hi_udb/45-ACT.usfm

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Plaintext

\id ACT Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h प्रेरितों के काम
\toc1 प्रेरितों के काम
\toc2 प्रेरितों के काम
\toc3 act
\mt1 प्रेरितों के काम
\s5
\c 1
\p
\v 1 प्रिय थियुफिलुस,
\p मेरी पहली किताब जो मैंने तेरे लिए लिखी थी, उसमें मैंने यीशु के कामों और शिक्षाओं के बारे में लिखा था।
\v 2 जिस दिन तक परमेश्वर ने उन्हें स्वर्ग में उठा नहीं लिया उन्होंने उस दिन तक पवित्र आत्मा की शक्ति से अपने प्रेरितों को वह सब समझाया जो वे चाहते थे कि उनके लिए जानना आवश्यक है।
\v 3 क्रूस पर दु:ख उठाने और मर जाने के बाद, वे फिर से जीवित हो गए थे। क्योंकि वह अगले चालीस दिन तक दिखाई देते रहे। प्रेरितों ने उन्हें कई बार देखा। उन्होंने कई बातों से सिद्ध कर दिया था कि वे जीवित हैं। उन्होंने उनके साथ यह भी चर्चा की कि परमेश्वर अपने राज्य में लोगों के जीवन पर शासन करेंगे।
\p
\s5
\v 4 एक बार जब वह उनके साथ थे, तो उन्होंने उनसे कहा, "यरूशलेम को मत छोड़ो, यहाँ प्रतीक्षा करो जब तक कि मेरे पिता अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अपना आत्मा तुम्हारे पास न भेज दें। तुमने उन की चर्चा करते हुए मुझे सुना है।
\v 5 यूहन्ना ने लोगों को पानी में बपतिस्मा दिया, परन्तु कुछ दिन बाद परमेश्वर तुमको पवित्र आत्मा में बपतिस्मा देंगे।"
\p
\s5
\v 6 एक दिन जब प्रेरितों ने एकत्र होकर यीशु के साथ भेंट की, तो उन्होंने पूछा, "हे प्रभु, क्या आप इसी समय इस्राएल के राजा होंगे?"
\v 7 "उन्होंने उत्तर दिया, "तुमको इसके समय और दिनों के बारे में जानने की आवयश्कता नहीं है। ऐसा कब होगा, यह केवल मेरे पिता का अपना निर्णय है।
\v 8 परन्तु जब पवित्र आत्मा तुम पर उतरेंगे तब तुम दृढ़ हो जाओगे। तब तुम यरूशलेम में और यहूदिया प्रांत में, सामरिया और सारी दुनिया में लोगों को मेरे बारे में बताओगे।"
\s5
\v 9 यह कहने के बाद वे स्वर्ग पर उठा लिए गए, और एक बादल ने उन्हें छिपा लिया कि वे प्रेरित उन्हें और देख न सकें।
\p
\v 10 उनके स्वर्ग में जाते समय प्रेरित आकाश की और ही देख रहे थे, कि अकस्मात दो पुरुष सफेद कपड़े पहने हुए उनके पास आकर खड़े हो गए। वे स्वर्गदूत थे।
\v 11 उनमें से एक ने कहा, "हे गलील के पुरूषों, तुम्हें आकाश की ओर देखते हुए यहाँ पर और अधिक खड़े रहने की आवयश्कता नहीं है! एक दिन यही यीशु, जिन्हें परमेश्वर ने स्वर्ग में उठा लिया है, वे पृथ्वी पर वापस आएँगे। वे वैसे ही लौटकर आएँगे जैसे तुमने अभी उन्हें स्वर्ग में जाते देखा है।"
\p
\s5
\v 12 उन दोनों स्वर्गदूतों के जाने के बाद, सब प्रेरित जैतून के पहाड़ से जो यरूशलेम से कुछ ही दूर था लौट आए।
\v 13 शहर में प्रवेश करने के बाद, वे उस घर के ऊपर के कमरे में गए जहाँ वे रह रहे थे। वहाँ उपस्थित लोगों में निम्नलिखित लोग थे: पतरस, यूहन्ना, याकूब, अन्द्रियास, फिलिप्पुस, थोमा, बरतुल्मै, मत्ती, हलफईस का पुत्र याकूब, शमौन जेलोतेस और एक अन्य याकूब नाम के व्यक्ति का पुत्र यहूदा।
\v 14 इन प्रेरितों ने एक साथ निरन्तर प्रार्थना करना शुरू कर दिया। उनके साथ प्रार्थना करने वाले अन्य लोगों में यीशु के साथ रही स्त्रियाँ, यीशु की माता मरियम,और उनके छोटे भाई भी थे।
\p
\s5
\v 15 उन्हीं दिनों में पतरस अपने साथी विश्वासियों के बीच खड़ा हुआ। उस स्थान पर यीशु के लगभग 120 अनुयायियों का समूह था। उसने कहा,
\v 16 "हे मेरे भाइयों, यहूदा के बारे में वचन हैं जो कि राजा दाऊद ने बहुत पहले लिख दिया था। और वह वचन सच होना था, और वह सच हुआ भी, क्योंकि वह पवित्र आत्मा की प्रेरणा से दाऊद ने लिखा था।
\s5
\v 17 यहूदा हमारे जैसा ही एक प्रेरित था, परन्तु उसने उन लोगों का मार्गदर्शन किया जिन्होंने यीशु को पकड़ लिया और उन्हें मार डाला।"
\p
\v 18 अब इस व्यक्ति ने इस बुराई से पैसा कमाया। इस पैसे से उसने एक खेत खरीदा। फिर वह वहाँ भूमि पर गिर पड़ा, उसका शरीर फट गया, और उसकी सारी अंतड़ियां बाहर निकल आईं।
\v 19 यरूशलेम में रहने वाले सब लोगों ने इस बारे में सुना था, इसलिए उन्होंने उस खेत को अपनी अरामी भाषा के अनुसार हकलदमा नाम दिया, जिसका अर्थ है "लहू का खेत", क्योंकि वहां पर किसी की मृत्यु हो गई थी।
\p
\s5
\v 20 पतरस ने यह भी कहा, "मैं देखता हूँ कि यहूदा के साथ जो कुछ हुआ, वह ऐसा है जैसा कि भजन संहिता कहता है: 'उसका परिवार मर जाए, उसमें से कोई भी नहीं बचे।' और ऐसा लगता है कि दाऊद ने जो ये दूसरे वचन लिखा था, वह भी यहूदा के बारे में है: 'कोई और उसके अगुवा होने के पद पर काम करे।'
\p
\s5
\v 21 "इसलिए हम प्रेरितों के लिए आवश्यक है कि यहूदा के स्थान पर एक व्यक्ति को चुनें। वह अवश्य ही ऐसा व्यक्ति हो जो प्रभु यीशु के समय से ही सदा हमारे साथ रहा हो।
\v 22 अर्थात यूहन्ना का बपतिस्मा पाने के बाद से लेकर यीशु का हमें छोड़कर स्वर्ग में उठा लिए जाने तक। यहूदा के स्थान पर आनेवाले व्यक्ति के लिये आवश्यक है कि वह हमारे साथ मिलकर लोगों को यीशु के बारे में सुनाए और यह भी कि वे मरने के बाद फिर से जीवित हो गये हैं।"
\p
\v 23 इसलिए प्रेरितों और अन्य विश्वासियों ने दो व्यक्तियों के नाम का सुझाव दिया। एक व्यक्ति यूसुफ बरसब्बास था, जिसका नाम यूस्तुस भी था। दूसरा मत्तियाह था।
\s5
\v 24-25 तब उन्होंने प्रार्थना की: "हे प्रभु यीशु, यहूदा ने प्रेरित होने का पद खो दिया। उसने पाप किया और उस जगह पर चला गया, जहाँ होने के वह योग्य है। आप जानते हैं कि मनुष्य अपने मन में क्या सोचता है, तो कृपया हमको बताएँ कि आपने इन दो लोगों में से किसको यहूदा का स्थान देने के लिए चुना है।"
\v 26 तब उन्होंने उन दोनों के बीच में चयन करने के लिए चिट्ठियाँ डालीं, और मत्तियाह के नाम पर चिट्टी निकली, और वह अन्य ग्यारह प्रेरितों के साथ एक प्रेरित हो गया।
\s5
\c 2
\p
\v 1 जिस दिन यहूदी पिन्तेकुस्त का पर्व मना रहे थे, उस दिन सब विश्वासी यरूशलेम में एक स्थान में एकत्र थे।
\v 2 अकस्मात ही आकाश में प्रचण्ड आँधी की सी ध्वनी सुनाई दी। वहाँ उपस्थित सब लोगों ने उस ध्वनी को सुना।
\v 3 तब उन्होंने आग की लपटों जैसा कुछ देखा। ये लपटें अलग-अलग होकर विश्वासियों में से हर एक पर उतर आईं।
\v 4 और सब विश्वासी पवित्र आत्मा से भर गए और जैसा आत्मा ने हर एक को सक्षम बनाया वे अलग-अलग भाषाएँ बोलने लगे।
\p
\s5
\v 5 उस समय कई यहूदी पिन्तेकुस्त का पर्व मनाने के लिए यरूशलेम में ठहरे हुए थे। वे यहूदी लोग थे जो सच्चे मन से परमेश्वर की आराधना करते थे। वे अलग-अलग देशों से आए थे।
\v 6 जब उन्होंने आँधी की सी ध्वनी सुनी, तो विश्वासियों के एकत्र होने के स्थान पर भीड़ लग गई। भीड़ के लोग चकित थे क्योंकि उनमें से हर एक ने किसी ना किसी विश्वासी को उनकी अपनी भाषा में बोलते हुए सुना।
\v 7 वे पूरी तरह आश्चर्यचकित हो गए, और उन्होंने एक दूसरे से कहा, "ये सभी पुरुष जो बोल रहे हैं, वे गलील से आए हैं, तो वे हमारी भाषा कैसे जान सकते हैं?
\s5
\v 8 परन्तु हम सब ने उन्हें अपनी-अपनी भाषा बोलते हुए सुना है, जो हमने जन्म से सीखी है!
\v 9 हम में से कुछ पारथी और मेदी और एलाम के इलाकों से हैं, और हम में से अन्य मेसोपोटामिया, यहूदिया, कप्पदूकिया, पुन्तुस और आसिया के इलाकों से हैं।
\v 10 कुछ लोग फ्रूगिया और पम्फूलिया, मिस्र, और लीबिया के क्षेत्रों में से भी हैं, जो कि कुरेने शहर के पास हैं। हम में से कुछ अन्य लोग भी हैं जो रोम से यरूशलेम आए हैं।
\v 11 उनमें देशी यहूदियों के साथ-साथ गैर-यहूदी भी हैं, जो हम यहूदियों के विश्वास को मानते हैं। और हम में से अन्य क्रेते द्वीप से और अरब के क्षेत्र से हैं। तो ऐसा कैसे है कि ये लोग परमेश्वर द्वारा किये गए महान कामों के बारे में हमारी भाषाओं में बोल रहे हैं?"
\s5
\v 12 लोग आश्चर्यचकित थे और उनको पता नहीं था कि जो हो रहा है, इसके बारे में क्या विचार करें। तो वे एक दूसरे से पूछने लगे, "इसका क्या मतलब है?"
\v 13 लेकिन उनमें से कुछ ने जो देखा था उसका ठट्ठा करके कहा, "ये लोग इस तरह से बात कर रहे हैं क्योंकि इन्होंने नया दाखरस बहुत अधिक पी लिया है!"
\p
\s5
\v 14 इसलिए पतरस अन्य ग्यारह प्रेरितों के साथ खड़ा हुआ और ऊँची आवाज में लोगों की भीड़ से बोला; उसने कहा, "हे यहूदी पुरुषों और हे अन्य लोगों जो यरूशलेम में रह रहे हो, तुम सब मेरी सुनो, और मैं तुमको समझाऊँगा कि क्या हो रहा है!
\v 15 तुम में से कुछ सोचते हैं कि हम नशे में हैं, लेकिन हम नशे में नहीं हैं। अभी सुबह के नौ बजे हैं, और यहाँ के लोग दिन के इस समय कभी नशे में नहीं होते हैं!
\s5
\v 16 इसके अतिरिक्त, हमारे साथ जो हुआ है वह एक चमत्कार है जिसके बारे में भविष्यद्वक्ता योएल ने बहुत पहले लिखा था। उसने लिखा: परमेश्वर कहते हैं,
\v 17 'अन्तिम दिनों में, मैं सब लोगों को अपना पवित्र आत्मा दूँगा, और तुम्हारे बेटे और बेटियाँ मेरा संदेश लोगों को सुनाएँगे, और मैं युवाओं को दर्शन दूँगा और मैं बुजुर्गों को स्वप्न दूँगा।
\s5
\v 18 उन दिनों के दौरान मैं अपना पवित्र आत्मा अपने दासों को दूँगा, कि वे लोगों को मेरा सन्देश सुनाएँ।
\v 19 मैं यह दिखाने के लिए कि महत्तवपूर्ण एवं आश्चर्यजनक बातें होने वाली हैं, आकाश में अद्भुत बातें करूँगा और पृथ्वी पर चमत्कार करूँगा। धरती पर हर स्थान में लहू, आग और धूआँ होगा।
\s5
\v 20 आकाश में सूरज लोगों को अंधेरे के समान दिखाई देगा और चाँद उनको लाल दिखाई देगा। न्याय के लिए मेरे अर्थात् प्रभु परमेश्वर के आने से पहले ऐसा होगा।
\v 21 और जो लोग सहायता के लिए मुझे पुकारते हैं, उन सब को मैं बचा लूँगा। ''
\p
\s5
\v 22 पतरस ने आगे कहा, "मेरे साथी इस्राएलियों, मेरी बात सुनो! जब यीशु नासरी तुम्हारे बीच में रहते थे, तब परमेश्वर ने उन्हें कई अद्भुत काम करने की क्षमता प्रदान की थी और तुम्हारे लिए सिद्ध कर दिया था कि उन्होंने ही यीशु को भेजा है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि वे परमेश्वर की ओर से थे। तुम स्वयं जानते हो कि यह सच है।
\v 23 यद्यपि तुम यह जानते थे, तुमने इस पुरुष यीशु को उनके शत्रुओं के हाथों में सौंप दिया। परन्तु यह तो परमेश्वर की ही योजना थी, और वे इसके बारे में सब कुछ जानते थे। तब तुम ने उन लोगों से जो परमेश्वर के नियमों का पालन नहीं करते थे यीशु को मारने का आग्रह किया। उन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ाकर मार डाला।
\v 24 वह मर गए, परन्तु परमेश्वर ने उन्हें फिर से जीवित किया, क्योंकि उनके लिए मरा रहना सम्भव नहीं था। परमेश्वर ने यीशु को फिर से जीवित कर दिया।"
\p
\s5
\v 25 "बहुत समय पहले राजा दाऊद ने मसीह के वचनों को लिख दिया था, मैं जानता था कि आप, प्रभु परमेश्वर, हमेशा मेरी सुनोगे। आप मेरी ओर हैं, इसलिए मैं उन लोगों से नहीं डरूँगा जो मुझे हानि पहुँचाना चाहते हैं।
\v 26 इस कारण मेरा मन प्रसन्न था और मैं आनन्दित हुआ; यद्यपि मैं एक दिन मर जाऊँगा, मुझे पता है कि आप हमेशा मेरी सहायता करेंगे।
\s5
\v 27 आप मुझे मरे हुओं के स्थान में नहीं रहने देंगे। आप मेरे शरीर को भी सड़ने नहीं देंगे, क्योंकि मैं आपका भक्त हूँ और सदा आपकी बात मानता हूँ।
\v 28 आपने मुझे दिखाया है कि कैसे फिर से जीवित होना है। आप मुझे बहुत प्रसन्न करेंगे क्योंकि आप सदा मेरे साथ होंगे।"
\p
\s5
\v 29 पतरस ने कहा, "मेरे साथी यहूदियों, मुझे निश्चय है कि हमारे पूर्वज, राजा दाऊद की मृत्यु हो गई थी, और लोगों ने उसे दफ़न कर दिया था। और जिस स्थान पर उन्होंने उसका शरीर दफन किया था, वह आज भी यहाँ है।
\v 30 राजा दाऊद एक भविष्यद्वक्ता था और वह जानता था कि परमेश्वर ने उससे प्रतिज्ञा की है कि उसके वंशजों में से एक राजा बनेगा।
\v 31 बहुत समय पहले से ही दाऊद जानता था कि परमेश्वर क्या करेंगे। उसने कहा था कि परमेश्वर यीशु को, जो मसीह है, मरने के बाद फिर से जीवित करेंगे। परमेश्वर उसे कब्र में नहीं रहने देंगे, और वह उनके शरीर को सड़ने नहीं देंगे।"
\p
\s5
\v 32 "इस पुरुष यीशु की मृत्यु के बाद, परमेश्वर ने उन्हें फिर से जीवित कर दिया। हम सब, उनके अनुयायी, यह जानते हैं क्योंकि हमने उन्हें देखा है।
\v 33 परमेश्वर ने यीशु को अपने दाहिने हाथ पर बैठाकर बहुत सम्मानित किया है कि वह उनके अर्थात् पिता के साथ शासन करें। उन्होंने हमें पवित्र आत्मा दिया है, और वही तुम आज यहाँ देख और सुन रहे हो।
\s5
\v 34 हम जानते हैं कि दाऊद अपने बारे में नहीं कह रहा था क्योंकि दाऊद यीशु के समान स्वर्ग में नहीं गया था। इसके अतिरिक्त, दाऊद ने स्वयं यीशु के बारे में जो मसीह है, यह कहा था: प्रभु परमेश्वर ने मेरे प्रभु मसीह से कहा, 'मेरे दाहिने हाथ बैठकर शासन करो,
\v 35 जबकि मैं तुम्हारे शत्रुओं को पूरी तरह से पराजित कर दूँ।'
\p
\v 36 पतरस ने यह कह कर समाप्त किया, "इसलिये मैं चाहता हूँ कि तुम और अन्य सब इस्राएली यह जान लो कि परमेश्वर ने यीशु को प्रभु और मसीह दोनों बना दिया है, वही यीशु जिसे तुमने क्रूस पर चढ़ाया और मार डाला।"
\p
\s5
\v 37 जब लोगों ने पतरस और दूसरे प्रेरितों की बात सुनी, तो वे जान गए कि उन्होंने गलत किया था। लोगों ने उनसे कहा, "हमें क्या करना चाहिए?"
\p
\v 38 पतरस ने उन्हें उत्तर दिया, "तुम में से हर एक को अपने पापी व्यवहार से मुड़ जाना चाहिए। यदि तुम अब यीशु पर विश्वास करते हो तो हम तुमको बपतिस्मा देंगे। परमेश्वर तुम्हारे पापों को क्षमा करेंगे और वह तुमको अपना पवित्र आत्मा देंगे।
\v 39 परमेश्वर ने तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों के लिए, और उन अन्य लोगों के लिए जो यीशु पर विश्वास करते हैं, यहाँ तक कि उन लोगों के लिए भी जो यहाँ से दूर रहते हैं ऐसा करने की प्रतिज्ञा की है। प्रभु हमारे परमेश्वर उन सब को अपना पवित्र आत्मा देंगे, जिन्हें वह अपने लोग होने के लिए बुलाते हैं।
\s5
\v 40 पतरस ने और अधिक बातें की, और दृढ़ता से बातें कीं। उसने उनसे कहा, "परमेश्वर से प्रार्थना करो कि वे तुम्हें बचाएँ, ताकि जब वह इन बुरे लोगों को जिन्होंने यीशु को अस्वीकार कर दिया है दण्ड देते हैं तो वह दण्ड तुम्हें न मिले!"
\p
\v 41 इसलिए जिन लोगों ने पतरस के संदेश को मान लिया था, उन्होंने बपतिस्मा लिया। वहाँ लगभग तीन हजार लोग थे जो उस दिन विश्वासियों के समूह में आ गए थे।
\v 42 प्रेरितों ने उनको जो सिखाया उन्होंने लगातार उन बातों का पालन किया। वे अन्य विश्वासियों के साथ भागी हुआ करते थे और वे प्रतिदिन एक साथ भोजन करते थे और एक साथ प्रार्थना किया करते थे।
\p
\s5
\v 43 यरूशलेम में रहने वाले सब लोगों ने परमेश्वर का बहुत आदर और सम्मान किया क्योंकि प्रेरित अनेक अद्भुत काम कर रहे थे।
\v 44 यीशु में विश्वास करने वाले लोगों का विश्वास एक सा ही था और वे नियमित रूप से एकत्र होते थे। वे एक दूसरे के साथ अपना सब कुछ साझा करते रहते थे।
\v 45 समय-समय पर उनमें से कुछ लोगों ने अपनी भूमि और कुछ अन्य वस्तुएँ जिसके वे स्वामी थे, बेच दीं, और उन्होंने उनमें से कुछ पैसे उनके बीच के अन्य विश्वासियों को उनकी आवश्यकता के अनुसार दे दिए।
\s5
\v 46 हर दिन वे आराधनालय के परिसर में एकत्र होते थे, और फिर वे अपने घरों में एक साथ भोजन किया करते थे। एक साथ भोजन करते हुए वे खुश थे, और उन्होंने एक दूसरे के साथ जो उनके पास था साझा किया।
\v 47 ऐसा करते हुए, वे परमेश्वर की स्तुति करते रहे, और यरूशलेम के सब लोगों ने उन्हें सम्मान दिया। इन सब बातों के साथ प्रभु यीशु उन लोगों की संख्या में वृद्धि कर रहे थे जो अपने पापों के दण्ड से बचाए जा रहे थे।
\s5
\c 3
\p
\v 1 एक दिन पतरस और यूहन्ना आराधनालय के आंगन में जा रहे थे। यह दोपहर के तीन बजे का समय था, जब लोग वहाँ प्रार्थना किया करते थे।
\v 2 वहाँ एक व्यक्ति था जो पैदा होने के समय से ही चल नहीं पाता था। वह सुंदर नामक फाटक के पास बैठा था, जो आराधनालय के आंगन के प्रवेश द्वार के पास था। लोग उसे हर दिन वहां ले आते थे, कि वह आराधनालय में आनेवाले लोगों से पैसा माँगे।
\p
\v 3 पतरस और यूहन्ना आराधनालय के आंगन में प्रवेश करने ही वाले थे, कि उस व्यक्ति ने उनसे कुछ पैसे माँगे।
\s5
\v 4 पतरस और यूहन्ना ने उसकी ओर देखा, पतरस ने उससे कहा, "हमें देख!"
\v 5 तो उसने सीधे उनकी ओर देखा, वह उनसे कुछ पैसे मिलने की आशा में था।
\v 6 फिर पतरस ने उससे कहा, "मेरे पास पैसे तो है नहीं, परन्तु जो मैं कर सकता हूँ, वह मैं तेरे लिए करूँगा। नासरत के यीशु मसीह के नाम से तू स्वस्थ हो जा। उठो और चलो!"
\s5
\v 7 तब पतरस ने उस व्यक्ति के दाहिने हाथ को पकड़ लिया और उसे खड़े होने में सहायता की। उसी पल उस व्यक्ति के पैरों और टखनो में शक्ति आ गई।
\v 8 वह उछलकर खड़ा हो गया और उसने चलना शुरू कर दिया! फिर उसने चलते और उछलते हुए और परमेश्वर की स्तुति करते हुए पतरस और यूहन्ना के साथ आराधनालय परिसर में प्रवेश किया!
\p
\s5
\v 9 आराधनालय में उपस्थित सब लोगों ने उसे चलते फिरते और परमेश्वर की स्तुति करते देखा।
\v 10 उन्होंने पहचान लिया कि यह वही व्यक्ति है जो आराधनालय के आंगन के सुंदर फाटक पर बैठता था और लोगों से पैसे माँगता था! इसलिये वहाँ जितने लोग थे वे सब उसके साथ जो हुआ था, उससे बहुत आश्चर्यचकित थे।
\s5
\v 11 जब वह व्यक्ति पतरस और यूहन्ना के साथ था, सब लोग आश्चर्य कर रहे थे और नहीं जानते थे कि क्या सोचें! इसलिए वे सब भागकर पतरस और यूहन्ना के पास आराधनालय के आंगन में उस स्थान पर पहुंचे, जिसे सुलैमान का ओसारा कहते हैं।
\p
\v 12 जब पतरस ने लोगों को देखा, तो उसने उनसे कहा, "हे साथी इस्राएलियों, इस व्यक्ति के साथ जो हुआ है उसके बारे में तुम्हें आश्चर्य नहीं करना है! तुम हमारी ओर क्यों देख रहे हो जैसे कि हमारे पास इस व्यक्ति को चलाने के लिए कोई शक्ति है?
\s5
\v 13 मैं तुमको बताऊँगा कि वास्तव में क्या हो रहा है। अब्राहम, इसहाक और याकूब सहित हमारे पूर्वजों ने परमेश्वर की आराधना की। और अब परमेश्वर ने यीशु को बहुत आदर प्रदान किया है। तुम्हारे अगुवे यीशु को पिलातुस राज्यपाल के पास ले गए, कि उसके सैनिक उन्हें मार डालें। तुम लोगों ने पिलातुस की उपस्थिति में यीशु को अस्वीकार कर दिया था, जब पिलातुस ने निर्णय लिया था कि उसे यीशु को छोड़ देना चाहिए।
\v 14 यद्यपि यीशु इस्राएल के लिये परमेश्वर के अपने मसीह थे, जो धर्मी थे, तुमने उनके बदले एक हत्यारे को स्वतंत्र करने की माँग की थी!
\s5
\v 15 परमेश्वर मानते हैं कि तुमने यीशु को जो लोगों को अनन्त जीवन प्रदान करते हैं, मार डाला है। लेकिन परमेश्वर ने उन्हें फिर से जीवित कर दिया। उनके फिर से जी उठने के बाद हमने कई बार यीशु को देखा।
\v 16 क्योंकि यह व्यक्ति यीशु पर विश्वास करता है इसलिए वह फिर से स्वस्थ है और तुम सब के सामने चलने में सक्षम है।"
\p
\s5
\v 17 "अब, हे मेरे साथी देशवासियों, मुझे पता है कि तुम और तुम्हारे अगुवों ने यीशु को मार डाला है क्योंकि तुमको नहीं पता था कि वे मसीह हैं।
\v 18 परमेश्वर ने तो बहुत पहले यह भविष्यद्वाणी की थी कि लोग यीशु को मार देंगे। परमेश्वर ने सब भविष्यद्वक्ताओं को यह लिखने के लिये कहा कि लोग मसीह के साथ क्या करेंगे। उन्होंने लिखा है कि मसीह को, जिन्हें परमेश्वर भेजेंगे, दु:ख भोगना होगा और मरना होगा।
\s5
\v 19 इसलिए, अपने पापी जीवन से दूर हो जाओ और परमेश्वर से सहायता माँगो कि वे तुम्हें उन कामों को करने में सहायता करें जिससे वह प्रसन्न होते हैं, कि वे तुम्हें तुम्हारे पापों के लिए पूरी तरह से क्षमा कर दें और तुम्हें शक्ति प्रदान करें।
\v 20 यदि तुम ऐसा करते हो, तो ऐसे अवसर आएंगे जब तुमको पता चलेगा कि प्रभु परमेश्वर तुम्हारी सहायता कर रहे हैं। और किसी दिन वह फिर से मसीह को जिन्हें उन्होंने तुम्हें दिया है पृथ्वी पर वापस भेजेंगे। वह व्यक्ति यीशु हैं।
\s5
\v 21 यीशु निश्चित रूप से स्वर्ग में उस समय तक रहेंगे जब तक कि परमेश्वर सारी सृष्टि को नया न बना दें। बहुत पहले परमेश्वर ने ऐसा करने की प्रतिज्ञा की थी, और लोगों को यह बताने के लिए उन्होंने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं को चुना था।
\v 22 उदाहरण के लिए, भविष्यद्वक्ता मूसा ने मसीह के बारे में यह कहा था: 'तुम्हारे परमेश्वर यहोवा तुम्हारे बीच में से मेरे जैसे एक भविष्यद्वक्ता को भेजेंगे; जो कुछ भी वह तुमसे कहते हैं तुमको अवश्य ही वह सब सुनना चाहिए।
\v 23 जो लोग उस भविष्यद्वक्ता की बात नहीं सुनते हैं और उसका पालन नहीं करते हैं, वे परमेश्वर के लोग नहीं होंगे, और परमेश्वर उन्हें नष्ट कर देंगे।''
\s5
\v 24 पतरस ने आगे कहा, "सब भविष्यद्वक्ताओं ने इन दिनों के बारे में बताया था कि इन दिनों में क्या होगा। उन भविष्यद्वक्ताओं में शमूएल और उसके बाद वाले अन्य सभी भविष्यद्वक्ता हैं, जिन्होंने इन घटनाओं के बारे में इनके होने से पहले चर्चा की थी।
\v 25 जब परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों को आशीष देने की प्रतिज्ञा की थी, तो उन्होंने निश्चय ही तुमको भी आशीर्वाद देने की प्रतिज्ञा की थी। उन्होंने अब्राहम से मसीह के बारे में कहा, 'तेरा वंशज जो करेगा, उसके परिणामस्वरूप मैं पृथ्वी की सब जातियों को आशीष दूँगा।'
\v 26 पतरस ने यह कह कर समाप्त किया, "इसलिए जब परमेश्वर ने यीशु को पृथ्वी पर मसीह के रूप में उनकी सेवा करने के लिए भेजा, तो परमेश्वर ने उनको सबसे पहले तुम इस्राएलियों को आशीष देने के लिए भेजा, ताकि तुमको बुराई करने से रोक सकें।"
\s5
\c 4
\p
\v 1 इसी बीच, वहाँ आराधनालय के आंगन में कुछ याजक थे। वहाँ आराधनालय के सुरक्षाकर्मियों का प्रभारी भी था, और सदूकी पंथ के कुछ सदस्य भी थे। वे सब पतरस और यूहन्ना के पास आये, जब वे दोनों लोगों से बातें कर रहे थे।
\v 2 ये लोग बहुत क्रोधित हुए क्योंकि वे दोनों प्रेरित यीशु के बारे में लोगों को सिखा रहे थे। वे उनसे कह रहे थे कि यीशु के मारे जाने के बाद परमेश्वर ने उन्हें फिर से जीवित कर दिया।
\v 3 इसलिये इन लोगों ने पतरस और यूहन्ना को बन्दी बना लिया और उन्हें बंदीगृह में डाल दिया। यहूदी परिषद को पतरस और यूहन्ना से सवाल करने के लिए अगले दिन तक प्रतीक्षा करनी पडी क्योंकि शाम हो चुकी थी।
\v 4 हालाँकि, कई लोग जिन्होंने पतरस की बातें सुनी थी, उन्होंने यीशु में विश्वास किया। यीशु में विश्वास करने वालों की संख्या बढ़ कर लगभग पांच हजार तक हो गई।
\p
\s5
\v 5 अगले दिन महायाजक ने अन्य प्रधान याजकों, यहूदी व्यवस्था के शिक्षकों और यहूदी परिषद के अन्य सदस्यों को बुलाया, और वे यरूशलेम में एक स्थान पर एकत्र हुए;
\v 6 पूर्व महायाजक हन्ना भी वहाँ था। इसके अतिरिक्त नया महायाजक काइफा, यूहन्ना और सिकन्दर, और अन्य व्यक्ति जो महायाजक से सम्बन्धित थे, वे भी वहाँ थे।
\v 7 उन्होंने सुरक्षाकर्मियों को आज्ञा दी कि वे पतरस और यूहन्ना को कक्ष में ले आएँ फिर उन्होंने पतरस और यूहन्ना से पूछा, " उस व्यक्ति को जो चल नहीं सकता था, स्वस्थ करने की शक्ति तुम्हें किसने दी ?"
\p
\s5
\v 8 पवित्र आत्मा के सामर्थ्य से, पतरस ने उनसे कहा, "हे साथी इस्राएलियों जो हम पर शासन करते हो, और अन्य सभी प्राचीनों, मेरी बात सुनो!
\v 9 आज तुम हम से एक अच्छे काम के बारे में पूछताछ कर रहे हो, जो हमने एक ऐसे व्यक्ति के लिए किया जो चल नहीं सकता था, और तुम हमसे पूछते हो कि वह कैसे स्वस्थ हो गया। इसलिये मैं तुमको और अन्य सब इस्राएलियों को यह बताता हूँ:
\v 10 नासरत के यीशु मसीह के नाम से यह व्यक्ति ठीक हो गया, इस कारण अब वह तुम्हारे सामने खड़ा होने के योग्य है। वह तुम थे जिन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ा दिया और उन्हें मार डाला, परन्तु परमेश्वर ने उन्हें फिर से जीवित कर दिया है।
\p
\s5
\v 11 नासरत के यीशु मसीह वही हैं जिनके विषय में धर्मशास्त्र कहता है: "राजमिस्त्रियों ने जिस पत्थर को फेंक दिया था वही इमारत का सबसे महत्वपूर्ण पत्थर बन गया है।"
\v 12 केवल यीशु ही हमें बचा सकते हैं, क्योंकि परमेश्वर ने हमें दुनिया में कोई अन्य व्यक्ति नहीं दिया है, जो हमें हमारे पापों के दोष से बचा सकता है!"
\p
\s5
\v 13 यहूदी अगुवों को अनुभव हुआ कि पतरस और यूहन्ना उनसे डर नहीं रहे हैं। उन्हें यह भी पता चला कि ये दोनों व्यक्ति सामान्य लोग हैं जिन्होंने विद्यालयों में पढ़ाई नहीं की थी। इसलिये अगुवे आश्चर्यचकित थे। वे जानते थे कि इन लोगों ने यीशु के साथ समय बिताया था।
\v 14 उन्होंने उस व्यक्ति को भी पतरस और यूहन्ना के साथ खड़ा देखा जो स्वस्थ हुआ था, इसलिए वे उनके विरुद्ध कुछ भी नहीं बोल पाए।
\p
\s5
\v 15 यहूदी अगुवों ने सुरक्षाकर्मियों को पतरस, यूहन्ना और उस स्वस्थ हुए व्यक्ति को सभा के कमरे से बाहर ले जाने के लिए कहा। उनके ऐसा करने के बाद, अगुवों ने पतरस और यूहन्ना के बारे में एक दूसरे से बात की।
\v 16 उन्होंने कहा, "हम इन दोनों लोगों को दण्ड देने के लिए कुछ भी नहीं कर सकते हैं! जो कोई यरूशलेम में रहता है, वह जानता है कि उन्होंने एक आश्चर्यजनक चमत्कार किया है, इसलिए हम लोगों को नहीं कह सकते कि ऐसा नहीं हुआ!
\v 17 परन्तु, हमें अन्य लोगों को यीशु के बारे में इनकी शिक्षा सुनने से, रोकना चाहिए। अत: हमें इन लोगों को चेतावनी देनी चाहिए कि यदि वे लोगों को यीशु के बारे में बताते रहेंगे तो हम उन्हें दण्ड देंगे। जिनके बारे में वे कहते हैं कि उन्होंने उन्हें इस व्यक्ति को स्वस्थ करने की शक्ति दी है।"
\v 18 इसलिए यहूदी अगुवों ने सुरक्षाकर्मियों को उन दोनों प्रेरितों को कमरे में दोबारा लाने के लिए कहा। सुरक्षाकर्मियों के ऐसा करने के बाद, उन्होंने उन दोनों को बताया कि वे अब किसी से भी यीशु के बारे में बात न करें और न ही उनके बारे में सिखाएँ।
\p
\s5
\v 19 परन्तु पतरस और यूहन्ना ने कहा, "क्या परमेश्वर की दृष्टि में यह सही होगा कि हम तुम्हारी आज्ञा मानें और उनकी आज्ञा का पालन न करें? तुम ही निर्णय लो कि क्या सही है।
\v 20 लेकिन, हम तुम्हारी आज्ञा का पालन नहीं कर सकते। हम लोगों को उन कामों के बारे में बताने से नहीं रुकेंगे जिन्हें हमने यीशु को करते देखा है और जो उन्हें सिखाते हुए सुना है।"
\p
\s5
\v 21 तब यहूदी अगुवों ने फिर से पतरस और यूहन्ना को उनकी आज्ञा का उल्लंघन न करने के लिए कहा, परन्तु उन्होंने उनको दण्ड न देने का निर्णय किया, क्योंकि जो उस व्यक्ति के साथ हुआ जो चल नहीं सकता था उसके कारण यरूशलेम में सब लोग परमेश्वर की स्तुति कर रहे थे।
\v 22 वह चालीस वर्ष से अधिक आयु का था, और जिस दिन वह पैदा हुआ था उसी दिन से वह चलने में सक्षम नहीं था।
\p
\s5
\v 23 जब पतरस और यूहन्ना परिषद के पास से चले गए तो वे अन्य विश्वासियों के पास गए और उन्होंने उन सब को प्रधान याजकों और यहूदी प्राचीनों की बातें सुनाई।
\v 24 जब विश्वासियों ने यह सुना, तो उन सब ने एक मन होकर एक साथ परमेश्वर से प्रार्थना की, "हे प्रभु! आपने आकाश, पृथ्वी और समुद्रों और उनमें की सारी वस्तुओं को बनाया है।
\v 25 पवित्र आत्मा ने हमारे पूर्वज, राजा दाऊद को, जिसने आपकी सेवा की, इन शब्दों को लिखने के लिए प्रेरित किया: 'संसार की जातियों के समूह क्यों क्रोधित हुए? और इस्राएली परमेश्वर के विरुद्ध व्यर्थ की योजना बनाते हैं?
\s5
\v 26 संसार के राजाओं ने परमेश्वर के शासक से युद्ध करने की तैयारी की, और शासक उनके साथ जुड़ गए है कि प्रभु परमेश्वर का और जिन्हें उन्होंने मसीह होने के लिये चुना है उनका विरोध करें।
\p
\s5
\v 27 यह सच है! हेरोदेस और पुन्तियुस पिलातुस दोनों ने और गैर-यहूदियों ने इस्राएलियों का साथ देकर, इस शहर में यीशु के विरुद्ध खड़े हुए, यीशु जिन्हें आपने मसीह होकर आपकी सेवा करने के लिये चुना।
\v 28 आपने उन्हें ऐसा करने दिया है क्योंकि आपने बहुत पहले ही यह निर्णय ले लिया था।"
\p
\s5
\v 29 इसलिये अब, हे प्रभु, जो वे कह रहे हैं उसे सुन कि वे हमें कैसे दण्ड देंगे! हमारी सहायता करो, जो आपकी सेवा करते हैं कि हम हर किसी को यीशु के बारे में बता सकें!
\v 30 अपने पवित्र सेवक, यीशु के नाम से चंगाई के अद्भुत चमत्कार, चिन्ह और आश्चर्यकर्म करने के लिए अपनी ताकत का उपयोग करो!"
\p
\v 31 जब विश्वासियों ने प्रार्थना करना समाप्त कर दिया, तो वह स्थान जहाँ वे सभा कर रहे थे, हिल गया। पवित्र आत्मा ने उन सब को परमेश्वर द्वारा दिये गए वचनों को साहस के साथ सुनाने की शक्ति प्रदान की, और उन्होंने ऐसा ही किया।
\p
\s5
\v 32 यीशु में विश्वास करनेवालों का समूह अपने विचारों में और कामों में, जो कुछ वे पूर्ण सहमत थे। उनमें कोई भी नहीं कहता था कि कोई वस्तु उसके अकेले की है। इसके अपेक्षा, जो कुछ भी उनके पास था उन्होंने एक दूसरे के साथ उसे साझा किया।
\v 33 प्रेरितों ने दृढ़ता से दूसरों को बताया कि परमेश्वर ने प्रभु यीशु को फिर से जीवित कर दिया है। और परमेश्वर सब विश्वासियों की बहुत सहायता कर रहे हैं।
\s5
\v 34-35 कुछ विश्वासियों ने जिनके पास भूमि या घर थे अपनी सम्पत्ति बेच दी और अपनी बेची हुई सम्पत्ति के पैसे को लाकर प्रेरितों को दे दिया। तब प्रेरित विश्वासियों में से जिस किसी को आवश्यक्ता होती थी उसको पैसे दे देते थे। इसलिए सभी विश्वासियों के जीवन की आवश्यकताएँ पूरी होती थीं।
\p
\s5
\v 36 वहाँ यूसुफ नाम का एक व्यक्ति था, जो लेवी के गोत्र का था और जो साइप्रस द्वीप से आया था। प्रेरितों ने उसे बरनबास कहा; यहूदियों की भाषा में उस नाम का अर्थ है जो हमेशा दूसरों को प्रोत्साहित करता है।
\v 37 उसने एक खेत को बेच दिया और पैसे लेकर प्रेरितों को दे दिए कि वे दूसरे विश्वासियों को दे सकें।
\s5
\c 5
\p
\v 1 विश्वासियों में एक व्यक्ति था जिसका नाम हनन्याह था, और उसकी पत्नी का नाम सफीरा था। उसने भी कुछ भूमि बेची।
\v 2 उसने भूमि बेचकर मिले पैसों में से कुछ अपने लिए रख लिए, उसकी पत्नी को पता था कि उसने ऐसा किया था। फिर वह शेष पैसे लेकर आया और प्रेरितों को दे दिए।
\p
\s5
\v 3 तब पतरस ने कहा, "हनन्याह, तूने शैतान को स्वयं पर पूर्णरूप से नियंत्रण करने दिया है जिससे तुम ने पवित्र आत्मा को धोखा देने का प्रयास किया है। तुम ने इतना भयानक काम क्यों किया? तुम ने भूमि बेचकर प्राप्त पैसों में से कुछ पैसा अपने पास रख लिया है। तुम ने हमें सारा पैसा नहीं दिया है।
\v 4 उस भूमि को बेचने से पहले, तुम सचमुच उसके मालिक थे। और उसे बेचने के बाद भी पैसा तेरा ही था। तो तुम ने ऐसी दुष्टता के काम के बारे में क्यों सोचा? तुम केवल हमें धोखा देने का प्रयास नहीं कर रहे हो! नहीं, तुम ने स्वयं परमेश्वर को धोखा देने का प्रयास किया है !"
