hi_udb/44-JHN.usfm

1471 lines
320 KiB
Plaintext

\id JHN Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h यूहन्ना
\toc1 यूहन्ना
\toc2 यूहन्ना
\toc3 jhn
\mt1 यूहन्ना
\s5
\c 1
\p
\v 1 आरम्भ में शब्द था। शब्द परमेश्वर के साथ था, और शब्द ही परमेश्वर था।
\v 2 इससे पहले कि परमेश्वर कुछ भी बनाते वह उनके साथ था।
\v 3 यह वही है जिन्होंने सब कुछ बनाने के लिए परमेश्वर के आदेश को पूरा किया - हाँ निश्चय ही, जो कुछ भी बनाया गया था।
\s5
\v 4 शब्द में सम्पूर्ण जीवन है, इसलिए वह सब को और हर एक को जीवन दे सकते हैं। शब्द परमेश्वर का प्रकाश था जो हर स्थान हर किसी पर चमकता था।
\v 5 यह प्रकाश अंधेरे में चमका, और अंधेरे ने इसे समाप्त कर देने का प्रयास किया, परन्तु वह ऐसा नहीं कर पाया।
\p
\s5
\v 6 परमेश्वर ने यूहन्ना नामक एक व्यक्ति को भेजा।
\v 7 वह प्रकाश के विषय में लोगों को गवाही देने आया था। उसने जो कहा वह सच था, और उसने उस संदेश को घोषित किया जिससे कि हर कोई विश्वास करे।
\v 8 यूहन्ना स्वयं प्रकाश नहीं था, परन्तु वह लोगों को प्रकाश के विषय में बताने के लिए आया था।
\s5
\v 9 वह सच्चा प्रकाश जो हर किसी पर चमका, और वह प्रकाश संसार में आ रहा था।
\p
\s5
\v 10 वह शब्द संसार में था, और हालांकि उन्होंने संसार को बनाया था, परन्तु संसार के लोगों में से किसी को पता नहीं चला कि वह कौन था,
\v 11 यद्यपि वे संसार में आए जो उनका था, यहाँ तक की अपने लोगों के पास आए, जो यहूदी थे, फिर भी उन्हें अस्वीकार किया गया।
\s5
\v 12 परन्तु जिन्होंने उन्हें अपने जीवन में ग्रहण किया और उन पर विश्वास किया, उन्होंने उन लोगों को परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया।
\v 13 ये सन्तान परमेश्वर से जन्मी हैं। न उनका जन्म साधारण संतानोत्पत्ति के रूप में हुआ, न ही मनुष्य की इच्छा या चुनाव के कारण; और न ही पिता बनने की पति की इच्छा के कारण।
\p
\s5
\v 14 अब वह शब्द एक वास्तविक मनुष्य बन गए और वे यहाँ रहे जहाँ हम कुछ समय के लिए रह रहे हैं। हमने उनके महिमाशाली और आश्चर्यजनक स्वभाव को देखा, पिता के एकमात्र पुत्र के स्वभाव को देखा है, जो हमें दिखाता है कि परमेश्वर हमें ईमानदारी (सच्चे मन) से प्रेम करते हैं और हमें अपनी सच्चाई के विषय में सिखाते है।
\p
\v 15 एक दिन यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला लोगों को शब्द के विषय में बता रहा था, और यीशु उसके पास आए। यूहन्ना ने अपने चारों ओर खड़ी भीड़ को चिल्ला कर कहा, "मैंने तुमसे कहा था कि कोई मेरे बाद आएंगे जो मुझसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। वे मुझसे बहुत समय पहले से अस्तित्व में हैं, मेरे जन्म से पहले - अन्नत काल से हैं। यह व्यक्ति जो यहाँ हैं। यही वह व्यक्ति है जिनके विषय में मैं बात कर रहा था।"
\s5
\v 16 हमने उनके द्वारा किये गये कार्यों से बहुत लाभ उठाया है। उन्होंने बार-बार हम पर बहुत दया की है।
\v 17 मूसा ने यहूदी लोगों के लिए परमेश्वर की व्यवस्था का प्रचार किया। यीशु मसीह हमारे लिए हमारी योग्यता से कहीं अधिक दयालु थे और उन्होंने हमें परमेश्वर के विषय में सच्ची बातें सिखाई।
\v 18 किसी ने कभी भी परमेश्वर को नहीं देखा है परन्तु, यीशु मसीह, जो स्वयं परमेश्वर हैं, हमेशा पिता के निकट रहते हैं, उन्ही के द्वारा ही हम पिता को जान पायें है।
\p
\s5
\v 19 यूहन्ना ने अपनी गवाही यही दी: यहूदियों ने यरूशलेम से याजक और लेवियों को भेजा। वे यूहन्ना के पास पूछने आये, "तू कौन है?"
\v 20 तब यूहन्ना ने उनको गवाही दी और कहा, "मैं मसीह नहीं हूँ!"
\v 21 तब उन्होंने उस से पूछा, "तू अपने विषय में क्या कहेगा? क्या तू एलिय्याह है?" उसने कहा "नहीं"।" उन्होंने फिर से पूछा, "क्या तू वही भविष्यद्वक्ता है जिनके विषय में भविष्यद्वक्ताओं ने कहा था कि आएंगे?" यूहन्ना ने उत्तर दिया, "नहीं।"
\s5
\v 22 उन्होंने उससे एक बार फिर पूछा, "फिर तू कौन है? हमें बता कि हम वापस जाकर उन्हें बता सके, जिन्होंने हमें भेजा है। तू अपने विषय में क्या कहता है?"
\v 23 उसने उत्तर दिया जैसे कि यशायाह भविष्यद्वक्ता ने लिखा था, "मैं वही हूँ जो जंगल में चिल्ला रहा है, 'प्रभु के लिए मार्ग को अच्छा बनाओ कि वे हमारे पास आ सके।'
\p
\s5
\v 24 इनमें से फरीसियों के कुछ लोग यूहन्ना के पास आए थे।
\v 25 उन्होंने उससे पूछा, "क्योंकि तू कहता है कि तू न तो मसीह है और न ही एलिय्याह है और न ही भविष्यद्वक्ता है, तो तू बपतिस्मा क्यों दे रहा है?"
\s5
\v 26 "यूहन्ना ने उत्तर दिया," मैं लोगों को जल से बपतिस्मा देता हूँ, परन्तु अब कोई तुम्हारे बीच में खड़े है जिन्हें तुम नहीं जानते।
\v 27 वो मेरे बाद आते हैं, परन्तु मैं इस योग्य भी नहीं कि उनकी जूती को खोल सकूँ।"
\p
\v 28 ये बातें बैतनिय्याह के एक गांव में हुईं जो पूर्व की ओर यरदन नदी के किनारे था। यही वह स्थान है जहाँ यूहन्ना बपतिस्मा दे रहा था।
\p
\s5
\v 29 अगले दिन यूहन्ना ने यीशु को अपनी ओर आते देखा। उन्होंने लोगों से कहा, "देखो, परमेश्वर का मेम्ना, जो संसार के पापों को दूर करने के लिए अपना जीवन बलिदान कर देंगे।
\v 30 ये वही हैं जिनके विषय में मैंने कहा था, 'कोई मेरे बाद आएंगे जो मेरे से भी अधिक महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि वह मुझसे बहुत समय पहले से अस्तित्व में हैं, मेरे जन्म से पहले से - अनन्त युग से।'
\v 31 मैं उन्हें पहले नहीं जानता था, परन्तु अब मुझे पता है कि वे कौन हैं। मेरा काम था आना और उन लोगों को जल के साथ बपतिस्मा देना, जो क्षमा मांग कर और अपने पापों से मुड़ गए है। मैं चाहता हूँ कि इस्राएलियों को पता चले कि वह कौन है।"
\p
\s5
\v 32 यूहन्ना का काम था कि हमे बताये की उसने क्या देखा था। उसने इस प्रकार कहा: "मैंने स्वर्ग से परमेश्वर के आत्मा को कबूतर के रूप में उतरते हुए देखा। आत्मा नीचे आए और यीशु पर ठहर गया।
\v 33 पहले, मैं स्वयं उन्हें नहीं जानता था, परन्तु परमेश्वर ने मुझे लोगों को जल से बपतिस्मा देने के लिए भेजा, उन लोगों को जो कहते थे कि वे अपने पापी तरीकों से मुड़ना चाहते है। परमेश्वर ने मुझसे कहा, "जिस मनुष्य पर तुम मेरे आत्मा को उतरते हुए और ठहरते हुए देखोगे वह वही है जो तुम सब को पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देंगे।"
\v 34 मैंने देखा है और मैं तुम को गवाही देता हूँ कि वह परमेश्वर के पुत्र हैं।"
\p
\s5
\v 35 "यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला अगले दिन फिर से उसी स्थान अपने दो शिष्यों के साथ था।
\v 36 जब उन्होंने यीशु को वहाँ से गुज़रते देखा, तो उसने कहा, "देखो, परमेश्वर का मेम्ना, वह मनुष्य जिसे परमेश्वर ने अपने प्राण देने के लिए चुना है, वे इस्राएल के लोगों के द्वारा उनके पापों के भुगतान के लिए एक भेड़ के बच्चे के समान मारे जाएँगे।"
\s5
\v 37 यूहन्ना के दो शिष्यों ने जब यूहन्ना को सुना, तो यूहन्ना को छोड़ कर यीशु के पीछे चल दिए।
\v 38 यीशु ने उन्हें पीछे मुड़कर देखा, और उनसे पूछा, "तुम क्या ढूढ रहे हो?" उन्होंने उनसे कहा, "रब्बी (जिसका अर्थ है 'शिक्षक'), हमें बताओ कि आप कहां रहते हो ।"
\v 39 उन्होंने उत्तर दिया, "मेरे साथ आओ, और स्वयं देखो !" तो वे आए और देखा कि यीशु कहाँ रह रहे थे। वे उस दिन यीशु के साथ रहे क्योंकि शाम हो रही थी (लगभग 4 बजे का समय था।)
\p
\s5
\v 40 यीशु के पीछे आने वाले दो शिष्यों में से एक का नाम अन्द्रियास था; वह शमौन पतरस का भाई था।
\v 41 अन्द्रियास पहले अपने भाई शमौन को ढूंढने के लिए निकल गया जब वह उसके पास आया, तो उसने कहा, "हमे मसीह (जिसका अर्थ है 'मसीह') मिल गए है।"
\v 42 अन्द्रियास शमौन को यीशु के पास ले गया यीशु ने पतरस पर गौर किया, और कहा, "तू शमौन है, तेरे पिता का नाम यूहन्ना है, तुझे कैफा नाम दिया जाएगा।" कैफा एक अरामी नाम है जिसका अर्थ है 'ठोस चट्टान।' (पतरस का अर्थ यूनानी भाषा में भी यही है।)
\p
\s5
\v 43 अगले दिन यीशु ने यरदन नदी घाटी छोड़ने का फैसला किया। वह गलील के आस-पास के क्षेत्र में गए और उन्हें फिलिप्पुस नाम का एक व्यक्ति मिला। यीशु ने उससे कहा, "मेरे साथ आ।"
\v 44 फिलिप्पुस, अन्द्रियास और पतरस सब बैतसैदा (गलील में) नगर से थे।
\v 45 फिलिप्पुस अपने मित्र नतनएल की खोज करने के लिए गया। जब वह उसके पास आया, तो उससे कहा, "हमने उन्हें ढूंढ लिया है जिनके विषय में मूसा ने लिखा था, वह मसीह हैं। भविष्यद्वक्ताओं ने भविष्यवाणी की कि वह आएंगे।" यीशु मसीह हैं। वह नासरत के नगर से है। उनके पिता का नाम यूसुफ है।
\s5
\v 46 नतनएल ने उत्तर दिया, "नासरत से? क्या नासरत से कुछ अच्छा निकल सकता है?" फिलिप्पुस ने उत्तर दिया, "आ और स्वयं देख!"
\v 47 जब यीशु ने नतनएल को पास आते हुए देखा, तो उन्होंने उसके विषय में यह कहा, "देखो! एक ईमानदार और अच्छा इस्राएली; उसने कभी भी किसी को धोखा नहीं दिया।"
\v 48 नतनएल ने उससे पूछा, "आप कैसे जानते हैं कि मैं किस तरह का मनुष्य हूँ? आप मुझे नहीं जानते।" यीशु ने उत्तर दिया, "मैंने तुझे फिलिप्पुस द्वारा बुलाए जाने से पहले अंजीर के पेड़ के नीचे बेठे हुए देखा था।"
\s5
\v 49 तब नतनएल ने कहा, "हे गुरु, आप परमेश्वर के पुत्र हो! आप इस्राएल के राजा हो, हम आप ही की प्रतीक्षा कर रहे थे!"
\v 50 यीशु ने उसे उत्तर दिया, "क्या तू मुझ पर विश्वास इसलिए करता है क्योंकि मैंने तुझसे कहा कि मैंने तुझे अंजीर के पेड़ के नीचे देखा है? तू मुझे इससे महान कार्यों को करते हुए देखेगा!"
\v 51 तब यीशु ने उससे कहा, "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: जैसे तुम्हारे पूर्वज याकूब ने बहुत पहले देखा था, किसी दिन तुम स्वर्ग को खुलते देखोगे और तुम परमेश्वर के स्वर्गदूतों को ऊपर जाते हुए और निचे आते हुए अर्थात् मनुष्य के पुत्र पर उतरते हुए देखोगे।"
\s5
\c 2
\p
\v 1 तीन दिन बाद, गलील शहर के काना गाँव में एक विवाह था, और यीशु की मां वहीं थी।
\v 2 उन्होंने यीशु और उनके शिष्यों को भी विवाह में आमंत्रित किया था।
\s5
\v 3 वे विवाह में भाग लेने वालों को दाखरस परोस रहे थे और अतिथियों ने सारा दाखरस पी लिया। यीशु की माता ने यीशु से कहा, "उनका दाखरस समाप्त हो गया है "
\v 4 यीशु ने उनसे कहा, "महोदया, इससे मेरा क्या वास्ता है? मेरा सबसे महत्वपूर्ण काम करने का चुना हुआ समय अभी तक नहीं आया है।"
\v 5 यीशु की माता ने मुड़कर सेवकों से कहा, "जो कुछ भी यीशु तुमसे कहे वह करो ।"
\s5
\v 6 वहां छह खाली पत्थर के मटके थे। उनमें जल रखा जाता था ताकि अतिथि और सेवक अपने हाथों और पैरों को धो सके, और सफाई के अन्य यहूदी रिवाजों को पूरा किया जा सके। प्रत्येक मटके में 75 से 115 लीटर जल आ सकता था।
\v 7 यीशु ने सेवकों से कहा, " मटकों को जल से भर दो!" तो उन्होंने मटकों को ऊपर तक लबा-लब करके भर दिया।
\v 8 फिर यीशु ने उनसे कहा, "अब, एक मटके से जल निकालो और इसे दावत के प्रबंधक के पास ले जाओ।" तो सेवकों ने वैसा ही किया।
\s5
\v 9 दावत के प्रबंधक ने जल को चखा, जो अब दाखरस बन चुका था। वह नहीं जानता था कि दाखरस कहाँ से आया था, परन्तु सेवक जानते थे। तो उसने दुल्हे को अपने पास बुलाया।
\v 10 " सबसे अच्छा दाखरस पहले दिया जाता है, और बाद में जब अतिथि बहुत नशे में हो जाते हैं और अच्छा दाखरस समाप्त हो जाता है, तब वे सस्ता दाखरस देते हैं। परन्तु तूने अब तक सबसे अच्छा दाखरस बचा कर रखा था।"
\s5
\v 11 यह पहला चमत्कार था जो यीशु ने किया था, जो कि यीशु की सच्चाई को दर्शाता है। उन्होंने यह सब गलील के क्षेत्र के काना गांव में किया था। वहां उन्होंने दिखाया कि वह अद्भुत काम कर सकते हैं। इसलिए शिष्यों ने उन पर विश्वास किया।
\p
\s5
\v 12 इस के बाद यीशु, अपनी माता, भाइयों और अपने शिष्यों के साथ कफरनहूम नगर में गए, और वे वहां कुछ दिनों तक रहे।
\p
\s5
\v 13 अब यह लगभग यहूदियों के फसह के पर्व का समय था। यीशु और उनके शिष्य यरूशलेम को गए।
\v 14 वहां आराधनालय के आंगन में उन्होंने देखा कि लोग पशु, भेड़ और कबूतर बेच रहे हैं। जिन्हें आराधनालयों में बलि किया जाता था। यीशु ने उन लोगों को भी देखा जो तख्त पर बैठ कर पैसो का लेन-देन कर रहे थे ।
\s5
\v 15 इसलिए यीशु ने कुछ चमड़े की डोरियों से एक कोड़ा बनाया और उन्होंने उससे आराधनालय से भेड़ों और पशुओं को बाहर निकाल दिया। उन्होंने पैसे के लेन-देन करने वालो की चौकियों को उलट दिया और उनके सिक्कों को भूमि पर बिखेर दिया ।
\v 16 "उन्होंने कबूतरों को बेचने वालों को आदेश दिया," इन कबूतरों को यहाँ से ले जाओ! मेरे पिता के घर को बाज़ार में मत बदलो!"
\s5
\v 17 इससे उनके शिष्यों को उस विषय में याद आया जो किसी ने बहुत पहले धर्मशास्त्र में लिखा था, "हे परमेश्वर, मैं आपके घर से बहुत प्रेम करता हूँ, इतना कि मैं इसके लिए मर जाऊंगा।"
\p
\v 18 यहूदी अगुओं ने उनसे पूछा, "आप हमारे लिए ऐसा क्या चमत्कार कर सकते हो जिससे आप सिद्ध कर सको कि जो कुछ भी आप कर रहे हो वो आपने परमेश्वर की अनुमति से किया है?"
\v 19 यीशु ने उनसे कहा, "इस आराधनालय को नष्ट कर दो, और तीन दिन में मैं इसका फिर से निर्माण करूँगा।"
\s5
\v 20 " क्या आप यह कह रहे हो कि आप इस पूरे आराधनालय का पुनर्निर्माण सिर्फ तीन दिन में करने वाले हो ?" उन्होंने यीशु से कहा "इस आराधनालय का निर्माण करने में छियालीस साल लगे थे ।"
\v 21 हालांकि, जिस आराधनालय के विषय में यीशु बात कर रहे थे वह उनका शरीर था न कि आराधनालय।
\v 22 बाद में, यीशु की मृत्यु के बाद जब परमेश्वर ने उन्हें मरे हुओं में से जिलाया, उनके शिष्यों को याद आया कि उन्होंने आराधनालय के विषय में क्या कहा था। तब उन्होंने दोनों पर विश्वास किया जो शास्त्र कहता है और जो यीशु ने स्वयं कहा था।
\p
\s5
\v 23 जब यीशु फसह के पर्व के दौरान यरूशलेम में थे, तब बहुत से लोगों ने उन पर विश्वास किया क्योंकि उन्होंने चमत्कारों को देखा था जो यीशु के विषय में सच्चाई को दर्शाते थे।
\v 24 फिर भी, यीशु जानते थे कि लोग कैसे हैं, और क्योंकि वे उन्हें इतनी अच्छी तरह जानते थे, इसलिए उन्होंने उन पर विश्वास नहीं किया।
\v 25 उन्हें किसी को यह बताने की आवश्यकता नहीं थी कि लोग कैसे दुष्ट थे। वह उनके विषय में सब कुछ जानते थे।
\s5
\c 3
\p
\v 1 नीकुदेमुस नाम का एक व्यक्ति था। वह फरीसियों का सदस्य था, उन दिनों यहूदी विश्वास में फरीसियों का एक कट्टर समूह था। वह एक महत्वपूर्ण व्यक्ति था, जो सबसे ऊची यहूदी शासकीय परिषद का सदस्य था।
\v 2 वह रात को यीशु से मिलने के लिए आया। उस ने यीशु से कहा, हे गुरू, हम यह जानते हैं कि आप एक शिक्षक हैं जो परमेश्वर की ओर से आए हैं। हम यह जानते हैं क्योंकि कोई भी ऐसे चमत्कार नहीं कर सकता जब तक परमेश्वर उसकी सहायता ना करें।
\s5
\v 3 यीशु ने नीकुदेमुस से कहा, "मैं तुझसे सच कह रहा हूँ, कोई भी परमेश्वर के राज्य में तब तक प्रवेश नहीं कर सकता जब तक वह फिर से जन्म ना ले।"
\v 4 फिर नीकुदेमुस ने उनसे कहा, "बूढ़ा होने के बाद कोई व्यक्ति फिर से जन्म कैसे ले सकता है? कोई भी अपनी मां के गर्भ में प्रवेश कर के दूसरी बार जन्म नहीं ले सकता !"
\s5
\v 5 यीशु ने उत्तर दिया, "मैं विश्वास दिलाता हूँ कि यह भी सत्य है, कि कोई भी परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता जब तक कि वह जल और आत्मा दोनों के द्वारा जन्म न ले लें।
\v 6 अगर कोई मनुष्य से जन्म लेता है, तो वह मनुष्य होता है। पर वे लोग जो परमेश्वर के आत्मा के कार्य से फिर से जन्म लेते हैं, उनमें एक नया आत्मिक स्वभाव होता है जो परमेश्वर उनमें बनाते है।
\s5
\v 7 इससे अचंभित न हो, जब मैं कहता हूँ कि तुझे फिर से जन्म लेना चाहिए।
\v 8 यह इस प्रकार है: हवा जहाँ भी चाहती है वहां बहती है। तुम हवा की आवाज सुन सकते हो, परन्तु नहीं जानते कि वह कहां से आती है या कहां को जाती है। यह उन सब लोगों के समान है जो आत्मा के द्वारा जीवित किए गए हैं: आत्मा जिसको भी चाहे उसे नया जन्म दे सकते हैं।
\s5
\v 9 नीकुदेमुस ने उत्तर दिया, "यह कैसे सच हो सकता है?"
\v 10 यीशु ने उस को उत्तर दिया, "तू इस्राएल में एक महत्वपूर्ण शिक्षक है, और फिर भी तू समझ नहीं पा रहा कि मैं क्या कह रहा हूँ?
\v 11 मैं तुझ को सच कह रहा हूँ, हम उन बातों को ही कहते हैं जिन्हें हम सच मानते हैं और हम तुमको वह बता रहे हैं जो हमने देखा है, परन्तु तुम जिनसे हम इन बातों की चर्चा करते हैं, कोई भी हमारी बातों पर विश्वास नहीं करता है।
\s5
\v 12 यदि तू पृथ्वी के विषय में बताई गयी मेरी इन बातों पर जिनका मैं उल्लेख कर रहा हूँ, विश्वास नहीं करता तो जब मैं तुझसे स्वर्ग की बातें करूँगा तब तू मेरी उन बातों का विश्वास कैसे करेगा?
\v 13 मैं, मनुष्य का पुत्र, ही वह हूँ जो ऊपर स्वर्ग तक गया, और मैं ही हूँ जो यहाँ निचे पृथ्वी पर आया है।
\s5
\v 14 बहुत समय पहले मूसा, जब वह निर्गमन के समय जंगल में था, तब उसने एक विषैले साँप को एक खम्भे पर ऊँचा उठाया था और जिन्होंने उसकी ओर देखा वे बच गए थे। उसी प्रकार, मनुष्य के पुत्र को ऊपर उठाया जाना आवश्यक है।
\v 15 ताकि जो कोई ऊपर देखे और उन पर विश्वास करे, उसे अनन्त जीवन मिले।
\p
\s5
\v 16 परमेश्वर ने संसार से ऐसा प्रेम किया की उन्होंने अपना एकलोता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई भी उन पर विश्वास करेगा, वह मरेगा नहीं, परन्तु अनन्त जीवन पाएगा।
\v 17 परमेश्वर ने अपने पुत्र को संसार में दण्ड देने के लिए नहीं इस संसार को बचाने के लिए भेजा।
\v 18 जो कोई पुत्र पर विश्वास करता है, परमेश्वर उसे कभी भी दोषी नहीं ठहराएँगे, परन्तु जो कोई उन पर विश्वास नहीं करता है, परमेश्वर ने पहले से ही उसे दण्ड के लिए ठहरा दिया है, क्योंकि उसने परमेश्वर के एकलोते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं किया।
\s5
\v 19 परमेश्वर ने पापी लोगों के लिए अपने न्याय को सरल बनाया है ताकि सब देख सके: उनका प्रकाश संसार में आ गया है, परन्तु इस संसार के लोगों ने अपने अंधेरे से प्रेम किया और वे प्रकाश से छिपते हैं। वे अंधेरे से प्रेम करते थे क्योंकि वे जो कर रहे थे वह बुरा और दुष्ट था ।
\v 20 जो कोई दुष्ट काम करता है वह प्रकाश से घृणा करता है, और वे कभी उसके पास नहीं आएंगे क्योंकि प्रकाश उनके द्वारा किए गए कार्यों को उजागर करता है और प्रकट करता है कि वे कितने दुष्ट हैं।
\v 21 परन्तु जो लोग अच्छे और सच्चे काम करते हैं, वे प्रकाश के पास आते हैं जिससे की सब उनके कामों को देखें और जान लें कि जब वे इन कामों को करते है तो वे परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते है।
\p
\s5
\v 22 उन बातों के बाद यीशु और उनके शिष्य यहूदिया के क्षेत्र में गए। वह अपने शिष्यों के साथ कुछ समय तक वहाँ रहे और उन्होंने कई लोगों को बपतिस्मा दिया।
\p
\v 23 यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला भी सामरिया के इलाके में स्थित सालेम के पास ऐनोन के गांव में लोगों को बपतिस्मा दे रहा था। वहाँ बहुत जल था, और बहुत सारे लोग यूहन्ना के पास आते रहे
\v 24 यह उस समय से पहले कि बात है जब यूहन्ना के शत्रुओं ने उसे बंदीगृह में डाल दिया था।
\s5
\v 25 यूहन्ना के कुछ शिष्यों और एक यहूदी व्यक्ति के बीच पानी से धोकर शुद्ध होने के विषय में विवाद उठा कि परमेश्वर ऐसे ही स्वीकार करते हैं।
\v 26 जो लोग विवाद कर रहे थे, वे यूहन्ना के पास आए और कहा, "गुरु, वहाँ एक व्यक्ति था जो तेरे साथ था, जब तू यरदन नदी के दूसरी ओर के लोगों को बपतिस्मा दे रहा था। तूने उनकी तरफ इशारा किया और हमें बताया कि वह कौन थे। अब वह यहूदिया के पार बपतिस्मा दे रहे है और बहुत से लोग उनके पास जा रहे हैं।"
\s5
\v 27 "यूहन्ना ने उनको उत्तर दिया," मनुष्यों को कुछ भी नहीं मिल सकता, जब तक कि परमेश्वर उसको ना दें।
\v 28 तुम जानते हो कि मैं सच कह रहा था जब मैंने तुमसे कहा था, 'मैं मसीह नहीं हूँ, परन्तु मुझे उनसे पहले भेजा गया ताकि मैं उनके आने के लिए मार्ग को अच्छा बना सकूँ।'
\s5
\v 29 मैं दूल्हे के मित्र के समान हूँ। मैं दूल्हे के आने की प्रतीक्षा में हूँ। दूल्हे का मित्र बहुत आनन्दित होता है जब वह अंततः दुल्हे के आने का शब्द सुनता है। क्योंकि यह सब हो चुका है, मेरा आनन्द उमड़ रहा है क्योंकि वह आ गए हैं।
\v 30 समय के साथ वह स्थिति और महत्व में बढ़ेगा, और मैं कम और कम महत्वपूर्ण होता जाऊंगा ।
\p
\s5
\v 31 यीशु स्वर्ग से आए हैं, और वह किसी और की तुलना में ऊँचे पद पर हैं। हमार पृथ्वी पर वास करते है, और हम केवल पृथ्वी से संबंधित वस्तुओं की बात कर सकते हैं। जो स्वर्ग से आए हैं वह पृथ्वी पर और जो कुछ उसमें है उन सब से ऊपर हैं।
\v 32 अब यहाँ एक है जो उन बातों की गवाही देते हैं जो उन्होंने देखी और सुनी है, परन्तु कोई भी उन्हें स्वीकार नहीं करता और ना ही विश्वास करता है; कि यह सच है।
\v 33 परन्तु, जो लोग उन पर विश्वास करते हैं, वे यह प्रमाणित करते हैं कि परमेश्वर सम्पूर्ण सच्चाई के स्रोत हैं, और एकमात्र वही उन सब बातों के माप और मानक हैं जो सत्य है।
\s5
\v 34 परमेश्वर ने अपने प्रवक्ता को भेजा है, और जो उन्होंने कहा है वह सच है, क्योंकि वह परमेश्वर के शब्दों को कहते हैं और वह अपनी आत्मा निश्चिन्त होकर देते हैं कि कितना दे रहे है।
\v 35 पिता पुत्र से प्रेम करते हैं और उन्होंने सब कुछ उनकी शक्ति के अधीन रखा है।
\v 36 जो कोई परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करता है, उसके पास अनन्त जीवन है। जो कोई परमेश्वर के पुत्र का आज्ञा पालन नहीं करता है, वह अनन्त जीवन प्राप्त नहीं कर सकता है और जो भी पाप उस व्यक्ति ने किए है उसके लिए परमेश्वर का धार्मिक क्रोध उस पर सदा रहेगा।
\s5
\c 4
\p
\v 1 यीशु को फरीसियों के विषय में एक खबर मिली। उन्होंने जान लिया है कि यीशु यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले की तुलना में अधिक अनुयायी बना रहे हैं और वह यूहन्ना की तुलना में अधिक लोगों को बपतिस्मा दे रहे हैं;
\v 2 पर यीशु स्वयं बपतिस्मा नहीं दे रहे थे; उनके शिष्य ऐसा कर रहे थे।
\v 3 इसलिए यीशु और उनके शिष्यों ने यहूदिया के क्षेत्र को छोड़ दिया और एक बार फिर गलील में लौट आए।
\s5
\v 4 अब उन्हें सामरिया के क्षेत्र से जाना था।
\v 5 इसलिए वे सामरिया के क्षेत्र में सूखार नामक एक नगर में पहुंचे। सूखार उस भूमि के पास था जो याकूब ने अपने पुत्र यूसुफ को बहुत समय पहले दिया था।
\s5
\v 6 सूखार शहर के बाहर याकूब का कुआँ था। यीशु अपनी लंबी यात्रा से बहुत थक गए थे और वह कुएं के पास आराम करने के लिए बैठ गए। यह लगभग दोपहर का समय था।
\v 7 सामरिया की एक स्त्री कुएं से जल भरने के लिए आई। यीशु ने उससे कहा, "मुझे थोड़ा जल पिला।"
\v 8 उनके शिष्यों ने उनको अकेला छोड़ दिया था क्योंकि वे शहर में भोजन खरीदने के लिए गए थे।
\s5
\v 9 उस स्त्री ने उनसे कहा, "मुझे आश्चर्य है कि आप, एक यहूदी; सामरिया कि एक स्त्री से जल पीने के लिए मांग रहे हैं।"
\v 10 यीशु ने उसे उत्तर दिया, "यदि तुझे पता होता की परमेश्वर तुझे कौन-सा उपहार देना चाहते हैं और यदि तू जानती कि तुझसे कौन जल पीने के लिए मांग रहा है, तो तू मुझसे जल पीने के लिए मांगती और मैं तुझे जीवन का जल देता।"
\s5
\v 11 "महोदय, आपके पास बाल्टी या रस्सी नहीं है जिसके द्वारा जल को कुएं से बाहर निकाल सकोगे और यह कुआँ गहरा है। आप इस जीवन के जल को कहाँ से ले पाएंगे?
