hi_udb/42-MRK.usfm

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Plaintext

\id MRK Unlocked Dynamic Bible
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\h मरकुस
\toc1 मरकुस
\toc2 मरकुस
\toc3 mrk
\mt1 मरकुस
\s5
\c 1
\p
\v 1-2 यह परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह से संबंधित सुसमाचार है। यशायाह भविष्यद्वक्ता ने इस सुसमाचार का उल्लेख करते हुए लिखा था: "सुनो! मैं अपने संदेशवाहक को आप के आगे भेज रहा हूँ। वह आपका स्वागत करने के लिए लोगों को तैयार करेगा।
\v 3 मरुभूमि में उसकी वाणी सुननेवाले मनुष्य से वह कहेगा, प्रभु का स्वागत करने के लिए अपने को तैयार करो।'
\p
\s5
\v 4 जिस दूत के बारे में यशायाह ने लिखा था; वह यूहन्ना था। लोग उसे "बपतिस्मा देने वाला" कहते थे। यूहन्ना जंगल में रहता था; वह लोगों को बपतिस्मा दे रहा था और उनसे कह रहा था, "क्षमा माँगों कि तुमने पाप किया है, और पापों का त्याग करने का निर्णय लो, कि परमेश्वर तुमको क्षमा करे; तब मैं तुम्हे बपतिस्मा दूँगा।"
\v 5 यहूदिया और यरूशलेम शहर के लोगों की एक बड़ी संख्या यूहन्ना की बात सुनने के लिए जंगल में निकल गई। उनमें से बहुत से लोगों ने सुना और स्वीकार किया कि उन्होंने पाप किए हैं। तब यूहन्ना ने उन्हें यरदन नदी में बपतिस्मा दिया।
\v 6 यूहन्ना ऊँट के बाल से बने कपड़े पहने था और कमर में चमड़े का पटुका था। वह टिड्डियाँ और शहद खाता था जो उसे जंगल में मिलते थे।
\s5
\v 7 वह उपदेश दे रहा था, "बहुत जल्द ही कोई आएंगे जो बहुत महान है, मैं उनकी तुलना में कुछ नहीं हूँ। मैं नीचे झुक कर उनके जूते के फीते खोलने के योग्य भी नहीं हूँ।
\v 8 मैंने तुमको पानी से बपतिस्मा दिया, परन्तु वह तुमको पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देंगे।"
\p
\s5
\v 9 जब यूहन्ना प्रचार कर रहा था, तब यीशु गलील क्षेत्र के नासरत से वहाँ आए। वह वहाँ गए जहाँ यूहन्ना प्रचार कर रहा था, और यूहन्ना ने उन्हें यरदन नदी में बपतिस्मा दिया।
\v 10 यीशु के पानी से निकलने के तुरंत बाद, उन्होंने स्वर्ग को खुलते हुए देखा और परमेश्वर के आत्मा को अपने ऊपर उतरते देखा। परमेश्वर के आत्मा कबूतर के रूप में उन पर उत्तरा।
\v 11 परमेश्वर ने स्वर्ग से कहा, "आप मेरे पुत्र हो, जिसे मैं बहुत प्रेम करता हूँ। मैं आप से बहुत खुश हूँ।"
\s5
\v 12 तब परमेश्वर के आत्मा यीशु को जंगल में ले गए।
\v 13 वह चालीस दिन तक वहाँ थे। उस समय शैतान उन्हें परख रहा था। वहाँ जंगली जानवर थे, और स्वर्गदूत उनका ध्यान रख रहे थे।
\p
\s5
\v 14 बाद में, जब यूहन्ना को जेल में डाल दिया गया, यीशु गलील में गए। गलील में, वह परमेश्वर का सुसमाचार प्रचार कर रहे थे
\v 15 वह कह रहे थे, "अन्त का समय आ गया है, परमेश्वर शीघ्र ही यह दिखाएँगे कि वह राजा हैं। क्षमा माँगो कि तुमने पाप किया है, और पाप त्यागने का निर्णय करो कि परमेश्वर तुमको क्षमा करे। सुसमाचार पर विश्वास करो।
\p
\s5
\v 16 एक दिन, जब यीशु गलील की झील के किनारे चल रहे थे, तो उन्होंने शमौन और उसके भाई अन्द्रियास को देखा। वे झील में मछली पकड़ने के जाल को डाल रहे थे। वे मछली पकड़कर बेचने का काम करते थे।
\v 17 तब यीशु ने उनसे कहा, "मेरे साथ आओ, जैसे तुम मछली पकड़ रहे हो, वैसे ही मैं तुमको मनुष्यों को पकड़ना सिखाऊँगा।"
\v 18 उन्होंने तुरंत अपने जाल को छोड़ दिया, और उनके साथ चल दिए।
\s5
\v 19 कुछ और आगे जाने के बाद, यीशु ने दो अन्य पुरुषों, को देखा जिनके नाम याकूब और यूहन्ना थे। वे दोनों भाई थे, वे जब्दी नाम के एक मनुष्य के पुत्र थे। वे दोनों नाव में मछली पकड़ने के जाल को सुधार रहे थे।
\v 20 जब यीशु ने उन्हें देखा, तो उन्होंने उनसे कहा कि वे उनके साथ आएँ। इसलिए उन्होंने अपने पिता को छोड़ दिया, जो किराए के दासों के साथ नाव में था, और वे यीशु के साथ चले गए।
\p
\s5
\v 21 यीशु और उसके शिष्य कफरनहूम नाम के एक नगर के पास गए। अगले सब्त के दिन वह आराधनालय में गए और वहाँ एकत्र हुए लोगों को शिक्षा देना शुरू कर दिया।
\v 22 वह जिस तरह से सिखाते थे, उसे देख वे आश्चर्यचकित हुए। वह ऐसे शिक्षक के समान सिखाते थे जो स्वयं के ज्ञान पर निर्भर रहता है। वह उन लोगों के समान शिक्षा नहीं देते थे जो यहूदी नियमों को सिखाते थे, और उन बातों को दोहराते थे अन्य शिक्षकों द्वारा सिखाई गई थीं।
\s5
\v 23 आराधनालय में, जहाँ यीशु सिखाया करते थे, वहाँ एक व्यक्ति था जिसे दुष्ट-आत्मा ने अपने वश में किया हुआ था। दुष्ट-आत्मा वाला वह व्यक्ति चिल्लाने लगा,
\v 24 "हे! नासरत के यीशु! हम दुष्ट-आत्माओं को आप से कोई काम नहीं है! क्या आप हमें नाश करने के लिए आए हो? मुझे पता है कि आप कौन हो। आप परमेश्वर के पवित्र जन हैं!
\v 25 यीशु ने दुष्ट-आत्मा को यह कहते हुए डाँटा, "चुप हो जा और उससे बाहर निकल!"
\v 26 दुष्ट-आत्मा ने उस व्यक्ति को बुरी तरह से हिला दिया। वह जोर से चिल्लाई, और फिर वह उस व्यक्ति से बाहर आ गई और चली गई।
\s5
\v 27 जो लोग वहाँ थे वे सब चकित हो गए! उन्होंने आपस में यह चर्चा की, "यह आश्चर्यजनक है! वह न केवल एक नए और आधिकारिक तरीके से सिखाते हैं, वरन् वह दुष्ट-आत्माओं को भी आज्ञा देते हैं और वे उनकी आज्ञा मानती हैं!"
\v 28 यीशु ने जो किया था, लोगों ने अति शीघ्र गलील के पूरे क्षेत्र में सब लोगों को बता दिया।
\p
\s5
\v 29 आराधनालय से निकलने के बाद, यीशु, शमौन और अन्द्रियास, याकूब और यूहन्ना के साथ, सीधे शमौन और अन्द्रियास के घर गए।
\v 30 शमौन की सास बिस्तर पर लेटी थी क्योंकि उसे बहुत तेज बुखार था। किसी ने यीशु को उसके बीमार होने की खबर दी।
\v 31 यीशु उसके पास गए, हाथ पकड़ कर उसे उठाया, और उसकी सहायता की। उसका बुखार तुरन्त उतर गया और उसने उनकी सेवा करना आरंभ कर दिया।
\p
\s5
\v 32 उस शाम, सूर्य डूबने के बाद, कुछ लोग यीशु के पास अनेक बीमारों को उन्हे भी जिन्हें दुष्ट-आत्माओं ने वश में किया हुआ था।
\v 33 ऐसा प्रतीत होता था जैसे कि शहर में रहने वाले सब लोग शमौन के घर के दरवाजे पर एकत्र हो गए थे।
\v 34 यीशु ने कई लोगों को स्वस्थ किया जो कई बीमारियों से पीड़ित थे। उन्होंने कई दुष्ट-आत्माओं को भी लोगों से बाहर आने के लिए विवश किया। उन्होंने दुष्ट-आत्माओं को उनके बारे में लोगों को बताने की आज्ञा नहीं दी, क्योंकि वे जानती थीं कि वह परमेश्वर के पवित्र जन हैं।
\p
\s5
\v 35 अगली सुबह यीशु बहुत जल्दी उठ गए, जबकि अंधेरा था। वह घर से निकले और शहर से दूर चले गए जहाँ कोई नहीं था। वहाँ उन्होंने प्रार्थना की।
\v 36 शमौन और उसके साथी उन्हें खोजने लगे!
\v 37 जब उन्होंने उन्हें ढूँढ़ लिया तो उन्होंने कहा, "शहर में सब लोग आपको खोज रहे हैं।"
\s5
\v 38 उन्होंने उनसे कहा, "हमें पड़ोसी शहरों में जाना है कि मैं वहाँ भी प्रचार कर सकूँ। यही कारण है कि मैं यहाँ आया हूँ।"
\v 39 तब वे गलील के पार चले गए। जब वे चले गए, तो यीशु ने आराधनालयों में प्रचार किया और दुष्ट-आत्माओं को लोगों से बाहर आने के लिए विवश किया।
\p
\s5
\v 40 एक दिन एक व्यक्ति जिसे कुष्ठ रोग था, यीशु के पास आया। उसने यीशु के सामने घुटने टेक कर कहा, "कृपया मुझे स्वस्थ करें, क्योंकि अगर आप चाहें तो मुझे स्वस्थ कर सकते हैं!"
\v 41 यीशु को उस पर दया आई! उन्होंने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया और उसे छूआ। तब उन्होंने उससे कहा, "क्योंकि मैं तुझे स्वस्थ करने की इच्छा रखता हूँ! स्वस्थ हो जा।"
\v 42 तुरंत ही वह व्यक्ति ठीक हो गया! वह अब एक कुष्ठ रोगी नहीं रहा!
\s5
\v 43 उस व्यक्ति को भेजते समय यीशु ने उसे चेतावनी दी!
\v 44 उन्होंने कहा, "जो अभी हुआ वह किसी को नहीं बताना! याजक के पास जा और अपने आप को उसे दिखा, वे तेरी जाँच करें और देखें कि अब तुम्हें कुष्ठ रोग नहीं है। फिर वह भेंट चढ़ा परमेश्वर ने जो मूसा द्वारा कुष्ठ रोगियों के चंगा होने पर ठहराई है। यह समाज के लिए गवाही होगी कि अब तुझे को कुष्ठ रोग नहीं है।"
\s5
\v 45 उस व्यक्ति ने यीशु के निर्देशों का पालन नहीं किया। उसने कई लोगों को बताना शुरू कर दिया कि कैसे यीशु ने उसे स्वस्थ किया था! इस कारण यीशु अब शहरों में सबके सामने प्रवेश नहीं कर पा रहे थे, क्योंकि लोगों की भीड़ उन्हें घेर लेती थी। इस कारण, वह नगरों के बाहर उन स्थानों में रहे जहाँ कोई भी नहीं रहता था। परन्तु लोग उस पूरे क्षेत्र से यीशु के पास आते जा रहे थे।
\s5
\c 2
\p
\v 1 कुछ दिन बीत जाने के बाद, यीशु कफरनहूम लौट आए और लोगों ने शीघ्र ही समाचार फैला दिया कि यीशु वापस अपने घर लौट आए हैं।
\v 2 शीघ्र ही बहुत लोग वहाँ एकत्र हो गए, जहाँ यीशु ठहरे हुए थे। लोगों की संख्या इतनी अधिक थी कि पूरा घर लोगों से भर गया। वहाँ खड़े रहने के लिए बिल्कुल भी जगह नहीं बची थी, द्वार के आसपास भी नहीं। यीशु ने उन्हें परमेश्वर का संदेश सुनाया।
\s5
\v 3 कुछ लोग एक लकवे के रोगी को लेकर उस घर में यीशु के पास आए। चार व्यक्ति उसे एक खाट पर उठा कर लाए थे।
\v 4 भीड़ के कारण वे चारों उस व्यक्ति को यीशु के पास लाने में असमर्थ थे। इसलिए, वे घर की छत पर चढ़ गए और यीशु के ऊपर वाली छत में एक बड़ा छेद बनाया। उन्होंने लकवे के रोगी को खाट पर ही छेद के माध्यम से यीशु के सामने उतार दिया।
\s5
\v 5 जब यीशु ने उन पुरुषों का विश्वास देखा कि वह इस व्यक्ति को ठीक कर सकते हैं, उन्होंने लकवा मारे हुए व्यक्ति से कहा, "हे मेरे पुत्र, मैंने तेरे पापों को क्षमा कर दिया है!"
\v 6 कुछ लोग जो यहूदी नियमों के शिक्षक थे, वहाँ बैठे हुए थे। वे आपस में सोचने लगे,
\v 7 "यह मनुष्य अपने आप को क्या समझता है? यह घमंडी है और ऐसा कहकर यह परमेश्वर का अपमान कर रहा है! क्योंकि परमेश्वर ही पापों को क्षमा कर सकते हैं!"
\s5
\v 8 यीशु जानते थे कि वे क्या सोच रहे हैं। उन्होंने उनसे कहा, तुम ऐसा क्यों सोच रहे हो?
\v 9 मेरे लिए क्या कहना आसान होगा, 'मैंने तुम्हारे पाप क्षमा कर दिए हैं' या 'उठ! अपनी खाट उठा और चल?
\s5
\v 10 मैं तुम्हें दिखाऊँगा कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पापों को क्षमा करने का अधिकार है।" फिर उन्होंने लकवा मारे हुए व्यक्ति से कहा,
\v 11 "उठ! अपनी खाट उठा और घर जा!"
\v 12 वह व्यक्ति तुरंत उठ खड़ा हुआ! उसने अपनी खाट उठाई, और सबके सामने से निकलकर चला गया। वे सब हैरान हो गए, और उन्होंने परमेश्वर की स्तुति की और कहा, "हमने ऐसा पहले कभी नहीं देखा जो अभी हुआ है!"
\p
\s5
\v 13 यीशु कफरनहूम से निकले और गलील सागर के किनारे गए। एक बड़ी भीड़ उनके पास आई और उन्होंने उन्हें उपदेश दिया।
\v 14 जाते हुए, उन्होंने हलफईस के पुत्र, लेवी नाम के एक मनुष्य को देखा। वह अपने कार्यालय में बैठा हुआ था जहाँ वह कर एकत्र करता था। यीशु ने उससे कहा, "मेरे साथ आ।" वह उठा और यीशु के साथ चला गया।
\s5
\v 15 बाद में, यीशु लेवी के घर में खाना खा रहे थे! कई पापी लोग और चुंगी लेने वाले लोग, यीशु और उनके शिष्यों के साथ भोजन कर रहे थे।
\v 16 जो यहूदी कानूनों को सिखाते थे और जो फरीसी पंथ के सदस्य थे, उन्होंने देखा कि यीशु पापियों और कर लेने वालों के साथ भोजन कर रहे हैं। उन्होंने यीशु के शिष्यों से पूछा, "वह पापियों और कर लेने वालों के साथ क्यों खा और पी रहे हैं?"
\s5
\v 17 "जब यीशु ने उनका प्रश्न सुना तो उन्होंने यहूदी नियम सिखाने वालों से कहा, "स्वस्थ लोगों को वैद्य की आवश्यक्ता नहीं होती है। जो बीमार हैं, उन्हें ही वैद्य की आवश्यक्ता है! मैं उन्हें आमंत्रित करने नहीं आया जो सोचते हैं कि वे धर्मी हैं, परन्तु उन्हें जो जानते हैं कि उन्होंने पाप किया है।"
\p
\s5
\v 18 इस समय, यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के शिष्य और फरीसी संप्रदाय के कुछ पुरुष किसी-किसी दिन भोजन नहीं करते थेयह उनका एक अभ्यास था। कुछ लोग यीशु के पास आए और उनसे पूछा, "यूहन्ना के शिष्य और फरीसी किसी-किसी दिन भोजन नहीं करते है। आपके शिष्य ऐसा क्यों नहीं करते हैं?"
\v 19 यीशु ने उनसे कहा, "जब कोई पुरुष एक स्त्री से विवाह कर रहा होता है, तो उसके मित्रों को तब तक भोजन से परहेज नहीं रखना चाहिए जब तक कि वह उनके साथ है। दुल्हे के साथ भोज खाने और उत्सव मनाने का समय होता है। यह भोजन ने करने का समय नहीं होता है, विशेष करके जब दूल्हा उनके साथ है।
\s5
\v 20 परन्तु एक दिन, दूल्हे को उनसे दूर ले जाया जाएगा। उन दिनों वे भोजन नहीं करेंगे।"
\p
\v 21 यीशु ने उनसे कहा, "लोग एक छेद को सुधारने के लिए पुराने वस्त्रों पर नए कपड़ों के टुकड़े नहीं सिलते हैं। यदि उन्होंने ऐसा किया, तो जब वे कपड़े धोते हैं, तो नए कपड़े का टुकड़ा सिकुड़ेगा और पुराने कपड़े को और अधिक फाड़ देगा। परिणामस्वरूप, छेद भी बड़ा हो जाएगा!
\s5
\v 22 इसी प्रकार, लोग नए दाखरस को रखने के लिए पुराने चमड़े की थैलियों में नहीं भरते हैं। अगर उन्होंने ऐसा किया, तो नया दाखरस चमड़े की थैली को फाड़ देगा क्योंकि दाखरस के फैलते समय थैली फैल नहीं पाएगी। परिणाम यह होगा कि दाखरस और चमड़े की थैलियाँ दोनों नष्ट हो जाएँगे! इसके विपरीत, लोगों को नया दाखरस नई चमड़े की थैली में भरना चाहिए!"
\p
\s5
\v 23 एक सब्त के दिन यीशु अपने शिष्यों के साथ अनाज के कुछ खेतों में से होकर जा रहे थे। जब वे अनाज के खेतों के साथ साथ चल रहे थे, तो शिष्य कुछ अनाज की बालों को तोड़ कर खा रहे थे।
\v 24 कुछ फरीसियों ने देखा कि वे क्या कर रहे थे और यीशु से कहा, देखो, वे यहूदी सब्त का नियम तोड़ रहे हैं, वे ऐसा क्यों कर रहे हैं?
\s5
\v 25 यीशु ने उनसे कहा, "क्या तुमने राजा दाऊद और उसके साथ रहने वाले पुरुषों के बारे में कभी नहीं पढ़ा, जब वे भूखे थे?
\v 26 उस समय अबियातार महायाजक था, राजा दाऊद ने परमेश्वर के घर में प्रवेश किया और वे रोटियों के लिए पूछा। महायाजक ने उसे कुछ रोटियाँ दी जो परमेश्वर के सामने रखी हुई थीं। हमारे नियमों के अनुसार, केवल याजक ही वे रोटियाँ खा सकते थे! परन्तु दाऊद ने इसमें से कुछ खाया। फिर उसने उन लोगों को भी थोड़ा दिया जो उसके साथ थे।"
\s5
\v 27 यीशु ने उनसे आगे कहा, "सब्त का दिन लोगों की आवश्यक्ताओं के लिए स्थापित किया गया था। लोगों को सब्त की आवश्यकता को पूरा करने के लिए नहीं बनाया गया था!
\v 28 इसलिए स्पष्ट समझ लो कि मनुष्य का पुत्र सब्त के दिन का भी प्रभु है।"
\s5
\c 3
\p
\v 1 दूसरे सब्त के दिन यीशु फिर से एक आराधनालय में गए। वहाँ एक व्यक्ति था जिसका हाथ सूखा हुआ था।
\v 2 फरीसी संप्रदाय के कुछ लोग उनको ध्यान से देख रहे थे कि वह सब्त के दिन उस व्यक्ति को ठीक करेंगे या नहीं; वे उन पर गलत काम करने का आरोप लगाना चाहते थे।
\s5
\v 3 यीशु ने उस व्यक्ति से कहा, जिसका हाथ सूखा हुआ था, "यहाँ सब के सामने खड़ा हो जा!" वह व्यक्ति खड़ा हो गया।
\v 4 फिर यीशु ने लोगों से कहा, "क्या वे नियम, जो परमेश्वर ने मूसा को दिए थे, सब्त के दिन भले कार्य करने की अनुमति देते हैं या बुरा करने की? क्या नियम हमें सब्त के दिन किसी व्यक्ति के जीवन को बचाने की अनुमति देते हैं या हमें किसी व्यक्ति के जीवन बचाने से इन्कार करने और उसे मरने के लिए छोड़ देने की अनुमति देते हैं?" परन्तु उन्होंने उत्तर नहीं दिया।
\s5
\v 5 यीशु ने उन्हें क्रोध में देखा! वह बहुत निराश थे क्योंकि वे हठीले थे और उस व्यक्ति की सहायता के लिए तैयार नहीं थे। इसलिए उन्होंने उस व्यक्ति से कहा, "अपना हाथ बढ़ाओ!" जब व्यक्ति ने अपना सूखा हाथ बढ़ाया और वह फिर से ठीक हो गया!
\v 6 फरीसी आराधनालय छोड़ कर निकल गए। वे तुरन्त कुछ यहूदियों से मिले जो गलील के शासक हेरोदेस अन्तिपास का समर्थन करते थे। उन्होंने एक साथ योजना बनाई कि वे यीशु को कैसे मार सकते हैं।
\p
\s5
\v 7 यीशु और उसके शिष्यों ने उस नगर को छोड़ दिया और गलील सागर किनारे एक क्षेत्र में चले गए! लोगों की एक बड़ी भीड़ उनके पीछे पीछे आई। उनके पीछे आए हुए लोग गलील और यहूदिया से,
\v 8 यरूशलेम से, यहूदिया जिले के नगरों से, इदूमिया क्षेत्र से, यरदन नदी के पूर्वी ओर के क्षेत्र से, और सोर और सीदोन शहरों के आसपास के क्षेत्रों से आए थे। वे सब उनके पास आए क्योंकि उन लोगों ने उनके आश्चर्य के कामों के बारे में सुना था।
\s5
\v 9-10 क्योंकि उन्होंने कई लोगों को स्वस्थ किया था, अन्य रोगी जिन्हें विभिन्न बीमारियाँ थीं, उन्हें छूने के लिए आगे बढ़े। उनका मानना था कि यदि वे केवल उन्हें छू लें, तो वह उन्हें स्वस्थ कर देंगे। इसलिए उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि एक छोटी सी नाव तैयार करें जिससे कि वह नाव में चढ़ जाएँ और जो लोग उन्हें छूने के लिए आगे बढ़ें तो उस भीड़ में दब जाने से बचें।
\s5
\v 11 जब भी दुष्ट-आत्माओं ने यीशु को देखा, वे लोग जिन्हें दुष्ट आत्माओं ने वश में किया हुआ था, वे यीशु के सामने गिरते और पुकारते थे, "आप परमेश्वर के पुत्र हैं!"
