hi_udb/41-MAT.usfm

1799 lines
460 KiB
Plaintext

\id MAT
\ide UTF-8
\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h मत्ती
\toc1 मत्ती
\toc2 मत्ती
\toc3 mat
\mt1 मत्ती
\s5
\c 1
\p
\v 1 यह अभिलेख राजा दाउद के और अब्राहम के वंशज यीशु मसीह के पूर्वजों का है।
\v 2 अब्राहम इसहाक का पिता था। इसहाक याकूब का पिता था। याकूब यहूदा और उसके भाइयों का पिता था।
\v 3 यहूदा पेरेस और जेरह का पिता था, और उनकी माता तामार थी। पेरेस हेस्रोन का पिता था। हेस्रोन एराम का पिता था।
\s5
\v 4 एराम अम्मीनादाब का पिता था। अम्मीनादाब नहशोन का पिता था। नहशोन सलमोन का पिता था।
\v 5 सलमोन और उसकी पत्नी राहाब, जो गैर-यहूदी स्त्री थी, बोअज के माता-पिता थे। बोअज ओबेद का पिता था। ओबेद की माता रूत थी, वो भी एक गैर-यहूदी स्त्री थी। ओबेद यिशै का पिता था।
\v 6 यिशै राजा दाऊद का पिता था। दाऊद सुलैमान का पिता हुआ; सुलैमान की माता ऊरिय्याह की पत्नी थी।
\s5
\v 7 सुलैमान रहबाम का पिता था। रहबाम अबिय्याह का पिता था। अबिय्याह आसा का पिता था।
\v 8 आसा यहोशाफात का पिता था। यहोशाफात योराम का पिता था। योराम उज्जिय्याह का पूर्वज था।
\s5
\v 9 उज्जिय्याह योताम का पिता था। योताम आहाज का पिता था। आहाज हिजकिय्याह का पिता था।
\v 10 हिजकिय्याह मनश्शे का पिता था। मनश्शे आमोन का पिता था। आमोन योशिय्याह का पिता था
\v 11 योशिय्याह यकुन्याह और उसके भाइयों का दादा था। वे उस समय रहते थे जब बेबीलोन की सेना इस्राएलियों को बंदी बनाकर बेबीलोन देश ले गई थी।
\p
\s5
\v 12 इस्राएलियों को बंदी बनाकर बेबीलोन पहुंचाए जाने के बाद, यकुन्याह शालतियेल का पिता बना। शालतियेल जरूब्बाबेल का पूर्वज था।
\v 13 जरूब्बाबेल अबीहूद का पिता था। अबीहूद एलयाकीम का पिता था। एलयाकीम अजोर का पिता था।
\v 14 अजोर सादोक का पिता था। सादोक अखीम का पिता था। अखीम एलीहूद का पिता था
\s5
\v 15 एलीहूद एलिआजार का पिता था। एलिआजार मत्तान का पिता था। मत्तान याकूब का पिता था।
\v 16 याकूब यूसुफ का पिता था। यूसुफ मरियम का पति था, और मरियम यीशु की माता थी। यीशु ही वह है जिसे मसीह कहा जाता है।
\p
\v 17 यीशु के पूर्वजों की यही सूची है: अब्राहम के समय से लेकर दाऊद के समय तक चौदह पीढियाँ थीं। दाऊद के समय के बाद से लेकर इस्राएलियों के बेबीलोन पहुँचाए जाने के समय तक चौदह पीढियाँ और हुईं फिर उस समय से लेकर मसीह के पैदा होने तक चौदह पीढियाँ और हुई।
\p
\s5
\v 18 यह वह घटना है जो मसीह के जन्म से पहले हुई थीं। उनकी माता मरियम ने यूसुफ से विवाह करने का वचन दिया था, परन्तु पति और पत्नी के समान साथ रहने से पहले उन्हें पता चला कि मरियम पवित्र आत्मा की शक्ति से गर्भवती थी।
\v 19 यूसुफ, जिसे उनका पति होना था, वह एक ऐसा व्यक्ति था जो परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करता था, इसलिए उसने उससे विवाह न करने का फैसला किया। परन्तु वह अन्य लोगों के सामने उसे लज्जित करना नहीं चाहता था। इसलिए उसने चुपचाप उसके साथ विवाह करने की अपनी योजनाओं को छोड़ने का निर्णय लिया।
\s5
\v 20 जब वह गंभीरता से इस पर विचार कर रहा था, तब एक स्वर्गदूत ने जिसे परमेश्वर ने भेजा था, उसे एक सपने में आकर आश्चर्यचकित कर दिया। स्वर्गदूत ने कहा, “यूसुफ, राजा दाऊद के वंशज, मरियम से विवाह करने से मत डर। क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की और से है।
\v 21 वह एक पुत्र को जन्म देगी। क्योंकि वही अपने लोगों को उनके पापों से बचाएंगे, इसलिए उन का नाम यीशु रखना।”
\s5
\v 22 यह सब इसलिए हुआ कि परमेश्वर ने भविष्यद्वक्ता यशायाह से बहुत पहले जो लिखने को कहा था, वह पूरा हो। यशायाह ने लिखा,
\v 23 “सुनो, एक कुंवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र को जन्म देगी। वे उन्हें इम्मानुएल कहेंगे” जिसका अर्थ है, “परमेश्वर हमारे साथ है।”
\s5
\v 24 जब यूसुफ नींद से जागा, तो उसने वही किया जो स्वर्गदूत ने उसे करने के लिए कहा था। वह मरियम को पत्नी के रूप में लाकर उसके साथ रहने लगा।
\v 25 लेकिन जब तक उसने पुत्र को जन्म नहीं दिया तब तक वह उसके साथ नहीं सोया। और यूसुफ ने उन्हें यीशु नाम दिया।
\s5
\c 2
\p
\v 1 यीशु का जन्म यहूदिया प्रांत के बैतलहम नगर में हुआ था, उस समय राजा हेरोदेस वहां शासन करता था। यीशु के जन्म के कुछ समय बाद, बहुत दूर पूर्व में से कुछ पुरुष जो तारों का अध्ययन करते थे यरूशलेम शहर में आए।
\v 2 उन्होंने लोगों से पूछा, “यहूदियों का राजा जिनका जन्म हुआ है कहाँ है? हमने पूर्व में एक तारा देखा है जो हमें दिखाता है कि उनका जन्म हुआ है, इसलिए हम उनकी आराधना करने आए हैं।”
\p
\v 3 जब राजा हेरोदेस ने सुना कि ये लोग क्या पूछ रहे थे, तो वह बहुत चिंतित हो गया। यरूशलेम के बहुत से लोग भी चिंतित हुए।
\s5
\v 4 फिर हेरोदेस ने सभी प्रधान याजकों और यहूदी व्यवस्था के शिक्षकों को बुलाया। उसने उनसे पूछा कि भविष्यद्वक्ता ने क्या भविष्यद्वाणी की थी कि मसीह का जन्म कहाँ होना था।
\v 5 उन्होंने उससे कहा, “वह यहाँ यहूदिया प्रांत में बैतलहम के नगर में जन्म लेंगे, क्योंकि भविष्यद्वक्ता मीका ने बहुत पहले लिखा था,
\v 6 “तुम जो यहूदा के देश में बैतलहम में रहते हो, तुम्हारा नगर निश्चित रूप से बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि तुम्हारे नगर का एक व्यक्ति शासक बन जाएगा। वह इस्राएल में रहनेवाले मेरे लोगों का मार्गदर्शन करेगा।”
\p
\s5
\v 7 तब राजा हेरोदेस ने चुपके से उन पुरुषों को बुलाया जिन्होंने तारों का अध्ययन किया था। उसने उनसे पूछा कि तारा सबसे पहले कब दिखाई दिया था।
\v 8 तब उसने उनसे कहा, “बैतलहम जाकर इस बालक के विषय में अच्छी तरह से पूछताछ करो कि वह कहाँ है। जब तुम बालक को खोज लो तो वापस आकर मुझे जानकारी देना जिससे कि मैं भी वहां जाकर उस बालक की आराधना करूं।”
\p
\s5
\v 9 वे लोग बैतलहम नगर की ओर चल दिये। उनके आश्चर्य के लिए, जब वे पूर्वी देश में थे तब उन्होंने जो तारा देखा था वह फिर से उनके आगे-आगे चला और उस घर के ऊपर जाकर ठहर गया जहाँ वह बालक था।
\v 10 जब उन्होंने तारे को देखा, तो वे बहुत आनन्दित हुए और उसके पीछे गए।
\s5
\v 11 उनको वह घर मिल गया और उन्होंने उसमें, प्रवेश किया, और बालक और उनकी माता, मरियम को देखा। उन्होंने भूमि पर घुटने टेके और उनकी आराधना की। तब उन्होंने अपने उपहार वाले बकसों को खोला और उन्होंने बालक को सोना, महंगा लोबान और गंधरस भेंट किया।
\v 12 तब परमेश्वर ने उनको सपने में चेतावनी दी कि राजा हेरोदेस के पास वापस न जाएँ। इसलिए वे अपने देश के लिए रवाना हुए, लेकिन उसी रास्ते पर वापस जाने की अपेक्षा, वे दूसरे रास्ते से होकर चले गए।
\p
\s5
\v 13 तारों का अध्ययन करने वाले पुरुषों के बैतलहम से जाने के बाद, प्रभु का एक स्वर्गदूत सपने में यूसुफ को दिखाई दिए। स्वर्गदूत ने कहा, “उठ बालक और उनकी माता को लेकर मिस्र देश को भाग जा। जब तक मैं तुझे वहाँ से निकलने को न कहूँ तब तक वहीं रहना, क्योंकि राजा हेरोदेस सैनिकों को भेजने पर है कि वे बालक को ढूँढकर उन्हें मार दे।”
\v 14 इसलिए यूसुफ उसी रात उठा गया; उसने बालक और उनकी माता को लिया, और वे मिस्र को भाग गए।
\v 15 जब तक राजा हेरोदेस नहीं मरा, तब तक वे वहां रहे, और फिर उन्होंने मिस्र छोड़ दिया। इस प्रकार, परमेश्वर ने हौशे भविष्यद्वक्ता को जो लिखने के लिये कहा था, वह सच हो गया, “मैंने अपने पुत्र को मिस्र से बाहर आने के लिए बुलाया है।”
\p
\s5
\v 16 राजा हेरोदस की मृत्यु से पहले, उसने महसूस किया कि उन पुरुषों ने उसे धोखा दिया है, और वह क्रोधित हो गया। उसने सोचा कि यीशु अभी भी बैतलहम में थे, इसलिए हेरोदेस ने वहाँ सैनिकों को भेजा कि वे दो साल के और उससे छोटे सभी लड़कों को मार डालें। तारे के सबसे पहले दिखने के समय को तारों का अध्ययन करने वाले पुरुषों के बताने के अनुसार हेरोदेस ने अनुमान लगाया कि बालक की आयु कितनी थीं।
\s5
\v 17 जब हेरोदेस ने ऐसा किया, तो भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह ने बहुत समय पहले जो लिखा था, वह सच हो गया, जब उन्होंने रामा नगर के पास के बैतलहम के विषय में लिखा था:
\q
\v 18 रामा की स्त्रियाँ विलाप कर रही थीं और चीख-चीखकर रो रही थीं।
\q उन स्त्रियों की पूर्वज, राहेल अपने मृत बच्चों के लिए रो रही थीं।
\q लोग उसे दिलासा देने का प्रयास करते थे, लेकिन वे नहीं कर सके, क्योंकि उसके सभी बच्चे मर चुके थे।
\p
\s5
\v 19 हेरोदस के मरने के बाद और जब यूसुफ और उसका परिवार मिस्र में ही था, परमेश्वर ने एक स्वर्गदूत को भेजा जो यूसुफ को सपने में दिखाई दिया। स्वर्गदूत ने यूसुफ से कहा,
\v 20 “उठ और बालक और उनकी माता को लेकर इस्राएल के देश में रहने के लिए वापस चला जा, क्योंकि जो लोग बालक को मारने को प्रयास कर रहे थे, वे मर चुके हैं।”
\v 21 तब यूसुफ ने बालक और उनकी माँ को लिया, और वे वापस इस्राएल लौट गए।
\s5
\v 22 जब यूसुफ ने सुना कि अरखिलाउस अब अपने पिता, राजा हेरोदेस महान के स्थान पर यहूदिया प्रांत में शासन करता है, तो वह वहां जाने से डरता था। तब परमेश्वर ने यूसुफ को एक सपने में निर्देश दिया कि उसे क्या करना चाहिए, इसलिए यूसुफ, मरियम और बालक को लेकर गलील जिले में चला गया।
\v 23 वे रहने के लिए नासरत नगर में गए। और जो भविष्यद्वक्ताओं ने बहुत पहले कहा था वह सच हो गया: “लोग कहेंगे कि वह नासरत का है।”
\s5
\c 3
\p
\v 1 जब यीशु अभी नासरत के नगर में ही थे, यूहन्ना, जिसे लोग बपतिस्मा देनेवाला कहते थे, यहूदिया प्रांत के एक वीरान स्थान में गया। वह वहां आए हुए लोगों में प्रचार कर रहा था। वह कह रहा था,
\v 2 "तुम्हें पाप करना त्याग देना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर का शासन जो स्वर्ग से है, वह निकट है, और यदि तुम पाप करना नहीं त्याग ते हो तो वह तुम्हें अस्वीकार करेंगे ।"
\v 3 जब यूहन्ना ने प्रचार करना शुरू किया, तो यशायाह भविष्यद्वक्ता ने जो बहुत समय पहले कहा था वह सच हुआ। उन्होंने कहा था, "जंगल में लोग किसी को चिल्लाते हुए सुनते हैं, कि जब प्रभु आते हैं तो उन्हें स्वीकार करने के लिए तैयार हो जाओ! उनके लिए सब कुछ तैयार करो!"
\p
\s5
\v 4 यूहन्ना ऊंट के बाल से बने कपड़े पहनता था। जैसे एलिय्याह भविष्यद्वाक्ता ने बहुत पहले किया था, वह अपनी कमर पर ओर एक चमड़े का पट्ठा बाँधता था। उसका खाना केवल टिड्डियाँ और शहद था जो उसे जंगल में मिलता था।
\v 5 यरूशलेम शहर में रहने वाले लोग, यहूदिया जिले के अन्य स्थानों पर रहने वाले बहुत से लोग, और बहुत से अन्य लोग जो यरदन नदी के पास रहते थे, यूहन्ना के पास प्रचार सुनने के लिए आए।
\v 6 जब उन्होंने उसे सुना, तो उन्होंने अपने पापों को खुलकर स्वीकार किया, और फिर उसने उन्हें यरदन नदी में बपतिस्मा दिया।
\p
\s5
\v 7 परन्तु यूहन्ना ने बहुत से फरीसियों और सदूकियों को देखा जो उसके पास बपतिस्मा लेने के लिए आ रहे थे। उसने उनसे कहा, "तुम लोग जहरीले सांपों के बच्चे हो! क्या किसी ने भी तुम्हें चेतावनी नहीं दी कि एक दिन परमेश्वर सब को जो पाप करते हैं दण्ड देंगे ? मत सोचो तुम उस से बच सकते हो!
\v 8 यदि तुमने वास्तव में पाप करना बंद कर दिया है, तो इसे दिखाने के लिए सही काम करो।
\v 9 मुझे पता है कि परमेश्वर ने अब्राहम के वंशजों के साथ रहने की प्रतिज्ञा की थी। परन्तु अपने आप से यह मत कहो, क्योंकि हम अपने पूर्वज अब्राहम के वंशज हैं, इसलिए हमारे पाप करने के उपरान्त भी परमेश्वर हमें दण्ड नहीं देंगे। नहीं! मैं तुमसे कहता हूँ कि वह इन पत्थरों को अब्राहम के वंश में बदल सकते हैं!
\s5
\v 10 परमेश्वर इसी समय एक ऐसे पुरुष के समान तुम्हे दण्ड देने के लिए तैयार हैं जो उस पेड़ की जड़ों को काटना शुरू कर देता है जो अच्छे फल नहीं देता, हैं। वह ऐसे हर एक पेड़ को काट देंगे और आग में फेंक देंगे।"
\p
\v 11 " मैं स्वयं बहुत महत्वपूर्ण नहीं हूँ, क्योंकि मैं तुम्हें केवल पानी से बपतिस्मा देता हूं। मैं ऐसा तब करता हूँ, जब लोगों को अपने पापों का पछतावा होता है। लेकिन कोई हैं और वह शीघ्र ही आएंगे जो बहुत शक्तिशाली काम करेंगे। वह मेरी तुलना में अधिक महान हैं, मैं उनकी जूतियाँ उठाकर ले जाने के लायक भी नहीं हूँ।
\p वह पवित्र आत्मा और आग से तुम्हें बपतिस्मा देंगे।
\v 12 वह अपना सूप पकड़े हुए हैं, और भूसे से अच्छे अनाज को अलग करने के लिए तैयार हैं। वह भूसे को उस स्थान से बाहर निकालने के लिए तैयार हैं जहाँ पर उन्होंने अनाज को इकट्ठा किया है। जैसे एक किसान अपने गेहूं को अपने गोदाम में डालता है, वैसे ही वह धर्मी लोगों को घर ले जाएंगे; परन्तु जैसे कोई भूसी को जलाता है, वैसे ही वह दुष्ट लोगों को ऐसी आग में जला देंगे, जो कभी नहीं बुझती।"
\s5
\v 13 उस समय, यीशु गलील के जिले से यरदन नदी तक गए, जहां यूहन्ना था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि यूहन्ना उन्हें बपतिस्मा दे।
\v 14 जब यीशु ने यूहन्ना को बपतिस्मा देने के लिए कहा, तो यूहन्ना ने मना कर दिया; उसने कहा, "मुझे आपसे बपतिस्मा लेने की आवश्यक्ता है! आप तो पापी नहीं हो, तो आप मेरे पास क्यों आए हो?"
\v 15 लेकिन यीशु ने उस से कहा, "अब मुझे बपतिस्मा दे, क्योंकि इस प्रकार हम दोनों परमेश्वर की इच्छा को पूरा करेंगे।" तब यूहन्ना उन्हें बपतिस्मा देने के लिए सहमत हो गया।
\p
\s5
\v 16 उसके बाद, यीशु तुरंत पानी से निकले। तभी ऐसा हुआ कि आकाश खुल गया, और यीशु ने देखा कि परमेश्वर के आत्मा नीचे आ रहे हैं और कबूतर के रूप में आकर उनके ऊपर बैठ गए हैं।
\v 17 फिर स्वर्ग से परमेश्वर ने कहा, "यह मेरा पुत्र है, मैं इससे प्रेम करता हूँ, और मैं इससे बहुत प्रसन्न हूँ।"
\s5
\c 4
\p
\v 1 फिर परमेश्वर के आत्मा यीशु को शैतान द्वारा परीक्षा के लिए जंगल में ले गए।
\v 2 चालीस दिन तक, दिन और रात खाना न खाने के कारण, उन्हें भूख लगी थीं।
\v 3 परखनेवाला शैतान, उनके पास आया और कहा, "अगर तू वास्तव में परमेश्वर का पुत्र हैं', तो इन पत्थरों को आज्ञा दे कि वे रोटी बन जाएँ !"
\v 4 परन्तु यीशु ने उस से कहा, "नहीं, मैं ऐसा नहीं करूँगा, क्योंकि परमेश्वर ने धर्मशास्त्र में कहा है, 'लोगों को वास्तव में जीवित रहने के लिए, भोजन से भी अधिक परमेश्वर द्वारा कहे गए हर एक वचन को सुनना आवश्यक है।' "
\s5
\v 5 तब शैतान यीशु को यरूशलेम ले गया, जो परमेश्वर का विशेष नगर था। उसने उन्हें आराधनालय के सबसे ऊँचे स्थान पर खड़ा किया
\v 6 और उनसे कहा, "यदि तू वास्तव में परमेश्वर का पुत्र हैं, तो यहाँ से नीचे कूद जा। तुझे निश्चय ही चोट नहीं लगेगी, क्योंकि परमेश्वर ने धर्मशास्त्र में कहा है, 'परमेश्वर तेरी रक्षा करने के लिए अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देंगे। जब तू गिरेगा, तब वे तुझे अपने हाथों में उठा लेंगे, और वे तेरे पैरों को पत्थर से टकराने से भी बचाएंगे।"
\s5
\v 7 परन्तु यीशु ने कहा," नहीं, मैं नीचे नहीं कूदूँगा, क्योंकि परमेश्वर ने धर्मशास्त्र में यह भी कहा है, 'ऐसा प्रयास मत कर कि परमेश्वर अपने आप को सिद्ध करे कि वह कौन है।'
\v 8 तब शैतान उन्हें एक बहुत ही ऊँचे पर्वत के ऊपर ले गया। वहां उसने उन्हें संसार के सब देशों और उन देशों की भव्य वस्तुओं को दिखाया।
\v 9 तब उसने उनसे कहा, मैं तुझे इन सब देशों पर शासन करने और उसमें की सब भव्य वस्तुएँ दूँगा, यदि तू झुक कर मेरी उपासना करें।
\s5
\v 10 परन्तु यीशु ने उस से कहा, "नहीं, शैतान मैं तेरी उपासना नहीं करूँगा, इसलिए चला जा! परमेश्वर ने धर्मशास्त्र में कहा है, 'तू केवल अपने परमेश्वर यहोवा के आगे झुकना, और उन की ही उपासना करना!'"
\v 11 तब शैतान चला गया, और उसी समय, स्वर्गदूत यीशु के पास आए और उनकी सेवा करने लगे।
\p
\s5
\v 12 जब यीशु यहूदिया प्रांत में थे, तो यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के शिष्य उनके पास आए। और उनसे कहा कि हेरोदेस ने यूहन्ना को जेल में डाल दिया है। तब यीशु गलील जिले के नासरत नगर में लौट आए।
\v 13 फिर नासरत से निकलकर वह कफरनहूम नगर में वहां रहने के लिए चले गए। कफरनहूम गलील की झील के पास, उस क्षेत्र में स्थित है, जो पहले जबूलून और नप्ताली के गोत्रों का था।
\s5
\v 14 वह वहां गए, कि भविष्यद्वक्ता यशायाह ने बहुत पहले जो लिखा था, वह सच हो जाए:
\v 15 "जबूलून और नप्ताली के क्षेत्र, यरदन नदी के पूर्वी हिस्से पर, झील की ओर जाने वाली सड़क से, गलील के क्षेत्रों में, कई गैर इस्राएलियों के घर थे!
\v 16 जो लोग परमेश्वर को नहीं जानते, ऐसे थे जैसे कि वे अंधेरे में हैं, परन्तु वे सच्चाई को जानेंगे, जैसे कि एक तीव्र प्रकाश उन पर चमका था। हाँ, वे मरने से बहुत डरते हैं, परन्तु एक तीव्र प्रकाश उन पर चमका है!"
\p
\s5
\v 17 उस समय, यीशु कफरनहूम शहर में थे, उन्होंने लोगों में प्रचार करना शुरू किया, "स्वर्ग के परमेश्वर का शासन निकट हैं, और जब वह शासन करेंगे, तब वह तुम्हारा न्याय करेंगे। इसलिए पाप करना त्याग दो!
\p
\s5
\v 18 एक दिन जब यीशु गलील की झील के किनारे से जा रहे थे, तब उन्होंने दो पुरुषों को देखा, शमौन जो बाद में पतरस कहलाया और उसका छोटा भाई अन्द्रियास। वे अपने मछली पकड़ने के जाल को पानी में डाल रहे थे क्योंकि वे मछली पकड़कर बेचते थे।
\v 19 यीशु ने उनसे कहा, "मेरे साथ आओ और मैं तुम्हें सिखाऊंगा कि कैसे मेरे शिष्य बनाने के लिए लोगों को एकत्र करना है। मैं तुम्हें मनुष्य को पकड़ने वाला बनाऊँगा।
\v 20 उन्होंने तुरंत उस काम को जो वे कर रहे थे छोड़ दिया और यीशु के साथ चले गए।
\p
\s5
\v 21 जैसे ही वे तीनों वहां से आगे की ओर बढ़े, यीशु ने दो अन्य पुरुषों, याकूब और याकूब के छोटे भाई यूहन्ना को देखा। वे अपनी नाव में अपने पिता जब्दी के साथ थे, और अपने मछली पकड़ने के जाल को सुधार रहें थे। यीशु ने उन्हें कहा कि उन्हें अपना काम छोड़कर उनके साथ जाना चाहिए।
\v 22 वे तुरंत अपनी नाव और अपने पिता को छोड़कर यीशु के साथ चले गए।
\p
\s5
\v 23 यीशु गलील जिले के सब स्थानों में इन चारों लोगों को लेकर गए। वह आराधनालयों में लोगों को शिक्षा देते रहे। वह परमेश्वर के शासन के विषय में सुसमाचार प्रचार कर रहे थे। वह सब बीमार लोगों को भी चंगा कर रहे थे।
\v 24 जब सीरिया जिले के अन्य भागों में रहने वाले लोगों ने यह सुना कि वह क्या कर रहे हैं, तो वे बीमारों को उनके पास लेकर आए जो ऐसे लोग थे जो कई प्रकार के रोगों से पीड़ित थे, जो लोग गंभीर पीड़ा से परेशान थे, जो लोग दुष्ट-आत्मा के वश में थे, जो लोग मिरगी के रोगी थे, और जो लोग लंगड़े थे और यीशु ने उन्हें स्वस्थ किया।
\v 25 फिर बड़ी भीड़ उनके साथ चलने लगी। वे लोग गलील से, दस शहरों से, यरूशलेम शहर में से, यहूदिया प्रांत के अन्य भागों से, और यरदन नदी के पूर्वी क्षेत्रों से थे।
\s5
\c 5
\p
\v 1 जब यीशु ने भीड़ को देखा, तो वह पहाड़ पर चढ़ गए। उन्होंने वहां बैठकर अपने पीछे आनेवालों को शिक्षा दीं। वे उनकी बात सुनने के लिए उनके पास आए,
\v 2 तब उन्होंने उन्हें यह कहकर शिक्षा देना आरंभ किया,
\v 3 "परमेश्वर उन लोगों से प्रसन्न हैं जो स्वीकार करते हैं कि उन्हें उनकी आवश्यकता हैं; वह स्वर्ग से उन पर शासन करने के लिए तैयार होंगे।
\v 4 परमेश्वर इस पापी दुनिया के कारण शोक करने वाले लोगों से प्रसन्न हैं; वह उन्हें प्रोत्साहित करेंगे।
\s5
\v 5 परमेश्वर नम्र लोगों से प्रसन्न हैं; वे उस धरती के वारिस होंगे जिसे परमेश्वर नया बनाएंगे।
\v 6 परमेश्वर उन लोगों से प्रसन्न हैं जो न्यायपूर्वक जीने की उतनी तीव्र इच्छा रखते हैं जैसे कि कोई खाने और पीने की इच्छा रखता है, वह उन्हें न्यायपूर्वक जीने में सक्षम करेंगे।
\v 7 परमेश्वर उन लोगों से प्रसन्न हैं जो दूसरों के प्रति दया दर्शाते हैं; वह उन पर दया करेंगे।
\v 8 परमेश्वर उन लोगों से प्रसन्न हैं जो वही करने का प्रयास करते हैं जो परमेश्वर को प्रसन्न करे; किसी दिन वे वहाँ होंगे जहां परमेश्वर हैं और उन्हें देखेंगे।
\s5
\v 9 परमेश्वर उन लोगों से प्रसन्न हैं जो शान्ति से रहने के लिए अन्य लोगों की सहायता करते हैं; वह अपनी सन्तान के समान उनका सम्मान करेंगे।
\v 10 परमेश्वर उन लोगों से प्रसन्न हैं जो धार्मिकता से रहते हैं; परमेश्वर सम्मानित होते हैं जब उनके धर्मी जीवन के कारण, बुरे लोग उनका अपमान करते हैं और उनके साथ बुरा व्यवहार करते हैं। परमेश्वर स्वर्ग से इन्हीं धर्मी लोगों पर शासन करते हैं।
\s5
\v 11 परमेश्वर तुमसे प्रसन्न हैं जब अन्य लोग तुम्हारा अपमान करते हैं; और जब वे तुम्हारे साथ बुराई करते हैं और जब वे तुम्हारे विषय में झूठ बोलते हैं, और कहते हैं कि तुम बुरे हो, तो उन्हें सम्मान मिलता हैं।
\v 12 जब ऐसा होता है, तो आनन्दित और प्रसन्न होना, क्योंकि परमेश्वर तुमको स्वर्ग में एक बड़ा प्रतिफल देंगे। स्मरण रखो, इसी प्रकार उन्होंने भविष्यद्वक्ताओं को भी सताया था, जो बहुत समय पहले रहते थे।
\p
\s5
\v 13 भोजन के लिए नमक जो करता है, वही तुम दुनिया के लिए करोगे। लेकिन अगर नमक अपना गुण खो देता है, तो कोई भी उसे फिर से अच्छा नहीं कर सकता। लोग उसे बाहर फेंक देते हैं और उस पर चलते हैं।
\v 14 अंधेरे में लोगों के लिए प्रकाश जो करता है, वही तुम दुनिया के लिए करोगे। जैसे एक पर्वत की ढलान पर बने शहर को लोग देखते हैं, वैसे ही सारे लोग तुमको देख पाएंगे।
\s5
\v 15 कोई भी दीपक को जला कर उसे टोकरी के नीचे नहीं रखता है। इसकी अपेक्षा, वे उसे रोशनदान पर रखते हैं जिससे कि वह घर में सब को प्रकाश दे सके।
\v 16 इसी प्रकार तुम्हें सही कामों को करने की आवश्यक्ता है कि अन्य लोग तुम्हारे काम को देख सकें। जब वे उन्हे देखेंगे, तो वे तुम्हारे पिता की जो स्वर्ग में है, स्तुति करेंगे।"
\p
\s5
\v 17 "तुम यह नहीं मानना कि मैं भविष्यद्वक्ताओं की लिखी बातों को या उन नियमों को दूर करने के लिए आया हूँ जो परमेश्वर ने मूसा को दिए थे। इसकी अपेक्षा, मैं उन बातों का पुरे करने के लिए आया हूँ जो कही गई थी कि होंगी।
\v 18 यह एक सच्ची बात है: परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को हटा सकते हैं, लेकिन परमेश्वर उन नियमों में से कुछ भी नहीं हटाएंगे, यहां तक कि छोटी से छोटी बात या छोटे से छोटा बिन्दु, जब तक कि परमेश्वर सब कुछ जो उन नियमों में कहा गया है पूरा न करे जैसा कि उन्होंने कहा था कि होगा।
\s5
\v 19 क्योंकि यह सच है, कि यदि तुम सबसे कम महत्वपूर्ण आज्ञाओं को तोड़ते हो, तो तुम स्वर्ग में परमेश्वर के शासन में सब से कम महत्वपूर्ण व्यक्ति होगे। परन्तु यदि तुम इन सब आज्ञाओं को मानते हो और दूसरों को परमेश्वर की आज्ञा मानना सिखाते हो, तो तुम स्वर्ग में परमेश्वर के शासन में बहुत महत्वपूर्ण होगे।
\v 20 मैं तुमसे कहता हूँ कि व्यवस्था के शिक्षकों के मुकाबले तुम्हें उन नियमों का अधिक पालन करना चाहिए, और जो सही है उसे तुम्हें अपने दिल से करना चाहिए। और तुम्हें फरीसियों से बेहतर करना चाहिए वरना तुम कभी भी परमेश्वर के स्वर्ग राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे।
\p
\s5
\v 21 "दूसरों ने तुम्हें बताया है कि परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों से कहा था, 'तुम्हें किसी की हत्या नहीं करनी चाहिए' और 'यदि तुम किसी की हत्या करते हो, तो न्यायालय के अधिकारी तुम्हें दण्ड दे सकते हैं।'
\v 22 परन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि यदि तुम किसी पर क्रोध करोगे, तो परमेश्वर स्वयं तुम्हारा न्याय करेंगे। अगर तुम किसी से कहते हो, 'तुम बेकार हो,' तो न्यायालय के अधिकारी तुम्हारा न्याय करेंगे। यदि तुम किसी से कहते हो, 'तुम मूर्ख हो,' तो परमेश्वर तुम्हें नरक की आग में डाल देंगे।
\s5
\v 23 जब तुम परमेश्वर के लिए अपना उपहार वेदी पर लाते हो, और यदि तुम्हे स्मरण होता है कि तुमने किसी को अप्रसन्न किया है,
\v 24 तो वेदी पर अपना उपहार छोड़ दो, और पहले जिस व्यक्ति को तुमने अप्रसन्न किया है उसके पास जाओ। उस व्यक्ति को बताओ कि तुमने जो किया उसके लिए तुम्हें पछतावा है, और उस व्यक्ति से क्षमा मांगों । फिर वापस जाओ और परमेश्वर को अपनी भेंट चढाओ।
\s5
\v 25 यदि कोई व्यक्ति तुम्हारे कुछ गलत करने पर तुम पर आरोप लगाकर न्यायालय में ले जाता है, तो उस व्यक्ति के साथ शीघ्र ही समझौता कर लो, जब तुम उस व्यक्ति के साथ न्यायालय जाने के रास्ते में ही हो। समय रहते ऐसा करो जिससे कि वह तुम्हें न्यायाधीश के पास न ले जाए, क्योंकि न्यायाधीश कह सकता है कि तुम दोषी हो और तुम को बन्दीगृह के रखवाले के हाथ में सौंप देगा, और बन्दीगृह का रखवाला तुमको बन्दीगृह में डाल देगा।
\v 26 ध्यान रखो: यदि तुम बन्दीगृह में डाले जाते हो, तो तुम कभी बाहर नहीं निकल पाओगे क्योंकि तुम कभी भी उस न्यायधीश द्वारा निरधारित जुर्माने का भुगतान नहीं कर पाओगे। इसलिए अपने भाइयों के साथ शान्ति बनाए रखो।"
\p
\s5
\v 27 "तुमने सुना है कि परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों से कहा था, 'व्यभिचार न करना।'
\v 28 परन्तु मैं तुम से कहता हूँ कि यदि कोई पुरुष किसी स्त्री को उसके साथ सोने की मनसा से देखे, तो परमेश्वर की दृष्टि में वह पुरुष उसके साथ अपने मन में ही व्यभिचार कर चुका है।
\s5
\v 29 यदि तुम किसी वस्तु को देखकर पाप करना चाहते हो, तो उनको देखना बन्द करो। यहां तक कि अगर तुमको अपनी दोनों आँखों को नष्ट करना पड़े, तो ऐसा करो, यदि ऐसा करने से तुम पाप करने से बचने में सक्षम हो जाओ क्योंकि अंधा होना और पाप करना छोड़ देना उत्तम होगा, अपेक्षा इसके कि परमेश्वर तुम्हें आँख रहते हुए नरक में डाल दें।
\v 30 और यदि तुम्हारे हाथों में से कोई एक तुमसे पाप करवाता है, तो अपने हाथ का उपयोग करना बंद कर दो। यहां तक कि अगर तुम्हें अपना हाथ काट कर फेंक देना पड़े, तो ऐसा करो, यदि ऐसा करके तुम पाप करने से बचने में सक्षम हो जाओ। अपने शरीर का एक हिस्सा खोना अधिक उत्तम होगा, अपेक्षा इसके कि परमेश्वर तुम्हारे पूरे शरीर को नरक में डाल दे।"
\p
\s5
\v 31 "परमेश्वर ने धर्मशास्त्र में कहा है, 'यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को तलाक दे रहा है, तो वह एक दस्तावेज लिखे जिस पर वह बताए कि वह उसे तलाक दे रहा है।'
\v 32 परन्तु अब जो मैं तुम से कहता हूँ, सुनो: कोई पुरुष अपनी पत्नी को केवल तभी तलाक दे सकता है जब उसने व्यभिचार किया हो। अगर कोई व्यक्ति किसी अन्य कारण से अपनी पत्नी को तलाक देता है, और अगर वह किसी और से विवाह कर लेती है तो वह व्यभिचार करती है और जो व्यक्ति उससे विवाह करता है वह भी व्यभिचार करता है।"
\p
\s5
\v 33 "तुमने यह भी सुना है कि बहुत पहले लोगों को बताया गया था, 'तुमको कभी झूठ बोलकर शपथ नहीं खानी चाहिए! इसकी अपेक्षा, तुमको अपने प्रतिज्ञा को ऐसे पूरा करना चाहिए जैसे कि तुम तब करते जब परमेश्वर स्वयं तुम्हारे सामने खड़े होते।'
\v 34 अब मैं तुम्हें कुछ और कहूंगा: किसी भी कारण शपथ न खाना! अपनी बात को पक्का करने के लिए स्वर्ग का नाम न लेना जहाँ परमेश्वर रहता है। क्योंकि स्वर्ग उनका महान सिंहासन है और वहां से वह सब चीजों पर शासन करते हैं।
\v 35 और अपनी शपथ के लिए धरती को गवाह नहीं बनाना। ऐसा मत करना, क्योंकि धरती वह स्थान है जहां परमेश्वर अपने पाँवों को रखते हैं। कभी यरूशलेम शहर की शपथ न खाना, क्योंकि यरूशलेम हमारे महान राजा परमेश्वर का नगर है।
\p
\s5
\v 36 इसके अतिरिक्त, यह प्रतिज्ञा नहीं करना कि तुम कुछ करोगे और फिर कहो कि अगर तुम ऐसा नहीं करो तो लोग तुम्हारा सिर काट दें। तुम ऐसी महत्वपूर्ण प्रतिज्ञा कैसे कर सकते हो, जब कि तुम अपने सिर के एक बाल का रंग भी बदल नहीं सकते।
\v 37 यदि तुम कुछ करने के विषय में बात करते हो, तो बस कहो 'हाँ, मैं यह करूँगा' या 'नहीं, मैं यह नहीं करूँगा।' यदि तुम उससे अधिक कुछ कहते हो, तो वह बुराई करने वाला शैतान है जिसने तुम्हें यह सुझाव दिया है कि तुम इस तरह से बात करो।"
\p
\s5
\v 38 "तुमने सुना है कि हमारे पूर्वजों को बताया गया था, "यदि किसी ने तुम्हारी आँखों में से किसी एक को नुकसान पहुंचाया है, तो उन्हें भी उस व्यक्ति की आँखों में से एक को नुकसान पहुंचाना है। और यदि कोई तुम्हारे दांतों को हानि पहुँचाता है, तो उन्हें भी उस व्यक्ति के दांत को हानि पहुँचाना है।'
\v 39 परन्तु अब जो मैं तुम से कहता हूँ सुनो: जो कोई तुम्हें हानि पहुँचाए, उस से बदला लेना तो छोड़ो, उसे रोकने का प्रयास भी मत करो। इसकी अपेक्षा, यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारकर तुम्हारा अपमान करता है, तो अपना दूसरा गाल उस व्यक्ति की तरफ कर दो ताकि वह उस पर भी मार दे।
\s5
\v 40 यदि कोई तुम्हारा अंगरखा लेने के लिए न्यायालय में तुम पर मुकदमा करना चाहता है, तो उस व्यक्ति को अपना अंगरखा और अपना बाहरी वस्त्र दोनों उतारकर दे दो, जो तुम्हारे लिए और भी अधिक मूल्यवान है।
\v 41 और यदि कोई रोमी सैनिक तुम्हें उसका सामान उठाकर उसके साथ एक मील जाने के लिए विवश करता है, तो उसे दो मील तक ले जाओ।
\v 42 अतिरिक्त यदि अगर कोई तुमसे कुछ माँगता है, उसे दे दो। अगर कोई तुमसे कुछ उधार देने के लिए कहता है, तो आगे बढ़ो और उसे उधार दे दो। "
\p
\s5
\v 43 "तुमने सुना है कि परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों से कहा था, "अपने भाई इस्राएलियों से प्रेम करो और विदेशियों से घृणा करो, क्योंकि वे तुम्हारे शत्रु हैं।"
\v 44 परन्तु अब जो मैं तुमसे कहता हूँ, सुनो: अपने शत्रुओं से अपने मित्रों के समान प्रेम करो, और उन लोगों के लिए प्रार्थना करो, जो तुम्हें दुख पहुंचाते हैं।
\v 45 परमेश्वर, तुम्हारे पिता जो स्वर्ग में है, उनके जैसा बनने के लिए ऐसा करो। वह सब लोगों पर दया करते हैं। उदाहरण के लिए, वह सूर्य को दुष्ट लोगों और अच्छे लोगों पर समान रूप से चमकने के लिए उगाते हैं, और वह उन सभी लोगों के लिए बारिश भेजते हैं, जो उनके व्यवस्था का पालन करते हैं और जो लोग नहीं करते हैं।
\s5
\v 46 यदि तुम केवल उन लोगों से प्रेम करते हो जो तुमसे प्रेम करते हैं, तो यह आशा नहीं करना कि परमेश्वर तुमको प्रतिफल देंगे! यहां तक कि ऐसे लोग जो बुरे काम करते हैं, जैसे कर वसूलने वाले, वे भी उनसे प्रेम करते हैं जो उन्हें प्रेम करते हैं। तुमको तो उनसे बेहतर करना चाहिए!