\v 5 जब हनन्याह ने इन शब्दों को सुना, तो तुरंत ही गिरकर मर गया। और जिन्होंने हनन्याह की मृत्यु के बारे में सुना, वे सब डर गए।
\v 6 कुछ जवान आगे आए, उसके शरीर को एक चादर में लपेटा, और उसे बाहर ले गए और दफ़न कर दिया।
\p
\s5
\v 7 लगभग तीन घंटे के बाद, उसकी पत्नी आई, उसे नहीं पता था कि क्या हुआ था।
\v 8 फिर पतरस ने उसे वह पैसा दिखाया जो हनन्याह लाया था और उससे पूछा, "मुझे बता, क्या यह वह पैसा है जो तुम दोनों को भूमि बेचने से मिला था?" उसने कहा, "हाँ, यही है जो हमें मिला था।"
\s5
\v 9 तो पतरस ने उससे कहा, "तुम दोनों ने एक भयानक काम किया है! तुम दोनों परमेश्वर के आत्मा को धोखा देने के प्रयास में सहमत हो गए हो! सुनो! क्या तुम ने तुम्हारे पति को दफन करने वाले लोगों के कदमों की आहट को सुना है? वे बिल्कुल इस द्वार के बाहर हैं, और वे तुझे भी बाहर ले जाएँगे!"
\v 10 तुरंत ही सफीरा मर कर पतरस के पैरों में गिर पड़ी। तब वे जवान अंदर आए। जब उन्होंने देखा कि वह भी मर गई है, तो वे उसके शरीर को बाहर ले गए और उसे उसके पति के शरीर के पास दफ़न कर दिया।
\p
\v 11 परमेश्वर ने हनन्याह और सफीरा के साथ जो किया था उसके कारण यरूशलेम के सब विश्वासी बहुत भयभीत हो गए। और जिसने इन बातों के बारे में सुना, वह भी बहुत भयभीत हो गया।
\p
\s5
\v 12 परमेश्वर प्रेरितों को कई आश्चर्यजनक चमत्कार करने में समर्थ कर रहे थे, जो यह प्रकट कर रहा था कि वे लोगों के बीच में जो प्रचार कर रहे थे वह सच है। सभी विश्वासी नियमित रूप से आराधनालय के आंगन में सुलैमान के ओसारे नाम की जगह पर एक साथ एकत्र होते थे।
\v 13 अन्य लोग जिन्होंने यीशु पर विश्वास नहीं किया था वे विश्वासियों के साथ होने से डरते थे। परन्तु, उन लोगों ने विश्वासियों का बहुत आदर किया।
\s5
\v 14 कई और पुरुषों और स्त्रियों ने प्रभु यीशु में विश्वास किया, और वे विश्वासियों के समूह में आ गये।
\v 15 इसके परिणाम स्वरूप, लोग बीमारों को सड़कों पर ले आते थे और उन्हें खाटों पर और चादरों पर लिटा देते थे, ताकि जब पतरस वहाँ से हो कर निकले तो कम से कम उसकी छाया उनमें से कुछ पर गिरकर उन्हें स्वस्थ कर दे।
\v 16 यरूशलेम के आस-पास के नगरों से भी लोगों की बड़ी भीड़ प्रेरितों के पास आ रही थी। वे बीमारों को और जो दुष्ट-आत्माओं से पीड़ित थे उनको ला रहे थे, और परमेश्वर ने उन सब को स्वस्थ किया।
\p
\s5
\v 17 तब महायाजक और उसके साथ रहनेवाले सब लोग - जो सदूकी समूह के सदस्य थे - प्रेरितों से बहुत ईर्ष्या रखने लगे।
\v 18 इसलिए उन्होंने आराधनालय के सुरक्षाकर्मियों को प्रेरितों को गिरफ्तार करने और उन्हें सार्वजनिक बंदीगृह में डाल देने का आदेश दिया।
\s5
\v 19 परन्तु रात में प्रभु परमेश्वर के एक स्वर्गदूत ने बन्दीगृह के द्वार खोल दिये और प्रेरितों को बाहर निकाल लिया। तब स्वर्गदूत ने प्रेरितों से कहा,
\v 20 "आराधनालय के आंगन में जाकर वहाँ खड़े हो जाओ, और लोगों को अनन्त जीवन का संदेश सुनाओ।"
\v 21 यह सुनने के बाद, प्रेरितों ने भोर को आराधनालय के आंगन में प्रवेश किया और लोगों को फिर से यीशु के बारे में सिखाना शुरू कर दिया। इस बीच, महायाजक और उसके साथ रहने वाले लोगों ने यहूदी परिषद के अन्य सदस्यों को बुलाया। वे सब इस्राएल के अगुवे थे। जब वे एकत्र हुए, तो उन्होंने प्रेरितों को लाने के लिए सुरक्षाकर्मियों को बंदीग्रह भेजा।
\s5
\v 22 परंतु जब सुरक्षाकर्मी बंदीग्रह पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि प्रेरित वहाँ नहीं थे। इसलिए वे परिषद में लौटे और उनको बताया,
\v 23 "हमने देखा कि बन्दीगृह के द्वार बहुत ही सुरक्षित रूप से बंद किये हुए थे, और सुरक्षाकर्मी द्वार पर खड़े थे। परन्तु जब हमने द्वार खोले और उन लोगों को लेने के लिये भीतर गए, तो उनमें से कोई भी बन्दीगृह में नहीं था।"
\s5
\v 24 जब आराधनालय के सुरक्षाकर्मियों के कप्तान और प्रधान याजकों ने यह सुना, वे बहुत उलझन में पड़ गए, और वे विस्मित थे कि इन सब घटनाओं का क्या परिणाम होगा।
\p
\v 25 फिर किसी ने आकर उनको बताया, "यह सुनो! तुमने जिन व्यक्तियों को बन्दीगृह में डाला था, इस समय वे आराधनालय के आंगन में खड़े हैं, और वे लोगों को शिक्षा दे रहे हैं!"
\s5
\v 26 इसलिए आराधनालय के सुरक्षाकर्मियों का कप्तान अन्य अधिकारियों के साथ आराधनालय के आंगन में गया, और वे प्रेरितों को परिषद के कमरे में वापस लेकर आए। लेकिन उन्होंने उनके साथ बुरा व्यवहार नहीं किया, क्योंकि वे डर रहे थे कि लोग उन पर पत्थर फेंक फेंक कर उन्हें मार देंगे।
\p
\v 27 जब कप्तान और उसके अधिकारी प्रेरितों को परिषद के कमरे में लेकर आ गए थे, तो उन्होंने उनको परिषद के सदस्यों के सामने खड़ा होने का आदेश दिया और महायाजक ने उनसे प्रश्न किया।
\v 28 उसने उनसे कहा, "हमने तुम लोगों को उस मनुष्य यीशु के बारे में नहीं सिखाने की आज्ञा दी थी! परन्तु तुमने हमारी आज्ञा का उल्लंघन किया है, और तुमने सारे यरूशलेम के लोगों को उसके बारे में सिखाया है! इसके अतिरिक्त, तुम ऐसा कह रहे हो कि उस पुरुष की मृत्यु के लिए हम लोग ही दोषी हैं!"
\s5
\v 29 लेकिन पतरस ने अपने और दूसरे प्रेरितों की ओर से यह उत्तर दिया, "परमेश्वर ने हमें जो करने की आज्ञा दी है, हम को उसे मानना है, न कि तुम लोगों की आज्ञा को!
\v 30 तुम ही तो हो जिन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ा कर उन्हें मार डाला! परन्तु हमारे पूर्वजों द्वारा आराधना किये जाने वाले परमेश्वर ने यीशु के मरने के बाद उन्हें फिर से जीवित कर दिया।
\v 31 परमेश्वर ने सबसे अधिक यीशु को सम्मानित किया है। उन्होंने हमें बचाने और हमारे ऊपर शासन करने के लिए उन्हें समर्थ बनाया है। उन्होंने हम इस्राएलियों को पाप करने से रुक जाने की शक्ति दी है, जिससे कि वे हमें हमारे पापों के लिए क्षमा कर सकें।
\v 32 हम लोगों को उन बातों के बारे में बताते हैं जो हमें पता है कि यीशु के साथ हुई थीं। पवित्र आत्मा, जो उनकी आज्ञा मानते हैं जिन्हें परमेश्वर ने हमारे लिये भेजा है, वह भी यह पुष्टि कर रहे हैं कि ये बातें सत्य हैं।"
\s5
\v 33 जब परिषद के सदस्यों ने यह सुना, तो वे प्रेरितों पर बहुत क्रोधित हो गए, और वे उन्हें मार डालना चाहते थे।
\p
\v 34 लेकिन वहाँ गमलीएल नामक एक परिषद का सदस्य था। वह फरीसी समूह का एक सदस्य था। वह लोगों को यहूदी व्यवस्था को सिखाया करता था, और सब यहूदी लोग उसे सम्मान देते थे। वह परिषद में खड़ा हुआ और सुरक्षाकर्मियों को थोड़े समय के लिए प्रेरितों को कमरे से बाहर ले जाने की आज्ञा दी।
\s5
\v 35 जब सुरक्षाकर्मी प्रेरितों को बाहर ले गए, तो उसने परिषद के सदस्यों से कहा, "हे साथी इस्राएलियों, तुम इन मनुष्यों के साथ क्या करना चाहते हो, तुमको अवश्य ही इस बारे में ध्यान से सोचना चाहिए।
\v 36 कुछ साल पहले थियूदास नाम के एक व्यक्ति ने सरकार के विरुद्ध विद्रोह किया था। उसने लोगों से कहा कि वह एक महत्वपूर्ण व्यक्ति है, और लगभग चार सौ लोग उसके साथ हो गए। लेकिन वह मार डाला गया, और जो लोग उसके साथ थे वे बिखर गए। इसलिए वे अपनी योजनाओं को पूरा करने में सक्षम हुए।
\v 37 इसके बाद, उस समय जब लोगों के नाम लिखे जा रहे थे, कि उन पर कर लगाया जाए, गलील के क्षेत्र से यहूदा नाम के एक व्यक्ति ने विद्रोह किया और कुछ लोगों को प्रेरित करके अपने साथ कर लिया था। लेकिन वह भी मार डाला गया, और जो लोग उसके साथ थे वे अलग-अलग दिशाओं में चले गए।
\s5
\v 38 तो अब मैं तुमसे यह कहता हूँ: इन लोगों की हानि मत करो! उन्हें छोड़ दो! मैं यह इसलिये कह रहा हूँ कि यदि इस समय जो कुछ हो रहा है, वह कुछ ऐसा है जिसकी योजना मनुष्यों ने बनाई है, तो वे रोक दिए जाएँगे। वे विफल हो जाएँगे।
\v 39 लेकिन अगर परमेश्वर ने उन्हें यह काम करने की आज्ञा दी है, तो तुम उन्हें रोक नहीं पाओगे, क्योंकि तुम यह जान लोगे कि तुम परमेश्वर के विरुद्ध काम कर रहे हो।" परिषद के अन्य सदस्यों ने गमलीएल की कही गई बात मान ली।
\s5
\v 40 उन्होंने आराधनालय के सुरक्षाकर्मियों से कहा कि वे प्रेरितों को लाएँ और उन्हें मारें पीटें। इसलिए सुरक्षाकर्मी उन्हें परिषद के कमरे में ले आए और उन्हें मारा पीटा। तब परिषद के सदस्यों ने उन्हें आदेश दिया कि वे लोगों में यीशु का प्रचार न करें, और उन्होंने प्रेरितों को छोड़ दिया।
\p
\v 41 तब प्रेरित परिषद से बाहर निकल आए। वे आनन्द मना रहे थे क्योंकि उन्हें पता था कि परमेश्वर ने उन्हें सम्मानित किया है जब कि मनुष्यों ने उन्हें यीशु के पीछे चलने के कारण अपमानित किया था।
\v 42 उसके बाद , प्रेरित प्रतिदिन आराधनालय परिसर में और लोगों के घरों में जाते थे और लोगों को लगातार शिक्षा देते रहे और बताते रहे कि यीशु ही मसीह है।
\s5
\c 6
\p
\v 1 उस समय के दौरान, बहुत से लोग मसीही विश्वास में आ रहे थे। विदेशी यहूदियों ने स्वदेशी इस्राएलियों के बारे में शिकायत करना शुरू कर दिया था, क्योंकि उनकी विधवाओं को दैनिक भोजन का उचित भाग नहीं मिल रहा था।
\p
\s5
\v 2 इसलिये, जब बारह प्रेरितों ने सुना कि वे क्या कह रहे थे, तो उन्होंने सब विश्वासियों को यरूशलेम में एकत्र होने के लिये बुलाया। तब प्रेरितों ने उनसे कहा, "यदि हम लोगों को भोजन देने के लिए परमेश्वर के संदेश का प्रचार करना और शिक्षा देना बंद कर दें तो यह उचित नहीं होगा!
\v 3 अत: मेरे साथी विश्वासियों, तुम अपने में से सात ऐसे लोगों का चुनाव करो, जिन लोगों के बारे में तुम जानते हो कि परमेश्वर के आत्मा उनका निर्देशन करता है और वे बहुत बुद्धिमान हैं। तब हम उन्हें यह काम करने के लिए निर्देश देंगे।
\v 4 और हम प्रार्थना करने और यीशु के बारे में संदेश देने और सिखाने के लिए अपना समय काम में लेंगे।"
\p
\s5
\v 5 प्रेरितों का सुझाव सुनकर सब विश्वासी प्रसन्न हो गए। इसलिए उन्होंने स्तिफनुस को चुना, जो एक ऐसा व्यक्ति था जो परमेश्वर में दृढ़ विश्वास रखता था और जो पूरी तरह से पवित्र आत्मा के नियंत्रण में था। साथ ही उन्होंने फिलिप्पुस, प्रुखुरुस, नीकानोर, तीमोन, परमिनास और अन्ताकिया शहर के नीकुलाउस को भी चुना। यीशु में विश्वास करने से पहले नीकुलाउस ने यहूदी धर्म स्वीकार कर लिया था।
\v 6 विश्वासी इन सातों पुरुषों को प्रेरितों के पास लाए। तब प्रेरितों ने उन लोगों के लिए प्रार्थना की और उन सब के सिर पर हाथ रखकर उन्हें यह काम करने के लिए नियुक्त किया।
\p
\s5
\v 7 और विश्वासी लोगों में परमेश्वर के संदेश का प्रचार करते रहे। यरूशलेम में यीशु पर विश्वास करने वाले लोगों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी। उनके बीच में कई यहूदी याजक भी थे जो उस संदेश का पालन कर रहे थे कि वे किस प्रकार यीशु पर भरोसा करें।
\p
\s5
\v 8 परमेश्वर ने स्तिफनुस को लोगों के बीच कई आश्चर्यजनक चमत्कार करने की शक्ति दी थी, जो दिखाते हैं कि यीशु का संदेश सच था।
\v 9 कुछ लोगों ने स्तिफनुस का विरोध भी किया। वे एक ऐसे समूह वाले यहूदी थे जो नियमित रूप से एक आराधनालय में मिलते थे जिन्हें लिबिरतीनों का आराधनालय कहा जाता था, और उनमें कुरेने और सिकन्दरिया के शहरों और किलिकिया और आसिया के प्रांतों से भी लोग थे। वे सभी स्तिफनुस के साथ विवाद करने लगे।
\s5
\v 10 परन्तु वे यह साबित करने योग्य नहीं हुए थे कि उसने जो कहा वह गलत था, क्योंकि परमेश्वर के आत्मा उसे बुद्धिमानी से बोलने में समर्थ करते थे।
\p
\v 11 इसलिए उन्होंने गुप्त रूप से कुछ लोगों को स्तिफनुस पर झूठा आरोप लगाने के लिए मना लिया। उन लोगों ने कहा, "हमने उसे मूसा और परमेश्वर के बारे में बुरी बातें कहते सुना है।"
\s5
\v 12 इसलिए उन्होंने अन्य यहूदियों को स्तिफनुस पर क्रोध दिलाया, जिसमें प्राचीन और यहूदी व्यवस्था के शिक्षक भी थे। तब उन सब ने स्तिफनुस को पकड़ लिया और उसे यहूदी परिषद के सामने ले गए।
\v 13 वे कुछ पुरुषों को भी भीतर ले गए और उन्हें पैसे दिए ताकि वे झूठी गवाही दें। उन्होंने कहा, "यह व्यक्ति इस पवित्र आराधनालय के बारे में और मूसा द्वारा परमेश्वर से प्राप्त नियमों के बारे में बुरी बातें कहता है।
\v 14 हमारा मतलब यह है कि हमने उसे कहते सुना है कि नासरत शहर के यीशु इस आराधनालय को नष्ट कर देंगे और जो नियम मूसा ने हमारे पूर्वजों को सिखाये थे, उनसे अलग नियमों का पालन करने के लिये हम से कहेंगे।
\p
\v 15 परिषद के कमरे में उपस्थित सब लोगों ने स्तिफनुस को घूर कर देखा और उन्होंने देखा कि उसका चेहरा एक स्वर्गदूत के चेहरे के समान हो गया।
\s5
\c 7
\p
\v 1 तब महायाजक ने स्तिफनुस से पूछा, "क्या ये बातें सच हैं जो ये लोग तुम्हारे बारे में कह रहे हैं?"
\v 2 स्तिफनुस ने उत्तर दिया, "हे साथी यहूदियों और सम्मानित अगुवों, कृपया मेरी बात सुनो! वह महिमामय परमेश्वर जिनकी हम आराधना करते हैं, उन्होंने हमारे पूर्वज अब्राहम को हारान शहर में जाने से पहले दर्शन दिया, जिस समय वह मेसोपोटामिया में ही रहता था।
\v 3 परमेश्वर ने उससे कहा, 'इस देश को छोड़ दे, जहाँ तू और तेरे सम्बंधी रहते हैं, और उस देश में जा जिसमें मैं तुम्हें ले जाऊँगा।'
\s5
\v 4 इस प्रकार अब्राहम ने उस देश को छोड़ दिया, जिसे कसदियों का देश भी कहा जाता था, और वह हारान में पहुँचा और वहाँ रहने लगा। उसके पिता के मरने के बाद, परमेश्वर ने उसे उस देश में जाने के लिए कहा था जिसमें तुम और मैं आज रहते हैं।
\p
\v 5 उस समय परमेश्वर ने अब्राहम को यहाँ अपनी भूमि नहीं दी, भूमि का एक छोटा सा टुकड़ा भी नहीं दिया। लेकिन परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की थी वह बाद में उसे और उसके वंशजों को यह देश दे देंगे, और तब यह हमेशा के लिये उनका होगा। कि, उस समय अब्राहम के पास सन्तान नहीं थी जो इसकी वारिस होती।
\p
\s5
\v 6 बाद में परमेश्वर ने अब्राहम से कहा, 'तुम्हारा वंश जाकर एक पराए देश में रहेगा। वे वहाँ चार सौ वर्ष तक रहेंगे, और उस समय के दौरान उस देश के अगुवे तुम्हारे वंशजों के साथ बुरा व्यवहार करेंगे और बलपूर्वक उनसे दास का काम करवाएँगे।
\v 7 'लेकिन मैं उन लोगों को दण्ड दूँगा जो उनसे दासों का काम करवाते हैं। उसके बाद, तुम्हारे वंशज उस देश से निकल जाएँगे, और वे इस देश में आएँगे और मेरी उपासना करेंगे।'
\p
\v 8 तब परमेश्वर ने आज्ञा दी कि अब्राहम के घराने के सभी पुरूषों और उसके सभी पुरूष वंशजों को यह दिखाने के लिए खतना करवाना चाहिए कि वे सब परमेश्वर के हैं। बाद में अब्राहम के बेटे, इसहाक का जन्म हुआ, और जब इसहाक आठ दिन का था, तो अब्राहम ने उसका खतना किया। बाद में इसहाक के बेटे, याकूब का जन्म हुआ। याकूब उन बारह पुरूषों का पिता था, जिसे हम यहूदी अपने कुलपिता, हमारे पूर्वज कहते हैं।
\p
\s5
\v 9 तुम्हें पता है कि याकूब के बड़े पुत्र जलते थे, क्योंकि उनका पिता उनके छोटे भाई यूसुफ को पसंद करता था। इसलिए उन्होंने उसे व्यापारियों को बेच दिया, जो उसे मिस्र में ले गए, जहाँ वह एक दास बन गया। लेकिन परमेश्वर ने यूसुफ की सहायता की;
\v 10 जब भी लोग उसे पीड़ित करते थे परमेश्वर उसे सुरक्षित करते थे। उन्होंने यूसुफ को बुद्धिमान बना दिया, और उन्होंने मिस्र के राजा फ़िरौन को यूसुफ की भलाई के बारे में विचार करने के लिए प्रेरित किया। इसलिए फ़िरौन ने उसे मिस्र पर शासन करने और फ़िरौन की सारी सम्पत्ति की देखभाल करने के लिए नियुक्त किया।
\p
\s5
\v 11 जब यूसुफ उस काम को कर रहा था, तो ऐसा समय आया कि मिस्र और कनान में भोजन की बहुत कमी हो गई। लोग परेशान हो गए। कनान में याकूब और उसके पुत्रों के लिए भी भोजन पर्याप्त नहीं था।
\v 12 याकूब को लोगों ने बताया कि मिस्र में अनाज है और लोग उसे खरीद सकते हैं, तो उसने यूसुफ के बड़े भाइयों को अनाज खरीदने के लिए वहाँ भेज दिया। उन्होंने जाकर यूसुफ से अनाज खरीदा, परन्तु उन्होंने उसे नहीं पहचाना। तब वे घर लौट आए।
\v 13 जब यूसुफ के भाई दूसरी बार मिस्र गए, तब उन्होंने फिर यूसुफ से अनाज खरीदा। लेकिन इस बार उसने उन्हें बताया कि वह कौन है। और फ़िरौन को पता चला कि यूसुफ के लोग इब्रानी हैं और जो पुरुष कनान से आए थे वे उसके भाई हैं।
\s5
\v 14 इसके बाद यूसुफ ने अपने भाइयों को घर वापस भेज दिया, उन्होंने अपने पिता याकूब से कहा कि यूसुफ उसे और उसके पूरे परिवार को मिस्र में बुलाना चाहता है। उस समय याकूब के परिवार में पचहत्तर लोग थे।
\v 15 तो जब याकूब ने यह सुना, वह और उसका सारा परिवार मिस्र में रहने के लिए चला गया। बाद में, याकूब वहाँ मर गया, और हमारे अन्य पूर्वज, उनके पुत्रों की वहाँ मृत्यु हो गई।
\v 16 उनके शरीरों को हमारे देश में वापस लाया गया और उन्हें कब्र में दफनाया गया, जिसे अब्राहम ने शेकेम शहर में हमोर के पुत्रों से खरीदा था।
\p
\s5
\v 17 जब हमारे पूर्वज संख्या में बहुत अधिक हो गए थे तब वह समय आया कि परमेश्वर उन्हें मिस्र से छुडाए जिसकी उन्होंने अब्राहम से प्रतिज्ञा की थी कि वह करेंगे।
\v 18 मिस्र पर अब दूसरा राजा शासन कर रहा था। वह नहीं जानता था कि उससे बहुत पहले, यूसुफ ने मिस्र के लोगों की बहुत सहायता की थी।
\v 19 उस राजा ने निर्दयतापूर्वक हमारे पूर्वजों से छुटकारा पाने का प्रयास किया। उसने उन पर अत्याचार किया और उन्हें बहुत पीड़ित किया। यहाँ तक कि उसने उन्हें आज्ञा दी कि वे अपने नये जन्मे शिशुओं को घरों के बाहर फेंक दें जिससे कि वे मर जाएँ।
\p
\s5
\v 20 उस समय मूसा का जन्म हुआ था, और परमेश्वर ने देखा कि वह एक बहुत ही सुंदर बालक है। इसलिए उसके माता-पिता ने तीन महीने तक उसे अपने घर में ही रखा और गुप्त रूप से उसकी देखभाल की।
\v 21 तब उन्हें उस बालक को अपने घर से बाहर करना पड़ा, परन्तु फ़िरौन की बेटी को वह मिल गया और उसने उसकी ऐसी देखभाल की, जैसे कि वह उसका ही पुत्र हो।
\s5
\v 22 मूसा को मिस्र की सब शिक्षा मिली जो मिस्रियों को दी जाति थी। और जब वह बड़ा हुआ, तो वह बात करने और काम करने में सशक्त था।
\p
\v 23 जब मूसा चालीस वर्ष का था, तब एक दिन उसने निर्णय लिया कि वह जाकर अपने लोगों अर्थात् इस्राएलियों से मिलेगा।
\v 24 उसने एक मिस्री को इस्राएलियों में से एक के साथ बुरा व्यवहार करते देखा। इसलिये वह इस्राएली पुरुष की सहायता करने के लिए गया, और उसने उस मिस्री को मारकर इस्राएली का बदला लिया।
\v 25 मूसा ने सोचा था कि उसके साथी इस्राएलियों को यह समझ आ जाएगा कि परमेश्वर ने उन्हें गुलामी से छुड़ाने के लिए उसे भेजा है। लेकिन उन्हें यह समझ नहीं आया।
\s5
\v 26 अगले दिन, मूसा ने देखा कि दो इस्राएली पुरुष एक दूसरे से लड़ रहे हैं। उसने उनसे यह कह कर लड़ाई रोकने का प्रयास किया की, 'भाइयों, तुम दोनों ही इस्राएली हो! तुम एक दूसरे को चोट क्यों पहुँचा रहे हो?
\v 27 लेकिन जो पुरुष दूसरे को मार रहा था, उसने मूसा को धक्का दिया और कहा, 'तुझे हम पर शासक और न्यायाधीश किसी ने नहीं ठहराया है!
\v 28 क्या तू मुझे भी मार डालना चाहता है जैसे तुने कल मिस्री को मार डाला था?
\s5
\v 29 जब मूसा ने यह सुना, तो वह मिस्र से मिद्यान देश में भाग गया। वहाँ वह कुछ वर्षों तक रहा। उसने विवाह किया, और उसके और उसकी पत्नी के दो पुत्र हुए।
\p
\v 30 चालीस वर्ष बाद, एक दिन प्रभु परमेश्वर मूसा के सामने एक स्वर्गदूत के रूप में प्रकट हुए। परमेश्वर उसे सीनै पर्वत के निकट रेगिस्तान में एक जलती हुई झाड़ी की आग में दिखाई दिए।
\s5
\v 31 जब मूसा ने उसे देखा, तो वह चकित हो गया, क्योंकि झाड़ी जल नहीं रही थी। जब वह और पास से देखने के लिये गया, तो उसने प्रभु परमेश्वर की वाणी सुनी जो कह रही थी,
\v 32 'मैं परमेश्वर हूँ जिनकी तुम्हारे पूर्वज आराधना करते थे। मैं परमेश्वर हूँ जिनकी अब्राहम, इसहाक और याकूब आराधना करते थे।' मूसा इतना डर गया था कि वह काँपने लगा। वह अब झाड़ी को देखने से भी डरता था।
\s5
\v 33 फिर प्रभु परमेश्वर ने उससे कहा, 'अपनी जूतियों को उतार दे जिससे यह प्रकट हो कि तुम मेरा सम्मान करते हो। क्योंकि मैं यहाँ हूँ, और जिस जगह पर तुम खड़े हो वह विशेष रूप से मेरी है।
\v 34 मैंने निश्चय ही देखा है कि मिस्र के लोग कैसे मेरे लोगों को दुःख दे रहे हैं। और जब वे अपने दुःख के कारण कराहते हैं। तो उनकी पुकार मुझ तक पहुँचती है इसलिए मैं उन्हें मिस्र से छुड़ाने के लिए नीचे आया हूँ। अब तैयार हो जा, क्योंकि मैं तुझे वापस मिस्र भेजने पर हूँ।'
\p
\s5
\v 35 इसी मूसा ने हमारे इस्राएली लोगों की सहायता करने का प्रयास किया था, परन्तु जिसे उन्होंने यह कहकर अस्वीकार कर दिया था, 'किसी ने भी तुम्हें शासक और न्यायाधीश नहीं ठहराया है!' मूसा को स्वयं परमेश्वर ने उन पर शासन करने के लिए और गुलामी से उन्हें मुक्त करने के लिए भेजा था। वही था जिसे झाड़ी में एक स्वर्गदूत ने ऐसा करने का आदेश दिया था।
\v 36 मूसा ही था जो हमारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाल लाया था। मिस्र में, लाल समुद्र में और उन चालीस वर्षों में भी जब इस्राएली लोग मरुभूमि में थे, उसने कई प्रकार के चमत्कार किए थे कि यह प्रकट हो कि परमेश्वर उनके साथ थे।
\v 37 यह मूसा ही था जिसने इस्राएली लोगों से कहा था, 'परमेश्वर तुम्हारे लोगों में से मेरे समान एक और व्यक्ति को तुम्हारे लिए एक भविष्यद्वक्ता होने के लिए तैयार करेंगे।'
\s5
\v 38 यह मूसा ही था जो इस्राएली लोगों के बीच था जब वे मरुभूमि में एक साथ थे। वह स्वर्गदूत के साथ था जिसने सीनै पर्वत पर उसके साथ बात की थी। यह मूसा ही है जिसे परमेश्वर ने सीनै पर्वत पर स्वर्गदूत के द्वारा हमारे नियम दिए थे। उसी ने हमारे पूर्वजों को बताया जो स्वर्गदूत ने कहा था। वही था जिसने परमेश्वर से वचनों को प्राप्त किया था और उन्हें हमारे पास पहुँचाया, जो हमें बताते हैं कि कैसे जीना है।
\p
\v 39 परन्तु, हमारे पूर्वजों ने मूसा की बातों को मानना नहीं चाहा। इसकी अपेक्षा, उन्होंने उसे अपने अगुवे के रूप में अस्वीकार कर दिया और मिस्र लौट जाना चाहते थे।
\v 40 इसलिये उन्होंने उसके बड़े भाई हारून से कहा, 'हमारे लिए मूर्तियाँ बना, जो हमारी अगुवाई करने के लिये हमारे देवता हो। उस व्यक्ति मूसा के बारे में, जिसने हमें मिस्र से बाहर निकाला, हमें नहीं पता कि उसके साथ क्या हुआ है!'
\s5
\v 41 इसलिए उन्होंने एक मूर्ति बनाई जो एक बछड़े के समान दिखती थी। तब उन्होंने उस मूर्ति का आदर करने के लिए बलि चढ़ाई, और उन्होंने अपने हाथों की बनाई वस्तु के कारण गीत गाए और नृत्य किया।
\v 42 अत: परमेश्वर ने उन्हें सुधारना बंद कर दिया। उन्होंने उन्हें आकाश के सूर्य, चंद्रमा और तारों की आराधना करने के लिए छोड़ दिया। यह उन वचनों से सहमत है जो भविष्यद्वक्ताओं में से एक ने लिखे थे: परमेश्वर ने कहा, 'हे इस्राएली लोगों, जब तुमने बार-बार जानवरों को मारा और उन चालीस वर्षों तक उनको बलि के रूप में चढ़ाया, जब तुम मरुभूमि में थे, क्या तुम उन्हें मेरे लिए चढ़ा रहे थे?
\s5
\v 43 इसके विपरीत, तुम उस तम्बू को एक स्थान से दूसरे स्थान ले गए जिसमें वह मूर्ति थी जो मोलेक देवता का प्रतिनिधित्व करती थी जिसकी तुमने आराधना की थी। तुमने अपने साथ रिफान नाम के तारे की मूर्ति भी ली थी। वे मूर्तियाँ थीं जो तुमने बनाई थीं, और तुमने मेरी अपेक्षा उनकी पूजा की थी। इस कारण मैं ऐसा करूँगा कि तुम्हें तुम्हारे घरों से कहीं दूर ले जाया जाएगा, ऐसे देश में जो बाबेल देश से भी कहीं दूर हैं।'
\p
\s5
\v 44 "जब हमारे पूर्वज मरुभूमि में थे, तब वे पवित्र तम्बू में परमेश्वर की उपासना करते थे, जिससे प्रकट होता था कि वे वहाँ उनके साथ थे। उन्होंने तम्बू को बिल्कुल उसी प्रकार बनाया था जैसे परमेश्वर ने मूसा को बनाने के लिए आज्ञा दी थी। यह बिल्कुल उसी नमूने के अनुसार बनाया गया था जो मूसा ने देखा था जब वह ऊपर पहाड़ पर था।
\v 45 बाद में, हमारे पूर्वज तम्बू को अपने साथ उठाकर चले। जब यहोशू उन्हें इस देश में लेकर आया तब उस समय उन्होंने इस देश को अपने लिए ले लिया, जब परमेश्वर ने यहाँ रहनेवाले लोगों को यहाँ से निकलने के लिये विवश किया। इस प्रकार इस्राएली इस देश पर अधिकार करने में सक्षम हुए। तम्बू इस देश में बना रहा और उस समय भी यहाँ था जब राजा दाऊद ने शासन किया था।
\v 46 दाऊद ने परमेश्वर को प्रसन्न किया, और उसने परमेश्वर से कहा कि वह उसे एक भवन बनाने दे जहाँ वह और हमारे सभी इस्राएली लोग परमेश्वर की आराधना कर सकें।
\s5
\v 47 परन्तु, परमेश्वर ने दाऊद के पुत्र सुलैमान को एक भवन बनाने के लिए कहा जहाँ लोग उनकी आराधना कर सकें।"
\p
\v 48 हम जानते हैं कि परमेश्वर सब वस्तुओं से बड़े हैं, और वे उन भवनों में नहीं रहते, जो लोगों ने बनाए हैं। यशायाह भविष्यद्वक्ता ने लिखा था:
\v 49-50 परमेश्वर ने कहा, "स्वर्ग मेरा सिंहासन है और पृथ्वी मेरे पैर रखने की चौकी है। मैंने स्वर्ग में और पृथ्वी पर सब कुछ बनाया है। तो तुम मनुष्य जाति मेरे रहने के लिए अच्छा और पर्याप्त नहीं बना सकते!"
\p
\s5
\v 51 "तुम लोग बहुत हठीले हो! तुम बिल्कुल अपने पूर्वजों के समान हो! तुम सदैव पवित्र आत्मा का विरोध करते हो, जैसे वे किया करते थे!
\v 52 तुम्हारे पूर्वजों ने हर भविष्यद्वक्ता को पीड़ित किया। उन्होंने उनको मार भी डाला जिन्होंने बहुत पहले ही घोषणा की थी कि मसीह आएँगे, वह जिन्होंने सदैव वही किया जिससे परमेश्वर प्रसन्न होते हैं। और मसीह आ गये हैं! यह वही है जिन्हें तुमने हाल ही में उनके शत्रुओं को सौंप दिया और कहा कि वे उसे मार डालें!
\v 53 तुम ऐसे लोग हो जिन्होंने परमेश्वर की व्यवस्था को प्राप्त किया है। इस व्यवस्था को परमेश्वर ने स्वर्गदूतों के द्वारा हमारे पूर्वजों को दिया था। लेकिन, तुमने उनकी बातों को नहीं माना है!"
\p
\s5
\v 54 जब यहूदी परिषद के सदस्यों और अन्य लोगो ने जो वहां थे, स्तिफनुस की बात सुनी, तो वे बहुत क्रोधित हो गए। वे एक साथ अपने दाँत पीस रहे थे क्योंकि वे उससे बहुत क्रोधित थे!
\p
\v 55 लेकिन पवित्र आत्मा ने हर प्रकार से स्तिफनुस को नियंत्रित किया। उसने ऊपर स्वर्ग की ओर देखा और परमेश्वर से आता एक प्रकाश देखा और उसने यीशु को परमेश्वर के दाहिने ओर खड़े देखा।
\v 56 "देखो," उसने कहा, "मैं स्वर्ग को खुला देख रहा हूँ, और मैं मनुष्य के पुत्र को परमेश्वर के दाहिनी ओर खड़े देखता हूँ!"
\p
\s5
\v 57 जब यहूदी परिषद के सदस्यों और अन्य लोगों ने यह सुना, वे जोर से चिल्लाए। उन्होंने अपने हाथों को अपने कानों पर रखा ताकि वे उसे न सुनें, और तुरंत वे सब उसके पास चले गए।
\v 58 वे उसे खींच कर यरूशलेम शहर के बाहर ले गए और उस पर पत्थर मारना आरंभ कर दिया। जो लोग उस पर आरोप लगा रहे थे, उन्होंने पत्थरों को आसानी से फेंकने के लिए अपना बाहरी वस्त्र उतार दिया, और उन्होंने अपने कपड़ों को एक जवान व्यक्ति के पास भूमि पर रख दिया, जिसका नाम शाऊल था, कि वह उनकी निगरानी कर सके।
\s5
\v 59 जबकि वे स्तिफनुस पर पत्थर फेंक रहे थे, तो स्तिफनुस ने प्रार्थना की, "हे प्रभु यीशु, मेरी आत्मा को ग्रहण कर!"
\p
\v 60 तब स्तिफनुस घुटनों पर गिर पड़ा और चिल्ला उठा, "हे प्रभु, इस पाप के लिए उन्हें सज़ा न देना!" उसके यह कहने के बाद, वह मर गया।
\s5
\c 8
\p
\v 1-2 तब कुछ लोगों ने जो परमेश्वर के भक्त थे, एक कब्र में स्तिफनुस के शरीर को दफन कर दिया, और उन्होंने उसके लिए बहुत शोक और विलाप किया।
\p उसी दिन लोगों ने यरूशलेम में रहने वाले विश्वासियों को गम्भीर रूप से सताना आरंभ कर दिया। इसलिए विश्वासी भाग कर यहूदिया और सामरिया के प्रांतों में दूसरे स्थानों पर चले गए। प्रेरित यरूशलेम में ही रहे।
\v 3 जब वे स्तिफनुस को मार रहे थे, शाऊल वहाँ इस बात से सहमत था कि उन्हें स्तिफनुस को मारना चाहिए। इसलिए शाऊल ने भी विश्वासियों के समूह को नष्ट करने का प्रयास करना आरम्भ कर दिया। वह प्रत्येक घर में गया, और जो यीशु में विश्वास करते थे वह उन पुरुषों और स्त्रियों को खींच कर लाया, और फिर उन्हें बंदीगृह में डाल दिया।
\p
\s5
\v 4 जिन विश्वासियों ने यरूशलेम छोड़ दिया वे अलग-अलग स्थानों पर चले गए, वे यीशु के बारे में संदेश का प्रचार करते रहे।
\v 5 उन विश्वासियों में से एक जिसका नाम फिलिप्पुस था, वह यरूशलेम से सामरिया जिले के एक शहर में चला गया। वहाँ वह लोगों को बता रहा था कि यीशु ही मसीह हैं।
\s5
\v 6 वहाँ कई लोगों ने फिलिप्पुस की बातें सुनी और उन चमत्कारिक कामों को देखा जो वह कर रहा था। इसलिए उन सभी ने उसके वचनों पर विशेष ध्यान दिया।
\v 7 उदाहरण के लिए, फिलिप्पुस ने कई लोगों में से दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकलने का आदेश दिया, और वे चिल्लाती हुई बाहर निकल गई। इसके अतिरिक्त, बहुत से लोग जिन्हें लकवा और बहुत से जो लंगड़े थे स्वस्थ हो गए थे।
\v 8 इसलिये उस शहर के बहुत सारे लोगों ने आनंद किया।
\p
\s5
\v 9 उस शहर में एक व्यक्ति था जिसका नाम शमौन था। वह लम्बे समय से जादूगरी कर रहा था, और वह अपने जादू से सामरिया जिले के लोगों को चकित करता था। उसका दावा था कि वह "महापुरुष शमौन" है!
