म का भी भरोसा कर सकता हूँ|अगर किसी और को जिस्म पर भरोसा करने का ख़याल हो, तो मैं उससे भी ज़्यादा कर सकता हूँ|
\v 5 आठवें दिन मेरा ख़तना हुआ,इस्राईल की क़ौम और बिनयमीन के क़बीले का हूँ, इबरानियो, का इब्रानी और शरी'अत के ऐ'तिबार से फ़रीसी हूँ
\s5
\v 6 जोश के एतबार से कलिसिया का, सतानेवाला, शरी'अत की रास्तबाजी के ऐतबार से बे 'ऐब था,
\v 7 लेकिन जितनी चीज़ें मेरे नफ़े ' की थी उन्ही को मैंने मसीह की ख़ातिर नुक़्सान समझ लिया है|
\s5
\v 8 बल्कि मैंने अपने ख़ुदावन्द मसीह 'ईसा' की पहचान की बड़ी ख़ूबी की वजह से सब चीज़ों का नुक़्सान उठाया और उनको कूड़ा समझता हूँ ताकि मसीह को हासिल करूँ
\v 9 और उस में पाया जाऊँ, न अपनी उस रास्तबाज़ी के साथ जो शरी'अत की तरफ़ से है, बल्कि उस रास्तबाज़ी के साथ जो मसीह पर ईमान लाने की वजह से है और ख़ुदा की तरफ़ से ईमान पर मिलती है;
\v 10 और मैं उसको और उसके जी उठने की क़ुदरत को, और उसके साथ दुखों में शरीक होने को मा'लूम करूँ, और उसकी मौत से मुशाबहत पैदा करूँ
\v 11 ताकि किसी तरह मुर्दों में से जी उठने के दर्जे तक पहुचूं |
\s5
\v 12 अगर्चे ये नही कि मैं पा चुका या कामिल हो चुका हूँ, बल्कि उस चीज़ को पकड़ने को दौड़ा हुआ जाता हूँ जिसके लिए मसीह ईसा 'ने मुझे पकड़ा था|
\v 13 ऐ भाइयों!मेरा ये गुमान नही कि पकड़ चुका हूँ;बल्कि सिर्फ़ ये करता हूँ कि जो चीजें पीछे रह गई उनको भूल कर , आगे की चीज़ों की तरफ़ बढ़ा हुआ|
\v 14 निशाने की तरफ़ दौड़ा हुआ जाता हूँ,ताकि उस इनाम को हासिल करूँ जिसके लिए ख़ुदा ने मुझे मसीह ईसा' में ऊपर बुलाया है|
\s5
\v 15 पस हम में से जितने कामिल हैं यही ख़याल रखें, और अगर किसी बात में तुम्हारा और तरह का ख़याल हो तो ख़ुदा उस बात को तुम पर भी ज़ाहिर कर देगा|
\v 16 बहरहाल जहाँ तक हम पहूँचे हैं उसी के मुताबिक़ चलें|
\s5
\v 17 ऐ भाइयों! तुम सब मिलकर मेरी तरह बनो, और उन लोगों की पहचान रखो जो इस तरह चलते हैं जिसका नमूना तुम हम में पाते हो;
\v 18 क्यूँकि बहुत सारे ऐसे हैं जिसका ज़िक्र मैंने तुम से बराबर किया है, और अब भी रो रो कर कहता हूँ कि वो अपने चाल-चलन से मसीह की सलीब के दुश्मन हैं|
\v 19 उनका अन्जाम हलाकत है, उनका ख़ुदा पेट है, वो अपनी शर्म की बातों पर फ़ख़्र करते हैं और दुनिया की चीज़ों के ख़याल में रहते हैं|
\s5
\v 20 मगर हमारा वतन असमान पर है हम एक मुन्जी यानी ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह के वहां से आने के इन्तिज़ार में हैं|
\v 21 वो अपनी उस ताक़त की तासीर के मुवाफ़िक़, जिससे सब चीज़ें अपने ताबे'कर सकता है, हमारी पस्त हाली के बदन की शक्ल बदल कर अपने जलाल के बदन की सूरत बनाएगा|
\s5
\c 4
\v 1 इस वास्ते ऐ मेरे प्यारे भाइयों !जिनका मैं मुश्ताक़ हूँ जो मेरी ख़ुशी और ताज हो|ऐ प्यारो !ख़ुदावन्द में इसी तरह क़ायम रहो|
\v 2 मैं यहुदिया को भी नसीहत करता हूँ और सुनतुखे को भी कि वो ख़ुदावन्द में एक दिल रहे |
\v 3 और ऐ सच्चे हमख़िदमत,तुझ से भी दरख़्वास्त करता हूँ कि तू उन 'औरतों की मदद कर,क्यूँकि उन्होने ख़ुशख़बरी फैलाने में क्लेमेंस और मेरे बाक़ी उन हम ख़िदमतों समेत मेहनत की, जिनके नाम किताब-ए-हयात में दर्ज हैं|
\s5
\v 4 ख़ुदावन्द में हर वक़्त ख़ुश रहो;मैं फिर कहता हूँ कि ख़ुश रहो|
\v 5 तुम्हारी नर्म मिज़ाजी सब आदमियों पर ज़ाहिर हो, ख़ुदावन्द क़रीब है|
\v 6 किसी बात की फ़िक्र न करो,बल्कि हर एक बात में तुम्हारी दरख़्वास्तें दु'आ और मिन्नत के वसीले से शुक्रगुज़ारी के साथ ख़ुदा के सामने पेश की जाएँ|
\v 7 तो ख़ुदा का इत्मिनान जो समझ से बिल्कुल बाहर है, वो तुम्हारे दिलो और ख़यालों को मसीह 'ईसा' में महफ़ूज़ रखेगा|
\s5
\v 8 ग़रज़ ऐ भाइयों! जितनी बाते सच हैं, और जितनी बाते शराफ़त की हैं, और जितनी बाते वाजिब हैं, और जितनी बाते पाक हैं,और जितनी बाते पसन्दीदा हैं,और जितनी बाते दिलकश हैं;ग़रज़ जो नेकी और ता 'रीफ़ की बाते हैं, उन पर ग़ौर किया करो|
\v 9 जो बातें तुमने मुझ से सीखीं, और हासिल की, और सुनीं, और मुझ में देखीं,उन पर अमल किया करो, तो ख़ुदा जो इत्मिनान का चश्मा है तुम्हारे साथ रहेगा|
\s5
\v 10 मैं ख़ुदावन्द में बहुत ख़ुश हूँ कि अब इतनी मुद्दत के बा'द तुम्हारा ख़याल मेरे लिए सरसब्ज़ हुआ; बेशक तुम्हें पहले भी इसका ख़याल था,मगर मौक़ा न मिला|
\v 11 ये नहीं कि मैं मोहताजी के लिहाज़ से कहता हूँ; क्यूँकि मैंने ये सीखा है कि जिस हालत में हूँ उसी पर राज़ी रहूँ
\v 12 मैं पस्त होना भी जनता हूँ और बढ़ना भी जनता हूँ ;हर एक बात और सब हालतों में मैंने सेर होना, भूका रहना और बढ़ना घटना सीखा है|
\v 13 जो मुझे ताक़त बख़्शता है,उसमे मैं सब कुछ कर सकता हूँ|
\s5
\v 14 तो भी तुम ने अच्छा किया जो मेरी मुसीबतों में शरीक हुए|
\v 15 और ऐ फिलिप्प्यों! तुम ख़ुद भी जानते हो कि ख़ुशख़बरी के शुरू में,जब मैं मकदुनिया से रवाना हुआ तो तुम्हारे सिवा किसी कलिसिया ने लेने- देने में मेरी मदद न की|
\v 16 चुनाँचे थिस्स्लुनीके में भी मेरी एहतियाज रफ़ा' करने के लिए तुमने एक दफ़ा' नहीं, बल्कि दो दफ़ा' कुछ भेजा था|
\v 17 ये नहीं कि मैं ईनाम चाहता हूँ बल्कि ऐसा फल चाहता हूँ जो तुम्हारे हिसाब से ज़्यादा हो जाए
\s5
\v 18 मेरे पास सब कुछ है, बल्कि बहुतायत से है; तुम्हारी भेजी हुई चीज़ों इप्फ़्र्दितुस के हाथ से लेकर मैं आसूदा हो गया हूँ, वो ख़ुशबू और मक़बूल क़ुर्बानी हैं जो ख़ुदा को पसन्दीदा है|
\v 19 मेरा ख़ुदा अपनी दौलत के मुवाफ़िक़ जलाल से मसीह 'ईसा' में तुम्हारी हर एक कमी रफ़ा' करेगा|
\v 20 हमारे ख़ुदा और बाप की हमेशा से हमशा तक बड़ाई होती रहे आमीन
\s5
\v 21 हर एक मुक़द्दस से जो मसीह ईसा' में है सलाम कहो|जो भाई मेरे साथ हैं तुम्हे सलाम कहते है |
\v 22 सब मुक़द्दस ख़ुसूसन, क़ैसर के घर वाले तुम्हें सलाम कहते हैं ||
\v 23 ख़ुदावन्द ईसा' मसीह का फ़ज़ल तुम्हारी रूह के साथ रहे|

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52-COL.usfm Normal file
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\id COL
\ide UTF-8
\h कुलुस्सियों के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\toc1 कुलुस्सियों के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\toc2 कुलुस्सियों के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\toc3 col
\mt1 कुलुस्सियों के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 यह ख़त पौलुस की तरफ़ से है जो ख़ुदा की मर्ज़ी से मसीह ईसा का रसूल है। साथ ही यह भाई तीमुथियुस की तरफ़ से भी है।
\v 2 मैं कुलुस्से शहर के मुक़द्दस भाइयों को लिख रहा हूँ जो मसीह पर ईमान लाए हैं : ख़ुदा हमारा बाप आप को फ़ज़ल और सलामती बख़्शे।
\v 3 जब हम तुम्हारे लिए दुआ करते हैं तो हर वक़्त ख़ुदा अपने ख़ुदावन्द ईसा मसीह के बाप का शुक्र करते हैं,
\s5
\v 4 क्यूँकि हमने तुम्हारे मसीह ईसा' पर ईमान और तुम्हारी तमाम मुक़द्दसीन से मुहब्बत के बारे में सुन लिया है।
\v 5 तुम्हारा यह ईमान और मुहब्बत वह कुछ ज़ाहिर करता है जिस की तुम उम्मीद रखते हो और जो आस्मान पर तुम्हारे लिए मह्फ़ूज़ रखा गया है। और तुम ने यह उम्मीद उस वक़्त से रखी है जब से तुम ने पहली मर्तबा सच्चाई का कलाम यानी ख़ुदा की ख़ुशख़बरी सुनी।
\v 6 यह पैग़ाम जो तुम्हारे पास पहुँच गया पूरी दुनिया में फल ला रहा और बढ़ रहा है, बिल्कुल उसी तरह जिस तरह यह तुम में भी उस दिन से काम कर रहा है जब तुम ने पहली बार इसे सुन कर ख़ुदा के फ़ज़ल की पूरी हक़ीक़त समझ ली।
\s5
\v 7 तुम ने हमारे अज़ीज़ हमख़िदमत इपफ़्रास से इस ख़ुशख़बरी की तालीम पा ली थी। मसीह का यह वफ़ादार ख़ादिम हमारी जगह तुम्हारी ख़िदमत कर रहा है।
\v 8 उसी ने हमें तुम्हारी उस मुहब्बत के बारे में बताया जो रूह-उल-क़ुद्दूस ने तुम्हारे दिलों में डाल दी है।
\s5
\v 9 इस वजह से हम तुम्हारे लिए दुआ करने से बाज़ नहीं आए बल्कि यह माँगते रहते हैं कि ख़ुदा तुम को हर रुहानी हिक्मत और समझ से नवाज़ कर अपनी मर्ज़ी के इल्म से भर दे।
\v 10 क्यूँकि फिर ही तुम अपनी ज़िन्दगी ख़ुदावन्द के लायक़ गुज़ार सकोगे और हर तरह से उसे पसन्द आओगे। हाँ, तुम हर क़िस्म का अच्छा काम करके फल लाओगे और ख़ुदा के इल्म-ओ-'इरफ़ान में तरक़्क़ी करोगे।
\s5
\v 11 और तुम उस की जलाली क़ुदरत से मिलने वाली हर क़िस्म की ताक़त से मज़बूती पा कर हर वक़्त साबितक़दमी और सब्र से चल सकोगे।
\v 12 और बाप का शुक्र करते रहो जिस ने तुम को उस मीरास में हिस्सा लेने के लायक़ बना दिया जो उसकी रोशनी में रहने वाले मुक़द्दसीन को हासिल है।
\s5
\v 13 क्यूँकि वही हमें अँधेरे की गिरफ़्त से रिहाई दे कर अपने प्यारे फ़र्ज़न्द की बादशाही में लाया,
\v 14 उस एक शख़्स के इख़्तियार में जिस ने हमारा फ़िदया दे कर हमारे गुनाहों को मुआफ़ कर दिया।
\s5
\v 15 ख़ुदा को देखा नहीं जा सकता, लेकिन हम मसीह को देख सकते हैं जो ख़ुदा की सूरत और कायनात का पहलौठा है।
\v 16 क्यूँकि ख़ुदा ने उसी में सब कुछ पैदा किया, चाहे आस्मान पर हो या ज़मीन पर, आँखों को नज़र आए या न नज़र आएं, चाहे शाही तख़्त, क़ुव्वतें, हुक्मरान या इख़्तियार वाले हों। सब कुछ मसीह के ज़रिए और उसी के लिए पैदा हुआ।
\v 17 वही सब चीज़ों से पहले है और उसी में सब कुछ क़ायम रहता है।
\s5
\v 18 और वह बदन यानी अपनी जमाअत का सर भी है। वही शुरुआत है, और चूँकि पहले वही मुर्दों में से जी उठा इस लिए वही उन में से पहलौठा भी है ताकि वह सब बातों में पहले हो।
\v 19 क्यूँकि ख़ुदा को पसन्द आया कि मसीह में उस की पूरी मामूरी सुकूनत करे
\v 20 और वह मसीह के ज़रीए सब बातों की अपने साथ सुलह करा ले, चाहे वह ज़मीन की हों चाहे आस्मान की। क्यूँकि उस ने मसीह के सलीब पर बहाए गए ख़ून के वसीले से सुलह-सलामती क़ायम की।
\s5
\v 21 तुम भी पहले ख़ुदा के सामने अजनबी थे और दुश्मन की तरह सोच रख कर बुरे काम करते थे।
\v 22 लेकिन अब उस ने मसीह के इन्सानी बदन की मौत से तुम्हारे साथ सुलह कर ली है ताकि वह तुमको मुक़द्दस, बेदाग़ और बेइल्ज़ाम हालत में अपने सामने खड़ा करे।
\v 23 बेशक अब ज़रूरी है कि तुम ईमान में क़ायम रहो, कि तुम ठोस बुन्याद पर मज़्बूती से खड़े रहो और उस ख़ुशख़बरी की उम्मीद से हट न जाओ जो तुम ने सुन ली है। यह वही पैग़ाम है जिस का एलान दुनिया में हर मख़्लूक़ के सामने कर दिया गया है और जिस का ख़ादिम मैं पौलुस बन गया हूँ।
\s5
\v 24 अब मैं उन दुखों के ज़रिए ख़ुशी मनाता हूँ जो मैं तुम्हारी ख़ातिर उठा रहा हूँ। क्यूँकि मैं अपने जिस्म में मसीह के बदन यानी उस की जमाअत की ख़ातिर मसीह की मुसीबतों की वह कमियाँ पूरी कर रहा हूँ जो अब तक रह गई हैं।
\v 25 हाँ, ख़ुदा ने मुझे अपनी जमाअत का ख़ादिम बना कर यह ज़िम्मेंदारी दी कि मैं तुम को ख़ुदा का पूरा कलाम सुना दूँ,
\v 26 वह बातें जो शुरू से तमाम गुज़री नसलों से छुपा रहा था लेकिन अब मुक़द्दसीन पर ज़ाहिर की गयी हैं।
\v 27 क्यूँकि ख़ुदा चाहता था कि वह जान लें कि ग़ैरयहूदियों में यह राज़ कितना बेशक़ीमती और जलाली है। और यह राज़ है क्या? यह कि मसीह तुम में है। वही तुम में है जिस के ज़रिए हम ख़ुदा के जलाल में शरीक होने की उम्मीद रखते हैं।
\s5
\v 28 यूँ हम सब को मसीह का पैग़ाम सुनाते हैं। हर मुम्किन हिक्मत से हम उन्हें समझाते और तालीम देते हैं ताकि हर एक को मसीह में कामिल हालत में ख़ुदा के सामने पेश करें।
\v 29 यही मक़्सद पूरा करने के लिए मैं सख़्त मेहनत करता हूँ। हाँ, मैं पूरे जद्द-ओ-जह्द करके मसीह की उस ताक़त का सहारा लेता हूँ जो बड़े ज़ोर से मेरे अन्दर काम कर रही है।
\s5
\c 2
\v 1 मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो कि मैं तुम्हारे लिए किस क़दर जाँफ़िशानी कर रहा हूँ - तुम्हारे लिए, लौदीकिया शहर वालों के लिए और उन तमाम ईमानदारों के लिए भी जिन की मेरे साथ मुलाक़ात नहीं हुई।
\v 2 मेरी कोशिश यह है कि उन की दिली हौसला अफ़्ज़ाई की जाए और वह मुहब्बत में एक हो जाएँ, कि उन्हें वह ठोस भरोसा हासिल हो जाए जो पूरी समझ से पैदा होता है। क्यूँकि मैं चाहता हूँ कि वह ख़ुदा का राज़ जान लें। राज़ क्या है? मसीह ख़ुद।
\v 3 उसी में हिक्मत और इल्म-ओ-'इरफ़ान के तमाम ख़ज़ाने छुपे हैं।
\s5
\v 4 ग़रज़ ख़बरदार रहें कि कोई तुमको बज़ाहिर सही और मीठे मीठे अल्फ़ाज़ से धोका न दे।
\v 5 क्यूँकि गरचे मैं जिस्म के लिहाज़ से हाज़िर नहीं हूँ, लेकिन रूह में मैं तुम्हारे साथ हूँ। और मैं यह देख कर ख़ुश हूँ कि तुम कितनी मुनज़्ज़म ज़िन्दगी गुज़ारते हो, कि तुम्हारा मसीह पर ईमान कितना पुख़्ता है।
\s5
\v 6 तुमने ईसा मसीह को ख़ुदावन्द के तौर पर क़बूल कर लिया है। अब उस में ज़िन्दगी गुज़ारो।
\v 7 उस में जड़ पकड़ो, उस पर अपनी ज़िन्दगी तामीर करो, उस ईमान में मज़्बूत रहो जिस की तुमको तालीम दी गई है और शुक्रगुज़ारी से लबरेज़ हो जाओ।
\s5
\v 8 होशियार रहो कि कोई तुम को फ़ल्सफ़ियाना और महज़ धोका देने वाली बातों से अपने जाल में न फंसा ले। ऐसी बातों का सरचश्मा मसीह नहीं बल्कि इन्सानी रिवायतें और इस दुनियाँ की ताक़तें हैं।
\v 9 क्यूँकि मसीह में ख़ुदाइयत की सारी मा'मूरी मुजस्सम हो कर सुकूनत करती है।
\s5
\v 10 और तुम को जो मसीह में हैं उस की मामूरी में शरीक कर दिया गया है। वही हर हुक्मरान और इख़तियार वाले का सर है।
\v 11 उस में आते वक़्त तुम्हारा ख़तना भी करवाया गया। लेकिन यह ख़तना इन्सानी हाथों से नहीं किया गया बल्कि मसीह के वसीले से। उस वक़्त तुम्हारी पुरानी निस्बत उतार दी गई,
\v 12 तुम को बपतिस्मा दे कर मसीह के साथ दफ़नाया गया और तुम को ईमान से ज़िन्दा कर दिया गया। क्यूँकि तुम ख़ुदा की क़ुदरत पर ईमान लाए थे, उसी क़ुदरत पर जिस ने मसीह को मुर्दों में से ज़िन्दा कर दिया था।
\s5
\v 13 पहले तुम अपने गुनाहों और नामख़्तून जिस्मानी हालत की वजह से मुर्दा थे, लेकिन अब ख़ुदा ने तुमको मसीह के साथ ज़िन्दा कर दिया है। उस ने हमारे तमाम गुनाहों को मुआफ़ कर दिया है।
\v 14 और अहकाम की वह दस्तावेज़ जो हमारे ख़िलाफ़ थी उसे उस ने रद कर दिया। हाँ, उस ने हम से दूर करके उसे कीलों से सलीब पर जड़ दिया।
\v 15 उस ने हुक्मरानों और इख़तियार वालों से उन का हथियार छीन कर सब के सामने उन की रुस्वाई की। हाँ, मसीह की सलीबी मौत से वह ख़ुदा के क़ैदी बन गए और उन्हें फ़तह के जुलूस में उस के पीछे पीछे चलना पड़ा।
\s5
\v 16 चुनाँचे कोई तुमको इस वजह से मुजरिम न ठहराए कि तुम क्या क्या खाते-पीते या कौन कौन सी ईदें मनाते हो। इसी तरह कोई तुम्हारी अदालत न करे अगर तुम हिलाल की ईद या सबत का दिन नहीं मनाते।
\v 17 यह चीज़ें तो सिर्फ़ आने वाली हक़ीक़त का साया ही हैं जबकि यह हक़ीक़त ख़ुद मसीह में पाई जाती है।
\s5
\v 18 ऐसे लोग तुम को मुजरिम न ठहराएँ जो ज़ाहिरी फ़रोतनी और फ़रिश्तों की इबादत पर इसरार करते हैं। बड़ी तफ़्सील से अपनी रोयाओं में देखी हुई बातें बयान करते करते उन के ग़ैररुहानी ज़हन ख़्वाह-म-ख़्वाह फूल जाते हैं।
\v 19 यूँ उन्हों ने मसीह के साथ लगे रहना छोड़ दिया अगरचे वह बदन का सिर है। वही जोड़ों और पट्ठों के ज़रीए पूरे बदन को सहारा दे कर उस के मुख़्तलिफ़ हिस्सों को जोड़ देता है। यूँ पूरा बदन ख़ुदा की मदद से तरक़्क़ी करता जाता है।
\s5
\v 20 तुम तो मसीह के साथ मर कर दुनियाँ की ताक़तों से आज़ाद हो गए हो। अगर ऐसा है तो तुम ज़िन्दगी ऐसे क्यूँ गुज़ारते हो जैसे कि तुम अभी तक इस दुनिया की मिल्कियत हो? तुम क्यूँ इस के अह्काम के ताबे रहते हो?
\v 21 मसलन “इसे हाथ न लगाना, वह न चखना, यह न छूना।”
\v 22 इन तमाम चीज़ों का मक़्सद तो यह है कि इस्तेमाल हो कर ख़त्म हो जाएँ। यह सिर्फ़ इन्सानी अह्काम और तालीमात हैं।
\v 23 बेशक यह अह्काम जो गढ़े हुए मज़्हबी फ़राइज़, नाम-निहाद फ़रोतनी और जिस्म के सख़्त दबाओ का तक़ाज़ा करते हैं हिक्मत पर मुनहसिर तो लगते हैं, लेकिन यह बेकार हैं और सिर्फ़ जिस्म ही की ख़्वाहिशात पूरी करते हैं।
\s5
\c 3
\v 1 तुम को मसीह के साथ ज़िन्दा कर दिया गया है, इस लिए वह कुछ तलाश करो जो आस्मान पर है जहाँ मसीह ख़ुदा के दहने हाथ बैठा है।
\v 2 दुनियावी चीज़ों को अपने ख़यालों का मर्कज़ न बनाओ बल्कि आस्मानी चीज़ों को।
\v 3 क्यूँकि तुम मर गए हो और अब तुम्हारी ज़िन्दगी मसीह के साथ ख़ुदा में छुपी है।
\v 4 मसीह ही तुम्हारी ज़िन्दगी है। जब वह ज़ाहिर हो जाएगा तो तुम भी उस के साथ ज़ाहिर हो कर उस के जलाल में शरीक हो जाओगे।
\s5
\v 5 चुनाँचे उन दुनियावी चीज़ों को मार डालो जो तुम्हारे अन्दर काम कर रही हैं : ज़िनाकारी, नापाकी, शहवतपरस्ती, बुरी ख़्वाहिशात और लालच (लालच तो एक क़िस्म की बुतपरस्ती है)।
\v 6 ख़ुदा का ग़ज़ब ऐसी ही बातों की वजह से नाज़िल होगा।
\v 7 एक वक़्त था जब तुम भी इन के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारते थे, जब तुम्हारी ज़िन्दगी इन के क़ाबू में थी।
\v 8 लेकिन अब वक़्त आ गया है कि तुम यह सब कुछ यानी ग़ुस्सा, तैश, बदसुलूकी, बुह्तान और गन्दी ज़बान ख़स्ताहाल कपड़े की तरह उतार कर फेंक दो।
\s5
\v 9 एक दूसरे से बात करते वक़्त झूट मत बोलना, क्यूँकि तुमने अपनी पुरानी फ़ितरत उस की हरकतो समेत उतार दी है।
\v 10 साथ साथ तुमने नई फ़ितरत पहन ली है, वह फ़ितरत जिस की ईजाद हमारा ख़ालिक़ अपनी सूरत पर करता जा रहा है ताकि तुम उसे और बेहतर तौर पर जान लो।
\v 11 जहाँ यह काम हो रहा है वहाँ लोगों में कोई फ़र्क़ नहीं है, चाहे कोई ग़ैरयहूदी हो या यहूदी, मख़्तून हो या नामख़्तून, ग़ैरयूनानी हो या स्कूती , ग़ुलाम हो या आज़ाद। कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, सिर्फ़ मसीह ही सब कुछ और सब में है।
\s5
\v 12 ख़ुदा ने तुम को चुन कर अपने लिए ख़ास-और पाक कर लिया है। वह तुम से मुहब्बत रखता है। इस लिए अब तरस, नेकी, फ़रोतनी, नर्मदिली और सब्र को पहन लो।
\v 13 एक दूसरे को बर्दाश्त करो, और अगर तुम्हारी किसी से शिकायत हो तो उसे मुआफ़ कर दो। हाँ, यूँ मुआफ़ करो जिस तरह ख़ुदावन्द ने आप को मुआफ़ कर दिया है।
\v 14 इन के अलावा मुहब्बत भी पहन लो जो सब कुछ बाँध कर कामिलियत की तरफ़ ले जाती है।
\s5
\v 15 मसीह की सलामती तुम्हारे दिलों में हुकूमत करे। क्यूँकि ख़ुदा ने तुम को इसी सलामती की ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए बुला कर एक बदन में शामिल कर दिया है। शुक्रगुज़ार भी रहो।
\v 16 तुम्हारी ज़िन्दगी में मसीह के कलाम की पूरी दौलत घर कर जाए। एक दूसरे को हर तरह की हिक्मत से तालीम देते और समझाते रहो। साथ साथ अपने दिलों में ख़ुदा के लिए शुक्रगुज़ारी के साथ ज़बूर, हम्द-ओ-सना और रुहानी गीत गाते रहो।
\v 17 और जो कुछ भी तुम करो ख़्वाह ज़बानी हो या अमली वह ख़ुदावन्द ईसा' का नाम ले कर करो। हर काम में उसी के वसीले से ख़ुदा बाप का शुक्र करो।
\s5
\v 18 बीवियो, अपने शौहर के ताबे रहें, क्यूँकि जो ख़ुदावन्द में है उस के लिए यही मुनासिब है।
\v 19 शौहरो, अपनी बीवियों से मुहब्बत रखो| उन से तल्ख़मिज़ाजी से पेश न आओ।
\v 20 बच्चे, हर बात में अपने माँ-बाप के ताबे रहें, क्यूँकि यही ख़ुदावन्द को पसन्द है।
\v 21 वालिदो, अपने बच्चों को ग़ुस्सा न करें, वर्ना वह बेदिल हो जाएँगे।
\s5
\v 22 ग़ुलामो, हर बात में अपने दुनियावी मालिकों के ताबे रहो। न सिर्फ़ उन के सामने ही और उन्हें ख़ुश रखने के लिए ख़िदमत करें बल्कि ख़ुलूसदिली और ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ मान कर काम करें।
\v 23 जो कुछ भी तुम करते हो उसे पूरी लगन के साथ करो, इस तरह जैसा कि तुम न सिर्फ़ इन्सानों की बल्कि ख़ुदावन्द की ख़िदमत कर रहे हो।
\v 24 तुम तो जानते हो कि ख़ुदावन्द तुम को इस के मुआवज़े में वह मीरास देगा जिस का वादा उस ने किया है। हक़ीक़त में तुम ख़ुदावन्द मसीह की ही ख़िदमत कर रहे हो।
\v 25 लेकिन जो ग़लत काम करे उसे अपनी ग़लतियों का मुआवज़ा भी मिलेगा। ख़ुदा तो किसी की भी तरफ़दारी नहीं करता।
\s5
\c 4
\v 1 मालिको, अपने ग़ुलामों के साथ मलिकाना और जायज़ सुलूक करें। तुम तो जानते हो कि आस्मान पर तुम्हारा भी मालिक जो कि ख़ुदा है।
\s5
\v 2 दुआ में लगे रहो। और दुआ करते वक़्त शुक्रगुज़ारी के साथ जागते रहो।
\v 3 साथ साथ हमारे लिए भी दुआ करो ताकि ख़ुदा हमारे लिए कलाम सुनाने का दरवाज़ा खोले और हम मसीह का राज़ पेश कर सकें। आख़िर मैं इसी राज़ की वजह से क़ैद में हूँ।
\v 4 दुआ करो कि मैं इसे यूँ पेश करूँ जिस तरह करना चाहिए, कि इसे साफ़ समझा जा सके।
\s5
\v 5 जो अब तक ईमान न लाए हों उन के साथ अक़्लमन्दी का सुलूक करो। इस सिलसिले में हर मौक़े से फ़ाइदा उठाओ।
\v 6 तुम्हारी बातें हर वक़्त मेहरबान हो, ऐसी कि मज़ा आए और तुम हर एक को मुनासिब जवाब दे सको।
\s5
\v 7 जहाँ तक मेरा ताल्लुक़ है हमारा अज़ीज़ भाई तुख़िकुस तुमको सब कुछ बता देगा। वह एक वफ़ादार ख़ादिम और ख़ुदावन्द में हमख़िदमत रहा है।
\v 8 मैंने उसे ख़ासकर इस लिए तुम्हारे पास भेज दिया ताकि तुम को हमारा हाल मालूम हो जाए और वह तुम्हारी हौसला अफ़्ज़ाई करे।
\v 9 वह हमारे वफ़ादार और अज़ीज़ भाई उनेसिमुस के साथ तुम्हारे पास आ रहा है, वही जो तुम्हारी जमाअत से है। दोनों तुमको वह सब कुछ सुना देंगे जो यहाँ हो रहा है।
\s5
\v 10 अरिस्तर्ख़ुस जो मेरे साथ क़ैद में है तुम को सलाम कहता है और इसी तरह बर्नबास का चचेरा भाई मरकुस भी। (तुम को उस के बारे में हिदायात दी गई हैं। जब वह तुम्हारे पास आए तो उसे ख़ुशआमदीद कहना।)
\v 11 ईसा' जो यूस्तुस कहलाता है भी तुम को सलाम कहता है। उन में से जो मेरे साथ ख़ुदा की बादशाही में ख़िदमत कर रहे हैं सिर्फ़ यह तीन मर्द यहूदी हैं। और यह मेरे लिए तसल्ली का ज़रिया रहे हैं।
\s5
\v 12 मसीह ईसा' का ख़ादिम इपफ़्रास भी जो तुम्हारी जमाअत से है सलाम कहता है। वह हर वक़्त बड़ी जद्द-ओ-जह्द के साथ तुम्हारे लिए दुआ करता है। उस की ख़ास दुआ यह है कि तुम मज़्बूती के साथ खड़े रहो, कि तुम बालिग़ मसीही बन कर हर बात में ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ चलो।
\v 13 मैं ख़ुद इस की तस्दीक़ कर सकता हूँ कि उस ने तुम्हारे लिए सख़्त मेहनत की है बल्कि लौदीकिया और हियरापुलिस की जमाअतों के लिए भी।
\v 14 हमारे अज़ीज़ तबीब लूक़ा और देमास तुमको सलाम कहते हैं।
\s5
\v 15 मेरा सलाम लौदीकिया की जमाअत को देना और इसी तरह नुम्फ़ास को उस जमाअत समेत जो उस के घर में जमा होती है।
\v 16 यह पढ़ने के बाद ध्यान दें कि लौदीकिया की जमाअत में भी यह ख़त पढ़ा जाए और तुम लौदीकिया का ख़त भी पढ़ो।
\v 17 अर्ख़िप्पुस को बता देना, ख़बरदार कि तुम वह ख़िदमत तक्मील तक पहुँचाओ जो तुम को ख़ुदावन्द में सौंपी गई है।
\s5
\v 18 मैं अपने हाथ से यह अल्फ़ाज़ लिख रहा हूँ। मेरा यानी पौलुस की तरफ़ से सलाम। मेरी ज़न्जीरें मत भूलना! ख़ुदा का फ़ज़ल तुम्हारे साथ होता रहे।

140
53-1TH.usfm Normal file
View File

@ -0,0 +1,140 @@
\id 1TH
\ide UTF-8
\h थिस्सलुनीकियों के नाम पौलुस रसूल पहला का ख़त
\toc1 थिस्सलुनीकियों के नाम पौलुस रसूल पहला का ख़त
\toc2 थिस्सलुनीकियों के नाम पौलुस रसूल पहला का ख़त
\toc3 1th
\mt1 थिस्सलुनीकियों के नाम पौलुस रसूल पहला का ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 पौलूस और सिलास और तीमुथियुस की तरफ़ से थिस्सलोनिकियो शहर की कलीसिया के नाम ख़त , जो ख़ुदा बाप और ख़ुदा वंद ईसा' मसीह में है, फ़ज़ल और इत्मिनान तुम्हें हासिल होता रहे |
\s5
\v 2 तुम सब के बारे में हम ख़ुदा का शुक्र बजा लाते हैं और अपनी दु'आओं में तुम्हें याद करते हैं ।
\v 3 और अपने ख़ुदा और बाप के हज़ूर तुम्हारे ईमान के काम और मुहब्बत की मेहनत और उस उम्मीद के सब्र को बिला नाग़ा याद करते हैं जो हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह की वजह से है।
\s5
\v 4 और ऐ भाइयो! ख़ुदा के प्यारों हम को मा'लूम है; कि तुम चुने हुए हो ।
\v 5 इसलिए कि हमारी ख़ुशख़बरी तुम्हारे पास न फ़क़त लफ़ज़ी तौर पर पहुँची बल्कि क़ुदरत और रूह-उल-क़ुद्दूस और पूरे यक़ीन के साथ भी चुनाँचे" तुम जानते हो कि हम तुम्हारी ख़ातिर तुम में कैसे बन गए थे।
\s5
\v 6 और तुम कलाम को बड़ी मुसीबत में रूह-उल-क़ुद्दूस की ख़ुशी के साथ क़ुबूल करके हमारी और "ख़ुदावन्द" की मानिन्द बने।
\v 7 यहाँ तक कि मकिदुनिया और अख़्या के सब ईमानदारों के लिए नमूना बने।
\s5
\v 8 क्योंकि तुम्हारे हाँ से न फ़क़त मकिदुनिया और अख़्या में ख़ुदावन्द के कलाम का चर्चा फ़ैला है, बल्कि तुम्हारा ईमान जो"ख़ुदा"पर है हर जगह ऐसा मशहूर हो गया है कि हमारे कहने की कुछ ज़रुरत नहीं।
\v 9 इसलिए कि वो आप हमारा ज़िक्र करते हैं कि तुम्हारे पास हमारा आना कैसा हुआ और तुम बुतों से फिर कर "ख़ुदा"की तरफ़ मुख़ातिब हुए ताकि ज़िन्दा और हक़ीक़ी"ख़ुदा"की बन्दगी करो।
\v 10 और उसके बेटे के आसमान पर से आने के इन्तिज़ार मे रहो, जिसे उस ने मुर्दों में से जिलाया या'नी ईसा' मसीह" के जो हम को आने वाले ग़ज़ब से बचाता है।
\s5
\c 2
\v 1 ऐ भाइयों! तुम आप जानते हो कि हमारा तुम्हारे पास आना बेफ़ाइदा न हुआ।
\v 2 बल्कि तुम को मा'लूम ही है कि बावजूद पहले फ़िलिप्पी में दु:ख उठाने और बेइज़्ज़त होने के हम को अपने"ख़ुदा" में ये दिलेरी हासिल हुई कि "ख़ुदा"की ख़ुशख़बरी बड़ी जाँफ़िशानी से तुम्हें सुनाएँ।
\s5
\v 3 क्योंकि हमारी नसीहत न गुमराही से है न नापाकी से न धोखे के साथ ।
\v 4 बल्कि जैसे ख़ुदा ने हम को मक़्बूल करके ख़ुशख़बरी हमारे सुपुर्द की वैसे ही हम बयान करते हैं; आदमियों को नहीं बल्कि ख़ुदा को ख़ुश करने के लिए जो हमारे दिलों को आज़माता है।
\s5
\v 5 क्योंकि तुम को मा'लूम ही है कि न कभी हमारे कलाम में ख़ुशामद पाई गई न लालच का पर्दा बना "ख़ुदा"इसका गवाह है!
\v 6 और हम न आदमियों से इज़्ज़त चाहते हैं न तुम से न औरों से अगरचे मसीह के रसूल होने की वजह तुम पर बोझ डाल सकते थे।
\s5
\v 7 बल्कि जिस तरह माँ अपने बच्चों को पालती है उसी तरह हम तुम्हारे दर्मियान नर्मी के साथ रहे।
\v 8 और उसी तरह हम तुम्हारे बहुत अहसानमंद होकर न फ़क़त "ख़ुदा"की ख़ुशख़बरी बल्कि अपनी जान तक भी तुम्हें देने को राज़ी थे; इस वास्ते कि तुम हमारे प्यारे हो गए थे!
\v 9 क्योंकि "ऐ भाइयो! तुम को हमारी मेहनत और मशक़्क़त याद होगी कि हम ने तुम में से किसी पर बोझ न डालने की ग़रज़ से रात दिन मेहनत मज़दूरी करके तुम्हें "ख़ुदा"की ख़ुशख़बरी की मनादी की।
\s5
\v 10 तुम भी गवाह हो और ख़ुदा भी कि तुम से जो ईमान लाए हो हम कैसी पाकीज़गी और रास्तबाज़ी और बे'ऐबी के साथ पेश आए ।
\v 11 चुनाँचे तुम जानते हो। कि जिस तरह बाप अपने बच्चों के साथ करता है उसी तरह हम भी तुम में से हर एक को नसीहत करते और दिलासा देते और समझाते रहे।
\v 12 ताकि तुम्हारा चालचलन ख़ुदा के लायक़ हो जो तुम्हें अपनी बादशाही और जलाल में बुलाता है।
\s5
\v 13 इस वास्ते हम भी बिला नाग़ा ख़ुदा का शुक्र करते हैं कि जब ख़ुदा का पैग़ाम हमारे ज़रिये तुम्हारे पास पहुँचा तो तुम ने उसे आदमियों का कलाम समझ कर नहीं बल्कि जैसा हक़ीक़त में है ख़ुदा का कलाम जान कर क़ुबूल किया और वो तुम में जो ईमान लाए हो असर भी कर रहा है।
\s5
\v 14 इसलिए कि तुम ऐ भाइयो!, ख़ुदा की उन कलीसियाओं की तरह बन गए जो यहूदिया में मसीह ईसा' में हैं क्योंकि तुम ने भी अपनी क़ौम वालों से वही तक्लीफे़ं उठाईं जो उन्होंने यहूदियों से।
\v 15 जिन्होंने ख़ुदावन्द को भी मार डाला और हम को सता सता कर निकाल दिया वो ख़ुदा को पसंद नहीं आते और सब आदमियों के ख़िलाफ़ हैं।
\v 16 और वो हमें ग़ैर कौमों को उनकी नजात के लिए कलाम सुनाने से मना करते हैं ताकि उन के गुनाहों का पैमाना हमेशा भरता रहे; लेकिन उन पर इन्तिहा का ग़ज़ब आ गया।
\s5
\v 17 ऐ भाइयों! जब हम थोड़े अर्से के लिए ज़ाहिर में न कि दिल से तुम से जुदा हो गए तो हम ने कमाल आरज़ू से तुम्हारी सूरत देखने की और भी ज़्यादा कोशिश की ।
\v 18 इस वास्ते हम ने या'नी मुझ पौलुस ने एक दफ़ा' नहीं बल्कि दो दफ़ा' तुम्हारी पास आना चाहा मगर शैतान ने हमें रोके रखा|
\v 19 भला हमारी उम्मीद और ख़ुशी और फ़ख्र का ताज क्या है? क्या वो हमारे "ख़ुदावन्द" " के सामने उसके आने के वक़्त तुम ही न होगे।
\v 20 हमारा जलाल और खुशी तुम्हीं तो हो |
\s5
\c 3
\v 1 इस वास्ते जब हम ज़्यादा बर्दाश्त न कर सके तो अथेने शहर में अकेले रह जाना मन्ज़ूर किया।
\v 2 और हम ने तीमुथियुस को जो हमारा भाई और मसीह की ख़ुशख़बरी में ख़ुदा का ख़ादिम है इसलिए भेजा कि वो तुम्हें मज़बूत करे और तुम्हारे ईमान के बारे में तुम्हें नसीहत करे।
\v 3 कि इन मुसीबतों के ज़रिये से कोई न घबराए, क्योंकि तुम आप जानते हो कि हम इन ही के लिए मुक़र्रर हुए हैं।
\s5
\v 4 बल्कि पहले भी जब हम तुम्हारे पास थे, तो तुम से कहा करते थे; कि हमें मुसीबत उठाना होगा, चुनाँचे ऐसा ही हुआ और तुम्हें मा'लूम भी है।
\v 5 इस वास्ते जब मैं और ज़्यादा बर्दाश्त न कर सका तो तुम्हारे ईमान का हाल दरियाफ़्त करने को भेजा; कहीं ऐसा न हो कि आज़माने वाले ने तुम्हें आज़माया हो और हमारी मेहनत बेफ़ाइदा रह गई हो।
\s5
\v 6 मगर अब जो तीमुथियुस ने तुम्हारे पास से हमारे पास आकर तुम्हारे ईमान और मुहब्बत की और इस बात की ख़ुशख़बरी दी कि तुम हमारा ज़िक्र ख़ैर हमेशा करते हो और हमारे देखने के ऐसे मुश्ताक़ हो जैसे कि हम तुम्हारे।
\v 7 इसलिए ऐ भाइयों! हम ने अपनी सारी एहतियाज और मुसीबत में तुम्हारे ईमान के जरिये से तुम्हारे बारे में तसल्ली पाई।
\s5
\v 8 क्योंकि अब अगर तुम ख़ुदावन्द में क़ायम हो तो हम ज़िन्दा हैं।
\v 9 तुम्हारी वजह से अपने ख़ुदा के सामने हमें जिस क़दर ख़ुशी हासिल है, उस के बदले में किस तरह तुम्हारे ज़रिये "ख़ुदा"का शुक्र अदा करें।
\v 10 हम रात दिन बहुत ही दु'आ करते रहते हैं कि तुम्हारी सूरत देखें और तुम्हारे ईमान की कमी पूरी करें।
\s5
\v 11 अब हमारा "ख़ुदा"और बाप ख़ुद हमारा ख़ुदावन्द ईसा' तुम्हारी तरफ़ से हमारी रहनुमाई करे।
\v 12 और ख़ुदावन्द ऐसा करे कि जिस तरह हम को तुम से मुहब्बत है उसी तरह तुम्हारी मुहब्बत भी आपस में और सब आदमियों के साथ ज़्यादा हो और बढ़े
\v 13 ताकि वो तुम्हारे दिलों को ऐसा मज़बूत कर दे कि जब हमारा ख़ुदावन्द ईसा अपने सब मुक़द्दसों के साथ आए तो वो हमारे"ख़ुदा"और बाप के सामने पाक़ीज़गी में बेऐब हों।
\s5
\c 4
\v 1 ग़रज़ "ऐ भाइयो!, हम तुम से दरख़्वास्त करते हैं और ख़ुदावन्द ईसा में तुम्हें नसीहत करते हैं कि जिस तरह तुम ने हम से मुनासिब चाल चलने और "ख़ुदा"को ख़ुश करने की ता'लीम पाई और जिस तरह तुम चलते भी हो उसी तरह और तरक़्क़ी करते जाओ।
\v 2 क्योंकि तुम जानते हो कि हम ने तुम को ख़ुदावन्द ईसा' की तरफ़ से क्या क्या हुक्म पहुँचाए।
\s5
\v 3 चुनाँचे ख़ुदा की मर्ज़ी ये है कि तुम पाक बनो, या'नी हरामकारी से बचे रहो।
\v 4 और हर एक तुम में से पाक़ीज़गी और इज़्ज़त के साथ अपने ज़र्फ़ को हासिल करना जाने।
\v 5 न बुरी ख़्वाहिश के जोश से उन कौमों की तरह जो ख़ुदा को नहीं जानतीं
\v 6 और कोई शख़्स अपने भाई के साथ इस काम में ज़्यादती और दग़ा न करे क्योंकि ख़ुदावन्द इन सब कामों का बदला लेने वाला है चुनाँचे हम ने पहले भी तुम को आगाह करके जता दिया था।
\s5
\v 7 इसलिए कि "ख़ुदा" ने हम को नापाकी के लिए नहीं बल्कि पाकीज़गी के लिए बुलाया।
\v 8 पस, जो नहीं मानता वो आदमी को नहीं बल्कि"ख़ुदा"को नहीं मानता जो तुम को अपना पाक रूह देता है ।
\s5
\v 9 मगर भाई-चारे की मुहब्बत के ज़रिये तुम्हें कुछ लिखने की हाजत नहीं क्योंकि तुम ने आपस में मुहब्बत करने की"ख़ुदा" से ता'लीम पा चुके हो।
\v 10 और तमाम मकिदुनिया के सब भाइयों के साथ ऐसा ही करते हो "लेकिन ऐ भाइयो! हम तुम्हें नसीहत करते हैं कि तरक़्क़ी करते जाओ।
\v 11 और जिस तरह हम ने तुम को हुक्म दिया चुप चाप रहने और अपना कारोबार करने और अपने हाथों से मेहनत करने की हिम्मत करो।
\v 12 ताकि बाहर वालों के साथ संजीदगी से बरताव करो और किसी चीज़ के मोहताज न हो।
\s5
\v 13 ऐ भाइयों! हम नही चाहते कि जो सोते है उनके बारे मे तुम नावाक़िफ़ रहो ताकि औरो की तरह जो ना उम्मीद है ग़म ना करो ।
\v 14 क्योंकि जब हमें ये यक़ीन है कि "ईसा" मर गया और जी उठा तो उसी तरह "ख़ुदा"उन को भी जो सो गए हैं "ईसा" के वसीले से उसी के साथ ले आएगा।
\v 15 चुनाँचे हम तुम से "ख़ुदावन्द" के कलाम के मुताबिक़ कहते हैं कि हम जो ज़िन्दा हैं और "ख़ुदावन्द"के आने तक बाक़ी रहेंगे सोए हुओं से हरगिज़ आगे न बढ़ेंगे।
\s5
\v 16 क्योंकि "ख़ुदावन्द"ख़ुद आसमान से लल्कार और खास फ़रिश्ते की आवाज़ और "ख़ुदा" के नरसिंगे के साथ उतर आएगा और पहले तो वो जो "मसीह" में मरे जी उठेंगे।
\v 17 फिर हम जो ज़िन्दा बाक़ी होंगे उनके साथ बादलों पर उठा लिए जाएँगे; ताकि हवा में "ख़ुदावन्द" का इस्तक़बाल करें और इसी तरह हमेशा "ख़ुदावन्द" के साथ रहेंगे।
\v 18 पस, तुम इन बातों से एक दूसरे को तसल्ली दिया करो।
\s5
\c 5
\v 1 मगर "ऐ भाइयो! इसकी कुछ जरूरत नहीं कि वक़्तों और मौक़ों के ज़रिये तुम को कुछ लिखा जाए।
\v 2 इस वास्ते कि तुम आप ख़ुद जानते हो कि "ख़ुदावन्द" का दिन इस तरह आने वाला है जिस तरह रात को चोर आता है।
\v 3 जिस वक़्त लोग कहते होंगे कि सलामती और अम्न है उस वक़्त उन पर इस तरह हलाकत आएगी जिस तरह हामिला को दर्द होता हैं और वो हरगिज़ न बचेंगे।
\s5
\v 4 लेकिन तुम "ऐ भाइयो, अंधेरे में नहीं हो कि वो दिन चोर की तरह तुम पर आ पड़े ।
\v 5 क्योंकि तुम सब नूर के फ़र्ज़न्द और दिन के फ़र्ज़न्द हो, हम न रात के हैं न तारीकी के।
\v 6 पस, औरों की तरह सोते न रहो , बल्कि जागते और होशियार रहो ।
\v 7 क्योंकि जो सोते हैं रात ही को सोते हैं और जो मतवाले होते हैं रात ही को मतवाले होते हैं।
\s5
\v 8 मगर हम जो दिन के हैं ईमान और मुहब्बत का बख़्तर लगा कर और निजात की उम्मीद कि टोपी पहन कर होशियार रहें।
\v 9 क्योंकि "ख़ुदा" ने हमें ग़ज़ब के लिए नहीं बल्कि इसलिए मुक़र्रर किया कि हम अपने"ख़ुदावन्द" ईसा मसीह" के वसीले से नजात हासिल करें ।
\v 10 वो हमारी ख़ातिर इसलिए मरा , कि हम जागते हों या सोते हों सब मिलकर उसी के साथ जिएँ।
\v 11 पस, तुम एक दूसरे को तसल्ली दो और एक दूसरे की तरक़्क़ी की वजह बनो चुनाँचे तुम ऐसा करते भी हो।
\s5
\v 12 और "ऐ भाइयो, हम तुम से दरख़्वास्त करते हैं, कि जो तुम में मेहनत करते और "ख़ुदावन्द" में तुम्हारे पेशवा हैं और तुम को नसीहत करते हैं उन्हें मानो।
\v 13 और उनके काम की वजह से मुहब्बत के साथ उन की बड़ी इज़्ज़त करो; आपस में मेल मिलाप रख्खो।
\v 14 और"ऐ भाइयो, हम तुम्हें नसीहत करते हैं कि बे क़ाइदा चलने वालों को समझाओ कम हिम्मतों को दिलासा दो कमज़ोरों को संम्भालो सब के साथ तह्म्मुल से पेश आओ।
\s5
\v 15 ख़बरदार कोई किसी से बदी के बदले बदी न करे बल्कि हर वक़्त नेकी करने के दर पै रहो आपस में भी और सब से।
\v 16 हर वक़्त ख़ुश रहो।
\v 17 बिला नाग़ा दुआ करो।
\v 18 हर एक बात में शुक्र गुज़ारी करो क्योंकि मसीह ईसा' में तुम्हारे बारे में ख़ुदा की यही मर्ज़ी है।
\s5
\v 19 रूह को न बुझाओ।
\v 20 नबुव्वतों की हिक़ारत न करो।
\v 21 सब बातों को आज़माओ, जो अच्छी हो उसे पकड़े रहो।
\v 22 हर क़िस्म की बदी से बचे रहो।
\s5
\v 23 ख़ुदा जो इत्मिनान का चश्मा है आप ही तुम को बिलकुल पाक करे, और तुम्हारी रूह और जान और बदन हमारे"ख़ुदावन्द"के आने तक पूरे पूरे और बेऐब महफ़ूज़ रहें।
\v 24 तुम्हारा बुलाने वाला सच्चा है वो ऐसा ही करेगा।
\s5
\v 25 ऐ भाइयों! हमारे वास्ते दु'आ करो।
\v 26 पाक बोसे के साथ सब भाइयों को सलाम करो।
\v 27 मैं तुम्हें ख़ुदावन्द की क़सम देता हूँ, कि ये ख़त सब भाइयों को सुनाया जाए।
\v 28 हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह का फ़ज़ल तुम पर होता रहे।

