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\id 1SA
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\h 1 शमूएल
\toc1 1 शमूएल
\toc2 1 शमूएल
\toc3 1sa
\mt1 1 शमूएल
\s5
\c 1
\p
\v 1 सूफ का वंशज एल्काना नाम का एक व्यक्ति एप्रैम के गौत्र के स्थान में, पहाड़ी प्रदेश के रामा नगर में रहता था। उसका पिता यरोहाम था, उसका दादा एलीहू था, और उसका दादा तोह था।
\v 2 उसकी दो पत्नियां थीं: हन्ना और पनिन्ना। पनिन्ना के तो बच्चे थे, लेकिन हन्ना के पास कोई बच्चा नहीं था।
\p
\s5
\v 3 एल्काना प्रतिवर्ष अपने परिवार के साथ रामा से शीलो शहर तक जाता था । वह यहोवा की आराधना करने के लिए, सेनाओं के यहोवा के लिए बलि चढ़ाता था, वहाँ एली के पुत्र होप्नी और पीनहास यहोवा के सामने अपने पिता की याजकीय सेवा में सहायता करते थे।
\v 4 एल्काना जब-जब वहाँ बलि चढ़ाता था तब-तब वह माँस में से कुछ भाग पनिन्ना को और कुछ उसके पुत्रों और पुत्रियों को देता था।
\s5
\v 5 परन्तु वह हन्ना को ज्यादा माँस देता क्योंकि वह उससे बहुत प्रेम करता था, भले ही यहोवा ने उसे सन्तान को जन्म देने से रोक रखा था।
\v 6 परन्तु उसकी दूसरी पत्नी, पनिन्ना, हन्ना का ठट्ठा करती थी, जिससे उसे दुखी होकर याद आता था कि यहोवा ने उसे बच्चों को जन्म देने से रोक रखा है ।
\s5
\v 7 वर्ष प्रतिवर्ष ऐसा ही होता था। जब वे यहोवा के भवन में शीलो जाते थे, तो पनिन्ना सदैव हन्ना का ठट्ठा किया करती थी और हन्ना रोती थी और खाना नही खाती थी।
\v 8 तब एल्काना उससे कहता, "हन्ना, तू क्यों रो रही है? तू कुछ खा क्यों नहीं रही? तू बहुत दुखी है! निश्चय ही मुझ जैसा पति पाना तेरे लिए दस पुत्रों से उत्तम नहीं है!"
\p
\s5
\v 9 एक वर्ष, जब वे शीलो गये थे तब खाने और पीने के बाद, हन्ना प्रार्थना करने के लिए खड़ी हुई। एली याजक निकट ही यहोवा के पवित्र तम्बू के द्वार के पास कुर्सी पर बैठा था।
\v 10 हन्ना बड़े कष्ट में थी, और वह यहोवा से प्रार्थना करते समय दुःख से रोने लगी।
\s5
\v 11 उसने सच्चे मन से शपथ खाई, "हे सेनाओं के यहोवा, यदि आप मुझे देखें तो मेरा कष्ट दिखाई देगा, मुझ पर दया करें और मुझे एक पुत्र दें। मैं उसे जीवन भर के लिए आपकी सेवा में समर्पित कर दूँगी। आपके लिए समर्पित होने का उसका चिन्ह होगा कि उसके बाल कभी नहीं काटे जाएँगे।
\p
\s5
\v 12 एली याजक ने हन्ना के होंठों को प्रार्थना में सिर्फ हिलते हुए देखा।
\v 13 हन्ना केवल चुपचाप प्रार्थना कर रही थी; वह शब्दों की आवाज नहीं निकाल रही थी। अतः एली ने सोचा कि वह नशे में है।
\v 14 उसने उससे कहा, "तू कब तक नशे में रहेगी? अपने नशे से छुटकारा पा!"
\p
\s5
\v 15 हन्ना ने उत्तर दिया, "महोदय, मैं नशे में नहीं हूँ! मैंने दाखरस या किसी प्रकार की मदिरा नहीं पी है। मैं बहुत दुखी हूँ और मैं यहोवा के सामने अपनी भावनाएँ प्रकट कर रही हूँ।
\v 16 तू ऐसा मत सोच कि मैं एक निक्कमी स्त्री हूँ। मैं इस प्रकार प्रार्थना कर रही हूँ क्योंकि मैं बहुत लज्जित और दुखी हूँ।"
\p
\s5
\v 17 एली ने उत्तर दिया, "मैं चाहता हूँ कि तेरा भला हो, हमारे परमेश्वर जिनकी उपासना इस्राएली करते हैं, वे तेरी विनती सुन कर वैसा ही करें।"
\p
\v 18 उसने उत्तर दिया, "मैं चाहती हूँ कि तू मेरे विषय में सोच।" तब वह अपने परिवार में लौट आई और उसने कुछ खाया, वह अब दुखी नहीं थी।
\p
\s5
\v 19 अगली सुबह, एल्काना और उसके परिवार ने उठकर यहोवा की उपासना कि, और फिर वे रामा में अपने घर लौट आए। तब एल्काना हन्ना के साथ सो गया, और यहोवा ने उसकी प्रार्थना का उत्तर दिया।
\v 20 वह गर्भवती हो गई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया। उसने उसे शमूएल नाम दिया, जिसका इब्रानी भाषा में अर्थ है "परमेश्वर ने सुना," क्योंकि उसने कहा, "मैंने एक पुत्र के लिए विनती की और यहोवा ने मेरी प्रार्थना सुनी।"
\p
\s5
\v 21 अगले वर्ष, एल्काना अपने परिवार के साथ शीलो गया, ताकि वह प्रतिवर्ष के समान बलि चढ़ाए, और परमेश्वर को एक विशेष भेंट चढ़ाए जिसकी उसने शपथ खाई है।
\v 22 परन्तु हन्ना उनके साथ नहीं गई। उसने अपने पति से कहा, "जब बच्चा दूध छोड़ देगा, तब मैं उसे शीलो ले जाऊंगी और उसे यहोवा के सामने प्रस्तुत करूंगी, और वह जीवन भर वहाँ रहेगा।"
\p
\v 23 एल्काना ने कहा, "जो तू उचित समझती हो वही कर। जब तक बालक दूध न छोड़े तब तक यहीं रह। मेरी इच्छा है कि यहोवा तुझे अपनी शपथ पूरा करने में समर्थ करें।" अतः हन्ना घर पर ही रही और जब तक बालक ने दूध नहीं छोड़ा वह उसकी देखभाल करती रही।
\p
\s5
\v 24 जब उसने बालक का दूध छुड़ाया, तब शमूएल बहुत छोटा था। वह उसे शीलो में यहोवा के भवन में ले आयी। वह अपने और अपने पुत्र के साथ एक तीन वर्षीय बैल, लगभग 20 किलो आटा, और दाखरस का पात्र भी लाई।
\v 25 हन्ना और एल्काना ने बैल को मारा और वेदी पर यहोवा के लिए चढ़ाया, और अपने पुत्र को एली के पास लाई।
\s5
\v 26 तब हन्ना ने उससे कहा, "महोदय, क्या तुझको मैं याद हूँ। मैं वह स्त्री हूँ जिसने कई वर्ष पहले तेरे पास खड़े होकर प्रार्थना की थी।
\v 27 मैंने प्रार्थना की थी कि यहोवा मुझे एक बच्चे को जन्म देने में सक्षम करें, और यह वही बच्चा है!
\v 28 तो अब मैं उसे यहोवा के सामने प्रस्तुत कर रही हूँ। जब तक वह जीवित रहता है तब तक वह यहोवा का होगा। तब एल्काना और उसके परिवार ने वहाँ यहोवा की आराधना की।
\s5
\c 2
\p
\v 1 तब हन्ना ने प्रार्थना की,
\q1 "हे यहोवा, आपके इस काम से मैं अपने मन में बहुत आनन्दित हूँ।
\q2 मैं सामर्थी हूँ क्योंकि मैं आपकी हूँ।
\q1 मैं अपने शत्रुओं पर हँसती हूँ
\q2 क्योंकि हे यहोवा, आप ने मुझे उनके ठट्ठो से उभार लिया है।
\q1
\s5
\v 2 हे यहोवा, आपके समान पवित्र कोई नही है।
\q2 आपके समान अन्य कोई देवता नहीं है।
\q2 आपके समान कोई नहीं है, हमारे परमेश्वर, जो हमारी रक्षा कर सकता है जैसे कि आप हमें एक ऊँची चट्टान के ऊपर खड़ा करते हैं जहाँ हम खतरों से सुरक्षित रहते हैं।
\q1
\s5
\v 3 तुम लोग जो परमेश्वर का विरोध करते हो, घमंड करना बंद करो!
\q2 यहोवा ऐसे परमेश्वर हैं जो सबकुछ जानते हैं,
\q1 और वे प्रत्येक जन के कार्यों का मूल्यांकन करेंगे।
\q2 अतः इतने अभिमान से बात मत करो!
\q1
\v 4 हे यहोवा, आप शक्तिशाली सैनिकों के धनुष तोड़ते हैं,
\q2 परन्तु आप उन लोगों को शक्ति देते हैं जो ठोकर खाते हैं क्योंकि वे दुर्बल हैं।
\q1
\s5
\v 5 जिनके पास पहले खाने के लिए बहुत था, अब अन्य लोगों के लिए काम करते हैं। ताकि खाना खरीदने के लिए पैसे कमा सकें।
\q2 परन्तु जो लोग सदा भूखे रहते थे अब भूखे नहीं हैं।
\q1 जिस स्त्री के पास पहले कोई बच्चा नहीं था, अब उसने कई बच्चों को जन्म दिया है,
\q2 और जिस महिला के पास पहले कई बच्चे थे, अब बहुत अकेली है क्योंकि उन सब की मृत्यु हो गई है।
\q1
\s5
\v 6 हे यहोवा, आप कुछ लोगों के लिए मृत्यु का कारण उत्पन्न करते हैं।
\q2 और आप मरने वालों को नया जीवन देते हैं।
\q1 कुछ लोग शीघ्र ही मरे हुओं में जाने वाले से लगते हैं परन्तु आप उन्हें स्वस्थ कर देते हैं।
\q1
\v 7 हे यहोवा, आप कुछ लोगों को गरीब बनाते हैं और कुछ लोगों को अमीर बनते हैं,
\q2 आप कुछ लोगों को दीन बनाते हैं, और कुछ लोगों का सम्मान करते हैं।
\q1
\s5
\v 8 कभी-कभी आप गरीब लोगों को उठाते हैं ताकि वे अब धूल में न बैठे,
\q2 और आप आवश्यक्ता से घिरे लोगों को उठाते हैं ताकि वे अब राख के ढेर पर न बैठे;
\q1 आप उन्हें राजकुमारों के साथ बैठाते हैं;
\q2 आप उन्हें ऐसे स्थानों में बैठाते हैं जहाँ बहुत सम्मानित लोग बैठते हैं।
\q1 हे यहोवा, आप ही ने तो पृथ्वी की नींव रखी है,
\q2 और आपने पूरा संसार उस नींव पर खड़ा किया है।
\q1
\s5
\v 9 आप अपने भक्त लोगों की रक्षा करेंगे,
\q1 परन्तु आप दुष्टों के मरने का और मृतकों के अंधेरे स्थान में उतरने का कारण बनेंगे।
\q2 हम अपने शत्रुओं को अपनी ताकत से पराजित नहीं करते हैं।
\q1
\s5
\v 10 हे यहोवा, आप अपने विरोधियों को तोड़ देंगे।
\q2 आप आकाश में गर्जन से यह दिखाते हैं कि आप उनका विरोध करते हैं।
\q1 हे यहोवा, आप हर एक स्थान में लोगों का न्याय करेंगे, यहाँ तक कि जो लोग धरती पर सबसे दूर रहते हैं।
\q2 आप अपने राजा को शक्ति देंगे, और उसे अपने शत्रुओं के विरुद्ध शक्तिशाली बनाएँगे।"
\p
\s5
\v 11 तब एल्काना और उसका परिवार रामा लौट आया, परन्तु शमूएल, जो छोटा लड़का था, एली याजक के पास परमेश्वर की सेवा करने में सहायता करने के लिए रुक गया।
\p
\s5
\v 12 एली के दो पुत्र भी याजक थे, वे बहुत दुष्ट थे। वे यहोवा के प्रति विश्वासयोग्य नहीं थे।
\v 13 परंपरा यह थी कि जब लोग परमेश्वर के भवन में विशाल पात्र में बलि का माँस उबालते थे, तब याजक अपने दास को भेजता था, वह हाथ में एक बड़ा काँटा लेकर आता था।
\v 14 वह पात्र में रखे माँस में काँटा लगाता और जो भी माँस काँटे में फस जाता था उसे वह ले जाता था और उसे उस याजक को दे देता था।
\s5
\v 15 परन्तु, माँस पर से चर्बी को काटकर यहोवा के लिए बलि जलाने से पहले ही, एली के पुत्रों का दास बलि चढाने वाले व्यक्ति के पास आता था और उससे कहता था, "मुझे याजक के लिए माँस दे! वह कच्चे माँस को भूनना चाहता है, उसे उबला हुआ माँस नहीं चाहिए।"
\p
\v 16 यदि उस व्यक्ति ने दास से कहा, पहले "याजकों को बलि के लिए चर्बी निकालने दो कि उसे जलाएँ, उसके बाद तू जो चाहे वह ले जाना," तो सेवक कहता था, "नहीं, मुझे अभी दे; यदि तू नहीं देगा तो , मैं इसे बलपूर्वक ले जाऊंगा!"
\p
\v 17 यहोवा के विचार में एली के पुत्र बहुत बड़े पाप कर रहे थे, क्योंकि वे यहोवा को दी गई भेंटों का घोर अपमान कर रहे थे।
\p
\s5
\v 18 शमूएल के लिए, जो अभी भी एक छोटा बालक था, वह यहोवा के लिए काम करता रहता था, वह बड़े याजक के समान सनी से बना एक छोटा पवित्र एप्रोन पहने रहता था।
\v 19 प्रत्येक वर्ष उसकी मां अपने पति के साथ बलि चढाने शीलो आती थी तो उसके लिए एक नया छोटा वस्त्र बना कर लाती थी।
\s5
\v 20 तब एली परमेश्वर से विनती करता कि वे एल्काना और उसकी पत्नी को आशीर्वाद दें, और वह एल्काना से कहता है, "मैं आशा करता हूँ कि यहोवा तेरी पत्नी को ओर सन्तान दें कि इस समर्पित बालक का स्थान ले।" तब एल्काना और उसका परिवार घर लौट जाता है।
\v 21 यहोवा वास्तव में हन्ना पर बहुत दयालु थे, इसलिए उन्होंने उसे तीन अन्य पुत्रों और दो पुत्रियों को जन्म देने योग्य बनाया। उनका पुत्र शमूएल, यहोवा के भवन में सेवा करते करते बड़ा हो गया।
\p
\s5
\v 22 अब एली बहुत बूढ़ा हो गया था। वह उन सब बुरे कामों के विषय में सुनता जो उसके पुत्र इस्राएलियों के साथ कर रहे थे। उसने सुना कि वे कभी-कभी उन महिलाओं के साथ सोते थे जो तम्बू के प्रवेश द्वार पर काम करती हैं, जहाँ परमेश्वर अपने लोगों से बात करते थे।
\v 23 एली ने अपने पुत्रों से कहा, "तुम्हारे ये काम बहुत बुरे हैं! तुम्हारे इन बुरे कामों की चर्चा बहुत लोग मुझ से करते हैं।
\v 24 मेरे पुत्रों, ऐसा मत करो! यहोवा के लोग तुम्हारे विषय में दूसरों से जो चर्चा करते हैं, वह बहुत ही बुरी है!