\v 47 हाँ, और यदि तुम केवल अपने मित्रों को नमस्कार करते हो और परमेश्वर से उन्हें आशीर्वाद देने के लिए कहते हो, तो तुम अन्य लोगों की तुलना में कुछ भी अच्छा काम नहीं कर रहे हो। गैर-यहूदी भी, जो परमेश्वर के व्यवस्था का पालन नहीं करते, ऐसा ही काम करते हैं!
\v 48 अत: तुम्हें अपने परमेश्वर पिता के प्रति, जो स्वर्ग में है उनके प्रति पूर्ण विश्वासयोग्य रहना है, जैसे वह तुम्हारे साथ पूरी तरह विश्वासयोग्य हैं।"
\s5
\c 6
\p
\v 1 "निश्चित करो कि जब तुम अच्छे कर्म करते हो तो इसलिये नहीं कर रहे हो कि लोग देखें कि तुम क्या करते हो। यदि तुम दिखावे के लिए भले काम करते हो, तो परमेश्वर तुम्हारे पिता जो स्वर्ग में है, तुम्हें इसका कोई प्रतिफल नहीं देंगे।
\v 2 इसलिए जब भी तुम गरीबों को कुछ देते हो, तो दूसरे लोगों को न दिखाओ, ऐसा न लगे कि जैसे तुरही बजा रहे हो। ऐसा काम ढ़ोंगी लोग सभाओं और मुख्य सड़कों में करते हैं ताकि लोग उनकी प्रशंसा कर सकें। यही एकमात्र प्रतिफल है जो उन कपटियों को मिलेगा!
\s5
\v 3 उनकी तरह ऐसा करने की अपेक्षा, जब तुम गरीबों को कुछ देते हो, तो अन्य लोगों को यह पता न चले कि तुम क्या कर रहे हो।
\v 4 इस प्रकार, तुम गुप्त रूप से गरीबों की सहायता करोगे। परिणामस्वरुप, जब कोई तुम्हें नहीं देखता, तो परमेश्वर, तुम्हारे पिता जो तुम्हें देखते हैं, तुम्हें प्रतिफल देंगे।
\p
\s5
\v 5 "जब भी तुम प्रार्थना करो, तो कपटियों के समान मत करो। वे प्रार्थना करने के लिए सभाओं और मुख्य सड़कों के कोनों पर खड़े रहना पसंद करते हैं, कि लोग उन्हें देख सकें और उन्हें अत्यधिक महान समझें। वे केवल यही प्रतिफल प्राप्त करेंगे।
\v 6 परन्तु जब तुम प्रार्थना करो, तो अपने निजी कमरे में जाकर द्वार बंद करके परमेश्वर अपने पिता से प्रार्थना करो, जिन्हें कोई नहीं देख सकता है। वह तुम पर ध्यान देंगे और तुम्हें प्रतिफल देंगे।
\v 7 जब तुम प्रार्थना करो, तो शब्दों को बार-बार मत दोहराना, क्योंकि ऐसी प्रार्थना वे लोग करते हैं जो परमेश्वर को नहीं जानते।
\s5
\v 8 शब्दों को बार-बार न दोहराएं, जैसे वे करते हैं, क्योंकि परमेश्वर तुम्हारे पिता तुम्हारे माँगने से पहले जानते हैं' कि तुम्हें क्या चाहिए।
\v 9 अत: इस प्रकार प्रार्थना करो: 'हे पिता, आप जो स्वर्ग में हैं, सब लोग आपका सम्मान करें।
\v 10 आप सब के ऊपर और सब कुछ पर पूर्ण शासन करें। जैसा आप चाहें, वैसे ही सब कुछ धरती पर हो, ठीक वैसे जैसे स्वर्ग में होता है।
\s5
\v 11 हमें प्रतिदिन का भोजन दें जिसकी हमें इस दिन आवश्यकता है।
\v 12 हमारे पापों को वैसे ही क्षमा करें जैसे हम उन लोगों को क्षमा करते हैं जिन्होंने हमारे विरुद्ध पाप किए हैं।
\v 13 जब हम परीक्षा में पड़ते हैं, तो हमे गलत काम करने न दें, और जब शैतान हमारी हानि करने का प्रयास करता है, तो हमें बचा लें।
\p
\s5
\v 14 जो लोग तुम्हारे विरुद्ध पाप करते हैं, उन्हें क्षमा कर दो, क्योंकि यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम्हारे पिता परमेश्वर जो स्वर्ग में हैं, तुम्हारे पापों को क्षमा करेंगे।
\v 15 परन्तु यदि तुम अन्य लोगों को क्षमा नहीं करते हो, तो परमेश्वर भी तुम्हारे पापों को क्षमा नहीं करेंगे।
\p
\s5
\v 16 जब तुम परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए भोजन नहीं करते हो, तो दु:खी नहीं दिखना, जैसे ढ़ोंगी दिखते हैं। वे अपना चेहरा उदास बना लेते हैं कि लोग यह देखें कि वे भोजन नहीं खा रहे हैं। ध्यान रखो कि उन लोगों को केवल यही प्रतिफल मिलेगा !
\v 17 इसकी अपेक्षा, तुम में से प्रत्येक, जब तुम भोजन नहीं करते हो, तो अपने बालों को कंघी करना और अपना चेहरा सदा के समान धोना,
\v 18 कि लोग यह न देखें कि तुम उपवास कर रहे हो। परन्तु परमेश्वर, तुम्हारे पिता, जिन्हें कोई नहीं देख सकता है, ध्यान देते हैं कि तुम खाना नहीं खा रहे हो। वह तुमको देखते हैं, भले ही कोई और तुमको नहीं देखता हो, और वह तुमको प्रतिफल देंगे।
\p
\s5
\v 19 स्वार्थी रूप से बड़ी मात्रा में धन और भौतिक वस्तुओं को इस धरती पर अपने लिए जमा न करो, क्योंकि पृथ्वी पर सब कुछ नाश हो जाता है- जहां कीड़ों द्वारा कपड़ों का विनाश होता है, जंग धातुओं को नष्ट कर देता है, और चोर अन्य लोगों का सामान चुराते हैं।
\v 20 इसकी अपेक्षा, ऐसे कार्य करो जो परमेश्वर को खुश कर दें कि तुम स्वर्ग में धन इकट्ठा कर सको। स्वर्ग में कुछ भी नाश नहीं होता है। स्वर्ग में कोई कीड़ा कपड़ों को नष्ट नहीं कर सकता है, वहाँ कोई जंग नहीं है, और वहाँ चोरी करने वाला कोई चोर नहीं है।
\v 21 याद रखो कि जो भी तुम्हारे लिए सबसे अधिक आवश्यक है, उसी के विषय में तुम सोचोगे।
\p
\s5
\v 22 "तुम्हारी आँखें तुम्हारे शरीर के लिए दीपक के समान हैं, क्योंकि वे देखने में तुम्हें सक्षम बनाती हैं। इसलिए यदि तुम ऐसे देखते हो जैसे परमेश्वर देखते हैं, तो उस से ऐसा होगा कि तुम्हारा पूरा शरीर प्रकाश से भरा हुआ होगा।
\v 23 लेकिन अगर तुम्हारी आंखें बुरी हैं, तो तुम चीजों को भलिभाँति देखने में सक्षम नहीं हो। तुम पूर्ण अंधेरे में होंगे। तुम कितने लालची हो जाओगे!
\p
\v 24 "कोई भी एक ही समय में दो अलग-अलग स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता है। यदि वह ऐसा करने का प्रयास करता है, तो वह उनमें से किसी एक से घृणा करता है और दूसरे से प्रेम करता है, या वह उनमें से एक के प्रति विश्वासयोग्य होगा और दूसरे के साथ धोखा करेगा। वैसे ही, तुम एक ही समय में परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते हो।"
\p
\s5
\v 25 यही कारण है कि मैं तुमसे कहता हूँ कि तुम्हें उन वस्तुओं के विषय में चिंता नहीं करनी चाहिए जिनकी तुमको जीवन जीने के लिए आवश्यक्ता है! चिंता न करो कि क्या तुम्हारे पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन होगा और पीने के लिए वस्तुएँ होंगी, या पहनने के लिए पर्याप्त कपड़े होंगे। तुम अपने जीवन का संचालन कैसे करते हो, वह इन सब वस्तुओं की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है।
\v 26 पक्षियों के विषय में सोचो। वे बीज नहीं बोते हैं, और वे फसल की कटाई नहीं करते या खत्तों में अनाज एकत्र नहीं करते हैं। वे सदा खाने के लिए भोजन पाते हैं क्योंकि परमेश्वर, तुम्हारे पिता जो स्वर्ग में हैं, उनके लिए भोजन देते हैं।
\s5
\v 27 तुम में से कोई भी चिंता करके, क्या अपने जीवन में कुछ वर्ष जोड़ सकता है। तुम अपने जीवन में एक पल भी नहीं जोड़ सकते हो! तो तुम्हें उन वस्तुओं के विषय में चिंता नहीं करना चाहिए जिनकी तुमको आवश्यकता है।
\p
\v 28 तुम्हें इस बात की भी चिंता नहीं करनी चाहिए कि तुम्हारे पास पहनने के लिए पर्याप्त कपड़े होंगे या नहीं। मैदानों में बढ़ने वाले फूलों के विषय में सोचो। वे पैसे कमाने के लिए काम नहीं करते, और वे अपने कपड़े नहीं बनाते।
\v 29 लेकिन मैं तुम्हें बताता हूँ कि, राजा सुलैमान, जो बहुत वर्ष पहले रहता था, बहुत सुंदर कपड़े पहनता था, उसके कपड़े उन फूलों में से किसी एक के समान सुन्दर न थे।
\s5
\v 30 परमेश्वर जंगली पौधों को बहुत सुंदर बनाते हैं, परन्तु वे मैदान में केवल कुछ समय के लिए बड़े होते हैं। एक दिन वे उगते हैं, और अगले दिन लोग उन्हें जलाने के लिए भट्ठी में डाल देंगे। परन्तु तुम जंगली पौधों की तुलना में परमेश्वर के लिए अधिक महत्वपूर्ण हो, और तुम बहुत लंबे समय तक जीवित रहते हो। तुम जो इतने कम विश्वास वाले हो, परमेश्वर पर भरोसा रखो!
\v 31 इसलिये चिंता करके मत कहो, 'क्या हमारे पास खाने के लिए कुछ होगा?' या 'क्या हमारे पास पीने के लिए कुछ होगा?' या 'क्या हमारे पास पहनने के लिए कपड़े होंगे?'
\s5
\v 32 जो लोग परमेश्वर को नहीं जानते, वे सदा ही ऐसी वस्तुओं के विषय में चिंता करते हैं। परन्तु परमेश्वर, तुम्हारे पिता जो स्वर्ग में है, जानते हैं कि तुम्हें उन सब चीजों की आवश्यक्ता है।
\v 33 इसकी अपेक्षा, इस बात को सबसे महत्वपूर्ण समझो कि परमेश्वर पूरी पृथ्वी पर शासन करे और हर एक जन वही करे जो परमेश्वर चाहते हैं। यदि तुम ऐसा करते हो, तो वह तुम्हें वह सभी वस्तुएँ देंगे जो तुमको चाहिए।
\v 34 इसलिए चिंता मत करो कि अगले दिन तुम्हारे साथ क्या होगा, क्योंकि जब वह दिन आएगा, तो तुम्हारे पास चिंता करने के पर्याप्त विषय होंगे। इसलिए समय से पहले चिंता मत करो।"
\s5
\c 7
\p
\v 1 इस के विषय में बात मत करो कि दूसरों ने कितने पाप किए हैं, जिससे कि परमेश्वर यह न कहे कि तुमने कितने पाप किए हैं।
\v 2 यदि तुम अन्य लोगों की निंदा करते हो, तो परमेश्वर तुम्हारी निंदा करेंगे। तुम दूसरों की जितनी निंदा करते हो, तुम्हारी भी उतनी निंदा की जाएगी।
\s5
\v 3 तुममें से किसी को भी किसी की छोटी गलतियों के विषय में चिंतित नहीं होना चाहिए! यह तो उस व्यक्ति की आंखों में भूसे के तिनके को देखने के समान होगा। लेकिन तुमको अपने खुद के बड़े दोषों के विषय में चिंतित होना चाहिए क्योंकि तुम अपनी आंखों के एक बड़ी लकड़ी के टुकड़े पर ध्यान नहीं देते।
\v 4 तुम्हें अन्य लोगों को उनके मामूली दोषों के विषय में नहीं टोकना चाहिए, 'मुझे तेरी आंखों से तिनका निकालने दे!' जबकि तुम्हारी अपनी आंखों में अभी भी एक लकड़ी का टुकड़ा है।
\v 5 यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम एक पाखंडी हो! किसी और की आंख से तिनका बाहर निकालने का प्रयास करने से पहले तुमको अपनी आंख से वह टुकड़ा बाहर निकालना चाहिए।"
\p
\s5
\v 6 "तुम परमेश्वर से संबंधित वस्तुएँ कुत्तों को नहीं देते जो तुम पर हमला करते हैं और तुम मूल्यवान मोतियों को सूअरों के सामने नहीं फेंकते, क्योंकि वे सिर्फ उन पर चलते हैं। इसी प्रकार, परमेश्वर के विषय में उन्हें अद्भुत बातें मत बताना जिन्हें तुम जानते हो कि वे बदले में तुम्हारे साथ बुराई करेंगे।
\p
\s5
\v 7 "तुमको जो आवश्यकता है उसके लिए परमेश्वर से माँगते रहो। और उनसे ही आशा रखो कि वह तुम्हें देंगे।
\v 8 जो कोई परमेश्वर से कुछ माँगता है, और जो उनसे आशा करता है कि वह उसे देंगे, उसे वह अवश्य पाएगा।
\p
\v 9 यदि तुम्हारा पुत्र तुमसे रोटी मांगे तो तुम में से कोई भी उसे पत्थर नहीं देगा, क्या दोगे?
\v 10 यदि तुम्हारा पुत्र तुमसे मछली के लिए कहता है, तो तुम उसे साँप नहीं दोगे, क्या दोगे?
\s5
\v 11 भले ही तुम बुरे हो, तो भी तुम अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएँ देना जानते हो। तो परमेश्वर, तुम्हारे पिता जो स्वर्ग में है, निश्चय ही उस से भी अधिक अच्छी वस्तुएँ उनको देंगे जो उनसे माँगते हैं।
\p
\v 12 तो जिस प्रकार तुम चाहते हो कि दूसरे तुम्हारे साथ व्यवहार करें, वैसे ही तुम्हें भी उनके साथ व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर के व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं ने बहुत पहले जो कुछ लिखा था, उसका अर्थ यही है।
\p
\s5
\v 13-14 "स्वर्ग में परमेश्वर के साथ सदा के लिए रहना कठिन है, यह एक कठिन मार्ग के समान है जिस पर तुमको जाना चाहिए। एक और रास्ता है, जो कि अधिकतर लोग अपनाते हैं। वह सड़क चौड़ी है; वे एक चौड़े दरवाजे तक पहुंचने तक उस पर चलते हैं, लेकिन जब वे उसमें प्रवेश करते हैं, तो वे मरेंगे। इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ कि कठिन मार्ग से जाओ और स्वर्ग में परमेश्वर के साथ सदा रहने के लिए सकरे द्वार में प्रवेश करो।"
\p
\s5
\v 15 जो लोग तुम्हारे पास आते हैं और झूठ बोलते हैं कि वे तुम्हें बता रहे हैं कि परमेश्वर ने क्या कहा है, उन से सावधान रहो। वे भेड़ियों के समान हैं जो खुद को भेड़-बकरियों की खाल से ढंकते हैं, जो तुम्हें हानि न पहुँचानेवाले दिखाई देते हैं, परन्तु वे तुम पर आक्रमण करेंगे।
\v 16 पौधों का फल देखकर तुम जानते हो कि वे किस प्रकार के पौधे हैं। काँटे वाली झाड़ियाँ अंगूर नहीं ला सकती हैं, और ऊँटकटारों से अंजीर पैदा नहीं हो सकते हैं इसलिए कोई भी झाड़ियों से अंगूर या ऊँटकटारों से अंजीर पाने की आशा नहीं करता है।
\v 17 यहां एक और उदाहरण है: सभी अच्छे फलों के पेड़ अच्छे फल को उत्पन्न करते हैं, परन्तु सभी बुरे पेड़ बुरे फल उत्पन्न करते हैं।
\s5
\v 18 अच्छे फल का कोई पेड़ बुरा फल पैदा नहीं करता है, और कोई बुरा पेड़ अच्छे फल का उत्पन्न नहीं करता है।
\v 19 मजदूर उन सब पेड़ों को काटकर जला देते हैं जो अच्छा फल उत्पन्न नहीं करते हैं।
\v 20 पेड़ों के फल देखकर तुम जान जाते हो कि वे किस प्रकार के पेड़ हैं। इसी प्रकार, जब तुम देखते हो कि जो लोग तुम्हारे पास आते हैं वे कैसे काम करते हैं, तो तुम जान लोगे कि क्या वे वास्तव में अच्छे हैं या नहीं।
\p
\s5
\v 21 बहुत से लोगों का स्वभाव है कि, मुझे प्रभु कहें, यह दिखाते हुए कि उनके पास मेरे अधिकार हैं, परमेश्वर उनमें से कुछ पर स्वर्ग से शासन करने के लिए सहमत नहीं होंगे, क्योंकि वे ऐसे काम नहीं करते जैसे परमेश्वर चाहते हैं। मेरे पिता केवल उन पर शासन करने के लिए सहमत होंगे जो उनकी इच्छा के अनुसार चलते हैं।
\v 22 जिस दिन परमेश्वर सब का न्याय करेंगे, बहुत से लोग मुझसे कहेंगे, हे प्रभु, हमने आपके प्रेरितों के समान परमेश्वर के संदेश को सुनाया! आपके प्रेरितों के समान हमने लोगों में से दुष्ट-आत्माओं को निकाला! और आपके प्रेरितों के समान, हमने अनेक शक्तिशाली कार्य किए!'
\v 23 तब मैं सबके सामने उनसे कहूंगा, 'मैंने कभी स्वीकार नहीं किया है कि तुम मेरे साथ थे। हे बुराई करनेवालों, मुझ से दूर चले जाओ!'
\p
\s5
\v 24 तो जो मेरी बातों को सुनता है और जो मेरी आज्ञा के अनुसार करता है वह एक बुद्धिमान व्यक्ति के समान होगा जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया।
\v 25 और जब बारिश हुई और नदी में बाढ़ आई, और हवाएँ चली और उस घर पर लगीं, वह नहीं गिरा क्योंकि यह ठोस चट्टान पर बनाया गया था।
\s5
\v 26 दूसरी ओर, जो कोई मेरी बातें सुनता है, परन्तु मेरी आज्ञा नहीं मानता वह एक मूर्ख व्यक्ति के समान होगा जिसने रेत पर अपना घर बनाया।
\v 27 जब बारिश गिरी, और नदी में बाढ़ आई, और हवाएँ चली और उस घर पर लगीं, तो वह घर टूट गया और पूरी तरह बिखर गया क्योंकि यह रेत पर बनाया गया था। इसलिए जो मैंने तुमसे कहा है, उसे मानना चाहिए।"
\p
\s5
\v 28 जब यीशु ने इन सब बातों को सिखाना समाप्त किया, तो उनको सुननेवाली भीड़ उनकी शिक्षा देने की विधि से आश्चर्यचकित थी।
\v 29 उन्होंने एक ऐसे शिक्षक के रूप मैं सिखाया जो सिखाने के लिए अपने ज्ञान पर निर्भर करता है। उन्होंने उन लोगों के समान नहीं सिखाया जो यहूदी व्यवस्था को सिखाते थे, उन विभिन्न बातों को दोहराते थे जिन्हें अन्य लोगों ने सिखाया था।
\s5
\c 8
\p
\v 1 जब यीशु पहाड़ी से नीचे उतरे तब बड़ी भीड़ उनके पीछे आई।
\v 2 जब यीशु ने लोगों को छोड़ दिया, एक व्यक्ति जिसे कोढ़ की बीमारी हुई थी, उनके पास आया और उनके सामने घुटने टेक दिए। उसने यीशु से कहा, "हे प्रभु, कृपया मुझे स्वस्थ करें, क्योंकि मैं जानता हूँ कि यदि आप चाहें तो मुझे स्वस्थ कर सकते हैं।"
\v 3 तब यीशु ने अपना हाथ बढ़ाकर व्यक्ति को छुआ। उन्होंने उससे कहा, "मैं तुझे स्वस्थ करना चाहता हूँ, और अब मैं तुझे स्वस्थ करूंगा।" तुरंत ही वह मनुष्य अपनी बीमारी से स्वस्थ हो गया।
\s5
\v 4 "फिर यीशु ने उस से कहा," यह सुनिश्चित करना कि मैंने जो तुझे स्वस्थ किया है, तू उसके विषय में याजक के अतिरिक्त किसी और को नहीं बताएगा। फिर यरूशलेम के आराधनालय में जाकर मूसा की आज्ञा के अनुसार भेंट चढ़ा, जिससे कि लोगों को तेरी चंगाई के विषय में पता चले।"
\p
\s5
\v 5 जब यीशु कफरनहूम शहर में गए, तो एक रोमी अधिकारी जो सौ सैनिकों का सेनापति था उनके पास आया। उसने यीशु से उसकी सहायता करने के लिए विनती की।
\v 6 उसने यीशु से कहा, हे प्रभु, मेरा दास घर में बिस्तर पर पड़ा है, और वह लकवा ग्रस्त है, और वह बहुत पीड़ा में है।
\v 7 यीशु ने उस से कहा, "मैं तेरे घर चलकर उसे चंगा करूंगा।"
\s5
\v 8 परन्तु अधिकारी ने उनसे कहा, "आप मेरे घर आएँ, मैं इस योग्य नहीं हूँ, बस कह दें कि मेरा दास ठीक हो गया है, और वह ठीक हो जाएगा।
\v 9 मेरे साथ भी ऐसा ही होता है। मैं भी एक सैनिक हूँ; मुझे मेरे सरदारों के आदेशों का पालन करना है, और मेरे पास भी सैनिक हैं जिन्हें मैं आज्ञा देता हूं। जब मैं उनमें से एक को कहता हूँ 'जा!' तो वह जाता है। जब मैं किसी दूसरे को कहता हूँ 'आ!' तो वह आता है। जब मैं अपने दास को कहता हूँ, 'यह कर!' तो वह करता है।"
\v 10 जब यीशु ने यह सुना, तो वह आश्चर्यचकित हुए। उन्होंने उनके साथ भीड़ से कहा, "सुनो: मैंने पहले कभी भी ऐसा कोई जन नहीं पाया जो मुझ पर इस गैर-यहूदी व्यक्ति के जैसा विश्वास करता है। इस्राएल में भी, जहां मुझे आशा है कि लोग मुझ पर विश्वास करेंगे, मुझे कोई भी नहीं मिला, जो मुझ पर इतना भरोसा करता है!
\s5
\v 11 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जब परमेश्वर स्वर्ग से सब पर पूरी तरह शासन करेंगे, तब बहुत से गैर-यहूदी लोग भी मुझ पर विश्वास करेंगे, और वे दूर देशों से आएंगे, जिनमें दूर पूर्व और दूर पश्चिम के लोग होंगे, और वे अब्राहम, इसहाक और याकूब के साथ भोज के लिए बैठेंगे।
\v 12 परन्तु जिन यहूदियों पर शासन करने का परमेश्वर का विचार है उन्हें वह नरक में डाल देंगे, जहां पर घोर अंधेरा है। वे अपने दुःखों के कारण रोएंगे, और वे अपने दांतों को पीसेंगे क्योंकि उन्हें बहुत पीड़ा होगी।"
\v 13 तब यीशु ने अधिकारी से कहा, "घर जा, तू ने जैसा विश्वास किया है वैसा ही होगा।" तब अधिकारी घर गया और पता चला कि उसका दास ठीक उसी समय पर स्वस्थ हो गया था जब यीशु ने उसे कहा था कि वह उसे ठीक कर देंगे।
\p
\s5
\v 14 जब यीशु और उनके कुछ शिष्य पतरस के घर गए, तो यीशु ने पतरस की सास को देखा। वह एक बिस्तर पर पड़ी थी क्योंकि उसे बुखार था।
\v 15 उन्होंने उसका हाथ छुआ, और तुरंत उसका बुखार चला गया। फिर वह उठी और उन्हें कुछ भोजन परोसा।
\p
\s5
\v 16 उस शाम जब सब्त समाप्त हो गया, तब भीड़ कई लोगों को यीशु के पास लेकर आई, जो दुष्ट-आत्माओं के वश में थे, और अन्य लोग जो बीमार थे। उन्होंने दुष्ट-आत्माओं को केवल उनसे बात करके ही निकाल दिया, और उन्होंने सभी बीमार लोगों को स्वस्थ किया।
\v 17 जब उन्होंने ऐसा किया, तो यशायाह भविष्यद्वक्ता ने जो लिखा था, वह सच हो गया, "उन्होंने लोगों को बीमारियों से मुक्त किया और उन्होंने उन्हें स्वस्थ किया।"
\p
\s5
\v 18 "यीशु ने अपने चारों ओर भीड़ को देखा तो उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि वे उन्हें नाव से झील के दूसरी ओर ले चलें।
\v 19 जब वे नाव की ओर जा रहे थे, तो एक व्यक्ति जिसने यहूदी व्यवस्था की शिक्षा पाई थी, आया और कहा, "गुरु, जहाँ भी आप जाएंगे, मैं आपके साथ जाऊंगा।"
\v 20 यीशु ने उसे उत्तर दिया, "लोमड़ियों की भूमि में गुफाएँ होती हैं, जहां वे रहतीं हैं, और पक्षियों के घोंसले होते हैं, परन्तु मैं मनुष्य का पुत्र हूँ, लेकिन मेरे पास घर नहीं है जहां मैं सो सकूं।"
\s5
\v 21 यीशु के शिष्यों में से और एक व्यक्ति ने उनसे कहा, "हे प्रभु, पहले मुझे घर जाने की अनुमति दें। मेरे पिता के मरने के बाद मैं उसे दफ़न कर दूँगा और फिर आपके साथ आऊंगा।"
\v 22 परन्तु यीशु ने उस से कहा, "मेरे साथ अभी आ। जो लोग मरे हुओं के समान हैं, उन्हें ही अपने लोगों के मरने की प्रतीक्षा करने दे।"
\p
\s5
\v 23 फिर यीशु नाव पर चढ़ गए और उनके शिष्य उनके पीछे हो लिए।
\v 24 अचानक तेज हवाएँ पानी पर चलीं, और बहुत अधिक ऊँची लहरें नाव से टकरा रही थीं और नाव में पानी भर रहा था। परन्तु यीशु सो रहे थे।
\v 25 शिष्यों ने उन्हें जगाया, और कहा, "प्रभु, हमें बचाओ! हम डूब रहे हैं!"
\s5
\v 26 उन्होंने उनसे कहा, "तुमको डरना नहीं चाहिए! क्या तुम्हे विश्वास नहीं कि मैं तुमको बचा सकता हूँ।" तब वह उठे और हवा को डाँटा और लहरों को शांत रहने के लिए कहा। तुरंत हवा का चलना बंद हो गया और पानी शांत हो गया।
\v 27 वे लोग चकित हो गए, और उन्होंने एक-दूसरे से कहा, "यह पुरुष एक असाधारण व्यक्ति है! सब कुछ इनके वश में है, यहां तक कि हवाएँ और लहरें भी उनकी बात मानती हैं!"
\p
\s5
\v 28 जब वे झील के पूर्वी हिस्से में आए, तो वे उस क्षेत्र में पहुंचे जहां गदरेनी लोग रहते थे। फिर दो पुरुष जिनको दुष्ट-आत्माओं ने अपने वश में किया हुआ था, उस कब्रिस्तान से बाहर निकल गए जहां वे रहते थे। क्योंकि वे बेहद हिंसक थे और लोगों पर आक्रमण कर देते थे इसलिए, कोई भी वहाँ उस सड़क पर यात्रा करने का साहस नहीं करता था।
\v 29 वे अकस्मात ही चिलाकर यीशु से कहने लगे, "आप परमेश्वर के पुत्र हैं! क्योंकि आपमें और हममें कुछ भी समान नहीं है, हमें अकेला छोड़ दें! क्या आप उस समय से पहले जो परमेश्वर ने हमें दण्ड देने के लिए नियुक्त किया है, हमें यहाँ पर दुःख देने के लिए आए हैं?"
\s5
\v 30 वहाँ सूअरों का एक बड़ा झुंड चर रहा था वह अधिक दूर नहीं था।
\v 31 "अत: दुष्ट-आत्माओं ने यीशु से विनती की और कहा," आप इन लोगों में से हमें बाहर निकालने जा रहे हैं, तो हमें उन सूअरों में भेज दें!"
\v 32 यीशु ने उनसे कहा, "अगर तुम यही चाहते हो, तो जाओ!" इसलिए दुष्ट-आत्माओं ने पुरुषों को छोड़ दिया और सूअरों में प्रवेश किया। अचानक, सूअरों का पूरा झुंड टीले पर से पानी में कूदकर डूब गया।
\s5
\v 33 "जो लोग सूअरों की देख रेख कर रहे थे, वे डर गए और शहर में भाग गए और जो कुछ हुआ था, उन दो पुरुषों, के विषय में जो दुष्ट-आत्माओं के वश में थे और सूअरों के साथ क्या हुआ था उसके विषय में सबको बताया।
\v 34 और ऐसा प्रतीत होता था कि उस शहर में रहने वाले सब लोग यीशु से मिलने को निकल आए हैं। जब उन्होंने यीशु को और उन दो पुरुषों को जो दुष्ट-आत्माओं के वश में थे देखा, तो उन्होंने यीशु से अनुरोध किया कि वह उनके क्षेत्र से चले जाएँ।
\s5
\c 9
\p
\v 1 यीशु और उनके शिष्य नाव पर चढ़ गए और झील के मार्ग द्वारा कफरनहूम गए, जहां वह रह रहे थे।
\v 2 कुछ लोग उनके पास एक व्यक्ति को लेकर आए जो लकवा ग्रस्त था और बिस्तर पर लेटा हुआ था। जब यीशु को पता चला कि उन्हें विश्वास था कि वह उस लकवा ग्रस्त व्यक्ति को स्वस्थ कर सकते हैं, तो उन्होंने उससे कहा, "हे जवान, साहस बाँध! मैं तेरे पापों को क्षमा करता हूँ।"
\s5
\v 3 कुछ लोग जो यहूदी व्यवस्था के जानकार थे, उन्होंने आपस में कहा, "यह व्यक्ति सोचता है कि वह परमेश्वर है, वह पापों को क्षमा नहीं कर सकता है!"
\v 4 यीशु जानते थे कि वे क्या सोच रहे थे, इसलिए उन्होंने कहा, "तुम्हारे मन में बुरे विचार नहीं आना चाहिएँ!"
\v 5 क्या कहना आसान है, यह कि उसके पापों को क्षमा कर दिया गया है या यह कि उठ और चल फिर?
\v 6 इसलिए मैं कुछ ऐसा करने जा रहा हूँ ताकि तुम जान सको कि परमेश्वर ने मनुष्य के पुत्र को पाप क्षमा करने का अधिकार दिया है। "फिर उन्होंने लकवा ग्रस्त व्यक्ति से कहा," उठ, अपना बिस्तर उठा, और घर जा! "
\s5
\v 7 वह व्यक्ति तुरन्त खड़ा हो गया और अपना बिस्तर उठा कर घर चला गया!
\v 8 जब भीड़ ने ये देखा, तो वे विस्मय और भय से भर गए। उन्होंने मनुष्य को ऐसा अधिकार देने के लिए परमेश्वर की स्तुति की।
\p
\v 9 जब यीशु वहाँ से जा रहे थे, तो उन्होंने मत्ती नामक एक व्यक्ति को देखा। वह एक मेज पर बैठा था, जहां से वह रोमी सरकार के लिए कर एकत्र किया करता था। यीशु ने उस से कहा, "मेरे साथ आ और मेरा शिष्य हो जा!" अत: मत्ती तुरन्त उठ गया और उनके साथ चला गया।
\s5
\v 10 यीशु और उनके शिष्य एक घर में खाने के लिए बैठे। जब वे खाना खा रहे थे, तो कई कर लेनेवाले और अन्य लोग आये और उनके साथ खाना खाया।
\v 11 जब फरीसियों ने यह देखा, तो उन्होंने यीशु के शिष्यों के पास जाकर कहा, "यह घृणित है कि तुम्हारा गुरु कर वसूलने वालों और उनके जैसे अन्य लोगों के साथ खाता है और मेलजोल रखता हैं।"
\s5
\v 12 उन्होंने जो कुछ कहा, उसे यीशु ने सुना था, इसलिए उन्होंने उन्हें यह दृष्टान्त कहा: "जो लोग बीमार होते हैं, उन्हें ही चिकित्सक की जरूरत है, न कि उन लोगों को जो स्वस्थ हैं।
\v 13 तुमको यह जानने की आवश्यकता है कि परमेश्वर द्वारा कहे गए इन शब्दों का क्या अर्थ है: 'मैं चाहता हूँ कि तुम लोगों के प्रति दया के कार्य करो, केवल बलिदान ही नहीं चढाओं।' ध्यान रखो कि मैं तुम्हारे पास उन लोगों को बुलाने नहीं आया हूँ, जो सोचते हैं कि वे धर्मी है और अपने पापी जीवन को दूर करके मेरे पास आए हैं, परन्तु मैं उन लोगों को बुलाने आया हूँ, जो जानते हैं कि वे पापी हैं।"
\p
\s5
\v 14 तब यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के शिष्य यीशु के पास आए और उनसे पूछा, "हम और फरीसी अक्सर उपवास करते हैं क्योंकि हम परमेश्वर को प्रसन्न करना चाहते हैं, परन्तु आपके शिष्य ऐसा नहीं करते हैं। वे उपवास क्यों नहीं करते हैं?"
\v 15 यीशु ने उत्तर दिया," जब विवाह करने के लिए तैयार दूल्हा अपने दोस्तों के साथ होता है, तो क्या वे लोग शोक करते हैं? नहीं, क्योंकि वे उस समय उदास नहीं हैं। परन्तु जब दूल्हा उन्हें छोड़कर चला जाएगा, वे उपवास करेंगे, क्योंकि वे उदास होंगे।
\p
\s5
\v 16 लोग एक छेद को सुधारने के लिए पुराने वस्त्रों पर नए कपड़ा का पैबंद नहीं लगाते हैं। अगर उन्होंने ऐसा किया, तो वस्त्र को धोने पर, पैबंद सिकुड़ जाएगा और कपड़े को फाड़ देगा, और छेद बड़ा हो जाएगा।
\s5
\v 17 कोई भी सुरक्षित रखने के लिए पुराने चमड़े के थैलों में ताजा अंगूर का रस नहीं भरता है। अगर कोई ऐसा करता है, तो जब रस दाखरस बन जाता है, तब वह चमड़े का थैला फट जाता है। इस प्रकार थैला भी फट जाएगा, और दाखरस भूमि पर गिर जाएगा। इसकी अपेक्षा, लोग नए दाखरस को चमड़े के नए थैले में भरते हैं, और जब दाखरस तैयार होगा तब थैला फैल जाएगा। इस प्रकार, दाखरस और थैला दोनों सुरक्षित हो जाएंगे।"
\p
\s5
\v 18 यीशु यह कह ही रहे थे कि, नगर से एक सरदार आया और उनके सामने झुक गया। फिर उसने कहा, "मेरी बेटी अभी-अभी मर गई है! परन्तु अगर आप आकर उस पर अपना हाथ रखें, तो वह फिर से जीवित हो जाएगी!"
\v 19 अत: यीशु उठे, और वह और शिष्य उस मनुष्य के साथ चले गए।
\s5
\v 20 फिर एक स्त्री जिसका बारह वर्ष से लगातार लहू बह रहा था, यीशु के पास आई। वह उनके पीछे आई और उनके वस्त्र के सिरे को छुआ।
\v 21 वह स्वयं से कह रही थी, "अगर मैं सिर्फ उनके वस्त्र को छूती हूँ, तो मैं ठीक हो जाऊँगी।"
\v 22 फिर यीशु ने मुड़कर देखा कि उन्हें किसने छुआ था। और जब उस स्त्री को देखा, तो उन्होंने उससे कहा, "हे प्रिय स्त्री, साहस बाँध। क्योंकि तूने विश्वास किया कि मैं तुझे ठीक कर सकता हूँ, इसलिए मैंने तुझे ठीक किया है।" वह स्त्री उसी पल चंगी हो गई थी।
\p
\s5
\v 23 यीशु उस व्यक्ति के घर आए और बांसुरी बजानेवालों को अंतिम संस्कार का संगीत बजाते देखा; वहाँ कई शोक करनेवाले थे जो ऊँचे शब्द से रो रहे थे क्योंकि लड़की की मृत्यु हो गई थी।
\v 24 "उन्होंने उनसे कहा," चले जाओ और यह अंतिम संस्कार का संगीत और रोना बंद करो, क्योंकि लड़की मरी नहीं है! वह केवल सो रही है!" लोग उन पर हँसे, क्योंकि वे जानते थे कि वह मर गई थी।
\s5
\v 25 लेकिन यीशु ने उन्हें घर से बाहर निकल जाने के लिए कहा। फिर वह उस कमरे में गए जहां लड़की लेटी हुई थी। उन्होंने उसका हाथ पकड़ा और वह फिर से जीवित हो गई और उठ गई।
\v 26 और उस पूरे क्षेत्र के लोगों ने इसके विषय में सुना।
\p
\s5
\v 27 "जब यीशु वहाँ से चले गए, तो दो अंधे व्यक्ति उनके पीछे आए और चिल्लाने लगे, "हे राजा दाऊद के वंशज, हम पर दया करो और हमें ठीक करो!"
\v 28 यीशु घर में गए, और वे अंधे व्यक्ति भी अंदर चले गए। यीशु ने उनसे कहा, "क्या तुम विश्वास करते हो कि मैं तुम्हें ठीक कर सकता हूँ?" उन्होंने उनसे कहा, "हाँ, प्रभु!"