80
54-2TH.usfm Normal file
View File

@ -0,0 +1,80 @@
\id 2TH
\ide UTF-8
\h थिस्सलुनीकियों के नाम पौलुस रसूल का दूसरा ख़त
\toc1 थिस्सलुनीकियों के नाम पौलुस रसूल का दूसरा ख़त
\toc2 थिस्सलुनीकियों के नाम पौलुस रसूल का दूसरा ख़त
\toc3 2th
\mt1 थिस्सलुनीकियों के नाम पौलुस रसूल का दूसरा ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 पौलुस, और सिलास और तीमुथियुस की तरफ़ से थिस्सलुनीकियों शहर की कलीसिया के नाम ख़त जो हमारे बाप ख़ुदा और ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह में है ।
\v 2 फ़ज़ल और इत्मीनान ख़ुदा' बाप और ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह की तरफ़ से तुम्हें हासिल होता रहे।
\s5
\v 3 ऐ भाईयो! तुम्हारे बारे में हर वक़्त ख़ुदा का शुक्र करना हम पर फ़र्ज़ है, और ये इसलिए मुनासिब है, कि तुम्हारा ईमान बहुत बढ़ता जाता है; और तुम सब की मुहब्बत आपस में ज़्यादा होती जाती है।
\v 4 यहाँ तक कि हम आप ख़ुदा की कलीसियाओं में तुम पर फ़ख़्र करते हैं कि जितने ज़ुल्म और मुसीबतें तुम उठाते हो उन सब में तुम्हारा सब्र और ईमान ज़ाहिर होता है।
\v 5 ये ख़ुदा की सच्ची अदालत का साफ़ निशान है ; ताकि तुम ख़ुदा की बादशाही के लायक़ ठहरो जिस के लिए तुम तकलीफ़ भी उठाते हो।
\s5
\v 6 क्यूँकि ख़ुदा के नज़दीक ये इन्साफ़ है के बदले में तुम पर मुसीबत लाने वालों को मुसीबत।
\v 7 और तुम मुसीबत उठाने वालों को हमारे साथ आराम दे; जब ख़ुदावन्द 'ईसा' अपने मज़बूत फ़रिश्तों के साथ भड़कती हुई आग में आसमान से ज़ाहिर होगा।
\v 8 और जो ख़ुदा को नहीं पहचानते और हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा' की ख़ुशख़बरी को नहीं मानते उन से बदला लेगा।
\s5
\v 9 वह ख़ुदावंद का चेहरा और उसकी क़ुदरत के जलाल से दूर हो कर हमेशा हलाकत की सज़ा पायंगे
\v 10 ये उस दिन होगा जबकि वो अपने मुक़द्दसों में जलाल पाने और सब ईमान लाने वालों की वजह से ता'अज्जुब का बाइस होने के लिए आएगा; क्यूँकि तुम हमारी गवाही पर ईमान लाए।
\s5
\v 11 इसी वास्ते हम तुम्हारे लिए हर वक़्त दु'आ भी करते रहते हैं कि हमारा ख़ुदा तुम्हें इस बुलावे के लायक़ जाने और नेकी की हर एक ख़्वाहिश और ईमान के हर एक काम को क़ुदरत से पूरा करे।
\v 12 ताकि हमारे ख़ुदा और ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह के फ़ज़ल के मुवाफ़िक़ हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा' का नाम तुम में जलाल पाए और तुम उस में।
\s5
\c 2
\v 1 ऐ भाइयों! हम अपने ख़ुदा वन्द ईसा' मसीह के आने और उस के पास जमा' होने के बारे में तुम से दरख़्वास्त करते हैं।
\v 2 कि किसी रूह या कलाम या ख़त से जो गोया हमारी तरफ़ से हो ये समझ कर कि ख़ुदावन्द के वापस आने का आ पहुँचा है तुम्हारी अक़्ल अचानक परेशान न हो जाए और न तुम घबराओ।
\s5
\v 3 किसी तरह से किसी के धोके में न आना क्यूँकि वो दिन नहीं आएगा जब तक कि पहले बरगश्तगी न हो और वो गुनाह का शख़्स या'नी हलाकत का फ़र्ज़न्द ज़ाहिर न हो।
\v 4 जो मुख़ालिफ़त करता है और हर एक से जो ख़ुदा या मा'बूद कहलाता है अपने आप को बड़ा ठहराता है; यहाँ तक कि वो ख़ुदा के मक़्दिस में बैठ कर अपने आप को ख़ुदा ज़ाहिर करता है।
\s5
\v 5 क्या तुम्हें याद नहीं कि जब मैं तुम्हारे पास था तो तुम से ये बातें कहा करता था?
\v 6 अब जो चीज़ उसे रोक रही है ताकि वो अपने ख़ास वक़्त पर ज़ाहिर हो उस को तुम जानते हो।
\v 7 क्यूँकी बेदीनी का राज़ तो अब भी तासीर करता जाता है मगर अब एक रोकने वाला है और जब तक कि वो दूर न किया जाए रोके रहेगा।
\s5
\v 8 उस वक़्त वो बेदीन ज़ाहिर होगा, जिसे ख़ुदावन्द अपने मुँह की फूंक से हलाक और अपनी आमद के जलाल से मिटा देगा ।
\v 9 और जिसकी आमद शैतान की तासीर के मुवाफ़िक़ हर तरह की झूटी क़ुदरत और निशानों और अजीब कामों के साथ,।
\v 10 और हलाक होने वालों के लिए नारास्ती के हर तरह के धोके के साथ होगी इस वास्ते कि उन्हों ने हक़ की मुहब्बत को इख़्तियार न किया जिससे उनकी नजात होती।
\s5
\v 11 इसी वजह से ख़ुदा उन के पास गुमराह करने वाली तासीर भेजेगा ताकि वो झूट को सच जानें ।
\v 12 और जितने लोग हक़ का यक़ीन नहीं करते बल्कि नारास्ती को पसंद करते हैं; वो सज़ा पाएँगे ।
\s5
\v 13 लेकिन तुम्हारे बारे में ऐ भाइयों! ख़ुदावन्द के प्यारों हर वक़्त ख़ुदा का शुक्र करना हम पर फ़र्ज़ है क्यूँकि ख़ुदा ने तुम्हें शुरू से ही इसलिए चुन लिया था कि रूह के ज़रि'ए से पाकीज़ा बन कर और हक़ पर ईमान लाकर नजात पाओ।
\v 14 जिस के लिए उस ने तुम्हें हमारी ख़ुशख़बरी के वसीले से बुलाया ताकि तुम हमारे ख़ुदा वन्द 'ईसा' मसीह का जलाल हासिल करो।
\v 15 पस ऐ भाइयो! साबित क़दम रहो, और जिन रवायतों की तुम ने हमारी ज़बानी या ख़त के ज़रिये से ता'लीम पाई है उन पर क़ायम रहो।
\s5
\v 16 अब हमारा ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह ख़ुद और हमारा बाप ख़ुदा जिसने हम से मुहब्बत रखी और फ़ज़ल से हमेशा तसल्ली और अच्छी उम्मीद बख़्शी
\v 17 तुम्हारे दिलों को तसल्ली दे और हर एक नेक काम और कलाम में मज़बूत करे।
\s5
\c 3
\v 1 ग़रज़ ऐ भाइयो और बहनों ! हमारे हक़ में दु'आ करो कि ख़ुदावन्द का कलाम जल्द ऐसा फैल जाए और जलाल पाए; जैसा तुम में।
\v 2 और कजरौ और बुरे आदमियों से बचे रहें क्यूंकि सब में ईमान नहीं।
\v 3 मगर ख़ुदावन्द सच्चा है वो तुम को मज़बूत करेगा; और उस शरीर से महफ़ूज़ रख्खेगा।
\s5
\v 4 और ख़ुदावन्द में हमें तुम पर भरोसा है; कि जो हुक्म हम तुम्हें देते हैं उस पर अमल करते हो और करते भी रहोगे।
\v 5 ख़ुदावन्द तुम्हारे दिलों को ख़ुदा की मुहब्बत और मसीह के सब्र की तरफ़ हिदायत करे।
\s5
\v 6 ऐ भाइयों! हम अपने ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह के नाम से तुम्हें हुक्म देते हैं कि हर एक ऐसे भाई से किनारा करो जो बे क़ाइदा चलता है और उस रिवायत पर अमल नहीं करता जो उस को हमारी तरफ़ से पहुँची।
\v 7 क्यूँकि आप जानते हो कि हमारी तरह किस तरह बनना चाहिए इसलिए कि हम तुम में बे क़ाइदा न चलते थे।
\v 8 और किसी की रोटी मुफ़्त न खाते थे,बल्कि मेंहनत और मशक़्क़त से रात दिन काम करते थे ताकि तुम में से किसी पर बोझ न डालें।
\v 9 इसलिए नहीं कि हम को इख़्तियार न था बल्कि इसलिए कि अपने आपको तुम्हारे वास्ते नमूना ठहरायें ताकि तुम हमारी तरह बनो
\s5
\v 10 और जब हम तुम्हारे पास थे उस वक़्त भी तुम को ये हुक्म देते थे ; कि जिसे मेंहनत करना मन्ज़ूर न हो वो खाने भी न पाए|
\v 11 हम सुनते हैं कि तुम में कुछ बेक़ाइदा चलते हैं और कुछ काम नहीं करते; बल्कि औरों के काम में दख़ल अंदाजी करते हैं।
\v 12 ऐसे शख़्सों को हम ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह में हुक्म देते और सलाह देते हैं कि चुप चाप काम कर के अपनी ही रोटी खाएँ।
\s5
\v 13 और तुम ऐ भाइयो! नेक काम करने में हिम्मत न हारो।
\v 14 और अगर कोई हमारे इस ख़त की बात को न माने तो उसे निगाह में रख्खो और उस से त'अल्लुक़ न रख्खो ताकि वो शर्मिन्दा हो।
\v 15 लेकिन उसे दुश्मन न जानो बल्कि भाई समझ कर नसीहत करो।
\s5
\v 16 अब ख़ुदावन्द जो इत्मीनान का चश्मा है आप ही तुम को हमेशा और हर तरह से इत्मीनान बख़्शे; ख़ुदावन्द तुम सब के साथ रहे।
\v 17 मैं, पौलुस अपने हाथ से सलाम लिखता हूँ; हर ख़त में मेरा यही निशान है; मैं इसी तरह लिखता हूँ।
\v 18 हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह का फ़ज़ल तुम सब पर होता रहे।

179
55-1TI.usfm Normal file
View File

@ -0,0 +1,179 @@
\id 1TI
\ide UTF-8
\h तीमुथियुस के नाम पौलुस रसूल का पहला ख़त
\toc1 तीमुथियुस के नाम पौलुस रसूल का पहला ख़त
\toc2 तीमुथियुस के नाम पौलुस रसूल का पहला ख़त
\toc3 1ti
\mt1 तीमुथियुस के नाम पौलुस रसूल का पहला ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 पौलुस की तरफ़ से जो हमारे मुन्जी ख़ुदा और हमारे उम्मीद गाह मसीह ईसा'के हुक्म से मसीह ईसा'का रसूल है,।
\v 2 तीमुथियुस के नाम जो ईमान के लिहाज़ से मेरा सच्चा बेटा है: फ़ज़ल,रहम और इत्मिनान ख़ुदा बाप और हमारे ख़ुदावन्द मसीह ईसा' की तरफ़ से तुझे हासिल होता रहे ।
\s5
\v 3 जिस तरह मैंने मकिदुनिया जाते वक़्त तुझे नसीहत की थी,कि ईफ़िसुस में रह कर कुछ को शख़्सों हुक्म कर दे कि और तरह की ता'लीम न दें,।
\v 4 और उन कहानियों और बे इन्तिहा नसब नामों पर लिहाज़ न करें,जो तकरार का ज़रिया होते हैं,और उस इंतज़ाम-ए-इलाही के मुवाफ़िक़ नहीं जो ईमान पर मब्नी है,उसीतरहअब भी करता हूँ ।
\s5
\v 5 हुक्म का मक़सद ये है कि पाक दिल और नेक नियत और बिना दिखावा ईमान से मुहब्बत पैदा हो।
\v 6 इनको छोड़ कर कुछ शख़्स बेहूदा बकवास की तरफ़ मुतवज्जह हो गए,
\v 7 और शरी'अत के मु'अल्लिम बनना चाहते हैं, हालाँकि जो बातें कहते हैं और जिनका यक़ीनी तौर से दावा करते हैं,उनको समझते भी नहीं।
\v 8 मगर हम जानते हैं कि शरी'अत अच्छी है,बशरते कि कोई उसे शरी'अत के तौर पर काम में लाए।
\s5
\v 9 या'नी ये समझकर कि शरी'अत रास्तबाज़ों के लिए मुक़र्रर नहीं हुई,बल्कि बेशरा' और सरकश लोगों, और बेदीनों, और गुनहगारों, और नापाकों, और रिन्दों, और माँ-बाप के क़ातिलों,और ख़ूनियों,
\v 10 और हारामकारों,और लौंडे-बाज़ों,और बर्दा-फ़रोशों,और झूटों,और झूटी क़सम खानेवालों,और इनके सिवा सही ता'लीम के और बरखिलाफ़ काम करनेवालों के वास्ते है।
\v 11 ये ख़ुदा-ए-मुबारक के जलाल की उस ख़ुशखबरी के मुवाफ़िक़ है जो मेरे सुपुर्द हुई।
\s5
\v 12 मैं अपनी ताक़त बख़्शने वाले ख़ुदावन्द मसीह ईसा' का शुक्र करता हूँ कि उसने मुझे दियाननदार समझकर अपनी ख़िदमत के लिए मुक़र्रर किया|
\v 13 अगरचे मैं पहले कुफ़्र बकनेवाला,और सताने वाला,और बे'इज़्ज़त करने वाला था;तोभी मुझ पर रहम हुआ,इस वास्ते कि मैंने बेईमानी की हालत में नादानी से ये काम किए थे।
\v 14 और हमारे ख़ुदावन्द का फ़ज़ल उस ईमान और मुहब्बत के साथ जो मसीह ईसा' में है बहुत ज़्यादा हुआ।
\s5
\v 15 ये बात सच और हर तरह से क़ुबूल करने के लायक़ है कि मसीह ईसा' गुनहगारों को नजात देने के लिए दुनिया में आया,उन गुनहगारों में से सब से बड़ा मैं हूँ,
\v 16 लेकिन मुझ पर रहम इसलिए हुआ कि ईसा' मसीह मुझ बड़े गुनहगार में अपना सब्र ज़ाहिर करे,ताकि जो लोग हमेशाकी ज़िन्दगी के लिए उस पर ईमान लाएँगेउनकेलिए मैं नमूना बनूँ।
\v 17 अब हमेशा कि बादशाही या'नी ना मिटने वाली, नादीदा, एक ख़ुदा की 'इज़्ज़त और बड़ाई हमेशा से हमेशा तक होती रहे। आमीन|
\s5
\v 18 ऐ फ़र्ज़न्द तीमुथियुस! उन पेशीनगोइयों के मुवाफ़िक़ जो पहले तेरे ज़रिए की गई थीं, मैं ये हुक्म तेरे सुपुर्द करता हूँताकितू उनके मुताबिक़ अच्छी लड़ाई लड़ता रहे;और ईमान और उस नेक नियत पर क़ायम रहे,
\v 19 जिसको दूर करने की वजह से कुछ लोगों के ईमान का जहाज़ ग़र्क़ हो गया।
\v 20 उन ही में से हिमुन्युस और सिकन्दर है,जिन्हें मैंने शैतान के हवाले किया ताकि कुफ़्र से बा'ज़ रहना सीखें।
\s5
\c 2
\v 1 पस मैं सबसे पहले ये नसीहत करता हूँ,कि मुनाजातें, और दू'आएँ और, इल्तिजायें और शुक्र्गुज़ारियाँ सब आदमियों के लिए की जाएँ,
\v 2 बादशाहों और सब बड़े मरतबे वालों के वास्ते इसलिए कि हम कमाल दीनदारी और सन्जीदगी से चैन सुकून के साथ ज़िन्दगी गुजारें|
\v 3 ये हमारे मुन्जी ख़ुदा के नज़दीक 'उम्दा और पसन्दीदा है।
\v 4 वो चाहता है कि सब आदमी नजात पाएँ, और सच्चाई की पहचान तक पहुंचें।
\s5
\v 5 क्यूँकि ख़ुदा एक है,और ख़ुदा और इन्सान के बीच में दर्मियानी भी एक या'नी मसीह ईसा' जो इन्सान है|
\v 6 जिसने अपने आपको सबके फ़िदिये में दिया कि मुनासिब वक़्तों पर इसकी गवाही दी जाए|
\v 7 मैं सच कहता हूँ, झूट नहीं बोलता,कि मैं इसी ग़रज़ से ऐलान करने वाला और रसूल और ग़ैर-क़ौमों को ईमान और सच्चाई की बातें सिखाने वाला मुक़र्रर हुआ|
\s5
\v 8 पस मैं चाहता हूँ कि मर्द हर जगह, बग़ैर ग़ुस्सा और तकरार के पाक हाथों को उठा कर दु'आ किया करें।
\v 9 इसी तरह 'औरतें हयादार लिबास से शर्म और परहेज़गारी के साथ अपने आपको सँवारें; न कि बाल गूँधने, और सोने और मोतियों और क़ीमती पोशाक से,
\v 10 बल्कि नेक कामों से,जैसा ख़ुदा परस्ती का इक़रार करने वाली'औरतों को मुनासिब है।
\s5
\v 11 'औरत को चुपचाप कमाल ताबेदारी से सीखना चाहिये।
\v 12 और मैं इजाज़त नहीं देता कि'औरत सिखाए या मर्द पर हुक्म चलाए,बल्किचुपचाप रहे।
\s5
\v 13 क्यूँकिपहले आदम बनाया गया,उसके बा'द हव्वा;
\v 14 और आदम ने धोखा नहीं खाया,बल्कि'औरत धोखा खाकर गुनाह में पड़ गई;
\v 15 लेकिन औलाद होने से नजात पाएगी,बशर्ते कि वो ईमान और मुहब्बत और पाकीज़गी में परहेज़गारी के साथ क़ायम रहें।
\s5
\c 3
\v 1 और ये बात सच है,कि जो शख़्स निगहबान का मर्तबा चाहता है,वो अच्छे काम की ख़्वाहिश करता है।
\v 2 पस निगहबान को बेइल्ज़ाम,एक बीवी का शौहर, परहेज़गार, ख़ुदापरस्त, शाइस्ता, मुसाफ़िर परवर, और ता'लीम देने के लायक़ होना चाहिये|
\v 3 नशे में शोर मचाने वाला या मार-पीट करने वाला न हो;बल्कि नर्मदिल, न तकरारी, न ज़रदोस्त।
\s5
\v 4 अपने घर का अच्छी तरह बन्दोबस्त करता हो,और अपने बच्चों को पूरी नर्मी से ताबे रखता हो।
\v 5 (जब कोई अपने घर ही का बन्दोबस्त करना नहीं जानता तो ख़ुदा कि कलीसिया की देख भाल क्या करेगा?)|
\s5
\v 6 नया शागिर्द न हो,ताकि घमण्डकरके कहीं इब्लीस की सी सज़ा न पाए।
\v 7 और बाहरवालों के नज़दीक भी नेक नाम होना चाहिए,ताकि मलामत में और इब्लीस के फन्दे में न फँसे
\s5
\v 8 इसी तरह ख़ादिमों को भी नर्म होना चाहिए दो जुबान और शराबी और नाजाएज़ नफ़ा का लालची ना हो
\v 9 और ईमान के भेद को पाक दिल में हिफ़ाज़त से रख्खें।
\v 10 और ये भी पहले आज़माए जाएँ,इसके बा'द अगर बे गुनाह ठहरें तो ख़िदमत का काम करें।
\s5
\v 11 इसी तरह'औरतों को भी संजीदा होना चाहिए;तोहमत लगाने वाली न हों,बल्किपरहेज़गार और सब बातों में ईमानदार हों।
\v 12 ख़ादिम एक एक बीवी के शौहर हों और अपने अपने बच्चों और घरों का अच्छी तरह बन्दोबस्त करते हों।
\v 13 क्यूँकि जो ख़िदमत का काम बख़ूबी अंजाम देते हैं,वो अपने लिए अच्छा मर्तबा और उस ईमान में जो मसीह ईसा' पर है, बड़ी दिलेरी हासिल करते हें।
\s5
\v 14 मैं तेरे पास जल्द आने की उम्मीद करने पर भी ये बातें तुझे इसलिए लिखता हूँ,
\v 15 कि अगर मुझे आने में देर हो,तो तुझे मा'लूम हो जाएकिख़ुदा के घर,या'नी ज़िन्दा ख़ुदा की कलीसिया में जो हक़ का सुतून और बुनियाद है,कैसा बर्ताव करना चाहिए।
\s5
\v 16 इसमें कलाम नहीं कि दीनदारी का भेद बड़ा है,या'नी वो जो जिस्म में ज़ाहिर हुआ,और रूह में रास्तबाज़ ठहरा,और फ़रिश्तों को दिखाई दिया,और ग़ैर-क़ौमों में उसकी मनादी हुई,और दुनिया में उस पर ईमान लाए,और जलाल में ऊपर उठाया गया|
\s5
\c 4
\v 1 लेकिन पाक रूह साफ़ फ़रमाता है कि आइन्दा ज़मानों में कुछ लोग गुमराह करनेवाली रूहों,और शयातीन की ता'लीम की तरफ़ मुतवज्जह होकर ईमान से फिर जाएँ।
\v 2 ये उन झूटे आदमियों की रियाकारी के ज़रिए होगा,जिनका दिल गोया गर्म लोहे से दाग़ा गया है;।
\s5
\v 3 ये लोग शादी करने से मना'करेंगे,और उन खानों से परहेज़ करने का हुक्म देंगें,जिन्हें ख़ुदा ने इसलिए पैदा किया है कि ईमानदार और हक़ के पहचानने वाले उन्हें शुक्र्गुज़ारी के साथ खाएँ।
\v 4 क्यूँकि ख़ुदा की पैदा की हुई हर चीज़ अच्छी है,और कोई चीज़ इनकार के लायक़ नहीं;बशर्ते कि शुक्रगुज़ारी के साथ खाई जाए,।
\v 5 इसलिए कि ख़ुदा के कलाम और दु'आ से पाक हो जाती है।
\s5
\v 6 अगर तू भाइयों को ये बातें याद दिलाएगा,तो मसीह ईसा' का अच्छा ख़ादिम ठहरेगा; और ईमान और उस अच्छी ता'लीम की बातों से जिसकी तू पैरवी करता आया है,परवरिश पाता रहेगा।,
\v 7 लेकिन बेहूदा और बूढ़ियों की सी कहानियों से किनारा कर,और दीनदारी के लिए मेहनत कर ।
\v 8 क्योंकि जिस्मानी मेहनत का फ़ायदा कम है, लेकिन दीनदारी सब बातों के लिए फ़ाइदामन्द है,इसलिए कि अब की और आइन्दा की ज़िन्दगी का वा'दा भी इसी के लिए है ।
\s5
\v 9 ये बात सच है और हर तरह से क़ुबूल करने के लायक़।
\v 10 क्योंकि हम मेहनत और कोशिश इस लिए करते हैं कि हमारी उम्मीद उस ज़िन्दा ख़ुदा पर लगी हुई है,जो सब आदमियों का ख़ास कर ईमानदारों का मुन्जी है|
\s5
\v 11 इन बातों का हुक्म कर और ता'लीम दे।
\v 12 कोई तेरी जवानी की हिक़ारत न करने पाए;बल्कि तू ईमानदरों के लिए कलाम करने,और चाल चलन,और मुह्ब्ब्त,और पाकीज़गी में नमूना बन।
\v 13 जब तक मैं न आऊँ,पढ़ने और नसीहत करने और ता'लीम देने की तरफ़ मुतवज्जह रह।
\s5
\v 14 उस ने'अमत से ग़ाफ़िल ना रह जो तुझे हासिल है,और नबुव्वत के ज़रि'ए से बुज़ुर्गों के हाथ रखते वक़्त तुझे मिली थी।
\v 15 इन बातों की फ़िक्र रख, इन ही में मशगूल रह, ताकि तेरी तरक़्क़ी सब पर ज़ाहिर हो |
\v 16 अपना और अपनी ता'लीम की ख़बरदारी कर। इन बातों पर क़ायम रह,क्यूँकि ऐसा करने से तू अपनी और अपने सुनने वालों को झूठे उस्ताद की ता'लीम से भी नजात का ज़रिया होगा|
\s5
\c 5
\v 1 किसी बड़े'उम्र वाले को मलामत न कर,बल्कि बाप जान कर नसीहत कर;
\v 2 और जवानों को भाई जान कर, और बड़ी 'उम्र वाली 'औरतों को माँ जानकर,और जवान 'औरतों को कमाल पाकीज़गी से बहन जानकर।
\s5
\v 3 उन बेवाओं की,जो वाक़'ई बेवा हें 'इज़्ज़त कर।
\v 4 और अगर किसी बेवा के बेटे या पोते हों,तो वो पहले अपने ही घराने के साथ दीनदारी का बर्ताव करना,और माँ-बाप का हक़ अदा करना सीखें,क्यूँकि ये ख़ुदा के नज़दीक पसन्दीदा है|
\s5
\v 5 जो वाक़'ई बेवा है और उसका कोई नहीं,वो ख़ुदा पर उम्मीद रखती है और रात-दिन मुनाजात और दु'आ में मशग़ूल रहती है;
\v 6 मगर जो'ऐश-ओ-'इशरतमें पड़ गई है,वो जीते जी मर गई है।
\s5
\v 7 इन बातों का भी हुक्म कर ताकि वो बेइल्ज़ाम रहें।
\v 8 अगर कोई अपनों और ख़ास कर अपने घराने की ख़बरगीरी न करे,तो ईमान का इंकार करने वाला और बे-ईमान से बदतर है।
\s5
\v 9 वही बेवा फ़र्द में लिखी जाए जो साठ बरस से कम की न हो,और एक शौहर की बीवी हुई हो,
\v 10 और नेक कामों में मशहूर हो,बच्चों की तरबियत की हो,परदेसियों के साथ मेंहमान नवाज़ी की हो,मुक़द्दसों के पॉंव धोए हों,मुसीबत ज़दों की मदद की हो और हर नेक काम करने के दरपै रही हो|
\s5
\v 11 मगर जवान बेवाओं के नाम दर्ज न कर,क्यूँकि जब वो मसीह के ख़िलाफ़ नफ़्स के ताबे'हो जाती हैं,तो शादी करना चाहती हैं,
\v 12 और सज़ा के लायक़ ठहरती हैं,इसलिए कि उन्होंने अपने पहले ईमान को छोड़ दिया।
\v 13 और इसके साथ ही वो घर घर फिर कर बेकार रहना सीखती हैं,और सिर्फ़ बेकार ही नहीं रहती बल्कि बक बक करती रहती है औरों के काम में दख़ल भी देती है और बेकार की बातें कहती हैं।
\s5
\v 14 पस मैं ये चाहता हूँ कि जवान बेवाएँ शादी करें, उनके औलाद हों,घर का इन्तिज़ाम करें, और किसी मुख़ालिफ़ को बदगोई का मौक़ा न दें।
\v 15 क्यूँकि कुछ गुमराह हो कर शैतान के पीछे हो चुकी हैं।
\v 16 अगर किसी ईमानदार'औरत के यहाँ बेवाएँ हों,तो वही उनकी मदद करे और कलीसिया पर बोझ न डाला जाए,ताकि वो उनकी मदद कर सके जो वाक़'ई बेवा हैं।
\s5
\v 17 जो बुज़ुर्ग अच्छा इन्तिज़ाम करते हैं,खास कर वो जो कलाम सुनाने और ता'लीम देने में मेंहनत करते हैं,दुगनी 'इज़्ज़त के लायक़ समझे जाएँ|
\v 18 क्यूँकि किताब-ए-मुक़द्दस ये कहती है, "दाएँ में चलते हुए बैल का मुँह न बाँधना,"और मज़दूर अपनी मज़दूरी का हक़दार है|"
\s5
\v 19 जो दा'वा किसी बुज़ुर्ग के बरख़िलाफ़ किया जाए,बग़ैर दो या तीन गवाहों के उसको न सुन|
\v 20 गुनाह करने वालों को सब के सामने मलामत कर ताकि औरों को भी ख़ौफ़ हो।
\s5
\v 21 ख़ुदा और मसीह ईसा' और बरगुज़ीदा फ़रिश्तों को गवाह करके मैं तुझे नसीहत करता हूँ कि इन बातों पर बिला ता'अस्सूब'अमल करना,और कोई काम तरफ़दारी से न करना।
\v 22 किसी शख़्स पर जल्द हाथ न रखना,और दूसरों के गुनाहों में शरीक न होना,अपने आपको पाक रखना।
\s5
\v 23 आइन्दा को सिर्फ़ पानी ही न पिया कर,बल्कि अपने मे'दे और अक्सर कमज़ोर रहने की वजह से ज़रा सी मय भी काम में लाया कर।
\v 24 कुछ आदमियों के गुनाह ज़ाहिर होते हैं,और पहले ही'अदालत में पहुँच जाते हैं कुछ बाद में जाते हैं।
\v 25 इसी तरह कुछ अच्छे काम भी ज़ाहिर होते है,और जो ऐसे नहीं होते वो भी छिप नहीं सकते।
\s5
\c 6
\v 1 जितने नौकर जुए के नीचे हौं,अपने मालिकों को कमाल 'इज़्ज़त के लाइक़ जानें, ताकि ख़ुदा का नाम और ता'लीम बदनाम न हो।
\v 2 और जिनके मालिक ईमानदार हैं वो उनको भाई होने की वजह से हक़ीर न जानें,बल्कि इस लिए ज़्यादातर उनकी ख़िदमत करें कि फ़ाइदा उठानेवाले ईमानदार और 'अज़ीज़ हैं तू इन बातों की ता'लीम दे और नसीहत कर।
\s5
\v 3 अगर कोई शख़्स और तरह की ता'लीम देता है और सही बातों को,या'नी ख़ुदावन्द ईसा'मसीह की बातें और उस ता'लीम को नहीं मानता जो दीनदारी के मुताबिक़ है,
\v 4 वो मग़रूर है और कुछ नहीं जानता;बल्कि उसे बहस और लफ़्ज़ी तकरार करने का मर्ज़ है,जिनसे हसद और झगड़े और बदगोइयाँ और बदगुमानियाँ,।
\v 5 और उन आदमियों में रद्दो बदल पैदा होता है जिनकी अक़्ल बिगड़ गई हैं और वो हक़ से महरूम है और दीनदारी को नफ़े ही का ज़रिया समझते है
\s5
\v 6 हाँ दीनदारी सब्र के साथ बड़े नफ़े का ज़रिया है ।
\v 7 क्यूँकि न हम दुनियाँ में कुछ लाए और न कुछ उसमें से ले जा सकते है|
\v 8 पस अगर हमारे पास खाने पहनने को है,तो उसी पर सब्र करें।
\s5
\v 9 लेकिन जो दौलतमन्द होना चाहते हैं,वो ऐसी आज़माइश और फन्दे और बहुत सी बेहूदा और नुक़्सान पहुँचानेवाली ख़्वाहिशों में फँसते हैं,जो आदमियों को तबाही और हलाकत के दरिया में ग़र्क़ कर देती हैं।
\v 10 क्यूँकि माल की दोस्ती हर क़िस्म की बुराई की जड़ है.जिसकी आरज़ू में कुछ ने ईमान से गुमराह होकर अपने दिलों को तरह तरह के ग़मों से छलनी कर लिया ।
\s5
\v 11 मगर ऐ मर्द-ए-ख़ुदा!तू इन बातों से भाग और रास्तबाज़ी,दीनदारी,ईमान,मुहब्बत,सब्र और नर्म दिली का तालिब हो।
\v 12 ईमान की अच्छी कुश्ती लड़; उस हमेशा की ज़िन्दगी पर क़ब्ज़ा कर ले जिसके लिए तू बुलाया गया था,और बहुत से गवाहों के सामने अच्छा इक़रार किया था|
\s5
\v 13 मैं उस ख़ुदा को,जो सब चीज़ों को ज़िन्दा करता है,और मसीह ईसा' को, जिसने पुनितयुस पिलातुस के सामने अच्छा इक़रार किया था,गवाह करके तुझे नसीहत करता हूँ|
\v 14 कि हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह के उस मसीह के आने तक हुक्म को बेदाग़ और बेइलज़ाम रख,।
\s5
\v 15 जिसे वो मुनासिब वक़्त पर नुमायाँ करेगा,जो मुबारक और वाहिद हाकिम,बादशाहों का बादशाह और खुदावान्दों का ख़ुदा है;
\v 16 बक़ा सिर्फ़ उसी की है,और वो उस नूर में रहता है जिस तक किसी की पहुंच नहीं हो सकती,न उसे किसी इन्सान ने देखा और न देख सकता है; उसकी 'इज़्ज़त और सल्तनत हमेशा तक रहे|आमीन|
\s5
\v 17 इस मौजूदा जहान के दौलतमन्दों को हुक्म दे कि मग़रूर न हों और नापाएदार दौलत पर नहीं,बल्कि ख़ुदा पर उम्मीद रख्खें जो हमें लुत्फ़ उठाने के लिए सब चीज़ें बहुतायत से देता है।
\v 18 और नेकी करें,और अच्छे कामों में दौलतमन्द बनें,और सख़ावत पर तैयार और इम्दाद पर मुस्त'ईद हों,।
\v 19 और आइन्दा के लिए अपने वास्ते एक अच्छी बुनियाद क़ायम कर रख्खें ताकि हक़ीक़ी ज़िन्दगी पर क़ब्ज़ा करें।
\s5
\v 20 ऐ तीमुथियुस!इस अमानत को हिफ़ाज़त से रख;और जिस'इल्म को इल्म कहना ही गलत है,उसकी बेहूदा बकवास और मुखालफित पर ध्यान न कर।
\v 21 कुछ उसका इकरार करके ईमान से फिर गए हैं तुम पर फ़ज़ल होता रहे।

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\id 2TI
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\h तीमुथियुस के नाम पौलुस रसूल का दूसरा ख़त
\toc1 तीमुथियुस के नाम पौलुस रसूल का दूसरा ख़त
\toc2 तीमुथियुस के नाम पौलुस रसूल का दूसरा ख़त
\toc3 2ti
\mt1 तीमुथियुस के नाम पौलुस रसूल का दूसरा ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 पौलुस की तरफ़ से जो उस ज़िन्दगी के वा'दे के मुताबिक़ जो मसीह ईसा' में है ख़ुदा की मर्ज़ी से मसीह 'ईसा' का रसूल है।
\v 2 प्यारे बेटे तीमुथियुस के नाम ख़त : फ़ज़ल रहम और इत्मीनान ख़ुदा बाप और हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह की तरफ़ से तुझे हासिल होता रहे।
\s5
\v 3 जिस ख़ुदा की इबादत में साफ़ दिल से बाप दादा के तौर पर करता हूँ; उसका शुक्र है कि अपनी दुआओं में बिला नाग़ा तुझे याद रखता हूँ।
\v 4 और तेरे आँसुओं को याद करके रात दिन तेरी मुलाक़ात का मुशताक़ रहता हूँ ताकि ख़ुशी से भर जाऊँ।
\v 5 और मुझे तेरा वो बे रिया ईमान याद दिलाया गया है जो पहले तेरी नानी लूइस और तेरी माँ यूनीके रखती थीं और मुझे यक़ीन है कि तू भी रखता है।
\s5
\v 6 इसी वजह से मै तुझे याद दिलाता हूँ कि तू "ख़ुदा"की उस ने'अमत को चमका दे जो मेरे हाथ रखने के ज़रिये तुझे हासिल है।
\v 7 क्यूँकि ख़ुदा ने हमें दहशत की रूह नहीं बल्कि क़ुदरत और मुहब्बत और तरबियत की रूह दी है।
\s5
\v 8 पस, हमारे ख़ुदावन्द की गवाही देने से और मुझ से जो उसका क़ैदी हूँ शर्म न कर बल्कि ख़ुदा की क़ुदरत के मुताबिक़ ख़ुशख़बरी की ख़ातिर मेरे साथ दु:ख उठा।
\v 9 जिस ने हमें नजात दी और पाक बुलावे से बुलाया हमारे कामों के मुताबिक़ नहीं बल्कि अपने ख़ास इरादा और उस फ़ज़ल के मुताबिक़ जो मसीह 'ईसा' में हम पर शुरू से हुआ।
\v 10 मगर अब हमारे मुन्जी मसीह 'ईसा' के आने से ज़ाहिर हुआ जिस ने मौत को बर्बाद और बाक़ी ज़िन्दगी को उस ख़ुशख़बरी के वसीले से रौशन कर दिया।
\v 11 जिस के लिए मैं ऐलान करने वाला और रसूल और उस्ताद मुक़र्रर हुआ।
\s5
\v 12 इसी वजह से मैं ये दु:ख भी उठाता हूँ, लेकिन शर्माता नहीं क्यूँकि जिसका मैं ने यक़ीन किया है उसे जानता हूँ और मुझे यक़ीन है कि वो मेरी अमानत की उस दिन तक हिफ़ाज़त कर सकता है।
\v 13 जो सही बातें तू ने मुझ से सुनी उस ईमान और मुहब्बत के साथ जो "मसीह ईसा में है उन का ख़ाका याद रख ।
\v 14 रूह -उल -क़ुद्दुस के वसीले से जो हम में बसा हुआ है इस अच्छी अमानत की हिफ़ाज़त कर।
\s5
\v 15 तू ये जानता है कि आसिया सूबे के सब लोग मुझ से ख़फ़ा हो गए; जिन में से फ़ूगलुस और हरमुगिनेस हैं।
\v 16 ख़ुदावन्द उनेस्फिरुस के घराने पर रहम करे क्यूँकि उस ने बहुत मर्तबा मुझे ताज़ा दम किया और मेरी क़ैद से शर्मिन्दा न हुआ।
\v 17 बल्कि जब वो रोमा शहर में आया तो कोशिश से तलाश करके मुझ से मिला।
\v 18 ख़ुदावन्द उसे ये बख़्शे कि उस दिन उस पर ख़ुदावन्द का रहम हो और उस ने इफ़िसुस में जो जो ख़िदमतें कीं तू उन्हें ख़ूब जानता है।
\s5
\c 2
\v 1 पस,ऐ मेरे बेटे, तू उस फ़ज़ल से जो मसीह 'ईसा' में है मज़बूत बन ।
\v 2 और जो बातें तू ने बहुत से गवाहों के सामने मुझ से सुनी हैं उनको ऐसे ईमानदार आदमियों के सुपुर्द कर जो औरों को भी सिखाने के क़ाबिल हों।
\s5
\v 3 पस मसीह 'ईसा' के अच्छे सिपाही की तरह मेरे साथ दु:ख उठा।
\v 4 कोई सिपाही जब लड़ाई को जाता है अपने आपको दुनिया के मु'आमिलों में नहीं फँसाता ताकि अपने भरती करने वाले को ख़ुश करे।
\v 5 दँगल में मुक़ाबिला करने वाला भी अगर उस ने बा' क़ाइदा मुक़ाबिला न किया हो तो सेहरा नहीं पाता।
\s5
\v 6 जो किसान मेहनत करता है, पैदावार का हिस्सा पहले उसी को मिलना चाहिए।
\v 7 जो मैं कहता हूँ उस पर ग़ौर कर क्यूँकि ख़ुदावन्द तुझे सब बातों की समझ देगा।
\s5
\v 8 'ईसा' मसीह को याद रख जो मुर्दों में से जी उठा है और दाऊद की नस्ल से है मेरी उस ख़ुशख़बरी के मुवाफ़िक़।
\v 9 जिसके लिए मैं बदकार की तरह दुखः उठाता हूँ यहाँ तक कि क़ैद हूँ मगर ख़ुदा का कलाम क़ैद नहीं।
\v 10 इसी वजह से मैं नेक लोगों की ख़ातिर सब कुछ सहता हूँ ताकि वो भी उस नजात को जो मसीह 'ईसा' में है अबदी जलाल समेत हासिल करें।
\s5
\v 11 ये बात सच है कि जब हम उस के साथ मर गए तो उस के साथ जियेंगे भी।
\v 12 अगर हम दु:ख सहेंगे तो उस के साथ बादशाही भी करेंगे अगर हम उसका इन्कार करेंगे; तो वो भी हमारा इन्कार करेगा।
\v 13 अगर हम बेवफ़ा हो जाएँगे तो भी वो वफ़ादार रहेगा, क्यूँकि वो अपने आप का इन्कार नहीं कर सकता।
\s5
\v 14 ये बातें उन्हें याद दिला और ख़ुदावन्द के सामने नसीहत कर के लफ़्ज़ी तकरार न करें जिस से कुछ हासिल नहीं बल्कि सुनने वाले बिगड़ जाते हैं ।
\v 15 अपने आपको ख़ुदा के सामने मक़बूल और ऐसे काम करने वाले की तरह पेश करने की कोशिश कर; जिसको शर्मिन्दा होना न पड़े, और जो हक़ के कलाम को दुरुस्ती से काम में लाता हो।
\s5
\v 16 लेकिन बेकार बातों से परहेज़ कर क्यूँकि ऐसे शख़्स और भी बेदीनी में तरक़्क़ी करेंगे।
\v 17 और उन का कलाम सड़े घाव की तरह फैलता चला जाएगा; हुमिनयुस और फ़िलेतुस उन ही में से हैं।
\v 18 वो ये कह कर कि क़यामत हो चुकी है; हक़ से गुमराह हो गए हैं और कुछ का ईमान बिगाड़ते हैं।
\s5
\v 19 तो भी ख़ुदा की मज़बूत बुनियाद क़ायम रहती है और उस पर ये मुहर है, “ ख़ुदावन्द अपनों को पहचानता है,” और “जो कोई ख़ुदावन्द का नाम लेता है नारास्ती से बाज़ रहे।”
\v 20 बड़े घर में न सिर्फ़ सोने चाँदी ही के बरतन होते हैं बल्कि लकड़ी और मिट्टी के भी कुछ 'इज़्ज़त और कुछ ज़िल्लत के लिए।
\v 21 पस, जो कोई इन से अलग होकर अपने आप को पाक करेगा वो 'इज़्ज़त का बर्तन और मुक़द्दस बनेगा और मालिक के काम के लायक़ और हर नेक काम के लिए तैयार होगा।
\s5
\v 22 जवानी की ख़्वाहिशों से भाग और जो पाक दिल के साथ ख़ुदावन्द से दुआ करते हैं; उन के साथ रास्तबाज़ी और ईमान और मुहब्बत और मेलमिलाप की चाहत हो।
\v 23 लेकिन बेवक़ूफ़ी और नादानी की हुज्जतों से किनारा कर क्यूँकि तू जानता है; कि उन से झगड़े पैदा होते हैं।
\s5
\v 24 और मुनासिब नहीं कि"ख़ुदावन्द" का बन्दा झगड़ा करे बल्कि सब के साथ रहम करे और ता'लीम देने के लायक़ और हलीम हो।
\v 25 और मुख़ालिफ़ों को हलीमी से सिखाया करे शायद ख़ुदा उन्हें तौबा की तौफ़ीक़ बख़्शे ताकि वो हक़ को पहचानें
\v 26 और ख़ुदावन्द के बन्दे के हाथ से ख़ुदा की मर्ज़ी के क़ैदी हो कर इब्लीस के फन्दे से छूटें।
\s5
\c 3
\v 1 लेकिन ये जान रख कि आख़िरी ज़माने में बुरे दिन आएँगे ।
\v 2 क्यूँकि आदमी ख़ुदग़र्ज़ एहसान फ़रामोश, शेखीबाज़, मग़रूर बदगो, माँ बाप का नाफ़रमान' नाशुक्र, नापाक,
\v 3 ज़ाती मुहब्बत से खाली संगदिल तोहमत लगानेवाले बेज़ब्त तुन्द मिज़ाज नेकी के दुश्मन।
\v 4 दग़ाबाज़, ढीठ, घमन्ड करने वाले, ख़ुदा की निस्बत ऐश- ओ -इशरत को ज़्यादा दोस्त रखने वाले होंगे।
\s5
\v 5 वो दीनदारी का दिखावा तो रखेंगे मगर उस पर अमल न करेंगे ऐसों से भी किनारा करना।
\v 6 इन ही में से वो लोग हैं जो घरों में दबे पाँव घुस आते हैं और उन बद चलन 'औरतों को क़ाबू कर लेते हैं जो गुनाहों में दबी हुई हैं और तरह तरह की ख़्वाहिशों के बस में हैं।
\v 7 और हमेशा ता'लीम पाती रहती हैं मगर हक़ की पहचान उन तक कभी नहीं पहुँचती।
\s5
\v 8 और जिस तरह के यत्रेस और यम्ब्रेस ने मूसा की मुख़ालिफ़त की थी ये ऐसे आदमी हैं जिनकी अक़्ल बिगड़ी हुई है और वो ईमान के ऐ'तिबार से खाली हैं।
\v 9 मगर इस से ज़्यादा न बढ़ सकेंगे इस वास्ते कि इन की नादानी सब आदमियों पर ज़ाहिर हो जाएगी जैसे उन की भी हो गई थी।
\s5
\v 10 लेकिन तू ने ता'लीम, चाल चलन, इरादा ,ईमान, तहम्मुल, मुहब्बत, सब्र, सताए जाने और दु:ख उठाने में मेरी पैरवी की।
\v 11 या'नी ऐसे दु:खों में जो अन्ताकिया और इकुनियुस और लुस्त्रा शहरों में मुझ पर पड़े दीगर दु:खों में भी जो मैने उठाए हैं मगर ख़ुदावन्द ने मुझे उन सब से छुड़ा लिया।
\v 12 बल्कि जितने मसीह में दीनदारी के साथ ज़िन्दगी गुज़ारना चाहते हैं वो सब सताए जाएँगे।
\v 13 और बुरे और धोकेबाज़ आदमी फ़रेब देते और फ़रेब खाते हुए बिगड़ते चले जाएँगे।
\s5
\v 14 मगर तू उन बातों पर जो तू ने सीखी थीं, और जिनका यक़ीन तुझे दिलाया गया था, ये जान कर क़ायम रह कि तू ने उन्हें किन लोगों से सीखा था।
\v 15 और तू बचपन से उन पाक नविश्तों से वाक़िफ़ है, जो तुझे मसीह 'ईसा' पर ईमान लाने से नजात हासिल करने के लिए दानाई बख़्श सकते हैं।
\s5
\v 16 हर एक सहीफ़ा जो ख़ुदा के इल्हाम से है ता'लीम और इल्ज़ाम और इस्लाह और रास्तबाज़ी में तरबियत करने के लिए फ़ाइदे मन्द भी है।
\v 17 ताकि मर्दे ख़ुदा कामिल बने और हर एक नेक काम के लिए बिल्कुल तैयार हो जाए।
\s5
\c 4
\v 1 ख़ुदा और मसीह 'ईसा' को जो ज़िन्दों और मुर्दों की अदालत करेगा; गवाह करके और उस के ज़हूर और बादशाही को याद दिला कर मैं तुझे नसीहत करता हूँ।
\v 2 कि तू कलाम की मनादी कर वक़्त और बे वक़्त मुस्त'इद रह, हर तरह के तहम्मुल और ता'लीम के साथ समझा दे और मलामत और नसीहत कर ।
\s5
\v 3 क्यूंकि ऐसा वक़्त आयेगा कि लोग सही ता'लीम की बर्दाशत न करेंगे; बल्कि कानों की खुजली के ज़रिए अपनी अपनी ख़्वाहिशों के मुवाफ़िक़ बहुत से उस्ताद बना लेंगे।
\v 4 और अपने कानों को हक़ की तरफ़ से फ़ेर कर कहानियों पर मुतवज्जह होंगे।
\v 5 मगर तू सब बातों में होशियार रह, दु:ख उठा बशारत का काम अन्जाम दे अपनी ख़िदमत को पूरा कर।
\s5
\v 6 क्यूंकि मैं अब क़ुर्बान हो रहा हूँ,और मेरे जाने का वक़्त आ पहुँचा है।
\v 7 मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका, मैंने दौड़ को ख़त्म कर लिया, मैंने ईमान को महफ़ूज़ रख्खा।
\v 8 आइन्दा के लिए मेरे वास्ते रास्तबाज़ी का वो ताज रखा हुआ है, जो आदिल मुन्सिफ़ या'नी "ख़ुदावन्द" मुझे उस दिन देगा और सिर्फ़ मुझे ही नहीं बल्कि उन सब को भी जो उस के ज़हूर के आरज़ूमन्द हों।
\s5
\v 9 मेरे पास जल्द आने की कोशिश कर।
\v 10 क्योंकि देमास ने इस मौजूदा जहान को पसन्द करके मुझे छोड़ दिया और थिस्सलुनी को चला गया और क्रेसकेन्स गलतिया को और तीतुस दलमतिया को।
\s5
\v 11 सिर्फ लूक़ा मेरे पास है मरक़ुस को साथ लेकर आजा; क्यूँकि ख़िदमत के लिए वो मेरे काम का है।
\v 12 युख़िकुस को में ने इफ़िसुस भेज दिया है।
\v 13 जो चोग़ा में त्रोआस में करपुस के यहाँ छोड़ आया हूँ जब तू आए तो वो और किताबें ख़ास कर रक़्क़ के तुमार लेता आइये।
\s5
\v 14 सिकंदर ठठेरे ने मुझ से बहुत बुराइयां कीं ख़ुदावन्द उसे उसके कामों के मुवाफ़िक़ बदला देगा।
\v 15 उस से तू भी ख़बरदार रह, क्यूंकि उस ने हमारी बातों की बड़ी मुख़ालिफ़त की।
\v 16 मेरी पहली जवाबदेही के वक़्त किसी ने मेरा साथ न दिया; बल्कि सब ने मुझे छोड़ दिया काश कि उन्हें इसका हिसाब देना न पड़े।
\s5
\v 17 मगर ख़ुदावन्द मेरा मददगार था, और उस ने मुझे ताक़त बख़्शी ताकि मेरे ज़रिये पैग़ाम की पूरी मनादी हो जाए और सब ग़ैर कौमें सुन लें और मैं शेर के मुँह से छुड़ाया गया।
\v 18 ख़ुदावन्द मुझे हर एक बुरे काम से छुड़ाएगा और अपनी आसमानी बादशाही में सही सलामत पहुँचा देगा उसकी बड़ाई हमेशा से हमेशा तक होती रहे आमीन।
\s5
\v 19 प्रिस्का और अक्विला से और अनेसफ़ुरुस के ख़ानदान से सलाम कह।
\v 20 इरास्तुस कुरिन्थुस में रहा, और त्रुफ़िमुस को मैंने मीलेतुस में बीमार छोड़ा। ।
\v 21 जाड़ों से पहले मेरे पास आ जाने की कोशिश कर यूबूलुस और पूदेंस और लीनुस और क्लोदिया और सब भाई तुझे सलाम कहते हैं।
\v 22 ख़ुदावन्द तेरी रूह के साथ रहे तुम पर फ़ज़ल होता रहे।