\s5
\v 25 यदि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध पाप करता है, तो परमेश्वर उनकी मध्यस्थता कर सकते हैं। यदि कोई यहोवा के विरूद्ध पाप करता है, तो उसके लिए कौन मध्यस्थता करेगा? "परन्तु एली के पुत्रों ने उनके पिता की बातों को नहीं सुना। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि यहोवा ने निर्णय ले लिया था कि वे किसी के हाथों मारे जाएँ।
\p
\v 26 बालक शमूएल बड़ा हुआ, और अपने काम से उसने यहोवा और लोगों को प्रसन्न किया।
\s5
\v 27 एक दिन, एक भविष्यवक्ता एली के पास आया और उससे कहा, "यहोवा ने मुझे से कहा है: 'जब तुम्हारे पूर्वज मिस्र के राजा के दास थे, तो मैं हारून के सामने प्रकट हुआ।
\v 28 इस्राएलियों के सभी गोत्रों में से, मैंने उसे और उसके वंशज के पुरुषों को मेरे याजक होने के लिए चुन लिया है। मैंने उन्हें वेदी पर जाने के लिए नियुक्त किया है, और मेरी सेवा करते समय उन्हें पहनने के लिए पवित्र एपोद दिया है। और मेरा ही निर्णय है कि वे इस्राएलियों द्वारा वेदी पर जलने वाली बलि का कुछ माँस ले लें।
\s5
\v 29 अतः तू उन बलियों और भेंटों का अपमान क्यों करते हो। जिनकी आज्ञा मैंने इस्राएलियों को दी है कि मेरे लिए चढ़ाएँ? तू मुझसे अधिक अपने पुत्रों को सम्मान दे रहा है कि उन्हें बलियों में से सबसे अच्छे भाग को खाकर मोटे होने की अनुमति देता है। वे तो वास्तव में इस्राएली मुझे चढाने के लिए लाते हैं! ।'
\p
\v 30 अतः, यहोवा, जिस परमेश्वर की हम इस्राएली आराधना करते हैं, वे कहते हैं: 'मैंने निश्चय ही प्रतिज्ञा की थी कि हारून और उसके वंशज सदा के लिए मेरी सेवा करेंगे। परन्तु अब मैं यह घोषणा करता हूँ: ऐसा ही नहीं होता रहेगा! मैं उन लोगों का सम्मान करूंगा जो मेरा सम्मान करते हैं, परन्तु मैं उनको तुच्छ जानता हूँ जो मुझे तुच्छ जानते हैं।
\s5
\v 31 ध्यान से सुनो! शीघ्र ही ऐसा समय आएगा जब मैं तेरे परिवार के सब बलवन्त युवाओं की मृत्यु का कारण बनूंगा। और तेरे परिवार में कोई भी पुरुष बूढ़ापे तक जीवित नहीं रहेगा।
\v 32 तू देखेगा कि मैं अन्य इस्राएलियों को आशिषें दे रहा हूँ और तू दुखी होगा और जलेगा। और मैं दोहराता हूँ कि तेरे परिवार में कोई भी पुरुष बूढ़ापे तक जीवित नहीं रहेगा।
\v 33 तेरे वंशजों में से एक है जिसे मैं बचाऊंगा; मैं उसे याजक के रूप में सेवा करने से नहीं रोकूंगा। लेकिन वह रोने से अन्धा हो जाएगा; वह हमेशा उदास और दुखी रहेगा। लेकिन तेरे अन्य सभी वंशज हिंसक रूप से मर जाएंगे।
\s5
\v 34 और तेरे दोनों पुत्र, होप्नी और पीनहास, उसी दिन मर जाएंगे। इससे सिद्ध होगा कि मैंने जो कुछ कहा है वह सच है।
\p
\v 35 मैंने अपना याजक होने के लिए एक और व्यक्ति चुना है। वह सच्चे मन से मेरी सेवा करेगा: वह मेरी प्रत्येक इच्छाओं को पूरी करेगा। मैं यह सुनिश्चित करूँगा कि उसके वंशज याजक होंगे और मेरे चुने हुए राजा की सहायता करके सदा मेरी सेवा करेंगे।
\s5
\v 36 तेरे जो वंशज जीवित रहेंगे उन सब को उस याजक के पास जाना होगा और उन्हें पैसे और भोजन के लिए विनती करनी होगी, और प्रत्येक को यह कहना होगा, "कृपया मुझे अन्य याजकों की सहायता करने दो, ताकि मैं कुछ खाना खरीदने के लिए पैसे कमा सकूँ। '"
\s5
\c 3
\p
\v 1 शमूएल अभी बालक ही था पर एली की निगरानी में यहोवा की सेवा करता था। उस समय यहोवा के बहुत ही कम संदेश किसी को मिलते थे और बहुत कम लोग यहोवा से दर्शन पाते थे।
\p
\v 2 उस समय तक एली की आंखें बहुत मन्द हो गई थीं; वह लगभग अंधा था। एक रात वह अपने कमरे में सो रहा था,
\v 3 और शमूएल यहोवा के भवन में सो रहा था, जहाँ पवित्र सन्दूक रखा गया था। वहाँ एक दीपक था जो परमेश्वर की उपस्थिति को दर्शाता था, वह अब भी जल रहा था।
\v 4 उसी समय यहोवा ने कहा, "शमूएल! शमूएल!" शमूएल ने उत्तर दिया, "मैं यहाँ हूँ!"
\p
\s5
\v 5 वह उठकर एली के पास गया। उसने एली से कहा, "मैं यहाँ हूँ, क्योंकि तूने मुझे बुलाया!" लेकिन एली ने उत्तर दिया, "नहीं, मैंने तुझे नहीं बुलाया। अपने बिस्तर पर वापस जा।" अतः शमूएल गया और फिर से लेट गया।
\p
\v 6 तब यहोवा ने फिर से बुलाया, "शमूएल!" तो शमूएल फिर उठकर एली के पास गया और कहा, "मैं यहाँ हूँ, क्योंकि तूने मुझे बुलाया!" लेकिन एली ने कहा, "नहीं, मेरे पुत्र, मैंने तुझे नहीं बुलाया। जाकर सो जा।"
\p
\s5
\v 7 उस समय शमूएल को यह नहीं पता था कि यहोवा उससे बात करने के लिए उसे पुकार रहे हैं, क्योंकि यहोवा ने पहले कभी भी उसे दर्शन नहीं दिया था।
\p
\v 8 शमूएल फिर से लेट गया, यहोवा ने उसे तीसरी बार पुकारा। शमूएल उठकर फिर एली के पास गया और कहा, "मैं यहाँ हूँ, क्योंकि तूने मुझे बुलाया!"
\p तब एली समझ गया कि वे यहोवा थे जो बालक को बुला रहे थे।
\s5
\v 9 तब उसने शमूएल से कहा, "जा और फिर लेट जा। यदि कोई तुझे फिर से बुलाता है, तो कहना, हे यहोवा, बोलिये, क्योंकि मैं सुन रहा हूँ!" "तो शमूएल गया और फिर से लेट गया।
\s5
\v 10 यहोवा आए और खडे हुए और पहले के सामान कहा, "शमूएल! शमूएल!" तब शमूएल ने कहा, "बोलिये, क्योंकि मैं सुन रहा हूँ!"
\p
\v 11 तब यहोवा ने शमूएल से कहा, "सावधानी से सुन। मैं इस्राएल में कुछ ऐसा करने वाला हूँ जिसके विषय में सुनकर हर कोई चकित होगा।
\s5
\v 12 जब ऐसा होगा, तब मैं एली और उसके परिवार को दण्ड दूंगा। मैं उन के साथ वह सब कुछ करूँगा जो मैंने कहा है।
\v 13 उसके पुत्रों ने अपने घृणित कामों से मेरा घोर अपमान किया है, और एली ने उन्हें ऐसा करने से नहीं रोका। तो मैंने उससे कहा कि मैं उसके परिवार को सदा का दण्ड दूँगा।
\v 14 मैंने एली के परिवार से गंभीर प्रतिज्ञा की थी, 'यदि तुम मेरे लिए बलि चढाते या भेंट लाते हो, तौभी अपने पापों का फल भोगने से नहीं बचोगे।' "
\p
\s5
\v 15 शमूएल सुबह तक फिर से लेट गया। फिर वह उठ गया और प्रतिदिन की सेवा स्वरुप भवन के द्वार खोले। वह एली को यहोवा के दर्शन के विषय में बताने से डरता था।
\v 16 लेकिन एली ने उसे बुलाया और कहा, "शमूएल, मेरे पुत्र!" शमूएल ने उत्तर दिया, "मैं यहाँ हूँ!"
\p
\s5
\v 17 एली ने उससे पूछा, "यहोवा ने तुझसे क्या कहा था? उसे छुपाना मत! तू मुझे वह सब कुछ बताएगा जो यहोवा ने तुझसे कहा है नहीं तो, मैं कहता हूँ, परमेश्वर तुम्हें कठोर दण्ड दें।"
\p
\v 18 इसलिए शमूएल ने उसे सब कुछ बता दिया, कुछ नहीं छिपाया। तब एली ने कहा, "वे यहोवा हैं। उनकी समझ से जो अच्छा है वह करें, मैं तैयार हूँ।"
\p
\s5
\v 19 जैसे शमूएल बड़ा होता गया और यहोवा उसकी सहायता करते रहे; परमेश्वर ने शमूएल की हर एक भविष्यवाणी को सच सिद्ध किया।
\v 20 अतः इस्राएल के सब लोगों ने, जो देश के उत्तरी छोर से दक्षिणी छोर तक रहते थे, जान लिया कि शमूएल वास्तव में यहोवा का भविष्यद्वक्ता है।
\v 21 यहोवा शिलो में शमूएल के पास उपस्थित रहे और उसे संदेश देते रहे।
\s5
\c 4
\p
\v 1 शमूएल ने इस्राएल के सब लोगों को परमेश्वर के सन्देश सुनाए।
\p उस समय इस्राएली सेना पलिश्ती लोगों की सेना से युद्ध करने के लिए गई। इस्राएली सेना ने एबेनेजर में अपने तंबू खड़े किए, और पलिश्ती सेना ने अपेक में अपने तंबू खड़े किए।
\v 2 पलिश्ती सेना ने इस्राएली सेना पर आक्रमण किया, और युद्ध हुआ, पलिश्तियों ने इस्राएलियों को पराजित कर दिया और चार हजार सैनिकों को मार डाला।
\s5
\v 3 जब शेष इस्राएली सैनिक अपनी छावनी में लौट आए, तो इस्राएली याजक ने कहा, "यहोवा ने आज पलिश्ती सेना को क्यों इस्राएलियों पर विजय दी है? हमें पवित्र सन्दूक को शीलो से यहाँ लाना चाहिए, जिससे कि यहोवा हमारे साथ युद्ध में जाएँ, जिससे कि हमारे शत्रु हमें फिर से पराजित न कर पाएँ! "
\p
\v 4 इसलिए सैनिकों ने कुछ लोगों को शीलो में भेजा, और वे लोग यहोवा के पवित्र सन्दूक लाए, जो सन्दूक के शीर्ष पर पंख वाली प्रतिमाओं के बीच यहोवा सिंहासन पर बैठे थे। होप्नी और पीनहास जो एली के दो बेटे थे उसके साथ गए थे।
\p
\s5
\v 5 जब इस्राएली लोगों ने देखा कि वे व्यक्ति अपनी छावनी में पवित्र सन्दूक ला रहे हैं, तो वे बहुत प्रसन्न हुए तो उन्होंने प्रबल नारा लगाया। इतनी जोर से कि भूमि तक हिलाकर रख दी!
\v 6 पलिश्तियों ने पूछा, "इस्राएली छावनी में लोग क्यों चिल्ला रहे हैं?" किसी ने उन्हें बताया कि यहोवा का पवित्र सन्दूक उनकी छावनी में लाया गया है इसलिए वे नारा लगा रहे हैं।
\s5
\v 7 तब वे बहुत डर गए। उन्होंने कहा, "उनके परमेश्वर उनकी सहायता करने के लिए उनकी छावनी में आए हैं! अब हम बड़ी परेशानी में हैं! ऐसा कुछ हमारे साथ पहले कभी नहीं हुआ है!
\v 8 कोई भी अब हमें बचा नहीं सकता है! यह वह परमेश्वर हैं जिन्होंने मिस्र से इस्राएलियों के निर्गमन और मरुभूमि की यात्रा से पहले मिस्रियों को अनेक विपत्तियों से मारा था।
\v 9 तुम पलिश्तियों, साहसी बनो! घमासान युद्ध करो! यदि तुम ऐसा नहीं करते तो वे हमें पराजित करेंगे, और तुम उनके दास बन जाओगे, जैसे वे पहले हमारे दास थे! "
\p
\s5
\v 10 तब पलिश्तियों ने पूरी शक्ति लगाकर युद्ध किया और इस्राएलियों को पराजित कर दिया। उन्होंने तीस हजार इस्राएली सैनिकों को मार डाला, और अन्य इस्राएली सैनिक छिप गए और अपने तंबू में भाग गए।
\v 11 पलिश्तियों ने पवित्र सन्दूक पर कब्जा कर लिया, और उन्होंने एली के दोनो पुत्रों, होप्नी और पीनहास को मार डाला।
\p
\s5
\v 12 उसी दिन, बिन्यामीन से निकले जनजाति का एक व्यक्ति उस स्थान से भाग गया जहाँ सेनाएँ लड़ रही थीं। उसने अपने कपड़े फाड़े और अपने सिर पर मिट्टी डाल दी कि दुःख का प्रदर्शन करे। वह दोपहर के अंत तक शीलो पहुँचा।
\v 13 मार्ग के समीप एली प्रतीक्षा कर रहा था। वह युद्ध का समाचार सुनना चाहता था, और परमेश्वर के पवित्र सन्दूक के लिए चिंतित था कि उसके साथ कुछ बुरा तो नहीं हुआ। जब वह व्यक्ति आ पहुँचा और लोगों को युद्ध का समाचार सुनाया तो, शहर में लोगों ने चिल्ला-चिल्लाकर रोना आरम्भ कर दिया।
\p
\s5
\v 14 एली ने पूछा, "वे सब शोर क्यों कर रहे हैं?" दूत एली के पास भाग कर गया और उसे समाचार सुनाया।
\p
\v 15 उस समय, एली अट्ठानवे वर्ष का था, और वह अंधा था।
\s5
\v 16 दूत ने एली से कहा, "मैं अभी वही से आया हूँ जहाँ सेनाएं युद्ध कर रही थीं। मैं वहाँ से पहले ही आ गया था।" एली ने पूछा, "क्या हुआ?"
\p
\v 17 उस दूत ने उत्तर दिया, "पलिश्तियों ने हमारी सेना को पराजित कर दिया। उन्होंने हमारे हजारों सैनिकों को मार डाला है, और बाकी सैनिक भाग गए। पलिश्तियों ने तेरे दोनों पुत्रों, होप्नी और पीनहास को मार डाला। उन्होंने परमेश्वर के पवित्र सन्दूक पर भी अधिकार कर लिया है।"
\p
\s5
\v 18 एली बहुत बुजुर्ग था। और वह बहुत मोटा था; और जब उसने सुना कि पवित्र सन्दूक के साथ क्या हुआ, तो वह शहर के द्वार के समीप अपनी कुर्सी से पीछे गिर गया। उसकी गर्दन टूट गई और वह मर गया। उसने चालीस वर्षों तक इस्राएलियों की आगुवाई की थी।
\p
\s5
\v 19 एली के पुत्र पीनहास की पत्नी गर्भवती थी, और उसके लिए उसके बच्चे को जन्म देने का लगभग समय था। जब उसने सुना कि परमेश्वर के पवित्र सन्दूक पर अधिकार कर लिया गया है और उसके पति और उसके ससुर मर गए, तो उसको जच्चा का दर्द अचानक शुरू हो गया और उनके लिए यह बहुत अधिक था। उसने एक लड़के को जन्म दिया, लेकिन वह मरने लगी।
\v 20 जब वह मर रही थी, तो जिस महिला ने उसकी सहायता की थी, उसने उसे यह कहकर प्रोत्साहित करने का प्रयास की, "तुमने बेटे को जन्म दिया है!" लेकिन उसने जो कहा उस पर कोई ध्यान नहीं दिया।
\p
\s5
\v 21 उसने बालक को इकाबोद नाम दिया, जिसका अर्थ है "महिमा रहित," क्योंकि उसने कहा, "ईश्वर की महिमा इस्राएल से उठ गई है।" उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि परमेश्वर के पवित्र सन्दूक पर पलिश्तियों ने अधिकार कर लिया था और उसके पति और उसके ससुर की मृत्यु हो गई थी।
\v 22 उसने कहा, "परमेश्वर की महिमा ने इस्राएल छोड़ दिया है, क्योंकि परमेश्वर के पवित्र सन्दूक पर पलिश्तियों ने अधिकार कर लिया है!" और फिर वह मर गई।
\s5
\c 5
\p
\v 1 पलिश्ती लोगों की सेना ने एबेनेजर शहर में परमेश्वर के पवित्र सन्दूक पर अधिकार कर लिया, और वे इसे अपने सबसे बड़े शहरों में से एक शहर अश्दोद ले गये।
\v 2 वे उसे अपने देवता दागोन के मंदिर में ले गए और उसे दागोन की एक मूर्ति के साथ रखा।
\v 3 परन्तु अगली सुबह, जब अश्दोद के लोग उसे देखने गए, तो उन्होंने देखा कि मूर्ति यहोवा के पवित्र सन्दूक के सामने गिर गई थी! इसलिए उन्होंने मूर्ति को फिर से अपने स्थान पर स्थापित किया।
\s5
\v 4 लेकिन अगली सुबह, उन्होंने देखा कि यह फिर से पवित्र सन्दूक के सामने गिर पड़ी थी। लेकिन इस बार, ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मूर्ति के सिर और हाथों को काट दिया हो; वे दरवाजे पर पड़े थे। केवल उसका शरीर एक टुकड़े में पड़ा था।
\v 5 यही कारण है कि उस समय से, अश्दोद में दागोन के याजक और दागोन के मंदिर में प्रवेश करने वाला दरवाजे की देहलीज़ पर पैर नहीं रखता है क्योंकि वहाँ दागोन के हाथ और सिर गिरे पड़े थे।
\p
\s5
\v 6 तब यहोवा ने अश्दोद के लोगों को फोड़ों से बहुत पीड़ा दी। शहर और आसपास के क्षेत्र में कई बीमार हुए और मर गए।
\v 7 अश्दोद के लोगों को समझ में आ गया कि ऐसा क्यों हो रहा था, और वे रोने लगे, "इस्राएलियों के परमेश्वर हमें और हमारे देवता दागोन को दंडित कर रहे हैं। इसलिए हम इस्राएलियों के परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को यहाँ रखने की अनुमति नहीं देंगे!"