\s5
\v 29 तब यीशु ने उनकी आंखों को छुआ और उन्होंने उनसे कहा, "क्योंकि तुम विश्वास करते हो कि मैं तुम्हारी आंखों को ठीक कर सकता हूँ, मैं उन्हें अभी इस समय ठीक कर रहा हूँ!"
\v 30 और वे देखने में सक्षम हुए! फिर यीशु ने उन्हें कठोरता से कहा, "यह सुनिश्चित करो कि मैंने तुम्हारे लिए जो कुछ किया है, तुम किसी को नहीं बताओगे!"
\v 31 परन्तु वे बाहर गए और उस पूरे क्षेत्र में समाचार फैला दिया।
\p
\s5
\v 32 जब वे दो लोग जा रहे थे, तो कुछ लोग यीशु के पास एक व्यक्ति को लाए जो बोलने में असमर्थ था क्योंकि एक दुष्ट-आत्मा उसे वश में किए हुई थी।
\v 33 यीशु ने उस दुष्ट-आत्मा को बाहर निकाल दिया तो वह व्यक्ति बोलने लगा! भीड़ ने इसे देखा और वे चकित हो गए और कहा, "इससे पहले हमने ऐसा अद्भुत काम इस्राएल में होते नहीं देखा है!"
\v 34 परन्तु फरीसियों ने कहा, "वह शैतान है, जो दुष्ट-आत्माओं पर शासन करता है, इसी कारण यह मनुष्यों में से दुष्ट-आत्माओं को निकालने में समर्थ है।"
\p
\s5
\v 35 फिर यीशु और उनके शिष्य गलील जिले के कई शहरों और नगरों में गए। वह आराधनालयों में सिखा रहे थे और सुसमाचार प्रचार कर रहे थे कि कैसे परमेश्वर स्वर्ग से शासन करेंगे। साथ ही वह उन लोगों को भी ठीक कर रहे थे जो विभिन्न रोगों और बीमारियों से पीड़ित थे।
\v 36 जब उन्होंने लोगों की भीड़ देखी, तो उन्हे उन पर दया आई क्योंकि वे परेशान और चिंतित थे। वे उन भेड़ों के समान थे जो बिना चरवाहे की थीं।
\s5
\v 37 फिर उन्होंने अपने शिष्यों से कहा: "जो लोग मेरा संदेश मानने के लिए तैयार हैं, वे उस खेत के समान हैं जहां फसल कटाई के लिए तैयार है। परन्तु फसलों को एकत्र करने के लिए लोग नहीं हैं।
\v 38 इसलिये प्रार्थना करो और परमेश्वर से विनती करो कि अपनी फसलों को एकत्र करने के लिए बहुत से लोगों को भेजे।
\s5
\c 10
\p
\v 1 यीशु ने अपने बारह शिष्यों को पास बुलाया और। उन्हें मनुष्यों को वश में करनेवाली दुष्ट-आत्माओं को निकालने की शक्तियां दीं। उन्होंने उन्हें रोगियों को चंगा करने में भी समर्थ किया।
\s5
\v 2 यहाँ उन बारह शिष्यों की एक सूची है, जिन्हें यीशु ने प्रेरित कहा। वे ये थे- शमौन, जिसका उन्होंने नया नाम पतरस रखा; पतरस का छोटा भाई, अन्द्रियास; जब्दी का पुत्र याकूब; याकूब का छोटा भाई, यूहन्ना;
\v 3 फिलिप्पुस; बरतुल्मै; थोमा; कर वसूलनेवाला मत्ती; हलफाई का पुत्र याकूब; तद्दै;
\v 4 शमौन कनानी; और यहूदा इस्करियोती, जिसने यीशु के साथ विश्वासघात किया था और उसने अधिकारियों का मार्गदर्शन भी किया कि यीशु को बन्दी बना लें।
\p
\s5
\v 5 जब यीशु अपने बारह प्रेरितों को विभिन्न स्थानों में लोगों को सुसमाचार सुनाने के लिए भेजने पर थे, तो उन्होंने उन्हें ये निर्देश दिए: "जहां पर गैर-यहूदी रहते हैं या उन शहरों में जहां सामरी लोग रहते हैं वहाँ मत जाना।
\v 6 इसके बजाय, इस्राएल के लोगों में जाओ; वे भेड़ों के समान हैं जो अपने चरवाहे से दूर, भटक गई हैं।
\v 7 जब तुम उनके पास जाते हो, तो उन से प्रचार करना कि परमेश्वर शीघ्र ही स्वर्ग से शासन करेंगे।
\s5
\v 8 बीमारों को चंगा करो, मरे हुओं को जीवित करो, कुष्ठ रोगियों को स्वस्थ करो और उन्हें समाज में वापस लाओ, और जो मनुष्य दुष्ट-आत्माओं के वश में हैं उनमें से दुष्ट-आत्माओं को निकलने का आदेश दो। लोगों की सहायता करने के बदले पैसे न लेना, क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हारी सहायता करने के लिए कुछ नहीं लिया है।
\v 9 अपने साथ पैसा लेकर नहीं चलना।
\v 10 और न ही अपने सामान के लिए थैला, जो तुमने पहन रखा है उसके अतिरिक्त न कुरता लेना, न ही चप्पल लेना, और न ही चलने के लिए लाठी, हर काम करनेवाला उन लोगों से भुगतान पाने के योग्य है, जिनके लिए वह काम करता है, इसलिए तुम जिन लोगों के पास जाते हो उनसे भोजन प्राप्त करने के योग्य हो।
\s5
\v 11 जिस किसी शहर या गांव में तुम प्रवेश करते हो, उसमें ऐसा व्यक्ति ढूँढ़ो जो तुम्हे अपने घर में ठहराना चाहता है।
\v 12 जब तुम उस घर में जाते हो, तो वहां रहनेवाले लोगों के लिए परमेश्वर से कुशल की विनती करो। जब तक तुम उस शहर या गांव को नहीं छोड़ देते उसी घर में रहना।
\v 13 यदि उस घर में रहने वाले लोग तुम्हारा अच्छी तरह से स्वागत करते हैं, तो परमेश्वर वास्तव में उनके लिए अच्छा काम करेंगे। परन्तु यदि वे तुम्हारा स्वागत नहीं करते हैं, तो तुम्हारी प्रार्थना उनकी सहायता नहीं करेगी, और परमेश्वर उनका भला नहीं करेंगे।
\s5
\v 14 यदि कोई भी घर या शहर में रहने वाले लोग तुम्हारा स्वागत नहीं करते हैं, न ही तुम्हारे संदेश को सुनते हैं, तो उस स्थान को छोड़ देना। निकलते समय, अपने पैरों से धूल झाड़ दो। ऐसा करने से, तुम उन्हें चेतावनी दोगे कि परमेश्वर उन्हें अस्वीकार कर देंगे, जैसा कि उन्होंने तुम्हारी बातों को अस्वीकार कर दिया।
\v 15 इस पर गम्भीरता से ध्यान दें: उस समय जब परमेश्वर सब लोगों का न्याय करेंगे तब, वह सदोम और गमोरा में रहने वाले दुष्ट लोगों को दण्ड देंगे। परन्तु जिस शहर के लोग तुमको अस्वीकार करते हैं, परमेश्वर उन्हें और अधिक गंभीर दण्ड देंगे।
\p
\s5
\v 16 "ध्यान दें: जब मैं तुम्हें बाहर भेजता हूँ, तो तुम भेड़ियों जैसे मनुष्यों के मध्य भेड़ों के समान ऐसे असुरक्षित हो जाओगे, जैसे भेड़ें। इसलिए सावधान रहो, जैसे साँप सावधान रहते हैं, साथ ही उनके लिए ऐसे हानिरहित रहो जैसे कबूतर हानिरहित होते हैं।
\v 17 इसके साथ ही, ऐसे लोगों से बचकर रहो, क्योंकि वे तुमको बन्दी बनाकर और तुम्हें न्यायपालिका के सदस्यों तक ले जाएंगे कि तुम पर मुकदमा चला सके। वे अपनी सभाओं में तुम्हें कोड़े मारेंगे।
\v 18 और क्योंकि तुम मेरे हो, वे तुम्हें राज्यपालों और राजाओं के सामने ले जाएंगे कि वे मुकद्दमा चलाकर तुम्हे दण्ड दे सकें। परन्तु तुम उन शासकों और अन्य गैर-यहूदियों को मेरे विषय में गवाही दोगे।
\s5
\v 19 जब ये लोग तुमको गिरफ्तार करते हैं, तब इस बात की चिन्ता नहीं करना कि तुम उन्हे क्या उत्तर दोगे क्योंकि जो शब्द तुम्हे कहने हैं वे तुम्हे मिल जाएँगे।
\v 20 ऐसा नहीं है कि तुम सोचोगे कि क्या कहना है। इसकी अपेक्षा तुम वह कहोगे जो तुम्हारे स्वर्गीय पिता के आत्मा तुमको बोलने के लिए कहे।
\s5
\v 21 वे तुम्हें अधिकारियों के पास मारने के लिए ले जाएंगे क्योंकि तुम मुझ पर विश्वास करते हो। उदाहरण के लिए, लोग अपने भाइयों के साथ ऐसा करेंगे और पिता अपने बच्चों के साथ ऐसा करेंगे। बच्चे अपने माता-पिता के विरुद्ध विद्रोह करेंगे और उनके मारे जाने का कारण बनेंगे।
\v 22 बहुत से लोग तुमसे घृणा करेंगे क्योंकि तुम मुझ में विश्वास करते हो। परन्तु जो मरते दम तक मुझ में सच्चा भरोसा रखेंगे, उन लोगों को परमेश्वर बचाएंगे।
\v 23 जब एक शहर के लोग तुमको सताते हैं, तो किसी अन्य शहर में भाग जाना। ध्यान दें: तुम्हारे पूरे इस्राएल में एक शहर से दूसरे शहर तक जाने और लोगों को मेरे विषय में बताना समाप्त करने से पहले, मैं, मनुष्य का पुत्र, निश्चय ही पृथ्वी पर लौट आऊँगा।
\p
\s5
\v 24 शिष्य को अपने गुरु से बड़ा होने की आशा नहीं करनी चाहिए, और सेवक अपने स्वामी से उत्तम नहीं हैं।
\v 25 तुम यह आशा नहीं करते कि लोग गुरु की तुलना में शिष्य की अधिक उत्तम सेवा करें, या यह कि वे एक सेवक को उसके स्वामी से अधिक उत्तम। इसी प्रकार, क्योंकि मैं तुम्हारा शिक्षक और स्वामी हूँ, तुम आशा कर सकते हो कि लोग तुम्हारी बुराई करेंगे, क्योंकि उन्होंने मेरे साथ बुरा व्यवहार किया है। मैं एक घर के शासक के समान हूँ, जिसे वे शैतान कहते हैं। यदि वे मुझसे ऐसा व्यवहार करते हैं, तो तुमको क्या लगता है कि वे तुमसे कैसा व्यवहार करेंगे?"
\p
\s5
\v 26 "उन लोगों से मत डरो। जो कुछ भी छिपा हुआ है, वह खोला जाएगा, और हर रहस्य सामने लाया जाएगा।
\v 27 इसलिए, डरने की अपेक्षा जो मैं रात के काम करनेवालों के समान गुप्त में कहता हूँ उसे दिन में काम करनेवालों के समान सब के सामने कहना। जो मैं तुम्हें निजी तौर पर कहता हूँ, जैसे लोग तुमसे कानाफूसी करते हैं, तो उसे सबके सामने कहना।
\s5
\v 28 उन लोगों से मत डरो, जो तुम्हारे शरीर को मार सकते हैं पर तुम्हारी आत्मा को नष्ट नहीं कर सकते हैं। परमेश्वर से डरो, क्योंकि वह नरक में तुम्हारे शरीर और आत्मा दोनों को नष्ट कर सकते हैं।
\v 29 चिड़ियों के विषय में सोचो। उनका इतना कम मूल्य है कि तुम उनमें से दो केवल एक छोटे सिक्के से खरीद सकते हो। परन्तु जब कोई चिड़िया भूमि पर गिर जाती है और मर जाती है, तो परमेश्वर, तुम्हारे स्वर्गीय पिता, यह जानते हैं, क्योंकि वह सब कुछ जानते हैं।
\v 30 वह तुम्हारे विषय में भी सब कुछ जानते हैं। यहाँ तक कि वह यह भी जानते हैं कि तुम्हारे सिर पर कितने बाल हैं!
\v 31 परमेश्वर के लिए चिड़ियों की तुलना में तुम्हारा मूल्य कहीं अधिक हैं। अत: उन लोगों से डरा मत करो जो तुम्हें मारने की धमकी देते हैं!
\s5
\v 32 यदि लोग दूसरों को यह बताने के लिए तैयार हैं कि वे मेरे हैं, तो मैं भी स्वर्ग में रहने वाले मेरे पिता के सामने यह स्वीकार करूँगा कि वे मेरे हैं।
\v 33 परन्तु यदि वे दूसरों के सामने कहने से डरते हैं कि वे मेरे हैं, तो मैं अपने पिता को, जो स्वर्ग में है, कह दूंगा कि वे मेरे नहीं हैं।"
\p
\s5
\v 34 "यह न सोचो कि मैं पृथ्वी पर इसलिए आया हूँ कि लोग शान्ति में एक साथ रह सकें। क्योंकि मैं आया हूँ, इसलिए मेरे पीछे आने वाले कुछ लोग मरेंगे।
\v 35 क्योंकि मैं पृथ्वी पर आया हूँ, इसलिए जो लोग मुझ पर विश्वास नहीं करते हैं वे उन लोगों के विरुद्ध होंगे जो मुझ पर विश्वास करते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ बेटे अपने पिता का विरोध करेंगे, कुछ बेटियां अपनी माँ का विरोध करेंगी, और कुछ बहुएँ अपनी सासों का विरोध करेंगी।
\v 36 इससे प्रकट होता है कि कभी-कभी किसी व्यक्ति के शत्रु उसके अपने घर के सदस्य होंगे।
\s5
\v 37 जो लोग अपने पिता या माताओं को मुझसे अधिक प्रेम करते हैं, वे मेरे होने के योग्य नहीं हैंI और जो लोग मुझसे अधिक, अपने पुत्र या पुत्रियों से प्रेम करते हैं, वे मेरे होने के योग्य नहीं हैंI
\v 38 यदि तुम मेरे कारण मरने के लिए तैयार नहीं हो, तो तुम मेरे होने के योग्य नहीं हो।
\v 39 जो लोग मरने से बचने के लिए मना करते हैं कि वे मुझ पर विश्वास करते हैं, तो वे सदा के लिए परमेश्वर के साथ नहीं रहेंगे, परन्तु जो लोग अपने जीवन को खोने के लिए तैयार हैं, क्योंकि वे मुझ में विश्वास करते हैं, तो वे सदा के लिए परमेश्वर के साथ रहेंगे।"
\p
\s5
\v 40 "परमेश्वर मानते हैं कि जो कोई तुम्हारा स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है, और वह मानते हैं कि जो कोई मेरा स्वागत करता है, वह उनका स्वागत करता है, जिन्होंने मुझे भेजा हैं।
\v 41 जो किसी व्यक्ति का स्वागत करता है, क्योंकि वे जानते हैं कि वह व्यक्ति एक भविष्यद्वक्ता है - उन्हें वही प्रतिफल मिलेगा जो भविष्यद्वक्ताओं को परमेश्वर से प्राप्त होंगे। इसी प्रकार, जो व्यक्ति किसी व्यक्ति का स्वागत करता है, क्योंकि वे जानते हैं कि वह व्यक्ति धर्मी है - उन्हें वही प्रतिफल मिलेगा जो धर्मी लोगों को परमेश्वर से प्राप्त होता है।
\s5
\v 42 ध्यान दें: मान लो कि लोग देख रहे हैं कि तुम प्यासे हो और तुम्हे ठंडा पानी पिलाएँ क्योंकि उन्हें पता है कि तुम मेरे शिष्य हो, भले ही तुम एक महत्वपूर्ण व्यक्ति न हो। परमेश्वर निश्चय ही ऐसा करने वाले लोगों को प्रतिफल देंगे।"
\s5
\c 11
\p
\v 1 जब यीशु ने अपने बारह शिष्यों को यह निर्देश दे दिए, तो उन्होंने उन्हें विभिन्न इस्राएली शहरों में भेज दिया। फिर यीशु उस क्षेत्र के अन्य इस्राएली शहरों में सिखाने और प्रचार करने गए।
\p
\v 2 जब यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने बन्दीगृह में सुना कि मसीह क्या कर रहे थे। इसलिए उसने अपने कुछ शिष्यों को उनके पास भेजा
\v 3 उनसे पूछने के लिए, "क्या आप मसीह है जिनके विषय में भविष्यद्वक्ताओं ने कहा था कि वह आएंगे, या क्या वह कोई और है जिनके आने की हमें आशा करनी है?"
\s5
\v 4 "यीशु ने यूहन्ना के शिष्यों को उत्तर दिया," वापस जाओ और यूहन्ना को बताओ जो तुमने मुझे लोगों को बताते हुए सुना और जो तुमने मुझे करते देखा है।
\v 5 मैं अंधे लोगों को फिर से देखने और लंगडे लोगों को चलने योग्य कर रहा हूं। मैं उन लोगों को स्वस्थ कर रहा हूँ जिनको कुष्ठ रोग है। मैं बहरे लोगों को फिर से सुनने योग्य कर रहा हूँ और मरे हुए लोगों को फिर से जीवित कर रहा हूं। मैं गरीब लोगों को परमेश्वर का सुसमाचार सुना रहा हूँ।
\v 6 यूहन्ना को यह भी बताओ कि परमेश्वर उन लोगों से प्रसन्न हैं जो मुझ पर विश्वास करना बंद नहीं करते, कि उन्हें मेरे काम पसंद नहीं हैं।"
\p
\s5
\v 7 जब यूहन्ना के शिष्य चले गए, तो यीशु ने यूहन्ना के विषय में लोगों की भीड़ से चर्चा की। उन्होंने उनसे कहा, "जब तुम जंगल में यूहन्ना को देखने के लिए गए थे तो तुमने क्या देखने की आशा की थीं? तुम हवा में उड़ने वाले लंबे घास को देखने के लिए तो नहीं गए थे?
\v 8 तो तुम किस प्रकार के व्यक्ति को देखने की आशा कर रहे थे? निश्चय ही एक ऐसे मनुष्य को नहीं जो मूल्यवान वस्त्र पहने हुए हो। नहीं! तुम भलिभाँति जानते हो कि जो लोग ऐसे कपड़े पहनते हैं वे जंगल में नहीं राजाओं के महलों में रहते हैं।
\s5
\v 9 तो वास्तव में, तुम किस प्रकार के व्यक्ति को देखने की आशा कर रहे थे? एक भविष्यद्वक्ता? अरे हाँ! लेकिन मैं तुमको ये बताता हूं: यूहन्ना केवल कोई साधारण भविष्यद्वक्ता नहीं है।
\v 10 वह वही है जिसके विषय में परमेश्वर ने धर्मशास्त्र में किसी के द्वारा कहा था, 'यह ध्यान रखो! मैं अपने दूत को तुम्हारे आगे भेज रहा हूँ कि वह तुम्हारे आगमन के लिए मनुष्यों को तैयार करे।'
\p
\s5
\v 11 ध्यान दें: उन सभी लोगों में से जो कभी जीवित रहे, परमेश्वर ने किसी को भी यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से बड़ा नहीं माना। उसी समय, परमेश्वर उस राज्य में जिस पर वह स्वर्ग से शासन करेंगे, उन लोगों को जो महत्तवपूर्ण नहीं समझे जाते, यूहन्ना की तुलना में अधिक महान मानेंगे।
\v 12 जिस समय से यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने प्रचार किया, तब से लेकर अब तक, कुछ लोग अपने रीति से परमेश्वर को स्वर्ग से शासन करवाने का प्रयास कर रहे हैं, और वे इस उद्देश्य के लिए बल का प्रयोग भी कर रहे हैं।
\s5
\v 13 मैं यूहन्ना के विषय में जो कह रहा हूँ, वह तुम भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों में और यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के समय तक जो कुछ व्यवस्था में लिखा गया है, उसमें पढ़ सकते हो।
\v 14 केवल इतना ही नहीं, यदि तुम इसे समझने का प्रयास करने के लिए तैयार हो, तो मैं तुमको बताता हूँ कि यूहन्ना वास्तव में दूसरा एलिय्याह है, वह भविष्यद्वक्ता जो भविष्य में आने वाला था।
\v 15 यदि तुम इसे समझना चाहते हो, तो तुमको ध्यान से इस विषय में सोचना चाहिए कि मैंने अभी क्या कहा है।
\p
\s5
\v 16 परन्तु तुम और अभी जो जीवित हैं, ऐसे बच्चों के समान हैं जो बाज़ार में खेल खेल रहे हैं। उनमें से कुछ अपने मित्रों से कहते हैं,
\v 17 'हमने तुम्हारे लिए बांसुरी पर खुशी का संगीत बजाया है, परन्तु तुमने नाचने से मना कर दिया! फिर हमने तुम्हारे लिए दु:ख भरे अंतिम संस्कार के गीत गाए, परन्तु तुमने रोने से मना कर दिया!'
\s5
\v 18 मैं इसलिए यह कहता हूँ कि तुम यूहन्ना से और मुझसे, दोनों से असंतुष्ट हो! जब यूहन्ना आया और तुम्हें उपदेश दिए, तो उसने अच्छा भोजन नहीं खाया और दाखरस नहीं पीया, जैसा अधिकांश लोग करते हैं। परन्तु तुमने उसे अस्वीकार कर दिया और कहा, 'वह दुष्ट-आत्मा के वश में है!'
\v 19 मैं, मनुष्य का पुत्र, यूहन्ना के समान नहीं हूँ। मैं अन्य लोगों के समान भोजन खाता हूँ और दाखरस पीता हूँ। लेकिन तुम मुझे भी अस्वीकार करते हो और कहते हो, 'देखो! यह व्यक्ति बहुत अधिक भोजन खाता है और बहुत अधिक दाखरस पीता है, और वह कर वसूलनेवालों और अन्य पापियों का मित्र है! परन्तु जो कोई सचमुच बुद्धिमान है, वह अपने अच्छे कर्मों से उसे प्रकट करेगा।"
\p
\s5
\v 20 उन शहरों में जहां यीशु ने अपने अधिकांश चमत्कार किए थे, वहां भी लोग परमेश्वर के पास आने से मना कर रहे थे। इसलिये उन्होंने उन्हें यह कहकर डाँटना आरम्भ किया,
\v 21 "तुम लोग जो खुराजीन शहर में और तुम जो बैतसैदा शहर में रहते हो, तुम पीड़ित होगे! मैंने तुम्हारे शहरों में बहुत अच्छे चमत्कार किए, लेकिन तुमने पाप करना बंद नहीं किया। बहुत समय पहले यदि मैंने वे चमत्कार सूर और सैदा के शहरों में किए होते, तो उन दुष्ट लोगों ने पाप करना बंद कर दिया होता; वे अपने ऊपर टाट डाल लेते और आग की ठंडी राख पर बैठते, और अपने किए हुए कामों का पछतावा करते।
\v 22 मैं तुमको यह बता दूँ कि परमेश्वर सूर और सैदा के दुष्ट लोगों को दण्ड देंगे, परन्तु अंतिम दिन जब वह सब लोगों का न्याय करेंगे, तो वह तुम्हें और भी अधिक गंभीर दण्ड देंगे।
\s5
\v 23 मेरे पास तुम लोगों से भी जो कफरनहूम शहर में रहते हो कहने के लिए कुछ है। क्या तुमको लगता है कि दूसरे तुम्हारी इतनी प्रशंसा करेंगे कि तुम सीधा स्वर्ग चले जाओगे? ऐसा नहीं होगा! इसके विपरीत, तुम नीचे जाओगे जहां लोगों के मरने के बाद परमेश्वर उनको दण्ड देते हैं! यदि मैंने बहुत समय पहले सदोम में यह चमत्कार किए होते, तो उन दुष्ट लोगों ने निश्चय ही पाप करना त्याग दिया होता, और उनका शहर यहां आज भी होता। परन्तु तुमने पाप करना नहीं त्यागा है।
\v 24 मैं तुमको यह बता दूँ कि परमेश्वर सदोम में रहने वाले दुष्ट लोगों को दण्ड देंगे, परन्तु अंतिम दिन जब वह सब लोगों का न्याय करेंगे, तो वह तुमको और भी अधिक गंभीर दण्ड देंगे।"
\p
\s5
\v 25 उस समय यीशु ने प्रार्थना की, "हे पिता, आप स्वर्ग में और धरती पर सब कुछ पर शासन करते हैं। मैं धन्यवाद करता हूँ कि आप इन बातों को जानने से ऐसे लोगों को रोकते हो, जो सोचते हैं कि वे बुद्धिमान हैं और बहुत शिक्षित हैं। इसकी अपेक्षा आपने इन बातों को उन लोगों पर प्रकट किया है जो आपकी सच्चाई को इस प्रकार स्वीकार करते हैं, जैसे कि छोटे बच्चे बड़ों की बातों को मानते हैं।
\v 26 हाँ, हे पिता, आपने ऐसा किया है क्योंकि ऐसा करना आपको अच्छा लगा।"
\p
\v 27 तब यीशु ने लोगों से कहा, "मेरे पिता परमेश्वर ने मुझे मेरा काम करने के लिए जो कुछ जानने की आवश्यकता है, वह सब मुझे बता दिया है। केवल मेरे पिता जानते हैं कि मैं कौन हूँ। अतिरिक्त केवल मैं और जिन लोगों पर मैं उन्हें प्रकट करना चाहता हूँ वे ही वास्तव में मेरे पिता को जानते हैं।
\s5
\v 28 तुम सब लोग मेरे पास आओ, जो अगुवों के निर्देशन में नियमों का पालन करने के प्रयास से बहुत थक चुके हो। मैं तुम्हें उन सब से विश्राम दूँगा।
\v 29 जैसे एक बैल अपने जुए के अधीन हो जाता है, वैसे ही तुम भी मेरे अधीन हो जाओ और जो मुझे तुम्हें सिखाना है, उसे सीखो। मैं कोमल और विनम्र हूँ, और तुम वास्तव में विश्राम पाओगे।
\v 30 जो बोझ मैं तुम पर डालूँगा वह हल्का है, और तुम उसे आसानी से उठा लोगे।"
\s5
\c 12
\p
\v 1 उस समय सब्त के दिन, यीशु और शिष्य कुछ अनाज के खेतों से होकर जा रहे थे। शिष्यों को भूख लगी थी, तो उन्होंने कुछ अनाज की बालें लीं और उनको खा लिया, मूसा की व्यवस्था में ऐसा करने की अनुमति नहीं थी।
\v 2 कुछ फरीसियों ने उन्हें ऐसा करते देखा, तो उन्होंने यीशु से कहा, "देख, तेरे शिष्य हमारे विश्राम के दिन में काम कर रहे हैं।
\s5
\v 3 "लेकिन यीशु ने उन्हें उत्तर दिया," धर्मशास्त्रों में लिखा है कि हमारे पूर्वज राजा दाऊद ने क्या किया था जब उसे और उसके साथियों को भूख लगी थी।
\v 4 राजा दाऊद ने आराधना के पवित्र तम्बू में प्रवेश किया और जो रोटी परमेश्वर के लिए भेंट की हुई थीं उन्हे खाया। परन्तु मूसा की व्यवस्था के अनुसार, केवल याजकों को वह रोटी खाने की अनुमति थी, दाऊद और उसके साथियों ने उन्हे खाया था।
\s5
\v 5 इसके अतिरिक्त तुमने निश्चय ही पढ़ा होगा जो मूसा ने लिखा है, याजक, सब्त के दिन आराधनालय में काम करके, यहूदी विश्राम दिवस के व्यवस्था का पालन नहीं करते हैं, तो भी वे दोषी नहीं हैं।
\v 6 मैं तुम्हें समझता हूँ कि इसका क्या अर्थ है: मैं तुम्हारे पास आया हूँ, और मैं, आराधनालय से ज्यादा महत्वपूर्ण हूं।
\s5
\v 7 तुमको धर्मशास्त्रों में लिखे हुए परमेश्वर के इन वचनों पर विचार करना चाहिए: 'मैं चाहता हूँ कि तुम लोगों के साथ दया का व्यवहार करो और केवल बलिदान न चढ़ाओ।' यदि तुम समझते हो कि इसका क्या अर्थ है, तो तुम मेरे शिष्यों की निंदा नहीं करोगे, जिन्होंने कोई गलत काम नहीं किया है।
\v 8 मैं मनुष्य का पुत्र हूँ, और मेरे पास लोगों को यह बताने का अधिकार है कि वे सब्त के दिन क्या कर सकते हैं।"
\p
\s5
\v 9 उसी दिन यीशु वहाँ से निकलकर, एक आराधनालय में गए।
\v 10 वहां उन्होंने एक सूखे हाथ वाले व्यक्ति को देखा। फरीसी सब्त के विषय में यीशु के साथ विवाद करना चाहते थे, इसलिए उनमें से एक ने उनसे पूछा, "क्या परमेश्वर हमें विश्राम के दिन में लोगों को चंगा करने की अनुमति देते हैं?"
\s5
\v 11 वे अपेक्षा कर रहे थे कि यीशु कुछ गलत कह कर पाप करेंगे। उन्होंने उन्हें उत्तर दिया, "मान लो कि तुम्हारे पास एक ही भेड़ है, और वह सब्त के दिन एक गहरे गड़हे में गिर गई, क्या तुम उसे वहां छोड़ दोगे? कदापि नहीं! तुम उसे पकड़ोगे और उठाकर तुरन्त बाहर निकालोगे!
\v 12 परन्तु मनुष्य भेड़ की तुलना में बहुत अधिक मूल्यवान है। इसलिए यह निश्चय ही हमारे लिए सही होगा, कि किसी भी व्यक्ति को स्वस्थ करके भलाई करें, चाहे वह हमारे विश्राम का दिन ही क्योंकि हो!"
\s5
\v 13 तब उन्होंने उस व्यक्ति से कहा, "अपना हाथ बढ़ा!" उसने अपना सूखा हाथ बढ़ाया, और वह, दूसरे हाथ के समान स्वस्थ हो गया!
\v 14 तब फरीसी आराधनालय छोड़कर चले गए। उन्होंने एक साथ योजना बनाना आरंभ कर दिया कि वे यीशु को कैसे मार सकते थे।
\p
\s5
\v 15 क्योंकि यीशु को पता था कि फरीसी उन्हें मारने का षड्यन्त्र रच रहे हैं, वह शिष्यों को लेकर वहां से चले गए। कई बीमार लोगों सहित एक बड़ी भीड़, उनके पीछे हो ली, और उन्होंने उन सब को स्वस्थ किया।
\v 16 परन्तु उन्होंने उन्हें दृढ़ता से कहा कि वे किसी को भी इसके विषय में नहीं बताएँ।
\v 17 ऐसा करने से उन्होंने वह पूरा किया जो यशायाह भविष्यद्वक्ता ने बहुत पहले लिखा था। उसने लिखा,
\s5
\v 18 "यह मेरे दास हैं जिन्हें मैंने चुना है, जिनसे मैं प्रेम करता हूँ और जिन्होंने मुझे प्रसन्न किया है। मैं उनमें अपना आत्मा डालूंगा, और वह गैर-यहूदियों के लिये न्याय और उद्धार लाएँगे।"
\s5
\v 19 वह लोगों के साथ झगड़ा नहीं करेंगे, न ही वह चिल्लाएँगे और सड़कों में उनका शब्द सुनाई नहीं देगा।
\v 20 वह निर्बल लोगों के साथ कोमल होंगे; अगर कोई व्यक्ति बड़ी कठिनाई से जीवित है, तो वह उसे नहीं मारेंगे। और वह लोगों का न्याय निष्पक्षता से करेंगे और घोषित करेंगे कि वे दोषी नहीं हैं।
\v 21 इसलिए गैर-यहूदी आत्मविश्वास से उन पर भरोसा करेंगे।"
\p
\s5
\v 22 एक दिन कुछ लोग यीशु के पास एक अंधे और बोलने में असमर्थ व्यक्ति को लाए, जिसमें एक दुष्ट-आत्मा थी। यीशु ने दुष्ट-आत्मा को निकाल दिया और उसे स्वस्थ किया। तब वह व्यक्ति बात करने लगा और देखने में सक्षम हो गया।
\v 23 सारी भीड़ यह देखकर आश्चर्यचकित हुई। वे एक दूसरे से कहने लगे, "क्या यह मनुष्य मसीह है, राजा दाऊद का वंशज, जिनकी हम आशा कर रहे थे?"
\s5
\v 24 क्योंकि फरीसियों ने इस चमत्कार के विषय में सुना, उन्होंने कहा, "यह परमेश्वर नहीं है, यह दुष्ट-आत्माओं के शासक बालजबूल की सहायता से लोगों में से दुष्ट-आत्माओं को निकालता है!"
\v 25 यीशु जानते थे कि फरीसी क्या सोच रहे थे। इसलिए उन्होंने उनसे कहा, "यदि एक देश के लोग एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ते हैं, तो वे अपने देश को नष्ट कर देंगे। अगर एक ही शहर या घर में रहने वाले लोग एक-दूसरे से लड़ते हैं, तो वे एक समूह या परिवार के रूप में नहीं रह सकते हैं।
\s5
\v 26 इसी प्रकार यदि शैतान अपने स्वयं के दुष्ट-आत्माओं को निकाल रहा है, तो वह स्वयं के विरुद्ध लड़ रहा है। वह अपने दासों पर शासन नहीं कर पाएगा!
\v 27 इसके अतिरिक्त यदि यह सच है कि शैतान मुझे दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकालने में समर्थ बनाता है, तो क्या यह भी सच है कि तुम्हारे शिष्य भी जो दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकालते हैं, क्या शैतान की शक्ति से ऐसा करते हैं? नहीं! इसलिए वे तुम्हारा न्याय करेंगे क्योंकि तुमने कहा कि उनके काम के पीछे शैतान की शक्ति थी।
\s5
\v 28 परन्तु क्योंकि यह परमेश्वर के आत्मा हैं जो मुझे दुष्ट-आत्माओं को निकालने में समर्थ बनाते हैं, यह सिद्ध करता है कि स्वर्ग से परमेश्वर का शासन पहले से ही यहाँ हैं।
\p
\v 29 मैं तुमको दिखाता हूँ कि मैं दुष्ट-आत्माओं को निकालने में क्यों समर्थ हूँ। जैसे शैतान बलवन्त है वैसे एक बलवन्त मनुष्य के घर में कोई नहीं जा सकता है, और यदि वह पहले उस बलवन्त मनुष्य को नहीं बाँधे तो उसकी संपत्ति को नहीं ले सकता है। लेकिन यदि वह उसे बाँध देता है, तो वह उसकी संपत्ति लेने में समर्थ हो जाएगा।
\p
\v 30 कोई भी निष्पक्ष नहीं हो सकता। जो लोग यह स्वीकार नहीं करते हैं कि पवित्र आत्मा मुझे दुष्ट-आत्माओं को निकालने में समर्थ बनाते हैं, वे मेरा विरोध करते हैं, और जो मेरे शिष्य बनने के लिए लोगों को इकट्ठा नहीं करते हैं, वे लोगों को मुझ से दूर कर रहे हैं।
\p
\s5
\v 31 तुम कह रहे हो कि यह पवित्र आत्मा नहीं हैं जो मुझे दुष्ट-आत्माओं को निकालने में समर्थ बना रहे हैं। तो मैं तुम से ये कहूंगा: यदि जो लोग किसी भी तरह से किसी व्यक्ति का अपमान करते हैं और उन्हें अपनी गलती का पछतावा होता है और वे परमेश्वर से क्षमा माँगते हैं तो परमेश्वर उन्हें क्षमा करेंगे। परन्तु वह उन लोगों को क्षमा नहीं करेंगे जो पवित्र आत्मा का अपमान करते हैं।
\v 32 जो लोग मेरी अर्थात मनुष्य के पुत्र की आलोचना करते हैं, उन्हें क्षमा करने के लिए परमेश्वर इच्छुक हैं। परन्तु मैं तुमको चेतावनी देता हूँ कि वह उन लोगों को क्षमा नहीं करेंगे जो पवित्र आत्मा के विषय में बुरी बातें कहते हैं। परमेश्वर न तो उन्हे इस समय क्षमा करेंगे, न ही आने वाले संसार में क्षमा करेंगे।"
\p
\s5
\v 33 "जब तुम किसी पेड़ में फल देखते हो, तो तुम निर्णय लेते हो कि क्या फल अच्छा है या बुरा है। यदि फल अच्छा है, तो तुम जानते हो कि उसका पेड़ भी अच्छा है। यदि मैं अच्छे काम कर रहा हूँ, तो तुमको पता होना चाहिए कि मैं अच्छा हूँ या नहीं।
\v 34 तुम जहरीले सांपों के बच्चों के समान हो! तुम कुछ भी अच्छा नहीं कह सकते, क्योंकि तुम बुरे हो। व्यक्ति वही कहता है जो उसके मन में होता है।
\v 35 अच्छे लोग अच्छी बातें कहते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने इन सब अच्छी वस्तुओं को किसी सुरक्षित स्थान में रखा है और किसी भी समय उन्हें बाहर निकाल सकते हैं। परन्तु बुरे लोग बुरी बातें करते हैं। ऐसा इसलिए है कि उन्होंने इन सब बुरी वस्तुओं को एकत्र कर रखा है और उन्हें उस जगह से किसी भी समय बाहर निकाल सकते हैं जहां उन्होंने उसे एकत्र किया हुआ है।
\s5
\v 36 मैं तुमसे कहता हूँ कि उस दिन जब परमेश्वर न्याय करेंगे, तो वह लोगों को उनके हर एक व्यर्थ के शब्द को याद कराएंगे, जो उन्होंने कहे हैं, और वह उन लोगों द्वारा कहीं गई बातों के अनुसार, उनका न्याय करेंगे।
\v 37 परमेश्वर या तो तुम्हारे द्वारा कहे गए उन शब्दों के आधार पर तुम्हें धर्मी घोषित करेंगे, या जो तुमने कहा है उसके आधार पर तुम्हें दोषी घोषित करेंगे।
\p
\s5
\v 38 "फिर कुछ फरीसियों और यहूदी धर्म के शिक्षकों ने यीशु को उत्तर दिया," गुरु, हम आपको एक चमत्कार करते देखना चाहते हैं जिससे हम जाने कि परमेश्वर ने आपको भेजा है।"
\v 39 "फिर यीशु ने उनसे कहा," तुमने पहले ही मुझे चमत्कार करते देखा है, परन्तु तुम बुरे हो, और तुम सच्चाई से परमेश्वर की उपासना नहीं करते हो! तुम मुझसे यह सिद्ध करवाना चाहते हो कि परमेश्वर ने मुझे भेजा है, परन्तु परमेश्वर तुमको केवल एक चमत्कार दिखाएंगे जो वैसा ही होगा जैसा योना भविष्यद्वक्ता के साथ हुआ था।
\v 40 योना एक बड़ी मछली के पेट में तीन दिन और तीन रात था, इससे पहले कि परमेश्वर ने उसे बाहर आने दिया। इसी प्रकार, तीन दिन और रात तक, मनुष्य के पुत्र पृथ्वी की गहराई में होंगे, और फिर परमेश्वर मुझे फिर से जीने के लिए योग्य करेंगे।
\s5
\v 41 जब परमेश्वर हर सब का न्याय करेंगे, तो जो लोग नीनवे शहर में रहते थे वह तुम्हारे साथ परमेश्वर के सामने खड़े होंगे। परन्तु जब योना ने उनको चेतावनी दी, तब उन्होंने पाप करना बंद कर दिया। अब मैं तुम्हारे पास आया हूँ, और मैं योना की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण हूँ, परन्तु तुमने पाप करना नहीं त्यागा है। इसलिए परमेश्वर तुम्हारा न्याय करेंगे।
\s5
\v 42 इस्राएल देश के दक्षिण से शीबा की रानी, कई वर्षों पहले बहुत दूर से सुलैमान की बातें सुनने के लिए आई क्योंकि वह बुद्धिमानी की बातों की शिक्षा देता था। अब मैं तुम्हारे पास आया हूँ, और मैं सुलैमान की तुलना में बहुत अधिक महत्तवपूर्ण हूँ, परन्तु तुमने पाप करना नहीं त्यागा है। इसलिए जब परमेश्वर सब का न्याय करेंगे तब शीबा की रानी परमेश्वर के सामने तुम्हारे पास खड़ी होगी और वह तुम्हें दोषी ठहराएगी। "
\p
\s5
\v 43 "जब एक दुष्ट-आत्मा मनुष्य को छोड़ देती है, तो वह निर्जन क्षेत्रों में भटकती है, ताकि कोई ऐसा जन मिले, जिसमें वह आराम कर सके। यदि उसे कोई नहीं मिलता है,
\v 44 तब वह कहती है, "मैं उस व्यक्ति में वापस लौट जाऊँगी जिसमें मैं पहले रहती थी।" तो वह वापस चली जाती है और उसे पता चलता है कि उस व्यक्ति का जीवन परमेश्वर के आत्मा के वश में नहीं है। उस व्यक्ति का जीवन एक ऐसे घर के समान है जिसे साफ किया गया है और सब कुछ व्यवस्थित है परन्तु यह खाली है।
\v 45 तब यह दुष्ट-आत्मा जाती है और सात अन्य दुष्ट-आत्माओं को साथ ले लेती है जो और भी अधिक बुरी हैं, और वे सब उस व्यक्ति में प्रवेश करती हैं और वहां रहने लगती हैं। इसलिए हालांकि उस व्यक्ति की स्थिति, अब पहले की तुलना में बहुत खराब हो जाती है। यही तुम दुष्ट लोगों के साथ होगा, जिन्होंने मुझे शिक्षा देते हुए सुना है।"
\p
\s5
\v 46 "जब यीशु भीड़ से बात कर रहे थे, तब उनकी माँ और छोटे भाई आए। वे घर के बाहर खड़े हुए थे, और वे उनके साथ बात करना चाहते थे।
\v 47 किसी ने उनसे कहा, "आपकी माँ और आपके छोटे भाई घर के बाहर खड़े हैं, और वे आपसे बात करना चाहते हैं।"
\s5
\v 48 तब यीशु ने उस व्यक्ति से कहा, "मैं तुम्हें बताता हूँ कि वास्तव में मेरी माता और भाई कौन हैं।'
\v 49 तब उन्होंने अपने शिष्यों की ओर संकेत करके कहा, "ये मेरी माँ और मेरे भाइयों का स्थान लेते हैं।
\v 50 जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा के अनुसार काम करते हैं, वही मेरे भाई, मेरी बहन या मेरी माँ का स्थान लेते हैं।"
\s5
\c 13
\p
\v 1 उसी दिन यीशु ने शिष्यों के साथ उस घर को छोड़ दिया जहां वह शिक्षा दे रहे थे और गलील की झील के किनारे पर गए। और वह वहां बैठ गए,
\v 2 और एक बड़ी भीड़ उनके आस-पास उनकी शिक्षा सुनने के लिए एकत्र हो गई। जगह न होने के कारण, वह एक नाव पर चढ़ गए और उन्हें सिखाने के लिए बैठ गए। भीड़ किनारे पर खड़ी हो गई और उनकी बात सुनने लगी।
\s5
\v 3 उन्होंने उन्हें कई दृष्टान्तों के द्वारा शिक्षा दी। उन्होंने कहा, "सुनो! एक मनुष्य अपने खेत में बीज बोने के लिए गया।
\v 4 जब वह खेत में बीज बिखेर रहा था, तो कुछ बीज रास्ते पर गिर गए थे। और पक्षी आए और उन बीजों को खा गए।
\v 5 कुछ बीज वहाँ गिर गए जहां चट्टान के ऊपर अधिक मिट्टी नहीं थी। ये बीज बहुत जल्दी उग आए, क्योंकि सूरज उथली मिट्टी को शीघ्र गर्म करता था।
\v 6 लेकिन जब पौधे उगे, तो वे सूरज के प्रकाश में बहुत गरम हो गए, और सूख गए क्योंकि उनकी गहरी जड़ें नहीं थीं।
\s5
\v 7 कुछ बीज कंटीली झाड़ियों वाली भूमि में गिर गए। कंटीली झाड़ियाँ छोटे पौधे के साथ मिलकर बड़ी हो गई, और उन्होंने पौधों को घेरकर दबा दिया।
\v 8 परन्तु कुछ बीज अच्छी मिट्टी में गिरे, और पौधे बड़े हुए और बहुत सारे अनाज का उत्पादन किया। कुछ पौधों ने सौ गुणा अधिक उत्पादन किया। कुछ पौधों ने साठ गुणा ज्यादा उत्पादन किया। कुछ पौधों ने तीस गुणा ज्यादा उत्पादन किया।
\v 9 यदि तुम इसे समझ सकते हो, तो तुमको ध्यान से विचार करना चाहिए कि मैंने अभी क्या कहा हैं।"
\p
\s5
\v 10 शिष्यों ने बाद में यीशु के निकट आकर उनसे पूछा, "जब आप भीड़ से बात करते हैं तो आप दृष्टान्तों का उपयोग क्यों करते हैं?"