85
57-TIT.usfm Normal file
View File

@ -0,0 +1,85 @@
\id TIT
\ide UTF-8
\h तितुस के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\toc1 तितुस के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\toc2 तितुस के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\toc3 tit
\mt1 तितुस के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 पौलुस की तरफ़ से तीतुस को ख़त ,जो ख़ुदा का बन्दा और 'ईसा' मसीह का रसूल है। ख़ुदा के बरगुज़ीदों के ईमान और उस हक़ की पहचान के मुताबिक़ जो दीनदारी के मुताबिक़ है।
\v 2 उस हमेशा की ज़िन्दगी की उम्मीद पर जिसका वा'दा शुरु ही से ख़ुदा ने किया है जो झूट नहीं बोल सकता ।
\v 3 और उस ने मुनासिब वक़्तों पर अपने कलाम को जो हमारे "मुन्जी ख़ुदा"के हुक्म के मुताबिक़ मेरे सुपुर्द हुआ।
\s5
\v 4 ईमान की शिरकत के रूह से सच्चे फ़र्ज़न्द तितुस के नाम फ़ज़ल और इत्मीनान ख़ुदा बाप और हमारे मुन्जी 'ईसा' मसीह की तरफ़ से तुझे हासिल होता रहे।
\v 5 मैंने तुझे करेते में इस लिए छोड़ा था, कि तू बक़िया बातों को दुरुस्त करे और मेरे हुक्म के मुताबिक़ शहर बा शहर ऐसे बुज़ुर्गों को मुक़र्रर करे।
\s5
\v 6 जो बे इल्ज़ाम और एक एक बीवी के शौहर हों और उन के बच्चे ईमान्दार और बदचलनी और सरकशी के इल्ज़ाम से पाक हों।
\v 7 क्यूँकि निगेहबान को "ख़ुदा"का मुख़्तार होने की वजह से बेइल्ज़ाम होना चाहिए; न ख़ुदराय हो न ग़ुस्सावर, न नशे में ग़ुल मचानेवाला, न मार पीट करने वाला और न नाजायज़ नफ़े का लालची;
\s5
\v 8 बल्कि मुसाफ़िर परवर, ख़ैर दोस्त, परहेज़गार, मुन्सिफ़ मिज़ाज, पाक़ और सब्र करने वाला हो ;
\v 9 और ईमान के कलाम पर जो इस ता'लीम के मुवाफ़िक़ है क़ायम हो ताकि सही ता'लीम के साथ नसीहत भी कर सके और मुख़ालिफ़ों को क़ायल भी कर सके।
\s5
\v 10 क्यूँकि बहुत से लोग सरकश और बेहूदा गो और दग़ाबाज़ हैं ख़ासकर ईमानदार यहूदी मख़्तूनों में से।
\v 11 इन का मुँह बन्द करना चाहिए ये लोग नाजायज़ नफ़े की ख़ातिर नशाइस्ता बातें सीखकर घर के घर तबाह कर देते हैं।
\s5
\v 12 उन ही में से एक शख़्स ने कहा है, जो ख़ास उन का नबी था “करेती हमेशा झूटे, मूज़ी जानवर, वादा ख़िलाफ़ होते हैं।”
\v 13 ये गवाही सच है, पस, उन्हें सख़्त मलामत किया कर ताकि उन का ईमान दुरुस्त होजाए।
\s5
\v 14 और वो यहूदियों की कहानियों और उन आदमियों के हुक्मों पर तवज्जह न करें, जो हक़ से गुमराह होते हैं।
\s5
\v 15 पाक लोगों के लिए सब चीज़ें पाक हैं, मगर गुनाह आलूदा और बेईमान लोगों के लिए कुछ भी पाक नहीं, बल्कि उन की 'अक़्ल और दिल दोनों गुनाह आलूदा हैं।
\v 16 वो ख़ुदा की पहचान का दा'वा तो करते है, मगर अपने कामों से उसका इन्कार करते हैं क्यूँकि वो मकरूह और नाफ़रमान हैं, और किसी नेक काम के क़ाबिल नहीं।
\s5
\c 2
\v 1 और तू वो बातें बयान कर जो सही ता'लीम के मुनासिब हैं।
\v 2 या'नी ये कि बूढ़े मर्द परहेज़गार, सन्जीदा और मुत्तक़ी हों और उन का ईमान और मुहब्बत और सब्र दुरूस्त हो।
\s5
\v 3 इसी तरह बूढ़ी 'औरतों की भी वज़'अ मुक़द्दसों सी हों, इल्जाम लगाने वाली और ज़्यादा मय पीने में मशग़ूल न हों, बल्कि अच्छी बातें सिखाने वाली हों;
\v 4 ताकि जवान 'औरतों को सिखाएँ कि अपने शौहरों को प्यार करें बच्चों को प्यार करें;
\v 5 और परहेज़गार और पाक दामन और घर का कारोबार करने वाली, और मेहरबान हों अपने और अपने शौहर के ताबे रहें, ताकि ख़ुदा का कलाम बदनाम न हो।
\s5
\v 6 जवान आदमियों को भी इसी तरह नसीहत कर कि परहेज़गार बनें ।
\v 7 सब बातों में अपने आप को नेक कामों का नमूना बना तेरी ता'लीम में सफ़ाई और सन्जीदगी
\v 8 और ऐसी सेहत कलामी पाई जाए जो मलामत के लायक़ न हो ताकि मुख़ालिफ़ हम पर 'ऐब लगाने की कोई वजह न पाकर शर्मिन्दा होजाए।
\s5
\v 9 नौकरों को नसीहत कर कि अपने मालिकों के ताबे' रहें और सब बातो में उन्हे ख़ुश रखें, और उनके हुक्म से कुछ इन्कार न करें,
\v 10 चोरी चालाकी न करें बल्कि हर तरह की ईमानदारी अच्छी तरह ज़ाहिर करें, ताकि उन से हर बात में हमारे मुन्जी "ख़ुदा"की ता'लीम को रौनक़ हो।
\s5
\v 11 क्यूँकि ख़ुदा का वो फ़ज़ल ज़ाहिर हुआ है, जो सब आदमियों की नजात का ज़रिया है,
\v 12 और हमें तालीम देता है ताकि बेदीनी और दुनयावी ख़्वाहिशों का इन्कार करके इस मौजूदा जहान में परहेज़गारी और रास्तबाज़ी और दीनदारी के साथ ज़िन्दगी गुज़ारें;
\v 13 और उस मुबारक उम्मीद या'नी अपने बुज़ुर्ग ख़ुदा और मुन्जी ईसा' मसीह के जलाल के ज़ाहिर होने के मुन्तज़िर रहें।
\s5
\v 14 जिस ने अपने आपको हमारे लिए दे दिया, ताकि फ़िदिया होकर हमें हर तरह की बेदीनी से छुड़ाले, और पाक करके अपनी ख़ास मिल्कियत के लिए ऐसी उम्मत बनाए जो नेक कामों में सरगर्म हो।
\s5
\v 15 पूरे इख़्तियार के साथ ये बातें कह और नसीहत दे और मलामत कर। कोई तेरी हिक़ारत न करने पाए।
\s5
\c 3
\v 1 उनको याद दिला कि हाकिमों और इख़्तियारवालों के ताबे रहें और उनका हुक्म मानें, और हर नेक काम के लिए मुस्त'इद रहें,
\v 2 किसी की बुराई न करें तकरारी न हों; बल्कि नर्म मिज़ाज हों और सब आदमियों के साथ कमाल हलीमी से पेश आएँ।
\s5
\v 3 क्यूँकि हम भी पहले नादान नाफ़रमान फ़रेब खाने वाले रंग बिरंग की ख़्वाहिशों और ऐश-ओ-इशरत के बन्दे थे, और बदख़्वाही और हसद में ज़िन्दगी गुज़ारते थे, नफ़रत के लायक़ थे और आपस में जलन रखते थे।
\s5
\v 4 मगर जब हमारे मुन्जी "ख़ुदा" की मेहरबानी और इन्सान के साथ उसकी उल्फ़त ज़ाहिर हुई।
\v 5 तो उस ने हम को नजात दी; मगर रास्तबाज़ी के कामों के ज़रिये से नहीं जो हम ने ख़ुद किए, बल्कि अपनी रहमत के मुताबिक़ पैदाइश के ग़ुस्ल और रूह-उल-क़ुद्दूस के हमें नया बनाने के वसीले से।
\s5
\v 6 जिसे उस ने हमारे मुन्जी 'ईसा' मसीह के ज़रिये हम पर इफ़रात से नाज़िल किया,
\v 7 ताकि हम उसके फ़ज़ल से रास्तबाज़ ठहर कर हमेशा की ज़िन्दगी की उम्मीद के मुताबिक़ वारिस बनें ।
\s5
\v 8 ये बात सच है, और मैं चाहता हूँ, कि तू इन बातों का याक़ीनी तौर से दावा कर ताकि जिन्होंने "ख़ुदा"का यक़ीन किया है, वो अच्छे कामों में लगे रहने का ख़याल रख्खें ये बातें भली और आदमियों के लिये फ़ायदेमन्द हैं।
\s5
\v 9 मगर बेवक़ूफ़ी की हुज्जतों और नसबनामों और झगड़ो और उन लड़ाइयों से जो शरी'अत के बारे में हों परहेज़ करे इसलिए कि ये ला हासिल और बेफ़ायदा हैं।
\v 10 एक दो बार नसीहत करके झूठी ता'लीम देने वाले शख़्स से किनारा कर,
\v 11 ये जान कर कि ऐसा शख़्स मुड़ गया है और अपने आपको मुजरिम ठहरा कर गुनाह करता रहता है ।
\s5
\v 12 जब मैं तेरे पास अरतिमास या तुख़िकुस को भेजूँ तो मेरे पास नीकुपुलिस शहर आने की कोशीश करना कयूँकि मैंने वहीँ जाड़ा काटने का इरादा कर लिया है।
\v 13 ज़ेनास आलिम-ए-शरा और अपुल्लोस को कोशिश करके रवाना कर दे इस तौर पर कि उन को किसी चीज़ की कमी न रही।
\s5
\v 14 और हमारे लोग भी ज़रूरतों को रफ़ा करने के लिए अच्छे कामों में लगे रहना सीखें ताकि बेफल न रहें।
\s5
\v 15 मेरे सब साथी तुझे सलाम कहते हैं| जो ईमान के रूह से हमें 'अज़ीज़ रखते हैं उन से सलाम कह| तुम सब पर फ़ज़ल होता रहे।

44
58-PHM.usfm Normal file
View File

@ -0,0 +1,44 @@
\id PHM
\ide UTF-8
\h फिलेमोन के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\toc1 फिलेमोन के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\toc2 फिलेमोन के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\toc3 phm
\mt1 फिलेमोन के नाम पौलुस रसूल का ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 पौलुस की तरफ़ से जो मसीह ईसा' का क़ैदी है,और भाई तीमुथियुस की तरफ़ से अपने 'अज़ीज़ और हम ख़िदमत फ़िलेमोन ,
\v 2 और बहन अफ़िया, और अपने हम सफ़र आर्ख़िप्पुस और फ़िलेमोन के घर की कलीसिया के नाम ख़त :
\v 3 फ़ज़ल और इत्मिनान हमारे बाप ख़ुदा और ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह की तरफ़ से तुम्हें हासिल होता रहे |
\s5
\v 4 मैं तेरी उस मुहब्बत का और ईमान का हाल सुन कर, जो सब मुक़द्दसों के साथ और ख़ुदावन्द ईसा' पर है '
\v 5 हमेशा अपने ख़ुदा का शुक्र करता हूँ, और अपनी दु'आओं में तुझे याद करता हूँ |
\v 6 ताकि तेरे ईमान की शिराकत तुम्हारी हर ख़ूबी की पहचान में मसीह के वास्ते मु' अस्सिर हो |
\v 7 क्योंकि ऐ भाई ! मुझे तेरी मुहब्बत से बहुत ख़ुशी और तसल्ली हुई, इसलिए कि तेरी वजह से मुक़द्दसों के दिल ताज़ा हुए हैं |
\s5
\v 8 पस अगरचे मुझे मसीह में बड़ी दिलेरी तो है कि तुझे मुनासिब हुक्म दूँ |
\v 9 मगर मुझे ये ज़्यादा पसंद है कि मैं बूढ़ा पौलुस, बल्कि इस वक़्त मसीह 'ईसा' का क़ैदी भी होकर मुहब्बत की राह से इल्तिमास करूं |
\s5
\v 10 सो अपने फ़र्ज़न्द उनेस्मुस के बारे में जो क़ैद की हालत में मुझ से पैदा हुआ , तुझसे इल्तिमास करता हूँ |
\v 11 पहले तो तेरे कुछ काम का ना था मगर अब तेरे और मेरे दोनों के काम का है |
\v 12 ख़ुद उसी को या'नी अपने कलेजे के टुकड़े को, मैने तेरे पास वापस भेजा है|
\v 13 उसको मैं अपने ही पास रखना चाहता था,ताकि तेरी तरफ़ से इस क़ैद में जो ख़ुशखबरी के ज़रिये है मेरी ख़िदमत करे |
\s5
\v 14 लेकिन तेरी मर्ज़ी के बग़ैर मेने कुछ करना न चाहा ,ताकि तेरे नेक काम लाचारी से नही बल्कि ख़ुशी से हों |
\v 15 क्योंकि मुम्किन है कि वो तुझ से इसलिए थोड़ी देर के वास्ते जुदा हुआ हो कि हमेशा तेरे पास रहे |
\v 16 मगर अब से गुलाम की तरह नही बल्कि गुलाम से बेहतर होकर या'नी ऐसे भाई की तरह रहे जो जिस्म में भी और खुदावन्द में भी मेरा निहायत 'अज़ीज़ हो और तेरा इससे भी कही ज़्यादा |
\s5
\v 17 पस अगर तू मुझे शरीक जानता है, तो उसे इस तरह क़ुबूल करना जिस तरह मुझे |
\v 18 और अगर उस ने तेरा कुछ नुक़सान किया है, या उस पर तेरा कुछ आता है,तो उसे मेरे नाम से लिख ले।
\v 19 मैं पौलुस अपने हाथ से लिखता हूँ कि ख़ुद अदा करूँगा, इसके कहने की कुछ ज़रूरत नहीं कि मेरा क़र्ज़ जो तुझ पर है वो तू ख़ुद है
\v 20 ऐ भाई ! मैं चाहता हूँ कि मुझे तेरी तरफ़ से ख़ुदावन्द में ख़ुशी हासिल हो | मसीह में मेरे दिल को ताज़ा कर |
\s5
\v 21 मैं तेरी फ़रमाँबरदारी का यक़ीन करके तुझे लिखता हूँ, और जानता हूँ कि जो कुछ मैं कहता हूँ ,तू उस से भी ज़्यादा करेगा |
\v 22 इसके सिवा मेरे लिए ठहरने की जगह तैयार कर, क्योंकि मुझे उम्मीद है कि मैं तुम्हारी दु' आओं के वसीले से तुम्हें बख़्शा जाऊंगा |
\s5
\v 23 इपफ़्रास जो मसीह ईसा' में मेरे साथ क़ैद है,
\v 24 और मरक़ुस और अरिस्तर्ख़ुस और दोमास और लुक़ा, जो मेरे हम ख़िदमत हैं तुझे सलाम कहते है |
\v 25 हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह का फ़ज़ल तुम्हारी रूह पर होता रहे |आमीन |