\s5
\v 8 उन्होंने पलिश्तियों के पाँच राजाओं को बुलाया और उनसे पूछा, "इस्राएलियों के परमेश्वर के पवित्र सन्दूक के साथ हमें क्या करना चाहिए?"
\p राजाओं ने उत्तर दिया, "पवित्र सन्दूक को गत शहर में ले जाओ।" अतः वे इसे गत में ले गए।
\v 9 परन्तु जब वे गत में ले गए, तब यहोवा ने उस नगर के लोगों को शक्तिशाली तरीके से मारा, जिसके परिणामस्वरूप युवा और बूढ़े लोगों समेत कई लोगों की त्वचा पर फोड़े निकले। तब लोग बहुत डर गए।
\s5
\v 10 तब वे पवित्र सन्दूक को एक्रोन नगर में ले गये।
\p लेकिन जब लोग पवित्र सन्दूक को एक्रोन में ले गए, तो वहाँ के लोग रोये कि, "तुम इस्राएलियों के परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को हमारे शहर में क्यों ला रहे हो? ऐसा करके तुम हमें और बाकी के लोगों के मरने का कारण बनोगे!"
\s5
\v 11 इसलिए एक्रोन के लोगों ने भी पलिश्ती राजाओं को बुलाया। जब वे आए, तो लोगों ने उनसे कहा, "इस्राएलियों के देवता के इस पवित्र सन्दूक को अपने ही स्थान पर ले जाओ! यदि तुम शीघ्र ही ऐसा नहीं करते हो, तो हम सब मर जाएंगे!" लोग डर गए क्योंकि वे जानते थे कि परमेश्वर उन्हें गंभीर दण्ड देना आरम्भ कर रहे हैं।
\v 12 एक्रोन में से कुछ लोग पहले ही मर चुके थे, और बाकी लोग अपनी त्वचा पर फोड़ो के कारण पीड़ित थे। तो वे सब सहायता के लिए अपने देवताओं के सामने रोये।
\s5
\c 6
\p
\v 1 पलिश्तियों ने सात महीने तक अपने क्षेत्र में परमेश्वर का पवित्र सन्दूक रखा।
\v 2 तब उन्होंने अपने याजक और उनके ज्योतिषियों को बुलाया। उन्होंने उनसे पूछा, "हमें यहोवा के पवित्र सन्दूक से क्या करना चाहिए? हमें बताओ कि हमें इसे वापस इसकी भूमि पर कैसे भेजना चाहिए।"
\p
\s5
\v 3 उन लोगों ने उत्तर दिया, "इसके साथ यहोवा को यह दिखाने के लिए एक भेंट भेजना कि तुम जानते हो कि सन्दूक को पकड़ने के लिए तुम दोषी हो, ताकि विपत्ति रुक जाए। यदि तुम ऐसा करते हो, और स्वस्थ होते हो तो यह सिद्ध हो जाएगा कि उन्हीं ने तुम पर हांथ उठाया था और तुम्हारे कष्टों का कारण स्पष्ट हो जाएगा।"
\p
\v 4 पलिश्तियों ने पूछा, "हमें किस प्रकार की की भेंट भेजनी चाहिए?"
\p उन लोगों ने उत्तर दिया, "अपनी त्वचा पर फोड़ों के समान पाँच सोने के नमूने, और पाँच सोने के चूहे बनाओ। प्रत्येक की संख्या पाँच हो क्योंकि यह तुम्हारे राजाओं की संख्या के बराबर होगा, और क्योंकि विपत्ति ने तुम लोगों को और तुम्हारे पाँच राजाओं को मारा है।
\s5
\v 5 ऐसे नमूने बनाओ जो चूहों और फोड़ो के समान दिखतें हों जो तुम्हारे देश की हानि कर रहे हैं। उन्हें इस्राएली लोगों के देवता का सम्मान करने के लिए बनाओ। यदि तुम ऐसा करते हो, तो संभव है कि, तुम्हारे देवताओं को और तुम्हारे देश को दण्ड देना रोक दें।
\v 6 फ़िरौन और मिस्र के लोगों के समान हठीले मत बनो। याद रखो कि आखिर में यहोवा ने उनके सहने से अधिक पीड़ा दी, और अंत में उन्होंने इस्राएलियों को अपनी भूमि छोड़ने की अनुमति देनी पड़ी।
\p
\s5
\v 7 तो तुमको एक नया रथ बनाना होगा। फिर दो गायों को लेना जिन्होंने हाल ही में बछड़ों को जन्म दिया हो। वे गायें ऐसी होनी चाहिए जो कभी गाड़ी में जोती न गई हों। उन गायों को नई गाड़ी खींचने के लिए लगाओ, और बछड़ों को मां से दूर ले जाओ।
\v 8 गाड़ी पर उनके परमेश्वर का पवित्र सन्दूक रखो। गाडी में फोड़ो के पाँच सोने के नमूने और पाँच सोने के चूहों को भी रखो। उन्हें पवित्र सन्दूक के साथ एक छोटे से डिब्बे में रखो। वे यह दिखाने के लिए एक भेंट होंगे कि तुम जानते हो कि पवित्र सन्दूक को पकड़ने के लिए तुमको दंडित किया जा रहा है। फिर गाड़ी खींचकर गायों को सड़क से नीचे भेज दो।
\v 9 गाडी को देखते रहो कि गायें खिंच कर कहाँ ले जा रही हैं। यदि वे इसे इस्राएल में बेथशेमेश शहर कि ओर ले जाती है, तो हम जान जाएंगे कि यह उनका देवता था जो हमारे लिए ऐसी बड़ी हानि लाया था। लेकिन यदि वे उसे वहाँ नहीं ले जाती हैं, तो हम जान लेंगे कि यह उन इस्राएली लोगों का देवता नहीं था जिन्होंने हमें दंडित किया है। हम समझ लेंगे कि यह आकस्मात हुई दुर्घटना है। "
\p
\s5
\v 10 इसलिए लोगों ने वही किया जो याजक और ज्योतिषियों ने उन्हें करने के लिए कहा था। उन्होंने एक गाड़ी बनाई, और दो गायों को लिया और उनके बछड़ों को मां से दूर किया।
\v 11 उन्होंने यहोवा के पवित्र सन्दूक और सोने के चूहों और फोड़ो को एक साथ डिब्बे में डाल दिया।
\v 12 तब गायों ने चलना शुरू कर दिया, और वे सीधे बेतशेमेश की ओर गईं। वे मार्ग पर ही चलती रहीं और रंभाती रहीं। वे न तो बाईं ओर न ही दाईं ओर गईं। पलिश्ती के क्षेत्र के पाँच राजाओं ने गायों का पीछा किया जब तक कि वे बेतशेमेश के किनारे तक नहीं पहुँची।
\p
\s5
\v 13 उस समय, बेतशेमेश के लोग शहर के बाहर घाटी में गेहूं काट रहे थे। जब गाये मार्ग पर आईं, तो उन्होंने पवित्र सन्दूक को देखा। वे उसे देख कर आनन्द से भर गये।
\s5
\v 14-15 गायों ने गाड़ी को यहोशू नाम के एक व्यक्ति के खेत में खींच लिया, और एक बड़ी चट्टान के पास रुक गईं। लेवी के गोत्र के कई लोगों ने गाड़ी से पवित्र सन्दूक और सोने के चूहों और फोड़ो वाले डिब्बे को उठा लिया, और उन्हें बडी चट्टान पर रखा। तब लोगों ने गाड़ी को तोड़ दिया और उसकी लकड़ी में आग लगा दी। उन्होंने गायों को मार दिया और उनके शरीर को आग में जला दिया ताकि वह जलाकर यहोवा के लिए चढ़ाईं जा सके। उस दिन बेतशेमेश के लोगों ने यहोवा के लिए कई बालियाँ चढ़ाईं जो पूरी तरह जला दी गई थी, और अन्य बालियाँ भी चढ़ाईं।
\s5
\v 16 पलिश्ती के पाँच राजाओं ने यह सब देखा, और फिर वे उसी दिन एक्रोन में लौट गये।
\p
\s5
\v 17 उन सोने के पाँच फोड़े जिन्हें उन्होंने यहोवा को यह बताने के लिए भेजा था कि वे जानते थे कि वे दण्ड पाने के योग्य थे, उन पाँच राजाओं के उपहार थे जो अश्दोद, गाजा, अशकेलोन, गत के नगरों और एक्रोन के शासक थे।
\v 18 पाँच सोने के चूहे, उन पाँच शहरों और आसपास के शहरों के लोगों से उपहार थे। बेतशेमेश की वह बड़ी चट्टान, जिस पर लेवी के गोत्र के लोगों ने पवित्र सन्दूक को स्थापित किया था, आज भी यहोशू के खेत में उपस्थित है। जब लोग उसे देखते हैं, तो उन्हें स्मरण होता है कि वहाँ क्या हुआ था।
\p
\s5
\v 19 परन्तु बेतशेमेश के कुछ लोगों ने यहोवा के पवित्र सन्दूक में देखा था, और इसके कारण, यहोवा ने 50,070 लोगों को मार दिया। तब लोगों ने बहुत शोक किया क्योंकि यहोवा ने उन लोगों को दण्ड दिया था।
\v 20 उन्होंने कहा, "हमारे पवित्र परमेश्वर यहोवा के सामने कौन खड़ा हो सकता है? हम इस पवित्र सन्दूक को कहां भेज सकते हैं?"
\p
\s5
\v 21 उन्होंने किर्यत्यारिम शहर के लोगों को यह बताने के लिए दूत भेजे, कि पलिश्तियों ने यहोवा के पवित्र सन्दूक को हमें लौटा दिया हैं! यहाँ आओ और इसे अपने शहर में ले जाओ! "
\s5
\c 7
\p
\v 1 जब किर्यत्यारिम के लोगों ने संदेश प्राप्त किया, तो वे बेतशेमेश आए और यहोवा का पवित्र सन्दूक ले गये। वे इसे अबीनादाब के घर ले गए, जो पहाड़ी पर था। उन्होंने सन्दूक की देखभाल करने के लिए अबीनादाब के पुत्र एलीआज़र को अलग कर दिया।
\p
\v 2 पवित्र सन्दूक लंबे समय तक किर्यत्यारिम में रहा। बीस वर्ष तक वह वहाँ रहा। उस समय इस्राएल के सब लोग शोक करते रहे क्योंकि ऐसा लगता था कि यहोवा ने उन्हें त्याग दिया है, और वे फिर से सहायता के लिए उनके पास जाना चाहते थे।
\p
\s5
\v 3 तब शमूएल ने सभी इस्राएली लोगों से कहा, "यदि तुम सचमुच यहोवा का सम्मान करना चाहते हो, तो तुमको देवी अश्तारोत की मूर्तियों और पलिश्ती लोगों की मूर्तियों से छुटकारा पाना होगा।"
\v 4 इसलिए इस्राएलियों ने बाल और अश्तारोत देवताओं की मूर्तियों से छुटकारा पा लिया, और उन्होंने केवल यहोवा की आराधना करना आरंभ कर दिया।
\p
\s5
\v 5 तब शमूएल ने उन से कहा, "तुम सब इस्राएलियों को मिस्पा में मेरे साथ एकत्र होना होगा। तब मैं तुम्हारे लिए यहोवा से प्रार्थना करूंगा।"
\v 6 इसलिए वे मिस्पा में एकत्र हुए, वहाँ शमूएल ने इस्राएलियों के लिए अगुवाई की सेवा कर रहा था। उन्होंने वहाँ एक बड़ा समारोह किया। उन्होंने एक कुएं से पानी खींचा, और धरती पर पानी डाला, जिसे यहोवा ने देखा। मूर्तिपूजा का खेद प्रकट करने के लिए, उन्होंने उस दिन खाना नहीं खाया, स्वीकार किया कि उन्होंने यहोवा के विरूद्ध पाप किया है।
\p
\s5
\v 7 जब पलिश्ती के राजाओं ने सुना कि इस्राएलियों को मिस्पा में एकत्रित किया गया है, तो उन्होंने इस्राएलियों पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेना का नेतृत्व किया। जब इस्राएलियों को पता चला कि पलिश्ती सेना उनके पास आ रही थी, तो वे बहुत डर गए।
\v 8 उन्होंने शमूएल से कहा, "हमें पलिश्ती सेना से बचाने के लिए यहोवा से प्रार्थना करो, और उनसे विनती करना मत रोको!"
\s5
\v 9 तब शमूएल ने भेड़ का एक छोटा बच्चा लिया और उसे मार डाला और उसे यहोवा के लिए वेदी पर जला दिया, उसने प्रार्थना की और विनती की कि यहोवा इस्राएलियों की सहायता करें, और यहोवा ने उनकी सहायता की।
\p
\s5
\v 10 जब शमूएल भेंट चढ़ा रहा था, तब पलिश्ती सेना इस्राएलियों पर आक्रमण करने आई थी। परन्तु यहोवा उन पर बहुत ज़ोर से गरजे। पलिश्ती सेना के लोग डरकर बहुत घबरा गए। इसलिए इस्राएली उन्हें पराजित करके वापस भेजने में सफल हो गए।
\v 11 इस्राएली मिस्पा से निकल गए और पलिश्ती सैनिकों को लगभग बेतकर शहर तक खदेड़ा। उन्होंने कई पलिश्ती सैनिकों को मार डाला जो भागने का प्रयास कर रहे थे।
\p
\s5
\v 12 ऐसा होने के बाद, शमूएल ने एक बड़ा पत्थर लिया और मिस्पा और शेन के कस्बों के बीच स्थापित किया। उसने उस पत्थर को "एबेनेजर" नाम दिया, जिसका अर्थ है "सहायता का पत्थर", क्योंकि उसने कहा था "यहोवा ने यहाँ तक हमारी सहायता की है।"
\s5
\v 13 तब पलिश्ती लोग पराजित हुए, और लंबे समय तक उन्होंने फिर से आक्रमण करने के लिए इस्राएली भूमि में प्रवेश नहीं किया। शमूएल जब तक जीवित रहा, तब तक यहोवा ने इस्राएलियों को पलिश्ती सेना के आक्रमण से शक्तिशाली रूप से बचा कर रखा।
\p
\v 14 इस्राएली सेना फिर से इस्राएल के उन कस्बों पर अधिकार करने में सफल हुई, जिस पर पलिश्ती सेना ने पहले अधिकार कर लिया था। इस्राएली उन शहरों के आस-पास के अन्य क्षेत्रों को भी फिर से अपने अधिकार में लेने में सफल हो गए थे जिन्हें पलिश्ती सेना ने इस्राएलियों से ले लिया था। और इस्राएलियों और एमोरियों के समूह बीच शान्ति हो गई।
\p
\s5
\v 15 शमूएल तब तक इस्राएलियों का अगुवा बना रहा जब तक उसकी मृत्यु न हो गई।
\v 16 हर साल वह बेतेल और गिलगाल और मिस्पा के नगरों में यात्रा करता था। उन शहरों में वह लोगों के बीच विवादों की बात सुनता था और उनका न्याय करता था।
\v 17 उन शहरों में से प्रत्येक में निर्णय सुनाने के बाद, वह रामा में अपने घर लौट आता था, और वह वहाँ लोगों के विवादों को भी सुनता, और उनको निर्णय सुनाता था। उसने यहोवा के लिए बलि चढ़ाने के लिए रामा में एक वेदी बनाई।
\s5
\c 8
\p
\v 1 जब शमूएल बूढ़ा हो गया, तब उसने इस्राएल के लोगों की अगुवाई करने के लिए अपने दोनों पुत्रों, योएल और अबिय्याह को नियुक्त किया।
\v 2 उन्होंने बेर्शेबा शहर में लोगों के विवादों का न्याय किया।
\v 3 लेकिन वे अपने पिता के समान नहीं थे। वे केवल बहुत पैसा चाहते थे। उन्होंने रिश्वत स्वीकार की, और उन्होंने लोगों के विवादों को सुनकर उनका सही निर्णय नहीं लिया।
\p
\s5
\v 4 अंत में, इस्राएली अगुवों ने शमूएल के साथ इस विषय पर चर्चा करने के लिए रामा के शहर में उससे भेंट की।
\v 5 उन्होंने उससे कहा, "सुन! तू अब बूढ़ा हो गया, और तेरे पुत्र तेरे जैसे नहीं हैं। हमारे ऊपर शासन करने के लिए एक राजा को नियुक्त कर दे, जैसे कि दूसरे देशों में हैं!"