\v 10 चाहे साधारण चाहे महत्वपूर्ण, वहाँ सभी लोग उसकी बात सुनते थे। वे कहते थे, "ये व्यक्ति परमेश्वर की महान शक्ति है।"
\v 11 वे बड़े ध्यान से उसकी बातें सुनते थे, क्योंकि उसने लम्बे समय से जादू टोना दिखा कर उन्हें चकित किया हुआ था।
\s5
\v 12 लेकिन जब उन्होंने फिलिप्पुस के संदेश पर विश्वास किया जो परमेश्वर के राजा के रूप में प्रगट होने के विषय में और यीशु मसीह के विषय में था। यीशु में विश्वास करने वाले पुरुषों और स्त्रियों ने बपतिस्मा लिया।
\v 13 शमौन ने भी फिलिप्पुस के संदेश पर विश्वास किया और बपतिस्मा लिया। उसने लगातार फिलिप्पुस के साथ रहना शुरू कर दिया, और जिन महान चमत्कारों को फिलिप्पुस कर रहा था, वे काम जो प्रगट करते थे कि फिलिप्पुस सत्य बोल रहा था उनको देख कर वह विस्मत था।
\p
\s5
\v 14 जब यरूशलेम में प्रेरितों ने सुना कि पूरे सामरिया जिले के बहुत लोगों ने परमेश्वर के संदेश पर विश्वास किया है, तो उन्होंने वहाँ पतरस और यूहन्ना को भेजा।
\v 15 जब पतरस और यूहन्ना सामरिया में आए, तो उन्होंने उन नये विश्वासियों के लिए पवित्र आत्मा प्राप्त करने की प्रार्थना की।
\v 16 क्योंकि यह स्पष्ट था कि पवित्र आत्मा अभी तक उनमें से किसी पर नहीं आये थे। उन्होंने केवल प्रभु यीशु के नाम पर बपतिस्मा लिया था।
\v 17 तब पतरस और यूहन्ना ने उन पर हाथ रखा, और उन्होंने पवित्र आत्मा पाया।
\p
\s5
\v 18 शमौन ने देखा कि प्रेरितों के द्वारा उन पर हाथ रखने से पवित्र आत्मा लोगों को दिया गया था। इसलिए उसने प्रेरितों को पैसे देने चाहे,
\v 19 उसने कहा, "तुम जो कर रहे हो उसे करने के लिए मुझे भी सक्षम करो, ताकि जिस पर भी मैं अपना हाथ रखूँ वह पवित्र आत्मा प्राप्त कर सके।"
\s5
\v 20 पतरस ने उससे कहा, "तू और तेरा पैसा नष्ट हो जाए, क्योंकि तुने पैसे से परमेश्वर के वरदान को पाने का प्रयास किया है!
\v 21 हम जो काम कर रहे हैं, उसमें तू हमारे साथ काम नहीं कर सकता, क्योंकि तुम्हारा मन परमेश्वर के साथ सही नहीं है!
\v 22 इसलिये इस प्रकार दुष्टता से सोचना बंद कर, और परमेश्वर से याचना कर कि अगर वे इच्छा रखते हैं, तो तुने जो बुराई करने के लिए अपने मन में विचार किया है उसके लिये तुझे क्षमा कर दें!
\v 23 अपने बुरे कामों से दूर हो जा, क्योंकि मुझे लगता है कि तू हम से बहुत जलता है, और तू निरन्तर बुराई करने की इच्छा का दास है।
\s5
\v 24 तब शमौन ने उत्तर दिया, "प्रभु से प्रार्थना करो कि तुमने जो कुछ अभी कहा, वह मेरे साथ प्रभु न करें!"
\p
\s5
\v 25 पतरस और यूहन्ना ने वहाँ लोगों को प्रभु यीशु के बारे में वह सब सुनाया जो वे व्यक्तिगत रूप से जानते थे और प्रभु के संदेश की घोषणा की, उसके बाद वे दोनों यरूशलेम लौट आए। मार्ग में उन्होंने सामरिया जिले के लोगों में यीशु के बारे में सुसमाचार का प्रचार किया।
\p
\s5
\v 26 एक दिन, फिलिप्पुस को एक स्वर्गदूत ने जिसे यहोवा परमेश्वर ने भेजा था आदेश दिया, "तैयार हो और दक्षिण दिशा में उस मार्ग पर जाओ जो यरूशलेम से गाजा शहर तक जाता है।" यह मार्ग रेगिस्तानी क्षेत्र में था।
\v 27 अत: फिलिप्पुस तैयार होकर उस मार्ग पर चला गया। उस मार्ग पर वह एक व्यक्ति से मिला जो इथोपिया देश से था। वह एक महत्वपूर्ण अधिकारी था जो इथोपिया की रानी के सारे धन का ध्यान रखता था। उसकी भाषा में लोग अपनी रानी को कन्दाके बुलाते थे। यह व्यक्ति यरूशलेम में परमेश्वर की आराधना करने गया था,
\v 28 और वह घर लौट रहा था और अपने रथ पर सवार होकर बैठा था। जब वह सवारी कर रहा था, तो वह यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक ऊँची आवाज में पढ़ रहा था।
\p
\s5
\v 29 परमेश्वर के आत्मा ने फिलिप्पुस को बताया, "उस रथ के पास जा और उसके पास चलता रह!"
\v 30 फिलिप्पुस रथ के पास दौड़ा और अधिकारी को यशायाह भविष्यद्वक्ता द्वारा लिखी बातों को पढ़ते सुना। उसने उस व्यक्ति से पूछा, "तू जो पढ़ रहा है, क्या उसे समझता भी है?"
\v 31 उसने फिलिप्पुस को उत्तर दिया, "नहीं! सच तो यह है कि यदि कोई मुझे नहीं समझाए तो, मैं यह समझ नहीं सकता! यदि मुझे यह समझाने के लिए कोई नहीं हो!" तब उस पुरुष ने फिलिप्पुस से कहा, "कृपया ऊपर आकर मेरे पास बैठ।"
\s5
\v 32 धर्मशास्त्र का जो भाग वह अधिकारी पढ़ रहा था वह यह था: "वह एक भेड़ के समान शांत है जिसे लोग उस स्थान पर ले जाते हैं जहाँ वे उसे मारने जा रहे हैं, या एक मेम्ने के समान चुपचाप है, जब उसका ऊन काटा जाता है।
\v 33 उसे अपमानित किया जाएगा। उसे न्याय नहीं मिलेगा। कोई भी उसके वंशजों के बारे में नहीं बता पाएगा- क्योंकि उसका कोई वंश नहीं होगा- क्योंकि वे इस पृथ्वी पर से उसका जीवन ले लेगे।"
\p
\s5
\v 34 अधिकारी ने फिलिप्पुस से उन वचनों के बारे में पूछा, जो वह पढ़ रहा था, "मुझे बताओ, भविष्यद्वक्ता किस के बारे में लिख रहा है? क्या वह अपने बारे में लिख रहा है या किसी और के बारे में लिख रहा है?"
\v 35 तब फिलिप्पुस ने उसे उत्तर दिया; उसने वचन के उस भाग से शुरू किया, और उसने उसे यीशु के बारे में सुसमाचार बताया।
\p
\s5
\v 36-37 मार्ग पर यात्रा करते हुए, वे एक स्थान पर पहुँचे जहाँ थोड़ा पानी था। तब अधिकारी ने फिलिप्पुस से कहा, "देख, यहाँ थोड़ा पानी है! मैं चाहता हूँ कि तू मुझे बपतिस्मा दे, क्योंकि मैं ऐसे किसी बात को नहीं जानता जो मुझे बपतिस्मा लेने से रोके।"
\v 38 इसलिए अधिकारी ने सारथी से रथ रोकने के लिए कहा। फिर फिलिप्पुस और अधिकारी दोनों पानी में उतर गए, और फिलिप्पुस ने उसे बपतिस्मा दिया।
\s5
\v 39 जब वे पानी से बाहर निकल आए, तो अचानक परमेश्वर के आत्मा फिलिप्पुस को उठा ले गया। अधिकारी ने फिलिप्पुस को फिर कभी नहीं देखा। लेकिन यद्यपि उसने फिलिप्पुस को फिर कभी नहीं देखा, अधिकारी अत्यन्त प्रसन्नता के साथ मार्ग में आगे बढ़ गया।
\p
\v 40 तब फिलिप्पुस को समझ में आया कि आत्मा चमत्कारी रूप से उसे अश्दोद के शहर में ले आया है। जब वह उस क्षेत्र में चारों ओर यात्रा कर रहा था, तब उसने अश्दोद और कैसरिया शहरों के बीच के सभी नगरों में यीशु के संदेश का प्रचार किया। और जब वह अन्त में कैसरिया में पहुँचा, तब भी वह इस संदेश का प्रचार कर रहा था।
\s5
\c 9
\p
\v 1 इस बीच, शाऊल क्रोध में उन लोगों को मारने की धमकी देता रहा, जिन्होंने प्रभु का अनुसरण किया था। वह यरूशलेम में महायाजक के पास गया
\v 2 और दमिश्क में यहूदी आराधनालयों के अगुवों के लिए उसे परिचय पत्र लिखने का अनुरोध किया। पत्रों में उनसे कहा गया था कि वे शाऊल को उस किसी भी स्त्री या पुरुष को पकड़ने का अधिकार प्रदान करें, जो यीशु की सिखाई गई बातों का अनुसरण करते हैं, और उन्हें बन्दी बनाकर यरूशलेम में ले जाए कि यहूदी अगुवे उनका न्याय कर सकें और उन्हें दण्ड दे सकें।
\p
\s5
\v 3 जब शाऊल और उसके साथ के लोग यात्रा कर रहे थे, तो वे दमिश्क के पास पहुँचे। अकस्मात ही स्वर्ग से एक तीव्र प्रकाश शाऊल के चारों ओर चमका।
\v 4 तुरंत ही वह भूमि पर गिर पड़ा। तब उसने किसी की आवाज़ सुनी जिसने उससे कहा, "हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे दु:ख देने का प्रयास क्यों कर रहा है?"
\s5
\v 5 शाऊल ने उससे पूछा, "हे प्रभु, आप कौन है?" उन्होंने उत्तर दिया, "मैं यीशु हूँ, जिसे तू दु:ख पहुँचा रहा है।
\v 6 अब खड़ा हो जा और शहर में जा! वहाँ तुझे कोई बताएगा कि मैं तुझसे क्या करवाना चाहता हूँ।"
\v 7 जो लोग शाऊल के साथ यात्रा कर रहे थे, वे इतने अचम्भित हुए कि वे कुछ कह नहीं पाए। वे सिर्फ वहाँ खड़े रहे। उन्होंने प्रभु की बात सुनी, लेकिन उन्होंने किसी को नहीं देखा।
\s5
\v 8 शाऊल भूमि पर से उठा, लेकिन जब उसने अपनी आँखें खोलीं तो वह कुछ नहीं देख सकता था। अत: उसके साथी उसका हाथ पकड़कर उसे दमिश्क में ले गए।
\v 9 अगले तीन दिन तक शाऊल कुछ भी नहीं देख पाया, और उसने कुछ नहीं खाया और न पिया।
\p
\s5
\v 10 दमिश्क में हनन्याह नामक यीशु का एक अनुयायी था। प्रभु यीशु ने उसे एक दर्शन देकर कहा, "हे हनन्याह!" उसने उत्तर दिया, "हे प्रभु, मैं सुन रहा हूँ।"
\v 11 प्रभु यीशु ने उससे कहा, "यहूदा नामक व्यक्ति के घर में जा, जो सीधी गली में है। वहाँ किसी से तरसुस के निवासी शाऊल नामक व्यक्ति से बात करने का आग्रह कर, क्योंकि वह इस समय मुझसे प्रार्थना कर रहा है।
\v 12 शाऊल ने एक दर्शन देखा है जिसमें हनन्याह नाम के एक व्यक्ति ने उस घर में प्रवेश किया, जहाँ वह ठहरा हुआ है और उस पर अपना हाथ रखा ताकि वह फिर से देख सके।"
\s5
\v 13 हनन्याह ने उत्तर दिया, "परन्तु हे प्रभु, बहुत से लोगों ने मुझे इस व्यक्ति के बारे में बताया है! उसने यरूशलेम में आप पर विश्वास करने वाले लोगों के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया था!
\v 14 प्रधान याजकों ने उसे दमिश्क में आने का अधिकार दिया है ताकि वह उन सब लोगों को बन्दी बना सके जो आप में विश्वास करते हैं!"
\v 15 परन्तु प्रभु यीशु ने हनन्याह से कहा, "शाऊल के पास जा! जो मैं कहता हूँ उसे कर, क्योंकि मैंने उसे मेरी सेवा करने के लिए चुना है कि वह मेरे बारे में गैर-यहूदी लोगों, और उनके राजाओं और इस्राएली लोगों को बाता सके।
\v 16 मैं स्वयं उसे बताऊँगा कि लोगों को मेरे बारे में बताने के कारण उसे अक्सर पीड़ित होना पड़ेगा।"
\s5
\v 17 अत: हनन्याह चला गया और जिस घर में शाऊल था उसे खोजने के बाद, उसमें प्रवेश किया। शाऊल से भेंट करने के तुरंत बाद, उसने अपना हाथ उसके ऊपर रखा और उसने कहा, "भाई शाऊल, प्रभु यीशु ने स्वयं मुझे तेरे पास आने का आदेश दिया है। वही तुझ पर प्रगट हुए थे, जब तू दमिश्क जाने वाले मार्ग पर यात्रा कर रहा था। उन्होंने मुझे तेरे पास भेजा है ताकि तू फिर से देख सके और तू पवित्र आत्मा के वश में हो सको।
\v 18 तुरन्त ही, मछली की छिलके जैसी चीजें शाऊल की आँखों से गिरी, और वह फिर से देखने लगा। फिर वह उठ खड़ा हुआ और बपतिस्मा लिया।
\v 19 भोजन करने के बाद, वह फिर से सशक्त हो गया। शाऊल दमिश्क के अन्य विश्वासियों के साथ कई दिनों तक रहा।
\p
\s5
\v 20 उसी समय से उसने यहूदियों के आराधनालयों में यीशु के बारे में प्रचार करना आरंभ कर दिया। उसने उनसे कहा कि यीशु परमेश्वर के पुत्र हैं।
\v 21 सभी लोग जिन्होंने उसे प्रचार करते सुना वे चकित थे। उनमें से कुछ कह रहे थे, "हमें विश्वास नहीं हो रहा है कि यह वही व्यक्ति है जो यरूशलेम में विश्वासियों का पीछा करता था और जो यहाँ भी इसलिये आया था कि उन्हें बन्दी बनाकर यरूशलेम के प्रधान याजकों के पास ले जाए!"
\v 22 परन्तु परमेश्वर ने शाऊल को इस योग्य किया कि वह बहुत लोगों को विश्वास दिलाकर प्रचार करे। वह शास्त्रों से सिद्ध कर रहा था कि यीशु ही मसीह है। इसलिए दमिश्क के यहूदी अगुवों को समझ में नहीं आया कि जो उसने कहा उसे कैसे झूठा ठहराएँ।
\p
\s5
\v 23 कुछ समय बाद, यहूदी अगुवों ने उसे मारने का षड्यंत्र रचा।
\v 24 वे प्रतिदिन रात के समय शहर के फाटक से आने जाने वाले लोगों की लगातार निगरानी करते रहे कि जब वे शाऊल को देखें, तो उसे मार डालें। उनकी योजना के बारे में किसी ने शाऊल को बता दिया।
\v 25 उसने यीशु पर विश्वास करने में जिन लोगों की अगुवाई की थी, वे उसे शहर को चारों ओर से घेरने वाली ऊँची पत्थर की दीवार पर ले गए। उन्होंने दीवार के एक झरोखे से उसे एक बड़ी टोकरी में बैठा कर रस्सी से नीचे उतार दिया। इस प्रकार वह दमिश्क से बच कर निकल गया।
\p
\s5
\v 26 जब शाऊल यरूशलेम में पहुँचा, तो उसने अन्य विश्वासियों के साथ मिलने का प्रयास किया। लेकिन, सभी उससे डरते थे, क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि वह विश्वासी हो गया है।
\v 27 परन्तु बरनबास उसे लेकर प्रेरितों के पास आया। उसने प्रेरितों को समझाया कि जब शाऊल दमिश्क के मार्ग पर जा रहा था, तब उसने प्रभु यीशु को देखा था और कैसे प्रभु ने उससे बात की थी। उसने उनको यह भी बताया कि शाऊल ने कैसे साहस करके दमिश्क के लोगों में यीशु का प्रचार किया।
\s5
\v 28 तब शाऊल ने यरूशलेम में प्रेरितों और अन्य विश्वासियों के साथ मिलना शुरू कर दिया, और उसने लोगों से साहस रखकर प्रभु यीशु के बारे में बात की।
\p
\v 29 शाऊल यीशु के बारे में यूनानी भाषा बोलने वाले यहूदियों के साथ भी बात करता था, और वह उनके साथ वादविवाद करता था। लेकिन वे लगातार उसे मार डालने का प्रयास करने युक्ति कर रहे थे।
\v 30 जब अन्य विश्वासियों ने सुना कि वे उसे मार डालने की योजना बना रहे थे, तो उनमें से कुछ ने शाऊल को कैसरिया शहर में भेज दिया। वहाँ उन्होंने उसे एक जहाज पर चढ़ा दिया, जो उसकी जन्मभूमि तरसुस को जा रहा था।
\p
\s5
\v 31 इसलिए यहूदिया, गलील, और सामरिया के क्षेत्र में विश्वासियों के समूह शांतिपूर्वक रहते थे क्योंकि अब उन्हें कोई नहीं सता रहा था। पवित्र आत्मा उन्हें दृढ़ता प्रदान करते रहे थे और उन्हें प्रोत्साहित कर रहे थे। वे प्रभु यीशु का सम्मान करते रहे, और पवित्र आत्मा अनेको को विश्वासी बनने की क्षमता प्रदान कर रहे थे।
\p
\v 32 जब पतरस उन क्षेत्रों में यात्रा कर रहा था, तो एक बार वह तटीय मैदानी क्षेत्र के विश्वासियों से मिलने के लिए गया, जो लुद्दा शहर में रहते थे।
\s5
\v 33 वहाँ उसकी एक व्यक्ति से भेंट हुई जिसका नाम ऐनियास था। ऐनियास आठ साल से अपने बिस्तर से उठने में सक्षम नहीं था क्योंकि उसे लकवा था।
\v 34 पतरस ने उससे कहा, "ऐनियास, यीशु मसीह तुम्हें स्वस्थ करते हैं! उठो और अपना बिस्तर उठा लो!" उसी समय ऐनियास उठ कर खड़ा हो गया।
\v 35 परमेश्वर द्वारा स्वस्थ किए जाने के बाद लुद्दा और शारोन के मैदानी क्षेत्र में रहने वाले अधिकांश लोगों ने ऐनियास को देखा, इसलिए उन्होंने प्रभु यीशु पर विश्वास किया।
\p
\s5
\v 36 याफा के शहर में तबीता नाम की एक भक्त विश्वासी स्त्री थी। यूनानी भाषा में उसका नाम दोरकास था। वह हमेशा गरीब लोगों के लिए उनकी आवश्यकता की वस्तुएँ देकर उनके लिए अच्छे काम करती थी।
\v 37 जब पतरस लुद्दा में था, वह बीमार हो गई और मर गई। वहाँ की कुछ स्त्रियों ने यहूदी परम्परा के अनुसार उसके शरीर को धोया। फिर उन्होंने उसके शरीर को कपड़े से ढक दिया और उसे उसके घर में ऊपर के कमरे में रख दिया।
\p
\s5
\v 38 लुद्दा याफा शहर के पास था, इसलिए जब शिष्यों ने सुना कि पतरस अभी भी लुद्दा में है, तो उन्होंने दो लोगों को पतरस के पास भेजा। जब वे वहाँ पहुँचे जहाँ पतरस था, तो उन्होंने उससे आग्रह किया, "कृपया तुरंत हमारे साथ याफा को चल!"
\v 39 पतरस तुरंत तैयार हो गया और उनके साथ चला गया। जब वह याफा में घर पर पहुँचे, तो वे उसे ऊपर के कमरे में ले गए जहाँ दोरकास का शरीर रखा हुआ था। सभी विधवाएँ वहाँ उसके आस पास खड़ी थीं। वे उन कुरतों और अन्य कपड़ों को दिखाते हुए रो रही थीं जो दोरकास ने जीवित रहते समय उन के लिए बनाए थे।
\s5
\v 40 लेकिन पतरस ने उन सब को कमरे से बाहर भेज दिया। फिर उसने घुटने टेक कर प्रार्थना की। फिर, उसके शरीर की और मुड़कर, उसने कहा, "तबीता, खड़ी हो जा!" तुरंत उसने अपनी आँखें खोलीं और, जब उसने पतरस को देखा तो वह बैठ गई।
\v 41 उसने उसके हाथ पकड़ कर उसे खड़े होने में सहायता की। बाद में उसने विश्वासियों को और विशेष रूप से उनके बीच की विधवाओं को भीतर आने के लिए कहा, पतरस ने उन्हें दिखाया कि वह फिर से जीवित हो गई है।
\v 42 शीघ्र ही याफा में सब स्थानों में लोगों को उस चमत्कार के बारे में पता चल गया, और कई लोगों ने प्रभु यीशु में विश्वास किया।
\v 43 पतरस कई दिन तक याफा में, पशु की खालों से चमड़ा बनाने वाले शमौन नाम के एक मनुष्य के पास, ठहरा रहा।
\s5
\c 10
\p
\v 1 एक व्यक्ति था जो कैसरिया शहर में रहता था जिसका नाम कुरनेलियुस था। वह एक अधिकारी था जो इतालिया के सौ रोमी सैनिकों का सेनाध्यक्ष था।
\v 2 वह हमेशा ऐसे काम करने का प्रयास करता था जो परमेश्वर को प्रसन्न करे; वह और उसका पूरा परिवार गैर-यहूदी थे, परन्तु परमेश्वर की आराधना करना उनका अभ्यास था। उसने कई गरीब यहूदी लोगों की सहायता करने के लिए पैसा दिया, और वह नियमित रूप से परमेश्वर से प्रार्थना करता था।
\p
\s5
\v 3 एक दिन दोपहर में लगभग तीन बजे कुरनेलियुस ने एक दर्शन देखा। उसने स्पष्ट रूप से एक स्वर्गदूत को देखा जिसे परमेश्वर ने भेजा था। उसने देखा कि स्वर्गदूत उसके कमरे में आकर उससे कह रहा है, "कुरनेलियुस!"
\v 4 कुरनेलियुस ने स्वर्गदूत को देखा और भयभीत हो गया। फिर उसने डरते हुए पूछा, "श्रीमान, तुम क्या चाहते हो?" स्वर्गदूत ने जिसे परमेश्वर ने भेजा था उसे उत्तर दिया, "तुने परमेश्वर को प्रसन्न किया है क्योंकि तू नियमित रूप से उनसे प्रार्थना करता है और तुने गरीब लोगों की सहायता करने के लिए पैसे भी दिये हैं। ये काम परमेश्वर के सामने एक स्मरण योग्य बलिदान के समान हैं।
\v 5 तो अब कुछ पुरुषों को याफा में जाने के लिए आदेश दे और उन्हें शमौन नाम के एक व्यक्ति को अपने साथ यहाँ लाने के लिए कह, उसका दूसरा नाम पतरस है।
\v 6 वह एक व्यक्ति के पास ठहरा है, उसका भी नाम शमौन है, जो चमड़ा बनाता है। उसका घर समुद्र के पास है।"
\s5
\v 7 जब कुरनेलियुस से बात करने वाला स्वर्गदूत चला गया, तो उसने अपने घर के दो सेवकों और एक सैनिक को जो उसकी सेवा करता था, बुलवाया वह भी परमेश्वर की आराधना किया करता था।
\v 8 उसने स्वर्गदूत की सब बातों को उन्हें समझा दिया। तब उसने उनसे कहा याफा शहर जाकर पतरस को कैसरिया आने के लिए कहो।
\p
\s5
\v 9 अगले दिन दोपहर के समय वे तीनों लोग मार्ग में यात्रा कर रहे थे और याफा के पास आ गए थे। जब वे याफा पहुँचने वाले थे, तो पतरस प्रार्थना करने के लिए घर की छत पर चढ़ गया।
\v 10 उसे भूख लगी और वह कुछ खाना चाहता था। जब कुछ लोग भोजन की तैयारी कर रहे थे, तो पतरस ने एक दर्शन देखा।
\v 11 उसने आकाश को खुला हुआ देखा और एक बड़ी चादर जैसा कुछ धरती पर उतर आया, उसके चारों कोने ऊपर उठे हुए थे।
\v 12 चादर में सब प्रकार के जीव जन्तु थे। इसमें वे पशु और पक्षी भी थे जिन्हें खाना मूसा की व्यवस्था में मना था। उसमें कुछ चार पैर वाले थे, दूसरे भूमि पर रेंगने वाले थे, और अन्य जंगली पक्षी थे।
\s5
\v 13 तब उसने परमेश्वर को उससे कहते सुना, "पतरस, खड़ा हो जा, इनमें से कुछ को मार डाल और उनको खा ले!"
\v 14 परन्तु पतरस ने उत्तर दिया, "हे प्रभु, सचमुच आप नहीं चाहते कि मैं ऐसा करूँ क्योंकि मैंने कभी भी ऐसा कुछ भी नहीं खाया है जिसके बारे में हमारी यहूदी व्यवस्था कहती है कि वह तुम्हें अस्वीकार्य है या कोई ऐसी वस्तु जिसे हमें खाना नहीं चाहिए!"
\v 15 तब पतरस ने दूसरी बार परमेश्वर को उससे बात करते सुना। उन्होंने कहा, "मैं परमेश्वर हूँ, इसलिए यदि मैंने कुछ खाने के लिये स्वीकार्य बनाया है, तो यह मत कह कि यह खाने के लिये स्वीकार्य नहीं है!"
\v 16 यह तीन बार हुआ। इसके तुरंत बाद, उन पशुओं और पक्षियों के साथ चादर को फिर से आकाश में उठा लिया गया।
\p
\s5
\v 17 जबकि पतरस समझने का प्रयास कर रहा था कि उस दर्शन का अर्थ क्या है, कुरनेलियुस द्वारा भेजे गए व्यक्ति पहुँच गए। उन्होंने लोगों से पूछा कि शमौन के घर कैसे जाना है। अत: उनको उसका घर मिल गया और वे आकर द्वार के बाहर खड़े हुए।
\v 18 उन्होंने आवाज लगाई और पूछा कि क्या शमौन नाम का एक व्यक्ति, जिसका दूसरा नाम पतरस है, यहाँ ठहरा हुआ है या नहीं।
\s5
\v 19 जबकि पतरस अभी भी यह समझने का प्रयास कर रहा था कि दर्शन का अर्थ क्या है, परमेश्वर के आत्मा ने उससे कहा, "सुन! तीन पुरुष यहाँ आए हैं जो तुमसे मिलना चाहते हैं।
\v 20 इसलिये उठ और सीढ़ियों से नीचे उतर कर उनके साथ चला जा! मत सोच कि तुझे उनके साथ नहीं जाना चाहिए, क्योंकि मैंने उन्हें यहाँ भेजा है।"
\v 21 अत: पतरस नीचे उतर कर उन लोगों के पास गया और उनसे कहा, "नमस्कार! मैं ही वह व्यक्ति हूँ जिसको तुम लोग खोज रहे हो। तुम लोग किस काम से आए हो?"
\s5
\v 22 उन्होंने उत्तर दिया, "कुरनेलियुस, जो रोमी सेना में एक अधिकारी है, उसने हमें यहाँ भेजा है। वह एक अच्छा व्यक्ति है जो परमेश्वर की आराधना करता है, और सब यहूदी लोग जो उसके बारे में जानते हैं, वे कहते हैं कि वह बहुत अच्छा व्यक्ति है। एक स्वर्गदूत ने उससे कहा; कुछ पुरुषों को याफा में जाकर शमौन पतरस से मिलने और उसे यहाँ लाने के लिए कह, ताकि जो उसे कहना है तुम उसे सुन सको।
\v 23 अत: पतरस ने उन्हें घर में बुलाया और उनसे कहा कि वे उस रात वहीं पर ठहर जाएँ।
\p अगले दिन पतरस तैयार होकर उन पुरुषों के साथ चला गया। याफा के कई विश्वासी भी उसके साथ गए।
\s5
\v 24 एक दिन के बाद, वे कैसरिया शहर में पहुँचे। कुरनेलियुस उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसने अपने संबन्धियों और निकट के मित्रों को भी आमंत्रित किया था, इसलिए वे वहाँ उसके घर में थे।
\s5
\v 25 जब पतरस घर में प्रवेश कर रहा था, तो कुरनेलियुस उससे मिला और उसका आदर करने के लिए उसके सामने नीचे झुक गया।
\v 26 परन्तु पतरस ने कुरनेलियुस को हाथ से पकड़ लिया और उसे अपने पैरों पर से उठाया। उसने कहा, "खड़ा हो जा! झुक कर मेरा आदर मत कर! मैं तुम्हारे जैसा ही एक मनुष्य हूँ!"
\p
\s5
\v 27 जब वह कुरनेलियुस से बात कर रहा था, तब पतरस और अन्य विश्वासियों ने घर में प्रवेश किया और देखा कि कई लोग वहाँ एकत्र हुए थे।
\v 28 फिर पतरस ने उनसे कहा, "तुम सब जानते हो कि हम यहूदी समझते है कि हम अपने यहूदी व्यवस्था की अवज्ञा कर रहे हैं यदि हम गैर - यहूदी माता-पिता की संतानों से मेल रखें या उनके घरों में जाएँ। परन्तु, परमेश्वर ने मुझे एक दर्शन में दिखाया है कि मुझे यह नहीं कहना चाहिए कि कोई भी इतना अपवित्र और अशुद्ध है कि परमेश्वर उसे स्वीकार नहीं करेंगे।
\v 29 इसलिए जब तुमने कुछ पुरूषों को भेजा कि मुझे यहाँ आने के लिए कहें तो मैं तुरंत बिना किसी आपत्ति के यहाँ आया। इसलिये, कृपया मुझे बताओ, तुमने मुझे यहाँ आने के लिए क्यों कहा है?"
\p
\s5
\v 30 कुरनेलियुस ने उत्तर दिया, "तीन दिन पहले इसी समय मैं अपने घर में परमेश्वर से प्रार्थना कर रहा था, जैसा कि मैं दोपहर तीन बजे नियमित रूप से करता हूँ। अचानक एक पुरुष जिसके कपड़े बहुत चमकदार थे मेरे सामने खड़ा हो गया
\v 31 और कहा, 'कुरनेलियुस, परमेश्वर ने तेरी प्रार्थना सुन ली है। उन्होंने यह भी देखा है कि तुमने गरीब लोगों की सहायता के लिए अधिकतर पैसे दिए हैं, और वे उससे प्रसन्न हैं।
\v 32 तो अब, याफा शहर में जाने के लिए दूतों को भेज ताकि वे शमौन को जिसका दूसरा नाम पतरस है यहाँ आने के लिए कहें। वह समुद्र के पास एक घर में ठहरा है जो एक अन्य शमौन नाम के व्यक्ति का है जो चमड़ा बनाता है।'
\v 33 इसलिए मैंने तुरंत कुछ लोगों को भेजा जिन्होंने तुझे यहाँ आने के लिए कहा, और निश्चय ही तुझे धन्यवाद कहता हूँ कि तुम यहाँ आया है। अब हम सब एकत्र हैं, यह जानते हुए कि परमेश्वर हमारे साथ है, कि तुझसे वह सब बातें सुने जिन्हें सुनाने के लिए परमेश्वर ने तुझे आदेश दिया है। तो कृपया हमें सुना।"
\p
\s5
\v 34 तब पतरस ने उनसे बातें करना आरंभ कर दिया। उसने कहा, "अब मैं समझ गया हूँ कि यह सच है कि परमेश्वर केवल कुछ विशेष समूहों के लोगों का पक्ष नहीं लेते हैं।
\v 35 इसकी अपेक्षा वह सब जातियों में से उन सब को स्वीकार करते हैं जो उन्हें सम्मान देते हैं और वही करते हैं जो उन्हें प्रसन्न करता है।
\s5
\v 36 तुम उस संदेश को जानते हो जो परमेश्वर ने हम इस्राएलियों के पास भेजा। उन्होंने हम पर उस सुसमाचार की घोषणा की कि यीशु मसीह ने जो किया है उसके कारण लोगों का परमेश्वर के साथ मेल हो गया। ये यीशु केवल हम इस्राएलियों के ही प्रभु नहीं हैं। वह सभी लोगों पर शासन करने वाले एक ही प्रभु हैं।
\v 37 तुम जानते हो कि उन्होंने गलील से शुरू करके यहूदिया के सारे प्रदेश में क्या-क्या किया। यूहन्ना बपतिस्मा देने के पहले कहता था कि लोग बपतिस्मा लेने से पहले अपने पापी स्वभाव से दूर हो जाएँ। यीशु ने उसके बाद अपनी सेवा आरंभ की थी।
\v 38 तुम जानते हो कि परमेश्वर ने नासरत नगर के यीशु को अपना पवित्र आत्मा दिया, और उन्हें चमत्कार करने की शक्ति दी। तुम यह भी जानते हो कि कैसे यीशु अनेक स्थानों में गए और सदैव अच्छे काम करते रहे और लोगों को स्वस्थ करते रहे। वह उन सब लोगों को स्वस्थ कर रहे थे जिनको शैतान पीड़ित कर रहा था। यीशु के इस काम में सामर्थ थी क्योंकि परमेश्वर सदा उनकी सहायता करते रहते थे।"
\p
\s5
\v 39 हम सब ने उन कामों को देखा था जो यीशु ने यरूशलेम में और अपने देश इस्राएल के हर भाग में किये। उनके शत्रुओं ने उन्हें लकड़ी के क्रूस पर चढ़ा कर मार दिया।
\v 40 परमेश्वर ने उनके मरने के बाद तीसरे दिन उन्हें जीवित कर दिया, और सुनिश्चित किया कि उनके फिर से जीवित हो जाने के बाद कई लोग उन्हें जीवित देखें। लोगों को विश्वास हो गया था कि यह वही हैं जो मर गए थे, और अब उन्होंने अपनी आँखों से देखा और विश्वास किया कि वह फिर से जीवित हैं।
\v 41 उस समय परमेश्वर ने हर किसी को उन्हें देखने की क्षमता प्रदान नहीं की थी परमेश्वर ने जब उन्हें जीवित किया था तब आरंभ के दिनों में उन्होंने केवल उन लोगों को ही सक्षम बनाया जिन्हें उन्होंने उनके साथ समय बिताने और भोजन करने के लिए चुना था।
\s5
\v 42 परमेश्वर ने हमें सब लोगों में प्रचार करने और यह बताने का आदेश दिया है कि उन्होंने एक दिन हर एक का न्याय करने के लिए यीशु को नियुक्त किया है, उस दिन जिसका आना सुनिश्चित है। वह उन सब लोगों का न्याय करेंगे तब जो लोग उस समय से पहले मर चुके होंगे वो फिर से जीवित होंगे।
\v 43 सभी भविष्यद्वक्ता जिन्होंने उनके बारे में बहुत पहले लिखा था उन्होंने लोगों को उनके बारे में बताया। उन्होंने लिखा है कि यदि कोई उन पर विश्वास करता है, तो यीशु ने जो किया है उसके कारण परमेश्वर उनके सभी पापों को क्षमा कर देंगे।"
\p
\s5
\v 44 पतरस अभी उनसे बातें ही कर रहा था कि अकस्मात ही उन सभी गैर-यहूदी लोगों पर जो संदेश सुन रहे थे, पवित्र आत्मा उतर आए।
\v 45 याफा से पतरस के साथ आये हुए यहूदी विश्वासी चकित थे कि परमेश्वर ने अन्य जातियों के लोगों को बड़ी आराद्ता से पवित्र आत्मा दिए हैं।
\s5
\v 46 यहूदी विश्वासी समझ गए थे कि परमेश्वर ने यह किया था क्योंकि वे उन लोगों को उन भाषाओं में बातें करते सुन रहे थे, जिन्हें उन्होंने नहीं सीखा था और वे परमेश्वर की महानता का वर्णन कर रहे थे। तब पतरस ने
\v 47 अन्य यहूदी विश्वासियों से कहा जो वहाँ थे, "परमेश्वर ने उन्हें पवित्र आत्मा दिए हैं जैसे उन्होंने हम यहूदी विश्वासियों को दिए थे , अत: तुम सब निश्चय ही सहमत होंगे कि हमें इन लोगों को बपतिस्मा देना चाहिए!"
\v 48 तब पतरस ने उन गैर-यहूदी लोगों को बताया कि उन्हें यीशु मसीह में विश्वास करने वालों के रूप में बपतिस्मा लेना चाहिए। इसलिए उन्होंने उन सब को बपतिस्मा दिया। बपतिस्मा लेने के बाद, उन्होंने अनुरोध किया कि पतरस कुछ दिनों तक उनके साथ रहे। अत: पतरस और अन्य यहूदी विश्वासियों ने ऐसा ही किया।
\s5
\c 11
\p
\v 1 प्रेरितों और अन्य विश्वासियों ने जो यहूदिया प्रांत के विभिन्न शहरों में रहते थे लोगों को यह कहते सुना कि कुछ गैर-यहूदी लोगों ने भी यीशु के बारे में परमेश्वर के संदेश पर विश्वास कर लिया है।
\v 2 परन्तु यरूशलेम में कुछ यहूदी विश्वासी थे जो चाहते थे कि मसीह के सभी अनुयायियों का खतना होना चाहिए। जब पतरस कैसरिया से यरूशलेम लौट आया, तो वे उस से मिले और उसकी आलोचना की।
\v 3 उन्होंने उससे कहा, "न केवल यह गलत था कि तू उन बिना खतना किये हुए गैर-यहूदियों के घरों में गए, बल्कि तू ने तो उनके साथ खाया पिया भी है!"
\p
\s5
\v 4 इसलिए पतरस ने उन्हें समझाना शुरू किया कि वास्तव में क्या हुआ था।
\v 5 उसने कहा, "मैं याफा शहर में अकेले ही प्रार्थना कर रहा था, तो ध्यानमग्न अवस्था में मैंने एक दर्शन देखा था। मैंने देखा कि जहाँ मैं था, वहाँ आकाश से एक बड़ी चादर के समान उसके चारों कोनों द्वारा कुछ नीचे उतारा गया।
\v 6 जब मैं बड़े ध्यान से इसे देख रहा था, मैंने कुछ पालतु पशु और साथ ही कुछ जंगली पशु, रेंगने वाले जन्तु, और जंगली पक्षियों को देखा।
\s5
\v 7 तब मैंने सुना कि परमेश्वर मुझे आदेश दे रहे थे, 'पतरस, उठ जा, इनको मार और खा!'
\v 8 परन्तु मैंने उत्तर दिया, 'हे प्रभु, निश्चय ही आप सचमुच नहीं चाहते हो कि मैं ऐसा करूँ, क्योंकि मैंने कभी भी ऐसा कुछ नहीं खाया है जिसके बारे में हमारी व्यवस्था कहती है कि हमें नहीं खाना चाहिए! '
\v 9 परमेश्वर ने मुझसे स्वर्ग से दूसरी बार कहा, 'मैं परमेश्वर हूँ, इसलिए यदि मैंने कुछ खाने को स्वीकार्य बनाया है, तो यह मत कह कि वह अस्वीकार्य है।'
\v 10 बिल्कुल यही बात दो बार और हुई, और फिर उन सभी जानवरों और पक्षियों के साथ चादर फिर से स्वर्ग में खींच लिया गया।
\p
\s5
\v 11 उसी क्षण में, कैसरिया से भेजे गए तीन व्यक्ति उस घर पर पहुँचे जहाँ मैं ठहरा हुआ था।
\v 12 परमेश्वर के आत्मा ने मुझे बताया कि मुझे उनके साथ जाने में संकोच नहीं करना चाहिए, भले ही वे यहूदी नहीं थे। छह यहूदी विश्वासी भी मेरे साथ कैसरिया गए, और फिर हम उस गैर-यहूदी व्यक्ति के घर में गए।
\v 13 उसने हमें बताया कि उसने एक स्वर्गदूत को अपने घर में खड़ा देखा था। स्वर्गदूत ने उससे कहा, 'कुछ लोगों को याफा भेज कि वे शमौन को जिसका दूसरा नाम पतरस है आने के लिए कहे।
\v 14 वह तुम्हें बताएगा कि तू और तेरे घर के सब लोग कैसे बच सकेंगे।
\s5
\v 15 जैसे ही मैंने बोलना शुरू किया, अचानक पवित्र आत्मा उन पर उतर आए, जैसे वह पिन्तेकुस्त के पर्व के समय पहले हमारे ऊपर उतर आए थे।
\v 16 फिर मुझे याद आया कि परमेश्वर ने क्या कहा था: 'यूहन्ना ने तुम्हें पानी से बपतिस्मा दिया, परन्तु परमेश्वर तुमको पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देंगे।'
\s5
\v 17 परमेश्वर ने उन गैर-यहूदियों को वही पवित्र आत्मा दिए जो उन्होंने हमें दिए थे जब हम ने प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास किया था। तो मैं परमेश्वर को नहीं कह सका कि उन्होंने यह गलत किया कि उन्हें पवित्र आत्मा दे दिए!"