\v 12 आप हमारे पिता याकूब से महान नहीं हो सकते जिन्होंने यह कुआँ खोदा जिसे हम आज तक उपयोग कर रहे है, जहाँ से उन्होंने स्वयं जल पीया और उनके बच्चों और जानवरों ने भी पीया था। "
\s5
\v 13 यीशु ने उससे कहा, "जो कोई इस कुएं से जल पीता है, वह फिर से प्यासा होगा,
\v 14 परन्तु जो लोग वह जल पीते हैं जो मैं उन्हें दूंगा तो वे फिर कभी प्यासे नहीं होंगे। जो जल मैं उनको देता हूँ वह जल का सोता बन जाएगा जो उन्हें भर देता है और उन्हें अनन्त जीवन प्रदान करेगा।"
\s5
\v 15 उस स्त्री ने उनसे कहा, हे महोदय, मुझे यह जल दे दो, ताकि मैं कभी भी प्यासी ना रहूँ या मुझे जल निकालने के लिए यहाँ फिर से आना ना पड़े ।
\p
\v 16 यीशु जानते थे कि वह समझ नहीं पाई कि वह क्या कह रहे थे, इसलिए उन्होंने उससे कहा, "महोदया, जा और अपने पति को यहाँ ले आ।"
\s5
\v 17 उस स्त्री ने उन्हें उत्तर दिया, "मेरा कोई पति नहीं है।" यीशु ने उससे कहा, "तू सही कह रही है कि तेरा कोई पति नहीं है,
\v 18 क्योंकि तेरा केवल एक पति नहीं पांच पति थे और अब जिस व्यक्ति के साथ तू रह रही है वह भी तेरा पति नहीं है। तूने पति न होने की बात जो कही है वह सच है।"
\p
\s5
\v 19 स्त्री ने उनसे कहा, हे महोदय, मैं देख रही हूँ कि आप एक भविष्यद्वक्ता हैं।
\v 20 हमारे पूर्वजों ने यहाँ इस पहाड़ पर परमेश्वर की आराधना की थी, परन्तु आप यहूदियों का कहना है कि यरूशलेम वह स्थान है जहाँ हमें परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए। कौन सही है?"
\s5
\v 21 यीशु ने उससे कहा, "महोदया, मुझ पर विश्वास कर जब मैं कहता हूँ कि ऐसा समय आने वाला है जब न तो इस पहाड़ पर और ना ही यरूशलेम में लोग पिता की आराधना करेंगे।
\v 22 तुम सामरिया के लोग उसकी आराधना करते हो जिसे तुम नहीं जानते। हम यहूदी उपासक जानते हैं कि हम किसकी आराधना करते हैं क्योंकि उद्धार यहूदियों से आता है
\s5
\v 23 समय आ रहा है वरन आ गया है जब परमेश्वर की आराधना करने वाले लोग आत्मिकता और सच्चाई से पिता की आराधना करेंगे। पिता ऐसे लोगों की खोज करते हैं कि वे इस प्रकार उनकी आराधना करें।
\v 24 परमेश्वर आत्मा हैं, और जो लोग उनकी आराधना करते हैं, उन्हें आत्मिक रूप से उनकी आराधना करनी चाहिए, और आवश्यक है कि सत्य आराधना में उनकी अगुवाई करे।"
\s5
\v 25 स्त्री ने उनसे कहा, "मुझे पता है कि मसीह आ रहे हैं (जिन्हें "मसीह" भी कहा जाता है)। जब वह आएँगे, तो वह हमें सब कुछ बताएँगे जिसको सुनने की हमें आवश्यक्ता है।"
\v 26 "यीशु ने उससे कहा," मैं, जो तुमसे अभी बात कर रहा हूँ, मैं वही हूँ।"
\p
\s5
\v 27 तभी, शिष्य शहर से वापस आये। वे हैरान थे कि यीशु एक स्त्री से बात कर रहे थे जो उनके परिवार की सदस्य नहीं थी (यह यहूदी रिवाज के विरुद्ध था।) लेकिन, कोई भी इतना साहसी नहीं था, कि उनसे पूछताछ करें । "आप उस स्त्री से क्या बात कर रहे थे?" या "आप उसके साथ क्यों बात कर रहे थे?"
\p
\s5
\v 28 उस स्त्री ने वहां अपना जल का मटका छोड़ा और वापस शहर में चली गयी। उसने शहर के लोगों से कहा,
\v 29 "आओ और एक ऐसे मनुष्य को देखो जिसने मुझे वह सब बताया जो कुछ आज तक मैंने किया है! वह मसीह नहीं हो सकते, क्या वह हो सकते हैं?
\v 30 बहुत से लोग शहर से बाहर जाने लगे, जहाँ यीशु थे।
\p
\s5
\v 31 "उनके शिष्य, जो भोजन के साथ वापस आये ही थे, उन्होंने आग्रह किया," गुरु, कुछ खा लीजिए।"
\v 32 यीशु ने उनसे कहा, "मेरे पास खाने के लिए भोजन है जिसके विषय में तुम कुछ भी नहीं जानते।"
\v 33 "इसलिए वे एक दूसरे से कहने लगे," कोई और उनके लिए कुछ खाने को नहीं ला सकता, या कोई ला सकता है?"
\s5
\v 34 यीशु ने कहा, "मैं बताता हूँ कि मैं सबसे अधिक किस के लिए भूखा हूँ: अर्थात् वह कार्य करने के लिए जो मेरे पिता चाहते है और उनके सारे काम को पूरा करने के लिए जिन्होंने मुझे भेजा है।
\v 35 साल के इस समय तुम आमतौर पर कहते हो, 'चार महीने शेष हैं, और उसके बाद हम फसल काटेंगे।' अभी भी अपने चारों ओर देखो! इस समय फसल कटने के लिए तैयार हैं। गैर-यहूदी अब चाहते है कि परमेश्वर उन पर शासन करे; वे ऐसी फसलों के समान हैं जो अब कटाई के लिए तैयार हैं।
\v 36 जो इस पर विश्वास करता है और इस प्रकार के खेत में काम करने के लिए तैयार है वह पहले से ही अपनी मजदूरी प्राप्त कर रहा है और अनन्त जीवन के लिए बहुत फल एकत्र कर रहा है। जो बीज बोते हैं और जो लोग फसल काटते हैं, वे एक साथ आनन्दित होंगे।
\s5
\v 37 यह कथन सही है: एक व्यक्ति बीज बोता है, और दूसरा व्यक्ति फसलों की कटनी करता है।
\v 38 मैंने तुमको खेत से फसल एकत्र करने के लिए भेजा है जिसे तुम ने नहीं लगाया। दूसरों ने बहुत परिश्रम किया है, परन्तु अब तुम उनके काम में सहभागी हो रहे हो।"
\p
\s5
\v 39 सूखार शहर में रहने वाले कई सामरियों ने यीशु पर विश्वास किया क्योंकि उन्होंने जो भी यीशु के विषय में उस स्त्री से सुना था उसने कहा था, "उन्होंने मुझे सब कुछ बताया जो मैंने आज तक किया है।"
\v 40 जब सामरी लोग यीशु के पास आये, तब उन्होंने उनसे लम्बे समय तक वहां रहने का आग्रह किया; तो वह दो दिन और वहां रहे।
\s5
\v 41 उनमें से बहुतों ने यीशु पर उनके वचनों के कारण विश्वास किया
\v 42 उन्होंने उस स्त्री से कहा, "हम यीशु पर विश्वास करते हैं, इसलिए नहीं कि जो तुने उनके विषय में बताया है, परन्तु इसलिए कि हमने स्वयं उनका संदेश सुना है। अब हम जानते हैं कि यह सचमुच जगत के उद्धारकर्ता हैं।"
\p
\s5
\v 43 दो दिन बाद, यीशु और उसके शिष्य सामरिया से गलील चले गए।
\v 44 (यीशु ने स्वयं यह पुष्टि की कि एक नबी को कई जगहों पर सम्मान मिलता है, परन्तु वहाँ नहीं जहाँ वह पला-बढा हो।)
\v 45 जब वह गलील में पहुंचे, तो बहुत से लोगों ने वहां उनका स्वागत किया, वे जानते थे कि वह कौन है क्योंकि उन्होंने हाल ही में हुए फसह के पर्व के समय यरूशलेम में जो कुछ यीशु ने किया था, उसे देखा था।
\s5
\v 46 फिर यीशु गलील में काना के पास गए। (यह वही स्थान था जहाँ उन्होंने जल को दाखरस में बदल दिया था।) राजा का एक अधिकारी जो सत्ताईस किलोमीटर दूर कफरनहूम में रहता था, उसका पुत्र बहुत बीमार था।
\v 47 जब उस व्यक्ति ने सुना की यीशु यहूदिया से गलील में लौट आए हैं, तो वह काना में यीशु के पास गया और उनसे विनती की, "कफरनहूम में आकर मेरे पुत्र को स्वस्थ कर दें।" वह मरने वाला है!"
\s5
\v 48 यीशु ने उससे कहा, "जब तक तू मुझे वह कार्य करते हुए ना देख ले, जो सिद्ध करती हैं कि मैं कौन हूँ और मुझे चमत्कार करते हुए ना देख लो, तब तक तुम मुझ पर विश्वास नहीं करोगे!"
\v 49 "फिर भी अधिकारी ने उन से कहा," महोदय, मेरे पुत्र के मरने से पहले कृपया मेरे घर चलिए!"
\v 50 यीशु ने उससे कहा, "जा, तेरा पुत्र जीवित रहेगा।" उस व्यक्ति ने यीशु की कही बातों पर विश्वास किया और अपने घर वापस जाने लगा।
\s5
\v 51 जब वह कफरनहूम में अपने घर लौट रहा था, उसके सेवक उससे मार्ग पर मिले। उन्होंने कहा, "तुम्हारा पुत्र जीवित है।"
\v 52 अधिकारी ने उनसे पूछा, "किस समय मेरे पुत्र के स्वास्थ में सुधार आया ?" उन्होंने उससे कहा, "उसका बुखार कल दोपहर एक बजे उतर गया था।"
\s5
\v 53 तब लड़के के पिता को समझ में आया कि यही वह समय था जब यीशु ने उससे कहा था, "तेरा पुत्र जीवित रहेगा।" इसलिए उसने अपने घर में रहने वाले हर एक के साथ, यीशु पर विश्वास किया।
\p
\v 54 यह दूसरी बार था जब यीशु ने लोगों पर यह सिद्ध करने के लिए कुछ किया कि वह कौन हैं। उन्होंने यह उस समय के दोरान किया जब वह गलील क्षेत्र के यहूदिया से यात्रा करते हुए आए थे।
\s5
\c 5
\p
\v 1 फिर दूसरे यहूदी पर्व का समय आया और यीशु उसके लिए यरूशलेम गए।
\v 2 यरूशलेम में एक द्वार के पास, जो शहर की ओर जाता है, एक स्थान है जिसे भेड़-फाटक कहा जाता है। उस द्वार पर बैतहसदा नामक एक कुण्ड है (जैसा कि अरामी भाषा में कहा जाता है)। कुण्ड के बगल में पाँच ओसारे या स्तंभावली हैं।
\v 3-4 वहाँ बहुत से लोग थे, जो बीमार, अंधे और लंगड़े थे। कई लोग जो चल नहीं सकते थे, वे ओसारे पर लेटे थे।
\s5
\v 5 एक व्यक्ति जो चलने में असमर्थ था, वह वहाँ अड़तीस वर्षों से था।
\v 6 यीशु ने उसे पड़े हुए देखा और जान लिया कि वह इस स्थिति में लंबे समय से है। उन्होंने उस व्यक्ति से कहा, "क्या तू स्वस्थ और बलवंत होना चाहता है?"
\s5
\v 7 उस व्यक्ति ने उनको उत्तर दिया, "महोदय, यहाँ कोई नहीं है जो मुझे कुण्ड में उतरने में सहायता करे, जब जल हिलाया जाता है। जब भी मैं कुण्ड में पहुचने का प्रयास करता हूँ कोई और मुझ से पहले वहाँ पहुँच जाता है।"
\v 8 यीशु ने उससे कहाँ, "उठ, अपना बिस्तर उठा और चल।"
\s5
\v 9 तुरंत ही वह व्यक्ति ठीक हो गया, और उसने अपना बिस्तर उठाया और चला गया।
\p अब वह दिन सब्त का अर्थात विश्राम का दिन था।
\s5
\v 10 इसलिए यहूदी अगुवों ने उस व्यक्ति से कहा, जो ठीक हो गया था, "यह सब्त का दिन है, और तू जानता है कि यह हमारे व्यवस्था के विरुद्ध है कि तू इस विश्राम के दिन पर अपना बिस्तर उठा कर चले।"
\v 11 जो व्यक्ति स्वस्थ किया गया था, उसने यहूदी अगुवों से कहा, "परन्तु जिन्होंने मुझे स्वस्थ किया था, उन्होंने मुझे से कहा, 'अपना बिस्तर उठा और चल।'"
\s5
\v 12 उन्होंने उससे पूछा, "वह व्यक्ति कौन था?"
\v 13 यद्यपि यीशु ने उस व्यक्ति को स्वस्थ किया था, परन्तु उस व्यक्ति को यीशु का नाम नहीं पता था। उसे स्वस्थ करने के बाद, यीशु ने उस व्यक्ति को छोड़ दिया और भीड़ में गायब हो गए।
\p
\s5
\v 14 बाद में, यीशु को वह व्यक्ति आराधनालय में मिला और कहा, "देख, तू अब ठीक है। अब पाप मत करना, तो कुछ भी बुरा नहीं होगा।"
\v 15 वह व्यक्ति वहाँ से चला गया और यहूदी अगुवों से कहा कि जिस व्यक्ति ने उसे ठीक किया, वह यीशु थे।
\s5
\v 16 इसलिए यहूदियों ने यीशु को रोकने के प्रयास आरम्भ किए क्योंकि वह अद्भुत काम कर रहे थे और अपनी शक्ति दिखा रहे थे और क्योंकि वह प्रायः सब्त के दिन उन कामों को करते थे।
\v 17 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, "मेरे पिता अब तक काम कर रहे है, और मैं भी काम कर रहा हूँ।"
\v 18 यही कारण है कि यहूदी अगुवों ने यीशु को मार डालने के लिए और अधिक प्रयास करना आरम्भ कर दिया, केवल इसलिए नहीं कि वे सब्त के दिन के नियम को तोड़ रहे थे, परंतु इसलिए भी की उन्होंने परमेश्वर को अपना पिता कहा और दावा किया कि वे परमेश्वर के बराबर है।
\p
\s5
\v 19 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: मैं, मनुष्य का पुत्र, अपने अधिकार से कुछ नहीं कर सकता। मैं केवल वही कर सकता हूँ जो मैं पिता को करते हुए देखता हूँ। जो भी पिता करते है, वही मैं, उनका पुत्र, करता हूँ।
\v 20 पिता मुझसे प्रेम करते है, अर्थात् अपने पुत्र को और वह मुझे सब कुछ दिखाते है, जो वह करते है। पिता इससे भी महान काम मुझे दिखाएँगे, जिससे कि तुम देख सको कि मैं क्या कर सकता हूँ और आश्चर्यचकित हो।
\s5
\v 21 जैसे पिता उनको जीवित करते है जो मर चुके है और उन्हें फिर से जीवन देते है, इसलिए मैं, उनका पुत्र, जिसे चाहूँ उसे जीवन प्रदान कर सकता हूँ।
\v 22 पिता किसी का न्याय नहीं करते, परन्तु उन्होंने मुझे सबका न्याय करने का अधिकार दिया है,
\v 23 जिससे कि सब लोग मुझे, उनके पुत्र को, वैसे ही आदर दे जैसे वे पिता का आदर करते हैं। जो कोई मेरा आदर नहीं करता है वह पिता का आदर नहीं कर सकता।
\s5
\v 24 मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: जो कोई मेरा संदेश सुनता है और विश्वास करता है कि परमेश्वर ने मुझे भेजा है, वह अनन्त जीवन पायेगा और परमेश्वर के न्याय में नहीं आएगा। इसकी अपेक्षा, वह मृत्यु से जीवन में चला गया है।
\p
\s5
\v 25 मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: वह समय आ रहा है जब वे लोग जो मर चुके है वे मेरी वाणी सुनेंगे, मैं जो परमेश्वर का पुत्र हूँ और जो मेरी वाणी सुनेंगे वे जीवित रहेंगे।
\s5
\v 26 जैसे कि पिता लोगों को जीवन देने में सक्षम है, वैसे ही उन्होंने मुझे उनके पुत्र को, सामर्थ दी है, कि लोगों के जीने का कारण बने।
\v 27 पिता ने मुझे वह करने का अधिकार दिया है जो वह जानते है कि न्यायोचित है, क्योंकि मैं मनुष्य का पुत्र हूँ।
\s5
\v 28 इससे आश्चर्यचकित न हो क्योंकि ऐसा समय आएगा जब वे लोग जो मर चुके है; मेरी बुलाहट सुनेंगे
\v 29 और वे अपनी कब्रों से बाहर निकल आएंगे। परमेश्वर उन्हें अनन्त जीवन देने के लिए जिलाएंगे जिन्होंने भलाई की हैं; परन्तु जो लोग बुरा करते हैं, परमेश्वर उनको भी जिलाएंगे परन्तु केवल उनको दोषी ठहराने और अनन्त काल का दण्ड देने के लिए ।
\s5
\v 30 मैं अपने आप कुछ नहीं कर सकता, मैं पिता से सुनता हूँ, उसी प्रकार न्याय करता हूँ, और मैं निष्पक्ष न्याय करता हूँ। मैं उचित न्याय करता हूँ क्योंकि मैं ऐसा कार्य करने का प्रयास नहीं करता जैसा में चाहता हूँ वरन् वह करता हूँ जो मेरे पिता चाहते है, जिन्होंने मुझे यहाँ भेजा है।
\p
\v 31 यदि केवल मैं ही स्वयं अपना गवाह होता, तो कोई भी मेरी गवाही को सच्चा या विश्वसनीय नहीं मानता।
\v 32 फिर भी, कोई और है जो मेरे विषय में गवाही देता है, और मुझे पता है कि मेरे विषय में उसकी गवाही सच्ची है।
\s5
\v 33 तुमने यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के पास दूत भेजे और उसने तुमको मेरे विषय में सच्चाई बताई।
\v 34 वास्तव में उसको या किसी और को मेरे विषय में गवाही देने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु मैं ये बातें इसलिए कह रहा हूँ कि परमेश्वर तुमको बचा सकें।
\v 35 "यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला एक जलता और चमकता हुआ दीपक था, और तुम उसके प्रकाश में थोड़ी देर के लिए आनन्दित हुए।
\s5
\v 36 तथापि जो गवाही मैं अपने विषय में देता हूँ, वह यूहन्ना कि गवाही से भी महान है जो उसने मेरे विषय में दी है। उन सब कामों को जो पिता ने मुझे करने की अनुमति दी है - उन कामों को मैं हर दिन करता हूँ और तुम मुझे वह करते हुए देखते हो - ये सब काम बताते है कि मैं कौन हूँ, और मेरे यहाँ आने का उद्देश्य क्या है। यह प्रमाण हैं कि पिता ने मुझे भेजा है।
\v 37 जिस पिता ने मुझे भेजा है, यह वही हैं जिन्होंने मेरे विषय में गवाही दी है। तुमने कभी उनकी वाणी नहीं सुनी और न ही उन को शारीरिक रूप में कभी देखा है।
\v 38 तुम मुझ पर विश्वास नहीं करते, यह एक प्रमाण है कि उनका वचन तुम में जीवित नहीं है, जिसे पिता ने भेजा है।
\s5
\v 39 तुम सावधानी से धर्मशास्त्र का अध्ययन करते हो क्योंकि तुमको लगता है कि उन्हें पढ़ कर तुम अनन्त जीवन पाओगे और वे शास्त्र मेरे विषय में बताता है।
\v 40 फिर भी तुम मेरे पास आने से मना कर देते हो ताकि तुम मुझसे अनन्त जीवन प्राप्त कर सको।
\p
\s5
\v 41 यदि लोग मेरी प्रशंसा करते या मुझे बधाई देते हैं, तो मैं उनको अनदेखा करता हूँ।
\v 42 मैं तुम्हारे विषय में यह जानता हूँ, तुम परमेश्वर से प्रेम नहीं करते।
\s5
\v 43 मैं अपने पिता के अधिकार के साथ आया हूँ, परन्तु फिर भी तुम मेरा स्वागत नहीं करते या मुझ पर विश्वास नहीं करते हो। यदि कोई अन्य व्यक्ति अपने अधिकार के साथ आए, तो तुम उसकी बात सुनोगे।
\v 44 जब तुम दूसरों से आदर प्राप्त करने के लिय कठिन परिश्रम करते हो, तो तुम मुझ पर विश्वास कैसे करोगे? फिर भी, सम्पूर्ण समय तुम सच्चे आदर की तलाश करने से मना करते हो जो मात्र परमेश्वर से आता है।
\p
\s5
\v 45 यह मत सोचो कि मैं वही हूँ जो तुम्हें अपने पिता के सामने दोषी ठहराता है। तुमने सोचा कि मूसा तुम्हारी रक्षा करेगा, इसलिए तुम ने उस से अपनी आशा बांधी। परन्तु, यह मूसा ही है जो तुम पर आरोप लगाता है।
\v 46 यदि तुमने मूसा की बात को स्वीकार किया होता, तो तुमको सत्य के रूप में वह प्राप्त होता जो मैंने कहा;
\v 47 क्योंकि तुमने उस पर भी विश्वास नहीं किया जो मूसा ने लिखा, तो यह कैसे सम्भव है कि तुम उन बातों पर विश्वास करोगे जो मैंने तुमसे कही है।"
\s5
\c 6
\p
\v 1 यीशु झील के पार दूसरी ओर गए। कुछ लोगों के लिए झील का नाम "गलील का सागर" था; अन्य लोगों ने इसे "तिबिरियास का सागर" कहा।
\v 2 एक बड़ी भीड़ उनके पीछे आई क्योंकि उन्होंने उन चमत्कारों को देखा था जो यीशु ने उन लोगों को ठीक करने के लिए किए थे जो बहुत बीमार थे।
\v 3 यीशु एक पहाड़ी की ढ़लान पर चढ़ गए और अपने शिष्यों के साथ बैठ गए।
\s5
\v 4 अब यह समय वर्ष के फसह पर्व का था, यह यहूदियों का विशेष उत्सव था।
\v 5 यीशु ने ऊपर की ओर ध्यान दिया और देखा कि लोगों की एक बहुत बड़ी भीड़ उनकी तरफ बढ़ रही है। यीशु ने फिलिप्पुस से कहा, "हम रोटी कहाँ से खरीद सकते है जिससे इन सब लोगों को कुछ खिला सकें?"
\v 6 यीशु ने फिलिप्पुस से यह प्रश्न उसकी परिक्षा लेने के लिए पूछा, कि वह किस तरह से उत्तर देगा। जबकि, यीशु पहले से ही जानते थे कि वह इस समस्या के विषय में क्या करने वाले है।
\s5
\v 7 "फिलिप्पुस ने उत्तर दिया," अगर हमारे पास इतने पैसे हों जो एक व्यक्ति दो सौ दिन काम करके कमाता है, तो भी वह पैसा पर्याप्त नहीं होगा की इतनी बड़ी भीड़ में हर व्यक्ति को रोटी का एक टुकड़ा भी खरीद के खिला पाएँ।"
\v 8 उनके शिष्यों में से एक, अन्द्रियास, जो शमौन पतरस का भाई था, उसने यीशु से कहा,
\v 9 "यहाँ एक लड़का है जिसके पास पांच जौ की रोटियां और दो छोटी मछलियां हैं। फिर भी, इतना कम भोजन इतने सारे लोगों के लिए पर्याप्त नहीं होगा?"
