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\id LUK Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h लूका
\toc1 लूका
\toc2 लूका
\toc3 luk
\mt1 लूका
\s5
\c 1
\p
\v 1 प्रिय थियुफिलुस,
\p बहुत से लोगों ने उन अद्भुत घटनाओं के बारे में जो हमारे बीच हुईं हैं, लिखा है।
\v 2 हमने इन घटनाओं के बारे में उन लोगों से सुना है जिन्होंने उन्हें आरंभ से देखा था। इन्ही लोगों ने दूसरों को परमेश्वर के संदेश की शिक्षा दी थी।
\v 3 इन लोगों ने जो लिखा और सिखाया है, उन सब का मैंने स्वयं ध्यान से अध्ययन किया है। इसलिए, प्रिय थियुफिलुस मैंने यह निर्णय लिया है कि इन सबका सही विवरण तेरे लिए लिखूं तो अच्छा होगा।
\v 4 मैं यह इसलिए लिख रहा हूँ कि तू जान ले कि जो तुझे सिखाया गया है वह सच है।
\p
\s5
\v 5 जब राजा हेरोदेस यहूदिया प्रान्त पर राज्य करता था, तब वहाँ जकर्याह नामक एक यहूदी याजक था। वह अबिय्याह नामक याजकों के समूह से सम्बन्धित था। वह और उसकी पत्नी एलीशिबा दोनों हारून के कुल से थे।
\v 6 परमेश्वर उन दोनों को मानते थे, कि वे धर्मी हैं, क्योंकि वे परमेश्वर की सारी आज्ञाओं का पालन करने में नहीं चूकते थे,
\v 7 परन्तु उनकी कोई सन्तान नहीं थी, क्योंकि एलीशिबा सन्तान को जन्म देने में असमर्थ थी। इसके अतिरिक्त, वह और उसका पति बहुत बूढ़े थे।
\p
\s5
\v 8 एक दिन जकर्याह अपने समूह के नियत समय यरूशलेम के मन्दिर में एक याजक के तौर पर सेवा कर रहा था।
\v 9 उनकी रीति के अनुसार, याजकों ने परमेश्वर के मन्दिर में जाकर धूप जलाने के लिए चिट्ठी डाली तो जकर्याह का नाम निकला।
\v 10 जब धूप जलाने का समय आया, तो बहुत से लोग मन्दिर के बाहर आँगन में प्रार्थना कर रहे थे।
\s5
\v 11 तब परमेश्वर की ओर से भेजा गया एक स्वर्गदूत, उसके सामने प्रकट हुआ। स्वर्गदूत धूप की वेदी के दाहिनी ओर खड़ा था।
\v 12 जब जकर्याह ने स्वर्गदूत को देखा, तो वह चौंक गया और बहुत डर गया।
\v 13 परन्तु स्वर्गदूत ने उस से कहा, “हे जकर्याह, मत डर। जब तू प्रार्थना कर रहा था, तो प्रभु ने तेरी विनती सुनी, इसलिए तेरी पत्नी एलीशिबा तेरे लिए एक पुत्र को जन्म देगी। तू उसका नाम यूहन्ना रखना।
\s5
\v 14 तुझे बहुत आनन्द होगा, और उसके जन्म लेने से अनेक लोग भी आनन्दित होंगे।
\v 15 वह परमेश्वर के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होगा। वह दाखरस या कोई अन्य मदिरा कभी न पीये। वह जन्म से पहले ही पवित्र आत्मा की शक्ति से भरा हुआ होगा।
\s5
\v 16 वह इस्राएल के वंशजों को पाप करने से रोकेगा और अपने परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना आरंभ करने के लिए प्रेरित करेगा।
\v 17 तेरा पुत्र प्रभु के आगे आगे उनके दूत के रूप में चलेगा और वह अपनी आत्मा में भविष्यद्वक्ता एलिय्याह के समान शक्तिशाली होगा। वह माता-पिता को फिर से अपने बच्चों से प्रेम करने की प्रेरणा देगा। ऐसे अनेक लोगों को जो परमेश्वर की आज्ञा का पालन नहीं करते हैं उन्हें वह बुद्धिमानी से जीने के लिए और धर्मी लोगों के समान परमेश्वर की आज्ञा मानने के लिए उभारेगा। वह ऐसा इसलिए करेगा कि प्रभु के आने पर बहुत से लोग तैयार रहें।”
\p
\s5
\v 18 तब जकर्याह ने स्वर्गदूत से कहा, “मैं बहुत बूढ़ा हूँ, मेरी पत्नी भी बहुत बूढ़ी है। तो मैं कैसे विश्वास करूँ कि तूने जो कहा है वह वास्तव में होगा?”
\p
\v 19 तब स्वर्गदूत ने उस से कहा, “मैं गब्रिएल हूँ! मैं परमेश्वर की उपस्थिति में खड़ा रहता हूँ! तुझे यह शुभ समाचार सुनाने के लिए कि तेरे साथ क्या होगा मुझे भेजा गया है।
\v 20 मैंने जो तुझ से कहा है वह परमेश्वर के उचित समय पर पूरा होकर ही रहेगा, परन्तु तूने मेरे वचनों पर विश्वास नहीं किया। इसलिए तेरे पुत्र के जन्म के दिन तक परमेश्वर तुझे बोलने की क्षमता से रहित रखेगा!”
\s5
\v 21 इधर जकर्याह और स्वर्गदूत मन्दिर में बात कर रहे थे, और उधर आँगन में लोग जकर्याह के बाहर आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। वे आश्चर्य कर रहे थे कि वह मन्दिर में इतनी देर तक क्यों रुका हुआ है।
\v 22 जब वह बाहर आया, तो वह उनसे बात नहीं कर पा रहा था। क्योंकि वह बोल नहीं पा रहा था इसलिए उसने अपने हाथों के संकेत से उसके साथ हुई घटना को समझाने का प्रयास किया। वे समझ गए कि जब वह मन्दिर में था, तब उसने परमेश्वर की ओर से एक दर्शन देखा है।
\p
\v 23 मन्दिर में याजक की सेवा करने का समय समाप्त हो जाने पर वह यरूशलेम छोड़कर अपने घर चला गया।
\p
\s5
\v 24 इस घटना के कुछ समय बाद उसकी पत्नी एलीशिबा गर्भवती हुई, परन्तु वह पाँच महीनों तक सबके सामने बाहर नहीं गई।
\v 25 उसने अपने आप से कहा, “परमेश्वर ने मुझे गर्भवती होने में समर्थ किया है। इस प्रकार उन्होंने मुझ पर दया की है और लोगों में मेरा तिरस्कार होने का कारण हटा दिया है!”
\p
\s5
\v 26 जब एलीशिबा लगभग छह महीने की गर्भवती थी, तो परमेश्वर ने गब्रिएल को गलील जिले के नासरत नगर में भेजा।
\v 27 वह वहाँ एक कुँवारी से बात करने के लिए गया था जिसकी मंगनी यूसुफ नाम के एक पुरुष से हुई थी, जो राजा दाऊद का वंशज था। उस कुँवारी का नाम मरियम था।
\v 28 तब स्वर्गदूत ने उससे कहा, “नमस्कार! प्रभु तेरे साथ है और उन्होंने तेरे प्रति महान कृपा दिखाई है!”
\v 29 परन्तु मरियम ऐसा अभिवादन सुनकर बहुत परेशान हो गई। वह आश्चर्य करने लगी कि स्वर्गदूत द्वारा कहे गए इन वचनों का क्या अर्थ है।
\s5
\v 30 तब स्वर्गदूत ने उससे कहा, “मरियम, मत डर, क्योंकि तूने परमेश्वर का अनुग्रह प्राप्त किया है!
\v 31 तू गर्भवती होगी और एक पुत्र को जन्म देगी, और तू उसका नाम यीशु रखना।
\v 32 वह महान होंगे और उन्हें परमप्रधान परमेश्वर का पुत्र कहा जाएगा। प्रभु परमेश्वर उन्हें उनके पूर्वज दाऊद के समान अपने लोगों के ऊपर राजा बनाएँगे।
\v 33 वह याकूब के वंशजों पर सदा के लिए शासन करेंगे। उनके शासन का अन्त नहीं होगा!”
\p
\s5
\v 34 तब मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, “यह कैसे हो सकता है, क्योंकि मैं कुँवारी हूँ?”
\v 35 स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, “पवित्र आत्मा तुझ पर आएगा और परमेश्वर की शक्ति तुझ पर छा जाएगी, इसलिए जिस बालक को तू जन्म देगी वह पवित्र होगा, और वह परमेश्वर के पुत्र कहलाएँगे।
\s5
\v 36 और सुन, तेरी संबन्धि एलीशिबा बूढ़ी होने पर भी गर्भवती है। और पुत्र को जन्म देगी यद्यपि लोगों ने सोचा था कि वह सन्तान को जन्म दे नहीं सकती, अब वह इस समय लगभग छह महीने की गर्भवती है।
\v 37 क्योंकि परमेश्वर कुछ भी कर सकते हैं!”
\v 38 फिर मरियम ने कहा, “ठीक है, मैं प्रभु की दासी हूँ, इसलिए जो कुछ तूने मेरे बारे में कहा है, वैसा ही हो जाए!” तब स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।
\p
\s5
\v 39 इसके तुरन्त बाद, मरियम तैयार हुई और यहूदिया के पहाड़ी क्षेत्र के शहर में जहाँ जकर्याह रहता था गई।
\v 40 उसने उसके घर में प्रवेश किया और उसकी पत्नी एलीशिबा को नमस्कार किया।
\v 41 जैसे ही एलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना, वैसे ही एलीशिबा के गर्भ में बच्चा उछला। तुरन्त ही पवित्र आत्मा ने एलीशिबा को परमेश्वर की स्तुति करने की प्रेरणा दी।
\s5
\v 42 उसने ऊँचे स्वर में मरियम से कहा, “परमेश्वर ने तुझे अन्य स्त्रियों की तुलना में अधिक आशीष दी है, और जिस बच्चे को तू जन्म देगी उसे भी आशीष दी है!
\v 43 यह कितना अद्भुत है कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आई है!
\v 44 जैसे ही मैंने तेरा अभिवादन सुना वैसे ही बच्चा मेरे गर्भ में उछला क्योंकि वह बहुत खुश हुआ कि तू आई है!
\v 45 तू धन्य है क्योंकि तूने विश्वास किया कि परमेश्वर ने जो कहा वह सच हो जाएगा।”
\p
\s5
\v 46 तब मरियम ने यह कहते हुए परमेश्वर की स्तुति की:
\q “आहा, मैं कैसे परमेश्वर की स्तुति करती हूँ!
\q
\v 47 मैं परमेश्वर के बारे में बहुत आनन्दित हूँ,
\q वह मेरा उद्धार करने वाला है
\q
\s5
\v 48 मैं केवल उसकी दीन दासी थी, परन्तु वह मुझे नहीं भूला ।
\q इसलिए अब से, हर युग में रहने वाले लोग कहेंगे कि परमेश्वर ने मुझे आशीर्वाद दिया है।
\q
\v 49 वे उन महान कामों के कारण जो सामर्थी परमेश्वर ने मेरे लिए किया है, ऐसा कहेंगे। उनका नाम पवित्र है!
\q
\s5
\v 50 जो लोग उनका सम्मान करते हैं उन लोगों के प्रति वह पीढ़ी से पीढ़ी तक दया के काम करते है।
\q
\v 51 वह लोगों को दिखाते हैं कि वह बहुत शक्तिशाली हैं।
\q वह उन लोगों को तितर-बितर करते है, जो अपने मन के भीतर घमण्ड रखते हैं।
\q
\s5
\v 52 उन्होंने राजाओं को शासन करने से रोक दिया है,
\q और उन्होंने पीड़ित लोगों को सम्मानित किया है।
\q
\v 53 उन्होंने भूखों को खाने के लिए अच्छी वस्तुएँ दी हैं,
\q और उन्होंने अमीरों को खाली हाथ वापस भेज दिया है।
\q
\s5
\v 54 उन्होंने इस्राएलियों की जो उनकी सेवा करते हैं सहायता की है।
\q पूर्व काल में उन्होंने हमारे पूर्वजों से प्रतिज्ञा की कि वह उनके प्रति दयालु रहेंगे।
\q
\v 55 उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की है और अब्राहम और उसके वंशजों को सदैव दया दिखाई है।”
\p
\s5
\v 56 मरियम एलीशिबा के साथ लगभग तीन महीने तक रही। फिर वह अपने घर लौट गई।
\p
\v 57 जब बच्चे को जन्म देने का समय आया, तब एलीशिबा ने एक पुत्र को जन्म दिया।
\v 58 उसके पड़ोसियों और संबन्धियों ने सुना कि परमेश्वर ने उस पर कैसी दया की है तो उन्होंने एलीशिबा के साथ आनन्द मनाया।
\s5
\v 59 इसके बाद, आठवें दिन लोग बालक का खतना करने के समारोह में एकत्र हुए। क्योंकि उसके पिता का नाम जकर्याह था, इसलिए वे बच्चे को भी वही नाम देना चाहते थे।
\v 60 परन्तु उसकी माता ने कहा, “नहीं, उसका नाम यूहन्ना होना चाहिए!”
\v 61 उन्होंने उससे कहा, “परन्तु यूहन्ना नाम तो तेरे संबन्धियों में से किसी का भी नहीं है!”
\s5
\v 62 तब उन्होंने उसके पिता को हाथों से इशारा करके पूछा कि वह अपने पुत्र को क्या नाम देना चाहता है।
\v 63 तब उसने संकेत से समझाया कि उसे लिखने के लिए एक पट्टी दी जाए । जब उन्होंने उसे एक पट्टी दी, तो उसने उस पर लिखा, “उसका नाम यूहन्ना है।” वहाँ उपस्थित सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए!
\s5
\v 64 तुरन्त जकर्याह फिर से बोलने लगा, और वह परमेश्वर की स्तुति करने लगा।
\v 65 जो लोग आस-पास रहते थे वे परमेश्वर के काम को देखकर बहुत अचम्भित थे। उन्होंने अनेक लोगों को घटी हुई बातें सुनाई और यह समाचार यहूदिया के सब पहाड़ी क्षेत्रों में फैल गया।
\v 66 जो कोई इस घटना के बारे में सुनता, वह उसके बारे में सोचता रहता था। वे कहते, “हम सोचते हैं कि यह बच्चा बड़ा होकर क्या करेगा!” जो कुछ भी हुआ था उसके कारण उन्हें यकीन था कि परमेश्वर सामर्थी रीति से उसकी सहायता करेंगे।
\s5
\v 67 पुत्र का जन्म होने के बाद, जकर्याह पवित्र आत्मा के नियन्त्रण में आया और उसने परमेश्वर की ओर से ये वचन कहे:
\q
\v 68 “प्रभु परमेश्वर की स्तुति करो जिसकी हम इस्राएली लोग उपासना करते हैं,
\q क्योंकि वह हमें, अपने लोगों को स्वतंत्र करने के लिए आए हैं।
\q
\s5
\v 69 वह सामर्थी रीति से हमारा उद्धार करने के लिए किसी को भेज रहें हैं,
\q जो उनके दास राजा दाऊद का वंशज है।
\q
\v 70 बहुत पहले परमेश्वर ने अपने भविष्यद्वकताओं को यह कहने के लिए प्रेरित किया था कि वह ऐसा करेंगे।
\q
\v 71 यह सामर्थी उद्धारकर्ता हमें हमारे शत्रुओं से बचाएँगे,
\q और वह हमें उन सब की शक्ति से बचाएँगे जो हमसे घृणा करते हैं।
\q
\s5
\v 72 उन्होंने यह इसलिए किया है कि वह हमारे पूर्वजों के प्रति दयालु हैं और अपनी पवित्र वाचा को स्मरण करते हैं,
\q
\v 73 यही वह शपथ है जो उन्होंने हमारे पूर्वज अब्राहम से खाई थी
\q
\v 74-75 परमेश्वर ने हमें हमारे शत्रुओं की प्रभुता से बचाने,
\q और हमें निडर होकर संपूर्ण जीवन पवित्र और धार्मिक रीति से,
\q उसकी सेवा करने के योग्य बनाने का वायदा किया।
\q
\s5
\v 76 तब जकर्याह ने अपने नन्हे पुत्र से कहा:
\q हे मेरे पुत्र, तू परमप्रधान परमेश्वर का भविष्यद्वक्ता कहलाएगा
\q तू प्रभु के आगे चलेगा
\q कि लोगों को उनके आने के लिए तैयार करे।
\q
\v 77 तू लोगों को बताएगा कि परमेश्वर उन्हें क्षमा कर सकते हैं और उन्हें उनके पापों के दण्ड से बचा सकते हैं।
\q
\s5
\v 78 परमेश्वर हमें क्षमा करेंगे क्योंकि वह हमारे प्रति दयालु और कृपालु हैं।
\q और इसके कारण, यह उद्धारकर्ता, जो उगते सूरज जैसा है,
\q हमारी सहायता करने के लिए स्वर्ग से हमारे पास आएँगे।
\q
\v 79 वह उन लोगों पर चमकेंगे जो आत्मिक अंधेरे और मौत के भय में रहते हैं।
\q वह हमारा मार्गदर्शन करेंगे ताकि हम शान्ति पूर्वक रह सकें।
\p
\s5
\v 80 समय के साथ, जकर्याह और एलीशिबा का पुत्र बड़ा हुआ और आत्मिक रूप से दृढ़ हो गया। फिर वह एक निर्जन क्षेत्र में रहने लगा और वहीं रहते हुए परमेश्वर की प्रजा, इस्राएल के लिए प्रचार करने लगा।
\s5
\c 2
\p
\v 1 उस समय कैसर औगुस्तुस ने आज्ञा दी कि, कि रोमी साम्राज्य में रहने वाले हर व्यक्ति को सरकारी अभिलेख में अपना नाम लिखवाना होगा।
\v 2 यह पहली बार उस समय हुआ था जब क्विरिनियुस सीरिया के प्रान्त का राज्यपाल था।
\v 3 इसलिए सब को अपने परिवार के गृहनगर जाकर नाम लिखवाना पड़ा।
\s5
\v 4-5 यूसुफ भी मरियम के साथ अपने गृहनगर गया, मरियम से उसकी मंगनी हो गई थी और वह गर्भवती थी। क्योंकि यूसुफ राजा दाऊद का वंशज था, वह गलील क्षेत्र के नासरत नगर से यहूदिया क्षेत्र के बैतलहम शहर में गया, जिसे दाऊद का शहर भी कहा जाता है। यूसुफ और मरियम सरकारी अभिलेख में नाम लिखवाने के लिए वहाँ गए थे।
\s5
\v 6-7 जब वे बैतलहम पहुँचे, तो वहाँ ठहरने के स्थान खाली नहीं थे। इसलिए उन्हें ऐसे स्थान पर रहना पड़ा जहाँ भेड़-बकरियाँ रात को सोते थे। जब वे वहाँ थे, तब मरियम का जन्म देने का समय आ गया और उसने अपने पहले बच्चे को, जो पुत्र था जन्म दिया। उसने उसे कपड़े के बड़े टुकड़ों में लपेटा और उसे जानवरों के खाना खाने के पात्र में रख दिया।
\p
\s5
\v 8 उस रात, कुछ चरवाहे बैतलहम के पास के खेतों में अपनी भेड़ों की देखभाल कर रहे थे।
\v 9 प्रभु के एक स्वर्गदूत ने उन्हें दर्शन दिया। प्रभु की महिमा दिखाते हुए, उनके चारों ओर एक चमकदार रोशनी चमक गई इसलिए वे बहुत डर गए।
\s5
\v 10 परन्तु स्वर्गदूत ने उन से कहा, “डरो मत! मैं तुम्हें एक अच्छा समाचार सुनाने आया हूँ, जो सब लोगों के लाभ का है और तुम्हें आनन्द से भर देगा!
\v 11 आज, दाऊद के शहर में, एक बालक जन्मा है जो तुमको तुम्हारे पापों से बचाएगा! वही मसीह प्रभु है!
\v 12 तुम उन्हें इस तरह पहचान सकोगे: बैतलहम में तुम्हें एक बालक मिलेगा जो कपड़ों के टुकड़ों में लपेटा हुआ और पशुओं के खाने के पात्र में रखा हुआ है।”
\p
\s5
\v 13 तब अकस्मात स्वर्गदूतों का एक बड़ा समूह स्वर्ग से उतरता दिखाई दिया और उस दूत के साथ मिलकर, वे सब परमेश्वर की स्तुति करते हुए कह रहे थे,
\q
\v 14 “ सर्वोच्च स्वर्ग में सब स्वर्गदूत परमेश्वर की स्तुति करें! और पृथ्वी पर जो लोग परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं उनके बीच शान्ति हो!”
\p
\s5
\v 15 जब स्वर्गदूत उनके पास से स्वर्ग लौट गए, तब चरवाहों ने एक दूसरे से कहा, “हमें इस अद्भुत बात को जिसे परमेश्वर ने हमें बताया है देखने के लिए बैतलहम जाना चाहिए!”
\v 16 इसलिए वे तुरन्त निकल पड़े और जब उस स्थान पर पहुँच गए जहाँ मरियम और यूसुफ रह रहे थे, तो उन्होंने पशुओं के खाने के पात्र में बच्चे को लेटा हुआ देखा।
\s5
\v 17 उसे देखने के बाद, जो कुछ उन्हें इस बच्चे के बारे में बताया गया था, वह सब को बताया।
\v 18 सब लोग चरवाहों की बातें सुनकर आश्चर्यचकित हुए।
\v 19 परन्तु मरियम, उन सब बातों के बारे में जो उसने सुनी, सोचती और उनका ध्यान करती रही।
\v 20 चरवाहे मैदान में लौट गए, जहाँ उनकी भेड़ें थीं। वे इस बारे में बात करते रहे कि परमेश्वर कितने महान हैं और उन सब बातों के लिए उसकी स्तुति करते रहे जो उन्होंने सुनी और देखी थीं, क्योंकि सब बातें वैसे ही थी जैसी स्वर्गदूतों ने उनसे कही थी।
\p
\s5
\v 21 आठ दिन बाद, जब बच्चे का खतना करने का दिन था तो उन्होंने उसका नाम यीशु रखा। यह वही नाम था जो स्वर्गदूत ने बच्चे के गर्भ में आने से पहले उन्हें बताया था।
\p
\s5
\v 22 जब मूसा की व्यवस्था के अनुसार, उनके शुद्ध होने के दिन पूरे हुए, तब मरियम और यूसुफ अपने पुत्र को परमेश्वर के लिए समर्पित करने हेतु यरूशलेम को गए।
\v 23 यह प्रभु की व्यवस्था में लिखा गया था, “प्रत्येक पहलौठे नर को प्रभु के लिए पवित्र करके अलग किया जाएगा।”
\v 24 प्रभु की व्यवस्था में यह भी कहा गया है कि नवजात पुत्र के माता-पिता: “पण्‍डुकों का एक जोड़ा, या कबूतर के दो बच्चे बलि चढ़ाएँ।”
\p
\s5
\v 25 उस समय यरूशलेम में शमौन नामक एक बूढ़ा पुरुष रहता था। वह वही करता था जो परमेश्वर को भाता था और परमेश्वर के नियमों का पालन करता था। वह बड़ी जिज्ञासा से परमेश्वर के मसीह के आने की प्रतीक्षा कर रहा था, जो इस्राएली लोगों को प्रोत्साहित करेंगे, और पवित्र आत्मा उसका निर्देशन कर रहे थे।
\v 26 पवित्र आत्मा ने उसे पहले से बता दिया था कि वह अपनी मृत्यु से पहले प्रभु की प्रतिज्ञा के मसीहा को देखेगा।
\s5
\v 27 जब यूसुफ और मरियम परमेश्वर की व्यवस्था में दी गई आज्ञा के अनुसार धार्मिक संस्कारों को पूरा करने के लिए अपने बालक, यीशु को मन्दिर में, ले आए तो आत्मा ने शमौन को मन्दिर के आँगन में प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया।
\v 28 तब उसने यीशु को अपनी गोद में लिया और परमेश्वर की स्तुति की,
\q
\v 29 “हे प्रभु, आपने मुझे संतुष्ट किया है और अब मैं आपकी प्रतिज्ञा के अनुसार शान्ति से मर सकता हूँ।
\q
\s5
\v 30 अपने लोगों को बचाने के लिए आपने जिन्हें भेजा है, मैंने उन्हें देख लिया है,
\q
\v 31 जिन्हें आप ने सब लोगों के बीच में से तैयार किया है।
\q
\v 32 वह प्रकाश के समान होंगे जो अन्यजातियों के सामने आपकी सच्चाई को प्रकट करेंगे, और वह इस्राएलियों को सम्मान दिलाएँगे।”
\p
\s5
\v 33 शमौन ने यीशु के बारे में जो कहा, उससे उसके पिता और माता बहुत आश्चर्यचकित थे। तब शमौन ने उन्हें आशीष दी और यीशु की माता, मरियम से कहा,
\v 34 “मेरी बातों पर ध्यान दें: परमेश्वर ने यह निर्धारित किया है कि इस बालक के कारण, बहुत से इस्राएली लोग परमेश्वर से दूर हो जाएँगे, और बहुत से लोग परमेश्वर के पास आएँगे। वह लोगों को चेतावनी देने के लिए, एक चिन्ह के समान होंगे, और बहुत से लोग उनका विरोध करेंगे।
\v 35 और परिणाम यह होगा कि, कई लोगों के विचार स्पष्ट हो जाएँगे। एक तलवार से तेरी आत्मा छिद जाएगी।”
\p
\s5
\v 36 मन्दिर के आँगन में हन्नाह नाम की एक भविष्यद्वक्तिन थी जो बहुत बूढ़ी थी। उसका पिता फनूएल आशेर के गोत्र का सदस्य था। सात वर्ष तक वह विवाहित रही और उसके बाद उसके पति की मृत्यु हो गई थी।
\v 37 उसके बाद, वह चौरासी वर्ष से एक विधवा के रूप में रह रही थी। वह सदा मन्दिर के क्षेत्र में सेवा करती थी और रात-दिन परमेश्वर की आराधना करती थी। वह अधिकतर उपवास रखती थी और प्रार्थना करती थी।
\v 38 उसी समय, हन्नाह उनके पास आई और बालक के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करना आरम्भ किया। फिर उसने कई लोगों से यीशु के बारे में बात की, जो यरूशलेम के छुटकारे के लिए परमेश्वर में आशा लगाए हुए थे।
\p
\s5
\v 39 जब यूसुफ और मरियम ने प्रभु की व्यवस्था के अनुसार जो कुछ आवश्यक था पूरा कर लिया, तब वे गलील जिले के नासरत शहर में लौट गए।
\v 40 जैसे-जैसे बालक बड़ा हुआ, वह बलवन्त और बुद्धिमान बन गया, और परमेश्वर उस से बहुत प्रसन्न थे।
\p
\s5
\v 41 हर साल यीशु के माता-पिता फसह मनाने के लिए यरूशलेम जाते थे।
\v 42 जब यीशु बारह वर्ष के हुए, तब वे पर्व के लिए यरूशलेम गए जैसा वे हमेशा करते थे।
\v 43 जब पर्व के दिन समाप्त हो गए, तब उनके माता-पिता घर लौट रहे थे, परन्तु यीशु यरूशलेम में ही रह गए। उनके माता-पिता नहीं जानते थे कि वह अभी भी वहाँ है।
\v 44 उन्होंने सोचा कि वह उनके साथ यात्रा कर रहे अन्य लोगों के साथ होंगे। पूरे दिन की यात्रा करने के बाद, उन्होंने अपने संबन्धियों और मित्रों के बीच उन्हें खोजा।
\s5
\v 45 जब उन्हें वह नहीं मिले, तब वे उन्हें खोजने के लिए यरूशलेम लौट आए।
\v 46 तीन दिन के बाद, उन्होंने उन्हें मन्दिर के आँगन में यहूदी धर्म गुरुओं के बीच में बैठा हुआ पाया। वह उन्हें सिखा रहे थे, और उनसे सवाल पूछ रहे थे।
\v 47 सब लोग जो उन्हें सुन रहे थे, वे उनकी समझ और उनके उत्तर सुनकर अचंभित थे।
\s5
\v 48 जब उनके माता-पिता ने उन्हें देखा, तो वे बहुत आश्चर्यचकित हुए। उनकी माता ने उनसे कहा, “हे मेरे पुत्र, तुमने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? तुम्हारे पिता और मैं बहुत चिंतित होकर तुम्हें खोज रहे थे!”
\v 49 उन्होंने उनसे कहा, “आप मुझे क्यों ढूँढ़ रहे थे? क्या आप नहीं जानते थे कि मुझे अपने पिता के काम में सहभागी होना आवश्यक है?”
\v 50 परन्तु वे उनकी बात का अर्थ समझ न सके।
\s5
\v 51 तब वह उनके साथ नासरत में लौट आए और सदा उनकी आज्ञा का पालन करते रहे। उनकी माता उन सब बातों के बारे में गहराई से सोचती रहती थी।
\p
\v 52 कुछ वर्षों के बीतने के साथ, यीशु बुद्धि और शरीर में विकास करते गए । परमेश्वर और लोगों से उन्हें अधिक से अधिक अनुग्रह प्राप्त होता रहा।
\s5
\c 3
\p
\v 1 जब कैसर तिबिरियुस रोमी साम्राज्य पर पन्द्रह वर्षों से शासन कर रहा था, पुन्तियुस पिलातुस यहूदिया प्रान्त का राज्यपाल था, और हेरोदेस अंतिपास गलील जिले पर शासन कर रहा था, उसका भाई फिलिप्पुस इतूरैया और त्रखोनीतिस के क्षेत्रों पर शासन कर रहा था, और लिसानियास अबिलेने के क्षेत्र पर शासन कर रहा था।
\v 2 उस समय, जब हन्ना और कैफा, यरूशलेम में महायाजक थे, तब परमेश्वर ने जकर्याह के पुत्र यूहन्ना से जंगल में बात की।
\s5
\v 3 यूहन्ना यरदन नदी के आस-पास के सभी क्षेत्रों में यात्रा करता था। वह लोगों से कहता था कि, यदि तुम परमेश्वर से अपने पापों की क्षमा चाहते हो, तो तुमको पश्चाताप करना होगा, तब मैं तुम्हें बपतिस्मा दूँगा!
\s5
\v 4 भविष्यद्वक्ता यशायाह ने इन शब्दों को एक पुस्तक में बहुत समय पूर्व लिखा था:
\q1 “जंगल में, कोई पुकारेगा:
\q1 परमेश्वर के लिय मार्ग तैयार करो,
\q1 उसके लिए सीधे रास्ते बनाओ
\q1
\s5
\v 5 हर एक घाटी भर दी जाएगी,
\q1 और हर एक पहाड़ और पहाड़ी समतल बनाया जाएगा;
\q1 टेढ़ी सड़कें सीधी की जाएँगी,
\q1 और टेढ़े मार्ग चौरस किए जाएँगे।
\q1
\v 6 तब सभी लोग देखेंगे कि परमेश्वर लोगों को किस तरह बचाते है।”
\p
\s5
\v 7 यूहन्ना ने उन लोगों की भीड़ से जो बपतिस्मा लेने के लिए उसके पास आ रहे थे, कहा “तुम लोग जहरीले साँपों की तरह बुरे हो! क्या किसी ने भी तुम्हें चेतावनी नहीं दी कि एक दिन परमेश्वर सब पाप करने वालों को दण्ड देंगे तुम यह ना सोचो कि तुम उन से बच सकते हो!
\s5
\v 8 ऐसे काम करो जिनसे प्रकट हो कि तुम वास्तव में अपने पापमय व्यवहार से दूर हो गए हो! और अपने आप से यह मत कहो, हम अब्राहम के वंशज हैं! क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि परमेश्वर इन पत्थरों से भी अब्राहम के वंशज उत्पन्न कर सकते हैं!
\s5
\v 9 कुल्हाड़ी पेड़ों की जड़ पर रखी गई है, कि हर पेड़ जो अच्छा फल नहीं लाता, काट दिया जाए और आग में फेंक दिया जाए।”
\s5
\v 10 तब भीड़ में से कुछ लोगों ने उससे पूछा, “तो फिर हमें क्या करना चाहिए?”
\v 11 उसने उत्तर दिया, “यदि तुम्हारे पास दो कुरते हैं, तो तुम उसमें से एक उसको देना जिसके पास वस्त्र नहीं है। यदि तुम्हारे पास बहुत सारा भोजन है, तो तुम उसमें से कुछ उसको देना जिसके पास भोजन नहीं है।”
\s5
\v 12 कुछ महसूल लेनेवाले भी यूहन्ना के पास बपतिस्मा लेने आए, उन्होंने उससे पूछा, “गुरु, हमें क्या करना चाहिए?”
\v 13 उसने उनसे कहा, “रोमी सरकार ने जितना महसूल लेने को कहा है उस से एक पैसा भी अधिक मत लो!”
\s5
\v 14 कुछ सैनिकों ने उससे पूछा, “और हमें क्या करना चाहिए?” उसने उनसे कहा, “लोगों को धमकी देकर तुम पैसे देने के लिए विवश मत करना, और किसी पर भी गलती करने का झूठा आरोप मत लगाओ! अपनी कमाई में सन्तुष्ट रहो”
\s5
\v 15 लोग बहुत आशा कर रहे थे कि मसीह शीघ्र आने वाले है, और उनमें से बहुत से सोच रहे थे कि यूहन्ना मसीह तो नहीं।
\v 16 परन्तु यूहन्ना ने उनको उत्तर दिया, “नहीं, मैं मसीह नहीं हूँ। मसीह मुझ से कहीं अधिक महान् हैं। वह इतने महान हैं कि मैं उनके जूतों का फीता खोलने के योग्य भी नहीं हूँ! जब मैंने तुम्हें बपतिस्मा दिया, तो मैंने केवल पानी का इस्तेमाल किया। परन्तु जब मसीह आएँगे, तो वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगे।
\s5
\v 17 उनके हाथ में उनका सूप है, जो बेकार भूसी से अच्छे अनाज को अलग करने के लिए तैयार है। वह अनाज को अपने खलिहान में सुरक्षित रखेंगे परन्तु भूसी को हमेशा जलने वाली आग में जला देंगे।
\s5
\v 18 इस प्रकार यूहन्ना ने परमेश्वर का सुसमाचार सुना कर लोगों से पश्चाताप करने और परमेश्वर के पास लौट आने के लिए विनती की।
\v 19 उसने राजा हेरोदेस को अपने भाई के जीवित रहते उसकी पत्नी हेरोदियास से विवाह करने और कई अन्य बुरे कर्मों के लिए भी डाँटा।
\v 20 फिर हेरोदेस ने एक और बुरा काम किया कि उसने अपने सैनिकों को आदेश देकर यूहन्ना को बन्दीगृह में डलवा दिया।
\s5
\v 21 परन्तु बन्दीगृह में डाले जाने से पहले यूहन्ना लोगों को बपतिस्मा दे रहा था, उसी समय यीशु ने भी बपतिस्मा लिया। उसके पश्चात जब वह प्रार्थना कर रहे थे, तब आकाश खुल गया।
\v 22 और पवित्र आत्मा कबूतर के रूप में यीशु पर उतरा। और परमेश्वर ने स्वर्ग से यीशु से कहा, “तू मेरा पुत्र है, जिससे मैं बहुत प्रेम करता हूँ। मैं तुझसे बहुत प्रसन्न हूँ!”
\p
\s5
\v 23 जब यीशु ने परमेश्वर के लिए सेवा करना आरंभ किया, तो वह लगभग तीस वर्ष के थे। वह यूसुफ के पुत्र थे (यह सोचा जाता था)। यूसुफ एली का पुत्र था।
\v 24 एली मत्तात का पुत्र था, मत्तात लेवी का पुत्र था। लेवी मलकी का पुत्र था, मलकी यन्ना का पुत्र था, यन्ना यूसुफ का पुत्र था।
\s5
\v 25 यूसुफ मत्तित्याह का पुत्र था, मत्तित्याह आमोस का पुत्र था, आमोस नहूम का पुत्र था, नहूम असल्याह का पुत्र था, असल्याह नग्‍गई का पुत्र था।
\v 26 नग्‍गई मात का पुत्र था, मात मत्तित्याह का पुत्र था, मत्तित्याह शिमी का पुत्र था, शिमी योसेख का पुत्र था, योसेख योदाह का पुत्र था।
\s5
\v 27 योदाह यूहन्ना का पुत्र था, यूहन्ना रेसा का पुत्र था, रेसा जरुब्बाबेल का पुत्र था। जरुब्बाबेल शालतियेल का पुत्र था, शालतियेल नेरी का पुत्र था।
\v 28 नेरी मलकी का पुत्र था मलकी अद्दी का पुत्र था, अद्दी कोसाम का पुत्र था, कोसाम एल्‍मदाम का पुत्र था, एल्‍मदाम एर का पुत्र था।
\v 29 एर यहोशू का पुत्र था। यहोशू एलीएजेर का पुत्र था, एलीएजेर योरीम का पुत्र था, योरीम मत्तात का पुत्र था, मत्तात लेवी का पुत्र था।
\s5
\v 30 लेवी शमौन का पुत्र था। शमौन यहूदा का पुत्र था, यहूदा यूसुफ का पुत्र था, यूसुफ योनान का पुत्र था, योनान एलयाकीम का पुत्र था।
\v 31 एलयाकीम मलेआह का पुत्र था, मलेआह मिन्नाह का पुत्र था। मिन्नाह मत्तता का पुत्र था, मत्तता नातान का पुत्र था, नातान दाऊद का पुत्र था।
\v 32 दाऊद यिशै का पुत्र था, यिशै ओबेद का पुत्र था, ओबेद बोअज का पुत्र था, बोअज सलमोन का पुत्र था, सलमोन नहशोन का पुत्र था।
\s5
\v 33 नहशोन अम्मीनादाब का पुत्र था, अम्मीनादब आदमीन का पुत्र था, आदमीन अरनी का पुत्र था, अरनी हेस्रोन का पुत्र था, हेस्रोन पेरेस का पुत्र था, पेरेस यहूदा का पुत्र था।
\v 34 यहूदा याकूब का पुत्र था, याकूब इसहाक का पुत्र था, इसहाक अब्राहम का पुत्र था, अब्राहम तेरह का पुत्र था, तेरह नाहोर का पुत्र था।
\v 35 नाहोर सरूग का पुत्र था, सरूग रऊ का पुत्र था रऊ पेलेग का पुत्र था। पेलेग एबेर का पुत्र था, एबेर शिलह का पुत्र था।
\s5
\v 36 शिलह केनान का पुत्र था, केनान अरफक्षद का पुत्र था, अरफक्षद शेम का पुत्र था, शेम नूह का पुत्र था नूह लेमेक का पुत्र था।
\v 37 लेमेक मथूशिलह का पुत्र था, मथूशिलह हनोक का पुत्र था, हनोक यिरिद का पुत्र था, यिरिद महललेल का पुत्र था, महललेल केनान का पुत्र था।
\v 38 केनान एनोश का पुत्र था, एनोश शेत का पुत्र था, शेत आदम का पुत्र था। आदम परमेश्वर का पुत्र था, वह मनुष्य जिसको परमेश्वर ने सृजा था।
\s5
\c 4
\p
\v 1 फिर, यीशु पवित्र आत्मा से भरकर, यरदन नदी से लौटे, और पवित्र आत्मा उन्हें जंगल में ले गए।
\v 2 पवित्र आत्मा उन्हें चालीस दिन के लिए जंगल में ले गए। जब वह वहाँ थे, शैतान उनकी परीक्षा करता रहा। जितने समय यीशु जंगल में थे उन्होंने कुछ नहीं खाया था, इसलिए जब चालीस दिन पूरे हो गए, तब उन्हें बहुत भूख लगी।
\s5
\v 3 फिर शैतान ने यीशु से कहा, “यदि तुम सच में परमेश्वर के पुत्र हो, तो इन पत्थरों को आज्ञा दो कि वे तुम्हारे खाने के लिए रोटी बन जाए!”