\p
\v 18 पतरस की बातों को सुनने के बाद, उन यहूदी विश्वासियों ने उसकी आलोचना करना बंद कर दिया। इसकी अपेक्षा, उन्होंने परमेश्वर की स्तुति करते हुए कहा, "फिर यह हमारे लिए स्पष्ट है कि परमेश्वर गैर-यहूदियों को भी स्वीकार करते हैं कि वे अनन्त जीवन पाए, यदि वे अपने पापी व्यवहार से मुड़ें।"
\p
\s5
\v 19 स्तिफनुस की मृत्यु के बाद, कई विश्वासियों ने यरूशलेम छोड़ दिया और अन्य स्थानों में चले गए क्योंकि वे यरूशलेम में दु:ख उठा रहे थे। उनमें से कुछ फीनीके चले गए, कुछ साइप्रस द्वीप चले गए, और अन्य लोग सीरिया के एक शहर अन्ताकिया में चले गए। उन स्थानों में वे निरन्तर लोगों को यीशु के बारे में संदेश सुना रहे थे, परन्तु उन्होंने केवल अन्य यहूदी लोगों को ही सुनाया था।
\v 20 विश्वासियों में से कुछ लोग उत्तरी अफ्रीका के साइप्रस द्वीप और कुरेने शहर के थे। वे अन्ताकिया चले गए और वे गैर-यहूदी लोगों में भी प्रभु यीशु के बारे में प्रचार कर रहे थे।
\v 21 प्रभु परमेश्वर शक्तिशाली रूप से उन विश्वासियों को प्रभावी प्रचार के लिए क्षमता प्रदान कर रहे थे। इसका परिणाम यह हुआ कि बहुत से गैर-यहूदी लोगों ने उनके संदेश को ग्रहण कर के प्रभु पर भरोसा किया।
\p
\s5
\v 22 यरूशलेम में विश्वासियों के समूह ने लोगों को कहते सुना कि अन्ताकिया में बहुत से लोग यीशु में विश्वास कर रहे हैं। इसलिये यरूशलेम में विश्वासियों के अगुवों ने बरनबास को अन्ताकिया भेजा।
\v 23 जब वह वहाँ पहुँचा, तो उसने अनुभव किया कि परमेश्वर ने विश्वासियों के प्रति कृपापूर्वक काम किया है। इसलिए वह बहुत प्रसन्न था, और वह सब विश्वासियों को प्रभु यीशु में पूरी तरह भरोसा करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा था।
\v 24 बरनबास एक अच्छा व्यक्ति था जो पूरी तरह से पवित्र आत्मा के नियंत्रण में था, और परमेश्वर पर पूरा भरोसा रखता था। बरनबास ने जो किया, उसके कारण वहाँ कई लोगों ने प्रभु यीशु पर विश्वास किया।
\p
\s5
\v 25 तब बरनबास शाऊल की खोज में किलकिया के तरसुस शहर में चला गया।
\v 26 जब वह उसे मिल गया, तो बरनबास उसे विश्वासियों को सिखाने में सहायता करने के लिए अन्ताकिया में लौटा लाया। अत: पूरे एक वर्ष तक बरनबास और शाऊल वहाँ कलीसिया के साथ नियमित रूप से मिलते रहे और यीशु के बारे में बड़ी संख्या में लोगों को सिखाते रहे। यह अन्ताकिया में था कि शिष्यों को पहली बार मसीही कहा गया था।
\p
\s5
\v 27 उस समय जब बरनबास और शाऊल अन्ताकिया में थे, कुछ विश्वासी जो भविष्यद्वक्ता थे यरूशलेम से वहाँ पहुँचे।
\v 28 उनमें से एक, जिसका नाम अगबुस था, बोलने के लिए उठ खड़ा हुआ। परमेश्वर के आत्मा ने उसे भविष्यवाणी की क्षमता प्रदान की उसने कहा कि शीघ्र ही कई देशों में अकाल होगा। (यह अकाल तब हुआ जब क्लौदियुस रोमी सम्राट था।)
\s5
\v 29 अगबुस ने जो कहा था जब वहाँ के विश्वासियों ने सुना, तो उन्होंने निर्णय लिया कि वे यहूदिया में रहने वाले विश्वासियों की सहायता करने के लिए पैसे भेजेंगे। उनमें से हर एक ने अपनी क्षमता के अनुसार पैसा देने का निर्णय लिया।
\v 30 उन्होंने बरनबास और शाऊल के हाथ यरूशलेम में विश्वासियों के अगुवों को पैसा भेज दिया।
\s5
\c 12
\p
\v 1 यही समय था कि राजा हेरोदेस अग्रिप्पा ने यरूशलेम में विश्वासियों के समूह के कुछ अगुवों को बन्दी बनाने के लिए सैनिकों को भेज दिया। सैनिकों ने उन्हें बंदीगृह में डाल दिया। उसने ऐसा इसलिये किया क्योंकि वह विश्वासियों को पीड़ित करना चाहता था।
\v 2 उसने प्रेरित यूहन्ना के बड़े भाई, प्रेरित याकूब का सिर काटने के लिए एक सैनिक को आदेश दिया। अत: सैनिक ने ऐसा किया।
\s5
\v 3 जब हेरोदेस को मालूम हुआ कि उसने यहूदी लोगों के अगुवों को प्रसन्न कर दिया है, तो उसने सैनिकों को पतरस को भी बन्दी बनाने का आदेश दिया। यह उस पर्व के समय हुआ जब यहूदी लोग बिना खमीर वाली रोटी खाते थे।
\v 4 पतरस को बन्दी बनाने के बाद, उन्होंने उसे बंदीगृह में डाल दिया। उन्होंने पतरस की निगरानी के लिए सैनिकों के चार दलों को आदेश दिया। हर एक दल में चार सैनिक थे। हेरोदेस फसह का पर्व समाप्त होने के बाद पतरस को बंदीगृह से बाहर निकाल कर यहूदी लोगों के सामने उसका न्याय करना चाहता था। उसके बाद उसने पतरस को मारने की योजना बनाई।
\p
\s5
\v 5 इसलिये कई दिनों तक पतरस बंदीगृह में रहा। लेकिन यरूशलेम में उनके समूह के अन्य विश्वासियों ने पूरी तत्परता के साथ परमेश्वर से प्रार्थना की थी कि वह पतरस की सहायता करें।
\v 6 हेरोदेस ने जिस दिन पतरस को सार्वजनिक रूप से मार डालने के लिए बंदीगृह से बाहर लाने की योजना बनाई थी, उससे एक रात पहले पतरस दो जंजीरों से बंधा हुआ, दो सैनिकों के बीच बंदीगृह में सो रहा था। अन्य दो सैनिक बंदीगृह के द्वार की निगरानी कर रहे थे।
\s5
\v 7 अकस्मात प्रभु परमेश्वर की ओर से एक स्वर्गदूत पतरस के पास आकर खड़ा हो गया, और उसकी कोठरी में एक चमकदार रोशनी चमकी। स्वर्गदूत ने पतरस को हिलाकर जगाया और कहा, "जल्दी उठ!" जब पतरस उठ ही रहा था, तो जंजीरें उसकी कलाई से खुल कर गिर पड़ीं। सैनिकों को पता नहीं था कि क्या हो रहा था।
\v 8 तब स्वर्गदूत ने उससे कहा, "अपना कमरबंद बाँध ले और अपनी जूतियाँ पहन ले!" अत: पतरस ने ऐसा किया। तब स्वर्गदूत ने उससे कहा, "अपना वस्त्र पहन और मेरे पीछे आ!"
\s5
\v 9 इसलिए पतरस ने अपने कपड़े और जूतियां पहन लीं और बंदीगृह की कोठरी से स्वर्गदूत के पीछे हो लिया, लेकिन उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि यह सब वास्तव में हो रहा था। उसने सोचा कि वह सपना देख रहा है।
\v 10 पतरस और स्वर्गदूत उन दो सैनिकों के पास से होकर निकल गए जो द्वारों की निगरानी कर रहे थे, लेकिन सैनिकों ने उन्हें नहीं देखा। तब वे उस लोहे के फाटक पर पहुँचे, जो शहर में प्रवेश कराता था। फाटक अपने आप ही खुल गया, और पतरस और स्वर्गदूत बंदीगृह से बाहर निकल गए। जब वे उस मार्ग पर कुछ दूर पहुँचे, तब स्वर्गदूत अचानक लोप हो गया।
\s5
\v 11 तब पतरस को समझ में आया कि उसके साथ जो कुछ हुआ वह एक दर्शन नहीं था, वह वास्तव में हुआ था। इसलिए उसने सोचा, "अब मुझे सच में पता है कि प्रभु परमेश्वर ने मेरी सहायता करने के लिए एक स्वर्गदूत भेजा था। उन्होंने मुझे हेरोदेस की योजना से यहूदी अगुवों की अपेक्षाओं से बचाया है।
\p
\v 12 जब पतरस को मालूम हुआ कि परमेश्वर ने उसे बचा लिया है, तो वह मरियम के घर गया। वह यूहन्ना की माँ थी, यूहन्ना का दूसरा नाम मरकुस था। कई विश्वासी वहाँ एकत्र होकर प्रार्थना कर रहे थे कि परमेश्वर किसी प्रकार से पतरस की सहायता करें।
\s5
\v 13 जब पतरस ने बाहरी प्रवेश द्वार पर दस्तक दी, रूदे नामक एक दासी देखने के लिये आई कि द्वार पर कौन है।
\v 14 जब पतरस ने उसे उत्तर दिया, तो उसने उसकी आवाज़ पहचान ली, परन्तु वह इतनी प्रसन्न और उत्साहित थी कि उसने द्वार नहीं खोला! वह फिर से घर में भाग गयी। उसने अन्य विश्वासियों को बताया कि पतरस द्वार पर खड़ा है।
\v 15 परन्तु उनमें से एक ने उससे कहा, "तू पागल है!" लेकिन वह लगातार कहती रही कि यह वास्तव में सच है। वे बार बार कहते रहे, "नहीं, वह पतरस नहीं हो सकता है। शायद यह उसका स्वर्गदूत है।"
\s5
\v 16 परन्तु पतरस द्वार पर लगातार दस्तक दे रहा था। इसलिए जब किसी ने द्वार खोल दिया, तो उन्होंने देखा कि यह पतरस ही था, और वे विस्मित थे!
\v 17 पतरस ने अपने हाथ के संकेत से उन्हें चुप कराया। फिर उसने उनको बताया कि प्रभु परमेश्वर ने उसे बंदीगृह से कैसे बाहर निकाला था। उसने यह भी कहा, "हमारे समूह के अगुवे याकूब, और हमारे दूसरे साथी विश्वासियों को बताओ कि क्या हुआ है।" तब पतरस निकल कर कहीं और चला गया।
\p
\s5
\v 18 अगली सुबह पतरस की निगरानी करने वाले सैनिक बहुत परेशान हो गए, क्योंकि वे नहीं जानते थे कि उसके साथ क्या हुआ था।
\v 19 फिर हेरोदेस ने इस बारे में सुना। इसलिए उसने सैनिकों को पतरस की खोज करने का आदेश दिया, लेकिन वे उसे ढूँढ़ नहीं पाए। फिर उसने उन सैनिकों से सवाल किया जो पतरस की निगरानी कर रहे थे, और उन्हें ले जाकर मार डालने का आदेश दिया। बाद में, हेरोदेस यहूदिया प्रांत से कैसरिया शहर चला गया, जहाँ वह कुछ समय तक रहा।
\p
\s5
\v 20 राजा हेरोदेस सोर और सीदोन के नगरों में रहनेवाले लोगों से बहुत क्रोधित था। फिर एक दिन उनका प्रतिनिधित्व करने वाले कुछ व्यक्ति कैसरिया शहर में एकत्र हुए ताकि हेरोदेस से मिलें। उन्होंने बलास्तुस को, जो हेरोदेस के महत्वपूर्ण अधिकारियों में से एक था, हेरोदेस को यह बताने के लिए राजी किया कि उनके शहर के लोग उसके साथ शान्ति स्थापित करना चाहते हैं। वे उन लोगों के साथ जिन पर हेरोदेस का शासन है व्यापार करना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें उन क्षेत्रों से भोजन खरीदने की आवश्यक्ता थी।
\v 21 जिस दिन हेरोदेस ने उनसे मिलने की योजना बनाई थी, उस दिन उसने बहुत महंगे कपड़ों को पहना था जो यह दिखाते थे कि वह राजा था। तब वह अपने सिंहासन पर बैठ गया वहाँ एकत्र हुए सब लोगों को औपचारिक रूप से सम्बोधित किया।
\s5
\v 22 जो लोग उसे सुन रहे थे बार-बार चिल्लाते हुए कहते हैं, "यह व्यक्ति जो बोल रहा है, यह कोई मनुष्य नहीं, एक देवता है!"
\v 23 क्योंकि हेरोदेस ने परमेश्वर की स्तुति करने की अपेक्षा अपनी प्रशंसा करने दी तो प्रभु परमेश्वर के भेजे एक स्वर्गदूत ने हेरोदेस को तुरन्त गंभीर रूप से बीमार कर दिया। उसकी अंतड़ियों को कीड़े खा गए, और वह बहुत पीड़ा से शीघ्र ही मर गया।
\p
\s5
\v 24 विश्वासी कई स्थानों में लोगों को परमेश्वर का संदेश सुनाते रहे, और यीशु पर विश्वास करने वालों की संख्या लगातार बढ़ती रही।
\p
\v 25 जब बरनबास और शाऊल ने यहूदिया प्रांत के यहूदी विश्वासियों की सहायता करने के लिए पैसे पहुँचा दिये, तो वे यरूशलेम छोड़कर सीरिया प्रांत के अन्ताकिया शहर में लौट आए। वे यूहन्ना को, जिसका दूसरा नाम मरकुस था, अपने साथ ले गए।
\s5
\c 13
\p
\v 1 सीरिया प्रांत के अन्ताकिया शहर में विश्वासियों के समूह में भविष्यद्वक्ता और यीशु के बारे में सिखाने वाले लोग थे। वहाँ बरनबास; शमौन, जिसे नीगर भी कहा जाता था; लूकियुस, जो कुरेने से था; मनाहेम, जो राजा हेरोदेस अन्तिपास के साथ बड़ा हुआ था; और शाऊल थे।
\v 2 जब वे प्रभु की आराधना कर रहे थे और उपवास कर रहे थे, तो पवित्र आत्मा ने उनसे कहा, "बरनबास और शाऊल को मेरी सेवा करने के लिए अलग करो और जिस काम को करने के लिए मैंने उनको चुना है, उन्हें जाकर उस काम को करने दो।"
\v 3 इसलिए वे उपवास और प्रार्थना करते रहे। तब उन्होंने बरनबास और शाऊल पर हाथ रखकर प्रार्थना की कि परमेश्वर उनकी सहायता करें। तब उन्होंने उनको उस काम को करने के लिए भेज दिया जिसका आदेश पवित्र आत्मा ने दिया था।
\p
\s5
\v 4 पवित्र आत्मा ने बरनबास और शाऊल को निर्देश दिया कि वे कहाँ जाएँ। इसलिए वे समुद्र के मार्ग से होकर अन्ताकिया से नीचे सिलूकिया शहर में चले गए। वहाँ से वे जहाज से साइप्रस द्वीप पर सलमीस शहर में गए।
\v 5 जब वे सलमीस में थे, तो वे यहूदियों के सभा करने के स्थान में गए। वहाँ उन्होंने यीशु के बारे में परमेश्वर के संदेश का प्रचार किया। यूहन्ना मरकुस उनके साथ गया था और उनकी सहायता कर रहा था।
\p
\s5
\v 6 वे तीनों जन उस पूरे द्वीप से होते हुए पाफुस शहर चले गए। वहाँ उनकी मुलाकात एक जादूगर से हुई, जिसका नाम बार-यीशु था। वह एक यहूदी था जिसने झूठा दावा किया था कि वह एक भविष्यद्वक्ता है।
\v 7 वह उस द्वीप के राज्यपाल सिरगियुस पौलुस के साथ था, जो एक बुद्धिमान व्यक्ति था। राज्यपाल ने किसी को भेजा कि वह बरनबास और शाऊल को उसके पास आने के लिए कहे, क्योंकि वह परमेश्वर का वचन सुनना चाहता था।
\v 8 परन्तु जादूगर ने, जिसके नाम का अनुवाद यूनानी भाषा में एलीमास है, उन्हें रोकने का प्रयास किया। उसने बार-बार राज्यपाल को मनाने का प्रयास किया कि वह यीशु पर विश्वास न करे।
\s5
\v 9 तब शाऊल ने, जो अब स्वयं को पौलुस कहता है, पवित्र आत्मा द्वारा सशक्त होकर, जादूगर को ध्यान से देखा और कहा,
\v 10 "तू शैतान की सेवा कर रहा है, और तू सब कुछ जो अच्छा है उसे रोकने का प्रयास करता है! तू हमेशा लोगों से झूठ बोलता है और उनके साथ बुरे काम कर रहा है। तुझे यह कहना बंद कर देना चाहिए कि प्रभु परमेश्वर के बारे में यह सच्चाई झूठी है!
\s5
\v 11 प्रभु परमेश्वर तुझे इसी समय दण्ड देने जा रहे हैं! तू अंधा हो जाएगा और थोड़ी देर के लिए तू सूर्य को नहीं देख पाएगा।" उसी क्षण वह अंधा हो गया, जैसे कि वह गहरी धुंध में हो, और वह इधर उधर टटोल कर किसी को ढूँढ़ने लगा कि कोई उसके हाथ को पकड़ ले और उसे ले चले।
\v 12 जब राज्यपाल ने इलीमास के साथ हुई इस घटना को देखा, तो उसने यीशु पर विश्वास किया। वह उन बातों से चकित था जो पौलुस और बरनबास प्रभु यीशु के बारे में सिखा रहे थे।
\p
\s5
\v 13 उसके बाद, पौलुस और उसके साथी पाफुस से चल कर जहाज द्वारा पम्फूलिया प्रांत में पिरगा शहर में पहुँचे। पिरगा में यूहन्ना मरकुस ने उन्हें छोड़ दिया और यरूशलेम में अपने घर लौट गया।
\v 14 तब पौलुस और बरनबास ने पिरगा से थल मार्ग से यात्रा की और गलातिया प्रांत के पिसिदिया जिले के अन्ताकिया शहर में पहुँचे। सब्त के दिन वे आराधनालय में गए और जाकर बैठ गए।
\v 15 किसी ने ऊँची आवाज में व्यवस्था की पुस्तक में से पढ़ा, जो मूसा ने लिखा था। अगला कोई भविष्यद्वक्ताओं द्वारा लिखी गई बातों से पढ़ता है। तब यहूदी सभा स्थल के अगुवों ने पौलुस और बरनबास को एक संदेश भेजा: "साथी यहूदियों, यदि तुम दोनों में से कोई यहाँ लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ कहना चाहता है, तो कृपया अभी कहो और हमें सुनाओ।
\p
\s5
\v 16 तब पौलुस उठ खड़ा हुआ और हाथ से संकेत दिया कि लोग उसे सुनें। तब उसने कहा, "हे साथी इस्राएलियों और तुम गैर-यहूदी लोग भी जो परमेश्वर की आराधना करते हो, कृपया मेरी बात सुनो!
\v 17 परमेश्वर, जिनकी हम इस्राएली आराधना करते हैं, उन्होंने हमारे पूर्वजों को उनके अपने लोग होने के लिये चुना, और जब वे मिस्र में परदेशी होकर रह रहे थे तब उन्हें संख्या में बहुत अधिक बढ़ा दिया। फिर परमेश्वर ने उन्हें दासत्व से निकालने के लिए शक्तिशाली कामों को किया।
\v 18 यद्यपि उन्होंने बार-बार उनकी आज्ञाओं का उल्लंघन किया, फिर भी वह लगभग 40 वर्ष तक मरुभूमि में उनके व्यवहार को सहन करते रहे।
\s5
\v 19 उन्होंने इस्राएलियों का समर्थ किया कि वे कनान देश में रहने वाली सात जातियों पर विजयी हो, और उन्होंने उनका देश सदा के लिए इस्राएलियों को दे दिया।
\v 20 उनके पूर्वजों के मिस्र जाने के करीब 450 साल बाद ये सब बातें घटित हुईं।
\p "इसके बाद, इस्राएली लोगों पर शासन करने के लिए परमेश्वर ने उन्ही लोगों में से न्यायियों और अगुवों को सेवा करने के लिए चुना। वे अगुवे हमारे लोगों पर शासन करते रहे। शमूएल भविष्यद्वक्ता उन पर शासन करने वाला अंतिम न्यायी था।
\s5
\v 21 तब, जबकि शमूएल अभी भी उनका अगुवा था, लोगों ने माँग की कि वह उन पर शासन करने के लिए एक राजा चुने। इसलिए परमेश्वर ने बिन्यामीन गोत्र के लोगों में से कीश के पुत्र शाऊल को उनका राजा होने के लिए चुना। उसने उन पर चालीस वर्ष तक शासन किया।
\v 22 शाऊल से राज्य ले लेने के बाद परमेश्वर ने दाऊद को उनका राजा बना दिया। परमेश्वर ने उसके बारे में कहा, "मैंने देखा है कि यिशै का पुत्र दाऊद, ठीक वही व्यक्ति है जो वही इच्छा रखता है जो मैं इच्छा रखता हूँ। वह सब कुछ वैसा ही करता है जैसा मैं उससे करवाना चाहता हूँ।''
\p
\s5
\v 23 "दाऊद के वंशजों में से, परमेश्वर ने एक व्यक्ति यीशु को, हम इस्राएलियों को बचाने के लिए भेजा, जिसकी प्रतिज्ञा दाऊद और हमारे अन्य पूर्वजों ने की थी।
\v 24 यीशु द्वारा अपना काम शुरू करने से पहले, यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने उसके पास आने वाले सब इस्राएली लोगों को प्रचार किया। उसने उनसे कहा कि वे अपने पापी व्यवहार से दूर होकर परमेश्वर से कहें कि वह उन्हें क्षमा कर दें। तब वह उन्हें बपतिस्मा देगा।
\v 25 जब यूहन्ना उस काम को पूरा करने वाला था जो परमेश्वर ने उसे दिया था, तो वह कह रहा था, 'क्या तुम सोचते हो कि मैं मसीह हूँ जिसे भेजने की प्रतिज्ञा परमेश्वर ने की है? नहीं, मैं वह नहीं हूँ। परन्तु सुनो! मसीह शीघ्र ही आएँगे। वह इतने महान है कि मैं उनके पैरों से जूतियाँ उतारने के भी योग्य नहीं हूँ।"
\p
\s5
\v 26 "हे प्रिय भाइयों, और तुम सब जो अब्राहम की सन्तान हो, और तुम्हारे बीच में से जो गैर-यहूदी लोग भी परमेश्वर की आराधना करते हैं, कृपया सुनो! यह हम सब के लिए है कि परमेश्वर ने संदेश भेजा कि वह लोगों को कैसे बचाते हैं।
\v 27 यरूशलेम में रहने वाले लोगों ने और उनके शासकों ने यीशु को नहीं पहचाना। वे अपने स्वयं के भविष्यद्वक्ताओं के सन्देशों को नहीं समझ पाए थे, भले ही भविष्यद्वक्ताओं को हर सब्त के दिन ऊँचे स्वर में पढ़ा, और फिर भविष्यद्वक्ताओं ने बहुत पहले ही जो भविष्यद्वाणी की थी वह सत्य सिद्ध हुई जब उन्होंने यीशु को मृत्युदंड का दोषी ठहराया।
\s5
\v 28 कई लोगों ने यीशु पर दुष्टता के कामों को करने का आरोप लगाया, परन्तु भले ही वह यह सिद्ध नहीं कर सके कि उन्होंने मृत्युदंड का दोषी होने के लिए कुछ किया, उन्होंने पिलातुस राज्यपाल से कहा कि वह यीशु को मृत्युदंड दे।
\v 29 उन्होंने यीशु के साथ वही सब किया, जो भविष्यद्वक्ताओं ने बहुत पहले लिखा था कि लोग उनके साथ क्या-क्या करेंगे। उन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ा कर मार डाला। फिर उनके शरीर को क्रूस पर से उतारा गया और एक कब्र में रखा गया।
\s5
\v 30 परन्तु, परमेश्वर ने उन्हें मरे हुओं में से जी उठाया।
\v 31 वह कई दिन तक अपने अनुयायियों के सामने बार-बार प्रगट हुए जो उनके साथ गलील से यरूशलेम तक आए थे। जिन लोगों ने उन्हें देखा था वह अब उनके बारे में लोगों को बता रहे हैं।"
\p
\s5
\v 32 "अब हम तुमको यह अच्छा संदेश सुना रहे हैं। हम तुमको यह बताना चाहते हैं कि परमेश्वर ने हमारे यहूदी पूर्वजों को जो प्रतिज्ञा दी थी, उसे पूरा कर दिया है!
\v 33 अब उन्होंने हमारे लिए जो उनके वंशज हैं और तुम गैर-यहूदियों के लिए भी यीशु को फिर से जीवित करके यह किया है। यह ठीक वैसा ही है जैसा दाऊद ने दूसरे भजन में लिखा था, जब परमेश्वर अपने पुत्र को भेजने के बारे में कह रहे थे, 'तुम मेरे पुत्र हो, आज मैं तुम्हारा पिता बन गया हूँ।
\p
\v 34 परमेश्वर ने मसीह को मरे हुओं में से जी उठाया है और उन्हें कभी मरने नहीं देंगे। परमेश्वर ने हमारे यहूदी पूर्वजों से कहा, 'मैं निश्चय ही तुम्हारी सहायता करूँगा, जैसी मैंने दाऊद से करने की प्रतिज्ञा की थी।'
\s5
\v 35 दाऊद के एक अन्य भजन में भी वह मसीह के बारे में कहता है: 'तू अपने पवित्र जन के शरीर को सड़ने नहीं देगा।'
\v 36 दाऊद ने जीवित रहते हुए वही किया जो परमेश्वर उससे करवाना चाहते थे। और जब वह मर गया तो उसके शरीर को दफन कर दिया गया, जैसे उसके पूर्वजों के शवों को दफन कर दिया गया था, और उसका शरीर सड़ गया। अतः वह इस भजन में स्वयं के बारे में नहीं कह सकता था।
\v 37 परन्तु वह यीशु ही थे जिन्हें प्रभु परमेश्वर ने मरे हुओं में से जीवित किया था, और उनका शरीर सड़ने नहीं पाया।
\p
\s5
\v 38 "इसलिए, मेरे साथी इस्राएलियों और अन्य मित्रों, यह जानना तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण है कि यीशु ने जो किया है इसके कारण परमेश्वर तुम्हारे पापों के लिए तुमको क्षमा कर सकते हैं। वह उन कामों के लिए भी तुमको क्षमा कर देंगे जिनके लिये तुमको मूसा द्वारा लिखे गए कानूनों के अनुसार क्षमा नहीं किया जा सकता।
\v 39 वे सब जो यीशु पर विश्वास करते हैं, वे उन किये गए कामों के दोषी नहीं रह जाते हैं, जिनसे उन्होंने परमेश्वर को क्रोधित किया है।
\s5
\v 40 इसलिये अब सावधान रहो कि परमेश्वर तुम्हारा न्याय नहीं करें, जैसा कि भविष्यद्वक्ताओं ने कहा था कि परमेश्वर करेंगे!
\v 41 एक भविष्यद्वक्ता ने लिखा है कि परमेश्वर ने कहा: 'तुम जो मेरा उपहास करते हो, जब तुम देखोगे कि मैं क्या कर रहा हूँ, तो तुम निश्चय ही अचम्भित होओगे, और तब तुम नष्ट हो जाओगे। तुम अचम्भित हो जाओगे क्योंकि मैं तुम्हारे जीवित रहते तुम्हारे लिए एक भयानक काम करूँगा। कोई तुमको बताए तौभी तुम विश्वास नहीं करोगे कि मैं ऐसा करूँगा।''
\p
\s5
\v 42 पौलुस अपनी बात समाप्त करने के बाद जब जा रहा था, तब बहुत से लोगों ने उससे कहा कि वे अगले सब्त के दिन फिर से आए और उन्हें इन बातों को एक बार और सुनाए।
\v 43 जब सभा समाप्त हो गई तो उनमें से कई लोगों ने पौलुस और बरनबास का अनुसरण किया। ये लोग यहूदी और गैर-यहूदी दोनों थे, जो परमेश्वर की आराधना करते थे। पौलुस और बरनबास उनसे बातें करते रहे, और उनसे लगातार आग्रह करते रहे कि यीशु ने जो किया था उसके कारण परमेश्वर लोगों के पापों को क्षमा करते हैं, वे इस पर विश्वास करें।
\p
\s5
\v 44 अगले सब्त के दिन, अन्ताकिया के अधिकांश लोग यहूदियों के सभा के स्थान में आए कि पौलुस और बरनबास से प्रभु यीशु के बारे में सुनें।
\v 45 परन्तु यहूदियों ने देखा कि पौलुस और बरनबास को सुनने के लिए बड़ी भीड़ आ रही है तो ईर्ष्या से भर गए। अतः उन्होंने पौलुस द्वारा कही गई बातों का खण्डन किया और उसका अपमान करना आरम्भ कर दिया।
\s5
\v 46 तब, बहुत साहसपूर्वक बोलते हुए, पौलुस और बरनबास ने उन यहूदियों के अगुवों से कहा, "हमें यीशु के बारे में परमेश्वर के संदेश को पहले तुम यहूदियों को देना था इससे पहले कि हम इसे गैर-यहूदियों में प्रचार करें, क्योंकि परमेश्वर ने हमें ऐसा करने के लिए आज्ञा दी है। परन्तु तुम परमेश्वर के संदेश को अस्वीकार कर रहे हो। ऐसा करके, तुमने दिखाया है कि तुम अनन्त जीवन के योग्य नहीं हो। इसलिए, हम तुमको छोड़ रहे हैं, और अब हम परमेश्वर का संदेश सुनाने के लिए गैर-यहूदी लोगों में जाएँगे।
\v 47 हम यह इसलिए कर रहे हैं कि प्रभु परमेश्वर ने हमें इसकी आज्ञा दी है। उन्होंने शास्त्रों में कहा है, 'मैंने तुम्हें उन गैर-यहूदी लोगों पर मेरी बातों को प्रगट करने के लिए चुना है जो उनके लिये प्रकाश के समान होगी। मैंने तुम्हें संसार में हर स्थान के लोगों को यह संदेश सुनाने के लिए चुना है क्योंकि मैं उन्हें बचाना चाहता हूँ।'
\p
\s5
\v 48 जब गैर-यहूदी लोगों ने इन शब्दों को सुना, तो वे आनन्दित हो गए और उन्होंने यीशु के बारे में उस संदेश के लिए परमेश्वर की स्तुति की। सब गैर-यहूदी लोगों ने, जिनको परमेश्वर ने अनन्त जीवन के लिए चुना था, प्रभु यीशु के बारे में संदेश पर विश्वास किया।
\v 49 उस समय, कई विश्वासियों ने उस क्षेत्र में चारों ओर घूमते हुए, जहाँ भी वे गए, हर स्थान में प्रभु यीशु के बारे में संदेश को सुनाया।
\p
\s5
\v 50 परन्तु, यहूदियों के कुछ अगुवों ने उनके साथ आराधना करने वाली कुछ महत्वपूर्ण स्त्रियों से बात की, साथ ही उनसे भी बात की जो शहर में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति भी थे। उन्होंने उनको पौलुस और बरनबास को रोकने का प्रयास करने के लिए प्रेरित किया। इसलिये उन गैर-यहूदी लोगों ने बहुत से लोगों को पौलुस और बरनबास के विरुद्ध उकसाया, और उन्हें अपने क्षेत्र से निकाल दिए।
\v 51 जब वे दोनों प्रेरित जा रहे थे तो उन्होंने उन अगुवों को यह दिखाने के लिए अपने पैरों से धूल को झाड़ दिया कि परमेश्वर ने उन्हें अस्वीकार कर दिया है और वह उन्हें दण्ड देंगे। तब उन्होंने अन्ताकिया शहर छोड़ दिया और इकुनियुम के नगर में गए।
\v 52 इस बीच में विश्वासी आनंद से और पवित्र आत्मा की शक्ति से भरते गये।
\s5
\c 14
\p
\v 1 इकुनियुम में पौलुस और बरनबास पहले के समान यहूदी सभा के स्थान में गए और प्रभु यीशु के बारे में बड़े शक्तिशाली रूप से बात की। परिणामस्वरूप, कई यहूदियों और गैर-यहूदियों ने यीशु पर विश्वास किया।
\v 2 परन्तु कुछ यहूदियों ने उस संदेश पर विश्वास करने से मना कर दिया। उन्होंने गैर-यहूदियों से कहा कि इस पर विश्वास न करें; उन्होंने कुछ गैर-यहूदियों को विश्वासियों के विरुद्ध क्रोध दिलाया।
\s5
\v 3 अतः पौलुस और बरनबास ने वहाँ प्रभु के लिए साहसपूर्वक बोलते हुए बहुत समय बिताया, और प्रभु यीशु ने उन्हें कई चमत्कार करने में सक्षम बनाया। इस प्रकार उन्होंने लोगों को संदेश की सच्चाई दिखायी कि, परमेश्वर हमें बचाते हैं हालाँकि हम इस योग्य नहीं हैं।
\p
\v 4 इकुनियुम में रहने वाले लोग दो अलग-अलग विचार रखते थे। कुछ यहूदियों के साथ सहमत थे। दूसरों ने प्रेरितों के साथ सहमति व्यक्त की।
\s5
\v 5 तब गैर-यहूदी लोगों और यहूदियों ने जिन्होंने पौलुस और बरनबास का विरोध किया था अपने बीच में इस बारे में बात की कि वे पौलुस और बरनबास को कैसे सता सकते थे। उस शहर के कुछ महत्वपूर्ण लोग उनकी सहायता करने के लिए सहमत हो गये। एक साथ मिल कर, उन्होंने निर्णय लिया कि वे पौलुस और बरनबास पर पत्थर फेंक कर उनको मार देंगे।
\v 6 परन्तु पौलुस और बरनबास ने उनकी योजना के बारे में सुना, इसलिए वे शीघ्र ही लुकाउनिया जिले को चले गए। वे उस जिले में लुस्त्रा और दिरबे के शहरों में और आस-पास के क्षेत्र में गए।
\v 7 जब वे उस क्षेत्र में थे, तो उन्होंने लगातार लोगों को प्रभु यीशु के बारे में संदेश सुनाया।
\p
\s5
\v 8 लुस्त्रा में, वहाँ एक व्यक्ति बैठा था जो पैरों से अपंग था। जब उसकी मां ने उसे जन्म दिया, तब से वह पैरों से अपंग था, इसलिए वह कभी भी चलने में सक्षम नहीं था।
\v 9 जब पौलुस प्रभु यीशु के बारे में बात कर रहा था तो उसने सुना। पौलुस ने सीधे उसकी ओर ध्यान से देखा और वह उस व्यक्ति के चेहरे पर देख सकता था कि उसे विश्वास है कि प्रभु यीशु उसे ठीक कर सकते हैं।
\v 10 तो एक जोर की आवाज के साथ, पौलुस ने उससे कहा, "खड़ा हो जा!" जब उस व्यक्ति ने यह सुना, वह तुरंत उछल पड़ा और इधर-उधर चलने लगा।
\p
\s5
\v 11 जब भीड़ ने इस काम को देखा जो पौलुस ने किया था, तो उन्होंने सोचा कि पौलुस और बरनबास वही देवता थे जिनकी वे आराधना करते थे। इसलिए वे उत्साहपूर्वक अपनी लुकाउनिया भाषा में चिल्लाए, "देखो! देवता स्वयं मनुष्य के रूप में हमारी सहायता करने के लिए आसमान से उतर आए है!"