460
59-HEB.usfm Normal file
View File

@ -0,0 +1,460 @@
\id HEB
\ide UTF-8
\h इब्रानियों के नाम ख़त
\toc1 इब्रानियों के नाम ख़त
\toc2 इब्रानियों के नाम ख़त
\toc3 heb
\mt1 इब्रानियों के नाम ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 पुराने ज़माने में ख़ुदा ने बाप- दादा से हिस्सा-ब-हिस्सा और तरह-ब-तरह नबियों के ज़रिए कलाम करके,
\v 2 इस ज़माने के आख़िर में हम से बेटे के ज़रिए कलाम किया, जिसे उसने सब चीज़ों का वारिस ठहराया और जिसके वसीले से उसने आलम भी पैदा किए |
\v 3 वो उसके जलाल की रोशनी और उसकी ज़ात का नक़्श होकर सब चीज़ों को अपनी क़ुदरत के कलाम से सम्भालता है | वो गुनाहों को धोकर 'आलम-ए-बाला पर ख़ुदा की दहनी तरफ़ जा बैठा;
\s5
\v 4 और फ़रिश्तों से इस क़दर बड़ा हो गया ,जिस क़दर उसने मीरास में उनसे अफ़ज़ल नाम पाया |
\v 5 क्यूँकि फ़रिश्तों में से उसने कब किसी से कहा, "तू मेरा बेटा है, आज तू मुझ से पैदा हुआ?" और फिर ये, "मैं उसका बाप हूँगा?"
\s5
\v 6 और जब पहलौठे को दुनियाँ में फिर लाता है, तो कहता है, "ख़ुदा के सब फ़रिश्ते उसे सिज्दा करें |"
\v 7 और "वो अपने फ़रिश्तों के बारे में ये कहता है, "वो अपने फ़रिश्तों को हवाएँ, और अपने ख़ादिमों को आग के शो'ले बनाता है |"
\s5
\v 8 मगर बेटे के बारे में कहता है, "ऐ ख़ुदा, तेरा तख़्त हमेशा से हमेशा तक रहेगा, और तेरी बादशाही की 'लाठी रास्तबाज़ी की 'लाठी है |
\v 9 तू ने रास्तबाज़ी से मुहब्बत और बदकारी से 'अदावत रख्खी, इसी वजह से ख़ुदा, या'नी तेरे ख़ुदा ने ख़ुशी के तेल से तेरे साथियों की बनिस्बत तुझे ज़्यादा मसह किया |"
\s5
\v 10 और ये कि , "ऐ ख़ुदावन्द ! तू ने शुरू में ज़मीन की नीव डाली, और आसमान तेरे हाथ की कारीगरी है |
\v 11 वो मिट जाएँगे, मगर तू बाक़ी रहेगा; और वो सब पोशाक की तरह पुराने हो जाएँगे |
\v 12 तू उन्हें चादर की तरह लपेटेगा, और वो पोशाक की तरह बदल जाएँगे : मगर तू वही है और तेरे साल ख़त्म न होंगे |"
\s5
\v 13 लेकिन उसने फ़रिश्तों में से किसी के बारे में कब कहा, "तू मेरी दहनी तरफ़ बैठ, जब तक मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाँव तले की चौकी न कर दूँ" ?
\v 14 क्या वो सब ख़िदमत गुज़ार रूहें नहीं, जो नजात की मीरास पानेवालों की ख़ातिर ख़िदमत को भेजी जाती हैं ?
\s5
\c 2
\v 1 इसलिए जो बातें हम ने सुनी, उन पर और भी दिल लगाकर ग़ौर करना चाहिए, ताकि बहक कर उनसे दूर न चले जाएँ |
\s5
\v 2 क्यूँकि जो कलाम फ़रिश्तों के ज़रिए फ़रमाया गया था, जब वो क़ायम रहा और हर क़ुसूर और नाफ़रमानी का ठीक ठीक बदला मिला,
\v 3 तो इतनी बड़ी नजात से ग़ाफ़िल रहकर हम क्यूँकर चल सकते हैं? जिसका बयान पहले ख़ुदावन्द के वसीले से हुआ, और सुनने वालों से हमें पूरे-सबूत को पहुँचा |
\v 4 और साथ ही ख़ुदा भी अपनी मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ निशानों, और 'अजीब कामों, और तरह तरह के मो'जिज़ों, और रूह-उल-क़ुद्दूस की ने'मतों के ज़रि'ए से उसकी गवाही देता रहा |
\s5
\v 5 उसने उस आनेवाले जहान को जिसका हम ज़िक्र करते हैं, फ़रिश्तों के ताबे' नहीं किया |
\v 6 बल्कि किसी ने किसी मौक़े पर ये बयान किया है, "इन्सान क्या चीज़ है जो तू उसका ख़याल करता है ? या आदमज़ाद क्या है जो तू उस पर निगाह करता है ?
\s5
\v 7 तू ने उसे फ़रिश्तों से कुछ ही कम किया; तू ने उस पर जलाल और 'इज़्ज़त का ताज रख्खा, और अपने हाथों के कामों पर उसे इख़्तियार बख़्शा |
\v 8 तू ने सब चीज़ें ताबे' करके उसके क़दमों तले कर दी हैं |" पस जिस सूरत में उसने सब चीज़ें उसके ताबे' कर दीं, तो उसने कोई चीज़ ऐसी न छोड़ी जो उसके ताबे, न हो | मगर हम अब तक सब चीज़ें उसके ताबे' नहीं देखते |
\s5
\v 9 अलबत्ता उसको देखते हैं जो फ़रिश्तों से कुछ ही कम किया गया, या'नी ईसा ' को मौत का दुख सहने की वजह से जलाल और 'इज़्ज़त का ताज उसे पहनाया गया है, ताकि ख़ुदा के फ़ज़ल से वो हर एक आदमी के लिए मौत का मज़ा चखे |
\v 10 क्यूँकि जिसके लिए सब चीज़ें है और जिसके वसीले से सब चीज़ें हैं, उसको यही मुनासिब था कि जब बहुत से बेटों को जलाल में दाख़िल करे, तो उनकी नजात के बानी को दुखों के ज़रि'ए से कामिल कर ले |
\s5
\v 11 इसलिए कि पाक करने वाला और पाक होनेवाला सब एक ही नस्ल से हैं, इसी ज़रिए वो उन्हें भाई कहने से नहीं शरमाता |
\v 12 चुनाँचे वो फ़रमाता है, "तेरा नाम मैं अपने भाइयों से बयान करूँगा, कलीसिया में तेरी हम्द के गीत गाऊँगा |"
\s5
\v 13 और फिर ये, "देख मैं उस पर भरोसा रखूँगा | और फिर ये, "देख मैं उन लड़कों समेत जिन्हें ख़ुदा ने मुझे दिया |"
\v 14 पस जिस सूरत में कि लड़के ख़ून और गोश्त में शरीक हैं, तो वो ख़ुद भी उनकी तरह उनमें शरीक हुआ, ताकि मौत के वसीले से उसको जिसे मौत पर क़ुदरत हासिल थी, या'नी इब्लीस को, तबाह कर दे;
\v 15 और जो 'उम्र भर मौत के डर से ग़ुलामी में गिरफ़्तार रहे, उन्हें छुड़ा ले |
\s5
\v 16 क्यूँकि हक़ीक़त में वो फ़रिश्तों का नहीं, बल्कि अब्राहम की नस्ल का साथ देता है |
\v 17 पस उसको सब बातों में अपने भाइयों की तरह बनना ज़रुरी हुआ, ताकि उम्मत के गुनाहों का कफ़्फ़ारा देने के वास्ते, उन बातों में जो ख़ुदा से ता'अल्लुक़ रखती है,एक रहम दिल और दियानतदार सरदार काहिन बने |
\v 18 क्यूँकि जिस सूरत में उसने ख़ुद की आज़माइश की हालत में दुख उठाया, तो वो उनकी भी मदद कर सकता है जिनकी आज़माइश होती है |
\s5
\c 3
\v 1 पस ऐ पाक भाइयों ! तुम जो आसमानी बुलावे में शरीक हो, उस रसूल और सरदार काहिन ईसा' पर ग़ौर करो जिसका हम करते हैं;
\v 2 जो अपने मुक़र्रर करनेवाले के हक़ में दियानतदार था, जिस तरह मूसा उसके सारे घर में था |
\v 3 क्यूँकि वो मूसा से इस क़दर ज़्यादा 'इज़्ज़त के लायक़ समझा गया, जिस क़दर घर का बनानेवाला घर से ज़्यादा इज़्ज़तदार होता है |
\v 4 चुनाँचे हर एक घर का कोई न कोई बनानेवाला होता है, मगर जिसने सब चीज़ें बनाईं वो ख़ुदा है |
\s5
\v 5 मूसा तो उसके सारे घर में ख़ादिम की तरह दियानतदार रहा, ताकि आइन्दा बयान होनेवाली बातों की गवाही दे |
\v 6 लेकिन मसीह बेटे की तरह उसके घर का मालिक है, और उसका घर हम हैं; बशर्ते कि अपनी दिलेरी और उम्मीद का फ़ख़्र आख़िर तक मज़बूती से क़ायम रख्खें |
\s5
\v 7 पस जिस तरह कि रूह-उल-क़ुद्दूस फ़रमाता है, "अगर आज तुम उसकी आवाज़ सुनो,"
\v 8 तो अपने दिलों को सख़्त न करो, जिस तरह ग़ुस्सा दिलाने के वक़्त आज़माइश के दिन जंगल में किया था |
\s5
\v 9 जहाँ तुम्हारे बाप-दादा ने मुझे जाँचा और आज़माया और चालीस बरस तक मेरे काम देखे |
\v 10 इसलिए मैं उस पीढ़ी से नाराज़ हुआ, और कहा, 'इनके दिल हमेशा गुमराह होते रहते है, और उन्होंने मेरी राहों को नहीं पहचाना |'
\v 11 चुनाँचे मैंने अपने ग़ुस्से में क़सम खाई, 'ये मेरे आराम में दाख़िल न होने पाएँगे' |"
\s5
\v 12 ऐ भाइयों! ख़बरदार ! तुम में से किसी का ऐसा बुरा और बे-ईमान दिल न हो, जो ज़िन्दा ख़ुदा से फिर जाए |
\v 13 बल्कि जिस रोज़ तक आज का दिन कहा जाता है, हर रोज़ आपस में नसीहत किया करो, ताकि तुम में से कोई गुनाह के धोके में आकर सख़्त दिल न हो जाए |
\s5
\v 14 क्यूँकि हम मसीह में शरीक हुए हैं, बशर्ते कि अपने शुरुआत के भरोसे पर आख़िर तक मज़बूती से क़ायम रहें |
\v 15 चुनाँचे कहा जाता है, "अगर आज तुम उसकी आवाज़ सुनो, तो अपने दिलों को सख़्त न करो, जिस तरह कि ग़ुस्सा दिलाने के वक़्त किया था |"
\s5
\v 16 किन लोगों ने आवाज़ सुन कर ग़ुस्सा दिलाया? क्या उन सब ने नहीं जो मूसा के वसीले से मिस्र से निकले थे?
\v 17 और वो किन लोगों से चालीस बरस तक नाराज़ रहा? क्या उनसे नहीं जिन्होंने गुनाह किया, और उनकी लाशें वीराने में पड़ी रहीं?
\v 18 और किनके बारे में उसने क़सम खाई कि वो मेरे आराम में दाख़िल न होने पाएँगे, सिवा उनके जिन्होंने नाफ़रमानी की?
\v 19 ग़रज़ हम देखते हैं कि वो बे-ईमानी की वजह से दाख़िल न हो सके |
\s5
\c 4
\v 1 पस जब उसके आराम में दाख़िल होने का वादा बाक़ी है तो हमें डरना चाहिए ऐसा न हो कि तुम में से कोई रहा हुआ मालूम हो
\v 2 क्यूँकि हमें भी उन ही की तरह ख़ुशख़बरी सुनाई गई, लेकिन सुने हुए कलाम ने उनको इसलिए कुछ फ़ाइदा न दिया कि सुनने वालों के दिलों में ईमान के साथ न बैठा |
\s5
\v 3 और हम जो ईमान लाए, उस आराम में दाख़िल होते है; जिस तरह उसने कहा, "मैंने अपने ग़ुस्से में क़सम खाई कि ये मेरे आराम में दाख़िल न होने पाएँगे |" अगरचे दुनिया बनाने के वक़्त उसके काम हो चुके थे |
\v 4 चुनाँचे उसने सातवें दिन के बारे में किसी मौक़े' पर इस तरह कहा, "ख़ुदा ने अपने सब कामों को पूरा करके, सातवें दिन आराम किया |"
\v 5 और फिर इस मुक़ाम पर है, "वो मेरे आराम में दाख़िल न होने पाएँगे |"
\s5
\v 6 पस जब ये बात बाक़ी है कि कुछ उस आराम में दाख़िल हों, और जिनको पहले ख़ुशख़बरी सुनाई गई थी वो नाफ़रमानी की वजह से दाख़िल न हुए,
\v 7 तो फिर एक ख़ास दिन ठहर कर इतनी मुद्दत के बा'द दा'ऊद की किताब में उसे "आज का दिन" कहता है |जैसा पहले कहा गया, "और आज तुम उसकी आवाज़ सुनो, तो अपने दिलों को सख़्त न करो |"
\s5
\v 8 और अगर ईसा' ने उन्हें आराम में दाख़िल किया होता, तो वो उसके बा'द दुसरे दिन का ज़िक्र न करता |
\v 9 पस ख़ुदा की उम्मत के लिए सब्त का आराम बाक़ी है'
\v 10 क्यूँकि जो उसके आराम में दाख़िल हुआ, उसने भी ख़ुदा की तरह अपने कामों को पूरा करके आराम किया |
\v 11 पस आओ, हम उस आराम में दाख़िल होने की कोशिश करें, ताकि उनकी तरह नाफ़रमानी कर के कोई शख़्स गिर न पड़े |
\s5
\v 12 क्यूँकि ख़ुदा का कलाम ज़िन्दा, और असरदार, और हर एक दोधारी तलवार से ज़्यादा तेज़ है; और जान और रूह और बन्द, बन्द और गूदे को जुदा करके गुज़र जाता है, और दिल के ख़यालों और इरादों को जाँचता है |
\v 13 और उससे मख़्लूक़ात की कोई चीज़ छिपी नहीं, बल्कि जिससे हम को काम है उसकी नज़रों में सब चीज़ें खुली और बेपर्दा हैं |
\s5
\v 14 पस जब हमारा एक ऐसा बड़ा सरदार काहिन है जो आसमानों से गुज़र गया, या'नी ख़ुदा का बेटा ईसा' , तो आओ हम अपने इक़रार पर क़ायम रहें |
\v 15 क्यूँकि हमारा ऐसा सरदार काहिन नहीं जो हमारी कमज़ोरियों में हमारा हमदर्द न हो सके; बल्कि वो सब बातों में हमारी तरह आज़माया गया, तोभी बेगुनाह रहा |
\v 16 पस आओ, हम फ़ज़ल के तख़्त के पास दिलेरी से चलें, ताकि हम पर रहम हो और फ़ज़ल हासिल करें जो ज़रूरत के वक़्त हमारी मदद करे |
\s5
\c 5
\v 1 अब इन्सानों में से चुने गए इमाम-ए-आज़म को इस लिए मुक़र्रर किया जाता है कि वह उन की ख़ातिर ख़ुदा की ख़िदमत करे, ताकि वह गुनाहों के लिए नज़राने और क़ुर्बानियाँ पेश करे।
\v 2 वह जाहिल और आवारा लोगों के साथ नर्म सुलूक रख सकता है, क्यूँकि वह ख़ुद कई तरह की कमज़ोरियों की गिरफ़्त में होता है।
\v 3 यही वजह है कि उसे न सिर्फ़ क़ौम के गुनाहों के लिए बल्कि अपने गुनाहों के लिए भी क़ुर्बानियाँ चढ़ानी पड़ती हैं।
\s5
\v 4 और कोई अपनी मर्ज़ी से इमाम-ए-आज़म का 'इज़्ज़त वाला उह्दा नहीं अपना सकता बल्कि ज़रूरी है कि ख़ुदा उसे हारून की तरह बुला कर मुक़र्रर करे।
\v 5 इसी तरह मसीह ने भी अपनी मर्ज़ी से इमाम-ए-आज़म का 'इज़्ज़त वाला उह्दा नहीं अपनाया। इस के बजाए ख़ुदा ने उस से कहा, “तू मेरा बेटा है आज तू मुझसे पैदा हुआ है|”
\s5
\v 6 कहीं और वह फ़रमाता है,
\s5
\v 7 जब ईसा' इस दुनिया में था तो उस ने ज़ोर ज़ोर से पुकार कर और आँसू बहा बहा कर उसे दुआएँ और इल्तिजाएँ पेश कीं जो उसको मौत से बचा सकता था और ख़ुदा तरसी की वजह से उसकी सुनी गयी |
\v 8 वह ख़ुदा का फ़र्ज़न्द तो था, तो भी उस ने दुख उठाने से फ़रमाँबरदारी सीखी।
\s5
\v 9 जब वह कामिलियत तक पहुँच गया तो वह उन सब की अबदी नजात का सरचश्मा बन गया जो उस की सुनते हैं।
\v 10 उस वक़्त ख़ुदा ने उसे इमाम-ए-आज़म भी मुतअय्युन किया, ऐसा इमाम जैसा मलिक-ए-सिद्क़ था।
\v 11 इस के बारे में हम ज़्यादा बहुत कुछ कह सकते हैं, लेकिन हम मुश्किल से इस का ख़ुलासा कर सकते हैं, क्यूँकि आप सुनने में सुस्त हैं।
\s5
\v 12 असल में इतना वक़्त गुज़र गया है कि अब आप को ख़ुद उस्ताद होना चाहिए। अफ़्सोस कि ऐसा नहीं है बल्कि आप को इस की ज़रूरत है कि कोई आप के पास आ कर आप को ख़ुदा के कलाम की बुन्यादी सच्चाइयाँ दुबारा सिखाए। आप अब तक सख़्त ग़िज़ा नहीं खा सकते बल्कि आप को दूध की ज़रूरत है।
\v 13 जो दूध ही पी सकता है वह अभी छोटा बच्चा ही है और वह रास्तबाज़ी की तालीम से ना समझ है।
\v 14 इस के मुक़ाबले में सख़्त ग़िज़ा बालिग़ों के लिए है जिन्हों ने अपनी बलूग़त के ज़रिए अपनी रुहानी ज़िन्दगी को इतनी तर्बियत दी है कि वह भलाई और बुराई में पहचान कर सकते हैं।
\s5
\c 6
\v 1 इस लिए आएँ, हम मसीह के बारे में बुन्यादी तालीम को छोड़ कर बलूग़त की तरफ़ आगे बढ़ें। क्यूँकि ऐसी बातें दोहराने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए जिन से ईमान की बुन्याद रखी जाती है, मसलन मौत तक पहुँचाने वाले काम से तौबा,
\v 2 बपतिस्मा क्या है, किसी पर हाथ रखने की तालीम, मुर्दों के जी उठने और हमेशा सज़ा पाने की तालीम।
\v 3 चुनाँचे ख़ुदा की मर्ज़ी हुई तो हम यह छोड़ कर आगे बढ़ेंगे।
\s5
\v 4 नामुमकिन है कि उन्हें बहाल करके दुबारा तौबा तक पहुँचाया जाए जिन्हों ने अपना ईमान छोड़ दिया हो। उन्हें तो एक बार ख़ुदा के नूर में लाया गया था, उन्हों ने आसमान की ने'अमत का मज़ा चख लिया था, वह रूह-उल-क़ुद्दूस में शरीक हुए,
\v 5 उन्हों ने ख़ुदा के कलाम की भलाई और आने वाले ज़माने की ताक़तों का तजरुबा किया था।
\v 6 और फिर उन्हों ने अपना ईमान छोड़ दिया! ऐसे लोगों को बहाल करके दुबारा तौबा तक पहुँचाना नामुमकिन है। क्यूँकि ऐसा करने से वह ख़ुदा के फ़र्ज़न्द को दुबारा मस्लूब करके उसे लान-तान का निशाना बना देते हैं।
\s5
\v 7 ख़ुदा उस ज़मीन को बरकत देता है जो अपने पर बार बार पड़ने वाली बारिश को जज़्ब करके ऐसी फ़सल पैदा करती है जो खेतीबाड़ी करने वाले के लिए फायदामंद हो।
\v 8 लेकिन अगर वह सिर्फ़ कांटे दार पौदे और ऊँटकटारे पैदा करे तो वह बेकार है और इस ख़तरे में है कि उस पर लानत भेजी जाए। अन्जाम-ए-कार उस पर का सब कुछ जलाया जाएगा।
\s5
\v 9 लेकिन ऐ अज़ीज़ो! अगरचे हम इस तरह की बातें कर रहे हैं तो भी हमारा भरोसा यह है कि आप को वह बेहतरीन बरकतें हासिल हैं जो नजात से मिलती हैं।
\v 10 क्यूँकि ख़ुदा बेइन्साफ़ नहीं है। वह आप का काम और वह मुहब्बत नहीं भूलेगा जो आप ने उस का नाम ले कर ज़ाहिर की जब आप ने पाक लोगों की ख़िदमत की बल्कि आज तक कर रहे हैं।
\s5
\v 11 लेकिन हमारी बड़ी ख़्वाहिश यह है कि आप में से हर एक इसी सरगर्मी का इज़हार आख़िर तक करता रहे ताकि जिन बातों की उम्मीद आप रखते हैं वह हक़ीक़त में पूरी हो जाएँ।
\v 12 हम नहीं चाहते कि आप सुस्त हो जाएँ बल्कि यह कि आप उन के नमूने पर चलें जो ईमान और सब्र से वह कुछ मीरास में पा रहे हैं जिस का वादा ख़ुदा ने किया है।
\s5
\v 13 जब ख़ुदा ने क़सम खा कर अब्राहम से वादा किया तो उस ने अपनी ही क़सम खा कर यह वादा किया। क्यूँकि कोई और नहीं था जो उस से बड़ा था जिस की क़सम वह खा सकता।
\v 14 उस वक़्त उस ने कहा, “मैं ज़रूर तुझे बहुत बरकत दूँगा, और मैं यक़ीनन तुझे ज़्यादा औलाद दूँगा।”
\v 15 इस पर अब्राहम ने सब्र से इन्तिज़ार करके वह कुछ पाया जिस का वादा किया गया था।
\s5
\v 16 क़सम खाते वक़्त लोग उस की क़सम खाते हैं जो उन से बड़ा होता है। इस तरह से क़सम में बयानकरदा बात की तस्दीक़ बह्स-मुबाहसा की हर गुन्जाइश को ख़त्म कर देती है।
\v 17 ख़ुदा ने भी क़सम खा कर अपने वादे की तस्दीक़ की। क्यूँकि वह अपने वादे के वारिसों पर साफ़ ज़ाहिर करना चाहता था कि उस का इरादा कभी नहीं बदलेगा।
\v 18 ग़रज़, यह दो बातें क़ायम रही हैं, ख़ुदा का वादा और उस की क़सम। वह इन्हें न तो बदल सकता न इन के बारे में झूट बोल सकता है। यूँ हम जिन्हों ने उस के पास पनाह ली है बड़ी तसल्ली पा कर उस उम्मीद को मज़बूती से थामे रख सकते हैं जो हमें पेश की गई है।
\s5
\v 19 क्यूँकि यह उम्मीद हमारी जान के लिए मज़बूत लंगर है। और यह आसमानी बैत-उल-मुक़द्दस के पाकतरीन कमरे के पर्दे में से गुज़र कर उस में दाख़िल होती है।
\v 20 वहीं ईसा' हमारे आगे आगे जा कर हमारी ख़ातिर दाख़िल हुआ है। यूँ वह मलिक-ए-सिदक की तरह हमेशा के लिए इमाम-ए-आज़म बन गया है।
\s5
\c 7
\v 1 यह मलिक-ए-सिद्क़, सालिम का बादशाह और ख़ुदा-ए-तआला का इमाम था। जब अब्राहम चार बादशाहों को शिकस्त देने के बाद वापस आ रहा था तो मलिक-ए-सिद्क़ उस से मिला और उसे बरकत दी।
\v 2 इस पर अब्राहम ने उसे तमाम लूट के माल का दसवाँ हिस्सा दे दिया। अब मलिक-ए-सिद्क़ का मतलब रास्तबाज़ी का बादशाह है। दूसरे, सालिम का बादशाह का मतलब सलामती का बादशाह।
\v 3 न उस का बाप या माँ है, न कोई नसबनामा। उसकी ज़िन्दगी की न तो शुरुआत है, न ख़ात्मा। ख़ुदा के फ़र्ज़न्द की तरह वह हमेशा तक इमाम रहता है।
\s5
\v 4 ग़ौर करें कि वह कितना अज़ीम था। हमारे बापदादा अब्राहम ने उसे लूटे हुए माल का दसवाँ हिस्सा दे दिया।
\v 5 अब शरीअत मांग करती है कि लावी की वह औलाद जो इमाम बन जाती है क़ौम यानी अपने भाइयों से पैदावार का दसवाँ हिस्सा ले, हालाँकि उन के भाई अब्राहम की औलाद हैं।
\v 6 लेकिन मलिक-ए-सिद्क़ लावी की औलाद में से नहीं था। तो भी उस ने अब्राहम से दसवाँ हिस्सा ले कर उसे बरकत दी जिस से ख़ुदा ने वादा किया था।
\s5
\v 7 इस में कोई शक नहीं कि कम हैसियत शख़्स को उस से बरकत मिलती है जो ज़्यादा हैसियत का हो।
\v 8 जहाँ लावी इमामों का ताल्लुक़ है ख़त्म होने वाले इन्सान दसवाँ हिस्सा लेते हैं। लेकिन मलिक-ए-सिद्क़ के मु'आमले में यह हिस्सा उस को मिला जिस के बारे में गवाही दी गई है कि वह ज़िन्दा रहता है।
\v 9 यह भी कहा जा सकता है कि जब अब्राहम ने माल का दसवाँ हिस्सा दे दिया तो लावी ने उस के ज़रीए भी यह हिस्सा दिया, हालाँकि वह ख़ुद दसवाँ हिस्सा लेता है।
\v 10 क्यूँकि अगरचे लावी उस वक़्त पैदा नहीं हुआ था तो भी वह एक तरह से अब्राहम के जिस्म में मौजूद था जब मलिक-ए-सिद्क़ उस से मिला।
\s5
\v 11 अगर लावी की कहानत (जिस पर शरीअत मुन्हसिर थी) कामिलियत पैदा कर सकती तो फिर एक और क़िस्म के इमाम की क्या ज़रूरत होती, उस की जो हारून जैसा न हो बल्कि मलिक-ए-सिद्क़ जैसा?
\v 12 क्यूँकि जब भी कहानत बदल जाती है तो लाज़िम है कि शरीअत में भी तब्दीली आए।
\s5
\v 13 और हमारा ख़ुदावन्द जिस के बारे में यह बयान किया गया है वह एक अलग क़बीले का फ़र्द था। उस के क़बीले के किसी भी फ़र्द ने इमाम की ख़िदमत अदा नहीं की।
\v 14 क्यूँकि साफ़ मालूम है कि ख़ुदावन्द मसीह यहूदाह क़बीले का फ़र्द था, और मूसा ने इस क़बीले को इमामों की ख़िदमत में शामिल न किया।
\s5
\v 15 मुआमला ज़्यादा साफ़ हो जाता है। एक अलग इमाम ज़ाहिर हुआ है जो मलिक-ए-सिद्क़ जैसा है।
\v 16 वह लावी के क़बीले का फ़र्द होने से इमाम न बना जिस तरह शरीअत की चाहत थी, बल्कि वह न ख़त्म होने वाली ज़िन्दगी की क़ुव्वत ही से इमाम बन गया।
\v 17 क्यूँकि कलाम-ए-मुक़द्दस फ़रमाता है, कि तू मलिक-ए-सिदक़ के तौर पर अबद तक काहिन है |
\s5
\v 18 यूँ पुराने हुक्म को रद कर दिया जाता है, क्यूँकि वह कमज़ोर और बेकार था
\v 19 (मूसा की शरीअत तो किसी चीज़ को कामिल नहीं बना सकती थी) और अब एक बेहतर उम्मीद मुहय्या की गई है जिस से हम ख़ुदा के क़रीब आ जाते हैं।
\s5
\v 20 और यह नया तरीक़ा ख़ुदा की क़सम से क़ायम हुआ। ऐसी कोई क़सम न खाई गई जब दूसरे इमाम बने।
\v 21 लेकिन ईसा' एक क़सम के ज़रीए इमाम बन गया जब ख़ुदा ने फ़रमाया,
\s5
\v 22 इस क़सम की वजह से ईसा' एक बेहतर अहद की ज़मानत देता है।
\v 23 एक और बदलाव, पुराने निज़ाम में बहुत से इमाम थे, क्यूँकि मौत ने हर एक की ख़िदमत मह्दूद किए रखी।
\v 24 लेकिन चूँकि ईसा' हमेशा तक ज़िन्दा है इस लिए उस की कहानत कभी भी ख़त्म नहीं होगी।
\s5
\v 25 यूँ वह उन्हें अबदी नजात दे सकता है जो उस के वसीले से ख़ुदा के पास आते हैं, क्यूँकि वह अबद तक ज़िन्दा है और उन की शफ़ाअत करता रहता है।
\v 26 हमें ऐसे ही इमाम-ए-आज़म की ज़रूरत थी। हाँ, ऐसा इमाम जो मुक़द्दस, बेक़ुसूर, बेदाग़, गुनाहगारों से अलग और आसमानों से बुलन्द हुआ है।
\s5
\v 27 उसे दूसरे इमामों की तरह इस की ज़रूरत नहीं कि हर रोज़ क़ुर्बानियाँ पेश करे, पहले अपने लिए फिर क़ौम के लिए। बल्कि उस ने अपने आप को पेश करके अपनी इस क़ुर्बानी से उन के गुनाहों को एक बार सदा के लिए मिटा दिया।
\v 28 मूसा की शरीअत ऐसे लोगों को इमाम-ए-आज़म मुक़र्रर करती है जो कमज़ोर हैं। लेकिन शरीअत के बाद ख़ुदा की क़सम फ़र्ज़न्द को इमाम-ए-आज़म मुक़र्रर करती है, और यह फ़र्ज़न्द हमेशा तक कामिल है।
\s5
\c 8
\v 1 जो कुछ हम कह रहे हैं उस की ख़ास बात यह है, हमारा एक ऐसा इमाम-ए-आज़म है जो आसमान पर जलाली ख़ुदा के तख़्त के दहने हाथ बैठा है।
\v 2 वहाँ वह मक़्दिस में ख़िदमत करता है, उस हक़ीक़ी मुलाक़ात के ख़ेमे में जिसे इन्सानी हाथों ने खड़ा नहीं किया बल्कि ख़ुदा ने।
\s5
\v 3 हर इमाम-ए-आज़म को नज़राने और क़ुर्बानियाँ पेश करने के लिए मुक़र्रर किया जाता है। इस लिए लाज़िम है कि हमारे इमाम-ए-आज़म के पास भी कुछ हो जो वह पेश कर सके।
\v 4 अगर यह दुनिया में होता तो इमाम-ए-आज़म न होता, क्यूँकि यहाँ इमाम तो हैं जो शरी'अत के लिहाज़ से नज़राने पेश करते हैं।
\v 5 जिस मक़्दिस में वह ख़िदमत करते हैं वह उस मक़्दिस की सिर्फ़ नक़ली सूरत और साया है जो आसमान पर है। यही वजह है कि ख़ुदा ने मूसा को मुलाक़ात का ख़ेमा बनाने से पहले आगाह करके यह कहा, “ग़ौर कर कि सब कुछ बिल्कुल उस नमूने के मुताबिक़ बनाया जाए जो मैं तुझे यहाँ पहाड़ पर दिखाता हूँ।”
\s5
\v 6 लेकिन जो ख़िदमत ईसा' को मिल गई है वह दुनिया के इमामों की ख़िदमत से कहीं बेहतर है, उतनी बेहतर जितना वह अह्द जिस का दरमियानी ईसा' है पुराने अह्द से बेहतर है। क्यूँकि यह अह्द बेहतर वादों की बुनियाद पर बांधा गया।
\v 7 अगर पहला अह्द बेइल्ज़ाम होता तो फिर नए अह्द की ज़रूरत न होती।
\s5
\v 8 लेकिन ख़ुदा को अपनी क़ौम पर इल्ज़ाम लगाना पड़ा। उस ने कहा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि देख! वो दिन आते हैं कि मैं इस्राईल के घरानें और यहूदाह के घराने से एक नया 'अहद बांधूंगा |
\v 9 यह उस अह्द की तरह नहीं होगा जो मैंने उनके बाप दादा से उस दिन बांधा था, जब मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाने के लिए उनका हाथ पकड़ा था, इस वास्ते कि वो मेरे अहद पर क़ायम नहीं रहे और ख़ुदा वन्द फ़रमाता है कि मैंने उनकी तरफ कुछ तवज्जह न की |
\s5
\v 10 ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि,जो अहद इस्राईल के घराने से उनदिनों के बाद बांधूंगा, वो ये है कि मैं अपने क़ानून उनके ज़हन में डालूँगा, और उनके दिलों पर लिखूंगा ,और मैं उनका ख़ुदा हूँगा,और वो मेरी उम्मत होंगे|
\s5
\v 11 और हर शख़्स अपने हम वतन और अपने भाई को ये तालीम न देगा कि तू ख़ुदावन्द को पहचान, क्यूंकि छोटे से बड़े तक सब मुझे जान लेंगे |
\v 12 क्यूँकि मैं उन का क़ुसूर मुआफ़ करूँगा
\s5
\v 13 इन अल्फ़ाज़ में ख़ुदा एक नए अह्द का ज़िक्र करता है और यूँ पुराने अह्द को रद कर देता है। और जो रद किया और पुराना है उस का अन्जाम क़रीब ही है।
\s5
\c 9
\v 1 जब पहला अह्द बांधा गया तो इबादत करने के लिए हिदायात दी गईं। ज़मीन पर एक मक़्दिस भी बनाया गया,
\v 2 एक ख़ेमा जिस के पहले कमरे में शमादान, मेज़ और उस पर पड़ी मख़्सूस की गई रोटियाँ थीं। उस का नाम “मुक़द्दस कमरा” था।
\s5
\v 3 उस के पीछे एक और कमरा था जिस का नाम “पाकतरीन कमरा” था। पहले और दूसरे कमरे के दरमियान बाक़ी दरवाज़े पर पर्दा लगा था।
\v 4 इस पिछले कमरे में बख़ूर जलाने के लिए सोने की क़ुर्बानगाह और अह्द का सन्दूक़ था। अह्द के सन्दूक़ पर सोना मढा हुआ था और उस में तीन चीज़ें थीं : सोने का मर्तबान जिस में मन भरा था, हारून की वह लाठी जिस से कोंपलें फूट निकली थीं और पत्थर की वह दो तख़्तियाँ जिन पर अह्द के अह्काम लिखे थे।
\v 5 सन्दूक़ पर इलाही जलाल के दो करूबी फ़रिश्ते लगे थे जो सन्दूक़ के ढकने को साया देते थे जिस का नाम “कफ़्फ़ारा का ढकना” था। लेकिन इस जगह पर हम सब कुछ मज़ीद तफ़्सील से बयान नहीं करना चाहते।
\s5
\v 6 यह चीज़ें इसी तरतीब से रखी जाती हैं। जब इमाम अपनी ख़िदमत के फ़राइज़ अदा करते हैं तो बाक़ाइदगी से पहले कमरे में जाते हैं।
\v 7 लेकिन सिर्फ़ इमाम-ए-आज़म ही दूसरे कमरे में दाख़िल होता है, और वह भी साल में सिर्फ़ एक दफ़ा। जब भी वह जाता है वह अपने साथ ख़ून ले कर जाता है जिसे वह अपने और क़ौम के लिए पेश करता है ताकि वह गुनाह मिट जाएँ जो लोगों ने भूलचूक में किए होते हैं।
\s5
\v 8 इस से रूह-उल-क़ुद्दूस दिखाता है कि पाकतरीन कमरे तक रसाई उस वक़्त तक ज़ाहिर नहीं की गई थी जब तक पहला कमरा इस्तेमाल में था।
\v 9 यह मिजाज़न मौजूदा ज़माने की तरफ़ इशारा है। इस का मतलब यह है कि जो नज़राने और क़ुर्बानियाँ पेश की जा रही हैं वह इबादत गुज़ार दिल को पाक-साफ़ करके कामिल नहीं बना सकतीं।
\v 10 क्यूँकि इन का ताल्लुक़ सिर्फ़ खाने-पीने वाली चीज़ों और ग़ुस्ल की मुख़्तलिफ़ रस्मों से होता है, ऐसी ज़ाहिरी हिदायात जो सिर्फ़ नए निज़ाम के आने तक लागू हैं।
\s5
\v 11 लेकिन अब मसीह आ चुका है, उन अच्छी चीज़ों का इमाम-ए-आज़म जो अब हासिल हुई हैं। जिस ख़ेमे में वह ख़िदमत करता है वह कहीं ज़्यादा अज़ीम और कामिल है। यह ख़ेमा इन्सानी हाथों से नहीं बनाया गया यानी यह इस कायनात का हिस्सा नहीं है।
\v 12 जब मसीह एक बार सदा के लिए ख़ेमे के पाकतरीन कमरे में दाख़िल हुआ तो उस ने क़ुर्बानियाँ पेश करने के लिए बकरों और बछड़ों का ख़ून इस्तेमाल न किया। इस के बजाए उस ने अपना ही ख़ून पेश किया और यूँ हमारे लिए हमेशा की नजात हासिल की।
\s5
\v 13 पुराने निज़ाम में बैल-बकरों का ख़ून और जवान गाय की राख नापाक लोगों पर छिड़के जाते थे ताकि उन के जिस्म पाक-साफ़ हो जाएँ।
\v 14 अगर इन चीज़ों का यह असर था तो फिर मसीह के ख़ून का क्या ज़बरदस्त असर होगा! अज़ली रूह के ज़रीए उस ने अपने आप को बेदाग़ क़ुर्बानी के तौर पर पेश किया। यूँ उस का ख़ून हमारे ज़मीर को मौत तक पहुँचाने वाले कामों से पाक-साफ़ करता है ताकि हम ज़िन्दा ख़ुदा की ख़िदमत कर सकें।
\v 15 यही वजह है कि मसीह एक नए अह्द का दरमियानी है। मक़्सद यह था कि जितने लोगों को ख़ुदा ने बुलाया है उन्हें ख़ुदा की वादा की हुई और हमेशा की मीरास मिले। और यह सिर्फ़ इस लिए मुमकिन हुआ है कि मसीह ने मर कर फ़िदया दिया ताकि लोग उन गुनाहों से छुटकारा पाएँ जो उन से उस वक़्त सरज़द हुए जब वह पहले अह्द के तहत थे।
\s5
\v 16 जहाँ वसीयत है वहाँ ज़रूरी है कि वसीयत करने वाले की मौत की तस्दीक़ की जाए।
\v 17 क्यूँकि जब तक वसीयत करने वाला ज़िन्दा हो वसीयत बे असर होती है। इस का असर वसीयत करने वाले की मौत ही से शुरू होता है।
\s5
\v 18 यही वजह है कि पहला अह्द बांधते वक़्त भी ख़ून इस्तेमाल हुआ।
\v 19 क्यूँकि पूरी क़ौम को शरीअत का हर हुक्म सुनाने के बाद मूसा ने बछड़ों का ख़ून पानी से मिला कर उसे ज़ूफ़े के गुच्छे और क़िर्मिज़ी रंग के धागे के ज़रीए शरीअत की किताब और पूरी क़ौम पर छिड़का।
\v 20 उस ने कहा, “यह ख़ून उस अह्द की तस्दीक़ करता है जिस की पैरवी करने का हुक्म ख़ुदा ने तुम्हें दिया है।”
\s5
\v 21 इसी तरह मूसा ने यह ख़ून मुलाक़ात के ख़ेमे और इबादत के तमाम सामान पर छिड़का।
\v 22 न सिर्फ़ यह बल्कि शरीअत तक़ाज़ा करती है कि तक़रीबन हर चीज़ को ख़ून ही से पाक-साफ़ किया जाए बल्कि ख़ुदा के हुज़ूर ख़ून पेश किए बग़ैर मुआफ़ी मिल ही नहीं सकती।
\s5
\v 23 ग़रज़, ज़रूरी था कि यह चीज़ें जो आसमान की असली चीज़ों की नक़ली सूरतें हैं पाक-साफ़ की जाएँ। लेकिन आसमानी चीज़ें ख़ुद ऐसी क़ुर्बानियों की तलब करती हैं जो इन से कहीं बेहतर हों।
\v 24 क्यूँकि मसीह सिर्फ़ इन्सानी हाथों से बने मक़्दिस में दाख़िल नहीं हुआ जो असली मक़्दिस की सिर्फ़ नक़ली सूरत थी बल्कि वह आसमान में ही दाख़िल हुआ ताकि अब से हमारी ख़ातिर ख़ुदा के सामने हाज़िर हो।
\s5
\v 25 दुनिया का इमाम-ए-आज़म तो सालाना किसी और (यानी जानवर) का ख़ून ले कर पाकतरीन कमरे में दाख़िल होता है। लेकिन मसीह इस लिए आसमान में दाख़िल न हुआ कि वह अपने आप को बार बार क़ुर्बानी के तौर पर पेश करे।
\v 26 अगर ऐसा होता तो उसे दुनिया की पैदाइश से ले कर आज तक बहुत बार दुख सहना पड़ता। लेकिन ऐसा नहीं है बल्कि अब वह ज़मानों के ख़ात्में पर एक ही बार सदा के लिए ज़ाहिर हुआ ताकि अपने आप को क़ुर्बान करने से गुनाह को दूर करे।
\s5
\v 27 एक बार मरना और ख़ुदा की अदालत में हाज़िर होना हर इन्सान के लिए मुक़र्रर है।
\v 28 इसी तरह मसीह को भी एक ही बार बहुतों के गुनाहों को उठा कर ले जाने के लिए क़ुर्बान किया गया। दूसरी बार जब वह ज़ाहिर होगा तो गुनाहों को दूर करने के लिए ज़ाहिर नहीं होगा बल्कि उन्हें नजात देने के लिए जो शिद्दत से उस का इन्तिज़ार कर रहे हैं।
\s5
\c 10
\v 1 मूसा की शरीअत आने वाली अच्छी और असली चीज़ों की सिर्फ़ नक़ली सूरत और साया है। यह उन चीज़ों की असली शक्ल नहीं है। इस लिए यह उन्हें कभी भी कामिल नहीं कर सकती जो साल-ब-साल और बार बार ख़ुदा के हुज़ूर आ कर वही क़ुर्बानियाँ पेश करते रहते हैं।
\v 2 अगर वह कामिल कर सकती तो क़ुर्बानियाँ पेश करने की ज़रूरत न रहती। क्यूँकि इस सूरत में इबादत करने से एक बार सदा के लिए पाक-साफ़ हो जाते और उन्हें गुनाहगार होने का शऊर न रहता।
\v 3 लेकिन इस के बजाए यह क़ुर्बानियाँ साल-ब-साल लोगों को उन के गुनाहों की याद दिलाती हैं।
\v 4 क्यूँकि मुमकिन ही नहीं कि बैल-बकरों का ख़ून गुनाहों को दूर करे।
\s5
\v 5 इस लिए मसीह दुनिया में आते वक़्त ख़ुदा से कहता है, कि तूने “ क़ुर्बानी और नज़र को पसंद ना किया बल्कि मेरे लिए एक बदन तैयार किया |
\v 6 राख होने वाली क़ुर्बानियाँ और गुनाह की क़ुर्बानियों से तू खुश न हुआ |”
\v 7 फिर मैं बोल उठा, ऐ ख़ुदा, मैं हाज़िर हूँ ताकि तेरी मर्ज़ी पूरी करूं|
\s5
\v 8 पहले मसीह कहता है, “न तू क़ुर्बानियाँ, नज़रें, राख होने वाली क़ुर्बानियाँ या गुनाह की क़ुर्बानियाँ चाहता था, न उन्हें पसन्द करता था”अगरचे शरीअत इन्हें पेश करने का मुतालबा करती है।
\v 9 फिर वह फ़रमाता है, “मैं हाज़िर हूँ ताकि तेरी मर्ज़ी पूरी करूँ।” यूँ वह पहला निज़ाम ख़त्म करके उस की जगह दूसरा निज़ाम क़ायम करता है।
\v 10 और उस की मर्ज़ी पूरी हो जाने से हमें ईसा' मसीह के बदन के वसीले से ख़ास-ओ-मुक़द्दस किया गया है। क्यूँकि उसे एक ही बार सदा के लिए हमारे लिए क़ुर्बान किया गया।
\s5
\v 11 हर इमाम रोज़-ब-रोज़ मक़्दिस में खड़ा अपनी ख़िदमत के फ़राइज़ अदा करता है। रोज़ाना और बार बार वह वही क़ुर्बानियाँ पेश करता रहता है जो कभी भी गुनाहों को दूर नहीं कर सकतीं।
\v 12 लेकिन मसीह ने गुनाहों को दूर करने के लिए एक ही क़ुर्बानी पेश की, एक ऐसी क़ुर्बानी जिस का असर सदा के लिए रहेगा। फिर वह ख़ुदा के दहने हाथ बैठ गया।
\v 13 वहीं वह अब इन्तिज़ार करता है जब तक ख़ुदा उस के दुश्मनों को उस के पाँओ की चौकी न बना दे।
\v 14 यूँ उस ने एक ही क़ुर्बानी से उन्हें सदा के लिए कामिल बना दिया है जिन्हें पाक किया जा रहा है।
\s5
\v 15 रूह-उल-क़ुद्दूस भी हमें इस के बारे में गवाही देता है। पहले वह कहता है,
\v 16 “ ख़ुदा फ़रमाता है कि,जो 'अहद मैं उन दिनों के बाद उनसे बांधूंगा वो ये है कि मैं अपने क़ानून उन के दिलों पर लिखूंगा और उनके ज़हन में डालूँगा |”
\s5
\v 17 फिर वह कहता है, “उस वक़्त से मैं उन के गुनाहों और बुराइयों को याद नहीं करूँगा।”
\v 18 और जहाँ इन गुनाहों की मुआफ़ी हुई है वहाँ गुनाहों को दूर करने की क़ुर्बानियों की ज़रूरत ही नहीं रही।
\s5
\v 19 चुनाँचे भाइयों, अब हम ईसा के ख़ून के वसीले से पूरे यक़ीन के साथ पाकतरीन कमरे में दाख़िल हो सकते हैं।
\v 20 अपने बदन की क़ुर्बानी से ईसा' ने उस कमरे के पर्दे में से गुज़रने का एक नया और ज़िन्दगीबख़्श रास्ता खोल दिया।
\v 21 हमारा एक अज़ीम इमाम-ए-आज़म है जो ख़ुदा के घर पर मुक़र्रर है।
\v 22 इस लिए आएँ, हम ख़ुलूसदिली और ईमान के पूरे यक़ीन के साथ ख़ुदा के हुज़ूर आएँ। क्यूँकि हमारे दिलों पर मसीह का ख़ून छिड़का गया है ताकि हमारे मुजरिम दिल साफ़ हो जाएँ। और , हमारे बदनों को पाक-साफ़ पानी से धोया गया है।
\s5
\v 23 आएँ, हम मज़बूती से उस उम्मीद को थामे रखें जिस का इक़्ररार हम करते हैं। हम लड़खड़ा न जाएँ, क्यूँकि जिस ने इस उम्मीद का वादा किया है वह वफ़ादार है।
\v 24 और आएँ, हम इस पर ध्यान दें कि हम एक दूसरे को किस तरह मुहब्बत दिखाने और नेक काम करने पर उभार सकें।
\v 25 हम एकसाथ जमा होने से बाज़ न आएँ, जिस तरह कुछ की आदत बन गई है। इस के बजाए हम एक दूसरे की हौसला अफ़्ज़ाई करें, ख़ासकर यह बात मद्द-ए-नज़र रख कर कि ख़ुदावन्द का दिन क़रीब आ रहा है।
\s5
\v 26 ख़बरदार! अगर हम सच्चाई जान लेने के बाद भी जान-बूझ कर गुनाह करते रहें तो मसीह की क़ुर्बानी इन गुनाहों को दूर नहीं कर सकेगी।
\v 27 फिर सिर्फ़ ख़ुदा की अदालत की हौलनाक उम्मीद बाक़ी रहेगी, उस भड़कती हुई आग की जो ख़ुदा के मुख़ालिफ़ों को ख़त्म कर डालेगी।
\s5
\v 28 जो मूसा की शरीअत रद्द करता है उस पर रहम नहीं किया जा सकता बल्कि अगर दो या इस से ज़्यादा लोग इस जुर्म की गवाही दें तो उसे सज़ा-ए-मौत दी जाए।
\v 29 तो फिर क्या ख़याल है, वह कितनी सख़्त सज़ा के लायक़ होगा जिस ने ख़ुदा के फ़र्ज़न्द को पाँओ तले रौंदा? जिस ने अह्द का वह ख़ून हक़ीर जाना जिस से उसे ख़ास-ओ-मुक़द्दस किया गया था? और जिस ने फ़ज़ल के रूह की बेइज़्ज़ती की?
\s5
\v 30 क्यूँकि हम उसे जानते हैं जिस ने फ़रमाया, “इन्तिक़ाम लेना मेरा ही काम है, मैं ही बदला लूँगा।” उस ने यह भी कहा, “ ख़ुदा अपनी क़ौम का इन्साफ़ करेगा।”
\v 31 यह एक हौलनाक बात है अगर ज़िन्दा ख़ुदा हमें सज़ा देने के लिए पकड़े।
\s5
\v 32 ईमान के पहले दिन याद करें जब ख़ुदा ने आप को रौशन कर दिया था। उस वक़्त के सख़्त मुक़ाबले में आप को कई तरह का दुख सहना पड़ा, लेकिन आप साबितक़दम रहे।
\v 33 कभी कभी आप की बेइज़्ज़ती और अवाम के सामने ही ईज़ा रसानी होती थी, कभी कभी आप उन के साथी थे जिन से ऐसा सुलूक हो रहा था।
\v 34 जिन्हें जेल में डाला गया आप उन के दुख में शरीक हुए और जब आप का माल-ओ-ज़ेवर लूटा गया तो आप ने यह बात ख़ुशी से बर्दाश्त की। क्यूँकि आप जानते थे कि वह माल हम से नहीं छीन लिया गया जो पहले की तरह कहीं बेहतर है और हर सूरत में क़ायम रहेगा।
\s5
\v 35 चुनाँचे अपने इस भरोसे को हाथ से जाने न दें क्यूँकि इस का बड़ा अज्र मिलेगा।
\v 36 लेकिन इस के लिए आप को साबित क़दमी की ज़रूरत है ताकि आप ख़ुदा की मर्ज़ी पूरी कर सकें और यूँ आप को वह कुछ मिल जाए जिस का वादा उस ने किया है।
\v 37 और “अब बहुत ही थोड़ा वक़्त बाक़ी है कि आने वाला आयेगा और देर न करेगा |
\s5
\v 38 लेकिन मेरा रास्तबाज़ ईमान ही से जीता रहेगा, और अगर वो हटेगा तो मेरा दिल उससे खुश न होगा|”
\v 39 लेकिन हम उन में से नहीं हैं जो पीछे हट कर तबाह हो जाएंगे बल्कि हम उन में से हैं जो ईमान रख कर नजात पाते हैं।
\s5
\c 11
\v 1 ईमान क्या है? यह कि हम उस में क़ायम रहें जिस पर हम उम्मीद रखते हैं और कि हम उस का यक़ीन रखें जो हम नहीं देख सकते।
\v 2 ईमान ही से पुराने ज़मानों के लोगों को ख़ुदा की क़बूलियत हासिल हुई।
\v 3 ईमान के ज़रीए हम जान लेते हैं कि कायनात को ख़ुदा के कलाम से पैदा किया गया, कि जो कुछ हम देख सकते हैं नज़र आने वाली चीज़ों से नहीं बना।
\s5
\v 4 यह ईमान का काम था कि हाबिल ने ख़ुदा को एक ऐसी क़ुर्बानी पेश की जो क़ाइन की क़ुर्बानी से बेहतर थी। इस ईमान की बिना पर ख़ुदा ने उसे रास्तबाज़ ठहरा कर उस की अच्छी गवाही दी, जब उस ने उस की क़ुर्बानियों को क़बूल किया। और ईमान के ज़रीए वह अब तक बोलता रहता है हालाँकि वह मुर्दा है।
\s5
\v 5 यह ईमान का काम था कि हनूक न मरा बल्कि ज़िन्दा हालत में आसमान पर उठाया गया। कोई भी उसे ढूँड कर पा न सका क्यूँकि ख़ुदा उसे आसमान पर उठा ले गया था। वजह यह थी कि उठाए जाने से पहले उसे यह गवाही मिली कि वह ख़ुदा को पसन्द आया।
\v 6 और ईमान रखे बग़ैर हम ख़ुदा को पसन्द नहीं आ सकते। क्यूँकि ज़रूरी है कि ख़ुदा के हुज़ूर आने वाला ईमान रखे कि वह है और कि वह उन्हें अज्र देता है जो उस के तालिब हैं।
\s5
\v 7 यह ईमान का काम था कि नूह ने ख़ुदा की सुनी जब उस ने उसे आने वाली बातों के बारे में आगाह किया, ऐसी बातों के बारे में जो अभी देखने में नहीं आई थीं। नूह ने ख़ुदा का ख़ौफ़ मान कर एक नाव बनाई ताकि उस का ख़ानदान बच जाए। यूँ उस ने अपने ईमान के ज़रीए दुनिया को मुजरिम क़रार दिया और उस रास्तबाज़ी का वारिस बन गया जो ईमान से हासिल होती है।
\s5
\v 8 यह ईमान का काम था कि अब्राहम ने ख़ुदा की सुनी जब उस ने उसे बुला कर कहा कि वह एक ऐसे मुल्क में जाए जो उसे बाद में मीरास में मिलेगा। हाँ, वह अपने मुल्क को छोड़ कर रवाना हुआ, हालाँकि उसे मालूम न था कि वह कहाँ जा रहा है।
\v 9 ईमान के ज़रीए वह वादा किए हुए मुल्क में अजनबी की हैसियत से रहने लगा। वह खेमों में रहता था और इसी तरह इज़्हाक़ और या'क़ूब भी जो उस के साथ उसी वादे के वारिस थे।
\v 10 क्यूँकि अब्राहम उस शहर के इन्तिज़ार में था जिस की मज़बूत बुनियाद है और जिस का नक्शा बनाने और तामीर करने वाला ख़ुद ख़ुदा है।
\s5
\v 11 यह ईमान का काम था कि अब्राहम बाप बनने के क़ाबिल हो गया, हालाँकि वह बुढ़ापे की वजह से बाप नहीं बन सकता था। इसी तरह सारा भी बच्चे जन नहीं सकती थी। लेकिन अब्राहम समझता था कि ख़ुदा जिस ने वादा किया है वफ़ादार है।
\v 12 अगरचे अब्राहम तक़रीबन मर चुका था तो भी उसी एक शख़्स से बेशुमार औलाद निकली, तादाद में आसमान पर के सितारों और साहिल पर की रेत के ज़र्रों के बराबर।
\s5
\v 13 यह तमाम लोग ईमान रखते रखते मर गए। उन्हें वह कुछ न मिला जिस का वादा किया गया था। उन्हों ने उसे सिर्फ़ दूर ही से देख कर ख़ुश हुए|
\v 14 जो इस क़िस्म की बातें करते हैं वह ज़ाहिर करते हैं कि हम अब तक अपने वतन की तलाश में हैं।
\s5
\v 15 अगर उन के ज़हन में वह मुल्क होता जिस से वह निकल आए थे तो वह अब भी वापस जा सकते थे।
\v 16 इस के बजाए वह एक बेहतर मुल्क यानी एक आसमानी मुल्क की तमन्ना कर रहे थे। इस लिए ख़ुदा उन का ख़ुदा कहलाने से नहीं शर्माता, क्यूँकि उस ने उन के लिए एक शहर तैयार किया है।
\s5
\v 17 यह ईमान का काम था कि अब्राहम ने उस वक़्त इस्हाक़ को क़ुर्बानी के तौर पर पेश किया जब ख़ुदा ने उसे आज़माया। हाँ, वह अपने इकलौते बेटे को क़ुर्बान करने के लिए तैयार था अगरचे उसे ख़ुदा के वादे मिल गए थे
\v 18 कि “तेरी नस्ल इज़्हाक़ ही से क़ायम रहेगी।”
\v 19 अब्राहम ने सोचा, “ख़ुदा मुर्दों को भी ज़िन्दा कर सकता है,” और तबियत के लिहाज़ से उसे वाक़ई इज़्हाक़ मुर्दों में से वापस मिल गया।
\s5
\v 20 यह ईमान का काम था कि इज़्हाक़ ने आने वाली चीज़ों के लिहाज़ से याक़ूब और 'ऐसव को बरकत दी।
\v 21 यह ईमान का काम था कि याक़ूब ने मरते वक़्त यूसुफ़ के दोनों बेटों को बरकत दी और अपनी लाठी के सिरे पर टेक लगा कर ख़ुदा को सिज्दा किया।
\v 22 यह ईमान का काम था कि यूसुफ़ ने मरते वक़्त यह पेशगोई की कि इस्राईली मिस्र से निकलेंगे बल्कि यह भी कहा कि निकलते वक़्त मेरी हड्डियाँ भी अपने साथ ले जाओ।
\s5
\v 23 यह ईमान का काम था कि मूसा के माँ-बाप ने उसे पैदाइश के बाद तीन माह तक छुपाए रखा, क्यूँकि उन्हों ने देखा कि वह ख़ूबसूरत है। वह बादशाह के हुक्म की ख़िलाफ़ वरज़ी करने से न डरे।
\v 24 यह ईमान का काम था कि मूसा ने परवान चढ़ कर इन्कार किया कि उसे फ़िरऔन की बेटी का बेटा ठहराया जाए।
\v 25 आरिज़ी तौर पर गुनाह से लुत्फ़अन्दोज़ होने के बजाए उस ने ख़ुदा की क़ौम के साथ बदसुलूकी का निशाना बनने को तर्जीह दी।
\v 26 वह समझा कि जब मेरी मसीह की ख़ातिर रुस्वाई की जाती है तो यह मिस्र के तमाम ख़ज़ानों से ज़्यादा क़ीमती है, क्यूँकि उस की आँखें आने वाले अज्र पर लगी रहीं।
\s5
\v 27 यह ईमान का काम था कि मूसा ने बादशाह के ग़ुस्से से डरे बग़ैर मिस्र को छोड़ दिया, क्यूँकि वह गोया अनदेखे ख़ुदा को लगातार अपनी आँखों के सामने रखता रहा।
\v 28 यह ईमान का काम था कि उस ने फ़सह की ईद मना कर हुक्म दिया कि ख़ून को चौखटों पर लगाया जाए ताकि हलाक करने वाला फ़रिश्ता उन के पहलौठे बेटों को न छुए।
\s5
\v 29 यह ईमान का काम था कि इस्राईली बहर-ए-क़ुल्ज़ुम में से यूँ गुज़र सके जैसे कि यह ख़ुश्क ज़मीन थी। जब मिस्रियों ने यह करने की कोशिश की तो वह डूब गए।
\v 30 यह ईमान का काम था कि सात दिन तक यरीहू शहर की फ़सील के गिर्द चक्कर लगाने के बाद पूरी दीवार गिर गई।
\v 31 यह भी ईमान का काम था कि राहब फ़ाहिशा अपने शहर के बाक़ी नाफ़रमान रहने वालों के साथ हलाक न हुई, क्यूँकि उस ने इस्राईली जासूसों को सलामती के साथ ख़ुशआमदीद कहा था।
\s5
\v 32 मैं ज़्यादा क्या कुछ कहूँ? मेरे पास इतना वक़्त नहीं कि मैं जिदाऊन, बरक़, सम्सून, इफ़्ताह, दाऊद, समूएल और नबियों के बारे में सुनाता रहूँ।
\v 33 यह सब ईमान की वजह से ही कामयाब रहे। वह बादशाहियों पर ग़ालिब आए और इन्साफ़ करते रहे। उन्हें ख़ुदा के वादे हासिल हुए। उन्हों ने शेर बबरों के मुँह बन्द कर दिए
\v 34 और आग के भड़कते शोलों को बुझा दिया। वह तलवार की ज़द से बच निकले। वह कमज़ोर थे लेकिन उन्हें ताक़त हासिल हुई। जब जंग छिड़ गई तो वह इतने ताक़तवर साबित हुए कि उन्हों ने ग़ैरमुल्की लश्करों को शिकस्त दी।
\s5
\v 35 ईमान रखने के ज़रिए से औरतों को उन के मुर्दा अज़ीज़ ज़िन्दा हालत में वापस मिले।
\v 36 कुछ को लान-तान और कोड़ों बल्कि ज़न्जीरों और क़ैद का भी सामना करना पड़ा।
\v 37 उनपर पथराव किया गया, उन्हें आरे से चीरा गया, उन्हें तलवार से मार डाला गया। कुछ को भेड़-बकरियों की खालों में घूमना फिरना पड़ा। ज़रूरतमन्द हालत में उन्हें दबाया और उन पर ज़ुल्म किया जाता रहा।
\v 38 दुनिया उन के लायक़ नहीं थी! वह वीरान जगहों में, पहाड़ों पर, ग़ारों और गड्ढों में आवारा फिरते रहे।
\s5
\v 39 इन सब को ईमान की वजह से अच्छी गवाही मिली। तो भी इन्हें वह कुछ हासिल न हुआ जिस का वादा ख़ुदा ने किया था।
\v 40 क्यूँकि उस ने हमारे लिए एक ऐसा मन्सूबा बनाया था जो कहीं बेहतर है। वह चाहता था कि यह लोग हमारे बग़ैर कामिलियत तक न पहुँचें।
\s5
\c 12
\v 1 ग़रज़, हम गवाहों के इतने बड़े लश्कर से घिरे रहते हैं, इस लिए आएँ, हम सब कुछ उतारें जो हमारे लिए रुकावट का ज़रिया बन गया है, हर गुनाह को जो हमें आसानी से उलझा लेता है। आएँ, हम साबितक़दमी से उस दौड़ में दौड़ते रहें जो हमारे लिए मुक़र्रर की गई है।
\v 2 और दौड़ते हुए हम ईसा' को तकते रहें, उसे जो ईमान का बानी भी है और उसे तक्मील तक पहुँचाने वाला भी। याद रहे कि गो वह ख़ुशी हासिल कर सकता था तो भी उस ने सलीबी मौत की शर्मनाक बेइज़्ज़ती की परवाह न की बल्कि उसे बर्दाश्त किया। और अब वह ख़ुदा के तख़्त के दहने हाथ जा बैठा है!
\v 3 उस पर ग़ौर करें जिस ने गुनाहगारों की इतनी मुख़ालफ़त बर्दाश्त की। फिर आप थकते थकते बेदिल नहीं हो जाएंगे।
\s5
\v 4 देखें, आप गुनाह से लड़े तो हैं, लेकिन अभी तक आप को जान देने तक इस की मुख़ालफ़त नहीं करनी पड़ी।
\v 5 क्या आप कलाम-ए-मुक़द्दस की यह हिम्मत बढ़ाने वाली बात भूल गए हैं जो आप को ख़ुदा के फ़र्ज़न्द ठहरा कर बयान करती है,
\v 6 क्यूँकि जो ख़ुदा को प्यारा है उस की वह हिदायत करता है,क्यूंकि जिसको फ़रज़ंद बनालेता है उसके कोड़े भी लगाता है
\s5
\v 7 अपनी मुसीबतों को इलाही तर्बियत समझ कर बर्दाश्त करें। इस में ख़ुदा आप से बेटों का सा सुलूक कर रहा है। क्या कभी कोई बेटा था जिस की उस के बाप ने तर्बियत न की?
\v 8 अगर आप की तर्बियत सब की तरह न की जाती तो इस का मतलब यह होता कि आप ख़ुदा के हक़ीक़ी फ़र्ज़न्द न होते बल्कि नाजायज़ औलाद।
\s5
\v 9 देखो, जब हमारे इन्सानी बाप ने हमारी तर्बियत की तो हम ने उस की इज़्ज़त की। अगर ऐसा है तो कितना ज़्यादा ज़रूरी है कि हम अपने रुहानी बाप के ताबे हो कर ज़िन्दगी पाएँ।
\v 10 हमारे इन्सानी बापों ने हमें अपनी समझ के मुताबिक़ थोड़ी देर के लिए तर्बियत दी। लेकिन ख़ुदा हमारी ऐसी तर्बियत करता है जो फ़ायदे का ज़रिया है और जिस से हम उस की क़ुद्दूसियत में शरीक होने के क़ाबिल हो जाते हैं।
\v 11 जब हमारी तर्बियत की जाती है तो उस वक़्त हम ख़ुशी मह्सूस नहीं करते बल्कि ग़म। लेकिन जिन की तर्बियत इस तरह होती है वह बाद में रास्तबाज़ी और सलामती की फ़सल काटते हैं।
\s5
\v 12 चुनाँचे अपने थकेहारे बाज़ुओं और कमज़ोर घुटनों को मज़बूत करें।
\v 13 अपने रास्ते चलने के क़ाबिल बना दें ताकि जो अज़्व लंगड़ा है उस का जोड़ उतर न जाए
\s5
\v 14 सब के साथ मिल कर सुलह-सलामती और क़ुद्दूसियत के लिए जिद्द-ओ-जह्द करते रहें, क्यूँकि जो पाक नहीं है वह ख़ुदावन्द को कभी नहीं देखेगा।
\v 15 इस पर ध्यान देना कि कोई ख़ुदा के फ़ज़ल से महरूम न रहे। ऐसा न हो कि कोई कड़वी जड़ फूट निकले और बढ़ कर तक्लीफ़ का ज़रिया बन जाए और बहुतों को नापाक कर दे।
\v 16 ग़ौर करें कि कोई भी ज़िनाकार या 'ऐसव जैसा दुनियावी शख़्स न हो जिस ने एक ही खाने के बदले अपने वह मौरूसी हुक़ूक़ बेच डाले जो उसे बड़े बेटे की हैसियत से हासिल थे।
\v 17 आप को भी मालूम है कि बाद में जब वह यह बरकत विरासत में पाना चाहता था तो उसे रद्द किया गया। उस वक़्त उसे तौबा का मौक़ा न मिला हालाँकि उस ने आँसू बहा बहा कर यह बरकत हासिल करने की कोशिश की।
\s5
\v 18 आप उस तरह ख़ुदा के हुज़ूर नहीं आए जिस तरह इस्राईली जब वह सीना पहाड़ पर पहुँचे, उस पहाड़ के पास जिसे छुआ जा सकता था। वहाँ आग भड़क रही थी, अंधेरा ही अंधेरा था और आँधी चल रही थी।
\v 19 जब नरसिंगे की आवाज़ सुनाई दी और ख़ुदा उन से हमकलाम हुआ तो सुनने वालों ने उस से गुज़ारिश की कि हमें ज़्यादा कोई बात न बता।
\v 20 क्यूँकि वह यह हुक्म बर्दाश्त नहीं कर सकते थे कि “अगर कोई जानवर भी पहाड़ को छू ले तो उसपर पथराव करना है।”
\v 21 यह मन्ज़र इतना डरावना था कि मूसा ने कहा, “मैं ख़ौफ़ के मारे काँप रहा हूँ।”
\s5
\v 22 नहीं, आप सिय्यून पहाड़ के पास आ गए हैं, यानी ज़िन्दा ख़ुदा के शहर आसमानी यरूशलम के पास। आप बेशुमार फ़रिश्तों और जश्न मनाने वाली जमाअत के पास आ गए हैं,
\v 23 उन पहलौठों की जमाअत के पास जिन के नाम आसमान पर दर्ज किए गए हैं। आप तमाम इन्सानों के मुन्सिफ़ ख़ुदा के पास आ गए हैं और कामिल किए गए रास्तबाज़ों की रूहों के पास।
\v 24 नेज़ आप नए अह्द के बीच ईसा' के पास आ गए हैं और उस छिड़के गए ख़ून के पास जो हाबिल के ख़ून की तरह बदला लेने की बात नहीं करता बल्कि एक ऐसी मुआफ़ी देता है जो कहीं ज़्यादा असरदार है।
\s5
\v 25 चुनाँचे ख़बरदार रहें कि आप उस की सुनने से इन्कार न करें जो इस वक़्त आप से हमकलाम हो रहा है। क्यूँकि अगर इस्राईली न बचे जब उन्हों ने दुनियावी पैग़म्बर मूसा की सुनने से इन्कार किया तो फिर हम किस तरह बचेंगे अगर हम उस की सुनने से इन्कार करें जो आसमान से हम से हमकलाम होता है।
\v 26 जब ख़ुदा सीना पहाड़ पर से बोल उठा तो ज़मीन काँप गई, लेकिन अब उस ने वादा किया है, “एक बार फिर मैं न सिर्फ़ ज़मीन को हिला दूँगा बल्कि आसमान को भी।”
\s5
\v 27 “एक बार फिर” के अल्फ़ाज़ इस तरफ़ इशारा करते हैं कि पैदा की गई चीज़ों को हिला कर दूर किया जाएगा और नतीजे में सिर्फ़ वह चीज़ें क़ायम रहेंगी जिन्हें हिलाया नहीं जा सकता।
\v 28 चुनाँचे आएँ, हम शुक्रगुज़ार हों। क्यूँकि हमें एक ऐसी बादशाही हासिल हो रही है जिसे हिलाया नहीं जा सकता। हाँ, हम शुक्रगुज़ारी की इस रूह में एहतिराम और ख़ौफ़ के साथ ख़ुदा की पसन्दीदा इबादत करें,
\v 29 क्यूँकि हमारा ख़ुदा हक़ीक़तन राख कर देने वाली आग है।
\s5
\c 13
\v 1 एक दूसरे से भाइयों की सी मुहब्बत रखते रहें।
\v 2 मेहमान-नवाज़ी मत भूलना, क्यूँकि ऐसा करने से कुछ ने अनजाने तौर पर फ़रिश्तों की मेहमान-नवाज़ी की है।
\s5
\v 3 जो क़ैद में हैं, उन्हें यूँ याद रखना जैसे आप ख़ुद उन के साथ क़ैद में हों। और जिन के साथ बदसुलूकी हो रही है उन्हें यूँ याद रखना जैसे आप से यह बदसुलूकी हो रही हो।
\v 4 ज़रूरी है कि सब के सब मिली हुई ज़िन्दगी का एहतिराम करें। शौहर और बीवी एक दूसरे के वफ़ादार रहें, क्यूँकि ख़ुदा ज़िनाकारों और शादी का बंधन तोड़ने वालों की अदालत करेगा।
\s5
\v 5 आप की ज़िन्दगी पैसों के लालच से आज़ाद हो। उसी पर इकतिफ़ा करें जो आप के पास है, क्यूँकि ख़ुदा ने फ़रमाया है, “मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, मैं तुझे कभी तर्क नहीं करूँगा।”
\v 6 इस लिए हम यक़ीन से कह सकते हैं कि “ख़ुदावन्द मेरा मददगार है, मैं ख़ौफ़ न करूंगा इन्सान मेरा क्या करेगा ?”
\s5
\v 7 अपने राहनुमाओं को याद रखें जिन्हों ने आप को ख़ुदा का कलाम सुनाया। इस पर ग़ौर करें कि उन के चाल-चलन से कितनी भलाई पैदा हुई है, और उन के ईमान के नमूने पर चलें।
\v 8 ईसा' मसीह कल और आज और हमेशा तक यक्साँ है।
\s5
\v 9 तरह तरह की और बेगाना तालीमात आप को इधर उधर न भटकाएँ। आप तो ख़ुदा के फ़ज़ल से ताक़त पाते हैं और इस से नहीं कि आप मुख़्तलिफ़ खानों से पर्हेज़ करते हैं। इस में कोई ख़ास फ़ायदा नहीं है।
\v 10 हमारे पास एक ऐसी क़ुर्बानगाह है जिस की क़ुर्बानी खाना मुलाक़ात के ख़ेमे में ख़िदमत करने वालों के लिए मना है।
\v 11 क्यूँकि अगरचे इमाम-ए-आज़म जानवरों का ख़ून गुनाह की क़ुर्बानी के तौर पर पाक तरीन कमरे में ले जाता है, लेकिन उन की लाशों को ख़ेमागाह के बाहर जलाया जाता है।
\s5
\v 12 इस वजह से ईसा' को भी शहर के बाहर सलीबी मौत सहनी पड़ी ताकि क़ौम को अपने ख़ून से ख़ास -ओ-पाक करे।
\v 13 इस लिए आएँ, हम ख़ेमागाह से निकल कर उस के पास जाएँ और उस की बेइज़्ज़ती में शरीक हो जाएँ।
\v 14 क्यूँकि यहाँ हमारा कोई क़ायम रहने वाला शहर नहीं है बल्कि हम आने वाले शहर की शदीद आरजू रखते हैं।
\s5
\v 15 चुनाँचे आएँ, हम ईसा' के वसीले से ख़ुदा को हम्द-ओ-सना की क़ुर्बानी पेश करें, यानी हमारे होंटों से उस के नाम की तारीफ़ करने वाला फल निकले।
\v 16 नेज़, भलाई करना और दूसरों को अपनी बरकतों में शरीक करना मत भूलना, क्यूँकि ऐसी क़ुर्बानियाँ ख़ुदा को पसन्द हैं।
\v 17 अपने राहनुमाओं की सुनें और उन की बात मानें। क्यूँकि वह आप की देख-भाल करते करते जागते रहते हैं, और इस में वह ख़ुदा के सामने जवाबदेह हैं। उन की बात मानें ताकि वह ख़ुशी से अपनी ख़िदमत सरअन्जाम दें। वर्ना वह कराहते कराहते अपनी ज़िम्मादारी निभाएँगे, और यह आप के लिए मुफ़ीद नहीं होगा।
\s5
\v 18 हमारे लिए दुआ करें, गरचे हमें यक़ीन है कि हमारा ज़मीर साफ़ है और हम हर लिहाज़ से अच्छी ज़िन्दगी गुज़ारने के ख़्वाहिशमन्द हैं।
\v 19 मैं ख़ासकर इस पर ज़ोर देना चाहता हूँ कि आप दु'आ करें कि ख़ुदा मुझे आप के पास जल्द वापस आने की तौफ़ीक़ बख़्शे।
\s5
\v 20 अब सलामती का ख़ुदा जो अबदी 'अह्द के ख़ून से हमारे ख़ुदावन्द और भेड़ों के अज़ीम चरवाहे ईसा' को मुर्दों में से वापस लाया
\v 21 वह आप को हर अच्छी चीज़ से नवाज़े ताकि आप उस की मर्ज़ी पूरी कर सकें। और वह ईसा' मसीह के ज़रीए हम में वह कुछ पैदा करे जो उसे पसन्द आए। उस का जलाल शुरू से हमेशा तक होता रहे! आमीन।
\s5
\v 22 भाइयों! मेहरबानी करके नसीहत की इन बातों पर सन्जीदगी से ग़ौर करें, क्यूँकि मैंने आप को सिर्फ़ चन्द अल्फ़ाज़ लिखे हैं।
\v 23 यह बात आप के इल्म में होनी चाहिए कि हमारे भाई तीमुथियुस को रिहा कर दिया गया है। अगर वह जल्दी पहुँचे तो उसे साथ ले कर आप से मिलने आऊँगा।
\s5
\v 24 अपने तमाम राहनुमाओं और तमाम मुक़द्दसीन को मेरा सलाम कहना। इटली के ईमानदार आप को सलाम कहते हैं।
\v 25 ख़ुदा का फ़ज़ल आप सब के साथ रहे।