\s5
\v 10 वह स्थान जहाँ से सब लोग एक साथ आ रहे थे वहाँ बहुत सी घास थी। इसलिए यीशु ने कहा, "लोगों को बैठने के लिए कहो।" तो सब लोग बैठ गए, और शिष्यों के द्वारा लोगों की गिनती करने के बाद उन्हें पता चला कि वे लगभग पांच हज़ार लोग थे।
\v 11 तब यीशु ने उन रोटियों और छोटी मछलियों को लिया और उनके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर उन्होंने भूमि पर बैठे सब लोगों के बीच रोटियां और मछलियां बाँटी, लोग जितना चाहते थे उतनी रोटियां और मछलियां खाईं।
\v 12 जब सब ने भोजन कर लिया, तो यीशु ने शिष्यों से कहा, "सब टुकड़ों को एकत्र करो जो लोगों ने नहीं खाया। कुछ भी नाश न होने देना।"
\s5
\v 13 इस प्रकार उन्होंने जौ की रोटियों के सारे टुकड़ों को एकत्र किया और जो कुछ भी बचा हुआ था उससे उन्होंने बारह बड़ी टोकरीयों को भरा।
\p
\v 14 लोगों ने यीशु के इस चमत्कार को देखा जो यीशु ने उनके सामने किया था, उन्होंने कहा, "निश्चय ही यही वे भविष्यद्वक्ता है जिसे परमेश्वर संसार में भेजने वाले थे।"
\v 15 यीशु जानते थे कि लोग क्या योजना बना रहे थे; वे उनके पास आने वाले थे और उन्हें अपना राजा बनाने के लिए मजबूर करेंगे। इसलिए यीशु ने उन्हें छोड़ दिया और पहाड़ पर चढ़ गये।
\p
\s5
\v 16 जब शाम हुई, तो उनके शिष्य गलील सागर के तट पर गए,
\v 17 फिर एक नाव पर चढ़े और कफरनहूम शहर के लिए समुद्र पार करते हुए नाव चलाना आरम्भ कर दिया। अब अंधेरा हो चुका था, और यीशु उनके साथ नहीं थे।
\v 18 तभी तेज हवा चलने लगी और समुद्र पर लहरें बहुत उठने लगीं।
\s5
\v 19 पांच या छह किलोमीटर खेने के बाद, शिष्यों ने यीशु को जल पर चलते और नाव के पास आते हुए देखा। वे भयभीत हो गए।
\v 20 यीशु ने उनसे कहा, "मैं हूँ, डरो मत!"
\v 21 वे उन्हें नाव में लेने में बहुत आनन्दित थे। जैसे ही यीशु उनके साथ आए, उनकी नाव उस स्थान पर पहुंची जहाँ वे सब जा रहे थे।
\p
\s5
\v 22 अगले दिन झील की दूसरी ओर रहने वाले लोगों को समझ में आया कि पिछले दिन वहाँ केवल एक नाव थी। वे यह भी जानते थे कि यीशु अपने शिष्यों के साथ नाव में नहीं गए थे।
\v 23 कुछ पुरुष तिबिरियास शहर से दूसरी नावों में झील के पार आए थे। उन्होंने उन जगहों के पास अपनी नावें रोकीं जहाँ लोगों ने रोटी खाई थी, वह रोटी जिसके लिए प्रभु ने परमेश्वर का धन्यवाद किया था।
\s5
\v 24 जब भीड़ को पता चला कि न तो यीशु और न ही उनके शिष्य वहाँ थे, उनमें से कुछ उन नावों में चढ़े और यीशु को खोजने के लिए कफरनहूम गए।
\p
\v 25 उन्होंने कफरनहूम में यीशु की खोज की और गलील के सागर की दूसरी और उन्हें देखा; उन्होंने यीशु से पूछा, "गुरु, आप यहाँ कब आए?"
\s5
\v 26 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: तुम मेरी खोज इसलिए नहीं कर रहे थे क्योंकि तुमने मुझे चमत्कार करते हुए देखा जो बताता है कि मैं कौन हूँ। नहीं! तुम तलाश इसलिए कर रहे थे क्योकि तुमने मेरी दी हुई रोटियां तब तक खायी जब तक तुम्हारा पेट नहीं भर गया।
\v 27 उस भोजन के लिए काम करना बंद करो जो शीघ्र ही खराब हो जायेगा; इसकी अपेक्षा, उस भोजन के लिए काम करो जो तुम्हारे लिए अनन्त जीवन लाएगा; यही वह रोटी है जिसे मैं, मनुष्य का पुत्र, परमेश्वर का चुना हुआ, तुमको दूँगा। जैसे पिता परमेश्वर मुझे हर प्रकार से स्वीकार करते हैं।"
\p
\s5
\v 28 तब लोगों ने उनसे पूछा, "परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए हम क्या काम और सेवा करें?"
\v 29 यीशु ने उत्तर दिया, "परमेश्वर तुमसे जो कार्य चाहते हैं, वह यह है: मुझ पर विश्वास करो, जिसे उन्होंने भेजा है।"
\s5
\v 30 "फिर उन्होंने यीशु से कहा," एक और चमत्कार करके दिखाओ, यह सिद्ध हो कि आप कौन हो, जिससे कि हम देख सके और विश्वास कर सकें कि आप परमेश्वर की ओर से आए हैं। आप हमारे लिए क्या करोगे ?
\v 31 हमारे पूर्वजों ने मन्ना खाया, जैसे कि पवित्र धर्मशास्त्र में लिखा है: "परमेश्वर ने उन्हें खाने के लिए स्वर्ग से रोटी दी।' "
\p
\s5
\v 32 यीशु ने उनसे कहा, "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: वह मूसा नहीं था, जो तुम्हारे पूर्वजों को स्वर्ग से रोटी देता था। नहीं, वह मेरे पिता थे, जो तुमको स्वर्ग से सच्ची रोटी दे रहे थे।
\v 33 परमेश्वर की सच्ची रोटी मैं हूँ, जो स्वर्ग से नीचे आया है ताकि संसार में हर किसी को वास्तव में जीने में सक्षम बना सकूँ। "
\p
\v 34 उन्होंने कहा, "महोदय, हमें हमेशा यह रोटी दें।"
\s5
\v 35 "यीशु ने उनसे कहा," जैसे लोगों को खाने के लिए भोजन की आवश्यक्ता होती है, वैसे ही आत्मिक रूप से जीने के लिए हर एक को मेरी आवश्यक्ता है। जो साधारण खाना और जल लेते हैं उन्हें फिर से भूख और प्यास लगेगी, परन्तु जो मुझसे पूछते हैं, और आत्मिक रूप से जीने के लिए मुझ पर विश्वास करते है, मैं उनके लिए ऐसा ही करूंगा।
\v 36 फिर भी, मैंने तुमको यह बता दिया है जबकि तुम मुझे देखते हो, परन्तु मुझ पर विश्वास नहीं करते हो।
\v 37 वे सब लोग जो मेरे पिता ने मुझे दिए हैं, मेरे पास आएंगे और जो भी मेरे पास आएगा, मैं उनको कभी भी दूर नहीं करूंगा।
\s5
\v 38 मैं स्वर्ग से नीचे आया, परन्तु जो मैं चाहता हूँ वह करने के लिए नहीं, अपितु मुझे भेजने वाले की इच्छा को पूरी करने के लिए।
\v 39 जिन्होंने मुझे भेजा है, वह यह चाहते हैं कि मैं उन लोगों में से किसी को भी ना खोऊँ, जिसे उन्होंने मुझे दिया है और उन सब को मैं अंतिम दिन जी उठाऊंगा।
\v 40 यही मेरे पिता चाहते है कि जो मुझ पर, उनके पुत्र पर विश्वास रखते है और विश्वास रखते हैं, उन्हें अनन्त जीवन मिलेगा। मैं उन्हें अंतिम दिन जी उठाऊंगा। "
\p
\s5
\v 41 यहूदी अगुवों ने यीशु के विषय में शिकायत करना आरम्भ कर दिया क्योंकि उन्होंने कहा था, "मैं वह रोटी हूँ जो स्वर्ग से नीचे आयी है।"
\v 42 उन्होंने कहा, "क्या यह यीशु नहीं है, जिसका पिता यूसुफ है? क्या हम उसके पिता और मां को नहीं जानते? वह कैसे सच कह सकता है, कि 'मैं स्वर्ग से आया हूँ?'
\s5
\v 43 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, "आपस में बड़बड़ाना बंद करो।
\v 44 कोई भी मेरे पास तब तक नहीं आ सकता जब तक कि पिता जिन्होंने मुझे भेजा है उसे मेरे पास खींचकर नहीं लाते। जो मेरे पास आता है, मैं उसे अंतिम दिन जी उठाऊंगा।
\v 45 यह भविष्यद्वक्ताओं के लेखों में लिखा है, 'परमेश्वर उन्हें सब कुछ सिखाएँगे।' जो कोई सुनता है और पिता से सीखता है, वह मेरे पास आता है।
\s5
\v 46 मुझे छोड़कर किसी ने भी कभी पिता को नहीं देखा है, मैं जो परमेश्वर की ओर से आया हूँ, केवल मैंने पिता को देखा है।
\v 47 मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: जो मुझ पर विश्वास करता है, उसके पास अनन्त जीवन है।
\s5
\v 48 मैं वह रोटी हूँ जो सच्चा जीवन देता है।
\v 49 तुम्हारे पूर्वजों ने जंगल में मन्ना खाया, फिर भी वे मर गए।
\s5
\v 50 तथापि, जिस रोटी के विषय में मैं कह रहा हूँ वह स्वर्ग से नीचे आता है और जो उसे खाएगा वह कभी नहीं मरेगा।
\v 51 मैं वह रोटी हूँ जो लोगों को वास्तव में जीवित रखता है, वह रोटी जो स्वर्ग से नीचे आया है यदि कोई यह रोटी खाता है, तो वह हमेशा के लिए जीवित रहेगा। जो रोटी मैं संसार के जीवन के लिए देता हूँ वह मेरी शारीरिक देह की मृत्यु है।"
\p
\s5
\v 52 जिन यहूदियों ने यीशु की बात सुनी थी वे अब आपस में गुस्से में बहस कर रहे थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि कोई ऐसी प्रतिज्ञा कैसे कर सकता है कि कोई दूसरा उसके शरीर को खाए!
\v 53 इसलिए यीशु ने उनका कठोर शब्दों से सामना किया: "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: जब तक तुम मेरा, मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ और मेरा लहू न पीओ, तुम हमेशा के लिए जीवित नहीं रह पाओगे।
\s5
\v 54 जो मेरा मांस खाते हैं और मेरा लोहू पीते हैं वे हमेशा के लिए जीवित रहेंगे, और मैं उन्हें अंतिम दिन फिर जीवित कर दूंगा।
\v 55 क्योंकि मेरा मांस सच्चा भोजन है और मेरा लहू सच्चा पेय है।
\v 56 जो मेरा मांस खाता है और मेरा लहू पीता है, वह मेरे साथ जुड़ जाएगा, और मैं उसके साथ जुड़ जाऊंगा।
\s5
\v 57 मेरे पिता, जो हर किसी को जीवित करते है, उन्होंने मुझे भेजा है, और मैं जीता हूँ क्योंकि मेरे पिता ने मुझे सक्षम बनाया है। उसी प्रकार, जो मुझे खाता हैं, वह मेरे कारण हमेशा के लिए जीवित रहेगा।
\v 58 मैं सच्ची रोटी हूँ जो स्वर्ग से नीचे आयी है। जो कोई मुझे खाता है वह कभी भी नहीं मरेगा, परन्तु हमेशा के लिए जीवित रहेगा। मैं जो करता हूँ वह वैसा नहीं है, जो तुम्हारे पूर्वजों के साथ हुआ, क्योंकि उन्होंने मन्ना खाया और फिर मर गये। "
\v 59 यीशु ने यह बातें उस समय कही जब वह कफरनहूम नगर के आराधनालय में सिखा रहे थे।
\p
\s5
\v 60 उनके शिष्यों में से कइयों ने कहा, "वह जो सिखा रहे हैं वह समझना मुश्किल है, जो वह कह रहे हैं वह कोई कैसे स्वीकार कर सकता है?"
\v 61 यीशु को पता था कि उनके कुछ शिष्य शिकायत कर रहे है, इसलिए उन्होंने उनसे कहा, "क्या मैं जो सिखाता हूँ वह तुम्हें लज्जित करता है?
\s5
\v 62 तुम क्या कहोगे यदि तुम मनुष्य के पुत्र को स्वर्ग में वापस जाता देखोगे ?
\v 63 केवल आत्मा ही जीवन दे सकता है जिससे कोई भी हमेशा के लिए जीवित रह सकता है। मानव स्वभाव इस विषय में कोई सहायता नहीं कर सकता। जो मैंने तुम्हें सिखाया है वह तुमको आत्मा के विषय में बताता है, और वह तुमको अनन्त जीवन के विषय में बताता है।
\s5
\v 64 परन्तु तुममें से कुछ लोग उस पर विश्वास नहीं करते जो मैं तुम्हें सिखाता हूँ । "यीशु ने यह कहा क्योंकि वह अपनी सेवा के आरम्भ से जानते थे कि कौन उन पर विश्वास नहीं करेगा, और वह उस व्यक्ति को जानते थे जो उनसे विश्वासघात करेगा।
\p
\v 65 "फिर उन्होंने कहा, "यही कारण है कि मैंने तुमसे कहा था कि कोई भी मेरे पास नहीं आ सकता है और सदा जीवित नहीं रह सकता जब तक पिता उसे मेरे पास आने के लिए सक्षम न कर दें।"
\p
\s5
\v 66 उस समय से, यीशु के कई शिष्यों ने उनके पीछे आना छोड़ दिया ।
\v 67 तो उन्होंने बारहों से कहा, "क्या तुम मुझे छोड़ना नहीं चाहते, या चाहते हो ?"
\v 68 शमौन पतरस ने उत्तर दिया, "हे प्रभु, हम किसके पास जाएंगे? केवल आपके पास वह संदेश है जो हमें अनन्त जीवन देता है!
\v 69 हम आप पर विश्वास करते हैं, और हमें पता है कि आप वह पवित्र हैं जिसे परमेश्वर ने भेजा है! "
\s5
\v 70 "यीशु ने उनसे कहा," क्या मैंने तुम बारह शिष्यों को नहीं चुना? फिर भी तुममें से एक शैतान है।"
\v 71 वह शमौन इस्करियोती के पुत्र यहूदा के विषय में बात कर रहा था। यद्यपि यहूदा बारहों में से एक था, वह वही था जो आगे चलकर यीशु को धोखा देगा।
\s5
\c 7
\p
\v 1 इसके बाद, यीशु गलील के अन्य क्षेत्रों में गए। उन्होंने यहूदिया की यात्रा करना न चाहा क्योंकि यहूदी अधिकारी उनको किसी अपराध में फंसाने का उपाय ढूढ़ रहे थे ताकि वे उन्हें मृत्युदण्ड दे सके।
\v 2 अब यहूदीयों के झोपड़ियों के पर्व का समय था। यह उनके लिए उस समय को स्मरण करने का एक समय था जब यहूदी लोग निर्गमन के समय तम्बुओं में रहते थे।
\s5
\v 3 क्योंकि यह पर्व यहूदिया में होना था, यीशु के भाईयों ने उनसे कहा, "इस स्थान को छोड़कर यहूदिया जाओ, ताकि तुम्हारे अन्य अनुयायी तुम्हारे शक्तिशाली कार्यों को देख सके जो तुम कर सकते हो।
\v 4 कोई भी अपना काम नहीं छिपाता यदि वह लोगों को बताना चाहता है कि वह कैसा व्यक्ति है। अपने आप को संसार को दिखा।"
\s5
\v 5 उनके भाइयों ने भी उन पर विश्वास न किया या न सोचा कि वह सच कह रहे थे।
\v 6 इसलिए यीशु ने उनसे कहा," मेरा समय नहीं आया कि मैं अपना कार्य समाप्त कर दूं। हालांकि, तुम अपनी इच्छा को पूरा करने के लिए कोई भी समय चुन सकते हो ।
\v 7 जो लोग स्वयं के लिए जीते हैं और इस संसार की वस्तुओं से प्रेम करते हैं, वे तुम से घृणा नहीं कर सकते, परन्तु वे मुझसे घृणा करते हैं क्योंकि मैं उनको बताता हूँ कि वे अपने जीवन के साथ जो करते हैं, वह बुरा है।
\s5
\v 8 तुम पर्व में जाओ, मैं अभी नहीं जा रहा हूँ ; यह मेरे लिए सही समय नहीं है।"
\v 9 उनके यह कहने के बाद, यीशु गलील में थोड़ी देर ओर रुके।
\p
\s5
\v 10 हालांकि, उनके भाइयों के पर्व में जाने के कुछ दिन बाद, वे भी पर्व में गए, परन्तु अत्यंत गुप्त रूप से।
\v 11 यीशु के यहूदी विरोधी उन्हें खोज रहे थे, वह आशा कर रहे थे कि उन्हें पर्व में ढूढ़ लेंगे। वे लोगों से पूछ रहे थे, "यीशु कहाँ है? क्या वे यहाँ है?"
\s5
\v 12 भीड़ के बीच, बहुत से लोग चुपचाप यीशु के विषय में एक दूसरे से बात कर रहे थे। कुछ लोग कह रहे थे, "वह एक अच्छा व्यक्ति है!" परन्तु कुछ लोग कह रहे थे, "नहीं, वह धोखेबाज़ है और भीड़ को मार्ग से भटका रहा है!"
\v 13 क्योंकि वे यीशु के यहूदी शत्रुओं से डरते थे, इसलिए किसी ने भी उनके विषय में किसी सार्वजनिक स्थान पर कोई बात नहीं की, जहाँ अन्य लोग सुन सके कि वह क्या कह रहे थे ।
\p
\s5
\v 14 जब झोपड़ियों का पर्व लगभग आधा समाप्त हो गया था, तो यीशु आराधनालय के आंगन में गए और वहां शिक्षा देने लगे।
\v 15 यहूदी उनकी बातें सुनकर चकित थे। उन्होंने कहा, "इस व्यक्ति ने कभी भी स्वीकृत गुरु के पास हमारे सिद्धांतों का अध्ययन नहीं किया, वह हमारे पाठशालाओं में कभी नहीं गया, तो वह इतना सब कैसे जानता है?"
\v 16 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "जो मैं सिखाता हूँ, वह मुझ से नहीं आता परन्तु परमेश्वर की और से आता हैं, जिन्होंने मुझे भेजा है।
\s5
\v 17 यदि कोई परमेश्वर की इच्छा पूरी करने का चुनाव करता है, तो वह जान लेगा कि मैं जो सिखाता हूँ वह परमेश्वर की और से आता है या फिर मैं केवल अपने अधिकार से बोलता हूँ।
\v 18 जो कोई अपने अधिकार से बोलता है वह अन्य लोगों से आदर प्राप्त करने के लिए करता है। परन्तु, यदि कोई सेवक उस व्यक्ति का आदर करने में कठोर परिश्रम करता है जिसने उसे भेजा है, कि उसे एक विश्वासयोग्य व्यक्ति के रूप में अच्छी प्रतिष्ठा मिले, तो ऐसे सेवक में कोई दोष नहीं है।
\s5
\v 19 क्या मूसा ने तुम्हें व्यवस्था नहीं दी? फिर भी तुम में से कोई भी वह नहीं करता जो व्यवस्था चाहती है। तुम वही लोग हो जो अभी मेरी हत्या करने की योजना बना रहे हो।
\p
\v 20 भीड़ में से किसी ने उत्तर दिया, "तुम्हारे में दुष्ट-आत्मा है, उस व्यक्ति का नाम बताओ जो तुमको मारना चाहता है!"
\s5
\v 21 यीशु ने भीड़ को उत्तर दिया, "क्योंकि मैंने तुम्हें दिखाने के लिए एक सामर्थ्य का काम किया है, तुम सब उस पर आश्चर्यचकित हो।
\v 22 मूसा ने तुम्हें व्यवस्था दी, और उस व्यवस्था के अनुसार तुमको अपने नर बच्चों का खतना करना चाहिए और बच्चों के जन्म के ठीक सात दिन बाद ही तुमको ऐसा करना है। (सटीक होने के लिए, यह रीती तुम्हारे पूर्वजों, अब्रहाम, इसहाक और याकूब से थी न कि मूसा से, जिसने इस अभ्यास के विषय में व्यवस्था लिखी थी।) व्यवस्था की इस आवश्यकता के कारण, तुमको कभी-कभी किसी बच्चे का सब्त के दिन खतना करना पड़ता है और यह होता रहा है।
\s5
\v 23 तुम कभी कभी सब्त के दिन लड़कों का खतना करते हो ताकि तुम मूसा की व्यवस्था का उल्लंघन न करों। तो तुम मुझसे क्यों क्रोधित हो की मैंने सब्त के दिन किसी व्यक्ति को स्वस्थ किया। किसी को स्वस्थ करना अद्भुत है और किसी बच्चे का खतना करने से अधिक बड़ा काम है।
\v 24 परमेश्वर की व्यवस्था को बिना सोचे समझे गलत रीती से लागू करने के अनुसार यह निर्णय लेना बंद कर दो कि क्या इस व्यक्ति को स्वस्थ करना सही था या गलत, इसकी अपेक्षा, यह निर्णय लो कि किसी व्यक्ति को क्या करना चाहिए और उसका न्याय कैसे करना चाहिए, इस सिद्धांत के अनुसार कि क्या सही है परमेश्वर के अनुसार, न कि मनुष्य के अनुसार।
\p
\s5
\v 25 यरूशलेम के कुछ लोग कह रहे थे, "क्या यह वह व्यक्ति नहीं है जिसे लोग मार डालने का प्रयास कर रहे हैं?
\v 26 वह ये बातें सार्वजनिक रूप से कह रहा है, परन्तु अधिकारियों ने उसके विरोध में कुछ भी नहीं कहा है। क्या यह इसलिए है कि वे जानते हैं कि वह मसीह है?
\v 27 परन्तु यह मसीह नहीं हो सकता! हम जानते हैं कि यह व्यक्ति कहाँ से आया है, परन्तु जब मसीह आएगे, तब कोई भी नहीं जान पाएगा कि वह कहां से आते हैं।"
\p
\s5
\v 28 "जब यीशु आराधनालय के आंगन में शिक्षा दे रहे थे, तो जैसा उन्होंने सिखाया वैसे ही उन्होंने पुकार के कहा, "हाँ, तुम कहते हो कि तुम मुझे जानते हो, और तुम सोचते हो कि तुम जानते हो मैं कहां से हूँ, परन्तु मैं यहाँ इसलिए नहीं आया कि मैं स्वयं को नियुक्त करता हूँ। इसकी अपेक्षा, जिन्होंने मुझे भेजा है, वह मेरी सच्चाई अपनी गवाही के रूप में देते हैं, और तुम उन्हें नहीं जानते।
\v 29 मैं उन्हें जानता हूँ क्योंकि मैं उनके पास से आया हूँ, यह वही हैं जिन्होंने मुझे भेजा है।"
\p
\s5
\v 30 तब लोगों ने यीशु को पकड़ने का प्रयास किया, परन्तु कोई उन्हें पकड़ नहीं सका क्योंकि यह उनके काम को पूरा करने का और उनके जीवन को खत्म करने का समय नहीं था।
\v 31 भीड़ में से बहुत लोगों ने, उनको सुनने और उनके कामों को देखने के बाद, उन पर विश्वास किया। उन्होंने कहा, "जब मसीह आएंगे, तो क्या वह इस व्यक्ति से अधित चमत्कारी चिन्ह दिखायेंगे?"
\v 32 फरीसियों ने यीशु के विषय में इन बातों को चुपचाप सुना, फिर प्रधान याजकों और फरीसियों ने कुछ अधिकारियों को उन्हें बन्दी बनाने के लिए भेजा।
\p
\s5
\v 33 "फिर यीशु ने कहा," मैं तुम्हारे साथ थोड़े समय तक ही हूँ, फिर मैं उनके पास वापस जा रहा हूँ जिन्होंने मुझे भेजा है।
\v 34 तुम मेरी खोज करोगे, परन्तु तुम मुझे ढूढ़ नहीं पाओगे मैं जहाँ जा रहा हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते।"
\s5
\v 35 इसलिए यहूदी लोग जो उनके शत्रु थे आपस में कहने लगे, "यह व्यक्ति कहाँ जा रहा है जहाँ हम उसे नहीं ढूढ़ पाएंगे? क्या यह वहाँ जाने कि सोच रहा है जहाँ यहूदी लोग यूनानी लोगों के बीच फैले हुए हैं और क्या वह वहां लोगों को इन नई बातों को सिखायेगा?
\v 36 उसका क्या अर्थ था जब उसने कहा, 'तुम मुझे खोजोगे, परन्तु तुम मुझे ढूढ़ नहीं पओगें,' और जब उसने कहा, 'मैं वहाँ जा रहा हूँ, जहाँ तुम नहीं आ सकते?'
\p
\s5
\v 37 पर्व के अंतिम दिन, अर्थात् महान दिन, यीशु ने ऊँचे स्वर से चिल्लाकर कहा, "यदि कोई प्यासा है, तो वह मेरे पास आकर पीए।"
\v 38 जो कोई मुझ पर विश्वास करता है, जैसा कि पवित्र शास्त्र में कहा गया है, 'उसके हृदय से जीवित जल की नदियों का प्रवाह होगा।'
\s5
\v 39 उन्होंने आत्मा के विषय में यह कहा था, जिन्हें पिता उन पर विश्वास करने वालों को देने वाले थे। परमेश्वर ने पवित्र आत्मा अब तक उन लोगों में नहीं भेजा था जो उन पर विश्वास करते थे, क्योंकि यीशु ने अभी तक अपना काम पूरा नहीं किया था, वह काम जो उनकी मृत्यु द्वारा लोगों को बचाकर परमेश्वर के लिए महान आदर लायेगा।
\p
\s5
\v 40 जब भीड़ में से कुछ लोगों ने यह शब्द सुना तो उन्होंने कहा, "यह वास्तव में भविष्यद्वक्ता है जिसकी हम आशा कर रहे थे।"
\v 41 अन्य लोगों ने कहा, "मसीह गलील से नहीं आ सकते।
\v 42 क्या पवित्र धर्मशास्त्र में नहीं लिखा कि मसीह को दाऊद के वंशजों में से आना है और उनका जन्म बैतलहम में होगा, वह गाँव जहाँ दाऊद का घर था ?"
\s5
\v 43 इसलिए यीशु के विषय में उनके विचारों में विभाजन हुआ।
\v 44 कुछ लोग उन्हें बन्दी बनाना चाहते थे। फिर भी कोई भी उन को पकड़ नहीं पाया ।
\p
\s5
\v 45 तब वे अधिकारी प्रधान याजकों और फरीसियों के पास लौट आए। ये वे अधिकारी थे जिन्हें शासकों ने यीशु को गिरफ्तार करने के लिए भेजा था। फरीसियों ने अधिकारियों से कहा, "तुम उसे पकड़ कर यहाँ क्यों नहीं लाये?"
\v 46 "अधिकारियों ने उत्तर दिया," किसी ने भी आज तक इस व्यक्ति के समान बात नहीं की ।"
\s5
\v 47 फिर फरीसियों ने उत्तर दिया, "क्या तुम भी धोखेबाज़ हो?
\v 48 यहूदी अधिकारियों या फरीसियों में से कोई भी यीशु पर विश्वास नहीं करता था।
\v 49 यह भीड़ जो हमारी व्यवस्था की शिक्षाओं को नहीं जानती है, वह श्रापित हो।"
\p
\s5
\v 50 फिर नीकुदेमुस ने कहा। (वह वही था जो रात में यीशु से बात करने गया था, और वह फरीसियों में से एक था।) उसने उनसे कहा,
\v 51 "हमारी यहूदी व्यवस्था हमें किसी व्यक्ति को दण्ड देने की अनुमति नहीं देती, इससे पहले कि हम उसे सुन न लें। सबसे पहले, हमे उसे सुनना हैं, और जो कुछ भी उसने किया है हमे उसके विषय में जानना है।"
\v 52 उन्होंने उत्तर दिया, "क्या तू भी गलील से है? ध्यान से खोजो और पढों कि पवित्र धर्मशास्त्र में क्या लिखा है। तुम्हें पता चलेगा कि कोई भी भविष्यद्वक्ता गलील से नहीं आता।"
\p
\s5
\v 53 तब वे सब वहाँ से निकले और अपने- अपने घर चले गए।
\s5
\c 8
\p
\v 1 यीशु अपने शिष्यों के साथ जैतून पहाड़ पर गए और वे उस रात वहां रहे।
\v 2 अगली सुबह, यीशु आराधनालय के आंगन में लौट आए, बहुत से लोग उनके चारों ओर एकत्र हुए, और यीशु उन्हें सिखाने के लिए बैठ गए।
\v 3 तब जो लोग यहूदी व्यवस्था को पढ़ाते थे और कुछ फरीसियों ने उनके सामने एक स्त्री को लाकर खड़ा किया। वह व्यभिचार में पकड़ी गई थी- वह एक ऐसे व्यक्ति के साथ रह रही थी जो उसका पति नहीं था। उन्होंने उसे इस समूह के सामने खड़ा किया ताकि वे यीशु से प्रश्न कर सकें।
\s5
\v 4 उन्होंने यीशु से कहा, "गुरु, यह स्त्री एक पुरुष के साथ व्यभिचार करती हुई पकड़ी गयी थी, जो उसका पति नहीं है।
\v 5 मूसा ने हमें व्यवस्था में आदेश दिया है कि हमें ऐसी स्त्री पर पत्थराव करके मार डालना चाहिए। फिर भी, आप क्या कहते हैं कि हमें करना चाहिए?"
