hi_udb/12-2KI.usfm

1535 lines
335 KiB
Plaintext

\id 2KI Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h 2 राजाओं
\toc1 2 राजाओं
\toc2 2 राजाओं
\toc3 2ki
\mt1 2 राजाओं
\s5
\c 1
\p
\v 1 राजा अहाब की मृत्यु के बाद, मोआब देश ने इस्राएल के विरूद्ध विद्रोह किया।
\v 2 एक दिन, इस्राएल का नया राजा अहज्याह अपने ऊपर के कमरे में लकड़ी की अटारी से गिर गया और घायल हो गए। इसलिए उसने अपने दूतों को आज्ञा देकर भेजा, "जाओ और एक्रोन के देवता बालजबूब से पूछो, कि मैं इस चोट से ठीक हो जाऊँगा या नहीं।"
\p
\s5
\v 3 परन्तु यहोवा के स्वर्गदूत ने तिशबी शहर के भविष्यद्वक्ता एलिय्याह से कहा, "सामरिया का राजा कुछ दूतों को एक्रोन भेज रहा है। जा और उनसे मिल और उन से कह, 'क्या ऐसा इस कारण से है कि इस्राएल में कोई परमेश्वर नहीं है, इसलिए तू बाल-जबूब से पूछना चाहता है कि तू ठीक हो पाएगा, या नहीं? '
\v 4 यहोवा कहते हैं कि तुझे राजा अहज्याह को यह बताना है कि उसका घाव ठीक नहीं होगा; वह निश्चित रूप से मर जाएगा। "
\p
\s5
\v 5 तब एलिय्याह दूतों से मिलने गया और उन बातों को उन से कहा, और वे एक्रोन को जाने के बजाएं राजा के पास लौट गए। राजा ने उनसे पूछा, " तुम इतनी शीघ्र कैसे वापस आ गए?"
\p
\v 6 उन्होंने उत्तर दिया, "एक व्यक्ति हमसे मिलने आया और हमसे कहा, 'उस राजा के पास जाओ जिसने तुम्हें भेजा है और उसे बताओ कि यहोवा कहते हैं," क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि इस्राएल में कोई परमेश्वर नहीं है इसलिए तू बाल-जबूब से पूछना चाहता है कि क्या तू ठीक हो पाएगा या नहीं? जाकर राजा से कहो कि उसका घाव ठीक नहीं होगा; वह निश्चित रूप से मर जाएगा। "'"
\p
\s5
\v 7 राजा ने उनसे कहा, "वह व्यक्ति जो तुमसे मिलने आया था और तुमको यह बातें कहीं, वह कैसा दिखता था?"
\p
\v 8 उन्होंने उत्तर दिया, "वह ऊँट के बालों से बना वस्त्र पहने हुए था और उसकी कमर के चारों ओर एक चौड़ा चमड़े का कमरबन्द था।" राजा ने कहा, "वह एलिय्याह है!"
\p
\s5
\v 9 तब राजा ने एलिय्याह को पकड़ने के लिए पचास सैनिकों के साथ एक अधिकारी भेजा। उन्होंने एलिय्याह को पहाड़ी की चोटी पर बैठा पाया। अधिकारी ने उसे पुकारकर कहा, "हे भविष्यद्वक्ता, राजा आदेश देता है कि तू यहाँ नीचे आ!"
\p
\v 10 परन्तु एलिय्याह ने अधिकारी को उत्तर दिया, "मैं एक भविष्यद्वक्ता हूँ, इसलिए मैं आदेश देता हूँ कि आग आकाश से नीचे आए और तुझे और तेरे पचास सैनिकों को जला दे!" तुरन्त, आकाश से आग नीचे आई और अधिकारी और उसके पचास सैनिकों को जलाकर भस्म कर दिया।
\p
\s5
\v 11 जब राजा को उस विषय में पता चला, तो उसने एक और अधिकारी को पचास सैनिकों के साथ भेजा। वे वहाँ गए जहाँ एलिय्याह था, और अधिकारी ने उसे पुकारकर कहा, "भविष्यद्वक्ता, राजा आज्ञा देता है कि तू तुरन्त नीचे आ जा!"
\p
\v 12 परन्तु एलिय्याह ने उत्तर दिया, "मैं एक भविष्यद्वक्ता हूँ, इसलिए मैं आदेश देता हूँ कि आग आकाश से नीचे आए और तुझे और तेरे सैनिकों को मार डाले!" तब परमेश्वर की ओर से आग आकाश से नीचे आई और उस अधिकारी और उसके सैनिकों को मार डाला।
\p
\s5
\v 13 जब राजा ने उस विषय में सुना, तो फिर से उसने पचास और सैनिकों के साथ एक और अधिकारी को भेजा। वे वहाँ गए जहाँ एलिय्याह था; अधिकारी ने एलिय्याह के सामने गिरकर दण्डवत् किया और उससे कहा, "हे भविष्यद्वक्ता, मैं तुझसे विनती करता हूँ, मेरे और मेरे पचास सैनिकों के प्रति दयालु रह, और हमें न मार!
\v 14 हम जानते हैं कि आकाश से दो बार आग ने नीचे आकर अधिकारियों और उनके साथ सैनिकों को मार डाला है। इसलिए अब, कृपया मुझ पर दया कर! "
\p
\s5
\v 15 तब यहोवा के स्वर्गदूत ने एलिय्याह से कहा, "नीचे उतर कर उसके साथ जा। उससे मत डर।" इसलिए एलिय्याह उनके साथ राजा के पास गया।
\p
\v 16 जब एलिय्याह पहुँचा, तो उसने राजा से कहा, "यहोवा यही कहते हैं: 'तूने एक्रोन जाने के लिए दूत भेजे, कि वे उनके देवता बाल-जबूब से पूछें कि क्या तू ठीक हो पाएगा या नहीं। तू ने ऐसा काम किया है जैसे कि इस्राएल में परामर्श के लिए कोई परमेश्वर नहीं है। इसलिए तेरा घाव ठीक नहीं होगा; इसकी अपेक्षा, तू मर ही जाएगा! '"
\s5
\v 17 तब अहज्याह की मृत्यु हो गई, जैसा कि यहोवा ने एलिय्याह से कहा था। अहज्याह का छोटा भाई योराम नया राजा बना, उस समय में यहोशापात का पुत्र यहोराम लगभग दो वर्षों से यहूदा पर शासन कर रहा था। अहज्याह का भाई राजा बना क्योंकि राजा बनने के लिए अहज्याह के कोई पुत्र नहीं था।
\p
\v 18 यदि तुम अहज्याह के अन्य सभी कामों के विषय में जानना चाहते हो, तो वे इस्राएल के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं।
\s5
\c 2
\p
\v 1 जब यहोवा भविष्यद्वक्ता एलिय्याह को एक बवंडर में स्वर्ग पर उठाने वाले थे, तब एलिय्याह और उसके साथी भविष्यद्वक्ता एलीशा गिलगाल से दक्षिण की ओर यात्रा कर रहे थे।
\v 2 एलिय्याह ने एलीशा से कहा, "यहाँ ठहरा रह, क्योंकि यहोवा ने केवल मुझे बेतेल शहर जाने के लिए कहा है।"
\p परन्तु एलीशा ने उत्तर दिया, "जैसे निश्चित रूप से यहोवा जीवित हैं और तू जीवित है, मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा!"
\p इसलिए वे एक साथ बेतेल को गए।
\s5
\v 3 बेतेल में भविष्यवक्ताओं का एक दल एलीशा और एलिय्याह के पास आया; उन्होंने एलीशा से पूछा, "क्या तू जानता है कि यहोवा आज तेरे स्वामी एलिय्याह को स्वर्ग पर उठाने वाले हैं?"
\p एलीशा ने उत्तर दिया, "निश्चित रूप से मैं यह जानता हूँ, परन्तु इसके विषय में बात मत करो!"
\v 4 तब एलिय्याह ने एलीशा से कहा, "यहाँ ठहरा रह, क्योंकि यहोवा ने केवल मुझे यरीहो जाने के लिए कहा है।"
\p परन्तु एलीशा ने फिर से उत्तर दिया, "जैसे निश्चित रूप से यहोवा जीवित हैं और तू जीवित है, मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा!"
\p इसलिए वे यरीहो शहर को एक साथ गए।
\p
\s5
\v 5 जब वे यरीहो के निकट थे, तो वहाँ से आए भविष्यद्वक्ताओं का एक और दल एलीशा के पास आया और उससे कहा, "क्या तू जानता है कि यहोवा आज तेरे स्वामी एलिय्याह को तुझसे दूर ले जानेवाले हैं?"
\p उसने फिर से उत्तर दिया, "निश्चित रूप से मुझे पता है, परन्तु इसके विषय में बात मत करो!"
\p
\v 6 तब एलिय्याह ने एलीशा से कहा, "यहाँ ठहरा रह, क्योंकि यहोवा ने केवल मुझे यरदन नदी जाने के लिए कहा है।"
\p परन्तु फिर से एलीशा ने उत्तर दिया, "निश्चित रूप से जैसे यहोवा जीवित हैं और तू जीवित है, मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा!"
\p इसलिए उन्होंने एक साथ चलना जारी रखा।
\s5
\v 7 यरीहो के भविष्यद्वक्ताओं के दल से पचास पुरुष भी गए, परन्तु उन्होंने दूर ही से देखा क्योंकि एलिय्याह और एलीशा यरदन नदी के किनारे रुक गए थे।
\v 8 तब एलिय्याह ने अपनी चादर को ऐंठ कर उसे पानी पर मारा। नदी के बीच से उनके लिए एक रास्ता खुल गया, और सूखे मैदान के जैसे वे उससे होकर पार चले गए।
\p
\s5
\v 9 जब वे दूसरी ओर आए, तो एलिय्याह ने एलीशा से कहा, "मेरे उठाए जाने से पहले तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ ?"
\p एलीशा ने उत्तर दिया, "मैं अन्य भविष्यद्वक्ताओं के समान तेरी शक्ति का दोगुना भाग प्राप्त करना चाहता हूँ।"
\p
\v 10 एलिय्याह ने उत्तर दिया, "तूने कुछ ऐसा माँगा है जिसे करना मेरे लिए कठिन है। परन्तु यदि तू मेरे उठाए जाने के समय मुझे देखेगा तो तू जो भी माँग रहा है उसे प्राप्त करेगा। परन्तु यदि तू मुझे नहीं देख पाया, तो तुझे यह नहीं मिलेगा। "
\p
\s5
\v 11 जब वे चल रहे थे और बात कर रहे थे, अचानक ही आग से घिरा घोड़ों का एक रथ दिखाई दिया। रथ चालक ने एलिय्याह और एलीशा के बीच से रथ को चलाया और उन्हें अलग कर दिया। तब एलिय्याह को एक बवंडर से स्वर्ग में उठा लिया गया।
\v 12 एलीशा ने इसे देखा। वह चिल्लाया, "हे मेरे पिता! हे मेरे पिता! इस्राएल के रथ और उसके चालक मेरे स्वामी को दूर ले गए हैं!" वे आकाश में गायब हो गए, और एलीशा ने फिर कभी एलिय्याह को नहीं देखा। तब एलीशा ने अपने वस्त्र को दो टुकड़ों में फाड़ दिया ताकि वह दिखा सके कि वह बहुत दु:खी था।
\s5
\v 13 एलिय्याह की चाद्दर उसे ले जाते समय गिर गई थी, इसलिए एलीशा उसे उठाकर यरदन नदी के तट पर लौट आया।
\v 14 उसने चाद्दर को ऐंठ कर पानी पर मारा, और चिल्लाया, "क्या एलिय्याह के परमेश्वर यहोवा मेरे साथ भी हैं?" तब पानी अलग हो गया, और उसके लिए एक रास्ता खुल गया, और एलीशा पार हो गया।
\p
\s5
\v 15 जब यरीहो के भविष्यवक्ताओं के दल ने जो कुछ हुआ उसे देखा था, तो उन्होंने कहा, "एलीशा में अब वो शक्ति है जो एलिय्याह के पास थी!" वे एलीशा के पास गए और उसके सामने झुककर दण्डवत् किया।
\v 16 उनमें से एक ने कहा, "महोदय, यदि तू हमें अनुमति देता है, तो हमारे सबसे शक्तिशाली पुरुष जाएँगे और नदी के दूसरी ओर तेरे स्वामी की खोज करेंगे। हो सकता है यहोवा के आत्मा ने उसे किसी पहाड़ पर या किसी घाटी में छोड़ दिया हो। "
\p एलीशा ने उत्तर दिया, "नहीं, उन्हें मत भेजो।"
\p
\s5
\v 17 परन्तु वे उससे आग्रह करते रहे। अन्त में वह "न" कहने से थक गया और उसने कहा, "बहुत अच्छा, उन्हें भेज दो।" अत: पचास पुरुषों ने तीन दिनों तक खोज की, परन्तु उन्हें एलिय्याह नहीं मिला।
\v 18 वे यरीहो लौट आए, और एलीशा अभी भी वहां था। उसने उनसे कहा, "मैंने तुम्हें बताया था कि तुम्हें नहीं जाना चाहिए, क्योंकि तुम उसे नहीं ढूँढ़ पाओगे!"
\p
\s5
\v 19 तब यरीहो के अगुवे एलीशा से बात करने आए। उनमें से एक ने कहा, "हे हमारे स्वामी, हमें एक समस्या है। तू देख सकता है कि यह रहने के लिए एक बहुत अच्छा स्थान है। परन्तु पानी खराब है, और इसके परिणामस्वरूप, भूमि पर फसलें नहीं बढ़ती हैं।"
\p
\v 20 एलीशा ने उन से कहा, "थोड़े से नमक को एक नए कटोरे में रखो और कटोरा मेरे पास लाओ।" अत: वे उसे उसके पास लाए।
\p
\s5
\v 21 तब एलीशा उस सोते के पास गया जहाँ से नगर के लोगों को पानी मिलता था। उसने सोते में नमक को डाल दिया। तब उसने कहा, "यहोवा यही कहते हैं: 'मैंने यह पानी अच्छा बना दिया है। अब कोई भी बुरे पानी के कारण से नहीं मरेगा, और भूमि फलदायी फसलों को उगाएगी।'"
\v 22 और पानी शुद्ध हो गया, जैसा कि एलीशा ने कहा था। उस समय से यह हमेशा शुद्ध रहा।
\p
\s5
\v 23 एलीशा यरीहो को छोड़कर बेतेल को चला गया। जब वह सड़क पर चल रहा था, बेतेल के युवा लड़कों के एक समूह ने उसे देखा और उसका मजाक उड़ाया। उन्होंने चिल्लाकर कहा, "हे गंजे चला जा,
\v 24 एलीशा ने पीछे मुड़कर यहोवा के नाम से उनको डाँटा । जंगल से तुरन्त दो रीछनियाँ निकल आई और उनमें से बयालीस मारे गए।
\v 25 एलीशा ने बेतेल को छोड़ दिया और कर्मेल पर्वत पर गया, और उसके बाद वह सामरिया शहर लौट आया।
\s5
\c 3
\p
\v 1 यहोशापात के लगभग अठारह वर्ष तक यहूदा पर शासन करने के बाद, अहाब का पुत्र योराम इस्राएल का राजा बन गया। उसने बारह वर्षों तक सामरिया शहर पर शासन किया।
\v 2 उसने उन कामों को किया जिनको यहोवा ने बुरा कहा था, परन्तु उसने अपने पिता और माता के जितनी बुराई नहीं की, और उसने अपने पिता द्वारा बाल की पूजा करने के लिए बनाए पत्थर के खंभों से छुटकारा पा लिया।
\v 3 परन्तु उसने उन पापों को किया जो राजा यारोबाम ने किया था और उसने इस्राएलियों को पाप करने के लिए प्रेरित किया, और वह उन पापों को करने से नहीं रुका।
\p
\s5
\v 4 मोआब का राजा मेशा भेड़ों का पालन किया करता था। हर वर्ष उसे इस्राएल के राजा को 1,00,000 मेम्ने और 1,00,000 मेढ़ों के ऊन देना पड़ता था, क्योंकि उसका राज्य इस्राएल के राजा द्वारा नियंत्रित किया जाता था।
\v 5 परन्तु राजा अहाब की मृत्यु के बाद, मेशा ने इस्राएल के राजा के विरूद्ध विद्रोह किया।
\v 6 अत: राजा योराम युद्ध करने के लिए सभी इस्राएली सैनिकों को बुलाने के लिए सामरिया से निकला।
\s5
\v 7 तब उसने यह संदेश यहूदा के राजा यहोशापात को भेजा: "मोआब के राजा ने मेरे विरूद्ध विद्रोह किया है। इसलिए क्या तेरी सेना मेरी सेना के साथ चलकर मोआब की सेना के विरुद्ध युद्ध करेगी?"
\p यहोशापात ने उत्तर दिया, "हाँ, हम तेरी सहायता करेंगे। जो कुछ भी तू हम से चाहता है उसे करने के लिए हम तैयार हैं। मेरे सैनिक और मेरे घोड़े तेरी सहायता करने के लिए तैयार हैं।"
\p
\v 8 उसने पूछा, "किस सड़क से हमें उन पर हमला करने के लिए कूच करना चाहिए?"
\p योराम ने उत्तर दिया, "हम दक्षिण में यरूशलेम जाएंगे, जहाँ तेरी सेना हमसे जुड़ जाएगी। तब हम सब मृत सागर के दक्षिण में जाएंगे और फिर उत्तर की ओर मुड़कर एदोम के जंगल से होकर चले जाएंगे।"
\p
\s5
\v 9 अत: इस्राएल का राजा और उसकी सेना यहूदा और एदोम के राजाओं और उनकी सेनाओं के साथ गई। वे सात दिनों तक चलते रहे। तब उनके सैनिकों के लिए या उनके सामान उठानेवाले जानवरों के लिए कोई पानी नहीं बचा था।
\p
\v 10 इस्राएल के राजा ने कहा, "यह एक भयानक स्थिति है! ऐसा लगता है कि यहोवा हम तीनों को मोआब की सेना के हाथों पकड़वा देंगे!"
\p
\s5
\v 11 यहोशापात ने कहा, "क्या यहाँ कोई भविष्यद्वक्ता है जो हमारे लिए यहोवा से पूछ सकता है कि हमें क्या करना चाहिए?"
\p योराम के सेना अधिकारियों में से एक ने कहा, "शापात का पुत्र एलीशा यहाँ है। वह एलिय्याह का सहायक था।"
\p
\v 12 यहोशापात ने कहा, "उससे पूछना अच्छा होगा, क्योंकि वह वही कहता है जो यहोवा उसे बताने के लिए कहते हैं।"
\p अत: वे तीनों राजा एलीशा के पास गए।
\s5
\v 13 एलीशा ने इस्राएल के राजा से कहा, " तू मेरे पास क्यों आता है? जा और उन भविष्यद्वक्ताओं से पूछ जिनसे तेरे पिता और माता ने परामर्श लिया था!"
\p परन्तु योराम ने उत्तर दिया, "नहीं, हम चाहते हैं कि तू यहोवा से पूछे, क्योंकि ऐसा लगता है कि यहोवा हम तीन राजाओं को एक साथ इसलिए लाए हैं ताकि मोआब की सेना हमें पकड़ सके।"
\p
\v 14 एलीशा ने उत्तर दिया, "मैं स्वर्ग में रहनेवाले स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान यहोवा की सेवा करता हूँ। निश्चित रूप से जैसा कि वह जीवित हैं, यदि मैं यहूदा के राजा यहोशापात का सम्मान नहीं करता, तो मैं तेरी सहायता करने के लिए कुछ भी करने के विषय में सोचता भी नहीं।
\s5
\v 15 मेरे पास एक संगीतकार लाओ। "
\p अत: उन्होंने ऐसा किया। जब संगीतकार ने अपनी वीणा को बजाया, तब यहोवा की शक्ति एलीशा पर आई।
\v 16 उसने कहा, "यहोवा कहते हैं कि वह इस सूखे नाले को पानी से भर देंगे।
\v 17 परिणाम यह होगा कि तेरे सैनिक और तेरा सामान उठानेवाले जानवर और तेरे पशुओं के पीने के लिए बहुत सारा पानी होगा।
\s5
\v 18 यहोवा के लिए ऐसा करना कठिन नहीं है। परन्तु वह उससे भी अधिक करेंगे। वह तुझे मोआब की सेना को हराने में भी सक्षम करेंगे।
\v 19 तू उन सभी सुन्दर शहरों को जीत लेगा, ऐसे शहर जिनके चारों ओर ऊँची दीवारें हैं। तुझे उनके सभी फलों के पेड़ों को काट देना होगा, पानी को उनके झरनों में बहने से रोक देना होगा, और चट्टानों से ढक कर उनके उपजाऊ खेतों को नष्ट कर देना होगा।"
\p
\s5
\v 20 अगली सुबह, जब उन्होंने अनाज के बलिदान चढ़ाए, तो वे एदोम से बहकर आते पानी को देखकर आश्चर्यचकित हुए जो देश में भर रहा था।
\p
\s5
\v 21 जब मोआब के लोगों ने सुना कि तीन राजा अपनी सेनाओं के साथ उनसे लड़ने के लिए आए हैं, तो वे सभी लोग जो युद्ध में लड़ने में सक्षम थे, सबसे कम उम्र के पुरुषों से लेकर वृद्धों तक को बुलाया गया था, और उन्होंने उनके देश की दक्षिणी सीमा पर अपना अपना मोर्चा सम्भाला।
\v 22 परन्तु जब वे अगली सुबह जल्दी भोर को उठे, तो उन्होंने देखा कि उनकी ओर का पानी खून के समान लाल दिखाई देता है।
\v 23 उन्होंने कहा, "यह खून है! तीनों शत्रु सेनाओं ने लड़ाई की होगी और एक दूसरे को मार डाला होगा! इसलिए आओ हम चलें और जो कुछ भी उन्होंने छोड़ा है उसे ले लें!"
\p
\s5
\v 24 परन्तु जब वे उस क्षेत्र में पहुँचे जहाँ इस्राएली सैनिकों ने अपने तम्बू स्थापित किए थे, तब इस्राएलियों ने मोआबी सैनिकों पर आक्रमण कर दिया और उन्हें पीछे हटने के लिए विवश कर दिया। इस्राएली सैनिकों ने मोआबी सैनिकों का पीछा किया और उनमें से बहुतों को मार डाला।
\v 25 इस्राएलियों ने उनके शहरों को भी नष्ट कर दिया। जब भी उन्होंने उपजाऊ खेतों को पार किया, उन्होंने उन खेतों में चट्टानों को फेंक दिया जब तक कि खेतों को चट्टानों से ढाँप नहीं दिया गया था। उन्होंने पानी को झरनों से बहने से रोक दिया और फल वाले पेड़ों को काट दिया। अंत में, केवल राजधानी का शहर, कीरहरासत बचा रहा। गोफन से पत्थर फेंकने वाले इस्राएली सैनिकों ने शहर को घेर लिया और उस पर आक्रमण किया।
\s5
\v 26 जब मोआब के राजा को मालूम हुआ कि उसकी सेना पराजित हो रही है, तो उसने अपने साथ तलवार से युद्ध करने वाले सात सौ पुरुषों को लिया, और इस्राएली पंक्ति में बल पूर्वक घुसकर एदोम के राजा से सहायता पाने के लिए रास्ता बनाने का विचार किया। उसने सोचा कि एदोमी उसका साथ देंगे। परन्तु वह ऐसा करने में असमर्थ रहा।
\v 27 तब मोआब के राजा ने अपने सबसे बड़े पुत्र को लिया, जो अगला राजा बनेगा, और उसे मार डाला और उसे अपने देवता कामोश को बलि करके चढ़ाया, और उसे शहर की दीवार के ऊपर जला दिया। तब परमेश्वर इस्राएली सेना पर बहुत क्रोधित हुए, इसलिए सेना चली गई और अपने देश वापस लौट गई।
\s5
\c 4
\p
\v 1 एक दिन यहोवा के भविष्यवक्ताओं में से एक की विधवा एलीशा के पास आई और उसके आगे रोकर बोली, "मेरा पति, जो तेरे साथ सेवा करता था, मर चुका है। तुझे पता है कि उसने यहोवा को बहुत आदर दिया था। परन्तु अब जिससे उसने बहुत सारा पैसा उधार लिया था, वह मेरे पास आया है। मैं उसका उधार नहीं चुका सकती हूँ, इसलिए वह मेरे दोनों पुत्रों को उधार के बदले में अपने दास बनाने की धमकी दे रहा है!"
\p
\v 2 एलीशा ने उत्तर दिया, "मैं तेरी सहायता करने के लिए क्या कर सकता हूँ? मुझे बता, तेरे घर में क्या है?"
\p उसने उत्तर दिया, "हमारे पास केवल एक कुप्पी जैतून का तेल है। हमारे पास और कुछ नहीं है।"
\p
\s5
\v 3 एलीशा ने कहा, "अपने पड़ोसियों के पास जा और जितने खाली बर्तन तू उनसे माँग सकती है, ले ले ।
\v 4 तब बर्तनों को अपने घर में अपने पुत्रों के साथ ले जा। दरवाजा बंद कर। फिर अपनी कुप्पी से जैतून का तेल उन बर्तनों में डाल। जब प्रत्येक बर्तन भर जाए, तो इसे एक ओर रख दे और दूसरा बर्तन भर। ऐसा तब तक करते रहना जब तक कि सभी बर्तन भर नहीं जाते।"
\p
\s5
\v 5 इसलिए जैसा एलीशा ने उसे करने को कहा था उसने वैसा ही किया। उसके पुत्र उसके पास बर्तन लाते रहे, और वह उनको भरती रही।
\v 6 शीघ्र ही सभी बर्तन भर गए। तो उसने अपने पुत्रों में से एक से कहा, "मेरे पास एक और बर्तन ला!" परन्तु उसने उत्तर दिया, "अब कोई और बर्तन नहीं हैं!" तब जैतून के तेल का बहना बन्द हो गया।
\p
\s5
\v 7 जो कुछ हुआ था उसे जब उसने एलीशा को बताया, तो उसने उससे कहा, "अब तेल बेच दे। और जो पैसा तुझे मिलता है, उससे अपने उधार को चुका दे, और तेरे और तेरे पुत्रों के लिए खाना खरीदने के लिए भी पर्याप्त पैसा होगा। "अतः उसने वैसा ही किया।
\p
\s5
\v 8 एक दिन एलीशा शूनेम शहर गया। वहाँ एक धनवान स्त्री थी वह अपने पति के साथ वहाँ रहती थी। एक दिन उसने एलीशा को अपने घर में भोजन के लिए आमंत्रित किया। एलीशा वहाँ गया, और तब से एलीशा जब भी शूनेम में जाता था, वह भोजन करने के लिए उनके घर जाता था।
\v 9 एक दिन उस स्त्री ने अपने पति से कहा, "मुझे निश्चय है कि यह व्यक्ति जो प्रायः यहाँ आता है वह एक भविष्यद्वक्ता है जो परमेश्वर का संदेश लाता है।
\s5
\v 10 मुझे लगता है कि हमें अपनी छत पर उसके लिए एक छोटा कमरा बनाना चाहिए, और इसमें एक बिस्तर, एक मेज, एक कुर्सी और एक दीपक रखना चाहिए। यदि हम ऐसा करते हैं, तो जब भी वह यहाँ आता है, उसके पास ठहरने के लिए एक स्थान होगा। "अतः उन्होंने ऐसा ही किया।
\p
\v 11 एक दिन एलीशा शूनेम में लौटा, और वह विश्राम करने के लिए उस कमरे में ऊपर गया।
\s5
\v 12 उसने अपने दास गेहजी से कहा, "उस स्त्री से कह कि मैं उससे बात करना चाहता हूँ।" अतः वह दास गया और उसे बताया। जब वह एलीशा के कमरे के द्वार पर आई,
\v 13 एलीशा ने गेहजी से कहा, "उसे कह कि हम दोनों उसके द्वारा हमारे लिए किए गए सभी कामों के लिए आभारी हैं। फिर उससे पूछ कि हम उसके लिए क्या कर सकते हैं। उससे पूछ, 'क्या तू चाहती है कि मैं राजा के पास या सेना के सरदार के पास जाकर तेरे लिए अनुरोध करूं? '"
\p गेहजी ने उसे यह संदेश दिया। उसने उत्तर दिया, "नहीं, तेरे स्वामी को ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मुझे जो कुछ चाहिए वह मेरे परिवार से प्राप्त होता है।"
\p
\s5
\v 14 बाद में, एलीशा ने गेहजी से पूछा, " तू क्या सोचता है कि हम उस स्त्री के लिए कर सकते हैं?"