\v 12 यीशु ने दुष्ट-आत्माओं को कठोर आज्ञा दी कि वे किसी को नहीं बताएँगी कि वह कौन हैं।
\p
\s5
\v 13 यीशु पहाड़ी पर चढ़ गए। और उन्होंने उनको बुलाया जिन्हें वह अपने साथ ले जाना चाहते थे और वे उनके पास आ गए।
\v 14 उन्होंने अपने साथ रहने और प्रचार करने के लिए बारह पुरुष नियुक्त किए। उन्होंने उन्हें प्रेरित कहा।
\v 15 उन्होंने उन्हें शक्ति भी दी ताकि वे दुष्ट-आत्माओं को लोगों से बाहर आने के लिए विवश कर सकें।
\v 16 वे बारह पुरुष जिन्हें यीशु ने चुन लिया था: वे शमौन (और यीशु ने उसे नया नाम पतरस दिया)।
\s5
\v 17 और पतरस के साथ, यीशु ने जब्दी के पुत्र याकूब और याकूब के भाई यूहन्ना को भी नियुक्त किया, उन दोनों को उनके उग्र उत्साह के कारण उन्होंने नया नाम दिया, 'ऐसे पुरुष जो गर्जन के जैसे हैं';
\v 18 और उन्होंने अन्द्रियास, और फिलिप्पुस, और बरतुल्मै, और मत्ती, और थोमा, और याकूब को जो हलफईस का पुत्र था, नियुक्त किया; और उन्होंने तद्दै, और शमौन कनानी,
\v 19 और यहूदा इस्करियोती (जिसने बाद में उन्हें धोखा दे दिया) को नियुक्त किया।
\p
\s5
\v 20 यीशु और उनके शिष्य एक घर में गए। वहाँ भी जहाँ वह ठहरे हुए थे एक भीड़ एकत्र हो गई। उनके चारों ओर बहुत से लोगों की भीड़ थी। उन्हें और उनके शिष्यों के पास भोजन करने का समय भी नहीं था।
\v 21 जब उनके संबन्धियों ने इस बारे में सुना, तो वे उनको अपने साथ घर लेकर आने के लिए गए क्योंकि कुछ लोग कह रहे थे, "वह पागल हो गया है।"
\p
\v 22 यहूदी नियम सिखाने वाले कुछ व्यक्ति यरूशलेम से आए थे। उन्होंने सुना कि यीशु दुष्ट-आत्माओं को लोगों से बाहर आने के लिए विवश कर रहे हैं। इसलिए वे लोगों से कह रहे थे, "बअलजबूल, जो दुष्ट-आत्माओं पर शासन करता है, यीशु को अपने वश में किए हुए है। वही है जो यीशु को लोगों में से दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकालने की शक्ति देता है!"
\s5
\v 23 इसलिए यीशु ने उन लोगों को अपने पास बुलाया। यीशु ने दृष्टान्तों में उनसे बात की और कहा, "शैतान ही शैतान को कैसे निकाल सकता है?
\v 24 यदि एक ही देश में रहने वाले लोग एक दूसरे के विरुद्ध लड़ रहे हों, तो उनका देश संगठित देश नहीं होगा।
\v 25 और यदि एक ही घर में रहने वाले लोग एक दूसरे से लड़ते हैं, तो वे एक परिवार के रूप में एकजुट नहीं रहेंगे।
\s5
\v 26 इसी प्रकार यदि शैतान और उसकी दुष्ट-आत्माएँ एक दूसरे से लड़ें तो वे शक्तिशाली होने की अपेक्षा शक्तिहीन हो जाएँगे।
\v 27 कोई भी शक्तिशाली व्यक्ति के घर में जाकर उसके पास से संपत्ति चुराकर नहीं ला सकता जब तक कि वह पहले उस शक्तिशाली व्यक्ति को बाँध न ले। उसके बाद ही वह उस व्यक्ति के घर में चोरी कर पाएगा।"
\s5
\v 28 यीशु ने यह भी कहा, "एक बात पर ध्यान से विचार करो: लोग कई तरह से पाप कर सकते हैं और वे परमेश्वर के बारे में बुरा बोल सकते हैं। परमेश्वर भी उन्हें क्षमा कर सकते हैं,
\v 29 परन्तु यदि कोई पवित्र आत्मा के बारे में बुरा बोलता है, तो परमेश्वर उन्हें कभी क्षमा नहीं करेंगे। वह व्यक्ति सदा पाप का दोषी होगा।"
\p
\v 30 यीशु ने उनसे ऐसा इसलिए कहा कि वे कह रहे थे, "एक दुष्ट-आत्मा उसे वश में किए हुए है।"
\p
\s5
\v 31 यीशु की माँ और छोटे भाई बहन आए। जब वे बाहर खड़े थे, तो उन्होंने उनको बाहर बुलाने के लिए किसी को भीतर भेजा।
\v 32 एक भीड़ यीशु के आसपास बैठी थी। उनमें से एक ने उनसे कहा, "आपकी माँ और छोटे भाई बहन बाहर हैं। वे आपको देखना चाहते हैं।"
\s5
\v 33 यीशु ने उनसे पूछा, " मेरी माँ कौन है? मेरे भाई बहन कौन हैं? "
\v 34 जब उन्होंने अपने साथ आसपास बैठे लोगों को देखा तो उन्होंने कहा, "यहाँ देखो! तुम मेरी माँ और मेरे भाई-बहन हो।
\v 35 जो लोग ऐसे काम करते हैं जो परमेश्वर चाहते हैं वे मेरे भाई, मेरी बहन और मेरी माँ हैं!"
\s5
\c 4
\p
\v 1 एक बार यीशु गलील सागर के पास लोगों को शिक्षा दे रहे थे उनके चारों ओर एक बड़ी भीड़ एकत्र हो गई थी। वह एक नाव में बैठ गए और नाव को पानी में उतार दिया, कि भीड़ से बातें करने में उन्हे आसानी हो। भीड़ पानी के किनारे पर ही खड़ी थी।
\v 2 फिर जब वह उन्हें सिखा रहे थे तो उन्होंने उन्हे कई दृष्टान्त सुनाए। उन्होंने कहा:
\s5
\v 3 "यह सुनो: एक मनुष्य अपने खेत में कुछ बीज बोने के लिए गया।
\v 4 क्योंकि वह उन्हें बिखेर कर बो रहा था, कुछ बीज रास्ते पर गिर गए थे। फिर कुछ पक्षी आए और उन बीजों को खा गए।
\v 5 कुछ बीज ऐसी भूमि पर गिर गए, जहाँ चट्टान के ऊपर बहुत अधिक मिट्टी नहीं थी। बीज शीघ्र ही अंकुरित हो गए, क्योंकि सूरज ने नमी वाली मिट्टी को तेज़ी से गर्म कर दिया, जहाँ वह गहरी नहीं थी।
\s5
\v 6 लेकिन जब उन नए पौधों पर सूर्य का प्रकाश चमका, वे झुलस गए। फिर वे सूख गए क्योंकि उनकी जड़ें गहरी नहीं थीं।
\v 7 कुछ बीज ऐसी भूमि पर गिरे जिनमें काँटेदार पौधों की जड़ें थीं। बीज बढ़े, और साथ ही काँटेदार पौधे भी बड़े और काँटेदार पौधों ने अच्छे पौधों को घेर लिया। इसलिए पौधों से अनाज उत्पन्न नहीं हुआ।
\s5
\v 8 परन्तु जब उसने बोया, तो शेष बीज अच्छी मिट्टी पर गिरे। वे अंकुरित हुए, और अच्छे से बढ़े, और बहुत अनाज उत्पन्न किया। कुछ पौधों ने बीज का तीस गुना फल दिया। कुछ ने साठ गुना फल दिया, कुछ ने सौ गुना फल दिया।"
\v 9 फिर यीशु ने कहा, "यदि तुम इसे समझना चाहते हो, तो तुम्हें ध्यान से विचार करना चाहिए कि मैंने अभी क्या कहा है।"
\p
\s5
\v 10 बाद में, जब केवल बारह शिष्य और अन्य अनुयायी उनके साथ थे, उन्होंने उनसे उन दृष्टान्तों के बारे में पूछा।
\v 11 उन्होंने उनसे कहा, "मैं तुम्हें यह संदेश समझाऊँगा कि परमेश्वर स्वयं को राजा के रूप में कैसे प्रकट करते हैं, परन्तु दूसरों के लिए मैं दृष्टान्तों में बात करूँगा।
\v 12 जब वे देखते हैं कि मैं क्या कर रहा हूँ, वे नहीं सीखेंगे।
\q जब वे मेरी बात सुनते हैं, तो वे समझ नहीं पाएँगे।
\q यदि उन्होंने सीखा या समझ लिया,
\q तो उन्हें खेद होगा कि उन्होंने पाप किया और पाप न करने का निर्णय लेंगे, और परमेश्वर उन्हें क्षमा कर देंगे।"
\p
\s5
\v 13 फिर उन्होंने उनसे कहा, "क्या तुम इस दृष्टान्त को नहीं समझते हो? तो फिर जब मैं तुमको अन्य दृष्टान्त सुनाऊँगा, तो तुम कैसे समझोगे?
\v 14 इस दृष्टान्त में जो मैंने तुमको सुनाया था, जो व्यक्ति बीज बोता है वह किसी ऐसे व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है जो लोगों को परमेश्वर का संदेश सुनाता है।
\v 15 कुछ लोग उस रास्ते के समान हैं जहाँ कुछ बीज गिर गए हैं। जब वे परमेश्वर का संदेश सुनते हैं, तो शैतान जो उन्होंने सुना था आता है और उन्हें भुलवा देता है ।
\s5
\v 16 कुछ लोग उस भूमि के समान हैं, जहाँ चट्टान पर गहरी मिट्टी नहीं थी। जब वे परमेश्वर का संदेश सुनते हैं, तो वे इसे तुरंत आनंद से स्वीकार करते हैं।
\v 17 परन्तु, क्योंकि संदेश गहराई में नहीं पहुँच पाता है, वे केवल थोड़े समय के लिए विश्वास करते हैं। वे ऐसे पौधों के समान हैं जिनकी जड़ें गहरी नहीं हैं। जब लोग उनसे बुरा व्यवहार करते उन्हें परमेश्वर के संदेश पर विश्वास करने के कारण सताव सहना पड़ता है तो वे पीड़ित होकर शीघ्र ही, परमेश्वर के संदेश पर विश्वास करना छोड़ देते हैं।
\s5
\v 18 कुछ लोग उस मिट्टी के समान हैं जिसमें काँटेदार झाड़ियाँ हैं। वे लोग परमेश्वर का संदेश सुनते हैं,
\v 19 परन्तु वे अमीर होने की इच्छा रखते हैं और वे कई अन्य वस्तुओं के स्वामी बनना चाहते हैं। इसलिए वे केवल उसी के बारे में चिंता करते हैं और वे परमेश्वर के संदेश को भूल जाते हैं और वे ऐसे काम नहीं करते हैं जिन्हें परमेश्वर चाहते हैं कि वे करें।
\v 20 परन्तु कुछ लोग अच्छी मिट्टी के समान हैं। वे परमेश्वर के संदेश को सुनते हैं और स्वीकार करते हैं और वे इसे मानते हैं, और वे उन कामों को करते हैं जिन्हें परमेश्वर चाहते हैं कि वे करें। वे अच्छे पौधे के समान हैं जो तीस गुणा, साठ गुणा या सौ गुणा अनाज को उत्पन्न करते हैं।"
\p
\s5
\v 21 उन्होंने एक और दृष्टान्त सुनाया "लोग निश्चित रूप से एक तेल के दीपक को इसलिए नहीं जलाते और फिर उसको अपने घर लेकर नहीं आते हैं कि उसके प्रकाश को ढ़ाँक दिया जाए। इसकी अपेक्षा, वे इसे एक दीवट पर रख देते हैं ताकि प्रकाश दे।
\v 22 इसी प्रकार जो छिपे हुए काम थे, एक दिन सब लोग उन्हें जानेंगे, और जो बातें गुप्त में हुई हैं - एक दिन सब लोग उन्हें पूरे उजियाले में देखेंगे।
\v 23 यदि तुम इसे समझना चाहते हो, तो तुम्हें सावधानी से विचार करना चाहिए कि तुमने अभी क्या सुना है।"
\p
\s5
\v 24 "ध्यान से देखो कि तुम मुझे क्या कहते हुए सुनते हो। तुम किसी भी आकार के बर्तन का उपयोग करते हो, वह तुम्हारे लिए भर जाएगा।
\v 25 यदि व्यक्ति को कुछ समझ है, तो उसे और भी प्राप्त होगा। परन्तु यदि किसी व्यक्ति को समझ नहीं है, तो उसके पास जो कुछ भी थोड़ा है, वह उसे खो देगा।"
\p
\s5
\v 26 यीशु ने यह भी कहा, "जब परमेश्वर स्वयं को राजा के रूप में प्रकट करना आरंभ कर देते हैं, तो वह एक ऐसे व्यक्ति के समान है जो भूमि पर बीज बिखेर रहा है।
\v 27 इसके बाद वह हर रात सोया और बीजों की चिन्ता किये बिना हर दिन उठा। उस समय के दौरान बीज अंकुरित हो गए और इस प्रकार बढ़े हुए कि उसे समझ नहीं आया।
\v 28 भूमि ने फसल का उत्पादन अपने आप किया। पहले डाली दिखाई दी, तब बाल दिखाई दी। फिर बाल में पूरे बीज दिखाई दिए ।
\v 29 जैसे ही अनाज पका, उसने लोगों को फसल काटने के लिए भेजा, क्योंकि यह अनाज काटने का समय था।"
\p
\s5
\v 30 यीशु ने उन्हें एक और दृष्टान्त सुनाया। उन्होंने कहा, "जब परमेश्वर स्वयं को राजा के रूप में प्रकट करना आरंभ कर देते हैं, तो यह कैसा है? मैं इसका वर्णन करने के लिए किस दृष्टान्त का उपयोग कर सकता हूँ?
\v 31 यह राई के बीज के समान है। तुम जानते हो कि जब हम उन्हें लगाते हैं, तो राई के बीज का क्या होता है। यद्दपि राई का बीज सबसे छोटे बीजों में से हैं, परन्तु वे बड़े पौधे बन जाते हैं।
\v 32 जब वे लगाए जाते हैं, वे बढ़ते हैं और बगीचे के दूसरे पौधों की तुलना में अधिक बड़े हो जाते हैं। उनकी शाखाएँ बड़ी हो जाती हैं ताकि और पक्षी उन में घोंसले बना लेते हैं।"
\p
\s5
\v 33 लोगों को परमेश्वर का सन्देश सुनाते समय यीशु दृष्टान्तों का उपयोग करते थे। अगर वे समझने में सक्षम होते थे, तो वह उन्हें और अधिक बताते थे।
\v 34 जब उन्होंने उनसे बात की तो उन्होंने हमेशा दृष्टान्तों का उपयोग किया। परन्तु वह जब शिष्यों के साथ अकेले होते थे तब वह उन्हे दृष्टान्तों का अर्थ समझाते थे।
\p
\s5
\v 35 उसी दिन, जब सूरज डूब रहा था, तब यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, "हम झील की दूसरी ओर जाएँगे।"
\v 36 यीशु पहले से ही नाव में थे, इसलिए उन्होंने लोगों की भीड़ को छोड़ दिया और दूर चले गए। अन्य लोग भी उनके साथ अपनी नौकाओं में चले गए।
\v 37 एक तेज़ हवा चली और लहरें नाव में आने लगी! नाव शीघ्र ही पानी से भर गई थी!
\s5
\v 38 यीशु नाव के पीछे के हिस्से में थे। वह एक तकिए पर अपना सिर रख कर सो रहे थे। तो शिष्यों ने उनको जगाया और कहा, "हे गुरू, क्या आप को चिन्ता नहीं है कि हम मरने वाले हैं?"
\v 39 "यीशु ने उठकर हवा को डाँटा और समुद्र से कहा," शान्त हो जा!" हवा का बहना बंद हो गया और फिर समुद्र बहुत शांत हो गया।
\s5
\v 40 उन्होंने शिष्यों से कहा, "तुम क्यों डरते हो? क्या तुम्हें अभी भी विश्वास नहीं है?"
\v 41 वे डर गए थे। उन्होंने एक दूसरे से कहा, "यह मनुष्य कौन हैं? हवा और लहरें भी इनका कहना मानती हैं!"
\s5
\c 5
\p
\v 1 यीशु और उनके शिष्य गलील सागर की दूसरी ओर पहुँचे। जहाँ वे उतरे उस जगह पर रहने वाले लोगों को गिरासेनी कहते थे।
\v 2 जब यीशु ने नाव से बाहर कदम निकाला, तो कब्रिस्तान की कब्रों में से एक व्यक्ति निकल कर आया। दुष्ट-आत्माओं ने उस व्यक्ति को वश में किया हुआ था।
\s5
\v 3 वह कब्रिस्तान से निकला क्योंकि वह कब्रों में रहता था। लोग उसे जानते थे और कभी-कभी उन्होंने उसे रोकने का प्रयास किया परन्तु वे उसे रोक नहीं सके, जंजीरों से भी नहीं।
\v 4 जब भी वे जंजीरों और बंधनों का इस्तेमाल करते थे, तो वह उन्हें तोड़ कर अलग कर देता था। वह इतना ताकतवर था कि कोई भी उसे वश में नहीं कर सकता था।
\s5
\v 5 दिन और रात वह कब्रिस्तान में अपना समय बिताता था, वह ज़ोर से चिल्लाता और धारदार पत्थरों से अपने को काटता था।
\v 6 जब उसने यीशु को थोड़ी दूर से नाव से बाहर आते हुए देखा, तो वह उनके पास दौड़कर आया और उनके सामने घुटने टेक दिए।
\s5
\v 7-8 यीशु ने उसके भीतर कि दुष्ट-आत्मा से कहा, "हे दुष्ट-आत्मा, इस मनुष्य से निकल आ!" परन्तु दुष्ट-आत्मा जल्दी से नहीं निकली। वह बहुत जोर से चिल्लाया, "हे यीशु, मुझे पता है कि आप परमेश्वर के पुत्र हो, इसलिए हम में कुछ भी समान नहीं है। मुझे अकेला छोड़ दो! परमेश्वर के नाम पर, मैं आप से प्रार्थना करता हूँ। मुझ पर अत्याचार न करो!"
\s5
\v 9 यीशु ने उससे पूछा, "तेरा नाम क्या है?" उसने उत्तर दिया, "मेरा नाम सेना है क्योंकि इस व्यक्ति में हम कई दुष्ट-आत्माएँ हैं।"
\v 10 तब दुष्ट-आत्माओं ने यीशु से कहा कि वह उन्हें इस क्षेत्र से बाहर न भेजे।
\s5
\v 11 इसी समय, पहाड़ों पर सूअरों का एक बड़ा झुंड चर रहा था।
\v 12 इसलिए दुष्ट-आत्माओं ने यीशु से विनती की, "हमें सूअरों में जाने की आज्ञा दो ताकि हम उनमें प्रवेश कर सकें!"
\v 13 यीशु ने उन्हें ऐसा करने की अनुमति दी तो दुष्ट-आत्माओं ने उस व्यक्ति को छोड़ दिया और सूअरों में प्रवेश किया। वह झुंड, जिनकी गिनती दो हजार की थी, झील में खड़ी पहाड़ी से नीचे कूद गया, जहाँ वे डूब गए।
\p
\s5
\v 14 जो लोग सूअरों की देखभाल कर रहे थे, वे भाग कर गाँव में गए और बताया कि वहाँ क्या हुआ था। बहुत से लोग स्वयं देखने के लिए गए कि क्या हुआ था।
\v 15 वे उस स्थान पर आए जहाँ यीशु थे। फिर उन्होंने उस मनुष्य को देखा जिसे दुष्ट-आत्माओं ने पहले वश में किया हुआ था। वह वहाँ कपड़े पहनकर बैठा हुआ था और मानसिक रूप से शांत था। यह सब देख कर वे डर गए।
\s5
\v 16 जिन लोगों ने उन घटनाओं को देखा था, उन्होंने शहर से और ग्रामीण इलाकों से आए लोगों को उस बारे में बताया,जो उस व्यक्ति के साथ हुआ जिसे दुष्ट-आत्माओं ने पहले वश में किया हुआ था। उन्होंने यह भी बताया कि सूअरों को क्या हुआ था।
\v 17 तब लोगों ने यीशु से अनुरोध किया कि उनके क्षेत्र को छोड़ कर चले जाएँ।
\p
\s5
\v 18 जब यीशु नाव में गए, तो उस व्यक्ति ने जिसे दुष्ट-आत्माओं ने पहले वश में किया हुआ था, यीशु से विनती की, "कृपया मुझे अपने साथ चलने दो!"
\v 19 परन्तु यीशु ने उसे साथ चलने की अनुमति नहीं दी इसकी अपेक्षा, उन्होंने उससे कहा, "अपने घर, अपने परिवार में जा और उन्हें बता कि प्रभु ने तेरे लिए क्या किया है, और उन्हें बता कि वह तुझ पर कैसे दयालु हुए है।"
\v 20 इसलिए वह गया और उस क्षेत्र के दस नगरों के आसपास यात्रा की। उसने लोगों को बताया कि यीशु ने उसके लिए कितना कुछ किया। सब लोग जो सुनते थे, वे आश्चर्यचकित थे।
\p
\s5
\v 21 एक बार फिर जब यीशु एक नाव में गलील सागर को पार करके दूसरी ओर गए, जब वह वहाँ पहुँचे, तो एक बड़ी भीड़ यीशु के पास एकत्र हुई, जो तट पर खड़ी थी।
\v 22 उनमें से एक मनुष्य, जो यरूशलेम के आराधनालय का गुरू था, जिसका नाम याईर था, वहाँ आया था। जब उसने यीशु को देखा, तो वह उनके पैरों पर गिर गया।
\v 23 तब उसने आग्रहपूर्वक विनती करके उनसे कहा, "मेरी पुत्री बीमार है और लगभग मर चुकी है, कृपया मेरे घर पर आओ और अपने हाथों को उस पर रखो, उसे ठीक करो और उसे जीवित कर दो!"
\v 24 यीशु और शिष्य उसके साथ चल दिए। एक बड़ी भीड़ ने उनका पीछा किया और बहुत से लोग यीशु से टकरा रहे थे।
\s5
\v 25 भीड़ में एक स्त्री थी जिसे लहू बहने का रोग था। उसको बारह वर्ष से प्रतिदिन लहू बहता था।
\v 26 वह कई वर्षों से पीड़ित थी जबकि वैद्य उसका इलाज कर रहे थे। वैद्यों का भुगतान करने के लिए उसने अपने सब पैसे खर्च कर दिए थे और जो कुछ भी उन्होंने किया, उसके बाद भी, उसे कोई लाभ नहीं हुआ वरन् उसकी दशा और बिगड़ गई।
\v 27 जब उसने सुना कि यीशु ने लोगों को ठीक किया, तो वह वहाँ पहुँची जहाँ वह थे और भीड़ को धकेलती हुई यीशु के पीछे उनके निकट पहुँच गई।
\s5
\v 28 वह सोच रही थी, "अगर मैं उन्हें छू लूँ या मैं उनके कपड़े को भी छू लूँ तो मैं ठीक हो जाऊँगी।" इसलिए उसने यीशु के कपड़े को छूआ।
\v 29 तुरंत उसका लहू बहना बंद हो गया। उसी समय, उसने स्वयं के अन्दर महसूस किया कि वह अपनी बीमारी से ठीक हो गई थी।
\s5
\v 30 यीशु ने तुरंत ही अपने में जान लिया कि उनकी शक्ति ने किसी को ठीक किया है, इसलिए उन्होंने भीड़ में पीछे मुड़कर पूछा, "किसने मेरे कपड़े छूए?"