\v 12 वे यह कहने लगे कि हो सकता है बरनबास मुख्य देवता ज्यूस हो। और वे कहने लगे कि पौलुस देवताओं का दूत हिर्मेस है। उन्होंने ऐसा इसलिये सोचा क्योंकि पौलुस ही अधिकतर बोला करता था।
\v 13 शहर के द्वार के एकदम बाहर एक आराधनालय था जहाँ लोग ज्यूस की आराधना करते थे। वहाँ के याजक ने जब सुना कि पौलुस और बरनबास ने क्या किया था, तो वह शहर के द्वार पर आया, जहाँ पहले से बहुत से लोग एकत्र हुए थे। वह गले में फूलों की मालाएँ पहने हुए दो बैल लाया। याजक और लोगों की भीड़ पौलुस और बरनबास की आराधना करने के लिए विधि पूर्वक बैलों को मारना चाहते थे।
\s5
\v 14 परन्तु जब प्रेरित बरनबास और प्रेरित पौलुस ने यह सुना, तो वे बहुत परेशान हुए, इसलिए उन्होंने अपने कपड़े फाड़ डाले। वे दौड़ कर लोगों के बीच पहुँचे और चिल्लाने लगे,
\v 15 "हे पुरुषों, तुम्हें हमारी आराधना करने के लिए उन बैलों को नहीं मारना चाहिए! हम देवता नहीं हैं! हम तुम्हारे समान भावनाओं वाले मनुष्य हैं! हम तुम्हें सुसमाचार सुनाने आए हैं! हम तुमको परमेश्वर के बारे में बताने के लिए आए हैं जो सर्व-शक्तिमान हैं। वे चाहते हैं कि तुम अन्य देवताओं की आराधना करना बंद कर दो, क्योंकि वो तुम्हारी सहायता नहीं कर सकते हैं। उन सच्चे परमेश्वर ने ही आकाश, पृथ्वी, महासागरों और उनमें की सभी चीजों को बनाया है।
\v 16 पहले के समय में, तुम सभी गैर-यहूदी लोग जिस किसी भी देवता की पूजा करना चाहते थे तुमने उसकी पूजा की है। परमेश्वर ने तुमको उनकी पूजा करने दिया, क्योंकि तुम परमेश्वर को नहीं जानते थे।
\s5
\v 17 लेकिन उन्होंने हमें दिखाया है कि वे हम पर दया करते है। वही है जो वर्षा होने देते हैं और फसलों का विकास करते हैं। वही है जो तुमको भरपूर भोजन देते हैं, और तुम्हारे मन को आनन्द से भरते हैं।"
\v 18 जो पौलुस ने कहा उसे लोगों ने सुना, लेकिन वे अभी भी यह सोचते थे कि उनको पौलुस और बरनबास की आराधना करने के लिये बैलों को बलि करना चाहिए। परन्तु अंत में, लोगों ने ऐसा न करने का निर्णय लिया।
\p
\s5
\v 19 परन्तु, कुछ यहूदी अन्ताकिया और इकुनियुम से आए और उन्होंने लुस्त्रा के कई लोगों को बहका दिया कि जो संदेश पौलुस कह रहा था वह सच नहीं है। जिन लोगों ने उन यहूदियों की कही हुई बातों पर विश्वास किया वे पौलुस से क्रोधित हो गए। उन्होंने यहूदियों को उस पर तब तक पत्थर फेंकने दिया जब तक कि वह बेहोश होकर गिर नहीं गया। उन सभी ने सोचा कि वह मर गया है, इसलिए वे उसे घसीट कर शहर के बाहर ले गए और उसे वहाँ पड़ा हुआ छोड़ दिया।
\v 20 परन्तु लुस्त्रा के कुछ विश्वासी आए और पौलुस के चारों ओर खड़े हो गए, जहाँ वह भूमि पर पड़ा हुआ था। और पौलुस को होश आ गया! वह खड़ा हुआ और विश्वासियों के साथ शहर में वापस चला गया।
\p अगले दिन, पौलुस और बरनबास लुस्त्रा शहर छोड़ कर दिरबे शहर चले गए।
\s5
\v 21 वे वहाँ कई दिनों तक रहे, और वे लोगों को यीशु के बारे में सुसमाचार सुनाते रहे। बहुत से लोग विश्वासी बन गए। उसके बाद, पौलुस और बरनबास अपने मार्ग पर चल दिये। वे फिर से लुस्त्रा में गए। तब वे वहाँ से इकुनियुम गए, और तब वे पिसिदिया प्रांत के अन्ताकिया शहर में गए।
\v 22 प्रत्येक जगह, उन्होंने विश्वासियों से प्रभु यीशु पर भरोसा बनाए रखने का आग्रह किया। उन्होंने विश्वासियों से कहा, "इससे पूर्व कि परमेश्वर सदा के लिए हमारे ऊपर शासन करें, हमें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।"
\s5
\v 23 पौलुस और बरनबास ने प्रत्येक मण्डली के लिए अगुवों को चुना। इससे पहले कि पौलुस और बरनबास ने हर जगह को छोड़ा, उन्होंने विश्वासियों को एकत्र किया और प्रार्थना और उपवास करने में कुछ समय बिताया। तब पौलुस और बरनबास ने उन अगुवों और अन्य विश्वासियों को प्रभु यीशु को सौंप दिया, जिस पर उन्हें विश्वास था, कि वह उनकी देखभाल करे।
\p
\v 24 पौलुस और बरनबास पिसिदिया जिले के माध्यम से यात्रा करने के बाद, दक्षिण की ओर पम्फूलिया जिले में गए।
\v 25 उस जिले में, वे पिरगा शहर में पहुँचे और वहाँ के लोगों को प्रभु यीशु के बारे में परमेश्वर का संदेश सुनाया। तब वे अत्तलिया शहर के समुद्रतट पर उतरे।
\v 26 वे वहाँ से एक जहाज पर चढ़ गए और सीरिया प्रांत के अन्ताकिया शहर लौट आए। यही वह स्थान था जहाँ पौलुस और बरनबास को अन्य स्थानों में जाकर प्रचार करने के लिए चुना गया था, और जहाँ विश्वासियों ने परमेश्वर से कहा था कि वह पौलुस और बरनबास की उस काम में सहायता करे जो अब उन्होंने पूरा कर दिया है।
\s5
\v 27 जब वे अन्ताकिया शहर में पहुँचे तो उन्होंने विश्वासियों को एक साथ बुलाया। तब पौलुस और बरनबास ने उनको वह सब बताया जिसको करने में परमेश्वर ने उनकी सहायता की थी। विशेष रूप से, उन्होंने उन्हें बताया कि परमेश्वर ने कितने गैर-यहूदी लोगों को यीशु पर विश्वास करने योग्य बनाया था।
\v 28 तब पौलुस और बरनबास अन्ताकिया में दूसरे विश्वासियों के साथ लम्बे समय तक रहे।
\s5
\c 15
\p
\v 1 फिर कुछ यहूदी विश्वासी यहूदिया प्रांत से अन्ताकिया गए। वे वहाँ गैर-यहूदी विश्वासियों को यह कहकर शिक्षा देने लगे, "तुम परमेश्वर के हो यह दिखाने के लिए तुम्हें खतना करवाना चाहिए, जैसा कि मूसा ने परमेश्वर द्वारा दी गयी व्यवस्था में आज्ञा दी है। यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, तो तुम बचाए नहीं जाओगे।"
\v 2 पौलुस और बरनबास दृढ़तापूर्वक उन यहूदियों से असहमत थे और उन्होंने उनके साथ विवाद करना आरम्भ कर दिया। इसलिए अन्ताकिया के विश्वासियों ने पौलुस और बरनबास और कुछ अन्य विश्वासियों को यरूशलेम जाने के लिए नियुक्त किया, ताकि वे इस विषय में प्रेरितों और अन्य अगुवों के साथ विचार कर सकें।
\p
\s5
\v 3 पौलुस, बरनबास और अन्य लोगों को अन्ताकिया के विश्वासियों द्वारा उनके मार्ग पर भेज दिये जाने के बाद, उन्होंने फीनीके और सामरिया के प्रान्तों से होकर यात्रा की। जब वे रास्ते में अलग-अलग जगहों पर रुके, तो उन्होंने विश्वासियों को यह जानकारी दी कि बहुत से गैर-यहूदी विश्वासी बन गए है। इस कारण, उन स्थानों के सब विश्वासियों ने बहुत आनन्द किया।
\v 4 जब पौलुस, बरनबास और अन्य लोग यरूशलेम में पहुँचे, तो प्रेरितों, अन्य प्राचीनों और उनके समूह के अन्य विश्वासियों ने उनका स्वागत किया। तब पौलुस और बरनबास ने उन बातों की सूचना दी जिन्हें परमेश्वर ने उन्हें गैर-यहूदी लोगों के बीच करने में सफल बनाया था।
\p
\s5
\v 5 परन्तु फरीसी सम्प्रदाय के कुछ यहूदी विश्वासियों ने अन्य विश्वासियों के बीच खड़े होकर उनसे कहा, "जिन गैर-यहूदियों ने यीशु पर विश्वास किया है, उन्हें खतना करवाना चाहिए, और जिन नियमों को परमेश्वर ने मूसा को दिया उन्हें उनका पालन करने के लिए कहा जाना चाहिए।"
\p
\v 6 तब इस विषय पर बात करने के लिए सब प्रेरित और प्राचीन एक साथ मिले।
\s5
\v 7 उन्होंने एक लम्बे समय तक इस पर चर्चा की, इसके बाद पतरस ने उठकर उनसे बात की। उसने कहा, "हे भाइयों, तुम सब जानते हो कि बहुत समय पहले परमेश्वर ने तुम अन्य प्रेरितों के बीच में से मुझे चुना ताकि मैं गैर-यहूदी लोगों को परमेश्वर के प्रेम के बारे में बताऊँ, कि वे उस पर विश्वास करें।
\v 8 परमेश्वर सब के मन को जानते हैं। उन्होंने गैर-यहूदियों को पवित्र आत्मा देकर, मुझे और दूसरों को भी यह दिखाया कि उन्होंने उन्हें अपने लोग होने के लिए स्वीकार किया है, जैसे उन्होंने हमारे लिए भी किया है।
\v 9 परमेश्वर ने हमारे और उनके बीच कोई अंतर नहीं किया, क्योंकि उन्होंने उन्हें प्रभु यीशु पर विश्वास करने के कारण उन्हें भीतर से शुद्ध कर दिया है। ठीक उसी प्रकार उन्होंने हमें भी क्षमा किया है।
\s5
\v 10 तुम क्यों गैर-यहूदी विश्वासियों को हमारी यहूदी परम्पराओं और नियमों का पालन करने के लिए विवश करना चाहते हो? ऐसा करना उन पर भारी बोझ डालने के समान है, क्योंकि यह उन्हें उन नियमों का पालन करने के लिए विवश करता है, जिनको हमारे पूर्वजों ने भी तोड़ा और जिनका आज भी हम यहूदी पालन करने में असमर्थ हैं! तो फिर, ऐसा करके परमेश्वर को क्रोधित करना बंद करो!
\v 11 हम जानते हैं कि प्रभु यीशु ने हमारे लिए जो किया था उसी कारण से परमेश्वर हम यहूदियों को हमारे पापों से बचाते हैं। परमेश्वर हम यहूदियों को ठीक उसी प्रकार से बचाते हैं जैसे वह उन गैर-यहूदियों को बचाते हैं जो प्रभु यीशु पर विश्वास करते हैं।"
\p
\s5
\v 12 पतरस के बोलने के बाद वहाँ उपस्थित सब लोग चुप हो गए। तब उन सब ने बरनबास और पौलुस की बात सुनी, क्योंकि उन दोनों ने कई महान चमत्कारों के बारे में बताया था जिनको परमेश्वर ने उन्हें गैर-यहूदी लोगों के बीच करने में सक्षम बनाया था, उन चमत्कारों ने दिखाया था कि परमेश्वर ने गैर-यहूदियों को स्वीकार कर लिया है।
\p
\s5
\v 13 जब बरनबास और पौलुस ने बोलना समाप्त कर दिया, तब यरूशलेम में विश्वासियों के समूह के अगुवे याकूब ने उनसे बात की। उसने कहा, "हे साथी विश्वासियों, मेरी बात सुनो।
\v 14 शमौन पतरस ने तुमको बताया है कि कैसे परमेश्वर ने गैर-यहूदियों को पहले आशीष दी थी। परमेश्वर ने उन में से कुछ लोगों को अपना होने के लिए चुनकर ऐसा किया है।
\s5
\v 15 जिन वचनों को परमेश्वर ने बहुत पहले कहा था और भविष्यद्वक्ताओं में से एक के द्वारा लिखे गए थे, इस बात से सहमत हैं:
\v 16 बाद में मैं वापस आऊँगा और मैं दाऊद के वंशजों में से एक राजा चुनूँगा। यह एक ऐसे व्यक्ति के समान होगा जो टूटने के बाद फिर से घर को बनाता है।
\v 17 मैं ऐसा इसलिए करूँगा कि सब अन्य लोग मुझे, प्रभु परमेश्वर को जान सकें। इसमें उन गैर-इस्राएली लोगों को भी सहभागी किया जाएगा जिनको मैंने अपना होने के लिये बुलाया तुम्हें निश्चय हो कि ऐसा ही होगा क्योंकि मैंने, यहोवा परमेश्वर ने, ये वचन कहे हैं।
\v 18 मैंने इन कामों को किया है, और मैंने अपने लोगों को बहुत पहले से उनके बारे में बताया है।"
\p
\s5
\v 19 याकूब बात करना जारी रखता है। उसने कहा, "इसलिए मुझे लगता है कि हमें उन गैर-यहूदी लोगों को परेशान करना बंद कर देना चाहिए जो अपने पापों से दूर होकर परमेश्वर की ओर मुड़ रहे हैं। इसी कारण से, हमें यह माँग करना बंद कर देना चाहिए कि उनको हमारे सभी नियमों और परम्पराओं का पालन करना है।
\v 20 इसकी अपेक्षा, हमें उनको केवल चार बातों को मानने की आज्ञा देनी है, और उसके विषय एक पत्र लिखना चाहिए: उन्हें वह माँस नहीं खाना चाहिए, जो लोगों ने मूर्तियों को चढ़ाया है; उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति के साथ यौन संबंध नहीं बनाने चाहिए, जिससे उन्होंने शादी नहीं की है; उन्हें गला घोंट कर मारे गए जानवरों का माँस नहीं खाना चाहिए; और उन्हें जानवरों के लहू को नहीं खाना चाहिए।
\v 21 कई शहरों में, लोगों ने बहुत लम्बे समय से उन नियमों का प्रचार किया है जिनको मूसा ने लिखा था, वे नियम जो उन बातों पर प्रतिबंध लगाते हैं। और प्रत्येक सब्त पर उन नियमों को यहूदी सभा स्थलों में पढ़ा जाता है। इसलिए अगर गैर-यहूदी उन नियमों के बारे में अधिक जानकारी पाना चाहते हैं, तो वे हमारे आराधना स्थलों में पा सकते हैं। "
\p
\s5
\v 22 प्रेरितों और अन्य प्राचीनों और यरूशलेम के अन्य सभी विश्वासियों ने, याकूब की बात को स्वीकार किया। तब उन्होंने निर्णय लिया कि उन्हें अपने बीच में से पुरुषों को चुनना चाहिए और उन्हें पौलुस और बरनबास के साथ अन्ताकिया भेजना चाहिए, ताकि वहाँ के विश्वासियों को यह पता चले कि यरूशलेम के अगुवों ने क्या निर्णय लिया था। इसलिए उन्होंने यहूदा को, जिसे बरसब्बास भी कहा जाता था और सीलास को चुना। ये दोनों यरूशलेम में विश्वासियों के बीच अगुवे थे।
\v 23 फिर उन्होंने निम्नलिखित पत्र लिखा जिसे उन्होंने यहूदा और सीलास को अन्ताकिया में विश्वासियों के पास लेकर जाने के लिए कहा: "हम प्रेरित और प्राचीन जो तुम्हारे साथी विश्वासी हैं, अन्ताकिया में और सीरिया और किलिकिया के प्रांतों के अन्य स्थानों में रहने वाले, तुम गैर-यहूदी विश्वासियों को यह पत्र लिख कर अपनी शुभकामनाएँ भेजते हैं।
\s5
\v 24 लोगों ने हमें बताया है कि हमारे बीच में से कुछ लोग तुम्हारे पास गए, जबकि हमने उन्हें तुम्हारे पास नहीं भेजा था। हमने सुना है कि उन्होंने तुमको ऐसी बात बता कर परेशान किया है जो तुम्हारी सोच को भ्रमित कर रही है।
\v 25 इसलिये हम यहाँ एक साथ मिले, उसके बाद हमने कुछ लोगों को चुनने का फैसला किया और बरनबास और पौलुस के साथ, जिनसे हम बहुत प्रेम करते हैं, उन्हें तुम्हारे पास भेजा।
\v 26 वे दोनों अपने जीवन को खतरे में डालते हैं क्योंकि वे हमारे प्रभु यीशु मसीह की सेवा करते हैं।
\s5
\v 27 हमने तुम्हारे पास यहूदा और सीलास को भी भेजा है। वे तुमको उन्हीं बातों को बताएँगे जो हम पत्र में लिख रहे हैं।
\v 28 पवित्र आत्मा को और हमें यह सही लगा कि तुमको बहुत भारी यहूदी नियमों का पालन करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। इसकी अपेक्षा, हमारे अनुसार तुमको केवल निम्नलिखित निर्देशों का पालन करने की आवश्यकता है,
\v 29 तुमको वह भोजन नहीं खाना चाहिए, जो लोगों ने मूर्तियों के लिए बलिदान किया है। तुमको जानवरों का लहू नहीं खाना चाहिए, और तुमको उन जानवरों का माँस नहीं खाना चाहिए, जिन्हें लोगों ने गला घोंट कर मारा है। इसके अलावा, उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति के साथ यौन संबंध नहीं होना चाहिए जिससे तुमने शादी नहीं की है। यदि तुम इन बातों को करने से बचते हो, तो तुम वह कर रहे हो जो सही है। अलविदा।"
\p
\s5
\v 30 जिन चार लोगों को उन्होंने चुना था वे यरूशलेम से निकल कर अन्ताकिया आ गए। जब सब विश्वासी एकत्र हो गए, तो उन्होंने उन्हें वह पत्र दिया।
\v 31 जब वहाँ विश्वासियों ने पत्र पढ़ा, तो वे आनन्दित हुए, क्योंकि उनके संदेश ने उन्हें प्रोत्साहित किया था।
\v 32 भविष्यद्वक्ता होने के नाते, यहूदा और सीलास ने वहाँ के विश्वासियों को बहुत कुछ कहा और प्रोत्साहित किया, और प्रभु यीशु में अधिक दृढ विश्वास करने में उनकी सहायता की।
\p
\s5
\v 33 यहूदा और सीलास वहाँ कुछ समय तक रहे और फिर वे यरूशलेम लौटने के लिए तैयार हो गये, अन्ताकिया के विश्वासियों ने उन्हें शुभकामनाएँ दी थी, और फिर वे चले गए।
\v 35 लेकिन, पौलुस और बरनबास अन्ताकिया में ही रहे। जब वे वहाँ थे, तो अन्य कई लोगों के साथ, वे लोगों को सिखा रहे थे और उन्हें प्रभु यीशु के बारे में संदेश सुनाते रहे।
\p
\s5
\v 36 कुछ समय बाद पौलुस ने बरनबास से कहा, "हम वापस जाकर हर शहर में अपने भाइयों से मिलें, जहाँ पहले हमने प्रभु यीशु के बारे में संदेश को सुनाया था। इस प्रकार हम जान जाएँगे कि वे प्रभु यीशु पर विश्वास करने में कैसी उन्नति कर रहे हैं।"
\v 37 बरनबास पौलुस के साथ सहमत हुआ और कहा कि वह यूहन्ना को, जिसका दूसरा नाम मरकुस था, उनके साथ फिर से ले जाना चाहता है।
\v 38 लेकिन, पौलुस ने बरनबास से कहा कि इसके विचार में मरकुस को उनके साथ ले जाना ठीक नहीं होगा, क्योंकि जब वे पहले पम्फूलिया के क्षेत्र में थे, तब मरकुस ने उन्हें छोड़ दिया था और उनके साथ काम नहीं कर रहा था।
\s5
\v 39 पौलुस और बरनबास इस मामले में एक-दूसरे के साथ असहमत थे, इसलिए वे एक-दूसरे से अलग हो गए। बरनबास ने मरकुस को अपने साथ ले लिया। वे एक जहाज पर चढ़ गए और साइप्रस द्वीप चले गए।
\v 40 पौलुस ने सीलास को अपने साथ काम करने के लिए चुना, जो अन्ताकिया में लौट आया था। वहाँ के विश्वासियों ने प्रभु परमेश्वर से प्रार्थना की, और परमेश्वर से विनती की कि पौलुस और सीलास की दयालुता से सहायता करें। फिर वे दोनों अन्ताकिया से चले गए।
\v 41 पौलुस ने सीलास के साथ सीरिया और किलिकिया प्रांतों के माध्यम से यात्रा करना जारी रखा। उन जगहों पर वे विश्वासियों के समूहों की सहायता करते रहे है कि वे प्रभु यीशु पर दृढ़ विश्वास करें।
\s5
\c 16
\p
\v 1 पौलुस और सीलास दिरबे और लुस्त्रा के नगरों में गए और वहाँ के विश्वासियों से मिले। एक विश्वासी जिसका नाम तीमुथियुस था लुस्त्रा में रहता था। उसकी माता एक यहूदी विश्वासी थी, लेकिन उसका पिता यूनानी था।
\v 2 लुस्त्रा और इकुनियुम के विश्वासियों ने तीमुथियुस के बारे में अच्छी बातें कहीं,
\v 3 और पौलुस तीमुथियुस को उसके साथ अन्य जगहों पर ले जाना चाहता था, इसलिए उसने तीमुथियुस का खतना किया। उसने ऐसा इसलिये किया था कि उन जगहों पर रहने वाले यहूदी तीमुथियुस को स्वीकार करें, क्योंकि वे जानते थे कि उसके गैर-यहूदी पिता ने उसका खतना नहीं किया था।
\p
\s5
\v 4 इसलिए तीमुथियुस पौलुस और सीलास के साथ चला गया, और वे कई अन्य नगरों में गए। प्रत्येक नगर में उन्होंने विश्वासियों को उन नियमों के बारे में बताया जो यरूशलेम के प्रेरितों और प्राचीनों ने ठहराए थे।
\p
\v 5 उन नगरों में उन्होंने विश्वासियों की सहायता की कि वे प्रभु यीशु में और अधिक दृढ़ विश्वास करें, और प्रतिदिन बहुत लोग विश्वास में आने लगे।
\p
\s5
\v 6 पौलुस और उसके साथियों को पवित्र आत्मा ने आसिया में वचन सुनाने से रोक दिया था, इसलिए वे फ्रूगिया और गलातिया के क्षेत्रों में चले गए।
\v 7 वे मूसिया प्रांत की सीमा पर पहुँचे, और वे उत्तर में बितूनिया प्रांत में जाना चाहते थे, लेकिन फिर से यीशु के आत्मा ने उन्हें वहाँ जाने से रोक दिया।
\v 8 वे मूसिया प्रांत से होकर समुद्र के निकट त्रोआस शहर में पहुँचे।
\s5
\v 9 उसी रात परमेश्वर ने पौलुस को एक दर्शन दिया जिसमें उसने मकिदुनिया प्रांत के एक व्यक्ति को देखा। वह पौलुस को यह कह कर बुला रहा था, "मकिदुनिया में आओ और हमारी सहायता करो!"
\v 10 उसके इस दर्शन को देखने के बाद, हम मकिदुनिया के लिए रवाना हुए, क्योंकि हमें विश्वास था कि परमेश्वर ने हमें वहाँ के लोगों में सुसमाचार का प्रचार करने के लिए बुलाया था।
\p
\s5
\v 11 हम नाव पर चढ़ कर त्रोआस से सुमात्राके के लिये रवाना हुए, और अगले दिन नियापुलिस शहर में पहुँचे।
\v 12 तब हम नियापुलिस छोड़कर फिलिप्पी गए। मकिदुनिया का यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण शहर था, जहाँ कई रोमी नागरिक रहते थे। हम कई दिनों तक फिलिप्पी में रहे।
\p
\v 13 सब्त के दिन हम शहर के बाहर नदी की ओर निकल गए। हमने किसी को कहते सुना था कि यहूदी लोग वहाँ प्रार्थना करने के लिए एकत्र होते है। जब हम पहुँचे, हमने कुछ महिलाएँ देखीं जो प्रार्थना करने के लिए एकत्र हुई थीं, इसलिए हम बैठ गए और उन्हें यीशु के बारे में बताने लगे।
\s5
\v 14 उन स्त्रियों में एक स्त्री थी, जिसका नाम लुदिया था, वह पौलुस को सुन रही थी। वह थुआथिरा शहर से थी, वह बैंगनी कपड़ा बेचा करती थी, और परमेश्वर की आराधना करती थी। प्रभु परमेश्वर ने उसको उस संदेश पर जो पौलुस बता रहा था, ध्यान देने के लिए प्रेरित किया और उसने उस पर विश्वास किया।
\v 15 जब पौलुस और सीलास ने लुदिया और उसके घर में रहनेवाले अन्य लोगों को बपतिस्मा दे दिया, उसके बाद उसने उनसे कहा, "यदि तुम मानते हो कि मैं प्रभु के प्रति विश्वासयोग्य हूँ, तो मेरे घर में आकर रहना।" जब उसने यह कहा, तो हम उसके घर पर रहे।
\p
\s5
\v 16 एक और दिन, जब हम उस स्थान जा रहे थे जहाँ लोग प्रार्थना करने के लिए इकट्ठे होते थे, हम एक जवान स्त्री से मिले, जो एक दासी थी। एक दुष्ट-आत्मा उसे लोगों के भविष्य के बारे में बताने के लिये अपनी शक्ति देती थी। लोग उसके मालिकों को पैसा देते थे कि वह उन्हें बताए कि उनके साथ क्या होगा।
\v 17 इस जवान स्त्री ने पौलुस और बाकी हम सभी का पीछा करते हुए चिल्लाकर कहा, "ये लोग परमेश्वर की सेवा करते हैं जो सभी देवताओं में सबसे महान हैं! वे तुमको बता रहे हैं कि परमेश्वर तुमको कैसे बचा सकते हैं।"
\v 18 वह कई दिनों तक ऐसा करती रही। अंत में, पौलुस क्रोधित हो गया, इसलिये उसने जवान स्त्री की ओर मुड़कर उस दुष्ट-आत्मा से बात की जो उसके अन्दर थी। उसने कहा, "यीशु मसीह के नाम से, उसमें से निकल जा!" उसी समय दुष्ट-आत्मा ने उसे छोड़ दिया।
\s5
\v 19 और फिर उसके मालिकों को मालूम हुआ कि वह अब उनके लिए पैसे नहीं कमा सकती क्योंकि वह अब यह भविष्यद्वाणी नहीं कर सकती थी कि लोगों के साथ क्या होगा, इसलिए वे क्रोधित हुए। उन्होंने पौलुस और सीलास को पकड़ा और उन्हें सार्वजनिक चौक में ले गए जहाँ शहर के शासक थे।
\v 20 उस जवान स्त्री के मालिक उन्हें शहर के शासकों के पास लेकर आए और उनसे कहा, "ये पुरुष यहूदी हैं, और वे हमारे शहर के लोगों को परेशान कर रहे हैं।
\v 21 वे यह सिखा रहे हैं कि हमें उन नियमों का पालन करना चाहिए, जिन्हें हमारा रोमी कानून हमें पालन करने की अनुमति नहीं देता है!"
\s5
\v 22 जो लोग पौलुस और सीलास पर आरोप लगा रहे थे, उनके साथ भीड़ से कई लोग मिल गए, और उन्होंने उन्हें पीटना शुरू कर दिया। तब रोमी शासकों ने सैनिकों को पौलुस और सीलास के वस्त्रों को फाड़ डालने और उन्हें छड़ियों से पीटने के लिए कहा।
\v 23 इसलिये सैनिकों ने छड़ियों से पौलुस और सीलास को बहुत बुरी तरह से पीटा। उसके बाद, उन्होंने उन्हें ले जाकर बंदीगृह में डाल दिया। उन्होंने दरोगा को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि वे बाहर न निकलें।
\v 24 क्योंकि अधिकारियों ने उसे ऐसा करने के लिए कहा था, दरोगा ने पौलुस और सीलास को उस कमरे में रखा जो कि बंदीगृह के बहुत भीतर था। वहाँ उसने उन्हें फर्श पर बैठा कर उनके पैरों को फैला दिया। फिर उसने उनके टखनों को लकड़ी के दो बड़े टुकड़ों के बीच छेद में कस दिया, ताकि पौलुस और सीलास अपने पैरों को हिला न सकें।
\p
\s5
\v 25 आधी रात के लगभग, पौलुस और सीलास गीत गाते हुए परमेश्वर से प्रार्थना कर रहे थे और उनकी स्तुति कर रहे थे। अन्य कैदी उन्हें सुन रहे थे।
\v 26 अकस्मात एक प्रबल भूकम्प आया जिसने बंदीगृह को हिलाकर रख दिया था। भूकम्प ने बंदीगृह के सब द्वारों को खोल दिया और जंजीरें जिनसे कैदियों को बांधा हुआ था, गिर गई थीं।
\s5
\v 27 दरोगा जागा और देखा कि बंदीगृह के द्वार भूकम्प से खुल गए थे। उसने सोचा कि कैदी बंदीगृह से भाग गए हैं, इसलिए उसने स्वयं को मार डालने के लिये अपनी तलवार को निकाल लिया, क्योंकि वह जानता था कि यदि कैदी स्वतंत्र हो गए तो शहर के शासक उसे मार डालेंगे।
\v 28 पौलुस ने दरोगा को देखा और चिल्लाया, "स्वयं को मत मार! हम सब कैदी यहाँ हैं!"
\s5
\v 29 दरोगा ने चिल्ला कर किसी को मशाल लाने के लिए कहा ताकि वह देख सके कि बंदीगृह में कौन है। भय से कांपते हुए, वह पौलुस और सीलास के सामने गिर गया।
\v 30 तब वह पौलुस और सीलास को बंदीगृह से बाहर ले गया और पूछा: "हे श्रीमानों, बचाए जाने के लिये मुझे क्या करने की आवश्यकता है?"
\v 31 उन्होंने उत्तर दिया, "प्रभु यीशु पर विश्वास कर, तो तू और तेरा परिवार बच जाएगा।"
\p
\s5
\v 32 फिर पौलुस और सीलास ने उसे और उसके परिवार के सभी लोगों को प्रभु यीशु के बारे में बताया।
\v 33 तब दरोगा ने उसी समय आधी रात में उनके घावों को धोया। तब पौलुस और सीलास ने उसे और उसके परिवार के सब लोगों को बपतिस्मा दिया।
\v 34 फिर दरोगा पौलुस और सीलास को अपने घर ले गया और उन्हें खाने के लिये भोजन परोसा। वह और उसके परिवार के सब लोग बहुत प्रसन्न थे क्योंकि उन्होंने परमेश्वर में विश्वास किया था।
\p
\s5
\v 35 अगले दिन सुबह, शहर के शासकों ने कुछ सैनिकों से कहा कि वे बंदीगृह में जाकर दरोगा से यह कहो, "उन दोनों कैदियों को अब जाने दो!"
\v 36 जब दरोगा ने यह सुना, तो उसने जाकर पौलुस से कहा, "शहर के शासकों ने मुझे कहा है कि तुमको जाने दूँ। इसलिये अब तुम दोनों बंदीगृह को छोड़ कर शान्ति से चले जाओ!"
\s5
\v 37 लेकिन पौलुस ने दरोगा से कहा, "शहर के शासकों ने भीड़ के सामने हमें पीटने के लिए लोगों से कहा और हमें बंदीगृह में डाल दिया, जबकि हम रोमी नागरिक हैं। और अब वे किसी को बताए बिना हमें भेजना चाहते हैं। हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे! उन शहर के शासकों को स्वयं आकर हमें बंदीगृह से मुक्त करना होगा।"
\v 38 इसलिए सैनिकों ने जाकर शहर के शासकों को पौलुस की बात बताई। जब शहर के शासकों ने सुना कि पौलुस और सीलास रोमी नागरिक थे, तो वे डर गए क्योंकि उन्होंने गलत काम किया था।
\v 39 इसलिए शहर के शासकों ने पौलुस और सीलास के पास आकर उनसे कहा कि उन्होंने उनके साथ जो कुछ किया था, उसके लिए वे खेदित हैं। शहर के शासकों ने उन्हें बंदीगृह से बाहर निकाला और उन्हें शहर छोड़ने के लिए कहा।
\s5
\v 40 पौलुस और सीलास बंदीगृह से निकलने के बाद, लुदिया के घर गए। वहाँ वे उससे और अन्य विश्वासियों से मिले। उन्होंने विश्वासियों को प्रभु यीशु पर भरोसा बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया, और फिर उन दोनों प्रेरितों ने फिलिप्पी शहर छोड़ दिया।
\s5
\c 17
\p
\v 1 उन्होंने अम्फिपुलिस और अपुल्लोनिया के शहरों से होकर यात्रा की और थिस्सलुनीके शहर में आए। वहाँ पर एक यहूदी सभा स्थल था।
\v 2 सब्त के दिन पौलुस सभा स्थल पर गया जैसे वह आमतौर पर किया करता था। तीन हफ्ते तक वह हर एक सब्त के दिन वहाँ गया। उसने लोगों को बताया की कि पवित्र शास्त्रों में कहा है कि यीशु ही मसीह है।
\s5
\v 3 उसने भविष्यद्वक्ताओं द्वारा लिखे गये शास्त्रों से दिखाया कि मसीह का मरना और फिर से जीवित होना अवश्य था। उसने कहा, "यह व्यक्ति यीशु मसीह ही हैं। वह मर गये और फिर से जीवित हो गये हैं, जैसा भविष्यद्वक्ताओं ने कहा।"
\v 4 वहाँ यहूदियों में से कुछ ने पौलुस की बातों पर विश्वास किया और पौलुस और सीलास से मिलना आरम्भ कर दिया। वहाँ कई गैर-यहूदी लोग और महत्वपूर्ण महिलाएँ भी थीं जो परमेश्वर की आराधना करते थे, उन्होंने भी यीशु के संदेश पर विश्वास किया, और वे भी पौलुस और सीलास के साथ मिलने लगे।
\p
\s5
\v 5 लेकिन यहूदियों के कुछ अगुवे क्रोधित हो गए क्योंकि पौलुस की सिखाई बातों पर कई लोगों ने विश्वास किया था। इसलिए वे सार्वजनिक चौक में गए और कुछ बुरे लोगों को उनके पीछे आने के लिए राजी किया। इस प्रकार, यहूदियों के अगुवों ने एक भीड़ को एकत्र किया और उन्हें बहुत शोर मचाने के लिए प्रेरित किया। वे यहूदी लोग और अन्य लोग भाग कर यासोन नाम के एक व्यक्ति के घर पहुँचे जहाँ पौलुस और सीलास रह रहे थे। वे पौलुस और सीलास को निकाल कर बाहर ले जाना चाहते थे जहाँ लोगों की भीड़ थी।
\v 6 उनको पता चला कि पौलुस और सीलास घर में नहीं थे, लेकिन यासोन उनको मिला और उन्होंने उसे पकड़ लिया। वे उसको और कुछ अन्य विश्वासियों को जो उसके साथ थे खींच कर वहाँ ले गए, जहाँ शहर के शासक थे। उन्होंने कहा, "जिन लोगों ने दुनिया में सब स्थानों में परेशानी खड़ी कर दी है, वे यहाँ भी आए हैं,
\v 7 और इस व्यक्ति यासोन ने उन्हें अपने घर में रहने के लिए स्थान दिया। वे सम्राट के विरुद्ध काम कर रहे हैं। वे कहते हैं कि कोई व्यक्ति, जिनका नाम यीशु है, असली राजा हैं!"
\s5
\v 8 जब लोगों की भीड़ ने और शहर के शासकों ने इसे सुना, तो वे बहुत क्रोधित और उत्तेजित हो गए।
\v 9 शहर के शासकों ने यासोन और अन्य विश्वासियों पर जुर्माना लगा दिया और उन्हें बताया कि अगर पौलुस और सीलास ने और कोई भी मुसीबत खड़ी नहीं की तो वे पैसे वापस दे देंगे। फिर शहर के शासकों ने यासोन और अन्य विश्वासियों को जाने दिया।
\p
\s5
\v 10 इसलिये उसी रात विश्वासियों ने पौलुस और सीलास को थिस्सलुनीके से बिरीया नगर भेज दिया। जब पौलुस और सीलास वहाँ पहुँचे, तो वे यहूदी सभा स्थल पर गए।
\v 11 थिस्सलुनीके के अधिकांश यहूदी परमेश्वर का संदेश सुनने के इच्छुक नहीं थे, लेकिन जो यहूदी बिरीया में रहते थे, वे सुनने के बहुत इच्छुक थे, इसलिए उन्होंने ध्यान से यीशु के बारे में संदेश को सुना। प्रतिदिन उन्होंने यह पता लगाने के लिये स्वयं ही शास्त्रों को पढ़ा कि जो कुछ पौलुस ने यीशु के बारे में कहा था, क्या वह सच था।
\v 12 पौलुस की शिक्षा के कारण, यहूदियों में से कई लोगों ने यीशु पर विश्वास किया था, और साथ ही कुछ महत्वपूर्ण गैर-यहूदी स्त्रियों और कई गैर-यहूदी पुरुषों ने भी उन पर विश्वास किया था।
\p
\s5
\v 13 परन्तु थिस्सलुनीके के यहूदियों ने सुना कि पौलुस बिरीया में यीशु के बारे में परमेश्वर के संदेश का प्रचार कर रहा है। इसलिए वे बिरीया गए और वहाँ लोगों से कुछ बातें कहीं, जिन बातों ने उन्हें पौलुस से बहुत अधिक क्रोधित कर दिया।
\v 14 बिरीया में से कुछ विश्वासी पौलुस को दूसरे शहर में जाने के लिए समुद्र के किनारे तक ले गए। परन्तु सीलास और तीमुथियुस बिरीया में ही रहे।
\v 15 जब पौलुस और दूसरे लोग समुद्र तट पर पहुँचे, तो वे नाव पर चढ़ गए और एथेंस शहर में गए। तब पौलुस ने उन पुरुषों से कहा, जो उसके साथ आए थे, "सीलास और तीमुथियुस से कहना कि वे अतिशीघ्र एथेंस में मेरे पास आएँ।" तब उन पुरुषों ने एथेंस को छोड़ दिया और बिरिया लौट आए।
\p
\s5
\v 16 एथेंस में, पौलुस सीलास और तीमुथियुस के आने का प्रतीक्षा कर रहा था। इस बीच, वह शहर में चारों ओर घूमने चला गया। वह बहुत चिंतित हो गया क्योंकि शहर में कई मूर्तियाँ थीं।
\v 17 इसलिए वह यहूदी सभा स्थल पर गया और यहूदियों के साथ यीशु के बारे में चर्चा की और उन यूनानियों के साथ भी बातें की, जिन्होंने यहूदियों की मान्यताओं को स्वीकार किया था। वह प्रतिदिन सार्वजनिक चौक में जाता था और उन लोगों से जिनसे वह वहाँ मिलाता था, बातें करता था।
\p
\s5
\v 18 पौलुस ने कुछ शिक्षकों से भेंट की, उन्हें इस बारे में बात करना पसंद था कि लोग क्या विश्वास करते हैं। लोग उनमें से कुछ को इपिकूरी कहते थे, और वे दूसरों को स्तोईकी कहते थे। उन्होंने पौलुस को बताया कि वे क्या विश्वास करते थे, और उन्होंने उससे पूछा कि वह क्या विश्वास करता है। फिर उनमें से कुछ ने एक दूसरे से कहा, "वह अनोखे देवताओं के बारे में कुछ कह रहा है।" उन्होंने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि पौलुस उनसे कह रहा था कि यीशु मर गए थे और फिर से जीवित हो गए।
\p
\s5
\v 19 इसलिए वे उसे उस जगह पर ले गए जहाँ शहर के अगुवे बैठते थे। जब वे वहाँ पहुँचे तो उन्होंने पौलुस से कहा, "कृपया हमें बता, यह नया संदेश क्या है जो तू लोगों को सुना रहा है?
\v 20 तू कुछ ऐसी बातें सिखा रहा है जिसे हम समझ नहीं पाते हैं, इसलिए हम जानना चाहते हैं कि उनका क्या अर्थ है।"
\v 21 एथेंस के लोग और वहाँ रहने वाले अन्य क्षेत्रों के लोग उन विषयों के बारे में बात करना पसंद करते थे जो उनके लिए नया होता था।
\p
\s5
\v 22 तब पौलुस ने लोगों के सामने खड़े होकर कहा, "एथेंस के लोगों, मैं देखता हूँ कि तुम बहुत धार्मिक हो।
\v 23 मैं ऐसा इसलिये कहता हूँ, क्योंकि जब मैं जा रहा था, मैंने उन मूर्तियों को देखा जिनकी तुम आराधना करते हो, यहाँ तक कि मैंने एक वेदी को भी देखा था, जिस पर किसी ने इन शब्दों की खुदाई की हुई थी: यह उन परमेश्वर के सम्मान में है जिनको हम नहीं जानते हैं। इसलिये अब मैं तुमको उन परमेश्वर के बारे में बताऊँगा जिनकी तुम आराधना तो करते हो, परन्तु तुम उसे जानते नहीं हो।
\p
\s5
\v 24 वही परमेश्वर है जिन्होंने संसार और उसकी सब वस्तुओं को बनाया। वे स्वर्ग में और पृथ्वी पर सभी प्राणियों पर शासन करते हैं, और वे ऐसे भवनों में नहीं रहते हैं जिसे लोगों ने बनाया है।
\v 25 उन्हें आवश्यक्ता नहीं कि लोग उनके लिए कुछ बनाएँ क्योंकि वही लोगों को जीवित रखते और साँस देते हैं, और जो उन्हें चाहिए वह सब कुछ उन्हें देते हैं।
\p
\s5
\v 26 आरंभ में, परमेश्वर ने एक जोड़े को बनाया, और उनसे परमेश्वर ने सब जातियों को उत्त्पन्न किया जो अब पृथ्वी पर हर स्थान में रहती हैं। उन्होंने एक समय के लिए प्रत्येक जाती को उनके स्थान में रखा।
\v 27 वे चाहते थे कि लोगों को अपनी आवश्यकताओं का बोध हो। तब हो सकता है वे उसकी खोज करेंगे और उसे ढूँढेंगे। परमेश्वर चाहते हैं कि हम उनकी खोज करें, यद्यपि वह हम सब के बहुत निकट है।
\s5
\v 28 परमेश्वर ही के कारण हम जीवित रहते हैं, आगे बढ़ते हैं और अस्तित्व में हैं, जैसा कि तुम में से एक ने कहा है, 'क्योंकि हम उनकी सन्तान हैं।'
\p
\v 29 इसलिए, क्योंकि हम परमेश्वर की सन्तान हैं, हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि परमेश्वर सोने, चाँदी, या पत्थर के सामान है, जो मनुष्य द्वारा किसी रूप में बनाया जाता है।
\s5
\v 30 उस समय जब लोगों को पता नहीं था कि परमेश्वर उनसे क्या करवाना चाहते थे, तो उन्होंने जो कुछ भी किया, उसके लिए परमेश्वर ने उन्हें दण्ड नहीं दिया। परन्तु अब परमेश्वर हर स्थान के सब लोगों को बुरे कामों से दूर रहने की आज्ञा देते हैं।
\v 31 वह हमें बताते हैं कि एक निश्चित दिन जिसे उन्होंने चुना है वह उस व्यक्ति के द्वारा जिसे उन्होंने चुना है, धार्मिकता से सब का न्याय करने जा रहे हैं, इस पुरुष को मरे हुओं में से जी उठा कर वह सुनिश्चित कर रहे हैं कि हम समझें।
\p
\s5
\v 32 जब पुरुषों ने सुना कि पौलुस कहता है कि मृत्यु के बाद एक पुरुष फिर से जीवित हो गया, तो उनमें से कुछ उस पर हंस रहे थे। परन्तु अन्य लोगों ने उसे किसी और दिन वापस आने और इस बारे में फिर से बात करने के लिए कहा।
\v 33 उनके यह कहने के बाद, पौलुस चला गया।
\v 34 हालाँकि, कुछ लोग पौलुस के साथ गए और यीशु के बारे में उसके संदेश पर विश्वास किया। उनमें से जो लोग यीशु पर विश्वास करते थे, उनमें से एक दियुनुसियुस नाम का व्यक्ति था जो परिषद का सदस्य था। इसके अतिरिक्त, वहाँ दमरिस नाम की एक स्त्री और उसके साथ कुछ अन्य लोग थे जिन्होंने विश्वास किया था।
\s5
\c 18
\p
\v 1 उसके बाद, पौलुस एथेंस शहर छोड़कर कुरिन्थुस शहर चला गया।
\v 2 वहाँ वह एक यहूदी व्यक्ति से मिला जिसका नाम अक्विला था, जो पुन्तुस क्षेत्र से था। अक्विला और उसकी पत्नी प्रिस्किल्ला थोड़े समय पहले ही इतालिया के रोम शहर से आए थे। वे रोम छोड़ कर आ गए क्योंकि रोमी सम्राट क्लौदियुस ने आदेश दिया था कि सभी यहूदियों को रोम छोड़ देना चाहिए।
\v 3 अक्विला और प्रिस्किल्ला पैसे कमाने के लिए तम्बू बनाते थे। पौलुस भी तम्बू बनाता था, इसलिए वह उनके साथ रहा, और उन्होंने एक साथ काम किया।
\s5
\v 4 हर एक सब्त के दिन, पौलुस यहूदियों के सभा स्थल में जाता था, जहाँ उसने यहूदियों और गैर-यहूदियों दोनों से बातें की। उसने उन्हें यीशु के बारे में सिखाया।
\p
\v 5 जब सीलास और तीमुथियुस मकिदुनिया के क्षेत्र से आए, पौलुस पवित्र आत्मा की प्रेरणा से सशक्त होकर यहूदियों को यह बताने लगा कि यीशु ही मसीह हैं।
\v 6 परन्तु यहूदी पौलुस के विरुद्ध हो गए और उसके बारे में बुरी बातें कहना शुरू कर दिया। इसलिए उसने अपने कपडो से धूल को झाड़ दिया और उसने उनसे कहा, "अगर परमेश्वर तुम्हें दण्ड दें, तो यह तुम्हारी करनी हो, मेरी नहीं! अब से मैं उन लोगों से बात करूँगा जो यहूदी नहीं हैं!"