\p उसने उत्तर दिया, " उसके पास कोई पुत्र नहीं है, और उसका पति एक बूढ़ा व्यक्ति है।"
\p
\v 15 एलीशा ने गेहजी से कहा, "उसे फिर से बुला। "अतः गेहजी गया और उसे बुलाया। और जब स्त्री वापस आई, तब वह द्वार पर ही खड़ी थी,
\v 16 एलीशा ने उससे कहा, "इसी समय अगले वर्ष तू अपने शिशु पुत्र को अपनी बाहों में उठाए होगी।" परन्तु उसने कहा, "हे महोदय, तू एक भविष्यद्वक्ता है जो परमेश्वर से संदेश लाता है, इसलिए कृपया मुझे ऐसी बातें कहकर धोखा न दे!"
\p
\s5
\v 17 परन्तु कुछ महीने बाद, स्त्री गर्भवती हो गई, और उसने अगले वर्ष उसी समय पर एक पुत्र को जन्म दिया, जैसी एलीशा ने भविष्यद्वाणी की थी।
\p
\v 18 जब बच्चा बड़ा हो रहा था, तो एक दिन वह अपने पिता को देखने के लिए मैदान में गया, जो अनाज की कटाई करने वाले पुरुषों के साथ काम कर रहा था।
\v 19 अचानक लड़के ने कहा, "मेरे सिर में दर्द हो रहा है! मेरा सिर दर्द से फट रहा है!"
\p उसके पिता ने सेवकों में से एक से कहा, "उसे उसकी माँ के पास घर ले जा!"
\v 20 अतः सेवक उसे घर ले गया, और उसकी माँ ने उसे अपनी गोद में रखा। परन्तु दोपहर में लड़के की मृत्यु हो गई।
\s5
\v 21 वह उसे भविष्यवक्ता के कमरे में सीढ़ियों से ऊपर ले गई और बिस्तर पर लेटा दिया। उसने उसे वहाँ छोड़ दिया और बाहर चली गई और दरवाजा बन्द कर दिया।
\p
\v 22 तब उसने अपने पति को पुकार कर कहा, "मेरे पास एक सेवक और एक गधा भेज, ताकि मैं शीघ्र ही भविष्यद्वक्ता के पास जाने के लिए उस पर सवारी कर सकूँ, और फिर वापस आऊँ!" परन्तु उसने अपने पति को यह नहीं बताया कि उनके बेटे की मृत्यु हो गई है।
\p
\s5
\v 23 उसके पति ने उससे पुकार कर कहा, " तू आज क्यों जाना चाहती है? यह वह दिन नहीं है जब हम नए चंद्रमा का त्यौहार मनाते हैं, और यह सब्त का दिन नहीं है!"
\p परन्तु उसने केवल यह उत्तर दिया, "बस वह कर जो मैं अनुरोध करती हूँ और सब ठीक हो जाएगा।"
\p
\v 24 इसलिए उसने गधे पर काठी कसी और अपने सेवक से कहा, "गधे को लेकर चल! और जब तक मैं न कहूँ तब तक इसकी गति कम नहीं करना!"
\s5
\v 25 जब वे कर्मेल पर्वत पर आए, जहाँ एलीशा था, तो एलीशा ने उसे दूर ही से देखा। उसने गेहजी से कहा, "देख, वह शूनेम की स्त्री आ रही है!
\v 26 उसके पास भाग, और उससे पूछ कि क्या उसके और उसके पति और उसके बच्चे के साथ सब ठीक है! "
\p अतः गेहजी उसके पास भागा और उससे पूछा, परन्तु उसने गेहजी से कहा, "हाँ, सब कुछ ठीक है और अधिक कुछ नहीं कहा।"
\p
\s5
\v 27 परन्तु जब वह उस स्थान पर आई, तब उसने एलीशा के सामने भूमि पर गिरकर दण्डवत् किया और उसके पैरों को पकड़ लिया। गेहजी ने उसे दूर करना चाहा, परन्तु एलीशा ने कहा, "उसे मत रोक! कोई बात उसे बहुत परेशान कर रही है, परन्तु यहोवा ने मुझे यह नहीं बताया है कि वह क्या बात है।"
\p
\s5
\v 28 तब उसने एलीशा से कहा, "हे महोदय, मैंने तुझसे अनुरोध नहीं किया था कि मुझे पुत्र को जन्म देने में सक्षम कर, परन्तु मैंने कहा था, 'मुझसे झूठ मत बोल।'"
\p
\v 29 तब एलीशा को मालूम हुआ कि उसके पुत्र के साथ कुछ हुआ होगा। इसलिए उसने गेहजी से कहा, "तुरन्त प्रस्थान करने के लिए तैयार हो जा। मेरी छड़ी ले जा और उसके घर जा। रास्ते में किसी से बात करने के लिए मत रुकना। शीघ्र ही जा जहाँ इसका पुत्र है और छड़ी को बच्चे के चेहरे पर रख। यदि तू ऐसा करे तो हो सकता है यहोवा उसे फिर से जीवित कर देंगे।"
\p
\s5
\v 30 परन्तु लड़के की माँ ने कहा, "निश्चय ही जैसे यहोवा जीवित हैं और तू जीवित है, मैं घर नहीं जाऊँगी यदि तू मेरे साथ नहीं चलता। "इसलिए एलीशा उसके साथ उसके घर गया।
\p
\v 31 परन्तु गेहजी शीघ्र आगे चला गया। जब वह स्त्री के घर पहुँचा तो उसने छड़ी को बच्चे के चेहरे पर रख दिया, परन्तु बच्चा नहीं हिला या कुछ नहीं बोला।
\p अतः गेहजी उसी सड़क से एलीशा से मिलने के लिए लौट आया, और उससे कहा, "बच्चा अभी भी मरा हुआ है।"
\s5
\v 32 जब एलीशा घर पहुँचा तो उसने देखा कि लड़का उसके बिस्तर पर मरा पड़ा था।
\v 33 एलीशा अपने कमरे में गया और दरवाजा बन्द किया और यहोवा से प्रार्थना की।
\v 34 फिर वह लड़के के शरीर पर लेट गया, और लड़के के मुँह पर अपना मुँह रखा, और लड़के की आँखों पर अपनी आँखें रखीं, और लड़के के हाथों पर अपने हाथ रख दिए। तब लड़के का शरीर गर्म होना शुरू हुआ!
\s5
\v 35 एलीशा उठकर कमरे में कई बार आगे पीछे चला-फिरा। फिर उसने अपने शरीर को लड़के के शरीर पर फिर से फैलाया। लड़के ने सात बार छींका और अपनी आँखें खोली!
\p
\v 36 तब एलीशा ने गेहजी को बुलाया। उसने कहा, "लड़के की माँ को बुला।" अतः गेहजी गया और उसे बुलाया, और जब वह अन्दर आई, तो एलीशा ने कहा, "अपने पुत्र को ले।"
\v 37 उसने एलीशा के चरणों में गिरकर दण्डवत् किया। तब उसने अपने पुत्र को उठाया और उसे नीचे ले गई।
\p
\s5
\v 38 तब एलीशा गिलगाल लौट आया। परन्तु उस समय उस क्षेत्र में अकाल पड़ा था। एक दिन जब भविष्यद्वक्ताओं का दल एलीशा के सामने बैठा था, और वे सुन रहे थे कि वह क्या कह रहा है, उसने अपने सेवक से कहा, "आग पर एक बड़ा बर्तन रख और इन मनुष्यों के लिए कुछ खिचड़ी बना।"
\p
\v 39 खेतों में से कुछ सब्जियां इकट्ठा करने के लिए भविष्यद्वक्ताओं में से एक बाहर गया। परन्तु उसने केवल कुछ जंगली लौकी को इकट्ठा किया और उन्हें अपने कपड़े में रख लिया और उन्हें वापस लाया। उसने उन्हें काटकर एक बर्तन में डाल दिया, परन्तु उसे नहीं पता था कि लौकी जहरीली थीं।
\s5
\v 40 उसने भविष्यवक्ताओं को खिचड़ी परोस दी, परन्तु पुरुषों के केवल थोड़ा ही खाने के बाद, वे चिल्ला उठे, "हे हमारे स्वामी, उस बर्तन में कुछ ऐसा है जो हमें मार डालेगा!"
\p अतः वे इसे नहीं खा पाए।
\v 41 एलीशा ने कहा, "मेरे पास थोड़ा आटा लेकर आओ। "वे उसके पास थोड़ा आटा लाए, और उसने उसे बर्तन में डाल दिया और उसने कहा, "यह अब एकदम ठीक है। तुम इसे खा सकते हो।" और उन्होंने इसे खाया, और इससे उन्हें हानि नहीं हुई।
\p
\s5
\v 42 एक दिन बालशालीशा शहर का एक व्यक्ति एलीशा के पास ताजा कटा हुआ एक बोरा अनाज और जौ की बीस रोटी लाया, जो उस वर्ष की पहली कटाई के अनाज से बनाई गई थीं।
\p एलीशा ने अपने सेवक से कहा, "इसे भविष्यद्वक्ताओं के समूह को दे दो, ताकि वे इसे खा सकें।"
\v 43 परन्तु उसके सेवक ने कहा, "क्या तुझे लगता है कि हम एक सौ भविष्यद्वक्ताओं को केवल इतने से ही खिला सकते हैं? मैं इसे सबके सामने कैसे रख सकता हूँ?"
\p परन्तु एलीशा ने उत्तर दिया, "इसे भविष्यद्वक्ताओं को दे ताकि वे इसे खा सकें, क्योंकि यहोवा कहते हैं कि उन सभी के लिए बहुत कुछ होगा, और कुछ बच भी जाएगा!"
\v 44 उसके सेवक ने जब भविष्यद्वक्ताओं को वह दिया और उन्होंने जितना वे चाहते थे, खाया, और जैसा यहोवा ने कहा था, खाना बच भी गया।
\s5
\c 5
\p
\v 1 नामान नाम का एक व्यक्ति अराम की सेना का सेनापति था। यहोवा ने उसे युद्ध में अनेक विजय पाने में समर्थ किया था और अराम के राजा ने उसकी प्रशंसा की और उसे सम्मानित किया। नामान एक बलवंत और बहादुर सैनिक भी था, परन्तु उसे कोढ़ था।
\p
\v 2 कुछ समय पहले, सैनिकों के दल ने इस्राएल की भूमि पर आक्रमण किया था, और उन्होंने एक जवान लड़की को पकड़ लिया और उसे अराम ले गए। वह नामान की पत्नी के लिए दासी हो गई।
\s5
\v 3 एक दिन, उस लड़की ने उससे कहा, "मेरी इच्छा है कि मेरा स्वामी सामरिया शहर के भविष्यद्वक्ता से भेंट करे। वह भविष्यद्वक्ता तेरे पति को उसके कोढ़ से चंगा करेगा।"
\p
\v 4 नामान की पत्नी ने अपने पति को उस इस्राएली लड़की की बात सुनाई और नामान ने राजा से अनुमति माँगी।
\s5
\v 5-6 राजा ने उससे कहा, "बहुत अच्छा, जा और भविष्यद्वक्ता से मिल। मैं तेरे लिए इस्राएल के राजा को एक पत्र लिखूँगा, यह कहकर कि मैंने तुझे भेजा है।" राजा ने पत्र में लिखा, "मैं इस पत्र को अपने सेनापति नामान के साथ भेज रहा हूँ, जो मेरी सच्ची सेवा करता है। मैं चाहता हूँ कि तू उसे उसकी बीमारी से चंगाई प्राप्त करने में सहायता करे।" इसलिए नामान, यह मानते हुए कि इस्राएल का राजा भविष्यद्वक्ता है, उसने इस्राएल के राजा को देने के लिए वह पत्र और 330 किलोग्राम चाँदी, 66 किलोग्राम सोना और कपड़ों के दस जोड़े ले लिए, और वह कई सेवकों को लेकर सामरिया गया।
\p
\s5
\v 7 जब वह सामरिया पहुँचा, तो उसने इस्राएल के राजा को वह पत्र दिया। राजा ने पत्र पढ़ा। फिर, बहुत निराश होकर, राजा ने अपने वस्त्र फाड़े और कहा, "मैं परमेश्वर नहीं हूँ! मैं लोगों को जीवित करने या मारने में समर्थ नहीं हूँ! इस पत्र को लिखने वाले व्यक्ति ने मुझे कोढ़ के इस रोगी को ठीक करने का अनुरोध क्यों किया? मेरे पास कोढ़ का उपचार करने की शक्ति नहीं है। अराम का राजा केवल हम पर आक्रमण करने का उपाय ढूँढ़ रहा है!"
\p
\s5
\v 8 एलीशा भविष्यद्वक्ता ने सुना कि क्यों इस्राएल के राजा ने अपने वस्त्र फाड़े हैं, इसलिए उसने राजा को एक संदेश भेजा, " तू क्यों परेशान है? नामान को मेरे पास भेज, तब वह जान लेगा कि इस्राएल में मैं एक सच्चा भविष्यद्वक्ता हूँ।"
\v 9 तब नामान अपने घोड़ों और रथों के साथ एलीशा के घर गया और दरवाजे के बाहर प्रतीक्षा की।
\v 10 परन्तु एलीशा दरवाजे पर नहीं आया। इसकी अपेक्षा, उसने एक संदेशवाहक को नामान को संदेश देने भेजा, "जाकर यरदन नदी में सात बार डुबकी लगा। तब तेरी त्वचा अच्छी हो जाएगी, और फिर तुझमे कोढ़ नहीं रहेगा।"
\p
\s5
\v 11 नामान बहुत क्रोधित हुआ। उसने कहा, "मैंने सोचा था कि निश्चिय ही वह मेरे कोढ़ पर अपना हाथ फेरेगा, और यहोवा से प्रार्थना करेगा, और मुझे चंगा करेगा!
\v 12 निश्चित रूप से मेरे अपने देश दमिश्क में अबाना नदी और पर्पर नदी में इस्राएल से भी अच्छा पानी है! क्या मैं अपने देश की नदियों में नहीं जा सकता और चंगा और शुद्ध नहीं हो सकता? "तो वह पलट कर और बहुत घृणा करते हुए चला गया।
\p
\s5
\v 13 परन्तु उसके कर्मचारी उसके पास आए, और उनमें से एक ने कहा, "महोदय, यदि उस भविष्यद्वक्ता ने तुझे कोई कठिन कार्य करने के लिए कहा होता, तो तू निश्चिय ही करता। तो तू ऐसा सरल काम करने से क्यों मना करता है, जब वह कहता है, "पानी में सात बार डुबकी लगा और शुद्ध हो जा?"
\v 14 तब नामान यरदन नदी पर गया और सात बार पानी में डुबकी लगाई, जैसा कि भविष्यद्वक्ता ने निर्देश दिया था, और उसकी त्वचा एक छोटे बच्चे की मुलायम त्वचा के समान स्वस्थ हो गई।
\p
\s5
\v 15 तब नामान और जो उसके साथ थे एलीशा से बात करने के लिए वापस आए। वे उसके सामने खड़े हुए, और नामान ने कहा, "अब मैं जान गया हूँ कि संसार में और कहीं असली देवता नहीं हैं, परन्तु यहाँ इस्राएल में सच्चे परमेश्वर हैं! इसलिए अब कृपया इन उपहारों को स्वीकार कर जिन्हें मैं तेरे लिए लाया हूँ!"
\p
\v 16 परन्तु एलीशा ने उत्तर दिया, "निश्चित रूप से जैसे यहोवा जीवित हैं, जिनकी मैं सेवा करता हूँ, मैं कोई भी उपहार स्वीकार नहीं करूँगा।" नामान निरंतर उससे उपहार स्वीकार करने का आग्रह करता रहा, परन्तु एलीशा मना करता रहा।
\p
\s5
\v 17 तब नामान ने कहा, "बहुत अच्छा, परन्तु मेरी एक विनती है। इस्राएल की यह मिट्टी यहोवा की मिट्टी है, इसलिए कृपया मुझे इस स्थान से कुछ मिट्टी लेने दे और उसे बोरों में डालकर दो खच्चरों पर लादने दे। तब मैं उसे अपने साथ वापस घर ले जाकर इस मिट्टी से एक वेदी बनाऊँगा। अब से, मैं उस वेदी पर यहोवा के लिए बलि चढ़ाऊँगा। मैं किसी दूसरे देवता को बलिदान नहीं चढ़ाऊँगा।
\v 18 हालांकि, जब मेरा स्वामी, राजा, रिम्मोन देवता के मन्दिर में उसकी पूजा करने के लिए जाता है, तो मैं विनती करता हूँ कि यहोवा मुझे क्षमा करें क्योंकि मुझे भी झुकना पड़ेगा।"
\p
\v 19 एलीशा ने उत्तर दिया, "घर जा, और इसके विषय में चिन्ता न कर।" तो नामान और उसके कर्मचारी घर जाने के लिए चल पड़े।
\p
\s5
\v 20 परन्तु तब एलीशा के दास गेहजी ने स्वयं से कहा, "यह अच्छा नहीं है कि मेरे स्वामी ने इस अरामी मनुष्य को इस तरह जाने की अनुमति दी। उसे उसके उपहार स्वीकार कर लेने चाहिए थे। जैसे निश्चय ही यहोवा जीवित हैं, मैं जाकर नामान को मिलूँगा और उससे कुछ प्राप्त करूँगा।"
\p
\v 21 तब गेहजी नामान को मिलने के लिए तुरन्त गया। जब नामान ने गेहजी को अपनी ओर दौड़ते देखा, तो वह उस रथ को रोक कर जिसमें वह सवारी कर रहा था, बाहर उतरा, और यह देखने के लिए गया कि गेहजी क्या चाहता है। उसने उससे पूछा, "क्या सब ठीक है?"
\p
\v 22 गेहजी ने उत्तर दिया, "हाँ, परन्तु दो युवा भविष्यद्वक्ता, पहाड़ी देश से जहाँ एप्रैम के वंशज रहते हैं पहुँचे हैं। एलीशा ने तुझे यह बताने के लिए मुझे भेजा है कि वह तैतीस किलोग्राम चाँदी और कपड़ों के दो जोड़े उन्हें देना चाहता है।"
\p
\s5
\v 23 नामान ने उत्तर दिया, "अवश्य! तू छियासठ किलोग्राम चाँदी ले सकता है!" उसने गेहजी से इसे लेने का आग्रह किया। उसने उसे वस्त्र के दो जोड़े भी दिए। उसने चाँदी को दो थैलों में बाँध दिया और उन्हें अपने दो सेवकों को एलीशा के पास ले जाने के लिए दिया।
\v 24 परन्तु जब वे पहाड़ी पर पहुँचे जहाँ एलीशा रहता था, तब गेहजी ने नामान के सेवकों से चाँदी और वस्त्र ले लिए और सेवकों को नामान के पास वापस भेज दिया। तब उसने उन वस्तुओं को अपने घर में छिपा दिया।
\v 25 जब वह एलीशा के पास गया, तो एलीशा ने उससे पूछा, " तू कहाँ गया था, गेहजी?" गेहजी ने उत्तर दिया, "मैं कहीं नहीं गया था।"
\p
\s5
\v 26 एलीशा ने उससे पूछा, "क्या तू नहीं जनता है कि जब नामान तुझसे बात करने के लिए अपने रथ से उतरा था तब मेरी आत्मा वहाँ थी? यह निश्चित रूप से पैसा और कपड़े और जैतून के बाग और दाख की बारियाँ और भेड़ और बैल और सेवक के उपहार स्वीकार करने का समय नहीं है!
\v 27 क्योंकि तू ने जो यह किया है, इसलिए तू और तेरी सन्तान और तेरे सभी वंशज, सदा के लिए, नामान के समान कोढ़ी हो जाएँ! "तब गेहजी कमरे से निकल गया, और वह एक कोढ़ी था। उसकी त्वचा बर्फ के समान सफेद थी।
\s5
\c 6
\p
\v 1 एक दिन भविष्यद्वक्ताओं के दल ने एलीशा से कहा, "देख, यह स्थान जहाँ हम तेरे सामने मिलते हैं, बहुत छोटा है।
\v 2 हमें एक नया स्थान बनाने के लिए यरदन जाकर पेड़ कटने की अनुमति दे कि उनसे बल्लियाँ बनाएँ। "इसलिए एलीशा ने कहा," बहुत अच्छा, जाओ।"
\p
\v 3 उनमें से एक ने एलीशा से कहा, "कृपया तू भी हमारे साथ आ।" तो एलीशा ने उत्तर दिया, "बहुत अच्छा, मैं तुम्हारे साथ चलूँगा।"
\p
\s5
\v 4 तब वे एक साथ गए। जब वे यरदन नदी पर पहुँचे तो उन्होंने कुछ पेड़ों को काटा।
\p
\v 5 परन्तु जब उनमें से एक पेड़ काट रहा था, तब उसकी कुल्हाड़ी हत्थे से अलग हुई और पानी में गिर गई। उसने एलीशा से चिल्ला कर कहा, "हे स्वामी, मैं क्या करूँ? कुल्हाड़ी मेरी नहीं है। मैंने इसे उधार लिया था!"
\p
\s5
\v 6 एलीशा ने उत्तर दिया, "वह पानी में कहाँ गिरी?" उसने उसे वह स्थान दिखाया, तो एलीशा ने एक छड़ी काटी, और उसे पानी में फेंक दिया, और कुल्हाड़ी पानी की सतह पर ऊपर आ गई।
\v 7 एलीशा ने कहा, "उसे पानी से बाहर निकाल ले।" तब व्यक्ति ने अपना हाथ बढ़ाकर कुल्हाड़ी को उठाया।
\p
\s5
\v 8 जब अराम के राजा ने इस्राएल के विरूद्ध युद्ध के लिए अपनी सेना को भेजने की तैयारी कर ली तब उसने पहले अपने अधिकारियों से परामर्श लिया और निर्देश दिया कि उन्हें अपने तम्बू कहाँ स्थापित करने चाहिए।
\p
\v 9 परन्तु एलीशा ने इस्राएल के राजा को चेतावनी का संदेश भेजा, उसे बताया कि अराम की सेना उन पर आक्रमण करने की योजना बना रही है और कहा, "सुनिश्चित कर कि तेरी सेना उस स्थान के निकट नहीं जाए, क्योंकि अराम की सेना ने वहाँ अपने तम्बू स्थापित किए हैं।"
\s5
\v 10 तब इस्राएल के राजा ने उस स्थान पर रहने वाले लोगों को चेतावनी देने के लिए दूत भेजे, और लोग सुरक्षित बने रहे। ऐसा कई बार हुआ।
\p
\v 11 अराम का राजा इस विषय में बहुत परेशान था, अतः उसने अपनी सेना के अधिकारियों को बुलाया और उनसे कहा, " तुम में से एक इस्राएल के राजा को हमारी योजनाएँ बता रहा है। तुम में से कौन ऐसा कर सकता है?"
\p
\s5
\v 12 उसके अधिकारियों में से एक ने उत्तर दिया, "हे महाराज, हम में से कोई नहीं है। एलीशा भविष्यद्वक्ता जानता है कि हम क्या करने की योजना बना रहे हैं, और वही इस्राएल के राजा को सब कुछ बताता है। वह यह भी जानता है कि तू अपने शयनकक्ष में क्या कहता है!"
\p
\v 13 अराम के राजा ने उत्तर दिया, "जाओ और पता लगाओ कि वह कहाँ है, और मैं उसे पकड़ने के लिए वहाँ कुछ लोगों को भेजूँगा।" किसी ने उसे बताया, "लोग कहते हैं कि वह सामरिया के उत्तर में दोतान शहर में है।"
\s5
\v 14 तब राजा ने घोड़ों और रथों समेत सैनिकों का एक बड़ा समूह दोतान को भेजा। वे रात में पहुँचे और शहर को घेरा।
\p
\v 15 अगली सुबह, एलीशा का सेवक उठा और घर के बाहर गया। उसने अराम के सैनिकों को नगर के चारों ओर अपने घोड़ों और रथों समेत देखा। तो वह घर के अन्दर आया और एलीशा को इसके विषय में बताया और कहा, "ओह, महोदय! हम क्या करने जा रहे हैं?"
\p
\v 16 एलीशा ने उत्तर दिया, "मत डर! जो हमारी सहायता करते हैं वे उनसे बहुत अधिक हैं जो उनके साथ है!"
\p
\s5
\v 17 तब उसने प्रार्थना की, "हे यहोवा, मैं विनती करता हूँ कि आप मेरे दास की आँखें खोलें ताकि यह देख सके कि वहाँ बाहर क्या है!" इसलिए यहोवा ने सेवक को देखने में समर्थ किया कि चारों ओर की पहाड़ी जहाँ नगर बनाया गया था, वहाँ बड़ी संख्या में आग के घोड़े और रथ दिखाई पड़ रहे थे!
\p
\v 18 जब अराम की सेना एलीशा पर आक्रमण करने के लिए तैयार हुई, तो उसने फिर से प्रार्थना की, और कहा, "हे यहोवा, इन सभी सैनिकों को अंधा कर दें!" यहोवा ने उसकी प्रार्थना सुनी और उन सैनिकों को स्पष्ट देखने में असमर्थ कर दिया।
\p
\v 19 तब एलीशा उनके पास गया और कहा, " तुम सही मार्ग पर नहीं हो। यह वह नगर नहीं है जिसे तुम खोज रहे हो। मैं तुम्हें उस व्यक्ति के पास ले जाऊँगा जिसे तुम खोज रहे हो।" परन्तु वह उन्हें इस्राएल की राजधानी सामरिया शहर में ले आया।
\p
\s5
\v 20 जैसे ही उन्होंने सामरिया में प्रवेश किया, एलीशा ने फिर से प्रार्थना की, "हे यहोवा, अब इन सैनिकों को फिर से देखने में समर्थ करें!" इसलिए यहोवा ने उन्हें स्पष्ट देखने में समर्थ किया और वे अचम्भित हुए कि वे सामरिया के भीतर थे।
\p
\v 21 जब इस्राएल के राजा ने उन्हें देखा, तो उसने एलीशा से कहा, "महोदय, क्या मैं अपने सैनिकों को उन्हें मार डालने के लिए कहूँ? क्या हम उन सभी को मार डालेंगे?"
\p
\s5
\v 22 एलीशा ने उत्तर दिया, "नहीं, तुझे उन्हें मारना नहीं चाहिए। यदि तेरी सेना युद्ध में अपने शत्रुओं को पकड़ लेती है, तो क्या तू निश्चिय ही उन्हें मार डालता है। इन मनुष्यों को खाने और पीने के लिए कुछ दे, और तब उन्हें उनके राजा के पास लौटने की अनुमति दे।"
\v 23 तब इस्राएल के राजा ने ऐसा किया। उसने अपने सेवकों से उनके लिए एक बड़ा भोज करने के लिए कहा। और जब उन्होंने बहुतायत से खा लिया और बहुत नशे में थे, तो उन्होंने उन्हें भेज दिया। वे अराम के राजा के पास लौट गए और जो हुआ था उसे बताया। तो उसके बाद कुछ समय के लिए, अराम के सैनिक इस्राएल पर आक्रमण करने से रुक गए।
\p
\s5
\v 24 परन्तु कुछ समय बाद, अराम के राजा बेनहदद ने अपनी सारी सेना इकट्ठी की, और वे सामरिया गए और उस नगर को लम्बे समय तक घेरे रखा।
\v 25 इस कारण, कुछ समय बाद शहर के भीतर कुछ ही भोजन बचा था, इसलिए अंत में एक गधे का सिर, जो आमतौर पर बेकार था, चाँदी के अस्सी टुकड़े में बिकता था और कबूतर की बीट का एक कटोरे चाँदी के पाँच टुकड़े में बिकता था।
\p
\v 26 एक दिन जब इस्राएल का राजा शहर की दीवार के ऊपर टहल रहा था, तब एक स्त्री ने चिल्ला कर कहा, "हे महामहिम, मेरी सहायता कर!"
\p
\s5
\v 27 उसने उत्तर दिया, "यदि यहोवा तेरी सहायता नहीं करेंगे, तो मैं भी निश्चित रूप से नहीं कर सकता। मेरे पास कोई गेहूँ या दाखमधु नहीं है!
