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\id PRO
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\ide UTF-8
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\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
|
|
\h नीतिवचन
|
|
\toc1 नीतिवचन
|
|
\toc2 नीतिवचन
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|
\toc3 pro
|
|
\mt1 नीतिवचन
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|
|
\s5
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\c 1
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\s बुद्धि का प्रारंभ
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\p
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\v 1 दाऊद के पुत्र इस्राएल के राजा सुलैमान के नीतिवचन:
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\q
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|
\v 2 इनके द्वारा पढ़नेवाला बुद्धि और शिक्षा प्राप्त करे,
|
|
\q और समझ* की बातें समझे,
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|
\q
|
|
\v 3 और विवेकपूर्ण जीवन निर्वाह करने में प्रवीणता,
|
|
\q और धर्म, न्याय और निष्पक्षता के विषय अनुशासन प्राप्त करे;
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 4 कि भोलों को चतुराई,
|
|
\q और जवान को ज्ञान और विवेक मिले;
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|
\q
|
|
\v 5 कि बुद्धिमान सुनकर अपनी विद्या बढ़ाए,
|
|
\q और समझदार बुद्धि का उपदेश पाए,
|
|
\q
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|
\v 6 जिससे वे नीतिवचन और दृष्टान्त को,
|
|
\q और बुद्धिमानों के वचन और उनके रहस्यों को समझें।
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\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 यहोवा का भय मानना बुद्धि का मूल है*;
|
|
\q बुद्धि और शिक्षा को मूर्ख लोग ही तुच्छ जानते हैं।
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\s दुष्ट सलाह से बचना
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\q
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|
\v 8 हे मेरे पुत्र, अपने पिता की शिक्षा पर कान लगा,
|
|
\q और अपनी माता की शिक्षा को न तज;
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|
\q
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|
\v 9 क्योंकि वे मानो तेरे सिर के लिये शोभायमान मुकुट,
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|
\q और तेरे गले के लिये माला होगी।
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|
\q
|
|
\s5
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|
\v 10 हे मेरे पुत्र, यदि पापी लोग तुझे फुसलाएँ,
|
|
\q तो उनकी बात न मानना।
|
|
\q
|
|
\v 11 यदि वे कहें, “हमारे संग चल,
|
|
\q कि हम हत्या करने के लिये घात लगाएँ, हम निर्दोषों पर वार करें;
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|
\q
|
|
\s5
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|
\v 12 हम उन्हें जीवित निगल जाए, जैसे अधोलोक स्वस्थ लोगों को निगल जाता है,
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|
\q और उन्हें कब्र में पड़े मृतकों के समान बना दें।
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|
\q
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|
\v 13 हमको सब प्रकार के अनमोल पदार्थ मिलेंगे,
|
|
\q हम अपने घरों को लूट से भर लेंगे;
|
|
\q
|
|
\v 14 तू हमारा सहभागी हो जा,
|
|
\q हम सभी का एक ही बटुआ हो,”
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 तो, हे मेरे पुत्र तू उनके संग मार्ग में न चलना,
|
|
\q वरन् उनकी डगर में पाँव भी न रखना;
|
|
\q
|
|
\v 16 क्योंकि वे बुराई ही करने को दौड़ते हैं,
|
|
\q और हत्या करने को फुर्ती करते हैं। (रोम. 3:15-17)
|
|
\q
|
|
\v 17 क्योंकि पक्षी के देखते हुए जाल फैलाना व्यर्थ होता है;
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 18 और ये लोग तो अपनी ही हत्या करने के लिये घात लगाते हैं,
|
|
\q और अपने ही प्राणों की घात की ताक में रहते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 19 सब लालचियों की चाल ऐसी ही होती है;
|
|
\q उनका प्राण लालच ही के कारण नाश हो जाता है।
|
|
\s ज्ञान की पुकार
|
|
\p
|
|
\s5
|
|
\v 20 बुद्धि सड़क में ऊँचे स्वर से बोलती है;
|
|
\q और चौकों में प्रचार करती है;
|
|
\q
|
|
\v 21 वह बाजारों की भीड़ में पुकारती है;
|
|
\q वह नगर के फाटकों के प्रवेश पर खड़ी होकर, यह बोलती है:
|
|
\q
|
|
\v 22 “हे अज्ञानियों, तुम कब तक अज्ञानता से प्रीति रखोगे?
|
|
\q और हे ठट्टा करनेवालों, तुम कब तक ठट्ठा करने से प्रसन्न रहोगे?
|
|
\q हे मूर्खों, तुम कब तक ज्ञान से बैर रखोगे?
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 23 तुम मेरी डाँट सुनकर मन फिराओ;
|
|
\q सुनो, मैं अपनी आत्मा तुम्हारे लिये उण्डेल दूँगी;
|
|
\q मैं तुम को अपने वचन बताऊँगी।
|
|
\q
|
|
\v 24 मैंने तो पुकारा परन्तु तुम ने इन्कार किया,
|
|
\q और मैंने हाथ फैलाया, परन्तु किसी ने ध्यान न दिया,
|
|
\q
|
|
\v 25 वरन् तुम ने मेरी सारी सम्मति को अनसुना किया,
|
|
\q और मेरी ताड़ना का मूल्य न जाना;
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 26 इसलिए मैं भी तुम्हारी विपत्ति के समय हँसूँगी;
|
|
\q और जब तुम पर भय आ पड़ेगा, तब मैं ठट्ठा करूँगी।
|
|
\q
|
|
\v 27 वरन् आँधी के समान तुम पर भय आ पड़ेगा,
|
|
\q और विपत्ति बवण्डर के समान आ पड़ेगी,
|
|
\q और तुम संकट और सकेती में फँसोगे, तब मैं ठट्ठा करूँगी।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 28 उस समय वे मुझे पुकारेंगे, और मैं न सुनूँगी;
|
|
\q वे मुझे यत्न से तो ढूँढेंगे, परन्तु न पाएँगे।
|
|
\q
|
|
\v 29 क्योंकि उन्होंने ज्ञान से बैर किया,
|
|
\q और यहोवा का भय मानना उनको न भाया।
|
|
\q
|
|
\v 30 उन्होंने मेरी सम्मति न चाही
|
|
\q वरन् मेरी सब ताड़नाओं को तुच्छ जाना।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 31 इसलिए वे अपनी करनी का फल आप भोगेंगे,
|
|
\q और अपनी युक्तियों के फल से अघा जाएँगे।
|
|
\q
|
|
\v 32 क्योंकि अज्ञानियों का भटक जाना, उनके घात किए जाने का कारण होगा,
|
|
\q और निश्चिन्त रहने के कारण मूर्ख लोग नाश होंगे;
|
|
\q
|
|
\v 33 परन्तु जो मेरी सुनेगा, वह निडर बसा रहेगा,
|
|
\q और विपत्ति से निश्चिन्त होकर सुख से रहेगा।”
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 2
|
|
\s ज्ञान का मूल्य
|
|
\q
|
|
\v 1 हे मेरे पुत्र, यदि तू मेरे वचन ग्रहण करे,
|
|
\q और मेरी आज्ञाओं को अपने हृदय में रख छोड़े,
|
|
\q
|
|
\v 2 और बुद्धि की बात ध्यान से सुने,
|
|
\q और समझ की बात मन लगाकर सोचे;* (नीति. 23:12)
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 यदि तू प्रवीणता और समझ के लिये अति यत्न से पुकारे,
|
|
\q
|
|
\v 4 और उसको चाँदी के समान ढूँढ़े,
|
|
\q और गुप्त धन के समान उसकी खोज में लगा रहे; (मत्ती 13:44)
|
|
\q
|
|
\v 5 तो तू यहोवा के भय को समझेगा,
|
|
\q और परमेश्वर का ज्ञान तुझे प्राप्त होगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 6 क्योंकि बुद्धि यहोवा ही देता है*;
|
|
\q ज्ञान और समझ की बातें उसी के मुँह से निकलती हैं। (याकूब. 1:5)
|
|
\q
|
|
\v 7 वह सीधे लोगों के लिये खरी बुद्धि रख छोड़ता है;
|
|
\q जो खराई से चलते हैं, उनके लिये वह ढाल ठहरता है।
|
|
\q
|
|
\v 8 वह न्याय के पथों की देख-भाल करता,
|
|
\q और अपने भक्तों के मार्ग की रक्षा करता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 तब तू धर्म और न्याय और सिधाई को,
|
|
\q अर्थात् सब भली-भली चाल को समझ सकेगा;
|
|
\q
|
|
\v 10 क्योंकि बुद्धि तो तेरे हृदय में प्रवेश करेगी,
|
|
\q और ज्ञान तेरे प्राण को सुख देनेवाला होगा;
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 विवेक तुझे सुरक्षित रखेगा;
|
|
\q और समझ तेरी रक्षक होगी;
|
|
\q
|
|
\v 12 ताकि वे तुझे बुराई के मार्ग से,
|
|
\q और उलट फेर की बातों के कहनेवालों से बचायेंगे,
|
|
\q
|
|
\v 13 जो सिधाई के मार्ग को छोड़ देते हैं,
|
|
\q ताकि अंधेरे मार्ग में चलें;
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 14 जो बुराई करने से आनन्दित होते हैं,
|
|
\q और दुष्ट जन की उलट फेर की बातों में मगन रहते हैं;
|
|
\q
|
|
\v 15 जिनके चालचलन टेढ़े-मेढ़े
|
|
\q और जिनके मार्ग में कुटिलता हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 16 बुद्धि और विवेक तुझे पराई स्त्री से बचाएंगे,
|
|
\q जो चिकनी चुपड़ी बातें बोलती है,
|
|
\q
|
|
\v 17 और अपनी जवानी के साथी को छोड़ देती,
|
|
\q और जो अपने परमेश्वर की वाचा* को भूल जाती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 18 उसका घर मृत्यु की ढलान पर है,
|
|
\q और उसकी डगरें मरे हुओं के बीच पहुँचाती हैं;
|
|
\q
|
|
\v 19 जो उसके पास जाते हैं, उनमें से कोई भी लौटकर नहीं आता;
|
|
\q और न वे जीवन का मार्ग पाते हैं।
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|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 20 इसलिए तू भले मनुष्यों के मार्ग में चल,
|
|
\q और धर्मियों के पथ को पकड़े रह।
|
|
\v 21
|
|
\q क्योंकि धर्मी लोग देश में बसे रहेंगे,
|
|
\q और खरे लोग ही उसमें बने रहेंगे।
|
|
\q
|
|
\v 22 दुष्ट लोग देश में से नाश होंगे,
|
|
\q और विश्वासघाती उसमें से उखाड़े जाएँगे।
|
|
|
|
\s5
|
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\c 3
|
|
\s युवाओं के लिए मार्गदर्शन
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|
\q
|
|
\v 1 हे मेरे पुत्र, मेरी शिक्षा को न भूलना;
|
|
\q अपने हृदय में मेरी आज्ञाओं को रखे रहना;
|
|
\q
|
|
\v 2 क्योंकि ऐसा करने से तेरी आयु बढ़ेगी,
|
|
\q और तू अधिक कुशल से रहेगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 कृपा और सच्चाई तुझ से अलग न होने पाएँ;
|
|
\q वरन् उनको अपने गले का हार बनाना,
|
|
\q और अपनी हृदयरूपी पटिया पर लिखना। (2 कुरिन्थियों. 3:3)
|
|
\q
|
|
\v 4 तब तू परमेश्वर और मनुष्य दोनों का अनुग्रह पाएगा,
|
|
\q तू अति प्रतिष्ठित होगा। (लूका 2:52, रोम. 12:17, 2 कुरिन्थियों. 8:21)
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 तू अपनी समझ का सहारा न लेना,
|
|
\q वरन् सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना*।
|
|
\q
|
|
\v 6 उसी को स्मरण करके सब काम करना,
|
|
\q तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न होना;
|
|
\q यहोवा का भय मानना, और बुराई से अलग रहना। (रोम. 12:16)
|
|
\q
|
|
\v 8 ऐसा करने से तेरा शरीर भला चंगा,
|
|
\q और तेरी हड्डियाँ पुष्ट रहेंगी।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 अपनी सम्पत्ति के द्वारा
|
|
\q और अपनी भूमि की सारी पहली उपज देकर यहोवा की प्रतिष्ठा करना;
|
|
\q
|
|
\v 10 इस प्रकार तेरे खत्ते भरे
|
|
\q और पूरे रहेंगे, और तेरे रसकुण्डों से नया दाखमधु उमण्डता रहेगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 हे मेरे पुत्र, यहोवा की शिक्षा से मुँह न मोड़ना,
|
|
\q और जब वह तुझे डाँटे, तब तू बुरा न मानना,
|
|
\q
|
|
\v 12 जैसे पिता अपने प्रिय पुत्र को डाँटता है,
|
|
\q वैसे ही यहोवा जिससे प्रेम रखता है उसको डाँटता है। (इफिसियों. 6:4, इब्रानियों. 12:5-7)
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो बुद्धि पाए, और वह मनुष्य जो समझ प्राप्त करे,
|
|
\q
|
|
\v 14 जो उपलब्धि बुद्धि से प्राप्त होती है, वह चाँदी की प्राप्ति से बड़ी,
|
|
\q और उसका लाभ शुद्ध सोने के लाभ से भी उत्तम है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 वह बहुमूल्य रत्नों से अधिक मूल्यवान है,
|
|
\q और जितनी वस्तुओं की तू लालसा करता है, उनमें से कोई भी उसके तुल्य न ठहरेगी।
|
|
\q
|
|
\v 16 उसके दाहिने हाथ में दीर्घायु,
|
|
\q और उसके बाएँ हाथ में धन और महिमा हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 उसके मार्ग आनन्ददायक हैं,
|
|
\q और उसके सब मार्ग कुशल के हैं।
|
|
\q
|
|
\v 18 जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं,
|
|
\q उनके लिये वह जीवन का वृक्ष बनती है; और जो उसको पकड़े रहते हैं, वह धन्य हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 यहोवा ने पृथ्वी की नींव बुद्धि ही से डाली;
|
|
\q और स्वर्ग को समझ ही के द्वारा स्थिर किया।
|
|
\q
|
|
\v 20 उसी के ज्ञान के द्वारा गहरे सागर फूट निकले,
|
|
\q और आकाशमण्डल से ओस टपकती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 21 हे मेरे पुत्र, ये बातें तेरी दृष्टि की ओट न होने पाए; तू खरी बुद्धि
|
|
\q और विवेक* की रक्षा कर,
|
|
\q
|
|
\v 22 तब इनसे तुझे जीवन मिलेगा,
|
|
\q और ये तेरे गले का हार बनेंगे।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 23 तब तू अपने मार्ग पर निडर चलेगा,
|
|
\q और तेरे पाँव में ठेस न लगेगी।
|
|
\q
|
|
\v 24 जब तू लेटेगा, तब भय न खाएगा,
|
|
\q जब तू लेटेगा, तब सुख की नींद आएगी।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 25 अचानक आनेवाले भय से न डरना,
|
|
\q और जब दुष्टों पर विपत्ति आ पड़े,
|
|
\q तब न घबराना;
|
|
\q
|
|
\v 26 क्योंकि यहोवा तुझे सहारा दिया करेगा,
|
|
\q और तेरे पाँव को फंदे में फँसने न देगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 27 जो भलाई के योग्य है उनका भला अवश्य करना,
|
|
\q यदि ऐसा करना तेरी शक्ति में है।
|
|
\q
|
|
\v 28 यदि तेरे पास देने को कुछ हो,
|
|
\q तो अपने पड़ोसी से न कहना कि जा कल फिर आना, कल मैं तुझे दूँगा। (2 कुरिन्थियों. 8:12)
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 29 जब तेरा पड़ोसी तेरे पास निश्चिन्त रहता है,
|
|
\q तब उसके विरुद्ध बुरी युक्ति न बाँधना।
|
|
\q
|
|
\v 30 जिस मनुष्य ने तुझ से बुरा व्यवहार न किया हो,
|
|
\q उससे अकारण मुकद्दमा खड़ा न करना।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 31 उपद्रवी पुरुष के विषय में डाह न करना,
|
|
\q न उसकी सी चाल चलना;
|
|
\q
|
|
\v 32 क्योंकि यहोवा कुटिल मनुष्य से घृणा करता है,
|
|
\q परन्तु वह अपना भेद सीधे लोगों पर प्रकट करता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 33 दुष्ट के घर पर यहोवा का श्राप
|
|
\q और धर्मियों के वासस्थान पर उसकी आशीष होती है।
|
|
\q
|
|
\v 34 ठट्ठा करनेवालों का वह निश्चय ठट्ठा करता है;
|
|
\q परन्तु दीनों पर अनुग्रह करता है। (याकूब. 4:6, 1 पतरस. 5:5)
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 35 बुद्धिमान महिमा को पाएँगे,
|
|
\q परन्तु मूर्खों की बढ़ती अपमान ही की होगी।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 4
|
|
\s ज्ञान में सुरक्षा
|
|
\q
|
|
\v 1 हे मेरे पुत्रों, पिता की शिक्षा सुनो,
|
|
\q और समझ प्राप्त करने में मन लगाओ।
|
|
\q
|
|
\v 2 क्योंकि मैंने तुम को उत्तम शिक्षा दी है;
|
|
\q मेरी शिक्षा को न छोड़ो।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 देखो, मैं भी अपने पिता का पुत्र था,
|
|
\q और माता का एकलौता दुलारा था,
|
|
\q
|
|
\v 4 और मेरा पिता मुझे यह कहकर सिखाता था,
|
|
\q “तेरा मन मेरे वचन पर लगा रहे;
|
|
\q तू मेरी आज्ञाओं का पालन कर, तब जीवित रहेगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 बुद्धि को प्राप्त कर, समझ को भी प्राप्त कर;
|
|
\q उनको भूल न जाना, न मेरी बातों को छोड़ना।
|
|
\q
|
|
\v 6 बुद्धि को न छोड़ और वह तेरी रक्षा करेगी;
|
|
\q उससे प्रीति रख और वह तेरा पहरा देगी।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 बुद्धि श्रेष्ठ है इसलिए उसकी प्राप्ति के लिये यत्न कर;
|
|
\q अपना सब कुछ खर्च कर दे ताकि समझ को प्राप्त कर सके।
|
|
\q
|
|
\v 8 उसकी बड़ाई कर, वह तुझको बढ़ाएगी;
|
|
\q जब तू उससे लिपट जाए, तब वह तेरी महिमा करेगी।
|
|
\q
|
|
\v 9 वह तेरे सिर पर शोभायमान आभूषण बांधेगी;
|
|
\q और तुझे सुन्दर मुकुट देगी।”
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 10 हे मेरे पुत्र, मेरी बातें सुनकर ग्रहण कर,
|
|
\q तब तू बहुत वर्ष तक जीवित रहेगा।
|
|
\q
|
|
\v 11 मैंने तुझे बुद्धि का मार्ग बताया है;
|
|
\q और सिधाई के पथ पर चलाया है।
|
|
\q
|
|
\v 12 जिसमें चलने पर तुझे रोक टोक न होगी*,
|
|
\q और चाहे तू दौड़े, तो भी ठोकर न खाएगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 शिक्षा को पकड़े रह, उसे छोड़ न दे;
|
|
\q उसकी रक्षा कर, क्योंकि वही तेरा जीवन है।
|
|
\q
|
|
\v 14 दुष्टों की डगर में पाँव न रखना,
|
|
\q और न बुरे लोगों के मार्ग पर चलना।
|
|
\q
|
|
\v 15 उसे छोड़ दे, उसके पास से भी न चल,
|
|
\q उसके निकट से मुड़कर आगे बढ़ जा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 16 क्योंकि दुष्ट लोग यदि बुराई न करें, तो उनको नींद नहीं आती;
|
|
\q और जब तक वे किसी को ठोकर न खिलाएँ, तब तक उन्हें नींद नहीं मिलती।
|
|
\q
|
|
\v 17 क्योंकि वे दुष्टता की रोटी खाते,
|
|
\q और हिंसा का दाखमधु पीते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 18 परन्तु धर्मियों की चाल, भोर-प्रकाश के समान है,
|
|
\q जिसकी चमक दोपहर तक बढ़ती जाती है।
|
|
\q
|
|
\v 19 दुष्टों का मार्ग घोर अंधकारमय है;
|
|
\q वे नहीं जानते कि वे किस से ठोकर खाते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 20 हे मेरे पुत्र मेरे वचन ध्यान धरके सुन,
|
|
\q और अपना कान मेरी बातों पर लगा।
|
|
\q
|
|
\v 21 इनको अपनी आँखों से ओझल न होने दे;
|
|
\q वरन् अपने मन में धारण कर।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 22 क्योंकि जिनको वे प्राप्त होती हैं, वे उनके जीवित रहने का,
|
|
\q और उनके सारे शरीर के चंगे रहने का कारण होती हैं।
|
|
\q
|
|
\v 23 सबसे अधिक अपने मन की रक्षा कर;
|
|
\q क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 24 टेढ़ी बात अपने मुँह से मत बोल,
|
|
\q और चालबाजी की बातें कहना तुझ से दूर रहे।
|
|
\q
|
|
\v 25 तेरी आँखें सामने ही की ओर लगी रहें,
|
|
\q और तेरी पलकें आगे की ओर खुली रहें।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 26 अपने पाँव रखने के लिये मार्ग को समतल कर,
|
|
\q तब तेरे सब मार्ग ठीक रहेंगे। (इब्रानियों. 12:13)
|
|
\q
|
|
\v 27 न तो दाहिनी ओर मुड़ना, और न बाईं ओर;
|
|
\q अपने पाँव को बुराई के मार्ग पर चलने से हटा ले।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 5
|
|
\s व्यभिचार की आपदा
|
|
\q
|
|
\v 1 हे मेरे पुत्र, मेरी बुद्धि की बातों पर ध्यान दे,
|
|
\q मेरी समझ की ओर कान लगा;
|
|
\q
|
|
\v 2 जिससे तेरा विवेक सुरक्षित बना रहे,
|
|
\q और तू ज्ञान की रक्षा करें।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 क्योंकि पराई स्त्री के होंठों से मधु टपकता है,
|
|
\q और उसकी बातें तेल से भी अधिक चिकनी होती हैं;
|
|
\q
|
|
\v 4 परन्तु इसका परिणाम नागदौना के समान कड़वा
|
|
\q और दोधारी तलवार के समान पैना होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 उसके पाँव मृत्यु की ओर बढ़ते हैं;
|
|
\q और उसके पग अधोलोक तक पहुँचते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 6 वह जीवन के मार्ग के विषय विचार नहीं करती;
|
|
\q उसके चालचलन में चंचलता है, परन्तु उसे वह स्वयं नहीं जानती।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 इसलिए अब हे मेरे पुत्रों, मेरी सुनो,
|
|
\q और मेरी बातों से मुँह न मोड़ो।
|
|
\q
|
|
\v 8 ऐसी स्त्री से दूर ही रह,
|
|
\q और उसकी डेवढ़ी के पास भी न जाना;
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 कहीं ऐसा न हो कि तू अपना यश
|
|
\q औरों के हाथ, और अपना जीवन क्रूर जन के वश में कर दे;
|
|
\q
|
|
\v 10 या पराए तेरी कमाई से अपना पेट भरें,
|
|
\q और परदेशी मनुष्य* तेरे परिश्रम का फल अपने घर में रखें;
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 और तू अपने अन्तिम समय में जब तेरे शरीर का बल खत्म हो जाए तब कराह कर,
|
|
\q
|
|
\v 12 तू यह कहेगा “मैंने शिक्षा से कैसा बैर किया,
|
|
\q और डाँटनेवाले का कैसा तिरस्कार किया!