\v 11 उन्होंने उत्तर दिया, "परमेश्वर तुम्हारे सामने उन बातों को स्पष्ट करते हैं जो उन्होंने पहले प्रकट नहीं की थीं, वह स्वयं को राजा के रूप में दर्शाने जा रहे हैं। परन्तु उन्होंने इन अन्य लोगों पर उन बातों को प्रकट नहीं किया है।
\v 12 जो लोग मेरी बातों को समझते हैं, और उनके विषय में सोचने में सक्षम हैं, परमेश्वर उन्हें और अधिक समझने की क्षमता प्रदान करेंगे। परन्तु जो लोग मेरी बातों पर ध्यान देकर सोचने में सक्षम नहीं हैं, वे जो कुछ पहले से जानते हैं, उसे भी भूल जाएंगे।
\s5
\v 13 इसीलिए जब मैं लोगों से बात करता हूँ तब मैं दृष्टान्तों का प्रयोग करता हूँ, क्योंकि वे देखते हैं कि मैं क्या करता हूँ, वे समझते नहीं हैं कि इसका क्या अर्थ है, और जो मैं कहता हूँ उसे सुनते हैं, तो वे वास्तव में उसका अर्थ नहीं सीखते हैं।
\v 14 ये लोग जो करते है, वह बहुत पहले भविष्यद्वक्ता यशायाह द्वारा कहे गए परमेश्वर के वचनों की पूर्ति है, तुम मेरी बात सुनोगे, लेकिन तुम इसे समझ नहीं पाओगे। तुम देखोगे कि मैं क्या करता हूँ, लेकिन तुम इसका अर्थ नहीं जान पाओगे।
\p
\s5
\v 15 परमेश्वर ने यशायाह से यह भी कहा, "ये लोग मेरी बात सुनने में सक्षम हैं, लेकिन वे कभी भी संदेश को नहीं समझेंगे। उनके पास आंखें हैं जो देख सकती हैं, लेकिन वे कभी भी स्पष्ट रूप से नहीं देखेंगे कि वे क्या देख रहे हैं। उन्होंने अपनी आँखें बंद कर ली हैं ताकि वे देख न सकें। वे अपनी आंखों से नहीं देख सकते हैं, और वे अपने कानों से नहीं सुन सकते हैं, और वे समझ नहीं सकते हैं। यदि वे देख सकते और सुन सकते और समझ सकते हैं, तो वे मुड़कर मेरी और आ जाएँगे, और मैं उन्हें स्वस्थ कर दूंगा।"
\p
\s5
\v 16 लेकिन, परमेश्वर ने तुमको सक्षम बनाया है क्योंकि तुमको पता है कि मैंने क्या किया है और क्योंकि तुम समझते हो कि मैं क्या कहता हूँ।
\v 17 ध्यान दो पूर्वकाल में कई भविष्यद्वक्ताओं और धर्मी लोगों ने इन सब कामों को देखना चाहा था जो तुम मुझे करता हुआ देख रहे हो। परन्तु वे देख नहीं पाए। वे उन बातों को सुनना चाहते थे जो तुमने मुझसे सुनी हैं, परन्तु वे सुन नहीं पाए।
\p
\s5
\v 18 अब उस दृष्टान्त का अर्थ सुनो जो मैंने तुमको बताया था।
\v 19 कुछ लोग यह सुनते हैं कि परमेश्वर शासन कर रहे हैं, परन्तु उसे समझते नहीं हैं। वे उस रास्ते के समान हैं जहां कुछ बीज गिर गए। बुराई करने वाला शैतान आता है और इन लोगों ने जो सुना है, उसे भुला देता है।
\s5
\v 20 कुछ लोग परमेश्वर का संदेश सुनते हैं और उसे तुरंत आनन्दित होकर स्वीकार करते हैं। वे चट्टानों वाली भूमि के समान हैं जहां कुछ बीज गिर गए थे।
\v 21 क्योंकि यह उनके दिल की गहराई में प्रवेश नहीं करता है, वे केवल थोड़े समय के लिए इसे मानते हैं। वे ऐसे पौधे के समान हैं जिनकी गहरी जड़ें नहीं थीं। जब दूसरों ने उनके साथ बुरा व्यवहार किया और उन्हें पीड़ित किया क्योंकि वे उस बात पर विश्वास करते हैं जो मैंने उन्हें बताया है, तो वे उसमें विश्वास करने से मना करते हैं।
\s5
\v 22 कुछ लोग परमेश्वर का संदेश सुनते हैं, लेकिन वे अमीर बनना चाहते हैं, इसलिए वे केवल पैसे से और धन से वे क्या खरीद सकते हैं उनके विषय में चिंतित हैं। परिणामस्वरूप, वे परमेश्वर का संदेश भूल जाते हैं और वे उन कामों को नहीं करते हैं जो परमेश्वर चाहते हैं कि वे करें। ये लोग उस मिट्टी के समान हैं जिसमें कांटेदार झाड़ियों की जड़ें थीं।
\v 23 परन्तु कुछ लोग मेरे संदेश सुनते हैं और उसे समझते हैं। उनमें से कुछ ऐसे काम करते हैं जो परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं, कुछ और अधिक ऐसे काम करते हैं जो परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं, और कुछ और भी अधिक ऐसे काम करते हैं जो परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं। वे अच्छी भूमि के समान हैं जहां कुछ बीज गिर गए थे।"
\p
\s5
\v 24 यीशु ने भीड़ को एक और दृष्टान्त सुनाया। उन्होंने कहा, "जब परमेश्वर स्वर्ग से शासन करते हैं, तो वह एक खेत के मालिक के समान होंगे जिसने अपने दासों को अपने खेत में अच्छे बीज बोने के लिए भेजा था।
\v 25 जब वे खेत की रखवाली करने की अपेक्षा सो रहे थे, तो जमींदार का बैरी आया और गेहूं के बीच में खरपतवार के बीज बिखेर कर चला गया।
\v 26 बीज अंकुरित हुए और हरे पौधे बढ़े और अनाज की बालें बनने लगीं तो। खरपतवार भी बढ़ीं।
\s5
\v 27 तो खेत के मालिक के पास सेवक आए और उससे कहा, 'स्वामी, तूने हमें अच्छे बीज दिए और वही हम लोगों ने अपने खेत में बोए हैं। तो यह खरपतवार कहाँ से उग आई हैं?'
\v 28 खेत के मालिक ने उनसे कहा, 'मेरे दुश्मन ने ऐसा किया है।' उसके सेवकों ने उससे कहा, 'क्या तू चाहता है कि हम खरपतवार उखाड़ दें?'
\s5
\v 29 उसने उनसे कहा, 'नहीं, ऐसा मत करो, क्योंकि तुम ऐसा करते समय कुछ गेहूं को भी उखाड़ दोगे।
\v 30 गेहूं और खरपतवार को कटाई के समय तक एक साथ बढ़ने दो। उस समय मैं उन कटनी करनेवाले लोगों को कहूंगा, 'पहले खरपतवार को इकट्ठा करो, और जलाने के लिये उनके गट्ठे बाँध लो। तब गेहूं इकट्ठा करो और उसे मेरे गोदाम में डाल दो।'
\p
\s5
\v 31 "यीशु ने यह दृष्टान्त भी कहा:" जब परमेश्वर स्वर्ग से शासन करते हैं, यह सरसों के उस बीज के समान है जिसे किसी व्यक्ति ने अपने खेत में बो दिया और वह बढ़ने लगा।
\v 32 मनुष्यों के द्वारा बोए जानेवाले बीजों में सरसों का बीज सबसे छोटा होता है, परन्तु यहां इस्राएल में वे बड़े पौधे बन जाते हैं। जब पौधे पूरी तरह से बड़े हो जाते हैं, तो वे बगीचे के दूसरे पौधों से बड़े होते हैं। वे वृक्षों के रूप में बड़ा झाड़ बनते हैं, और वे पक्षियों द्वारा उनकी शाखाओं में घोंसले बनाने के लिए स्थान रखते हैं।"
\p
\s5
\v 33 यीशु ने यह दृष्टान्त भी कहा: "जब स्वर्ग से परमेश्वर शासन करते हैं, तो वह एक ऐसी स्त्री के समान है जो रोटी बना रही थी। उसने लगभग चालीस किलो आटा लिया और उसमें थोड़ा सा खमीर मिला दिया, और रोटियाँ फूल गईं।"
\p
\s5
\v 34 यीशु ने इन सब बातों को सिखाने के लिए भीड़ से दृष्टान्तों में बातें कीं। जब भी वह उनसे बात करते थे, तो स्वभावतः इसी प्रकार कहानियों में ही बात करते थे।
\v 35 ऐसा करने से, उन्होंने वह सच साबित कर दिया जो परमेश्वर ने भविष्यद्वक्ताओं में से एक को बहुत पहले लिखने के लिए कहा था।
\p मैं दृष्टान्तों में बात करूंगा; दुनिया को बनाने के बाद से मैंने जो रहस्य रखें हैं उसे सिखाने के लिए दृष्टान्तों को सुनाऊँगा।
\p
\s5
\v 36 "जब यीशु ने भीड़ को भेज दिया, तो वह घर में गए। तब शिष्यों ने उनके पास आकर उनसे कहा, "गेहूं के खेत में खरपतवार वाले दृष्टान्त को हमें समझा दें।"
\v 37 उन्होंने उत्तर दिया, "जो उत्तम बीज बोता है, वह मनुष्य का पुत्र, अर्थात मैं हूँ।
\v 38 खेत इस संसार का प्रतीक है, जहां लोग रहते हैं। जो बीज अच्छे से बढ़ते हैं, वे उन लोगों को दर्शाते हैं जिन पर परमेश्वर शासन करते हैं। खरपतवार उन लोगों को दर्शाती है जो बुराई करने वाले शैतान की बात मानते हैं।
\v 39 जिस शत्रु ने खरपतवार के बीज बोए वह शैतान का प्रतीक है। जिस समय कटनी करनेवाले फसल की कटाई करेंगे, वह उस समय को दर्शाते है जब संसार का अन्त हो जाएगा। कटनी करनेवाले स्वर्गदूतों का प्रतीक हैं।
\s5
\v 40 खरपतवार एकत्र करके जला दिया जाता है। यह दर्शाता है कि जब परमेश्वर सभी लोगों का न्याय करेंगे, और जब संसार का अन्त हो जाएगा तब ऐसा होगा:
\v 41 मैं मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजूंगा, और वे उन सब लोगों में से जिन पर मैं शासन करता हूँ, उनको एकत्र करेंगे जो दूसरों के लिए पाप करने का कारण बनते हैं और जो लोग परमेश्वर की इच्छा का उल्लंघन करते हैं।
\v 42 स्वर्गदूत उन लोगों को नरक की आग में डाल देंगे। वहां उन लोगों का रोना और दातों का पीसना होगा क्योंकि वे भयंकर दर्द के कारण बहुत पीड़ित होंगे।
\v 43 परन्तु जिन लोगों का जीवन परमेश्वर की इच्छा के अनुसार है वे ऐसे उज्जवल होकर चमकेंगे जैसे सूरज चमकता है। वे चमकेंगे क्योंकि परमेश्वर, उनके पिता, उन पर शासन करेंगे। यदि तुम इसे समझने में सक्षम हो, तो तुमको ध्यान से सोचना चाहिए कि मैंने अभी क्या कहा है।"
\p
\s5
\v 44 "स्वर्ग से परमेश्वर का शासन इतना बहुमूल्य है कि वह एक ऐसे व्यक्ति के समान है जिसने एक महान खजाना पाया जो किसी अन्य व्यक्ति ने एक खेत में दबा दिया था। जब इस मनुष्य ने इसे खोदकर पाया था तो, उसने इसे फिर से दबा दिया, ताकि कोई और देख न पाए। तब वह चला गया और अपनी सारी संपत्ति बेचकर उस खेत को खरीदने के लिए धन प्राप्त किया। तब वह गया और उस खेत को खरीद लिया, और वह उस खजाने को प्राप्त करने में समर्थ हुआ।
\p
\v 45 इसके अतिरिक्त स्वर्ग से परमेश्वर का शासन इतना अनमोल है कि वह एक व्यापारी के समान है जो खरीदने के लिए अच्छी गुणवत्ता के मोती खोज रहा था।
\v 46 जब उसे एक बहुत महंगा मोती बिक्री के लिए मिला, तो उसने उस मोती को खरीदने के लिए पर्याप्त धन प्राप्त करने के लिए अपनी सारी संपत्ति को बेच दिया। तब वह गया और उसे खरीद लिया।
\p
\s5
\v 47 जब परमेश्वर स्वर्ग से शासन करते हैं, तो वह ऐसा है जैसा मछुवे एक बड़े जाल में मछलियाँ पकड़ते हैं। उन्होंने सभी प्रकार की मछलियाँ पकड़ीं, उपयोगी और निकम्मी दोनों।
\v 48 जब जाल भर गया, तो मछुओं ने उसे किनारे पर खींच लिया। फिर वे वहां बैठे और अच्छी मछलियों को बाल्टी में डाला, परन्तु उन्होंने निकम्मी मछलियों को दूर फेंक दिया।
\s5
\v 49 यह ऐसा है जैसे उस समय लोगों के साथ होगा जब संसार का अन्त होगा। स्वर्गदूत वहां आएंगे, जहां परमेश्वर लोगों का न्याय करेंगे और दुष्ट लोगों को धर्मी लोगों से अलग करेंगे।
\v 50 वे दुष्ट लोगों को नरक की आग में डाल देंगे। और वे दुष्ट लोग रोएंगे और अपने दांतों को पीसेंगे क्योंकि वे भयंकर पीड़ा से पीड़ित होंगे।"
\p
\s5
\v 51 तब यीशु ने शिष्यों से पूछा, "क्या तुम ये सब दृष्टान्तों को समझते हो जो मैंने तुम्हें सुनाए हैं?" उन्होंने यीशु से कहा, "हाँ, हम उन्हें समझते हैं।"
\v 52 तब यीशु ने कहा, "वे शिक्षक और अनुवादक, जो इन दृष्टान्तों को समझते हैं और स्वर्ग से परमेश्वर के शासन के अधीन होकर कार्य करते हैं, एक घर के मालिक के समान हैं जो अपने भंडार कक्ष से नई चीजों और पुरानी चीजों दोनों को काम में लेता है।"
\p
\v 53 जब यीशु ने इन दृष्टान्तों को कहना समाप्त कर दिया, तो उन्होंने शिष्यों के साथ उस क्षेत्र को छोड़ दिया।
\s5
\v 54 फिर वे नासरत नगर में गए, जहाँ यीशु रहते थे। सब्त के दिन उन्होंने लोगों को आराधनालय में सिखाया। परिणाम यह हुआ कि लोग वहाँ चकित थे। लेकिन कुछ ने कहा, "यह मनुष्य हमारे जैसा एक साधारण व्यक्ति है! तो ऐसा कैसे है कि वह इतना जानता है और इतना समझता है ? और वह ऐसा चमत्कार कैसे कर सकता है?
\v 55 वह सिर्फ एक बढ़ई का पुत्र है, है ना? उसकी माँ मरियम है, और उनके छोटे भाई याकूब, यूसुफ, शिमोन और यहूदा हैं!
\v 56 और उनकी बहनें भी यहाँ हमारे शहर में रहती हैं। तो वह इन सब बातों को कैसे सिखा और कर सकते है?
\s5
\v 57 वहाँ लोगों ने स्वीकार करने से मना कर दिया कि यीशु के पास ऐसे अधिकार हैं। इसलिए यीशु ने उनसे कहा, "लोग मेरे और अन्य भविष्यद्वक्ताओं का हर जगह जहाँ भी वे जाएँ सम्मान करते हैं, परन्तु हमारे अपने नगर में हमें सम्मान नहीं मिलता है, और यहाँ तक कि हमारे परिवार भी हमारा सम्मान नहीं करते हैं!"
\v 58 यीशु ने वहां बहुत चमत्कार नहीं किए क्योंकि लोगों को यह विश्वास नहीं था कि उनके पास ऐसे अधिकार हैं।
\s5
\c 14
\p
\v 1 उस समय शासक हेरोदेस अंतिपस ने यीशु के चमत्कारों के विषय में सुना।
\v 2 उसने अपने सेवकों से कहा, "यह यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला होना चाहिए। वह मरे हुओं में से उठ गया होगा, और यही कारण है कि उसके पास ऐसे चमत्कार करने की शक्ति है।"
\s5
\v 3-4 हेरोदेस का इस प्रकार से विचार करने का कारण यह था- हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप्पुस की पत्नी हेरोदियास से विवाह किया था , जबकि हेरोदियास का पति फिलिप्पुस अभी भी जीवित था। तो यूहन्ना ने उस से कहा, "तूने जो किया है वह परमेश्वर के नियमों के विरुद्ध है!" तब हेरोदियास को प्रसन्न करने के लिए, हेरोदेस ने अपने सैनिकों को यूहन्ना को बन्दी बनाने का आदेश दिया। उन्होंने उसे जंजीरों में बांधा और उसे जेल में डाल दिया।
\v 5 हेरोदेस यूहन्ना को मारने का आदेश देना चाहता था, परन्तु वह आम जनता से डरता था, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि यूहन्ना एक भविष्यद्वक्ता था जो परमेश्वर की ओर से बोलता था।
\p
\s5
\v 6 एक दिन, हेरोदेस ने अपने जन्मदिन का उत्सव मनाने के लिए एक भोज का आयोजन किया, और हेरोदियास की बेटी ने उसके मेहमानों के लिए नृत्य किया। हेरोदेस को उसका नाच बहुत अच्छा लगा,
\v 7 इसलिए उसने कहा कि वह जो कुछ भी माँगेगी वह उसे देगा, और उसने परमेश्वर को अपनी प्रतिज्ञा का गवाह ठहराया।
\s5
\v 8 इसलिए हेरोदियास की बेटी गई और अपनी माँ से पूछा कि क्या मांगे। उसकी माँ ने उससे कहा कि वह क्या माँगे। तब उसकी बेटी वापस आई और हेरोदेस से कहा, "मैं चाहती हूँ कि तू बपतिस्मा देनेवाले यूहन्ना के सिर को काट कर एक थाली में यहां ला ताकि मालुम हो कि वह सचमुच मर चुका है!"
\v 9 राजा को अब बहुत खेद हुआ कि उसने हेरोदियास की बेटी को जो कुछ भी वह चाहती थी, देने की प्रतिज्ञा की थी। क्योंकि उसने परमेश्वर के सामने यह प्रतिज्ञा की थी, और उसके सब अतिथियों ने उसे ऐसा कहते सुना था, इसलिए उसने जो कहा था उसे करना ही होगा। अत: उसने अपने सेवकों को आदेश दिया कि वह जो कहती है, करें।
\s5
\v 10 उसने सैनिकों को बन्दीगृह में भेजा और यूहन्ना का सिर कटवा दिया।
\v 11 उन्होंने ऐसा ही किया, और उन्होंने यूहन्ना के सिर को थाली में रखा और उस लड़की के पास लाए। तब वह लड़की उसे अपनी माँ के पास ले गई।
\v 12 बाद में यूहन्ना के शिष्य बन्दीगृह में गए, और यूहन्ना के शरीर को ले जाकर दफ़न कर दिया। तब वे गए और यीशु को बताया कि क्या हुआ था।
\s5
\v 13 जब यीशु ने ये समाचार सुना तो अपने साथ शिष्यों को लेकर नाव द्वारा गलील की झील के उस स्थान पर गए जहां कोई नहीं था।
\p जब भीड़ ने सुना कि वे वहां गए हैं, तो उन्होंने अपने शहरों को छोड़ दिया और किनारे पर चलते हुए उनका पीछा किया।
\v 14 जब यीशु किनारे पर आए, तो उन्होंने एक बहुत बड़ी भीड़ को देखा जो उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। उन्हे उन पर तरस आया, और उन्होंने उन बीमार लोगों को स्वस्थ किया जो उनके बीच थे।
\p
\s5
\v 15 "जब शाम हुई, तो शिष्य यीशु के पास आए और कहा," यह एक ऐसी जगह है जहां कोई नहीं रहता है, और बहुत देर हो चुकी है। लोगों को जाने के लिए कह दें ताकि वे पास के नगरों में जाकर भोजन खरीद सकें।"
\s5
\v 16 परन्तु यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, "उन्हें खाने के लिए कहीं जाने की आवश्यक्ता नहीं है, तुम ही उन्हें खाने के लिए कुछ दो!"
\v 17 शिष्यों ने कहा, "परन्तु हमारे पास केवल पांच रोटियां और दो पकी हुई मछली हैं!"
\v 18 उन्होंने कहा, "उसे मेरे पास लाओ!"
\s5
\v 19 यीशु ने उन लोगों की भीड़ को घास पर बैठने के लिए कहा जो वहां थे। फिर उन्होंने पाँच रोटियां और दो मछली लीं। उन्होंने स्वर्ग की ओर देखा, उनके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया और उन्हें टुकड़ों में तोड़ दिया। तब उसने अपने शिष्यों को टुकड़े दिए, और उन्होंने उन्हें भीड़ में बांट दिया।
\v 20 जब तक उनकी भूख नहीं मिटी तब तक सब लोगों ने खाया। फिर कुछ लोगों ने बचे हुए टुकड़ों को इकट्ठा किया और उनसे बारह टोकरियाँ भर लीं।
\v 21 उस समय लगभग पांच हजार पुरुषों ने खाना खाया, और इसमें महिलाओं और बच्चों की गिनती नहीं की गई!
\p
\s5
\v 22 इसके ठीक बाद, यीशु ने शिष्यों से कहा कि वे नाव पर चढ़कर उनके आगे गलील की झील के दूसरी ओर जाएँ। इस बीच, उन्हें भीड़ को उनके घर भेजना था।
\v 23 जब उन्होंने भीड़ को विदा कर दिया, और वह स्वयं पहाड़ों पर प्रार्थना करने के लिए चले गए। जब शाम हुई, तो वह अब भी वहां अकेले थे।
\v 24 इस समय शिष्य नाव में किनारे से बहुत दूर थे। हवा प्रबल थी और विपरीत दिशा में होने के कारण शिष्य नाव चलाने में कठिनाई का अनुभव कर रहे थे। हवा ने बहुत बड़ी लहरें उत्पन्न कीं जिसके कारण नाव पानी में आगे पीछे हो रही थी।
\s5
\v 25 फिर यीशु पहाड़ियों से पानी पर उतर आए। सुबह के करीब तीन और छह बजे के बीच में वह पानी पर चलकर नाव के पास आए।
\v 26 जब शिष्यों ने उन्हें पानी पर चलते हुए देखा, तो उन्होंने सोचा कि वह कोई भूत हैं। वे डर गए, और वे डर में चिल्लाए।
\v 27 तुरन्त यीशु ने उनसे कहा, "हिम्मत रखो, यह मैं हूँ। मत डरो!"
\s5
\v 28 पतरस ने उनसे कहा, हे प्रभु, यदि आप हो, तो मुझे पानी पर चलकर आपके पास आने के लिए कहें।
\v 29 यीशु ने कहा, "आ!" तो पतरस नाव से बाहर आया और यीशु की ओर बढ़ने लगा।
\v 30 लेकिन जब पतरस ने प्रबल हवा पर ध्यान दिया, तो वह डर गया। वह पानी में डूबने लगा और चिल्लाया, "हे प्रभु, मुझे बचाओ!"
\s5
\v 31 ठीक उसी समय यीशु ने अपने हाथ को बढ़ाकर पतरस को पकड़ लिया। उन्होंने उससे कहा, "तुझे मेरी शक्ति में केवल थोड़ा सा विश्वास है! तूने संदेह क्यों किया कि मैं तुझे डूबने से बचा सकता हूँ?"
\v 32 फिर यीशु और पतरस नाव में आ गए, और हवा चलना तुरंत बन्द हो गया।
\v 33 जितने शिष्य नाव में थे, उन सबने यीशु को झुककर प्रणाम किया और कहा, "आप सचमुच परमेश्वर के पुत्र हैं!"
\p
\s5
\v 34 जब वे नाव द्वारा झील में आगे चले गए, तो वे गन्नेसरत शहर के तट पर पहुंचे।
\v 35 उस क्षेत्र के लोगों ने यीशु को पहचान लिया, इसलिए उन्होंने लोगों को उस पूरे क्षेत्र में रहने वाले लोगों को सूचित करने के लिए भेजा कि यीशु वहाँ आए हैं। इसलिए लोग हर एक बीमार व्यक्ति को यीशु के पास लाए।
\v 36 बीमार लोग उनसे याचना करते थे कि वह उन्हें उसे या उसके वस्त्रों को ही छूने की अनुमति दें ताकि वे ठीक हो जाएं। जिस किसी ने यीशु को या उनके वस्त्र को छुआ वे चंगे हो गए।
\s5
\c 15
\p
\v 1 तब कुछ फरीसी और यहूदी व्यवस्था के शिक्षक यरूशलेम से यीशु के साथ बात करने के लिए आए। उन्होंने कहा,
\v 2 "हम देखते हैं कि तेरे शिष्य हमारे पूर्वजों की परंपराओं की अवज्ञा करते हैं! वे खाने से पहले अपने हाथों को धोने के उचित अनुष्ठान नहीं मानते हैं!"
\v 3 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "और मैं देखता हूँ कि तुम परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने से मना करते हो ताकि तुम्हारे पूर्वजों ने जो तुम्हें सिखाया है उसका अनुसरण कर सको!
\s5
\v 4 परमेश्वर ने ये दो आज्ञाएँ दीं हैं: 'अपने पिता और अपनी माता का आदर करो,' और 'जो लोग अपने पिता या माता के विषय में बुरा बोलते हैं उन्हें मार डाला जाना चाहिए।'
\v 5 लेकिन तुम लोगों को बताते हो, 'तुम अपने पिता या माता से कह सकते हो,' जो कुछ मैं तुम्हें तुम्हारी सहायता के लिए दे रहा था, मैंने अब उसे परमेश्वर को देने की प्रतिज्ञा की है।'
\v 6 जब तुम ऐसा करते हो, तो तुम सोचते हो कि तुम्हें अपने माता-पिता को कुछ भी देने की आवश्यक्ता नहीं है। इस प्रकार तुम परमेश्वर के आज्ञाओं को अनदेखा करते हो, कि तुम्हें जो भी तुम्हारे पूर्वजों ने सिखाया हो उसका अनुसरण कर सको!
\s5
\v 7 तुम केवल अच्छा होने का दिखावा करते हो! यशायाह ने भी तुम्हारे विषय में सच्चाई व्यक्त की है, जब उसने तुम्हारे पूर्वजों के विषय में परमेश्वर के विचारों को प्रकट किया था।
\v 8 'ये लोग ऐसे बातें करते हैं जैसे वे मुझे सम्मान देते हैं, परन्तु वे मुझे कुछ नहीं समझते हैं,'
\v 9 उनके लिए मेरी आराधना करना व्यर्थ है, क्योंकि वे वही सिखाते हैं जिन्हें लोग उनकी आधिकारिक शिक्षा समझते हैं।' "
\p
\s5
\v 10 फिर यीशु ने भीड़ को बुलाया कि वह उनके अधिक निकट आए। उन्होंने उन से कहा, "जो कुछ मैं तुम्हें बताता हूँ उसे सुनो और उसे समझने का प्रयास करो।
\v 11 मनुष्य खाने के लिए मुँह में जो कुछ भी डालता है, वह उसे अशुद्ध नहीं करता है। इसकी अपेक्षा, लोग जो कहते हैं जो शब्द उनके मुंह से निकलते हैं वे ही मनुष्य को नीच बनाते हैं।"
\p
\s5
\v 12 बाद में शिष्य यीशु के पास गए और कहा, "क्या आप जानते हैं कि फरीसियों ने सुना है कि आपने क्या कहा और वे आप पर क्रोधित हो गए हैं।"
\v 13 तब यीशु ने उन्हें यह दृष्टान्त बताया। "जैसे एक किसान उन पौधों से छुटकारा पाता है, जिनको उसने नहीं बोया और वह उनको खींच कर जड़ से उखाड़ देता है, वैसे ही स्वर्ग में विराजमान मेरे पिता उन सब लोगों से छुटकारा पाएंगे जो ऐसी शिक्षा देते हैं, जो उनकी बातों के विरुद्ध हैं।
\v 14 फरीसियों पर कोई ध्यान मत दो। वे लोगों को परमेश्वर की आज्ञाओं को समझने में सहायता नहीं करते हैं जैसे अंधा मार्गदर्शक, अंधे लोगों को मार्ग देखने में सहायता नहीं कर सकता है। वे सब गड्ढ़े में गिर जाते हैं।"
\p
\s5
\v 15 पतरस ने यीशु से कहा, "हमें व्यक्ति जो खाता है उस दृष्टान्त का अर्थ समझा दें।"
\v 16 "यीशु ने उसे उत्तर दिया," मैं जो कुछ भी सिखाता हूँ उसे निश्चय ही तुम्हें समझना चाहिए, परन्तु मुझे निराशा है कि तुम नहीं समझते।
\v 17 तुमको यह समझना चाहिए कि जो भी भोजन लोग खाते हैं, उनके पेट में प्रवेश करता है, और बाद में जो भी बचता है वह उनके शरीर से बाहर निकल जाता है।
\s5
\v 18 इसकी अपेक्षा, जो मुँह से बुरे शब्दों को बोलता है, उसी के कारण परमेश्वर किसी व्यक्ति को अस्वीकार करते हैं, क्योंकि वे मनुष्य की सोची हुई बुराइयों से निकलते हैं।
\v 19 क्योंकि यह मनुष्य का भीतरी मन ही है, जो उनको बुरे काम के विषय में सोचने, लोगों की हत्या करने, व्यभिचार करने, अन्य यौन सम्बंधित पापों को करने, चोरी करने, झूठी गवाही देने और दूसरों के विषय में बुराई करने के लिए प्रेरित करता है।
\v 20 यह वे कार्य हैं जो परमेश्वर द्वारा लोगों को अस्वीकार करने पर विचार करने का कारण बनते हैं। लेकिन बिना धुले हाथों से खाना खा लेने से परमेश्वर लोगों को अस्वीकार नहीं करते हैं।"
\p
\s5
\v 21 यीशु शिष्यों को अपने साथ लेकर गलील के जिले को छोड़ कर उस क्षेत्र की ओर चले गए जहां सूर और सैदा के शहर स्थित थे।
\v 22 इस क्षेत्र में रहने वाले, कनानियों में से एक स्त्री, यीशु के पास आई। वह पुकार-पुकारकर उनसे कह रही थी, "हे प्रभु, आप राजा दाऊद के वंशज हैं, आप मसीह हैं, मुझ पर और मेरी पुत्री पर दया करें! वह बहुत बीमार है क्योंकि दुष्ट-आत्मा के वश में है।"
\v 23 परन्तु यीशु ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया। शिष्यों ने उनसे कहा, "उसे जाने के लिए कह दें, क्योंकि वह हमारे पीछे आकर चिल्लाते हुए हमें परेशान करती है।"
\s5
\v 24 यीशु ने उनसे कहा, "परमेश्वर ने मुझे सिर्फ इस्राएल के लोगों के लिए भेजा है, क्योंकि वे भेड़ों के समान हैं जिन्होंने अपना रास्ता खो दिया है।"
\v 25 लेकिन उस स्त्री ने यीशु के निकट आकर उनके सामने घुटने टेक दिए। उसने विनती की, "हे प्रभु, मेरी सहायता करें!"
\v 26 तब उन्होंने उससे कहा, "किसी के लिए ऐसा करना ठीक नहीं है, कि जो खाना उसके बच्चों के लिए तैयार किया गया है उसे लेकर घर के छोटे कुत्तों के आगे फेंक दे।"
\s5
\v 27 लेकिन उस स्त्री ने उत्तर दिया, "हे प्रभु, आप जो कहते हैं वह सच है, परन्तु छोटे कुत्ते भी ऐसे टुकड़ों को खाते हैं जो फर्श पर गिर जाते हैं जब उनके स्वामी अपनी मेज पर बैठकर खाना खाते हैं!"
\v 28 तब यीशु ने उससे कहा, "हे स्त्री, क्योंकि तू मुझ पर दृढ़ विश्वास रखती है, इसलिए, मैं तेरी पुत्री को तेरी इच्छा के अनुसार ठीक कर दूंगा।" उसी पल दुष्ट-आत्मा ने उसकी बेटी को छोड़ दिया, और वह ठीक हो गई।
\p
\s5
\v 29 तब यीशु और उनके शिष्य उस क्षेत्र से गलील की झील के पास चले गए। तब यीशु वहां की पहाड़ी पर चढ़कर लोगों को सिखाने के लिए बैठ गए।
\v 30 अगले दो दिनों तक बड़ी भीड़ उनके पास आई और लंगड़े, अपंग और अंधे लोगों को, और जो बात करने में असमर्थ थे, और कई अन्य बीमारियों से पीड़ित लोगों को लेकर आए। उन्होंने उन्हें यीशु के सामने लिटा दिया ताकि वह उन्हें ठीक कर दें। और यीशु ने उन्हें स्वस्थ किया।
\v 31 लोगों ने यीशु को ऐसे लोगों को ठीक करते देखा जो बात नहीं कर सकते थे, अपंग थे, लंगड़े थे, और अंधे थे, और वे चकित हुए। उन्होंने कहा, "परमेश्वर की स्तुति करो जो इस्राएल में हमारे ऊपर शासन करते हैं!"
\p
\s5
\v 32 फिर यीशु ने अपने शिष्यों को पास बुलाया और कहा, "लोगों की यह भीड़ मेरे साथ तीन दिन से है और उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं बचा है। मुझे उनके लिए खेद है। मैं उन्हें ऐसे ही भूखा नहीं भेजना चाहता हूँ। क्योंकि अगर मैंने ऐसा किया, तो वे घर जाते-जाते मार्ग में ही बेहोश हो सकते हैं।"
\v 33 "शिष्यों ने उनसे कहा," इस जगह में जहां कोई नहीं रहता है, हम इतनी बड़ी भीड़ को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन प्राप्त नहीं कर सकते!"
