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\id 2CH
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\h 2 इतिहास
\toc1 2 इतिहास
\toc2 2 इतिहास
\toc3 2ch
\mt1 2 इतिहास
\s5
\c 1
\p
\v 1 राजा दाऊद का पुत्र राजा सुलैमान अपने राज्य पर पूरा नियंत्रण करने में सक्षम था क्योंकि यहोवा उसके साथ थे और यहोवा ने सुलैमान को एक बहुत महान राजा बनाया।
\s5
\v 2-5 राजा दाऊद ने अपने कार्यकाल में यरुशलेम में एक नया पवित्र तम्बू बनवाया था जिसमें उसने यहोवा के पवित्र सन्दूक को रखा, जब वह उसे किर्यत्यारीम से लाया था। परन्तु वह पवित्र तम्बू जो मूसा ने बनवाया था, दाऊद के शासनकाल में और सुलैमान के शासनकाल में भी गिबोन में था। उसी पवित्र तम्बू में हूर के पोते, ऊरी के पुत्र बसलेल के द्वारा बनायी गयी पीतल की वेदी भी गिबोन में थी।
\p सुलैमान ने अपने सहस्त्रपतियों, शतपतियों, न्यायियों और इस्राएल के सब प्रधानों को इकट्ठा किया और उन्हें गिबोन चलने का निमन्त्रण दिया। इसलिए वे सब गिबोन के उस ऊँचे स्थान पर गए जहाँ मूर्तियों की पूजा की जाती थी। उसी स्थान पर मूसा द्वारा बनाए गए तम्बू में यहोवा अपने लोगों से भेंट करते थे। वहाँ जाकर सुलैमान और उसके साथ के लोगों ने यहोवा से प्रार्थना की।
\s5
\v 6 तब सुलैमान ने पवित्र तम्बू के सामने पीतल की वेदी पर गया और उसने एक हजार होमबलि चढाए।
\v 7 उस रात यहोवा सुलैमान के स्वप्न में आए और उससे कहा, "तू जो चाहे मुझसे माँग ले।"
\s5
\v 8 सुलैमान ने परमेश्वर से कहा, “आप मेरे पिता दाऊद के प्रति अति दयालु रहे हैं और अब आपने मुझे अगले राजा के रूप में नियुक्त किया है।
\v 9 हे मेरे परमेश्वर यहोवा आपने मुझे ऐसे लोगों का राजा बनाया है जिनकी संख्या पृथ्वी की धूल के कणों के समान है। इसलिए मेरे पिता दाऊद से की गई अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करें।
\v 10 कृपया मुझे बुद्धि दें और विवेक से पूर्ण करें कि मैं समझ सकूँ कि क्या करना है जिससे मैं इस प्रजा पर उचित रीति से शासन कर सकूँ क्योंकि आपकी सहायता के बिना आपकी इस विशाल प्रजा पर कोई शासन नहीं कर सकता।”
\v 11 यहोवा ने सुलैमान से कहा, “तूने न तो धन-सम्पत्ति माँगी, न प्रतिष्ठा की लालसा की, न ही अपने शत्रुओं के विनाश की इच्छा की, न ही दीर्घायु माँगी, परन्तु बुद्धि और विवेक की याचना की है ताकि मेरी प्रजा, जिस पर मैंने तुझे राजा नियुक्त किया, उसका न्याय करने में न चूके।
\s5
\v 12 इसलिए मैं तुझे बुद्धिमान होने और यह जानने के लिए सक्षम करूंगा कि तुझे मेरे लोगों पर शासन करने के लिए क्या करना है, इसके साथ मैं तुझे अपार धन-सम्पदा और सब जातियों में सर्वोच्च सम्मान प्रदान करूँगा जो न तो तुझसे पहले किसी राजा की थी और न ही तेरे बाद किसी राजा की होगी।”
\v 13 तब राजा सुलैमान और उसके साथ के सब लोग गिबोन के पवित्र तम्बू से निकल कर यरुशलेम लौट आए। वहीं उसने इस्राएलियों पर शासन किया।
\s5
\v 14 सुलैमान ने 1,400 रथ और बारह हजार घुड़सवार इकट्ठा किये। उसने कुछ रथ और घुड़सवार तो यरुशलेम में रखे और शेष विभिन्न नगरों में रखे।
\v 15 सुलैमान के शासनकाल में सोना तो ऐसा था जैसे पत्थर और देवदार की लकड़ी ऐसी थी जैसे पहाड़ों की तलहटी के गूलर।
\s5
\v 16 सुलैमान ने मिस्र और कोये देश से घोड़े मँगाए।
\v 17 मिस्र में उसके व्यापारी प्रत्येक रथ के लिए सात किलोग्राम चाँदी और प्रत्येक घोड़े के लिए 1.7 किलोग्राम चाँदी दिया करते थे। वे हित्ती और अरामी राजाओं को भी घोड़े बेचा करते थे।
\s5
\c 2
\p
\v 1 सुलैमान ने यहोवा की आराधना के लिए भवन और अपना राजभवन बनाने का विचार किया।
\v 2 उसने 70,000 पुरुषों को निर्माण सामग्री उठाने और 80,000 पुरुषों को पहाड़ों की खदान में पत्थर काटने के काम पर लगाया और उनके काम का निरीक्षण करने के लिए 3,600 पुरुषों को नियुक्त किया।
\v 3 सुलैमान ने सोर के राजा हीराम के पास सन्देश भेजा, “वर्षों पूर्व जब मेरा पिता राजा दाऊद अपना महल बनवा रहा था तब तूने देवदार की लकड़ी के लट्ठे भेजे थे। क्या तू मेरे लिए भी देवदार की लकड़ी के लट्ठे भेजेगा?
\s5
\v 4 हम अपने परमेश्वर यहोवा के लिए एक भवन बनवा रहे हैं कि वहाँ सुगन्धित द्रव्यों से तैयार धूप जलाएँ, और भेंट की रोटियाँ उसमें रखें तथा प्रतिदिन सुबह-शाम तथा विश्राम दिवसों पर, तथा नये चाँद पर तथा पर्वों के समय हमारे परमेश्वर यहोवा के लिए होम-बलि करें। हम अपने परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार सदैव ऐसा ही करना चाहते हैं।
\v 5 हम चाहते है कि यहोवा का यह महान भवन बने क्योंकि हमारे परमेश्वर की तुलना में कोई देवता नहीं है।
\s5
\v 6 कोई भी व्यक्ति हमारे परमेश्वर के लिये भवन नहीं बना सकता क्योंकि आकाश और पृथ्वी भी उनके लिए पर्याप्त नहीं है। मैं परमेश्वर के लिये भवन बनाने के योग्य नहीं हूँ। मैं केवल परमेश्वर के सामने सुगन्धि जलाने के लिये एक स्थान बना सकता हूँ।
\v 7 इसलिए सोना-चाँदी, पीतल और लोहे का कोई कुशल कारीगर भेज दे और बैंगनी, लाल और नीले वस्त्र पर काम करने वाला और कढ़ाई जानने वाला भी भेज दे। वे मेरे पिता द्वारा नियुक्त कुशल हस्तकारों के साथ यरुशलेम और यहूदा में काम करेंगे।
\s5
\v 8 मैं जानता हूँ कि तेरे सेवक वृक्ष काटना जानते हैं। इसलिए लबानोन के पर्वतों से मेरे लिए देवदार, सनोवर और चंदन की लकड़ी के लट्ठे भेज दे।
\v 9 तेरे सेवकों के साथ मेरे सेवक भी काम करेंगे। इस प्रकार वे बहुत सी लकड़ी तैयार कर लेंगे क्योंकि यह भवन जो मैं बनाना चाहता हूँ वह विशाल और अद्भुत होगा।
\v 10 मैं तेरे सेवकों को जो लकड़ी काटेंगे 4,400 किलोग्राम आटा, 4,400 किलोग्राम जौ, 440 किलो लीटर दाखमधु तथा 440 किलो लीटर जैतून का तेल दूँगा।”
\s5
\v 11 सुलैमान के सन्देश के उत्तर में हीराम ने सुलैमान को सन्देश भेजा, “क्योंकि यहोवा अपनी प्रजा से प्रेम करते हैं इसलिए उन्होंने तुझे उनका राजा बनाया है।
\v 12 इस्राएल के परमेश्वर जिन्होंने आकाश और पृथ्वी को बनाया उनका गुणगान किया जाए! उन्होंने राजा दाऊद को एक बुद्धिमान पुत्र दिया है जिसमें समझ और चतुराई भी है कि वह यहोवा का भवन और अपना राजमहल बनवाए।
\s5
\v 13 मैं अपना एक कुशल कारीगर जो समझदार और बुद्धिमान है, तेरे पास भेजता हूँ। उसका नाम हूराम-अबी है,
\v 14 और वह दानवंशी स्त्री और सोरवासी पुरुष की सन्तान है। वह सोना-चाँदी, पीतल, लोहा, लकड़ी, पत्थर का काम जानता है। वह बैंजनी, लाल और नीले वस्त्र पर काम करना जानता है और कढ़ाई करने में भी निपुण है। वह किसी भी नमूने को काढ़ सकता है। वह तेरे कुशल कारीगरों और तेरे पिता राजा दाऊद के कुशल कारीगरों के साथ काम करेगा।
\s5
\v 15 अब तू अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार आटा, जौ, जैतून का तेल और दाखमधु भेज दे।
\v 16 तेरा दिया हुआ सामान पहुँचते ही मेरे सेवक लबानोन के पर्वतों से तेरी आवश्यकता के अनुसार लकड़ी के लट्ठे काटकर समुद्र तक ले आएँगे। तब वे उन्हें बाँध कर बेड़े बना देंगे और समुद्र के मार्ग से याफा पहुँचा देंगे। वहाँ से तू लोगों से उन्हें यरुशलेम मँगवा लेना।”
\s5
\v 17 सुलैमान ने अपने कर्मचारियों को आज्ञा दी कि सब विदेशियों की गिनती करें जैसा उसके पिता दाऊद ने किया था। वे 1, 53,600 पुरुष थे।
\v 18 सुलैमान ने उनमें से 70,000 को निर्माण सामग्री उठाने, 80,000 पहाड़ों से पत्थर काटने और 3,600 को उनका निरीक्षक नियुक्त किया कि उनसे काम करवाएँ।
\s5
\c 3
\p
\v 1 तब सुलैमान के कारीगरों ने यरुशलेम में यहोवा के भवन का निर्माण आरम्भ किया। उन्होंने इसका निर्माण मोरिय्याह पर्वत पर किया, यह वही स्थान था जहाँ यहोवा ने सुलैमान के पिता दाऊद को दर्शन दिया था। यह वही स्थान था जिसे दाऊद ने यबूसी ओर्नान से मोल लिया था और दाऊद ने उसे जहाँ बनाने के लिए कहा था।
\v 2 सुलैमान के शासनकाल के चौथे वर्ष के दूसरे महीने में दूसरे दिन उन्होंने निर्माण कार्य आरम्भ किया।
\v 3 भवन की नींव 27 मीटर लम्बी और 9 मीटर चौड़ी थी।
\s5
\v 4 भवन के सामने प्रवेश द्वार के मण्डप की लम्बाई भी लगभग 9 मीटर थी जो भवन की चौड़ाई के बराबर थी और उसकी ऊँचाई भी लगभग 9 मीटर थी। सुलैमान ने भीतरी भाग को शुद्ध सोने से मढ़वाया था।
\v 5 भवन के मुख्य भाग को सुलैमान के श्रमिकों ने सनोवर की लकड़ी से बनवाया और उस पर खजूर के वृक्ष की और जंजीर के समान दिखने वाली नक्काशी की और शुद्ध सोने से मढ़ दिया।
\s5
\v 6 सुन्दरता के लिये सुलैमान ने यहोवा के भवन में मणि जड़वाए। उन्होंने जिस सोने का उपयोग किया वह पर्वेम से आया था।
\v 7 उसने छत की शहतीरों को, द्वारों की चैखटों को, दीवारों और द्वार के पल्लों को भी सोने से मढ़वाया और दीवारों पर पंख वाले प्राणियों के चित्र भी खुदवाए।
\s5
\v 8 भवन के भीतर परम-पवित्र स्थान भी बनवाया जो जो 9 मीटर लम्बा था भवन की चौड़ाई के समान और उसकी दीवारों को लगभग 21 टन सोने से मढ़वाया।
\v 9 सोने की प्रत्येक कील का भार लगभग 1.6 किलोग्राम था। उसने ऊपरी कमरों की दीवारों पर भी सोना मढ़वा दिया था।
\s5
\v 10 सुलैमान के कारीगरों ने पंख वाले प्राणियों की दो प्रतिमाएँ बनई कि परम-पवित्र स्थान में रखें और उन्हें भी सोने से मढ़ दिया।
\v 11-12 प्रत्येक प्रतिमा के दो लम्बे पंख थे। उनका एक पंख तो दीवार का स्पर्श करते हुए था और दूसरा पंख दूसरे प्राणी के पंख को छूता हुआ था। उनके पंखों की एक सिरे से दूसरे सिरे तक की लम्बाई 4.6 मीटर थी। उनके पंख एक ओर तो दीवारों को स्पर्श करते थे दूसरी ओर एक दूसरे के पंख का स्पर्श करते थे जो कमरे के केन्द्र पर आता था। प्रत्येक पंख लगभग 2.3 मीटर लम्बा था।
\s5
\v 13 एक प्रतिमा के बाहरी पंख के सिरे से दूसरी प्रतिमा के बाहरी पंख के सिरे की लम्बाई लगभग 9 मीटर की थी। उनके मुख मुख्य भाग के द्वार की ओर थे।
\v 14 सुलैमान के कारीगरों ने परम पवित्र स्थान को पवित्र स्थान से अलग करने के लिए एक परदा बनाया। यह सूक्ष्म सनी पर नीले, बैंजनी और लाल धागों की कढ़ाई से बना था। उस परदे पर पंख वाले प्राणियों की आकृति की कढ़ाई की गई थी।
\s5
\v 15 उन्होंने दो पीतल के खंभे बनाए और उन्हें मंदिर के प्रवेश द्वार पर रखा- प्रत्येक खम्भा लगभग सोलह मीटर ऊँचा था। प्रत्येक खम्भे के ऊपर लगभग 2.3 मीटर ऊँची कँगनी लगाई गई थी।
\v 16 कारीगरों ने जंजीर के समान बनाकर उन खम्भों के ऊपर लगाईं और उन्होंने अनार के समान एक सौ नक्काशी बनाई और उन्हें जंजीर से जोड़ा।
\v 17 तब सुलैमान ने भवन के सामने खम्भे खड़े किये। एक प्रवेश द्वार के दक्षिण की ओर एक तथा दूसरा खम्भा उत्तर दिशा की ओर खड़ा कीया। जो खम्भा दक्षिण दिशा की ओर था उसका नाम याकीन और उत्तर दिशा की ओर के खम्भे का नाम बोअज रखा गया।
\s5
\c 4
\p
\v 1 सुलैमान के कारीगरों ने पीतल की एक चौकोर वेदी बनाई जिसकी लम्बाई और चौड़ाई लगभग 9 मीटर की थी और ऊँचाई लगभग 4.6 मीटर थी।
\v 2 उन्होंने एक बहुत बड़ा गोल हौज भी बनाया जिसे "सागर" कहा जाता था। जिसके घेरे की लम्बाई लगभग चौदह मीटर थी।
\v 3 उसके बाहरी घेरे के नीचे बैल की छोटी-छोटी आकृतियों की पंक्तियाँ थीं जो हौज के साथ ही ढाली गई थीं। प्रत्येक पंक्ति में बैलों की तीन सौ आकृतियाँ थीं। बैल को दो पंक्तियों में एक साथ गया था स्थापित कियाऔर उन्हें पीतल के हौज के साथ भी डाला गया था जिसे "सागर" कहा जाता था
\s5
\v 4 यह हौज बैलों की बारह प्रतिमाओं पर स्थापित किया गया था और उनके मुख बाहर की ओर थे। तीन बैल उत्तर की ओर, तीन बैल पश्चिम की ओर, तीन दक्षिण की ओर और तीन बैल पूर्व दिशा की ओर मुँह किए हुए थे।
\v 5 उस होज की चादर की मोटाई लगभग आठ सेन्टीमीटर थी। हौज का मुँह प्याले के समान था जो सोसन के खिले हुए फूल जैसा दिखता था और उसमें लगभग 66 किलोलीटर पानी समाता था।
\v 6 कारीगरों ने बलि चढ़ावे के पात्रो को धोने के लिए दस हौदियाँ भी बनाईं। दक्षिण की ओर पांच और पांच उत्तर की ओर बनाई उनमें होमबलि के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बर्तन धोए जाते थे परन्तु याजक बड़े हौज में स्नान करते थे जिसे "सागर" कहते थे।
\s5
\v 7 कारीगरों ने सुलैमान के निर्देशानुसार सोने के दस दीपदान भी बनाए और उन्हें भवन के दक्षिण दिशा में पाँच और उत्तर दिशा में पाँच रख दिए।
\v 8 फिर उन्होंने दस मेज बनाकर भवन के दक्षिण दिशा में पाँच और उत्तर दिशा में पाँच रख दिए। उन्होंने सोने के दस कटोरे भी बनाए।
\s5
\v 9 उन्होंने याजकों के लिए एक आँगन और श्रद्धालुओं के लिए एक बड़ा आँगन बनाया। आँगनों के लिए द्वारों को भी बनाया और उन्हें पीतल से मढ़ दिया।
\v 10 और उन्होंने वह बड़ा हौज भवन के पूर्व और उत्तर के बीच रख दिया। जिसे "सागर" कहा जाता था
\s5
\v 11 उन्होंने वेदी की राख उठाने के लिए बर्तन और अन्य छोटे कटोरे और फावड़े भी बनाए। इस प्रकार हूराम और उसके कारीगरों ने सुलैमान द्वारा सौंपा गया परमेश्वर के भवन का काम पूरा किया।
\v 12 उन्होंने जो बनाया वो यह था; दो बड़े खम्भे। खम्भों के ऊपर कटोरे के आकार के दो शीर्ष। उन दोनों खम्भों के ऊपर सजावट के लिए जंजीर के समान नक्काशी की दो प्रतियाँ।
\v 13 खम्भों के ऊपरी सिरों को सजाने के लिए चार सौ नक्काशी जो अनार जैसी दिखती थीं जो दो पंक्तियों में रखी गई थीं।
\s5
\v 14 ये नक्काशी जो अनार जैसी दिखती थीं इन को खम्भों के ऊपर रखे कटोरों और उनके आधारों को सजाने के लिए थी।
\v 15 एक बड़ा हौज जिसे "सागर" कहते हैं और उसके नीचे बारह बैलों की आकृतियाँ।
\v 16 हण्डे, बेलजे और काँटे। ये सब वस्तुएँ हूराम और उसके कारीगरों ने पीतल से बनाकर उनको चमका दिया था।
\s5
\v 17 हूराम ने पीतल को पिघलाकर ढालने के लिए यरदन के समीप सुक्कोत और सारतान के बीच चिकनी मिट्टी से साँचे बनाए थे।
\v 18 सुलैमान ने पीतल का जितना भी सामान बनवाया था, उनमें बहुत पीतल लगा था, इतना अधिक कि उसकी मात्रा ज्ञात नहीं की गई।
\s5
\v 19 सुलैमान के कारीगरों ने इन सब वस्तुओं को बनाकर भवन में रखाः सोने की वेदी और वह मेज जिस पर यहोवा के लिए भेंट की रोटियों को रखते थे।
\v 20 शुद्ध सोने के दीपदान और दीपक याजक यहोवा की आज्ञा के अनुसार इन दीपकों में तेल डालकर परम-पवित्र स्थान के सामने सदैव जलता रखे।
\v 21 शुद्ध सोने के फोलों के समान नक्काशी, दीपक और चिमटे।
\s5
\v 22 और शुद्ध सोने की कैंचियाँ, रक्त छिड़कने के लिए कटोरे, धूपदान और पात्र, यहोवा के भवन के सोने के द्वार, परमपवित्र स्थान का सोने का द्वार।
\s5
\c 5
\p
\v 1 यहोवा के भवन का निर्माण कार्य पूरा हो जाने के बाद सुलैमान ने उसके पिता राजा दाऊद द्वारा यहोवा को अर्पित की हुई सब सोने-चाँदी की और भवन में उपयोग की सब वस्तुएँ भवन के भण्डार-गृहों में रखवा दीं।
\s5
\v 2 तब राजा सुलैमान ने इस्राएल के सब प्रधानों, गोत्रों और कुलों के सब मुख्य पुरुषों को यरुशलेम में बुलवाया। वह चाहता था कि वे सब सिय्योन पर्वत पर दाऊद पुर से यहोवा का पवित्र सन्दूक इस नव-निर्मित भवन में ले आएँ।
\v 3 इसलिए इस्राएल के सब अगुवे सातवें महीने में झोपड़ियों के पर्व के समय राजा के पास इकट्ठा हो गए।
\s5
\v 4 जब सब आ गए तब लेवी के वंशजों ने पवित्र सन्दूक को उठाया।
\v 5 साथ ही पवित्र तम्बू को और उसकी सब पवित्र वस्तुओं को याजकों ने जो लेवी वंश से थे, उठाया और भवन की ओर लेकर चले।
\v 6 तब राजा सुलैमान और इस्राएली सन्दूक के आगे चले और असंख्य भेड़ और बैल बलि किए। बलि पशुओं की संख्या को गिनना संभव नहीं था क्योंकि वे बहुत अधिक थे।
\s5
\v 7 तब याजकों ने पवित्र सन्दूक को परम-पवित्र स्थान में लाए और उसे पंख वाले प्राणियों के नीचे रखा।
\v 8 उनके पंख पवित्र सन्दूक और उसके डंडे उन प्राणियों के पंखों की छांव में थे।
\s5
\v 9 पवित्र सन्दूक के डंडे इतने लम्बे थे कि परम-पवित्र स्थान के बाहर खड़े लोग उन्हें देख सकते थे परन्तु भवन के बाहर से वे दिखाई नहीं देते थे। ये डंडे अब भी वहाँ है।
\v 10 उस पवित्र सन्दूक में दस आज्ञाओं वाले पत्थर की दो पटियाओं के अतिरिक्त और कुछ न था। जिन्हें मूसा ने सीनै पर्वत पर सन्दूक में रखा था जब इस्राएली मिस्र से निकलकर आए थे। उस समय परमेश्वर ने उनसे वाचा बाँधी थी।
\s5
\v 11 तब सब याजक अपने दलों से निरपेक्ष, बाहर आए और परमेश्वर प्रदत्त विधि के अनुसार अपना शोधन करके परमेश्वर की सेवा के लिए अपने को पवित्र किया।
\v 12 आसाप, हेमान, यदूतून, उनके पुत्र तथा परिजन, सब लेवी वंश के संगीतकार वेदी के पूर्व में खड़े हुए। वे सन के वस्त्र पहने हुए झाँझ, वीणा और सारंगी बजा रहे थे। 120 याजक तुरहियाँ फूँक रहे थे।
\s5
\v 13 अन्य वाद्य यन्त्र बजा रहे थे और यहोवा की स्तुति में गायक यह गीत गा रहे थे, “यहोवा भला है और उसका सच्चा प्रेम सदा का है।” तब एकाएक ही भवन में बादल आ गया।
\v 14 यहोवा की महिमा का तेज भवन में भर गया जिसके कारण याजक अपना काम न कर पाए।
\s5
\c 6
\p
\v 1 तब सुलैमान ने प्रार्थना कीः “हे यहोवा, आपने कहा था मैं घोर अन्धकार में रहता हूँ।
\v 2 परन्तु अब मैंने आपके सदाकालीन निवास के लिए एक वैभवशाली भवन बनवाया है।
\v 3 तब सुलैमान ने इस्राएली मंडली की ओर मुख कर के उन को आशीर्वाद देते हुए कहाः
\s5
\v 4 “हम अपने परमेश्वर यहोवा की स्तुति करें। उन्होंने मेरे पिता दाऊद को दी गई अपनी प्रतिज्ञा आज पूरी की है। उन्होंने कहा थाः
\v 5 ‘जिस दिन से मैं इस्राएल को मिस्र से निकाल कर लाया हूँ, मैंने इस्राएल देश में किसी नगर को नहीं चुना कि वहाँ मेरी आराधना के लिए एक भवन बनाया जाए, न ही मैंने किसी मनुष्य को चुना कि मेरी प्रजा इस्राएल पर शासन करे।
\v 6 परन्तु अब मैंने मेरी आराधना के लिए यरूशलेम को चुना है और दाऊद तुझे मेरी प्रजा इस्राएल पर राजा नियुक्त किया है।’”
\s5
\v 7 तब सुलैमान ने कहा, मेरा पिता, राजा दाऊद हमारे परमेश्वर यहोवा के लिए भवन बनवाना चाहता था।
\v 8 परन्तु यहोवा ने उससे कहा, ‘यह अच्छा है, कि तू मेरे लिए भवन बनाना चाहता है।
\v 9 परन्तु तू नहीं, मैं चाहता हूँ कि तेरे पुत्रों में से एक मेरा भवन बनवाए।’
\s5
\v 10 आज यहोवा की प्रतिज्ञा पूरी हुई है। यहोवा की प्रतिज्ञा के अनुसार मैं अपने पिता के स्थान पर इस्राएल का राजा नियुक्त किया गया हूँ और अपने परमेश्वर यहोवा के लिए यह मंदिर बनवाने योग्य हुआ हूँ। वह परमेश्वर जिनके हम इस्राएली हैं।
\v 11 मैंने यहोवा का पवित्र सन्दूक इस भवन में रखा है जिसमें पत्थर की पटियाएँ है जो यहोवा द्वारा हमारे साथ बाँधी गई वाचा का प्रतीक है।
\s5
\v 12 तब सुलैमान इस्राएली मंडली के सामाने वेदी के सामने खड़ा हुआ और हाथ उठा कर यहोवा से प्रार्थना की।
\v 13 उसके कारीगरों ने उस के खड़े होने के लिए पीतल का एक मंच बनवाया था। उस की लम्बाई और चौड़ाई 2.3 मीटर तथा ऊँचाई 1.5 मीटर थी। यह मंच बाहरी आँगन में रखा गया था। सुलैमान उस मंच पर चढ़ गया और इस्राएली मंडली के सामने घुटने टेक कर हाथ स्वर्ग की ओर उठाए,
\s5
\v 14 फिर उसने प्रार्थना की “हे हमारे परमेश्वर यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर, स्वर्ग और पृथ्वी में आपको छोड़ कोई परमेश्वर नहीं हैं। आपने अपनी प्रतिज्ञा में शपथ खाई है कि आप हम से सच्चा प्रेम रखोगे और आपने अपनी आज्ञा का पालन करने वालों के साथ ऐसा ही किया है।
\v 15 आपने मेरे पिता दाऊद, अपने दास, से की गई प्रतिज्ञा को पूरा किया है। आपने सच में उससे जो प्रतिज्ञा की थी, आज हम उसे पूरा होते देख रहे है।