\v 31 उनके शिष्यों ने उत्तर दिया, "आप देख सकते हैं कि बहुत से लोग आपके पास भीड़ में खड़े हैं! बहुत से लोगों ने आपको छुआ होगा! इसलिए आप क्यों पूछ रहे हैं, 'मुझे किसने छुआ है?'
\v 32 परन्तु जिसने यह किया था, यीशु उसे ढूँढ़ते रहे।
\s5
\v 33 वह स्त्री बहुत डरी हुई थी और काँप रही थी। उसने उनके सामने घुटने टेक कर कहा कि उसने ऐसा किया है।
\v 34 उन्होंने कहा, "हे पुत्री, क्योंकि तूने विश्वास किया है कि मैं तुझे ठीक कर सकता हूँ, मैंने तुझे ठीक किया है। तू अपने दिल में शान्ति के साथ घर जा सकती है, मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि तू इस रोग से फिर पीड़ित नहीं होगी।"
\p
\s5
\v 35 जब यीशु उस स्त्री से बात कर रहे थे, तो याईर के घर से आए कुछ लोग वहाँ पहुँचे। उन्होंने कहा, "तेरी बेटी की मृत्यु हो गई है, इसलिए अब गुरू को अपने घर लाने के लिए परेशान करने की आवश्यक्ता नहीं है।"
\s5
\v 36 "जब यीशु ने यह बातें सुनीं, तो उन्होंने याईर से कहा, "यह मत सोचो कि यह स्थिति निराशाजनक है! बस विश्वास रख कि वह जीएगी!"
\v 37-38 फिर वह केवल अपने तीन शिष्यों - पतरस, याकूब और यूहन्ना को अपने साथ याईर के घर ले गए। उन्होंने किसी अन्य व्यक्ति को उनके साथ जाने की आज्ञा नहीं दी। घर के पास पहुँचने के बाद, यीशु ने देखा कि लोग वहाँ दुःखी थे। कुछ रो रहे थे और कुछ लोग विलाप कर रहे थे।
\s5
\v 39 उन्होंने घर में प्रवेश किया और फिर उनसे कहा, "तुम इतने दुःखी क्यों हो और क्यों रो रहे हो? बच्ची मरी नहीं है, केवल सो रही है।"
\v 40 लोग उन पर हँसे, क्योंकि वे जानते थे कि वह मर गई थी। उन्होंने सब लोगों को घर से बाहर कर दिया। फिर उन्होंने बच्ची के माता-पिता और अपने तीनों शिष्यों को साथ ले लिया। वह उस कमरे में गए, जहाँ बच्ची लेटी हुई थी।
\s5
\v 41 उन्होंने बच्ची के हाथ पकड़े और उसे अपनी भाषा में कहा, "तलीता कूमी!" इसका अर्थ है, "हे छोटी लड़की, उठ!"
\v 42 तुरंत लड़की उठी और चलने लगी। (यह आश्चर्य की बात नहीं थी कि वह चल सकती थी, क्योंकि वह बारह वर्ष की थी।) जब यह हुआ, तो सब जो वहाँ उपस्थित थे, बहुत आश्चर्यचकित हुए।
\v 43 यीशु ने उन्हें सख्ती से आज्ञा दी, "मैंने जो कुछ किया है किसी को मत बताना!" फिर उन्होंने उनसे कहा कि लड़की को खाने के लिए कुछ दो।
\s5
\c 6
\p
\v 1 यीशु ने कफरनहूम छोड़ दिया और अपने नगर, नासरत में गए और उनके शिष्य उनके साथ गए।
\v 2 सब्त के दिन उन्होंने आराधनालय में प्रवेश किया और लोगों को शिक्षा दी। बहुत से लोग जो उनकी सुन रहे थे, वे बहुत आश्चर्यचकित थे। वे सोचते थे कि इन्होंने इतना ज्ञान और चमत्कार करने की सामर्थ्य कहाँ से प्राप्त की है।
\v 3 उन्होंने कहा, "वह सिर्फ एक साधारण बढ़ई है! हम उसे और उसके परिवार को जानते हैं! हम उसकी माता मरियम को जानते हैं! हम इसके छोटे भाई याकूब, योसेस, यहूदा और शमौन को जानते हैं! और उसकी छोटी बहनें भी हमारे साथ यहीं पर रहती हैं!" इसलिए उन्होंने उसका विरोध किया
\s5
\v 4 यीशु ने उनसे कहा, "यह सच है कि लोग अन्य जगहों पर मेरा और अन्य भविष्यद्वक्ताओं का सम्मान करते हैं, लेकिन हमारे नगरों में नहीं! यहाँ तक कि हमारे रिश्तेदारों और हमारे घरों में रहने वाले लोग भी हमें सम्मान नहीं देते!"
\p
\v 5 इसलिए, फिर भी उन्होंने वहाँ कुछ बीमार लोगों को ठीक किया, इसके अतिरिक्त उन्होंने और कोई चमत्कार नहीं किया।
\v 6 वह उनके अविश्वास से चकित थे, परन्तु वह उनके गाँव में गए और उन्हें शिक्षा दी।
\p
\s5
\v 7 एक दिन उन्होंने बारह शिष्यों को एक साथ बुलाया, और फिर उन्होंने उन्हें दो-दो करके कई शहरों में लोगों को शिक्षा देने के लिए भेजा। उन्होंने लोगों में से दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकालने के लिए उन्हें सामर्थ्य प्रदान की।
\v 8-9 उन्होंने उन्हें यात्रा में जूते पहनने और छड़ी साथ लेने का निर्देश दिया। उन्होंने उनसे कहा कि भोजन न लें, और न ही थैला जिसमें आवश्यक्ता की वस्तुएँ रख सकें, और न ही यात्रा के लिए कोई पैसा। उन्होंने उनको अतिरिक्त कुर्ता रखने की भी अनुमति नहीं दी थी।
\s5
\v 10 उन्होंने यह भी निर्देश दिया, "किसी भी शहर में प्रवेश करने के बाद, यदि कोई तुम्हें अपने घर में रहने के लिए आमंत्रित करता है, तो उसके घर में जाना।
\v 11 जिस स्थान के लोग तुम्हारा स्वागत नहीं करते और तुम्हारी बात नहीं सुनते हैं, उस जगह से निकलते समय अपने पैरों से धूल झाड़ देना। ऐसा करने से, तुम यह प्रमाणित करोगे कि उन्होंने तुम्हारा स्वागत नहीं किया।"
\s5
\v 12 इसके बाद शिष्यों ने विभिन्न नगरों में जाकर प्रचार किया कि लोग लज्जित हों कि वे पाप करते हैं, और पापों का त्याग करने का निर्णय लें जिससे कि परमेश्वर उन्हें क्षमा करें।
\v 13 उन्होंने कई दुष्ट-आत्माओं को भी लोगों में से बाहर निकलने के लिए विवश किया और वे कई बीमार लोगों को जैतून के तेल से ठीक कर रहे थे।
\p
\s5
\v 14 अब राजा हेरोदेस अंतिपास ने सुना कि यीशु क्या कर रहे थे, क्योंकि बहुत से लोग इस बारे में बात कर रहे थे। कुछ लोग यीशु के बारे में कह रहे थे, "वह यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला होगा! वह मुर्दों में से जीवित हो उठा है, इसलिए उनके पास इन चमत्कारों को करने के लिए परमेश्वर का सामर्थ्य है!"
\v 15 अन्य लोग यीशु के बारे में कह रहे थे, "वह प्राचीन भविष्यद्वक्ता एलिय्याह है, जिसे परमेश्वर ने फिर से वापस भेजने की प्रतिज्ञा की थी।" अन्य लोग यीशु के बारे में कह रहे थे, "नहीं, वह एक अलग भविष्यद्वक्ता है, उन भविष्यद्वक्ताओं में से एक जो बहुत समय पहले रहते थे।"
\s5
\v 16 लोग जो कह रहे थे उसे सुनकर राजा हेरोदेस अंतिपास ने स्वयं से यह कहा, "जो व्यक्ति ये चमत्कार कर रहा है वह यूहन्ना होना चाहिए! मैंने अपने सैनिकों को उसका सिर काटने का आदेश दिया था, परन्तु वह फिर से जीवित हो गया है!
\v 17 जो घटना हुई थी वह यह थी कि कुछ समय पहले हेरोदेस ने हेरोदियास से विवाह कर लिया था; वह उसके भाई फिलिप्पुस की पत्नी थी।
\s5
\v 18 उसके बाद यूहन्ना ने हेरोदेस से कहा, "परमेश्वर की व्यवस्था तुझे अपने भाई के जीवित रहते उसकी पत्नी से विवाह करने की अनुमति नहीं देती है।" तब, क्योंकि हेरोदियास ने यूहन्ना को जेल में डलवाने का आग्रह किया, हेरोदेस ने अपने सैनिकों को यूहन्ना के पास भेज कर यूहन्ना को बन्दी बनवाया और उसे बन्दीगृह में डाल दिया।
\v 19 परन्तु हेरोदियास यूहन्ना से अधिक बदला लेना चाहती थी, इसलिए वह चाहती थी कि कोई उसे मार डाले, परन्तु वह ऐसा नहीं कर पाई क्योंकि यूहन्ना बन्दीगृह में था, हेरोदेस ने यूहन्ना को उससे सुरक्षित रखा।
\v 20 हेरोदेस ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह यूहन्ना का सम्मान करता था, क्योंकि वह जानता था कि वह एक धर्मी व्यक्ति था, जिसने अपने आप को परमेश्वर के लिए समर्पित कर दिया था। जब हेरोदेस ने उसकी बात सुनी, तो वह बहुत परेशान हो गया और उसे पता नहीं था कि उसे उसके साथ क्या करना चाहिए, लेकिन वह उसे सुनना पसंद करता था।
\s5
\v 21 परन्तु हेरोदियास को आखिरकार यूहन्ना को मार डालने वाला मिला जो उसे मार सकता था। एक दिन हेरोदेस के जन्मदिन पर उसको सम्मान देने के लिए सबसे महत्वपूर्ण सरकारी अधिकारियों, सबसे महत्वपूर्ण सेना के अधिकारियों और गलील के सबसे महत्वपूर्ण नागरिकों को उसके साथ खाने और जन्मदिन मनाने के लिए आमंत्रित किया गया।
\v 22 जब वे खा रहे थे, तो हेरोदियास की बेटी कमरे में आई और राजा और उसके मेहमानों के लिए नृत्य किया। उसने राजा हेरोदेस और उसके मेहमानों को इतना प्रसन्न किया कि उसने उससे कहा, "तुझे मुझसे जो कुछ भी माँगना है माँग, जो भी तेरी इच्छा है, मैं उसे तुझे दे दूँगा!"
\s5
\v 23 उसने उससे यह भी कहा, "तू जो कुछ भी माँगेगी, मैं उसे दे दूँगा! अगर तू माँगे तो मैं अपना आधा राज्य भी तुझे दे दूँगा।"
\v 24 लड़की कमरे से निकल कर अपनी माँ के पास गई। उसने उसे बताया कि राजा ने क्या कहा, और उससे पूछा, "मुझे क्या माँगना चाहिए?" उसकी माँ ने उत्तर दिया, "राजा से यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का सिर माँग!"
\v 25 लड़की ने फिर से कमरे में प्रवेश किया। वह राजा के पास गई और उससे कहा, "मैं चाहती हूँ कि तू किसी को यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का सिर काटकर थाली में लाने की आज्ञा दे।"
\s5
\v 26 जब उसने यह सुना जो उसने माँगा, तो राजा बहुत परेशान हो गया, क्योंकि वह जानता था कि यूहन्ना एक बहुत ही धर्मी व्यक्ति था। लेकिन वह उसके अनुरोध इन्कार भी नहीं कर सकता था क्योंकि उसने वचन दे दिया था कि वह उससे कुछ भी माँग सकती है और उसके मेहमानों ने सुना था कि उसने क्या वचन दिया है।
\v 27 इसलिए राजा ने तुरंत किसी को यूहन्ना का सिर काटकर लाने का आदेश दिया और उसे लड़की के पास लेकर आए। उस व्यक्ति ने बन्दीगृह में जाकर और यूहन्ना का सिर काट दिया।
\v 28 और एक थाली में रख कर ले आया और लड़की को दे दिया। लड़की उसे अपनी माँ के पास ले गई।
\v 29 जब यूहन्ना के शिष्यों ने यह सुना कि क्या हुआ, तो उन्होंने बन्दीगृह में जाकर यूहन्ना का शरीर लिया; तब उन्होंने उसे दफ़न कर दिया।
\p
\s5
\v 30 बारह प्रेरित उन जगहों से यीशु के पास लौटे जहाँ से वे चले गए थे। उन्होंने उनको यह बताया कि उन्होंने क्या किया और लोगों को क्या क्या सिखाया।
\v 31 उन्होंने उनसे कहा, "मेरे साथ एक ऐसी जगह पर आओ, जहाँ कोई भी नहीं रहता है, कि हम अकेले रह सकें और थोड़ी देर आराम कर सकें।" उन्होंने यह कहा क्योंकि कई लोग लगातार उनके पास आ और जा रहे थे, जिसके परिणामस्वरूप यीशु और उनके शिष्यों को खाने या कुछ भी करने का समय नहीं मिला।
\v 32 इसलिए वे एक नाव में एक जगह पर चले गए, जहाँ कोई भी नहीं रहता था।
\s5
\v 33 परन्तु बहुत से लोगों ने उन्हें जाते हुए देखा था। उन्होंने यह भी देखा कि वे यीशु और उनके शिष्य थे, और उन्होंने देखा कि वे कहाँ जा रहे थे। इसलिए वे सभी पास के नगरों से उस जगह की ओर आगे बढ़े, जहाँ यीशु और उनके शिष्य जा रहे थे। वे वास्तव में यीशु और शिष्यों से पहले वहाँ पहुँच गए।
\v 34 जब यीशु और उनके शिष्य नाव से उतरे, तो यीशु ने इस बड़ी भीड़ को देखा। यीशु को उन पर दया आई, क्योंकि वे परेशान थे, ऐसी भेड़ों के समान जिनके पास चरवाहा नहीं था। इसलिए यीशु ने उन्हें बहुत सी बातें सिखाईं।
\p
\s5
\v 35 देर दोपहर बाद शिष्यों ने उनके पास आकर कहा, "यह एक ऐसी जगह है जहाँ कोई नहीं रहता है, और बहुत देर हो चुकी है।
\v 36 इसलिए लोगों को विदा करें कि वे आसपास के स्थानों में जा सकें, जहाँ लोग रहते हैं और गाँवों में वे कुछ खरीद कर खा सकें!"
\s5
\v 37 "परन्तु यीशु ने उनसे कहा," नहीं, तुम उन्हें खाने के लिए कुछ दो!" उन्होंने उत्तर दिया, "हम इस भीड़ को खिलाने के लिए पर्याप्त रोटी नहीं खरीद सकते हैं, चाहे हमारे पास 200 दिनों के काम से कमाया गया पैसा हो।
\v 38 यीशु ने उनसे कहा, "तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं? जाओ और पता करो!" वे गए और पता किया, और फिर उन्होंने उनसे कहा, "हमारे पास केवल पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं!"
\s5
\v 39 उन्होंने शिष्यों को निर्देश दिया कि वे सभी लोगों को हरी घास पर बैठने के लिए कहें।
\v 40 इसलिए लोग समूह में बैठ गए। कुछ समूहों में पचास लोग और दूसरे समूह में एक सौ लोग थे।
\v 41 यीशु ने पाँच रोटियों और दो मछलियों को लिया और स्वर्ग की ओर देखा और उनके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर उन्होंने रोटियों और मछलियों को टुकड़ों में तोड़ दिया और उन्हें शिष्यों को दे दिया कि वे उन्हें लोगों में बाँटें।
\s5
\v 42 लोगों ने तब तक खाया, जब तक कि उनका पेट नहीं भरा!
\v 43 फिर शिष्यों ने रोटी के टुकड़े और मछलियों से बारह टोकरियाँ भरकर उठाईं।
\v 44 वे पाँच हजार पुरुष थे जिन्होंने मछलियाँ और रोटियाँ खाईं। उन्होंने महिलाओं और बच्चों की गिनती नहीं की थी।
\p
\s5
\v 45 ठीक उसी समय, यीशु ने अपने शिष्यों को नाव में चढ़ने के लिए कहा और फिर अपने आगे बैतसैदा को भेज दिया, जो कि गलील सागर के आसपास था। और भीड़ को विदा करने के लिए वह वहीं रहे जो वहाँ थे।
\v 46 लोगों को विदा करने के बाद, वह प्रार्थना करने के लिए पहाड़ों पर चले गए।
\v 47 जब शाम हुई, तो शिष्यों की नाव झील के बीच में थी, और यीशु स्वयं भूमि पर थे।
\s5
\v 48 उन्होंने देखा कि हवा उनके विरुद्ध चल रही है क्योंकि वे नाव में थे। जिसके कारण, वे बड़ी कठिनाई में थे। वह सुबह जल्दी जब अँधेरा ही था उनके पास पानी पर चलकर पहुँचे, उनकी इच्छा शिष्यों से पहले पहुँचने की थी।
\v 49 उन्होंने यीशु को पानी पर चलते देखा, तो सोचा कि वह भूत है। वे चिल्लाए
\v 50 क्योंकि वे उन्हें देखकर डर गए थे। परन्तु उन्होंने उनसे कहा, "शांत हो जाओ, डरो मत, क्योंकि यह मैं हूँ!"
\s5
\v 51 वह नाव में गए और उनके साथ बैठ गए और हवा का बहना बंद हो गया। जो उन्होंने किया उससे वे बहुत आश्चर्यचकित थे।
\v 52 जबकि उन्होंने देखा था कि यीशु ने पाँच रोटी और दो मछली को बढ़ा दिया था, उन्हें समझ नहीं आया कि वह कितने सामर्थी थे, जैसा कि उन्हें होना चाहिए था।
\p
\s5
\v 53 जब वे एक नाव में गलील सागर की ओर से थोड़ा दूर चले तो वे गन्नेसरत के तट पर आए। फिर उन्होंने वहाँ नाव को बाँध दिया।
\v 54 जब वे नाव से बाहर निकल आए, तो वहाँ के लोग यीशु को पहचानते थे।
\v 55 उन्होंने पूरे क्षेत्र में भागकर दूसरों को बताया कि यीशु वहाँ हैं। तब लोगों ने उन लोगों को खाटों पर रखा जो बीमार थे और वे उन्हें उस हर एक स्थान में ले गए जहाँ उन्होंने लोगों को यह कहते सुना कि यीशु थे।
\s5
\v 56 जिस भी गाँव, शहर या स्थान जहाँ वह गए, वहाँ जो भी बीमार थे, लोग उनको बाजारों में लेकर आए। तब बीमार लोगों ने यीशु से विनती की कि वह उन्हें उनको या उनके कपड़े के किनारे को छूने दे जिससे कि यीशु उन्हें ठीक कर सकें। वे सब जिसने उन्हें या उसके वस्त्र को छुआ वे ठीक हो गए।
\s5
\c 7
\p
\v 1 एक दिन कुछ फरीसी और कुछ लोग जो यहूदी नियमों को पढ़ाते थे वे यरूशलेम से आए और यीशु के पास एकत्र हुए।
\s5
\v 2 फरीसियों ने देखा कि यीशु के शिष्य अपने हाथों को धोए बिना भोजन करते थे।
\v 3-4 वे और अन्य यहूदी अपने पूर्वजों की परंपराओं का सख्ती से पालन करते थे। विशेष करके वे एक विशेष रूप से अपने कटोरों बर्तनों, पात्रों और बिस्तरों को विधि अनुसार धोते थे कि इन वस्तुओं का प्रयोग करने से परमेश्वर उन्हें अस्वीकार न कर दें। उदाहरण के लिए, वे तब तक खाना नहीं खाते थे जब तक कि वे विशेष रूप से अपने हाथों को विशेष विधि के अनुसार धो न लें, विशेषकर के बाज़ार से सामान खरीद कर लौटने के बाद। ऐसी कई अन्य परम्पराएँ हैं जो वे मानते हैं और उनका पालन करने का प्रयास करते हैं।
\p
\s5
\v 5 उस दिन, फरीसियों और यहूदी कानूनों को पढ़ाने वाले पुरुषों ने देखा कि यीशु के कुछ शिष्य अपने हाथों को विशेष विधि के अनुसार धोए बिना अपने हाथों से भोजन कर रहे थे। इसलिए उन्होंने यीशु से प्रश्न किया, "आपके शिष्य हमारे प्राचीनों की परम्पराओं का पालन नहीं करते हैं! वे भोजन क्यों करते हैं अगर उन्होंने हमारी विधि के अनुसार अपने हाथों को नहीं धोया है!"
\s5
\v 6 यीशु ने उनसे कहा, "यशायाह ने तुम्हारे पूर्वजों की निन्दा की, और उसके शब्द तुम लोगों का अच्छी तरह से वर्णन करते हैं जो केवल अच्छा होने का दिखावा करते हैं। उसने इन शब्दों को लिखा है कि परमेश्वर ने कहा: 'ये लोग बोलते हैं जैसे कि वे मुझे सम्मान देते हैं, परन्तु वे मुझे सम्मानित करने के बारे में बिलकुल सोच भी नहीं सकते हैं।
\v 7 वे व्यर्थ ही मेरी आराधना करते हैं, क्योंकि वे लोगों को केवल वही पढ़ाते हैं जो लोग कहते हैं जैसे कि मैंने स्वयं उन्हें यह करने के लिए कहा हो।'
\p
\s5
\v 8 तुमने अपने पूर्वजों की तरह परमेश्वर की आज्ञा मानने से मना कर दिया। इसकी अपेक्षा, तुम केवल उन परंपराओं का पालन करते हो जिन्हें दूसरों ने सिखाया है।"
\v 9 यीशु ने उनसे कहा, "तुम सोचते हो कि तुम चालाक हो जो परमेश्वर के आदेशों का पालन करने से इन्कार कर रहे हो जिससे कि तुम अपनी परम्पराओं का पालन कर सको!
\v 10 उदाहरण के लिए, हमारे पूर्वज मूसा ने परमेश्वर की आज्ञा को लिखा, 'अपने पिता और अपनी माता का सम्मान कर'। उसने यह भी लिखा, 'अधिकारियों को उस व्यक्ति को प्राणदण्ड देना चाहिए जो अपने पिता या माता के बारे में बुरा बोलता है।'
\s5
\v 11-12 लेकिन तुम लोगों को यह सिखाते हो कि अगर कोई अपने माता-पिता की सहायता नहीं करता तो यह ठीक है। तुम लोगों को यह सिखाते हो कि अगर वे अपने माता-पिता के स्थान में परमेश्वर को वह दें जो उन्हें परमेश्वर को देना है तो यह उचित है। तुम उन्हें अपने माता-पिता से कहने की अनुमति देते हो, 'मैं तुम्हारे लिए जो कुछ देने वाला था, मैंने अब वह परमेश्वर को देने की प्रतिज्ञा की। इसलिए मैं अब तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता!' अत: तुम वास्तव में लोगों को बता रहे हो कि अब उन्हें अपने माता-पिता की सहायता नहीं करनी है!