\v 4 यीशु ने उत्तर दिया, “नहीं, मैं ऐसा नहीं करूँगा, क्योंकि शास्त्रों में लिखा है, ‘लोगों को जीवित रहने के लिए भोजन के अतिरिक्त भी कई वस्तुओं की आवश्यक्ता होती हैं।’
\s5
\v 5 तब शैतान यीशु को एक ऊँचे पहाड़ की चोटी पर ले गया और उन्हें दुनिया के सब देश पल भर में दिखाए।
\v 6 फिर उसने यीशु से कहा, “मैं तुम्हे इन सब देशों पर राज्य करने का अधिकार दूँगा और तुम उनकी सारी महिमा और धन प्राप्त करोगे। परमेश्वर ने मुझे इन सब को अपने वश में रखने की अनुमति दी है, और इसलिए मैं जो भी उनके साथ करना चाहूँ वह कर सकता हूँ।
\v 7 यदि तुम मेरी आराधना करो, तो मैं तुम्हे इन सब पर शासन करने दूँगा!”
\s5
\v 8 पर यीशु ने उत्तर दिया, “नहीं, मैं तेरी आराधना नहीं करूँगा, क्योंकि शास्त्रों में लिखा है, ‘तू केवल अपने प्रभु परमेश्वर की आराधना करना, केवल उन्हीं की सेवा करना।
\p
\s5
\v 9 तब शैतान यीशु को यरूशलेम ले गया। उसने उन्हें मन्दिर के ऊँचे भाग पर खड़ा कर दिया और कहा, “यदि तुम परमेश्वर के पुत्र हैं, तो यहाँ से नीचे कूद जाओ।
\v 10 तुम्हे चोट नहीं लगेगी, क्योंकि शास्त्रों में लिखा है, ‘परमेश्वर तुम्हे बचाने के लिए अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देंगे।’
\v 11 और यह भी लिखा है, ‘जब तुम गिरो, तब वे तुम्हे अपने हाथों में उठा लेंगे ताकि तुम्हे चोट न लगे। तुम्हारे पैर को भी पत्थर से ठेस न लगे।’”
\s5
\v 12 परन्तु यीशु ने उत्तर दिया, “नहीं, मैं ऐसा नहीं करूँगा, क्योंकि शास्त्रों में लिखा है: ‘अपने परमेश्वर यहोवा की परीक्षा लेने का प्रयास मत करना।”
\p
\v 13 जब शैतान ने यीशु को लुभाने के कई उपाय कर लिए तो कुछ समय के लिए उन्हें छोड़कर चला गया।
\p
\s5
\v 14 इसके बाद, यीशु जंगल से आकर गलील जिले में लौट गए। पवित्र आत्मा उन्हें शक्ति दे रहे थे। उस पूरे क्षेत्र में, लोगों ने यीशु के बारे में सुना और दूसरों को उनके बारे में बताया।
\v 15 उन्होंने लोगों को उनके आराधनालयों में शिक्षा दी और उनके उपदेशों के कारण सब लोग उनकी बहुत बड़ाई करते थे।
\p
\s5
\v 16 तब यीशु नासरत में आए, जहाँ वह पाले-पोसे गए थे। सब्त के दिन वह आराधनालय में गए, जैसे वह आमतौर पर किया करते थे। वह शास्त्रों से कुछ पढ़ने के लिए उठ खड़े हुए।
\v 17 आराधनालय के एक सेवक ने उन्हें एक पुस्तक दी, जिसमें भविष्यद्वक्ता यशायाह के द्वारा पूर्व काल में लिखे हुए वचन थे। यीशु ने पुस्तक को खोला और वह अंश निकाला जहाँ ये वचन लिखे गए थे:
\q
\s5
\v 18 “प्रभु का पवित्र आत्मा मुझ पर है
\q उन्होंने मुझे नियुक्त किया है कि गरीबों को परमेश्वर का सुसमाचार सुनाऊँ।
\q उन्होंने मुझे यहाँ प्रचार करने के लिए भेजा है कि बंदी मुक्त हो जाएँ,
\q और जो लोग अन्धे हैं उन्हें कहूँ कि वे फिर से देखें।
\q मैं उन लोगों को मुक्त कर दूँ जिन्हें दबाया जाता है।
\q
\v 19 उन्होंने मुझे यहाँ यह घोषणा करने के लिए भेजा है कि अब समय आ गया है कि प्रभु लोगों के लिए कृपा के काम करेंगे।”
\p
\s5
\v 20 फिर उन्होंने पुस्तक बन्द करके उसे सेवक को वापस कर दिया, और बैठ गए। आराधनालय में सब लोग उनकी ओर ध्यान से देख रहे थे।
\v 21 उन्होंने उनसे कहा, “आज ही यह लेख पूरा हुआ जिसे तुमने सुना है।”
\v 22 वहाँ उपस्थित सब जनों ने यीशु की बातों को सुना और आश्चर्य किया और उनके बोलने की कुशलता देख कर आश्चर्यचकित हो गए। लेकिन उनमें से कुछ लोगों ने कहा, “क्या यह यूसुफ का पुत्र नहीं?”
\s5
\v 23 उन्होंने उनसे कहा, “निश्चित रूप से तुम में से कुछ यह कहावत मुझसे कहोगे कि ‘हे वैद्य, पहले अपने आप को ठीक कर! तुम कहोगे, यहाँ अपने जन्म स्थान में भी वैसे चमत्कार कर जैसे तू ने कफरनहूम में किए हैं!’”
\v 24 फिर उन्होंने कहा, “यह निश्चय ही सच है कि भविष्यद्वक्ता के जन्म स्थान के लोग उस के संदेश को स्वीकार नहीं करते।
\s5
\v 25 परन्तु इस बारे में सोचो: एलिय्याह भविष्यद्वक्ता के जीवन काल में जब अकाल पड़ा था तब इस्राएल में अनेक विधवाएँ थीं अकाल भयंकर था क्योंकि साढ़े तीन वर्ष वर्षा नहीं हुई थी।
\v 26 परन्तु परमेश्वर ने एलिय्याह को उन इस्राएली विधवाओं में से किसी की सहायता के लिए नहीं भेजा, परमेश्वर ने उसे सीदोन के समीप के सारफत नगर में भेजा, ताकि वहाँ वह एक विधवा की सहायता करे।
\v 27 एलीशा भविष्यद्वक्ता के जीवन काल में इस्राएल में बहुत से कोढ़ी थे। परन्तु एलीशा ने उन में से किसी को भी ठीक नहीं किया। उसने केवल सीरिया के नामान नामक व्यक्ति को स्वस्थ किया।”
\s5
\v 28 आराधनालय में उपस्थित लोगों ने उसे यह कहते सुना, तो वे बहुत क्रोधित हुए।
\v 29 उन सब ने उठकर उन्हें शहर से बाहर निकाला। वे उन्हें अपने शहर के बाहर पहाड़ी की चोटी पर ले गए ताकि उन्हें चोटी से नीचे गिरा दें और उन्हें मार डालें।
\v 30 लेकिन वह उनके बीच में से निकलकर चले गए।
\p
\s5
\v 31 एक दिन वह गलील जिले के कफरनहूम नगर में गए। अगले सब्त के दिन, उन्होंने लोगों को आराधनालय में शिक्षा दी।
\v 32 वे जो शिक्षा देते थे , उससे लोग लगातार चकित होते थे, क्योंकि वह अधिकार से बातें करते थे।
\s5
\v 33 उस दिन, आराधनालय में एक व्यक्ति आया था जो एक दुष्ट-आत्मा के वश में था। वह व्यक्ति ऊँचे शब्द से चिल्लाया,
\v 34 “हे नासरत के यीशु, दुष्ट-आत्माओं का तुम्हारे साथ कुछ काम नहीं है, क्या तुम हम सब को नाश करने के लिए आए हो? मैं जानता हूँ कि तुम कौन हो, तुम परमेश्वर के पवित्र जन हो!
\s5
\v 35 यीशु ने दुष्ट-आत्मा को डाँटा और कहा, “चुप हो जा और उस मनुष्य में से निकल जा!” तब दुष्ट-आत्मा ने उस व्यक्ति को लोगों के बीच में जमीन पर गिरा दिया और उसे बिना हानि पहुँँचाए उसमें से बाहर निकल आया।
\v 36 आराधनालय में उपस्थित सब जन बहुत चकित थे। उन्होनें एक दूसरे से कहा, “वह दृढ़ता से बोलते है, और उनके वचनों में इतना सामर्थ है! यहाँ तक कि दुष्ट-आत्माएँ भी उनकी आज्ञा मानती हैं और जब वह उन्हें आज्ञा देते हैं, तो वह लोगों में से निकल जाती है!”
\v 37 और आस-पास के क्षेत्रों में और हर जगह, लोगों ने यीशु के कामों के बारे में चर्चा की।
\p
\s5
\v 38 फिर यीशु आराधनालय को छोड़कर शमौन के घर गए। शमौन की सास बीमार थी और उसे तेज बुखार था। वहाँ उपस्थित कुछ लोगों ने उसकी चंगाई के लिए यीशु से कहा।
\v 39 तो वह उसके ऊपर झुक गए और बुखार को निकल जाने की आज्ञा दी। तुरन्त वह अच्छी हो गई और उठकर उन्हें खाने को दिया।
\p
\s5
\v 40 उस दिन सूर्यास्त के समय, बहुत से लोग यीशु के पास अपने मित्रों और संबन्धियों को लेकर आए, जो अनेक रोगों से बीमार थे। उन्होंने उन पर हाथ रखकर उन सब को स्वस्थ किया।
\v 41 उन्होंने दुष्ट-आत्माओं को लोगों से बाहर आने के लिए विवश कर दिया था। जब दुष्टआत्माएँ उन लोगों को छोड़कर निकल रहीं थी, तब उन्होंने यीशु से चिल्लाकर कहा, “आप परमेश्वर के पुत्र हैं!” परन्तु उन्होंने उन दुष्ट-आत्माओं को आज्ञा दी, कि वह लोगों को उनके बारे में न बताए, क्योंकि वे जानती थी कि वह मसीह हैं।
\p
\s5
\v 42 अगली सुबह यीशु एक निर्जन स्थान पर गए। लोगों की भीड़ उन्हें खोज रही थी और जब वह वहाँ पहुँचे जहाँ यीशु थे तो उन्होंने यीशु को जाने से रोकने का प्रयास किया।
\v 43 लेकिन उन्होंने उनसे कहा, “मुझे अन्य शहरों के लोगों को भी बताना है कि परमेश्वर कैसे शासन करने जा रहें हैं , क्योंकि यही करने के लिए मुझे भेजा गया है।”
\v 44 इसलिये वह यहूदिया प्रान्त के विभिन्न नगरों के आराधनालयों में प्रचार करते रहे।
\s5
\c 5
\p
\v 1 एक दिन, जब बहुत से लोग यीशु के आस-पास इकट्ठे थे और उनसे परमेश्वर के संदेश की शिक्षा सीख रहे थे और सुन रहे थे, वह गन्नेसरत झील के किनारे खड़े थे।
\v 2 उन्होंने झील के किनारे पर दो मछली पकड़ने वाली नावों को देखा। मछुआरे नावों से उतर कर अपने मछली पकड़ने वाले जाल को धो रहे थे।
\v 3 यीशु दो नावों में से एक पर चढ़ गए। (यह नाव शमौन की थी) यीशु ने शमौन से कहाँ कि वह नाव को तट से कुछ दूर ले जाए। यीशु नाव में बैठ गए और, वहाँ से भीड़ को सिखाते रहे।
\s5
\v 4 जब उनका उपदेश समाप्त हुआ तब उन्होंने शमौन से कहा, “नाव को गहरे पानी में ले चल और मछलियों को पकड़ने के लिए अपना जाल पानी में डाल।”
\v 5 शमौन ने कहा, “गुरु, हमने रात भर कड़ी मेहनत की है, और फिर भी हम मछली नहीं पकड़ पाए, लेकिन मैं फिर से जाल डालूँगा, क्योंकि आपने मुझसे कहा है।”
\v 6 तो शमौन और उसके साथियों ने अपने जाल डाल दिए और उन्होंने इतनी सारी मछलियाँ पकड़ी कि उनके जाल फटने लगे।
\v 7 उन्होंने अपने मछली पकड़ने वाले साथियों को जो दूसरी नाव में थे, उनकी सहायता करने के लिए संकेत करके बुलाया। तब वे आए और मछलियों से दोनों नावों को इतना भर लिया कि वे डूबने लगीं।
\s5
\v 8 यह देखकर, शमौन पतरस यीशु के पैरों पर गिर पड़ा और कहा, “ हे प्रभु, कृपया मुझे छोड़कर चले जाएँ, क्योंकि मैं पापी मनुष्य हूँ।”
\v 9 उसने यह इसलिए कहा क्योंकि वह मछलियों की बड़ी संख्या के कारण, जिन्हें उन्होंने पकड़ा था आश्चर्यचकित था। उसके साथ रहने वाले सब लोग भी आश्चर्यचकित थे, जिनमें जब्दी के पुत्र याकूब और यूहन्ना भी थे, जो शमौन के साथ मछली पकड़ने वाले दो साझेदार थे।
\v 10 परन्तु यीशु ने शमौन से कहा, “मत डर, अब तक तू मछलियों को पकड़ता था, परन्तु अब से तू लोगों को मेरा शिष्य बनाने के लिए एकत्र करेगा।”
\v 11 तब नावों को किनारे पर पहुँँचाकर, वे अपने मछली पकड़ने के व्यवसाय को और अन्य सब को छोड़कर यीशु के साथ चल दिए।
\p
\s5
\v 12 जब यीशु पास के एक नगर में थे, तो वहाँ एक मनुष्य था जिसका शरीर कोढ़ से भरा हुआ था। जब उसने यीशु को देखा, तो उनके सामने भूमि पर झुककर उनसे विनती की, “हे प्रभु, कृपया मुझे स्वस्थ करें, क्योंकि यदि आप चाहें तो मुझे स्वस्थ कर सकते हैं !”
\v 13 तब यीशु ने अपना हाथ बढ़ाकर उस व्यक्ति को छुआ। उन्होंने कहा, “मैं तुझे स्वस्थ करना चाहता हूँ, और अब मैं तुझे स्वस्थ करता हूँ!” तुरन्त वह व्यक्ति स्वस्थ हो गया, उसे अब कोढ़ नहीं था!
\s5
\v 14 फिर यीशु ने उससे कहा, “यह सुनिश्चित कर कि तू लोगों को तुरन्त अपनी चंगाई के बारे में नहीं बताएगा। सबसे पहले, यरूशलेम में एक याजक के पास जा और अपने आप को दिखा कि वह तेरी जाँच करे और देखे कि अब तुझे कोढ़ नहीं है। इसके अतिरिक्त मूसा ने कोढ़ से चंगे होने वालों को जो भेंट चढ़ाने की आज्ञा दी है उसे भी याजक के पास ले जा।”
\s5
\v 15 लेकिन बहुत से लोगों ने सुना कि यीशु ने उस कोढ़ी को स्वस्थ किया था। इसका परिणाम यह हुआ कि भीड़ की भीड़ यीशु के उपदेश सुनने के लिए और अपनी बीमारियों से चंगाई पाने के लिए उनके पास आने लगी।
\v 16 लेकिन वह प्रायः भीड़ से दूर निर्जन क्षेत्रों में जाकर प्रार्थना किया करते थे।
\p
\s5
\v 17 एक दिन जब यीशु सिखा रहे थे, तब फरीसी पंथ के कुछ पुरुष आस पास बैठे हुए थे। उनमें से कुछ यहूदी व्यवस्था के विशेषज्ञ और शिक्षक थे। वे गलील जिले के कई गाँवों से और यरूशलेम के प्रान्त में और यहूदिया के अन्य शहरों से आए थे। उसी समय परमेश्वर, यीशु को लोगों को स्वस्थ करने की शक्ति दे रहे थे।
\s5
\v 18 जब यीशु वहाँ थे, तो कई पुरूष उनके पास एक आदमी को लाए जो लकवे का रोगी था। वे उस आदमी को एक खाट पर लेकर आए थे और उसे यीशु के सामने रखने के लिए घर में लाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
\v 19 लेकिन वे उसे भीतर लाने में असमर्थ थे क्योंकि घर में लोगों की बहुत बड़ी भीड़ थी, इसलिए वे बाहर की ओर से छत पर चढ़ गए। फिर उन्होंने छत से कुछ खपरैल हटाकर उसमें एक छेद बना दिया। उन्होंने उस व्यक्ति को उसकी खाट समेत उस छेद में से भीड़ के बीच यीशु के सामने नीचे उतारा।
\s5
\v 20 जब यीशु ने देखा कि उन लोगों को विश्वास है कि वह उस व्यक्ति को स्वस्थ कर सकते हैं, तब उन्होंने उस से कहा, “मित्र, मैं तेरे पापों को क्षमा करता हूँ!”
\v 21 यहूदी व्यवस्था के शिक्षक फरीसी अपने आप में सोचने लगे, “यह व्यक्ति घमंडी है और ऐसा कहकर परमेश्वर का अपमान करता है! हम सब जानते हैं कि परमेश्वर के अतिरिक्त कोई भी पापों को क्षमा नहीं कर सकता है!”
\s5
\v 22 यीशु जानते थे कि वे क्या सोच रहे थे। इसलिए उन्होंने उनसे कहा, “मैंने जो कुछ कहा है, उसके बारे में तुम्हें अपने आप में सवाल नहीं करना चाहिए। इस बात पर ध्यान दो:
\v 23 यह कहना कितना आसान है, ‘तेरे पाप क्षमा हुए हैं’ क्योंकि कोई नहीं देख सकता है कि उस व्यक्ति के वास्तव में पाप क्षमा किए गए हैं या नहीं। लेकिन यह कहना आसान नहीं है ‘उठ और चल’ क्योंकि लोग तुरन्त देख सकते हैं कि वह स्वस्थ हुआ है या नहीं।
\v 24 इसलिए अब मैं इस व्यक्ति को स्वस्थ करूँगा ताकि तुम जान लो कि परमेश्वर ने मुझे अर्थात् मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पापों को क्षमा करने का भी अधिकार दिया है।” फिर उन्होंने उस व्यक्ति से कहा जो लकवे का मारा था, “तुझ से मैं कहता हूँ, उठ, अपनी खाट उठा, और घर जा!”
\s5
\v 25 तुरन्त ही वह व्यक्ति स्वस्थ हो गया! वह उन सब के सामने उठ गया, उसने अपनी खाट जिस पर वह लेटा हुआ था उठाई, और वह परमेश्वर की स्तुति करता हुआ घर चला गया।
\v 26 सब लोग आश्चर्यचकित थे! उन्होंने परमेश्वर की स्तुति की और उन्होंने जो कुछ यीशु को करते देखा उस पर आश्चर्य किया। उन्होंने कहा, “आज हमने अद्भुत काम देखे हैं!”
\p
\s5
\v 27 फिर यीशु ने उस जगह को छोड़ दिया और लेवी नामक एक व्यक्ति को देखा जो रोमी सरकार के लिए चुंगी लेता था। वह अपनी चौकी पर बैठा था, जहाँ लोग उसे सरकार द्वारा ठहराई गई चुंगी देने के लिए आते थे। यीशु ने उससे कहा, “मेरे साथ आ और मेरा शिष्य बन!”
\v 28 लेवी ने तुरन्त अपना काम छोड़ दिया और यीशु के साथ चला गया।
\p
\s5
\v 29 बाद में, लेवी ने यीशु और उनके शिष्यों के लिए अपने घर में एक बड़ी दावत की। वहाँ चुंगी लेनेवालों का एक बड़ा समूह उनके साथ भोजन कर रहा था।
\v 30 फरीसी पंथ के कुछ लोगों ने और यहूदी व्यवस्था को सिखाने वालों ने, यीशु के शिष्यों से शिकायत की, “तुम्हें चुंगी लेनेवालों और अन्य घोर पापियों के साथ भोजन नहीं खाना चाहिए।
\v 31 तब यीशु ने उनसे कहा, “वैद्य की आवश्कता उन लोगों को होती है जो बीमार होते हैं, न कि उन्हें जो सोचते हैं कि वे भले-चंगे हैं।
\v 32 अत: मैं स्वर्ग से उन लोगों को आमंत्रित करने के लिए नहीं आया जो सोचते हैं कि वे मेरे पास आने के लिए धर्मी हैं। इसके विपरीत, मैं उन लोगों को आमंत्रित करने आया हूँ जो जानते हैं कि वे पापी हैं, और अपने पापमय व्यवहार से मुड़कर मेरे पास आते हैं।”
\p
\s5
\v 33 उन यहूदी अगुवों ने यीशु से कहा, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के शिष्य अक्सर भोजन को त्याग कर प्रार्थना करते हैं, और फरीसियों के शिष्य भी ऐसा करते हैं, परन्तु तेरे शिष्य खाते और पीते हैं!”
\v 34 यीशु ने उत्तर दिया, “क्या तुम दुल्हे के मित्रों को जो उसके साथ होते हैं, उपवास करने के लिए कह सकते हो जब दुल्हा उनके साथ है? नहीं, कोई भी ऐसा नहीं करेगा!
\v 35 परन्तु वे दिन आएगा जब दूल्हा अपने मित्रों से दूर ले जाया जाएगा। तब, उस समय, वे भोजन को त्यागेंगे।”
\p
\s5
\v 36 फिर यीशु ने अन्य उदाहरणों से अपनी बात समझाई: उन्होंने कहा, “लोग नए कपड़ों से एक टुकड़ा फाड़कर उसे पुराने कपड़ों में नहीं जोड़ते हैं। अगर वे ऐसा करते हैं, तो वह नए कपड़े को फाड़कर बर्बाद करता हैं और नये कपड़े का टुकड़ा पुराने कपड़े से मेल नहीं खाता।
\s5
\v 37 और कोई नए दाखमधु को पुरानी मशकों में नहीं भरता है। अगर कोई ऐसा करता है, तो मशके फटकर खुल जाएँगी क्योंकि नए दाखमधु के बनने और फैलने से मशकों में खिंचाव होगा। तब मशके फट जाएँगी, और दाखमधु भी नष्ट हो जाएगा क्योंकि वह बाहर बह जाएगा।
\v 38 इसके विपरीत, नया दाखमधु नई मशकों में ही डाला जाना चाहिए।
\p
\v 39 इसके अतिरिक्त, जो केवल पुराना दाखमधु पीते हैं वे उस से सन्तुष्ट होते हैं। वे नया दाखमधु पीना नहीं चाहते है क्योंकि वे कहते हैं पुराना दाखमधु अच्छा है!”
\s5
\c 6
\p
\v 1 एक सब्त के दिन, जब यीशु और उसके शिष्य कुछ अनाज के खेतों के बीच में से चल रहे थे, तब शिष्य अनाज के कुछ बालें तोड़ कर हाथों से मलकर भूसी को अनाज से अलग करके, अनाज खा रहे थे।
\v 2 कुछ फरीसियों ने यह देखकर उनसे कहा, “तुमको यह काम नहीं करना चाहिए, हमारी व्यवस्था हमें सब्त के दिन काम करने से रोकती हैं!”
\s5
\v 3 यीशु ने फरीसियों को उत्तर दिया, “तुमने दाऊद के राजा बनने से पहले, का वृत्तान्त तो शास्त्रों में पढ़ा होगा कि जब उसे और उसके साथियों को भूख लगी थी तब उसने क्या किया था?
\v 4 जैसा कि तुम जानते हो, दाऊद मिलाप बाले तम्बू में गया और खाने के लिए भोजन माँगा। याजक ने उस रोटी को जो परमेश्वर के सामने भेंट की गई थी, उसे दे दी। मूसा की व्यवस्था में एक नियम है कि परमेश्वर ने कहा था कि केवल याजकों को उस रोटी को खाने की अनुमति है। दाऊद और उसके साथी तो याजक नहीं थे, फिर भी उसने और उसके साथियों ने वह रोटी खाई।”
\v 5 यीशु ने उनसे कहा, “उसी प्रकार, मनुष्य के पुत्र को निर्धारित करने का अधिकार है कि लोगों के लिए सब्त के दिन क्या करना उचित है!”
\p
\s5
\v 6 किसी दूसरे सब्त के दिन, यीशु आराधनालय में लोगों को सिखा रहे थे और वहाँ एक व्यक्ति था जिसका दाहिना हाथ सूख गया था।
\v 7 वहाँ जो यहूदी व्यवस्था के शिक्षक और फरीसी मौजूद थे वे यीशु को बारीकी से देख रहे थे। वे यह देखना चाहते थे कि वह उस व्यक्ति को स्वस्थ करेंगे या नहीं, और फिर वे उन पर आरोप लगाएँगे कि सब्त के दिन काम नहीं करने के विषय में वह यहूदी व्यवस्था का उल्लंघन करते हैं।
\v 8 लेकिन यीशु जानते थे कि वे क्या सोच रहे हैं। इसलिए उन्होंने सूखे हाथ वाले व्यक्ति से कहा, “आ और यहाँ सबके सामने खड़ा हो।” तब वह व्यक्ति उठ गया और वहाँ खड़ा हुआ।
\s5
\v 9 फिर यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे यह पूछता हूँ: मूसा की व्यवस्था में परमेश्वर ने लोगों को सब्त के दिन अच्छे काम करने या हानि करने का आदेश दिया था? सब्त के दिन क्या जीवन बचाना है या उसे नष्ट करना है?
\v 10 किसी ने भी उन्हें उत्तर नहीं दिया, इसलिए उन्होंने उन सभी की ओर देखा और फिर उस व्यक्ति से कहा, “अपने सूखे हाथ को बढ़ा।” व्यक्ति ने ऐसा किया, और उसका हाथ फिर पूरी तरह से ठीक हो गया!
\v 11 धर्म के अगुवे इस बात पर बहुत क्रोधित थे, और उन्होंने एक दूसरे के साथ चर्चा की कि वे यीशु से छुटकारा पाने के लिए क्या कर सकते हैं।
\p
\s5
\v 12 इसके कुछ समय बाद, एक दिन यीशु पहाड़ पर प्रार्थना करने के लिए गए। उन्होंने सारी रात परमेश्वर से प्रार्थना की।
\v 13 अगले दिन उन्होंने अपने सब शिष्यों को अपने पास बुलाया। उन में से उन्होंने बारह पुरुषों को चुना जिन्हें उन्होंने प्रेरित कहा।
\s5
\v 14 ये पुरुष थे: शमौन, जिसे उन्होंने नया नाम पतरस दिया; अन्द्रियास, पतरस का छोटा भाई; याकूब और उसका छोटा भाई, यूहन्ना ; फिलिप्पुस; बरतुल्मै;
\v 15 मत्ती, जिसका दूसरा नाम लेवी था; थोमा; एक और याकूब जो हलफईस का पुत्र था; शमौन जो जेलोतेस कहलाता था,
\v 16 याकूब नाम एक अलग व्यक्ति का पुत्र यहूदा। और यहूदा इस्करियोती, जिसने बाद में यीशु को धोखा दिया।
\p
\s5
\v 17 यीशु अपने शिष्यों के साथ पहाड़ी से उतरकर एक समतल भूमि पर खड़े हुए। वहाँ उनके शिष्यों की एक बड़ी भीड़ थी। वहाँ उस बड़े समूह में यरूशलेम और यहूदिया के इलाके और सोर और सीदोन के शहरों के पास के तटीय इलाकों से आए हुए लोग भी थे।
\v 18 वे यीशु के उपदेश सुनने और अपनी बीमारियों से चंगाई पाने के लिए आए थे। उन्होंने उन लोगों को भी ठीक किया जो दुष्ट-आत्माओं से परेशान थे।
\v 19 भीड़ में सभी लोग उन्हें छूने की कोशिश करते थे, क्योंकि वह सब को अपने सामर्थ से स्वस्थ कर रहे थे।
\s5
\v 20 फिर उन्होंने अपने शिष्यों को देखा और कहा, “तुम जो गरीब हो यह तुम्हारे लिए बहुत अच्छा है, क्योंकि परमेश्वर तुम पर शासन कर रहे हैं।
\v 21 तुम्हारे लिए यह बहुत अच्छा है, यदि तुम अभी भूखे हो, क्योंकि परमेश्वर तुम्हारी हर ज़रूरत को पूरी करेंगे।
\p तुम्हारे लिए बहुत अच्छा है यदि तुम अभी दुखी हो, क्योंकि परमेश्वर एक दिन तुमको प्रसन्नता के साथ हँसाएगे।
\p
\s5
\v 22 यह बहुत अच्छा है जब दूसरे लोग तुमसे घृणा करते हैं, जब वे तुम्हारा तिरस्कार करते हैं, जब वे तुम्हारा अपमान करते हैं और कहते हैं कि तुम बुरे हो क्योंकि तुम मेरा अर्थात् मनुष्य के पुत्र का अनुसरण करते हो।
\v 23 जब ऐसा हो, तो आनन्द करो! उछलो और कूदो क्योंकि तुम बहुत खुश होगे! परमेश्वर तुमको स्वर्ग में एक महान प्रतिफल देंगे! मत भूलो कि पूर्व काल में उनके पूर्वजों ने परमेश्वर के भविष्यद्वक्ताओं के साथ भी ऐसा ही किया था!
\p
\s5
\v 24 परन्तु जो अमीर हैं, उनके के लिए दुख की बात है; तुम्हारा धन तुम को विश्राम दे चुका है।
\v 25 तुम्हारे लिए कितने दुःख की बात है जिन्हें लगता है कि अब तुम्हारे पास सब कुछ है; तुम जान लोगे कि इन वस्तुओं से तुमको संतुष्टी नहीं होगी।
\p जो इस समय आनन्दित हैं उनके लिए कैसी दुख की बात हैं कि बाद में तुम्हें दुःखी और अति उदास होना पड़ेगा।
\s5
\v 26 यह कितने दुःख की बात है जब हर कोई तुम्हारे बारे में अच्छी बातें कहता है। उसी तरह, उनके पूर्वजों ने परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता होने का झूठा दावा करने वालों के बारे में भी ऐसी अच्छी बातें कही थी।
\p
\s5
\v 27 “लेकिन तुम जो मेरी बातों को सुनते हो, मैं ये कहता हूँ कि न केवल अपने मित्रों से वरन् अपने शत्रुओं से भी प्रेम करो! जो लोग तुमसे घृणा करते हैं, उनके लिए अच्छा काम करो!
\v 28 तुम्हे शाप देने वालों के लिए परमेश्वर से विनती करो कि उन्हें आशीर्वाद दे! उन लोगों के लिए प्रार्थना करो जो तुम्हारे साथ बुरा व्यवहार करते हैं!
\s5
\v 29 अगर कोई तुम्हारे गाल पर मारकर अपमान करता है, तो अपना मुँह फेर दे कि वह दूसरे गाल पर भी मार सके। यदि कोई तुम्हारी चादर ले जाना चाहता है, तो उसे अपना कुर्ता भी दें दो।
\v 30 जो कोई तुमसे कुछ माँगे, उसे कुछ न कुछ अवश्य दो। अगर कोई तुमसे तुम्हारी कोई वस्तु माँगे, तो उससे वापस मत माँगो।
\s5
\v 31 जिस रीति से तुम चाहते हो कि दूसरे तुम्हारे साथ व्यवहार करें, उसी रीति से तुमको भी उनके साथ व्यवहार करना चाहिए।
\p
\v 32 यदि तुम केवल उनसे प्रेम करते हो जो तुमसे प्रेम करते हैं, तो ऐसा करने के लिए परमेश्वर से अपनी प्रशंसा की आशा न रखना, क्योंकि पापी भी अपने से प्रेम करने वालों से प्रेम करते हैं।
\v 33 यदि तुम केवल उन लोगों के लिए भलाई करते हो जो तुम्हारे लिए अच्छे काम करते हैं, तो ऐसा करने के लिए परमेश्वर से प्रतिफल पाने की आशा न करना, क्योंकि पापी भी ऐसा करते हैं।
\v 34 यदि तुम केवल उन लोगों को पैसे या संपत्ति उधार देते हो जो तुमको वापस दे सकते हैं, तो आशा न करो कि ऐसा करने के लिए परमेश्वर तुमको प्रतिफल देंगे! पापी भी अन्य पापियों को उधार देते हैं, क्योंकि वे पूरा-पूरा वापस पाने की आशा रखते हैं।
\s5
\v 35 इसके अतिरिक्त, अपने शत्रुओं से प्रेम करो! उनके लिए अच्छे काम करो! उन्हें उधार दो, और उनसे कुछ भी वापस पाने की आशा न रखो! तब परमेश्वर तुमको महान प्रतिफल देंगे और तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर की सन्तान हो जाओगे, क्योंकि परमेश्वर उन लोगों पर भी दया करते हैं जो धन्यवाद नहीं देते और दुष्ट हैं।
\v 36 इसलिए तुम भी अन्य लोगों के लिए दया के काम करो, जैसे तुम्हारे स्वर्गीय पिता लोगों के लिए दया के काम करते हैं।
\p
\s5
\v 37 लोगों की कठोर आलोचना मत करो, तो परमेश्वर तुम्हारी भी कठोर आलोचना नहीं करेंगे। अन्य लोगों की निन्दा मत करो, तो वह भी तुम्हारी निन्दा नहीं करेंगे। दूसरों को उनके बुरे कामों के लिए क्षमा करो, तो परमेश्वर भी तुम्हें क्षमा कर देंगे।
\s5
\v 38 दूसरों को अच्छी वस्तुएँ दो, तो परमेश्वर भी तुम्हें अच्छी वस्तुएँ देंगे। यह ऐसा ही होगा जैसे वह तुमको एक टोकरी में अनाज दबा-दबा कर और टोकरी को हिला-हिला कर उदारता से दे रहे हों, यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह पूरी तरह से भरा हुआ है, यहाँ तक कि कुछ अनाज टोकरी के बाहर भी फैल जाता है! याद रखो कि जिस नाप को तुम दूसरों की आलोचना करने या आशीष देने के लिए उपयोग करते हो, वही नाप परमेश्वर तुम्हारे लिए भी न्याय करने या तुमको आशीर्वाद देने के लिए उपयोग करेंगे।”
\p
\s5
\v 39 उन्होंने अपने शिष्यों को यह दृष्टान्त भी दिया: “एक अंधे व्यक्ति को दूसरे अंधे व्यक्ति का नेतृत्व करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। अगर वह ऐसा करेगा, तो वे दोनों गड्ढे में गिर जाएँगे!
\v 40 एक शिष्य अपने शिक्षक से बड़ा नहीं होता परन्तु जब वह पूरी तरह से प्रशिक्षित जो जाता है, तब वह अपने शिक्षक के समान बन जाएगा। इसलिए तुमको भी मेरे जैसे बनना चाहिए।
\p
\s5
\v 41 तुम में से कोई भी अन्य लोगों की छोटी गलतियों पर ध्यान न दे। यह ऐसा है जैसे एक व्यक्ति अपनी आँखों में एक बड़ा लट्ठा नहीं देखता परन्तु दूसरों की आँखों के तिनके को देखता है।
\v 42 यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम पाखंडी हो! किसी और की आँख से तिनका निकालने का प्रयास करने से पहले, तुमको सबसे पहले अपनी आँख से लट्ठा बाहर निकालना चाहिए। जब तुम पाप करना छोड़ो, तब तुम दूसरों को उनके पापों से छुटकारा पाने में सहायता करने के लिए आत्मिक अंतर्दृष्टि प्राप्त करोगे।
\p
\s5
\v 43 हर कोई जानता है कि अच्छे पेड़ पर बुरे फल नहीं लगते और बुरे पेड़ पर अच्छे फल नहीं लगते हैं।
\v 44 और फल को देख कर कोई भी बता सकता है कि पेड़ किस प्रकार का है। उदाहरण के लिए, एक झाड़ी अंजीर का उत्पादन नहीं कर सकती है और न झड़बेरी अंगूर का उत्पादन कर सकती। उसी तरह एक व्यक्ति के कामों को देख कर यह जानना आसान है कि वह भीतर से कैसा है।
\s5
\v 45 अच्छे लोग अच्छे काम करते हैं जिससे प्रकट होता है कि वे अच्छे विचार रखते हैं, और बुरे लोग बुरे काम करते हैं जिससे प्रकट होता हैं कि वे बुरे विचार रखते हैं। लोग अपने मन में जो सोचते है उसके अनुसार वे बोलते और काम करते है।
\p
\s5
\v 46 यीशु ने लोगों से कहा, “तुम मुझे ‘प्रभु’ क्यों कहते हो, जब तुम मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं करते?