\p
\s5
\v 6 शमूएल उनके इस अनुरोध से बहुत अप्रसन्न था, इसलिए उसने इसके विषय में यहोवा से प्रार्थना की।
\v 7 यहोवा ने उत्तर दिया, "उन्होंने तुझसे जो निवेदन किया है, वैसा ही करो। लेकिन ऐसा मत सोचो कि उन्होंने तुम्हें अस्वीकार किया हैं। मैं उनका राजा रहा हूँ, और जिसे वे अस्वीकार कर रहे हैं, वह वास्तव में मैं हूँ।
\s5
\v 8 जब से मैं उन्हें मिस्र से बाहर लाया, तब से उन्होंने मुझे अस्वीकृत कर दिया है, और उन्होंने अन्य देवताओं की पूजा की है। और अब वे तुमको भी उसी प्रकार अस्वीकार कर रहे हैं।
\v 9 वे जो कह रहें हैं, वह उनके लिए कर दो परन्तु उन्हें चेतावनी देना कि उनका राजा उनके प्रति कैसे कार्य करेगा! "
\p
\s5
\v 10 तब शमूएल ने उन लोगों को यहोवा की बात सुना दी।
\v 11 उसने कहा, "यदि कोई राजा तुम पर शासन करता है, तो वह तुम्हारे साथ यही सब करेगा: वह तुम्हारे पुत्रों को सेना में भर्ती होने के लिए विवश करेगा। वह उनमें से कुछ को मार्ग साफ करने के लिए रथों के सामने दौडाएगा।
\v 12 उनमें से कुछ तो सैनिकों के अधिकारी होंगे, परन्तु अन्य दासों के समान उनके लिए काम करेंगे। वह उनमें से कुछ को अपने खेतों में हल चलाने के लिए विवश करेगा और बाद में अपनी फसलों को एकत्रित करवाएगा। दूसरों को वह अपने रथों के लिए और अपने हथियार और साधन बनाने के लिए विवश करेगा।
\s5
\v 13 राजा तुम्हारी पुत्रियों को तुमसे से ले लेगा और उन्हें इत्र बनाने के लिए विवश करेगा और अपने लिए खाना और रोटियाँ बनवाएगा।
\v 14 वह तुम्हारे सबसे अच्छे खेतों और दाख की बारियां और जैतून के पेड़ ले लेगा, और वो सब अपने अधिकारियों को देगा।
\v 15 वह तुम्हारी उपज का दसवां भाग लेगा और उसे अपने महल में काम करने वाले अधिकारियों और सेवकों में बांट देगा।
\s5
\v 16 वह तुम्हारे पुरूष और स्त्री सेवकों, और तुम्हारे सबसे अच्छे मवेशियों और गधों को ले लेगा, और उन्हें अपने काम में लगवाएगा।
\v 17 वह तुम्हारी भेड़ों और बकरियों का दसवां भाग लेगा। और तुम उसके दास बन जाओगे!
\v 18 जब ऐसा समय आएगा, तब तुम अपने चुने हुए राजा से चिल्ला-चिल्लाकर शिकायत करोगे, परन्तु यहोवा तुम्हारी न सुनेंगे।"
\p
\s5
\v 19 लेकिन लोगों ने शमूएल की बातों पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा, "तुम जो कह रहे हो, उसके विषय में हमें कोई चिंता नहीं है! हम बस एक राजा चाहते हैं!
\v 20 हम अन्य राष्ट्रों के समान बनना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि एक राजा हम पर शासन करे और युद्ध में हमारे सैनिकों का नेतृत्व करे।
\p
\s5
\v 21 शमूएल ने यहोवा से कहा कि लोग क्या कह रहे हैं।
\v 22 यहोवा ने उत्तर दिया, "जो कुछ वे तुमको करने के लिए कह रहे हैं वह करो। उन्हें राजा दो!" तो शमूएल सहमत हो गया, और फिर उसने उन लोगों को घर भेज दिया।
\s5
\c 9
\p
\v 1 वहाँ एक समृद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति था, जिसका नाम किश था। वह बिन्यामीन के गौत्र का था। किश अबीएल का पुत्र और सरोर का पोता था। वह बकारत और अपीह के वंश से था।
\v 2 किश का एक पुत्र था जिसका नाम शाऊल था। वह किसी भी अन्य इस्राएली पुरुषों की तुलना में अधिक सुन्दर था, और वह किसी भी अन्य इस्राएली पुरुषों की तुलना में लंबा था।
\p
\s5
\v 3 एक दिन, किश की गधियों में से कुछ भटक गयी। तो किश ने शाऊल से कहा, "मेरे साथियों में से एक को अपने साथ ले जाओ, और जाओ और गदहियों की खोज करो!"
\v 4 शाऊल ने ऐसा ही किया। उसने एक सेवक लिया, और वे पहाड़ी देश के पार चले गए जहाँ एप्रैम के वंशज रहते थे, और फिर वे शालीशाह और शालीम के इलाकों में चले गए, और फिर वे बिन्यामीन के वंश से संबंधित सभी इलाकों में चले गए, लेकिन वे गदहियों को खोज नहीं सके।
\p
\s5
\v 5 अंत में, वे सूफ के क्षेत्र में आए। तब शाऊल ने अपने सेवक से कहा, "चलो घर वापस चलें। यदि हम ऐसा नहीं करते हैं, तो मेरे पिता गधे के विषय में चिंता करना बंद कर देंगे और हमारे विषय में चिंता करने लगेंगे।"
\p
\v 6 लेकिन दास ने कहा, "मैं कुछ और सोच रहा हूँ। परमेश्वर के भविष्यद्वक्ताओं में से एक है जो इस शहर में रहता है। लोग उसका बहुत सम्मान करते हैं, क्योंकि वह जो भविष्यवाणी करता है वह सच होती है। चलो चलें और उनसे बात करें। संभव है कि वह हमें बताए कि हम गधे को खोजने के लिए कहां जाएँ। "
\p
\s5
\v 7 शाऊल ने दास से कहा, "यदि हम उससे बात करने के लिए जाते हैं, तो हमें उसे उपहार देना चाहिए, परन्तु हम क्या दे सकते हैं? हमारे पास हमारे बोरे में और खाना नहीं है। क्या हमारे पास कुछ और है उसे देने के लिए।"
\p
\v 8 दास ने उत्तर दिया, "इसे देखो! मेरे पास चाँदी का एक छोटा टुकड़ा है। मैं उसे यह दे सकता हूँ, और फिर वह हमें बताएगा कि गदहियों को खोजने के लिए कहां जाना है।"
\s5
\v 9-11 शाऊल ने कहा, "बहुत अच्छा, चलो उससे बात करें।" तो वे उस शहर में गए जहाँ भविष्यद्वक्ता रहता था। जब वे शहर की पहाड़ी पर जा रहे थे, तो वे कुछ युवा स्त्रियों से मिले जो कुएँ से पानी लेने के लिए शहर से बाहर आ रहीं थीं। उनमें से एक ने उन स्त्रियों से पूछा, "आज शहर में दर्शी है?" उन्होंने ऐसा इसलिए पूछा कि उन दिनों यदि इस्राएल में लोग परमेश्वर का संदेश प्राप्त करना चाहते थे, तो वे कहते थे, "चलो हम दर्शी के पास चलते हैं," और उन्हें या दर्शन देखने वालों को अब भविष्यद्वक्ता कहा जाता है।"
\s5
\v 12 स्त्रियों ने उत्तर दिया, "हाँ, वह शहर में है। वह तो तुम्हारे आगे-आगे इसी मार्ग पर चल रहा है। वह आज ही शहर में पहुँचा है क्योंकि लोग आराधना स्थल की वेदी पर बलि चढ़ाने जा रहे हैं, वहीं सब एकत्रित होंगे।
\v 13 यदि तुम शीघ्र पहुँच जाते हो, तो तुम्हें उससे बात करने का समय मिल जाएगा। जिन लोगों को उन्होंने आमंत्रित किया है वे तब तक खाना आरम्भ नहीं करेंगे जब तक वह वहाँ नहीं आता और बलि को आशीष देता है। "
\p
\s5
\v 14 तब शाऊल और दास ने शहर में प्रवेश किया। जैसे ही वे द्वारों से गुज़र रहे थे, उन्होंने शमूएल को देखा क्योंकि वह उनके पास आ रहा था; वह उस मार्ग पर था जहाँ लोग बलि चढ़ाने जा रहे थे।
\p
\s5
\v 15 पिछले दिन, यहोवा ने शमूएल से कहा था,
\v 16 "इस समय कल, मैं बिन्यामीन के गौत्र के क्षेत्र से एक व्यक्ति को भेजूंगा। उसके सिर पर जैतून का तेल डालना ताकि यह उसके लिए मेरे इस्राएली लोगों का अगुवा होने का संकेत हो। मैंने देखा है कि मेरे लोग पीड़ित हैं क्योंकि पलिश्ती लोग उनका दमन कर रहे हैं, और मैंने अपने लोगों को सुना है क्योंकि उन्होंने मुझे सहायता के लिए बुलाया है। जिस व्यक्ति का तुम अभिषेक करते हो वह मेरे लोगों को पलिश्ती लोगों की शक्ति से बचाएगा। "
\p
\s5
\v 17 जब शमूएल ने शाऊल को देखा, तो यहोवा ने उस से कहा, "यह वह मनुष्य है जिसके विषय में मैंने कल बताया था! यह वही है जो मेरे लोगों पर शासन करेगा!"
\p
\v 18 शाऊल ने शमूएल को नगर के द्वार पर देखा, परन्तु उसे नहीं पता था कि यह शमूएल था। वह उसके पास गया और उससे पूछा, "क्या आप मुझे बता सकते हैं, उस व्यक्ति का घर कहां है जो परमेश्वर के दर्शन को देखता है?"
\p
\v 19 शमूएल ने उत्तर दिया, "मैं वह व्यक्ति हूँ। अपने दास के साथ उस स्थान पर जाओ जहाँ लोग बलिदान चढ़ाते हैं। तुम दोनों आज मेरे साथ खाओगे। कल सुबह मैं तुमको बताऊंगा जो तुम जानना चाहते हो, और फिर मैं तुम्हें घर भेजूंगा।
\s5
\v 20 इसके अतिरिक्त, उन गदहियों के विषय में और चिंता न कर जो तीन दिन पहले खो गये थे। किसी ने उन्हें पा लिया है। "
\p
\v 21 शाऊल ने उत्तर दिया, "मैं बिन्यामीन के गौत्र से हूँ, जो सब गौत्रों में से सबसे छोटा है! और मेरा परिवार हमारे जनजाति में सबसे कम महत्वपूर्ण परिवार है! तो तुम इस तरह मुझसे बात क्यों कर रहे हो, इस्राएली लोग मुझसे और मेरे परिवार से क्या चाहते हैं।"
\p
\s5
\v 22 तब शमूएल, शाऊल और उसके दास को बड़े भोजन कक्ष में ले गया, और उन्हें मेज के मुख्य भाग पर बैठने के लिए कहा, यह दर्शाता है कि वह उसे आमंत्रित उन तीस जनों से अधिक सम्मान दे रहा है।
\s5
\v 23 तब शमूएल ने दास को बोला, "मेरे पास माँस के टुकड़ों को लाओ जिसे मैंने तुम्हें अलग करने के लिए कहा था।"
\p
\v 24 इसलिए दास जांग के माँस को लाया; उसने वह शाऊल के सामने रखा। शमूएल ने शाऊल से कहा, "इसे खाना शुरू करो। मैंने दास से कहा था कि इसे तेरे लिए रख दे जिससे कि इस समय तुम सब आमंत्रित जनों के साथ इसे खाओ।" अतः शाऊल और शमूएल ने एक साथ खाया।
\p
\s5
\v 25 खाने के बाद, वे शहर लौट आए। तब शमूएल शाऊल को अपने घर की छत पर ले गया, और वहाँ उससे बात की।
\p
\v 26 जैसे ही अगली सुबह सूर्य उग रहा था, शमूएल ने शाऊल से कहा, "उठो! मेरे लिए तुम्हें वापस घर भेजने का समय हो गया है।" तो शाऊल उठ गया, और बाद में शमूएल और शाऊल घर से चल दिए।
\p
\s5
\v 27 जब वे शहर के किनारे पहुंचे, तो शमूएल ने शाऊल से अपने दास को आगे भेजने के लिए कहा। दास के चले जाने के बाद, शमूएल ने शाऊल से कहा, "कुछ समय के लिए यहाँ रुको, ताकि मैं तुम्हें परमेश्वर से प्राप्त एक संदेश सुना सकूँ।"
\s5
\c 10
\p
\v 1 तब शमूएल ने जैतून का तेल का एक छोटा सा पात्र लिया और शाऊल के सिर पर तेल डाला। तब उसने शाऊल के गाल को चूमा, और उससे कहा, "मैं यह इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि यहोवा ने अपने इस्राएली लोगों के लिए तुम्हें अगुवा बनने के लिए चुना है।
\v 2 जब तुम आज मुझे छोड़कर राहेल की कब्र के पास पहुँचोगे जो बिन्यामिन के गोत्र के क्षेत्र में सेलसह में है, तब तुम दो पुरुषों से मिलोगे। वे तुमसे कहेंगे, 'गदहियां मिल गई हैं, परन्तु अब तुम्हारे पिता तुम्हारे लिए चिंतित हैं, और लोगों से पूछ रहे हैं कि क्या किसी ने तुम्हें देखा है? '
\p
\s5
\v 3 जब तुम ताबोर शहर में बड़े बांज वृक्ष के पास पहुँचोगे, तो तुम देखोगे कि तीन पुरुष तुम्हारे सामने आ रहे हैं। वे बेतेल में परमेश्वर की आराधना करने के लिए मार्ग में होंगे। उनमें से एक जन तीन युवा बकरियों को लेकर चल रहा होगा, दूसरा तीन रोटी लेकर, और तीसरा दाखरस का एक पात्र ले कर चल रहा होगा।
\v 4 वे तुमको नमस्कार करेंगे, और तुम्हें दो रोटी भेंट करेंगे। उन्हें स्वीकार कर लेना।
\p
\s5
\v 5 जब तुम पहाड़ी पर पहुँचोगे, गिबा शहर के पास जहाँ लोग परमेश्वर की आराधना करते हैं, वहाँ एक छावनी है जहाँ पलिश्ती सैनिक रहते हैं, वहाँ तुम भविष्यद्वक्ताओं के एक दल से मिलोगे जो पहाड़ी पर की वेदी से नीचे आ रहे होंगे। उनके सामने लोग होंगे जो संगीत के विभिन्न वाद्ययंत्र: वीणा, सितार, बांसुरी, और सारंगी बजा रहे होंगे। और वे सब ऊँची शब्दों में परमेश्वर से प्राप्त संदेश सुना रहे होंगे।
\v 6 उस समय यहोवा के आत्मा तुम पर आएँगे, और तुम भी उसी तरह चिल्लाओगे। तुम बदल जाओगे एक अलग व्यक्ति की तरह।
\s5
\v 7 उन घटनाओं के बाद, जो कुछ भी तुम्हें सही लगता है वही करना, क्योंकि परमेश्वर तुम्हारे साथ हैं।
\p
\v 8 तब मुझसे पहले गिलगाल शहर जाकर, सात दिनों तक मेरी प्रतीक्षा करना। तब मैं वहाँ होमबली और अन्य बलिदान चढ़ाने के लिए तुमसे मिलूंगा जिससे तुम परमेश्वर के साथ संगति में बने रहो। वहाँ पहुँचकर मैं तुमको बताऊंगा कि तुम्हें और क्या करना है। "
\p
\s5
\v 9 शाऊल वहाँ से जाने लगा, परमेश्वर ने शाऊल के अन्दर के मानव को बदल दिया। और उस दिन शमूएल की भविष्यवाणी की सब बातें पूरी हुईं।
\v 10 गिबा पहुंचकर शाऊल और उसके दास ने कुछ भविष्यद्वक्ताओं को देखा जो सीधे परमेश्वर से आए संदेश सुना रहे थे। जब भविष्यद्वक्ता शाऊल और उसके दास के निकट आ रहे थे, तब परमेश्वर के आत्मा शाऊल पर शक्तिशाली रूप से आए, और वह भी परमेश्वर के संदेश को चिल्ला-चिल्लाकर सुनाने लगा।
\s5
\v 11 जब शाऊल को जानने वाले लोगों ने उसे भविष्यद्वक्ताओं की सी वाणी बोलते सुना, तो उन्होंने एक दूसरे से कहा, "किश के इस पुत्र के साथ क्या हुआ है? क्या वह अब वास्तव में भविष्यद्वक्ताओं में से एक है?"