\s5
\v 16 तो अब, हे यहोवा, परमेश्वर जिनकी हम इस्राएली लोग आराधना करते हैं, अपने दास दाऊद से की गई प्रतिज्ञा के अनुसार कृपया सुनिश्चित करें कि इस्राएल की राजगद्दी पर बैठने के लिए सदा उसका एक वंशज हो। आपने प्रतिज्ञा की थी कि यदि उसके वंशज आपके निष्ठावान रहे तो ऐसा ही होगा।
\v 17 इसलिए हमारे परमेश्वर यहोवा, अपने दास दाऊद से की गई प्रतिज्ञा को पूरा करें।
\s5
\v 18 परन्तु मेरे परमेश्वर, क्या आप वास्तव में इस पृथ्वी पर हमारे बीच रहेंगे? यह भवन जो मैंने बनवाया है आपके निवास के लिए कैसे पूरा पड़ेगा जबकि आप स्वर्ग और पृथ्वी में नहीं समाते हैं।
\v 19 परन्तु हे यहोवा, हे मेरे परमेश्वर, कृपया मेरी प्रार्थना सुनो, कृपया मेरी प्रार्थना सुनो जब मैं आज के दिन अनुरोध कर रहा हूं और जो भी मैं अनुरोध कर रहा हूं वह करो।
\v 20 हमेशा इस भवन की रक्षा करना यह स्थान जिस में रहने का वचन आपने दिया है, ताकि जब भी मैं, आपका दास, प्रार्थना करूँ, आप सुन लें।
\s5
\v 21 मेरी और अपनी प्रजा इस्राएल की प्रार्थना सुन लेना। चाहे हम यहाँ आ कर प्रार्थना करें या यहाँ की ओर मुख करके प्रार्थना करें। अपने स्वर्ग से हमारी प्रार्थना सुन लेना जहाँ आप रहते हैं और हमें क्षमा कर देना।
\s5
\v 22 यदि किसी पर किसी से बुराई का दोष लगा कर आपकी वेदी के सामने उसे उपस्थित किया जाए और वह याचना करे, “मैंने यह अपराध नहीं किया है। यदि मैं झूठ बोलूँ तो यहोवा मुझे दण्ड दें।”
\v 23 तो स्वर्ग से सुनकर, निर्णय देना कि कौन सच कह रहा है। तब दोषी को उस के योग्य दण्ड देना और निर्दोष को उस के योग्य प्रतिफल देना।
\s5
\v 24 और यदि आपकी प्रजा इस्राएल के लोग आपके विरूद्ध पाप करने के कारण शत्रुओं से पराजित हो और बन्दी बना कर विदेश ले जाएँ और वे अपने पापों से मन फिराकर इस भवन की ओर मुख करके और स्वीकार करते हैं कि आपने उन्हें दंडित किया है और वे क्षमा याचना करें।
\v 25 तब स्वर्ग से उन की प्रार्थना सुनकर उन्हें क्षमा कर देना और उन्हें लौटा कर इस देश में ले आना जो आपने उनके पूर्वजों को दिया है।
\s5
\v 26 क्योंकि लोगों ने आपके विरूद्ध पाप किया है इस कारण यदि आप वर्षा न होने दें, तब वे अपने पापों से मुड़ कर पाप करना बंद कर देते हैं और नम्रता से आपसे प्रार्थना करते हैं, आप जो इस स्थान में उपस्थित हैं।
\v 27 तो आप उनकी प्रार्थना सुन कर अपने लोगों के पापों को क्षमा करें और उन्हें अच्छे से जीवन जीने का उचित मार्ग सिखाएं। फिर इस देश में वर्षा भेजें, जो आपने उन्हें सदा के लिए दिया है।
\s5
\v 28 और जब इस देश के लोग अकाल, महामारी, झुलस या मकड़ी या टिड्डियाँ या कीड़े लगें या उनके शत्रु उन पर आक्रमण करने के लिए उन्हें घेर लें,
\v 29 तब वे सच्चे दिल से आपसे प्रार्थना करें या उनमें से एक ही मनुष्य प्रार्थना करें, वे इस भवन की ओर हाथ उठा कर प्रार्थना करें - उन के मन में दुर्बलता का बोध हो और उन के मन खेदित हों
\v 30 तो स्वर्ग से उन की प्रार्थना सुन कर उन्हें क्षमा कर दें। आप तो हर एक मनुष्य के मन के विचार जानते हैं, इसलिए हर एक के कामों के अनुसार उन्हें बदला देना।
\v 31 यह इसलिए कि वे आपका सम्मान करें और हमारे पूर्वजों को दिए गए इस देश में वे जब तक रहें आपकी इच्छा के अनुसार जीवन जीयें।
\s5
\v 32 कुछ विदेशी भी यहाँ होंगे जो इस्राएली नहीं है जो आपकी महानता और प्रताप की गाथा सुन कर यहाँ आएँ और वे इस भवन को निहार कर प्रार्थना करें,
\v 33 तो स्वर्ग से जहाँ आप रहते हैं वहाँ से प्रार्थना सुन कर उन की मनोकामना पूरी करें कि संपूर्ण पृथ्वी पर की सब जातियाँ इस्राएल के समान आपका सम्मान करे और आपकी आज्ञा मानें और निश्चय जान ले कि आप मेरे द्वारा निर्मित इस भवन में रहते हैं।
\s5
\v 34 जब आपकी प्रजा के लोग अपने शत्रुओं से युद्ध करने जाएँ, और आप से प्रार्थना करें, चाहे वे कहीं से भी इस नगर की ओर जिसे आपने चुना है और इस भवन की ओर जिसे मैंने आपके सम्मान में बनवाया है, मुख कर के प्रार्थना करें,
\v 35 तो आप कृपया स्वर्ग से उनकी प्रार्थनाओं को सुनकर उनकी याचनाओं पर कान लगाना और उनकी सहायता करना।
\s5
\v 36 यह सच है कि सब पाप करते है। इसलिए जब आपकी प्रजा आपके विरूद्ध पाप करे और आपको क्रोध दिलाए और आप उन्हें शत्रु के हाथ में कर दें कि उन्हें बन्दी बना कर अपने देश ले जाएँ, चाहे कितनी भी दूर क्यों न हो
\v 37 जब ऐसा हो और वे दूर किसी देश में हों, तब वे कहें, “हमने पाप किया है, हम ने गलत काम किए हैं। हमने दुष्टता की है।”
\v 38 और वे सच्चे मन से पश्चाताप करें और इस देश की ओर मुख करके जो आपने उनके पूर्वजों को दिया था, और यह भवन जो मैंने आपके निवास के लिए बनवाया है, प्रार्थना करें,
\v 39 तो स्वर्ग में से जहाँ आप रहते हैं, उनकी प्रार्थना सुनें और उन की सहायता की विनती स्वीकार करें और अपने लोगों के पापों को क्षमा करें जिन्होंने आपके विरुद्ध पाप किया है।
\s5
\v 40 अब हे मेरे परमेश्वर, हम पर दृष्टि करें जब हम इस स्थान में प्रार्थना कर रहे हैं और हमारी प्रार्थना सुन लें।
\v 41 हे हमारे परमेश्वर यहोवा, पवित्र सन्दूक के साथ इस स्थान में निवास करें। यह पवित्र सन्दूक आपके सामथ्र्य को दर्शाता है। हमारे परमेश्वर यहोवा, अपने याजकों को समझने की बुद्धि दें कि आपने उन्हें बचाया है। आप जो उनके साथ अच्छा करते हैं, उसके कारण वे आनन्दित रहें।
\v 42 हे हमारे परमेश्वर यहोवा, आपने मुझे इस्राएल का राजा नियुक्त किया है। इसलिए मुझे त्याग न देना। याद करें कि अपनी वाचा के कारण आप अपने दास दाऊद के साथ कैसे करुणामय थे।
\s5
\c 7
\p
\v 1 सुलैमान की प्रार्थना समाप्त होते ही स्वर्ग से आग गिरी और पशुबलियों तथा अन्य बलियों को भस्म कर दिया और यहोवा का तेज भवन में भर गया।
\v 2 यहोवा का तेज ऐसा प्रचण्ड था कि याजक भवन में प्रवेश नहीं कर पाए।
\v 3 उपस्थित इस्राएली मण्डली ने यहोवा की आग को गिरते देखा और भवन में यहोवा के तेज की उपस्थिति को देखा तो भूमि पर गिरकर यहोवा को दण्डवत्् किया। उन्होंने यहोवा की आराधना की और उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा, “यहोवा भले हैं और अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार हमसे सदा प्रेम करते रहेंगे।”
\s5
\v 4-5 तब राजा और प्रजा ने बलियाँ चढ़ाकर यहोवा के भवन का समर्पण किया। राजा सुलैमान ने 1,20,000 भेड़ें और बकरियाँ चढ़ाए।
\v 6 याजक अपने-अपने स्थान में खड़े हो गए और लेवी के अन्य वंशज भी यहोवा की स्तुति के लिए संगीत वाद्य लेकर अपने-अपने स्थान में खड़े रहे। राजा दाऊद ने यहोवा की स्तुति और धन्यवाद के लिए ये वाद्य-यन्त्र बनवाए थे। उन्होंने यह गीत गायाः “वह हमसे सदा के लिए सच्चा प्रेम करते हैं, लेवी के अन्य वंशजों के सामने याजक खड़े होकर तुरहियाँ फूँक रहे थे और इस्राएली सुन रहे थे।
\s5
\v 7 सुलैमान ने यहोवा के भवन के आँगन का मध्य भाग पवित्र किया, तब उसने यहोवा के साथ संगति बनाए रखने के लिए उस में होम-बलि और मेल-बलि चढ़ाई। याजकों ने ये होम बलि और अन्न बलि चढ़ाईं जिसके परिणामस्वरूप पीतल की वेदी इतनी अधिक बलियों के लिए छोटी पड़ गई थी।
\s5
\v 8 सुलैमान और अन्य इस्राएलियों ने सात दिन तक झोपड़ियों का पर्व मनाया। वहाँ एक विशाल समूह उपस्थित था। उपस्थित लोगों में कुछ ऐसे लोग भी थे जो उत्तर में हमात की घाटी से और दूर दक्षिण में मिस्र की सीमा से दूर आए थे।
\v 9 आठवें दिन वे यहोवा की आराधना के लिए फिर इकट्ठा हुए। उन्होंने सात दिन तक तो वेदी के समर्पण का पर्व मनाया और सात दिन तक झोपड़ियों का पर्व मनाया।
\v 10 अगले दिन सुलैमान ने मण्डली को विदा किया। उनके आनन्द की सीमा नहीं थी क्योंकि यहोवा ने दाऊद और सुलैमान और प्रजा पर जो उपकार किए थे।
\s5
\v 11 इस प्रकार, सुलैमान ने यहोवा के भवन और राजभवन का निर्माण कार्य पूरा करवाया और उसने अन्य जिस किसी काम की योजना बनाई थी उसे भी पूरा किया।
\v 12 तब यहोवा ने उसे एक स्वप्न में दर्शन दिया और उससे कहा, “मैंने तेरी प्रार्थना सुनी और इस भवन को चुन लिया है कि मेरी प्रजा यहाँ मेरे लिए बलि चढ़ाए।
\s5
\v 13 जब मैं वर्षा रोक दूँ या टिड्डियाँ भेजूँ कि फसल खा जाएँ या प्रजा में महामारी भेजूँ,
\v 14 तब मेरी प्रजा अपने पापों का प्रायश्चित करके पापों का त्याग कर दे और मुझसे क्षमा माँगें तो मैं उन्हें उनके पापों की क्षमा प्रदान करके फिर से समृद्ध कर दूँगा।’
\v 15 जब वे इस स्थान में मुझसे प्रार्थना करेंगे तब मैं उनकी प्रार्थना सुन लूँगा।
\s5
\v 16 मैंने इस भवन में निवास करने का निर्णय लिया है और इसे अपने लिए पवित्र कर दिया है। मैं सदा इसकी रक्षा करता रहूँगा।
\v 17 और यदि तू अपने पिता दाऊद के जैसे मेरी आज्ञाओं को मानेगा और मेरी नियमों और विधियों का पालन करेगा,
\v 18 तो मैं सुनिश्चित करूँगा कि तेरे वंशज सदैव राजगद्दी पर बैठें। मैंने तेरे पिता दाऊद से प्रतिज्ञा की है, “तेरे वंशज सदा इस्राएल के राजा होंगे।
\s5
\v 19 परन्तु यदि तुम इस्राएली मुझसे विमुख होकर मेरे नियमों और मेरी आज्ञाओं की नहीं मानोगे और अन्य देवी-देवताओं की पूजा करोगे,
\v 20 तो मैं तुम्हें इस देश से जो मैंने तुम्हें दिया है दूर कर दूँगा और यह भवन जिसे मैंने अपने लिए पवित्र किया है, त्याग दूँगा और अन्य जातियों को इसकी दशा पर हँसने का अवसर दूँगा।
\s5
\v 21 यह भवन आज ऐसा वैभवशाली है, ऐसी दशा हो जाने पर आने जाने वालों के लिए डरने का कारण हो जाएगा और वे पूछेंगे, “यहोवा ने इस देश और इस भवन की ऐसी दुर्दशा क्यों होने दी?”
\v 22 तब लोग कहेंगे, “यह इसलिए हुआ कि इन लोगों ने अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया था जिन्होंने उन्हें मिस्र से निकाला था। उन्होंने अन्य देवी-देवताओं की पूजा की और उन्हीं को प्रसन्न किया था। यही कारण है कि यहोवा ने उनका ऐसा विनाश किया।”
\s5
\c 8
\p
\v 1 यहोवा का भवन और राज महल बनाने में बीस वर्ष का समय लगा था।
\v 2 तब सुलैमान के कारीगरों ने उन नगरों का दुबारा निर्माण किया जिन्हें राजा हीराम ने उसे लौटा दिए थे और सुलैमान ने वहाँ इस्राएलियों को बसा दिया।
\s5
\v 3 तब सुलैमान की सेना ने जाकर सोबा के हमात को भी जीत लिया।
\v 4 उसने मरूभूमि में तदमोर नगर की शहरपनाहें बनवाईं और हमात के सब भण्डार-नगरों को सुरक्षा की दृष्टि से दृढ़ किया।
\s5
\v 5 ऊपरी और निचले दोनों बेथोरोन की शहरपनाहें बनवाकर उनमें फाटकों और बेड़ों को लगवाया।
\v 6 डसने बालात नगर और भण्डारण के नगरों को और उसके रथ और सवारों तथा घोड़े रखने के नगरों का पुनःनिर्माण किया और यरुशलेम, लबानोन और अपने राज्य के अन्य स्थानों में सुलैमान ने जो चाहा सो बनवाया।
\s5
\v 7 सुलैमान ने इस्राएलियों के बीच रहने वाली अन्य जातियाँ अर्थात हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, हिब्बियों और यबूसियों
\v 8 के वंशजों को जिन्हें इस्राएली पूरी तरह से नष्ट नहीं कर पाए थे, बेगारी में रखा और आज तक उनकी यही दशा है।
\s5
\v 9 सुलैमान ने इस्राएल के किसी भी व्यक्ति को दास मजदूर बनने को विवश नहीं किया। इस्राएली उसके सैनिक, उसके सारथी, उसकी रथ सेना के सेनापति हुए।
\v 10 वे राजा सुलैमान के मुख्य अधिकारी भी थे। उनमें से 250 थे जो कर्मियों पर प्रधान ठहराए गए।
\s5
\v 11 सुलैमान ने अपनी पत्नी, मिस्र के राजा की पुत्री के लिए यरुशलेम के बाहर, दाऊदपुर में महल बनवाया। उसने कहा, “मैं नहीं चाहता कि मेरी पत्नी उस स्थान में रहे जो मेरे पिता राजा दाऊद ने बनवाया था क्योंकि कुछ समय तक पवित्र सन्दूक वहाँ था। पवित्र सन्दूक जहाँ रहा, वह स्थान पवित्र है।”
\s5
\v 12 यहोवा के भवन के प्रवेश द्वार के सामने सुलैमान ने जो वेदी बनवाई थी, वहाँ उसने अनेक होम-बलि चढ़ाई।
\v 13 उसने मूसा की आज्ञा के अनुसार दैनिक बलियाँ और सब्त के दिन की बलियाँ, नये चाँद की बलियाँ तथा तीनों वार्षिकोत्सवों- अखमीरी रोटियों का पर्व, कटनी का पर्व तथा झोपड़ियों का पर्व- की बलियाँ चढ़ाईं।
\s5
\v 14 अपने पिता, दाऊद की आज्ञा के अनुसार सुलैमान ने याजकीय सेवा में याजकों और श्रद्धालुओं द्वारा यहोवा की स्तुति तथा याजकों के दैनिक कार्यों में सहयोग के लिए लेवी के वंशजों को नियुक्त किया। उसने द्वारपालों को नियुक्त किया। यह भी परमेश्वर के दास दाऊद की आज्ञा थी।
\v 15 याजकों और लेवी के अन्य वंशजों ने राजा की प्रत्येक आज्ञा का पालन किया जिसमें भण्डार-गृहों की देख-रेख की सेवा भी थी।
\s5
\v 16 उन्होंने सुलैमान की आज्ञा के अनुसार यहोवा के भवन के निर्माण कार्य को किया- जब तक कि यह पूरा नहीं हुआ। इस प्रकार यहोवा के भवन का निर्माण कार्य पूरा हुआ।
\s5
\v 17 तब सुलैमान के लोग एदोम के देश में समुद्र के किनारे स्थित एस्योन गेबेर और एलोत को गए।
\v 18 सोर के राजा हीराम ने अपने कुछ जहाज और समुद्र के अनुभवी नाविक उसके लिए वहाँ भेज दिए। वे सुलैमान के पुरुषों को ओपीर ले गए और उन्होंने वहाँ से लगभग सोलह टन सोना लाकर सुलैमान को दे दिया।
\s5
\c 9
\p
\v 1 सुलैमान की कीर्ति सुनकर शेबा की रानी कठिन प्रश्नों द्वारा उसकी परीक्षा लेने यरुशलेम आई। उसके साथ उसके बहुत सेवक थे और ऊँटों पर लदे हुए मसाले, मूल्यवान मणि थे। जब वह पहुंची, तो उसने सुलैमान के साथ तर्क-वितर्क किया।
\v 2 सुलैमान ने उसके हर एक प्रश्न का उत्तर दिया और जो कुछ उसने जानना चाहा वह उसे समझाया, यहाँ तक कि गूढ़ बातें भी।
\s5
\v 3 तब रानी ने माना सुलैमान बुद्धिमान है। उसने सुलैमान का राजमहल देखा।
\v 4 उसने उसकी मेज पर प्रतिदिन का भोजन देखा, उसके अधिकारीयों के निवास स्थान देखे, उनकी वर्दी देखी, उसके भोजन और दाखमधु परोसने वाले सेवक देखे और यहोवा के भवन में उसके द्वारा चढ़ाई जाने वाली बलियाँ देखकर वह वास्तव में आश्चर्यचकित थी।
\s5
\v 5 मैंने अपने देश में तेरे विषय में और तेरी बुद्धि के विषय में जो सुना वह सच ही है।
\v 6 परन्तु जब तक मैंने स्वयं यहाँ आकर नहीं देखा। तू बुद्धिमान और अमीर हैं, जो लोग मुझे बताते हैं उससे भी अधिक।
\s5
\v 7 तेरे सेवक जो तेरी उपस्थिति में खड़े होकर तेरी बुद्धि की बातों को सुनने वाले सौभाग्यशाली है।
\v 8 तेरे परमेश्वर यहोवा धन्य हैं जिन्होंने तुझे इस्राएल का राजा नियुक्त करके अपनी प्रसन्नता दर्शाई है। परमेश्वर ने इस्राएलियों से सदा प्रेम रखा है इसलिए उन्होंने तुझे उनका राजा बनाया है कि तू उनका न्याय निष्पक्षता और सत्य-निष्ठा में करे।
\s5
\v 9 तब उसने लगभग चार टन सोना और बड़ी मात्रा में मसाले और मणि सुलैमान को भेंट चढ़ाए। सुलैमान ने शेबा की रानी से प्राप्त मसालों से अधिक मसाले कभी नहीं प्राप्त किए थे।
\s5
\v 10-12 राजा सुलैमान ने शेबा की रानी को वह सब दिया जिसकी इच्छा उसने व्यक्त की। सुलैमान ने उसे उससे भी अधिक दिया जो उसने सुलैमान को दिया था। तब वह अपने दल के साथ अपने देश लौट गई। हीराम के पुरुषों ने सुलैमान के पुरुष के साथ जाकर ओपीर से सोना लाते थे। वे चन्दन की लकड़ी और मणि भी लाते थे जिसे इस्राएल में किसी ने पहले कभी नहीं देखा था।
\s5
\v 13 सुलैमान के लिए प्रतिवर्ष लगभग तेईस टन सोना लाया जाता था। यह सौदागरों और व्यापारियों द्वारा उसे दी गई चूंगी के अतिरिक्त था।
\v 14 अरब देश के सब राजा और देश के सब अधिपति भी सुलैमान के पास सोना-चाँदी लाते थे।
\s5
\v 15 सुलैमान ने इस सोने की पतली परतें बनवाकर दो सौ बड़ी ढालों पर चढ़वा दीं। प्रत्येक ढाल पर लगभग 3.5 किलोग्राम सोना चढ़ाया गया था।
\v 16 सुलैमान ने तीन सौ छोटी ढालें भी बनवाईं और उन पर लगभग 1.7 किलोग्राम सोना चढ़वाया और इन सब ढालों को लबानोन नामक महल में रखवा दिया।
\s5
\v 17 उसने एक बड़ा सिंहासन भी बनवाया। उस का एक भाग हाथीदांत का था और एक भाग सोने का था।
\v 18 उस सिंहासन की छः सीढ़ियाँ थीं और एक सोने का पायदान था। सिंहासन की दोनों ओर टेकें थीं जिनके साथ सिंह की एक-एक प्रतिमा थी।
\s5
\v 19 सीढ़ियों के दोनों ओर एक-एक सिंह की प्रतिमा थी जो कुल बारह थे। ऐसा सिंहासन अन्य किसी देश में नहीं था।
\v 20 सुलैमान के सब कटोरे सोने के थे। लबानोन वन नामक महल के भी सब पात्र सोने के थे। चाँदी का कुछ नहीं था क्योंकि सुलैमान के शासनकाल में चाँदी को मूल्यवान नहीं समझा जाता था।
\v 21 राजा का अपना जहाजी बेड़ा था जो समुद्र में दूर तक यात्रा करने की क्षमता रखता था। वे हीराम के व्यापारी जहाजों के साथ जाते थे। प्रति तीसरे वर्ष उस का जहाजी बेड़ा सोना-चाँदी, हाथी दांत, लंगूर और मोर लेकर आता था।
\s5
\v 22 राजा सुलैमान पृथ्वी के सब राजाओं से अधिक बुद्धिमान और धनवान हो गया था।
\v 23 पृथ्वी के सब राजा सुलैमान की बुद्धि की बातें जो परमेश्वर उसके मन में उपजाते थे, सुनने आते थे।
\v 24 उसके पास आने वाले सब लोग भेंट ले कर आते थे- सोना-चाँदी, वस्त्र, हथियार, मसाले, घोड़े, खच्चर आदि। उसके व्यापारी प्रति वर्ष यह सब लाते थे।
\s5
\v 25 घोड़ों और रथों के लिए सुलैमान के चार हजार घुड़साल थे और उसके पास बारह हजार घुड़सवार थे। उन में से कुछ उसने अपने पास यरूशलेम में रखे और कुछ उन नगरों में जहाँ उस के रथ थे।
\v 26 सुलैमान उत्तर में फरात नदी से लेकर पश्चिम में पलिश्त और उत्तर में मिस्र तक के सब राजाओं पर शासन करता था।
\s5
\v 27 सुलैमान के शासनकाल में चाँदी पत्थरों के समान मूल्यहीन थी और उस ने यहूदा के पहाड़ी प्रदेश में देवदार के वृक्ष इतने कर दिए जितने कि गूलर के वृक्ष थे।
\v 28 सुलैमान के व्यापारी मिस्र से और अन्य स्थानों से घोड़े लाते थे।
\s5
\v 29 सुलैमान के सब काम भविष्यद्वक्ता नातान की पुस्तक में और शीलोवासी भविष्यद्वक्ता अहिय्याह की पुस्तक में और यारोबाम के विषय दर्शी इद्दो की पुस्तक में लिखे है।
\v 30 सुलैमान ने यरूशलेम में रह कर संपूर्ण इस्राएल पर चालीस वर्ष शासन किया।
\v 31 तब सुलैमान की मृत्यु हुई और उस को यरूशलेम के दाऊदपुर में दफन किया गया। उस का पुत्र रहबाम उस के स्थान में राजा बना।
\s5
\c 10
\p
\v 1 उत्तरी इस्राएल की प्रजा शकेम को गई कि रहबाम को राजा बनाए। इसलिए रहबाम भी वहाँ गया।
\v 2 नबात का पुत्र यारोबाम राजा सुलैमान से बच कर मिस्र भाग गया था। जब उस ने सुना कि इस्राएल की प्रजा रहबाम को राजा बनाना चाहती है तब वह मिस्र से इस्राएल लौट आया।
\s5
\v 3 उत्तरी इस्राएली क्षेत्र की प्रजा ने यारोबाम को साथ लिया और वे रहबाम के पास गए। उन्होंने रहबाम से कहा,
\v 4 तेरे पिता सुलैमान ने हम से अत्यधिक कठोर परिश्रम करवाया है। यदि तू हमारा परिश्रम कम कर दे और करों में कटौती कर दे तो हम तेरे आभारी हो कर निष्ठापूर्वक सेवा करेंगे।
\v 5 रहबाम ने उन से कहा, “तीन दिन बाद आना तो मैं तुम्हें इस का उत्तर दूँगा। इसलिए वे चले गए और यारोबाम भी उनके साथ चला गया।
\s5
\v 6 तब रहबाम ने अपने पिता के परामर्शदाताओं से सुझाव मांगा, “मैं इन लोगों से क्या कहूँ?”
\v 7 उन्होंने कहा, “यदि तू उन के साथ दया का व्यवहार करे और उन्हें प्रसन्न कर ने के काम करे और मधुर शब्दों का प्रयोग करे तो वे सदा के लिए तेरी सेवा करेंगे।”
\s5
\v 8 परन्तु उसे उन वृद्ध मंत्रियों का सुझाव पसन्द नहीं आया। उस ने अपने साथ बड़े हुए युवाओं से जो अब उस के मंत्री थे, पूछा,
\v 9 “मैं इन लोगों को क्या उत्तर दूँ?” वे कहते है कि मैं मेरे पिता द्वारा दिया गया उन का परिश्रम और कर कम कर दूँ। तुम्हारा क्या सुझाव है?