\v 47 मैं तुम्हें बताता हूँ कि जो लोग मेरे पास आते हैं, मेरी शिक्षाओं को सुनते हैं और उनका पालन करते हैं, वह कैसे होंगे।
\v 48 वे एक ऐसे व्यक्ति के समान हैं जो अपने घर बनाने के लिए भूमि में गहराई से खोदे। वह सुनिश्चित करता है कि घर की नींव ठोस चट्टान पर बनाई जाए। फिर जब बाढ़ आती है और लहरे घर पर लगती हैं तो वे। घर को हिला भी नहीं सकती हैं क्योंकि घर एक ठोस नींव पर बनाया गया था।
\s5
\v 49 लेकिन कुछ लोग जो मेरी शिक्षाओं को सुनते हैं, पर उन्हें नहीं मानते, वे ऐसे व्यक्ति के समान हैं, जिसने नींव डाले बिना भूमि पर घर बनाया हैं। जब नदी में बाढ़ आई, तो उसका घर तुरन्त गिर गया और पूरी तरह नष्ट हो गया।”
\s5
\c 7
\p
\v 1 लोगों से बात करने के बाद, यीशु कफरनहूम नगर में गए
\s5
\v 2 उस शहर में रोमी सेना का एक सूबेदार था जिसका एक दास था जो उसे बहुत प्रिय था। यह दास इतना बीमार था कि वह मरने वाला था।
\v 3 जब सूबेदार ने यीशु के बारे में सुना, तो उसने कुछ यहूदी प्राचीनों को यीशु से यह कहने के लिए भेजा कि वह आकर उसके दास को स्वस्थ करें।
\v 4 जब वे यीशु के पास आए, तो उन्होंने विनम्रता से विनती की कि वह उस सूबेदार के दास की सहायता करें। उन्होंने कहा, “वह इस योग्य है कि आप उसके लिए ऐसा करें,
\v 5 क्योंकि वह हमारे लोगों से प्रेम करता है और उसने हमारे लिए आराधनालय का निर्माण भी किया है।”
\s5
\v 6 इसलिए यीशु उनके साथ सूबेदार के घर गए। जब वह लगभग वहाँ पहुँँच गए, तो सूबेदार ने अपने कुछ मित्रों को यीशु को यह संदेश देने के लिए भेजा: “हे प्रभु, आप कष्ट न उठाएँ, क्योंकि मैं इस योग्य नहीं हूँ कि आप मेरे घर में आएँ।
\v 7 यही कारण है कि मैं स्वयं आपके पास नहीं आया क्योंकि मुझे अायोग होने का बोध हो रहा है। आप केवल एक वचन से मेरे दास को स्वस्थ कर सकते हैं।
\v 8 मैं जानता हूँ कि आप ऐसा कर सकते हैं क्योंकि मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जिसे अपने उच्च अधिकारियों के आदेशों का पालन करना पड़ता और मेरे पास भी ऐसे सैनिक हैं जिन्हें मेरे आदेशों का पालन करना पड़ता है। जब मैं उनमें से एक से कहता हूँ, ‘जा’ तो वह जाता है, और जब मैं किसी दूसरे को कहता हूँ, ‘आ’ तो वह आता है। जब मैं अपने दास को कहता हूँ, ‘यह कर! तो वह उसे करता है।
\s5
\v 9 जब यीशु ने सूबेदार की यह बातें सुनी, तो वह आश्चर्यचकित हुए। तब उन्होंने उनके साथ जो भीड़ थी उस की ओर मुड़कर कहा, “मैं तुमसे कहता हूँ, मैं ने ऐसा कोई भी इस्राएली नहीं पाया, जो मुझ पर इतना ज्यादा विश्वास करता है, जितना ये अन्यजाति का व्यक्ति करता है।”
\v 10 जब वे लोग जो सूबेदार के पास से आए थे, उसके घर लौट गए, तो उन्हें मालूम पड़ा कि दास फिर से स्वस्थ हो गया है।
\p
\s5
\v 11 इसके तुरन्त बाद, यीशु नाईन नामक नगर में गए। उनके शिष्य और एक बड़ी भीड़ उनके साथ जा रही थी।
\v 12 जब यीशु नगर के फाटक के निकट आए, तो उन्होंने एक बड़ी भीड़ को नगर से बाहर आते हुए देखा, जो एक मुर्दे को जो अभी-अभी मरा था ले जा रहे थे। उसकी माँ एक विधवा थी, और वह उसका एकलौता पुत्र था। वह भीड़ के साथ थी, और वे उसके पुत्र को दफनाने जा रहे थे।
\v 13 जब प्रभु ने उसे देखा, तो उन्हें उस पर तरस आया और उन्होंने उससे कहा, “मत रो।”
\v 14 तब वह उनके पास आए और अर्थी को छुआ जिस पर शव पड़ा था। उसे ले जाने वाले लोग रुक गए। उन्होंने कहा, “जवान, मैं तुझसे कहता हूँ, उठ जा!”
\v 15 वह व्यक्ति तुरन्त उठ बैठा और बोलने लगा! तब यीशु ने उसे उसकी माँ को सौंप दिया।
\s5
\v 16 हर कोई आश्चर्य से भर गया था। उन्होंने परमेश्वर की स्तुति की और एक दूसरे से कहा, “हमारे बीच एक बड़े भविष्यद्वक्ता आए हैं! और “परमेश्वर अपने लोगों की सुधि लेने आए हैं!”
\v 17 यीशु ने जो कुछ किया था, उसके बारे में यह खबर यहूदिया और आस-पास के अन्य सभी क्षेत्रों में फैल गई।
\p
\s5
\v 18-19 यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के शिष्यों ने उसे इन सब बातों के बारे में बताया। इसलिए यूहन्ना ने अपने शिष्यों में से दो को बुलाया और उनको प्रभु के पास जाकर पूछने के लिए भेजा: “क्या आप वही हैं जिसके बारे में परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की थी, या हमें किसी और की प्रतीक्षा करनी चाहिए?”
\v 20 जब ये दोनों पुरूष यीशु के पास आए, तो उन्होंने कहा, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने हमें आपसे यह पूछने के लिए भेजा है, क्या आप वही व्यक्ति हैं जिसके बारे में परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की थी, या हमें किसी और की प्रतीक्षा करनी चाहिए?”
\s5
\v 21 उस समय यीशु बहुत लोगों को बीमारियों और गंभीर रोगों से स्वस्थ कर रहे थे और दुष्टआत्माओं को निकाल रहे थे। उन्होंने कई अंधे लोगों को भी स्वस्थ किया जिससे वे देखने लगे।
\v 22 फिर उन्होंने उन दो पुरूषों को उत्तर दिया, “वापस जाओ और जो कुछ तुमने देखा और सुना है, उसे यूहन्ना को बताओ: जो लोग अंधे थे वे अब देख रहे हैं। जो लोग लंगड़े थे, अब चल रहे हैं, जो कोढ़ी थे, वे शुद्ध किए गए हैं। जो बहरे थे, अब सुन सकते हैं। जो लोग मर चुके थे उन्हें फिर से जीवन मिल गया है और गरीबों को सुसमाचार सुनाया जा रहा है।
\v 23 और उसे यह भी बताओ, “जो कोई मेरे कामों को देखकर और मेरे उपदेशों को सुनकर, मुझसे दूर नहीं होता, उन्हें परमेश्वर आशीष देंगे।”
\p
\s5
\v 24 जब यूहन्ना के भेजे हुए लोग चले गए, तब यीशु ने भीड़ से यूहन्ना के बारे में बात करना शुरू किया। उन्होंने कहा, “तुम जंगल में क्या देखने गए थे? हवा से हिलने वाले सरकण्डे को?
\v 25 तुम क्या देखने के लिए गए थे? क्या सुन्दर वस्त्र पहने हुए एक व्यक्ति को? देखो, जो सुन्दर कपड़े पहनते हैं और जिनके पास सब कुछ सबसे अच्छा है वे राजा के महलों में रहते हैं।
\v 26 फिर तुम वहाँ क्या देखने के लिए गए थे? एक भविष्यद्वक्ता? हाँ! परन्तु मैं तुम से कहता हूँ कि यूहन्ना एक साधारण भविष्यद्वक्ता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
\s5
\v 27 यह वह है जिसके बारे में भविष्यद्वक्ताओं ने बहुत पहले लिखा था: ‘देख, मैं अपने दूत को तुम्हारे आगे भेज रहा हूँ। वह तुम्हारे आने के लिए लोगों को तैयार करेगा।’
\p
\v 28 मैं तुमसे कहता हूँ कि आज तक जितने भी लोग रहे है, उनमें से कोई भी यूहन्ना से बड़ा नहीं है। तो भी, परमेश्वर के साथ उसके रहने के स्थान में रहनेवाला, सबसे तुच्छ व्यक्ति भी यूहन्ना की तुलना में अधिक बड़ा होगा।”
\p
\s5
\v 29 जब चुंगी लेनेवालों सहित सभी लोगों ने जिन्होंने यूहन्ना से बपतिस्मा लिया था, यीशु की बातें सुनी, तो वे सहमत थे कि परमेश्वर सच्चे हैं।
\v 30 लेकिन फरीसियों और यहूदी व्यवस्था के विशेषज्ञों ने यूहन्ना द्वारा बपतिस्मा नहीं लिया था और उन्होंने अपने लिए परमेश्वर की इच्छा को टाल दिया था।
\p
\s5
\v 31 फिर यीशु ने यह भी कहा, “इस समय में रहने वाले तुम लोग किस के समान हो? मैं तुम्हें बताऊँगा:
\v 32 तुम एक खुली जगह में खेलते हुए बच्चों के समान हो। वे एक दूसरे से कह रहे हैं, ‘हमने तुम्हारे लिए बाँसुरी बजाई, लेकिन तुमने नृत्य नहीं किया! फिर हमने तुम्हारे लिए मातम के गीत गाए, लेकिन तुम नहीं रोए!
\s5
\v 33 इसी प्रकार जब यूहन्ना तुम्हारे पास आया और उसने साधारण भोजन नहीं खाया और दाखमधु नहीं पीया, तो तुमने उसे अस्वीकार कर दिया और कहा, दुष्ट-आत्मा उसे अपने वश में किए हुए है!
\v 34 परन्तु जब मनुष्य का पुत्र तुम्हारे पास आया और वह साधारण भोजन खाता और दूसरों की तरह दाखमधु पीता है, तो तुमने उसे अस्वीकार कर दिया और कहा, ‘देखो! यह मनुष्य बहुत अधिक भोजन खाता है और बहुत अधिक दाखमधु पीता है, और वह चुंगी लेनेवालों और अन्य पापियों के साथ मेल-जोल रखता है!
\v 35 परन्तु, परमेश्वर का ज्ञान उनकी आज्ञा का पालन करने वालों द्वारा सही ठहरा है।
\p
\s5
\v 36 एक दिन, शमौन नामक एक फरीसी ने यीशु को उसके साथ भोजन करने के लिए आमंत्रित किया। इसलिए यीशु उस व्यक्ति के घर गए और खाने के लिए एक मेज़ पर बैठ गए।
\v 37 उस शहर की एक महिला भी थी जिसे लोग एक वेश्या मानते थे। जब उसने सुना कि यीशु फरीसी के घर में भोजन कर रहे हैं, तो वह एक संगमरमर का पात्र लेकर वहाँ आई, उसमें इत्र था।
\v 38 जब यीशु भोजन कर रहे थे, तब वह स्त्री उनके पैरों के पीछे खड़ी थी। वह रो रही थी, और उसके आँसू यीशु के पैरों पर गिर रहे थे। वह लगातार उनके पैरों को अपने बालों से पोंछती, रही और चूमती रही और उसने इत्र से उनका अभिषेक किया।
\s5
\v 39 जिस फरीसी ने यीशु को भोज पर बुलाया था देखा कि वह स्त्री क्या कर रही थी, तो उसने सोचा, “अगर यह व्यक्ति वास्तव में एक भविष्यद्वक्ता है, तो उसे पता होता कि यह स्त्री कौन है जो उसे छू रही है, और वह कैसी स्त्री है, वह एक पापी स्त्री है।”
\v 40 जवाब में, यीशु ने उस से कहा, “शमौन, मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हूँ।” उसने कहा, “हे गुरु, कहिए?”
\s5
\v 41 यीशु ने उसे यह कहानी सुनाई: “दो लोग एक साहूकार के कर्ज़दार थे, इस साहूकार का व्यापार ही लोगों को पैसे उधार पर देना था। इनमें से एक व्यक्ति को उसने पाँच सौ चाँदी के सिक्के दिए, और दूसरे को उसने पचास चाँदी के सिक्के दिए।
\v 42 वे ॠण दोनों अपने कर्ज का भुगतान करने योग्य नहीं थे, इसलिए उस साहूकार ने बहुत ही दया से कहा कि उन्हें कुछ भी लौटाने की आवश्यक्ता नहीं है। तो, उन दोनों पुरुषों में से कौन उस साहूकार से अधिक प्रेम करेगा?”
\v 43 शमौन ने उत्तर दिया, “मुझे लगता है कि जिस पर अधिक पैसे का कर्ज था वह उससे अधिक प्रेम करेगा।” यीशु ने उस से कहा, “तू सही कहता है।”
\s5
\v 44 फिर उन्होंने स्त्री की ओर मुड़कर शमौन से कहा, इस स्त्री ने जो किया उसके बारे में सोच! जब मैंने तुम्हारे घर में प्रवेश किया था, तो तूने मेरा स्वागत वैसे नहीं किया जैसे घर का स्वामी सामान्यतः अतिथियों का स्वागत करता है। तू ने मेरे पैरों को धोने के लिए मुझे पानी नहीं दिया, परन्तु इस स्त्री ने मेरे पैरों को अपने आसुओं से धोया और फिर उन्हें अपने बालों से पोंछा है!
\v 45 तुमने मेरा स्वागत चुम्बन से नहीं किया, लेकिन जब से मैं आया हूँ, तब से उसने मेरे पैरों को चूमना नहीं छोड़ा !
\s5
\v 46 तू ने मेरे सिर का अभिषेक जैतून के तेल से नहीं किया, परन्तु उसने मेरे पैरों का अभिषेक सुगन्धित इत्र से किया है।
\v 47 इसलिए मैं तुझसे कहता हूँ कि उसे अपने अनेक पापों के लिए क्षमा किया गया है और यही कारण है कि वह मुझसे बहुत प्रेम करती है। लेकिन एक व्यक्ति जो सोचता है कि उसके केवल कुछ ही पाप हैं जो क्षमा किए गए है, वह मुझसे थोड़ा प्रेम करेगा।”
\s5
\v 48 फिर उन्होंने स्त्री से कहा, “तुम्हारे पाप क्षमा किए गए हैं।”
\v 49 तब जो लोग उनके साथ भोजन कर रहे थे, वे आपस में कहने लगे, “यह कौन है जो कहता है कि वह पापों को क्षमा कर सकता है?”
\v 50 परन्तु, यीशु ने उस स्त्री से कहा, “क्योंकि तूने मुझ पर विश्वास किया है, इसलिए परमेश्वर ने तुझे बचा लिया है। जा परमेश्वर तुझे शान्ति दें!”
\s5
\c 8
\p
\v 1 उसके बाद, यीशु और उसके बारह शिष्य विभिन्न शहरों और गाँवों में से होकर गए, और यीशु ने लोगों में प्रचार किया, और यह शुभ सन्देश सुनाया कि परमेश्वर शीघ्र ही स्वयं को राजा के रूप में प्रकट करेंगे।
\v 2 उनके साथ यात्रा करने वाली कई महिलाएँ भी थीं जिन्हें उन्होंने दुष्टआत्माओं और बीमारियों से ठीक किया था। इनमें मगदला गाँव से मरियम भी शामिल थी, जिनमें से उन्होंने सात दुष्टआत्माओं को निकाला था;
\v 3 हेरोदेस अंतिपास के भण्डारी खोजे की पत्नी योअन्ना थी, सूसन्नाह और बहुत सी अन्य स्त्रियाँ भी थीं। वे यीशु और उनके शिष्यों की सेवा करने के लिए अपनी धन सम्पत्ति का उपयोग करती थीं।
\p
\s5
\v 4 एक दिन एक बहुत बड़ी भीड़ एकत्र हुई थी, क्योंकि अलग-अलग शहरों से लोग यीशु को देखने के लिए आ रहे थे। तब उन्होंने उन्हें यह कहानी सुनाई:
\v 5 “एक व्यक्ति अपने खेत में कुछ बीज बोने के लिए गया जब वह बीज को मिट्टी पर बिखेर रहा था, तब कुछ बीज कठोर मार्ग पर गिर गए। फिर लोगों ने उन बीजों पर चलकर उन्हें कुचल दिया, और पक्षियों ने उन्हें खा लिया।
\v 6 कुछ बीज पथरीलि भूमि पर गिरे जहाँ बहुत कम मिट्टी थी। इसलिए जैसे ही बीज बढ़े, पौधे सूख गए क्योंकि उन्हें नमी नहीं मिली।
\s5
\v 7 कुछ बीज उस भूमि पर गिरे जहाँ कटीले पौधों के बीज भी थे। कटीले पौधे छोटे अनाज के पौधों के साथ बड़े हुए और उन्हें दबा दिया, जिससे वे बढ़ न सकें।
\v 8 परन्तु कुछ अनाज के बीज उपजाऊ मिट्टी में गिरे, और इतने अच्छे से बढ़े कि उनसे एक अच्छी फसल निकली जो कि सौ गुणा फल लाए। “इन बातों को कहने के बाद, यीशु ने उनसे कहा, “तुम में से हर एक जिसने अभी मुझसे सुना है उसके बारे में ध्यान से सोचो!”
\p
\s5
\v 9 तब यीशु के शिष्यों ने उनसे कहा कि उन्हें कहानी का अर्थ बताएँ।
\v 10 उन्होंने कहा, “परमेश्वर राजा होकर कैसे शासन करेंगे, इस विषय में छिपी हुई बातों को जानने के लिए तुम्हें विशेषाधिकार दिया गया है। परन्तु मैं अन्य सब लोगों से दृष्टान्तों में ही कहता हूँ, क्योंकि
\q ‘यद्यपि वे देखते हैं, वे नहीं बूझते, और यद्यपि वे सुनते हैं, वे नहीं समझते हैं।’
\p
\s5
\v 11 अब, इस कहानी का अर्थ यह है: बीज परमेश्वर के वचन को दर्शाता है।
\v 12 मार्ग पर गिरने वाले बीज यह दिखाते हैं कि लोग परमेश्वर का वचन सुनते हैं, लेकिन बाद में शैतान आता है और उस वचन को उनके मन और मस्तिष्क से दूर ले जाता है। परिणामस्वरुप, वे वचन पर विश्वास नहीं करते और उद्धार नहीं पाते।
\v 13 पथरीली भूमि पर गिरने वाले बीज यह दिखाते हैं कि लोग परमेश्वर के वचन को सुनते हैं और वचन को आनन्द से ग्रहण करते हैं, परन्तु उनकी जड़ गहरी नहीं होती है। परिणामस्वरुप, वे केवल थोड़े समय के लिए विश्वास करते हैं। जैसे ही परेशानियाँ आती हैं, वे परमेश्वर के वचन पर विश्वास करना बन्द कर देते हैं।
\s5
\v 14 कटीले पौधों के बीच गिरने वाले बीज यह दिखाते हैं कि लोग परमेश्वर के वचन को सुनते हैं, परन्तु जीवन की चिन्ताएँ, धन और सुख विलास की बातें उनके जीवन में परमेश्वर के वचन को बढ़ने नहीं देती हैं। परिणामस्वरूप, वे आत्मिक रूप से परिपक्व नहीं हो पाते हैं।
\v 15 लेकिन उपजाऊ जमीन पर गिरने वाले बीज यह दिखाते हैं कि लोग परमेश्वर के वचन को सुनते हैं और वचन को सम्मान के साथ सच्चे मन से ग्रहण करते हैं, वे विश्वास करने और वचन का पालन करने में दृढ़ रहते हैं, और इसलिए वे अच्छे आत्मिक फल लाते हैं।
\p
\s5
\v 16 दीया जलाकर, लोग उसे टोकरी से नहीं ढाँकते न उसे खाट के नीचे रखते हैं। इसके बजाय, वे उसे एक दीवट पर रखते हैं, ताकि कमरे में प्रवेश करने वाले हर व्यक्ति को उसका प्रकाश मिले।
\v 17 इससे प्रकट होता है कि जो कुछ अभी छिपा हुआ है, वह एक दिन दिखाई देगा। और जो कुछ अब गुप्त है, उसे एक दिन प्रकट किया जाएगा।
\v 18 इसलिए यह सुनिश्चित करो कि जो कुछ मैं बताता हूँ, उसे तुम ध्यान से सुनो, क्योंकि परमेश्वर उन लोगों को जो उनके सत्य पर विश्वास करते है, और अधिक समझने योग्य बनाएँगे। परन्तु परमेश्वर उन लोगों को जो उनकी सच्चाई पर विश्वास नहीं करते हैं, थोड़ा सा भी जो उन्हें लगता है कि वे समझ गए हैं, समझने में सक्षम कर देंगे।”
\p
\s5
\v 19 एक दिन यीशु की माता और भाई उनसे मिलने के लिए आए, लेकिन वे उनके पास नहीं जा सके क्योंकि उस घर में जहाँ वह थे बड़ी भीड़ थी।
\v 20 तब किसी ने उन्हें बताया, “आपकी माता और आपके भाई आपसे मिलना चाहते हैं।”
\v 21 परन्तु उन्होंने उन से कहा, “जो लोग परमेश्वर के वचन को सुनते हैं और उसका पालन करते हैं, वे मुझे मेरी माता और मेरे भाइयों के समान प्रिय हैं।”
\p
\s5
\v 22 एक और दिन, यीशु अपने शिष्यों के साथ एक नाव में चढ़ गए। उन्होंने उनसे कहा, “मैं चाहता हूँ कि हम झील की दूसरी ओर जाएँ।” इसलिए वे झील को पार करने लगे।
\v 23 परन्तु जब वे नाव में यात्रा कर रहे थे, यीशु सो गए। तब झील में घोर तूफान उठा। शीघ्र ही नाव में पानी भरने लगा, और वे संकट में पड़ गए।
\s5
\v 24 तब यीशु के शिष्य उनके पास आए और उन्हें उठाया। उन्होंने उनसे कहा, “गुरु! गुरु! हम मरने वाले है!” तब वह उठ गए और हवा और हिंसक लहरों को शान्त होने का आदेश दिया और वे शान्त हो गए सब जगह शान्ति हो गई।
\v 25 फिर उन्होंने उनसे कहा, “तुम्हारा विश्वास इतना दुर्बल क्यों है?” जो कुछ हुआ था, उसके कारण शिष्य भयभीत और आश्चर्यचकित थे। वे एक दूसरे से कह रहे थे, “यह कौन हैं, कि वह हवाओं और पानी को भी आज्ञा देतें हैं, और वे उनकी आज्ञा मानते हैं?”
\p
\s5
\v 26 यीशु और उनके शिष्य नाव में यात्रा करके झील के पार गलील के दूसरी ओर, गिरासेनियों के क्षेत्र में आए।
\v 27 जब यीशु नाव से भूमि पर उतर गए, तो उस इलाके के एक शहर के एक व्यक्ति से उनकी मुलाकात हुई। इस मनुष्य में दुष्टात्माएँ थी। इस कारण लम्बे समय से इस व्यक्ति ने कपड़े नहीं पहने थे और वह घर में नहीं रहता था। वह कब्रों में रहता था।
\p
\s5
\v 28 जब उसने यीशु को देखा, तो वह मनुष्य चिल्लाया, उसके सामने मुँह के बल गिरा, और ऊँचे स्वर से कहा, “हे यीशु, हे परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र, आप मुझसे क्या चाहते हैं मैं निवेदन करता हूँ, मुझे दुःख मत दीजिए!”
\v 29 उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उसी समय यीशु ने उस दुष्ट-आत्मा को उससे बाहर आने की आज्ञा दी थी। यद्यपि उस व्यक्ति की कलाई और टखने जंजीरों से बंधे हुए थे, और लोग उसकी रखवाली करते थे, तो भी कई बार दुष्ट-आत्मा अचानक उसे बल से पकड़ लेती थी। तब वह जंजीरों को तोड़ देता और दुष्ट-आत्मा उसे निर्जन स्थानों में ले जाती थी।
\s5
\v 30 फिर यीशु ने उससे पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?” उसने कहा, “मेरा नाम सेना है।” उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि कई दुष्टात्माएँ उसमें समा गई थीं।
\v 31 दुष्ट-आत्माओं ने यीशु से विनती करते हुए कहा कि वे उन्हें गहरे अथाह कुण्ड में जाने की आज्ञा न दें, जहाँ परमेश्वर दुष्ट-आत्माओं को दण्ड देते हैं।
\s5
\v 32 पास की पहाड़ी पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था। दुष्ट-आत्माओं ने यीशु से विनती की कि वह उन्हें सूअरों में प्रवेश करने की अनुमति दें, और उन्होंने उन्हें अनुमति दी।
\v 33 तब दुष्ट-आत्माओं ने उस मनुष्य को छोड़ दिया और सूअरों में प्रवेश किया, और सूअरों का झुण्ड झील के किनारे पर से झपटकर झील में जा गिरा और डूब मरा।
\p
\s5
\v 34 जब सूअरों की देखभाल करने वाले पुरुषों ने देखा कि क्या हुआ, तो वे भाग गए! उन्होंने जो कुछ हुआ था उसके बारे में शहर और ग्रामीण इलाकों में लोगों को बताया।
\v 35 तब लोग जो हुआ उसे देखने के लिए बाहर निकल आए। जब वे वहाँ आए, जहाँ यीशु थे, तो उन्होंने देखा कि जिसमें से दुष्टात्माएँ निकली थी, वह यीशु के पैरों पर बैठा था, और उन्हें सुन रहा था उन्होंने देखा कि उसने कपड़े पहने हुए थे, और उसका मन फिर से सामान्य हो गया था, और वे डर गए।
\s5
\v 36 जिन लोगों ने सब कुछ होते हुए देखा था, उन्होंने उन लोगों को बताया जो अभी आए थे कि यीशु ने उस मनुष्य को कैसे स्वस्थ किया था जो दुष्ट-आत्माओं के वश में था।
\v 37 तब गिरासेनियों के आस-पास के इलाकों के बहुत से लोगों ने यीशु से उस क्षेत्र को छोड़ने के लिए कहा क्योंकि वे बहुत डर गए थे। इसलिये यीशु और उनके शिष्य वापस झील के पार जाने के लिए नाव में चढ़ गए।
\s5
\v 38 वापस जाने से पहले, जिस मनुष्य से दुष्टात्माएँ निकली थी, उसने यीशु से यह कहते हुए विनती की, "कृपया मुझे अपने साथ चलने दें!" परन्तु, यीशु ने उसे यह कहकर वापस भेजा,
\v 39 “नहीं, अपने घर वापस जाओ और लोगों को बताओ कि परमेश्वर ने तुम्हारे लिए कितना बड़ा काम किया है!” इसलिये वह मनुष्य वहाँ से चला गया और उसने पूरे शहर में लोगों को बताया कि यीशु ने उसके लिए कितना बड़ा काम किया।
\p
\s5
\v 40 तब यीशु और उनके शिष्य झील के पार कफरनहूम में वापस आ गए। लोगों की भीड़ उनके लिए प्रतीक्षा कर रही थी, और उन्होंने उनका स्वागत किया।
\v 41 उसी समय याईर नामक एक मनुष्य, जो वहाँ के आराधनालय के प्रमुख अगुओं में से एक था, यीशु के समीप आया और वह उनके पाँव पर मुँह के बल गिरा। उसने यीशु से अनुरोध किया कि वह उसके घर आए
\v 42 क्योंकि उसकी एकलौती बेटी, जो बारह साल की थी, मरने पर थी और वह चाहता था कि यीशु उसे जीवन दें। परन्तु जैसे यीशु वहाँ गए, बहुत से लोग उनके चारों ओर इखट्ठे हो गए।
\s5
\v 43 अब भीड़ में एक स्त्री थी, जो एक बीमारी से पीड़ित थीं, जिसके कारण बारह वर्ष से लगातार उसका खून बह रहा था। उसने अपने इलाज के लिए वैद्यों पर अपना सारा पैसा खर्च कर दिया था, लेकिन कोई भी उसे स्वस्थ नहीं कर पाया था।
\v 44 वह यीशु के पीछे आ गई और उनके वस्त्र की छोर को छुआ। तुरन्त उसका खून बहना बन्द हो गया।
\s5
\v 45 यीशु ने कहा, “मुझे किसने छुआ?” क्योंकि यीशु के आस-पास हर कोई कह रहा था कि उन्होंने उन्हें नहीं छुआ था, इसलिए पतरस ने कहा, “हे गुरु, बहुत से लोग आप के चारों ओर घूम रहे हैं और आपको दबा रहे हैं, इसलिए उनमें से कोई भी आप को छू सकता है।”
\v 46 लेकिन यीशु ने कहा, “मैं जानता हूँ कि किसी ने मुझे जानबूझ कर छुआ है, क्योंकि उस व्यक्ति को स्वस्थ करने के लिए मुझ में से शक्ति निकली है।”
\s5
\v 47 और जब स्त्री को पता चला कि वह छिप नहीं सकती, तब वह उनके पास काँपती हुई आई और उनके सामने मुँह के बल गिरी। जब अन्य लोग सुन रहे थे, उसने यीशु को बताया कि उसने उन्हें क्यों छुआ और कैसे वह तुरन्त स्वस्थ हो गई।
\v 48 और यीशु ने उससे कहा, “मेरी पुत्री, क्योंकि तू विश्वास करती थी कि मैं तुम्हें ठीक कर सकता हूँ, इसलिए अब तू ठीक है। अब तू अपने रास्ते पर जाओ और परमेश्वर की शान्ति तेरे साथ हो।”
\p
\s5
\v 49 जब वह उस स्त्री से बात कर ही रहे थे, तब याईर के घर से एक व्यक्ति आया और कहा, “तुम्हारी पुत्री की मृत्यु हो गई है। तो अब गुरु को परेशान मत कर!”
\v 50 परन्तु जब यीशु ने यह सुना, तो उन्होंने कहा, “मत डर, बस मुझ पर विश्वास कर और वह फिर से जीवित हो जाएगी।”
\s5
\v 51 जब वह घर के बाहर पहुँचे, तो यीशु ने पतरस, यूहन्ना और याकूब और लड़की के माता-पिता को छोड़कर और किसी को अपने साथ घर के भीतर आने की अनुमति नहीं दी।
\v 52 और सभी लोग जोर से रो रहे थे कि वे दिखाए कि वे बहुत उदास हैं क्योंकि लड़की की मृत्यु हो गई थी। लेकिन यीशु ने उनसे कहा, “रोओ मत! वह मरी नहीं है! सो रही है!”
\v 53 और लोग उन पर हँसे, क्योंकि वे जानते थे कि लड़की मर चुकी थी।
\s5
\v 54 परन्तु यीशु ने उसका हाथ पकड़ा और उसे पुकार कर कहा, “पुत्री, उठ जा!”
\v 55 और तुरन्त उसकी आत्मा उसके शरीर में लौट आई और वह उठ गई। यीशु ने उसे खाने के लिए कुछ देने को कहा।
\v 56 और उसके माता-पिता अचंभित थे, परन्तु यीशु ने उनसे कहा था कि जो कुछ भी हुआ था उसकी चर्चा वह किसी और से न करें।
\s5
\c 9
\p
\v 1 तब यीशु ने अपने बारह शिष्यों को बुलाया और उन्हें सभी प्रकार के दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकालने और लोगों के रोगों को स्वस्थ करने का अधिकार और शक्ति दी।
\v 2 उन्होंने उन्हें लोगों को स्वस्थ करने और उन्हें यह सिखाने के लिए भेजा कि परमेश्वर स्वयं को राजा के रूप में कैसे दर्शाएँगे।
\s5
\v 3 शिष्यों के निकलने से पहले, यीशु ने उनसे कहा, “अपनी यात्रा के लिए कुछ भी मत लो। लाठी या झोली या भोजन या पैसे न लो, दो-दो कुरते भी नहीं।
\v 4 तुम जिस घर में प्रवेश करो, उस क्षेत्र को छोड़ने तक उस ही घर में रहना।
\s5
\v 5 किसी भी शहर में जहाँ लोग तुम्हारा स्वागत नहीं करते हैं, तुम वहाँ मत रहना। जब तुम उस शहर से निकलो तब अपने पैरों से धूल झाड़ दो। यह उनके विरुद्ध एक चेतावनी के रूप में करो क्योंकि उन्होंने तुम्हें अस्वीकार किया था।”
\v 6 तब यीशु के शिष्य चले गए और कई गाँवों में से होकर यात्रा की। जहाँ-जहाँ वे गए, उन्होंने लोगों को परमेश्वर का सुसमाचार सुनाया और बीमारों को स्वस्थ किया।
\p
\s5
\v 7 हेरोदेस जो गलील जिले का शासक था, उसने जो कुछ भी हो रहा था, उसके बारे में सुना। वह उलझन में था, क्योंकि कुछ लोग कह रहे थे कि यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला फिर से जीवित हो गया है।
\v 8 अन्य लोग कह रहे थे कि एलिय्याह फिर दोबारा प्रकट हुआ है, और अन्य लोग यह कह रहे थे कि पूर्व काल के अन्य भविष्यद्वक्ताओं में से कोई एक फिर से जीवित हो गया है।
\v 9 लेकिन हेरोदेस ने कहा, “यह यूहन्ना नहीं हो सकता क्योंकि मैंने उसका सिर कटवाया था। तो यह कौन है जिसके बारे में मैं यह सुन रहा हूँ?” और वह यीशु से मिलने के लिए एक उपाय खोजने लगा।
\p
\s5
\v 10 जब प्रेरित अपनी यात्रा से लौट आए, तो जो कुछ उन्होंने किया था, सब कुछ यीशु को बताया। तब वह केवल उन्हें अपने साथ लेकर बैतसैदा नगर को गए।
\v 11 लेकिन जब लोगों ने सुना कि यीशु वहाँ गए हैं, तो वे उनके पीछे हो लिए। उन्होंने उनका स्वागत किया और उनसे बात की कि कैसे परमेश्वर जल्द ही स्वयं को राजा के रूप में दिखाएँगे, और उन्होंने उन लोगों को जो रोगी थे और स्वस्थ होना चाहते थे।
\p
\s5
\v 12 अब क्योंकि दिन ढलने पर था, इसलिए बारह शिष्यों ने उनके पास आकर कहा, “कृपया लोगों की बड़ी भीड़ को भेज दो ताकि वे कुछ खाने और रहने के स्थान के लिए आस-पास के गाँवों और खेतों में जा सकें, क्योंकि हम इस निर्जन क्षेत्र में हैं।”
\v 13 लेकिन उन्होंने उनसे कहा, “तुम ही उन्हें खाने को कुछ दो!” उन्होंने उत्तर दिया, “हमारे पास केवल पाँच रोटी और दो छोटी मछली हैं। हम जाकर इन सब लोगों के लिए पर्याप्त भोजन भी नहीं खरीद सकते हैं!”
\v 14 उन्होंने यह इसलिए कहा, क्योंकि वहाँ लगभग पाँच हज़ार पुरूष थे। तब यीशु ने शिष्यों से कहा, “लोगों को पचास पचास के समूह में बैठने को कहो।”
\s5
\v 15 तब शिष्यों ने ऐसा किया और सब लोग बैठ गए।
\v 16 फिर यीशु ने पाँच रोटी और दो मछली लीं, स्वर्ग की ओर देखा और उनके लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया। फिर उसने उनके टुकड़े करके शिष्यों को दिया कि वह लोगों में बाँट दे।
\v 17 उन सभी ने खाया और सभी के खाने के लिए भोजन पर्याप्त था। तब शिष्यों ने बचे हुए टुकड़ों को इकट्ठा किया, जिससे बारह टोकरी भर गयी!
\p
\s5
\v 18 एक दिन जब यीशु निजी तौर पर प्रार्थना कर रहे थे, तो उनके शिष्य उनके पास आए और यीशु ने उनसे पूछा, “लोग क्या कह रहे हैं कि मैं कौन हूँ?”
