\id PSA \ide UTF-8 \rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License \h भजन संहिता \toc1 भजन संहिता \toc2 भजन संहिता \toc3 psa \mt1 भजन संहिता \s5 \c 1 \ms पहला भाग \mr भजन 1—41 \s परमेश्‍वर की व्यवस्था में सच्चा सुख \q \p \v 1 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो दुष्टों की योजना पर* नहीं चलता, \q और न पापियों के मार्ग में खड़ा होता; \q और न ठट्ठा करनेवालों की मण्डली में बैठता है! \q \v 2 परन्तु वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्‍न रहता; \q और उसकी व्यवस्था पर रात-दिन ध्यान करता रहता है। \q \s5 \v 3 वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती पानी की धाराओं के किनारे लगाया गया है* \q और अपनी ऋतु में फलता है, \q और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। \q और जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है। \q \s5 \v 4 दुष्ट लोग ऐसे नहीं होते, \q वे उस भूसी के समान होते हैं, जो पवन से उड़ाई जाती है। \q \v 5 इस कारण दुष्ट लोग अदालत में स्थिर न रह सकेंगे, \q और न पापी धर्मियों की मण्डली में ठहरेंगे; \q \s5 \v 6 क्योंकि यहोवा धर्मियों का मार्ग जानता है, \q परन्तु दुष्टों का मार्ग नाश हो जाएगा। \s5 \c 2 \s पुत्र का राज्याभिषेक \q \v 1 जाति-जाति के लोग क्यों हुल्लड़ मचाते हैं, \q और देश-देश के लोग क्यों षड्‍यंत्र रचते हैं? \q \v 2 यहोवा के और उसके अभिषिक्त के विरुद्ध पृथ्वी के राजागण मिलकर, \q और हाकिम आपस में षड्‍यंत्र रचकर, कहते हैं, (प्रका. 11:18, प्रेरि. 4:25,26, प्रका. 19:19) \q \v 3 “आओ, हम उनके बन्धन तोड़ डालें*, \q और उनकी रस्सियों को अपने ऊपर से उतार फेंके।” \q \s5 \v 4 वह जो स्वर्ग में विराजमान है, हँसेगा*, \q प्रभु उनको उपहास में उड़ाएगा। \q \v 5 तब वह उनसे क्रोध में बातें करेगा, \q और क्रोध में यह कहकर उन्हें भयभीत कर देगा, \q \s5 \v 6 “मैंने तो अपने चुने हुए राजा को, \q अपने पवित्र पर्वत सिय्योन की राजगद्दी पर नियुक्त किया है।” \q \v 7 मैं उस वचन का प्रचार करूँगा: \q जो यहोवा ने मुझसे कहा, “तू मेरा पुत्र है; \q आज मैं ही ने तुझे जन्माया है। (मत्ती 3:17, मत्ती 17:5, मर. 1:11, मर. 9:7, लूका 3:22, लूका 9:35, यूह. 1:49, प्रेरि. 13:33, इब्रा. 1:5, इब्रा. 5:5, 2 पत. 1:17) \q \s5 \v 8 मुझसे माँग, और मैं जाति-जाति के लोगों को तेरी सम्पत्ति होने के लिये, \q और दूर-दूर के देशों को तेरी निज भूमि बनने के लिये दे दूँगा*। (इब्रा. 1:2) \q \v 9 तू उन्हें लोहे के डण्डे से टुकड़े-टुकड़े करेगा। \q तू कुम्हार के बर्तन के समान उन्हें चकना चूर कर डालेगा।” (प्रका. 2:27, प्रका. 12:5, प्रका. 19:15) \b \q \s5 \v 10 इसलिए अब, हे राजाओं, बुद्धिमान बनो; \q हे पृथ्वी के शासकों, सावधान हो जाओ। \q \v 11 डरते हुए यहोवा की उपासना करो, \q और काँपते हुए मगन हो। (फिलि. 2:12) \q \s5 \v 12 पुत्र को चूमो ऐसा न हो कि वह क्रोध करे, \q और तुम मार्ग ही में नाश हो जाओ, \q क्योंकि क्षण भर में उसका क्रोध भड़कने को है। \q धन्य है वे जो उसमें शरण लेते है। \s5 \c 3 \s1 संकट के समय आत्मविश्वास \d दाऊद का भजन। जब वह अपने पुत्र अबशालोम के सामने से भागा जाता था \b \q \v 1 हे यहोवा मेरे सतानेवाले कितने बढ़ गए हैं! \q वे जो मेरे विरुद्ध उठते हैं बहुत हैं। \q \v 2 बहुत से मेरे विषय में कहते हैं, \q कि उसका बचाव परमेश्‍वर की ओर से नहीं हो सकता*। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 3 परन्तु हे यहोवा, तू तो मेरे चारों ओर मेरी ढाल है, \q तू मेरी महिमा और मेरे मस्तक का ऊँचा करनेवाला है*। \q \v 4 मैं ऊँचे शब्द से यहोवा को पुकारता हूँ, \q और वह अपने पवित्र पर्वत पर से मुझे उत्तर देता है। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 5 मैं लेटकर सो गया; \q फिर जाग उठा, क्योंकि यहोवा मुझे संभालता है। \q \v 6 मैं उस भीड़ से नहीं डरता, \q जो मेरे विरुद्ध चारों ओर पाँति बाँधे खड़े हैं। \q \s5 \v 7 उठ, हे यहोवा! हे मेरे परमेश्‍वर मुझे बचा ले! \q क्योंकि तूने मेरे सब शत्रुओं के जबड़ों पर मारा है। \q और तूने दुष्टों के दाँत तोड़ डाले हैं। \q \v 8 उद्धार यहोवा ही की ओर से होता है*; \q हे यहोवा तेरी आशीष तेरी प्रजा पर हो। \s5 \c 4 \s1 परमेश्‍वर पर भरोसा \d प्रधान बजानेवाले के लिये: तारवाले बाजों के साथ। दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे मेरे धर्ममय परमेश्‍वर, जब मैं पुकारूँ तब तू मुझे उत्तर दे; \q जब मैं संकट में पड़ा तब तूने मुझे सहारा दिया। \q मुझ पर अनुग्रह कर और मेरी प्रार्थना सुन ले। \q \s5 \v 2 हे मनुष्यों, कब तक मेरी महिमा का अनादर होता रहेगा? \q तुम कब तक व्यर्थ बातों से प्रीति रखोगे और झूठी युक्ति की खोज में रहोगे? \qs (सेला) \qs* \q \v 3 यह जान रखो कि यहोवा ने भक्त को अपने लिये अलग कर रखा है*; \q जब मैं यहोवा को पुकारूँगा तब वह सुन लेगा। \q \s5 \v 4 काँपते रहो और पाप मत करो; \q अपने-अपने बिछौने पर मन ही मन में ध्यान करो और चुपचाप रहो। \qs (सेला) \qs (इफि. 4:26) \q \v 5 धार्मिकता के बलिदान चढ़ाओ, \q और यहोवा पर भरोसा रखो। \q \s5 \v 6 बहुत से हैं जो कहते हैं, “कौन हमको कुछ भलाई दिखाएगा?” \q हे यहोवा, तू अपने मुख का प्रकाश हम पर चमका! \q \v 7 तूने मेरे मन में उससे कहीं अधिक आनन्द भर दिया है, \q जो उनको अन्न और दाखमधु की बढ़ती से होता है। \q \v 8 मैं शान्ति से लेट जाऊँगा और सो जाऊँगा; \q क्योंकि, हे यहोवा, केवल तू ही मुझ को निश्चिन्त रहने देता है। \s5 \c 5 \s1 मार्गदर्शन की प्रार्थना \d प्रधान बजानेवाले के लिये: बांसुरियों के साथ, दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा, मेरे वचनों पर कान लगा; \q मेरे कराहने की ओर ध्यान लगा। \q \v 2 हे मेरे राजा, हे मेरे परमेश्‍वर, मेरी दुहाई पर ध्यान दे, \q क्योंकि मैं तुझी से प्रार्थना करता हूँ। \q \v 3 हे यहोवा, भोर को मेरी वाणी तुझे सुनाई देगी, \q मैं भोर को प्रार्थना करके तेरी बाट जोहूँगा। \q \s5 \v 4 क्योंकि तू ऐसा परमेश्‍वर है, जो दुष्टता से प्रसन्‍न नहीं होता; \q बुरे लोग तेरे साथ नहीं रह सकते। \q \v 5 घमण्डी तेरे सम्मुख खड़े होने न पाएँगे; \q तुझे सब अनर्थकारियों से घृणा है। \q \v 6 तू उनको जो झूठ बोलते हैं नाश करेगा; \q यहोवा तो हत्यारे और छली मनुष्य से घृणा करता है*। \q \s5 \v 7 परन्तु मैं तो तेरी अपार करुणा के कारण तेरे भवन में आऊँगा, \q मैं तेरा भय मानकर तेरे पवित्र मन्दिर की ओर दण्डवत् करूँगा। \q \v 8 हे यहोवा, मेरे शत्रुओं के कारण अपने धार्मिकता के मार्ग में मेरी अगुआई कर; \q मेरे आगे-आगे अपने सीधे मार्ग को दिखा। \q \s5 \v 9 क्योंकि उनके मुँह में कोई सच्चाई नहीं; \q उनके मन में निरी दुष्टता है। \q उनका गला खुली हुई कब्र है*, \q वे अपनी जीभ से चिकनी चुपड़ी बातें करते हैं। (रोम. 3:13) \q \v 10 हे परमेश्‍वर तू उनको दोषी ठहरा; \q वे अपनी ही युक्तियों से आप ही गिर जाएँ; \q उनको उनके अपराधों की अधिकाई के कारण निकाल बाहर कर, \q क्योंकि उन्होंने तुझ से बलवा किया है। \q \s5 \v 11 परन्तु जितने तुझ में शरण लेते हैं वे सब आनन्द करें, \q वे सर्वदा ऊँचे स्वर से गाते रहें; क्योंकि तू उनकी रक्षा करता है, \q और जो तेरे नाम के प्रेमी हैं तुझ में प्रफुल्लित हों। \q \v 12 क्योंकि तू धर्मी को आशीष देगा; हे यहोवा, \q तू उसको ढाल के समान अपनी कृपा से घेरे रहेगा। \s5 \c 6 \s1 दया के लिये प्रार्थना \d प्रधान बजानेवाले के लिये: तारवाले बाजों के साथ। खर्ज की राग में, दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा, तू मुझे अपने क्रोध में न डाँट*, \q और न रोष में मुझे ताड़ना दे। \q \v 2 हे यहोवा, मुझ पर दया कर, क्योंकि मैं कुम्हला गया हूँ; \q हे यहोवा, मुझे चंगा कर, क्योंकि मेरी हड्डियों में बेचैनी है। \q \s5 \v 3 मेरा प्राण भी बहुत खेदित है। \q और तू, हे यहोवा, कब तक? (यूह. 12:27) \q \v 4 लौट आ, हे यहोवा*, और मेरे प्राण बचा; \q अपनी करुणा के निमित्त मेरा उद्धार कर। \q \v 5 क्योंकि मृत्यु के बाद तेरा स्मरण नहीं होता; \q अधोलोक में कौन तेरा धन्यवाद करेगा? \q \s5 \v 6 मैं कराहते-कराहते थक गया; \q मैं अपनी खाट आँसुओं से भिगोता हूँ; \q प्रति रात मेरा बिछौना भीगता है। \q \v 7 मेरी आँखें शोक से बैठी जाती हैं, \q और मेरे सब सतानेवालों के कारण वे धुँधला गई हैं। \q \s5 \v 8 हे सब अनर्थकारियों मेरे पास से दूर हो; \q क्योंकि यहोवा ने मेरे रोने का शब्द सुन लिया है। (मत्ती7:23, लूका 13:27) \q \v 9 यहोवा ने मेरा गिड़गिड़ाना सुना है*; \q यहोवा मेरी प्रार्थना को ग्रहण भी करेगा। \q \v 10 मेरे सब शत्रु लज्जित होंगे और बहुत ही घबराएँगे; \q वे पराजित होकर पीछे हटेंगे, और एकाएक लज्जित होंगे। \s5 \c 7 \s1 न्याय के लिये प्रार्थना दाऊद का शिग्गायोन नामक भजन \d जो बिन्यामीनी कूश की बातों के कारण यहोवा के सामने गाया \b \q \v 1 हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा, मैं तुझ में शरण लेता हुँ; \q सब पीछा करनेवालों से मुझे बचा और छुटकारा दे, \q \v 2 ऐसा न हो कि वे मुझ को सिंह के समान \q फाड़कर टुकड़े-टुकड़े कर डालें; \q और कोई मेरा छुड़ानेवाला न हो। \q \s5 \v 3 हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा, यदि मैंने यह किया हो, \q यदि मेरे हाथों से कुटिल काम हुआ हो, \q \v 4 यदि मैंने अपने मेल रखनेवालों से भलाई के बदले बुराई की हो, \q या मैंने उसको जो अकारण मेरा बैरी था लूटा है \q \s5 \v 5 तो शत्रु मेरे प्राण का पीछा करके मुझे आ पकड़े*, \q और मेरे प्राण को भूमि पर रौंदे, \q और मुझे अपमानित करके मिट्टी में मिला दे। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 6 हे यहोवा अपने क्रोध में उठ; \q क्रोध से भरे मेरे सतानेवाले के विरुद्ध तू खड़ा हो जा; \q मेरे लिये जाग! तूने न्याय की आज्ञा दे दी है। \q \v 7 देश-देश के लोग तेरे चारों ओर इकट्ठे हुए है; \q तू फिर से उनके ऊपर विराजमान हो। \q \s5 \v 8 यहोवा जाति-जाति का न्याय करता है; \q यहोवा मेरी धार्मिकता और खराई के अनुसार मेरा न्याय चुका दे। \q \v 9 भला हो कि दुष्टों की बुराई का अन्त हो जाए, परन्तु धर्मी को तू स्थिर कर; \q क्योंकि धर्मी परमेश्‍वर मन और मर्म का ज्ञाता है। \q \s5 \v 10 मेरी ढाल परमेश्‍वर के हाथ में है, \q वह सीधे मनवालों को बचाता है। \q \v 11 परमेश्‍वर धर्मी और न्यायी है*, \q वरन् ऐसा परमेश्‍वर है जो प्रतिदिन क्रोध करता है। \q \s5 \v 12 यदि मनुष्य मन न फिराए तो वह अपनी तलवार पर सान चढ़ाएगा; \q और युद्ध के लिए अपना धनुष तैयार करेगा। (लूका 13:3-5) \q \v 13 और उस मनुष्य के लिये उसने मृत्यु के हथियार तैयार कर लिए हैं*: \q वह अपने तीरों को अग्निबाण बनाता है। \q \s5 \v 14 देख दुष्ट को अनर्थ काम की पीड़ाएँ हो रही हैं, \q उसको उत्पात का गर्भ है, और उससे झूठ का जन्म हुआ। \q \v 15 उसने गड्ढे खोदकर उसे गहरा किया, \q और जो खाई उसने बनाई थी उसमें वह आप ही गिरा। \q \v 16 उसका उत्पात पलटकर उसी के सिर पर पड़ेगा; \q और उसका उपद्रव उसी के माथे पर पड़ेगा। \q \s5 \v 17 मैं यहोवा के धर्म के अनुसार उसका धन्यवाद करूँगा, \q और परमप्रधान यहोवा के नाम का भजन गाऊँगा। \s5 \c 8 \s1 परमेश्‍वर की महिमा और मनुष्य का गौरव \d प्रधान बजानेवालों के लिये गित्तीत की राग पर दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा हमारे प्रभु, तेरा नाम सारी पृथ्वी पर क्या ही प्रतापमय है! \q तूने अपना वैभव स्वर्ग पर दिखाया है। \q \v 2 तूने अपने बैरियों के कारण बच्चों और शिशुओं के द्वारा अपनी प्रशंसा की है, \q ताकि तू शत्रु और पलटा लेनेवालों को रोक रखे। (मत्ती 21:16) \q \s5 \v 3 जब मैं आकाश को, जो तेरे हाथों का कार्य है, \q और चंद्रमा और तरागण को जो तूने नियुक्त किए हैं, देखता हूँ; \q \v 4 तो फिर मनुष्य क्या है* कि तू उसका स्मरण रखे, \q और आदमी क्या है कि तू उसकी सुधि ले? \q \v 5 क्योंकि तूने उसको परमेश्‍वर से थोड़ा ही कम बनाया है, \q और महिमा और प्रताप का मुकुट उसके सिर पर रखा है। \q \s5 \v 6 तूने उसे अपने हाथों के कार्यों पर प्रभुता दी है; \q तूने उसके पाँव तले सब कुछ कर दिया है*। (1 कुरि. 15:27, इफि. 1:22, इब्रा. 2:6-8, प्रेरि. 17:31) \q \v 7 सब भेड़-बकरी और गाय-बैल \q और जितने वन पशु हैं, \q \v 8 आकाश के पक्षी और समुद्र की मछलियाँ, \q और जितने जीव-जन्तु समुद्रों में चलते-फिरते हैं। \q \s5 \v 9 हे यहोवा, हे हमारे प्रभु, \q तेरा नाम सारी पृथ्वी पर क्या ही प्रतापमय है। \s5 \c 9 \s1 विजय के लिये धन्यवाद \d प्रधान बजानेवाले के लिये मुतलबैयन कि राग पर दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा परमेश्‍वर मैं अपने पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूँगा; \q मैं तेरे सब आश्चर्यकर्मों का वर्णन करूँगा। \q \v 2 मैं तेरे कारण आनन्दित और प्रफुल्लित होऊँगा, \q हे परमप्रधान, मैं तेरे नाम का भजन गाऊँगा। \q \s5 \v 3 मेरे शत्रु पराजित होकर पीछे हटते हैं, \q वे तेरे सामने से ठोकर खाकर नाश होते हैं। \q \v 4 तूने मेरे मुकद्दमें का न्याय मेरे पक्ष में किया है*; \q तूने सिंहासन पर विराजमान होकर धार्मिकता से न्याय किया। \q \s5 \v 5 तूने जाति-जाति को झिड़का और दुष्ट को नाश किया है; \q तूने उनका नाम अनन्तकाल के लिये मिटा दिया है। \q \v 6 शत्रु अनन्तकाल के लिये उजड़ गए हैं; \q उनके नगरों को तूने ढा दिया, \q और उनका नाम और निशान भी मिट गया है। \q \s5 \v 7 परन्तु यहोवा सदैव सिंहासन पर विराजमान है*, \q उसने अपना सिंहासन न्याय के लिये सिद्ध किया है; \q \v 8 और वह जगत का न्याय धर्म से करेगा, \q वह देश-देश के लोगों का मुकद्दमा खराई से निपटाएगा। (भज. 96:13, प्रेरि. 17:31) \q \s5 \v 9 यहोवा पिसे हुओं के लिये ऊँचा गढ़ ठहरेगा, \q वह संकट के समय के लिये भी ऊँचा गढ़ ठहरेगा। \q \v 10 और तेरे नाम के जाननेवाले तुझ पर भरोसा रखेंगे, \q क्योंकि हे यहोवा तूने अपने खोजियों को त्याग नहीं दिया। \q \s5 \v 11 यहोवा जो सिय्योन में विराजमान है, उसका भजन गाओ! \q जाति-जाति के लोगों के बीच में उसके महाकर्मों का प्रचार करो! \q \v 12 क्योंकि खून का पलटा लेनेवाला उनको स्मरण करता है; \q वह पिसे हुओं की दुहाई को नहीं भूलता। \q \s5 \v 13 हे यहोवा, मुझ पर दया कर। देख, मेरे बैरी मुझ पर अत्याचार कर रहे है, \q तू ही मुझे मृत्यु के फाटकों से बचा सकता है; \q \v 14 ताकि मैं सिय्योन के फाटकों के पास तेरे सब गुणों का वर्णन करूँ, \q और तेरे किए हुए उद्धार से मगन होऊँ। \q \s5 \v 15 अन्य जातिवालों ने जो गड्ढा खोदा था, उसी में वे आप गिर पड़े; \q जो जाल उन्होंने लगाया था, उसमें उन्हीं का पाँव फंस गया। \q \v 16 यहोवा ने अपने को प्रगट किया, उसने न्याय किया है; \q दुष्ट अपने किए हुए कामों में फंस जाता है। \qs (हिग्गायोन*, सेला) \qs \q \s5 \v 17 दुष्ट अधोलोक में लौट जाएँगे, \q तथा वे सब जातियाँ भी जो परमेश्‍वर को भूल जाती है। \q \v 18 क्योंकि दरिद्र लोग अनन्तकाल तक बिसरे हुए न रहेंगे, \q और न तो नम्र लोगों की आशा सर्वदा के लिये नाश होगी। \q \s5 \v 19 हे यहोवा, उठ, मनुष्य प्रबल न होने पाए! \q जातियों का न्याय तेरे सम्मुख किया जाए। \q \v 20 हे यहोवा, उनको भय दिला! \q जातियाँ अपने को मनुष्यमात्र ही जानें। \qs (सेला) \qs \s5 \c 10 \s न्याय के लिये प्रार्थना \q \v 1 हे यहोवा तू क्यों दूर खड़ा रहता है? \q संकट के समय में क्यों छिपा रहता है*? \q \v 2 दुष्टों के अहंकार के कारण दीन पर अत्याचार होते है; \q वे अपनी ही निकाली हुई युक्तियों में फंस जाएँ। \q \v 3 क्योंकि दुष्ट अपनी अभिलाषा पर घमण्ड करता है, \q और लोभी यहोवा को त्याग देता है और उसका तिरस्कार करता है। \q \s5 \v 4 दुष्ट अपने अहंकार में परमेश्‍वर को नहीं खोजता; \q उसका पूरा विचार यही है कि कोई परमेश्‍वर है ही नहीं। \q \v 5 वह अपने मार्ग पर दृढ़ता से बना रहता है; \q तेरे धार्मिकता के नियम उसकी दृष्टि से बहुत दूर ऊँचाई पर हैं, \q जितने उसके विरोधी हैं उन पर वह फुँकारता है। \q \s5 \v 6 वह अपने मन में कहता है* कि “मैं कभी टलने का नहीं; \q मैं पीढ़ी से पीढ़ी तक दुःख से बचा रहूँगा।” \q \v 7 उसका मुँह श्राप और छल और धमकियों से भरा है; \q उत्पात और अनर्थ की बातें उसके मुँह में हैं। (रोम. 3:14) \q \s5 \v 8 वह गाँवों में घात में बैठा करता है, \q और गुप्त स्थानों में निर्दोष को घात करता है, \q उसकी आँखें लाचार की घात में लगी रहती है। \q \v 9 वह सिंह के समान झाड़ी में छिपकर घात में बैठाता है; \q वह दीन को पकड़ने के लिये घात लगाता है, \q वह दीन को जाल में फँसाकर पकड़ लेता है। \q \v 10 लाचार लोगों को कुचला और पीटा जाता है, \q वह उसके मजबूत जाल में गिर जाते हैं। \q \s5 \v 11 वह अपने मन में सोचता है, “परमेश्‍वर भूल गया, \q वह अपना मुँह छिपाता है; वह कभी नहीं देखेगा।” \q \v 12 उठ, हे यहोवा; हे परमेश्‍वर, अपना हाथ बढ़ा और न्याय कर; \q और दीनों को न भूल। \q \s5 \v 13 परमेश्‍वर को दुष्ट क्यों तुच्छ जानता है, \q और अपने मन में कहता है “तू लेखा न लेगा?” \q \v 14 तूने देख लिया है, क्योंकि तू उत्पात और उत्पीड़न पर दृष्टि रखता है, ताकि उसका पलटा अपने हाथ में रखे; \q लाचार अपने आप को तुझे सौंपता है; \q अनाथों का तू ही सहायक रहा है। \q \s5 \v 15 दुर्जन और दुष्ट की भूजा को तोड़ डाल; \q उनकी दुष्‍टता का लेखा ले, जब तक कि सब उसमें से दूर न हो जाए। \q \v 16 यहोवा अनन्तकाल के लिये महाराज है; \q उसके देश में से जाति-जाति लोग नाश हो गए हैं। (रोम. 11:26,27) \q \s5 \v 17 हे यहोवा, तूने नम्र लोगों की अभिलाषा सुनी है; \q तू उनका मन दृढ़ करेगा, तू कान लगाकर सुनेगा \q \v 18 कि अनाथ और पिसे हुए का न्याय करे, \q ताकि मनुष्य जो मिट्टी से बना है* फिर भय दिखाने न पाए। \s5 \c 11 \s परमेश्‍वर पर भरोसा \d प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन \b \q \v 1 मैं यहोवा में शरण लेता हूँ; \q तुम क्यों मेरे प्राण से कहते हो \q “पक्षी के समान अपने पहाड़ पर उड़ जा”*; \q \v 2 क्योंकि देखो, दुष्ट अपना धनुष चढ़ाते हैं, \q और अपने तीर धनुष की डोरी पर रखते हैं, \q कि सीधे मनवालों पर अंधियारे में तीर चलाएँ। \q \s5 \v 3 यदि नींवें ढा दी जाएँ* \q तो धर्मी क्या कर सकता है? \q \v 4 यहोवा अपने पवित्र भवन में है; \q यहोवा का सिंहासन स्वर्ग में है; \q उसकी आँखें मनुष्य की सन्तान को नित देखती रहती हैं \q और उसकी पलकें उनको जाँचती हैं। \q \s5 \v 5 यहोवा धर्मी और दुष्ट दोनों को परखता है, \q परन्तु जो उपद्रव से प्रीति रखते हैं \q उनसे वह घृणा करता है। \q \v 6 वह दुष्टों पर आग और गन्धक बरसाएगा; \q और प्रचण्ड लूह उनके कटोरों में बाँट दी जाएँगी। \q \v 7 क्योंकि यहोवा धर्मी है, \q वह धार्मिकता के ही कामों से प्रसन्‍न रहता है; \q धर्मीजन उसका दर्शन पाएँगे। \s5 \c 12 \s दुष्ट द्वारा उत्पीड़न और परमेश्‍वर द्वारा स्थिर \d प्रधान बजानेवाले के लिये खर्ज की राग में दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा बचा ले, क्योंकि एक भी भक्त नहीं रहा; \q मनुष्यों में से विश्वासयोग्य लोग लुप्त‍ हो गए हैं। \q \s5 \v 2 प्रत्येक मनुष्य अपने पड़ोसी से झूठी बातें कहता है; \q वे चापलूसी के होंठों से दो रंगी बातें करते हैं। \q \v 3 यहोवा सब चापलूस होंठों को \q और उस जीभ को जिससे बड़ा बोल निकलता है* काट डालेगा। \q \v 4 वे कहते हैं, “हम अपनी जीभ ही से जीतेंगे, \q हमारे होंठ हमारे ही वश में हैं; हम पर कौन शासन कर सकेगा?” \q \s5 \v 5 दीन लोगों के लुट जाने, और दरिद्रों के कराहने के कारण, \q यहोवा कहता है, “अब मैं उठूँगा, जिस पर \q वे फुँकारते हैं उसे मैं चैन विश्राम दूँगा।” \q \s5 \v 6 यहोवा का वचन पवित्र है, \q उस चाँदी के समान जो भट्ठी में मिट्टी पर ताई गई, \q और सात बार निर्मल की गई हो*। \q \v 7 तू ही हे यहोवा उनकी रक्षा करेगा, \q उनको इस काल के लोगों से सर्वदा के लिये बचाए रखेगा। \q \v 8 जब मनुष्यों में बुराई का आदर होता है, \q तब दुष्ट लोग चारों ओर अकड़ते फिरते हैं। \s5 \c 13 \s उद्धार के लिये प्रार्थना \d प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर, तू कब तक? क्या सदैव मुझे भूला रहेगा? \q तू कब तक अपना मुखड़ा मुझसे छिपाए रखेगा? \q \v 2 मैं कब तक अपने मन ही मन में युक्तियाँ करता रहूँ, \q और दिन भर अपने हृदय में दुःखित रहा करूँ*?, \q कब तक मेरा शत्रु मुझ पर प्रबल रहेगा? \q \s5 \v 3 हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा, मेरी ओर ध्यान दे और मुझे उत्तर दे, \q मेरी आँखों में ज्योति आने दे*, नहीं तो मुझे मृत्यु की नींद आ जाएगी; \q \v 4 ऐसा न हो कि मेरा शत्रु कहे, “मैं उस पर प्रबल हो गया;” \q और ऐसा न हो कि जब मैं डगमगाने लगूँ तो मेरे शत्रु मगन हों। \q \s5 \v 5 परन्तु मैंने तो तेरी करुणा पर भरोसा रखा है; \q मेरा हृदय तेरे उद्धार से मगन होगा। \q \v 6 मैं यहोवा के नाम का भजन गाऊँगा, \q क्योंकि उसने मेरी भलाई की है। \s5 \c 14 \s पापियों का एक चित्र \d प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन \b \q \v 1 मूर्ख ने* अपने मन में कहा है, “कोई परमेश्‍वर है ही नहीं।” \q वे बिगड़ गए, उन्होंने घिनौने काम किए हैं, \q कोई सुकर्मी नहीं। \q \s5 \v 2 यहोवा ने स्वर्ग में से मनुष्यों पर दृष्टि की है \q कि देखे कि कोई बुद्धिमान, \q कोई यहोवा का खोजी है या नहीं। \q \v 3 वे सब के सब भटक गए, वे सब भ्रष्ट हो गए; \q कोई सुकर्मी नहीं, एक भी नहीं। (रोमी. 3:10-11) \q \s5 \v 4 क्या किसी अनर्थकारी को कुछ भी ज्ञान नहीं रहता, \q जो मेरे लोगों को ऐसे खा जाते हैं जैसे रोटी, \q और यहोवा का नाम नहीं लेते? \q \s5 \v 5 वहाँ उन पर भय छा गया, \q क्योंकि परमेश्‍वर धर्मी लोगों के बीच में निरन्तर रहता है। \q \v 6 तुम तो दीन की युक्ति की हँसी उड़ाते हो \q परन्तु यहोवा उसका शरणस्थान है। \q \s5 \v 7 भला हो कि इस्राएल का उद्धार सिय्योन से* प्रगट होता! \q जब यहोवा अपनी प्रजा को दासत्व से लौटा ले आएगा, \q तब याकूब मगन और इस्राएल आनन्दित होगा। (भज. 53:6, लूका 1:69) \s5 \c 15 \s धर्मी का विवरण \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा तेरे तम्बू में कौन रहेगा? \q तेरे पवित्र पर्वत पर कौन बसने पाएगा? \q \v 2 वह जो सिधाई से चलता और धर्म के काम करता है, \q और हृदय से सच बोलता है; \q \s5 \v 3 जो अपनी जीभ से अपमान नहीं करता, \q और न अन्य लोगों की बुराई करता, \q और न अपने पड़ोसी का अपमान सुनता है; \q \s5 \v 4 वह जिसकी दृष्टि में निकम्मा मनुष्य तुच्छ है, \q पर जो यहोवा के डरवैयों का आदर करता है, \q जो शपथ खाकर बदलता नहीं चाहे हानि उठाना पड़े; \q \v 5 जो अपना रुपया ब्याज पर नहीं देता, \q और निर्दोष की हानि करने के लिये घूस नहीं लेता है। \q जो कोई ऐसी चाल चलता है वह कभी न डगमगाएगा। \s5 \c 16 \s परमेश्‍वर मेरा भाग \d दाऊद का मिक्ताम \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर मेरी रक्षा कर, \q क्योंकि मैं तेरा ही शरणागत हूँ। \q \v 2 मैंने यहोवा से कहा, “तू ही मेरा प्रभु है; \q तेरे सिवा मेरी भलाई कहीं नहीं।” \q \v 3 पृथ्वी पर जो पवित्र लोग हैं, \q वे ही आदर के योग्य हैं, \q और उन्हीं से मैं प्रसन्‍न हूँ। \q \s5 \v 4 जो पराए देवता के पीछे भागते हैं उनका दुःख बढ़ जाएगा; \q मैं उन्हें लहूवाले अर्घ नहीं चढ़ाऊँगा \q और उनका नाम अपने होंठों से नहीं लूँगा*। \q \s5 \v 5 यहोवा तू मेरा चुना हुआ भाग और मेरा कटोरा है; \q मेरे भाग को तू स्थिर रखता है। \q \v 6 मेरे लिये माप की डोरी मनभावने स्थान में पड़ी, \q और मेरा भाग मनभावना है। \q \s5 \v 7 मैं यहोवा को धन्य कहता हूँ, \q क्योंकि उसने मुझे सम्मति दी है; \q वरन् मेरा मन भी रात में मुझे शिक्षा देता है। \q \v 8 मैंने यहोवा को निरन्तर अपने सम्मुख रखा है*: \q इसलिए कि वह मेरे दाहिने हाथ रहता है मैं कभी न डगमगाऊँगा। \q \s5 \v 9 इस कारण मेरा हृदय आनन्दित \q और मेरी आत्मा मगन हुई; \q मेरा शरीर भी चैन से रहेगा। \q \v 10 क्योंकि तू मेरे प्राण को अधोलोक में न छोड़ेगा, \q न अपने पवित्र भक्त को कब्र में सड़ने देगा। \q \s5 \v 11 तू मुझे जीवन का रास्ता दिखाएगा; \q तेरे निकट आनन्द की भरपूरी है, \q तेरे दाहिने हाथ में सुख सर्वदा बना रहता है। (प्रेरि.2:25-28) \s5 \c 17 \s संरक्षण के लिये प्रार्थना \d दाऊद की प्रार्थना \b \q \v 1 हे यहोवा परमेश्‍वर सच्चाई के वचन सुन, मेरी पुकार की ओर ध्यान दे \q मेरी प्रार्थना की ओर जो निष्कपट मुँह से निकलती है कान लगा! \q \v 2 मेरे मुकद्दमें का निर्णय तेरे सम्मुख हो! \q तेरी आँखें न्याय पर लगी रहें! \q \s5 \v 3 यदि तू मेरे हृदय को जाँचता; यदि तू रात को मेरा परीक्षण करता, \q यदि तू मुझे परखता तो कुछ भी खोटापन नहीं पाता; \q मेरे मुँह से अपराध की बात नहीं निकलेगी। \q \s5 \v 4 मानवीय कामों में मैंने तेरे मुँह के वचनों के द्वारा* \q अधर्मियों के मार्ग से स्वयं को बचाए रखा। \q \v 5 मेरे पाँव तेरे पथों में स्थिर रहे, फिसले नहीं। \q \s5 \v 6 हे परमेश्‍वर, मैंने तुझ से प्रार्थना की है, क्योंकि तू मुझे उत्तर देगा। \q अपना कान मेरी ओर लगाकर मेरी विनती सुन ले। \q \v 7 तू जो अपने दाहिने हाथ के द्वारा अपने \q शरणागतों को उनके विरोधियों से बचाता है, \q अपनी अद्भुत करुणा दिखा। \q \s5 \v 8 अपनी आँखों की पुतली के समान सुरक्षित रख*; \q अपने पंखों के तले मुझे छिपा रख, \q \v 9 उन दुष्टों से जो मुझ पर अत्याचार करते हैं, \q मेरे प्राण के शत्रुओं से जो मुझे घेरे हुए हैं। \q \v 10 उन्होंने अपने हृदयों को कठोर किया है; \q उनके मुँह से घमण्ड की बातें निकलती हैं। \q \s5 \v 11 उन्होंने पग-पग पर मुझ को घेरा है; \q वे मुझ को भूमि पर पटक देने के लिये \q घात लगाए हुए हैं। \q \v 12 वह उस सिंह के समान है जो अपने शिकार की लालसा करता है, \q और जवान सिंह के समान घात लगाने के स्थानों में बैठा रहता है। \q \s5 \v 13 उठ, हे यहोवा! \q उसका सामना कर और उसे पटक दे! \q अपनी तलवार के बल से मेरे प्राण को दुष्ट से बचा ले। \q \v 14 अपना हाथ बढ़ाकर हे यहोवा, मुझे मनुष्यों से बचा, \q अर्थात् सांसारिक मनुष्यों से जिनका भाग इसी जीवन में है, \q और जिनका पेट तू अपने भण्डार से भरता है*। \q वे बाल-बच्चों से सन्तुष्ट हैं; और शेष सम्पत्ति अपने बच्चों के लिये छोड़ जाते हैं। \q \s5 \v 15 परन्तु मैं तो धर्मी होकर तेरे मुख का दर्शन करूँगा \q जब मैं जागूँगा तब तेरे स्वरूप से सन्तुष्ट होऊँगा। (भज. 4:6-7,1 यहू. 3:2) \s5 \c 18 \s दाऊद का मुक्तिगान \d प्रधान बजानेवाले के लिये। यहोवा के दास दाऊद का गीत, जिसके वचन उसने यहोवा के लिये उस समय गाया जब यहोवा ने उसको उसके सारे शत्रुओं के हाथ से, और शाऊल के हाथ से बचाया था, उसने कहा \b \q \v 1 हे यहोवा, हे मेरे बल, मैं तुझ से प्रेम करता हूँ। \q \s5 \v 2 यहोवा मेरी चट्टान, और मेरा गढ़ और मेरा छुड़ानेवाला है; \q मेरा परमेश्‍वर, मेरी चट्टान है, जिसका मैं शरणागत हूँ, \q वह मेरी ढाल और मेरी उद्धार का सींग, \q और मेरा ऊँचा गढ़ है। (इब्रा. 2:13) \q \v 3 मैं यहोवा को जो स्तुति के योग्य है पुकारूँगा; \q इस प्रकार मैं अपने शत्रुओं से बचाया जाऊँगा। \q \s5 \v 4 मृत्यु की रस्सियों से मैं चारों ओर से घिर गया हूँ*, \q और अधर्म की बाढ़ ने मुझ को भयभीत कर दिया; (भज. 116:3) \q \v 5 अधोलोक की रस्सियाँ मेरे चारों ओर थीं, \q और मृत्यु के फंदे मुझ पर आए थे। \q \s5 \v 6 अपने संकट में मैंने यहोवा परमेश्‍वर को पुकारा; \q मैंने अपने परमेश्‍वर की दुहाई दी। \q और उसने अपने मन्दिर* में से मेरी वाणी सुनी। \q और मेरी दुहाई उसके पास पहुँचकर उसके कानों में पड़ी। \q \s5 \v 7 तब पृथ्वी हिल गई, और काँप उठी \q और पहाड़ों की नींव कँपित होकर हिल गई \q क्योंकि वह अति क्रोधित हुआ था। \q \v 8 उसके नथनों से धुआँ निकला, \q और उसके मुँह से आग निकलकर भस्म करने लगी; \q जिससे कोएले दहक उठे। \q \s5 \v 9 वह स्वर्ग को नीचे झुकाकर उतर आया; \q और उसके पाँवों तले घोर अंधकार था। \q \v 10 और वह करूब पर सवार होकर उड़ा, \q वरन् पवन के पंखों पर सवारी करके वेग से उड़ा। \q \s5 \v 11 उसने अंधियारे को अपने छिपने का स्थान \q और अपने चारों ओर आकाश की काली घटाओं का मण्डप बनाया। \q \v 12 उसके आगे बिजली से, \q ओले और अंगारे गिर पड़े। \q \s5 \v 13 तब यहोवा आकाश में गरजा, \q परमप्रधान ने अपनी वाणी सुनाई और ओले और अंगारों को भेजा। \q \v 14 उसने अपने तीर चला-चलाकर शत्रुओं को तितर-बितर किया; \q वरन् बिजलियाँ गिरा-गिराकर उनको परास्त किया। \q \s5 \v 15 तब जल के नाले देख पड़े, और जगत की नींव प्रगट हुई, \q यह तो यहोवा तेरी डाँट से*, \q और तेरे नथनों की साँस की झोंक से हुआ। \q \s5 \v 16 उसने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया, \q और गहरे जल में से खींच लिया। \q \v 17 उसने मेरे बलवन्त शत्रु से, \q और उनसे जो मुझसे घृणा करते थे, \q मुझे छुड़ाया; क्योंकि वे अधिक सामर्थी थे। \q \s5 \v 18 मेरे संकट के दिन वे मेरे विरुद्ध आए \q परन्तु यहोवा मेरा आश्रय था। \q \v 19 और उसने मुझे निकालकर चौड़े स्थान में पहुँचाया, \q उसने मुझ को छुड़ाया, क्योंकि वह मुझसे प्रसन्‍न था। \q \s5 \v 20 यहोवा ने मुझसे मेरी धार्मिकता के अनुसार व्यवहार किया; \q और मेरे हाथों की शुद्धता के अनुसार उसने \q मुझे बदला दिया। \q \v 21 क्योंकि मैं यहोवा के मार्गों पर चलता रहा, \q और दुष्टता के कारण अपने परमेश्‍वर से दूर न हुआ। \q \s5 \v 22 क्योंकि उसके सारे निर्णय मेरे सम्मुख बने रहे \q और मैंने उसकी विधियों को न त्यागा। \q \v 23 और मैं उसके सम्मुख सिद्ध बना रहा, \q और अधर्म से अपने को बचाए रहा। \q \v 24 यहोवा ने मुझे मेरी धार्मिकता के अनुसार बदला दिया, \q और मेरे हाथों की उस शुद्धता के अनुसार जिसे वह देखता था। \q \s5 \v 25 विश्वासयोग्य के साथ तू अपने को विश्वासयोग्य दिखाता; \q और खरे पुरुष के साथ तू अपने को खरा दिखाता है। \q \v 26 शुद्ध के साथ तू अपने को शुद्ध दिखाता, \q और टेढ़े के साथ तू तिरछा बनता है। \q \s5 \v 27 क्योंकि तू दीन लोगों को तो बचाता है; \q परन्तु घमण्ड भरी आँखों को नीची करता है। \q \v 28 हाँ, तू ही मेरे दीपक को जलाता है; \q मेरा परमेश्‍वर यहोवा मेरे अंधियारे को \q उजियाला कर देता है। \q \v 29 क्योंकि तेरी सहायता से मैं सेना पर धावा करता हूँ; \q और अपने परमेश्‍वर की सहायता से शहरपनाह को लाँघ जाता हूँ। \q \s5 \v 30 परमेश्‍वर का मार्ग सिद्ध है; \q यहोवा का वचन ताया हुआ है; \q वह अपने सब शरणागतों की ढाल है। \q \v 31 यहोवा को छोड़ क्या कोई परमेश्‍वर है? \q हमारे परमेश्‍वर को छोड़ क्या और कोई चट्टान है? \q \v 32 यह वही परमेश्‍वर है, जो सामर्थ्य से मेरा कटिबन्ध बाँधता है, \q और मेरे मार्ग को सिद्ध करता है। \q \s5 \v 33 वही मेरे पैरों को हिरनी के पैरों के समान बनाता है, \q और मुझे ऊँचे स्थानों पर खड़ा करता है। \q \v 34 वह मेरे हाथों को युद्ध करना सिखाता है, \q इसलिए मेरी बाहों से पीतल का धनुष झुक जाता है। \q \s5 \v 35 तूने मुझ को अपने बचाव की ढाल दी है, \q तू अपने दाहिने हाथ से मुझे सम्भाले हुए है, \q और तेरी नम्रता ने मुझे महान बनाया है। \q \v 36 तूने मेरे पैरों के लिये स्थान चौड़ा कर दिया*, \q और मेरे पैर नहीं फिसले। \q \s5 \v 37 मैं अपने शत्रुओं का पीछा करके उन्हें पकड़ लूँगा; \q और जब तब उनका अन्त न करूँ तब तक न लौटूँगा। \q \v 38 मैं उन्हें ऐसा बेधूँगा कि वे उठ न सकेंगे; \q वे मेरे पाँवों के नीचे गिर जायेंगे। \q \v 39 क्योंकि तूने युद्ध के लिये मेरी कमर में \q शक्ति का पटुका बाँधा है; \q और मेरे विरोधियों को मेरे सम्मुख नीचा कर दिया। \q \s5 \v 40 तूने मेरे शत्रुओं की पीठ मेरी ओर फेर दी; \q ताकि मैं उनको काट डालूँ जो मुझसे द्वेष रखते हैं। \q \v 41 उन्होंने दुहाई तो दी परन्तु उन्हें कोई बचानेवाला न मिला, \q उन्होंने यहोवा की भी दुहाई दी, \q परन्तु उसने भी उनको उत्तर न दिया। \q \v 42 तब मैंने उनको कूट-कूटकर पवन से उड़ाई \q हुई धूल के समान कर दिया; \q मैंने उनको मार्ग के कीचड़ के समान निकाल फेंका। \q \s5 \v 43 तूने मुझे प्रजा के झगड़ों से भी छुड़ाया; \q तूने मुझे अन्यजातियों का प्रधान बनाया है; \q जिन लोगों को मैं जानता भी न था वे मेरी \q सेवा करते है। \q \v 44 मेरा नाम सुनते ही वे मेरी आज्ञा का पालन करेंगे; \q परदेशी मेरे वश में हो जाएँगे। \q \v 45 परदेशी मुर्झा जाएँगे, \q और अपने किलों में से थरथराते हुए निकलेंगे। \q \s5 \v 46 यहोवा परमेश्‍वर जीवित है; मेरी चट्टान धन्य है; \q और मेरे मुक्तिदाता परमेश्‍वर की बड़ाई हो। \q \v 47 धन्य है मेरा पलटा लेनेवाला परमेश्‍वर! \q जिसने देश-देश के लोगों को मेरे वश में कर दिया है; \q \s5 \v 48 और मुझे मेरे शत्रुओं से छुड़ाया है; \q तू मुझ को मेरे विरोधियों से ऊँचा करता, \q और उपद्रवी पुरुष से बचाता है। \q \v 49 इस कारण मैं जाति-जाति के सामने तेरा धन्यवाद करूँगा, \q और तेरे नाम का भजन गाऊँगा। \q \s5 \v 50 वह अपने ठहराए हुए राजा को महान विजय देता है, \q वह अपने अभिषिक्त दाऊद पर \q और उसके वंश पर युगानुयुग करुणा करता रहेगा। \s5 \c 19 \s सृष्टि द्वारा सृष्टिकर्ता की महिमा का वर्णन \d प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन \b \q \v 1 आकाश परमेश्‍वर की महिमा वर्णन करता है; \q और आकाश मण्डल उसकी हस्तकला को प्रगट करता है। \q \v 2 दिन से दिन बातें करता है, \q और रात को रात ज्ञान सिखाती है। \q \v 3 न तो कोई बोली है और न कोई भाषा; \q जहाँ उनका शब्द सुनाई नहीं देता है। \q \s5 \v 4 फिर भी उनका स्वर सारी पृथ्वी पर गूँज गया है, \q और उनका वचन जगत की छोर तक पहुँच गया है। \q उनमें उसने सूर्य के लिये एक मण्डप खड़ा किया है, \q \v 5 जो दुल्हे के समान अपने कक्ष से निकलता है। \q वह शूरवीर के समान अपनी दौड़ दौड़ने में हर्षित होता है*। \q \v 6 वह आकाश की एक छोर से निकलता है, \q और वह उसकी दूसरी छोर तक चक्कर मारता है; \q और उसकी गर्मी से कोई नहीं बच पाता। \q \s5 \v 7 यहोवा की व्यवस्था खरी है, वह प्राण को बहाल कर देती है; \q यहोवा के नियम विश्वासयोग्य हैं, \q बुद्धिहीन लोगों को बुद्धिमान बना देते हैं; \q \v 8 यहोवा के उपदेश* सिद्ध हैं, हृदय को आनन्दित कर देते हैं; \q यहोवा की आज्ञा निर्मल है, वह आँखों में \q ज्योति ले आती है; \q \s5 \v 9 यहोवा का भय पवित्र है, वह अनन्तकाल तक स्थिर रहता है; \q यहोवा के नियम सत्य और पूरी रीति से धर्ममय हैं। \q \v 10 वे तो सोने से और बहुत कुन्दन से भी बढ़कर मनोहर हैं; \q वे मधु से और छत्ते से टपकनेवाले मधु से भी बढ़कर मधुर हैं। \q \s5 \v 11 उन्हीं से तेरा दास चिताया जाता है; \q उनके पालन करने से बड़ा ही प्रतिफल मिलता है। (2 यूह. 1:8, भज. 119:11) \q \v 12 अपनी गलतियों को कौन समझ सकता है? \q मेरे गुप्त पापों से तू मुझे पवित्र कर। \q \s5 \v 13 तू अपने दास को ढिठाई के पापों से भी बचाए रख; \q वह मुझ पर प्रभुता करने न पाएँ! \q तब मैं सिद्ध हो जाऊँगा, और बड़े अपराधों से बचा रहूँगा*। (गिन. 15:30) \q \v 14 हे यहोवा परमेश्‍वर, मेरी चट्टान और मेरे उद्धार करनेवाले, \q मेरे मुँह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहणयोग्य हों। \s5 \c 20 \s विजय के लिये प्रार्थना \d प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन \b \q \v 1 संकट के दिन यहोवा तेरी सुन ले! \q याकूब के परमेश्‍वर का नाम तुझे \q ऊँचे स्थान पर नियुक्त करे! \q \v 2 वह पवित्रस्‍थान से तेरी सहायता करे, \q और सिय्योन से तुझे सम्भाल ले! \q \s5 \v 3 वह तेरे सब भेंटों को स्मरण करे, \q और तेरे होमबलि को ग्रहण करे। \qs (सेला) \qs \q \v 4 वह तेरे मन की इच्छा को पूरी करे, \q और तेरी सारी युक्ति को सफल करे! \q \s5 \v 5 तब हम तेरे उद्धार के कारण ऊँचे स्वर से \q हर्षित होकर गाएँगे, \q और अपने परमेश्‍वर के नाम से झण्डे खड़े करेंगे। \q यहोवा तेरे सारे निवेदन स्वीकार करे। (भज. 60:4) \q \v 6 अब मैं जान गया कि यहोवा अपने अभिषिक्त को बचाएगा; \q वह अपने पवित्र स्वर्ग से, \q अपने दाहिने हाथ के उद्धार के सामर्थ्य से, उसको उत्तर देगा। \q \s5 \v 7 किसी को रथों पर, और किसी को घोड़ों पर भरोसा है, \q परन्तु हम तो अपने परमेश्‍वर यहोवा ही का नाम लेंगे। (भज. 33:16-17) \q \v 8 वे तो झुक गए और गिर पड़े:* \q परन्तु हम उठे और सीधे खड़े हैं। \q \s5 \v 9 हे यहोवा, राजा को छुड़ा; \q जब हम तुझे पुकारें तब हमारी सहायता कर। \s5 \c 21 \s प्रभु के उद्धार में आनन्द \d प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा तेरी सामर्थ्य से राजा आनन्दित होगा; \q और तेरे किए हुए उद्धार से वह अति मगन होगा। \q \v 2 तूने उसके मनोरथ को पूरा किया है, \q और उसके मुँह की विनती को तूने अस्वीकार नहीं किया। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 3 क्योंकि तू उत्तम आशीषें देता हुआ उससे मिलता है \q और तू उसके सिर पर कुन्दन का मुकुट पहनाता है। \q \v 4 उसने तुझ से जीवन माँगा, और तूने जीवनदान दिया; \q तूने उसको युगानुयुग का जीवन दिया है। \q \s5 \v 5 तेरे उद्धार के कारण उसकी महिमा अधिक है; \q तू उसको वैभव और ऐश्वर्य से आभूषित कर देता है। \q \v 6 क्योंकि तूने उसको सर्वदा के लिये आशीषित किया है*; \q तू अपने सम्मुख उसको हर्ष और आनन्द से भर देता है। \q \s5 \v 7 क्योंकि राजा का भरोसा यहोवा के ऊपर है; \q और परमप्रधान की करुणा से वह कभी नहीं टलने का*। \q \v 8 तेरा हाथ तेरे सब शत्रुओं को ढूँढ़ निकालेगा, \q तेरा दाहिना हाथ तेरे सब बैरियों का पता लगा लेगा। \q \s5 \v 9 तू अपने मुख के सम्मुख उन्हें जलते हुए भट्ठे \q के समान जलाएगा। \q यहोवा अपने क्रोध में उन्हें निगल जाएगा, \q और आग उनको भस्म कर डालेगी। \q \v 10 तू उनके फलों को पृथ्वी पर से, \q और उनके वंश को मनुष्यों में से नष्ट करेगा। \q \s5 \v 11 क्योंकि उन्होंने तेरी हानि ठानी है, \q उन्होंने ऐसी युक्ति निकाली है जिसे वे \q पूरी न कर सकेंगे। \q \v 12 क्योंकि तू अपना धनुष उनके विरुद्ध चढ़ाएगा, \q और वे पीठ दिखाकर भागेंगे। \q \s5 \v 13 हे यहोवा, अपनी सामर्थ्य में महान हो; \q और हम गा-गाकर तेरे पराक्रम का भजन सुनाएँगे। \s5 \c 22 \s मसीह का दुःख, स्तुति और भावी पीढ़ी \d प्रधान बजानेवाले के लिये अभ्येलेरशर राग में दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे मेरे परमेश्‍वर, हे मेरे परमेश्‍वर, \q तूने मुझे क्यों छोड़ दिया? \q तू मेरी पुकार से और मेरी सहायता करने से \q क्यों दूर रहता है? मेरा उद्धार कहाँ है? \q \v 2 हे मेरे परमेश्‍वर, मैं दिन को पुकारता हूँ \q परन्तु तू उत्तर नहीं देता; \q और रात को भी मैं चुप नहीं रहता। \q \s5 \v 3 परन्तु तू जो इस्राएल की स्तुति के सिंहासन पर विराजमान है, \q तू तो पवित्र है। \q \v 4 हमारे पुरखा तुझी पर भरोसा रखते थे; \q वे भरोसा रखते थे, \q और तू उन्हें छुड़ाता था। \q \v 5 उन्होंने तेरी दुहाई दी और तूने उनको छुड़ाया \q वे तुझी पर भरोसा रखते थे \q और कभी लज्जित न हुए। \q \s5 \v 6 परन्तु मैं तो कीड़ा हूँ, मनुष्य नहीं; \q मनुष्यों में मेरी नामधराई है, \q और लोगों में मेरा अपमान होता है। \q \v 7 वह सब जो मुझे देखते हैं मेरा ठट्ठा करते हैं, \q और होंठ बिचकाते \q और यह कहते हुए सिर हिलाते हैं, (मत्ती 27:39, मर. 15:29) \q \v 8 वे कहते है “वह यहोवा पर भरोसा करता है, \q यहोवा उसको छुड़ाए, \q वह उसको उबारे क्योंकि वह उससे प्रसन्‍न है।” (भज. 91:14) \q \s5 \v 9 परन्तु तू ही ने मुझे गर्भ से निकाला*; \q जब मैं दूध-पीता बच्चा था, \q तब ही से तूने मुझे भरोसा रखना सिखाया। \q \v 10 मैं जन्मते ही तुझी पर छोड़ दिया गया, \q माता के गर्भ ही से तू मेरा परमेश्‍वर है। \q \s5 \v 11 मुझसे दूर न हो क्योंकि संकट निकट है, \q और कोई सहायक नहीं। \q \v 12 बहुत से सांडों ने मुझे घेर लिया है, \q बाशान के बलवन्त सांड मेरे चारों ओर मुझे घेरे हुए है। \q \v 13 वे फाड़ने और गरजनेवाले सिंह के समान \q मुझ पर अपना मुँह पसारे हुए है। \q \s5 \v 14 मैं जल के समान बह गया*, \q और मेरी सब हड्डियों के जोड़ उखड़ गए: \q मेरा हृदय मोम हो गया, \q वह मेरी देह के भीतर पिघल गया। \q \v 15 मेरा बल टूट गया, मैं ठीकरा हो गया; \q और मेरी जीभ मेरे तालू से चिपक गई; \q और तू मुझे मारकर मिट्टी में मिला देता है। (नीति. 17:22) \q \s5 \v 16 क्योंकि कुत्तों ने मुझे घेर लिया है; \q कुकर्मियों की मण्डली मेरे चारों ओर मुझे घेरे हुए है; \q वह मेरे हाथ और मेरे पैर छेदते हैं। (मत्ती 27:35 मर. 15:29 लूका 23:33) \q \v 17 मैं अपनी सब हड्डियाँ गिन सकता हूँ; \q वे मुझे देखते और निहारते हैं; \q \s5 \v 18 वे मेरे वस्त्र आपस में बाँटते हैं, \q और मेरे पहरावे पर चिट्ठी डालते हैं। (मत्ती 27:35, लूका 23:34, यहू. 