\v 34 यीशु ने उनसे पूछा, "तुम्हारे पास कितनी रोटियां हैं?" उन्होंने उत्तर दिया, "सात छोटी रोटियां और कुछ छोटी पकाई हुई मछली।"
\v 35 फिर यीशु ने लोगों को जमीन पर बैठने के लिए कहा।
\s5
\v 36 उन्होंने सात रोटियां और पकी हुई मछलियों को ले लिया। उसके बाद उन्होंने उनके लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया, और उन्हें टुकड़ों में तोड़ कर और शिष्यों को देने लगे। और शिष्य उन्हें भीड़ में बाँटते रहे।
\v 37 क्योंकि यीशु ने भोजन को चमत्कारिक ढंग से बढ़ाया, इसलिए उन सब ने भरपेट खाया। तब शिष्यों ने बचे हुए भोजन के टुकड़े एकत्र किए, और उन्होंने उनसे सात बड़ी टोकरियाँ भर लीं।
\v 38 वहां चार हजार पुरुष थे जिन्होंने खाया, परन्तु किसी ने भी स्त्रियों और बच्चों की गिनती नहीं की, जिन्होंने उनके साथ खाया था।
\p
\v 39 "जब यीशु ने भीड़ को विदा कर दिया, तो वह और शिष्य नाव में चढ़ गए और झील से होकर मगदन के क्षेत्र की ओर रवाना हुए।
\s5
\c 16
\p
\v 1 कुछ फरीसियों और सदूकियों ने यीशु के पास आकर उनसे कहा, "हमें चिन्ह दिखाएँ कि परमेश्वर ने ही आपको हमारे पास भेजा है! आकाश में एक चमत्कार करो और हमें विश्वास दिलाने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग करो!"
\v 2 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "हमारे देश में, यदि शाम को आसमान लाल है, तो हम कहते हैं, 'कल अच्छा मौसम होगा।'
\s5
\v 3 परन्तु यदि सुबह आसमान लाल हो तो हम कहते हैं, 'आज तूफानी मौसम होगा।' आकाश को देखकर, तुम बता सकते हो कि मौसम कैसा होगा, परन्तु जब तुम तुम्हारे चारों ओर कामों को होता हुआ देख रहे हो, तो तुम समझ नहीं पा रहे हो कि परमेश्वर क्या कर रहे हैं।
\v 4 तुम बुरे लोगों ने मुझे चमत्कार करते हुए देखा है, परन्तु तुम सच्चे मन से परमेश्वर की आराधना नहीं करते हो। इसलिए मैं तुम्हारे लिए कोई चमत्कार नहीं करूंगा, केवल वही जो चमत्कार योना भविष्यद्वक्ता के साथ हुआ था, जिसने एक बड़ी मछली के पेट में तीन दिन बिताए थे, और फिर से बाहर निकल आया।" तब यीशु उन्हें छोड़कर अपने शिष्यों के साथ चले गए।
\p
\s5
\v 5 वे सब गलील की झील के दूसरी ओर जाने के लिए नाव में चले गए। तब शिष्यों को ध्यान आया कि वे अपने साथ खाने के लिए कुछ भी लाना भूल गए हैं।
\v 6 उस समय यीशु ने उनसे कहा, "सावधान रहो कि उस खमीर को स्वीकार न करो जो फरीसी और सदूकी तुम्हें देना चाहते हैं।"
\v 7 उन्होंने यीशु की बात को समझने का प्रयास किया और उन्होंने एक दूसरे से कहा, "यीशु ने ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि हम खाने के लिए कुछ भी लेना भूल गए हैं!"
\v 8 परन्तु यीशु जानते थे कि वे क्या कह रहे है इसलिए उनसे कहा, "मुझे निराशा है कि तुम यह सोचते हो कि तुम रोटी लेना भूल गए इसलिए मैंने फरीसियों और सदूकियों के खमीर के विषय में बात की थीं। जो मैं तुम्हारे लिए कर सकता हूँ उस पर तुम केवल थोड़ा सा विश्वास करते हो।
\s5
\v 9 मत सोचो कि मैं खाना खाने के विषय में चिंतित हूँ। क्या तुम वास्तव में भूल गए हो कि मैंने पाँच हज़ार लोगों को पाँच रोटियों से भोजन कराया, या बचे हुए भोजन के कितने टोकरे तुमने इकट्ठे किए थे?
\v 10 या उन चार हजार लोगों के विषय में जिन्होंने खाना खाया, जब मैंने सात छोटी रोटियों को बहुत बढ़ा दिया? और तब कितनी टोकरी भरकर तुमने टुकड़ों को इकट्ठा किया था?
\s5
\v 11 तुमको समझना चाहिए कि मैं वास्तव में रोटी के विषय में नहीं कह रहा था। फरीसियों और सदूकियों के खमीर को मत स्वीकार करो।"
\v 12 तब शिष्य समझ गए कि यीशु रोटी में खमीर के विषय में बात नहीं कह रहे थे। इसके बजाय, वह फरीसियों और सदूकियों की गलत शिक्षाओं के विषय में कह रहे थे।
\p
\s5
\v 13 जब यीशु और उनके शिष्य कैसरिया फिलिप्पी के पास के क्षेत्र में गए, तो उन्होंने उन से पूछा, "लोग क्या कहते हैं कि मैं मनुष्य का पुत्र, सचमुच कौन हूँ?"
\v 14 उन्होंने उत्तर दिया, "कुछ लोग कहते हैं कि आप यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले हैं, जो फिर से जी गये है। दूसरे लोग कहते हैं कि आप एलिय्याह भविष्यद्वक्ता हैं जो परमेश्वर की प्रतिज्ञा के अनुसार स्वर्ग से आए हैं। फिर कुछ अन्य लोग कहते हैं कि आप यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता या अन्य भविष्यद्वक्ताओं में से एक हैं, जो बहुत पहले जीवित थे, जो फिर से जीवित हो गए हैं।"
\v 15 यीशु ने उनसे कहा, "तुम बताओ? तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?"
\v 16 शमौन पतरस ने उनसे कहा, "आप मसीह हैं! आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पुत्र हैं।"
\s5
\v 17 "तब यीशु ने उस से कहा," योना के पुत्र शमौन, परमेश्वर तुझ से प्रसन्न हैं, तू ने जो कहा है, वह किसी मनुष्य ने तुझ पर प्रगट नहीं किया है। परन्तु मेरे पिता जो स्वर्ग में रहते हैं, उन्होंने तुझ पर यह प्रगट किया है।
\v 18 मैं तुझे यह भी बताऊंगा: तू पतरस है, जिसका अर्थ है 'चट्टान।' तू उन लोगों के समूह के लिए सहारा होगा, जो मुझ पर विश्वास करते हैं, जैसे कि एक बड़ी चट्टान एक ऊँची इमारत को सहारा देती है, और यहां तक कि मृत्यु की शक्तियां भी इसके विरुद्ध खड़े होने के लिए साहस नहीं करेगी।"
\s5
\v 19 फिर उन्होंने कहा, "मैं तुझे स्वर्ग से परमेश्वर के शासन के अधीन आने वाले लोगों के लिए रास्ता खोलने या बंद करने में सक्षम बना दूँगा। जो कुछ भी तू पृथ्वी पर होने देगा, परमेश्वर स्वर्ग में उसे होने की अनुमति देंगे। जो कुछ भी तू पृथ्वी पर होने के लिए मना करेगा, परमेश्वर स्वर्ग में उसके लिए मना करेंगे।"
\v 20 तब यीशु ने शिष्यों को चेतावनी दीं कि वे उस समय किसी को नहीं बताएँ कि वह मसीह थे।
\p
\s5
\v 21 उस समय से यीशु ने शिष्यों को सिखाना शुरू कर दिया कि उनके लिए यरूशलेम शहर जाना आवश्यक हैं। वहाँ सत्ता रखनेवाले प्राचीन, प्रधान याजकों, और यहूदी व्यवस्था के शिक्षक उनको पकड़कर सताएँगे और मार डालेंगे। उसके बाद तीसरे दिन, वह फिर से जीवित हो जाएँगे।
\v 22 परन्तु पतरस ने यीशु को एक ओर ले जाकर खड़ा कर दिया और इन बातों के विषय में उन्हें डांटा। उसने कहा, "हे प्रभु, परमेश्वर कभी भी आपके साथ ऐसा होने की अनुमति न दें! ऐसा कभी नहीं होना चाहिए!"
\v 23 फिर यीशु ने पतरस की तरफ देखा, और उस से कहा, "मेरी दृष्टि से दूर हो जा, क्योंकि शैतान तेरे माध्यम से बोल रहा है। तू मुझसे पाप करवाने का प्रयास कर रहा है। तू वह नहीं सोच रहा है जो परमेश्वर सोचते हैं, लेकिन केवल वह जो लोग सोचते हैं!"
\p
\s5
\v 24 फिर यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, "यदि कोई मुझ पर भरोसा करना चाहता है और वहां जाना चाहता है जहां मैं जा रहा हूँ, तो उसे अपनी इच्छाओं और उद्देश्यों का त्याग करना होगा, और उसे अपना क्रूस उठाना होगा, और वहां जाना होगा जहां मैं जाता हूँ।
\v 25 जो कोई भी अपनी जान को बचाने का प्रयास करता है, वह जानेगा कि अपनी जान बचाने की अपेक्षा, वह इसे खो देगा। परन्तु जो कोई मेरे लिए अपनी जान देता है, वह जीवन पाएगा।
\v 26 किसी व्यक्ति को क्या लाभ होगा यदि वह इस संसार में सब कुछ प्राप्त कर ले जो वह चाहता है, परन्तु फिर उसे अपनी जान गवाँना पड़े? मनुष्य को अपनी संपत्ति से ऐसा क्या लाभ होगा जो उसके अपने ही जीवन के जितना मूल्यवान होगा?
\s5
\v 27 ध्यान से सुनो: मैं मनुष्य का पुत्र, इस धरती को छोड़ दूंगा, परन्तु मैं वापस आऊंगा, और स्वर्ग के स्वर्गदूत मेरे साथ आएंगे। उस समय मैं अपने पिता की महिमा में आऊंगा, और मैं सब को इस संसार में उनके द्वारा किए गए कामों के अनुसार प्रतिफल दूंगा।
\v 28 ध्यान से सुनो! तुम में से कुछ लोग जो यहां हैं, वे मुझे, जो स्वर्ग से आता देखेंगे, जब मैं राजा के रूप में लौटता हूँ। तुम मरने से पहले इसे देखोगे! "
\s5
\c 17
\p
\v 1 यीशु के इन बातों के कहने के एक सप्ताह बाद, यीशु ने पतरस, याकूब और याकूब के छोटे भाई यूहन्ना को अपने साथ लिया, और उन्हें एक ऊँचे पर्वत पर ले गए जहां वे अन्य लोगों से दूर थे।
\v 2 जब वे वहां थे, तो उन तीनों शिष्यों ने देखा कि यीशु का रूप बदल गया है। उनका चेहरा सूरज के समान चमकने लगा, और उनके कपड़े चमकने लगे और उज्जवल रौशनी के जैसे हो गए।
\s5
\v 3 अचानक, मूसा और एलिय्याह, जो कई साल पहले महत्वपूर्ण भविष्यद्वक्ता थे, दिखाई दिए और उनके साथ बातें करने लगे।
\v 4 "पतरस ने उन्हें देखा और यीशु से कहा," हे प्रभु, यहां पर होना हमारे लिए अच्छा है, यदि आप चाहे तो मैं तीन तंबू बनाऊंगा, एक आपके लिए, एक मूसा के लिए और एक एलिय्याह के लिए।"
\s5
\v 5 जब पतरस बोल ही रहा था, एक उज्जवल बादल उन पर आया। उन्होंने बादल में से यीशु के विषय में परमेश्वर की वाणी सुनी। उन्होंने कहा, "यह मेरे पुत्र है, मैं इनसे प्रेम करता हूँ, वह मुझे बहुत प्रसन्न करते हैं इसलिए तुम्हें उनकी बात सुननी चाहिए।
\v 6 जब तीनों शिष्यों ने परमेश्वर की बात सुनीं, तो वे बहुत डर गए। और भूमि पर मुँह के बल गिर गए।
\v 7 "परन्तु यीशु उन के पास गए और उनको छू कर उन से कहा, उठो, अब मत डरो!
\v 8 और जब उन्होंने ऊपर देखा तो क्या देखा कि यीशु अकेले ही थे जो अभी भी वहां थे।
\p
\s5
\v 9 जब वे पहाड़ पर से नीचे उतर रहे थे, तो यीशु ने उन्हें निर्देश दिया, "किसी को भी मत बताना कि तुमने पहाड़ की चोटी पर क्या देखा था, जब तक कि परमेश्वर मुझ मनुष्य के पुत्र को मरने के बाद फिर से जीवित न कर दें।"
\v 10 उन तीनों शिष्यों ने यीशु से पूछा, "यदि आप जो कहते हैं, वह सत्य है, तो ये लोग जो यहूदी व्यवस्था को सिखाते हैं, क्यों कहते हैं कि मसीह के आने से पहले एलिय्याह का वापस आना आवश्यक है।"
\s5
\v 11 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, "यह सच है कि परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की थी कि मसीह के आने के लिए बहुत से लोगों को तैयार करने के लिए एलिय्याह आएगा।
\v 12 लेकिन ध्यान दो एलिय्याह पहले ही आ चुका है और हमारे अगुवों ने उसे देखा है, परन्तु उसे पहचान नहीं पाए कि यही वह है जो मसीह से पहले आएगा। इसकी अपेक्षा, उन्होंने उसके साथ बुरा व्यवहार किया, जैसा वे चाहते थे। और वही शासक शीघ्र ही मेरे साथ भी जो स्वर्ग से आया है उसी प्रकार से व्यवहार करेंगे।"
\v 13 तब तीनों शिष्य समझ गए कि जब वह एलिय्याह के विषय में बात कर रहे थे, तो वह यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के संदर्भ में कह रहे थे।
\p
\s5
\v 14 जब यीशु और तीनों शिष्य और अन्य शिष्य एकत्र थे और लोगों के पास लौट आए, तो एक मनुष्य यीशु के पास आया और उनके सामने घुटने टेके।
\v 15 उसने यीशु से कहा, "हे प्रभु, मेरे पुत्र पर दया करें और उसे ठीक कर दें! उसे मिर्गी आती है और वह बहुत पीड़ित है। इस बीमारी के कारण वह आग में और पानी में कई बार गिर चुका है।
\v 16 मैं उसे आपके शिष्यों के पास लाया कि वे उसे ठीक कर सकें, परन्तु वे उसे ठीक नहीं कर पाए।
\s5
\v 17 यीशु ने जवाब दिया, "तुम इस समय के लोग परमेश्वर की शक्ति पर विश्वास नहीं करते हो। तुम कैसी उलझन में हो! मैं जो कुछ करता हूँ उसे तुम करने में सक्षम बनो, इसके लिए मुझे तुम्हारे साथ कितना समय रहना पड़ेगा?"
\v 18 जब वे लड़के को यीशु के पास लाए, तो यीशु ने मिर्गी उत्पन्न करनेवाली दुष्ट-आत्मा को कठोरता से डांटा और वह दुष्ट-आत्मा उस लड़के में से निकल गई, और उसी समय से लड़का स्वस्थ हो गया।
\s5
\v 19 बाद में, कुछ शिष्य यीशु के पास अकेले में आए और उनसे पूछा, "हम दुष्ट-आत्मा को बाहर निकालने में समर्थ क्यों नहीं हुए?"
\v 20-21 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "ऐसा इसलिए है कि तुमने परमेश्वर की शक्ति पर विश्वास नहीं किया था। इस विषय में सोचो: सरसों के बीज बहुत छोटे होते हैं, लेकिन वे बढ़कर बड़े पेड़ बनते हैं। इसी तरह, यदि तुम थोड़ा सा भी मानते हो कि तुम जो कहोगे उसे परमेश्वर करेंगे, तो तुम कुछ भी करने में समर्थ हो जाओगे! तुम इस पर्वत को भी कह सकते हो, 'यहां से वहां चला जा!' और यह वहां चला जाएगा जहां तुमने इसे जाने के लिए कहा था। "
\p
\s5
\v 22 जब शिष्य गलील जिले में एकत्र हुए, तो यीशु ने उनसे कहा, "कोई मुझे मनुष्य के पुत्र को, शीघ्र ही अधिकारियों के हाथ पकड़वा देगा।
\v 23 वे मुझे मार डालेंगे, परन्तु मेरे मरने के बाद परमेश्वर मुझे तीसरे दिन फिर से जीवित करेंगे।" जब शिष्यों ने यह सुना तो वे बहुत उदास हो गए।
\p
\s5
\v 24 जब यीशु और शिष्य कफरनहूम शहर में आए, तो जो व्यक्ति आराधनालय के लिए कर वसूलते थे, उन्होंने पतरस के पास आकर उससे कहा, "तेरे गुरु आराधनालय के कर चुकाते हैं या नहीं?"
\v 25 उसने उत्तर दिया, "हाँ, वह उसे चुकाते हैं।" जब शिष्य यीशु के घर में आए, तो इससे पहले कि पतरस कुछ बोलता, यीशु ने उस से कहा, "शमौन, तू क्या सोचता है कि शासक आय या कर किससे वसूलते हैं? क्या वे अपने देश के नागरिकों से कर लेते हैं? या उन देशों के नागरिकों से जिनको उन्होंने जीत लिया है?"
\s5
\v 26 पतरस ने उसे उत्तर दिया, "अन्य देशों के नागरिकों से।" तब यीशु ने उस से कहा, "तो अपने ही देश के नागरिकों को कर भुगतान की आवश्यक्ता नहीं है।
\v 27 लेकिन आगे बढ़ और हमारे लिए कर का भुगतान कर कि आराधनालय के कर लेनेवाले हम से क्रोधित न हों। गलील की झील पर जा, और अपना मछली पकड़ने का काँटा और बंसी डाल और जो भी पहली मछली तू पकड़े उसे ले लेना। जब तू उसका मुहँ खोलेगा तो तुझे एक चांदी का सिक्का मिलेगा जो तेरे और मेरे लिए कर भुगतान के लिए पर्याप्त है। उस सिक्के को लेकर आराधनालय के कर वसूलने वालों को दे देना।"
\s5
\c 18
\p
\v 1 ठीक उसी समय, शिष्य यीशु के पास आए और उनसे पूछा, "जब परमेश्वर आपको स्वर्ग से राजा बना देंगे तब हम में से कौन सबसे महत्त्वपूर्ण होगा?"
\v 2 यीशु ने एक बच्चे को अपने पास बुलाया, और उन्होंने उस बच्चे को उनके बीच में रखा।
\v 3 उन्होंने कहा, "मैं तुमसे सच कहता हूँ: यदि तुम बदलकर छोटे बच्चों के समान विनम्र नहीं बन जाते तो निश्चय ही तुम स्वर्ग से परमेश्वर के शासन के अधीन नहीं आओगे।
\s5
\v 4 जो लोग इस बच्चे के समान विनम्र हो जाते हैं, वे उन लोगों में सबसे महत्वपूर्ण होंगे, जिन पर परमेश्वर स्वर्ग से शासन करेंगे।
\v 5 जब लोग ऐसे एक बच्चे का स्वागत करते हैं क्योंकि वे मुझसे प्रेम करते हैं, तो परमेश्वर मानते हैं कि वे मेरा स्वागत कर रहे हैं।"
\p
\v 6 "यदि कोई व्यक्ति किसी से जो मुझ पर विश्वास करता है पाप करवाता है, भले ही वह व्यक्ति इस छोटे बच्चे के समान महत्वहीन है, तौभी परमेश्वर उस पाप करवाने वाले व्यक्ति को गंभीर दण्ड देंगे। वह उस व्यक्ति को ऐसा दण्ड देंगे कि जैसे किसी ने उसकी गर्दन में बड़े भारी पत्थर को बांधकर उसे समुद्र के गहरे पानी में फेंक दिया है!
\s5
\v 7 उन लोगों के लिए यह कितना भयानक होगा जो दूसरों के पाप करने का कारण बनते हैं। पाप करने के लिए प्रलोभन तो सदा ही होंगे परन्तु जो दूसरों से पाप करवाता है, उसके लिए कैसा भयानक होगा।
\v 8 इसलिए यदि तुम अपने हाथों या पैरों में से किसी एक का उपयोग पाप करने के लिए करना चाहते हो, तो उस हाथ या पैर का उपयोग करना बंद करो! चाहे तुम्हें उसे काट देना हो ताकि तुम पाप न करो! मान लो कि तुम्हारे पास केवल एक हाथ या एक पैर है परन्तु तुम्हारे दोनों हाथों और दोनों पैरों के होते हुए परमेश्वर तुमको तुम्हारे पाप के कारण नरक की अनन्त आग में डाल दें, तो अपंग होकर परमेश्वर के साथ सदा रहना कितना उत्तम है।
\s5
\v 9 हाँ, और अगर तुम जो देखते हो वह तुम्हारे लिए पाप का कारण हो तो उन वस्तुओं का मत देखो! यहां तक कि यदि तुम्हे अपनी आँखों में से एक को बाहर निकाल कर फेंकना पड़े तो ऐसा ही करो! मान लो कि तुम्हारे पास केवल एक आंख है और फिर भी तुम परमेश्वर के साथ सदा काल के लिए रहो, तो यह उससे कितना अधिक अच्छा है, अपेक्षा इसके कि तुम्हारे पास दोनों आँखें हैं और परमेश्वर तुमको नरक की अनन्त आग में डाल दें।"
\p
\s5
\v 10 "इन बच्चों में से किसी एक को भी तुच्छ न जानना। मैं तुमको सच बताता हूँ कि जो स्वर्गदूत इनकी रक्षा करते हैं, वे कभी भी मेरे पिता के पास जाकर उन्हें जानकारी दे सकते हैं, यदि तुम इन बच्चों के साथ बुरा व्यवहार करते हो।"
\s5
\v 12 तुम क्या सोचते हो कि तुम निम्नलिखित स्थिति में क्या करोगे? यदि तुममें से किसी के पास सौ भेड़ें हों और उनमें से एक खो जाए, तो तू निश्चय ही निन्यानवे भेड़ों को पहाड़ी पर छोड़ देगा और जाकर उस खोई हुई को ढूँढ़ेगा, क्या वह ऐसा नहीं करेगा?
\v 13 और जब तू उसे पा ले, तो मैं दावे के साथ कहता हूँ कि तू बहुत आनन्दित होगा। तू खुश होगा कि निन्यानवे भेड़ें नहीं भटकी, परन्तु तू और भी अधिक आनन्दित होगा क्योंकि तुझको वह भेड़ मिल गई जो खो गई थी।
\v 14 उसी तरह जैसे कि चरवाहा नहीं चाहता कि उसकी भेड़ों में से कोई एक भटक जाए, तो परमेश्वर, तुम्हारे पिता भी जो स्वर्ग में हैं, कभी नहीं चाहते कि इन बच्चों में से एक भी नरक में जाए।"
\p
\s5
\v 15 "यदि कोई साथी विश्वासी तेरे विरुद्ध पाप करता है, तो उसके पास जा जब तू उसके साथ अकेले में हो, और तेरे विरुद्ध पाप करने के लिए उसे झिड़क दे। यदि वह व्यक्ति तेरी बात सुनता है और शोक करता है कि उसने तेरे विरुद्ध पाप किया है, तो तू और वह एक बार फिर अच्छे भाई होगे।
\v 16 यदि, वह व्यक्ति तेरी बात नहीं सुनता है, तो एक या दो अन्य विश्वासियों को अपने साथ ले। उन्हें अपने साथ लेकर जा, क्योंकि व्यवस्था इस प्रकार कहती है, 'हर आरोप की पुष्टि के लिए दो या तीन गवाह हों।'
\s5
\v 17 यदि वह व्यक्ति जिसने तेरे विरुद्ध पाप किया है, वह उनकी बात नहीं सुनता है, तो इस विषय को पूरी मण्डली को बता जिससे कि वह उसे सही कर सकें। और अगर वह व्यक्ति मण्डली की बात नहीं सुनता, तो उसे तुम अपने बीच में से बाहर कर दो, जैसे तुम मूर्तिपूजा करनेवालों और कर वसूलने वालों को घोर पापी मानकर बाहर करते हो।
\s5
\v 18 यह ध्यान में रखो: जो कुछ भी तुम पृथ्वी पर अपनी मण्डली के किसी सदस्य को दण्ड देने या दण्ड न देने के विषय में निर्णय लेते हो, वही परमेश्वर के द्वारा स्वर्ग में माना गया है।
\v 19 इस पर भी ध्यान दो: यदि पृथ्वी पर रहने वाले तुम में से कम से कम दो जन जो कुछ भी एक साथ सहमत होकर माँगते हैं, तो मेरे पिता जो स्वर्ग में हैं, तुमको वह देंगे।
\v 20 यह सच है, क्योंकि जहां कहीं भी तुम में से कम से कम दो या तीन एकत्र होते हैं, जो मुझ पर विश्वास करते हो तो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।"
\p
\s5
\v 21 तब पतरस ने यीशु के पास आकर उनसे कहा, "कितनी बार मुझे मेरे एक ऐसे साथी विश्वासी को क्षमा कर देना चाहिए जो मेरे विरुद्ध लगातार पाप करता है? अगर वह मुझसे क्षमा मांगता रहता है, तो क्या मुझे उसे सात बार क्षमा करना चाहिए?"
\v 22 यीशु ने उस से कहा, "मैं कहता हूँ कि जितनी बार तुझे किसी को क्षमा करना चाहिए वह केवल सात बार तक न हो, परन्तु तुझको उसे सतहत्तर बार क्षमा कर देना चाहिए।
\s5
\v 23 स्वर्ग से परमेश्वर का शासन एक राजा और उसके अधिकारियों के समान है। वह राजा चाहता था कि उसके अधिकारी उसके द्वारा उधार दिए गए धन का वापस भुगतान करें।
\v 24 वे अधिकारी राजा के पास अपने कर्ज को चुकाने के लिए आए। राजा के पास लाए गए अधिकारियों में से एक ने उससे जो कर्ज लिया था वह लगभग तीन मीट्रिक टन से अधिक सोने के मूल्य के बराबर था।
\v 25 क्योंकि उसके पास लिये गए कर्जे का भुगतान करने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं था, तो राजा ने मांग की कि उसकी पत्नी, उसके बच्चे और उसका सब कुछ किसी और को बेचा जाए और उससे मिले धन के द्वारा राजा के लिए कर्जे का भुगतान किया जाए।
\s5
\v 26 तब वह अधिकारी, यह जानकर कि उस बड़े कर्ज का भुगतान करने के लिए उसके पास धन नहीं है, राजा के सामने घुटनों पर गिर गया और उसने उससे विनती की, 'मेरे साथ धीरज रख, और अंततः मैं तुझे सब कुछ चुका दूंगा।'
\v 27 राजा ने यह जानकर कि वह अधिकारी उस बड़े कर्ज का भुगतान कभी नहीं कर सकता, उस पर दया कि । इसलिए उसने उसका कर्ज रद्द कर दिया और उसे छोड़ दिया।
\s5
\v 28 तब यही अधिकारी राजा के अधिकारियों में से किसी एक के पास गया, जिस पर उसका एक वर्ष की मजदूरी से कम कर्जा था। उसने गले से उसे पकड़ा, और उसका गला घोंट दिया, और कहा, 'मेरा जितना भी कर्ज तुझ पर है, उसे वापस कर दे!'
\v 29 वह अधिकारी घुटनों पर गिर गया और उससे विनती की, 'मेरे साथ धीरज रख, और अंततः मैं तुझे सब कुछ चुका दूंगा।
\s5
\v 30 परन्तु उस अधिकारी ने उस छोटे कर्ज को रद्द करने से मना कर दिया जो उस व्यक्ति को देना था। इसकी अपेक्षा, उसने उस अधिकारी को बन्दीगृह में डाल दिया जिससे कि पूरा कर्ज चुकाने तक वह बन्दीगृह में ही रहे।
\v 31 जब राजा के अन्य अधिकारियों को यह मालूम पड़ा कि ऐसा हुआ है, वे बहुत ही परेशान हुए। इसलिए वे राजा के पास गए और उसे विस्तार से बताया कि क्या हुआ था।
\s5
\v 32 तब राजा ने उस अधिकारी को बुलाया जिसको उसने तीन मीट्रिक टन से ज्यादा सोने का कर्ज दिया था। उस ने उस से कहा, हे दुष्ट दास! मैंने उस बड़े कर्ज को रद्द कर दिया जो मुझे तुझसे लेना था क्योंकि तूने मुझसे ऐसा करने के लिए विनती की थी!
\v 33 तुझको भी दयालु होना चाहिए था और अपने साथी अधिकारी के कर्जे को रद्द करना चाहिए, था जैसे मैं तेरे लिए दयालु था और तेरे कर्ज को रद्द कर दिया था!
\s5
\v 34 राजा बहुत क्रोधित था। उसने इस अधिकारी को जेल के अधिकारीयों को सौंप दिया और वे कर्ज भुगतान तक, उसे गंभीर यातना देने लगे।"
\v 35 फिर यीशु ने कहा, स्वर्ग में मेरे पिता तुम्हारे साथ ऐसा ही करेंगे यदि तुम दयालु नहीं होते और तुम्हारे विरुद्ध पाप करनेवाले एक साथी विश्वासी को सच्चे मन से क्षमा नहीं करते।"
\s5
\c 19
\p
\v 1 यीशु ने यह कहने के बाद, अपने शिष्यों को लिया और गलील का जिला छोड़ दिया। वे यरदन नदी के पूर्व में यहूदिया जिले के क्षेत्र में गए।
\v 2 वहां बड़ी भीड़ उनके पीछे हो ली, और उन्होंने उन के बीच में बीमारों को स्वस्थ किया।
\p
\s5
\v 3 कुछ फरीसियों ने उनसे संपर्क किया और उनसे कहा, "क्या हमारी यहूदी व्यवस्था किसी व्यक्ति को किसी भी कारण से अपनी पत्नी को तलाक देने की अनुमति देती है?" उन्होंने उनके साथ विवाद करने के लिए ऐसा कहा।
\v 4 यीशु ने उनसे कहा, "तुमने धर्मशास्त्रों में पढ़ा है, इसलिए तुमको पता होना चाहिए कि जब परमेश्वर ने पहले मनुष्यों को बनाया था, 'उन्होंने एक पुरुष बनाया, और एक स्त्री बनाईं।'
\s5
\v 5 यह वर्णन करता है कि परमेश्वर ने क्यों कहा, 'यही कारण है कि एक पुरुष अपने पिता और माता को छोड़ कर अपनी पत्नी से विवाह करता है। वे दोनों ऐसे एक साथ रहेंगे जैसे कि वे एक ही व्यक्ति थे। '
\v 6 इसका परिणाम यह होता है कि वे पहले दो अलग-अलग मनुष्यों के रूप में कार्य करते थे, अब वे ऐसे हो जाते हैं जैसे वे एक व्यक्ति हैं। क्योंकि यह सच है, एक मनुष्य को अपनी पत्नी से अलग नहीं होना चाहिए जिसे परमेश्वर ने उससे जोड़ा है।"
\p
\s5
\v 7 "फिर फरीसियों ने उस से कहा," अगर यह सच है, तो मूसा ने क्यों कहा था कि जो व्यक्ति अपनी पत्नी को तलाक देना चाहता है, उसको उसे तलाक देने का कारण बताते हुए एक लिखित पत्र देना चाहिए और फिर उसे भेज देना चाहिए?"
\v 8 यीशु ने उनसे कहा, "ऐसा इसलिए था क्योंकि तुम्हारे पूर्वजों ने हठ करके इच्छा की थी कि मूसा उनको उनकी पत्नियों को तलाक देने की अनुमति दे, और तुम भी अपने पूर्वजों से अलग नहीं हो। परन्तु जब परमेश्वर ने पहले एक पुरुष और एक स्त्री बनाए थे तब उन्होंने उन्हें एक दूसरे से अलग करने का विचार नहीं किया था।
\v 9 मैं तुमसे प्रभावशाली ढंग से कह रहा हूँ कि परमेश्वर मानते हैं कि जो कोई अपनी पत्नी को तलाक दे और दूसरी स्त्री से विवाह करे वह व्यभिचार करता है, जब तक कि उसकी पहली पत्नी ने व्यभिचार न किया हो।
\s5
\v 10 शिष्यों ने उनसे कहा, "यदि यह सच है, तो पुरुषों के लिए कभी विवाह न करना ही अच्छा है!"
\v 11 उन्होंने उत्तर दिया, "हर एक व्यक्ति इस शिक्षा को ग्रहण नहीं कर सकता है, जिस मनुष्य को परमेश्वर इसे ग्रहण करने योग्य किया है वही इसे समझेगा।
\v 12 ऐसे पुरुष हैं, जो विवाह नहीं करते हैं, क्योंकि उनके जन्म के समय से ही उनके निजी अंग दोषपूर्ण रहे हैं। ऐसे पुरुष भी है जो विवाह नहीं करते हैं क्योंकि उनके निजी अंग को काटा गया है। फिर ऐसे पुरुष भी है जो स्वर्ग से शासन करने वाले परमेश्वर की अधिक उत्तम सेवा करने के लिए विवाह नहीं करने का निर्णय लेते हैं। तुम जो विवाह के विषय में मेरी बातों को उसे समझने में सक्षम हो, उन्हें इसे स्वीकार करना चाहिए और इसका पालन करना चाहिए।"
\p
\s5
\v 13 तब कुछ छोटे बच्चों को यीशु के पास लाया गया कि वह उन पर हाथ रख कर उनके लिए प्रार्थना करें। परन्तु शिष्यों ने ऐसा करने के लिए लोगों को डांटा।
\v 14 "तो यीशु ने कहा," बच्चों को मेरे पास आने दो, और उनको मत रोको! जो लोग इन बच्चों के समान नम्र और भरोसा करनेवाले हैं वही स्वर्ग से परमेश्वर के शासन से संबंधित हैं।"
\v 15 तब यीशु ने बच्चों को आशीर्वाद देने के लिए उन पर अपने हाथ रखें। फिर उन्होंने उस स्थान को छोड़ दिया।
\p
\s5
\v 16 "जैसे यीशु चल रहे थे, एक जवान पुरुष ने उनके पास आकर कहा," हे गुरु, सदा के लिए परमेश्वर के साथ जीने के लिए मुझे कौन सा अच्छा काम करना चाहिए?"
\v 17 "यीशु ने उस से कहा," तू मुझसे क्यों पूछ रहा है कि क्या अच्छा है? केवल एक ही है जो अच्छे हैं और वास्तव में जानते हैं कि क्या अच्छा है। वह परमेश्वर हैं। परन्तु परमेश्वर के साथ सदा जीने की इच्छा के विषय में तेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए, मैं तुझे उन आज्ञाओं को मानने के लिए कहूंगा जो परमेश्वर ने मूसा को दी थीं।"
\s5
\v 18 उस व्यक्ति ने यीशु से पूछा, "मुझे कौन सी आज्ञाएं माननी चाहिए?" यीशु ने उत्तर दिया, "किसी की हत्या मत कर, व्यभिचार मत कर, सामानों की चोरी मत कर, झूठी गवाही मत दे,
\v 19 अपने पिता और अपनी माता का सम्मान कर, और जितना तू अपने आप से प्रेम करता है, उतना हर किसी से प्रेम कर।"
\s5
\v 20 उस जवान पुरुष ने यीशु से कहा, "मैंने सदा इन सब आज्ञाओं का सदैव पालन किया है। परमेश्वर के साथ सदा रहने के लिए मुझे और क्या करना चाहिए?"
\v 21 यीशु ने उससे कहा, "यदि तू चाहता है कि तू वास्तव में वैसा बनें जैसा परमेश्वर तुझे बनाना चाहते हैं तो, घर जा, अपना सब कुछ बेच दे, और गरीबों को पैसे बाँट दे। परिणाम यह होगा कि तू स्वर्ग में धनी होगा। तब आ, मेरे पीछे हो ले और मेरा शिष्य बन!"
\v 22 जब उस जवान पुरुष ने ये शब्द सुने, तो वह बहुत उदास हो कर चला गया, क्योंकि वह बहुत धनवान था और वह अपनी संपत्ति को छोड़ना नहीं चाहता था।
\p
\s5
\v 23 फिर यीशु ने शिष्यों से कहा, "यह ध्यान में रखो: धनवानों को अपने जीवन पर परमेश्वर का शासन स्वीकार करने के लिए तैयार होना बहुत कठिन है।
\v 24 यह भी ध्यान रखो: जैसे एक ऊंट के लिए एक सुई के छेद से होकर निकलना असंभव है। धनवानों के लिए परमेश्वर के शासन के अधीन आना इससे भी अधिक कठिन है।"
\s5
\v 25 जब शिष्यों ने यह सुना, तो वे बहुत चकित हुए। उन्होंने सोचा था कि धनवानों ही को परमेश्वर ने सबसे अधिक आशीष दी हैं इसलिए उन्होंने यीशु से कहा, "यदि ऐसा है, तो किसी का भी बच पाना संभव नहीं हैं!"
\v 26 फिर यीशु ने उन पर ध्यान दिया और कहा, "हाँ, लोगों के लिए स्वयं को बचाना असंभव है, परन्तु परमेश्वर उन्हें बचा सकते हैं, क्योंकि परमेश्वर कुछ भी करने में समर्थ हैं!"
\v 27 तब पतरस ने उन से कहा, "आप जानते हैं कि हमने अपना सब कुछ छोड़ दिया है और हम आपके शिष्य बन गए हैं कि आपके पीछे चले। तो हमें ऐसा करने से क्या लाभ मिलेगा?"
\s5
\v 28 यीशु ने उनसे कहा, "यह स्मरण रखो: तुमको बहुत से लाभ मिलेंगे। जब परमेश्वर नई धरती बनाएंगे और जब मैं, मनुष्य का पुत्र, अपनी महिमा में मेरे सिंहासन पर बैठूँगा, तुम में से हर एक जो मेरे साथ थे एक सिंहासन पर बैठोगे, और तुम इस्राएल के बारह गोत्रों के लोगों का न्याय करोगे।
\s5
\v 29 परमेश्वर उन लोगों को प्रतिफल देंगे, जिन्होंने मेरे शिष्य होने के कारण अपना घर या भूमि, अपने भाइयों, अपनी बहनों, अपने पिता, अपनी माता, अपने बच्चों, या किसी अन्य परिवार के सदस्यों को पीछे छोड़ दिया। उन्होंने जितना त्याग किया है उस से सौ गुणा अधिक परमेश्वर उन्हे लाभ देंगे। और वे सदा के लिए परमेश्वर के साथ रहेंगे।
\v 30 परन्तु जो लोग इस जीवन में महत्वपूर्ण हैं, उनमें से अनेक जन भविष्य में महत्वहीन होंगे, और जो लोग अब महत्वहीन हैं, वे भविष्य में महत्वपूर्ण होंगे।"
\s5
\c 20
\p
\v 1 "परमेश्वर स्वर्ग से जिस प्रकार शासन करते हैं, उसकी तुलना एक विशाल भू-भाग के स्वामी से की जा सकती है। सुबह होते ही वह बाज़ार में गया, जहां वे लोग थे जो काम करना चाहते थे। वह वहाँ गया कि उसकी दाख की बारी में काम करने के लिए भाड़े पर मजदूर लाए।
\v 2 उसने उन पुरुषों को वचन दिया जिनको उसने काम पर रखा था कि वह एक दिन काम करने के लिए उनको सामान्य मजदूरी देगा । फिर उसने उन्हें अपनी दाख की बारी में भेज दिया।
\s5
\v 3 उसी सुबह नौ बजे वह बाज़ार में फिर गया। वहां उसने और पुरुषों को देखा जिनके पास काम नहीं था।
\v 4 उसने उनसे कहा, 'मेरी दाख की बारी में जाओ, जैसे दूसरे लोगों ने किया, और वहां काम करो। मैं तुमको जो कुछ भी सही मजदूरी होगी, दूंगा।' इसलिए वे भी उसकी दाख की बारी में गए और काम करने लगे।
\s5
\v 5 दोपहर में लगभाग तीन बजे वह फिर से बाज़ार में गया और मजदूरों को देखा, उनको भी उसने उचित मजदूरी देने का वचन दिया।
\v 6 पांच बजे वह बाज़ार में एक बार फिर गया और वहां खड़े अन्य पुरुषों को देखा जो काम नहीं कर रहे थे। उसने उनसे कहा, 'तुम पूरे दिन यहाँ क्यों खड़े रहे और काम क्यों नहीं किया ?'