\v 19 शिष्यों ने कहा, “कुछ लोग कहते हैं कि आप यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले हैं, परन्तु दूसरों का कहना है कि आप एलिय्याह भविष्यद्वक्ता हैं, और फिर कई अन्यों का कहना है कि आप पूर्व काल के भविष्यद्वक्ताओं में से एक हैं, जो फिर से जीवित हो गए हैं।”
\s5
\v 20 यीशु ने उनसे पूछा, “तुम मेरे बारे में क्या कहते हो? मैं कौन हूँ?” पतरस ने उत्तर दिया, “आप मसीह है, जो परमेश्वर की ओर से आए हैं।”
\v 21 तब यीशु ने उन्हें चेतावनी दी कि वे किसी को अभी यह न बताएँ।
\v 22 फिर उन्होंने कहा, “मनुष्य के पुत्र को कई दु:खों से पीड़ित होना पड़ेगा: मैं यहूदी प्राचीनों, प्रधान याजकों और व्यवस्था के शिक्षकों द्वारा अस्वीकार किया जाऊँगा, और तब मुझे मार डाला जाएगा। फिर तीसरे दिन, मैं फिर से जीवित हो जाऊँगा।”
\p
\s5
\v 23 तब उन्होंने उनसे कहा, “यदि तुम में से कोई मेरा शिष्य बनना चाहता है, तो तुम जो कुछ भी करना चाहते हो, केवल वह न करो, प्रतिदिन तुम्हें अपना जीवन छोड़ने तक दुःख उठाना पड़ेगा।
\v 24 तुम्हें ऐसा करना होगा, क्योंकि जो लोग स्वयं के लिए अपना जीवन बचाने की कोशिश करते हैं वे उसे हमेशा के लिए खो देंगे, परन्तु जो लोग मेरे शिष्य होने के कारण, अपने जीवन को त्याग देते हैं, वे हमेशा के लिए अपने जीवन को बचाएँगे।
\v 25 अगर तुमने इस दुनिया में सब कुछ प्राप्त कर लिया, तो इससे क्या लाभ होगा, यदि तुम अपने जीवन को खो दो या समाप्त कर दो?
\s5
\v 26 जो लोग मेरे सन्देश को अस्वीकार करते हैं और वे मेरे हैं यह कहने से इन्कार करते हैं, मैं अर्थात् मनुष्य का पुत्र भी, जब मैं अपने पिता और स्वर्गदूतों की महिमा में आऊँगा उनके सामने यह कहने से इन्कार करूँगा कि वे मेरे हैं।
\v 27 लेकिन मैं तुम्हें यह सच कहता हूँ: तुम में से कुछ लोग जो यहाँ खड़े हैं तब तक नहीं मरेंगे जब तक कि परमेश्वर को स्वयं राजा के रूप में नहीं देखेंगे!”
\p
\s5
\v 28 यीशु के इन वचनों को कहने के आठ दिन बाद, वह अपने साथ पतरस, यूहन्ना और याकूब को लेकर प्रार्थना करने के लिए एक पहाड़ पर चढ़ गए।
\v 29 जब वह प्रार्थना कर रहे थे, तो उनके चेहरे का रूप बदल गया और उनके वस्त्र श्वेत होकर तेज चमकने लगे।
\s5
\v 30 और पूर्व काल के दो भविष्यद्व्कता वहाँ आए और यीशु के साथ बातें करने लगे; वे मूसा और एलिय्याह थे।
\v 31 वे महिमा में घिरे हुए थे, और यीशु के साथ उनके प्रस्थान के बारे में बातें कर रहे थे, जो जल्द ही यरूशलेम में पूरा होना था।
\s5
\v 32 पतरस और उसके साथ जो अन्य शिष्य थे बहुत नींद में थे। जब वे उठ गए, तो उन्होंने यीशु की महिमा देखी और उन्होंने दो लोगों को उनके साथ खड़े देखा।
\v 33 जब मूसा और एलिय्याह यीशु को छोड़कर जाने लगे, तब पतरस ने उनसे कहा, “हे गुरु, हमारा यहाँ रहना भला है! हम तीन तम्बू बनाएँगे, एक आपके लिए, एक मूसा के लिए, और एक एलिय्याह के लिए।” लेकिन वह नहीं जानता था कि वह क्या कह रहा था।
\s5
\v 34 जब वह ये बातें कह रहा था, तो एक बादल ने आकर उनको ढक दिया। शिष्य भयभीत थे क्योंकि बादल ने उन्हें घेरा हुआ था।
\v 35 तब बादल में से परमेश्वर की वाणी सुनाई दी, “यह मेरा पुत्र है, जिसे मैंने चुना है, इनकी बात सुनो!”
\v 36 वाणी के रुकते ही, तीनों शिष्यों ने देखा कि केवल यीशु ही वहाँ थे। वे चुप थे और एक लम्बे समय तक उन्होंने जो देखा था उसे किसी को भी नहीं बताया।
\p
\s5
\v 37 अगले दिन जब वे पहाड़ से उतर आए, तो लोगों की एक बड़ी भीड़ यीशु से मिलने आई।
\v 38 तब भीड़ में से एक व्यक्ति ने पुकार कर कहा, “हे गुरु, मैं आपसे विनती करता हूँ, मेरे पुत्र की सहायता करें! वह मेरा एकलौता पुत्र है।
\v 39 एक दुष्ट-आत्मा अकस्मात ही उसे पकड़ लेती है और वह चिल्लाता है। वह उसे बलपूर्वक मरोड़ती है और वह मुँह में फेन भर लाता है। वह जब मेरे पुत्र को छोड़ती है, तो उसे गंभीर रूप से चोट पहुँँचाती है।
\v 40 मैंने आपके शिष्यों से कहा कि वे दुष्ट-आत्मा को उससे बाहर आने के लिए आज्ञा दे, परन्तु वे ऐसा करने में असमर्थ थे!”
\s5
\v 41 उत्तर में, यीशु ने कहा, “इस पीढ़ी के लोग विश्वास नहीं करते हैं और इस कारण तुम्हारी सोच भ्रष्ट है! मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँ, कि तुम विश्वास करो? फिर उन्होंने लड़के के पिता से कहा, अपने पुत्र को यहाँ मेरे पास लाओ!”
\v 42 जब वे लड़के को उनके पास ला रहे थे, तो दुष्ट-आत्मा ने उस लड़के को भूमि पर फेंक दिया और उसे बलपूर्वक मरोड़ा। परन्तु यीशु ने दुष्ट-आत्मा को डाँटा और लड़के को स्वस्थ किया। तब उन्होंने उसे उसके पिता के पास लौटा दिया।
\s5
\v 43 तब सब लोग परमेश्वर की महान शक्ति से पूरी तरह आश्चर्यचकित हुए।
\p जब वे सब चमत्कारों पर आश्चर्य करके बातें कर रहे थे, तब यीशु ने अपने शिष्यों से कहा,
\v 44 “जो कुछ मैं तुम्हें बताने जा रहा हूँ उसे ध्यान से सुनो: मैं अर्थात् मनुष्य का पुत्र, शीघ्र ही मेरे शत्रुओं को सौंप दिया जाऊँगा।”
\v 45 लेकिन शिष्य समझ न सके कि इसका अर्थ क्या था। परमेश्वर ने उन्हें यह समझने से रोका, ताकि वे उस समय उसका अर्थ न जान पाएँ, और वे उनसे इसका अर्थ पूछने से डरते थे।
\p
\s5
\v 46 कुछ समय बाद, शिष्यों के बीच में बहस हुई कि उनमें से कौन सबसे महत्वपूर्ण होगा।
\v 47 लेकिन यीशु को पता था कि वे क्या सोच रहे थे, इसलिए उन्होंने एक छोटे बच्चे को अपने पास खड़ा करने के लिए बुलाया।
\v 48 उन्होंने उनसे कहा, “अगर कोई इस बच्चे का स्वागत करता है, तो वह मेरा स्वागत करने के समान है, और अगर कोई मेरा स्वागत करता है, तो वह परमेश्वर का स्वागत करता है, जिसने मुझे भेजा है। तुम्हारे बीच में जो सबसे कम महत्वपूर्ण लगते हैं, उसे ही परमेश्वर सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं।”
\p
\s5
\v 49 यूहन्ना ने यीशु को उत्तर दिया, “हे गुरु, हमने एक व्यक्ति को देखा जो आप के नाम से दुष्ट-आत्माओं को लोगों से बाहर निकलने की आज्ञा दे रहा था। इसलिए हमने उसे ऐसा करने के लिए मना किया, क्योंकि वह हमारे समूह का हिस्सा बनकर आपका अनुसरण नहीं कर रहा है।”
\v 50 लेकिन यीशु ने कहा, “उसे ऐसा करने से मत रोको! अगर कोई ऐसा काम नहीं कर रहा है जो तुम्हारे लिए हानिकारक है, तो वह जो कर रहा है वह तुम्हारे लिए सहायक है!”
\p
\s5
\v 51 जब वह दिन करीब आ रहा था जब परमेश्वर उन्हें वापस स्वर्ग ले जाए, तब यीशु ने यरूशलेम को जाने का दृढ़ संकल्प किया।
\v 52 उन्होंने कुछ दूतों को उससे आगे जाने के लिए भेजा, और वे सामरिया प्रदेश के एक गाँव में गए, कि उनके लिए तैयारी करें।
\v 53 परन्तु सामरियों ने यीशु को अपने गाँव में आने की अनुमति नहीं दी क्योंकि वह यरूशलेम को जा रहे थे।
\s5
\v 54 और जब उनके दो शिष्यों, याकूब और यूहन्ना ने यह सुना, तो उन्होंने कहा, हे प्रभु, क्या आप चाहते हैं कि हम परमेश्वर से प्रार्थना करें कि वे उन लोगों को नाश करने के लिए स्वर्ग से आग भेज दें?
\v 55 लेकिन यीशु ने उनकी ओर मुड़कर कठोरता से कहा कि उनका ऐसा कहना गलत है।
\v 56 इसलिए वे एक अन्य गाँव में गए।
\p
\s5
\v 57 जब यीशु और शिष्य सड़क पर चल रहे थे, किसी ने उनसे कहा, “आप जहाँ भी जाओगे, मैं आपके साथ जाऊँगा!”
\v 58 यीशु ने उत्तर दिया, “लोमड़ियों के रहने के लिए भूमि में भट हैं, और पक्षियों के घोंसले हैं, लेकिन मेरे अर्थात् मनुष्य के पुत्र के लिए सोने की कोई जगह नहीं है!”
\s5
\v 59 यीशु ने एक अन्य व्यक्ति से कहा, “मेरे पीछे हो ले!” लेकिन उस व्यक्ति ने कहा, “हे प्रभु, मुझे पहले घर जाकर मेरे मरे हुए पिता को दफनाने दें।”
\v 60 यीशु ने उस से कहा, “मरे हुओं को अपने मुर्दों को दफनाने दो, परन्तु तुम जाकर लोगों को बताओ कि परमेश्वर शीघ्र ही स्वयं को राजा के रूप में प्रकट करेंगे!”
\s5
\v 61 किसी अन्य ने कहा, “हे प्रभु, मैं आप के साथ आऊँगा और आपका शिष्य बनूँगा, लेकिन पहले मुझे अपने लोगों से विदा होने के लिए घर जाने दें।”
\v 62 यीशु ने उस से कहा, “जो कोई अपने खेत की जुताई करना आरंभ करके पीछे देखता है, वह परमेश्वर की, जब वह राजा के रूप में शासन करेंगे, सेवा करने के लिए योग्य नहीं है।”
\s5
\c 10
\p
\v 1 इसके बाद, प्रभु यीशु ने प्रचार करने के लिए सत्तर अन्य लोगों को नियुक्त किया। उसने हर शहर और गाँव में जहाँ वह स्वयं जाना चाहते थे, उन्हें दो-दो करके भेजा कि वे उनके आगे जाए।
\v 2 उन्होंने उनसे कहा, “फसल निश्चय ही बहुत है परन्तु मजदूर बहुत कम हैं। इसलिए खेत के स्वामी से प्रार्थना करो और विनती करो कि वह फसल काटने के लिए और मजदूरों को भेजे।
\s5
\v 3 अब जाओ, लेकिन याद रखो कि मैं तुम्हें अपना सन्देश उन लोगों को सुनाने के लिए भेज रहा हूँ जो तुम्हें मार डालने का प्रयास करेंगे। तुम भेड़ियों के बीच में भेड़ के समान होगे।
\v 4 अपने साथ पैसा मत लेना। यात्रा के लिए झोली न लेना। अतिरिक्त जूते न लेना। रास्ते में लोगों को नमस्कार करने के लिए मत रुकना।
\s5
\v 5 जब भी तुम किसी घर में प्रवेश करते हो, तो पहले उन लोगों से कहो, ‘परमेश्वर इस घर में रहनेवालों को शान्ति दे!
\v 6 यदि वहाँ रहने वाले लोग परमेश्वर की शान्ति चाहते हैं, तो वे उस शान्ति का अनुभव करेंगे जिसका तुमने उन्हें आशीर्वाद दिया है। अगर वहाँ रहने वाले लोग परमेश्वर की शान्ति पाने की इच्छा नहीं रखते हैं, तो तुम्हारे द्वारा दी गई शान्ति तुम्हारे पास वापस आ जाएगी।
\v 7 जब तक तुम उस गाँव को नहीं छोड़ देते तब तक उसी घर में रहो। एक घर से दूसरे में न जाओ, वे जो कुछ भी तुम्हें खाने को दें, खाओ और पीओ, क्योंकि एक मजदूर अपने काम के लिए मजदूरी प्राप्त करने के योग्य है।
\s5
\v 8 जब भी तुम किसी शहर में प्रवेश करते हो और वहाँ के लोग तुम्हारा स्वागत करते हैं, तो जो कुछ वे तुम्हें खाने को देते हैं वही खाओ।
\v 9 वहाँ के बीमार लोगों को स्वस्थ करो। उन्हें बताओ, ‘परमेश्वर शीघ्र ही हर जगह राजा के रूप में शासन करेंगे।’
\s5
\v 10 लेकिन अगर तुम एक ऐसे शहर में प्रवेश करते हो जहाँ के लोग तुम्हारा स्वागत नहीं करते हैं, तो उस शहर के मुख्य मार्ग मुख्य सड़कों पर जाओ और कहो,
\v 11 ‘तुम्हारे लिए चेतावनी के रूप में, हम अपने पैरों पर लगी हुई धूल को भी झाड़ देते हैं क्योंकि हम तुम्हारे शहर को छोड़कर जा रहें हैं। लेकिन यह बात निश्चित है कि परमेश्वर शीघ्र ही राजा होकर सब पर शासन करेंगे।’
\v 12 मैं तुम से कहता हूँ कि अंतिम दिन जब परमेश्वर सब का न्याय करेंगे, तब उस शहर के लोगों को, पूर्व काल के सदोम शहर में रहने वाले दुष्ट लोगों की तुलना में अधिक गंभीर दण्ड दिया जाएगा!
\p
\s5
\v 13 खुराजीन और बैतसैदा के शहरों में रहने वाले तुम लोगों के लिए यह कितना भयानक होगा, क्योंकि तुम पश्चाताप करने से इन्कार करते हो! अगर तुम्हारे लिए मैंने जो चमत्कार किए थे, यदि वह सोर और सीदोन के प्राचीन शहरों में किए गए होते, तो वहाँ रहने वाले दुष्ट लोगों ने बहुत पहले से ही टाट पहनकर, और भूमि पर बैठकर और अपने सिर पर राख डालकर, दिखा देते कि वे अपने पापों के लिए कितने शोकित हैं।
\v 14 तो अन्तिम दिन में जब परमेश्वर सब का न्याय करेंगे, तो वह तुम्हें सोर और सीदोन में रहने वाले दुष्ट लोगों की तुलना में अधिक गंभीर दण्ड देंगे क्योंकि तुम ने पश्चाताप नहीं किया और मुझ पर भरोसा नहीं किया, जब कि तुमने मुझे अनेक चमत्कार करते देखा है!
\v 15 मुझे कफरनहूम शहर में रहने वाले लोगों से भी कुछ कहना है। क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हें स्वर्ग में सम्मानित किया जाएगा? इसके विपरीत, तुम्हें मरे हुओं के स्थान तक गिराया जाएगा!
\p
\s5
\v 16 यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, “जो कोई तुम्हारा सन्देश सुनेगा, वह मेरी बात सुनेगा और जो कोई तुम्हारा सन्देश अस्वीकार करेगा, वह मुझे अस्वीकार करेगा। और जो कोई मुझे अस्वीकार करेगा, वह मुझे भेजनेवाले परमेश्वर को अस्वीकार करेगा।”
\p
\s5
\v 17 वे सत्तर पुरुष जिन्हें यीशु ने नियुक्त किया था, चले गए और यीशु की आज्ञा के अनुसार किया। जब वे लौट आए, तो वे अति आनन्दित थे। उन्होंने कहा, “हे प्रभु, दुष्ट-आत्माओं ने हमारी आज्ञा का पालन किया जब हम ने आपके दिए अधिकार से उन्हें लोगों में से निकल जाने का आदेश दिया!”
\v 18 उन्होंने उत्तर दिया, “जब तुम ऐसा कर रहे थे, तो मैंने शैतान को स्वर्ग से बिजली के समान अकस्मात ही अति शीघ्र गिरते हुए देखा!
\v 19 सुनो! मैंने तुम्हें दुष्ट-आत्माओं पर अधिकार दिया है। वे तुम्हारी हानि नहीं करेंगी। मैंने तुम्हें हमारे शत्रु शैतान से अधिक शक्तिशाली होने का अधिकार दिया है। किसी वस्तु से तुम्हारी हानि नहीं होगी।
\v 20 तुम आनन्दित हो कि दुष्टात्माएँ तुम्हारी आज्ञा मानती हैं, परन्तु तुम्हें इससे अधिक आनन्दित होना चाहिए क्योंकि तुम्हारे नाम स्वर्ग में लिखे गए हैं।”
\p
\s5
\v 21 उसी समय, यीशु पवित्र आत्मा में होकर महान आनन्द से भर गए। उन्होंने कहा, “हे पिता, आप जो स्वर्ग में और धरती पर सब के प्रभु हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि वे बुद्धिमान हैं क्योंकि उन्हें अच्छी शिक्षा मिली हैं, लेकिन मैं आपकी स्तुति करता हूँ कि आपने उन्हें इन बातों को जानने से रोका है। बल्कि आपने ऐसे लोगों को, जो आपकी सच्चाई को छोटे बच्चे की तरह आसानी से स्वीकार करते हैं, उन पर ये बातें प्रकट की है। हाँ, पिता, आपने ऐसा किया है, क्योंकि आपको ऐसा करना अच्छा लगा।
\s5
\v 22 यीशु ने शिष्यों से कहा, मेरे पिता परमेश्वर ने सब कुछ मुझे दिया है। केवल मेरे पिता ही मुझे अर्थात् अपने पुत्र को भली-भांति जानते हैं। इसके अलावा, केवल पुत्र ही वास्तव में जानता है कि पिता कौन है- अर्थात् केवल मैं और वे लोग जिन पर मैं उन्हें प्रकट करने के लिए चुनता हूँ, वास्तव में उन्हें जानते हैं।”
\p
\s5
\v 23 फिर जब उनके शिष्य उनके साथ अकेले थे, तो उन्होंने उनकी ओर मुड़कर कहा, “जो कुछ मैंने किया है, उसे देखने का विशेषाधिकार परमेश्वर ने तुम्हें एक महान वरदान के रूप में दिया है!
\v 24 मैं चाहता हूँ कि तुम जानो कि पूर्व काल के कई भविष्यद्वक्ता और राजा इन बातों को देखने के इच्छुक थे जो तुम मुझे करते देख रहे हो, लेकिन वे देख नहीं सके, क्योंकि ये बातें तब नहीं हुईं थी। वे उन बातों को सुनना चाहते थे जिन्हें तुम मुझसे सुनते हो, लेकिन मैंने इन बातों को उस समय प्रकट नहीं किया था।”
\p
\s5
\v 25 एक दिन जब यीशु लोगों को सिखा रहे थे, यहूदी व्यवस्था का एक शिक्षक वहाँ था। वह एक कठिन सवाल पूछकर यीशु की परीक्षा लेना चाहता था। इसलिए वह खड़ा हुआ और पूछा, “गुरु, मुझे परमेश्वर के साथ सदा रहने के लिए क्या करना चाहिए?”
\v 26 यीशु ने उस से कहा, “तूने पढ़ा है कि मूसा ने परमेश्वर द्वारा दी गई व्यवस्था में, क्या लिखा है। नियम क्या कहते हैं?”
\v 27 उस पुरुष ने कहा, “अपने परमेश्वर को अपने सारे मन से, अपनी सारी आत्मा से, अपनी सारी शक्ति से और अपनी सारी बुद्धि से प्रेम कर। और अपने पड़ोसी से जितना स्वयं से प्रेम करते हो उतना प्रेम कर।”
\v 28 यीशु ने उत्तर दिया, “तूने सही उत्तर दिया है। यदि तू ऐसा करता है, तो सर्वदा परमेश्वर के साथ रहेगा।”
\p
\s5
\v 29 लेकिन वह व्यक्ति अन्य लोगों के साथ अपने व्यवहार को उचित सिद्ध करना चाहता था। इसलिए उसने यीशु से कहा, “मेरा पड़ोसी कौन है, जिससे मुझे प्रेम करना चाहिए?”
\v 30 यीशु ने उत्तर दिया, “एक दिन, एक यहूदी मनुष्य यरूशलेम से यरीहो के रास्ते पर जा रहा था। जब वह यात्रा कर रहा था, तो कुछ डाकुओं ने उस पर आक्रमण किया और उन्होंने उसके सारे कपड़े और जो कुछ उसके पास था सब कुछ ले लिया और जब तक वह अधमरा न हो गया तब तक उसे मारा। तब उन्होंने उसे छोड़ दिया।
\s5
\v 31 ऐसा हुआ कि एक यहूदी याजक उस रास्ते से जा रहा था। जब उसने उस व्यक्ति को देखा, तो उसकी सहायता करने की अपेक्षा, वह सड़क के दूसरी ओर से चला गया।
\v 32 इसी तरह, एक लेवी, जो परमेश्वर के मन्दिर में काम करता था, वहाँ आया और उस व्यक्ति को देखा। लेकिन वह भी सड़क के दूसरी ओर चला गया।
\s5
\v 33 फिर सामरिया प्रदेश का एक व्यक्ति उस सड़क पर आया जहाँ वह व्यक्ति पड़ा था। जब उसने उस व्यक्ति को देखा, तो उसे उस पर दया आई।
\v 34 वह उसके पास गया और उसके घावों पर कुछ जैतून का तेल और दाखमधू डाला ताकि घाव जल्द ठीक हो सकें। उसने घावों को कपड़े की पट्टियों से भी लपेटा। फिर वह उस व्यक्ति को अपने गधे पर चढ़ाकर एक सराय में ले गया और उसकी देखभाल की।
\v 35 अगली सुबह उसने सराय के मालिक को दो चाँदी के सिक्के दिए और कहा, ‘इस व्यक्ति को संभालना। यदि तुम और अधिक खर्च करते हो, तो मैं लौटकर तुम्हें दे दूँगा।’
\s5
\v 36 फिर यीशु ने कहा, तीन लोगों ने उस व्यक्ति को देखा जिस पर डाकुओं ने आक्रमण किया था। उनमें से किसने दिखाया कि वह उस व्यक्ति का सच्चा पड़ोसी है?”
\v 37 व्यवस्था के शिक्षक ने जवाब दिया, “जिसने उस पर दया की।” यीशु ने उस से कहा, “हाँ, तो अब तू जाकर सब के साथ ऐसा ही व्यवहार कर !”
\p
\s5
\v 38 जब यीशु और उनके शिष्य यात्रा कर रहे थे, तो वे यरूशलेम के निकट के एक गाँव में गए। एक स्त्री ने जिसका नाम मार्था था, उन्हें अपने घर आने के लिए आमंत्रित किया।
\v 39 उसकी छोटी बहन, जिसका नाम मरियम था, यीशु के पैरों के पास बैठी थी। वह उनके उपदेशों को सुन रही थी।
\s5
\v 40 लेकिन मार्था भोजन तैयार करने के बारे में बहुत चिंतित थी। वह यीशु के पास गई और कहा, “हे प्रभु, क्या आप को चिन्ता नहीं कि मेरी बहन ने मुझे सब कुछ तैयार करने के लिए अकेला छोड़ दिया है? कृपया उससे कहें कि वह मेरी सहायता करे!”
\v 41 परन्तु प्रभु ने उत्तर दिया, “मार्था, मार्था, तुम बहुत सी बातों के बारे में चिंतित हो।
\v 42 परन्तु, वास्तव में केवल एक ही बात आवश्यक है और वह है, मेरे उपदेशों को सुनना। मरियम ने सबसे अच्छा भाग चुना है। ऐसा करके उसने जो आशीष प्राप्त की है उससे कोई छीन नहीं सकता।”
\s5
\c 11
\p
\v 1 एक दिन यीशु किसी स्थान पर प्रार्थना कर रहे थे। जब उन्होंने प्रार्थना समाप्त की, तो उनके शिष्यों में से एक ने उनसे कहा, "हे प्रभु, हमें सिखाएँ कि जब हम प्रार्थना करते हैं तो क्या कहना चाहिए, जैसा यूहन्ना ने अपने शिष्यों को सिखाया था!"
\s5
\v 2 उन्होंने उनसे कहा, "जब तुम प्रार्थना करते हो, तो कहो: 'हे पिता, सब लोग आपका नाम पवित्र माने। आप शीघ्र ही हर एक स्थान पर और सब लोगों पर शासन करें।
\s5
\v 3 कृपया प्रतिदिन का भोजन हमें दें जो हमें चाहिए।
\v 4 कृपया हमारे द्वारा किए गए अनुचित कामों के लिए हमें क्षमा कर दें, जैसे हम हमारे विरुद्ध किए गए अनुचित कामों के लिए लोगों को क्षमा करते हैं। जब हमारी परीक्षा होती है तो हमें पाप न करने में हमारी सहायता करें।'"
\p
\s5
\v 5 तब उन्होंने उनसे कहा, "मान लो कि तुम में से कोई आधी रात को एक मित्र के घर जाता है। और बाहर खड़े होकर उसे पुकार कर कहता है, 'हे मेरे मित्र, कृपया मुझे तीन रोटियाँ दे दो!
\v 6 मेरा एक मित्र जो यात्रा कर रहा है, अभी मेरे घर पहुँँचा है, लेकिन मेरे पास उसे देने के लिए कोई भोजन नहीं है!
\v 7 मान लो कि वह तुम्हें घर के अन्दर से जवाब दे, "मुझे परेशान मत करो! दरवाजा बन्द कर दिया गया है और मेरा सारा परिवार बिस्तर में है। तो मैं उठकर तुम्हें कुछ नहीं दे सकता!"
\v 8 मैं तुमसे कहता हूँ, वह तुम्हारा मित्र होने पर भी यदि उठकर तुम्हें कुछ भोजन देना नहीं चाहता हो। तो क्योंकि तुम उससे लगातार माँगते रहते हो, इसलिए वह निश्चय ही उठकर तुम्हें जो चाहिए वह दे देगा।
\s5
\v 9 अत: मैं तुमसे कहता हूँ: तुम्हें जो भी आवश्यकता है उसके लिए परमेश्वर से लगातार माँगते रहो, और वह तुम्हें वो दे देंगे। उनकी इच्छा को खोजो और वह उसे तुम पर प्रकट करेंगे। परमेश्वर से निरन्तर प्रार्थना करते रहो, जैसे कोई दरवाजे पर खटखटाता है, और वह तुम्हारे लिए मार्ग बना देगा जिस के द्वारा तुम अपनी प्रार्थना का उत्तर प्राप्त करोगे।
\v 10 याद रखो कि जो कोई माँगेगा, उसे प्राप्त होगा और जो कोई भी ढूँढ़ेगा, वह पाएगा, और जो भी खटखटाएगा उसके लिए द्वार खोल दिया जाएगा।
\s5
\v 11 यदि तुम में से किसी का पुत्र खाने के लिए मछली माँगे, तो क्या तुम उसे एक जहरीला साँप खाने को दोगे, कदापि नहीं?
\v 12 और अगर उसने तुमसे अंडा माँगे तो क्या तुम उसे एक बिच्छू दोगे, कदापि नहीं?
\v 13 यद्यपि तुम लोग जो पापी हो, परन्तु अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएँ देना जानते हो, तो निश्चय तुम्हारा पिता जो स्वर्ग में है तुम्हें पवित्र आत्मा देगा यदि तुम उससे माँगोगे।"
\p
\s5
\v 14 एक दिन एक व्यक्ति यीशु के पास आया जो बोल नहीं सकता था क्योंकि एक दुष्ट-आत्मा उसे वश में किया हुआ था। यीशु ने दुष्ट-आत्मा को बाहर निकाला, तब वह व्यक्ति बात करने लगा और लोगों की भीड़ आश्चर्यचकित हो गई।
\v 15 परन्तु उनमें से कुछ ने कहा, "यह शैतान का राजा बअलजबूल है, जो इस मनुष्य को दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकालने में सक्षम बनाता है!"
\s5
\v 16 अन्य लोगों ने उनसे कहा कि वह कोई चिन्ह दिखाकर सिद्ध करें कि वह परमेश्वर की ओर से हैं।
\v 17 लेकिन उन्हें पता था कि वे क्या सोच रहे थे। इसलिए उन्होंने उनसे कहा, "यदि एक देश के लोग एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ते हैं, तो उनका देश नष्ट हो जाएगा। अगर एक परिवार में लोग एक-दूसरे का विरोध करते हैं, तो उनका परिवार टूट जाएगा।
\s5
\v 18 इसी तरह, अगर शैतान और उसकी दुष्टात्माएँ एक दूसरे के विरुद्ध लड़ेंगे, तो उनका शासन निश्चय ही समाप्त हो जाएगा! मैं यह इसलिए कहता हूँ कि तुम कह रहे हो कि मैं दुष्ट-आत्माओं के शासक की शक्ति से दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकालता हूँ!
\v 19 अब, अगर यह वास्तव में सच है कि शैतान मुझे दुष्ट-आत्माओं को बाहर करने की शक्ति देता है, तो क्या यह भी सच है कि तुम्हारे शिष्य जो दुष्ट-आत्माओं को निकालते है वे भी शैतान की शक्ति से ऐसा करते हैं? कभी नही! इसलिए वे सिद्ध करते हैं कि तुम गलत हो।
\v 20 परन्तु क्योंकि वास्तव में, मैं परमेश्वर की शक्ति से दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकालता हूँ, इस से मैं प्रकट करता हूँ कि परमेश्वर ने तुम पर शासन करना आरंभ कर दिया है।
\p
\s5
\v 21 यीशु ने आगे कहा, जब एक बलवन्त व्यक्ति, जिसके पास बहुत से हथियार हैं स्वयं अपने घर की रखवाली करता है, तब कोई भी उसके घर में चोरी नहीं कर सकता।
\v 22 लेकिन जब कोई अन्य व्यक्ति जो उससे भी अधिक बलवन्त है उस पर आक्रमण करता है और उसे अपने अधीन कर लेता है, तो वह उन हथियारों को छीन सकता है, जिस पर वह व्यक्ति भरोसा करता था। तब वह उस व्यक्ति के घर से जो कुछ भी लेना चाहता है, वह ले सकता है।
\v 23 जो कोई मेरा समर्थन नहीं करता है, वह मेरा विरोध करता है, और जो कोई लोगों को मेरे पास नहीं लाता, वह उन्हें मुझसे दूर ले जाता है।
\p
\s5
\v 24 फिर यीशु ने यह कहा: कभी-कभी जब कोई दुष्ट-आत्मा किसी को छोड़ देती है, तो वह राहत के लिए उजाड़ क्षेत्रों में भटकती है। अगर उसे कोई विश्राम स्थान नहीं मिलता है, तो वह स्वयं से कहती है, 'मैं उस व्यक्ति के पास वापस लौट जाऊँगी जिसमें मैं वास करती थी!
\v 25 तो वह वापस आकर पाती है कि वह व्यक्ति एक ऐसे घर के समान है जिसे साफ और व्यवस्थित किया गया है, लेकिन खाली है।
\v 26 तब वह दुष्ट-आत्मा जाती है और सात अन्य दुष्ट-आत्माओं को जो उससे भी ज्यादा बुरी हैं साथ लेकर आती है। वे सब उस व्यक्ति में प्रवेश करती हैं और वहाँ रहने लगती हैं। इसलिए, उस व्यक्ति की स्थिति पहले से भी बहुत अधिक खराब हो जाती है।"
\p
\s5
\v 27 जब यीशु ने यह कहा तो, एक स्त्री जो सुन रही थी, जोर से पुकारकर कहने लगी, "परमेश्वर ने उस स्त्री को, जिसने तुझे जन्म दिया और उन स्तनों को, जिसने तुम्हें दूध पिलाया कितनी आशीष दी है! "
\v 28 तब उन्होंने कहा, "परमेश्वर ने उससे भी अधिक आशीष उन्हें दी है जो इस सन्देश को सुनते हैं और उसका पालन करते हैं!"
\p
\s5
\v 29 जब अधिक से अधिक लोग यीशु के चारों ओर एकत्र हो रहे थे तब उन्होंने कहा, "इस युग में रहनेवाले लोग बुरे हैं। तुम में से बहुत सारे लोग मुझे चमत्कार करते देखना चाहते हैं, जिससे यह प्रमाणित हो कि मैं परमेश्वर की ओर से आया हूँ। तुम्हारे लिए एकमात्र प्रमाण वह चमत्कार है जो योना के साथ हुआ था।
\v 30 जिस तरह से जो चमत्कार परमेश्वर ने योना के लिए बहुत पहले किया था, वह नीनवे शहर के लोगों के लिए एक प्रमाण था, उसी प्रकार परमेश्वर, मनुष्य के पुत्र के लिए भी ऐसा ही एक चमत्कार करेंगे जो तुम लोगों के लिए एक प्रमाण होगा।
\s5
\v 31 पूर्व काल में, शेबा की रानी लम्बी यात्रा करके, सुलैमान की बुद्धिमानी की बातें सुनने आई थी। और अब तो सुलैमान से बहुत अधिक महान व्यक्ति यहाँ है, परन्तु तुमने सचमुच मेरी बातें नहीं सुनी। इसलिए, उस समय जब परमेश्वर सब लोगों का न्याय करेंगे, यह रानी वहाँ खड़े होकर तुम लोगों को अपराधी ठहराएगी।
\s5
\v 32 जो लोग नीनवे के प्राचीन शहर में रहते थे, वे योना का प्रचार सुनकर अपने पापमय जीवन से मुड़ गए थे। और अब मैं, जो योना से बड़ा हूँ, आया हूँ और तुम्हें उपदेश देता हूँ, परन्तु तुम अपने पापमय जीवन से नहीं मुड़े। इसलिए, उस समय जब परमेश्वर सब लोगों का न्याय करेंगे, जो लोग नीनवे में रहते थे, वहाँ खड़े होकर तुम लोगों को दोषी ठहराएँगे।
\p
\s5
\v 33 लोग दिपक जलाकर उसे छिपाते नहीं या टोकरी के नीचे नहीं रखते हैं, बल्कि उसे दीवट पर रखते है कि कमरे या घर में प्रवेश करनेवाले को प्रकाश दिख सके।
\v 34 तुम्हारी आँख तुम्हारे शरीर का दीपक है, यदि तुम्हारी आँख स्वस्थ है, तो तुम्हारा पूरा शरीर प्रकाश से भरा हुआ है। दूसरी ओर, यदि आँख अस्वस्थ है, तो तुम्हारा शरीर अन्धेरे से भरा है।
\v 35 इसलिए, सावधान रहो कि तुम्हारे भीतर का प्रकाश अन्धकार न हो जाए।
\v 36 अगर तुम्हारा पूरा शरीर प्रकाश से भरा हुआ है और उसका कोई भी भाग अन्धकारमय नहीं है, तो तुम्हारा पूरा शरीर प्रकाशमान होगा, जैसे एक दीपक की रोशनी जो सब कुछ स्पष्ट रूप से देखने में सहायता करती है।"
\p
\s5
\v 37 जब यीशु ने इन बातों को कहना पूरा किया, तब एक फरीसी ने उन्हें अपने साथ भोजन करने के लिए आमन्त्रित किया। इसलिए यीशु फरीसी के घर में गए और खाने के लिए मेज़ पर बैठ गए।
\v 38 फरीसी को यह देखकर बड़ा अचम्भा हुआ कि यीशु ने खाने से पहले अपने हाथ नहीं धोए थे।
\s5
\v 39 प्रभु यीशु ने उस से कहा, "तुम फरीसी खाने से पहले कटोरे और थाली को बाहर से धोते हो, परन्तु तुम भीतर से बहुत लालची और दुष्ट हो।
\v 40 हे मूर्ख लोगों! तुम निश्चय ही जानते हो कि परमेश्वर ने केवल बाहर के भाग को ही नहीं भीतर के भाग को भी बनाया हैं!
\v 41 थाली की साफ-सफाई के बारे में चिन्ता करने की बजाय, दयालु बनो और भोजन उन लोगों को दो जिन्हें आवश्कता है, तब तुम अन्दर और बाहर दोनों ओर से साफ हो जाओगे।
\p
\s5
\v 42 परन्तु तुम फरीसियों के लिए यह कितना भयानक होगा! तुम ध्यान से अपनी सभी चीजों का दसवाँ अंश परमेश्वर को देते हो, जिसमें तुम्हारे बगीचों के सागपात भी हैं। लेकिन तुम परमेश्वर से प्रेम नहीं करते और न दूसरों के प्रति न्याय से व्यवहार करते हो। तुम्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तुम परमेश्वर से प्रेम करते हो और परमेश्वर को देने के साथ-साथ दूसरों के साथ भी न्यायपूर्ण व्यवहार करते हो।
\s5
\v 43 तुम फरीसियों के लिए यह कितना भयानक होगा, क्योंकि तुम आराधनालयों में सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में बैठना पसन्द करते हो, और तुम चाहते हो कि लोग तुम्हें बाजारों में विशेष सम्मान के साथ नमस्कार करें।
\v 44 यह तुम्हारे लिए कितना भयानक होगा, क्योंकि तुम उन अनगिनत छिपी कब्रों के समान हो, जिन पर लोग भूल से चलते हैं और अशुद्ध होते हैं।"
\p
\s5
\v 45 उनमें से एक यहूदी व्यवस्था के शिक्षक ने कहा, "गुरु, यह कह कर आप हमारी भी आलोचना कर रहे हैं!"