\p
\v 12 वहाँ रहने वाले पुरुषों में से एक ने उत्तर दिया, "इसमें कोई अन्तर नहीं दिखाई पड़ता कि इन अन्य भविष्यद्वक्ताओं के माता-पिता कौन हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि शाऊल परमेश्वर के संदेश सुना रहा है।" और यही कारण है कि, जब लोग संदेह करते तो सोचते कि शाऊल के साथ क्या हुआ है और कहते, "क्या शाऊल वास्तव में भविष्यद्वक्ताओं में से एक है?"
\v 13 जब शाऊल ने उन संदेशों को बोलना समाप्त कर दिया जिन्हें परमेश्वर ने उसे दिये थे, तो वह उस स्थान पर गया जहाँ लोग बलिदान चढ़ाते थे।
\p
\s5
\v 14 बाद में, शाऊल के चाचा ने उसे वहाँ देखा, तो उससे पूछा, "तुम कहाँ गए थे?" शाऊल ने उत्तर दिया, "हम गदहियों को ढूँढनें गए थे। जब हम उन्हें नहीं ढूँढ पाए, तो हम वहाँ शमूएल से पूछने गये कि वह हमें बताए कि गदहियाँ कहाँ गयी है?"
\p
\v 15 शाऊल के चाचा ने उत्तर दिया, "शमूएल ने तुम्हें क्या कहा?"
\p
\v 16 शाऊल ने उत्तर दिया, "उसने हमें आश्वासन दिया कि किसी को गधे मिल गए हैं।" लेकिन उसने अपने चाचा को यह नहीं बताया कि शमूएल ने उसको इस्राएल के राजा बनने के विषय में क्या कहा था।
\p
\s5
\v 17 इसके बाद में शमूएल ने इस्राएल के लोगों को यहोवा का संदेश सुनने के लिए मिस्पा में बुलाया।
\v 18 जब वे पहुंचे, तो उसने उन से कहा, "जिन यहोवा की हम इस्राएली आराधना करते हैं, वे खाते हैं: 'मैं तुम इस्राएलियों को मिस्र से बाहर लाया। मैंने तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र के शासकों और अन्य अत्याचारी राजाओं की शक्ति से बचाया है।
\v 19 मैं ही हूँ जो तुम्हें परेशानियों और कठिनाइयों से निकालता हूँ परन्तु तुम ने दिखा दिया है कि तुम मेरी उपासना करना नही चाहते तुमने मुझसे एक राजा के लिए विनती की कि वह तुम पर राज करे। अतः गौत्रों के और कुलों के प्रधान मेरी उपस्थिति में एकत्रित हो जाओ। '"
\p
\s5
\v 20 जब वे प्रतिनिधि शमूएल के पास आए, तो परमेश्वर ने संकेत दिया कि उन्होंने किसी को बिन्यामीन के गौत्र से चुना है।
\v 21 तब शमूएल ने बिन्यामीन के गोत्र के प्रतिनिधियों को आगे आने के लिए कहा, और परमेश्वर ने संकेत दिया कि उस गौत्र से उसने मत्री के परिवार से किसी को चुना है, और फिर परमेश्वर ने संकेत दिया कि मत्री के परिवार से उसने किश के पुत्र शाऊल को चुना है। लेकिन जब उन्होंने शाऊल को खोजा, तो वह उन्हें नहीं मिला।
\s5
\v 22 इसलिए उन्होंने यहोवा से पूछा, "संभव है कि किसी और को चुना गया है?" यहोवा ने उत्तर दिया, "वह व्यक्ति सेना के सामान में छिपा हुआ है।"
\p
\v 23 तब वे जल्दी वहाँ गए और शाऊल को ढूंढ़ लिया, और उसे सभी लोगों के सामने लाए। वे देख सकते थे कि वह वास्तव में दूसरों की तुलना से अधिक लम्बा है।
\s5
\v 24 तब शमूएल ने वहाँ सब लोगों से कहा, "यह वह राजा है जिसे यहोवा ने तुम्हारे लिए चुना है। सचमुच, सारे इस्राएल में उसके समान कोई और नहीं है!" सभी लोग चिल्लाने लगे, "राजा चिरंजीवी रहे।"
\p
\s5
\v 25 तब शमूएल ने लोगों से कहा कि राजा उन्हें क्या करने के लिए विवश करेगा, और राजा को जो कुछ भी करना होगा वह भी बताया। उसने उन सब बातों को एक लपेटे हुए पत्र में लिखा, और फिर उसने उसे पवित्र स्थान पर रखा जहाँ यहोवा थे। तब शमूएल ने सब लोगों को घर भेज दिया।
\p
\s5
\v 26 जब शाऊल गिबा के नगर में अपने घर लौट आया, तो साहसी पुरुषों के एक दल ने हमेशा शाऊल के साथ रहने का फैसला किया। उन्होंने ऐसा किया क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित किया था।
\v 27 लेकिन कुछ निक्कमे पुरुषों ने कहा, "यह व्यक्ति हमें हमारे शत्रुओं से कैसे बचा सकता है?" उन्होंने उसे तुच्छ जाना और उसके प्रति स्वामिभक्ति की भेंट देने से मना कर दिया। लेकिन शाऊल ने उन्हें झिड़कने के लिए कुछ भी नहीं कहा।
\s5
\c 11
\p
\v 1 एक महीने बाद, अम्मोन के राजा नाहाश ने अपनी सेना का नेतृत्व किया और यरदन नदी के पार गिलाद के क्षेत्र में याबेश शहर को घेर लिया। लेकिन याबेश के लोगों ने किसी को नियुक्त किया था जिसने नाहाश से कहा, "हमारे साथ एक समझौता करो, हमें मत मारो, और फिर हम तुम्हें हमारे पर शासन करने देंगे।"
\p
\v 2 नाहाश ने उत्तर दिया, "यदि तुम एक काम करते हो तो मैं ऐसा करूँगा। हमें अपने सब लोगों की दाहिनी आँख निकालने दो कि अन्य देशों के लोग तुम सब इस्राएलियों को तुच्छ समझें।"
\p
\s5
\v 3 याबेश के अगुवों ने उत्तर दिया, "अगले सात दिनों तक आक्रमण न करना। उन सात दिनों में, हम सब को तुम्हारी यह इच्छा बताने के लिए पूरे इस्राएल में दूत भेज देंगे। यदि कोई हमारी सहायता नहीं करेगा, तो हम आत्मसमर्पण करेंगे।"
\p
\s5
\v 4 तब याबेश के अगुवों ने पूरे इस्राएल में दूत भेजे। जब दूत गिबा में आए, जहाँ शाऊल रहता था, और उन्होंने लोगों को स्थिति के विषय में बताया, तो हर किसी ने रोना शुरू कर दिया।
\v 5 उस समय, शाऊल अपना खेत जोत रहा था। जब वह घर लौट आया, तो उसने पूछा, "सब लोग क्यों रो रहे हैं?" उन्होंने उसे वह सब बताया जो याबेश के दूतों ने उन्हें बताया था।
\p
\s5
\v 6 तब शाऊल पर परमेश्वर के आत्मा शक्तिशाली रूप से आए, और नाहाश की इस बात पर वह क्रोध से भर गया कि वह ऐसा करना चाहता है।
\v 7 उसने अपने दो बैलों को लिया और उन्हें मार कर टुकड़ों में काट दिया। तब उसने इस्राएल में सब लोगों को वे टुकड़े भेजे और दूतों के हाथ एक संदेश भेजा: "शाऊल कहता है कि उसने जैसे इस बैल को टुकड़ों में काट दिया, वह उन सबके बैलों के साथ भी ऐसा ही करेगा यदि वे अम्मोन की सेना से युद्ध करने के लिए उसके और शमूएल के साथ चलने से मना करेगा! " तब यहोवा ने इस्राएल के सब लोगों को डरा दिया कि शाऊल उनके साथ क्या कर सकता है यदि वे शाऊल की सहायता के लिए नहीं गये। अतः सब पुरुष एकत्रित हुए।
\v 8 जब शाऊल ने उन्हें बेजेक में गिना, तो उसने देखा कि वहाँ 300,000 इस्राएली पुरुष थे, साथ ही यहूदा के गोत्र के तीस हजार लोग भी थे।
\p
\s5
\v 9 तब शाऊल ने याबेश के लोगों के पास दूतों को यह कहने के लिए भेजा, "कल सुबह धूप तेज़ होने पर हम तुमको बचाएंगे।" दूत गए और याबेश के लोगों को वह संदेश सुनाया, समाचार सुनते ही वे बहुत प्रसन्न हुए।
\v 10 तब याबेश के लोगों ने नाहाश से कहा, "कल हम तुझे आत्मसमर्पण करेंगे, और फिर तू जो कुछ भी करना चाहता है हमारे साथ कर सकता है।"
\p
\s5
\v 11 लेकिन अगली सुबह सूर्य निकलने से पहले, शाऊल और उसकी सेना पहुंची। उसने उन्हें तीन दलों में विभाजित किया। वे अम्मोनियों के सैनिकों की छावनी में पहुंचे, और उन पर आक्रमण कर दिया। दोपहर तक उन्होंने उनमें से अधिकांश को मार डाला, और जो लोग बच गये वे बिखर गए जिन्होंने बचकर भागने का प्रयास किया, वे अकेले अकेले निकले।
\p
\s5
\v 12 तब याबेश के लोगों ने शमूएल से कहा, "वे लोग कहां हैं जो नहीं चाहते थे कि शाऊल हमारा राजा बने? उन्हें यहाँ लाओ, और हम उन्हें मार दें!"
\p
\v 13 परन्तु शाऊल ने उत्तर दिया, "नहीं, हम आज किसी को भी नहीं मारेंगे, क्योंकि आज वह दिन है जब यहोवा ने हम इस्राएलियों को बचाया है। यह खुशी का दिन है, किसी को मारने का नहीं।"
\p
\s5
\v 14 तब शमूएल ने लोगों से कहा, "हम सभी गिलगाल जाएंगे, और वहाँ हम फिर से घोषणा करेंगे कि शाऊल हमारा राजा है।"
\v 15 इसलिए वे गिलगाल गए। वहां, यह जानकर कि यहोवा देख रहे हैं, उन्होंने घोषणा की कि शाऊल उनका राजा है। तब उन्होंने बलि चढ़ाई कि वे यहोवा के साथ मिलकर रह सकें। और शाऊल और अन्य सभी इस्राएली लोग बहुत प्रसन्न थे।
\s5
\c 12
\p
\v 1 तब शमूएल ने सब इस्राएली लोगों से कहा: "मैंने सब कुछ किया है, जो भी तुमने करने को कहा, और मैंने तुम्हें एक राजा दिया है। जो तुम पर राज करे।
\v 2 मेरे अपने बेटे बड़े हो गए हैं और तुम्हारे साथ हैं, परन्तु मैंने उनमें से किसी को नहीं शाऊल को नियुक्त किया है, और वह अब तुम्हारा अगुवा है। मैं अब बूढ़ा हूँ, और मेरे बाल सफेद हैं। जब से मैं एक बालक था तब से मैं तुम्हारा अगुवा रहा हूँ।
\s5
\v 3 अब मुझे बताओ, जबकि यहोवा सुन रहा है, और जिस राजा को उसने चुना है, वह सुन रहा है, मैंने इतने वर्षों में किसका बैल या गधा चुराया है? या किसके साथ धोखा किया है? या किस पर अत्याचार किया है? मैंने किससे घूंस लेकर उसकी बुराई को अनदेखा किया है? यदि मैंने इनमें से कोई भी काम किया है, तो मुझे बताओ, और मैं उसका ऋण चुकाऊंगा। "
\p
\s5
\v 4 उन्होंने उत्तर दिया, "नहीं, आपने कभी किसी को धोखा नहीं दिया है या किसी पर अत्याचार नहीं किया है या किसी से घूंस नहीं ली।"
\p
\v 5 तब शमूएल ने कहा, "आज यहोवा गवाही दे सकता है, और जिस राजा को आपने चुना है, वह गवाही दे सकता है कि मैंने किसी से घूंस नहीं ली है।" उन्होंने उत्तर दिया, "हाँ, यहोवा कह सकता है कि वह जानता है कि यह सच है।"
\p
\s5
\v 6 शमूएल कहता गया, "यहोवा ही वह है जिसने मूसा और हारून को हमारे पूर्वजों का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया था। वही है जो उन्हें मिस्र से बाहर लाया। और वही है जो यह जानता हूँ कि जो कुछ मैं कह रहा हूँ वह सत्य है।
\v 7 यहोवा सुन रहे हैं, अतः चुपचाप यहाँ खड़े रहो और मैं तुम पर आरोप लगाता हूँ और तुमको बताता हूँ कि अगुवाई के लिए राजा की मांग करना गलत था तुम्हें यहोवा ही पर भरोसा रखना था। मैं तुम्हें उन सब महान चमत्कारों का स्मरण कराऊंगा जो यहोवा ने तुम्हारे और तुम्हारे पूर्वजों के लिए किये हैं।
\p
\s5
\v 8 हमारे पूर्वज याकूब मिस्र गये, उनके वंशजों ने वर्षों बाद यहोवा से सहायता की विनती की। इसलिए यहोवा ने मूसा और हारून को उनके पास भेजा, और उन्होंने हमारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाला, और अंत में वे इस देश में बस गए।
\p
\v 9 परन्तु हमारे पूर्वज शीघ्र ही यहोवा, उनके परमेश्वर को भूल गए। इसलिए उन्होंने हासोर सेनापति सीसरा को उन्हें पराजित करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने पलिश्तियों की और मोआब के राजा की सेना को हमारे पूर्वजों से युद्ध करके उन्हें पराजित करने की अनुमति दी।
\s5
\v 10 तब हमारे पूर्वजों ने अपनी सहायता करने के लिए फिर से यहोवा से विनती की। उन्होंने स्वीकार किया, 'हे यहोवा, हमने पाप किया है, और हमने आपको त्याग दिया है। हमने मूर्तियों की पूजा की है जो बाल देवता और देवी अष्टोरथ का प्रतिनिधित्व करती हैं। परन्तु आप हमें अपने शत्रुओं से बचा लेंगे, तो हम केवल आपकी आराधना करेंगे। '
\v 11 तब यहोवा ने तुम्हें बचाने के लिए गिदोन, बराक, यिप्तह और मुझ जैसे लोगों को भेजा। और परिणामस्वरूप, तुमको किसी भी शत्रु के द्वारा तुम पर आक्रमण की चिंता करने की आवश्यक्ता नहीं थी।
\p
\s5
\v 12 परन्तु अब जब अम्मोन का राजा नाहाश तुम पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेना के साथ आया, तो तुम डर गए। तो तुम मेरे पास आए, और कहा, 'हम चाहते हैं कि एक राजा हम पर शासन करे,' जबकि यहोवा पहले से ही तुम्हारे राजा थे!