\v 13 इस प्रकार तुम इस बात की उपेक्षा करते हो कि परमेश्वर ने क्या आज्ञा दी है! तुम अपनी स्वयं की बातें दूसरों को सिखाते हो और उन्हें बताते हो कि उन्हें उनका पालन करना चाहिए! और तुम ऐसे कई अन्य काम करते हो।"
\p
\s5
\v 14 तब यीशु ने फिर से लोगों को करीब आने के लिए बुलाया। तब उन्होंने उनसे कहा, "तुम सब लोग जो मेरी बातें सुनते हो! समझने की कोशिश करो कि मैं तुमसे क्या कह रहा हूँ।
\v 15 जो कुछ मनुष्य खाता है परमेश्वर उसके कारण उसे अशुद्ध नहीं मानते। इसके विपरीत, जो कुछ मनुष्य के भीतरी मन से निकलता है उससे परमेश्वर उसको अशुद्ध ठहराते हैं।"
\p
\s5
\v 17 यीशु ने भीड़ को छोड़कर, शिष्यों के साथ एक घर में प्रवेश किया। उन्होंने उनसे इस दृष्टान्त के बारे में पूछा जो उन्होंने बोला था।
\v 18 उन्होंने उनको उत्तर दिया, "क्या तुम समझ नहीं पाए कि इसका क्या मतलब है? तुम्हें यह समझना चाहिए कि जो बाहर से अन्दर प्रवेश करता है उसे परमेश्वर अशुद्ध नहीं समझते हैं।
\v 19 हमारे मन में प्रवेश करने और अशुद्ध करने की अपेक्षा, यह हमारे पेट में जाता है, और बाद में हमारे शरीर से निकल जाता है।" यह कहकर, यीशु यह घोषणा कर रहे थे कि लोग बिना किसी विचार के भोजन को खा सकते हैं जिससे कि परमेश्वर उन्हें अशुद्ध करने का विचार न करे।
\s5
\v 20 उन्होंने यह भी कहा, "यह वह विचार और कार्य हैं जो लोगों के भीतर से आते हैं, जिससे परमेश्वर उन्हें अशुद्ध मानते हैं।
\v 21 यह लोगों का आन्तरिक अस्तित्व ही है जो बुरी बातों के सोचने का कारण बनता है; वे अनैतिक काम करते हैं, वे चोरी करते हैं, वे हत्या करते हैं।
\v 22 वे व्यभिचार करते हैं, वे लालच करते हैं, वे बुरे विचार से कार्य करते हैं, वे लोगों को धोखा देते हैं, वे अशिष्ट व्यवहार करते हैं, वे लोगों से ईर्ष्या करते हैं, वे दूसरों के बारे में बुरा बोलते हैं, वे गर्व करते हैं, और वे मूर्खता से कार्य करते हैं।
\v 23 ऐसे विचार लोगों के मन में होते हैं और फिर वे इन बुरे कामों को करते हैं, और यही कारण है कि परमेश्वर उन्हें अपवित्र ठहराते हैं।"
\p
\s5
\v 24 यीशु और उनके शिष्य गलील से निकल कर वे सोर और सीदोन शहरों के आसपास के क्षेत्र में चले गए। जब वह किसी निश्चित घर में ठहरे तब वह नहीं चाहते थे कि कोई उन्हें जान सके, परन्तु लोगों को शीघ्र ही पता चल गया कि वह वहाँ हैं।
\v 25 एक स्त्री ने, जिसकी बेटी में दुष्ट-आत्मा थी, यीशु के बारे में सुना। वह उनके पास आई और उनके पैरों में गिर गई।
\v 26 यह महिला एक यहूदी नहीं थी। उसके पूर्वज भी यहूदी नहीं थे। वह स्वयं सीरिया के क्षेत्र में फीनीके क्षेत्र के आसपास के क्षेत्र में जन्मी थी। उसने यीशु से विनती की कि वह उसकी बेटी के भीतर से दुष्ट-आत्मा को निकाल दे।
\s5
\v 27 उन्होंने स्त्री से कहा, "पहले बच्चों को वह सब खाने दो जो वे चाहते हैं, क्योंकि किसी के लिए यह उच्चित नहीं कि माँ के द्वारा बच्चों के लिए तैयार किए गए भोजन को लेकर कुत्तों के आगे फेंक दे।"
\v 28 उसने कहा, "महोदय, आप जो कहते हैं वह सही है, परन्तु यहाँ तक कि कुत्ते भी, जो मेज़ के नीचे बैठते हैं, बच्चों के द्वारा गिराए हुए टुकड़ों को खाते हैं।"
\s5
\v 29 यीशु ने उससे कहा, "तूने जो कहा है, उसके कारण घर जा। मैंने दुष्ट-आत्मा को तेरी बेटी में से निकाल दिया है।"
\v 30 वह महिला अपने घर लौट आई और उसने देखा कि उसकी बेटी खाट पर चुपचाप पड़ी है और दुष्ट-आत्मा निकल गई है।
\p
\s5
\v 31 यीशु और उनके शिष्यों ने सोर के क्षेत्र को छोड़ दिया और उत्तर में सीदोन क्षेत्र में गए, फिर पूर्व में दस नगरों के क्षेत्र में, और फिर दक्षिणी गलील समुद्र के नगरों के पास गए।
\v 32 वहाँ लोग उनके पास एक व्यक्ति को लाए जो बहरा था और बोल नहीं पाता था। उन्होंने यीशु से विनती की कि वह उसे ठीक करने के लिए उस पर हाथ रखे।
\s5
\v 33 इसलिए यीशु उसे भीड़ से दूर ले गए ताकि वह दोनों अकेले हों। फिर उन्होंने अपनी ऊँगलियों में से एक को उसके हर एक कानों में डाल दिया। अपनी ऊँगलियों पर थूकने के बाद, उन्होंने अपनी ऊँगलियों से मनुष्य की जीभ को छुआ।
\v 34 तब उन्होंने ऊपर स्वर्ग की ओर देखा, उन्होंने आँह भरी और फिर अपनी भाषा में उस मनुष्य के कानों में कहा, "एफ़फाथा," जिसका अर्थ है, "खुल जा!"
\v 35 अब वह व्यक्ति स्पष्ट रूप से सुन सकता था। उसने स्पष्ट रूप से बात करना भी आरंभ कर दिया था, क्योंकि उसे बोलने में असमर्थ होने से ठीक किया गया था।
\s5
\v 36 यीशु ने लोगों से कहा कि उन्होंने जो कुछ भी किया था उसे किसी को न बताना। यद्यिप यीशु ने उन्हे और अन्य सब लोगों से कहा कि इसके बारे में किसी से कुछ न कहें परन्तु वे इसके बारे में और अधिक चर्चा करने लगे।
\v 37 जो लोग इसके बारे में सुनते थे, वे बहुत ही आश्चर्यचकित होते थे और कहते थे, "उन्होंने जो कुछ किया वह अद्भुत है। आश्चर्यजनक कामों को करने के अतिरिक्त, वह बहरे लोगों को सुनने योग्य भी बनाते हैं और वह उनको बोलने में सक्षम बनाते हैं जो बोल नहीं सकते हैं!"
\s5
\c 8
\p
\v 1 उन दिनों, लोगों की एक बड़ी भीड़ फिर से एकत्र हुई। दो दिनों तक वहाँ रहने के बाद, भीड़ के पास खाने के लिए भोजन नहीं था। इसलिए यीशु ने शिष्यों को अपने पास बुलाया, और फिर उनसे कहा,
\v 2 "ये लोग तीन दिन से मेरे साथ हैं, और इनके पास खाने के लिए कुछ नहीं बचा है, इसलिए अब मैं इनके लिए बहुत चिंतित हूँ।
\v 3 इनके भूखे रहने के बाबजूद भी अगर मैं इन्हें घर भेजता हूँ तो इनमें से कुछ तो घर के रास्ते में ही बेहोश हो जाएँगे, क्योंकि कुछ लोग तो बहुत दूर से आए हैं।"
\v 4 शिष्यों को मालूम था कि यीशु सुझाव दे रहे थे कि वे लोगों को खाने के लिए कुछ दें, तो शिष्यों में से एक ने उत्तर दिया, "हम इस भीड़ के लिए पर्याप्त भोजन का प्रबंध नहीं कर सकते हैं क्योंकि यहाँ कोई नहीं रहता है।"
\s5
\v 5 यीशु ने अपने शिष्यों से पूछा, "तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?" उन्होंने उत्तर दिया, "हमारे पास सात रोटियाँ हैं।"
\v 6 यीशु ने भीड़ को आज्ञा दी, "जमीन पर बैठ जाओ!" जब वे बैठ गए, तो उन्होंने सात रोटियाँ लीं, उनके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया, उन्हें टुकड़ों में तोड़ दिया, और उन्हें अपने शिष्यों को दे दिया ताकि लोगों में बाँटा जा सके।
\s5
\v 7 उन्होंने यह भी देखा कि उनके पास कुछ छोटी मछलियाँ थीं। अत: इनके लिए परमेश्वर का धन्यवाद करने के बाद, उन्होंने शिष्यों से कहा, "इन्हें भी बाँट दो।" भीड़ को मछली बाँटने के बाद,
\v 8 लोगों ने जब पेट भरकर भोजन खा लिया, और सन्तुष्ट हो गए। तो शिष्यों ने भोजन के टुकड़ों को इकट्ठा किया और सात बड़े टोकरे भर दिए।
\v 9 शिष्यों ने अनुमान लगाया कि उस दिन लगभग चार हजार लोग खा चुके थे। फिर यीशु ने भीड़ को विदा कर दिया।
\v 10 इसके तुरंत बाद, वह अपने शिष्यों के साथ नाव में चढ़ गए, और गलील सागर के पास दलमनूता प्रदेश में चले गए।
\p
\s5
\v 11 कुछ फरीसी यीशु के पास आए। उन्होंने उनके साथ विवाद करना आरंभ कर दिया और दवाब दिया कि वह यह दिखाने के लिए एक चमत्कार करे कि परमेश्वर ने उन्हें भेजा है।
\v 12 यीशु ने मन में सोचा, और फिर उन्होंने उनसे कहा, "तुम मुझसे एक चमत्कार करने के लिए क्यों कह रहे हो? मैं तुम्हारे लिए चमत्कार नहीं करूँगा!"
\v 13 तब उन्होंने उनको छोड़ दिया। वह फिर से अपने शिष्यों के साथ नाव में गए, और वे पार चले गए।
\s5
\v 14 शिष्य भोजन साथ लाना भूल गए थे। विशेष रूप से, उनके पास नाव में केवल एक रोटी थी।
\v 15 जब वे जा रहे थे, तो यीशु ने उन्हें चेतावनी दी और कहा, "सचेत रहो! फरीसियों और हेरोदेस के खमीर से सावधान रहो!"
\s5
\v 16 शिष्यों ने उन्हें गलत समझा। इसलिए उन्होंने एक दूसरे से कहा, "उन्होंने यह इसलिए कहा होगा कि हमारे पास कोई रोटी नहीं है।"
\v 17 यीशु जानते थे वे एक दूसरे से क्या चर्चा कर रहे थे। इसलिये उन्होंने उनसे कहा, "तुम पर्याप्त रोटी न होने के बारे में क्यों बात कर रहे हो? तुमको समझ लेना चाहिए कि मैंने अब तक क्या कहा है! क्या तुम विचार नहीं कर रहे हो!
\s5
\v 18 तुम्हारे पास आँखें हैं, लेकिन तुम जो देखते हो उसे समझ नहीं पा रहे हो! तुम्हारे पास कान हैं, लेकिन तुम जो कुछ सुन रहे हो उसे समझ नहीं सकते!" फिर उन्होंने पूछा, "क्या तुम्हें याद नहीं है कि क्या हुआ
\v 19 जब मैंने केवल पाँच रोटियाँ तोड़ी थी और पाँच हजार लोगों को खाना खिलाया था? न केवल सभी संतुष्ट थे, लेकिन वहाँ पर खाना बच भी गया था! रोटी के टुकड़ों के कितने टोकरे थे, जो उठाए गए थे?" उन्होंने उत्तर दिया, "हम ने बारह टोकरे भरे थे।"
\s5
\v 20 फिर उन्होंने पूछा, "जब मैंने चार हज़ार लोगों को खिलाने के लिए सात रोटियों को तोड़ा था, फिर जब सब के खाने के लिए पर्याप्त था, तब रोटी के टुकड़ों के कितने बड़े टोकरे उठाए गए थे?" उन्होंने उत्तर दिया, "हमने सात बड़े टोकरे उठाए थे।"
\v 21 फिर उन्होंने उनसे कहा, "क्या तुम समझते नहीं हो?"
\p
\s5
\v 22 वे नाव से बैतसैदा पहुँचे। लोग यीशु के पास एक अंधे व्यक्ति को लाए और उनसे विनती की कि वह उसे चंगाई देने के लिए छू ले।
\v 23 यीशु ने अंधे व्यक्ति का हाथ पकड़ लिया और उसे शहर के बाहर ले गए। फिर उन्होंने व्यक्ति की आँखों में थूक कर अपना हाथ व्यक्ति की आँखों पर रख दिया और फिर उससे पूछा, "क्या तू कुछ देख पा रहा है?"
\s5
\v 24 व्यक्ति ने देखा और फिर कहा, "हाँ, मैं लोगों को देखता हूँ! वे चारों ओर घूम रहे हैं, लेकिन मैं उन्हें स्पष्ट रूप से नहीं देख सकता। वे पेड़ों के समान दिखते हैं!"
\v 25 यीशु ने फिर से अंधे व्यक्ति की आँखों को छूआ। व्यक्ति ने तुरन्त देखा, और उस पल में वह पूरी तरह से स्वस्थ हो गया! अब वह सब कुछ स्पष्ट रूप से देख सकता था।
\v 26 यीशु ने उस से कहा, "नगर में मत जा!" फिर उन्होंने उस व्यक्ति को उसके घर भेज दिया।
\p
\s5
\v 27 यीशु और शिष्य बैतसैदा छोड़कर कैसरिया फिलिप्पी के पास के गाँवों में गए; रास्ते में उन्होंने उनसे सवाल किया, "लोग मुझे क्या कहते हैं?"
\v 28 उन्होंने कहा, "कुछ लोग कहते हैं कि आप यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले हैं, दूसरे कहते हैं कि आप एलिय्याह भविष्यद्वक्ता हैं और अन्य लोग कहते हैं कि आप पहले के भविष्यद्वक्ताओं में से कोई एक हैं।"
\s5
\v 29 उन्होंने उनसे पूछा, "मेरे बारे में तुम्हारा क्या विचार है? तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?" पतरस ने उनसे कहा, "आप मसीह हैं!"
\v 30 फिर यीशु ने उन्हें चेतावनी दी कि वे किसी से न कहें कि वह मसीह हैं।
\p
\s5
\v 31 फिर यीशु ने उन्हें शिक्षा देना शुरू कर दिया कि वह, मनुष्य के पुत्र, निश्चित रूप से बहुत दुःख उठाएंगे। वह प्राचीनों, महायाजकों, और यहूदी व्यवस्था को पढ़ाने वाले पुरुषों द्वारा अस्वीकृत कर दिए जाएँगे। वह मार भी डाले जाएँगे। लेकिन मरने के तीसरे दिन के बाद वह फिर से जीवित हो जाएँगे।
\v 32 उन्होंने उन्हें यह स्पष्ट रूप से कहा। परन्तु पतरस यीशु को अलग ले गया और इस तरह बात करने के लिए उन्हें डाँटा।
\s5
\v 33 यीशु ने फिर कर अपने शिष्यों को देखा। फिर उन्होंने पतरस को झिड़क कर कहा, "ऐसा सोचने का प्रयास मत कर! शैतान तुझे ऐसा कहने के लिए प्रेरित कर रहा है! इसकी अपेक्षा कि परमेश्वर मुझसे क्या कराना चाहते हैं, तुम चाहते हो कि मैं केवल वही करूँ जो लोग मुझसे चाहते हैं।
\p
\v 34 तब उन्होंने अपने शिष्यों के साथ भीड़ को बुलाया ताकि वे भी उन्हें सुन सकें। उन्होंने उनसे कहा, "यदि तुम में से कोई भी मेरा शिष्य बनना चाहता है, तो तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए, जो तुमको आसानी से जीवित रखे। तुम्हें उन अपराधियों जैसे पीड़ित होने के लिए तैयार रहना चाहिए, जिन्हें अपना क्रूस उठाकर उस स्थान पर ले जाने के लिए तैयार होना चाहिए जहाँ उन्हें क्रूस पर चढ़ाया जाएगा। जो कोई भी मेरा शिष्य बनना चाहता है, उसे यही करना होगा।
\s5
\v 35 तुम्हें ऐसा करना होगा, क्योंकि जो लोग अपना जीवन बचाने का प्रयास करते हैं, और मेरे साथ अपने संबन्ध से इन्कार करते हैं, वे अपना जीवन खो देंगे। जो लोग इसलिए मारे गए हैं कि वे मेरे शिष्य हैं और मनुष्यों को सुसमाचार सुनाते हैं, वे सदा मेरे साथ रहेंगे।
\v 36 लोगों को इस संसार में वह सब कुछ मिल सकता है, जो वे चाहते हैं, परन्तु वे वास्तव में कुछ नहीं प्राप्त कर रहे हैं यदि वे अनन्त जीवन प्राप्त नहीं करते हैं!
\v 37 इस तथ्य के बारे में सावधानी से सोचें कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो लोग परमेश्वर को दे सकते हैं, जिससे कि वे अनन्त जीवन प्राप्त कर पाएँ!
\s5
\v 38 और इस बारे में सोचें: जो लोग यह कहने से इन्कार करते हैं कि वे मेरे हैं, और जो अनेक लोग परमेश्वर से अलग हो गए हैं और अत्यधिक पापी हैं, मेरी बातों को स्वीकार नहीं करते हैं, तो मैं, मनुष्य का पुत्र भी यह कहने से इन्कार कर दूँगा कि वे मेरे लोग हैं, जब मैं पवित्र स्वर्गदूतों के साथ वापस आऊँगा और मेरे पिता की महिमा में होऊँगा।
\s5
\c 9
\p
\v 1 उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, "ध्यान से सुनो! तुम में से कुछ लोग जो इस समय यहाँ हैं, वे परमेश्वर को महान सामर्थ्य के साथ राजा के रूप में प्रकट होता देखेंगे। तुम मरने से पहले उन्हें ऐसा करते देखोगे।
\p
\v 2 छः दिन बाद यीशु ने पतरस, याकूब और याकूब के भाई यूहन्ना को साथ लिया और उन्हें एक ऊँचे पर्वत पर ले गए। जब वे वहाँ ऊपर अकेले थे, तो वे उनको बहुत अलग दिखाई दे रहे थे।
\v 3 उनके कपड़े चमकदार सफेद हो गए। पृथ्वी पर कोई भी उनके वस्त्रों को साफ करके वैसा सफेद नहीं बना सकता था।
\s5
\v 4 दो भविष्यद्वक्ता जो बहुत पहले थे, मूसा और एलिय्याह उनको दिखाई दिए। तब उन दोनों ने यीशु के साथ बाते करना आरंभ कर दिया।
\v 5 थोड़े समय के बाद, पतरस ने कहा, "हे गुरू, यहाँ आना बहुत अच्छा है, इसलिए हमें तीन तम्बुओं का निर्माण करने की अनुमति दो, एक आपके लिए होगा, एक मूसा के लिए होगा, और एक एलिय्याह के लिए होगा!"
\v 6 उसने यह कहा क्योंकि वह कुछ कहना चाहता था, लेकिन उसे नहीं पता था कि क्या कहना है। वह और दूसरे दो शिष्य डर गए थे।
\s5
\v 7 फिर एक चमकीला बादल दिखाई दिया, जिसने उन्हें घेर लिया। परमेश्वर ने उनसे बादल में से कहा, "यह मेरा पुत्र है। यह वही है जिसे मैं प्रेम करता हूँ। इसलिए, उनकी बात सुनो!"
\v 8 जब तीनों शिष्यों ने चारों ओर देखा, तो उन्होंने देखा कि अचानक यीशु उनके साथ अकेले थे, और अब वहाँ कोई और नहीं था।
\p
\s5
\v 9 जब वे पहाड़ से नीचे आ रहे थे, तब यीशु ने उनसे कहा कि जो भी अभी उनके साथ हुआ वह किसी को न बताएँ। उन्होंने कहा, "तुम बाद में उन्हें बता देना, जब मैं, मनुष्य का पुत्र, मरने के बाद जी उठूँगा।"
\v 10 इसलिए उन्होंने दूसरों को इसके बारे में लंबे समय तक नहीं बताया परन्तु आपस में विचार किया इसका अर्थ क्या था जब उन्होंने कहा कि वह मरे हुओं में से जी उठेंगे।
\p
\s5
\v 11 उन्होंने यीशु से पूछा, "जो लोग हमारे नियमों को सिखाते हैं, कहते हैं कि मसीहा के पृथ्वी पर आने से पहले एलिय्याह का पृथ्वी पर वापस आना आवश्यक है?"
\v 12-13 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, "यह सच है कि परमेश्वर ने एलिय्याह के पहले आने की प्रतिज्ञा की है। एलिय्याह तो पहले ही आ चुका है, और हमारे अगुवों ने उसके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया, ठीक जैसे वे करना चाहते थे, जैसे भविष्यद्वक्ताओं ने बहुत पहले कहा था कि वे ऐसा करेंगे, परन्तु मेरे बारे में, मनुष्य के पुत्र के लिए धर्मशास्त्र में बहुत कुछ लिखा हुआ है। धर्मशास्त्र का कहना है कि मुझे बहुत दुःख उठाना होगा और लोग मुझे अस्वीकार करेंगे।
\p
\s5
\v 14 तब यीशु और वे तीनों शिष्य वहाँ पहुँचे, जहाँ दूसरे शिष्य थे। उन्होंने शिष्यों के चारों ओर एक बड़ी भीड़ देखी, और कुछ यहूदी नियमों की शिक्षा देने वाले पुरुष उनके साथ विवाद कर रहे थे।
\v 15 उन्हें आता हुआ देखकर भीड़ बहुत आश्चर्यचकित थी। इसलिए वे दौड़कर उनके पास पहुँचे और उन्हें नमस्कार किया।
\v 16 यीशु ने उनसे पूछा, "तुम किस बारे में विवाद कर रहे हो?"