\v 46 यीशु ने कहा "यह तुम्हारे लिए कितना भयानक होगा तुम जो यहूदी व्यवस्था के शिक्षक हो, तुम लोगों को बहुत भारी बोझ से लादते हो, फिर भी तुम उन बोझों को उठाने के लिए, उनकी थोड़ी भी सहायता नहीं करते!
\s5
\v 47 यह तुम्हारे लिए कितना भयानक होगा, क्योंकि तुम भविष्यद्वक्ताओं की कब्रों पर भवनों का निर्माण करते हो, लेकिन तुम्हारे पूर्वजों ने ही उन्हें मार डाला था!
\v 48 इसलिए जब तुम इन भवनों को बनाते हो, तो तुम यह घोषणा कर रहे हो कि तुम अपने पूर्वजों से, जिन्होंने भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला था, सहमत हो।
\s5
\v 49 इसलिए परमेश्वर ने जो बहुत बुद्धिमान है कहा, मैं अपने लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए भविष्यद्वक्ताओं और प्रेरितों को भेजूँगा। परन्तु वे उन्हें बहुत दु:ख देंगे और मार डालेंगे।
\v 50 परिणामस्वरुप, इस युग में रहनेवाले बहुत से लोग संसार के आरंभ से परमेश्वर के भविष्यद्वक्ताओं की हत्या के दोषी माने जाएँगे,
\v 51 जिसमें, अपने भाई द्वारा मार डाले गए हाबिल से लेकर जकर्याह नबी तक जो मन्दिर में वेदी और पवित्र स्थान के बीच मारा गया था सब हैं। हाँ, इस युग में रहनेवाले लोगों को इन सब भविष्यद्वक्ताओं की हत्याओं का दोषी माना जाएगा!
\s5
\v 52 यह तुम्हारे लिए कितना भयानक होगा तुम व्यवस्था के शिक्षक हो, तुम्हारे कारण, लोगों को पता नहीं है कि कैसे परमेश्वर उन पर शासन करेंगे! तुम परमेश्वर को अपने ऊपर शासन करने नहीं देते और तुम उन लोगों के रास्ते में भी बाधा बनते हो जो अपने ऊपर परमेश्वर का शासन चाहते हैं।"
\p
\s5
\v 53 जब यीशु यह बातें कह चुके, तब वह वहाँ से चले गए। फिर यहूदी व्यवस्था के शिक्षक और फरीसी, उनके प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने लगे। उन्होंने कई बातों के बारे में उनसे कठोर प्रश्न किए।
\v 54 वे प्रतीक्षा कर रहे थे कि वह कुछ गलत बोलें और वे उन पर दोष लगा सकें।
\s5
\c 12
\p
\v 1 इस बीच, हजारों लोग यीशु के चारों ओर एकत्र हो गए यहाँ तक कि एक दूसरे पर गिरे पड़ते थे। परन्तु उन्होंने पहले अपने शिष्यों से कहा, "सावधान रहो कि तुम फरीसियों के जैसे मत बनो, जो जनता के सामने धर्म के काम करते हैं, परन्तु गुप्त में बुराई करते हैं। जैसे थोड़े से खमीर से आटा पूरा खमीर हो जाता है, वैसे ही उनके बुरे व्यवहार से दूसरे लोग भी कपटी बन जाते हैं।
\s5
\v 2 लोग अपने पापों को ढाँक नहीं सकते, किसी न किसी दिन परमेश्वर सब के कामों को जिन्हें वे छिपाने का प्रयास कर रहे हैं, प्रकट करेंगे।
\v 3 जो कुछ भी तुम अन्धेरे में कहते हो, किसी दिन लोग उसे दिन के उजाले में सुनेंगे। जो भी तुम अपने कमरे में धीरे से बोलते हो वह किसी दिन सब को सुनाई देगा, जैसे कि छतों से चिल्लाया गया हो।
\p
\s5
\v 4 "मेरे मित्रों, ध्यान से सुनो! मनुष्यों से मत डरो, वे तुम्हें मार सकते हैं, लेकिन उसके बाद वे कुछ भी नहीं कर सकते।
\v 5 लेकिन मैं तुम्हें उसके बारे में चेतावनी दूँगा जिस से तुम्हें वास्तव में डरना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर से डरना चाहिए, क्योंकि उनके पास केवल लोगों को मारने का ही नहीं, परन्तु उस के बाद उन्हें नरक में फेंकने का भी अधिकार हैं! हाँ, वही हैं जिनसे तुम्हें वास्तव में डरना चाहिए!
\s5
\v 6 गौरैयों के बारे में सोचो। उनका मूल्य इतना कम है कि तुम उनमें से पाँच को केवल दो छोटे सिक्कों में खरीद सकते हो, लेकिन फिर भी परमेश्वर उनमें से किसी को नहीं भूलते हैं!
\v 7 परमेश्वर यह भी जानते हैं कि तुम्हारे सिर पर कितने बाल हैं। डरो मत, क्योंकि तुम कई गौरैयों की तुलना में परमेश्वर के लिए अधिक मूल्यवान हो।
\p
\s5
\v 8 मैं तुमसे यह भी कहता हूँ, कि यदि लोग दूसरों के सामने मान लेते हैं कि वे मेरे शिष्य हैं, तो मैं, मनुष्य का पुत्र परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने कहूँगा कि वे मेरे शिष्य हैं।
\v 9 लेकिन अगर वे दूसरों के सामने कहते हैं कि वे मेरे शिष्य नहीं हैं, तो मैं परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने कहूँगा कि वे मेरे शिष्य नहीं हैं।
\v 10 मैं तुमसे यह भी कहता हूँ कि यदि लोग मेरे अर्थात् मनुष्य के पुत्र के बारे में बुरी बातें कहते हैं, तो परमेश्वर उस के लिए उन्हें क्षमा कर देंगे। लेकिन अगर लोग पवित्र आत्मा के बारे में बुरी बातें कहते हैं, तो परमेश्वर उस के लिए उन्हें कभी भी क्षमा नहीं करेंगे।
\s5
\v 11 इसलिए जब लोग तुम्हें धार्मिक नेताओं और राज्य करनेवाले अन्य लोगों के सामने प्रश्न पूछने के लिए आराधनालयों में ले जाएँगे, तो चिन्ता न करना कि तुम उनको क्या उत्तर दोगे या तुम क्या कहोगे,
\v 12 क्योंकि पवित्र आत्मा उस वक्त तुम्हें बताएँगे कि क्या क्या कहना चाहिए।"
\p
\s5
\v 13 तब भीड़ में से एक व्यक्ति ने यीशु से कहा, "गुरु, मेरे भाई से मेरे पिता की संपत्ति को मेरे साथ बाँटने के लिए कहो!"
\v 14 परन्तु यीशु ने उसको उत्तर दिया, "हे मनुष्य, मुझे लोगों के बीच संपत्ति से संबंधित विवादों का न्याय करने के लिए न्यायाधीश नहीं बनाया है!"
\v 15 फिर उन्होंने भीड़ से कहा, "सावधान रहो कि किसी भी तरह के लालच में न पड़ो! मनुष्य के जीवन का मूल्य उसकी संपत्ति के द्वारा निर्धारित नहीं होता है।"
\p
\s5
\v 16 फिर उन्होंने उन्हें यह दृष्टान्त सुनाया: "एक अमीर व्यक्ति के खेत में अधिक मात्रा में फसल का उत्पादन हुआ।
\v 17 इसलिए उसने अपने आप में सोचा, "मैं नहीं जानता कि मैं क्या करूं, क्योंकि मेरे पास कोई बड़ा स्थान नहीं है जहाँ मैं अपनी सारी फसल को रख सकूँ!
\v 18 फिर उसने अपने आप में सोचा, "मुझे पता है कि मुझे क्या करना चाहिए! मैं अपने खलिहान को तोड़कर, एक बड़े खलिहान का निर्माण करूँगा! तब मैं अपना सारा अनाज और अन्य वस्तुओं को उस बड़े खलिहान में रखूँगा।
\v 19 फिर मैं अपने आप से कहूँगा, "अब मेरे पास अनेक वर्षों के लिये बहुत संपत्ति रखी है, इसलिए अब मैं जीवन को चैन से बिताऊँगा। मैं खाऊँगा-पिऊँगा, और आनन्द करूँगा!"
\s5
\v 20 परन्तु परमेश्वर ने उस से कहा, 'हे मूर्ख! आज रात तू मरेगा! तब तूने जो कुछ भी जमा किया है वह किसी और का होगा!'
\p
\v 21 तब यीशु ने इस दृष्टान्त को यह कहते हुए समाप्त कर दिया: लोग अपने लिए वस्तुओं को एकत्र करते हैं, परन्तु जिन वस्तुओं को परमेश्वर मूल्यवान समझते हैं, उनको कीमती नहीं मानते हैं, तो उनके साथ ऐसा ही होगा।"
\p
\s5
\v 22 फिर यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, "तो मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूँ: जीवित रहने के लिए जिन वस्तुओं की आवश्यक्ता है, उनकी चिन्ता मत करो। इसकी चिन्ता मत करो कि तुम्हारे पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन या पहनने के लिए पर्याप्त कपड़े हैं या नहीं।
\v 23 तुम्हारा जीवन भोजन से अधिक आवश्यक है और तुम्हारा शारीर कपड़ों से अधिक आवश्यक है जिनसे तुम अपने शरीर को ढाँकते हो।
\s5
\v 24 पक्षियों के बारे में सोचो: वे बीज नहीं बोते हैं, और वे फसल नहीं काटते हैं। उनके पास भण्डार और खत्ते नहीं हैं, जिसमें वह फसल को एकत्र करें। परन्तु परमेश्वर उन्हें भी भोजन देते हैं। तुम निश्चय ही पक्षियों की तुलना में अधिक मूल्यवान हो।
\v 25 तुम में से कोई भी चिन्ता करके अपने जीवन में एक पल भी नहीं बड़ा सकता है!
\v 26 इसलिए जब तुम यह छोटा सा काम भी नहीं कर सकते, तो निश्चय ही तुम्हे किसी और वस्तु की चिन्ता नहीं करनी चाहिए।
\s5
\v 27 फूलों के बढ़ने के तरीके के बारे में सोचो: वे पैसे कमाने के लिए काम नहीं करते हैं और वे अपने कपड़े नहीं बनाते हैं। लेकिन मैं तुम्हें बताता हूँ कि राजा सुलैमान, जो पूर्व काल में था, बहुत सुन्दर कपड़े पहनता था, फिर भी वह उनमें से किसी एक के समान अच्छे वस्त्र पहने हुए न था।
\v 28 परमेश्वर पौधों को सुन्दर बनाते हैं, हालांकि वे केवल थोड़े समय के लिए उगते हैं, फिर उन्हें काट दिया जाता है और आग में डाल दिया जाता है। परन्तु तुम परमेश्वर के लिए बहुत ही अनमोल हो, और वह पौधों से अधिक तुम्हारी चिन्ता करते हैं और तुम्हारी देखभाल करेंगे। तुम उन पर इतना कम भरोसा क्यों करते हो?
\s5
\v 29 क्या खाओगे और क्या पिओगे इसकी चिन्ता मत करो, और उन वस्तुओं के विषय में चिन्तित न रहो।
\v 30 जो लोग परमेश्वर को नहीं जानते, वे इन वस्तुओं के बारे में चिन्ता करते हैं। लेकिन तुम्हारे पिता जो स्वर्ग में हैं जानते हैं कि तुम्हारी आवश्यक्ताएँ क्या हैं।
\s5
\v 31 इसकी अपेक्षा तुम्हारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण बात यह हो कि तुम परमेश्वर के शासन को स्वीकार करो। तब वह तुम्हें सब कुछ दे देंगे।
\p
\v 32 अत: हे छोटे झुंड तुम्हें डरना नहीं चाहिए। तुम्हारे पिता जो स्वर्ग में हैं, उन्होंने जो निर्णय लिया है, वह उसके अनुसार तुम्हें सब आशीषें देंगे जब वह सब पर राज्य करेंगे।
\s5
\v 33 इसलिए अब अपनी संपत्ति को बेच दो, और जिनको भोजन और कपड़ों की आवश्यक्ता है या रहने के लिए स्थान की आवश्कता है, उन्हें दे दो। अपने लिये ऐसे बटुए बनाओ, जो पुराने नहीं होते और स्वर्ग में अपने लिए खज़ाना इकट्ठा करो, जहाँ वह हमेशा सुरक्षित रहेगा। वहाँ, चोर चोरी करने के लिए नहीं आ सकता है, और कोई कीड़ा तुम्हारे कपड़ों को नष्ट नहीं कर सकता है।
\v 34 तुम सदैव अपनी संपदा के बारे में सोचोगे और अपना समय उसी में लगा ओगे।
\p
\s5
\v 35 परमेश्वर का काम करने के लिए सदैव तैयार रहो, उन लोगों के समान जिन्होंने अपने कामवाले वस्त्र पहने हैं और जिनके दीये सारी रात जलते रहते हैं।
\v 36 मेरे वापस आने के लिए तैयार रहो, उन दासों की तरह जो विवाह के भोज में रहने के बाद अपने स्वामी के लौट आने की प्रतीक्षा करते हैं। जैसे ही वह आता है और द्वार पर दस्तक देता है वे उसके लिए द्वार खोलने की प्रतीक्षा करते हैं।
\s5
\v 37 जब वह वापस आएगा, और दासों को प्रतीक्षा करते देखेगा तो वह उन्हें उसका फल देगा। मैं तुमसे कहता हूँ: वह उनकी सेवा करने के लिए तैयार हो जाएगा, उन्हें बैठने के लिए कहेगा, और वह उनको खाना परोसेगा।
\v 38 यदि वह आधी रात या सूर्योदय के बीच में आए और अपने दासों को जागता और सेवा के लिए तैयार पाए तो वह उनसे बहुत प्रसन्न होगा।
\s5
\v 39 लेकिन तुम्हें यह भी याद रखना चाहिए: अगर घर के मालिक को पता होता कि चोर कब आएगा, तो वह जागता रहता और चोर को अपने घर में घुसने नहीं देता।
\v 40 इसलिए तैयार रहो, क्योंकि मैं मनुष्य का पुत्र, उस समय आऊँगा जब तुम मुझसे आशा नहीं कर रहे होगे।"
\p
\s5
\v 41 पतरस ने पूछा, "हे प्रभु, क्या आप यह उदाहरण केवल हमारे लिए या सब के लिए भी दे रहे हैं?"
\v 42 प्रभु ने उत्तर दिया, "मैं उन सब के लिए कह रहा हूँ जो एक विश्वास योग्य और बुद्धिमान दास के समान हैं जो अपने स्वामी के घर का प्रबंधक हैं। उसका स्वामी उसे यह सुनिश्चित करने का अधिकार देता है कि अन्य दास उचित समय पर अपना भोजन करें ।
\v 43 जब उसका मालिक लौटेगा, तो यदि वह दास को ऐसा ही करते पाए, तो उसका मालिक उसे इसका फल देगा।
\v 44 मैं तुमसे कहता हूँ: स्वामी उस दास को अपनी सभी संपत्ति पर अधिकारी बनाएगा।
\s5
\v 45 लेकिन अगर वह दास स्वयं से कहता है, मेरा मालिक बहुत समय से दूर गया हुआ है, तो वह अन्य नौकरों को, स्त्री और पुरुष दोनों को मारना शुरू कर दे। और ।
\v 46 तो उसका मालिक ऐसे समय पर वापस आएगा जब दास उसके लौटने की आशा नहीं कर रहा हो। तब उसका स्वामी उसे कठोर दण्ड देगा और उसे उन लोगों के साथ रख देगा जो उसकी सेवा में विश्वासयोग्य नहीं हैं।
\s5
\v 47 वह दास जो अपने मालिक की इच्छा को जानता था, परन्तु तैयार नहीं हुआ, उसे गम्भीर दण्ड दिया जाएगा।
\v 48 परन्तु वह दास जो अपने स्वामी की इच्छा को नहीं जानता था उसने कोई अनुचित काम किया तो कम दण्ड मिलेगा। जिन्हें बहुत दिया गया है, उन लोगों से बहुत आशा की जाती है। जिन्हें बहुत सौंपा गया है, उन लोगों से कहीं अधिक की आशा की जाती है।
\p
\s5
\v 49 मैं पृथ्वी को आग लगाने आया हूँ। मैं चाहता हूँ कि आग अभी लग जाए।
\v 50 शीघ्र ही, मुझे भयंकर दुःखों का बपतिस्मा लेना होगा। मेरा दुख समाप्त होने तक, मैं व्याकुल रहूँगा।
\s5
\v 51 क्या तुम यह सोचते हो कि पृथ्वी पर मेरे आने से लोग एक साथ शान्तिपूर्वक रहेंगे? नहीं! मैं तुमसे कहता हूँ कि वे एक दूसरें से अलग हो जाएँगे।
\v 52 क्योंकि एक घर में कुछ लोग मुझ पर विश्वास करेंगे और कुछ नहीं करेंगे, अत: वे अलग हो जाएँगे। एक घर में तीन लोग जो मुझ पर विश्वास नहीं करते हैं वे उन दो का विरोध करेंगे जो मुझ पर विश्वास करते हैं।
\v 53 एक पुरुष अपने पुत्र का विरोध करेगा, या एक पुत्र अपने पिता का विरोध करेगा। एक स्त्री अपनी पुत्री का विरोध करेगी, या एक स्त्री अपनी माता का विरोध करेगी। एक स्त्री अपनी बहू का विरोध करेगी, या एक स्त्री अपनी सास का विरोध करेगी।"
\p
\s5
\v 54 उन्होंने भीड़ से कहा, "जब तुम पश्चिम में एक काले बादल को उठता देखते हो, तो तुम तुरन्त कहते हो आज बारिश होगी! और ऐसा ही होता है।
\v 55 जब हवा दक्षिण से चलती है, तो तुम कहते हो, यह बहुत गर्म दिन होगा! और तुम सही कहते हो।
\v 56 हे कपटियों! बादलों और हवा को देखकर, तुम मौसम के बारे में समझ जाते हो कि क्या होगा। तो तुम इस बात को क्यों नहीं समझ पा रहे हो कि परमेश्वर इस समय क्या कर रहे हैं?
\p
\s5
\v 57 तुम में से प्रत्येक को यह निर्णय लेना होगा कि समय रहते क्या करना तुम्हारे लिए उचित है!
\v 58 तुझे न्यायालय जाते जाते ही उस व्यक्ति के साथ मुक़दमे का समाधान खोजने का प्रयास करना चाहिए जिसने तुझ पर आरोप लगाया है। यदि वह तुझे न्यायाधीश के पास ले जाए तो न्यायाधीश तुझे दोषी ठहराएगा और तुझे दण्ड देनेवाले अधिकारी के पास भेज देगा। तब वह अधिकारी तुझे बन्दीगृह में डाल देगा।
\v 59 मैं तुझसे कहता हूँ कि अगर तू बन्दीगृह में डाल दिया गया, तो तब तक बाहर नहीं निकल पाएगा जब तक कि तू न्यायाधीश द्वारा ठहराया गया भुगतान पाई-पाई तक न चुका दे।"
\s5
\c 13
\p
\v 1 उस समय, कुछ लोगों ने यीशु को कुछ गलीलियों के बारे में बताया जिन्हें सैनिकों ने हाल ही में यरूशलेम में मारा था। पिलातुस ने, जो रोमी राज्यपाल था, सैनिकों को उन्हें मारने का आदेश दिया था जब वे मन्दिर में बलिदान चढ़ा रहे थे।
\v 2 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "तुम्हारे विचार में क्या उनके साथ ऐसा इसलिए हुआ कि वे अन्य गलीलियों की तुलना में अधिक पापी थे?
\v 3 मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ, कि इसका यह कारण नहीं था! परन्तु तुम्हें यह याद रखना होगा कि यदि तुम अपने पापी व्यवहार से नहीं बदले तो परमेश्वर इसी तरह तुम्हें भी दण्ड देंगे।
\s5
\v 4 और उन अठारह लोगों के बारे में क्या हुआ, जो यरूशलेम के बाहर शीलोह की मीनार के गिरने से मर गए? तुम्हारे विचार में क्या इसका कारण यह कि वे यरूशलेम के लोगों की तुलना में अधिक पापी थे?
\v 5 मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ, कि इसका कारण यह नहीं था! परन्तु तुमको यह समझ लेना चाहिए कि यदि तुम अपने पापी व्यवहार से नहीं बदले तो परमेश्वर तुम्हें भी ऐसा ही दण्ड देंगे!"
\p
\s5
\v 6 तब यीशु ने एक कहानी सुनाई "किसी व्यक्ति ने अपने बगीचे में अंजीर का पेड़ लगाया। प्रति वर्ष वह अंजीर लेने के लिए आता था, परन्तु उस पेड़ पर कोई फल नहीं लगते थे।
\v 7 फिर उसने माली से कहा, 'इस पेड़ को देखो! मैं पिछले तीन साल प्रति वर्ष इसमें फल खोज रहा हूँ, लेकिन इसमें एक भी अंजीर नहीं हैं। इसको काट दो! यह मिट्टी से व्यर्थ में भोजन ले रहा है!'
\s5
\v 8 लेकिन माली ने उत्तर दिया, महोदय, इसे एक और साल के लिए छोड़ दो। मैं इसके चारों ओर खोदूँगा और इसे खाद दूँगा।
\v 9 अगर अगले साल इस पर अंजीर आते हैं, तो हम इसे बढ़ने देंगे परन्तु यदि इसके बाद भी इसमें फल उत्पन्न नहीं हुए तो इसे काट देना।"
\p
\s5
\v 10 एक दिन यहूदियों के विश्राम दिन पर, यीशु एक आराधनालय में लोगों को सिखा रहे थे।
\v 11 वहाँ एक स्त्री थी जिसमें एक दुष्ट-आत्मा थी उसने उसे अठारह वर्ष से अपंग किया हुआ था। वह कुबड़ी थी; वह सीधी खड़ी नहीं हो सकती थी।
\s5
\v 12 जब यीशु ने उसे देखा, तो उसे अपने पास बुलाया। उन्होंने उससे कहा, "स्त्री, मैंने तुम्हें इस बीमारी से स्वस्थ किया है!"
\v 13 उन्होंने अपना हाथ उसके ऊपर रखा, तुरन्त वह सीधी खड़ी होकर परमेश्वर की स्तुति करने लगी!
\v 14 लेकिन आराधनालय का सरदार क्रोधित हुआ क्योंकि यीशु ने उसे यहूदियों के विश्राम दिवस पर ठीक किया था। इसलिए उसने लोगों से कहा, "हर सप्ताह छः दिन होते हैं जिसमें हमारी व्यवस्था लोगों को काम करने की अनुमति देती है। अगर तुम्हें चंगाई की आवश्यकता है, तो उन दिनों में आराधनालय में आओ और स्वस्थ हो जाओ। हमारे विश्राम के दिन पर मत आओ!"
\s5
\v 15 तब प्रभु ने उसे उत्तर दिया, "तू और तेरे साथी धर्म गुरु सब ढोंगी हैं, तुम सब भी तो विश्राम के दिन काम करते हो! क्या तुम अपने बैल या गधे को खाने और पीने के लिए नहीं खोलते?
\v 16 यह स्त्री एक यहूदी है, अब्राहम की वंशज है! लेकिन शैतान ने उसे अठारह वर्ष तक अपंग रखा था, जैसे कि उसने इसे बाँध दिया था! तुम निश्चय ही मुझसे सहमत होंगे कि उसे शैतान के बन्धन से मुक्त करना एक उचित काम है, चाहे मैं विश्राम के दिन ऐसा करूँ!
\s5
\v 17 जब उसने ऐसा कहा तो उसके विरोधी लज्जित हो गए। परन्तु अन्य सब लोग उन अद्भुत कामों से प्रसन्न थे जो वह कर रहे थे।
\p
\s5
\v 18 फिर उन्होंने कहा, "मैं कैसे समझाऊँ कि जब परमेश्वर स्वयं को राजा के रूप में प्रकट होंगे तब कैसा होगा? मैं तुम्हें बताता हूँ कि यह कैसा होगा।
\v 19 यह एक छोटे सरसों के बीज की तरह है जिसे एक व्यक्ति ने अपने खेत में बोया। व उगकर एक बड़ा पेड़ हो गया। व इतना बड़ा था कि पक्षियों ने उसकी शाखाओं में घोंसले बनाए।"
\p
\s5
\v 20 फिर उन्होंने कहा, मैं एक और उदाहरण द्वारा तुम्हे समझाता हूँ कि जब परमेश्वर राजा के रूप में प्रकट होंगे तब कैसा होगा।
\v 21 एक महिला ने पच्चीस किलो आटे में थोडा सा ख़मीर मिलाया। उस थोड़े से ख़मीर ने पूरे आटे को ख़मीर कर दिया।"
\p
\s5
\v 22 यीशु यरूशलेम की ओर जा रहे थे। वह मार्ग में सब नगरों और गाँवों में रुक कर लोगों को उपदेश सुनाते हुए आगे बढ़ रहे थे।
\v 23 किसी ने उनसे पूछा, "हे प्रभु, क्या परमेश्वर केवल कुछ लोगों को ही बचाएँगे?" यीशु ने उत्तर दिया,
\v 24 "सकेत द्वार से प्रवेश करने के लिए तुम्हें कठोर परिश्रम करने की आवश्यक्ता है। मैं तुमसे कहता हूँ कि बहुत से लोग किसी न किसी प्रकार प्रवेश करने का प्रयास करेंगे, परन्तु वे भीतर नहीं पहुँच पाएँगे।
\s5
\v 25 घर का स्वामी उठकर द्वार पर ताला लगा देगा और, तुम बाहर खड़े रहोगे तुम द्वार पर दस्तक दोगे। और तुम घर के स्वामी से विनती करके कहोगे, 'हे प्रभु, हमारे लिए द्वार खोलो!' परन्तु वह उत्तर देंगे, नहीं, मैं नहीं खोलूँगा, क्योंकि मैं तुम्हें नहीं जानता, और नहीं यह जानता हूँ कि तुम कहाँ से आए हो!
\v 26 फिर तुम कहोगे, आप भूल गए हैं कि हमने आपके साथ भोजन खाया है, और आपने हमारे कस्बों की गलियों में सिखाया है!'
\v 27 लेकिन वह कहेंगे, 'मैं तुम्हें फिर कहता हूँ, मैं तुम्हें नहीं जानता, और यह भी नहीं जानता कि तुम कहाँ से आए हो। तुम दुष्ट लोग हो! यहाँ से चले जाओ!'
\s5
\v 28 फिर यीशु ने कहा, तुम दूर से अब्राहम , इसहाक और याकूब को देखोगे, हर एक भविष्यद्वक्ता जो बहुत पहले जीवित रहते थे, वे भी वहाँ होंगे, जहाँ परमेश्वर राजा होकर शासन करते हैं, परन्तु तुम बाहर हो जाओगे, जहाँ रोना और दाँत पीसना होगा!
\v 29 इसके अतिरिक्त कई गैर-यहूदी लोग वहाँ होंगे। वहाँ ऐसे लोग होंगे जो भूमि के उत्तर, पूर्व, दक्षिण और पश्चिम से आएँगे। वे उत्सव मना रहे होंगे क्योंकि परमेश्वर सब पर शासन करते हैं।
\v 30 विचार करो कुछ लोग जो यहाँ कम से कम महत्वपूर्ण लगते हैं, वे सबसे महत्वपूर्ण होंगे, और जो यहाँ महत्वपूर्ण हैं, उनका महत्त्व वहाँ कम से कम होगा।"
\p
\s5
\v 31 उसी दिन कुछ फरीसियों ने यीशु के पास आकर कहा, "इस क्षेत्र को छोड़ दो, क्योंकि शासक हेरोदेस अन्तिपास तुम्हें मारना चाहता है!"
\v 32 यीशु ने उनसे कहा, "हेरोदेस को यह सन्देश सुनाओ: सुन, आज मैं दुष्ट-आत्माओं को निकालता हूँ और आज चमत्कार करता हूँ, और मैं थोड़े समय के लिए ऐसा ही करता रहूँगा, उसके बाद, मेरा काम पूरा हो जाएगा।
\v 33 लेकिन आने वाले दिनों में मुझे यरूशलेम पहुँचना आवश्यक है, क्योंकि यरूशलेम के अतिरिक्त अन्य किसी स्थान में भविष्यद्वक्ता का मारा जाना उचित नहीं है।
\p
\s5
\v 34 हे यरूशलेम के लोगों! तुमने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो बहुत समय पहले थे, मार डाला और तुमने उन लोगों को पत्थर मार-मार कर मार डाला, जिन्हें परमेश्वर ने तुम्हारे पास भेजा था। कई बार मैं तुम्हें एकत्र करना चाहता था, जैसे मुर्गी अपने पंखों के नीचे अपने छोटे बच्चों को एकत्र करती है। कि रक्षा करूँ परन्तु तुम नहीं चाहते थे कि मैं ऐसा करूँ।
\v 35 अब देखो! यरूशलेम के लोगों, परमेश्वर अब तुम्हारी रक्षा नहीं करेंगे। मैं तुमसे यह भी कह देता हूँ मैं केवल एक बार तुम्हारे शहर में प्रवेश करूँगा। उसके बाद, जब तक मैं वापस नहीं आऊँगा, तब तक तुम मुझे नहीं देखोगे, और तुम मेरे बारे में कहोगे, 'परमेश्वर उस व्यक्ति को आशीष देंगे जो परमेश्वर के अधिकार के साथ आता है!"
\s5
\c 14
\p
\v 1 एक दिन, जब विश्राम का दिन था, यीशु फरीसियों के एक सरदार के घर में खाना खाने गए, और वह विश्राम का दिन था फरीसी उन्हें ध्यान से देख रहे थे।
\v 2 यीशु के ठीक सामने एक ऐसा व्यक्ति था जिसके हाथ और पैर रोग के कारण बहुत सूज गए थे।
\v 3 यीशु ने वहाँ उपस्थित यहूदी व्यवस्था के विशेषज्ञों और फरीसियों से पूछा "क्या व्यवस्था में विश्राम के दिन लोगों को स्वस्थ करने की अनुमति है या नहीं?"
\s5
\v 4 उन्होंने उत्तर नहीं दिया। इसलिए यीशु ने अपना हाथ उस व्यक्ति पर रखा और उसे स्वस्थ किया। फिर उन्होंने उस व्यक्ति से कहा कि वह जा सकता है।
\v 5 और उन्होंने दूसरों से कहा, "यदि तुम्हारा बच्चा या बैल विश्राम के दिन कुएँ में गिरता है, तो क्या तुम उसे तुरन्त बाहर नहीं खींचोगे?"
\v 6 वे उसे उत्तर नहीं दे पाए।
\p
\s5
\v 7 यीशु ने देखा कि जिन लोगों को भोजन के लिए आमंत्रित किया गया था, वे उन जगहों पर बैठने का चुनाव कर रहे थे जहाँ महत्वपूर्ण लोग आम तौर पर बैठते थे। अत: यीशु ने उनको यह परामर्श दिया:
\v 8 "जब तुम में से किसी को विवाह के भोज के लिए आमंत्रित किया जाता है, तो उस जगह पर न बैठो, जहाँ महत्वपूर्ण लोग बैठते हैं। हो सकता है कि तुम से भी अधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति दावत में आमंत्रित किया गया है।
\v 9 जब वह व्यक्ति आता है, तो जिसने तुम दोनों को बुलाया है, वह तुम से कहेगा, 'इस व्यक्ति को अपना स्थान दे दो!' तब तुम्हें सबसे कम महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण करना होगा, जिसके कारण तुम लज्जित होगे।
\s5
\v 10 अत: जब तुम्हें भोज में आमंत्रित किया जाता है, तो जाकर सबसे कम महत्वपूर्ण स्थान पर बैठना, जब वह व्यक्ति जिसने सब को आमंत्रित किया है, वह कहेगा, 'मित्र, आकर अच्छे स्थान में बैठो!' तब सब लोग जो तुम्हारे साथ खा रहे हैं, वे देखेंगे कि वह तुम्हारा सम्मान कर रहा है।
\v 11 क्योंकि परमेश्वर उनको विनम्र करेंगे, जो अपने को बड़ा समझते हैं, और वह उनको ऊँचा उठाएँगे जो विनम्र हैं।"
\p
\s5
\v 12 यीशु ने उस फरीसी को जिसने उन्हें खाने के लिए बुलाया था कहा, "जब तू दोपहर या शाम के भोजन के लिए लोगों को आमंत्रित करे केवल अपने मित्रों, सम्बन्धियों या अमीर पड़ोसियों ही को आमंत्रित मत कर, क्योंकि वे भी तुम्हें भोजन के लिए आमंत्रित करेंगे।
\s5
\v 13 इसकी अपेक्षा जब तू भोज तैयार करे तो गरीबों, को अपंगों को, लंगड़ों को या अन्धों को आमंत्रित कर।
\v 14 वे इस योग्य नहीं कि बदले में तुझे आमंत्रित करके आभार चुकाएँ। परन्तु परमेश्वर तुझे आशीर्वाद देंगे! धर्मियों के जी उठने पर वह तुझे प्रतिफल देंगे।"
\p
\s5
\v 15 उन लोगों में से एक जो उनके साथ भोजन कर रहा था, उसने यह बात सुनी। उसने यीशु से कहा, "परमेश्वर ने उन सब को आशीष दी है, जो परमेश्वर के राज में मनाए जानेवाले उत्सव में सहभागी होंगे!"
\v 16 यीशु ने उस से कहा, "एक बार एक व्यक्ति ने एक बड़ा भोज तैयार करने का विचार किया। उसने कई लोगों को आने के लिए आमंत्रित किया।
\v 17 जब भोज का दिन था, तो उसने अपने दास को उन आमंत्रित लोगों के पास भेज कर कहलवाया, 'आओ, क्योंकि सब कुछ तैयार है!'
\s5
\v 18 परन्तु सब आमंत्रित लोगों ने उसके दास को अपना अपना कारण बता कर निमंत्रण को टाल दिया। पहला व्यक्ति जिसके पास दास गया, उसने कहा, 'मैंने अभी एक खेत खरीदा है, और मुझे वहाँ जाकर देखना चाहिए। कृपया अपने स्वामी से मेरी अनुपस्थिति के लिए क्षमा मांग लेना!'
\v 19 दुसरे ने कहा, 'मैंने अभी अभी पाँच जोड़ी बैल खरीदे हैं, और मुझे उन्हें जाँचना होगा। कृपया अपने स्वामी से मेरी अनुपस्थिति के लिए क्षमा मांग लेना!'
\v 20 एक अन्य व्यक्ति ने कहा, 'मैंने अभी अभी विवाह किया है, इसलिए मैं नहीं आ सकता।'
\s5
\v 21 तब दास अपने स्वामी के पास लौट आया और उन लोगों ने जो कुछ कहा था, उसे बताया। घर का स्वामी क्रोधित हुआ और अपने दास से कहा, 'अति शीघ्र शहर की सड़कों और गलियों में जाओ और गरीब, अपंग और अन्धे और लंगड़े लोगों को मिलो, और उन्हें मेरे घर में ले आओ!'
\v 22 तब दास ने जाकर ऐसा ही किया, और उसने वापस आकर कहा, 'हे स्वामी तू ने जो कहा है मैंने वही किया है, परन्तु अभी भी और लोगों के लिए स्थान है।'
\s5
\v 23 इसलिए उसके स्वामी ने उससे कहा, 'तो फिर शहर से बाहर निकल जाओ। राजमार्गों पर लोगों को खोजो। सकेत सड़कों पर भी खोजो, जहाँ बाड़े है। उन स्थानों में लोगों से आग्रह करो कि वे मेरे घर आएँ। मैं अपने घर को लोगों से भरना चाहता हूँ!
\v 24 और मैं तुमसे कहता हूँ, जो पहले आमंत्रित थे वे मेरे भोज का आनन्द नहीं ले पाएँगे क्योंकि उन्होंने आने से इन्कार कर दिया है।'"
\p
\s5
\v 25 लोगों की एक बड़ी भीड़ यीशु के साथ यात्रा कर रही थी। उन्होंने लोगों की ओर मुड़कर कहा,
\v 26 "यदि कोई मेरे पास आता है, यदि कोई अपने पिता, माता, पत्नी और बच्चों और भाइयों और बहनों को मुझसे ज्यादा प्रेम करता है, तो वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता। आवश्यक है कि वे मुझे अपने जीवन से भी अधिक प्रेम करें।
\v 27 जो कोई अपना क्रूस नहीं उठाता और जो कोई मेरी आज्ञा नहीं मानता वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।
\s5
\v 28 यदि तुम में से कोई एक मीनार का निर्माण करने की इच्छा रखता है, तो क्या वह पहले बैठकर उसकी लागत का निर्धारित आंकलन नहीं करेगा कि कितनी होगी? और तब वह देखेगा कि उसके पास उसे पूरा करने के लिए पर्याप्त पैसा है या नहीं।
\v 29 अन्यथा, तुमने नींव डाली और मीनार को पूरा करने में असमर्थ हो, तो देखनेवाले उसका ठट्ठा करेंगे।
\v 30 वे कहेंगे, 'इस व्यक्ति ने मीनार का निर्माण शुरू तो कर दिया, परन्तु वह इसे पूरा नहीं कर पा रहा है!'
\s5
\v 31 या, अगर किसी राजा ने दूसरे राजा के विरुद्ध युद्ध करने के लिए अपनी सेना भेजने का निर्णय लिया तो वह निश्चय ही परामर्श देनेवालों के साथ बैठेगा। औरवे यह देखेंगे कि उनकी सेना, जिसमें केवल दस हजार सैनिक हैं, दूसरे राजा की सेना को पराजित कर सकते हैं या नहीं, जिसकी सेना में बीस हजार सैनिक हैं।
\v 32 यदि वह देखता है कि उसकी सेना दूसरी सेना को नहीं पराजित कर सकती है, तो वह उस राजा के पास एक दूत भेजेगा, जबकि दूसरी सेना भी दूर ही है। वह दूत के हाथ राजा के लिए सन्देश भेजेगा, "तुम्हारे साथ शान्ति बनाए रखने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?"