\v 6 उन्होंने यीशु को फसाने के लिए यह प्रश्न पूछा कि वे कुछ गलत कहने के आरोप में उन पर दोष लगा सकें। यदि वह कहते कि उन्हें उस स्त्री को नहीं मारना चाहिए, तो वे कहते कि यीशु ने मूसा की व्यवस्था का अपमान किया है और यदि वह कहते कि स्त्री को मारना चाहिए, तो वह रोमी कानून को तोड़ते, क्योकि केवल राज्यपाल को ही यह अधिकार प्राप्त है कि लोगों को मृत्युदंड दें। यीशु नीचे झुककर अपनी अंगुली से भूमि पर कुछ लिखने लगे
\s5
\v 7 जब फरीसियों ने यीशु से प्रश्न करना जारी रखा, तब उन्होंने खड़े होकर उनसे कहा, "तुम में से जिसने कभी भी कोई पाप नहीं किया, उसी व्यक्ति को उसे दण्ड देने के लिए लोगों का नेतृत्व करना चाहिए। वही पहले उस को पत्थर मारे।"
\v 8 फिर यीशु नीचे झुक कर भूमि पर दुबारा कुछ लिखने लगे।
\s5
\v 9 इसके बाद जब फरीसियों ने वह सब सुना जो यीशु ने कहा, तो वे लोग जो उनसे प्रश्न कर रहे थे, एक-एक करके वहाँ से दूर जाने लगे, सबसे पहले बड़ी उम्र के लोग और फिर छोटी उम्र के लोग। वे जानते थे कि वे सब पापी है। अंत में केवल यीशु ही उस स्त्री के साथ थे।
\v 10 यीशु ने खड़े होकर उससे पूछा, "हे स्त्री, वे लोग कहाँ गये जो तुझ पर आरोप लगा रहे थे? क्या किसी ने तुझ पर कोई आरोप नहीं लगाया कि तुझे दण्ड दिया जाए?"
\v 11 उसने कहा, "नहीं, महोदय, किसी ने भी नहीं।" फिर यीशु ने कहा, " तो मैं भी तुझ पर दोष नहीं लगता हूँ। अब घर जा, और अब से, इस प्रकार पाप मत करना।"
\p
\s5
\v 12 यीशु ने फिर से लोगों से बात की। उन्होंने कहा, "मैं संसार का प्रकाश हूँ; जो कोई मेरे पीछे हो लेगा उसे वह प्रकाश मिलेगा जो जीवन देता है, और वह अंधेरे में फिर कभी नहीं चलेगा।
\v 13 इसलिए फरीसियों ने उनसे कहा, "ऐसा लगता है जैसे तू हमें अपने विषय में अधिक से अधिक बता कर मनाने का प्रयास कर रहा है कि हम तुम पर विश्वास करे। तुम जो स्वयं के विषय में कहते हो,वह कुछ भी सिद्ध नहीं करता।"
\s5
\v 14 यीशु ने उत्तर दिया, "यदि मैं स्वयं की गवाही देता हूँ, तो मेरी गवाही सच्ची है क्योंकि मुझे पता है कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ। परन्तु तुम नहीं जानते कि मैं कहां से आया और कहाँ जा रहा हूँ।
\v 15 तुम मनुष्यों के मानकों और नियमों के अनुसार न्याय करते हो; मैं इस समय किसी का न्याय करने नहीं आया।
\v 16 जब मैं न्याय करता हूँ, तो वह सही होगा क्योंकि केवल में अकेला नहीं हूँ जो न्याय लाएगा। मैं और पिता जिन्होंने मुझे भेजा है, हम एक साथ न्याय को लागू करेंगे।
\s5
\v 17 यह तुम्हारी व्यवस्था में लिखा है कि कोई विषय तब ही निश्चित किया जा सकता है जब उस विषय में गवाही देने के लिए कम से कम दो गवाह हों।
\v 18 मैं अपने विषय में तुम्हें गवाही दे रहा हूँ और मेरे पिता जिन्होंने मुझे भेजा है, वह भी मेरे विषय में गवाही दे रहे हैं, तो तुमको इस बात पर विश्वास करना चाहिए कि हम जो कहते हैं, वह सच है।"
\p
\s5
\v 19 तब उन्होंने यीशु से पूछा, "तुम्हारा पिता कहां है?" यीशु ने उत्तर दिया, "तुम मुझे नहीं जानते, और तुम मेरे पिता को भी नहीं जानते, यदि तुम मुझे जानते, तो तुम मेरे पिता को भी जानते।"
\v 20 उन्होंने यह बातें तब कहीं जब वह आराधनालय के आंगन में भंडार घर के पास थे, जिस स्थान पर लोग अपनी भेंट चढ़ाते थे, फिर भी किसी ने उन्हें बन्दी नहीं बनाया क्योंकि उनकी मृत्यु का समय अभी नहीं आया था।
\p
\s5
\v 21 यीशु ने उनसे कहा, "मैं जा रहा हूँ, और तुम मुझे ढूंढ़ोगे, परन्तु यह निश्चित है कि तुम अपने पाप में मरोगे। मैं जहाँ जा रहा हूँ, तुम वहां नहीं आ सकते।
\v 22 उनके यहूदी विरोधियों ने आपस में कहा, "शायद वह सोच रहा है कि वह स्वयं को मार डालेगा, और यही उसका अर्थ है जब वह कहता है, 'मैं वहां जा रहा हूँ, जहाँ तुम नहीं आ सकते।"
\s5
\v 23 यीशु ने उनसे कहा, "तुम नीचे इस पृथ्वी से हो, परन्तु मैं स्वर्ग से हूँ, तुम इस संसार से हो, मैं इस संसार से नहीं हूँ।
\v 24 मैंने तुमसे कहा था कि तुम मर जाओगे और यह कि परमेश्वर तुम्हारे पापों के लिए तुम्हें दोषी ठहराएगे। यह निश्चित रूप से तब तक होगा जब तक तुम विश्वास नहीं करते कि मैं परमेश्वर हूँ, जैसा कि मैं कहता हूँ।"
\p
\s5
\v 25 "तुम कौन हो?" उन्होंने यीशु से पूछा, यीशु ने उनसे कहा, "मैं आरम्भ ही से तुम से कह रहा हूँ।
\v 26 मैं तुम्हारा न्याय कर सकता हूँ और कह सकता हूँ कि तुम कई बातों में दोषी हो। परन्तु, मैं केवल यही कहूँगा: जिन्होंने मुझे भेजा है, वह सच कहते है, और मैं संसार में लोगों को वही बताता हूँ जो मैंने उनसे सुना है।
\p
\v 27 फरीसियों को समझ नहीं आया कि वह पिता के विषय में बात कर रहे थे।
\s5
\v 28 इसलिए यीशु ने कहा, "जब तूम मुझे क्रूस पर मारने के लिए चढ़ाओगे, मुझे अर्थात् मनुष्य के पुत्र को तब तुम्हें पता चल जयेगा कि मैं परमेश्वर हूँ, और तुमको पता चलेगा कि मैं अपने अधिकार से कुछ नहीं करता, परन्तु मैं केवल वही कहता हूँ जो मेरे पिता ने मुझे कहने के लिए सिखाया है।
\v 29 जिन्होंने मुझे भेजा है वह मेरे साथ हैं, और उन्होंने मुझे अकेला नहीं छोड़ा है क्योंकि मैं केवल वही काम करता हूँ जो उन्हें प्रसन्न करते हैं।"
\v 30 "जब यीशु यह बातें कह रहे थे, तब बहुत लोग उन पर विश्वास करने लगे।
\p
\s5
\v 31 फिर यीशु ने उन यहूदीयों से कहा जो अब कह रहे थे कि वे उन पर विश्वास करने लगे है, "यदि तुम सब कुछ सुनोगे जो मैं तुमको सिखाता हूँ और जो कुछ कार्य करते हो उन सब में उन शिक्षाओं के द्वारा जीते हो, तो तुम वास्तव में मेरे शिष्य हो।
\v 32 तुम सत्य को जान लोगे, और सत्य तुमको उन सब से स्वतंत्र होने में सहायता करेगा जो तुमको दास बनाते हैं।"
\v 33 "उन्होंने उत्तर दिया, "हम अब्राहम की सन्तान हैं, और हम कभी किसी के दास नहीं बने हैं, तुम क्यों कहते हो कि हमें स्वतंत्र होने की आवश्यकता है?
\s5
\v 34 यीशु ने उत्तर दिया, "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: जो कोई भी पाप करता है वह अपने पापी इच्छाओं का पालन करता है, ठीक वैसे, जैसे दास को अपने स्वामी की आज्ञा माननी पड़ती है।
\v 35 एक दास परिवार के स्थायी सदस्यों के समान नहीं रह सकता, परन्तु उसे घर लौटने की स्वतंत्रता है या बेचा जा सकता है; परन्तु एक पुत्र हमेशा के लिए परिवार का सदस्य होता है।
\v 36 इसलिए यदि पुत्र ने तुमको स्वतंत्र किया है, तो तुम निश्चित स्वतंत्र होंगे।
\s5
\v 37 मुझे पता है कि तुम अब्राहम के परिवार में हो; तुम उसके वंशज हो फिर भी, तुम्हारे लोग मुझे मारने का प्रयास कर रहे है। तुम मेरी कही किसी बात पर विश्वास नहीं करोगे।
\v 38 मैं तुमको चमत्कारों और बुद्धि के विषय में सब कुछ बताता हूँ जो मेरे पिता ने मुझे दिखाया है, परन्तु तुम वही कर रहे हो जो तुम्हारे पिता ने तुम्हें करने को कहा था।
\p
\s5
\v 39 "उन्होंने उत्तर दिया," अब्राहम हमारा पूर्वज है।" यीशु ने उनसे कहा, "यदि तुम अब्राहम की सन्तान होते, तो तुम उन कामों को करते जो उसने किये थे ।
\v 40 मैं तुमसे सच कहता आया हूँ कि मैंने परमेश्वर से सुना है, परन्तु तुम मुझे मार डालने का प्रयास कर रहे हो। अब्राहम ने ऐसा कुछ नहीं किया।
\v 41 नहीं! तुम उन कामों को कर रहे हो जो तुम्हारे असली पिता ने किया। "उन्होंने उनसे कहा," हम तुम्हारे विषय में नहीं जानते, परन्तु हम अवैध बच्चे नहीं हैं। हमारा केवल एक ही पिता है, और वह परमेश्वर हैं।"
\s5
\v 42 "यीशु ने उनसे कहा," यदि तुम्हारे पिता परमेश्वर होते, तो तुम मुझसे प्रेम करते क्योंकि मैं परमेश्वर की ओर से आया हूँ और अब मैं इस संसार में हूँ। मैं इसलिए नहीं आया कि मैंने स्वयं आने का निर्णय लिया था, परन्तु उन्होंने मुझे भेजा है।
\v 43 मैं तुमको बताता हूँ कि तुम क्यों समझ नहीं पा रहे हो कि मैं क्या कह रहा हूँ। ऐसा इसलिए है कि तुम मेरे संदेश या मेरी शिक्षाओं को स्वीकार नहीं करते हो।
\v 44 तुम अपने पिता, शैतान से हो, और तुम वही करने कि इच्छा रखते हो जो वह चाहता हैं। वह उस समय से हत्यारा है, जब लोगों ने पहला पाप किया था। उसने परमेश्वर की सच्चाई को त्याग दिया; वह उसमें है ही नहीं, जब भी वह झूठ बोलता है, वह अपने चरित्र के अनुसार बोलता है क्योंकि वह झूठा है; जो झूठ बोलता है वह वही करता है जो शैतान उससे कराना चाहता है।
\s5
\v 45 क्योंकि मैं तुमसे सच कहता हूँ, तुम मुझ पर विश्वास नहीं करते!
\v 46 तुम में से कौन मुझे पाप का दोषी मानता है? क्योंकि मैं तुमको सच्चाई बताता हूँ, तुम मुझ पर विश्वास न रखने के लिए क्या कारण देते हो ?
\v 47 जो लोग परमेश्वर से संबंध रखते हैं, वे परमेश्वर की बातों को सुनते और उनका पालन करते हैं। परन्तु तुम उनके संदेश न तो सुनते हो और ना ही उनका पालन करते हो, इसका कारण यह है कि तुम परमेश्वर के नहीं हो।
\p
\s5
\v 48 उनके यहूदी शत्रुओं ने उन से कहा, "हम निश्चित रूप से सही कह रहे हैं कि तुम एक सामरी हो- तुम वास्तव में एक सच्चे यहूदी नहीं हो! और यह कि तुममें एक दुष्ट-आत्मा रहती है!"
\v 49 "यीशु ने उत्तर दिया," दुष्ट-आत्मा मुझ में नहीं रहता! मैं अपने पिता का आदर करता हूँ, और तुम मेरा अपमान करते हो।
\s5
\v 50 मैं लोगों को मेरी प्रशंसा के लिए राजी करने का प्रयास नहीं करता हूँ; परन्तु कोई और है जो मुझे वह देना चाहता है जिसके मैं योग्य हूँ, और एक वही है; जो मेरी बातों का और मेरे कामों का न्याय करेंगे।
\v 51 मैं तुम से सच कह रहा हूँ: यदि कोई मेरे शब्दों पर दृढ़ रहेगा और उन पर विश्वास करेगा जैसा मैंने दिया था, तो वह व्यक्ति कभी नहीं मरेगा।"
\p
\s5
\v 52 तब उनके यहूदी शत्रुओं ने उन से कहा, "अब हमें विश्वास हो गया है कि तुम में दुष्टात्मा है, अब्राहम और भविष्यद्वक्ता बहुत पहले ही मर चुके हैं। फिर भी तुम कहते हो कि जो भी तुम सिखाते हो उस पर दृढ़ रहने वाला कोई भी नहीं मरेगा।
\v 53 तुम हमारे पिता अब्राहम से श्रेष्ट नहीं हो। वह मर गया और सब भविष्यद्वक्ता उसके साथ मर गए तो तुम अपने आप को क्या समझते हो? "
\s5
\v 54 यीशु ने उत्तर दिया, "यदि मैं लोगों को मेरी प्रशंसा करने के लिए कहता हूँ, तो यह व्यर्थ होगा। मेरे पिता हैं जो मेरे चरित्र और भलाई की प्रशंसा करते है, यह वही है जिन्हें तुम कहते हो, 'वह हमारे परमेश्वर हैं।'
\v 55 यद्यपि तुम उन्हें नहीं जानते, मैं उन्हें जानता हूँ। अगर मैंने कहा कि मैं उन्हें नहीं जानता, तो मैं तुम जैसा झूठा बन जाऊंगा। मैं उन्हें जानता हूँ और मैं हमेशा उनकी आज्ञापालन करता हूँ।
\v 56 तुम्हारा पिता अब्राहम प्रसन्न हुआ जब, एक भविष्यद्वक्ता के रूप में, उसने प्रतीक्षा की और देखा कि मैं क्या कर सकता हूँ।"
\p
\s5
\v 57 तब यहूदी अगुवों ने उन से कहा, "तुम पचास वर्ष के नहीं हो। तुमने अब्राहम को देखा?"
\v 58 यीशु ने उनसे कहा, "अब्राहम से पहले, मैं हूँ, मैं तुमसे सच कह रहा हूँ।"
\v 59 इसलिए उन्होंने उसे मारने के लिए पत्थर उठाए। हालांकि, यीशु ने स्वयं को छुपाया और आराधनालय से निकल गए और कहीं और चले गए।
\s5
\c 9
\p
\v 1 जब यीशु मार्ग से जा रहे थे, उन्होंने एक व्यक्ति को देखा जो जन्म से ही अंधा था।
\v 2 शिष्यों ने उन से पूछा, "गुरु, किसके पाप के कारण, यह व्यक्ति अंधा पैदा हुआ? क्या इस व्यक्ति ने स्वयं पाप किया या उसके माता-पिता ने किया?"
\s5
\v 3 यीशु ने उत्तर दिया," ऐसा नहीं है कि इस व्यक्ति ने या इसके माता-पिता ने पाप किया। वह अंधा इसलिए पैदा हुआ था, कि आज लोग उस शक्तिशाली काम को देख सकें जो परमेश्वर इसके द्वारा करेंगे ।
\v 4 हमें उनके कामों को करना चाहिए जिसने मुझे भेजा है, जब तक कि दिन है; रात आने वाली है और जब वह आ जाएगी, कोई भी काम करने में सक्षम नहीं होगा।
\v 5 जब तक मैं संसार में हूँ, मैं संसार का प्रकाश हूँ।"
\p
\s5
\v 6 जब उन्होंने यह कहा, तो उन्होंने भूमि पर थूका, उन्होंने अपने थूक के साथ मिट्टी सानी, और उस व्यक्ति की आंखों पर दवा के समान लगा दी।
\v 7 फिर यीशु ने उस से कहा, "जाओ और शीलोह के कुण्ड में इसे धो लो।" (कुण्ड के नाम का अर्थ 'भेजे गए' है) वह व्यक्ति गया और कुण्ड में धोया। जब वह वापस आया, तो वह देखने लगा था ।
\s5
\v 8 उस व्यक्ति के पड़ोसी और अन्य लोग जिन्होंने उसे भीख मांगते हुए देखा था, उन्होंने कहा, "क्या वह वो नहीं है जो यहाँ बैठ कर भीख मांगता था?"
\v 9 कुछ ने कहा, "वह वही है।" दूसरों ने कहा, "नहीं, परन्तु वह बस उस व्यक्ति के समान दिखता है।" जबकि, उस व्यक्ति ने स्वयं कहा, "हां, मैं वही व्यक्ति हूँ।"
\s5
\v 10 लोगों ने उससे कहा, "यह कैसे हुआ कि तुम अब देख पा रहे हो ?"
\v 11 "उसने कहा," यीशु नाम के एक व्यक्ति ने मिट्टी सानकर उसे दवा के समान प्रयोग किया और उसे मेरी आँखों पर लगाया। फिर उन्होंने मुझे शीलोह के कुण्ड में आँखे धोने के लिए कहा। तो मैं वहां गया और आँखों को धोया, और फिर मैं पहली बार देख सका।"
\v 12 उन्होंने कहा, "वह मनुष्य कहां है?" उसने कहा, "मैं नहीं जानता।"
\p
\s5
\v 13 कुछ लोग उस व्यक्ति को फरीसियों की सभा में ले गए।
\v 14 यह सब्त का दिन था जब यीशु ने यह चमत्कार किया था।
\v 15 तो फरीसियों ने फिर से उस व्यक्ति से पूछा कि वह अब कैसे देख पा रहा था। उसने उनसे कहा, "एक व्यक्ति ने मेरी आंखों पर मिट्टी सानकर लगाई और मैंने धोया, और अब मैं देख सकता हूँ।"
\s5
\v 16 कुछ फरिसियों ने कहा, "हम इस व्यक्ति यीशु को जानते हैं, जो परमेश्वर की ओर से नहीं है क्योंकि वह सब्त का दिन नहीं मानता।" उस समूह के अन्य लोगों ने पूछा; "अगर वह एक पापी है, तो वह ऐसे सामर्थ्य के काम कैसे कर सकता है जिसे सब देखते है?" इसलिए फरीसियों के बीच मतभेद उत्पन्न हो गया।
\v 17 उन्होंने फिर से अंधे मनुष्य से पूछा, "तू उसके विषय में क्या कहता है, क्योंकि वह वही है जिसने तुझे आँखों कि ज्योति दी है?" उस व्यक्ति ने कहा, "वह भविष्यद्वक्ता है।"
\p
\v 18 यहूदी जो यीशु के विरोध में थे, उन्होंने विश्वास नहीं किया कि वह मनुष्य अंधा था और फिर देखने में सक्षम हो गया। इसलिए उन्होंने किसी को उसके माता-पिता को लाने के लिए भेजा ताकि उनसे भी पूछताछ की जाए।
\s5
\v 19 उन्होंने उसके माता-पिता से पूछा, "क्या यह तुम्हारा पुत्र है? क्या तुम कहते हो कि वह उस दिन से अंधा था जब वह पैदा हुआ था, तो यह अब कैसे देखने लगा ?"
\v 20 उसके माता-पिता ने उत्तर दिया, "हम जानते हैं कि यह हमारा पुत्र है। हम जानते हैं कि जब वह पैदा हुआ था, तब वह अंधा था।
\v 21 फिर भी, हम नहीं जानते कि वह अब कैसे देखने लगा । हम यह भी नहीं जानते कि किसने उसकी आंखों को ठीक किया है, उससे पूछो, वह स्वयं बात करने के लिए सयाना है।"
\s5
\v 22 जो यहूदी यीशु के विरुद्ध थे, वे पहले से एक दूसरे के साथ सहमत थे कि जो कोई घोषणा करेगा कि यीशु ही मसीह है उसे आराधनालय से निकाल दिया जाएगा।
\v 23 इसलिए उसके माता-पिता ने कहा, "उससे पूछो, वह स्वयं उत्तर देने के लिए सयाना है।"
\p
\s5
\v 24 इसलिए उन्होंने उस व्यक्ति को बुलाया जो अंधा था, और उन्होंने उसे दूसरी बार उनके सामने आने के लिए कहा। जब वह वहाँ पहुंचा, तो उन्होंने उससे कहा, "परमेश्वर की शपथ खा कि तू केवल सच बोलेगा। हम जानते हैं कि जिसने तुझे स्वस्थ किया है वह पापी है और वह व्यवस्था नहीं मानता जो मूसा ने हमें दी थी।"
\v 25 उसने उत्तर दिया, "वह पापी है या नहीं, मैं नहीं जानता। एक बात मैं जानता हूँ कि मैं अंधा था, परन्तु अब मैं देख सकता हूँ।"
\s5
\v 26 तो उन्होंने उससे कहा, "उसने तेरे साथ क्या किया, उसने तुझे कैसे ठीक किया, जिससे अब तू देख पा रहा है?"
\v 27 उसने उत्तर दिया, "मैंने तुमको यह पहले ही बता दिया था, परन्तु तुमने मुझ पर विश्वास नहीं किया, तुम क्यों चाहते हो कि मैं फिर से तुम्हें बताऊं? क्या तुम वास्तव में उसके शिष्य बनना चाहते हो?"
\v 28 तब वे क्रोधित हो गए और उसे अपमानित किया: "तू उस व्यक्ति का शिष्य होगा, परन्तु हम मूसा के शिष्य हैं।
\v 29 हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा से बात की थी; परन्तु इस व्यक्ति के विषय में, हमें यह भी नहीं पता कि वह कहां से आया है।"
\s5
\v 30 उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, "यह बड़े आश्चर्य की बात है; की तुम नहीं जानते कि वह कहां से आए हैं, परन्तु यह वही है जिन्होंने मेरी आँखों को खोला है ताकि मैं देख सकूँ।
\v 31 हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की प्रार्थनाओं को नहीं सुनते, जो उनकी व्यवस्था की उपेक्षा करते हैं, परन्तु वह उन लोगों की सुनते है जो उनकी आराधना करते हैं और जो वह चाहते हैं वैसा ही करते है।
\s5
\v 32 क्योंकि संसार के आरम्भ के बाद से यह कहीं भी नहीं सुना गया है कि कोई किसी अंधे व्यक्ति की आंखें खोलने में सक्षम हो, जो जन्म से अंधा था।
\v 33 यदि यह व्यक्ति परमेश्वर से नहीं आया था, तो वह ऐसा कुछ नहीं कर पाता।"
\v 34 उन्होंने उत्तर दिया, "तू पाप में पैदा हुआ था और अपना पूरा जीवन पाप में जी रहा था, क्या तुझको लगता है कि तू हमें सिखाने के योग्य हो?" तब उन्होंने उसे आराधनालय से निकाल दिया।
\p
\s5
\v 35 यीशु ने सुना कि फरीसियों ने उस व्यक्ति के साथ क्या किया जिसे उन्होंने स्वस्थ किया था, कैसे फरीसियों ने उसे आराधनालय से बाहर निकाल दिया। तो यीशु गए और उस मनुष्य को ढूंढा। जब उन्हें वह मिल गया, तो उन्होंने उस से कहा, क्या तू मुझ पर विश्वास करता है, जो मनुष्य का पुत्र है ?
\v 36 उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, "हे प्रभु, वह कौन है? मुझे बताओ, कि मैं उस पर विश्वास कर सकूँ।"
\v 37 यीशु ने उस से कहा, "तूने उसे देखा है। वह अब तुझसे बात कर रहा है।"
\v 38 व्यक्ति ने कहा, "प्रभु, मुझे विश्वास है।" तब वह घुटनों पर बैठ गया और उसकी आराधना की।
\p
\s5
\v 39 यीशु ने कहा, "मैं इस संसार में संसार का न्याय करने के लिए आया हूँ ताकि जो लोग नहीं देखते हैं वे देख सकें और जो देखते हैं, वे अंधे हो जाएँ।"
\v 40 कुछ फरीसी जो उनके साथ थे, उन्हें यह कहते हुए सुना, और उन्होंने यीशु से पूछा, "क्या हम भी अंधे हैं?"