\s5
\v 10 उसके साथ बड़े हुए युवकों ने कहा, “तेरे पिता ने उन से परिश्रम करवाया और उन पर कर लगाया था। अब वे उसे घटा देने को कह रहे है तो तू उन से कहना, ‘मेरी छोटी उंगली मेरे पिता की कमर से भी मोटी होगी।’
\v 11 मेरे पिता ने तुम से कठोर परिश्रम करवाया और तुम पर बहुत कर लगाया। पर मैं उस बोझ को और अधिक बढ़ाऊंगा। जैसे मेरे पिता ने तुम्हें कोड़ों से मारा था परन्तु मैं तुम्हें बिच्छुओं से पीड़ा पहुँचाऊँगा।”
\s5
\v 12 तीन दिन बाद इस्राएली प्रधान यारोबाम के साथ रहबाम के पास आए, जैसा उस ने कहा था।
\v 13 राजा ने बुजुर्गों का सुझाव न मान कर इस्राएली प्रधानों से कठोर बातें कीं।
\v 14 उसने युवकों के सुझाव के अनुसार उनसे कहा, “मैं अपने पिता से भी अधिक बोझ तुम पर डालूँगा। यदि उसने तुम्हें कोड़े लगवाए तो मैं तुम्हें बिच्छुओं से कटवाऊँगा।”
\s5
\v 15 इस प्रकार राजा ने प्रजा के अगुवों का मान नहीं रखा। यह सब वास्तव में यहोवा की इच्छापूर्ति के लिए हुआ कि भविष्यद्वक्ता अहिय्याह द्वारा नबात पुत्र यारोबाम को दिया वचन पूरा हो।
\s5
\v 16 यह देखकर कि राजा ने उन का निवेदन ठुकरा दिया है उन्होंने ऊँचे शब्दों में कहा, “हमें राजा दाऊद के वंश से कोई संबंध नहीं रखना है! यिशै के परपोते के साथ हमारी कोई भागीदारी नहीं है! हे इस्राएलियों घर लौट चलो! हे दाऊद के वंशज अपने घराने ही की चिन्ता कर!” इसलिए इस्राएली अगुवे घर लौट आए।
\s5
\v 17 इसके बाद जितने इस्राएली यहूदा के नगरों और गाँवों में बसे थे उन्हीं पर रहबाम शासन करता रहा।
\v 18 तब राजा रहबाम बेगारी में काम करने वालों के निरीक्षक हदोराम के साथ इस्राएलियों से बात करने गया। इस्राएलियों ने हदोराम को पथरवाह करके मार डाला। यह देख रहबाम अपने रथ पर सवार हो कर तुरन्त यरूशलेम को भागा।
\v 19 उसी समय से उत्तरी राज्य इस्राएल की प्रजा राजा दाऊद के वंश की विरोधी हो गई।
\s5
\c 11
\p
\v 1 जब रहबाम यरूशलेम में पहुँचा, उसने यहूदा और बिन्यामीनी के गोत्रों से 180,000 योद्धा इकट्ठा किए। वह उत्तरी गोत्रों से युद्ध करके उन्हें अपने अधीन करना चाहता था कि संपूर्ण राज्य पर शासन कर सके।
\s5
\v 2 परन्तु यहोवा ने भविष्यद्वक्ता शमायाह से कहा,
\v 3 “जा और यहूदा के राजा सुलैमान के पुत्र, रहबाम और यहूदा और बिन्यामीन के गोत्र के लोगों को यह बता,
\v 4 यहोवा कहते हैं ‘तुम अपने भाइयों, इस्राएलवासियों से युद्ध मत करो। तुम सब अपने-अपने घर लौट जाओ। जो भी हुआ है यहोवा की इच्छा से हुआ है।’” इसलिए शमायाह ने उन्हें परमेश्वर का सन्देश सुना दिया और उन्होंने यहोवा की आज्ञा मान कर, यारोबाम और उस के सैनिकों से युद्ध नहीं किया।
\s5
\v 5 रहबाम यरूशलेम में रह रहा था। उसने यहूदा के कई शहरों और कस्बों के चारों ओर दीवारों का निर्माण किया ताकि वे दुश्मन के आक्रमण से बच सकें।
\v 6 यहूदा और बिन्यामीन के गोत्रों के क्षेत्र में उसने दीवारें बनवाई अर्थात बैतलहम, एताम, तकोआ
\v 7 बेत्सूर, सोको, अदुल्लाम,
\v 8 गत, मारेशा, जीप,
\v 9 अदोरैम, लाकीश, अजेका,
\v 10 सोरा, अय्यालोन और हब्रोन जो यहूदा-बिन्यामीन में है।
\s5
\v 11 जो नगर पहले से सुरक्षित थे उन्हें उसने और अधिक सुरक्षित करके उन पर अधिपति ठहरा दिए और उनके लिए भोजनवस्तु, जैतून का तेल और शराब की आपूर्ति दी।
\v 12 हर एक नगर में उस ने ढालें और भाले रखवा कर उन्हें अच्छी तरह सुरक्षित कर दिया। इस प्रकार वह यहूदा और बिन्यामीन के गोत्रों पर शासन कर ने लगा।
\s5
\v 13 संपूर्ण इस्राएल में याजक और लेवी के अन्य वंशज रहबाम के पक्ष में थे।
\v 14 लेवी के वंशज अपनी चारागाहें और सम्पदा को त्याग कर यरूशलेम में और यहूदा के अन्य नगरों में आ कर बस गए क्योंकि यारोबाम और उस के पुत्र उन्हें यहोवा के याजक होने का काम नहीं करने देते थे।
\v 15 इसके अतिरिक्त यारोबाम ने जो अन्य याजकों को नियुक्त कर दिया नगरों के सब ऊँचे स्थानों में वेदियाँ बनवाकर कि वहाँ बलि चढ़ाएँ। उन मूर्तियों को बलि चढ़ाने के लिए जिन्हें उसने बकरियों और बछड़ों के समान बनाया था।
\s5
\v 16 और इस्राएल में जो लोग यहोवा की आराधना करना चाहते थे वे लेवी के वंशजों के साथ अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा को बलि चढ़ाने यरूशलेम आए।
\v 17 उन्होंने यहूदा राज्य को स्थिरता प्रदान की और तीन वर्ष तक रहबाम के शासन से प्रसन्न रहे। उस दोरान में उन्होंने अपना जीवन दाऊद के समान और सुलैमान के आरम्भिक जीवन के समान रखा।
\s5
\v 18 रहबाम ने दाऊद के पुत्र यरीमोत और उसकी पत्नी, यिशै के पोते एलीआब की पुत्री, अबीहैल की पुत्री महलत से विवाह किया।
\v 19 रहबाम और महलत के तीन पुत्र उत्पन्न हुए- यूश, शेमर्याह और जाहम।
\s5
\v 20 इसके बाद रहबाम ने अबशालोम की पुत्री माका से विवाह किया जिससे उसके चार पुत्र उत्पन्न हुए- अबिय्याह, अत्तै, जीजा, और शलोमीत।
\v 21 रहबाम ने अपनी सब पत्नियों और रखैलियों में से माका को सबसे अधिक प्रेम किया। उसकी कुल अठारह पत्नियाँ और साठ रखैलियाँ थीं। उसके अट्ठाईस पुत्र और साठ पुत्रियाँ थीं।
\s5
\v 22 रहबाम ने माका के पुत्र अबिय्याह को सब भाइयों में प्रधान बनाया कि वही राजा बने।
\v 23 उसने बड़ी समझदारी से अपने सब पुत्रों को यहूदा और बिन्यामीन के क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न शहरपनाह वाले नगरों में भेज दिया। उसने उनके लिए बहुतायात से भोजन वस्तुएँ और अनेक पत्नियाँ उपलब्ध करवा दीं।
\s5
\c 12
\p
\v 1 रहबाम ने अपने राज्य पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त करने के बाद उसने और प्रजा ने यहोवा की विधियों का पालन करना छोड़ दिया।
\s5
\v 2 इसका परिणाम यह हुआ कि उसके शासनकाल के पाँचवे वर्ष में यहोवा ने मिस्र के राजा शीशक को यरुशलेम के विरुद्ध भेजा।
\v 3 वह बारह सौ रथों और साठ हजार घुड़सवारों और लूबी में दो क्षेत्रों से और इथियोपिया से सैनिकों की बहुत बड़ी संख्या लेकर आया।
\v 4 उन्होंने यहूदा के अनेक शहरपनाह वाले नगर जीत लिए और यरूशलेम तक आ गए।
\s5
\v 5 तब भविष्यद्वक्ता शमायाह ने यरुशलेम में इकट्ठा भयातुर रहबाम और यहूदा के अगुओं को यहोवा का वचन सुनाया, “यहोवा कहते हैं, ‘तुमने मुझे त्याग दिया है इसलिए मैंने भी तुम्हें त्याग दिया है और शीशक के हाथ में कर दिया है।”
\v 6 तब राजा और देश के अगुवों ने दीन होकर स्वीकार किया और कहा, “यहोवा ने हमारे साथ जो किया वह न्यायी ही है।”
\s5
\v 7 उनकी दीनता को देख यहोवा ने शमायाह के द्वारा यह सन्देश भेजा, “क्योंकि वे दीन हो गए है इसलिए मैं उन्हें नाश होने के लिए नहीं छोड़ूँगा। मैं शीघ्र ही उनको बचा लूँगा। शीशक की सेना को मैं यरुशलेम के निवासियों का नाश नहीं करने दूँगा,
\v 8 वे यरुशलेम को अपने अधीन करके शीशक की सेवा के लिए विवश करेंगे। इससे यरुशलेम के निवासियों को यह बोध होगा कि अन्य देशों के राजाओं की सेवा करने से तो मेरी सेवा करना ही अच्छा है।”
\s5
\v 9 शीशक की सेना ने यरुशलेम पर आक्रमण करके यहोवा के भवन और राजमहल से सब मूल्यवान वस्तुएँ लूट लीं। उन्होंने सुलैमान द्वारा बनवाई गई सोने की ढालें भी ले लीं।
\v 10 रहबाम ने तब उन ढालों के स्थान में पीतल की ढालें बनवा कर सुरक्षाकर्मियों के प्रधान को दीं।
\s5
\v 11 इसके बाद राजा जब-जब यहोवा के भवन में जाता तब-तब द्वारपाल वे ढालें लेकर उसके साथ-साथ चलते। जब राजा लौट आता तब वे उन ढालों को सुरक्षाकर्मियों के गृह में रखवा देते।
\v 12 क्योंकि रहबाम यहोवा के सामने दीन हो गया इसलिए उसके विरुद्ध भड़का हुआ यहोवा का क्रोध शान्त हो गया और यहोवा ने उसका सर्वनाश नहीं किया बल्कि यहूदा के लिए भलाई की।
\s5
\v 13 राजा रहबाम फिर से यरूशलेम में दृढ़ हो गया और यहूदा पर शासन करता रहा। जब वह यहूदा का राजा बना था तब उसकी आयु इकतालीस वर्ष की थी और उसने यरुशलेम में सत्रह वर्ष शासन किया। यरुशलेम नगर को यहोवा ने इस्राएल के सब गोत्रों में से चुन लिया था कि लोग वहाँ उनकी आराधना करें।
\v 14 रहबाम की माता एक अम्मोनी स्त्री थी जिसका नाम नामा था। रहबाम ने बुरे काम किये क्योकि उसने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि यहोवा क्या चाहते हैं।
\s5
\v 15 रहबाम के शासनकाल के सब काम और उसके परिवार के सदस्यों की सूची भविष्यद्वक्ता शमायाह और दर्शी इद्दो की पुस्तकों में लिखे गये हैं। रहबाम और यारोबाम की सेनाएं लगातार एक-दूसरे से लड़ रही थीं
\v 16 जब रहबाम की मृत्यु हो गई, तो उसे यरूशलेम के दाऊदपुर में दफन किया गया। तब उसका पुत्र अबिय्याह राजा बन गया।
\s5
\c 13
\p
\v 1 जिस समय यारोबाम राजा इस्राएल पर लगभग अठारह वर्ष शासन कर चुका था तब अबिय्याह यहूदा का राजा बना।
\v 2 अबिय्याह ने यरूशलेम में तीन वर्ष शासन किया। उस की माता गिबावासी ऊरीएल की पुत्री मीकायाह थी। तब अबिय्याह और यारोबाम की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ।
\v 3 अबिय्याह अपने 400,000 योद्धा लेकर गया तो यारोबाम भी 800,000 योद्धा लेकर सामना कर ने को आया।
\s5
\v 4 अबिय्याह ने एप्रैम प्रदेश में समारैम नामक पर्वत पर खड़े होकर ऊँचे शब्दों में कहा, “हे यारोबाम और सब इस्राएलियों सुनो!
\v 5 तुम जानते हो कि यहोवा, जिनकी हम इस्राएली आराधना करते हैं उन्होंने ने दाऊद के साथ प्रतिज्ञा की थी कि उस के वंशज इस्राएल पर सदा शासन करते रहेंगे।
\s5
\v 6 परन्तु यारोबाम जो राजा सुलैमान का एक अधिकारी था उसने राजा के विरूद्ध विद्रोह किया।
\v 7 तब सुलैमान का पुत्र रहबाम राजगद्दी पर बैठा तक वह अनुभवहीन था और आयु में भी कम था। तब तेरे पास कुछ निकृष्ट मनुष्य इकट्ठा हुए और उसके विरूद्ध विद्रोह किया।
\s5
\v 8 अब तू उस राज्य से युद्ध करता है जिसे यहोवा ने दाऊद के वंशजों को शासन करने के लिए स्थापित किया है। यह सच है कि तेरी सेना बड़ी है और तेरे सैनिक बछड़े की वह प्रतिमा लेकर आए है जिसे यारोबाम ने बनवाया है कि तुम्हारा देवता हो।
\v 9 परन्तु तू ने यहोवा द्वारा नियुक्त किए गए प्रथम प्रधान याजक हारून के वंशजों को याजकीय सेवा से हटा दिया है। तू ने लेवी के वंशजों को भी निकाल दिया और अन्य जातियों के समान अपनी इच्छा से याजक नियुक्त कर लिए। जो कोई एक बछड़ा और सात मेढ़े लेकर आता है और बलि चढ़ा कर उन मूर्तियों का याजक हो जाता है। जो परमेश्वर बिल्कुलनहीं है।
\s5
\v 10 हमारे तो परमेश्वर यहोवा हैं और हम ने उनका त्याग नहीं किया है। हमारे याजक जो यहोवा की सेवा करते है वे हारून के वंशज हैं और उन के सहायक लेवी के वंशज हैं।
\v 11 प्रतिदिन सुबह और संध्याकाल वह यहोवा के लिए होम-बलि करते है और सुगंधित धूप जलाते है। और प्रति सप्ताह वे यहोवा के सामने भेंट की रोटियाँ रखते है। सोने के दीपदान में दीप जलाते है। हम अपने यहोवा की इच्छा पूरी करते है, परन्तु तुमने उन्हें त्याग दिया है। तुम उनकी आराधना नहीं करते।
\s5
\v 12 यहोवा हमारे साथ हैं। वह हमारे प्रधान हैं और उनके याजक जिन्हें उन्होंने नियुक्त किया है, वे अपनी तुरही बजाएंगे कि हम तुम्हारे विरुद्ध युद्ध करने के लिए तैयार हैं। हे इस्राएलियों अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा से युद्ध मत करो क्योंकि तुम सफल नहीं होगे।”
\s5
\v 13 जब अबिय्याह यह कह रहा था तब यारोबाम ने कुछ सैनिकों को यहूदा की सेना के पीछे भेज दिया। यारोबाम के साथ के सैनिक उन के सामने थे और घातक उन के पीछे थे।
\v 14 जब यहूदा के सैनिकों ने देखा कि उन पर आगे और पीछे दोनों ओर से आक्रमण किया जाएगा तब उन्होंने यहोवा को पुकारा और याजकों ने तुरहियाँ फूंकी।
\v 15-17 यहूदा के सैनिकों ने युद्ध का नारा लगाया तब यहोवा ने अबिय्याह और यहूदा की सेना को इस योग्य कर दिया कि उन्होंने इस्राएल के 500,000 सैनिकों को घात किया जो इस्राएल के सर्वोत्तम योद्धा थे। शेष इस्राएली सैनिक भाग खड़े हुए।
\v 18 इस प्रकार इस्राएली सेना पराजित हुई। यहूदा के सैनिकों ने युद्ध जीत लिया क्योंकि उन्होंने अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा पर भरोसा रखा था।
\v 19 अबिय्याह की सेना ने इस्राएली सेना का पीछा कर के बेतेल, यशाना और एप्रोन नगरों और उन के गाँवों को जीत लिया।
\v 20 अबिय्याह जब तक जीवित रहा, यारोबाम कभी सामर्थी न हो पाया वरन् यहोवा ने उसे रोगग्रस्त करके मार डाला।
\v 21 अबिय्याह और अधिक सामर्थी होता गया और उसने चौदह विवाह किए जिनसे उस के बाईस पुत्र और सोलह पुत्रियाँ उत्पन्न हुई।
\v 22 अबिय्याह के शासनकाल के सब काम और उस के वचन भविष्यद्वक्ता इद्दो की पुस्तक में लिखे हैं।
\s5
\c 14
\p
\v 1 अबिय्याह की मृत्यु हुई और उसे यरूशलेम के दाऊदपुर में दफन किया गया। उस के स्थान में उस का पुत्र आसा यहूदा राजा बना। आसा के शासनकाल में दस वर्ष तक यहूदा में शान्ति रही।
\v 2 आसा ने वही किया जो उनके परमेश्वर की दृष्टि में उचित और भले काम थे।
\v 3 उसने पराए देवी-देवताओं की वेदियाँ जो पर्वतों पर मूर्तियों के सामने थीं, सब तुड़वा दीं। उसने पत्थरों की लाटों को और अशेरा नामक देवी की लाटों को तुड़वा दिया।
\v 4 आसा ने यहूदावासियों को आज्ञा दी कि वे केवल उन के पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा की आराधना करें और उनकी इच्छा की खोज में लगे रहें तथा उनकी आज्ञाओं का पालन करें।
\s5
\v 5 उस ने सभी पर्वतों, शिखरों पर मूर्तिपूजा के स्थानों को तथा संपूर्ण यहूदा में मूर्तियों के लिए धूप जलाने के स्थानों को तुड़वा दिया। इस का परिणाम यह हुआ कि आसा के शासनकाल में यहूदा में शान्ति बनी रही।
\v 6 उस ने नगरों का निर्माण करवाया और उन की शहरपनाहें बनवाईं। उसके शासनकाल में शत्रुओं ने उन पर आक्रमण नहीं किया क्योंकि यहोवा ने उनके लिए शान्ति स्थापित की थी।
\s5
\v 7 आसा ने यहूदा की प्रजा से कहा, “हमें अपने नगरों को सुरक्षित करने के लिए उनकी शहरपनाहें बनानी चाहिए और उनके ऊपर निगरानी के लिए गुम्मट बनाना आवश्यक है। नगर द्वारों के बेड़ें भी लगवाना आवश्यक है। यह देश हमारा है क्योंकि हम ने अपने परमेश्वर यहोवा से सहायता मांगी है। हमने यहोवा से सहायता मांगी और उन्होंने संपूर्ण देश में शान्ति स्थापित करवा दी है।” इसलिए उन सब ने भवनों का निर्माण किया और वे अपने हर एक काम में सफल हुए।
\v 8 आसा की सेना में यहूदा के 300,000 सैनिक थे। वे सब बड़ी-बड़ी ढालों और भालों का उपयोग करना जानते थे। उस की सेना में यहूदा के सैनिकों के साथ 280,000 बिन्यामीनी योद्धा भी थे जो ढाल रखने और धनुष और तीर चलाने में निपूर्ण थे। वे सब साहसी थे।
\s5
\v 9 जेरह नामक एक कूशवासी दस लाख सैनिक और तीन सौ रथ लेकर यहूदा पर आक्रमण करने निकला और यरूशलेम के उत्तर पश्चिम में मारेशा तक आ गया।
\v 10 आसा भी अपनी सेना लेकर उससे युद्ध करने निकला और सापता घाटी में शत्रु के सामने खड़ा हुआ।
\v 11 तब आसा ने अपने परमेश्वर यहोवा को पुकारा। उसने प्रार्थना की, “हे यहोवा आपके समान कोई नहीं कि एक विशाल सेना का सामना करने के लिए शक्तिहीनों की सहायता करे। हम इस विशाल सेना का सामना करने निकले है। हे यहोवा आप हमारे परमेश्वर हैं। मनुष्य आप पर प्रबल न होने पाए।”
\s5
\v 12 यहोवा ने कूश की सेना को आसा की सेना के हाथों से पराजित किया। और वे मैदान छोड़कर भागे।
\v 13 आसा की सेना ने उत्तर पश्चिम में गरार तक उन का पीछा किया। कूश के सैनिक बड़ी संख्या में मारे गए और और जो बच गये वो फिर युद्ध करने में असमर्थ थे। यहोवा की सेना ने उन्हें पूरी तरह पराजित कर के लूट का बहुत सामान ले आई थी।
\s5
\v 14 यहूदा की सेना ने गरार के आसपास के सब गाँवों का नाश किया क्योंकि वहाँ के निवासी यहोवा के भय के कारण उन का विरोध न कर पाए। यहूदा की सेना उन स्थानों से बहुत सा मूल्यवान सामान ले आई थी।
\v 15 उन्होंने पशु पालने वालों की बस्तियों को भी लूटा। और भेड़-बकरियाँ तथा ऊँट बड़ी संख्या में यरूशलेम ले आए।
\s5
\c 15
\p
\v 1 तब परमेश्वर के आत्मा ओदेद के पुत्र अजर्याह में समा गया।
\v 2 अजर्याह आसा के पास गया और उससे कहा, “हे आसा और यहूदा और बिन्यामीन के लोगों सुनो! जब तक तुम यहोवा के साथ रहोगे तब तक वह तुम्हारे साथ रहेंगे और जब-जब सहायता मांगोगे तब-तब वह तुम्हारी सहायता करेंगे। परन्तु यदि तुम उन को त्याग दोगे तो वह भी तुम्हें त्याग देंगे।
\s5
\v 3 इस्राएली के पास कई वर्षों तक सच्चे परमेश्वर और याजकों तथा परमेश्वर के नियम नहीं थे।
\v 4 परन्तु संकट के समय वे यहोवा को पुकारते थे और उनके परमेश्वर यहोवा उन की सहायता करते थे।
\v 5 उस समय, जब लोग यात्रा करते थे तो लोग सुरक्षित नहीं थे, क्योंकि उन देशों में रहने वाले सभी लोग कई कठिनाइयों का सामना कर रहे थे।
\s5
\v 6 जातियाँ एक-दूसरे को अपनी सेनाओं द्वारा दबा देती थीं और एक नगर की सेना दूसरे नगर को अपने अधीन कर लेती थी क्योंकि यहोवा उन पर भांति-भांति के कष्ट आने देते थे।
\v 7 परन्तु तुम साहस रखो और निराश न हो क्योंकि तुम्हें यहोवा को प्रसन्न करने का फल मिलेगा।”
\s5
\v 8 ओदेद के पुत्र अजर्याह के वचन सुनकर आसा प्रोत्साहित हुआ और उसने संपूर्ण यहूदा और बिन्यामीन में से तथा एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में जीते हुए नगरों में सब घिनौनी वस्तुएँ दूर कीं और यरूशलेम में यहोवा के भवन के प्रवेश स्थान के सामने की वेदी का, जहाँ श्रद्धालु बलि चढ़ाते थे, नवनिर्माण किया।
\v 9 तब उस ने यहूदा और बिन्यामीन तथा एप्रैम, मनश्शे और शिमोन के गोत्रों के लोगों को जो वहाँ निवास कर रहे थे, इकट्ठा किया। इस्राएल के निवासियों ने देखा कि यहोवा आसा के साथ हैं तो वे भी यहूदा में आ गए थे।
\s5
\v 10 आसा के शासनकाल के पन्द्रहवें वर्ष के तीसरे महीने सब लोग यरूशलेम में इकट्ठा हो गए।
\v 11 उस समय उन्होंने यहोवा के लिए ही सात सौ बैल और सात हजार भेड़-बकरियाँ बलि चढ़ाईं। ये सब पशु उन्होंने कूश की सेना को पराजित करने के बाद लूट लिए थे।
\s5
\v 12 उन्होंने उनके पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा की सच्चे मन से आराधना कर ने की शपथ खाई।
\v 13 उन्होंने यह भी शपथ खाई कि जो महत्वपूर्ण हो या नहीं, स्त्री हो या पुरुष, जो भी यहोवा की आराधना नहीं करेगा वह मार डाला जाएगा।
\s5
\v 14 उन्होंने नारे लगवाकर, तुरहियाँ फूंककर, नरसींगे बजाकर यहोवा के नाम की गंभीरता से शपथ खाई।
\v 15 यहूदा के देश में रहने वाले सब इस शपथ से प्रसन्न थे क्योंकि उन्होंने सच्चे मन से शपथ खाई थी और उन्होंने उत्सुकता से यहोवा से मार्गदर्शन और सहायता की विनती की। परिणामस्वरूप यहोवा ने उस संपूर्ण देश में शान्ति स्थापित कर दी।
\s5
\v 16 राजा आसा की दादी, माका ने देवी अशेरा की घृणित लाट खड़ी करवाई थी। आसा ने वह लाट तुड़वा दी और उस के टुकड़े कर के किद्रोन के नाले में जलवा दिए। उसने उसे राजमाता के पद पर से भी उतार दिया कि प्रजा पर उस का प्रभाव न पड़े।
\v 17 यद्यपि आसा ने मूर्तिपूजा के ऊँचे स्थानों को नष्ट नहीं करवाया। वे उस की संपूर्ण शासनकाल ज्यों के त्यों रहे परन्तु उस का मन पुरे जीवन यहोवा को प्रसन्न करने की खोज में लगा रहा।
\s5
\v 18 उसने अपने अधिकारीयों को आज्ञा दी कि जितना भी उसने और उसके पिता ने सोना-चाँदी और मूल्यवान वस्तुयें यहोवा को समर्पित की थीं, वह सब यहोवा के भवन में पहुँचा दिया जाए।
\v 19 आसा के पैंतीस वर्षीय शासनकाल में कोई युद्ध न हुआ।
\s5
\c 16
\p
\v 1 आसा के शासनकाल के छत्तीसवें वर्ष में इस्राएल के राजा बाशा ने यहूदा पर आक्रमण किया। उन्होंने यरूशलेम के उत्तर में रामा नगर को ले लिया और उसके चारों ओर दीवार बनवाना आरम्भ कर दिया कि प्रजा राजा आसा के यहूदा में न तो जाए और न ही वहाँ से आए।
\s5
\v 2 इसलिए आसा ने आज्ञा दी कि उस के महल और यहोवा के भवन के भंडारों से सारा सोना-चाँदी निकालकर बेन्हदद, अराम के राजा को जो दमिश्क में था, दे दिया जाए।
\v 3 इसके साथ उसने उसके लिए सन्देश भेजा जिसमें उसने कहा था, “मैं चाहता हूँ कि हम दोनों के बीच वैसी ही शान्ति की वाचा बंधी रहे जैसी तेरे पिता और मेरे पिता के बीच बंधी थी। देख मैं यह सोना-चाँदी भेज रहा हूँ। इसलिए तू इस्राएल के राजा बाशा के साथ अपनी वाचा को तोड़ दे जिससे कि वह तेरे भय से अपनी सेना मेरे पास से हटा ले।”
\s5
\v 4 बेन्हदद ने राजा आसा की बात को स्वीकार किया और अपने सेनापतियों को सेना के साथ भेजकर इस्राएल पर आक्रमण कर दिया। उन्होंने इय्योन, दान, आबेल्मैम और नप्ताली के सब भंडार वाले नगरों को जीत लिया।
\v 5 जब बाशा ने इसके विषय में सुना, तो उसने रामा को दृढ करने के लिए अपने सैनिकों को आदेश दिया।।
\v 6 तब राजा आसा ने यहूदा के सभी लोगों को इकट्ठा किया और रामा में से वह सब निर्माण सामग्री-पत्थर और लकड़ियाँ, उठवा लीं जिनसे बाशा निर्माण कार्य करवा रहा था और उनसे गेबा और मिस्पा की शहरपनाहें बनवाईं।
\s5
\v 7 उस समय भविष्यद्वक्ता हनानी राजा आसा के पास गया और उससे कहा, “तूने अपने परमेश्वर यहोवा पर भरोसा रखने के बजाय अराम के राजा पर भरोसा रखा है। इस कारण अराम की सेना तेरे हाथ से बच गई है।
\v 8 तुझे याद होना चाहिए कि कूश की शक्तिशाली विशाल सेना को यहोवा ने तेरी सेना के सामने से भगा दिया था क्योंकि तूने यहोवा पर भरोसा रखा था।
\s5
\v 9 ऐसा इसलिए होता है कि यहोवा की दृष्टि संपूर्ण पृथ्वी पर दौड़ती है कि वह उन पर भरोसा रखने वालों की सहायता कर के उन्हें शक्ति प्रदान करें। तूने जो यह मूर्खता का काम किया है, उसके परिणामस्वरूप अब तू युद्धों में उलझा रहेगा।”
\v 10 हनानी की बातें सुनकर आसा का क्रोध भड़क उठा और उसने आज्ञा देकर हनानी को कारावास में डलवा दिया और उसी समय से आसा प्रजा पर अत्याचार भी करने लगा।
\s5
\v 11 आसा के शासनकाल के सब काम, आरम्भ से अन्त तक, “यहूदा और इस्राएल के राजाओं की पुस्तक” में लिखे है।
\v 12 राजा आसा के शासनकाल के उनतालीसवें वर्ष में आसा के पैर में रोग हो गया और वह गंभीर हो गया था परन्तु उसने यहोवा से सहायता मांगने के बजाय वैद्यों का सहारा लिया।
\s5
\v 13 अन्त में आसा के शासनकाल के इकतालीसवें वर्ष में उस की मृत्यु हुई।
\v 14 उसने यरूशलेम के दाऊदपुर में अपने लिए एक कब्र तैयार करवा ली थी, इसलिए उसे वहाँ दफन कर दिया गया। उसे सुगंधित द्रव्यों और नाना प्रकार के सुगन्ध-द्रव्यों से मिले बिस्तर पर रखा गया और उसके सम्मान में प्रजा ने बहुत सुगंधित द्रव्य जलाए।
\s5
\c 17
\p
\v 1 आसा के बाद उसका पुत्र यहोशापात उसके स्थान पर यहूदा का राजा बना। उसने अपनी सेना को दृढ़ किया कि इस्राएल की सेना के आक्रमण का सामना कर पाए।
\v 2 उसने यहूदा के सब शहरपनाहों वाले नगरों में सैनिक दल नियुक्त कर दिए। उसने संपूर्ण यहूदा और उसके पिता द्वारा जीते हुए एप्रैमी नगरों में सैनिक चैकियाँ बना दीं।
\s5
\v 3 यहोवा यहोशापात के साथ थे क्योंकि उसने उन कामों को किया जो यहोवा को प्रसन्न करते थे जैसे कि उसके पूर्वज राजा दाऊद ने किए थे। उसने बाल की पूजा नहीं की।
\v 4 उसने अपने परमेश्वर यहोवा से सम्मति खोज की जिनकी आराधना उसका पिता करता था और यहोवा की आज्ञाओं का पालन किया। उसने इस्राएल के राजाओं के समान बुरे काम नहीं किए।
\s5
\v 5 यहोवा ने उस का राज्य स्थिर कर दिया। यहूदा के सब निवासी उस के लिए भेंट लेकर आते थे। परिणामस्वरूप वह बहुत धनवान हो गया और उस की प्रतिष्ठा बहुत बढ़ गई।
\v 6 वह यहोवा को प्रसन्न करने के कामों में समर्पित था। उसने यहूदा में पर्वतों पर से मूर्तिपूजा के सब स्थल ढा दिए और अशेरा की सब लाटें तुड़वा दीं।
\s5
\v 7 अपने शासनकाल के तीसरे वर्ष में बेन्हैल, ओबद्याह, जकर्याह, नतनेल और मीकायाह नामक अपने प्रतिष्ठित पुरुषों को संपूर्ण यहूदा में शिक्षा देने के लिए भेज दिया।
\v 8 उनके साथ उसने लेवी के कुछ वंशजों को भी नियुक्त कर दिया- शमायाह, नतन्याह, जबद्याह, असाहेल, शमीरामोत, यहोनातान, अदोनिय्याह, तोबियाह और तोबदोनिय्याह, उनके साथ एलीशामा, और यहोराम दो याजक भी नियुक्त किए।
\v 9 वे अपने साथ यहोवा के नियमों की पुस्तक ले गए और संपूर्ण यहूदा के नगरों में प्रजा को शिक्षा देते रहे।
\s5
\v 10 यहूदा के पड़ोसी राज्यों में यहोवा के दण्ड का भय ऐसा समा गया कि उन्होंने यहोशापात से युद्ध करने का साहस नहीं किया।
\v 11 कुछ पलिश्ती भी यहोशापात के लिए भेंट और कररूवस्प चाँदी लेकर आते थे। कुछ अरबी भी उस के लिए 7,700 मेढ़े और 7,700 बकरे लेकर आए।
\s5
\v 12 यहोशापात अधिकाधिक सामर्थी होता गया। उसने यहूदा के विभिन्न नगरों में किले और भंडारगृह बनवाए।
\v 13 तब उसने उन भंडारगृहों में बहुत सी भोजन सामग्री रखी। यहोशापात ने यरूशलेम में अनुभवी योद्धा रखे।
\s5
\v 14 प्रत्येक गोत्र के प्रधानों और गिनती के अनुसार वे थेः यहूदा के गोत्र से सहस्रपति थेः अदनह जिसके 300,000 योद्धा थे।
\v 15 उसका सहायक सहस्रपति यहोहानान जिसके 2,80,000 सैनिक थे।
\v 16 तब जिक्री का पुत्र अमस्याह, उसने स्वैच्छा से यहोवा की सेवा में समर्पण किया था। उसके 200,000 योद्धा थे।
\s5
\v 17 बिन्यामीन के गोत्र से एल्यादा नामक योद्धा। वह ढाल रखने वाले 200,000 योद्धाओं पर सहस्रपति था।
\v 18 और उसके नीचे यहोजाबाद, जिसके साथ युद्ध के हथियार बाँधे हुए 180,000 पुरुष थे।
\v 19 ये वे सैनिक थे जिन्होंने यरूशलेम में राजा की सेवा की थी, उनके अलावा वे भी थे जिन्हें राजा ने यहूदा के अन्य शहरों में रखा था, जिनके चारों ओर दीवारें थीं।
\s5
\c 18
\p
\v 1 यहोशापात बहुत धनवान और सम्मानित किया गया। परन्तु उसने इस्राएल के राजा अहाब के परिवार से किसी एक का विवाह करवाया।
\v 2 कुछ वर्ष बाद वह सामरिया गया कि अहाब से भेंट करे। अहाब ने यहोशापात और उसके साथियों के स्वागत में बहुत भेड़ें और बैल बलि करके भोज का आयोजन किया।
\v 3 तब उसने यहोशापात से पूछा, “क्या तू अपनी सेना लेकर मेरे साथ गिलाद के रामोत पर आक्रमण करने चलेगा?” यहोशापात ने उससे कहा, “मैं और मेरी सेना तेरी सेवा में है। तू जब चाहे हम तेरे साथ युद्ध में चलने को तैयार है।”
\s5
\v 4 परन्तु उसने कहा, “हमें पहले यहोवा से पूछ लेना है कि उनकी इच्छा क्या है।”
\v 5 इसलिए इस्राएल के राजा ने अपने 400 नबियों को इकट्ठा किया और उनसे पूछा, “हम रामोत पर आक्रमण करें या न करें?” उन्होंने कहा, “हाँ, जा क्योंकि परमेश्वर तुझे विजयी करेंगे।”
\s5
\v 6 परन्तु यहोशापात ने कहा, “क्या यहाँ यहोवा का भविष्यद्वक्ता नहीं है कि हम उससे पूछें?”