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 मैंने अपने गुरूओं की बातें न मानीं
|
|
\q और अपने सिखानेवालों की ओर ध्यान न लगाया।
|
|
\q
|
|
\v 14 मैं सभा और मण्डली के बीच में पूर्णतः
|
|
\q विनाश की कगार पर जा पड़ा।”
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 तू अपने ही कुण्ड से पानी,
|
|
\q और अपने ही कुएँ के सोते का जल पिया करना*।
|
|
\q
|
|
\v 16 क्या तेरे सोतों का पानी सड़क में,
|
|
\q और तेरे जल की धारा चौकों में बह जाने पाए?
|
|
\q
|
|
\v 17 यह केवल तेरे ही लिये रहे,
|
|
\q और तेरे संग अनजानों के लिये न हो।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 18 तेरा सोता धन्य रहे; और अपनी जवानी की पत्नी के साथ आनन्दित रह,
|
|
\q
|
|
\v 19 वह तेरे लिए प्रिय हिरनी या सुन्दर सांभरनी के समान हो,
|
|
\q उसके स्तन सर्वदा तुझे सन्तुष्ट रखें,
|
|
\q और उसी का प्रेम नित्य तुझे मोहित करता रहे।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 20 हे मेरे पुत्र, तू व्यभिचारिणी पर क्यों मोहित हो,
|
|
\q और पराई स्त्री को क्यों छाती से लगाए?
|
|
\q
|
|
\v 21 क्योंकि मनुष्य के मार्ग यहोवा की दृष्टि से छिपे नहीं हैं*,
|
|
\q और वह उसके सब मार्गों पर ध्यान करता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 22 दुष्ट अपने ही अधर्म के कर्मों से फंसेगा,
|
|
\q और अपने ही पाप के बन्धनों में बन्धा रहेगा।
|
|
\q
|
|
\v 23 वह अनुशासन का पालन न करने के कारण मर जाएगा,
|
|
\q और अपनी ही मूर्खता के कारण भटकता रहेगा।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 6
|
|
\s संकटपूर्ण वायदा
|
|
\q
|
|
\v 1 हे मेरे पुत्र, यदि तू अपने पड़ोसी के जमानत का उत्तरदायी हुआ हो,
|
|
\q अथवा परदेशी के लिये शपथ खाकर उत्तरदायी हुआ हो,
|
|
\q
|
|
\v 2 तो तू अपने ही शपथ के वचनों में फंस जाएगा,
|
|
\q और अपने ही मुँह के वचनों से पकड़ा जाएगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 इस स्थिति में, हे मेरे पुत्र एक काम कर
|
|
\q और अपने आप को बचा ले, क्योंकि तू अपने पड़ोसी के हाथ में पड़ चुका है तो जा,
|
|
\q और अपनी रिहाई के लिए उसको साष्टांग प्रणाम करके उससे विनती कर।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 4 तू न तो अपनी आँखों में नींद,
|
|
\q और न अपनी पलकों में झपकी आने दे;
|
|
\q
|
|
\v 5 और अपने आप को हिरनी के समान शिकारी के हाथ से,
|
|
\q और चिड़िया के समान चिड़ीमार के हाथ से छुड़ा।
|
|
\s आलस की मूर्खता
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 6 हे आलसी, चींटियों के पास जा;
|
|
\q उनके काम पर ध्यान दे, और बुद्धिमान हो जा।
|
|
\q
|
|
\v 7 उनके न तो कोई न्यायी होता है,
|
|
\q न प्रधान, और न प्रभुता करनेवाला,
|
|
\q
|
|
\v 8 फिर भी वे अपना आहार धूपकाल में संचय करती हैं,
|
|
\q और कटनी के समय अपनी भोजनवस्तु बटोरती हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 हे आलसी, तू कब तक सोता रहेगा?
|
|
\q तेरी नींद कब टूटेगी?
|
|
\q
|
|
\v 10 थोड़ी सी नींद, एक और झपकी,
|
|
\q थोड़ा और छाती पर हाथ रखे लेटे रहना,
|
|
\q
|
|
\v 11 तब तेरा कंगालपन राह के लुटेरे के समान
|
|
\q और तेरी घटी हथियारबंद के समान आ पड़ेगी।
|
|
\s दुष्ट मनुष्य
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 12 ओछे और अनर्थकारी* को देखो,
|
|
\q वह टेढ़ी-टेढ़ी बातें बकता फिरता है,
|
|
\q
|
|
\v 13 वह नैन से सैन और पाँव से इशारा,
|
|
\q और अपनी अंगुलियों से संकेत करता है,
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 14 उसके मन में उलट फेर की बातें रहतीं, वह लगातार बुराई गढ़ता है
|
|
\q और झगड़ा रगड़ा उत्पन्न करता है।
|
|
\q
|
|
\v 15 इस कारण उस पर विपत्ति अचानक आ पड़ेगी,
|
|
\q वह पल भर में ऐसा नाश हो जाएगा, कि बचने का कोई उपाय न रहेगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 16 छः वस्तुओं से यहोवा बैर रखता है,
|
|
\q वरन् सात हैं जिनसे उसको घृणा है:
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 अर्थात् घमण्ड से चढ़ी हुई आँखें, झूठ बोलनेवाली जीभ,
|
|
\q और निर्दोष का लहू बहानेवाले हाथ,
|
|
\q
|
|
\v 18 अनर्थ कल्पना गढ़नेवाला मन,
|
|
\q बुराई करने को वेग से दौड़नेवाले पाँव,
|
|
\q
|
|
\v 19 झूठ बोलनेवाला साक्षी
|
|
\q और भाइयों के बीच में झगड़ा उत्पन्न करनेवाला मनुष्य।
|
|
\s व्यभिचार से सावधान
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 20 हे मेरे पुत्र, अपने पिता की आज्ञा को मान,
|
|
\q और अपनी माता की शिक्षा को न तज।
|
|
\q
|
|
\v 21 उनको अपने हृदय में सदा गाँठ बाँधे रख;
|
|
\q और अपने गले का हार बना ले।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 22 वह तेरे चलने में तेरी अगुआई,
|
|
\q और सोते समय तेरी रक्षा,
|
|
\q और जागते समय तुझे शिक्षा देगी।
|
|
\q
|
|
\v 23 आज्ञा तो दीपक है और शिक्षा ज्योति,
|
|
\q और अनुशासन के लिए दी जानेवाली डाँट जीवन का मार्ग है,
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 24 वे तुझको अनैतिक स्त्री* से
|
|
\q और व्यभिचारिणी की चिकनी चुपड़ी बातों से बचाएगी।
|
|
\q
|
|
\v 25 उसकी सुन्दरता देखकर अपने मन में उसकी अभिलाषा न कर;
|
|
\q वह तुझे अपने कटाक्ष से फँसाने न पाए;
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 26 क्योंकि वेश्यागमन के कारण मनुष्य रोटी के टुकड़ों का भिखारी हो जाता है,
|
|
\q परन्तु व्यभिचारिणी अनमोल जीवन का अहेर कर लेती है।
|
|
\q
|
|
\v 27 क्या हो सकता है कि कोई अपनी छाती पर आग रख ले;
|
|
\q और उसके कपड़े न जलें?
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 28 क्या हो सकता है कि कोई अंगारे पर चले,
|
|
\q और उसके पाँव न झुलसें?
|
|
\q
|
|
\v 29 जो पराई स्त्री के पास जाता है, उसकी दशा ऐसी है;
|
|
\q वरन् जो कोई उसको छूएगा वह दण्ड से न बचेगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 30 जो चोर भूख के मारे अपना पेट भरने के लिये चोरी करे,
|
|
\q उसको तो लोग तुच्छ नहीं जानते;
|
|
\q
|
|
\v 31 फिर भी यदि वह पकड़ा जाए, तो उसको सात गुणा भर देना पड़ेगा;
|
|
\q वरन् अपने घर का सारा धन देना पड़ेगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 32 जो परस्त्रीगमन करता है वह निरा निर्बुद्ध है;
|
|
\q जो ऐसा करता है, वह अपने प्राण को नाश करता है।
|
|
\q
|
|
\v 33 उसको घायल और अपमानित होना पड़ेगा,
|
|
\q और उसकी नामधराई कभी न मिटेगी।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 34 क्योंकि जलन से पुरुष बहुत ही क्रोधित हो जाता है,
|
|
\q और जब वह बदला लेगा तब कोई दया नहीं दिखाएगा।।
|
|
\q
|
|
\v 35 वह मुआवजे में कुछ न लेगा,
|
|
\q और चाहे तू उसको बहुत कुछ दे, तो भी वह न मानेगा।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 7
|
|
\q
|
|
\v 1 हे मेरे पुत्र, मेरी बातों को माना कर,
|
|
\q और मेरी आज्ञाओं को अपने मन में रख छोड़।
|
|
\q
|
|
\v 2 मेरी आज्ञाओं को मान, इससे तू जीवित रहेगा,
|
|
\q और मेरी शिक्षा को अपनी आँख की पुतली जान;
|
|
\q
|
|
\v 3 उनको अपनी उँगलियों में बाँध,
|
|
\q और अपने हृदय की पटिया पर लिख ले।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 4 बुद्धि से कह कि, “तू मेरी बहन है,”
|
|
\q और समझ को अपनी कुटुम्बी बना;
|
|
\q
|
|
\v 5 तब तू पराई स्त्री से बचेगा,
|
|
\q जो चिकनी चुपड़ी बातें बोलती है।
|
|
\s चालबाज वेश्या
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 6 मैंने एक दिन अपने घर की खिड़की से,
|
|
\q अर्थात् अपने झरोखे से झाँका,
|
|
\q
|
|
\v 7 तब मैंने भोले लोगों* में से
|
|
\q एक निर्बुद्धि जवान को देखा;
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 8 वह उस स्त्री के घर के कोने के पास की सड़क से गुजर रहा था,
|
|
\q और उसने उसके घर का मार्ग लिया।
|
|
\q
|
|
\v 9 उस समय दिन ढल गया, और संध्याकाल आ गया था,
|
|
\q वरन् रात का घोर अंधकार छा गया था।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 10 और उससे एक स्त्री मिली,
|
|
\q जिसका भेष वेश्या के समान था, और वह बड़ी धूर्त थी।
|
|
\q
|
|
\v 11 वह शान्ति रहित और चंचल थी,
|
|
\q और उसके पैर घर में नहीं टिकते थे;
|
|
\q
|
|
\v 12 कभी वह सड़क में, कभी चौक में पाई जाती थी,
|
|
\q और एक-एक कोने पर वह बाट जोहती थी।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 तब उसने उस जवान को पकड़कर चूमा,
|
|
\q और निर्लज्जता की चेष्टा करके उससे कहा,
|
|
\q
|
|
\v 14 “मैंने आज ही मेलबलि चढ़ाया*
|
|
\q और अपनी मन्नतें पूरी की;
|
|
\q
|
|
\v 15 इसी कारण मैं तुझ से भेंट करने को निकली,
|
|
\q मैं तेरे दर्शन की खोजी थी, और अभी पाया है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 16 मैंने अपने पलंग के बिछौने पर
|
|
\q मिस्र के बेलबूटेवाले कपड़े बिछाए हैं;
|
|
\q
|
|
\v 17 मैंने अपने बिछौने पर गन्धरस,
|
|
\q अगर और दालचीनी छिड़की है।
|
|
\q
|
|
\v 18 इसलिए अब चल हम प्रेम से भोर तक जी बहलाते रहें;
|
|
\q हम परस्पर की प्रीति से आनन्दित रहें।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 क्योंकि मेरा पति घर में नहीं है;
|
|
\q वह दूर देश को चला गया है;
|
|
\q
|
|
\v 20 वह चाँदी की थैली ले गया है;
|
|
\q और पूर्णमासी को लौट आएगा।”
|
|
\q
|
|
\v 21 ऐसी ही लुभानेवाली बातें कह कहकर, उसने उसको फँसा लिया;
|
|
\q और अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से उसको अपने वश में कर लिया।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 22 वह तुरन्त उसके पीछे हो लिया,
|
|
\q जैसे बैल कसाई-खाने को, या हिरन फंदे में कदम रखता है।
|
|
\q
|
|
\v 23 अन्त में उस जवान का कलेजा तीर से बेधा जाएगा;
|
|
\q वह उस चिड़िया के समान है जो फंदे की ओर वेग से उड़ती है
|
|
\q और नहीं जानती कि उससे उसके प्राण जाएँगे।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 24 अब हे मेरे पुत्रों, मेरी सुनो,
|
|
\q और मेरी बातों पर मन लगाओ।
|
|
\q
|
|
\v 25 तेरा मन ऐसी स्त्री के मार्ग की ओर न फिरे,
|
|
\q और उसकी डगरों में भूलकर भी न जाना;
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 26 क्योंकि बहुत से लोग उसके द्वारा मारे गए है*;
|
|
\q उसके घात किए हुओं की एक बड़ी संख्या होगी।
|
|
\q
|
|
\v 27 उसका घर अधोलोक का मार्ग है,
|
|
\q वह मृत्यु के घर में पहुँचाता है।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 8
|
|
\s ज्ञान की श्रेष्ठता
|
|
\q
|
|
\v 1 क्या बुद्धि नहीं पुकारती है?
|
|
\q क्या समझ ऊँचे शब्द से नहीं बोलती है?
|
|
\q
|
|
\v 2 बुद्धि तो मार्ग के ऊँचे स्थानों पर,
|
|
\q और चौराहों में खड़ी होती है*;
|
|
\q
|
|
\v 3 फाटकों के पास नगर के पैठाव में,
|
|
\q और द्वारों ही में वह ऊँचे स्वर से कहती है,
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 4 “हे लोगों, मैं तुम को पुकारती हूँ,
|
|
\q और मेरी बातें सब मनुष्यों के लिये हैं।
|
|
\q
|
|
\v 5 हे भोलों, चतुराई सीखो;
|
|
\q और हे मूर्खों, अपने मन में समझ लो
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 6 सुनो, क्योंकि मैं उत्तम बातें कहूँगी,
|
|
\q और जब मुँह खोलूँगी, तब उससे सीधी बातें निकलेंगी;
|
|
\q
|
|
\v 7 क्योंकि मुझसे सच्चाई की बातों का वर्णन होगा;
|
|
\q दुष्टता की बातों से मुझ को घृणा आती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 8 मेरे मुँह की सब बातें धर्म की होती हैं,
|
|
\q उनमें से कोई टेढ़ी या उलट फेर की बात नहीं निकलती है।
|
|
\q
|
|
\v 9 समझवाले के लिये वे सब सहज,
|
|
\q और ज्ञान प्राप्त करनेवालों के लिये अति सीधी हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 10 चाँदी नहीं, मेरी शिक्षा ही को चुन लो,
|
|
\q और उत्तम कुन्दन से बढ़कर ज्ञान को ग्रहण करो।
|
|
\q
|
|
\v 11 क्योंकि बुद्धि, बहुमूल्य रत्नों से भी अच्छी है,
|
|
\q और सारी मनभावनी वस्तुओं में कोई भी उसके तुल्य नहीं है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 12 मैं जो बुद्धि हूँ, और मैं चतुराई में वास करती हूँ*,
|
|
\q और ज्ञान और विवेक को प्राप्त करती हूँ।
|
|
\q
|
|
\v 13 यहोवा का भय मानना बुराई से बैर रखना है।
|
|
\q घमण्ड और अहंकार, बुरी चाल से,
|
|
\q और उलट फेर की बात से मैं बैर रखती हूँ।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 14 उत्तम युक्ति, और खरी बुद्धि मेरी ही है, मुझ में समझ है,
|
|
\q और पराक्रम भी मेरा है।
|
|
\q
|
|
\v 15 मेरे ही द्वारा राजा राज्य करते हैं,
|
|
\q और अधिकारी धर्म से शासन करते हैं; (रोमियों. 13:1)
|
|
\q
|
|
\v 16 मेरे ही द्वारा राजा,
|
|
\q हाकिम और पृथ्वी के सब न्यायी शासन करते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 जो मुझसे प्रेम रखते हैं, उनसे मैं भी प्रेम रखती हूँ,
|
|
\q और जो मुझ को यत्न से तड़के उठकर खोजते हैं, वे मुझे पाते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 18 धन और प्रतिष्ठा,
|
|
\q शाश्वत धन और धार्मिकता मेरे पास हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 मेरा फल शुद्ध सोने से,
|
|
\q वरन् कुन्दन से भी उत्तम है,
|
|
\q और मेरी उपज उत्तम चाँदी से अच्छी है।
|
|
\q
|
|
\v 20 मैं धर्म के मार्ग में,
|
|
\q और न्याय की डगरों के बीच में चलती हूँ,
|
|
\q
|
|
\v 21 जिससे मैं अपने प्रेमियों को धन-सम्पत्ति का भागी करूँ,
|
|
\q और उनके भण्डारों को भर दूँ।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 22 “यहोवा ने मुझे काम करने के आरम्भ में,
|
|
\q वरन् अपने प्राचीनकाल के कामों से भी पहले उत्पन्न किया*।
|
|
\q
|
|
\v 23 मैं सदा से वरन् आदि ही से पृथ्वी की सृष्टि से पहले ही से ठहराई गई हूँ।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 24 जब न तो गहरा सागर था,
|
|
\q और न जल के सोते थे, तब ही से मैं उत्पन्न हुई।
|
|
\q
|
|
\v 25 जब पहाड़ और पहाड़ियाँ स्थिर न की गई थीं,
|
|
\q तब ही से मैं उत्पन्न हुई। (यूह. 1:1,2, यूह. 17:24, कुलुस्सियों. 1:17)
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 26 जब यहोवा ने न तो पृथ्वी
|
|
\q और न मैदान, न जगत की धूलि के परमाणु बनाए थे, इनसे पहले मैं उत्पन्न हुई।
|
|
\q
|
|
\v 27 जब उसने आकाश को स्थिर किया, तब मैं वहाँ थी,
|
|
\q जब उसने गहरे सागर के ऊपर आकाशमण्डल ठहराया,
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 28 जब उसने आकाशमण्डल को ऊपर से स्थिर किया,
|
|
\q और गहरे सागर के सोते फूटने लगे,
|
|
\q
|
|
\v 29 जब उसने समुद्र की सीमा ठहराई,
|
|
\q कि जल उसकी आज्ञा का उल्लंघन न कर सके,
|
|
\q और जब वह पृथ्वी की नींव की डोरी लगाता था,
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 30 तब मैं प्रधान कारीगर के समान उसके पास थी;
|
|
\q और प्रतिदिन मैं उसकी प्रसन्नता थी,
|
|
\q और हर समय उसके सामने आनन्दित रहती थी।
|
|
\q
|
|
\v 31 मैं उसकी बसाई हुई पृथ्वी से प्रसन्न थी
|
|
\q और मेरा सुख मनुष्यों की संगति से होता था।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 32 “इसलिए अब हे मेरे पुत्रों, मेरी सुनो;
|
|
\q क्या ही धन्य हैं वे जो मेरे मार्ग को पकड़े रहते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 33 शिक्षा को सुनो, और बुद्धिमान हो जाओ,
|
|
\q उसको अनसुना न करो।
|
|
\q
|
|
\v 34 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो मेरी सुनता,
|
|
\q वरन् मेरी डेवढ़ी पर प्रतिदिन खड़ा रहता,
|
|
\q और मेरे द्वारों के खम्भों के पास दृष्टि लगाए रहता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 35 क्योंकि जो मुझे पाता है, वह जीवन को पाता है,
|
|
\q और यहोवा उससे प्रसन्न होता है।
|
|
\q
|
|
\v 36 परन्तु जो मुझे ढूँढ़ने में विफल होता है, वह अपने ही पर उपद्रव करता है;
|
|
\q जितने मुझसे बैर रखते, वे मृत्यु से प्रीति रखते हैं।”
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 9
|
|
\s ज्ञान का मार्ग
|
|
\q
|
|
\v 1 बुद्धि ने अपना घर बनाया
|
|
\q और उसके सातों खम्भे* गढ़े हुए हैं।
|
|
\q
|
|
\v 2 उसने भोज के लिए अपने पशु काटे, अपने दाखमधु में मसाला मिलाया
|
|
\q और अपनी मेज लगाई है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 उसने अपनी सेविकाओं को आमंत्रित करने भेजा है;
|
|
\q और वह नगर के सबसे ऊँचे स्थानों से पुकारती है,
|
|
\q
|
|
\v 4 “जो कोई भोला है वह मुड़कर यहीं आए!”