\v 41 "यीशु ने उनसे कहा," यदि तुम अंधे होते, तो तुम पर दोष नहीं लगता, क्योंकि अब तुम अपना बचाव करते हो और कहते हो, 'हम देखते हैं,' तुम्हारा अपराध तुम्हारे साथ रहता है।
\s5
\c 10
\p
\v 1 "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: जो भेड़ो के बाड़े में प्रवेश करता है, उसे हमेशा द्वार से प्रवेश करना चाहिए। यदि वह किसी अन्य स्थान से चढ़ता हैं, तो वह भेड़ों का रखवाला नहीं है, वह एक चोर है और एक आपराधी जो भेड़ों को चुरा लेता है।
\v 2 जो व्यक्ति द्वार से बाड़े में प्रवेश करता है वह सच्चा चरवाहा है, क्योंकि वह भेड़ों को सम्भालने वाला है।
\s5
\v 3 चरवाहे के न होने पर भाड़े का वह व्यक्ति जो द्वारपाल है, चरवाहे के वापस आने पर उसके लिए द्वार खोल देगा। भेड़ केवल चरवाहे की आवाज को पहचानती हैं जब वह उन्हें नाम से बुलाता है। फिर वह उन्हें खिलाने के लिए और उन्हें जल देने के लिए बाड़े के बाहर ले जाता है।
\v 4 जब वह अपनी सब भेड़ों को निकाल लेता है, तब वह उनके आगे जाता है। उसकी भेड़ें उसके पीछे चलने के लिए उत्सुक होती है क्योंकि वे उसकी आवाज पहचानती हैं।
\s5
\v 5 वे कभी भी किसी अजनबी का पीछा नहीं करेंगी जो उन्हें बुलाता हैं। वे उससे दूर चली जाएँगी क्योंकि वे अजनबी की आवाज नहीं पहचानती हैं।"
\p
\v 6 यीशु ने यह दृष्टान्त चरवाहों के काम से लिया था फिर भी, उनके शिष्यों को समझ नहीं आया कि वह क्या कहना चाहते थे।
\s5
\v 7 इसलिए यीशु ने फिर से उनसे कहा, "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: मैं वह द्वार हूँ जिसके द्वारा भेड़ें बाड़े में प्रवेश करती हैं।
\v 8 जो मुझ से पहले आए थे, वे चोर और अपराधी थे जिन्होंने भेड़ों को चुरा लिया था; परन्तु भेड़ों ने उनकी बात नहीं सुनी, और वे उनके पीछे चलने के लिए तैयार नहीं थी।
\s5
\v 9 मैं स्वयं उस द्वार के समान हूँ यदि कोई द्वार में से प्रवेश करता है और बाड़े में जाता है, जहाँ भेड़ें है, तो वह सुरक्षित रहेगा और वह बाहर जा सकेगा और अच्छी चरागाह पाएगा।
\v 10 चोर केवल चुराने, मारने और नष्ट करने के लिए आता है। मैं आया हूँ ताकि उन्हें जीवन मिले और वह जीवन उमड़ने तक भरपूर होगा।
\p
\s5
\v 11 मैं एक अच्छे चरवाहे के समान हूँ। अच्छा चरवाहा उसकी भेड़ को बचाने और सुरक्षित रखने के लिए मर जाएगा।
\v 12 कोई भेड़ों की देखभाल करने के लिए मजदूर को पैसे देता है। वह उन भेड़ों का ध्यान इस प्रकार नहीं रखता जैसे वो उसकी अपनी हैं। वह सिर्फ एक कर्मचारी है जो नौकरी कर रहा है। तो जब वह देखेगा की एक भेड़िया भेड़ को मारने के लिए आता है, तो वह अपने प्राण को संकट में नहीं डालेगा। वह भेड़ को छोड़कर भाग जाता है जिससे सम्भव है की भेड़िया भेड़ पर हमला कर दे और उनमें से कुछ को पकड़ ले और दूसरों को तितर-बितर कर दे।
\v 13 मजदूर भाग जाता है क्योंकि वह केवल पैसे के लिए काम कर रहा है। वह चिंता नहीं करता कि भेड़ों के साथ क्या होगा।
\s5
\v 14 मैं स्वयं, अच्छा चरवाहा हूँ मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ, और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं,
\v 15 जैसे मैं अपने पिता को जानता हूँ, और मेरे पिता मुझे जानते हैं इस कारण, मैं अपनी भेड़ों के लिए मरने को तैयार हूँ।
\v 16 मेरे पास अन्य भेड़ें भी हैं जो इन भेड़ों के समान इस समूह की नहीं है जिसके तुम हो; मैं उन्हें भी प्रेरित करूँगा की वे मेरी बात सुनें। वे मेरी बात सुनेंगी, तो अंत में मेरे पास भेड़ों का एक झुंड होगा और केवल मैं एकमात्र उसका चरवाहा होऊँगा।
\s5
\v 17 मेरे पिता मुझसे इस कारण प्रेम करते है कि मैं अपना जीवन बलिदान करूंगा। मैं अपना जीवन दे दूंगा, और मैं उसे फिर से जीने के लिए वापस ले लूँगा।
\v 18 मैं किसी के कारण अपना जीवन नहीं त्याग रहा हूँ। मैंने स्वयं को बलिदान के लिए चुना है मुझे अपना जीवन त्यागने का अधिकार है और मुझे उसे वापस लेने और फिर से जीने का अधिकार भी है। यह काम मेरे पिता की ओर से है, और उन्होंने मुझे यह करने की आज्ञा दी है।"
\p
\s5
\v 19 इन शब्दों को सुनने के बाद जो यीशु बोल रहे थे, यहूदियों में फिर मतभेद हो गया।
\v 20 उनमें से कुछ लोगों ने कहा, "एक दुष्ट-आत्मा उसे नियंत्रित कर रहा है और उसे पागल बना रहा है। उसे सुनने मैं अपना समय नाश मत करो।
\v 21 अन्य लोगों ने कहा, "वह जो कह रहा है वह ऐसा नहीं है, जिस पर किसी दुष्ट-आत्मा का दबाव हो। कोई दुष्ट-आत्मा किसी अंधे की आंखों को नहीं खोल सकती।"
\p
\s5
\v 22 समर्पण पर्व को मनाने का समय आ गया था, उस समय जब यहूदी लोग याद करते है, जब उनके पूर्वजों ने यरूशलेम में आराधनालय को शुद्ध किया और फिर उसे परमेश्वर को दिया। यह सर्दियों के मौसम में हुआ था।
\v 23 यीशु आराधनालय के आंगन में उस स्थान पर चल रहे थे, जिसे सुलैमान का बरामदा कहा जाता था।
\v 24 यीशु के यहूदी विरोधी उनके चारों ओर एकत्र हुए और कहा, "तुम कितने समय तक हमें ये सोचने पर विवश करोगे कि तुम कौन हो? अगर तुम मसीह हो, तो हमें स्पष्ट रूप से बताओ कि हम जान सकें।"
\s5
\v 25 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "मैंने तुमसे कहा था, परन्तु तुम मुझ पर विश्वास नहीं करोगे, तुम उन चमत्कारों के कारण जो मैंने अपने पिता के नाम से और उनके अधिकार से किये उनसे जानते हो मैं कौन हूँ । वो तुम्हें मेरे विषय में बतायेंगी।
\v 26 तुम मुझ पर विश्वास नहीं करते क्योंकि तुम मेरे नहीं हो तुम वो भेड़ें हो जो दूसरे चरवाहो की हैं।
\s5
\v 27 मेरी भेड़ें मेरी आवाज सुनती हैं मैं उनमें से हर एक को नाम से जानता हूँ; वे मेरे पीछे चलती हैं और मेरी आज्ञा मानती हैं।
\v 28 मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ। कोई उनको कभी भी नष्ट नहीं कर सकता, और कोई कभी भी उन्हें मुझसे दूर नहीं ले जा सकता ।
\s5
\v 29 मेरे पिता ने उनको मुझे दिया है मेरे पिता हर किसी से महान हैं, इसलिए कोई भी उन्हें उनसे चुरा नहीं सकता।
\v 30 मैं और पिता एक हैं।"
\p
\v 31 यीशु के शत्रुओं ने फिर उन पर फेंकने और उन्हें मारने के लिए पत्थर उठाए।
\s5
\v 32 फिर यीशु ने उनसे कहा, "तुमने मुझे कई अच्छे काम करते देखा हैं जो कुछ भी मेरे पिता ने मुझसे करने के लिए कहा था। उनमें से किसके लिए तुम लोग मुझे पत्थर मारने जा रहे हो?"
\v 33 यहूदी विरोधियों ने उत्तर दिया, "हम तेरा जीवन लेना चाहते हैं, इसलिए नहीं कि तू ने कोई अच्छा काम किया है, परन्तु क्योंकि तू, केवल एक ऐसा मनुष्य है, जो परमेश्वर का अपमान कर रहा है और स्वयं को परमेश्वर बना रहा है।"
\s5
\v 34 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "पवित्र धर्मशास्त्र में यह लिखा गया है कि परमेश्वर ने उन शासकों को जिन्हें उन्होंने नियुक्त किये थे, उनसे कहा था: 'मैंने कहा है कि तुम ईश्वरों (अति सम्मानित और बहुत लोगों पर शक्ति के साथ) के समान हो।'
\v 35 परमेश्वर ने उन अगुवों को यह कहा जब उन्होंने उन्हें नियुक्त किया। किसी ने उस पर आपत्ति नहीं की, और न ही लेखो में जो है वह गलत सिद्ध हो सकता है।
\v 36 मैं वही हूँ जिसको मेरे पिता ने इस संसार में भेजने के लिए चुना। तो तुम मुझसे क्यों क्रोधित हो यह कहने के लिए कि मैं परमेश्वर के बराबर हूँ जब मैंने कहा, 'मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ'?
\s5
\v 37 अगर मैं उन कामों को नहीं करता जो मेरे पिता ने मुझसे कहे थे, तो मैं तुम से यह आशा नहीं करता कि मुझ पर विश्वास करो।
\v 38 यद्यपि तुम मेरी बातों पर विश्वास नहीं करते कम से कम मेरे इन कामों के कारण तो मुझ पर विश्वास करो क्योंकि वे प्रकट करते हैं कि मैं कैसा हूँ। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम जान लोगे और समझ लोगे कि मेरे पिता मुझ में है और मैं अपने पिता में हूँ।
\p
\v 39 यह सुनकर उन्होंने फिर से यीशु को पकड़ने का प्रयास किया, परन्तु वह एक बार फिर उनसे बचकर निकल गए।
\p
\s5
\v 40 तब यीशु फिर से यरदन नदी के पूर्व की ओर गए। वह उस स्थान पर गए जहाँ यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने अपनी सेवा के आरंभ में बहुत से लोगों को बपतिस्मा दिया था। यीशु कई दिनों तक वहां रहे।
\v 41 कई लोग उनके पास आये वे ये कह रहे थे, "यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने कभी चमत्कार नहीं किए, परन्तु इस व्यक्ति ने कई चमत्कार किए हैं। यूहन्ना ने इस मनुष्य के विषय में जो कुछ कहा, वह सच है।"
\v 42 कई लोग उन पर विश्वास करने लगे; वे विश्वास करने लगे थे कि वह कौन हैं और वह उनके लिए क्या करेंगे।
\s5
\c 11
\p
\v 1 लाज़र नाम का एक व्यक्ति बहुत बीमार हो गया। वह बैतनिय्याह गांव में रहता था, जहाँ मरियम और मार्था रहती थीं।
\v 2 यह वही मरियम है जो बाद में अपना प्रेम और आदर दिखाने के लिए प्रभु पर इत्र डालेगी और उनके पैरों को अपने बालों से पोछेगी। यह उसका भाई लाज़र था जो बीमार था।
\s5
\v 3 इसलिए दोनों बहनों ने किसी को यीशु के पास भेजा कि लाज़र के विषय में उन्हें बताये; उन्होंने कहा, "हे प्रभु, जिससे आप प्रेम करते है वह बीमार है।"
\v 4 जब यीशु ने लाज़र की बीमारी के विषय में सुना, तो उन्होंने कहा, "यह बीमारी लाज़र की मृत्यु में खत्म नहीं होगी। इस बीमारी का उद्देश्य यह है कि लोग देख सकें और जान सकें कि परमेश्वर कितने महान है, कि वह अद्भुत कामों को करते हैं और मैं, परमेश्वर का पुत्र भी उनकी महान शक्ति को दिखाऊंगा।"
\s5
\v 5 यीशु मार्था, उसकी बहन मरियम और लाज़र से प्रेम करते थे।
\v 6 परन्तु, जब यीशु ने लाज़र की बीमारी के विषय में सुनकर भी उसे देखने में देरी की। वह जहाँ थे वहां दो दिनों के लिए और रहे।
\p
\v 7 फिर उन्होंने शिष्यों से कहा, "आओ हम यहूदिया में वापस चले।"
\s5
\v 8 शिष्यों ने कहा, "गुरु, थोड़े समय पहले आपका विरोध करनेवाले यहूदी पत्थरों से मार कर आपकी हत्या करना चाहते थे, और अब आप फिर से वहां वापस जाना चाहते हो।"
\v 9 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, "तुम जानते हो कि एक दिन में बारह घंटे रोशनी होती है, क्या यह सच नहीं है? जो दिन में चलता है वह सुरक्षित रूप से चलेगा क्योंकि वह देख सकता है कि मार्ग पर क्या है।
\s5
\v 10 परन्तु, जब कोई व्यक्ति रात के समय चलता है, तो वह सरलता से ठोकर खा सकता है क्योंकि वह देख नहीं सकता है।"
\p
\v 11 इन बातों को कहने के बाद, उन्होंने उनसे कहा, "हमारा मित्र लाज़र सो गया है, मैं उसे जगाने के लिए वहां जाऊंगा।"
\s5
\v 12 शिष्यों ने उस से कहा, हे प्रभु, यदि वह सो गया है, तो वह ठीक हो जाएगा।
\v 13 यीशु वास्तव में लाज़र की मृत्यु के विषय में कह रहे थे, परन्तु शिष्यों ने सोचा कि वह उसकी नींद के विषय में बात कर रहे हैं जो हम सब जानते हैं हमें विश्राम देती है।
\v 14 तब यीशु ने उन्हें स्पष्ट रूप से बताया, "लाजर मर गया है।"
\s5
\v 15 यीशु ने कहा," परन्तु, तुम्हारे लिए, मैं प्रसन्न हूँ कि मैं वहां नहीं था जब वह मरा, जिससे कि तुम जान सको कि तुम मुझ पर विश्वास क्यों कर सकते हो। अब यह समय है, हम उसके पास चले।"
\v 16 फिर थोमा, जिसे 'दिदुमुस' कहा जाता है, उसने अन्य शिष्यों से कहा, "हम भी यीशु के साथ चलते हैं कि हम उनके साथ मर सकें।"
\p
\s5
\v 17 जब यीशु बैतनिय्याह पहुंचे, तो उन्होंने जाना कि लाज़र पहले ही मर चुका था और चार दिनों से कब्र में था।
\v 18 बैतनिय्याह से यरूशलेम लगभग तीन किलोमीटर दूर था
\v 19 कई यहूदी लाज़र और उसके परिवार को जानते थे, और वे यरूशलेम से मार्था और मरियम को उनके भाई की मृत्यु पर दिलासा देने के लिए आए।
\v 20 जब मार्था ने किसी से सुना कि यीशु पास में है, तो वह उनसे मिलने के लिए सड़क पर गई। मरियम उठी नहीं परन्तु घर पर रही।
\s5
\v 21 जब मार्था ने यीशु को देखा, तो उसने उनसे कहा, "हे प्रभु, यदि आप यहाँ होते, तो मेरा भाई नहीं मरता।
\v 22 फिर भी, मैं जानती हूँ कि अब भी आप परमेश्वर से जो कुछ भी माँगेंगे, परमेश्वर आप को देंगे।"
\v 23 यीशु ने उससे कहा, "तेरा भाई फिर से जी उठेगा।"
\s5
\v 24 मार्था ने उनसे कहा, "मुझे पता है कि वह उस दिन फिर से जीवित होगा जब अंतिम दिन परमेश्वर सब मृतकों को जीवित करेंगे।"
\v 25 यीशु ने उससे कहा, "मैं ही वह हूँ जो मरे हुओं में से लोगों को जी उठाता हूँ, मैं ही वह हूँ जो उनको जीवन देता हूँ, जो मुझ पर विश्वास करता है, वह मर भी जाए, तो भी वह फिर से जीवित हो जायेगा ।
\v 26 जो लोग जीवन प्राप्त करके मुझसे जुड़ जाते हैं और जो मुझ पर विश्वास करते हैं, वे कभी नहीं मरेंगे। क्या तू मुझ पर विश्वास करती है ?"
\s5
\v 27 मार्था ने उनसे कहा, "हाँ, प्रभु, मुझे आपकी बात पर विश्वास है और मुझे विश्वास है की आप कौन हैं, आप मसीह, परमेश्वर के पुत्र हैं, जिनकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने की थी कि वह संसार में आएँगे।
\p
\v 28 यह कहने के बाद, वह घर लौट आई और अपनी बहन को एक ओर ले गई और उससे कहा, "गुरु यहाँ हैं, और वह तुझे बुला रहे हैं।"
\v 29 जब मरियम ने यह सुना, तो वह शीघ्र ही उठकर उनके पास गई।
\s5
\v 30 यीशु अब तक गांव में नहीं आए थे; वह अभी भी उस स्थान पर थे जहाँ मार्था उनसे मिली थी ।
\v 31 जो लोग घर में बहनों को दिलासा देने के लिए आए थे, उन्होंने देखा कि मरियम शीघ्र उठकर बाहर गई है। इसलिए वे यह सोचकर उसका पीछा करने लगे, कि वह कब्र के पास शोक के लिए जा रही है जहाँ उन्होंने उनके भाई लाज़र को दफनाया था।
\p
\v 32 मरियम उस स्थान पर आई जहाँ यीशु थे; जब उसने उन्हें देखा, तो उसने उनके पैरो में गिरकर कहा, "हे प्रभु, यदि आप यहाँ होते, तो मेरा भाई नहीं मरता।"
\s5
\v 33 "जब यीशु ने उसे दुःखी और रोते हुए देखा, और जो शोकग्रस्त लोग उसके साथ आए थे, वे भी रो रहे थे, तो वह अपनी आत्मा में पीड़ा के कारण रोये, और वह बहुत उदास थे।
\v 34 उन्होंने पूछा, "तुमने उसकी देह कहाँ रखी है?" उन्होंने उनसे कहा, "हे प्रभु, आओ और देखो।"
\v 35 यीशु रोए।
\s5
\v 36 तो यहूदियों ने कहा, "देखो, यह लाज़र से कितना प्रेम करते हैं।"
\v 37 परन्तु, कुछ लोगों ने कहा, "क्या उसने अंधे मनुष्य की आंखें नहीं खोली? तो क्या इस व्यक्ति को मरने से नहीं रोक सकता था?"
\p
\s5
\v 38 जब वह कब्र पर आए, तो यीशु शारीरिक रूप से शोकित हो गए थे और भावनात्मक रूप से उदास थे। वह एक गुफा थी, और उसके प्रवेश द्वार को एक बड़े पत्थर के द्वारा बंद किया गया था
\v 39 जो लोग वहाँ खड़े थे उन्हें यीशु ने आज्ञा दी "पत्थर को हठाओं"। हालांकि, मार्था ने आपत्ति जताई, "हे प्रभु, अब तो उसमें से दुर्गन्ध आती होगी, क्योंकि वह चार दिन पहले मर चुका है।"
\v 40 यीशु ने उससे कहा, "क्या मैंने तुझको सच नहीं कहा था जब मैंने तुझसे कहा था कि यदि तू मुझ पर विश्वास करती है, तो तू देखेगी कि परमेश्वर कौन हैं और तू जान पाती कि परमेश्वर क्या कर सकते हैं?"
\p
\s5
\v 41 तो उन्होंने पत्थर को हटा दिया। यीशु ने स्वर्ग की ओर देखा और कहा, "पिताजी, मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरी सुन ली है।
\v 42 मैं जानता हूँ कि आप हमेशा मुझे सुनते हैं, मैंने यह उन लोगों के लिए कहा जो यहाँ खड़े हैं ताकि वे आप पर विश्वास कर सकें और इस तथ्य पर भी विश्वास करें कि आपने मुझे भेजा है। "
\s5
\v 43 उनके यह कहने के बाद, वे बहुत ऊँचे स्वर के साथ बोले ओर कहा, "लाज़र, बाहर निकल आ!"
\v 44 जो व्यक्ति मर गया था वह बाहर निकल आया! उसके हाथ अभी भी लिपटे हुए थे और पैर भी कपड़े के सन की पट्टियों से बंधे थे, और उसके चेहरे के चारों ओर एक कपड़ा लपेटा हुआ था। यीशु ने उनसे कहा, "उन कपड़े की पट्टियों को हटा दो जिस से वह बंधा हुआ है और उसे खोल दो। उसे जाने दो।"
\p
\s5
\v 45 फलस्वरूप, जो यहूदी मरियम को देखने आए थे और यीशु द्वारा किए गए काम के गवाह बने, उन्होंने यीशु पर विश्वास किया।
\v 46 फिर भी, उन में से कुछ लोग, फरीसियों के पास गए और उन्हें बताया की यीशु ने क्या किया था।
\s5
\v 47 तब प्रधान याजकों और फरीसियों ने यहूदी परिषद के सब सदस्यों को एकत्र किया। वे एक-दूसरे से कह रहे थे, "हम क्या करने जा रहे हैं? यह मनुष्य कई चमत्कार कर रहा है।
\v 48 यदि हम उसे यह करते रहने देते हैं, तो हर कोई उस पर विश्वास करेगा और रोम के विरुद्ध विद्रोह करेगा तब रोमी सेना आ जाएगी और हमारे आराधनालय और हमारे देश दोनों को नष्ट कर देगी।"
\p
\s5
\v 49 परिषद में से एक काइफा था, वह उस वर्ष का महायाजक था, उस ने उन से कहा, "तुम सब कुछ नहीं जानते हो!
\v 50 क्या तुमको इस बात की समझ नहीं कि एक व्यक्ति का सब लोगों के लिए मरना, समस्त राष्ट्र के विनाश से अधिक उत्तम है? "
\s5
\v 51 उसने ऐसा इसलिये नहीं कहा क्योंकि उसने स्वयं यह सोचा था। परन्तु, क्योंकि वह उस वर्ष महायाजक था, वह भविष्यवाणी कर रहा था कि यीशु यहूदी जाती के लिए मर जाएँगे।
\v 52 परन्तु वह यह भी भविष्यवाणी कर रहा था कि यीशु न केवल यहूदियों के लिए ही मर जाएँगे, वरन इसलिये कि वह परमेश्वर की सब संतानों को अन्य देशों से एक राष्ट्र में एकत्र कर सके।
\v 53 तो उस दिन से, परिषद ने यीशु को पकड़ने और किसी भी तरह से उन्हें मारने का उपाय खोजना आरम्भ कर दिया।
\p
\s5
\v 54 इस कारण, यीशु अपने यहूदी विरोधियों के बीच खुलकर यात्रा नहीं करते थे। उन्होंने यरूशलेम छोड़ दिया और शिष्यों के साथ, एप्रैम नामक एक नगर में, जंगल के पास और रेगिस्तान के क्षेत्र में चले गए। वहां वे थोड़े समय के लिए अपने शिष्यों के साथ रहे।
\p
\v 55 यह अब यहूदियों के फसह के पर्व का समय था, और कई भक्त अन्य देशों और गांवों से यरूशलेम आए, वे स्वयं को यहूदी नियमों के अनुसार शुद्ध करने के लिए तैयार हुए, कि उन्हें फसह मनाने की अनुमति मिले।
\s5
\v 56 जो लोग फसह के पर्व के लिए यरूशलेम आए थे, वे सब यीशु की खोज में थे। जब वे आराधनालय में आए और खड़े होकर एक दूसरे से कहने लगे, "तुम क्या सोचते हो, क्या वह फसह में नहीं आएगा?"
\v 57 यहूदियों के प्रधान याजकों और फरीसियों ने आदेश दिया कि अगर किसी को पता चल जाए कि यीशु कहाँ हैं, तो उन्हें समाचार दे ताकि वे यीशु को पकड़ सकें।
\s5
\c 12
\p
\v 1 फसह पर्व के आरम्भ होने से छः दिन पहले यीशु बैतनिय्याह पहुंचे। बैतनिय्याह वह गाँव था जहाँ लाज़र रहता था, वह व्यक्ति जिसे यीशु ने मरे हुओं में से जीवित किया था।
\v 2 बैतनिय्याह में, उन्होंने यीशु के आदर में रात का भोज रखा। मार्था ने रात के खाने के लिए तैयारी की, और लाज़र उन लोगों में से एक था जो उनके साथ बैठे थे और खा रहे थे।
\v 3 तब मरियम ने महंगी इत्र की एक बोतल (जिसे जटामांसी कहा गया) ली और यीशु का आदर करने के लिए, उसने उनके पैरों पर उसे उंडेल दिया और फिर उनके पैरों को अपने बालों से पौछा। इत्र की सुगन्ध पूरे घर में फैल गई।
\p
\s5
\v 4 हालांकि, उनके शिष्यों में से एक, यहूदा इस्करियोती, (वह जिसने यीशु के विश्वास को तोड़ दिया था, वह शीघ्र ही यीशु को उनके शत्रुओं को सौंप देगा) ने विरोध किया और कहा,
\v 5 "हमें इस इत्र को तीन सौ दिन के वेतन के मोल में बेच देना चाहिए था और उन पैसों को गरीबों को दे देना चाहिए था।"
\v 6 उसने यह इसलिए नहीं कहा, क्योंकि वह गरीब लोगों की चिंता करता था, वरन इसलिए कि वह एक चोर था। वह पैसे की थैली को अपने पास रखता था, परन्तु अपनी आवश्यकताओं के लिए उसमें से निकाल लेता था
\s5
\v 7 तब यीशु ने कहा, "उसे अकेला छोड़ दो! उसने इस इत्र को उस दिन के लिए खरीदा जब मैं मर जाऊंगा और वे मुझे दफन करेंगे।
\v 8 तुम्हारे साथ हमेशा गरीब रहेंगे, परन्तु मैं तुम्हारे साथ सदा नहीं रहूँगा।"
\p
\s5
\v 9 यरूशलेम में यहूदियों की एक बड़ी भीड़ ने सुना कि यीशु बैतनिय्याह में हैं, इसलिए वे वहां आ गए। वे वहां केवल इसलिए नहीं आए कि यीशु वहां थे, वे लाज़र को देखने के लिए भी आए, जिसे यीशु ने जीवित कर दिया था।
\v 10 तब प्रधान याजकों ने निर्णय लिया की लाज़र को भी मार डालना आवश्यक है,
\v 11 क्योंकि उसके कारण कई यहूदी प्रधान याजकों की शिक्षाओं पर विश्वास नहीं कर रहे थे। इसकी अपेक्षा, वे यीशु पर विश्वास कर रहे थे।
\p
\s5
\v 12 अगले दिन फसह पर्व के लिए आने वाली बड़ी भीड़ ने सुना कि यीशु यरूशलेम जा रहे है।
\v 13 तो उन्होंने खजूर के पेड़ से शाखाओं को काट लिया और उनके शहर में आने के बाद उनका स्वागत करने के लिए बाहर निकले। वे चिल्ला रहे थे, "होशाना, परमेश्वर की स्तुति करो! परमेश्वर उनको आशीर्वाद दे जो प्रभु के नाम पर आते हैं! स्वागत है, इस्राएल के राजा!"
\s5
\v 14 जब यीशु यरूशलेम के निकट आए, तो उन्हें एक गदहे का बच्चा मिला और वे उस पर सवार होकर शहर के भीतर गए, ऐसा करके उन्होंने पवित्र शास्त्र में जो लिखा था, उसे पूरा किया:
\v 15 "डरो मत, तुम जो यरूशलेम में रहते हो। देखो! तुम्हारा राजा आ रहा है। वह एक गदहे के बच्चे पर सवारी कर रहा है।"
\p
\s5
\v 16 जब ऐसा हुआ, तो उनके शिष्यों ने यह नहीं समझा कि यह भविष्यवाणी की पूर्ति थी। परन्तु जब यीशु ने अपना कार्य पूरा किया और परमेश्वर के रूप में अपनी सब शक्तियों को फिर से प्राप्त किया, तब शिष्यों ने पिछली बातों को याद किया कि भविष्यद्वक्ताओं ने यीशु के विषय में क्या लिखा था और लोगों ने उनके साथ क्या किया।
\p
\s5
\v 17 जो भीड़ यीशु के साथ चल रही थी, उन्होंने दूसरों को वह सब बताया जो कुछ उन्होंने देखा था: यीशु ने लाज़र को आवाज देकर कब्र से बाहर निकाला और उसे फिर से जीवित कर दिया था।
\v 18 भीड़ के कुछ लोग, जो यीशु से मिलने के लिए शहर के द्वार से बाहर निकल गए थे, उन लोगों ने ऐसा इसलिए किया कि उन्होंने सुना था कि यीशु ने अपनी शक्ति दिखाने के लिए बहुत से महान काम किए थे।
\v 19 "फिर फरीसियों ने एक दूसरे से कहा," देखा, हम यहाँ कोई लाभ नहीं उठा रहे हैं, देखो! पूरा संसार उसके पीछे हो रहा है।"
\p
\s5
\v 20 जो लोग फसह पर्व के समय यरूशलेम में आए थे, उनमें से कुछ यूनानी थे।
\v 21 वे फिलिप्पुस के पास आए, जो गलील के जिले के बैतसैदा से था। उन लोगों के पास उससे पूछने के लिए कुछ था; उन्होंने कहा, "महोदय, क्या तू यीशु से हमारा परिचय करवाएगा?"