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60-JAS.usfm Normal file
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\id JAS
\ide UTF-8
\h या'क़ूब का 'आम ख़त
\toc1 या'क़ूब का 'आम ख़त
\toc2 या'क़ूब का 'आम ख़त
\toc3 jas
\mt1 या'क़ूब का 'आम ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 ख़ुदा के और ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह के बन्दे या'क़ूब की तरफ़ से उन बारह ईमानदारों के क़बीलों को जो जगह-ब-जगह रहते हैं सलाम पहुँचे।
\v 2 ऐ, मेरे भाइयो जब तुम तरह तरह की आज़माइशों में पड़ो।
\v 3 तो इसको ये जान कर कमाल ख़ुशी की बात समझना कि तुम्हारे ईमान की आज़माइश सब्र पैदा करती है।
\s5
\v 4 और सब्र को अपना पूरा काम करने दो ताकि तुम पूरे और कामिल हो जाओ और तुम में किसी बात की कमी न रहे।
\v 5 लेकिन अगर तुम में से किसी में हिकमत की कमी हो तो ख़ुदा से माँगे जो बग़ैर मलामत किए सब को बहुतायत के साथ देता है। उसको दी जाएगी।
\s5
\v 6 मगर ईमान से माँगे और कुछ शक न करे क्यूँकि शक करने वाला समुन्दर की लहरों की तरह होता है जो हवा से बहती और उछलती हैं।
\v 7 ऐसा आदमी ये न समझे कि मुझे ख़ुदावन्द से कुछ मिलेगा।
\v 8 वो शख़्स दो दिला है और अपनी सब बातों में बे'क़याम।
\s5
\v 9 अदना भाई अपने आ'ला मर्तबे पर फ़ख्र करे।
\v 10 और दौलतमन्द अपनी अदना हालत पर इसलिए कि घास के फ़ूलों की तरह जाता रहेगा।
\v 11 क्यूँकि सूरज निकलते ही सख़्त धूप पड़ती और घास को सुखा देती है और उसका फ़ूल गिर जाता है और उसकी ख़ुबसूरती जाती रहती है इस तरह दौलतमन्द भी अपनी राह पर चलते चलते ख़ाक में मिल जाएगा।
\s5
\v 12 मुबारक वो शख़्स है जो आज़माइश की बर्दाश्त करता है क्यूँकि जब मक़बूल ठहरा तो ज़िन्दगी का वो ताज हासिल करेगा जिसका ख़ुदावन्द ने अपने मुहब्बत करने वालों से वा'दा किया है
\v 13 जब कोई आज़माया जाए तो ये न कहे कि मेरी आज़माइश ख़ुदा की तरफ़ से होती है क्यूँ कि न तो ख़ुदा बदी से आज़माया जा सकता है और न वो किसी को आज़माता है।
\s5
\v 14 हाँ हर शख़्स अपनी ही ख़्वाहिशों में खिंचकर और फ़ँस कर आज़माया जाता है।
\v 15 फिर ख़्वाहिश हामिला हो कर गुनाह को पैदा करती है और गुनाह जब बढ़ गया तो मौत पैदा करता है।
\v 16 ऐ, मेरे प्यारे भाइयों धोका न खाना।
\s5
\v 17 हर अच्छी बख़्शिश और कामिल इनाम ऊपर से है और नूरों के बाप की तरफ़ से मिलता है जिस में न कोई तब्दीली हो सकती है और न गरदिश के वजह से उस पर साया पड़ता है।
\v 18 उसने अपनी मर्ज़ी से हमें कलाम-ऐ-हक़ के वसीले से पैदा किया ताकि उसकी मुख़ालिफत में से हम एक तरह के फ़ल हो ।
\s5
\v 19 ऐ, मेरे प्यारे भाइयो ये बात तुम जानते हो; पस हर आदमी सुनने में तेज़ और बोलने में धीमा और क़हर में धीमा हो।
\v 20 क्यूँकि इन्सान का क़हर ख़ुदा की रास्तबाज़ी का काम नहीं करता।
\v 21 इसलिए सारी नजासत और बदी की गंदगी को दूर करके उस कलाम को नरमदिली से क़ुबूल कर लो जो दिल में बोया गया और तुम्हारी रूहों को नजात दे सकता है।
\s5
\v 22 लेकिन कलाम पर अमल करने वाले बनो, न महज़ सुनने वाले जो अपने आपको धोका देते हैं।
\v 23 क्यूँकि जो कोई कलाम का सुनने वाला हो और उस पर अमल करने वाला न हो वो उस शख़्स की तरह है जो अपनी क़ुदरती सूरत आइँना में देखता है।
\v 24 इसलिए कि वो अपने आप को देख कर चला जाता और भूल जाता है कि मैं कैसा था।
\v 25 लेकिन जो शख़्स आज़ादी की कामिल शरी'अत पर ग़ौर से नज़र करता रहता है वो अपने काम में इसलिए बर्कत पाएगा कि सुनकर भूलता नहीं बल्कि अमल करता है।
\s5
\v 26 अगर कोई अपने आपको दीनदार समझे और अपनी ज़बान को लगाम न दे बल्कि अपने दिल को धोका दे तो उसकी दीनदारी बातिल है।
\v 27 हमारे ख़ुदा और बाप के नज़दीक ख़ालिस और बेऐब दीनदारी ये है कि यतीमों और बेवाओं की मुसीबत के वक़्त उनकी ख़बर लें; और अपने आप को दुनिया से बे'दाग़ रख़ें।
\s5
\c 2
\v 1 ऐ, मेरे भाइयो; हमारे ख़ुदावन्द ज़ुल्जलाल 'ईसा' मसीह का ईमान तुम पर तरफ़दारी के साथ न हो।
\v 2 क्यूँकि अगर एक शख़्स तो सोने की अँगूठी और 'उम्दा पोशाक पहने हुए तुम्हारी जमात में आए और एक ग़रीब आदमी मैले कुचैले पहने हुए आए।
\v 3 और तुम उस 'उम्दा पोशाक वाले का लिहाज़ कर के कहो तू यहाँ अच्छी जगह बैठ और उस ग़रीब शख़्स से कहो तू वहाँ खड़ा रह या मेरे पाँव की चौकी के पास बैठ।
\v 4 तो क्या तुम ने आपस में तरफ़दारी न की और बद नियत मुन्सिफ़ न बने?।
\s5
\v 5 ऐ, मेरे प्यारे भाइयो सुनो; क्या ख़ुदा ने इस जहान के ग़रीबों को ईमान में दौलतमन्द और उस बादशाही के वारिस होने के लिए बरगुज़ीदा नहीं किया जिसका उसने अपने मुहब्बत करने वालों से वा'दा किया है।
\v 6 लेकिन तुम ने ग़रीब आदमी की बे'इज़्ज़ती की; क्या दौलतमन्द तुम पर ज़ुल्म नहीं करते और वही तुम्हें आदालतों में घसीट कर नहीं ले जाते।
\v 7 क्या वो उस बुज़ुर्ग नाम पर कुफ़्र नहीं बकते जिससे तुम नाम ज़द हो।
\s5
\v 8 तोभी अगर तुम इस लिखे हुए के मुताबिक़ अपने पड़ोसी से अपनी तरह मुहब्बत रखो उस बादशाही शरी'अत को पूरा करते हो तो अच्छा करते हो।
\v 9 लेकिन अगर तुम तरफ़दारी करते हो तो गुनाह करते हो और शरी'अत तुम को क़सूरवार ठहराती है
\s5
\v 10 क्यूँकि जिसने सारी शरी'अत पर अमल किया और एक ही बात में ख़ता की वो सब बातों में क़सूरवार ठहरा।
\v 11 इसलिए कि जिसने ये फ़रमाया कि ज़िना न कर उसी ने ये भी फ़रमाया कि ख़ून न कर पस अगर तू ने ज़िना तो न किया मगर ख़ून किया तोभी तू शरी'अत का इन्कार करने वाला ठहरा।
\s5
\v 12 तुम उन लोगों की तरह कलाम भी करो और काम भी करो जिनका आज़ादी की शरी'अत के मुवाफ़िक़ इन्साफ़ होगा।
\v 13 क्यूँकि जिसने रहम नहीं किया उसका इन्साफ़ बग़ैर रहम के होगा रहम इन्साफ़ पर ग़ालिब आता है।
\s5
\v 14 ऐ, मेरे भाइयो; अगर कोई कहे कि मैं ईमानदार हूँ मगर अमल न करता हो तो क्या फ़ाइदा? क्या ऐसा ईमान उसे नजात दे सकता है।
\v 15 अगर कोई भाई या बहन नंगे हो और उनको रोज़ाना रोटी की कमी हो।
\v 16 और तुम में से कोई उन से कहे कि सलामती के साथ जाओ गर्म और सेर रहो मगर जो चीज़ें तन के लिए जरूरी हैं वो उन्हें न दे तो क्या फ़ाइदा।
\v 17 इसी तरह ईमान भी अगर उसके साथ आ'माल न हों तो अपनी ज़ात से मुर्दा है।
\s5
\v 18 बल्कि कोई कह सकता है कि तू तो ईमानदार है और मैं अमल करने वाला हूँ अपना ईमान बग़ैर आ'माल के मुझे दिखा और मैं अपना ईमान आ'माल से तूझे दिखाऊँगा।
\v 19 तू इस बात पर ईमान रखता है कि ख़ुदा एक ही है ख़ैर अच्छा करता है शियातीन भी ईमान रखते और थरथराते हैं।
\v 20 मगर ऐ, निकम्मे आदमी क्या तू ये भी नहीं जानता कि ईमान बग़ैर आ'माल के बेकार है।
\s5
\v 21 जब हमारे बाप अब्रहाम ने अपने बेटे इज़हाक़ को क़ुर्बानगाह पर क़ुर्बान किया तो क्या वो आ'माल से रास्तबाज़ न ठहरा।
\v 22 पस तूने देख लिया कि ईमान ने उसके आ'माल के साथ मिल कर असर किया और आ'माल से ईमान कामिल हुआ।
\v 23 और ये लिखा पूरा हुआ कि अब्रहाम ख़ुदा पर ईमान लाया और ये उसके लिए रास्तबाज़ी गिना गया और वो ख़ुदा का दोस्त कहलाया।
\v 24 पस तुम ने देख लिया के इन्सान सिर्फ़ ईमान ही से नहीं बल्कि आ'माल से रास्तबाज़ ठहरता है।
\s5
\v 25 इसी तरह राहब फ़ाहिशा भी जब उसने क़ासिदों को अपने घर में उतारा और दूसरे रास्ते से रुख़्सत किया तो क्या काम से रास्तबाज़ न ठहरी।
\v 26 ग़रज़ जैसे बदन बग़ैर रूह के मुर्दा है वैसे ही ईमान भी बग़ैर आ'माल के मुर्दा है।
\s5
\c 3
\v 1 ऐ,मेरे भाइयो; तुम में से बहुत से उस्ताद न बनें क्यूँकि जानते हो कि हम जो उस्ताद हैं ज़्यादा सज़ा पाएँगे।
\v 2 इसलिए कि हम सब के सब अक्सर ख़ता करते हैं; कामिल शख़्स वो है जो बातों में ख़ता न करे वो सारे बदन को भी क़ाबू में रख सकता है;
\s5
\v 3 देखो हम अपने क़ाबू में करने के लिए घोड़ों के मुँह में लगाम देते हैं तो उनके सारे बदन को भी घुमा सकते हैं।
\v 4 और जहाज़ भी अगरचे बड़े बड़े होते हैं और तेज़ हवाओं से चलाए जाते हैं तोभी एक निहायत छोटी सी पतवार के ज़रिए माँझी की मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ घुमाए जाते हैं।
\s5
\v 5 इसी तरह जबान भी एक छोटा सा 'उज़्व है और बड़ी शेखी मारती है |देखो थोड़ी सी आग से कितने बड़े जंगल में आग लग जाती है |
\v 6 ज़बान भी एक आग है ज़बान हमारे आज़ा में शरारत का एक आ'लम है और सारे जिस्म को दाग़ लगाती है और दाइरा दुनिया को आग लगा देती है और जहन्नुम की आग से जलती रहती है।
\s5
\v 7 क्यूँकि हर क़िस्म के चौपाए और परिन्दे और कीड़े मकोड़े और दरयाई जानवर तो इन्सान के क़ाबू में आ सकते हैं और आए भी हैं।
\v 8 मगर ज़बान को कोई क़ाबू में नहीं कर सकता वो एक बला है जो कभी रुकती ही नहीं ज़हर-ए- क़ातिल से भरी हुई है।
\s5
\v 9 इसी से हम ख़ुदावन्द अपने बाप की हम्द करते हैं और इसी से आदमियों को जो ख़ुदा की सूरत पर पैदा हुए हैं बद्दुआ देते हैं।
\v 10 एक ही मुँह से मुबारक बाद और बद्दुआ निकलती है! ऐ मेरे भाइयो; ऐसा न होना चाहिए।
\s5
\v 11 क्या चश्में के एक ही मुँह से मीठा और खारा पानी निकलता है।
\v 12 ऐ, मेरे भाइयो! क्या अंजीर के दरख़्त में ज़ैतून और अँगूर में अंजीर पैदा हो सकते हैं? इसी तरह खारे चश्मे से मीठा पानी नहीं निकल सकता।
\s5
\v 13 तुम में दाना और फ़हीम कौन है? जो ऐसा हो वो अपने कामों को नेक चाल चलन के वसीले से उस हिल्म के साथ ज़ाहिर करे जो हिक्मत से पैदा होता है।
\v 14 लेकिन अगर तुम अपने दिल में सख़्त हसद और तफ़र्के रखते हो तो हक़ के खिलाफ़ न शेख़ी मारो न झूट बोलो।
\s5
\v 15 ये हिक्मत वो नहीं जो ऊपर से उतरती है बल्कि दुनियावी और नफ़सानी और शैतानी है।
\v 16 इसलिए कि जहाँ हसद और तफ़र्का होता है फ़साद और हर तरह का बुरा काम भी होता है।
\v 17 मगर जो हिक्मत ऊपर से आती है अव्वल तो वो पाक होती है फिर मिलनसार नर्मदिली और तरबियत पज़ीर रहम और अच्छे फलों से लदी हुई बेतरफ़दार और बे-रिया होती है।
\v 18 और सुलह करने वालों के लिए रास्तबाज़ी का फल सुलह के साथ बोया जाता है।
\s5
\c 4
\v 1 तुम में लड़ाइयां और झगड़े कहाँ से आ गए? क्या उन ख़्वाहिशों से नहीं जो तुम्हारे आज़ा में फ़साद करती हैं।
\v 2 तुम ख़्वाहिश करते हो ,और तुम्हें मिलता नहीं ,खून और हसद करते हो और कुछ हासिल नहीं कर सकते ; तुम लड़ते और झगड़ते हो |तुम्हें इसलिए नहीं मिलता कि मांगते नहीं |
\v 3 तुम मांगते हो और पाते नहीं इसलिए कि बुरी नियत से मांगते हो : ताकि अपनी ऐश-ओ-इशरत में ख़र्च करो |
\s5
\v 4 ऐ,बे ईमानी करने वालियों क्या तुम्हें नहीं मा'लूम कि दुनिया से दोस्ती रखना ख़ुदा से दुश्मनी करना है ? पस जो कोई दुनिया का दोस्त बनना चाहता है वो अपने आप को ख़ुदा का दुश्मन बनाता है।
\v 5 क्या तुम ये समझते हो कि किताब-ऐ- मुक़द्दस बे'फ़ाइदा कहती है? जिस पाक रूह को उसने हमारे अन्दर बसाया है क्या वो ऐसी आरज़ू करती है जिसका अन्जाम हसद हो।
\s5
\v 6 वो तो ज़्यादा तौफ़ीक़ बख़्शता है इसी लिए ये आया है कि ख़ुदा मग़रुरों का मुक़ाबला करता है मगर फ़िरोतनों को तौफ़ीक़ बख़्शता है।
\v 7 पस ख़ुदा के ताबे हो जाओ और इबलीस का मुक़ाबला करो तो वो तुम से भाग जाएगा।
\s5
\v 8 ख़ुदा के नज़दीक जाओ तो वो तुम्हारे नज़दीक आएगा; ऐ, गुनाहगारो अपने हाथों को साफ़ करो और ऐ, दो दिलो अपने दिलों को पाक करो।
\v 9 अफ़सोस करो और रोओ तुम्हारी हँसी मातम से बदल जाए और तुम्हारी ख़ुशी ऊदासी से।
\v 10 ख़ुदावन्द के सामने फ़िरोतनी करो, वो तुम्हें सरबलन्द करेगा।
\s5
\v 11 ऐ, भाइयो एक दूसरे की बुराई न करो जो अपने भाई की बुराई करता या भाई पर इल्ज़ाम लगाता है; वो शरी'अत की बुराई करता और शरी'अत पर इल्ज़ाम लगाता है और अगर तू शरी'अत पर इल्ज़ाम लगाता है तो शरी'अत पर अमल करने वाला नही़ं बल्कि उस पर हाकिम ठहरा।
\v 12 शरी'अत का देने वाला और हाकिम तो एक ही है जो बचाने और हलाक़ करने पर क़ादिर है तू कौन है जो अपने पड़ोसी पर इल्ज़ाम लगाता है।
\s5
\v 13 तुम जो ये कहते हो कि हम आज या कल फ़लाँ शहर में जा कर वहाँ एक बरस ठहरेंगे और सौदागरी करके नफ़ा उठाएँगे।
\v 14 और ये जानते नहीं कि कल क्या होगा; ज़रा सुनो तो; तुम्हारी ज़िन्दगी चीज़ ही क्या है? बुख़ारात का सा हाल है अभी नज़र आए अभी ग़ायब हो गए।
\s5
\v 15 यूँ कहने की जगह तुम्हें ये कहना चाहिए अगर ख़ुदावन्द चाहे तो हम ज़िन्दा भी रहेंगे और ये और वो काम भी करेंगे।
\v 16 मगर अब तुम अपनी शेखी पर फ़ख़्र करते हो; ऐसा सब फ़ख़्र बुरा है।
\v 17 पस जो कोई भलाई करना जानता है और नहीं करता उसके लिए ये गुनाह है।
\s5
\c 5
\v 1 ऐ, दौलतमन्दो ज़रा सुनो; तुम अपनी मुसीबतों पर जो आने वाली हैं रोओ; और मातम करो;।
\v 2 तुम्हारा माल बिगड़ गया और तुम्हारी पोशाकों को कीड़ा खा गया।
\v 3 तुम्हारे सोने चाँदी को ज़ँग लग गया और वो ज़ँग तुम पर गवाही देगा और आग की तरह तुम्हारा गोश्त खाएगा; तुम ने आख़िर ज़माने में ख़ज़ाना जमा किया है।
\s5
\v 4 देखो जिन मज़दूरों ने तुम्हारे खेत काटे उनकी वो मज़दूरी जो तुम ने धोका करके रख छोड़ी चिल्लाती है और फ़सल काटने वालों की फ़रियाद रब्ब'उल अफ़्वाज के कानों तक पहुँच गई है।
\v 5 तुम ने ज़मीन पर ऐश'ओ इशरत की और मज़े उड़ाए तुम ने अपने दिलों को ज़बह के दिन मोटा ताज़ा किया।
\v 6 तुम ने रास्तबाज़ शख़्स को क़ुसूरवार ठहराया और क़त्ल किया वो तुम्हारा मुक़ाबला नहीं करता।
\s5
\v 7 पस, ऐ भाइयो; ख़ुदावन्द की आमद तक सब्र करो देखो किसान ज़मीन की क़ीमती पैदावार के इन्तज़ार में पहले और पिछले बारिश के बरसने तक सब्र करता रहता है।
\v 8 तुम भी सब्र करो और अपने दिलों को मज़बूत रखो ,क्यूँकि खुदावंद की आमद क़रीब है |
\s5
\v 9 ऐ,भाइयो! एक दूसरे की शिकायत न करो ताकि तुम सज़ा न पाओ, देखो मुन्सिफ़ दरवाज़े पर खड़ा है।
\v 10 ऐ, भाइयो! जिन नबियों ने ख़ुदावन्द के नाम से कलाम किया उनको दु:ख उठाने और सब्र करने का नमूना समझो।
\v 11 देखो सब्र करने वालों को हम मुबारक कहते हैं; तुम ने अय्यूब के सब्र का हाल तो सुना ही है और ख़ुदावन्द की तरफ़ से जो इसका अन्जाम हुआ उसे भी मा'लूम कर लिया जिससे ख़ुदावन्द का बहुत तरस और रहम ज़ाहिर होता है।
\s5
\v 12 मगर ऐ, मेरे भाइयो; सब से बढ़कर ये है क़सम न खाओ, न आसमान की न ज़मीन की न किसी और चीज़ की बल्कि हाँ की जगह हाँ करो और नहीं की जगह नहीं ताकि सज़ा के लायक़ न ठहरो।
\s5
\v 13 अगर तुम में कोई मुसीबत ज़दा हो तो दुआ करे, अगर ख़ुश हो तो हम्द के गीत गाए।
\v 14 अगर तुम में कोई बीमार हो तो कलीसिया के बुज़ुर्गों को बुलाए और वो ख़ुदावन्द के नाम से उसको तेल मलकर उसके लिए दु:आ करें।
\v 15 जो दु:आ ईमान के साथ होगी उसके ज़रि'ए बीमार बच जाएगा; और ख़ुदावन्द उसे उठा कर खड़ा करेगा, और अगर उसने गुनाह किए हों, तो उनकी भी मु'आफ़ी हो जाएगी।
\s5
\v 16 पस तुम आपस में एक दूसरे से अपने अपने गुनाहों का इक़रार करो और एक दूसरे के लिए दु:आ करो ताकि शिफ़ा पाओ रास्तबाज़ की दु:आ के असर से बहुत कुछ हो सकता है।
\v 17 एलियाह हमारी तरह इन्सान था, उसने बड़े जोश से दु:आ की कि पानी न बरसे, चुनाँचे साढ़े तीन बरस तक ज़मीन पर पानी न बरसा।
\v 18 फिर उसी ने दु:आ की तो आसमान से पानी बरसा और ज़मीन में पैदावार हुई।
\s5
\v 19 ऐ, मेरे भाइयों! अगर तुम में कोई राहे हक़ से गुमराह हो जाए और कोई उसको वापस लाए।
\v 20 तो वो ये जान ले कि जो कोई किसी गुनाहगार को उसकी गुमराही से फेर लाएगा; वो एक जान को मौत से बचा लेगा और बहुत से गुनाहों पर पर्दा डालेगा।

167
61-1PE.usfm Normal file
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\id 1PE
\ide UTF-8
\h पतरस का पहला 'आम ख़त
\toc1 पतरस का पहला 'आम ख़त
\toc2 पतरस का पहला 'आम ख़त
\toc3 1pe
\mt1 पतरस का पहला 'आम ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 पतरस की तरफ़ से जो ईसा' मसीह का रसूल है, उन मुसाफ़िरों के नाम ख़त ,जो पुन्तुस , गलतिया ,क्प्प्दुकिया ,असिया और बीथुइनिया सूबे में जा बजा रहते है ,
\v 2 और ख़ुदा बाप के 'इल्म-ए-साबिक़ के मुवाफ़िक़ रूह के पाक करने से फ़रमाँबरदार होने और ईसा' मसीह का ख़ून छिड़के जाने के लिए बरगुज़ीदा हुए है| फज़ल और इत्मीनान तुम्हें ज़्यादा हासिल होता रहे|
\s5
\v 3 हमारे ख़ुदावंद ईसा' मसीह के ख़ुदा और बाप की हम्द हो, जिसने ईसा' मसीह के मुर्दों में से जी उठने के ज़रिये, अपनी बड़ी रहमत से हमे जिन्दा उम्मीद के लिए नए सिरे से पैदा किया,
\v 4 ताकि एक ग़ैरफ़ानी और बेदाग़ और लाज़वाल मीरास को हासिल करें ;
\v 5 वो तुम्हारे वास्ते [जो ख़ुदा की क़ुदरत से ईमांन के वसीले से , उस नजात के लिए जो आख़री वक़्त में ज़ाहिर होने को तैयार है, हिफ़ाज़त किये जाते हो ] आसमान पर महफ़ूज़ है |
\s5
\v 6 इस की वजह से तुम ख़ुशी मनाते हो,अगरचे अब चंद रोज़ के लिये ज़रूरत की वजह से, तरह तरह की आज़्माइशों की वजह से ग़मज़दा हो ;
\v 7 और ये इस लिए कि तुम्हारा आज़माया हुआ ईमान, जो आग से आज़माए हुए फ़ानी सोने से भी बहुत ही बेशक़ीमत है, ईसा' मसीह के ज़हुर के वक़्त तारीफ़ और जलाल और 'इज़्ज़त का ज़रिया ठहरे|
\s5
\v 8 उससे तुम अनदेखी मुहब्बत रखते हो और अगरचे इस वक़्त उसको नहीं देखते तो भी उस पर ईमान लाकर ऐसी ख़ुशी मानाते हो जो बयान से बाहर और जलाल से भरी है;
\v 9 और अपने ईमान का मक़सद या'नी रूहों की नजात हासिल करते हो|
\v 10 इसी नजात के बारे में नबियों ने बड़ी तलाश और तहक़ीक़ की, जिन्होंने उस फ़ज़ल के बारे में जो तुम पर होने को था नबूव्वत की|
\s5
\v 11 उन्होंने इस बात की तहक़ीक़ की कि मसीह का रूह जो उस में था,और पहले मसीह के दुखों और उनके ज़िन्दा हो उठने के बा'द उसके के जलाल की गवाही देता था, वो कौन से और कैसे वक़्त की तरफ़ इशारा करता था|
\v 12 उन पर ये ज़ाहिर किया गया कि वो न अपनी बल्कि तुम्हारी ख़िदमत के लिए ये बातें कहा करते थे,जिनकी ख़बर अब तुम को उनके ज़रिये मिली जिन्होंने रूह-उल-क़ुद्दुस के वसीले से, जो आसमान पर से भेजा गया तुम को ख़ुशख़बरी दी; और फ़रिश्ते भी इन बातों पर गौर से नज़र करने के मुश्ताक़ हैं|
\s5
\v 13 इस वास्ते अपनी 'अक़्ल की कमर बाँधकर और होशियार होकर,उस फ़ज़ल की पूरी उम्मीद रख्खो जो ईसा' मसीह के ज़हूर के वक़्त तुम पर होने वाला है|
\v 14 और फ़रमाँबरदार बेटा होकर अपनी जहालत के ज़माने की पुरानी ख़्वाहिशों के ताबे' न बनो |
\s5
\v 15 बल्कि जिस तरह तुम्हारा बुलानेवाला पाक, है, उसी तरह तुम भी अपने सारे चाल-चलन में पाक बनो;
\v 16 क्योंकि पाक कलाम में लिखा है, "पाक हो, इसलिए कि मैं पाक हूँ |"
\v 17 और जब कि तुम 'बाप' कह कर उससे दु'आ करते हो, जो हर एक के काम के मुवाफिक़ बग़ैर तरफ़दारी के इन्साफ करता है, तो अपनी मुसाफ़िरत का ज़माना ख़ौफ के साथ गुज़ारो |
\s5
\v 18 क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हारा निकम्मा चाल-चलन जो बाप-दादा से चला आता था, उससे तुम्हारी ख़लासी फ़ानी चीज़ों या'नी सोने चाँदी के ज़रि'ए से नहीं हुई;
\v 19 बल्कि एक बे'ऐब और बेदाग़ बर्रे, या'नी मसीह के बेश क़ीमत खून से |
\s5
\v 20 उसका 'इल्म तो दुनियाँ बनाने से पहले से था, मगर ज़हूर आख़िरी ज़माने में तुम्हारी ख़ातिर हुआ,
\v 21 कि उस के वसीले से ख़ुदा पर ईमान लाए हो, जिसने उस को मुर्दों में से जिलाया और जलाल बख़्शा ताकि तुम्हारा ईमान और उम्मीद ख़ुदा पर हो |
\s5
\v 22 चूँकि तुम ने हक़ की ताबे 'दारी से अपने दिलों को पाक किया है,जिससे भाइयों की बे'रिया मुहब्बत पैदा हुई, इसलिए दिल-ओ-जान से आपस में बहुत मुहब्बत रख्खो|
\v 23 क्योंकि तुम मिटने वाले बीज से नही बल्कि ग़ैर फ़ानी से ख़ुदा के कलाम के वसीले से, जो जिंदा और क़ायम है , नए सिरे से पैदा हुए हो |
\s5
\v 24 चुनाँचे हर आदमी घास की तरह है, और उसकी सारी शान-ओ-शौकत घास के फूल की तरह | घास तो सूख जाती है, और फूल गिर जाता है|
\v 25 लेकिन ख़ुदावंद का कलाम हमेशा तक क़ायम रहेगा | ये वही ख़ुशख़बरी का कलाम है जो तुम्हें सुनाया गया था|
\s5
\c 2
\v 1 पस हर तरह की बद्ख़्वाही और सारे फ़रेब और रियाकारी और हसद और हर तरह की बदगोई को दूर करके,
\v 2 पैदाइशी बच्चों की तरह ख़ालिस रूहानी दूध के इंतज़ार में रहो, ताकि उसके ज़रि'ये से नजात हासिल करने के लिए बढ़ते जाओ,
\v 3 अगर तुम ने ख़ुदावन्द के मेहरबान होने का मज़ा चखा है |
\s5
\v 4 उसके या'नी आदमियों के रद्द किये हुए ,पर ख़ुदा के चुने हुए और क़ीमती ज़िन्दा पत्थर के पास आकर,
\v 5 तुम भी ज़िन्दा पत्थरों की तरह रूहानी घर बनते जाते हो, ताकि काहिनों का मुक़द्दस फ़िरक़ा बनकर ऐसी रूहानी क़ुर्बानियाँ चढ़ाओ जो ईसा' मसीह के वसीले से ख़ुदा के नज़दीक मक़बूल होती है |
\s5
\v 6 चुनाँचे किताब-ए-मुक़द्दस में आया है : देखो, मैं सिय्युन में कोने के सिरे का चुना हुआ और क़ीमती पत्थर रखता हूँ; जो उस पर ईमान लाएगा हरगिज़ शर्मिन्दा न होगा|
\s5
\v 7 पस तुम ईमान लाने वालों के लिए तो वो क़ीमती है, मगर ईमान न लाने वालों के लिए जिस पत्थर को राजगीरों ने रद्द किया वही कोने के सिरे का पत्थर हो गया |
\v 8 और ठेस लगने का पत्थर और ठोकर खाने की चट्टान हुआ, क्योंकि वो नाफ़रमान होकर कलाम से ठोकर खाते हैं और इसी के लिए मुक़र्रर भी हुए थे |
\s5
\v 9 लेकिन तुम एक चुनी हुई नसल, शाही काहिनों का फ़िरक़ा, मुक़द्दस क़ौम, और ऐसी उम्मत हो जो ख़ुदा की ख़ास मिल्कियत है ताकि उसकी ख़ूबियाँ ज़ाहिर करो जिसने तुम्हें अंधेरे से अपनी 'अजीब रौशनी में बुलाया है |
\v 10 पहले तुम कोई उम्मत न थे मगर अब तुम ख़ुदा की उम्मत हो, तुम पर रहमत न हुई थी मगर अब तुम पर रहमत हुई |
\s5
\v 11 ऐ प्यारों ! मैं तुम्हारी मिन्नत करता हूँ कि तुम अपने आप को परदेसी और मुसाफ़िर जान कर, उन जिस्मानी ख़्वाहिशों से परहेज़ करो जो रूह से लड़ाई रखती हैं |"
\v 12 और ग़ैर-कौमों में अपना चाल-चलन नेक रख्खो, ताकि जिन बातों में वो तुम्हें बदकार जानकर तुम्हारी बुराई करते हैं, तुम्हारे नेक कामों को देख कर उन्ही की वजह से मुलाहिज़ा के दिन ख़ुदा की बड़ाई करें |
\s5
\v 13 ख़ुदावन्द की ख़ातिर इन्सान के हर एक इन्तिज़ाम के ताबे' रहो; बादशाह के इसलिए कि वो सब से बुज़ुर्ग है,
\v 14 और हाकिमों के इसलिए कि वो बदकारों को सज़ा और नेकोकारों की ता'रीफ़ के लिए उसके भेजे हुए हैं |
\v 15 क्योंकि ख़ुदा की ये मर्ज़ी है कि तुम नेकी करके नादान आदमियों की जहालत की बातों को बन्द कर दो |
\v 16 और अपने आप को आज़ाद जानो, मगर इस आज़ादी को बदी का पर्दा न बनाओ; बल्कि अपने आप को ख़ुदा के बन्दे जानो |
\v 17 सबकी 'इज़्ज़त करो, बिरादरी से मुहब्बत रख्खो, ख़ुदा से डरो, बादशाह की 'इज़्ज़त करो |
\s5
\v 18 ऐ नौकरों! बड़े ख़ौफ से अपने मालिकों के ताबे' रहो, न सिर्फ़ नेकों और हलीमों ही के बल्कि बद मिज़ाजों के भी |
\v 19 क्योंकि अगर कोई ख़ुदा के ख़याल से बेइन्साफ़ी के बा'इस दु:ख उठाकर तकलीफ़ों को बर्दाशत करे तो ये पसन्दीदा है |
\v 20 इसलिए कि अगर तुम ने गुनाह करके मुक्के खाए और सब्र किया, तो कौन सा फ़ख्र है? हाँ, अगर नेकी करके दुख पाते और सब्र करते हो, तो ये खुदा के नज़दीक पसन्दीदा है |
\s5
\v 21 और तुम इसी के लिए बुलाए गए हो, क्योंकि मसीह भी तुम्हारे वास्ते दुख उठाकर तुम्हें एक नमूना दे गया है ताकि उसके नक़्श-ए-क़दम पर चलो |
\v 22 न उसने गुनाह किया और न ही उसके मुँह से कोई मक्र की बात निकली,
\v 23 न वो गालियाँ खाकर गाली देता था और न दुख पाकर किसी को धमकाता था; बल्कि अपने आप को सच्चे इन्साफ़ करने वाले ख़ुदा के सुपुर्द करता था |
\s5
\v 24 वो आप हमारे गुनाहों को अपने बदन पर लिए हुए सलीब पर चढ़ गया, ताकि हम गुनाहों के ऐ'तबार से जिएँ; और उसी के मार खाने से तुम ने शिफ़ा पाई |
\v 25 अगर कोई कुछ कहे तो ऐसा कहे कि गोया ख़ुदा का कलाम है, अगर कोई खिदमत करे तो उस ताक़त के मुताबिक़ करे जो खुदा दे, ताकि सब बातों में ईसा' मसीह के वसीले से ख़ुदा का जलाल ज़ाहिर हो | जलाल और सल्तनत हमेशा से हमेशा उसी की है | आमीन |
\s5
\c 3
\v 1 ऐ बीवियों! तुम भी अपने शौहर के ताबे' रहो,
\v 2 इसलिए कि अगर कुछ उनमें से कलाम को न मानते हों, तोभी तुम्हारे पाकीज़ा चाल-चलन और ख़ौफ़ को देख कर बग़ैर कलाम के अपनी अपनी बीवी के चाल-चलन से ख़ुदा की तरफ खिंच जाएँ |
\s5
\v 3 और तुम्हारा सिंगार ज़ाहिरी न हो, या'नी सर गूँधना और सोने के ज़ेवर और तरह तरह के कपड़े पहनना,
\v 4 बल्कि तुम्हारी बातिनी और पोशीदा इंसानियत, हिल्म और नर्म मिज़ाज की ग़ुरबत की ग़ैरफानी आराइश से आरास्ता रहे, क्योंकि ख़ुदा के नज़दीक इसकी बड़ी क़द्र है |
\s5
\v 5 और अगले ज़माने में भी ख़ुदा पर उम्मीद रखनेवाली मुक़द्दस 'औरतें, अपने आप को इसी तरह संवारती और अपने अपने शौहर के ताबे' रहती थीं |
\v 6 चुनाँचे सारह अब्रहाम के हुक्म में रहती और उसे ख़ुदावन्द कहती थी | तुम भी अगर नेकी करो और किसी के डराने से न डरो, तो उसकी बेटियाँ हुईं |
\s5
\v 7 ऐ शौहरों! तुम भी बीवियों के साथ 'अक्लमन्दी से बसर करो, और 'औरत को नाज़ुक ज़र्फ़ जान कर उसकी 'इज़्ज़त करो, और यूँ समझो कि हम दोनों ज़िन्दगी की ने'मत के वारिस हैं, ताकि तुम्हारी दु'आएँ रुक न जाएँ |
\s5
\v 8 ग़रज़ सब के सब एक दिल और हमदर्द रहो, बिरादराना मुहब्बत रख्खो, नर्म दिल और फ़रोतन बनो |
\v 9 बदी के 'बदले बदी न करो और गाली के बदले गाली न दो, बल्कि इसके बर'अक्स बरकत चाहो, क्योंकि तुम बरकत के वारिस होने के लिए बुलाए गए हो |
\s5
\v 10 चुनाँचे "जो कोई ज़िन्दगी से खुश होना और अच्छे दिन देखना चाहे, वो ज़बान को बदी से और होंटों को मक्र की बात कहने से बाज़ रख्खे |
\v 11 बदी से किनारा करे और नेकी को 'अमल में लाए, सुलह का तालिब हो, और उसकी कोशिश में रहे |
\v 12 क्योंकि खुदावन्द की नज़र रास्तबाज़ों की तरफ़ है, और उसके कान उनकी दु'आ पर लगे हैं, मगर बदकार ख़ुदावन्द की निगाह में हैं |"
\s5
\v 13 अगर तुम नेकी करने में सरगर्म हो, तो तुम से बदी करनेवाला कौन है?
\v 14 और अगर रास्तबाज़ी की ख़ातिर दुख सहो भी तो तुम मुबारक हो, न उनके डराने से डरो और न घबराओ;
\s5
\v 15 बल्कि मसीह को ख़ुदावन्द जानकर अपने दिलों में मुक़द्दस समझो; और जो कोई तुम से तुम्हारी उम्मीद की वजह पूछे, उसको जवाब देने के लिए हर वक़्त मुस्त'ईद रहो, मगर हिल्म और ख़ौफ़ के साथ |
\v 16 और नियत भी नेक रख्खो ताकि जिन बातों में तुम्हारी बदगोई होती है, उन्हीं में वो लोग शर्मिंदा हों जो तुम्हारे मसीही नेक चाल-चलन पर ला'न ता'न करतें हैं |
\v 17 क्योंकि अगर ख़ुदा की यही मर्ज़ी हो कि तुम नेकी करने की वज़ह से दुःख उठाओ, तो ये बदी करने की वज़ह से दुख उठाने से बेहतर है |
\s5
\v 18 इसलिए कि मसीह ने भी या'नी रास्तबाज़ ने नारास्तों के लिए, गुनाहों के बा'इस एक बार दुख उठाया ताकि हम को ख़ुदा के पास पहुँचाए; वो जिस्म के ऐ'तबार से मारा गया, लेकिन रूह के ऐ'तबार से तो ज़िन्दा किया गया |
\v 19 इसी में से उसने जा कर उन कैदी रूहों में मनादी की ,
\v 20 जो उस अगले ज़माने में नाफ़रमान थीं जब ख़ुदा नूह के वक़्त में तहम्मुल करके ठहरा रहा था और वो नाव तैयार हो रही थी, जिस पर सवार होकर थोड़े से आदमी या'नी आठ जानें पानी के वसीले से बचीं |
\s5
\v 21 और उसी पानी का मुशाबह भी या'नी बपतिस्मा, ईसा' मसीह के जी उठने के वसीले से अब तुम्हें बचाता है, उससे जिस्म की नजासत का दूर करना मुराद नहीं बल्कि ख़ालिस नियत से ख़ुदा का तालिब होना मुराद है |
\v 22 वो आसमान पर जाकर ख़ुदा की दाहनी तरफ बैठा है, और फ़रिश्ते और इख़्तियारात और कुदरतें उसके ताबे' की गई हैं |
\s5
\c 4
\v 1 पस जबकि मसीह ने जिस्म के ऐ'तिबार से दुःख उठाया, तो तुम भी ऐसे ही मिज़ाज इख़्तियार करके हथियारबन्द बनो; क्योंकि जिसने जिस्म के ऐ'तबार से दुख उठाया उसने गुनाह से छुटकारा पाया |
\v 2 ताकि आइन्दा को अपनी बाक़ी जिस्मानी ज़िन्दगी आदमियों की ख़्वाहिशों के मुताबिक़ न गुज़ारे बल्कि ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ |
\s5
\v 3 इस वास्ते कि ग़ैर- क़ौमों की मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ काम करने और शहवत परस्ती, बुरी ख़्वाहिशों, मयख़्वारी, नाचरंग, नशेबाज़ी और मकरूह बुत परस्ती में जिस क़दर हम ने पहले वक़्त गुज़ारा वही बहुत है |
\v 4 इस पर वो ताअ'ज्जुब करते हैं कि तुम उसी सख़्त बदचलनी तक उनका साथ नहीं देते और ला'न ता'न करते हैं,
\v 5 उन्हें उसी को हिसाब देना पड़ेगा जो ज़िन्दों और मुर्दों का इन्साफ़ करने को तैयार है |
\v 6 क्योंकि मुर्दों को भी ख़ुशख़बरी इसलिए सुनाई गई थी कि जिस्म के लिहाज़ से तो आदमियों के मुताबिक़ उनका इन्साफ़ हो, लेकिन रूह के लिहाज़ से ख़ुदा के मुताबिक़ ज़िन्दा रहें |
\s5
\v 7 सब चीज़ों का ख़ातिमा जल्द होने वाला है, पस होशियार रहो और दु'आ करने के लिए तैयार |
\v 8 सबसे बढ़कर ये है कि आपस में बड़ी मुहब्बत रख्खो, क्योंकि मुहब्बत बहुत से गुनाहों पर पर्दा डाल देती है |
\v 9 बग़ैर बड़बड़ाए आपस में मुसाफ़िर परवरी करो |
\s5
\v 10 जिनको जिस जिस क़दर ने'मत मिली है, वो उसे ख़ुदा की मुख़्तलिफ़ ने'मतों के अच्छे मुख्तारों की तरह एक दूसरे की ख़िदमत में सर्फ़ करें |
\v 11 अगर कोई कुछ कहे तो ऐसा कहे कि गोया ख़ुदा का कलाम है, अगर कोई ख़िदमत करे तो उस ताक़त के मुताबिक़ करे जो ख़ुदा दे, ताकि सब बातों में ईसा' मसीह के वसीले से ख़ुदा का जलाल ज़ाहिर हो | जलाल और सल्तनत हमेशा से हमेशा उसी की है | आमीन |
\s5
\v 12 ऐ प्यारो ! जो मुसीबत की आग तुम्हारी आज़माइश के लिए तुम में भड़की है, ये समझ कर उससे ता'ज्जुब न करो कि ये एक अनोखी बात हम पर ज़ाहिर' हुई है |
\v 13 बल्कि मसीह के दुखों में जूँ जूँ शरीक हो ख़ुशी करो, ताकि उसके जलाल के ज़हूर के वक़्त भी निहायत ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम हो |
\v 14 अगर मसीह के नाम की वजह से तुम्हें मलामत की जाती है तो तुम मुबारक हो, क्योंकि जलाल का रूह या'नी ख़ुदा का रूह तुम पर साया करता है |
\s5
\v 15 तुम में से कोई शख्स़ ख़ूनी या चोर या बदकार या औरों के काम में दस्तअन्दाज़ होकर दुःख न पाए |
\v 16 लेकिन अगर मसीही होने की वजह से कोई शख्स पाए तो शरमाए नहीं, बल्कि इस नाम की वजह से ख़ुदा की बड़ाई करे |
\s5
\v 17 क्योंकि वो वक़्त आ पहुँचा है कि ख़ुदा के घर से 'अदालत शुरू' हो, और जब हम ही से शुरू' होगी तो उनका क्या अन्जाम होगा जो ख़ुदा की ख़ुशख़बरी को नहीं मानते?
\v 18 और "जब रास्तबाज़ ही मुश्किल से नजात पाएगा, तो बेदीन और गुनाहगार का क्या ठिकाना ?"
\v 19 पस जो ख़ुदा की मर्ज़ी के मुवाफिक़ दुख पाते हैं, वो नेकी करके अपनी जानों को वफ़ादार ख़ालिक़ के सुपुर्द करें |
\s5
\c 5
\v 1 तुम में जो बुज़ुर्ग हैं, मैं उनकी तरह बुज़ुर्ग और मसीह के दुखों का गवाह और ज़ाहिर होने वाले जलाल में शरीक होकर उनको ये नसीहत करता हूँ |
\v 2 कि ख़ुदा के उस गल्ले की गल्लेबानी करो जो तुम में है; लाचारी से निगहबानी न करो, बल्कि ख़ुदा की मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ ख़ुशी से और नाजायज़ नफ़े' के लिए नहीं बल्कि दिली शौक से |
\v 3 और जो लोग तुम्हारे सुपुर्द हैं उन पर हुकूमत न जताओ, बल्कि गल्ले के लिए नमूना बनो |
\v 4 और जब सरदार गल्लेबान ज़ाहिर होगा, तो तुम को जलाल का ऐसा सहरा मिलेगा जो मुरझाने का नहीं |
\s5
\v 5 ऐ जवानो ! तुम भी बुज़ुर्गों के ताबे' रहो, बल्कि सब के सब एक दूसरे की ख़िदमत के लिए फ़रोतनी से कमर बस्ता रहो, इसलिए कि "ख़ुदा मगरुरों का मुक़ाबला करता है, मगर फ़रोतनों को तौफ़ीक़ बख्शता है |"
\v 6 पस ख़ुदा के मज़बूत हाथ के नीचे फ़रोतनी से रहो, ताकि वो तुम्हें वक़्त पर सरबलन्द करे |
\v 7 अपनी सारी फ़िक्र उसी पर डाल दो, क्योंकि उसको तुम्हारी फ़िक्र है |
\s5
\v 8 तुम होशियार और बेदार रहो; तुम्हारा मुख़ालिफ़ इब्लीस गरजने वाले शेर-ए-बबर की तरह ढूँढता फिरता है कि किसको फाड़ खाए |
\v 9 तुम ईमान में मज़बूत होकर और ये जानकर उसका मुक़ाबला करो कि तुम्हारे भाई जो दुनिया में हैं ऐसे ही दुःख उठा रहे हैं
\s5
\v 10 अब ख़ुदा जो हर तरह के फ़ज़ल का चश्मा है, जिसने तुम को मसीह में अपने अबदी जलाल के लिए बुलाया, तुम्हारे थोड़ी मुद्दत तक दुःख उठाने के बा'द आप ही तुम्हें कामिल और क़ायम और मज़बूत करेगा |
\v 11 हमेशा से हमेशा तक उसी की सल्तनत रहे | आमीन |
\s5
\v 12 मैंने सिल्वानुस के ज़रिये, जो मेरी दानिस्त में दियानतदार भाई है, मुख़्तसर तौर पर लिख़ कर तुम्हें नसीहत की और ये गवाही दी कि ख़ुदा का सच्चा फ़ज़ल यही है, इसी पर क़ायम रहो |
\v 13 जो बाबुल में तुम्हारी तरह बरगुज़ीदा है, वो और मेरा मरक़ुस तुम्हें सलाम कहते हैं |
\v 14 मुहब्बत से बोसा ले लेकर आपस में सलाम करो | तुम सबको जो मसीह में हो, इत्मीनान हासिल होता रहे |