\v 7 इस्राएल के राजा ने कहा, “हाँ, है तो, यिम्ला का पुत्र मीकायाह। हम उससे पूछ सकते है कि यहोवा की इच्छा क्या है परन्तु मैं उससे घृणा करता हूँ क्योंकि वह मेरे लिए कभी भी अच्छा सन्देश नहीं देता है। वह मेरी बुराई वाली भविष्यद्वाणी ही करता है।” यहोशापात ने कहा, “हे राजा! ऐसा मत कह।”
\v 8 इसलिए इस्राएल के राजा ने अपने एक पुरुष को आज्ञा दी कि वह मीकायाह को तुरन्त उपस्थित करे।
\s5
\v 9 इस्राएल का राजा और यहूदा का राजा अपने-अपने राजसी वस्त्रों में सिंहासनों पर विराजमान थे। वे सामरिया के फाटक पर एक खुले स्थान में बैठे थे और उसके भविष्यद्वक्ता भविष्यद्वाणी कर रहे थे।
\v 10 तब कनाना के पुत्र सिदकिय्याह ने लोहे के सींग बना कर कहा, “यहोवा कहते हैं कि तू इन सींगों से अरामियों को सांड के समान मारते-मारते नष्ट कर देगा।”
\v 11 अहाब के अन्य सब भविष्यद्वक्ता उससे सहमत होकर कहने लगे, “हाँ गिलाद के रामोत पर आक्रमण करके तू विजयी होगा क्योंकि यहोवा तेरे साथ हैं।”
\s5
\v 12 जो पुरुष मीकायाह को लेने गया था, उसने उससे कहा, “सुन, सब भविष्यद्वक्ता राजा के लिए शुभ ही की भविष्यद्वाणी कर रहे है और तेरे लिए यही उचित होगा कि तू भी कर जो वे कर रहे हैं।”
\v 13 मीकायाह ने कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ, मैं तो वही कहूँगा जो यहोवा मुझसे कहने को कहेंगे।”
\v 14 जब मीका राजा की उपस्थिति में आया तब इस्राएल के राजा ने उससे पूछा, “हम रामोत पर आक्रमण करें या न करें?” मीकायाह ने कहा, “हाँ, जाओ! यहोवा तुम्हें विजयी करेंगे!”
\s5
\v 15 राजा अहाब यहोशापात के सामने यहोवा का भय मानने का स्वाँग रच रहा था। उसने मीकायाह से कहा, “मुझे कितनी बार तुझे शपथ देक यहोवा का याद करके सत्य बताने का आग्रह करना होगा।”
\v 16 तब मीकायाह ने कहा, “सच तो यह है कि मैंने दर्शन में इस्राएली सेना को पर्वतों पर तितर-बितर देखा है। वे बिना चरवाहे की भेड़ों के समान थे। यहोवा ने कहा, ‘इनका स्वामी मारा गया है। इसलिए उनसे कह कि वे शान्तिपूर्वक घर लौट जाएँ।”
\s5
\v 17 अहाब ने यहोशापात को देखकर कहा, “मैंने कहा था न, कि मीकायाह मेरे लिए कभी अच्छी बात नहीं करता है। वह सदैव मेरी हानि की भविष्यद्वाणी करता है।”
\v 18 मीकायाह ने कहा, “सुनो कि यहोवा ने मुझे दर्शन में क्या दिखाया। मैंने दर्शन में देखा कि यहोवा अपने सिंहासन पर बैठे हैं और स्वर्ग की सेना उनकी दाहिनी और बाईं ओर खड़ी है।
\s5
\v 19 तब यहोवा ने कहा, “इस्राएल के राजा अहाब को कौन उकसाएगा कि रामोत में युद्ध करने जाए और वहाँ मारा जाए। तब किसी ने कुछ और किसी ने कुछ कहा।
\s5
\v 20 तब एक आत्मा ने यहोवा के समीप आकर कहा, “मैं उसको बहकाऊँगी।’
\v 21 यहोवा ने उससे पूछा, ‘वह कैसे? उसने उत्तर दिया, ‘मैं जाकर उसके सब भविष्यद्वक्ताओं को झूठ बोलने पर विवश कर दूँगी।’ यहोवा ने कहा, ‘जा ऐसा ही कर! तू सफल होगी।’
\s5
\v 22 इसलिए मैं कहता हूँ कि यहोवा ने तेरे भविष्यद्वक्ताओं से झूठ कहलवाया है। यहोवा निर्णय ले चुके हैं कि तेरी हानि हो।”
\s5
\v 23 तब सिदकिय्याह ने समीप जाकर मीकायाह के मुँह पर थप्पड़ मारकर कहा, “तू क्या सोचता है कि यहोवा के आत्मा मुझे छोड़कर तुझसे बात करने आए हैं?”
\v 24 तुम स्वयं देख लोगे कि यहोवा के आत्मा ने किससे बात की है, जब तुम अरामी सैनिकों से छिपने के लिए एक कोठरी से दूसरी कोठरी में भागोगे।”
\s5
\v 25 तब राजा अहाब ने अपने सैनिकों को आज्ञा दी, “मीकायाह को नगर के अधिपति और मेरे पुत्र योआश के पास ले जाओ।”
\v 26 उनसे कहना, ‘मेरी आज्ञा है कि इसे कारावास में डाल दो और खाने के लिए इसे सूखी रोटी और पानी ही देना। मैं जब तक युद्ध से सुरक्षित लौट न आऊँ इसे खाने के लिए और कुछ न देना।’
\v 27 मीकायाह ने कहा, “यदि तू युद्ध से सुरक्षित लौट आए तो जान लेना कि मैंने जो कहा था, वह यहोवा का वचन नहीं था।” तब उसने वहाँ उपस्थित सब लोगों से कहा, “मैंने राजा अहाब से जो कहा है, उसे याद रखना!”
\s5
\v 28 तब इस्राएल का राजा और यहूदा का राजा अपनी-अपनी सेना लेकर गिलाद के रामोत की ओर चले।
\v 29 राजा अहाब ने यहोशापात से कहा, “मैं तो साधारण सैनिक के वस्त्रों में रहूँगा कि कोई जान न पाए कि मैं राजा हूँ परन्तु तू अपने राजसी वस्त्र में ही रहना।” इसलिए इस्राएल के राजा ने भेष बदला और वे दोनों युद्ध में गए।
\v 30 अराम के राजा ने अपनी रथ सेना को आज्ञा दी, “इस्राएल के राजा पर ही वार करना, अन्य किसी पर नहीं।”
\s5
\v 31 इसलिए अरामी रथ सेना ने यहोशापात को राजसी वस्त्रों में देख सोचा, “इस्राएल का राजा यही है।”
\v 32 इसलिए वे सब उस पर टूट पड़े। परन्तु जब यहोशापात चिल्ला पड़ा तब यहोवा ने उसकी सहायता की और अरामी सैनिकों को समझ में आया कि वह इस्राएल का राजा नहीं है। परमेश्वर ने उन्हें यहोशापात का पीछा न करने के लिए प्रेरित किया।
\s5
\v 33 तब एक अरामी सैनिक ने न जानते हुए कि वह अहाब है, उस पर तीर चलाया जो अहाब की कवच के जोड़ में जा कर लगा। अहाब ने अपने सारथी से कहा, “रथ मोड़ ले और मुझे यहाँ से ले चल। क्योंकि मैं घायल हो गया हूँ।”
\v 34 उस दिन युद्ध होता रहा। अहाब अपने रथ में बैठा युद्ध देखता रहा। और सूर्यास्त होते-होते वह मर गया।
\s5
\c 19
\p
\v 1 जब यहोशापात अपने महल यरूशलेम, सुरक्षित पहुँच गया,
\v 2 तब हनानी नामक भविष्यद्वक्ता का पुत्र येहू यहोशापात के पास आया और उससे कहा, “तेरे लिए यह उचित नहीं कि एक दुष्ट मनुष्य का साथ दे और यहोवा से घृणा करने वालों से प्रेम रखे। इस कारण यहोवा तुझ से क्रोधित हैं।
\v 3 परन्तु तूने कुछ अच्छे काम किए है जैसे अशेरा की आराधना की लाटें नष्ट कीं और यहोवा को प्रसन्न करने वाले काम किए हैं।
\s5
\v 4 यहोशापात यरूशलेम में रहता था, परन्तु जैसा उसने पहले एक बार किया था, वह दूर उत्तर में बर्शेबा से लेकर दूर उत्तर में एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश का भ्रमण करने निकला और प्रजा को प्रेरित किया कि वह उनके पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा की आराधना में लौट आएँ।
\v 5 उसने यहूदा के सब शहरपनाह वाले नगरों में न्यायी नियुक्त कर दिए।
\s5
\v 6 उसने उनसे कहा, “अपने निर्णय बड़ी सावधानी से लेना क्योंकि तुम मनुष्य को नहीं परमेश्वर यहोवा को प्रसन्न करने के लिए ऐसा करते हो। वह तुम्हारे हर एक निर्णय को सुनते हैं।
\v 7 इसलिए यहोवा का भय मानो। मुकद्दमों का निर्णय सुनाने में अत्यधिक सावधान रहना और सदा याद रखो कि हमारे परमेश्वर यहोवा पक्षपात नहीं करते हैं और न ही घूस लेते हैं।”
\s5
\v 8 यहोशापात ने यरूशलेम में भी कुछ याजकों को, कुछ लेवी के वंशजों को और कुछ इस्राएली अगुवों को न्यायी नियुक्त कर दिया। उसने उनसे कहा कि निर्णय सुनाते समय यहोवा के नियमों का पालन करते हुए उचित विचार करें। वे सब यरूशलेम में निवास करते थे।
\v 9 उसने उनसे कहा, “तुम निष्ठा पूर्वक काम करो और यहोवा का सम्मान करो।
\s5
\v 10 तुम्हारे नगरों में रहने वाले तुम्हारे इस्राएली भाई जब तुम्हारे सामने अपने मतभेद लेकर उपस्थित हों तब उन्हें चिता देना कि झूठ बोल कर यहोवा के विरूद्ध पाप न करें। मुकद्दमा चाहे कैसा भी हो, हत्या का हो, यहोवा के नियमों से संबंधित हो, किसी आज्ञा या नियम से संबंधित हो, सुनिश्चित करो कि यहोवा के दोषी न बनो नहीं तो यहोवा का प्रकोप तुम सब पर भड़क उठेगा।
\s5
\v 11 प्रधान याजक अमर्याह यहोवा से संबंधित सब मुकद्दमे देखेगा। और यहूदा के गोत्र का प्रधान, इश्माएल का पुत्र जबद्याह उन सब मुकद्दमों को देखेगा जो मुझ से संबंधित है। और लेवी के वंशज सहयोग देंगे। साहस रखकर काम करो। मैं प्रार्थना करता हूँ कि यहोवा भला करने वालों का साथ दें।”
\s5
\c 20
\p
\v 1 इसके बाद मोआबी, अम्मोनी और एदोम के समीपवर्ती भूमियों के कुछ सैनिक यहोशापात से युद्ध करने आए।
\v 2 तब कुछ लोगों ने आकर यहोशापात से कहा, “एक विशाल सेना मृत सागर के पार, एदोम देश से तुझ पर आक्रमण करने आ रही है। वह हसासोन्तामार तक जो एनगदी कहलाता है, पहुँच गए है।
\s5
\v 3 यहोशापात बहुत डर गया। इसलिए उसने यहोवा से पूछा कि उसे क्या करना चाहिए। उसने आज्ञा दी कि यहूदा के सब निवासी उपवास रखें।
\v 4 यहूदा की प्रजा एकजुट होकर यहोवा से सहायता की प्रार्थना करने लगी। वे सब यहूदा के सब नगरों से यरूशलेम आ गए कि यहोवा से सहायता की याचना करें।
\s5
\v 5 तब यहोशापात उन सब के सामने नए आँगने के सामने खड़ा हुआ,
\v 6 और उसने प्रार्थना की, “हमारे पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा, आप स्वर्ग से शासन करते हैं। आप पृथ्वी के सब राजाओं और जातियों पर प्रभुता करते हैं। आप ऐसे पराक्रमी हैं कि आपके विरूद्ध कोई खड़ा नहीं रह सकता है।
\v 7 हे हमारे परमेश्वर, जब आपकी प्रजा इस्राएल इस देश में प्रवेश कर रही थी तब आप ने यहाँ निवास करने वाली जातियों को निकाल दिया और आपने निश्चित रूप से इसे हमें दे दिया जो अब्राहम के वंशज हैं, ताकि देश सदा के लिए हमारा रहे।
\s5
\v 8 हमारे पूर्वजों ने यहाँ रहकर आपके लिए एक भवन बनाया कि वहाँ आपकी आराधना की जाए। उस समय उन्होंने प्रार्थना की,
\v 9 ‘शत्रुओं का आक्रमण हो या महामारी हो या अकाल हो, हम तो आपके इसी भवन में इकट्ठा होंगे क्योंकि आपने यहाँ उपस्थित रहने का वचन दिया है। हम अपने कष्टों की गाथा आपको ही सुनाएँगे और विनती करेंगे और आप हमारी विनती सुनकर हमें बचाएँगे।’
\s5
\v 10 हमारे पूर्वज जब मिस्र से निकलकर आ रहे थे तब आपने अम्मोन, मोआब और एदोम में प्रवेश नहीं करने दिया। इसलिए वे उन देशों का मार्ग छोड़कर दूसरे मार्ग पर चले लेकिन अब वे हमला करने के लिए यहां आ रहे हैं।
\v 11 हमने तो उनका भला किया परन्तु अब देखें कि वे कैसे हमें बदला दे रहे है। वे हमें इस देश से निकालना चाहते है जो आपने हमारे पूर्वजों को और उनके वंशजों को सदा के लिए दे दिया है।
\s5
\v 12 इसलिए हे हमारे परमेश्वर, उन्हें दण्ड दें। हम तो इस विशाल सेना को पराजित नहीं कर सकते जो हमारे विरुद्ध आ रही है। हम नहीं जानते कि क्या करें। अब आप ही हमारी सहायता करें।”
\v 13 यहूदा के सब पुरुष और उनकी पत्नियाँ, बच्चे और यहाँ तक कि शिशु भी वहाँ उपस्थित थे जब यहोशापात प्रार्थना कर रहा था।
\s5
\v 14 तब यहोवा के आत्मा मत्तन्याह के पुत्र यीएल, यीएल के पुत्र बनायाह, बनायाह के पुत्र जकर्याह के पुत्र यहजीएल, एक लेवी वंशज जो आसाप का वंशज का था, उसमें समाया और वह पूरी मण्डली के सामने खड़ा हो गया।
\v 15 उसने कहा, “राजा यहोशापात और सब यरुशलेम तथा यहूदा के सब नगरों के निवासियों सुनो! यहोवा तुमसे कहते हैं, इस विशाल सेना को देखकर मत डरो, न ही निरुत्साह हो क्योंकि तुम इस युद्ध में विजयी होगे। यहोवा इस युद्ध में विजय होंगे।
\s5
\v 16 कल उनका सामना करने के लिए निकल जाना। वे एनगदी के उत्तर में सीस के दर्रे की चढ़ाई पर चढ़ रहे होंगे और तुम यरुएल के मरूभूमि के समीप नाले पर उनका सामना करोगे।
\v 17 परन्तु तुम्हें युद्ध करने की आवश्यकता नहीं होगी। यरुशलेम और यहूदा के विभिन्न प्रान्तों के सैनिक केवल खड़े होकर दृश्य देखेंगे। तुम यहोवा का किया उद्धार देखोगे। उनसे मत डरो, न ही निराश हो। कल उनकी ओर बढ़ जाओ। यहोवा तुम्हारे साथ होगा।”
\s5
\v 18 यहोशापात ने मुंह के बल गिरकर दण्डवत् किया और वहाँ उपस्थित यरुशलेम और यहूदा के विभिन्न नगरों से आए हुए लोगों ने यहोवा की आराधना में घुटने टेके।
\v 19 तब कहात और कोरह के वंशजों ने जो लेवी के वंशज थे, खड़े होकर ऊँचे स्वर में इस्राएलियों के परमेश्वर की स्तुति की।
\s5
\v 20 अगले ही दिन सुबह के समय यहूदा की सेना ने तकोआ मरूभूमि के लिए निकली। जब वे निकल रहे थे तब यहोशापात ने खड़े होकर उनसे कहा, “हे यरुशलेम और यहूदा के अन्य नगरों के निवासियों, सुनो! हमारे परमेश्वर यहोवा पर भरोसा रखो कि तुम में शक्ति का संचार हो। उसके भविष्यद्वक्ताओं के वचनों पर विश्वास करो कि सफलता तुम्हारे कदम चूमे।’
\v 21 तब प्रजा के अगुओं से सम्मति करके यहोशापात ने कुछ लोगों को नियुक्त किया कि यहोवा की महानता के गीत गाएँ और शत्रु की ओर चलने में सेना के आगे चलें। वे गा रहे थेः “यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह हमें सदाकालीन सच्चा प्रेम रखते हैं।”
\s5
\v 22 जब उन्होंने यहोवा की स्तुति का गीत गाना आरम्भ किया तब यहोवा ने ऐसा किया कि शत्रु के कुछ सैनिकों ने अम्मोन, एदोम और मोआब के ही सैनिकों पर अचानक आक्रमण कर दिया और अपनी ही सेना में दूसरों को हरा दिया।
\v 23 तब अम्मोन और मोआब के सैनिकों ने एदोम की सेना पर आक्रमण करके उनका सर्वनाश कर दिया। उसके बाद में आपस में मार-काट करने लगे।
\s5
\v 24 जब यहूदा की सेना उस स्थान पर पहुँची जहाँ से वे नीचे मरूभूमि की ओर देख सकते थे, तो उन्होंने देखा कि धरती पर चारों ओर शव पड़े है। उनमें से कोई भी जीवित नहीं बचा।
\s5
\v 25 इसलिए यहोशापात और उसके सैनिक शत्रु की सम्पति लूटने गए तो देखा कि वहाँ बहुत अधिक सामान, वस्त्र और मूल्यवान वस्तुएँ है कि उनको उठाकर ले जाना उनके लिए संभव नहीं था। सामान इतना अधिक था कि उसे उठाने में उनके तीन दिल लग गए।
\v 26 अगले दिन, अर्थात चौथे दिन वे बराका नामक घाटी में इकट्ठा हुए और वहाँ यहोवा का गुणगान किया। यही कारण है कि वह घाटी “बराका” कहलाती है। बराका का अर्थ है, “स्तुति।”
\s5
\v 27 तब यहोशापात की अगुवाई में यरुशलेम और यहूदा के अन्य सब नगरों के सैनिक यरुशलेम लौट आए। वे अति आनन्दित थे क्योंकि यहोवा ने उनके शत्रुओं को पराजित कर दिया था।
\v 28 यरुशलेम पहुँचकर वे वीणा, बाँसुरी और तुरहियाँ बजाते हुए यहोवा के भवन में गए।
\s5
\v 29 पड़ोस के राज्यों के लोगों ने जब सुना कि यहोवा ने कैसे उनके शत्रुओं से युद्ध किया तो वे सब बहुत डर गए।
\v 30 इस प्रकार यहोशापात के राज्य में शान्ति हो गयी क्योंकि यहोवा ने उसको चारों ओर से विश्राम दिया था।
\s5
\v 31 और यहोशापात यहूदा पर शासन करता रहा। पैंतीस वर्ष की आयु में वह यहूदा का राजा बना था और यरुशलेम में रहकर उसने पच्चीस वर्ष तक यहूदा पर शासन किया। उसकी माता शिल्ही की पुत्री अजूबा थी।
\v 32 उसने अपने पिता आसा के समान यहोवा को प्रसन्न करने के काम किए और उनसे टला नहीं।
\v 33 परन्तु उसने मूर्ति-पूजा के स्थल जो ग्रामीण क्षेत्रों में पर्वतों पर थे, उनको नष्ट नहीं किया था। अधिकाँश प्रजा अब भी अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा के आज्ञापालन में गंभीर नहीं थी।
\s5
\v 34 यहोशापात के राज्य के आरम्भ से अन्त तक सब काम हनानी के पुत्र येहू की पुस्तक में लिखे है। इस्राएल के राजाओं के वृत्तान्त की पुस्तक में भी उसके सब कामों की चर्चा की गई है।
\s5
\v 35 कुछ समय पश्चात यहोशापात ने इस्राएल के राजा, दुष्ट अहज्याह के साथ संधि कर ली।
\v 36 उन दोनों ने समझौता किया कि वे एक जहाजी बेड़ा तैयार करके अन्य देशों के साथ व्यापार करेंगे। उनके जहाज एस्योनगेबेर में बनाए गए,
\v 37 तब दोदावाह के पुत्र मारेशवासी एलीएजेर ने यहोशापात के विरुद्ध भविष्यद्वाणी की। उसने कहा, “तूने अहज्याह के साथ मेल किया है। वह एक दुष्ट मनुष्य है इसलिए यहोवा तेरे जहाजी बेड़े को नष्ट कर देंगे।” इसलिए उसके सब जहाज टूट गए और विदेशों तक नहीं पहुँच पाए।
\s5
\c 21
\p
\v 1 अन्त में यहोशापात की मृत्यु हुई और उसे यरुशलेम के दाऊदपुर में उसके पूर्वजों के कब्रिस्तान में दफन कर दिया गया। उसके बाद उसका पुत्र यहोराम उसके स्थान में यहूदा का राजा बना।
\v 2 यहोराम के छोटे भाई थेः अर्जयाह, यहीएल, जकर्याह, अजर्याह, मीकाएल और शपत्याह।
\v 3 मरने से पूर्व यहोशापात ने उन्हें सोना-चाँदी और मूल्यवान वस्तुएँ बहुतायत से दी थीं। उसने उन्हें यहूदा के शहरपनाह वाले विभिन्न नगरों पर प्रशासक नियुक्त कर दिया था परन्तु यहोराम को उसने बड़ा पुत्र होने के कारण यहूदा का भावी राजा घोषित कर दिया था।
\s5
\v 4 अपने पिता के राज्य को पूरी तरह अपने नियन्त्रण में करने के बाद उसने अपने सब भाइयों को और देश के कुछ अगुओं को मरवा दिया था।
\v 5 यहूदा की राजगद्दी पर बैठते समय यहोराम की आयु बत्तीस वर्ष की थी और उसने यरुशलेम में रहकर यहूदा पर आठ वर्ष शासन किया।
\s5
\v 6 परन्तु उसने इस्राएल के राजाओं के समान अनेक ऐसे बुरे काम किए जो यहोवा की दृष्टि में बुरे थे। इसका मुख्य कारण था कि उसने अहाब की पुत्री से विवाह किया था।
\v 7 तथापि, यहोवा ने दाऊद के साथ बाँधी वाचा का मान रखते हुए यहूदा के वंश का नाश नहीं किया।
\s5
\v 8 यहोराम के शासनकाल में एदोम की प्रजा ने यहूदा के राजा से विद्रोह करके अपना राजा नियुक्त कर दिया।
\v 9 इसलिए यहोराम और उसके अधिपति तथा रथ सवार एदोम को गए। वहाँ एदोम की सेना ने उन्हें घेर लिया परन्तु यहोराम की सेना उन्हें मारकर रातों-रात वहाँ से निकल गई।
\v 10 परन्तु यहूदा का राजा फिर कभी एदोम को अपने अधीन नहीं कर पाया और एदोम आज तक यहूदा के अधीन नहीं है। उसी समय यहूदा और पलिश्त के बीच स्थित लिब्ना ने भी यहूदा से विद्रोह कर दिया। इसका एकमात्र कारण था कि यहोराम ने अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया था।
\s5
\v 11 उसने पर्वतों की चोटियों पर मूर्ति-पूजा के ऊँचे स्थान बनवाए थे। उसने यहूदा की प्रजा से मूर्ति-पूजा करवाकर उनका पथ-भ्रष्ट किया।
\s5
\v 12 एक दिन यहोराम के भविष्यद्वक्ता एलिय्याह से एक पत्र प्राप्त हुआ जिसमें लिखा था, “तेरे पूर्वज दाऊद जिन परमेश्वर की आराधना करता था, यहोवा कहते हैं, ‘तूने अपने पिता यहोशापात और अपने दादा आसा के समान मुझे प्रसन्न करने के काम नहीं किए है।
\v 13 तूने इस्राएल के राजाओं के समान दुष्टता के काम किए है। तूने यरुशलेम और यहूदा के अन्य नगरों में प्रजा को यहोवा की आराधना से भटका दिया है और उन्हें यहोवा का निष्ठावान होने से रोक दिया है। तूने अपने भाइयों को मरवा दिया जो तुझसे अधिक योग्य थे।
\v 14 इसलिए यहोवा तेरी प्रजा, तेरे पुत्रों और तेरी स्त्रियों और सारी सम्पत्ति का विनाश कर देंगे।
\v 15 तुझे आँतड़ियों का घातक रोग होगा जिसके कारण तेरी आँतड़ियाँ दिन-प्रतिदिन गलती जाएँगी।”
\s5
\v 16 तब यहोवा ने पलिश्तियों और भूमध्य-सागर के तट पर रहने वाले कूश-वासियों के बीच बसे हुए अरबियों को यहोराम के विरुद्ध उभारा।
\v 17 उनकी सेना ने यहूदा पर आक्रमण किया और यरुशलेम में राजा के महल से सब मूल्यवान वस्तुएँ तथा उसके पुत्रों और उसकी स्त्रियों को ले गए। केवल उसका सबसे छोटा पुत्र यहोआहाज बचा रह गया।
\s5
\v 18 इसके बाद यहोवा ने उसे आँतड़ियों के उपचार न हो सकने वाले रोग से पीड़ित कर दिया। कोई भी वैद्य उसका उपचार नहीं कर पाया।
\v 19 दो वर्ष पश्चात उस रोग के कारण असहनीय पीड़ा में वह मर गया। यहूदावासियों ने उसके पूर्वजों के लिए तो सुगन्ध द्रव्य जलाए थे परन्तु यहोराम के लिए कुछ नहीं किया।
\v 20 जब वह यहूदा का राजा बना तब बत्तीस वर्ष का था और यरुशलेम में रहकर उसने आठ वर्ष शासन किया और मर गया। उसकी मृत्यु का दुःख किसी को नहीं हुआ। उसका शव यरुशलेम के दाऊदपुर में दफन किया गया परन्तु यहूदा के राजाओं के कब्रिस्तान में नहीं।
\s5
\c 22
\p
\v 1 यरुशलेम-वासियों ने यहोराम के छोटे पुत्र अहज्याह को उसके स्थान में राजा बनाया क्योंकि यहूदा पर आक्रमण करने वाले पलिश्तियों और अरबियों ने यहोराम के अन्य सब पुत्रों को मार डाला था।