\v 28 तेरी समस्या क्या है? "उसने उत्तर दिया," कई दिन पहले, एक स्त्री ने मुझसे कहा, 'क्योंकि हमारे पास खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा है, आज हम तेरे पुत्र को मार डालें ताकि हम उसका माँस खा सकें। फिर कल हम मेरे पुत्र को मारकर उसका माँस खाएँगे।'
\p
\v 29 इसलिए हमने मेरे पुत्र को मार डाला और उसके शरीर को काट दिया और उसका माँस उबालकर खा लिया। अगले दिन, मैंने उससे कहा, 'अब अपने पुत्र को मुझे दे, ताकि हम उसे भी मारकर उसका माँस पका सकें और खाएँ।' परन्तु उसने अपने पुत्र को छिपा लिया।"
\p
\s5
\v 30 जब राजा ने सुना कि स्त्री ने क्या कहा, तो उसने अपना दुःख दिखाने के लिए अपना वस्त्र फाड़ा। जो लोग दीवार के निकट खड़े थे उन्होंने देखा कि राजा अपने वस्त्र के नीचे टाट का वस्त्र पहने था क्योंकि वह बहुत परेशान था।
\v 31 राजा ने कहा, "मेरी इच्छा है कि यदि मैं आज एलीशा के सिर को काट न दूँ, तो परमेश्वर मुझे मार डालें, क्योंकि वह वही हैं जिन्होंने इस भयानक स्थिति को हम पर आने का कारण बना दिया है!"
\p
\s5
\v 32 तब राजा ने एलीशा को लाने के लिए एक अधिकारी भेजा।
\p अधिकारी के पहुँचने से पहले, एलीशा अपने घर में कुछ इस्राएली प्राचीनों के साथ बैठा था जो उसके साथ बात कर रहे थे। एलीशा ने उनसे कहा, "यह हत्यारा, इस्राएल का राजा, मुझे मारने के लिए किसी को यहाँ भेज रहा है। सुनो, जब वह आता है, तो दरवाजा बन्द रखना और उसे अन्दर आने की अनुमति न देना, क्योंकि राजा उस अधिकारी के ठीक पीछे आ जाएगा!"
\v 33 और जब वह अभी बोल ही रहा था, राजा और अधिकारी पहुँचे। राजा ने कहा, "यह यहोवा ही हैं जो हम पर यह सब परेशानियाँ आने दे रहे हैं। अब मैं उनकी सहायता के लिए प्रतीक्षा नहीं करूँगा।"
\s5
\c 7
\p
\v 1 एलीशा ने राजा को उत्तर दिया, "यहोवा जो कहते हैं, उसे सुनो: 'वह कहते हैं कि कल इसी समय, सामरिया के बाज़ार में, तुम चाँदी के एक टुकड़े से सात किलो मैदा खरीदने में और चाँदी के एक टुकड़े से चौदह किलो जौ खरीदने में सक्षम होंगे।'"
\p
\v 2 राजा के साथ के अधिकारी ने एलीशा से कहा, "ऐसा नहीं हो सकता है! भले ही यहोवा स्वयं आकाश की खिड़कियां खोल दें और हमारे लिए नीचे अनाज भेज दें, यह निश्चित रूप से नहीं हो सकता!" एलीशा ने उत्तर दिया, "क्योंकि तू ऐसा कहता है, इसलिए तू इसे होते हुए तो देखेगा, परन्तु तू किसी भी भोजन को खाने में सक्षम नहीं होगा!"
\p
\s5
\v 3 उस दिन चार पुरुष, जिनको कुष्ट रोग था वे सामरिया शहर के फाटक के बाहर बैठे थे। उन्होंने एक दूसरे से कहा, "हम मरने तक यहाँ प्रतीक्षा क्यों करें?
\v 4 यदि हम शहर में जाते हैं, तो हम वहाँ मर जाएँगे, क्योंकि वहाँ कोई भोजन नहीं है। यदि हम यहाँ बैठे रहते हैं, तो हम यहाँ भी मर जाएँगे। इसलिए आओ हम वहाँ चलें जहाँ अराम की सेना ने अपने तम्बू स्थापित किए हैं। यदि वे हमें मार देते हैं, तो हम मर जाएँगे। परन्तु यदि वे हमें जीवित रहने देते हैं, तो हम नहीं मरेंगे।"
\s5
\v 5 अतः जब अंधेरा हो रहा था, तो वे चारों उस शिविर में गए जहाँ अराम की सेना ने अपने तम्बू लगाए थे। परन्तु जब वे शिविर में पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि वहाँ कोई भी नहीं था।
\p
\v 6 हुआ यह था कि यहोवा ने अराम की सेना को ऐसा कुछ सुनाया जो कि रथों और घोड़ों के साथ चल रही एक बड़ी सेना के समान सुनाई दिया। इसलिए सैनिकों ने एक-दूसरे से कहा, "सुनो! इस्राएल के राजा ने मिस्र के और हित्तियों के राजाओं और उनकी सेनाओं को किराए पर लिया है, और वे आक्रमण करने आए हैं!"
\s5
\v 7 इसलिए वे सभी उस शाम सूर्यास्त के समय भाग गए और वहाँ अपने तम्बू और उनके घोड़े और गधे छोड़ दिए, क्योंकि वे डर गए थे कि यदि वे वहाँ रहे तो वे मारे जाएँगे।
\p
\v 8 जब वे चार लोग जिन्हें कुष्ट रोग था उस क्षेत्र की सीमा पर आए, जहाँ अराम के सैनिकों ने अपने तम्बू लगाए थे, तो वे एक तम्बू में गए और वहाँ छोड़े गए सामान को देखा। इसलिए जो वहाँ था उन्होंने वह खाया और पिया, और उन्होंने चाँदी और सोने और कपड़े ले लिए। तब वे तम्बू के बाहर गए और उन चीजों को छिपा दिया। और उन्होंने एक और तम्बू में प्रवेश किया और वहाँ से भी वस्तुएँ ले लीं, और फिर बाहर गए और उन्हें भी छिपा दिया।
\p
\s5
\v 9 परन्तु उन्होंने एक-दूसरे से कहा, "हम सही काम नहीं कर रहे हैं। आज दूसरों को सुनाने के लिए हमारे पास अच्छा समाचार है। यदि हम इसे अभी किसी को भी नहीं बताते हैं, और यदि हम इसे सुबह बताने के लिए प्रतीक्षा करते हैं, तो लोग निश्चित रूप से हमें दण्ड देंगे। इसलिए आओ, हम इसी समय महल में जाएँ और राजा के अधिकारियों को बताएँ!"
\p
\v 10 तब वे शहर के फाटकों पर रक्षकों के पास गए और उनसे कहा, "हम आरामी सेना के तम्बुओं में गये थे, परन्तु हमने वहाँ किसी को देखा या सुना नहीं। उनके घोड़े और गधे अभी भी बंधे थे, परन्तु उनके तम्बू सभी खाली हैं! "
\v 11 रक्षकों ने इस सन्देश को पुकार कर सुनाया, और कुछ लोग जिन्होंने इसे सुना, महल में गए और वहाँ इसकी सूचना दी।
\p
\s5
\v 12 रात में राजा ने यह समाचार सुना। वह अपने बिस्तर से उठ गया और अपने अधिकारियों से कहा, "मैं तुम्हें बताता हूँ कि अराम की सेना ने क्या योजना बनाई है। वे जानते हैं कि हमारे पास भोजन नहीं है, इसलिए उन्होंने अपने तम्बू छोड़ दिए हैं और खेतों में छिपे गये हैं। वे सोचते हैं कि हम भोजन खोजने के लिए शहर छोड़ देंगे, और फिर वे हमें पकड़ लेंगे और शहर पर अधिकार कर लेंगे। "
\p
\v 13 परन्तु उसके अधिकारियों में से एक ने कहा, "हमारे बहुत से लोग पहले ही भूख से मर चुके हैं। यदि हमारे कुछ लोग जो अभी भी जीवित हैं, वे सभी यहाँ रुके रहते हैं, तो हम भी किसी रीति से मर जाएँगे। इसलिए हम अपने पाँच घोड़ों के साथ कुछ पुरुष भेज दे जो अभी भी जीवित हैं और वे जाकर देखें कि वास्तव में क्या हुआ है।"
\p
\s5
\v 14 इसलिए उन्होंने कुछ पुरुषों को चुना और उन्हें दो रथों में भेजा कि अराम की सेना के साथ जो हुआ उसका पता लगाएँ।
\v 15 वे यरदन नदी तक चले गए। सड़क के साथ-साथ उन्होंने कपड़ों और उपकरणों को देखा जिनको अराम के सैनिकों ने भागते समय फेंक दिया था। अतः लोग राजा के पास लौट आए और उन्होंने जो देखा उसकी जानकारी दी।
\s5
\v 16 तब सामरिया के बहुत से लोग शहर से बाहर निकल कर वहाँ चले गए जहाँ अराम की सेना ने अपने तम्बू लगाए थे। उन्होंने सभी तम्बुओं में प्रवेश किया और सब कुछ ले लिया। अतः वहाँ सब कुछ अब बहुतायत से हो गया! जिसके परिणामस्वरूप लोग चाँदी के एक टुकड़े में सात किलो मैदा और चाँदी के एक टुकड़े में चौदह किलो जौ खरीद सकते थे, जैसा यहोवा ने कहा था!
\p
\v 17 इस्राएल के राजा ने अपने सहायक को आदेश दिया, जिसने एलीशा से बात की थी, कि वह शहर के फाटक पर जाकर वहाँ की स्थिति को संभाले। परन्तु जब वह फाटक पर खड़ा था, तो जो लोग शहर के बाहर भाग रहे थे, वे उस पर चढ़ गए और वह मर गया, जैसा एलीशा ने कहा था, वही उसके साथ हुआ।
\s5
\v 18 एलीशा ने उसे कहा था कि अगले दिन वहाँ बहुतायत से भोजन होगा, जिसके परिणामस्वरूप चाँदी के एक टुकड़े में चौदह किलो जौ और चाँदी के एक टुकड़े में सात किलो मैदा खरीदा जाएगा।
\p
\v 19 उस अधिकारी ने उत्तर दिया था, "ऐसा हो ही नहीं सकता है! चाहे यहोवा स्वयं आकाश खोल दें और कुछ अनाज नीचे भेज दें।" और एलीशा ने उत्तर दिया था, "क्योंकि तू ने ऐसा कहा है, तू ऐसा होते हुए देखेगा, परन्तु तू उस भोजन में से कुछ भी खा नहीं पाएगा!"
\v 20 और यही उसके साथ हुआ। जो लोग शहर के फाटक से बाहर भाग रहे थे, वे उस पर चढ़ गए, और वह दबकर मर गया।
\s5
\c 8
\p
\v 1 एलीशा ने शूनेम शहर की स्त्री के बेटे को फिर से जीवित करने के बाद, उसे बताया था कि उसे अपने परिवार के साथ वहाँ से निकल कर कुछ समय के लिए कहीं और रहना चाहिए, क्योंकि यहोवा उस देश में अकाल भेजने जा रहे हैं। उसने कहा कि अकाल सात वर्ष तक रहेगा।
\v 2 इसलिए उस स्त्री ने वैसा किया जैसा एलीशा ने उसे करने के लिए कहा था। वह और उसका परिवार सात वर्ष तक पलिश्तियों के क्षेत्र में रहने के लिए चला गया।
\p
\s5
\v 3 सात वर्ष समाप्त होने के बाद, वे अपने घर लौट आए। स्त्री राजा से अनुरोध करने के लिए गई कि उसका घर और उसकी भूमि उसे वापस दे दी जाए।
\v 4 जब वह वहाँ पहुँची, तो राजा एलीशा के सेवक गेहजी से बात कर रहा था। राजा उससे कह रहा था, "एलीशा ने जो बड़े बड़े काम किए हैं, वह मुझे बता।"
\s5
\v 5 जब गेहजी राजा को बता रहा था कि एलीशा ने शूनेम की एक स्त्री के बेटे को फिर से जीवित कर दिया था, वह स्त्री अन्दर आई और राजा से अनुरोध किया कि वह उसे उसका घर और भूमि फिर से प्राप्त करने में सक्षम करे। गेहजी ने कहा, "हे महाराज, यह वही स्त्री है जिसके पुत्र को एलीशा ने फिर से जीवित कर दिया था!"
\p
\v 6 जब राजा ने उससे इसके विषय में पूछा, तो उसने उसे बताया कि गेहजी ने जो कहा था वह सच है। राजा ने अपने अधिकारियों में से एक को बुलाया और कहा, "यह सुनिश्चित कर कि इस स्त्री को इसके स्वामित्व वाली हर वस्तु फिर से मिल जाए, जिसमें पिछले सात वर्ष ों में काटी गई उन सभी फसलों के मूल्य भी हैं, जिस समय में वह अपनी भूमि से दूर थी। "अतः उस अधिकारी ने ऐसा ही किया।
\p
\s5
\v 7 एलीशा अराम की राजधानी दमिश्क में गया, उस समय अराम का राजा बेनहदद बहुत बीमार था। जब किसी ने राजा से कहा कि एलीशा दमिश्क में है,
\v 8 तो राजा ने अपने अधिकारियों में से एक हजाएल को कहा, "जा और उस भविष्यद्वक्ता से बात कर और उसे देने के लिए अपने साथ एक उपहार ले जा और उससे कह कि वह यहोवा से पूछे कि क्या मैं अपनी बीमारी से ठीक हो जाऊँगा।"
\p
\v 9 अतः हजाएल एलीशा से बात करने गया। उसने अपने साथ चालीस ऊँट ले लिए जो दमिश्क में उत्पादित कई प्रकार के सामान से लदे हुए थे। जब हजाएल उससे मिला, तो उसने कहा, "अराम का राजा तेरे मित्र बेनहदद ने तुझसे यह पूछने के लिए मुझे भेजा है कि वह अपनी बीमारी से ठीक हो पाएगा या नहीं।"
\p
\s5
\v 10 एलीशा ने हजाएल से कहा, "जा और उससे कह, 'हाँ, तू निश्चय ही इस बीमारी से नहीं मरेगा,' परन्तु यहोवा ने मुझे दिखाया है कि वह ठीक होने से पहले अवश्य मर जाएगा।"
\v 11 तब एलीशा ने उसे घूरा और उसके चेहरे को घूरकर देखा। इससे हजाएल को कुछ विचित्र सा लगा। फिर अचानक एलीशा ने रोना शुरू कर दिया।
\p
\v 12 हजाएल ने कहा, "हे महोदय, तू क्यों रो रहा है?"
\p एलीशा ने उत्तर दिया, "क्योंकि यहोवा ने मुझे उन भयानक बातों को प्रकट किया है जो तू इस्राएल के लोगों के साथ करेगा। तेरे सैनिक उनके शहरों को जलाएँगे जिनके चारों ओर अभी दीवारें हैं, युद्ध में उनके अच्छे जवानों को मार डालेंगे, उनके बच्चों के सिर को कुचल देंगे, और उनकी गर्भवती स्त्रियों के पेट को तलवार से फाड़ देंगे।"
\p
\s5
\v 13 हजाएल ने उत्तर दिया, "मैं कुत्ते के समान शक्तिहीन हूँ। मैं ऐसे भयानक काम कैसे कर सकता हूँ?"
\p एलीशा ने उत्तर दिया, "यहोवा ने मुझे यह भी बताया है कि तू अराम का राजा बनेगा।"
\p
\v 14 तब हजाएल चला गया और अपने स्वामी राजा के पास लौट आया, जिसने उससे पूछा, "एलीशा ने क्या कहा?"
\p उसने उत्तर दिया, "उसने मुझे बताया कि तू निश्चय ही ठीक हो जाओगे।"
\v 15 परन्तु अगले दिन, जब राजा सो रहा था, हजाएल ने एक कम्बल लिया और उसे पानी में भिगो दिया। फिर उसने राजा के चेहरे पर इसे डाल दिया ताकि वह सांस न ले सके, और वह मर गया। तब बेनहदद के स्थान में हजाएल अराम का राजा बन गया।
\p
\s5
\v 16 अहाब के पुत्र राजा योराम के, लगभग पाँच वर्षों तक इस्राएल पर शासन करने के बाद, यहोशापात का पुत्र यहोराम यहूदा का राजा बन गया।
\v 17 जब वह राजा बना, तब वह बत्तीस वर्ष का था, और उसने यरूशलेम पर आठ वर्ष तक शासन किया।
\s5
\v 18 उसकी पत्नी राजा अहाब की पुत्री थी। अहाब के परिवार के हर व्यक्ति के समान, उसने निरंतर उन बुरे कामों को किया जो इस्राएल के पिछले राजाओं ने किये थे। उसने ऐसे कई काम किए जिनको यहोवा ने बुरा कहा था।
\v 19 परन्तु यहोवा यहूदा के लोगों से इस कारण छुटकारा नहीं पाना चाहते थे, क्योंकि उन्होंने अपने सच्चे सेवक दाऊद से प्रतिज्ञा की थी। उन्होंने दाऊद से प्रतिज्ञा की थी कि उसके वंशज सदा यहूदा पर शासन करेंगे।
\p
\s5
\v 20 यहोराम के शासन के समय, अदोम के राजा ने यहूदा के विरूद्ध विद्रोह किया, और उन्होंने अपना राजा नियुक्त किया।
\v 21 तब यहोराम अपनी सेना और अपने सारे रथों के साथ अदोम की सीमा के पास साईर शहर गया। वहाँ एदोम की सेना ने उन्हें घेर लिया। परन्तु रात के दौरान, यहोराम और उनके रथों के सरदार शत्रु की पांतियों से बचने और भागने में सक्षम हो गए थे। और उसके सभी सैनिक भी अपने घरों को भाग गए।
\s5
\v 22 उसके बाद, एदोम पर यहूदा का नियंत्रण नहीं रहा, और यह अब भी ऐसा ही है। उसी समय, लिब्ना शहर के लोगों ने भी यहूदा के नियंत्रण से स्वयं को मुक्त कर लिया।
\p
\v 23 यदि तुम यहोराम द्वारा किए गए अन्य कामों के विषय में पढ़ना चाहते हैं, तो वे यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं।
\v 24 यहोराम की मृत्यु हो गई और उसे वहाँ दफनाया गया जहाँ यहूदा के अन्य राजाओं को दफनाया गया था अर्थात् यरूशलेम के उस भाग में जिसे दाऊद का शहर कहा जाता था। तब यहोराम का पुत्र अहज्याह राजा बन गया।
\p
\s5
\v 25 अहाब के पुत्र योराम के बारह वर्षों तक इस्राएल पर शासन करने के बाद, यहोराम का पुत्र अहज्याह यहूदा का राजा बन गया।
\v 26 अहज्याह बाईस वर्ष का था जब उसने शासन करना शुरू किया। उसने यरूशलेम में केवल एक वर्ष तक शासन किया। उसकी मां का नाम अतल्याह था, जो राजा अहाब की पुत्री और इस्राएल के राजा ओमरी की पोती थी।
\v 27 राजा अहज्याह ने अपना जीवन अहाब के परिवार के सदस्यों के समान रखा। उसने ऐसे कई काम किए जिनको यहोवा ने बुरा कहा था।
\p
\s5
\v 28 अहज्याह की सेना अराम के राजा हजाएल की सेना के विरुद्ध लड़ने के लिए इस्राएल के राजा योराम की सेना के साथ हो गई। उनकी सेनाओं ने गिलाद क्षेत्र के रामोत शहर में युद्ध किया और अराम के सैनिकों ने योराम को घायल कर दिया।
\v 29 राजा योराम अपने घावों से ठीक होने के लिए यिज्रेल शहर लौट आया। राजा अहज्याह वहां उससे मिलने गया।
\s5
\c 9
\p
\v 1 इस बीच, भविष्यद्वक्ता एलीशा ने अपने भविष्यद्वक्ताओं में से एक को बुलाया। उसने उससे कहा, "तैयार हो जा और गिलाद क्षेत्र के रामोत शहर जा। जैतून के तेल के इस बर्तन को अपने साथ ले जा।
\v 2 जब तू वहाँ पहुँचे, तो यहोशापात के पुत्र और निमशी के पोते येहू नामक व्यक्ति की खोज करना। उसको साथ लेकर उसके साथियों से दूर एक कमरे में जाना
\v 3 और उसके सिर पर यह थोड़ा तेल डाल देना। तब उससे कहना, 'यहोवा ने घोषणा की है कि वह तुझे इस्राएल का राजा बनने के लिए नियुक्त कर रहे हैं।' फिर दरवाजा खोल कर जितनी जल्दी हो सके भाग जाना।"
\p
\s5
\v 4 तब वह युवा भविष्यद्वक्ता रामोत गया।
\v 5 जब वह पहुँचा, तो उसने देखा कि सेना के सरदारों का एक सम्मेलन था। उसने येहू को देखा और कहा, "हे महोदय, मेरे पास तुम में से एक के लिए एक संदेश है।"
\p येहू ने उत्तर दिया, "हम में से किसके लिए वह संदेश है?"
\p युवा भविष्यद्वक्ता ने उत्तर दिया, "हे सरदार, यह तेरे लिए है।"
\p
\v 6 तब येहू उठकर युवा भविष्यद्वक्ता के साथ एक कमरे में गया। वहाँ उस युवा भविष्यद्वक्ता ने येहू के सिर पर कुछ जैतून का तेल डाला और उससे कहा, "यहोवा, जिनकी हम इस्राएली उपासना करते हैं, यह घोषित करते हैं: 'मैं तुझे अपने इस्राएली लोगों का राजा बनने के लिए नियुक्त कर रहा हूँ।
\s5
\v 7 तुझे अहाब के पुत्र अपने स्वामी राजा योराम को मार डालना है, क्योंकि मैं अहाब की पत्नी ईज़ेबेल को अपने कई भविष्यद्वक्ताओं और अन्य लोगों जिन्होंने मेरी सेवा की थी उनकी हत्या करने के लिए दण्ड दूँगा।
\v 8 तुझे केवल योराम को ही नहीं, अहाब के पूरे परिवार को मारना है। मैं युवाओं और बूढ़े लोगों सहित परिवार के हर पुरुष से छुटकारा पाना चाहता हूँ।
\s5
\v 9 मैं अहाब के परिवार से छुटकारा पाऊँगा, जैसे कि मैंने इस्राएल के दो अन्य राजाओं, यारोबाम और बाशा के परिवारों से छुटकारा पाया है।
\v 10 और जब ईज़ेबेल मर जाती है, तो उसका शव दफनाया नहीं जाएगा। यिज्रेल शहर में उसका शव कुत्ते खाएँगे।'"
\p युवा भविष्यद्वक्ता ने यह कहने के बाद, कमरे को छोड़ दिया और भाग गया।
\s5
\v 11 जब येहू कमरे से बाहर आया जहाँ उसके अन्य सरदार थे, तो उन्होंने उससे पूछा, "क्या सब ठीक है? वह पागल तुम्हारे पास क्यों आया?"
\p उसने उत्तर दिया, " तुम जानते हो कि उसके जैसे युवा भविष्यद्वक्ता कैसी बातें करते हैं।"
\p
\v 12 उन्होंने कहा, " तू झूठ बोल रहा है। हमें बता उसने क्या कहा!"
\p उसने उत्तर दिया, "उसने मुझे कई बातें बताईं, और फिर उसने मुझे बताया कि यहोवा ने कहा है, 'मैं तुझे इस्राएल का राजा बनने के लिए नियुक्त कर रहा हूँ।'"
\p
\v 13 तब उन्होंने येहू के लिए निकलने के लिए भवन के चरणों पर अपने कपड़े बिछा दिए, और उन्होंने तुरही बजाई और चिल्लाए, "येहू अब राजा है!"
\p
\s5
\v 14-15 राजा योराम और उसकी सेना अराम के राजा की सेना के आक्रमण से रामोत का बचाव कर रही थी। राजा योराम अराम के राजा हजाएल की सेना से युद्ध करते समय में घायल हो गया था इसलिए ठीक होने के लिए यिज्रेल शहर लौट आया था। येहू ने योराम को मारने की योजना बनाई। उसने अपने अन्य सरदारों से कहा, "यदि तुम वास्तव में मेरी सहायता करना चाहते हो, तो सुनिश्चित करो कि कोई भी इस शहर से निकलकर मेरी योजना के विषय में यिज्रेल के लोगों को चेतावनी देने के लिए जाने न पाए।"
\v 16 तब येहू और उसके अधिकारी अपने रथों से यिज्रेल चले गए, जहाँ योराम अभी भी ठीक हो रहा था और यहूदा का राजा अहज्याह योराम को देखने वहाँ गया था।
\p
\s5
\v 17 यिज्रेल में पहरेदारी में एक पहरेदार खड़ा था। उसने येहू और उसके पुरूषों को देखा। उसने कहा, "मैं बहुत सारे पुरुषों को आते हुए देख रहा हूँ!" राजा योराम ने सुना जो पहरेदार ने कहा, इसलिए उसने अपने सैनिकों से कहा, "किसी को घोड़े पर जाने के लिए भेजो और पता लगाओ कि क्या वे शान्तिपूर्वक आ रहे हैं या आक्रमण करने आ रहे हैं।"
\p
\v 18 इसलिए एक व्यक्ति घोड़े की सवारी करने वाला येहू से मिलने के लिए बाहर निकल गया और उससे कहा, "राजा जानना चाहता है कि तू शान्ति से आ रहा है या नहीं।"
\p येहू ने उत्तर दिया, "यह समय तेरे लिए शान्ति के विषय में चिंतित होने का समय नहीं है! मुड़ और मेरे पीछे आ!"
\p तो गुम्मट में पहरेदारी करने वाले ने बताया कि सन्देशवाहक उस समूह तक पहुँचा था जो निकट आ रहा था, परन्तु वह अकेले वापस नहीं लौट रहा था।
\p
\s5
\v 19 इसलिए राजा योराम ने एक और दूत भेजा जिसने येहू से वही सवाल पूछा। फिर येहू ने उत्तर दिया, "यह समय तेरे लिए शान्ति के विषय में चिंतित होने का समय नहीं है! मुड़ और मेरे पीछे आ!"
\p
\v 20 पहरेदार ने फिर से सूचना दी, "वह दूत भी उन तक पहुँचा, परन्तु वह अकेले वापस नहीं आ रहा है। और समूह का अगुवा निमशी का पुत्र येहू ही होना चाहिए, क्योंकि वह उसी के समान अपने रथ को उग्र रूप से चला रहा है!"
\p
\s5
\v 21 योराम ने अपने सैनिकों से कहा, "मेरा रथ तैयार करवाओ।" उन्होंने ऐसा किया। तब राजा योराम और राजा अहज्याह दोनों येहू की ओर चले गए, हर एक अपने रथ में था और ऐसा हुआ कि वे उस क्षेत्र में येहू से मिले जो पहले नाबोत का था!
\v 22 जब योराम ने येहू का सामना किया, तो उसने उससे कहा, "क्या तू मेरे प्रति शान्तिपूर्वक काम करने आया है?"
\p येहू ने उत्तर दिया, " तू और तेरे लोग मूर्तियों के आगे झुक रहे हैं और अपनी माता ईज़ेबेल के समान बहुत जादूगरी का अभ्यास कर रहे हैं, तो शान्ति कैसे हो सकती है?"
\p
\s5
\v 23 योराम रोया, "अहज्याह, उन्होंने हमें धोखा दिया है! वे हमें मारना चाहते हैं!" तो योराम ने अपना रथ को मोड़ा और भागने का प्रयास किया।
\p
\v 24 परन्तु येहू ने धनुष को खींचकर एक तीर को ऐसा मारा कि तीर योराम के कन्धों के बीच योराम के हृदय को छेदता हुआ शरीर से पार हो गया और वह अपने रथ में ही मर गया।
\s5
\v 25 तब येहू ने अपने सहायक बिदकर से कहा, "इसके शव को नाबोत के खेत में फेंक दे। मुझे विश्वास है कि तुझे याद होगा, जब तू और मैं राजा योराम के पिता अहाब के पीछे रथों में एक साथ सवारी कर रहे थे तब यहोवा ने अहाब के विषय में यही कहा था,
\v 26 'कल मैंने अहाब को नाबोत और उसके पुत्रों की हत्या करते हुए यही देखा था। और मैं गम्भीर प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं उसे उसी स्थान में दण्ड दूँगा! 'तो योराम के शव को ले और उसे उस स्थान में फेंक दे! इससे यहोवा का कहा पूरा होगा।"
\p
\s5
\v 27 जब राजा अहज्याह ने देखा कि क्या हुआ, तो वह अपने रथ में बारी के भवन नामक (बेथ हैगान) शहर की ओर भाग गया। परन्तु येहू ने उसका पीछा किया और अपने अन्य सरदारों से कहा, "उसे भी मारो!" इसलिए जब वह यिबलाम शहर के निकट गूर के मार्ग पर रथ में जा रहा था तब उन्होंने तीर चलाकर उसे मार डाला, वह अपने रथ में तब तक चलता रहा जब तक कि वह मेगीद्दो शहर तक नहीं पहुँचा, जहाँ वह मर गया।
\v 28 उसके अधिकारी उसके शव को यरूशलेम वापस ले गया और उसे दाऊद के नगर में दफन कर दिया, जहाँ उसके पूर्वजों को दफनाया गया था।
\s5
\v 29 अहज्याह यहूदा का राजा तब बन गया था जब योराम लगभग ग्यारह वर्ष इस्राएल पर शासन कर चुका था।
\p
\s5
\v 30 तब येहू यिज्रेल गया। जब अहाब की विधवा ईज़ेबेल ने सुना कि क्या हुआ है, उसने अपनी आँखों में सुर्मा लगाया, और सुन्दर बनने के लिए अपने बालों को सँवारा, और महल की खिड़की से नीचे की सड़क की ओर देखा।
\v 31 जब येहू शहर के द्वार में प्रवेश कर रहा था, उसने उसे पुकार कर कहा, " तू जिम्री के समान है! तू उसके जैसे हत्यारा है! मुझे लगता है कि तू मेरे लिए शान्तिपूर्वक काम करने के लिए नहीं आ रहा है!"