|
|
\q और जो निर्बुद्धि है, उससे वह कहती है,
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 “आओ, मेरी रोटी खाओ,
|
|
\q और मेरे मसाला मिलाए हुए दाखमधु को पीओ।
|
|
\q
|
|
\v 6 मूर्खों का साथ छोड़ो,
|
|
\q और जीवित रहो, समझ के मार्ग में सीधे चलो।”
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 जो ठट्ठा करनेवाले को शिक्षा देता है, अपमानित होता है,
|
|
\q और जो दुष्ट जन को डाँटता है वह कलंकित होता है।
|
|
\q
|
|
\v 8 ठट्ठा करनेवाले को न डाँट, ऐसा न हो कि वह तुझ से बैर रखे,
|
|
\q बुद्धिमान को डाँट, वह तो तुझ से प्रेम रखेगा।
|
|
\q
|
|
\v 9 बुद्धिमान को शिक्षा दे, वह अधिक बुद्धिमान होगा;
|
|
\q धर्मी को चिता दे, वह अपनी विद्या बढ़ाएगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 10 यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है,
|
|
\q और परमपवित्र परमेश्वर को जानना ही समझ है।
|
|
\q
|
|
\v 11 मेरे द्वारा तो तेरी आयु बढ़ेगी,
|
|
\q और तेरे जीवन के वर्ष अधिक होंगे।
|
|
\q
|
|
\v 12 यदि तू बुद्धिमान है, तो बुद्धि का फल तू ही भोगेगा;
|
|
\q और यदि तू ठट्ठा करे, तो दण्ड केवल तू ही भोगेगा।।
|
|
\s मूर्खता का मार्ग
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 मूर्खता बक-बक करनेवाली स्त्री के समान है; वह तो निर्बुद्धि है,
|
|
\q और कुछ नहीं जानती।
|
|
\q
|
|
\v 14 वह अपने घर के द्वार में,
|
|
\q और नगर के ऊँचे स्थानों में अपने आसन पर बैठी हुई
|
|
\q
|
|
\v 15 वह उन लोगों को जो अपने मार्गों पर सीधे-सीधे चलते हैं यह कहकर पुकारती है,
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 16 “जो कोई भोला है, वह मुड़कर यहीं आए;”
|
|
\q जो निर्बुद्धि है, उससे वह कहती है,
|
|
\q
|
|
\v 17 “चोरी का पानी मीठा होता है*,
|
|
\q और लुके-छिपे की रोटी अच्छी लगती है।”
|
|
\q
|
|
\v 18 और वह नहीं जानता है, कि वहाँ मरे हुए पड़े हैं,
|
|
\q और उस स्त्री के निमंत्रित अधोलोक के निचले स्थानों में पहुँचे हैं।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 10
|
|
\s सुलैमान की ज्ञान की बातें
|
|
\q
|
|
\v 1 सुलैमान के नीतिवचन।
|
|
\q बुद्धिमान सन्तान से पिता आनन्दित होता है,
|
|
\q परन्तु मूर्ख सन्तान के कारण माता को शोक होता है।
|
|
\q
|
|
\v 2 दुष्टों के रखे हुए धन से लाभ नहीं होता,
|
|
\q परन्तु धर्म के कारण मृत्यु से बचाव होता है।
|
|
\q
|
|
\v 3 धर्मी को यहोवा भूखा मरने नहीं देता,
|
|
\q परन्तु दुष्टों की अभिलाषा वह पूरी होने नहीं देता।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 4 जो काम में ढिलाई करता है, वह निर्धन हो जाता है,
|
|
\q परन्तु कामकाजी लोग अपने हाथों के द्वारा धनी होते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 5 बुद्धिमान सन्तान धूपकाल में फसल बटोरता है,
|
|
\q परन्तु जो सन्तान कटनी के समय भारी नींद में पड़ा रहता है*, वह लज्जा का कारण होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 6 धर्मी पर बहुत से आशीर्वाद होते हैं,
|
|
\q परन्तु दुष्टों के मुँह में उपद्रव छिपा रहता है।
|
|
\q
|
|
\v 7 धर्मी को स्मरण करके लोग आशीर्वाद देते हैं,
|
|
\q परन्तु दुष्टों का नाम मिट जाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 8 जो बुद्धिमान है, वह आज्ञाओं को स्वीकार करता है,
|
|
\q परन्तु जो बकवादी मूर्ख है, उसका नाश होता है।
|
|
\q
|
|
\v 9 जो खराई से चलता है वह निडर चलता है,
|
|
\q परन्तु जो टेढ़ी चाल चलता है उसकी चाल प्रगट हो जाती है। (प्रेरि. 13:10)
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 10 जो नैन से सैन करके बुरे काम के लिए इशारा करता है उससे औरों को दुःख होता है,
|
|
\q और जो बकवादी मूर्ख है, उसका नाश होगा।
|
|
\q
|
|
\v 11 धर्मी का मुँह तो जीवन का सोता है,
|
|
\q परन्तु दुष्टों के मुँह में उपद्रव छिपा रहता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 12 बैर से तो झगड़े उत्पन्न होते हैं,
|
|
\q परन्तु प्रेम से सब अपराध ढँप जाते हैं।* (1 कुरिन्थियों. 13:7, याकूब. 5:20,1 पतरस 4:8)
|
|
\q
|
|
\v 13 समझवालों के वचनों में बुद्धि पाई जाती है,
|
|
\q परन्तु निर्बुद्धि की पीठ के लिये कोड़ा है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 14 बुद्धिमान लोग ज्ञान का संग्रह करते है,
|
|
\q परन्तु मूर्ख के बोलने से विनाश होता है।
|
|
\q
|
|
\v 15 धनी का धन उसका दृढ़ नगर है,
|
|
\q परन्तु कंगाल की निर्धनता उसके विनाश का कारण हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 16 धर्मी का परिश्रम जीवन की ओर ले जाता है;
|
|
\q परन्तु दुष्ट का लाभ पाप की ओर ले जाता है।
|
|
\q
|
|
\v 17 जो शिक्षा पर चलता वह जीवन के मार्ग पर है,
|
|
\q परन्तु जो डाँट से मुँह मोड़ता, वह भटकता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 18 जो बैर को छिपा रखता है, वह झूठ बोलता है,
|
|
\q और जो झूठी निन्दा फैलाता है, वह मूर्ख है।
|
|
\q
|
|
\v 19 जहाँ बहुत बातें होती हैं*, वहाँ अपराध भी होता है,
|
|
\q परन्तु जो अपने मुँह को बन्द रखता है वह बुद्धि से काम करता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 20 धर्मी के वचन तो उत्तम चाँदी हैं;
|
|
\q परन्तु दुष्टों का मन मूल्य-रहित होता है।
|
|
\q
|
|
\v 21 धर्मी के वचनों से बहुतों का पालन-पोषण होता है,
|
|
\q परन्तु मूर्ख लोग बुद्धिहीनता के कारण मर जाते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 22 धन यहोवा की आशीष ही से मिलता है,
|
|
\q और वह उसके साथ दुःख नहीं मिलाता।
|
|
\q
|
|
\v 23 मूर्ख को तो महापाप करना हँसी की बात जान पड़ती है,
|
|
\q परन्तु समझवाले व्यक्ति के लिए बुद्धि प्रसन्नता का विषय है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 24 दुष्ट जन जिस विपत्ति से डरता है, वह उस पर आ पड़ती है,
|
|
\q परन्तु धर्मियों की लालसा पूरी होती है।
|
|
\q
|
|
\v 25 दुष्ट जन उस बवण्डर के समान है, जो गुजरते ही लोप हो जाता है
|
|
\q परन्तु धर्मी सदा स्थिर रहता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 26 जैसे दाँत को सिरका, और आँख को धुआँ,
|
|
\q वैसे आलसी उनको लगता है जो उसको कहीं भेजते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 27 यहोवा के भय मानने से आयु बढ़ती है,
|
|
\q परन्तु दुष्टों का जीवन थोड़े ही दिनों का होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 28 धर्मियों को आशा रखने में आनन्द मिलता है,
|
|
\q परन्तु दुष्टों की आशा टूट जाती है।
|
|
\q
|
|
\v 29 यहोवा खरे मनुष्य का गढ़ ठहरता है,
|
|
\q परन्तु अनर्थकारियों का विनाश होता है।
|
|
\q
|
|
\v 30 धर्मी सदा अटल रहेगा,
|
|
\q परन्तु दुष्ट पृथ्वी पर बसने न पाएँगे।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 31 धर्मी के मुँह से बुद्धि टपकती है,
|
|
\q पर उलट फेर की बात कहनेवाले की जीभ काटी जाएगी।
|
|
\q
|
|
\v 32 धर्मी ग्रहणयोग्य बात समझकर बोलता है,
|
|
\q परन्तु दुष्टों के मुँह से उलट फेर की बातें निकलती हैं।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 11
|
|
\q
|
|
\v 1 छल के तराजू से यहोवा को घृणा आती है,
|
|
\q परन्तु वह पूरे बटखरे से प्रसन्न होता है।
|
|
\q
|
|
\v 2 जब अभिमान होता, तब अपमान भी होता है,
|
|
\q परन्तु नम्र लोगों में बुद्धि होती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 सीधे लोग अपनी खराई से अगुआई पाते हैं,
|
|
\q परन्तु विश्वासघाती अपने कपट से नाश होते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 4 कोप के दिन धन से तो कुछ लाभ नहीं होता,
|
|
\q परन्तु धर्म मृत्यु से भी बचाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 खरे मनुष्य का मार्ग धर्म के कारण सीधा होता है,
|
|
\q परन्तु दुष्ट अपनी दुष्टता के कारण गिर जाता है।
|
|
\q
|
|
\v 6 सीधे लोगों का बचाव उनके धर्म के कारण होता है,
|
|
\q परन्तु विश्वासघाती लोग अपनी ही दुष्टता में फँसते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 जब दुष्ट मरता, तब उसकी आशा टूट जाती है,
|
|
\q और अधर्मी की आशा व्यर्थ होती है।
|
|
\q
|
|
\v 8 धर्मी विपत्ति से छूट जाता है,
|
|
\q परन्तु दुष्ट उसी विपत्ति में पड़ जाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 भक्तिहीन जन अपने पड़ोसी को अपने मुँह की बात से बिगाड़ता है,
|
|
\q परन्तु धर्मी लोग ज्ञान के द्वारा बचते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 10 जब धर्मियों का कल्याण होता है, तब नगर के लोग प्रसन्न होते हैं,
|
|
\q परन्तु जब दुष्ट नाश होते, तब जय-जयकार होता है।
|
|
\q
|
|
\v 11 सीधे लोगों के आशीर्वाद से* नगर की बढ़ती होती है,
|
|
\q परन्तु दुष्टों के मुँह की बात से वह ढाया जाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 12 जो अपने पड़ोसी को तुच्छ जानता है, वह निर्बुद्धि है,
|
|
\q परन्तु समझदार पुरुष चुपचाप रहता है।
|
|
\q
|
|
\v 13 जो चुगली करता फिरता वह भेद प्रगट करता है,
|
|
\q परन्तु विश्वासयोग्य मनुष्य बात को छिपा रखता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 14 जहाँ बुद्धि की युक्ति नहीं, वहाँ प्रजा विपत्ति में पड़ती है;
|
|
\q परन्तु सम्मति देनेवालों की बहुतायत के कारण बचाव होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 जो परदेशी का उत्तरदायी होता है, वह बड़ा दुःख उठाता है,
|
|
\q परन्तु जो जमानत लेने से घृणा करता, वह निडर रहता है।
|
|
\q
|
|
\v 16 अनुग्रह करनेवाली स्त्री प्रतिष्ठा नहीं खोती है,
|
|
\q और उग्र लोग धन को नहीं खोते।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 कृपालु मनुष्य अपना ही भला करता है, परन्तु जो क्रूर है,
|
|
\q वह अपनी ही देह को दुःख देता है।
|
|
\q
|
|
\v 18 दुष्ट मिथ्या कमाई कमाता है,
|
|
\q परन्तु जो धर्म का बीज बोता, उसको निश्चय फल मिलता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 जो धर्म में दृढ़ रहता, वह जीवन पाता है,
|
|
\q परन्तु जो बुराई का पीछा करता, वह मर जाएगा।
|
|
\q
|
|
\v 20 जो मन के टेढ़े हैं, उनसे यहोवा को घृणा आती है,
|
|
\q परन्तु वह खरी चालवालों से प्रसन्न रहता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 21 निश्चय जानो, बुरा मनुष्य निर्दोष न ठहरेगा,
|
|
\q परन्तु धर्मी का वंश बचाया जाएगा।
|
|
\q
|
|
\v 22 जो सुन्दर स्त्री विवेक नहीं रखती,
|
|
\q वह थूथन में सोने की नत्थ पहने हुए सूअर के समान है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 23 धर्मियों की लालसा तो केवल भलाई की होती है;
|
|
\q परन्तु दुष्टों की आशा का फल क्रोध ही होता है।
|
|
\q
|
|
\v 24 ऐसे हैं, जो छितरा देते हैं, फिर भी उनकी बढ़ती ही होती है;
|
|
\q और ऐसे भी हैं जो यथार्थ से कम देते हैं, और इससे उनकी घटती ही होती है। (2 कुरिन्थियों. 9:6)
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 25 उदार प्राणी हष्ट-पुष्ट हो जाता है,
|
|
\q और जो औरों की खेती सींचता है, उसकी भी सींची जाएगी।
|
|
\q
|
|
\v 26 जो अपना अनाज जमाखोरी करता है, उसको लोग श्राप देते हैं,
|
|
\q परन्तु जो उसे बेच देता है, उसको आशीर्वाद दिया जाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 27 जो यत्न से भलाई करता है वह दूसरों की प्रसन्नता खोजता है,
|
|
\q परन्तु जो दूसरे की बुराई का खोजी होता है, उसी पर बुराई आ पड़ती है।
|
|
\q
|
|
\v 28 जो अपने धन पर भरोसा रखता है वह सूखे पत्ते के समान गिर जाता है,
|
|
\q परन्तु धर्मी लोग नये पत्ते के समान लहलहाते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 29 जो अपने घराने को दुःख देता, उसका भाग वायु ही होगा,
|
|
\q और मूर्ख बुद्धिमान का दास हो जाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 30 धर्मी का प्रतिफल जीवन का वृक्ष होता है,
|
|
\q और बुद्धिमान मनुष्य लोगों के मन को मोह लेता है।
|
|
\q
|
|
\v 31 देख, धर्मी को पृथ्वी पर फल मिलेगा*,
|
|
\q तो निश्चय है कि दुष्ट और पापी को भी मिलेगा। (1 पतरस. 4:18)
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 12
|
|
\q
|
|
\v 1 जो शिक्षा पाने से प्रीति रखता है वह ज्ञान से प्रीति रखता है,
|
|
\q परन्तु जो डाँट से बैर रखता, वह पशु के समान मूर्ख है।
|
|
\q
|
|
\v 2 भले मनुष्य से तो यहोवा प्रसन्न होता है,
|
|
\q परन्तु बुरी युक्ति करनेवाले को वह दोषी ठहराता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 कोई मनुष्य दुष्टता के कारण स्थिर नहीं होता,
|
|
\q परन्तु धर्मियों की जड़ उखड़ने की नहीं।
|
|
\q
|
|
\v 4 भली स्त्री अपने पति का मुकुट* है,
|
|
\q परन्तु जो लज्जा के काम करती वह मानो उसकी हड्डियों के सड़ने का कारण होती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 धर्मियों की कल्पनाएँ न्याय ही की होती हैं,
|
|
\q परन्तु दुष्टों की युक्तियाँ छल की हैं।
|
|
\q
|
|
\v 6 दुष्टों की बातचीत हत्या करने के लिये घात लगाने के समान होता है,
|
|
\q परन्तु सीधे लोग अपने मुँह की बात के द्वारा छुड़ानेवाले होते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 जब दुष्ट लोग उलटे जाते हैं तब वे रहते ही नहीं,
|
|
\q परन्तु धर्मियों का घर स्थिर रहता है।
|
|
\q
|
|
\v 8 मनुष्य कि बुद्धि के अनुसार उसकी प्रशंसा होती है,
|
|
\q परन्तु कुटिल तुच्छ जाना जाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 जिसके पास खाने को रोटी तक नहीं,
|
|
\q पर अपने बारे में डींगे मारता है, उससे दास रखनेवाला साधारण मनुष्य ही उत्तम है।
|
|
\q
|
|
\v 10 धर्मी अपने पशु के भी प्राण की सुधि रखता है,
|
|
\q परन्तु दुष्टों की दया भी निर्दयता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 जो अपनी भूमि को जोतता, वह पेट भर खाता है,
|
|
\q परन्तु जो निकम्मों की संगति करता, वह निर्बुद्धि ठहरता है।
|
|
\q
|
|
\v 12 दुष्ट जन बुरे लोगों के लूट के माल की अभिलाषा करते हैं,
|
|
\q परन्तु धर्मियों की जड़ें हरी भरी रहती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 बुरा मनुष्य अपने दुर्वचनों के कारण फंदे में फँसता है,
|
|
\q परन्तु धर्मी संकट से निकास पाता है।
|
|
\q
|
|
\v 14 सज्जन अपने वचनों के फल के द्वारा भलाई से तृप्त होता है,
|
|
\q और जैसी जिसकी करनी वैसी उसकी भरनी होती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 मूर्ख को अपनी ही चाल सीधी जान पड़ती है,
|
|
\q परन्तु जो सम्मति मानता, वह बुद्धिमान है।
|
|
\q
|
|
\v 16 मूर्ख की रिस तुरन्त प्रगट हो जाती है*,
|
|
\q परन्तु विवेकी मनुष्य अपमान को अनदेखा करता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 जो सच बोलता है, वह धर्म प्रगट करता है,
|
|
\q परन्तु जो झूठी साक्षी देता, वह छल प्रगट करता है।
|
|
\q
|
|
\v 18 ऐसे लोग हैं जिनका बिना सोच विचार का बोलना तलवार के समान चुभता है,
|
|
\q परन्तु बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 सच्चाई सदा बनी रहेगी,
|
|
\q परन्तु झूठ पल भर का होता है।
|
|
\q
|
|
\v 20 बुरी युक्ति करनेवालों के मन में छल रहता है*,
|
|
\q परन्तु मेल की युक्ति करनेवालों को आनन्द होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 21 धर्मी को हानि नहीं होती है,
|
|
\q परन्तु दुष्ट लोग सारी विपत्ति में डूब जाते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 22 झूठों से यहोवा को घृणा आती है
|
|
\q परन्तु जो ईमानदारी से काम करते हैं, उनसे वह प्रसन्न होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 23 विवेकी मनुष्य ज्ञान को प्रगट नहीं करता है,
|
|
\q परन्तु मूर्ख अपने मन की मूर्खता ऊँचे शब्द से प्रचार करता है।
|
|
\q
|
|
\v 24 कामकाजी लोग प्रभुता करते हैं,
|
|
\q परन्तु आलसी बेगार में पकड़े जाते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 25 उदास मन दब जाता है,
|
|
\q परन्तु भली बात से वह आनन्दित होता है।
|
|
\q
|
|
\v 26 धर्मी अपने पड़ोसी की अगुआई करता है,
|
|
\q परन्तु दुष्ट लोग अपनी ही चाल के कारण भटक जाते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 27 आलसी अहेर का पीछा नहीं करता,
|
|
\q परन्तु कामकाजी को अनमोल वस्तु मिलती है।
|
|
\q
|
|
\v 28 धर्म के मार्ग में जीवन मिलता है,
|
|
\q और उसके पथ में मृत्यु का पता भी नहीं।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 13
|
|
\q
|
|
\v 1 बुद्धिमान पुत्र पिता की शिक्षा सुनता है,
|
|