19:24-25) \q \v 19 परन्तु हे यहोवा तू दूर न रह! \q हे मेरे सहायक, मेरी सहायता के लिये फुर्ती कर! \q \s5 \v 20 मेरे प्राण को तलवार से बचा, \q मेरे प्राण को कुत्ते के पंजे से बचा ले! \q \v 21 मुझे सिंह के मुँह से बचा, \q जंगली सांड के सींगों से तू मुझे बचा। \q \s5 \v 22 मैं अपने भाइयों के सामने तेरे नाम का प्रचार करूँगा; \q सभा के बीच तेरी प्रशंसा करूँगा। (इब्रा. 2:12) \q \v 23 हे यहोवा के डरवैयों, उसकी स्तुति करो! \q हे याकूब के वंश, तुम सब उसकी महिमा करो! \q हे इस्राएल के वंश, तुम उसका भय मानो! (भज. 135:19-20) \q \s5 \v 24 क्योंकि उसने दुःखी को तुच्छ नहीं जाना \q और न उससे घृणा करता है, \q यहोवा ने उससे अपना मुख नहीं छिपाया; \q पर जब उसने उसकी दुहाई दी, तब उसकी सुन ली। \q \v 25 बड़ी सभा में मेरा स्तुति करना तेरी ही ओर से होता है; \q मैं अपनी मन्नतों को उसके भय रखनेवालों के सामने पूरा करूँगा। \q \s5 \v 26 नम्र लोग भोजन करके तृप्त होंगे; \q जो यहोवा के खोजी हैं, वे उसकी स्तुति करेंगे। \q तुम्हारे प्राण सर्वदा जीवित रहें! \q \v 27 पृथ्वी के सब दूर-दूर देशों के लोग उसको स्मरण करेंगे \q और उसकी ओर फिरेंगे; \q और जाति-जाति के सब कुल तेरे सामने दण्डवत् करेंगे। \q \s5 \v 28 क्योंकि राज्य यहोवा की का है, \q और सब जातियों पर वही प्रभुता करता है। (जेके. 14:9) \q \v 29 पृथ्वी के सब हष्ट-पुष्ट लोग भोजन करके दण्डवत् करेंगे; \q वे सब जितने मिट्टी में मिल जाते हैं \q और अपना-अपना प्राण नहीं बचा सकते, \q वे सब उसी के सामने घुटने टेकेंगे। \q \s5 \v 30 एक वंश उसकी सेवा करेगा; \q दूसरी पीढ़ी से प्रभु का वर्णन किया जाएगा। \q \v 31 वे आएँगे और उसके धार्मिकता के कामों को एक \q वंश पर जो उत्‍पन्‍न होगा यह कहकर प्रगट \q करेंगे कि उसने ऐसे-ऐसे अद्भुत काम किए। \s5 \c 23 \s परमेश्‍वर अपने लोगों का चरवाहा \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 यहोवा मेरा चरवाहा है, \q मुझे कुछ घटी न होगी। (यह. 40:11) \q \v 2 वह मुझे हरी-हरी चराइयों में बैठाता है; \q वह मुझे सुखदाई जल* के झरने के पास ले चलता है; \q \s5 \v 3 वह मेरे जी में जी ले आता है। \q धार्मिकता के मार्गों में वह अपने नाम के निमित्त \q मेरी अगुआई करता है। \q \s5 \v 4 चाहे मैं घोर अंधकार से भरी हुई तराई में होकर चलूँ, \q तो भी हानि से न डरूँगा, \q क्योंकि तू मेरे साथ रहता है; \q तेरे सोंटे और तेरी लाठी से मुझे शान्ति मिलती है। \q \s5 \v 5 तू मेरे सतानेवालों के सामने मेरे लिये मेज बिछाता है*; \q तूने मेरे सिर पर तेल मला है, \q मेरा कटोरा उमड़ रहा है। \q \s5 \v 6 निश्चय भलाई और करुणा जीवन भर मेरे \q साथ-साथ बनी रहेंगी; \q और मैं यहोवा के धाम में सर्वदा वास करूँगा। \s5 \c 24 \s महिमामय राजा और उसके राज्य \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 पृथ्वी और जो कुछ उसमें है यहोवा ही का है; \q जगत और उसमें निवास करनेवाले भी। \q \v 2 क्योंकि उसी ने उसकी नींव समुद्रों के ऊपर दृढ़ करके रखी*, \q और महानदों के ऊपर स्थिर किया है। \q \s5 \v 3 यहोवा के पर्वत पर कौन चढ़ सकता है? \q और उसके पवित्रस्‍थान में कौन खड़ा हो सकता है? \q \v 4 जिसके काम निर्दोष और हृदय शुद्ध है, \q जिसने अपने मन को व्यर्थ बात की ओर नहीं लगाया, \q और न कपट से शपथ खाई है। \q \s5 \v 5 वह यहोवा की ओर से आशीष पाएगा, \q और अपने उद्धार करनेवाले परमेश्‍वर की \q ओर से धर्मी ठहरेगा। \q \v 6 ऐसे ही लोग उसके खोजी है, \q वे तेरे दर्शन के खोजी याकूबवंशी हैं। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 7 हे फाटकों, अपने सिर ऊँचे करो! \q हे सनातन के द्वारों, ऊँचे हो जाओ! \q क्योंकि प्रतापी राजा प्रवेश करेगा। \q \v 8 वह प्रतापी राजा कौन है? \q यहोवा जो सामर्थी और पराक्रमी है, \q परमेश्‍वर जो युद्ध में पराक्रमी है! \q \s5 \v 9 हे फाटकों, अपने सिर ऊँचे करो \q हे सनातन के द्वारों तुम भी खुल जाओ! \q क्योंकि प्रतापी राजा प्रवेश करेगा! \q \v 10 वह प्रतापी राजा कौन है? \q सेनाओं का यहोवा, वही प्रतापी राजा है। \qs (सेला) \qs \s5 \c 25 \s प्रभु पर निर्भरता \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा, मैं अपने मन को तेरी ओर \q उठाता हूँ। \q \v 2 हे मेरे परमेश्‍वर, मैंने तुझी पर भरोसा रखा है, \q मुझे लज्जित होने न दे; \q मेरे शत्रु मुझ पर जयजयकार करने न पाएँ। \q \v 3 वरन् जितने तेरी बाट जोहते हैं उनमें से कोई \q लज्जित न होगा; \q परन्तु जो अकारण विश्वासघाती हैं वे ही \q लज्जित होंगे। \q \s5 \v 4 हे यहोवा, अपने मार्ग मुझ को दिखा; \q अपना पथ मुझे बता दे। \q \v 5 मुझे अपने सत्य पर चला और शिक्षा दे, \q क्योंकि तू मेरा उद्धार करनेवाला परमेश्‍वर है; \q मैं दिन भर तेरी ही बाट जोहता रहता हूँ। \q \s5 \v 6 हे यहोवा, अपनी दया और करुणा के कामों को स्मरण कर; \q क्योंकि वे तो अनन्तकाल से होते आए हैं। \q \v 7 हे यहोवा, अपनी भलाई के कारण \q मेरी जवानी के पापों और मेरे अपराधों को स्मरण न कर*; \q अपनी करुणा ही के अनुसार तू मुझे स्मरण कर। \q \s5 \v 8 यहोवा भला और सीधा है; \q इसलिए वह पापियों को अपना मार्ग दिखलाएगा। \q \v 9 वह नम्र लोगों को न्याय की शिक्षा देगा, \q हाँ, वह नम्र लोगों को अपना मार्ग दिखलाएगा। \q \s5 \v 10 जो यहोवा की वाचा और चितौनियों को मानते हैं, \q उनके लिये उसके सब मार्ग करुणा और सच्चाई हैं। (यूह. 1:17) \q \v 11 हे यहोवा, अपने नाम के निमित्त \q मेरे अधर्म को जो बहुत हैं क्षमा कर। \q \s5 \v 12 वह कौन है जो यहोवा का भय मानता है? \q प्रभु उसको उसी मार्ग पर जिससे वह \q प्रसन्‍न होता है चलाएगा। \q \v 13 वह कुशल से टिका रहेगा, \q और उसका वंश पृथ्वी पर अधिकारी होगा। \q \s5 \v 14 यहोवा के भेद को वही जानते हैं जो उससे डरते हैं, \q और वह अपनी वाचा उन पर प्रगट करेगा। (इफि. 1:9, इफि. 1:18) \q \v 15 मेरी आँखें सदैव यहोवा पर टकटकी लगाए रहती हैं, \q क्योंकि वही मेरे पाँवों को जाल में से छुड़ाएगा*। (भज. 141:8) \q \v 16 हे यहोवा, मेरी ओर फिरकर मुझ पर दया कर; \q क्योंकि मैं अकेला और पीड़ित हूँ। \q \s5 \v 17 मेरे हृदय का क्लेश बढ़ गया है, \q तू मुझ को मेरे दुःखों से छुड़ा ले*। \q \v 18 तू मेरे दुःख और कष्ट पर दृष्टि कर, \q और मेरे सब पापों को क्षमा कर। \q \v 19 मेरे शत्रुओं को देख कि वे कैसे बढ़ गए हैं, \q और मुझसे बड़ा बैर रखते हैं। \q \s5 \v 20 मेरे प्राण की रक्षा कर, और मुझे छुड़ा; \q मुझे लज्जित न होने दे, \q क्योंकि मैं तेरा शरणागत हूँ। \q \v 21 खराई और सिधाई मुझे सुरक्षित रखे, \q क्योंकि मुझे तेरी ही आशा है। \q \s5 \v 22 हे परमेश्‍वर इस्राएल को उसके सारे संकटों से छुड़ा ले। \s5 \c 26 \s एक खरे व्यक्ति की प्रार्थना \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा, मेरा न्याय कर, \q क्योंकि मैं खराई से चलता रहा हूँ, \q और मेरा भरोसा यहोवा पर अटल बना है। \q \v 2 हे यहोवा, मुझ को जाँच और परख*; \q मेरे मन और हृदय को परख। \q \v 3 क्योंकि तेरी करुणा तो मेरी आँखों के सामने है, \q और मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलता रहा हूँ। \q \s5 \v 4 मैं निकम्मी चाल चलनेवालों के संग नहीं बैठा, \q और न मैं कपटियों के साथ कहीं जाऊँगा; \q \v 5 मैं कुकर्मियों की संगति से घृणा रखता हूँ, \q और दुष्टों के संग न बैठूँगा। \q \s5 \v 6 मैं अपने हाथों को निर्दोषता के जल से धोऊँगा*, \q तब हे यहोवा मैं तेरी वेदी की प्रदक्षिणा करूँगा, (भज. 73:13) \q \v 7 ताकि तेरा धन्यवाद ऊँचे शब्द से करूँ, \q और तेरे सब आश्चर्यकर्मों का वर्णन करूँ। \q \v 8 हे यहोवा, मैं तेरे धाम से \q तेरी महिमा के निवास-स्थान से प्रीति रखता हूँ। \q \s5 \v 9 मेरे प्राण को पापियों के साथ, \q और मेरे जीवन को हत्यारों के साथ न मिला*। \q \v 10 वे तो ओछापन करने में लगे रहते हैं, \q और उनका दाहिना हाथ घूस से भरा रहता है। \q \s5 \v 11 परन्तु मैं तो खराई से चलता रहूँगा। \q तू मुझे छुड़ा ले, और मुझ पर दया कर। \q \v 12 मेरे पाँव चौरस स्थान में स्थिर है; \q सभाओं में मैं यहोवा को धन्य कहा करूँगा। \s5 \c 27 \s विश्वास की घोषणा \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 यहोवा मेरी ज्योति और मेरा उद्धार है; \q मैं किस से डरूँ*? \q यहोवा मेरे जीवन का दृढ़ गढ़ ठहरा है, \q मैं किस का भय खाऊँ? \q \s5 \v 2 जब कुकर्मियों ने जो मुझे सताते और मुझी से \q बैर रखते थे, \q मुझे खा डालने के लिये मुझ पर चढ़ाई की, \q तब वे ही ठोकर खाकर गिर पड़े। \q \v 3 चाहे सेना भी मेरे विरुद्ध छावनी डाले, \q तो भी मैं न डरूँगा; चाहे मेरे विरुद्ध लड़ाई ठन जाए, \q उस दशा में भी मैं हियाव बाँधे निश्‍चित रहूँगा। \q \s5 \v 4 एक वर मैंने यहोवा से माँगा है, \q उसी के यत्न में लगा रहूँगा; \q कि मैं जीवन भर यहोवा के भवन में रहने पाऊँ, जिससे यहोवा की मनोहरता पर दृष्टि लगाए रहूँ, \q और उसके मन्दिर में ध्यान किया करूँ। (भज. 6:8, भज. 23:6, फिलि. 3:13) \q \s5 \v 5 क्योंकि वह तो मुझे विपत्ति के दिन में अपने \q मण्डप में छिपा रखेगा; \q अपने तम्बू के गुप्त स्थान में वह मुझे छिपा लेगा, \q और चट्टान पर चढ़ाएगा। (भज. 91:1, भज. 40:2, भज. 138:7) \q \v 6 अब मेरा सिर मेरे चारों ओर के शत्रुओं से ऊँचा होगा; \q और मैं यहोवा के तम्बू में आनन्द के बलिदान चढ़ाऊँगा*; \q और मैं गाऊँगा और यहोवा के लिए गीत गाऊँगा। (भज. 3:3) \q \s5 \v 7 हे यहोवा, मेरा शब्द सुन, मैं पुकारता हूँ, \q तू मुझ पर दया कर और मुझे उत्तर दे। (भज. 130:2-4, भज. 13:3) \q \v 8 तूने कहा है, “मेरे दर्शन के खोजी हो।” \q इसलिए मेरा मन तुझ से कहता है, \q “हे यहोवा, तेरे दर्शन का मैं खोजी रहूँगा।” \q \s5 \v 9 अपना मुख मुझसे न छिपा। \q अपने दास को क्रोध करके न हटा, \q तू मेरा सहायक बना है। \q हे मेरे उद्धार करनेवाले परमेश्‍वर मुझे त्याग न दे, और मुझे छोड़ न दे! \q \v 10 मेरे माता-पिता ने तो मुझे छोड़ दिया है, \q परन्तु यहोवा मुझे सम्भाल लेगा। \q \s5 \v 11 हे यहोवा, अपना मार्ग मुझे सिखा, \q और मेरे द्रोहियों के कारण मुझ को चौरस रास्ते पर ले चल। (भज. 5:8) \q \v 12 मुझ को मेरे सतानेवालों की इच्छा पर न छोड़, \q क्योंकि झूठे साक्षी जो उपद्रव करने की धुन \q में हैं* मेरे विरुद्ध उठे हैं। \q \s5 \v 13 यदि मुझे विश्वास न होता कि जीवितों की \q पृथ्वी पर यहोवा की भलाई को देखूँगा, \q तो मैं मूर्च्छित हो जाता। (भज. 142:5) \q \v 14 यहोवा की बाट जोहता रह; \q हियाव बाँध और तेरा हृदय दृढ़ रहे; \q हाँ, यहोवा ही की बाट जोहता रह! (भज. 31:24) \s5 \c 28 \s विनती और धन्यवाद \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा, मैं तुझी को पुकारूँगा; \q हे मेरी चट्टान, मेरी पुकार अनसुनी न कर, \q ऐसा न हो कि तेरे चुप रहने से \q मैं कब्र में पड़े हुओं के समान हो जाऊँ जो पाताल में चले जाते हैं*। \q \v 2 जब मैं तेरी दुहाई दूँ, \q और तेरे पवित्रस्‍थान की भीतरी कोठरी \q की ओर अपने हाथ उठाऊँ, \q तब मेरी गिड़गिड़ाहट की बात सुन ले। \q \s5 \v 3 उन दुष्टों और अनर्थकारियों के संग मुझे न घसीट; \q जो अपने पड़ोसियों से बातें तो मेल की बोलते हैं, \q परन्तु हृदय में बुराई रखते हैं। \q \v 4 उनके कामों के और उनकी करनी की बुराई \q के अनुसार उनसे बर्ताव कर, \q उनके हाथों के काम के अनुसार उन्हें बदला दे; \q उनके कामों का पलटा उन्हें दे। (मत्ती 16:27, प्रका. 18:6,13 प्रका. 22:12) \q \v 5 क्योंकि वे यहोवा के मार्गों को \q और उसके हाथ के कामों को नहीं समझते, \q इसलिए वह उन्हें पछाड़ेगा और फिर न उठाएगा*। \q \s5 \v 6 यहोवा धन्य है; \q क्योंकि उसने मेरी गिड़गिड़ाहट को सुना है। \q \v 7 यहोवा मेरा बल और मेरी ढाल है; \q उस पर भरोसा रखने से मेरे मन को सहायता मिली है; \q इसलिए मेरा हृदय प्रफुल्लित है; \q और मैं गीत गाकर उसका धन्यवाद करूँगा। \q \v 8 यहोवा अपने लोगों की सामर्थ्य है, \q वह अपने अभिषिक्त के लिये उद्धार का दृढ़ गढ़ है। \q \s5 \v 9 हे यहोवा अपनी प्रजा का उद्धार कर, \q और अपने निज भाग के लोगों को आशीष दे; \q और उनकी चरवाही कर और सदैव उन्हें सम्भाले रह। \s5 \c 29 \s परमेश्‍वर की आवाज़ \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर के पुत्रों, यहोवा का, \q हाँ, यहोवा ही का गुणानुवाद करो, \q यहोवा की महिमा और सामर्थ्य को सराहो। \q \v 2 यहोवा के नाम की महिमा करो; \q पवित्रता से शोभायमान होकर यहोवा को दण्डवत् करो। \q \s5 \v 3 यहोवा की वाणी मेघों के ऊपर सुनाई देती है; \q प्रतापी परमेश्‍वर गरजता है, \q यहोवा घने मेघों के ऊपर रहता है। (अय्यूब 37:4-5) \q \v 4 यहोवा की वाणी शक्तिशाली है, \q यहोवा की वाणी प्रतापमय है। \q \v 5 यहोवा की वाणी देवदारों को तोड़ डालती है; \q यहोवा लबानोन के देवदारों को भी तोड़ डालता है। \q \s5 \v 6 वह लबानोन को बछड़े के समान \q और सिर्योन को सांड के समान उछालता है। \q \v 7 यहोवा की वाणी आग की लपटों को चीरती है*। \q \v 8 यहोवा की वाणी वन को हिला देती है, \q यहोवा कादेश के वन को भी कँपाता है। \q \s5 \v 9 यहोवा की वाणी से हिरनियों का गर्भपात हो जाता है। \q और जंगल में पतझड़ होता है; \q और उसके मन्दिर में सब कोई \q “महिमा ही महिमा” बोलते रहते है। \q \v 10 जल-प्रलय के समय यहोवा विराजमान था; \q और यहोवा सर्वदा के लिये राजा होकर \q विराजमान रहता है। \q \s5 \v 11 यहोवा अपनी प्रजा को बल देगा; \q यहोवा अपनी प्रजा को शान्ति की आशीष देगा*। \s5 \c 30 \s धन्यवाद की प्रार्थना भवन की प्रतिष्ठा के लिये \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा, मैं तुझे सराहूँगा क्योंकि तूने \q मुझे खींचकर निकाला है, \q और मेरे शत्रुओं को मुझ पर \q आनन्द करने नहीं दिया। \q \v 2 हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा, \q मैंने तेरी दुहाई दी और तूने मुझे चंगा किया है। \q \v 3 हे यहोवा, तूने मेरा प्राण अधोलोक में से निकाला है, \q तूने मुझ को जीवित रखा \q और कब्र में पड़ने से बचाया है*। \q \s5 \v 4 तुम जो विश्वासयोग्य हो! \q यहोवा की स्तुति करो, \q और जिस पवित्र नाम से उसका स्मरण होता है, \q उसका धन्यवाद करो। \q \v 5 क्योंकि उसका क्रोध, तो क्षण भर का होता है, \q परन्तु उसकी प्रसन्नता जीवन भर की होती है*। \q कदाचित् रात को रोना पड़े, \q परन्तु सवेरे आनन्द पहुँचेगा। \q \s5 \v 6 मैंने तो अपने चैन के समय कहा था, \q कि मैं कभी नहीं टलने का। \q \v 7 हे यहोवा, अपनी प्रसन्नता से तूने मेरे पहाड़ को दृढ़ \q और स्थिर किया था; \q जब तूने अपना मुख फेर लिया \q तब मैं घबरा गया। \q \v 8 हे यहोवा, मैंने तुझी को पुकारा; \q और प्रभु से गिड़गिड़ाकर यह विनती की, कि \q \s5 \v 9 जब मैं कब्र में चला जाऊँगा तब मेरी मृत्यु से \q क्या लाभ होगा? \q क्या मिट्टी तेरा धन्यवाद कर सकती है? \q क्या वह तेरी विश्वसनीयता का प्रचार कर सकती है? \q \v 10 हे यहोवा, सुन, मुझ पर दया कर; \q हे यहोवा, तू मेरा सहायक हो। \q \s5 \v 11 तूने मेरे लिये विलाप को नृत्य में बदल डाला; \q तूने मेरा टाट उतरवाकर मेरी कमर में आनन्द \q का पटुका बाँधा है*; \q \v 12 ताकि मेरा मन तेरा भजन गाता रहे \q और कभी चुप न हो। \q हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा, \q मैं सर्वदा तेरा धन्यवाद करता रहूँगा। \s5 \c 31 \s परमेश्‍वर में भरोसे की प्रार्थना \d प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा, मैं तुझ में शरण लेता हूँ; \q मुझे कभी लज्जित होना न पड़े; \q तू अपने धर्मी होने के कारण मुझे छुड़ा ले! \q \v 2 अपना कान मेरी ओर लगाकर \q तुरन्त मुझे छुड़ा ले! (भज. 102:2) \q \s5 \v 3 क्योंकि तू मेरे लिये चट्टान और मेरा गढ़ है; \q इसलिए अपने नाम के निमित्त मेरी अगुआई कर, \q और मुझे आगे ले चल। \q \v 4 जो जाल उन्होंने मेरे लिये बिछाया है \q उससे तू मुझ को छुड़ा ले, \q क्योंकि तू ही मेरा दृढ़ गढ़ है। \q \s5 \v 5 मैं अपनी आत्मा को तेरे ही हाथ में सौंप देता हूँ; \q हे यहोवा, हे विश्वासयोग्य परमेश्‍वर, \q तूने मुझे मोल लेकर मुक्त किया है। (लूका 23:46, प्रेरि. 7:59, 1 पत. 4:19) \q \v 6 जो व्यर्थ मूर्तियों पर मन लगाते हैं, \q उनसे मैं घृणा करता हूँ; \q परन्तु मेरा भरोसा यहोवा ही पर है। (भज. 24:4) \q \v 7 मैं तेरी करुणा से मगन और आनन्दित हूँ, \q क्योंकि तूने मेरे दुःख पर दृष्टि की है, \q मेरे कष्ट के समय तूने मेरी सुधि ली है, \q \s5 \v 8 और तूने मुझे शत्रु के हाथ में पड़ने नहीं दिया; \q तूने मेरे पाँवों को चौड़े स्थान में खड़ा किया है। \q \v 9 हे यहोवा, मुझ पर दया कर क्योंकि मैं संकट में हूँ; \q मेरी आँखें वरन् मेरा प्राण \q और शरीर सब शोक के मारे घुले जाते हैं। \q \s5 \v 10 मेरा जीवन शोक के मारे \q और मेरी आयु कराहते-कराहते घट चली है; \q मेरा बल मेरे अधर्म के कारण जाता रहा, \q ओर मेरी हड्डियाँ घुल गई। \q \v 11 अपने सब विरोधियों के कारण मेरे पड़ोसियों \q में मेरी नामधराई हुई है, \q अपने जान-पहचानवालों के लिये डर का कारण हूँ; \q जो मुझ को सड़क पर देखते है वह मुझसे दूर भाग जाते हैं। \q \s5 \v 12 मैं मृतक के समान लोगों के मन से बिसर गया; \q मैं टूटे बर्तन के समान हो गया हूँ। \q \v 13 मैंने बहुतों के मुँह से अपनी निन्दा सुनी, \q चारों ओर भय ही भय है! \q जब उन्होंने मेरे विरुद्ध आपस में सम्मति की \q तब मेरे प्राण लेने की युक्ति की। \q \s5 \v 14 परन्तु हे यहोवा, मैंने तो तुझी पर भरोसा रखा है, \q मैंने कहा, “तू मेरा परमेश्‍वर है।” \q \v 15 मेरे दिन तेरे हाथ में है; \q तू मुझे मेरे शत्रुओं \q और मेरे सतानेवालों के हाथ से छुड़ा। \q \v 16 अपने दास पर अपने मुँह का प्रकाश चमका; \q अपनी करुणा से मेरा उद्धार कर। \q \s5 \v 17 हे यहोवा, मुझे लज्जित न होने दे \q क्योंकि मैंने तुझको पुकारा है; \q दुष्ट लज्जित हों \q और वे पाताल में चुपचाप पड़े रहें। \q \v 18 जो अहंकार और अपमान से धर्मी की निन्दा करते हैं, \q उनके झूठ बोलनेवाले मुँह बन्द किए जाएँ। (भज. 94:4, भज. 120:2) \q \s5 \v 19 आहा, तेरी भलाई क्या ही बड़ी है \q जो तूने अपने डरवैयों के लिये रख छोड़ी है, \q और अपने शरणागतों के लिये मनुष्यों के \q सामने प्रगट भी की है। \q \v 20 तू उन्हें दर्शन देने के गुप्त स्थान में* मनुष्यों की \q बुरी गोष्ठी से गुप्त रखेगा; \q तू उनको अपने मण्डप में झगड़े-रगड़े से \q छिपा रखेगा। \q \s5 \v 21 यहोवा धन्य है, \q क्योंकि उसने मुझे गढ़वाले नगर में रखकर \q मुझ पर अद्भुत करुणा की है। \q \v 22 मैंने तो घबराकर कहा था कि मैं यहोवा की \q दृष्टि से दूर हो गया। \q तो भी जब मैंने तेरी दुहाई दी, तब तूने मेरी \q गिड़गिड़ाहट को सुन लिया। \q \s5 \v 23 हे यहोवा के सब भक्तों, उससे प्रेम रखो! \q यहोवा विश्वासयोग्य लोगों की तो रक्षा करता है, \q परन्तु जो अहंकार करता है, \q उसको वह भली भाँति बदला देता है*। (भज. 97:10) \q \v 24 हे यहोवा पर आशा रखनेवालों, \q हियाव बाँधो और तुम्हारे हृदय दृढ़ रहें! (1 कुरि. 16:13) \s5 \c 32 \s1 क्षमा प्राप्ति की आशीष \d दाऊद का भजन मश्कील \b \q \v 1 क्या ही धन्य है वह जिसका अपराध \q क्षमा किया गया, \q और जिसका पाप ढाँपा गया हो*। (रोम. 4:7) \q \v 2 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म \q का यहोवा लेखा न ले, \q और जिसकी आत्मा में कपट न हो। (रोम. 4:8) \q \s5 \v 3 जब मैं चुप रहा \q तब दिन भर कराहते-कराहते मेरी हड्डियाँ \q पिघल गई। \q \v 4 क्योंकि रात-दिन मैं तेरे हाथ के नीचे दबा रहा; \q और मेरी तरावट धूपकाल की सी झुर्राहट \q बनती गई। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 5 जब मैंने अपना पाप तुझ पर प्रगट किया \q और अपना अधर्म न छिपाया, \q और कहा, “मैं यहोवा के सामने अपने अपराधों को मान लूँगा;” \q तब तूने मेरे अधर्म और पाप को क्षमा कर दिया। \qs (सेला) \qs (1 यूह.1:9) \q \v 6 इस कारण हर एक भक्त तुझ से ऐसे समय \q में प्रार्थना करे जब कि तू मिल सकता है*। \q निश्चय जब जल की बड़ी बाढ़ आए तो भी \q उस भक्त के पास न पहुँचेगी। \q \s5 \v 7 तू मेरे छिपने का स्थान है; \q तू संकट से मेरी रक्षा करेगा; \q तू मुझे चारों ओर से छुटकारे के गीतों से घेर \q लेगा। \qs (सेला) \qs \q \v 8 मैं तुझे बुद्धि दूँगा, और जिस मार्ग में तुझे \q चलना होगा उसमें तेरी अगुआई करूँगा; \q मैं तुझ पर कृपादृष्टि रखूँगा \q और सम्मति दिया करूँगा। \q \s5 \v 9 तुम घोड़े और खच्चर के समान न बनो जो समझ नहीं रखते, \q उनकी उमंग लगाम और रास से रोकनी पड़ती है, \q नहीं तो वे तेरे वश में नहीं आने के। \q \v 10 दुष्ट को तो बहुत पीड़ा होगी; \q परन्तु जो यहोवा पर भरोसा रखता है \q वह करुणा से घिरा रहेगा। \q \s5 \v 11 हे धर्मियों यहोवा के कारण आनन्दित \q और मगन हो, और हे सब सीधे मनवालों \q आनन्द से जयजयकार करो! \s5 \c 33 \s परमेश्‍वर की स्तुति का गीत \b \q \v 1 हे धर्मियों, यहोवा के कारण जयजयकार करो। \q क्योंकि धर्मी लोगों को स्तुति करना शोभा देता है। \q \v 2 वीणा बजा-बजाकर यहोवा का धन्यवाद करो, \q दस तारवाली सारंगी बजा-बजाकर \q उसका भजन गाओ। (इफि. 5:19) \q \v 3 उसके लिये नया गीत गाओ, \q जयजयकार के साथ भली भाँति बजाओ। (प्रका.14:3) \q \s5 \v 4 क्योंकि यहोवा का वचन सीधा है*; \q और उसका सब काम निष्पक्षता से होता है। \q \v 5 वह धार्मिकता और न्याय से प्रीति रखता है; \q यहोवा की करुणा से पृथ्वी भरपूर है। \q \v 6 आकाशमण्डल यहोवा के वचन से, \q और उसके सारे गण उसके मुँह की \q श्‍वास से बने। (इब्रा.11:3) \q \s5 \v 7 वह समुद्र का जल ढेर के समान इकट्ठा करता*; \q वह गहरे सागर को अपने भण्डार में रखता है। \q \v 8 सारी पृथ्वी के लोग यहोवा से डरें, \q जगत के सब निवासी उसका भय मानें! \q \v 9 क्योंकि जब उसने कहा, तब हो गया; \q जब उसने आज्ञा दी, \q तब वास्तव में वैसा ही हो गया। \q \s5 \v 10 यहोवा जाति-जाति की युक्ति को \q व्यर्थ कर देता है; \q वह देश-देश के लोगों की कल्पनाओं \q को निष्फल करता है। \q \v 11 यहोवा की योजना सर्वदा स्थिर रहेगी, \q उसके मन की कल्पनाएँ पीढ़ी से पीढ़ी \q तक बनी रहेंगी। \q \v 12 क्या ही धन्य है वह जाति जिसका परमेश्‍वर \q यहोवा है, \q और वह समाज जिसे उसने अपना निज भाग \q होने के लिये चुन लिया हो! \q \s5 \v 13 यहोवा स्वर्ग से दृष्टि करता है, \q वह सब मनुष्यों को निहारता है; \q \v 14 अपने निवास के स्थान से \q वह पृथ्वी के सब रहनेवालों को देखता है, \q \v 15 वही जो उन सभी के हृदयों को गढ़ता, \q और उनके सब कामों का विचार करता है। \q \s5 \v 16 कोई ऐसा राजा नहीं, जो सेना की \q बहुतायत के कारण बच सके; \q वीर अपनी बड़ी शक्ति के कारण छूट नहीं जाता। \q \v 17 विजय पाने के लिए घोड़ा व्यर्थ सुरक्षा है, \q वह अपने बड़े बल के द्वारा किसी को \q नहीं बचा सकता है। \q \s5 \v 18 देखो, यहोवा की दृष्टि उसके डरवैयों पर \q और उन पर जो उसकी करुणा की आशा रखते हैं, \q बनी रहती है, \q \v 19 कि वह उनके प्राण को मृत्यु से बचाए, \q और अकाल के समय उनको जीवित रखे*। \q \s5 \v 20 हम यहोवा की बाट जोहते हैं; \q वह हमारा सहायक और हमारी ढाल ठहरा है। \q \v 21 हमारा हृदय उसके कारण आनन्दित होगा, \q क्योंकि हमने उसके पवित्र नाम का भरोसा रखा है। \q \s5 \v 22 हे यहोवा, जैसी तुझ पर हमारी आशा है, \q वैसी ही तेरी करुणा भी हम पर हो। \s5 \c 34 \s1 परमेश्‍वर धर्मी का उद्धारकर्ता \d दाऊद का भजन जब वह अबीमेलेक के सामने बौरहा बना, और अबीमेलेक ने उसे निकाल दिया, और वह चला गया \b \q \v 1 मैं हर समय यहोवा को धन्य कहा करूँगा; \q उसकी स्तुति निरन्तर मेरे मुख से होती रहेगी। \q \s5 \v 2 मैं यहोवा पर घमण्ड करूँगा; \q नम्र लोग यह सुनकर आनन्दित होंगे। \q \v 3 मेरे साथ यहोवा की बड़ाई करो, \q और आओ हम मिलकर उसके नाम की स्तुति करें; \q \s5 \v 4 मैं यहोवा के पास गया, \q तब उसने मेरी सुन ली, \q और मुझे पूरी रीति से निर्भय किया। \q \v 5 जिन्होंने उसकी ओर दृष्टि की, \q उन्होंने ज्योति पाई; \q और उनका मुँह कभी काला न होने पाया। \q \v 6 इस दीन जन ने पुकारा तब यहोवा ने सुन लिया, \q और उसको उसके सब कष्टों से छुड़ा लिया। \q \s5 \v 7 यहोवा के डरवैयों के चारों ओर उसका दूत \q छावनी किए हुए उनको बचाता है। (इब्रा. 1:14, दान. 6: 22) \q \v 8 चखकर देखो* कि यहोवा कैसा भला है! \q क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो उसकी शरण लेता है। (1 पत. 2:3) \q \v 9 हे यहोवा के पवित्र लोगों, उसका भय मानो, \q क्योंकि उसके डरवैयों को किसी बात की घटी नहीं होती! \q \s5 \v 10 जवान सिंहों को तो घटी होती \q और वे भूखे भी रह जाते हैं; \q परन्तु यहोवा के खोजियों को किसी भली \q वस्तु की घटी न होगी। \q \v 11 हे बच्चों, आओ मेरी सुनो, \q मैं तुम को यहोवा का भय मानना सिखाऊँगा। \q \s5 \v 12 वह कौन मनुष्य है जो जीवन की इच्छा रखता, \q और दीर्घायु चाहता है ताकि भलाई देखे? \q \v 13 अपनी जीभ को बुराई से रोक रख, \q और अपने मुँह की चौकसी कर कि \q उससे छल की बात न निकले। (याकू. 1:26) \q \v 14 बुराई को छोड़ और भलाई कर; \q मेल को ढूँढ़ और उसी का पीछा कर। (इब्रा. 12:14) \q \s5 \v 15 यहोवा की आँखें धर्मियों पर लगी रहती हैं, \q और उसके कान भी उनकी दुहाई की \q ओर लगे रहते हैं। (यूह. 9:31) \q \v 16 यहोवा बुराई करनेवालों के विमुख रहता है, \q ताकि उनका स्मरण पृथ्वी पर से मिटा डाले। (1 पत. 3:10-12) \q \v 17 धर्मी दुहाई देते हैं और यहोवा सुनता है, \q और उनको सब विपत्तियों से छुड़ाता है। \q \s5 \v 18 यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है*, \q और पिसे हुओं का उद्धार करता है। \q \v 19 धर्मी पर बहुत सी विपत्तियाँ पड़ती तो हैं, \q परन्तु यहोवा उसको उन सबसे \q मुक्त करता है। (नीति. 24:16, 2 तीम. 3:11) \q \v 20 वह उसकी हड्डी-हड्डी की रक्षा करता है; \q और उनमें से एक भी टूटने नहीं पाता। (यूह. 19:36) \q \s5 \v 21 दुष्ट अपनी बुराई के द्वारा मारा जाएगा; \q और धर्मी के बैरी दोषी ठहरेंगे। \q \v 22 यहोवा अपने दासों का प्राण मोल लेकर बचा लेता है; \q और जितने उसके शरणागत हैं \q उनमें से कोई भी दोषी न ठहरेगा। \s5 \c 35 \s विजय के लिये प्रार्थना \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा, जो मेरे साथ मुकद्दमा लड़ते हैं, \q उनके साथ तू भी मुकद्दमा लड़; \q जो मुझसे युद्ध करते हैं, उनसे तू युद्ध कर। \q \v 2 ढाल और भाला लेकर मेरी सहायता करने को \q खड़ा हो। \q \v 3 बर्छी को खींच और मेरा पीछा करनेवालों के \q सामने आकर उनको रोक; \q और मुझसे कह, \q कि मैं तेरा उद्धार हूँ। \q \s5 \v 4 जो मेरे प्राण के ग्राहक हैं \q वे लज्जित और निरादर हों! \q जो मेरी हानि की कल्पना करते हैं, \q वे पीछे हटाए जाएँ और उनका मुँह काला हो! \q \v 5 वे वायु से उड़ जानेवाली भूसी के समान हों, \q और यहोवा का दूत उन्हें हाँकता जाए! \q \v 6 उनका मार्ग अंधियारा और फिसलाहा हो*, \q और यहोवा का दूत उनको खदेड़ता जाए। \q \s5 \v 7 क्योंकि अकारण उन्होंने मेरे लिये अपना \q जाल गड्ढे में बिछाया; \q अकारण ही उन्होंने मेरा प्राण लेने के \q लिये गड्ढा खोदा है। \q \v 8 अचानक उन पर विपत्ति आ पड़े! \q और जो जाल उन्होंने बिछाया है \q उसी में वे आप ही फँसे; \q और उसी विपत्ति में वे आप ही पड़ें! (रोम. 11:9,10, 1 थिस्स. 5:3) \q \s5 \v 9 परन्तु मैं यहोवा के कारण अपने \q मन में मगन होऊँगा, \q मैं उसके किए हुए उद्धार से हर्षित होऊँगा। \q \v 10 मेरी हड्डी-हड्डी कहेंगी, \q “हे यहोवा, तेरे तुल्य कौन है, \q जो दीन को बड़े-बड़े बलवन्तों से बचाता है, \q और लुटेरों से दीन दरिद्र लोगों की रक्षा करता है?” \q \s5 \v 11 अधर्मी साक्षी खड़े होते हैं; \q वे मुझ पर झूठा आरोप लगाते हैं। \q \v 12 वे मुझसे भलाई के बदले बुराई करते हैं, \q यहाँ तक कि मेरा प्राण ऊब जाता है। \q \s5 \v 13 जब वे रोगी थे तब तो मैं टाट पहने रहा*, \q और उपवास कर-करके दुःख उठाता रहा; \q मुझे मेरी प्रार्थना का उत्तर नहीं मिला। (अय्यू. 30:25, रोम. 12:15) \q \v 14 मैं ऐसी भावना रखता था कि मानो वे मेरे \q संगी या भाई हैं; जैसा कोई माता के लिये \q विलाप करता हो, वैसा ही मैंने शोक का \q पहरावा पहने हुए सिर झुकाकर शोक किया। \q \s5 \v 15 परन्तु जब मैं लँगड़ाने लगा तब वे \q लोग आनन्दित होकर इकट्ठे हुए, \q नीच लोग और जिन्हें मैं जानता भी न था \q वे मेरे विरुद्ध इकट्ठे हुए; वे मुझे लगातार फाड़ते रहे; \q \v 16 आदर के बिना वे मुझे ताना मारते है; \q वे मुझ पर दाँत पीसते हैं। (भज. 37:12) \q \s5 \v 17 हे प्रभु, तू कब तक देखता रहेगा? \q इस विपत्ति से, जिसमें उन्होंने मुझे \q डाला है मुझ को छुड़ा! \q जवान सिंहों से मेरे प्राण को बचा ले! \q \v 18 मैं बड़ी सभा में तेरा धन्यवाद करूँगा; \q बहुत लोगों के बीच मैं तेरी स्तुति करूँगा। \q \s5 \v 19 मेरे झूठ बोलनेवाले शत्रु मेरे विरुद्ध \q आनन्द न करने पाएँ, \q जो अकारण मेरे बैरी हैं, \q वे आपस में आँखों से इशारा न करने पाएँ। (यूह. 15:25, भज. 69:4) \q \v 20 क्योंकि वे मेल की बातें नहीं बोलते, \q परन्तु देश में जो चुपचाप रहते हैं, \q उनके विरुद्ध छल की कल्पनाएँ करते हैं। \q \s5 \v 21 और उन्होंने मेरे विरुद्ध मुँह पसार के कहा; \q “आहा, आहा, हमने अपनी आँखों से देखा है!” \q \v 22 हे यहोवा, तूने तो देखा है; चुप न रह! \q हे प्रभु, मुझसे दूर न रह! \q \v 23 उठ, मेरे न्याय के लिये जाग, \q हे मेरे परमेश्‍वर, हे मेरे प्रभु, \q मेरा मुकद्दमा निपटाने के लिये आ! \q \s5 \v 24 हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा, \q तू अपने धार्मिकता के अनुसार मेरा न्याय चुका; \q और उन्हें मेरे विरुद्ध आनन्द करने न दे! \q \v 25 वे मन में न कहने पाएँ, \q “आहा! हमारी तो इच्छा पूरी हुई!” \q वे यह न कहें, “हम उसे निगल गए हैं।” \q \v 26 जो मेरी हानि से आनन्दित होते हैं \q उनके मुँह लज्जा के मारे एक साथ काले हों! \q जो मेरे विरुद्ध बड़ाई मारते हैं* \q वह लज्जा और अनादर से ढँप जाएँ! \q \s5 \v 27 जो मेरे धर्म से प्रसन्‍न रहते हैं, \q वे जयजयकार और आनन्द करें, \q और निरन्तर करते रहें, यहोवा की बड़ाई हो, \q जो अपने दास के कुशल से प्रसन्‍न होता है! \q \v 28 तब मेरे मुँह से तेरे धर्म की चर्चा होगी, \q और दिन भर तेरी स्तुति निकलेगी। \s5 \c 36 \s परमेश्‍वर का प्रेम और मनुष्य की दुष्टता \d प्रधान बजानेवाले के लिये यहोवा के दास दाऊद का भजन \b \q \v 1 दुष्ट जन का अपराध उसके हृदय के भीतर कहता है; \q परमेश्‍वर का भय उसकी दृष्टि में नहीं है। (रोम. 3:18) \q \v 2 वह अपने अधर्म के प्रगट होने \q और घृणित ठहरने के विषय \q अपने मन में चिकनी चुपड़ी बातें विचारता है। \q \s5 \v 3 उसकी बातें अनर्थ और छल की हैं; \q उसने बुद्धि और भलाई के काम करने से \q हाथ उठाया है। \q \v 4 वह अपने बिछौने पर पड़े-पड़े \q अनर्थ की कल्पना करता है*; \q वह अपने कुमार्ग पर दृढ़ता से बना रहता है; \q बुराई से वह हाथ नहीं उठाता। \q \s5 \v 5 हे यहोवा, तेरी करुणा स्वर्ग में है, \q तेरी सच्चाई आकाशमण्डल तक पहुँची है। \q \v 6 तेरा धर्म ऊँचे पर्वतों के समान है, \q तेरा न्याय अथाह सागर के समान हैं; \q हे यहोवा, तू मनुष्य और पशु दोनों की \q रक्षा करता है। \q \s5 \v 7 हे परमेश्‍वर, तेरी करुणा कैसी अनमोल है! \q मनुष्य तेरे पंखो के तले शरण लेते हैं। \q \v 8 वे तेरे भवन के भोजन की \q बहुतायत से तृप्त होंगे, \q और तू अपनी सुख की नदी \q में से उन्हें पिलाएगा। \q \v 9 क्योंकि जीवन का सोता तेरे ही पास है*; \q तेरे प्रकाश के द्वारा हम प्रकाश पाएँगे। (यहू. 4:10, 14, प्रका. 21:6) \q \s5 \v 10 अपने जाननेवालों पर करुणा करता रह, \q और अपने धर्म के काम सीधे \q मनवालों में करता रह! \q \v 11 अहंकारी मुझ पर लात उठाने न पाए, \q और न दुष्ट अपने हाथ के \q बल से मुझे भगाने पाए। \q \v 12 वहाँ अनर्थकारी गिर पड़े हैं; \q वे ढकेल दिए गए, और फिर उठ न सकेंगे। \s5 \c 37 \s धर्मी की विरासत और दुष्टों का अन्त \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 कुकर्मियों के कारण मत कुढ़, \q कुटिल काम करनेवालों के विषय डाह न कर! \q \v 2 क्योंकि वे घास के समान झट कट जाएँगे, \q और हरी घास के समान मुर्झा जाएँगे। \q \s5 \v 3 यहोवा पर भरोसा रख, \q और भला कर; देश में बसा रह, \q और सच्चाई में मन लगाए रह। \q \v 4 यहोवा को अपने सुख का मूल जान, \q और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा। (मत्ती 6:33) \q \s5 \v 5 अपने मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़*; \q और उस पर भरोसा रख, \q वही पूरा करेगा। \q \v 6 और वह तेरा धर्म ज्योति के समान, \q और तेरा न्याय दोपहर के उजियाले के \q समान प्रगट करेगा। \q \s5 \v 7 यहोवा के सामने चुपचाप रह, \q और धीरज से उसकी प्रतिक्षा कर; \q उस मनुष्य के कारण न कुढ़, जिसके काम सफल होते हैं, \q और वह बुरी युक्तियों को निकालता है! \q \s5 \v 8 क्रोध से परे रह, \q और जलजलाहट को छोड़ दे! \q मत कुढ़, उससे बुराई ही निकलेगी। \q \v 9 क्योंकि कुकर्मी लोग काट डाले जाएँगे; \q और जो यहोवा की बाट जोहते हैं, \q वही पृथ्वी के अधिकारी होंगे। \q \v 10 थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं; \q और तू उसके स्थान को भलीं \q भाँति देखने पर भी उसको न पाएगा। \q \s5 \v 11 परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, \q और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएँगे। (मत्ती 5:5) \q \v 12 दुष्ट धर्मी के विरुद्ध बुरी युक्ति निकालता है, \q और उस पर दाँत पीसता है; \q \v 13 परन्तु प्रभु उस पर हँसेगा, \q क्योंकि वह देखता है कि उसका दिन आनेवाला है। \q \s5 \v 14 दुष्ट लोग तलवार खींचे \q और धनुष बढ़ाए हुए हैं, \q ताकि दीन दरिद्र को गिरा दें, \q और सीधी चाल चलनेवालों को वध करें। \q \v 15 उनकी तलवारों से उन्हीं के हृदय छिदेंगे, \q और उनके धनुष तोड़े जाएँगे। \q \s5 \v 16 धर्मी का थोड़ा सा धन दुष्टों के \q बहुत से धन से उत्तम है। \q \v 17 क्योंकि दुष्टों की भुजाएँ तो तोड़ी जाएँगी; \q परन्तु यहोवा धर्मियों को सम्भालता है। \q \s5 \v 18 यहोवा खरे लोगों की आयु की सुधि रखता है, \q और उनका भाग सदैव बना रहेगा। \q \v 19 विपत्ति के समय, वे लज्जित न होंगे, \q और अकाल के दिनों में वे तृप्त रहेंगे। \q \s5 \v 20 दुष्ट लोग नाश हो जाएँगे; \q और यहोवा के शत्रु खेत की सुथरी घास \q के समान नाश होंगे, \q वे धुएँ के समान लुप्त‍ हो जाएँगे। \q \v 21 दुष्ट ऋण लेता है, \q और भरता नहीं परन्तु धर्मी \q अनुग्रह करके दान देता है; \q \s5 \v 22 क्योंकि जो उससे आशीष पाते हैं \q वे तो पृथ्वी के अधिकारी होंगे, \q परन्तु जो उससे श्रापित होते हैं, \q वे नाश हो जाएँगे। \q \v 23 मनुष्य की गति यहोवा की \q ओर से दृढ़ होती है*, \q और उसके चलन से वह प्रसन्‍न रहता है; \q \v 24 चाहे वह गिरे तो भी पड़ा न रह जाएगा, \q क्योंकि यहोवा उसका हाथ थामे रहता है। \q \s5 \v 25 मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे \q तक देखता आया हूँ; \q परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, \q और न उसके वंश को टुकड़े माँगते देखा है। \q \v 26 वह तो दिन भर अनुग्रह कर-करके ऋण देता है, \q और उसके वंश पर आशीष फलती रहती है। \q \v 27 बुराई को छोड़ भलाई कर; \q और तू सर्वदा बना रहेगा। \q \s5 \v 28 क्योंकि यहोवा न्याय से प्रीति रखता; \q और अपने भक्तों को न तजेगा। \q उनकी तो रक्षा सदा होती है, \q परन्तु दुष्टों का वंश काट डाला जाएगा। \q \v 29 धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, \q और उसमें सदा बसे रहेंगे। \q \v 30 धर्मी अपने मुँह से बुद्धि की बातें करता, \q और न्याय का वचन कहता है। \q \s5 \v 31 उसके परमेश्‍वर की व्यवस्था उसके \q हृदय में बनी रहती है, \q उसके पैर नहीं फिसलते। \q \v 32 दुष्ट धर्मी की ताक में रहता है। \q और उसके मार डालने का यत्न करता है। \q \v 33 यहोवा उसको उसके हाथ में न छोड़ेगा, \q और जब उसका विचार किया जाए \q तब वह उसे दोषी न ठहराएगा। \q \s5 \v 34 यहोवा की बाट जोहता रह, \q और उसके मार्ग पर बना रह, \q और वह तुझे बढ़ाकर पृथ्वी का अधिकारी कर देगा; \q जब दुष्ट काट डाले जाएँगे, तब तू देखेगा। \q \s5 \v 35 मैंने दुष्ट को बड़ा पराक्रमी \q और ऐसा फैलता हुए देखा, \q जैसा कोई हरा पेड़* \q अपने निज भूमि में फैलता है। \q \v 36 परन्तु जब कोई उधर से गया तो \q देखा कि वह वहाँ है ही नहीं; \q और मैंने भी उसे ढूँढ़ा, \q परन्तु कहीं न पाया। (भज. 37:10) \q \s5 \v 37 खरे मनुष्य पर दृष्टि कर \q और धर्मी को देख, \q क्योंकि मेल से रहनेवाले पुरुष का \q अन्तफल अच्छा है। (यशा. 32:17) \q \v 38 परन्तु अपराधी एक साथ सत्यानाश किए जाएँगे; \q दुष्टों का अन्तफल सर्वनाश है। \q \s5 \v 39 धर्मियों की मुक्ति यहोवा की \q ओर से होती है; \q संकट के समय वह उनका दृढ़ गढ़ है। \q \v 40 यहोवा उनकी सहायता करके उनको बचाता है; \q वह उनको दुष्टों से छुड़ाकर उनका उद्धार करता है, \q इसलिए कि उन्होंने उसमें अपनी शरण ली है। \s5 \c 38 \s पीड़ित मनुष्य की प्रार्थना यादगार के लिये \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा क्रोध में आकर मुझे झिड़क न दे, \q और न जलजलाहट में आकर मेरी ताड़ना कर! \q \v 2 क्योंकि तेरे तीर मुझ में लगे हैं, \q और मैं तेरे हाथ के नीचे दबा हूँ। \q \s5 \v 3 तेरे क्रोध के कारण मेरे शरीर में कुछ भी \q आरोग्यता नहीं; \q और मेरे पाप के कारण मेरी हड्डियों में कुछ \q भी चैन नहीं। \q \v 4 क्योंकि मेरे अधर्म के कामों में \q मेरा सिर डूब गया, \q और वे भारी बोझ के समान मेरे सहने से \q बाहर हो गए हैं। \q \s5 \v 5 मेरी मूर्खता के पाप के कारण मेरे घाव सड़ गए \q और उनसे दुर्गन्‍ध आती हैं*। \q \v 6 मैं बहुत दुःखी हूँ और झुक गया हूँ; \q दिन भर मैं शोक का पहरावा \q पहने हुए चलता-फिरता हूँ। \q \s5 \v 7 क्योंकि मेरी कमर में जलन है, \q और मेरे शरीर में आरोग्यता नहीं। \q \v 8 मैं निर्बल और बहुत ही चूर हो गया हूँ; \q मैं अपने मन की घबराहट से कराहता हूँ। \q \s5 \v 9 हे प्रभु मेरी सारी अभिलाषा तेरे सम्मुख है, \q और मेरा कराहना तुझ से छिपा नहीं। \q \v 10 मेरा हृदय धड़कता है, \q मेरा बल घटता जाता है; \q और मेरी आँखों की ज्योति भी \q मुझसे जाती रही। \q \s5 \v 11 मेरे मित्र और मेरे संगी \q मेरी विपत्ति में अलग हो गए, \q और मेरे कुटुम्बी भी दूर जा खड़े हुए। (भज. 31:11, लूका 23:49) \q \v 12 मेरे प्राण के गाहक मेरे लिये जाल बिछाते हैं, \q और मेरी हानि का यत्न करनेवाले \q दुष्टता की बातें बोलते, \q और दिन भर छल की युक्ति सोचते हैं। \q \s5 \v 13 परन्तु मैं बहरे के समान सुनता ही नहीं, \q और मैं गूँगे के समान मुँह नहीं खोलता। \q \v 14 वरन् मैं ऐसे मनुष्य के तुल्य हूँ \q जो कुछ नहीं सुनता, \q और जिसके मुँह से विवाद की कोई \q बात नहीं निकलती। \q \s5 \v 15 परन्तु हे यहोवा, \q मैंने तुझ ही पर अपनी आशा लगाई है; \q हे प्रभु, मेरे परमेश्‍वर, \q तू ही उत्तर देगा। \q \v 16 क्योंकि मैंने कहा, \q “ऐसा न हो कि वे मुझ पर आनन्द करें; \q जब मेरा पाँव फिसल जाता है, \q तब मुझ पर अपनी बड़ाई मारते हैं।” \q \s5 \v 17 क्योंकि मैं तो अब गिरने ही पर हूँ; \q और मेरा शोक निरन्तर मेरे सामने है*। \q \v 18 इसलिए कि मैं तो अपने अधर्म को प्रगट करूँगा, \q और अपने पाप के कारण खेदित रहूँगा। \q \s5 \v 19 परन्तु मेरे शत्रु अनगिनत हैं, \q और मेरे बैरी बहुत हो गए हैं। \q \v 20 जो भलाई के बदले में बुराई करते हैं, \q वह भी मेरे भलाई के पीछे चलने के \q कारण मुझसे विरोध करते हैं। \q \s5 \v 21 हे यहोवा, मुझे छोड़ न दे! \q हे मेरे परमेश्‍वर, मुझसे दूर न हो! \q \v 22 हे यहोवा, हे मेरे उद्धारकर्ता, \q मेरी सहायता के लिये फुर्ती कर! \s5 \c 39 \s बुद्धि और क्षमा के लिये प्रार्थना \d यदूतून प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन \b \q \v 1 मैंने कहा, “मैं अपनी चालचलन में चौकसी करूँगा, \q ताकि मेरी जीभ से पाप न हो; \q जब तक दुष्ट मेरे सामने है, \q तब तक मैं लगाम लगाए अपना मुँह बन्द किए रहूँगा।” (याकू. 1:26) \q \s5 \v 2 मैं मौन धारण कर गूँगा बन गया, \q और भलाई की ओर से भी चुप्पी साधे रहा; \q और मेरी पीड़ा बढ़ गई, \q \v 3 मेरा हृदय अन्दर ही अन्दर जल रहा था*। \q सोचते-सोचते आग भड़क उठी; \q तब मैं अपनी जीभ से बोल उठा; \q \s5 \v 4 “हे यहोवा, ऐसा कर कि मेरा अन्त \q मुझे मालूम हो जाए, और यह भी \q कि मेरी आयु के दिन कितने हैं; \q जिससे मैं जान लूँ कि कैसा अनित्य हूँ! \q \v 5 देख, तूने मेरी आयु बालिश्त भर की रखी है, \q और मेरा जीवनकाल तेरी दृष्टि में कुछ है ही नहीं। \q सचमुच सब मनुष्य कैसे ही स्थिर \q क्यों न हों तो भी व्यर्थ ठहरे हैं। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 6 सचमुच मनुष्य छाया सा चलता-फिरता है; \q सचमुच वे व्यर्थ घबराते हैं; \q वह धन का संचय तो करता है \q परन्तु नहीं जानता कि उसे कौन लेगा! \q \v 7 “अब हे प्रभु, मैं किस बात की बाट जोहूँ? \q मेरी आशा तो तेरी ओर लगी है। \q \s5 \v 8 मुझे मेरे सब अपराधों के बन्धन से छुड़ा ले। \q मूर्ख मेरी निन्दा न करने पाए। \q \v 9 मैं गूँगा बन गया* और मुँह न खोला; \q क्योंकि यह काम तू ही ने किया है। \q \s5 \v 10 तूने जो विपत्ति मुझ पर डाली है \q उसे मुझसे दूर कर दे, \q क्योंकि मैं तो तेरे हाथ की मार से \q भस्म हुआ जाता हूँ। \q \v 11 जब तू मनुष्य को अधर्म के कारण \q डाँट-डपटकर ताड़ना देता है; \q तब तू उसकी सामर्थ्य को पतंगे के समान नाश करता है; \q सचमुच सब मनुष्य वृथाभिमान करते हैं। \q \s5 \v 12 “हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन, और मेरी दुहाई पर कान लगा; \q मेरा रोना सुनकर शान्त न रह! \q क्योंकि मैं तेरे संग एक परदेशी यात्री के समान रहता हूँ, \q और अपने सब पुरखाओं के समान परदेशी हूँ। (इब्रा.11:13) \q \v 13 आह! इससे पहले कि मैं यहाँ से चला जाऊँ \q और न रह जाऊँ, \q मुझे बचा ले जिससे मैं प्रदीप्त जीवन प्राप्त करूँ!” \s5 \c 40 \s1 स्तुति का एक गीत \d प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन \b \q \v 1 मैं धीरज से यहोवा की बाट जोहता रहा; \q और उसने मेरी ओर झुककर मेरी दुहाई सुनी। \q \v 2 उसने मुझे सत्यानाश के गड्ढे \q और दलदल की कीच में से उबारा*, \q और मुझ को चट्टान पर खड़ा करके \q मेरे पैरों को दृढ़ किया है। \q \s5 \v 3 उसने मुझे एक नया गीत सिखाया \q जो हमारे परमेश्‍वर की स्तुति का है। \q बहुत लोग यह देखेंगे और उसकी महिमा करेंगे, \q और यहोवा पर भरोसा रखेंगे। (प्रका. 5:9, प्रका. 14:3, भज. 52:6) \q \v 4 क्या ही धन्य है वह पुरुष, \q जो यहोवा पर भरोसा करता है, \q और अभिमानियों और मिथ्या की \q ओर मुड़नेवालों की ओर मुँह न फेरता हो। \q \s5 \v 5 हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा, तूने बहुत से काम किए हैं! \q जो आश्चर्यकर्मों और विचार तू हमारे लिये करता है \q वह बहुत सी हैं; तेरे तुल्य कोई नहीं! \q मैं तो चाहता हूँ कि खोलकर उनकी चर्चा करूँ, परन्तु उनकी गिनती नहीं हो सकती। \q \v 6 मेलबलि और अन्नबलि से तू प्रसन्‍न नहीं होता \q तूने मेरे कान खोदकर खोले हैं। \q होमबलि और पापबलि तूने नहीं चाहा*। \q \s5 \v 7 तब मैंने कहा, \q “देख, मैं आया हूँ; क्योंकि पुस्तक में \q मेरे विषय ऐसा ही लिखा हुआ है। \q \v 8 हे मेरे परमेश्‍वर, \q मैं तेरी इच्छा पूरी करने से प्रसन्‍न हूँ; \q और तेरी व्यवस्था मेरे अन्तःकरण में बसी है।” (इब्रा. 10:5-7) \q \v 9 मैंने बड़ी सभा में धार्मिकता के शुभ समाचार का प्रचार किया है; \q देख, मैंने अपना मुँह बन्द नहीं किया हे यहोवा, \q तू इसे जानता है। \q \s5 \v 10 मैंने तेरी धार्मिकता मन ही में नहीं रखा; \q मैंने तेरी सच्चाई \q और तेरे किए हुए उद्धार की चर्चा की है; \q मैंने तेरी करुणा और सत्यता बड़ी सभा से गुप्त नहीं रखी। \q \v 11 हे यहोवा, तू भी अपनी बड़ी दया मुझ पर से न हटा ले, \q तेरी करुणा और सत्यता से निरन्तर \q मेरी रक्षा होती रहे! \q \s5 \v 12 क्योंकि मैं अनगिनत बुराइयों से घिरा हुआ हूँ; \q मेरे अधर्म के कामों ने मुझे आ पकड़ा \q और मैं दृष्टि नहीं उठा सकता; \q वे गिनती में मेरे सिर के बालों से भी अधिक हैं; इसलिए मेरा हृदय टूट गया। \q \v 13 हे यहोवा, कृपा करके मुझे छुड़ा ले! \q हे यहोवा, मेरी सहायता के लिये फुर्ती कर! \q \s5 \v 14 जो मेरे प्राण की खोज में हैं, \q वे सब लज्जित हों; और उनके मुँह काले हों \q और वे पीछे हटाए और निरादर किए जाएँ \q जो मेरी हानि से प्रसन्‍न होते हैं। \q \v 15 जो मुझसे, “आहा, आहा,” कहते हैं, \q वे अपनी लज्जा के मारे विस्मित हों। \q \s5 \v 16 परन्तु जितने तुझे ढूँढ़ते हैं, \q वह सब तेरे कारण हर्षित \q और आनन्दित हों; जो तेरा किया हुआ उद्धार चाहते हैं, \q वे निरन्तर कहते रहें, “यहोवा की बड़ाई हो!” \q \v 17 मैं तो दीन और दरिद्र हूँ, \q तो भी प्रभु मेरी चिन्ता करता है। \q तू मेरा सहायक और छुड़ानेवाला है; \q हे मेरे परमेश्‍वर विलम्ब न कर। \s5 \c 41 \s धर्मीजन की पीड़ा और आशीर्वाद \d प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन \b \q \v 1 क्या ही धन्य है वह, जो कंगाल की सुधि रखता है! \q विपत्ति के दिन यहोवा उसको बचाएगा। \q \v 2 यहोवा उसकी रक्षा करके उसको जीवित रखेगा, \q और वह पृथ्वी पर भाग्यवान होगा। \q तू उसको शत्रुओं की इच्छा पर न छोड़। \q \v 3 जब वह व्याधि के मारे शय्या पर पड़ा हो*, \q तब यहोवा उसे सम्भालेगा; \q तू रोग में उसके पूरे बिछौने को उलटकर ठीक करेगा। \q \s5 \v 4 मैंने कहा, “हे यहोवा, मुझ पर दया कर; \q मुझ को चंगा कर, \q क्योंकि मैंने तो तेरे विरुद्ध पाप किया है!” \q \v 5 मेरे शत्रु यह कहकर मेरी बुराई करते हैं \q “वह कब मरेगा, और उसका नाम कब मिटेगा?” \q \v 6 और जब वह मुझसे मिलने को आता है, \q तब वह व्यर्थ बातें बकता है, \q जब कि उसका मन अपने अन्दर अधर्म की बातें संचय करता है; \q और बाहर जाकर उनकी चर्चा करता है। \q \s5 \v 7 मेरे सब बैरी मिलकर मेरे विरुद्ध कानाफूसी करते हैं; \q वे मेरे विरुद्ध होकर मेरी हानि की कल्पना करते हैं। \q \v 8 वे कहते हैं कि इसे तो कोई बुरा रोग लग गया है; \q अब जो यह पड़ा है, तो फिर कभी उठने का नहीं*। \q \v 9 मेरा परम मित्र जिस पर मैं भरोसा रखता था, \q जो मेरी रोटी खाता था, \q उसने भी मेरे विरुद्ध लात उठाई है। (2 शमू. 15:12, यूह. 13:18, प्रेरि. 1:16) \q \s5 \v 10 परन्तु हे यहोवा, तू मुझ पर दया करके \q मुझ को उठा ले कि मैं उनको बदला दूँ। \q \v 11 मेरा शत्रु जो मुझ पर जयवन्त नहीं हो पाता, \q इससे मैंने जान लिया है कि तू मुझसे प्रसन्‍न है। \q \v 12 और मुझे तो तू खराई से सम्भालता, \q और सर्वदा के लिये अपने सम्मुख स्थिर करता है। \q \s5 \v 13 इस्राएल का परमेश्‍वर यहोवा \q आदि से अनन्तकाल तक धन्य है \q आमीन, फिर आमीन। (लूका 1:68, भजन 106:48) \s5 \c 42 \ms1 दूसरा भाग \mr भजन 42—72 \s परमेश्‍वर के लिये लालसा \d प्रधान बजानेवाले के लिये कोरहवंशियों का मश्कील \b \q \v 1 जैसे हिरनी नदी के जल के लिये हाँफती है, \q वैसे ही, हे परमेश्‍वर, मैं तेरे लिये हाँफता हूँ। \q \v 2 जीविते परमेश्‍वर, हाँ परमेश्‍वर, का मैं प्यासा हूँ, \q मैं कब जाकर परमेश्‍वर को अपना मुँह दिखाऊँगा? (भज. 63:1, प्रका. 22:4) \q \s5 \v 3 मेरे आँसू दिन और रात मेरा आहार हुए हैं; \q और लोग दिन भर मुझसे कहते रहते हैं, \q तेरा परमेश्‍वर कहाँ है? \q \v 4 मैं कैसे भीड़ के संग जाया करता था, \q मैं जयजयकार और धन्यवाद के साथ \q उत्सव करनेवाली भीड़ के बीच में परमेश्‍वर के भवन* \q को धीरे-धीरे जाया करता था; यह स्मरण करके मेरा प्राण शोकित हो जाता है। \q \s5 \v 5 हे मेरे प्राण, तू क्यों गिरा जाता है? \q और तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? \q परमेश्‍वर पर आशा लगाए रह; \q क्योंकि मैं उसके दर्शन से उद्धार पाकर फिर उसका धन्यवाद करूँगा। (मत्ती 26:38, मर. 14:34, यूह. 12:27) \q \v 6 हे मेरे परमेश्‍वर; मेरा प्राण मेरे भीतर गिरा जाता है, \q इसलिए मैं यरदन के पास के देश से और हेर्मोन \q के पहाड़ों और मिसगार की पहाड़ी के ऊपर \q से तुझे स्मरण करता हूँ। \q \s5 \v 7 तेरी जलधाराओं का शब्द सुनकर जल, \q जल को पुकारता है*; तेरी सारी तरंगों \q और लहरों में मैं डूब गया हूँ। \q \v 8 तो भी दिन को यहोवा अपनी शक्ति \q और करुणा प्रगट करेगा; \q और रात को भी मैं उसका गीत गाऊँगा, \q और अपने जीवनदाता परमेश्‍वर से प्रार्थना करूँगा। \q \s5 \v 9 मैं परमेश्‍वर से जो मेरी चट्टान है कहूँगा, \q “तू मुझे क्यों भूल गया? \q मैं शत्रु के अत्याचार के मारे क्यों शोक का \q पहरावा पहने हुए चलता-फिरता हूँ?” \q \v 10 मेरे सतानेवाले जो मेरी निन्दा करते हैं, \q मानो उससे मेरी हड्डियाँ चूर-चूर होती हैं, \q मानो कटार से छिदी जाती हैं, \q क्योंकि वे दिन भर मुझसे कहते रहते हैं, तेरा परमेश्‍वर कहाँ है? \q \s5 \v 11 हे मेरे प्राण तू क्यों गिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? \q परमेश्‍वर पर भरोसा रख; \q क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्‍वर है, \q मैं फिर उसका धन्यवाद करूँगा। (भज. 43:5, मर. 14:34, यूह. 12:27) \s5 \c 43 \s संकट के समय प्रार्थना \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर, मेरा न्याय चुका* \q और विधर्मी जाति से मेरा मुकद्दमा लड़; \q मुझ को छली और कुटिल पुरुष से बचा। \q \v 2 क्योंकि तू मेरा सामर्थी परमेश्‍वर है, \q तूने क्यों मुझे त्याग दिया है? \q मैं शत्रु के अत्याचार के मारे शोक का \q पहरावा पहने हुए क्यों फिरता रहूँ? \q \s5 \v 3 अपने प्रकाश और अपनी सच्चाई को भेज; \q वे मेरी अगुआई करें, \q वे ही मुझ को तेरे पवित्र पर्वत* \q पर और तेरे निवास स्थान में पहुँचाए! \q \v 4 तब मैं परमेश्‍वर की वेदी के पास जाऊँगा, \q उस परमेश्‍वर के पास जो मेरे अति \q आनन्द का कुण्ड है; और हे परमेश्‍वर, \q हे मेरे परमेश्‍वर, मैं वीणा बजा-बजाकर तेरा धन्यवाद करूँगा। \q \s5 \v 5 हे मेरे प्राण तू क्यों गिरा जाता है? \q तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? \q परमेश्‍वर पर आशा रख, क्योंकि वह मेरे मुख की चमक \q और मेरा परमेश्‍वर है; मैं फिर उसका धन्यवाद करूँगा। \s5 \c 44 \s इस्राएल की शिकायत \d प्रधान बजानेवाले के लिये कोरहवंशियों का मश्कील \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर, हमने अपने कानों से सुना, \q हमारे बाप-दादों ने हम से वर्णन किया है, \q कि तूने उनके दिनों में \q और प्राचीनकाल में क्या-क्या काम किए हैं। \q \v 2 तूने अपने हाथ से जातियों को निकाल दिया, \q और इनको बसाया; \q तूने देश-देश के लोगों को दुःख दिया, \q और इनको चारों ओर फैला दिया; \q \s5 \v 3 क्योंकि वे न तो अपनी तलवार के \q बल से इस देश के अधिकारी हुए, \q और न अपने बाहुबल से; परन्तु तेरे दाहिने हाथ \q और तेरी भुजा और तेरे प्रसन्‍न मुख के कारण जयवन्त हुए; क्योंकि तू उनको चाहता था। \q \v 4 हे परमेश्‍वर, तू ही हमारा महाराजा है, \q तू याकूब के उद्धार की आज्ञा देता है। \q \s5 \v 5 तेरे सहारे से हम अपने द्रोहियों को \q ढकेलकर गिरा देंगे; \q तेरे नाम के प्रताप से हम \q अपने विरोधियों को रौंदेंगे। \q \v 6 क्योंकि मैं अपने धनुष पर भरोसा न रखूँगा, \q और न अपनी तलवार के बल से बचूँगा। \q \s5 \v 7 परन्तु तू ही ने हमको द्रोहियों से बचाया है, \q और हमारे बैरियों को निराश \q और लज्जित किया है। \q \v 8 हम परमेश्‍वर की बड़ाई \q दिन भर करते रहते हैं, \q और सदैव तेरे नाम का \q धन्यवाद करते रहेंगे। (सेला) \q \s5 \v 9 तो भी तूने अब हमको त्याग दिया \q और हमारा अनादर किया है, \q और हमारे दलों के साथ आगे नहीं जाता। \q \v 10 तू हमको शत्रु के सामने से हटा देता है, \q और हमारे बैरी मनमाने लूट मार करते हैं। \q \v 11 तूने हमें कसाई की भेड़ों के \q समान कर दिया है, \q और हमको अन्यजातियों में \q तितर-बितर किया है। \q \s5 \v 12 तू अपनी प्रजा को सेंत-मेंत बेच डालता है, \q परन्तु उनके मोल से तू धनी नहीं होता। \q \v 13 तू हमारे पड़ोसियों से हमारी \q नामधराई कराता है, \q और हमारे चारों ओर के रहनेवाले \q हम से हँसी ठट्ठा करते हैं। \q \v 14 तूने हमको अन्यजातियों के बीच \q में अपमान ठहराया है, \q और देश-देश के लोग हमारे \q कारण सिर हिलाते हैं। \q \s5 \v 15 दिन भर हमें तिरस्कार सहना पड़ता है*, \q और कलंक लगाने \q और निन्दा करनेवाले के बोल से, \q \v 16 शत्रु और बदला लेनेवालों के कारण, \q बुरा-भला कहनेवालों \q और निन्दा करनेवालों के कारण। \q \v 17 यह सब कुछ हम पर बिता तो \q भी हम तुझे नहीं भूले, \q न तेरी वाचा के विषय विश्वासघात किया है। \q \s5 \v 18 हमारे मन न बहके, \q न हमारे पैर तरी राह से मुड़ें; \q \v 19 तो भी तूने हमें गीदड़ों के स्थान में पीस डाला, \q और हमको घोर अंधकार में छिपा दिया है। \q \v 20 यदि हम अपने परमेश्‍वर का नाम भूल जाते, \q या किसी पराए देवता की ओर अपने हाथ फैलाते, \q \v 21 तो क्या परमेश्‍वर इसका विचार न करता? \q क्योंकि वह तो मन की गुप्त बातों को जानता है। \q \v 22 परन्तु हम दिन भर तेरे निमित्त \q मार डाले जाते हैं, \q और उन भेड़ों के समान समझे \q जाते हैं जो वध होने पर हैं। (रोम. 8:36) \q \s5 \v 23 हे प्रभु, जाग! तू क्यों सोता है? \q उठ! हमको सदा के लिये त्याग न दे! \q \v 24 तू क्यों अपना मुँह छिपा लेता है*? \q और हमारा दुःख और सताया जाना भूल जाता है? \q \s5 \v 25 हमारा प्राण मिट्टी से लग गया; \q हमारा शरीर भूमि से सट गया है। \q \v 26 हमारी सहायता के लिये उठ खड़ा हो। \q और अपनी करुणा के निमित्त हमको छुड़ा ले। \s5 \c 45 \s विवाह गीत \d प्रधान बजानेवाले के लिये शोशन्नीम में कोरहवंशियों का मश्कील प्रेम प्रीति का गीत \b \q \v 1 मेरा हृदय एक सुन्दर विषय की उमंग से \q उमड़ रहा है, \q जो बात मैंने राजा के विषय रची है उसको \q सुनाता हूँ; मेरी जीभ निपुण लेखक की लेखनी बनी है। \q \v 2 तू मनुष्य की सन्तानों में परम सुन्दर है; \q तेरे होंठों में अनुग्रह भरा हुआ है; \q इसलिए परमेश्‍वर ने तुझे सदा के लिये आशीष \q दी है। (लूका 4:22, इब्रा. 1:3,4) \q \s5 \v 3 हे वीर, तू अपनी तलवार को जो तेरा वैभव \q और प्रताप है अपनी कटि पर बाँध*! \q \v 4 सत्यता, नम्रता और धार्मिकता के निमित्त अपने \q ऐश्वर्य और प्रताप पर सफलता से सवार हो; \q तेरा दाहिना हाथ तुझे भयानक काम सिखाए! \q \s5 \v 5 तेरे तीर तो तेज हैं, \q तेरे सामने देश-देश के लोग गिरेंगे; \q राजा के शत्रुओं के हृदय उनसे छिदेंगे। \q \v 6 हे परमेश्‍वर, तेरा सिंहासन सदा सर्वदा बना \q रहेगा; \q तेरा राजदण्ड न्याय का है। \q \v 7 तूने धार्मिकता से प्रीति और दुष्टता से बैर रखा है। \q इस कारण परमेश्‍वर ने हाँ, तेरे परमेश्‍वर ने \q तुझको तेरे साथियों से अधिक हर्ष के तेल \q से अभिषेक किया है। (इब्रा. 1:8,9) \q \s5 \v 8 तेरे सारे वस्त्र गन्धरस, अगर, और तेज से \q सुगन्धित हैं, \q तू हाथी दाँत के मन्दिरों में तारवाले बाजों के \q कारण आनन्दित हुआ है। \q \v 9 तेरी प्रतिष्ठित स्त्रियों में राजकुमारियाँ भी हैं; \q तेरी दाहिनी ओर पटरानी, ओपीर के कुन्दन \q से विभूषित खड़ी है। \q \s5 \v 10 हे राजकुमारी सुन, और कान लगाकर ध्यान दे; \q अपने लोगों और अपने पिता के घर को भूल जा; \q \v 11 और राजा तेरे रूप की चाह करेगा। \q क्योंकि वह तो तेरा प्रभु है, तू उसे दण्डवत् कर। \q \s5 \v 12 सोर की राजकुमारी भी भेंट करने के लिये \q उपस्थित होगी, \q प्रजा के धनवान लोग तुझे प्रसन्‍न करने का \q यत्न करेंगे। \q \v 13 राजकुमारी महल में अति शोभायमान है, \q उसके वस्त्र में सुनहले बूटे कढ़े हुए हैं; \q \s5 \v 14 वह बूटेदार वस्त्र पहने हुए राजा के पास \q पहुँचाई जाएगी। \q जो कुमारियाँ उसकी सहेलियाँ हैं, \q वे उसके पीछे-पीछे चलती हुई तेरे पास पहुँचाई जाएँगी। \q \v 15 वे आनन्दित और मगन होकर पहुँचाई जाएँगी*, \q और वे राजा के महल में प्रवेश करेंगी। \q \s5 \v 16 तेरे पितरों के स्थान पर तेरे सन्तान होंगे; \q जिनको तू सारी पृथ्वी पर हाकिम ठहराएगा। \q \v 17 मैं ऐसा करूँगा, कि तेरे नाम की चर्चा पीढ़ी \q से पीढ़ी तक होती रहेगी; \q इस कारण देश-देश के लोग सदा सर्वदा तेरा \q धन्यवाद करते रहेंगे। \s5 \c 46 \s1 परमेश्‍वर हमारा शरणस्थान \d प्रधान बजानेवाले के लिये कोरहवंशियों का, अलामोत की राग पर एक गीत \b \q \v 1 परमेश्‍वर हमारा शरणस्थान और बल है, \q संकट में अति सहज से मिलनेवाला सहायक*। \q \v 2 इस कारण हमको कोई भय नहीं चाहे पृथ्वी \q उलट जाए, \q और पहाड़ समुद्र के बीच में डाल दिए जाएँ; \q \v 3 चाहे समुद्र गरजें और फेन उठाए, \q और पहाड़ उसकी बाढ़ से काँप उठे। \qs (सेला) \qs (लूका 21:25, मत्ती 7:25) \q \s5 \v 4 एक नदी है जिसकी नहरों से परमेश्‍वर के \q नगर में \q अर्थात् परमप्रधान के पवित्र निवास भवन में \q आनन्द होता है। \q \v 5 परमेश्‍वर उस नगर के बीच में है, वह कभी \q टलने का नहीं; \q पौ फटते ही परमेश्‍वर उसकी सहायता करता है। \q \s5 \v 6 जाति-जाति के लोग झल्ला उठे, राज्य-राज्य \q के लोग डगमगाने लगे; \q वह बोल उठा, और पृथ्वी पिघल गई। (प्रका. 11:18, भज. 2:1) \q \v 7 सेनाओं का यहोवा हमारे संग है; \q याकूब का परमेश्‍वर हमारा ऊँचा गढ़ है। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 8 आओ, यहोवा के महाकर्म देखो, \q कि उसने पृथ्वी पर कैसा-कैसा उजाड़ \q किया है। \q \v 9 वह पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयों को मिटाता है; \q वह धनुष को तोड़ता, और भाले को दो टुकड़े कर डालता है, \q और रथों को आग में झोंक देता है! \q \s5 \v 10 “चुप हो जाओ, और जान लो कि मैं ही परमेश्‍वर हूँ। \q मैं जातियों में महान हूँ, \q मैं पृथ्वी भर में महान हूँ!” \q \v 11 सेनाओं का यहोवा हमारे संग है; \q याकूब का परमेश्‍वर हमारा ऊँचा गढ़ है। \qs (सेला) \qs \s5 \c 47 \s परमेश्‍वर हमारा राजा \d प्रधान बजानेवाले के लिये कोरहवंशियों का भजन \b \q \v 1 हे देश-देश के सब लोगों, तालियाँ बजाओ! \q ऊँचे शब्द से परमेश्‍वर के लिये जयजयकार करो! \q \v 2 क्योंकि यहोवा परमप्रधान और भययोग्य है, \q वह सारी पृथ्वी के ऊपर महाराजा है। \q \s5 \v 3 वह देश-देश के लोगों को हमारे सम्मुख \q नीचा करता, \q और जाति-जाति को हमारे पाँवों के नीचे कर \q देता है। \q \v 4 वह हमारे लिये उत्तम भाग चुन लेगा*, \q जो उसके प्रिय याकूब के घमण्ड का कारण है। \qs (सेला) \qs \q \v 5 परमेश्‍वर जयजयकार सहित, \q यहोवा नरसिंगे के शब्द के साथ ऊपर गया है। (लूका 24:51, यूह. 6:62, प्रेरि. 1:9, भज. 68:1-2) \q \s5 \v 6 परमेश्‍वर का भजन गाओ, भजन गाओ! \q हमारे महाराजा का भजन गाओ, भजन गाओ! \q \v 7 क्योंकि परमेश्‍वर सारी पृथ्वी का महाराजा है; \q समझ बूझकर बुद्धि से भजन गाओ। \q \s5 \v 8 परमेश्‍वर जाति-जाति पर राज्य करता है; \q परमेश्‍वर अपने पवित्र सिंहासन पर \q विराजमान है*। (भज. 96:10, प्रका. 19:6) \q \v 9 राज्य-राज्य के रईस अब्राहम के परमेश्‍वर \q की प्रजा होने के लिये इकट्ठे हुए हैं। \q क्योंकि पृथ्वी की ढालें परमेश्‍वर के वश में हैं, \q वह तो शिरोमणि है। \s5 \c 48 \s सिय्योन में परमेश्‍वर की महिमा गीत \d कोरहवंशियों का भजन \b \q \v 1 हमारे परमेश्‍वर के नगर में, और अपने \q पवित्र पर्वत पर \q यहोवा महान और अति स्तुति के योग्य है! \qs (सेला) \qs \q \v 2 सिय्योन पर्वत ऊँचाई में सुन्दर और सारी \q पृथ्वी के हर्ष का कारण है, \q राजाधिराज का नगर उत्तरी सिरे पर है। (मत्ती 5:35, यिर्म. 3:19) \q \v 3 उसके महलों में परमेश्‍वर ऊँचा गढ़ माना \q गया है। \q \s5 \v 4 क्योंकि देखो, राजा लोग इकट्ठे हुए, \q वे एक संग आगे बढ़ गए। \q \v 5 उन्होंने आप ही देखा और देखते ही विस्मित हुए, \q वे घबराकर भाग गए। \q \v 6 वहाँ कँपकँपी ने उनको आ पकड़ा, \q और जच्चा की सी पीड़ाएँ उन्हें होने लगीं। \q \s5 \v 7 तू पूर्वी वायु से \q तर्शीश के जहाजों को तोड़ डालता है*। \q \v 8 सेनाओं के यहोवा के नगर में, \q अपने परमेश्‍वर के नगर में, जैसा हमने \q सुना था, वैसा देखा भी है; \q परमेश्‍वर उसको सदा दृढ़ और स्थिर रखेगा। \q \s5 \v 9 हे परमेश्‍वर हमने तेरे मन्दिर के भीतर \q तेरी करुणा पर ध्यान किया है। \q \v 10 हे परमेश्‍वर तेरे नाम के योग्य \q तेरी स्तुति पृथ्वी की छोर तक होती है। \q तेरा दाहिना हाथ धार्मिकता से भरा है; \q \s5 \v 11 तेरे न्याय के कामों के कारण \q सिय्योन पर्वत आनन्द करे, \q और यहूदा के नगर की पुत्रियाँ मगन हों! \q \s5 \v 12 सिय्योन के चारों ओर चलो*, और उसकी \q परिक्रमा करो, \q उसके गुम्मटों को गिन लो, \q \v 13 उसकी शहरपनाह पर दृष्टि लगाओ, उसके \q महलों को ध्यान से देखो; \q जिससे कि तुम आनेवाली पीढ़ी के लोगों से \q इस बात का वर्णन कर सको। \q \s5 \v 14 क्योंकि वह परमेश्‍वर सदा सर्वदा हमारा \q परमेश्‍वर है, \q वह मृत्यु तक हमारी अगुआई करेगा। \s5 \c 49 \s1 धन पर भरोसा रखने की मूर्खता \d प्रधान बजानेवाले के लिये कोरहवंशियों का भजन \b \q \v 1 हे देश-देश के सब लोगों यह सुनो! \q हे संसार के सब निवासियों, कान लगाओ! \q \v 2 क्या ऊँच, क्या नीच \q क्या धनी, क्या दरिद्र, कान लगाओ! \q \s5 \v 3 मेरे मुँह से बुद्धि की बातें निकलेंगी; \q और मेरे हृदय की बातें समझ की होंगी। \q \v 4 मैं नीतिवचन की ओर अपना कान लगाऊँगा, \q मैं वीणा बजाते हुए अपनी गुप्त बात \q प्रकाशित करूँगा। \q \v 5 विपत्ति के दिनों में मैं क्यों डरूँ जब अधर्म मुझे आ घेरे? \q \s5 \v 6 जो अपनी सम्पत्ति पर भरोसा रखते, \q और अपने धन की बहुतायत पर फूलते हैं, \q \v 7 उनमें से कोई अपने भाई को किसी भाँति \q छुड़ा नहीं सकता है; \q और न परमेश्‍वर को उसके बदले प्रायश्चित \q में कुछ दे सकता है \q \v 8 क्योंकि उनके प्राण की छुड़ौती भारी है \q वह अन्त तक कभी न चुका सकेंगे \q \s5 \v 9 कोई ऐसा नहीं जो सदैव जीवित रहे, \q और कब्र को न देखे। \q \v 10 क्योंकि देखने में आता है कि बुद्धिमान भी मरते हैं, \q और मूर्ख और पशु सरीखे मनुष्य भी दोनों नाश होते हैं, \q और अपनी सम्पत्ति दूसरों के लिये छोड़ जाते हैं। \q \s5 \v 11 वे मन ही मन यह सोचते हैं, कि उनका घर \q सदा स्थिर रहेगा, \q और उनके निवास पीढ़ी से पीढ़ी तक बने रहेंगे; \q इसलिए वे अपनी-अपनी भूमि का नाम अपने-अपने नाम पर रखते हैं। \q \s5 \v 12 परन्तु मनुष्य प्रतिष्ठा पाकर भी स्थिर नहीं रहता, \q वह पशुओं के समान होता है, जो मर मिटते हैं। \q \v 13 उनकी यह चाल उनकी मूर्खता है, \q तो भी उनके बाद लोग उनकी बातों से \q प्रसन्‍न होते हैं। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 14 वे अधोलोक की मानो भेड़ों का झुण्ड ठहराए गए हैं; \q मृत्यु उनका गड़रिया ठहरेगा; \q और भोर को* सीधे लोग उन पर प्रभुता करेंगे; \q और उनका सुन्दर रूप अधोलोक का कौर हो जाएगा और उनका कोई आधार न रहेगा। \q \v 15 परन्तु परमेश्‍वर मेरे प्राण को अधोलोक के \q वश से छुड़ा लेगा, \q वह मुझे ग्रहण करके अपनाएगा। \q \s5 \v 16 जब कोई धनी हो जाए और उसके घर का \q वैभव बढ़ जाए, \q तब तू भय न खाना। \q \v 17 क्योंकि वह मर कर कुछ भी साथ न ले जाएगा; \q न उसका वैभव उसके साथ कब्र में जाएगा। \q \s5 \v 18 चाहे वह जीते जी अपने आप को धन्य कहता रहे। \q जब तू अपनी भलाई करता है, तब वे लोग \q तेरी प्रशंसा करते हैं \q \v 19 तो भी वह अपने पुरखाओं के समाज में मिलाया जाएगा, \q जो कभी उजियाला न देखेंगे। \q \v 20 मनुष्य चाहे प्रतिष्ठित भी हों परन्तु यदि वे \q समझ नहीं रखते तो \q वे पशुओं के समान हैं, जो मर मिटते हैं। \s5 \c 50 \s परमेश्‍वर धर्मी न्यायाधीश \d आसाप का भजन \b \q \v 1 सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर यहोवा ने कहा है, \q और उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक पृथ्वी \q के लोगों को बुलाया है। \q \v 2 सिय्योन से, जो परम सुन्दर है, \q परमेश्‍वर ने अपना तेज दिखाया है। \q \s5 \v 3 हमारा परमेश्‍वर आएगा और चुपचाप न रहेगा, \q आग उसके आगे-आगे भस्म करती जाएगी; \q और उसके चारों ओर बड़ी आँधी चलेगी। \q \v 4 वह अपनी प्रजा का न्याय करने के लिये \q ऊपर के आकाश को और पृथ्वी को भी पुकारेगा*: \q \v 5 “मेरे भक्तों को मेरे पास इकट्ठा करो, \q जिन्होंने बलिदान चढ़ाकर मुझसे वाचा बाँधी है!” \q \s5 \v 6 और स्वर्ग उसके धर्मी होने का प्रचार करेगा \q क्योंकि परमेश्‍वर तो आप ही न्यायी है। \qs (सेला) \qs (भज. 97:6, इब्रा. 12:23) \q \s5 \v 7 “हे मेरी प्रजा, सुन, मैं बोलता हूँ, \q और हे इस्राएल, मैं तेरे विषय साक्षी देता हूँ। \q परमेश्‍वर तेरा परमेश्‍वर मैं ही हूँ। \q \v 8 मैं तुझ पर तेरे बलियों के विषय दोष नहीं लगाता, \q तेरे होमबलि तो नित्य मेरे लिये चढ़ते हैं। \q \s5 \v 9 मैं न तो तेरे घर से बैल \q न तेरे पशुशालाओं से बकरे ले लूँगा। \q \v 10 क्योंकि वन के सारे जीव-जन्तु \q और हजारों पहाड़ों के जानवर मेरे ही हैं। \q \v 11 पहाड़ों के सब पक्षियों को मैं जानता हूँ, \q और मैदान पर चलने-फिरनेवाले जानवर मेरे ही हैं। \q \s5 \v 12 “यदि मैं भूखा होता तो तुझ से न कहता; \q क्योंकि जगत और जो कुछ उसमें है वह मेरा है*। (प्रेरि.17:25, 1 कुरि. 10:26) \q \v 13 क्या मैं बैल का माँस खाऊँ, \q या बकरों का लहू पीऊँ? \q \s5 \v 14 परमेश्‍वर को धन्यवाद ही का बलिदान चढ़ा, \q और परमप्रधान के लिये अपनी मन्नतें पूरी कर; (इब्रा. 13:15, सभो. 5:4-5) \q \v 15 और संकट के दिन मुझे पुकार; \q मैं तुझे छुड़ाऊँगा, और तू मेरी महिमा करने पाएगा।” \q \s5 \v 16 परन्तु दुष्ट से परमेश्‍वर कहता है: \q “तुझे मेरी विधियों का वर्णन करने से क्या काम? \q तू मेरी वाचा की चर्चा क्यों करता है? \q \v 17 तू तो शिक्षा से बैर करता, \q और मेरे वचनों को तुच्छ जानता है। \q \s5 \v 18 जब तूने चोर को देखा, तब उसकी संगति से प्रसन्‍न हुआ; \q और परस्त्रीगामियों के साथ भागी हुआ। \q \v 19 “तूने अपना मुँह बुराई करने के लिये खोला, \q और तेरी जीभ छल की बातें गढ़ती है। \q \v 20 तू बैठा हुआ अपने भाई के विरुद्ध बोलता; \q और अपने सगे भाई की चुगली खाता है। \q \s5 \v 21 यह काम तूने किया, और मैं चुप रहा; \q इसलिए तूने समझ लिया कि परमेश्‍वर बिल्कुल मेरे समान है। \q परन्तु मैं तुझे समझाऊँगा, और तेरी आँखों के \q सामने सब कुछ अलग-अलग दिखाऊँगा।” \q \v 22 “हे परमेश्‍वर को भूलनेवालो* यह बात भली भाँति समझ लो, \q कहीं ऐसा न हो कि मैं तुम्हें फाड़ डालूँ, \q और कोई छुड़ानेवाला न हो। \q \s5 \v 23 धन्यवाद के बलिदान का चढ़ानेवाला मेरी महिमा करता है; \q और जो अपना चरित्र उत्तम रखता है \q उसको मैं परमेश्‍वर का उद्धार दिखाऊँगा!” (इब्रा. 13:15) \s5 \c 51 \s पाप क्षमा के लिये प्रार्थना \d प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन जब नातान नबी उसके पास इसलिए आया कि वह बतशेबा के पास गया था \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर, अपनी करुणा के अनुसार मुझ पर अनुग्रह कर; \q अपनी बड़ी दया के अनुसार मेरे अपराधों को मिटा दे। (लूका 18:13, यह. 43:25) \q \v 2 मुझे भलीं भाँति धोकर मेरा अधर्म दूर कर, \q और मेरा पाप छुड़ाकर मुझे शुद्ध कर! \q \s5 \v 3 मैं तो अपने अपराधों को जानता हूँ, \q और मेरा पाप निरन्तर मेरी दृष्टि में रहता है। \q \v 4 मैंने केवल तेरे ही विरुद्ध पाप किया, \q और जो तेरी दृष्टि में बुरा है, वही किया है, \q ताकि तू बोलने में धर्मी \q और न्याय करने में निष्कलंक ठहरे। (लूका 15:18,21, रोम. 3:4) \q \s5 \v 5 देख, मैं अधर्म के साथ उत्‍पन्‍न हुआ, \q और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा। (यूह. 3:6, रोमि 5:12, इफि 2:3) \q \v 6 देख, तू हृदय की सच्चाई से प्रसन्‍न होता है; \q और मेरे मन ही में ज्ञान सिखाएगा। \q \s5 \v 7 जूफा से मुझे शुद्ध कर*, तो मैं पवित्र हो जाऊँगा; \q मुझे धो, और मैं हिम से भी अधिक श्वेत बनूँगा। \q \v 8 मुझे हर्ष और आनन्द की बातें सुना, \q जिससे जो हड्डियाँ तूने तोड़ डाली हैं, वे \q मगन हो जाएँ। \q \v 9 अपना मुख मेरे पापों की ओर से फेर ले, \q और मेरे सारे अधर्म के कामों को मिटा डाल। \q \s5 \v 10 हे परमेश्‍वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्‍पन्‍न कर*, \q और मेरे भीतर स्थिर आत्मा नये सिरे से उत्‍पन्‍न कर। \q \v 11 मुझे अपने सामने से निकाल न दे, \q और अपने पवित्र आत्मा को मुझसे अलग न कर। \q \s5 \v 12 अपने किए हुए उद्धार का हर्ष मुझे फिर से दे, \q और उदार आत्मा देकर मुझे सम्भाल। \q \v 13 जब मैं अपराधी को तेरा मार्ग सिखाऊँगा, \q और पापी तेरी ओर फिरेंगे। \q \s5 \v 14 हे परमेश्‍वर, हे मेरे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर, \q मुझे हत्या के अपराध से छुड़ा ले, \q तब मैं तेरी धार्मिकता का जयजयकार करने पाऊँगा। \q \v 15 हे प्रभु, मेरा मुँह खोल दे \q तब मैं तेरा गुणानुवाद कर सकूँगा। \q \v 16 क्योंकि तू बलि से प्रसन्‍न नहीं होता, \q नहीं तो मैं देता; \q होमबलि से भी तू प्रसन्‍न नहीं होता। \q \s5 \v 17 टूटा मन* परमेश्‍वर के योग्य बलिदान है; \q हे परमेश्‍वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को \q तुच्छ नहीं जानता। \q \v 18 प्रसन्‍न होकर सिय्योन की भलाई कर, \q यरूशलेम की शहरपनाह को तू बना, \q \v 19 तब तू धार्मिकता के बलिदानों से अर्थात् सर्वांग \q पशुओं के होमबलि से प्रसन्‍न होगा; \q तब लोग तेरी वेदी पर पवित्र बलिदान चढ़ाएँगे। \s5 \c 52 \s दुष्ट का अन्त और धर्मी की शान्ति \d प्रधान बजानेवाले के लिये मश्कील पर दाऊद का भजन जब दोएग एदोमी ने शाऊल को बताया कि दाऊद अहीमेलेक के घर गया था \p \v 1 हे वीर, तू बुराई करने पर क्यों घमण्ड करता है? \q परमेश्‍वर की करुणा तो अनन्त है। \q \v 2 तेरी जीभ केवल दुष्टता गढ़ती है*; \q सान धरे हुए उस्तरे के समान वह छल \q का काम करती है। \q \s5 \v 3 तू भलाई से बढ़कर बुराई में, \q और धार्मिकता की बात से बढ़कर झूठ से प्रीति रखता है। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 4 हे छली जीभ, \q तू सब विनाश करनेवाली बातों से प्रसन्‍न रहती है। \q \v 5 निश्चय परमेश्‍वर तुझे सदा के लिये नाश कर देगा; \q वह तुझे पकड़कर तेरे डेरे से निकाल देगा; \q और जीवितों के लोक से तुझे उखाड़ डालेगा। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 6 तब धर्मी लोग इस घटना को देखकर डर जाएँगे, \q और यह कहकर उस पर हँसेंगे, \q \v 7 “देखो, यह वही पुरुष है जिसने परमेश्‍वर को \q अपनी शरण नहीं माना, \q परन्तु अपने धन की बहुतायत पर भरोसा रखता था, \q और अपने को दुष्टता में दृढ़ करता रहा!” \q \s5 \v 8 परन्तु मैं तो परमेश्‍वर के भवन में हरे जैतून के \q वृक्ष के समान हूँ*। \q मैंने परमेश्‍वर की करुणा पर सदा सर्वदा के \q लिये भरोसा रखा है। \q \v 9 मैं तेरा धन्यवाद सर्वदा करता रहूँगा, क्योंकि \q तू ही ने यह काम किया है। \q मैं तेरे नाम पर आशा रखता हूँ, क्योंकि \q यह तेरे पवित्र भक्तों के सामने उत्तम है। \s5 \c 53 \s1 मनुष्य की मूर्खता और दुष्टता \d प्रधान बजानेवाले के लिये महलत की राग पर दाऊद का मश्कील \b \q \v 1 मूर्ख ने अपने मन में कहा, “कोई परमेश्‍वर है ही नहीं।” \q वे बिगड़ गए, उन्होंने कुटिलता के घिनौने काम किए हैं; \q कोई सुकर्मी नहीं। \q \v 2 परमेश्‍वर ने स्वर्ग पर से मनुष्यों के ऊपर दृष्टि की \q ताकि देखे कि कोई बुद्धि से चलनेवाला \q या परमेश्‍वर को खोजनेवाला है कि नहीं। \q \v 3 वे सब के सब हट गए; सब एक साथ बिगड़ गए; \q कोई सुकर्मी नहीं, एक भी नहीं। (भज. 14:1-3, रोम. 3:10-12) \q \s5 \v 4 क्या उन सब अनर्थकारियों को कुछ भी ज्ञान नहीं, \q जो मेरे लोगों को रोटी के समान खाते है \q पर परमेश्‍वर का नाम नहीं लेते है? \q \v 5 वहाँ उन पर भय छा गया जहाँ भय का कोई कारण न था। \q क्योंकि यहोवा ने उनकी हड्डियों को, जो तेरे विरुद्ध छावनी डाले पड़े थे, तितर-बितर कर दिया; \q तूने तो उन्हें लज्जित कर दिया* इसलिए कि \q परमेश्‍वर ने उनको त्याग दिया है। \q \s5 \v 6 भला होता कि इस्राएल का पूरा उद्धार सिय्योन से निकलता! \q जब परमेश्‍वर अपनी प्रजा को बन्धुवाई से लौटा ले आएगा। \q तब याकूब मगन और इस्राएल आनन्दित होगा। \s5 \c 54 \s उद्धार के लिये प्रार्थना \d प्रधान बजानेवाले के लिये, दाऊद का तारकले बाजों के साथ मश्कील जब जीपियों ने आकर शाऊल से कहा, “क्या दाऊद हमारे बीच में छिपा नहीं रहता?” \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर अपने नाम के द्वारा मेरा उद्धार कर*, \q और अपने पराक्रम से मेरा न्याय कर। \v 2 \q हे परमेश्‍वर, मेरी प्रार्थना सुन ले; \q मेरे मुँह के वचनों की ओर कान लगा। \q \v 3 क्योंकि परदेशी मेरे विरुद्ध उठे हैं, \q और कुकर्मी मेरे प्राण के गाहक हुए हैं; \q उन्होंने परमेश्‍वर को अपने सम्मुख नहीं जाना। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 4 देखो, परमेश्‍वर मेरा सहायक है; \q प्रभु मेरे प्राण को सम्भालनेवाला है। \q \v 5 वह मेरे द्रोहियों की बुराई को उन्हीं पर लौटा देगा; \q हे परमेश्‍वर, अपनी सच्चाई के कारण उनका विनाश कर। \q \s5 \v 6 मैं तुझे स्वेच्छाबलि चढ़ाऊँगा*; \q हे यहोवा, मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूँगा, \q क्योंकि यह उत्तम है। \q \v 7 क्योंकि तूने मुझे सब दुःखों से छुड़ाया है, \q और मैंने अपने शत्रुओं पर विजयपूर्ण दृष्टि डाली है। \s5 \c 55 \s1 विश्वासघाती के विनाश के लिये प्रार्थना \d प्रधान बजानेवाले के लिये, तारवाले बाजों के साथ। दाऊद का मश्कील \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर, मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा; \q और मेरी गिड़गिड़ाहट से मुँह न मोड़! \q \v 2 मेरी ओर ध्यान देकर, मुझे उत्तर दे; \q विपत्तियों के कारण मैं व्याकुल होता हूँ। \q \v 3 क्योंकि शत्रु कोलाहल \q और दुष्ट उपद्रव कर रहें हैं; \q वे मुझ पर दोषारोपण करते हैं, \q और क्रोध में आकर सताते हैं। \q \s5 \v 4 मेरा मन भीतर ही भीतर संकट में है*, \q और मृत्यु का भय मुझ में समा गया है। \q \v 5 भय और कंपन ने मुझे पकड़ लिया है, \q और भय ने मुझे जकड़ लिया है। \q \s5 \v 6 तब मैंने कहा, “भला होता कि मेरे कबूतर के से पंख होते \q तो मैं उड़ जाता और विश्राम पाता! \q \v 7 देखो, फिर तो मैं उड़ते-उड़ते दूर निकल जाता \q और जंगल में बसेरा लेता, \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 8 मैं प्रचण्ड बयार और आँधी के झोंके से \q बचकर किसी शरणस्थान में भाग जाता।” \q \v 9 हे प्रभु, उनका सत्यानाश कर, \q और उनकी भाषा में गड़बड़ी डाल दे; \q क्योंकि मैंने नगर में उपद्रव और झगड़ा देखा है। \q \s5 \v 10 रात-दिन वे उसकी शहरपनाह पर चढ़कर चारों ओर घूमते हैं; \q और उसके भीतर दुष्टता और उत्पात होता है। \q \v 11 उसके भीतर दुष्टता ने बसेरा डाला है; \q और अत्याचार और छल उसके चौक से दूर नहीं होते। \q \s5 \v 12 जो मेरी नामधराई करता है वह शत्रु नहीं था, \q नहीं तो मैं उसको सह लेता; \q जो मेरे विरुद्ध बड़ाई मारता है वह मेरा बैरी नहीं है, \q नहीं तो मैं उससे छिप जाता। \q \v 13 परन्तु वह तो तू ही था जो मेरी बराबरी का मनुष्य \q मेरा परम मित्र और मेरी जान-पहचान का था। \q \v 14 हम दोनों आपस में कैसी मीठी-मीठी बातें करते थे; \q हम भीड़ के साथ परमेश्‍वर के भवन को जाते थे। \q \s5 \v 15 उनको मृत्यु अचानक आ दबाए; वे जीवित ही अधोलोक में उतर जाएँ; \q क्योंकि उनके घर और मन दोनों में बुराइयाँ और उत्पात भरा है*। \q \s5 \v 16 परन्तु मैं तो परमेश्‍वर को पुकारूँगा; \q और यहोवा मुझे बचा लेगा। \q \v 17 सांझ को, भोर को, दोपहर को, तीनों पहर \q मैं दुहाई दूँगा और कराहता रहूँगा \q और वह मेरा शब्द सुन लेगा। \q \v 18 जो लड़ाई मेरे विरुद्ध मची थी उससे उसने मुझे कुशल के साथ बचा लिया है। \q उन्होंने तो बहुतों को संग लेकर मेरा सामना किया था। \q \s5 \v 19 परमेश्‍वर जो आदि से विराजमान है यह सुनकर उनको उत्तर देगा। \qs (सेला) \qs \q ये वे है जिनमें कोई परिवर्तन नहीं, और उनमें परमेश्‍वर का भय है ही नहीं। \q \s5 \v 20 उसने अपने मेल रखनेवालों पर भी हाथ उठाया है, \q उसने अपनी वाचा को तोड़ दिया है। \q \v 21 उसके मुँह की बातें तो मक्खन सी चिकनी थी \q परन्तु उसके मन में लड़ाई की बातें थीं; \q उसके वचन तेल से अधिक नरम तो थे \q परन्तु नंगी तलवारें थीं। \q \s5 \v 22 अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा; \q वह धर्मी को कभी टलने न देगा। (1 पत. 5:7, भज. 37:24) \q \v 23 परन्तु हे परमेश्‍वर, तू उन लोगों को विनाश के गड्ढे में गिरा देगा; \q हत्यारे और छली मनुष्य अपनी आधी आयु तक भी जीवित न रहेंगे। \q परन्तु मैं तुझ पर भरोसा रखे रहूँगा। \s5 \c 56 \s उत्पीड़कों से राहत के लिये प्रार्थना \d प्रधान बजानेवाले के लिये योनतेलेखद्दोकीम में दाऊद का मिक्ताम जब पलिश्तियों ने उसको गत नगर में पकड़ा था \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर, मुझ पर दया कर, क्योंकि मनुष्य मुझे निगलना चाहते हैं; \q वे दिन भर लड़कर मुझे सताते हैं। \q \v 2 मेरे द्रोही दिन भर मुझे निगलना चाहते हैं, \q क्योंकि जो लोग अभिमान करके मुझसे लड़ते हैं वे बहुत हैं। \q \s5 \v 3 जिस समय मुझे डर लगेगा, \q मैं तुझ पर भरोसा रखूँगा। \q \v 4 परमेश्‍वर की सहायता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूँगा, \q परमेश्‍वर पर मैंने भरोसा रखा है, मैं नहीं डरूँगा। \q कोई प्राणी मेरा क्या कर सकता है? \q \s5 \v 5 वे दिन भर मेरे वचनों को, उलटा अर्थ लगा-लगाकर मरोड़ते रहते हैं; \q उनकी सारी कल्पनाएँ मेरी ही बुराई करने की होती है*। \q \v 6 वे सब मिलकर इकट्ठे होते हैं और छिपकर बैठते हैं; \q वे मेरे कदमों को देखते भालते हैं \q मानो वे मेरे प्राणों की घात में ताक लगाए बैठे हों। \q \s5 \v 7 क्या वे बुराई करके भी बच जाएँगे? \q हे परमेश्‍वर, अपने क्रोध से देश-देश के लोगों को गिरा दे! \q \v 8 तू मेरे मारे-मारे फिरने का हिसाब रखता है; \q तू मेरे आँसुओं को अपनी कुप्पी में रख ले! \q क्या उनकी चर्चा तेरी पुस्तक में नहीं है*? \q \s5 \v 9 तब जिस समय मैं पुकारूँगा, उसी समय मेरे शत्रु उलटे फिरेंगे। \q यह मैं जानता हूँ, कि परमेश्‍वर मेरी ओर है। \q \v 10 परमेश्‍वर की सहायता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूँगा, \q यहोवा की सहायता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूँगा। \q \v 11 मैंने परमेश्‍वर पर भरोसा रखा है, मैं न डरूँगा। \q मनुष्य मेरा क्या कर सकता है? \q \s5 \v 12 हे परमेश्‍वर, तेरी मन्नतों का भार मुझ पर बना है; \q मैं तुझको धन्यवाद-बलि चढ़ाऊँगा। \q \v 13 क्योंकि तूने मुझ को मृत्यु से बचाया है; \q तूने मेरे पैरों को भी फिसलने से बचाया है, \q ताकि मैं परमेश्‍वर के सामने जीवितों के उजियाले में चलूँ फिरूँ*। \s5 \c 57 \s शत्रुओं से सुरक्षा के लिये प्रार्थना \d प्रधान बजानेवाले के लिये अल-तशहेत राग में दाऊद का मिक्ताम जब वह शाऊल से भागकर गुफा में छिप गया था \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर, मुझ पर दया कर, मुझ पर दया कर, \q क्योंकि मैं तेरा शरणागत हूँ; \q और जब तक ये विपत्तियाँ निकल न जाएँ, \q तब तक मैं तेरे पंखों के तले शरण लिए रहूँगा। \q \s5 \v 2 मैं परमप्रधान परमेश्‍वर को पुकारूँगा, \q परमेश्‍वर को जो मेरे लिये सब कुछ सिद्ध करता है। \q \v 3 परमेश्‍वर स्वर्ग से भेजकर मुझे बचा लेगा, \q जब मेरा निगलनेवाला निन्दा कर रहा हो। \qs (सेला) \qs \q परमेश्‍वर अपनी करुणा और सच्चाई प्रगट करेगा। \q \s5 \v 4 मेरा प्राण सिंहों के बीच में है*, \q मुझे जलते हुओं के बीच में लेटना पड़ता है, \q अर्थात् ऐसे मनुष्यों के बीच में जिनके दाँत बर्छी और तीर हैं, \q और जिनकी जीभ तेज तलवार है। \q \v 5 हे परमेश्‍वर तू स्वर्ग के ऊपर अति महान और तेजोमय है, \q तेरी महिमा सारी पृथ्वी के ऊपर फैल जाए! \q \s5 \v 6 उन्होंने मेरे पैरों के लिये जाल बिछाया है; \q मेरा प्राण ढला जाता है। \q उन्होंने मेरे आगे गड्ढा खोदा, \q परन्तु आप ही उसमें गिर पड़े। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 7 हे परमेश्‍वर, मेरा मन स्थिर है, मेरा मन स्थिर है; \q मैं गाऊँगा वरन् भजन कीर्तन करूँगा। \q \v 8 हे मेरे मन जाग जा! हे सारंगी और वीणा जाग जाओ; \q मैं भी पौ फटते ही जाग उठूँगा*। \q \s5 \v 9 हे प्रभु, मैं देश-देश के लोगों के बीच तेरा धन्यवाद करूँगा; \q मैं राज्य-राज्य के लोगों के बीच में तेरा भजन गाऊँगा। \q \v 10 क्योंकि तेरी करुणा स्वर्ग तक बड़ी है, \q और तेरी सच्चाई आकाशमण्डल तक पहुँचती है। \q \v 11 हे परमेश्‍वर, तू स्वर्ग के ऊपर अति महान है! \q तेरी महिमा सारी पृथ्वी के ऊपर फैल जाए! \s5 \c 58 \s1 अन्याय के खिलाफ प्रार्थना \d प्रधान बजानेवाले के लिये अल-तशहेत राग में दाऊद का मिक्ताम \b \q \v 1 हे मनुष्यों, क्या तुम सचमुच धार्मिकता की बात बोलते हो? \q और हे मनुष्य वंशियों क्या तुम सिधाई से न्याय करते हो? \q \v 2 नहीं, तुम मन ही मन में कुटिल काम करते हो; \q तुम देश भर में उपद्रव करते जाते हो। \q \s5 \v 3 दुष्ट लोग जन्मते ही पराए हो जाते हैं, \q वे पेट से निकलते ही झूठ बोलते हुए भटक जाते हैं। \q \v 4 उनमें सर्प का सा विष है; \q वे उस नाग के समान है, जो सुनना नहीं चाहता*; \q \v 5 और सपेरा कितनी ही निपुणता से क्यों न मंत्र पढ़े, \q तो भी उसकी नहीं सुनता। \q \s5 \v 6 हे परमेश्‍वर, उनके मुँह में से दाँतों को तोड़ दे; \q हे यहोवा, उन जवान सिंहों की दाढ़ों को उखाड़ डाल! \q \v 7 वे घुलकर बहते हुए पानी के समान हो जाएँ; \q जब वे अपने तीर चढ़ाएँ, तब तीर मानो दो टुकड़े हो जाएँ। \q \v 8 वे घोंघे के समान हो जाएँ जो घुलकर नाश हो जाता है, \q और स्त्री के गिरे हुए गर्भ के समान हो जिस ने सूरज को देखा ही नहीं। \q \s5 \v 9 इससे पहले कि तुम्हारी हाँड़ियों में काँटों की आँच लगे, \q हरे व जले, दोनों को वह बवण्डर से उड़ा ले जाएगा। \q \v 10 परमेश्‍वर का ऐसा पलटा देखकर आनन्दित होगा; \q वह अपने पाँव दुष्ट के लहू में धोएगा*। \q \v 11 तब मनुष्य कहने लगेंगे, निश्चय धर्मी के लिये फल है; \q निश्चय परमेश्‍वर है, जो पृथ्वी पर न्याय करता है। \s5 \c 59 \s1 सुरक्षा के लिये प्रार्थना \d प्रधान बजानेवाले के लिये अल-तशहेत राग में दाऊद का मिक्ताम; जब शाऊल के भेजे हुए लोगों ने घर का पहरा दिया कि उसको मार डाले \b \q \v 1 हे मेरे परमेश्‍वर, मुझ को शत्रुओं से बचा, \q मुझे ऊँचे स्थान पर रखकर मेरे विरोधियों से बचा, \q \v 2 मुझ को बुराई करनेवालों के हाथ से बचा, \q और हत्यारों से मेरा उद्धार कर। \q \s5 \v 3 क्योंकि देख, वे मेरी घात में लगे हैं; \q हे यहोवा, मेरा कोई दोष या पाप नहीं है*, \q तो भी बलवन्त लोग मेरे विरुद्ध इकट्ठे होते हैं। \q \v 4 मैं निर्दोष हूँ तो भी वे मुझसे लड़ने को मेरी ओर दौड़ते है; \q जाग और मेरी मदद कर, और यह देख! \q \s5 \v 5 हे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा, \q हे इस्राएल के परमेश्‍वर सब अन्यजातियों को दण्ड देने के लिये जाग; \q किसी विश्वासघाती अत्याचारी पर अनुग्रह न कर। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 6 वे लोग सांझ को लौटकर कुत्ते के समान गुर्राते हैं, \q और नगर के चारों ओर घूमते हैं। \q \v 7 देख वे डकारते हैं, उनके मुँह के भीतर तलवारें हैं, \q क्योंकि वे कहते हैं, “कौन हमें सुनता है?” \q \s5 \v 8 परन्तु हे यहोवा, तू उन पर हँसेगा; \q तू सब अन्यजातियों को उपहास में उड़ाएगा। \q \v 9 हे परमेश्‍वर, मेरे बल, मैं तुझ पर ध्यान दूँगा, \q तू मेरा ऊँचा गढ़ है। \q \s5 \v 10 परमेश्‍वर करुणा करता हुआ मुझसे मिलेगा; \q परमेश्‍वर मेरे शत्रुओं के विषय मेरी इच्छा पूरी कर देगा*। \q \v 11 उन्हें घात न कर, ऐसा न हो कि मेरी प्रजा भूल जाए; \q हे प्रभु, हे हमारी ढाल! \q अपनी शक्ति से उन्हें तितर-बितर कर, उन्हें दबा दे। \q \s5 \v 12 वह अपने मुँह के पाप, और होंठों के वचन, \q और श्राप देने, और झूठ बोलने के कारण, \q अभिमान में फँसे हुए पकड़े जाएँ। \q \v 13 जलजलाहट में आकर उनका अन्त कर, \q उनका अन्त कर दे ताकि वे नष्ट हो जाएँ \q तब लोग जानेंगे कि परमेश्‍वर याकूब पर, \q वरन् पृथ्वी की छोर तक प्रभुता करता है। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 14 वे सांझ को लौटकर कुत्ते के समान गुर्राते, \q और नगर के चारों ओर घूमते है। \q \v 15 वे टुकड़े के लिये मारे-मारे फिरते, \q और तृप्त न होने पर रात भर गुर्राते है। \q \s5 \v 16 परन्तु मैं तेरी सामर्थ्य का यश गाऊँगा*, \q और भोर को तेरी करुणा का जयजयकार करूँगा। \q क्योंकि तू मेरा ऊँचा गढ़ है, \q और संकट के समय मेरा शरणस्थान ठहरा है। \q \v 17 हे मेरे बल, मैं तेरा भजन गाऊँगा, \q क्योंकि हे परमेश्‍वर, तू मेरा ऊँचा गढ़ \q और मेरा करुणामय परमेश्‍वर है। \s5 \c 60 \s1 छुटकारे के लिये प्रार्थना \d प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का मिक्ताम शूशनेदूत राग में। शिक्षादायक। जब वह अरम्नहरैम और अरमसोबा से लड़ता था। और योआब ने लौटकर नमक की तराई में एदोमियों में से बारह हजार पुरुष मार लिये \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर, तूने हमको त्याग दिया, \q और हमको तोड़ डाला है; \q तू क्रोधित हुआ; फिर हमको ज्यों का त्यों कर दे। \q \s5 \v 2 तूने भूमि को कँपाया और फाड़ डाला है; \q उसके दरारों को भर दे, क्योंकि वह डगमगा रही है। \q \v 3 तूने अपनी प्रजा को कठिन समय दिखाया; \q तूने हमें लड़खड़ा देनेवाला दाखमधु पिलाया है*। \q \s5 \v 4 तूने अपने डरवैयों को झण्डा दिया है, \q कि वह सच्चाई के कारण फहराया जाए। \qs (सेला) \qs \q \v 5 तू अपने दाहिने हाथ से बचा, और हमारी सुन ले \q कि तेरे प्रिय छुड़ाए जाएँ। \q \s5 \v 6 परमेश्‍वर पवित्रता के साथ बोला है, “मैं प्रफुल्लित हूँगा; \q मैं शेकेम को बाँट लूँगा, और सुक्कोत की तराई को नपवाऊँगा। \q \v 7 गिलाद मेरा है; मनश्शे भी मेरा है; \q और एप्रैम मेरे सिर का टोप, \q यहूदा मेरा राजदण्ड है। \q \s5 \v 8 मोआब मेरे धोने का पात्र है; \q मैं एदोम पर अपना जूता फेंकूँगा; \q हे पलिश्तीन, मेरे ही कारण जयजयकार कर।” \q \v 9 मुझे गढ़वाले नगर में कौन पहुँचाएगा? \q एदोम तक मेरी अगुआई किसने की है? \q \s5 \v 10 हे परमेश्‍वर, क्या तूने हमको त्याग नहीं दिया? \q हे परमेश्‍वर, तू हमारी सेना के साथ नहीं जाता। \q \v 11 शत्रु के विरुद्ध हमारी सहायता कर, \q क्योंकि मनुष्य की सहायता व्यर्थ है*। \q \v 12 परमेश्‍वर की सहायता से हम वीरता दिखाएँगे, \q क्योंकि हमारे शत्रुओं को वही रौंदेगा। \s5 \c 61 \s1 रक्षा के लिये प्रार्थना \d प्रधान बजानेवाले के लिये तारवाले बाजे के साथ दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर, मेरा चिल्लाना सुन, \q मेरी प्रार्थना की ओर ध्यान दे। \q \v 2 मूर्छा खाते समय मैं पृथ्वी की छोर से भी तुझे पुकारूँगा, \q जो चट्टान मेरे लिये ऊँची है, उस पर मुझ को ले चल*; \q \v 3 क्योंकि तू मेरा शरणस्थान है, \q और शत्रु से बचने के लिये ऊँचा गढ़ है। \q \s5 \v 4 मैं तेरे तम्बू में युगानुयुग बना रहूँगा। \q मैं तेरे पंखों की ओट में शरण लिए रहूँगा। \qs (सेला) \qs \q \v 5 क्योंकि हे परमेश्‍वर, तूने मेरी मन्नतें सुनीं, \q जो तेरे नाम के डरवैये हैं, उनका सा भाग तूने मुझे दिया है। \q \s5 \v 6 तू राजा की आयु को बहुत बढ़ाएगा; \q उसके वर्ष पीढ़ी-पीढ़ी के बराबर होंगे। \q \v 7 वह परमेश्‍वर के सम्मुख सदा बना रहेगा; \q तू अपनी करुणा और सच्चाई को उसकी रक्षा के लिये ठहरा रख। \q \s5 \v 8 इस प्रकार मैं सर्वदा तेरे नाम का भजन गा-गाकर \q अपनी मन्नतें हर दिन पूरी किया करूँगा। \s5 \c 62 \s1 परमेश्‍वर के उद्धार के लिये प्रतिक्षा \d प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन। यदूतून की राग पर \b \q \v 1 सचमुच मैं चुपचाप होकर परमेश्‍वर की ओर मन लगाए हूँ \q मेरा उद्धार उसी से होता है। \q \v 2 सचमुच वही, मेरी चट्टान और मेरा उद्धार है, \q वह मेरा गढ़ है मैं अधिक न डिगूँगा। \q \s5 \v 3 तुम कब तक एक पुरुष पर धावा करते रहोगे, \q कि सब मिलकर उसका घात करो? \q वह तो झुकी हुई दीवार या गिरते हुए बाड़े के समान है। \q \v 4 सचमुच वे उसको, उसके ऊँचे पद से गिराने की सम्मति करते हैं; \q वे झूठ से प्रसन्‍न रहते हैं। \q मुँह से तो वे आशीर्वाद देते पर मन में कोसते हैं। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 5 हे मेरे मन, परमेश्‍वर के सामने चुपचाप रह, \q क्योंकि मेरी आशा उसी से है। \q \v 6 सचमुच वही मेरी चट्टान, और मेरा उद्धार है, \q वह मेरा गढ़ है; इसलिए मैं न डिगूँगा। \q \s5 \v 7 मेरे उद्धार और मेरी महिमा का आधार परमेश्‍वर है; \q मेरी दृढ़ चट्टान, और मेरा शरणस्थान परमेश्‍वर है। \q \v 8 हे लोगों, हर समय उस पर भरोसा रखो; \q उससे अपने-अपने मन की बातें खोलकर कहो*; \q परमेश्‍वर हमारा शरणस्थान है। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 9 सचमुच नीच लोग तो अस्थाई, और बड़े लोग मिथ्या ही हैं; \q तौल में वे हलके निकलते हैं; \q वे सब के सब साँस से भी हलके हैं। \q \v 10 अत्याचार करने पर भरोसा मत रखो, \q और लूट पाट करने पर मत फूलो; \q चाहे धन सम्पत्ति बढ़े, तो भी उस पर मन न लगाना। (मत्ती 19:21-22, 1 तीमु. 6:17) \q \s5 \v 11 परमेश्‍वर ने एक बार कहा है; \q और दो बार मैंने यह सुना है: \q कि सामर्थ्य परमेश्‍वर का है* \q \v 12 और हे प्रभु, करुणा भी तेरी है। \q क्योंकि तू एक-एक जन को उसके काम के अनुसार फल देता है। (दानि. 9:9, मत्ती 16:27, रोम. 2:6, प्रका. 22:12) \s5 \c 63 \s1 प्यासा मन परमेश्‍वर में तृप्त \d दाऊद का भजन; जब वह यहूदा के जंगल में था। \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर, तू मेरा परमेश्‍वर है, \q मैं तुझे यत्न से ढूँढ़ूगा; \q सूखी और निर्जल ऊसर भूमि पर*, \q मेरा मन तेरा प्यासा है, मेरा शरीर तेरा अति अभिलाषी है। \q \v 2 इस प्रकार से मैंने पवित्रस्‍थान में तुझ पर दृष्टि की, \q कि तेरी सामर्थ्य और महिमा को देखूँ। \q \s5 \v 3 क्योंकि तेरी करुणा जीवन से भी उत्तम है, \q मैं तेरी प्रशंसा करूँगा। \q \v 4 इसी प्रकार मैं जीवन भर तुझे धन्य कहता रहूँगा; \q और तेरा नाम लेकर अपने हाथ उठाऊँगा। \q \s5 \v 5 मेरा जीव मानो चर्बी और चिकने भोजन से तृप्त होगा, \q और मैं जयजयकार करके तेरी स्तुति करूँगा। \q \v 6 जब मैं बिछौने पर पड़ा तेरा स्मरण करूँगा, \q तब रात के एक-एक पहर में तुझ पर ध्यान करूँगा; \q \s5 \v 7 क्योंकि तू मेरा सहायक बना है, \q इसलिए मैं तेरे पंखों की छाया में जयजयकार करूँगा*। \q \v 8 मेरा मन तेरे पीछे-पीछे लगा चलता है; \q और मुझे तो तू अपने दाहिने हाथ से थाम रखता है। \q \s5 \v 9 परन्तु जो मेरे प्राण के खोजी हैं, \q वे पृथ्वी के नीचे स्थानों में जा पड़ेंगे; \q \v 10 वे तलवार से मारे जाएँगे, \q और गीदड़ों का आहार हो जाएँगे। \q \s5 \v 11 परन्तु राजा परमेश्‍वर के कारण आनन्दित होगा; \q जो कोई परमेश्‍वर की शपथ खाए, वह बड़ाई करने पाएगा; \q परन्तु झूठ बोलनेवालों का मुँह बन्द किया जाएगा। \s5 \c 64 \s1 अनर्थकारियों से संरक्षण \d प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर, जब मैं तेरी दुहाई दूँ, तब मेरी सुन; \q शत्रु के उपजाए हुए भय के समय मेरे प्राण की रक्षा कर। \q \v 2 कुकर्मियों की गोष्ठी से, \q और अनर्थकारियों के हुल्लड़ से मेरी आड़ हो। \q \s5 \v 3 उन्होंने अपनी जीभ को तलवार के समान तेज किया है, \q और अपने कड़वे वचनों के तीरों को चढ़ाया है; \q \v 4 ताकि छिपकर खरे मनुष्य को मारें; \q वे निडर होकर उसको अचानक मारते भी हैं। \q \s5 \v 5 वे बुरे काम करने को हियाव बाँधते हैं; \q वे फंदे लगाने के विषय बातचीत करते हैं; \q और कहते हैं, “हमको कौन देखेगा?” \q \v 6 वे कुटिलता की युक्ति निकालते हैं; \q और कहते हैं, “हमने पक्की युक्ति खोजकर निकाली है।” \q क्योंकि मनुष्य के मन और हृदय के विचार गहरे है। \q \s5 \v 7 परन्तु परमेश्‍वर उन पर तीर चलाएगा*; \q वे अचानक घायल हो जाएँगे। \q \v 8 वे अपने ही वचनों के कारण ठोकर खाकर गिर पड़ेंगे; \q जितने उन पर दृष्टि करेंगे वे सब अपने-अपने सिर हिलाएँगे \q \v 9 तब सारे लोग डर जाएँगे; \q और परमेश्‍वर के कामों का बखान करेंगे, \q और उसके कार्यक्रम को भली भाँति समझेंगे। \q \s5 \v 10 धर्मी तो यहोवा के कारण आनन्दित होकर उसका शरणागत होगा, \q और सब सीधे मनवाले बड़ाई करेंगे। \s5 \c 65 \s परमेश्‍वर की स्तुति और धन्यवाद \d प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन, गीत \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर, सिय्योन में स्तुति तेरी बाट जोहती है; \q और तेरे लिये मन्नतें पूरी की जाएँगी*। \q \v 2 हे प्रार्थना के सुननेवाले! \q सब प्राणी तेरे ही पास आएँगे। (प्रेरि. 10:34-35, यह 66:23) \q \v 3 अधर्म के काम मुझ पर प्रबल हुए हैं; \q हमारे अपराधों को तू क्षमा करेगा। \q \s5 \v 4 क्या ही धन्य है वह, जिसको तू चुनकर अपने समीप आने देता है, \q कि वह तेरे आँगनों में वास करे! \q हम तेरे भवन के, अर्थात् तेरे पवित्र मन्दिर के उत्तम-उत्तम पदार्थों से तृप्त होंगे। \q \s5 \v 5 हे हमारे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर, \q हे पृथ्वी के सब दूर-दूर देशों के और दूर के समुद्र पर के रहनेवालों के आधार, \q तू धार्मिकता से किए हुए अद्भुत कार्यों द्वारा हमें उत्तर देगा; \q \s5 \v 6 तू जो पराक्रम का फेंटा कसे हुए, \q अपनी सामर्थ्य के पर्वतों को स्थिर करता है; \q \v 7 तू जो समुद्र का महाशब्द, उसकी तरंगों का महाशब्द, \q और देश-देश के लोगों का कोलाहल शान्त करता है*; (मत्ती 8:26, यह. 17:12-13) \q \s5 \v 8 इसलिए दूर-दूर देशों के रहनेवाले तेरे चिन्ह देखकर डर गए हैं; \q तू उदयाचल और अस्ताचल दोनों से जयजयकार कराता है। \q \v 9 तू भूमि की सुधि लेकर उसको सींचता है, \q तू उसको बहुत फलदायक करता है; \q परमेश्‍वर की नदी जल से भरी रहती है; \q तू पृथ्वी को तैयार करके मनुष्यों के लिये अन्न को तैयार करता है। \q \s5 \v 10 तू रेघारियों को भली भाँति सींचता है, \q और उनके बीच की मिट्टी को बैठाता है, \q तू भूमि को मेंह से नरम करता है, \q और उसकी उपज पर आशीष देता है। \q \v 11 तेरी भलाइयों से, तू वर्ष को मुकुट पहनता है; \q तेरे मार्गों में उत्तम-उत्तम पदार्थ पाए जाते हैं। \q \v 12 वे जंगल की चराइयों में हरियाली फूट पड़ती हैं; \q और पहाड़ियाँ हर्ष का फेंटा बाँधे हुए है। \q \s5 \v 13 चराइयाँ भेड़-बकरियों से भरी हुई हैं; \q और तराइयाँ अन्न से ढँपी हुई हैं, \q वे जयजयकार करती और गाती भी हैं। \s5 \c 66 \s पराक्रम के कामों के लिये परमेश्‍वर की स्तुति \d प्रधान बजानेवाले के लिये गीत, भजन \b \q \v 1 हे सारी पृथ्वी के लोगों, परमेश्‍वर के लिये जयजयकार करो; \q \v 2 उसके नाम की महिमा का भजन गाओ; \q उसकी स्तुति करते हुए, उसकी महिमा करो। \q \s5 \v 3 परमेश्‍वर से कहो, “तेरे काम कितने भयानक हैं*! \q तेरी महासामर्थ्य के कारण तेरे शत्रु तेरी चापलूसी करेंगे। \q \v 4 सारी पृथ्वी के लोग तुझे दण्डवत् करेंगे, \q और तेरा भजन गाएँगे; \q वे तेरे नाम का भजन गाएँगे।” \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 5 आओ परमेश्‍वर के कामों को देखो; \q वह अपने कार्यों के कारण मनुष्यों को भययोग्य देख पड़ता है। \q \v 6 उसने समुद्र को सूखी भूमि कर डाला; \q वे महानद में से पाँव-पाँव पार उतरे। \q वहाँ हम उसके कारण आनन्दित हुए, \q \v 7 जो अपने पराक्रम से सर्वदा प्रभुता करता है, \q और अपनी आँखों से जाति-जाति को ताकता है। \q विद्रोही अपने सिर न उठाए। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 8 हे देश-देश के लोगों, हमारे परमेश्‍वर को धन्य कहो, \q और उसकी स्तुति में राग उठाओ, \q \v 9 जो हमको जीवित रखता है; \q और हमारे पाँव को टलने नहीं देता। \q \s5 \v 10 क्योंकि हे परमेश्‍वर तूने हमको जाँचा; \q तूने हमें चाँदी के समान ताया था*। (1 पत. 1:7, यह. 48:10) \q \v 11 तूने हमको जाल में फँसाया; \q और हमारी कमर पर भारी बोझ बाँधा था; \q \v 12 तूने घुड़चढ़ों को हमारे सिरों के ऊपर से चलाया, \q हम आग और जल से होकर गए; \q परन्तु तूने हमको उबार के सुख से भर दिया है। \q \s5 \v 13 मैं होमबलि लेकर तेरे भवन में आऊँगा \q मैं उन मन्नतों को तेरे लिये पूरी करूँगा*, \q \v 14 जो मैंने मुँह खोलकर मानीं, \q और संकट के समय कही थीं। \q \v 15 मैं तुझे मोटे पशुओं की होमबलि, \q मेढ़ों की चर्बी की धूप समेत चढ़ाऊँगा; \q मैं बकरों समेत बैल चढ़ाऊँगा। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 16 हे परमेश्‍वर के सब डरवैयों, आकर सुनो, \q मैं बताऊँगा कि उसने मेरे लिये क्या-क्या किया है। \q \v 17 मैंने उसको पुकारा, \q और उसी का गुणानुवाद मुझसे हुआ। \q \v 18 यदि मैं मन में अनर्थ की बात सोचता, \q तो प्रभु मेरी न सुनता। (यूह. 9:31, नीति. 15:29) \q \s5 \v 19 परन्तु परमेश्‍वर ने तो सुना है; \q उसने मेरी प्रार्थना की ओर ध्यान दिया है। \q \v 20 धन्य है परमेश्‍वर, \q जिसने न तो मेरी प्रार्थना अनसुनी की, \q और न मुझसे अपनी करुणा दूर कर दी है! \s5 \c 67 \s धन्यवाद का भजन \d प्रधान बजानेवाले के लिये तारवाले बाजों के साथ भजन, गीत \b \q \v 1 परमेश्‍वर हम पर अनुग्रह करे और हमको आशीष दे; \q वह हम पर अपने मुख का प्रकाश चमकाए, \qs (सेला) \qs \q \v 2 जिससे तेरी गति पृथ्वी पर, \q और तेरा किया हुआ उद्धार सारी जातियों में जाना जाए। (लूका 2:30-31, तीतु. 2:11) \q \s5 \v 3 हे परमेश्‍वर, देश-देश के लोग तेरा धन्यवाद करें; \q देश-देश के सब लोग तेरा धन्यवाद करें। \q \v 4 राज्य-राज्य के लोग आनन्द करें, \q और जयजयकार करें, \q क्योंकि तू देश-देश के लोंगों का न्याय धर्म से करेगा, \q और पृथ्वी के राज्य-राज्य के लोगों की अगुआई करेगा*। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 5 हे परमेश्‍वर, देश-देश के लोग तेरा धन्यवाद करें; \q देश-देश के सब लोग तेरा धन्यवाद करें। \q \v 6 भूमि ने अपनी उपज दी है, \q परमेश्‍वर जो हमारा परमेश्‍वर है, उसने हमें आशीष दी है। \q \s5 \v 7 परमेश्‍वर हमको आशीष देगा; \q और पृथ्वी के दूर-दूर देशों के सब लोग उसका भय मानेंगे। \s5 \c 68 \s इस्राएल का विजयगान \d प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन, गीत \b \q \v 1 परमेश्‍वर उठे, उसके शत्रु तितर-बितर हों; \q और उसके बैरी उसके सामने से भाग जाएँ! \q \v 2 जैसे धुआँ उड़ जाता है, वैसे ही तू उनको उड़ा दे; \q जैसे मोम आग की आँच से पिघल जाता है, \q वैसे ही दुष्ट लोग परमेश्‍वर की उपस्थिति से नाश हों। \q \v 3 परन्तु धर्मी आनन्दित हों; वे परमेश्‍वर के सामने प्रफुल्लित हों; \q वे आनन्द में मगन हों! \q \s5 \v 4 परमेश्‍वर का गीत गाओ, उसके नाम का भजन गाओ; \q जो निर्जल देशों में सवार होकर चलता है, \q उसके लिये सड़क बनाओ; \q उसका नाम यहोवा है, इसलिए तुम उसके सामने प्रफुल्लित हो! \q \v 5 परमेश्‍वर अपने पवित्र धाम में, \q अनाथों का पिता और विधवाओं का न्यायी है*। \q \v 6 परमेश्‍वर अनाथों का घर बसाता है; \q और बन्दियों को छुड़ाकर सम्पन्न करता है; \q परन्तु विद्रोहियों को सूखी भूमि पर रहना पड़ता है। \q \s5 \v 7 हे परमेश्‍वर, जब तू अपनी प्रजा के आगे-आगे चलता था, \q जब तू निर्जल भूमि में सेना समेत चला, \qs (सेला) \qs \q \v 8 तब पृथ्वी काँप उठी, \q और आकाश भी परमेश्‍वर के सामने टपकने लगा, \q उधर सीनै पर्वत परमेश्‍वर, हाँ इस्राएल के परमेश्‍वर के सामने काँप उठा। (इब्रा. 12:26, न्या 5:4-5) \q \s5 \v 9 हे परमेश्‍वर, तूने बहुतायत की वर्षा की; \q तेरा निज भाग तो बहुत सूखा था, परन्तु तूने उसको हरा-भरा किया है; \q \v 10 तेरा झुण्ड उसमें बसने लगा; \q हे परमेश्‍वर तूने अपनी भलाई से दीन जन के लिये तैयारी की है। \q \s5 \v 11 प्रभु आज्ञा देता है, \q तब शुभ समाचार सुनानेवालियों की बड़ी सेना हो जाती है। \q \v 12 अपनी-अपनी सेना समेत राजा भागे चले जाते हैं, \q और गृहस्थिन लूट को बाँट लेती है। \q \v 13 क्या तुम भेड़शालों के बीच लेट जाओगे? \q और ऐसी कबूतरी के समान होंगे जिसके पंख चाँदी से \q और जिसके पर पीले सोने से मढ़े हुए हों? \q \s5 \v 14 जब सर्वशक्तिमान ने उसमें राजाओं को तितर-बितर किया, \q तब मानो सल्मोन पर्वत पर हिम पड़ा। \q \v 15 बाशान का पहाड़ परमेश्‍वर का पहाड़ है; \q बाशान का पहाड़ बहुत शिखरवाला पहाड़ है। \q \v 16 परन्तु हे शिखरवाले पहाड़ों, तुम क्यों उस पर्वत को घूरते हो, \q जिसे परमेश्‍वर ने अपने वास के लिये चाहा है, \q और जहाँ यहोवा सदा वास किए रहेगा? \q \s5 \v 17 परमेश्‍वर के रथ बीस हजार, वरन् हजारों हजार हैं; \q प्रभु उनके बीच में है, \q जैसे वह सीनै पवित्रस्‍थान में है। \q \v 18 तू ऊँचे पर चढ़ा, तू लोगों को बँधुवाई में ले गया; \q तूने मनुष्यों से, वरन् हठीले मनुष्यों से भी भेंटें लीं, \q जिससे यहोवा परमेश्‍वर उनमें वास करे। (इफि. 4:8) \q \s5 \v 19 धन्य है प्रभु, जो प्रतिदिन हमारा बोझ उठाता है; \q वही हमारा उद्धारकर्ता परमेश्‍वर है। \qs (सेला) \qs \q \v 20 वही हमारे लिये बचानेवाला परमेश्‍वर ठहरा; \q यहोवा प्रभु मृत्यु से भी बचाता है*। \q \v 21 निश्चय परमेश्‍वर अपने शत्रुओं के सिर पर, \q और जो अधर्म के मार्ग पर चलता रहता है, \q उसका बाल भरी खोपड़ी पर मार-मार के उसे चूर करेगा। \q \s5 \v 22 प्रभु ने कहा है, “मैं उन्हें बाशान से निकाल लाऊँगा, \q मैं उनको गहरे सागर के तल से भी फेर ले आऊँगा, \q \v 23 कि तू अपने पाँव को लहू में डुबोए, \q और तेरे शत्रु तेरे कुत्तों का भाग ठहरें।” \q \s5 \v 24 हे परमेश्‍वर तेरी शोभा-यात्राएँ देखी गई, \q मेरे परमेश्‍वर और राजा की शोभा यात्रा पवित्रस्‍थान में जाते हुए देखी गई। \q \v 25 गानेवाले आगे-आगे और तारवाले बाजों के बजानेवाले पीछे-पीछे गए, \q चारों ओर कुमारियाँ डफ बजाती थीं। \q \s5 \v 26 सभाओं में परमेश्‍वर का, \q हे इस्राएल के सोते से निकले हुए लोगों, \q प्रभु का धन्यवाद करो। \q \v 27 पहला बिन्यामीन जो सबसे छोटा गोत्र है, \q फिर यहूदा के हाकिम और उनकी सभा \q और जबूलून और नप्ताली के हाकिम हैं। \q \s5 \v 28 तेरे परमेश्‍वर ने तेरी सामर्थ्य को बनाया है, \q हे परमेश्‍वर, अपनी सामर्थ्य को हम पर प्रकट कर, जैसा तूने पहले प्रकट किया है। \q \v 29 तेरे मन्दिर के कारण जो यरूशलेम में हैं, \q राजा तेरे लिये भेंट ले आएँगे। \q \s5 \v 30 नरकटों में रहनेवाले जंगली पशुओं को, \q सांडों के झुण्ड को और देश-देश के बछड़ों को झिड़क दे। \q वे चाँदी के टुकड़े लिये हुए प्रणाम करेंगे; \q जो लोगे युद्ध से प्रसन्‍न रहते हैं, उनको उसने तितर-बितर किया है। \q \v 31 मिस्र से अधिकारी आएँगे; \q कूशी अपने हाथों को परमेश्‍वर की ओर फुर्ती से फैलाएँगे। \q \s5 \v 32 हे पृथ्वी पर के राज्य-राज्य के लोगों परमेश्‍वर का गीत गाओ; \q प्रभु का भजन गाओ, \qs (सेला) \qs \q \v 33 जो सबसे ऊँचे सनातन स्वर्ग में सवार होकर चलता है; \q देखो वह अपनी वाणी सुनाता है, वह गम्भीर वाणी शक्तिशाली है। \q \s5 \v 34 परमेश्‍वर की सामर्थ्य की स्तुति करो*, \q उसका प्रताप इस्राएल पर छाया हुआ है, \q और उसकी सामर्थ्य आकाशमण्डल में है। \q \v 35 हे परमेश्‍वर, तू अपने पवित्रस्थानों में भययोग्य है, \q इस्राएल का परमेश्‍वर ही अपनी प्रजा को सामर्थ्य और शक्ति का देनेवाला है। \q परमेश्‍वर धन्य है। \s5 \c 69 \s संकट में सहायता के लिये पुकार \d प्रधान बजानेवाले के लिये शोशन्नीम राग में दाऊद का गीत \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर, मेरा उद्धार कर, मैं जल में डूबा जाता हूँ। \q \v 2 मैं बड़े दलदल में धँसा जाता हूँ, और मेरे पैर कहीं नहीं रूकते; \q मैं गहरे जल में आ गया, और धारा में डूबा जाता हूँ। \q \s5 \v 3 मैं पुकारते-पुकारते थक गया, मेरा गला सूख गया है; \q अपने परमेश्‍वर की बाट जोहते-जोहते, मेरी आँखें धुँधली पड़ गई हैं। \q \v 4 जो अकारण मेरे बैरी हैं, वे गिनती में मेरे सिर के बालों से अधिक हैं; \q मेरे विनाश करनेवाले जो व्यर्थ मेरे शत्रु हैं, वे सामर्थीं हैं, \q इसलिए जो मैंने लूटा नहीं वह भी मुझ को देना पड़ा। (यूह. 15:25, भजन 35:19) \q \s5 \v 5 हे परमेश्‍वर, तू तो मेरी मूर्खता को जानता है, \q और मेरे दोष तुझ से छिपे नहीं हैं। \q \v 6 हे प्रभु, हे सेनाओं के यहोवा, जो तेरी बाट जोहते हैं, वे मेरे कारण लज्जित न हो; \q हे इस्राएल के परमेश्‍वर, जो तुझे ढूँढ़ते हैं, वह मेरे कारण अपमानित न हो। \q \s5 \v 7 तेरे ही कारण मेरी निन्दा हुई है*, \q और मेरा मुँह लज्जा से ढपा है। \q \v 8 मैं अपने भाइयों के सामने अजनबी हुआ, \q और अपने सगे भाइयों की दृष्टि में परदेशी ठहरा हूँ। \q \v 9 क्योंकि मैं तेरे भवन के निमित्त जलते-जलते भस्म हुआ, \q और जो निन्दा वे तेरी करते हैं, वही निन्दा मुझ को सहनी पड़ी है। (यूह. 2:17, रोम. 15:3, इब्रा. 11:26) \q \s5 \v 10 जब मैं रोकर और उपवास करके दुःख उठाता था, \q तब उससे भी मेरी नामधराई ही हुई। \q \v 11 जब मैं टाट का वस्त्र पहने था, \q तब मेरा दृष्टान्त उनमें चलता था। \q \v 12 फाटक के पास बैठनेवाले मेरे विषय बातचीत करते हैं, \q और मदिरा पीनेवाले मुझ पर लगता हुआ गीत गाते हैं। \q \s5 \v 13 परन्तु हे यहोवा, मेरी प्रार्थना तो तेरी प्रसन्नता के समय में हो रही है; \q हे परमेश्‍वर अपनी करुणा की बहुतायात से, \q और बचाने की अपनी सच्ची प्रतिज्ञा के अनुसार मेरी सुन ले। \q \v 14 मुझ को दलदल में से उबार, कि मैं धँस न जाऊँ; \q मैं अपने बैरियों से, और गहरे जल में से बच जाऊँ। \q \v 15 मैं धारा में डूब न जाऊँ, \q और न मैं गहरे जल में डूब मरूँ, \q और न पाताल का मुँह मेरे ऊपर बन्द हो। \q \s5 \v 16 हे यहोवा, मेरी सुन ले, क्योंकि तेरी करुणा उत्तम है; \q अपनी दया की बहुतायत के अनुसार मेरी ओर ध्यान दे। \q \v 17 अपने दास से अपना मुँह न मोड़; \q क्योंकि मैं संकट में हूँ, फुर्ती से मेरी सुन ले। \q \s5 \v 18 मेरे निकट आकर मुझे छुड़ा ले, \q मेरे शत्रुओं से मुझ को छुटकारा दे। \q \v 19 मेरी नामधराई और लज्जा और अनादर को तू जानता है: \q मेरे सब द्रोही तेरे सामने हैं। \q \s5 \v 20 मेरा हृदय नामधराई के कारण फट गया, और मैं बहुत उदास हूँ। \q मैंने किसी तरस खानेवाले की आशा तो की, \q परन्तु किसी को न पाया, \q और शान्ति देनेवाले ढूँढ़ता तो रहा, परन्तु कोई न मिला। \q \v 21 लोगों ने मेरे खाने के लिये विष दिया, \q और मेरी प्यास बुझाने के लिये मुझे सिरका पिलाया*। (मर. 15:23,36, लूका 23:36, यूह. 19:28-29) \q \s5 \v 22 उनका भोजन उनके लिये फंदा हो जाए; \q और उनके सुख के समय जाल बन जाए। \q \v 23 उनकी आँखों पर अंधेरा छा जाए, ताकि वे देख न सके; \q और तू उनकी कटि को निरन्तर कँपाता रह। (रोम. 11:9-10) \q \s5 \v 24 उनके ऊपर अपना रोष भड़का, \q और तेरे क्रोध की आँच उनको लगे। (प्रका. 16:1) \q \v 25 उनकी छावनी उजड़ जाए, \q उनके डेरों में कोई न रहे। (प्रेरि. 1:20) \q \s5 \v 26 क्योंकि जिसको तूने मारा, वे उसके पीछे पड़े हैं, \q और जिनको तूने घायल किया, वे उनकी पीड़ा की चर्चा करते हैं। (यह. 53:4) \q \v 27 उनके अधर्म पर अधर्म बढ़ा; \q और वे तेरे धर्म को प्राप्त न करें। \q \s5 \v 28 उनका नाम जीवन की पुस्तक में से काटा जाए, \q और धर्मियों के संग लिखा न जाए। (लूका 10:20, प्रका. 3:5, प्रका. 20:12,15, प्रका. 21:27) \q \v 29 परन्तु मैं तो दुःखी और पीड़ित हूँ, \q इसलिए हे परमेश्‍वर, तू मेरा उद्धार करके मुझे ऊँचे स्थान पर बैठा। \q \s5 \v 30 मैं गीत गाकर तेरे नाम की स्तुति करूँगा, \q और धन्यवाद करता हुआ तेरी बड़ाई करूँगा। \q \v 31 यह यहोवा को बैल से अधिक, \q वरन् सींग और खुरवाले बैल से भी अधिक भाएगा। \q \s5 \v 32 नम्र लोग इसे देखकर आनन्दित होंगे, \q हे परमेश्‍वर के खोजियों, तुम्हारा मन हरा हो जाए*। \q \v 33 क्योंकि यहोवा दरिद्रों की ओर कान लगाता है, \q और अपने लोगों को जो बन्दी हैं तुच्छ नहीं जानता। \q \s5 \v 34 स्वर्ग और पृथ्वी उसकी स्तुति करें, \q और समुद्र अपने सब जीवजन्तुओं समेत उसकी स्तुति करे। \q \v 35 क्योंकि परमेश्‍वर सिय्योन का उद्धार करेगा, \q और यहूदा के नगरों को फिर बसाएगा; \q और लोग फिर वहाँ बसकर उसके अधिकारी हो जाएँगे। \q \v 36 उसके दासों को वंश उसको अपने भाग में पाएगा, \q और उसके नाम के प्रेमी उसमें वास करेंगे। \s5 \c 70 \s सहायता के लिये प्रार्थना \d प्रधान बजानेवाले के लिये: स्मरण कराने के लिये दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर, मुझे छुड़ाने के लिये, हे यहोवा, मेरी सहायता करने के लिये फुर्ती कर! \q \v 2 जो मेरे प्राण के खोजी हैं, \q वे लज्जित और अपमानित हो जाए*! \q जो मेरी हानि से प्रसन्‍न होते हैं, \q वे पीछे हटाए और निरादर किए जाएँ। \q \v 3 जो कहते हैं, “आहा, आहा!” \q वे अपनी लज्जा के मारे उलटे फेरे जाएँ। \q \s5 \v 4 जितने तुझे ढूँढ़ते हैं, वे सब तेरे कारण हर्षित और आनन्दित हों! \q और जो तेरा उद्धार चाहते हैं, वे निरन्तर कहते रहें, “परमेश्‍वर की बड़ाई हो!” \q \v 5 मैं तो दीन और दरिद्र हूँ; \q हे परमेश्‍वर मेरे लिये फुर्ती कर! \q तू मेरा सहायक और छुड़ानेवाला है; \q हे यहोवा विलम्ब न कर! \s5 \c 71 \s एक वृद्ध की प्रार्थना \b \p \v 1 हे यहोवा, मैं तेरा शरणागत हूँ; \q मुझे लज्जित न होने दे। \q \v 2 तू तो धर्मी है, मुझे छुड़ा और मेरा उद्धार कर; \q मेरी ओर कान लगा, और मेरा उद्धार कर। \q \v 3 मेरे लिये सनातन काल की चट्टान का धाम बन, जिसमें मैं नित्य जा सकूँ; \q तूने मेरे उद्धार की आज्ञा तो दी है, \q क्योंकि तू मेरी चट्टान और मेरा गढ़ ठहरा है। \q \s5 \v 4 हे मेरे परमेश्‍वर, दुष्ट के \q और कुटिल और क्रूर मनुष्य के हाथ से मेरी रक्षा कर। \q \v 5 क्योंकि हे प्रभु यहोवा, मैं तेरी ही बाट जोहता आया हूँ; \q बचपन से मेरा आधार तू है। \q \s5 \v 6 मैं गर्भ से निकलते ही, तेरे द्वारा सम्भाला गया; \q मुझे माँ की कोख से तू ही ने निकाला*; \q इसलिए मैं नित्य तेरी स्तुति करता रहूँगा। \q \v 7 मैं बहुतों के लिये चमत्कार बना हूँ; \q परन्तु तू मेरा दृढ़ शरणस्थान है। \q \s5 \v 8 मेरे मुँह से तेरे गुणानुवाद, \q और दिन भर तेरी शोभा का वर्णन बहुत हुआ करे। \q \v 9 बुढ़ापे के समय मेरा त्याग न कर; \q जब मेरा बल घटे तब मुझ को छोड़ न दे। \q \s5 \v 10 क्योंकि मेरे शत्रु मेरे विषय बातें करते हैं, \q और जो मेरे प्राण की ताक में हैं, \q वे आपस में यह सम्मति करते हैं कि \q \v 11 परमेश्‍वर ने उसको छोड़ दिया है; \q उसका पीछा करके उसे पकड़ लो, क्योंकि उसका कोई छुड़ानेवाला नहीं। \q \s5 \v 12 हे परमेश्‍वर, मुझसे दूर न रह; \q हे मेरे परमेश्‍वर, मेरी सहायता के लिये फुर्ती कर! \q \v 13 जो मेरे प्राण के विरोधी हैं, वे लज्जित हो \q और उनका अन्त हो जाए; \q जो मेरी हानि के अभिलाषी हैं, वे नामधराई \q और अनादर में गड़ जाएँ। \q \s5 \v 14 मैं तो निरन्तर आशा लगाए रहूँगा, \q और तेरी स्तुति अधिकाधिक करता जाऊँगा। \q \v 15 मैं अपने मुँह से तेरी धार्मिकता का, \q और तेरे किए हुए उद्धार का वर्णन दिन भर करता रहूँगा, \q क्योंकि उनका पूरा ब्योरा मेरी समझ से परे है। \q \v 16 मैं प्रभु यहोवा के पराक्रम के कामों का वर्णन करता हुआ आऊँगा, \q मैं केवल तेरी ही धार्मिकता की चर्चा किया करूँगा। \q \s5 \v 17 हे परमेश्‍वर, तू तो मुझ को बचपन ही से सिखाता आया है, \q और अब तक मैं तेरे आश्चर्यकर्मों का प्रचार करता आया हूँ। \q \v 18 इसलिए हे परमेश्‍वर जब मैं बूढ़ा हो जाऊँ \q और मेरे बाल पक जाएँ, तब भी तू मुझे न छोड़, \q जब तक मैं आनेवाली पीढ़ी के लोगों को \q तेरा बाहुबल और सब उत्‍पन्‍न होनेवालों को तेरा पराक्रम सुनाऊँ। \q \s5 \v 19 हे परमेश्‍वर, तेरी धार्मिकता अति महान है। \q तू जिस ने महाकार्य किए हैं, \q हे परमेश्‍वर तेरे तुल्य कौन है? \q \v 20 तूने तो हमको बहुत से कठिन कष्ट दिखाए हैं \q परन्तु अब तू फिर से हमको जिलाएगा; \q और पृथ्वी के गहरे गड्ढे में से उबार लेगा*। \q \s5 \v 21 तू मेरे सम्मान को बढ़ाएगा*, \q और फिरकर मुझे शान्ति देगा। \q \v 22 हे मेरे परमेश्‍वर, \q मैं भी तेरी सच्चाई का धन्यवाद सारंगी बजाकर गाऊँगा; \q हे इस्राएल के पवित्र मैं वीणा बजाकर तेरा भजन गाऊँगा। \q \s5 \v 23 जब मैं तेरा भजन गाऊँगा, तब अपने मुँह से \q और अपने प्राण से भी जो तूने बचा लिया है, जयजयकार करूँगा। \q \v 24 और मैं तेरे धार्मिकता की चर्चा दिन भर करता रहूँगा; \q क्योंकि जो मेरी हानि के अभिलाषी थे, \q वे लज्जित और अपमानित हुए। \s5 \c 72 \s मसीह के शासनकाल की महिमा और सार्वभौमिकता \d सुलैमान का गीत \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर, राजा को अपना नियम बता, \q राजपुत्र को अपनी धार्मिकता सिखला! \q \v 2 वह तेरी प्रजा का न्याय धार्मिकता से, \q और तेरे दीन लोगों का न्याय ठीक-ठीक चुकाएगा। (मत्ती25:31-34, प्रेरि. 17:31, रोम. 14:10, 2 कुरि. 5:10) \q \v 3 पहाड़ों और पहाड़ियों से प्रजा के लिये, \q धार्मिकता के द्वारा शान्ति मिला करेगी \s5 \v 4 \q वह प्रजा के दीन लोगों का न्याय करेगा, और दरिद्र लोगों को बचाएगा; \q और अत्याचार करनेवालों को चूर करेगा*। (यह. 11:4) \q \v 5 जब तक सूर्य और चन्द्रमा बने रहेंगे \q तब तक लोग पीढ़ी-पीढ़ी तेरा भय मानते रहेंगे। \q \s5 \v 6 वह घास की खूँटी पर बरसने वाले मेंह, \q और भूमि सींचने वाली झड़ियों के समान होगा। \q \v 7 उसके दिनों में धर्मी फूले फलेंगे, \q और जब तक चन्द्रमा बना रहेगा, तब तक शान्ति बहुत रहेगी। \q \s5 \v 8 वह समुद्र से समुद्र तक \q और महानद से पृथ्वी की छोर तक प्रभुता करेगा। \q \v 9 उसके सामने जंगल के रहनेवाले घुटने टेकेंगे, \q और उसके शत्रु मिट्टी चाटेंगे। \q \v 10 तर्शीश और द्वीप-द्वीप के राजा भेंट ले आएँगे, \q शेबा और सबा दोनों के राजा उपहार पहुँचाएगे। \q \s5 \v 11 सब राजा उसको दण्डवत् करेंगे, \q जाति-जाति के लोग उसके अधीन हो जाएँगे। (प्रका. 21:26, मत्ती 2:11) \q \v 12 क्योंकि वह दुहाई देनेवाले दरिद्र का, \q और दुःखी और असहाय मनुष्य का उद्धार करेगा। \q \s5 \v 13 वह कंगाल और दरिद्र पर तरस खाएगा, \q और दरिद्रों के प्राणों को बचाएगा। \q \v 14 वह उनके प्राणों को अत्याचार और उपद्रव से छुड़ा लेगा; \q और उनका लहू उसकी दृष्टि में अनमोल ठहरेगा*। (तीतु. 2:14) \q \s5 \v 15 वह तो जीवित रहेगा और शेबा के सोने में से उसको दिया जाएगा। \q लोग उसके लिये नित्य प्रार्थना करेंगे; \q और दिन भर उसको धन्य कहते रहेंगे। \q \v 16 देश में पहाड़ों की चोटियों पर बहुत सा अन्न होगा; \q जिसकी बालें लबानोन के देवदारों के समान झूमेंगी; \q और नगर के लोग घास के समान लहलहाएँगे। \q \s5 \v 17 उसका नाम सदा सर्वदा बना रहेगा; \q जब तक सूर्य बना रहेगा, तब तक उसका नाम नित्य नया होता रहेगा, \q और लोग अपने को उसके कारण धन्य गिनेंगे, \q सारी जातियाँ उसको धन्य कहेंगी। \q \s5 \v 18 धन्य है यहोवा परमेश्‍वर, जो इस्राएल का परमेश्‍वर है; \q आश्चर्यकर्म केवल वही करता है। (भज. 136:4) \q \v 19 उसका महिमायुक्त नाम सर्वदा धन्य रहेगा; \q और सारी पृथ्वी उसकी महिमा से परिपूर्ण होगी। \q आमीन फिर आमीन। \q \v 20 यिशै के पुत्र दाऊद की प्रार्थना समाप्त हुई। \s5 \c 73 \ms1 तीसरा भाग \mr भजन 73—89 \s परमेश्‍वर का न्याय \d आसाप का भजन \b \q \v 1 सचमुच इस्राएल के लिये अर्थात् शुद्ध मनवालों के लिये परमेश्‍वर भला है। \q \v 2 मेरे डग तो उखड़ना चाहते थे, \q मेरे डग फिसलने ही पर थे। \q \v 3 क्योंकि जब मैं दुष्टों का कुशल देखता था, \q तब उन घमण्डियों के विषय डाह करता था। \q \s5 \v 4 क्योंकि उनकी मृत्यु में वेदनाएँ नहीं होतीं, \q परन्तु उनका बल अटूट रहता है। \q \v 5 उनको दूसरे मनुष्यों के समान कष्ट नहीं होता; \q और अन्य मनुष्यों के समान उन पर विपत्ति नहीं पड़ती। \q \s5 \v 6 इस कारण अहंकार उनके गले का हार बना है; \q उनका ओढ़ना उपद्रव है। \q \v 7 उनकी आँखें चर्बी से झलकती हैं, \q उनके मन की भवनाएँ उमड़ती हैं। \q \s5 \v 8 वे ठट्ठा मारते हैं, और दुष्टता से हिंसा की बात बोलते हैं; \q वे डींग मारते हैं। \q \v 9 वे मानो स्वर्ग में बैठे हुए बोलते हैं*, \q और वे पृथ्वी में बोलते फिरते हैं। \q \s5 \v 10 इसलिए उसकी प्रजा इधर लौट आएगी, \q और उनको भरे हुए प्याले का जल मिलेगा। \q \v 11 फिर वे कहते हैं, “परमेश्‍वर कैसे जानता है? \q क्या परमप्रधान को कुछ ज्ञान है?” \q \v 12 देखो, ये तो दुष्ट लोग हैं; \q तो भी सदा आराम से रहकर, धन सम्पत्ति बटोरते रहते हैं। \q \s5 \v 13 निश्चय, मैंने अपने हृदय को व्यर्थ शुद्ध किया \q और अपने हाथों को निर्दोषता में धोया है; \q \v 14 क्योंकि मैं दिन भर मार खाता आया हूँ \q और प्रति भोर को मेरी ताड़ना होती आई है। \q \v 15 यदि मैंने कहा होता, “मैं ऐसा कहूँगा”, \q तो देख मैं तेरे सन्तानों की पीढ़ी के साथ छल करता, \q \s5 \v 16 जब मैं सोचने लगा कि इसे मैं कैसे समझूँ, \q तो यह मेरी दृष्टि में अति कठिन समस्या थी, \q \v 17 जब तक कि मैंने परमेश्‍वर के पवित्रस्‍थान में जाकर \q उन लोगों के परिणाम को न सोचा। \q \s5 \v 18 निश्चय तू उन्हें फिसलनेवाले स्थानों में रखता है; \q और गिराकर सत्यानाश कर देता है। \q \v 19 वे क्षण भर में कैसे उजड़ गए हैं! \q वे मिट गए, वे घबराते-घबराते नाश हो गए हैं। \q \v 20 जैसे जागनेवाला स्वप्न को तुच्छ जानता है, \q वैसे ही हे प्रभु जब तू उठेगा, तब उनको छाया सा समझकर तुच्छ जानेगा। \q \s5 \v 21 मेरा मन तो कड़ुवा हो गया था, \q मेरा अन्तःकरण छिद गया था, \q \v 22 मैं अबोध और नासमझ था, \q मैं तेरे सम्‍मुख मूर्ख पशु के समान था।* \q \s5 \v 23 तो भी मैं निरन्तर तेरे संग ही था; \q तूने मेरे दाहिने हाथ को पकड़ रखा। \q \v 24 तू सम्मति देता हुआ, मेरी अगुआई करेगा, \q और तब मेरी महिमा करके मुझ को अपने पास रखेगा। \q \s5 \v 25 स्वर्ग में मेरा और कौन है? \q तेरे संग रहते हुए मैं पृथ्वी पर और कुछ नहीं चाहता। \q \v 26 मेरे हृदय और मन दोनों तो हार गए हैं, \q परन्तु परमेश्‍वर सर्वदा के लिये मेरा भाग \q और मेरे हृदय की चट्टान बना है। \q \s5 \v 27 जो तुझ से दूर रहते हैं वे तो नाश होंगे; \q जो कोई तेरे विरुद्ध व्यभिचार करता है, उसको तू विनाश करता है। \q \v 28 परन्तु परमेश्‍वर के समीप रहना, यही मेरे लिये भला है; \q मैंने प्रभु यहोवा को अपना शरणस्थान माना है, \q जिससे मैं तेरे सब कामों को वर्णन करूँ। \s5 \c 74 \s उत्पीड़कों से राहत के लिए प्रार्थना \d आसाप का मश्कील \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर, तूने हमें क्यों सदा के लिये छोड़ दिया है? \q तेरी कोपाग्नि का धुआँ तेरी चराई की भेड़ों के विरुद्ध क्यों उठ रहा है? \q \v 2 अपनी मण्डली को जिसे तूने प्राचीनकाल में मोल लिया था*, \q और अपने निज भाग का गोत्र होने के लिये छुड़ा लिया था, \q और इस सिय्योन पर्वत को भी, जिस पर तूने वास किया था, स्मरण कर! (व्य. 32:9, यिर्म. 10;16, प्रेरि. 20:28) \q \s5 \v 3 अपने डग अनन्त खण्डहरों की ओर बढ़ा; \q अर्थात् उन सब बुराइयों की ओर जो शत्रु ने पवित्रस्‍थान में की हैं। \q \v 4 तेरे द्रोही तेरे पवित्रस्‍थान के बीच गर्जते रहे हैं; \q उन्होंने अपनी ही ध्वजाओं को चिन्ह ठहराया है। \q \v 5 जो घने वन के पेड़ों पर कुल्हाड़े चलाते हैं; \q \v 6 और अब वे उस भवन की नक्काशी को, \q कुल्हाड़ियों और हथौड़ों से बिल्कुल तोड़े डालते हैं। \q \s5 \v 7 उन्होंने तेरे पवित्रस्‍थान को आग में झोंक दिया है, \q और तेरे नाम के निवास को गिराकर अशुद्ध कर डाला है। \q \v 8 उन्होंने मन में कहा है, “हम इनको एकदम दबा दें।” \q उन्होंने इस देश में परमेश्‍वर के सब सभास्थानों को फूँक दिया है। \q \s5 \v 9 हमको अब परमेश्‍वर के कोई अद्भुत चिन्ह दिखाई नहीं देते; \q अब कोई नबी नहीं रहा, \q न हमारे बीच कोई जानता है कि कब तक यह दशा रहेगी। \q \v 10 हे परमेश्‍वर द्रोही कब तक नामधराई करता रहेगा? \q क्या शत्रु, तेरे नाम की निन्दा सदा करता रहेगा? \q \v 11 तू अपना दाहिना हाथ क्यों रोके रहता है? \q उसे अपने पंजर से निकालकर उनका अन्त कर दे। \q \s5 \v 12 परमेश्‍वर तो प्राचीनकाल से मेरा राजा है, \q वह पृथ्वी पर उद्धार के काम करता आया है। \q \v 13 तूने तो अपनी शक्ति से समुद्र को दो भाग कर दिया; \q तूने तो समुद्री अजगरों के सिरों को फोड़ दिया*। \q \s5 \v 14 तूने तो लिव्यातान के सिरों को टुकड़े-टुकड़े करके जंगली जन्तुओं को खिला दिए। \q \v 15 तूने तो सोता खोलकर जल की धारा बहाई, \q तूने तो बारहमासी नदियों को सूखा डाला। \q \s5 \v 16 दिन तेरा है रात भी तेरी है; \q सूर्य और चन्द्रमा को तूने स्थिर किया है। \q \v 17 तूने तो पृथ्वी की सब सीमाओं को ठहराया; \q धूपकाल और सर्दी दोनों तूने ठहराए हैं। \q \s5 \v 18 हे यहोवा, स्मरण कर कि शत्रु ने नामधराई की है, \q और मूर्ख लोगों ने तेरे नाम की निन्दा की है। \q \v 19 अपनी पिंडुकी के प्राण को वन पशु के वश में न कर; \q अपने दीन जनों को सदा के लिये न भूल \q \s5 \v 20 अपनी वाचा की सुधि ले; \q क्योंकि देश के अंधेरे स्थान अत्याचार के घरों से भरपूर हैं। \q \v 21 पिसे हुए जन को निरादर होकर लौटना न पड़े; \q दीन और दरिद्र लोग तेरे नाम की स्तुति करने पाएँ। (भज. 103:6) \q \s5 \v 22 हे परमेश्‍वर, उठ, अपना मुकद्दमा आप ही लड़; \q तेरी जो नामधराई मूर्ख द्वारा दिन भर होती रहती है, उसे स्मरण कर। \q \v 23 अपने द्रोहियों का बड़ा बोल न भूल, \q तेरे विरोधियों का कोलाहल तो निरन्तर उठता रहता है। \s5 \c 75 \s न्याय के लिए परमेश्‍वर का धन्यवाद \d प्रधान बजानेवाले के लिये : अलतशहेत राग में आसाप का भजन । गीत । \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर हम तेरा धन्यवाद करते, हम तेरा नाम धन्यवाद करते हैं; \q क्योंकि तेरे नाम प्रगट हुआ है*, तेरे आश्चर्यकर्मों का वर्णन हो रहा है। \q \v 2 जब ठीक समय आएगा \q तब मैं आप ही ठीक-ठीक न्याय करूँगा। \q \v 3 जब पृथ्वी अपने सब रहनेवालों समेत डोल रही है, \q तब मैं ही उसके खम्भों को स्थिर करता हूँ। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 4 मैंने घमण्डियों से कहा, “घमण्ड मत करो,” \q और दुष्टों से, “सींग ऊँचा मत करो; \q \v 5 अपना सींग बहुत ऊँचा मत करो, \q न सिर उठाकर ढिठाई की बात बोलो।” \q \v 6 क्योंकि बढ़ती न तो पूरब से न पश्चिम से, \q और न जंगल की ओर से आती है; \q \s5 \v 7 परन्तु परमेश्‍वर ही न्यायी है, \q वह एक को घटाता और दूसरे को बढ़ाता है। \q \v 8 यहोवा के हाथ में एक कटोरा है, जिसमें का दाखमधु झागवाला है; \q उसमें मसाला मिला है*, और वह उसमें से उण्डेलता है, \q निश्चय उसकी तलछट तक पृथ्वी के सब दुष्ट लोग पी जाएँगे। (यिर्म. 25:15, प्रका. 