\v 7 उन्होंने उससे कहा, 'किसी ने हमें काम पर नहीं रखा है।' उसने उनसे कहा, 'मैं तुमको काम पर रखूँगा। मेरी दाख की बारी में जाओ, जैसा कि अन्य मनुष्यों ने किया है, और वहां काम करो।' तो वे चले गए।
\p
\s5
\v 8 शाम के समय, उस दाख की बारी के स्वामी ने अपने प्रबंधक से कहा, 'पुरुषों को आने के लिए कह कि तू उन्हें उनकी मजदूरी दे। सबसे पहले, उन पुरुषों का भुगतान करो जिन्होंने अंत में काम करना शुरु किया, और उन पुरुषों को अन्त में भुगतान करना जिन्होंने पहले काम करना आरंभ किया था।'
\v 9 प्रबंधक ने उस प्रत्येक व्यक्ति को एक दिन का सामान्य वेतन दिया जिन्होंने दोपहर में पांच बजे तक काम करना शुरू नहीं किया था।
\v 10 जब सुबह शीघ्र काम करना आरंभ करनेवाले अपनी मजदूरी लेने गए तो उन्होंने सोचा कि वे सामान्य मजदूरी से अधिक प्राप्त करेंगे। परन्तु उन्हें केवल सामान्य मजदूरी ही मिली।
\s5
\v 11 इसलिए उन्होंने दाख की बारी के स्वामी से शिकायत की क्योंकि उन्होंने सोचा कि उनकी मजदूरी अनुचित थी।
\v 12 उन्होंने उससे कहा, 'तू निष्पक्ष नहीं है! जिन सभी पुरुषों ने हम सबके बाद काम करना आरंभ किया, उन्होंने केवल एक घंटा काम किया! तूने उन्हें वही मजदूरी दी जो तूने हमें दी है! जबकि हमने पूरे दिन कठोर परिश्रम किया है वरन् हमने दिन के सबसे गर्म समय में काम किया!
\s5
\v 13 दाख की बारी के स्वामी ने उन लोगों में एक से कहा जो शिकायत करता थे, 'मित्र, मैंने तुम्हारे साथ गलत व्यवहार नहीं किया। तुम एक दिन के सामान्य वेतन पर पूरे दिन काम करने के लिए मेरे साथ सहमत हुए थे।
\v 14 मुझ से शिकायत करना बंद करो! अपनी मजदूरी लो और जाओ! यह मेरी इच्छा है कि जो लोग तुम्हारे बाद काम करने आए थे, अर्थात जब तुम काम करना आरंभ कर चुके थे, उन्हे तुम्हारे बराबर मजदूरी दूँ।
\s5
\v 15 मुझे निश्चय ही अपनी इच्छा के अनुसार अपने पैसे खर्च करने का अधिकार है, है ना? मेरे उदार होने के विषय में तुमको ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए!' "
\v 16 "इसी प्रकार, परमेश्वर कुछ ऐसे लोगों को प्रतिफल देंगे जो अभी कम महत्वपूर्ण हैं, और वह कुछ ऐसे लोगों को प्रतिफल नहीं देंगे जो अभी अधिक महत्वपूर्ण लगते हैं।"
\p
\s5
\v 17 जब यीशु अपने बारह शिष्यों के साथ यरूशलेम के रास्ते पर जा रहे थे, तो वह उन्हें एक स्थान पर ले गए जहाँ वह उनसे व्यक्तिगत रूप से बात कर सकें। तब उन्होंने उनसे कहा,
\v 18 "ध्यान से सुनो! अब हम यरूशलेम के लिए जा रहे हैं। जब हम वहां होंगे, तो कोई व्यक्ति प्रधान याजकों और व्यवस्था को सिखाने वाले पुरुषों को मुझे, मनुष्य के पुत्र को, पकड़वा देगा और वे मुझ पर मुकद्दमा चलाएंगे। वे मेरी निंदा करेंगे और कहेंगे कि मुझे मरना चाहिए।
\v 19 तब वे मुझे गैर-यहूदियों के हाथ में दे देंगे कि वे मेरा ठट्ठा करें मुझे कोड़े मारें और मुझे क्रूस पर चढ़ाकर मुझे मार डालें। परन्तु उसके बाद तीसरे दिन, परमेश्वर मुझे फिर से जीवित कर देंगे।"
\p
\s5
\v 20 फिर, जब्दी के पुत्र याकूब और यूहन्ना की माता अपने दोनों पुत्रों को यीशु के पास लाई। उसने यीशु के सामने झुककर प्रणाम किया और उनसे एक अनुग्रह करने की विनती की।
\v 21 यीशु ने उससे कहा, "तू क्या चाहती है कि मैं तेरे लिए करूं?" उसने उनसे कहा, "जब आप राजा बन जाए, तो मेरे इन दो पुत्रों को एक को आपके दाहिने हाथ पर और दूसरे को आपके बाएं हाथ पर स्थित सबसे अधिक सम्मान के पदों पर बैठाना।"
\s5
\v 22 यीशु ने उससे और उसके पुत्रों से कहा, "तुम जो मांग रहे हो, तुम उसे समझते नहीं हो। क्या तुम दुख उठा सकते हो जैसे दुख मुझे उठाने हैं?" याकूब और यूहन्ना ने उत्तर दिया, "हाँ, हम ऐसा करने में सक्षम हैं।"
\v 23 फिर यीशु ने उनसे कहा, "हाँ, तुम दुख उठाओगे जैसा मैं दुख उठाऊंगा।" लेकिन मैं उन लोगों को नहीं चुनता जो मेरे साथ बैठेंगे और मेरे साथ शासन करेंगे। परमेश्वर, मेरे पिता, उन जगहों को उन्हें देंगे जिन्हें वह नियुक्त करते हैं।"
\p
\v 24 जब दस अन्य शिष्यों ने सुना कि याकूब और यूहन्ना ने क्या निवेदन किया था, तो वे उन पर क्रोधित हुए क्योंकि वे भी यीशु के साथ सबसे अधिक सम्मान के पद पर शासन करना चाहते थे।
\s5
\v 25 इसलिए यीशु ने उन सभी को एक साथ बुलाया और उनसे कहा, "तुम जानते हो कि जो लोग गैर-यहूदियों पर शासन करते हैं, वे दिखाना पसंद करते हैं कि वे शक्तिशाली हैं। उनके मुख्य शासक उनके अधीन के लोगों को आज्ञा देना पसंद करते हैं।
\v 26 तुमको उनके समान नहीं होना चाहिए। इसके विपरीत, तुम में से हर कोई जो चाहता है कि परमेश्वर उसे महान माने तो वह तुम में से बाकी सबका दास बने।
\v 27 हाँ, और तुम में से हर कोई जो चाहता है कि परमेश्वर उसे सबसे महत्वपूर्ण माने, तो वह तुम में से बाकी सबका दास बने।
\v 28 तुमको मेरी नकल करनी चाहिए। यद्यपि मैं मनुष्य का पुत्र हूँ, मैं दूसरों से अपनी सेवा करवाने के लिए नहीं आया हूँ। इसके विपरीत, मैं उनकी सेवा करने के लिए और उन्हें मुझे मारने की अनुमति देने के लिए आया हूँ, जिससे कि मेरा मरना कई लोगों को उनके पापों के कारण दण्ड पाने से बचाने के लिए भुगतान के समान होगा।"
\p
\s5
\v 29 जब वे यरीहो शहर छोड़ रहे थे, तो लोगों की एक बड़ी भीड़ उनके पीछे हो ली।
\v 30 जब वे जा रहे थे, उन्होंने देखा कि दो अंधे पुरुष सड़क के किनारे बैठे हैं। जब उन अंधों ने यह सुना कि यीशु पास से जा रहे हैं, तो उन्होंने चिल्ला कर कहा, "हे प्रभु, राजा दाऊद के वंशज, आप मसीह है, हम पर दया करें!"
\v 31 भीड़ में लोगों ने उन्हें डांटा और उन्हें चुप रहने के लिए कहा। परन्तु अंधेरे लोग भी चिल्लाने लगे, "हे राजा दाऊद के वंशज, तुम मसीह हो! हम पर दया करो!"
\s5
\v 32 यीशु रुक गए और उनको अपने पास बुलाया फिर उन्होंने उनसे कहा, "तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए करूं?"
\v 33 "उन्होंने उनसे कहा," हे प्रभु, हमारी आंखें ठीक कर दीजिए, ताकि हम देख सकें।"
\v 34 यीशु को उनके लिए दुःख हुआ और उन्होंने उनकी आंखों को छुआ। वे तुरंत देखने लगे, और यीशु के पीछे चलने लगे।
\s5
\c 21
\p
\v 1-2 जब यीशु और उनके शिष्य यरूशलेम के पास पहुंचे तो वे जैतून पहाड़ के पास बैतफगे गांव में आए। यीशु ने अपने दो शिष्यों से कहा, "तुम सामने के गांव में जाओ, जैसे ही तुम प्रवेश करते हो, तुम एक गदही और उसके बच्चे को बंधे हुए देखोगे। उन्हें खोलो और मेरे पास यहां ले आओ।
\v 3 यदि कोई तुमको कुछ कहता है, तो उससे कहना, 'प्रभु को इनकी आवश्यक्ता है।' तब वह उन्हें लेकर जाने की तुम्हे अनुमति दे देगा।"
\s5
\v 4-5 जब यह सब हुआ, तो भविष्यद्वक्ताओं में से एक ने जो लिखा था, वह सच हो गया। उस भविष्यद्वक्ता ने लिखा था, "यरूशलेम में रहने वाले लोगों को बताओ, 'देखो, तुम्हारे राजा तुम्हारे पास आ रहे हैं। वह नम्रता से आएंगे। वह दिखाएंगे कि वह नम्र हैं, क्योंकि वह एक गदही के बच्चे पर बैठे होंगे।'"
\p
\s5
\v 6 इसलिए दोनों शिष्य चले गए और वही किया जो यीशु ने उन्हें करने के लिये कहा था।
\v 7 वे गदही और उसके बच्चे को यीशु के पास लाए। उन्होंने उन पर अपने कपड़े डाल दिए जिससे कि वह उन पर बैठ सके। फिर यीशु चढ़कर कपड़ों पर बैठ गए।
\v 8 फिर एक बडी भीड़ ने सड़क पर अपने बाहरी कपड़ों को फैला दिया, और अन्य लोगों ने खजूर के पेड़ से शाखाओं को काटकर सड़क पर फैला दिया।
\s5
\v 9 जो भीड़ उनके आगे चल रही थी और जो उनके पीछे पीछे थे, वे चिल्ला रहे थे, "राजा दाऊद के वंशज मसीह की स्तुति करो!" "प्रभु परमेश्वर उन को आशीष दे, जो परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में हैं और परमेश्वर के अधिकार के साथ आते हैं।" "परमेश्वर जो सबसे ऊँचे स्वर्ग में हैं उनकी स्तुति करो!"
\v 10 जब यीशु ने यरूशलेम में प्रवेश किया, तो शहर भर के बहुत से लोग उत्साहित होकर कह रहे थे, "वे इस पुरुष को ऐसा सम्मान क्यों दे रहे हैं?"
\v 11 जो लोग पहले से ही उनके पीछे चल रहे थे, उन्होंने उत्तर दिया, "यह यीशु, गलील के नासरत के भविष्यद्वक्ता हैं!"
\p
\s5
\v 12 तब यीशु आराधनालय के आंगन में गए और उन सब को बाहर निकाल दिया, जो सामान बेच रहे थे और खरीद रहे थे। उन्होंने आराधनालय के कर देने के लिए रोमी सिक्के को बदलने वाले लोगों के तख्तों को भी उलट दिया, और उन्होंने बलि के लिए कबूतरों को बेचने वालों के तख्तों को उखाड़ दिए।
\v 13 फिर उन्होंने उनसे कहा, "एक भविष्यद्वक्ता ने धर्मशास्त्रों में लिखा है कि परमेश्वर ने कहा था, 'मैं चाहता हूँ कि मेरा घर एक ऐसा स्थान हो जहां लोग मुझसे प्रार्थना करते हैं, परन्तु तुम लोगों ने इसे एक ऐसा स्थान बना दिया जहां लुटेरे एकत्र होते हैं।'
\p
\v 14 उसके बाद, कई अंधे और लंगड़े लोग आराधनालय में यीशु के पास आए कि वह उन्हें ठीक कर दें, और उन्होंने ऐसा किया।
\s5
\v 15 प्रधान याजकों और लोगों को यहूदी व्यवस्था सिखाने वाले पुरुषों ने उन अद्भुत कामों को देखा जो यीशु ने किए थे। उन्होंने बच्चों को भी आराधनालय में चिल्लाते हुए देखा, "हम राजा दाऊद के वंशज मसीह की स्तुति करते हैं!" इस पर वे क्रोधित हुए।
\v 16 उन्होंने उनसे पूछा, "आप इसे कैसे सहन कर सकते हैं? क्या आप सुनते हैं कि ये लोग क्या चिल्ला रहे हैं?" फिर यीशु ने उनसे कहा, "हाँ, मैं उन्हें सुनता हूँ, यदि तुम याद करो जो पवित्रशास्त्र में बच्चों के द्वारा मेरी स्तुति करने के विषय में पढ़ा है, तो तुम जान लोगे कि परमेश्वर उनसे प्रसन्न हैं। भजनकार ने परमेश्वर से कहा, शिशुओं और बच्चों को आपने आपकी स्तुति प्रशंसा करना भलिभाँति सिखाया है।''
\p
\v 17 फिर यीशु ने वह शहर छोड़ दिया। शिष्य उनके साथ बैतनिय्याह गांव में गए, और वे उस रात वहाँ रहे।
\p
\s5
\v 18 अगली सुबह जब वे शहर लौट रहे थे, तो यीशु भूखे थे।
\v 19 उन्होंने सड़क के पास एक अंजीर के पेड़ को देखा, इसलिए वह कुछ अंजीर खाने के लिए उसके पास गए। परन्तु जब वह पास गए, तो उन्होंने देखा कि वृक्ष में अंजीर नहीं थे, केवल पत्तियां थीं। इसलिए उन्होंने अंजीर के पेड़ से कहा, " तुझ में फिर कभी अंजीर के फल नहीं लगेंगे!" और, अंजीर का पेड़ तुरंत सूख गया।
\s5
\v 20 अगले दिन शिष्यों ने देखा कि अंजीर का पेड़ मर चुका था। वे चकित हुए और यीशु से कहा, "अंजीर का पेड़ अति शीघ्र कैसे सूख गया?"
\v 21 यीशु ने उनसे कहा, "इस विषय में सोचो: यदि तुम मानते हो कि परमेश्वर के पास वह करने की शक्ति है जो करने के लिए तुम उनसे कहते हो और तुम उसमें शक नहीं करते हो, तो जैसा इस अंजीर के पेड़ के साथ मैंने किया, तुम भी इस तरह के काम करने में सक्षम होगे। यहाँ तक कि तुम कई अद्भुत काम करोगे जैसे कि इस पहाड़ से कहोगे, 'उखड़ कर समुद्र में चला जा,' और यह हो जाएगा!
\v 22 इसके अतिरिक्त, जब भी तुम किसी वस्तु के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करते हो और विश्वास करते हो कि वह तुम्हे वह दे देंगे तो तुम उसे प्राप्त करोगे।"
\p
\s5
\v 23 उसके बाद, यीशु आराधनालय के आंगन में गए। जब वह लोगों को सिखा रहे थे, तो प्रधान याजकों और लोगों के प्राचीनों ने उनसे संपर्क किया। उन्होंने पूछा, "आप किस अधिकार से इन कामों को कर रहे हैं? आपने कल यहाँ जो किया, उसे करने का अधिकार आपको किसने दिया?"
\v 24 यीशु ने उन से कहा, "मैं भी तुमसे एक प्रश्न पूछूंगा, और यदि तुम मुझे उत्तर दोगे, तो मैं तुम्हें बताऊंगा कि इन कामों को करने के लिए मुझे किसने अधिकार दिया है?
\s5
\v 25 आने वाले लोगों को बपतिस्मा देने का अधिकार यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले को कहाँ से मिला था? क्या उसने इसे परमेश्वर से पाया था या लोगों से प्राप्त किया?' प्रधान याजकों और प्राचीनों ने अपने बीच में चर्चा की कि उन्हें क्या उत्तर देना चाहिए। उन्होंने एक दूसरे से कहा, "यदि हम कहते हैं, 'यह परमेश्वर की ओर से था,' तो वह हमसे कहेगा, 'फिर तुमको उसका संदेश मानना चाहिए था!'
\v 26 परन्तु यदि हम कहते हैं, 'यह लोगों की ओर से था,' तो भीड़ हमारे विरुद्ध हिंसक हो सकती है, क्योंकि लोग मानते हैं कि यूहन्ना एक भविष्यद्वक्ता था जिसे परमेश्वर ने भेजा था।
\v 27 "इसलिए उन्होंने यीशु को उत्तर दिया," हम नहीं जानते कि यूहन्ना को कहाँ से उसका अधिकार मिला था।" फिर यीशु ने उनसे कहा, "क्योंकि तुमने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया, मैं तुमको नहीं बताऊंगा कि कल जो मैंने यहाँ किया, उस काम को करने का अधिकार मुझे किसने दिया?"
\p
\s5
\v 28 "मुझे बताओ कि तुम इस विषय में क्या सोचते हो, जो मैं तुमसे कहने वाला हूँ। एक व्यक्ति था, जिसके दो पुत्र थे। वह अपने बड़े पुत्र के पास गया और कहा, 'हे मेरे पुत्र, जा और आज मेरी दाख की बारी में काम कर!'
\v 29 उसने अपने पिता से कहा, 'मैं नहीं जाऊँगा!' परन्तु बाद में उसने अपना मन बदल दिया, और वह दाख की बारी में गया और काम किया।
\v 30 तब पिता अपने छोटे पुत्र के पास गया और वही कहा जो उसने अपने बड़े पुत्र से कहा था। उस पुत्र ने कहा, 'महोदय, आज मैं दाख की बारी में जाकर काम करूंगा।' परन्तु वह नहीं गया।
\s5
\v 31 "तो, उस पुरूष के दोनों पुत्रों में से किसने अपने पिता की इच्छा के अनुसार किया?" उन्होंने उत्तर दिया, "बड़े पुत्र ने।" तब यीशु ने उनसे कहा, "इसलिये इस बात पर विचार करो: परमेश्वर तुम पर शासन करने के लिए सहमत होने से पूर्व, कर वसूलने वालों और वेश्याओं पर दया करके उन पर शासन करने के लिए मान जाएंगे। यह सच है, भले ही तुम उन लोगों की निंदा करते हो क्योंकि वे मूसा की व्यवस्था की उपेक्षा करते हैं।
\v 32 मैं तुमसे ये कहता हूँ क्योंकि, यहाँ तक कि यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने तुमको समझाया कि सही तरीके से कैसे जीना है, तुमने उसका संदेश नहीं माना। लेकिन कर लेनेवालों और वेश्याओं ने उसका संदेश मान लिया, और वे अपने पापी व्यवहार से मुक्त हो गए। इसके विपरीत, भले ही तुमने देखा कि वे बदल गए हैं, तुमने पाप करना त्याग ने से मना किया, और तुमने यूहन्ना के संदेश पर विश्वास नहीं किया।"
\p
\s5
\v 33 "एक अन्य दृष्टान्त सुनों। एक खेत का मालिक था, जिसने दाख की बारी लगाई थी। उसने उस बारी के चारों ओर एक बाड़े का निर्माण किया। उसने अंगूर से निकलने वाले रस को एकत्र करने के लिए कुण्ड बनाया। उसने एक मीनार भी बनाई। जिस में कोई उस दाख की बारी की रक्षा करने के लिए बैठ सकता था। उसने कुछ किसानों को दाख की बारी किराए पर दे दी थी, जो उसकी देखभाल करेंगे और बदले में उसको कुछ अंगूर देंगे। फिर वह किसी दूसरे देश में चला गया।
\v 34 जब अंगूर की फसल काटने का समय आया, तो खेत के मालिक ने अपने कुछ सेवकों को उन मनुष्यों के पास जो दाख की बारी की देखभाल कर रहे थे, दाख की बारी में उगे अंगूरों का अपना भाग लेने के लिए भेजा।
\s5
\v 35 परन्तु किराएदारों ने सेवकों को कैद कर लिया। उन्होंने उनमें से एक को मारा-पीटा, उन्होंने दूसरे को मार डाला, और तीसरे की पत्थर मार-मार कर हत्या कर दी।
\v 36 तब उस बारी के स्वामी ने पहली बार भेजे गए सेवकों की तुलना में अधिक सेवकों को भेजा। किराएदारों ने उन सेवकों के साथ भी उसी प्रकार का व्यवहार किया जिस प्रकार का व्यवहार उन्होंने अन्य सेवकों के साथ किया था।
\v 37 इसके विषय में सुनने के बाद, बारी के स्वामी ने अंगूरों का अपना भाग पाने के लिए अपने स्वयं के पुत्र को किराएदारों के पास भेजा। जब उसने उसे भेजा, तो उसने मन में कहा, 'वे मेरे पुत्र का सम्मान करेंगे और उसे अंगूरों का मेरा भाग दे देंगे।'
\s5
\v 38 परन्तु जब किराए दारों ने उसके बेटे को आते देखा, तो उन्होंने एक-दूसरे से कहा, 'यह वह व्यक्ति है जो इस दाख की बारी का उत्तराधिकारी होगा! आओ हम एक साथ मिलकर उसे मार डालें और इस संपत्ति को आपस में बाँट लें। '
\v 39 इसलिए उन्होंने उसे पकड़ा, उसे दाख की बारी से बाहर खींचा, और उसे मार डाला।
\s5
\v 40 अब मैं तुम से पूछता हूँ, जब दाख की बारी का स्वामी अपनी दाख की बारी में लौटेगा, तो तुम क्या सोचते हो कि वह उन किराएदारों के साथ करेगा?"
\v 41 लोगों ने उत्तर दिया, "वह उन दुष्टों को पूरी तरह से नष्ट कर देगा। तब वह दूसरों को दाख की बारी किराए पर देगा। जब अंगूर पक जाएंगे, तब वे अंगूरों मैं से उसका भाग उसे देंगे।"
\s5
\v 42 यीशु ने उनसे कहा, "तुमको धर्मशास्त्रों के इन शब्दों के विषय में सावधानी से सोचना चाहिए: 'जो लोग बड़ी इमारत का निर्माण कर रहे थे, उन्होंने एक विशेष पत्थर का तिरस्कार कर दिया। परन्तु दूसरों ने उसी पत्थर को उसकी उचित जगह में रखा, और वह इमारत का सबसे महत्वपूर्ण पत्थर बन गया। परमेश्वर ने यह किया है, और हम इसे देखकर आश्चर्य करते हैं।'
\p
\s5
\v 43 इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ: परमेश्वर अब तुमको अपने लोगों के समान रहने नहीं देंगे जो उनके भाग हैं। इसकी अपेक्षा, वह अपने लिए ऐसे लोगों को चुनेंगे, जो उनकी इच्छा के अनुसार करते हैं।
\v 44 जो कोई इस पत्थर पर गिरता है, वह टुकड़ों में टूट जाएगा, और यह पत्थर जिस पर गिरता है उसे कुचल डालेगा।"
\p
\s5
\v 45 जब प्रधान याजकों और फरीसी और प्राचीनों ने यह दृष्टान्त सुना, तो उन्हें पता चला कि वह उन पर दोष लगा रहे हैं क्योंकि उन्होंने विश्वास नहीं किया था कि वह मसीह थे।
\v 46 वे उन्हें पकड़ना चाहते थे, परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि वे भीड़ से डरते थे कि यदि वे ऐसा करेंगे तो भीड़ क्या करेगी, क्योंकि लोगों की भीड़ यह मानती थीं कि यीशु एक भविष्यद्वक्ता हैं।
\s5
\c 22
\p
\v 1 फिर यीशु ने यहूदी अगुवों को अन्य दृष्टान्त सुनाए। यह उन दृष्टान्तों में से एक है।
\v 2 "स्वर्ग से परमेश्वर का शासन एक राजा के समान है, जिसने अपने कर्मचारियों को बताया कि उन्हें उसके पुत्र के लिए एक विवाह के भोज का आयोजन करना चाहिए।
\v 3 जब भोज तैयार हो गया, तब राजा ने अपने कर्मचारियों को आमन्त्रित जनों के पास भेजकर सूचना दी कि विवाह के भोज का समय हो गया है। सेवक निकल गए और आमन्त्रित लोगों को बताया। परन्तु आमन्त्रित नहीं आना चाहते थे।
\s5
\v 4 तब राजा ने अन्य सेवकों को फिर से भेजा कि उन लोगों को भोज में आने के लिए कहें। उसने उन सेवकों से कहा, 'जिन लोगों को मैंने भोज पर आने के लिए बुलाया है, उनसे कहो,' राजा तुमसे यह कहता है, 'मैंने भोजन तैयार किया हुआ है, बैल और मोटे बछड़ों को काटकर पकाया गया है। सब कुछ तैयार है। अब तुम्हारा विवाह के भोज में आने का समय है! ''
\s5
\v 5 परन्तु जब सेवकों ने उनसे यह कहा तो उन्होंने सेवकों की बातों, की उपेक्षा की। उनमें से कुछ अपने खेत में चले गए। अन्य अपने व्यवसाय के स्थान पर चले गए।
\v 6 बाकी बचे हुओं ने राजा के सेवकों को कैद कर लिया, उनसे दुर्व्यवहार किया, और उन्हें मार डाला।
\v 7 जब राजा ने सुना कि क्या हुआ, तो वह क्रोधित हो गया। उसने अपने सैनिकों को आज्ञा दी कि जाकर उन हत्यारों को मार डालें और उनके नगर को जला दें।
\s5
\v 8 उसके सैनिकों ने ऐसा ही किया तब राजा ने अपने दूसरे कर्मचारियों से कहा, 'मैंने विवाह का भोज तैयार किया है, परन्तु जो लोग आमंत्रित थे, वे इसके योग्य नहीं थे।
\v 9 तो मुख्य सड़कों के चौराहों पर जाओ जो कोई मिले उनको बताओ कि उन्हें विवाह के भोज में आना है।
\v 10 तो सेवक वहां गए, और जो कोई भी उनको मिला, उन्होंने उनको एकत्र किया। उन्होंने बुरे लोगों और अच्छे लोगों दोनों को एकत्र किया। वे उन्हें उस भवन में ले आए जहां विवाह का भोज तैयार था। भवन लोगों से भरा था।
\s5
\v 11 लेकिन जब राजा अतिथियों को देखने के लिए भवन में गया, तो उसने एक ऐसे व्यक्ति को देखा जो विवाह भोज के लिए दिए वस्त्र नहीं पहने हुए था।
\v 12 राजा ने उस से कहा, 'मित्र, तुझे इस भवन में कभी नहीं आना चाहिए था, क्योंकि तूने वह कपड़े नहीं पहने हुए हैं, जो अतिथि विवाह के भोज पर पहनते हैं!' उस व्यक्ति ने कुछ नहीं कहा, क्योंकि उसे नहीं पता था कि क्या कहना है।
\s5
\v 13 तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, 'इस व्यक्ति के पैर और हाथों को बाँध कर बाहर फेंक दो, जहाँ घोर अंधेरा है, जहाँ लोग रोते हैं और अपने दांतों को पीसते हैं क्योंकि वे दर्द में हैं।'
\v 14 फिर यीशु ने कहा, "इस दृष्टान्त का उद्देश्य यह है कि परमेश्वर ने कई लोगों को उनके पास आने के लिए आमंत्रित किया है, परन्तु केवल कुछ लोग ही है जिन्हें उन्होंने वहाँ रहने के लिए चुना है।"
\p
\s5
\v 15 यीशु के यह कहने के बाद, सब फरीसी यह योजना बनाने के लिए एक साथ इकट्ठा हुए कि वे उन्हें कुछ ऐसा कहने के लिए कैसे प्रेरित करें जिससे कि वे उन पर आरोप लगा सकें।
\v 16 उन्होंने उनके पास अपने कुछ शिष्यों को हेरोदेस दल के लोंगों के साथ भेजा। उन लोगों ने यीशु से कहा, "गुरु, हम जानते हैं कि आप सच्चे हैं और यह कि परमेश्वर जो चाहते हैं कि हम करें, उसके विषय में सच्ची बात सिखाते हैं। हम यह भी जानते हैं कि आप जो कुछ सिखाते हैं, उसे बदलते नहीं चाहे कोई आपके विषय में कुछ भी कहे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे किस तरह के व्यक्ति हैं।
\v 17 तो हमें बतायें कि आप रोमी सरकार को कर देने के विषय में क्या सोचते हैं: क्या यह सही है या नहीं कि हम रोमी सरकार को कर दें?"
\s5
\v 18 लेकिन यीशु जानते थे कि वे जो सच में करना चाहते थे वह बुरा था। वे उनसे ऐसा कुछ कहलवाना चाहते थे जो उन्हें यहूदी अधिकारियों या रोमी अधिकारियों के साथ परेशानी में डालें। इसलिए उन्होंने उनसे कहा, "तुम ढ़ोंगी हो; तुम चाहते हो कि मैं कुछ कहूं जिससे कि तुम मुझ पर आरोप लगा पाओ।
\v 19 मुझे उन सिक्कों में से एक सिक्का दिखाओ, जिसके द्वारा लोग रोमी कर का भुगतान करते हैं। "इसलिए उन्होंने उसे एक सिक्का दिखाया जो कि एक दीनार था।
\s5
\v 20 उन्होंने उनसे कहा, "इस सिक्के पर किसका चित्र है? और इस पर किसका नाम है?"
\v 21 उन्होंने उत्तर दिया, "इसमें कैसर का चित्र और नाम है, जो रोमी सरकार का मुखिया है।" तब उन्होंने उनसे कहा, "जो सरकार मांगती है, वह उसे दे दो, और परमेश्वर को जो चाहिए, वह उन्हें दे दो।"
\v 22 जब उन लोगों ने यीशु को यह कहते हुए सुना तो वे इस बात से चकित हो गए कि उनका उत्तर किसी को भी उन पर दोष लगाने में सक्षम नहीं करता है। फिर उन्होंने यीशु को छोड़ दिया।
\p
\s5
\v 23 उसी दिन कुछ सदूकी यीशु के पास आए। वह एक यहूदी समूह हैं जो विश्वास नहीं करता है कि लोग मरने के बाद फिर से जीवित हो जाएंगे। उन्होंने यीशु से पूछा,
\v 24 "हे गुरु, मूसा ने धर्मशास्त्र में लिखा है, 'यदि कोई व्यक्ति मरता है, जिसके पास कोई बच्चा नहीं है, तो उसके भाई को मृत व्यक्ति की विधवा से शादी करनी चाहिए ताकि वह उसके द्वारा एक बच्चा पाए। बच्चे को मरे हुए व्यक्ति का वंशज माना जाएगा और इस तरह मृतक के वंशज होंगे। '
\s5
\v 25 एक परिवार में सात लड़के थे। सबसे बड़े लड़के ने किसी से विवाह किया। उसके और उसकी पत्नी के पास कोई बच्चा नहीं था, और वह मर गया। तो दूसरे भाई ने उस विधवा से विवाह किया। परन्तु वह भी बच्चा पैदा किए बिना मर गया।
\v 26 तीसरे भाई के साथ और अन्य चार भाइयों के साथ भी ऐसा ही हुआ, जिन्होंने एक-एक करके उस विधवा से विवाह किया था।
\v 27 अन्त में उस स्त्री की भी मृत्यु हो गई।
\v 28 तो, जब परमेश्वर मरे हुओं को जीवित करेंगे और लोगों को जिलाएंगे, तो आपके विचार में उन सात भाइयों में से कौन उसका पति होगा? ध्यान रहे कि उन सभी का उससे विवाह हुआ था।"
\s5
\v 29 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "तुम जो सोच रहे हो, उसमें तुम निश्चित रूप से गलत हो, तुम नहीं जानते कि धर्मशास्त्र में क्या लिखा है। तुम यह भी नहीं जानते कि परमेश्वर के पास लोगों को फिर से जीवित करने की शक्ति हैं।
\v 30 सच्चाई यह है कि वह स्त्री उनमें से किसी की पत्नी नहीं होगी, क्योंकि परमेश्वर द्वारा सब मरे हुओं को फिर से जीवित करने के बाद, कोई भी विवाहित नहीं होगा। इसकी अपेक्षा, लोग स्वर्ग के स्वर्गदूतों के समान होंगे। वे विवाह नहीं करते।
\s5
\v 31 लेकिन मृत लोगों के फिर से जीवित होने के विषय में, परमेश्वर ने कुछ कहा था। मुझे विश्वास है कि तुमने इसे पढ़ लिया है। अब्राहम, इसहाक और याकूब की मृत्यु के बहुत समय बाद, परमेश्वर ने मूसा से कहा,
\v 32 'मैं वह परमेश्वर हूँ जिनकी अब्राहम आराधना करता है, जिन की इसहाक आराधना करता है, और जिन की याकूब आराधना करता है।' मरे हुए लोग परमेश्वर की आराधना नहीं करते हैं। यह जीवित लोग हैं जो उनकी आराधना करते हैं। इसलिए हमें विश्वास है कि उनकी आत्माएं अब भी जीवित हैं!"
\v 33 जब लोगों की भीड़ ने यीशु को यह शिक्षा देते सुना, तो वे चकित हो गए।
\p
\s5
\v 34 परन्तु जब फरीसियों ने सुना कि यीशु ने सदूकियों को ऐसा उत्तर दिया कि सदूकियों को कुछ भी नहीं समझ आया, कि उन्हें क्या उत्तर, तो फरीसी योजना बनाने के लिए एकत्र हुए कि वे यीशु से क्या कहें। फिर उन्होंने उससे संपर्क किया।
\v 35 उनमें एक व्यक्ति था जो एक वकील था, जिसने मूसा को दी गई परमेश्वर की व्यवस्था का उचित अध्ययन किया हुआ था। वह यीशु से विवाद करना चाहता था। उसने यीशु से पूछा,
\v 36 "गुरु, जो नियम परमेश्वर ने मूसा को दिए थे उनमें सबसे महत्वपूर्ण आज्ञा कौन सी है?"
\s5
\v 37 यीशु ने उत्तर में धर्मशास्त्रों से समझाते हुए कहा, "'तुझे अपने परमेश्वर से अपने संपूर्ण भीतरी मनुष्यत्व के साथ प्रेम करना चाहिए। दिखा कि तू अपनी पूरी इच्छा से, पूरी भावना से और संपूर्ण सोच से उनसे प्रेम करता है।'
\v 38 यह मूसा की व्यवस्था में सबसे महत्वपूर्ण आज्ञा है जो परमेश्वर ने दी थी।
\s5
\v 39 अगली सबसे महत्वपूर्ण आज्ञा यह है जो हर किसी को माननी चाहिए: 'जितना तू स्वयं से प्रेम करता है, उतना ही प्रेम तू उन लोगों से कर जिनके संपर्क में तू आता है।'
\v 40 यह दोनों आज्ञाएं मूसा द्वारा धर्मशास्त्र में लिखी व्यवस्था तथा भविष्यद्वक्ताओं द्वारा लिखी गई सब बातों का आधार हैं।
\p
\s5
\v 41 जबकि फरीसी अभी यीशु के आस-पास ही थे, तो यीशु ने उनसे पूछा,
\v 42 "तुम मसीह के विषय में क्या सोचते हो, वह किसका वंशज है?" उन्होंने उनसे कहा, "वह राजा दाऊद के वंशज हैं।"
\s5
\v 43 यीशु ने उनसे कहा, "यदि मसीह राजा दाऊद का वंशज है, तो दाऊद को उन्हें 'प्रभु' नहीं कहना चाहिए था, जब वह पवित्र आत्मा की प्रेरणा से कह रहा था।
\v 44 दाऊद ने मसीह के विषय में धर्मशास्त्र में यह लिखा है: 'परमेश्वर ने मेरे प्रभु से कहा,' मेरे दाहिनी ओर मेरे साथ बैठो, जहां मैं आपको बहुत आदर दूंगा, जब तक मैं आपके शत्रुओं को आपके पैरों के नीचे न कर दूं।'
\s5
\v 45 इसलिए, जब राजा दाऊद ने मसीह को 'मेरे प्रभु' कहा, तो 'मसीह दाऊद से निकले कोई साधारण जन नहीं हो सकते हैं!' उन्हे दाऊद से बहुत अधिक महान होना चाहिए!"