\v 33 इसी तरह, अगर तुममें से किसी ने पहले यह निर्णय नहीं किया कि तुम सब कुछ छोड़ने को तैयार हो, तो तुम मेरे शिष्य नहीं बन सकते हो।
\p
\s5
\v 34 यीशु ने यह भी कहा, "तुम नमक की तरह हो, जो बहुत उपयोगी है, लेकिन यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो क्या वह फिर से नमकीन बन सकता है?
\v 35 यदि नमक अब फिर से नमकीन नहीं हो सकता है, तो यह मिट्टी या खाद के लिए भी अच्छा नहीं है। लोग इसे फेंक देते हैं। तुम में से हर एक को ध्यान से सोचना चाहिए कि मैंने अभी तुम से क्या कहा है!"
\s5
\c 15
\p
\v 1 अब, कई चुंगी लेनेवाले और अन्य लोग जिन्हें महापापी माना जाता था, यीशु के पास उपदेश सुनने के लिए आते थे।
\v 2 जब फरीसी और यहूदी धर्म के शिक्षकों ने ये देखा, तो वे कुड़कुड़ाकर कहने लगे, "यह मनुष्य पापियों की संगति करता है और उनके साथ खाता भी है।" उनके विचार में यीशु ऐसा करके स्वयं को अशुद्ध कर रहे हैं।
\s5
\v 3 इसलिए यीशु ने उन्हें यह दृष्टान्त बताया:
\v 4 "मान लो कि तुम में से किसी की सौ भेड़े हों और उनमें से एक भेड़ खो जाती है तो निश्चय ही वह निन्यानवे भेड़ों को जंगल में छोड़ कर खोई हुई भेड़ की खोज में जाएगा और मिलने तक उसकी खोज करेगा।
\v 5 और जब वह उसे खोज लेता है तो उसे अपने कंधे पर रख कर आनन्द के साथ अपने घर जाता है।
\s5
\v 6 घर पहुँच कर वह अपने मित्रों और पड़ोसियों से कहेगा, 'मेरे साथ आनन्द करो, क्योंकि मेरी खोई हुई भेड़ मिल गई है!'
\v 7 मैं तुमसे कहता हूँ कि, इसी प्रकार जब एक पापी अपने पापों से मन फिराता है तब स्वर्ग में और भी अधिक आनन्द मनाया जाता है, उन अनेक लोगों की तुलना में जो पहले से ही परमेश्वर के साथ सही थे और उन्हें पश्चाताप करने की आवश्यक्ता नहीं है।
\p
\s5
\v 8 या, मान लीजिए कि एक स्त्री के पास बहुत ही मूल्यवान दस चाँदी के सिक्के हैं और फिर वह उनमें से एक को खो देती है। निश्चय ही वह एक दीया जलाएगी और फर्श पर झाड़ती बुहारती रहेगी जब तक वह सिक्का उसे मिल नहीं जाता।
\v 9 जब वह उसे पाती है, तो वह अपने मित्रों और पड़ोसियों से मिलकर कहती है, 'मेरे साथ आनन्द करो, क्योंकि मुझे वह सिक्का मिल गया है जो खो गया था!'
\v 10 मैं तुमसे कहता हूँ, इसी प्रकार परमेश्वर के स्वर्गदूतों आनन्द मनाते हैं जब एक पापी अपने पापों से मन फिराता है।"
\p
\s5
\v 11 फिर यीशु ने आगे कहा, "एक बार एक व्यक्ति था, उसके दो बेटें थे।
\v 12 एक दिन छोटे बेटे ने अपने पिता से कहा, 'हे पिता, अब मुझे अपनी संपत्ति का हिस्सा दे दीजिए, जो रीति के अनुसार तेरी मृत्यु के बाद मुझे मिलेगा।' तो पिता ने अपने दोनों बेटों के बीच अपनी संपत्ति को विभाजित कर दिया।
\s5
\v 13 कुछ दिन बाद छोटे बेटे ने अपने उत्तराधिकार की सब वस्तुओं को एकत्र किया और दूर देश की यात्रा पर चला गया। उस देश में वह बेकार, अनैतिक जीवन जीने लगा और अपना सारा पैसा मूर्खता से खर्च कर दिया।
\v 14 अपने सारे पैसे खर्च करने के बाद, उस देश में एक गम्भीर अकाल पड़ा, अब उसके पास जीने के लिए कुछ नहीं बचा।
\s5
\v 15 तो वह एक व्यक्ति के पास गया जो उस देश में रहता था और उस ने उसे काम पर रखने के लिए कहा। उस व्यक्ति ने उसे अपने खेतों में सूअरों को चराने के लिए रख लिया।
\v 16 उसे इतनी भूख लगी कि वह यह इच्छा करता था कि वह सूअरों के खाने से फली अलग करके खा ले, फिर भी किसी ने उसे खाने के लिए कुछ नहीं दिया।
\s5
\v 17 अंत में, उसने सोचा कि वह कैसा मूर्ख है और स्वयं से कहा: 'मेरे पिता के सब नौकरों के पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन है, लेकिन यहाँ मैं मर रहा हूँ क्योंकि मेरे पास खाने के लिए कुछ नहीं है!
\v 18 इसलिए मैं यह स्थान छोड़ कर अपने पिता के पास लौट जाऊँगा। मैं उससे कहूँगा, हे पिता, मैंने परमेश्वर के विरुद्ध और तेरे विरुद्ध पाप किया है।
\v 19 अब मैं तेरा बेटा कहलाने के योग्य नहीं हूँ; कृपया मुझे अपने काम करनेवाले नौकरों के रूप में ही सेवा करने के लिए नियुक्त कर दें।'
\s5
\v 20 अत: वह वहाँ से उठा और अपने पिता के घर वापस जाने के लिए चल पड़ा। परन्तु जब वह घर से दूर ही था, तो उसके पिता ने उसे देखा और उसके लिए करुणा से भर गया। वह अपने बेटे के पास दौड़ा और उसे गले लगा लिया और उसके गाल पर चूमा।
\v 21 उसके बेटे ने उससे कहा, 'हे पिता, मैंने परमेश्वर के विरुद्ध और तेरे विरुद्ध पाप किया है। इसलिए मैं अब तेरा पुत्र कहलाने के योग्य नहीं हूँ।'
\s5
\v 22 लेकिन उसके पिता ने अपने कर्मचारियों से कहा; 'तुरन्त जाओ और मेरा सबसे अच्छा वस्त्र लाओ और मेरे बेटे को पहनाओ। इसके अतिरिक्त उसकी उंगली में एक अंगूठी पहनाओ और पाँव में जूते पहनाओं,
\v 23 और विशेष अवसर के लिए रखा मोटा बछड़ा लाओ और उसे मारो, ताकि हम उसे खाएँ और उत्सव मना सकें!
\v 24 हमें उत्सव मनाने की जरूरत है क्योंकि यह मेरा पुत्र एक मरे हुए व्यक्ति के समान था, लेकिन अब यह फिर से जीवित हो गया है! यह एक खोए हुए व्यक्ति के समान था, लेकिन अब यह मिल गया है!' इसलिए उन सब ने उत्सव मनाया।
\p
\s5
\v 25 जब यह सब हो रहा था, तब पिता का बड़ा बेटा जो खेतों में काम कर रहा था। काम करने के बाद जब वह घर के निकट पहुँँचा, उसने सुना कि लोग संगीत बजा रहे हैं और नृत्य कर रहे हैं।
\v 26 उसने एक नौकर को बुलाया और पूछा कि क्या हो रहा है।
\v 27 नौकर ने उससे कहा, 'तेरा भाई घर आया है। तेरे पिता ने हमें एक मोटे बछड़े को मारने के लिए कहा है क्योंकि तेरा भाई सुरक्षित और स्वस्थ लौट आया है।
\s5
\v 28 लेकिन बड़ा भाई क्रोधित हुआ, वह घर में नहीं जाना चाहता था। तो उसका पिता बाहर आया और उससे भीतर आने के लिए अनुरोध किया।
\v 29 लेकिन उसने अपने पिता से कहा, 'सुनो! मैंने इतने वर्ष तेरे लिए दास के समान कठोर परिश्रम किया है। तूने जो कहा, मैंने सदैव वही किया, परन्तु तूने मुझे खाने के लिए एक मेम्ना भी नहीं दिया कि मैं अपने मित्रों के साथ भोज कर सकूँ।
\v 30 लेकिन अब तेरा यह पुत्र वेश्याओं पर अपने सारे पैसे नष्ट करने के बाद घर वापस आ गया है, तो तूने उत्सव मनाने के लिए अपने सेवकों से मोटा बछड़ा कटवाया है।
\s5
\v 31 परन्तु उसके पिता ने उस से कहा, हे मेरे बेटे, तू मेरे साथ हमेशा रहता है और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा है।
\v 32 परन्तु हमारे लिए आनन्द करना और उत्सव मनाना उचित है, क्योंकि यह इस प्रकार है कि तेरा भाई मर चुका था और फिर जीवित हो गया है! वह खो गया था और अब मिल गया है!'"
\s5
\c 16
\p
\v 1 यीशु ने अपने शिष्यों से यह भी कहा, "एक बार एक धनी व्यक्ति के घर में एक प्रबंधक था। एक दिन उस धनवान व्यक्ति को बताया गया कि उसका सहायक उसकी संपत्ति का उचित प्रबन्ध नहीं कर रहा है कि वह धनवान व्यक्ति धन और माल की हानि उठा रहा है।
\v 2 इसलिये उसने उस सहायक को अपने पास बुलाया और कहा, 'तुम जो कर रहे हो वह गलत है! मुझे पूरा लेखा लिखकर दे कि तू किस प्रकार प्रबन्ध करता है, क्योंकि तू अब मेरे घर का सहायक नहीं रहेगा!
\s5
\v 3 तब प्रबंधक ने स्वयं से कहा, 'मेरा मालिक मुझे प्रबंधक पद से निकालने जा रहा है, इसलिए मुझे सोचना चाहिए कि आगे मुझे क्या करना चाहिए। मैं खुदाई करके कमा ने के योग्य नहीं हूँ, और मुझे पैसे माँगने में शर्म आती है।
\v 4 मुझे पता है कि मैं क्या करूँगा, कि प्रबन्ध के काम से हटाए जाने के बाद लोग मुझे अपने घर ले जाएँ और मेरी सहायता कर सकें!
\s5
\v 5 तो एक-एक करके उसने उन सब से पूछा कि उनके स्वामी को उन्हें कितने पैसे वापस करने हैं। उसने पहले से पूछा, तुम्हें मेरे स्वामी को कितना कर्ज देना है?
\v 6 उसने उत्तर दिया, 3,000 लीटर 'जैतून का तेल।' प्रबंधक ने उस से कहा, अपना खाता लेकर बैठ और तुरन्त इसे 1,500 लीटर में बदल दे!
\v 7 उसने दूसरे व्यक्ति से कहा, 'तेरा कितना निकलता है?' उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, 'गेहूँ की एक हजार टोकरियाँ।' प्रबंधक ने उस से कहा, 'अपना खाता ले और इसे आठ सौ टोकरियों में बदल दो!'
\s5
\v 8 जब मालिक ने अपने प्रबंधक के काम के बारे में सुना, तो उसने इतना चतुर होने के लिए उस बेईमान प्रबंधक की प्रशंसा की। सच्चाई यह है कि जो लोग इस संसार से जुड़े हैं वे अपने आस-पास के लोगों से व्यवहार करने में परमेश्वर के लोगों से अधिक बुद्धिमान हैं।
\v 9 मैं तुमसे कहता हूँ, इस दुनिया में अपने धन के द्वारा मित्र बनाओ। फिर जब पैसा चला जाएगा, तो तुम्हारे पास मित्र होंगे जो तुम्हारा अपने घरों में स्वागत करेंगे।
\s5
\v 10 जो लोग थोड़े से पैसे का खरा प्रबन्ध करते हैं, उन पर बहुत अधिक के लिए भी भरोसा किया जा सकता है। जो लोग छोटे काम में खरे नहीं वे बड़े काम में भी खरे नहीं होंगे।
\v 11 इसलिए यदि तुमने परमेश्वर के दिए हुए धन का इस दुनिया में खराई से उपयोग नहीं किया, तो वह निश्चय ही तुम्हें स्वर्ग का सच्चा धन नहीं देंगे।
\v 12 यदि तुमने अन्य लोगों की संपत्ति की देखभाल निष्कपट नहीं की तो किसी से संपत्ति प्राप्त करने की आशा नहीं करना चाहिए।
\s5
\v 13 कोई सेवक एक ही समय में दो अलग-अलग स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता है। यदि वह ऐसा करने का प्रयास करता है, तो वह उनमें से एक से घृणा करेगा है और दूसरे से प्रेम करेगा या वह उनमें से एक के प्रति भक्ति दिखाएगा और दूसरे को तुच्छा समझेगा। यदि तुम अपने जीवन को धन और माल प्राप्त करने के लिए समर्पित करोगे, तो तुम परमेश्वर की सेवा में अपने जीवन को समर्पित नहीं कर सकते।"
\p
\s5
\v 14 जब वहाँ खड़े फरीसियों ने यीशु को यह कहते सुना तो उन्होंने उनका ठट्ठा किया क्योंकि उन्हें धन प्राप्त करना अच्छा लगता था।
\v 15 परन्तु यीशु ने उनसे कहा, "तुम लोगों को यह दिखाने का प्रयास करते हो कि तुम धर्मी हो, परन्तु परमेश्वर तुम्हारे मन को जानते हैं । ध्यान रखो कि जिन वस्तुओं को तुम बहुत महत्त्वपूर्ण मानते और सराहते हो, परमेश्वर उनसे घृणा करते हैं।
\p
\s5
\v 16 जो नियम परमेश्वर ने मूसा को दिए थे और जो भविष्यद्वक्ताओं ने लिखा था, उन्हें जब तक यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला आया था, तब तक प्रचार किया गया था। तब से मैं प्रचार कर रहा हूँ कि परमेश्वर शीघ्र ही राजा के रूप में प्रकट होंगे। बहुत से लोग इस सन्देश को स्वीकार कर रहे हैं और बहुत उत्सुकता से अपने जीवन पर शासन करने के लिए परमेश्वर से कह रहे हैं।
\v 17 परमेश्वर की पूरी व्यवस्था, यहाँ तक कि वे नियम भी जिसे तुच्छ समझा जाता है, स्वर्ग और पृथ्वी से अधिक स्थायी हैं।
\p
\s5
\v 18 कोई भी व्यक्ति जो अपनी पत्नी को तलाक देकर दूसरी स्त्री से विवाह करता है, वह व्यभिचार करता है, और जो कोई भी अपने पति से तलाक लेने वाली स्त्री से विवाह करता है, वह भी व्यभिचार करता है।
\p
\s5
\v 19 यीशु ने यह भी कहा, "एक बार एक धनवान व्यक्ति था जो उत्तम बैंगनी और मलमल के कपड़े पहनता था। वह प्रतिदिन उत्सव मनाता था।
\v 20 और एक गरीब व्यक्ति जिसका नाम लाजर था, उस धनवान के घर के द्वार पर छोड़ दिया जाता था। लाजर का शरीर घावों से भरा हुआ था।
\v 21 वह इतना भूखा था कि वह मेज से, जहाँ अमीर व्यक्ति की मेज़ से गिरने वाली जूठन खाना चाहता था। वहाँ कुत्ते आकर उसके घावों को चाटते थे।
\s5
\v 22 अंततः गरीब व्यक्ति की मृत्यु हो गई। तब स्वर्गदूत उसे उसके पूर्वज अब्राहम के पास ले गए। वह धनवान व्यक्ति भी मर गया, और उसका शरीर दफनाया गया।
\v 23 अधोलोक में, वह धनवान व्यक्ति बहुत पीड़ित था, उसने ऊपर देखा और अब्राहम को दूर से देखा और लाजर को अब्राहम के बहुत निकट बैठा देखा।
\s5
\v 24 उस धनवान व्यक्ति ने पुकार कर कहा 'पिता अब्राहम , मैं इस आग में बहुत पीड़ित हूँ! कृपया मुझ पर दया करें, और लाजर को यहाँ भेजो, कि वह अपनी उंगली पानी में डुबा कर मेरी जीभ पर लगा दे कि मेरी जीभ ठण्डी हो जाए।'
\s5
\v 25 परन्तु अब्राहम ने उत्तर दिया, 'पुत्र, याद कर कि जब तू पृथ्वी पर जीवित था, तो तू अच्छी अच्छी वस्तुओं का आनन्द उठाता था। परन्तु लाजर दुखी था। अब वह यहाँ आनन्दित है, और तू पीड़ित है।
\v 26 इसके अतिरिक्त, परमेश्वर ने तुम्हारे और हमारे बीच एक बड़ी खाई ठहराई है, कि जो लोग यहाँ से वहाँ जाना चाहते हैं, वे नहीं जा सकते हैं। और वहाँ से हमारे पास, इस पार नहीं आ सकते।
\s5
\v 27 तब उस धनवान व्यक्ति ने कहा, 'यदि ऐसा है, तो पिता अब्राहम, मैं तुम से आग्रह करता हूँ कि लाजर को मेरे पिता के घर भेज दें।
\v 28 मेरे पाँच भाई हैं जो वहाँ रहते हैं। उससे कहें कि वह उन्हें चेतावनी दे जिससे वे इस स्थान में ना पहुँँचें, जहाँ हमें बहुत तकलीफ हो रही है!
\s5
\v 29 परन्तु अब्राहम ने उत्तर दिया, 'नहीं, मैं ऐसा नहीं करूँगा, क्योंकि तुम्हारे भाइयों के पास मूसा और भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा बहुत पहले लिखा हुआ वचन है। उन्होंने जो लिखा है, उन्हें उसका पालन करना चाहिए!'
\v 30 परन्तु उस धनवान व्यक्ति ने कहा, 'नहीं, पिता अब्राहम , यह पर्याप्त नहीं है! यदि अगर मरे हुओं में से कोई व्यक्ति उनके पास वापस जाए और उन्हें चेतावनी दे तो वे अपने पापी व्यवहार से मन फिराएँगे।
\v 31 अब्राहम ने उससे कहा, 'नहीं! यदि वे मूसा और भविष्यद्वक्ताओं के लिखे हुए वचन नहीं सुनते हैं, तो अगर कोई मर कर जीवित हो और उन्हें चेतावनी दे तो भी वे अपने पापों से मन फिराने के लिए आश्वस्त नहीं होंगे।'"
\s5
\c 17
\p
\v 1 यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, "पाप करने के लिए लुभाने वाली बातें तो निश्चय ही होंगी परन्तु जो इसका कारण होते हैं उनके लिए कैसा भयानक परिणाम होगा।
\v 2 विश्वास में कमजोर व्यक्ति के लिए कोई पाप करने का कारण बने तो उचित यही होगा कि उसकी गर्दन में एक विशाल पत्थर बाँध दें और उसे समुद्र में फेंक दें।
\s5
\v 3 सावधान रहो कि तुम कैसे काम करते हो। यदि तुम्हारे भाइयों में से एक पाप करता है, तो उसे डाँटो। यदि वह कहता है कि वह पाप करने के लिए क्षमा चाहता है और तुमसे क्षमा माँगता है तो तुम्हें उसे क्षमा कर देना चाहिए।
\v 4 अगर एक दिन में वह तुम्हारे विरुद्ध सात बार पाप करता है, तो भी अगर वह हर बार तुम्हारे पास आकर कहता है, मैंने जो किया उसके लिए मैं क्षमा चाहता हूँ, तो तुम्हें उसे क्षमा करते रहना चाहिए।"
\p
\s5
\v 5 तब प्रेरितों ने प्रभु से कहा, "हमें ओर अधिक विश्वास दें!"
\v 6 प्रभु ने उत्तर दिया, "अगर तुम्हारा विश्वास इस छोटे से सरसों के बीज से बड़ा न भी हो, तो तुम इस शहतूत के पेड़ से कह सकते हो, अपनी जड़ों को जमीन से बाहर खींचकर खुद को समुद्र में लगा और यह तुम्हारी आज्ञा का पालन करेगा!
\p
\s5
\v 7 यीशु ने यह भी कहा, "मान लो कि तुम्हारा एक सेवक है, जो तुम्हारे खेतों में हल जोत रहा हो या तुम्हारी भेड़ों की देखभाल करता है। तो उसके मैदान से घर आने के बाद तुम नहीं कहोगे- 'तुरन्त आकर भोजन करने बैठ!'
\v 8 इसके बजाय, तुम उससे कहोगे, मेरे लिए भोजन तैयार कर! फिर सेवा करने के अपने कपड़ों को पहन और मेरी सेवा कर ताकि मैं खा सकूँ और पी सकूँ। बाद में तू खा सकता है और पी सकता है।
\s5
\v 9 तू अपने दास को दिया गया काम करने के लिए धन्यवाद नहीं कहेगा!
\v 10 इसी प्रकार जब तुम परमेश्वर से कहा वह सब काम करते हो जिन्हें करने के लिए परमेश्वर ने कहा है तो तुम्हें यह कहना चाहिए, 'हम केवल परमेश्वर के सेवक हैं और हम इस योग्य भी नहीं कि वह हमें धन्यवाद कहे। हमने केवल वही किया है जो उन्होंने हमसे करने को कहा था।'"
\p
\s5
\v 11 जब यीशु और उनके शिष्य यरूशलेम जा रहे थे, तब वे सामरिया और गलील के क्षेत्रों से निकले ।
\v 12 जैसे ही यीशु ने एक गाँव में प्रवेश किया, तो दस कोढ़ी उनके पास आए, लेकिन कुछ दूर पर खड़े रहे।
\v 13 उन्होंने कहा, "यीशु, स्वामी, कृपया हम पर दया करें!"
\s5
\v 14 जब यीशु ने उन्हें देखा, तो उन्होंने उनसे कहा, "जाकर अपने आप को याजक को दिखाओ।" तो वे चले गए, और जब वे जा ही रहे थे, तो वे ठीक हो गए।
\v 15 तब उनमें से एक, ने देखा कि वह ठीक हो गया है, तो वह लौटकर आया ओर ऊँचे स्वर में परमेश्वर की स्तुति करने लगा।
\v 16 वह यीशु के पास गया और वह यीशु के पैरों पर मुँह के बल भूमि पर लेट गया, और उसने उन्हें धन्यवाद दिया। यह व्यक्ति एक सामरी था।
\s5
\v 17 फिर यीशु ने कहा, "मैंने दस कोड़ियों को ठीक किया है! अन्य नौ वापस क्यों नहीं आए?
\v 18 केवल यह विदेशी व्यक्ति ही परमेश्वर का धन्यवाद करने के लिए वापस आया है; दूसरों में से कोई भी वापस नहीं आया!"
\v 19 फिर उन्होंने उस पुरूष से कहा, "उठो और अपने रास्ते जाओ। परमेश्वर ने तुमको ठीक किया है क्योंकि तुझे मुझ पर भरोसा है।"
\p
\s5
\v 20 एक दिन कुछ फरीसियों ने यीशु से पूछा, "परमेश्वर सब पर शासन करना कब आरंभ करेंगे? उन्होंने उत्तर दिया, यह लक्षणों को देखने की बात नहीं है कि लोग अपनी आँखों से देख सकें हैं।
\v 21 ऐसा नहीं होगा कि लोग कहें, देखो! वह यहाँ शासन कर रहा है! या वह वहाँ शासन कर रहा है! क्योंकि, लोगों की सोच के विपरीत, परमेश्वर ने तुम्हारे भीतर शासन करना आरंभ कर दिया है।"
\p
\s5
\v 22 यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, "एक समय ऐसा होगा जब तुम मुझे अर्थात् मनुष्य के पुत्र को सामर्थ से शासन करते देखना चाहोगे। लेकिन तुम ये नहीं देखोगे।
\v 23 लोग तुमसे कहेंगे, 'देखो, मसीह वहाँ है!' या कहेंगे, 'देखो, वह यहाँ है!' जब वे ऐसा कहते हैं, तो उनका अनुसरण न करना।
\v 24 क्योंकि जब बिजली चमकती है और एक तरफ से दूसरी तरफ तक आकाश को प्रकाश देती है, तो हर कोई इसे देख सकता है। इसी तरह, जब मैं, मनुष्य का पुत्र फिर से वापस आऊँगा, तो सब लोग मुझे देखेंगे।
\s5
\v 25 लेकिन ऐसा होने से पहले, मुझे कई प्रकार से पीड़ित होना पड़ेगा, और लोग मुझे अस्वीकार करेंगे।
\v 26 परन्तु जब मैं, मनुष्य का पुत्र फिर से आऊँगा, तब लोग ऐसे काम करेंगे जैसे लोग नूह के जीवनकाल में किया करते थे।
\v 27 उस समय लोग खाते पीते थे, और विवाह करते थे और उस दिन तक करते रहे जब तक नूह और उसके परिवार ने बड़ी नाव में प्रवेश नहीं किया। लेकिन फिर बाढ़ आ गई और उन सब को नष्ट कर दिया, जो नाव में नहीं थे।
\s5
\v 28 इसी प्रकार, जब लूत सदोम शहर में रहता था, वहाँ के लोग खाते और पीते रहे। वे खरीदते और बेचते थे। उन्होंने फसलों को लगाया और उन्होंने घर भी बनाए।
\v 29 लेकिन जिस दिन लूत सदोम से निकला, उस दिन आग और गन्धक आकाश से बरसी और शहर में रहने वाले सब लोगों को नष्ट कर दिया।
\s5
\v 30 इसी प्रकार, जब मैं, मनुष्य का पुत्र, पृथ्वी पर लौट आऊँगा,, तब लोग तैयार नहीं होंगे।
\v 31 उस दिन, जो अपने घरों के बाहर हैं, उनके पास अपनी सब घरों के वस्तुएँ लेने के लिए घर के भीतर जाने का समय नहीं होगा। इसी प्रकार, जो लोग खेत में काम कर रहे हैं, उन्हें सामान लेने के लिए घर नहीं लौटना चाहिए; उन्हें अति शीघ्र भाग जाना होगा।
\s5
\v 32 याद रखें कि लूत की पत्नी के साथ क्या हुआ था!
\v 33 जो कोई भी अपने जीवन को अपने तरीके से जी रहा है वह मर जाएगा। परन्तु जो कोई मेरे लिए अपना मार्ग छोड़ देता है, वह हमेशा के लिए जीवित रहेगा।
\s5
\v 34 मैं तुम से कहता हूँ: जिस रात मैं वापस आऊँगा, तब दो लोग एक ही बिस्तर पर सो रहे होंगे। जो मुझ पर विश्वास करता है वहउठा लिया जाएगा और दूसरे को पीछे छोड़ दिया जाएगा।
\v 35-36 दो महिलाएँ एक साथ अनाज पीस रही होंगी; एक उठा ली जाएगी और दूसरी को पीछे छोड़ दिया जाएगा।"
\v 37 उनके शिष्यों ने उनसे कहा, हे प्रभु, यह कहाँ होगा? उन्होंने उनको उत्तर दिया, "जहाँ भी मृत शरीर है, गिद्ध उसे खाने के लिए एकत्र होंगे।"
\s5
\c 18
\p
\v 1 यीशु ने अपने शिष्यों को एक और कहानी सुनाई कि उन्हें लगातार प्रार्थना करने की शिक्षा मिले और यदि परमेश्वर तुरन्त उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर नहीं देते तो निराश नहीं होना चाहिए।
\v 2 उन्होंने कहा, "किसी शहर में एक न्यायाधीश था जो परमेश्वर का भय नहीं मानता था और लोगों के बारे में भी परवाह नहीं करता था।
\s5
\v 3 उस शहर में एक विधवा थी जिसने उस न्यायाधीश के पास आकर कहा, 'कृपया मुझे उस व्यक्ति से न्याय दिलाओ जो अदालत में मेरा विरोध कर रहा है।'
\v 4 एक लम्बे समय के लिए न्यायाधीश ने उसकी सहायता करने से मना कर दिया। लेकिन बाद में, उसने स्वयं से कहा, 'मैं परमेश्वर का भय नहीं मानता और मुझे लोगों की परवाह भी नहीं है,
\v 5 लेकिन यह विधवा मुझे परेशान करती है! इसलिए मैं उसके मामले का न्याय करूँगा और यह सुनिश्चित करूँगा कि उसे उचित न्याय मिले, क्योंकि अगर मैं ऐसा नहीं करता, तो वह लगातार मेरे पास आकर मुझे सताती रहेगी!'"
\s5
\v 6 तब प्रभु यीशु ने कहा, "उस अधर्मी न्यायाधीश की बातों के बारे में सावधानी से सोचो।
\v 7 परमेश्वर, जो धर्मी है, अपने चुने हुए लोगों को न्याय अवश्य देंगे, जो रात और दिन उनसे प्रार्थना करते हैं! और वह हमेशा उनके साथ धीरज रखते हैं।
\v 8 मैं तुमसे कहता हूँ, कि परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों के लिए शीघ्र ही न्याय करेंगे। फिर भी, जब मैं, मनुष्य का पुत्र, पृथ्वी पर वापस आऊँगा, तब भी ऐसे लोग होंगे जो मुझ पर विश्वास नहीं करेंगे।"
\p
\s5
\v 9 तब यीशु ने उन लोगों के लिए जो सोचते थे कि वे धर्मी हैं और दूसरों को तुच्छ समझते थे, एक कहानी सुनाई।
\v 10 उन्होंने कहा, "दो लोग मन्दिर में प्रार्थना करने के लिए यरूशलेम गए। उनमें से एक फरीसी था और दूसरा रोमी सरकार के लिए लोगों से कर वसूलने वाला था।
\s5
\v 11 फरीसी खड़ा होकर अपने आप के बारे में इस तरह से प्रार्थना कर रहा था, 'हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि मैं अन्य लोगों की तरह नहीं हूँ। कुछ लोग दूसरों के पैसे चोरी करते हैं, कुछ दूसरों के साथ अन्याय का व्यवहार करते हैं, और कुछ व्यभिचार करते हैं। मैं ऐसा कुछ भी नहीं करता हूँ और मैं निश्चय ही इस पापी चुंगी लेनेवाले के समान नहीं हूँ जो लोगों को धोखा देता है!
\v 12 हर हफ्ते मैं दो दिन उपवास रखता हूँ और मैं मन्दिर में अपनी कमाई का दसवाँ अंश भी देता हूँ!'
\s5
\v 13 "लेकिन चुंगी लेनेवाला मन्दिर के आँगन में, दूसरे लोगों से दूर खड़ा हुआ था। उसने स्वर्ग की ओर भी नहीं देखा। उसने अपनी छाती पिटी और कहा, हे परमेश्वर, कृपया मुझ पर दया करें और मुझे क्षमा करें, क्योंकि मैं एक घौर पापी हूँ।"
\v 14 फिर यीशु ने कहा, "मैं तुमसे कहता हूँ, कि चुंगी लेनेवाला घर जाते समय क्षमा कर दिया गया था, परन्तु फरीसी नहीं। यह इसलिए कि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह नम्र किया जाएगा, और जो कोई अपने आप को नम्र बनाएगा उसे ऊँचा किया जाएगा।"
\p
\s5
\v 15 एक दिन लोग अपने बच्चों को भी यीशु के पास ला रहे थे ताकि वह उन पर हाथ रखें और उन्हें आशीष दें। जब शिष्यों ने यह देखा, तो उन्होंने उन्हें ऐसा करने से रोका।
\v 16 लेकिन यीशु ने बच्चों को अपने पास बुलाया। उनसे कहा, "छोटे बच्चों को मेरे पास आने दो, उनको मत रोको! बच्चों की तरह विनम्र और विश्वासयोग्य लोगों पर परमेश्वर शासन करेंगे।
\v 17 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जो कोई एक बच्चे के समान विनम्रता के साथ परमेश्वर के शासन को स्वीकार नहीं करता है, परमेश्वर उस व्यक्ति को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करेंगे।"
\p
\s5
\v 18 एक बार एक यहूदी अगुवे ने यीशु से पूछा, "अच्छे गुरु, अनन्त जीवन पाने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?"
\v 19 यीशु ने उससे कहा, "तुम मुझे अच्छा क्यों कहते हो? परमेश्वर ही एकमात्र ऐसा है जो वास्तव में अच्छा है!
\p
\v 20 तुम्हारे प्रश्न के उत्तर में, तुम निश्चय ही उन आज्ञाओं को जानते हो जो परमेश्वर ने मूसा को हमारे पालन करने के लिए दी थी: 'व्यभिचार मत कर, किसी की हत्या मत कर, चोरी मत कर, झूठी गवाही मत दे, अपने माता-पिता का सम्मान कर।'"
\v 21 उस व्यक्ति ने कहा, "जब से मैं छोटा था तब से मैंने इन सब आज्ञाओं का पालन किया है।"
\s5
\v 22 जब यीशु ने सुना, तो उन्होंने उसको उत्तर दिया, "तुझे अभी भी एक काम करने की आवश्यकता है, अपना सब कुछ बेच दे, और उन लोगों को पैसे दे जिनके पास जीने के लिए बहुत कम हैं और तू स्वर्ग में आत्मिक धन प्राप्त करेगा। तब आ और मेरा शिष्य बन जा!"
\v 23 यह सुनकर वह बहुत दुःखी हो गया क्योंकि वह बहुत धनवान था।
\s5
\v 24 जब यीशु ने देखा कि वह व्यक्ति कितना उदास था, तो वह बहुत दुखी हो गए। उन्होंने कहा, "धनी लोगों के लिए परमेश्वर को अपने ऊपर शासन करने की अनुमति देना बहुत कठिन है।"
\v 25 वास्तव में, ऊँट के लिए सुई की आँख से निकल जाना, आसान है अपेक्षा इसके कि धनवान परमेश्वर को अपने जीवन पर शासन करने दें।"
\s5
\v 26 जिन लोगों ने यीशु को यह कहते सुना, उन्होंने उत्तर दिया, "फिर ऐसा लगता है कि कोई भी नहीं बच सकता है!"
\v 27 लेकिन यीशु ने कहा, "लोगों के लिए जो असंभव है, परमेश्वर के लिए संभव है।"
\s5
\v 28 तब पतरस ने कहा, देखो, हम तेरे शिष्य बनने के लिए सब कुछ छोड़ चुके हैं।
\v 29 यीशु ने उनसे कहा, "हाँ, और मैं तुमसे कहता हूँ कि जिन्होंने मेरी इच्छा को पूरा करने के लिए अपने घर, पत्नियाँ, अपने भाई, अपने माता-पिता, या अपने बच्चों को छोड़ दिया है,
\v 30 इस जीवन में जो कुछ उन्होंने छोड़ा है, उससे कई गुणा अधिक वे प्राप्त करेंगे, और आने वाले युग में उन्हें अनन्त जीवन भी मिलेगा।"
\p
\s5
\v 31 यीशु बारह शिष्यों को अकेले में एक स्थान में ले गए और उनसे कहा, "ध्यान से सुनो, अब हम यरूशलेम जा रहे हैं, जब हम वहाँ होंगे, तो जो कुछ भविष्यद्वक्ताओं ने मेरे अर्थात् मनुष्य के पुत्र के बारे में बहुत समय पहले लिखा था, वह पूरा किया जाएगा।
\v 32 मेरे शत्रु मुझे गैर-यहूदियों के अधीन कर देंगे। वे मेरा ठट्ठा करेंगे, मेरा तिरस्कार करेंगे, और मुझ पर थूकेंगे।
\v 33 वे मुझे कोड़े मारेंगे और फिर वे मुझे मार डालेंगे। परन्तु तीन दिन बाद, मैं फिर से जीवित हो जाऊँगा।"
\s5
\v 34 परन्तु शिष्यों ने उन सब बातों को नहीं समझा जो उन्होंने उनसे कही थी। परमेश्वर ने उन्हें इसका अर्थ समझने से रोका।
\p
\s5
\v 35 जब यीशु और उनके शिष्य यरीहो शहर के पास आए, तो एक अन्धा व्यक्ति सड़क के पास बैठा था। वह पैसों के लिए भीख माँग रहा था।
\v 36 जब उसने लोगों की भीड़ के चलने की आवाज़ सुनी, तो उसने पूछा, "क्या हो रहा है?"
\v 37 उन्होंने उससे कहा, "यीशु जो नासरत के नगर से है, यहाँ से जा रहे हैं।"
\s5
\v 38 वह चिल्लाया, "हे यीशु, आप जो राजा दाऊद के वंशज हैं, मुझ पर दया करें!"
\v 39 जो लोग भीड़ के सामने चल रहे थे, उन्होंने उसे डाँटा और उसे चुप रहने के लिए कहा। परन्तु उसने और भी जोर से चिल्लाया, "आप जो राजा दाऊद के वंशज हैं, मुझ पर दया करें!"
\s5
\v 40 यीशु रुके और लोगों को उसे पास लाने की आज्ञा दी। जब अन्धा मनुष्य पास आ गया, तब यीशु ने उससे पूछा,
\v 41 "तुम क्या चाहते हो, मैं तुम्हारे लिये करूँ?" उसने उत्तर दिया, "हे प्रभु, मैं चाहता हूँ कि आप मुझे देखने योग्य कर दें!"
\s5
\v 42 यीशु ने उस से कहा, "देख, क्योंकि तू ने मुझ पर विश्वास किया है, मैंने तुझे स्वस्थ किया है!"