\p
\v 32 येहू ने खिड़की की ओर देख कर कहा, "मेरी ओर कौन है? कोई है?" दो या तीन महल अधिकारियों ने उसे खिड़की से नीचे देखा।
\s5
\v 33 येहू ने उनसे कहा, "उसे नीचे फेंक दो!"
\p तो उन्होंने उसे नीचे फेंक दिया और येहू ने आदेश दिया कि उसके पुरुष उसके शरीर पर अपने रथ और घोड़े चलाएँ, और इसी प्रकार वह मारी गयी। उसका कुछ खून शहर की दीवार पर और रथ खींच रहे घोड़ों पर लग गया।
\v 34 तब येहू महल में गया और खाया और पिया। तब उसने अपने कुछ लोगों से कहा, "यहोवा से श्रापित स्त्री के शव को ले जाकर दफन कर दे, क्योंकि वह राजा की बेटी है और इसलिए उसे ठीक से दफनाया जाना चाहिए।"
\s5
\v 35 परन्तु जब वे उसके शव को दफनाने के लिए गए, तो जो कुछ बचा था, वह केवल उसकी खोपड़ी और उसके हाथों और पैरों की हड्डियाँ थी। बाकी सब कुछ समाप्त हो गया था।
\v 36 जब उन्होंने येहू को यह बताया, तो उसने कहा, "यहोवा ने यही कहा होगा! उसने अपने दास एलिय्याह से कहा, 'यिज्रेल शहर में, कुत्ते ईज़ेबेल की लाश का माँस खाएँगे।
\v 37 उसकी हड्डियों को यिज्रेल में गोबर के समान बिखरा दिया जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप कोई भी उन्हें पहचानने में सक्षम नहीं होगा कि कहे, "ये ईज़ेबेल की हड्डियाँ हैं।"
\s5
\c 10
\p
\v 1 राजा अहाब के सत्तर वंशज थे जो सामरिया में रह रहे थे। येहू ने एक पत्र लिखा और इसकी प्रतियां बनाईं और उन्हें शहर के शासकों, वृद्धों और अहाब के बच्चों को प्रशिक्षित करने वालों के पास भेज दिया।
\v 2 उसने उस पत्र में जो लिखा वह यह था: "तू ही वो है जो राजा के वंशजों की देखभाल कर रहा है। तेरे पास रथ, घोड़े और हथियार हैं, और तू उन शहरों में रहता है जिनकी दीवारें हैं। जैसे ही तू इस पत्र को प्राप्त करता है,
\v 3 तब राजा के वंशजों में से एक को चुन, जो सबसे योग्य हो, और उसे अपना राजा बनने के लिए नियुक्त कर। फिर उसे बचाने के लिए लड़ने के लिए तैयार हो जा। "
\p
\s5
\v 4 परन्तु जब उन्हें वे पत्र मिले और उन्हें पढ़ा, तो वे बहुत डर गए। उन्होंने कहा, "राजा योराम और राजा अहज्याह उसका विरोध नहीं कर सके; तो हम उसका विरोध कैसे कर सकते हैं?
\p
\v 5 तो जो महल का और शहर का अधिकारी था, येहू को एक संदेश भेजा, "हम तेरी सेवा करना चाहते हैं, और जो भी तू कहेगा, हम उसे करने के लिए तैयार हैं। हम किसी को भी अपना राजा नियुक्त नहीं करेंगे। तू जो भी सोचता है वह सबसे अच्छा है। "
\p
\s5
\v 6 तब येहू ने उन्हें एक दूसरा पत्र भेजा,: "यदि तू मेरे पक्ष में है, और यदि तू मेरी आज्ञा मानने के लिए तैयार है, तो राजा अहाब के वंशजों को मार डाल और उनके सिर काट दे और कल इस समय यिज्रेल में यहाँ मेरे पास ला।"
\p अब राजा अहाब के सत्तर वंशज सामरिया शहर के अगुवों की देखभाल में थे।
\v 7 जब उन्हें येहू का पत्र मिला तब उन्होंने उनके सिर काट दिये और एक टोकरी में रखकर येहू के पास यिज्रेल में भेज दिये।
\s5
\v 8 एक दूत येहू के पास आया और उससे कहा, "वे अहाब के वंशजों के सिर लाए हैं।" इसलिए येहू ने आज्ञा दी कि सिरों को नगर के द्वार पर दो ढेर में रख दिया जाए और अगली सुबह तक वहीं रहने दिया जाए।
\p
\v 9 अगली सुबह वह शहर के द्वार पर गया और सभी लोगों से कहा, "मैं ही हूँ जिसने राजा योराम के विरुद्ध षड्यंत्र रचा था और उसे मार डाला। तू ऐसा करने के लिए दोषी नहीं है। परन्तु यह यहोवा थे, मैं नहीं, जिन्होंने आज्ञा दी थी कि अहाब के इन सभी वंशजों को मार देना चाहिए।
\s5
\v 10 मैं चाहता हूँ कि तुम जान सको कि यहोवा ने जो कहा था वही हुआ है। जो हुआ वह उन्होंने भविष्यद्वक्ता एलिय्याह से कह दिया था।"
\v 11 तब येहू ने अहाब के सभी सम्बन्धियों को जो यिज्रेल में थे, और अहाब के सब अधिकारियों, घनिष्ट मित्रों और उसके याजकों को मार डाला। उसने उनमें से एक को भी जीवित नहीं छोड़ा।
\p
\s5
\v 12 तब येहू यिज्रेल छोड़ कर सामरिया की ओर चला गया। जब वह वहाँ जा रहा था, तब बेथ-एकेद नामक एक स्थान पर,
\v 13 वह यहूदा के राजा अहज्याह के कुछ सम्बन्धियों से मिला। उसने उनसे पूछा, " तुम कौन हो?"
\p उन्होंने उत्तर दिया, "हम राजा अहज्याह के सम्बन्धी हैं। हम यिज्रेल के पास रानी ईज़ेबेल के बच्चों और राजा योराम के परिवार के अन्य सदस्यों से मिलने जा रहे हैं।"
\p
\v 14 येहू ने अपने लोगों से कहा, "उन्हें पकड़ो!" इसलिए उन्होंने उन्हें पकड लिया और उन सभी को बेथ-एकद के कुएं में मार डाला। वहां बयालीस लोग मारे गए थे। उन्होंने उनमें से किसी को जीवित नहीं छोड़ा।
\p
\s5
\v 15 तब येहू सामरिया की ओर बढ़ चला। सड़क के साथ वह रेकाब के पुत्र यहोनादाब से मिला। येहू ने उसे बधाई दी और उससे कहा, "क्या तू भी वही सोच रहा है जो मैं सोच रहा हूँ?"
\p यहोनादाब ने उत्तर दिया, "हाँ, मैं वही सोच रहा हूँ।"
\p येहू ने कहा, "यदि तू वही सोच रहा है, तो मेरे साथ हाथ मिला।" तो यहोनादाब ने उसके साथ हाथ मिलाया और येहू ने उसे अपने रथ पर चढ़ने में सहायता की।
\v 16 येहू ने उससे कहा, "मेरे साथ आ, और तू देखेगा कि मैं यहोवा की आज्ञा मानने के लिए कितना उत्सुक हूँ।" तो वे एक साथ सामरिया चले गए।
\p
\v 17 जब वे सामरिया पहुंचे, तो येहू ने अहाब के सभी सम्बन्धियों को मार डाला जो अभी भी जीवित थे। उन्होंने उनमें से किसी को भी नहीं छोड़ा। यहोवा ने एलिय्याह से यही कहा था।
\p
\s5
\v 18 तब येहू ने सामरिया के सभी लोगों को बुलाया, और उन से कहा, "राजा अहाब अपने देवता बाल को थोड़ा सा समर्पित था, परन्तु मैं उसकी सेवा करूंगा।
\v 19 इसलिए अब बाल के सभी भविष्यवक्ताओं, बाल के पुजारियों और बाल की पूजा करने वाले अन्य सभी लोगों को बुलाओ। मैं बाल को बड़ी बलि चढाने जा रहा हूँ। मैं चाहता हूँ कि वे सभी वहां हों। जो नहीं आएगा उसे मार दिया जाएगा। " परन्तु येहू उन्हें धोखा दे रहा था, क्योंकि वह बाल की पूजा करने वालों की हत्या करने की योजना बना रहा था।
\p
\v 20 तब येहू ने आज्ञा दी, "घोषणा कर कि हम बाल को सम्मानित करने के लिए एक दिन अलग करने जा रहे हैं।" इसलिए उन्होंने उस दिन के विषय में एक घोषणा करवाई।
\s5
\v 21 येहू ने निर्णय लिया कि वे सब किस दिन एकत्र होंगे और पूरे इस्राएल में संदेश भिजवा दिया कि किस दिन इकट्ठा होना है, उस दिन, बाल की पूजा करने वाले सब लोग आए। कोई भी घर पर नहीं रहा। वे सभी बाल के विशाल मंदिर में गए और उसे एक छोर से दूसरे तक भर दिया।
\v 22 येहू ने उस याजक से कहा जो पवित्र वस्त्रों की देखभाल करता था कि वस्त्रों को बाहर निकाले और बाल की पूजा करने वाले लोगों को दे। याजक ने ऐसा ही किया।
\p
\s5
\v 23 तब येहू यहोनादाब के साथ बाल के मंदिर में गया, और उसने उन लोगों से जो बाल की पूजा करने के लिए वहां थे कहा, "सुनिश्चित करो कि केवल बाल की पूजा करने वाले लोग ही हैं। सुनिश्चित करो कि कोई भी जो यहोवा की उपासना करता है, वहाँ तो यहाँ नहीं है । "
\v 24 तब वह और यहोनादाब बाल को बलिदान और अन्य भेंट चढ़ाने के लिए तैयार हुए, जो सामरिया में वेदी पर पूरी तरह से जला दी जाएगी। परन्तु येहू ने मंदिर के बाहर अपने अस्सी पुरुष रखे थे, और उनसे कहा था, "मैं चाहता हूँ कि तुम मंदिर में रहने वाले सभी लोगों को मार डालो। कोई भी जो उन्हें बचकर जाने देता है उसे मार डाला जाएगा!"
\p
\s5
\v 25 जैसे ही येहू और योनादाब ने पशुओं को मारकर पूरी तरह से जला दिया, वे बाहर गए और रक्षकों और अधिकारियों से कहा, "अन्दर जाओ और उन्हें मार डालो! किसी को भी बचकर जाने मत देना! " तो रक्षक और अधिकारी गए और उन्हें अपनी तलवार से सबको मार डाला। तब उन्होंने मंदिर के बाहर लाशों को खींच लिया। तब वे मंदिर के भीतरी कमरे में गए,
\v 26 और उन्होंने बाल के पवित्र खंभे को वहां से निकाल कर जला दिया।
\v 27 इस प्रकार उन्होंने उस खंभे को नष्ट कर दिया जो बाल को सम्मानित करता था, और फिर उन्होंने मंदिर को जला दिया, और इसे एक शौचालय बना दिया। और वह आज तक वैसा ही है।
\p
\v 28 इसी प्रकार येहू ने इस्राएल में बाल की पूजा से छुटकारा पा लिया।
\s5
\v 29 परन्तु येहू ने यारोबाम के पापों का त्याग नहीं किया अर्थात् बेतेल और दान में यारोबाम द्वारा स्थापित सोने के बछड़े की मूर्ति की पूजा की जिसके कारण इस्राएली पाप के भागी हुए थे।
\p
\v 30 तब यहोवा ने येहू से कहा, " तू ने अहाब के वंशजों से छुटकारा पाकर मुझे प्रसन्न किया है। इसलिए मैं तुझसे प्रतिज्ञा करता हूँ कि तेरे पुत्र और पोते और पुत्र के पोते सभी इस्राएल के राजा होंगे । "
\v 31 परन्तु येहू ने इस्राएल के लोगों के परमेश्वर यहोवा के सभी नियमों का पालन नहीं किया। उसने यारोबाम के पापों को करने से नहीं रोका, उन पापों ने इस्राएली लोगों को पाप करने के लिए प्रेरित किया।
\p
\s5
\v 32 उस समय, यहोवा ने इस्राएल राज्य को छोटा करना आरंभ कर दिया था। अराम के राजा हजाएल की सेना ने इस्राएली क्षेत्र में से अधिकांश इस्राएली भाग पर विजय प्राप्त कर ली थी।
\v 33 उसने यरदन नदी के पूर्व के भागों को जीत लिया, जहाँ तक दक्षिण में अर्नोन नदी पर अरोएर शहर तक। इसमें गिलाद और बाशान के क्षेत्र थे, जहाँ गाद, रूबेन और मनश्शे के आधे गोत्र रहते थे।
\p
\s5
\v 34 यदि तुम येहू की अन्य सभी बातों को के विषय में अधिक पढ़ना चाहते हो, तो वे इस्राएल के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं।
\p
\v 35 येहू मर गया, और सामरिया में दफनाया गया। उसका पुत्र यहोआहाज अपने पिता के स्थान पर राजा बना।
\v 36 येहू ने सामरिया में इस्राएल के राजा के रूप में होकर अठारह वर्ष तक शासन किया था।
\s5
\c 11
\p
\v 1 जब राजा अहज्याह की माता अतल्याह ने देखा कि उसका पुत्र मारा गया है, तो उसने आज्ञा दी कि अहज्याह के परिवार के सभी सदस्य जो राजा बन सकते हैं, उन्हें मार डाला जाना चाहिए।
\v 2 जब अहज्याह के पुत्रों की हत्या की जा रही थी। तब यहोशेबा, जो राजा योराम की पुत्री और अहज्याह की सौतेली बहन थी, उसने अहज्याह के सबसे छोटे पुत्र योआश को उसकी धाई के साथ मंदिर में एक शयनकक्ष में छिपा दिया। अतः वह मारा नहीं गया था।
\v 3 वह यहोशेबा के साथ छः वर्षों तक रहा। उस समय, वह अतल्याह के शासन के समय मंदिर में छिपा हुआ था।
\p
\s5
\v 4 छः वर्ष बाद, महायाजक यहोयादा ने राजसी अंगरक्षकों और महल के रक्षकों के सरदारों को बुलाया। उसने उन्हें मंदिर में आने के लिए कहा। वहां उसने उनसे प्रतिज्ञा करवाई और शपथ खिलाई कि वह जो कहेगा वे करेंगे। तब उसने राजा अहज्याह के पुत्र योआश को उन्हें दिखाया।
\v 5 उसने उन्हें ये निर्देश दिए: "तुम्हारे तीन समूह हो। जब एक समूह सब्त के दिन अपना काम पूरा करले, तो अपने आप को तीन छोटे समूहों में विभाजित करो। एक समूह महल की रक्षा करे।
\v 6 दूसरा समूह सुर फाटक पर रुकना चाहिए। दूसरे समूह को अन्य समूहों के पीछे द्वार पर ठहरे।
\s5
\v 7 सब्त के दिन काम नहीं कर रहे दो समूह छोटे राजा योआश की रक्षा करने के लिए मंदिर की रक्षा करे।
\v 8 जहाँ भी राजा योआश जाता है, तुम हथियार लेकर उसके साथ रहना। जो भी तुम्हारे निकट आए उसे मार डालना। "
\p
\s5
\v 9 रक्षकों के सरदारों ने यहोयाद के निर्देशों के अनुसार ही किया। प्रत्येक व्यक्ति अपने अधीन रक्षकों को यहोयादा के पास ले लाए - जो अपनी सेवा कर चुके थे और जो सेवा करने जा रहे थे।
\v 10 याजक ने रक्षकों के सरदारों को मंदिर में रखे राजा दाऊद के भाले और ढाल दे दिये।
\s5
\v 11 तब उसने सभी रक्षकों को अपने अपने स्थानों पर खड़े होने का आदेश दिया, हर एक अपनी तलवार हाथ में लिए हुए, राजा के चारों ओर रहे।
\p
\v 12 तब वह योआश को बाहर लाया। उसने उसके सिर पर मुकुट रख दिया और उसे एक लपेटा हुआ पत्र दिया जिस पर नियमों को लिखा गया था राजा को जिनका पालन करने की आवश्यकता थी। तब उसने योआश के सिर पर कुछ जैतून का तेल डाला और घोषणा की कि वह अब राजा है। सब लोगों ने अपने तालियाँ बजाई और चिल्लाए, "राजा सदा जीवित रहे!"
\p
\s5
\v 13 जब अतल्याह ने रक्षकों और अन्य लोगों द्वारा किए गए शोर को सुना, तो उस मंदिर में आई जहाँ लोग इकट्ठे हुए थे।
\v 14 उसने देखा कि नया राजा वहां एक बड़े खंभे के साथ खड़ा है, मंदिर का वह स्थान जहाँ राजा प्रायः खड़े होते थे। उसने देखा कि वह मंदिर के अधिकारियों से घिरा हुआ था, और लोग आनन्द से चिल्ला रहे थे, और उनमें से कुछ तुरही बजा रहे थे। उसने अपनी परेशानी दिखने के लिए अपने कपड़े फाड़े और चिल्लाई, " तू धोखेबाज है! तूने मुझे धोखा दिया है!"
\s5
\v 15 यहोयादा ने तुरंत कहा, "उसे मार डालो, परन्तु यहोवा के मन्दिर में ऐसा मत करो! उसे रक्षकों की उन दो पंक्तियों के बीच ले जाओ। और उसे बचाने का प्रयास करने वाले को भी मार डालो!"
\v 16 उसने भागने का प्रयास किया, परन्तु रक्षकों ने उसे पकड़ लिया और उसे महल में वहाँ ले गये, जहाँ घोड़े आंगन में प्रवेश करते थे। उन्होंने उसे वहां मार डाला।
\p
\s5
\v 17 तब यहोयादा ने राजा और लोगों के बीच एक वाचा बान्धी, कि वे सदा यहोवा की आज्ञा मानें। उन्होंने एक और वाचा बांधी कि प्रजा योआश राजा के प्रति निष्ठावान रहे।
\v 18 तब इस्राएल के सब लोग बाल के मंदिर गए और उसे तोड़ दिया। उन्होंने बाल की वेदियों और मूर्तियों को तोड़ दिया। उन्होंने वेदी के सामने बाल के पुजारी मत्तान को भी मार डाला।
\p यहोयादा ने यहोवा के मन्दिर में रक्षक नियुक्त कर दिये।
\s5
\v 19 तब वह और मंदिर के अधिकारी तथा राजसी अंगरक्षकों के सरदार और राजा के अंगरक्षक राजा को मंदिर से निकाल कर महल में लाए। सभी लोग उनके पीछे चले थे। योआश ने रक्षकों के फाटक से होकर महल में प्रवेश किया और सिंहासन पर बैठ गया, जहाँ राजा हमेशा बैठते थे।
\v 20 यहूदा के सभी लोग आनन्दित हुए। और क्योंकि अतल्याह की हत्या हो गई थी, शहर शांत था।
\p
\s5
\v 21 योआश सात वर्ष का था जब वह यहूदा का राजा बना।
\s5
\c 12
\p
\v 1 जब योआश यहूदा का राजा बन गया तब येहू लगभग सात वर्ष तक इस्राएल पर शासन कर चुका था। उसने चालीस वर्ष तक यरूशलेम में शासन किया। उसकी मां सिब्या, बेर्शेबा शहर से थी।
\v 2 योआश जब तक जीवित रहा, उसने यहोवा को प्रसन्न किया, क्योंकि यहोयादा याजक ने उसे निर्देश दिये थे।
\v 3 परन्तु देश के अन्य स्थान जहाँ लोग यहोवा की उपासना करते थे, वे नष्ट नहीं किये गये। उन्होंने उन स्थानों पर बलि चढ़ाई और धूप जलाई, अपेक्षा उस स्थान के जिसे यहोवा ने यरूशलेम में उनके लिए चुना था।
\p
\s5
\v 4 योआश ने याजकों से कहा, " तुम वह सब पैसा ले लो जो लोगों के लिए देना अनिवार्य है और वह पैसा भी ले लो जो वे अपनी इच्छा से देना चाहते हैं कि मंदिर के लिए सामान खरीदने हेतु पवित्र भेंट ठहरें।
\v 5 प्रत्येक याजक उसके पास आनेवाले उपासकों के पैसे ले, और उन्हें मंदिर की टूट-फुट सुधरने के लिए काम में लें। "
\p
\s5
\v 6 परन्तु योआश के शासन के तेइसवे वर्ष तक, याजकों ने मंदिर में कहीं कुछ भी टूट-फुट ठीक नहीं की थी।
\v 7 तब योआश ने यहोयादा और अन्य याजकों को बुलाया और उन से कहा, "तुम मंदिर में टूट-फुट क्यों नहीं सुधार रहे हो? लोगों से और अधिक कर मत लो। मंदिर के रख-रखाव के लिए जो पैसा लिया जा चुका है वह पैसा मजदूरों को दे दो कि वे सुधार का काम करें। "
\v 8 याजक ऐसा करने के लिए सहमत हुए, और वे इस पर भी सहमत हुए कि वे स्वयं मरम्मत कार्य नहीं करेंगे।
\p
\s5
\v 9 तब यहोयादा ने एक सन्दूक लेकर उसमें एक छेद कर दिया। उसे उसने धूप जलाने की वेदी के पास रख दिया। वह मंदिर में प्रवेश करनेवालों की दाहिनी ओर होता था। मंदिर के प्रवेशद्वार की रक्षा करने वाले याजक उपासको द्वारा लाए जाने वाले दान को उस सन्दूक में डाल देते थे।
\v 10 जब वे देखते कि उस सन्दूक में बहुत पैसा हो गया तब सचिव और महायाजक आकर पैसों को गिनते और उसे थैलों में भरकर मुहर बंद कर देते।
\s5
\v 11 तब वह पैसा मंदिर का सुधार करने वालों के सरदारों में बाँट दिया जाता और वे उस पैसे को लकड़ी का काम करनेवालों और मिस्त्रियों को दे देते परन्तु उनसे लेखा नहीं लेते क्योंकि वे सच्चाई से काम करते थे,
\v 12 उनमें राजमिस्त्री और पत्थर काटनेवाले भी थे।इसके अतिरिक्त कुछ पैसा लकड़ी और पत्थरों को खरीदने और सुधार कार्य के अन्य खर्चों में भी काम आता था।
\s5
\v 13 परन्तु उन्होनें चाँदी के कटोरों या दीपक की चिमटियों या तसले या तुरही या मंदिर में काम आने वाली चाँदी या सोने से बने अन्य किसी भी सामान के लिए उस पैसे को काम में नहीं लिया।
\p
\v 14 वह सब पैसा उन लोगों को दिया गया जो मंदिर को सुधरने का काम कर रहे थे।
\s5
\v 15 जो लोग काम की देखरेख करते थे वे सदा सच्चाई से काम करते थे, इसलिए राजा के सचिव और महायाजक को देखरेख करने वालों से कभी भी यह लेखा लेने की आवश्यक्ता नहीं पड़ी कि उन्होंने पैसे कहाँ कहाँ खर्च किए।
\v 16 परन्तु जो पैसा लोग अपने पापों की बलि के लिए देते थे वह सन्दूक में नहीं डाला जाता था। वह पैसा याजकों का होता था।
\p
\s5
\v 17 उस समय, अराम के राजा हजाएल ने अपनी सेना के साथ गत शहर पर आक्रमण करके उसे जीत लिया। तब उसने निर्णय लिया कि वह यरूशलेम पर आक्रमण करेगा।
\v 18 तब यहूदा के राजा योआश ने पिछले राजा यहोशापात और यहोराम और अहज्याह द्वारा यहोवा को समर्पित किया गया सब पैसा तथा बढ़ता कुछ पैसा और बहुमूल्य वस्तुओं के भण्डारगृह से सब सोना लेकर राजा हजाएल को भिजवा दिया। कि उसे यरूशलेम पर आक्रमण करने से रोके। तो राजा हजाएल अपनी सेना लेकर यरूशलेम से चला गया।
\p
\s5
\v 19 यदि तुम योआश के कामों के विषय में अधिक जानना चाहते हो, तो वह सब यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\v 20-21 योआश के अधिकारियों ने उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचा और उनमें से दो ने सिल्ला जाने वाले मार्ग पर योआश को मार डाला। ये दोनों, शिमात का पुत्र योजाकार और शोमेर का पुत्र यहोजाबाद था। योआश को उस स्थान पर दफनाया गया जहाँ उसके पूर्वजों को दफनाया गया था, यरूशलेम में दाऊद के शहर में। तब योआश का पुत्र अमस्याह यहूदा का राजा बन गया।
\s5
\c 13
\p
\v 1 योआश लगभग तेईस वर्ष तक यहूदा पर शासन कर चुका तब, येहू का पुत्र यहोआहाज इस्राएल का राजा बन गया। उसने सत्रह वर्ष तक सामरिया शहर में शासन किया।
\v 2 उसने बहुत से काम किये जिनके लिए यहोवा ने कहा था कि वे बुरे हैं और उसी प्रकार के पाप किए जो यारोबाम ने किए थे, ऐसे पाप जो इस्राएलियों को भी पाप करने के लिए प्रेरित करते थे। वह उन पापों को करने से नहीं रुका।
\s5
\v 3 तब यहोवा इस्राएलियों से बहुत क्रोधित हो गये, और उन्होंने अराम के राजा हजाएल और उसके पुत्र बेन्हदद की सेना को कई बार इस्राएलियों को पराजित करने भेजा।
\p
\v 4 तब यहोआहाज ने यहोवा से रोकर प्रार्थना की, और यहोवा ने उसकी विनती सुनी, क्योंकि उन्होंने देखा कि अराम के राजा की सेना इस्राएलियों पर अंधेर कर रही थी।
\v 5 यहोवा ने इस्राएल को एक अगुवा दिया, जिसने उन्हें अराम की शक्ति से मुक्त करवाया। उसके बाद, इस्राएली पहले के समान शांतिपूर्वक रहने लगे।
\s5
\v 6 परन्तु वे वही पाप करते रहे जो यारोबाम और उसके परिवार ने किये थे, जिनके कारण इस्राएली भी पाप में गिरे थे। इसके अतिरिक्त, देवी अशेरा की मूर्ति सामरिया में बनी रही।
\p
\v 7 यहोआहाज के पास केवल पचास पुरुष थे जो घोड़ों पर युद्ध करते थे और दस रथों पर और दस हजार अन्य सैनिक थे, क्योंकि अराम की सेना ने बाकी सबको पैरों तले रौंद कर मार डाला था।
\p
\s5
\v 8 यदि तुम यहोयाहाज के सब कामों के विषय में जानना चाहते हो, तो इस्राएल के राजाओं के इतिहास नामक पुस्तक में इसके विषय में पढ़ सकते हो।
\v 9 यहोआहाज की मृत्यु हो गई और उसे सामरिया में दफनाया गया। तब उसके स्थान पर उसका पुत्र योआश राजा बना।
\p
\s5
\v 10 यहोआहाज का पुत्र यहोआश जब इस्राएल का राजा बना तब राजा योआश यहूदा में सैंतीस वर्ष शासन कर चुका था। योआश ने सामरिया में सोलह वर्ष तक शासन किया।
\v 11 उसने बहुत से काम किये जिनके लिए यहोवा ने कहा था कि वे बुरे हैं। उसने मूर्तियों की पूजा करना बंद करने से मना कर दिया, यह वह पाप था जो कई वर्षों से राजा यारोबाम की प्रेरणा से इस्राएली लोगों को पाप में धकेल रहा था।
\p
\s5
\v 12 योआश राजा के समय के अन्य काम इस्राएल के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं। उस वृतांत में उसकी सेना की जीत और यहूदा के राजा अमस्याह की सेना के साथ युद्ध का वर्णन लिखा गया है।
\v 13 जब योआश की मृत्यु हो गई, तो उसे सामरिया में दफनाया गया जहाँ इस्राएल के अन्य राजाओं को दफनाया गया। तब उसका पुत्र यारोबाम राजा बना।
\p
\s5
\v 14 तब एलीशा बहुत बीमार हो गया। उसकी मृत्यु से ठीक पहले, राजा यहोआश एलीशा के पास गया और उसके सामने रोया। और उन्ही शब्दों को दोहराया जिन्हें एलीशा ने तब कहे थे जब एलिय्याह स्वर्ग में उठाया गया था, "हे मेरे पिता! इस्राएल के रथ और उनके चालक मेरे स्वामी को दूर ले गये हैं!"