\v 46 जो कोई भी यीशु की बातों को सुन रहे थे, उनकी समझ में यीशु को उत्तर देने के लिए उनके पास एक भी शब्द नहीं था। उसके बाद, किसी ने भी उन्हें फंसाने का प्रयास करने में और एक प्रश्न पूछने का साहस नहीं किया।
\s5
\c 23
\p
\v 1 तब यीशु ने भीड़ और अपने शिष्यों से कहा,
\v 2 "हमारी यहूदी व्यवस्था को सिखाने वाले पुरुषों और फरीसियों ने स्वयं को उन नियमों की व्याख्या करने वालें बना लिया है, जो परमेश्वर ने इस्राएल के लोगों के लिए मूसा को दिए थे।
\v 3 अत: जो कुछ भी वे तुमको करने के लिए समझाते हैं, तुमको वह करना चाहिए। लेकिन वे जो करते हैं, वह मत करो, क्योंकि वे स्वयं उन नियमों का पालन नहीं करते हैं।
\s5
\v 4 वे तुम्हें कई नियमों का पालन करने की आवश्यकता बताते हैं जिनका पालन करना कठिन है। लेकिन वे स्वयं किसी भी नियम का पालन करने में किसी की सहायता नहीं करते हैं। ऐसा लगता है कि वे बहुत भारी बोझ को उठाने के लिए तुम्हारे कंधों पर रख रहे हैं। परन्तु उसे उठाकर ले जाने में वे तुम्हारी सहायता करने के लिए अपनी एक उंगली भी नहीं लगाएँगे।
\v 5 जो भी वे करते हैं, वे उन कामों को इसलिए करते हैं कि लोग उन्हें देखें और उनकी प्रशंसा करें। उदाहरण के लिए, वे उन तावीजों को ज्यादा चौड़े बनाते हैं जिसमें पवित्रशास्त्र के अंश हैं जिनको वे अपनी बाँहों पर पहनते हैं। वे अपने वस्त्रों की छोर बढ़ा देते है कि दूसरों को लगे कि वे परमेश्वर का सम्मान करते हैं।
\s5
\v 6 वे चाहते हैं कि अन्य लोग उन्हें सम्मान दें। उदाहरण के लिए, भोज में वे वहां बैठते हैं जहां सबसे महत्वपूर्ण लोग बैठते हैं। सभाओं में वे भी ऐसे ही स्थानों पर बैठना चाहते हैं।
\v 7 उन्हे अच्छा लगता कि लोग बाज़ारों में महान सम्मान के साथ उनका अभिवादन करें लोग उन्हें 'गुरु' कहकर पुकारें।
\s5
\v 8 परन्तु तुम, मेरे शिष्यों लोगों को तुम्हें 'गुरु' कहने की अनुमति नहीं देना जैसा वे अन्य यहूदी गुरुओं के साथ करते हैं। केवल मैं ही वास्तव में तुम्हारा गुरु हूँ। इसका अर्थ यह है कि तुम सब एक दूसरे के बराबर हो, जैसे भाई और बहन।
\v 9 धरती पर किसी को भी 'पिता' के रूप में संबोधित करके उसे सम्मान न देना, क्योंकि परमेश्वर, तुम्हारे स्वर्गीय पिता, तुम्हारे एकमात्र सच्चे पिता हैं।
\v 10 लोगों को तुम्हें 'गुरु' कहने की अनुमति न देना, क्योंकि मसीह ही तुम्हारे एकमात्र गुरु हैं।
\s5
\v 11 इसकी अपेक्षा, तुम में से हर कोई जो चाहता है कि परमेश्वर उसे महत्वपूर्ण मानें, उसे सेवकों के समान दूसरों की सेवा करनी चाहिए।
\v 12 परमेश्वर उनको नम्र करेंगे जो स्वयं को महत्वपूर्ण बनाने का प्रयास करते हैं। जो लोग स्वयं को विनम्र करते हैं, परमेश्वर उन्हें वास्तव में महत्वपूर्ण बना देंगे।"
\p
\s5
\v 13-14 "हे व्यवस्था के शिक्षकों और फरीसियों, तुम ढ़ोंगी हो! परमेश्वर तुम्हे भयंकर रीति से दण्ड देंगे, क्योंकि तुमने स्वर्ग के शासन के अधीन आने से मना किया और दूसरों को भी आने नहीं देते हो। तुम स्वयं तो भीतर नहीं जाना चाहते, तुम दूसरों को भी प्रवेश करने से दूर रखते हो।"
\p
\v 15 "हे व्यवस्था के शिक्षकों और फरीसियों, तुम ढ़ोंगी हो! परमेश्वर तुम्हे भयंकर रीति से तुम्हें दण्ड देंगे! तुम कठोर परिश्रम करते हो कि एक मनुष्य ही तुम्हारी शिक्षा पर विश्वास करे। ऐसा करने के लिए तुम यहाँ तक कि समुद्रों पर और धरती पर दूर के स्थानों की यात्रा करते हो और परिणामस्वरूप, जब कोई व्यक्ति तुम्हारी सिखाई बातों पर विश्वास करता है, तो तुम उस व्यक्ति को अपने से अधिक नरक में जाने के योग्य बना देते हो।"
\p
\s5
\v 16 "हे यहूदी अगुवों, परमेश्वर तुम्हे भयंकर रीति से दण्ड देंगे! तुम उन अंधे लोगों के समान हो जो दूसरों की अगुवाई करने का प्रयास करते हैं। तुम कहते हो, 'यदि कोई आराधनालय की शपथ खाकर कुछ करने की प्रतिज्ञा करता है जैसे कि मन्दिर एक मनुष्य है और यदि वह ऐसा नहीं करता जैसी उसने शपथ खाई तो कोई बात नहीं है। परन्तु यदि वह आराधनालय में के सोने की शपथ खाता है कि वह कुछ करेगा, तो उसे ऐसा करना ही होगा।
\v 17 तुम मूर्ख हो, और तुम ऐसे लोगों के समान हो जो अंधे हैं। आराधनालय में का सोना महत्वपूर्ण है, परन्तु आराधनालय उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह आराधनालय ही है जो सोने को परमेश्वर का बना देता है।
\s5
\v 18 तुम यह भी कहते हो, 'यदि कोई वेदी की शपथ खाकर कुछ करने की प्रतिज्ञा करता है कि वेदी एक व्यक्ति है, और यदि वह ऐसा नहीं करता जैसी उसने शपथ खाई , तो कोई बात नहीं। परन्तु यदि वह बलि की शपथ खाता है जो उसने वेदी पर रखा है तो उसे ऐसा करना ही होगा।
\v 19 तुम ऐसे लोगों के समान हो जो अंधे हैं। वेदी पर चढ़ाई बलि महत्वपूर्ण हैं, परन्तु वेदी उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वेदी ही है जो बलि को केवल परमेश्वर का बनाती है।
\s5
\v 20 यदि कोई कुछ करने की प्रतिज्ञा करके उसको पुष्ट करने के लिए वेदी की शपथ खाता है तो वह वेदी पर चढ़ाए जाने वाली वस्तुओं की भी शपथ खा रहा है।
\v 21 हाँ, और जो कोई कुछ करने की प्रतिज्ञा करता है और फिर उसे पुष्ट करने के लिए आराधनालय की शपथ खाता है तो वे परमेश्वर की शपथ भी खा रहां है जिनका यह आराधनालय है, वही उस बात की पुष्टि करेंगे।
\v 22 और जो कोई कुछ करने की प्रतिज्ञा करता है और फिर उसे पुष्ट करने के लिए स्वर्ग की शपथ खाता है तो वे परमेश्वर के सिंहासन की भी शपथ खा रहा है, और वे परमेश्वर की भी शपथ खा रहा है, जो उस सिंहासन पर बैठते हैं।"
\p
\s5
\v 23 "हे व्यवस्था के शिक्षकों और फरीसियों, तुम्हे परमेश्वर भयंकर दण्ड देंगे! तुम ढ़ोंगी हो, क्योंकि भले ही तुम परमेश्वर को जड़ी बूटियों का दसवां हिस्सा दे देते हो, जैसे पुदीना, सौंफ और जीरा, परन्तु तुम परमेश्वर के नियमों का पालन नहीं करते, जो अधिक महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए, तुम दूसरों के प्रति न्यायपूर्ण व्यवहार नहीं करते हो, तुम लोगों को दया नहीं दिखाते और तुम दूसरों की वस्तुएं लेने के लिए बल का प्रयोग करते हो। तुम्हारी जड़ी-बूटियों का दसवां हिस्सा परमेश्वर को देना अच्छा है, लेकिन तुम्हें इन अन्य अति महत्वपूर्ण नियमों का भी पालन करना चाहिए।
\v 24 तुम अगुवे अंधे लोगों के समान हो जो दूसरों का मार्गदर्शन करने का प्रयास कर रहे हैं। जब तुम पानी पीते हो, उस समय छोटे से कीड़े को निगलने से परमेश्वर को नाराज न करने के विषय तुम सावधान हो, परन्तु तुम जिस बुरी रीति से व्यवहार करते हो, तो ऐसा लगता है कि तुम ऊंट को निगल रहे हो!
\p
\s5
\v 25 "हे व्यवस्था के शिक्षकों और फरीसियों, तुम ढ़ोंगी हो! परमेश्वर तुमको कैसा भयंकर दण्ड देंगे। तुम स्वयं को अच्छे लोगों के समान दूसरों के सामने प्रकट करते हो। परन्तु, वास्तव में परमेश्वर के विरुद्ध पाप करते हो और अपने लालच के द्वारा दूसरों की वस्तुएँ, अपने सुख और विलास के लिए ले लेते हो। तुम उन बरतनों के समान हो जो बाहर से साफ हैं लेकिन भीतर से गंदे हैं।
\v 26 हे अंधे फरीसियों! आवश्यक है कि पहले तुम बुराई करना त्याग दो जैसे कि दूसरों का सामान चोरी करना। तब तुम जो उचित है, वह कर पाओगे और उस बरतन के जैसे हो जाओगे जो बाहर और भीतर दोनों ओर से साफ है।"
\p
\s5
\v 27 "हे व्यवस्था के शिक्षकों और फरीसियों, तुम ढ़ोंगी हो! परमेश्वर तुमको भयंकर दण्ड देंगे! तुम लोगों की कब्रों के गुम्मटों के समान हो, ऐसी कब्रें जिनको सफेद रंग दिया जाता है ताकि लोग उन्हें देख सकें और उन्हें छूने से बच सकें। बाहर से कब्रों के गुम्मट सुंदर हैं, लेकिन भीतर वे मृत लोगों की हड्डियों और गंदगी से भरी हुई हैं।
\v 28 तुम उन कब्रों के समान हो। जब लोग तुम पर ध्यान देते हैं, तो वे सोचते हैं कि तुम धर्मी हो, परन्तु अपने भीतरी मन में तुम ढ़ोंगी हो, क्योंकि तुम परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन नहीं करते हो।
\p
\s5
\v 29 "हे यहूदी व्यवस्था सिखाने वालों और फरीसियों, तुम ढ़ोंगी हो। परमेश्वर तुमको कैसा भयंकर दण्ड देंगे! तुम भविष्यद्वक्ताओं की कब्रों को फिर से बनवाते हो, जिनको लोगों ने बहुत पहले मार डाला था। तुम धर्मी लोगों के सम्मान में बनाई गई स्मारकों को सजाते हो।
\v 30 तुम कहते हो, 'अगर हमारे पूर्वजों के समय में हम रहते होते, तो हम उन लोगों की सहायता नहीं करते जिन्होंने भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला।'
\v 31 इस तरह तुम स्वीकार करते हो कि तुम उन हत्यारों के वंशज हो; इसलिये तुम उनके समान हो!
\s5
\v 32 तुम भी आगे बढ़ो और उन सभी पापों को पूरा करो जो तुम्हारे पूर्वजों ने आरंभ किए थे।
\v 33 तुम लोग बहुत दुष्ट हो! तुम जहरीले सांपों के समान खतरनाक हो! तुम मूर्खता से सोचते हो कि तुम नरक में दण्ड पाने के लिए परमेश्वर से बच जाओगे!
\s5
\v 34 ध्यान दो कि, यही कारण है कि मैं भविष्यद्वक्ताओं, बुद्धिमान लोगों और शिक्षकों को भेजूंगा। तुम उनमें से कुछ को क्रूस पर चढाकर मार डालोगे, और तुम कुछ को अन्य प्रकार से मार डालोगे। तुम उन में से कुछ को उन जगहों पर कोड़े मारोगे जहां तुम आराधना करते हो और शहर से शहर में तुम उनका पीछा करोगे।
\v 35 तो परमेश्वर तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को उन सब धर्मी लोगों को मारने के लिए दोषी मानेंगे, जो कभी धरती पर रहते थे, जिसमें आदम का पुत्र हाबिल, है जो एक धर्मी व्यक्ति था, और बिरिक्याह का पुत्र जकर्याह भी हैं, जिसे तुम्हारे पूर्वजों ने तुम्हारे आराधनालय और वेदी के बीच पवित्र स्थान में मार डाला था। तुमने उन सभी भविष्यद्वक्ताओं को भी मार डाला जो इन दोनों मनुष्यों के बीच के समय में रहते थे।
\v 36 इस विषय में सोचो: तुम लोग जिन्होने मेरी सेवा को देखा है, तुम ही हो जिनको परमेश्वर उन सभी भविष्यद्वक्ताओं को मारने के लिए दण्ड देंगे!"
\p
\s5
\v 37 "हे यरूशलेम के लोगों, तुम लोग जिन्होंने भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला जो बहुत समय पहले रहा करते थे, और जिनकी तुम ने पत्थर मार-मार का हत्या कर दी, उन्हे परमेश्वर ने तुम्हारे पास भेजा था। कई बार, मैंने तुमको सुरक्षित करने के लिए एक साथ एकत्र करना चाहा जैसे एक मुर्गी अपने पंखों के नीचे अपने बच्चों को एकत्र करती हैं। परन्तु तुम नहीं चाहते थे कि मैं ऐसा करूँ।
\v 38 इसलिए यह सुनो: तुम्हारा शहर निर्जन स्थान बन जाएगा।
\v 39 इसे ध्यान में रखो: जब मैं वापस आऊंगा, केवल तब तुम मुझे फिर से देखोगे, जब तुम मेरे विषय में कहोगे, 'परमेश्वर वास्तव में इस व्यक्ति से प्रसन्न हैं जो परमेश्वर के अधिकार के साथ आते हैं।'
\s5
\c 24
\p
\v 1 यीशु आराधनालय के आंगन को छोड़ कर चले गए। जब वह जा रहे थे, तो उनके शिष्य उनके पास आए और मन्दिर की सुन्दरता की चर्चा करने लगे।
\v 2 उन्होंने उनसे कहा, "मैं तुमको इन इमारतों के विषय में सच्चाई बताता हूँ जो कि तुम देख रहे हो: एक सेना पूरी तरह से उनको नष्ट कर देगी। वे इन इमारतों के हर एक पत्थर को गिरा देंगे। एक पत्थर के ऊपर दूसरा पत्थर रखा नहीं रहेगा।"
\p
\s5
\v 3 बाद में, जब यीशु जैतून के पर्वत के ढलान पर अकेले बैठे थे, तो उनके शिष्य उनके पास आए और उनसे पूछा, "आराधनालय की इमारतों के साथ यह घटना कब होगी? और यह दिखाने के लिए क्या होगा कि आप फिर से आने वाले हैं, और यह दिखाने के लिए कि यह दुनिया समाप्त होने वाली हैं?"
\p
\v 4 यीशु ने उत्तर दिया, "मुझे जो कहना है वह यह है कि सुनिश्चित कर लो कि कोई भी तुमको इस विषय में धोखा न दें कि क्या होने वाला है!
\v 5 बहुत से लोग आएंगे और कहेंगे कि वे मसीह हैं। हाँ, वे वास्तव में कहेंगे, 'मैं मसीह हूँ,' और वे कई लोगों को धोखा दे देंगे।
\s5
\v 6 तुम युद्धों के विषय में सुनोगे जो कि पास हैं और युद्ध जो दूर हैं, लेकिन तुमको इससे परेशान नहीं होना चाहिए। ध्यान रखों कि परमेश्वर ने कहा है कि ये बातें अवश्य होंगी। परन्तु जब ऐसा होता है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि दुनिया का अंत आ गया है!
\v 7 लोगों के समूह एक-दूसरे पर आक्रमण करेंगे, और राजा एक-दूसरे के विरुद्ध सेनाओं का नेतृत्व करेंगे। विभिन्न स्थानों पर अकाल और भूकंप आएंगे।
\v 8 ये बातें पहले होंगी, लेकिन वे ऐसे ही होंगी जैसे एक बच्चे को जन्म देने से पहले एक स्त्री को पीड़ा सहनी पड़ती है।
\p
\s5
\v 9 अधिकाधिक बुरे काम होंगे। जो लोग तुम्हारा विरोध करते हैं वे तुमको पीड़ित करने और मरने के लिए दूर ले जाएंगे। सभी जातियों के लोग तुमसे घृणा करेंगे क्योंकि तुम मुझ में विश्वास करते हो।
\v 10 इसके अतिरिक्त, बहुत से लोग दु:ख उठाने के कारण, विश्वास करना बंद कर देंगे। वे अपने साथी विश्वासियों से विश्वासघात करेंगे और एक-दूसरे से घृणा करेंगे।
\v 11 कई लोग ऐसा कहते हुए आएंगे कि वे भविष्यद्वक्ता हैं, परन्तु वे झूठ बोल रहे होंगे, और वे कई लोगों को धोखा देंगे।
\s5
\v 12 क्योंकि अधिक से अधिक लोग परमेश्वर के नियमों की अवज्ञा करेंगे, कई विश्वासी अब एक दूसरे से प्रेम नहीं रखेंगे।
\v 13 परन्तु जो लोग अपने जीवन के अंत तक विश्वास करते रहेंगे, परमेश्वर उन्हें बचाएंगे।
\v 14 इसके अतिरिक्त, विश्वासी लोग सुसमाचार सुनाएँगे कि परमेश्वर पृथ्वी के हर भाग पर शासन कर रहे हैं, जिससे कि सब जातियों में इसकी घोषणा कर सकें। तब संसार का अंत आ जाएगा।"
\p
\s5
\v 15 "परन्तु संसार समाप्त होने से पहले, घृणित व्यक्ति जो पवित्र आराधनालय को अशुद्ध कर देगा और लोगों के इसे छोड़ने का कारण बनेगा, आराधनालय में खड़ा होगा। दानिय्येल भविष्यद्वक्ता ने इस विषय में बहुत समय पहले कहा और लिखा था। जो कोई भी इसको पढ़ता है, वह ध्यान दे क्योंकि मैं तुमको चेतावनी दे रहा हूँ।
\v 16 जब तुम आराधनालय में ऐसा होते देखो, तो तुम में से जो यहूदिया के क्षेत्र में हैं वे ऊंचे पहाड़ों पर भाग जाना!
\v 17 जो अपने घर के बाहर हैं, उन्हें भागने से पहले सामान लेने के लिए अपने घरों में वापस नहीं जाना चाहिए।
\v 18 जो लोग किसी खेत में काम कर रहे हैं, उन्हें भागने से पहले अपने बाहरी कपड़े उठाने के लिए वापस नहीं जाना चाहिए।
\s5
\v 19 वह समय गर्भवती महिलाओं के लिए और उनके बच्चों की देख भाल करने वाली महिलाओं के लिए कैसा भयानक होगा, क्योंकि उनके लिए भागना बहुत मुश्किल होगा!
\v 20 प्रार्थना करो कि तुम्हें सर्दियों में भागना न पड़े, जब यात्रा करना कठिन होगा या सब्त के विश्रामदिन में ऐसा न हो;
\v 21 क्योंकि जब ये बातें होंगी तब लोग बहुत गंभीर दुःख उठाएंगे। जब से परमेश्वर ने दुनिया को बनाया है, तब से अब तक लोगों ने कभी भी ऐसे गंभीर दुःखों का सामना नहीं किया है, और न ही कोई भी कभी फिर से इस तरह से पीड़ित होगा।
\v 22 यदि परमेश्वर ने उस समय को कम करने का फैसला नहीं किया होता, जब लोग ऐसा दुःख भोगेंगे, तो हर कोई मर जाता। परन्तु परमेश्वर ने इसे कम करने का निर्णय लिया है क्योंकि उन्हें उन लोगों के विषय में चिंता हैं जिनको उन्होंने चुना हैं।"
\p
\s5
\v 23 "उस समय, यदि कोई तुमसे कहते हैं, 'देखो, यहां मसीह है!' या अगर कोई कहता है, 'वहां मसीह है!' तो विश्वास मत करना!
\v 24 वे लोगों को धोखा देने के लिए कई तरह के चमत्कार और अद्भुत काम करेंगे। वे तुम लोगों को धोखा देने का भी प्रयास करेंगे, जिन्हें परमेश्वर ने चुना हैं।
\v 25 यह मत भूलो कि इससे पहले कि यह सब हो, मैंने तुमको इसके विषय में चेतावनी दी है।
\s5
\v 26 इसलिए यदि कोई तुमसे कहता है, 'देखो, मसीह जंगल में है!' वहां मत जाओ। इसी तरह, अगर कोई तुमसे कहता है, 'देखो, वह एक गुप्त कमरे में है!' उस व्यक्ति पर विश्वास मत करो,
\v 27 क्योंकि जिस तरह बिजली पूर्व से पश्चिम तक चमकती है, और लोग इसे देखते हैं, उसी तरह, जब मनुष्य का पुत्र फिर से वापस आएगा, तो सब देखेंगे।
\v 28 यह सब के लिए स्पष्ट होगा जैसे जब तुम गिद्धों को एकत्र हुआ देखते हो तो तुम जानते हो कि वहां किसी पशु की लाश है।"
\p
\s5
\v 29 "उस समय लोगों के दुःख उठाने के तुरंत बाद, सूरज अंधेरा हो जाएगा। चंद्रमा में चमक नहीं होगी। तारे आकाश से गिर पड़ेंगे। और परमेश्वर आकाश में की सब वस्तुओं को अपने स्थान से हिलाएंगे।
\s5
\v 30 उसके बाद, सब लोग आकाश में दिखाई दे रहे मनुष्य के पुत्र को देखेंगे। तब धरती पर सब जातियों समूहों के अविश्वासी लोग ऊंची आवाज में विलाप करेंगे क्योंकि वे डरेंगे। वे मुझे, मनुष्य के पुत्र को, शक्ति और महान महिमा के साथ बादलों पर आते हुए देखेंगे।
\v 31 वह अपने स्वर्गदूतों को स्वर्ग के प्रत्येक स्थान में से पृथ्वी पर भेज देंगे। जब वे तुरही की प्रबल ध्वनि को सुनेंगे, तो वे पूरी धरती से परमेश्वर के लोगों को एकत्र करेंगे, जिन्हें उन्होंने चुना हैं।
\p
\s5
\v 32 "अब अंजीर के पेड़ कैसे बढ़ता है उससे कुछ सीखो। जब अंजीर के पेड़ की शाखाएं कोमल होती हैं और उसके पत्ते निकलना आरंभ होते हैं, तो तुम जानते हो कि गर्मी का मौसम पास है।
\v 33 इसी तरह, जब तुम इन सब बातों को होता देखो, तो तुमको पता चल जाएगा कि उनके वापस आने का समय बहुत करीब है।
\s5
\v 34 इसे ध्यान में रखो: यह सभी घटनाएँ उन सब लोगों के मरने से पहले होगी, जिन्होंने इन बातों को देखा है।
\v 35 तुम निश्चित हो सकते हो कि ये बातें जो मैंने तुम्हें बताई हैं वे होंगी। पृथ्वी और आकाश एक दिन विलोप हो जाएंगे, लेकिन मैं जो कहता हूँ वह होकर ही रहेगा।"
\p
\s5
\v 36 "लेकिन कोई अन्य व्यक्ति, न ही स्वर्ग में कोई स्वर्गदूत और न ही स्वयं पुत्र, वह दिन या घड़ी को जानते हैं जब ये सब बातें होंगी। केवल पिता परमेश्वर ही जानते हैं।
\s5
\v 37-39 नूह के जीवित रहते समय जो हुआ यह उसके समान होगा। जब तक बाढ़ नहीं आई, लोगों को नहीं पता था कि उनके साथ कुछ बुरा होगा। वे हमेशा के समान खा और पी रहे थे। पुरुष विवाह कर रहे थे, और माता-पिता अपनी पुत्रियों को विवाह में पुरुषों को दे रहे थे। वे यह सब उस दिन तक कर रहे थे जब तक कि नूह और उसके परिवार ने बड़ी नाव में प्रवेश नहीं किया। और फिर बाढ़ आई और वे सभी डूब गए जो नाव में नहीं थे। इसी प्रकार, अविश्वासी लोगों को नहीं पता होगा कि मनुष्य के पुत्र कब वापस आएंगे।
\s5
\v 40 जब ऐसा होता है तब सब लोगों को स्वर्ग में उठा नहीं लिया जाएगा। उदाहरण के लिए, दो लोग खेतों में होंगे। उनमें से एक को स्वर्ग में उठा लिया जाएगा और दूसरे व्यक्ति को दण्ड भोगने के लिए यहां छोड़ दिया जाएगा।
\v 41 इसी प्रकार, दो महिलाएं एक साथ हाथ की चक्की से अनाज पीस रही होंगी। इनमें से एक को स्वर्ग में उठा लिया जाएगा और दूसरी को छोड़ दिया जाएगा।
\v 42 इसलिए, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारे प्रभु किस दिन पृथ्वी पर लौट आएंगे, तुमको हर समय तैयार रहना होगा।
\s5
\v 43 तुम जानते हो कि अगर घर के मालिक को पता हो कि रात को चोर किस समय आएगा, तो वह जागता रहेगा और चोरों को अन्दर आने से रोकेगा। इसी प्रकार, मनुष्य के पुत्र चोर के समान अचानक आ जाएंगे।
\v 44 इसलिए तुमको तैयार रहना होगा क्योंकि मनुष्य के पुत्र ऐसे समय में पृथ्वी पर लौट आएंगे जब तुम उनके आने की आशा नहीं करोगे।"
\p
\s5
\v 45 "इस बात पर विचार करो कि हर एक निष्ठावान और बुद्धिमान कर्मचारी किस के समान है। घर का स्वामी एक सेवक को दूसरे सेवकों की निगरानी करने के लिए नियुक्त करता है। वह उन्हें उचित समय पर भोजन देने के लिए उसे कहता है। फिर स्वामी लम्बी यात्रा पर चला जाता है।
\v 46 यदि सेवक उस काम को कर रहा है, जब घर का मालिक वापस आ जाता है, तो घर का मालिक उससे बहुत प्रसन्न होगा।
\v 47 इस विषय में सोचो: घर का स्वामी उस एक सेवक को अपनी सारी संपत्ति पर अधिकारी नियुक्त करेगा।
\s5
\v 48 परन्तु एक दुष्ट सेवक अपने आप से कह सकता है, 'स्वामी तो लम्बे समय के लिए दूर चला गया है, इसलिए वह शायद शीघ्र ही वापस नहीं लौटेगा कि देखे मैं क्या कर रहा हूँ।'
\v 49 तो वह अन्य सेवकों को मारना पीटना शुरू कर देगा और नशे में धुत लोगों के साथ खाएगा पीएगा।
\v 50 तो घर का स्वामी ऐसे समय वापस आएगा जब सेवक उसके आने की आशा नहीं करता हो।
\v 51 वह उस सेवक को गंभीर दण्ड देगा और वह उसे उस जगह में रखेगा जहां ढ़ोंगी लोगों को रखा जाता है। उस स्थान में लोग रोते हैं और अपने दांतों को पीसते हैं क्योंकि वे बहुत अधिक पीड़ित होते हैं।"
\s5
\c 25
\p
\v 1 "स्वर्ग से परमेश्वर का शासन ऐसा होगा जैसा कि दस अविवाहित लड़कियों के साथ हुआ जो विवाह समारोह में जाने के लिए तैयार हो गईं। उन्होंने अपनी मशाले ले लीं और जाकर दुल्हे के आने की प्रतीक्षा करने लगीं।
\v 2 अब इन में पांच लड़कियां मूर्ख थीं, और पांच बुद्धिमान थीं।
\v 3 मूर्ख लड़कियों ने अपनी मशालें लीं, परन्तु उन्होंने उनके लिए कोई अतिरिक्त जैतून का तेल नहीं लिया।
\v 4 लेकिन बुद्धिमान लड़कियों ने अपनी कुप्पियों में तेल और साथ ही मशालें भी लीं।
\s5
\v 5 दुल्हे के आने में काफी समय लग रहा था, और रात में देर हो गई थी। इसलिए सभी लड़कियों को नींद आ गई और वे सो गईं।
\v 6 रात के मध्य में किसी ने चिल्लाकर उन्हें जगाया, 'वह यहाँ है! दूल्हा आ रहा है! बाहर जाओ और उससे मिलो! '
\s5
\v 7 इसलिए सभी लड़कियों ने उठकर जलाने के लिए अपनी मशालों को ठीक किया।
\v 8 मूर्ख लड़कियों ने बुद्धिमानों से कहा, 'हमें अपना कुछ तेल दे दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझी जा रही हैं!'
\v 9 बुद्धिमान लड़कियों ने उत्तर दिया, 'नहीं, क्योंकि यहां हमारी और तुम्हारी मशालों के लिए पर्याप्त तेल नहीं हो सकता है। बेचने वालों के पास जाओ और तेल खरीदो!
\s5
\v 10 जब मूर्ख लड़कियां तेल खरीदने के लिए रास्ते में ही थीं, कि दूल्हा वहां आ पहुँचा। तब बुद्धिमान लड़कियाँ, जो तैयार थीं, उसके साथ विवाह के भवन में गईं, जहां दुल्हन इंतजार कर रही थी, तब दरवाजा बंद हो गया।
\v 11 बाद में, वे पांच लड़कियां विवाह के भवन में आईं, और उन्होंने दुल्हे को बुलाया, 'महोदय, हमारे लिए द्वारा खोलो!'
\v 12 उसने उनसे कहा, 'सच यह है कि मैं तुम्हें नहीं जानता, इसलिए मैं तुम्हारे लिए द्वारा नहीं खोलूंगा।'
\v 13 फिर यीशु ने आगे कहा, "तुम्हारे साथ ऐसा न हो, इसलिए तैयार रहो क्योंकि तुम नहीं जानते कि यह कब होगा।"
\p
\s5
\v 14 "जब मनुष्य के पुत्र स्वर्ग से राजा के रूप में लौटते हैं, तो वह उस मनुष्य के जैसे होंगे जो लम्बी यात्रा पर जाने वाला था। उसने अपने कर्मचारियों को एक साथ बुलाया और उन्हें अपनी धन-संपत्ति में से कुछ निवेश करने और उसके लिए अधिक धन कमाई करने के लिए दिया।
\v 15 उसने उन्हें पैसे का प्रयोग करने की उनकी क्षमता के अनुसार पैसा दिया। उदाहरण के लिए, उसने एक सेवक को सोने के पांच थैले दिए, जिनका वजन लगभग 165 किलोग्राम था, उसने एक और सेवक को दो थैले दिए जिनका वजन लगभग छियासठ किलोग्राम था, और उसने एक और सेवक को एक थैला दिया, जिसका वजन लगभग तैतींस किलोग्राम था। फिर वह अपनी यात्रा पर चला गया।
\v 16 जिस दास को सोने के पाँच थैले मिले थे, वह तुरंत चला गया और उस पैसे का प्रयोग करके पांच और थैले कमाए।
\s5
\v 17 इसी प्रकार, जिस दास को सोने के दो थैले मिले थे, उसने दो थैले और कमाए।
\v 18 परन्तु जिस दास को सोने का एक थैला मिला था उसने जाकर भूमि में एक गड़हा खोदा और उसे सुरक्षित रखने के लिए वहां छिपा दिया।
\p
\s5
\v 19 एक लंबे समय के बाद सेवकों का स्वामी लौट आया। उसने उन सबको एक साथ बुलाया कि पता करे कि उन्होंने उसके पैसे के साथ क्या किया था।
\v 20 जिस दास को सोने के पाँच थैले मिले थे, वह उसके पास दस थैले लेकर आया। उसने कहा, 'स्वामी, तूने मुझे 5 सोने के थैले सौंप दिए थे। देख, मैंने पाँच और कमाए हैं!'
\v 21 उसके मालिक ने उत्तर दिया, 'तू एक बहुत अच्छा सेवक है! तू मेरे लिए बहुत विश्वासयोग्य रहा है। तूने थोड़े पैसे को बहुत अच्छे से संभाला है, इसलिए मैं तुझे कई वस्तुओं का उत्तरदायित्व सौपूंगा। आ और मेरे साथ आनंद मना!'
\p
\s5
\v 22 जिस दास ने सोने के दो थैले पाए थे, वह भी आया, और उसने कहा, 'हे स्वामी, तूने मुझे सोने के दो थैले सौंप दिए थे। देख, मैंने दो और कमाए हैं! '
\v 23 उसके स्वामी ने उत्तर दिया, 'तू एक बहुत अच्छा सेवक है! तू मेरे लिए बहुत विश्वासयोग्य रहा है। तूने थोड़े पैसे को बहुत अच्छे से संभाला है, इसलिए मैं तुझे कई वस्तुओं का उत्तरदायित्व सौपूंगा । आ और मेरे साथ आनंद मना!'
\p
\s5
\v 24 फिर जिस दास को सोने का एक थैला मिला था वह आया। उसने कहा, 'स्वामी, मैं तुझसे डर गया था। मुझे पता था कि तू एक ऐसा व्यक्ति है जो बहुत पैसा कमाने की इच्छा रखता है, भले ही तू कुछ भी न निवेश करे, जैसे एक किसान जो उस खेत की कटाई करने का प्रयास करता है जिसमें उसने फसल नहीं बोई थी।
\v 25 मुझे डर था कि तू क्या करेगा यदि मैंने तेरे द्वारा निवेश करने के लिए दिये गए पैसे को खो दिया, तो मैंने इसे भूमि में छिपा दिया। ये अब यहां है; कृपया इसे वापस ले ले!'
\s5
\v 26 उसके स्वामी ने उत्तर दिया, 'तू दुष्ट और आलसी सेवक है! तू जानता था कि मैं पैसा कमाने की इच्छा रखता हूँ, चाहे मैंने कुछ निवेश नहीं किया है।
\v 27 तो फिर, तुझे कम से कम मेरा पैसा किसी बैंक में जमा कर देना चाहिए था, ताकि जब मैं लौटाता तब मैं इसे कमाए गए ब्याज के साथ वापस ले लेता!'
\s5
\v 28 तब मालिक ने अपने दूसरे सेवकों से कहा, 'उस से सोने का थैला ले लो और उस सेवक को दे दो जिस के पास दस थैले हैं।
\v 29 जो लोग प्राप्त की वस्तुओं का उत्तम उपयोग करते हैं, परमेश्वर उनको और अधिक देंगे, और उनके पास बहुत कुछ होगा। लेकिन उन लोगों से जो प्राप्त की हुई वस्तुओं का उपयोग नहीं करते हैं, तो जो पहले से उनके पास है, उनसे वह भी ले लिया जाएगा।
\v 30 इसके अतिरिक्त, उस निकम्मे सेवक को बाहर अंधेरे में छोड़ दो, जहां वह उन लोगों के साथ होगा जो दर्द में चीख रहे हैं, और दांत पीस रहे हैं।'
\p
\s5
\v 31 "जब मनुष्य के पुत्र फिर से अपने उज्ज्वल प्रकाश में आते हैं और अपने सभी स्वर्गदूतों को लाते हैं, तो वह सब के न्याय के लिए अपने सिंहासन पर राजा के रूप में बैठेंगें।
\v 32 सभी लोगों के समूहों में से हर एक जन उनके सामने आएगा । तब वह लोगों को एक दूसरे से अलग करेंगे, जैसे चरवाहा अपनी भेड़ों को अपनी बकरियों से अलग करता है।
\v 33 भेड़-बकरियों के समान वह धर्मी लोगों को अपनी दाईं ओर और कुटिल लोगों को अपनी बाईं ओर रखेंगे।"
\p
\s5
\v 34 तब वह अपने दाहिनी ओर वालों से कहेंगे 'हे मेरे पिता से आशीष प्राप्त करने वाले लोगों, आओ! सब अच्छी वस्तुएँ जो वह तुम्हें देंगे, उन्हें प्राप्त करो, क्योंकि वह तुमको अपने शासन के आशीषें दे रहे हैं- वह वस्तुएँ जो वह दुनिया के बनाए जाने के समय से ही तैयार कर रहे हैं।
\v 35 ये वस्तुएँ तुम्हारी हैं, क्योंकि जब मुझे भूख लगी थी तब तुमने मुझे खाने के लिए कुछ दिया था। जब मुझे प्यास लगी तो तुमने मुझे कुछ पीने के लिए दिया था। जब मैं तुम्हारे शहर में एक अजनबी था, तो तुमने मुझे अपने घरों में रहने के लिए आमंत्रित किया था।
\v 36 जब मुझे कपड़ों की आवश्यक्ता थी, तो तुमने मुझे कुछ पहनने को दिया था। जब मैं बीमार था, तो तुमने मेरी देखभाल की थी। जब मैं बन्दीगृह में था, तुम मुझसे मिलने आए थे।'
\p
\s5
\v 37 तब लोग जिनको परमेश्वर ने अच्छा कहा है, वे उत्तर देंगे, 'हे प्रभु, आप कब भूखे थे, और हमने आपको देखा और आपको खाने के लिए कुछ दिया था? आप कब प्यासे थे और हमने आपको कुछ पीने के लिए दिया था?
\v 38 आप कब हमारे शहर में एक अजनबी थे और हमने आपको हमारे घरों में रहने के लिए आमंत्रित किया था? आपको कपड़ों की आवश्यकता कब हुई और हमने आपको वस्त्र दिए?
\v 39 आप कब बीमार थे या बन्दीगृह में थे और हम आपसे मिलने गए थे? आपके लिए इनमें से किया गया कोई भी काम हमें याद नहीं है।
\p
\v 40 राजा उत्तर देंगे, 'सच्चाई यह है कि जो कुछ तुमने अपने साथी विश्वासियों में से किसी एक के लिए किया था, यहां तक कि सबसे अधिक महत्वहीन के लिए किया था, वह तुमने निश्चित रूप से मेरे लिए किया है।'
\p
\s5
\v 41 लेकिन तब वह अपनी बाईं ओर वालों से कहेंगे, 'हे लोगों जिनको परमेश्वर ने शाप दिए हैं, मुझे छोड़ दो! उस अनन्त आग में जाओ जिसे परमेश्वर ने शैतान और उसके स्वर्गदूतों के लिए तैयार की है!
\v 42 तुम्हारे लिए यह सही है कि तुम वहां जाओ, क्योंकि जब मुझे भूख लगी थी तुमने मुझे खाने के लिए कुछ नहीं दिया था। जब मुझे प्यास लगी थी तो तुमने मुझे पीने के लिए कुछ नहीं दिया।
\v 43 जब मैं तुम्हारे शहर में एक अजनबी था, तो तुमने मुझे अपने घरों में आमंत्रित नहीं किया था। जब मुझे आवश्यक्ता थी तब तुमने मुझे कोई कपड़े नहीं दिए थे। जब मैं बीमार था या बन्दीगृह में था, तब तुमने मेरी देखभाल नहीं की।'
\p
\s5
\v 44 वे उत्तर देंगे, 'हे प्रभु, कब आप भूखे या प्यासे या अजनबी थे या कपड़ों की जरुरत में थे, या बीमार थे, या बन्दीगृह में थे, और हमने आपकी सहायता नहीं की?'
\p
\v 45 वह उत्तर देंगे, 'सच्चाई यह है कि जब भी तुम मेरे लोगों में से किसी भी व्यक्ति की सहायता करने के लिए कुछ भी नहीं करते हो, चाहे वह सबसे अधिक महत्तवहीन व्यक्ति हो, तो वह मैं था जिसके लिए तुमने ऐसा नहीं किया।'
\p
\v 46 तब मेरी बाईं ओर वाले लोग उस स्थान में चले जाएंगे जहां परमेश्वर उन्हें सदा के लिए दण्ड देंगे, परन्तु जो लोग परमेश्वर की दृष्टि में अच्छे हैं, वे वहां जाएंगे जहां वे सदा के लिए परमेश्वर के साथ रहेंगे।
\s5
\c 26
\p
\v 1 जब यीशु ने ये सब बातें कहना समाप्त किया, तो उन्होंने अपने शिष्यों से कहा,
\v 2 "तुम जानते हो कि अब से दो दिन बाद हम फसह का पर्व मनाएंगे। उस समय कोई व्यक्ति मनुष्य के पुत्र को उन लोगों को पकड़वा देगा जो उन्हें क्रूस पर चढ़ाएंगे।"
\p
\s5
\v 3 उसी समय प्रधान याजक और यहूदी प्राचीन, महायाजक के घर एकत्र हुए, जिसका का नाम काइफा था।
\v 4 वहां उन्होंने यह निर्णय लिया कि वे कैसे चालाकी से यीशु को बन्दी बनाएँ कि वे उन्हें मार डालें।
\v 5 परन्तु उन्होंने कहा, "हमें फसह के पर्व के समय ऐसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि अगर हम ऐसा करते हैं, तो लोग दंगा कर सकते हैं।"
\p
\s5
\v 6 जब यीशु और उनके शिष्य बैतनिय्याह गांव में थे, तो उन्होंने शमौन के घर में खाना खाया, जिसे यीशु ने कुष्ठ रोग से स्वस्थ किया था।
\v 7 भोजन के समय, एक स्त्री घर में आई। वह बहुत मूल्यवान इत्र से भरा हुआ एक सुन्दर पत्थर का पात्र लिए हुए थी। जब वे खा रहे थे, तो वह यीशु के पास गई और उनके सिर पर सारा इत्र उण्डेल दिया।
\v 8 जब शिष्यों ने यह देखा तो वे क्रोदित हुए। उनमें से एक ने कहा, "यह दुःख की बात है कि यह इत्र व्यर्थ कर दिया गया!