\v 43 तुरन्त वह देखने लगा और वह परमेश्वर की स्तुति करता हुआ यीशु के साथ चलने लगा। और जब सब लोगों ने यह देखा, तो उन्होंने भी परमेश्वर की स्तुति की।
\s5
\c 19
\p
\v 1 यीशु यरीहो में गए और वह शहर से होकर जा रहे थे।
\v 2 वहाँ एक व्यक्ति था जिसका नाम जक्कई था। वह चुंगी लेनेवालों का प्रधान था और बहुत धनवान था।
\s5
\v 3 वह यीशु को देखना चाहता था लेकिन वह उसे भीड़ के पार नहीं देख सकता था। वह बहुत छोटे कद का व्यक्ति था और यीशु के आस-पास बहुत से लोग थे।
\v 4 तो वह भाग कर आगे गया। वह एक गूलर के पेड़ पर चढ़ गया कि जब यीशु वहाँ आएँ तो उन्हें देख सके।
\s5
\v 5 जब यीशु वहाँ पहुँचे, तो उन्होंने ऊपर की ओर देख कर कहा, "जक्कई, शीघ्र नीचे आ, मुझे आज रात तेरे घर में रहना है!"
\v 6 तो वह तुरन्त नीचे आ गया। वह अपने घर में यीशु का स्वागत करने में प्रसन्न था।
\v 7 परन्तु जिन लोगों ने यीशु को देखा, वे कुड़कुड़ाकर कहने लगे, "वह एक पापी का अतिथि हो गया है!"
\s5
\v 8 फिर जब वे खा रहे थे तब जक्कई ने यीशु से कहा, "हे प्रभु, मैं चाहता हूँ कि आप जान लो कि मैं गरीब लोगों को अपनी आधी सम्पत्ति दे दूँगा। और जिन लोगों को मैंने धोखा दिया है, मैं उन्हें उस राशि का चार गुणा वापस दे दूँगा।"
\v 9 यीशु ने उस से कहा, "आज परमेश्वर ने इस घर को बचाया है, क्योंकि इस मनुष्य ने दिखाया है कि वह अब्राहम का सच्चा वंशज है।
\v 10 याद रखो: मैं, मनुष्य का पुत्र, तुम्हारे जैसे लोगों को जो भटक कर परमेश्वर से दूर हो गए हैं; ढूँढ़ने और बचाने के लिए आया हूँ।
\p
\s5
\v 11 यीशु ने जो कुछ कहा, सब लोग सुन रहे थे। क्योंकि वह यरूशलेम के निकट पहुँच रहे थे, इसलिए यीशु ने उन्हें एक और कहानी सुनाने का निर्णय लिया। वह उनके भ्रम को दूर करना चाहते थे कि यरूशलेम पहुँचते ही वह परमेश्वर के लोगों पर राजा बन जाएँगे।
\v 12 उन्होंने कहा, "एक राजकुमार अपने प्रान्त पर राजा होने के लिए बड़े राजा से अधिकार प्राप्त करने के लिए एक दूर देश में जाने की तैयारी कर रहा था। राजा होने का अधिकार मिलने के बाद, वह अपने लोगों पर शासन करने के लिए वापस आएगा।
\s5
\v 13 जाने से पहले, उसने अपने दस दासों को बुलाया। उसने उनमें से प्रत्येक को बराबर राशि दी। उसने उनसे कहा, 'जब तक मैं वापस नहीं लौटाता इस पैसे के साथ व्यापार करो!' फिर वह चला गया।
\v 14 परन्तु उसके देश के बहुत से लोग उससे घृणा करते थे। इसलिए उन्होंने उसके पीछे कुछ दूत भेजे और बड़े राजा से कहा, 'हम इस व्यक्ति को हमारे राजा के रूप में नहीं चाहते हैं!'
\v 15 परन्तु फिर भी उसे राजा बना दिया गया। वह राजा बनकर लौट आया। तब उसने उन दासों को बुलाया जिनके पास उसने पैसे दिए थे। वह जानना चाहता था कि उसने जो पैसे दिए थे, उसके साथ व्यवसाय करके उन्होंने कितना कमाया था।
\s5
\v 16 पहला व्यक्ति उसके पास आया और कहा, 'गुरु, आपके पैसों से मैंने दस गुना अधिक कमाया है!'
\v 17 उसने उस व्यक्ति से कहा, 'तुम एक अच्छे दास हो! तुमने बहुत अच्छा किया है! क्योंकि तुमने खराई से इस छोटी सी राशि का ध्यान रखा है, मैं तुम्हें शासन करने के लिए दस शहर दे दूँगा।'
\s5
\v 18 फिर दूसरा दास आया और कहा, 'हे स्वामी, जो पैसे आपने दिए थे वह अब पाँच गुना अधिक हैं!'
\v 19 उसने उस दास से कहा, 'अच्छा! मैं तुम्हें पाँच शहरों के ऊपर अधिकार दूँगा।'
\s5
\v 20 फिर एक और दास आया। उसने कहा, 'गुरु, यह तुम्हारा पैसा है। मैंने इसे एक कपड़े में लपेट कर सुरक्षित रखने के लिए छिपा दिया था।
\v 21 मुझे डर था कि अगर मैं व्यवसाय में विफल रहू तो आप मेरे साथ क्या करोगे। मैं जानता हूँ कि आप एक कठोर व्यक्ति हो जो दूसरों से वह भी लेता है जो वास्तव में आपका नहीं है। आप एक किसान के समान हो जो दूसरों के खेतों के अनाज को काटता है।'
\s5
\v 22 उसने उस दास से कहा, 'हे दुष्ट दास! मैं उन शब्दों से जो तू ने कहे तुझे दोषी ठहराऊँगा। तुझे पता था कि मैं एक कठोर व्यक्ति हूँ, क्योंकि मैं वह लेता हूँ, जो मेरा नहीं है और जो मैंने बोया नहीं उसे काटता हूँ।
\v 23 तो तुझे कम से कम मेरे पैसों को उधार देने वालों को देना चाहिए था! फिर जब मैं लौटता तो मैं उस राशि से अधिक ब्याज कमा सकता था!'
\s5
\v 24 तब राजा ने उन लोगों से कहा, जो पास खड़े थे, 'उसके पास से पैसे ले लो, और उस दास को दे दो जिसने दस गुणा अधिक बढ़ाया है!'
\v 25 उन्होंने विरोध किया, 'परन्तु स्वामी, उसके पास पहले ही से बहुत पैसे हैं!'
\s5
\v 26 परन्तु राजा ने कहा, 'मैं तुमसे कहता हूँ: जो मैं देता हूँ उसका उचित उपयोग करने वालों को और भी दूँगा। परन्तु उन लोगों से जो उसका उचित उपयोग नहीं करते हैं, मैं उनसे वह भी ले लूँगा जो उनके पास पहले से है।
\v 27 अब, मेरे उन बैरियों के बारे में, जो नहीं चाहते थे कि मैं उन पर शासन करूँ, उन्हें यहाँ लाकर मेरी आँखों के सामने मार डालो!'"
\p
\s5
\v 28 इन बातों को कहने के बाद, यीशु यरूशलेम के रास्ते पर अपने शिष्यों से आगे चलने लगे।
\s5
\v 29 जब वे जैतून पहाड़ के पास बैतफगे और बैतनिय्याह के गाँवों के पास पहुँचे,
\v 30 उन्होंने अपने दो शिष्यों से कहा, "अपने सामने के गाँव में जाओ। जैसे तुम उसमें प्रवेश करोगे, वहाँ एक गधे का बच्चा बन्धा हुआ मिलेगा, जिस पर कोई भी कभी नहीं बैठा है, उसे खोलो और मेरे पास ले आओ।
\v 31 यदि कोई तुम से पूछता है, 'तुम गधे को क्यों खोल रहे हो?' उससे कहना, 'प्रभु को इसकी आवश्यकता है।"
\s5
\v 32 इसलिए दोनों शिष्य गाँव में चले गए और उन्होंने गधे को वैसा ही पाया, जैसा यीशु ने उन्हें कहा था
\v 33 जैसे वे उसे खोलने लगे तो, उसके मालिकों ने उनसे कहा, "तुम हमारे गधे को क्यों खोल रहे हो?"
\v 34 उन्होंने कहा, "प्रभु को इसकी आवश्यकता है।"
\v 35 तब शिष्य गधे को यीशु के पास ले आए। उन्होंने गधे की पीठ पर अपने कपड़ों को डाल दिया और उस पर बैठने में यीशु की सहायता की।
\v 36 फिर जब वह जा रहे थे, तो अन्य लोगों ने अपने कपड़ों को उनके सामने सड़क पर फैलाया कि उनको सम्मान दें।
\s5
\v 37 जब वे जैतून के पहाड़ से नीचे उतर कर सड़क पर आए, तो उनके शिष्यों की भीड़ ने आनन्दित होकर जयजयकार किया और उन्होंने यीशु द्वारा किए गए सब महान चमत्कारों के लिए परमेश्वर की स्तुति की।
\v 38 वे कह रहे थे, "परमेश्वर हमारे राजा को आशीर्वाद दे, जो परमेश्वर के अधिकार के साथ आता है! स्वर्ग के परमेश्वर और हमारे बीच में शान्ति हो, और सब लोग परमेश्वर की स्तुति करें!"
\s5
\v 39 कुछ फरीसी जो भीड़ में थे, उन्होंने उनसे कहा, हे गुरु, अपने शिष्यों से कह, कि वे ये बातें न कहें!
\v 40 उन्होंने उत्तर दिया, "मैं तुमसे कहता हूँ: यदि ये लोग चुप रहेंगे, तो पत्थर मेरी स्तुति करने के लिए चिल्लाएँगे!"
\p
\s5
\v 41 जब यीशु यरूशलेम के पास आए तो नगर के लोगों के लिए विलाप किया।
\v 42 उन्होंने कहा, "मैं चाहता हूँ कि आज तुम लोग जान पाते कि परमेश्वर की शान्ति कैसे मिल सकती है। परन्तु अभी तुम इसे जानने में समर्थ नहीं हो।
\s5
\v 43 मैं चाहता हूँ कि तुम यह जान लो जल्द ही तुम्हारे शत्रु आएँगे और तुम्हारे शहर के आस-पास एक बाड़ा स्थापित करेंगे। वे शहर के चारों ओर घूमेंगे और उस पर चारों ओर से आक्रमण करेंगे।
\v 44 वे दीवारों को तोड़ देंगे और सब कुछ नष्ट कर देंगे। वे इसे, तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को नष्ट कर देंगे। जब वे सब कुछ नष्ट कर चुके होंगे, तब पत्थर पर पत्थर नहीं रहेगा। यह सब इसलिए होगा क्योंकि तुम उस समय को नहीं पहचान पाए जब परमेश्वर तुम्हें बचाने के लिए आए थे!"
\p
\s5
\v 45 यीशु यरूशलेम में प्रवेश कर गए और मन्दिर के आँगन में गए। उन्होंने उस जगह को देखा जहाँ लोग सामान बेच रहे थे,
\v 46 और वह उन्हें बाहर निकालने लगे। उन्होंने उनसे कहा, "यह शास्त्रों में लिखा गया है, 'मैं अपने घर को एक ऐसी जगह बनाना चाहता हूँ, जहाँ लोग प्रार्थना कर सके, लेकिन तुमने इसे चोरों के लिए एक ठिकाना बना दिया है!"
\p
\s5
\v 47 उस सप्ताह के हर एक दिन यीशु ने मन्दिर के आँगन में लोगों को शिक्षा दी। प्रधान याजक, धार्मिक व्यवस्था के शिक्षक, और अन्य यहूदी अगुवे उन्हें मारने का मार्ग खोजने का प्रयास कर रहे थे।
\v 48 परन्तु उन्हें ऐसा करने का कोई मार्ग नहीं मिला, क्योंकि सभी लोग उनकी सुनने के लिए उत्सुक थे।
\s5
\c 20
\p
\v 1 उस सप्ताह एक दिन यीशु लोगों को मन्दिर के आँगन में शिक्षा दे रहे थे और उन्हें परमेश्वर का सुसमाचार सुना रहे थे। तब प्रधान याजक, यहूदी व्यवस्था के शिक्षक, और अन्य प्राचीन उनके पास आए।
\v 2 उन्होंने उनसे कहा, "हमें बताएँ कि तुम्हें यह सब काम करने का क्या अधिकार है? और किस ने तुम्हें यह अधिकार दिया?"
\s5
\v 3 यीशु ने कहा, "मैं भी तुमसे एक प्रश्न पूछता हूँ।
\v 4 यूहन्ना के बपतिस्मा देने के बारे में मुझे बताओ कि क्या परमेश्वर ने उसे आज्ञा दी थी कि लोगों को बपतिस्मा दे या मनुष्य ने उसे आज्ञा दी थी?"
\s5
\v 5 उन्होंने आपस में एक चर्चा की। उन्होंने कहा, "यदि हम कहें, 'परमेश्वर ने उसे आज्ञा दी,' तो वह कहेंगे, 'तो तुमने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया?'
\v 6 परन्तु यदि हम कहें, 'यह केवल मनुष्य थे जिन्होंने उसे बपतिस्मा देने के लिए कहा था,' तो लोग हमें पत्थर मार मार कर मार डालेंगे, क्योंकि वे सब मानते हैं कि यूहन्ना एक भविष्यद्वक्ता था जिसे परमेश्वर ने भेजा था।
\s5
\v 7 इसलिए उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं मालूम कि यूहन्ना को बपतिस्मा देने के लिए किसने कहा था।
\v 8 तब यीशु ने उनसे कहा, "मैं भी तुम्हें नहीं बताऊँगा कि मुझे किसने इन कामों को करने के लिए भेजा है।"
\p
\s5
\v 9 फिर यीशु ने लोगों को एक दृष्टान्त सुनाया, "एक व्यक्ति ने दाख की बारी लगा दी, उसने दाख की बारी को कुछ पुरुषों को दे दिया कि उसकी देखभाल करे, और वह किसी दूसरे देश में चला गया और वहाँ एक लम्बे समय तक रहा।
\v 10 जब अँगूर की फसल तोड़ने का समय आया, तो उसने दाख की बारी की देखभाल करनेवालों के पास एक नौकर भेजा, कि वे अँगूर की फसल में से उसके हिस्से को दें। परन्तु उन्होंने उस नौकर को मारा और अँगूर के बिना उसे वापस भेज दिया।
\s5
\v 11 बाद में, मालिक ने एक और नौकर भेजा। लेकिन उन्होंने उसे भी मारा और लज्जित किया। उन्होंने उसे भी अँगूर के बिना वापस भेज दिया।
\v 12 फिर भी, मालिक ने एक और नौकर भेजा। इस तीसरे नौकर को उन्होंने घायल किया और दाख की बारी के बाहर फेंक दिया।
\s5
\v 13 इसलिए दाख की बारी के मालिक ने सोचा, 'अब मुझे क्या करना चाहिए? मैं अपने पुत्र को भेजूँगा, जिससे मैं बहुत प्रेम करता हूँ। वे शायद उसका सम्मान करेंगे।'
\v 14 इसलिये उसने अपने पुत्र को भेजा, परन्तु जब दाख की बारी की देखभाल करने वालों ने उसे देखा, तो उन्होनें एक दूसरे से कहा, 'यह व्यक्ति आ रहा है जो किसी दिन दाख की बारी का उत्तराधिकारी होगा! आओ हम उसे मार डालें ताकि यह दाख की बारी हमारी हो जाए!'
\s5
\v 15 अतः वे उसे बाग के बाहर खींच लाए और उसे मार डाला। मैं तुम्हें बताता हूँ कि दाख की बारी का मालिक उनके साथ क्या करेगा!
\v 16 वह आएगा और उन मनुष्यों को मार डालेगा जो दाख की बारी की देखभाल कर रहे थे। तब वह अन्य लोगों को इसकी देखभाल करने के लिए नियुक्त करेगा। "जब जो लोग यीशु को सुन रहे थे, उन्होंने यह बात सुनी, तो उन्होंने कहा, "ऐसी स्थिति कभी न हो!"
\s5
\v 17 परन्तु यीशु ने उनकी ओर सीधा देखा और कहा, "तुम यह कह सकते हो, परन्तु उन वचनों के अर्थ के बारे में सोचो, जो शास्त्रों में लिखे गए हैं,
\q1 'जिस पत्थर को भवन बनानेवालों ने ठुकराया, वही भवन में सबसे महत्वपूर्ण पत्थर बन गया है।
\p
\v 18 जो कोई उस पत्थर पर गिरता है, वह टुकड़े टुकड़े हो जाएगा, और यह जिस पर गिरता है उसे कुचल डालेगा।"
\p
\s5
\v 19 यीशु का दृष्टान्त सुनकर प्रधान याजकों और यहूदी व्यवस्था के शिक्षकों ने सोचा कि वह उन पर आरोप लगा रहे हैं। इसलिए वे उन्हें तुरन्त बन्दी बनाने का उपाय खोजने का प्रयास करने लगे, परन्तु वे उन्हें बन्दी नहीं बना पाए, क्योंकि वे डरते थे कि अगर वे ऐसा करेंगे तो लोग क्या करेंगे।
\v 20 तो उन्होंने उन्हें ध्यान से देखा। उन्होंने भेदियों को भी भेजा जो धर्मी होने का नाटक करते थे लेकिन वे वास्तव में यीशु को कुछ गलत कहने के लिए उकसाते थे, ताकि उस पर आरोप लगा सकें। वे प्रान्त के राज्यपाल के हाथों उसे पकड़वाना चाहते थे।
\s5
\v 21 इसलिए एक भेदिए ने उनसे पूछा, "गुरु, हम जानते हैं कि आप सही बोलते और सिखाते हैं.आप सच बोलते हो, भले ही महत्वपूर्ण लोग इसे पसन्द न करते हों। आप सच्चाई से सिखाते हैं कि परमेश्वर हमसे क्या कराना चाहते हैं।
\v 22 तो हमें बताएँ कि आप इस विषय में क्या सोचते हैं: क्या यह सही है कि हम रोमी सरकार को कर दें?"
\s5
\v 23 परन्तु यीशु जानते थे कि वे उन्हें चतुराई से फँसाने का प्रयास किया जा रहा है, या तो यहूदियों के साथ, जो उन कर का भुगतान करने से घृणा करते थे या रोमन सरकार के साथ। इसलिए उन्होंने उनसे कहा,
\v 24 "मुझे एक रोमी सिक्का दिखाओ। फिर मुझे बताओ कि किसकी तस्वीर उस पर है और किसका नाम लिखा है।" इसलिए उन्होंने उसे एक सिक्का दिखाया और कहा, "इसमें कैसर का चित्र और नाम है, जो रोमी सरकार का राजा है।"
\s5
\v 25 उन्होंने उनसे कहा, "जो सरकार का है, वह सरकार को दो और जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर को दो।"
\v 26 भेदिए उसके जवाब से आश्चर्यचकित हुए, इतना कि वे उसे जवाब नहीं दे सके। यीशु ने अपने सामने खड़े लोगों से कुछ नहीं कहा जिससे कि भेदिए उसकी गलती निकाल सकें।
\p
\s5
\v 27 उसके बाद, कुछ सदूकी यीशु के पास आए। वे यहूदियों के एक समूह के थे जो कहते थे कि मरे हुओं में से कोई जीवित नहीं होता है।
\v 28 वे भी यीशु से सवाल पूछना चाहते थे। उनमें से एक ने उससे कहा, हे गुरू, मूसा ने यहूदियों के लिए यह लिखा है कि यदि कोई पुरुष जिसके पास पत्नी हो, परन्तु कोई सन्तान नहीं हो, मर जाता है तो उसके भाई को विधवा से विवाह करना चाहिए कि वह उसके द्वारा सन्तान उत्पन्न करे। इस रीति से लोग उस सन्तान को उस व्यक्ति का वंशज मानेंगे जो मर गया।
\s5
\v 29 एक परिवार में सात भाई थे। सबसे बड़े व्यक्ति ने एक स्त्री से विवाह किया, लेकिन उसके कोई सन्तान नहीं थी। बाद में वह मर गया, और उसे विधवा छोड़ दिया।
\v 30 दूसरे भाई ने इस नियम का पालन किया और उस विधवा से विवाह किया, लेकिन वही बात उसके साथ हुई।
\v 31 फिर तीसरे भाई ने उससे विवाह किया, लेकिन वही बात फिर से हुई। सातों भाइयों ने एक-एक करके उस स्त्री से विवाह किया, लेकिन उनके पास कोई सन्तान नहीं थी, और एक के बाद एक वे मर गए।
\v 32 बाद में, वह स्त्री भी मर गई।
\v 33 इसलिए, अगर यह सच है कि मरे हुए लोग फिर से जीवित हो जाएँगे, तो आप के अनुसार वह स्त्री किस की पत्नी होगी? ध्यान रखें कि उसने सभी सातों भाइयों से विवाह किया था!"
\s5
\v 34 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, "इस दुनिया में, पुरुष पत्नियाँ लेते हैं, और लोग अपनी बेटियों को विवाह में पुरुषों को दे देते हैं।
\v 35 परन्तु परमेश्वर मरकर जीवित होनेवालों में से जिनको जी उठकर स्वर्ग में होने के योग्य समझते हैं, वे विवाह नहीं करेंगे।
\v 36 इसके अतिरिक्त, वे अब कभी नहीं मरेंगे, क्योंकि वे परमेश्वर के स्वर्गदूतों के समान होंगे जो हमेशा के लिए जीवित रहते हैं। वे परमेश्वर की सन्तान होंगे, जिन्हें परमेश्वर ने नए जीवन में जिलाया है।
\s5
\v 37 परन्तु झाड़ी की कथा में, मूसा ने मरे हुओं के जीवित रहने की चर्चा की है। उन्होंने लिखा था, 'अब्राहम का परमेश्वर और इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर।' मूसा ने हमें दिखाया कि परमेश्वर के लोगों के अगुवे, मरने के बाद भी परमेश्वर की उपासना करते हैं और उनका सम्मान करते हैं, क्योंकि वे अभी भी परमेश्वर के सामने रहते हैं। इससे सिद्ध होता है, कि परमेश्वर मरे हुओं को, फिर से जीवित करते हैं।
\v 38 अब वह उन लोगों के परमेश्वर हैं जो जीवित हैं। वह मरे हुओं के परमेश्वर नहीं हैं! परन्तु हम सब को जीवन दिया जाता है कि हम परमेश्वर के साथ रहें, और जब हम उनके साथ हों, हम उन्हें सम्मान दें!"
\p
\s5
\v 39 यहूदी व्यवस्था के कुछ शिक्षकों ने जवाब दिया, "गुरु, आपने अति उत्तम उत्तर दिया है!"
\v 40 उसके बाद, उसे फँसाने के लिए किसी ने भी उनसे और सवाल पूछने का साहस नहीं किया।
\p
\s5
\v 41 फिर यीशु ने उनसे कहा, "मैं तुम्हें दिखाता हूँ कि जब लोग कहते हैं कि मसीह केवल राजा दाऊद के वंशज है, तो वे गलत हैं!
\v 42 दाऊद ने स्वयं भजन की पुस्तक में लिखा था,
\q परमेश्वर ने मेरे प्रभु से कहा,
\q 'मेरे दाहिनी ओर मेरे पास बैठ, जहाँ मैं तुम्हें बहुत सम्मान दूँगा।
\q
\v 43 यहाँ बैठो जब तक मैं पूरी तरह से तुम्हारे शत्रुओं को हरा न दूँ।
\p
\v 44 राजा दाऊद ने मसीह को 'मेर्रे प्रभु' कहा! तो मसीह राजा दाऊद के वंशज नहीं हो सकते! मैंने जो कहा वह साबित करता है कि वह दाऊद से अधिक महान है।"
\p
\s5
\v 45 जब सभी अन्य लोग सुन रहे थे, यीशु ने अपने शिष्यों से कहा,
\v 46 सावधान रहो कि तुम हमारे यहूदी व्यवस्था के शिक्षकों के जैसे काम न करो। वे लम्बे वस्त्रों को पहनना पसन्द करते हैं और लोगों को लगता है कि वे बहुत महत्वपूर्ण हैं। वे चाहते है कि लोग उन्हें बाजारों में आदर के साथ नमस्कार करें। वे आराधनालयों में सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में बैठना पसन्द करते हैं। भोज में वे उन स्थानों में बैठना पसन्द करते हैं जहाँ सबसे सम्मानित लोग बैठते हैं।
\v 47 वे विधवाओं की सारी सम्पत्ति चोरी करते हैं। फिर वे सावर्जनिक रीति से लम्बे समय तक प्रार्थना करते हैं। परमेश्वर निश्चय ही उन्हें गम्भीर दण्ड देंगे।"
\s5
\c 21
\p
\v 1 यीशु जहाँ बैठे थे, वहाँ से उन्होंने देखा कि धनवान अपनी भेंटें मन्दिर की दान पेटी में डाल रहे हैं।
\v 2 उन्होंने एक गरीब विधवा को बहुत कम मूल्य के दो छोटे सिक्के डालते देखा।
\v 3 और उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, "सच यह है कि इस गरीब विधवा ने इन सब धनवान लोगों की तुलना में दान पेटी में अधिक धन डाला है।
\v 4 उन सब के पास बहुत सारा पैसा है, लेकिन उन्होंने उसका एक छोटा हिस्सा दिया। परन्तु इस विधवा ने, जो बहुत गरीब है, उसने वह सब कुछ डाल दिया है जिससे उसे कुछ खरीदने की आवश्यकता थी।
\p
\s5
\v 5 यीशु के कुछ शिष्य बात कर रहे थे कि मन्दिर को कैसे सुन्दर पत्थरों से बनाया गया है और लोगों द्वारा दी गई भेंटों से सजाया गया है। परन्तु यीशु ने कहा,
\v 6 "जो तुम देख रहे हो, वह पूरी तरह से नष्ट हो जाएगा। हाँ, समय आ रहा है जब इन पत्थरों में से कोई एक दूसरे के ऊपर नहीं रहेगा।"
\p
\s5
\v 7 फिर उन्होंने उससे पूछा, "हे गुरु, ये सब कब होगा? और इसके लिए क्या चिन्ह होगा कि ये बातें होने वाली हैं?"
\v 8 यीशु ने उत्तर दिया, "सावधान रहो कि कोई तुम्हें धोखा न दे, क्योंकि बहुत से लोग आएँगे और प्रत्येक मेरे नाम का दावा करेंगे। हर एक जन कहेगा, 'मैं मसीह हूँ!' वे यह भी कहेंगे, 'समय आ गया है, जब परमेश्वर राजा के रूप में शासन करेंगे!' तुम उनके पीछे न होना की उनके शिष्य बनो!
\v 9 इसके अतिरिक्त, जब तुम युद्धों के और लोगों के एक-दूसरे से लड़ने के बारे में सुनो, तो डरना नहीं। दुनिया के अन्त से पहले इन बातों का होना आवश्यक है।"
\p
\s5
\v 10 "लोगों के विभिन्न समूह एक दूसरे पर आक्रमण करेंगे, और विभिन्न राजा एक दूसरे से युद्ध करेंगे।
\v 11 और विभिन्न स्थानों में बड़े भूकंप आएँगे, साथ ही साथ अकाल और भयानक रोग होंगे। बहुत सी ऐसी घटनाएँ होंगी जो लोगों को बहुत डराएँगी, और लोग आकाश में विचित्र वस्तुओं को देखेंगे जिससे प्रकट होगा कि कुछ महत्वपूर्ण होने वाला है।
\s5
\v 12 लेकिन इन सब बातों से पहले, वे तुम्हें गिरफ्तार करेंगे, तुमसे बुरा व्यवहार करेंगे और मुकद्दमा चलाने के लिए तुम्हें आराधनालयों में सौंपेंगे और तुम्हें बन्दीगृह में डालेंगे। वे राजाओं और उच्च सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति में तुम पर मुकदमे चलाएँगे क्योंकि तुम मेरे अनुयाई हो।
\v 13 तब तुम्हें उनको मेरे बारे में सच्चाई बताने का समय होगा।
\s5
\v 14 अपने बचाव में तुम क्या कहोगे, समय से पहले इसकी चिन्ता न करने का निश्चय कर लो।
\v 15 क्योंकि मैं तुमको सही शब्द और ज्ञान दूँगा कि तुम जान सको कि क्या कहना है। इसका परिणाम यह होगा कि तुम पर आरोप लगाने वाले लोगों में से कोई भी यह नहीं कह पाएगा कि तुम गलत हो।
\s5
\v 16 और यहाँ तक कि तुम्हारे माता-पिता, भाई और अन्य सम्बन्धी और दोस्त तुम्हें धोखा देंगे, और वे तुम में से कुछ को मार डालेंगे।
\v 17 सामान्य तौर पर, सभी लोग तुमसे घृणा करेंगे क्योंकि तुम मुझ पर विश्वास करते हो।
\v 18 परन्तु तुम्हारे सिर का एक भी बाल नष्ट नहीं होगा।
\v 19 यदि तुम कठिन समय में परमेश्वर पर अपना भरोसा सिद्ध करते हो, तो तुम स्वयं को बचा लोगे।"
\p
\s5
\v 20 "जब तुम देखो कि सेनाओं ने यरूशलेम को चारों ओर से घेर लिया है, तो तुम जान लोगे कि वे शीघ्र ही इस शहर को नष्ट कर देंगे।
\v 21 उस समय जो यहूदिया के क्षेत्र में हैं, उन्हें पहाड़ों पर भाग जाना चाहिए। और तुम में से जो इस शहर में हैं, उन्हें भी शहर से निकल जाना चाहिए और जो पास के ग्रामीण क्षेत्रों में हों, उन्हें शहर में नहीं आना चाहिए।
\v 22 क्योंकि वह समय परमेश्वर के दण्ड का होगा जो; वह इस शहर को देंगे, तब धर्म शास्त्र के वचन सच होंगे।
\s5
\v 23 वे दिन गर्भवती स्त्रियों और दूध पिलाने वाली स्त्रियों के लिए कितना भयानक होगा, क्योंकि देश में बड़े कष्ट होंगे, और देश के लोगों को बहुत दुःख होगा क्योंकि परमेश्वर उनसे क्रोधित होंगे।
\v 24 उनमें से बहुत से मरेंगे क्योंकि सैनिक उन पर हथियारों के साथ आक्रमण करेंगे। कई लोग बन्दी बनाए जाएँगे और उन्हें संसार के विभिन्न स्थानों में भेजा जाएगा। जब तक परमेश्वर अनुमति देंगे, तब तक अन्यजाति यरूशलेम की सड़कों पर अपने सैनिकों को चलने देंगी।"
\p
\s5
\v 25 "इस समय, सूरज, चँद्रमा और तारों के साथ विचित्र घटनाएँ होंगी और धरती पर, लोगों का समूह बहुत डर जाएगा, और वे समुद्र के गर्जन के कारण और उसकी विशाल तरंगों के कारण घबरा जाएँगे।
\v 26 लोग इतने भयभीत होंगे कि वे मुर्छित हो जाएँगे, क्योंकि वे संसार की आनेवाली घटनाओं की प्रतीक्षा करेंगे। आकाश में तारों को अपना नियत स्थान छोड़ना होगा।
\s5
\v 27 तब सब लोग मुझे मनुष्य के पुत्र को बादलों में शक्ति और शानदार प्रकाश के साथ आते हुए देखेंगे।
\v 28 इसलिए जब ये भयानक घटनाएँ आरम्भ होने लगेंगी, तो सीधे खड़े होकर ऊपर की ओर देखना, क्योंकि परमेश्वर शीघ्र ही तुम्हें बचाएँगे।"
\p
\s5
\v 29 तब यीशु ने उन्हें एक दृष्टान्त सुनाया: "अंजीर के पेड़ों और अन्य सब पेड़ों के बारे में सोचो।
\v 30 जब भी तुम देखते हो कि उनके पत्ते अंकुरित हो रहे हैं, तो तुम जानते हो कि गर्मियों का समय निकट है।
\v 31 उसी तरह, जब तुम इन घटनाओ को देखो, जिनका वर्णन मैं ने अभी किया है, तो तुम जान लोगे कि परमेश्वर शीघ्र ही स्वयं को राजा के रूप में प्रकट करेंगे।
\s5
\v 32 मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: मनुष्यों की यह पीढ़ी मेरी इन सब बातों के पूरा होने तक समाप्त नहीं होगी।
\v 33 आकाश और पृथ्वी का अन्त हो जाएगा, लेकिन जो मैं तुम्हें कहता हूँ उनका अन्त कभी नहीं होगा।
\p
\s5
\v 34 स्वयं को वश में रखने के लिए बहुत सावधान रहो। उन उत्सवों में मत जाना जहाँ लोग अनैतिक काम करते हैं या शराब पीकर नशे में हो जाते हैं। और इस जीवन की चिन्ताओं में डूब न जाना। यदि तुम ऐसा जीवन जीओगे, तो तुम मेरे वापस आने की प्रतीक्षा करना बन्द कर दोगे। और फिर, उस पल में, मैं आकर तुम्हें आश्चर्यचकित करूँगा। मेरा आना अकस्मात ही होगा जैसे पशुओं को पकड़ने का फँदा बिना चेतावनी बन्द हो जाता है।
\v 35 सच तो यह है कि मैं बिना चेतावनी के वापस आऊँगा, और वह दिन तब आएगा जब तुम मुझे देखने के लिए तैयार नहीं होगे।
\s5
\v 36 तो तुम्हें मेरे आने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए। और सदैव प्रार्थना करना चाहिए कि तुम इन सब संकटों में सुरक्षित रह सको, कि जब मैं, मनुष्य का पुत्र, संसार का न्याय करने आऊँ, तो तुम्हें निर्दोष घोषित कर सकूँ।"
\p
\s5
\v 37 यीशु मन्दिर में प्रतिदिन लोगों को सिखाते रहते थे। परन्तु शाम को वह नगर से निकलकर जैतून पहाड़ पर रात बिताते थे।
\v 38 और प्रतिदिन सुबह सब लोग उनसे सुनने के लिए शीघ्र ही मन्दिर में उनके पास आ जाते थे।
\s5
\c 22
\p
\v 1 अब अखमीरी रोटी के उत्सव का समय लगभग आ गया था, जिसे लोग फसह भी कहते हैं।
\v 2 अब प्रधान याजक और यहूदी व्यवस्था के शिक्षक यीशु को मारने का उपाय खोज रहे थे क्योंकि वे उनके पीछे चलने वाले लोगों से डरते थे।
\p
\s5
\v 3 तब शैतान यहूदा में समाया, जो इस्करियोती कहलाता था, और बारह शिष्यों में से एक था।
\v 4 उसने जाकर प्रधान याजकों और मन्दिर के अधिकारियों के साथ बातें की कि वह यीशु को कैसे उनके हाथों में दे सकता है।
\s5
\v 5 वे बहुत प्रसन्न थे कि यहूदा ऐसा करना चाहता है। उन्होंने इस काम के लिए उसे पैसे देने का प्रस्ताव रखा।
\v 6 तो यहूदा सहमत हो गया, और उसके बाद उसने यीशु को पकड़वाने में सहायता करने के लिए उपाय खोजना आरम्भ कर दिया, जब भीड़ उनके साथ न हो।
\p
\s5
\v 7 तब अखमीरी रोटी का दिन आया, उस दिन फसह के पर्व के लिए भेड़ के बच्चे को मारना था।
\v 8 यीशु ने पतरस और यूहन्ना से कहा, "जाओ और हमारे लिए फसह का उत्सव मनाने के लिए भोजन की तैयार करो ताकि हम एक साथ खा सकें।"
\v 9 उन्होंने उत्तर दिया, "आप कहाँ चाहते हैं कि हम खाने की तैयारी करें?"
\s5
\v 10 उन्होंने उत्तर दिया, "ध्यान से सुनो। जब तुम शहर में जाओगे, तो एक व्यक्ति बड़ा घड़ा उठाकर लाता हुआ तुम्हें मिलेगा; उसके पीछे उस घर में प्रवेश करना, जिसमें वह जाएगा।
\v 11 उस घर के स्वामी से कहना, 'हमारे गुरु कहते हैं कि आप हमें वह कमरा दिखाएँ जहाँ वह हमारे साथ, अर्थात् उनके शिष्यों के साथ फसह का भोजन खा सकते हैं।'
\s5
\v 12 वह तुम्हें एक बड़ा कमरा दिखाएगा जो घर की ऊपरी मंजिल पर है। वहाँ सब कुछ मेहमानों के लिए तैयार होगा। वहाँ हमारे लिए भोजन तैयार करो।
\v 13 तब वे दोनों शिष्य शहर में चले गए। उन्होंने सब कुछ वैसा ही पाया जैसा यीशु ने उनसे कहा था। इसलिए उन्होंने वहाँ फसह मनाने के लिए भोजन तैयार किया।
\p
\s5
\v 14 जब भोजन का समय हुआ तब यीशु आए और प्रेरितों के साथ बैठ गए
\v 15 उन्होंने उनसे कहा, "मैं दुःख भोगकर मरने से पहले तुम्हारे साथ यह भोजन करना बहुत अधिक चाहता था।
\v 16 मैं तुमसे कहता हूँ, मैं इसे दोबारा तब तक नहीं खाऊँगा जब तक कि परमेश्वर हर जगह सब पर शासन नहीं करते, और उन्होंने फसह के द्वारा जो आरम्भ किया है उसे पूरा नहीं करते।
\s5
\v 17 फिर उन्होंने एक कटोरे में दाखरस लिया और उसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा, "यह लो, और आपस में इसे बाँट लो।
\v 18 क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि जब तक परमेश्वर हर जगह हर किसी पर शासन नहीं करते, तब तक मैं इस दाखरस को फिर से नहीं पीऊँगा।"
\s5
\v 19 फिर उन्होंने कुछ रोटी ली और उसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। उन्होंने इसे टुकड़ों में तोड़ दिया और उन्हें खाने के लिए दिया। जब वह ऐसा कर रहे थे, तब उन्होंने कहा, "यह रोटी मेरा शरीर है, जो मैं तुम्हारे लिए बलि करने पर हूँ। मुझे स्मरण करने के लिए यह बाद में भी करते रहना।"
\v 20 इस तरह, भोजन करने के बाद, उन्होंने दाखरस का प्याला ले लिया और कहा, "यह नई वाचा है जो मैं अपने लहू के द्वारा जो तुम्हारे लिए बहाया गया है, बाँधता हूँ।
\s5
\v 21 लेकिन, देखो! वह व्यक्ति जो मुझे मेरे शत्रुओं के हाथ में देगा, वह मेरे साथ खा रहा है।
\v 22 निश्चिय मैं, अर्थात् मनुष्य का पुत्र मर जाएगा, क्योंकि परमेश्वर ने यही योजना बनाई है। परन्तु उस मनुष्य के लिए कितना भयानक होगा जो मेरे शत्रुओं के हाथ में मुझे देगा!"