\v 13 तो अब देखो, यह राजा है जिसे तुमने चुना है। तुमने राजा के लिए कहा, और यहोवा ने अब तुम्हारे लिए एक राजा नियुक्त किया है।
\s5
\v 14 यदि तुम यहोवा का सम्मान करते हो और तुम उनकी सेवा करते हो, और यदि तुम उनकी सुनते हो और उनकी आज्ञा मानते हो, और यदि तुम और राजा जो तुम पर शासन करता है, तो यहोवा, तुम्हारे परमेश्वर चाहते हैं की तुम उन्ही की इच्छा पर चलो , वे जो कहते हैं तुम सभी के लिए अच्छा है।
\v 15 परन्तु यदि तुम यहोवा की बातों को नहीं सुनते, और यदि तुम उनकी आज्ञा नहीं मानते हो, तो वे तुमको दण्ड देंगे, जैसे उन्होंने हमारे पूर्वजों को दंडित किया था।
\p
\s5
\v 16 अब चुपचाप खड़े रहो और यहोवा के महान काम को देखो।
\v 17 तुम जानते हो कि वर्ष के इस समय में, जब तुम गेहूं की कटाई करते हो तो वर्षा नहीं होती है। लेकिन आज मैं यहोवा से गर्जन और बिजली और वर्षा भेजने के लिए कहूंगा। जब वे ऐसा करते हैं, तो तुमको पता चलेगा कि यहोवा यह मानते हैं कि तुमने राजा की माँग करके बहुत बुरा काम किया है। "
\p
\v 18 तब शमूएल ने यहोवा से प्रार्थना की, और यहोवा ने वहाँ गरजन और बिजली और वर्षा की। तो सभी लोग यहोवा और शमूएल से बहुत डर गए।
\p
\s5
\v 19 उन्होंने शमूएल से कहा, "हमारे लिए प्रार्थना करो! हमने राजा की माँग करके, इसे भी हमारे पिछले पापों में जोड़ा है! यहोवा से प्रार्थना करो ऐसा करने के कारण हम मर न जाएँ!"
\p
\v 20 शमूएल ने उत्तर दिया, "डरो मत! तुमने यह बुरा काम किया है, परन्तु उन कामों को न रोको जिन्हें यहोवा चाहता है। बल्कि, अपने भीतर से यहोवा की सेवा करो।
\v 21 यहोवा को न त्यागो और निक्कमी मूर्तियों की पूजा न करो। वे तुम्हारी सहायता नहीं कर सकतीं या तुमको तुम्हारे शत्रुओं से नहीं बचा सकतीं, क्योंकि वे वास्तव में निक्कमी हैं।
\s5
\v 22 यहोवा का निर्णय है कि हम उनके लोग हो जाएँ। इसलिए वह हम लोगों को जिनको उन्होंने चुना है, नहीं त्यागेंगे क्योंकि यदि वे ऐसा करते हैं तो वह विश्वासयोग्य होने की अपनी प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाएँगे।
\v 23 परन्तु जहाँ तक मेरी बात है, मैंने सच्चे मन से प्रतिज्ञा की है कि मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करना छोड़कर यहोवा के विरुद्ध पाप नहीं करूंगा। और मैं तुमको भली और उचित बातें सिखाता रहूँगा।
\s5
\v 24 परन्तु तुम्हें यहोवा का सम्मान करना चाहिए और अपनी पूरी भीतरी शक्ति से उनकी सेवा करनी चाहिए। उन्होंने तुम्हारे लिए जो महान काम किये है उन्हें कभी न भूलना।
\v 25 यदि तुम दुष्टता के काम करते रहोगे, तो वे तुम्हें और तुम्हारे राजा को त्याग देंगे! "
\s5
\c 13
\p
\v 1 शाऊल तीस वर्ष का था जब उसने शासन करना आरम्भ किया। उन्होंने चालीस वर्षों तक शासन किया।
\p
\v 2 राजा बनने के कुछ सालों बाद, उसने पलिश्तियों से लड़ने के लिए इस्राएल की सेना से तीन हजार पुरूषों को चुना। उसने दूसरे सैनिकों को घर वापस भेज दिया। चुने गए पुरुषों में से दो हजार शाऊल के साथ मिकमाश में और बेतेल के पास पहाड़ी देश में रहे, और एक हजार बिन्यामीन के गोत्र के गिबा में शाऊल के पुत्र योनातान के साथ रहे।
\p
\s5
\v 3 योनातान और उसके साथ रहने वाले पुरुषों ने गेबा में छावनी डाले हुए पलिश्ती सैनिकों पर आक्रमण किया। अन्य पलिश्तियों ने इसके विषय में सुना। इसलिए शाऊल को लगा कि पलिश्तियों की सेना संभवतः इस्राएलियों से फिर से लड़ने आएगी। इस प्रकार शाऊल ने पूरे इस्राएल में तुरही बजाने के लिए दूत भेजे कि लोगों को एकत्रित कर के उनसे कहें, "तुम सब इब्रानियों सुनो कि अब पलिश्ती हमारे साथ युद्ध करेंगे!"
\v 4 दूतों ने बाकी सेना को शाऊल के साथ गिलगाल में एकत्रित होने के लिए कहा। और इस्राएल के सभी लोगों ने यह समाचार सुना। लोग कह रहे थे, "शाऊल की सेना ने पलिश्ती छावनी पर आक्रमण किया है, जिसके परिणामस्वरूप पलिश्तियों ने हम इस्राएलियों से बहुत घृणा की है।"
\p
\s5
\v 5 पलिश्ति वहाँ इकट्ठे हुए और इस्राएलियों से लड़ने के लिए उन्हें साधन दिए गए। पलिश्तियों के पास तीन हजार रथ और छः हजार रथ चालक थे। उनके सैनिक समुद्र के किनारे रेत के दानों के जैसे लग रहे थे। उन्होंने उठकर बेतेल के बेतावेन के पूर्व में मिकमाश में अपने तंबू खड़े किये।
\s5
\v 6 पलिश्तियों ने इस्राएलियों पर प्रबल आक्रमण किया, और इस्राएली सैनिकों ने देखा कि वे बहुत बुरी स्थिति में हैं। अतः इस्राएली सैनिक भूमि में, या चट्टानों, या गड्ढे में, या कुएं में, गुफाओं और छेदों में छिप गये।
\v 7 उनमें से कुछ ने यरदन नदी पार की और उस क्षेत्र में गये जहाँ गाद के गोत्र और गिलाद के गौत्र के लोग थे।
\p लेकिन शाऊल गिलगाल में रहा। उसके साथ रहने वाले सब सैनिक कांप रहे थे क्योंकि वे बहुत डरे हुए थे।
\s5
\v 8 शाऊल सात दिन तक प्रतीक्षा करता रहा, क्योंकि शमूएल ने इतने दिन उसे प्रतीक्षा करने के लिए कहा था, परन्तु शमूएल उस समय तक गिलगाल नहीं आया था, इसलिए शाऊल की सेना में से बहुत से लोग उसे छोड़कर भाग रहे थे।
\v 9 तब शाऊल ने सैनिकों से कहा, "मुझे एक पशु लाकर दो जिसे मैं परमेश्वर के लिए वेदी पर बलि करू और एक को परमेश्वर के लिए दान करू ताकि हम परमेश्वर के साथ मेल बनाए रखने में सफल रहे।" सैनिको ने ऐसा ही किया।
\v 10 और जैसे ही वह इन भेंटों को बलि कर चुका, शमूएल आ गया और शाऊल उसे नमस्कार करने पहुँचा।
\p
\s5
\v 11 जो भी शाऊल ने किया था, वह शमूएल ने देखा और उसने शाऊल से कहा, "तुमने ऐसा क्यों किया?" शाऊल ने उत्तर दिया, "मैंने देखा कि मेरे लोग मुझे छोड़कर भाग रहे हैं, और तुम उस समय नहीं आए जो समय तुमने दिया था। और पलिश्ती सेना मिकमाश में एकत्र हो रही थी।
\p
\v 12 इसलिए मैंने सोचा, 'पलिश्ती सेना यहाँ हम पर गिलगाल में आक्रमण करने जा रही है, और मैंने अभी तक यहोवा को आशीष देने के लिए नहीं कहा है।' इसलिए मुझे लगा कि परमेश्वर की आशीष पाने के लिए होमबलि चढ़ाना जरूरी है।"
\p
\s5
\v 13 शमूएल ने उत्तर दिया, "तुमने जो भी किया वह बहुत मूर्खतापूर्ण था! तुमने यह आज्ञा नहीं मानी कि यहोवा, तुम्हारे परमेश्वर ने बलिदान के विषय में क्या आज्ञा दी थी। यदि तुमने उसका पालन किया होता, तो परमेश्वर ने तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को लंबे समय तक इस्राएल पर शासन करने की अनुमति दी होती।
\v 14 परन्तु अब तुमने जो किया है, उसके कारण तुम मर जाओगे, और तुम्हारे मरने के बाद, तुम्हारा कोई भी वंशज शासन नहीं करेगा। यहोवा एक ऐसे व्यक्ति की खोज कर रहे हैं जो राजा बनने के लिए हो, जो सिर्फ ऐसा व्यक्ति हो जिसे वह चाहते हैं, ताकि वे उसे अपने लोगों का अगुवा बन सके। यहोवा ऐसा करेंगे क्योंकि तुम्हें जो आज्ञा उन्होंने दी थी उसका तुमने पालन नहीं किया है। "
\p
\s5
\v 15 तब शमूएल गिलगाल छोड़कर गिबा तक गया। शाऊल अपने सैनिकों के साथ गिलगाल में रहा। उनमें से केवल छह सौ ही बच गए थे जो भागे नहीं थे।
\p
\v 16 शाऊल और उसके पुत्र योनातान और उनके साथ रहने वाले सैनिक बिन्यामीन के गोत्र के इलाके में गिबा शहर गए और वहाँ उन्होंने तंबू खड़े किए। पलिश्ती सेना ने मिकमाश में अपने तंबू खड़े किए।
\s5
\v 17 पलिश्ती सैनिकों के तीन दल शीघ्र ही उस स्थान को छोड़कर जहाँ उनकी सेना रह रही थी, वहाँ गए और इस्राएलियों के कस्बों पर छापे लगाए। एक दल शूआल के क्षेत्र में ओप्रा शहर की ओर उत्तर में चला गया।
\v 18 दूसरा दल पश्चिम में बेतोरोन शहर चला गया। तीसरा दल मरुभूमि के पास, सबोईम घाटी के ऊपर, इस्राएली सीमा की ओर गया।
\p
\s5
\v 19 उस समय, इस्राएल में कोई भी लोहार नहीं था। पलिश्तियों इस्राएलियों को ऐसे पुरुषों के लिए अनुमति नहीं देते थे जो ऐसा काम करें, क्योंकि वे डरते थे कि वे लोग भी लोहे की तलवारें और भाले का उपयोग करेंगे।
\v 20 इसलिए जब इस्राएली लोगों को अपने हल, या हसूँआ, कुल्हाड़ियों को धार लगाने की आवश्यक्ता होती थी, तो उन्हें पलिश्ती के पास उन्हें ले जाना पड़ता था जो उन पर धार लगाता था।
\v 21 उन्हें अपने हल और उनकी नोक को पैना करने के लिए लगभग आठ ग्राम चाँदी का भुगतान करना पड़ता था। उन्हें अपने कुल्हाड़ी या हसूँआ को धार लगाने के लिए या बैलों के अंकुशो के लिए लगभग चार ग्राम चाँदी का भुगतान करना पड़ता था।
\p
\s5
\v 22 इसलिए पलिश्ती सेना से युद्ध करते समय, इस्राएली लोहे की तलवारें और भाले नहीं बना सकते थे। शाऊल और योनातान, इन्ही इस्राएली पुरुषों के पास तलवार थी। अन्य किसी के पास तलवार नहीं थी। उनके पास केवल धनुष और तीर और कुछ अन्य हथियार थे।
\p
\v 23 युद्ध आरम्भ होने से पहले, कुछ पलिश्ती लोग मिकमाश के बाहर पर्वत के दर्रे पर गए। ताकि इसकी रक्षा कर सकें।
\s5
\c 14
\p
\v 1 एक दिन योनातान ने उस युवक से कहा, जो उसके हथियारों को ढोता था, "मेरे साथ आओ, हम उस स्थान पर जाएंगे जहाँ पलिश्ती सैनिकों ने अपने तंबू खड़े किये हैं।" अतः वे चल पड़े, परन्तु योनातन ने अपने पिता को यह नहीं बताया कि वे क्या करने जा रहे हैं।
\p
\s5
\v 2 उस दिन, शाऊल और उसके साथ छः सौ सैनिक एक अनार के पेड़ के चारों ओर बैठे थे, वहाँ गिबा के पास लोग अनाज झाड़ते थे।
\v 3 याजक अहीय्याह भी वहाँ था, जो पवित्र एपोद पहने हुए था। अहितूब का पुत्र अहीय्याह, जो इकाबोद का भाई था। इकाबोद और अहितूब एली के पुत्र पीनहास के पुत्र थे, जो शीलो में यहोवा के याजक थे।
\p कोई नहीं जानता था कि योनातान ने इस्राएली छावनी छोड़ी थी।
\p
\s5
\v 4 योनातान ने योजना बनाई कि वह और उसका जवान वे दरार में से होकर वहाँ जाएंगे जहाँ पलिश्ती थे। उस दरार के एक ओर की चट्टान को बोसेस नाम दिया गया था, और दूसरी चट्टान को सेने नाम दिया गया था।
\v 5 एक चट्टान ने उत्तर दिशा में मिकमाश की ओर देखती हुई थी, और दूसरी चट्टान दक्षिण में गिबा शहर की ओर देखती हुई थी।
\p
\s5
\v 6 योनातान ने उस युवक से कहा, जो उसके हथियारों को ढोता था, "मेरे साथ आओ। हम उन के पास जाएंगे जहाँ उन लोगों ने अपने तंबू खड़े किए हैं। हो सकता है यहोवा हमारी सहायता करें। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम केवल दो पुरुष हैं या कई लोग है; यहोवा उन्हें पराजित करने का समर्थ देंगे।"
\p
\v 7 योनातान के हथियार ढोने वाले युवक ने कहा, "जो कुछ तुम सोचते हो वह करना हमारे लिए सबसे अच्छी बात है। मैं तुम्हारी सहायता करूंगा।"
\p
\s5
\v 8 तब योनातान ने कहा, "बहुत अच्छा, मेरे साथ आओ। हम उस घाटी को पार करेंगे जहाँ पलिश्ती सेना है, उन्हें हमें देखने दो।
\v 9 यदि वे हमसे कहते हैं, 'तुम दोनो तब तक वहाँ रुकना, जब तक हम तुम्हारे पास नीचे नहीं आते,' हम वहाँ रहेंगे और उन तक ऊपर नहीं जाएंगे।
\v 10 परन्तु यदि वे हमसे कहें, 'यहाँ ऊपर आओ,' यह हमें दिखाएगा कि यहोवा हमें उनको पराजित करने में सफलता देंगे। तब हम ऊपर जाएँगे और उनसे युद्ध करेंगे। "
\p
\s5
\v 11 जब वे दोनों जन घाटी पार कर गए, तो पलिश्ती सैनिकों ने उन्हें आते देखा। उन्होंने कहा, "देखो! इब्रानी उन छेदों से बाहर निकल रहे हैं जिनमें वे छुपे हुए थे।"
\v 12 तब पलिश्ती सैनिक जो योनातान और उसके हथियारों को ले जाने वाले युवक के निकट थे। कहा, "यहाँ आओ, और हम तुमको युद्ध के विषय में कुछ सिखाएंगे!"
\p योनातान ने उस युवक से कहा जो उसके साथ था, "मेरे पीछे आओ और चढ़ाई करो, क्योंकि यहोवा उन्हें हराने में हमारी सहायता करने जा रहै हैं!"