\p
\v 15 एलीशा ने उससे कहा, "एक धनुष और कुछ तीर लेकर आ!" तो राजा ने ऐसा किया।
\v 16 तब एलीशा ने राजा को धनुष हाथ में उठाने और तीरों को चलाने के लिए तैयार होने को कहा। और फिर एलीशा ने अपने हाथों को राजा के हाथों पर रखा।
\p
\s5
\v 17 तब एलीशा ने उससे कहा, "किसी से कह कर पूर्व दिशा की खिड़की खुलवा।" तो एक सेवक ने उसे खोला। तब एलीशा ने कहा, "तीर चला!" तो राजा ने वैसा किया। तब एलीशा ने कहा, "यह तीर दर्शाता है कि तेरी सेना अराम की सेना को पराजित करेगी। तेरी सेना अपेक शहर की सेना को पराजित करेगी।"
\p
\v 18 तब एलीशा ने कहा, "दूसरे तीरों को उठा और भूमि पर मर!" तो राजा ने तीर उठाए और भूमि पर तीन बार मारा।
\v 19 एलीशा उससे क्रोधित हो गया। उसने कहा, "तुझे कम से कम पांच या छह बार भूमि पर तीर मारने थे! यदि तू ने ऐसा किया होता, तो तेरी सेना अराम की सेना को तब तक मारती जब तक वे पूरी तरह से मिट नहीं जाती! परन्तु अब, क्योंकि तू ने भूमि पर केवल तीन बार मारा, इसलिए तेरी सेना उन्हें केवल तीन बार ही पराजित कर पाएगी! "
\p
\s5
\v 20 तब एलीशा की मृत्यु हो गई और उसे दफनाया गया।
\p मोआब के दल प्रतिवर्ष वसंत ऋतु के समय इस्राएल पर आक्रमण करते थे।
\v 21 एक वर्ष, जब कुछ इस्राएली लोग एक व्यक्ति के शव को दफन कर रहे थे, तो उन्होंने उन हमलावरों के एक समूह को देखा। वे डर गए थे, इसलिए उन्होंने उस व्यक्ति के शव को उस कब्र में फेंक दिया जहाँ एलीशा को दफनाया गया था, और वे भाग गए।
\p परन्तु जैसे ही उस व्यक्ति का शव, एलीशा की हड्डियों से छुआ, मृत व्यक्ति फिर से जीवित हो गया और कूद कर बाहर आ गया!
\p
\s5
\v 22 यहोआहाज के पुरे जीवन में अराम का राजा हजाएल ने इस्राएलियों को सताने के लिए सैनिक भेजे।
\v 23 परन्तु यहोवा इस्राएलियों के प्रति बहुत दयालु थे। उन्होंने उन वाचाओं के कारण उनकी सहायता की जो उन्होंने उनके पूर्वजों अब्राहम, इसहाक और याकूब के साथ किए थे। वह इस्राएलियों का त्याग नहीं करेंगे, और उन्होंने अभी भी उनका त्याग नहीं किया है।
\p
\s5
\v 24 तब अराम के राजा हजाएल की मृत्यु हो गई, तो उसका पुत्र बेन्हदद राजा बन गया।
\v 25 इस्राएल के राजा यहोआश की सेना ने राजा बेन्हदद की सेना को तीन बार पराजित किया; उसने उन सब शहरों को वापस ले लिया जिन पर बेन्हदद की सेना ने तब अधिकार कर लिया था जब यहोआश का पिता यहोआहाज इस्राएल पर शासन कर रहा था।
\s5
\c 14
\p
\v 1 योआश इस्राएल पर लगभग दो वर्षों तक शासन कर चुका, तब योआश का पुत्र अमस्याह यहूदा का राजा बना।
\v 2 जब उसने शासन करना आरम्भ किया, तब वह पच्चीस वर्ष का था, और उसने यरूशलेम में पच्चीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माता का नाम यहोअद्दान था। वह यरूशलेम की थी।
\v 3 अमस्याह ने बहुत से काम किये जो यहोवा को प्रसन्न करते थे, परन्तु उसने राजा दाऊद के समान यहोवा को प्रसन्न करने वाले काम नहीं किये थे अपने पिता योआश के समान उसने भी अच्छे काम किये थे।
\s5
\v 4 परन्तु अपने पिता के समान, उसने यहोवा की उपासना के अन्य स्थानों को नहीं गिराया। लोग यहोवा के नियुक्त स्थान को छोड़ कर उन स्थानों में यहोवा का सम्मान करने के लिए धूप जलाते थे।
\p
\v 5 जब उसका राज्य पूर्णरूप से उसके नियंत्रण में आ गया, तब उसने अपने कर्मचारियों से अपने पिता के हत्यारे अधिकारियों को मरवा दिया।
\s5
\v 6 परन्तु उसने अपने कर्मचारियों को उन अधिकारियों की सन्तानों को मारने की आज्ञा नहीं दी। उसने मूसा को दिए गए परमेश्वर के कानूनों में जो लिखा था, उनका पालन किया, "माता-पिता के अपराध के लिए सन्तान को मृत्यु दण्ड नहीं दिया जाये।"
\p
\v 7 अमस्याह के सैनिकों ने मृत सागर के दक्षिण में नमक की घाटी में दस हजार एदोमी सैनिकों की हत्या कर दी, और सेला शहर पर अधिकार कर लिया और इसे एक नया नाम दिया, योक्तेल। अभी भी इसका यही नाम है।
\p
\s5
\v 8 तब अमस्याह ने इस्राएल के राजा यहोआश के पास दूत भेजे, और कहा, "आ और हम और हमारी सेनाएं युद्ध में एक-दूसरे से लड़ें।"
\p
\v 9 परन्तु इस्राएल के राजा यहोआश ने राजा अमस्याह को इस दृष्टांत के साथ उत्तर दिया: "एक बार लबानोन के पहाड़ों में एक कांटेदार झाड़ी ने देवदार के एक पेड़ को यह संदेश भेजा, 'अपनी पुत्री का विवाह मेरे पुत्र से कर दे।' उसी समय लबानोन में एक जंगली पशु वहाँ से निकला और उस कांटेदार झाड़ी को रौंद दिया। "
\v 10 जो मैं कह रहा हूँ उसका अर्थ यह है कि तेरी सेना ने एदोम की सेना को पराजित कर दिया है, इसलिए तू बहुत घमंड कर रहा है। तू उसी में संतुष्ट रह और अपने सैनिकों से कह कि घर में ही रहें। यदि तू हमसे युद्ध करके परेशानी उत्पन्न करेगा तो, अपने लोगों के विनाश का कारण तू ही होगा। "
\p
\s5
\v 11 परन्तु अमस्याह ने यहोआश के संदेश पर ध्यान नहीं दिया। तब यहोआश और अमस्याह ने अपनी-अपनी सेना लेकर यहूदा के बेतशेमेश आए, और वहां उनकी सेनाएं एक-दूसरे से युद्ध करने के लिए इकट्ठी हुईं।
\v 12 इस्राएलियों की सेना ने यहूदा की सेना को पराजित कर दिया, और यहूदा के सभी सैनिक भाग कर घर वापस आ गए।
\s5
\v 13 यहोआश की सेना ने राजा अमस्याह को भी पकड़ लिया, और वे यरूशलेम गए और एप्रैमी फाटक से कोनेवाले फाटक तक शहर के चारों ओर की दीवार को तोड़ दिया। वह 180 मीटर लंबा दीवार का एक भाग था।
\v 14 यहोआश के सैनिकों ने सभी सोना और चाँदी लूट लिया, जो मंदिर में था, और महल की सभी मूल्यवान वस्तुएँ सामरिया ले गए। वह कुछ कैदियों को लेकर सामरिया चला गया कि सुनिश्चित करे कि अमस्याह उन्हें और अधिक परेशानी न पहुंचाए।
\p
\s5
\v 15 यदि तुम राजा यहोआश के कामों को और अधिक जानना चाहते हो और यहूदा के राजा अमस्याह के साथ उसके और उसकी सेना के युद्ध के विषय में पढना चाहते हो तो उनका वर्णन इस्राएल के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं ।
\v 16 यहोआश की मृत्यु हो गई, और उसे सामरिया में दफनाया गया, जहाँ इस्राएल के अन्य राजाओं को दफनाया गया था। तब उसका पुत्र यारोबाम राजा बना।
\p
\s5
\v 17 यहूदा का राजा अमस्याह इस्राएल के राजा यहोआश के मरने के पंद्रह वर्ष तक जीवित रहा।
\v 18 यदि तुम अमस्याह के कामों के विषय में और अधिक जानना चाहते हो, तो वह सब यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\p
\v 19 यरूशलेम के कुछ लोगों ने उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचा, इसलिए वह लकीश शहर में भाग गया। परन्तु वे वहां भी उसके पीछे गए और उसे मार डाला।
\s5
\v 20 वे उसके शव को यरूशलेम ले गये और दाऊद के शहर में उसे दफनाया जहाँ उसके पूर्वजों को दफनाया गया था।
\p
\v 21 तब यहूदा के सभी लोगों ने अजर्याह को राजा नियुक्त किया, जिसका पिता अमस्याह था, और वह 16 वर्ष की आयु में उनका राजा बन गया।
\v 22 अजर्याह के पिता अमस्याह की मृत्यु के बाद, अजर्याह की सेना ने एलात शहर पर अधिकार कर लिया, और वह फिर यहूदा के नियंत्रण में आया।
\p
\s5
\v 23 जब अमस्याह लगभग पंद्रह वर्ष यहूदा पर शासन कर चुका, तब यारोबाम इस्राएल का राजा बना। उसने सामरिया शहर में इकतालीस वर्ष शासन किया।
\v 24 उसने बहुत से काम किये जो यहोवा की दृष्टी में बुरे थे। उसने उन पापों का अंत नहीं किया जो नबात के पुत्र यारोबाम ने आरम्भ किये थे और इस्राएलियों को पाप करने के लिए प्रेरित किया था।
\v 25 यारोबाम के सैनिकों ने उत्तर में हमात से लेकर दक्षिण में मृत सागर तक के क्षेत्र पर विजय प्राप्त की, ये क्षेत्र पहले इस्राएल के ही थे। यहोवा जिनकी इस्राएली आराधना करते हैं, उन्होंने अमित्तै के पुत्र अपने दास गथेपेरवासी योना भविष्यद्वक्ता के द्वारा यही प्रतिज्ञा की थी।
\p
\s5
\v 26 ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि यहोवा ने देखा कि इस्राएलियों के शत्रु इस्राएलियों को बहुत कष्ट दे रहे थे। और वहां कोई भी नहीं था जो उनकी सहायता करे।
\v 27 परन्तु यहोवा ने कहा कि वह इस्राएल को पूरी तरह से नाश नहीं करेंगे, इसलिए उन्होंने राजा यारोबाम को बचाने के लिए समर्थ किया।
\p
\s5
\v 28 यदि तुम यारोबाम के सब कामों के विषय में और जानना चाहते हो, कि वह युद्ध में साहसपूर्वक कैसे लड़ा, और कैसे उसने इस्राएलियों को दमिश्क और हमात के शहरों को फिर से लेने में सक्षम बनाया, तो वह सब इस्राएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखे गए हैं।
\v 29 यारोबाम की मृत्यु हो गई, और उसे इस्राएल के अन्य राजाओं के कब्रस्थान में दफनाया गया, और उसका पुत्र जकर्याह उसके स्थान पर राजा बना।
\s5
\c 15
\p
\v 1 इस्राएल के राजा यारोबाम के सताईसवें वर्ष तक शासन करने के बाद यहूदा के राजा अमस्याह के पुत्र अजर्याह ने शासन करना आरम्भ कर दिया।
\v 2 जब उसने शासन करना आरम्भ किया, तब वह सोलह वर्ष का था, और उसने बावन वर्ष तक यरूशलेम पर शासन किया। उसकी माता यकोल्याह थी। वह यरूशलेम से थी।
\v 3 उसने वह काम किये जिनसे यहोवा प्रसन्न थे, जैसा कि उसके पिता अमस्याह ने किया था।
\s5
\v 4 परन्तु उच्च स्थान जहाँ लोग मूर्तिपूजा करते थे वे नष्ट नहीं किये थे। वे मूर्तियों की पूजा में धूप जलाते रहे।
\p
\v 5 यहोवा ने अजर्याह को कुष्ठ रोगी बना दिया और वह शेष जीवन में रोगी ही रहा। उसे महल में रहने की अनुमति नहीं थी। वह अकेले घर में रहता था, और उसके बेटे योताम ने देश पर शासन किया था।
\p
\s5
\v 6 यदि तुम अजर्याह के सभी कामों के विषय में जानना चाहते हैं, तो वह सब यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\v 7 अजर्याह की मृत्यु हो गई और उसे यरूशलेम में दाऊद के शहर में दफनाया गया, जहाँ उसके पूर्वजों को दफनाया गया था। तब उसका पुत्र योताम राजा बन गया।
\p
\s5
\v 8 यहूदा के राजा अजर्याह के लगभग अड़तीस वर्ष तक शासन करने के बाद यारोबाम का पुत्र जकर्याह इस्राएल का राजा बना। उसने सामरिया शहर में केवल छः महीने तक शासन किया।
\v 9 उसने बहुत से काम किये जो यहोवा ने कहा था, बुरे हैं, जैसे उसके पूर्वजों ने किया था। उसने उसी प्रकार के पाप किए जो पहले नबात के पुत्र यारोबाम ने किए थे, ऐसे पाप जो इस्राएली लोगों को पाप करने के लिए प्रेरित करते थे।
\p
\s5
\v 10 तब याबेश के पुत्र शल्लूम ने विद्रोह करके जकर्याह की हत्या करने की योजना बनाई। उसने इबलाम शहर में उसे मार डाला, और वह राजा बन गया।
\v 11 जकर्याह ने जो कुछ भी किया वह इस्राएल के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\v 12 जब जकर्याह की मृत्यु के साथ राजा येहू का वंश समाप्त हो गया। राजा येहू के साथ यहोवा ने जो कहा वह पूरा हुआ, "तेरे पुत्र और पोते और परपोते इस्राएल के राजा होंगे।"
\p
\s5
\v 13 याबेश का पुत्र शल्लूम जब राजा बना तब अमस्याह के यहूदा पर लगभग उनतालीस वर्ष तक शासन कर चुका था। परन्तु शल्लूम सामरिया में केवल एक महीने तक राज कर पाया।
\v 14 तब गादी का पुत्र मनहेम, तिर्सा शहर से सामरिया गया और शल्लूम की हत्या कर दी। तब मनहेम इस्राएल का राजा बन गया।
\p
\s5
\v 15 शल्लूम ने जो कुछ भी किया, उसके द्वारा राजा जकर्याह की हत्या आदि का वर्णन इस्राएल के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\p
\v 16 उस समय मनहेम ने तिर्सा शहर को पूरी तरह से नष्ट कर दिया और तिर्सा के आसपास के क्षेत्र के सब लोगों को मार डाला। उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उस शहर के लोगों ने आत्मसमर्पण करने से मना कर दिया था। उसने अपनी तलवार से वहां रहने वाली गर्भवती स्त्रीयों के पेट भी फाड़ दिये।
\p
\s5
\v 17 जब राजा अजर्याह लगभग उनतालीसवें वर्ष तक यहूदा पर शासन कर चुका, तब गादी का पुत्र मनहेम इस्राएल का राजा बना था। उसने सामरिया में दस वर्ष तक शासन किया।
\v 18 उसने बहुत से काम किये जिन्हें यहोवा ने बुरा कहा था। उसने उसी प्रकार के पाप किए जो राजा यारोबाम ने किए थे, जिन पापों ने इस्राएल के लोगों को पाप करने के लिए प्रेरित किया। उसने अपने पुरे जीवन भर पाप किये।
\p
\s5
\v 19 तब अश्शूरों का राजा (जिसे तिग्लत्पिलेसेर भी कहा जाता है) इस्राएल पर हमला करने के लिए अपनी सेना के साथ आया। इसलिए मनहेम ने उसे लगभग हजार किक्कार चाँदी दी ताकि अश्शूर का राजा मेनहेम को राजा बने रहने और अपने देश पर अधिक दृढ़ता से शासन करने में सहायता करे।
\v 20 मेनहेम ने इस्राएल में समृद्ध पुरुषों को वह धन प्राप्त किया। उसने उन प्रत्येक से शेकेल पचास-पचास शेकेल चाँदी का योगदान देने के लिए विवश किया। तो तिग्लत्पिलेसेर ने वह पैसा लिया और अपने देश लौट गया।
\p
\s5
\v 21 यदि तुम मनहेम के कामों के विषय में अधिक जानना चाहते हो, तो यह सब इस्राएल के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\v 22 मनहेम की मृत्यु हो गई और उसे दफनाया गया, और उसका पुत्र पकहयाह इस्राएल का राजा बन गया।
\p
\s5
\v 23 जब राजा अजर्याह लगभग पचास वर्षों तक यहूदा पर शासन कर चुका था, तब मनहेम का पुत्र पकहयाह इस्राएल का राजा बन गया। उसने सामरिया में केवल दो वर्ष तक राज किया।
\v 24 उसने बहुत से ऐसे काम किये जिन्हें यहोवा ने बुरा कहा था। उसने भी उसी प्रकार के पाप किए जो राजा यारोबाम ने किए थे, उन्हीं पापों ने इस्राएल के लोगों को पाप करने के लिए प्रेरित किया।
\s5
\v 25 तब पकहयाह के सेनापति रमल्याह के पुत्र पेकह ने पकहयाह और उसके दो सहायकों, अर्गोब और अर्ये को मारने के लिए गिलाद के क्षेत्र से पचास पुरुषों के साथ योजना बनाई। उसने सामरिया में राजा के महल में एक सशक्त स्थान पर राजा की हत्या कर दी और तब पेकह राजा बन गया।
\p
\v 26 पकहयाह ने जो कुछ भी किया वह इस्राएल के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\p
\s5
\v 27 जब राजा अजर्याह लगभग बावन वर्ष तक यहूदा पर शासन कर चुका था, तब रमल्याह का पुत्र पेकह इस्राएल का राजा बन गया। उसने सामरिया में बीस वर्ष तक शासन किया।
\v 28 उसने कई ऐसे काम भी किए जिन्हें यहोवा ने बुरा कहा था। उसने उसी प्रकार के पाप किए जो राजा यारोबाम ने किए थे, इस्राएल के लोगों को पाप करने के लिए प्रेरित किया।
\p
\s5
\v 29 जब पेकह राजा था, तब अश्शूर का राजा तिग्लत्पिलेसेर अपनी सेना के साथ आया और इय्योन, आबेल्वेत्माका, यानोह, केदेश और हासोर नामक नगरों तथा गिलाद और गलील, वरन् नप्ताली के सम्पूर्ण क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। उनकी सेना ने इस्राएली लोगों को अपना देश छोड़ने और अश्शूर में रहने के लिए विवश कर दिया।
\p
\v 30 तब एला के पुत्र होशे ने पेकह को मारने का षड्यंत्र रचा। और उसकी हत्या करके राजा बन गया। उस समय अमस्याह का पुत्र योताम यहूदा पर लगभग बीस वर्ष राज कर चुका था। तब होशे इस्राएल का राजा बन गया।
\p
\v 31 पेकह ने जो कुछ भी किया वह इस्राएल के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\p
\s5
\v 32 जब पेकह लगभग दो वर्षों तक इस्राएल पर शासन कर चुका, तब उज्जियाह का पुत्र योताम ने यहूदा पर शासन करना आरंभ कर दिया।
\v 33 जब वह शासन करने लगा, तो वह पच्चीस वर्ष का था, और उसने सोलह वर्ष तक यरूशलेम पर शासन किया। उसकी मां सादोक की पुत्री यरूशा थी।
\s5
\v 34 उसने कई काम किए जो यहोवा को प्रसन्न करते थे, जैसे उसके पिता अजर्याह ने किया था।
\v 35 परन्तु उसने उन स्थानों को नष्ट नहीं किया जहाँ लोग यहोवा की उपासना करते थे, और यहोवा का आदर करने के लिए धूप जलाते रहे। योताम के श्रमिकों ने मंदिर के ऊपरी द्वार का निर्माण किया।
\p
\v 36 यदि तुम योताम ने जो कुछ भी किया, उसके विषय में और जानना चाहते हो, तो यह यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\s5
\v 37 उस समय जब योताम राजा था, यहोवा ने अराम के राजा रसीन और इस्राएल के राजा पेकह को यहूदा पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेनाओं के साथ भेजा।
\v 38 योताम की मृत्यु हो गई और उसे यरूशलेम में दाऊद के शहर में दफनाया गया जहाँ उसके पूर्वजों को दफनाया गया था। तब उसका पुत्र आहाज यहूदा का राजा बना।
\s5
\c 16
\p
\v 1 जब योताम का पुत्र आहाज यहूदा का राजा बना तब पेकह लगभग सत्रह वर्ष तक इस्राएल पर शासन कर चुका था।
\v 2 जब वह यहूदा का राजा बना तब वह बीस वर्ष का था। उसने यरूशलेम पर सोलह वर्ष शासन किया। उसने उन कामों को नहीं किया जो यहोवा परमेश्वर को प्रसन्न करते थे, जैसा उसके पूर्वज राजा दाऊद ने किया था।
\s5
\v 3 इसकी अपेक्षा, वह पापपूर्ण रहा जैसे इस्राएल के बाकि राजा रहे थे। उसने अपने बेटे को मूर्तियों को चढ़ाए जाने के लिए बलि कर दिया। उसने उन लोगों के घृणित कामों का अनुकरण किया जो लोग पहले वहां रहते थे, जिन लोगों को यहोवा ने इस्राएलियों के आगमन के समय बाहर निकाला था।
\v 4 उसने यहोवा के आदेश के अनुसार यरूशलेम कि अपेक्षा कई पहाड़ियों के ऊपर और कई बड़े पेड़ों के नीचे कई अलग-अलग स्थानों पर यहोवा का आदर करने के लिए बलि चढ़ाई और धूप जलाई।
\p
\s5
\v 5 तब अराम का राजा रसीन अपनी सेना के साथ आया, और उस समय पेकह (जो इस्राएल के राजा रमल्याह का पुत्र था) भी अपनी सेना के साथ आया, और एक साथ उनकी सेना यरूशलेम पर आक्रमण करने के लिए आई, परन्तु राजा आहाज ने शहर की रक्षा करने के लिए एक लड़ाई का नेतृत्व किया। सेनाओं ने शहर को घेर लिया, परन्तु वे उसे जीत नहीं पाए।
\v 6 उस समय अराम के राजा रसीन की सेना ने एलात शहर को अपने अधीन करके यहूदा के लोगों को वहाँ से बाहर निकाला। यही वह समय था जब अराम के कुछ लोगों ने एलात में रहना आरम्भ किया था, और वे अभी भी वहां रह रहे हैं।
\p
\s5
\v 7 राजा आहाज ने अश्शूर के राजा तिग्लत्पिलेसेर को यह संदेश देने के लिए दूत भेजे: "मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं वही करूँगा जो कुछ तू मुझे करने के लिए कहेगा, जैसे कि मैं तेरा पुत्र हूँ। कृपया आ और अराम और इस्राएल की सेनाएं जो मेरे देश पर हमला कर रही हैं, उनसे हमें बचा।"
\v 8 आहाज ने महल और मंदिर में से सब चाँदी और सोना लेकर अश्शूर के राजा को देने के लिए भेज दिया।
\v 9 तब तिग्लत्पिलेसेर ने अहाज का निवेदन स्वीकार करके अपनी सेना के साथ दमिश्क को जीत लिया और दमिश्क के निवासियों को बंधी बनाकर अपनी राजधानी में रहने के लिए ले गया।
\p
\s5
\v 10 जब राजा आहाज राजा तिग्लत्पिलेसेर से मिलने के लिए दमिश्क गया, तो उसने वहां की वेदी देखी। इसलिए उसने यरूशलेम के महायाजक ऊरिय्याह को उस वेदी का एक नक्शा भेजा जो दमिश्क की वेदी का प्रतिनिधित्व करता था।
\v 11 तब ऊरिय्याह ने राजा आहाज के यरूशलेम लौटने से पूर्व उस वेदी का निर्माण कर दिया।
\v 12 जब राजा दमिश्क से लौट आया, तो उसने वेदी देखी।
\s5
\v 13 वह उस पर चढ़ गया और उस पर पशुबलि और अन्नबलि चढाई। उसने उस पर दाखमधु चढ़ाया और परमेश्वर से मेल करने के लिए उस पर लहू छिड़का।
\v 14 पुरानी पीतल की वेदी जो यहोवा को बहुत पहले समर्पित की गयी थी, नई वेदी और मंदिर के बीच थी, इसलिए आहाज ने उसे अपनी नई वेदी के उत्तर की ओर कर दिया।
\p
\s5
\v 15 तब राजा आहाज ने ऊरिय्याह को आदेश दिया: "हर सुबह इस नई वेदी पर होमबलि जलाना, और शाम को अन्नबलि और राजा की होमबलि तथा साधारण लोगों की होमबलि और मेरा अन्नबलि तथा लोगों की अन्नबलि और दाखमधु का अर्घ आदि सब चढ़ाना, इसी वेदी पर सब बलियों का लहू छिड़कना पीतल की वेदी केवल मेरे लिए परमेश्वर की इच्छा जानने के लिए होगी। "
\v 16 तब ऊरिय्याह ने राजा की आज्ञा के अनुसार किया।
\p
\s5
\v 17 राजा आहाज ने अपने कर्मचारियों से कहा कि वे मंदिर के बाहर कुर्सियों की पटरियों को हटा कर हौदियों को नीचे रख दो। उन्होंने "सागर" नामक बड़ी पीतल की हौदी को बैलों पर से उतार कर फर्श पर रख दिया।
\v 18 तब अश्शूर के राजा को प्रसन्न करने के लिए, आहाज ने उन्हें उस छत के मंदिर से हटा दिया जिसके नीचे लोग सब्त के दिन मंदिर में चलते थे, और यहूदा के राजाओं के लिए मंदिर में निजी प्रवेश द्वार बंद कर दिया।
\p
\s5
\v 19 यदि तुम अहाज के अन्य कामों के विषय में जानना चाहते हो, तो वे यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं।
\v 20 आहाज की मृत्यु हो गई, और उसे उसके पूर्वजों के कब्रस्थान में यरूशलेम के दाऊद के शहर में दफनाया गया। तब उसका पुत्र हिजकिय्याह राजा बन गया।
\s5
\c 17
\p
\v 1 राजा आहाज के यहूदा पर शासन करने के बारह वर्ष बाद एला के पुत्र होशे ने इस्राएल पर शासन करना आरंभ कर दिया था। होशे ने सामरिया में नौ वर्ष तक शासन किया।
\v 2 उसने बहुत से काम किये जिन्हें यहोवा ने बुरा कहा था, परन्तु उसने इस्राएल के पिछले राजाओं की तुलना में इतने बुरे काम भी नहीं किये थे।
\p
\v 3 अश्शूर के राजा शल्मनेसेर की सेना ने राजा होशे की सेना पर आक्रमण किया और पराजित किया। परिणामस्वरूप, इस्राएलियों को हर वर्ष अश्शूर को कर देने के लिए विवश होना पड़ा।
\s5
\v 4 परन्तु कई वर्षों बाद, होशे ने गुप्त रूप से अश्शूर के शासकों के विरूद्ध विद्रोह करने की योजना बनाई। उसने मिस्र के राजा के पास दूत भेजकर पूछा, कि क्या उसकी सेना अश्शूर के विरुद्ध लड़ने में इस्राएलियों की सहायता कर सकती है। होशे ने अश्शुर के राजा को वार्षिक कर देना रोक दिया। अश्शूर के राजा ने उन बातों का पता लगाया, इसलिए उसने अपने अधिकारियों से कहा कि होशे को बंदीगृह में डाल दिया जाए।