\s5
\v 17 भीड़ में से एक व्यक्ति ने उन्हें उत्तर दिया, "हे गुरू, मैं अपने पुत्र को यहाँ लाया था कि आप उसे ठीक करें। उसमें एक दुष्ट-आत्मा है जो उसे बात करने में असमर्थ करती है।
\v 18 जब भी आत्मा उस को नियंत्रित करना शुरू करती है, तब उसे नीचे फेंक देती है। वह मुँह से झाग उगलता है, वह अपने दाँतों को एक साथ पीसता है, और वह अकड़ जाता है। मैंने आपके शिष्यों से दुष्ट-आत्मा को निकालने को कहा, परन्तु वे ऐसा करने में समर्थ नहीं हुए।"
\v 19 यीशु ने उन लोगों से कहा "हे अविश्वासी लोगों, तुम मेरे धीरज की परीक्षा करते हो! लड़के को मेरे पास लाओ।"
\s5
\v 20 अतः वे लड़के को यीशु के पास लेकर आए। जैसे ही दुष्ट-आत्मा ने यीशु को देखा, तो उसने लड़के को बुरी तरह से हिलाकर रख दिया, और लड़का जमीन पर गिर गया। वह चारों तरफ लोटने लगा और उसके मुँह से झाग आने लगा।
\v 21 यीशु ने लड़के के पिता से पूछा, "इसे कितना समय हो गया है। उसने उत्तर दिया, "यह तब आरम्भ हुआ जब वह बच्चा था।
\v 22 आत्मा न केवल ऐसा करता है, वरन् वह उसे मारने के लिए प्रायः आग में या पानी में डाल देता है। यदि आप कर सकते हैं तो हम पर दया करो और हमारी सहायता करो!"
\s5
\v 23 यीशु ने उससे कहा, "मैं कर सकता हूँ! परमेश्वर उन लोगों के लिए कुछ भी कर सकते हैं जो उन पर विश्वास करते हैं!"
\v 24 तुरन्त बच्चे के पिता ने चिल्ला कर कहा, "मुझे विश्वास है कि आप मेरी सहायता कर सकते हैं, लेकिन मुझे पक्का विश्वास नहीं है। अधिक दृढ़ता से विश्वास करने में मेरी सहायता करें!"
\v 25 यीशु ने देखा कि भीड़ बढ़ रही थी। उन्होंने दुष्ट-आत्मा को डाँटा: "हे दुष्ट-आत्मा, इस लड़के को सुनने और बात करने में तूने असमर्थ किया है, मैं तुझे बाहर आने के लिए और उसमें फिर से प्रवेश न करने के लिए कहता हूँ!"
\s5
\v 26 दुष्ट-आत्मा ने चिल्लाकर लड़के को हिंसक रूप से हिलाकर रख दिया; दुष्ट-आत्मा ने लड़के का शरीर छोड़ दिया। परन्तु लड़का नहीं हिला। वह एक मरे हुए का सा दिख रहा था। इसलिए अधिकांश लोगों ने कहा, "वह मर चुका है!"
\v 27 यीशु ने उसे हाथ से पकड़ा और उसे उठने में सहायता की। फिर लड़का खड़ा हो गया।
\s5
\v 28 बाद में, जब यीशु और उनके शिष्य अकेले एक घर में थे, तो उन्होंने उनसे पूछा, "हम दुष्ट-आत्मा को बाहर क्यों नहीं निकाल सके?"
\v 29 उन्होंने उनसे कहा, "तुम इस तरह की बुरी आत्मा को प्रार्थना ही से बाहर निकाल सकते हो। दूसरा कोई और रास्ता नहीं है।"
\p
\s5
\v 30 यीशु और उनके शिष्यों ने उस क्षेत्र को छोड़ दिया, तब वे गलील से होकर यात्रा करने लगे। यीशु नहीं चाहते थे कि कोई और जान सके कि वह कहाँ थे।
\v 31 वह अपने शिष्यों को शिक्षा देने के लिए समय चाहते थे। वह उनसे कह रहे थे, "कुछ दिनों में मेरे शत्रु मुझे बन्दी बनाएँगे, और मुझे अन्य मनुष्यों के हाथों में दे दिया जाएगा, ये लोग मुझे मार डालेंगे, लेकिन मरने के बाद तीसरे दिन मैं फिर जीवित हो जाऊँगा!"
\v 32 वे समझ नहीं पा रहे थे कि वह क्या कह रहे थे, और वे उनसे पूछने से डरते थे कि उनके कहने का अर्थ क्या था।
\p
\s5
\v 33 फिर यीशु और उनके शिष्य कफरनहूम लौट आए। जब वे घर में थे, तो उन्होंने उनसे पूछा, "जब तुम यात्रा कर रहे थे, तब तुम क्या बात कर रहे थे?"
\v 34 लेकिन उन्होंने उत्तर नहीं दिया। वे एक दूसरे के साथ विवाद कर रहे थे कि उनमें से कौन सबसे महत्वपूर्ण था।
\v 35 वह बैठ गए, उन्होंने बारह शिष्यों को अपने निकट बुलाया और फिर उनसे कहा, "यदि कोई चाहता है कि परमेश्वर उसे सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण समझे तो उसे स्वयं को छोटा मानकर सबकी सेवा करनी चाहिए।
\s5
\v 36 फिर उन्होंने एक बच्चे को लिया और उसे उनके बीच में खड़ा किया। उन्होंने बच्चे को अपनी बाँहों में लिया और फिर उनसे कहा,
\v 37 "बच्चे को जो लोग इस तरह स्वीकार करते हैं, तो वे मुझसे प्रेम करते हैं, और परमेश्वर मानते हैं कि वे मुझे स्वीकार करते हैं। यह भी सच है कि वे परमेश्वर को भी स्वीकार करते हैं, जिन्होंने मुझे भेजा है।"
\p
\s5
\v 38 यूहन्ना ने यीशु से कहा, "हे गुरू, हम ने देखा है कि एक व्यक्ति लोगों में से दुष्ट-आत्माओं को बाहर आने के लिए विवश कर रहा था। उसने दावा किया कि उसे आपके पास से ऐसा करने का अधिकार था, इसलिए हम ने उसे ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि वह शिष्यों में से नहीं था।"
\v 39 यीशु ने कहा, "उसे ऐसा करने से मत रोकना। क्योंकि मेरे अधिकार के साथ सामर्थ्य के काम करने के बाद कोई भी मेरे बारे में बुरी बातें नहीं कहेगा।
\s5
\v 40 जो लोग हमारा विरोध नहीं कर रहे हैं, वे वही लक्ष्य हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं जो हम कर रहें हैं।
\v 41 परमेश्वर निश्चित रूप से उनको पुरस्कार देंगे जो तुम्हारी किसी भी तरह से सहायता करते हैं, भले ही वे तुम्हें पीने के लिए एक कटोरा पानी दें, क्योंकि तुम मेरे पीछे हो लिए हो, जो मसीह है!
\p
\s5
\v 42 यीशु ने यह भी कहा, "परन्तु यदि तुम उससे पाप करवाओ जो मुझ पर विश्वास करते हैं, तो परमेश्वर तुम्हें कठोर दण्ड देंगे, भले ही वह व्यक्ति इस छोटे बच्चे की तरह सामाजिक रूप से महत्वहीन हो। अगर कोई इनके विश्वास में ठोकर का कारण होता है तो उसकी गर्दन के चारों ओर भारी पत्थर बाँध कर और उसे समुद्र में फेंक दिया जाए। तुम्हारे लिए यह उससे बेहतर होगा कि परमेश्वर तुम्हें उस व्यक्ति को पाप करवाने के लिए दण्ड दे जो मुझ पर विश्वास करता है।
\v 43 इसलिए यदि तुम पाप करने के लिए अपने एक हाथ का उपयोग करना चाहते हो, तो उसका उपयोग न करो! यहाँ तक कि अगर तुमको पाप करने से बचने के लिए अपना हाथ काटकर फेंकना पड़े, तो ऐसा ही करो! यह अच्छा है कि तुम हमेशा जीवित रहो, भले ही तुम पृथ्वी पर बिना एक हाथ के हो। परन्तु यह अच्छा नहीं है कि तुम पाप करो और उसका परिणाम हो कि परमेश्वर तुम्हारे पूरे शरीर को नरक में डाल दे।
\s5
\v 45 यदि तुम अपने पैरों में से एक को पाप करने के लिए काम में लेना चाहते हो, तो उसका उपयोग न करो! यहाँ तक कि अगर तुमको पाप करने से बचने के लिए अपना पैर काट देना है, तो ऐसा ही करो! यह अच्छा है कि तुम हमेशा जीवित रहो, भले ही तुमको पृथ्वी पर रहते हुए अपने पैरों में से एक की कमी हो। परन्तु यह अच्छा नहीं है कि तुम पाप करो और परमेश्वर तुम्हारे पूरे शरीर को नरक में डाल दे।
\s5
\v 47 यदि तुम देखते हो कि तुम्हें पाप करने के लिए बहकाया गया है, तो उन वस्तुओं को देखना बंद करो! यहाँ तक कि अगर तुमको अपनी आँख को बाहर निकालना पड़े और पाप करने से बचने के लिए इसे फेंकना पड़े, तो ऐसा ही करो! सिर्फ एक आँख ही इससे बेहतर है कि परमेश्वर तुम पर शासन करने के लिए सहमत है, इसकी अपेक्षा कि तुम दो आँखों के होते हुए नरक में डाले जाओ।
\v 48 उस जगह में कीड़े सदा लोगों को खाते हैं और आग कभी नहीं बुझती है।"
\p
\s5
\v 49 क्योंकि परमेश्वर हर एक पर आग डालेंगे, जैसे लोग अपने भोजन पर नमक डालते हैं।
\v 50 भोजन पर डालने के लिए नमक उपयोगी होता है, परन्तु यदि उसका स्वाद बिगड़ गया तो फिर यह कैसे नमकीन किया जाएगा। हमें नमक के समान होना हैं जो भोजन को स्वाद देता है और एक दूसरे के साथ शान्ति के साथ जीवन जीना है।"
\s5
\c 10
\p
\v 1 यीशु अपने शिष्यों के साथ उस स्थान से यहूदिया नगर के पार और यरदन नदी के पूर्व की ओर चले गए। जब लोगों की भीड़ फिर से उनके चारों ओर एकत्र हुई, तो उन्होंने फिर से उन्हें उपदेश दिया, जैसा कि वह सामान्यतः करते थे।
\v 2 जब वह उन्हें उपदेश दे रहे थे, कुछ फरीसी उनके पास आए और पूछा, "क्या हमारी व्यवस्था में किसी व्यक्ति को अपनी पत्नी को तलाक देने की अनुमति है?" उन्होंने उनसे इसलिए पूछा ताकि उनके "हाँ" या "न" के उत्तर से उनकी आलोचना कर सकें।
\v 3 उन्होंने उत्तर दिया, "मूसा ने तुम्हारे पूर्वजों को इस बारे में क्या आज्ञा दी?"
\v 4 उनमें से एक ने उत्तर दिया, "मूसा ने आज्ञा दी थी कि कोई पुरुष तलाक के कागज़ात लिख सकता है जिससे कि वह उस स्त्री को छोड़ सके।"
\s5
\v 5 यीशु ने उनसे कहा, "तुम्हारे पूर्वज हठीले होकर अपनी पत्नियों को छोड़ देने में सक्षम होना चाहते थे। यही कारण है कि मूसा ने उस कानून को लिखा था।
\v 6 परन्तु परमेश्वर ने जब मनुष्यों को बनाया, तो लिखा है, 'परमेश्वर ने उन्हें नर और नारी करके बनाया।'
\s5
\v 7 इससे यह भी स्पष्ट होता है कि क्यों परमेश्वर ने कहा, 'जब कोई पुरुष विवाह करता है, तो उसे अपने माता-पिता को छोड़ कर अपनी पत्नी से जुड़ना होगा।
\v 8 वे एक ही व्यक्ति के समान हो जाएँगे। वे अब दो व्यक्तियों के समान नहीं एक तन जैसे होंगे।'
\v 9 क्योंकि यह सच है, एक पुरुष को अपनी पत्नी से अलग नहीं होना चाहिए। परमेश्वर ने उन्हें एक साथ जोड़ा है और वह उन्हें एक साथ रखना चाहते हैं!"
\p
\s5
\v 10 जब यीशु और उनके शिष्य एक घर में अकेले थे, तो शिष्यों ने इस बारे में फिर से उनसे पूछा।
\v 11 उन्होंने उनसे कहा, "परमेश्वर मानते हैं कि जो कोई पुरुष अपनी पत्नी को तलाक दे और दूसरी स्त्री से विवाह करे, वह व्यभिचार करता है।
\v 12 परमेश्वर यह भी मानते हैं कि जो स्त्री अपने पति को तलाक दे और दूसरे पुरुष से विवाह करे, वह व्यभिचार करती है।"
\p
\s5
\v 13 लोग अब बच्चों को यीशु के पास ला रहे थे कि वह उन्हें छूकर आशीर्वाद दें। परन्तु शिष्यों ने उन लोगों को रोका।
\v 14 जब यीशु ने यह देखा तो, वह क्रोधित हो गए। उन्होंने शिष्यों से कहा, "बच्चों को मेरे पास आने दो! उन्हें मना मत करो! जिन लोगों में बच्चों के समान गुण होंगे परमेश्वर उन पर शासन करने के लिए सहमत होंगे।
\s5
\v 15 ध्यान दीजिए: जो लोग बच्चों के समान परमेश्वर को अपने राजा के रूप में नहीं देखते हैं, तो निश्चय है कि परमेश्वर उन पर शासन करने के लिए सहमत नहीं होंगे।"
\v 16 फिर उन्होंने बच्चों को गले लगा कर उन पर हाथ रखा और परमेश्वर से प्रार्थना की कि उनका भला करें।
\p
\s5
\v 17 जब यीशु अपने शिष्यों के साथ फिर से यात्रा पर निकल रहे थे, तो एक व्यक्ति उनके पास दौड़ा आया। उसने यीशु के सामने घुटने टेक कर पूछा, "हे अच्छे गुरू, मुझे अनन्त जीवन पाने के लिए क्या करना चाहिए?"
\v 18 यीशु ने उससे कहा, "तू मुझे अच्छा क्यों कहता है? केवल परमेश्वर ही अच्छे हैं!
\v 19 लेकिन तेरे प्रश्न के उत्तर के लिए, तू मूसा की आज्ञाओं को जानता है: "किसी की हत्या ना करना, व्व्यभिचार नहीं करना, चोरी नहीं करना, झूठा आरोप नहीं लगाना, किसी को धोखा न दो, और अपने पिता और माता का आदर करना।"
\s5
\v 20 उस व्यक्ति ने उनसे कहा, "हे गुरू, जब मैं छोटा था तब ही से मैंने इन सभी आज्ञाओं का पालन किया है।"
\v 21 यीशु ने उसे देखा और उससे प्रेम किया, उन्होंने उससे कहा, "एक बात है जिसे तूने अभी तक नहीं किया, अपने घर जा, अपना सब कुछ बेच दे, और गरीबों को दान कर दे। परिणामस्वरूप, तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा। मैंने जो कुछ कहा है वह तू कर, और मेरे पीछे आ!"
\v 22 जब उसने यीशु के निर्देशों को सुना, तो वह मनुष्य निराश हो गया। वह बहुत दुःखी हुआ, क्योंकि वह बहुत धनवान था।
\s5
\v 23 यीशु ने आस-पास के लोगों को देखा। फिर अपने शिष्यों से कहा, "जो धनी है उन लोगों के लिए बहुत कठिन है कि परमेश्वर उन पर शासन करे।"
\v 24 उन्होंने जो कुछ कहा शिष्य उसके द्वारा उलझन में थे। यीशु ने फिर कहा, "हे मेरे प्रिय मित्रों, किसी का अपने ऊपर परमेश्वर द्वारा शासन करने के लिए सहमत होना बहुत कठिन है।
\v 25 वास्तव में, एक बहुत बड़े जानवर जैसे कि एक ऊँट का सुई के नाके में प्रवेश करना सरल है, परन्तु धनवान लोगों के लिए यह स्वीकार करना आसान नहीं होगा कि परमेश्वर उन पर शासन करे।"
\s5
\v 26 शिष्य बहुत चकित थे। इसलिए उन्होंने एक दूसरे से कहा, "यदि ऐसा है, तो कोई नहीं बच पाएगा!"
\v 27 यीशु ने उनको देखा और फिर कहा, "हाँ, लोगों के लिए स्वयं को बचाना असंभव है! परन्तु परमेश्वर निश्चय ही उन्हें बचा सकते हैं, क्योंकि परमेश्वर कुछ भी कर सकते हैं!"
\v 28 पतरस ने कहा, "देखो, हम ने सब कुछ छोड़ दिया है और आपके पीछे हो लिए हैं।"
\s5
\v 29 यीशु ने उत्तर दिया, "मैं चाहता हूँ कि तुम यह जान लो: जिन लोगों ने अपने घर, अपने भाइयों, अपनी बहनों, अपने पिता, अपनी माता, अपने बच्चों, या अपनी भूमि को मेरे लिए और सुसमाचार के लिए छोड़ दिया है,
\v 30 वे इस जीवन में जो कुछ त्याग चुके हैं उससे सौ गुणा अधिक प्राप्त करेंगे। इसमें घर और प्रिय लोगों के रूप में भाई, बहन, माँ और बच्चे, और भूमि आदि सब होंगे। इसके अतिरिक्त, लोग उन्हें पृथ्वी पर सताएँगे क्योंकि वे मुझ पर विश्वास करते हैं, परन्तु भविष्य में वे अनन्त जीवन प्राप्त करेंगे।
\v 31 लेकिन मैं तुम सबको चेतावनी देता हूँ: जो लोग स्वयं को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं, वे भविष्य में अयोग्य होंगे, और जो अब स्वयं को अयोग्य मानते हैं वह भविष्य में बहुत महत्वपूर्ण होंगे!"
\p
\s5
\v 32 कुछ दिन बाद यीशु और उनके शिष्य यरूशलेम को जा रहे थे। यीशु उनसे आगे चल रहे थे। शिष्य आश्चर्यचकित थे और उनके साथ चल रहे अन्य लोग डरे हुए थे। वह बारह शिष्यों को अकेले अपने साथ एक स्थान में ले गए। तब उन्होंने उन्हें फिर से बताना शुरू किया कि उनके साथ क्या होने वाला है; उन्होंने कहा,
\v 33 "ध्यान से सुनो, हम यरूशलेम को जा रहे हैं, वहाँ महायाजकों और नियमों को सिखाने वाले पुरूष मुझ, मनुष्य के पुत्र को बन्दी बनाएँगे और घोषित करेंगे कि मुझे मरना होगा, तब वे मुझे रोमी अधिकारियों के अधीन कर देंगे।
\v 34 उनके लोग मुझे मारेंगे और मुझ पर थूकेंगे। वे मुझे अपमानित करेंगे, और फिर वे मुझे मार डालेंगे। परन्तु उसके बाद तीसरे दिन मैं फिर से जीवित हो जाऊँगा!"
\p
\s5
\v 35 रास्ते में, याकूब और यूहन्ना ने, जो जब्दी के दो पुत्र थे, यीशु से कहा, "हे गुरू, हम चाहते हैं कि आप हमारे लिए कुछ करें!"
\v 36 यीशु ने उनसे कहा, "तुम मुझसे क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए करूँ?"
\v 37 उन्होंने यीशु से कहा, "जब आप अपने राज्य में शासन करते हैं, तो हम में से एक को अपने दाहिनी ओर और एक को अपनी बाईं ओर बैठाएँ।"
\s5
\v 38 परन्तु यीशु ने उनसे कहा, "तुम जो माँग रहे हो, वह तुम नहीं समझते।" फिर यीशु ने उनसे पूछा, "क्या तुम उस पीड़ा को सह सकते हो, जिससे मैं पीड़ित होने वाला हूँ? क्या तुम उस प्रकार की मृत्यु से मर सकते हो, जिससे मैं मरने वाला हूँ?"
\v 39 उन्होंने कहा, "हाँ, हम ऐसा कर सकते हैं!" तब यीशु ने उनसे कहा, "यह सच है कि जैसे मुझे भुगतना पड़ेगा तुम भी भुगतोगे, और वे तुम को भी मार डालेंगे, जैसे वे मुझे मार डालेंगे।
\v 40 परन्तु मैं नहीं चुन सकता कि कौन मेरे साथ में बैठेगा। परमेश्वर उन स्थानों को उन लोगों को दे देंगे जिन्हें उन्होंने पहले से ही चुन लिया है।"
\p
\s5
\v 41 दूसरे दस शिष्यों ने बाद में सुना कि याकूब और यूहन्ना ने क्या अनुरोध किया था। इसलिए वे उन दो शिष्यों से अप्रसन्न थे।
\v 42 फिर यीशु ने उन सब को एक साथ बुलाया और कहा, "तुम जानते हो कि राजाओं और अन्य जन जो लोगों पर शासन करते हैं, वे इस बात का आनंद उठाते हैं कि वे शक्तिशाली हैं। तुम यह भी जानते हो कि उनके अधिकारी दूसरों को आज्ञा देना पसंद करते हैं।
\s5
\v 43 परन्तु तुम उनके जैसे मत बनो! इसके विपरीत, तुम में जो महान बनना चाहता है, उसके लिए आवश्यक है कि वह पहले दास बने।
\v 44 इसके अतिरिक्त, यदि तुम में से कोई चाहता है कि परमेश्वर उसे सबसे महत्वपूर्ण माने, तो उसे तुम लोगों के साथ दास के समान काम करे।
\v 45 मैं, मनुष्य का पुत्र, सेवा करवाने के लिए नहीं आया हूँ। इसके विपरीत, मैं दूसरों की सेवा करने और कई लोगों के लिए अपना जीवन देकर उनको मुक्त करने के लिए आया हूँ।"
\p
\s5
\v 46 यरूशलेम के रास्ते में, यीशु और शिष्य यरीहो के पास आए। फिर, जब वे एक बड़ी भीड़ के साथ यरीहो छोड़ रहे थे, एक अंधा व्यक्ति जो विनम्रता से पैसे माँगता था सड़क के पास बैठा था। उसका नाम बरतिमाई था, और उसके पिता का नाम तिमाई था।
\v 47 जब उसने लोगों को यह कहते सुना कि नासरत के यीशु वहाँ से जा रहे हैं, तो वह चिल्लाया, "हे यीशु! आप जो मसीह हो, राजा दाऊद के पुत्र, मुझ पर दया करो!"
\v 48 बहुत से लोगों ने उसे डाँटा और उससे कहा चुप होजा। परन्तु वह और अधिक चिल्लाया, "आप मसीह, जो राजा दाऊद के वंश से आए हो, मुझ पर दया करो!"
\s5
\v 49 यीशु रुके और कहा, "उसे बुलाओ!" उन्होंने अंधे व्यक्ति को कहा, "यीशु तुझे बुला रहे हैं! तो खुश हो और उठ और आ!"
\v 50 उसने कूदते हुए अपने कपड़े को फेंक दिया, और वह यीशु के पास आया।
\s5
\v 51 यीशु ने उससे पूछा, "तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ?" अंधे व्यक्ति ने उनसे कहा, "हे गुरू, मैं फिर से देखना चाहता हूँ!"