\q परन्तु ठट्ठा करनेवाला घुड़की को भी नहीं सुनता।
|
|
\q
|
|
\v 2 सज्जन अपनी बातों के कारण* उत्तम वस्तु खाने पाता है,
|
|
\q परन्तु विश्वासघाती लोगों का पेट उपद्रव से भरता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 जो अपने मुँह की चौकसी करता है, वह अपने प्राण की रक्षा करता है,
|
|
\q परन्तु जो गाल बजाता है उसका विनाश हो जाता है।
|
|
\q
|
|
\v 4 आलसी का प्राण लालसा तो करता है, परन्तु उसको कुछ नहीं मिलता,
|
|
\q परन्तु कामकाजी हष्ट-पुष्ट हो जाते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 धर्मी झूठे वचन से बैर रखता है,
|
|
\q परन्तु दुष्ट लज्जा का कारण होता है और लज्जित हो जाता है।
|
|
\q
|
|
\v 6 धर्म खरी चाल चलनेवाले की रक्षा करता है,
|
|
\q परन्तु पापी अपनी दुष्टता के कारण उलट जाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 कोई तो धन बटोरता, परन्तु उसके पास कुछ नहीं रहता,
|
|
\q और कोई धन उड़ा देता, फिर भी उसके पास बहुत रहता है।
|
|
\q
|
|
\v 8 धनी मनुष्य के प्राण की छुड़ौती उसके धन से होती है*,
|
|
\q परन्तु निर्धन ऐसी घुड़की को सुनता भी नहीं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 धर्मियों की ज्योति आनन्द के साथ रहती है,
|
|
\q परन्तु दुष्टों का दिया बुझ जाता है।
|
|
\q
|
|
\v 10 अहंकार से केवल झगड़े होते हैं,
|
|
\q परन्तु जो लोग सम्मति मानते हैं, उनके पास बुद्धि रहती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 धोखे से कमाया धन जल्दी घटता है,
|
|
\q परन्तु जो अपने परिश्रम से बटोरता, उसकी बढ़ती होती है।
|
|
\q
|
|
\v 12 जब आशा पूरी होने में विलम्ब होता है, तो मन निराश होता है,
|
|
\q परन्तु जब लालसा पूरी होती है, तब जीवन का वृक्ष लगता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 जो वचन को तुच्छ जानता, उसका नाश हो जाता है,
|
|
\q परन्तु आज्ञा के डरवैये को अच्छा फल मिलता है।
|
|
\q
|
|
\v 14 बुद्धिमान की शिक्षा जीवन का सोता है,
|
|
\q और उसके द्वारा लोग मृत्यु के फंदों से बच सकते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 सुबुद्धि के कारण अनुग्रह होता है,
|
|
\q परन्तु विश्वासघातियों का मार्ग कड़ा होता है।
|
|
\q
|
|
\v 16 विवेकी मनुष्य ज्ञान से सब काम करता हैं,
|
|
\q परन्तु मूर्ख अपनी मूर्खता फैलाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 दुष्ट दूत बुराई में फँसता है,
|
|
\q परन्तु विश्वासयोग्य दूत मिलाप करवाता है।
|
|
\q
|
|
\v 18 जो शिक्षा को अनसुनी करता वह निर्धन हो जाता है और अपमान पाता है,
|
|
\q परन्तु जो डाँट को मानता, उसकी महिमा होती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 लालसा का पूरा होना तो प्राण को मीठा लगता है,
|
|
\q परन्तु बुराई से हटना, मूर्खों के प्राण को बुरा लगता है।
|
|
\q
|
|
\v 20 बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा,
|
|
\q परन्तु मूर्खों का साथी नाश हो जाएगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 21 विपत्ति पापियों के पीछे लगी रहती है,
|
|
\q परन्तु धर्मियों को अच्छा फल मिलता है।
|
|
\q
|
|
\v 22 भला मनुष्य अपने नाती-पोतों के लिये सम्पत्ति छोड़ जाता है,
|
|
\q परन्तु पापी की सम्पत्ति धर्मी के लिये रखी जाती है*।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 23 निर्बल लोगों को खेती-बारी से बहुत भोजनवस्तु मिलता है,
|
|
\q परन्तु अन्याय से उसको हड़प लिया जाता है।
|
|
\q
|
|
\v 24 जो बेटे पर छड़ी नहीं चलाता वह उसका बैरी है,
|
|
\q परन्तु जो उससे प्रेम रखता, वह यत्न से उसको शिक्षा देता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 25 धर्मी पेट भर खाने पाता है,
|
|
\q परन्तु दुष्ट भूखे ही रहते हैं।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 14
|
|
\q
|
|
\v 1 हर बुद्धिमान स्त्री अपने घर को बनाती है,
|
|
\q पर मूर्ख स्त्री उसको अपने ही हाथों से ढा देती है।
|
|
\q
|
|
\v 2 जो सिधाई से चलता वह यहोवा का भय माननेवाला है,
|
|
\q परन्तु जो टेढ़ी चाल चलता वह उसको तुच्छ जाननेवाला ठहरता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 मूर्ख के मुँह में गर्व का अंकुर है*,
|
|
\q परन्तु बुद्धिमान लोग अपने वचनों के द्वारा रक्षा पाते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 4 जहाँ बैल नहीं, वहाँ गौशाला स्वच्छ तो रहती है,
|
|
\q परन्तु बैल के बल से अनाज की बढ़ती होती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 सच्चा साक्षी झूठ नहीं बोलता,
|
|
\q परन्तु झूठा साक्षी झूठी बातें उड़ाता है।
|
|
\q
|
|
\v 6 ठट्ठा करनेवाला बुद्धि को ढूँढ़ता, परन्तु नहीं पाता,
|
|
\q परन्तु समझवाले को ज्ञान सहज से मिलता है। (नीति. 17:24)
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 मूर्ख से अलग हो जा, तू उससे ज्ञान की बात न पाएगा।
|
|
\q
|
|
\v 8 विवेकी मनुष्य की बुद्धि* अपनी चाल को समझना है,
|
|
\q परन्तु मूर्खों की मूर्खता छल करना है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 मूर्ख लोग पाप का अंगीकार करने को ठट्ठा जानते हैं,
|
|
\q परन्तु सीधे लोगों के बीच अनुग्रह होता है।
|
|
\q
|
|
\v 10 मन अपना ही दुःख जानता है,
|
|
\q और परदेशी उसके आनन्द में हाथ नहीं डाल सकता।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 दुष्टों के घर का विनाश हो जाता है,
|
|
\q परन्तु सीधे लोगों के तम्बू में बढ़ती होती है।
|
|
\q
|
|
\v 12 ऐसा मार्ग है*, जो मनुष्य को ठीक जान पड़ता है,
|
|
\q परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 हँसी के समय भी मन उदास हो सकता है,
|
|
\q और आनन्द के अन्त में शोक हो सकता है।
|
|
\q
|
|
\v 14 जो बेईमान है, वह अपनी चालचलन का फल भोगता है,
|
|
\q परन्तु भला मनुष्य आप ही आप सन्तुष्ट होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 भोला तो हर एक बात को सच मानता है,
|
|
\q परन्तु विवेकी मनुष्य समझ बूझकर चलता है।
|
|
\q
|
|
\v 16 बुद्धिमान डरकर बुराई से हटता है,
|
|
\q परन्तु मूर्ख ढीठ होकर चेतावनी की उपेक्षा करता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 जो झट क्रोध करे, वह मूर्खता का काम करेगा,
|
|
\q और जो बुरी युक्तियाँ निकालता है, उससे लोग बैर रखते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 18 भोलों का भाग मूर्खता ही होता है,
|
|
\q परन्तु विवेकी मनुष्यों को ज्ञानरूपी मुकुट बाँधा जाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 बुरे लोग भलों के सम्मुख,
|
|
\q और दुष्ट लोग धर्मी के फाटक पर दण्डवत् करेंगे।
|
|
\q
|
|
\v 20 निर्धन का पड़ोसी भी उससे घृणा करता है,
|
|
\q परन्तु धनी के अनेक प्रेमी होते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 21 जो अपने पड़ोसी को तुच्छ जानता, वह पाप करता है,
|
|
\q परन्तु जो दीन लोगों पर अनुग्रह करता, वह धन्य होता है।
|
|
\q
|
|
\v 22 जो बुरी युक्ति निकालते हैं, क्या वे भ्रम में नहीं पड़ते?
|
|
\q परन्तु भली युक्ति निकालनेवालों से करुणा और सच्चाई का व्यवहार किया जाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 23 परिश्रम से सदा लाभ होता है,
|
|
\q परन्तु बकवाद करने से केवल घटती होती है।
|
|
\q
|
|
\v 24 बुद्धिमानों का धन उनका मुकुट ठहरता है,
|
|
\q परन्तु मूर्ख से केवल मूर्खता ही उत्पन्न होती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 25 सच्चा साक्षी बहुतों के प्राण बचाता है,
|
|
\q परन्तु जो झूठी बातें उड़ाया करता है उससे धोखा ही होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 26 यहोवा के भय में दृढ़ भरोसा है,
|
|
\q और यह उसके संतानों के लिए शरणस्थान होगा।
|
|
\q
|
|
\v 27 यहोवा का भय मानना, जीवन का सोता है,
|
|
\q और उसके द्वारा लोग मृत्यु के फंदों से बच जाते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 28 राजा की महिमा प्रजा की बहुतायत से होती है,
|
|
\q परन्तु जहाँ प्रजा नहीं, वहाँ हाकिम नाश हो जाता है।
|
|
\q
|
|
\v 29 जो विलम्ब से क्रोध करनेवाला है वह बड़ा समझवाला है,
|
|
\q परन्तु जो अधीर होता है, वह मूर्खता को बढ़ाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 30 शान्त मन*, तन का जीवन है,
|
|
\q परन्तु ईर्ष्या से हड्डियाँ भी गल जाती हैं।
|
|
\q
|
|
\v 31 जो कंगाल पर अंधेर करता, वह उसके कर्ता की निन्दा करता है,
|
|
\q परन्तु जो दरिद्र पर अनुग्रह करता, वह उसकी महिमा करता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 32 दुष्ट मनुष्य बुराई करता हुआ नाश हो जाता है,
|
|
\q परन्तु धर्मी को मृत्यु के समय भी शरण मिलती है।
|
|
\q
|
|
\v 33 समझवाले के मन में बुद्धि वास किए रहती है,
|
|
\q परन्तु मूर्ख मनुष्य बुद्धि के विषय में कुछ भी नहीं जानता।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 34 जाति की बढ़ती धर्म ही से होती है,
|
|
\q परन्तु पाप से देश के लोगों का अपमान होता है।
|
|
\q
|
|
\v 35 जो कर्मचारी बुद्धि से काम करता है उस पर राजा प्रसन्न होता है,
|
|
\q परन्तु जो लज्जा के काम करता, उस पर वह रोष करता है।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 15
|
|
\q
|
|
\v 1 कोमल उत्तर सुनने से जलजलाहट ठण्डी होती है,
|
|
\q परन्तु कटुवचन से क्रोध भड़क उठता है।
|
|
\q
|
|
\v 2 बुद्धिमान ज्ञान का ठीक बखान करते हैं,
|
|
\q परन्तु मूर्खों के मुँह से मूर्खता उबल आती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 यहोवा की आँखें सब स्थानों में लगी रहती हैं*,
|
|
\q वह बुरे भले दोनों को देखती रहती हैं।
|
|
\q
|
|
\v 4 शान्ति देनेवाली बात जीवन-वृक्ष है,
|
|
\q परन्तु उलट फेर की बात से आत्मा दुःखित होती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 मूर्ख अपने पिता की शिक्षा का तिरस्कार करता है,
|
|
\q परन्तु जो डाँट को मानता, वह विवेकी हो जाता है।
|
|
\q
|
|
\v 6 धर्मी के घर में बहुत धन रहता है,
|
|
\q परन्तु दुष्ट के कमाई में दुःख रहता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 बुद्धिमान लोग बातें करने से ज्ञान को फैलाते हैं,
|
|
\q परन्तु मूर्खों का मन ठीक नहीं रहता।
|
|
\q
|
|
\v 8 दुष्ट लोगों के बलिदान से यहोवा घृणा करता है,
|
|
\q परन्तु वह सीधे लोगों की प्रार्थना से प्रसन्न होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 दुष्ट के चालचलन से यहोवा को घृणा आती है,
|
|
\q परन्तु जो धर्म का पीछा करता उससे वह प्रेम रखता है।
|
|
\q
|
|
\v 10 जो मार्ग को छोड़ देता, उसको बड़ी ताड़ना मिलती है,
|
|
\q और जो डाँट से बैर रखता, वह अवश्य मर जाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 जब कि अधोलोक और विनाशलोक यहोवा के सामने खुले रहते हैं,
|
|
\q तो निश्चय मनुष्यों के मन भी।
|
|
\q
|
|
\v 12 ठट्ठा करनेवाला डाँटे जाने से प्रसन्न नहीं होता,
|
|
\q और न वह बुद्धिमानों के पास जाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 मन आनन्दित होने से मुख पर भी प्रसन्नता छा जाती है,
|
|
\q परन्तु मन के दुःख से आत्मा निराश होती है।
|
|
\q
|
|
\v 14 समझनेवाले का मन ज्ञान की खोज में रहता है,
|
|
\q परन्तु मूर्ख लोग मूर्खता से पेट भरते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 दुःखियारे* के सब दिन दुःख भरे रहते हैं,
|
|
\q परन्तु जिसका मन प्रसन्न रहता है, वह मानो नित्य भोज में जाता है।
|
|
\q
|
|
\v 16 घबराहट के साथ बहुत रखे हुए धन से,
|
|
\q यहोवा के भय के साथ थोड़ा ही धन उत्तम है,
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 प्रेमवाले घर में सागपात का भोजन,
|
|
\q बैरवाले घर में स्वादिष्ट माँस खाने से उत्तम है।
|
|
\q
|
|
\v 18 क्रोधी पुरुष झगड़ा मचाता है,
|
|
\q परन्तु जो विलम्ब से क्रोध करनेवाला है, वह मुकद्दमों को दबा देता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 आलसी का मार्ग काँटों से रुन्धा हुआ होता है,
|
|
\q परन्तु सीधे लोगों का मार्ग राजमार्ग ठहरता है।
|
|
\q
|
|
\v 20 बुद्धिमान पुत्र से पिता आनन्दित होता है,
|
|
\q परन्तु मूर्ख अपनी माता को तुच्छ जानता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 21 निर्बुद्धि को मूर्खता से आनन्द होता है,
|
|
\q परन्तु समझवाला मनुष्य सीधी चाल चलता है।
|
|
\q
|
|
\v 22 बिना सम्मति की कल्पनाएँ निष्फल होती हैं,
|
|
\q परन्तु बहुत से मंत्रियों की सम्मति से सफलता मिलती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 23 सज्जन उत्तर देने से आनन्दित होता है,
|
|
\q और अवसर पर कहा हुआ वचन क्या ही भला होता है!
|
|
\q
|
|
\v 24 विवेकी के लिये जीवन का मार्ग ऊपर की ओर जाता है,
|
|
\q इस रीति से वह अधोलोक में पड़ने से बच जाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 25 यहोवा अहंकारियों के घर को ढा देता है,
|
|
\q परन्तु विधवा की सीमाओं को अटल रखता है।
|
|
\q
|
|
\v 26 बुरी कल्पनाएँ यहोवा को घिनौनी लगती हैं,
|
|
\q परन्तु शुद्ध जन के वचन मनभावने हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 27 लालची अपने घराने को दुःख देता है,
|
|
\q परन्तु घूस से घृणा करनेवाला जीवित रहता है।
|
|
\q
|
|
\v 28 धर्मी मन में सोचता है कि क्या उत्तर दूँ,
|
|
\q परन्तु दुष्टों के मुँह से बुरी बातें उबल आती हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 29 यहोवा दुष्टों से दूर रहता है,
|
|
\q परन्तु धर्मियों की प्रार्थना सुनता है। (यूह. 9:31)
|
|
\q
|
|
\v 30 आँखों की चमक* से मन को आनन्द होता है,
|
|
\q और अच्छे समाचार से हड्डियाँ पुष्ट होती हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 31 जो जीवनदायी डाँट कान लगाकर सुनता है,
|
|
\q वह बुद्धिमानों के संग ठिकाना पाता है।
|
|
\q
|
|
\v 32 जो शिक्षा को अनसुनी करता, वह अपने प्राण को तुच्छ जानता है,
|
|
\q परन्तु जो डाँट को सुनता, वह बुद्धि प्राप्त करता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 33 यहोवा के भय मानने से बुद्धि की शिक्षा प्राप्त होती है,
|
|
\q और महिमा से पहले नम्रता आती है।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 16
|
|
\q
|
|
\v 1 मन की युक्ति मनुष्य के वश में रहती है,
|
|
\q परन्तु मुँह से कहना यहोवा की ओर से होता है।
|
|
\q
|
|
\v 2 मनुष्य का सारा चालचलन अपनी दृष्टि में पवित्र ठहरता है*,
|
|
\q परन्तु यहोवा मन को तौलता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 अपने कामों को यहोवा पर डाल दे*,
|
|
\q इससे तेरी कल्पनाएँ सिद्ध होंगी।
|
|
\q
|
|
\v 4 यहोवा ने सब वस्तुएँ विशेष उद्देश्य के लिये बनाई हैं,
|
|
\q वरन् दुष्ट को भी विपत्ति भोगने के लिये बनाया है। (कुलुस्सियों. 1:16)
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 सब मन के घमण्डियों से यहोवा घृणा करता है;
|
|
\q मैं दृढ़ता से कहता हूँ, ऐसे लोग निर्दोष न ठहरेंगे।
|
|
\q
|
|
\v 6 अधर्म का प्रायश्चित कृपा, और सच्चाई से होता है,
|
|
\q और यहोवा के भय मानने के द्वारा मनुष्य बुराई करने से बच जाते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 जब किसी का चालचलन यहोवा को भावता है,
|
|
\q तब वह उसके शत्रुओं का भी उससे मेल कराता है।
|
|
\q
|
|
\v 8 अन्याय के बड़े लाभ से,
|
|
\q न्याय से थोड़ा ही प्राप्त करना उत्तम है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 मनुष्य मन में अपने मार्ग पर विचार करता है,
|
|
\q परन्तु यहोवा ही उसके पैरों को स्थिर करता है।
|
|
\q
|
|
\v 10 राजा के मुँह से दैवीवाणी निकलती है,
|
|
\q न्याय करने में उससे चूक नहीं होती।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 सच्चा तराजू और पलड़े यहोवा की ओर से होते हैं,
|
|
\q थैली में जितने बटखरे हैं, सब उसी के बनवाए हुए हैं।
|
|
\q
|
|
\v 12 दुष्टता करना राजाओं के लिये घृणित काम है,
|
|
\q क्योंकि उनकी गद्दी धर्म ही से स्थिर रहती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 धर्म की बात बोलनेवालों से राजा प्रसन्न होता है,
|
|
\q और जो सीधी बातें बोलता है, उससे वह प्रेम रखता है।
|
|
\q
|
|
\v 14 राजा का क्रोध मृत्यु के दूत के समान है,
|
|
\q परन्तु बुद्धिमान मनुष्य उसको ठण्डा करता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 राजा के मुख की चमक में जीवन रहता है,
|
|
\q और उसकी प्रसन्नता बरसात के अन्त की घटा के समान होती है।
|
|
\q
|
|
\v 16 बुद्धि की प्राप्ति शुद्ध सोने से क्या ही उत्तम है!