14:10, प्रका. 16:19) \q \s5 \v 9 परन्तु मैं तो सदा प्रचार करता रहूँगा, \q मैं याकूब के परमेश्‍वर का भजन गाऊँगा। \q \v 10 दुष्टों के सब सींगों को मैं काट डालूँगा, \q परन्तु धर्मी के सींग ऊँचे किए जाएँगे। \s5 \c 76 \s1 जयवन्त परमेश्‍वर \d प्रधान बजानेवाले के लिये: तारवाले बाजों के साथ, आसाप का भजन, गीत \b \q \v 1 परमेश्‍वर यहूदा में जाना गया है, \q उसका नाम इस्राएल में महान हुआ है। \q \v 2 और उसका मण्डप शालेम में, \q और उसका धाम सिय्योन में है। \q \v 3 वहाँ उसने तीरों को, \q ढाल, तलवार को और युद्ध के अन्य हथियारों को तोड़ डाला। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 4 हे परमेश्‍वर, तू तो ज्योतिर्मय है: \q तू अहेर से भरे हुए पहाड़ों से अधिक उत्तम और महान है। \q \v 5 दृढ़ मनवाले लुट गए, और भरी नींद में पड़े हैं; \q और शूरवीरों में से किसी का हाथ न चला। \q \s5 \v 6 हे याकूब के परमेश्‍वर, तेरी घुड़की से, \q रथों समेत घोड़े भारी नींद में पड़े हैं। \q \v 7 केवल तू ही भययोग्य है; \q और जब तू क्रोध करने लगे, तब तेरे सामने कौन खड़ा रह सकेगा? \q \s5 \v 8 तूने स्वर्ग से निर्णय सुनाया है; \q पृथ्वी उस समय सुनकर डर गई, और चुप रही, \q \v 9 जब परमेश्‍वर न्याय करने को, \q और पृथ्वी के सब नम्र लोगों का उद्धार करने को उठा*। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 10 निश्चय मनुष्य की जलजलाहट तेरी स्तुति का कारण हो जाएगी, \q और जो जलजलाहट रह जाए, उसको तू रोकेगा। \q \s5 \v 11 अपने परमेश्‍वर यहोवा की मन्नत मानो, और पूरी भी करो; \q वह जो भय के योग्य है*, उसके आस-पास के सब उसके लिये भेंट ले आएँ। \q \v 12 वह तो प्रधानों का अभिमान मिटा देगा; \q वह पृथ्वी के राजाओं को भययोग्य जान पड़ता है। \s5 \c 77 \s1 संकट के समय में सांत्वना \d प्रधान बजानेवाले के लिये: यदूतून की राग पर, आसाप का भजन \b \q \v 1 मैं परमेश्‍वर की दुहाई चिल्ला चिल्लाकर दूँगा, \q मैं परमेश्‍वर की दुहाई दूँगा, और वह मेरी ओर कान लगाएगा। \q \s5 \v 2 संकट के दिन मैं प्रभु की खोज में लगा रहा; \q रात को मेरा हाथ फैला रहा, और ढीला न हुआ, \q मुझ में शान्ति आई ही नहीं*। \q \v 3 मैं परमेश्‍वर का स्मरण कर-करके कराहता हूँ; \q मैं चिन्ता करते-करते मूर्च्छित हो चला हूँ। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 4 तू मुझे झपकी लगने नहीं देता; \q मैं ऐसा घबराया हूँ कि मेरे मुँह से बात नहीं निकलती। \q \v 5 मैंने प्राचीनकाल के दिनों को, \q और युग-युग के वर्षों को सोचा है। \q \s5 \v 6 मैं रात के समय अपने गीत को स्मरण करता; \q और मन में ध्यान करता हूँ, \q और मन में भली भाँति विचार करता हूँ: \q \v 7 “क्या प्रभु युग-युग के लिये मुझे छोड़ देगा; \q और फिर कभी प्रसन्‍न न होगा? \q \s5 \v 8 क्या उसकी करुणा सदा के लिये जाती रही? \q क्या उसका वचन पीढ़ी-पीढ़ी के लिये निष्फल हो गया है? \q \v 9 क्या परमेश्‍वर अनुग्रह करना भूल गया? \q क्या उसने क्रोध करके अपनी सब दया को रोक रखा है?” \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 10 मैंने कहा, “यह तो मेरा दुःख है, कि परमप्रधान का दाहिना हाथ बदल गया है।” \q \s5 \v 11 मैं यहोवा के बड़े कामों की चर्चा करूँगा; \q निश्चय मैं तेरे प्राचीनकालवाले अद्भुत कामों को स्मरण करूँगा। \q \v 12 मैं तेरे सब कामों पर ध्यान करूँगा, \q और तेरे बड़े कामों को सोचूँगा। \q \s5 \v 13 हे परमेश्‍वर तेरी गति पवित्रता की है। \q कौन सा देवता परमेश्‍वर के तुल्य बड़ा है? \q \v 14 अद्भुत काम करनेवाला परमेश्‍वर तू ही है, \q तूने देश-देश के लोगों पर अपनी शक्ति प्रगट की है। \q \v 15 तूने अपने भुजबल से अपनी प्रजा, \q याकूब और यूसुफ के वंश को छुड़ा लिया है। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 16 हे परमेश्‍वर, समुद्र ने तुझे देखा*, \q समुद्र तुझे देखकर डर गया, \q गहरा सागर भी काँप उठा। \q \v 17 मेघों से बड़ी वर्षा हुई; \q आकाश से शब्द हुआ; \q फिर तेरे तीर इधर-उधर चले। \q \s5 \v 18 बवंडर में तेरे गरजने का शब्द सुन पड़ा था; \q जगत बिजली से प्रकाशित हुआ; \q पृथ्वी काँपी और हिल गई। \q \v 19 तेरा मार्ग समुद्र में है, \q और तेरा रास्ता गहरे जल में हुआ; \q और तेरे पाँवों के चिन्ह मालूम नहीं होते। \q \v 20 तूने मूसा और हारून के द्वारा, \q अपनी प्रजा की अगुआई भेड़ों की सी की। \s5 \c 78 \s परमेश्‍वर और उसके लोग \d आसाप का मश्कील \b \q \v 1 हे मेरे लोगों, मेरी शिक्षा सुनो; \q मेरे वचनों की ओर कान लगाओ! \q \v 2 मैं अपना मुँह नीतिवचन कहने के लिये खोलूँगा*; \q मैं प्राचीनकाल की गुप्त बातें कहूँगा, (मत्ती 13:35) \q \s5 \v 3 जिन बातों को हमने सुना, और जान लिया, \q और हमारे बाप दादों ने हम से वर्णन किया है। \q \v 4 उन्हें हम उनकी सन्तान से गुप्त न रखेंगे, \q परन्तु होनहार पीढ़ी के लोगों से, \q यहोवा का गुणानुवाद और उसकी सामर्थ्य \q और आश्चर्यकर्मों का वर्णन करेंगे। (व्य. 4:9, यहो. 4:6-7, इफि. 6:4) \q \s5 \v 5 उसने तो याकूब में एक चितौनी ठहराई, \q और इस्राएल में एक व्यवस्था चलाई, \q जिसके विषय उसने हमारे पितरों को आज्ञा दी, \q कि तुम इन्हें अपने-अपने बाल-बच्चों को बताना; \q \v 6 कि आनेवाली पीढ़ी के लोग, अर्थात् जो बच्चे उत्‍पन्‍न होनेवाले हैं, वे इन्हें जानें; \q और अपने-अपने बाल-बच्चों से इनका बखान करने में उद्यत हों, \q \s5 \v 7 जिससे वे परमेश्‍वर का भरोसा रखें, परमेश्‍वर के बड़े कामों को भूल न जाएँ, \q परन्तु उसकी आज्ञाओं का पालन करते रहें; \q \v 8 और अपने पितरों के समान न हों, \q क्योंकि उस पीढ़ी के लोग तो हठीले और झगड़ालू थे, \q और उन्होंने अपना मन स्थिर न किया था, \q और न उनकी आत्मा परमेश्‍वर की ओर सच्ची रही। (2 राजा. 17:14-15) \q \s5 \v 9 एप्रैमियों ने तो शस्त्रधारी और धनुर्धारी होने पर भी, \q युद्ध के समय पीठ दिखा दी। \q \v 10 उन्होंने परमेश्‍वर की वाचा पूरी नहीं की, \q और उसकी व्यवस्था पर चलने से इन्कार किया। \q \v 11 उन्होंने उसके बड़े कामों को और जो आश्चर्यकर्म उसने उनके सामने किए थे, \q उनको भुला दिया। \q \s5 \v 12 उसने तो उनके बाप-दादों के सम्मुख मिस्र देश के सोअन के मैदान में अद्भुत कर्म किए थे। \q \v 13 उसने समुद्र को दो भाग करके उन्हें पार कर दिया, \q और जल को ढेर के समान खड़ा कर दिया। \q \v 14 उसने दिन को बादल के खम्भे से \q और रात भर अग्नि के प्रकाश के द्वारा उनकी अगुआई की। \q \s5 \v 15 वह जंगल में चट्टानें फाड़कर, \q उनको मानो गहरे जलाशयों से मनमाना पिलाता था। (निर्ग. 17:6, गिन. 20:11, 1 कुरि. 10:4) \q \v 16 उसने चट्टान से भी धाराएँ निकालीं \q और नदियों का सा जल बहाया। \q \s5 \v 17 तो भी वे फिर उसके विरुद्ध अधिक पाप करते गए, \q और निर्जल देश में परमप्रधान के विरुद्ध उठते रहे। \q \v 18 और अपनी चाह के अनुसार भोजन माँगकर मन ही मन परमेश्‍वर की परीक्षा की*। \q \s5 \v 19 वे परमेश्‍वर के विरुद्ध बोले, \q और कहने लगे, “क्या परमेश्‍वर जंगल में मेज लगा सकता है? \q \v 20 उसने चट्टान पर मारके जल बहा तो दिया, \q और धाराएँ उमण्ड चली, \q परन्तु क्या वह रोटी भी दे सकता है? \q क्या वह अपनी प्रजा के लिये माँस भी तैयार कर सकता?” \q \s5 \v 21 यहोवा सुनकर क्रोध से भर गया, \q तब याकूब के विरुद्ध उसकी आग भड़क उठी, \q और इस्राएल के विरुद्ध क्रोध भड़का; \q \v 22 इसलिए कि उन्होंने परमेश्‍वर पर विश्वास नहीं रखा था, \q न उसकी उद्धार करने की शक्ति पर भरोसा किया। \q \s5 \v 23 तो भी उसने आकाश को आज्ञा दी, \q और स्वर्ग के द्वारों को खोला; \q \v 24 और उनके लिये खाने को मन्ना बरसाया, \q और उन्हें स्वर्ग का अन्न दिया। (निर्ग. 16:4, यूह. 6:31) \q \v 25 मनुष्यों को स्वर्गदूतों की रोटी मिली; \q उसने उनको मनमाना भोजन दिया। \q \s5 \v 26 उसने आकाश में पुरवाई को चलाया, \q और अपनी शक्ति से दक्षिणी बहाई; \q \v 27 और उनके लिये माँस धूलि के समान बहुत बरसाया, \q और समुद्र के रेत के समान अनगिनत पक्षी भेजे; \q \v 28 और उनकी छावनी के बीच में, \q उनके निवासों के चारों ओर गिराए। \q \s5 \v 29 और वे खाकर अति तृप्त हुए, \q और उसने उनकी कामना पूरी की। \q \v 30 उनकी कामना बनी ही रही, \q उनका भोजन उनके मुँह ही में था, \q \s5 \v 31 कि परमेश्‍वर का क्रोध उन पर भड़का, \q और उसने उनके हष्टपुष्टों को घात किया, \q और इस्राएल के जवानों को गिरा दिया। (1 कुरि. 10:5) \q \v 32 इतने पर भी वे और अधिक पाप करते गए; \q और परमेश्‍वर के आश्चर्यकर्मों पर विश्वास न किया। \q \s5 \v 33 तब उसने उनके दिनों को व्यर्थ श्रम में, \q और उनके वर्षों को घबराहट में कटवाया। \q \v 34 जब वह उन्हें घात करने लगता*, तब वे उसको पूछते थे; \q और फिरकर परमेश्‍वर को यत्न से खोजते थे। \q \s5 \v 35 उनको स्मरण होता था कि परमेश्‍वर हमारी चट्टान है, \q और परमप्रधान परमेश्‍वर हमारा छुड़ानेवाला है। \q \v 36 तो भी उन्होंने उसकी चापलूसी की; \q वे उससे झूठ बोले। \q \v 37 क्योंकि उनका हृदय उसकी ओर दृढ़ न था; \q न वे उसकी वाचा के विषय सच्चे थे। (प्रेरि. 8:21) \q \s5 \v 38 परन्तु वह जो दयालु है, वह अधर्म को ढाँपता, और नाश नहीं करता; \q वह बार-बार अपने क्रोध को ठण्डा करता है, \q और अपनी जलजलाहट को पूरी रीति से भड़कने नहीं देता। \q \s5 \v 39 उसको स्मरण हुआ कि ये नाशवान हैं, \q ये वायु के समान हैं जो चली जाती और लौट नहीं आती। \q \v 40 उन्होंने कितनी ही बार जंगल में उससे बलवा किया, \q और निर्जल देश में उसको उदास किया! \q \v 41 वे बार-बार परमेश्‍वर की परीक्षा करते थे, \q और इस्राएल के पवित्र को खेदित करते थे। \q \s5 \v 42 उन्होंने न तो उसका भुजबल स्मरण किया, \q न वह दिन जब उसने उनको द्रोही के वश से छुड़ाया था; \q \v 43 कि उसने कैसे अपने चिन्ह मिस्र में, \q और अपने चमत्कार सोअन के मैदान में किए थे। \q \s5 \v 44 उसने तो मिस्रियों की नदियों को लहू बना डाला, \q और वे अपनी नदियों का जल पी न सके। (प्रका. 16:4) \q \v 45 उसने उनके बीच में डांस भेजे जिन्होंने उन्हें काट खाया, \q और मेंढ़क भी भेजे, जिन्होंने उनका बिगाड़ किया। \q \v 46 उसने उनकी भूमि की उपज कीड़ों को, \q और उनकी खेतीबारी टिड्डियों को खिला दी थी। \q \s5 \v 47 उसने उनकी दाखलताओं को ओेलों से, \q और उनके गूलर के पेड़ों को ओले बरसाकर नाश किया। \q \v 48 उसने उनके पशुओं को ओलों से, \q और उनके ढोरों को बिजलियों से मिटा दिया। \q \v 49 उसने उनके ऊपर अपना प्रचण्ड क्रोध और रोष भड़काया, \q और उन्हें संकट में डाला, \q और दुःखदाई दूतों का दल भेजा। \q \s5 \v 50 उसने अपने क्रोध का मार्ग खोला, \q और उनके प्राणों को मृत्यु से न बचाया, \q परन्तु उनको मरी के वश में कर दिया। \q \v 51 उसने मिस्र के सब पहलौठों को मारा, \q जो हाम के डेरों में पौरूष के पहले फल थे; \q \s5 \v 52 परन्तु अपनी प्रजा को भेड़-बकरियों के समान प्रस्थान कराया, \q और जंगल में उनकी अगुआई पशुओं के झुण्ड की सी की। \q \v 53 तब वे उसके चलाने से बेखटके चले और उनको कुछ भय न हुआ, \q परन्तु उनके शत्रु समुद्र में डूब गए। \q \s5 \v 54 और उसने उनको अपने पवित्र देश की सीमा तक, \q इसी पहाड़ी देश में पहुँचाया, जो उसने अपने दाहिने हाथ से प्राप्त किया था। \q \v 55 उसने उनके सामने से अन्यजातियों को भगा दिया; \q और उनकी भूमि को डोरी से माप-मापकर बाँट दिया; \q और इस्राएल के गोत्रों को उनके डेरों में बसाया। \q \s5 \v 56 तो भी उन्होंने परमप्रधान परमेश्‍वर की परीक्षा की और उससे बलवा किया, \q और उसकी चितौनियों को न माना, \q \v 57 और मुड़कर अपने पुरखाओं के समान विश्वासघात किया; \q उन्होंने निकम्मे धनुष के समान धोखा दिया। \q \s5 \v 58 क्योंकि उन्होंने ऊँचे स्थान बनाकर उसको रिस दिलाई, \q और खुदी हुई मूर्तियों के द्वारा उसमें से जलन उपजाई। \q \v 59 परमेश्‍वर सुनकर रोष से भर गया, \q और उसने इस्राएल को बिल्कुल तज दिया। \q \s5 \v 60 उसने शीलो के निवास, \q अर्थात् उस तम्बू को जो उसने मनुष्यों के बीच खड़ा किया था, त्याग दिया, \q \v 61 और अपनी सामर्थ्य को बँधुवाई में जाने दिया, \q और अपनी शोभा को द्रोही के वश में कर दिया। \q \s5 \v 62 उसने अपनी प्रजा को तलवार से मरवा दिया, \q और अपने निज भाग के विरुद्ध रोष से भर गया। \q \v 63 उनके जवान आग से भस्म हुए, \q और उनकी कुमारियों के विवाह के गीत न गाएँ गए। \q \s5 \v 64 उनके याजक तलवार से मारे गए, \q और उनकी विधवाएँ रोने न पाई। \q \v 65 तब प्रभु मानो नींद से चौंक उठा*, \q और ऐसे वीर के समान उठा जो दाखमधु पीकर ललकारता हो। \q \v 66 उसने अपने द्रोहियों को मारकर पीछे हटा दिया; \q और उनकी सदा की नामधराई कराई। \q \s5 \v 67 फिर उसने यूसुफ के तम्बू को तज दिया; \q और एप्रैम के गोत्र को न चुना; \q \v 68 परन्तु यहूदा ही के गोत्र को, \q और अपने प्रिय सिय्योन पर्वत को चुन लिया। \q \v 69 उसने अपने पवित्रस्‍थान को बहुत ऊँचा बना दिया, \q और पृथ्वी के समान स्थिर बनाया, जिसकी नींव उसने सदा के लिये डाली है। \q \s5 \v 70 फिर उसने अपने दास दाऊद को चुनकर भेड़शालाओं में से ले लिया; \q \v 71 वह उसको बच्चेवाली भेड़ों के पीछे-पीछे फिरने से ले आया \q कि वह उसकी प्रजा याकूब की अर्थात् उसके निज भाग इस्राएल की चरवाही करे। \q \v 72 तब उसने खरे मन से उनकी चरवाही की, \q और अपने हाथ की कुशलता से उनकी अगुआई की। \s5 \c 79 \s इस्राएल के छुटकारे लिए प्रार्थना \d आसाप का भजन \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर, अन्यजातियाँ तेरे निभागज भाग में घुस आईं; \q उन्होंने तेरे पवित्र मन्दिर को अशुद्ध किया; \q और यरूशलेम को खण्डहर कर दिया है। (लूका 21:24, प्रका. 11:2) \q \v 2 उन्होंने तेरे दासों की शवों को आकाश के पक्षियों का आहार कर दिया, \q और तेरे भक्तों का माँस पृथ्‍वी के वन-पशुओं को खिला दिया है। \q \v 3 उन्होंने उनका लहू यरूशलेम के चारों ओर जल के समान बहाया, \q और उनको मिट्टी देनेवाला कोई न था। (प्रका.16:6) \q \s5 \v 4 पड़ोसियों के बीच हमारी नामधराई हुई; \q चारों ओर के रहनेवाले हम पर हँसते, और ठट्ठा करते हैं। \q \v 5 हे यहोवा, कब तक*? क्या तू सदा के लिए क्रोधित रहेगा? \q तुझ में आग की सी जलन कब तक भड़कती रहेगी? \q \s5 \v 6 जो जातियाँ तुझको नहीं जानती, \q और जिन राज्यों के लोग तुझ से प्रार्थना नहीं करते, \q उन्हीं पर अपनी सब जलजलाहट भड़का! (1 थिस्सलु. 4:5, 2 थिस्सलु. 1:8) \q \v 7 क्योंकि उन्होंने याकूब को निगल लिया, \q और उसके वासस्थान को उजाड़ दिया है। \q \s5 \v 8 हमारी हानि के लिये हमारे पुरखाओं के अधर्म के कामों को स्मरण न कर; \q तेरी दया हम पर शीघ्र हो, क्योंकि हम बड़ी दुर्दशा में पड़े हैं। \q \v 9 हे हमारे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर, अपने नाम की महिमा के निमित्त हमारी सहायता कर; \q और अपने नाम के निमित्त हमको छुड़ाकर हमारे पापों को ढाँप दे। \q \s5 \v 10 अन्यजातियाँ क्यों कहने पाएँ कि उनका परमेश्‍वर कहाँ रहा? \q तेरे दासों के खून का पलटा अन्यजातियों पर हमारी आँखों के सामने लिया जाए। (प्रका. 6:10, प्रका. 19:2) \q \v 11 बन्दियों का कराहना तेरे कान तक पहुँचे*; \q घात होनेवालों को अपने भुजबल के द्वारा बचा। \q \s5 \v 12 हे प्रभु, हमारे पड़ोसियों ने जो तेरी निन्दा की है, \q उसका सात गुणा बदला उनको दे! \q \v 13 तब हम जो तेरी प्रजा और तेरी चराई की भेड़ें हैं, \q तेरा धन्यवाद सदा करते रहेंगे; \q और पीढ़ी से पीढ़ी तक तेरा गुणानुवाद करते रहेंगे। \s5 \c 80 \s1 इस्राएली जाति के लिये प्रार्थना \d प्रधान बजानेवाले के लिये: शोशत्रीमेदूत राग में आसाप का भजन \b \q \v 1 हे इस्राएल के चरवाहे, \q तू जो यूसुफ की अगुआई भेड़ों की सी करता है, कान लगा! \q तू जो करूबों पर विराजमान है, अपना तेज दिखा! \q \v 2 एप्रैम, बिन्यामीन, और मनश्शे के सामने अपना पराक्रम दिखाकर, \q हमारा उद्धार करने को आ! \q \v 3 हे परमेश्‍वर, हमको ज्यों के त्यों कर दे; \q और अपने मुख का प्रकाश चमका, तब हमारा उद्धार हो जाएगा! \q \s5 \v 4 हे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा, \q तू कब तक अपनी प्रजा की प्रार्थना पर क्रोधित रहेगा*? \q \v 5 तूने आँसुओं को उनका आहार बना दिया, \q और मटके भर-भरके उन्हें आँसू पिलाए हैं। \q \v 6 तू हमें हमारे पड़ोसियों के झगड़ने का कारण बना देता है; \q और हमारे शत्रु मनमाना ठट्ठा करते हैं। \q \s5 \v 7 हे सेनाओं के परमेश्‍वर, हमको ज्यों के त्यों कर दे; \q और अपने मुख का प्रकाश हम पर चमका, \q तब हमारा उद्धार हो जाएगा। \q \v 8 तू मिस्र से एक दाखलता ले आया; \q और अन्यजातियों को निकालकर उसे लगा दिया। \q \s5 \v 9 तूने उसके लिये स्थान तैयार किया है; \q और उसने जड़ पकड़ी और फैलकर देश को भर दिया। \q \v 10 उसकी छाया पहाड़ों पर फैल गई, \q और उसकी डालियाँ महा देवदारों के समान हुई; \q \v 11 उसकी शाखाएँ समुद्र तक बढ़ गई, \q और उसके अंकुर फरात तक फैल गए। \q \s5 \v 12 फिर तूने उसके बाड़ों को क्यों गिरा दिया, \q कि सब बटोही उसके फलों को तोड़ते है? \q \v 13 जंगली सूअर उसको नाश किए डालता है, \q और मैदान के सब पशु उसे चर जाते हैं। \q \s5 \v 14 हे सेनाओं के परमेश्‍वर, फिर आ*! \q स्वर्ग से ध्यान देकर देख, और इस दाखलता की सुधि ले, \q \v 15 ये पौधा तूने अपने दाहिने हाथ से लगाया, \q और जो लता की शाखा तूने अपने लिये दृढ़ की है। \q \v 16 वह जल गई, वह कट गई है; \q तेरी घुड़की से तेरे शत्रु नाश हो जाए। \q \s5 \v 17 तेरे दाहिने हाथ के सम्भाले हुए पुरुष पर तेरा हाथ रखा रहे, \q उस आदमी पर, जिसे तूने अपने लिये दृढ़ किया है। \q \v 18 तब हम लोग तुझ से न मुड़ेंगे: \q तू हमको जिला, और हम तुझ से प्रार्थना कर सकेंगे। \q \s5 \v 19 हे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा, हमको ज्यों का त्यों कर दे! \q और अपने मुख का प्रकाश हम पर चमका, \q तब हमारा उद्धार हो जाएगा! \s5 \c 81 \s आज्ञाकारिता के लिये बुलाहट \d प्रधान बजानेवाले के लिये : गित्तीथ राग में आसाप का भजन \b \q \v 1 परमेश्‍वर जो हमारा बल है, उसका गीत आनन्द से गाओ; \q याकूब के परमेश्‍वर का जयजयकार करो! (भज. 67:4) \q \v 2 गीत गाओ, डफ और मधुर बजनेवाली वीणा और सारंगी को ले आओ। \q \v 3 नये चाँद के दिन, \q और पूर्णमासी को हमारे पर्व के दिन नरसिंगा फूँको। \q \s5 \v 4 क्योंकि यह इस्राएल के लिये विधि, \q और याकूब के परमेश्‍वर का ठहराया हुआ नियम है। \q \v 5 इसको उसने यूसुफ में चितौनी की रीति पर उस समय चलाया, \q जब वह मिस्र देश के विरुद्ध चला। \q वहाँ मैंने एक अनजानी भाषा सुनी \q \s5 \v 6 “मैंने उनके कंधों पर से बोझ को उतार दिया; \q उनका टोकरी ढोना छूट गया। \q \v 7 तूने संकट में पड़कर पुकारा, तब मैंने तुझे छुड़ाया; \q बादल गरजने के गुप्त स्थान में से मैंने तेरी सुनी, \q और मरीबा नामक सोते के पास* तेरी परीक्षा की। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 8 हे मेरी प्रजा, सुन, मैं तुझे चिता देता हूँ! \q हे इस्राएल भला हो कि तू मेरी सुने! \q \v 9 तेरे बीच में पराया ईश्वर न हो; \q और न तू किसी पराए देवता को दण्डवत् करना! \q \v 10 तेरा परमेश्‍वर यहोवा मैं हूँ, \q जो तुझे मिस्र देश से निकाल लाया है। \q तू अपना मुँह पसार, मैं उसे भर दूँगा*। (भज. 37:3-4) \q \s5 \v 11 “परन्तु मेरी प्रजा ने मेरी न सुनी; \q इस्राएल ने मुझ को न चाहा। \q \v 12 इसलिए मैंने उसको उसके मन के हठ पर छोड़ दिया, \q कि वह अपनी ही युक्तियों के अनुसार चले। (प्रेरि. 14:16,) \q \s5 \v 13 यदि मेरी प्रजा मेरी सुने, \q यदि इस्राएल मेरे मार्गों पर चले, \q \v 14 तो मैं क्षण भर में उनके शत्रुओं को दबाऊँ, \q और अपना हाथ उनके द्रोहियों के विरुद्ध चलाऊँ। \q \s5 \v 15 यहोवा के बैरी उसके आगे भय में दण्डवत् करे! \q उन्हें हमेशा के लिए अपमानित किया जाएगा। \q \v 16 मैं उनको उत्तम से उत्तम गेहूँ खिलाता, \q और मैं चट्टान के मधु से उनको तृप्त करता।” \s5 \c 82 \s सच्चे न्याय के लिए दलील \d आसाप का भजन \b \q \v 1 परमेश्‍वर दिव्य सभा में खड़ा है: \q वह ईश्वरों के बीच में न्याय करता है। \q \v 2 “तुम लोग कब तक टेढ़ा न्याय करते \q और दुष्टों का पक्ष लेते रहोगे*? \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 3 कंगाल और अनाथों का न्याय चुकाओ, \q दीन-दरिद्र का विचार धर्म से करो। \q \v 4 कंगाल और निर्धन को बचा लो; \q दुष्टों के हाथ से उन्हें छुड़ाओ।” \q \s5 \v 5 वे न तो कुछ समझते और न कुछ जानते हैं, \q परन्तु अंधेरे में चलते-फिरते रहते हैं*; \q पृथ्वी की पूरी नींव हिल जाती है। \q \s5 \v 6 मैंने कहा था “तुम ईश्वर हो, \q और सब के सब परमप्रधान के पुत्र हो; (यूह. 10:34) \q \v 7 तो भी तुम मनुष्यों के समान मरोगे, \q और किसी प्रधान के समान गिर जाओगे।” \q \s5 \v 8 हे परमेश्‍वर उठ, पृथ्वी का न्याय कर; \q क्योंकि तू ही सब जातियों को अपने भाग में लेगा! \s5 \c 83 \s1 शत्रुओं के विरुद्ध प्रार्थना गीत \d आसाप का भजन \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर मौन न रह; \q हे परमेश्‍वर चुप न रह, और न शान्त रह! \q \v 2 क्योंकि देख तेरे शत्रु धूम मचा रहे हैं; \q और तेरे बैरियों ने सिर उठाया है। \q \s5 \v 3 वे चतुराई से तेरी प्रजा की हानि की सम्मति करते, \q और तेरे रक्षित लोगों के विरुद्ध युक्तियाँ निकालते हैं। \q \v 4 उन्होंने कहा, “आओ, हम उनका ऐसा नाश करें कि राज्य भी मिट जाए; \q और इस्राएल का नाम आगे को स्मरण न रहे।” \q \v 5 उन्होंने एक मन होकर युक्ति निकाली है*, \q और तेरे ही विरुद्ध वाचा बाँधी है। \q \s5 \v 6 ये तो एदोम के तम्बूवाले \q और इश्माएली, मोआबी और हग्री, \q \v 7 गबाली, अम्मोनी, अमालेकी, \q और सोर समेत पलिश्ती हैं। \q \s5 \v 8 इनके संग अश्शूरी भी मिल गए हैं; \q उनसे भी लूतवंशियों को सहारा मिला है। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 9 इनसे ऐसा कर जैसा मिद्यानियों से*, \q और कीशोन नाले में सीसरा और याबीन से किया* था, \q \v 10 वे एनदोर में नाश हुए, \q और भूमि के लिये खाद बन गए। \q \s5 \v 11 इनके रईसों को ओरेब और जेब सरीखे, \q और इनके सब प्रधानों को जेबह और सल्मुन्ना के समान कर दे, \q \v 12 जिन्होंने कहा था, \q “हम परमेश्‍वर की चराइयों के अधिकारी आप ही हो जाएँ।” \q \s5 \v 13 हे मेरे परमेश्‍वर इनको बवंडर की धूलि, \q या पवन से उड़ाए हुए भूसे के समान कर दे। \q \v 14 उस आग के समान जो वन को भस्म करती है, \q और उस लौ के समान जो पहाड़ों को जला देती है, \q \v 15 तू इन्हें अपनी आँधी से भगा दे, \q और अपने बवंडर से घबरा दे! \q \s5 \v 16 इनके मुँह को अति लज्जित कर, \q कि हे यहोवा ये तेरे नाम को ढूँढ़ें। \q \v 17 ये सदा के लिये लज्जित और घबराए रहें, \q इनके मुँह काले हों, और इनका नाश हो जाए, \q \s5 \v 18 जिससे ये जानें कि केवल तू जिसका नाम यहोवा है, \q सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है। \s5 \c 84 \s1 परमेश्‍वर के भवन की चाहत \d प्रधान बजानेवाले के लिये गित्तीथ में कोरहवंशियों का भजन \b \q \v 1 हे सेनाओं के यहोवा, तेरे निवास क्या ही प्रिय हैं! \q \v 2 मेरा प्राण यहोवा के आँगनों की अभिलाषा करते-करते मूर्छित हो चला; \q मेरा तन मन दोनों* जीविते परमेश्‍वर को पुकार रहे। \q \s5 \v 3 हे सेनाओं के यहोवा, हे मेरे राजा, और मेरे परमेश्‍वर, तेरी वेदियों में गौरैया ने अपना बसेरा \q और शूपाबेनी ने घोंसला बना लिया है जिसमें वह अपने बच्चे रखे। \q \v 4 क्या ही धन्य हैं वे, जो तेरे भवन में रहते हैं; \q वे तेरी स्तुति निरन्तर करते रहेंगे। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 5 क्या ही धन्य है वह मनुष्य, जो तुझ से शक्ति पाता है, \q और वे जिनको सिय्योन की सड़क की सुधि रहती है। \q \v 6 वे रोने की तराई में जाते हुए उसको सोतों का स्थान बनाते हैं; \q फिर बरसात की अगली वृष्टि उसमें आशीष ही आशीष उपजाती है। \q \s5 \v 7 वे बल पर बल पाते जाते हैं*; \q उनमें से हर एक जन सिय्योन में परमेश्‍वर को अपना मुँह दिखाएगा। \q \v 8 हे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन, \q हे याकूब के परमेश्‍वर, कान लगा! \qs (सेला) \qs \q \v 9 हे परमेश्‍वर, हे हमारी ढाल, दृष्टि कर; \q और अपने अभिषिक्त का मुख देख! \q \v 10 क्योंकि तेरे आँगनों में एक दिन और कहीं के हजार दिन से उत्तम है। \q दुष्टों के डेरों में वास करने से \q अपने परमेश्‍वर के भवन की डेवढ़ी पर खड़ा रहना ही मुझे अधिक भावता है। \q \s5 \v 11 क्योंकि यहोवा परमेश्‍वर सूर्य और ढाल है; \q यहोवा अनुग्रह करेगा, और महिमा देगा; \q और जो लोग खरी चाल चलते हैं; \q उनसे वह कोई अच्छी वस्तु रख न छोड़ेगा*। \q \v 12 हे सेनाओं के यहोवा, \q क्या ही धन्य वह मनुष्य है, जो तुझ पर भरोसा रखता है! \s5 \c 85 \s1 राष्ट्र के कल्याण के लिए प्रार्थना \d प्रधान बजानेवालों के लिये : कोरहवंशियों का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा, तू अपने देश पर प्रसन्‍न हुआ, याकूब को बँधुवाई से लौटा ले आया है। \q \v 2 तूने अपनी प्रजा के अधर्म को क्षमा किया है; \q और उसके सब पापों को ढाँप दिया है। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 3 तूने अपने रोष को शान्त किया है; \q और अपने भड़के हुए कोप को दूर किया है। \q \v 4 हे हमारे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर, हमको पुनः स्थापित कर, \q और अपना क्रोध हम पर से दूर कर*! \q \v 5 क्या तू हम पर सदा कोपित रहेगा? \q क्या तू पीढ़ी से पीढ़ी तक कोप करता रहेगा? \q \s5 \v 6 क्या तू हमको फिर न जिलाएगा, \q कि तेरी प्रजा तुझ में आनन्द करे? \q \v 7 हे यहोवा अपनी करुणा हमें दिखा, \q और तू हमारा उद्धार कर। \q \s5 \v 8 मैं कान लगाए रहूँगा कि परमेश्‍वर यहोवा क्या कहता है, \q वह तो अपनी प्रजा से जो उसके भक्त है, शान्ति की बातें कहेगा; \q परन्तु वे फिरके मूर्खता न करने लगें। \q \v 9 निश्चय उसके डरवैयों के उद्धार का समय निकट है*, \q तब हमारे देश में महिमा का निवास होगा। \q \s5 \v 10 करुणा और सच्चाई आपस में मिल गई हैं; \q धर्म और मेल ने आपस में चुम्बन किया हैं। \q \v 11 पृथ्वी में से सच्चाई उगती \q और स्वर्ग से धर्म झुकता है। \q \s5 \v 12 हाँ, यहोवा उत्तम वस्तुएँ देगा, \q और हमारी भूमि अपनी उपज देगी। \q \v 13 धर्म उसके आगे-आगे चलेगा, \q और उसके पाँवों के चिन्हों को हमारे लिये मार्ग बनाएगा। \s5 \c 86 \s विलाप और प्रार्थना \d दाऊद की प्रार्थना \b \q \v 1 हे यहोवा, कान लगाकर मेरी सुन ले, \q क्योंकि मैं दीन और दरिद्र हूँ। \q \v 2 मेरे प्राण की रक्षा कर, क्योंकि मैं भक्त हूँ; \q तू मेरा परमेश्‍वर है, इसलिए अपने दास का, \q जिसका भरोसा तुझ पर है, उद्धार कर। \q \s5 \v 3 हे प्रभु, मुझ पर अनुग्रह कर, \q क्योंकि मैं तुझी को लगातार पुकारता रहता हूँ। \q \v 4 अपने दास के मन को आनन्दित कर, \q क्योंकि हे प्रभु, मैं अपना मन तेरी ही ओर लगाता हूँ। \q \s5 \v 5 क्योंकि हे प्रभु, तू भला और क्षमा करनेवाला है, \q और जितने तुझे पुकारते हैं उन सभी के लिये तू अति करुणामय है। \q \v 6 हे यहोवा मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा, \q और मेरे गिड़गिड़ाने को ध्यान से सुन। \q \v 7 संकट के दिन मैं तुझको पुकारूँगा, \q क्योंकि तू मेरी सुन लेगा। \q \s5 \v 8 हे प्रभु, देवताओं में से कोई भी तेरे तुल्य नहीं, \q और न किसी के काम तेरे कामों के बराबर हैं। \q \v 9 हे प्रभु, जितनी जातियों को तूने बनाया है, \q सब आकर तेरे सामने दण्डवत् करेंगी, \q और तेरे नाम की महिमा करेंगी*। (प्रका. 15:4) \q \s5 \v 10 क्योंकि तू महान और आश्चर्यकर्म करनेवाला है, \q केवल तू ही परमेश्‍वर है। \q \v 11 हे यहोवा, अपना मार्ग मुझे सिखा, तब मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलूँगा, \q मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूँ। \q \v 12 हे प्रभु, हे मेरे परमेश्‍वर, मैं अपने सम्पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूँगा, \q और तेरे नाम की महिमा सदा करता रहूँगा। \q \s5 \v 13 क्योंकि तेरी करुणा मेरे ऊपर बड़ी है; \q और तूने मुझ को अधोलोक की तह में जाने से बचा लिया है। \q \v 14 हे परमेश्‍वर, अभिमानी लोग मेरे विरुद्ध उठ गए हैं, \q और उपद्रवियों का झुण्ड मेरे प्राण के खोजी हुए हैं, \q और वे तेरा कुछ विचार नहीं रखते। \q \s5 \v 15 परन्तु प्रभु दयालु और अनुग्रहकारी परमेश्‍वर है, \q तू विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करुणामय है। \q \v 16 मेरी ओर फिरकर मुझ पर अनुग्रह कर; \q अपने दास को तू शक्ति दे*, \q और अपनी दासी के पुत्र का उद्धार कर। \q \v 17 मुझे भलाई का कोई चिन्ह दिखा, \q जिसे देखकर मेरे बैरी निराश हों, \q क्योंकि हे यहोवा, तूने आप मेरी सहायता की \q और मुझे शान्ति दी है। \s5 \c 87 \s परमेश्‍वर का नगर सिय्योन की स्तुति में \d कोरहवंशियों का भजन \b \q \v 1 उसकी नींव पवित्र पर्वतों में है; \q \v 2 और यहोवा सिय्योन के फाटकों से याकूब के सारे निवासों से बढ़कर प्रीति रखता है। \q \v 3 हे परमेश्‍वर के नगर, \q तेरे विषय महिमा की बातें कही गई हैं। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 4 मैं अपने जान-पहचानवालों से रहब और बाबेल की भी चर्चा करूँगा; \q पलिश्त, सोर और कूश को देखो: \q “यह वहाँ उत्‍पन्‍न हुआ था*।” \q \s5 \v 5 और सिय्योन के विषय में यह कहा जाएगा, \q “इनमें से प्रत्येक का जन्म उसमें हुआ था।” \q और परमप्रधान आप ही उसको स्थिर रखे। \q \v 6 यहोवा जब देश-देश के लोगों के नाम लिखकर गिन लेगा, तब यह कहेगा, \q “यह वहाँ उत्‍पन्‍न हुआ था।” \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 7 गवैये और नृतक दोनों कहेंगे, \q “हमारे सब सोते तुझी में पाए जाते हैं।” \s5 \c 88 \s हताशा में मदद के लिए प्रार्थना गीत; \d कोरहवंशियों का भजन \d प्रधान बजानेवाले के लिये : महलतलग्नोत राग में एज्रावंशी हेमान का मश्कील \b \q \v 1 हे मेरे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर यहोवा, \q मैं दिन को और रात को तेरे आगे चिल्लाता आया हूँ। \q \v 2 मेरी प्रार्थना तुझ तक पहुँचे, \q मेरे चिल्लाने की ओर कान लगा! \q \s5 \v 3 क्योंकि मेरा प्राण क्लेश से भरा हुआ है, \q और मेरा प्राण अधोलोक के निकट पहुँचा है। \q \v 4 मैं कब्र में पड़नेवालों में गिना गया हूँ; \q मैं बलहीन पुरुष के समान हो गया हूँ। \q \s5 \v 5 मैं मुर्दों के बीच छोड़ा गया हूँ, \q और जो घात होकर कब्र में पड़े हैं, \q जिनको तू फिर स्मरण नहीं करता \q और वे तेरी सहायता रहित हैं, \q उनके समान मैं हो गया हूँ। \q \v 6 तूने मुझे गड्ढे के तल ही में, \q अंधेरे और गहरे स्थान में रखा है। \q \s5 \v 7 तेरी जलजलाहट मुझी पर बनी हुई है*, \q और तूने अपने सब तरंगों से मुझे दुःख दिया है। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 8 तूने मेरे पहचानवालों को मुझसे दूर किया है; \q और मुझ को उनकी दृष्टि में घिनौना किया है। \q मैं बन्दी हूँ और निकल नहीं सकता; (अय्यू.19:13, भजन 31:11, लूका 23:49) \q \s5 \v 9 दुःख भोगते-भोगते मेरी आँखें धुँधला गई। \q हे यहोवा, मैं लगातार तुझे पुकारता और अपने हाथ तेरी ओर फैलाता आया हूँ। \q \v 10 क्या तू मुर्दों के लिये अद्भुत काम करेगा? \q क्या मरे लोग उठकर तेरा धन्यवाद करेंगे? \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 11 क्या कब्र में तेरी करुणा का, \q और विनाश की दशा में तेरी सच्चाई का वर्णन किया जाएगा? \q \v 12 क्या तेरे अद्भुत काम अंधकार में, \q या तेरा धर्म विश्वासघात की दशा में जाना जाएगा? \q \s5 \v 13 परन्तु हे यहोवा, मैंने तेरी दुहाई दी है; \q और भोर को मेरी प्रार्थना तुझ तक पहुँचेगी। \q \v 14 हे यहोवा, तू मुझ को क्यों छोड़ता है? \q तू अपना मुख मुझसे क्यों छिपाता रहता है? \q \s5 \v 15 मैं बचपन ही से दुःखी वरन् अधमुआ हूँ, \q तुझ से भय खाते* मैं अति व्याकुल हो गया हूँ। \q \v 16 तेरा क्रोध मुझ पर पड़ा है; \q उस भय से मैं मिट गया हूँ। \q \s5 \v 17 वह दिन भर जल के समान मुझे घेरे रहता है; \q वह मेरे चारों ओर दिखाई देता है। \q \v 18 तूने मित्र और भाईबन्धु दोनों को मुझसे दूर किया है; \q और मेरे जान-पहचानवालों को अंधकार में डाल दिया है। \s5 \c 89 \s1 राष्ट्रीय विपत्ति के समय स्तुतिगान \d एतान एज्रावंशी का मश्कील \b \q \v 1 मैं यहोवा की सारी करुणा के विषय सदा गाता रहूँगा; \q मैं तेरी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बताता रहूँगा। \q \v 2 क्योंकि मैंने कहा, “तेरी करुणा सदा बनी रहेगी, \q तू स्वर्ग में अपनी सच्चाई को स्थिर रखेगा।” \q \s5 \v 3 तूने कहा, “मैंने अपने चुने हुए से वाचा बाँधी है, \q मैंने अपने दास दाऊद से शपथ खाई है, \q \v 4 ‘मैं तेरे वंश को सदा स्थिर रखूँगा*; \q और तेरी राजगद्दी को पीढ़ी-पीढ़ी तक बनाए रखूँगा’।” \qs (सेला) \qs (यूह. 7:42, 2 शमू. 7:11-16) \q \s5 \v 5 हे यहोवा, स्वर्ग में तेरे अद्भुत काम की, \q और पवित्रों की सभा में तेरी सच्चाई की प्रशंसा होगी। \q \v 6 क्योंकि आकाशमण्डल में यहोवा के तुल्य कौन ठहरेगा? \q बलवन्तों के पुत्रों में से कौन है जिसके साथ यहोवा की उपमा दी जाएगी? \q \s5 \v 7 परमेश्‍वर पवित्र लोगों की गोष्ठी में अत्यन्त प्रतिष्ठा के योग्य, \q और अपने चारों ओर सब रहनेवालों से अधिक भययोग्य है। (2 थिस्सलु. 1:10, भजन 76:7,11) \q \v 8 हे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा, \q हे यहोवा, तेरे तुल्य कौन सामर्थी है? \q तेरी सच्चाई तो तेरे चारों ओर है! \q \s5 \v 9 समुद्र के गर्व को तू ही तोड़ता है; \q जब उसके तरंग उठते हैं, तब तू उनको शान्त कर देता है। \q \v 10 तूने रहब को घात किए हुए के समान कुचल डाला, \q और अपने शत्रुओं को अपने बाहुबल से तितर-बितर किया है। (लूका 1:51, यह 51:9) \q \s5 \v 11 आकाश तेरा है, पृथ्वी भी तेरी है; \q जगत और जो कुछ उसमें है, उसे तू ही ने स्थिर किया है। (1 कुरि. 10:26, भजन 24:1-2) \q \v 12 उत्तर और दक्षिण को तू ही ने सिरजा; \q ताबोर और हेर्मोन तेरे नाम का जयजयकार करते हैं। \q \s5 \v 13 तेरी भुजा बलवन्त है; \q तेरा हाथ शक्तिमान और तेरा दाहिना हाथ प्रबल है। \q \v 14 तेरे सिंहासन का मूल, धर्म और न्याय है; \q करुणा और सच्चाई तेरे आगे-आगे चलती है। \q \s5 \v 15 क्या ही धन्य है वह समाज जो आनन्द के ललकार को पहचानता है; \q हे यहोवा, वे लोग तेरे मुख के प्रकाश में चलते हैं, \q \v 16 वे तेरे नाम के हेतु दिन भर मगन रहते हैं, \q और तेरे धर्म के कारण महान हो जाते हैं। \q \s5 \v 17 क्योंकि तू उनके बल की शोभा है, \q और अपनी प्रसन्नता से हमारे सींग को ऊँचा करेगा। \q \v 18 क्योंकि हमारी ढाल यहोवा की ओर से है, \q हमारा राजा इस्राएल के पवित्र की ओर से है। \q \s5 \v 19 एक समय तूने अपने भक्त को दर्शन देकर बातें की; \q और कहा, “मैंने सहायता करने का भार एक वीर पर रखा है, \q और प्रजा में से एक को चुनकर बढ़ाया है। \q \v 20 मैंने अपने दास दाऊद को लेकर, \q अपने पवित्र तेल से उसका अभिषेक किया है। (प्रेरि. 13:22) \q \v 21 मेरा हाथ उसके साथ बना रहेगा, \q और मेरी भुजा उसे दृढ़ रखेगी। \q \v 22 शत्रु उसको तंग करने न पाएगा, \q और न कुटिल जन उसको दुःख देने पाएगा। \q \v 23 मैं उसके शत्रुओं को उसके सामने से नाश करूँगा, \q और उसके बैरियों पर विपत्ति डालूँगा। \q \s5 \v 24 परन्तु मेरी सच्चाई और करुणा उस पर बनी रहेंगी, \q और मेरे नाम के द्वारा उसका सींग ऊँचा हो जाएगा। \q \v 25 मैं समुद्र को उसके हाथ के नीचे \q और महानदों को उसके दाहिने हाथ के नीचे कर दूँगा। \q \v 26 वह मुझे पुकारकर कहेगा, ‘तू मेरा पिता है, \q मेरा परमेश्‍वर और मेरे उद्धार की चट्टान है।’ (1 पत. 1:17, प्रका. 21:7) \q \s5 \v 27 फिर मैं उसको अपना पहलौठा, \q और पृथ्वी के राजाओं पर प्रधान ठहराऊँगा। (प्रका. 1:5, प्रका. 17:18) \q \v 28 मैं अपनी करुणा उस पर सदा बनाए रहूँगा*, \q और मेरी वाचा उसके लिये अटल रहेगी। \q \v 29 मैं उसके वंश को सदा बनाए रखूँगा, \q और उसकी राजगद्दी स्वर्ग के समान सर्वदा बनी रहेगी। \q \s5 \v 30 यदि उसके वंश के लोग मेरी व्यवस्था को छोड़ें \q और मेरे नियमों के अनुसार न चलें, \q \v 31 यदि वे मेरी विधियों का उल्लंघन करें, \q और मेरी आज्ञाओं को न मानें, \q \v 32 तो मैं उनके अपराध का दण्ड सोंटें से, \q और उनके अधर्म का दण्ड कोड़ों से दूँगा। \q \s5 \v 33 परन्तु मैं अपनी करुणा उस पर से न हटाऊँगा, \q और न सच्चाई त्याग कर झूठा ठहरूँगा। \q \v 34 मैं अपनी वाचा न तोड़ूँगा, \q और जो मेरे मुँह से निकल चुका है, उसे न बदलूँगा। \q \s5 \v 35 एक बार मैं अपनी पवित्रता की शपथ खा चुका हूँ; \q मैं दाऊद को कभी धोखा न दूँगा*। \q \v 36 उसका वंश सर्वदा रहेगा, \q और उसकी राजगद्दी सूर्य के समान मेरे सम्मुख ठहरी रहेगी। (लूका 1:32-33) \q \v 37 वह चन्द्रमा के समान, \q और आकाशमण्डल के विश्वासयोग्य साक्षी के समान सदा बना रहेगा।” \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 38 तो भी तूने अपने अभिषिक्त को छोड़ा और उसे तज दिया, \q और उस पर अति क्रोध किया है। \q \v 39 तूने अपने दास के साथ की वाचा को त्याग दिया, \q और उसके मुकुट को भूमि पर गिराकर अशुद्ध किया है। \q \v 40 तूने उसके सब बाड़ों को तोड़ डाला है, \q और उसके गढ़ों को उजाड़ दिया है। \q \s5 \v 41 सब बटोही उसको लूट लेते हैं, \q और उसके पड़ोसियों से उसकी नामधराई होती है। \q \v 42 तूने उसके विरोधियों को प्रबल किया; \q और उसके सब शत्रुओं को आनन्दित किया है। \q \v 43 फिर तू उसकी तलवार की धार को मोड़ देता है, \q और युद्ध में उसके पाँव जमने नहीं देता। \q \s5 \v 44 तूने उसका तेज हर लिया है, \q और उसके सिंहासन को भूमि पर पटक दिया है। \q \v 45 तूने उसकी जवानी को घटाया, \q और उसको लज्जा से ढाँप दिया है। \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 46 हे यहोवा, तू कब तक लगातार मुँह फेरे रहेगा, \q तेरी जलजलाहट कब तक आग के समान भड़की रहेगी। \q \v 47 मेरा स्मरण कर, कि मैं कैसा अनित्य हूँ, \q तूने सब मनुष्यों को क्यों व्यर्थ सिरजा है? \q \v 48 कौन पुरुष सदा अमर रहेगा? \q क्या कोई अपने प्राण को अधोलोक से बचा सकता है? \qs (सेला) \qs \q \s5 \v 49 हे प्रभु, तेरी प्राचीनकाल की करुणा कहाँ रही*, \q जिसके विषय में तूने अपनी सच्चाई की शपथ दाऊद से खाई थी? \q \v 50 हे प्रभु, अपने दासों की नामधराई की सुधि ले; \q मैं तो सब सामर्थी जातियों का बोझ लिए रहता हूँ। \q \v 51 तेरे उन शत्रुओं ने तो हे यहोवा, \q तेरे अभिषिक्त के पीछे पड़कर उसकी नामधराई की है। \q \s5 \v 52 यहोवा सर्वदा धन्य रहेगा! \q आमीन फिर आमीन। \s5 \c 90 \ms1 चौथा भाग \mr भजन 90—106 \s अनन्त परमेश्‍वर और नश्वर मनुष्य \d परमेश्‍वर के जन मूसा की प्रार्थना \b \q \v 1 हे प्रभु, तू पीढ़ी से पीढ़ी तक हमारे लिये धाम बना है। \q \v 2 इससे पहले कि पहाड़ उत्‍पन्‍न हुए, \q या तूने पृथ्वी और जगत की रचना की, \q वरन् अनादिकाल से अनन्तकाल तक तू ही परमेश्‍वर है। \q \s5 \v 3 तू मनुष्य को लौटाकर मिट्टी में ले जाता है, \q और कहता है, “हे आदमियों, लौट आओ!” \q \v 4 क्योंकि हजार वर्ष तेरी दृष्टि में ऐसे हैं, \q जैसा कल का दिन जो बीत गया, \q या रात का एक पहर। (2 पत. 3:8) \q \s5 \v 5 तू मनुष्यों को धारा में बहा देता है; \q वे स्वप्न से ठहरते हैं, \q वे भोर को बढ़नेवाली घास के समान होते हैं। \q \v 6 वह भोर को फूलती और बढ़ती है, \q और सांझ तक कटकर मुर्झा जाती है। \q \s5 \v 7 क्योंकि हम तेरे क्रोध से भस्म हुए हैं; \q और तेरी जलजलाहट से घबरा गए हैं। \q \v 8 तूने हमारे अधर्म के कामों को अपने सम्मुख, \q और हमारे छिपे हुए पापों को अपने मुख की ज्योति में रखा है*। \q \s5 \v 9 क्योंकि हमारे सब दिन तेरे क्रोध में बीत जाते हैं, \q हम अपने वर्ष शब्द के समान बिताते हैं। \q \v 10 हमारी आयु के वर्ष सत्तर तो होते हैं, \q और चाहे बल के कारण अस्सी वर्ष भी हो जाएँ, \q तो भी उनका घमण्ड केवल कष्ट और शोक ही शोक है; \q क्योंकि वह जल्दी कट जाती है, और हम जाते रहते हैं। \q \s5 \v 11 तेरे क्रोध की शक्ति को \q और तेरे भय के योग्य तेरे रोष को कौन समझता है? \q \v 12 हमको अपने दिन गिनने की समझ दे* कि हम बुद्धिमान हो जाएँ। \q \v 13 हे यहोवा, लौट आ! कब तक? \q और अपने दासों पर तरस खा! \q \s5 \v 14 भोर को हमें अपनी करुणा से तृप्त कर, \q कि हम जीवन भर जयजयकार और आनन्द करते रहें। \q \v 15 जितने दिन तू हमें दुःख देता आया, \q और जितने वर्ष हम क्लेश भोगते आए हैं \q उतने ही वर्ष हमको आनन्द दे। \q \v 16 तेरा काम तेरे दासों को, \q और तेरा प्रताप उनकी सन्तान पर प्रगट हो। \q \s5 \v 17 हमारे परमेश्‍वर यहोवा की मनोहरता हम पर प्रगट हो, \q तू हमारे हाथों का काम हमारे लिये दृढ़ कर, \q हमारे हाथों के काम को दृढ़ कर। \s5 \c 91 \s परमेश्‍वर हमारा रक्षक \b \q \v 1 जो परमप्रधान के छाए हुए स्थान में बैठा रहे, \q वह सर्वशक्तिमान की छाया में ठिकाना पाएगा। \q \v 2 मैं यहोवा के विषय कहूँगा, “वह मेरा शरणस्थान और गढ़ है; \q वह मेरा परमेश्‍वर है, जिस पर मैं भरोसा रखता हूँ” \q \s5 \v 3 वह तो तुझे बहेलिये के जाल से, \q और महामारी से बचाएगा*; \q \v 4 वह तुझे अपने पंखों की आड़ में ले लेगा, \q और तू उसके परों के नीचे शरण पाएगा; \q उसकी सच्चाई तेरे लिये ढाल और झिलम ठहरेगी। \q \s5 \v 5 तू न रात के भय से डरेगा, \q और न उस तीर से जो दिन को उड़ता है, \q \v 6 न उस मरी से जो अंधेरे में फैलती है, \q और न उस महारोग से जो दिन-दुपहरी में उजाड़ता है। \q \v 7 तेरे निकट हजार, \q और तेरी दाहिनी ओर दस हजार गिरेंगे; \q परन्तु वह तेरे पास न आएगा। \q \s5 \v 8 परन्तु तू अपनी आँखों की दृष्टि करेगा* \q और दुष्टों के अन्त को देखेगा। \q \v 9 हे यहोवा, तू मेरा शरणस्थान ठहरा है। \q तूने जो परमप्रधान को अपना धाम मान लिया है, \q \s5 \v 10 इसलिए कोई विपत्ति तुझ पर न पड़ेगी, \q न कोई दुःख तेरे डेरे के निकट आएगा।। \q \v 11 क्योंकि वह अपने दूतों को तेरे निमित्त आज्ञा देगा, \q कि जहाँ कहीं तू जाए वे तेरी रक्षा करें। \q \s5 \v 12 वे तुझको हाथों हाथ उठा लेंगे, \q ऐसा न हो कि तेरे पाँवों में पत्थर से ठेस लगे। (मत्ती 4:6, लूका 4:10,11, इब्रा. 