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\h पतरस का दूसरा 'आम ख़त
\toc1 पतरस का दूसरा 'आम ख़त
\toc2 पतरस का दूसरा 'आम ख़त
\toc3 2pe
\mt1 पतरस का दूसरा 'आम ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 शमा'ऊन पतरस की तरफ़ से ,जो ईसा' मसीह का बन्दा और रसूल है , उन लोगों के नाम ख़त ,जिन्होंने हमारे ख़ुदा और मुंजी ईसा' मसीह की रास्तबाज़ी में हमारा सा क़ीमती ईमान पाया है |
\v 2 ख़ुदा और हमारे ख़ुदावन्द ईसा' की पहचान की वजह से फ़ज़ल और इत्मीनान तुम्हें ज़्यादा होता रहे |
\s5
\v 3 क्योंकि खुदा की इलाही क़ुदरत ने वो सब चीज़ें जो ज़िन्दगी और दीनदारी के मुता'ल्लिक़ हैं ,हमें उसकी पहचान के वसीले से 'इनायत की ,जिसने हम को अपने ख़ास जलाल और नेकी के ज़रि'ए से बुलाया |
\v 4 जिनके ज़रिए उसने हम से क़ीमती और निहायत बड़े वा'दे किए ; ताकि उनके वसीले से तुम उस ख़राबी से छूटकर ,जो दुनिया में बुरी ख़्वाहिश की वजह से है ,ज़ात-ए-इलाही में शरीक हो जाओ |
\s5
\v 5 पस इसी ज़रिये तुम अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करके अपने ईमान से नेकी ,और नेकी से मा'रिफ़त ,
\v 6 और मा'रिफ़त से परहेज़गारी ,और परहेज़गारी से सब्र और सब्र से दीनदारी ,
\v 7 और दीनदारी से बिरादराना उल्फ़त , और बिरादराना उल्फ़त से मुहब्बत बढ़ाओ |
\s5
\v 8 क्यूँकि अगर ये बातें तुम में मौजूद हों और ज़्यादा भी होती जाएँ ,तो तुम को हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह के पहचानने में बेकार और बेफल न होने देंगी |
\v 9 और जिसमें ये बातें न हों ,वो अन्धा है और कोताह नज़र अपने पहले गुनाहों के धोए जाने को भूले बैठा है |
\s5
\v 10 पस ऐ भाइयों !अपने बुलावे और बरगुज़ीदगी को साबित करने की ज़्यादा कोशिश करो ,क्यूँकि अगर ऐसा करोगे तो कभी ठोकर न खाओगे ;
\v 11 बल्कि इससे तुम हमारे ख़ुदावन्द और मुन्जी ईसा'मसीह की हमेशा बादशाही में बड़ी 'इज़्ज़त के साथ दाख़िल किए जाओगे |
\s5
\v 12 इसलिए मैं तुम्हें ये बातें याद दिलाने को हमेशा मुस्त'इद रहूँगा ,अगरचे तुम उनसे वाक़िफ़ और उस हक़ बात पर क़ायम हो जो तुम्हें हासिल है |
\v 13 और जब तक मैं इस ख़ेमे में हूँ ,तुम्हें याद दिला दिला कर उभारना अपने ऊपर वाजिब समझता हूँ |
\v 14 क्यूँकि हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह के बताने के मुवाफ़िक़, मुझे मा'लूम है कि मेरे ख़ेमे के गिराए जाने का वक़्त जल्द आनेवाला है |
\v 15 पस मैं ऐसी कोशिश करूँगा कि मेरे इन्तक़ाल के बा'द तुम इन बातों को हमेशा याद रख सको |
\s5
\v 16 क्योंकि जब हम ने तुम्हे अपने ख़ुदा वन्द ईसा' मसीह की क़ुदरत और आमद से वाक़िफ़ किया था, तो दग़ाबाज़ी की गढ़ी हुई कहानियो की पैरवी नही की थी बल्कि ख़ुद उस कि अज़मत को देखा था
\v 17 कि उसने ख़ुदा बाप से उस वक़्त 'इज़्ज़त और जलाल पाया, जब उस अफ़ज़ल जलाल में से उसे ये आवाज़ आई, "ये मेरा प्यारा बेटा है, जिससे मैं ख़ुश हूँ |"
\v 18 और जब हम उसके साथ मुक़द्दस पहाड़ पर थे ,तो आसमान से यही आवाज़ आती सुनी |
\s5
\v 19 और हमारे पास नबियों का वो कलाम है जो ज़्यादा मौ'तबर ठहरा |और तुम अच्छा करते हो ,जो ये समझ कर उसी पर ग़ौर करते हो कि वो एक चराग़ है जो अन्धेरी जगह में रौशनी बख़्शता है,जब तक सुबह की रौशनी और सुबह का सितारा तुम्हारे दिलों में न चमके |
\v 20 और पहले ये जान लो कि किताब-ए-मुक़द्दस की किसी नबुव्वत की बात की तावील किसी के ज़ाती इख़्तियार पर मौक़ूफ़ नहीं ,
\v 21 क्योंकि नबुव्वत की कोई बात आदमी की ख़्वाहिश से कभी नहीं हुई ,बल्कि आदमी रूह-उल-क़ुद्दुस की तहरीक की वजह से ख़ुदा की तरफ़ से बोलते थे |
\s5
\c 2
\v 1 जिस तरह उस उम्मत में झूटे नबी भी थे उसी तरह तुम में भी झूटे उस्ताद होंगे ,जो पोशीदा तौर पर हलाक करने वाली नई-नई बातें निकालेंगे,और उस मालिक का इन्कार करेंगे जिसने उन्हें ख़रीद लिया था, और अपने आपको जल्द हलाकत में डालेंगे |
\v 2 और बहुत सारे उनकी बुरी आदतों की पैरवी करेंगे , जिनकी वजह से राह-ए-हक़ की बदनामी होगी |
\v 3 और वो लालच से बातें बनाकर तुम को अपने नफ़े' की वजह ठहराएँगे , और जो ज़माने से उनकी सज़ा का हुक्म हो चुका है उसके आने में कुछ देर नहीं ,और उनकी हलाकत सोती नहीं |
\s5
\v 4 क्यूँकि जब ख़ुदा ने गुनाह करने वाले फ़रिश्तों को न छोड़ा , बल्कि जहन्नुम भेज कर तारीक ग़ारों में डाल दिया ताकि 'अदालत के दिन तक हिरासत में रहें ,
\v 5 और न पहली दुनिया को छोड़ा , बल्कि बेदीन दुनिया पर तूफ़ान भेजकर रास्तबाज़ी के ऐलान करने वाले नूह समेत सात आदमियों को बचा लिया ;
\v 6 और सदोम और 'अमूरा के शहरों को मिट्टी में मिला दिया और उन्हें हलाकत की सज़ा दी और आइन्दा ज़माने के बेदीनों के लिए जा-ए-'इबरत बना दिया ,
\s5
\v 7 और रास्तबाज़ लूत को जो बेदीनों के नापाक चाल-चलन से बहुत दुखी था रिहाई बख़्शी |
\v 8 [चुनाँचे वो रास्तबाज़ उनमें रह कर और उनके बेशरा'कामों को देख देख कर और सुन सुन कर , गोया हर रोज़ अपने सच्चे दिल को शिकंजे में खींचता था |]
\v 9 तो ख़ुदावन्द दीनदारों को आज़माइश से निकाल लेना और बदकारों को 'अदालत के दिन तक सज़ा में रखना जानता है ,
\s5
\v 10 खुसूसन उनको जो नापाक ख़्वाहिशों से जिस्म की पैरवी करते हैं और हुकूमत को नाचीज़ जानते हैं | वो गुस्ताख़ और नाफ़रमान हैं, और 'इज़्ज़तदारों पर ला'न ता'न करने से नहीं डरते ,
\v 11 बावजूद ये कि फ़रिश्ते जो ताकत और क़ुदरत में उनसे बड़े हैं ,ख़ुदावन्द के सामने उन पर ला'न ता'न के साथ नालिश नहीं करते |
\s5
\v 12 लेकिन ये लोग बे'अक़्ल जानवरों की तरह हैं , जो पकड़े जाने और हलाक होने के लिए हैवान -ए -मुतलक़ पैदा हुए हैं ,जिन बातों से नावाक़िफ़ हैं उनके बारे में औरों पर ला'न ता'न करते हैं ,अपनी ख़राबी में ख़ुद ख़राब किए जाएँगे |
\v 13 दूसरों को बुरा करने के बदले इन ही का बुरा होगा | इनको दिन दहाड़े अय्याशी करने में मज़ा आता है |ये दाग़ और ऐबदार हैं |जब तुम्हारे साथ खाते पीते हैं , तो अपनी तरफ़ से मुहब्बत की ज़ियाफ़त करके 'ऐश - ओ -'इशरत करते हैं |
\v 14 उनकी आँखे जिनमें ज़िनाकार 'औरतें बसी हुई हैं ,गुनाह से रुक नहीं सकतीं ;वो बे क़याम दिलों को फँसाते हैं |उनका दिल लालच का मुश्ताक़ है, वो ला'नत की औलाद हैं |
\s5
\v 15 वो सीधी राह छोड़ कर गुमराह हो गए हैं ,और ब'ऊर के बेटे बिल'आम की राह पर हो लिए हैं ,जिसने नारास्ती की मज़दूरी को 'अज़ीज़ जाना ;
\v 16 मगर अपने क़ुसूर पर ये मलामत उठाई कि एक बेज़बान गधी ने आदमी की तरह बोल कर उस नबी को दीवानगी से बाज़ रख्खा |
\s5
\v 17 वो अन्धे कुएँ हैं, और ऐसे बादल है जिसे आँधी उड़ाती है; उनके लिए बेहद तारीकी घिरी है |
\v 18 वो घमण्ड की बेहूदा बातें बक बक कर बुरी आदतों के ज़रि'ए से , उन लोगों को जिस्मानी ख़्वाहिशों में फँसाते हैं जो गुमराही में से निकल ही रहे हैं|
\v 19 जो उनसे तो आज़ादी का वा'दा करते हैं और आप ख़राबी के ग़ुलाम बने हुए हैं, क्यूँकि जो शख़्स जिससे मग़लूब है वो उसका ग़ुलाम है |
\s5
\v 20 जब वो ख़ुदावन्द और मुन्जी ईसा' मसीह की पहचान के वसीले से दुनिया की आलूदगी से छुट कर, फिर उनमें फँसे और उनसे मग़लूब हुए, तो उनका पिछला हाल पहले से भी बदतर हुआ।
\v 21 क्यूँकि रास्तबाज़ी की राह का न जानना उनके लिए इससे बेहतर होता कि उसे जान कर उस पाक हुक्म से फिर जाते, जो उन्हें सौंपा गया था।
\v 22 उन पर ये सच्ची मिसाल सादिक़ आती है, “कुत्ता अपनी क़ै की तरफ़ रुजू' करता है, और नहलाई हुई सूअरनी दलदल में में लोटने की तरफ़।”
\s5
\c 3
\v 1 ऐ 'अज़ीज़ो! अब मैं तुम्हें ये दूसरा ख़त लिखता हूँ, और याद दिलाने के तौर पर दोनों ख़तों से तुम्हारे साफ़ दिलों को उभारता हूँ,
\v 2 कि तुम उन बातों को जो पाक नबियों ने पहले कहीं, और ख़ुदावन्द और मुन्जी के उस हुक्म को याद रख्खो जो तुम्हारे रसूलों की ज़रिये आया था |
\s5
\v 3 और पहले जान लो कि आख़िरी दिनों में ऐसी हँसी ठटठा करनेवाले आएँगे जो अपनी ख़्वाहिशों के मुवाफ़िक़ चलेंगे,
\v 4 और कहेंगे, “उसके आने का वा'दा कहाँ गया? क्यूँकि जब से बाप-दादा सोए हैं, उस वक़्त से अब तक सब कुछ वैसा ही है जैसा दुनिया के शुरू' से था।”
\s5
\v 5 वो तो जानबूझ कर ये भूल गए कि ख़ुदा के कलाम के ज़री'ए से आसमान पहले से मौजूद है, और ज़मीन पानी में से बनी और पानी में क़ायम है;
\v 6 इन ही के ज़री'ए से उस ज़माने की दुनिया डूब कर हलाक हुई |
\v 7 मगर इस वक़्त के आसमान और ज़मीन उसी कलाम के ज़री'ए से इसलिए रख्खे हैं कि जलाए जाएँ ; और वो बेदीन आदमियों की 'अदालत और हलाकत के दिन तक महफ़ूज़ रहेंगे
\s5
\v 8 ऐ 'अज़ीज़ो ! ये ख़ास बात तुम पर पोशीदा न रहे कि ख़ुदावन्द के नज़दीक एक दिन हज़ार बरस के बराबर है, और हज़ार बरस एक दिन के बराबर |
\v 9 ख़ुदावन्द अपने वा'दे में देर नहीं करता, जैसी देर कुछ लोग समझते है; बल्कि तुम्हारे बारे में हलाकत नहीं चाहता बल्कि ये चाहता है कि सबकी तौबा तक नौबत पहुँचे |
\s5
\v 10 लेकिन खुदावन्द का दिन चोर की तरह आ जाएगा, उस दिन आसमान बड़े शोर-ओ-ग़ुल के साथ बर्बाद हो जाएँगे, और अजराम-ए-फ़लक हरारत की शिद्दत से पिघल जाएँगे, और ज़मीन और उस पर के काम जल जाएँगे |
\s5
\v 11 जब ये सब चीज़ें इस तरह पिघलने वाली हैं, तो तुम्हें पाक चाल-चलन और दीनदारी में कैसे कुछ होना चाहिए,
\v 12 और ख़ुदा की 'अदालत के दिन के आने का कैसा कुछ मुन्तज़िर और मुश्ताक़ रहना चाहिए, जिसके ज़रिये आसमान आग से पिघल जाएँगे, और अजराम-ए- फ़लक हरारत की शिद्दत से गल जाएँगे।
\v 13 लेकिन उसके वादे के मुवाफ़िक़ हम नए आसमान और नई ज़मीन का इन्तज़ार करते हैं, जिनमें रास्तबाज़ी बसी रहेगी |
\s5
\v 14 पस ऐ 'अज़ीज़ो ! चूँकि तुम इन बातों के मुन्तज़िर हो, इसलिए उसके सामने इत्मीनान की हालत में बेदाग़ और बे-ऐब निकलने की कोशिश करो,
\v 15 और हमारे ख़ुदावन्द के तहम्मुल को नजात समझो, चुनाँचे हमारे प्यारे भाई पौलूस ने भी उस हिकमत के मुवाफ़िक़ जो उसे 'इनायत हुई, तुम्हें यही लिखा है
\v 16 और अपने सब ख़तों में इन बातों का ज़िक्र किया है, जिनमें कुछ बातें ऐसी हैं जिनका समझना मुश्किल है, और जाहिल और बे-क़याम लोग उनके मा'नों को और सहीफ़ो की तरह खींच तान कर अपने लिए हलाकत पैदा करते हैं |
\s5
\v 17 पस ऐ 'अज़ीज़ो ! चूँकि तुम पहले से आगाह हो, इसलिए होशियार रहो, ताकि बे-दीनों की गुमराही की तरफ़ खिंच कर अपनीं मज़बूती को छोड़ न दो |
\v 18 बल्कि हमारे ख़ुदावन्द और मुन्जी ईसा' मसीह के फ़ज़ल और 'इरफ़ान में बढ़ते जाओ | उसी की बड़ाई अब भी हो,और हमेशा तक होती रहे | आमीन |

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63-1JN.usfm Normal file
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\ide UTF-8
\h यूहन्ना का पहला 'आम ख़त
\toc1 यूहन्ना का पहला 'आम ख़त
\toc2 यूहन्ना का पहला 'आम ख़त
\toc3 1jn
\mt1 यूहन्ना का पहला 'आम ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 उस ज़िन्दगी के कलाम के बारे में जो शुरू से था ,और जिसे हम ने सुना और अपनी आँखों से देखा बल्कि ,ग़ौर से देखा और अपने हाथों से छुआ |
\v 2 [ये ज़िन्दगी ज़ाहिर हुई और हम ने देखा और उसकी गवाही देते हैं ,और इस हमेशा की ज़िन्दगी की तुम्हें ख़बर देते हैं जो बाप के साथ थी और हम पर ज़ाहिर हुई है।]
\s5
\v 3 जो कुछ हम ने देखा और सुना है तुम्हें भी उसकी ख़बर देते है ,ताकि तुम भी हमारे शरीक हो ,और हमारा मेल मिलाप बाप के साथ और उसके बेटे ईसा' मसीह के साथ है |
\v 4 और ये बातें हम इसलिए लिखते है कि हमारी ख़ुशी पूरी हो जाए |
\s5
\v 5 उससे सुन कर जो पैग़ाम हम तुम्हें देते हैं ,वो ये है कि ख़ुदा नूर है और उसमे ज़रा भी तारीकी नहीं |
\v 6 अगर हम कहें कि हमारा उसके साथ मेल मिलाप है और फिर तारीकी में चलें ,तो हम झूटे हैं और हक़ पर 'अमल नहीं करते |
\v 7 लेकिन जब हम नूर में चलें जिस तरह कि वो नूर में हैं , तो हमारा आपस मे मेल मिलाप है ,और उसके बेटे ईसा' का खून हमें तमाम गुनाह से पाक करता है |
\s5
\v 8 अगर हम कहें कि हम बेगुनाह हैं तो अपने आपको धोका देते हैं ,और हम में सच्चाई नहीं |
\v 9 अगर अपने गुनाहों का इक़रार करें ,तो वो हमारे गुनाहों को मु'आफ़ करने और हमें सारी नारास्ती से पाक करने में सच्चा और 'आदिल है |
\v 10 अगर कहें कि हम ने गुनाह नहीं किया ,तो उसे झूठा ठहराते हैं और उसका कलाम हम में नहीं है |
\s5
\c 2
\v 1 ऐ मेरे बच्चों! ये बातें मैं तुम्हें इसलिए लिखता हूँ तुम गुनाह न करो ;और अगर कोई गुनाह करे ,तो बाप के पास हमारा एक मददगार मौजूद है ,या'नी ईसा' मसीह रास्तबाज़ ;
\v 2 और वही हमारे गुनाहों का कफ़्फ़ारा है ,और न सिर्फ़ हमारे ही गुनाहों का बल्कि तमाम दुनिया के गुनाहों का भी।
\v 3 अगर हम उसके हुक्मों पर 'अमल करेंगे ,तो इससे हमें माँ'लूम होगा कि हम उसे जान गए हैं |
\s5
\v 4 जो कोई ये कहता है, "मैं उसे जान गया हूँ "और उसके हुक्मों पर 'अमल नहीं करता ,वो झूठा है और उसमें सच्चाई नहीं |
\v 5 हाँ ,जो कोई उसके कलाम पर 'अमल करे ,उसमें यकीनन ख़ुदा की मुहब्बत कामिल हो गई है |हमें इसी से मा'लूम होता है कि हम उसमें हैं :
\v 6 जो कोई ये कहता है कि मैं उसमें क़ायम हूँ ,तो चाहिए कि ये भी उसी तरह चले जिस तरह वो चलता था |
\s5
\v 7 ऐ 'अज़ीज़ो! मैं तुम्हें कोई नया हुक्म नहीं लिखता , बल्कि वही पुराना हुक्म जो शुरू से तुम्हें मिला है ;ये पुराना हुक्म वही कलाम है जो तुम ने सुना है |
\v 8 फिर तुम्हें एक नया हुक्म लिखता हूँ ,ये बात उस पर और तुम पर सच्ची आती है ;क्योंकि तारीकी मिटती जाती है और हक़ीक़ी नूर चमकना शुरू हो गया है |
\s5
\v 9 जो कोई ये कहता है कि मैं नूर में हूँ और अपने भाई से 'दुश्मनी रखता है, वो अभी तक अंधेरे ही मैं है |
\v 10 जो कोई अपने भाई से मुहब्बत रखता है वो नूर में रहता है और ठोकर नहीं खाता|
\v 11 लेकिन जो अपने भाई से 'दुश्मनी रखता है वो अंधेरे में है और अंधेरे ही में चलता है ,और ये नहीं जानता कि कहाँ जाता है क्यूँकि अंधेरे ने उसकी आँखे अन्धी कर दी हैं |
\s5
\v 12 ऐ बच्चो! मैं तुम्हें इसलिए लिखता हूँ कि उसके नाम से तुम्हारे गुनाह मु'आफ़ हुए |
\v 13 ऐ बुज़ुर्गो! मैं तुम्हें इसलिए लिखता हूँ कि जो इब्तिदा से है उसे तुम जान गए हो |ऐ जवानो !मैं तुम्हें इसलिए लिखता हूँ कि तुम उस शैतान पर ग़ालिब आ गए हो |ऐ लड़कों ! मैंने तुन्हें इसलिए लिखा है कि तुम बाप को जान गए हो
\v 14 ऐ बुज़ुर्गों! मैंने तुम्हें इसलिए लिखा है कि जो शुरू से है उसको तुम जान गए हो |ऐ जवानो !मैंने तुम्हें इसलिए लिखा है कि तुम मज़बूत हो ,औए ख़ुदा का कलाम तुम में क़ायम रहता है ,और तुम उस शैतान पर ग़ालिब आ गए हो |
\s5
\v 15 न दुनिया से मुहब्बत रख्खो ,न उन चीज़ों से जो दुनियाँ में हैं| जो कोई दुनिया से मुहब्बत रखता है ,उसमे बाप की मुहब्बत नहीं |
\v 16 क्यूँकि जो कुछ दुनिया में है ,या'नी जिस्म की ख़्वाहिश और आँखों की ख़्वाहिश और ज़िन्दगी की शेखी ,वो बाप की तरफ़ से नहीं बल्कि दुनिया की तरफ़ से है |
\v 17 दुनियाँ और उसकी ख़्वाहिश दोनों मिटती जाती है ,लेकिन जो ख़ुदा की मर्ज़ी पर चलता है वो हमेशा तक क़ायम रहेगा |
\s5
\v 18 ऐ लड़कों ! ये आख़िरी वक़्त है ;जैसा तुम ने सुना है कि मुख़ालिफ़-ए-मसीह आनेवाला है ,उसके मुवाफ़िक़ अब भी बहुत से मुख़ालिफ़-ए-मसीह पैदा हो गए है| इससे हम जानते हैं ये आखिरी वक़्त है
\v 19 वो निकले तो हम ही में से ,मगर हम में से थे नहीं |इसलिए कि अगर हम में से होते तो हमारे साथ रहते ,लेकिन निकल इस लिए गए कि ये ज़ाहिर हो कि वो सब हम में से नही हैं |
\s5
\v 20 और तुम को तो उस क़ुद्दूस की तरफ़ से मसह किया गया है ,और तुम सब कुछ जानते हो |
\v 21 मैंने तुम्हें इसलिए नहीं लिखा कि तुम सच्चाई को नहीं जानते ,बल्कि इसलिए कि तुम उसे जानते हो ,और इसलिए कि कोई झूट सच्चाई की तरफ़ से नहीं है |
\s5
\v 22 कौन झूठा है? सिवा उसके जो ईसा'के मसीह होने का इन्कार करता है। मुख़ालिफ़-ए-मसीह वही है जो बाप और बेटे का इन्कार करता है |
\v 23 जो कोई बेटे का इन्कार करता है उसके पास बाप भी नहीं :जो बेटे का इक़रार करता है उसके पास बाप भी है |
\s5
\v 24 |जो तुम ने शुरू'से सुना है अगर वो तुम में क़ायम रहे ,तो तुम भी बेटे और बाप में क़ायम रहोगे|
\v 25 और जिसका उसने हम से वा'दा किया, वो हमेशा की ज़िन्दगी है |
\v 26 मैंने ये बातें तुम्हें उनके बारे में लिखी हैं ,जो तुम्हें धोखा देते हैं ;
\s5
\v 27 और तुम्हारा वो मसह जो उसकी तरफ़ से किया गया ,तुम में क़ायम रहता है; और तुम इसके मोहताज नहीं कि कोई तुम्हें सिखाए ,बल्कि जिस तरह वो मसह जो उसकी तरफ़ से किया गया ,तुम्हें सब बातें सिखाता है और सच्चा है और झूठा नहीं ;और जिस तरह उसने तुम्हें सिखाया उसी तरह तुम उसमे क़ायम रहते हो |
\v 28 ग़रज़ ऐ बच्चो !उसमें क़ायम रहो ,ताकि जब वो ज़ाहिर हो तो हमें दिलेरी हो और हम उसके आने पर उसके सामने शर्मिन्दा न हों |
\v 29 अगर तुम जानते हो कि वो रास्तबाज़ है ,तो ये भी जानते हो कि जो कोई रास्तबाज़ी के काम करता है वो उससे पैदा हुआ है |
\s5
\c 3
\v 1 देखो ,बाप ने हम से कैसी मुहब्बत की है कि हम ख़ुदा के फ़र्ज़न्द कहलाए ,और हम है भी |दुनिया हमें इसलिए नहीं जानती कि उसने उसे भी नहीं जाना |
\v 2 'अज़ीजो! हम इस वक़्त ख़ुदा के फ़र्ज़न्द हैं ,और अभी तक ये ज़ाहिर नहीं हुआ कि हम क्या कुछ होंगे !इतना जानते हैं कि जब वो ज़ाहिर होगा तो हम भी उसकी तरह होंगे ,क्योंकि उसको वैसा ही देखेंगे जैसा वो है |
\v 3 और जो कोई उससे ये उम्मीद रखता है ,अपने आपको वैसा ही पाक करता है जैसा वो पाक है |
\s5
\v 4 जो कोई गुनाह करता है ,वो शरीयत की मुख़ालिफ़त करता है; और गुनाह शरीयत ' की मुख़ालिफ़त ही है |
\v 5 और तुम जानते हो कि वो इसलिए ज़ाहिर हुआ था कि गुनाहों को उठा ले जाए ,और उसकी ज़ात में गुनाह नहीं |
\v 6 जो कोई उसमें क़ायम रहता है वो गुनाह नहीं करता ;जो कोई गुनाह करता है ,न उसने उसे देखा है और न जाना है |
\s5
\v 7 ऐ बच्चो !किसी के धोखे में न आना |जो रास्तबाज़ी के काम करता है ,वही उसकी तरह रास्तबाज़ हे |
\v 8 जो शख़्स गुनाह करता है वो शैतान से है, क्यूँकि शैतान शुरू' ही से गुनाह करता रहा है |ख़ुदा का बेटा इसलिए ज़ाहिर हुआ था कि शैतान के कामों को मिटाए |
\s5
\v 9 जो कोई ख़ुदा से पैदा हुआ है वो गुनाह नहीं करता ,क्यूँकि उसका बीज उसमें बना रहता है ;बल्कि वो गुनाह कर ही नहीं सकता क्यूँकि ख़ुदा से पैदा हुआ है |
\v 10 इसी से ख़ुदा के फ़र्ज़न्द और शैतान के फ़र्ज़न्द ज़ाहिर होते है |जो कोई रास्तबाज़ी के काम नहीं करता वो ख़ुदा से नहीं ,और वो भी नहीं जो अपने भाई से मुहब्बत नहीं रखता |
\s5
\v 11 क्यूँकि जो पैग़ाम तुम ने शुरू' से सुना वो ये है कि हम एक दूसरे से मुहब्बत रख्खें |
\v 12 और क़ाइन की तरह न बनें जो उस शरीर से था ,और जिसने अपने भाई को क़त्ल किया ;और उसने किस वास्ते उसे क़त्ल किया ?इस वास्ते कि उसके काम बुरे थे ,और उसके भाई के काम रास्ती के थे |
\s5
\v 13 ऐ भाइयों !अगर दुनिया तुम से 'दुश्मनी रखती है तो ताअ'ज्जुब न करो |
\v 14 हम तो जानते हैं कि मौत से निकलकर ज़िन्दगी में दाख़िल हो गए ,क्यूँकि हम भाइयों से मुहब्बत रखते हैं |जो मुहब्बत नहीं रखता वो मौत की हालत में रहता है |
\v 15 जो कोई अपने भाई से 'दुश्मनी रखता है , वो ख़ूनी है और तुम जानते हो कि किसी ख़ूनी में हमेशा की ज़िन्दगी मौजूद नहीं रहती |
\s5
\v 16 हम ने मुहब्बत को इसी से जाना है कि उसने हमारे वास्ते अपनी जान दे दी ,और हम पर भी भाइयों के वास्ते जान देना फ़र्ज़ है |
\v 17 जिस किसी के पास दुनिया का माल हो और वो अपने भाई को मोहताज देखकर रहम करने में देर करे ,तो उसमें ख़ुदा की मुहब्बत क्यूंकर क़ायम रह सकती है ?
\v 18 ऐ बच्चो! हम कलाम और ज़बान ही से नहीं, बल्कि काम और सच्चाई के ज़रिए से भी मुहब्बत करें |
\s5
\v 19 इससे हम जानेंगे कि हक़ के हैं ,और जिस बात में हमारा दिल हमें इल्ज़ाम देगा ,उसके बारे में हम उसके हुज़ूर अपनी दिलजम'ई करेंगे ;
\v 20 क्यूँकि ख़ुदा हमारे दिल से बड़ा है और सब कुछ जानता है |
\v 21 ऐ 'अज़ीज़ो! जब हमारा दिल हमें इल्ज़ाम नहीं देता ,तो हमें ख़ुदा के सामने दिलेरी हो जाती है ;
\v 22 और जो कुछ हम माँगते हैं वो हमें उसकी तरफ़ से मिलता है ,क्यूँकि हम उसके हुक्मों पर अमल करते हैं और जो कुछ वो पसन्द करता है उसे बजा लाते हैं |
\s5
\v 23 और उसका हुक्म ये है कि हम उसके बेटे ईसा' मसीह" के नाम पर ईमान लाएँ ,जैसा उसने हमें हुक्म दिया उसके मुवाफ़िक़ आपस में मुहब्बत रख्खें |
\v 24 और जो उसके हुक्मों पर 'अमल करता है,वो इसमें और ये उसमे क़ायम रहता है ;और इसी से या'नी उस पाक रूह से जो उसने हमें दिया है ,हम जानते हैं कि वो हम में क़ायम रहता है |
\s5
\c 4
\v 1 ऐ 'अज़ीज़ो! हर एक रूह का यक़ीन न करो ,बल्कि रूहों को आज़माओ कि वो ख़ुदा की तरफ़ से हैं या नहीं ;क्यूँकि बहुत से झूटे नबी दुनियाँ में निकल खड़े हुए हैं |
\v 2 ख़ुदा के रूह को तुम इस तरह पहचान सकते हो कि जो कोई रूह इक़रार करे कि ईसा' मसीह" मुजस्सिम होकर आया है,वो ख़ुदा की तरफ़ से है ;
\v 3 और जो कोई रूह ईसा' का इक़रार न करे ,वो ख़ुदा की तरफ़ से नहीं और यही मुख़ालिफ़-ऐ-मसीह की रूह है ;जिसकी ख़बर तुम सुन चुके हो कि वो आनेवाली है ,बल्कि अब भी दुनिया में मौजूद है |
\s5
\v 4 ऐ बच्चों! तुम ख़ुदा से हो और उन पर ग़ालिब आ गए हो , क्यूँकि जो तुम में है वो उससे बड़ा है जो दुनिया में है |
\v 5 वो दुनिया से हैं इस वास्ते दुनियाँ की सी कहते हैं ,और दुनियाँ उनकी सुनती है |
\v 6 हम ख़ुदा से है |जो ख़ुदा को जानता है ,वो हमारी सुनता है ; जो ख़ुदा से नहीं ,वो हमारी नहीं सुनता |इसी से हम हक़ की रूह और गुमराही की रूह को पहचान लेते हैं |
\s5
\v 7 ऐ अज़ीज़ों! हम इस वक़्त ख़ुदा के फ़र्ज़न्द है ,और अभी तक ये ज़ाहिर नहीं हुआ कि हम क्या कुछ होंगे !इतना जानते हैं कि जब वो ज़ाहिर होगा तो हम भी उसकी तरह होंगे,क्यूँकि उसको वैसा ही देखेंगे जैसा वो है |
\v 8 जो मुहब्बत नहीं रखता वो ख़ुदा को नहीं जानता ,क्यूँकि ख़ुदा मुहब्बत है |
\s5
\v 9 जो मुहब्बत ख़ुदा को हम से है, वो इससे ज़ाहिर हुई कि ख़ुदा ने अपने इकलौते बेटे को दुनिया में भेजा है ताकि हम उसके वसीले से ज़िन्दा रहें |
\v 10 मुहब्बत इसमें नहीं कि हम ने ख़ुदा से मुहब्बत की, बल्कि इसमें है कि उसने हम से मुहब्बत की और हमारे गुनाहों के कफ़्फ़ारे के लिए अपने बेटे को भेजा |
\s5
\v 11 ऐ 'अज़ीज़ो !जब ख़ुदा ने हम से ऐसी मुहब्बत की, तो हम पर भी एक दूसरे से मुहब्बत रखना फ़र्ज़ है |
\v 12 ख़ुदा को कभी किसी ने नहीं देखा; अगर हम एक दूसरे से मुहब्बत रखते हैं ,तो ख़ुदा हम में रहता है और उसकी मुहब्बत हमारे दिल में कामिल हो गई है |
\v 13 चूँकि उसने अपने रूह में से हमें दिया है ,इससे हम जानते हैं कि हम उसमें क़ायम रहते हैं और वो हम में |
\v 14 और हम ने देख लिया है और गवाही देते हैं कि बाप ने बेटे को दुनिया का मुन्जी करके भेजा है |
\s5
\v 15 जो कोई इकरार करता है कि ईसा' ख़ुदा का बेटा है , ख़ुदा उसमें रहता है और वो ख़ुदा में |
\v 16 जो मुहब्बत ख़ुदा को हम से है उसको हम जान गए और हमें उसका यक़ीन है |ख़ुदा मुहब्बत है ,और जो मुहब्बत में क़ायम रहता है वो ख़ुदा में क़ायम रहता है ,और ख़ुदा उसमे क़ायम रहता है |
\s5
\v 17 इसी वजह से मुहब्बत हम में कामिल हो गई ,ताकि हमें 'अदालत के दिन दिलेरी हो; क्यूँकि जैसा वो है वैसे ही दुनिया में हम भी है |
\v 18 मुहब्बत में ख़ौफ़ नहीं होता ,बल्कि कामिल मुहब्बत ख़ौफ़ को दूर कर देती है; क्यूँकि ख़ौफ़ से 'अज़ाब होता है और कोई ख़ौफ़ करनेवाला मुहब्बत में कामिल नहीं हुआ |
\s5
\v 19 हम इस लिए मुहब्बत रखते हैं कि पहले उसने हम से मुहब्बत रख्खी |
\v 20 अगर कोई कहे ,"मैं ख़ुदा से मुहब्बत रखता हूँ " और वो अपने भाई से 'दुश्मनी रख्खे तो झुटा है :क्यूँकि जो अपने भाई से जिसे उसने देखा है मुहब्बत नहीं रखता ,वो ख़ुदा से भी जिसे उसने नहीं देखा मुहब्बत नहीं रख सकता |
\v 21 और हम को उसकी तरफ़ से ये हुक्म मिला है कि जो ख़ुदा से मुहब्बत रखता है वो अपने भाई से भी मुहब्बत रख्खे |
\s5
\c 5
\v 1 जिसका ये ईमान है कि ईसा' ही मसीह है , वो ख़ुदा से पैदा हुआ है; और जो कोई बाप से मुहब्बत रखता है ,वो उसकी औलाद से भी मुहब्बत रखता है |
\v 2 जब हम ख़ुदा से मुहब्बत रखते और उसके हुक्मों पर 'अमल करते हैं , तो इससे मा'लूम हो जाता है कि ख़ुदा के फ़र्ज़न्दों से भी मुहब्बत रखते हैं |
\v 3 और ख़ुदा की मुहब्बत ये है कि हम उसके हुक्मों पर 'अमल करें ,और उसके हुक्म सख़्त नहीं |
\s5
\v 4 जो कोई ख़ुदा से पैदा हुआ है , वो दुनिया पर ग़ालिब आता है ; और वो ग़ल्बा जिससे दुनिया मग़लूब हुई है , हमारा ईमान है |
\v 5 दुनिया को हराने वाला कौन है? सिवा उस शख्स के जिसका ये ईमान है कि ईसा' ख़ुदा का बेटा है |
\s5
\v 6 यही है वो जो पानी और ख़ून के वसीले से आया था ,या'नी ईसा' मसीह :वो न फ़क़त पानी के वसीले से ,बल्कि पानी और ख़ून दोनों के वसीले से आया था |
\v 7 और जो गवाही देता है वो रूह है ,क्यूँकि रूह सच्चाई है |
\v 8 और गवाही देनेवाले तीन है :रूह पानी और खून ;ये तीन एक बात पर मुत्तफ़िक़ हैं |
\s5
\v 9 जब हम आदमियों की गवाही क़ुबूल कर लेते हैं, तो ख़ुदा की गवाही तो उससे बढ़कर है ;और ख़ुदा की गवाही ये है कि उसने अपने बेटे के हक़ में गवाही दी है |
\v 10 जो ख़ुदा के बेटे पर ईमान रखता है ,वो अपने आप में गवाही रखता है |जिसने ख़ुदा का यक़ीन नहीं किया उसने उसे झूटा ठहराया, क्यूँकि वो उस गवाही पर जो ख़ुदा ने अपने बेटे के हक़ में दी है ,ईमान नही लाया
\s5
\v 11 और वो गवाही ये है,कि ख़ुदा ने हमे हमेशा की जिन्दगी बख़्शी ,और ये जिन्दगी उसके बेटे में है ।
\v 12 जिसके पास बेटा है ,उसके पास ज़िन्दगी है ,और जिसके पास ख़ुदा का बेटा नहीं, उसके पास ज़िन्दगी भी नहीं ।
\s5
\v 13 मैंने तुम को जो ख़ुदा के बेटे के नाम पर ईमान लाए हो ,ये बातें इसलिए लिखी कि तुम्हें मा'लूम हो कि हमेशा की जिन्दगी रखते हो |।
\v 14 और हमे जो उसके सामने दिलेरी है, उसकी वजह ये है कि अगर उसकी मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ कुछ माँगते हैं , तो वो हमारी सुनता है |
\v 15 और जब हम जानते हैं कि जो कुछ हम माँगते हैं, वो हमारी सुनता है ,तो ये भी जानते हैं कि जो कुछ हम ने उससे माँगा है वो पाया है |
\s5
\v 16 अगर कोई अपने भाई को ऐसा गुनाह करते देखे जिसका नतीजा मौत न हो तो दु'आ करे ख़ुदा उसके वसीले से ज़िन्दगी बख़्शेगा| उन्हीं को जिन्होंने ऐसा गुनाह नहीं किया जिसका नतीजा मौत हो, गुनाह ऐसा भी है जिसका नतीजा मौत है; इसके बारे मे दु'आ करने को मैं नहीं कहता |
\v 17 है तो हर तरह की नारास्ती गुनाह,मगर ऐसा गुनाह भी है जिसका नतीजा मौत नहीं |
\s5
\v 18 हम जानते है कि जो कोई ख़ुदा से पैदा हुआ है ,वो गुनाह नही करता ;बल्कि उसकी हिफ़ाज़त वो करता है जो ख़ुदा से पैदा हुआ और शैतान उसे छूने नहीं पाता |
\v 19 हम जानते हैं कि हम ख़ुदा से हैं , और सारी दुनिया उस शैतान के क़ब्ज़े में पड़ी हुई है |
\s5
\v 20 और ये भी जानते है कि ख़ुदा का बेटा आ गया है ,और उसने हमे समझ बख़्शी है ताकि उसको जो हक़ीक़ी है जानें और हम उसमें जो हक़ीक़ी है ,या'नी उसके बेटे ईसा' मसीह" में हैं, |हक़ीक़ी ख़ुदा और हमेशा की ज़िन्दगी यही है |
\v 21 ऐ बच्चों! अपने आपको बुतों से बचाए रख्खो |

29
64-2JN.usfm Normal file
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\id 2JN
\ide UTF-8
\h यूहन्ना का दूसरा 'आम ख़त
\toc1 यूहन्ना का दूसरा 'आम ख़त
\toc2 यूहन्ना का दूसरा 'आम ख़त
\toc3 2jn
\mt1 यूहन्ना का दूसरा 'आम ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 मुझ बुज़ुर्ग की तरफ़ से उस बरगुजीदा बीवी और उसके फ़र्ज़न्दों के नाम ख़त ,जिनसे मैं उस सच्चाई की वजह से सच्ची मुहब्बत रखता हूँ ,जो हम में क़ामय रहती है ,और हमेशा तक हमारे साथ रहेगी ,
\v 2 और सिर्फ़ मैं ही नहीं बल्कि वो सब भी मुहब्बत रखते हैं ,जो हक़ से वाक़िफ़ हैं |
\v 3 ख़ुदा बाप और बाप के बेटे 'ईसा' मसीह की तरफ़ से फ़ज़ल और रहम और इत्मीनान , सच्चाई और मुहब्बत समेत हमारे शामिल-ए-हाल रहेंगे |
\s5
\v 4 मैं बहुत ख़ुश हुआ कि मैंने तेरे कुछ लड़कों को उस हुक्म के मुताबिक़, जो हमें बाप की तरफ़ से मिला था, हक़ीक़त में चलते हुए पाया |
\v 5 अब ऐ बीवी! मैं तुझे कोई नया हुक्म नहीं ,बल्कि वही जो शुरू' से हमारे पास है लिखता और तुझ से मिन्नत करके कहता हूँ कि आओ ,हम एक दूसरे से मुहब्बत रख्खें |
\v 6 और मुहब्बत ये है कि हम उसके हुक्मों पर चलें |ये वही हुक्म है जो तुम ने शुरू' से सुना है कि तुम्हें इस पर चलना चाहिए |
\s5
\v 7 क्यूँकि बहुत से ऐसे गुमराह करने वाले दुनिया मे निकल खड़े हुए हैं ,जो 'ईसा' मसीह के मुजस्सिम होकर आने का इक़रार नहीं करते |गुमराह करनेवाला मुख़ालिफ़-ए-मसीह यही है |
\v 8 अपने आप में ख़बरदार रहो ,ताकि जो मेहनत हम ने की है वो तुम्हारी वजह से ज़ाया न हो जाए, बल्कि तुम को पूरा अज्र मिले |
\s5
\v 9 जो कोई आगे बढ़ जाता है और मसीह की ता'लीम पर क़ायम नहीं रहता ,उसके पास ख़ुदा नहीं |जो उस ता'लीम पर क़ायम रहता है, उसके पास बाप भी है और बेटा भी |
\v 10 अगर कोई तुम्हारे पास आए और ये ता'लीम न दे ,तो न उसे घर में आने दो और न सलाम करो |
\v 11 क्यूँकि जो कोई ऐसे शख़्श को सलाम करता है, वो उसके बुरे कामों में शरीक होता है |
\s5
\v 12 मुझे बहुत सी बातें तुम को लिखना है ,मगर काग़ज़ और स्याही से लिखना नहीं चाहता ;बल्कि तुम्हारे पास आने और रू-ब-रू बातचीत करने की उम्मीद रखता हूँ ,ताकि तुहारी ख़ुशी कामिल हो |
\v 13 तेरी बरगुज़ीदा बहन के लड़के तुझे सलाम कहते हैं।

31
65-3JN.usfm Normal file
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@ -0,0 +1,31 @@
\id 3JN
\ide UTF-8
\h यूहन्ना का तीसरा 'आम ख़त
\toc1 यूहन्ना का तीसरा 'आम ख़त
\toc2 यूहन्ना का तीसरा 'आम ख़त
\toc3 3jn
\mt1 यूहन्ना का तीसरा 'आम ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 मुझ बुज़ुर्ग की तरफ़ से उस प्यारे गियुस के नाम ख़त ,जिससे मैं सच्ची मुहब्बत रखता हूँ |
\v 2 ऐ प्यारे ! मैं ये दु'आ करता हूँ कि जिस तरह तू रूहानी तरक़्क़ी कर रहा है ,इसी तरह तू सब बातों में तरक़्क़ी करे और तन्दुरुस्त रहे |
\v 3 क्योंकि जब भाइयों ने आकर तेरी उस सच्चाई की गवाही दी, जिस पर तू हक़ीक़त में चलता है ,तो मैं निहायत ख़ुश हुआ |
\v 4 मेरे लिए इससे बढ़कर और कोई ख़ुशी नहीं कि मैं अपने बेटो को हक़ पर चलते हुए सुनूँ |
\s5
\v 5 ऐ प्यारे !जो कुछ तू उन भाइयों के साथ करता है जो परदेसी भी हैं ,वो ईमानदारी से करता है |
\v 6 उन्होंने कलीसिया के सामने तेरी मुहब्बत की गवाही दी थी |अगर तू उन्हें उस तरह रवाना करेगा ,जिस तरह ख़ुदा के लोगों को मुनासिब है तो अच्छा करेगा |
\v 7 क्योकि वो उस नाम की ख़ातिर निकले हैं ,और ग़ैर-क़ौमों से कुछ नहीं लेते |
\v 8 पस ऐसों की ख़ातिरदारी करना हम पर फ़र्ज़ है, ताकि हम भी हक़ की ताईद में उनके हम ख़िदमत हों |
\s5
\v 9 मैंने कलीसिया को कुछ लिखा था , मगर दियुत्रिफ़ेस जो उनमे बड़ा बनना चाहता है ,हमें क़ुबूल नहीं करता |
\v 10 पस जब मैं आऊँगा तो उसके कामों को जो वो कर रहा है ,याद दिलाऊँगा ,कि हमारे हक़ में बुरी बातें बकता है ; और इन पर सब्र न करके ख़ुद भी भाइयों को क़ुबूल नहीं करता ,और जो क़ुबूल करना चाहते हैं उनको भी मना' करता है और कलीसिया से निकाल देता है |
\s5
\v 11 ऐ प्यारे !बदी की नहीं बल्कि नेकी की पैरवी कर |नेकी करनेवाला ख़ुदा से है; बदी करनेवाले ने ख़ुदा को नहीं देखा |
\v 12 देमेत्रियुस के बारे में सब ने और ख़ुद हक़ ने भी गवाही दी, और हम भी गवाही देते हैं ,और तू जानता है कि हमारी गवाही सच्ची है |
\s5
\v 13 मुझे लिखना तो तुझ को बहुत कुछ था ,मगर स्याही और क़लम से तुझे लिखना नहीं चाहता |
\v 14 बल्कि तुझ से जल्द मिलने की उम्मीद रखता हूँ , उस वक़्त हम रू-ब-रू बातचीत करेंगे |
\v 15 तुझे इत्मीनान हासिल होता रहे |यहाँ के दोस्त तुझे सलाम कहते हैं |तू वहाँ के दोस्तों से नाम-ब-नाम सलाम कह |

47
66-JUD.usfm Normal file
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@ -0,0 +1,47 @@
\id JUD
\ide UTF-8
\h यहूदाह का 'आम ख़त
\toc1 यहूदाह का 'आम ख़त
\toc2 यहूदाह का 'आम ख़त
\toc3 jud
\mt1 यहूदाह का 'आम ख़त
\s5
\c 1
\p
\v 1 यहूदाह की तरफ़ से जो मसीह 'ईसा' का बन्दा और या'क़ूब का भाई ,और उन बुलाए हुओं के नाम जो ख़ुदा बाप में प्यारे और 'ईसा' मसीह के लिए महफ़ूज़ हैं |
\v 2 रहम , इत्मीनान और मुहब्बत तुम को ज़्यादा हासिल होती रहे |
\s5
\v 3 ऐ प्यारों! जिस वक़्त मैं तुम को उस नजात के बारे में लिखने में पूरी कोशिश कर रहा था जिसमें हम सब शामिल हैं , तो मैंने तुम्हें ये नसीहत लिखना ज़रूर जाना कि तुम उस ईमान के वास्ते मेहनत करो जो मुक़द्दसों को एक बार सौंपा गया था |
\v 4 क्यूँकि कुछ ऐसे शख़्स चुपके से हम में आ मिले हैं ,जिनकी इस सज़ा का ज़िक्र पाक कलाम में पहले से लिखा गया था :ये बेदीन हैं ,और हमारे ख़ुदा के फ़ज़ल को बुरी आदतों से बदल डालते हैं ,और हमारे वाहिद मालिक और ख़ुदावन्द ईसा' मसीह का इन्कार करते हैं |
\s5
\v 5 पस अगरचे तुम सब बातें एक बार जान चुके हो ,तोभी ये बात तुम्हें याद दिलाना चाहता हूँ कि ख़ुदावन्द ने एक उम्मत को मुल्क-ए-मिस्र में से छुड़ाने के बा'द ,उन्हें हलाक किया जो ईमान न लाए |
\v 6 और जिन फ़रिश्तों ने अपनी हुकुमत को क़ायम न रख्खा बल्कि अपनी ख़ास जगह को छोड़ दिया ,उनको उसने हमेशा की क़ैद में अंधेरे के अन्दर रोज़-ए-'अज़ीम की 'अदालत तक रख्खा है
\s5
\v 7 इसी तरह सदोम और 'अमूरा और उसके आसपास के शहर ,जो इनकी तरह ज़िनाकारी में पड़ गए और ग़ैर जिस्म की तरफ़ राग़िब हुए ,हमेशा की आग की सज़ा में गिरफ़्तार होकर जा-ए-'इबरत ठहरे हैं |
\v 8 तोभी ये लोग अपने वहमों में मशग़ूल होकर उनकी तरह जिस्म को नापाक करते, और हुकूमत को नाचीज़ जानते ,और 'इज़्ज़तदारों पर ला'न ता'न करते हैं |
\s5
\v 9 लेकिन मुक़र्रब फ़रिश्ते मीकाईल ने मूसा की लाश के बारे मे इब्लीस से बहस-ओ-तकरार करते वक़्त, ला'न ता'न के साथ उस पर नालिश करने की हिम्मत न की ,बल्कि ये कहा, " ख़ुदावन्द तुझे मलामत करे |"
\v 10 मगर ये जिन बातों को नहीं जानते उन पर ला'न ता'न करते हैं ,और जिनको बे अक़्ल जानवरों की तरह मिज़ाजी तौर पर जानते हैं ,उनमें अपने आप को ख़राब करते हैं |
\v 11 इन पर आफ़सोस! कि ये क़ाईन की राह पर चले ,और मज़दूरी के लिए बड़ी लालच से बिल'आम की सी गुमराही इख़्तियार की ,और कोरह की तरह मुख़ालिफ़त कर के हलाक हुए |
\s5
\v 12 ये तुम्हारी मुहब्बत की दावतों में तुम्हारे साथ खाते -पीते वक़्त ,गोया दरिया की छिपी चटानें हैं |ये बेधड़क अपना पेट भरनेवाले चरवाहे हैं |ये बे-पानी के बादल हैं ,जिन्हें हवाएँ उड़ा ले जाती हैं |ये पतझड़ के बे-फल दरख्त हैं ,जो दोनों तरफ़ से मुर्दा और जड़ से उखड़े हुए
\v 13 ये समुन्दर की पुर जोश मौजें ,जो अपनी बेशर्मी के झाग उछालती हैं |ये वो आवारा गर्द सितारे हैं ,जिनके लिए हमेशा तक बेहद तारीकी धरी है |
\s5
\v 14 इनके बारे में हनूक ने भी ,जो आदम से सातवीं पुश्त में था ,ये पेशीनगोई की थी, "देखो ,ख़ुदावन्द अपने लाखों मुक़द्दसों के साथ आया ,
\v 15 ताकि सब आदमियों का इन्साफ करे ,और सब बेदीनो को उनकी बेदीनी के उन सब कामों के ज़रिये से ,जो उन्होंने बेदीनी से किए हैं ,और उन सब सख़्त बातों की वजह से जो बेदीन गुनाहगारों ने उसकी मुख़ालिफ़त में कही हैं कुसूरवार ठहराए |"
\v 16 ये बड़बड़ाने वाले और शिकायत करने वाले हैं ,और अपनी ख़्वाहिशों के मुवाफ़िक़ चलते हैं ,और अपने मुँह से बड़े बोल बोलते हैं ,और फ़ायदे ' के लिए लोगों की ता'रीफ़ करते हैं |
\s5
\v 17 लेकिन ऐ प्यारो! उन बातों को याद रख्खो जो हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह के रसूल पहले कह चुके हैं |
\v 18 वो तुम से कहा करते थे कि, "आख़िरी ज़माने में ऐसे ठठ्ठा करने वाले होंगे ,जो अपनी बेदीनी की ख़्वाहिशों के मुवाफ़िक़ चलेंगे |"
\v 19 ये वो आदमी हैं जो फूट डालते हैं ,और नफ़सानी हैं और रूह से बे-बहरा |
\s5
\v 20 मगर तुम ऐ प्यारों! अपने पाक तरीन ईमान में अपनी तरक़्क़ी करके और रूह-उल-क़ुद्दूस में दु'आ करके ,
\v 21 अपने आपको 'ख़ुदा' की मुहब्बत में क़ायम रख्खो; और हमेशा की ज़िन्दगी के लिए हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह की रहमत के इन्तिज़ार में रहो |
\s5
\v 22 और कुछ लोगों पर जो शक में हैं रहम करो;
\v 23 और कुछ को झपट कर आग में से निकालो ,और कुछ पर ख़ौफ़ खाकर रहम करो ,बल्कि उस पोशाक से भी नफ़रत करो जो जिस्म की वजह से दाग़ी हो गई हो |
\s5
\v 24 अब जो तुम को ठोकर खाने से बचा सकता है, और अपने पुर जलाल हुज़ूर में कमाल ख़ुशी के साथ बे'ऐब करके खड़ा कर सकता है ,
\v 25 उस ख़ुदा-ए-वाहिद का जो हमारा मुन्जी है ,जलाल और 'अज़मत और सल्तनत और इख़्तियार ,हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह के वसीले से ,जैसा पहले से है ,अब भी हो और हमेशा रहे।आमीन।