\v 52 यीशु ने उस से कहा, "मैं तुझे स्वस्थ कर रहा हूँ क्योंकि तू मुझ पर विश्वास करता है। इसलिए तू जा सकता है!" वह तुरंत देखने लगा। और वह सड़क पर यीशु के साथ चलने लगा।
\s5
\c 11
\p
\v 1 जब यीशु और उनके शिष्य यरूशलेम के निकट आए, तो वे जैतून पहाड़ के पास बैतफगे और बैतनिय्याह नगर में आए। यीशु ने अपने दो शिष्यों को बुलाया
\v 2 और उनसे कहा, "उस गाँव में जाओ जो हमारे सामने है, जैसे ही तुम प्रवेश करोगे तो तुम्हें एक गधे का बच्चा बंधा हुआ दिखाई देगा जिस पर कभी भी कोई सवार नहीं हुआ है। उसे खोलकर मेरे पास ले आओ।
\v 3 यदि कोई तुमसे कहता है, 'तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?' तो उनसे कहना, 'प्रभु को इसके उपयोग की आवश्यकता है। जैसे ही उन्हें इसकी आवश्यकता नहीं होगी वह इसे किसी व्यक्ति के साथ यहाँ वापस भेज देंगे।'
\s5
\v 4 इसलिए दोनों शिष्य चले गए और उन्हें एक गधे का बच्चा मिल गया। वह एक घर के द्वार के पास था, जो सड़क के पास था। तब उन्होंने उसे खोल लिया।
\v 5 वहाँ के कुछ लोगों ने उनसे कहा, "तुम उस गधे के बच्चे को क्यों खोल रहे हो?"
\v 6 जो भी यीशु ने कहा था उन्होंने उनको बताया, इसलिए लोगों ने उन्हें गधे का बच्चा ले जाने की अनुमति दी।
\s5
\v 7 दोनों शिष्य गधे का बच्चा यीशु के पास लाए और उस पर कपड़े डाले और उनके बैठने के लिए उसे तैयार किया।
\v 8 कई लोगों ने अपने कपड़ों को उसके सामने सड़क पर फैला दिया। दूसरों ने पास के खेतों में से खजूर के पेड़ों से शाखाएँ तोड़ लीं और उन्हे सड़क पर फैला दिया।
\v 9 जो लोग उनके सामने और उनके पीछे जा रहे थे, वे सब चिल्लाकर कह रहे थे, "परमेश्वर की स्तुति हो!" और "प्रभु इसे आशीष दे जो उनके अधिकार के साथ आता है।"
\v 10 उन्होंने यह भी कहा, "जब आप हमारे पूर्वज राजा दाऊद की तरह शासन करते हो तो धन्य हो!" और "परमेश्वर की स्तुति करो जो सबसे ऊँचे स्वर्ग में है!"
\p
\s5
\v 11 यीशु ने यरूशलेम में उनके साथ प्रवेश किया, और फिर वह मंदिर के आँगन में गए। उन्होंने चारों ओर सब कुछ देखने के बाद, वह शहर छोड़ दिया, क्योंकि दोपहर का समय समाप्त होता जा रहा था। वह बारह शिष्यों के साथ बैतनिय्याह लौट आए।
\p
\v 12 अगले दिन, जब यीशु और उनके शिष्य बैतनिय्याह से निकलकर जा रहे थे, तो उसको भूख लगी।
\s5
\v 13 उन्होंने कुछ दूरी पर एक अंजीर का वृक्ष देखा, उसकी पत्तियाँ भी उस पर थी, इसलिए वह यह देखने गए कि क्या उस में कोई फल मिल सकता है या नहीं। परन्तु जब वह उसके पास आए, तो उस पर कोई फल नहीं पाया, क्योंकि अभी अंजीरों के आने का मौसम नहीं था।
\v 14 उन्होंने पेड़ से कहा, "कोई भी अब से फिर कभी तेरे फल नहीं खाएगा।" और शिष्यों ने यह सुना।
\p
\s5
\v 15 यीशु और उनके शिष्य यरूशलेम में वापस गए और मंदिर के आँगन में प्रवेश किया। उन्होंने लोगों को बलिदान के लिए पशुओं को बेचते और खरीदते देखा। उन्होंने मंदिर के आँगन से उन लोगों को बाहर किया। उन्होंने रोमी सिक्कों के बदले मंदिर के कर के पैसे बदलने वालों के तख्त भी पलट दिए। और उन्होंने उन लोगों के पीढ़ों को उखाड़ दिया जो बलिदान के लिए कबूतर बेच रहे थे।
\v 16 उन्होंने किसी भी व्यक्ति को मंदिर के अन्दर कुछ भी बेचने के लिए ले जाने की अनुमति नहीं दी।
\s5
\v 17 उन्होंने उन लोगों को बताने के लिए उनसे कहा, "यह धर्मशास्त्र में लिखा है कि परमेश्वर ने कहा था, 'मैं अपने भवन को एक ऐसा घर बनाना चाहता हूँ जहाँ सब जातियों के लोग प्रार्थना कर सकते हैं, परन्तु तुमने इसे डाकुओं की गुफा के समान बना दिया है जहाँ लुटेरे छिपते हैं।"
\v 18 महायाजकों और यहूदी नियमों की शिक्षा देने वाले पुरुषों ने बाद में सुना कि उसने क्या किया है। तो वे योजना बनाने लगे कि वे उसे कैसे मार सकते हैं, लेकिन उन्हें डर था क्योंकि वे यह जान गए कि वह जो सिखा रहा था, उससे भीड़ चकित थी।
\v 19 हर शाम को यीशु और उनके शिष्य शहर से चले जाया करते थे।
\p
\s5
\v 20 अगली सुबह जब वे यरूशलेम की तरफ जा रहे थे, तो उन्होंने देखा कि जिस अंजीर के पेड़ को यीशु ने शाप दिया था, वह पूरी तरह से सूख गया था।
\v 21 पतरस ने याद किया कि यीशु ने अंजीर के पेड़ से क्या कहा था और उसने यीशु से कहा, "हे गुरू, अंजीर के पेड़ को देखो। वह सूख गया है!"
\s5
\v 22 यीशु ने उत्तर दिया, "परमेश्वर पर विश्वास करो!
\v 23 यह भी ध्यान रखो: अगर कोई इस पर्वत से कहता है, 'उठ और जाकर समुद्र में गिर!' और अगर वह इस बात पर सन्देह नहीं करता है कि यह होगा, इसलिए यदि वह मानता है कि ऐसा होगा, तो परमेश्वर उसके लिए ऐसा करेंगे।
\s5
\v 24 इसलिए मैं तुमसे से कहता हूँ, जब तुम प्रार्थना करते समय किसी वस्तु के लिए परमेश्वर से कहते हो, तो विश्वास करो कि तुम प्राप्त करोगे, और यदि तुम विश्वास करते हो, तो परमेश्वर तुम्हारे लिए ऐसा ही करेंगे।
\v 25 अब, मैं भी तुमसे यह कहता हूँ: जब भी तुम प्रार्थना करते हो, यदि तुम उन लोगों के प्रति क्रोधित हो, जिन्होंने तुम्हें नुकसान पहुँचाया है, तो उन्हें क्षमा करो, कि तुम्हारा पिता जो स्वर्ग में है, वह भी तुम्हारे पापों को क्षमा करें।
\p
\s5
\v 27 यीशु और उनके शिष्य यरूशलेम में फिर से मंदिर के आँगन में आए। जब यीशु वहाँ टहल रहे थे, तो एक समूह में महायाजक, और यहूदी नियमों को सिखाने वाले कुछ लोग, और प्राचीन मिलकर उनके पास आए।
\v 28 उन्होंने उनसे कहा, "आप किस अधिकार से इन बातों को कर रहे हैं? आपने कल यहाँ जो किया, उन कामों के लिए आपको किसने अधिकार दिया है?"
\s5
\v 29 यीशु ने उनसे कहा, "मैं तुमसे से एक प्रश्न पूछता हूँ, यदि तुम मुझे उत्तर देते हो, तो मैं तुम्हें बताता हूँ कि मुझे ऐसे काम करने के लिए किसने अधिकार दिया है।
\v 30 क्या यह परमेश्वर थे जिन्होने यूहन्ना को भेजा था कि उसके पास आने वाले लोगों को बपतिस्मा दे या यह लोग ही थे जिन्होंने उसे यह अधिकार दिया था?"
\s5
\v 31 वे आपस में कहने लगे कि उन्हें क्या उत्तर देना चाहिए। उन्होंने एक दूसरे से कहा, "अगर हम कहते हैं कि वह परमेश्वर है जिन्होंने उसे अधिकार दिया था, तो वह हमें कहेंगे, 'फिर जो यूहन्ना ने कहा था, तुमने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया!'
\v 32 दूसरी ओर, "वे यूहन्ना के बारे में यह कहने से डरते थे कि अगर हम कहते हैं कि यह लोग ही हैं जिन्होंने यूहन्ना को अधिकार दिया था, तो हमारे साथ क्या होगा? क्योंकि वे जानते थे कि लोग उन पर बहुत क्रोधित होंगे। उन्हें पता था कि लोग वास्तव में मानते थे कि यूहन्ना एक भविष्यद्वक्ता था जिसे परमेश्वर ने भेजा था।
\v 33 उन्होंने उत्तर दिया, "हम नहीं जानते कि यूहन्ना ने किससे अपना अधिकार प्राप्त किया था।" फिर यीशु ने उनसे कहा, "क्योंकि तुमने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया, इसलिए मैं भी तुम्हें नहीं बताऊँगा कि मुझे ऐसे काम करने का अधिकार किसने दिया है।"
\s5
\c 12
\p
\v 1 तब यीशु ने उन्हें एक दृष्टान्त सुनाया किय। उन्होंने कहा, "एक व्यक्ति ने दाख की बारी लगाई, उसने उसके चारों ओर एक बाड़ा भी बनाया उसने अंगूर के रस को इकट्ठा करने के लिए एक पत्थर का कुण्ड बनाया। उसने अपने बगीचे की रक्षा करने के लिए एक ऊँचा स्थान बनाया। उसने किसानों को खेती करने के लिए रखा। और फिर वह किसी दूसरे देश में चला गया।
\v 2 जब अंगूर की फसल निकालने का समय आया, तो दाख की बारी के मालिक ने एक दास को अपनी दाख की बारी के किसानों के पास भेजा, जिन्होंने उस दाख की बारी को किराए पर लिया था, क्योंकि वह दाख की बारी से उत्पन्न उन अंगूरों से अपना भाग लेना चाहता था।
\v 3 जब वह दास आया, तो उन्होंने उसे पकड़ा और मारा पीटा, और उन्होंने उसे कोई फल नहीं दिया। तब उन्होंने उसे भगा दिया।
\s5
\v 4 बाद में मालिक ने एक और दास को उनके पास भेजा। परन्तु उन्होंने उसको सिर पर मारा और उसे बहुत दुःख दिया, जिसके लिए उन्हें लज्जा आनी चाहिए।
\v 5 बाद में मालिक ने फिर से एक और दास भेजा। उस व्यक्ति को किसानों ने मार डाला। उन्होंने कई अन्य दासों को भी परेशान किया, जिनको मालिक ने भेजा था। कुछ को मारा पीटा और कुछ को मार दिया।
\s5
\v 6 मालिक के पास अभी भी एक अन्य व्यक्ति था, उसका पुत्र, जिसे वह बहुत प्रेम करता था। इसलिए उसने अपने पुत्र को उनके पास भेजा, क्योंकि उसने सोचा कि वे उसका सम्मान करेंगे।
\v 7 लेकिन जब किसानों ने उसके बेटे को आते देखा, तो उन्होंने एक दूसरे से कहा, देखो! यहाँ मालिक का पुत्र आता है, जो कुछ दिनों में दाख की बारी का उत्तराधिकारी होगा! इसलिए हम उसे मार डालें ताकि यह दाख की बारी हमारी हो जाए!
\s5
\v 8 उन्होंने मालिक के पुत्र को पकड़ लिया और उसे मार डाला। तब उन्होंने दाख की बारी के बाहर उसके शरीर को फेंक दिया।
\v 9 क्या तुम जानते हो कि दाख की बारी का स्वामी अब क्या करेगा? वह आएगा और उन बुरे लोगों को मार डालेगा, जिन्होंने उसकी दाख की बारी को किराए पर लिया था। तब वह इसकी देखभाल करने के लिए किसी और की व्यवस्था करेगा।
\s5
\v 10 अब इन शब्दों के बारे में ध्यान से सोचें, जिसे तुमने धर्मशास्त्र में पढ़ा है: "इमारत का निर्माण करने वाले पुरूषों ने एक पत्थर को काम में लेने से इन्कार कर दिया था। परन्तु परमेश्वर ने उसी पत्थर को यथास्थान रखा है, और वह पत्थर इमारत में सबसे महत्वपूर्ण पत्थर बन गया है!
\v 11 परमेश्वर ने यह किया है, और हम इसे देखकर आश्चर्यचकित हैं।"
\p
\v 12 तब यहूदी अगुवों ने यह जान लिया कि यीशु उन दुष्ट किसानों की कहानी सुनाकर हम पर आरोप लगा रहे थे। इसलिए वे उन्हें बन्दी बनाना चाहते थे परन्तु वे डरते थे कि यदि वे ऐसा करते हैं तो लोगों की भीड़ क्या करेगी। इसलिए उन्होंने यीशु को छोड़ दिया और चले गए।
\p
\s5
\v 13 यहूदी अगुवों ने यीशु के पास कुछ फरीसियों और कुछ सदस्यों को भेजा, जो हेरोदेस एन्तिपास का समर्थन करते थे। वे यीशु को धोखा देना चाहते थे; वे उनसे कुछ गलत कहलवाना चाहते थे, जिससे कि वे लोगों को दिखा सकें कि उन्होंने गलत कामों को सिखाया और वे उन पर आरोप लगा सकें।
\v 14 उनके आने के बाद, उन्होंने उनसे कहा, "हे गुरू, हम जानते हैं कि आप सत्य को सिखाते हैं। हम यह भी जानते हैं कि आप इसके बारे में चिंतित नहीं हैं कि लोग आपके बारे में क्या कहते हैं, भले ही किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति को आप क्या कहते हैं, इसकी अपेक्षा, आप सच्चाई से सिखाते हैं कि परमेश्वर क्या करना चाहते हैं। इसलिए हमें बताएँ कि आप इस विषय के बारे में क्या सोचते हैं: क्या यह सही है कि हम रोमी सरकार को कर दें या नहीं? क्या हमें करों का भुगतान करना चाहिए या हमें भुगतान नहीं करना चाहिए?"
\v 15 यीशु जानते थे कि वे वास्तव में यह नहीं जानना चाहते थे कि परमेश्वर क्या करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने उनसे कहा, "मुझे पता है कि तुम मुझसे कुछ गलत बुलवाने का प्रयास कर रहे हो, जिसके लिए तुम मुझ पर आरोप लगा सको। लेकिन मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर भी दूँगा। मुझे एक सिक्का दो कि मैं उसे देख सकूँ।"
\s5
\v 16 उन्होंने यीशु को एक सिक्का लाकर दिया, यीशु ने उनसे पूछा, "इस सिक्के पर किसका चित्र है? और इस पर किसका नाम है?" उन्होंने उत्तर दिया, "यह एक कैसर की तस्वीर और उसी का नाम है।"
\v 17 यीशु ने उनसे कहा, "यह सही है, तो जो कैसर का है वह कैसर को दो, और जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर को दो।" जो उन्होंने कहा उससे वे पूरी तरह से चकित थे।
\p
\s5
\v 18 सदूकियों के समूह से जुड़े पुरुष अन्य यहूदियों के समान नहीं मानते थे कि लोग मरने के बाद फिर से जीवित हो जाते हैं। कुछ सदूकियों ने यीशु के पास आकर पूछा,
\v 19 "हे गुरू, मूसा ने यहूदियों के लिए यह लिखा है कि यदि किसी का भाई मर जाए और बिना बच्चों के पत्नी को छोड़ जाए, तो उसके भाई को उस विधवा से विवाह करके अपने भाई के लिए वंश पैदा करना चाहिए।
\s5
\v 20 इसलिए यहाँ एक उदाहरण है। एक परिवार में सात भाई थे। सबसे बड़े भाई ने एक स्त्री से विवाह किया, परन्तु वह और उसकी पत्नी को बच्चे नहीं हुए। तब बाद में उस व्यक्ति की मृत्यु हो गई।
\v 21 दूसरे भाई ने भी उस महिला से विवाह किया, लेकिन वह भी बच्चे को जन्म नहीं दे पाया। बाद में उसकी भी मृत्यु हो गई। तीसरे भाई ने अपने दूसरे भाइयों के समान किया था, परन्तु वह भी बच्चे को पैदा नहीं कर पाया, और उसकी भी मृत्यु हो गई।
\v 22 अंततः सभी सात भाइयों ने उस स्त्री से एक के बाद एक विवाह किया, परन्तु किसी के पास कोई बच्चा नहीं था, और एक के बाद एक वे मर गए। बाद में महिला की भी मृत्यु हो गई।
\v 23 अब उस दिन जब लोग मरने के बाद फिर से जीवित हो जाएँगे, तब वह महिला किसकी पत्नी होगी? ध्यान रखें कि उसकी सभी सात भाइयों से शादी हुई है!"
\s5
\v 24 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "तुम निश्चय ही गलत हो, तुम्हें नहीं पता है कि धर्मशास्त्र ने इस बारे में क्या कहा है। तुम लोग फिर से जीवित करने के लिए परमेश्वर की शक्ति को नहीं समझते हो।
\v 25 वह स्त्री, उन भाइयों में से किसी की पत्नी नहीं होगी, क्योंकि जब लोग फिर से जीवित हो जाते हैं, तो पति पत्नी होने की अपेक्षा, वे स्वर्ग में स्वर्गदूतों के समान होंगे। स्वर्गदूत विवाह नहीं करते हैं।
\s5
\v 26 मुझे उन लोगों के बारे में बात करने दो जो मरने के बाद फिर से जीवित होंगे। उस पुस्तक में जिसे मूसा ने लिखा था, उसने उन लोगों के बारे में लिखा है जो मर चुके हैं; मुझे विश्वास है कि तुमने इसे पढ़ा है। जब मूसा जलती हुई झाड़ी को देख रहा था, तो परमेश्वर ने उससे कहा, 'मैं वही परमेश्वर हूँ, जिसकी आराधना अब्राहम, इसहाक और याकूब ने की है।'
\v 27 अब ये मृत व्यक्ति नहीं हैं जो परमेश्वर की आराधना करते हैं। यह उन लोगों को जीवित करते हैं जो उनकी आराधना करते हैं। इसलिए जब तुम कहते हो कि मृत लोग फिर से जीवित नहीं होते हैं, तो तुम बहुत गलत हो।"
\p
\s5
\v 28 एक व्यक्ति जो यहूदी नियमों को सिखाता है वह उनकी चर्चा सुनता है। वह जानता था कि यीशु ने सदूकियों के सवाल का बहुत अच्छा उत्तर दिया था। इसलिये उसने आगे बढ़कर यीशु से पूछा, "कौन सी आज्ञा सबसे महत्वपूर्ण है?"
\v 29 यीशु ने उत्तर दिया, "सबसे महत्वपूर्ण आज्ञा यह है: हे इस्राएल 'सुन, हमारा परमेश्वर यहोवा एक ही प्रभु है।
\v 30 तुम्हें अपने परमेश्वर से अपनी संपूर्ण इच्छा, भावना, विचारों और कर्मों से प्रेम करना चाहिए!
\v 31 अगली सबसे महत्वपूर्ण आज्ञा यह है कि 'तुम अपने चारों ओर के लोगों को उतना प्रेम करो जितना अपने आप से प्रेम करते हो।' कोई अन्य आज्ञा इन दोनों से अधिक महत्वपूर्ण नहीं है!"
\s5
\v 32 उस शिक्षक ने यीशु से कहा, "हे गुरू, आप ने सही कहा कि परमेश्वर ही एकमात्र प्रभु है, और कोई परमेश्वर नहीं है।
\v 33 आपने यह भी सही कहा है कि जो कुछ भी हम सोचते हैं, और जो कुछ हम करते हैं, हम जो चाहते हैं और भावना रखते हैं, उसमें हमें परमेश्वर से प्रेम करना चाहिए। और आपने सही कहा है कि हमें उन लोगों से जिनके साथ हम संपर्क में आते हैं जितना हम अपने आप से प्रेम करते हैं उनसे भी प्रेम करना चाहिए। और आपने यह भी सही कहा है कि परमेश्वर को पशुओं की बलि या अन्य बलिदानों को जलाने से ज्यादा इन बातों के मानने से प्रसन्नता होती है।"
\v 34 यीशु ने देखा कि इस व्यक्ति ने बुद्धिमानी से उत्तर दिया है इसलिए उन्होंने उससे कहा, "तू उनके निकट है, जहाँ परमेश्वर तुझ पर शासन करने के लिए सहमत होंगे।" उसके बाद, यहूदी अगुवे उनसे और अधिक छल के प्रश्न पूछने से डरते थे।
\p
\s5
\v 35 फिर, जब यीशु मंदिर के आँगन में उपदेश दे रहे थे, तो उन्होंने लोगों से कहा, "नियम सिखाने वाले लोग जो कहते हैं - और वे सही कह रहे हैं कि मसीह दाऊद का पुत्र है?
\v 36 पवित्र आत्मा ने दाऊद को मसीह के बारे में कहने के लिए प्रेरित किया, 'परमेश्वर ने मेरे प्रभु से कहा, 'मेरे दाहिने हाथ बैठ, जहाँ मैं तुझे सबसे अधिक सम्मान दूँगा! यहाँ बैठ कि मैं पूरी तरह से तेरे शत्रुओं को तेरे पाँव के नीचे कर दूँ!"
\v 37 दाऊद के इस भजन में मसीह को 'प्रभु' के रूप में संदर्भित करता है। तो व्यवस्था के शिक्षक कैसे कह सकते हैं - कि मसीह दाऊद का पुत्र हो सकता है?" बहुत से लोग यीशु की शिक्षाओं को को सहर्ष से सुनते थे।
\p
\s5
\v 38 जब यीशु लोगों को सिखा रहे थे, तो उन्होंने उनसे कहा," सावधान रहो कि तुम उन लोगों की तरह काम न करो जो यहूदी नियमों को सिखाते हैं। वे लोगों से सम्मान पाना उनको अच्छा लगता है, इसलिए वे लम्बे वस्त्रों को पहनते हैं और वे चारों ओर घूमते हैं और लोगों को यह दिखाते हैं कि वे कितने महत्वपूर्ण हैं। उन्हें यह भी अच्छा लगता हैं कि लोग बाजारों में सम्मान के साथ उनका अभिवादन करें।
\v 39 सभाओं में सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में बैठना उन्हें अच्छा लगता है। त्योहारों में, उन्हें ऐसे स्थानों में बैठना अच्छा लगता है जहाँ सबसे अधिक सम्मानित लोग बैठते हैं।
\v 40 वे धोखा देकर विधवाओं के घरों और उनकी संपत्तियों को ले लेते हैं। और वे दिखाते हैं कि वे सार्वजनिक रूप से लम्बे समय तक प्रार्थना करते हुए वे अच्छे होने का ढोंग करते हैं। परमेश्वर निश्चय ही उन्हें गंभीर दण्ड देंगे!"