1:14) \q \v 13 तू सिंह और नाग को कुचलेगा, \q तू जवान सिंह और अजगर को लताड़ेगा। \q \s5 \v 14 उसने जो मुझसे स्नेह किया है, इसलिए मैं उसको छुड़ाऊँगा; \q मैं उसको ऊँचे स्थान पर रखूँगा, क्योंकि उसने मेरे नाम को जान लिया है। \q \v 15 जब वह मुझ को पुकारे, तब मैं उसकी सुनूँगा; \q संकट में मैं उसके संग रहूँगा, \q मैं उसको बचाकर उसकी महिमा बढ़ाऊँगा। \q \v 16 मैं उसको दीर्घायु से तृप्त करूँगा, \q और अपने किए हुए उद्धार का दर्शन दिखाऊँगा। \s5 \c 92 \s स्तुति का गीत भजन \d विश्राम के दिन के लिये गीत \b \q \v 1 यहोवा का धन्यवाद करना भला है, \q हे परमप्रधान, तेरे नाम का भजन गाना; \q \v 2 प्रातःकाल को तेरी करुणा, \q और प्रति रात तेरी सच्चाई* का प्रचार करना, \q \v 3 दस तारवाले बाजे और सारंगी पर, \q और वीणा पर गम्भीर स्वर से गाना भला है। \q \s5 \v 4 क्योंकि, हे यहोवा, तूने मुझ को अपने कामों से आनन्दित किया है; \q और मैं तेरे हाथों के कामों के कारण जयजयकार करूँगा। \q \v 5 हे यहोवा, तेरे काम क्या ही बड़े है! \q तेरी कल्पनाएँ बहुत गम्भीर है; (प्रका. 15:3, रोमी 11:33,34) \q \s5 \v 6 पशु समान मनुष्य इसको नहीं समझता, \q और मूर्ख इसका विचार नहीं करता: \q \v 7 कि दुष्ट जो घास के समान फूलते-फलते हैं, \q और सब अनर्थकारी जो प्रफुल्लित होते हैं, \q यह इसलिए होता है, कि वे सर्वदा के लिये नाश हो जाएँ, \q \s5 \v 8 परन्तु हे यहोवा, तू सदा विराजमान रहेगा। \q \v 9 क्योंकि हे यहोवा, तेरे शत्रु, हाँ तेरे शत्रु नाश होंगे; \q सब अनर्थकारी तितर-बितर होंगे। \q \s5 \v 10 परन्तु मेरा सींग तूने जंगली सांड के समान ऊँचा किया है; \q तूने ताजे तेल से मेरा अभिषेक किया है। \q \v 11 मैं अपने शत्रुओं पर दृष्टि करके, \q और उन कुकर्मियों का हाल मेरे विरुद्ध उठे थे, सुनकर सन्तुष्ट हुआ हूँ। \q \s5 \v 12 धर्मी लोग खजूर के समान फूले फलेंगे*, \q और लबानोन के देवदार के समान बढ़ते रहेंगे। \q \v 13 वे यहोवा के भवन में रोपे जाकर, \q हमारे परमेश्‍वर के आँगनों में फूले फलेंगे। \q \s5 \v 14 वे पुराने होने पर भी फलते रहेंगे, \q और रस भरे और लहलहाते रहेंगे, \q \v 15 जिससे यह प्रगट हो, कि यहोवा सच्चा है; \q वह मेरी चट्टान है, और उसमें कुटिलता कुछ भी नहीं। \s5 \c 93 \s परमेश्‍वर के राज्य की महिमा \b \q \v 1 यहोवा राजा है; उसने माहात्म्य का पहरावा पहना है; \q यहोवा पहरावा पहने हुए, और सामर्थ्य का फेटा बाँधे है। \q इस कारण जगत स्थिर है, वह नहीं टलने का। \q \v 2 हे यहोवा, तेरी राजगद्दी अनादिकाल से स्थिर है, \q तू सर्वदा से है। \q \s5 \v 3 हे यहोवा, महानदों का कोलाहल हो रहा है*, \q महानदों का बड़ा शब्द हो रहा है, \q महानद गरजते हैं। \q \v 4 महासागर के शब्द से, \q और समुद्र की महातरंगों से, \q विराजमान यहोवा अधिक महान है। \q \s5 \v 5 तेरी चितौनियाँ अति विश्वासयोग्य हैं; \q हे यहोवा, तेरे भवन को युग-युग पवित्रता ही शोभा देती है। \s5 \c 94 \s परमेश्‍वर धर्मी का शरणस्थान \b \q \v 1 हे यहोवा, हे पलटा लेनेवाले परमेश्‍वर, \q हे पलटा लेनेवाले परमेश्‍वर, अपना तेज दिखा! (व्य. 32:35) \q \v 2 हे पृथ्वी के न्यायी, उठ; \q और घमण्डियों को बदला दे! \q \s5 \v 3 हे यहोवा, दुष्ट लोग कब तक, \q दुष्ट लोग कब तक डींग मारते रहेंगे? \q \v 4 वे बकते और ढिठाई की बातें बोलते हैं, \q सब अनर्थकारी बड़ाई मारते हैं। \q \s5 \v 5 हे यहोवा, वे तेरी प्रजा को पीस डालते हैं, \q वे तेरे निज भाग को दुःख देते हैं। \q \v 6 वे विधवा और परदेशी का घात करते, \q और अनाथों को मार डालते हैं; \q \v 7 और कहते हैं, “यहोवा न देखेगा, \q याकूब का परमेश्‍वर विचार न करेगा।” \q \s5 \v 8 तुम जो प्रजा में पशु सरीखे हो, विचार करो; \q और हे मूर्खों तुम कब बुद्धिमान बनोगे*? \q \v 9 जिसने कान दिया, क्या वह आप नहीं सुनता? \q जिसने आँख रची, क्या वह आप नहीं देखता? \q \s5 \v 10 जो जाति-जाति को ताड़ना देता, और मनुष्य को ज्ञान सिखाता है, \q क्या वह न सुधारेगा? \q \v 11 यहोवा मनुष्य की कल्पनाओं को तो जानता है कि वे मिथ्या हैं। (1 कुरि. 3:20) \q \s5 \v 12 हे यहोवा, क्या ही धन्य है वह पुरुष जिसको तू ताड़ना देता है, \q और अपनी व्यवस्था सिखाता है, \q \v 13 क्योंकि तू उसको विपत्ति के दिनों में उस समय तक चैन देता रहता है, \q जब तक दुष्टों के लिये गड्ढा नहीं खोदा जाता*। \q \s5 \v 14 क्योंकि यहोवा अपनी प्रजा को न तजेगा, \q वह अपने निज भाग को न छोड़ेगा; (रोमि.11:1,2) \q \v 15 परन्तु न्याय फिर धर्म के अनुसार किया जाएगा, \q और सारे सीधे मनवाले उसके पीछे-पीछे हो लेंगे। \q \v 16 कुकर्मियों के विरुद्ध मेरी ओर कौन खड़ा होगा? \q मेरी ओर से अनर्थकारियों का कौन सामना करेगा? \q \s5 \v 17 यदि यहोवा मेरा सहायक न होता, \q तो क्षण भर में मुझे चुपचाप होकर रहना पड़ता। \q \v 18 जब मैंने कहा, “मेरा पाँव फिसलने लगा है*,” \q तब हे यहोवा, तेरी करुणा ने मुझे थाम लिया। \q \v 19 जब मेरे मन में बहुत सी चिन्ताएँ होती हैं, \q तब हे यहोवा, तेरी दी हुई शान्ति से मुझ को सुख होता है। (2 कुरि. 1:5) \q \s5 \v 20 क्या तेरे और दुष्टों के सिंहासन के बीच संधि होगी, \q जो कानून की आड़ में उत्पात मचाते हैं? \q \v 21 वे धर्मी का प्राण लेने को दल बाँधते हैं, \q और निर्दोष को प्राणदण्ड देते हैं। \q \s5 \v 22 परन्तु यहोवा मेरा गढ़, \q और मेरा परमेश्‍वर मेरी शरण की चट्टान ठहरा है। \q \v 23 उसने उनका अनर्थ काम उन्हीं पर लौटाया है, \q और वह उन्हें उन्हीं की बुराई के द्वारा सत्यानाश करेगा। \q हमारा परमेश्‍वर यहोवा उनको सत्यानाश करेगा। \s5 \c 95 \s स्तुतिगान \b \q \v 1 आओ हम यहोवा के लिये ऊँचे स्वर से गाएँ, \q अपने उद्धार की चट्टान का जयजयकार करें! \q \v 2 हम धन्यवाद करते हुए उसके सम्मुख आएँ, \q और भजन गाते हुए उसका जयजयकार करें। \q \v 3 क्योंकि यहोवा महान परमेश्‍वर है, \q और सब देवताओं के ऊपर महान राजा है। \q \s5 \v 4 पृथ्वी के गहरे स्थान उसी के हाथ में हैं; \q और पहाड़ों की चोटियाँ भी उसी की हैं। \q \v 5 समुद्र उसका है, और उसी ने उसको बनाया, \q और स्थल भी उसी के हाथ का रचा है। \q \s5 \v 6 आओ हम झुककर दण्डवत् करें, \q और अपने कर्ता यहोवा के सामने घुटने टेकें! \q \v 7 क्योंकि वही हमारा परमेश्‍वर है, \q और हम उसकी चराई की प्रजा, \q और उसके हाथ की भेड़ें हैं। \q भला होता, कि आज तुम उसकी बात सुनते! (निर्ग. 17:7) \q \s5 \v 8 अपना-अपना हृदय ऐसा कठोर मत करो, जैसा मरीबा में, \q व मस्सा के दिन जंगल में हुआ था, \q \v 9 जब तुम्हारे पुरखाओं ने मुझे परखा*, \q उन्होंने मुझ को जाँचा और मेरे काम को भी देखा। \q \s5 \v 10 चालीस वर्ष तक मैं उस पीढ़ी के लोगों से रूठा रहा, \q और मैंने कहा, “ये तो भरमनेवाले मन के हैं, \q और इन्होंने मेरे मार्गों को नहीं पहचाना।” \q \v 11 इस कारण मैंने क्रोध में आकर शपथ खाई कि \q ये मेरे विश्रामस्थान में कभी प्रवेश न करने पाएँगे*। (इब्रा 3:7-19) \s5 \c 96 \s परमेश्‍वर सर्वो‍च्च राजा \b \q \v 1 यहोवा के लिये एक नया गीत गाओ, \q हे सारी पृथ्वी के लोगों यहोवा के लिये गाओ! (प्रका. 5:9, भजन 33:3) \q \v 2 यहोवा के लिये गाओ, उसके नाम को धन्य कहो; \q दिन प्रतिदिन उसके किए हुए उद्धार का शुभ समाचार सुनाते रहो। \q \s5 \v 3 अन्यजातियों में उसकी महिमा का, \q और देश-देश के लोगों में उसके आश्चर्यकर्मों का वर्णन करो*। \q \v 4 क्योंकि यहोवा महान और अति स्तुति के योग्य है; \q वह तो सब देवताओं से अधिक भययोग्य है। \q \s5 \v 5 क्योंकि देश-देश के सब देवता तो मूरतें ही हैं; \q परन्तु यहोवा ही ने स्वर्ग को बनाया है। \q \v 6 उसके चारों ओर वैभव और ऐश्वर्य है; \q उसके पवित्रस्‍थान में सामर्थ्य और शोभा है। \q \s5 \v 7 हे देश-देश के कुल के लोगों, यहोवा का गुणानुवाद करो, \q यहोवा की महिमा और सामर्थ्य को मानो! \q \v 8 यहोवा के नाम की ऐसी महिमा करो जो उसके योग्य है; \q भेंट लेकर उसके आँगनों में आओ! \q \s5 \v 9 पवित्रता से शोभायमान होकर यहोवा को दण्डवत् करो; \q हे सारी पृथ्वी के लोगों उसके सामने काँपते रहो*! \q \v 10 जाति-जाति में कहो, “यहोवा राजा हुआ है! \q और जगत ऐसा स्थिर है, कि वह टलने का नहीं; \q वह देश-देश के लोगों का न्याय खराई से करेगा।” \q \s5 \v 11 आकाश आनन्द करे, और पृथ्वी मगन हो; \q समुद्र और उसमें की सब वस्तुएँ गरज उठें; \q \v 12 मैदान और जो कुछ उसमें है, वह प्रफुल्लित हो; \q उसी समय वन के सारे वृक्ष जयजयकार करेंगे। \q \v 13 यह यहोवा के सामने हो, क्योंकि वह आनेवाला है। \q वह पृथ्वी का न्याय करने को आनेवाला है, वह धर्म से जगत का, \q और सच्चाई से देश-देश के लोगों का न्याय करेगा। (प्रेरि. 17:31) \s5 \c 97 \s परमेश्‍वर सर्वो‍च्च शासक \b \q \v 1 यहोवा राजा हुआ है, पृथ्वी मगन हो; \q और द्वीप जो बहुत से हैं, वह भी आनन्द करें! (प्रका. 19:7) \q \v 2 बादल और अंधकार उसके चारों ओर हैं; \q उसके सिंहासन का मूल धर्म और न्याय है। \q \s5 \v 3 उसके आगे-आगे आग चलती हुई* \q उसके विरोधियों को चारों ओर भस्म करती है। (प्रका. 11:5) \q \v 4 उसकी बिजलियों से जगत प्रकाशित हुआ, \q पृथ्वी देखकर थरथरा गई है! \q \v 5 पहाड़ यहोवा के सामने, \q मोम के समान पिघल गए, \q अर्थात् सारी पृथ्वी के परमेश्‍वर के सामने। \q \s5 \v 6 आकाश ने उसके धर्म की साक्षी दी; \q और देश-देश के सब लोगों ने उसकी महिमा देखी है। \q \v 7 जितने खुदी हुई मूर्तियों की उपासना करते \q और मूरतों पर फूलते हैं, वे लज्जित हों; \q हे सब देवताओं तुम उसी को दण्डवत् करो। \q \v 8 सिय्योन सुनकर आनन्दित हुई, \q और यहूदा की बेटियाँ मगन हुई; \q हे यहोवा, यह तेरे नियमों के कारण हुआ। \q \s5 \v 9 क्योंकि हे यहोवा, तू सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है; \q तू सारे देवताओं से अधिक महान ठहरा है। (यूह. 3:31) \q \v 10 हे यहोवा के प्रेमियों, बुराई से घृणा करो; \q वह अपने भक्तों के प्राणों की रक्षा करता*, \q और उन्हें दुष्टों के हाथ से बचाता है। \q \v 11 धर्मी के लिये ज्योति, \q और सीधे मनवालों के लिये आनन्द बोया गया है। \q \s5 \v 12 हे धर्मियों, यहोवा के कारण आनन्दित हो; \q और जिस पवित्र नाम से उसका स्मरण होता है, उसका धन्यवाद करो! \s5 \c 98 \s1 उद्धार और न्याय के लिये स्तुतिगान \d भजन \b \q \v 1 यहोवा के लिये एक नया गीत गाओ, \q क्योंकि उसने आश्चर्यकर्मों किए है! \q उसके दाहिने हाथ और पवित्र भुजा ने उसके लिये उद्धार किया है! \q \v 2 यहोवा ने अपना किया हुआ उद्धार प्रकाशित किया, \q उसने अन्यजातियों की दृष्टि में अपना धर्म प्रगट किया है। \q \s5 \v 3 उसने इस्राएल के घराने पर की अपनी करुणा \q और सच्चाई की सुधि ली, \q और पृथ्वी के सब दूर-दूर देशों ने हमारे परमेश्‍वर का किया हुआ उद्धार देखा है। (लूका 1:54, प्रेरि. 28:28) \q \v 4 हे सारी पृथ्वी* के लोगों, यहोवा का जयजयकार करो; \q उत्साहपूर्वक जयजयकार करो, और भजन गाओ! (यशा. 44:23) \q \s5 \v 5 वीणा बजाकर यहोवा का भजन गाओ, \q वीणा बजाकर भजन का स्वर सुनाओं। \q \v 6 तुरहियां और नरसिंगे फूँक फूँककर \q यहोवा राजा का जयजयकार करो। \q \s5 \v 7 समुद्र और उसमें की सब वस्तुएँ गरज उठें; \q जगत और उसके निवासी महाशब्द करें! \q \v 8 नदियाँ तालियाँ बजाएँ; \q पहाड़ मिलकर जयजयकार करें। \q \v 9 यह यहोवा के सामने हो, क्योंकि वह पृथ्वी का न्याय करने को आनेवाला है। \q वह धर्म से जगत का, \q और सच्चाई से देश-देश के लोगों का न्याय करेगा। (प्रेरि. 17:31) \s5 \c 99 \s पवित्रता के लिये स्तुतिगान \b \q \v 1 यहोवा राजा हुआ है; देश-देश के लोग काँप उठें! \q वह करूबों पर विराजमान है; पृथ्वी डोल उठे! (प्रका. 11:18, प्रका. 19:6) \q \v 2 यहोवा सिय्योन में महान है; \q और वह देश-देश के लोगों के ऊपर प्रधान है। \q \v 3 वे तेरे महान और भययोग्य नाम का धन्यवाद करें! \q वह तो पवित्र है। \q \s5 \v 4 राजा की सामर्थ्य न्याय से मेल रखती है, \q तू ही ने सच्चाई को स्थापित किया; \q न्याय और धर्म को याकूब में तू ही ने चालू किया है। \q \v 5 हमारे परमेश्‍वर यहोवा को सराहो; \q और उसके चरणों की चौकी के सामने दण्डवत् करो! \q वह पवित्र है! \q \s5 \v 6 उसके याजकों में मूसा और हारून, \q और उसके प्रार्थना करनेवालों में से शमूएल यहोवा को पुकारते थे*, और वह उनकी सुन लेता था। \q \v 7 वह बादल के खम्भे में होकर उनसे बातें करता था; \q और वे उसकी चितौनियों और उसकी दी हुई विधियों पर चलते थे। \q \s5 \v 8 हे हमारे परमेश्‍वर यहोवा, तू उनकी सुन लेता था; \q तू उनके कामों का पलटा तो लेता था \q तो भी उनके लिये क्षमा करनेवाला परमेश्‍वर था। \q \v 9 हमारे परमेश्‍वर यहोवा को सराहो, \q और उसके पवित्र पर्वत पर दण्डवत् करो; \q क्योंकि हमारा परमेश्‍वर यहोवा पवित्र है! \s5 \c 100 \s परमेश्‍वर की स्तुति का गीत \d धन्यवाद का भजन \b \q \v 1 हे सारी पृथ्वी के लोगों, यहोवा का जयजयकार करो! \q \v 2 आनन्द से यहोवा की आराधना करो! \q जयजयकार के साथ उसके सम्मुख आओ! \q \s5 \v 3 निश्चय जानो कि यहोवा ही परमेश्‍वर है \q उसी ने हमको बनाया, और हम उसी के हैं; \q हम उसकी प्रजा, और उसकी चराई की भेड़ें हैं*। \q \s5 \v 4 उसके फाटकों में धन्यवाद, \q और उसके आँगनों में स्तुति करते हुए प्रवेश करो, \q उसका धन्यवाद करो, और उसके नाम को धन्य कहो! \q \v 5 क्योंकि यहोवा भला है, उसकी करुणा सदा के लिये, \q और उसकी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है। \s5 \c 101 \s1 विश्वासयोग्य जीवन बिताने का संकल्प \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 मैं करुणा और न्याय के विषय गाऊँगा; \q हे यहोवा, मैं तेरा ही भजन गाऊँगा। \q \s5 \v 2 मैं बुद्धिमानी से खरे मार्ग में चलूँगा। \q तू मेरे पास कब आएगा? \q मैं अपने घर में मन की खराई के साथ अपनी चाल चलूँगा; \q \v 3 मैं किसी ओछे काम पर चित्त न लगाऊँगा*। \q मैं कुमार्ग पर चलनेवालों के काम से घिन रखता हूँ; \q ऐसे काम में मैं न लगूँगा। \q \s5 \v 4 टेढ़ा स्वभाव मुझसे दूर रहेगा; \q मैं बुराई को जानूँगा भी नहीं। \q \v 5 जो छिपकर अपने पड़ोसी की चुगली खाए, \q उसका मैं सत्यानाश करूँगा*; \q जिसकी आँखें चढ़ी हों और जिसका मन घमण्डी है, उसकी मैं न सहूँगा। \q \v 6 मेरी आँखें देश के विश्वासयोग्य लोगों पर लगी रहेंगी कि वे मेरे संग रहें; \q जो खरे मार्ग पर चलता है वही मेरा सेवक होगा। \q \s5 \v 7 जो छल करता है वह मेरे घर के भीतर न रहने पाएगा; \q जो झूठ बोलता है वह मेरे सामने बना न रहेगा। \q \v 8 प्रति भोर, मैं देश के सब दुष्टों का सत्यानाश किया करूँगा, \q ताकि यहोवा के नगर के सब अनर्थकारियों को नाश करूँ। \s5 \c 102 \s संकट में पड़े युवक की प्रार्थना \d दीन जन की उस समय की प्रार्थना जब वह दुःख का मारा अपने शोक की बातें यहोवा के सामने खोलकर कहता हो \b \q \v 1 हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन; \q मेरी दुहाई तुझ तक पहुँचे! \q \v 2 मेरे संकट के दिन अपना मुख मुझसे न छिपा ले; \q अपना कान मेरी ओर लगा; \q जिस समय मैं पुकारूँ, उसी समय फुर्ती से मेरी सुन ले! \q \s5 \v 3 क्योंकि मेरे दिन धुएँ के समान उड़े जाते हैं, \q और मेरी हड्डियाँ आग के समान जल गई हैं*। \q \v 4 मेरा मन झुलसी हुई घास के समान सूख गया है; \q और मैं अपनी रोटी खाना भूल जाता हूँ। \q \s5 \v 5 कराहते-कराहते मेरी चमड़ी हड्डियों में सट गई है। \q \v 6 मैं जंगल के धनेश के समान हो गया हूँ, \q मैं उजड़े स्थानों के उल्लू के समान बन गया हूँ। \q \s5 \v 7 मैं पड़ा-पड़ा जागता रहता हूँ और गौरे के समान हो गया हूँ \q जो छत के ऊपर अकेला बैठता है। \q \v 8 मेरे शत्रु लगातार मेरी नामधराई करते हैं, \q जो मेरे विरुद्ध ठट्ठा करते है, \q वह मेरे नाम से श्राप देते हैं। \q \s5 \v 9 क्योंकि मैंने रोटी के समान राख खाई और आँसू मिलाकर पानी पीता हूँ। \q \v 10 यह तेरे क्रोध और कोप के कारण हुआ है, \q क्योंकि तूने मुझे उठाया, और फिर फेंक दिया है। \q \s5 \v 11 मेरी आयु ढलती हुई छाया के समान है; \q और मैं आप घास के समान सूख चला हूँ। \q \v 12 परन्तु हे यहोवा, तू सदैव विराजमान रहेगा; \q और जिस नाम से तेरा स्मरण होता है, \q वह पीढ़ी से पीढ़ी तक बना रहेगा। \q \s5 \v 13 तू उठकर सिय्योन पर दया करेगा; \q क्योंकि उस पर दया करने का ठहराया हुआ समय आ पहुँचा है*। \q \v 14 क्योंकि तेरे दास उसके पत्थरों को चाहते हैं, \q और उसके खंडहरों की धूल पर तरस खाते हैं। \q \v 15 इसलिए जाति-जाति यहोवा के नाम का भय मानेंगी, \q और पृथ्वी के सब राजा तेरे प्रताप से डरेंगे। \q \v 16 क्योंकि यहोवा ने सिय्योन को फिर बसाया है, \q और वह अपनी महिमा के साथ दिखाई देता है; \q \s5 \v 17 वह लाचार की प्रार्थना की ओर मुँह करता है, \q और उनकी प्रार्थना को तुच्छ नहीं जानता। \q \v 18 यह बात आनेवाली पीढ़ी के लिये लिखी जाएगी, \q ताकि एक जाति जो उत्‍पन्‍न होगी, वह यहोवा की स्तुति करे। \q \s5 \v 19 क्योंकि यहोवा ने अपने ऊँचे और पवित्रस्‍थान से दृष्टि की; \q स्वर्ग से पृथ्वी की ओर देखा है, \q \v 20 ताकि बन्दियों का कराहना सुने, \q और घात होनेवालों के बन्धन खोले; \q \s5 \v 21 तब लोग सिय्योन में यहोवा के नाम का वर्णन करेंगे, \q और यरूशलेम में उसकी स्तुति की जाएगी; \q \v 22 यह उस समय होगा जब देश-देश, \q और राज्य-राज्य के लोग यहोवा की उपासना करने को इकट्ठे होंगे। \q \s5 \v 23 उसने मुझे जीवन यात्रा में दुःख देकर, \q मेरे बल और आयु को घटाया*। \q \v 24 मैंने कहा, “हे मेरे परमेश्‍वर, मुझे आधी आयु में न उठा ले, \q तेरे वर्ष पीढ़ी से पीढ़ी तक बने रहेंगे!” \q \s5 \v 25 आदि में तूने पृथ्वी की नींव डाली, \q और आकाश तेरे हाथों का बनाया हुआ है। \q \v 26 वह तो नाश होगा, परन्तु तू बना रहेगा; \q और वह सब कपड़े के समान पुराना हो जाएगा। \q तू उसको वस्त्र के समान बदलेगा, और वह मिट जाएगा; \q \v 27 परन्तु तू वहीं है, \q और तेरे वर्षों का अन्त न होगा। \q \s5 \v 28 तेरे दासों की सन्तान बनी रहेगी; \q और उनका वंश तेरे सामने स्थिर रहेगा। \s5 \c 103 \s1 परमेश्‍वर की दया के लिये स्तुतिगान \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 20 हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह; \q और जो कुछ मुझ में है, वह उसके पवित्र नाम को धन्य कहे! \q \v 2 हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह, \q और उसके किसी उपकार को न भूलना। \q \s5 \v 3 वही तो तेरे सब अधर्म को क्षमा करता, \q और तेरे सब रोगों को चंगा करता है, \q \v 4 वही तो तेरे प्राण को नाश होने से बचा लेता है*, \q और तेरे सिर पर करुणा और दया का मुकुट बाँधता है, \q \v 5 वही तो तेरी लालसा को उत्तम पदार्थों से तृप्त करता है, \q जिससे तेरी जवानी उकाब के समान नई हो जाती है। \q \s5 \v 6 यहोवा सब पिसे हुओं के लिये \q धर्म और न्याय के काम करता है। \q \v 7 उसने मूसा को अपनी गति, \q और इस्राएलियों पर अपने काम प्रगट किए। (भज. 147:19) \q \v 8 यहोवा दयालु और अनुग्रहकारी, विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करुणामय है (भज. 86:15, भज. 145:8) \q \s5 \v 9 वह सर्वदा वाद-विवाद करता न रहेगा*, \q न उसका क्रोध सदा के लिये भड़का रहेगा। \q \v 10 उसने हमारे पापों के अनुसार हम से व्यवहार नहीं किया, \q और न हमारे अधर्म के कामों के अनुसार हमको बदला दिया है। \q \s5 \v 11 जैसे आकाश पृथ्वी के ऊपर ऊँचा है, \q वैसे ही उसकी करुणा उसके डरवैयों के ऊपर प्रबल है। \q \v 12 उदयाचल अस्ताचल से जितनी दूर है, \q उसने हमारे अपराधों को हम से उतनी ही दूर कर दिया है। \q \v 13 जैसे पिता अपने बालकों पर दया करता है, \q वैसे ही यहोवा अपने डरवैयों पर दया करता है। \q \s5 \v 14 क्योंकि वह हमारी सृष्टि जानता है; \q और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही है। \q \v 15 मनुष्य की आयु घास के समान होती है, \q वह मैदान के फूल के समान फूलता है, \q \v 16 जो पवन लगते ही ठहर नहीं सकता, \q और न वह अपने स्थान में फिर मिलता है। \q \s5 \v 17 परन्तु यहोवा की करुणा उसके डरवैयों पर युग-युग, \q और उसका धर्म उनके नाती-पोतों पर भी प्रगट होता रहता है, (लूका 1:50) \q \v 18 अर्थात् उन पर जो उसकी वाचा का पालन करते \q और उसके उपदेशों को स्मरण करके उन पर चलते हैं। \q \v 19 यहोवा ने तो अपना सिंहासन स्वर्ग में स्थिर किया है, \q और उसका राज्य पूरी सृष्टि पर है। \q \s5 \v 20 हे यहोवा के दूतों, तुम जो बड़े वीर हो, \q और उसके वचन को मानते* और पूरा करते हो, \q उसको धन्य कहो! \q \v 21 हे यहोवा की सारी सेनाओं, हे उसके सेवकों, \q तुम जो उसकी इच्छा पूरी करते हो, उसको धन्य कहो! \q \v 22 हे यहोवा की सारी सृष्टि, \q उसके राज्य के सब स्थानों में उसको धन्य कहो। \q हे मेरे मन, तू यहोवा को धन्य कह! \s5 \c 104 \s सृष्टिकर्ता की स्तुति \b \q \v 1 हे मेरे मन, तू यहोवा को धन्य कह! \q हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा, \q तू अत्यन्त महान है! \q तू वैभव और ऐश्वर्य का वस्त्र पहने हुए है, \q \v 2 तू उजियाले को चादर के समान ओढ़े रहता है, \q और आकाश को तम्बू के समान ताने रहता है, \q \v 3 तू अपनी अटारियों की कड़ियाँ जल में धरता है, \q और मेघों को अपना रथ बनाता है, \q और पवन के पंखों पर चलता है, \q \s5 \v 4 तू पवनों को अपने दूत, \q और धधकती आग को अपने सेवक बनाता है। (इब्रा. 1:7) \q \v 5 तूने पृथ्वी को उसकी नींव पर स्थिर किया है, \q ताकि वह कभी न डगमगाए। \q \s5 \v 6 तूने उसको गहरे सागर से ढाँप दिया है जैसे वस्त्र से; \q जल पहाड़ों के ऊपर ठहर गया। \q \v 7 तेरी घुड़की से वह भाग गया; \q तेरे गरजने का शब्द सुनते ही, वह उतावली करके बह गया। \q \s5 \v 8 वह पहाड़ों पर चढ़ गया, और तराइयों के मार्ग से उस स्थान में उतर गया \q जिसे तूने उसके लिये तैयार किया था। \q \v 9 तूने एक सीमा ठहराई जिसको वह नहीं लाँघ सकता है, \q और न लौटकर स्थल को ढाँप सकता है। \q \s5 \v 10 तू तराइयों में सोतों को बहाता है*; \q वे पहाड़ों के बीच से बहते हैं, \q \v 11 उनसे मैदान के सब जीव-जन्तु जल पीते हैं; \q जंगली गदहे भी अपनी प्यास बुझा लेते हैं। \q \v 12 उनके पास आकाश के पक्षी बसेरा करते, \q और डालियों के बीच में से बोलते हैं। (मत्ती 13:32) \q \s5 \v 13 तू अपनी अटारियों में से पहाड़ों को सींचता है, \q तेरे कामों के फल से पृथ्वी तृप्त रहती है। \q \v 14 तू पशुओं के लिये घास, \q और मनुष्यों के काम के लिये अन्न आदि उपजाता है, \q और इस रीति भूमि से वह भोजन-वस्तुएँ उत्‍पन्‍न करता है \q \v 15 और दाखमधु जिससे मनुष्य का मन आनन्दित होता है, \q और तेल जिससे उसका मुख चमकता है, \q और अन्न जिससे वह सम्भल जाता है। \q \s5 \v 16 यहोवा के वृक्ष तृप्त रहते हैं, \q अर्थात् लबानोन के देवदार जो उसी के लगाए हुए हैं। \q \v 17 उनमें चिड़ियाँ अपने घोंसले बनाती हैं; \q सारस का बसेरा सनोवर के वृक्षों में होता है। \q \v 18 ऊँचे पहाड़ जंगली बकरों के लिये हैं; \q और चट्टानें शापानों के शरणस्थान हैं। \q \s5 \v 19 उसने नियत समयों के लिये चन्द्रमा को बनाया है*; \q सूर्य अपने अस्त होने का समय जानता है। \q \v 20 तू अंधकार करता है, तब रात हो जाती है; \q जिसमें वन के सब जीव-जन्तु घूमते-फिरते हैं। \q \s5 \v 21 जवान सिंह अहेर के लिये गर्जते हैं, \q और परमेश्‍वर से अपना आहार माँगते हैं। \q \v 22 सूर्य उदय होते ही वे चले जाते हैं \q और अपनी माँदों में विश्राम करते हैं। \q \s5 \v 23 तब मनुष्य अपने काम के लिये \q और संध्या तक परिश्रम करने के लिये निकलता है। \q \v 24 हे यहोवा, तेरे काम अनगिनत हैं! \q इन सब वस्तुओं को तूने बुद्धि से बनाया है; \q पृथ्वी तेरी सम्पत्ति से परिपूर्ण है। \q \s5 \v 25 इसी प्रकार समुद्र बड़ा और बहुत ही चौड़ा है, \q और उसमें अनगिनत जलचर जीव-जन्तु, \q क्या छोटे, क्या बड़े भरे पड़े हैं। \q \v 26 उसमें जहाज भी आते जाते हैं, \q और लिव्यातान भी जिसे तूने वहाँ खेलने के लिये बनाया है। \q \s5 \v 27 इन सब को तेरा ही आसरा है, \q कि तू उनका आहार समय पर दिया करे। \q \v 28 तू उन्हें देता है, वे चुन लेते हैं; \q तू अपनी मुट्ठी खोलता है और वे उत्तम पदार्थों से तृप्त होते हैं। \q \s5 \v 29 तू मुख फेर लेता है, और वे घबरा जाते हैं; \q तू उनकी साँस ले लेता है, और उनके प्राण छूट जाते हैं \q और मिट्टी में फिर मिल जाते हैं। \q \v 30 फिर तू अपनी ओर से साँस भेजता है, और वे सिरजे जाते हैं; \q और तू धरती को नया कर देता है*। \q \s5 \v 31 यहोवा की महिमा सदा काल बनी रहे, \q यहोवा अपने कामों से आनन्दित होवे! \q \v 32 उसकी दृष्टि ही से पृथ्वी काँप उठती है, \q और उसके छूते ही पहाड़ों से धुआँ निकलता है। \q \s5 \v 33 मैं जीवन भर यहोवा का गीत गाता रहूँगा; \q जब तक मैं बना रहूँगा तब तक अपने परमेश्‍वर का भजन गाता रहूँगा। \q \v 34 मेरे सोच-विचार उसको प्रिय लगे, \q क्योंकि मैं तो यहोवा के कारण आनन्दित रहूँगा। \q \s5 \v 35 पापी लोग पृथ्वी पर से मिट जाएँ, \q और दुष्ट लोग आगे को न रहें! \q हे मेरे मन यहोवा को धन्य कह! \q यहोवा की स्तुति करो! \s5 \c 105 \s परमेश्‍वर और उसके लोग \b \q \v 1 यहोवा का धन्यवाद करो, उससे प्रार्थना करो, \q देश-देश के लोगों में उसके कामों का प्रचार करो! \q \v 2 उसके लिये गीत गाओ, उसके लिये भजन गाओ, \q उसके सब आश्चर्यकर्मों का वर्णन करो! \q \v 3 उसके पवित्र नाम की बड़ाई करो; \q यहोवा के खोजियों का हृदय आनन्दित हो! \q \s5 \v 4 यहोवा और उसकी सामर्थ्य को खोजो, \q उसके दर्शन के लगातार खोजी बने रहो! \q \v 5 उसके किए हुए आश्चर्यकर्मों को स्मरण करो, \q उसके चमत्कार और निर्णय स्मरण करो! \q \v 6 हे उसके दास अब्राहम के वंश, \q हे याकूब की सन्तान, तुम तो उसके चुने हुए हो! \q \s5 \v 7 वही हमारा परमेश्‍वर यहोवा है; \q पृथ्वी भर में उसके निर्णय होते हैं। \q \v 8 वह अपनी वाचा को सदा स्मरण रखता आया है, \q यह वही वचन है जो उसने हजार पीढ़ियों के लिये ठहराया है; \q \s5 \v 9 वही वाचा जो उसने अब्राहम के साथ बाँधी, \q और उसके विषय में उसने इसहाक से शपथ खाई, (लूका 1:72,73) \q \v 10 और उसी को उसने याकूब के लिये विधि करके, \q और इस्राएल के लिये यह कहकर सदा की वाचा करके दृढ़ किया, \q \v 11 “मैं कनान देश को तुझी को दूँगा, वह बाँट में तुम्हारा निज भाग होगा।” \q \s5 \v 12 उस समय तो वे गिनती में थोड़े थे, वरन् बहुत ही थोड़े, \q और उस देश में परदेशी थे। \q \v 13 वे एक जाति से दूसरी जाति में, \q और एक राज्य से दूसरे राज्य में फिरते रहे; \q \s5 \v 14 परन्तु उसने किसी मनुष्य को उन पर अत्याचार करने न दिया; \q और वह राजाओं को उनके निमित्त यह धमकी देता था, \q \v 15 “मेरे अभिषिक्तों को मत छुओं*, \q और न मेरे नबियों की हानि करो!” \q \s5 \v 16 फिर उसने उस देश में अकाल भेजा, \q और अन्न के सब आधार को दूर कर दिया। \q \v 17 उसने यूसुफ नामक एक पुरुष को उनसे पहले भेजा था, \q जो दास होने के लिये बेचा गया था। \q \s5 \v 18 लोगों ने उसके पैरों में बेड़ियाँ डालकर उसे दुःख दिया; \q वह लोहे की साँकलों से जकड़ा गया; \q \v 19 जब तक कि उसकी बात पूरी न हुई \q तब तक यहोवा का वचन उसे कसौटी पर कसता रहा। \q \s5 \v 20 तब राजा ने दूत भेजकर उसे निकलवा लिया, \q और देश-देश के लोगों के स्वामी ने उसके बन्धन खुलवाए; \q \v 21 उसने उसको अपने भवन का प्रधान \q और अपनी पूरी सम्पत्ति का अधिकारी ठहराया, (प्रेरि. 7:10) \q \v 22 कि वह उसके हाकिमों को अपनी इच्छा के अनुसार नियंत्रित करे \q और पुरनियों को ज्ञान सिखाए। \q \v 23 फिर इस्राएल मिस्र में आया; \q और याकूब हाम के देश में रहा। \q \s5 \v 24 तब उसने अपनी प्रजा को गिनती में बहुत बढ़ाया, \q और उसके शत्रुओं से अधिक बलवन्त किया। \q \v 25 उसने मिस्रियों के मन को ऐसा फेर दिया, \q कि वे उसकी प्रजा से बैर रखने, \q और उसके दासों से छल करने लगे। \q \v 26 उसने अपने दास मूसा को, \q और अपने चुने हुए हारून को भेजा। \q \v 27 उन्होंने मिस्रियों के बीच उसकी ओर से भाँति-भाँति के चिन्ह, \q और हाम के देश में चमत्कार दिखाए। \q \s5 \v 28 उसने अंधकार कर दिया, और अंधियारा हो गया; \q और उन्होंने उसकी बातों को न माना। \q \v 29 उसने मिस्रियों के जल को लहू कर डाला, \q और मछलियों को मार डाला। \q \v 30 मेंढ़क उनकी भूमि में वरन् उनके राजा की कोठरियों में भी भर गए। \q \s5 \v 31 उसने आज्ञा दी, तब डांस आ गए, \q और उनके सारे देश में कुटकियाँ आ गईं। \q \v 32 उसने उनके लिये जलवृष्टि के बदले ओले, \q और उनके देश में धधकती आग बरसाई। \q \v 33 और उसने उनकी दाखलताओं और अंजीर के वृक्षों को \q वरन् उनके देश के सब पेड़ों को तोड़ डाला। \q \s5 \v 34 उसने आज्ञा दी तब अनगिनत टिड्डियाँ, और कीड़े आए, \q \v 35 और उन्होंने उनके देश के सब अन्न आदि को खा डाला; \q और उनकी भूमि के सब फलों को चट कर गए। \q \v 36 उसने उनके देश के सब पहलौठों को, \q उनके पौरूष के सब पहले फल को नाश किया। \q \s5 \v 37 तब वह इस्राएल को सोना चाँदी दिलाकर निकाल लाया, \q और उनमें से कोई निर्बल न था। \q \v 38 उनके जाने से मिस्री आनन्दित हुए, \q क्योंकि उनका डर उनमें समा गया था। \q \v 39 उसने छाया के लिये बादल फैलाया, \q और रात को प्रकाश देने के लिये आग प्रगट की। \q \s5 \v 40 उन्होंने माँगा तब उसने बटेरें पहुँचाई, \q और उनको स्वर्गीय भोजन से तृप्त किया। (यूह. 6:31) \q \v 41 उसने चट्टान फाड़ी तब पानी बह निकला; \q और निर्जल भूमि पर नदी बहने लगी। \q \v 42 क्योंकि उसने अपने पवित्र वचन \q और अपने दास अब्राहम को स्मरण किया*। \q \s5 \v 43 वह अपनी प्रजा को हर्षित करके \q और अपने चुने हुओं से जयजयकार कराके निकाल लाया। \q \v 44 और उनको जाति-जाति के देश दिए; \q और वे अन्य लोगों के श्रम के फल के अधिकारी किए गए, \q \v 45 कि वे उसकी विधियों को मानें, \q और उसकी व्यवस्था को पूरी करें। \q यहोवा की स्तुति करो! \s5 \c 106 \s परमेश्‍वर के लिये इस्राएल का अविश्वास \b \q \v 1 यहोवा की स्तुति करो! यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; \q और उसकी करुणा सदा की है! \q \v 2 यहोवा के पराक्रम के कामों का वर्णन कौन कर सकता है, \q या उसका पूरा गुणानुवाद कौन सुना सकता है? \q \s5 \v 3 क्या ही धन्य हैं वे जो न्याय पर चलते, \q और हर समय धर्म के काम करते हैं! \q \v 4 हे यहोवा, अपनी प्रजा पर की, प्रसन्नता के अनुसार मुझे स्मरण कर, \q मेरे उद्धार के लिये मेरी सुधि ले, \q \v 5 कि मैं तेरे चुने हुओं का कल्याण देखूँ, \q और तेरी प्रजा के आनन्द में आनन्दित हो जाऊँ; \q और तेरे निज भाग के संग बड़ाई करने पाऊँ। \q \s5 \v 6 हमने तो अपने पुरखाओं के समान पाप किया है*; \q हमने कुटिलता की, हमने दुष्टता की है! \q \v 7 मिस्र में हमारे पुरखाओं ने तेरे आश्चर्यकर्मों पर मन नहीं लगाया, \q न तेरी अपार करुणा को स्मरण रखा; \q उन्होंने समुद्र के किनारे, अर्थात् लाल समुद्र के किनारे पर बलवा किया। \q \s5 \v 8 तो भी उसने अपने नाम के निमित्त उनका उद्धार किया, \q जिससे वह अपने पराक्रम को प्रगट करे। \q \v 9 तब उसने लाल समुद्र को घुड़का और वह सूख गया; \q और वह उन्हें गहरे जल के बीच से मानो जंगल में से निकाल ले गया। \q \s5 \v 10 उसने उन्हें बैरी के हाथ से उबारा, \q और शत्रु के हाथ से छुड़ा लिया। (लूका 1:71) \q \v 11 और उनके शत्रु जल में डूब गए; \q उनमें से एक भी न बचा। \q \v 12 तब उन्होंने उसके वचनों का विश्वास किया; \q और उसकी स्तुति गाने लगे। \q \s5 \v 13 परन्तु वे झट उसके कामों को भूल गए; \q और उसकी युक्ति के लिये न ठहरे। \q \v 14 उन्होंने जंगल में अति लालसा की \q और निर्जल स्थान में परमेश्‍वर की परीक्षा की। (1 कुरि 10:9) \q \v 15 तब उसने उन्हें मुँह माँगा वर तो दिया, \q परन्तु उनके प्राण को सूखा दिया। \q \s5 \v 16 उन्होंने छावनी में मूसा के, \q और यहोवा के पवित्र जन हारून के विषय में डाह की, \q \v 17 भूमि फट कर दातान को निगल गई, \q और अबीराम के झुण्ड को निगल लिया। \q \v 18 और उनके झुण्ड में आग भड़क उठी; \q और दुष्ट लोग लौ से भस्म हो गए। \q \s5 \v 19 उन्होंने होरेब में बछड़ा बनाया, \q और ढली हुई मूर्ति को दण्डवत् किया। \q \v 20 उन्होंने परमेश्‍वर की महिमा, को घास खानेवाले बैल की प्रतिमा से बदल डाला*। (रोम. 1:23) \q \v 21 वे अपने उद्धारकर्ता परमेश्‍वर को भूल गए, \q जिसने मिस्र में बड़े-बड़े काम किए थे। \q \s5 \v 22 उसने तो हाम के देश में आश्चर्यकर्मों \q और लाल समुद्र के तट पर भयंकर काम किए थे। \q \v 23 इसलिए उसने कहा कि मैं इन्हें सत्यानाश कर डालता \q यदि मेरा चुना हुआ मूसा जोखिम के स्थान में उनके लिये खड़ा न होता \q ताकि मेरी जलजलाहट को ठण्डा करे कहीं ऐसा न हो कि मैं उन्हें नाश कर डालूँ। \q \s5 \v 24 उन्होंने मनभावने देश को निकम्मा जाना, \q और उसके वचन पर विश्वास न किया। \q \v 25 वे अपने तम्बुओं में कुड़कुड़ाए, \q और यहोवा का कहा न माना। \q \s5 \v 26 तब उसने उनके विषय में शपथ खाई कि मैं इनको जंगल में नाश करूँगा, \q \v 27 और इनके वंश को अन्यजातियों के सम्मुख गिरा दूँगा, \q और देश-देश में तितर-बितर करूँगा। (भज. 44:11) \q \s5 \v 28 वे बालपोर देवता को पूजने लगे और मुर्दों को चढ़ाए हुए पशुओं का माँस खाने लगे। \q \v 29 यों उन्होंने अपने कामों से उसको क्रोध दिलाया, \q और मरी उनमें फूट पड़ी। \q \s5 \v 30 तब पीनहास ने उठकर न्यायदण्ड दिया, \q जिससे मरी थम गई। \q \v 31 और यह उसके लेखे पीढ़ी से पीढ़ी तक सर्वदा के लिये धर्म गिना गया। \q \s5 \v 32 उन्होंने मरीबा के सोते के पास भी यहोवा का क्रोध भड़काया, \q और उनके कारण मूसा की हानि हुई; \q \v 33 क्योंकि उन्होंने उसकी आत्मा से बलवा किया, \q तब मूसा बिन सोचे बोल उठा*। \q \v 34 जिन लोगों के विषय यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी थी, \q उनको उन्होंने सत्यानाश न किया, \q \v 35 वरन् उन्हीं जातियों से हिलमिल गए \q और उनके व्यवहारों को सीख लिया; \q \v 36 और उनकी मूर्तियों की पूजा करने लगे, \q और वे उनके लिये फंदा बन गई। \q \s5 \v 37 वरन् उन्होंने अपने बेटे-बेटियों को पिशाचों के लिये बलिदान किया; (1 कुरि. 10:20) \q \v 38 और अपने निर्दोष बेटे-बेटियों का लहू बहाया \q जिन्हें उन्होंने कनान की मूर्तियों पर बलि किया, \q इसलिए देश खून से अपवित्र हो गया। \q \v 39 और वे आप अपने कामों के द्वारा अशुद्ध हो गए, \q और अपने कार्यों के द्वारा व्यभिचारी भी बन गए। \q \s5 \v 40 तब यहोवा का क्रोध अपनी प्रजा पर भड़का, \q और उसको अपने निज भाग से घृणा आई; \q \v 41 तब उसने उनको अन्यजातियों के वश में कर दिया, \q और उनके बैरियों ने उन पर प्रभुता की। \q \s5 \v 42 उनके शत्रुओं ने उन पर अत्याचार किया, \q और वे उनके हाथों तले दब गए। \q \v 43 बारम्बार उसने उन्हें छुड़ाया, \q परन्तु वे उसके विरुद्ध बलवा करते गए, \q और अपने अधर्म के कारण दबते गए। \q \s5 \v 44 फिर भी जब-जब उनका चिल्लाना उसके कान में पड़ा, \q तब-तब उसने उनके संकट पर दृष्टि की! \q \v 45 और उनके हित अपनी वाचा को स्मरण करके \q अपनी अपार करुणा के अनुसार तरस खाया, \q \v 46 और जो उन्हें बन्दी करके ले गए थे उन सबसे उन पर दया कराई। \q \s5 \v 47 हे हमारे परमेश्‍वर यहोवा, हमारा उद्धार कर, \q और हमें अन्यजातियों में से इकट्ठा कर ले, \q कि हम तेरे पवित्र नाम का धन्यवाद करें, \q और तेरी स्तुति करते हुए तेरे विषय में बड़ाई करें। \q \v 48 इस्राएल का परमेश्‍वर यहोवा \q अनादिकाल से अनन्तकाल तक धन्य है! \q और सारी प्रजा कहे “आमीन!” \q यहोवा की स्तुति करो। (भज. 41:13) \s5 \c 107 \ms1 पाँचवाँ भाग \mr भजन 107—150 \s परमेश्‍वर के उद्धार के लिए धन्यवाद \b \q \v 1 यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; \q और उसकी करुणा सदा की है! \q \v 2 यहोवा के छुड़ाए हुए ऐसा ही कहें, \q जिन्हें उसने शत्रु के हाथ से दाम देकर छुड़ा लिया है, \q \v 3 और उन्हें देश-देश से, \q पूरब-पश्चिम, उत्तर और दक्षिण से इकट्ठा किया है। (भज. 106:47) \q \s5 \v 4 वे जंगल में मरूभूमि के मार्ग पर भटकते फिरे, \q और कोई बसा हुआ नगर न पाया; \q \v 5 भूख और प्यास के मारे, \q वे विकल हो गए। \q \v 6 तब उन्होंने संकट में यहोवा की दुहाई दी, \q और उसने उनको सकेती से छुड़ाया; \q \v 7 और उनको ठीक मार्ग पर चलाया, \q ताकि वे बसने के लिये किसी नगर को जा पहुँचे। \q \s5 \v 8 लोग यहोवा की करुणा के कारण, \q और उन आश्चर्यकर्मों के कारण, जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें! \q \v 9 क्योंकि वह अभिलाषी जीव को सन्तुष्ट करता है, \q और भूखे को उत्तम पदार्थों से तृप्त करता है। (लूका 1:53, यिर्म. 31:25) \q \v 10 जो अंधियारे और मृत्यु की छाया में बैठे, \q और दुःख में पड़े और बेड़ियों से जकड़े हुए थे, \q \s5 \v 11 इसलिए कि वे परमेश्‍वर के वचनों के विरुद्ध चले*, \q और परमप्रधान की सम्मति को तुच्छ जाना। \q \v 12 तब उसने उनको कष्ट के द्वारा दबाया; \q वे ठोकर खाकर गिर पड़े, और उनको कोई सहायक न मिला। \q \v 13 तब उन्होंने संकट में यहोवा की दुहाई दी, \q और उसने सकेती से उनका उद्धार किया; \q \s5 \v 14 उसने उनको अंधियारे और मृत्यु की छाया में से निकाल लिया; \q और उनके बन्धनों को तोड़ डाला। \q \v 15 लोग यहोवा की करुणा के कारण, \q और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, \q उसका धन्यवाद करें! \q \v 16 क्योंकि उसने पीतल के फाटकों को तोड़ा, \q और लोहे के बेंड़ों को टुकड़े-टुकड़े किया। \q \s5 \v 17 मूर्ख अपनी कुचाल, \q और अधर्म के कामों के कारण अति दुःखित होते हैं। \q \v 18 उनका जी सब भाँति के भोजन से मिचलाता है, \q और वे मृत्यु के फाटक तक पहुँचते हैं। \q \v 19 तब वे संकट में यहोवा की दुहाई देते हैं, \q और वह सकेती से उनका उद्धार करता है; \q \s5 \v 20 वह अपने वचन के द्वारा उनको चंगा करता* \q और जिस गड्ढे में वे पड़े हैं, उससे निकालता है। (भज. 147:15) \q \v 21 लोग यहोवा की करुणा के कारण \q और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें! \q \v 22 और वे धन्यवाद-बलि चढ़ाएँ, \q और जयजयकार करते हुए, उसके कामों का वर्णन करें। \q \s5 \v 23 जो लोग जहाजों में समुद्र पर चलते हैं, \q और महासागर पर होकर व्यापार करते हैं; \q \v 24 वे यहोवा के कामों को, \q और उन आश्चर्यकर्मों को जो वह गहरे समुद्र में करता है, देखते हैं। \q \s5 \v 25 क्योंकि वह आज्ञा देता है, तब प्रचण्ड वायु उठकर तरंगों को उठाती है। \q \v 26 वे आकाश तक चढ़ जाते, फिर गहराई में उतर आते हैं; \q और क्लेश के मारे उनके जी में जी नहीं रहता; \q \v 27 वे चक्कर खाते, और मतवालों की भाँति लड़खड़ाते हैं, \q और उनकी सारी बुद्धि मारी जाती है। \q \s5 \v 28 तब वे संकट में यहोवा की दुहाई देते हैं, \q और वह उनको सकेती से निकालता है। \q \v 29 वह आँधी को थाम देता है और तरंगें बैठ जाती हैं। \q \v 30 तब वे उनके बैठने से आनन्दित होते हैं, \q और वह उनको मन चाहे बन्दरगाह में पहुँचा देता है। \q \s5 \v 31 लोग यहोवा की करुणा के कारण, \q और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, \q उसका धन्यवाद करें। \q \v 32 और सभा में उसको सराहें, \q और पुरनियों के बैठक में उसकी स्तुति करें। \q \s5 \v 33 वह नदियों को जंगल बना डालता है, \q और जल के सोतों को सूखी भूमि कर देता है। \q \v 34 वह फलवन्त भूमि को बंजर बनाता है, \q यह वहाँ के रहनेवालों की दुष्टता के कारण होता है। \q \v 35 वह जंगल को जल का ताल, \q और निर्जल देश को जल के सोते कर देता है। \q \s5 \v 36 और वहाँ वह भूखों को बसाता है, \q कि वे बसने के लिये नगर तैयार करें; \q \v 37 और खेती करें, और दाख की बारियाँ लगाएँ, \q और भाँति-भाँति के फल उपजा लें। \q \v 38 और वह उनको ऐसी आशीष देता है कि वे बहुत बढ़ जाते हैं, \q और उनके पशुओं को भी वह घटने नहीं देता। \q \s5 \v 39 फिर विपत्ति और शोक के कारण, \q वे घटते और दब जाते हैं*। \q \v 40 और वह हाकिमों को अपमान से लादकर मार्ग रहित जंगल में भटकाता है; \q \s5 \v 41 वह दरिद्रों को दुःख से छुड़ाकर ऊँचे पर रखता है, \q और उनको भेड़ों के झुण्ड के समान परिवार देता है। \q \v 42 सीधे लोग देखकर आनन्दित होते हैं; \q और सब कुटिल लोग अपने मुँह बन्द करते हैं। \q \v 43 जो कोई बुद्धिमान हो, वह इन बातों पर ध्यान करेगा; \q और यहोवा की करुणा के कामों पर ध्यान करेगा। \s5 \c 108 \s1 शत्रुओं पर विजय का आश्वासन गीत \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर, मेरा हृदय स्थिर है; \q मैं गाऊँगा, मैं अपनी आत्मा से भी भजन गाऊँगा*। \q \v 2 हे सारंगी और वीणा जागो! \q मैं आप पौ फटते जाग उठूँगा \q \s5 \v 3 हे यहोवा, मैं देश-देश के लोगों के मध्य में तेरा धन्यवाद करूँगा, \q और राज्य-राज्य के लोगों के मध्य में तेरा भजन गाऊँगा। \q \v 4 क्योंकि तेरी करुणा आकाश से भी ऊँची है, \q और तेरी सच्चाई आकाशमण्डल तक है। \q \s5 \v 5 हे परमेश्‍वर, तू स्वर्ग के ऊपर हो! \q और तेरी महिमा सारी पृथ्वी के ऊपर हो! \q \v 6 इसलिए कि तेरे प्रिय छुड़ाए जाएँ, \q तू अपने दाहिने हाथ से बचा ले और हमारी विनती सुन ले! \q \s5 \v 7 परमेश्‍वर ने अपनी पवित्रता में होकर कहा है, \q “मैं प्रफुल्लित होकर शेकेम को बाँट लूँगा, \q और सुक्कोत की तराई को नपवाऊँगा। \q \v 8 गिलाद मेरा है, मनश्शे भी मेरा है; \q और एप्रैम मेरे सिर का टोप है; यहूदा मेरा राजदण्ड है। \q \s5 \v 9 मोआब मेरे धोने का पात्र है, \q मैं एदोम पर अपना जूता फेंकूँगा, पलिश्त पर मैं जयजयकार करूँगा।” \q \v 10 मुझे गढ़वाले नगर में कौन पहुँचाएगा? \q एदोम तक मेरी अगुआई किसने की हैं? \q \s5 \v 11 हे परमेश्‍वर, क्या तूने हमको त्याग नहीं दिया*?, \q और हे परमेश्‍वर, तू हमारी सेना के आगे-आगे नहीं चलता। \q \v 12 शत्रुओं के विरुद्ध हमारी सहायता कर, \q क्योंकि मनुष्य की सहायता व्यर्थ है! \q \v 13 परमेश्‍वर की सहायता से हम वीरता दिखाएँगे, \q हमारे शत्रुओं को वही रौंदेगा। \s5 \c 109 \s1 झूठे अभियोक्ता के विरुद्ध याचिका \d प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे परमेश्‍वर तू, जिसकी मैं स्तुति करता हूँ, चुप न रह! \q \v 2 क्योंकि दुष्ट और कपटी मनुष्यों ने मेरे विरुद्ध मुँह खोला है, \q वे मेरे विषय में झूठ बोलते हैं। \q \v 3 उन्होंने बैर के वचनों से मुझे चारों ओर घेर लिया है, \q और व्यर्थ मुझसे लड़ते हैं। (यूह. 15:25) \q \s5 \v 4 मेरे प्रेम के बदले में वे मेरी चुगली करते हैं, \q परन्तु मैं तो प्रार्थना में लौलीन रहता हूँ। \q \v 5 उन्होंने भलाई के बदले में मुझसे बुराई की \q और मेरे प्रेम के बदले मुझसे बैर किया है। \q \s5 \v 6 तू उसको किसी दुष्ट के अधिकार में रख, \q और कोई विरोधी उसकी दाहिनी ओर खड़ा रहे। \q \v 7 जब उसका न्याय किया जाए, तब वह दोषी निकले, \q और उसकी प्रार्थना पाप गिनी जाए! \q \s5 \v 8 उसके दिन थोड़े हों, \q और उसके पद को दूसरा ले! (प्रेरि. 