\v 2 जिस समय अहज्याह यहूदा का राजा बना उस समय उसकी आयु बाईस वर्ष की थी। उसने यरुशलेम में एक ही वर्ष शासन किया। उसकी माता का नाम अतल्याह था जो इस्राएल के राजा ओम्री की पोती थी।
\v 3 वह अहाब के घराने की सी चाल चला क्योंकि उसकी माता उसे बुरे काम करने की सम्मति देती थी।
\s5
\v 4 उसने अनेक ऐसे काम किए जो यहोवा की दृष्टि में बुरे थे। कारण यह था कि उसके पिता के बाद अहाब का घराना ही उसका पथ-प्रदर्शक था। उनकी बुरी चाल में फंस जाने के कारण वह मर गया।
\v 5 उसके मरने से पूर्व उन्होंने उसे प्रोत्साहित किया कि वह इस्राएल के राजा अहाब के पुत्र यहोराम के साथ अराम के राजा हजाएल की सेना से युद्ध करने गिलाद के रामोत को जाए। वहाँ यहोराम अरामियों के हाथों घायल हो गया था।
\s5
\v 6 घायल हो जाने के कारण यहोराम यिज्रेल नगर जाकर उपचार करा रहा था। तब अजर्याह राजा अहाब के पुत्र यहोराम का कुशल जानने यिज्रेल को गया।
\s5
\v 7 अहज्याह का विनाश यहोवा की ओर से था क्योंकि वह यहोराम के पास गया था। जब अहज्याह वहाँ पहुँचा तब वह यहोराम के साथ निमशी के पुत्र येहू से भेंट करने निकला। यहोवा ने उसे अहाब के संपूर्ण परिवार का नाश करने के लिए नियुक्त किया था।
\v 8 जब येहू और उसके साथी अहाब के परिवार का नाश कर रहे थे तब उन्होंने यहूदा के अगुवों और अहज्याह के परिजनों के पुत्रों को भी देखा जो अहज्याह की सेवा में थे और उसने उन सबको घात किया।
\s5
\v 9 तब येहू अहज्याह की खोज में लग गया और उसके सैनिकों ने उसे सामरिया नगर में छिपा हुआ पाया। वे उसे निकालकर येहू के पास लाए और येहू ने उसे मार डाला। और उसे दफन कर दिया क्योंकि उन्होंने कहा, “वह दफन के योग्य है क्योंकि वह यहोवा को पूरे मन से मानने वाले यहोशापात का वंशज है।” अहज्याह के बाद यहूदा का राजा होने योग्य कोई नहीं था।
\s5
\v 10 अहज्याह की माता अतल्याह ने अपने पुत्र की मृत्यु के बाद अहज्याह के परिवार में जितने भी राजगद्दी के वारिस थे सबको अतल्याह ने मरवा दिया।
\v 11 परन्तु राजा यहोराम की पुत्री, यहोयादा याजक की पत्नी- यहूदा के राजा यहोराम की बहन- यहोशावत ने अहज्याह के सबसे छोटे पुत्र योआश को अहज्याह के अन्य सब पुत्रों में से निकालकर यहोवा के भवन के एक कमरे में उसकी छाप के साथ छिपा दिया। राजा यहोराम की पुत्री और प्रधान याजक यहोयादा की पत्नी और अहज्याह की बहन होने के कारण वह उस बालक को छिपाने में सफल हुई और अतल्याह उसकी हत्या नहीं कर पाई।
\v 12 वह छः वर्ष तक यहोवा के भवन में छिपा रहा और अतल्याह यहूदा में शासन करती रही।
\s5
\c 23
\p
\v 1 सातवें वर्ष में प्रधान याजक यहोयादा ने सोचा अब कुछ करना ही चाहिए। इसलिए उसने शतपतियों अर्थात यहोराम के पुत्र अजर्याह, यहोहानान के पुत्र इश्माएल, ओबेद के पुत्र अजर्याह, अदायाह के पुत्र मासेयाह और जिक्री के पुत्र एलीशापात के साथ वाचा बाँधी।
\v 2 वे सम्पूर्ण यहूदा राज्य में गए और लेवी के वंशजों तथा इस्राएल के कुलों के प्रधानों को इकट्ठा किया। जब वे सब यरुशलेम में आ गए,
\v 3 तब उस सम्पूर्ण मण्डली ने यहोवा के भवन में जाकर युवा राजा से वाचा बाँधी। यहोयादा ने उनसे कहा, “यह यहूदा के पूर्व राजा का पुत्र है और यहोवा की प्रतिज्ञा के अनुसार राजा दाऊद के वंशज यहूदा पर सदा शासन करेंगे, इसे यहूदा का राजा होना है।
\s5
\v 4 इसलिए तुम्हें जो करना है वह यह हैः “याजकों और लेवी के वंशजों को जो विश्राम के दिन आने वाले हों उनमें से एक तिहाई को यहोवा के भवन के द्वारों की पहरेदारी करनी है।
\v 5 और एक तिहाई राजा के महल की पहरेदारी करेंगे और एक तिहाई नेव के फाटक की पहरेदारी करेंगे। अन्य सब जन यहोवा के भवन के बाहर आँगन में उपस्थित होंगे।
\s5
\v 6 केवल याजक और लेवी के वंशज जो वहाँ काम करते है भवन में प्रवेश कर पाएँगे क्योंकि वे इस काम के लिए पवित्र किए गए है। शेष सब जन यहोवा की आज्ञा का पालन करते हुए आँगन में उपस्थित रहें।
\v 7 तुम लेवी के वंशज युवा राजा के चारों ओर खड़े रहोगे और तुम में से हर एक के हाथ में हथियार हों। यदि कोई यहोवा के भवन में प्रवेश करने का प्रयास करे तो उसे मार डालना। राजा जहाँ भी जाए तुम उसके साथ-साथ जाओगे।”
\s5
\v 8 इसलिए लेवी के वंशज और यहूदा के सब पुरुषों ने वही किया जो यहोयादा ने कहा था। उस दिन जिसने अपना काम पूरा कर लिया था उसे उसने घर जाने नहीं दिया। उस सब्त के दिन जिन्होंने अपना काम पूरा कर लिया था उनके प्रधान और जो उस दिन अपना काम आरम्भ करने जा रहे थे उनके प्रधान अपने-अपने लोगों को अपने साथ ले लिया।
\v 9 तब यहोयादा ने याजकों के प्रधानों को दाऊद के भाले, बर्छियाँ और ढालें जो यहोवा के भवन में थीं, दे दीं।
\s5
\v 10 तब उसने उन सब लोगों को अपनी-अपनी तलवार लेकर राजा के चारों ओर, वेदी के पास तथा यहोवा के भवन के पास खड़ा कर दिया।
\v 11 तब यहोयादा और उसके पुत्र योआश को लेकर आए और उसके सिर पर ताज रखा और उसके हाथ में राजा द्वारा पालन किए जाने वाले नियमों की पुस्तक दे दी और उन्होंने घोषणा की कि अब वह यहूदा का राजा है। उन्होंने जैतून के तेल से उसका अभिषेक किया और नारा लगाया, “राजा युग-युग जिए!”
\s5
\v 12 तब अतल्याह ने लोगों को दौड़ते और राजा का जय-जयकार करते सुना तो वह दौड़कर यहोवा के भवन के पास आई।
\v 13 उसने देखा कि वह युवा राजा यहोवा के भवन के द्वार के समीप एक खम्भे के पास खड़ा है जहाँ राजा खड़े होते थे। सेना के सेनापति और तुरहियाँ फूँकने वाले राजा के पास खड़े है और यहूदावासी आनन्द मना रहे है और तुरहियाँ फूँक रहे है और गायक अपने वाद्य-यन्त्रों से यहोवा की स्तुति करने में प्रजा की अगुवाई कर रहे है। तब अतल्याह ने अपने वस्त्र फाड़े और चिल्लाई, “यह राजद्रोह है!”
\s5
\v 14 प्रधान याजक यहोयादा ने आज्ञा दी, “उसे मार डालो परन्तु यहोवा के भवन के समीप नहीं।” ओर उसने उनसे कहा, “अतल्याह को अपनी पंक्तियों के बीच से निकल जाने दो और जो भी उसका साथ दे उसे मार डालो।”
\v 15 वह वहाँ से भागी परन्तु उन्होंने उसे राजभवन के घोड़ा फाटक पर पकड़कर मार डाला।
\s5
\v 16 तब यहोयादा ने वाचा बाँधी कि वह और राजा और प्रजा, सब यहोवा की प्रजा होंगे।
\v 17 सब बाल के मन्दिर तक गए और उसे ढा दिया और उसकी वेदियों और मूर्तियों के टुकड़े कर दिए और उसके याजक मत्तान को वेदियों के सामने ही मार डाला।
\s5
\v 18 तब यहोयादा ने लेवी के वंशजों में से याजक नियुक्त किए कि यहोवा के भवन में सेवा करें। वे उस दल का भाग थे जिन्हें राजा दाऊद ने होम-बलि चढ़ाने के लिए मूसा द्वारा लिखे गए नियमों के सेवा के लिए नियुक्त किया था। उसने उन्हें आनन्द मनाने और गीत गाने के लिए भी कहा क्योंकि यह दाऊद का प्रबन्ध था।
\v 19 उसने द्वारपालों को भी नियुक्त किया कि जो यहोवा को ग्रहण-योग्य न हो वह भवन में प्रवेश करने न पाए।
\s5
\v 20 यहोयादा अपने साथ शतपतियों और प्रतिष्ठित लोगों तथा अगुओं और अन्य अनेक लोगों को साथ लेकर राजा को यहोवा के भवन से उतारकर ऊँचे फाटक के मार्ग से होकर राजभवन में लाए और उसे राजगद्दी पर बैठा दिया।
\v 21 तब सब यहूदावासियों ने आनन्द मनाया। और सम्पूर्ण नगर में शान्ति हो गई क्योंकि अतल्याह की हत्या हो गई थी।
\s5
\c 24
\p
\v 1 योआश सात वर्ष की आयु में यहूदा का राजा बना और यरुशलेम में रहकर उसने यहूदा पर चालीस वर्ष शासन किया। उसकी माता का नाम सिब्या था और वह बेर्शेबा की थी।
\v 2 जब तक प्रधान याजक यहोयादा जीवित रहा तब तक योआश ने यहोवा को प्रसन्न करने वाले काम किए।
\v 3 यहोयादा ने योआश के लिए दो पत्न्यिाँ चुनी जिनसे उसके पुत्र पुत्रियाँ उत्पन्न हुए।
\s5
\v 4 कुछ समय बाद योआश के मन में यहोवा की भवन का सुधार करने की इच्छा जागृत हुई।
\v 5 उसने याजकों तथा लेवी के अन्य वंशजों को इकट्ठा करके कहा, “यहूदा के नगरों में जाकर उनके वार्षिक कर इकट्ठा करो और उस पैसे को यहोवा के भवन के सुधार के लिए दो। यह काम तुरन्त करो।” परन्तु लेवी के वंशजों ने यह काम तुरन्त नहीं किया।
\s5
\v 6 इसलिए राजा ने यहोयादा को बुलवाकर उससे पूछा, “क्या कारण है कि तूने लेवी के वंशजों को मूसा द्वारा स्थापित पवित्र तम्बू की देख-रेख का वार्षिक कर यहूदावासियों को वसूलने की आज्ञा नहीं दी?”
\v 7 यहोवा के भवन का सुधारकार्य करना आवश्यक है क्योंकि उस दुष्ट स्त्री अतल्याह के पुत्रों ने भवन में प्रवेश करके उसे तोड़ दिया है और पवित्र वस्तुओं को बाल की पूजा के प्रयोग में लिया है।
\s5
\v 8 इसलिए राजा की आज्ञा मानकर लेवी के वंशजों ने एक सन्दूक बनाकर भवन के एक प्रवेश द्वार पर रख दिया।
\v 9 तब राजा ने सम्पूर्ण यहूदा में पत्र भेजकर प्रजा से आग्रह किया कि वे मूसा की उस आज्ञा के अनुसार जो उसने मरूभूमि में दी थी, यहोवा के भवन के लिए कर ले आएँ।
\v 10 राजा के आदेश के अनुसार यहूदा के सब अधिपतियों तथा प्रजा के सब लोग सहर्ष अपना-अपना धन ले आए और उस दान में डाला। इस प्रकार वह दान पात्र भर गया।
\s5
\v 11 जब लेवी के वंशज उस दान पात्र को राजा के पुरुषों के पास लाते और वे देखते कि उसमें पैसा बहुत है तब राजा के मुंशी और प्रधान याजक के सहायक पुरुष उसे खाली करके दुबारा उसके स्थान पर रख देते। उनका यह एक अभ्यास हो गया और इस प्रकार बहुत पैसा आ गया।
\v 12 राजा और यहोयादा ने सुधार कार्य के निरीक्षकों को वह पैसा दे दिया। उन्होंने संगतराश और बढ़ई काम पर लगाए कि भवन का सुधार-कार्य करें। उन्होंने लोहे और पीतल के कारीगर भी काम पर लगाए कि भवन में जो पात्र और वस्तुएँ टूट गई थीं उनको सुधारा जाए।
\s5
\v 13 कारीगरों और मिस्त्रियों ने परिश्रम का काम किया और यहोवा के भवन का सुधार कार्य प्रगति पर था। उन्होंने भवन को उसका मूल रूप देकर और भी अधिक दृढ़ किया।
\v 14 जब सुधार कार्य पूरा हुआ तब उन्हें शेष धनराशि राजा और यहोयादा को सौंप दी। उस धन राशि से बलि के पात्र तथा कटोरे और अन्य सोने-चाँदी की वस्तुएँ बनाई गईं कि यहोवा के भवन में काम आएँ। जब तक योआश जीवित रहा प्रजा नियमित रूप से होम-बलि यहोवा के भवन में लाती रही।
\s5
\v 15 तब यहोयादा बहुत वृद्ध हो गया और एक सौ तीस वर्ष की आयु में उसका स्वर्गवास हो गया।
\v 16 उसे यरुशलेम में दाऊदपुर में राजाओं के कब्रिस्तान में दफन किया गया क्योंकि उसने यहोवा के लिए और यहोवा के भवन के लिए अच्छे काम किए थे।
\s5
\v 17 यहोयादा के बाद यहूदा के प्रधान योआश के सामने उपस्थित हुए और उसे दण्डवत्् करके उसे विवश किया कि वह उनकी इच्छा पूरी करे।
\v 18 इसलिए यहूदावासियों ने यहोवा के भवन में आराधना करना त्याग दिया और अशेरा की लाटों तथा मूर्तियों की पूजा की। उनके इस पाप के कारण यहोवा सब यरुशलेमवासियों और यहूदा की प्रजा से क्रोधित हो गये।
\v 19 यहोवा ने भविष्यद्वक्ताओं को भेजा कि उन्हें उनके पास लौटा लाएँ और उनके पापों को उनके सामने लाएँ परन्तु उन्होंने भविष्यद्वक्ताओं की बातों पर ध्यान नहीं दिया।
\s5
\v 20 तब प्रधान याजक यहोयादा के पुत्र जकर्याह में यहोवा के आत्मा समाया और उसने ऊँचे स्थान में खड़े होकर कहा, यहोवा कहते हैं, “तुम यहोवा की आज्ञाओं का उल्लंघन क्यों करते हो? ऐसा करके तो तुम कभी समृद्ध नहीं हो पाओगे। अब क्योंकि तुमने यहोवा की आज्ञाओं का पालन करना छोड़ दिया है इसलिए वह भी तुम्हारी सुधि लेना छोड़ देंगे।”
\v 21 इस पर प्रजा ने जकर्याह की हत्या करने का विचार किया और राजा ने उन्हें अनुमति दे दी और उन्होंने यहोवा के भवन के आँगन ही में उसे पथराव करके मार डाला।
\v 22 राजा योआश जकर्याह के पिता यहोयादा के सब उपकार भूल गया। इसलिए उसने यहोयादा के पुत्र जकर्याह की हत्या करने की आज्ञा दे दी। उसने मरते समय उससे कहा, “तुम्हारे इस काम पर दृष्टि करके यहोवा बदला लें।”
\s5
\v 23 उस वर्ष के अन्त में अराम की सेना ने यहूदा पर आक्रमण किया। उन्होंने यरुशलेम पर आक्रमण करके यहूदा के सब प्रधानों को मार दिया और उनकी सब बहुमूल्य वस्तुएँ लूटकर राजधानी दमिश्क में अपने राजा के पास पहुँचा दीं।
\v 24 यद्यपि अराम की सेना जिसने आक्रमण किया था संख्या में बहुत ही कम थी, यहूदा की विशाल सेना उनसे हार गई क्योंकि उन के पूर्वजों के परमेश्वर ने उन्हें दण्ड दिया था।
\s5
\v 25 युद्ध में योआश गंभीर रूप से घायल हो गया था। तब उस के पुरुषों ने यहोयादा के पुत्र जकर्याह की हत्या करवाने के कारण उस का विद्रोह कर के उसे बिस्तर पर ही मार दिया। उन्होंने उसे यरूशलेम के दाऊदपुर में दफन कर दिया परन्तु राजाओं के कब्रिस्तान में नहीं।
\v 26 उस की हत्या का षड्यंत्र रचने वालों में थेः अम्मोनिन शिमात का पुत्र जाबाद, मोआबी स्त्री शिम्रित का पुत्र यहोजाबाद।
\s5
\v 27 योआश के पुत्रों के काम और उसके विषय में की गई भविष्यद्वाणियाँ और यहोवा के भवन के सुधार में किए गए उस के काम “यहूदा और इस्राएल के राजाओं का वृत्तान्त” नामक पुस्तक में लिखे है। योआश के मारने के बाद उसका पुत्र अमस्याह उसके स्थान पर यहूदा का राजा बना।
\s5
\c 25
\p
\v 1 अमस्याह ने पच्चीस वर्ष की आयु में यहूदा पर शासन करना आरम्भ किया और यरूशलेम में उनतीस वर्ष शासन किया। उसकी माता यरूशलेम वासी यहोअद्दान थी।
\v 2 उसने यहोवा की दृष्टि में उचित काम तो किए परन्तु मन की सच्चाई से नहीं किए।
\s5
\v 3 जैसे ही राज्य उस के पूर्ण नियंत्रण में आया वैसे ही उस ने अपने पिता के हत्यारों को मृत्युदण्ड दे दिया।
\v 4 परन्तु उसने उस के पुत्रों को दण्ड नहीं दिया। उस ने मूसा द्वारा स्थापित नियमों का पालन किया। उन नियमों में यहोवा ने आज्ञा दी थी, “पुत्र के कारण पिता को मृत्युदण्ड न दिया जाए और पिता के कारण पुत्र को मृत्युदण्ड न दिया जाए। जिसने पाप किया हो उसी को मृत्युदण्ड दिया जाए।”
\s5
\v 5 अमस्याह ने यहूदा और बिन्यामीनियों के गोत्रों के सब लोगों को यरूशलेम में बुलवाया और उन्हें कुलों के अनुसार दलों में बाँट दिया और उन पर शतपति और सहस्रपति नियुक्त कर दिए और बीस वर्ष के ऊपर के जितने पुरुष थे उनकी संख्या तीन लाख थी। वे भाला चलाने वाले और ढाल काम में लेने वाले योद्धा थे।
\v 6 अमस्याह ने इस्राएल से भी एक लाख योद्धा भाड़े पर बुलाए और उन्हें लगभग 3.5 टन चाँदी दी।
\s5
\v 7 परन्तु एक भविष्यद्वक्ता ने आकर उससे कहा, “हे महाराज, अपनी सेना के साथ इस्राएल के सैनिकों को मत रख क्योंकि यहोवा एप्रैम के गोत्र या किसी भी इस्राएली की सहायता नहीं करेंगे।
\v 8 तेरे सैनिक युद्ध में साहस दिखाएँ फिर भी यहोवा तेरे शत्रुओं को तुझ पर विजयी करेंगे। याद रख कि जय विजय या पराजय यहोवा की ओर ही है क्योंकि वह ऐसे सामर्थी हैं।”
\s5
\v 9 अमस्याह ने उससे कहा, “मैंने इस्राएली योद्धाओं को बहुत चाँदी दे दी है। उस का क्या करूँ?” उस भविष्यद्वक्ता ने कहा, “तूने इस्राएली योद्धाओं को जो चाँदी दी है उससे कहीं अधिक वह तुझे देने की क्षमता रखते हैं।”
\v 10 इसलिए अमस्याह ने इस्राएली योद्धाओं को घर लौट जाने के आदेश दिए। उन्होंने अपने घर के लिए प्रस्थान तो किया परन्तु वे युद्ध में न ले जाए जाने के कारण यहूदावासियों से अत्यधिक क्रोधित थे।
\s5
\v 11 तब अमस्याह हिम्मत बाँधकर अपनी सेना को लेकर नमक की घाटी में पहुँचा और दस हजार सेईरियों; एदोमियों के लोगों को मार डाला।
\v 12 यहूदा की सेना ने दस हजार सैनिकों को बन्दी बनाया और उन्हें एक ऊँची चट्टान पर ले जाकर वहाँ से गिरा दिया और उनके शरीर फट कर बिखर गए।
\s5
\v 13 इधर वे इस्राएली सैनिक जिन्हें अमस्याह ने लौटा दिया था, उन्होंने सामरिया से बेथोरोन तक यहूदा के सब नगरों के तीन हजार निवासी मार डाले तथा उन को लूट लिया।
\s5
\v 14 एदोमियों का संहार कर के उन की मूर्तियों को ले आया और उन को दण्डवत्् करने तथा उन के सामने बलि चढ़ाने लगा।
\v 15 इस कारण यहोवा क्रोधित हुए और एक भविष्यद्वक्ता को उसके पास भेजा। उस भविष्यद्वक्ता ने उससे कहा, “तू इन मूर्तियों की पूजा क्यों करता है? वे तो उस के लोगों को तुझ से बचा नहीं पाई थीं।”
\s5
\v 16 राजा ने उससे कहा, “क्या हम ने तुझे अपना परामर्शदाता नियुक्त किया है? चुप हो जा नहीं तो मैं सैनिकों को आज्ञा देकर तेरा सिर कटवा दूँगा।” उस भविष्यद्वक्ता ने उससे कहा, “तेरी मूर्तिपूजा के कारण यहोवा ने तेरा अन्त करने की ठान ली है।” और वह चुप होकर चला गया।
\s5
\v 17 कुछ समय बाद यहूदा के राजा अमस्याह ने अपने मंत्रियों के साथ विचार विमर्श करके इस्राएल के राजा योआश के पास सन्देश भेजा जिसमें उसने लिखा, “आकर मेरा सामना कर।”
\s5
\v 18 इस्राएल के राजा ने अमस्याह को अपना उत्तर लिख कर भेजा, “एक बार लबानोन के पर्वतों में उगने वाली कंटीली झाड़ी ने देवदार के वृक्ष से कहा, ‘तेरी पुत्री का विवाह मेरे पुत्र से करा दे।’ परन्तु लबानोन में एक वन पशु ने वहाँ से निकलते हुए उस झाड़ी को अपने पैरों तले कुचल दिया।
\v 19 मेरे कहने का अर्थ है कि एदोमियों को पराजित करके तू घमंड से भर गया है। तू अपनी विजय पर घमंड कर परन्तु मुझ से लड़ने का साहस मत कर। ऐसा करके तू अपना ही विनाश लाएगा। तू और यहूदा दोनों ही मिट्टी चाटेंगे।”
\s5
\v 20 परन्तु अमस्याह ने यहोआश की चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया। यह यहोवा का प्रबंध था कि अमस्याह शत्रु के हाथ में पड़े क्योंकि उसने एदोमियों की मूर्तियों की पूजा की थी।
\v 21 इसलिए योआश अपनी सेना लेकर आया और इस्राएल तथा यहूदा की सेनाओं ने यहूदा के बेतशेमेश में एक दूसरे का सामना किया।
\v 22 युद्ध का परिणाम यह हुआ कि यहूदा की सेना इस्राएली सेना से हार गई और यहूदा के सैनिक अपने-अपने घर को भागे।
\s5
\v 23 योआश के सैनिकों ने अमस्याह को बन्दी बना लिया और उसे लेकर यरूशलेम आए। इस्राएली सैनिकों ने यरूशलेम की शहरपनाह को एप्रैमी फाटक से कोने वाले फाटक तक ढा दिया जिसकी लम्बाई 180 मीटर थी।
\v 24 तब उस की सेना ने ओबेदेदोम की देख-रेख में जितनी भी सोने-चाँदी के पात्र और बहुमूल्य वस्तुए थीं सब लूट लीं और जितने भी बन्दी उन्होंने बनाए थे, सब को लेकर वे सामरिया चले गए।
\s5
\v 25 इस्राएल के राजा योआश के मरने के बाद यहूदा का राजा अमस्याह पन्द्रह वर्ष और जीवित रहा।
\v 26 अमस्याह ने अपने शासनकाल में जो काम किए वे सब “यहूदा और इस्राएल के राजाओं की पुस्तक” में लिखे है।
\s5
\v 27 जब अमस्याह ने यहोवा की आज्ञाओं नहीं मानना आरम्भ किया तब ही से यरूशलेम में उसके विरूद्ध हत्या का षड्यंत्र रचा जाने लगा था। इसलिए वह लाकीश भाग गया था परन्तु उसके षड्यंत्रकारियों ने वहाँ भी अपने लोग भेज कर उस की हत्या करवा दी।
\v 28 उस का शव एक घोड़े पर लादकर यरूशलेम लाया गया और यरूशलेम के दाऊदपुर में उसे राजाओं के कब्रिस्तान में दफन किया गया।
\s5
\c 26
\p
\v 1 अमस्याह के बाद प्रजा ने उस के पुत्र उज्जियाह को अपना राजा नियुक्त किया। उस समय उसकी आयु सोलह वर्ष की थी।
\v 2 अपने पिता अमस्याह के मरने के बाद जब उज्जियाह राजा बना तो उसने एलोत नगर को जीत कर उस का पुनर्निर्माण किया।
\v 3 उज्जियाह बावन वर्ष तक यरूशलेम शासन करता रहा। उस की माता यकोल्याह यरूशलेम की ही थी।
\s5
\v 4 उसने अपने पिता अमस्याह के समान यहोवा की दृष्टि में उचित काम किए।
\v 5 उसने जकर्याह के दिनों में यहोवा को प्रसन्न करने वाले काम किए क्योंकि जकर्याह ने उसे परमेश्वर का भय मानना सिखाया था। उज्जियाह ने जब तक यहोवा को प्रसन्न करने के काम किए तब तक यहोवा ने उसे सफलता प्रदान की।