\s5
\v 7 इसलिए पौलुस यहूदी सभा स्थल छोड़ कर उस घर में गया जो उसके पास में था, और वहाँ प्रचार किया। घर का मालिक तीतुस यूस्तुस नामक एक गैर-यहूदी व्यक्ति था जो परमेश्वर की आराधना करता था।
\v 8 उसके बाद, यहूदी सभा स्थल के शासक, जिसका नाम क्रिसपुस था, और उसके सारे परिवार ने प्रभु पर विश्वास किया। कुरिन्थुस के कई अन्य लोगों ने क्रिसपुस और उनके परिवार के बारे में सुना और उन्होंने भी यीशु पर विश्वास किया और बपतिस्मा लिया।
\p
\s5
\v 9 एक रात पौलुस ने एक दर्शन देखा जिसमें प्रभु यीशु ने उससे कहा, "उन लोगों से मत डर, जो तेरे विरुद्ध हैं, परन्तु तू मेरे बारे में बताता रह,
\v 10 क्योंकि मैं तुम्हारी सहायता करूँगा और कोई भी तुझे यहाँ चोट नहीं पहुँचा सकेगा। उन्हें मेरे बारे में बता, क्योंकि इस शहर में मेरे बहुत से लोग हैं।"
\v 11 इसलिए पौलुस लोगों को यीशु के बारे में परमेश्वर के संदेश को सुनाते हुए डेढ़ वर्ष तक कुरिन्थुस में रहा था।
\p
\s5
\v 12 जब गल्लियो अखाया प्रांत का रोमी राज्यपाल बन गया, तो यहूदी अगुवों ने मिलकर पौलुस को पकड़ लिया। वे उसे राज्यपाल के सामने ले गए और उस पर आरोप लगाया,
\v 13 उन्होंने यह कहा, "यह व्यक्ति लोगों को परमेश्वर की आराधना करने के ऐसे उपाय सिखा रहा है जो हमारे यहूदी नियमों के विरुद्ध जाते हैं।"
\s5
\v 14 जब पौलुस बात करने ही वाला था, गल्लियो ने यहूदियों से कहा, "अगर इस व्यक्ति ने हमारे रोमी कानूनों को तोड़ा होता, तो मैं सुनता कि तुम यहूदी मुझसे क्या कहना चाहते हो।
\v 15 परन्तु, तुम शब्दों और नामों और अपने स्वयं के यहूदी नियमों के बारे में बात कर रहे हो, इसलिये तुम स्वयं ही इस बारे में उससे बात करो। मैं इन बातों का न्याय नहीं करूँगा!"
\s5
\v 16 गल्लियो ने यह कहने के बाद, सैनिकों को आदेश दिया कि यहूदी अगुवों को अदालत से बाहर कर दिया जाए।
\v 17 तब लोगों ने यहूदियों के अगुवे सोस्थिनेस को पकड़ लिया। उन्होंने न्यायाधीश के आसन के सामने ही उसे पीटा। लेकिन गल्लियो ने इसके बारे में कुछ नहीं किया।
\p
\s5
\v 18 पौलुस कई दिनों तक कुरिन्थुस के विश्वासियों के साथ रहा। फिर वह प्रिस्किल्ला और अक्विला के साथ एक जहाज पर सीरिया के प्रांत के लिए रवाना हुआ। उसने क्रिंखिया में अपने बाल कटवा दिये क्योंकि उसने एक प्रतिज्ञा की थी।
\v 19 वे इफिसुस नगर में पहुँचे, और प्रिस्किल्ला और अक्विला वहाँ रहे। पौलुस ने स्वयं यहूदियों के सभा स्थल में प्रवेश किया और यहूदियों से यीशु के बारे में बात की।
\s5
\v 20 उन्होंने उससे और अधिक रुकने के लिए कहा, लेकिन वह रुकने के लिए सहमत नहीं हुआ।
\v 21 परन्तु जब वह जाने लगा, उसने उनसे कहा, "यदि परमेश्वर चाहे तो मैं वापस आऊँगा।" फिर वह जहाज पर चढ़ गया और इफिसुस से दूर चला गया।
\p
\s5
\v 22 जब जहाज कैसरिया शहर में आया, तो पौलुस उतर गया। वह यरूशलेम गया और वहाँ विश्वासियों को नमस्कार किया। फिर वह सीरिया के क्षेत्र में अन्ताकिया शहर चला गया।
\p
\v 23 पौलुस ने वहाँ विश्वासियों के साथ कुछ समय बिताया। फिर उसने अन्ताकिया को छोड़ दिया और गलातिया और फ्रूगिया के क्षेत्रों के कई शहरों में गया। उसने विश्वासियों से आग्रह किया कि वे यीशु के बारे में परमेश्वर के संदेश पर और अधिक विश्वास करें।
\p
\s5
\v 24 जब पौलुस गलातिया और फ्रूगिया से होकर जा रहा था, तो अपुल्लोस नाम का एक यहूदी इफिसुस में आया। वह सिकन्दरिया शहर से था और शास्त्रों के बारे में बहुत अच्छी रीती से बातें करता था।
\v 25 अन्य विश्वासियों ने अपुल्लोस को सिखाया था कि प्रभु यीशु लोगों से चाहते हैं की कैसा जीवन जियें, और उसने बड़े उत्साह से उन बातों को लोगों को सिखाया। लेकिन, वह यीशु के बारे में सब कुछ नहीं सिखा रहा था, क्योंकि वह केवल यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के बपतिस्मा के बारे में जानता था।
\v 26 अपुल्लोस यहूदी सभा स्थल पर गया, और उसने लोगों को उन बातों के बारे में बताया जो उसने सीखी थीं। जब प्रिस्किल्ला और अक्विला ने जो वह सिखाता था सुना, तो उन्होंने उसे अपने घर आने के लिए कहा, जहाँ उन्होंने उसे यीशु के बारे में और अधिक सिखाया।
\p
\s5
\v 27 जब अपुल्लोस ने निर्णय लिया कि वह अखाया क्षेत्र में जाएगा, तो इफिसुस के विश्वासियों ने उसे बताया कि उसके लिए यह करना ठीक होगा। इसलिए उन्होंने अखाया में विश्वासियों को एक पत्र लिखा कि वे अपुल्लोस का स्वागत करें। उसके वहाँ पहुँचने के बाद, उसने उन लोगों की सहायता की जिन्हें परमेश्वर ने यीशु पर विश्वास करने में सक्षम किया था।
\v 28 अपुल्लोस यहूदियों के अगुवों के साथ बहुत शक्तिशाली रूप से बात कर रहा था, जबकि कई अन्य लोग सुन रहे थे। शास्त्रों से पढ़ कर, उसने उन्हें दिखाया कि यीशु ही मसीह हैं।
\s5
\c 19
\p
\v 1 जिस समय अपुल्लोस कुरिन्थुस में था, पौलुस ने फ्रूगिया और गलातिया को छोड़ दिया और एशिया से होते हुए इफिसुस में वापस आ गया। उसने कुछ लोगों से भेंट की जिन्होंने कहा कि वे विश्वासी है।
\v 2 उसने उनसे पूछा, "जब तुमने परमेश्वर के संदेश पर विश्वास किया था, तब क्या तुमको पवित्र आत्मा प्राप्त हुए?" उन्होंने उत्तर दिया, "नहीं, हमने नहीं पाए। हमने तो पवित्र आत्मा है यह भी नहीं सुना है।"
\s5
\v 3 तो पौलुस ने पूछा, "तो जब तुमने बपतिस्मा लिया, तो तुमको क्या पता था?" उन्होंने उत्तर दिया, "यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने जो सिखाया था, हम ने उस पर विश्वास किया था।"
\v 4 पौलुस ने कहा, "यूहन्ना का बपतिस्मा एक संकेत था कि लोग परमेश्वर की ओर मुड़ रहे थे और अपने बुरे विचारों और कामों से दूर हो रहे थे। उसने उनको किसी और में विश्वास करने को कहा, जो उसके बाद आ रहे हैं, और वह व्यक्ति यीशु हैं।"
\s5
\v 5 तो जब उन लोगों ने यह सुना, तो उन्होंने प्रभु यीशु के नाम में बपतिस्मा लिया।
\v 6 उसके बाद, पौलुस ने अपने हाथों को एक-एक करके उनके सिरों पर रखा, और उनमें से हर एक पर पवित्र आत्मा की शक्ति आ गई। पवित्र आत्मा ने उन्हें उन भाषाओं में बोलने की शक्ति दी, जिन्हें उन्होंने नहीं सीखा, और उन्होंने उन संदेशों को भी सुनाया जो पवित्र आत्मा ने उन्हें दिये थे।
\v 7 वहाँ वे बारह व्यक्ति थे जिनको पौलुस ने बपतिस्मा दिया और जिन्होंने पवित्र आत्मा को पाया।
\p
\s5
\v 8 इसके बाद तीन महीने तक, पौलुस हर एक सब्त के दिन इफिसुस में यहूदी सभा स्थल में जाकर लोगों को यीशु के बारे में और परमेश्वर स्वयं को राजा के रूप में कैसे प्रकट करेंगे उसके बारे में सिखाता और समझाता रहा।
\v 9 लेकिन कुछ यहूदियों ने संदेश पर विश्वास नहीं किया और इसे और अधिक सुनना नहीं चाहते थे। पौलुस जो सिखा रहा था उन्होंने उसके बारे में कई बुरी बातें कहीं। इसलिए पौलुस ने उन्हें छोड़ दिया और तुरन्नुस के सभा स्थल में मिलने के लिए विश्वासियों को अपने साथ ले लिया।
\v 10 वहाँ दो साल तक पौलुस ने लोगों को शिक्षा दी। इस प्रकार, आसिया के क्षेत्र में रहने वाले अधिकांश यहूदियों और गैर-यहूदियों ने प्रभु यीशु के बारे में संदेश सुना।
\p
\s5
\v 11 परमेश्वर ने पौलुस को चमत्कार करने की शक्ति भी दी।
\v 12 यदि कुछ लोग जो ऐसे बीमार थे कि पौलुस के पास नहीं आ सकते थे, तो पौलुस के द्वारा छूए गए कपड़े के टुकड़े ले जाकर बीमार लोगों पर रखते थे। और बीमार लोग ठीक हो जाते थे, और दुष्ट-आत्माएँ उन्हें छोड़ देती थी।
\p
\s5
\v 13 ऐसे कुछ यहूदी भी थे जो नगर नगर जाते थे, और दुष्ट-आत्माओं को लोगों में से निकल जाने का आदेश देते थे। उनमें से कुछ यहूदियों ने दुष्ट-आत्माओं को लोगों में से बाहर निकल आने के लिए यह कहा, "मैं तुम्हें प्रभु यीशु की सामर्थ से बाहर आने के लिए कहता हूँ, जिस पुरुष के बारे में पौलुस सिखाता है!"
\v 14 वे सात व्यक्ति थे जो ये कर रहे थे। वे स्क्किवा नाम के एक यहूदी व्यक्ति के बेटे थे, जो स्वयं को प्रधान याजक कहता था।
\s5
\v 15 लेकिन एक दिन जब वे ऐसा कर रहे थे, तो वह दुष्ट-आत्मा उस व्यक्ति में से बाहर नहीं निकला। इसकी अपेक्षा, दुष्ट-आत्मा ने उनसे कहा, "मैं यीशु को जानता हूँ, और मैं पौलुस को जानता हूँ, परन्तु तुम्हें किसी ने शक्ति नहीं दी कि मेरा कुछ करो!"
\v 16 यह कहने के बाद, अचानक वह व्यक्ति जिस में दुष्ट-आत्मा थी, स्क्किवा के बेटों पर कूद पड़ा। उसने उन सब को नीचे गिरा दिया और उनमें से हर एक को चोट पहुँचाई। उसने उनके कपड़े फाड़ दिए और उन्हें घायल कर दिया। वे डर गए और घर से बाहर भाग गए।
\v 17 इफिसुस में रहनेवाले सब लोग, यहूदियों और गैर-यहूदियों, ने इस घटना के बारे में सुना। वे भयभीत हो गए क्योंकि उन्होंने देखा कि वह दुष्ट-आत्मा वाला व्यक्ति बहुत बलवंत था। उसी समय, उन्होंने प्रभु यीशु के नाम का सम्मान किया।
\p
\s5
\v 18 उस समय, जबकि अन्य विश्वासी सुन रहे थे, कई विश्वासियों ने उन बुरे कामों के बारे में बताया जो वे कर रहे थे।
\v 19 कुछ जादूगरों ने अपनी पुस्तकें लीं, जो सिखाती थीं कि जादूगरी कैसे करें और उन जगहों पर जला दी जहाँ हर कोई उन्हें देख सकता था। जब लोगों ने पुस्तकों की कीमत को जोड़ा, तो उनका मूल्य पचास हजार चाँदी के सिक्के आया।
\v 20 इस तरह, कई लोगों ने प्रभु यीशु के बारे में संदेश सुना और उन पर विश्वास किया।
\p
\s5
\v 21 पौलुस ने जब इफिसुस में अपना काम पूरा कर लिया तो, आत्मा ने उसे यरूशलेम जाने का निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया, परन्तु पहले उसने मकिदुनिया और अखाया के क्षेत्रों में विश्वासियों को देखने की योजना बनाई। पौलुस ने कहा, "जब मैं यरूशलेम में पहुँच जाऊँ, तो उसके बाद मैं रोम भी जाऊँगा।"
\v 22 उसने अपने दो सहायक, तीमुथियुस और इरास्तुस को मकिदुनिया भेज दिया। परन्तु पौलुस आसिया प्रांत के इफिसुस नगर में ही रहा।
\p
\s5
\v 23 इसके तुरंत बाद, इफिसुस के लोग यीशु और उसके शिक्षाओं के कारण बड़ी मुश्किलें पैदा करने लगे।
\v 24 वहाँ एक व्यक्ति था जिसका नाम दिमेत्रियुस था। वह चाँदी से देवी अरतिमिस (जिसे डायना के नाम से भी जाना जाता है) की मूर्तियाँ बनाता था। दिमेत्रियुस ने उन सब के लिए बहुत पैसा कमाया जो इन मूर्तियों को बनाते और बेचते थे।
\p
\v 25 दिमेत्रियुस ने उन कारीगरों को बुलाया जो मूर्तियों को बनाते थे। उसने उनसे कहा, "हे पुरुषों, तुम जानते हो कि हम अपने काम से बहुत पैसा कमाते हैं।
\s5
\v 26 तुम जानते हो कि पौलुस ने इफिसुस में रहने वाले बहुत से लोगों को सिखाया है कि हम जो मूर्तियाँ बनाते हैं उनको वे नहीं खरीदें। अब हमारे प्रांत के कई नगरों के लोग हम जो बनाते हैं, उसे खरीदना नहीं चाहते हैं। पौलुस लोगों से कहता है कि हम जिन देवताओं की आराधना करते हैं वे देवता नहीं हैं और हमें उनकी आराधना नहीं करनी चाहिए।
\v 27 यदि लोग उसे सुनते हैं, तो हमारा व्यापार बंद हो जाएगा। लोग नहीं सोचेंगे कि उनको अब अरतिमिस (जिसे डायना के नाम से जाना जाता है) की आराधना करने के लिए उसके आराधनालय में आना चाहिए। लोग अरतिमिस को महान नहीं मानेंगे। फिर भी आसिया के सभी प्रांत और यहाँ तक कि सारी दुनिया उसकी पूजा करती है!"
\s5
\v 28 दिमेत्रियुस ने जो कहा, उसे सुन कर सब लोग पौलुस पर क्रोधित हो गए। वे चिल्लाने लगे, "इफिसियों की देवी अरतिमिस महान है!"
\v 29 शहर के बहुत से लोग पौलुस पर क्रोधित हो गए और चिल्लाने लगे। कुछ लोगों ने गयुस और अरिस्तर्खुस को पकड़ लिया, वे दो लोग जिन्होंने मकिदुनिया से पौलुस के साथ यात्रा की थी। फिर लोगों की सारी भीड़, उन लोगों को अपने साथ घसीटती हुई, शहर के रंगमंच की ओर भागी ।
\s5
\v 30 पौलुस रंगमंच में जाकर लोगों से बात करना चाहता था, परन्तु अन्य विश्वासियों ने उसे वहाँ जाने नहीं दिया।
\v 31 कुछ शहर के शासकों ने, जो पौलुस के मित्र थे, सुना कि क्या हो रहा था। उन्होंने किसी को पौलुस को यह बताने के लिए भेजा कि वह रंगमंच में न जाए।
\p
\v 32 रंगमंच में लोगों की भीड़ लगातार चिल्ला रही है। कुछ लोग एक बात के लिये चिल्लाए, और कुछ लोग किसी और बात के लिये चिल्लाए। लेकिन उनमें से आधिकतर जानते भी नहीं थे कि वे वहां क्यों आये थे!
\s5
\v 33 यहूदियों में सिकन्दर नाम का एक व्यक्ति वहाँ था। कुछ यहूदियों ने उसे भीड़ के सामने धकेल दिया जिससे कि वह लोगों से बात कर सके। सिकन्दर ने अपने हाथों को उठा कर भीड़ को चिल्लाने से मना करने का प्रयास किया। वह उन्हें बताना चाहता था कि यहूदियों ने परेशानी नहीं खड़ी की थी।
\v 34 परन्तु कई गैर-यहूदी लोगों को पता था कि सिकन्दर एक यहूदी था और जानते थे कि यहूदी देवी अरतिमिस की आराधना नहीं करते थे। इसलिए गैर-यहूदी दो घंटे तक चिल्लाते हुए कहते रहे, "इफिसियों की देवी अरतिमिस महान है!"
\p
\s5
\v 35 तब शहर के शासकों में से एक ने लोगों को चिल्लाने से रोका। उसने उनसे कहा, "मेरे साथी नागरिकों, संसार में हर कोई जानता है कि हमारी देवी अरतिमिस की पवित्र प्रतिमा स्वर्ग से गिरी थी!
\v 36 हर कोई यह जानता है, और कोई भी यह नहीं कह सकता कि ये बातें सच नहीं हैं। तो अब तुमको शांत होना चाहिए। मुर्खता मत करो।
\v 37 इन दोनों व्यक्तियों को यहाँ नहीं लाना चाहिए था, क्योंकि उन्होंने कुछ भी बुरा नहीं किया है। उन्होंने हमारे मंदिरों में जाकर वहाँ से चीजें नहीं ली हैं, और उन्होंने हमारी देवी की बुराई नहीं की है।
\s5
\v 38 इसलिए, अगर दिमेत्रियुस और उसके साथी कारीगर किसी पर भी बुराई करने का आरोप लगाते हैं, तो उन्हें उचित विधि से ऐसा करना चाहिए। यहां न्यायालय हैं जहाँ यदि वे चाहते हैं तो जा सकते हैं, और वहाँ न्यायाधीश हैं जिन्हें सरकार द्वारा चुना गया है। तुम वहाँ किसी पर भी दोष लगा सकते हो।
\v 39 परन्तु अगर तुम किसी और बात के बारे में पूछना चाहते हो, तो जब तुम्हारे शासक एक साथ आएँगे तब तुमको अपने शासकों से यह कहना चाहिए कि वे इस मामले की जाँच करें।
\v 40 यहाँ एकत्र होना सही नहीं है! इस समस्या के विषय उचित विधि से निर्णय लें क्योंकि हम सरकार के विरुद्ध नहीं जाना चाहते हैं। यदि शासकों ने मुझसे पूछा कि तुम लोग किस बारे में चिल्ला रहे थे, तो मैं उन्हें अच्छा उत्तर नहीं दे पाउँगा।"
\v 41 शहर के शासक ने भीड़ से यही कहा था। फिर उसने उन सब को घर जाने के लिए कहा, और वे अपने घर चले गए।
\s5
\c 20
\p
\v 1 इफिसुस के लोगों द्वारा दंगा करना बंद कर देने के बाद, पौलुस ने विश्वासियों को एक साथ बुलाया। उसने उनसे प्रभु यीशु पर भरोसा बनाए रखने का आग्रह किया। इसके तुरंत बाद, उसने उन्हें "अलविदा" कहा और मकिदुनिया के क्षेत्र में जाने के लिए निकल गया।
\v 2 जब वह वहाँ पहुँचा, तो उसने उनसे प्रभु यीशु पर भरोसा बनाए रखने का आग्रह किया। फिर वह यूनान चला गया।
\v 3 वह यूनान में तीन महीने तक रहा। फिर उसने जहाज से सीरिया लौटने की योजना बनाई, लेकिन उसने सुना कि कुछ यहूदी वहाँ उसकी यात्रा में उसे मार डालने की योजना बना रहे थे। इसलिए उसने थल मार्ग से जाने का निर्णय लिया, और फिर से मकिदुनिया होकर गया।
\s5
\v 4 जो लोग उसके साथ यरूशलेम जाने के लिये यात्रा करने जा रहे थे, वे थे, सोपत्रुस, जो पुरूर्स का पुत्र था और बिरीया शहर से था; अरिस्तर्खुस और सिकुन्दुस, जो थिस्सलुनीके शहर से थे; गयुस, जो दिरबे शहर से था; तीमुथियुस, जो गलातिया के क्षेत्र से था; और तुखिकुस और त्रुफिमुस, जो आसिया के प्रांत से थे।
\v 5 ये सात लोग मकिदुनिया से जहाज पर पौलुस और मेरे, लूका, से आगे निकल गए, इसलिए हमसे पहले वे त्रोआस शहर में पहुँच गए और हम दोनों की प्रतीक्षा की।
\v 6 परन्तु पौलुस और मैं ने फिलिप्पी शहर तक थल मार्ग द्वारा यात्रा की। यहूदियों के बिना खमीर की रोटी वाले पर्व के बाद, हम एक जहाज पर चढ़ गए जो त्रोआस शहर जा रहा था। पाँच दिन के बाद हम त्रोआस में पहुँचे और हम से आगे जाने वाले अन्य साथियों से मिले। तब हम सब सात दिन तक त्रोआस में रहे।
\p
\s5
\v 7 सप्ताह के पहले दिन, हम एक साथ एकत्र होते थे और हम अन्य विश्वासियों के साथ भोजन साझा करते थे। पौलुस ने विश्वासियों से आधी रात तक बात की, क्योंकि वह अगले दिन त्रोआस छोड़ने की योजना बना रहा था।
\v 8 ऊपरी कमरे में जिसमें हम एकत्र हुए थे वहाँ कई तेल के दीये जल रहे थे।
\s5
\v 9 वहाँ यूतुखुस नाम का एक युवक था। वह घर की तीसरी मंजिल पर खुली खिड़की की चौखट पर बैठा था। क्योंकि पौलुस लम्बे समय तक बातें कर रहा था, यूतुखुस को नींद आने लगी। अंत में, वह सो गया। वह खिड़की से भूमि पर गिर गया। कुछ विश्वासी तुरंत नीचे गए और उसे उठा लिया। लेकिन वह मर गया था।
\v 10 पौलुस भी नीचे चला गया। वह उस जवान व्यक्ति के ऊपर लेट गया और अपने हाथ उसके चारों ओर डालकर उसे गले लगा लिया। फिर उसने उन लोगों से कहा जो चारों ओर खड़े थे, "चिंता न करो, वह फिर से जीवित है!"
\s5
\v 11 पौलुस फिर से ऊपर चला गया और उसने भोजन तैयार किया और उसने उसे खाया। बाद में वह विश्वासियों के साथ बातें कर रहा था जब तक कि सूरज उग नहीं गया। फिर वह चला गया।
\v 12 अन्य लोग उस जवान को घर ले गए, और बहुत शान्ति पाई क्योंकि वह फिर से जीवित था।
\p
\s5
\v 13 तब हम जहाज पर चढ़ गए। परन्तु पौलुस त्रोआस में हमारे साथ जहाज पर नहीं चढ़ा, क्योंकि वह थल मार्ग द्वारा अतिशीघ्र अस्सुस नगर को जाना चाहता था। शेष हम सब जहाज पर चढ़ कर अस्सुस के लिए रवाना हुए।
\v 14 हम अस्सुस में पौलुस से मिले। वह हमारे साथ जहाज पर चढ़ गया, और हम मितुलेने शहर में जाने के लिए रवाना हुए।
\s5
\v 15 एक दिन बाद हम मितुलेने पहुँचे, हम वहाँ से रवाना हुए और खियुस द्वीप के पास एक जगह पर पहुँचे। उसके एक दिन के बाद, हम सामुस द्वीप के लिए रवाना हुए। अगले दिन हम ने सामुस छोड़ दिया और मीलेतुस शहर के लिए रवाना हुए।
\v 16 मीलेतुस इफिसुस शहर के दक्षिणी कोने में था। पौलुस इफिसुस में नहीं रुकना चाहता था क्योंकि वह आसिया में समय नहीं बिताना चाहता था। यदि संभव होता, तो वह पिन्तेकुस्त के पर्व के समय तक यरूशलेम में पहुँचना चाहता था, और उस पर्व का समय निकट था।
\p
\s5
\v 17 जब मीलेतुस में जहाज पहुँचा, तो पौलुस ने एक दूत इफिसुस को भेजा, ताकि विश्वासियों के समूह के प्राचीन वहां आकर उसके साथ बात कर सके।
\p
\v 18 जब प्राचीन उसके पास आए, तो पौलुस ने उनसे कहा, "पहले ही दिन से जब मैं यहाँ आसिया के प्रांत में पहुँचा था, तब से लेकर वहाँ से निकलने के दिन तक, तुम्हें पता है कि मैंने तुम्हारे बीच में उस पूरे समय कैसा व्यवहार किया जब मैं तुम्हारे साथ था।
\v 19 तुम जानते हो कि कैसे मैं प्रभु यीशु की सेवा बहुत नम्रता से कर रहा था और कैसे कभी-कभी मैं रोता था। तुम यह भी जानते हो कि मुझे कैसा दु:ख उठाना पड़ा क्योंकि यहूदी जो विश्वासी नहीं थे, उन्होंने मुझे सदैव हानि पहुँचाने का प्रयास किया।
\v 20 तुम यह भी जानते हो कि, जब मैंने तुमको परमेश्वर का संदेश सुनाया था, तो मैंने तुमसे कभी ऐसा कुछ नहीं छिपाया जिससे तुम्हारी सहायता होती। तुम जानते हो कि मैंने तुमको कई लोगों के साथ परमेश्वर का संदेश सुनाया था और मैं तुम्हारे घर भी गया था और वहाँ तुमको शिक्षा दी थी।
\v 21 मैं यहूदियों और गैर-यहूदियों दोनों को उपदेश देता था और उन सब से कहता था कि उन्हें अपने पापी व्यवहार से दूर हो जाना चाहिए और हमारे प्रभु यीशु पर विश्वास करना चाहिए।"
\p
\s5
\v 22 "और अब मैं यरूशलेम जा रहा हूँ, क्योंकि पवित्र आत्मा ने मुझे स्पष्ट रूप से दिखाया है कि मुझे वहाँ जाना चाहिए, और मुझे उनका आज्ञापालन करना है। मुझे नहीं पता कि वहाँ मेरे साथ क्या होगा?
\v 23 परन्तु मुझे पता है कि हर एक शहर में जहाँ मैंने भ्रमण किया है, पवित्र आत्मा ने मुझे बताया है कि यरूशलेम में लोग मुझे बंदीगृह में डाल देंगे और मुझे पीड़ा पहुचाएंगे।
\v 24 परन्तु यदि लोग मुझे मार भी डालते हैं तो मुझे चिंता नहीं है, यदि पहले मैं उस कार्य को पूरा करने में सक्षम हूँ जो प्रभु यीशु ने मुझे करने को कहा था। उन्होंने मुझे लोगों को यह सुसमाचार देने के लिए बुलाया कि परमेश्वर हमको अपने काम के द्वारा बचाते हैं, जिसके हम योग्य नहीं हैं।
\s5
\v 25 मैंने तुमको यह संदेश दिया है कि परमेश्वर कैसे स्वयं को राजा के रूप में प्रकट करेंगे। परन्तु अब मुझे पता है कि आज यह अंतिम बार है जब तुम साथी विश्वासी मुझे देखोगे।
\v 26 तो मैं यह चाहता हूँ कि तुम सब यह समझो कि अगर किसी ने मुझे प्रचार करते सुना है और वह यीशु पर विश्वास किए बिना मर जाता है, यह मेरी गलती नहीं है,
\v 27 क्योंकि मैंने तुमको वह सब बातें बताईं है जिसकी परमेश्वर ने हमारे लिए योजना बनाई है।
\s5
\v 28 तुम अगुवों को परमेश्वर के संदेश पर विश्वास करते रहना और उनका पालन भी करते रहना है। तुमको उन सब विश्वासियों की सहायता भी करनी चाहिए जिन्हें पवित्र आत्मा ने तुम्हें सौंपा है कि तुम उनकी देखभाल करो। जैसे चरवाहा अपनी भेड़ों की रखवाली करता है, वैसे स्वयं की और प्रभु के विश्वासियों के समूह की रखवाली करो। परमेश्वर ने क्रूस पर अपने पुत्र के शरीर से बहने वाले लहू से उन्हें खरीदा है।
\v 29 मैं भलीभांति जानता हूँ कि मेरे जाने के बाद, जो लोग झूठी शिक्षाएँ देते हैं वे तुम्हारे बीच में आ जाएँगे और विश्वासियों को बहुत हानि पहुँचाएँगे। वे भयंकर भेड़ियों की तरह होंगे जो भेड़ को मारते हैं।
\v 30 यहाँ तक कि तुम्हारे अपने अगुवों के समूह में कुछ ऐसे लोग होंगे जो विश्वासियों को गलत बातें सिखाने के द्वारा उनसे झूठ बोलेंगे। वे उन संदेशों को सिखाएँगे जिससे कि कुछ लोग उन पर विश्वास करेंगे और उनके अनुयायी बन जाएँगे।
\s5
\v 31 तो सावधान रहो कि तुम में से कोई भी हमारे प्रभु यीशु के बारे में सच्चे संदेश पर विश्वास करने से न चुके! याद रखो कि तीन साल तक दिन और रात, मैंने तुम्हें इस संदेश के बारे में सिखाया और तुमको परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य होने के लिए आँसुओं के साथ चेतावनी दी।"
\p
\v 32 "अब जब मैं तुम्हें छोड़ कर जाता हूँ मैं परमेश्वर से तुम्हारी सुरक्षा करने के लिए प्रार्थना करता हूँ और इस संदेश पर तुम्हारे विश्वास को स्थिर रखने के लिये प्रार्थना करता हूँ कि परमेश्वर हमको अपने काम के द्वारा बचाते हैं, जिसके हम योग्य नहीं हैं। अगर तुम उस संदेश पर विश्वास करते रहो जो मैंने तुमको बताया, तो तुम दृढ हो जाओगे, और परमेश्वर तुम्हें सदा के लिए वह अच्छी वस्तुएँ देंगे जो उन्होंने उन सब को देने की प्रतिज्ञा कि है जो उनके लोग हैं।
\p
\s5
\v 33 अपने बारे में कहूँ तो, मैंने कभी भी किसी के पैसे या अच्छे कपड़ों को नहीं चाहा था।
\v 34 तुम स्वयं जानते हो कि मैंने अपनी और अपने मित्रों की आवश्यकता के लिए पैसा कमाने के लिए अपने हाथों से काम किया है।
\v 35 इन सब कामों में जो मैंने किये, मैंने तुमको दिखाया कि हमें कठोर परिश्रम करके पैसा कमाना चाहिए ताकि आवश्यक्ता में पड़े लोगों को देने के लिए तुम्हारे पास पर्याप्त पैसे हो। हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारे प्रभु यीशु ने स्वयं कहा था, 'एक व्यक्ति अधिक प्रसन्न तब होता है जब वह दूसरों को देता है, अपेक्षा इसके कि जब वह उनसे लेता है।'
\p
\s5
\v 36 जब पौलुस बोलना समाप्त कर चुका, तो उसने सभी प्राचीनों के साथ घुटने टेक कर प्रार्थना की।
\v 37 वे सब बहुत रोए, और उन्होंने पौलस को गले लगाया और उसे चूमा।
\v 38 वे बहुत उदास थे क्योंकि उसने कहा था कि वे उसे फिर कभी नहीं देखेंगे। तब वे सब उसके साथ जहाज तक गए।
\s5
\c 21
\p
\v 1 इफिसुस के प्राचीनों को अलविदा कहने के बाद, हम जहाज़ पर चढ़ गए और कोस के द्वीप जाने के लिये जलयात्रा की, जहाँ रात के लिए जहाज़ रुक गया। अगले दिन हम जहाज़ से कोस से रुदुस द्वीप तक गए, जहाँ जहाज़ फिर से रुक गया। एक दिन बाद हम पतरा शहर में गए, जहाँ जहाज़ ठहर गया।
\v 2 पतरा पर हम ने उस जहाज़ को छोड़ दिया, और किसी ने हमें बताया कि वहाँ एक जहाज़ था जो फीनीके क्षेत्र में जाएगा। तो हम उस जहाज़ पर चढ़ गए, और जहाज़ चल दिया।
\s5
\v 3 जब तक कि हम ने साइप्रस द्वीप को नहीं देखा, हमने समुद्र से होकर यात्रा की। हम द्वीप के दक्षिणी भाग से होकर निकले और जब तक कि हम फीनीके क्षेत्र में न पहुँचे, जो सीरिया प्रांत के सोर शहर में है, तब तक जहाज़ आगे बढ़ता रहा। जहाज़ वहाँ कई दिनों तक ठहरने जा रहा था क्योंकि इसके कर्मचारियों को जहाज़ में से माल उतारना था।
\p
\v 4 किसी ने हमें बताया कि सोर में रहनेवाले विश्वासी कहाँ रहते थे, इसलिए हम वहां गए और सात दिन तक उनके साथ रहे। क्योंकि परमेश्वर के आत्मा ने उन्हें बताया कि लोग यरूशलेम में पौलुस को पीड़ित करेंगे, उन्होंने पौलुस से कहा कि उसे वहाँ नहीं जाना चाहिए।
\s5
\v 5 परन्तु जब जहाज़ के चलने का समय था, तो हम अपने मार्ग पर यरूशलेम जाने को तैयार थे। जब हम ने सोर को छोड़ा, तो सभी पुरुष और उनकी पत्नियाँ और बच्चे समुद्र के किनारे तक हमारे साथ गए। हम सब ने रेत पर घुटने टेक कर प्रार्थना की।
\v 6 तब हम सब ने अलविदा कहा और पौलुस और हम, उसके साथी जहाज़ पर चढ़ गए, और अन्य विश्वासी अपने घरों को वापस लौट गए।
\p
\s5
\v 7 सोर छोड़ने के बाद, हम ने उस जहाज़ पर पतुलिमयिस शहर की ओर आगे बढ़ते रहे। वहाँ विश्वासी थे, और हम ने उन्हें नमस्कार किया और उस रात उनके साथ रहे।
\v 8 अगले दिन हम ने पतुलिमयिस छोड़ दिया और कैसरिया शहर के लिये रवाना हुए, जहाँ हम फिलिप्पुस के घर में रहे, जो अपना समय दूसरों को यह बताने में बिताया करता था कि यीशु के अनुयायी कैसे बनें। वह उन सात व्यक्तियों में से एक था, जिन्हें यरूशलेम में विश्वासियों ने विधवाओं की देखभाल करने के लिए चुना था।
\v 9 उसकी चार बेटियाँ थीं जिनकी शादी नहीं हुई थी। उनमें से हर एक उन संदेशों को सुनती थीं जो पवित्र आत्मा उन्हें बताते थे।
\p
\s5
\v 10 फिलिप्पुस के घर में कई दिनों तक रहने के बाद, एक विश्वासी जिसका नाम अगबुस था यहूदिया जिले से कैसरिया में आया। वह उन संदेशों को बोलता था जो पवित्र आत्मा उसे बताते थे।
\v 11 जहाँ हम थे, वहाँ आकर उसने पौलुस के कमरबंद को ले लिया। फिर उसने अपने पैरों और हाथों को उससे बाँध दिया और कहा, पवित्र आत्मा कहते हैं, 'यरूशलेम के यहूदी अगुवे इस कमरबंद के मालिक के हाथों और पैरों को इस प्रकार से बाँधेंगे, और वे उसे गैर-यहूदी लोगों के हाथों में एक बन्दी के रूप में सौंप देंगे।'
\s5
\v 12 जब हम सब ने यह सुना तो हम ने और अन्य विश्वासियों ने पौलुस से कहा, "कृपया यरूशलेम को मत जाओ!"
\v 13 परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, "कृपया रोना बंद करो और मुझे जाने से निराश करने का प्रयास मत करो! तुम क्यों रो रहे हो और मुझे जाने से रोकने का प्रयास क्यों कर रहे हो? मैं बन्दिग्रह में जाने और यरूशलेम में मरने के लिए भी तैयार हूँ क्योंकि मैं प्रभु यीशु की सेवा करता हूँ।"
\v 14 जब हमें मालूम हो गया कि वह यरूशलेम अवश्य जाएगा, तो हम ने उसे रोकने के लिए और कोई प्रयास नहीं किया। हमने कहा, "परमेश्वर की इच्छा पूरी हो!"