\v 22 तो फिलिप्पुस ने इस बात को अन्द्रियास को बताया, और वे दोनों गए और यीशु को बताया।
\s5
\v 23 यीशु ने फिलिप्पुस और अन्द्रियास को उत्तर दिया, "यह समय है कि परमेश्वर लोगों को वह सब दिखायेंगे जो मैंने, मनुष्य के पुत्र, ने किया है और उन सब को बतायेंगे जो मैंने कहा है।
\v 24 मैं तुम से सच कह रहा हूँ: जब तक कि गेहूँ का बीज भूमि में नहीं लगाया जाता है और मर नहीं जाता, तब तक यह केवल एक बीज ही रहता है; परन्तु भूमि में मरने के बाद वह बढ़ेगा और कई बीजों की फसल का उत्पादन करेगा।
\s5
\v 25 जो कोई स्वयं को प्रसन्न करने के लिए जीवित रहने का प्रयास करता है, वह असफल हो जायेगा, परन्तु जो स्वयं को प्रसन्न करने के लिए नहीं जीता, वह सदा का जीवन रखेगा।
\v 26 यदि कोई मेरी सेवा करना चाहता है, तो उसे मेरे पीछे चलना चाहिए क्योंकि मेरे सेवक को वहां होना चाहिए जहाँ मैं हूँ। पिता उसका आदर करेंगे जो मेरी सेवा करेगा।
\p
\s5
\v 27 अब मेरी आत्मा बहुत परेशान है। क्या मैं यह कहूँ, 'पिताजी, उस समय से मुझे बचाओ जब मैं पीड़ित होकर मर जाऊंगा!' नहीं, क्योंकि इसी कारण के लिए मैं इस संसार में आया हूँ।
\v 28 हे मेरे पिताजी, दिखाओ कि आपने जो कहा है आपने जो किया है, और आप जो कुछ हैं, उसमें आप कितने समर्थि हैं।"
\p तब परमेश्वर ने स्वर्ग से कहा, "मैंने अपना स्वभाव, अपने शब्द को और अपने काम पहले ही से प्रकट कर दिये हैं, और मैं फिर से प्रकट करूंगा।"
\v 29 जो भीड़ वहां थी उसने परमेश्वर की वाणी को सुना, परन्तु कुछ ने कहा कि यह सिर्फ बिजली की गड़गड़ाहट है। कुछ ने कहा कि किसी स्वर्गदूत ने यीशु से बात की है।
\s5
\v 30 यीशु ने उनको उत्तर दिया," जिस आवाज को तुमने सुना है वह परमेश्वर की वाणी थी। हालांकि, उन्होंने मेरे लाभ के लिए नहीं परन्तु तुम्हारे लिए बात की है।
\v 31 अब वह समय है जब परमेश्वर इस संसार का न्याय करेंगे। अब वह समय है जब वे शैतान को निकालकर बाहर करेंगे, जो इस संसार पर शासन करता है।
\s5
\v 32 मेरी जहाँ तक बात है, जब लोग मुझे क्रूस पर चढ़ाएंगे, तब मैं सब को अपने पास खींच लूँगा।"
\v 33 उन्होंने यह इसलिए कहा कि लोगों को पता चले कि उनकी मृत्यु कैसे होगी।
\p
\s5
\v 34 "किसी ने उन्हें उत्तर दिया," हम धर्मशास्त्र से समझते हैं कि मसीह हमेशा के लिए जीवित रहेंगे। तो आप क्यों कहते हो कि मनुष्य का पुत्र मर जाएगा? यह मनुष्य का पुत्र कौन है?"
\v 35 "यीशु ने उत्तर दिया," मेरा प्रकाश तुम पर थोड़े समय के लिए चमकेगा, प्रकाश में चलो जब तक मेरा प्रकाश तुम में है, अन्यथा अन्धकार तुम को घेर लेगा। अंधेरे में चलनेवाले लोग नहीं देख पाते कि वे कहाँ जा रहे हैं।
\v 36 उस प्रकाश पर विश्वास करो जब तक तुम्हारे पास प्रकाश है; तो तुम प्रकाश के होगे।
\p इन सब बातों को कहने के बाद, यीशु उन्हें छोड़ कर उनसे छिप गए।
\s5
\v 37 यद्यपि यीशु ने कई चमत्कार किये थे, अधिकांश लोगों ने उन की बातों पर विश्वास नहीं किया।
\v 38 यशायाह भविष्यद्वक्ता ने बहुत पहले जो लिखा था, वह सच सिद्ध हो रहा था: "प्रभु, कौन उन बातों पर विश्वास करता है जो उन्होंने हमारे द्वारा सुनी है? प्रभु ने हमें दिखाया है कि वे हमें कैसे शक्तिशाली तरीके से बचा सकते हैं।"
\s5
\v 39 फिर भी, यशायाह ने जो लिखा था, उसके कारण वे उन पर विश्वास नहीं कर सकते थे:
\v 40 "प्रभु ने उन्हें ऐसा बनाया है ताकि वे देख न सकें, और उन्होंने उन्हें हठीला बना दिया है; वे अपनी आंखों से भी नहीं देख सकते हैं, यदि वे देख सकें, तो वे समझेंगे; वे पश्च्याताप करेंगे और प्रार्थना करेंगे कि मैं उन्हें क्षमा कर दूं। इस कारण से, मैं उन्हें स्वस्थ नहीं कर सकता।"
\p
\s5
\v 41 यशायाह ने उन शब्दों को बहुत पहले लिखा था क्योंकि वह समझ गया था कि मसीह शक्तिशाली रूप से परमेश्वर की सेवा करेंगे।
\p
\v 42 यद्यपि यह सच था, यहूदी लोगों के कई अगुओं ने यीशु पर विश्वास किया। परन्तु उन्हें बहुत डर था कि फरीसी लोग सभा में आने से उन पर प्रतिबंध लगा देंगे, इसलिए उन्होंने यीशु पर विश्वास करने के विषय में बात नहीं की।
\v 43 वे इस बात को पसंद करते थे कि लोग उनकी प्रशंसा और आदर करें, अपेक्षा इसके कि परमेश्वर उनकी प्रशंसा करें।
\p
\s5
\v 44 यीशु वहाँ एकत्र हुई भीड़ पर, चिल्लाए, "जो मुझ पर विश्वास करते हैं, वे न केवल मुझ पर विश्वास करते हैं, वरन मेरे पिता पर विश्वास करते हैं, जिन्होंने मुझे भेजा है।
\v 45 जब तुम मुझे देख रहे हो, तो तुम उन्हें भी देख रहे हो जिन्होंने मुझे भेजा है।
\s5
\v 46 मैं संसार का प्रकाश होकर संसार में आया हूँ; जो कोई मुझ पर विश्वास करता है, वह अंधकार में नहीं रहेगा।
\p
\v 47 मैं उन लोगों का न्याय नहीं करता जो मेरी बातों को सुनते हैं परन्तु उनका जो मेरी आज्ञा मानने से अस्वीकार करते हैं, मैं संसार को दोषी ठहराने के लिए संसार में नहीं आया;
\s5
\v 48 फिर भी, ऐसा कोई कारण है जो उनकी निंदा करेगी जो मुझे अस्वीकार करते हैं, और मेरे संदेश का ग्रहण नहीं करते हैं। वह उन संदेशों द्वारा दोषी ठहराए जाएँगे जो मैंने उन्हें दिये हैं।
\v 49 जब मैंने परमेश्वर के विषय में सिखाया था, तब मैं केवल अपनी सोच से नहीं कह रहा था। पिता, जिन्होंने मुझे भेजा है, उन्होंने मुझे स्पष्ट निर्देश दिए थे कि मुझे क्या कहना है और मुझे यह कैसे कहना है।
\v 50 मैं जानता हूँ कि पिता के सबसे महत्वपूर्ण निर्देश वे हैं जो लोगों को सदा जीवित रहना सिखाते हैं, और मैंने वैसे ही कहा जैसा कि मेरे पिता ने मुझसे कहने के लिए कहा है।"
\s5
\c 13
\p
\v 1 अब फसह पर्व के आरम्भ होने से एक दिन पहले। यीशु जानते थे कि वह समय आ गया था जब उन्हें इस संसार को छोड़कर अपने पिता के पास वापस जाना है। उन्होंने दिखाया कि वे उन लोगों से कितना प्रेम करते थे जो उनके साथ इस संसार में थे, और उन्होंने अपने जीवन के अंत तक उनसे प्रेम किया।
\v 2 यीशु और शिष्यों के शाम के भोजन से पहले, शैतान ने पहले ही शमौन के पुत्र यहूदा इस्करियोती के मन में यह विचार डाल दिया था, कि वह यीशु को उनके शत्रुओं के हाथ पकडवा दे।
\s5
\v 3 फिर भी यीशु जानते थे कि उनके पिता ने उन्हें सब पर पूर्ण शक्ति और अधिकार दिया है। वह यह भी जानते थे कि वह स्वयं परमेश्वर की और से आए हैं और शीघ्र ही परमेश्वर के पास लौट जाएँगे।
\v 4 यीशु रात के खाने से उठ गए उन्होंने अपने बाहरी वस्त्र हटा दिये और अपनी कमर पर एक तौलिया लपेट लिया।
\v 5 उन्होंने थोड़ा जल बर्तन में डाल लिया और शिष्यों के पैरों को धोने लगें और तौलिए से पोछ कर सुखाया।
\p
\s5
\v 6 वह शमौन पतरस के पास गए तो उसने उनसे कहा, हे प्रभु, क्या आप मेरे पैरों को धोएँगे?
\v 7 "यीशु ने उसको उत्तर दिया," तुम अभी समझ नहीं पा रहे हो कि मैं तुम्हारे लिए क्या कर रहा हूँ, परन्तु बाद में तुम समझ जाओगे ।"
\v 8 पतरस ने कहा, "आप मेरे पैरों को कभी नहीं धोएँगे!" यीशु ने उसको उत्तर दिया, "यदि मैं तेरे पैर नहीं धोता, तो तेरा मुझसे कोई मेल नहीं है।"
\v 9 तब शमौन पतरस ने उनसे कहा, “हे प्रभु, केवल मेरे पैरों को ही नहीं, मेरे हाथों और मेरे सिर को भी धो दो।”
\s5
\v 10 यीशु ने उस से कहा, "जिसने स्नान किया है, उसको केवल पैरों को धोने की आवश्यक्ता है, उसका सारा शरीर पहले से ही साफ है, तुम साफ हो, परन्तु तुम सब नहीं।"
\v 11 वह जानते थे कि उन्हें कौन पकडवाने वाला था। यही कारण है कि उन्होंने कहा, "तुम सब साफ नहीं हो।"
\p
\s5
\v 12 उन्होंने शिष्यों के पैरों को धोने के बाद, फिर से अपना बाहरी वस्त्र पहना और अपने स्थान पर बैठ गए और कहा, "क्या तुम समझते हो कि मैंने तुम्हारे लिए क्या किया है?
\v 13 तुम मुझे 'शिक्षक' और ' प्रभु कहते हो; तुम सही कहते हो; क्योंकि मैं यही हूँ।
\v 14 यदि मैं, तुम्हारे शिक्षक और प्रभु ने तुम्हारे पैरों को धोया है, तो तुमको भी एक दूसरे के पैरों को धोना चाहिए।
\v 15 मैंने तुमको ऐसा करने का एक उदाहरण दिया है, जिससे कि तुम वैसा ही करो जैसा मैंने किया है।
\s5
\v 16 मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: कि सेवक अपने स्वामी से श्रेष्ट नहीं है, न ही एक सन्देशवाहक अपने भेजने वाले से बड़ा है।
\v 17 यदि तुम इन चीजों को जानते हो, तो तुम कितने धन्य होंगे यदि तुम उन्हें करोगे।
\p
\v 18 मैं तुम सब के विषय में यह नहीं कह रहा हूँ; मैं उन लोगों को जानता हूँ जिन्हें मैंने चुना है परन्तु, धर्मशास्त्र में जो लिखा है उसे पूरा होना चाहिए: 'जिसने मेरे साथ एक मित्र के समान भोजन किया है, वह मेरे विरुद्ध हो गया और मेरे साथ शत्रु के समान व्यवहार किया।'
\p
\s5
\v 19 इससे पहले कि वह मुझे उनके हाथों पकडवा दे, मैं तुम्हें यह बता रहा हूँ कि जब ऐसा हो, तब तुम मुझ पर विश्वास कर सको कि मैं परमेश्वर हूँ।
\v 20 मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: यदि तुम उसको ग्रहण करते जिसे मैंने तुम्हारे पास भेजा है, तो तुम मुझे भी ग्रहण कर रहे हो; और जो कोई मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे पिता को भी ग्रहण करता है, जिन्होंने मुझे भेजा है।"
\p
\s5
\v 21 यीशु ऐसा कहने के बाद, अपने मन में परेशान हुए, उन्होंने गंभीरता से घोषणा की, "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: तुम में से एक मुझे मेरे शत्रुओं को सौंप देगा।"
\v 22 शिष्यों ने एक दूसरे को देखा वे इस विषय में उलझन में थे कि वह किस के विषय में बात कर रहे है।
\s5
\v 23 शिष्यों में से एक, यूहन्ना, जिसे यीशु विशेष रूप से प्रेम करते थे, वह तख्त पर यीशु के साथ था
\v 24 शमौन पतरस ने यूहन्ना से कहा कि उसे यीशु से पूछना चाहिए कि वह किस शिष्य के विषय में बात कर रहे हैं।
\v 25 तब यूहन्ना यीशु की ओर झुका और धीरे से पूछा, "हे प्रभु, वह कौन है?"
\s5
\v 26 "यीशु ने उत्तर दिया," यह वह है जिसे मैं रोटी का टुकड़ा कटोरे में डुबो कर दूंगा।" फिर उन्होंने रोटी को डुबा कर शमौन इस्करियोती के पुत्र यहूदा को दिया।
\v 27 जैसे ही यहूदा ने रोटी का टुकड़ा लिया, वैसे ही शैतान उसमें समा गया और उसे अपने नियंत्रण में कर लिया। यीशु ने उस से कहा, "जो भी तुझे करना है, उसे शीघ्र कर।"
\s5
\v 28 मेज पर कोई यह नहीं जानता था कि यीशु ने उसे ऐसा क्यों कहा था
\v 29 कुछ लोग सोचते थे कि यहूदा के पास पैसे की थैली थी, इसलिए यीशु उससे कह रहे होंगे कि जाकर फसह पर्व के लिए कुछ आवश्यक वस्तुएं खरीद लाये। दूसरों ने सोचा कि यीशु यहूदा को गरीबों को कुछ देने के लिए कह रहे थे।
\v 30 रोटी ग्रहण करने के तुरंत बाद, यहूदा बाहर निकल गया। वह रात का समय था।
\p
\s5
\v 31 यहूदा के जाने के बाद, यीशु ने कहा, "अब परमेश्वर लोगों पर प्रकट करेंगे कि मैं, मनुष्य का पुत्र क्या कर रहा हूँ। मैं मनुष्य का पुत्र, लोगों को यह बता दूंगा कि परमेश्वर क्या कर रहे है, और लोग इसके लिए उनकी प्रशंसा करेंगे
\v 32 क्योंकि मैं, मनुष्य का पुत्र, लोगों पर प्रकट करूँगा, परमेश्वर को जानने दूँगा और क्योंकि मैं उनका आदर करता हूँ, परमेश्वर भी मेरा सम्मान करेंगे। वरन तुरंत करेंगे।
\p
\v 33 हे मेरे बच्चों, मैं थोड़ी देर तुम्हारे साथ हूँ तुम मुझे खोजोगे; परन्तु जैसा मैंने यहूदियों से कहा था, और जैसा कि अब मैं तुमसे कह रहा हूँ, जहाँ मैं जा रहा हूँ, वहां तुम नहीं आ सकते।
\s5
\v 34 मैं तुम्हें यह नई आज्ञा दूँगा: तुम्हें एक दूसरे से प्रेम करना है, जैसे मैंने तुम्हें प्रेम किया है।
\v 35 यदि तुम एक दूसरे से प्रेम करते हो, तो सब लोग जान लेंगे कि तुम मेरे शिष्य हो।"
\p
\s5
\v 36 शमौन पतरस ने उन से कहाँ, हे प्रभु, आप कहाँ जा रहे हैं? यीशु ने उत्तर दिया, "जहाँ मैं जा रहा हूँ, तुम मेरे साथ वहां नहीं आ सकते, परन्तु तुम बाद में आओगे।"
\v 37 पतरस ने कहा," हे प्रभु, मैं आपके साथ क्यों नहीं आ सकता? मैंने अपना पूरा जीवन आपके लिए अर्पित कर दिया है
\v 38 यीशु ने उत्तर दिया," क्या तू सचमुच मेरे लिए अपना जीवन अर्पित करेगा, पतरस? मैं तुझसे सच कह रहा हूँ: मुर्गा सुबह तब तक बाँग नहीं देगा जब तक तू तीन बार यह न कह दे कि तू मुझे नहीं जानता।
\s5
\c 14
\p
\v 1 "परेशान मत हो ना ही चिंतित हो। तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो, मुझ पर भी विश्वास करो।
\v 2 जहाँ मेरे पिता रहते हैं वहां रहने के लिए कई स्थान हैं अगर यह सच नहीं होता, तो मैं तुमसे कह देता। मैं तुम्हारे लिए स्थान तैयार करने के लिए वहां जाता हूँ।
\v 3 यदि मैं वहां तुम्हारे लिए स्थान तैयार करने के लिए जा रहा हूँ, तो मैं वापस आऊँगा और तुम्हें अपने साथ ले जाऊँगा, कि जहाँ मैं हूँ, वहां तुम मेरे साथ रहो ।
\s5
\v 4 तुम्हें पता है मैं कहाँ जा रहा हूँ, और तुम रास्ता जानते हो।"
\p
\v 5 थोमा ने उन से कहा, हे प्रभु, हम नहीं जानते कि आप कहाँ जा रहे हैं। हम कैसे जान सकते हैं?
\v 6 "यीशु ने उस से कहा," मैं मार्ग हूँ, मैं सत्य हूँ, और मैं जीवन हूँ। कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता है और तब तक उनके साथ नहीं रह सकता है जब तक वह मेरे द्वारा न आए।
\v 7 यदि तुम मुझे जानते, तो तुम मेरे पिता को भी जानते। अब से, तुम उन्हें जानते हो और तुमने उन्हें देखा है।"
\p
\s5
\v 8 फिलिप्पुस ने यीशु से कहा, "हे प्रभु, हमें पिता दिखाएं और हम केवल यही जानना चाहेंगे।"
\v 9 यीशु ने उस से कहा, "फिलिप्पुस, मैं तुम्हारे साथ बहुत समय तक रहा हूँ, और तू अभी भी मुझे नहीं जानता, और जिन्होंने मुझे देखा है, उन्होंने मेरे पिता को देखा है। तो तू क्यों कह रहा है हमें पिता को दिखाओ'?
\s5
\v 10 क्या तू विश्वास नहीं करता कि मैं अपने पिता से जुड़ चुका हूँ और मेरे पिता मुझसे जुड़ गए हैं? मैंने तुमको जो कुछ कहा है, मैंने इन सब बातों के विषय में सोचा नहीं था; परन्तु, यह मेरे पिता है, जिन्होंने मुझे इन सब बातों को बताने के लिए भेजा है, क्योंकि मेरे पिता मुझसे जुड़े है और मेरे माध्यम से काम करते है।
\v 11 मुझ पर विश्वास करो क्योंकि मैंने तुमसे कहा है कि मैं पिता से जुड़ गया हूँ और पिता मुझसे जुड़ चुके है, या फिर मुझ पर विश्वास रखो, क्योंकि तुमने मुझे उन सब चिन्हों और शक्तिशाली कामों को करते देखा है।
\s5
\v 12 मैं तुम से सच कह रहा हूँ: जो कोई मुझ पर विश्वास करता है, वह भी उन कामों को करेगा जो मैं करता हूँ। वह इससे भी बड़े काम करेगा क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूँ।
\v 13 जो भी तुम मेरे नाम से मांगोगे, वह मैं करूँगा। मैं ऐसा इसलिए करूँगा कि हर कोई पिता का आदर कर सके और जो मैं अर्थात् उनका पुत्र, करता हूँ उसके द्वारा सब लोग पिता को जान सकें।
\v 14 यदि तुम पिता से कुछ भी मांगते हो क्योंकि तुम मेरे हो, तो मैं उसको करूँगा।
\p
\s5
\v 15 यदि तुम मुझसे प्रेम करते हो, तो तुम वैसा जीवन जिओगे जैसा मैंने तुमको सिखाया है।
\v 16 तब मैं पिता से तुम्हारे लिए एक और वरदान देने के लिए कहूँगा, और वह तुम्हारे लिए एक सहायक भेज देंगे, जो तुम्हारे साथ सदा रहेंगे।
\v 17 वह पवित्र आत्मा हैं जो परमेश्वर के विषय में सत्य बताते है। इस संसार के अविश्वासी लोग उनका कभी भी स्वागत नहीं करेंगे क्योंकि संसार उन्हें न देख पाता है और न उन्हें जान सकता है। तुम उन्हें जानते हो क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहते हैं और वह तुम्हारे साथ जुड़ जाएँगे।
\s5
\v 18 मैं तुम्हें त्यागूँगा नहीं और न ही बेसहारा छोडूँगा; मैं तुम्हारे पास आऊंगा।
\v 19 शीघ्र ही संसार मुझे और नहीं देखेगा, पर तुम मुझे देखोगे क्योंकि मैं जीवित हूँ, तुम भी जीवित रहोगे।
\v 20 जब तुम मुझे फिर से देखोगे, तो तुम जान लोगे कि मैं पिता के साथ जुड़ा हुआ हूँ और तुम मेरे साथ जुड़े हुए हो और मैं तुम्हारे साथ।
\s5
\v 21 जिस ने मेरी आज्ञाओं को सुना है और उनका पालन करता है, वही है जो मुझसे प्रेम करते हैं। और जो मुझ से प्रेम करते हैं, उनसे मेरे पिता भी प्रेम करेंगे; मैं उन से प्रेम करूंगा और मैं अपने आप को उन पर प्रकट करूंगा।"
\p
\v 22 फिर यहूदा (इस्करियोती नहीं, बल्कि उसी नाम का एक दूसरा शिष्य) ने यीशु से कहा, "हे प्रभु, आप अपने आप को केवल हम पर कैसे प्रकट करेंगे, पूरे संसार पर नहीं?"
\s5
\v 23 यीशु ने उस को उत्तर दिया, "तुम इस प्रकार कह सकते हो कि लोग मुझसे प्रेम करते हैं: यदि वे उन कार्यों को करते हैं जो मैंने तुम्हें करने के लिए कहा है। ऐसे लोगों से मेरे पिता प्रेम करेंगे। वह और मैं उसके पास जाएँगे और उसके साथ रहेंगे
\v 24 जो लोग मुझसे प्रेम नहीं करते, वे उन बातों का पालन नहीं करेंगे जो मैंने उन्हें सिखाई हैं। जो बातें मैंने तुमसे कही हैं, वह मैंने अपने निर्णय से नहीं कहीं हैं; वरन् वह वे बातें हैं जो मेरे पिता ने तुम्हें सिखने के लिए मुझे भेजा है।
\s5
\v 25 मैंने यह सब बातें तुम्हें सिखाई, जब तक मैं तुम्हारे साथ हूँ।
\v 26 जो सहायक, तुम्हारे साथ रहने के लिए आएंगे-मेरे पिता उन्हें तुम्हारे पास मेरे नाम से भेजेंगे, वे तुम्हें वह सब कुछ सिखायेंगे जो तुम्हें जानने की आवश्यकता है। वह तुन्हें उन सब बातों को भी याद करायेंगे जो मैंने तुमसे कही हैं
\v 27 जब मैं तुम्हें शान्ति में छोड़ जाता हूँ, तो मैं अपनी शान्ति तुम्हें देता हूँ, मैं तुम्हें ऐसी शान्ति देता हूँ जो इस संसार से जुड़ा कोई भी तुमको नहीं दे सकता। इसलिए परेशान न होना और न ही चिंतित होना; और भयभीत न होना।
\p
\s5
\v 28 तुमने मुझे यह कहते सुना है कि मैं जा रहा हूँ और बाद में तुम्हारे पास लौट आऊंगा। यदि तुम मुझसे प्रेम करते, तो तुम आनन्दित होते कि मैं पिता के पास वापस जा रहा हूँ क्योंकि पिता मुझ से भी महान हैं।
\v 29 मैंने तुम्हें इन बातों के होने से पहले बता दिया है, ताकि जब वे पूरी हो, तो तुम मुझ पर विश्वास करते रहो।
\v 30 मैं तुम्हारे साथ बहुत समय तक बात नहीं कर पाऊंगा क्योंकि इस संसार का शासक आ रहा है। हालांकि, उसका मुझ पर कोई अधिकार नहीं है,
\v 31 और मैं वह करूंगा जिसकी आज्ञा मेरे पिता ने मुझे दी है। यह इसलिए है कि यह संसार सदा के लिए जान ले कि मैं पिता से प्रेम करता हूँ। आओ, हम यहाँ से चलें।"
\s5
\c 15
\p
\v 1 "मैं सच्ची दाखलता हूँ, और मेरे पिता माली हैं।
\v 2 हर एक शाखा जो मुझ में है और फल नहीं लाती - मेरे पिता उसे काट देते है और दूर कर देते हैं; पर जो शाखा अच्छे फल लाती है, वे उसे छंटाई कर के साफ करते हैं, ताकि वह अधिक फल उपजा सके।
\s5
\v 3 जो संदेश मैंने तुम्हें सुनाया था, उसके कारण तुम पहले से ही शुद्ध हो।
\v 4 मेरे साथ जुड़ें रहो और मैं तुम्हारे साथ जुड़ा रहूँगा। जैसा कि शाखा अपने आप में कोई फल पैदा नहीं कर सकती है, न ही तुम फल पैदा कर सकते हो; जब तक कि तुम मेरे साथ जुड़े न रहो और सब वस्तुओं के लिए मुझ पर निर्भर न रहो।
\p
\s5
\v 5 मैं दाखलता हूँ; तुम शाखाएं हो। यदि तुम मेरे साथ जुड़े रहो और मैं तुम्हारे साथ जुड़ा रहूँ, तो तुम बहुत फल लाओगे, क्योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते हो।
\v 6 जो कोई मुझ से जुड़ा नहीं रहता और अपना जीवन मुझ से अलग करता है, वह एक मरी हुई शाखा के समान फेंक दिया जाएगा। उन शाखाओं को एकत्र किया जाता है और आग में डाल कर जला दिया जाता है।
\v 7 यदि तुम मेरे साथ जुड़े रहो और मेरे संदेश पर जीवन जीते रहो, तो तुम परमेश्वर से कुछ भी मांग सकते हो, और वे तुम्हारे लिए करेंगे।
\s5
\v 8 जब तुम अधिक फल लाते हो, तो मनुष्यों द्वारा पिता के आदर का कारण होते हो। तब तुम मेरे शिष्य ठहरोगे।
\p
\v 9 जैसे पिता मुझ से प्रेम करते हैं, वैसे ही मैंने तुम से प्रेम किया है। मुझे तुमसे प्रेम करते रहने दो।
\s5
\v 10 यदि तुम उन बातों का पालन करो जो मैं तुम्हें करने के लिए कहता हूँ, तो तुम मुझे तुमसे प्रेम करते रहने की अनुमती दोगे। इस प्रकार तुम मेरे जैसे ठहरोगे: मैंने अपने पिता की आज्ञा को माना था, और मेरी आज्ञाकारिता के कारण, मैं उनके प्रेम में बना रहा हूँ। यह तुम्हारे लिए भी सच होगा।
\v 11 मैंने तुमको ये बातें बताईं ताकि मेरा आनन्द तुम में हो, और इस तरह तुम पूरी तरह आनन्दित रहो।
\s5
\v 12 मैं तुमको जो आज्ञा देता हूँ वह ऐसी है: एक दूसरे से प्रेम करो जिस तरह से मैंने तुम्हें प्रेम किया है।
\v 13 कोई भी उस व्यक्ति की तुलना में अधिक प्रेम नहीं करता जो अपने मित्रों के लिए अपना जीवन दे देता है।
\s5
\v 14 तुम मेरे मित्र हो यदि तुम मेरी आज्ञाओं को सुनते ही नहीं परन्तु उनके अनुसार जीते भी हो।
\v 15 मैं तुम्हें अपना सेवक नहीं कहता हूँ, क्योंकि सेवक नहीं समझता कि उसका स्वामी क्या कर रहा है। मैं अब तुम्हें मित्र कहता हूँ, क्योंकि मैंने जो कुछ अपने पिता से सुना है, वह तुम सबको बताया है जिससे कि तुम उसे समझ सको।
\s5
\v 16 तुमने मुझे नहीं चुना, परन्तु मैंने तुम्हें किसी कारण से चुना है, कि तुम बाहर जाकर अधिक फल उत्पन्न करो, और तुम्हारा फल सदा बना रहे । इसके फलस्वरूप, तुम मेरे नाम से पिता से सब कुछ मांगो, वे तुम्हारे लिए करेंगे।
\v 17 मैं तुम्हें यही आज्ञा देता हूँ: एक दूसरे से प्रेम करो।
\p
\s5
\v 18 यदि संसार तुमसे घृणा करता है, तो तुम जानते हो कि उसने पहले मुझसे घृणा की थी।
\v 19 यदि तुम इस संसार के अविश्वासियों के हो, तो संसार तुम से प्रेम करेगा, और तुम उससे प्रेम करोगे जिससे वे प्रेम करते है और वह काम करोगे जो वे करते हैं। परन्तु तुम उनके नहीं हो; मैंने तुम्हें उन लोगों के बीच में से बाहर निकलने के लिए चुना है। यही कारण है कि इस संसार के अविश्वासी तुम से घृणा करते हैं।
\s5
\v 20 याद रखो जब मैंने तुमको यह सिखाया था: 'एक सेवक अपने स्वामी से बड़ा नहीं है।' क्योंकि उन्होंने मुझे पीड़ित किया है, इसलिए तुम यह सुनिश्चित कर सकते हो कि वे तुमको भी पीड़ित करेंगे। यदि उनमें से किसी ने मेरी शिक्षाओं को ग्रहण किया और उनका पालन करते हैं, तो वे उनका अनुसरण भी करेंगे जो तुम उन्हें सिखाओगे।
\v 21 इस संसार में अविश्वासी तुम्हारे साथ बहुत बुरा व्यवहार करेंगे क्योंकि तुम मेरा प्रतिनिधित्व करते हो और क्योंकि वे मेरे पिता को नहीं जानते, जिन्होंने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।
\v 22 यदि मैं आकर परमेश्वर का संदेश उनको नहीं सुनाता, तो वे मुझे और मेरे संदेश को अस्वीकार करने के दोषी नहीं ठहरते। परन्तु, मैं आया हूँ और उन्हें परमेश्वर का संदेश सुनाया है, और अब उनके पास अपने पाप का कोई बहाना नहीं है।
\s5
\v 23 जो कोई मुझे से घृणा करता है वह मेरे पिता से भी घृणा करता है
\v 24 यदि मैंने उन कामों को उनके बीच नहीं किया होता, तो वे चीजें जिन में मैंने अपनी शक्ति दिखायी थी, वे काम जो किसी ने कभी नहीं कि, तो वे पाप के दोषी नहीं होते। यद्यपि अब उन्होंने मुझे देखा है, वे मुझसे घृणा करते हैं, और वे मेरे पिता से भी घृणा करते हैं।
\v 25 ये शब्द उनकी व्यवस्था में लिखा गया था और अब पूरा हो गया है: 'उन्होंने मुझसे बिना किसी कारण के घृणा की।'
\p
\s5
\v 26 जब सहायक आएँगे, तो वह पिता की ओर से आएँगे और तुमको शान्ति देगे। वे पवित्र आत्मा हैं जो परमेश्वर और मेरे विषय में सच्चाई बताते हैं। वे सब को बतायेंगे कि मैं कौन हूँ, और सब कुछ जो मैंने किया है, वह सबको दिखाएँगे।
\v 27 तुम भी जो मेरे विषय में जानते हो; सबको बताओ, क्योंकि तुम पहले दिन से ही हर समय मेरे साथ थे जब मैंने लोगों को शिक्षा देना आरम्भ किया था और चमत्कार किये। "
\s5
\c 16
\p
\v 1 मैंने तुमको ये बातें इसलिए बताईं ताकि तुम ठोकर न खाओ या मुझ पर विश्वास करना त्याग न दो।
\v 2 कठिन दिन आने वाले हैं तुम्हारे शत्रु तुमको सभाओं में आराधना करने से रोकेंगे। परन्तु, कुछ इससे भी बुरा होगा, वह दिन आ रहे हैं जब लोग तुम्हें मार डालेंगे और सोचेंगे कि वे परमेश्वर को प्रसन्न कर रहे हैं।
\s5
\v 3 वे ऐसा करेंगे क्योंकि वह पिता को और मुझ को नहीं जानते है।
\v 4 मैंने तुमको ये बातें बताई हैं ताकि जब ऐसे कलेश आ जाएँ तब तुमको याद आएगा कि मैंने तुमको चेतावनी दी थी। मैंने तुमको ये बातें आरंभ में नहीं बताई क्योंकि तब मैं तुम्हारे साथ था।
\p
\s5
\v 5 "अब मैं पिता के पास वापस जा रहा हूँ, पिता वही है जिन्होंने मुझे भेजा है। फिर भी तुम में से कोई मुझसे यह पूछने का साहस नहीं करता, 'आप कहाँ जा रहे हैं?'