\s5
\v 6 उज्जियाह अपनी सेना लेकर पलिश्तियों पर आक्रमण करने गया और उन्होंने गत, यब्ने और अश्दोद की शहरपनाहें ढा दीं और अश्दोद तथा पलिश्त में उन्होंने नगरों का दुबारा निर्माण किया।
\v 7 परमेश्वर ने पलिश्तियों और गूबौलवासी अरबियों और एदोम से वहाँ आए मूनियों के विरूद्ध युद्ध में उस की सहायता की।
\v 8 अम्मोनी भी उज्जियाह को वार्षिक लगान देते थे। उस की कीर्ति मिस्र की सीमा तक पहुँच गई थी क्योंकि वह अत्यधिक सामर्थी हो गया था।
\s5
\v 9 उज्जियाह ने यरूशलेम में कोने के फाटक और तराई के फाटक और शहरपनाह के मोड़ पर पहरेदारी के लिए गुम्मट बनवाकर वहाँ हथियार रखवाए।
\v 10 उसने मरूभूमि में भी पहरेदारी के लिए गुम्मट बनवाए और कुँए खुदवाए कि पर्वतों की तलहटियों और मैदानों में चरने वाले राज्य के पशुओं को पानी मिले। उज्जियाह कृषि में रूचि रखता था इसलिए उसने पहाड़ों पर और मैदानों में अपने खेतों और दाख की बारियों पर किसान नियुक्त कर दिए थे।
\s5
\v 11 उज्जियाह की सेना युद्ध करने में प्रशिक्षित थी। वे युद्ध के लिए सदा तैयार रहते थे। राजा का मुंशी यीएल और मासेयाह सेना प्रधान पर पुरुषों की गिन कर उन्हें दलों में विभाजित कर दिया। राजा के एक पुरुष हनन्याह उन का सेनापति था।
\v 12 उसके सैनिकों पर सरदार नियुक्त किए गए थे। वे यहूदा के कुलों के मुख्य पुरुष थे जिनकी संख्या 2,600 थी।
\v 13 उनके अधीन जो सैनिक थे उनकी कुल संख्या तीन लाख साढ़े सात हजार थी।
\s5
\v 14 उज्जियाह ने उनके लिए ढालें, भाले, टोप, कवच, धनुष और गोफन तैयार किए।
\v 15 यरूशलेम में उसके कुशल कारीगरों ने गुम्मटों और कोने की दीवारों पर ऐसे यंत्र बनाकर रखे जिनके द्वारा तीर और बड़े-बड़े पत्थर फेंके जाते थे। उनकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई क्योंकि यहोवा उस के साथ था और उसने ही उसे सामर्थी बनाया।
\s5
\v 16 परन्तु जब वह ऐसा सामर्थी हो गया तब वह घमंड से भर गया और यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन करके वेदी पर धूप जलाने के लिए यहोवा के भवन में प्रवेश कर गया। वेदी पर धूप जलाना केवल याजक का काम था।
\v 17 प्रधान याजक अजर्याह और उसके साथ अस्सी साहसी याजक उसके पीछे भवन में गए।
\v 18 उन्होंने उसे झिड़ककर कहा, “उज्जियाह तूने यह उचित नहीं किया क्योंकि तू यहोवा के सम्मान में धूप जलाने के लिए पवित्र नहीं किया गया है। यह काम हमारे प्रथम प्रधान याजक हारून के वंशजों का ही है। तू तुरन्त बाहर हो जा क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा की आज्ञा को नहीं माना है और तेरे गए इस अवज्ञा के कारण तेरी महिमा की हानि होगी।”
\s5
\v 19 उज्जियाह के हाथों में धूपदान था। वह पुजारियों से क्रोधित हो गया और तुरन्त उस के हाथ में कोढ़ हो गया।
\v 20 तब अजर्याह और सब याजक जो उस के साथ थे उन्होंने देखा कि उज्जियाह के माथे पर भी कोढ़ है। इसलिए उन्होंने तुरन्त उसे भवन से बाहर निकाला। यह जानकर कि यहोवा ने उसे कोढ़ग्रस्त किया है वह भी तुरन्त बाहर निकला क्योंकि वह नहीं चाहता था कि कोढ़ गंभीर रूप ले।
\s5
\v 21 राजा उज्जियाह को मरने के दिन तक कोढ़ लगा रहा। वह अलग एक घर में रहता था और यहोवा के भवन के आँगन में प्रवेश नहीं कर सकता था। उस का पुत्र योताम राजमहल की व्यवस्था करता था और प्रजा का न्याय भी करता था।
\s5
\v 22 राजा उज्जिय्याह के शासनकाल के सब काम आमोस के पुत्र यशायाह ने लिखे है।
\v 23 उसकी मृत्यु हो जाने पर उसे राजाओं के कब्रिस्तान में दफन नहीं किया गया। उसे राजाओं के खेत में दफन किया गया क्योंकि वह कोढ़ी था। उसके मरणोपरान्त उस का पुत्र योताम उसके स्थान में यहूदा का राजा बना ।
\s5
\c 27
\p
\v 1 योताम जब यहूदा का राजा बना तब वह पच्चीस वर्ष की आयु का था। और उसने यरूशलेम से सोलह वर्ष यहूदा पर शासन किया। उसकी माता याजक सादोक की पुत्री यरूशा थी।
\v 2 योताम ने यहोवा को प्रसन्न करने के काम किए, जैसा उसके पिता उज्जियाह ने किए थे। उसने यहोवा की आज्ञाओं का पालन किया और उचित काम किए। उसने अपने पिता के समान सब काम किए परन्तु यहोवा के भवन में धूप नहीं जलाया परन्तु यहूदावासी यहोवा के विरूद्ध पाप करते रहे।
\s5
\v 3 योताम ने यहोवा के भवन का ऊपरवाला फाटक बनवाया। और ओपेल की शहरपनाह पर बहुत निर्माण कार्य करवाया।
\v 4 उसने यहूदा के पहाड़ों में नगर बसाए और मरूभूमि में सुरक्षा के लिए किले और गुम्मट बनवाए।
\s5
\v 5 उसने अपने शासनकाल में अम्मोनियों पर आक्रमण करके उन्हें हरा दिया। और आने वाले तीन वर्षों तक प्रतिवर्ष उसने उनसे साढ़े तीन टन् चाँदी और 2,200 किलोलीटर गेहूँ और 2,200 किलोलीटर जौ लिया।
\s5
\v 6 योताम ने सच्चे मन से अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं का पालन किया और परिणामस्वरूप वह अत्यधिक सामर्थी हो गया।
\v 7 योताम के शासनकाल के सब काम तथा उसके द्वारा किए गए युद्धों का वृत्तान्त “यहूदा और इस्राएल के राजाओं की पुस्तक” में लिखा है।
\s5
\v 8 यहूदा पर सोलह वर्ष शासन करने के बाद वह इकतालीस वर्ष की आयु में मर गया।
\v 9 उसे यरूशलेम में दफन किया गया और उसके स्थान में उस का पुत्र आहाज यहूदा का राजा बना ।
\s5
\c 28
\p
\v 1 आहाज जब यहूदा का राजा बना तब वह बीस वर्ष का था। उसने यरूशलेम में रह कर सोलह वर्ष शासन किया। आहाज ने अपने पूर्वज दाऊद के समान यहोवा को प्रसन्न करने के काम नहीं किए। उसने यहोवा की आज्ञाओं को नहीं माना।
\v 2 वह इस्राएल के राजाओं के समान पापी हुआ। उसने बाल की मूर्तियाँ बनवाकर उन्हें धातु में ढलवाया।
\s5
\v 3 उसने हिन्नोम की घाटी में धूप जलाई और अपने पुत्रों को भी आग में बलि चढ़ा दिया जो उन जातियों का घृणित काम था जिन्हें यहोवा ने उस देश से निकाला था जब इस्राएली वहाँ प्रवेश कर रहे थे।
\v 4 उसने पर्वतों की चोटियों पर बने मंदिरों में मूर्तियों के सामने और प्रत्येक बड़े हरे वृक्ष के नीचे बलियाँ चढ़ाईं।
\s5
\v 5 यही कारण था कि यहोवा ने उस की सेना को अराम की सेना से पराजित करवा दिया। उन्होंने यहूदा के अनेक सैनिकों को बन्दी बनाया और उन्हें दमिश्क ले गए। इस्राएल की सेना ने भी उन्हें पराजित कर अनेक सैनिकों की हत्या की।
\v 6 इस्राएल के राजा रमल्याह के पुत्र पेकह की सेना ने एक ही दिन में यहूदा के 1,20,000 सैनिकों को घात किया। इसका मुख्य कारण था कि यहूदावासियों ने अपने पूर्वजों के आराध्य परमेश्वर यहोवा का त्याग कर दिया था।
\s5
\v 7 एप्रैम के एक योद्धा ने जिसका नाम जिक्री था, राजा के एक पुत्र मासेयाह और राजमहल के व्यवस्थापक अज्रीकाम और राजा के मंत्री एल्काना की हत्या कर दी।
\v 8 इस्राएली सैनिकों ने 2,00,000 यहूदावासियों को जिनमें यहूदा के सैनिकों की पत्नियाँ, पुत्र और पुत्रियाँ थे, बन्दी बना लिया। उन्होंने अनेक मूल्यवान वस्तुएँ लूटीं और सामरिया ले गए।
\s5
\v 9 परन्तु यहोवा के एक भविष्यद्वक्ता ने जिसका नाम ओदेद था, वह सामरिया में था। वह घर लौटने वाली सेना के सामने खड़ा हुआ और उनसे कहा, “तुम्हारे पूर्वज जिनकी आराधना करते हैं, परमेश्वर यहोवा यहूदावासियों से क्रोधित हैं इसलिए उन्होंने उन्हें तुम्हारे हाथों पराजित कर दिया और तुम ने उन्हें क्रोध में घात किया है।
\v 10 अब तुम यहूदा की स्त्री और पुरुषों को दास बना कर यहोवा को निश्चय दुख पहुँचाते हो।
\v 11 इसलिए मेरी बात मानकर अपने जाति भाइयों को, जिन्हें तुमने बन्दी बनाया है, यहूदा भेज दो क्योंकि तुम ने उनके साथ जो किया है, उससे यहोवा क्रोधित है।”
\s5
\v 12 तब एप्रैम के गोत्र के कुछ प्रधानः योहानान का पुत्र अजर्याह, मशिल्लेमोत का पुत्र बेरेक्याह, शल्लूम का पुत्र यहिजकिय्याह और हदलै का पुत्र आमासा लौट रही सेना का सामना कर कहने लगे,
\v 13 “तुम इन बन्दियों को यहाँ नहीं लाओगे! यदि तुमने ऐसा किया तो यहोवा तुम्हें पाप का दोषी ठहराएगा। हम वैसे पापों के दोषी है। क्या तुम चाहते हो कि हम और पाप करके अपने दोष बढ़ाएँ? परमेश्वर तो हम इस्राएलियों से पहले ही क्रोधित हैं ।”
\s5
\v 14 इसलिए सैनिकों ने अगुओं और जनता के सामने ही सब बन्दियों को छोड़ दिया और सारा लूट का सामान उन्हें दे दिया।
\v 15 अगुओं ने कुछ लोगों को बन्दियों की देख-रेख के लिए नियुक्त कर दिया। उन्होंने सैनिकों से लूट के वस्त्र लेकर जो नंगे थे, उन्हें दिए। उन्होंने बन्दियों को जूते और वस्त्र दिए और उन्हें भोजन-पानी दिया। उन्होंने उन्हें जैतून का तेल भी दिया कि अपने घावों पर लगाएँ। जो दुर्बल थे उनकी सवारी के लिए उन्होंने गधों का प्रबंध भी किया। तब वे उन्हें खजूर के नगर यरीहो ले गए। तब वे लौट कर सामरिया आ गए।
\s5
\v 16 उस समय राजा आहाज ने अश्शूरों के राजा से सहायता मांगी।
\v 17 उसने ऐसा इसलिए किया कि एदोम की सेना ने उन पर आक्रमण करके अनेक यहूदावासियों को बन्दी बना लिया था।
\v 18 उसी समय पलिश्तियों ने यहूदा की पर्वतीय तलहटी के नगरों और उत्तरी मरूभूमि में आक्रमण कर दिया और बेतशेमेश, अय्यालीन, गेदेरोत और गाँवों समेत सोको, तिम्ना और गिमजो पर अधिकार कर लिया।
\s5
\v 19 यहोवा ने यह सब इसलिए किया कि आहाज दीन बने क्योंकि उसने यहूदावासियों को पाप करने की प्रेरणा दी और यहोवा की आज्ञाओं का पालन नहीं किया था।
\v 20 अश्शूरों के राजा तिग्लत्पिलेसेर ने आहाज की सहायता के लिए अपनी सेना भेजी परन्तु सहायता करने के बजाय उसकी सेना ने उसके लिए कष्ट ही उत्पन्न किया।
\v 21 आहाज ने यहोवा के भवन से, राजभवन से और यहूदा के प्रधानों से मूल्यवान वस्तुएँ लेकर अश्शूरों के राजा को भेंट चढ़ाई परन्तु उसने आहाज की सहायता करने से इंकार कर दिया।
\s5
\v 22 क्लेशों से घिर जाने के बाद भी राजा आहाज ने यहोवा का और भी अधिक विश्वासघात किया।
\v 23 उसने दमिश्कवासियों के देवताओं की बलि चढ़ाई, जिन्होंने उसकी सेना को पराजित किया था। उसने सोचा, “अराम के राजा जिन देवताओं की पूजा करते है, वे उनकी सहायता करते है इसलिए मैं भी उनकी बलि चढ़ाऊँगा कि वे मेरी भी सहायता करें।” परन्तु परिणाम यह हुआ कि उनकी आराधना के कारण आहाज और संपूर्ण इस्राएल का विनाश हुआ।
\s5
\v 24 आहाज ने यहोवा के भवन के सब पात्र तुड़वा दिए और भवन के द्वार बन्द करवा कर यरूशलेम की सड़कों पर हर एक कोने में मूर्तिपूजा के लिए वेदियाँ बनवा दीं।
\v 25 यहूदा के प्रत्येक नगर में उसने पर्वतों की चोटियों पर मंदिर बनवा कर देवी-देवताओं के लिए होम-बलि कीं। इस कारण उन के पूर्वजों का परमेश्वर यहोवा क्रोध का उन पर भड़क उठा।
\s5
\v 26 उसके शासनकाल के आरम्भ से अंत तक उसके सब काम “यहूदा और इस्राएल के राजाओं की पुस्तक” में लिखे है।
\v 27 आहाज की मृत्यु हुई और उसे यरूशलेम में दफन किया गया परन्तु राजाओं के कब्रिस्तान में नहीं। उसके बाद उस का पुत्र हिजकिय्याह उसके स्थान में यहूदा का राजा बना ।
\s5
\c 29
\p
\v 1 हिजकिय्याह जब यहूदा का राजा बना तब उसकी आयु पच्चीस वर्ष की थी। उसने यरूशलेम उनतीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माता जकर्याह की पुत्री अबिय्याह थी।
\v 2 हिजकिय्याह अपने पूर्वज राजा दाऊद के चरण चिन्हों पर चला और यहोवा को ही प्रसन्न करने के काम किए।
\s5
\v 3 अपने शासन के पहले वर्ष के पहले महीने। उसने यहोवा के भवन के द्वार खुलवाए और भवन में सुधार कार्य किया।
\v 4 तब उसने याजकों को लेवी के वंशजों को यहोवा के भवन के पूर्व की ओर आँगन में इकट्ठा किया।
\v 5 और उनसे कहा, “हे लेवी के वंशजों सुनो! अपने को पवित्र करो और यहोवा के भवन को यहोवा के सम्मान के लिए तैयार करो और पवित्र स्थान से सारा कूड़ा निकाल कर बाहर कर दो।
\s5
\v 6 हमारे पूर्वजों ने यहोवा की आज्ञाओं का उल्लंघन करके उसकी दृष्टि में बुरे काम किए, ऐसे काम जिनसे वह प्रसन्न नहीं होता है। उन्होंने यहोवा के इस निवास स्थान को त्याग दिया और उससे विमुख हो गए थे।
\v 7 उन्होंने यहोवा के भवन के द्वार बन्द कर दिए और उसके दीपकों को बुझा दिया। उन्होंने वेदी पर धूप नहीं जलाई और पवित्र स्थान में होम-बलि नहीं की।
\s5
\v 8 इसलिए यहोवा हम पर यरूशलेमवासियों से वरन सब यहूदा वासियों से क्रोधित है। उसने हमें विस्मय का और निन्दा का कारण बना दिया है। यह तो तुम भी भली-भांति जानते हो।
\v 9 यही कारण है कि हमारे पिता युद्ध में मारे गए और हमारे पुत्र और पुत्रियाँ और पत्नियाँ बन्दी बना कर दूसरे देशों में ले जाए गए।
\s5
\v 10 परन्तु अब मैं हमारे परमेश्वर यहोवा के साथ वाचा बाँधना चाहता हूँ कि वह हमसे क्रोधित न हो।
\v 11 तुम मेरे लिए पुत्रों के समान हो। समय मत गंवाओ। यहोवा ने तुम्हें चुना है कि उसकी उपस्थिति में खड़े होकर बलि चढ़ाओ और धूप जलाओ। इसलिए उस की इच्छा पूरी करने में शीघ्रता करो।
\s5
\v 12 तब लेवी के वंशजों ने यहोवा के भवन में सेवा करना आरम्भ कर दिया। कहातियों के वंशजों में से अमासै का पुत्र महत और अजर्याह का पुत्र योएल, और मरारी के वंशजों में से अब्दी का पुत्र कीश और यहल्लेलेल का पुत्र अजर्याह और गेर्शेम के वंशजों में से जिम्मा का पुत्र योआह और योआह का पुत्र एदेन,
\v 13 और एलिसापान के वंशजों में से शिम्री, यूएल; तथा आसाप के वंशजों में से जकर्याह और मत्तन्याह,
\v 14 और हेमान के वंशजों में से यहूएल और शिमी, और यदूतून के वंशजों में से शमायाह और उज्जीएल।
\s5
\v 15 इन सब ने अपने-अपने सगोत्र भाइयों को इकट्ठा किया और शोधन विधि पूरी करके राजा की आज्ञा के अनुसार जो उसने यहोवा से प्राप्त की थी, यहोवा के भवन का शोधन करने भीतर गए।
\v 16 उन्होंने यहोवा के भवन में से वे सब वस्तुएँ जो यहोवा के लिए घृणित थीं निकालकर भवन के आँगन में पहुँचा दीं और लेवी के वंशजों ने उन्हें किद्रोन के नाले में ले जाकर जला दिया।
\v 17 याजकों और लेवी के वंशजों ने यह शोधन कार्य पहले महीने के पहले दिन आरम्भ किया था और उसी महीने के आठवें दिन वे भवन के मण्डप तक पहुँच गए थे और एक सप्ताह बाद उन्होंने यहोवा के सम्मान में भवन का शोधन कार्य संपन्न किया।
\s5
\v 18 तब उन्होंने जाकर राजा हिजकिय्याह को लेखा देते हुए कहा, “हमने यहोवा के भवन का कोना-कोना पवित्र कर दिया है और होम-बलि करने की वेदी और वेदी पर काम में आने वाले सब पात्र और यहोवा के सम्मुख भेंट की रोटियाँ रखने की मेज और मेज का सब सामान भी पवित्र कर दिया है।
\v 19 राजा आहाज ने यहोवा से विश्वासघात करके जितना भी सामान फेंक दिया था, उन सबको हमने लाकर यहोवा की सेवा के लिए समर्पित कर दिया है और यहोवा की वेदी के सामने रख दिया है कि दिखाई दें।”
\s5
\v 20 अगले दिन सुबह राजा हिजकिय्याह ने नगर के सब प्रधानों को इकट्ठा किया और वे सब यहोवा के भवन के आँगन में ले गए।
\v 21 और राजा ने याजकों को आज्ञा दी कि वे हारून के वंशज होने के कारण यहोवा के सामने वेदी पर बलि चढ़ाएँ। बलि के लिए वे सात बैल, सात मेढ़े, सात वर मेम्ने और सात बकरे लाए थे। बलि का उद्देश्य था कि यहोवा के पाप क्षमा करे और यहोवा का भवन पवित्र हो।
\s5
\v 22 इसलिए याजकों ने पहले बैलों को मार दिया और उनका रक्त वेदी पर चारों ओर छिड़का, उसके बाद उन्होंने मेढ़ों को मार के वेदी पर चारों ओर छिड़का। उसके बाद उन्होंने मेम्नों को मार के रक्त को वेदी पर चारों ओर छिड़का।
\v 23 बकरे पाप-बलि के लिए थे। इसलिए उन्हें राजा और प्रजा के सामने लाया गया और राजा तथा प्रजा के प्रधानों ने उन पर हाथ रखे।
\v 24 तब याजकों ने उन्हें मार दिया और इस्राएल के पापों के प्रायश्चित स्वरूप उनका रक्त वेदी पर चारों ओर छिड़का क्योंकि राजा ने आज्ञा दी थी कि संपूर्ण इस्राएल के लिए होम-बलि और पाप-बलि चढ़ाने की आज्ञा दी थी।
\s5
\v 25 तब राजा ने लेवी के वंशजों को आज्ञा दी कि वे अपने झाँझ, वीणाएँ और सारंगियाँ लेकर दाऊद, भविष्यद्वक्ता गाद और नातान की आज्ञा के अनुसार खड़े हों। यहोवा ने अपने भविष्यद्वक्ताओं द्वारा इसकी आज्ञा दी थी।
\v 26 इसलिए लेवी के वंशज यहोवा के भवन में यथास्थान खड़े होकर दाऊद द्वारा उनके लिए तैयार किए गए वाद्य यन्त्रों को बजाने लगे और याजक तुरहियाँ फूँकने लगे।
\s5
\v 27 तब हिजकिय्याह ने याजकों से कहा कि वे होम-बलि के पशुओं का मार दिया। जब वे बलि के पशुओं को मार रहे थे तब प्रजा यहोवा का स्तुतिगान गा रही थी और लेवी के वंशज संगीत बजा रहे थे।
\v 28 उपस्थित लोगों ने यहोवा की आराधना में दण्डवत्् किया और गायक गा रहे थे तथा तुरहियाँ फूँकी जा रही थीं। वे यहोवा की स्तुति करते रहे जब तक कि होम-बलि वाले सब पशुओं को मारा नहीं गया।
\s5
\v 29 जब बलि चढ़ाना पूरा हुआ तब सबने घुटने टेककर यहोवा की आराधना की।
\v 30 तब राजा हिजकिय्याह और प्रधानों ने लेवी के वंशजों को आज्ञा दी कि वे राजा दाऊद और आसाप द्वारा रचे गए भजनों को गाकर यहोवा की स्तुति करें। उन्होंने बड़े आनन्द से वे भजन गाए और सिर झुकाकर आराधना की।
\s5
\v 31 तब राजा हिजकिय्याह ने कहा, “अब तुम लोग यहोवा के सम्मान के लिए समर्पित हो गए हो। इसलिए समीप आकर यहोवा के भवन में बलि के लिए पशु पहुँचाओ तथा धन्यवाद की बलि भी चढ़ाओ।” तब जो लोग होम-बलि चढ़ाना चाहते थे बलि पशु ले आए।
\s5
\v 32 वे जितने बलि पशु लाए उनकी कुल संख्या थी, सत्तर बैल, एक सौ मेढ़े, दो सौ नर मेम्ने। ये सब होम-बलि के लिए थे।
\v 33 यहोवा के सम्मान में जो पशु पवित्र करके बलि चढ़ाने के लिए लाए गए थे उनकी कुल संख्या थी, छः सौ बैल और तीन हजार भेड़-बकरियाँ।
\s5
\v 34 वेदी पर होम-बलि की संख्या बहुत अधिक होने के कारण याजक उनकी खाल नहीं उतार पाए इसलिए लेवी के वंशजों ने उनकी सहायता करके उस काम को पूरा किया और जब तक याजकों ने यहोवा के सम्मान के सेवा के लिए स्वयं को पवित्र नहीं किया जैसे कि लेवी के वंशजों ने यहोवा के सम्मान के लिए स्वयं को पवित्र कर लिया था।
\s5
\v 35 वेदी पर होम-बलि के अतिरिक्त याजकों ने यहोवा के साथ मेल-बलि की चर्बी भी वेदी पर जताई। दाखमधु का अर्घ भी चढ़ाया गया था। इस प्रकार यहोवा के भवन में आराधना का दुबारा आरम्भ हुआ।
\v 36 तब हिजकिय्याह और प्रजा ने पर्व मनाया क्योंकि यहोवा के भवन के सुधार-कार्य को शीघ्र पूरा करने में उनकी सहायता की थी।
\s5
\c 30
\p
\v 1-3 तब राजा हिजकिय्याह और उसके अधिकारियों ने यरुशलेम में उपस्थित प्रजा के साथ फसह मनाने का विचार किया परन्तु वे यथासमय फसह मनाने योग्य न थे क्योंकि याजकों में से अनेकों ने शोधन विधि पूरी नहीं की थी जिसके कारण वे फसह में सहभागी नहीं हो सकते थे। दूसरा कारण यह भी था कि फसह के लिए सारी प्रजा भी उपस्थित नहीं थी। इसलिए उन्होंने अगले महीने फसह मनाने का निर्णय लिया।
\s5
\v 4 राजा और प्रजा को यह निर्णय अच्छा लगा।
\v 5 इसलिए उन्होंने यहूदा और इस्राएल में दूर उत्तर में बेर्शेबा से लेकर दूर उत्तर में दान तक के सब नगरों और गाँवों में तथा एप्रैम और मनश्शे के गोत्रों को भी सन्देश भेजकर लोगों को आमन्त्रित किया कि यहोवा के सम्मान में यरुशलेम आकर फसह मनाएँ। अनेक जन तो ऐसे थे जिन्होंने फसह कभी नहीं मनाया था जबकि मूसा के विधान में लिखा था कि फसह मनाना अनिवार्य है।
\s5
\v 6 राजा की आज्ञा का पालन करके दूत राजा और उसके अधिकारियों के पत्र लेकर संपूर्ण यहूदा और इस्राएल में गए। पत्रों में लिखा थाः “हे इस्राएलियों! अब्राहम, इसहाक और याकूब के परमेश्वर यहोवा की ओर फिरो कि वह अश्शूरों के राजा के हाथ से बचे हुए तुम लोगों की ओर फिरे।