\p
\v 41 तब यीशु परमेश्वर के भवन में दान पात्रों के सामने बैठ गए, जिसमें लोग अपनी भेंट डालते थे। जब वह वहाँ बैठे थे, तो उन्होंने देखा कि लोग वहाँ एक पात्र में पैसे डाल रहे हैं। कई धनवानों लोगों ने बहुत पैसे डाले।
\v 42 तब एक गरीब विधवा आई और दो छोटे तांबे के सिक्के डाले, जिसका बहुत कम मूल्य था।
\v 43-44 यीशु ने अपने शिष्यों को अपने आस-पास बुलाया और उनसे कहा, "सच्चाई यह है कि उन लोगों के पास बहुत पैसा है, परन्तु इन्होंने इसका एक छोटा भाग दिया। यह महिला, जो बहुत गरीब है, अपनी सारी पूंजी दान कर दी, जिससे उसको आज की आवश्यक चीज़ों के लिए भुगतान करना था। इसलिए इस गरीब विधवा ने अन्य सब की तुलना में दानपात्र में अधिक धन डाल दिया है!"
\s5
\c 13
\p
\v 1 जब यीशु मंदिर से होकर जा रहे थे, तो उनके शिष्यों में से एक ने उनसे कहा, "हे गुरू, देखो ये विशाल पत्थर कितने आश्चर्यजनक हैं और यह इमारतें कितनी अद्भुत हैं!"
\v 2 यीशु ने उनसे कहा, "हाँ, यह इमारतें जो तुम देख रहे हो बहुत अच्छी हैं, परन्तु मैं तुम्हें उनके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ। वे पूरी तरह से नष्ट हो जाएँगीं। इस मंदिर में एक भी पत्थर दूसरे के ऊपर नहीं रहेगा।"
\p
\s5
\v 3 जब वे मंदिर से जैतून के पहाड़ पर पहुँचे, तो यीशु बैठ गए। जब पतरस, याकूब, यूहन्ना और अन्द्रियास उनके साथ अकेले थे, तो उन्होंने यीशु से पूछा,
\v 4 "हमें बताओ, यह कब होगा? हमें यह कैसे पता चलेगा कि यह बातें होने वाली हैं?"
\s5
\v 5 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "सावधान रहो कि कोई तुम्हें धोखा न दे!
\v 6 बहुत से लोग आएँगे और कहेंगे कि मैंने उन्हें भेजा है। वे कहेंगे, 'मैं मसीह हूँ!' वे कई लोगों को धोखा देंगे।
\s5
\v 7 जब तुम युद्धों में लड़ रहे सैनिकों की आवाज़ सुनो, या जब तुम युद्ध के बारे में समाचार सुनो, तो परेशान मत होना। ये बातें निश्चित रूप से होंगी, परन्तु जब ऐसा होता है, तो यह नहीं सोचना कि परमेश्वर उसी समय सब योजनाओं को पूरा करेंगे।
\v 8 विभिन्न देशों में रहने वाले समूह एक दूसरे से युद्ध करेंगे, और विभिन्न राजा और अगुवे एक दूसरे से युद्ध करेंगे। विभिन्न स्थानों पर भूकंप आएँगे, और अकाल पड़ेगा। फिर भी, जब यह बातें होती हैं, तो लोग केवल पीड़ित होने लगेंगे। यह आरम्भ की बातें जब वे पीड़ित होते हैं, ऐसी होंगी जैसे एक महिला को प्रसव के समय हो रही पहली पीड़ा, जो एक बच्चे को पैदा करने वाली है। इसके बाद उन्हें बहुत अधिक भुगतना होगा।
\p
\s5
\v 9 उस समय जो लोग तुम्हारे साथ करेंगे उसके लिए तैयार रहो। वे तुम्हें गिरफ्तार करेंगे और अधिकारियों के समूह के समक्ष तुम पर मुकदमा चलाएँगे। लोग तुम्हें विभिन्न सभाओं में मारेंगे वे उच्च सरकारी प्राधिकारियों की उपस्थिति में तुम पर मुकदमेबाजी करेंगे। जिसके परिणामस्वरूप, तुम उन्हें मेरे बारे में बताओगे।
\v 10 इससे पहले कि परमेश्वर ने जो योजना बनाई है वह पूरी हो जाए, मेरे विश्वासियों के लिए आवश्यक है कि वे सब जातियों में सुसमाचार सुना दें।
\s5
\v 11 जब लोग तुम्हें बन्दी बनाएँगे तो चिन्ता न करना कि तुम क्या कहोगे। तुम वही कहना जो कि उस समय परमेश्वर तुम्हें मन में कहेंगे क्योंकि वह तुम नहीं होगे जो बोल रहे होगे, यह पवित्र आत्मा होंगे जो तुम्हारे माध्यम से बात करेंगे।
\v 12 कुछ भाई और बहनें दूसरे भाइयों और बहनों को धोखा देंगे। कुछ पिता अपने बच्चों को धोखा देंगे। कुछ बच्चे अपने माता-पिता को धोखा दे देंगे, जिससे कि सरकारी अधिकारी उनके माता-पिता को मार डालें।
\v 13 लोग तुम से ईर्ष्या करेंगे, क्योंकि तुम मुझ पर विश्वास करते हो। परन्तु जो भी लोग मुझ पर भरोसा रखते रहेंगे उनका जीवन समाप्त नहीं होगा, परन्तु बचा लिया जाएगा।
\p
\s5
\v 14 उस समय घृणित वस्तु मंदिर में प्रवेश करेगी। यह मंदिर को अशुद्ध कर देगी और लोगों से इसका त्याग करवा देगी। जब तुम उसे वहाँ देखते हो जहाँ उसे नहीं होना चाहिए, तो तुम्हें शीघ्र से भाग जाना चाहिए! (जो कोई यह पढ़ रहा है वह इस चेतावनी पर ध्यान दे!) उस समय वे लोग जो यहूदिया नगर में हैं वे ऊँची पहाड़ियों में भाग जाएँ।
\v 15 जो लोग अपने घरों से बाहर हैं, उन्हें कुछ भी लेने के लिए अपने घरों में प्रवेश नहीं करना चाहिए।
\v 16 जो लोग खेतों में काम कर रहे हैं, वे अतिरिक्त कपड़े लेने के लिए अपने घर वापस न जाएँ।
\s5
\v 17 मैं उन स्त्रियों के लिए बहुत दुःख मनाता हूँ जो उन दिनों में गर्भवती होंगी और जो अपने बच्चों की देखभाल कर रही होंगी, क्योंकि उन्हें भागने में बहुत कठिनाई होगी!
\v 18-19 उन दिनों में लोग बहुत गंभीर रूप से पीड़ित होंगे। जिस समय से परमेश्वर ने संसार को बनाया है, तब से लेकर अब तक कभी भी लोग ऐसे पीड़ित नहीं हुए हैं; और फिर कभी लोग इस तरह से पीड़ित नहीं होंगे। इसलिए प्रार्थना करो कि यह पीड़ादायक समय सर्दियों में न हो, जिस समय यात्रा करना कठिन होगा।
\v 20 यदि प्रभु परमेश्वर ने यह निर्णय नहीं लिया होता कि वह इस दुःख भोग के समय को कम कर दें, तो हर कोई मर जाता। परन्तु उन्होंने उस समय को कम करने का निर्णय लिया है क्योंकि वह उन लोगों के बारे में चिंतित हैं जिन्हें उन्होंने चुना है।
\s5
\v 21-22 उस समय लोग झूठ बोलेंगे कि वे मसीह हैं। और कुछ लोग परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता होने का दावा करेंगे। तब वे कई प्रकार के चमत्कार करेंगे। वे उन लोगों को धोखा देने का भी प्रयास करेंगे, जिन्हें परमेश्वर ने चुना है। इसलिए उस समय यदि कोई तुमसे कहे, 'देखो, मसीह यहाँ है' या अगर कोई कहे, 'देखो, वह वहाँ है', तो उस पर विश्वास मत करना!
\v 23 सतर्क रहो! याद रखो कि इससे पहले कि जब यह सब हो मैंने तुम्हें चेतावनी दे दी है!
\p
\s5
\v 24 उस समय के बाद जब लोग इस तरह से पीड़ित होते हैं, सूरज अंधियारा हो जाएगा, और चाँद में चमक नहीं होगी;
\v 25 सितारे आकाश से गिर जाएँगे, और आकाश के सब शक्तिशाली गण अपने स्थान से हिल जाएँगे।
\v 26 तब लोग मुझे, मनुष्य के पुत्र को, बादलों के माध्यम से शक्तिशाली और महिमामय रूप से आते हुए देखेंगे।
\v 27 तब मैं अपने स्वर्गदूतों को भेजूँगा कि वे उन लोगों को एकत्र करें जिन्हें परमेश्वर ने हर स्थान से पृथ्वी के सबसे दूर के स्थानों से चुना है।
\p
\s5
\v 28 अब मैं चाहता हूँ कि तुम इसके द्वारा कुछ सीखो कि अंजीर का वृक्ष कैसे बढ़ता है। जब उनकी शाखाओं की कोपलें आती हैं और उनके पत्ते अंकुरित होने लगते हैं, तो तुम जानते हो कि गर्मियों के दिन निकट हैं।
\v 29 इसी तरह, जो कुछ मैंने अभी वर्णन किया है जब तुम उसे होता हुआ देखो, तो तुम स्वयं ही जान जाओगे कि मेरे वापस आने का समय बहुत निकट है। यह ऐसा होगा जैसे कि मैं दरवाजे पर ही हूँ।
\s5
\v 30 यह ध्यान में रखो: यह पीढ़ी तब तक नहीं मरेगी जब तक कि यह बातें पूरी न हो जाएँ।
\v 31 तुम निश्चित हो सकते हो कि यह बातें पूरी होंगी, जिनकी मैंने भविष्यद्वाणी की है। यह पृथ्वी और जो कुछ आकाश में है, एक दिन नष्ट हो जाएगा, लेकिन मेरी कही हुई ये बातें निश्चय पूरी होंगी।
\v 32 लेकिन मैं कब वापस आऊँगा, इसका सही समय कोई भी नहीं जानता। स्वर्ग के स्वर्गदूत भी नहीं जानते हैं। यहाँ तक कि मैं, परमेश्वर का पुत्र, भी नहीं जानता। परन्तु केवल मेरा पिता जानता है।
\s5
\v 33 इसलिए तैयार रहो! हमेशा सतर्क रहो, क्योंकि तुम्हें नहीं पता कि वह समय कब आएगा जब यह सब घटनाएँ होंगी!
\v 34 जब कोई व्यक्ति दूर के स्थान पर जाना चाहता है तो वह अपने घर छोड़ने के बारे में, वह अपने कर्मचारियों से कहता है कि उन्हें घर का प्रबंधन करना है। वह हर एक को बताता है कि उसे क्या करना है। फिर वह द्वारपाल को अपनी वापसी के लिए तैयार होने के लिए कहता है।
\s5
\v 35 उस व्यक्ति को हमेशा तैयार रहना चाहिए, क्योंकि वह नहीं जानता है कि उसका स्वामी शाम को वापस आ जाएगा, या आधी रात को, या मुर्गे की बाँग पर, या भोर में। इसी तरह, तुम्हें भी सदा तैयार रहना चाहिए, क्योंकि तुम्हें नहीं पता कि मैं कब लौट आऊँगा।
\v 36 ऐसा न हो कि जब मैं अचानक आ जाऊँ, तो मुझे पता चले कि तुम तैयार नहीं हो!
\v 37 यह वचन जो मैं अपने शिष्यों से कह रहा हूँ, मैं हर किसी से कहता हूँ: सदैव तैयार रहो!"
\s5
\c 14
\p
\v 1 सप्ताह तक चलने वाले फसह के पर्व को मनाने में केवल दो दिन ही थे। उन दिनों उन्होंने एक और पर्व मनाया, जिसे वे अखमीरी रोटी का पर्व कहते थे। महायाजकों और यहूदी नियमों को सिखाने वाले अन्य पुरुषों ने योजना बनाई कि वे कैसे गुप्त रूप से यीशु को बन्दी बना करके मार सकते हैं।
\v 2 लेकिन वे एक दूसरे से कह रहे थे, "हमें पर्व के समय ऐसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि अगर हम ऐसा करते हैं तो लोग हम से बहुत क्रोधित होंगे और दंगा कर देंगे।"
\p
\s5
\v 3 यीशु बैतनिय्याह में शमौन के घर में थे, जो कुष्ठ रोगी था। जब वे भोजन कर रहे थे, तब एक स्त्री उनके पास आई। उसके पास एक पत्थर का पात्र था जिसमें महंगा सुगन्धित इत्र था, जिसे जटामांसी का इत्र कहा जाता था। उसने पात्र को खोला और फिर यीशु के सिर पर सारा इत्र डाल दिया।
\v 4 कुछ लोग जो उपस्थित थे, वे क्रोधित हो गए और स्वयं से कहा, "यह अच्छा नहीं है कि उसने इस इत्र को नष्ट कर दिया!
\v 5 यह लगभग एक वर्ष की मजदूरी के लिए बेचा जा सकता था और फिर गरीब लोगों को पैसा दिया जा सकता था!" इसलिए उन्होंने उसे डाँटा।
\s5
\v 6 लेकिन यीशु ने कहा, "मत डाँटों! उसने मेरे साथ जो किया है वह मैंने बहुत उचित माना है। इसलिए तुम्हें उसे परेशान नहीं करना चाहिए!
\v 7 तुम्हारे साथ हमेशा गरीब लोग होंगे। इसलिए जब तुम चाहते हो तब उनकी सहायता कर सकते हो। परन्तु मैं यहाँ तुम्हारे साथ बहुत समय तक नहीं रहूँगा।
\v 8 उसने जो भी किया है, वह उचित है। ऐसा लगता है कि जैसे वह जानती थी कि मैं शीघ्र ही मर जाऊँगा, क्योंकि उसने मेरे शरीर का समय से पहले अभिषेक कर दिया है, कि वह दफ़न के लिए तैयार हो।
\v 9 मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूँ: जहाँ भी मेरे अनुयायी संसार भर में सुसमाचार का प्रचार करेंगे, वे इस स्त्री के इस काम की चर्चा करेंगे और लोग इसे याद करेंगे।
\p
\s5
\v 10 तब यहूदा इस्करियोती यीशु को पकड़ने में सहायता करने के बारे में बात करने के लिए महायाजकों के पास गया। यद्यपि वह बारह शिष्यों में से था, उसने ऐसा किया ।
\v 11 जब महायाजकों ने सुना कि वह उनके लिए कुछ करने को तैयार है, तो वे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वे बदले में उसे बड़ी धनराशि देंगे। यहूदा ने सहमति व्यक्त की और यीशु पर हाथ डालने का एक अवसर ढूँढ़ने लगा।
\p
\s5
\v 12 पर्व के पहले दिन जिसे वे अखमीरी रोटी का दिन कहते हैं, जब वे फसह के लिए भेड़ के बच्चे को मारते हैं, तो यीशु के शिष्यों ने उनसे कहा, "आप हमें कहाँ भेजकर फसह के उत्सव के लिए भोजन तैयार करवाना चाहते हैं कि हम उसे खाएँ?"
\v 13 अत: यीशु ने अपने दो शिष्यों को सब कुछ तैयार करने के लिए चुना। उन्होंने उनसे कहा, "यरूशलेम में जाओ, एक व्यक्ति तुम्हें मिलेगा, जो पानी से भरा एक बड़ा पात्र ले जा रहा होगा। उसके पीछे जाना।
\v 14 जब वह घर में प्रवेश करे, तो उस व्यक्ति से कहना जो घर का स्वामी है, कि 'हमारे प्रभु चाहते हैं कि हम यहाँ फसह के उत्सव का भोजन तैयार करें, कि वे अपने शिष्य के साथ खा सकें। कृपया हमें कमरा दिखा।'
\s5
\v 15 वह तुम्हें एक बड़ा कमरा दिखाएगा जो घर की ऊपरी मंजिल पर है। वह हमारे लिए तैयार होगा कि हम वहाँ भोजन करें। फिर हमारे लिए भोजन तैयार करो।"
\v 16 अतः दोनों शिष्य गए। वे शहर में चले गए और उन्होंने सब कुछ वैसा ही पाया, जैसा यीशु उनसे कहा था। उन्होंने वहाँ फसह समारोह के लिए भोजन तैयार किया।
\s5
\v 17 जब शाम हुई, तो यीशु उस घर में बारह शिष्यों के साथ पहुँचे।
\p
\v 18 जब वे सब वहाँ बैठे थे और भोजन कर रहे थे, यीशु ने कहा, "ध्यान से सुनो: तुम में से एक मेरे शत्रुओं के लिए मुझे पकड़ना सरल बना देगा। वह तुम में से एक है जो अभी मेरे साथ खा रहा है!"
\v 19 शिष्य बहुत दुःखी हो गए और उन्होंने एक-एक करके कहा, "निश्चय ही वह मैं नहीं हूँ?"
\s5
\v 20 फिर उन्होंने उनसे कहा, "वह तुम्हारे बीच बारह शिष्यों में से एक है, जो मेरे साथ रोटी खा रहा है।
\v 21 यह निश्चित है कि मैं, मनुष्य का पुत्र मर जाऊँगा, क्योंकि यह मेरे बारे में लिखा गया है। परन्तु जो मुझे धोखा देगा, उस व्यक्ति का दण्ड भयानक होगा! वास्तव में, यदि उसका जन्म ही नहीं हुआ होता तो अच्छा होता!"
\p
\s5
\v 22 जब वे खा रहे थे, तो उन्होंने एक रोटी ली और इसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर उन्होंने उसे टुकड़ों में तोड़ दिया और उन्हें दे दिया और कहा, "यह रोटी मेरी देह है। इसे लो और इसे खा लो।"
\v 23 इसके बाद, उन्होंने एक कटोरा लिया, जिसमें दाखरस था और उसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर उन्होंने उनको दिया और उन सब ने पीया।
\v 24 उन्होंने कहा, "यह दाखरस मेरा लहू है, जो मेरे शत्रुओं द्वारा मेरी हत्या की में याद दिलाता है। इस लहू से मैं उस वाचा को दृढ़ करता हूँ जो परमेश्वर ने कई लोगों के पापों को क्षमा करने के लिए बाँधी है।
\v 25 मैं चाहता हूँ कि तुम यह जानो कि जब तक मैं परमेश्वर को स्वयं राजा के रूप में न दिखाऊँ, तब तक मैं कभी दाखरस नहीं पीऊँगा।"
\s5
\v 26 उन्होंने एक भजन गाया, फिर वे जैतून के पहाड़ की ओर निकल गए।
\p
\v 27 जब वे अपने रास्ते पर थे, यीशु ने उनसे कहा, "धर्मशास्त्र में लिखा है कि परमेश्वर ने मेरे बारे में कहा, 'मैं चरवाहे को मारूँगा और उसकी भेड़ों को तितर बितर करूँगा।' ये वचन सच होंगे। तुम मुझे छोड़कर भाग जाओगे।
\s5
\v 28 परन्तु जब परमेश्वर मुझे फिर से जीवित करेंगे, तब मैं तुमसे पहले गलील के नगर जाऊँगा और वहाँ तुमसे मिलूँगा।"
\v 29 पतरस ने उनसे कहा, "हो सकता है कि सब शिष्य आपको छोड़ दें। परन्तु मैं नहीं छोड़ूँगा! मैं आपको नहीं छोड़ूँगा!"
\s5
\v 30 फिर यीशु ने उससे कहा, "सच तो यह है कि आज रात को मुर्गे के दो बार बाँग देने से पहले, तू तीन बार कहेगा, कि तू मुझे नहीं जानता।
\v 31 परन्तु पतरस ने जोर देकर कहा, "अगर वे मुझे मार डालें तो भी मैं नहीं कहूँगा कि मैं आपको नहीं जानता।" और अन्य सब शिष्यों ने भी यही कहा।
\p
\s5
\v 32 रास्ते में, यीशु और शिष्य उस जगह पर आए, जिसे लोग गतसमनी कहा करते थे। फिर उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, "तुम यहाँ बैठे रहो, जब तक मैं प्रार्थना करता हूँ!"
\v 33 तब वह अपने साथ पतरस, याकूब और यूहन्ना को ले गए। वह अत्यधिक परेशान हो गए।
\v 34 उन्होंने उनसे कहा, "मैं बहुत दुःखी हूँ। यह ऐसा है जैसे मैं मरने वाला हूँ। तुम यहाँ ठहरो और जागते रहो!"
\s5
\v 35 वह थोड़ा आगे चले गए और स्वयं को भूमि पर गिरा दिया। फिर उन्होंने प्रार्थना की कि अगर संभव हो, तो उन्हें यह भुगतना न पड़े।
\v 36 उन्होंने कहा, "हे मेरे पिता, क्योंकि आप सब कुछ कर सकते हैं, मुझे बचाओ कि मुझे यह भुगतना न पड़े। परन्तु जो कुछ मैं चाहता हूँ वह मत करो। जो आप चाहते हो वह करो।
\s5
\v 37 फिर वह लौट आए और शिष्यों को सोता हुआ पाया। उन्होंने उन्हें जगाया और कहा, "हे शमौन, क्या तुम सो रहे हो? क्या तुम थोड़े समय के लिए जाग नहीं सकते थे?"
\v 38 और उन्होंने उनसे कहा, "मैं जो भी कहता हूँ। तुम वह करना चाहते हो, परन्तु तुम निर्बल हो। इसलिये जागते रहो और प्रार्थना करो, जिससे कि जब तुम पर परीक्षा आए, तो तुम दृढ़ रह सको!"
\v 39 वह फिर से चले गए और वही प्रार्थना की जो उन्होंने पहले की थी।
\s5
\v 40 जब वह लौट आए, तो उन्होंने देखा कि वे फिर से सो रहे थे; वे बहुत नींद में थे इसलिए वे अपनी आँखें खुली नहीं रख सकते थे, क्योंकि वे लज्जित थे, इसलिए उन्हें नहीं पता था कि जब यीशु ने उन्हें जगाया, तो क्या कहें।
\v 41 वह फिर गए और फिर प्रार्थना की। वह तीसरी बार लौटे और उन्हें फिर से सोता हुआ देखा। उन्होंने उनसे कहा, "तुम अब भी सो रहे हो? इससे अधिक नहीं, मेरे लिए पीड़ा का समय आरंभ होने वाला है, देखो! कोई पापी मनुष्यों के द्वारा मुझे, मनुष्य के पुत्र को पकड़ने में समर्थ करने वाला है।
\v 42 इसलिए उठो! अब चलें! देखो! यहाँ एक है जो मुझे पकड़ने के लिए उनको समर्थ बना रहा है!