\v 6 क्योंकि मैंने तुम से ये बातें कही हैं, तो अब तुम्हारा हृदय शोक से भर गया है।
\v 7 मैं तुमसे सच कहता हूँ, तुम्हारे लिए यह भला है कि मैं जा रहा हूँ; जब तक मैं नहीं जाऊँगा, तब तक तुमको शान्ति देनेवाले सहायक नहीं आएंगे। अगर मैं चला जाऊं, तो मैं उन्हें तुम्हारे पास भेजूंगा।
\s5
\v 8 जब सहायक आएंगे, तो वे उन्हें उनके पापों के लिए दोषी ठहराएंगे; वह उन्हें दिखाएँगे कि वे परमेश्वर की भलाई के स्तर तक नहीं पहुंचते हैं; और वह उनसे प्रतिज्ञा करते हैं कि परमेश्वर उनका न्याय करेंगे क्योंकि उन्होंने वह कार्य किया जिसे न करने की आज्ञा परमेश्वर ने उन्हें दी थी।
\v 9 उनके पाप का दोष इसलिए है क्योंकि वे मुझ पर विश्वास नहीं करते हैं।
\v 10 परमेश्वर की अच्छाई के स्तर तक पहुँच पाने की उनकी असफलता इसलिए दृढ हो गई है क्योंकि मैं अपने पिता के पास वापस जा रहा हूँ, और तुम मुझे और नहीं देख पाओगे।
\v 11 उनका अंतिम लेखा आ जाएगा, जब परमेश्वर उनके पापों के विरुद्ध उनको दण्ड देंगे। यह इस संसार के सरदार शैतान को दिए जाने वाले दण्ड के द्वारा प्रकट किया जायेगा, जो कि इस संसार का राजकुमार है, क्योंकि वह परमेश्वर के विरुद्ध लड़ा था।
\p
\s5
\v 12 मेरे पास बहुत सी बातें हैं जो मैं तुमको बताना चाहता हूँ। परन्तु, यदि मैं तुमको अभी बताता हूँ, तो तुम इन बातों को सह नहीं पाओगे।
\v 13 जब सत्य के पवित्र आत्मा आएंगे, तो वह तुमको उन सब सच्चाइयों की ओर ले जाएँगे जिनको जानने की तुमको आवश्यकता है। वह अपने अधिकार से बात नहीं करेंगे, परन्तु वह जो कुछ भी सुनते है वह तुमको बतायेंगे, और वह तुमको समय से आगे उन बातों के विषय में बतायेंगे जो होने वाली है।
\v 14 पवित्र आत्मा तुमको यह बताकर कि मैं कौन हूँ और यह दिखाकर कि मैंने क्या किया है; मुझे आदर देंगे। वे तुमको सब कुछ समझायेंगे जो उन्होंने मुझसे सुना है।
\s5
\v 15 सब कुछ जो मेरे पिता का है वह मेरा है; इसलिए मैंने कहा था कि पवित्र आत्मा मुझसे प्राप्त करके तुमको सब समझायेंगे।
\p
\v 16 थोड़ी देर बाद, तुम मुझे नहीं देख पाओगे। फिर थोड़ी देर बाद, तुम मुझे फिर से देखोगे।"
\s5
\v 17 उनके कुछ शिष्य एक दूसरे से कहने लगे, "यीशु का क्या अर्थ है जब वे हम से कहते है कि 'थोड़े समय बाद तुम मुझे नहीं देखोगे' और 'थोड़े समय के बाद, तुम मुझे फिर से देखोगे' और उनके यह कहने का क्या अर्थ है 'क्योंकि मैं अपने पिता के पास वापस जा रहा हूँ'?"
\v 18 वे पूछते रहे, उनके यह कहने का क्या अर्थ है "थोड़ी देर के बाद", हम समझ नहीं पा रहे हैं कि वह क्या कह रहे है।
\p
\s5
\v 19 यीशु ने देखा कि वे उनसे और भी प्रश्न पूछना चाहते है। इसलिए उन्होंने शिष्यों से कहा, "तुम एक दूसरे से क्यों पूछ रहे हो कि मेरा क्या अर्थ था? मैंने कहा था कि थोड़ी देर में तुम मुझे नहीं देखोगे, और फिर कुछ समय बाद तुम मुझे फिर से देखोगे।
\v 20 मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: तुम रोओगे और शोक करोगे, परन्तु जो लोग इस संसार के हैं, वे आनंद करेंगे। तुमको बहुत दुःख सहना होगा, परन्तु तुम्हारा दुःख आनंद में बदल जाएगा।
\v 21 यह एक स्त्री के समान है जो बच्चे को जन्म देने के समय दर्द से पीड़ित होती है। परन्तु उसके बच्चे के जन्म होने के बाद, वह अपनी पीड़ा को उस आनन्द के कारण भूल जाती है क्योंकि उसके बच्चे का जन्म संसार में हुआ है।
\s5
\v 22 तुम जैसे, अभी दुखी हो, परन्तु मैं तुम को फिर से देखूंगा और परमेश्वर तुमको बहुत आनन्द देंगे, वह आनन्द जो कोई भी तुमसे ले नहीं सकता।
\v 23 उस दिन, तुम्हारे पास मुझसे पूछने के लिए कोई प्रश्न नहीं होंगे। मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: जो कुछ भी तुम पिता से माँगोगे, वे तुमको दे देंगे क्योंकि तुम मुझसे जुड़ चुके हो।
\v 24 अब तक, तुमने इस तरह से कुछ भी नहीं मांगा है मांगो और तुम उसे प्राप्त करोगे, और परमेश्वर तुमको आनन्द से भरपूर करेंगे।
\p
\s5
\v 25 मैं इन बातों को दृष्टान्तों और पहेलियों के द्वारा बोल रहा हूँ, परन्तु शीघ्र ही ऐसा समय आएगा जब मैं इस भाषा का उपयोग नहीं करूँगा इसकी अपेक्षा, मैं तुमको अपने पिता के विषय में सब कुछ उस भाषा में बताऊंगा जिसे तुम स्पष्ट रूप से समझ सकते हो।
\s5
\v 26 उस समय तुम मेरे नाम से परमेश्वर से विनती करोगे और परमेश्वर के उद्देश्यों के अनुसार करोगे। मुझे पिता से तुम्हारी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नहीं कहना होगा;
\v 27 क्योंकि पिता स्वयं तुमसे प्रेम करते है, क्योंकि तुमने मुझ से प्रेम किया है और मुझ पर अपना विश्वास रखा है और तुम जानते हो कि मैं परमेश्वर की ओर से आया हूँ।
\v 28 मैं पिता की ओर से आया हूँ, और मैंने इस संसार में प्रवेश किया है अब मैं इस संसार को छोड़ रहा हूँ, और मैं वापस पिता के पास जा रहा हूँ।"
\p
\s5
\v 29 फिर उनके शिष्यों ने कहा, " अब आप स्पष्ट रूप से बात कर रहे हैं और दृष्टान्तो की भाषा का उपयोग नहीं कर रहे हैं।
\v 30 अब हम यह समझते हैं कि आप सब कुछ जानते हैं अब आपसे प्रश्न पूछने की आवश्यक्ता नहीं है। यही कारण है कि हम आप पर विश्वास रखते है, और हमें पता है कि आप परमेश्वर की ओर से आए हैं।"
\p
\v 31 "यीशु ने उनको उत्तर दिया," क्या तुम अब अंततः मुझ पर विश्वास रख रहे हो ?
\s5
\v 32 देखो! समय आ रहा है जब दूसरे तुम को हर जगह तितर-बितर कर के चले जाएँगे। प्रत्येक व्यक्ति अपने घर की ओर जायेगा, और तुम मुझे छोड़ दोगे परन्तु, मैं अकेला नहीं रहूँगा क्योंकि पिता हमेशा मेरे साथ हैं।
\v 33 मैंने तुमको ये बातें बताई हैं कि मुझमें तुम्हें शान्ति मिले। संसार में तुम पर परिक्षाएं और कई क्लेश आएँगे, परन्तु साहसी बनो। मैंने संसार को जीत लिया है।"
\s5
\c 17
\p
\v 1 इन बातों को कहने के बाद यीशु ने आकाश की ओर देखा और कहा, "हे पिता, यह समय है कि आप सबको घोषणा करके बताएँ कि मैं आपका पुत्र कौन हूँ, और जो मैंने किया है वह सब को दिखाए। ऐसा करें जिससे कि मैं, आपका पुत्र, यह सब उन पर प्रकट कर सकूँ कि आप वास्तव में क्या हैं, एक महान राजा जो कुछ भी कर सकते हैं।
\v 2 ठीक वैसा ही करें जैसा कि आपने मुझे, अपने पुत्र को सब लोगों पर शासन करने की अनुमति दी है। हे पिता, आपने यह किया है ताकि मैं उनको अनन्त जीवन दे सकूँ- जिन्हें आप ने मुझे दिया है।
\s5
\v 3 आप को जानना ही अनन्त जीवन है क्योंकि केवल आप ही एकमात्र सच्चे परमेश्वर है और मुझे भी जानना; अर्थात् यीशु मसीह को जिनको आपने संसार में भेजा है ।
\v 4 मैं सब लोगों को आपके पास लाया ताकि वे आपके विषय में सब कुछ जान सकें। मैंने यह आपके द्वारा दिए गए कार्य को पूरा करके किया है
\v 5 हे पिता, अपनी उपस्थिति में लाने के द्वारा मुझे आदर दें, जैसा कि हम इस संसार को बनाने से पहले थे।
\p
\s5
\v 6 जिन लोगों को आपने इस संसार में से चुना ताकि वे मेरे ठहरे, मैंने उनको सिखाया है कि आप वास्तव में कौन हैं और आप कैसे हैं। वे आप के थे और आपने उन्हें मुझे दिया है। उन्होंने उस बात पर विश्वास किया जो आपने उनसे कहा, और उन्होंने उसका पालन भी किया है।
\v 7 अब वे जानते हैं कि जो कुछ आपने मुझे दिया है वह सब आप की ओर से आता है।
\v 8 मैंने उनको वह संदेश दिया जो आपने मुझे दिया था। उन्होंने उसे स्वीकार किया, और अब वे निश्चित है कि मैं आप की ओर से आया हूँ, और वे विश्वास करते हैं कि आपने मुझे भेजा है
\s5
\v 9 मैं उनके लिए प्रार्थना कर रहा हूँ। मैं उन लोगों के लिए प्रार्थना नहीं कर रहा हूँ जो इस संसार के हैं, जो निरंतर आप का विरोध करते हैं। मैं उन लोगों के लिए प्रार्थना कर रहा हूँ जिन्हें आपने मुझे दिया है क्योंकि वे आप के हैं।
\v 10 जो भी मेरा हैं वह आपका है, और जो आपका है वह मेरा है। वे जानते हैं कि मैं कौन हूँ, और वे सत्यनिष्ठा से बताते हैं कि मैं कौन हूँ।
\v 11 मैं संसार में अब और नहीं रह पाऊँगा। परन्तु, वे संसार में रह रहे हैं। मैं आपके पास आ रहा हूँ। पवित्र पिता, उन्हें सुरक्षित रखें; उन्हें उसी शक्ति के द्वारा अपने से जोड़कर रखें जो आपने मुझे दी थी, ताकि वे एकजुट हों, जैसे हम हैं।
\s5
\v 12 जब मैं उनके साथ था, मैंने उन्हें सुरक्षित रखा और आपकी शक्तियों से उनकी रखवाली की। उनमें से एक भी खोया नहीं था, अपेक्षा उसके जिसे आप ने विनाश के लिए निर्धारित किया था, जैसा कि धर्म शास्त्र में पहले से बताया गया था।
\p
\v 13 अब मैं आपके पास आ रहा हूँ, पिता। मैंने यह सब बातें तब कहीं हैं जब मैं इस संसार में हूँ ताकि मैं उन्हें सम्पूर्ण आनंद दे सकूँ।
\v 14 मैंने आपका संदेश उन्हें सुनाया है, और संसार उनसे घृणा करता है और आपके संदेश को नहीं सुनता। संसार उनसे घृणा करता है क्योंकि, मेरे समान, वे भी इस संसार से जुड़े नहीं है, परन्तु उनके पास दूसरा घर है।
\s5
\v 15 मैं आपसे उन्हें इस संसार से उठा ले जाने के लिए नहीं कह रहा हूँ, इसके बदले आप उन्हें हानि से बचाएँ जो दुष्ट उनके साथ कर सकता है।
\v 16 वे इस संसार के नहीं हैं, जैसे मैं नहीं हूँ।
\v 17 उन्हें आपके विषय में सच्चाई सिखा कर उन्हें अलग करें। उन्हें सिखाये जो उन्हें जानने की आवश्यक्ता है जिससे की आप उन्हें अलग कर सकें, क्योंकि आपके संदेश पूर्णरूप से सच हैं।
\s5
\v 18 जैसे आपने मुझे संसार में भेजा है, मैं उन्हें संसार में भेज रहा हूँ।
\v 19 मैं उनके लिए स्वयं को पूर्णरूप से आपको दे रहा हूँ जिससे कि वे वास्तव में स्वयं को आपको दे।
\p
\s5
\v 20 "मैं सिर्फ इनके लिए ही प्रार्थना नहीं कर रहा हूँ, परन्तु उन लोगों के लिए भी प्रार्थना कर रहा हूँ जो मुझ पर विश्वास करेंगे जब वे इनका संदेश सुनेंगे।
\v 21 मैं प्रार्थना करता हूँ कि वे सब एक हों, जैसे आप और मैं एक हैं। पिता, आप मुझमें हैं, और मैं आप में हूँ - वे भी हमारे साथ एक हो सकें। ऐसा कीजिये जिससे कि संसार जान सके कि आपने मुझे भेजा है।
\s5
\v 22 मैंने उन्हें दिखाया है कि मैं कौन हूँ, और उन्होंने देखा जो मैंने किया है। मैंने उन्हें यह सिखाया है ताकि वे एक हों, जैसा कि आप और मैं एक हैं।
\v 23 मैं उनके साथ एक हूँ और आप मेरे साथ एक हैं। मैंने ऐसा इसीलिए किया है ताकि वे पूर्णरूप से एकजुट हो सकें और अविश्वासी जान सके कि आपने मुझे भेजा है और आप उन्हें प्रेम करते हैं, जैसे आप मुझे प्रेम करते हैं।
\p
\s5
\v 24 "पिता, मैं चाहता हूँ कि जिन्हें आपने मुझे दिया है वे मेरे साथ सदा रहे जहाँ मैं रहता हूँ जिससे कि जब मैं आपके साथ हूँ तब वे उस वैभव और महिमा को देख सके जो आप मुझे देंगे। आप ऐसा करते हैं क्योंकि आपने मुझे संसार के निर्माण से पहले प्रेम किया है।
\p
\s5
\v 25 हे धर्मी पिता, संसार आपको नहीं जानता, परन्तु मैं आपको जानता हूँ; और जो यहाँ मेरे साथ है वे भी जानते हैं कि आपने मुझे उनके लिए भेजा है।
\v 26 मैंने उन्हें बताया है कि आप कौन हैं। मैं ऐसा करता रहूँगा जिससे कि आप उनसे प्रेम कर सकें जैसे आप मुझसे प्रेम करते हैं और मैं उनके साथ एक हो सकूँ।
\s5
\c 18
\p
\v 1 जब यीशु ने अपनी प्रार्थना समाप्त की, तो वह अपने शिष्यों के साथ किद्रोन घाटी पार कर गए। दूसरी ओर जैतून के पेड़ों का बगीचा था, और उन्होंने वहां प्रवेश किया।
\p
\v 2 यहूदा, जो यीशु को उनके शत्रुओं से पकड़वाने वाला था, वह जानता था कि यह स्थान कहां थी क्योंकि यीशु अक्सर अपने शिष्यों के साथ प्रायः वहां जाया करते थे।
\v 3 तब प्रधान याजकों और फरीसियों ने कुछ सैनिकों और अधिकारियों को यहूदा के साथ जाने का आदेश दिया। इसलिए वे उस बगीचे में लालटेनों, मशालों, और हथियारों के साथ गए।
\s5
\v 4 यीशु जानते थे कि उनके साथ क्या होने वाला है, तो वे आगे गए और उनसे पूछा, "तुम किसको खोज रहे हो?"
\v 5 उन्होंने उत्तर दिया, "यीशु नासरी" यीशु ने उनसे कहा, "मैं वह व्यक्ति हूँ।" (अब यहूदा जो उसे पकडवा रहा था, उनके साथ खड़ा था।)
\s5
\v 6 जब यीशु ने उनसे कहा, "मैं वह व्यक्ति हूँ," वे तुरंत पीछे हटे और भूमि पर गिर गए।
\v 7 उन्होंने फिर से उनसे पूछा, "तुम किसको खोज रहे हो?" उन्होंने उत्तर दिया, "यीशु नासरी"
\s5
\v 8 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "मैंने तुम्हें बताया कि मैं वह व्यक्ति हूँ, क्योंकि तुम मुझे खोज रहें हो, इन बाकी पुरुषों को जाने दो।
\v 9 यह उन शब्दों को पूरा करने के लिए हुआ जो उन्होंने पिता से प्रार्थना करते समय कहा था, "मैंने उन लोगों में से एक को भी नहीं खोया जो आपने मुझे दिये थे।"
\p
\s5
\v 10 तब शमौन पतरस ने एक छोटी तलवार निकली और महायाजक के सेवक को मारा जिसका नाम मलखुस था, और उसका दाहिना कान काट दिया।
\v 11 यीशु ने पतरस से कहा, "अपनी तलवार को वापस म्यान में रख। मैं निश्चय ही उस प्रकार पीड़ा सहूंगा जो मेरे पिता ने मेरे लिए योजना बनाई है।"
\p
\s5
\v 12 तब सैनिकों का समूह, उनके कप्तान और कुछ आराधनालय के रक्षकों ने यीशु को पकड़ लिया और उन्हें बाँध दिया ताकि वे बचकर ना जा सकें।
\v 13 तब वे यीशु को काइफा के ससुर हन्ना के पास ले गए, जो उस वर्ष का महायाजक था।
\v 14 यह काइफा था जिसने अन्य अगुओं को सलाह दी थी कि एक व्यक्ति का सब लोगों के लिए मरना, समस्त राष्ट्र के विनाश से अधिक अच्छा है।
\p
\s5
\v 15 शमौन पतरस और दूसरा एक और शिष्य भी यीशु के पीछे-पीछे चले। दूसरा शिष्य महायाजक का परिचित था, इसलिए उसे महायाजक के आंगन में प्रवेश करने की अनुमति थी जब सैनिक यीशु को वहाँ ले गए
\v 16 पतरस को द्वार के बाहर रुकना पड़ा। तो दूसरा शिष्य फिर से बाहर निकला और द्वारपालिन से बात की और उसने पतरस को भीतर जाने दिया।
\s5
\v 17 उस द्वारपालिन ने पतरस से कहा, तू उस व्यक्ति का शिष्य है जिसे उन्होंने पकड़ा है, क्या तू नहीं है?" उसने कहा, "नहीं, मैं नहीं हूँ।"
\v 18 यह ठण्ड का समय था, इसलिए महायाजक के सेवक और आराधनालय के रक्षकों ने कोयले की आग लगाई और चारों तरफ खड़े होकर आग ताप रहे थे। पतरस भी उनके साथ था, वह खड़ा होकर आग ताप रहा था।
\p
\s5
\v 19 महायाजक ने यीशु से उनके शिष्यों और उनकी शिक्षाओं के विषय में पूछताछ की।
\v 20 यीशु ने उत्तर दिया, "मैंने हर किसी से साथ खुल कर बात की थी। मैंने सभाओं और आराधनालय में, जहाँ लोग एकत्र होते हैं, सदा सिखाया हैं। मैंने कुछ भी गुप्त में नहीं सिखाया है।
\v 21 तो आप मुझसे यह प्रश्न क्यों पूछ रहे हैं? उन लोगों से पूछो जिन्होंने मेरी शिक्षाओं को सुना है। वे जानते हैं कि मैंने क्या कहा।"
\s5
\v 22 जब यीशु ने यह बातें कहीं, तो उनके पास खड़े एक आराधनालय के रक्षक ने अपने हाथ से उन्हें जोर से मारा। उसने कहा, "यह महायाजक को उत्तर देने का सही तरीका नहीं है।"
\v 23 यीशु ने उसे उत्तर दिया, "अगर मैंने कुछ गलत कहा, तो मुझे बताओ कि क्या गलत कहा। परन्तु, यदि मैंने जो कहा वह सही था, तो मुझे थप्पड़ नहीं मारना चाहिए था।"
\v 24 तब हन्ना ने यीशु को, जो अभी तक बंधे हुए थे; महायाजक काइफा के पास भेजा।
\p
\s5
\v 25 शमौन पतरस अभी भी वहां खड़ा था और आग ताप रहा था। एक अन्य व्यक्ति ने उससे कहा, तू भी उस व्यक्ति के शिष्यों में से एक हो जिसे उन्होंने गिरफ्तार किया है, क्या तू नहीं है?" उसने कहा, "नहीं, मैं नहीं हूँ।"
\v 26 महायाजक के सेवकों में से एक, जो उस पुरूष का रिश्तेदार था जिसका कान पतरस ने काटा था, उस से कहा, " मैंने अवश्य तुझे जैतून के पेड़ के बगीचे में उस व्यक्ति के साथ जिसे उन्होंने पकड़ा है; देखा था, क्या मैंने नहीं देखा था ?"
\v 27 पतरस ने फिर से अस्वीकार कर दिया, और तुरंत एक मुर्गे ने बाँग दी।
\p
\s5
\v 28 तब सैनिक यीशु को काइफा के घर से पिलातुस के मुख्यालय तक ले गए जो रोम का राज्यपाल था। यह भोर का समय था; पिलातुस एक यहूदी नहीं था, इसलिए यीशु पर दोष लगाने वालों ने सोचा कि यदि वे उसके मुख्यालय में प्रवेश करेंगे, तो वे स्वयं को अशुद्ध कर देंगे और फसह का पर्व मनाने में असमर्थ होंगे इसलिए वे भीतर नहीं गए।
\v 29 अतः पिलातुस उनसे बात करने के लिए बाहर निकल आया। उसने कहा, "तुम इस व्यक्ति पर क्या आरोप लगा रहे हो?"
\v 30 उन्होंने उत्तर दिया "यदि यह व्यक्ति आपराधी नहीं होता, तो हम इसे तेरे पास नहीं लाते।"
\s5
\v 31 तब पिलातुस ने उन से कहा, "उसे ले जाओ और अपनी व्यवस्था के अनुसार उसका न्याय करो।" फिर यहूदी अगुओं ने कहा, "हम उसे मृत्युदण्‍ड देना चाहते हैं, परन्तु तुम्हारा रोमी कानून हमें ऐसा करने से रोकता है।"
\v 32 उन्होंने यह इसलिए कहा जिससे वह कथन सच हो जो यीशु ने अपनी मृत्यु के विषय में कहा था कि उनकी मृत्यु कैसे होगी।
\p
\s5
\v 33 फिर पिलातुस अपने मुख्यालय में वापस चला गया। उसने यीशु को बुलाकर कहा, "क्या तुम यहूदियों के राजा हो?"