\s5
\v 7 अपने पूर्वजों और भाइयों के समान मत बनो जिन्होंने अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा का त्याग किया और परिणाम-स्वरूप यहोवा ने उन्हें विस्मय का कारण बना दिया। यह तो तुम स्वयं देख रहे हो।
\v 8 अब अपने पूर्वजों के समान हठ मत करो, यहोवा के अधीन होकर यहोवा के पवित्र स्थान में आ जाओ क्योंकि यहोवा ने इस स्थान को सदा के लिए पवित्र कर दिया है और अपने परमेश्वर यहोवा की आराधना करो कि उसका क्रोध शान्त हो जाए।
\v 9 यदि तुम यहोवा की आराधना करोगे तो तुम्हारे भाइयों और सन्तानों को बन्दी बनाकर ले जाने वाले उन पर दया करेंगे और वे अपने देश लौट पाएँगे क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा अनुग्रहकारी और दयालु है। तुम उसकी ओर फिरोगे तो वह तुमसे मुँह न मोड़ेगा।”
\s5
\v 10 दूत एप्रैम और मनश्शे के प्रदेशों में और दूर उत्तर में जबूलून के गोत्र तक गए और उन्हें यह सन्देश सुनाया परन्तु अधिकाँश लोगों ने उनका ठट्ठा किया और उन पर हँसे।
\v 11 परन्तु आशेर, मनश्शे और जबूलून के कुछ लोगों ने अपने पाप स्वीकार किए और यरुशलेम को गए।
\v 12 यहूदा में भी परमेश्वर ने लोगों के मन को ऐसा किया कि वे एकजुट होकर यहोवा की आज्ञा मानने को तैयार हुए। यही तो राजा और उसके अधिकारियों ने पत्र में लिखकर भेजा था।
\s5
\v 13 इसलिए उस वर्ष के दूसरे महीने में एक विशाल जनसमूह अखमीरी रोटी का पर्व मनाने इकट्ठा हुआ।
\v 14 उन्होंने यरुशलेम में से बाल की वेदियाँ और देवी-देवताओं के लिए धूप जलाने की वेदियाँ उखाड़ कर किद्रोन नाले में फेंक दीं।
\v 15 उस महीने के चैदहवें दिन उन्होंने फसह के मेम्ने बलि किए। याजक और लेवी के वंशज जिन्होंने शोधन विधि पूरी नहीं की थी, लज्जित थे और उन्होंने यहोवा की सेवा के लिए स्वयं को पवित्र किया और यहोवा के भवन में होम-बलि ले आए।
\s5
\v 16 वे सब यहोवा के दास मूसा द्वारा निर्धारित अपने-अपने स्थान में खड़े हुए और लेवी के वंशजों ने बलि के पशुओं का रक्त कटोरे में लेकर याजकों को दिया और याजकों ने वेदी पर चारों ओर उस रक्त को छिड़का।
\v 17 जन समूह में कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने अपना शोधन नहीं किया था, इसलिए वे मेम्ने का मार कर यहोवा को अर्पित नहीं कर पाए। इसलिए लेवी के वंशजों को उनके लिए मेम्ने को मारना पड़ा।
\s5
\v 18 यद्यपि एप्रैम, मनश्शे और इस्साकार के गोत्रों से अनेक जन शुद्ध नहीं थे, उन्होंने फसह का भोजन खाया जो मूसा द्वारा लिखे हुए नियमों के विरुद्ध था। हिजकिय्याह ने उनके लिए प्रार्थना की, “हे यहोवा तू सदैव ही भलाई करता आया है; मैं विनती करता हूँ कि उन सबको क्षमा कर दे जो हमारे पूर्वजों का परमेश्वर है,
\v 19 जो सच्चे मन से तेरी खोज में है चाहे उन्होंने तेरे दिए गए पवित्र नियमों का पालन करके अपना शोधन नहीं किया है।”
\v 20 और यहोवा ने हिजकिय्याह की प्रार्थना सुनकर उन्हें क्षमा कर दिया और उन्हें दण्ड नहीं दिया।
\s5
\v 21 यरुशलेम में जितने भी इस्राएली उपस्थित थे, उन्होंने सात दिन तक अखमीरी रोटी का पर्व मनाया। उन्होंने बड़े आनन्द के साथ पर्व मनाया और लेवी के वंशजों ने और याजकों ने प्रतिदिन यहोवा के लिए भजन गाए और उसकी स्तुति में संगीत बजाया।
\v 22 हिजकिय्याह ने यहोवा की सेवा के लिए और आराधकों की कुशल अगुवाई के लिए लेवी के वंशजों को धन्यवाद दिया। सातों दिन लोगों ने फसह खाया और यहोवा के साथ मेल-बलि चढ़ाई और अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा की स्तुति की।
\s5
\v 23 तब जनसमूह ने सात दिन और पर्व मनाने का निर्णय लिया और सात दिन और बड़े आनन्द से पर्व मनाया।
\v 24 राजा हिजकिय्याह ने एक हजार बैल और सात हजार भेड़ें उपलब्ध करवाईं कि पर्व में भोज किया जाए राजा के अधिकारियों ने भी एक हजार बैल और दस हजार भेड़ बकरियाँ दीं। उस पर्व में बहुत से याजकों ने स्वयं को पवित्र किया कि यहोवा की सेवा करें।
\s5
\v 25 सब यहूदावासियों ने और याजकों और लेवी के वंशजों ने तथा इस्राएल से आने वाले श्रद्धालुओं ने तथा इस्राएल और यहूदा में रहने वाले विदेशियों ने भी आनन्द मनाया।
\v 26 यरुशलेम में सब लोगों ने बड़ा आनन्द मनाया क्योंकि राजा दाऊद के पुत्र राजा सुलैमान के दिनों से ऐसा यरुशलेम में नहीं हुआ था।
\v 27 याजक और लेवी के वंशजों ने खड़े होकर प्रजा को आशीर्वाद दिया और यहोवा ने अपने पवित्र स्थान, स्वर्ग में से उनकी प्रार्थना सुन ली।
\s5
\c 31
\p
\v 1 पर्व समाप्त हो जाने के बाद जितने इस्राएली वहाँ उपस्थित थे, यहूदा के सब नगरों में और बिन्यामीन, मनश्शे और एप्रैम के नगरों में गए और मूर्तिपूजा के स्थलों को और अशेरा की लाटों को तोड़ दिया और ऊँचे स्थानों की वेदियों का भी ध्वस्त कर दिया और अपने-अपने निवास स्थानों को लौट गए।
\s5
\v 2 हिजकिय्याह ने याजकों को और लेवी के वंशजों को दलों में विभाजित कर दिया। कुछ दलों को उसने होम-बलि और यहोवा से मेल-बलि को चढ़ाने का उत्तरदायित्व सौंपा। कुछ दलों को यहोवा के भवन के अन्य उत्तरदायित्व सौंपे जैसे लोगों की आराधना करने में अगुआई करना; कुछ को यहोवा का धन्यवाद करने के लिए नियुक्त किया; कुछ को यहोवा के भवन के द्वारों पर यहोवा के लिए स्तुतिगान के लिए नियुक्त किया।
\v 3 राजा ने सुबह-शाम की बलियों के लिए, सब्त की बलियों के लिए, नये चाँद की बलियों के लिए तथा पर्वों की बलियों के लिए जिनका नियम यहोवा ने मूसा के विधान में व्यक्त किया था, पशु खरीदने के लिए अपने कोष में से प्रबन्ध किया।
\s5
\v 4 हिजकिय्याह ने यरुशलेमवासियों को आज्ञा दी कि वे याजकों और लेवी के वंशजों को उनके अधिकार का भाग दें जिससे कि वे यहोवा के नियमों का पालन करने में अपना पूरा समय लगाकर सेवा करें।
\v 5 राजा आज्ञा सुनते ही प्रजा ने अन्न, नया दाखमधु, जैतून का तेल, मधु और खेत की सब प्रकार की पहली उपज और दसवाँ भाग भी लाने लगे।
\s5
\v 6 यहूदा और इस्राएल के लोग भी जो यहूदा के विभिन्न नगरों में रहते थे, वे भी अपने मवेशियों भेड़ों और बकरियों तथा अन्य सब वस्तुओं का दसवाँ भाग जो पवित्र किया गया था लाने लगे और भवन में ढेर लग गया।
\v 7 उन्होंने तीसरे महीने में यह धन देना आरम्भ किया और सातवें महीने में पूरा किया।
\v 8 धन का ढेर लगा देख हिजकिय्याह और उसके अधिकारियों ने यहोवा की स्तुति की और प्रजा को आशीष देने की यहोवा से प्रार्थना की।
\s5
\v 9 हिजकिय्याह ने याजकों और लेवी के वंशजों से पूछा, “ये ढेर क्या है?”
\v 10 तब सादोक के वंशज प्रधान याजक अजर्याह ने कहा, “जब से प्रजा यहोवा के भवन में भेंट ला रही है तब से हमें भरपूर भोजन मिल रहा है और बच भी जाता है। इसका कारण है कि यहोवा ने हमारे इस्राएली भाइयों को विपुल आशिषें दी है जिसका परिणाम है कि सब याजक और लेवी के वंशज अपनी आवश्यकता के अनुसार उठा लेते है फिर भी ये वस्तुएँ बच जाती है और यह उन वस्तुओं का ही ढेर है।”
\s5
\v 11 तब हिजकिय्याह ने आज्ञा दी कि यहोवा के भवन में इन वस्तुओं को रखने के लिए भण्डार-गृह बनाए जाएँ।
\v 12 तब उन्होंने उन भण्डार-गृहों में दसवा-अंश, भेंटे और यहोवा को अर्पण की गई वस्तुएँ रखीं। भण्डार-गृहों का मुख्य अधिकारी लेवी वंशज कोनन्याह और उसका भाई शिमी था।
\v 13 इनके अधीन राजा हिजकिय्याह और यहोवा के भवन का प्रधान अजर्याह दोनों की आज्ञा से यहीएल, अजज्याह, नहत, असाहेल, यरीमोत, योजाबाद, एलीएल, यिस्मक्याह, महत और बनायाह अधिकारी थे।
\s5
\v 14 लेवी वंशज यिम्ना का पुत्र कोरे जो यहोवा के भवन के पूर्वी द्वार का द्वारपाल था, वह यहोवा के लिए स्वेच्छा से लाई गई भेंटों का संरक्षक था। वह याजकों और लेवी के वंशजों को उन अर्पण की गई वस्तुओं में से बाँटा करता था।
\v 15 उसके अधीन एदेन, मिन्यामीन, येशुअ, शमायाह, अमर्याह और शकन्याह याजकों के नगरों में रहते थे। वे अपने सहकर्मी याजकों को, बड़े हों या छोटे, सबको सच्चाई से देते थे।
\s5
\v 16 उनके अतिरिक्त कुलों की सूची के अनुसार तीन वर्ष और उससे अधिक आयु के पुरुषों को जो दैनिक सेवा के लिए यहोवा के भवन में प्रवेश करते थे कि अपने दल के उत्तरदायित्व को पूरा करें, उन्हें भी वे दिया करते थे।
\s5
\v 17 जिन याजकों के नाम उनके कुलों के अनुसार सूची में लिखे गए थे, उन्हें भी वे देते थे और लेवी के वंशज जो बीस वर्ष से अधिक थे, उन्हें भी वे देते थे।
\v 18 उनकी वंशावली के अनुसार जितनी भी सन्तान, पत्नियाँ, पुत्र तथा पुत्रियाँ सूचीबद्ध थे उन्हें भी उनका धन दिया जाता था क्योंकि उन्होंने यहोवा की सेवा में स्वयं को पवित्रता के लिए समर्पित कर दिया था।
\v 19 हिजकिय्याह ने उन याजकों तथा लेवी के वंशजों के लिए भी जो चारागाहों में थे, धन देने के लिए कुछ पुरुषों को नियुक्त किया था परन्तु उन्होंने केवल प्रथम प्रधान याजक हारून के वंशजों को ही दिया जिनके नाम कुलों के अनुसार सूची में लिखे हुए थे।
\s5
\v 20 हिजकिय्याह ने संपूर्ण यहूदा में ऐसा प्रबन्ध कर दिया था। उसने सच्चे दिल से वही किया जिसके लिए यहोवा ने उचित और भला बनाया था।
\v 21 उसने यहोवा के भवन में आराधना के लिए यहोवा के नियमों और आज्ञाओं का पालन करते हुए जो भी किया उसमें उसने यहोवा की इच्छा खोजा और मन लगाकर किया। परिणाम-स्वरूप वह सफल हुआ।
\s5
\c 32
\p
\v 1 हिजकिय्याह ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार सब कुछ किया। तब अश्शूरों के राजा सन्हेरीब ने यहूदा पर आक्रमण किया, उसने अपने सैनिकों को आज्ञा दी कि शहरपनाह वाले नगरों को घेर लें कि शहरपनाहों को तोड़कर उन नगरों को अपने अधिकार में कर लें।
\s5
\v 2 यह देखकर कि सन्हेरीब अपनी सेना के साथ यरुशलेम पर आक्रमण करना चाहता है।
\v 3 हिजकिय्याह ने अपने प्रधानों और योद्धाओं के साथ सभा की। उन्होंने सोचा, “अश्शूरों के राजा और सेना को पीने के लिए पानी क्यों मिले?” इसलिए उन्होंने शहर से बाहर जाने वाला जल प्रवाह रोक दिया।
\v 4 बहुत लोगों ने एकजुट होकर उस क्षेत्र के सोतों और नदी को पार दिया।
\s5
\v 5 तब उन्होंने कठोर परिश्रम करके शहरपनाह के टूटे हुए भागों को सुधारा और ऊँचाई पर गुम्मट बना दिए और दाऊदपुर के पूर्व में एक विशाल भिल्लो को दृढ़ किया। उन्होंने बड़ी मात्रा में हथियार और ढालें भी बनवाईं।
\s5
\v 6 हिजकिय्याह ने सेनापति नियुक्त करके उन्हें नगर के फाटक के चैक में इकट्ठा किया। उसने उन्हें साहस बँधाते हुए कहा,
\v 7 साहस के साथ दृढ़ हो जाओ। तुम न तो अश्शूरों के राजा से न ही उसकी विशाल सेना से भयभीत होना क्योंकि यहोवा हमारे साथ है और उसका सामथ्र्य उनकी शक्ति से कहीं अधिक है।
\v 8 वे मानवीय शक्ति का निर्भर करते है परन्तु हमारे पास सहायता के लिए हमारा परमेश्वर यहोवा है। वही हमारे लिए युद्ध करेगा।” इसलिए यहूदा के राजा की बात सुनकर उनका आत्म-विश्वास बढ़ गया।
\s5
\v 9 अश्शूरों का राजा सन्हेरीब अपनी सेना के साथ लाकीश का घेराव किए हुए था, तब उसने अपने पुरुषों को राजा हिजकिय्याह और उसकी प्रजा के लिए सन्देश देकर भेजाः
\v 10 “मैं अश्शूरों का महान राजा सन्हेरीब कहता हूँ, ‘तुम्हें किसका भरोसा है कि तुम्हारी रक्षा करेगा? मेरे सैनिक तुम्हारे यरुशलेम को घेरे हुए है।
\s5
\v 11 हिजकिय्याह तुमसे कहता है, ‘हमारा परमेश्वर यहोवा हमें अश्शूरों से बचाएगा तो क्या वह तुम्हें भूखा प्यासा मारना नहीं चाहता है?
\v 12 हिजकिय्याह ही ने तो तुम्हें कहा था कि ऊँचे स्थानों पर से देवी-देवताओं के पूजा-स्थलों को ध्वस्त कर दो और ग्रामीण क्षेत्रों में से वेदियों को ढा दो। तुम्हें केवल एक ही स्थान में आराधना करना है और एक ही वेदी पर धूप जलाना है।’
\s5
\v 13-14 क्या तुम नहीं जानते कि मैंने और मेरे पूर्वजों ने सब देशों के लोगों का क्या किया है? मैंने उन सबों का सर्वनाश किया और उनके देवी-देवता उन्हें बचा नहीं पाए।
\v 15 इसलिए हिजकिय्याह के भरमाने में मत आओं उसकी बातों का विश्वास मत करो क्योंकि ऐसा कोई भी देश नहीं है जिसका देवता उन्हें मेरी सेना से बचा पाया है, न ही मेरे पूर्वजों से बचाया है। इसलिए निश्चय जान लो कि तुम्हारा देवता भी तुम्हें मुझे बचा नहीं पाएगा।”
\s5
\v 16 सन्हेरीब के पुरुषों ने उनके परमेश्वर और हिजकिय्याह की बहुत निन्दा की।
\v 17 सन्हेरीब ने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का अपमान करने के लिए और भी पत्र लिखे। उसने लिखा, “मैंने जितने भी देश जीते है, किसी का देवता उन्हें मुझसे बचा नहीं पाया है। इसी प्रकार हिजकिय्याह का देवता भी तुम्हें मुझसे बचा नहीं पाएगा।”
\s5
\v 18 तब उसके पुरुषों ने इब्रानी भाषा में शहरपनाह पर बैठे लोगों को डराने के लिए ऊँचे शब्दों में कहा कि हो सकता है युद्ध किए बिना ही अश्शूर उन्हें अपने अधीन कर लें।
\v 19 उन्होंने यरुशलेमवासियों के आराध्य परमेश्वर यहोवा का भी वैसे ही अपमान किया जैसे अन्य देशों के देवताओं का जो हाथों की बनाई हुई मूर्तियाँ थे, किया था।
\s5
\v 20 तब राजा हिजकिय्याह और भविष्यद्वक्ता यशायाह ने प्रार्थना की।
\v 21 उस रात यहोवा ने एक स्वर्गदूत भेजकर अश्शूरों की छावनी में सब सैनिकों को और उनके प्रधानों तथा सेनापतियों को नष्ट कर तब एक दिन वह अपने देवता के मन्दिर में गया तब उसके अपने ही पुत्रों ने उसे तलवार से मार डाला।
\s5
\v 22 इस प्रकार यहोवा ने हिजकिय्याह और यरुशलेमवासियों को सन्हेरीब के सैन्य बल से और उनके सब शत्रुओं से बचाया और उन्हें चारों ओर से शान्ति प्रदान की।
\v 23 तब अनेक जन यहोवा के लिए भेंटे लेकर और हिजकिय्याह के लिए अनमोल वस्तुएँ लेकर यरुशलेम आने लगे और वह सब जातियों की दृष्टि में महान हो गया।
\s5
\v 24 इस बीच हिजकिय्याह बहुत बीमार हो गया और उसे ऐसा लगा कि वह अब मर जाएगा। उसने यहोवा से प्रार्थना की और यहोवा ने चमत्कार करके उसे स्वस्थ कर दिया।
\v 25 हिजकिय्याह को घमण्ड हो गया और उसने यहोवा की इस दया के लिए उसे धन्यवाद नहीं कहा। इस बात पर यहोवा उससे क्रोधित हो गया और उसने हिजकिय्याह को तथा यरुशलेम और यहूदा के निवासियों को दण्ड दिया।
\v 26 परन्तु जब हिजकिय्याह ने अपने घमण्ड की क्षमा माँगी और यरुशलेमवासियों ने अपने पाप की क्षमा माँगी तो यहोवा ने हिजकिय्याह के शासनकाल में उन्हें दण्ड नहीं दिया।
\s5
\v 27 हिजकिय्याह बहुत धनवान और प्रतिष्ठित हो गया था। उसने सोना-चाँदी, मणियों, मसालों, ढालों और अन्य मूल्यवान वस्तुओं के लिए भण्डार-गृह बनवाए।
\v 28 उसने प्रजा द्वारा लाए गए अन्न, दाखमधु, जैतून के तेल के भण्डार के लिए भी भण्डार-गृह बनवाए। उसने पशुओं के लिए पशु-शालाएँ और भेड़-बकरियों के लिए भेड़-शालाएँ भी बनवाईं।
\v 29 उसने अपने लिए लाए गए भेड़-बकरियों तथा मवेशियों के लिए नगरों का निर्माण किया क्योंकि परमेश्वर ने बहुत सा धन प्रदान किया था।
\s5
\v 30 हिजकिय्याह ही ने गीहोन के सोते का जल प्रवाह रुकवाकर पश्चिम की ओर दाऊदपुर में पहुँचाने के लिए भूमिगत नहर बनवाई थी। उसने जो चाहा उसे करने में वह सफल हुआ।
\v 31 तब एक दिन बेबीलोन के प्रधानों के दूत उसकी चमत्कारी तरीके से स्वस्थ होने के विषय में सुनकर उससे भेंट करने आए तब यहोवा ने उसे स्वतंत्रता दी कि उसके मन का भेद जाने कि वह यहोवा को अपने स्वस्थ होने का श्रेय देता है या नहीं।
\s5
\v 32 हिजकिय्याह के शासनकाल की सब घटनाएँ और यहोवा को प्रसन्न करने के उसके काम “भविष्यद्वक्ता यशायाह के दर्शनों की पुस्तक” में लिखे है। “यहूदा और इस्राएल के राजाओं की पुस्तक में भी उसकी जीवनी लिखी है।
\v 33 अन्त में हिजकिय्याह की मृत्यु हुई। उसे यहूदा के सम्मानित राजाओं के कब्रिस्तान में दफन किया गया। यरुशलेम और यहूदा में सर्वत्र उसकी मृत्यु पर उसका सम्मान दिया गया। उसके बाद उसका पुत्र मनश्शे उसके स्थान में यहूदा का राजा बना ।
\s5
\c 33
\p
\v 1 मनश्शे जब यहूदा का राजा बना तब वह बारह वर्ष की आयु का था और उसने पचपन वर्ष यहूदा पर शासन किया।
\v 2 उसने वही किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था। उसने वह सब घृणित काम किए जो अन्य जातियाँ करती थीं जिन्हें यहोवा ने वहाँ से निकाला था जब इस्राएली उस देश में प्रवेश कर रहे थे।
\v 3 उसने पर्वतों पर मूर्ति पूजा के स्थल बनवाए। उन्हें उसके पिता हिजकिय्याह ने ध्वस्त कर दिया था। उसने बाल और अशेरा की लाटें खड़ी करवाईं। वह सितारों को भी दण्डवत् करता था।
\s5
\v 4 उसने तो यहोवा के भवन में भी देवी-देवताओं के लिए वेदियाँ बनवा दीं जबकि यहोवा ने कहा था, “यरुशलेम में इसी स्थान में मनुष्य सदा के लिए मेरी आराधना करे।
\v 5 उसने यहोवा के भवन के दोनों आँगनों में सितारों की पूजा करने के लिए वेदियाँ बनवाई।
\v 6 उसने बेनहिमोन की घाटी में अपने ही पुत्रों को आग में जलाया करवाया। वह जादू-टोना भी करता था। वह भावी बताने वालों से परामर्श खोजता था। वह भूत सिद्धी भी करता था। वह भविष्य जानने के लिए मृतकों की आत्माओं को बुलाने वालों के पास जाता था। उसने यहोवा की दृष्टि में सब बुरे काम किए जिनसे यहोवा क्रोधित होता है।
\s5
\v 7 मनश्शे ने मूर्ति बनवाकर यहोवा के भवन में रखवाई। यहोवा ने इस भवन के विषय में दाऊद और सुलैमान से कहा था, “मेरा भवन यरुशलेम में होगा जिसे मैंने चुन लिया है कि मनुष्य वहाँ मेरी आराधना सदा किया करें।
\v 8 यदि वे उन सब नियमों, आदेशों और विधियों का पालन करें जो मैंने मूसा को दी थीं। मैं इस्राएलियों को तब विवश नहीं करूँगा कि वे इस देश से विस्थापित हों जिसे मैंने उनके पूर्वजों को दिया था।”
\v 9 परन्तु मनश्शे ने यरुशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों में प्रजा से बुरे काम करवाए जो उन जातियों के कामों से भी अधिक बुरे थे जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियों के प्रवेश करने पर वहाँ से निकाला था।
\s5
\v 10 यहोवा ने मनश्शे और यहूदा की प्रजा से बातें कीं परन्तु उन्होंने उसकी और कान नहीं लगाया।
\v 11 इसलिए यहोवा ने अश्शूरों के सेनापतियों और उनकी सेना को यरुशलेम पर आक्रमण करने के लिए उभारा और उन्होंने मनश्शे को बन्दी बना लिया। उन्होंने नाक में नकेल डालकर उसको पीतल की जंजीरों से जकड़कर बेबीलोन ले गए।
\s5
\v 12 वहाँ कष्ट भोगने के कारण उसने अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा के सामने स्वयं को दीन किया और यहोवा से सहायता माँगी।
\v 13 उसकी प्रार्थना सुनकर यहोवा को उस पर दया आई और यहोवा उसे यरुशलेम लौटा लाया और उसका राज्य उसे दुबारा दे दिया। तब मनश्शे को यह बोध हो गया कि यहोवा ही परमेश्वर है और वह कुछ भी कर सकता है।
\s5
\v 14 इसके बाद उसने यरुशलेम की शहरपनाह का पूर्वी भाग, गीहोन के सोते से उत्तर में मछली फाटक तक नए सिरे से बनवाया और उसे ऊँचा भी किया। शहरपनाह का वह भाग नगर के ओपेल पर्वत नामक क्षेत्र को घेरे हुए था। मनश्शे ने यहूदा के प्रत्येक शहरपनाह वाले नगर की रक्षा के लिए सैनिक अधिकारी नियुक्त कर दिए।
\v 15 उसने यहोवा के भवन में से अन्य जातियों के देवताओं की मूर्तियाँ और सिय्योन पर्वत पर बनवाई गई वेदियाँ तथा यरुशलेम के अन्य स्थानों में जो वेदियाँ थी सबको उठाकर नगर से बाहर फिंकवा दिया।
\s5