\p
\s5
\v 15 कैसरिया में बिताए उन दिनों के बाद, हमने अपना सामान तैयार किया और भूमि के मार्ग से यरूशलेम जाने के लिए चल दिये।
\v 16 कैसरिया के कुछ विश्वासी भी हमारे साथ आए थे। वे हमें एक व्यक्ति के घर में रहने के लिए ले गए, जिसका नाम मनासोन था। वह साइप्रस के द्वीप से था, और जब लोगों ने पहली बार यीशु के संदेश के बारे में सुनना शुरू किया, तभी उसने यीशु पर विश्वास किया था।
\p
\s5
\v 17 जब हम यरूशलेम पहुँचे, तो विश्वासियों के एक समूह ने सहर्ष हमारा अभिवादन किया।
\v 18 अगले दिन वहाँ की कलीसिया के अगुवे याकूब से बात करने के लिए पौलुस और हम सब गए। यरूशलेम की कलीसिया के सभी अन्य अगुवे भी वहाँ उपस्थित थे।
\v 19 पौलुस ने उन्हें नमस्कार किया, और फिर उसने उनको वे सब बातें बताईं जिनको परमेश्वर ने उसे गैर-यहूदी लोगों के बीच करने में सक्षम बनाया था।
\s5
\v 20 जब उन्होंने यह सुना, तो याकूब और अन्य प्राचीनों ने परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर उनमें से एक ने पौलुस से कहा, "हे भाई, तुम जानते हो कि यहाँ हम कई हजार यहूदी लोग हैं जिन्होंने प्रभु यीशु पर विश्वास किया है। इसके अतिरिक्त, तुम जानते हो कि हम सभी उन नियमों का पालन करने के लिए बहुत सावधानी से चलते हैं जो मूसा ने हमें दिये थे।
\v 21 परन्तु हमारे साथी यहूदी विश्वासियों को यह बताया गया है कि जब तुम गैर-यहूदियों के बीच में होते हो, तो तूम ने वहाँ रहने वाले यहूदियों विश्वासियों को कहा है कि वे मूसा के नियमों का पालन करना बंद कर दें। लोग कहते हैं कि तूम ने उन यहूदी विश्वासियों को कहा है कि वे अपने पुत्रो का खतना न करें और हमारे दूसरे नियमों का पालन न करें। हमें विश्वास नहीं है कि वे तुम्हारे बारे में सच कह रहे हैं।
\s5
\v 22 परन्तु हमारे साथी यहूदी विश्वासी सुनेंगे कि तुम आए हो, और वे तुमसे क्रोधित होंगे। तो तुमको कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे यह प्रकट हो कि उन्होंने जो तुम्हारे बारे में सुना है वह सच नहीं है।
\v 23 तो कृपया वैसा करो जैसा हम तुम्हें सुझाव दे रहे हैं। हमारे बीच में चार पुरुष हैं जिन्होंने परमेश्वर से एक प्रतिज्ञा की है।
\v 24 इन लोगों के साथ आराधनालय में जाओ और वहाँ आराधनालय में आराधना करने के लिये तुम्हारे और इनके लिये आवश्यक संस्कारों को करो। फिर, जब उनके लिए बलि चढ़ाने का समय होता है, तो जो भी बलिदान वे लाते हैं उसके पैसों का भुगतान कर। उसके बाद, वे यह दिखाने के लिए अपने सिरों का मूण्डन कर सकते हैं कि उन्होंने जो करने की शपथ खाई थी उसे पूरा किया है। जब लोग तुमको उन पुरुषों के साथ आराधनालय के आंगनों में देखते हैं, तो वे जान लेंगे कि तुम्हारे बारे में जो कुछ कहा गया है वह सच नहीं है। और उन सब को पता चल जाएगा कि तुम हमारे सभी यहूदी नियमों का पालन करते हो।
\s5
\v 25 गैर-यहूदी विश्वासियों के लिए, यहाँ हम यरूशलेम के प्राचीनों ने इस बारे में बात की है कि उन्हें हमारे कौन से नियमों का पालन करना चाहिए, और हमने क्या निर्णय किया है उनको यह बताने के लिये हमने उन्हें एक पत्र लिखा था। हमने लिखा था कि उन लोगों को किसी भी मूर्ति को बलिदान के रूप में चढ़ाए गए माँस को नहीं खाना चाहिए, उन्हें जानवरों का लहू नहीं खाना चाहिए और उन्हें ऐसे जानवरों का माँस नहीं खाना चाहिए, जिन्हें लोगों ने गला घोंट कर मार दिया है। हमने उन्हें यह भी बताया है कि उन्हें किसी ऐसे के साथ नहीं सोना चाहिए जिससे उन्होंने शादी नहीं की है।"
\v 26 इसलिए उन्होंने जो कुछ कहा, वह करने के लिए पौलुस सहमत हो गया, और अगले दिन उसने चार लोगों को साथ लिया, और उन्होंने एक साथ अपने आप को शुद्ध किया। उसके बाद, पौलुस आराधनालय के आंगन में गया और याजक को बताया कि उनके शुद्ध होने के दिन कब समाप्त होंगे और कब वे अपने में से हर एक के लिए बलिदान के रूप में पशुओं को लाएँगे।
\p
\s5
\v 27 जब अपने आप को शुद्ध करने के लगभग सात दिन समाप्त होने पर थे, तो पौलुस आराधनालय के आंगन में वापस आया। आसिया के कुछ यहूदियों ने उसे वहाँ देखा, और वे उस पर बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने पौलुस को पकड़ने में सहायता करने के लिए आराधनालय के आंगन में उपस्थित कई यहूदियों को बुलाया।
\v 28 वे चिल्लाए, "हे साथी इस्राएलियों, आओ और हमें इस पुरुष को दण्ड देने में हमारी सहायता करो! यह वही है जो जहाँ भी जाता है वहां के लोगों को सिखा रहा है, कि वे यहूदी लोगों से घृणा करें। वह लोगों को सिखाता है कि उन्हें अब मूसा के नियमों का पालन नहीं करना चाहिए और न ही इस पवित्र आराधनालय का सम्मान करना चाहिए। यहाँ तक कि वह गैर-यहूदियों को यहाँ हमारे आराधनालय के आंगन में भी लाया है, जिससे यह स्थान अशुद्ध हो गया है!"
\v 29 उन्होंने यह इसलिये कहा था क्योंकि उन्होंने पौलुस को त्रुफिमुस के साथ यरूशलेम में घूमते देखा था, जो एक गैर-यहूदी था। उनके नियम गैर-यहूदियों को आराधनालय में आने की अनुमति नहीं देते, और उन्हें ऐसा लगा कि पौलुस उस दिन त्रुफिमुस को आराधनालय के आंगन में ले आया था।
\s5
\v 30 पूरे शहर के लोगों ने सुना कि आराधनालय के आंगन में गड़बड़ है, और वे दौड़ते हुए वहाँ आने लगे। उन्होंने पौलुस को पकड़ा और उसे आराधनालय परिसर के बाहर घसीट कर ले गए। आराधनालय के आंगन के द्वार बंद कर दिये गए थे, ताकि लोग आराधनालय परिसर में उपद्रव न करें।
\p
\v 31 जबकि वे पौलुस को मार डालने का प्रयास कर रहे थे, तो कोई आराधनालय के पास चौकी तक दौड़ा और रोमी सरदार को बताया कि यरूशलेम में बहुत से लोग आराधनालय में उपद्रव कर रहे थे।
\s5
\v 32 सरदार ने तुरंत कुछ अधिकारियों और सैनिकों के एक बड़े समूह को ले लिया और आराधनालय परिसर जाने के लिये दौड़ा जहाँ भीड़ थी। जब लोगों की भीड़ जो चिल्ला रहे थे और पौलुस को पीट रहे थे, उन्होंने सरदार और सैनिकों को आते देखा, तो उन्होंने उसे पीटना बंद कर दिया।
\p
\v 33 वह सरदार वहाँ आया जहाँ पौलुस था और उसे पकड़ लिया। उसने सैनिकों को पौलुस के दोनों हाथों को एक जंजीर से बाँधने का आदेश दिया। फिर उसने भीड़ के लोगों से पूछा, "यह व्यक्ति कौन है, और इसने क्या किया है?"
\s5
\v 34 भीड़ के लोगों में से कुछ एक बात चिल्ला रहे थे, और दूसरे कुछ और चिल्ला रहे थे। क्योंकि वे इतनी जोर से निरन्तर चिल्लाते रहे, सरदार समझ नहीं सका कि वे क्या कह रहे थे। इसलिए उसने कहा कि पौलुस को चौकी में ले जाया जाए ताकि वह वहाँ पर उससे प्रश्न कर सके।
\v 35 सैनिक पौलुस को लेकर चौकी की सीढ़ियों पर गए, परन्तु बहुत से लोग पौलुस को मार डालने के प्रयास में उसका पीछा करते रहे। इसलिए सरदार ने सैनिकों से कहा कि वह पौलुस को सीढ़ियों पर से चौकी में ले जाएँ।
\v 36 उसका पीछा करने वाली भीड़ लगातार चिल्लाती रही, "उसे मार डालो! उसे मार डालो!"
\p
\s5
\v 37 जब पौलुस को चौकी में ले जाया जा रहा था, उसने यूनानी भाषा में सरदार से कहा, "क्या मैं तुमसे बात कर सकता हूँ?" सरदार ने कहा, "मुझे आश्चर्य है कि तू यूनानी भाषा बोल सकता है!
\v 38 मैंने सोचा था कि तू मिस्र का वह व्यक्ति है जो कुछ समय पहले सरकार के विरुद्ध विद्रोह करना चाहता था, और जो चार हजार हिंसक पुरुषों को अपने साथ रेगिस्तान में ले गया, ताकि हम उसे पकड़ न सकें।
\s5
\v 39 पौलुस ने उत्तर दिया, "नहीं, मैं वह नहीं हूँ, मैं एक यहूदी हूँ। मैं तरसुस में पैदा हुआ था, जो किलिकिया प्रांत का एक महत्वपूर्ण शहर है। मैं तुझसे अनुरोध करता हूँ कि तू मुझे लोगों से बात करने दे।"
\v 40 तब सरदार ने पौलुस को बात करने की अनुमति दी। इसलिए पौलुस सीढ़ियों पर खड़ा हो गया और लोगों को चुप रहने के लिए अपने हाथ से इशारा किया। और जब भीड़ में लोग शांत हो गए, तो उनकी इब्रानी भाषा में पौलुस ने उनसे बात की।
\s5
\c 22
\p
\v 1 पौलुस ने कहा, "हे यहूदी अगुवों और मेरे साथी यहूदियों, अब मेरी बात सुनो जब मैं उनसे बात करता हूँ जो मुझ पर आरोप लगा रहे हैं!"
\v 2 जब लोगों की भीड़ ने पौलुस को अपनी इब्रानी भाषा में उनसे बोलते हुए सुना, तो वे चुप हो गए और सुनने लगे। तब पौलुस ने उनसे कहा,
\s5
\v 3 "मैं एक यहूदी हूँ, जैसा कि तुम सब हो। मैं किलिकिया प्रांत के तरसुस शहर में पैदा हुआ था, लेकिन मैं यहाँ यरूशलेम में बड़ा हुआ था। जब मैं छोटा था, तब मैंने उन नियमों को सीखा जो मूसा ने हमारे पूर्वजों को दिए थे। गमलीएल मेरा शिक्षक था। मैंने उन नियमों का पालन किया क्योंकि मैं परमेश्वर की आज्ञा मानना चाहता था, और मुझे निश्चय है कि तुम सब भी उन नियमों का पालन करते हो।
\v 4 इसीलिए मैंने उन लोगों को गिरफ्तार करने का प्रयास किया जिन्होंने यीशु के बारे में परमेश्वर के संदेश पर विश्वास किया था। मैंने उन्हें मार डालने की विधियों की खोज की। जब भी मुझे ऐसे पुरुष या स्त्रीयां मिले जिन्होंने संदेश पर विश्वास किया था, मैंने उन्हें बन्दिग्रह में डाल दिया।
\v 5 महायाजक और अन्य लोग भी जो हमारी यहूदी परिषद से सम्बन्धित हैं, इस बात को जानते हैं। उन्होंने मुझे दमिश्क शहर में उनके साथी यहूदियों के पास जाने के लिए पत्र दिए। उन पत्रों में मुझे वहाँ जाकर यीशु पर विश्वास करने वाले लोगों को गिरफ्तार करने का अधिकार दिया गया था। तब मुझे उन्हें बन्दी बनाकर यरूशलेम में लेकर आना था, ताकि उन्हें यहाँ दण्ड दिया जाए।
\p
\s5
\v 6 तो मैं दमिश्क गया। लगभग दोपहर को, जैसे ही मैं दमिश्क के पास पहुँचा, अचानक आकाश से एक तीव्र प्रकाश मेरे चारों ओर चमका।
\v 7 वह प्रकाश इतना उज्ज्वल था कि मैं भूमि पर गिर पड़ा। फिर मैंने आकाश से किसी की आवाज़ को सुना, जो मुझसे बात कर रहे थे, यह कह कर, 'हे शाऊल! हे शाऊल! तू मुझे दु:ख देने के लिए काम क्यों करता है? '
\v 8 मैंने उत्तर दिया, 'हे प्रभु, आप कौन हैं?' उन्होंने उत्तर दिया, 'मैं नासरत का यीशु हूँ जिसे तू चोट पहुँचा रहा है।'
\s5
\v 9 मेरे साथ यात्रा करने वाले पुरूषों ने तीव्र प्रकाश तो देखा, परन्तु वे समझ नहीं पाए कि आवाज ने क्या कहा।
\v 10 तब मैंने पूछा, 'हे प्रभु, आप मुझसे क्या करवाना चाहते हैं?' प्रभु ने मुझसे कहा, 'उठ और दमिश्क में जा। वहाँ एक व्यक्ति तुझे सब बताएगा कि मैंने तुम्हारे लिए क्या करने की योजना बनाई है।'
\v 11 उसके बाद, मैं नहीं देख सकता था, क्योंकि उस तीव्र प्रकाश ने मुझे अंधा बना दिया था। इसलिए मेरे साथ वाले लोग मेरा हाथ पकड़कर मुझे दमिश्क ले गए।
\s5
\v 12 एक व्यक्ति मुझसे मिलने आया जिसका नाम हनन्याह था। वह एक ऐसा व्यक्ति था जो परमेश्वर का आदर करता था और यहूदी नियमों का पालन करता था। दमिश्क में रहने वाले सब यहूदियों ने उसके बारे में अच्छी बातें कहीं।
\v 13 वह आया और मेरे पास खड़ा हो गया और मुझसे कहा, 'मेरे मित्र शाऊल, फिर से देखने लग !' मैं तुरन्त देखने लगा और मैंने उसे मेरे पास खड़े देखा।
\s5
\v 14 फिर उसने कहा: 'जिस परमेश्वर की हम आराधना करते हैं और जिनकी हमारे पूर्वजों ने आराधना की है उन्होंने तुझे चुना है और वह तुझे दिखाएँगे कि वे तुझसे क्या करवाना चाहते हैं। उन्होंने तुझे यीशु मसीह को दिखाया है जो धर्मी हैं, और तुने स्वयं उन्हें बाते करते सुना है।
\v 15 वह चाहते हैं कि तू ने जो देखा और सुना है उसे स्थानों के लोगो को बता।
\v 16 तो अब देरी मत कर! खड़ा हो जा, मुझे तुझे बपतिस्मा देने दे, और प्रभु यीशु से प्रार्थना करने दे और परमेश्वर से कहने दे कि वे तुझे तेरे पापों के लिए क्षमा कर दें।
\p
\s5
\v 17 "बाद में, मैं यरूशलेम लौट आया। एक दिन मैं आराधनालय के आंगन में गया और जब मैं वहाँ प्रार्थना कर रहा था, तो मैंने एक दर्शन देखा।
\v 18 प्रभु ने मुझसे कहा, 'यहाँ रुका ना रह! यरूशलेम को अब छोड़ दे, क्योंकि जो तू मेरे बारे में यहाँ के लोगों को बताएगा उस पर वे विश्वास नहीं करेंगे!'
\s5
\v 19 परन्तु मैंने प्रभु से कहा, हे प्रभु, वे जानते हैं कि मैं उन लोगों की जो आप पर विश्वास करते हैं, खोज में उनके अनेक आराधनालयों में गया था। मैं उन लोगों को बन्दिग्रह में डाल रहा था जिन्हें मैंने पाया कि उन्होंने आप पर विश्वास किया है, और यहाँ तक कि मैं उनको पीट भी रहा था।
\v 20 उन्हें याद है कि जब स्तिफनुस को मार डाला था, क्योंकि उसने लोगों को आपके बारे में बताया था, मैं वहाँ खड़ा हुआ देख रहा था और जो वे कर रहे थे उसे सहमति दे रहा था। यहाँ तक कि जो लोग उसकी हत्या कर रहे थे, मैंने उन लोगों के फेंके हुए बाहरी कपड़ों की रखवाली की!
\v 21 परन्तु प्रभु ने मुझ से कहा, नहीं, यहाँ नहीं रुकना। यरूशलेम को छोड़ दे, क्योंकि मैं तुझे यहाँ से बहुत दूर दूसरे लोगों के समूह, गैर-यहूदियों के पास भेजने वाला हूँ।"
\p
\s5
\v 22 पौलुस जो कह रहा था उसे लोगों ने सुना जब तक कि उसने अन्य जातियों में भेजे जाने के बारे में बात नहीं की। फिर उन्होंने चिल्लाना शुरू कर दिया, "उसे मार डालो! उसे अब जीने का अधिकार नहीं है!"
\v 23 जब वे चिल्ला रहे थे, तो उन्होंने अपने बाहरी कपड़े उतार दिए और धूल को हवा में फेंका, जिससे प्रकट होता था कि वे कितने क्रोधित थे।
\v 24 इसलिए अगुवे ने आज्ञा दी कि पौलुस को बन्दिग्रह में ले जाया जाए। उसने सैनिकों से कहा कि उन्हें पौलुस को कोड़े मारने चाहिए ताकि वह बताए कि उसने ऐसा क्या किया था जिससे उसने यहूदियों को इतना क्रोध दिलाया था।
\s5
\v 25 तब उन्होंने उसके हाथों को आगे बढ़ाकर उन्हें बांध दिया ताकि वे उसकी पीठ पर कोड़े मार सकें। परन्तु पौलुस ने उसके पास के सैनिक से कहा, "यदि तुम मुझे एक रोमी नागरिक को, जिस पर किसी ने भी मुकदमा नहीं चलाया और न ही अपराधी ठहराया है, मारते हो, तो तुम कानून के विरोध में काम करोगे!"
\v 26 जब अधिकारी ने यह सुना तो वह सरदार के पास गया और उसे इसकी सूचना दी। उसने सरदार से कहा, "यह व्यक्ति एक रोमी नागरिक है! तुम उसे कोड़े मारने के लिए हमें आज्ञा नहीं दोगे!"
\s5
\v 27 जब उसने यह सुना, तब सरदार आश्चर्यचकित हुआ। वह स्वयं बन्दिग्रह में गया और पौलुस से कहा, "मुझे बता, क्या तू वास्तव में एक रोमी नागरिक है?" पौलुस ने उत्तर दिया, "हाँ, मैं हूँ।"
\v 28 तब सरदार ने कहा, "मैं भी एक रोमी नागरिक हूँ। मैंने रोमी नागरिक बनने के लिए बहुत पैसे दिए हैं।" पौलुस ने कहा, "लेकिन मैं जन्म से ही एक रोमी नागरिक हूँ।"
\v 29 सैनिक पौलुस को कोड़े मारने और उससे सवाल पूछने ही वाले थे कि उसने क्या किया था। परन्तु जब पौलुस ने जो कहा वह उन्होंने सुना, तो उन्होंने उसे छोड़ दिया। सरदार भी डर गया, क्योंकि वह जानता था कि पौलुस एक रोमी नागरिक था और जब उसने सैनिकों को पौलुस के हाथों को बांधने का आदेश दिया था तो उसने कानून का उल्लंघन किया था ।
\p
\s5
\v 30 सरदार अब भी जानना चाहता था कि यहूदी पौलुस पर क्यों आरोप लगा रहे थे। इसलिये अगले दिन उसने सैनिकों से पौलुस की जंजीरें खोल देने के लिए कहा। उसने प्रधान याजकों और अन्य परिषद के सदस्यों को भी मिलने के लिए बुलाया था। तब वह पौलुस को वहाँ ले गया जहाँ परिषद की बैठक हो रही थी और उससे उनके सामने खड़े होने के लिये कहा।
\s5
\c 23
\p
\v 1 पौलुस ने यहूदी परिषद के सदस्यों को देखा और कहा: "मेरे साथी यहूदियों, मैंने अपने परमेश्वर का सम्मान करते हुए अपना सारा जीवन व्यतीत किया है, और मुझे ऐसा कुछ भी नहीं पता है कि जो मैंने किया, वह गलत था।"
\v 2 जब हनन्याह महायाजक ने पौलुस की बात सुनी, तो उसने उन लोगों से जो पौलुस के पास खड़े थे कहा कि उसके मुँह पर थप्पड़ मारो।
\v 3 तब पौलुस ने हनन्याह से कहा, "हे ढोंगी, परमेश्वर तुझे उस काम के लिए दण्ड देंगे! तू वहाँ बैठता है और परमेश्वर द्वारा मूसा को दिये गए नियमों के द्वारा मेरा न्याय करता है। लेकिन तू स्वयं उन नियमों का पालन नहीं करता, क्योंकि तूने बिना सिद्ध किये हुए कि मैंने कुछ भी ऐसा किया है जो गलत है, मुझे थप्पड़ मारने की आज्ञा दी है! "
\s5
\v 4 जो लोग पौलुस के समीप खड़े थे, उन्होंने उससे कहा, "तुझे, परमेश्वर के सेवक, हमारे महायाजक को बुरा नहीं बोलना चाहिए!"
\v 5 पौलुस ने उत्तर दिया, "मेरे साथी यहूदियों, मुझे खेद है कि मैंने ऐसा कहा। मुझे नहीं पता था कि वह व्यक्ति जिसने तुम में से एक से कहा कि मुझे थप्पड़ मारे, वह महायाजक है। अगर मुझे यह पता होता, तो मैं हमारे महायाजक के बारे में बुरा नहीं बोलता, क्योंकि मुझे पता है कि हमारे यहूदी व्यवस्था में यह लिखा है, 'अपने किसी भी शासक के बारे में बुरा मत बोलो।'
\p
\s5
\v 6 पौलुस को पता था कि परिषद के कुछ सदस्य सदूकी थे और अन्य फरीसी थे। इसलिए उसने परिषद भवन में कहा, "मेरे साथी यहूदीयों, मैं फरीसी हूँ, और मेरे परिवार में भी सभी फरीसी थे। यहाँ मुझ पर मुकदमा चलाया जा रहा है क्योंकि मुझे यकीन है कि एक दिन परमेश्वर उन लोगों को जो मर गए हैं फिर से जीवित कर देंगे।"
\v 7 जब उसने यह कहा, फरीसियों और सदूकियों ने एक दूसरे के साथ बहस करना शुरू कर दिया कि जो लोग मर चुके हैं क्या वे फिर से जीवित हो जाएँगे या नहीं, और उनमें से प्रत्येक जन दूसरे के साथ विवाद कर रहे थे।
\v 8 सदूकियों का मानना है कि लोगों के मरने के बाद, वे फिर से जीवित नहीं होंगे। वे यह भी मानते हैं कि स्वर्गदूत नहीं हैं और अन्य आत्माएँ नहीं हैं। परन्तु फरीसी इन सब बातों पर विश्वास करते थे।
\s5
\v 9 विवाद करते हुए उन्होंने एक दूसरे पर चिल्लाना शुरू कर दिया। व्यवस्था के कुछ शिक्षक जो फरीसी थे, उठ खड़े हुए। उनमें से एक ने कहा, "हमें लगता है कि इस व्यक्ति ने कुछ भी गलत नहीं किया है। हो सकता है कि एक स्वर्गदूत या किसी अन्य आत्मा ने उससे बात की और जो वह कहता है सच है।"
\v 10 फिर फरीसी और सदूकी एक-दूसरे के साथ हिंसक हो गए। इसलिए सरदार को डर था कि वे पौलुस को टुकड़े टुकड़े कर देंगे। उसने सैनिकों से कहा कि वे बन्दिग्रह ले जाकर पौलुस को परिषद के सदस्यों के पास से निकाल कर ऊपर सैनिकों की छावनी में ले आएँ।
\p
\s5
\v 11 उस रात, पौलुस ने देखा कि प्रभु यीशु आये और उसके पास खड़े हो गए। प्रभु ने उस से कहा, "साहस रख! तूने यहाँ यरूशलेम में लोगों को मेरे बारे में बताया है, और तुझे रोम के लोगों को भी मेरे बारे में बताना होगा।"
\p
\s5
\v 12 अगली सुबह पौलुस से घृणा करने वाले कुछ यहूदियों ने भेंट की और उसे मारने के बारे में बातचीत की। उन्होंने स्वयं से कहा था कि जब तक वह मर नहीं जाएगा, तब तक वे कुछ भी नहीं खाएँगे या पीएँगे। उन्होंने परमेश्वर से उनको शाप देने के लिए कहा, यदि उन्होंने अपनी शपथ पूरी नही की।
\v 13 वे चालीस से अधिक लोग थे जो पौलुस को मारना चाहते थे।
\s5
\v 14 वे प्रधान याजकों और यहूदी प्राचीनों के पास गए और उनसे कहा, "परमेश्वर ने हमें यह शपथ खाते सुना है कि जब तक हम पौलुस को मार न डालें तब तक हम कुछ नहीं खाएँगे या पीएँगे।
\v 15 तो हम तुमसे अनुरोध करते हैं कि तुम सरदार के पास जाओ और यहूदी परिषद की ओर से उससे कहो, कि पौलुस को हमारे पास लाए। सरदार को बताओ कि तुम पौलुस से थोड़ी बात और करना चाहते हो। जब वह यहाँ आने के मार्ग पर होगा तो हम पौलुस को मार डालने के लिये इसकी प्रतीक्षा करेंगे।"
\p
\s5
\v 16 लेकिन पौलुस की बहन के पुत्र ने सुन लिया कि वे क्या करने की योजना बना रहे थे, इसलिए वह गढ़ में गया और पौलुस को बता दिया।
\v 17 जब पौलुस ने यह सुना, तो उसने अधिकारियों में से एक को बुलाया और उससे कहा, "कृपया इस युवक को सरदार के पास ले जाओ, क्योंकि यह उसको कुछ बताना चाहता है।"
\s5
\v 18 तो अधिकारी उस जवान पुरुष को सरदार के पास ले गया। अधिकारी ने सरदार से कहा, "कैदी पौलुस ने मुझे बुलाया और कहा, 'कृपया इस जवान पुरुष को सरदार के पास ले जाओ, क्योंकि यह उसको कुछ बताना चाहता है।'"
\v 19 सरदार ने जवान पुरुष को हाथ से पकड़कर, उसे अपने साथ लेकर चला गया, और उससे पूछा, "तू मुझको क्या बताना चाहता है?"
\s5
\v 20 उसने कहा, "कुछ यहूदी लोग हैं जो कल पौलुस को अपनी परिषद के सामने ले जाना चाहते हैं। वे कहेंगे कि वे उससे थोड़े और सवाल पूछना चाहते हैं। लेकिन यह सच नहीं है।
\v 21 जो काम करने के लिए वे तुमसे कहते हैं, वह मत करना, क्योंकि वहाँ चालीस से अधिक यहूदी लोग हैं, जो छिपे बैठे होंगे और परिषद जाने वाले मार्ग से होकर जाते हुए पौलुस को मारने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यहाँ तक कि उन्होंने परमेश्वर से शपथ खाई है कि जब तक वे पौलुस की हत्या नहीं करते, तब तक वे कुछ भी नहीं खाएँगे या पीएँगे। वे इसे करने के लिए तैयार हैं, और अभी वे तुम्हारे सहमत होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि तू वह करे जो वे तुझसे करने को कह रहे हैं।"
\s5
\v 22 सरदार ने जवान पुरुष से कहा, "किसी को भी नहीं बताना कि तूने मुझे उनकी योजना के बारे में बताया है।" फिर उसने उस जवान पुरुष को भेज दिया।
\p
\v 23 तब सरदार ने अपने दो अधिकारियों को बुलाकर कहा, "दो सौ सैनिकों के एक समूह को यात्रा करने के लिये तैयार करो। सत्तर घोड़ों की सवारी करने वाले सैनिकों को, और दो सौ अन्य भाले वाले सैनिकों को साथ में लो। तुम सभी को आज रात नौ बजे कैसरिया शहर में जाने के लिए निकलने को तैयार रहना है।
\v 24 और पौलुस को सवारी करने के लिए घोड़े साथ लो, और उसे सुरक्षित राज्यपाल फेलिक्स के महल में ले जाओ।"
\s5
\v 25 तब सरदार ने राज्यपाल को भेजने के लिए एक पत्र लिखा। जो उसने लिखा वह यह है:
\v 26 "मैं क्लौदियुस लूसियास तुम्हें पत्र लिख रहा हूँ। तू, फेलिक्स, हमारा राज्यपाल है जिसका हम सम्मान करते हैं, और मैं तुझको मेरा नमस्कार भेजता हूँ।
\v 27 मैंने तेरे पास इस व्यक्ति, पौलुस को भेजा है, क्योंकि कुछ यहूदियों ने उसे पकड़ लिया था और उसे मारने डालने वाले थे। लेकिन मैंने सुना, किसी ने मुझे बताया कि वह एक रोमी नागरिक है, इसलिए मैंने और मेरे सैनिकों ने जाकर उसे बचाया।
\s5
\v 28 मैं यह जानना चाहता था कि ये यहूदी क्या कह रहे थे कि उसने क्या गलत किया था, इसलिए मैं उसे उनकी यहूदी परिषद में ले गया।
\v 29 जब उन्होंने इस व्यक्ति से सवाल पूछे और इसने उन्हें उत्तर दिया, मैं सुना रहा था। जिन बातों के लिये उन्होंने इस पर आरोप लगाया था वह उनके यहूदी कानूनों के बारे में था। लेकिन पौलुस ने हमारे किसी भी रोमी कानून का उल्लंघन नहीं किया है। इसलिए हमारे अधिकारियों को उसको नहीं मारना चाहिए या उसे बन्दिग्रह में भी नहीं डालना चाहिए।
\v 30 किसी ने मुझे बताया कि कुछ यहूदी इस व्यक्ति को मारने की योजना बना रहे थे, इसलिए मैंने इसे तुम्हारे पास भेजा है, ताकि तू वहाँ उसे एक निष्पक्ष सुनवाई दे सके। मैंने उन यहूदियों को भी आज्ञा दी है जिन्होंने उस पर आरोप लगाया है कि वहाँ कैसरिया में जाएँ और तुझको बताएँ कि वे किस बारे में उस पर आरोप लगा रहे हैं। अलविदा।"
\p
\s5
\v 31 अत: सरदार ने जो कुछ उनसे कहा था, सैनिकों ने किया। वे पौलुस को लेकर रात के समय ही अन्तिपत्रिस चले गए।
\v 32 अगले दिन, पैदल सैनिक यरूशलेम को लौट आए, और जो सैनिक घोड़ों पर सवार थे वे पौलुस के साथ चले गए।
\v 33 जब वे कैसरिया शहर में आए, तो उन्होंने राज्यपाल को पत्र दिया, और उन्होंने पौलुस को उसके सामने खड़ा किया।
\s5
\v 34 राज्यपाल ने पत्र पढ़ा और फिर उसने पौलुस से कहा, "तू किस प्रांत से है?" पौलुस ने उत्तर दिया, "मैं किलिकिया से हूँ।"
\v 35 तब राज्यपाल ने कहा, "जब वे लोग जो तुझ पर आरोप लगाते हैं आएंगे, तो मैं तुम में से हर एक की बात को सुनूँगा और फिर मैं तुम्हारे मामले का न्याय करूँगा।" तब उसने आज्ञा दी कि पौलुस उस महल में निगरानी में रखा जाएगा जो महान राजा हेरोदेस ने बनाया था।
\s5
\c 24
\p
\v 1 पाँच दिन बाद, हनन्याह महायाजक यरूशलेम से कुछ अन्य यहूदी प्राचीनों और एक भाषण देने वाले तिरतुल्लुस नाम के व्यक्ति के साथ वहाँ गया। वहाँ उन्होंने राज्यपाल को बताया कि पौलुस ने क्या किया था, जिसके कारण उन्होंने सोचा था कि वह गलत है।
\v 2 राज्यपाल ने आज्ञा दी कि पौलुस को भीतर लाया जाए। जब पौलुस आ गया तो तिरतुल्लुस ने उस पर आरोप लगाना शुरू किया। उसने राज्यपाल से कहा, "माननीय राज्यपाल फेलिक्स, जितने वर्ष तूने हम पर शासन किया है, हम ने अच्छी तरह से जीवन जिया है। बुद्धिमानी से योजना बनाकर, तूने इस प्रांत में कई बातों में सुधार किया है।
\v 3 इसलिए, राज्यपाल फेलिक्स, हम उन सब कामों के लिए सदैव तुम्हारा धन्यवाद करते हैं जो तूने हम सब के लिए किये हैं।
\s5
\v 4 परन्तु मैं तेरा बहुत समय नहीं लूँगा, मैं तुझ से विनती करता हूँ कि जो मुझे कहना है कृपया तू मेरी बात सुने।
\v 5 हमने देखा है कि यह व्यक्ति, जहाँ भी जाता है, यहूदियों के लिए परेशानी उत्पन्न करता है। वह उस पूरे समूह का नेतृत्व भी करता है जिनको लोग नासरी के अनुयायी कहते हैं।
\v 6 उसने यरूशलेम के आराधनालय में ऐसे कामों को करने का प्रयास भी किया की, जिससे वह दूषित हो जाए, इसलिए हमने उसे गिरफ्तार कर लिया।
\s5
\v 8 यदि तू स्वयं उससे प्रश्न करे, तो तू यह जान पाएगा कि यह सब बातें जिनके बारे में हम उस पर आरोप लगा रहे हैं वे सच हैं।
\v 9 तब वहाँ यहूदी अगुवों ने राज्यपाल को बताया कि तिरतुल्लुस ने जो कहा था, वह सच था।
\p
\s5
\v 10 तब राज्यपाल ने अपने हाथ से संकेत करके पौलुस को कहा कि उसे बोलना चाहिए। अत: पौलुस ने उत्तर दिया, "राज्यपाल फेलिक्स, मुझे पता है कि तूने इस यहूदी प्रांत का कई सालों से न्याय किया है। इसलिए मैं सहर्ष अपना बचाव करता हूँ। मुझे पता है कि तू मेरी बात सुनेगा और मेरे साथ उचित न्याय करेगा।
\v 11 तू जानता है कि बारह दिनों से अधिक समय नहीं हुआ है जब मैं यरूशलेम में परमेश्वर की आराधना करने गया था।
\v 12 कोई भी यह नहीं कह सकता कि उन्होंने मुझे आराधनालय के आंगन में किसी के साथ विवाद करते देखा क्योंकि मैंने ऐसा नहीं किया था। कोई भी यह नहीं कह सकता कि उन्होंने मुझे किसी यहूदी आराधनालय में लोगों को दंगा करने के लिये भड़काते या यरूशलेम में कहीं और परेशानी खड़ी करते देखा, क्योंकि मैंने ऐसा नहीं किया।
\v 13 इसलिये वे उन बातों को सिद्ध नहीं कर सकते हैं जिनके बारे में वे अब मुझ पर आरोप लगा रहे हैं।
\s5
\v 14 लेकिन मैं तुम्हारे सामने स्वीकार करता हूँ कि यह सच है: मैं परमेश्वर की आराधना करता हूँ जिनकी हमारे पूर्वजों ने आराधना की थी। यह सच है कि यीशु ने हमें जो सिखाया है, मैं उसका अनुसरण करता हूँ। मुझे उन सब बातों पर भी विश्वास है जो मूसा ने उन नियमों में लिखीं जिसे परमेश्वर ने उसे दिया था और उन सब बातों पर जो अन्य भविष्यद्वक्ताओं ने अपनी पुस्तकों में लिखीं हैं।
\v 15 मैं विश्वास करता हूँ, जैसे इन लोगों को भी विश्वास है, कि किसी दिन परमेश्वर उन सभी को जो मर चुके हैं फिर से जीवित करेंगे, दोनों को जो अच्छे थे और जो दुष्ट थे।
\v 16 क्योंकि मैं विश्वास करता हूँ, कि वह दिन आएगा, इसलिए मैं हमेशा परमेश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करता हूँ और अन्य लोग सोचते हैं कि वे काम सही है।
\s5
\v 17 मैं कई सालों तक अन्य स्थानों में रहने के बाद, अपने साथी यहूदियों के लिये जो गरीब हैं कुछ पैसे लेकर यरूशलेम लौटा।
\v 18 आसिया के कुछ यहूदियों ने मुझे आराधनालय के आंगन में देखा था जब मेरे धार्मिक संस्कार पूरे हुए जो किसी को भी परमेश्वर की आराधना करने के लिए अनुमति मिलती है। मेरे साथ कोई भीड़ नहीं थी, और मैं लोगों को दंगा के लिए भड़का नहीं रहा था।
\v 19 लेकिन ये वही यहूदी थे जिन्होंने लोगों को उपद्रव करने के लिये भड़काया था। यदि उन्हें लगता है कि मैंने कुछ गलत किया हो उन्हें यहाँ तेरे सामने मुझ पर आरोप लगाने के लिए होना चाहिए।
\s5
\v 20 परन्तु अगर वे ऐसा नहीं करना चाहते हैं, तो ये यहूदी व्यक्ति जो यहाँ हैं उन्हें तुझे बताना चाहिए कि उनके विचारों में क्या सोचते हैं कि मैंने गलत किया है, जब मैंने उनकी परिषद में स्वयं का बचाव किया था।
\v 21 वे कह सकते हैं कि मैंने कुछ गलत किया जब मैं चिल्लाया, 'आज तुम मेरा न्याय कर रहे हो क्योंकि मैं विश्वास करता हूँ कि परमेश्वर उन सब लोगों को जो मर गए हैं फिर से जीवित कर देंगे।'
\p
\s5
\v 22 फेलिक्स पहले से ही उस पंथ के बारे में बहुत कुछ जानता था जिसे लोग मार्ग कहते थे, और इसलिए उसने मुकदमे को रोक दिया। उसने उनसे कहा, "बाद में, जब सरदार लूसियास यहाँ आएगा, तो मैं इस मामले का निर्णय करूँगा।"
\v 23 फिर उसने पौलुस की निगरानी करने वाले अधिकारी से कहा कि पौलुस को बन्दिग्रह लौटा ले जाए, कि पौलुस की हर समय निगरानी सुनिश्चित की जाए। लेकिन उसने कहा कि पौलुस को जंजीर में न बाँधा जाए, और अगर उसके मित्र उससे मिलने आए, तो अधिकारी को उन्हें किसी भी प्रकार से पौलुस की सहायता करने की अनुमति दे।
\p
\s5
\v 24 कई दिन बाद फेलिक्स अपनी पत्नी द्रूसिल्ला के साथ जो एक यहूदी थी वापस आ गया, और पौलुस को उसके साथ बात करने के लिए बुलाया। यीशु मसीह पर भरोसा करने के बारे में पौलुस ने उससे जो कहा, फेलिक्स ने सुना।
\v 25 पौलुस ने उसके सामने भी वही कहा कि परमेश्वर क्या चाहते हैं कि लोग करें और वह प्रसन्न हो। उसने उसे यह भी समझाया कि लोगों को किस प्रकार अपने कामों पर नियंत्रण करना चाहिए क्योंकि एक ऐसा समय आएगा जब परमेश्वर सब लोगों का न्याय करेंगे। फेलिक्स उन बातों को सुनकर डर गया, इसलिये उसने पौलुस से कहा, "अभी के लिये मैं बस इतना ही सुनना चाहता हूँ। जब मेरे पास समय होगा, तब मैं तुम्हें फिर से मेरे पास आने को कहूँगा।"
\s5
\v 26 फेलिक्स आशा कर रहा था कि पौलुस उसे कुछ पैसे देगा, इसलिए उसने कई बार पौलुस को अपने सामने बुलवाया। पौलुस ने कई बार फेलिक्स से बात की, परन्तु उसने फेलिक्स को कोई पैसा नहीं दिया, और फेलिक्स पौलुस को बन्दिग्रह से मुक्त करने के लिये सैनिकों को आज्ञा नहीं दी।
\p
\v 27 दो वर्ष बीत जाने पर, फेलिक्स के स्थान पर पुरकियुस फेस्तुस राज्यपाल बन गया। फेलिक्स ने पौलुस को बन्दिग्रह में रख छोड़ा था क्योंकि वह यहूदी अगुवों को खुश करना चाहता था।
\s5
\c 25
\p
\v 1 फेस्तुस ने प्रांत का राज्यपाल होकर शासन करना शुरू किया। तीन दिन बाद, वह कैसरिया शहर से निकल कर यरूशलेम को चला गया।
\v 2 वहाँ, प्रधान याजकों और अन्य यहूदी अगुवे फेस्तुस के समक्ष खड़े हुए और कहा कि पौलुस ने जो काम किये थे वे बहुत गलत थे।
\v 3 उन्होंने फेस्तुस से कहा कि पौलुस को तुरंत यरूशलेम में लाकर मुकदमा चलाया जाए। परन्तु वे वास्तव में उस पर मार्ग में ही आक्रमण कर उसे मार डालने की योजना बना रहे थे।
\s5
\v 4 फेस्तुस ने उत्तर दिया, "पौलुस कैसरिया में निगरानी में है, उसे वहाँ रहने दो। मैं स्वयं शीघ्र ही कैसरिया जाऊँगा।"
\v 5 "इसलिये," उसने कहा, "जो लोग ऐसा करने में सक्षम हैं, उन्हें वहाँ मेरे साथ आना चाहिए। अगर तुम्हारे पास पौलुस पर आरोप लगाने के लिए कुछ है, तो तुम इसे वहाँ कह सकते हैं।"
\p
\s5
\v 6 फेस्तुस आराधनालय के अगुवों के साथ यरूशलेम में आठ या दस दिनों तक और रहा। फिर वह कैसरिया शहर में वापस चला गया। अगले दिन फेस्तुस ने आदेश दिया कि पौलुस को उसके पास लाया जाए, जहाँ वह न्यायाधीश के आसन पर बैठा था।
\v 7 पौलुस को न्यायाधीश के आसन के सामने प्रस्तुत करने के बाद, यहूदी अगुवे, जो यरूशलेम से आए थे, उस पर कई गम्भीर आरोप लगाने के लिए उसके आस-पास इकट्ठा हो गए, लेकिन वे उन आरोपों में से किसी को भी सिद्ध नहीं कर पाए।
\v 8 तब पौलुस ने स्वयं का बचाव करते हुए कहा। उसने कहा, "मैंने न तो यहूदियों के कानून के विरुद्ध और न आराधनालय के विरुद्ध और न सम्राट के विरुद्ध कुछ भी किया है।"
\s5
\v 9 परन्तु फेस्तुस यहूदी अगुवों को प्रसन्न करना चाहता था, इसलिये उसने पौलुस से पूछा, "क्या तू यरूशलेम को जाने के लिए तैयार है, कि वहाँ मैं इन बातों के बारे में तेरा न्याय कर सकूँ?"