|
|
\q और समझ की प्राप्ति चाँदी से बढ़कर योग्य है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 बुराई से हटना धर्मियों के लिये उत्तम मार्ग है,
|
|
\q जो अपने चालचलन की चौकसी करता, वह अपने प्राण की भी रक्षा करता है।
|
|
\q
|
|
\v 18 विनाश से पहले गर्व,
|
|
\q और ठोकर खाने से पहले घमण्ड आता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 घमण्डियों के संग लूट बाँट लने से,
|
|
\q दीन लोगों के संग नम्र भाव से रहना उत्तम है।
|
|
\q
|
|
\v 20 जो वचन पर मन लगाता, वह कल्याण पाता है,
|
|
\q और जो यहोवा पर भरोसा रखता, वह धन्य होता है*।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 21 जिसके हृदय में बुद्धि है, वह समझवाला कहलाता है,
|
|
\q और मधुर वाणी के द्वारा ज्ञान बढ़ता है।
|
|
\q
|
|
\v 22 जिसमें बुद्धि है, उसके लिये वह जीवन का स्रोत है,
|
|
\q परन्तु मूर्ख का दण्ड स्वयं उसकी मूर्खता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 23 बुद्धिमान का मन उसके मुँह पर भी बुद्धिमानी प्रगट करता है,
|
|
\q और उसके वचन में विद्या रहती है।
|
|
\q
|
|
\v 24 मनभावने वचन मधुभरे छत्ते के समान प्राणों को मीठे लगते,
|
|
\q और हड्डियों को हरी-भरी करते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 25 ऐसा भी मार्ग है, जो मनुष्य को सीधा जान पड़ता है,
|
|
\q परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है।
|
|
\q
|
|
\v 26 परिश्रमी की लालसा उसके लिये परिश्रम करती है,
|
|
\q उसकी भूख तो उसको उभारती रहती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 27 अधर्मी मनुष्य बुराई की युक्ति निकालता है*,
|
|
\q और उसके वचनों से आग लग जाती है।
|
|
\q
|
|
\v 28 टेढ़ा मनुष्य बहुत झगड़े को उठाता है,
|
|
\q और कानाफूसी करनेवाला परम मित्रों में भी फूट करा देता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 29 उपद्रवी मनुष्य अपने पड़ोसी को फुसलाकर कुमार्ग पर चलाता है।
|
|
\q
|
|
\v 30 आँख मूँदनेवाला छल की कल्पनाएँ करता है,
|
|
\q और होंठ दबानेवाला बुराई करता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 31 पक्के बाल शोभायमान मुकुट ठहरते हैं;
|
|
\q वे धर्म के मार्ग पर चलने से प्राप्त होते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 32 विलम्ब से क्रोध करना वीरता से,
|
|
\q और अपने मन को वश में रखना, नगर को जीत लेने से उत्तम है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 33 चिट्ठी डाली जाती तो है,
|
|
\q परन्तु उसका निकलना यहोवा ही की ओर से होता है। (प्रेरि. 1:26)
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 17
|
|
\q
|
|
\v 1 चैन के साथ सूखा टुकड़ा, उस घर की अपेक्षा उत्तम है,
|
|
\q जो मेलबलि-पशुओं से भरा हो, परन्तु उसमें झगड़े रगड़े हों।
|
|
\q
|
|
\v 2 बुद्धि से चलनेवाला दास अपने स्वामी के उस पुत्र पर जो लज्जा का कारण होता है प्रभुता करेगा,
|
|
\q और उस पुत्र के भाइयों के बीच भागी होगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 चाँदी के लिये कुठाली, और सोने के लिये भट्ठी हाती है*,
|
|
\q परन्तु मनों को यहोवा जाँचता है। (1 पतरस. 1:17)
|
|
\q
|
|
\v 4 कुकर्मी अनर्थ बात को ध्यान देकर सुनता है,
|
|
\q और झूठा मनुष्य दुष्टता की बात की ओर कान लगाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 जो निर्धन को उपहास में उड़ाता है, वह उसके कर्त्ता की निन्दा करता है;
|
|
\q और जो किसी की विपत्ति पर हँसता है, वह निर्दोष नहीं ठहरेगा।
|
|
\q
|
|
\v 6 बूढ़ों की शोभा उनके नाती पोते हैं;
|
|
\q और बाल-बच्चों की शोभा उनके माता-पिता हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 मूर्ख के मुख से उत्तम बात फबती नहीं,
|
|
\q और इससे अधिक प्रधान के मुख से झूठी बात नहीं फबती।
|
|
\q
|
|
\v 8 घूस देनेवाला व्यक्ति घूस को मोह लेनेवाला मणि समझता है;
|
|
\q ऐसा पुरुष जिधर फिरता, उधर उसका काम सफल होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 जो दूसरे के अपराध को ढाँप देता* है, वह प्रेम का खोजी ठहरता है,
|
|
\q परन्तु जो बात की चर्चा बार-बार करता है, वह परम मित्रों में भी फूट करा देता है।
|
|
\q
|
|
\v 10 एक घुड़की समझनेवाले के मन में जितनी गड़ जाती है,
|
|
\q उतना सौ बार मार खाना मूर्ख के मन में नहीं गड़ता।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 बुरा मनुष्य दंगे ही का यत्न करता है,
|
|
\q इसलिए उसके पास क्रूर दूत भेजा जाएगा।
|
|
\q
|
|
\v 12 बच्चा-छीनी-हुई-रीछनी से मिलना,
|
|
\q मूर्खता में डूबे हुए मूर्ख से मिलने से बेहतर है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 जो कोई भलाई के बदले में बुराई करे,
|
|
\q उसके घर से बुराई दूर न होगी।
|
|
\q
|
|
\v 14 झगड़े का आरम्भ बाँध के छेद के समान है,
|
|
\q झगड़ा बढ़ने से पहले उसको छोड़ देना उचित है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 जो दोषी को निर्दोष, और जो निर्दोष को दोषी ठहराता है,
|
|
\q उन दोनों से यहोवा घृणा करता है।
|
|
\q
|
|
\v 16 बुद्धि मोल लेने के लिये मूर्ख अपने हाथ में दाम क्यों लिए है?
|
|
\q वह उसे चाहता ही नहीं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 मित्र सब समयों में प्रेम रखता है,
|
|
\q और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है।
|
|
\q
|
|
\v 18 निर्बुद्धि मनुष्य बाध्यकारी वायदे करता है,
|
|
\q और अपने पड़ोसी के कर्ज का उत्तरदायी होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 जो झगड़े-रगड़े में प्रीति रखता, वह अपराध करने से भी प्रीति रखता है,
|
|
\q और जो अपने फाटक को बड़ा करता*, वह अपने विनाश के लिये यत्न करता है।
|
|
\q
|
|
\v 20 जो मन का टेढ़ा है, उसका कल्याण नहीं होता,
|
|
\q और उलट-फेर की बात करनेवाला विपत्ति में पड़ता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 21 जो मूर्ख को जन्म देता है वह उससे दुःख ही पाता है;
|
|
\q और मूर्ख के पिता को आनन्द नहीं होता।
|
|
\q
|
|
\v 22 मन का आनन्द अच्छी औषधि है,
|
|
\q परन्तु मन के टूटने से हड्डियाँ सूख जाती हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 23 दुष्ट जन न्याय बिगाड़ने के लिये,
|
|
\q अपनी गाँठ से घूस निकालता है।
|
|
\q
|
|
\v 24 बुद्धि समझनेवाले के सामने ही रहती है,
|
|
\q परन्तु मूर्ख की आँखें पृथ्वी के दूर-दूर देशों में लगी रहती हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 25 मूर्ख पुत्र से पिता उदास होता है,
|
|
\q और उसकी जननी को शोक होता है।
|
|
\q
|
|
\v 26 धर्मी को दण्ड देना,
|
|
\q और प्रधानों को खराई के कारण पिटवाना, दोनों काम अच्छे नहीं हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 27 जो संभलकर बोलता है, वह ज्ञानी ठहरता है;
|
|
\q और जिसकी आत्मा शान्त रहती है, वही समझवाला पुरुष ठहरता है।
|
|
\q
|
|
\v 28 मूर्ख भी जब चुप रहता है, तब बुद्धिमान गिना जाता है;
|
|
\q और जो अपना मुँह बन्द रखता वह समझवाला गिना जाता है।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 18
|
|
\q
|
|
\v 1 जो दूसरों से अलग हो जाता है, वह अपनी ही इच्छा पूरी करने के लिये ऐसा करता है,
|
|
\q और सब प्रकार की खरी बुद्धि से बैर करता है।
|
|
\q
|
|
\v 2 मूर्ख का मन समझ की बातों में नहीं लगता,
|
|
\q वह केवल अपने मन की बात प्रगट करना चाहता है*।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 जहाँ दुष्टता आती, वहाँ अपमान भी आता है;
|
|
\q और निरादर के साथ निन्दा आती है।
|
|
\q
|
|
\v 4 मनुष्य के मुँह के वचन गहरे जल होते है;
|
|
\q बुद्धि का स्रोत बहती धारा के समान हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 दुष्ट का पक्ष करना,
|
|
\q और धर्मी का हक़ मारना, अच्छा नहीं है।
|
|
\q
|
|
\v 6 बात बढ़ाने से मूर्ख मुकद्दमा खड़ा करता है,
|
|
\q और अपने को मार खाने के योग्य दिखाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 मूर्ख का विनाश उसकी बातों से होता है,
|
|
\q और उसके वचन उसके प्राण के लिये फंदे होते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 8 कानाफूसी करनेवाले के वचन स्वादिष्ट भोजन के समान लगते हैं;
|
|
\q वे पेट में पच जाते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 जो काम में आलस करता है,
|
|
\q वह बिगाड़नेवाले का भाई ठहरता है।
|
|
\q
|
|
\v 10 यहोवा का नाम दृढ़ गढ़ है;
|
|
\q धर्मी उसमें भागकर सब दुर्घटनाओं से बचता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 धनी का धन उसकी दृष्टि में शक्तिशाली नगर* है,
|
|
\q और उसकी कल्पना ऊँची शहरपनाह के समान है।
|
|
\q
|
|
\v 12 नाश होने से पहले मनुष्य के मन में घमण्ड,
|
|
\q और महिमा पाने से पहले नम्रता होती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 जो बिना बात सुने उत्तर देता है, वह मूर्ख ठहरता है,
|
|
\q और उसका अनादर होता है।
|
|
\q
|
|
\v 14 रोग में मनुष्य अपनी आत्मा से सम्भलता है;
|
|
\q परन्तु जब आत्मा हार जाती है तब इसे कौन सह सकता है?
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 समझवाले का मन ज्ञान प्राप्त करता है;
|
|
\q और बुद्धिमान ज्ञान की बात की खोज में रहते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 16 भेंट मनुष्य के लिये मार्ग खोल देती है,
|
|
\q और उसे बड़े लोगों के सामने पहुँचाती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 मुकद्दमें में जो पहले बोलता, वही सच्चा जान पड़ता है,
|
|
\q परन्तु बाद में दूसरे पक्षवाला* आकर उसे जाँच लेता है।
|
|
\q
|
|
\v 18 चिट्ठी डालने से झगड़े बन्द होते हैं,
|
|
\q और बलवन्तों की लड़ाई का अन्त होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 चिढ़े हुए भाई को मनाना दृढ़ नगर के ले लेने से कठिन होता है,
|
|
\q और झगड़े राजभवन के बेंड़ों के समान हैं।
|
|
\q
|
|
\v 20 मनुष्य का पेट मुँह की बातों के फल से भरता है*;
|
|
\q और बोलने से जो कुछ प्राप्त होता है उससे वह तृप्त होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 21 जीभ के वश में मृत्यु और जीवन दोनों होते हैं,
|
|
\q और जो उसे काम में लाना जानता है वह उसका फल भोगेगा।
|
|
\q
|
|
\v 22 जिस ने स्त्री ब्याह ली, उसने उत्तम पदार्थ पाया,
|
|
\q और यहोवा का अनुग्रह उस पर हुआ है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 23 निर्धन गिड़गिड़ाकर बोलता है,
|
|
\q परन्तु धनी कड़ा उत्तर देता है।
|
|
\q
|
|
\v 24 मित्रों के बढ़ाने से तो नाश होता है,
|
|
\q परन्तु ऐसा मित्र होता है, जो भाई से भी अधिक मिला रहता है।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 19
|
|
\q
|
|
\v 1 जो निर्धन खराई से चलता है,
|
|
\q वह उस मूर्ख से उत्तम है जो टेढ़ी बातें बोलता है।
|
|
\q
|
|
\v 2 मनुष्य का ज्ञानरहित रहना अच्छा नहीं,
|
|
\q और जो उतावली से दौड़ता है वह चूक जाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 मूर्खता के कारण मनुष्य का मार्ग टेढ़ा होता है,
|
|
\q और वह मन ही मन यहोवा से चिढ़ने लगता है।
|
|
\q
|
|
\v 4 धनी के तो बहुत मित्र हो जाते हैं,
|
|
\q परन्तु कंगाल के मित्र उससे अलग हो जाते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 झूठा साक्षी निर्दोष नहीं ठहरता,
|
|
\q और जो झूठ बोला करता है, वह न बचेगा।
|
|
\q
|
|
\v 6 उदार मनुष्य को बहुत से लोग मना लेते हैं,
|
|
\q और दानी पुरुष का मित्र सब कोई बनता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 जब निर्धन के सब भाई उससे बैर रखते हैं,
|
|
\q तो निश्चय है कि उसके मित्र उससे दूर हो जाएँ।
|
|
\q वह बातें करते हुए उनका पीछा करता है, परन्तु उनको नहीं पाता।
|
|
\q
|
|
\v 8 जो बुद्धि प्राप्त करता, वह अपने प्राण को प्रेमी ठहराता है;
|
|
\q और जो समझ को रखे रहता है उसका कल्याण होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 झूठा साक्षी निर्दोष नहीं ठहरता,
|
|
\q और जो झूठ बोला करता है, वह नाश होता है।
|
|
\q
|
|
\v 10 जब सुख में रहना मूर्ख को नहीं फबता,
|
|
\q तो हाकिमों पर दास का प्रभुता करना कैसे फबे!
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 जो मनुष्य बुद्धि से चलता है वह विलम्ब से क्रोध करता है,
|
|
\q और अपराध को भुलाना उसको शोभा देता है।
|
|
\q
|
|
\v 12 राजा का क्रोध सिंह की गर्जन के समान है,
|
|
\q परन्तु उसकी प्रसन्नता घास पर की ओस के तुल्य होती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 मूर्ख पुत्र पिता के लिये विपत्ति है,
|
|
\q और झगड़ालू पत्नी सदा टपकने* वाले जल के समान हैं।
|
|
\q
|
|
\v 14 घर और धन पुरखाओं के भाग से,
|
|
\q परन्तु बुद्धिमती पत्नी यहोवा ही से मिलती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 आलस से भारी नींद आ जाती है,
|
|
\q और जो प्राणी ढिलाई से काम करता, वह भूखा ही रहता है।
|
|
\q
|
|
\v 16 जो आज्ञा को मानता, वह अपने प्राण की रक्षा करता है,
|
|
\q परन्तु जो अपने चालचलन के विषय में निश्चिन्त रहता है, वह मर जाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 जो कंगाल पर अनुग्रह करता है, वह यहोवा को उधार देता है,
|
|
\q और वह अपने इस काम का प्रतिफल पाएगा। (मत्ती 25:40)
|
|
\q
|
|
\v 18 जब तक आशा है तब तक अपने पुत्र की ताड़ना कर,
|
|
\q जान-बूझकर उसको मार न डाल।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 जो बड़ा क्रोधी है, उसे दण्ड उठाने दे;
|
|
\q क्योंकि यदि तू उसे बचाए, तो बारम्बार बचाना पड़ेगा।
|
|
\q
|
|
\v 20 सम्मति को सुन ले, और शिक्षा को ग्रहण कर,
|
|
\q ताकि तू अपने अन्तकाल में बुद्धिमान ठहरे।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 21 मनुष्य के मन में बहुत सी कल्पनाएँ होती हैं*,
|
|
\q परन्तु जो युक्ति यहोवा करता है, वही स्थिर रहती है।
|
|
\q
|
|
\v 22 मनुष्य में निष्ठा सर्वोत्तम गुण है,
|
|
\q और निर्धन जन झूठ बोलनेवाले से बेहतर है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 23 यहोवा का भय मानने से जीवन बढ़ता है;
|
|
\q और उसका भय माननेवाला ठिकाना पाकर सुखी रहता है;
|
|
\q उस पर विपत्ति नहीं पड़ने की।
|
|
\q
|
|
\v 24 आलसी अपना हाथ थाली में डालता है,
|
|
\q परन्तु अपने मुँह तक कौर नहीं उठाता।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 25 ठट्ठा करनेवाले को मार, इससे भोला मनुष्य समझदार हो जाएगा;
|
|
\q और समझवाले को डाँट, तब वह अधिक ज्ञान पाएगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 26 जो पुत्र अपने बाप को उजाड़ता, और अपनी माँ को भगा देता है,
|
|
\q वह अपमान और लज्जा का कारण होगा।
|
|
\q
|
|
\v 27 हे मेरे पुत्र, यदि तू शिक्षा को सुनना छोड़ दे,
|
|
\q तो तू ज्ञान की बातों से भटक जाएगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 28 अधर्मी साक्षी न्याय को उपहास में उड़ाता है,
|
|
\q और दुष्ट लोग अनर्थ काम निगल लेते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 29 ठट्ठा करनेवालों के लिये दण्ड ठहराया जाता है,
|
|
\q और मूर्खों की पीठ के लिये कोड़े हैं।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 20
|
|
\q
|
|
\v 1 दाखमधु ठट्ठा करनेवाला और मदिरा हल्ला मचानेवाली है;
|
|
\q जो कोई उसके कारण चूक करता है, वह बुद्धिमान नहीं।
|
|
\q
|
|
\v 2 राजा का क्रोध, जवान सिंह के गर्जन समान है;
|
|
\q जो उसको रोष दिलाता है वह अपना प्राण खो देता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 मकद्दमें से हाथ उठाना, पुरुष की महिमा ठहरती है;
|
|
\q परन्तु सब मूर्ख झगड़ने को तैयार होते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 4 आलसी मनुष्य शीत के कारण हल नहीं जोतता;
|
|
\q इसलिए कटनी के समय वह भीख माँगता, और कुछ नहीं पाता।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 मनुष्य के मन की युक्ति अथाह तो है,
|
|
\q तो भी समझवाला मनुष्य उसको निकाल लेता है।
|
|
\q
|
|
\v 6 बहुत से मनुष्य अपनी निष्ठा का प्रचार करते हैं;
|
|
\q परन्तु सच्चा व्यक्ति कौन पा सकता है?
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 वह व्यक्ति जो अपनी सत्यनिष्ठा पर चलता है,
|
|
\q उसके पुत्र जो उसके पीछे चलते हैं, वे धन्य हैं।
|
|
\q
|
|
\v 8 राजा जो न्याय के सिंहासन पर बैठा करता है,
|
|
\q वह अपनी दृष्टि ही से सब बुराई को छाँट लेता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 कौन कह सकता है कि मैंने अपने हृदय को पवित्र किया;
|
|
\q अथवा मैं पाप से शुद्ध हुआ हूँ?
|
|
\q
|
|
\v 10 घटते-बढ़ते बटखरे और घटते-बढ़ते नपुए इन दोनों से यहोवा घृणा करता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 लड़का भी अपने कामों से पहचाना जाता है,
|
|
\q कि उसका काम पवित्र और सीधा है, या नहीं।
|
|
\q
|
|
\v 12 सुनने के लिये कान और देखने के लिये जो *आँखें हैं,
|
|
\q उन दोनों को यहोवा ने बनाया है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 नींद से प्रीति न रख, नहीं तो दरिद्र हो जाएगा;
|
|
\q आँखें खोल* तब तू रोटी से तृप्त होगा।
|
|
\q
|
|
\v 14 मोल लेने के समय ग्राहक, “अच्छी नहीं, अच्छी नहीं,” कहता है;
|
|
\q परन्तु चले जाने पर बढ़ाई करता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 सोना और बहुत से बहुमूल्य रत्न तो हैं;
|
|
\q परन्तु ज्ञान की बातें* अनमोल मणि ठहरी हैं।
|
|
\q
|
|
\v 16 किसी अनजान के लिए जमानत देनेवाले के वस्त्र ले और पराए के प्रति जो उत्तरदायी हुआ है उससे बंधक की वस्तु ले रख।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 छल-कपट से प्राप्त रोटी मनुष्य को मीठी तो लगती है,
|
|
\q परन्तु बाद में उसका मुँह कंकड़ों से भर जाता है।
|
|
\q
|
|
\v 18 सब कल्पनाएँ सम्मति ही से स्थिर होती हैं;
|
|
\q और युक्ति के साथ युद्ध करना चाहिये।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 जो लुतराई करता फिरता है वह भेद प्रगट करता है;
|
|
\q इसलिए बकवादी से मेल जोल न रखना।
|
|
\q
|
|
\v 20 जो अपने माता-पिता को कोसता,
|
|
\q उसका दिया बुझ जाता, और घोर अंधकार हो जाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 21 जो भाग पहले उतावली से मिलता है,
|
|
\q अन्त में उस पर आशीष नहीं होती।
|
|
\q
|
|
\v 22 मत कह, “मैं बुराई का बदला लूँगा;”
|
|
\q वरन् यहोवा की बाट जोहता रह, वह तुझको छुड़ाएगा। (1 थिस्सलुनीकियों. 5:15)
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 23 घटते बढ़ते बटखरों से यहोवा घृणा करता है,
|
|
\q और छल का तराजू अच्छा नहीं।
|
|
\q
|
|
\v 24 मनुष्य का मार्ग यहोवा की ओर से ठहराया जाता है;
|
|
\q मनुष्य अपना मार्ग कैसे समझ सकेगा*?