\v 34 यीशु ने उत्तर दिया, "क्या तू इसलिए पूछ रहा है क्योंकि तू स्वयं जानना चाहता है या दूसरों ने तुझको यह प्रश्न पूछने के लिए कहा है?"
\v 35 पिलातुस ने उत्तर दिया, "मैं एक यहूदी नहीं हूँ, तुम्हारे अपने देश और प्रधान याजकों ने तुमको मेरे हाथों में सौंपा है। तुमने क्या गलत किया है?"
\s5
\v 36 यीशु ने उत्तर दिया, "मेरा राज्य इस संसार का हिस्सा नहीं है। यदि मेरा राज्य इस संसार का होता, तो मेरे सेवक मेरे यहूदी शत्रुओं से लड़ाई करते ताकि मैं तेरे हाथ में सौंपा ना जाऊं, पर मेरा राज्य इस संसार का नहीं है ।"
\v 37 तब पिलातुस ने उन से कहा, "तो क्या तुम राजा हो?" यीशु ने उत्तर दिया, "हाँ, मेरे जन्म का कारण और इस संसार में आना इसलिए था कि मैं लोगों को परमेश्वर के विषय में सच्चाई बता सकूँ। जो सच्चाई से प्रेम करता है वह मेरी सुनता है।"
\s5
\v 38 पिलातुस ने उनसे पूछा, "सच क्या है? यीशु से प्रश्न पूछने के बाद पिलातुस बाहर गया और यहूदी अगुओं से फिर से बात की। उसने उनसे कहा, "मेरे विचारों में इसने कोई कानून नहीं तोड़ा है।
\v 39 यद्यपि तुम यहूदियों की एक प्रथा है की प्रतिवर्ष फसह के पर्व के समय, तुम मुझसे एक बन्‍दी को मुक्त करने को कहते हो जो जेल में है। तो क्या तुम चाहते की मैं यहूदियों के राजा को मुक्त कर दूँ?"
\v 40 वे फिर से चिल्लाकर बोले, "नहीं, इस व्यक्ति को मुक्त मत करना, बरअब्बा को मुक्त कर दो!" बरअब्बा एक डाकू था ।
\s5
\c 19
\p
\v 1 फिर पिलातुस ने यीशु को उसके सैनिकों के पास भेजा उसके सैनिकों ने उन्हें कोड़ो से बुरी तरह मारा।
\v 2 सैनिकों ने एक कांटो का मुकुट बनाया और उन्होंने उसे उनके सिर पर रखा। उन्होंने उन्हें बैंगनी वस्त्र भी पहनाया।
\v 3 उन्होंने उनका ठट्ठा किया और कहा, "प्रणाम, यहूदियों के राजा!" और वे उन पर लगातार प्रहार करके मारते गये ।
\p
\s5
\v 4 पिलातुस फिर से बाहर आया और लोगों से कहा, "देखो, मैं उसे तुम्हारे पास ला रहा हूँ कि तुम जान सको कि मुझे उसे दण्ड देने का कोई कारण नहीं मिला ।
\v 5 तो यीशु, कांटों का मुकुट और बैंगनी वस्त्र पहने हुए बाहर निकले। पिलातुस ने उनसे कहा, "देखो, यह मनुष्य यहाँ है!"
\v 6 जब प्रधान याजकों और आराधनालय के पहरेदारों ने उन्हें देखा, तो उन्होंने चिल्लाकर कहा, "उसे क्रूस पर चढ़ाओ! उसे क्रूस पर चढ़ाओ!" पिलातुस ने उनसे कहा, "उसे स्वयं ले जाओ और उसे क्रूस पर चढ़ाओ! जहाँ तक मेरी बात है, मुझे उसे दण्ड देने का कोई कारण नहीं मिला। "
\s5
\v 7 यहूदी अगुओं ने पिलातुस को उत्तर दिया, "हमारे पास एक निश्चित व्यवस्था है जो कहती है कि उसे मरना चाहिए क्योंकि वह अपने आप को परमेश्वर का पुत्र कहता है।"
\v 8 जब पिलातुस ने यह सुना, तो वह और भी डर गया।
\v 9 उसने एक बार फिर अपने मुख्यालय में प्रवेश किया और सैनिकों को यीशु को वापस भीतर लाने के लिए बुलाया। फिर उसने यीशु से कहा,"तुम कहां से आए हो?" हालांकि, यीशु ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया।
\s5
\v 10 इसलिए पिलातुस ने उससे कहा, "क्या तुम मुझसे बात नहीं करोगे? क्या तुम नहीं जानते कि मुझे अधिकार है कि तुम्हें मुक्त कर दूँ और मुझे तुम्हें क्रूस पर चढ़ाने का भी अधिकार है?"
\v 11 यीशु ने उत्तर दिया, "यदि परमेश्वर ने नहीं दिया होता तो तेरा मुझ पर कोई अधिकार नहीं होता। इसलिये जिसने मुझे तेरे अधीन किया है, वह अधिक बुरे पाप का दोषी है।"
\p
\s5
\v 12 उस क्षण से लेकर, पिलातुस यीशु को मुक्त करने का प्रयास करता रहा। परन्तु यहूदी अगुओं ने चिल्लाकर कहा, "यदि तू इस व्यक्ति को मुक्त कर देता है, तो तू कैसर का मित्र नहीं है! जो कोई स्वयं को राजा बनाता है, वह कैसर का विरोध करता है।"
\v 13 जब पिलातुस ने यह सुना, तो यीशु को बाहर ले गया। तब पिलातुस न्‍यायासन पर बैठा, उस स्थान पर जहाँ वह आम तौर पर निर्णय सुनाता है । इसे "चबूतरा" कहा जाता है और जो इब्रानी में ‘गब्बता' कहलाता था ।
\s5
\v 14 अब यह फसह के पर्व से एक दिन पहले था, तैयारियों का दिन था। यह लगभग दोपहर का समय था जब पिलातुस ने यहूदियों से कहा, "देखो, यह तुम्हारा राजा है।"
\v 15 उन्होंने चिल्लाकर कहा, "उसे दूर ले जाओ! उसे दूर ले जाओ! उसे क्रूस पर चढ़ाओ!" पिलातुस ने उन से कहा, क्या मैं तुम्हारे राजा को क्रूस पर चढ़ा दूँ? प्रधान याजकों ने उत्तर दिया, "हमारे पास कैसर के अलावा कोई राजा नहीं है!"
\v 16 इसलिए पिलातुस ने यीशु को उनके हाथों में दे दिया, और वे उन्हें ले गए।
\p
\s5
\v 17 वह बाहर गए और अपना क्रूस स्वयं उठाये हुए उस स्थान पर जिसे "खोपड़ी का स्थान" कहा जाता है, जिसे इब्रानी में ‘गुलगुता’ कहा जाता है, जा रहे थे।
\v 18 वहां उन्होंने उनको क्रूस पर चढ़ाया, और साथ ही उन्होंने दो अन्य अपराधियों को भी क्रूस पर चढ़ाया। एक को एक ओर और दुसरे को दूसरी ओर और यीशु को बीच में चढ़ाया।
\p
\s5
\v 19 पिलातुस ने किसी को एक दोष-पत्र लिखने और यीशु के क्रूस पर बांधने के लिए कहा। उस पर लिखा था, 'नासरत का यीशु, यहूदियों का राजा।'
\v 20 कई यहूदियों ने उस दोष-पत्र को पढ़ा, क्योंकि जिस स्थान पर यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया था वह शहर के पास था, और दोष-पत्र तीन भाषाओं में लिखा गया था: इब्रानी,लतीनी और यूनानी।
\s5
\v 21 प्रधान याजकों ने पिलातुस के पास वापस आकर कहा, "तुझे यहूदियों का राजा नहीं लिखना चाहिए था, इसकी अपेक्षा लिखना था, इस व्यक्ति ने कहा कि मैं यहूदियों का राजा हूँ।'
\v 22 पिलातुस ने उत्तर दिया, "जैसा मैंने लिखा है, तुम्हें उसे वैसे ही छोड़ देना चाहिए।"
\s5
\v 23 यीशु को क्रूस पर चढ़ाने के बाद सैनिकों ने उनके कपड़े ले लिए और उसे चार भागों में बांट दिया, प्रत्येक सैनिक के लिए एक भाग। परन्तु, उन्होंने उसके कुरते को अलग रखा यह कुरता कपड़े के एक टुकड़े से ऊपर से नीचे तक बुना गया था।
\v 24 उन्होंने एक दूसरे से कहा, "चलो इसको न फाड़े, इसकी अपेक्षा, हम चिट्ठी डाल कर यह निश्चित करें कि इसे कौन लेगा।" इससे धर्मशास्त्र में लिखा वचन पूरा हुआ, "उन्होंने आपस में मेरे कपड़ों को बांट लिया, उन्होंने मेरे कपड़ो पर चिट्ठी डाली।"
\p
\s5
\v 25 सैनिकों ने यह सब किया। यीशु की मां, उनकी मौसी, क्लोपास की पत्नी मरियम और मरियम मगदलीनी उनके क्रूस के समीप खड़ी थीं।
\v 26 जब यीशु ने अपनी माता को वहाँ खड़े देखा और जिस शिष्य को वे विशेष रूप से प्रेम करते थे, यूहन्ना पास में खड़ा था, उन्होंने अपनी मां से कहा, "मां, यह वह है जो एक पुत्र के समान है।"
\v 27 और उन्होंने शिष्य से कहा, "यह तेरी माँ है।" तो उसी क्षण से, वह शिष्य उसे अपने घर में रहने के लिए साथ ले गया।
\p
\s5
\v 28 थोड़ी देर बाद, यीशु जानते थे कि परमेश्वर ने उन्हें जो करने के लिए भेजा था, वह अब पूरा हो गया है, और एक अंतिम बात को पूरा करने के लिए जो धर्मशास्त्र में पहले से लिखा गया है, उन्होंने कहा, "मैं प्यासा हूँ।"
\v 29 वहां एक खट्टे दाखरस का पात्र रखा हुआ था, इसलिए उन्होंने जुफे के पौधे से एक छोटी शाखा ली और उसमें पनसोख्‍ता लगाया, और उन्होंने उसको खट्टी दाखरस में डूबोया और यीशु के मुंह पर लगाया।
\v 30 खट्टी दाखरस पीने के बाद, यीशु ने कहा, "सब पूरा हुआ" और उन्होंने अपना सिर झुकाया और अपने प्राण त्याग दिए।
\p
\s5
\v 31 यह फसह की तैयारी का दिन था (और अगला दिन एक बहुत ही विशेष सब्त का दिन था)। यह व्यवस्था के विरुद्ध था कि मृत शरीर सब्त के दिन क्रूस पर लटका रहे, इसलिए वे पिलातुस के पास गए और उनसे तीनो पुरुषों के पैरों को तोड़ने के लिए कहा ताकि वे शीघ्र मर जाएँ और उनके मृत शरीरों को हटा दिया जाए।
\v 32 इसलिए सैनिकों ने आकर पहले व्यक्ति के पैरों को तोड़ दिया और फिर दुसरे व्यक्ति के भी, वे दोनों पुरुष जिन्हें यीशु के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया था ।
\v 33 जब वे यीशु के पास आए, तो उन्होंने देखा कि वह पहले से ही मर चुके हैं। इसलिए उन्होंने उनके पैरों को नहीं तोड़ा।
\s5
\v 34 इसके अतिरिक्त, सैनिकों में से एक ने भाले से यीशु के बगल में छेद दिया और तुरंत उसके शरीर से रक्त और जल गिरा।
\v 35 जिसने यह देखा वह गवाह है - उसकी गवाही सही है, और वह जानता है कि वह सच कह रहा है- ताकि तुम यीशु पर विश्वास रख सको।
\s5
\v 36 जो धर्मशास्त्र में लिखा, उसे पूरा करने के लिए ऐसा हुआ: "कोई भी उनकी हड्डियों को नहीं तोड़ेगा।"
\p
\v 37 और उन्होंने धर्मशास्त्र के एक और वचन को पूरा किया, जो कहता हैं: 'वे उन्हें देखेंगे जिनको उन्होंने छेदा था।'
\p
\s5
\v 38 इन बातों के बाद, अरिमतियाह के यूसुफ, यीशु का शिष्य था परन्तु एक गुप्त शिष्य था क्योंकि वह यहूदियों से डरता था; वह पिलातुस के पास गया और उससे पूछा कि क्या वह यीशु के शरीर को ले जा सकता है? पिलातुस ने यूसुफ को अनुमति दी, इसलिए वह आया और यीशु के शरीर को ले गया।
\v 39 नीकुदेमुस, जो एक बार रात में यीशु के पास आया था, वह भी आया और अपने साथ गन्‍धरस और अगरु के मसालों का एक मिश्रण लाया ताकि दफनाने के लिए शरीर तैयार किया जा सके, मसाले 33 किलोग्राम वजन के थे।
\s5
\v 40 उन्होंने यीशु के शरीर को लिया और कपड़ों की पट्टीयों के टुकड़ों में लपेटा, और उन्होंने सब मसालों से भर कर उसे लपेट कर बांध दिया ।
\v 41 जहाँ यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया था, वहां एक बगीचा था, और बगीचे के किनारे पर एक नई कब्र थी जिसमें किसी को दफनाया नहीं गया था।
\v 42 फसह उस शाम को आरम्भ होने वाला था, और उन्होंने उस कब्र को चुना क्योंकि वह निकट थी और वे यीशु को शीघ्र दफना सकते थे इसलिए उन्होंने यीशु के शरीर को वहां रख दिया।
\s5
\c 20
\p
\v 1 अब सप्ताह के पहले दिन, मरियम मगदलीनी भोर के समय कब्र पर गई, उस समय अंधेरा ही था। उसने देखा कि किसी ने पत्थर को कब्र से हटा दिया है
\v 2 इसलिए वह दौड़कर यरूशलेम गई, जहाँ शमौन पतरस और दूसरा शिष्य, जिसे यीशु विशेष रूप से प्रेम करते थे, रह रहे थे और उनसे कहा, "उन्होंने प्रभु को कब्र से ले लिया है, और हम नहीं जानते कि उन्होंने उनको कहाँ रखा है।"
\s5
\v 3 जब उन्होंने यह सुना, तो पतरस और दूसरा शिष्य कब्र पर गए।
\v 4 वे दोनों दौड़ रहे थे, परन्तु दूसरा शिष्य पतरस की तुलना में तेज़ था और कब्र पर पहले पहुँच गया।
\v 5 वह नीचे झुका और कब्र में देखा; उसने देखा कि वहाँ कपड़े की पट्टियाँ थीं, परन्तु वह अंदर जाने से झिझक रहा था
\s5
\v 6 फिर शमौन पतरस जो उसके पीछे दौड़ रहा था, वहाँ पहुँचा, और कब्र के भीतर गया। उसने भी, वहाँ कपड़े की पट्टियाँ पड़ी देखीं।
\v 7 उसने उस कपडे को भी देखा जो यीशु के सिर पर था, वह कपड़े की पट्टियों से अलग एक तरफ तह लगा कर रखा हुआ था।
\s5
\v 8 फिर दूसरा शिष्य भी भीतर गया; उसने इन चीजों को देखा और विश्वास किया कि यीशु मरे हुओं में से जी उठे हैं।
\v 9 वे अभी भी धर्मशास्त्र को समझ नहीं पाए थे; जो बताता है कि यीशु को मरे हुओं में से जी उठना होगा।
\p
\v 10 तो शिष्य अपने घर वापस लौट गए।
\s5
\v 11 मरियम कब्र के बाहर खड़ी रो रही थी। जैसे ही उसने रोते हुए झुक कर कब्र में देखा;
\v 12 वहाँ दो स्वर्गदूतों को सफेद वस्त्र पहने हुए उसी जगह पर बैठे देखा जहाँ यीशु का शरीर था, एक को सिरहाने और दूसरे को पैताने बैठा देखा था।
\v 13 उन्होंने उससे कहा, "हे स्त्री, तू क्यों रो रही है?" उसने उनसे कहा, "वे मेरे प्रभु को ले गए है, और मुझे नहीं पता कि उनको कहाँ रखा है।"
\s5
\v 14 उसके यह कहने के बाद, वह पीछे मुड़ी और देखा कि यीशु वहाँ खड़े थे, परन्तु वह नहीं पहचान पाई कि वे ही थे।
\v 15 उन्होंने उससे कहा, "हे स्त्री, तू क्यों रो रही है? तू किसको ढूँढ़ रही है?" उसने सोचा कि वह माली है, और उसने उनसे कहा, "महोदय, अगर तुम उन्हें ले गये हो, तो मुझे बताओ कि तुमने उन्हें कहाँ रखा है, और मैं उन्हें ले जाऊँगीं।"
\s5
\v 16 यीशु ने उससे कहा, "मरियम।" उसने मुड़कर उनसे इब्रानी में कहा, "रब्बी!" (जिसका अर्थ है "शिक्षक")।
\v 17 "यीशु ने उससे कहा," मुझे मत छूओ, क्योंकि मैं अभी तक अपने पिता के साथ स्वर्ग में नहीं गया हूँ। मेरे शिष्यों के पास जा और उन्हें बता, 'मैं अपने पिता के साथ रहने के लिए स्वर्ग में लौट रहा हूँ जो तेरा पिता, जो मेरा परमेश्वर और तेरा परमेश्वर है।'
\v 18 मरियम मगदलीनी शिष्यों के पास गई और घोषणा की, "मैंने प्रभु को देखा है" और उसने उन्हें बताया कि यीशु ने उससे क्या कहा था।
\p
\s5
\v 19 उस दिन की शाम को, सप्ताह के पहले दिन, द्वार बंद थे, और शिष्य भीतर थे क्योंकि उन्हें डर था कि यहूदी अधिकारी उन्हें पकड़ लेंगे। अकस्मात यीशु आए और उनके समूह के बीच में खड़े हो गए; उन्होंने उनसे कहा, "परमेश्वर तुम्हें शान्ति दे।"
\v 20 यह कहने के बाद, उन्होंने उन्हें अपना हाथ और अपना पंजर दिखाया। प्रभु को देखकर शिष्यों को बहुत प्रसन्नता हुई।
\s5
\v 21 फिर यीशु ने उनसे कहा, "परमेश्वर तुम्हें शान्ति दे, जैसे पिता ने मुझे भेजा है, अब मैं तुम्हें भेज रहा हूँ।"
\v 22 यह कहने के बाद, उन्होंने उन पर फूँका और कहा, "पवित्र आत्मा प्राप्त करों ।
\v 23 यदि तुम किसी के पापों को क्षमा करते हो, तो परमेश्वर उन्हें क्षमा कर देंगे । यदि तुम किसी के पापों को क्षमा नहीं करते हो, तो वह उनके विरुद्ध रखा जाएगा।"
\p
\s5
\v 24 थोमा, जो बारहों में से एक था, जिसे "दिदुमुस" कहा जाता था, वह शिष्यों के साथ नहीं था, जब यीशु उनके पास आए थे।
\v 25 दूसरे शिष्यों ने उससे कहा, "हमने प्रभु को देखा है।" परन्तु, उसने उनसे कहा, "जब तक कि मैं उनके हाथों में कीलों के छेद नहीं देख लूँ और उन छेदों में जो कीलों से बने है, उनमें अपनी उंगलियों को डालकर नहीं परख लूँ, और जब तक मैं अपने हाथ को उनके पंजर के घावों में नहीं डालता, मैं उन पर कभी भरोसा नहीं करूँगा।"
\p
\s5
\v 26 आठ दिन बाद, उनके शिष्य फिर घर के अंदर थे, और इस बार थोमा उनके साथ था। यद्यपि द्वार बंद थे, यीशु आ गए और उन के बीच खड़े हो गए और उन्होंने उनसे कहा, "परमेश्वर तुम्हें शान्ति दे।"
\v 27 तब उन्होंने थोमा से कहा, "अपनी उंगली को यहाँ रखो और मेरे हाथों को देखो और अपने हाथ को मेरी पसली में रखो। सन्देह करना बंद करो कि यह मैं ही हूँ, मुझ पर भरोसा रखो।"
\s5
\v 28 थोमा ने उन्हें उत्तर दिया, "मेरे प्रभु और मेरे परमेश्वर।"
\v 29 यीशु ने उस से कहा, "अब तू इस पर विश्वास करता है कि मैं जी उठा हूँ क्योंकि तूने मुझे देखा है। फिर भी परमेश्वर उन लोगों को बहुत आनंद देते हैं जिन्होंने मुझे नहीं देखा और फिर भी विश्वास करते हैं।"
\p
\s5
\v 30 यीशु ने कई अन्य सामर्थ्य के काम और चमत्कार किये जिससे सिद्ध हुआ, कि वे कौन हैं। शिष्यों ने उन्हें देखा था, परन्तु वे इतने सारे थे कि मैंने इस पुस्तक में उन सब को नहीं लिखा।
\v 31 फिर भी, मैंने ये लिखा है कि तुम को इस बात पर साहस रहे कि यीशु मसीह, परमेश्वर के पुत्र हैं, और उन पर भरोसा रखने से तुम अनन्त जीवन प्राप्त कर सकते हो।
\s5
\c 21
\p
\v 1 इसके बाद, यीशु अपने शिष्यों को तिबिरियास झील पर दिखाई दिए (जिसे गलील सागर के नाम से भी जाना जाता है)। उन्होंने स्वयं को इस प्रकार से परिचित करवाया:
\v 2 शमौन पतरस, थोमा (दिदुमुस), गलील में काना के नतनएल, जब्दी के पुत्र (याकूब और यूहन्ना) और दो अन्य शिष्य एक साथ थे।
\v 3 शमौन पतरस ने उन से कहा, "मैं मछली पकड़ने जा रहा हूँ।" उन्होंने कहा, "हम तेरे साथ जाएँगे।" वे बाहर निकले और नाव में चढ़े, परन्तु उस रात उन्होंने कुछ नहीं पकड़ा।
\s5
\v 4 सुबह जब दिन का आरम्भ हो रहा था यीशु किनारे पर खड़े थे, परन्तु शिष्यों को नहीं पता था कि वह यीशु हैं।
\v 5 यीशु ने उनसे कहा, "मेरे मित्रों, क्या तुम्हारे पास कोई मछली है?" उन्होंने कहा, "नहीं"
\v 6 उन्होंने उनसे कहा, "नाव के दाहिनी ओर अपना जाल फेंको तो तुम्हें कुछ मिलेगी।" उन्होंने वैसा ही किया और उन्होंने जाल में इतनी सारी मछलियों को पकड़ा कि वे जाल को नाव में खींच नहीं पा रहे थे।
\s5
\v 7 यूहन्ना, जिस शिष्य को यीशु विशेष रूप से प्रेम करते थे, उसने पतरस से कहा, "यह प्रभु हैं!" जब शमौन पतरस ने उसे यह कहते सुना, तो उसने अपनी कमर पर अपना बाहरी वस्त्र कस लिया (उसने काम करते समय लगभग कुछ भी नहीं पहना था), और जल में कूद गया।
\v 8 दूसरे शिष्य मछलियों से भरे जाल को पीछे खींचते हुए नाव में किनारे पर आ गए। वे किनारे से दूर नहीं थे, केवल नब्बे मीटर दूर।
\v 9 जब वे किनारे पर पहुँच गए, तो उन्होंने कोयले की आग को देखा जो तैयार और गर्म थी, उस पर मछली पक रही थी और कुछ रोटी थी
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\v 10 यीशु ने उनसे कहा, "कुछ मछलियों को लाओ जो तुमने अभी पकड़ी है।"
\v 11 शमौन पतरस नाव में वापस आ गया और जाल को किनारे पर खींच लाया, जिसमें 153 बड़ी मछलियाँ थी। फिर भी, जाल टुटा नहीं था।
\s5
\v 12 यीशु ने उनसे कहा, "आओ और नाश्ता करो।" किसी भी शिष्य ने उनसे पूछने का साहस नहीं किया, "आप कौन हो?" वे जानते थे कि वह प्रभु हैं।
\v 13 यीशु आए और रोटी लेकर उन्हें दी। उन्होंने मछली के साथ भी यही किया।
\v 14 यह तीसरी बार था जब यीशु अपने शिष्यों को दिखाई दिए जब परमेश्वर ने उन्हें मरे हुओं में से जीवित किया था।
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\s5
\v 15 जब उन्होंने नाश्ता कर लिया, तो यीशु ने शमौन पतरस से कहा, "यूहन्ना के पुत्र शमौन, क्या तू मुझे से बाकि सब से ज्यादा प्रेम करता है? पतरस ने उन से कहा, "हे प्रभु, आप जानते हैं कि मैं आपसे प्रेम करता हूँ।" यीशु ने कहा, "मेरे मेम्नों को चरा।"
\v 16 यीशु ने उसे दूसरी बार कहा, "यूहन्ना के पुत्र शमौन, क्या तू मुझे से प्रेम करता है?" उसने उत्तर दिया, "हाँ प्रभु, आप जानते हैं कि मैं आपसे प्रेम करता हूँ।" यीशु ने उस से कहा, "मेरी भेड़ों का चरवाहा बन।"
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\v 17 यीशु ने उसे तीसरी बार कहा, "यूहन्ना के पुत्र शमौन, क्या तू मुझ से प्रेम करता है?" पतरस दुखी हुआ क्योंकि यीशु ने उससे तीन बार पूछा, "क्या तू मुझ से प्रेम करता है?" पतरस ने कहा, "हे प्रभु, आप सब जानते हो। आपको पता है कि मैं आपसे प्रेम करता हूँ।" यीशु ने कहा, "मेरी भेड़ों को चरा।"
\v 18 मैं तुझको सच्चाई बता रहा हूँ: जब तू जवान था, तब तू स्वयं कपड़े पहनता था और तू जहाँ भी जाना चाहता था, वहाँ जाता था परन्तु, जब तू बूढ़ा होगा, तब तू अपने हाथों को आगे बढ़ाएगा, और कोई तुझको कपड़े पहनाएगा और तुझको वहाँ ले जाएगा जहाँ तू नहीं जाना चाहता।"
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\v 19 यीशु ने यह इसलिए कहा कि पतरस परमेश्वर की महिमा के निमित्त कैसे मरेगा; तब यीशु ने उससे कहा, "मेरे पीछे हो ले।"
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\s5
\v 20 पतरस ने पीछे मुड़कर यूहन्ना को उनके पीछे आते देखा; वह शिष्य जिसे यीशु विशेष कर के प्रेम करते थे। वह वही था जिसने मेज के पास यीशु की छाती पर झुककर कहा, "हे प्रभु, कौन आपको शत्रुओं के हाथ सौंप देगा?"
\v 21 जब पतरस ने उसे देखा, तब उसने यीशु से कहा, हे प्रभु, इस व्यक्ति का क्या होगा?
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\v 22 यीशु ने उस से कहा, "यदि मैं चाहता हूँ कि वह जीवित रहे जब तक मैं वापस नहीं लौटता, वह तेरी परेशानी नहीं है, तू मेरे पीछे आ।"
\v 23 तो यह खबर भाइयों और बहनों के बीच फैल गई कि यह शिष्य नहीं मरने वाला, परन्तु यीशु ने यह नहीं कहा कि वह मरेगा नहीं; उन्होंने केवल यह कहा, "यदि मैं चाहता हूँ के वह मेरे वापस लौटने तक न मरे, वह तेरी परेशानी नहीं है।"
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\v 24 मैं, यूहन्ना, वही शिष्य हूँ जो इन सब बातों के बारे में गवाही देता है और मैंने उन्हें लिखा है। हम जानते हैं कि उसकी गवाही सच है।
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\v 25 यीशु ने अन्य कई काम किए, इतने सारे कि यदि वे सब लिखे जाते, तो मुझे लगता है कि जो पुस्तकें लिखी जातीं वह संसार भर में भी नहीं समा पाती।