\v 10 पौलुस ने उत्तर दिया, "नहीं, मैं अभी तेरे सामने खड़ा हूँ, जो सम्राट का प्रतिनिधित्व करता है। इसी जगह पर मेरा न्याय होना चाहिए। जैसा कि तू भलीभांति जानता है कि मैंने यहूदी लोगों के साथ कुछ भी गलत नहीं किया है।
\s5
\v 11 यदि मैंने मृत्यु के योग्य कुछ किया होता, तो मैं मरने से मना नहीं करता; परन्तु उन्होंने मुझ पर जो आरोप लगायें हैं, उसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जिसके लिये मृत्यु दण्ड मिले। उन्हें संतुष्ट करने के लिए मुझे अपराधी नहीं ठहराया जा सकता। मैं कहता हूँ कि कैसर स्वयं मेरा न्याय करे।"
\v 12 अपने सलाहकारों से बातचीत करने के बाद फेस्तुस ने कहा, "तुमने कैसर की दोहाई दी है, और इसलिये तुम्हें कैसर के पास ही जाना होगा।"
\p
\s5
\v 13 कई दिनों के बाद, हेरोदेस अग्रिप्पा अपनी बहन बिरनीके के साथ कैसरिया में पहुँचा। वे फेस्तुस के प्रति अपना सम्मान प्रगट करने आए थे।
\v 14 राजा अग्रिप्पा और बिरनीके कैसरिया में कई दिनों तक रहे। कुछ समय बीत जाने के बाद, फेस्तुस ने अग्रिप्पा को पौलुस के बारे में बताया। उसने कहा, "यहाँ एक व्यक्ति है जिसे फेलिक्स बन्दिग्रह में छोड़ गया है।
\v 15 जब मैं यरूशलेम गया, तो प्रधान याजकों और यहूदी अगुवे मेरे सामने आए और मुझसे कहा की मैं उसे मृत्युदण्ड का अपराधी ठहराऊँ।
\v 16 लेकिन मैंने उनसे कहा कि जब किसी व्यक्ति पर गम्भीर अपराध का आरोप लगाया जाता है, तो रोम में उस व्यक्ति को तुरंत अपराधी ठहराने की कोई व्यवस्था नहीं है। इसकी अपेक्षा, हम अभियुक्त को आरोप लगाने वालों के सामने खड़ा होने और उनके आरोपों के विरुद्ध अपना बचाव करने की अनुमति देते हैं।
\s5
\v 17 इसलिए जब वे यहूदी यहाँ कैसरिया में आए थे, तो मैंने मुकदमा सुनने में बिल्कुल भी देरी नहीं की। उनके आने के एक दिन बाद, मैं न्यायाधीश के आसन पर बैठ गया और सुरक्षाकर्मियों को आदेश दिया कि वे बन्दी को उपस्थित करें।
\v 18 लेकिन जब यहूदी अगुवों ने मुझे बताया कि कैदी ने क्या गलत किया है, तो मुझे नहीं लगा कि जो कुछ भी उन्होंने कहा वह गंभीर था।
\v 19 इसके अतिरिक्त, वे उसके साथ जो विवाद करते थे, वह उनके अपने धर्म के बारे में था और एक ऐसे व्यक्ति के बारे में, जिनका नाम यीशु था जो मर चुके हैं, जिसके बारे में पौलुस ने कहा कि वह जीवित है।
\v 20 मैं इन मामलों को,समझ नहीं पाया और न ही सच्चाई को समझ पाया। इसलिये मैंने पौलुस से पूछा, "क्या तू यरूशलेम को जाने के लिए तैयार है, कि वहाँ मैं इन बातों के बारे में तेरा न्याय कर सकूँ?"
\s5
\v 21 परन्तु पौलुस ने कैसर के द्वारा अपने मामले का न्याय करने के लिए कहा, इसलिए जब तक कि मैं उसे कैसर के पास न भेजूँ मैंने उसे निगरानी में रखवा दिया।"
\v 22 अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, "मैं स्वयं यह सुनना चाहूँगा कि इस व्यक्ति को क्या कहना है।" फेस्तुस ने उत्तर दिया, "मैं कल तुम्हारे सामने उसकी सुनवाई का प्रबन्ध कर दूँगा।"
\p
\s5
\v 23 अगले दिन अग्रिप्पा और बिरनीके ने न्याय के भवन में प्रवेश किया, और अन्य सभी लोग उन्हें सम्मान दे रहे थे। कुछ रोमी सरदार और कैसरिया के महत्वपूर्ण व्यक्ति उनके साथ आए थे। तब फेस्तुस ने सुरक्षाकर्मियों को आज्ञा दी कि वे पौलुस को ले आएँ।
\v 24 पौलुस के प्रवेश करने के बाद फेस्तुस ने कहा, "राजा अग्रिप्पा और बाकी सब लोग, जो यहाँ हैं, तुम इस व्यक्ति को देखते हो। यहूदियों के बहुत से अगुवों ने, यरूशलेम में और यहाँ दोनों जगहों पर, मुझसे कहा कि मैं इस व्यक्ति को और जीवित न रहने दूँ।
\s5
\v 25 परन्तु मैंने उसमें मृत्युदंड के योग्य कुछ भी नहीं पाया। फिर भी, उसने अपने मामले का न्याय करने के लिए कैसर को कहा है, इसलिए मैंने उसे रोम भेजने का निर्णय किया है।
\v 26 परन्तु मुझे समझ नहीं आता कि उसके बारे में सम्राट को क्या लिखना चाहिए। यही कारण है कि मैं उसे तुम सब से और विशेष रूप से राजा अग्रिप्पा, तुझसे बात करने के लिए यहाँ उपस्थित किया है! मैंने ऐसा इसलिए किया है ताकि तुम उससे सवाल पूछ सको। तब संभव है कि मुझे सम्राट को पत्र लिखने का कारण मिले।
\v 27 मेरे विचार में बन्दी को सम्राट के पास रोम भेज दो और यह न बताओ कि लोगों ने उस पर क्या आरोप लगाए हैं तो यह अनुचित होगा जो लोगों ने कहा कि इसने किए हैं।"
\s5
\c 26
\p
\v 1 तब अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, "अब हम तुम्हें अनुमति देते है कि तुम अपनी बात कहो।" तब पौलुस ने अपना हाथ बढ़ा कर दिखाया कि वह बोलने के लिए तैयार है। उसने कहा,
\v 2 "राजा अग्रिप्पा, मैं स्वयं को धन्य मानता हूँ कि आज मैं तुझको समझा सकता हूँ कि यहूदी अगुवे क्यों गलत हैं जब वे यह कहते हैं कि मैंने गलत किया हैं।
\v 3 मैं विशेष रूप से धन्य हूँ क्योंकि तुम हम यहूदियों के सारे रीति-रिवाजों और उन सवालों के बारे में जानते हो जिन पर हम विवाद करते रहे हैं। इसलिए मैं तुम से कहता हूँ कि धीरज रखकर मेरी बात सुनो।"
\p
\s5
\v 4 "मेरे सभी यहूदी साथी जानते हैं कि जब मैं बच्चा ही था तब से मैंने अपने जीवन को कैसे अनुशासन में रखा है। वे जानते हैं कि मैं उस शहर में, जहाँ मेरा जन्म हुआ था और बाद में यरूशलेम में भी कैसे रहा।
\v 5 वे मुझे आरम्भ से ही जानते हैं, और अगर वे चाहें तो तुमको बता सकते हैं, कि जब मैं बहुत ही छोटा था, तब से ही मैंने बहुत सावधानी से हमारे धर्म के सबसे कठोर रीति-रिवाजों का पालन किया है। मैं अन्य फरीसियों के समान ही रहता था।
\s5
\v 6 आज मैं सुनवाई पर हूँ क्योंकि मैं विश्वास के साथ अपेक्षा कर रहा हूँ कि परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों से जो प्रतिज्ञा की थी उसे वह पूरा करेगा।
\v 7 हमारे बारह यहूदी गोत्र भी दिन-रात परमेश्वर का सम्मान करके और उपासना करके विश्वास के साथ प्रतीक्षा कर रहे हैं कि परमेश्वर ने जो प्रतिज्ञा की थी उसे वह हमारे लिये पूरी करें। हे सम्मानित राजा, मुझे विश्वास के साथ अपेक्षा है कि परमेश्वर ने जो प्रतिज्ञा की थी वह उसे करेंगे, और यहूदी भी यह मानते हैं! परन्तु मैं परमेश्वर से ऐसा करने की अपेक्षा करता हूँ, तो वे कहते हैं कि मैंने गलत किया है।
\v 8 तुममें से कोई क्यों सोचता है कि परमेश्वर मरे हुओं को जीवित नहीं कर सकते हैं?
\p
\s5
\v 9 एक समय ऐसा भी था जब मुझे भी विश्वास था कि मुझे लोगों को नासरत शहर के यीशु पर विश्वास करने से रोकने के लिए सब कुछ करना चाहिए।
\v 10 इसलिए जब मैं यरूशलेम में रहता था, तब मैंने ऐसा ही किया । मैंने कई विश्वासियों को बन्दिग्रह में बंद कर दिया, जिसका अधिकार वहाँ के प्रधान याजकों ने मुझे दिया था। और जब उनके लोगों ने विश्वासियों को मार डाला, तो मैं उनके पक्ष में था।
\v 11 मैंने उन यहूदी लोगों को ढूंढ-ढूंढ कर आराधनालयों में दण्ड दिया था। मैं उनसे इतना क्रोधित था कि उन्हें विवश करता था कि वे परमेश्वर का अपमान करें और उनके नाम को श्राप दें। मैं उनको खोजने के लिए विदेशी शहरों में भी गया था कि मैं उन्हें रोकने के लिए अपनी पूरी शक्ति से काम कर सकूँ।
\p
\s5
\v 12 "प्रधान याजकों ने मुझे दमिश्क में विश्वासियों को गिरफ्तार करने का अधिकार दिया, और मैं वहाँ गया। परन्तु जब मैं अपने मार्ग पर था,
\v 13 तो लगभग दोपहर के समय में, मैंने आकाश में एक तीव्र प्रकाश देखा। यह सूर्य से भी अधिक तीव्र था! यह मेरे चारों ओर, और मेरे साथ यात्रा कर रहे लोगों के आस-पास चमका।
\v 14 हम सब भूमि पर गिर गए। तब मैंने इब्रानी भाषा में किसी आवाज़ को मुझसे बात करते सुना। उसने कहा, 'हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सता रहा है? नुकीली वस्तु पर लात मारना तेरे लिए कठिन है।'
\s5
\v 15 तब मैंने कहा, 'हे प्रभु, आप कौन हैं?' उन्होंने कहा, 'मैं यीशु हूँ! मैं वही हूँ, जिसके विरुद्ध तू लड़ रहा है।
\v 16 उठ और अपने पैरों पर खड़ा हो जा! मैं तुझ पर प्रकट हुआ हूँ कि तुझको एक सेवक और एक गवाह बनाऊँ कि जो तू ने देखा है और जो तू मेरे बारे में अब जानता है और जो मैं तुझको बाद में बताऊंगा उसका प्रचार कर।
\v 17 मैं तुझे उन लोगों से और गैर-यहूदियों से जिनके बीच में मैं तुझे भेजूंगा, तुझे सुरक्षित भी रखूँगा।
\v 18 उनकी आँखें खोलने के लिए, उन्हें अंधेरे से प्रकाश में लाने के लिये, और बैरी की शक्ति से निकलकर परमेश्वर के पास लाने के लिए। इस प्रकार परमेश्वर उनके पापों को क्षमा कर देंगे और उन्हें वह सब देंगे जो मेरे लोगों अर्थात विश्वास के द्वारा जो मेरे है, उसके पास सदा के लिए होगा।
\p
\s5
\v 19 "इसलिए, हे राजा अग्रिप्पा, मैंने वैसा किया जैसा परमेश्वर ने मुझे दर्शन देकर करने के लिए कहा था।
\v 20 सबसे पहले, मैंने दमिश्क में और यरूशलेम में और यहूदिया के सभी गाँवों में यहूदियों और गैर-यहूदियों से भी बात की। मैंने उन्हें बताया कि उन्हें पाप करना बंद कर देना चाहिए और परमेश्वर से सहायता माँगनी चाहिए। मैंने उनसे यह भी कहा कि उन्हें ऐसे काम करने चाहिए जो दिखाते हैं कि उन्होंने पाप करना छोड़ दिया है।
\p
\v 21 क्योंकि मैंने इस संदेश का प्रचार किया इसलिए कुछ यहूदियों ने मुझे बन्दी बना लिया जब मैं आराधनालय के आंगन में था और मुझे मार डालने का प्रयास किया।
\s5
\v 22 परन्तु, परमेश्वर मेरी सहायता कर रहे हैं, इसलिए मैंने आज के दिन तक इन बातों का प्रचार किया है। मैंने आम लोगों और महत्वपूर्ण लोगों दोनों को बिल्कुल ठीक वही सब बता दिया है जो भविष्यद्वक्ताओं ने और मूसा ने कहा था कि होगा।
\v 23 वे कहते थे कि मसीह को पीड़ित होना और मरना होगा, कि वह मरे हुओं में से जीवित होने वाले सबसे पहले होगें। उन्होंने यह भी कहा कि वह अपने लोगों और गैर-यहूदी लोगों दोनों के लिए भी घोषणा करेंगे, कि परमेश्वर वास्तव में उन्हें बचाने में सक्षम हैं।"
\p
\s5
\v 24 इससे पहले कि पौलुस आगे कुछ और कह पाता, फेस्तुस गरज कर बोला: "पौलुस, तुम पागल हो! तुमने बहुत पढ़ाई की है, और उसने तुम्हें पागल बना दिया है!"
\v 25 परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, "महामहिम फेस्तुस, मैं पागल नहीं हूँ! इसके विपरीत, जो मैं कह रहा हूँ वह सच है और बहुत समझदारी की बात है!
\v 26 राजा अग्रिप्पा को उन बातों की जानकारी है जिनके बारे में मैं बोल रहा हूँ, और मैं उससे इस बारे में स्वतंत्र रूप से बात कर सकता हूँ। मुझे विश्वास है कि इन बातों में से कोई भी उसकी जानकारी से छिपी नहीं होगी, क्योंकि इनमें ऐसा कुछ नहीं है जो गुप्त में हुआ था।"
\s5
\v 27 "राजा अग्रिप्पा, क्या तुम भविष्यद्वक्ताओं ने जो लिखा है उस पर विश्वास करता है? मुझे पता है कि तू उन बातों पर विश्वास करता है।"
\v 28 फिर अग्रिप्पा ने पौलुस को उत्तर दिया, "थोड़े ही समय में तूने मुझे लगभग एक मसीही बनने के लिए राजी कर लिया है!"
\v 29 पौलुस ने उत्तर दिया, "चाहे थोड़े समय में या लम्बा समय लगे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि तू और अन्य सब लोग जो आज मेरी बात सुन रहे हैं वे इन जंजीरों को छोड़, वे मेरे समान होंगे!"
\s5
\v 30 तब राजा खड़ा हो गया। राज्यपाल, बिरनीके, और अन्य सब भी उठ खड़े हुए
\v 31 और कमरा छोड़ कर चले गए। उनके चले जाने के बाद, उन्होंने एक दूसरे से कहा, "इस व्यक्ति ने मौत के या उसकी जंजीरों के योग्य कुछ भी नहीं किया है।"
\v 32 अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, "अगर इस व्यक्ति ने कैसर की दोहाई नहीं दी होती, तो उसे छोड़ा जा सकता था।"
\s5
\c 27
\p
\v 1 जब राज्यपाल ने निर्णय लिया कि हमें इतालिया के लिए जाना चाहिए, तो उसने पौलुस और कुछ अन्य कैदियों को सेना के कप्तान के नियंत्रण में रखा, जिसका नाम यूलियुस था। वह सूबेदार का पद सम्भालता था और सम्राट के सीधे आदेश के नियंत्रण में रहने वाले सैनिकों की बहुत बड़ी संख्या का एक भाग था।
\v 2 हम आसिया में अद्रमुत्तियुम शहर से एक जहाज़ पर चढ़ गए। यह जहाज़ आसिया के तटीय स्थानों के लिए समुद्री यात्रा पर जाने वाला था। इस प्रकार हम समुद्र मार्ग से होकर चले। मकिदुनिया के थिस्सलुनीके से अरिस्तर्खुस, हमारे साथ चला।
\s5
\v 3 अगले दिन हम सीदोन पहुँचे। यूलियुस ने पौलुस के साथ अच्छा व्यवहार किया और उसे जाकर अपने मित्रों से मिलने की अनुमति दी, कि वे उसकी सेवा करें।
\v 4 तब जहाज़ वहाँ से रवाना होने के लिये तैयार हो गया। हम साइप्रस के तट के किनारे से होकर चले गए, जो हवा से बचा हुआ था, क्योंकि हवा हमारे विरुद्ध थी।
\v 5 उसके बाद, हम किलिकिया और पम्फूलिया के तट के निकट से समुद्र पार कर गए। जहाज़ मूरा में पहुँचा, जो लूसिया में है। हम वहाँ जहाज़ से उतर गए।
\v 6 मूरा में, यूलियुस को एक जहाज़ मिला जो कि सिकन्दरिया से आया था और शीघ्र ही इतालिया जाने के लिये समुद्री यात्रा पर होगा। इसलिये उसने उस जहाज़ पर हमारे जाने की व्यवस्था की, और हम चल दिये।
\s5
\v 7 हम कई दिनों तक धीरे-धीरे चलते हुए कनिदुस के पास आये, लेकिन हमें वहाँ कठिनाई हुई, क्योंकि हवाएँ हमारे विरुद्ध थीं। उसके बाद, हवा बहुत प्रचण्ड हो गई थी और हवा ने जहाज़ को सीधे पश्चिम की ओर आगे बढ़ने नहीं दिया। अतः हम क्रेते द्वीप के किनारे से होकर आगे बढ़े, जहाँ हवा का बहाव तीव्र नहीं था, और हम सलमोने के पास पहुँचे, जो पानी से लगा हुआ भूमि का एक टुकड़ा था।
\v 8 हवा अभी भी प्रबल थी, और इसने जहाज़ को तेजी से आगे बढ़ने से रोका। इसलिए हम क्रेते के किनारे से होकर धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए, और हम लसया के पास एक शहर में पहुँचे, जिसे शुभलंगरबारी कहा जाता था।
\p
\s5
\v 9 बहुत समय बीत चुका था, और अब यह समुद्री यात्रा करने के लिए खतरनाक हो गया था, क्योंकि यहूदियों का उपवास पहले ही निकल चुका था और समुद्र बहुत तूफानी हो जाएगा। इसलिए पौलुस ने जहाज़ पर मौजूद लोगों से कहा,
\v 10 "हे लोगों, मैं देख रहा हूँ कि अगर हम अब समुद्री यात्रा पर जाते हैं, तो यह हमारे लिए बहुत क्षतिपूर्ण और हानिकारक होगा, न केवल माल और जहाज़ का, बल्कि हमारे जीवन का भी।"
\v 11 लेकिन रोमी कप्तान ने पौलुस पर विश्वास नहीं किया। इसकी अपेक्षा, उसने जहाज़ चलाने वालो का और जहाज़ के मालिक की बातों पर विश्वास किया, और उन्होंने जो कुछ भी सुझाव दिया उसने वही करने का निर्णय लिया।
\s5
\v 12 वह बंदरगाह सर्दियों में रुकने के लिए एक उचित स्थान नहीं था, इसलिए अधिकांश नाविकों ने वहाँ से समुद्र में जाने का सुझाव दिया। उन्हें आशा थी कि वे फीनिक्स तक पहुँच सकते हैं और वहाँ सर्दियां बिता सकते हैं। फीनिक्स क्रेते में एक शहर है। वहाँ पर दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम दोनों ओर से हवाएँ चलती थीं।
\v 13 क्योंकि वहाँ दक्षिण से चलने वाली केवल एक धीमी हवा थी, जहाज़ के चालक दल ने सोचा कि जैसे वे चाहते थे, वे वैसे यात्रा कर सकते थे। इसलिए उन्होंने समुद्र में से लंगर ऊपर उठा दिये, और जहाज़ क्रेते द्वीप के तट के एकदम किनारे-किनारे होकर आगे रवाना हुआ।
\s5
\v 14 लेकिन, थोड़े समय के बाद, किनारे से एक तूफानी हवा चली। यह उत्तर की ओर के द्वीप में से आई थी और जहाज़ से आकर टकराई। उस हवा को यूरकुलीन कहा जाता है, "पूर्वोत्तर हवा।"
\v 15 यह हवा जहाज़ के सामने की ओर से बहुत ही तीव्रता से चली, और हम इसके विरुद्ध आगे नहीं जा पाए। तो नाविकों ने जहाज़ को हवा की दिशा में चलने दिया।
\v 16 फिर जहाज़ कौदा नाम के एक छोटे से द्वीप के किनारे से होकर चलता गया। हम जहाज़ में जीवनरक्षक नौका को कठिनाई के साथ बाँध कर सुरक्षित करने में सक्षम हुए।
\s5
\v 17-18 नाविकों द्वारा जीवनरक्षक नौका को जहाज़ पर उठाए जाने के बाद, उन्होंने जहाज़ को दृढ़ता प्रदान करने के लिए रस्सियों को जहाज़ के नीचे से लेकर बाँध दिया। नाविकों को डर था कि हम सुरतिस नामक चोरबालू पर चक्कर लगाएँगे, इसलिए उन्होंने समुद्र के लंगर को नीचे किया और इस प्रकार हम हवा के साथ बहते चले गए। हवा और लहरें जहाज़ को लगातार धक्के मारती रही, इसलिए अगले दिन नाविकों ने जहाज़ पर से सामान फेंकना शुरू कर दिया।
\s5
\v 19 तूफान के तीसरे दिन, नाविकों ने जहाज़ को हल्का करने के लिए अधिकांश पाल, रस्सियों और डंडों को फेंक दिया। उन्होंने यह अपने हाथों से किया था।
\v 20 हवा कई दिनों तक बहुत तीव्रता से चलती रही, और आकाश काले बादलों से दिन-रात भरा हुआ था इस कारण हम सूरज या तारों को देख न सके। हम ने आशा खो दी थी कि हम जीवित बचेंगे।
\p
\s5
\v 21 जहाज़ पर हम में से किसी ने भी कई दिनों तक कुछ खाया नहीं था। फिर एक दिन, पौलुस हमारे सामने खड़ा हो गया और कहा, "मित्रों, तुमको मेरी बात सुननी चाहिए थी जब मैंने कहा था कि हमें क्रेते से निकल कर समुद्री यात्रा पर नहीं जाना चाहिए।
\v 22 परन्तु अब, मैं तुमसे आग्रह करता हूँ, मत डरो, क्योंकि हम में से कोई भी नहीं मरेगा। तूफान जहाज़ को नष्ट कर देगा, लेकिन हमें नहीं।
\s5
\v 23 मुझे यह पता है, क्योंकि कल रात परमेश्वर ने, जिनका मैं हूँ और जिनकी मैं सेवा करता हूँ, एक स्वर्गदूत भेजा जो आकर मेरे पास खड़ा हो गया।
\v 24 स्वर्गदूत ने मुझ से कहा, 'पौलुस, डर मत। तुझे रोम जाना है और वहाँ सम्राट के सामने खड़ा होना है ताकि वह तेरा न्याय कर सके। मैं तुझे यह बताना चाहता हूँ कि परमेश्वर ने तुझे और इन सब लोगों को जो तेरे साथ जहाज़ पर यात्रा कर रहे हैं जीवित रखना स्वीकार किया है।'
\v 25 इसलिये, मेरे मित्रों, आनन्द करो, क्योंकि मुझे विश्वास है कि परमेश्वर ऐसा ही करेंगे, ठीक वैसे ही जैसे स्वर्गदूत ने मुझसे कहा है।
\v 26 जहाज़ किसी द्वीप पर दुर्घटनाग्रस्त हो जाएगा, परन्तु हम वहाँ किनारे पर चले जाएँगे।"
\p
\s5
\v 27 तूफान के शुरू होने के बाद के चौदहवीं रात थी और जहाज़ अब भी अद्रिया समुद्र में चला जा रहा था। आधी रात के लगभग, नाविकों ने सोचा कि जहाज़ भूमि के निकट जा रहा है।
\v 28 इसलिए उन्होंने पानी की गहराई को मापने के लिए एक रस्सी को नीचे किया। जब उन्होंने रस्सी को बाहर निकला और माप कर देखा कि पानी चालीस मीटर गहरा था। थोड़ी देर बाद, उन्होंने फिर से मापा और तीस मीटर पाया।
\v 29 उन्हें डर था कि जहाज़ कुछ चट्टानों में जा सकता है, इसलिए उन्होंने जहाज़ के पीछे की ओर से चार लंगरों को फेंक दिया। तब उन्होंने प्रार्थना की कि जल्दी से भोर हो जाए ताकि वे देख सकें कि जहाज़ कहाँ जा रहा था।
\s5
\v 30 कुछ नाविक जहाज़ से बच कर भागने की योजना बना रहे थे, इसलिए उन्होंने समुद्र में जीवनरक्षक नौका को उतार दिया, ताकि किसी को भी मालूम न हो कि उन्होंने क्या करने की योजना बनाई थी, उन्होंने ऐसा ढोंग किया कि वे जहाज़ के आगे से कुछ लंगरों को नीचे करना चाहते हैं।
\v 31 परन्तु पौलुस ने सेना के कप्तान और सैनिकों से कहा, "यदि नाविक जहाज़ में नहीं रहते हैं, तो तुम्हारे जीवित रहने की कोई उम्मीद नहीं है।"
\v 32 तो सैनिकों ने रस्सियों को काट दिया और जीवनरक्षक नौके को पानी में गिर जाने दिया।
\p
\s5
\v 33 भोर होने के ठीक पहले, पौलुस ने जहाज़ पर उपस्थित सब से भोजन खा लेने का आग्रह किया। उसने कहा, "पिछले चौदह दिनों से तुम प्रतीक्षा कर रहे हो और देख रहे हो और तुमने कुछ भी नहीं खाया।
\v 34 तो, अब मैं तुमसे कुछ खा लेने के लिए आग्रह करता हूँ। तुमको जीवित रहने के लिए ऐसा करना चाहिए। तुम्हारे सिरों का एक भी बाल नष्ट नहीं होगा।"
\v 35 पौलुस ने यह कहने के बाद, जब सभी देख रहे थे, तो उसने रोटी ली और इसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर उसने रोटी तोड़ी और उसमें से कुछ खाने लगा।
\s5
\v 36 तब वे सब प्रसन्न हो गए और खाना खाया।
\v 37 कुल मिलाकर हम जहाज़ पर 276 जन थे।
\v 38 जब सबने भरपूर खा लिया तो उन्होंने जहाज़ को हल्का करने के लिये गेहूं को समुद्र में फेंक दिया।
\p
\s5
\v 39 भोर में हम भूमि देख सकते थे, परन्तु नाविकों को नहीं पता था कि हम कहाँ थे। वे पानी के किनारे पर एक खाड़ी और रेत के एक विस्तृत क्षेत्र को देख सकते थे। उन्होंने जहाज़ को समुद्र तट पर चलाने का प्रयास करने का निर्णय लिया।
\v 40 इसलिए उन्होंने लंगरों को खोल दिया और उन्हें समुद्र में गिरा दिया। उसी समय, उन्होंने पतवारों को बाँधने वाली रस्सियों को खोल दिया, और उन्होंने आगे की पाल को उठाया ताकि हवा उस पर लग कर उसे चला सके। वे जहाज़ को किनारे की ओर बढ़ा रही थी।
\v 41 परन्तु जहाज़ अशांत जल में चला गया और किनारे की रेत पर जो लहरों के नीचे थी फँस गया। जहाज़ के सामने का हिस्सा वहाँ फँस गया और हिल नहीं सका, और बड़ी लहरें जहाज़ के पीछे के हिस्से पर लगने लगीं, जिससे कि जहाज़ टूटना शुरू हो गया।
\p
\s5
\v 42 सैनिकों के मन में यह था कि सभी कैदियों को मार डालना चाहिए ताकि उनमें से कोई भी तैर कर पार न हो जाये कि बच कर भाग सके।
\v 43 लेकिन सेना का कप्तान पौलुस को बचाना चाहता था, इसलिए उसने सैनिकों को ऐसा करने से रोक दिया। इसके अतिरिक्त, उसने आज्ञा दी कि तैरने वाले हर व्यक्ति को पानी में कूदना चाहिए और तैर कर किनारे तक जाना चाहिए।
\v 44 फिर उसने जहाज़ से दूसरे लोगों को तख्तों या अन्य टुकड़ों को पकड़ कर किनारे पर जाने के लिए कहा। उसने जो कहा वह हमने किया, और इस प्रकार हम सभी सुरक्षित रूप से भूमि पर पहुँच गए।
\s5
\c 28
\p
\v 1 जब हम किनारे पर सुरक्षित पहुँच गए, तो हमें यह मालूम हुआ कि यह माल्टा नामक एक द्वीप था।
\v 2 वहाँ रहने वाले लोगों ने सामान्य से अच्छा अतिथि सत्कार किया। उन्होंने आग जलाई और हमें गर्म हो जाने के लिए आमंत्रित किया, क्योंकि वर्षा हो रही थी और मौसम ठंडा था।
\s5
\v 3 जब पौलुस ने लकड़ी की कुछ छड़ें एकत्रित कीं और उन्हें आग में डाल दिया तो गर्मी से बचने के लिए एक जहरीला साँप आग से बाहर निकल आया, और उसने पौलुस के हाथ को डस लिया और वहीँ लिपट गया।
\v 4 द्वीप के लोगों ने पौलुस के हाथ मे झूलते हुए साँप को देखा, तो उन्होंने एक दूसरे से कहा, "इस व्यक्ति ने संभव है कि किसी की हत्या की है। यद्यपि वह समुद्र में डूबने से बच गया है, न्याय का देवता उसे मारेंगे।"
\s5
\v 5 परन्तु पौलुस ने आराम से हाथ को झटक कर साँप को आग में फेंक दिया, और उसे कुछ भी नहीं हुआ।
\v 6 लोग सोच रहे थे कि पौलुस का शरीर शीघ्र ही तेज बुखार के साथ सूज जाएगा या वह अचानक गिर जाएगा और मर जाएगा। परन्तु लंबे समय के बाद उन्होंने देखा कि उसके साथ कुछ भी गलत नहीं हुआ था। इसलिए लोगों ने अपने विचार बदलकर एक दूसरे से कहा, "यह व्यक्ती कोई हत्यारा नहीं है! एक देवता है!"
\p
\s5
\v 7 अब वहाँ पास की ही एक जगह में जहाँ वे थे, कुछ खेत थे जो पुबलियुस नाम के एक व्यक्ति के थे। वह द्वीप पर मुख्य अधिकारी था। उसने हमें आकर उसके घर में रहने के लिए आमंत्रित किया। उसने तीन दिन तक हमारी बहुत अच्छी देखभाल की।
\v 8 उस समय पुबलियुस के पिता को बुखार और पेचिश हुआ था, और वह बिस्तर पर लेटा हुआ था। इसलिए पौलुस ने उससे भेंट की और उसके लिए प्रार्थना की। तब पौलुस ने उस पर हाथ रखकर उसे स्वस्थ किया।
\v 9 पौलुस के ऐसा करने के बाद, उस द्वीप के अन्य लोग जो बीमार थे, वे उसके पास आए, और उसने उन्हें भी स्वस्थ किया।
\v 10 वे हमारे लिये उपहार लाए और अन्य तरीकों से दिखाया कि वे हमारा बहुत सम्मान करते हैं। जब हम तीन महीने बाद निकलने के लिए तैयार थे, तो वे हमारे लिये भोजन और अन्य वस्तुएँ लाए जिनकी हमें जहाज़ पर आवश्यकता होगी।
\p
\s5
\v 11 तीन महीने वहाँ रहने के बाद हम सिकन्दरिया के एक जहाज़ पर चढ़ गए जो इतालिया जा रहा था और हम रवाना हो गए। जहाज़ के सामने के हिस्से पर दो जुड़वाँ देवताओं की तराशी हुई प्रतिमाएँ थीं जिनके नाम कास्टर और पोलक्स थे।
\v 12 जब हम सुरकूसा शहर में पहुँचे, तो हम वहाँ तीन दिन रहे।
\s5
\v 13 तब हम रवाना हुए और इतालिया में रेगियुम शहर में पहुँचे। अगले दिन, हवा दक्षिण से बह रही थी, इसलिए केवल दो दिनों में हम पुतियुली शहर में पहुँचे। वहाँ हम जहाज़ से उतर गए।
\v 14 पुतियुली में हम कुछ साथी विश्वासियों से मिले जो चाहते थे कि हमें सात दिनों तक उनके साथ रहें। अंततः हम रोम पहुँचे।
\p
\v 15 रोम में, कुछ साथी विश्वासियों ने हमारे बारे में सुना था, इसलिए वे हमसे मिलने आए। उनमें से कुछ ने हम से शहर में अप्पियुस मार्ग के चौक पर भेंट की, और अन्य लोग शहर में हमें तीन सराए नामक जगह पर मिले। जब पौलुस ने उन विश्वासियों को देखा, तो उसने परमेश्वर का धन्यवाद किया और प्रोत्साहित हुआ।
\s5
\v 16 हमारे रोम में पहुँचने के बाद, पौलुस को एक घर में रहने की अनुमति दी गई थी। लेकिन वहाँ सदैव एक सैनिक होता था जो कि उसकी निगरानी करता था।
\p
\v 17 वहाँ पहुँचने के तीन दिन के बाद, पौलुस ने यहूदियों के अगुवों के पास एक संदेश भेजा कि वे आकर उसके साथ बात करें। जब वे उसके पास आए, तो पौलुस ने उनसे कहा, "हे मेरे प्रिय भाइयों, मैंने अपने लोगों का विरोध नहीं किया, न ही हमारे पूर्वजों के रीति-रिवाजों के विषय में कुछ बोला परन्तु यरूशलेम में हमारे अगुवों ने मुझे बन्दी बना लिया। परन्तु इससे पहले कि वे मुझे मार डालते, एक रोमी सरदार ने मुझे बचाया और बाद में मुझ पर मुकदमा चलाने के लिए कैसरिया शहर में रोमी अधिकारियों के पास भेज दिया।
\v 18 रोमी अधिकारियों ने मुझ से सवाल किये और मुझे छोड़ना चाहते थे, क्योंकि मैंने कोई भी गलत बात नहीं की थी जिसके लिए मुझे सजा दी जानी चाहिए।
\s5
\v 19 परन्तु जब यहूदी अगुवों ने मुझे मुक्त करने की रोमियों की इच्छा के विरुद्ध कहा, तो मैंने उनसे यह अनुरोध किया कि यहाँ रोम में सम्राट ही मेरा न्याय करे। लेकिन ऐसा करने का मेरा कारण यह नहीं था कि मैं हमारे अगुवों पर कुछ भी आरोप लगाना चाहता हूँ।
\v 20 अतः मैंने यहाँ आने के लिए तुमसे अनुरोध किया है कि मैं तुमको बताऊँ कि मैं क्यों कैदी हूँ। इसका कारण यह है क्योंकि मैं उस बात पर विश्वास करता हूँ जिसकी इस्राएल के लोग बड़ी आशा के साथ प्रतीक्षा कर रहे हैं कि परमेश्वर हमारे लिए करेंगे।"
\s5
\v 21 फिर यहूदी अगुवों ने कहा, "यहूदिया से हमारे साथी यहूदियों के पास से हमें तुम्हारे बारे में कोई पत्र नहीं मिला है। साथ ही, हमारे साथी यहूदियों में से जो कोई भी यहूदिया से यहाँ आया है किसी ने भी तुम्हारे बारे में कुछ गलत बात नहीं कही है।
\v 22 लेकिन हम यह सुनना चाहते हैं कि तू इस समूह के बारे में क्या सोचता है जिससे तू सम्बंधित हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि कई स्थानों में लोग इसके विरुद्ध बोल रहे हैं।"
\p
\s5
\v 23 इसलिए उन्होंने निर्णय लिया कि वे किसी अन्य दिन फिर आकर पौलुस की बात सुनेंगे। जब वह दिन आया, तो पहले से कहीं ज्यादा लोग वहाँ आ गए जहाँ पौलुस रह रहा था। पौलुस ने उन्हें बताया कि कैसे परमेश्वर सब पर शासन करेंगे; उसने बताया कि कैसे मूसा की व्यवस्था में और भविष्यद्वक्ताओं ने यीशु के बारे में बताया था। पौलुस ने सुबह से लेकर शाम तक उन सभी लोगों से बात की जो सुनना चाहते थे।
\v 24 उन यहूदियों में से कुछ विश्वास करने के लिए तैयार हुए, कि जो पौलुस ने यीशु के बारे में कहा वह सच था, लेकिन दूसरों ने विश्वास नहीं किया कि यह सच था।
\s5
\v 25 जब वे एक-दूसरे के साथ असहमत हो गए और जब वे जाने ही वाले थे, तो पौलुस ने एक और बात कही: "पवित्र आत्मा ने तुम्हारे पूर्वजों के लिये सच बात बताई, जब उसने यशायाह भविष्यद्वक्ता से इन वचनों को कहा:
\v 26 अपने लोगों के पास जा और उनसे कह: 'तुम अपने कानों से सुनते हो, लेकिन तुम कभी भी नहीं समझ सकते कि परमेश्वर क्या कह रहे हैं। तुम अपनी आँखों से देखते हो लेकिन वास्तव में उन कामों को कभी नहीं देखते हो जो परमेश्वर करते हैं।
\s5
\v 27 ये लोग नहीं समझते हैं, क्योंकि वे हठीले हो गए हैं। उनके कान लगभग बहरे हैं; और उन्होंने अपनी आँखें बंद कर ली हैं क्योंकि वे देखना नहीं चाहते हैं। वे अपने कानों से सुनना या अपने मन से समझना नहीं चाहते हैं, परन्तु वे मेरे पास लौटकर आएँगे और मैं उन्हें स्वस्थ कर दूँगा।
\p
\s5
\v 28 इसलिए तुमको समझना चाहिए कि परमेश्वर गैर-यहूदियों को बचाना चाहते हैं, और वे सुनेंगे।"
\v 29 जब उसने यह कहा तो यहूदी आपस में बहुत विवाद करने लगे और वहाँ से चले गए।
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\s5
\v 30 पूरे दो साल तक पौलुस वहाँ एक घर में रहा जो उसने किराए पर लिया था। बहुत से लोग उससे मिलने आए, और उसने उन सब का सहर्ष स्वागत किया और उनके साथ बात की।
\v 31 उसने लोगों में प्रचार किया और उन्हें सिखाया कि कैसे परमेश्वर स्वयं को राजा के रूप में प्रकट करेंगे, और उसने उन्हें प्रभु यीशु मसीह के बारे में सिखाया। उसने बड़े साहस के साथ ऐसा किया, और किसी ने भी उसे रोकने का प्रयास नहीं किया।