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 25 जो मनुष्य बिना विचारे किसी वस्तु को पवित्र ठहराए,
|
|
\q और जो मन्नत मानकर पूछपाछ करने लगे, वह फंदे में फंसेगा।
|
|
\q
|
|
\v 26 बुद्धिमान राजा दुष्टों को फटकता है,
|
|
\q और उन पर दाँवने का पहिया चलवाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 27 मनुष्य की आत्मा यहोवा का दीपक है;
|
|
\q वह मन की सब बातों की खोज करता है। (1 कुरिन्थियों. 2:11)
|
|
\q
|
|
\v 28 राजा की रक्षा कृपा और सच्चाई के कारण होती है,
|
|
\q और कृपा करने से उसकी गद्दी संभलती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 29 जवानों का गौरव उनका बल है,
|
|
\q परन्तु बूढ़ों की शोभा उनके पक्के बाल हैं।
|
|
\q
|
|
\v 30 चोट लगने से जो घाव होते हैं, वे बुराई दूर करते हैं;
|
|
\q और मार खाने से हृदय निर्मल हो जाता है।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 21
|
|
\q
|
|
\v 1 राजा का मन जल की धाराओं के समान यहोवा के हाथ में रहता है,
|
|
\q जिधर वह चाहता उधर उसको मोड़ देता है।
|
|
\q
|
|
\v 2 मनुष्य का सारा चालचलन अपनी दृष्टि में तो ठीक होता है,
|
|
\q परन्तु यहोवा मन को जाँचता है,
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 धर्म और न्याय करना,
|
|
\q यहोवा को बलिदान से अधिक अच्छा लगता है।
|
|
\q
|
|
\v 4 चढ़ी आँखें, घमण्डी मन,
|
|
\q और दुष्टों की खेती, तीनों पापमय हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 कामकाजी की कल्पनाओं से केवल लाभ होता है,
|
|
\q परन्तु उतावली करनेवाले को केवल घटती होती है।
|
|
\q
|
|
\v 6 जो धन झूठ के द्वारा प्राप्त हो, वह वायु से उड़ जानेवाला कुहरा है,
|
|
\q उसके ढूँढ़नेवाले मृत्यु ही को ढूँढ़ते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 जो उपद्रव दुष्ट लोग करते हैं,
|
|
\q उससे उन्हीं का नाश होता है, क्योंकि वे न्याय का काम करने से इन्कार करते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 8 पाप से लदे हुए मनुष्य का मार्ग बहुत ही टेढ़ा होता है,
|
|
\q परन्तु जो पवित्र है, उसका कर्म सीधा होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 लम्बे-चौड़े घर में झगड़ालू पत्नी के संग रहने से,
|
|
\q छत के कोने पर रहना उत्तम है।
|
|
\q
|
|
\v 10 दुष्ट जन बुराई की लालसा जी से करता है,
|
|
\q वह अपने पड़ोसी पर अनुग्रह की दृष्टि नहीं करता।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 जब ठट्ठा करनेवाले को दण्ड दिया जाता है, तब भोला बुद्धिमान हो जाता है;
|
|
\q और जब बुद्धिमान को उपदेश दिया जाता है, तब वह ज्ञान प्राप्त करता है।
|
|
\q
|
|
\v 12 धर्मी जन दुष्टों के घराने पर बुद्धिमानी से विचार करता है,
|
|
\q और परमेश्वर दुष्टों को बुराइयों में उलट देता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 जो कंगाल की दुहाई पर कान न दे,
|
|
\q वह आप पुकारेगा और उसकी सुनी न जाएगी।
|
|
\q
|
|
\v 14 गुप्त में दी हुई भेंट से क्रोध ठण्डा होता है,
|
|
\q और चुपके से दी हुई घूस से बड़ी जलजलाहट भी थमती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 न्याय का काम करना धर्मी को तो आनन्द,
|
|
\q परन्तु अनर्थकारियों को विनाश ही का कारण जान पड़ता है।
|
|
\q
|
|
\v 16 जो मनुष्य बुद्धि के मार्ग से भटक जाए,
|
|
\q उसका ठिकाना मरे हुओं के बीच में होगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 जो रागरंग से प्रीति रखता है, वह कंगाल हो जाता है;
|
|
\q और जो दाखमधु पीने और तेल लगाने से प्रीति रखता है, वह धनी नहीं होता।
|
|
\q
|
|
\v 18 दुष्ट जन धर्मी की छुड़ौती ठहरता है,
|
|
\q और विश्वासघाती सीधे लोगों के बदले दण्ड भोगते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 झगड़ालू और चिढ़नेवाली पत्नी के संग रहने से,
|
|
\q जंगल में रहना उत्तम है।
|
|
\q
|
|
\v 20 बुद्धिमान के घर में उत्तम धन और तेल पाए जाते हैं,
|
|
\q परन्तु मूर्ख उनको उड़ा डालता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 21 जो धर्म और कृपा का पीछा करता है*,
|
|
\q वह जीवन, धर्म और महिमा भी पाता है।
|
|
\q
|
|
\v 22 बुद्धिमान शूरवीरों के नगर पर चढ़कर,
|
|
\q उनके बल को जिस पर वे भरोसा करते हैं, नाश करता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 23 जो अपने मुँह को वश में रखता है
|
|
\q वह अपने प्राण को विपत्तियों से बचाता है।
|
|
\q
|
|
\v 24 जो अभिमान से रोष में आकर काम करता है, उसका नाम अभिमानी,
|
|
\q और अहंकारी ठट्ठा करनेवाला पड़ता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 25 आलसी अपनी लालसा ही में मर जाता है,
|
|
\q क्योंकि उसके हाथ काम करने से इन्कार करते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 26 कोई ऐसा है, जो दिन भर लालसा ही किया करता है,
|
|
\q परन्तु धर्मी लगातार दान करता रहता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 27 दुष्टों का बलिदान घृणित है;
|
|
\q विशेष करके जब वह बुरे उद्देश्य के साथ लाता है।
|
|
\q
|
|
\v 28 झूठा साक्षी नाश हो जाएगा,
|
|
\q परन्तु सच्चा साक्षी सदा स्थिर रहेगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 29 दुष्ट मनुष्य अपना मुख कठोर करता है,
|
|
\q और धर्मी अपनी चाल सीधी रखता है*।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 30 यहोवा के विरुद्ध न तो कुछ बुद्धि,
|
|
\q और न कुछ समझ, न कोई युक्ति चलती है।
|
|
\q
|
|
\v 31 युद्ध के दिन के लिये घोड़ा तैयार तो होता है,
|
|
\q परन्तु जय यहोवा ही से मिलती है।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 22
|
|
\p
|
|
\v 1 बड़े धन से अच्छा नाम अधिक चाहने योग्य है,
|
|
\q और सोने चाँदी से औरों की प्रसन्नता उत्तम है।
|
|
\q
|
|
\v 2 धनी और निर्धन दोनों में एक समानता है;
|
|
\q यहोवा उन दोनों का कर्त्ता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 चतुर मनुष्य विपत्ति को आते देखकर छिप जाता है;
|
|
\q परन्तु भोले लोग आगे बढ़कर दण्ड भोगते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 4 नम्रता और यहोवा के भय* मानने का फल धन,
|
|
\q महिमा और जीवन होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 टेढ़े मनुष्य के मार्ग में काँटे और फंदे रहते हैं;
|
|
\q परन्तु जो अपने प्राणों की रक्षा करता, वह उनसे दूर रहता है।
|
|
\q
|
|
\v 6 लड़के को उसी मार्ग की शिक्षा दे जिसमें उसको चलना चाहिये,
|
|
\q और वह बुढ़ापे में भी उससे न हटेगा। (इफिसियों. 6:4)
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 धनी, निर्धन लोगों पर प्रभुता करता है,
|
|
\q और उधार लेनेवाला उधार देनेवाले का दास होता है।
|
|
\q
|
|
\v 8 जो कुटिलता का बीज बोता है, वह अनर्थ ही काटेगा,
|
|
\q और उसके रोष का सोंटा टूटेगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 दया करनेवाले पर आशीष फलती है,
|
|
\q क्योंकि वह कंगाल को अपनी रोटी में से देता है। (2 कुरिन्थियों. 9:10)
|
|
\q
|
|
\v 10 ठट्ठा करनेवाले को निकाल दे, तब झगड़ा मिट जाएगा,
|
|
\q और वाद-विवाद और अपमान दोनों टूट जाएँगे।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 जो मन की शुद्धता से प्रीति रखता है,
|
|
\q और जिसके वचन मनोहर होते हैं, राजा उसका मित्र होता है।
|
|
\q
|
|
\v 12 यहोवा ज्ञानी पर दृष्टि करके, उसकी रक्षा करता है,
|
|
\q परन्तु विश्वासघाती की बातें उलट देता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 आलसी कहता है, बाहर तो सिंह होगा!
|
|
\q मैं चौक के बीच घात किया जाऊँगा।
|
|
\q
|
|
\v 14 व्यभिचारिणी का मुँह गहरा गड्ढा है;
|
|
\q जिससे यहोवा क्रोधित होता है, वही उसमें गिरता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 लड़के के मन में मूर्खता की गाँठ बंधी रहती है,
|
|
\q परन्तु अनुशासन की छड़ी के द्वारा वह खोलकर उससे दूर की जाती है।
|
|
\q
|
|
\v 16 जो अपने लाभ के निमित्त कंगाल पर अंधेर करता है,
|
|
\q और जो धनी को भेंट देता, वे दोनों केवल हानि ही उठाते हैं।
|
|
\s बुद्धिमान की बातें
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 कान लगाकर बुद्धिमानों के वचन सुन,
|
|
\q और मेरी ज्ञान की बातों की ओर मन लगा;
|
|
\q
|
|
\v 18 यदि तू उसको अपने मन में रखे,
|
|
\q और वे सब तेरे मुँह से निकला भी करें, तो यह मनभावनी बात होगी।
|
|
\q
|
|
\v 19 मैंने आज इसलिए ये बातें तुझको बताई है,
|
|
\q कि तेरा भरोसा यहोवा पर हो।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 20 मैं बहुत दिनों से तेरे हित के उपदेश
|
|
\q और ज्ञान की बातें लिखता आया हूँ,
|
|
\q
|
|
\v 21 कि मैं तुझे सत्य वचनों का निश्चय करा दूँ,
|
|
\q जिससे जो तुझे काम में लगाएँ, उनको सच्चा उत्तर दे सके।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 22 कंगाल पर इस कारण अंधेर न करना* कि वह कंगाल है,
|
|
\q और न दीन जन को कचहरी में पीसना;
|
|
\q
|
|
\v 23 क्योंकि यहोवा उनका मुकद्दमा लड़ेगा,
|
|
\q और जो लोग उनका धन हर लेते हैं, उनका प्राण भी वह हर लेगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 24 क्रोधी मनुष्य का मित्र न होना,
|
|
\q और झट क्रोध करनेवाले के संग न चलना,
|
|
\q
|
|
\v 25 कहीं ऐसा न हो कि तू उसकी चाल सीखे,
|
|
\q और तेरा प्राण फंदे में फंस जाए।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 26 जो लोग हाथ पर हाथ मारते हैं,
|
|
\q और कर्जदार के उत्तरदायी होते हैं, उनमें तू न होना।
|
|
\q
|
|
\v 27 यदि तेरे पास भुगतान करने के साधन की कमी हो,
|
|
\q तो क्यों न साहूकार तेरे नीचे से खाट खींच ले जाए?
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 28 जो सीमा तेरे पुरखाओं ने बाँधी हो, उस पुरानी सीमा को न बढ़ाना।
|
|
\q
|
|
\v 29 यदि तू ऐसा पुरुष देखे जो काम-काज में निपुण हो,
|
|
\q तो वह राजाओं के सम्मुख खड़ा होगा; छोटे लोगों के सम्मुख नहीं।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 23
|
|
\q
|
|
\v 1 जब तू किसी हाकिम के संग भोजन करने को बैठे,
|
|
\q तब इस बात को मन लगाकर सोचना कि मेरे सामने कौन है?
|
|
\q
|
|
\v 2 और यदि तू अधिक खानेवाला हो,
|
|
\q तो थोड़ा खाकर भूखा उठ जाना।
|
|
\q
|
|
\v 3 उसकी स्वादिष्ट भोजनवस्तुओं की लालसा न करना,
|
|
\q क्योंकि वह धोखे का भोजन है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 4 धनी होने के लिये परिश्रम न करना;
|
|
\q अपनी समझ का भरोसा छोड़ना। (1 तीमु. 6:9)
|
|
\q
|
|
\v 5 जब तू अपनी दृष्टि धन पर लगाएगा,
|
|
\q वह चला जाएगा,
|
|
\q वह उकाब पक्षी के समान पंख लगाकर, निःसन्देह आकाश की ओर उड़ जाएगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 6 जो डाह से देखता है, उसकी रोटी न खाना,
|
|
\q और न उसकी स्वादिष्ट भोजनवस्तुओं की लालसा करना;
|
|
\q
|
|
\v 7 क्योंकि वह ऐसा व्यक्ति है,
|
|
\q जो भोजन के कीमत की गणना करता है। वह तुझ से कहता तो है, खा और पी,
|
|
\q परन्तु उसका मन तुझ से लगा नहीं है।
|
|
\q
|
|
\v 8 जो कौर तूने खाया हो, उसे उगलना पड़ेगा,
|
|
\q और तू अपनी मीठी बातों का फल खोएगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 मूर्ख के सामने न बोलना,
|
|
\q नहीं तो वह तेरे बुद्धि के वचनों को तुच्छ जानेगा।
|
|
\q
|
|
\v 10 पुरानी सीमाओं को न बढ़ाना,
|
|
\q और न अनाथों के खेत में घुसना;
|
|
\q
|
|
\v 11 क्योंकि उनका छुड़ानेवाला सामर्थी है;
|
|
\q उनका मुकद्दमा तेरे संग वही लड़ेगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 12 अपना हृदय शिक्षा की ओर,
|
|
\q और अपने कान ज्ञान की बातों की ओर लगाना।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 लड़के की ताड़ना न छोड़ना*;
|
|
\q क्योंकि यदि तू उसको छड़ी से मारे, तो वह न मरेगा।
|
|
\q
|
|
\v 14 तू उसको छड़ी से मारकर उसका प्राण अधोलोक से बचाएगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 हे मेरे पुत्र, यदि तू बुद्धिमान हो,
|
|
\q तो मेरा ही मन आनन्दित होगा।
|
|
\q
|
|
\v 16 और जब तू सीधी बातें बोले, तब मेरा मन प्रसन्न होगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 तू पापियों के विषय मन में डाह न करना,
|
|
\q दिन भर यहोवा का भय मानते रहना।
|
|
\q
|
|
\v 18 क्योंकि अन्त में फल होगा,
|
|
\q और तेरी आशा न टूटेगी।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 हे मेरे पुत्र, तू सुनकर बुद्धिमान हो,
|
|
\q और अपना मन सुमार्ग में सीधा चला।
|
|
\q
|
|
\v 20 दाखमधु के पीनेवालों में न होना,
|
|
\q न माँस के अधिक खानेवालों की संगति करना;
|
|
\q
|
|
\v 21 क्योंकि पियक्कड़ और पेटू दरिद्र हो जाएँगे,
|
|
\q और उनका क्रोध उन्हें चिथड़े पहनाएगी।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 22 अपने जन्मानेवाले पिता की सुनना,
|
|
\q और जब तेरी माता बुढ़िया हो जाए, तब भी उसे तुच्छ न जानना।
|
|
\q
|
|
\v 23 सच्चाई को मोल लेना, बेचना नहीं;
|
|
\q और बुद्धि और शिक्षा और समझ को भी मोल लेना।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 24 धर्मी का पिता बहुत मगन होता है;
|
|
\q और बुद्धिमान का जन्मानेवाला उसके कारण आनन्दित होता है।
|
|
\q
|
|
\v 25 तेरे कारण माता-पिता आनन्दित और तेरी जननी मगन होए।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 26 हे मेरे पुत्र, अपना मन मेरी ओर लगा,
|
|
\q और तेरी दृष्टि मेरे चालचलन पर लगी रहे।
|
|
\q
|
|
\v 27 वेश्या गहरा गड्ढा ठहरती है;
|
|
\q और पराई स्त्री सकेत कुएँ के समान है।
|
|
\q
|
|
\v 28 वह डाकू के समान घात लगाती है,
|
|
\q और बहुत से मनुष्यों को विश्वासघाती बना देती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 29 कौन कहता है, हाय? कौन कहता है, हाय, हाय? कौन झगड़े रगड़े में फँसता है?
|
|
\q कौन बक-बक करता है? किसके अकारण घाव होते हैं? किसकी आँखें लाल हो जाती हैं?
|
|
\q
|
|
\v 30 उनकी जो दाखमधु देर तक पीते हैं,
|
|
\q और जो मसाला मिला हुआ दाखमधु* ढूँढ़ने को जाते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 31 जब दाखमधु लाल दिखाई देता है, और कटोरे में उसका सुन्दर रंग होता है,
|
|
\q और जब वह धार के साथ उण्डेला जाता है,
|
|
\q तब उसको न देखना। (इफिसियों 5:18)
|
|
\q
|
|
\v 32 क्योंकि अन्त में वह सर्प के समान डसता है,
|
|
\q और करैत के समान काटता है।
|
|
\q
|
|
\v 33 तू विचित्र वस्तुएँ देखेगा,
|
|
\q और उलटी-सीधी बातें बकता रहेगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 34 और तू समुद्र के बीच लेटनेवाले
|
|
\q या मस्तूल के सिरे पर सोनेवाले के समान रहेगा।
|
|
\q
|
|
\v 35 तू कहेगा कि मैंने मार तो खाई, परन्तु दुःखित न हुआ;
|
|
\q मैं पिट तो गया, परन्तु मुझे कुछ सुधि न थी।
|
|
\q मैं होश में कब आऊँ? मैं तो फिर मदिरा ढूँढ़ूगा।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 24
|
|
\q
|
|
\v 1 बुरे लोगों के विषय में डाह न करना,
|
|
\q और न उसकी संगति की चाह रखना;
|
|
\q
|
|
\v 2 क्योंकि वे उपद्रव सोचते रहते हैं,
|
|
\q और उनके मुँह से दुष्टता की बात निकलती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 घर बुद्धि से बनता है,
|
|
\q और समझ के द्वारा स्थिर होता है।
|
|
\q
|
|
\v 4 ज्ञान के द्वारा कोठरियाँ सब प्रकार की बहुमूल्य
|
|
\q और मनोहर वस्तुओं से भर जाती हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 वीर पुरुष बलवान होता है,
|
|
\q परन्तु ज्ञानी व्यक्ति बलवान पुरुष से बेहतर है।
|
|
\q
|
|
\v 6 इसलिए जब तू युद्ध करे, तब युक्ति के साथ करना,
|
|
\q विजय बहुत से मंत्रियों के द्वारा प्राप्त होती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 बुद्धि इतने ऊँचे पर है कि मूर्ख उसे पा नहीं सकता;
|
|
\q वह सभा में अपना मुँह खोल नहीं सकता।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 8 जो सोच विचार के बुराई करता है,
|
|
\q उसको लोग दुष्ट कहते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 9 मूर्खता का विचार भी पाप है,
|
|
\q और ठट्ठा करनेवाले से मनुष्य घृणा करते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 10 यदि तू विपत्ति के समय साहस छोड़ दे,
|
|
\q तो तेरी शक्ति बहुत कम है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 जो मार डाले जाने के लिये घसीटे जाते हैं उनको छुड़ा;
|
|
\q और जो घात किए जाने को हैं उन्हें रोक।
|
|
\q
|
|
\v 12 यदि तू कहे, कि देख मैं इसको जानता न था,
|
|
\q तो क्या मन का जाँचनेवाला इसे नहीं समझता?
|
|
\q और क्या तेरे प्राणों का रक्षक इसे नहीं जानता?