\v 16 तब उसने यहोवा की वेदी को सुधारा और यहोवा के साथ मेल करने के लिए और धन्यवाद देने के लिए बलियाँ चढ़ाईं। उसने यहूदा की प्रजा को आज्ञा दी कि वे केवल यहोवा की आराधना करें।
\v 17 प्रजा ऊँचे स्थानों में बलि चढ़ाती रही परन्तु केवल यहोवा के लिए।
\s5
\v 18 मनश्शे के शासनकाल के अन्य सब काम, यहोवा से की गई उसकी प्रार्थना और भविष्यद्वक्ताओं द्वारा उसे दिए गए यहोवा के सन्देश आदि सब “इस्राएल के राजाओं की पुस्तक” में लिखे है।
\v 19 मनश्शे की प्रार्थना और उस पर परमेश्वर की दया और उसके पाप और विश्वासघात और दीन होने से पहले उसने कहाँ-कहाँ ऊँचे स्थान बनवाए- मूर्ति पूजा स्थल, अशेरा की लाटें और खुदी हुई मूर्तियों की स्थापना करवाना आदि सबका वर्णन भविष्यद्वक्ताओं के वृत्तान्त में है।
\v 20 तब मनश्शे की मृत्यु हुई और उसे राजमहल में ही दफन किया गया। उसके बाद उसका पुत्र आमोन उसके स्थान में यहूदा का राजा बना ।
\s5
\v 21 आमोन बाईस वर्ष की आयु में राजगद्दी पर बैठा था और यरुशलेम में रहकर उसने केवल दो वर्ष यहूदा पर शासन किया।
\v 22 उसने यहोवा की दृष्टि में बुरे काम किए, जैसा उसके पिता मनश्शे ने किया था। आमोन ने मनश्शे द्वारा बनवाई गई सब मूर्तियों की पूजा की,
\v 23 परन्तु वह अपने पिता के समान दीन होकर यहोवा की शरण नहीं आया। इसलिए वह अपने पिता से भी अधिक दोषी हो गया था।
\s5
\v 24 तब आमोन के पुरुषों ने उसकी हत्या करने का षड्यन्त्र रचा और महले में ही उसकी हत्या कर दी।
\v 25 परन्तु यहूदावासियों ने उसके हत्यारों को मार डाला और उसके पुत्र योशिय्याह को राजगद्दी पर बैठाया।
\s5
\c 34
\p
\v 1 जब योशिय्याह शासन करने लगा तब उसकी आयु आठ वर्ष की थी। उसने यरुशलेम में इकत्तीस वर्ष शासन किया।
\v 2 उसने यहोवा को प्रसन्न करने के काम किए। वह अपने पूर्वज राजा दाऊद के चरण चिन्हों पर चला और यहोवा के नियमों का अटल पालन किया।
\v 3 उसे राजगद्दी पर बैठे हुए आठ वर्ष ही हुए थे अर्थात बच्चे में ही वह अपने पूर्वज दाऊद के समान परमेश्वर की खोज में लग गया। चार वर्ष बाद उसने पर्वतों पर स्थापित मूर्ति पूजा के भवनों को तुड़वाना आरम्भ कर दिया। यरुशलेम के चारों ओर तथा यहूदा में विभिन्न स्थानों में ऐसे अनेक स्थल थे। उसने अशेरा की लाटें तथा तराशी हुई मूर्तियों और धातु की मूर्तियों को भी तुड़वा दिया।
\s5
\v 4 उसके आदेश पर बाल की पूजा की वेदियाँ भी तोड़ दी गई। उन वेदियों के समीप धूप जलाने की वेदियों को भी तुड़वा दिया। अशेरा की लाटों को और लकड़ी, पत्थर तथा धातु की सब मूर्तियों को चूर-चूर करके उनके लोगों की कब्रों पर बिखरा दिया।
\v 5 उसने उन मूर्तियों के लिए बलि चढ़ाने वाले पुजारियों की हड्डियों को उन्हीं वेदियों पर जलवाया। इस प्रकार योशिय्याह ने यरुशलेम और यहूदा को यहोवा के लिए दुबारा ग्रहण-योग्य बना दिया।
\s5
\v 6 मनश्शे, एप्रैम, शिमोन और दूर उत्तर में नप्ताली के नगरों और उनके आसपास के खण्डहरों में,
\v 7 योशिय्याह ने अन्य जातीय वेदियाँ और अशेरा की लाटों को तथा मूर्तियों को चूर-चूर कर दिया और संूपर्ण इस्राएल में धूप जलाने की सब वेदियों को ध्वस्त कर दिया। तब वह यरुशलेम लौट आया।
\s5
\v 8 जब योशिय्याह अठारह वर्ष शासन कर चुका तब उसने अपने देश और यहोवा के भवन को यहोवा की आराधना के लिए ग्रहण-योग्य बनाना चाहा। इसलिए उसने असल्याह के पुत्र शापान और नगर के अधिपति मासेयाह और योआहाज के पुत्र इतिहास के लेखक योआह को अपने परमेश्वर यहोवा के भवन का सुधार-कार्य करने भेजा।
\v 9 वे प्रधान याजक हिल्किय्याह के पास गए और जो धनराशि यहोवा के भवन में अर्पित की गई थी उसे दे दी। यह धन-राशि लेवी के वंशज, द्वारपालों ने मनश्शे, एप्रैम और इस्राएल के अन्य क्षेत्रों के लोगों से तथा यरुशलेमवासियों से और यहूदा और बिन्यामीन के लोगों से- वे सब जो देश में बचे रह गए थे- भेंट स्वरूप प्राप्त की थी।
\s5
\v 10 और हिल्किय्याह ने कुछ धनराशि यहोवा के भवन के सुधार का काम करने वालों के निरीक्षकों को दे दी। निरीक्षकों ने वह धनराशि सुधार का काम करने वालों को दी।
\v 11 कुछ धनराशि बढ़इयों को और शासन मिस्त्रियों को भी दी कि वे तराशे हुए पत्थर तथा लकड़ी खरीद लें कि भवन में नई शहतीरों और कड़ियों को लगवाएँ क्योंकि यहूदा के राजाओं ने जो पहले थे, भवन की देख-रेख पर ध्यान नहीं दिया जिसके कारण वे गल गई थी।
\s5
\v 12 सुधार का काम करने वाले ईमानदारी से काम करते थे। उनके निरीक्षण लेवी के पुत्र मरारी के वंशज यहत और ओबद्याह तथा लेवी के पुत्र कहात के वंशज जकर्याह और मशुल्लाम थे। लेवी के सब वंशज जो अच्छा संगीत बजाते थे,
\v 13 अपने अन्य सब उत्तरदायित्वों के साथ-साथ इन काम करने वालों पर भी दृष्टि रखते थे। लेवी के वंशजों में से कुछ मुंशी थे, कुछ लेखाधिकारी थे और कुछ द्वारपाल थे।
\s5
\v 14 जब वे यहोवा के भवन में लाई गई धनराशि निकाल रहे थे तब प्रधान याजक हिल्किय्याह को यहोवा प्रदत्त मूसा के विधान की पुस्तक मिली।
\v 15 हिल्किय्याह ने शापान से कहा, “मुझे यहोवा के भवन में यहोवा के विधान की पुस्तक मिली है।” और उसने वह पुस्तक शापान को सौंप दी।
\v 16 शापान वह पुस्तक लेकर राजा के पास गया और उससे कहा, “तेरे पुरुष दिया गया सब काम कर रहे है।
\s5
\v 17 उन्होंने यहोवा के भवन में लाई गई धनराशि सुधार कार्य करने वालों के निरीक्षकों को दे दी है।”
\v 18 तब शापान ने राजा से कहा, “मैं यह पुस्तक भी लाया हूँ। हिल्किय्याह ने मुझे यह पुस्तक दी है।” और शापान उस पुस्तक में से पढ़कर राजा को सुनाने लगा।
\v 19 पुस्तक की बातों को सुनकर राजा विव्हल हो गया और उसने अपने वस्त्र फाड़े।
\s5
\v 20 और उसने हिल्किय्याह, शापान के पुत्र अहीकाम, मीका के पुत्र अब्दोन, शापान मंत्री और अपने एक पुरुष असायाह को आज्ञा दी,
\v 21 “जाकर यहोवा से मेरे विषय में और यहूदा तथा इस्राएल में जितने भी लोग जीवित है, उन सबके विषय में पूछो कि इस पुस्तक में जो हमें मिली है, क्या लिखा है क्योंकि यह तो स्पष्ट है कि यहोवा हमारे पूर्वजों की अनिष्ठा के कारण बहुत क्रोधित है। उन्होंने इस पुस्तक में लिखे नियमों का पालन नहीं किया है।”
\s5
\v 22 इसलिए हिल्किय्याह और ये सब जन यरुशलेम के नए खण्ड में रहने वाली भविष्यद्वक्तिन हुल्दा के पास गए। उसका पति तोखत का पुत्र शल्लूम था और वह वस्त्रालय का रखवाला था।
\s5
\v 23 उन्होंने उसे राजा की आज्ञा सुनाई तो उसने उनसे कहा, हम इस्राएलियों का आराध्य परमेश्वर यहोवा कहता है,
\v 24 जाकर राजा से कहो कि यहोवा का वचन है, सावधानी से सुनो कि मैं यरुशलेम और उसके निवासियों पर विनाश ढाने वाला हूँ। मैं उन पर वे सब श्राप ले आऊँगा जिनके विषय में इस पुस्तक में है।
\v 25 इसका कारण है कि उन्होंने मेरा त्याग करके देवी-देवताओं के लिए धूप जलाई है। उनकी मूर्तियों के कारण मेरा क्रोध भड़क उठा है।
\s5
\v 26 यहूदा के राजा ने तुम्हें भेजा है कि मुझ यहोवा की इच्छा जानो। जाकर उससे कहो कि मैं इस्राएल का परमेश्वर यहोवा इस पुस्तक के वचन के विषय में जो तुमने पढ़ा है, कहता हूँ,
\v 27 क्योंकि तूने इस पुस्तक की बातों पर ध्यान दिया है और इस नगर तथा इस नगर के निवासियों के भावी दुर्भाग्य की जो चेतावनी मैंने दी है, उसे सुनकर तू दीन हुआ है और अपने वस्त्र फाड़ कर रोया है तो मैंने सुन लिया है।
\v 28 इसलिए मैं तुझे शान्ति से मरने दूँगा। तू इस नगर और इस नगर के निवासियों पर मेरे दण्ड को देखने नहीं पाएगा।” इसलिए उन्होंने जाकर राजा को उस भविष्यद्वक्तिन की बातें सुना दीं।
\s5
\v 29 तब राजा ने यरुशलेम और यहूदा के सब अगुओं का आव्हान किया।
\v 30 यहूदा के सब अगुवे तथा अनेक यरुशलेमवासी, याजक और लेवी के वंशज- छोटे से बड़े तक सब- यहोवा के भवन के सामने इकट्ठा हुए। तब राजा ने भवन में पाई गई पुस्तक में से यहोवा के सब नियमों को पढ़कर सुनाया।
\s5
\v 31 और राजा यहोवा के भवन के प्रवेश द्वार के खम्भे के पास खड़ा हुआ जहाँ राजा लोग खड़े होते थे कि यह महत्वपूर्ण घोषणा करें, और यहोवा की उपस्थित में प्रतिज्ञा की कि वह उस पुस्तक में लिखी यहोवा की सब आज्ञाओं, विधियों तथा नियमों का सच्चे मन से पालन करेगा।
\v 32 तब राजा ने कहा कि यरुशलेम का प्रत्येक निवासी और बिन्यामीन का गोत्र प्रतिज्ञा करें कि वे इन सब नियमों का पालन करेंगे और प्रजा ने ऐसा ही किया और प्रतिज्ञा की कि वे उनके पूर्वजों के आराध्य परमेश्वर ने जो उनसे वाचा बाँधी थी उसका वे पालन करेंगे।
\s5
\v 33 योशिय्याह ने आज्ञा दी कि इस्राएल के संपूर्ण देश से सब घृणित मूर्तियाँ निकाल दी जाएँ और जो लोग वहाँ उपस्थित थे वे सब केवल अपने परमेश्वर यहोवा की आराधना करेंगे। जब तक योशिय्याह जीवित रहा तब तक प्रजा यहोवा को प्रसन्न करने के काम करती रही।
\s5
\c 35
\p
\v 1 योशिय्याह ने आज्ञा दी कि सब लोग यरुशलेम में फसह मनाएँ। इसलिए उन्होंने पहले महीने के चैदहवें दिन फसह के मेम्ने बलि किए।
\v 2 योशिय्याह ने याजकों को यहोवा के भवन की सेवा के काम सौंप दिए और भली-भांति सेवा करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया।
\s5
\v 3 तब लेवी के वंशज जो प्रजा को शिक्षा देते थे और यहोवा के लिए पवित्र किए गए थे, उनसे योशिय्याह ने कहा, “यहोवा के पवित्र सन्दूक को दाऊद के पुत्र इस्राएल के राजा सुलैमान द्वारा बनवाए गए भवन में रख दो। उसे डंडों के सहारे से ही उठाना, अपने कंधों पर नहीं। अपने परमेश्वर यहोवा और उसकी प्रजा की सेवा निष्ठापूर्वक करो।
\v 4 अपने-अपने कुल के अनुसार दल बना लो और राजा दाऊद तथा उसके पुत्र सुलैमान द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करो।
\s5
\v 5 अपने-अपने कुल के अनुसार पवित्र स्थान में खड़े होकर अपने इस्राएली भाइयों द्वारा लाई गई भेंटों को अर्पित करने में उनकी सहायता करो।
\v 6 फसह के मेम्नों को मर दो और अपने को विधि के अनुसार पवित्र करो और यहोवा की सेवा करो तथा मूसा द्वारा दिए गए यहोवा के निर्देशनों का पालन करो।”
\s5
\v 7 योशिय्याह ने अपने पशुओं में से तीस हजार भेड़ों और बकरियों के बच्चे फसह के लिए दिए और तीन हजार बछड़े भी दिए।
\v 8 उसके पुरुषों ने भी स्वेच्छा से प्रजा के लिए और याजकों तथा लेवी के वंशजों के लिए बलिपशु दिए। यहोवा के भवन के अधिकारी हिल्किय्याह, जकर्याह और यहीएल ने याजकों को फसह के लिए दो हजार छः सौ मेम्ने और तीन सौ बछड़े दिए।
\v 9 कोनन्याह और उसके छोटे भाइयों, शमायाह, नतनेल तथा लेवियों के प्रधान, हशब्याह, यीएल और योजाबाद ने पाँच हजार मेम्ने और पाँच सौ बैल फसह के लिए दिए।
\s5
\v 10 इस प्रकार फसह की तैयारी पूरी हो गई और राजा की आज्ञा के अनुसार याजक और लेवी के वंशज अपने-अपने स्थानों में खड़े हुए।
\v 11 तब फसह के पशु बलि किए गए और याजक बलि करने वालों के हाथ से एक लेकर छिड़कते गए और लेवी के वंशज बलि पशुओं की खाल उतारते रहे।
\v 12 उन्होंने होम-बलि वाले पशुओं को अलग रखा कि उन्हें यहोवा को चढ़ाने के लिए विभिन्न कुलों को दें जैसा मूसा की पुस्तक में लिखा था। ऐसा ही उन्होंने मवेशियों के साथ किया।
\s5
\v 13 निर्देशों का पालन करते हुए उन्होंने फसह के मेम्नों को आग में भूँजा और पवित्र बलि का माँस बड़े-छोटे पात्रों में पकाकर तुरन्त वहाँ उपस्थित सब लोगों में बाँट दिया।
\v 14 उसके बाद उन्होंने अपने लिए और याजकों के लिए माँस पकाया क्योंकि याजक रात तक होम-बलि करने और चर्बी जलाने में व्यस्त थे। इसलिए लेवी के वंशजों ने अपने लिए और प्रथम प्रधान याजकों हारून के वंशजों, याजकों के लिए माँस पकाया।
\s5
\v 15 आसाप के वंशज राजा दाऊद, आसाप, हेमान और राजा के दर्शी यदूतून की आज्ञा के अनुसार अपने-अपने स्थान में खड़े हुए। द्वारपालों को अपने स्थानों से हटने की आवश्यकता नहीं पड़ी क्योंकि उनके भाई लेवी के वंशजों ने उनके लिए भोजन तैयार कर दिया था।
\s5
\v 16 इसलिए उस दिन यहोवा की आराधना के लिए जो भी आवश्यक था किया गया। उन्होंने फसह मनाया और वेदी पर होम-बलि कीं क्योंकि यह योशिय्याह की आज्ञा थी।
\v 17 जो इस्राएली वहाँ उपस्थित थे उन्होंने उस दिन फसह मनाया और फिर सात दिन तक अखमीरी रोटी का पर्व मनाया।
\s5
\v 18 भविष्यद्वक्ता शमूएल के बाद ऐसा फसह इस्राएल में कभी नहीं मनाया गया था और योशिय्याह के समान इस्राएल के किसी राजा ने फसह नहीं मनाया था कि सब याजक लेवी के वंशज तथा यहूदावासी और इस्राएली जो उनके बीच यरुशलेम में रहते थे, सब एक साथ उपस्थित हों।
\v 19 यह फसह योशिय्याह के शासनकाल के अठारहवें वर्ष में मनाया गया था।
\s5
\v 20 यहोवा के भवन में आराधना का दुबारा आरम्भ करने के लिए योशिय्याह ने यह सब किया। इसके बाद मिस्र का राजा नको न फरात नदी के समीप कर्कमीश नगर पर आक्रमण किया। योशिय्याह उससे युद्ध करने के लिए सेना लेकर निकला।
\v 21 तब नको ने उसे सन्देश भेजकर कहा, “तू यहूदा का राजा है और हमारे बीच युद्ध का कोई कारण नहीं है। हम बेबीलोन पर आक्रमण करने जा रहे है। परमेश्वर ने मुझसे शीघ्रता करने को कहा है। इसलिए परमेश्वर का विरोध करना छोड़ दें नहीं तो वह तुझे नष्ट कर देगा।”
\s5
\v 22 योशिय्याह ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। उसने भेष बदल कर मिस्र की सेना पर आक्रमण किया कि उसे कोई पहचान न पाए। उसने नको द्वारा दिए गए यहोवा के सन्देश पर ध्यान नहीं दिया और भगिद्दो के मैदान में उसका सामना किया।
\s5
\v 23 मिस्र के धनुर्धारियों ने योशिय्याह पर तीर छोड़े और उसने अपने सेवकों से कहा, मैं बहुत घायल हो गया हूँ मुझे यहाँ से बाहर ले चलो।”
\v 24 इसलिए उन्होंने उसे उसके रथ पर से उतारकर एक दूसरे रथ पर जिसे वह साथ लाया था सवार करा के यरुशलेम ले आए। वहाँ उसकी मृत्यु हुई। उसे उसके पूर्वजों के कब्रिस्तान में दफन किया गया। यरुशलेम और संपूर्ण यहूदा की प्रजा ने उसके लिए शोक किया।
\s5
\v 25 भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह ने योशिय्याह के लिए एक विलापगीत लिखा। इस्राएल के स्त्री-पुरुष आज भी वह गीत गाकर योशिय्याह के लिए विलाप करते है। इस्राएल में यह एक प्रथा बन गई। यह गीत विलापगीतों की पुस्तक में लिखा हुआ है।
\s5
\v 26-27 योशिय्याह के शासनकाल के अन्य सब काम, उसकी राज के आरम्भ से उसकी मृत्यु तक, उसके सब काम और यहोवा के प्रति उसकी भक्ति तथा यहोवा के नियमों के पालन की उसकी गाथा “यहूदा और इस्राएल के राजाओं की पुस्तक” में लिखे है।
\s5
\c 36
\p
\v 1 योशिय्याह के बाद प्रजा ने उसके पुत्र यहोआहाज को उसके पिता के स्थान में राजगद्दी पर बैठाया।
\v 2 यहोआहाज तेईस वर्ष की आयु में राजगद्दी पर बैठा परन्तु केवल तीन महीने ही राज कर पाया।
\s5
\v 3 मिस्र के राजा ने उसे बन्दी बना लिया और यहूदा पर लगभग चार टन चाँदी और लगभग चैंतीस किलोग्राम सोना कर लगाया।
\v 4 मिस्र के राजा ने यहोआहाज के छोटे भाई एलयाकीम को उसके स्थान में यहूदा का राजा नियुक्त किया और एल्याकीम का नाम बदलकर यहोयाकीम रखा। यहोआज को नको मिस्र ले गया।
\s5
\v 5 यहोयाकीम जब राजा नियुक्त किया गया तब उसकी आयु पच्चीस वर्ष की थी और उसने ग्यारह वर्ष यरुशलेम में राज किया। उसने वही सब किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था।
\v 6 तब बेबीलोन के राजा नबूकदनेस्सर की सेना ने यहूदा पर आक्रमण करके यहोयाकीम को पीतल की जंजीरों में जकड़ कर वे बेबीलोन ले गए।
\v 7 नबूकदनेस्सर के सैनिकों ने यहोवा के भवन की बहुमूल्य वस्तुएँ लूट लीं और बेबीलोन में नबूकदनेस्सर के महल में रख दीं।
\s5
\v 8 यहोयाकीम के शासनकाल की सब घटनाएँ और उसके बुरे काम और लोगों ने उसमें जो बुराईयाँ देखीं आदि सब “यहूदा और इस्राएल के राजाओं की पुस्तक” में लिखे है। उसके बेबीलोन ले जाने के बाद उसका पुत्र यहोयाकीन यहूदा का राजा हुआ।
\s5
\v 9 जब यहोयाकीन यहूदा का राजा बना तब वह अठारह वर्ष का था और उसने यरुशलेम में केवल तीन महीने और दस दिन राज किया। उसने यहोवा की दृष्टि में सब कुरे काम किए।
\v 10 अगले वर्ष वसंत ऋतु में नबूकदनेस्सर ने सैनिक भेजकर उसे बन्दी बनवाकर बेबीलोन बुलवा लिया। उसके सैनिकों ने यहोवा के भवन से बहुमूल्य वस्तुएँ लूट लीं। नबूकदनेस्सर ने उसके चाचा सिदकिय्याह के यहूदा का राजा नियुक्त करके यरुशलेम में रखा।
\s5
\v 11 सिदकिय्याह इक्कीस वर्ष की आयु में राजा नियुक्त किया गया था और उसने यरुशलेम में ग्यारह वर्ष राज किया।
\v 12 उसने भी यहोवा की दृष्टि में सब बुरे काम किए। भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह ने जब उसे चेतावनी भरा यहोवा का सन्देश सुनाया तब वह दीन नहीं हुआ।
\s5
\v 13 वह इस्राएलियों के परमेश्वर यहोवा की ओर नहीं हुआ। तब सिदकिय्याह ने नबूकदनेस्सर से विद्रोह किया। नबूकदनेस्सर ने उसे परमेश्वर की शपथ खिलाकर निष्ठा निभाने का वचन लिया था परन्तु सिदकिय्याह हठ करता रहा।
\v 14 इसके अतिरिक्त याजकों और यहूदावासियों के प्रधान और भी अधिक दुराचारी हो गए और अन्य जातियों के घिनौने काम करने लगे और यरुशलेम में यहोवा के भवन को जिसे यहोवा ने पवित्र किया था, आराधना के लिए अयोग्य कर दिया।
\s5
\v 15 इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने अपने भविष्यद्वक्ताओं के माध्यम से यहूदावासियों के अनेक सन्देश भेजे क्योंकि वह अपनी प्रजा पर दयावान था और अपने भवन को नष्ट नहीं होने देना चाहता था।
\v 16 उन्होंने यहोवा के सन्देशों को तुच्छ समझा और उसके भविष्यद्वक्ताओं की निन्दा की। परिणाम-स्वरूप यहोवा का कोप सीमा पार कर गया और यहूदा का सर्वनाश करने में उसे कोई रोक नहीं पाया।
\s5
\v 17 यहोवा ने बेबीलोन को उभारा कि वह यहूदा पर आक्रमण करे। उन्होंने युवकों को तलवार से घात किया, यहाँ तक कि यहोवा के भवन में भी सँहार किया गया। उन्होंने युवक, युवतियों और बुजुर्गों को भी नहीं छोड़ा। यहोवा ने नबूकदनेस्सर की सेना द्वारा उन सबका नाश करवाया।
\s5
\v 18 उसके सैनिक यहोवा के भवन में काम आने वाली छोटी से बड़ी वस्तुएँ और राजा के पुरुषों से सब मूल्यवान वस्तुएँ लूट लीं।
\v 19 उन्होंने यहोवा के भवन को जला दिया और यरुशलेम की शहरपनाह ढा दी। उन्होंने यरुशलेम के सब भवनों को जला दिया और उनमें का सारा बहुमूल्य सामान नष्ट कर दिया।
\s5
\v 20 नबूकदनेस्सर की सेना शेष सब लोगों को जो तलवार से मारे नहीं गए थे, बन्दी बनाकर ले गई और फारस द्वारा परास्त किए जाने तक वे राजा के और उसके पुत्रों का दास बनकर रहे।
\v 21 मूसा ने आज्ञा दी कि सातवें वर्ष वे भूमि को विश्राम दें अर्थात फसल न उगाएँ परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। बेबीलोन की सेना के द्वारा यहूदा उजड़ जाने के बाद भूमि को सत्तर वर्ष तक विश्राम मिला और यहोवा ने भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह द्वारा भी यही कहा था।
\s5
\v 22 फारस के राजा कुस्रू के पहले वर्ष में यहोवा ने उसके मन को उभारा कि यिर्मयाह द्वारा कहा गया यहोवा का वचन पूरा हो। इसलिए उसने संपूर्ण राज्य में घोषणा करवाई और पत्र भी लिखे। उसने लिखाः
\v 23 “मैं, फारस का राजा कुस्रू यह घोषणा करता हूँ कि स्वर्ग के परमेश्वर ने मुझे पृथ्वी के सब राज्यों पर राजा बनाया है। उसी ने मुझे आज्ञा दी है कि मैं यहूदा देश के यरूशलेम नगर में उसके लिए एक भवन बनवाऊँ। मैं तुम्हारे बीच रहने वाले उसके लोगों को स्वतंत्र करता हूँ कि यरुशलेम जाएँ और मैं प्रार्थना करता हूँ कि यहोवा उनके साथ हो।”