\v 9 हम इसे बेच सकते थे और इसके लिए बहुत सारे पैसे कमा सकते थे! तब हम गरीब लोगों को वह पैसा दे सकते थे।"
\s5
\v 10 यीशु जानते थे कि वे क्या कह रहे थे, इसलिए उन्होंने उनसे कहा, "तुम्हें इस स्त्री को परेशान नहीं करना चाहिए! उसने मेरे लिए एक सुंदर काम किया है।
\v 11 ध्यान में रखो कि तुम हमेशा तुम्हारे बीच गरीब लोगों को पाओगे, कि जब भी तुम चाहो तब उनकी सहायता कर सको। परन्तु मैं सदा तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा!
\s5
\v 12 जब उसने मेरे शरीर पर यह इत्र डाला, तो ऐसा लगता था कि जैसे वह जानती थी कि मैं शीघ्र ही मर जाऊंगा। और यह ऐसा है जैसे उसने मेरे शरीर को दफनाने के लिए अभिषेक किया है।
\v 13 मैं तुमसे कहता हूँ: पूरे विश्व में जहां भी लोग मेरे विषय में सुसमाचार सुनाएँगे, वे इस स्त्री के इस काम की चर्चा करेंगे जो इस स्त्री ने किया है, और इस प्रकार लोग सदा उसे स्मरण करेंगे।"
\p
\s5
\v 14 तब यहूदा इस्करियोती, जो बारह शिष्यों में से एक था, प्रधान याजकों के पास गया।
\v 15 उसने उनसे पूछा, "यदि मैं यीशु को बन्दी बनाने में तुम्हारी सहायता करता हूँ, तो तुम मुझे कितना पैसा दे सकते हो?" वे उसे तीस चांदी के सिक्के देने पर सहमत हुए। इसलिए उन्होंने सिक्कों की गिनती की और उन्हें उसको दे दिया।
\v 16 उस समय से यहूदा अवसर की खोज में था वे कब यीशु को पकड़ सकते हैं।
\p
\s5
\v 17 अखमीरी रोटी के सप्ताह भर के पर्व के पहले दिन, शिष्य यीशु के पास गए और पूछा, "आप कहां चाहते हैं कि हम फसह के पर्व के लिए भोजन तैयार करें कि हम इसे आपके साथ खा सकें?"
\v 18 यीशु ने दो शिष्यों को निर्देश दिया कि वे क्या करें। उन्होंने उनसे कहा, "उस व्यक्ति के पास नगर में जाओ, जिस के साथ मैंने पहले यह व्यवस्था की है। उसे बताओ कि गुरु ने, यह कहा है: 'जिस समय के विषय में मैंने तुमसे कहा था वह निकट है। मैं फसह के भोजन का उत्सव तेरे घर में अपने शिष्यों के साथ मनाने जा रहा हूँ, और मैंने इन दोनों को भोजन तैयार करने के लिए भेजा है।'
\v 19 तो उन दो शिष्यों ने यीशु के कहे अनुसार किया। उन्होंने जाकर उस व्यक्ति के घर में फसह का भोजन तैयार किया।
\p
\s5
\v 20 जब वह शाम आई, तो यीशु बारह शिष्यों के साथ भोजन करने बैठे।
\v 21 उन्होंने उनसे कहा, "इसे ध्यान से सुनो: तुम में से एक मुझे पकड़वाने में मेरे शत्रुओं की सहायता करने जा रहा है।"
\v 22 शिष्य बहुत उदास हुए। वे एक के बाद एक उनसे कहने लगे, "हे प्रभु, निश्चित रूप से वह मैं नहीं!"
\s5
\v 23 उन्होंने उत्तर दिया, "जो मुझे पकड़वाने में मेरे शत्रुओं का सहायक है वह तुम में से एक है जिसने मेरे साथ थाली में हाथ डाला है।
\v 24 यह निश्चित है कि मैं मनुष्य का पुत्र मर जाऊंगा, क्योंकि धर्मशास्त्र मेरे विषय में यही कहते हैं। लेकिन उस मनुष्य के लिए भयानक दण्ड होगा जो मुझे पकड़वाने में मेरे शत्रुओं को सक्षम बनाता है! उस मनुष्य के लिए अच्छा होता कि वह कभी जन्म नहीं लेता!"
\v 25 तब यहूदा ने, जो उसे धोखा देने वाला था, कहा, "गुरु, निश्चित रूप से यह मैं नहीं हूँ।" यीशु ने उत्तर दिया, "हाँ, तू इसे स्वीकार कर रहा है।"
\p
\s5
\v 26 जब वे खा रहे थे, तो यीशु ने एक रोटी ली और उसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। उन्होंने उसे टुकड़ों में तोड़ दिया, शिष्यों को दिया, और कहा, "यह रोटी लो और इसे खा लो। यह मेरा शरीर है।"
\s5
\v 27 बाद में उन्होंने एक दाखरस का कटोरा लिया और उसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर उन्होंने उन्हें वह दे दिया और कहा, "इस कटोरे से, तुम सब पिओ।
\v 28 इस कटोरे में का दाखरस मेरा लहू है, जो शीघ्र ही मेरे शरीर से बहाया जाएगा। यह लहू नई वाचा का चिन्ह है जो परमेश्वर कई लोगों के पापों को क्षमा करने के लिए कर रहे हैं।
\v 29 सावधानी से इस पर ध्यान दो: जब तक मैं इसे तुम्हारे साथ एक नए अर्थ के साथ न पीऊँ तब तक मैं इस तरह से दाखरस नहीं पीऊँगा। ऐसा तब होगा जब मेरे पिता पूरी तरह से शासन करेंगे।"
\p
\s5
\v 30 उन्होंने एक भजन गाया, उसके बाद वे जैतून के पहाड़ की ओर चले गए।
\v 31 रास्ते में, यीशु ने उनसे कहा, "आज रात मेरे साथ जो होगा उसके कारण से तुम सब मुझे छोड़ दोगे। यह होना निश्चित है क्योंकि परमेश्वर की कही हुई ये बातें धर्मशास्त्र में लिखी गई हैं: 'मैं लोगों के द्वारा चरवाहे को मरवा डालूँगा, और वे सब भेड़ों को तितर-बितर करेंगे।'
\v 32 परन्तु मेरे मरने और फिर से जीवित होने के बाद, मैं तुम्हारे आगे गलील को जाऊंगा और वहां तुमसे मिलूँगा।
\s5
\v 33 पतरस ने उत्तर दिया, "शायद अन्य सब शिष्य जो आपके साथ होता है उसे देखकर आपको छोड़ दे, परन्तु मैं निश्चय ही आपको कभी नहीं छोडूँगा!"
\v 34 यीशु ने उसे उत्तर दिया, "सच यह है कि आज की रात, मुर्गे के बांग देने से पहले, तू तीन बार कहेगा कि तू मुझे नहीं जानता!"
\v 35 "पतरस ने उस से कहा," जब मैं आपका बचाव करता हूँ, उस समय यदि वे मुझे मार भी डालेंगे, तो भी मैं कभी नहीं कहूंगा कि मैं आपको नहीं जानता। " बाकी सब शिष्यों ने भी यही कहा।
\p
\s5
\v 36 तब यीशु शिष्यों के साथ गतसमनी नाम के एक स्थान पर गए। वहां उन्होंने कहा, "यहां रुके रहो जब मैं वहाँ जाकर प्रार्थना कर रहा हूँ।"
\v 37 उन्होंने अपने साथ पतरस, याकूब और यूहन्ना को ले लिया। वह अत्यधिक परेशान हो गए।
\v 38 "फिर उन्होंने उनसे कहा," मैं बहुत दु:खी हूँ, इतना कि मुझे लगता है जैसे कि मैं मरने पर हूँ, यहाँ पर ठहरे रहो और मेरे साथ जागते रहो!"
\s5
\v 39 थोड़ी दूर जाने के बाद, उन्होंने स्वयं को जमीन पर मुँह के बल गिरा दिया। उन्होंने प्रार्थना की, "हे मेरे पिता, यदि संभव हो, तो मुझे उस प्रकार से दु:ख न दें जिस प्रकार से मैं जानता हूँ कि मैं दु:ख उठाऊंगा। परन्तु वैसा न करें जैसा मैं चाहता हूँ। परन्तु जैसा आप चाहते हैं वैसा ही करें!
\v 40 तब वह तीनों शिष्यों के पास लौट गए और देखा कि वे सो रहे थे। उन्होंने पतरस को जगाया और कहा, "मैं निराश हूँ कि तुम लोग सो गए और कुछ समय तक भी मेरे साथ जाग नहीं पाए!
\v 41 तुम्हें सचेत रहना और प्रार्थना करना चाहिए जिससे कि तुम उनका विरोध कर सको जो तुम्हे पाप कराने की परीक्षा में डालने का प्रयास करे। जो मैं तुमसे कहता हूँ तुम वह करना तो चाहते हो, परन्तु तुम वास्तव में ऐसा करने के लिए दृढ़ता में पूर्ण नहीं हो। "
\p
\s5
\v 42 वह दूसरी बार चले गए। उन्होंने प्रार्थना कीं, "हे मेरे पिता, अगर मेरे लिए दुःख भोगना आवश्यक है, तो आप जो चाहते हैं, वह हो!"
\p
\v 43 जब वह तीनों शिष्यों के पास लौट आए, तो उन्होंने देखा कि वे फिर से सो रहे थे। वे अपनी आँखें खुली नहीं रख सकते थे।
\v 44 इसलिए उन्होंने उन्हें छोड़ दिया और फिर से चले गए। उन्होंने तीसरी बार प्रार्थना कीं, उन्होंने इस बार भी प्रार्थना में उन्हीं बातों को कहा जो उन्होंने पहले भी प्रार्थना कीं थी।
\s5
\v 45 तब वह सब शिष्यों के पास गए। उन्होंने उन्हें जगाया और उनसे कहा, "मैं निराश हूँ कि तुम अभी भी सो रहे हो और आराम कर रहे हो! देखो! कोई मुझ मनुष्य के पुत्र को, गिरफ्तार करवाने के लिए पापी मनुष्यों की सहायता कर रहा है।
\v 46 उठो! आओ हम उनसे मिलने जाते हैं! वह यहाँ आ रहा है जो मुझे पकड़वाने में उनको सक्षम बना रहा है!"
\p
\s5
\v 47 यीशु अभी कह ही रहे थे, कि यहूदा आ पहुँचा। यद्यपि वह बारह शिष्यों में से एक था, वह यीशु को पकड़वाने में उनके शत्रुओं को सक्षम करने के लिए आया था। उनके साथ तलवारें और ड़ंड़े लेकर एक बड़ी भीड़ आ रही थी। प्रधान याजकों और प्राचीनों ने उन्हें भेजा था।
\v 48 यहूदा ने पहले उन्हें संकेत देने की व्यवस्था की थी। उसने उनसे कहा था, "जिस व्यक्ति का मैं चुम्बन लूँगा वही वह है जिसे तुम चाहते हो। उसे बन्दी बना लेना!"
\s5
\v 49 वह तुरंत यीशु के पास गया और कहा, "नमस्कार, गुरु!" फिर उसने यीशु को चूमा।
\v 50 यीशु ने उत्तर दिया, "मित्र, तू जो कर रहा है, शीघ्र कर।" तब जो लोग यहूदा के साथ आए थे, उन्होंने आगे बढ़कर यीशु को पकड़ लिया।
\s5
\v 51 अचानक, जो पुरुष यीशु के साथ थे उनमें से एक ने अपनी तलवार को म्यान से खींच लिया। उसने महायाजक के दास को मार डालने के लिए वार किया, परन्तु केवल उसका कान काट पाया।
\v 52 यीशु ने उस से कहा, "अपनी तलवार को अपनी म्यान में रखो! वे सब जो तलवार से दूसरों को मारने का प्रयास करते हैं, कोई और उनको तलवार से मार डालेगा!
\v 53 तुम क्या सोचते हो कि यदि में अपने पिता से कहूँ, तो क्या वह मेरी सहायता करने के लिए तुरन्त स्वर्गदूतों की बारह सेना से अधिक नहीं भेजेंगे?
\v 54 परन्तु यदि मैंने ऐसा किया, तो भविष्यद्वक्ताओं ने धर्मशास्त्र में जो लिखा है कि मसीह के साथ होना है, वह पूरा नहीं होगा।
\p
\s5
\v 55 उस समय यीशु ने उन लोगों से कहा, जो उन्हें पकड़ रहे थे, "तुम यहां तलवारों और ड़ंड़ों के साथ मुझे पकड़ने आए हो, जैसे कि मैं एक डाकू हूँ; लगभग हर दिन मैं आराधनालय के आंगन में बैठा हुआ, लोगों को सिखाता रहा। तब तुमने मुझे क्यों नहीं बन्दी बनाया?
\v 56 परन्तु यह सब भविष्यद्वक्ताओं द्वारा मेरे विषय में धर्मशास्त्र में लिखी बातों को पूरा करने के लिए हो रहा है। "तब शिष्य यीशु को छोड़कर भाग गए।
\p
\s5
\v 57 जो लोग यीशु को बन्दी बना चुके थे, वे उन्हें उस घर ले गए जहां महायाजक काइफा रहता था। यहूदी व्यवस्था के सिखाने वाले पुरुष और यहूदी प्राचीन, वहाँ पहले से एकत्र थे।
\v 58 पतरस ने दूर रहकर यीशु का पीछा किया। वह महायाजक के आंगन में आया। वह आंगन में घुस गया और सुरक्षाकर्मियों के साथ बैठ गया कि देखें क्या होगा।
\p
\s5
\v 59 प्रधान याजकों और यहूदी परिषद उन लोगों को ढूँढ़ने का प्रयास कर रही थी जो यीशु के विषय में झूठी गवाही दें जिससे कि वे उन्हें मौत की सजा दे सकें।
\v 60 कई लोगों ने उनके विषय में झूठी गवाहियाँ दीं परन्तु उन्हें कोई ऐसा नहीं मिला जिसने कुछ भी ऐसा कहा हो जो उपयोगी था। अंत में दो मनुष्य आगे आए
\v 61 और कहा, 'इस व्यक्ति ने कहा, 'मैं परमेश्वर के आराधनालय को नष्ट करने और तीन दिनों के भीतर इसे फिर से बनाने में सक्षम हूँ।'
\s5
\v 62 तब महायाजक ने खड़े होकर यीशु से कहा, "तू कोई उत्तर क्यों नहीं दे रहा है? तुझ पर जो आरोप लगाया जा रहा है उसके विषय में तू कुछ क्यों नहीं कहता है?"
\v 63 परन्तु यीशु चुप रहे। तब महायाजक ने उनसे कहा, मैं आपको सच्चाई बताने का आदेश देता हूँ; आपको पता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर आपकी बात सुन रहे हैं: क्या आप मसीह, परमेश्वर के पुत्र हैं?
\v 64 "यीशु ने उत्तर दिया," हाँ, यह ऐसा है जैसा तूने कहा है। परन्तु मैं तुम सब से यह कहूंगा: कुछ दिनों में तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास बैठे और शासन करते देखोगे। तुम उसे स्वर्ग से बादलों पर आते हुए भी देखोगे।"
\p
\s5
\v 65 महायाजक इतना परेशान था कि उसने अपना बाहरी वस्त्र फाड़ दिया। फिर उसने कहा, "इस व्यक्ति ने परमेश्वर का अपमान किया है! वह परमेश्वर के समान होने का दावा करता है! हमें निश्चय ही इस व्यक्ति के विरुद्ध किसी और की गवाही की आवश्यकता नहीं है! उसने जो कहा, तुम सबने सुना है!
\v 66 तुम क्या सोचते हो?" यहूदी अगुवों ने उत्तर दिया, "हमारी व्यवस्था के अनुसार, वह दोषी हैं और मृत्यु दण्ड के योग्य हैं! "
\s5
\v 67 तब उनमें से कुछ ने उनके चेहरे पर थूका। दूसरों ने उन्हें अपने मुक्के से मारा। अन्य लोगों ने उन्हें थप्पड़ मारे
\v 68 और कहा, "क्योंकि तू दावा करता हैं कि तू मसीह है, तो हमें बता कि तुझे किसने मारा!"
\p
\s5
\v 69 पतरस बाहर आंगन में बैठा था। एक दासी लड़की उसके पास आई और उसने उसे देखा। उसने कहा, "तू भी, गलील जिले के उस मनुष्य, यीशु के साथ था!"
\v 70 जब वहां उपस्थित सब जन सुन रहे थे, तो उसने इस बात का मना कर दिया। उसने कहा, "मैं नहीं जानता कि तू किस विषय में बात कर रही है!"
\s5
\v 71 तब वह आंगन के द्वार के बाहर चला गया। वहाँ एक और दासी ने उसे देखा और उन लोगों से कहा जो पास खड़े थे, "यह व्यक्ति भी उस यीशु के साथ था, जो नासरत से है।"
\v 72 परन्तु पतरस ने फिर से मना कर दिया। उसने कहा, "यदि मैं झूठ बोल रहा हूँ तो परमेश्वर मुझे दण्ड दें! मैं तुमको बताता हूँ, मैं उस मनुष्य को जानता भी नहीं।"
\s5
\v 73 थोड़ी देर के बाद, जो लोग वहां खड़े थे, उन्होंने पतरस के पास जाकर उस से कहा, "यह निश्चय है कि तू उन लोगों में से एक है, जो उस मनुष्य के साथ थे। हम तेरे उच्चारण से कह सकते हैं कि तू गलील से है।"
\v 74 तो पतरस ने जोर देकर घोषणा की कि अगर वह झूठ बोल रहा था तो परमेश्वर को उसे शाप देना चाहिए। उसने स्वर्ग के परमेश्वर को गवाह ठहराकर यह शपथ खाई कि वह सच कह रहा था और कहा, "मैं उस मनुष्य को नहीं जानता!" तुरंत मुर्गे ने बांग दी।
\v 75 तब पतरस ने उन शब्दों को याद किया जो यीशु ने उससे कहे थे, "मुर्गे के बांग देने से पहले तू तीन बार कहेगा, कि तू मुझे नहीं जानता।" और पतरस आंगन से बाहर निकल गया, और फूट-फूट कर रोने लगा, क्योंकि उसने जो कुछ किया था, उसके कारण वह बहुत दु:खी था।
\s5
\c 27
\p
\v 1 अगली भोर, के समय सभी प्रधान याजकों और यहूदी प्राचीनों ने यीशु को मार डालने के लिए किसी तरह रोमियों को राजी करने का निर्णय लिया।
\v 2 तब उन्होंने उनके हाथों को बांध दिया और उन्हें रोमी राज्यपाल पिलातुस के पास ले गए।
\p
\s5
\v 3 तब यहूदा को, जिसने यीशु को धोखा दिया था, यह मालुम हुआ कि उन्होंने निर्णय किया है कि यीशु को मरना चाहिए। तो उसने जो किया था, उसका उसे पछतावा हुआ। उसने तीस सिक्कों को प्रधान याजकों और प्राचीनों को वापस कर दिया।
\v 4 उसने कहा, "मैंने पाप किया है। मैंने एक निर्दोष व्यक्ति को धोखा दिया है।" उन्होंने उत्तर दिया, "इससे हमें कोई मतलब नहीं है! यह तेरी समस्या है!"
\v 5 इसलिए यहूदा ने पैसे लेकर उसे आराधनालय के आंगन में फेंक दिया। फिर वह चला गया और स्वयं को फांसी पर लटका दिया।
\p
\s5
\v 6 प्रधान याजकों ने सिक्कों को उठाया और कहा, "यह पैसा हम ने एक मनुष्य के मरने के लिए भुगतान किया है, और हमारी व्यवस्था हमें इस तरह के धन को आराधनालय के खजाने में डालने की अनुमति नहीं देती है।"
\v 7 इसलिए उन्होंने उस पैसे का उपयोग करने के लिए एक खेत खरीदने का निर्णय किया जिसे कुम्हार का खेत कहा जाता था। उन्होंने उस खेत को एक ऐसा स्थान बना दिया, जहां उन्होंने यरूशलेम में मरे हुए अजनबियों को दफ़नाया।
\v 8 यही कारण है कि उस स्थान को अभी भी "लहू का खेत" कहा जाता है।
\s5
\v 9 उस खेत को खरीदकर, उन्होंने इन शब्दों को सच कर दिया जो भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह ने बहुत पहले लिखे थे: "उन्होंने तीस चांदी के सिक्कों को ले लिया - यही उनका मूल्य था जो इस्राएल के अगुवों ने निर्धारित किया था।
\v 10 और उस पैसे के साथ उन्होंने कुम्हार का खेत खरीदा। उन्होंने ऐसा किया जैसा कि यहोवा ने मुझे आज्ञा दीं थी।"
\p
\s5
\v 11 तब यीशु राज्यपाल के सामने खड़े हुए। राज्यपाल ने उनसे पूछा, "क्या तू कहता हैं कि तू यहूदियों का राजा है?" यीशु ने उत्तर दिया, "हाँ, यह ऐसा ही है जैसा तूने कहा है।"
\p
\v 12 लेकिन जब प्रधान याजकों और प्राचीनों ने यीशु पर कई गलत काम करने का आरोप लगाए, तो यीशु ने उत्तर नहीं दिया।
\v 13 इसलिए पिलातुस ने उनसे कहा, "आप सुनते हैं कि वे आप पर कितने आरोप लगा रहे हैं, क्या आप उत्तर नहीं देंगे?"
\v 14 परन्तु यीशु ने कुछ नहीं कहा। उन्होंने उन बातों का जवाब नहीं दिया, जिनके विषय में वे उन पर आरोप लगा रहे थे। यह देख राज्यपाल बहुत आश्चर्यचकित था।
\p
\s5
\v 15 यह राज्यपाल की रीति थी कि वह हर साल जेल में कैद एक व्यक्ति को फसह के उत्सव के समय बन्दीगृह से मुक्त करे जिस बन्दी को लोग चाहते थे वह उसे छोड़ दिया करता था।
\v 16 उस समय यरूशलेम में एक प्रसिद्ध कैदी था जिसका नाम बरअब्बा था।
\s5
\v 17 जब भीड़ एकत्र हुई, तो पिलातुस ने उन से पूछा, "तुम किस बन्दी को चाहते हो कि उसे मैं तुम्हारे लिए छोड़ दूँ: बरअब्बा को या यीशु को जिसे वे मसीह कहते हैं?"
\v 18 उसने यह प्रश्न इसलिए पूछा क्योकि वह जानता था कि महायाजक यीशु को उसके पास इस कारण लाए थे कि वे यीशु से ईर्ष्या करते थे। और पिलातुस ने सोचा कि भीड़ यही चाहेगी कि वह यीशु को छोड़ दे।
\p
\v 19 जब पिलातुस न्यायधीश की कुर्सी पर बैठा था, तब उसकी पत्नी ने उसे यह संदेश भेजा: "आज सुबह मैंने उस व्यक्ति के विषय में एक बुरा सपना देखा था। इसलिए उस धर्मी व्यक्ति की निन्दा मत करना!"
\p
\s5
\v 20 परन्तु प्रधान याजकों और प्राचीनों ने भीड़ को उकसाया कि वे बरअब्बा को छोड़ने के लिए पिलातुस पर बल डालें और वह आदेश दे कि यीशु मार डाले जाए।
\v 21 इसलिए जब राज्यपाल ने उनसे पूछा, "तुम इन दो लोगों में से किसे चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए छोड़ दूँ?" उन्होंने उत्तर दिया, "बरअब्बा को!"
\v 22 पिलातुस ने उन से पूछा, "तो मुझे यीशु के साथ क्या करना चाहिए, जिसे तुम में से कुछ कहते हैं वह मसीह है?" उन सभी ने उत्तर दिया, "यह आदेश दे कि तेरे सैनिक उसे क्रूस पर चढ़ा दें!"
\s5
\v 23 पिलातुस ने जवाब दिया, "उसने क्या अपराध किए हैं?" लेकिन वे और भी ज़ोर से चिल्लाए , "उसे क्रूस पर चढ़ाया जाए!"
\p
\v 24 पिलातुस ने देखा कि वह कोई निर्णय नहीं ले पा रहा था। उसने देखा कि लोग दंगा करना शुरू कर रहे थे। इसलिए उसने पानी का एक बरतन लिया और भीड़ के देखते हुए अपने हाथ धोए। उसने कहा, "मेरे हाथों को धोने से मैं तुमको दिखा रहा हूँ कि यदि यह मनुष्य मर जाता है, तो यह तुम्हारी गलती है, मेरी नहीं!"
\s5
\v 25 और सभी लोगों ने उत्तर दिया, "उसके मरने के लिए हम दोषी ठहरें, और हमारे बच्चे भी इसके दोषी हों!"
\v 26 फिर उसने सैनिकों को उनके लिए बरअब्बा को छोड़ने का आदेश दिया। लेकिन उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे यीशु को कोड़े मारे। और फिर उसने यीशु को सैनिकों के पास भेज दिया, कि वे यीशु को क्रूस पर चढ़ा दें।
\p
\s5
\v 27 तब राज्यपाल के सैनिक यीशु को सैनिकों के सेनावास में ले गए। पूरी रोमी सेना के दल यीशु के पास एकत्र हुए।
\v 28 उन्होंने उनके कपड़े उतार लिए और उस पर चमकीला लाल बागा डाल दिया, ताकि ऐसा लगे कि, वह राजा है।
\v 29 उन्होंने कांटों वाली कुछ शाखाएं लीं और उनका एक मुकुट बनाकर उनके सिर पर रख दिया। उन्होंने उनके दाहिने हाथ में एक छड़ी जैसा सरकण्डा पकड़ा दिया जैसे कि राजा का राजदण्ड है। तब वे उनके सामने घुटने टेक कर और यह कहकर उनका ठट्ठा करने लगे, "यहूदियों के राजा को नमस्कार!"
\s5
\v 30 वे उन पर थूक रहे थे। वे छड़ी को लेकर उससे उनके सिर पर मार रहे थे।
\v 31 जब उन्होंने उनका ठट्ठा करना समाप्त कर दिया, तो उन्होंने बागा उतार लिया और उनके कपड़े उन पर डाल दिए। तब वे उन्हें उस जगह ले गए जहां वे उन्हें क्रूस पर चढ़ाने वाले थे।
\p
\s5
\v 32 जब यीशु क्रूस को थोड़ी दूरी उठाकर चले, तब सैनिकों ने शमौन नाम के एक व्यक्ति को देखा जो कुरेने शहर से था। उन्होंने यीशु का क्रूस उठाकर ले चलने के लिए उसे विवश किया।
\v 33 वे गुलगुता नामक एक स्थान पर आए। उस नाम का अर्थ है "खोपड़ी के जैसा स्थान।"
\v 34 जब वे वहां आए, तो उन्होंने दाखरस के साथ कुछ मिला लिया जो बहुत कड़वा था। उन्होंने यीशु को इसे पीने के लिए दिया ताकि जब वे क्रूस पर उन्हें चढ़ाएँ, तो उन्हें अधिक पीड़ा न हो। लेकिन जब उन्होंने उसे चखा, तो उन्होंने इसे पीने से मना कर दिया। कुछ सैनिक उनके कपड़े ले गए।
\s5
\v 35 तब उन्होंने उन्हें क्रूस पर चढ़ा दिया। बाद में, उन्होंने उनके कपड़ों को पासे की जैसी किसी वस्तु से जुआ खेलकर निर्णय लिया कि किसको कौन सा कपड़ा मिलेगा और कपड़ों को आपस में बाँट लिया।
\v 36 तब सैनिक उनकी निगरानी करने के लिए वहां बैठ गए, जिससे कि उन्हें कोई बचाने का प्रयास करे तो उसे रोक पाएँ
\v 37 उन्होंने यीशु के सिर के ऊपर क्रूस पर एक तख्ती टांग दी, जिस पर लिखा गया था कि वे उन्हें क्रूस पर क्यों चढ़ा रहे थे। परन्तु उस पर यह लिखा था, 'यह यहूदियों के राजा यीशु हैं।'
\s5
\v 38 उन्होंने दो डाकुओं को भी क्रूस पर चढ़ाया। उन्होंने एक क्रूस को यीशु के दाहिनी ओर और दूसरे को बाईं और रखा।
\v 39 जो लोग वहां से आते-जाते थे वे अपने सिरों को हिलाकर उनको अपमानित कर रहे थे, जैसे कि वह एक बुरे मनुष्य थे।
\v 40 "उन्होंने कहा, "तू ने कहा था कि तू आराधनालय को नष्ट कर देगा और फिर तीन दिन के भीतर इसे फिर से बना देगा! यदि तू ऐसा कर सकता है, तो तुझे स्वयं को बचाने में भी समर्थ होना चाहिए! यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो क्रूस से नीचे उतर आ!"
\p
\s5
\v 41 इसी प्रकार, प्रधान याजकों, यहूदी व्यवस्था को सिखाने वाले पुरुषों, और प्राचीनों ने उनका ठट्ठा किया। उन्होंने इस प्रकार की बातें कहीं,
\v 42 "उसने दूसरों को उनकी बीमारियों से बचाया, लेकिन वह स्वयं की सहायता नहीं कर सकता है!" "वह कहता है कि वह इस्राएल का राजा है। इसलिए उसे क्रूस से उतर आना चाहिए। फिर हम उस पर विश्वास करेंगे!"
\s5
\v 43 "वह कहता है कि वह परमेश्वर पर भरोसा रखता है, और ऐसा व्यक्ति हैं जो परमेश्वर भी हैं। इसलिए यदि परमेश्वर उससे प्रसन्न हैं, तो परमेश्वर को उसे अब बचा लेना चाहिए!"
\v 44 और दो डाकू जो उनके साथ क्रूस पर चढ़े हुए थे, उन्होंने भी उनका अपमान किया, और इसी प्रकार की बातें कहीं।
\p
\s5
\v 45 दोपहर में पूरे देश में अंधेरा हो गया। दोपहर में तीन बजे तक यह अंधेरा रहा।
\v 46 लगभग तीन बजे यीशु जोर से चिल्लाए, "एली, एली, लमा शबक्तनी?" इसका अर्थ है, "हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, आपने मुझे क्यों छोड़ दिया है?"
\v 47 जब वहाँ खड़े लोगों में से कुछ ने "एली" शब्द सुना, तो उन्होंने सोचा कि वह भविष्यद्वक्ता एलिय्याह को बुला रहे हैं।
\s5
\v 48 उनमें से एक तुरंत भागा और स्पंज लेकर आया। उसने इसे खट्टी दाखरस से भर दिया। फिर उसने स्पंज को एक सरकंडे की नोक पर रख दिया और उसे पकड़ कर यीशु के मुँह के पास तक ले गया, ताकि यीशु उस दाखरस को चूस सके जो उसमें था।
\v 49 परन्तु वहां उपस्थित अन्य लोगों ने कहा, "ठहरो! हम देखते हैं कि एलिय्याह उसे बचाने के लिए आता है या नहीं!"
\v 50 उसके बाद यीशु फिर से जोर से चिल्लाए, और परमेश्वर को अपनी आत्मा सौंपकर मर गए।
\s5
\v 51 उसी क्षण भारी मोटा पर्दा जो आराधनालय में अति पवित्र स्थान को बंद करता था, ऊपर से नीचे तक दो टुकड़ों में फट गया। धरती हिल गई, और कुछ बड़ी चट्टानें फट गई थीं।
\v 52 कब्रें खुल गई, और कई लोगों के शरीर जिन्होंने परमेश्वर का सम्मान किया था, फिर से जीवित हो गए।
\v 53 वे कब्रिस्तान से बाहर निकल गए, और यीशु के फिर से जीवित होने के बाद, वे यरूशलेम में गए और वहां कई लोगों को दिखाई दिए।
\p
\s5
\v 54 यीशु को क्रूस पर चढ़ाने वाले सैनिकों की देखरेख करने वाला अधिकारी पास खड़ा था। क्रूसों की निगरानी करनेवाले उसके सैनिक भी वहां थे। जब उन्होंने भूकंप और जो कुछ भी हो रहा था उसको देखा, वे डर गए और वे पुकार उठे, "सचमुच वह परमेश्वर के पुत्र थे!"
\p
\v 55 वहां कई महिलाएं थीं, जो दूर से देख रही थीं। ये वे महिलाएं थीं जो यीशु की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गलील से उनके साथ आई थीं।
\v 56 इन स्त्रियों में मरियम जो मगदला से थी, एक और मरियम जो याकूब और यूसुफ की माता थीं, और याकूब और यूहन्ना की माता भी थीं।
\p
\s5
\v 57 जब लगभग शाम हो चुकी थी तब, यूसुफ नाम का एक धनी व्यक्ति वहां आया। वह अरिमतियाह के शहर से था। वह भी यीशु का एक शिष्य था।
\v 58 वह पिलातुस के पास गया और पिलातुस से कहा कि उसे यीशु के शरीर को लेने और उन्हें दफ़नाने के लिए अनुमति दी जाए। पिलातुस ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि उसे यीशु के शरीर को लेने की अनुमति दी जाए।
\s5
\v 59 इसलिए यूसुफ और अन्य लोगों ने शरीर को ले लिया और उसे एक साफ सफेद कपड़े में लपेटा।
\v 60 तब उन्होंने उसे यूसुफ की अपनी नई कब्र में रख दिया, जो मजदूरों ने एक चट्टान में खोदी थी। उन्होंने कब्र के प्रवेश द्वार के सामने एक विशाल गोल चपटा पत्थर रख दिया था। फिर वे चले गए।
\v 61 मगदला से मरियम और दूसरी मरियम कब्र के सामने बैठी, निगरानी कर रही थीं।
\p
\s5
\v 62 अगला दिन शनिवार, यहूदियों का विश्राम दिवस था। प्रधान याजक और कुछ फरीसी पिलातुस के पास गए।
\v 63 उन्होंने कहा, "महोदय, हमें याद है कि जब वह धोखेबाज जीवित था तब उसने कहा था, 'मेरे मरने के तीन दिन बाद मैं फिर से जीवित हो जाऊंगा।'
\v 64 तो हम तुझ से निवेदन करते हैं कि तीन दिन के लिए कब्र पर पहरा देने के लिए सैनिकों को आदेश दे। यदि तू ऐसा नहीं करता है, तो उसके शिष्य आकर उसके शरीर को चोरी कर सकते हैं। तब वे लोगों से कहेंगे कि वह मरे हुओं में से जी उठा है। यदि वे लोगों को यह कहते हुए धोखा देंगे तो यह उस धोखे से भी अधिक होगा जो इससे पहले उन्होंने लोगों को दिया था।"
\s5
\v 65 पिलातुस ने उत्तर दिया, "तुम कुछ सैनिकों को ले जा सकते हो। कब्र पर जाओ और उसे उतना सुरक्षित करो जिनता तुम करना जानते हो।"
\v 66 इसलिए वे चले गए और चट्टान की कब्र के प्रवेश द्वार के सामने रखे पत्थर को दोनों तरफ से एक रस्सी से बांधकर सुरक्षित कर दिया और उस पर मुहर लगा दी। कब्र की रक्षा के लिए उन्होंने कुछ सैनिकों को भी वहाँ छोड़ दिया।
\s5
\c 28
\p
\v 1 सब्त के समाप्त होने के बाद, रविवार की सुबह भोर के समय मगदला शहर की मरियम और दूसरी मरियम यीशु की कब्र पर देखने के लिए गईं।
\v 2 एक भयानक भूकंप वहाँ हुआ क्योंकि परमेश्वर के एक स्वर्गदूत स्वर्ग से नीचे आए थे। स्वर्गदूत कब्र के पास गए और पत्थर को प्रवेश द्वार से लुढ़काकर दूर कर दिया। फिर वह पत्थर पर बैठ गए।
\s5
\v 3 उनका शरीर बिजली के समान उज्ज्वल था, और उनके कपड़े बर्फ के समान सफेद थे।
\v 4 सुरक्षाकर्मी कांपने लगे क्योंकि वे बहुत डर गए थे, और फिर वे मरे हुए पुरुषों के समान गिर गए।
\p
\s5
\v 5 स्वर्गदूत ने उन दो महिलाओं से कहा, "तुम्हें डरना नहीं चाहिए! मुझे पता है कि तुम यीशु की खोज कर रही हो, जिन्हें क्रूस पर चढ़ा दिया गया था।
\v 6 वह यहाँ नहीं है! परमेश्वर ने उन्हें फिर से जीवित कर दिया है, जैसे यीशु ने तुमसे कहा था कि होगा! आओ और उस जगह को देखो जहां उनका शरीर था!
\v 7 फिर शीघ्र जाओ और उनके शिष्यों से कहो, 'वह मरे हुओं में से जी उठे हैं। वह तुम्हारे आगे गलील के जिले में जाएंगे। तुम उन्हें वहां देखोगे।' मैंने तुमसे जो कहा है उस पर ध्यान दो! "
\p
\s5
\v 8 इसलिए वे महिलाएँ शीघ्र ही कब्र से चली गईं। वे डरी हुई थीं, परन्तु वे बहुत आनन्दित भी थीं। वे शिष्यों को समाचार देने के लिए भागीं।
\v 9 जब वे दौड़ रही थीं, तब यीशु ने उनको दर्शन दिया। उन्होंने कहा, "तुम को नमस्कार!" वे महिलाएं उनके करीब आईं। वे घुटने टेक कर उनके पैरों में गिर गईं और उनकी आराधना की।
\v 10 फिर यीशु ने उनसे कहा, "मत डरो! जाओ और मेरे सब शिष्यों से कहो कि वे गलील में जाए। वे मुझे वहाँ देखेंगे।"
\p
\s5
\v 11 जब महिलाएं जा रही थीं, तो कुछ सैनिक जो कब्र की रक्षा कर रहे थे, शहर में चले गए। उन्होंने प्रधान याजकों को जो कुछ हुआ था, बताया।
\v 12 इसलिए महायाजक और यहूदी प्राचीन एक साथ मिले। उन्होंने यह बताने के लिये एक तरीका सोचा कि कब्र क्यों खाली थी। उन्होंने सैनिकों को रिश्वत के रूप में बहुत सारा पैसा दिया।
\v 13 उन्होंने कहा, "लोगों को बताओ, "उनके शिष्य रात के समय आए और जब हम सो रहे थे तो यीशु का शरीर चुरा लिया।
\s5
\v 14 यदि राज्यपाल इस विषय में सुनता है, तो हम स्वयं यह सुनिश्चित करेंगे कि वह क्रोधित न हो और तुमको दण्ड न दे। तो तुमको चिंता करने की आवश्यक्ता नहीं है।"
\v 15 इसलिए सैनिकों ने पैसे ले लिए और जैसा कि बताया गया था वैसे ही किया। और यह कहानी यहूदियों के बीच आज के दिन तक बताई जाती है।
\p
\s5
\v 16 बाद में ग्यारह शिष्य गलील के जिले में गए। वे उस पहाड़ पर गए जहां यीशु ने उन्हें जाने के लिए कहा था।
\v 17 उन्होंने उन्हें वहां देखा और उनकी आराधना की। लेकिन कुछ लोगों को संदेह था कि क्या यह वास्तव में यीशु थे और क्या वह फिर से जीवित हो गए थे।
\s5
\v 18 तब यीशु ने उनके पास आकर कहा, "मेरे पिता ने मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर हर वस्तु और हर किसी पर सारा अधिकार दिया है।
\v 19 इसलिए जाओ, और मेरे अधिकार का उपयोग करके सभी जनसमूहों के लोगों को मेरा संदेश सिखाओ जिससे कि वे मेरे शिष्य बन सकें। उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के अधिकार के अधीन लाने के लिए बपतिस्मा दो।
\s5
\v 20 उन सब बातों का पालन करना उन्हें सिखाओ जो मैंने तुमको आज्ञा दी हैं। और याद रखो कि मैं इस युग के अंत तक सदा तुम्हारे साथ रहूंगा।"