\v 5 तब वह अश्शूर की सेना को इस्राएल लेकर आया, और उन्होंने पुरे देश पर आक्रमण किया। उनकी सेना ने तीन वर्ष तक सामरिया शहर को घेरे रखा।
\v 6 अंत में, राजा होशे के शासन के नौवें वर्ष में, अश्शूर की सेना ने बलपूर्वक शहर में प्रवेश किया और लोगों को बन्दी बना लिया। उन्हें अश्शूर देश में ले गये और उनमें से कुछ को हलह शहर में रहने के लिए विवश किया। तथा दूसरों को गोजान के जिले में हाबोर नदी के पास रहने के लिए विवश किया। शेष लोगों को मादियों के नगरों में बसा दिया।
\p
\s5
\v 7 यह सब इसलिए हुआ कि इस्राएली लोगों ने अपने परमेश्वर यहोवा के विरूद्ध पाप किया था। उन्होंने उनके पूर्वजों को मिस्र के राजा की शक्ति से बचा लिया था और उन्हें मिस्र से सुरक्षित निकाल लाये थे, परन्तु बाद में उन्होंने अन्य देवताओं की पूजा करना आरम्भ कर दिया।
\v 8 उन्होंने उन बातों का अनुकरण किया जो उनके चारों ओर मूर्तिपूजक लोग करते थे। ये वही लोग थे जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियों के आगमन के समय उस देश से निकाला था। इस्राएल के लोगों ने भी वही बुरे काम किये जो इस्राएल के अधिकांश राजाओं ने उन्हें दिखाए थे।
\s5
\v 9 इस्राएली लोगों ने भी गुप्त रूप से ऐसे कई काम किये जो उनके परमेश्वर यहोवा को प्रसन्न नहीं करते थे। उन्होंने दीवारों वाले शहरों और अन्य शहरों के सब पहाड़ों पर मूर्तियों की पूजा करने के लिए स्थान बनाये।
\v 10 उन्होंने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पत्थरों के स्तम्भ और देवी अशेरा के लिए प्रत्येक पहाड़ पर और बड़े वृक्ष के नीचे लाटे खड़ी की थी।
\s5
\v 11 इस्राएलियों ने वहाँ के मूल निवासियों के समान उन स्थानों में धूप जलाई जहाँ वे देवी-देवताओं की पूजा करते थे इसी कारण परमेश्वर ने उन मूल निवासियों को वहाँ से निकला था इस्राएलियों ने अनेक बुरे काम किये जिनके कारण यहोवा क्रोधित हुए थे।
\v 12 यहोवा ने उन्हें कई बार चेतावनी दी कि उन्हें मूर्तियों की पूजा नहीं करनी चाहिए, परन्तु उन्होंने वैसा ही किया।
\s5
\v 13 यहोवा ने भविष्यवक्ताओं और दर्शियों द्वारा इस्राएलियों और यहूदा के लोगों को चेतावनी दी थी। जो संदेश यहोवा ने उन्हें दिया, वह था, "उन सभी बुरी कामों को करना बंद करो जो तुम कर रहे हो। मेरे आदेशों और मेरे नियमों का पालन करो, जिन नियमों को मैंने तुम्हारे पूर्वजों को मानने के लिए कहा था और मैंने उन भविष्यवक्ताओं द्वारा तुम्हें फिर से वे नियम सुनाए थे। "
\p
\s5
\v 14 परन्तु इस्राएली लोगों ने ध्यान नहीं दिया। वे अपने पूर्वजों के समान हठीले थे। जैसे उनके पूर्वजों ने किया, वैसा ही उन्होंने भी अपने परमेश्वर यहोवा पर भरोसा करने से मना कर दिया।
\v 15 उन्होंने यहोवा के नियमों और प्रतिज्ञा का त्याग कर दिया जो परमेश्वर ने उनके पूर्वजों के साथ की थी। उन्होंने यहोवा की चेतावनियों को अनदेखा कर दिया। उन्होंने व्यर्थ मूर्तियों की पूजा की और परिणामस्वरूप वे स्वयं ही व्यर्थ हो गए। यद्यपि यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी थी कि वे उनके आस पास रहने वाले लोगों के समान व्यवहार न करें, उन्होंने इस आज्ञा की अवज्ञा की।
\p
\s5
\v 16 इस्राएली लोगों ने यहोवा की सभी आज्ञाओं का उल्लंघन किया। उन्होंने पूजा करने के लिए दो धातु के बछड़े बनाए। उन्होंने देवी अशेरा की पूजा करने के लिए दो लाटों की स्थापना की, और उन्होंने बाल देवता, सूर्य, चंद्रमा और सितारों की पूजा की।
\v 17 उन्होंने अपने पुत्र और पुत्रियों को भी उन देवताओं को बलिदान देने के लिए जला दिया। वे भविष्यवाणी करने वालों के पास गए और उन्होंने जादू-टोना करने का अभ्यास किया। उन्होंने निरन्तर उन सभी प्रकार के बुरे कामों को करने का निर्णय लिया जिससे यहोवा क्रोधित हो गये।
\p
\v 18 अतः इस्राएलियों से क्रोधित होने के कारण यहोवा ने उन्हें उनके शत्रुओं के हाथों में कर दिया कि वे उन्हें उनके देश से बहुत दूर ले जाएँ। केवल यहूदा के गोत्र के लोग ही देश में रह गए थे।
\s5
\v 19 परन्तु यहूदा के लोगों ने भी अपने परमेश्वर यहोवा के आदेशों का पालन नहीं किया। उन्होंने इस्राएलियों के द्वारा लाए गये बुरे रीति-रिवाजों की नकल की थी।
\v 20 अतः यहोवा ने इस्राएल और यहूदा के सभी लोगों को त्याग दिया। उन्होंने उन्हें अन्य राष्ट्रों की सेनाओं द्वारा पराजित किया और उन्हें दूर करके दंडित किया। उन्होंने उन सभी से छुटकारा पा लिया।
\p
\s5
\v 21 इससे पहले, जब यहोवा ने इस्राएल के दस गोत्रों को दाऊद के वंशजों के शासन से दूर कर दिया था, तब उन लोगों ने नबात के पुत्र यारोबाम को अपना राजा होने के लिए चुना और यारोबाम ने इस्राएलियों को यहोवा की उपासना से अलग करके मूर्तियों की पूजा करने का लालच दिया। इस प्रकार उसने इस्राएलियों से महापाप करवाया।
\v 22 और इस्राएली लोगों ने यारोबाम द्वारा लाए गए दुष्टता के कामों को किया । वे उन पापों से दूर नहीं हुए,
\v 23 इसलिए अंत में यहोवा ने उनसे छुटकारा पा लिया। ठीक इसी के होने की उनके भविष्यवक्ताओं ने चेतावनी दी थी। इस्राएली लोगों को अश्शूर देश ले जाया गया, और वे अभी भी वहां हैं।
\p
\s5
\v 24 अश्शूर के राजा ने अपने सैनिकों को बाबेल, कूता, अव्वा, हमात और सपर्वैम के लोगों को लेकर सामरिया के नगरो में बसाने की आज्ञा दी कि वे उन स्थानों में बस जाएँ जहाँ जहाँ पहले इस्राएली रहते थे। उन लोगों ने सामरिया पर अधिकार कर लिया और सामरिया के शहरों में रहने लगे।
\v 25 परन्तु जो लोग दूसरे देशों से आए थे, वे आने पर यहोवा की उपासना नहीं करते थे। इसलिए यहोवा ने उनमें से कुछ को मारने के लिए शेरों को भेजा।
\v 26 तब उन लोगों ने अश्शूर के राजा को एक संदेश भेजा। उन्होंने लिखा, "हम लोग जो सामरिया के नगरों में बस गये हैं, नहीं जानते कि इस देश में इस्राएलियों ने किस परमेश्वर की उपासना की थी। इसलिए उन्होंने हमें मारने के लिए शेरों को भेजा है, क्योंकि हमने उनकी उचित आराधना नहीं की है।"
\p
\s5
\v 27 जब अश्शूर के राजा ने यह पत्र पढ़ा, तो उसने अपने अधिकारियों को आज्ञा दी, "उन याजको में से एक जिन्हें सामरिया से यहाँ लाया गया है वापस सामरिया भेज दो, उससे कहो कि जो लोग अब वहाँ रह रहे हैं उन्हें वहाँ पहले रहने वाले इस्राएलियों के परमेश्वर की आराधना की उचित शिक्षा दे। "
\v 28 तो अधिकारियों ने ऐसा किया। उन्होंने इस्राएलियों में से एक याजक को सामरिया वापस भेज दिया। वह याजक बेतेल शहर में रहने लगा, और उसने लोगों को सिखाया कि यहोवा की आराधना कैसे करें।
\p
\s5
\v 29 परन्तु वे सभी लोग अपनी मूर्तियां बनाते रहे। उन्होंने अपनी मूर्तियों को उन घरों में रखा जिन्हें सामरी लोगों ने पहाड़ियों पर चारों ओर बनाया था। लोगों के प्रत्येक समूह ने अपने देवताओं को बनाया और उनकी पूजा की, और प्रत्येक देवता का नाम भी रखा।
\v 30 बाबेल के लोगों ने मूर्तियों को अपने देवता सुक्कोतबनोत का रूप दिया। कूत के लोगों ने मूर्तियों को अपने देवता नेर्गल का रूप दिया। हमात के लोगों ने मूर्तियों को अपने देवता अशीमा के रूप में बनाया।
\v 31 अव्वियों के लोगों ने मूर्तियों को अपने देवताओं निभज और तर्त्ताक का रूप दिया। सपर्वैमी के लोगों ने अपने बच्चों को बलि कर दिया। उन्होंने उन्हें अपने देवताओं अद्रम्मेलेक और अनम्मेलेक को बलि के लिए पूरी तरह से वेदियों पर जला दिया।
\s5
\v 32 परन्तु उन लोगों ने यहोवा की भी उपासना की, परन्तु उन्होंने पहाड़ों पर मूर्तियों की पूजा करने के लिए अपने लोगों में से अनेक पुजारी भी नियुक्त किये और ये पुजारी ऊचें स्थानों पर बलि चढ़ाते थे।
\p
\v 33 इसलिए उन्होंने यहोवा का आदर किया, परन्तु उन्होंने उस देश में रहने वाले लोगों के समान उनके देवताओं की भी पूजा की।
\s5
\v 34 ये लोग सामरिया में भी अपने पुराने रीति-रिवाजों को मानते रहे। वे वास्तव में यहोवा की उपासना नहीं करते थे, और वे उन सब नियमों का पालन नहीं करते जो यहोवा ने याकूब के वंशजों को दिए थे, यहोवा ने ही याकूब का नाम इस्राएल रखा था।
\v 35 यहोवा ने पहले इस्राएल के पूर्वजों के साथ वाचा बांधी थी, कि वे अन्य देवताओं की पूजा नहीं करेंगे या उन्हें सम्मानित करने के लिए सिर नहीं झुकाएंगे या उन्हें प्रसन्न करने के काम नहीं करेंगे या उन्हें बलि नहीं चढ़ाएं।
\s5
\v 36 यहोवा ने उनसे कहा था, "तुम मुझ यहोवा के लिए जो तुम्हें महाशक्ति के साथ मिस्र से निकाल लाया, सच्चे दिल से श्रद्धा रखोगे। मैं ही हूँ जिसके सामने तुम्हें सम्मान में सिर झुकाना है और मेरे ही लिए बलि चढ़ाना है।
\v 37 तुम्हें सदा उन नियमों और आज्ञाओं का पालन करना चाहिए जिन्हें मैंने मूसा को तुम्हारे लिए लिखने को कहा था। तुम्हें अन्य देवताओं की पूजा नहीं करनी चाहिए।
\v 38 और तुम्हें अपने पूर्वजों के साथ बाँधी वाचा को नहीं भूलना है। तुम्हें अन्य देवताओं से ना तो डरना है न ही उनका सम्मान करना है।
\s5
\v 39 इसकी अपेक्षा, तुम्हारे मन में मुझ यहोवा के लिए जो तुम्हारा परमेश्वर है, सच्चे मन से सम्मान होना चाहिए यदि तुम ऐसा करोगे तो मैं तुम्हारे सब शत्रुओं की शक्ति से तुम्हें बचाऊंगा। "
\p
\v 40 परन्तु इस्राएलियों ने यहोवा की बातों पर ध्यान देने से मना कर दिया। इसकी अपेक्षा, वे अपने पुराने रीति-रिवाजों पर चलते रहे।
\v 41 इसलिए, उन लोगों ने यहोवा की उपासना तो की, परन्तु उन्होंने अपनी मूर्तियों की भी पूजा की। और उनके वंशज अब भी वही करते रहे।
\s5
\c 18
\p
\v 1 राजा होशे के लगभग तीन वर्षों तक इस्राएल पर शासन करने के बाद, आहाज का पुत्र हिजकिय्याह यहूदा पर शासन करने लगा।
\v 2 वह पच्चीस वर्ष का था जब वह यहूदा का राजा बना और उसने यरूशलेम में पच्चीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माता का नाम अबी था, जो जकर्याह नामक एक व्यक्ति की पुत्री थी।
\v 3 हिजकिय्याह ने उन कामों को किया जिन्हें यहोवा ने उचित ठहराया था, जैसे उसके पूर्वज राजा दाऊद ने किया था।
\s5
\v 4 उसने उन स्थानों को नष्ट कर दिया जहाँ लोग यहोवा की उपासना करते थे, और उसने देवी अशेरा की पूजा करने की लटों को तोड़ दिया। उसने मूसा द्वारा बनाई गई पीतल के साँप की प्रतिमा को भी टुकड़ों में तोड़ दिया। उसने ऐसा इसलिए किया कि लोगों ने उसे नहुशतान नाम दिया था, और वे उसका सम्मान करने के लिए उसके के सामने धूप जला रहे थे।
\p
\v 5 हिजकिय्याह ने यहोवा पर भरोसा किया, जिनकी आराधना इस्राएली करते थे। उससे पहले और उसके बाद यहूदा में ऐसा कोई राजा नहीं हुआ जो उसके समान यहोवा का भक्त हुआ।
\s5
\v 6 वह यहोवा का स्वामिभक्त रहा और कभी उनकी अवज्ञा नहीं की। उसने सावधानी से उन सब आज्ञाओं का पालन किया जिन्हें यहोवा ने मूसा को दिया था।
\v 7 यहोवा ने हिजकिय्याह की सदा सहायता की। वह अपने सब कामों में सफल रहा था। उसने अश्शूर के राजा के विरूद्ध विद्रोह किया और अश्शूर के राजा के आदेशों का पालन करने से मना कर दिया
\v 8 उसकी सेना ने दक्षिण में गाजा और आस-पास के गांवों के पलिश्ती सैनिकों को पराजित किया। उन्होंने पूरे क्षेत्र में, गुम्मटों वाले छोटे गांवों से लेकर दीवारों से घिरे बड़े शहरों तक सम्पूर्ण क्षेत्र को जित लिया था।
\p
\s5
\v 9 यहूदा में राजा हिजकिय्याह के राज्य के लगभग चार वर्ष बाद और इस्राएल में राजा होशे के राज्य के लगभग सात वर्ष बाद, अश्शूर के राजा शल्मनेसेर की सेना ने इस्राएल पर आक्रमण किया और सामरिया शहर को घेर लिया।
\v 10 तीसरे वर्ष में उन्होंने शहर को अपने अधीन कर लिया। यह वह समय था जब हिजकिय्याह लगभग छः वर्षों तक यहूदा पर शासन कर चुका था, और जब होशे लगभग नौ वर्षों तक इस्राएल पर शासन कर था।
\s5
\v 11 अश्शूर के राजा ने आज्ञा दी कि इस्राएल के लोगों को अश्शूर ले जाया जाए। उनमें से कुछ को हलह शहर में ले जाया गया था, कुछ को गोजान के क्षेत्र में हाबोर नदी के पास एक स्थान पर ले जाया गया था, और कुछ को उन शहरों में ले जाया गया जहाँ मादी लोगों के समूह रहते थे।
\v 12 ऐसा इसलिए हुआ कि इस्राएलियों ने अपने परमेश्वर यहोवा का आज्ञा पालन नहीं किया था। उन्होंने उस वाचा का उल्लंघन किया जो यहोवा ने उनके पूर्वजों के साथ बांधी थी, और परमेश्वर के भक्त मूसा के सभी नियम जो मूसा ने उनको पालन करने के लिए दिए थे उनका पालन नहीं किया वरन उन्हें सुनना भी नहीं चाहते थे।
\p
\s5
\v 13 राजा हिजकिय्याह के राज्य के लगभग चौदहवें वर्ष में अश्शुरों के राजा सन्हेरीब की सेना ने यहूदा के उन सभी नगरों पर आक्रमण किया और यरूशलेम को छोड़ कर अन्य सब नगरों को ले लिया।
\v 14 जब सन्हेरीब जब लाकीश में था तब राजा हिजकिय्याह ने उसे संदेश भेजा, और कहा, "मैंने जो किया है वह गलत था। कृपया अपने सैनिकों को आदेश दे कि वे आक्रमण करना रोक दे। मैं तुझे वह सब दूँगा जो भी तू कहेगा। " इसलिए अश्शूर के राजा ने कहा कि हिजकिय्याह उसे 10,000 किलोग्राम (या लगभग दस मेंट्रिक टन) चाँदी और 1,000 किलोग्राम (लगभग एक मेंट्रिक टन) सोने का भुगतान कर।
\p
\v 15 तब हिजकिय्याह ने मंदिर और महल में जितनी चाँदी दी थी सब उसे दे दी।
\p
\s5
\v 16 हिजकिय्याह के लोगों ने मंदिर के द्वारों से सोना जो उसने स्वयं द्वार पर लगाया था, सब निकाल कर अश्शूर के राजा को भेज दिया।
\v 17 परन्तु अश्शूर के राजा ने अपने कुछ महत्वपूर्ण अधिकारियों के साथ एक बड़ी सेना भेजी कि हिजकिय्याह से आत्मसमर्पण करवाएँ ऊपर के तालाब से यरूशलेम जल पहुंचाने वाली नाली के पास के खेत में जहाँ स्त्रियाँ कपड़े धोती थीं,खड़े हो गए।
\v 18 उन्होंने संदेश भेज कर राजा हिजकिय्याह को बुलवाया, परन्तु राजा ने अपने तीनों अधिकारियों को उससे बात करने के लिए भेजा। उसने हिल्किय्याह के पुत्र एल्याकीम को जो महल की निगरानी करता था, शेबना जो मंत्री था और आसाप का पुत्र योआह को भेजा।
\p
\s5
\v 19 सन्हेरीब के महत्वपूर्ण एक अधिकारी ने हिजकिय्याह के लिए यह संदेश भेजा जिसमे कहा गया था:
\p "महान अश्शूरों का राजा कहता है, 'तू बचाव के लिए किस पर भरोसा कर रहा है?
\v 20 तू कहता है कि लड़ने के लिए तेरे पास हथियार हैं और किसी देश ने तेरी सहायता करने की प्रतिज्ञा की है, परन्तु यह केवल कहने की बात ही है। मेरे अश्शूर सैनिकों से विद्रोह करने में तेरी सहायता कौन करेगा?
\v 21 मेरी बात सुन! तू मिस्र की सेना पर भरोसा कर रहा है। परन्तु यह एक चलने वाली छड़ी के स्थान में टूटे हुए सरकंडे का उपयोग करने जैसा है जिसका कोई सहारा ले तो वह उसके हाथ को छेद देगी, ऐसा ही किसी की सहायता करने के लिए मिस्र का राजा है।
\s5
\v 22 परन्तु हो सकता है तू मुझसे कहे, "नहीं, हम हमारी सहायता के लिए अपने परमेश्वर यहोवा पर भरोसा कर रहे हैं।" मैं कहता हूँ, "क्या वह वही नहीं हैं जिनके उपासना गृहों को तू ने पहाड़ों पर तोड़ कर अपमानित किया था, जहाँ मूर्तियों की पूजा की जाती थी और जहाँ वेदियों पर बलि चढ़ाई जाती थी, और यरूशलेम तथा अन्य स्थानों में सबको विवश किया गया था कि केवल यरूशलेम की वेदी के सामने ही आराधना की जाए "
\p
\v 23 इसलिए मैं सुझाव देता हूँ कि तू अश्शूर के राजा, मेरे स्वामी और मेरे बीच एक सौदा कर। मैं तुझे दो हजार घोड़े दूंगा, परन्तु मेरे विचार से तू अपने दो हजार लोगों को भी नहीं ढूंढ सकता जो उन पर सवारी करे!
\s5
\v 24 तू आशा कर रहा है कि मिस्र का राजा रथों और घोड़ों पर सवार सैनिकों को तेरी सहायता करने के लिए भेजेगा। परन्तु यह निश्चित है कि वे मेरी सेना के सबसे अधिक महत्वहीन सैनिक को भी पराजित करने योग्य नहीं है!
\v 25 इसके अतिरिक्त, क्या तू यह सोचता है कि हम यरूशलेम को यहोवा की सहायता के बिना नाश करने आए हैं? यह यहोवा ही हैं जिन्होंने हमें यहाँ आने और इस देश को नष्ट करने के लिए कहा है! "
\p
\s5
\v 26 तब एल्याकीम, शेबना और योआह ने अश्शूर के अधिकारी से कहा, "महोदय, कृपया हम से अपनी अरामी भाषा में बात कर, क्योंकि हम इसे समझते हैं। हमारी इब्रानी भाषा में हमसे बात मत कर, क्योंकि जो लोग दीवार पर खड़े हैं इसे समझ जाएंगे और डर जाएंगे । "
\p
\v 27 परन्तु अधिकारी ने उत्तर दिया, "मेरे स्वामी ने क्या मुझे केवल तुमसे बातें करने के लिए भेजा है, दीवार पर खड़े लोगों से नहीं? यदि तुम मेरे इस संदेश को अनदेखा करोगे तो नगर के लोगों को शीघ्र ही अपना मल खाना पड़ेगा और अपना मूत्र पीना पड़ेगा, जैसा तुम करोगे क्योंकि तुम्हारे पास खाने और पीने के लिए कुछ भी नहीं होगा। "
\p
\s5
\v 28 तब वह अधिकारी खड़ा हुआ और दीवार पर बैठे लोगों के लिए इब्रानी भाषा में चिल्लाया। उसने कहा, "अश्शूर के राजा महान राजा से यह संदेश सुनो। वह यह कहता है:
\v 29 'हिजकिय्याह तुम्हें धोखा न दे। वह तुम लोगों को मेरी शक्ति से बचाने योग्य नहीं है।
\v 30 उसे तुम्हें सुरक्षा के लिए यहोवा पर भरोसा रखने के लिए भ्रम में मत डालने दो कि अश्शुर सेना इस नगर को कभी नहीं ले पाएगी!
\p
\s5
\v 31 हिजकिय्याह की बातों पर ध्यान न दे! अश्शूर का राजा कहता है: 'शहर से बाहर आओ और मुझे समर्पण करो। यदि तुम ऐसा करते हो, तो मैं तुम्हारी अपनी दाखलाताओं से अंगूर का रस पीने दूँगा और तुम्हारे अपने ही पेड़ों से अंजीर खाने दूँगा और तुम्हारे अपने कुओं से पानी पीने दूँगा।
\v 32 जब तक हम आकर तुम्हें उस देश में नहीं ले जाते जो तुम्हारे देश जैसा ही है तुम ऐसा ही करते रहोगे। उस देश में भी रोटी के लिए अनाज और दाखमधु के लिए अंगूरों के बाग़ हैं। वह एक ऐसा देश है जिसमे जैतून के पेड़ और शहद बहुतायत से है, यदि तुम अश्शुर के राजा के आदेशों का पालन करो तो तुम मरोगे नहीं, जीवित रहोगे।
\p हिजकिय्याह तुम्हें यह कह कर बहकाने ना पाए कि बचाव के लिए यहोवा पर भरोसा रखो!
\s5
\v 33 अन्य देवताओं की पूजा करने वाले राष्ट्रों को कभी उनके देवताओं ने अश्शूर के राजा की शक्ति से नहीं बचाया है!
\v 34 हमात और अर्पाद के देवता कहां हैं? सपर्वैम, हेना और इव्वा के देवता कहां हैं? क्या उनके किसी भी देवता ने सामरिया को मेरे हाथ से बचाया?
\v 35 इन देवताओं में से कोई भी अपने लोगों को अश्शूर के राजा द्वारा नष्ट होने से नहीं रोक पाया था। क्या तुम सोचते हो कि तुम्हारे परमेश्वर कुछ अधिक अच्छा कर सकते हैं?
\p
\s5
\v 36 परन्तु जो लोग सुन रहे थे वे चुप थे। किसी ने कुछ भी नहीं कहा, क्योंकि राजा हिजकिय्याह ने उनसे कहा था, "जब अश्शूर का अधिकारी तुम से बात करता है, तो उसे उत्तर न दो।"
\p
\v 37 तब एलयाकीम और शेबना और योआह हिजकिय्याह के पास लौटे और अपने वस्त्र फाड़े क्योंकि वे बहुत परेशान थे, और उन्होंने उसे बताया कि अश्शूर के अधिकारी ने क्या कहा था।
\s5
\c 19
\p
\v 1 जब राजा हिजकिय्याह ने उनकी बात सुनी तो, उसने अपने कपड़े फाड़े और टाट का वस्त्र धारण किया क्योंकि वह बहुत परेशान था। फिर वह यहोवा से पूछने के लिए मंदिर में गया कि क्या करना है।
\v 2 तब उसने एलयाकीम और शेबना और बड़े याजकों को बुलाया, वे भी टाट के वस्त्र पहने हुए थे, उसने उन से कहा कि आमोस के पुत्र यशायाह भविष्यद्वक्ता से बात करे।
\s5
\v 3 उसने उनसे कहा कि यशायाह से ऐसा कहना: "राजा हिजकिय्याह कहता है कि यह वह दिन है जब हमें घोर निराशा होती है। अन्य जातियाँ बालक उत्पन्न करने वाली एक स्त्री के समान हमारी निंदा कर रही है और हमें अपमानित कर रहे हैं। प्रसव का समय तो हो गया परन्तु उसमें बल न रहा।
\v 4 हो सकता है कि हमारे परमेश्वर यहोवा ने सब कुछ सुना है जो अश्शूर के अधिकारी ने कहा था। हो सकता है वह जानते हैं कि अश्शूर के राजा, उसके स्वामी ने उसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अपमान करने के लिए भेजा और कि परमेश्वर यहोवा उसे उसकी बातों के लिए दंडित करेंगे। और हिजकिय्याह ने अनुरोध किया है कि तू हमारे कुछ लोगों के लिए प्रार्थना कर जो यरूशलेम में अभी भी जीवित हैं। "
\p
\s5
\v 5 जब हिजकिय्याह के दूत यशायाह के पास आए, तो
\v 6 यशायाह ने उन्हें अपने स्वामी के पास वापस जाने के लिए निर्देश दिया और कहा कि उसे यहोवा का वचन सुनाओ: "अश्शूर के राजा के उन दूतों ने मेरे विषय में बुरी बातें कही हैं, परन्तु जो कुछ उन्होंने कहा है, उससे तुझे परेशान नहीं होना है।
\v 7 इस बात को सुन: मैं सन्हेरीब के लिए झूठा समाचार भिजवाऊंगा जो उसे चिंतित करेगा, कि अन्य सेनाएं अन्य देश पर आक्रमण करने जा रही हैं। और वह अपने देश लौट जाएगा, और वहां मैं उसे कुछ पुरुषों द्वारा मरवा दूंगा। "
\p
\s5
\v 8 अश्शूर के अधिकारी ने पाया कि अश्शूर के राजा और उसकी सेना ने लाकीश शहर छोड़ दिया है, और वे पास के शहर लिब्ना पर आक्रमण कर रहे हैं। अतः अधिकारी उसे यरूशलेम का समाचार सुनाने वहां गया।
\p
\v 9 इसके तुरंत बाद, राजा सन्हेरीब को समाचार मिला कि इथियोपिया के राजा तिर्हाका उन पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेना लेकर आ रहा है। परन्तु राजा सन्हेरीब ने इथियोपिया की सेना से युद्ध करने के लिए लिब्ना छोड़ दिया, तो उसने दूसरे संदेशवाहक के हाथ राजा हिजकिय्याह के लिए एक पत्र भेजा।
\s5
\v 10 इस पत्र में उसने हिजकिय्याह को यह लिखा: "तेरे परमेश्वर जिन पर तू भरोसा रखता है, वह यह कहे कि मेरी सेना यरूशलेम को कभी अपने अधीन नहीं कर पाएगी तो धोखा मत खाना।
\v 11 तू ने निश्चित ही सुना है कि अश्शूर के राजाओं की सेनाओं ने अन्य सब देशों के साथ क्या किया है। हमारी सेनाओं ने उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर दिया है। तो क्या तू सोचता है कि तू बच जाएगा?