648
67-REV.usfm Normal file
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@ -0,0 +1,648 @@
\id REV
\ide UTF-8
\h यूहन्ना 'आरिफ़ का मुकाश्फ़ा
\toc1 यूहन्ना 'आरिफ़ का मुकाश्फ़ा
\toc2 यूहन्ना 'आरिफ़ का मुकाश्फ़ा
\toc3 rev
\mt1 यूहन्ना 'आरिफ़ का मुकाश्फ़ा
\s5
\c 1
\p
\v 1 ईसा ' मसीह का मुकाशिफा, जो उसे ख़ुदा की तरफ़ से इसलिए हुआ कि अपने बन्दों को वो बातें दिखाए जिनका जल्द होना ज़रूरी है; और उसने अपने फ़रिश्ते को भेज कर उसकी मा'रिफ़त उन्हें अपने अपने बन्दे युहन्ना पर ज़ाहिर किया |
\v 2 यूहन्ना ने ख़ुदा का कलाम और ईसा' मसीह की गवाही की या'नी उन सब चीज़ों की जो उसने देखीं थीं गवाही दी |
\v 3 इस नबू'व्वत की किताब का पढ़ने वाले और उसके सुनने वाले और जो कुछ इस में लिखा है, उस पर अमल करने वाले मुबारक हैं; क्यूँकि वक़्त नज़दीक है |
\s5
\v 4 युहन्ना की जानिब से उन सात कलीसियाओं के नाम जो आसिया सूबा में हैं | उसकी तरफ़ से जो है, और जो था, और जो आनेवाला है, और उन सात रुहों की तरफ़ से जो उसके तख़्त के सामने हैं |
\v 5 और ईसा ' मसीह की तरफ़ से जो सच्चे गवाह और मुर्दों में से जी उठनेवालों में पहलौठा और दुनियाँ के बादशाहों पर हाकिम है, तुम्हें फ़ज़ल और इत्मीनान हासिल होता रहे | जो हम से मुहब्बत रखता है, और जिसने अपने ख़ून के वसीले से हम को गुनाहों से मु'आफ़ी बख्शी,
\v 6 और हम को एक बादशाही भी दी और अपने ख़ुदा और बाप के लिए काहिन भी बना दिया | उसका जलाल और बादशाही हमेशा से हमेशा तक रहे| आमीन |
\s5
\v 7 देखो, वो बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी, और जिहोंने उसे छेदा था वो भी देखेंगे, और ज़मीन पर के सब क़बीले उसकी वजह से सीना पीटेंगे | बेशक | आमीन |
\v 8 ख़ुदावंद ख़ुदा जो है और जो था और जो आनेवाला है, या'नी क़ादिर-ए-मुत्ल्क फ़रमाता है, "मैं अल्फ़ा और ओमेगा हूँ |"
\s5
\v 9 मैं युहन्ना, जो तुम्हारा भाई और ईसा ' की मुसीबत और बादशाही और सब्र में तुम्हारा शरीक हूँ, ख़ुदा के कलाम और ईसा ' के बारे में गवाही देने के ज़रिए उस टापू में था, जो पत्मुस कहलाता है, कि
\v 10 ख़ुदावन्द के दिन रूह में आ गया और अपने पीछे नरसिंगे की सी ये एक बड़ी आवाज़ सुनी,
\v 11 “जो कुछ तू देखता है उसे एक किताब में लिख कर उन सातों शहरों की सातों कलीसियाओं के पास भेज दे या'नी इफ़िसुस, और सुमरना, और परिगमुन, और थुवातीरा,और सरदीस,और फ़िलदिल्फ़िया,और लौदोकिया में |”
\s5
\v 12 मैंने उस आवाज़ देनेवाले को देखने के लिए मुँह फेरा, जिसने मुझ से कहा था; और फिर कर सोने के सात चिराग़दान देखे,
\v 13 और उन चिराग़दानों के बीच में आदमज़ाद सा एक आदमी देखा, जो पाँव तक का जामा पहने हुए था |
\s5
\v 14 उसका सिर और बाल सफ़ेद ऊन बल्कि बर्फ़ की तरह सफ़ेद थे, और उसकी आँखें आग के शो'ले की तरह थीं |
\v 15 और उसके पाँव उस ख़ालिस पीतल के से थे जो भट्टी में तपाया गया हो, और उसकी आवाज़ ज़ोर के पानी की सी थी |
\v 16 और उसके दहने हाथ में सात सितारे थे, और उसके मुँह में से एक दोधारी तेज़ तलवार निलकती थी; और उसका चेहरा ऐसा चमकता था जैसे तेज़ी के वक़्त आफ़ताब |
\s5
\v 17 जब मैंने उसे देखा तो उसके पाँव में मुर्दा सा गिर पड़ा| और उसने ये कहकर मुझ पर अपना दहना हाथ रख्खा, " ख़ौफ़ न कर ; मैं अव्वल और आख़िर,"
\v 18 और ज़िन्दा हूँ | मैं मर गया था, और देख हमेशा से हमेशा तक रहूँगा; और मौत और 'आलम-ए-अर्वाह की कुन्जियाँ मेरे पास हैं |
\s5
\v 19 पस जो बातें तू ने देखीं और जो हैं और जो इनके बा'द होने वाली हैं, उन सब को लिख ले |
\v 20 या'नी उन सात सितारों का भेद जिन्हें तू ने मेरे दहने हाथ में देखा था , और उन सोने के सात चिराग़दानों का : वो सात सितारे तो सात कलीसियाओं के फ़रिश्ते हैं, और वो सात चिराग़दान कलीसियाएँ हैं |
\s5
\c 2
\v 1 इफ़िसुस की कलीसिया के फ़रिश्ते को ये लिख : "जो अपने दहने हाथ में सितारे लिए हुए है, और सोने के सातों चराग़दानों में फिरता है, वो ये फ़रमाया है कि |
\v 2 "मैं तेरे काम और तेरी मशक़्क़त और तेरा सब्र तो जानता हूँ; और ये भी कि तू बदियों को देख नहीं सकता, और जो अपने आप को रसूल कहते हैं और हैं नही, तू ने उनको आज़मा कर झूटा पाया |"
\s5
\v 3 और तू सब्र करता है, और मेरे नाम की ख़ातिर मुसीबत उठाते उठाते थका नहीं |
\v 4 मगर मुझ को तुझ से ये शिकायत है कि तू ने अपनी पहली सी मुहब्बत छोड़ दी |
\v 5 पस ख़याल कर कि तू कहाँ से गिरा | और तौबा न करेगा, तो मैं तेरे पास आकर तेरे चिराग़दान को उसकी जगह से हटा दूँगा |
\s5
\v 6 अलबत्ता तुझ में ये बात तो है कि तू निकुलियों के कामों से नफ़रत रखता है, जिनसे मैं भी नफ़रत रखता हूँ |
\v 7 जिसके कान हों वो सुने कि रूह कलीसियाओं से क्या फ़रमाता है | जो ग़ालिब आए, मैं उसे उस ज़िन्दगी के दरख़्त में से जो ख़ुदा की जन्नत में है, फल खाने को दूँगा |
\s5
\v 8 "और समुरना की कलीसिया के फ़रिश्ते को ये लिख : "जो अव्वल-ओ-आख़िर है, और जो मर गया था और ज़िन्दा हुआ, वो ये फ़रमाता है कि "
\v 9 मैं तेरी मुसीबत और ग़रीबी को जानता हूँ (मगर तू दौलतमन्द है), और जो अपने आप को यहूदी कहते हैं, और हैं नहीं बल्कि शैतान के गिरोह हैं, उनके ला'न ता'न को भी जानता हूँ |
\s5
\v 10 जो दुख तुझे सहने होंगे उनसे ख़ौफ़ न कर ,देखो शैतान तुम में से कुछ को क़ैद में डालने को है ताकि तुम्हारी आज़माइश पूरी हो और दस दिन तक मुसीबत उठाओगे जान देने तक वफ़ादार रहो तो में तुझे ज़िन्दगी का ताज दूँगा|
\v 11 जिसके कान हों वो सुने कि पाक रूह कलीसियाओं से क्या फ़रमाता है | जो ग़ालिब आए, उसको दूसरी मौत से नुक्सान न पहुँचेगा |
\s5
\v 12 "और पिरगुमन की कलीसिया के फ़रिश्ते को ये लिख : "जिसके पास दोधारी तेज़ तलवार है, वो फ़रमाता है कि
\v 13 "मैं ये तो जानता हूँ कि शैतान की तख़्त गाह में सुकूनत रखता है, और मेरे नाम पर क़ायम रहता है; और जिन दिनों में मेरा वफ़ादार शहीद इन्तपास तुम में उस जगह क़त्ल हुआ था जहाँ शैतान रहता है, उन दिनों में भी तू ने मुझ पर ईमान रखने से इनकार नहीं किया |
\s5
\v 14 लेकिन मुझे चन्द बातों की तुझ से शिकायत है, इसलिए कि तेरे यहाँ कुछ लोग बिल'आम की ता'लीम माननेवाले हैं, जिसने बलक़ को बनी-ईसराइल के सामने ठोकर खिलाने वाली चीज़ रखने की ता'लीम दी, या'नी ये कि वो बुतों की क़ुर्बानियाँ खाएँ और हरामकारी करें |
\v 15 चुनाँचे तेरे यहाँ भी कुछ लोग इसी तरह नीकुलियों की ता'लीम के माननेवाले हैं |
\s5
\v 16 पस तौबा कर, नहीं तो मैं तेरे पास जल्द आकर अपने मुँह की तलवार से उनके साथ लडूंगा |
\v 17 जिसके कान हों वो सुने कि पाक रूह कलीसियाओं से क्या फ़रमाता है | जो ग़ालिब आएगा, मैं उसे आसमानी खाने में से दूँगा, और एक सफ़ेद पत्थर दूँगा | उस पत्थर पर एक नया नाम लिखा हुआ होगा, जिसे पानेवाले के सिवा कोई न जानेगा |
\s5
\v 18 "और थुवातीरा की कलीसिया के फ़रिश्ते को ये लिख :"ख़ुदा का बेटा जिसकी आँखें आग के शो'ले की तरह और पावँ ख़ालिस पीतल की तरह हैं, ये फ़रमाता है कि
\v 19 "मैं तेरे कामों और मुहब्बत और ईमान और ख़िदमत और सब्र को तो जानता हूँ, और ये भी कि तेरे पिछले काम पहले कामों से ज़्यादा हैं |
\s5
\v 20 पर मुझे तुझ से ये शिकायत है कि तू ने उस औरत ईज़बिल को रहने दिया है जो अपने आपको नबिया कहती है, और मेरे बन्दों को हरामकारी करने और बुतों की क़ुर्बानियाँ खाने की ता'लीम देकर गुमराह करती है
\v 21 मैंने उसको तौबा करने की मुहलत दी, मगर वो अपनी हरामकारी से तौबा करना नहीं चाहती |
\s5
\v 22 देख, मैं उसको बिस्तर पर डालता हूँ; और जो ज़िना करते हैं अगर उसके से कामों से तौबा न करें, तो उनको बड़ी मुसीबत में फँसाता हूँ;
\v 23 और उसके मानने वालों को जान से मारूँगा, और सब कलीसियाओं को मा'लूम होगा कि गुर्दों और दिलों का जाचँने वाला मैं ही हूँ, और मैं तुम में से हर एक को उसके कामों के जैसा बदला दूँगा |
\s5
\v 24 मगर तुम थुवातीरा के बाक़ी लोगों से, जो उस ता'लीम को नहीं मानते और उन बातों से जिन्हें लोग शैतान की गहरी बातें कहते हैं ना जानते हो, ये कहता हूँ कि तुम पर और बोझ न डालूँगा |
\v 25 अलबत्ता, जो तुम्हारे पास है, मेरे आने तक उसको थामे रहो |
\s5
\v 26 जो ग़ालिब आए और जो मेरे कामों के जैसा आख़िर तक 'अमल करे, मैं उसे क़ौमों पर इख़्तियार दूँगा;
\v 27 और वो लोहे के 'असा से उन पर हुकूमत करेगा, जिस तरह कि कुम्हार के बर्तन चकना चूर हो जाते हैं : चुनाँचे मैंने भी ऐसा इख़्तियार अपने बाप से पाया है,
\v 28 और मैं उसे सुबह का सितारा दूँगा |
\v 29 जिसके कान हों वो सुने कि रूह कलीसियाओं से क्या फ़रमाता है |
\s5
\c 3
\v 1 और सरदीस की कलीसिया के फ़रिश्ते को ये लिख कि जिसके पास ख़ुदा की सात रूहें और सात सितारे हैं
\v 2 जागता रहता, और उन चीज़ों को जो बाक़ी है और जो मिटने को थीं मज़बूत कर, क्यूँकि मैंने तेरे किसी काम को अपने ख़ुदा के नज़दीक पूरा नहीं पाया |
\s5
\v 3 पस याद कर कि तू ने किस तरह ता'लीम पाई और सुनी थी, और उस पर क़ायम रह और तौबा कर | और अगर तू जागता न रहेगा तो मैं चोर की तरह आ जाऊँगा, और तुझे हरगिज़ मा'लूम न होगा कि किस वक़्त तुझ पर आ पडूँगा |
\v 4 अलबत्ता, सरदीस में तेरे यहाँ थोड़े से ऐसे शख़्स हैं जिहोने अपनी पोशाक आलूदा नहीं की | वो सफ़ेद पोशाक पहने हुए मेरे साथ सैर करेंगे, क्यूँकि वो इस लायक़ हैं |
\s5
\v 5 जो ग़ालिब आए उसे इसी तरह सफ़ेद पोशाक पहनाई जाएगी, और मैं उसका नाम किताब-ए-हयात से हरगिज़ न काटूँगा, बल्कि अपने बाप और उसके फ़रिश्तों के सामने उसके नाम का इक़रार करूँगा |
\v 6 जिसके कान हों वो सुने कि रूह कलीसियाओं से क्या फ़रमाता है |
\s5
\v 7 और फिलदिल्फिया की कलीसिया के फ़रिश्ते को ये लिख: जो क़ुद्दूस और बरहक़ है, और दाऊद की कुन्जी रखता है, जिसके खोले हुए को कोई बन्द नहीं करता और बन्द किए हुए को कोई खोलता नहीं, वो ये फ़रमाता है कि
\v 8 "मैं तेरे कामों को जानता हूँ (देख, मैंने तेरे सामने एक दरवाज़ा खोल रख्खा है, कोई उसे बन्द नहीं कर सकता) कि तुझ में थोड़ा सा ज़ोर है और तू ने मेरे कलाम पर "अमल किया और मेरे नाम का इन्कार नहीं किया |
\s5
\v 9 देख, मैं शैतान की उन जमा'त वालों को तेरे क़ाबू में कर दूँगा, जो अपने आपको यहूदी कहते हैं और है नहीं, बल्कि झूट बोलते हैं - देख, मैं ऐसा करूँगा कि वो आकर तेरे पावँ में सिज्दा करेंगे, और जानेंगे कि मुझे तुझ से मुहब्बत है |
\v 10 चूँकि तू ने मेरे सब्र के कलाम पर 'अमल किया है, इसलिए मैं भी आज़माइश के उस वक़्त तेरी हिफ़ाज़त करूँगा जो ज़मीन के रहनेवालों के आज़माने के लिए तमाम दुनियाँ पर आनेवाला है |
\v 11 मैं जल्द आनेवाला हूँ | जो कुछ तेरे पास है थामे रह, ताकि कोई तेरा ताज न छीन ले |
\s5
\v 12 जो ग़ालिब आए, मैं उसे अपने ख़ुदा के मक़्दिस में एक सुतून बनाउँगा | वो फिर कभी बाहर न निकलेगा, और मैं अपने ख़ुदा का नाम और अपने ख़ुदा के शहर, या'नी उस नए यरूशलीम का नाम जो मेरे ख़ुदा के पास से आसमान से उतरने वाला है, और अपना नया नाम उस पर लिखूँगा |
\v 13 जिसके कान हों वो सुने कि रूह कलीसियाओं से क्या फ़रमाता है |
\s5
\v 14 "और लौदीकिया की कलीसिया के फ़रिश्ते को ये लिख : "जो आमीन और सच्चा और बरहक़ गवाह और ख़ुदा की कायनात की शुरुआत है, वो ये फ़रमाता है कि
\v 15 "मैं तेरे कामों को जानता हूँ कि न तू सर्द है न गर्म | काश कि तू सर्द या गर्म होता !
\v 16 पस चूँकि तू न तो गर्म है न सर्द बल्कि नीम गर्म है, इसलिए मैं तुझे अपने मुँह से निकाल फेंकने को हूँ |
\s5
\v 17 और चूँकि तू कहता है कि मैं दौलतमन्द हूँ और मालदार बन गया हूँ और किसी चीज़ का मोहताज नहीं; और ये नहीं जानता कि तू कमबख़्त और आवारा और ग़रीब और अन्धा और नंगा है |
\v 18 इसलिए मैं तुझे सलाह देता हूँ कि मुझ से आग में तपाया हुआ सोना ख़रीद ले, ताकि तू उसे पहन कर नंगे पन के ज़ाहिर होने की शर्मिन्दगी न उठाए; और आँखों में लगाने के लिए सुर्मा ले, ताकि तू बीना हो जाए |
\s5
\v 19 मैं जिन जिन को 'अज़ीज़ रखता हूँ, उन सब को मलामत और हिदायत करता हूँ; पस सरगर्म हो और तौबा कर |
\v 20 देख, मैं दरवाज़े पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; अगर कोई मेरी आवाज़ सुनकर दरवाज़ा खोलेगा, तो मैं उसके पास अन्दर जाकर उसके साथ खाना खाऊँगा और वो मेरे साथ |
\s5
\v 21 जो ग़ालिब आए मैं उसे अपने साथ तख़्त पर बिठाऊँगा, जिस तरह मैं ग़ालिब आकर अपने बाप के साथ उसके तख़्त पर बैठ गया |
\v 22 जिसके कान हों वो सुने कि रूह कलीसियाओं से क्या फ़रमाता है |
\s5
\c 4
\v 1 इन बातों के बा'द जो मैंने निगाह की तो क्या देखता हूँ कि आसमान में एक दरवाज़ा खुला हुआ है, और जिसको मैंने पहले नरसिंगो की सी आवाज़ से अपने साथ बातें करते सुना था, वही फ़रमाता है, "यहाँ ऊपर आ जा; मैं तुझे वो बातें दिखाउँगा, जिनका इन बातों के बा'द होना ज़रूर है |
\v 2 फ़ौरन मैं रूह में आ गया; और क्या देखता हूँ कि आसमान पर एक तख़्त रख्खा है, और उस तख़्त पर कोई बैठा है |
\v 3 और जो उस पर बैठा है वो संग-ए-यशब और 'अक़ीक़ सा मा'लूम होती है, और उस तख़्त के गिर्द ज़मर्रुद की सी एक धनुक मा'लूम होता है |
\s5
\v 4 उस तख़्त के पास चौबीस बुज़ुर्ग सफ़ेद पोशाक पहने हुए बैठे हैं, और उनके सिरों पर सोने के ताज हैं |
\v 5 उस तख़्त में से बिजलियाँ और आवाज़ें और गरजें पैदा होती हैं, और उस तख़्त के सामने आग के सात चिराग़ जल रहे हैं; ये ख़ुदा की साथ रूहें है,
\s5
\v 6 और उस तख़्त के सामने गोया शीशे का समुन्द्र बिल्लौर की तरह है | और तख़्त के बीच में और तख़्त के पास चार जानवर हैं, जिनके आगे-पीछे आँखें ही आँखें हैं |
\s5
\v 7 पहला जानवर बबर की तरह है, और दूसरा जानदार बछड़े की तरह , और तीसरे जानदार का इन्सान का सा है, और चौथा जानदार उड़ते हुए 'उक़ाब की तरह है |
\v 8 और इन चारों जानदारों के छ: छ: पर हैं; और रात दिन बग़ैर आराम लिए ये कहते रहते है, "कुद्दूस, कुद्दूस, कुद्दूस, ख़ुदावन्द ख़ुदा क़ादिर- ए-मुतलक़, जो था और जो है और जो आनेवाला है !"
\s5
\v 9 और जब वो जानदार उसकी बड़ाई -ओ-'इज़्ज़त और तम्जीद करेंगे, जो तख़्त पर बैठा है और हमेशा से हमेशा ज़िन्दा रहेगा;
\v 10 तो वो चौबीस बुज़ुर्ग उसके सामने जो तख़्त पर बैठा है गिर पड़ेंगे और उसको सिज्दा करेंगे, जो हमेशा हमेशा ज़िन्दा रहेगा और अपने ताज ये कहते हुए उस तख़्त के सामने डाल देंगे,
\v 11 "ऐ हमारे ख़ुदावन्द और ख़ुदा, तू ही बड़ाई और 'इज़्ज़त और क़ुदरत के लायक़ है; क्यूंकि तू ही ने सब चीज़ें पैदा कीं और वो तेरी ही मर्ज़ी से थीं और पैदा हुईं |"
\s5
\c 5
\v 1 जो तख़्त पर बैठा था, मैंने उसके दहने हाथ में एक किताब देखी जो अन्दर से और बाहर से लिखी हुई थी, और उसे सात मुहरें लगाकर बन्द किया गया था
\v 2 फिर मैंने एक ताक़तवर फ़रिश्ते को ऊँची आवाज़ से ये ऐलान करते देखा, "कौन इस किताब को खोलने और इसकी मुहरें तोड़ने के लायक़ है ?"
\s5
\v 3 और कोई शख़्स, आसमान पर या ज़मीन के नीचे, उस किताब को खोलने या उस पर नज़र करने के क़ाबिल न निकला |
\v 4 और में इस बात पर ज़ार ज़ार रोने लगा कि कोई उस किताब को खोलने और उस पर नज़र करने के लायक़ न निकला |
\v 5 तब उन बुज़ुर्गों मेसे एक ने कहा मत रो ,यहूदा के क़बीले का वो बबर जो दाउद की नस्ल है उस किताब और उसकी सातों मुहरों को खोलने के लिए ग़ालिब आया |
\s5
\v 6 और मैंने उस तख़्त और चारों जानदारों और उन बुज़ुर्गों के बीच में, गोया ज़बह किया हुआ एक बर्रा खड़ा देखा | उसके सात सींग और सात आँखें थीं; ये ख़ुदा की सातों रूहें है जो तमाम रु-ए-ज़मीन पर भेजी गई हैं |
\v 7 उसने आकर तख़्त पर बैठे हुए दाहने हाथ से उस किताब को ले लिया |
\s5
\v 8 जब उसने उस किताब को लिया, तो वो चारों जानदार और चौबीस बुज़ुर्ग उस बर्रे के सामने गिर पड़े; और हर एक के हाथ में बर्बत और 'ऊद से भरे हुए सोने के प्याले थे, ये मुक़द्दसों की दु'आएँ हैं |
\s5
\v 9 और वो ये नया गीत गाने लगे, "तू ही इस किताब को लेने, और इसकी मुहरें खोलने के लायक़ है; क्यूँकि तू ने जबह होकर अपने ख़ून से हर क़बीले और अहले ज़बान और उम्मत और क़ौम में से ख़ुदा के वास्ते लोगों को ख़रीद लिया |
\v 10 और उनको हमारे ख़ुदा के लिए एक बादशाही और काहिन बना दिया, और वो ज़मीन पर बादशाही करते हैं |"
\s5
\v 11 और जब मैंने निगाह की, तो उस तख़्त और उन जानदारों और बुज़ुर्गों के आस पास बहुत से फ़रिश्तों की आवाज़ सुनी, जिनका शुमार लाखों और करोड़ों था,
\v 12 और वो ऊँची आवाज़ से कहते थे, "ज़बह किया हुआ बर्रा की क़ुदरत और दौलत और हिकमत और ताक़त और 'इज़्ज़त और बड़ाई और तारीफ़ के लायक़ है !"
\s5
\v 13 फिर मैंने आसमान और ज़मीन और ज़मीन के नीचे की, और समुन्दर की सब मख़्लूक़ात को या'नी सब चीज़ों को उनमें हैं ये कहते सुना, "जो तख़्त पर बैठा है उसकी और बर्रे की, तारीफ़ और इज़्ज़त और बड़ाई और बादशाही हमेशा हमेशा रहे !"
\v 14 और चारों जानदारों ने आमीन कहा, और बुज़ुर्गों ने गिर कर सिज्दा किया |
\s5
\c 6
\v 1 फिर मैंने देखा कि बर्रे ने उन सात मुहरों में से एक को खोला, और उन चारों जानदारों में से एक गरजदार सी ये आवाज़ सुनी, "आ !
\v 2 और मैंने निगाह की तो क्या देखता हूँ कि एक सफ़ेद घोडा है, और उसका सवार कमान लिए हुए है | उसे एक ताज दिया गया, और वो फ़तह करता हुआ निकला ताकि और भी फ़तह करे |
\s5
\v 3 जब उसने दूसरी मुहर खोली, तो मैंने दुसरे जानदार को ये कहते सुना, "आ !"
\v 4 फिर एक और घोड़ा निकला जिसका रंग लाल था | उसके सवार को ये इख़्तियार दिया गया कि ज़मीन पर से सुलह उठा ले ताकि लोग एक दुसरे को क़त्ल करें; और उसको एक बड़ी तलवार दी गई |
\s5
\v 5 जब उसने तीसरी मुहर खोली, तो मैंने तीसरे जानदार को ये कहते सुना, "आ !"और मैंने निगाह की तो क्या देखता हूँ कि एक काला घोड़ा है, और उसके सवार के हाथ में एक तराज़ू है |
\v 6 और मैंने गोया उन चारों जानदारों के बीच में से ये आवाज़ आती सुनी, "गेहूँ दीनार के सेर भर, और जौ दीनार के तीन सेर, और तेल और मय का नुक़सान न कर |
\s5
\v 7 जब उन्होंने चौथी मुहर खोली, तो मैंने चौथे जानदार को ये कहते सुना, "आ !"
\v 8 मैंने निगाह की तो क्या देखता हूँ कि एक ज़र्द सा घोड़ा है, और उसके सवार का नाम 'मौत' है और 'आलम-ए-अर्वाह उसके पीछे पीछे है; और उनको चौथाई ज़मीन पर ये इख़्तियार दिया गया कि तलवार और काल और वबा और ज़मीन के दरिन्दों से लोगों को हलाक करें |
\s5
\v 9 जब उसने पाँचवीं मुहर खोली, तो मैंने क़ुर्बानगाह के नीचे उनकी रूहें देखी जो ख़ुदा के कलाम की वजह से और गवाही पर क़ायम रहने के ज़रिए मारे गए थे |
\v 10 और बड़ी आवाज़ से चिल्ला कर बोलीं, "ए मालिक, ए क़ुद्दूस-ओ-बरहक़, तू कब तक इन्साफ़ न करेगा और ज़मीन के रहनेवालों से हमारे ख़ून का बदला न लेगा?"
\v 11 और उनमें से हर एक को सफ़ेद जामा दिया गया, और उनसे कहा गया कि और थोड़ी मुद्दत आराम करो, जब तक कि तुम्हारे हमख़िदमत और भाइयों का भी शुमार पूरा न हो ले, जो तुम्हारी तरह क़त्ल होनेवाले हैं |
\s5
\v 12 जब उसने छटी मुहर खोली, तो मैंने देखा कि एक बड़ा भौंचाल आया, और सूरज कम्मल की तरह काला और सारा चाँद ख़ून सा हो गया |
\v 13 और आसमान के सितारे इस तरह ज़मीन पर गिर पड़े, जिस तरह ज़ोर की आँधी से हिल कर अंजीर के दरख़्त में से कच्चे फल गिर पड़ते हैं |
\v 14 और आसमान इस तरह सरक गया, जिस तरह ख़त लपेटने से सरक जाता है; और हर एक पहाड़ और टापू अपनी जगह से टल गया |
\s5
\v 15 और ज़मीन के बादशाह और अमीर और फ़ौजी सरदार, और मालदार और ताक़तवर , और तमाम ग़ुलाम और आज़ाद पहाड़ों के गारों और चट्टानों में जा छिपे,
\v 16 और पहाड़ों और चट्टानों से कहने लगे, "हम पर गिर पडो , और हमें उनकी नज़र से जो तख़्त पर बैठा हुआ है और बर्रे के ग़ज़ब से छिपा लो |
\v 17 क्यूँकि उनके ग़ज़ब का दिन 'अज़ीम आ पहुँचा, अब कौन ठहर सकता है?""
\s5
\c 7
\v 1 इसके बा'द मैंने ज़मीन के चारों कोनों पर चार फ़रिश्ते खड़े देखे | वो ज़मीन की चारों हवाओं को थामे हुए थे, ताकि ज़मीन या समुन्दर या किसी दरख़्त पर हवा न चले |
\v 2 फिर मैंने एक और फ़रिश्ते को, ज़िन्दा ख़ुदा की मुहर लिए हुए मशरिक़ से ऊपर की तरफ़ आते देखा; उसने उन चारों फ़रिश्तों से, जिन्हें ज़मीन और समुन्द्र को तकलीफ़ पहुंचाने का इख़्तियार दिया गया था, ऊँची आवाज़ से पुकार कर कहा,
\v 3 "जब तक हम अपने ख़ुदा के बन्दों के माथे पर मुहर न कर लें, ज़मीन और समुन्दर और दरख़्तों को तकलीफ़ न पहुँचाना |"
\s5
\v 4 और जिन पर मुहर की गई उनका शुमार सुना, कि बनी-इस्राइल के सब क़बीलों में से एक लाख चवालीस हज़ार पर मुहर की गई :
\v 5 यहुदाह के क़बीले में से बारह हज़ार पर मुहर की गई : रोबिन के क़बीले में से बारह हज़ार पर, जद के क़बीले में से बारह हज़ार पर,"
\v 6 आशर के क़बीले में से बारह हज़ार पर, नफ्ताली के क़बीले में से बारह हज़ार पर, मनस्सी के क़बीले में से बारह हज़ार पर,
\s5
\v 7 शमा'ऊन के क़बीले में से बारह हज़ार पर, लावी के क़बीले में से बारह हज़ार, इश्कार के क़बीले में से बारह हज़ार पर,
\v 8 ज़बलून के क़बीले में से बारह हज़ार पर, युसूफ़ के क़बीले में से बारह हज़ार पर, बिनयमिन के क़बीले में से बारह हज़ार पर मुहर की गई |
\s5
\v 9 इन बातों के बा'द जो मैंने निगाह की, तो क्या देखता हूँ कि हर एक क़ौम और क़बीला और उम्मत और अहल-ए-ज़बान की एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई शुमार नहीं कर सकता, सफ़ेद जामे पहने और खजूर की डालियाँ अपने हाथों में लिए हुए तख़्त और बर्रे के आगे खड़ी है,
\v 10 और बड़ी आवाज़ से चिल्ला कर कहती है, "नजात हमारे ख़ुदा की तरफ़ से !"
\s5
\v 11 और सब फ़रिश्ते उस तख़्त और बुज़ुर्गों और चारों जानदारों के पास खड़े है, फिर वो तख़्त के आगे मुँह के बल गिर पड़े और ख़ुदा को सिज्दा कर के
\v 12 कहा, "आमीन ! तारीफ़ और बड़ाई और हिकमत और शुक्र और 'इज़्ज़त और क़ुदरत और ताक़त हमेशा से हमेशा हमारे ख़ुदा की हो ! आमीन |
\s5
\v 13 और बुज़ुर्गों में से एक ने मुझ से कहा, "ये सफ़ेद जामे पहने हुए कौन हैं, और कहाँ से आए हैं?"
\v 14 मैंने उससे कहा, "ऐ मेरे ख़ुदावन्द, तू ही जानता है |" उसने मुझ से कहा, "ये वही हैं; उन्होंने अपने जामे बर्रे के क़ुर्बानी के ख़ून से धो कर सफ़ेद किए हैं |
\s5
\v 15 "इसी वजह से ये ख़ुदा के तख़्त के सामने हैं, और उसके मक़्दिस में रात दिन उसकी 'इबादत करते हैं, और जो तख़्त पर बैठा है, वो अपना ख़ेमा उनके ऊपर तानेगा |
\v 16 इसके बा'द न कभी उनको भूक लगेगी न प्यास और न धूप सताएगी न गर्मी |
\v 17 क्यूँकि जो बर्रा तख़्त के बीच में है, वो उनकी देखभाल करेगा, और उन्हें आब-ए-हयात के चश्मों के पास ले जाएगा और ख़ुदा उनकी आँखों के सब आँसू पोंछ देगा |"
\s5
\c 8
\v 1 जब उसने सातवीं मुहर खोली, तो आधे घंटे के क़रीब आसमान में ख़ामोशी रही |
\v 2 और मैंने उन सातों फ़रिश्तों को देखा जो ख़ुदा के सामने खड़े रहते हैं, और उन्हें सात नरसिंगे दीए गए |
\s5
\v 3 फिर एक और फ़रिश्ता सोने का 'ऊद्सोज़ लिए हुए आया और क़ुर्बानगाह के ऊपर खड़ा हुआ, और उसको बहुत सा 'ऊद दिया गया, ताकि अब मुकद्दसों की दु'आओं के साथ उस सुनहरी क़ुर्बानगाह पर चढ़ाए जो तख़्त के सामने है |
\v 4 और उस 'ऊद का धुवाँ फ़रिश्ते के सामने है |
\v 5 और फ़रिश्ते ने 'ऊद्सोज़ को लेकर उसमें क़ुर्बानगाह की आग भरी और ज़मीन पर डाल दी, और गरजें और आवाज़ें और बिजलियाँ पैदा हुईं और भौंचाल आया |
\s5
\v 6 और वो सातों फ़रिश्ते जिनके पास वो सात नरसिंगे थे, फूँकने को तैयार हुए |
\v 7 जब पहले ने नरसिंगा फूँका, तो ख़ून मिले हुए ओले और आग पैदा हुई और ज़मीन जल गई, और तिहाई दरख़्त जल गए, और तमाम हरी घास जल गई |
\s5
\v 8 जब दूसरे फ़रिश्ते ने नरसिंगा फूँका, गोया आग से जलता हुआ एक बड़ा पहाड़ समुन्दर में डाला गया; और तिहाई समुन्दर ख़ून हो गया |
\v 9 और समुन्दर की तिहाई जानदार मख़लूक़ात मर गई, और तिहाई जहाज़ तबाह हो गए |
\s5
\v 10 जब तीसरे फ़रिश्ते ने नरसिंगा फूँका, तो एक बड़ा सितारा मशा'ल की तरह जलता हुआ आसमान से टूटा, और तिहाई दरियाओं और पानी के चश्मों पर आ पड़ा |
\v 11 उस सितारे का नाम नागदौना कहलाता है; और तिहाई पानी नागदौने की तरह कड़वा हो गया, और पानी के कड़वे हो जाने से बहुत से आदमी मर गए |
\s5
\v 12 जब चौथे फ़रिश्ते ने नरसिंगा फूँका, तो तिहाई सूरज चाँद और तिहाई सितारों पर सदमा पहूँचा, यहाँ तक कि उनका तिहाई हिस्सा तारीक हो गया, और तिहाई दिन में रौशनी न रही, और इसी तरह तिहाई रात में भी |
\s5
\v 13 जब मैंने फिर निगाह की, तो आसमान के बीच में एक 'उक़ाब को उड़ते और बड़ी आवाज़ से ये कहते सुना, "उन तीन फ़रिश्तों के नर्सिंगों की आवाजों की वजह से, जिनका फूँकना अभी बाक़ी है, ज़मीन के रहनेवालों पर अफ़सोस, अफ़सोस, अफ़सोस !"
\s5
\c 9
\v 1 जब पाँचवें फ़रिश्ते ने नरसिंगा फूँका, तो मैंने आसमान से ज़मीन पर एक सितारा गिरा हुआ देखा, और उसे अथाह गड्ढे की कूंजी दी गई |
\v 2 और जब उसने अथाह गड्ढे को खोला तो गड्ढे में से एक बड़ी भट्टी का सा धुवाँ उठा, और गड्ढे के धुवें के ज़रिए से सूरज और हवा तारीक हो गई |
\s5
\v 3 और उस धुवें में से ज़मीन पर टिड्डियाँ निकल पड़ीं, और उन्हें ज़मीन के बिच्छुओं की सी ताक़त दी गई |
\v 4 और उससे कहा गया कि उन आदमियों के सिवा जिनके माथे पर ख़ुदा की मुहर नहीं, ज़मीन की घास या किसी हरियाली या किसी दरख़्त को तकलीफ़ न पहुँचे |
\s5
\v 5 और उन्हें जान से मारने का नहीं, बल्कि पाँच महीने तक लोगों को तकलीफ़ देने का इख़्तियार दिया गया; और उनकी तकलीफ़ ऐसी थी जैसे बिच्छु के डंक मारने से आदमी को होती है |
\v 6 उन दिनों में आदमी मौत ढूँढेंगे मगर हरगिज़ न पाएँगे, और मरने की आरज़ू करेंगे और मौत उनसे भागेगी |
\s5
\v 7 उन टिड्डियों की सूरतें उन घोड़ों की सी थीं जो लड़ाई के लिए तैयार किए गए हों, और उनके सिरों पर गोया सोने के ताज थे, और उनके चहरे आदमियों के से थे,
\v 8 और बाल 'औरतों के से थे, और दांत बबर के से |
\v 9 उनके पास लोहे के से बख़्तर थे, और उनके परों की आवाज़ ऐसी थी रथों और बहुत से घोड़ों की जो लड़ाई में दौड़ते हों |
\s5
\v 10 और उनकी दुमें बिच्छुओं की सी थीं और उनमें डंक भी थे, और उनकी दुमों में पाँच महीने तक आदमियों को तकलीफ़ पहुँचाने की ताक़त थी |
\v 11 अथाह गड्ढे का फ़रिश्ता उन पर बादशाह था; उसका नाम 'इब्रानी अबदून और यूनानी में अपुल्ल्योन है |
\v 12 पहला अफ़सोस तो हो चुका, देखो, उसके बा'द दो अफ़सोस और होने हैं |
\s5
\v 13 जब छठे फ़रिश्ते ने नरसिंगा फूँका, तो मैंने उस सुनहरी क़ुर्बानगाह के चारों कोनों के सींगों में से जो ख़ुदा के सामने है, ऐसी आवाज़ सुनी
\v 14 कि उस छठे फ़रिश्ते से जिसके पास नरसिंगा था, कोई कह रहा है, "बड़े दरिया, या'नी फ़ुरात के पास जो चार फ़रिश्ते बँधे हैं उन्हें खोल दे |"
\v 15 पस वो चारों फ़रिश्ते खोल दिए गए, जो ख़ास घड़ी और दिन और महीने और बरस के लिए तिहाई आदमियों के मार डालने को तैयार किए गए थे;
\s5
\v 16 और फ़ौजों के सवार में बीस करोड़ थे; मैंने उनका शुमार सुना |
\v 17 और मुझे उस रोया में घोड़े और उनके ऐसे सवार दिखाई दिए जिनके बख़्तर से आग और धुवाँ और गंधक निकलती थी |
\s5
\v 18 इन तीनों आफतों यानी आग,धुआं,और गंधक,सी जो उनके मुंह से निकलती थी,तिहाई लोग मारे गए |
\v 19 क्यूँकि उन घोड़ों की ताक़त उनके मुँह और उनकी दुमों में थी, , इसलिए कि उनकी दुमें साँपों की तरह थीं और दुमों में सिर भी थे, उन्हीं से वो तकलीफ़ पहुँचाते थे |
\s5
\v 20 और बाक़ी आदमियों ने जो इन आफ़तों से न मरे थे, अपने हाथों के कामों से तौबा न की, कि शयातीन की और सोने और चाँदी और पीतल और पत्थर लकड़ी के बुतों की इबादत करने से बा'ज़ आते, जो न देख सकती हैं न सुन सकती हैं न चल सकती हैं;
\v 21 और जो ख़ून और जादूगरी और हरामकारी और चोरी उन्होंने की थी, उनसे तौबा न की |
\s5
\c 10
\v 1 फिर मैंने एक और ताक़तवर फ़रिश्ते को बादल ओढ़े हुए आसमान से उतरते देखा| उसके सिर पर धनुक थी, और उसका चेहरा आफ़ताब की तरह था, और उसका पाँव आग के सुतूनों की तरह |
\v 2 और उसके हाथ में एक छोटी सी खुली हुई किताब थी | उसने अपना दहना पैर तो समुन्दर पर रख्खा और बायाँ ख़ुश्की पर |
\s5
\v 3 और ऐसी ऊँची आवाज़ से चिल्लाया जैसे बबर चिल्लाता है और जब वो चिल्लाया तो सात आवाजें सुनाई दीं
\v 4 जब गरज की सात आवाज़ें सुनाई दे चुकीं तो मैंने लिखने का इरादा किया, और आसमान पर से ये आवाज़ आती सुनी, " जो बातें गरज की इन सात आवाजों से सुनी हैं, उनको छुपाए रख और लिख मत |
\s5
\v 5 और जिस फ़रिश्ते को मैंने समुन्दर और ख़ुश्की पर खड़े देखा था उसने अपना दहना हाथ आसमान की तरफ़ उठाया
\v 6 जो हमेशा से हमेशा ज़िन्दा रहेगा और जिसने आसमान और उसके अन्दर की चीज़ें, और ज़मीन और उसके ऊपर की चीज़ें, और समुन्दर और उसके अन्दर की चीज़ें, पैदा की हैं, उसकी क़सम खाकर कहा कि अब और देर न होगी |
\v 7 बल्कि सातवें फ़रिश्ते की आवाज़ देने के ज़माने में, जब वो नरसिंगा फूंकने को होगा, तो ख़ुदा का छुपा हुआ मतलब उस ख़ुशख़बरी के जैसा , जो उसने अपने बन्दों, नबियों को दी थी पूरा होगा |
\s5
\v 8 और जिस आवाज़ देनेवाले को मैंने आसमान पर बोलते सुना था, उसने फिर मुझ से मुख़ातिब होकर कहा, "जा, उस फ़रिश्ते के हाथ में से जो समुन्द्र और ख़ुश्की पर खड़ा है, वो खुली हुई किताब ले ले |"
\v 9 तब मैंने उस फ़रिश्ते के पास जाकर कहा, "ये छोटी किताब मुझे दे दे |" उसने मुझ से कहा, "ले, इसे खाले; ये तेरा पेट तो कड़वा कर देगी, मगर तेरे मुँह में शहद की तरह मीठी लगेगी |"
\s5
\v 10 पस मैं वो छोटी किताब उस फ़रिश्ते के हाथ से लेकर खा गया | वो मेरे मुँह में तो शहद की तरह मीठी लगी, मगर जब मैं उसे खा गया तो मेरा पेट कड़वा हो गया |
\v 11 और मुझ से कहा गया, "तुझे बहुत सी उम्मतों और क़ौमों और अहल-ए-ज़बान और बादशाहों पर फिर नबुव्वत करना ज़रूर है |"
\s5
\c 11
\v 1 और मुझे 'लाठी की तरह एक नापने की लकड़ी दी गई, और किसी ने कहा, "उठकर ख़ुदा के मक़्दिस और क़ुर्बानगाह और उसमें के 'इबादत करने वालों को नाप |
\v 2 और उस सहन को जो मक़्दिस के बाहर है अलग कर दे, और उसे न नाप क्यूँकि वो ग़ैर-क़ौमों को दे दिया गया है; वो मुक़द्दस शहर को बयालीस महीने तक पामाल करेंगी |
\s5
\v 3 और मैं अपने दो गवाहों को इख़्तियार दूँगा, और वो टाट ओढ़े हुए एक हज़ार दो सौ साठ दिन तक नबुव्वत करेंगे |"
\v 4 ये वही जैतून के दो दरख़्त और दो चिराग़दान हैं जो ज़मीन के ख़ुदावन्द के सामने खड़े हैं |
\v 5 और अगर कोई उन्हें तकलीफ़ पहुँचाना चाहता है, तो उनके मुँह से आग निकलकर उनके दुश्मनों को खा जाती है; और अगर कोई उन्हें तकलीफ़ पहुँचाना चाहेगा, तो वो ज़रूर इसी तरह मारा जाएगा |
\s5
\v 6 उनको इख़्तियार है आसमान को बन्द कर दें, ताकि उनकी नबुव्वत के ज़माने में पानी न बरसे, और पानियों पर इख़्तियार है कि उनको ख़ून बना डालें, और जितनी दफ़ा' चाहें ज़मीन पर हर तरह की आफ़त लाएँ |
\v 7 जब वो अपनी गवाही दे चुकेंगे, तो वो हैवान जो अथाह गड्ढे से निकलेगा, उनसे लड़कर उन पर ग़ालिब आएगा और उनको मार डालेगा |
\s5
\v 8 और उनकी लाशें उस यरूशलीम के बाज़ार में पड़ी रहेंगी, जो रूहानी ऐ'तिबार से सदोम और मिस्र कहलाता है, जहाँ उनका ख़ुदावन्द भी मस्लूब हुआ था |
\v 9 उम्मतों और क़बीलों और अहल-ए-ज़बान और क़ौमों में से लोग उनकी लाशों को साढ़े तीन दिन तक देखते रहेंगे, और उनकी लाशों को क़ब्र में न रखने देंगे |
\s5
\v 10 और ज़मीन के रहनेवाले उनके मरने से ख़ुशी मनाएँगे और शादियाने बजाएँगे, और आपस में तुह्फ़े भेजेंगे, क्यूँकि इन दोनों नबियों ने ज़मीन के रहनेवालों को सताया था |
\v 11 और साढ़े तीन दिन के बा'द ख़ुदा की तरफ़ से उनमें ज़िन्दगी की रूह दाख़िल हुई, और वो अपने पावँ के बल खड़े हो गए और उनके देखनेवालों पर बड़ा ख़ौफ़ छा गया |
\v 12 और उन्हें आसमान पर से एक ऊँची आवाज़ सुनाई दी, "यहाँ ऊपर आ जाओ !" पस वो बादल पर सवार होकर आसमान पर चढ़ गए और उनके दुश्मन उन्हें देख रहे थे |
\s5
\v 13 फिर उसी वक़्त एक बड़ा भौंचाल आ गया, और शहर का दसवाँ हिस्सा गिर गया, और उस भौंचाल से सात हज़ार आदमी मरे और बाक़ी डर गए, और आसमान के ख़ुदा की बड़ाई की |
\v 14 दूसरा अफ़सोस हो चुका; देखो, तीसरा अफ़सोस जल्द होने वाला है |
\s5
\v 15 जब सातवें फ़रिश्ते ने नरसिंगा फूँका, तो आसमान पर बड़ी आवाज़ें इस मज़मून की पैदा हुई : "दुनियाँ की बादशाही हमारे ख़ुदावन्द और उसके मसीह की हो गई, और वो हमेशा बादशाही करेगा |"
\s5
\v 16 और चौबीसों बुज़ुर्गों ने जो ख़ुदा के सामने अपने अपने तख़्त पर बैठे थे, मुँह के बल गिर कर ख़ुदा को सिज्दा किया |
\v 17 और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, क़ादिर-ए-मुतलक़ ! जो है और जो था, हम तेरा शुक्र करते हैं क्यूँकि तू ने अपनी बड़ी क़ुदरत को हाथ में लेकर बादशाही की |
\s5
\v 18 और क़ौमों को ग़ुस्सा आया, और तेरा ग़ज़ब नाज़िल हुआ, और वो वक़्त आ पहुँचा है कि मुर्दों का इन्साफ़ किया जाए, और तेरे बन्दों, नबियों और मुक़द्दसों और उन छोटे बड़ों को जो तेरे नाम से डरते हैं बदला दिया जाए और ज़मीन के तबाह करने वालों को तबाह किया जाए |
\s5
\v 19 और ख़ुदा का जो मक़्दिस आसमान पर है वो खोला गया, और उसके मक़्दिस में उसके 'अहद का सन्दूक़ दिखाई दिया; और बिजलियाँ और आवाज़ें और गरजें पैदा हुईं, और भौंचाल आया और बड़े ओले पड़े |
\s5
\c 12
\v 1 फिर आसमान पर एक बड़ा निशान दिखाई दिया, या'नी एक 'औरत नज़र आई जो अफ़ताब को ओढ़े हुए थी, और चाँद उसके पाँव के नीचे था, और बारह सितारों का ताज उसके सिर पर |
\v 2 वो हामिला थी और दर्द-ए-ज़ेह में चिल्लाती थी, और बच्चा जनने की तक्लीफ़ में थी |
\s5
\v 3 फिर एक और निशान आसमान पर दिखाई दिया, या'नी एक बड़ा लाल अज़दहा, उसके सात सिर और दस सींग थे, और उसके सिरों पर सात ताज;
\v 4 और उसकी दुम ने आसमान के तिहाई सितारे खींच कर ज़मीन पर डाल दिए | और वो अज़दहा उस औरत के आगे जा खड़ा हुआ जो जनने को थी, ताकि जब वो जने तो उसके बच्चे को निगल जाए |
\s5
\v 5 और वो बेटा जनी, या'नी वो लड़का जो लोहे के 'लाठी से सब क़ौमों पर हुकूमत करेगा, और उसका बच्चा यकायक ख़ुदा और उसके तख़्त के पास तक पहुँचा दिया गया;
\v 6 और वो 'औरत उस जंगल को भाग गई, जहाँ ख़ुदा की तरफ़ से उसके लिए एक जगह तैयार की गई थी, ताकि वहाँ एक हज़ार दो सौ साठ दिन तक उसकी परवरिश की जाए |
\s5
\v 7 फिर आसमान पर लड़ाई हुई, मीकाईल और उसके फ़रिश्ते अज़दहा से लड़ने को निकले; और अज़दहा और उसके फ़रिश्ते उनसे लड़े,
\v 8 लेकिन ग़ालिब न आए, और इसके बा'द आसमान पर उनके लिए जगह न रही |
\v 9 और बड़ा अज़दहा, या'नी वही पुराना साँप जो इब्लीस और शैतान कहलाता है और सारे दुनियाँ को गुमराह कर देता है, ज़मीन पर गिरा दिया गया और उसके फ़रिश्ते भी उसके साथ गिरा दिए गए |
\s5