1:20) \q \v 9 उसके बच्चे अनाथ हो जाएँ, \q और उसकी स्त्री विधवा हो जाए! \q \v 10 और उसके बच्चे मारे-मारे फिरें, और भीख माँगा करे; \q उनको अपने उजड़े हुए घर से दूर जाकर टुकड़े माँगना पड़े! \q \s5 \v 11 महाजन फंदा लगाकर, उसका सर्वस्व ले ले*; \q और परदेशी उसकी कमाई को लूट लें! \q \v 12 कोई न हो जो उस पर करुणा करता रहे, \q और उसके अनाथ बालकों पर कोई तरस न खाए! \q \v 13 उसका वंश नाश हो जाए, \q दूसरी पीढ़ी में उसका नाम मिट जाए! \q \s5 \v 14 उसके पितरों का अधर्म यहोवा को स्मरण रहे, \q और उसकी माता का पाप न मिटे! \q \v 15 वह निरन्तर यहोवा के सम्मुख रहे, \q वह उनका नाम पृथ्वी पर से मिटे! \q \v 16 क्योंकि वह दुष्ट, करुणा करना भूल गया \q वरन् दीन और दरिद्र को सताता था \q और मार डालने की इच्छा से खेदित मनवालों के पीछे पड़ा रहता था। \q \s5 \v 17 वह श्राप देने से प्रीति रखता था, और श्राप उस पर आ पड़ा; \q वह आशीर्वाद देने से प्रसन्‍न न होता था, \q इसलिए आशीर्वाद उससे दूर रहा। \q \v 18 वह श्राप देना वस्त्र के समान पहनता था, \q और वह उसके पेट में जल के समान \q और उसकी हड्डियों में तेल के समान* समा गया। \q \s5 \v 19 वह उसके लिये ओढ़ने का काम दे, \q और फेंटे के समान उसकी कटि में नित्य कसा रहे। \q \v 20 यहोवा की ओर से मेरे विरोधियों को, \q और मेरे विरुद्ध बुरा कहनेवालों को यही बदला मिले! \q \s5 \v 21 परन्तु हे यहोवा प्रभु, तू अपने नाम के निमित्त मुझसे बर्ताव कर; \q तेरी करुणा तो बड़ी है, इसलिए तू मुझे छुटकारा दे! \q \v 22 क्योंकि मैं दीन और दरिद्र हूँ, \q और मेरा हृदय घायल हुआ है*। \q \v 23 मैं ढलती हुई छाया के समान जाता रहा हूँ; \q मैं टिड्डी के समान उड़ा दिया गया हूँ। \q \s5 \v 24 उपवास करते-करते मेरे घुटने निर्बल हो गए; \q और मुझ में चर्बी न रहने से मैं सूख गया हूँ। \q \v 25 मेरी तो उन लोगों से नामधराई होती है; \q जब वे मुझे देखते, तब सिर हिलाते हैं। (इब्रा. 10:12-13, लूका 20:42-43) \q \s5 \v 26 हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा, मेरी सहायता कर! \q अपनी करुणा के अनुसार मेरा उद्धार कर! \q \v 27 जिससे वे जाने कि यह तेरा काम है, \q और हे यहोवा, तूने ही यह किया है! \q \s5 \v 28 वे मुझे कोसते तो रहें, परन्तु तू आशीष दे! \q वे तो उठते ही लज्जित हों, परन्तु तेरा दास आनन्दित हो! (1 कुरि. 4:12) \q \v 29 मेरे विरोधियों को अनादररूपी वस्त्र पहनाया जाए, \q और वे अपनी लज्जा को कम्बल के समान ओढ़ें! \q \s5 \v 30 मैं यहोवा का बहुत धन्यवाद करूँगा, \q और बहुत लोगों के बीच में उसकी स्तुति करूँगा। \q \v 31 क्योंकि वह दरिद्र की दाहिनी ओर खड़ा रहेगा, \q कि उसको प्राण-दण्ड देनेवालों से बचाए। \s5 \c 110 \s मसीह के शासनकाल की घोषणा \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 मेरे प्रभु से यहोवा की वाणी यह है, “तू मेरे दाहिने ओर बैठ, \q जब तक कि मैं तेरे शत्रुओं को तेरे चरणों की चौकी न कर दूँ।” (इब्रा. 10:12-13, लूका 20:42-43) \q \s5 \v 2 तेरे पराक्रम का राजदण्ड यहोवा सिय्योन से बढ़ाएगा। \q तू अपने शत्रुओं के बीच में शासन कर। \q \v 3 तेरी प्रजा के लोग तेरे पराक्रम के दिन स्वेच्छाबलि बनते हैं; \q तेरे जवान लोग पवित्रता से शोभायमान, \q और भोर के गर्भ से जन्मी हुई ओस के समान तेरे पास हैं। \q \s5 \v 4 यहोवा ने शपथ खाई और न पछताएगा, \q “तू मलिकिसिदक की रीति पर सर्वदा का याजक है।” (इब्रा. 7:21, इब्रा. 7:17) \q \s5 \v 5 प्रभु तेरी दाहिनी ओर होकर \q अपने क्रोध के दिन राजाओं को चूर कर देगा। (भज. 143:5) \q \v 6 वह जाति-जाति में न्याय चुकाएगा, रणभूमि शवों से भर जाएगी; \q वह लम्बे चौड़े देशों के प्रधानों को चूर-चूर कर देगा \q \s5 \v 7 वह मार्ग में चलता हुआ नदी का जल पीएगा \q और तब वह विजय के बाद अपने सिर को ऊँचा करेगा। \s5 \c 111 \s परमेश्‍वर की सच्चाई और न्याय के लिये स्तुतिगान \b \q \v 1 यहोवा की स्तुति करो। मैं सीधे लोगों की गोष्ठी में \q और मण्डली में भी सम्पूर्ण मन से यहोवा का धन्यवाद करूँगा। \q \v 2 यहोवा के काम बड़े हैं, \q जितने उनसे प्रसन्‍न रहते हैं, वे उन पर ध्यान लगाते हैं। (भज. 143:5) \q \v 3 उसके काम वैभवशाली और ऐश्वर्यमय होते हैं, \q और उसका धर्म सदा तक बना रहेगा। \q \s5 \v 4 उसने अपने आश्चर्यकर्मों का स्मरण कराया है; \q यहोवा अनुग्रहकारी और दयावन्त है। (भज. 86:5) \q \v 5 उसने अपने डरवैयों को आहार दिया है; \q वह अपनी वाचा को सदा तक स्मरण रखेगा। \q \v 6 उसने अपनी प्रजा को जाति-जाति का भाग देने के लिये, \q अपने कामों का प्रताप दिखाया है*। \q \s5 \v 7 सच्चाई और न्याय उसके हाथों के काम हैं; \q उसके सब उपदेश विश्वासयोग्य हैं, \q \v 8 वे सदा सर्वदा अटल रहेंगे, \q वे सच्चाई और सिधाई से किए हुए हैं। \q \v 9 उसने अपनी प्रजा का उद्धार किया है; \q उसने अपनी वाचा को सदा के लिये ठहराया है। \q उसका नाम पवित्र और भययोग्य है। (लूका 1:49,68) \q \s5 \v 10 बुद्धि का मूल यहोवा का भय है; \q जितने उसकी आज्ञाओं को मानते हैं, \q उनकी समझ अच्छी होती है। \q उसकी स्तुति सदा बनी रहेगी। \s5 \c 112 \s धर्मी व्यक्ति के लक्षण \b \q \v 1 यहोवा की स्तुति करो! \q क्या ही धन्य है वह पुरुष जो यहोवा का भय मानता है, \q और उसकी आज्ञाओं से अति प्रसन्‍न रहता है! \q \v 2 उसका वंश पृथ्वी पर पराक्रमी होगा*; \q सीधे लोगों की सन्तान आशीष पाएगी। \q \s5 \v 3 उसके घर में धन सम्पत्ति रहती है; \q और उसका धर्म सदा बना रहेगा। \q \v 4 सीधे लोगों के लिये अंधकार के बीच में ज्योति उदय होती है; \q वह अनुग्रहकारी, दयावन्त और धर्मी होता है। \q \v 5 जो व्यक्ति अनुग्रह करता और उधार देता है, \q और ईमानदारी के साथ अपने काम करता है, उसका कल्याण होता है। \q \s5 \v 6 वह तो सदा तक अटल रहेगा; \q धर्मी का स्मरण सदा तक बना रहेगा। \q \v 7 वह बुरे समाचार से नहीं डरता; \q उसका हृदय यहोवा पर भरोसा रखने से स्थिर रहता है। \q \s5 \v 8 उसका हृदय सम्भला हुआ है, इसलिए वह न डरेगा, \q वरन् अपने शत्रुओं पर दृष्टि करके सन्तुष्ट होगा। \q \v 9 उसने उदारता से दरिद्रों को दान दिया*, \q उसका धर्म सदा बना रहेगा; \q और उसका सींग आदर के साथ ऊँचा किया जाएगा। (2 कुरि. 9:9) \q \s5 \v 10 दुष्ट इसे देखकर कुढ़ेगा; \q वह दाँत पीस-पीसकर गल जाएगा; \q दुष्टों की लालसा पूरी न होगी। (प्रेरि.7:54) \s5 \c 113 \s स्तुति के योग्य नाम \b \q \v 1 यहोवा की स्तुति करो! \q हे यहोवा के दासों, स्तुति करो, \q यहोवा के नाम की स्तुति करो! \q \v 2 यहोवा का नाम \q अब से लेकर सर्वदा तक धन्य कहा जाएँ! \q \s5 \v 3 उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक, \q यहोवा का नाम स्तुति के योग्य है। \q \v 4 यहोवा सारी जातियों के ऊपर महान है, \q और उसकी महिमा आकाश से भी ऊँची है। \q \s5 \v 5 हमारे परमेश्‍वर यहोवा के तुल्य कौन है? \q वह तो ऊँचे पर विराजमान है, \q \v 6 और आकाश और पृथ्वी पर, \q दृष्टि करने के लिये झुकता है। \q \s5 \v 7 वह कंगाल को मिट्टी पर से, \q और दरिद्र को घूरे पर से उठाकर ऊँचा करता है*, \q \v 8 कि उसको प्रधानों के संग, \q अर्थात् अपनी प्रजा के प्रधानों के संग बैठाए। (अय्यू. 36:7) \q \s5 \v 9 वह बाँझ को घर में बाल-बच्चों की आनन्द करनेवाली माता बनाता है। \q यहोवा की स्तुति करो! \s5 \c 114 \s फसह का गीत \b \q \v 1 जब इस्राएल ने मिस्र से, अर्थात् याकूब के घराने ने अन्य भाषावालों के मध्य से कूच किया, \q \v 2 तब यहूदा यहोवा का पवित्रस्‍थान \q और इस्राएल उसके राज्य के लोग हो गए। \q \s5 \v 3 समुद्र देखकर भागा, \q यरदन नदी उलटी बही। (भज. 77:16) \q \v 4 पहाड़ मेढ़ों के समान उछलने लगे, \q और पहाड़ियाँ भेड़-बकरियों के बच्चों के समान उछलने लगीं। \q \s5 \v 5 हे समुद्र, तुझे क्या हुआ, कि तू भागा? \q और हे यरदन तुझे क्या हुआ कि तू उलटी बही? \q \v 6 हे पहाड़ों, तुम्हें क्या हुआ, कि तुम भेड़ों के समान, \q और हे पहाड़ियों तुम्हें क्या हुआ, कि तुम भेड़-बकरियों के बच्चों के समान उछलीं? \q \v 7 हे पृथ्वी प्रभु के सामने, \q हाँ, याकूब के परमेश्‍वर के सामने थरथरा। (भज. 96:9) \q \s5 \v 8 वह चट्टान को जल का ताल, \q चकमक के पत्थर को जल का सोता बना डालता है। \s5 \c 115 \s मूर्तियों की निरर्थकता और परमेश्‍वर की विश्वसनीयता \b \q \v 1 हे यहोवा, हमारी नहीं, हमारी नहीं, वरन् अपने ही नाम की महिमा, \q अपनी करुणा और सच्चाई के निमित्त कर। \q \v 2 जाति-जाति के लोग क्यों कहने पाएँ, \q “उनका परमेश्‍वर कहाँ रहा?” \q \s5 \v 3 हमारा परमेश्‍वर तो स्वर्ग में हैं; \q उसने जो चाहा वही किया है। \q \v 4 उन लोगों की मूरतें* सोने चाँदी ही की तो हैं, \q वे मनुष्यों के हाथ की बनाई हुई हैं। \q \s5 \v 5 उनके मुँह तो रहता है परन्तु वे बोल नहीं सकती; \q उनके आँखें तो रहती हैं परन्तु वे देख नहीं सकती। \q \v 6 उनके कान तो रहते हैं, परन्तु वे सुन नहीं सकती; \q उनके नाक तो रहती हैं, परन्तु वे सूंघ नहीं सकती। \q \s5 \v 7 उनके हाथ तो रहते हैं, परन्तु वे स्पर्श नहीं कर सकती; \q उनके पाँव तो रहते हैं, परन्तु वे चल नहीं सकती; \q और उनके कण्ठ से कुछ भी शब्द नहीं निकाल सकती। (भज. 135:16-17) \q \v 8 जैसी वे हैं वैसे ही उनके बनानेवाले हैं; \q और उन पर सब भरोसा रखनेवाले भी वैसे ही हो जाएँगे। \q \s5 \v 9 हे इस्राएल, यहोवा पर भरोसा रख! \q तेरा सहायक और ढाल वही है। \q \v 10 हे हारून के घराने, यहोवा पर भरोसा रख! \q तेरा सहायक और ढाल वही है। \q \v 11 हे यहोवा के डरवैयों, यहोवा पर भरोसा रखो! \q तुम्हारा सहायक और ढाल वही है। \q \s5 \v 12 यहोवा ने हमको स्मरण किया है; वह आशीष देगा; \q वह इस्राएल के घराने को आशीष देगा; \q वह हारून के घराने को आशीष देगा। \q \v 13 क्या छोटे क्या बड़े* \q जितने यहोवा के डरवैये हैं, वह उन्हें आशीष देगा। (भज. 128:1) \q \v 14 यहोवा तुम को और तुम्हारे वंश को भी अधिक बढ़ाता जाए। \q \s5 \v 15 यहोवा जो आकाश और पृथ्वी का कर्ता है, \q उसकी ओर से तुम आशीष पाए हो। \q \v 16 स्वर्ग तो यहोवा का है, \q परन्तु पृथ्वी उसने मनुष्यों को दी है। \q \s5 \v 17 मृतक जितने चुपचाप पड़े हैं, \q वे तो यहोवा की स्तुति नहीं कर सकते, \q \v 18 परन्तु हम लोग यहोवा को \q अब से लेकर सर्वदा तक धन्य कहते रहेंगे। \q यहोवा की स्तुति करो! \s5 \c 116 \s मृत्यु से बचाव के लिए धन्यवाद \b \q \v 1 मैं प्रेम रखता हूँ, इसलिए कि यहोवा ने मेरे गिड़गिड़ाने को सुना है। \q \v 2 उसने जो मेरी ओर कान लगाया है, \q इसलिए मैं जीवन भर उसको पुकारा करूँगा। \q \s5 \v 3 मृत्यु की रस्सियाँ मेरे चारों ओर थीं; \q मैं अधोलोक की सकेती में पड़ा था; \q मुझे संकट और शोक भोगना पड़ा*। (भज. 18:4-5) \q \v 4 तब मैंने यहोवा से प्रार्थना की, \q “हे यहोवा, विनती सुनकर मेरे प्राण को बचा ले!” \q \s5 \v 5 यहोवा करुणामय और धर्मी है; \q और हमारा परमेश्‍वर दया करनेवाला है। \q \v 6 यहोवा भोलों की रक्षा करता है; \q जब मैं बलहीन हो गया था, उसने मेरा उद्धार किया। \q \s5 \v 7 हे मेरे प्राण, तू अपने विश्रामस्थान में लौट आ; \q क्योंकि यहोवा ने तेरा उपकार किया है। \q \v 8 तूने तो मेरे प्राण को मृत्यु से, \q मेरी आँख को आँसू बहाने से, \q और मेरे पाँव को ठोकर खाने से बचाया है। \q \s5 \v 9 मैं जीवित रहते हुए, \q अपने को यहोवा के सामने जानकर नित चलता रहूँगा। \q \v 10 मैंने जो ऐसा कहा है, इसे विश्वास की कसौटी पर कसकर कहा है, \q “मैं तो बहुत ही दुःखित हूँ;” (2 कुरि. 4:13) \q \v 11 मैंने उतावली से कहा, \q “सब मनुष्य झूठें हैं।” (रोम. 3:4) \q \s5 \v 12 यहोवा ने मेरे जितने उपकार किए हैं, \q उनके बदले मैं उसको क्या दूँ? \q \v 13 मैं उद्धार का कटोरा उठाकर, \q यहोवा से प्रार्थना करूँगा, \q \v 14 मैं यहोवा के लिये अपनी मन्नतें, सभी की दृष्टि में प्रगट रूप में, उसकी सारी प्रजा के सामने पूरी करूँगा। \q \v 15 यहोवा के भक्तों की मृत्यु, \q उसकी दृष्टि में अनमोल है*। \q \s5 \v 16 हे यहोवा, सुन, मैं तो तेरा दास हूँ; \q मैं तेरा दास, और तेरी दासी का पुत्र हूँ। \q तूने मेरे बन्धन खोल दिए हैं। \q \v 17 मैं तुझको धन्यवाद-बलि चढ़ाऊँगा, \q और यहोवा से प्रार्थना करूँगा। \q \s5 \v 18 मैं यहोवा के लिये अपनी मन्नतें, \q प्रगट में उसकी सारी प्रजा के सामने \q \v 19 यहोवा के भवन के आँगनों में, \q हे यरूशलेम, तेरे भीतर पूरी करूँगा। \q यहोवा की स्तुति करो! \s5 \c 117 \s स्तुति का भजन \b \q \v 1 हे जाति-जाति के सब लोगों, यहोवा की स्तुति करो! \q हे राज्य-राज्य के सब लोगों, उसकी प्रशंसा करो! (रोम. 15:11) \q \v 2 क्योंकि उसकी करुणा हमारे ऊपर प्रबल हुई है; \q और यहोवा की सच्चाई सदा की है* \q यहोवा की स्तुति करो! \s5 \c 118 \s विजय के लिये धन्यवाद \b \q \v 1 यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; \q और उसकी करुणा सदा की है! \q \v 2 इस्राएल कहे, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \s5 \v 3 हारून का घराना कहे, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \v 4 यहोवा के डरवैये कहे, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \s5 \v 5 मैंने सकेती में परमेश्‍वर को पुकारा*, \q परमेश्‍वर ने मेरी सुनकर, मुझे चौड़े स्थान में पहुँचाया। \q \v 6 यहोवा मेरी ओर है, मैं न डरूँगा। \q मनुष्य मेरा क्या कर सकता है? (रोम. 8:31, इब्रा 13:6) \q \v 7 यहोवा मेरी ओर मेरे सहायक है; \q मैं अपने बैरियों पर दृष्टि कर सन्तुष्ट हूँगा। \q \s5 \v 8 यहोवा की शरण लेना, \q मनुष्य पर भरोसा रखने से उत्तम है। \q \v 9 यहोवा की शरण लेना, \q प्रधानों पर भी भरोसा रखने से उत्तम है। \q \s5 \v 10 सब जातियों ने मुझ को घेर लिया है; \q परन्तु यहोवा के नाम से मैं निश्चय उन्हें नाश कर डालूँगा। \q \v 11 उन्होंने मुझ को घेर लिया है, निःसन्देह, उन्होंने मुझे घेर लिया है; \q परन्तु यहोवा के नाम से मैं निश्चय उन्हें नाश कर डालूँगा। \q \v 12 उन्होंने मुझे मधुमक्खियों के समान घेर लिया है, \q परन्तु काँटों की आग के समान वे बुझ गए; \q यहोवा के नाम से मैं निश्चय उन्हें नाश कर डालूँगा! \q \s5 \v 13 तूने मुझे बड़ा धक्का दिया तो था, कि मैं गिर पड़ूँ, \q परन्तु यहोवा ने मेरी सहायता की। \q \v 14 परमेश्‍वर मेरा बल और भजन का विषय है; \q वह मेरा उद्धार ठहरा है। \q \s5 \v 15 धर्मियों के तम्बुओं में जयजयकार और उद्धार की ध्वनि हो रही है, \q यहोवा के दाहिने हाथ से पराक्रम का काम होता है, \q \v 16 यहोवा का दाहिना हाथ महान हुआ है, \q यहोवा के दाहिने हाथ से पराक्रम का काम होता है! \q \s5 \v 17 मैं न मरूँगा वरन् जीवित रहूँगा*, \q और परमेश्‍वर के कामों का वर्णन करता रहूँगा। \q \v 18 परमेश्‍वर ने मेरी बड़ी ताड़ना तो की है \q परन्तु मुझे मृत्यु के वश में नहीं किया। (2 कुरि. 6:9, इब्रा. 12:10-11) \q \s5 \v 19 मेरे लिये धर्म के द्वार खोलो, \q मैं उनमें प्रवेश करके यहोवा का धन्यवाद करूँगा। \q \v 20 यहोवा का द्वार यही है, \q इससे धर्मी प्रवेश करने पाएँगे। (यूह. 10:9) \q \v 21 हे यहोवा, मैं तेरा धन्यवाद करूँगा, \q क्योंकि तूने मेरी सुन ली है, \q और मेरा उद्धार ठहर गया है। \q \s5 \v 22 राजमिस्त्रियों ने जिस पत्थर को निकम्मा ठहराया था \q वही कोने का सिरा हो गया है। (1 पत. 2:4, लूका 20:17) \q \v 23 यह तो यहोवा की ओर से हुआ है, \q यह हमारी दृष्टि में अद्भुत है। \q \s5 \v 24 आज वह दिन है जो यहोवा ने बनाया है; \q हम इसमें मगन और आनन्दित हों। \q \v 25 हे यहोवा, विनती सुन, उद्धार कर! \q हे यहोवा, विनती सुन, सफलता दे! \q \s5 \v 26 धन्य है वह जो यहोवा के नाम से आता है! \q हमने तुम को यहोवा के घर से आशीर्वाद दिया है। (मत्ती 23:39, लूका 13:35, मर. 11:9-10 लूका 19:38) \q \v 27 यहोवा परमेश्‍वर है, और उसने हमको प्रकाश दिया है। \q यज्ञपशु को वेदी के सींगों से रस्सियों से बाँधो! \q \v 28 हे यहोवा, तू मेरा परमेश्‍वर है, मैं तेरा धन्यवाद करूँगा; \q तू मेरा परमेश्‍वर है, मैं तुझको सराहूँगा। \q \s5 \v 29 यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; \q और उसकी करुणा सदा बनी रहेगी! \s5 \c 119 \s परमेश्‍वर की व्यवस्था की श्रेष्ठता पर ध्यान \d आलेफ \qa \q \v 1 क्या ही धन्य हैं वे जो चाल के खरे हैं, \q और यहोवा की व्यवस्था पर चलते हैं! \q \v 2 क्या ही धन्य हैं वे जो उसकी चितौनियों को मानते हैं, \q और पूर्ण मन से उसके पास आते हैं! \q \s5 \v 3 फिर वे कुटिलता का काम नहीं करते, \q वे उसके मार्गों में चलते हैं। \q \v 4 तूने अपने उपदेश इसलिए दिए हैं*, \q कि हम उसे यत्न से माने। \q \s5 \v 5 भला होता कि \q तेरी विधियों को मानने के लिये मेरी चालचलन दृढ़ हो जाए! \q \v 6 तब मैं तेरी सब आज्ञाओं की ओर चित्त लगाए रहूँगा, \q और मैं लज्जित न हूँगा। \q \s5 \v 7 जब मैं तेरे धर्ममय नियमों को सीखूँगा, \q तब तेरा धन्यवाद सीधे मन से करूँगा। \q \v 8 मैं तेरी विधियों को मानूँगा: \q मुझे पूरी रीति से न तज! \s व्यवस्था को मानना \d बेथ \qa \q \s5 \v 9 जवान अपनी चाल को किस उपाय से शुद्ध रखे? \q तेरे वचन का पालन करने से। \q \v 10 मैं पूरे मन से तेरी खोज में लगा हूँ; \q मुझे तेरी आज्ञाओं की बाट से भटकने न दे! \q \s5 \v 11 मैंने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है, \q कि तेरे विरुद्ध पाप न करूँ। \q \v 12 हे यहोवा, तू धन्य है; \q मुझे अपनी विधियाँ सिखा! \q \s5 \v 13 तेरे सब कहे हुए नियमों का वर्णन, \q मैंने अपने मुँह से किया है। \q \v 14 मैं तेरी चितौनियों के मार्ग से, \q मानो सब प्रकार के धन से हर्षित हुआ हूँ। \q \s5 \v 15 मैं तेरे उपदेशों पर ध्यान करूँगा, \q और तेरे मार्गों की ओर दृष्टि रखूँगा। \q \v 16 मैं तेरी विधियों से सुख पाऊँगा; \q और तेरे वचन को न भूलूँगा। \s व्यवस्था में आनन्द \d गिमेल \qa \q \s5 \v 17 अपने दास का उपकार कर कि मैं जीवित रहूँ, \q और तेरे वचन पर चलता रहूँ*। \q \v 18 मेरी आँखें खोल दे, कि मैं तेरी व्यवस्था की \q अद्भुत बातें देख सकूँ। \q \s5 \v 19 मैं तो पृथ्वी पर परदेशी हूँ; \q अपनी आज्ञाओं को मुझसे छिपाए न रख! \q \v 20 मेरा मन तेरे नियमों की अभिलाषा के कारण \q हर समय खेदित रहता है। \q \s5 \v 21 तूने अभिमानियों को, जो श्रापित हैं, घुड़का है, \q वे तेरी आज्ञाओं से भटके हुए हैं। \q \v 22 मेरी नामधराई और अपमान दूर कर, \q क्योंकि मैं तेरी चितौनियों को पकड़े हूँ। \q \s5 \v 23 हाकिम भी बैठे हुए आपस में मेरे विरुद्ध बातें करते थे, \q परन्तु तेरा दास तेरी विधियों पर ध्यान करता रहा। \q \v 24 तेरी चितौनियाँ मेरा सुखमूल \q और मेरे मंत्री हैं। \s व्यवस्था को मानने का संकल्प \d दाल्थ \qa \q \s5 \v 25 मैं धूल में पड़ा हूँ; \q तू अपने वचन के अनुसार मुझ को जिला! \q \v 26 मैंने अपनी चालचलन का तुझ से वर्णन किया है और तूने मेरी बात मान ली है; \q तू मुझ को अपनी विधियाँ सिखा! \q \s5 \v 27 अपने उपदेशों का मार्ग मुझे समझा, \q तब मैं तेरे आश्चर्यकर्मों पर ध्यान करूँगा। \q \v 28 मेरा जीव उदासी के मारे गल चला है; \q तू अपने वचन के अनुसार मुझे सम्भाल! \q \s5 \v 29 मुझ को झूठ के मार्ग से दूर कर; \q और कृपा करके अपनी व्यवस्था मुझे दे। \q \v 30 मैंने सच्चाई का मार्ग चुन लिया है, \q तेरे नियमों की ओर मैं चित्त लगाए रहता हूँ। \q \s5 \v 31 मैं तेरी चितौनियों में लौलीन हूँ, \q हे यहोवा, मुझे लज्जित न होने दे! \q \v 32 जब तू मेरा हियाव बढ़ाएगा, \q तब मैं तेरी आज्ञाओं के मार्ग में दौड़ूँगा। \s समझ के लिये प्रार्थना \d हे \qa \q \s5 \v 33 हे यहोवा, मुझे अपनी विधियों का मार्ग सिखा दे; \q तब मैं उसे अन्त तक पकड़े रहूँगा। \q \v 34 मुझे समझ दे, तब मैं तेरी व्यवस्था को पकड़े रहूँगा \q और पूर्ण मन से उस पर चलूँगा। \q \s5 \v 35 अपनी आज्ञाओं के पथ में मुझ को चला, \q क्योंकि मैं उसी से प्रसन्‍न हूँ। \q \v 36 मेरे मन को लोभ की ओर नहीं, \q अपनी चितौनियों ही की ओर फेर दे। \q \s5 \v 37 मेरी आँखों को व्यर्थ वस्तुओं की ओर से फेर दे*; \q तू अपने मार्ग में मुझे जिला। \q \v 38 तेरा वादा जो तेरे भय माननेवालों के लिये है, \q उसको अपने दास के निमित्त भी पूरा कर। \q \s5 \v 39 जिस नामधराई से मैं डरता हूँ, उसे दूर कर; \q क्योंकि तेरे नियम उत्तम हैं। \q \v 40 देख, मैं तेरे उपदेशों का अभिलाषी हूँ; \q अपने धर्म के कारण मुझ को जिला। \s परमेश्‍वर की व्यवस्था पर भरोसा \d वाव \qa \q \s5 \v 41 हे यहोवा, तेरी करुणा और तेरा किया हुआ उद्धार, \q तेरे वादे के अनुसार, मुझ को भी मिले; \q \v 42 तब मैं अपनी नामधराई करनेवालों को कुछ उत्तर दे सकूँगा, \q क्योंकि मेरा भरोसा, तेरे वचन पर है। \q \s5 \v 43 मुझे अपने सत्य वचन कहने से न रोक \q क्योंकि मेरी आशा तेरे नियमों पर है। \q \v 44 तब मैं तेरी व्यवस्था पर लगातार, \q सदा सर्वदा चलता रहूँगा; \q \s5 \v 45 और मैं चौड़े स्थान में चला फिरा करूँगा, \q क्योंकि मैंने तेरे उपदेशों की सुधि रखी है। \q \v 46 और मैं तेरी चितौनियों की चर्चा राजाओं के सामने भी करूँगा, \q और लज्जित न हूँगा; (रोम.1:16) \q \s5 \v 47 क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं के कारण सुखी हूँ, \q और मैं उनसे प्रीति रखता हूँ। \q \v 48 मैं तेरी आज्ञाओं की ओर जिनमें मैं प्रीति रखता हूँ, हाथ फैलाऊँगा \q और तेरी विधियों पर ध्यान करूँगा। \s परमेश्‍वर की व्यवस्था में आशा \d ज़ैन \qa \q \s5 \v 49 जो वादा तूने अपने दास को दिया है, उसे स्मरण कर, \q क्योंकि तूने मुझे आशा दी है। \q \v 50 मेरे दुःख में मुझे शान्ति उसी से हुई है, \q क्योंकि तेरे वचन के द्वारा मैंने जीवन पाया है। \q \s5 \v 51 अहंकारियों ने मुझे अत्यन्त ठट्ठे में उड़ाया है, \q तो भी मैं तेरी व्यवस्था से नहीं हटा। \q \v 52 हे यहोवा, मैंने तेरे प्राचीन नियमों को स्मरण करके \q शान्ति पाई है। \q \s5 \v 53 जो दुष्ट तेरी व्यवस्था को छोड़े हुए हैं, \q उनके कारण मैं क्रोध से जलता हूँ। \q \v 54 जहाँ मैं परदेशी होकर रहता हूँ, वहाँ तेरी विधियाँ, \q मेरे गीत गाने का विषय बनी हैं। \q \s5 \v 55 हे यहोवा, मैंने रात को तेरा नाम स्मरण किया, \q और तेरी व्यवस्था पर चला हूँ। \q \v 56 यह मुझसे इस कारण हुआ, \q कि मैं तेरे उपदेशों को पकड़े हुए था। \s व्यवस्था के प्रति भक्ति \d हेथ \qa \q \s5 \v 57 यहोवा मेरा भाग है; \q मैंने तेरे वचनों के अनुसार चलने का निश्चय किया है। \q \v 58 मैंने पूरे मन से तुझे मनाया है; \q इसलिए अपने वादे के अनुसार मुझ पर दया कर। \q \s5 \v 59 मैंने अपनी चालचलन को सोचा, \q और तेरी चितौनियों का मार्ग लिया। \q \v 60 मैंने तेरी आज्ञाओं के मानने में विलम्ब नहीं, फुर्ती की है। \q \s5 \v 61 मैं दुष्टों की रस्सियों से बन्ध गया हूँ, \q तो भी मैं तेरी व्यवस्था को नहीं भूला। \q \v 62 तेरे धर्ममय नियमों के कारण \q मैं आधी रात को तेरा धन्यवाद करने को उठूँगा। \q \s5 \v 63 जितने तेरा भय मानते और तेरे उपदेशों पर चलते हैं, \q उनका मैं संगी हूँ। \q \v 64 हे यहोवा, तेरी करुणा पृथ्वी में भरी हुई है; \q तू मुझे अपनी विधियाँ सिखा! \s व्यवस्था का महत्व \d टेथ \qa \q \s5 \v 65 हे यहोवा, तूने अपने वचन के अनुसार \q अपने दास के संग भलाई की है। \q \v 66 मुझे भली विवेक-शक्ति और समझ दे, \q क्योंकि मैंने तेरी आज्ञाओं का विश्वास किया है। \q \s5 \v 67 उससे पहले कि मैं दुःखित हुआ, मैं भटकता था; \q परन्तु अब मैं तेरे वचन को मानता हूँ*। \q \v 68 तू भला है, और भला करता भी है; \q मुझे अपनी विधियाँ सिखा। \q \s5 \v 69 अभिमानियों ने तो मेरे विरुद्ध झूठ बात गढ़ी है, \q परन्तु मैं तेरे उपदेशों को पूरे मन से पकड़े रहूँगा। \q \v 70 उनका मन मोटा हो गया है, \q परन्तु मैं तेरी व्यवस्था के कारण सुखी हूँ। \q \s5 \v 71 मुझे जो दुःख हुआ वह मेरे लिये भला ही हुआ है, \q जिससे मैं तेरी विधियों को सीख सकूँ। \q \v 72 तेरी दी हुई व्यवस्था मेरे लिये \q हजारों रुपयों और मुहरों से भी उत्तम है। \s व्यवस्था का न्याय \d योध \qa \q \s5 \v 73 तेरे हाथों से मैं बनाया और रचा गया हूँ; \q मुझे समझ दे कि मैं तेरी आज्ञाओं को सीखूँ। \q \v 74 तेरे डरवैये मुझे देखकर आनन्दित होंगे, \q क्योंकि मैंने तेरे वचन पर आशा लगाई है। \q \s5 \v 75 हे यहोवा, मैं जान गया कि तेरे नियम धर्ममय हैं, \q और तूने अपने सच्चाई के अनुसार मुझे दुःख दिया है। \q \v 76 मुझे अपनी करुणा से शान्ति दे, \q क्योंकि तूने अपने दास को ऐसा ही वादा दिया है। \q \s5 \v 77 तेरी दया मुझ पर हो, तब मैं जीवित रहूँगा; \q क्योंकि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी हूँ। \q \v 78 अहंकारी लज्जित किए जाए, क्योंकि उन्होंने मुझे झूठ के द्वारा गिरा दिया है; \q परन्तु मैं तेरे उपदेशों पर ध्यान करूँगा। \q \s5 \v 79 जो तेरा भय मानते हैं, वह मेरी ओर फिरें, \q तब वे तेरी चितौनियों को समझ लेंगे। \q \v 80 मेरा मन तेरी विधियों के मानने में सिद्ध हो, \q ऐसा न हो कि मुझे लज्जित होना पड़े। \s छुटकारे के लिये प्रार्थना \d क़ाफ \qa \q \s5 \v 81 मेरा प्राण तेरे उद्धार के लिये बैचेन है; \q परन्तु मुझे तेरे वचन पर आशा रहती है। \q \v 82 मेरी आँखें तेरे वादे के पूरे होने की बाट जोहते-जोहते धुंधली पड़ गईं है; \q और मैं कहता हूँ कि तू मुझे कब शान्ति देगा? \q \s5 \v 83 क्योंकि मैं धुएँ में की कुप्पी के समान हो गया हूँ, \q तो भी तेरी विधियों को नहीं भूला। \q \v 84 तेरे दास के कितने दिन रह गए हैं? \q तू मेरे पीछे पड़े हुओं को दण्ड कब देगा? \q \s5 \v 85 अहंकारी जो तेरी व्यवस्था के अनुसार नहीं चलते, \q उन्होंने मेरे लिये गड्ढे खोदे हैं। \q \v 86 तेरी सब आज्ञाएँ विश्वासयोग्य हैं; \q वे लोग झूठ बोलते हुए मेरे पीछे पड़े हैं; \q तू मेरी सहायता कर! \q \s5 \v 87 वे मुझ को पृथ्वी पर से मिटा डालने ही पर थे, \q परन्तु मैंने तेरे उपदेशों को नहीं छोड़ा। \q \v 88 अपनी करुणा के अनुसार मुझ को जिला, \q तब मैं तेरी दी हुई चितौनी को मानूँगा। \s व्यवस्था में विश्वास \d लामेध \qa \q \s5 \v 89 हे यहोवा, तेरा वचन, \q आकाश में सदा तक स्थिर रहता है। \q \v 90 तेरी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है; \q तूने पृथ्वी को स्थिर किया, इसलिए वह बनी है। \q \s5 \v 91 वे आज के दिन तक तेरे नियमों के अनुसार ठहरे हैं; \q क्योंकि सारी सृष्टि तेरे अधीन है। \q \v 92 यदि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी न होता, \q तो मैं दुःख के समय नाश हो जाता*। \q \s5 \v 93 मैं तेरे उपदेशों को कभी न भूलूँगा; \q क्योंकि उन्हीं के द्वारा तूने मुझे जिलाया है। \q \v 94 मैं तेरा ही हूँ, तू मेरा उद्धार कर; \q क्योंकि मैं तेरे उपदेशों की सुधि रखता हूँ। \q \s5 \v 95 दुष्ट मेरा नाश करने के लिये मेरी घात में लगे हैं; \q परन्तु मैं तेरी चितौनियों पर ध्यान करता हूँ। \q \v 96 मैंने देखा है कि प्रत्येक पूर्णता की सीमा होती है, \q परन्तु तेरी आज्ञा का विस्तार बड़ा और सीमा से परे है। \s व्यवस्था के प्रति प्रेम \d मीम \qa \q \s5 \v 97 आहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूँ! \q दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है। \q \v 98 तू अपनी आज्ञाओं के द्वारा मुझे अपने शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान करता है, \q क्योंकि वे सदा मेरे मन में रहती हैं। \q \s5 \v 99 मैं अपने सब शिक्षकों से भी अधिक समझ रखता हूँ, \q क्योंकि मेरा ध्यान तेरी चितौनियों पर लगा है। \q \v 100 मैं पुरनियों से भी समझदार हूँ, \q क्योंकि मैं तेरे उपदेशों को पकड़े हुए हूँ। \q \s5 \v 101 मैंने अपने पाँवों को हर एक बुरे रास्ते से रोक रखा है, \q जिससे मैं तेरे वचन के अनुसार चलूँ। \q \v 102 मैं तेरे नियमों से नहीं हटा, \q क्योंकि तू ही ने मुझे शिक्षा दी है। \q \s5 \v 103 तेरे वचन मुझ को कैसे मीठे लगते हैं, \q वे मेरे मुँह में मधु से भी मीठे हैं! \q \v 104 तेरे उपदेशों के कारण मैं समझदार हो जाता हूँ, \q इसलिए मैं सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूँ। \s व्यवस्था का प्रकाश \d नून \qa \q \s5 \v 105 तेरा वचन मेरे पाँव के लिये दीपक, \q और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। \q \v 106 मैंने शपथ खाई, और ठान लिया है \q कि मैं तेरे धर्ममय नियमों के अनुसार चलूँगा। \q \s5 \v 107 मैं अत्यन्त दुःख में पड़ा हूँ; \q हे यहोवा, अपने वादे के अनुसार मुझे जिला। \q \v 108 हे यहोवा, मेरे वचनों को स्वेच्छाबलि जानकर ग्रहण कर, \q और अपने नियमों को मुझे सिखा। \q \s5 \v 109 मेरा प्राण निरन्तर मेरी हथेली पर रहता है*, \q तो भी मैं तेरी व्यवस्था को भूल नहीं गया। \q \v 110 दुष्टों ने मेरे लिये फंदा लगाया है, \q परन्तु मैं तेरे उपदेशों के मार्ग से नहीं भटका। \q \s5 \v 111 मैंने तेरी चितौनियों को सदा के लिये अपना निज भाग कर लिया है, \q क्योंकि वे मेरे हृदय के हर्ष का कारण है। \q \v 112 मैंने अपने मन को इस बात पर लगाया है, \q कि अन्त तक तेरी विधियों पर सदा चलता रहूँ। \s व्यवस्था में सुरक्षा \d सामेख \qa \q \s5 \v 113 मैं दुचित्तों से तो बैर रखता हूँ, \q परन्तु तेरी व्यवस्था से प्रीति रखता हूँ। \q \v 114 तू मेरी आड़ और ढाल है; \q मेरी आशा तेरे वचन पर है। \q \s5 \v 115 हे कुकर्मियों, मुझसे दूर हो जाओ, \q कि मैं अपने परमेश्‍वर की आज्ञाओं को पकड़े रहूँ! \q \v 116 हे यहोवा, अपने वचन के अनुसार मुझे सम्भाल, कि मैं जीवित रहूँ, \q और मेरी आशा को न तोड़! \q \s5 \v 117 मुझे थामे रख, तब मैं बचा रहूँगा, \q और निरन्तर तेरी विधियों की ओर चित्त लगाए रहूँगा! \q \v 118 जितने तेरी विधियों के मार्ग से भटक जाते हैं, \q उन सब को तू तुच्छ जानता है, \q क्योंकि उनकी चतुराई झूठ है। \q \s5 \v 119 तूने पृथ्वी के सब दुष्टों को धातु के मैल के समान दूर किया है; \q इस कारण मैं तेरी चितौनियों से प्रीति रखता हूँ। \q \v 120 तेरे भय से मेरा शरीर काँप उठता है, \q और मैं तेरे नियमों से डरता हूँ। \s परमेश्‍वर की व्यवस्था को मानना \d ऐन \qa \q \s5 \v 121 मैंने तो न्याय और धर्म का काम किया है; \q तू मुझे अत्याचार करनेवालों के हाथ में न छोड़। \q \v 122 अपने दास की भलाई के लिये जामिन हो, \q ताकि अहंकारी मुझ पर अत्याचार न करने पाएँ। \q \s5 \v 123 मेरी आँखें तुझ से उद्धार पाने, \q और तेरे धर्ममय वचन के पूरे होने की बाट जोहते-जोहते धुँधली पड़ गई हैं। \q \v 124 अपने दास के संग अपनी करुणा के अनुसार बर्ताव कर, \q और अपनी विधियाँ मुझे सिखा। \q \s5 \v 125 मैं तेरा दास हूँ, तू मुझे समझ दे \q कि मैं तेरी चितौनियों को समझूँ। \q \v 126 वह समय आया है, कि यहोवा काम करे, \q क्योंकि लोगों ने तेरी व्यवस्था को तोड़ दिया है। \q \s5 \v 127 इस कारण मैं तेरी आज्ञाओं को सोने से वरन् कुन्दन से भी अधिक प्रिय मानता हूँ। \q \v 128 इसी कारण मैं तेरे सब उपदेशों को सब विषयों में ठीक जानता हूँ; \q और सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूँ। \s व्यवस्था पर चलने की इच्छा \d पे \qa \q \s5 \v 129 तेरी चितौनियाँ अद्भुत हैं, \q इस कारण मैं उन्हें अपने जी से पकड़े हुए हूँ। \q \v 130 तेरी बातों के खुलने से प्रकाश होता है*; \q उससे निर्बुद्धि लोग समझ प्राप्त करते हैं। \q \s5 \v 131 मैं मुँह खोलकर हाँफने लगा, \q क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं का प्यासा था। \q \v 132 जैसी तेरी रीति अपने नाम के प्रीति रखनेवालों से है, \q वैसे ही मेरी ओर भी फिरकर मुझ पर दया कर। \q \s5 \v 133 मेरे पैरों को अपने वचन के मार्ग पर स्थिर कर, \q और किसी अनर्थ बात को मुझ पर प्रभुता न करने दे। \q \v 134 मुझे मनुष्यों के अत्याचार से छुड़ा ले, \q तब मैं तेरे उपदेशों को मानूँगा। \q \s5 \v 135 अपने दास पर अपने मुख का प्रकाश चमका दे, \q और अपनी विधियाँ मुझे सिखा। \q \v 136 मेरी आँखों से आँसुओं की धारा बहती रहती है, \q क्योंकि लोग तेरी व्यवस्था को नहीं मानते। \s व्यवस्था का न्याय \d सांदे \qa \q \s5 \v 137 हे यहोवा तू धर्मी है, \q और तेरे नियम सीधे हैं। (भज. 145:17) \q \v 138 तूने अपनी चितौनियों को \q धर्म और पूरी सत्यता से कहा है। \q \s5 \v 139 मैं तेरी धुन में भस्म हो रहा हूँ, \q क्योंकि मेरे सतानेवाले तेरे वचनों को भूल गए हैं। \q \v 140 तेरा वचन पूरी रीति से ताया हुआ है, \q इसलिए तेरा दास उसमें प्रीति रखता है। \q \s5 \v 141 मैं छोटा और तुच्छ हूँ, \q तो भी मैं तेरे उपदेशों को नहीं भूलता। \q \v 142 तेरा धर्म सदा का धर्म है, \q और तेरी व्यवस्था सत्य है। \q \s5 \v 143 मैं संकट और सकेती में फँसा हूँ, \q परन्तु मैं तेरी आज्ञाओं से सुखी हूँ। \q \v 144 तेरी चितौनियाँ सदा धर्ममय हैं; \q तू मुझ को समझ दे कि मैं जीवित रहूँ। \s छुटकारे के लिये प्रार्थना \d क़ाफ \qa \q \s5 \v 145 मैंने सारे मन से प्रार्थना की है, \q हे यहोवा मेरी सुन! \q मैं तेरी विधियों को पकड़े रहूँगा। \q \v 146 मैंने तुझ से प्रार्थना की है, तू मेरा उद्धार कर, \q और मैं तेरी चितौनियों को माना करूँगा। \q \s5 \v 147 मैंने पौ फटने से पहले दुहाई दी; \q मेरी आशा तेरे वचनों पर थी। \q \v 148 मेरी आँखें रात के एक-एक पहर से पहले खुल गईं, \q कि मैं तेरे वचन पर ध्यान करूँ। \q \s5 \v 149 अपनी करुणा के अनुसार मेरी सुन ले; \q हे यहोवा, अपनी नियमों के रीति अनुसार मुझे जीवित कर। \q \v 150 जो दुष्टता की धुन में हैं, वे निकट आ गए हैं; \q वे तेरी व्यवस्था से दूर हैं। \q \s5 \v 151 हे यहोवा, तू निकट है, \q और तेरी सब आज्ञाएँ सत्य हैं। \q \v 152 बहुत काल से मैं तेरी चितौनियों को जानता हूँ, \q कि तूने उनकी नींव सदा के लिये डाली है। \s सहायता के लिये विनती \d रेश \qa \q \s5 \v 153 मेरे दुःख को देखकर मुझे छुड़ा ले, \q क्योंकि मैं तेरी व्यवस्था को भूल नहीं गया। \q \v 154 मेरा मुकद्दमा लड़, और मुझे छुड़ा ले; \q अपने वादे के अनुसार मुझ को जिला। \q \s5 \v 155 दुष्टों को उद्धार मिलना कठिन है, \q क्योंकि वे तेरी विधियों की सुधि नहीं रखते। \q \v 156 हे यहोवा, तेरी दया तो बड़ी है; \q इसलिए अपने नियमों के अनुसार मुझे जिला। \q \s5 \v 157 मेरा पीछा करनेवाले और मेरे सतानेवाले बहुत हैं, \q परन्तु मैं तेरी चितौनियों से नहीं हटता। \q \v 158 मैं विश्वासघातियों को देखकर घृणा करता हूँ; \q क्योंकि वे तेरे वचन को नहीं मानते। \q \s5 \v 159 देख, मैं तेरे उपदेशों से कैसी प्रीति रखता हूँ! \q हे यहोवा, अपनी करुणा के अनुसार मुझ को जिला। \q \v 160 तेरा सारा वचन सत्य ही है; \q और तेरा एक-एक धर्ममय नियम सदा काल तक अटल है। \s व्यवस्था के प्रति समर्पण \d शीन \qa \q \s5 \v 161 हाकिम व्यर्थ मेरे पीछे पड़े हैं, \q परन्तु मेरा हृदय तेरे वचनों का भय मानता है*। (भज. 119:23) \q \v 162 जैसे कोई बड़ी लूट पाकर हर्षित होता है, \q वैसे ही मैं तेरे वचन के कारण हर्षित हूँ। \q \s5 \v 163 झूठ से तो मैं बैर और घृणा रखता हूँ, \q परन्तु तेरी व्यवस्था से प्रीति रखता हूँ। \q \v 164 तेरे धर्ममय नियमों के कारण मैं प्रतिदिन \q सात बार तेरी स्तुति करता हूँ। \q \s5 \v 165 तेरी व्यवस्था से प्रीति रखनेवालों को बड़ी शान्ति होती है; \q और उनको कुछ ठोकर नहीं लगती। \q \v 166 हे यहोवा, मैं तुझ से उद्धार पाने की आशा रखता हूँ; \q और तेरी आज्ञाओं पर चलता आया हूँ। \q \s5 \v 167 मैं तेरी चितौनियों को जी से मानता हूँ, \q और उनसे बहुत प्रीति रखता आया हूँ। \q \v 168 मैं तेरे उपदेशों और चितौनियों को मानता आया हूँ, \q क्योंकि मेरी सारी चालचलन तेरे सम्मुख प्रगट है। \s परमेश्‍वर से सहायता पाने की लालसा \d ताव \qa \q \s5 \v 169 हे यहोवा, मेरी दुहाई तुझ तक पहुँचे; \q तू अपने वचन के अनुसार मुझे समझ दे! \q \v 170 मेरा गिड़गिड़ाना तुझ तक पहुँचे; \q तू अपने वचन के अनुसार मुझे छुड़ा ले। \q \s5 \v 171 मेरे मुँह से स्तुति निकला करे, \q क्योंकि तू मुझे अपनी विधियाँ सिखाता है। \q \v 172 मैं तेरे वचन का गीत गाऊँगा, \q क्योंकि तेरी सब आज्ञाएँ धर्ममय हैं। \q \s5 \v 173 तेरा हाथ मेरी सहायता करने को तैयार रहता है, \q क्योंकि मैंने तेरे उपदेशों को अपनाया है। \q \v 174 हे यहोवा, मैं तुझ से उद्धार पाने की अभिलाषा करता हूँ, \q मैं तेरी व्यवस्था से सुखी हूँ। \q \s5 \v 175 मुझे जिला, और मैं तेरी स्तुति करूँगा, \q तेरे नियमों से मेरी सहायता हो। \q \v 176 मैं खोई हुई भेड़ के समान भटका हूँ; \q तू अपने दास को ढूँढ़ ले, \q क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं को भूल नहीं गया। \s5 \c 120 \s परमेश्‍वर से मदद के लिए प्रार्थना \d यात्रा का गीत \b \q \v 1 संकट के समय मैंने यहोवा को पुकारा, \q और उसने मेरी सुन ली। \q \v 2 हे यहोवा, झूठ बोलनेवाले मुँह से \q और छली जीभ से मेरी रक्षा कर। \q \s5 \v 3 हे छली जीभ, \q तुझको क्या मिले? और तेरे साथ और क्या अधिक किया जाए? \q \v 4 वीर के नोकीले तीर \q और झाऊ के अंगारे! \q \s5 \v 5 हाय, हाय, क्योंकि मुझे मेशेक में परदेशी होकर रहना पड़ा \q और केदार के तम्बुओं में बसना पड़ा है! \q \v 6 बहुत समय से मुझ को मेल के बैरियों के साथ बसना पड़ा है। \q \v 7 मैं तो मेल चाहता हूँ; \q परन्तु मेरे बोलते* ही, वे लड़ना चाहते हैं! \s5 \c 121 \s परमेश्‍वर हमारा रक्षक \d यात्रा का गीत \b \q \v 1 मैं अपनी आँखें पर्वतों की ओर उठाऊँगा। \q मुझे सहायता कहाँ से मिलेगी? \q \v 2 मुझे सहायता यहोवा की ओर से मिलती है, \q जो आकाश और पृथ्वी का कर्ता है। \q \s5 \v 3 वह तेरे पाँव को टलने न देगा*, \q तेरा रक्षक कभी न ऊँघेगा। \q \v 4 सुन, इस्राएल का रक्षक, \q न ऊँघेगा और न सोएगा। \q \s5 \v 5 यहोवा तेरा रक्षक है; \q यहोवा तेरी दाहिनी ओर तेरी आड़ है। \q \v 6 न तो दिन को धूप से, \q और न रात को चाँदनी से तेरी कुछ हानि होगी। \q \s5 \v 7 यहोवा सारी विपत्ति से तेरी रक्षा करेगा; \q वह तेरे प्राण की रक्षा करेगा। \q \v 8 यहोवा तेरे आने-जाने में \q तेरी रक्षा अब से लेकर सदा तक करता रहेगा*। \s5 \c 122 \s यरूशलेम की शान्ति के लिये प्रार्थना \d दाऊद की यात्रा का गीत \b \q \v 1 जब लोगों ने मुझसे कहा, “आओ, हम यहोवा के भवन को चलें,” \q तब मैं आनन्दित हुआ। \q \v 2 हे यरूशलेम, तेरे फाटकों के भीतर, \q हम खड़े हो गए हैं! \q \v 3 हे यरूशलेम, तू ऐसे नगर के समान बना है, \q जिसके घर एक दूसरे से मिले हुए हैं। \q \s5 \v 4 वहाँ यहोवा के गोत्र-गोत्र के लोग यहोवा के नाम का धन्यवाद करने को जाते हैं; \q यह इस्राएल के लिये साक्षी है। \q \v 5 वहाँ तो न्याय के सिंहासन*, \q दाऊद के घराने के लिये रखे हुए हैं। \q \s5 \v 6 यरूशलेम की शान्ति का वरदान माँगो, \q तेरे प्रेमी कुशल से रहें! \q \v 7 तेरी शहरपनाह के भीतर शान्ति, \q और तेरे महलों में कुशल होवे! \q \s5 \v 8 अपने भाइयों और संगियों के निमित्त, \q मैं कहूँगा कि तुझ में शान्ति होवे! \q \v 9 अपने परमेश्‍वर यहोवा के भवन के निमित्त, \q मैं तेरी भलाई का यत्न करूँगा। \s5 \c 123 \s1 परमेश्‍वर की दया के लिये प्रार्थना \d यात्रा का गीत \b \q \v 1 हे स्वर्ग में विराजमान \q मैं अपनी आँखें तेरी ओर उठाता हूँ! \q \v 2 देख, जैसे दासों की आँखें अपने स्वामियों के हाथ की ओर, \q और जैसे दासियों की आँखें अपनी स्वामिनी के हाथ की ओर लगी रहती है, \q वैसे ही हमारी आँखें हमारे परमेश्‍वर यहोवा की ओर उस समय तक लगी रहेंगी, \q जब तक वह हम पर दया न करे। \q \s5 \v 3 हम पर दया कर, हे यहोवा, हम पर कृपा कर, \q क्योंकि हम अपमान से बहुत ही भर गए हैं। \q \v 4 हमारा जीव सुखी लोगों के उपहास से, \q और अहंकारियों के अपमान से* बहुत ही भर गया है। \s5 \c 124 \s1 परमेश्‍वर अपने लोगों का रक्षक \d दाऊद की यात्रा का गीत \b \q \v 1 इस्राएल यह कहे, \q कि यदि हमारी ओर यहोवा न होता, \q \v 2 यदि यहोवा उस समय हमारी ओर न होता \q जब मनुष्यों ने हम पर चढ़ाई की, \q \v 3 तो वे हमको उसी समय जीवित निगल जाते*, \q जब उनका क्रोध हम पर भड़का था, \q \s5 \v 4 हम उसी समय जल में डूब जाते \q और धारा में बह जाते; \q \v 5 उमड़ते जल में हम उसी समय ही बह जाते। \q \s5 \v 6 धन्य है यहोवा, \q जिसने हमको उनके दाँतों तले जाने न दिया! \q \v 7 हमारा जीव पक्षी के समान चिड़ीमार के जाल से छूट गया*; \q जाल फट गया और हम बच निकले! \q \s5 \v 8 यहोवा जो आकाश और पृथ्वी का कर्ता है, \q हमारी सहायता उसी के नाम से होती है। \s5 \c 125 \s परमेश्‍वर अपने लोगों का बल \d दाऊद की यात्रा का गीत \b \q \v 1 जो यहोवा पर भरोसा रखते हैं, \q वे सिय्योन पर्वत के समान हैं, \q जो टलता नहीं, वरन् सदा बना रहता है। \q \v 2 जिस प्रकार यरूशलेम के चारों ओर पहाड़ हैं, \q उसी प्रकार यहोवा अपनी प्रजा के चारों \q ओर अब से लेकर सर्वदा तक बना रहेगा*। \q \v 3 दुष्टों का राजदण्ड धर्मियों के भाग पर बना न रहेगा, \q ऐसा न हो कि धर्मी अपने हाथ कुटिल काम की ओर बढ़ाएँ। \q \s5 \v 4 हे यहोवा, भलों का \q और सीधे मनवालों का भला कर! \q \v 5 परन्तु जो मुड़कर टेढ़े मार्गों में चलते हैं, \q उनको यहोवा अनर्थकारियों के संग निकाल देगा! \q इस्राएल को शान्ति मिले! (नीति. 