\s5
\v 13 तो योनातान अपने हाथों और पैरों का उपयोग करके चढ़ गया, क्योंकि यह जगह बहुत ढलानवाली थी। वह युवक उसके पीछे पीछे चढ़ गया। जैसे ही योनातान चढ़ गया, उसने कई पलिश्ती सैनिकों को मार डाला, और जो युवक उसके साथ था, उसने भी योनातान के पीछे चलते हुए बहुत पलिश्ती सैनिक मारे।
\v 14 उस पहली लड़ाई में उन दोनों ने एक क्षेत्र में लगभग बीस पलिश्ती सैनिक मारे।
\p
\s5
\v 15 तब अन्य पलिश्ती सैनिक, जो छावनी में थे और जो लोग इस्राएली कस्बों पर आक्रमण कर रहे थे, जो निकट के मैदान में बाहर थे, घबरा गये। तब परमेश्वर ने धरती को हिलाकर रख दिया, और वे सभी भयभीत हो गए।
\p
\s5
\v 16 शाऊल के पहरूए बिन्यामीन के गोत्र के इलाके गिबा के नगर में थे। उन्होंने देखा कि पलिश्ती सेना के सैनिक सभी दिशाओं में भाग रहे थे।
\v 17 शाऊल ने सोचा कि उसके कुछ सैनिकों ने पलिश्ती सेना पर आक्रमण किया होगा। तो उसने उन सैनिकों से कहा जो उनके साथ थे, "यह देख के बताओ कि हमारे लोगों में से कौन यहाँ नहीं है।" इसलिए उन्होंने जांच की, और पता चला कि योनातान और उसके हथियार लेकर चलने वाला व्यक्ति जा चुके थे।
\p
\s5
\v 18 तब शाऊल ने याजक अहिय्याह से कहा, "यहाँ पवित्र सन्दूक लाओ।" क्योंकि इस्राएली लोग अपने साथ पवित्र सन्दूक लेकर आए थे।
\v 19 परन्तु शाऊल याजक से बात कर रहा था, उसने देखा कि पलिश्ती सैनिक अधिक घबरा रहे थे। तब शाऊल ने अहिय्याह से कहा, "इस समय पवित्र सन्दूक न लाओ।"
\p
\s5
\v 20 तब शाऊल ने अपने लोगों को एकत्र किया और वे युद्ध क्षेत्र की ओर गए। उन्होंने पाया कि पलिश्ती सैनिक इतने उलझन में थे कि वे एक दूसरे को अपनी तलवार से मार रहे थे।
\v 21 इससे पहले, कुछ इब्रानी पुरुषों ने अपनी सेना छोड़ दी थी और पलिश्ती सेना के साथ शामिल होने के लिए गए थे। लेकिन अब उन लोगों ने विद्रोह किया और शाऊल और योनातान और अन्य इस्राएली सैनिकों के साथ हो गए।
\s5
\v 22 कुछ इस्राएली सैनिक एप्रैम क्षेत्र के पहाड़ों में भाग गए और छिपे हुए थे। परन्तु जब उन्होंने सुना कि पलिश्ती सैनिक भाग रहे थे, तो वे नीचे आए और दूसरे इस्राएली सैनिकों के साथ हो गए और पलिश्ती सैनिकों का पीछा किया।
\v 23 इस प्रकार यहोवा ने उस दिन इस्राएलियों को बचा लिया। इस्राएली सैनिक अपने शत्रुओं को बेथोरोन शहर से आगे तक खदेड़ते गये।
\p
\s5
\v 24 इससे पहले कि शाऊल के सैनिक युद्ध में जाते शाऊल ने गंभीर घोषणा की थी, "मैं नहीं चाहता कि तुम में से कोई भी इस शाम से पहले, जब तक कि हम अपने शत्रुओं को पराजित न कर लें कोई भी कुछ नही खाएगा। यदि तुम बहुत भूखे हो और कुछ भी खाते हो तो यहोवा तुम्हें श्राप दें।
\p
\v 25 इस्राएली सेना जंगल में गई, और उन्हें भूमि पर शहद का छत्ता दिखा, परन्तु उन्होंने शहद नहीं खाया।
\v 26 वे उसे खाने से डरते थे, क्योंकि उन्होंने गंभीरता से प्रतिज्ञा की थी कि वे कुछ भी नहीं खाएंगे।
\s5
\v 27 परन्तु योनातान ने नहीं सुना था कि उसके पिता ने लोगों को एक गंभीर वचन दिया था। योनातान ने सुबह बहुत ही जल्दी छावनी को छोड़ा था और जब उसने शहद देखा, तो उसने अपनी पैदल चलने वाली छड़ी के सिरे शहद में डाला और कुछ शहद खा लिया। शहद खाने के बाद, उसे अपने शरीर में बल का अनुभव हुआ।
\p
\v 28 परन्तु इस्राएली सैनिकों में से एक ने उसे देखा और कहा, "तुम्हारे पिता ने गंभीर घोषणा की है कि यहोवा उसे श्राप देंगे जो भी आज कुछ खाए। इसलिए अब हम भूख के कारण बहुत थके हुए और कमजोर हैं क्योंकि हमने उसका पालन किया था।"
\s5
\v 29 योनातान ने कहा, "मेरे पिता ने हम सब के लिए परेशानी पैदा कर दी! देखो थोड़ा सा शहद खाने के बाद मुझमें कैसी ताज़गी आ गई है!
\v 30 यदि वह हमें शत्रुओं का पीछा करते समय जो भोजन वस्तुएँ मिली थीं वो हमें खाने की छूट होती तो हम और भी अधिक शत्रु सैनिकों को मार पाते!"
\p
\s5
\v 31 इस्राएलियों ने उस दिन मिकमाश शहर से पश्चिम तक अय्यालोन तक पलिश्ती सैनिकों का पीछा किया और मार डाला। लेकिन वे भूखे होने के कारण ज्यादा बलहीन हो गए थे।
\v 32 उन्होंने कई भेड़ों और मवेशियों को ले लिया जिन्हें पलिश्ती सैनिकों ने छोड़ दिया था। क्योंकि वे बहुत भूखे थे, उन्होंने उन जानवरों में से कुछ को खून बहाए बिना मारा और उनका माँस खा लिया।
\s5
\v 33 सैनिकों में से एक ने शाऊल से कहा, "देखो, वे लोग खून वाला माँस खाकर यहोवा के विरूद्ध पाप कर रहे हैं!" शाऊल ने उन लोगों से कहा जो उसके पास थे, "उन्होंने यहोवा की आज्ञा नहीं मानी है! यहाँ पर एक बड़ा पत्थर लुढ़का कर ले आओ!"
\p
\v 34 जब उन्होंने ऐसा किया तब उसने उनसे कहा, "जाओ और सब सैनिकों से कहो कि उनमें से प्रत्येक मेरे लिए एक बैल या भेड़ लाए, और इस पत्थर पर उन्हें मार डाले, और माँस खाने से पहले उसका खून पूरा बहा दे। खून समेत पशु का माँस खाकर वे यहोवा के विरुद्ध पाप नहीं करें। " तो उस रात सब सैनिक वहाँ पशुओं को लाये और उन्हें वहाँ मार दिया। तब शाऊल ने यहोवा की उपासना करने के लिए एक वेदी बनाई।
\s5
\v 35 यह पहली बार था कि उसने यहोवा के लिए एक वेदी बनाई थी।
\p
\s5
\v 36 तब शाऊल ने इस्राएली सैनिकों से कहा, "आज रात हम पलिश्ती सैनिकों का पीछा करें। पूरी रात उन पर आक्रमण करते रहें। उनमें से एक को भी बचकर जाने नही देना।"
\p इस्राएली सैनिकों ने उत्तर दिया, " जो भी तुम सही समझते हो हम वही करेंगे।"
\p परन्तु याजक ने कहा, "हमें यहोवा से पूछना चाहिए कि वे क्या सोचते हैं कि हमें क्या करना चाहिए।"
\v 37 तब शाऊल ने परमेश्वर से पूछा, "क्या हमें पलिश्ती सैनिकों का पीछा करना चाहिए? क्या आप उन्हें पराजित करने में हमें सफल करेंगे?" परन्तु परमेश्वर ने उस दिन शाऊल को उत्तर नहीं दिया।
\p
\s5
\v 38 तब शाऊल ने अपनी सेना के सभी अगुवों को बुलाया। उसने उनसे कहा, "परमेश्वर ने मुझे उत्तर नहीं दिया है। मुझे पूरा विश्वास है कि किसी ने पाप किया है। हमें पता होना चाहिए कि किसने क्या पाप किया है।
\v 39 यहोवा ने हमें पलिश्ती सेना से बचा लिया है। जैसे निश्चित रूप से यहोवा जीवित हैं, जिसने पाप किया है उसे मृत्युदंड दिया जाना चाहिए। चाहे पाप करने वाला मेरा पुत्र योनातान ही क्यों ना हो। "
\p उनके सैनिक जानते थे कि कौन दोषी था, लेकिन उनमें से कोई भी शाऊल से कुछ नहीं कहता था।
\s5
\v 40 तब शाऊल ने सब इस्राएली सैनिकों से कहा, "तुम एक ओर खड़े हो जाओ। मेरा पुत्र योनातान और मैं दूसरी ओर खडे रहेंगे।"
\p उनके पुरुषों ने उत्तर दिया, "जो कुछ भी तुमको अच्छा लगता है वह करो।"
\v 41 तब शाऊल ने इस्राएलियों के परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना की, "मुझे बताओ कि कौन दोषी है और कौन दोषी नहीं है।" तब याजक ने अपने पत्थर डाले और उन्हें संकेत मिला कि पाप का दोषी योनातान है या शाऊल है। अन्य पुरुष दोषी नही हैं।
\v 42 तब शाऊल ने याजक से कहा, "पत्थरों को फिर से डालो कि पता चले कि हम दोनों में से कौन दोषी है।" तो उसने वैसा ही किया, और पत्थरों ने संकेत दिया कि योनातान दोषी था।
\p
\s5
\v 43 तब शाऊल ने योनातान से कहा, "मुझे बताओ कि तुमने क्या किया है जो गलत था।"
\p योनातान ने उत्तर दिया, "मैंने थोड़ा सा शहद खा लिया था। यह मेरी छड़ी के अंत में केवल थोड़ी सी थी। क्या ऐसा करने के कारण मैं मारे जाने के लायक हूँ?"
\v 44 शाऊल ने उत्तर दिया, "हाँ, तुमको मार देना चाहिए! यदि तुम्हें इस बात के लिए मृत्युदंड नहीं दिया गया तो परमेश्वर मुझे मार डालेंगे!"
\p
\s5
\v 45 परन्तु इस्राएली सैनिकों ने शाऊल से कहा, "योनातन ने हमारे सभी इस्राएली लोगों के लिए बड़ी जीत जीती है। क्या उसे कुछ शहद खाने के लिए मार डालना चाहिए? कदापि नहीं! यहोवा के जीवन की निश्चितता, हम उसे किसी भी प्रकार कि चोट पहुंचाने की अनुमति नहीं देंगे, क्योंकि आज पलिश्तियों के सैनिकों को मारने में परमेश्वर ने योनातान की सहायता की है! "
\p यह कहकर कि इस्राएली सैनिकों ने योनातान को बचाया, और उसे मार डाला नहीं गया।
\v 46 तब शाऊल ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे पलिश्ती सैनिकों का पीछा करना छोड़ दें। अतः पलिश्ती सैनिक अपने घर लौट गए।
\p
\s5
\v 47 शासक बनने के बाद, शाऊल ने चारों ओर अपने शत्रुओं से युद्ध किया। उसने मोआबियों, अम्मोनियों, अदोमियों, सोबा के राजाओं और पलिश्तियों से युद्ध किया। जहाँ भी इस्राएली सेना ने युद्ध किया, उन्होंने अपने शत्रुओं को पराजित किया।
\v 48 शाऊल की सेना ने बहादुरी से युद्ध किया और अमालेक के लम्बे-लम्बे वंशजों को पराजित किया। उनकी सेना ने इस्राएलियों को लूटने वालों से बचाया।
\p
\s5
\v 49 शाऊल के पुत्र योनातान, यिशवी और मलकीश थे। उसकी दो पुत्रियाँ भी थीं, मेराब और उसकी छोटी बहन मीकल।
\v 50 शाऊल की पत्नी अहीमास की बेटी अहीनोअम थी। शाऊल की सेना के सेनापति शाऊल के चाचा नेर का पुत्र अब्नेर था।
\v 51 शाऊल के पिता कीश और अब्नेर के पिता नेर अबीएल का पुत्र था।
\p
\s5
\v 52 जब शाऊल जीवित था, तब उसकी सेना ने पलिश्ती सेना के विरुद्ध युद्ध किए। शाऊल जब भी किसी युवक को देखता कि वह बहादुर और बलवन्त है, तो उसे अपनी सेना में बलपूर्वक ले लेता।
\s5
\c 15
\p
\v 1 एक दिन शमूएल ने शाऊल से कहा, "यहोवा ने मुझे भेजा था ताकि तुम्हें इस्राएल का राजा होने के लिए नियुक्त करूँ। अतः यहोवा का यह संदेश सुनो:
\v 2 स्वर्गदूतों की सेनाओं के परमेश्वर यहोवा ने यह घोषणा की है: 'मैं अमालेक के वंशजों को दण्ड दूँगा क्योंकि उन्होंने इस्राएल पर आक्रमण किया था जब वे मिस्र से निकलकर आ रहे थे।
\v 3 तो अब अपनी सेना के साथ जाओ और अमालेकी लोगों पर आक्रमण करो। उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर दो और उनकी सब वस्तुओं को नष्ट कर दो - पुरुष और स्त्रियाँ, उनके बच्चे और शिशु, उनके मवेशी, भेड़ और ऊंट और गधे सबको। उनमें से किसी को भी मत छोड़ना! '"
\p
\s5
\v 4 तब शाऊल ने सेना को बुलाया, और वे तलाईम शहर में एकत्रित हुए। 200,000 सैनिक थे। उनमें से दस हजार यहूदा से थे, और अन्य शेष इस्राएली गोत्रों से थे।
\v 5 तब शाऊल अपनी सेना के साथ एक ऐसे शहर में गया जहाँ कुछ अमालेकी लोग रहते थे। सेना घाटी में छिपकर अकस्मात उन पर आक्रमण करने के लिए तैयार थी।
\s5
\v 6 तब शाऊल ने वहाँ रहने वाले केनी लोगों के समूह को यह संदेश भेजा: "मिस्र छोड़ने पर तुमने हमारे इस्राएली पूर्वजों के प्रति दया दिखाई थी। परन्तु हम सब अमालेकी लोगों को मारने जा रहे हैं, क्योंकि उन्होंने हमारे पूर्वजो का विरोध किया था। अतः तुम अमालेकी लोगों से दूर चले जाओ। यदि तुम दूर नहीं जाते, तो तुम भी मारे जाओगे। " तो जब केनी लोगों के समूह ने सुना, तो उन्होंने तुरंत उस क्षेत्र को छोड़ दिया।
\p
\v 7 तब शाऊल की सेना ने अमालेकी लोगों को पूर्व में हवीला शहर से पश्चिम में शूर शहर तक मार डाला। शूर इस्राएल और मिस्र के बीच की सीमा पर था।
\s5
\v 8 शाऊल की सेना ने अमालेकी लोगों के राजा अगाग को तो पकड़ लिया, परन्तु अन्य सब को मार डाला।
\v 9 उन्होंने न केवल अगाग को बचाया, बल्कि उन्होंने सबसे अच्छी भेड़ और बकरियों और मवेशियों को भी ले लिया। उन्होंने वह सब कुछ जो अच्छा था ले लिया। उन्होंने केवल उन जानवरों को नष्ट कर दिया जिन्हें वे बेकार मानते थे।
\p
\s5
\v 10 तब यहोवा ने शमूएल से कहा,
\v 11 "मुझे खेद है कि मैंने शाऊल को तुम्हारा राजा होने के लिए नियुक्त किया, क्योंकि उसने मेरी उपासना करना त्याग दिया है। मैंने उसे जिस काम की आज्ञा दी थी, उसने उसका पालन नहीं किया है।" जब शमूएल ने यह सुना, तो शमूएल बहुत परेशान हो गया, और उस रात वह यहोवा के सामने रोया।
\p
\s5
\v 12 अगली सुबह, शमूएल उठकर शाऊल से बात करने गया। लेकिन किसी ने शमूएल से कहा, "शाऊल कर्मेल शहर गया, जहाँ उसने अपने सम्मान के लिए एक स्मारक स्थापित किया है। अब वह यहाँ नहीं है और गिलगाल गया है।"
\p
\v 13 जब शमूएल गिलगाल में शाऊल के पास पहुँचा, तो शाऊल ने कहा, "यहोवा तुमको आशीष दें! यहोवा ने मुझे जो आज्ञा दी थी, उसका मैं ने पालन किया है।"
\p
\s5
\v 14 परन्तु शमूएल ने उत्तर दिया, "यदि यह सच है, तो मैं यह मवेशियों का रंभाना और भेड़ों का मिमयाना क्यों सुन रहा हूँ।"
\p
\v 15 शाऊल ने उत्तर दिया, "सैनिकों ने उन्हें अमालेकी लोगों से लिया है। उन्होंने सबसे अच्छी भेड़ो और मवेशियों को बचाया ताकि वे उन्हें अपने परमेश्वर यहोवा के लिए बलि चढ़ा सकें। परन्तु हमने शेष सब को नष्ट कर दिया है।"
\p
\v 16 शमूएल ने शाऊल से कहा, "बात करना बंद करो! मैं तुम्हें बताता हूँ कि कल रात यहोवा ने मुझसे क्या कहा था।"
\p शाऊल ने उत्तर दिया, "मुझे बताओ उन्होंने क्या कहा।"
\s5
\v 17 शमूएल ने कहा, "पहले तो तुम सोचते थे कि तुम महत्वपूर्ण हो। परन्तु अब तुम इस्राएल के गोत्रों के अगुवे बन गए हो। यहोवा ने तुम्हें राजा बनने के लिए नियुक्त किया।
\v 18 और यहोवा ने तुम्हें उसके लिए कुछ करने के लिए भेजा। उन्होंने तुमसे कहा, 'जाओ और उन सब पापी लोगों, अमालेकी लोगों को नष्ट कर दो। उन पर आक्रमण करके उन सब को मार डालो। '
\v 19 तो तुमने यहोवा की आज्ञा का पालन क्यों नहीं किया? तुमने उन्हें नष्ट करने के बजाय अपने लिए लूट क्यों लिया? तुमने जो किया वह गलत किया है, और वह यहोवा जानते हैं! "
\p
\s5
\v 20 शाऊल ने शमूएल से कहा, "मैंने वही किया जो यहोवा ने मुझे करने के लिए भेजा था! मैंने राजा अगाग को ले आया परन्तु अन्य सब को मार डाला!