\p
\s5
\v 43 जब वह अभी बोल ही रहे थे, कि यहूदा आ गया। हालाँकि वह यीशु के बारह शिष्यों में से एक था, वह यीशु को शत्रुओं के हाथों पकड़वाने के लिए आया था। तलवारें लिए हुए उन्हें पकड़कर ले जाने वाली भीड़ उसके साथ थी। यहूदी परिषद के अगुवों ने उन्हें भेजा था।
\v 44 यहूदा ने यीशु को धोखा दिया था, उसने पहले ही भीड़ से कहा था, कि "जिस व्यक्ति को मैं चूमता हूँ, वह वही होगा जिसे तुम पकड़ना चाहते हो। जब मैं उसे चूमूँ, तो तुम उसे पकड़ कर ले जाना।"
\v 45 जब यहूदा आ पहुँचा, तो वह तुरन्त यीशु के पास गया और कहा, "हे मेरे प्रभु!"; फिर उसने यीशु को चूमा।
\v 46 तब लोगों ने यीशु को पकड़ लिया।
\s5
\v 47 लेकिन जो शिष्य खड़े थे, उनमें से एक ने अपनी तलवार निकाली। और महायाजक के सेवक को मारा, परन्तु उसने केवल उसका कान काट दिया था।
\v 48-49 यीशु ने उनसे कहा, "यह विचित्र बात है कि तुम तलवारें लिए और भीड़ के साथ मुझे पकड़ने के लिए यहाँ आए हो, जैसे कि मैं एक डाकू हूँ! मैं तो प्रतिदिन तुम्हारे साथ परमेश्वर के भवन के आँगन में था और लोगों को शिक्षा देता था! क्या वहाँ तुम मुझे पकड़ नहीं सकते थे? परन्तु जो भविष्यद्वक्ताओं ने मेरे बारे में धर्मशास्त्र में लिखा है, वह पूरा हो रहा है।
\p
\v 50 शिष्यों उन्हें छोड़कर भाग गए।
\s5
\v 51 उस समय, एक जवान व्यक्ति यीशु का अनुसरण कर रहा था। वह अपने शरीर पर केवल एक सनी का वस्त्र पहने हुए था। भीड़ ने उसे पकड़ लिया,
\v 52 लेकिन, जब वह उनसे दूर हट रहा था, तब उसने उनके हाथों में सनी का कपड़ा छोड़ दिया, और फिर वह नंगा ही भाग गया।
\p
\s5
\v 53 जो लोग यीशु को पकड़ चुके थे, वे उसे महायाजक के घर ले गए। यहूदी परिषद वहाँ एकत्र थी।
\v 54 पतरस कुछ दूरी से यीशु का पीछा कर रहा था। वह महायाजक के घर के आँगन में गया, और महायाजक के घर की रक्षा करने वाले मनुष्यों के साथ बैठ गया। वह आग के पास में स्वयं को गर्म कर रहा था।
\s5
\v 55 महायाजक और यहूदी परिषद यीशु के विरुद्ध गवाही खोज रही थी, जो उन्हें मार डालने के लिए दृढ़ हो। लेकिन उन्हें कोई गवाह नहीं मिला जो उन्हे मृत्यु दण्ड देने के लिए अधिकारियों को आवश्यक प्रतीत हो।
\v 56 कई लोगों ने यीशु के बारे में झूठ बोला परन्तु उन्होंने जो गवाहियाँ दीं वह एक दूसरे के साथ मेल नहीं खाती थी। और इसलिए, उनकी गवाहियाँ यीशु के विरूद्ध आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं थीं।
\s5
\v 57 अंत में, कुछ लोग खड़े हुए और यह कह कर उन पर आरोप लगाने लगे,
\v 58 "हम सुन रहे थे जब यह कह रहा था। 'मैं परमेश्वर के इस भवन को नष्ट कर दूँगा जिसे मनुष्यों द्वारा बनाया गया, और फिर तीन दिन मैं किसी और की सहायता के बिना एक और परमेश्वर का भवन का निर्माण करूँगा।'
\v 59 लेकिन इनमें से कुछ लोगों ने जो कहा, वह दूसरों ने जो कहा उससे अलग था, वे इसके साथ भी सहमत नहीं हुए।
\p
\s5
\v 60 तब महायाजक खुद उनके सामने खड़ा हो गया और यीशु से कहा, "क्या तू उत्तर देना नहीं चाहता? तू इन सब आरोपों के बारे में क्या कहना चाहता हैं?"
\v 61 परन्तु यीशु चुप थे और उन्होंने उत्तर नहीं दिया। तब महायाजक फिर से प्रयास किया कर रहा था। उसने उनसे पूछा, क्या तू मसीह है, क्या तू कहता है कि तू परमेश्वर का पुत्र है?
\v 62 यीशु ने कहा, "मैं हूँ।" इसके अतिरिक्त, तुम मुझे, मनुष्य के पुत्र को परमेश्वर के साथ शासन करते हए देखोगे, जो पूरी तरह से शक्तिशाली है। तुम मुझे बादलों के माध्यम से आकाश से उतरते हुए भी देखोगे!
\s5
\v 63 जब यीशु ने यह कहा, तो महायाजक ने विरोध में अपना स्वयं का वस्त्र फाड़ा, और महायाजक ने कहा, "क्या हमें इस व्यक्ति के विरुद्ध गवाही देने के लिए और अधिक गवाह चाहिए?
\v 64 तुमने उसकी निंदा को सुना है! वह परमेश्वर होने का दावा करता है!" वे सब इस बात पर सहमत हुए कि यीशु दोषी थे और वह मृत्यु दण्ड के योग्य थे।
\v 65 तब उनमें से कुछ ने यीशु पर थूकना शुरू कर दिया। उन्होंने उनकी आँखों पर पट्टी बाँध दी, और फिर उन्होंने उन्हें मारना शुरू कर दिया और कहा, "यदि तू एक भविष्यद्वक्ता है, तो हमें बता कि तुझे कौन मार रहा है!" और जो लोग यीशु की रक्षा कर रहे थे उन्होंने उन्हें अपने हाथों से मारा।
\p
\s5
\v 66 जबकि पतरस महायाजक के घर के आँगन में बाहर था, तब महायाजक के लिए काम करने वाली लड़कियों में से एक उसके पास आई।
\v 67 जब उसने देखा कि पतरस स्वयं को आग से गर्म कर रहा है, तो उसने उसे ध्यान से देखा। फिर उसने कहा, "तू भी नासरत में यीशु के साथ था!"
\v 68 लेकिन उसने यह कहते हुए इन्कार किया, "मुझे नहीं पता कि तू किस के बारे में बात कर रही है! मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता!" तब वह वहाँ से आँगन के फाटक के पास गया;
\s5
\v 69 दासी लड़की ने उसे वहाँ देखा और फिर जो लोग खड़े थे, उनसे कहा, "यह व्यक्ति उन लोगों में से एक है, जो उस व्यक्ति के साथ रहा है जिसे उन्होंने गिरफ्तार किया है।"
\v 70 परन्तु उसने फिर से इन्कार किया। थोड़ी देर के बाद, जो खड़े थे, उन्होंने पतरस को फिर से कहा, "तू भी गलील से है। इसलिए यह निश्चित है कि तू उन लोगों में से एक है जो यीशु के साथ थे!"
\s5
\v 71 लेकिन वह कहने लगा कि अगर वह सच्चाई नहीं बता रहा है तो परमेश्वर उसे सज़ा दे; उसने कहा, "मैं उस व्यक्ति को जानता, भी नहीं जिस के बारे में तुम बात कर रहे हो!"
\v 72 तुरन्त मुर्गे ने दूसरी बार बाँग दी। तब पतरस ने यह याद किया कि यीशु ने उससे पहले क्या कहा था: "मुर्गे के दूसरी बार बाँग देने से पहले, तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।" जब उसे समझ में आया कि उसने उनका तीन बार इन्कार कर दिया, तो उसने रोना शुरू कर दिया।
\s5
\c 15
\p
\v 1 सुबह बहुत जल्दी, महायाजकों ने यहूदी लोगों के साथ मिलकर निर्णय लिया कि कैसे रोमी राज्यपाल के सामने यीशु पर आरोप लगाया जाए। उनके रक्षकों ने यीशु के हाथ फिर से बाँध दिए और उन्हें पिलातुस के निवास में ले गए,
\v 2 पिलातुस ने यीशु से पूछा, "क्या तू कहता है कि तू यहूदियों का राजा है?" यीशु ने उसे उत्तर दिया, "तू ने खुद ही ऐसा कहा है।"
\v 3 तब महायाजकों ने दावा किया कि यीशु ने कई बुरे काम किए हैं।
\s5
\v 4 इसलिए पिलातुस ने उससे फिर पूछा, "क्या तेरे पास उत्तर देने के लिए कुछ नहीं है? सुनो, वे तुम पर कितने बुरे कामों का दोष लगाते हैं!"
\v 5 लेकिन यीशु ने कुछ नहीं कहा। इसका परिणाम यह हुआ कि पिलातुस बहुत विस्मित हुआ।
\p
\s5
\v 6 अब हर वर्ष फसह के उत्सव के समय राज्यपाल के बन्दीगृह से एक व्यक्ति को मुक्त करने की प्रथा थी। वह लोगों की माँग पर किसी भी बन्दी को छोड़ देता था।
\v 7 उस समय बरअब्बा नामक एक व्यक्ति था जो कुछ अन्य पुरुषों के साथ बन्दीगृह में था क्योंकि उसने रोमी सरकार के विरुद्ध विद्रोह किया, और हत्याएँ की थीं।
\v 8 एक भीड़ ने पिलातुस से संपर्क किया और पहले के जैसे ही उसे किसी को छोड़ने के लिए कहा।
\s5
\v 9 पिलातुस ने उन्हें उत्तर दिया, "क्या तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए इस व्यक्ति को छोड़ दूँ जिसे तुम लोग अपना राजा कहते हो?"
\v 10 उसने यह पूछा इसलिए क्योंकि उसे यह मालूम हो गया था कि महायाजक क्या चाहते थे। वे यीशु पर इसलिए आरोप लगा रहे थे कि वे उनसे ईर्ष्या करते थे, क्योंकि बहुत से लोग उनके शिष्य बन रहे थे।
\v 11 परन्तु महायाजकों ने लोगों को पिलातुस से आग्रह करने को कहा कि यीशु के बदले बरअब्बा को छोड़ दे।
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\v 12 पिलातुस ने फिर से उनसे कहा, "यदि मैं बरअब्बा को छोड़ देता हूँ, तो तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे राजा के साथ करूँ?"
\v 13 वे चिल्लाए, "उसे क्रूस पर चढ़ाओ!"
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\v 14 तब पिलातुस ने उनसे कहा, "क्यों? उसने क्या अपराध किया है?" परन्तु वे और भी ऊँचे शब्द से चिल्लाए, "उसे क्रूस पर चढ़ाओ!"
\v 15 पिलातुस भीड़ को प्रसन्न करना चाहता था, उसने बरअब्बा को उनके लिए छोड़ दिया। फिर उसके सैनिकों ने यीशु को कोड़े मारे; उसके बाद, पिलातुस ने उसे ले जाने और उसे क्रूस पर चढ़ाने के लिए दे दिया।
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\s5
\v 16 सैनिक यीशु को सैनिकनिवास से आँगन में ले गए। तब उन्होंने सब कर्मचारियों को बुलाया जो कार्य करते थे।
\v 17 सैनिकों ने एकत्र होने के बाद, यीशु पर एक बैंगनी वस्त्र डाला। फिर उन्होंने उनके सिर पर एक मुकुट रखा जो कि कंटीली झाड़ी की शाखाओं से बुना हुआ था।
\v 18 तब उन्होंने उन्हें नमस्कार किया जैसे कि वे एक राजा को नमस्कार करते हैं, ताकि उनका ठट्ठा कर सकें। उन्होंने कहा, "यहूदियों के राजा को नमस्कार!"
\s5
\v 19 वे बार-बार एक सरकंडे से उनके सिर पर मारते थे और उन पर थूकते थे। उन्होंने उन्हें सम्मान देने का ढोंग करने के लिए उनके सामने घुटने टेक दिए।
\v 20 जब वे उनका ठट्ठा कर चुके, तो उन्होंने बैंगनी वस्त्र को खींच लिया। उन्होंने उनके कपड़े उसे दिए, और फिर उसे शहर के बाहर ले जाने लगे ताकि उसे क्रूस पर चढ़ा सकें।
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\v 21 शमौन नाम का एक मनुष्य वहाँ से जा रहा था। वह कुरेनी था सिकन्दर और रूफुस का पिता था, वह कहीं से शहर में आ रहा था वह यीशु के पास से होकर निकला तो। सैनिकों ने शमौन को यीशु का क्रूस उठाने के लिए विवश किया।
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\v 22 सैनिकों ने उन दोनों को उस जगह पर पहुँचा दिया, जिसे वे गुलगुता भी कहते हैं। उस नाम का अर्थ है, "खोपड़ी के जैसा स्थान।"
\v 23 फिर उन्होंने यीशु को मुर्र मिला हुआ दाखरस देने का प्रयास किया। परन्तु उन्होंने इसे पीने से इन्कार कर दिया।
\v 24 कुछ सैनिक उनके कपड़े ले गए। फिर उन्होंने उन्हें एक क्रूस पर चढ़ा दिया। बाद में, उन्होंने जूए के द्वारा उनके कपड़े आपस में बाँट लिए।
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\s5
\v 25 यह सुबह नौ बजे का समय था जब उन्होंने उन्हें क्रूस पर चढ़ाया।
\v 26 उन्होंने क्रूस पर यीशु के सिर के ऊपर एक दोषपत्र लगाया, पर उन्हे क्रूस पर चढ़ाने का यह कारण लिखा गया था कि वे उसे क्रूस पर क्यों चढ़ा रहे थे। उस पर लिखा था, "यहूदियों का राजा।"
\v 27 दो और व्यक्तियों को क्रूस पर चढ़ाया गया था जो कि डाकू थे। एक को यीशु के दाईं तरफ और एक को बाईं तरफ लटकाया गया।
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\v 29 जो लोग वहाँ से आ-जा रहे थे उन्होंने अपने सिरों को हिला कर उनको अपमानित किया। उन्होंने कहा, "आहा! तूने कहा था कि तू परमेश्वर के भवन को नष्ट कर देगा और तीन दिन में उसे फिर से बना लेगा।
\v 30 यदि तू ऐसा कर सकता है, तो क्रूस से नीचे उतरकर खुद को बचा ले!"
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\v 31 महायाजकों के साथ यहूदी नियमों को पढ़ाने वाले पुरुष भी यीशु का ठट्ठा कर रहे थे। उन्होंने एक दूसरे से कहा, "उसने दूसरों को संकट से बचाया है, परन्तु वह स्वयं को बचा नहीं सकता!
\v 32 उसने कहा था, 'मैं मसीह हूँ। मैं राजा हूँ जो इस्राएल के लोगों पर शासन करता है।' यदि उसके वचन सत्य हैं, तो उसे क्रूस से अब नीचे आ जाना चाहिए! तब हम उस पर भरोसा करेंगे!" उन दो पुरुषों ने भी उनका अपमान किया जो उसके साथ क्रूस पर चढ़ाए गए थे।
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\s5
\v 33 दोपहर में पूरे देश में अंधेरा हो गया, और दोपहर में तीन बजे तक अंधेरा रहा।
\v 34 तीन बजे यीशु जोर से चिल्लाए, "इलोई, इलोई, लमा शबक्तनी?" इसका अर्थ है, "हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, आप ने मुझे क्यों छोड़ दिया है?"
\v 35 जब कुछ लोग ने जो वहाँ खड़े थे यह 'इलोई' शब्द सुना, तो उन्होंने इसे गलत समझा और कहा, "सुनो! वह एलिय्याह भविष्यद्वक्ता को पुकार रहा है!"
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\v 36 उनमें से एक भागा और पनसोख्‍ता को खट्टे दाखरस में भिगोया। उसने इसे एक सरकंडे की नोक पर रख दिया, और फिर इसे पकड़कर यीशु को चूसाने की कोशिश की। उसने कहा, "रुको! हम देखते हैं कि एलिय्याह उसे क्रूस से नीचे उतारने के लिए आएगा या नहीं!"
\v 37 तब यीशु जोर से चिल्लाए, और साँस लेना बंद कर दिया, और मर गए।
\v 38 उसी पल परमेश्वर के भवन का पर्दा ऊपर से नीचे तक दो टुकड़ों में विभाजित हो गया।
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\v 39 वह अधिकारी यीशु के सामने खड़ा था जो उन सैनिकों की देख-रेख करता था जिन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ाया था। जब उसने देखा कि यीशु की मृत्यु कैसे हुई, तो उसने कहा, "यह सचमुच परमेश्वर के पुत्र थे!"
\v 40-41 वहाँ कुछ स्त्रियाँ भी थीं; वे एक दूरी से इन घटनाओं को देख रही थीं। जब यीशु गलील में थे, तो वे उनके साथ थीं, और जो उन्हें जो आवश्यक्ता होती थी वह उनको प्रदान करती थी। वे यरूशलेम में उनके साथ आई थीं। उन महिलाओं में मरियम मगदलीनी थी। वहाँ एक और मरियम थी, जो छोटे याकूब और योसेस की माता थीं। वहाँ सलोमी भी थी।
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\v 42-43 जब शाम करीब थी, तो अरिमतियाह का यूसुफ नाम का एक व्यक्ति वहाँ आया। वह यहूदी परिषद का सदस्य था, जिसका हर कोई सम्मान करता था। वह उनमें से एक था, जो आशा कर रहे थे कि परमेश्वर स्वयं को राजा के रूप में दिखाएँगे। अब शाम हो रही थी। यह सब्त के एक दिन पहले का दिन था, उस दिन को यहूदी तैयारी का दिन कहते थे। इसलिए वह पिलातुस के पास साहस के साथ गया और उससे कहा कि वह उसे यीशु के शरीर को क्रूस से नीचे उतारने और उसे तुरंत दफ़नाने की अनुमति दे।
\v 44 पिलातुस यह सुनकर आश्चर्यचकित हुआ कि यीशु तो मर चुका है। इसलिए उसने उस अधिकारी को बुलाया जो उन सैनिकों का प्रभारी था, जिन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ाया था, और उसने उससे पूछा कि क्या यीशु मर चुका था।
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\v 45 जब अधिकारी ने पिलातुस से कहा कि यीशु मर चुका था, तो पिलातुस ने यीशु के शरीर को ले जाने की अनुमति यूसुफ को दे दी।
\v 46 यूसुफ ने एक सनी का कपड़ा खरीदा और कुछ लोगों की सहायता से यीशु के शरीर को क्रूस से नीचे उतारा। उन्होंने उन्हें सनी के कपड़े में लपेटा और उन्हें एक कब्र में रख दिया, जिसे पहले से ही एक चट्टान में खोद लिया गया था। फिर उन्होंने कब्र के प्रवेश द्वार के सामने एक विशाल पत्थर को लुढ़का दिया।
\v 47 मरियम मगदलीनी और योसेस की माता मरियम देख रही थीं कि यीशु के शरीर को कहाँ रखा गया था।
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\c 16
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\v 1 जब सब्त का समय समाप्त हो गया, तो मरियम मगदलीनी, याकूब की माता और सलोमी ने यीशु के शरीर को अभिषेक करने के लिए सुगंधित द्रव्य खरीदे।
\v 2 सप्ताह के पहले दिन बहुत जल्दी, सूरज उगने के ठीक बाद, वे सुगंधित द्रव्यों को लेकर कब्र पर गईं।
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\v 3 जब वे वहाँ जा रही थीं, तो वे एक दूसरे से पूछ रही थीं, "हमारे लिए कब्र के प्रवेश द्वार से पत्थर कौन हटाएगा?"
\v 4 वहाँ पहुँचने के बाद, उन्होंने देखा कि किसी ने पत्थर को लुढ़का रखा है, जो कि बहुत बड़ा था।
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\v 5 उन्होंने कब्र में प्रवेश किया और एक स्वर्गदूत को देखा जो एक जवान व्यक्ति के समान था। वह गुफा के दाहिनी ओर बैठा था। वह सफेद वस्त्र पहने हुए था। उसे देखकर वे चकित थीं।
\v 6 उस जवान व्यक्ति ने उनसे कहा, "अचंभित मत हो! मुझे पता है कि तुम यीशु की, जो नासरत से हैं खोज कर रही हो, जिन्हें क्रूस पर चढ़ाया गया था। परन्तु वह तो जीवित हो गए हैं! वह यहाँ नहीं है। देखो! यह वह जगह है जहाँ उनका शरीर रखा गया था।
\v 7 जाओ और बाकी शिष्यों को बताओ। विशेष रूप से तुम पतरस को बताओ। उन्हें बताओ, 'यीशु तुमसे पहले गलील को जाएँगे, और तुम उसे वहाँ देखोगे, जैसे उन्होंने पहले तुम्हें बताया था!'
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\v 8 वे स्त्रियाँ बाहर निकलीं और कब्र से भाग गईं। वे भयभीत थीं क्योंकि वे डर गई थीं, और वे चकित थीं। परन्तु उन्होंने इस बारे में किसी को भी कुछ नहीं कहा, क्योंकि वे डरी हुई थीं।
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\s5
\v 9 जब सप्ताह के पहले दिन यीशु फिर से जीवित हो गए, तो वह पहली बार मरियम मगदलीनी के सामने आए। वह वही महिला थी, जिसमें से उन्होंने पहले सात दुष्ट-आत्माओं को निकाला था।
\v 10 वह उन लोगों के पास गई जो यीशु के साथ थे, जबकि वे शोक में थे और रो रहे थे। उसने उन्हें बताया कि उसने क्या देखा था।
\v 11 लेकिन जब उसने उनसे कहा कि यीशु फिर से जीवित हो गए हैं और उसने उन्हें देखा है, तो उन्होंने इस पर विश्वास नहीं किया।
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\v 12 उस दिन के बाद यीशु अपने दो शिष्यों को अलग रूप में दिखाई दिए, जब वे यरूशलेम से पास के क्षेत्र में जा रहे थे।
\v 13 उन्हें पहचान लेने के बाद, वे दोनों यरूशलेम लौट आए। उन्होंने उनके दूसरे अनुयायियों को बताया कि क्या हुआ था, परन्तु उन्हें विश्वास नहीं था।
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\v 14 बाद में यीशु ग्यारह प्रेरितों को दिखाई दिए, जब वे खा रहे थे। उन्होंने उनको डाँटा क्योंकि वे उन लोगों की गवाही पर विश्वास करने से इन्कार करते थे, जिन्होंने उन्हें फिर से जीवित होने के बाद देखा था।
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\v 15 उन्होंने उनसे कहा, "पूरे संसार में जाकर सबके लिए सुसमाचार का प्रचार करो!
\v 16 जो कोई तुम्हारा संदेश मानता है और जो बपतिस्मा लेता है, तो परमेश्वर उन्हें बचाएँगे। वह उन सब को दोषी ठहराएँगे जो विश्वास नहीं करते।
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\v 17 जो लोग सुसमाचार पर विश्वास करते हैं, वे चमत्कार दिखाएँगे, क्योंकि मैं उनके साथ हूँ। मेरी शक्ति से वे चमत्कार करेंगे: वे लोगों में से दुष्ट-आत्माओं को निकालेंगे। वे उन भाषाओं में बात करेंगे, जो उन्होंने नहीं सीखी हैं।
\v 18 यदि वे साँप उठा लें या यदि वे किसी भी जहरीले तरल को पी लेते हैं, तो उन्हें कोई हानि नहीं होगी। परमेश्वर उन बीमार लोगों को स्वस्थ करेंगे, जिन पर वे अपने हाथ रख देंगे।"
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\v 19 प्रभु यीशु शिष्यों से यह कह ही रहे थे कि परमेश्वर ने उन्हें स्वर्ग में उठा लिया। तब वह उनके साथ शासन करने के लिए, परमेश्वर के पास सर्वोच्च सम्मान के स्थान में अपने सिंहासन पर बैठ गए।
\v 20 शिष्य यरूशलेम से निकल गए, और फिर वे हर जगह प्रचार करते थे। जहाँ भी वे जाते थे, प्रभु ने उन्हें चमत्कार करने में समर्थ किया। ऐसा करके, उन्होंने लोगों पर प्रकट किया कि परमेश्वर का संदेश सच है।