|
|
\q और क्या वह हर एक मनुष्य के काम का फल उसे न देगा? (मत्ती 16:27, रोमि 2:6, प्रका. 2:23, प्रका. 22:12)
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 हे मेरे पुत्र तू मधु खा, क्योंकि वह अच्छा है,
|
|
\q और मधु का छत्ता भी, क्योंकि वह तेरे मुँह में मीठा लगेगा।
|
|
\q
|
|
\v 14 इसी रीति बुद्धि भी तुझे वैसी ही मीठी लगेगी;
|
|
\q यदि तू उसे पा जाए तो अन्त में उसका फल भी मिलेगा, और तेरी आशा न टूटेगी।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 तू दुष्ट के समान धर्मी के निवास को नष्ट करने के लिये घात में न बैठ*;
|
|
\q और उसके विश्रामस्थान को मत उजाड़;
|
|
\q
|
|
\v 16 क्योंकि धर्मी चाहे सात बार गिरे तो भी उठ खड़ा होता है;
|
|
\q परन्तु दुष्ट लोग विपत्ति में गिरकर पड़े ही रहते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 जब तेरा शत्रु गिर जाए तब तू आनन्दित न हो,
|
|
\q और जब वह ठोकर खाए, तब तेरा मन मगन न हो।
|
|
\q
|
|
\v 18 कहीं ऐसा न हो कि यहोवा यह देखकर अप्रसन्न हो
|
|
\q और अपना क्रोध उस पर से हटा ले।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 कुकर्मियों के कारण मत कुढ़,
|
|
\q दुष्ट लोगों के कारण डाह न कर;
|
|
\q
|
|
\v 20 क्योंकि बुरे मनुष्य को अन्त में*
|
|
\q कुछ फल न मिलेगा, दुष्टों का दीपक बुझा दिया जाएगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 21 हे मेरे पुत्र, यहोवा और राजा दोनों का भय मानना;
|
|
\q और उनके विरुद्ध बलवा करनेवालों के साथ न मिलना; (1 पतरस. 2:17)
|
|
\q
|
|
\v 22 क्योंकि उन पर विपत्ति अचानक आ पड़ेगी,
|
|
\q और दोनों की ओर से आनेवाली विपत्ति को कौन जानता है?
|
|
\s बुद्धिमान की और भी बातें
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 23 बुद्धिमानों के वचन यह भी हैं।
|
|
\q न्याय में पक्षपात करना, किसी भी रीति से अच्छा नहीं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 24 जो दुष्ट से कहता है कि तू निर्दोष है,
|
|
\q उसको तो हर समाज के लोग श्राप देते और जाति-जाति के लोग धमकी देते हैं;
|
|
\q
|
|
\v 25 परन्तु जो लोग दुष्ट को डाँटते हैं उनका भला होता है,
|
|
\q और उत्तम से उत्तम आशीर्वाद उन पर आता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 26 जो सीधा उत्तर देता है,
|
|
\q वह होंठों को चूमता है।
|
|
\q
|
|
\v 27 अपना बाहर का काम-काज ठीक करना,
|
|
\q और अपने लिए खेत को भी तैयार कर लेना;
|
|
\q उसके बाद अपना घर बनाना।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 28 व्यर्थ अपने पड़ोसी के विरुद्ध साक्षी न देना,
|
|
\q और न उसको फुसलाना।
|
|
\q
|
|
\v 29 मत कह, “जैसा उसने मेरे साथ किया वैसा ही मैं भी उसके साथ करूँगा;
|
|
\q और उसको उसके काम के अनुसार पलटा दूँगा।”
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 30 मैं आलसी के खेत के पास से
|
|
\q और निर्बुद्धि मनुष्य की दाख की बारी के पास होकर जाता था,
|
|
\q
|
|
\v 31 तो क्या देखा, कि वहाँ सब कहीं कटीले पेड़ भर गए हैं;
|
|
\q और वह बिच्छू पौधों से ढांक गई है,
|
|
\q और उसके पत्थर का बाड़ा गिर गया है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 32 तब मैंने देखा और उस पर ध्यानपूर्वक विचार किया;
|
|
\q हाँ मैंने देखकर शिक्षा प्राप्त की।
|
|
\q
|
|
\v 33 छोटी सी नींद, एक और झपकी,
|
|
\q थोड़ी देर हाथ पर हाथ रख के लेटे रहना,
|
|
\q
|
|
\v 34 तब तेरा कंगालपन डाकू के समान,
|
|
\q और तेरी घटी हथियारबंद के समान आ पड़ेगी।।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 25
|
|
\s सुलैमान की और भी ज्ञान की बातें
|
|
\q
|
|
\v 1 सुलैमान के नीतिवचन ये भी हैं;
|
|
\q जिन्हें यहूदा के राजा हिजकिय्याह के जनों ने नकल की थी।
|
|
\q
|
|
\v 2 परमेश्वर की महिमा, गुप्त रखने में है
|
|
\q परन्तु राजाओं की महिमा गुप्त बात के पता लगाने से होती है।
|
|
\q
|
|
\v 3 स्वर्ग की ऊँचाई और पृथ्वी की गहराई
|
|
\q और राजाओं का मन, इन तीनों का अन्त नहीं मिलता।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 4 चाँदी में से मैल दूर करने पर वह सुनार के लिये काम की हो जाती है।
|
|
\q
|
|
\v 5 वैसे ही, राजा के सामने से दुष्ट को निकाल देने पर उसकी गद्दी धर्म के कारण स्थिर होगी।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 6 राजा के सामने अपनी बड़ाई न करना
|
|
\q और बड़े लोगों के स्थान में खड़ा न होना*;
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 उनके लिए तुझ से यह कहना बेहतर है कि,
|
|
\q “इधर मेरे पास आकर बैठ” ताकि प्रधानों के सम्मुख तुझे अपमानित न होना पड़े. (लूका 14:10-11)
|
|
\q
|
|
\v 8 जो कुछ तूने देखा है, वह जल्दी से अदालत में न ला,
|
|
\q अन्त में जब तेरा पड़ोसी तुझे शर्मिंदा करेगा तो तू क्या करेगा?
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 अपने पड़ोसी के साथ वाद-विवाद एकान्त में करना
|
|
\q और पराये का भेद न खोलना;
|
|
\q
|
|
\v 10 ऐसा न हो कि सुननेवाला तेरी भी निन्दा करे,
|
|
\q और तेरी निन्दा बनी रहे।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 जैसे चाँदी की टोकरियों में सोने के सेब हों,
|
|
\q वैसे ही ठीक समय पर कहा हुआ वचन होता है।
|
|
\q
|
|
\v 12 जैसे सोने का नत्थ और कुन्दन का जेवर अच्छा लगता है,
|
|
\q वैसे ही माननेवाले के कान में बुद्धिमान की डाँट भी अच्छी लगती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 जैसे कटनी के समय बर्फ की ठण्ड से,
|
|
\q वैसा ही विश्वासयोग्य दूत से भी,
|
|
\q भेजनेवालों का जी ठण्डा होता है।
|
|
\q
|
|
\v 14 जैसे बादल और पवन बिना वृष्टि निर्लाभ होते हैं,
|
|
\q वैसे ही झूठ-मूठ दान देनेवाले का बड़ाई मारना होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 धीरज धरने से न्यायी मनाया जाता है,
|
|
\q और कोमल वचन हड्डी को भी तोड़ डालता है*।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 16 क्या तूने मधु पाया? तो जितना तेरे लिये ठीक हो उतना ही खाना,
|
|
\q ऐसा न हो कि अधिक खाकर उसे उगल दे।
|
|
\q
|
|
\v 17 अपने पड़ोसी के घर में बारम्बार जाने से अपने पाँव को रोक,
|
|
\q ऐसा न हो कि वह खिन्न होकर घृणा करने लगे।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 18 जो किसी के विरुद्ध झूठी साक्षी देता है,
|
|
\q वह मानो हथौड़ा और तलवार और पैना तीर है।
|
|
\q
|
|
\v 19 विपत्ति के समय विश्वासघाती का भरोसा,
|
|
\q टूटे हुए दाँत या उखड़े पाँव के समान है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 20 जैसा जाड़े के दिनों में किसी का वस्त्र उतारना या सज्जी पर सिरका डालना होता है,
|
|
\q वैसा ही उदास मनवाले के सामने गीत गाना होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 21 यदि तेरा बैरी भूखा हो तो उसको रोटी खिलाना;
|
|
\q और यदि वह प्यासा हो तो उसे पानी पिलाना;
|
|
\q
|
|
\v 22 क्योंकि इस रीति तू उसके सिर पर अंगारे डालेगा,
|
|
\q और यहोवा तुझे इसका फल देगा। (मत्ती 5:44, रोम. 12:20)
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 23 जैसे उत्तरी वायु वर्षा को लाती है,
|
|
\q वैसे ही चुगली करने से मुख पर क्रोध छा जाता है।
|
|
\q
|
|
\v 24 लम्बे चौड़े घर में झगड़ालू पत्नी के संग रहने से छत के कोने पर रहना उत्तम है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 25 दूर देश से शुभ सन्देश,
|
|
\q प्यासे के लिए ठंडे पानी के समान है।
|
|
\q
|
|
\v 26 जो धर्मी दुष्ट के कहने में आता है,
|
|
\q वह खराब जल-स्रोत और बिगड़े हुए कुण्ड के समान है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 27 जैसे बहुत मधु खाना अच्छा नहीं,
|
|
\q वैसे ही आत्मप्रशंसा करना भी अच्छा नहीं।
|
|
\q
|
|
\v 28 जिसकी आत्मा वश में नहीं वह ऐसे नगर के समान है जिसकी शहरपनाह घेराव करके तोड़ दी गई हो।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 26
|
|
\q
|
|
\v 1 जैसा धूपकाल में हिम का, या कटनी के समय वर्षा होना,
|
|
\q वैसा ही मूर्ख की महिमा भी ठीक नहीं होती।
|
|
\q
|
|
\v 2 जैसे गौरैया घूमते-घूमते और शूपाबेनी उड़ते-उड़ते नहीं बैठती,
|
|
\q वैसे ही व्यर्थ श्राप नहीं पड़ता।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 घोड़े के लिये कोड़ा, गदहे के लिये लगाम,
|
|
\q और मूर्खों की पीठ के लिये छड़ी है।
|
|
\q
|
|
\v 4 मूर्ख को उसकी मूर्खता के अनुसार उत्तर न देना ऐसा न हो कि तू भी उसके तुल्य ठहरे।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 मूर्ख को उसकी मूर्खता के अनुसार उत्तर देना,
|
|
\q ऐसा न हो कि वह अपनी दृष्टि में बुद्धिमान ठहरे।
|
|
\q
|
|
\v 6 जो मूर्ख के हाथ से संदेशा भेजता है,
|
|
\q वह मानो अपने पाँव में कुल्हाड़ा मारता और विष पीता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 जैसे लँगड़े के पाँव लड़खड़ाते हैं,
|
|
\q वैसे ही मूर्खों के मुँह में नीतिवचन होता है।
|
|
\q
|
|
\v 8 जैसे पत्थरों के ढेर में मणियों की थैली,
|
|
\q वैसे ही मूर्ख को महिमा देनी होती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 जैसे मतवाले के हाथ में काँटा गड़ता है,
|
|
\q वैसे ही मूर्खों का कहा हुआ नीतिवचन भी दुःखदाई होता है।
|
|
\q
|
|
\v 10 जैसा कोई तीरन्दाज जो अकारण सब को मारता हो,
|
|
\q वैसा ही मूर्खों या राहगीरों का मजदूरी में लगानेवाला भी होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 जैसे कुत्ता अपनी छाँट को चाटता है,
|
|
\q वैसे ही मूर्ख अपनी मूर्खता को दोहराता है। (2 पतरस. 2:20-22)
|
|
\q
|
|
\v 12 यदि तू ऐसा मनुष्य देखे जो अपनी दृष्टि में बुद्धिमान बनता हो,
|
|
\q तो उससे अधिक आशा मूर्ख ही से है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 आलसी कहता है, “मार्ग में सिंह है,
|
|
\q चौक में सिंह है!”
|
|
\q
|
|
\v 14 जैसे किवाड़ अपनी चूल पर घूमता है,
|
|
\q वैसे ही आलसी अपनी खाट पर करवटें लेता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 आलसी अपना हाथ थाली में तो डालता है,
|
|
\q परन्तु आलस्य के कारण कौर मुँह तक नहीं उठाता।
|
|
\q
|
|
\v 16 आलसी अपने को ठीक उत्तर देनेवाले
|
|
\q सात मनुष्यों से भी अधिक बुद्धिमान समझता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 जो मार्ग पर चलते हुए पराये झगड़े में विघ्न डालता है,
|
|
\q वह उसके समान है, जो कुत्ते को कानों से पकड़ता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 18 जैसा एक पागल जो जहरीले तीर मारता है,
|
|
\q
|
|
\v 19 वैसा ही वह भी होता है जो अपने पड़ोसी को धोखा देकर कहता है,
|
|
\q “मैं तो मजाक कर रहा था।”
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 20 जैसे लकड़ी न होने से आग बुझती है,
|
|
\q उसी प्रकार जहाँ कानाफूसी करनेवाला नहीं, वहाँ झगड़ा मिट जाता है।
|
|
\q
|
|
\v 21 जैसा अंगारों में कोयला और आग में लकड़ी होती है,
|
|
\q वैसा ही झगड़ा बढ़ाने के लिये झगड़ालू होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 22 कानाफूसी करनेवाले के वचन,
|
|
\q स्वादिष्ट भोजन के समान भीतर उतर जाते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 23 जैसा कोई चाँदी का पानी चढ़ाया हुआ मिट्टी का बर्तन हो,
|
|
\q वैसा ही बुरे मनवाले के प्रेम भरे वचन* होते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 24 जो बैरी बात से तो अपने को भोला बनाता है,
|
|
\q परन्तु अपने भीतर छल रखता है,
|
|
\q
|
|
\v 25 उसकी मीठी-मीठी बात पर विश्वास न करना,
|
|
\q क्योंकि उसके मन में सात घिनौनी वस्तुएँ रहती हैं;
|
|
\q
|
|
\v 26 चाहे उसका बैर छल के कारण छिप भी जाए,
|
|
\q तो भी उसकी बुराई सभा के बीच प्रगट हो जाएगी*।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 27 जो गड्ढा खोदे, वही उसी में गिरेगा, और जो पत्थर लुढ़काए,
|
|
\q वह उलटकर उसी पर लुढ़क आएगा।
|
|
\q
|
|
\v 28 जिस ने किसी को झूठी बातों से घायल किया हो वह उससे बैर रखता है,
|
|
\q और चिकनी चुपड़ी बात बोलनेवाला विनाश का कारण होता है।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 27
|
|
\q
|
|
\v 1 कल के दिन के विषय में डींग मत मार,
|
|
\q क्योंकि तू नहीं जानता कि दिन भर में क्या होगा। (याकू. 4:13-14)
|
|
\q
|
|
\v 2 तेरी प्रशंसा और लोग करें तो करें, परन्तु तू आप न करना;
|
|
\q दूसरा तुझे सराहे तो सराहे, परन्तु तू अपनी सराहना न करना।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 पत्थर तो भारी है और रेत में बोझ है,
|
|
\q परन्तु मूर्ख का क्रोध, उन दोनों से भी भारी है।
|
|
\q
|
|
\v 4 क्रोध की क्रूरता और प्रकोप की बाढ़,
|
|
\q परन्तु ईर्ष्या के सामने कौन ठहर सकता है?
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 खुली हुई डाँट गुप्त प्रेम से उत्तम है।
|
|
\q
|
|
\v 6 जो घाव मित्र के हाथ से लगें वह विश्वासयोग्य हैं
|
|
\q परन्तु बैरी अधिक चुम्बन करता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 सन्तुष्ट होने पर मधु का छत्ता भी फीका लगता है,
|
|
\q परन्तु भूखे को सब कड़वी वस्तुएँ भी मीठी जान पड़ती हैं।
|
|
\q
|
|
\v 8 स्थान छोड़कर घूमनेवाला मनुष्य उस चिड़िया के समान है,
|
|
\q जो घोंसला छोड़कर उड़ती फिरती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 जैसे तेल और सुगन्ध से,
|
|
\q वैसे ही मित्र के हृदय की मनोहर सम्मति से मन आनन्दित होता है।
|
|
\q
|
|
\v 10 जो तेरा और तेरे पिता का भी मित्र हो उसे न छोड़ना;
|
|
\q और अपनी विपत्ति के दिन, अपने भाई के घर न जाना।
|
|
\q प्रेम करनेवाला पड़ोसी, दूर रहनेवाले भाई से कहीं उत्तम है*।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर* मेरा मन आनन्दित कर,
|
|
\q तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूँगा।
|
|
\q
|
|
\v 12 बुद्धिमान मनुष्य विपत्ति को आती देखकर छिप जाता है;
|
|
\q परन्तु भोले लोग आगे बढ़े चले जाते और हानि उठाते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 जो पराए का उत्तरदायी हो उसका कपड़ा,
|
|
\q और जो अनजान का उत्तरदायी हो उससे बन्धक की वस्तु ले-ले।
|
|
\q
|
|
\v 14 जो भोर को उठकर अपने पड़ोसी को ऊँचे शब्द से आशीर्वाद देता है,
|
|
\q उसके लिये यह श्राप गिना जाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 झड़ी के दिन पानी का लगातार टपकना,
|
|
\q और झगड़ालू पत्नी दोनों एक से हैं;
|
|
\q
|
|
\v 16 जो उसको रोक रखे, वह वायु को भी रोक रखेगा और दाहिने हाथ से वह तेल पकड़ेगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 जैसे लोहा लोहे को चमका देता है,
|
|
\q वैसे ही मनुष्य का मुख अपने मित्र की संगति से चमकदार हो जाता है।
|
|
\q
|
|
\v 18 जो अंजीर के पेड़ की रक्षा करता है वह उसका फल खाता है,
|
|
\q इसी रीति से जो अपने स्वामी की सेवा करता उसकी महिमा होती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 जैसे जल में मुख की परछाई मुख को प्रगट करती है,
|
|
\q वैसे ही मनुष्य का मन मनुष्य को प्रगट करती है।
|
|
\q
|
|
\v 20 जैसे अधोलोक और विनाशलोक,
|
|
\q वैसे ही मनुष्य की आँखें भी तृप्त नहीं होती।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 21 जैसे चाँदी के लिये कुठाली और सोने के लिये भट्ठी हैं,
|
|
\q वैसे ही मनुष्य के लिये उसकी प्रशंसा है।
|
|
\q
|
|
\v 22 चाहे तू मूर्ख को अनाज के बीच ओखली में डालकर मूसल से कूटे,
|
|
\q तो भी उसकी मूर्खता नहीं जाने की।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 23 अपनी भेड़-बकरियों की दशा भली-भाँति मन लगाकर जान ले,
|
|
\q और अपने सब पशुओं के झुण्डों की देख-भाल उचित रीति से कर;
|
|
\q
|
|
\v 24 क्योंकि सम्पत्ति सदा नहीं ठहरती;
|
|
\q और क्या राजमुकुट पीढ़ी से पीढ़ी तक बना रहता है?