\v 10 फिर मैंने आसमान पर से ये बड़ी आवाज़ आती सुनी, "अब हमारे ख़ुदा की नजात और क़ुदरत और बादशाही, और उसके मसीह का इख़्तियार ज़ाहिर हुआ, क्यूँकि हमारे भाईयों पर इल्ज़ाम लगाने वाला जो रात दिन हमारे ख़ुदा के आगे उन पर इल्ज़ाम लगाया करता है, गिरा दिया गया |
\s5
\v 11 और वो बर्रे के ख़ून और अपनी गवाही के कलाम के ज़रिये उस पर ग़ालिब आए; और उन्होंने अपनी जान को 'अज़ीज़ न समझा, यहाँ तक कि मौत भी गवारा की |
\v 12 पस ऐ आसमानो और उनके रहनेवालो, ख़ुशी मनाओ | ऐ ख़ुश्की और तरी, तुम पर अफ़सोस, क्यूँकि इब्लीस बड़े क़हर में तुम्हारे पास उतर कर आया है, इसलिए कि जानता है कि मेरा थोड़ा ही सा वक़्त बाक़ी है |"
\s5
\v 13 और जब अज़दहा ने देखा कि मैं ज़मीन पर गिरा दिया गया हूँ, तो उस 'औरत को सताया जो बेटा जनी थी |
\v 14 और उस 'औरत को बड़े ;उक़ाब के दो पर दिए गए, ताकि साँप के सामने से उड़ कर वीराने में अपनी उस जगह पहुँच जाए, जहाँ एक ज़माना और जमानों और आधे ज़माने तक उसकी परवरिश की जाएगी |
\s5
\v 15 और साँप ने उस 'औरत के पीछे अपने मुँह से नदी की तरह पानी बहाया, ताकि उसको इस नदी से बहा दे |
\v 16 मगर ज़मीन ने उस 'औरत की मदद की, और अपना मुँह खोलकर उस नदी को पी लिया जो अज़दहा ने अपने मुँह से बहाई थी |
\v 17 और अज़दहा को 'औरत पर ग़ुस्सा आया, और उसकी बाक़ी औलाद से, जो ख़ुदा के हुक्मों पर 'अमल करती है और ईसा' की गवाही देने पर क़ायम है, लड़ने को गया और समुन्दर की रेत पर जा खड़ा हुआ |
\s5
\c 13
\v 1 और मैंने एक हैवान को समुन्दर में से निकलते हुए, देखा, उसके दस सींग और सात सिर थे; और उसके सींगों पर दस ताज और उसके सिरों पर कुफ़्र के नाम लिखे हुए थे |
\v 2 और जो हैवान मैंने देखा उसकी शक्ल तेन्दवे की सी थी, और पाँव रीछ के से और मुँह बबर का सा, और उस अज़दहा ने अपनी क़ुदरत और अपना तख़्त और बड़ा इख़्तियार उसे दे दिया |
\s5
\v 3 और मैंने उसके सिरों में से एक पर गोया जख़्म-ए-कारी अच्छा हो गया, और सारी दुनियाँ ता'ज्जुब करती हुई उस हैवान के पीछे पीछे हो ली |
\v 4 और चूँकि उस अज़दहा ने अपना इख़्तियार उस हैवान को दे दिया था इस लिए उन्होंनें अज़दहे की 'इबादत की और उस हैवान की भी ये कहकर 'इबादत की कि इस के बराबर कौन है कौन है जो इस से लड़ सकता है|,
\s5
\v 5 और बड़े बोल बोलने और कुफ़्र बकने के लिए उसे एक मुँह दिया गया, और उसे बयालीस महीने तक काम का इख़्तियार दिया गया |
\v 6 और उसने ख़ुदा की निस्बत कुफ़्र बकने के लिए मुँह खोला कि उसके नाम और उसके ख़ेमे, या'नी आसमान के रहनेवालों की निस्बत कुफ़्र बके |
\s5
\v 7 और उसे ये इख़्तियार दिया गया के मुक़द्दसों से लड़े और उन पर ग़ालिब आए, और उसे हर क़बीले और उम्मत और अहल-ए-ज़बान और क़ौम पर इख़्तियार दिया गया |
\v 8 और ज़मीन के वो सब रहनेवाले जिनका नाम उस बर्रे की किताब-ए-हयात में लिखे नहीं गए जो दुनियाँ बनाने के वक़्त से ज़बह हुआ है, उस हैवान की 'इबादत करेंगे
\s5
\v 9 जिसके कान हों वो सुने |
\v 10 जिसको कैद होने वाली है, वो क़ैद में पड़ेगा | जो कोई तलवार से क़त्ल करेगा, वो ज़रूर तलवार से क़त्ल किया जाएगा | पाक लोग के सब्र और ईमान का यही मौक़ा' है |
\s5
\v 11 फिर मैंने एक और हैवान को ज़मीन में से निकलते हुए देखा | उसके बर्रे के से दो सींग थे और वो अज़दहा की तरह बोलता था |
\v 12 और ये पहले हैवान का सारा इख़्तियार उसके सामने काम में लाता था, और ज़मीन और उसके रहनेवालों से उस पहले हैवान की 'इबादत कराता था, जिसका जख़्म-ए-कारी अच्छा हो गया था |
\s5
\v 13 और वो बड़े निशान दिखाता था, यहाँ तक कि आदमियों के सामने आसमान से ज़मीन पर आग नाज़िल कर देता था |
\v 14 और ज़मीन के रहनेवालों को उन निशानों की वजह से, जिनके उस हैवान के सामने दिखाने का उसको इख़्तियार दिया गया था, इस तरह गुमराह कर देता था कि ज़मीन के रहनेवालों से कहता था कि जिस हैवान के तलवार लगी थी और वो ज़िन्दा हो गया, उसका बुत बनाओ |
\s5
\v 15 और उसे उस हैवान के बुत में रूह फूँकने का इख़्तियारदिया गया ताकि वो हैवान का बुत बोले भी, और जितने लोग उस हैवान के बुत की इबादत न करें उनको क़त्ल भी कराए |
\v 16 और उसने सब छोटे-बड़ों, दौलतमन्दों और गरीबों, आज़ादों और ग़ुलामों के दहने हाथ या उनके माथे पर एक एक छाप करा दी,
\v 17 ताकि उसके सिवा जिस पर निशान, या'नी उस हैवान का नाम या उसके नाम का 'अदद हो, न कोई ख़रीद-ओ-फ़रोख्त न कर सके |
\s5
\v 18 हिकमत का ये मौका' है : जो समझ रखता है वो आदमी का 'अदद गिन ले, क्यूँकि वो आदमी का 'अदद है, और उसका 'अदद छ: सौ छियासठ है ||
\s5
\c 14
\v 1 फिर मैंने निगाह की, तो क्या देखता हूँ कि वो बर्रा कोहे यिय्यून पर खड़ा है, और उसके साथ एक लाख चवालीस हज़ार शख़्स हैं, जिनके माथे पर उसका और उसके बाप का नाम लिखा हुआ है |
\v 2 और मुझे आसमान पर से एक ऐसी आवाज़ सुनाई दी जो ज़ोर के पानी और बड़ी गरज की सी आवाज़ मैंने सुनी वो ऐसी थी जैसी बर्बत नवाज़ बर्बत बजाते हों |
\s5
\v 3 वो तख़्त के सामने और चारों जानदारों और बुजुर्गों के आगे गोया एक नया गीत गा रहे थे; और उन एक लाख चवालीस हज़ार शख़्सों के सिवा जो दुनियाँ में से ख़रीद लिए गए थे, कोई उस गीत को न सीख सका |
\v 4 ये वो हैं जो 'औरतों के साथ अलूदा नही हुए, बल्कि कुँवारे हैं | ये वो है जो बर्रे के पीछे पीछे चलते हैं, जहाँ कहीं वो जाता है; ये ख़ुदा और बर्रे के लिए पहले फल होने के वास्ते आदमियों में से ख़रीद लिए गए हैं |
\v 5 और उनके मुँह से कभी झूट न निकला था, वो बे'ऐब हैं |
\s5
\v 6 फिर मैंने एक और फ़रिश्ते को आसमान के बीच में उड़ते हुए देखा, जिसके पास ज़मीन के रहनेवालों की हर क़ौम और क़बीले और अहल-ए-ज़बान और उम्मत के सुनाने के लिए हमेशा की ख़ुशख़बरी थी |
\v 7 और उसने बड़ी आवाज़ से कहा, "ख़ुदा से डरो और उसकी बड़ाई करो, क्यूँकि उसकी 'अदालत का वक़्त आ पहुँचा है; और उसी की 'इबादत करो जिसने आसमान और ज़मीन और समुन्दर और पानी के चश्मे पैदा किए |"
\s5
\v 8 फिर इसके बा'द एक और दूसरा फ़रिश्ता ये कहता आया, “ गिर पड़ा, वह बड़ा शहर बाबुल गिर पड़ा, जिसने अपनी हरामकारी की ग़ज़बनाक मय तमाम क़ौमों को पिलाई है|”
\s5
\v 9 फिर इन के बा'द एक और, तीसरे फ़रिश्ते ने आकर बड़ी आवाज़ से कहा, "जो कोई उस हैवान और उसके बुत की 'इबादत करे, और अपने माथे या अपने हाथ पर उसकी छाप ले ले;
\v 10 वो ख़ुदा के क़हर की उस ख़ालिस मय को पिएगा जो उसके गुस्से के प्याले में भरी गई है, और पाक फ़रिश्तों के सामने और बर्रे के सामने आग और गन्धक के 'अज़ाब में मुब्तिला होगा |
\s5
\v 11 और उनके 'अज़ाब का धुँवा हमेशा ही उठता रहेगा, और जो उस हैवान और उसके बुत की 'इबादत करते हैं, और जो उसके नाम की छाप लेते हैं, उनको रात दिन चैन न मिलेगा |"
\v 12 मुक़द्दसों या'नी ख़ुदा के हुक्मों पर 'अमल करनेवालों और ईसा ' पर ईमान रखनेवालों के सब्र का यही मौक़ा' है |
\s5
\v 13 फिर मैंने आसमान में से ये आवाज़ सुनी, "लिख ! मुबारक हैं वो मुर्दे जो अब से ख़ुदावन्द में मरते हैं |" रूह फ़रमाता है, "बेशक, क्यूँकि वो अपनी मेंहनतों से आराम पाएँगे, और उनके आ'माल उनके साथ साथ होते हैं !"
\s5
\v 14 फिर मैंने निगाह की, तो क्या देखता हूँ कि एक सफ़ेद बादल है, और उस बादल पर आदमज़ाद की तरह कोई बैठा है, जिसके सिर पर सोने का ताज और हाथ में तेज़ दरान्ती है |
\v 15 फिर एक और फ़रिश्ते ने मक़्दिस से निकलकर उस बादल पर बैठे हुए एक बड़ी आवाज़ के साथ पुकार कर कहा, "अपनी दरान्ती चलाकर काट, क्यूँकि काटने का वक़्त आ गया, इसलिए कि ज़मीन की फ़सल बहुत पक गई |"
\v 16 पस जो बादल पर बैठा था उसने अपनी दरान्ती ज़मीन पर डाल दी, और ज़मीन की फ़सल कट गई |
\s5
\v 17 फिर एक और फ़रिश्ता उस मक़्दिस में से निकला जो आसमान पर है, उसके पास भी तेज़ दरान्ती थी |
\v 18 फिर एक और फ़रिश्ता क़ुर्बानगाह से निकला, जिसका आग पर इख़्तियार था; उसने तेज़ दरान्ती वाले से बड़ी आवाज़ से कहा, "अपनी तेज़ दरान्ती चलाकर ज़मीन के अंगूर के दरख़्त के गुच्छे काट ले जो बिल्कुल पक गए हैं |
\s5
\v 19 और उस फ़रिश्ते ने अपनी दरान्ती ज़मीन पर डाली, और ज़मीन के अंगूर के दरख़्त की फ़सल काट कर ख़ुदा के क़हर के बड़े हौज़ में डाल दी;
\v 20 और शहर के बाहर उस हौज़ में अंगूर रौंदे गए, और हौज़ में से इतना ख़ून निकला कि घोड़ों की लगामों तक पहुँच गया, और सोलह सौ फ़रलाँग तक वह निकाला ||"
\s5
\c 15
\v 1 फिर मैंने आसमान पर एक और बड़ा और 'अजीब निशान, या'नी सात फ़रिश्ते सातों पिछली आफ़तों को लिए हुए देखे, क्यूँकि इन आफ़तों पर ख़ुदा का क़हर ख़त्म हो गया है |
\s5
\v 2 फिर मैंने शीशे का सा एक समुन्दर देखा जिसमें आग मिली हुई थी; और जो उस हैवान और उसके बुत और उसके नाम के 'अदद पर ग़ालिब आए थे, उनको उस शीशे के समुन्द्र के पास ख़ुदा की बर्बतें लिए खड़े हुए देखा |
\s5
\v 3 और वो ख़ुदा के बन्दे मूसा का गीत, और बर्रे का गीत गा गा कर कहते थे, "ऐ ख़ुदा ! क़ादिर-ए-मुतलक़ ! तेरे काम बड़े और 'अजीब हैं | ऐ अज़ली बादशाह ! तेरी राहें रास्त और दुरुस्त हैं |"
\v 4 "ऐ ख़ुदावन्द ! कौन तुझ से न डरेगा? और कौन तेरे नाम की बड़ाई न करेगा? क्योंकि सिर्फ़ तू ही क़ुद्दूस है; और सब क़ौमें आकर तेरे सामने सिज्दा करेंगी, क्यूँकि तेरे इन्साफ़ के काम ज़ाहिर हो गए हैं |"
\s5
\v 5 इन बातों के बा'द मैंने देखा कि शहादत के ख़ेमे का मक़्दिस आसमान में खोला गया;
\v 6 और वो सातों फ़रिश्ते जिनके पास सातों आफतें थीं, आबदार और चमकदार जवाहर से आरास्ता और सीनों पर सुनहरी सीना बन्द बाँधे हुए मक़्दिस से निकले |
\s5
\v 7 और उन चारों जानदारों में से एक ने सात सोने के प्याले, हमेशा ज़िन्दा रहनेवाले ख़ुदा के कहर से भरे हुए, उन सातों फ़रिश्तों को दिए;
\v 8 और ख़ुदा के जलाल और उसकी क़ुदरत की वजह से मक़्दिस धुंए से भर गया और जब तक उन सातों फ़रिश्तों की सातों मुसीबते ख़त्म न हों चुकीं कोई उस मक़्दिस में दाख़िल न हो सका
\s5
\c 16
\v 1 फिर मैंने मक़्दिस में से किसी को बड़ी आवाज़ से ये कहते सुना, "जाओ ! ख़ुदा के क़हर के सातों प्यालों को ज़मीन पर उलट दो |
\s5
\v 2 पस पहले ने जाकर अपना प्याला ज़मीन पर उलट दिया, और जिन आदमियों पर उस हैवान की छाप थी और जो उसके बुत की इबादत करते थे, उनके एक बुरा और तकलीफ़ देनेवाला नासूर पैदा हो गया |
\s5
\v 3 दूसरे ने अपना प्याला समुन्दर में उलटा, और वो मुर्दे का सा ख़ून बन गया, और समुन्दर के सब जानदार मर गए |
\s5
\v 4 तीसरे ने अपना प्याला दरियाओं और पानी के चश्मों पर उल्टा और वो ख़ून बन गया |
\v 5 और मैंने पानी के फ़रिश्ते को ये कहते सुना, "ऐ क़ुद्दूस! जो है और जो था, तू 'आदिल है कि तू ने ये इन्साफ़ किया |
\v 6 क्यूँकि उन्होंने मुक़द्दसों और नबियों का ख़ून बहाया था, और तू ने उन्हें ख़ून पिलाया; वो इसी लायक़ हैं |"
\v 7 फिर मैंने क़ुर्बानगाह में से ये आवाज़ सुनी, "ए ख़ुदावन्द ख़ुदा !, क़ादिर-ए-मुतलक़ ! बेशक तेरे फ़ैसले दुरुस्त और रास्त हैं |"
\s5
\v 8 चौथे ने अपना प्याला सूरज पर उलटा, और उसे आदमियों को आग से झुलस देने का इख़्तियार दिया गया |
\v 9 और आदमी सख़्त गर्मी से झुलस गए, और उन्होंने ख़ुदा के नाम के बारे में कुफ्र बका जो इन आफ़तों पर इख़्तियार रखता है, और तौबा न की कि उसकी बड़ाई करते |
\s5
\v 10 पाँचवें ने अपना प्याला उस हैवान के तख़्त पर उलटा, और लोग अपनी ज़बाने काटने लगे,
\v 11 और अपने दुखों और नासूरों के ज़रिए आसमान के ख़ुदा के बारे में कुफ़्र बकने लगे, और अपने कामों से तौबा न की |
\s5
\v 12 छटे ने अपना प्याला बड़े दरिया या'नी फुरात पर पलटा, और उसका पानी सूख गया ताकि मशरिक़ से आने वाले बादशाहों के लिए रास्ता तैयार हो जाए |
\v 13 फिर मैंने उस अज़दहा के मुँह से, और उस हैवान के मुँह से, और उस झूटे नबी के मुँह से तीन बदरूहें मेंढकों की सूरत में निकलती देखीं |
\v 14 ये शयातीन की निशान दिखानेवाली रूहें हैं, जो क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा के रोज़-ए-'अज़ीम की लड़ाई के वास्ते जमा' करने के लिए, सारी दुनियाँ के बादशाहों के पास निकल कर जाती हैं |
\s5
\v 15 ("देखो, मैं चोर की तरह आता हूँ; मुबारक वो है जो जागता है और अपनी पोशाक की हिफ़ाज़त करता है ताकि नंगा न फिरे, और लोग उसका नंगापन न देखें |")
\v 16 और उन्होंने उनको उस जगह जमा' किया, जिसका नाम 'इब्रानी में हरमजद्दोन है |
\s5
\v 17 सातवें ने अपना प्याला हवा पर उलटा, और मक़्दिस के तख़्त की तरफ़ से बड़े ज़ोर से ये आवाज़ आई, "हो चूका !"
\v 18 फिर बिजलियाँ और आवाज़ें और गरजें पैदा हुईं, और एक ऐसा बड़ा भौंचाल आया कि जब से इन्सान जमीन पर पैदा हुए ऐसा बड़ा और सख़्त भूचाल कभी न आया था |
\v 19 और उस बड़े शहर के तीन टुकड़े हो गए, और क़ौमों के शहर गिर गए; और बड़े शहर-ए-बाबुल की ख़ुदा के यहाँ याद हुई ताकि उसे अपने सख़्त ग़ुस्से की मय का जाम पिलाए |
\s5
\v 20 और हर एक टापू अपनी जगह से टल गया और पहाड़ों का पता न लगा|
\v 21 और आसमान से आदमियों पर मन मन भर के बड़े बड़े ओले गिरे, और चूँकि ये आफ़त निहायत सख़्त थी इसलिए लोगों ने ओलों की आफ़त के ज़रिए ख़ुदा की निस्बत कुफ़्र बका |
\s5
\c 17
\v 1 और सातों फ़रिश्तों में से, जिनके पास सात प्याले थे, एक ने आकर मुझ से ये कहा, "इधर आ ! मैं तुझे उस बड़ी कस्बी की सज़ा दिखाऊँ, जो बहुत से पानियों पर बैठी हुई है;
\v 2 और जिसके साथ ज़मीन के बादशाहों ने हरामकारी की थी, और ज़मीन के रहनेवाले उसकी हरामकारी की मय से मतवाले हो गए थे |
\s5
\v 3 पस वो मुझे पाक रूह में जंगल को ले गया, वहाँ मैंने क़िरमिज़ी रंग के हैवान पर, जो कुफ़्र के नामों से लिपा हुआ था और जिसके सात सिर और दस सींग थे, एक 'औरत को बैठे हुए देखा |
\v 4 ये औरत इर्ग़वानी और क़िरमिज़ी लिबास पहने हुए सोने और जवाहर और मोतियों से आरास्ता थी और एक सोने का प्याला मक्रूहात का जो उसकी हरामकारी की नापकियों से भरा हुआ था उसके हाथ में था|
\v 5 और उसके माथे पर ये नाम लिखा हुआ : था "राज़; बड़ा शहर-ए-बाबुल कस्बियों और ज़मीन की मकरूहात की माँ |"
\s5
\v 6 और मैंने उस 'औरत को मुक़द्दसों का ख़ून और ईसा' के शहीदों का ख़ून पीने से मतवाला देखा, और उसे देखकर सख़्त हैरान हुआ |
\v 7 उस फ़रिश्ते ने मुझ से कहा, "तू हैरान क्यों हो गया मैं इस औरत और उस हैवान का, जिस पर वो सवार है जिसके सात सिर और दस सींग हैं, तुझे भेद बताता हूँ |
\s5
\v 8 ये जो तू ने हैवान देखा है, ये पहले तो था मगर अब नहीं है; और आइन्दा अथाह गड्ढे से निकलकर हलाकत में पड़ेगा, और ज़मीन के रहनेवाले जिनके नाम दुनियाँ बनाने से पहले के वक़्त से किताब-ए-हयात में लिखे नहीं गए, इस हैवान का ये हाल देखकर कि पहले था और अब नहीं और फिर मौजूद हो जाएगा, ता'अज्जुब करेंगे |
\s5
\v 9 यही मौक़ा' है उस ज़हन का जिसमें हिकमत है : वो सातों सिर पहाड़ हैं, जिन पर वो 'औरत बैठी हुई है |
\v 10 और वो सात बादशाह भी हैं, पाँच तो हो चुके हैं, और एक मौजूद, और एक अभी आया भी नहीं और जब आएगा तो कुछ 'अरसे तक उसका रहना ज़रूर है |
\s5
\v 11 और जो हैवान पहले था और अब नहीं, वो आठवाँ है और उन सातों में से पैदा हुआ, और हलाकत में पड़ेगा |
\s5
\v 12 और वो दस सींग जो तू ने देखे दस बादशाह हैं | अभी तक उन्होंने बादशाही नहीं पाई, मगर उस हैवान के साथ घड़ी भर के वास्ते बादशाहों का सा इख़्तियार पाएँगे |
\v 13 इन सब की एक ही राय होगी, और वो अपनी क़ुदरत और इख़्तियार उस हैवान को दे देंगे |
\v 14 वो बर्रे से लड़ेंगे और बर्रा उन पर ग़ालिब आएगा, क्यूँकि वो ख़ुदावन्दों का ख़ुदावन्द और बादशाहों का बादशाह है; और जो बुलाए हुए और चुने हुए और वफ़ादार उसके साथ हैं, वो भी ग़ालिब आएँगे |"
\s5
\v 15 फिर उसने मुझ से कहा, "जो पानी तू ने देखा जिन पर कस्बी बैठी है, वो उम्म्तें और गिरोह और क़ौमें और अहले ज़बान हैं |
\s5
\v 16 और जो दस सींग तू ने देखे, वो और हैवान उस कस्बी से 'अदावत रखेंगे, और उसे बेबस और नंगा कर देंगे और उसका गोश्त खा जाएँगे, और उसको आग में जला डालेंगे |
\v 17 क्यूँकि ख़ुदा उनके दिलों में ये डालेगा कि वो उसी की राय पर चलें, वो एक -राय होकर अपनी बादशाही उस हैवान को दे दें |
\s5
\v 18 और वो 'औरत जिसे तू ने देखा, वो बड़ा शहर है जो ज़मीन के बादशाहों पर हुकूमत करता है |"
\s5
\c 18
\v 1 इन बातों के बा'द मैंने एक और फ़रिश्ते को आसमान पर से उतरते देखा, जिसे बड़ा इख़्तियार था; और ज़मीन उसके जलाल से रौशन हो गई |
\v 2 उसने बड़ी आवाज़ से चिल्लाकर कहा, "गिर पड़ा, बड़ा शहर बाबुल गिर पड़ा ! और शयातीन का मस्कन और हर नापाक और मकरूह परिन्दे का अड्डा हो गया |
\v 3 क्यूँकि उसकी हरामकारी की ग़ज़बनाक मय के ज़रिए तमाम क़ौमें गिर गईं हैं और ज़मीन के बादशाहों ने उसके साथ हरामकारी की है, और दुनियाँ के सौदागर उसके 'ऐशो-ओ-इश्रत की बदौलत दौलतमन्द हो गए |"
\s5
\v 4 फिर मैंने आसमान में किसी और को ये कहते सुना, "ऐ मेरी उम्मत के लोगो ! उसमें से निकल आओं, ताकि तुम उसके गुनाहों में शरीक न हो, और उसकी आफ़तों में से कोई तूम पर न आ जाए |
\v 5 क्यूँकि उसके गुनाह आसमान तक पहुँच गए हैं, और उसकी बदकारियाँ ख़ुदा को याद आ गई हैं |"
\v 6 जैसा उसने किया वैसा ही तुम भी उसके साथ करो, और उसे उसके कामों का दो चन्द बदला दो, जिस क़दर उसने प्याला भरा तुम उसके लिए दुगना भर दो |
\s5
\v 7 जिस क़दर उसने अपने आपको शानदार बनाया, और अय्याशी की थी, उसी क़दर उसको 'अज़ाब और ग़म में डाल दो; क्यूँकि वो अपने दिल में कहती है, 'मैं मलिका हो बैठी हूँ, बेवा नहीं; और कभी ग़म न देखूँगी |'
\v 8 इसलिए उस एक ही दिन में आफ़तें आएँगी, या'नी मौत और ग़म और काल; और वो आग़ में जलकर ख़ाक कर दी जाएगी, क्यूँकि उसका इन्साफ़ करनेवाला ख़ुदावन्द ख़ुदा ताक़तवर है |
\s5
\v 9 "और उसके साथ हरामकारी और 'अय्याशी करनेवाले ज़मीन के बादशाह, जब उसके जलने का धुवाँ देखेंगे तो उसके लिए रोएँगे और छाती पीटेंगे |
\v 10 और उसके 'अज़ाब के डर से दूर खड़े हुए कहेंगे, 'ऐ बड़े शहर ! अफ़सोस !अफ़सोस ! घड़ी ही भर में तुझे सज़ा मिल गई |'
\s5
\v 11 "और दुनियाँ के सौदागर उसके लिए रोएँगे और मातम करेंगे, क्यूंकि अब कोई उनका माल नहीं ख़रीदने का;
\v 12 और वो माल ये है : सोना, चाँदी, जवाहर, मोती, और महीन कतानी, और इर्ग़वानी और रेशमी और क़िरमिज़ी कपड़े, और हर तरह की ख़ुशबूदार लकड़ियाँ, और हाथीदाँत की तरह की चीज़ें, और निहायत बेशक़ीमत लकड़ी, और पीतल और लोहे और संग-ए-मरमर की तरह तरह की चीज़ें,
\v 13 और दारचीनी और मसाले और 'ऊद और 'इत्र और लुबान, और मय और तेल और मैदा और गेहूँ, और मवेशी और भेड़ें और घोड़े, और गाड़ियां और ग़ुलाम और आदमियों की जानें |" "
\s5
\v 14 अब तेरे दिल पसन्द मेवे तेरे पास से दूर हो गए, और सब लज़ीज़ और तोहफ़ा चीज़ें तुझ से जाती रहीं, अब वो हरगिज़ हाथ न आएँगी |
\s5
\v 15 इन दिनों के सौदागर जो उसके वजह से मालदार बन गए थे, उसके 'अज़ाब ले ख़ौफ़ से दूर खड़े हुए रोएँगे और ग़म करेंगे |
\v 16 और कहेंगे, अफ़सोस ! अफ़सोस ! वो बड़ा शहर जो महीन कतानी, और इर्ग़वानी और क़िरमिज़ी कपड़े पहने हुए, और सोने और जवाहर और मोतियों से सजा हुआ था |
\v 17 घड़ी ही भर में उसकी इतनी बड़ी दौलत बर्बाद हो गई,' और सब नाख़ुदा और जहाज़ के सब मुसाफ़िर, और मल्लाह और जितने समुन्द्र का काम करते हैं,
\s5
\v 18 जब उसके जलने का धुवाँ देखेंगे, तो दूर खड़े हुए चिल्लाएँगे और कहेंगे, 'कौन सा शहर इस बड़े शहर की तरह है?
\v 19 और अपने सिरों पर खाक डालेंगे, और रोते हुए और मातम करते हुए चिल्ला चिल्ला कर कहेंगे, 'अफ़सोस ! अफ़सोस ! वो बड़ा शहर जिसकी दौलत से समुन्दर के सब जहाज़ वाले दौलतमन्द हो गए, घड़ी ही भर में उजड़ गया |'
\v 20 ऐ आसमान, और ऐ मुक़द्दसों और रसूलो और नबियो ! उस पर ख़ुशी करो, क्यूँकि ख़ुदा ने इन्साफ़ करके उससे तुम्हारा बदला ले लिया !"
\s5
\v 21 फिर एक ताक़तवर फ़रिश्ते ने बड़ी चक्की के पाट की तरह एक पत्थर उठाया, और ये कहकर समुन्दर में फेंक दिया, "बाबुल का बड़ा शहर भी इसी तरह ज़ोर से गिराया जाएगा, और फिर कभी उसका पता न मिलेगा |
\v 22 और बर्बत नवाज़ों, और मुतरिबों, और बाँसली बजानेवालों और नरसिंगा फूंकनेवालों की आवाज़ फिर कभी तुझ में न सुनाई देगी; और किसी काम का कारीगर तुझ में फिर कभी पाया न जाएगा | और चक्की की आवाज़ तुझ में फिर कभी न सुनाई देगी |
\s5
\v 23 और चिराग़ की रौशनी तुझ में फिर कभी न चमकेगी, और तुझ में दुल्हे और दुल्हन की आवाज़ फिर कभी सुनाई न देगी; क्यूँकि तेरे सौदागर ज़मीन के अमीर थे, और तेरी जादूगरी से सब क़ौमें गुमराह हो गईं |
\v 24 और नबियों और मुक़द्दसों, और ज़मीन के सब मक़तूलों का ख़ून उसमें पाया गया |"
\s5
\c 19
\v 1 इन बातों के बा'द मैंने आसमान पर गोया बड़ी जमा'अत को ऊँची आवाज़ से ये कहते सुना, "हेल्लिलुइयाह ! नजात और जलाल और क़ुदरत हमारे ख़ुदा की है |
\v 2 क्यूँकि उसके फ़ैसले सहीह और दरुस्त हैं, इसलिए कि उसने उस बड़ी कस्बी का इन्साफ़ किया जिसने अपनी हरामकारी से दुनियाँ को ख़राब किया था, और उससे अपने बन्दों के ख़ून का बदला लिया |"
\s5
\v 3 फिर दूसरी बार उन्होंने कहा, "हल्लीलुइया ! और उसके जलने का धुवाँ हमेशा उठता रहेगा |"
\v 4 और चौबीसों बुज़ुर्गों और चारों जानदारों ने गिर कर ख़ुदा को सिज्दा किया, जो तख़्त पर बैठा था और कहा, "आमीन ! हल्लीलुइया !"
\s5
\v 5 और तख़्त में से ये आवाज़ निकली, "ऐ उससे डरनेवाले बन्दो !चाहे छोटे हो चाहे बड़े !
\s5
\v 6 फिर मैंने बड़ी जमा'अत की सी आवाज़, और ज़ोर की सी आवाज़, और सख़्त गरजो की सी आवाज़ सुनी :" हल्लीलुइया ! इसलिए के ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा क़ादिर-ए-मुतलक़ बादशाही करता है |
\s5
\v 7 आओं, हम ख़ुशी करें और निहायत शादमान हों, और उसकी बड़ाई करें; इसलिए कि बर्रे की शादी आ पहुँची, और उसकी बीवी ने अपने आपको तैयार कर लिया;
\v 8 और उसको चमकदार और साफ़ महीन कतानी कपड़ा पहनने का इख़्तियार दिया गया, " क्यूँकि महीन कतानी कपड़ों से मुक़द्दस लोगों की रास्तबाज़ी के काम मुराद हैं |
\s5
\v 9 और उसने मुझ से कहा, "लिख, मुबारक हैं वो जो बर्रे की शादी की दावत में बुलाए गए हैं |" फिर उसने मुझ से कहा, "ये ख़ुदा की सच्ची बातें हैं |"
\v 10 और मैं उसे सिज्दा करने के लिए उसके पाँव पर गिरा | उसने मुझ से कहा, "ख़बरदार ! ऐसा न कर | मैं भी तेरा और तेरे उन भाइयों का हमख़िदमत हूँ, जो ईसा ' की गवाही देने पर क़ायम हैं | ख़ुदा ही को सिज्दा कर |" क्यूँकि ईसा ' की गवाही नबुव्वत की रूह है |
\s5
\v 11 फिर मैंने आसमान को खुला हुआ, देखा, और क्या देखता हूँ कि एक सफ़ेद घोड़ा है; और उस पर एक सवार है जो सच्चा और बरहक़ कहलाता है, और वो सच्चाई के साथ इन्साफ़ और लड़ाई करता है |
\v 12 और उसकी आँखें आग के शो'ले हैं, और उसके सिर पर बहुत से ताज हैं | और उसका एक नाम लिखा हुआ है, जिसे उसके सिवा और कोई नहीं जानता |
\v 13 और वो ख़ून की छिड़की हुई पोशाक पहने हुए है, और उसका नाम कलाम-ए-ख़ुदा कहलाता है |
\s5
\v 14 और आसमान की फ़ौजें सफ़ेद घोड़ों पर सवार, और सफ़ेद और साफ़ महीन कतानी कपड़े पहने हुए उसके पीछे पीछे हैं |
\v 15 और क़ौमों के मारने के लिए उसके मुँह से एक तेज़ तलवार निकलती है; और वो लोहे की 'लाठी से उन पर हुकूमत करेगा, और क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा के तख़्त गज़ब की मय के हौज़ में अंगूर रौंदेगा |
\v 16 और उसकी पौशाक और रान पर ये नाम लिखा हुआ है : "बादशाहों का बादशाह और ख़ुदावन्दों का ख़ुदावन्द |"
\s5
\v 17 फिर मैंने एक फ़रिश्ते को आफ़ताब पर खड़े हुए देखा | और उसने बड़ी आवाज़ से चिल्ला कर आसमान में के सब उड़नेवाले परिन्दों से कहा, "आओं, ख़ुदा की बड़ी दावत में शरीक होने के लिए जमा' हो जाओ;
\v 18 ताकि तुम बादशाहों का गोश्त, और फ़ौजी सरदारों का गोश्त, और ताक़तवरों का गोश्त, और घोड़ों और उनके सवारों का गोश्त, और सब आदमियों का गोश्त खाओ; चाहे आज़ाद हों चाहे ग़ुलाम, चाहे छोटे हों चाहे बड़े |"
\s5
\v 19 फिर मैंने उस हैवान और ज़मीन के बादशाहों और उनकी फ़ौजों को, उस घोड़े के सवार और उसकी फ़ौज से जंग करने के लिए इकट्ठे देखा |
\v 20 और वो हैवान और उसके साथ वो झूटा नबी पकड़ा गया, जिनसे उसने हैवान की छाप लेनेवालों और उसके बुत की इबादत करनेवालों को गुमराह किया था | वो दोनों आग की उस झील में ज़िन्दा डाले गए, जो गंधक से जलती है | " "
\s5
\v 21 और बाक़ी उस घोड़े के सवार की तलवार से, जो उसके मुँह से निकलती थी क़त्ल किए गए; और सब परिन्दे उनके गोश्त से सेर हो गए |
\s5
\c 20
\v 1 फिर मैंने एक फ़रिश्ते को आसमान से उतरते देखा, जिसके हाथ में अथाह गड्ढे की कुंजी और एक बड़ी ज़ंजीर थी |
\v 2 उसने उस अज़दहा, या'नी पुराने साँप को जो इब्लीस और शैतान है, पकड़ कर हज़ार बरस के लिए बाँधा,
\v 3 और उसे अथाह गड्ढे में डाल कर बन्द कर दिया और उस पर मुहर कर दी, ताकि वो हज़ार बरस के पूरे होने तक क़ौमों को फिर गुमराह न करे | इसके बा'द ज़रूर है कि थोड़े 'अरसे के लिए खोला जाए |
\s5
\v 4 फिर मैंने तख़्त देखे, और लोग उन पर बैठ गए और 'अदालत उनके सुपुर्द की गई; और उनकी रूहों को भी देखा जिनके सिर ईसा ' की गवाही देने और ख़ुदा के कलाम की वजह से काटे गए थे, और जिन्होंने न उस हैवान की इबादत की थी न उसके बुत की, और न उसकी छाप अपने माथे और हाथों पर ली थी | वो ज़िन्दा होकर हज़ार बरस तक मसीह के साथ बादशाही करते रहे |
\s5
\v 5 और जब तक ये हज़ार बरस पूरे न हो गए बाक़ी मुर्दे ज़िन्दा न हुए | पहली कयामत यही है |
\v 6 मुबारक और मुक़द्दस वो है, जो पहली क़यामत में शरीक हो | ऐसों पर दूसरी मौत का कुछ इख़्तियार नहीं, बल्कि वो ख़ुदा और मसीह के काहिन होंगें और उसके साथ हज़ार बरस तक बादशाही करेंगे |
\s5
\v 7 जब हज़ार बरस पुरे हो चुकेंगे, तो शैतान क़ैद से छोड़ दिया जाएगा |
\v 8 और उन क़ौमों को जो ज़मीन की चारों तरफ़ होंगी, या'नी याजूज-ओ-माजूज को गुमराह करके लड़ाई के लिए जमा' करने को निकाले; उनका शुमार समुन्दर की रेत के बराबर होगा |
\s5
\v 9 और वो तमाम ज़मीन पर फैल जाएँगी, और मुक़द्दसों की लश्करगाह और 'अज़ीज़ शहर को चारों तरफ़ से घेर लेंगी, और आसमान पर से आग नाज़िल होकर उन्हें खा जाएगी |
\v 10 और उनका गुमराह करने वाला इब्लीस आग और गंधक की उस झील में डाला जाएगा, जहाँ वो हैवान और झूटा नबी भी होगा; और रात दिन हमेशा से हमेशा तक 'अज़ाब में रहेंगे |
\s5
\v 11 फिर मैंने एक बड़ा सफ़ेद तख़्त और उसको जो उस पर बैठा हुआ था देखा, जिसके सामने से ज़मीन और आसमान भाग गए, और उन्हें कहीं जगह न मिली |
\v 12 फिर मैंने छोटे बड़े सब मुर्दों को उस तख़्त के सामने खड़े हुए देखा, और किताब खोली गई, या'नी किताब-ए-हयात; और जिस तरह उन किताबों में लिखा हुआ था, उनके आ'माल के मुताबिक़ मुर्दों का इन्साफ़ किया गया |
\s5
\v 13 और समुन्दर ने अपने अन्दर के मुर्दों को दे दिया, और मौत और 'आलम-ए-अर्वाह ने अपने अन्दर के मुर्दों को दे दिया, और उनमें से हर एक के आ'माल के मुताबिक़ उसका इन्साफ़ किया गया |
\v 14 फिर मौत और 'आलम-ए-अर्वाह आग की झील में डाले गए | ये आग की झील आखरी मौत है,
\v 15 और जिस किसी का नाम किताब-ए-हयात में लिखा हुआ न मिला, वो आग की झील में डाला गया |
\s5
\c 21
\v 1 फिर मैंने एक नये आसमान और नई ज़मीन को देखा, क्यूँकि पहला आसमान और पहली ज़मीन जाती रही थी, और समुन्दर भी न रहा |
\v 2 फिर मैंने शहर-ए-मुक़द्दस नये यरूशलीम को आसमान पर से ख़ुदा के पास से उतरते देखा, और वो उस दुल्हन की तरह सजा था जिसने अपने शौहर के लिए सिंगार किया हो |
\s5
\v 3 फिर मैंने तख़्त में से किसी को उनको ऊँची आवाज़ से ये कहते सुना, "देख, ख़ुदा का ख़ेमा आदमियों के दर्मियान है |और वो उनके साथ सुकूनत करेगा, और वो उनके साथ रहेगा और उनका ख़ुदा होगा |
\v 4 और उनकी आँखों के सब आँसू पोंछ देगा; इसके बा'द न मौत रहेगी, और न मातम रहेगा, न आह-ओ-नाला न दर्द; पहली चीज़ें जाती रहीं |"
\s5
\v 5 और जो तख़्त पर बैठा हुआ था, उसने कहा, "देख, मैं सब चीज़ों को नया बना देता हूँ |" फिर उसने कहा, "लिख ले, क्यूँकि ये बातें सच और बरहक़ हैं |"
\v 6 फिर उसने मुझ से कहा, "ये बातें पूरी हो गईं | मैं अल्फ़ा और ओमेगा, या'नी शुरू और आख़िर हूँ | मैं प्यासे को आब-ए-हयात के चश्मे से मुफ़्त पिलाऊँगा |
\s5
\v 7 जो ग़ालिब आए वही इन चीज़ों का वारिस होगा, और मैं उसका ख़ुदा हूँगा और वो मेरा बेटा होगा |
\v 8 मगर बुज़दिलों, और बेईमान लोगों, और घिनौने लोगों, और खूनियों, और हरामकारों, और जादूगरों, और बुत परस्तों, और सब झूटों का हिस्सा आग और गन्धक से जलने वाली झील में होगा ; ये दूसरी मौत है |
\s5
\v 9 फिर इन सात फ़रिश्तों में से जिनके पास प्याले थे, एक ने आकर मुझ से कहा, "इधर आ, मैं तुझे दुल्हन, या'नी बर्रे की बीवी दिखाऊँ |"
\v 10 और वो मुझे रूह में एक बड़े और ऊँचे पहाड़ पर ले गया, और शहर-ए-मुक़द्दस यरूशलीम को आसमान पर से ख़ुदा के पास से उतरते दिखाया |
\s5
\v 11 उसमें ख़ुदा का जलाल था, और उसकी चमक निहायत कीमती पत्थर, या'नी उस यशब की सी थी जो बिल्लौर की तरह शफ़्फ़ाफ़ हो |
\v 12 और उसकी शहरपनाह बड़ी और ऊची थी, और उसके बारह दरवाज़े और दरवाज़ों पर बारह फ़रिश्ते थे, और उन पर बनी-इस्राईल के बारह क़बीलों के नाम लिखे हुए थे |
\v 13 तीन दरवाज़े मशरिक़ की तरफ़ थे, तीन दरवाज़े शुमाल की तरफ़, तीन दरवाज़े जुनूब की तरफ़, और तीन दरवाज़े मगरिब की तरफ़ |
\s5
\v 14 और उस शाहर की शहरपनाह की बारह बुनियादे थीं, और उन पर बर्रे के बारह रसूलों के बारह नाम लिखे थे |
\v 15 और जो मुझ से कह रहा था, उसके पास शहर और उसके दरवाज़ों और उसकी शहरपनाह के नापने के लिए एक पैमाइश का आला, या'नी सोने का गज़ था |
\s5
\v 16 और वो शहर चौकोर वाक़े' हुआ था, और उसकी लम्बाई चौड़ाई के बराबर थी; उसने शहर को उस गज़ से नापा, तो बारह हज़ार फ़रलाँग निकला : उसकी लम्बाई और चौड़ाई बराबर थी |
\v 17 और उसने उसकी शहरपनाह को आदमी की, या'नी फ़रिश्ते की पैमाइश के मुताबिक़ नापा, तो एक सौ चवालीस हाथ निकली |
\s5
\v 18 और उसकी शहरपनाह की ता'मीर यशब की थी, और शहर ऐसे ख़ालिस सोने का था जो साफ़ शीशे की तरह हो |
\v 19 और उस शहर की शहरपनाह की बुनियादें हर तरह के जवाहर से आरास्ता थीं; पहली बुनियाद यश्ब की थी, दूसरी नीलम की, तीसरी शब चिराग़ की, चौथी ज़मुर्रुद की,
\v 20 पाँचवीं 'आक़ीक़ की, छटी ला'ल की, सातवीं सुन्हरे पत्थर की, आठवीं फ़ीरोज़ की, नवीं ज़बरजद की, और बारहवीं याकूत की |
\s5
\v 21 और बारह दरवाज़े बारह मोतियों के थे; हर दरवाज़ा एक मोती का था, और शहर की सड़क साफ़ शीशे की तरह ख़ालिस सोने की थी |
\v 22 और मैंने उसमें कोई मक़्दिस न देखे, इसलिए कि ख़ुदावन्द ख़ुदा क़ादिर-ए-मुतलक़ और बर्रा उसका मक़्दिस हैं |
\s5
\v 23 और उस शहर में सूरज या चाँद की रौशनी की कुछ हाजत नहीं, क्यूँकि ख़ुदा के जलाल ने उसे रौशन क्रर रख्खा है, और बर्रा उसका चिराग़ है |
\v 24 और क़ौमें उसकी रौशनी में चले फिरेंगी, और ज़मीन के बादशाह अपनी शान-ओ-शौकत का सामान उसमें लाएँगे |
\v 25 और उसके दरवाज़े दिन को हरगिज़ बन्द न होंगे, और रात वहाँ न होगी |
\s5
\v 26 और लोग क़ौमों की शान-ओ-शौकत और इज़्ज़त का सामान उसमें लाएँगे |
\v 27 और उसमें कोई नापाक या झूटी बातें गढ़ता है, हरगिज़ दाख़िल न होगा, मगर वुही जिनके नाम बर्रे की किताब-ए-हयात में लिखे हुए हैं |
\s5
\c 22
\v 1 फिर उसने मुझे बिल्लौर की तरह चमकता हुआ आब-ए-हयात का एक दरिया दिखाया, जो ख़ुदा और बर्रे के तख़्त से निकल कर उस शहर की सड़क के बीच में बहता था |
\v 2 और दरिया के पार ज़िन्दगी का दरख़्त था | उसमें बारह क़िस्म के फल आते थे और हर महीने में फलता था, और उस दरख़्त के पत्तों से क़ौमों को शिफ़ा होती थी |
\s5
\v 3 और फिर ला'नत न होगी, और ख़ुदा और बर्रे का तख़्त उस शहर में होगा, और उसके बन्दे उसकी 'इबादत करेंगे |
\v 4 और वो उसका मुँह देखेंगे, और उसका नाम उनके माथों पर लिखा हुआ होगा |
\v 5 और फिर रात न होगी, और वो चिराग़ और सूरज की रौशनी के मुहताज न होंगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा उनको रौशन करेगा और वो हमेशा से हमेशा तक बादशाही करेंगे |
\s5
\v 6 फिर उसने मुझ से कहा, "ये बातें सच और बरहक़ हैं; चुनाँचे ख़ुदावन्द ने जो नबियों की रूहों का ख़ुदा है, अपने फ़रिश्ते को इसलिए भेजा कि अपने बन्दों को वो बातें दिखाए जिनका जल्द होना ज़रूर है |"
\v 7 "और देख मैं जल्द आने वाला हूँ | मुबारक है वो जो इस किताब की नबुव्वत की बातो पर 'अमल करता है |"
\s5
\v 8 मैं वही युहन्ना हूँ, जो इन बातों को सुनता और देखता था; और जब मैंने सुना और देखा, तो जिस फ़रिश्ते ने मुझे ये बातें दिखाई, मैं उसके पैर पर सिज्दा करने को गिरा |
\v 9 उसने मुझ से कहा, "ख़बरदार ! ऐसा न कर, मैं भी तेरा और तेरे नबियों और इस किताब की बातो पर 'अमल करनेवालों का हम ख़िदमत हूँ | ख़ुदा ही को सिज्दा कर |
\s5
\v 10 फिर उसने मुझ से कहा, "इस किताब की नबुव्वत की बातों को छुपाए न रख; क्यूँकि वक़्त नज़दीक है,
\v 11 जो बुराई करता है, वो बुराई ही करता जाए; और जो नजिस है, वो नजिस ही होता जाए; और जो रास्तबाज़ है, वो रास्तबाज़ी करता जाए; और जो पाक है, वो पाक ही होता जाए |"
\s5
\v 12 "देख, मैं जल्द आने वाला हूँ; और हर एक के काम के मुताबिक़ देने के लिए बदला मेरे पास है |
\v 13 मैं अल्फ़ा और ओमेगा, पहला और आख़िर, इब्तिदा और इन्तहा हूँ |"
\s5
\v 14 मुबारक है वो जो अपने जामे धोते हैं, क्यूँकि ज़िन्दगी के दरख़्त के पास आने का इख़्तियार पाएँगे, और उन दरवाज़ों से शहर में दाख़िल होंगे |
\v 15 मगर कुत्ते , और जादूगर, और हरामकार, और ख़ूनी, और बुत परस्त, और झूटी बात का हर एक पसन्द करने और गढ़ने वाला बाहर रहेगा |
\s5
\v 16 "मुझ ईसा' ने, अपना फ़रिश्ता इसलिए भेजा कि कलीसियाओं के बारे में तुम्हारे आगे इन बातों की गवाही दे | मैं दाऊद की अस्ल-ओ-नस्ल और सुबह का चमकता हुआ सितारा हूँ |"
\s5
\v 17 और रूह और दुल्हन कहती हैं, "आ |" और सुननेवाला भी कहे, "आ |" "आ |" और जो प्यासा हो वो आए, और जो कोई चाहे आब-ए-हयात मुफ़्त ले |
\s5
\v 18 मैं हर एक आदमी के आगे, जो इस किताब की नबुव्वत की बातें सुनता है, गवाही देता हूँ : अगर कोई आदमी इनमें कुछ बढ़ाए, तो ख़ुदा इस किताब में लिखी हुई आफ़तें उस पर नाज़िल करेगा |
\v 19 और अगर कोई इस नबुव्वत की किताब की बातों में से कुछ निकाल डाले, तो ख़ुदा उस ज़िन्दगी के दरख़्त और मुक़द्दस शहर में से, जिनका इस किताब में ज़िक्र है, उसका हिस्सा निकाल डालेगा | "
\s5
\v 20 जो इन बातों की गवाही देता है वो ये कहता है, "बेशक, मैं जल्द आने वाला हूँ |" आमीन ! ऐ ख़ुदावन्द ईसा ' आ !
\v 21 ख़ुदावन्द ईसा ' का फ़ज़ल मुक़द्दसों के साथ रहे | आमीन |

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title: "यहूदाह का 'आम ख़त "
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title: "यूहन्ना 'आरिफ़ का मुकाश्फ़ा "
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