\s5
\v 12 उन देशो के देवता जिन्हें अश्शुरों के पूर्व के समय के राजाओं ने नष्ट किया था, उन्हें बचा पाए थे गोजान, हारान, रेसेप और की एदेनी जातियों को, जिन्हें मेरे पूर्वजों ने नष्ट किया था क्या उनके देवता उन्हें बचा पाए थे? उन नगरों का कोई भी देवता उन्हें नहीं बचा पाया था।
\v 13 हमात, अर्पाद, सपर्वैम और इव्वा के नगरों के राजाओं के साथ क्या हुआ? वे सब मर चुके हैं। "
\p
\s5
\v 14 हिजकिय्याह ने दूतों द्वारा लाया गया वह पत्र प्राप्त किया और उसने उसे पढ़ा। और वह मंदिर गया और यहोवा के सामने वह पत्र फैलाया।
\v 15 तब हिजकिय्याह ने यह प्रार्थना की: "हे यहोवा, जिस परमेश्वर के हम इस्राएली हैं, आप पवित्र सन्दूक पर पंखोंवाले प्राणियों पर विराजमान हैं, आप ही सच्चे परमेश्वर हैं। आप इस पृथ्वी के सब राज्यों पर शासन करते हैं। केवल आप ही ईश्वर हैं। आप ही हैं जिन्होंने पृथ्वी और आकाश में सबकुछ बनाया है।
\s5
\v 16 इसलिए, हे यहोवा, कृपया जो कुछ मैं कह रहा हूँ, उसे सुनें, और देखें कि क्या हो रहा है। और राजा सन्हेरीब ने जो आपका, सशक्त परमेश्वर का अपमान करने के लिए कहा है, उसे सुनें।
\p
\v 17 हे यहोवा, यह सच है कि अश्शूर के राजाओं की सेनाओं ने कई राष्ट्रों को नष्ट कर दिया है और उनकी भूमि उजाड़ दी है।
\v 18 और उन्होंने उन जातियों की मूर्तियों को आग में फेंक दिया है और उन्हें जला दिया है। परन्तु ऐसा करना कठिन नहीं था, क्योंकि वे देवता नहीं थे। वे केवल लकड़ी और पत्थर से बनी मूर्तियां थीं, मूर्तियों को मनुष्यों द्वारा आकार दिया गया था, और यही कारण है कि वे सरलता से नष्ट हो गए थे।
\s5
\v 19 इसलिए अब, हे हमारे परमेश्वर यहोवा, हमें अश्शूर के राजा की शक्ति से बचाओ, जिससे कि संसार के सभी साम्राज्यों के लोग यह जान लें कि आप यहोवा, केवल एकमात्र सच्चे परमेश्वर हैं। "
\p
\s5
\v 20 तब यशायाह ने यह संदेश हिजकिय्याह को यह कहने के लिए भेजा कि परमेश्वर यहोवा, जिनके इस्राएली हैं, उन्होंने उत्तर दिया है: "मैंने सुना है कि तू ने अश्शूर के राजा सन्हेरीब के विषय में मुझसे क्या प्रार्थना की है।
\v 21 मैं उस राजा से कहता हूँ:
\q यरूशलेम के लोग
\q2 तुझे तुच्छ मानते हैं और तेरा मजाक उड़ाते हैं।
\q वे अपने सिर हिलाकर तेरी निंदा करते हैं
\q2 तू किसको तुच्छ समझ रहा है और उपहास कर रहा है।
\q
\v 22 तुझे क्या लगता है कि तू किसको निराश और उपहास कर रहा है?
\q2 जिस पर तू चिल्ला रहा था उन्हें तू क्या समझता है?
\q2 तू जिसे बड़े घमण्ड से देख रहा था उन्हें तू क्या समझता है?
\q वह मैं हूँ, पवित्र परमेश्वर जिनकी इस्राएली आराधना करते हैं।
\q
\s5
\v 23 दूत जिन्हें तू ने भेजा था
\q2 उन्होंने मेरा मजाक उड़ाया।
\q तू ने कहा, 'मेरे कई रथों के साथ
\q2 मैं ऊँचे पहाड़ों पर गया हूँ, लबानोंन के ऊँचे पहाड़ पर
\q हमने उसके सबसे लंबे देवदार के पेड़ों को काट दिया है
\q2 और उसके सबसे अच्छे देवदार पेड़।
\q हम सबसे दूरस्थ चोटियों के लिए गए हैं
\q2 और उसके घने जंगल में भी।
\q
\v 24 हमने दूसरे देशों में कुएं खोद दिए हैं
\q2 और उनसे पानी पिया।
\q और मिस्र की धाराओं से होकर चले,
\q2 हमने उन्हें पूरा सुखा दीया!
\q
\s5
\v 25 परन्तु मैं कहता हूँ, 'क्या तू ने बहुत पहले कभी नहीं सुना है
\q2 मैंने योजना बनाई थी कि यह सब होगा?
\q मैंने बहुत पहले यह योजना बनाई थी,
\q2 और अब मैं इसे होने का कारण बना रहा हूँ।
\q मैंने योजना बनाई है कि तेरी सेना
\q2 में कई शहरों को पकड़ने की शक्ति होगी
\q3 जो ऊंची दीवारों से घिरे थे,
\q2 और उन्हें मलबे के ढेर बनाने का कारण बनाऊं।
\q
\v 26 उन शहरों में रहने वाले लोगों की कोई शक्ति नहीं है,
\q2 और नतीजतन वे निराश और निराश हो गए।
\q वे खेतों में पौधों और घास के रूप में कमजोर हैं,
\q2 घास के रूप में कमजोर है जो घरों की छतों पर बढ़ता है
\q3 और जो होने से पहले ही झुलस जाती है।
\q
\s5
\v 27 परन्तु मैं तेरे विषय में सब कुछ जानता हूँ।
\q2 मुझे पता है कि तू कब अपने घर में रहता है
\q3 और जब बाहर जाता है;
\q2 मुझे यह भी पता है कि तू मेरे विरुद्ध भड़क रहा है।
\q
\v 28 क्योंकि तू मेरे विरुद्ध क्रोधित हो गया है,
\q2 और क्योंकि मैंने तुझे यह कहते सुना है,
\q ऐसा होगा जैसे कि मैं तेरी नाक में एक नकेल डालूंगा,
\q2 और मैं तेरे मुंह में लोहा डाल दूंगा,
\q कि मैं जहाँ चाहुँ तुझे ले जाऊ।
\q2 मैं तुझे तेरे देश लौटने के लिए विवश करूंगा
\q उसी मार्ग में जिस से तू यहाँ आया था,
\q2 यरूशलेम पर विजय प्राप्त किए बिना। '
\q
\s5
\v 29 अब मैं हिजकिय्याह से यह कहता हूँ:
\q2 'मेरी बात को सत्य सिद्ध करने के लिए ऐसा ही होगा:
\q इस वर्ष और अगले वर्ष तू और तेरे लोग
\q2 केवल जंगली अनाज की फसल काटेंगे।
\q परन्तु अगले वर्ष, तेरे इस्राएली अन्न उगाने और फसल काटने योग्य होंगे
\q2 और दाख की बारियां लगाने और अंगूर खाने योग्य होंगे।
\q
\v 30 यहूदा में रहने वाले लोग जो जीवित रहेंगे समृद्ध होंगे
\q2 और कई संताने प्राप्त करेंगे;
\q वे उन पौधों के समान होंगे जिनकी जड़ें भूमि में गहरी जाती हैं
\q2 और जो बहुत फल उत्पन्न करती हैं।
\q
\v 31 यरूशलेम में बहुत से लोग होंगे
\q2 जो जीवित रहेगा,
\q क्योंकि मैं, यहोवा, सेनाओं का प्रधान,
\q2 यह योजना बना चुका हूँ।
\q
\s5
\v 32 अतः यहोवा, मैं यही कहता हूँ अश्शूर के राजा के विषय में
\q "उनकी सेना इस शहर में प्रवेश नहीं करेगी;
\q2 वे इसमें तीर भी नहीं चला पाएंगे।
\q उनके सैनिक ढाल उठाकर शहर के फाटक के बाहर नहीं चलेंगे,
\q2 और वे शहर की दीवारों के पास ऊँचे स्थान भी नही बना पाएंगे
\q3 कि शहर पर सफल आक्रमण कर पाएँ।
\q
\v 33 उनका राजा अपने देश लौट जाएगा
\q2 उसी मार्ग पर जिस पर से वह आया था।
\q2 वह इस शहर में प्रवेश नहीं करेगा।
\q ऐसा अवश्य होगा क्योंकि मुझ, यहोवा ने यह कहा है!
\q
\v 34 मैं इस शहर की रक्षा करूंगा और इसे नष्ट होने से रोकूंगा।
\q2 मैं अपनी प्रतिष्ठा के लिए
\q2 और जो मैंने राजा दाऊद से प्रतिज्ञा की थी, उसके कारण ऐसा करूँगा,
\q3 उसने मेरी अच्छी सेवा की थी। '"
\p
\s5
\v 35 उस रात, यहोवा का एक दूत वहां गया जहाँ अश्शूर की सेना ने अपने तंबू लगाए थे और 185,000 सैनिकों को मार डाला। जब बाकी सैनिक अगली सुबह उठ गए, तो उन्होंने देखा कि हर जगह लाशें थीं।
\v 36 तब राजा सन्हेरीब छोड़कर अश्शूर की राजधानी नीनवे को चला गया।
\p
\v 37 एक दिन, जब वह अपने देवता निस्रोक के मंदिर में पूजा कर रहा था, उसके दो पुत्र, अद्रम्मेलेक और शरेसेर ने उसे अपनी तलवार से मार डाला। और भाग गए और निनवे के उत्तर-पश्चिम में अरारत के क्षेत्र में गए। और सन्हेरीब के पुत्रों में से एक, एसर्हद्दोन , अश्शूर का राजा बन गया।
\s5
\c 20
\p
\v 1 उस समय, हिजकिय्याह बहुत बीमार हो गया। उसने सोचा कि वह मरने वाला है। यशायाह भविष्यद्वक्ता उसके पास आया और कहा, "यहोवा यही कहते हैं: 'तुझे अपने महल में लोगों को समझा देना होगा कि तेरे मरने के बाद उन्हें क्या करना होगा, क्योंकि तू इस बीमारी से ठीक नहीं होगा। तू मर जाएगा। ''
\p
\v 2 हिजकिय्याह ने अपना चेहरा दीवार की ओर किया और प्रार्थना की:
\v 3 "हे यहोवा, यह न भूलें कि मैंने सदा अपने मन से आपकी सेवा की है, और मैंने उन कामों को किया है जो आपको प्रसन्न करते हैं।" तब हिजकिय्याह जोर से रोने लगा।
\p
\s5
\v 4 यशायाह राजा के पास से जा चुका था, परन्तु महल के बीच के आंगन को पार करने से पहले, यहोवा ने उसे एक संदेश दिया।
\v 5 उसने कहा, "मेरे लोगों के शासक हिजकिय्याह के पास जा, और उससे कह, ' मैं यहोवा, जिस परमेश्वर की तेरे पूर्वज राजा दाऊद ने उपासना की थी, मैंने सुना है कि तू ने क्या प्रार्थना की है। और मैंने तेरे आँसू देखे हैं। तो, सुन, मैं तुझे स्वस्थ करने जा रहा हूँ। अब से दो दिन बाद तू मेरे मंदिर में जा सकेगा।
\s5
\v 6 मैं तुझे पंद्रह वर्ष तक ओर जीने के योग्य करता हूँ। और मैं तुझे और इस नगर को अश्शूर के राजा की शक्ति से फिर से बचाऊंगा। मैं अपनी प्रतिष्ठा के लिए और मेरे सच्चे सेवक दाऊद से की गी प्रतिज्ञा के कारण इस शहर की रक्षा करूंगा । '"
\p
\v 7 यशायाह महल में लौट आया और हिजकिय्याह को यहोवा का वचन सुनाया। तब उसने हिजकिय्याह के कर्मचारियों से कहा, "उबले हुए अंजीर से बने लेप को उसके फोड़ो पर लगा दो तो वह ठीक हो जाएगा।" सेवको ने वैसा ही किया, और राजा ठीक हो गया।
\p
\s5
\v 8 तब हिजकिय्याह ने यशायाह से कहा, "यह सिद्ध करने के लिए यहोवा क्या करेगा कि वह मुझे ठीक करेगा और अब से दो दिन बाद मैं मंदिर में जा सकूंगा?"
\p
\v 9 यशायाह ने उत्तर दिया, "यहोवा अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए जो करेंगे। वह यह है कि तू क्या चाहता है कि सीढ़ियों पर छाया दस चरण पीछे जाए या दस कदम आगे बढ़ जाए?"
\p
\s5
\v 10 हिजकिय्याह ने उत्तर दिया, "छाया का आगे बढ़ना सरल है, क्योंकि ऐसा तो होता ही है। यहोवा से कह कि छाया सीढ़ी पर दस चरण पीछे हो जाए उन सीढ़ियों को राजा आहाज के काम करनेवालों ने बनाया था।"
\p
\v 11 तब यशायाह ने सच्चे दिल से यहोवा से प्रार्थना की, और यहोवा ने छाया को दस चरण पीछे कर दिया।
\p
\s5
\v 12 उस समय, बाबेल ोन के पूर्व राजा बलदान के पुत्र राजा मर्दुक-बलदान ने एक रिपोर्ट सुनाई कि राजा हिजकिय्याह बहुत बीमार था। इसलिए उसने कुछ पत्र लिखे और उन्हें उपहार के साथ हिजकिय्याह को देने के लिए कुछ दूतों को दे दिया।
\v 13 जब दूत आए, तो हिजकिय्याह ने हर्ष के साथ उनका स्वागत किया। उसने उन्हें राजमहल और अपने भण्डार में जो भी था दिखया - चाँदी, सोना, म वर्ष े, सुगंधित जैतून का उत्तम तेल, और उसके सैनिकों के सब हथियार। उसने अपने राज्य के भण्डार कहीं और भी ऐसी कोई मूल्यवान वस्तुएँ नहीं छोड़ी जो उसने उन्हें नहीं दिखाई।
\p
\s5
\v 14 तब भविष्यवक्ता यशायाह हिजकिय्याह के पास आया और उससे पूछा, "वे लोग कहां से आए, और उन्होंने तुमसे क्या कहा?"
\p हिजकिय्याह ने उत्तर दिया, "वे यहाँ से बहुत दूर देश से आए थे। वे बाबेल ोनिया से आए थे।"
\p
\v 15 यशायाह ने पूछा, "उन्होंने तेरे महल में क्या देखा?"
\p हिजकिय्याह ने उत्तर दिया, "उन्होंने सब कुछ देखा। मैंने उन्हें वह सब दिखाया जो मेरे पास हैं-मेरी सभी मूल्यवान वस्तुएँ भी।"
\p
\s5
\v 16 यशायाह जानता था कि हिजकिय्याह ने बहुत मूर्खतापूर्ण काम किया है। इसलिए यशायाह ने उससे कहा, "यहोवा जो कहते हैं, उसे सुन।
\v 17 ऐसा समय आएगा जब तेरे महल में जो कुछ भी है, वह और तेरे पूर्वजों द्वारा रखी गई सभी मूल्यवान वस्तुएँ, बाबेल को ले जाया जाएगा। यहाँ कुछ भी नहीं छोड़ा जाएगा! यहोवा ने यही कहा है!
\v 18 इसके अतिरिक्त, तेरे कुछ वंशजों को भी वहां जाने के लिए विवश किया जाएगा, और उन्हें बाबेल के राजा के महल में दास बनने के लिए नपुंसक बना दिया जाएगा। "
\p
\s5
\v 19 तब हिजकिय्याह ने यशायाह से कहा, "जो यहोवा ने मुझे दिया है, वह संदेश अच्छा है।" क्योंकि उसने सोचा, "यदि ऐसा होगा तो मेरे शेष जीवन के समय इस्राएल में शान्ति और सुरक्षा बनी रहेगी।"
\p
\v 20 यदि तू हिजकिय्याह अन्य सभी कामों के विषय में और जानना चाहता है, युद्ध में उसके बहादुर कर्मों के विषय में, इस विषय में कि किस प्रकार उसने अपने लोगों को शहर में जलाशय बनाने और जलाशयों में पानी लाने के लिए सुरंग खोदने आदि के विषय में जानना हो तो वह सब यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं।
\v 21 बाद में हिजकिय्याह की मृत्यु हो गई, और उसका पुत्र मनश्शे राजा बन गया।
\s5
\c 21
\p
\v 1 मनश्शे बारह वर्ष का था जब उसने शासन करना आरम्भ किया। उसने यरूशलेम में पचास वर्ष तक यहूदा पर शासन किया। उसकी माता हेप्सीबा थी।
\v 2 उसने कई ऐसे काम किए जिन्हें यहोवा ने बुरा कहा था। उन्होंने उन घृणित कामों की नक़ल की जो वहाँ रहने वाली पूर्वकाल की जातियाँ करती थी जब इस्राएल के आगमन के समय यहोवा ने उन्हें देश से बाहर निकाला था।
\v 3 उसने अपने श्रमिकों को पहाड़ियों पर बने मूर्ति पूजा के स्थानों का पुनर्निर्माण करने का आदेश दिया। वे बहुत ऊंचे स्थान थे जिनको उसके पिता हिजकिय्याह ने नष्ट कर दिया था। उसने अपने श्रमिकों को आदेश दिया कि बाल को जीवित प्राणियों के बलि चढ़ाने के लिए वेदियों का निर्माण करें। मनश्शे ने देवी अशेरा की मूर्ति बनाई, जैसा कि इस्राएल के राजा अहाब ने पहले किया था। और मनश्शे ने सितारों की पूजा की और उनकी सेवा की।
\s5
\v 4 उसने अपने कर्मचारियों को यहोवा के मन्दिर में विदेशी देवताओं की पूजा करने के लिए वेदियों का निर्माण करने का निर्देश दिया, भले ही यहोवा ने कहा था, "यह यरूशलेम में है कि जहाँ मैं चाहता हूँ कि मेरे लोग सदा मेरी आराधना करें।"
\v 5 उसने निर्देश दिया कि सितारों की पूजा करने के लिए मंदिर के दोनों आंगनों में वेदियां बनाई जाएं।
\v 6 उसने अपने पुत्र को भी बलि करके आग में जला दिया। उसने जादू-टोना और भूत सिद्धि करने वालों द्वारा अनुष्ठान करवाया। उसने कई ऐसे काम किये जो यहोवा ने कहा था कि बुरे हैं और ऐसे काम जिन से क्रोधित होते थे।
\p
\s5
\v 7 उसने मंदिर में देवी अशेरा की मूर्ति रखी, जिस स्थान के लिए यहोवा ने दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान से कहा था, "मेरा मंदिर यरूशलेम में होगा। यह वह शहर है जिसे मैंने इस्राएल के बारह गोत्रों कि सम्पूर्ण भूमि में, जहाँ मैं चाहता हूँ कि लोग सदा मेरी आराधना करें।
\v 8 और यदि इस्राएली लोग मेरे सब आदेशों और मेरे सच्चे दास मूसा को दिए गए सभी नियमों का पालन करते हैं, तो मैं उन्हें फिर से इस देश को छोड़ने के लिए विवश नहीं करूंगा जिसे मैंने उनके पूर्वजों को दिया था। "
\v 9 परन्तु लोगों ने यहोवा पर ध्यान नहीं दिया। मनश्शे ने उन्हें ऐसे पाप करने के लिए प्रेरित किया जो उन जातियों के पापों से भी अधिक बुरे थे जिन्हें यहोवा ने उस देश से बहार निकाला था जब इस्राएली लोग उसमें प्रवेश कर रहे थे।
\p
\s5
\v 10 ये कुछ बातें हैं जिन्हें यहोवा ने अपने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा था। यहोवा ने बार बार उन्हें ये संदेश दिए थे:
\v 11 "यहूदा के राजा मनश्शे ने इन घृणित कामों को किया है, जो उन से भी बुरे हैं जिन्हें एमोरी लोगों ने इस देश में किए थे। उसने यहूदा के लोगों से मूर्ति पूजा करवा कर यहोवा के विरुद्ध पाप किया है।
\v 12 इस कारण, मैं, यहोवा, जिस परमेश्वर की तुम इस्राएली लोग आराधना करते हो, तुम से कहता हूँ: मैं यरूशलेम और यहूदा पर विनाश लाने वाला हूँ। यह भयानक होगा, जिसको सुन कर मनुष्य चकित होगा।
\s5
\v 13 मैं यरूशलेम के लोगों का न्याय करूँगा और उन्हें दण्ड दूंगा क्योंकि मैंने इस्राएल के राजा आहाब के परिवार को दंडित किया था। मैं यरूशलेम के लोगों को हटा दूंगा और ऐसा कर दूँगा जैसे लोग थाली को साफ करते हैं और फिर उसे पलट कर रख देते हैं यह दिखाने के लिए कि वे अब संतुष्ट हैं।
\v 14 और मैं जीवित रहने वाले लोगों को त्याग दूंगा, और मैं उनके शत्रुओं को उन पर विजयी होने दूँगा और उनके देश से मूल्यवान सब कुछ लुट लेने की अनुमति दूंगा।
\v 15 मैं ऐसा करूँगा क्योंकि मेरे लोगों ने ऐसे काम किये हैं जो मैं कहता हूँ कि बहुत बुरे हैं, जिन कामों ने मुझे बहुत क्रोधित किया है। वे मिस्र से निकलने के समय से ही मुझे निरन्तर क्रोधित करते रहे हैं। "
\p
\s5
\v 16 मनश्शे ने अपने अधिकारियों को यरूशलेम में कई निर्दोष लोगों को मारने का आदेश दिया, जिसके परिणामस्वरूप उनका खून सड़कों पर बह गया। इसके अतिरिक्त उसने यहूदा के लोगों को कई ऐसे कामों को करने के लिए यह भी प्रेरित किया जिन्हें यहोवा ने कहा कि वे बुरे है।
\p
\v 17 यदि तुम मनश्शे के सारे कामों के विषय में अधिक जानना चाहते हो, तो वे यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं।
\v 18 मनश्शे की मृत्यु हो गई और उसे अपने महल के बाहर बगीचे में दफनाया गया, जो उज्जा ने बनाया था। तब उसका पुत्र आमोन राजा बन गया।
\p
\s5
\v 19 आमोन बाईस वर्ष का था जब राजा बना। उसने यरूशलेम में केवल दो वर्षों तक यहूदा पर शासन किया। उनकी माता का नाम मशुल्लेमेत था। वह योत्बावासी हारूस की पुत्री थी।
\v 20 उसने अपने पिता मनश्शे के समान कई काम किए जो यहोवा ने कहा था, बुरे हैं।
\s5
\v 21 उसने अपने पिता के व्यवहार की नकल की, और उसने उसी मूर्तियों की पूजा की जिनकी उसके पिता ने पूजा की थी।
\v 22 उसने यहोवा को त्याग दिया, जिस परमेश्वर की तुम्हारे पूर्वजों ने आराधना की थी, और वैसा व्यवहार नहीं किया जैसा यहोवा चाहतें थे कि वह करे।
\v 23 फिर एक दिन उसके कुछ अधिकारियों ने उसे मारने की योजना बनाई। उन्होंने महल में उसे मार डाला।
\p
\s5
\v 24 परन्तु यहूदा के लोगों ने उन सब को मार डाला जिन्होंने राजा आमोन की हत्या कर दी थी, और उसने अपने पुत्र योशिय्याह को राजा बना दिया।
\p
\v 25 यदि तुम आमोन के कामों के विषय में पढ़ना चाहते हो, तो वे यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं।
\v 26 आमोन को उस बगीचे की कब्र में भी दफनाया गया था जिसे उज्जा ने बनाया था। तब उसका पुत्र योशिय्याह राजा बन गया।
\s5
\c 22
\p
\v 1 योशिय्याह आठ वर्ष का था जब वह यहूदा का राजा बन गया। उसने यरूशलेम में इकतीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माता यदीदा थी और बोस्कत शहर का अदायाह उसका दादा था।
\v 2 योशिय्याह ने उन कामों को किया जो यहोवा को प्रसन्न करते थे और अपने पूर्वज राजा दाऊद के समान जीवन जिया। उसने परमेश्वर के सब नियमों का पालन किया।
\p
\s5
\v 3 योशिय्याह लगभग अठारह वर्ष तक शासन करने के बाद, उसने असल्याह के पुत्र शापान को जो मशुल्लाम का पोता था इन निर्देशों के साथ मंदिर में भेजा:
\v 4 "महायाजक हिल्किय्याह के पास जा, और उससे कह की मुझे बताए कि मंदिर के दरवाजों की रक्षा करने वाले पुरुषों ने उपासकों के कितने पैसे भेंट के रूप में लिए हैं।
\v 5 फिर उसे उन सभी लोगों को वह पैसा देने के लिए कह जो मंदिर के सुधार कार्य के काम की देखरेख कर रहे हैं।
\s5
\v 6 उन से कह लकड़ी का काम करने वालों को और राज्मिस्त्रीयों को मंदिर में काम आने वाले लकड़ी और पत्थरों को भी खरीदना होगा। "
\v 7 परन्तु जो लोग काम की देखरेख करते हैं उन्हें दिए गए पैसे का लेखा देने की उन्हें आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वे लोग पूरी तरह से ईमानदार हैं।
\p
\s5
\v 8 राजा के सचिव शापान ने जाकर हिल्किय्याह को राज्य का संदेश सुना दिया, हिल्किय्याह ने शापान से कहा, "मैंने मंदिर में वह पुस्तक पाई है जिस पर परमेश्वर द्वारा मूसा को दिए गए नियम लिखे गये हैं!" हिल्किय्याह ने शापान को वह पुस्तक दी और उसने उसे पढ़ना आरम्भ किया।
\v 9 तब शापान वह पुस्तक राजा के पास लेकर गया और उससे कहा, "तेरे मंदिर के रक्षकों ने मंदिर में जो पैसा था उसे लेकर उन को दे दिया है जो मंदिर के सुधार कार्य की देखरेख कर रहे हैं।"
\v 10 तब शापान ने राजा से कहा, "मैं वह पुस्तक लाया हूँ जो हिल्किय्याह ने मुझे दी है।" और शापान ने उसे राजा के लिए पढ़ना आरम्भ किया।
\p
\s5
\v 11 जब राजा ने उन नियमों को सुना जो उस पुस्तक से शापान पढ़ रहा था, तो उसने अपने कपड़े फाड़े क्योंकि वह बहुत परेशान हो गया था।
\v 12 तब उसने हिल्कीयाह को शापान के पुत्र अहीकाम से, मीकायाह के पुत्र अकबोर और राजा के विशेष सलाहकार असायाह को यह निर्देश दिए:
\v 13 "जाओ मेरे और यहूदा के सभी लोगों के लिए यहोवा से पूछो कि, इस पुस्तक में जो लिखा गया है, वह क्या है। क्योंकि यह स्पष्ट है कि यहोवा हमसे बहुत क्रोधित हैं क्योंकि हमारे पूर्वजों ने इन लिखित बातों की अवज्ञा की थी वह काम जिन्हें हमें करना चाहिए था। "
\p
\s5
\v 14 तब हिल्किय्याह, अहीकाम, अकबोर, शापान और असायाह उस स्त्री से परामर्श करने गए, जिसका नाम हुल्दा था, जो भविष्यद्वक्तिनी थी जो यरूशलेम के नए भाग में रहती थी। वह तिकावा के पुत्र और उसके हर्हस के पोते शल्लूम की पत्नी थी जो मंदिर में पहने जाने वाले वस्त्रों को संभालता था। उन पांच पुरुषों ने उसे उस पुस्तक के विषय में बताया।
\p
\v 15 तब उसने उन्हें बताया कि यहोवा परमेश्वर जिनकी इस्राएली आराधना करते हैं, "यहोवा के पास राजा के लिए एक संदेश है जिसने तुम्हें मेरे पास भेजा है, यहोवा कहते हैं:
\v 16 'इसे ध्यान से सुनो। मैं यरूशलेम और यहाँ रहने वाले सब लोगों पर विपत्ति लाने जा रहा हूँ, जो राजा द्वारा पढ़ी गयी पुस्तक में लिखा था।
\s5
\v 17 मैं ऐसा इसलिए करूंगा क्योंकि उन्होंने मुझे त्याग दिया है, और वे अन्य देवताओं का सम्मान करने के लिए धूप जलाते हैं। उन्होंने मुझे उन सभी मूर्तियों के कारण बहुत क्रोधित किया है और मेरा क्रोध आग के समान है जो बुझाई नहीं जा सकती।
\v 18 यहूदा के राजा ने तुम्हें यह पूछने के लिए भेजा कि मैं, यहोवा, उससे क्या करवाना चाहते हैं। यही वह है जो तुम्हें उससे कहना है, "तू ने पुस्तक में लिखी बातों पर ध्यान दिया है।