2:15) \s5 \c 126 \s सिय्योन को हर्षित वापसी \d यात्रा का गीत \b \q \v 1 जब यहोवा सिय्योन में लौटनेवालों को लौटा ले आया, \q तब हम स्वप्न देखनेवाले से हो गए*। \q \s5 \v 2 तब हम आनन्द से हँसने \q और जयजयकार करने लगे; \q तब जाति-जाति के बीच में कहा जाता था, \q “यहोवा ने, इनके साथ बड़े-बड़े काम किए हैं।” \q \v 3 यहोवा ने हमारे साथ बड़े-बड़े काम किए हैं; \q और इससे हम आनन्दित हैं। \q \s5 \v 4 हे यहोवा, दक्षिण देश के नालों के समान, \q हमारे बन्दियों को लौटा ले आ! \q \v 5 जो आँसू बहाते हुए बोते हैं, \q वे जयजयकार करते हुए लवने पाएँगे*। \q \v 6 चाहे बोनेवाला बीज लेकर रोता हुआ चला जाए, \q परन्तु वह फिर पूलियाँ लिए जयजयकार करता हुआ निश्चय लौट आएगा। (लूका 6:21) \s5 \c 127 \s परमेश्‍वर का आशीर्वाद \d सुलैमान की यात्रा का गीत \b \q \v 1 यदि घर को यहोवा न बनाए, \q तो उसके बनानेवालों का परिश्रम व्यर्थ होगा। \q यदि नगर की रक्षा यहोवा न करे, \q तो रखवाले का जागना व्यर्थ ही होगा। \q \v 2 तुम जो सवेरे उठते और देर करके विश्राम करते \q और कठोर परिश्रम की रोटी खाते हो, यह सब तुम्हारे लिये व्यर्थ ही है; \q क्योंकि वह अपने प्रियों को यों ही नींद प्रदान करता है। \q \s5 \v 3 देखो, बच्चे यहोवा के दिए हुए भाग हैं*, \q गर्भ का फल उसकी ओर से प्रतिफल है। \q \v 4 जैसे वीर के हाथ में तीर, \q वैसे ही जवानी के बच्चे होते हैं। \q \v 5 क्या ही धन्य है वह पुरुष जिसने अपने तरकश को उनसे भर लिया हो! \q वह फाटक के पास अपने शत्रुओं से बातें करते संकोच न करेगा। \s5 \c 128 \s परमेश्‍वर का भय मानने की आशीष \d यात्रा का गीत \b \q \v 1 क्या ही धन्य है हर एक जो यहोवा का भय मानता है, \q और उसके मार्गों पर चलता है*! \q \v 2 तू अपनी कमाई को निश्चय खाने पाएगा; \q तू धन्य होगा, और तेरा भला ही होगा। \q \s5 \v 3 तेरे घर के भीतर तेरी स्त्री फलवन्त दाखलता सी होगी; \q तेरी मेज के चारों ओर तेरे बच्चे जैतून के पौधे के समान होंगे। \q \v 4 सुन, जो पुरुष यहोवा का भय मानता हो, \q वह ऐसी ही आशीष पाएगा। \q \v 5 यहोवा तुझे सिय्योन से आशीष देवे*, \q और तू जीवन भर यरूशलेम का कुशल देखता रहे! \q \v 6 वरन् तू अपने नाती-पोतों को भी देखने पाए! \q इस्राएल को शान्ति मिले! \s5 \c 129 \s1 सिय्योन के शत्रुओं पर विजय का गीत \d यात्रा का गीत \b \q \v 1 इस्राएल अब यह कहे, \q “मेरे बचपन से लोग मुझे बार-बार क्लेश देते आए हैं, \q \v 2 मेरे बचपन से वे मुझ को बार-बार क्लेश देते तो आए हैं, \q परन्तु मुझ पर प्रबल नहीं हुए। \q \v 3 हलवाहों ने मेरी पीठ के ऊपर हल चलाया*, \q और लम्बी-लम्बी रेखाएं की।” \q \s5 \v 4 यहोवा धर्मी है; \q उसने दुष्टों के फंदों को काट डाला है; \q \v 5 जितने सिय्योन से बैर रखते हैं, \q वे सब लज्जित हो, और पराजित होकर पीछे हट जाए! \q \s5 \v 6 वे छत पर की घास के समान हों, \q जो बढ़ने से पहले सूख जाती है; \q \v 7 जिससे कोई लवनेवाला अपनी मुट्ठी नहीं भरता*, \q न पूलियों का कोई बाँधनेवाला अपनी अँकवार भर पाता है, \q \v 8 और न आने-जाने वाले यह कहते हैं, \q “यहोवा की आशीष तुम पर होवे! \q हम तुम को यहोवा के नाम से आशीर्वाद देते हैं!” \s5 \c 130 \s करुणामय परमेश्‍वर \d यात्रा का गीत \b \q \v 1 हे यहोवा, मैंने गहरे स्थानों में से तुझको पुकारा है! \q \v 2 हे प्रभु, मेरी सुन! \q तेरे कान मेरे गिड़गिड़ाने की ओर ध्यान से लगे रहें! \q \s5 \v 3 हे यहोवा, यदि तू अधर्म के कामों का लेखा ले, \q तो हे प्रभु कौन खड़ा रह सकेगा? \q \v 4 परन्तु तू क्षमा करनेवाला है, \q जिससे तेरा भय माना जाए। \q \s5 \v 5 मैं यहोवा की बाट जोहता हूँ, मैं जी से उसकी बाट जोहता हूँ, \q और मेरी आशा उसके वचन पर है; \q \v 6 पहरूए जितना भोर को चाहते हैं*, हाँ, \q पहरूए जितना भोर को चाहते हैं, \q उससे भी अधिक मैं यहोवा को अपने प्राणों से चाहता हूँ। \q \s5 \v 7 इस्राएल, यहोवा पर आशा लगाए रहे! \q क्योंकि यहोवा करुणा करनेवाला \q और पूरा छुटकारा देनेवाला है। \q \v 8 इस्राएल को उसके सारे अधर्म के कामों से वही छुटकारा देगा। (भज. 131:3) \s5 \c 131 \s1 एक बच्चे सी आत्मा \d दाऊद की यात्रा का गीत \b \q \v 1 हे यहोवा, न तो मेरा मन गर्व से \q और न मेरी दृष्टि घमण्ड से भरी है; \q और जो बातें बड़ी और मेरे लिये अधिक कठिन हैं, \q उनसे मैं काम नहीं रखता। \q \s5 \v 2 निश्चय मैंने अपने मन को शान्त और चुप कर दिया है, \q जैसे दूध छुड़ाया हुआ बच्चा अपनी माँ की गोद में रहता है, \q वैसे ही दूध छुड़ाए हुए बच्चे के समान मेरा मन भी रहता है*। \q \v 3 हे इस्राएल, अब से लेकर सदा सर्वदा यहोवा ही पर आशा लगाए रह! \s5 \c 132 \s मन्दिर के लिये प्रार्थना \d यात्रा का गीत \b \q \v 1 हे यहोवा, दाऊद के लिये उसकी सारी दुर्दशा को स्मरण कर; \q \v 2 उसने यहोवा से शपथ खाई, \q और याकूब के सर्वशक्तिमान की मन्नत मानी है, \q \s5 \v 3 उसने कहा, “निश्चय मैं उस समय तक अपने घर में प्रवेश न करूँगा, \q और न अपने पलंग पर चढूँगा; \q \v 4 न अपनी आँखों में नींद, \q और न अपनी पलकों में झपकी आने दूँगा, \q \v 5 जब तक मैं यहोवा के लिये एक स्थान, \q अर्थात् याकूब के सर्वशक्तिमान के लिये निवास स्थान न पाऊँ।” (प्रेरि. 7:46) \q \s5 \v 6 देखो, हमने एप्राता में इसकी चर्चा सुनी है, \q हमने इसको वन के खेतों में पाया है। \q \v 7 आओ, हम उसके निवास में प्रवेश करें, \q हम उसके चरणों की चौकी के आगे दण्डवत् करें! \q \v 8 हे यहोवा, उठकर अपने विश्रामस्थान में \q अपनी सामर्थ्य के सन्दूक* समेत आ। \q \s5 \v 9 तेरे याजक धर्म के वस्त्र पहने रहें, \q और तेरे भक्त लोग जयजयकार करें। \q \v 10 अपने दास दाऊद के लिये, \q अपने अभिषिक्त की प्रार्थना को अनसुनी न कर। \q \s5 \v 11 यहोवा ने दाऊद से सच्ची शपथ खाई है और वह उससे न मुकरेगा: \q “मैं तेरी गद्दी पर तेरे एक निज पुत्र को बैठाऊँगा। (2 शमू. 7:12, प्रेरि. 2:30) \q \v 12 यदि तेरे वंश के लोग मेरी वाचा का पालन करें \q और जो चितौनी मैं उन्हें सिखाऊँगा, उस पर चलें, \q तो उनके वंश के लोग भी तेरी गद्दी पर युग-युग बैठते चले जाएँगे।” \q \s5 \v 13 निश्चय यहोवा ने सिय्योन को चुना है, \q और उसे अपने निवास के लिये चाहा है। \q \v 14 “यह तो युग-युग के लिये मेरा विश्रामस्थान हैं; \q यहीं मैं रहूँगा, क्योंकि मैंने इसको चाहा है। \q \s5 \v 15 मैं इसमें की भोजनवस्तुओं पर अति आशीष दूँगा; \q और इसके दरिद्रों को रोटी से तृप्त करूँगा। \q \v 16 इसके याजकों को मैं उद्धार का वस्त्र पहनाऊँगा, \q और इसके भक्त लोग ऊँचे स्वर से जयजयकार करेंगे। \q \s5 \v 17 वहाँ मैं दाऊद का एक सींग उगाऊँगा*; \q मैंने अपने अभिषिक्त के लिये एक दीपक तैयार कर रखा है। (लूका 1:69) \q \v 18 मैं उसके शत्रुओं को तो लज्जा का वस्त्र पहनाऊँगा, \q परन्तु उसके सिर पर उसका मुकुट शोभायमान रहेगा।” \s5 \c 133 \s1 परमेश्‍वर के लोगों की एकता \d दाऊद की यात्रा का गीत \b \q \v 1 देखो, यह क्या ही भली और मनोहर बात है \q कि भाई लोग आपस में मिले रहें! \q \s5 \v 2 यह तो उस उत्तम तेल के समान है, \q जो हारून के सिर पर डाला गया था*, \q और उसकी दाढ़ी से बहकर, \q उसके वस्त्र की छोर तक पहुँच गया। \q \v 3 वह हेर्मोन की उस ओस के समान है, \q जो सिय्योन के पहाड़ों पर गिरती है! \q यहोवा ने तो वहीं सदा के जीवन की आशीष ठहराई है। \s5 \c 134 \s स्तुति करने का आह्वान \d यात्रा का गीत \b \q \v 1 हे यहोवा के सब सेवकों, सुनो, \q तुम जो रात-रात को यहोवा के भवन में खड़े रहते हो*, \q यहोवा को धन्य कहो। (प्रका. 19:5) \q \v 2 अपने हाथ पवित्रस्‍थान में उठाकर, \q यहोवा को धन्य कहो। \q \s5 \v 3 यहोवा जो आकाश और पृथ्वी का कर्ता है, \q वह सिय्योन से तुझे आशीष देवे। \s5 \c 135 \s यहोवा महान है \b \q \v 1 यहोवा की स्तुति करो, \q यहोवा के नाम की स्तुति करो, \q हे यहोवा के सेवकों उसकी स्तुति करो, (भज. 113:1) \q \v 2 तुम जो यहोवा के भवन में, \q अर्थात् हमारे परमेश्‍वर के भवन के आँगनों में खड़े रहते हो! \q \s5 \v 3 यहोवा की स्तुति करो, क्योंकि वो भला है; \q उसके नाम का भजन गाओ, क्योंकि यह मनोहर है! \q \v 4 यहोवा ने तो याकूब को अपने लिये चुना है*, \q अर्थात् इस्राएल को अपना निज धन होने के लिये चुन लिया है। \q \s5 \v 5 मैं तो जानता हूँ कि यहोवा महान है, \q हमारा प्रभु सब देवताओं से ऊँचा है। \q \v 6 जो कुछ यहोवा ने चाहा \q उसे उसने आकाश और पृथ्वी और समुद्र \q और सब गहरे स्थानों में किया है। \q \s5 \v 7 वह पृथ्वी की छोर से कुहरे उठाता है, \q और वर्षा के लिये बिजली बनाता है, \q और पवन को अपने भण्डार में से निकालता है। \q \s5 \v 8 उसने मिस्र में क्या मनुष्य क्या पशु, \q सब के पहलौठों को मार डाला! \q \v 9 हे मिस्र, उसने तेरे बीच में फ़िरौन \q और उसके सब कर्मचारियों के विरुद्ध चिन्ह और चमत्कार किए*। \q \s5 \v 10 उसने बहुत सी जातियाँ नाश की, \q और सामर्थी राजाओं को, \q \v 11 अर्थात् एमोरियों के राजा सीहोन को, \q और बाशान के राजा ओग को, \q और कनान के सब राजाओं को घात किया; \q \s5 \v 12 और उनके देश को बाँटकर, \q अपनी प्रजा इस्राएल का भाग होने के लिये दे दिया। \q \v 13 हे यहोवा, तेरा नाम सदा स्थिर है, \q हे यहोवा, जिस नाम से तेरा स्मरण होता है, \q वह पीढ़ी-पीढ़ी बना रहेगा। \q \s5 \v 14 यहोवा तो अपनी प्रजा का न्याय चुकाएगा, \q और अपने दासों की दुर्दशा देखकर तरस खाएगा। (व्यव.32:36) \q \v 15 अन्यजातियों की मूरतें सोना-चाँदी ही हैं, \q वे मनुष्यों की बनाई हुई हैं। \q \v 16 उनके मुँह तो रहता है, परन्तु वे बोल नहीं सकती, \q उनके आँखें तो रहती हैं, परन्तु वे देख नहीं सकती, \q \v 17 उनके कान तो रहते हैं, परन्तु वे सुन नहीं सकती, \q न उनमें कुछ भी साँस चलती है। (प्रका. 9:20) \q \v 18 जैसी वे हैं वैसे ही उनके बनानेवाले भी हैं; \q और उन पर सब भरोसा रखनेवाले भी वैसे ही हो जाएँगे! \q \s5 \v 19 हे इस्राएल के घराने, यहोवा को धन्य कह! \q हे हारून के घराने, यहोवा को धन्य कह! \q \v 20 हे लेवी के घराने, यहोवा को धन्य कह! \q हे यहोवा के डरवैयों, यहोवा को धन्य कहो! \q \v 21 यहोवा जो यरूशलेम में वास करता है, \q उसे सिय्योन में धन्य कहा जाए! \q यहोवा की स्तुति करो! \s5 \c 136 \s परमेश्‍वर की करुणा सदा की है \b \q \v 1 यहोवा का धन्यवाद करो, \q क्योंकि वह भला है, \q और उसकी करुणा सदा की है। \q \v 2 जो ईश्वरों का परमेश्‍वर है, उसका धन्यवाद करो, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \v 3 जो प्रभुओं का प्रभु है, उसका धन्यवाद करो, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \s5 \v 4 उसको छोड़कर कोई बड़े-बड़े आश्चर्यकर्म नहीं करता, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \v 5 उसने अपनी बुद्धि से आकाश बनाया, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \s5 \v 6 उसने पृथ्वी को जल के ऊपर फैलाया है, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \v 7 उसने बड़ी-बड़ी ज्योतियाँ बनाईं, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \s5 \v 8 दिन पर प्रभुता करने के लिये सूर्य को बनाया, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \v 9 और रात पर प्रभुता करने के लिये चन्द्रमा और तारागण को बनाया, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \s5 \v 10 उसने मिस्रियों के पहलौठों को मारा, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \v 11 और उनके बीच से इस्राएलियों को निकाला, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \v 12 बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा से निकाल लाया, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \s5 \v 13 उसने लाल समुद्र को विभाजित कर दिया, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \v 14 और इस्राएल को उसके बीच से पार कर दिया, \q उसकी करुणा सदा की है; \q \v 15 और फ़िरौन को उसकी सेना समेत लाल समुद्र में डाल दिया, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \s5 \v 16 वह अपनी प्रजा को जंगल में ले चला, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \v 17 उसने बड़े-बड़े राजा मारे, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \s5 \v 18 उसने प्रतापी राजाओं को भी मारा, \q उसकी करुणा सदा की है; \q \v 19 एमोरियों के राजा सीहोन को, \q उसकी करुणा सदा की है; \q \v 20 और बाशान के राजा ओग को घात किया, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \s5 \v 21 और उनके देश को भाग होने के लिये, \q उसकी करुणा सदा की है; \q \v 22 अपने दास इस्राएलियों के भाग होने के लिये दे दिया, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \v 23 उसने हमारी दुर्दशा में हमारी सुधि ली*, \q उसकी करुणा सदा की है; \q \s5 \v 24 और हमको द्रोहियों से छुड़ाया है, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \v 25 वह सब प्राणियों को आहार देता है*, \q उसकी करुणा सदा की है। \q \v 26 स्वर्ग के परमेश्‍वर का धन्यवाद करो, \q उसकी करुणा सदा की है। \s5 \c 137 \s बन्धुवाई में इस्राएल का विलापगीत \b \q \v 1 बाबेल की नदियों के किनारे हम लोग बैठ गए, \q और सिय्योन को स्मरण करके रो पड़े! \q \v 2 उसके बीच के मजनू वृक्षों पर \q हमने अपनी वीणाओं को टाँग दिया; \q \s5 \v 3 क्योंकि जो हमको बन्दी बनाकर ले गए थे, \q उन्होंने वहाँ हम से गीत गवाना चाहा, \q और हमारे रुलाने वालों ने हम से आनन्द चाहकर कहा, \q “सिय्योन के गीतों में से हमारे लिये कोई गीत गाओ!” \q \v 4 हम यहोवा के गीत को, \q पराए देश में कैसे गाएँ? \q \s5 \v 5 हे यरूशलेम, यदि मैं तुझे भूल जाऊँ, \q तो मेरा दाहिना हाथ सूख जाए! \q \v 6 यदि मैं तुझे स्मरण न रखूँ, \q यदि मैं यरूशलेम को, \q अपने सब आनन्द से श्रेष्ठ न जानूँ, \q तो मेरी जीभ तालू से चिपट जाए! \q \s5 \v 7 हे यहोवा, यरूशलेम के गिराए जाने के दिन को एदोमियों के विरुद्ध स्मरण कर, \q कि वे कैसे कहते थे, “ढाओ! उसको नींव से ढा दो!” \q \s5 \v 8 हे बाबेल, तू जो जल्द उजड़नेवाली है, \q क्या ही धन्य वह होगा, जो तुझ से ऐसा बर्ताव करेगा* \q जैसा तूने हम से किया है! (प्रका. 18:6) \q \v 9 क्या ही धन्य वह होगा, जो तेरे बच्चों को पकड़कर, \q चट्टान पर पटक देगा! (यशा. 13:16) \s5 \c 138 \s परमेश्‍वर की कृपा के लिए धन्यवाद \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 मैं पूरे मन से तेरा धन्यवाद करूँगा; \q देवताओं के सामने भी मैं तेरा भजन गाऊँगा। \q \v 2 मैं तेरे पवित्र मन्दिर की ओर दण्डवत् करूँगा, \q और तेरी करुणा और सच्चाई के कारण तेरे नाम का धन्यवाद करूँगा; \q क्योंकि तूने अपने वचन को और अपने बड़े नाम को सबसे अधिक महत्व दिया है। \q \s5 \v 3 जिस दिन मैंने पुकारा, उसी दिन तूने मेरी सुन ली, \q और मुझ में बल देकर हियाव बन्धाया। \q \v 4 हे यहोवा, पृथ्वी के सब राजा तेरा धन्यवाद करेंगे*, \q क्योंकि उन्होंने तेरे वचन सुने हैं; \q \s5 \v 5 और वे यहोवा की गति के विषय में गाएँगे, \q क्योंकि यहोवा की महिमा बड़ी है। \q \v 6 यद्यपि यहोवा महान है, तो भी वह नम्र मनुष्य की ओर दृष्टि करता है; \q परन्तु अहंकारी को दूर ही से पहचानता है। \q \s5 \v 7 चाहे मैं संकट के बीच में चलूँ तो भी तू मुझे सुरक्षित रखेगा, \q तू मेरे क्रोधित शत्रुओं के विरुद्ध हाथ बढ़ाएगा, \q और अपने दाहिने हाथ से मेरा उद्धार करेगा। \q \v 8 यहोवा मेरे लिये सब कुछ पूरा करेगा*; \q हे यहोवा, तेरी करुणा सदा की है। \q तू अपने हाथों के कार्यों को त्याग न दे। \s5 \c 139 \s परमेश्‍वर का सिद्ध ज्ञान \d प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा, तूने मुझे जाँच कर जान लिया है। (रोम 8:27) \q \v 2 तू मेरा उठना और बैठना जानता है; \q और मेरे विचारों को दूर ही से समझ लेता है। \q \s5 \v 3 मेरे चलने और लेटने की तू भली-भाँति छानबीन करता है, \q और मेरी पूरी चालचलन का भेद जानता है। \q \v 4 हे यहोवा, मेरे मुँह में ऐसी कोई बात नहीं \q जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो। \q \v 5 तूने मुझे आगे-पीछे घेर रखा है*, \q और अपना हाथ मुझ पर रखे रहता है। \q \v 6 यह ज्ञान मेरे लिये बहुत कठिन है; \q यह गम्भीर और मेरी समझ से बाहर है। \q \s5 \v 7 मैं तेरे आत्मा से भागकर किधर जाऊँ? \q या तेरे सामने से किधर भागूँ? \q \v 8 यदि मैं आकाश पर चढ़ूँ, तो तू वहाँ है! \q यदि मैं अपना खाट अधोलोक में बिछाऊँ तो वहाँ भी तू है! \q \s5 \v 9 यदि मैं भोर की किरणों पर चढ़कर समुद्र के पार जा बसूँ, \q \v 10 तो वहाँ भी तू अपने हाथ से मेरी अगुआई करेगा, \q और अपने दाहिने हाथ से मुझे पकड़े रहेगा। \q \s5 \v 11 यदि मैं कहूँ कि अंधकार में तो मैं छिप जाऊँगा, \q और मेरे चारों ओर का उजियाला रात का अंधेरा हो जाएगा, \q \v 12 तो भी अंधकार तुझ से न छिपाएगा, रात तो दिन के तुल्य प्रकाश देगी; \q क्योंकि तेरे लिये अंधियारा और उजियाला दोनों एक समान हैं। \q \s5 \v 13 तूने मेरे अंदरूनी अंगों को बनाया है; \q तूने मुझे माता के गर्भ में रचा। \q \v 14 मैं तेरा धन्यवाद करूँगा, इसलिए कि मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूँ। \q तेरे काम तो आश्चर्य के हैं, \q और मैं इसे भली भाँति जानता हूँ। (प्रका. 15:3) \q \s5 \v 15 जब मैं गुप्त में बनाया जाता, \q और पृथ्वी के नीचे स्थानों में रचा जाता था, \q तब मेरी देह तुझ से छिपी न थीं। \q \v 16 तेरी आँखों ने मेरे बेडौल तत्व को देखा; \q और मेरे सब अंग जो दिन-दिन बनते जाते थे वे रचे जाने से पहले \q तेरी पुस्तक में लिखे हुए थे। \q \s5 \v 17 मेरे लिये तो हे परमेश्‍वर, तेरे विचार क्या ही बहुमूल्य हैं! \q उनकी संख्या का जोड़ कैसा बड़ा है! \q \v 18 यदि मैं उनको गिनता तो वे रेतकणों से भी अधिक ठहरते। \q जब मैं जाग उठता हूँ, तब भी तेरे संग रहता हूँ। \q \s5 \v 19 हे परमेश्‍वर निश्चय तू दुष्ट को घात करेगा! \q हे हत्यारों, मुझसे दूर हो जाओ। \q \v 20 क्योंकि वे तेरे विरुद्ध बलवा करते और छल के काम करते हैं; \q तेरे शत्रु तेरा नाम झूठी बात पर लेते हैं। \q \s5 \v 21 हे यहोवा, क्या मैं तेरे बैरियों से बैर न रखूँ, \q और तेरे विरोधियों से घृणा न करूँ? (प्रका. 2:6) \q \v 22 हाँ, मैं उनसे पूर्ण बैर रखता हूँ; \q मैं उनको अपना शत्रु समझता हूँ। \q \s5 \v 23 हे परमेश्‍वर, मुझे जाँचकर जान ले! \q मुझे परखकर मेरी चिन्ताओं को जान ले! \q \v 24 और देख कि मुझ में कोई बुरी चाल है कि नहीं, \q और अनन्त के मार्ग में मेरी अगुआई कर! \s5 \c 140 \s बचाव के लिए प्रार्थना \d प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा, मुझ को बुरे मनुष्य से बचा ले; \q उपद्रवी पुरुष से मेरी रक्षा कर, \q \v 2 क्योंकि उन्होंने मन में बुरी कल्पनाएँ की हैं; \q वे लगातार लड़ाइयाँ मचाते हैं। \q \v 3 उनका बोलना साँप के काटने के समान है, \q उनके मुँह में नाग का सा विष रहता है। (सेला) (रोम 3:13, याकू. 3:8) \q \s5 \v 4 हे यहोवा, मुझे दुष्ट के हाथों से बचा ले; \q उपद्रवी पुरुष से मेरी रक्षा कर, \q क्योंकि उन्होंने मेरे पैरों को उखाड़ने की युक्ति की है। \q \v 5 घमण्डियों ने मेरे लिये फंदा और पासे लगाए, \q और पथ के किनारे जाल बिछाया है; \q उन्होंने मेरे लिये फंदे लगा रखे हैं। (सेला) \q \s5 \v 6 हे यहोवा, मैंने तुझ से कहा है कि तू मेरा परमेश्‍वर है; \q हे यहोवा, मेरे गिड़गिड़ाने की ओर कान लगा! \q \v 7 हे यहोवा प्रभु, हे मेरे सामर्थी उद्धारकर्ता, \q तूने युद्ध के दिन मेरे सिर की रक्षा की है। \q \v 8 हे यहोवा, दुष्ट की इच्छा को पूरी न होने दे, \q उसकी बुरी युक्ति को सफल न कर, नहीं तो वह घमण्ड करेगा। (सेला) \q \s5 \v 9 मेरे घेरनेवालों के सिर पर उन्हीं का विचारा हुआ उत्पात पड़े! \q \v 10 उन पर अंगारे डाले जाएँ! \q वे आग में गिरा दिए जाएँ! \q और ऐसे गड्ढों में गिरें, कि वे फिर उठ न सके! \q \v 11 बकवादी पृथ्वी पर स्थिर नहीं होने का; \q उपद्रवी पुरुष को गिराने के लिये बुराई उसका पीछा करेगी। \q \s5 \v 12 हे यहोवा, मुझे निश्चय है कि तू दीन जन का \q और दरिद्रों का न्याय चुकाएगा। \q \v 13 निःसन्देह धर्मी तेरे नाम का धन्यवाद करने पाएँगे; \q सीधे लोग तेरे सम्मुख वास करेंगे। \s5 \c 141 \s पाप और पापियों से संरक्षण \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा, मैंने तुझे पुकारा है; मेरे लिये फुर्ती कर! \q जब मैं तुझको पुकारूँ, तब मेरी ओर कान लगा! \q \v 2 मेरी प्रार्थना तेरे सामने सुगन्ध धूप*, \q और मेरा हाथ फैलाना, संध्याकाल का अन्नबलि ठहरे! (प्रका. 5:8, प्रका. 8:3,4, नीति. 3:25,1 पत. 3:6) \q \s5 \v 3 हे यहोवा, मेरे मुँह पर पहरा बैठा, \q मेरे होंठों के द्वार की रखवाली कर! (याकू. 1:26) \q \v 4 मेरा मन किसी बुरी बात की ओर फिरने न दे; \q मैं अनर्थकारी पुरुषों के संग, \q दुष्ट कामों में न लगूँ, \q और मैं उनके स्वादिष्ट भोजनवस्तुओं में से कुछ न खाऊँ! \q \s5 \v 5 धर्मी मुझ को मारे तो यह करुणा मानी जाएगी, \q और वह मुझे ताड़ना दे, तो यह मेरे सिर पर का तेल ठहरेगा; \q मेरा सिर उससे इन्कार न करेगा। \q दुष्ट लोगों के बुरे कामों के विरुद्ध मैं निरन्‍तर प्रार्थना करता रहूँगा। \q \v 6 जब उनके न्यायी चट्टान के ऊपर से गिराए गए, \q तब उन्होंने मेरे वचन सुन लिए; क्योंकि वे मधुर हैं। \q \v 7 जैसे भूमि में हल चलने से ढेले फूटते हैं*, \q वैसे ही हमारी हड्डियाँ अधोलोक के मुँह पर छितराई गई हैं। \q \s5 \v 8 परन्तु हे यहोवा प्रभु, मेरी आँखें तेरी ही ओर लगी हैं; \q मैं तेरा शरणागत हूँ; तू मेरे प्राण जाने न दे! \q \v 9 मुझे उस फंदे से, जो उन्होंने मेरे लिये लगाया है, \q और अनर्थकारियों के जाल से मेरी रक्षा कर! \q \v 10 दुष्ट लोग अपने जालों में आप ही फँसें, \q और मैं बच निकलूँ। \s5 \c 142 \s अत्याचारी से राहत के लिए याचिका \d दाऊद का मश्कील, जब वह गुफा में था : प्रार्थना \b \q \v 1 मैं यहोवा की दुहाई देता, \q मैं यहोवा से गिड़गिड़ाता हूँ, \q \v 2 मैं अपने शोक की बातें उससे खोलकर कहता, \q मैं अपना संकट उसके आगे प्रगट करता हूँ। \q \s5 \v 3 जब मेरी आत्मा मेरे भीतर से व्याकुल हो रही थी*, \q तब तू मेरी दशा को जानता था! \q जिस रास्ते से मैं जानेवाला था, उसी में उन्होंने मेरे लिये फंदा लगाया। \q \v 4 मैंने दाहिनी ओर देखा, परन्तु कोई मुझे नहीं देखता। \q मेरे लिये शरण कहीं नहीं रही, न मुझ को कोई पूछता है। \q \v 5 हे यहोवा, मैंने तेरी दुहाई दी है; \q मैंने कहा, तू मेरा शरणस्थान है, \q मेरे जीते जी तू मेरा भाग है। \q \s5 \v 6 मेरी चिल्लाहट को ध्यान देकर सुन, \q क्योंकि मेरी बड़ी दुर्दशा हो गई है! \q जो मेरे पीछे पड़े हैं, उनसे मुझे बचा ले; \q क्योंकि वे मुझसे अधिक सामर्थी हैं। \q \v 7 मुझ को बन्दीगृह से निकाल* कि मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूँ! \q धर्मी लोग मेरे चारों ओर आएँगे; \q क्योंकि तू मेरा उपकार करेगा। \s5 \c 143 \s मार्गदर्शन और उद्धार के लिए प्रार्थना \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन; \q मेरे गिड़गिड़ाने की ओर कान लगा! \q तू जो सच्चा और धर्मी है, इसलिए मेरी सुन ले, \q \v 2 और अपने दास से मुकद्दमा न चला! \q क्योंकि कोई प्राणी तेरी दृष्टि में निर्दोष नहीं ठहर सकता। (रोम 3:20, 1 कुरि.4:4, गला 2:16) \q \s5 \v 3 शत्रु तो मेरे प्राण का गाहक हुआ है; \q उसने मुझे चूर करके मिट्टी में मिलाया है, \q और मुझे बहुत दिन के मरे हुओं के समान अंधेरे स्थान में डाल दिया है। \q \v 4 मेरी आत्मा भीतर से व्याकुल हो रही है \q मेरा मन विकल है। \q \s5 \v 5 मुझे प्राचीनकाल के दिन स्मरण आते हैं, \q मैं तेरे सब अद्भुत कामों पर ध्यान करता हूँ, \q और तेरे हाथों के कामों को सोचता हूँ। \q \v 6 मैं तेरी ओर अपने हाथ फैलाए हूए हूँ; \q सूखी भूमि के समान मैं तेरा प्यासा हूँ। (सेला) \q \s5 \v 7 हे यहोवा, फुर्ती करके मेरी सुन ले; \q क्योंकि मेरे प्राण निकलने ही पर हैं! \q मुझसे अपना मुँह न छिपा, ऐसा न हो कि मैं कब्र में पड़े हुओं के समान हो जाऊँ। \q \v 8 प्रातःकाल को अपनी करुणा की बात मुझे सुना, \q क्योंकि मैंने तुझी पर भरोसा रखा है। \q जिस मार्ग पर मुझे चलना है, वह मुझ को बता दे, \q क्योंकि मैं अपना मन तेरी ही ओर लगाता हूँ। \q \s5 \v 9 हे यहोवा, मुझे शत्रुओं से बचा ले; \q मैं तेरी ही आड़ में आ छिपा हूँ। \q \v 10 मुझ को यह सिखा, कि मैं तेरी इच्छा कैसे पूरी करूँ, क्योंकि मेरा परमेश्‍वर तू ही है! \q तेरी भली आत्मा मुझ को धर्म के मार्ग में ले चले*! \q \s5 \v 11 हे यहोवा, मुझे अपने नाम के निमित्त जिला! \q तू जो धर्मी है, मुझ को संकट से छुड़ा ले! \q \v 12 और करुणा करके मेरे शत्रुओं का सत्यानाश कर, \q और मेरे सब सतानेवालों का नाश कर डाल, \q क्योंकि मैं तेरा दास हूँ। \s5 \c 144 \s बचाव और समृद्धि के लिए प्रार्थना \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 धन्य है यहोवा, जो मेरी चट्टान है, \q वह युद्ध के लिए मेरे हाथों को \q और लड़ाई के लिए मेरी उँगलियों को अभ्यास कराता है। \q \v 2 वह मेरे लिये करुणानिधान और गढ़, \q ऊँचा स्थान और छुड़ानेवाला है, \q वह मेरी ढाल और शरणस्थान है, \q जो जातियों को मेरे वश में कर देता है। \q \s5 \v 3 हे यहोवा, मनुष्य क्या है कि तू उसकी सुधि लेता है, \q या आदमी क्या है कि तू उसकी कुछ चिन्ता करता है? \q \v 4 मनुष्य तो साँस के समान है; \q उसके दिन ढलती हुई छाया के समान हैं। \q \s5 \v 5 हे यहोवा, अपने स्वर्ग को नीचा करके उतर आ! \q पहाड़ों को छू तब उनसे धुआँ उठेगा! \q \v 6 बिजली कड़काकर उनको तितर-बितर कर दे, \q अपने तीर चलाकर उनको घबरा दे! \q \s5 \v 7 अपना हाथ ऊपर से बढ़ाकर मुझे महासागर से उबार, \q अर्थात् परदेशियों के वश से छुड़ा। \q \v 8 उनके मुँह से तो झूठी बातें निकलती हैं, \q और उनके दाहिने हाथ से धोखे के काम होते हैं। \q \s5 \v 9 हे परमेश्‍वर, मैं तेरी स्तुति का नया गीत गाऊँगा; \q मैं दस तारवाली सारंगी बजाकर तेरा भजन गाऊँगा। (प्रका. 5:9, प्रका. 14:3) \q \v 10 तू राजाओं का उद्धार करता है, \q और अपने दास दाऊद को तलवार की मार से बचाता है। \q \v 11 मुझ को उबार और परदेशियों के वश से छुड़ा ले, \q जिनके मुँह से झूठी बातें निकलती हैं, \q और जिनका दाहिना हाथ झूठ का दाहिना हाथ है। \q \s5 \v 12 हमारे बेटे जवानी के समय पौधों के समान बढ़े हुए हों*, \q और हमारी बेटियाँ उन कोनेवाले खम्भों के समान हों, जो महल के लिये बनाए जाएँ; \q \v 13 हमारे खत्ते भरे रहें, और उनमें भाँति-भाँति का अन्न रखा जाए, \q और हमारी भेड़-बकरियाँ हमारे मैदानों में हजारों हजार बच्चे जनें; \q \s5 \v 14 तब हमारे बैल खूब लदे हुए हों; \q हमें न विघ्न हो और न हमारा कहीं जाना हो, \q और न हमारे चौकों में रोना-पीटना हो*, \q \v 15 तो इस दशा में जो राज्य हो वह क्या ही धन्य होगा! \q जिस राज्य का परमेश्‍वर यहोवा है, वह क्या ही धन्य है! \s5 \c 145 \s परमेश्‍वर की महिमा और प्रेम का गीत \d दाऊद का भजन \b \q \v 1 हे मेरे परमेश्‍वर, हे राजा, मैं तुझे सराहूँगा, \q और तेरे नाम को सदा सर्वदा धन्य कहता रहूँगा। \q \v 2 प्रतिदिन मैं तुझको धन्य कहा करूँगा, \q और तेरे नाम की स्तुति सदा सर्वदा करता रहूँगा। \q \v 3 यहोवा महान और अति स्तुति के योग्य है, \q और उसकी बड़ाई अगम है। \q \s5 \v 4 तेरे कामों की प्रशंसा और तेरे पराक्रम के कामों का वर्णन, \q पीढ़ी-पीढ़ी होता चला जाएगा। \q \v 5 मैं तेरे ऐश्वर्य की महिमा के प्रताप पर \q और तेरे भाँति-भाँति के आश्चर्यकर्मों पर ध्यान करूँगा। \q \s5 \v 6 लोग तेरे भयानक कामों की शक्ति की चर्चा करेंगे, \q और मैं तेरे बड़े-बड़े कामों का वर्णन करूँगा। \q \v 7 लोग तेरी बड़ी भलाई का स्मरण करके उसकी चर्चा करेंगे, \q और तेरे धर्म का जयजयकार करेंगे। \q \s5 \v 8 यहोवा अनुग्रहकारी और दयालु, \q विलम्ब से क्रोध करनेवाला और अति करुणामय है। \q \v 9 यहोवा सभी के लिये भला है, \q और उसकी दया उसकी सारी सृष्टि पर है। \q \s5 \v 10 हे यहोवा, तेरी सारी सृष्टि तेरा धन्यवाद करेगी, \q और तेरे भक्त लोग तुझे धन्य कहा करेंगे! \q \v 11 वे तेरे राज्य की महिमा की चर्चा करेंगे, \q और तेरे पराक्रम के विषय में बातें करेंगे; \q \v 12 कि वे मनुष्यों पर तेरे पराक्रम के काम \q और तेरे राज्य के प्रताप की महिमा प्रगट करें। \q \s5 \v 13 तेरा राज्य युग-युग का \q और तेरी प्रभुता सब पीढि़यों तक बनी रहेगी। \q \s5 \v 14 यहोवा सब गिरते हुओं को संभालता है, \q और सब झुके हुओं को सीधा खड़ा करता है। \q \v 15 सभी की आँखें तेरी ओर लगी रहती हैं, \q और तू उनको आहार समय पर देता है। \q \v 16 तू अपनी मुट्ठी खोलकर, \q सब प्राणियों को आहार से तृप्त करता है। \q \s5 \v 17 यहोवा अपनी सब गति में धर्मी \q और अपने सब कामों में करुणामय है*। (प्रका. 15:3, प्रका. 16:5) \q \v 18 जितने यहोवा को पुकारते हैं, अर्थात् जितने उसको सच्चाई से पुकारते है; \q उन सभी के वह निकट रहता है*। \q \v 19 वह अपने डरवैयों की इच्छा पूरी करता है, \q और उनकी दुहाई सुनकर उनका उद्धार करता है। \q \s5 \v 20 यहोवा अपने सब प्रेमियों की तो रक्षा करता, \q परन्तु सब दुष्टों को सत्यानाश करता है। \q \v 21 मैं यहोवा की स्तुति करूँगा, \q और सारे प्राणी उसके पवित्र नाम को सदा सर्वदा धन्य कहते रहें। \s5 \c 146 \s उद्धारकर्ता परमेश्‍वर की स्तुति \b \q \v 1 यहोवा की स्तुति करो। \q हे मेरे मन यहोवा की स्तुति कर! \q \v 2 मैं जीवन भर यहोवा की स्तुति करता रहूँगा; \q जब तक मैं बना रहूँगा, तब तक मैं अपने परमेश्‍वर का भजन गाता रहूँगा। \q \s5 \v 3 तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना, \q न किसी आदमी पर, क्योंकि उसमें उद्धार करने की शक्ति नहीं। \q \v 4 उसका भी प्राण निकलेगा, वह भी मिट्टी में मिल जाएगा; \q उसी दिन उसकी सब कल्पनाएँ नाश हो जाएँगी*। \q \s5 \v 5 क्या ही धन्य वह है, \q जिसका सहायक याकूब का परमेश्‍वर है, \q और जिसकी आशा अपने परमेश्‍वर यहोवा पर है। \q \v 6 वह आकाश और पृथ्वी और समुद्र \q और उनमें जो कुछ है, सब का कर्ता है; \q और वह अपना वचन सदा के लिये पूरा करता रहेगा। (प्रेरि. 4:24, प्रेरि. 14:15, प्रेरि. 17:24, प्रका.10:6, प्रका.14:7) \q \s5 \v 7 वह पिसे हुओं का न्याय चुकाता है; \q और भूखों को रोटी देता है। \q यहोवा बन्दियों को छुड़ाता है; \q \v 8 यहोवा अंधों को आँखें देता है। \q यहोवा झुके हुओं को सीधा खड़ा करता है; \q यहोवा धर्मियों से प्रेम रखता है। \q \s5 \v 9 यहोवा परदेशियों की रक्षा करता है; \q और अनाथों और विधवा को तो सम्भालता है*; \q परन्तु दुष्टों के मार्ग को टेढ़ा-मेढ़ा करता है। \q \v 10 हे सिय्योन, यहोवा सदा के लिये, \q तेरा परमेश्‍वर पीढ़ी-पीढ़ी राज्य करता रहेगा। \q यहोवा की स्तुति करो! \s5 \c 147 \s सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की स्तुति \b \q \v 1 यहोवा की स्तुति करो! \q क्योंकि अपने परमेश्‍वर का भजन गाना अच्छा है; \q क्योंकि वह मनभावना है, उसकी स्तुति करना उचित है। \q \s5 \v 2 यहोवा यरूशलेम को फिर बसा रहा है; \q वह निकाले हुए इस्राएलियों को इकट्ठा कर रहा है। \q \v 3 वह खेदित मनवालों को चंगा करता है, \q और उनके घाव पर मरहम-पट्टी बाँधता है*। \q \s5 \v 4 वह तारों को गिनता, \q और उनमें से एक-एक का नाम रखता है। \q \v 5 हमारा प्रभु महान और अति सामर्थी है; \q उसकी बुद्धि अपरम्पार है। \q \s5 \v 6 यहोवा नम्र लोगों को सम्भालता है, \q और दुष्टों को भूमि पर गिरा देता है। \q \v 7 धन्यवाद करते हुए यहोवा का गीत गाओ; \q वीणा बजाते हुए हमारे परमेश्‍वर का भजन गाओ। \q \s5 \v 8 वह आकाश को मेघों से भर देता है, \q और पृथ्वी के लिये मेंह को तैयार करता है, और पहाड़ों पर घास उगाता है। (प्रेरि. 14:17) \q \v 9 वह पशुओं को और कौवे के बच्चों को जो पुकारते हैं, \q आहार देता है। (लूका 12:24) \q \s5 \v 10 न तो वह घोड़े के बल को चाहता है, \q और न पुरुष के बलवन्त पैरों से प्रसन्‍न होता है; \q \v 11 यहोवा अपने डरवैयों ही से प्रसन्‍न होता है*, \q अर्थात् उनसे जो उसकी करुणा पर आशा लगाए रहते हैं। \q \s5 \v 12 हे यरूशलेम, यहोवा की प्रशंसा कर! \q हे सिय्योन, अपने परमेश्‍वर की स्तुति कर! \q \v 13 क्योंकि उसने तेरे फाटकों के खम्भों को दृढ़ किया है; \q और तेरे सन्तानों को आशीष दी है। \q \v 14 वह तेरी सीमा में शान्ति देता है, \q और तुझको उत्तम से उत्तम गेहूँ से तृप्त करता है। \q \s5 \v 15 वह पृथ्वी पर अपनी आज्ञा का प्रचार करता है, \q उसका वचन अति वेग से दौड़ता है। \q \v 16 वह ऊन के समान हिम को गिराता है, \q और राख के समान पाला बिखेरता है। \q \s5 \v 17 वह बर्फ के टुकड़े गिराता है, \q उसकी की हुई ठण्ड को कौन सह सकता है? \q \v 18 वह आज्ञा देकर उन्हें गलाता है; \q वह वायु बहाता है, तब जल बहने लगता है। \q \s5 \v 19 वह याकूब को अपना वचन, \q और इस्राएल को अपनी विधियाँ और नियम बताता है। \q \v 20 किसी और जाति से उसने ऐसा बर्ताव नहीं किया; \q और उसके नियमों को औरों ने नहीं जाना। \q यहोवा की स्तुति करो। (रोम 3:2) \s5 \c 148 \s समस्त सृष्टि परमेश्‍वर की स्तुति करे \b \q \v 1 यहोवा की स्तुति करो! \q यहोवा की स्तुति स्वर्ग में से करो, \q उसकी स्तुति ऊँचे स्थानों में करो! \q \v 2 हे उसके सब दूतों, उसकी स्तुति करो: \q हे उसकी सब सेना उसकी स्तुति करो! \q \s5 \v 3 हे सूर्य और चन्द्रमा उसकी स्तुति करो, \q हे सब ज्योतिमय तारागण उसकी स्तुति करो! \q \v 4 हे सबसे ऊँचे आकाश \q और हे आकाश के ऊपरवाले जल, तुम दोनों उसकी स्तुति करो। \q \s5 \v 5 वे यहोवा के नाम की स्तुति करें, \q क्योंकि उसने आज्ञा दी और ये सिरजे गए*। \q \v 6 और उसने उनको सदा सर्वदा के लिये स्थिर किया है; \q और ऐसी विधि ठहराई है, जो टलने की नहीं। \q \s5 \v 7 पृथ्वी में से यहोवा की स्तुति करो, \q हे समुद्री अजगरों और गहरे सागर, \q \v 8 हे अग्नि और ओलों, हे हिम और कुहरे, \q हे उसका वचन माननेवाली प्रचण्ड वायु! \q \s5 \v 9 हे पहाड़ों और सब टीलों, \q हे फलदाई वृक्षों और सब देवदारों! \q \v 10 हे वन-पशुओं और सब घरेलू पशुओं, \q हे रेंगनेवाले जन्तुओं और हे पक्षियों! \q \s5 \v 11 हे पृथ्वी के राजाओं, और राज्य-राज्य के सब लोगों, \q हे हाकिमों और पृथ्वी के सब न्यायियों! \q \v 12 हे जवानों और कुमारियों, \q हे पुरनियों और बालकों! \q \s5 \v 13 यहोवा के नाम की स्तुति करो, \q क्योंकि केवल उसकी का नाम महान है; \q उसका ऐश्वर्य पृथ्वी और आकाश के ऊपर है। \q \v 14 और उसने अपनी प्रजा के लिये एक सींग ऊँचा किया है*; \q यह उसके सब भक्तों के लिये \q अर्थात् इस्राएलियों के लिये और उसके समीप रहनेवाली प्रजा के लिये स्तुति करने का विषय है। \q यहोवा की स्तुति करो! \s5 \c 149 \s न्याय और उद्धार के लिए परमेश्‍वर की स्तुति \b \q \v 1 यहोवा की स्तुति करो! \q यहोवा के लिये नया गीत गाओ, \q भक्तों की सभा में उसकी स्तुति गाओ! (प्रका. 5:9 प्रका. 14:3) \q \s5 \v 2 इस्राएल अपने कर्ता के कारण आनन्दित हो, \q सिय्योन के निवासी अपने राजा के कारण मगन हों! \q \v 3 वे नाचते हुए उसके नाम की स्तुति करें, \q और डफ और वीणा बजाते हुए उसका भजन गाएँ! \q \s5 \v 4 क्योंकि यहोवा अपनी प्रजा से प्रसन्‍न रहता है; \q वह नम्र लोगों का उद्धार करके उन्हें शोभायमान करेगा*। \q \v 5 भक्त लोग महिमा के कारण प्रफुल्लित हों; \q और अपने बिछौनों पर भी पड़े-पड़े जयजयकार करें। \q \s5 \v 6 उनके कण्ठ से परमेश्‍वर की प्रशंसा हो, \q और उनके हाथों में दोधारी तलवारें रहें, \q \v 7 कि वे जाति-जाति से पलटा ले सके; \q और राज्य-राज्य के लोगों को ताड़ना दें, \q \s5 \v 8 और उनके राजाओं को जंजीरों से, \q और उनके प्रतिष्ठित पुरुषों को लोहे की बेड़ियों से जकड़ रखें*, \q \v 9 और उनको ठहराया हुआ दण्ड देंगे! \q उसके सब भक्तों की ऐसी ही प्रतिष्ठा होगी। \q यहोवा की स्तुति करो। \s5 \c 150 \s प्रशंसा का एक भजन \b \q \v 1 यहोवा की स्तुति करो! \q परमेश्‍वर के पवित्रस्‍थान में उसकी स्तुति करो; \q उसकी सामर्थ्य से भरे हुए आकाशमण्डल में \q उसकी स्तुति करो! \q \v 2 उसके पराक्रम के कामों के कारण \q उसकी स्तुति करो*; \q उसकी अत्यन्त बड़ाई के अनुसार उसकी स्तुति करो! \q \s5 \v 3 नरसिंगा फूँकते हुए उसकी स्तुति करो; \q सारंगी और वीणा बजाते हुए उसकी स्तुति करो! \q \v 4 डफ बजाते और नाचते हुए उसकी स्तुति करो; \q तारवाले बाजे और बाँसुरी बजाते हुए \q उसकी स्तुति करो! \q \v 5 ऊँचे शब्दवाली झाँझ बजाते हुए \q उसकी स्तुति करो; \q आनन्द के महाशब्दवाली झाँझ बजाते हुए \q उसकी स्तुति करो! \q \s5 \v 6 जितने प्राणी हैं \q सब के सब यहोवा की स्तुति करें*! \q यहोवा की स्तुति करो!