|
|
\q
|
|
\v 25 कटी हुई घास उठा ली जाती और नई घास दिखाई देती है
|
|
\q और पहाड़ों की हरियाली काटकर इकट्ठी की जाती है;
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 26 तब भेड़ों के बच्चे तेरे वस्त्र के लिये होंगे,
|
|
\q और बकरों के द्वारा खेत का मूल्य दिया जाएगा;
|
|
\q
|
|
\v 27 और बकरियों का इतना दूध होगा कि तू अपने घराने समेत पेट भरके पिया करेगा,
|
|
\q और तेरी दासियों का भी जीवन निर्वाह होता रहेगा।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 28
|
|
\q
|
|
\v 1 दुष्ट लोग जब कोई पीछा नहीं करता तब भी भागते हैं,
|
|
\q परन्तु धर्मी लोग जवान सिंहों के समान निडर रहते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 2 देश में पाप होने के कारण उसके हाकिम बदलते जाते हैं;
|
|
\q परन्तु समझदार और ज्ञानी मनुष्य के द्वारा सुप्रबन्ध बहुत दिन के लिये बना रहेगा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 जो निर्धन पुरुष कंगालों पर अंधेर करता है,
|
|
\q वह ऐसी भारी वर्षा के समान है जो कुछ भोजनवस्तु नहीं छोड़ती।
|
|
\q
|
|
\v 4 जो लोग व्यवस्था को छोड़ देते हैं, वे दुष्ट की प्रशंसा करते हैं,
|
|
\q परन्तु व्यवस्था पर चलनेवाले उनका विरोध करते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 बुरे लोग न्याय को नहीं समझ सकते,
|
|
\q परन्तु यहोवा को ढूँढ़नेवाले सब कुछ समझते हैं।
|
|
\q
|
|
\v 6 टेढ़ी चाल चलनेवाले धनी मनुष्य से खराई से चलनेवाला निर्धन पुरुष ही उत्तम है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 जो व्यवस्था का पालन करता वह समझदार सुपूत होता है,
|
|
\q परन्तु उड़ाऊ का संगी अपने पिता का मुँह काला करता है।
|
|
\q
|
|
\v 8 जो अपना धन ब्याज से बढ़ाता है*,
|
|
\q वह उसके लिये बटोरता है जो कंगालों पर अनुग्रह करता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 जो अपना कान व्यवस्था सुनने से मोड़ लेता है,
|
|
\q उसकी प्रार्थना घृणित ठहरती है।
|
|
\q
|
|
\v 10 जो सीधे लोगों को भटकाकर कुमार्ग में ले जाता है वह अपने खोदे हुए गड्ढे में आप ही गिरता है;
|
|
\q परन्तु खरे लोग कल्याण के भागी होते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 धनी पुरुष अपनी दृष्टि में बुद्धिमान होता है,
|
|
\q परन्तु समझदार कंगाल उसका मर्म समझ लेता है।
|
|
\q
|
|
\v 12 जब धर्मी लोग जयवन्त होते हैं, तब बड़ी शोभा होती है;
|
|
\q परन्तु जब दुष्ट लोग प्रबल होते हैं, तब मनुष्य अपने आप को छिपाता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 जो अपने अपराध छिपा रखता है, उसका कार्य सफल नहीं होता,
|
|
\q परन्तु जो उनको मान लेता और छोड़ भी देता है,
|
|
\q उस पर दया की जाएगी। (1 यूह. 1:9)
|
|
\q
|
|
\v 14 जो मनुष्य निरन्तर प्रभु का भय मानता रहता है वह धन्य है;
|
|
\q परन्तु जो अपना मन कठोर कर लेता है वह विपत्ति में पड़ता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 कंगाल प्रजा पर प्रभुता करनेवाला दुष्ट, गरजनेवाले सिंह और घूमनेवाले रीछ के समान है।
|
|
\q
|
|
\v 16 वह शासक जिसमें समझ की कमी हो, वह बहुत अंधेर करता है;
|
|
\q और जो लालच का बैरी होता है वह दीर्घायु होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 जो किसी प्राणी की हत्या का अपराधी हो, वह भागकर गड्ढे में गिरेगा;
|
|
\q कोई उसको न रोकेगा।
|
|
\q
|
|
\v 18 जो सिधाई से चलता है वह बचाया जाता है,
|
|
\q परन्तु जो टेढ़ी चाल चलता है वह अचानक गिर पड़ता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 जो अपनी भूमि को जोता-बोया करता है, उसका तो पेट भरता है,
|
|
\q परन्तु जो निकम्मे लोगों की संगति करता है वह कंगालपन से घिरा रहता है।
|
|
\q
|
|
\v 20 सच्चे मनुष्य पर बहुत आशीर्वाद होते रहते हैं,
|
|
\q परन्तु जो धनी होने में उतावली करता है, वह निर्दोष नहीं ठहरता।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 21 पक्षपात करना अच्छा नहीं;
|
|
\q और यह भी अच्छा नहीं कि रोटी के एक टुकड़े के लिए मनुष्य अपराध करे।
|
|
\q
|
|
\v 22 लोभी जन धन प्राप्त करने में उतावली करता है,
|
|
\q और नहीं जानता कि वह घटी में पड़ेगा। (1 तीमु. 6:9)
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 23 जो किसी मनुष्य को डाँटता है वह अन्त में चापलूसी करनेवाले से अधिक प्यारा हो जाता है।
|
|
\q
|
|
\v 24 जो अपने माँ-बाप को लूटकर कहता है कि कुछ अपराध नहीं,
|
|
\q वह नाश करनेवाले का संगी ठहरता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 25 लालची मनुष्य झगड़ा मचाता है,
|
|
\q और जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह हष्ट-पुष्ट हो जाता है*।
|
|
\q
|
|
\v 26 जो अपने ऊपर भरोसा रखता है, वह मूर्ख है;
|
|
\q और जो बुद्धि से चलता है, वह बचता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 27 जो निर्धन को दान देता है उसे घटी नहीं होती,
|
|
\q परन्तु जो उससे दृष्टि फेर लेता है* वह श्राप पर श्राप पाता है।
|
|
\q
|
|
\v 28 जब दुष्ट लोग प्रबल होते हैं तब तो मनुष्य ढूँढ़े नहीं मिलते,
|
|
\q परन्तु जब वे नाश हो जाते हैं, तब धर्मी उन्नति करते हैं।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 29
|
|
\q
|
|
\v 1 जो बार-बार डाँटे जाने पर भी हठ करता है, वह अचानक नष्ट हो जाएगा*
|
|
\q और उसका कोई भी उपाय काम न आएगा।
|
|
\q
|
|
\v 2 जब धर्मी लोग शिरोमणि होते हैं, तब प्रजा आनन्दित होती है;
|
|
\q परन्तु जब दुष्ट प्रभुता करता है तब प्रजा हाय-हाय करती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 3 जो बुद्धि से प्रीति रखता है, वह अपने पिता को आनन्दित करता है,
|
|
\q परन्तु वेश्याओं की संगति करनेवाला धन को उड़ा देता है। (लूका 15:13)
|
|
\q
|
|
\v 4 राजा न्याय से देश को स्थिर करता है,
|
|
\q परन्तु जो बहुत घूस लेता है उसको उलट देता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 जो पुरुष किसी से चिकनी चुपड़ी बातें करता है,
|
|
\q वह उसके पैरों के लिये जाल लगाता है।
|
|
\q
|
|
\v 6 बुरे मनुष्य का अपराध उसके लिए फंदा होता है,
|
|
\q परन्तु धर्मी आनन्दित होकर जयजयकार करता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 धर्मी पुरुष कंगालों के मकद्दमें में मन लगाता है;
|
|
\q परन्तु दुष्ट जन उसे जानने की समझ नहीं रखता।
|
|
\q
|
|
\v 8 ठट्ठा करनेवाले लोग नगर को फूँक देते हैं,
|
|
\q परन्तु बुद्धिमान लोग क्रोध को ठण्डा करते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 9 जब बुद्धिमान मूर्ख के साथ वाद-विवाद करता है,
|
|
\q तब वह मूर्ख क्रोधित होता और ठट्ठा करता है, और वहाँ शान्ति नहीं रहती।
|
|
\q
|
|
\v 10 हत्यारे लोग खरे पुरुष से बैर रखते हैं,
|
|
\q और सीधे लोगों के प्राण की खोज करते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 मूर्ख अपने सारे मन की बात खोल देता है,
|
|
\q परन्तु बुद्धिमान अपने मन को रोकता, और शान्त कर देता है।
|
|
\q
|
|
\v 12 जब हाकिम झूठी बात की ओर कान लगाता है,
|
|
\q तब उसके सब सेवक दुष्ट हो जाते हैं*।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 निर्धन और अंधेर करनेवाले व्यक्तियों में एक समानता है;
|
|
\q यहोवा दोनों की आँखों में ज्योति देता है।
|
|
\q
|
|
\v 14 जो राजा कंगालों का न्याय सच्चाई से चुकाता है,
|
|
\q उसकी गद्दी सदैव स्थिर रहती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 छड़ी और डाँट से बुद्धि प्राप्त होती है,
|
|
\q परन्तु जो लड़का ऐसे ही छोड़ा जाता है वह अपनी माता की लज्जा का कारण होता है।
|
|
\q
|
|
\v 16 दुष्टों के बढ़ने से अपराध भी बढ़ता है;
|
|
\q परन्तु अन्त में धर्मी लोग उनका गिरना देख लेते हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 17 अपने बेटे की ताड़ना कर, तब उससे तुझे चैन मिलेगा;
|
|
\q और तेरा मन सुखी हो जाएगा।
|
|
\q
|
|
\v 18 जहाँ दर्शन की बात नहीं होती, वहाँ लोग निरंकुश हो जाते हैं,
|
|
\q परन्तु जो व्यवस्था को मानता है वह धन्य होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 19 दास बातों ही के द्वारा सुधारा नहीं जाता,
|
|
\q क्योंकि वह समझकर भी नहीं मानता।
|
|
\q
|
|
\v 20 क्या तू बातें करने में उतावली करनेवाले मनुष्य को देखता है?
|
|
\q उससे अधिक तो मूर्ख ही से आशा है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 21 जो अपने दास को उसके लड़कपन से ही लाड़-प्यार से पालता है,
|
|
\q वह दास अन्त में उसका बेटा बन बैठता है।
|
|
\q
|
|
\v 22 क्रोध करनेवाला मनुष्य झगड़ा मचाता है
|
|
\q और अत्यन्त क्रोध करनेवाला अपराधी भी होता है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 23 मनुष्य को गर्व के कारण नीचा देखना पड़ता है,
|
|
\q परन्तु नम्र आत्मावाला महिमा का अधिकारी होता है। (मत्ती 23:12)
|
|
\q
|
|
\v 24 जो चोर की संगति करता है वह अपने प्राण का बैरी होता है;
|
|
\q शपथ खाने पर भी वह बात को प्रगट नहीं करता।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 25 मनुष्य का भय खाना फंदा हो जाता है,
|
|
\q परन्तु जो यहोवा पर भरोसा रखता है उसका स्थान ऊँचा किया जाएगा।
|
|
\q
|
|
\v 26 हाकिम से भेंट करना बहुत लोग चाहते हैं,
|
|
\q परन्तु मनुष्य का न्याय यहोवा ही करता है*।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 27 धर्मी लोग कुटिल मनुष्य से घृणा करते हैं
|
|
\q और दुष्ट जन भी सीधी चाल चलनेवाले से घृणा करता है।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 30
|
|
\s आगूर का ज्ञान
|
|
\p
|
|
\v 1 याके के पुत्र आगूर के प्रभावशाली वचन।
|
|
\q उस पुरुष ने ईतीएल और उक्काल से यह कहा:
|
|
\q
|
|
\v 2 निश्चय मैं पशु सरीखा हूँ, वरन् मनुष्य कहलाने के योग्य भी नहीं;
|
|
\q और मनुष्य की समझ मुझ में नहीं है।
|
|
\q
|
|
\v 3 न मैंने बुद्धि प्राप्त की है,
|
|
\q और न परमपवित्र का ज्ञान मुझे मिला है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 4 कौन स्वर्ग में चढ़कर फिर उतर आया?
|
|
\q किस ने वायु को अपनी मुट्ठी में बटोर रखा है?
|
|
\q किस ने महासागर को अपने वस्त्र में बाँध लिया है?
|
|
\q किस ने पृथ्वी की सीमाओं को ठहराया है? उसका नाम क्या है?
|
|
\q और उसके पुत्र का नाम क्या है? यदि तू जानता हो तो बता! (यूह. 3:13)
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 5 परमेश्वर का एक-एक वचन ताया हुआ है;
|
|
\q वह अपने शरणागतों की ढाल ठहरा है।
|
|
\q
|
|
\v 6 उसके वचनों में कुछ मत बढ़ा,
|
|
\q ऐसा न हो कि वह तुझे डाँटे और तू झूठा ठहरे।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 7 मैंने तुझ से दो वर माँगे हैं,
|
|
\q इसलिए मेरे मरने से पहले उन्हें मुझे देने से मुँह न मोड़
|
|
\q
|
|
\v 8 अर्थात् व्यर्थ और झूठी बात मुझसे दूर रख; मुझे न तो निर्धन कर और न धनी बना;
|
|
\q प्रतिदिन की रोटी मुझे खिलाया कर। (1 तीमु. 6:8)
|
|
\q
|
|
\v 9 ऐसा न हो, कि जब मेरा पेट भर जाए, तब मैं इन्कार करके कहूँ कि यहोवा कौन है?
|
|
\q या निर्धन होकर चोरी करूँ,
|
|
\q और परमेश्वर के नाम का अनादर करूँ।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 10 किसी दास की, उसके स्वामी से चुगली न करना*,
|
|
\q ऐसा न हो कि वह तुझे श्राप दे, और तू दोषी ठहराया जाए।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 11 ऐसे लोग हैं, जो अपने पिता को श्राप देते
|
|
\q और अपनी माता को धन्य नहीं कहते।
|
|
\q
|
|
\v 12 वे ऐसे लोग हैं जो अपनी दृष्टि में शुद्ध हैं,
|
|
\q परन्तु उनका मैल धोया नहीं गया।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 13 एक पीढ़ी के लोग ऐसे हैं उनकी दृष्टि क्या ही घमण्ड से भरी रहती है,
|
|
\q और उनकी आँखें कैसी चढ़ी हुई रहती हैं।
|
|
\q
|
|
\v 14 एक पीढ़ी के लोग ऐसे हैं, जिनके दाँत तलवार और उनकी दाढ़ें छुरियाँ हैं,
|
|
\q जिनसे वे दीन लोगों को पृथ्वी पर से, और दरिद्रों को मनुष्यों में से मिटा डालें।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 15 जैसे जोंक की दो बेटियाँ होती हैं, जो कहती हैं, “दे, दे,”
|
|
\q वैसे ही तीन वस्तुएँ हैं, जो तृप्त नहीं होतीं; वरन् चार हैं,
|
|
\q जो कभी नहीं कहती, “बस।”
|
|
\q
|
|
\v 16 अधोलोक और बाँझ की कोख,
|
|
\q भूमि जो जल पी पीकर तृप्त नहीं होती,
|
|
\q और आग जो कभी नहीं कहती, ‘बस।’
|
|
\q
|
|
\v 17 जिस आँख से कोई अपने पिता पर अनादर की दृष्टि करे,
|
|
\q और अपमान के साथ अपनी माता की आज्ञा न माने,
|
|
\q उस आँख को तराई के कौवे खोद खोदकर निकालेंगे,
|
|
\q और उकाब के बच्चे खा डालेंगे।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 18 तीन बातें मेरे लिये अधिक कठिन है,
|
|
\q वरन् चार हैं, जो मेरी समझ से परे हैं
|
|
\q
|
|
\v 19 आकाश में उकाब पक्षी का मार्ग,
|
|
\q चट्टान पर सर्प की चाल, समुद्र में जहाज की चाल,
|
|
\q और कन्या के संग पुरुष की चाल*।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 20 व्यभिचारिणी की चाल भी वैसी ही है;
|
|
\q वह भोजन करके मुँह पोंछती,
|
|
\q और कहती है, मैंने कोई अनर्थ काम नहीं किया।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 21 तीन बातों के कारण पृथ्वी काँपती है; वरन् चार हैं,
|
|
\q जो उससे सही नहीं जातीं
|
|
\q
|
|
\v 22 दास का राजा हो जाना,
|
|
\q मूर्ख का पेट भरना
|
|
\q
|
|
\v 23 घिनौनी स्त्री का ब्याहा जाना,
|
|
\q और दासी का अपनी स्वामिन की वारिस होना।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 24 पृथ्वी पर चार छोटे जन्तु हैं,
|
|
\q जो अत्यन्त बुद्धिमान हैं
|
|
\q
|
|
\v 25 चींटियाँ निर्बल जाति तो हैं,
|
|
\q परन्तु धूपकाल में अपनी भोजनवस्तु बटोरती हैं;
|
|
\q
|
|
\v 26 चट्टानी बिज्जू बलवन्त जाति नहीं,
|
|
\q तो भी उनकी मान्दें पहाड़ों पर होती हैं;
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 27 टिड्डियों के राजा तो नहीं होता,
|
|
\q तो भी वे सब की सब दल बाँध बाँधकर चलती हैं;
|
|
\q
|
|
\v 28 और छिपकली हाथ से पकड़ी तो जाती है,
|
|
\q तो भी राजभवनों में रहती है।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 29 तीन सुन्दर चलनेवाले प्राणी हैं;
|
|
\q वरन् चार हैं, जिनकी चाल सुन्दर है:
|
|
\q
|
|
\v 30 सिंह जो सब पशुओं में पराक्रमी है,
|
|
\q और किसी के डर से नहीं हटता;
|
|
\q
|
|
\v 31 शिकारी कुत्ता और बकरा,
|
|
\q और अपनी सेना समेत राजा।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 32 यदि तूने अपनी बढ़ाई करने की मूर्खता की,
|
|
\q या कोई बुरी युक्ति बाँधी हो, तो अपने मुँह पर हाथ रख।
|
|
\q
|
|
\v 33 क्योंकि जैसे दूध के मथने से मक्खन
|
|
\q और नाक के मरोड़ने से लहू निकलता है,
|
|
\q वैसे ही क्रोध के भड़काने से झगड़ा उत्पन्न होता है।
|
|
|
|
\s5
|
|
\c 31
|
|
\s राजा लमूएल के माता के वचन
|
|
\p
|
|
\v 1 लमूएल राजा के प्रभावशाली वचन, जो उसकी माता ने उसे सिखाए।
|
|
\q
|
|
\v 2 हे मेरे पुत्र, हे मेरे निज पुत्र!
|
|
\q हे मेरी मन्नतों के पुत्र*!
|
|
\q
|
|
\v 3 अपना बल स्त्रियों को न देना,
|
|
\q न अपना जीवन उनके वश कर देना जो राजाओं का पौरूष खा जाती हैं।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 4 हे लमूएल, राजाओं को दाखमधु पीना शोभा नहीं देता,
|
|
\q और मदिरा चाहना, रईसों को नहीं फबता;
|
|
\q
|
|
\v 5 ऐसा न हो कि वे पीकर व्यवस्था को भूल जाएँ
|
|
\q और किसी दुःखी के हक़ को मारें।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 6 मदिरा उसको पिलाओ जो मरने पर है,
|
|
\q और दाखमधु उदास मनवालों को ही देना;
|
|
\q
|
|
\v 7 जिससे वे पीकर अपनी दरिद्रता को भूल जाएँ
|
|
\q और अपने कठिन श्रम फिर स्मरण न करें।
|
|
\q
|
|
\s5
|
|
\v 8 गूँगे के लिये अपना मुँह खोल,
|
|
\q और सब अनाथों का न्याय उचित रीति से किया कर।
|
|
\q
|
|
\v 9 अपना मुँह खोल और धर्म से न्याय कर,
|
|
\q और दीन दरिद्रों का न्याय कर।
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\s सदाचारी पत्नी
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\q
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\s5
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\v 10 भली पत्नी कौन पा सकता है?
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\q क्योंकि उसका मूल्य मूँगों से भी बहुत अधिक है।
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\q
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\v 11 उसके पति के मन में उसके प्रति विश्वास है,
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\q और उसे लाभ की घटी नहीं होती।
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\q
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\v 12 वह अपने जीवन के सारे दिनों में उससे बुरा नहीं,
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\q वरन् भला ही व्यवहार करती है।
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\q
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\s5
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\v 13 वह ऊन और सन ढूँढ़ ढूँढ़कर,
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\q अपने हाथों से प्रसन्नता के साथ काम करती है।
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\q
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\v 14 वह व्यापार के जहाजों के समान अपनी भोजनवस्तुएँ दूर से मँगवाती है।
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\q
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\v 15 वह रात ही को उठ बैठती है,
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\q और अपने घराने को भोजन खिलाती है
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\q और अपनी दासियों को अलग-अलग काम देती है।
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\q
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\s5
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\v 16 वह किसी खेत के विषय में सोच विचार करती है
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\q और उसे मोल ले लेती है; और अपने परिश्रम के फल से दाख की बारी लगाती है।
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\q
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\v 17 वह अपनी कटि को बल के फेंटे से कसती है,
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\q और अपनी बाहों को दृढ़ बनाती है। (लूका 12:35)
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\q
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\s5
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\v 18 वह परख लेती है कि मेरा व्यापार लाभदायक है।
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\q रात को उसका दिया नहीं बुझता।
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\q
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\v 19 वह अटेरन में हाथ लगाती है,
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\q और चरखा पकड़ती है।
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\q
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\s5
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\v 20 वह दीन के लिये मुट्ठी खोलती है,
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\q और दरिद्र को संभालने के लिए हाथ बढ़ाती है।
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\q
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\v 21 वह अपने घराने के लिये हिम से नहीं डरती,
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\q क्योंकि उसके घर के सब लोग लाल कपड़े पहनते हैं।
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\q
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\s5
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\v 22 वह तकिये बना लेती है;
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\q उसके वस्त्र सूक्ष्म सन और बैंगनी रंग के होते हैं।
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\q
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\v 23 जब उसका पति सभा में देश के पुरनियों के संग बैठता है,
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\q तब उसका सम्मान होता है।
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\q
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\s5
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\v 24 वह सन के वस्त्र बनाकर बेचती है;
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\q और व्यापारी को कमरबन्द देती है।
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\q
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\v 25 वह बल और प्रताप का पहरावा पहने रहती है,
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\q और आनेवाले काल के विषय पर हँसती है*।
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\q
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\s5
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\v 26 वह बुद्धि की बात बोलती है*,
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\q और उसके वचन कृपा की शिक्षा के अनुसार होते हैं।
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\q
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\v 27 वह अपने घराने के चालचलन को ध्यान से देखती है,
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\q और अपनी रोटी बिना परिश्रम नहीं खाती।
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\q
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\s5
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\v 28 उसके पुत्र उठ उठकर उसको धन्य कहते हैं,
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\q उनका पति भी उठकर उसकी ऐसी प्रशंसा करता है:
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\q
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\v 29 “बहुत सी स्त्रियों ने अच्छे-अच्छे काम तो किए हैं परन्तु तू उन सभी में श्रेष्ठ है।”
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\q
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\s5
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\v 30 शोभा तो झूठी और सुन्दरता व्यर्थ है,
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\q परन्तु जो स्त्री यहोवा का भय मानती है, उसकी प्रशंसा की जाएगी।
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\q
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\v 31 उसके हाथों के परिश्रम का फल उसे दो,
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\q और उसके कार्यों से सभा में उसकी प्रशंसा होगी। |