\v 19 इसके अतिरिक्त, जब तू ने सुना कि मैंने इस शहर और यहाँ रहने वाले लोगों को दंड देने के लिए क्या धमकी दी है, तो तू ने पश्चाताप किया और स्वयं को नम्र किया है, मैंने तेरी प्रार्थना को सुना है। मैंने कहा कि मैं इस शहर को उजाड़ने का कारण बनूंगा। यह एक ऐसा शहर होगा जिसका नाम लोग किसी को शाप देते समय उपयोग करेंगे। परन्तु तू ने अपने वस्त्रों को फाड़ दिया और मेरी उपस्थिति में रोया, मैंने तुझे सुना है।
\s5
\v 20 इसलिए मैं तुझे शान्ति से मरने और दफन होने दूंगा। मैं इस स्थान पर एक बड़ी विपत्ति लाऊंगा, परन्तु तू इसे देखने के लिए जीवित नहीं होगा। "
\p पुरुष यह सुन कर राजा योशिय्याह के पास लौट आए और उसे वह संदेश दिया।
\s5
\c 23
\p
\v 1 तब राजा ने यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों के सभी बुजुर्गों को बुलाया।
\v 2 वे सबसे महत्वपूर्ण लोगों से कम से कम महत्वपूर्ण लोगों तक, याजक और भविष्यवक्ताओं, और कई अन्य लोगों के साथ मंदिर में एक साथ गए। और जब वे सुन रहे थे, तब राजा ने उन सब नियमों को पढ़ा जिन्हें मूसा ने लिखा था। उसने मंदिर में पाई गई पुस्तक से पढ़ा।
\s5
\v 3 तब राजा उस खंभे के पास खड़ा हुआ जहाँ राजा महत्वपूर्ण घोषणा करते थे, और जब यहोवा सुन रहे थे, तब उसने सच्चे मन से नियमों का पालन करने की अपनी प्रतिज्ञा को दोहराया। और सब लोगों ने भी वाचा का पालन करने की प्रतिज्ञा की।
\p
\s5
\v 4 तब राजा ने महायाजक हिल्किय्याह और उन सब याजकों को जो उसकी सहायता करते थे और उन द्वारपालों को आदेश दिया कि मंदिर में से उन सब वस्तुओं को जो लोग बाल, देवी अशेरा और सितारों की पूजा करने के लिए उपयोग कर रहे थे, उन्हें बाहर निकालें और उन्होंने उन सब वस्तुओं को शहर के बाहर किद्रोंन घाटी में जला दिया तब वे उस राख को बेतेल ले गये।
\v 5 वहाँ बहुत से मूर्तिपूजक पुजारी थे जिन्हें यहूदा के पिछले राजाओं ने यहूदा के पूरे क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर वेदियों पर धूप जलाने और पहाड़ियों पर बने ऊंचे स्थानों पर पूजा करने के लिए नियुक्त किया था। वे बाल, सूर्य, चंद्रमा, ग्रहों और सितारों के लिए ऊँचे स्थानों पर बलिदान चढ़ाते थे। राजा ने उन्हें उन कामों को करने से रोक दिया।
\s5
\v 6 उसने आज्ञा दी कि देवी अशेरा की मूर्ति मंदिर से निकल दी जाए। तब वे उसे यरूशलेम के बाहर, किद्रोन घाटी में ले लिया, और जला दिया। तब उन्होंने उस राख को कूटकर सामान्य लोगों की कब्रों पर बिखरा दिया।
\v 7 उसने मंदिर के कमरों में से सब कुछ निकाला जहाँ पुरुष वेश्याएं रहते थे। यही वह जगह थी जहाँ महिलाएं कपड़े बूनती थीं जिनका उपयोग देवी अशेरा की पूजा करने के लिए किया जाता था।
\p
\s5
\v 8-9 योशिय्याह उन सब पुजारियों को यरूशलेम लाया जो यहूदा के अन्य नगरों में बलिदान चढ़ा रहे थे। उसने उन पहाड़ियों पर उन सब स्थानों को अपवित्र किया जहाँ याजक उत्तर में गेबा से दक्षिण में बेर्शेबा तक मूर्तियों का सम्मान करने के लिए धूप जलाते थे। उन पुजारियों को मंदिर में बलि चढ़ाने की अनुमति नहीं थी, परन्तु उन्हें अखमीरी रोटी खाने की अनुमति थी जो मंदिर में काम करने वाले याजक खाते थे। उसने यह भी आदेश दिया कि यरूशलेम के महापौर यहोशू द्वारा बनाई गई फाटक के पास की वेदियां नष्ट की जाएं। वे वेदियां शहर के मुख्य द्वार के बाईं ओर थीं।
\p
\s5
\v 10 योशिय्याह ने बेन हिन्नोम घाटी में तोपेत नाम के स्थान को भी अशुद्ध किया ताकि कोई भी अपने पुत्र या पुत्री को वेदी पर मोलेक के लिए पूरी तरह से न जलाए।
\v 11 उसने उन घोड़ों को भी हटा दिया जिन्हें यहूदा के पिछले राजाओं ने सूर्य की पूजा करने के लिए समर्पित किया था और उसने उस पूजा में उपयोग किये जाने वाले रथों को जला दिया। उन घोड़ों और रथों को मंदिर के बाहर के आंगन में, मंदिर के प्रवेश द्वार के पास रखा गया था, और उस कमरे के पास जहाँ योशिय्याह के अधिकारियों में से एक रहता था, जिसका नाम नतन्मेलेक था।
\p
\s5
\v 12 योशिय्याह ने अपने कर्मचारियों को उन वेदियों को भी तोड़ने का आदेश दिया जो यहूदा के पिछले राजाओं ने महल की छत पर, जहाँ राजा आहाज रहता था, बनाया था। उन्होंने राजा मनश्शे द्वारा मंदिर के बाहर के दो आंगनों में बनाई गई वेदियों को भी तोड़ दिया। उसने आदेश दिया कि वे टुकड़े टुकड़े की जाएं और किद्रोन घाटी में फेंक दी जाएं।
\v 13 उसने यह भी आदेश दिया कि राजा सुलैमान ने जिन वेदियों को येरूशलेम के पूर्व में जैतून पर्वत के दक्षिण में बनाया था, जिसे विकासी पर्वत कहते थे, नष्ट कर दिया जाए। सुलैमान ने उन्हें घृणित मूर्तियों की पूजा के लिए बनाया था- सिदोनियों की अश्तोरेत, मोआब लोगों के देवता कमोश और अम्मोन लोगों के देवता मोलेक की पूजा की जाती थी।
\v 14 उन्होंने पत्थर के उन खंभो के भी टुकड़े टुकड़े कर दिए जिनकी इस्राएली लोग पूजा करते थे, और देवी अशेरा को सम्मानित करने वाली लाटों को काट दिया और उन्होंने उन स्थानों को अशुद्ध करने के लिए वहाँ मानव हड्डियों को बिखरा दिया।
\p
\s5
\v 15 इसके अतिरिक्त, उसने उनको पूजा के स्थान को तोड़ने का आदेश दिया जो बेतेल शहर के पास था, जो नबात का पुत्र राजा यारोबाम (जिसने इस्राएल को मूर्तिपूजा के लिए प्रेरित किया था) द्वारा निर्मित पूजा का एक ही स्थान था। योशिय्याह ने इस्राएल के लोगों को उस ऊँची पहाड़ी पर बनी वेदी तोड़ने की आज्ञा दी और उन्होंने अशेरा की पूजा में उपयोग किए गए लकड़ी के लाटों को भी जला दिया।
\v 16 तब योशिय्याह ने चारों ओर देखा और पहाड़ी पर कुछ कब्रों को देखा। उसने अपने लोगों को आज्ञा दी कि उन कब्रों से हड्डियों को निकाल कर वेदी पर जला दिया। ऐसा करके, उसने वेदी को अपवित्र कर दिया। इन घटनाओं की भविष्यवाणी कई वर्ष पहले की गई थी जब यहोवा ने अपने भविष्यवक्ता द्वारा इस्राएल को अपना वचन दिया था।
\p
\s5
\v 17 योशिय्याह ने पूछा, "किसकी कब्र है?" बेतेल के लोगों ने उत्तर दिया, "यह भविष्यद्वक्ता की कब्र है जो यहूदा से आया था और भविष्यवाणी की थी कि तू ने जो कुछ अभी इस वेदी पर किया है, वह होगा।"
\p
\v 18 योशिय्याह ने उत्तर दिया, "उसको रहने दिया जाए। उस भविष्यवक्ता की हड्डियों को कब्र से न निकला जाए।"
\p इसलिए लोगों ने उसकी हड्डियों को, या दूसरे भविष्यवक्ता की हड्डियों को नहीं निकाला, जो सामरिया से आया था।
\p
\s5
\v 19 इस्राएल के हर नगर में योशिय्याह के आदेश में, उन्होंने पहाड़ों पर बने मूर्तियों की पूजा के घरों को गिरा दिया। जिन्हें इस्राएल के पिछले राजाओं ने बनवाया था और यहोवा को बहुत क्रोधित किया था। उसने मूर्तियों के उन सभी स्थानों के साथ वही काम किया जो उसने बेतेल में वेदियों के साथ किया था।
\v 20 उसने आदेश दिया कि उन सब पुजारियों को जिन्होंने पहाड़ियों पर बने मूर्ति पूजा के स्थानों में बलि चढ़ाई, और उन्हें उन वेदियों पर ही मार डाला जाए। फिर उन्होंने उन वेदियों में से प्रत्येक पर मानव हड्डियों को जलाकर अपवित्र कर दिया। फिर वह यरूशलेम लौट आया।
\p
\s5
\v 21 तब राजा ने सभी लोगों को अपने परमेश्वर यहोवा का सम्मान करने के लिए फसह का पर्व मनाने का आदेश दिया, जो मूसा के नियम में लिखा गया था कि उन्हें हर वर्ष करना चाहिए।
\v 22 उन सब वर्षों में जब इस्राएल के अगुओं ने शासन किया और इस्राएल के राजाओं और यहूदा के राजाओं ने उस को नहीं मनाया था।
\v 23 परन्तु अब योशिय्याह के अठारह वर्ष के शासन में, उन्होंने यहोवा के सम्मान में यरूशलेम में फसह का पर्व मनाया।
\p
\s5
\v 24 इसके अतिरिक्त, योशिय्याह ने यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों से उन सभी लोगों को हटा दिया जो जादूगरी का अभ्यास करते थे और जो मृत लोगों की आत्माओं से पूछते थे कि उन्हें क्या करना चाहिए। उसने यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों से सभी घरेलू मूर्तियों को और अन्य सभी मूर्तियों और घृणित वस्तुओं को भी हटा दिया। उसने ऐसा इसलिए किया कि हिल्कीया को जो पुस्तक मन्दिर में मिली थी उसमे लिखे गये निर्देशों का पालन करे।
\v 25 योशिय्याह अपनी सम्पूर्ण भावना और विचारों और शक्ति के साथ यहोवा के प्रति समर्पित था। यहूदा या इस्राएल में उसके जैसा राजा कभी नहीं हुआ था। उसने मूसा के सब नियमों का पालन किया। और तब से योशिय्याह के समान राजा नहीं हुआ।
\p
\s5
\v 26 परन्तु यहोवा मनश्शे के उन कामों के कारण यहूदा के लोगों से बहुत क्रोधित थे, और वह क्रोधित ही रहे।
\v 27 उन्होंने कहा, "मैं यहूदा के साथ वही करूंगा जो मैंने इस्राएल के साथ किया है। मैं यहूदा के लोगों को दूर कर दूंगा, जिसके परिणामस्वरूप वे फिर मेरी उपस्थिति में प्रवेश नहीं कर पाएंगे। और मैं यरूशलेम को अस्वीकार कर दूंगा, शहर मैं अपना होने के लिए चुना है, और मैं वह स्थान जहाँ मैंने कहा था कि मेरी आराधना की जाए। "
\p
\s5
\v 28 यदि तुम योशिय्याह के सब कामों के विषय में और जानना चाहते हो, तो वे यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं।
\p
\v 29 जब वह यहूदा का राजा था, तब मिस्र के राजा नको अश्शूर के राजा की सहायता करने के लिए अपनी सेना को फरात नदी के उत्तर में ले गया। राजा योशिय्याह ने मगीद्दो शहर में मिस्र की सेना को रोकने का प्रयास किया, परन्तु वह युद्ध में मार दिया गया।
\v 30 उसके अधिकारियों ने उसके शव को रथ में रखा और उसे वापस यरूशलेम ले गए, जहाँ उसे उसकी कब्र में दफनाया गया।
\p तब यहूदा के लोगों ने योशिय्याह के पुत्र यहोआहाज पर जैतून का तेल डाला, ताकि वह नया राजा बने।
\p
\s5
\v 31 योआहाज यहूदा का राजा बनने के समय तेईस वर्ष का था, परन्तु उसने यरूशलेम में केवल तीन महीने शासन किया। उसकी माता, लिब्ना शहर के यिर्मयाह की पुत्री हमूतल थी।
\v 32 योआहाज ने बहुत ऐसे काम किये जिन्हें यहोवा बुरा कहते हैं, जैसे कि उसके पूर्वजों ने किया था।
\v 33 राजा नको की सेना ने उसे पकड़ लिया और उसे जंजीरों से बांध कर उसे हमात देश के रिबला शहर में बन्दी बनाकर रख दिया कि वह यहूदा पर राज्य न कर पाए। नको ने यहूदा के लोगों को 3.3 मीट्रिक टन चाँदी और 33 किलोग्राम सोने का कर लगा दिया।
\s5
\v 34 राजा नको ने योशिय्याहके पुत्र, एलयाकीम को नया राजा नियुक्त किया, और उसने एलयाकीम के नाम को यहोयाकीम में बदल दिया। वह यहोआहाज को मिस्र ले गये, और बाद में वहाँ उसकी मृत्यु हो गई।
\p
\v 35 राजा यहोयाकीम ने यहूदा के लोगों से कर एकत्र किया। उसने अमीरों से तो अधिक परन्तु गरीब लोगों से कम कर एकत्र किया। मिस्र के राजा को भुगतान करने के लिए उनसे चाँदी और सोना इकट्ठा किया, क्योंकि उसके आदेश के अनुसार उसे यह देना था।
\p
\s5
\v 36 यहोयाकीम पच्चीस वर्ष का था जब वह यहूदा का राजा बना, और उसने यरूशलेम से ग्यारह वर्ष तक शासन किया। उसकी माता का नाम जबीदा था जो रूमावासी पदायाह की पुत्री थी।
\v 37 उसने बहुत से ऐसे काम किये जिनके लिए यहोवा ने कहा था कि वे बुरे हैं जैसा कि उसके पूर्वजों ने किया था।
\s5
\c 24
\p
\v 1 जब यहोयाकीम यहूदा पर शासन कर रहा था, तब बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर की सेना ने यहूदा पर आक्रमण किया। उन्होंने यहूदियों की सेना को हरा दिया, और यहोयाकीम को राजा नबूकदनेस्सर को बहुत कर देना पड़ा। परन्तु तीन वर्ष बाद, यहोयाकीम ने विद्रोह किया।
\v 2 तब यहोवा ने उसके विरुद्ध बाबेल ोनिया, अराम, और मोआब और अम्मोनियों के लोगों को यहूदा के लोगों पर आक्रमण करने और उनको मारने के लिए भेजा, जैसा कि यहोवा ने अपने भविष्यवक्ताओं द्वारा लोगों को चेतावनी देने के लिए कहा था।
\s5
\v 3 ये बातें यहूदा के लोगों के साथ हुईं जैसे यहोवा ने आज्ञा दी थी। उसने राजा मनश्शे के कई पापों के कारण यहूदा के लोगों को नष्ट करने का फैसला किया।
\v 4 मनश्शे ने यरूशलेम में कई निर्दोष लोगों को भी मार डाला था, और यहोवा ने उसे क्षमा नहीं किया।
\p
\s5
\v 5 यहोयाकीम राजा के समय की घटनाएँ, और जो कुछ भी उसने किया, वह सब यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\v 6 जब यहोयाकीम की मृत्यु हो गई, तो उसका पुत्र यहोयाकीन राजा बन गया।
\p
\s5
\v 7 बाबेल के राजा की सेना ने मिस्र की सेना को हराया। बाबेल के राजा ने उन सभी क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया जो मिस्र के अधीन था, दक्षिण में मिस्र की सीमा पर के नाले से लेकर के उत्तर में फरात नदी तक उसके अधीन हो गया था। इसलिए मिस्र के राजा की सेना फिर से यहूदा पर हमला करने के लिए वापस नहीं आई।
\p
\s5
\v 8 यहोयाकीन अठारह वर्ष का था जब वह यहूदा का राजा बना। उनकी मां का नाम नहुश्ता था। वह एलनातान नाम के यरूशलेमवाशी की पुत्री थी। यहोयाकीन ने यरूशलेम में केवल तीन महीने तक शासन किया।
\v 9 यहोयाकीन ने बहुत से ऐसे काम किये जिन्हें यहोवा ने बुरा कहा था, उसके पिता के समान सब बुरे काम किये।
\p
\s5
\v 10 जब यहोयाकीन राजा था, तब बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर के कुछ अधिकारी पूरे बाबेल की सेना के साथ यरूशलेम में आए, और उन्होंने शहर को घेर लिया।
\v 11 तब नबूकदनेस्सर स्वयं शहर आया।
\v 12 तब राजा यहोयाकीन, उसकी मां, उनके सलाहकार, महत्वपूर्ण अधिकारी, महल के अधिकारी सब ने बाबेल की सेना को आत्मसमर्पण कर दिया।
\p जब नबूकदनेस्सर आठवें वर्ष तक राजा रहा, तो उसने यहोयाकीन को पकड़ लिया और उसे बाबेल में ले गया।
\s5
\v 13 जैसे यहोवा ने कहा था, नबूकदनेस्सर के सैनिकों ने यहोवा के मंदिर और राजा के महल से सब मूल्यवान वस्तुओं को बाबेल ले गए। उन्होंने राजा सुलैमान ने द्वारा मंदिर में रखी गई सब सोने की वस्तुओं को काट दिया।
\v 14 वे यरूशलेम से दस हजार लोगों को बाबेल ले गये, जिसमें महत्वपूर्ण अधिकारी और सबसे अच्छे सैनिक और धातु के काम करनेवाले थे। यहूदा में केवल बहुत ही गरीब लोग रह गए थे।
\p
\s5
\v 15 नबूकदनेस्सर के सैनिकों ने राजा यहोयाकीन को बन्दी बना लिया और उसे अपनी पत्नियों और अधिकारियों, उसकी मां और सभी महत्वपूर्ण लोगों के साथ बाबेल ले गया।
\v 16 वह सात हजार सैनिकों और एक हजार लोगों को जो धातु का काम करना जानते थे बाबेल ले गया। ये सब लोग युद्ध में लड़ने में सक्षम थे।
\v 17 तब बाबेल के राजा ने यहोयाकीन के चाचा मत्तन्याह को यहूदा का राजा नियुक्त किया, और उसने मत्तन्याह के नाम को सिदकिय्याह में बदल दिया।
\p
\s5
\v 18 जब सिदकिय्याह बीस वर्ष का था, तब वह राजा बन गया, और उसने यरूशलेम में ग्यारह वर्ष तक शासन किया। उनकी मां का नाम हमूतल था। वह लिबनाह शहर के यिर्मयाह की पुत्री थी।
\v 19 परन्तु सिदकिय्याह ने बहुत से ऐसे काम किये जिन्हें यहोवा ने बुरा कहा था, जैसे यहोयाकीम ने किए थे।
\v 20 क्योंकि यहोवा बहुत क्रोधित थे, इसलिए उन्होंने यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों से लोगों को निकाल दिया और उन्हें बाबेल में भेज दिया।
\p यह तब हुआ जब सिदकिय्याह ने बाबेल के राजा के विरूद्ध विद्रोह किया।
\s5
\c 25
\p
\v 1 सिदकिय्याह के नौवें वर्ष के दसवें महीने के दसवें दिन राजा नबूकदनेस्सर अपनी पूरी सेना के साथ पहुंचा। और यरूशलेम को घेर लिया। शहर की दीवारों के साथ उन्होंने परकोटे बनाए कि वे दीवारों पर चढ़ सकें और शहर पर आक्रमण कर सकें।
\v 2 ऐसा करने में उन्हें दो वर्ष लग गए।
\v 3 सिदकिय्याह के ग्यारह वर्ष तक शासन करने के बाद, उस वर्ष के चौथे महीने के नौवें दिन तक, अकाल बहुत बुरा हो गया था। लोगों की भोजन सामग्री समाप्त हो गयी थी।
\s5
\v 4 तब बाबेल के सैनिकों ने शहर की दीवार के एक भाग को तोड़ दिया और वहाँ से शहर में प्रवेश करने में सक्षम हुए। यहूदा के सैनिकों ने भागने का प्रयास किया। परन्तु बाबेल के सैनिकों ने शहर को घेर लिया, इसलिए राजा और यहूदा के सैनिक रात तक प्रतीक्षा करते रहे। तब वे राजा की बारी के पास दो दीवारों के बीच के द्वार से भाग गए। वे खेतों में भाग गए और यरदन नदी के मैदान में जाने लगे।
\v 5 परन्तु बाबेल के सैनिकों ने उनका पीछा किया। और जब सिदकिय्याह यरीहो के मैदानी क्षेत्र में था, तब उन्होंने उसे पकड़ लिया। वह अकेला ही था क्योंकि उसके सैनिकों ने उसे छोड़ दिया था।
\s5
\v 6 बाबेल के सैनिक राजा सिदकिय्याह को बाबेल के रिबला शहर में ले गए। वहां बाबेल के राजा ने निर्णय लिया कि वे उसे दंडित करने के लिए क्या करेंगे।
\v 7 बाबेल के राजा ने सिदकिय्याह को विवश किया कि उसके पुत्रों की हत्या को अपनी आँखों से देखे क्योंकि बाबेल के सैनिकों ने सिदकिय्याह के सब पुत्रों को मार डाला था। तब उन्होंने सिदकिय्याह की आंखों को बाहर निकाला। उन्होंने पीतल की जंजीरों से उसके हाथों और पैरों को बांधा और उसे बाबेल शहर ले गए।
\p
\s5
\v 8 उस वर्ष के पांचवें महीने के सातवें दिन, नबूकदनेस्सर के उन्नीस वर्ष तक शासन करने के बाद, नबूजरदान यरूशलेम पहुंचा। वह राजा नबूकदनेस्सर के अधिकारियों में से एक था; वह राजा के अंगरक्षकों का प्रधान था।
\v 9 उसने अपने सैनिकों को यहोवा के मंदिर, राजा के महल और यरूशलेम के सभी घरों को जलाने का आदेश दिया। इसलिए उन्होंने शहर की सभी महत्वपूर्ण इमारतों को जला दिया।
\v 10 तब नबूजरदान ने बाबेल के सैनिकों की अगुवाई की क्योंकि वे यरूशलेम के आस-पास की दीवारों को तोड़ रहे थे।
\s5
\v 11 उसके बाद, वह और उसके सैनिक उन लोगों को बाबेल ले गये जो अभी भी शहर में रहते थे, अन्य लोग जो यहूदा के क्षेत्र में रहते थे, और सैनिकों को जिन्होंने पहले बाबेल सेना को आत्मसमर्पण कर दिया था।
\v 12 परन्तु नबुजरदान ने कुछ गरीब लोगों को दाख की बारियों की देखभाल करने और खेतों में फसलों को लगाने के लिए यहूदा में छोड़ दिया।
\p
\s5
\v 13 बाबेल के सैनिक मंदिर के पीतल के खंभे, कुर्सियां और पीतल का हौद जो "सागर" के नाम से जाना जाता था, तोड़ कर सारा पीतल बाबेल ले गये।
\v 14 वे बर्तन, फावड़े, दीपक, चिमटे, परात और अन्य सब पीतल की वस्तुओं को जिन्हें याजक सेवा में काम में लेते थे, आदि सब ले गये।
\v 15 सैनिकों ने बलिदान की राख उठाने का पात्र और सोने, चाँदी से बने अन्य सब भी ले लिया।
\p
\s5
\v 16 दोनों खंभे, हौद "सागर" और कुर्सियां आदि सब जिन्हें राजा सुलैमान ने बनवाया था, वे इतने भारी थे कि उनका वजन नहीं किया जा सकता था। जब सुलैमान इस्राएल का राजा था तब ये सब मंदिर के लिए बनाया गया था।
\v 17 प्रत्येक खम्भा 27 फुट का था। प्रत्येक खंभे पर साढ़े चार फुट की पीतल की कंगनी थी और प्रत्येक कंगनी पर पीतल के अनार और जाली की सजावट थी।
\p
\s5
\v 18 नबूजरदान महायाजक सारायाह और उसके सहायक सपन्याह और तीनों द्वारपालों को पकड़ कर बाबेल ले गया।
\v 19 जो लोग यरूशलेम में अभी भी थे, उन में से वह यहूदियों की सेना के एक अधिकारी, राजा के पांच सचिव और सेनापति का प्रधान जो पुरुषों को सेना में भर्ती करता था, तथा अन्य साठ महत्वपूर्ण लोगों को।
\s5
\v 20 नबूजरदान रिबला शहर में बाबेल के राजा के पास ले गया।
\v 21 वहां रिबाला शहर में, हमात प्रांत में, बाबेल के राजा ने आज्ञा दी कि उन सब को मार डाला जाए।
\p जब यहुदावासियों को बलपूर्वक बाबेल ले जाया गया तब यही हुआ था।
\p
\s5
\v 22 तब राजा नबूकदनेस्सर ने गदल्याह नाम के एक व्यक्ति को उन लोगों का राज्यपाल नियुक्त किया जिन्हें उन्होंने अभी भी यहूदा में छोड़ दिया था। गदल्याह अहीकाम का पुत्र था और शापान का पोता था।
\v 23 जब यहूदा के सेना नायकों और सैनिकों को पता चला कि बाबेल के राजा ने गदल्याह को राज्यपाल नियुक्त किया है, तो वे मिस्पा शहर में उससे मिला। ये सेनानायक थे; नतन्याह का पुत्र इश्माएल ; कारेह का पुत्र योहानान; नतोपाई तन्हूमेत का पुत्र सरायाह और माकाई के पुत्र याजन्याह तथा उनके साथी।
\p
\v 24 गदल्याह ने उनसे प्रतिज्ञा की थी कि बाबेल के अधिकारी उन्हें हानि पहुंचाने की योजना नहीं बना रहे थे। उसने कहा, "तुम इस देश में निडर रह सकते हो; तुम्हें बाबेल के राजा का आज्ञा पालन करना होगा। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम्हारा भला होगा।"
\p
\s5
\v 25 परन्तु उस वर्ष के सातवें महीने में, इश्माएल, जिसका दादा एलिशामा राजा दाऊद से निकले परिवार में था, मिस्पा के पास दस अन्य पुरुषों के साथ गया। उन्होंने गदल्याह और उसके साथ सभी पुरुषों की हत्या कर दी। यहूदा के लोग और बाबेल के पुरूष भी थे जिन्हें उन्होंने मार डाला था।
\v 26 तब यहूदा के बहुत से लोग, महत्वपूर्ण लोग और महत्वहीन लोग, और सेना के नायक बहुत डर गये कि अब बाबेल उनके साथ क्या करेगा, इसलिए वे मिस्र भाग गए।
\p
\s5
\v 27 यहूदा के राजा यहोयाकीन की बन्धुआई के तैंतीस वर्ष में, नबूकदनेस्सर का पुत्र एवील्मरोदक बाबेल का राजा बना। वह यहोयाकीन के प्रति दयालु था, और उसी वर्ष के बारहवें महीने के सत्ताइसवें दिन, उसने यहोयाकीन को बंदीगृह से मुक्त कर दिया।
\s5
\v 28 वह यहोयाकीन के प्रति सदैव दया का व्यवहार करता था और उसे उन अन्य राजाओं से अधिक सम्मान का पद दिया जिन्हें बाबेल में ले जाया गया था।
\v 29 उसने यहोयाकीन को बंदीगृह के वस्त्रों के स्थान में नए वस्त्र दिए, और उसने यहोयाकीन को अपने पूरे जीवन के लिए हर दिन राजा की मेज पर खाने की अनुमति दी।
\v 30 बाबेल के राजा ने उसे हर दिन पैसे दिए, ताकि वह उन वस्तुओं को खरीद सके जो उसे चाहिए। जब तक यहोयाकीन की मृत्यु न हो गई तब तक राजा की ओर से उसके लिए ऐसा ही प्रबन्ध रहा।