\v 23 तब प्रेरितों ने एक दूसरे से पूछा, "हम में से कौन यह काम करने की योजना बना रहा है?"
\p
\s5
\v 24 उसके बाद, प्रेरितों ने आपस में बहस करना शुरू कर दिया; उन्होंने कहा, "जब यीशु राजा बन जाएँगे, तो हम में से सबसे अधिक सम्मानित कौन होगा?"
\v 25 यीशु ने उनसे कहा, "अन्यजातियों के राजा लोगों को दिखाना चाहते है कि वे शक्तिशाली हैं, फिर भी वे स्वयं को यह शीर्षक देते हैं, 'जो लोगों की सहायता करते हैं।'
\s5
\v 26 लेकिन तुम उन शासकों की तरह न बनो! इसकी अपेक्षा, तुम्हारे बीच सबसे सम्मानित व्यक्तियों को इस तरह से कार्य करना चाहिए जैसे कि वे सबसे छोटे हैं, और जो अगुवाई करते हैं उन्हें दास के समान काम करना चाहिए।
\v 27 तुम जानते हो कि महत्वपूर्ण व्यक्ति वह है जो मेज़ पर खाता है, न कि दास जो खाना लाता है। लेकिन मैं तुम्हारा दास हूँ।
\p
\s5
\v 28 तुम वही लोग हो, जो मेरे साथ थे जब मैंने सब कठिनाईयों को झेला था।
\v 29 इसलिए, जब मेरे पिता सब पर शासन करेंगे, तब मैं तुम्हें शक्तिशाली अधिकारियों के रूप में नियुक्त करूँगा, जैसे मेरे पिता ने मुझे राजा नियुक्त किया है।
\v 30 जब मैं राजा बन जाऊँगा, तब तुम मेरे साथ बैठोगे और मेरे साथ खाओगे और पीओगे। वास्तव में, तुम सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों के लोगों का न्याय करोगे।
\p
\s5
\v 31 "शमौन, शमौन, सुन! शैतान ने परमेश्वर से पूछा कि वह तुम्हारी परीक्षा करे, जैसा कोई अनाज को फटकता है, और परमेश्वर ने उसे ऐसा करने के लिए अनुमति दी है।
\v 32 लेकिन मैंने शमौन तुम्हारे लिए, प्रार्थना की है कि तुम मुझ पर विश्वास करना त्याग न दो। तो जब तुम मेरे पास वापस आओ, तो इन पुरुषों को जो तुम्हारे भाई हैं, फिर से साहस दो।
\s5
\v 33 पतरस ने उनसे कहा, "हे प्रभु, मैं आपके साथ बन्दीगृह में जाने के लिए तैयार हूँ; मैं आपके साथ मरने को भी तैयार हूँ।"
\v 34 यीशु ने उससे कहा, "पतरस, मैं चाहता हूँ तुम जानो कि आज रात, मुर्गे के बाँग देने से पहले, तुम तीन बार कहोगे कि तुम मुझे नहीं जानते!"
\p
\s5
\v 35 फिर यीशु ने शिष्यों से पूछा, "जब मैंने तुम्हें गाँवों में भेजा, और तुम बिना किसी पैसे, भोजन या जूते के गए, क्या वहाँ तुम्हारी आवश्यकताएँ ऐसी थीं। जो पूरी नहीं हुई?" उन्होंने उत्तर दिया, "कुछ नहीं!"
\v 36 और उन्होंने कहा, "लेकिन, अब, यदि तुम्हारे बीच में किसी के पास धन है, तो वह उसे अपने साथ ले ले। इसके अतिरिक्त, जिस किसी के पास खाना है, उसे वह अपने साथ ले ले, और जिसके पास तलवार नहीं है, वह अपने कपड़े बेच कर खरीद ले!"
\s5
\v 37 मैं तुमसे यह इसलिए कहता हूँ क्योंकि शास्त्रों में एक भविष्यद्वक्ता ने मेरे बारे में जो लिखा है, वह पूरा होगा: 'लोग उसे अपराधी मानेंगे।' शास्त्र में मेरे बारे में जो कुछ भी लिखा है वह हो रहा है।
\p
\v 38 शिष्यों ने कहा, "हे प्रभु, देखो, हमारे पास दो तलवारें हैं!" उन्होंने कहा, "बस करो। अब ऐसा मत बोलो।"
\p
\s5
\v 39 यीशु ने शहर को छोड़ दिया और जैतून के पहाड़ पर गए, जैसा वह साधारणतः करते थे; उनके शिष्य उनके साथ गए।
\v 40 जब वह उस स्थान पर आए जहाँ वह जाना चाहते थे, तो उन्होंने उनसे कहा, "प्रार्थना करो कि परमेश्वर तुम्हारी सहायता करे कि तुम पाप करने की परीक्षा में न पड़ो।"
\s5
\v 41 तब वह उनसे लगभग तीस मीटर की दूरी पर गए और घुटने टेककर प्रार्थना की। उन्होंने कहा,
\v 42 "पिता, मेरे साथ जो भयानक बातें होने वाली: हैं यदि आप उन्हें रोकने के लिए तैयार हैं, तो ऐसा करें। परन्तु जो भी मैं चाहता हूँ, वह नहीं आप जो चाहते हैं वही करें।"
\s5
\v 43 तब स्वर्ग से एक स्वर्गदूत आया और उन्हें सांत्वना दी।
\v 44 वह काफी पीड़ित थे। इसलिए उन्होंने अधिक तीव्रता से प्रार्थना की। उनका पसीना भूमि पर खून की बड़ी बड़ी बूंदों में गिर रहा था।
\s5
\v 45 जब वह प्रार्थना करने से उठ गए, तो वह अपने शिष्यों के पास गए। उन्होंने पाया कि उनके दुःख के कारण वे इतने थके हुए थे कि वे सो रहे थे।
\v 46 उन्होंने उन्हें जगाया और कहा, "तुम लोगों को सोना नहीं चाहिए, उठो! प्रार्थना करो कि परमेश्वर तुम लोगों की सहायता करे ताकि कोई तुम को पाप करने के लिए न उकसाये।"
\p
\s5
\v 47 जब यीशु बातें कर ही रहे थे, तो लोगों की भीड़ उनके पास आ गई। यहूदा, जो बारह शिष्यों में से एक था, उनका नेतृत्व कर रहा था। वह यीशु को चूमने के लिए उनके पास आया।
\v 48 परन्तु यीशु ने उस से कहा; हे यहूदा, क्या तू सचमुच मुझे, मनुष्य के पुत्र को चूमने के लिए आया है, कि मेरे शत्रुओं के हाथ में दे दे?
\s5
\v 49 जब शिष्यों ने जाना कि क्या हो रहा है, तो उन्होंने कहा, "प्रभु, क्या हम उन्हें हमारी तलवार से मार दें?"
\v 50 उनमें से एक ने महायाजक के दास को मारा, लेकिन केवल उसका दाहिना कान काट दिया।
\v 51 परन्तु यीशु ने कहा, "अब बस करो।" फिर उन्होंने दास के कान को छुआ और उसे स्वस्थ किया।
\s5
\v 52-53 तब यीशु ने प्रधान याजकों, मन्दिर के रक्षकों और यहूदी पुरूषों को जो उन्हें बन्दी बनाने के लिए आए थे कहा, "यह आश्चर्य की बात है कि तुम यहाँ मुझे तलवारें और लाठियों के साथ बन्दी बनाने के लिए आए हो, जैसे कि मैं एक डाकू हूँ। बहुत दिनों से मैं मन्दिर में तुम्हारे साथ था, लेकिन तुमने मुझे बन्दी बनाने का कोई प्रयास नहीं किया! परन्तु यह वह समय है जब तुम जो चाहते हो वह कर रहे हो। यह वह समय भी है जब शैतान बुरा काम कर रहा है जिसे वह करना चाहता है।
\p
\s5
\v 54 उन्होंने यीशु को पकड़ लिया और उन्हें लेकर चले गए। वे उसे महायाजक के घर ले गए। पतरस ने बहुत दूर से उनका पीछा किया।
\v 55 लोगों ने आँगन के बीच में आग लगा दी और एक साथ बैठ गए। पतरस उनके बीच बैठ गया।
\s5
\v 56 एक दासी ने आग के प्रकाश में पतरस को वहाँ बैठा देखा। उसने उसे ध्यान से देखा और कहा, "यह व्यक्ति भी उस व्यक्ति के साथ था जिसे उन्होंने बन्दी बनाया है!"
\v 57 लेकिन उसने इन्कार करके कहा, "हे स्त्री, मैं उसे नहीं जानता!"
\v 58 थोड़ी देर बाद किसी ने पतरस को देखा और कहा, "तू उन लोगों में से एक है जो बन्दी बनाए गए थे!" परन्तु पतरस ने कहा, "मनुष्य, मैं उनमें से एक नहीं हूँ!"
\s5
\v 59 लगभग एक घंटे बाद किसी और ने बल देकर कहा, "जिस तरह से यह व्यक्ति बोलता है, उससे प्रकट होता है कि वह गलील के क्षेत्र से है। निश्चय ही यह व्यक्ति उस व्यक्ति के साथ भी था जिसे उन्होंने बन्दी बनाया है!"
\v 60 लेकिन पतरस ने कहा, "हे मनुष्य, मैं नहीं जानता कि तुम क्या कह रहे हो!" जबकि वह बोल ही रहा था, कि एक मुर्गे ने बाँग दी।
\s5
\v 61 प्रभु यीशु ने मुड़कर सीधा पतरस को देखा। तब पतरस ने याद किया कि प्रभु ने उससे क्या कहा था, "आज रात, मुर्गे के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मेरा इन्कार करके कहेगा कि तू मुझे नहीं जानता।"
\v 62 वह आँगन से बाहर चला गया और अत्यधिक दु:ख के साथ रोया।
\p
\s5
\v 63 जो लोग यीशु की रखवाली कर रहे थे, वे उसका ठट्ठा करके उसे मार रहे थें।
\v 64 उन्होंने उसकी आँखों पर पट्टी बाँध दी और कहा, "हमें दिखाओ कि तुम एक भविष्यद्वक्ता हो! हमें बताओ कि किसने तुम्हें मारा!"
\v 65 उन्होंने उसके बारे में कई अन्य बुरी बातें कहीं और उसका अपमान किया।
\p
\s5
\v 66 अगली सुबह भोर के समय कई यहूदी अगुवे एकत्र हुए। इस समूह में प्रधान याजक थे और यहूदी व्यवस्था को सिखाने वाले पुरुष थे। वे यीशु को यहूदी परिषद के कक्ष में ले गए। वहाँ उसने उनसे कहा,
\v 67 "क्या तुम मसीह हो, हमें बताओ!" लेकिन उन्होंने जवाब दिया, "अगर मैं कहता हूँ कि मैं वही हूँ, तो तुम मुझ पर विश्वास नहीं करोगे।
\v 68 यदि मैं तुमसे पूछता हूँ कि तुम मसीह के बारे में क्या सोचते हों, तो तुम मुझे जवाब नहीं दोगे।
\s5
\v 69 परन्तु अब से, मैं, मनुष्य का पुत्र, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के साथ बैठूँगा और शासन करूँगा!"
\v 70 तब उन सब ने पूछा, "यदि ऐसा है, तो क्या तू यह कहना चाहता है कि तू परमेश्वर का पुत्र है?" उसने उत्तर दिया, "हाँ, तुमने जो कहा है वैसे ही होगा।"
\v 71 तो उन्होंने एक दूसरे से कहा, "हमें लोगों की आवश्यकता नहीं है कि वे उसके खिलाफ गवाही दे! हमने स्वयं इसे यह कहते सुना है कि वह परमेश्वर के बराबर है।"
\s5
\c 23
\p
\v 1 तब पूरा समूह उठकर, उन्हें पिलातुस के पास ले गया, जो रोमी राज्यपाल था।
\v 2 उन्होंने पिलातुस के सामने उन पर आरोप लगाया: "हमने इस व्यक्ति को हमारे लोगों को झूठ बोलकर बहकाते हुए देखा है। वह रोमी सम्राट कैसर को कर का भुगतान नहीं करने के लिए कह रहा था। इसके अतिरिक्त, वह यह कह रहा था कि वह मसीह है, एक राजा है!"
\s5
\v 3 पिलातुस ने उन से पूछा, "क्या तुम यहूदियों के राजा हो?" यीशु ने उत्तर दिया, "हाँ, यह जैसा तुमने मुझसे पूछा वैसा ही है।"
\v 4 फिर पिलातुस ने प्रधान याजकों और लोगों से कहा, "यह व्यक्ति किसी अपराध का दोषी नहीं है।"
\v 5 लेकिन वे यीशु पर आरोप लगाते रहे; उन्होंने कहा, "वह लोगों को भड़काने का प्रयास कर रहा है, वह यहूदिया के सभी क्षेत्रों में अपने विचारों को सिखा रहा है। उसने यह काम गलील के क्षेत्र से आरम्भ किया और अब वह यहाँ भी कर रहा है।"
\p
\s5
\v 6 जब पिलातुस ने उनके वचन सुने, तो उसने पूछा, "क्या यह व्यक्ति गलील के जिले से आया है?"
\v 7 क्योंकि पिलातुस को पता चला कि यीशु गलील का हैं, जहाँ हेरोदेस अंतिपास का शासन था, उसने यीशु को उसके पास भेजा, क्योंकि हेरोदेस उस समय यरूशलेम में था।
\s5
\v 8 जब हेरोदेस ने यीशु को देखा, तो वह अत्यधिक प्रसन्न हुआ। वह लम्बे समय से यीशु को देखना चाहता था, क्योंकि वह उसके बारे में बहुत कुछ सुन रहा था और उसे एक चमत्कार करते हुए देखना चाहता था।
\v 9 उसने यीशु से कई सवाल पूछे, लेकिन यीशु ने उनमें से किसी का भी उत्तर नहीं दिया।
\v 10 और यहूदी व्यवस्था के प्रधान याजक और कुछ विशेषज्ञ उसके पास खड़े थे, और उन्होंने उन पर सभी तरह के अपराधों का दोष लगाया।
\s5
\v 11 तब हेरोदेस और उसके सैनिकों ने यीशु का ठट्ठा किया। उन्होनें उसे महँगे कपड़े पहनाए ताकि ढोंग करें कि वह राजा है। तब हेरोदेस ने उसे पिलातुस के पास वापस भेजा दिया।
\v 12 उस समय तक हेरोदेस और पिलातुस एक-दूसरे के शत्रु थे, लेकिन उसी दिन वे मित्र बन गए।
\p
\s5
\v 13 पिलातुस ने प्रधान याजक और अन्य यहूदी अगुओं और जो भी वहाँ उपस्थित थे, सबको एकत्र किया।
\v 14 उसने उनसे कहा, "तुम इस व्यक्ति को मेरे पास लाए, और कहा कि वह विद्रोह करने के लिए लोगों का नेतृत्व कर रहा है। परन्तु मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो कि जब तुम सुन रहे थे, तो मैंने उसे जाँचा, और जिन बातों के बारे में तुमने मुझे बताया है, उनमें से किसी का भी वह दोषी प्रतीत नहीं होता है।
\s5
\v 15 हेरोदेस के विचार में भी वह दोषी नहीं है। मैं यह इसलिए जानता हूँ, कि उसने उसे बिना किसी दण्ड के वापस भेज दिया। तो यह स्पष्ट है कि यह व्यक्ति मरने के योग्य नहीं है।
\v 16 इसलिए मैं अपने सैनिकों को उसे कोड़े मारने के लिए कह देता हूँ और फिर उसे मुक्त कर दूँगा।"
\v 17 (पिलातुस ने ये इसलिए कहा था क्योंकि उसे फसह के उत्सव में एक कैदी को मुक्त करना पड़ता था।)
\s5
\v 18 परन्तु सारी भीड़ ने एक साथ चिल्लाते हुए कहा, "इस मनुष्य को मार डालो! बरअब्बा को हमारे लिए छोड़ दो!"
\v 19 अब बरअब्बा एक व्यक्ति था जिसने रोमी सरकार से विद्रोह करने के लिए शहर में कुछ लोगों का नेतृत्व किया था। वह एक खूनी भी था। वह इन अपराधों के कारण बन्दीगृह में था, और वह मृत्यु दण्ड की प्रतीक्षा कर रहा था।
\s5
\v 20 परन्तु पिलातुस यीशु को मुक्त करना चाहता था, इसलिए उसने फिर से भीड़ से बात करने का प्रयास किया।
\v 21 वे चिल्लाने लगे, "उसे क्रूस पर चढ़ाओ! उसे क्रूस पर चढ़ाओ!"
\v 22 पिलातुस ने तीसरी बार उनसे पूछा, "क्यों? उन्होंने क्या अपराध किया है? उन्होंने कुछ नहीं किया है जिसके लिए वह मरने के हकदार हो, इसलिए मैं अपने सैनिकों से उन्हें कोड़े लगवा देता हूँ और उन्हें मुक्त कर देता हूँ। "
\s5
\v 23 लेकिन वे ऊँचे स्वर से बोल रहे थे कि यीशु को क्रूस पर मरना चाहिए। अन्त में, क्योंकि वे बहुत चिल्ला रहे थे, पिलातुस सहमत हो गया,
\v 24 कि उनकी माँग पूरी हो।
\v 25 इसलिए उसने उस व्यक्ति को मुक्त कर दिया जो बन्दीगृह में था क्योंकि उसने सरकार से विद्रोह किया था और लोगों की हत्या की थी! उसने सैनिकों को आज्ञा दी कि यीशु को ले जाएँ और जो भीड़ चाहती थी वैसे ही करें।
\p
\s5
\v 26 अब शमौन नाम का एक मनुष्य था, जो अफ्रीका के कुरेने शहर से था। वह ग्रामीण क्षेत्रों से यरूशलेम में आ रहा था। जब सैनिक यीशु को ले जा रहे थे, तब उन्होंने शमौन को पकड़ा। उन्होनें यीशु से क्रूस को ले लिया जो उन्होंने उनसे उठाने के लिए कहा था, और उसे शमौन के कंधे पर रख दिया। उन्होंने उससे कहा कि वह उसे उठाकर यीशु के पीछे चले।
\s5
\v 27 अब एक बड़ी भीड़ यीशु के पीछे चल रही थी। इसमें कई स्त्रियाँ थीं जो अपनी छाती पीट रही थीं और उनके लिए रो रही थीं।
\v 28 फिर यीशु ने उनसे कहा, "हे यरूशलेम की स्त्रियों, मेरे लिए मत रोओ! इसके बजाए, जो कुछ हो रहा है, उसके कारण तुम अपने लिए और अपने बच्चों के लिए रोओ!
\s5
\v 29 मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो कि शीघ्र ही ऐसा समय आएगा जब लोग कहेंगे, 'कितनी धन्य हैं वे स्त्रियाँ, जिन्होंने कभी बच्चों को जन्म नहीं दिया या बच्चों को दूध नहीं पिलाया!'
\v 30 फिर इस शहर के लोग कहेंगे, 'हम चाहते हैं कि पहाड़ हमारे ऊपर गिर जाए और पहाड़ी हमें ढँक दे!'
\v 31 मुझे मरना है, भले ही मैंने कुछ भी गलत नहीं किया, निश्चय ही उन लोगों के साथ भयानक बातें होंगी जो मरने के योग्य हैं।
\p
\s5
\v 32 दो अन्य अपराधी भी उस जगह ले जाए जा रहे थे जहाँ वे यीशु को मारने के लिए ले जा रहे थें।
\s5
\v 33 जब वे 'खोपड़ी' नामक जगह पर आए, तो वहाँ उन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ाया। उन्होंने दो अपराधियों के साथ भी यही किया। उन्होंने एक को यीशु के दाहिनी ओर और एक को बाईं ओर रखा।
\v 34 परन्तु यीशु ने कहा, "हे पिता, इन लोगों को क्षमा कर दो, जिन्होंने ये किया, क्योंकि वे वास्तव में नहीं जानते कि वे किस के साथ यह कर रहे हैं।" तब सैनिकों ने उनके कपड़ों को चिट्ठियाँ डालकर बाँट लिया कि किस को कपड़ों का कौन सा भाग मिलेगा।
\s5
\v 35 बहुत से लोग पास खड़े हुए देख रहे थे। यहूदी अगुवे यीशु का ठट्ठा करके कह रहे थे: "उन्होंने अन्य लोगों को बचाया! अगर परमेश्वर ने सचमुच उन्हें मसीह चुना है, तो वह स्वयं को बचा ले!"
\s5
\v 36 सैनिकों ने भी उनका ठट्ठा किया। वे उनके पास आए और उन्हें कुछ खट्टा दाखरस दिया।
\v 37 उन्होंने उन से कहा, "यदि तुम यहूदियों के राजा हो, तो स्वयं को बचा लो!"
\v 38 उन्होंने उनके सिर के ऊपर क्रूस पर एक दोष पत्र लगाया, जिस पर लिखा था, 'यह यहूदियों का राजा है।'
\p
\s5
\v 39 अपराधियों में से एक ने, जो क्रूस पर लटका था, यीशु का अपमान किया; उसने कहा, "तुम मसीहा है, तो अपने आप को बचाओ? और हमें भी बचाओ!"
\v 40 लेकिन अन्य अपराधी ने उसे बोलने से रोक दिया; उसने कहा, "तुझे परमेश्वर के दण्ड से डरना चाहिए! वे उन्हें और हमें एक ही दण्ड दे रहे हैं।
\v 41 वे हमें हमारे अपराधों का दण्ड दे रहे हैं जिसके योग्य हम हैं। परन्तु इस व्यक्ति ने तो कुछ भी गलत नहीं किया!"
\s5
\v 42 तब उसने यीशु से कहा, "हे प्रभु, जब आप राजा के रूप में शासन करना आरम्भ करें, तो मुझे भी बचाना!"
\v 43 यीशु ने कहा, "मैं चाहता हूँ कि तू जान लें कि तू आज मेरे साथ स्वर्ग में होगा!"
\p
\s5
\v 44 तो यह लगभग दोपहर का समय था। लेकिन दोपहर में तीन बजे तक पूरे देश में अंधेरा हो गया।
\v 45 सूर्य की कोई रोशनी नहीं थी और मोटा पर्दा जो मन्दिर में सबसे पवित्र स्थान को अलग करता है, दो भागों में विभाजित हो गया।
\s5
\v 46 जब ऐसा हुआ, तो यीशु जोर से चिल्लाए, "हे पिता, मैं अपनी आत्मा आपके हाथों में देता हूँ!" उन्होंने इतना कहा और सांस लेना बन्द कर दिया और मर गए।
\p
\v 47 जब सेनापति जो सैनिकों के ऊपर है, उसने देखा की क्या हुआ, उसने कहा, "सचमुच इस व्यक्ति ने कुछ भी गलत नहीं किया!" उन्होंने जो कहा उससे परमेश्वर को सम्मान मिला।
\s5
\v 48 जब लोगों की भीड़ जो इन पुरुषों को मरते देखने के लिए एकत्र हुई थी, देखा कि वास्तव में क्या हुआ, वे अपने घर लौट गए, अपने छाती पीटते हुए अपना दुख प्रकट किया।
\v 49 यीशु के सब परिचित, जिनमें गलील के क्षेत्र से आई कुछ स्त्रियाँ भी थीं, कुछ दूरी पर खड़े थे और सब कुछ देखा था।
\p
\s5
\v 50-51 अब यूसुफ नाम का एक व्यक्ति था, जो अरिमतियाह नामक एक यहूदी शहर का था। वह एक अच्छा और धर्मी जन था, और वह यहूदी परिषद का सदस्य था। उसने सब कुछ होते देखा था, परन्तु जब उन्होंने यीशु को मारने का निर्णय लिया था, तब वह परिषद के अन्य सदस्यों के साथ सहमत नहीं था। वह उस समय की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा था जब परमेश्वर अपने राजा को शासन करने के लिए भेजेंगे।
\s5
\v 52 यूसुफ पिलातुस के पास गया और पिलातुस से कहा कि उसे यीशु के शरीर को दफनाने के लिए अनुमति दें। पिलातुस ने उसे अनुमति दी,
\v 53 इसलिए उसने यीशु के शरीर को क्रूस से नीचे उतारा। उसने उन्हें एक सनी के कपड़े में लपेटा। फिर उसने उनके शरीर को एक कब्र में रखा, जिसे किसी ने चट्टान में काटकर बनाया था। इसमें पहले कभी किसी का शव नहीं रखा गया था।
\s5
\v 54 यह वह दिन था जब लोग यहूदियों के विश्राम दिन जिसे सब्त कहते है, उसकी तैयारी करते थे। सूर्यास्त के साथ सब्त के दिन का आरम्भ होने जा रहा था।
\v 55 जो स्त्रियाँ गलील के जिले से यीशु के साथ आई थीं, यूसुफ और उसके साथियों के पीछे गईं। उन्होंने कब्र को देखा, और उन्होंने देखा कि पुरुषों ने यीशु के शरीर को भीतर कैसे रखा।
\v 56 तब स्त्रियाँ जहाँ वे रह रही थी वहाँ वापस चली गईं, ताकि यीशु के शरीर पर लगाने के लिए वे मसाले और सुगन्धित वस्तुएँ और इत्र तैयार करें। हालांकि, उन्होंने सब्त के दिन यहूदी व्यवस्था के अनुसार कोई काम नहीं किया।
\s5
\c 24
\p
\v 1 रविवार को भोर से पहले ये स्त्रियाँ कब्र पर गईं। उन्होंने उन मसालों को ले लिया जो उन्होंने यीशु के शरीर पर लगने के लिए तैयार किए थे।
\v 2 जब वे आईं, तो उन्होंने देखा कि किसी ने कब्र के सामने से पत्थर को लुढ़का दिया है।
\v 3 वे कब्र में गईं, परन्तु प्रभु यीशु का शरीर वहाँ नहीं था!
\s5
\v 4 वे कुछ नहीं समझ पा रही थीं, तब अकस्मात ही दो पुरुष उज्ज्वल, चमकते हुए कपड़े पहने उनके पास प्रकट हुए!
\v 5 स्त्रियाँ डर गईं थीं। जब वे जमीन पर नीचे झुक गईं, तो दो पुरुषों ने उनसे कहा, "तुम्हें किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश मरे हुओं को दफनाने वाले स्थान में नहीं करना चाहिए, जो जीवित है!
\s5
\v 6 वह यहाँ नहीं है; वह फिर से जीवित कर दिए गए हैं! याद करो, कि जब वह तुम्हारे साथ गलील में थे, तो उन्होंने तुम से कहा था,
\v 7 "वे मुझे, मनुष्य के पुत्र को पापियों के हाथों में सौंप देंगे। वे मुझे क्रूस पर चढाकर मार देंगे। परन्तु उसके बाद तीसरे दिन, मैं फिर से जीवित हो जाऊँगा।'"
\s5
\v 8 स्त्रियों को याद आया कि यीशु ने उनसे क्या कहा था।
\v 9 इसलिए उन्होंने कब्र को छोड़ दिया और ग्यारह प्रेरितों और उनके अन्य शिष्यों के पास गईं और उन्हें पूरा हाल सुनाया।
\v 10 जिन स्त्रियों ने इन बातों को प्रेरितों को बताया, वे मगदाला गाँव की मरियम, योअन्ना, याकूब की माँ मरियम, और अन्य स्त्रियाँ थीं जो उनके साथ थीं।
\s5
\v 11 परन्तु प्रेरितों ने उनके वचनों को निरर्थक समय पर टाल दिया।
\v 12 परन्तु, पतरस उठा और कब्र की ओर भागा। उसने नीचे झुककर अन्दर देखा। उसने सनी के कपड़ों को देखा जिसमें यीशु के शरीर को लपेटा गया था, परन्तु यीशु वहाँ नहीं थे। वह आश्चर्य करता हुआ घर लौट गया।
\p
\s5
\v 13 उसी दिन यीशु के दो शिष्य इम्माऊस नामक एक गाँव को जा रहे थे। वह यरूशलेम से दस किलोमीटर दूर था।
\v 14 वे यीशु के साथ जो हुआ था, उसके विषय में आपस में बातें कर रहे थे।
\s5
\v 15 जब वे उन घटनाओं की बाते कर रहे थे और उन पर विचार कर रहे थे, तो यीशु उनके पास आए और उनके साथ चलने लगे।
\v 16 परन्तु परमेश्वर ने उन्हें यीशु को पहचानने से रोक रखा था।
\s5
\v 17 यीशु ने उनसे कहा, "जब तुम चल रहे थे, तो आप दोनों क्या बात कर रहे थे?" वे रुक गए, उनके चेहरे बहुत दुखी थे।
\v 18 उनमें से एक ने, जिसका नाम क्लियुपास था कहा, "आप एक ही ऐसे व्यक्ति हैं जो यरूशलेम में आए, और हाल ही में हुई घटनाओं को नहीं जानते!"
\s5
\v 19 उन्होंने उनसे कहा, "कौन सी घटनाएँ?" उन्होंने उत्तर दिया, "जो घटनाएँ यीशु के साथ हुई, जो नासरत के व्यक्ति हैं, वह भविष्यद्वक्ता थे।" परमेश्वर ने उन्हें महान चमत्कार करने और अद्भुत सन्देश देने की शक्ति दी थी। लोगों के विचार में वह अद्भुत थे।"
\v 20 परन्तु हमारे प्रधान याजकों और अगुवाओं ने उन्हें रोमी अधिकारियों के हाथ में सौंप दिया। अधिकारियों ने उन्हें मरने का दण्ड दिया, और उन्होंने उन्हें क्रूस पर चढ़ाकर मार दिया।
\s5
\v 21 हमें आशा थी कि वही हम इस्राएलियों को हमारे शत्रुओं से मुक्त करा देंगे! परन्तु अब यह सम्भव नहीं है, क्योंकि तीन दिन पहले ही वह मर चुके हैं।
\s5
\v 22 परन्तु हमारे समूह की कुछ स्त्रियों ने हमें आश्चर्यचकित कर दिया। वे सुबह सुबह कब्र पर गईं,
\v 23 परन्तु यीशु का शरीर वहाँ नहीं था! वे वापस आई और कहा कि उन्होंने एक दर्शन में कुछ स्वर्गदूतों को देखा है। स्वर्गदूतों ने कहा कि वह जीवित हैं!
\v 24 तो हमारे साथियों में से कुछ लोग कब्र पर गए। उन्होंने देखा कि जैसा स्त्रियों ने कहा था वैसा ही था। लेकिन उन्होंने यीशु को नहीं देखा।"
\s5
\v 25 उन्होंने उनसे कहा, "हे मूर्खों! मसीह के बारे में भविष्यद्वक्ताओं ने जो लिखा है उस पर विश्वास करने में तुम इतने धीमें हो।
\v 26 तुम निश्चय ही जानते हों कि मसीह के लिए आवश्यक था कि उन सब बातों को भोगे और मर जाए, और फिर वह स्वर्ग में अपने महिमामय घर में प्रवेश करें!"
\v 27 तब उन्होंने उन्हें वे सब बातें समझाई जिन्हें भविष्यद्वक्ताओं ने उनके बारे में शास्त्रों में लिखा था। उन्होंने मूसा के लेखों से आरम्भ किया और फिर उन्हें समझाया कि अन्य सब भविष्यद्वक्ताओं ने क्या लिखा था।
\p
\s5
\v 28 वे गाँव के पास आए, जहाँ वे दो लोग जा रहे थे। उन्होंने संकेत दिया कि उन्हें आगे जाना होगा,
\v 29 परन्तु उन्होंने उनसे आग्रह किया कि वे ऐसा न करें। उन्होंने कहा, "आज रात हमारे साथ रहो, क्योंकि बहुत देर हो चुकी है और शीघ्र ही अन्धेरा होगा।" तो वह उनके साथ रहने के लिए घर में गए।
\s5
\v 30 जब वे खाने के लिए बैठे, तो उन्होंने कुछ रोटी ली और उसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। उन्होंने उसे तोड़ा और उन्हें टुकड़े दिये।
\v 31 और तब परमेश्वर ने उन्हें पहचानने की क्षमता प्रदान की। परन्तु वह लोप हो गए!
\v 32 उन्होंने एक दूसरे से कहा, "जब हम सड़क पर चल रहे थे और उन्होंने हमारे साथ बात की और हमें शास्त्रों से समझाया तब, हमने सोचा कि कुछ बहुत अच्छा, होने वाला था, हालांकि हमें नहीं पता था क्या होने वाला है। हमें यहाँ नहीं रहना चाहिए, हमें दूसरों को बताना चाहिए कि क्या हुआ!
\s5
\v 33 इसलिए वे तुरन्त निकल गए और यरूशलेम लौट आए। वहाँ उन्होंने ग्यारह प्रेरितों और अन्य लोगों को एकत्र हुआ पाया।
\v 34 उन्होंने उन दो लोगों को बताया, "यह सच है कि प्रभु फिर से जीवित हो गए है, और वह शमौन को दिखाई दिए है!"
\v 35 तब उन दो लोगों ने उन्हें बताया कि जब वे सड़क पर जा रहे थे तो क्या हुआ था। उन्होंने यह भी बताया कि जब यीशु ने रोटी तोड़ कर दी तब दोनों ने उन्हें पहचाना।
\p
\s5
\v 36 जब वे लोग ये कह ही रहे थे कि अचानक यीशु स्वयं उनके बीच में दिखाई दिए। उन्होंने उनसे कहा, "परमेश्वर तुम्हें शान्ति दे!"
\v 37 वे चौंक गए और डर गए, क्योंकि उन्हें लगा कि वे भूत देख रहे हैं!
\s5
\v 38 उन्होंने उनसे कहा,"तुम्हें चकित नहीं होना चाहिए! और तुम्हें सन्देह नहीं करना चाहिए कि मैं जीवित हूँ।
\v 39 मेरे हाथों और मेरे पाँवों के घावों को देखो! तुम मुझे स्पर्श करके मेरे शरीर को देख सकते हो। तब तुम विश्वास करोगे कि सच में मैं ही हूँ। तब तुम कह सकते हो कि वास्तव में मैं जीवित हूँ क्योंकि भूतों के शरीर नहीं होते, जैसा कि तुम देखते हो कि मेरे पास है!"
\v 40 यह कहने के बाद, उन्होंने उन्हें अपने हाथों और पाँवों के घाव दिखाए।
\s5
\v 41 वे हर्षित और आश्चर्यचकित हुए, लेकिन वे अभी भी विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि वे वास्तव में जीवित हैं। इसलिए उन्होंने उनसे कहा, "क्या तुम्हारे पास खाने के लिए कुछ है?"
\v 42 तो उन्होंने उसे भुनी हुई मछली का एक टुकड़ा दिया।
\v 43 जब वे देख रहे थे, उन्होंने उसे ले लिया और खा लिया।
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\v 44 तब उन्होंने उनसे कहा, "जब मैं तुम्हारे साथ था तब मैंने तुमसे जो कहा था उसे मैं दोहराता हूँ: मूसा की व्यवस्था में, भविष्यद्वक्ताओं के लेखों में, और भजन में, जो कुछ भी मेरे बारे में लिखा हुआ था, सब का पूरा होना आवश्यक था!"
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\v 45 तब उन्होंने उन्हें उन बातों को समझने में समर्थ किया जिनके बारे में शास्त्रों में लिखा गया था।
\v 46 उन्होंने उनसे कहा, "शास्त्रों में तुम यह पढ़ सकते हो: कि मसीह पीड़ित किया जाएगा और मारा जाएगा, लेकिन उसके बाद तीसरे दिन वह फिर से जीवित हो जाएगा।
\v 47 उन्होंने यह भी लिखा है कि जो लोग उन पर विश्वास करते हैं, उन्हें हर जगह प्रचार करना चाहिए कि लोग पाप करना छोड़ कर परमेश्वर की ओर मुड़ें, और वह उनके पापों को क्षमा करें। मसीह के अनुयायियों को उस सन्देश का प्रचार करना चाहिए क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें ऐसा करने के लिए भेजा है। उन्होंने लिखा है कि उन्हें यरूशलेम में प्रचार करना आरम्भ करके सब जातियों में और फिर जाकर प्रचार करना चाहिए।
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\v 48 तुम्हें लोगों को बताना चाहिए कि तुम जानते हो कि मेरे साथ जो कुछ हुआ वह सच है।
\v 49 और मैं चाहता हूँ कि तुम जानो कि मैं तुम्हारे पास पवित्र आत्मा को भेजूँगा, जैसी मेरे पिता ने प्रतिज्ञा की थी। परन्तु तुम्हें इस शहर में रहना होगा, जब तक कि तुम पवित्र आत्मा की शक्ति से नहीं भर जाते।"
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\v 50 तब यीशु उन लोगों को नगर के बाहर ले गए, और वे बैतनिय्याह गाँव के पास आए। वहाँ उन्होंने अपना हाथ ऊपर उठाया और उन्हें आशीर्वाद दिया।
\v 51 जब वह ऐसा कर रहे थे, वह उन्हें छोड़कर स्वर्ग में चले गए।
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\v 52 उन्होंने उनकी आराधना की, और फिर वे आनन्द से यरूशलेम लौट आए।
\v 53 वे प्रतिदिन मन्दिर के आँगन में जाते थे, और परमेश्वर की स्तुति करते हुए बहुत समय बिताते थे।