\v 21 मेरे लोग सबसे अच्छी भेड़े और मवेशी और अन्य वस्तुएँ ले आए कि यहाँ गिलगाल में अपने परमेश्वर, यहोवा के लिए बलि चढ़ाएँ। "
\p
\s5
\v 22 परन्तु शमूएल ने उत्तर दिया,
\q1 "तुम्हारे विचार में यहोवा किस बात से अधिक प्रसन्न होते हैं, वेदी पर जलाए जाने वाले पशु और अन्य बलियों से,
\q1 या मनुष्यों द्वारा उनकी आज्ञापालन से।
\q1 उनके लिए बलि चढ़ाने की अपेक्षा यहोवा का आज्ञापालन करना अधिक उत्तम है।
\q1 यहोवा की आज्ञा के अनुसार मेढ़ो की चरबी को जलाने की उपेक्षा जो कुछ वे कहते हैं, उस पर ध्यान देना ही उत्तम है।
\q1
\v 23 परमेश्वर से विद्रोह करना जादू-टोना का सा पाप है,
\q1 और हठ करना, मूर्तिपूजा का सा पाप है है।
\q2 अतः, क्योंकि तुमने यहोवा की आअज्ञ नहीं मानी है,
\q1 उन्होंने यह घोषित किया है कि अब तुम राजा नहीं रहोगे। "
\p
\s5
\v 24 तब शाऊल ने शमूएल से कहा, "हाँ, मैंने पाप किया है। मैंने तुम्हारी आज्ञा नहीं मानी, जो यहोवा की आज्ञा थी। मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मैं डरता था कि मेरे लोग क्या कहेंगे यदि मैंने उनकी इच्छा से काम नहीं किया। इसलिए मैंने वह किया जो मेरे लोग चाहते थे।
\v 25 लेकिन अब, कृपया मुझे इस पाप के लिए क्षमा करें। और मेरे साथ वापस आओ जहाँ लोग हैं ताकि मैं यहोवा की उपासना कर सकूँ। "
\p
\s5
\v 26 परन्तु शमूएल ने उत्तर दिया, "नहीं, मैं तुम्हारे साथ वापस नहीं जाऊंगा। यहोवा ने जो कुछ तुमसे कहा था, उसे तुमने अस्वीकार कर दिया है। इसलिए उन्होंने तुम्हें भी अस्वीकार कर दिया है, और यह घोषित किया है कि अब तुम इस्राएल के राजा नहीं रहोगे। तो मैं अब तुमसे ज्यादा बात नहीं करना चाहता हूँ। "
\p
\v 27 जैसे ही शमूएल जा रहा था, शाऊल ने शमूएल के वस्त्र के किनारे पकड़कर उसे रोकने का प्रयास की, लेकिन वह फट गया।
\s5
\v 28 शमूएल ने उस से कहा, "आज यहोवा ने इस्राएल के राज्य को फाड़ कर तुमसे ले लिया है। वे किसी और को राजा बनाने के लिए नियुक्त करेंगे, जो तुम से अधिक अच्छा व्यक्ति होगा।
\v 29 और क्योंकि इस्राएलियों के गौरवशाली परमेश्वर झूठ नहीं बोलते हैं, इसलिए वे अपना मन नहीं बदलेंगे। मनुष्य कभी-कभी अपना मन बदलते हैं, लेकिन परमेश्वर ऐसा नहीं करते हैं, क्योंकि वे मानव नहीं हैं। "
\p
\s5
\v 30 तब शाऊल ने फिर से अनुरोध किया। उसने कहा, "मुझे पता है कि मैंने पाप किया है। परन्तु कृपया मुझे इस्राएलियों के अगुवों के सामने और अन्य सभी इस्राएली लोगों के सामने मेरे साथ वापस आकर मुझे आदर दे जिससे कि मैं तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की उपासना कर सकूँ। "
\v 31 अंततः शमूएल ऐसा करने के लिए तैयार हो गया, और वे सब वहाँ इकट्ठे हुए जहाँ लोग थे, और शाऊल ने वहाँ यहोवा की आराधना की।
\p
\s5
\v 32 तब शमूएल ने कहा, "राजा अगाग को मेरे पास लाओ।" तो वे अगाग को लाए। अगाग उसके सामने लाया गया था, और वह ज़ंजीर से बंधा हुआ था। उसने सोचा, "निश्चित रूप से मृत्यु का डंक दूर हुआ!"
\p
\v 33 लेकिन शमूएल ने उससे कहा,
\q1 "तुमने अपनी तलवार से कई स्त्रियों के बेटों को मार डाला है,
\q2 अब तुम्हारी मां के पास भी पुत्र नहीं होंगे। "
\m और शमूएल ने अगाग के तलवार से टुकड़े टुकड़े कर दिए, वही गिलगाल में, जहाँ इस्राएली यहोवा की उपासना करते थे।
\p
\s5
\v 34 तब शमूएल वहाँ से चला गया और रामा में अपने घर लौट आया, और शाऊल गिबा में अपने घर गया।
\v 35 शमूएल ने फिर शाऊल को कभी नहीं देखा, परन्तु शाऊल ने जो किया उसके विषय में वह बहुत दुखी था। और यहोवा भी बहुत दुखी थे कि उन्होंने शाऊल को इस्राएल का राजा बनाने के लिए नियुक्त किया था।
\s5
\c 16
\p
\v 1 अंत में, यहोवा ने शमूएल से कहा, "यह मेरा निर्णय है कि मैं शाऊल को राजा बना रहने नहीं दूंगा। इसलिए शाऊल ने जो कुछ किया है उसके विषय में तुमको उदास होने की आवश्यक्ता नहीं है। एक छोटे पात्र में जैतून का तेल लो और बैतलहम जाओ कि उस तेल से किसी का अभिषेक करो, और उसे राजा बनने के लिए नियुक्त करो। मैं तुम्हें यिशै नाम के एक व्यक्ति के पास भेज रहा हूँ, क्योंकि मैंने उसके पुत्रों में से एक को इस्राएल का राजा चुना है। "
\p
\s5
\v 2 परन्तु शमूएल ने कहा, "मुझे जाने से डर है। यदि शाऊल सुन लेगा कि मैंने राजा बनने के लिए किसी और को नियुक्त किया है, तो वह मुझे मार डालेगा।" यहोवा ने उत्तर दिया, "तुम एक गाय को ले जाओ, ऐसी गाय जिसने बच्चा नहीं दिया हो और लोगों से कहना कि तुम उसे मारकर मेरे लिए बलि चढ़ाने आये हो।
\p
\v 3 बलिदान में आने के लिए यिशै को आमंत्रित करना। जब वह आता है, तो मैं तुमको सुझाऊंगा कि तुमको क्या करना है। और मैं तुमको दिखाऊंगा कि उसके कौन से बेटे को मैंने राजा बनने के लिए चुना है। तब तुमको उसे जैतून का तेल से राजा के रूप में अभिषेक करना। "
\p
\s5
\v 4 शमूएल ने वो किया जो यहोवा ने उसे करने के लिए कहा। वह बैतलहम गया। जब शहर के अगुवे उसके पास आए, तो वे थरथराए, क्योंकि उन्हें चिंता इस बात की थी कि शमूएल उन्हें किसी बात के लिए झिड़कने आया है। उनमें से एक ने उससे पूछा, "क्या तुम हमसे शांतिपूर्वक बात करने आए हो?"
\p
\v 5 शमूएल ने उत्तर दिया, "हाँ, मैं यहोवा के लिए बलिदान देने के लिए शान्ति से आया हूँ। यहोवा के सम्मान के लिए स्वयं को अलग करो, और फिर मेरे साथ बलि चढ़ाने आओ।" तब शमूएल ने यिशै को उसके पुत्रों के साथ परमेश्वर का सम्मान करने के लिए अलग किया, और फिर उन्हें बलि के लिए आमंत्रित किया।
\p
\s5
\v 6 जब वे वहाँ पहुंचे, तो शमूएल ने यिशै के सबसे बड़े बेटे एलीआब को देखा, और सोचा, "निश्चित रूप से जिसे यहोवा ने इसी को राजा नियुक्त किया है!"
\p
\v 7 परन्तु यहोवा ने शमूएल से कहा, "ऐसा मत सोचो कि मैंने इसे चुना है क्योंकि वह सुन्दर और बहुत लंबा है, नहीं, मैंने उसे नहीं चुना है। मैं लोगों का मूल्यांकन वैसे नहीं करता जैसे लोग करते हैं। तुम लोग रूपरंग देखकर मूल्यांकन करते हो, परन्तु मैं उनके भीतरी व्यक्तित्व को देखकर मूल्यांकन करता हूँ। "
\p
\s5
\v 8 तब यिशै ने अपने अगले बड़े पुत्र अबीनादाब से कहा कि आगे बढ़कर शमूएल के सामने चले। लेकिन जब उसने ऐसा किया, तो शमूएल ने कहा, "यहोवा ने इसे भी नहीं चुना है।"
\v 9 तब यिशै ने अपने अगले बड़े बेटे शम्मा को आगे बढ़ने के लिए कहा। वह आगे बढ़ गया, लेकिन शमूएल ने कहा, "यहोवा ने इसे भी नहीं चुना है।"
\v 10 इसी प्रकार, यिशै ने अपने चारों बेटों को शमूएल के सामने चलने के लिए कहा। लेकिन शमूएल ने यिशै से कहा, "यहोवा ने इन पुत्रों में से किसी को भी नहीं चुना है।"
\s5
\v 11 तब शमूएल ने यिशै से पूछा, "क्या तुम्हारे कोई और पुत्र भी हैं?" यिशै ने उत्तर दिया, "मेरा सबसे छोटा पुत्र यहाँ नहीं है, वह भेड़ों की देखभाल करने के लिए बाहर खेतों में है।" शमूएल ने कहा, " उसे यहाँ लाने के लिए किसी को भेजो! हम तब तक खाने के लिए नहीं बैठेंगे जब तक कि वह यहाँ न आए।"
\p
\v 12 अतः यिशै ने दाऊद को लाने के लिए किसी को भेजा। और जब दाऊद पहुंचा, तो शमूएल ने देखा कि वह सुन्दर और स्वस्थ है और उज्ज्वल आंखें हैं। तब यहोवा ने कहा, "यही है जिसे मैंने चुना है, राजा बनने के लिए उसका अभिषेक करो।"
\p
\s5
\v 13 इस प्रकार दाऊद अपने बड़े भाइयों के सामने खड़ा हुआ, शमूएल ने तेल का पात्र लिया जिसे वह साथ लाया और दाऊद के सिर पर तेल डाला और उसे परमेश्वर की सेवा करने के लिए अलग कर दिया। सब ने भोजन किया और शमूएल वहाँ से निकल गया और रामा को लौट आया। परन्तु यहोवा के आत्मा दाऊद पर शक्तिशाली रूप से आए और जीवनभर दाऊद के साथ रहे।
\p
\s5
\v 14 परमेश्वर के आत्मा ने शाऊल का साथ छोड़ दिया। यहोवा ने अपने आत्मा के स्थान पर एक दुष्ट-आत्मा का प्रवेश कराया कि वह इसे पीड़ित करती रहे।
\p
\v 15 उसके एक सेवक ने उससे कहा, "यह स्पष्ट है कि परमेश्वर द्वारा भेजी गई एक दुष्ट-आत्मा तुमको डरा रही है।
\v 16 अतः हमारा सुझाव है कि तुम हमें, अपने सेवकों को ऐसे व्यक्ति की तलाश करने की आज्ञा दो जो वीणा बजाता हो। जब भी दुष्ट-आत्मा तुमको परेशान करेगी तो वह वीणा बजाए। तो तुम शांत हो जाओगे और तुम फिर से सामान्य हो जाओगे। "
\p
\s5
\v 17 शाऊल ने उत्तर दिया, "ठीक है, मेरे लिए एक ऐसे व्यक्ति को खोजो जो अच्छी तरह से वीणा बजा सके, और उसे मेरे पास लाओ।"
\p
\v 18 उसके कर्मचारियों में से एक ने उससे कहा, "बैतलहम शहर में यिशै नाम का एक व्यक्ति के पास एक पुत्र है जो वीणा बजाता है। इसके अतिरिक्त, वह एक बहादुर व्यक्ति है, और एक योग्य सैनिक भी है। वह सुन्दर है और वह हमेशा बुद्धिमानी से बोलता है। और यहोवा हमेशा उसकी रक्षा करते हैं। "
\p
\v 19 तब शाऊल ने यिशै के पास कुछ दूत भेजे। उन्होंने यिशै से कहा, "अपने पुत्र दाऊद को जो भेड़ों की देखभाल करता है, मेरे पास भेजो।"
\s5
\v 20 तब उन्होंने जाकर यिशै से कहा, तो वह मान गया और एक जवान बकरी, दाखरस का एक पात्र, एक गधा जिस पर उसने कुछ रोटी रखी और उन्हें दाऊद को दे दिया। ताकि शाऊल के सामने उपस्थित हो सके।
\p
\v 21 तब दाऊद शाऊल के पास गया और उसके लिए काम करना आरंभ कर दिया। शाऊल ने दाऊद को बहुत पसंद किया, और जब शाऊल युद्ध में लड़ने के लिए जाता तो वह शाऊल के हथियारों को ढ़ोने वाला बन गया।
\s5
\v 22 तब शाऊल ने एक संदेशवाहक को यिशै के पास भेजा और उसे बताया, "मैं दाऊद से प्रसन्न हूँ। कृपया उसे यहाँ रहने दो ताकि वह मेरे लिए काम करे।"
\p
\v 23 यिशै सहमत हो गया, और उसके बाद, जब भी दुष्ट-आत्मा जिसे परमेश्वर ने शाऊल को पीड़ित करने के लिए नियुक्त किया था, उसे पीड़ित करती तब दाऊद वीणा बजाता और शाऊल शांत हो जाता, और दुष्ट-आत्मा उसे छोड़ देती थी।
\s5
\c 17
\p
\v 1 पलिश्तियों ने इस्राएली सेना से युद्ध करने के लिए अपनी सेना एकत्र की। वे सोको के पास एकत्र हुए जहाँ यहूदा के वंशज रहते थे। उन्होंने सोको और अजेका के बीच एपेसदम्मीन में अपने तंबू खड़े किये।
\s5
\v 2 शाऊल ने एला घाटी के पास इस्राएली सेना को एकत्र किया, और उन्होंने वहाँ अपने तंबू खड़े किए। तब वे सभी अपने स्थान में चले गए, वे पलिश्तियों से लड़ने के लिए तैयार थे।
\v 3 इसलिए पलिश्ती और इस्राएली सेनाओं ने एक-दूसरे का सामना किया। वे दो पहाड़ियों पर थे, उनके बीच घाटी थी।
\p
\s5
\v 4 तब गत शहर का गोलियात पलिश्ती छावनी से निकला। वह एक महान योद्धा था, वह तीन मीटर लंबा था।
\v 5 उसने अपने सिर की रक्षा के लिए कांस्य से बना टोप पहना था, और उसने अपने शरीर की रक्षा के लिए धातु से बने कवच को पहना था। धातु के कवच का वजन पचास किलोग्राम था।
\s5
\v 6 उसने अपने पैरों पर कांस्य पहने थे। उसके पीछे एक छोटा कांस्य भाला था।
\v 7 उसके पास एक बड़ा भाला भी था। उसके ऊपर एक रस्सी का मूठ था ताकि उसे भलि-भांति फेंक सके। उसका फल सात किलोग्राम का था। गोलियात की विशाल ढाल लेकर एक सैनिक उसके सामने चलता था।
\p
\s5
\v 8 गोलियात वहाँ खड़ा हुआ और इस्राएली सेना को ललकारा, "मैं देख सकता हूँ कि तुम युद्ध के लिए तैयार हो, लेकिन तुम मुझसे लड़ नहीं पाओगे। तुम देख सकते हो कि मैं एक पलिश्ती सैनिक हूँ जो युद्ध के लिए तैयार हूँ, लेकिन तुम बस शाऊल के दास एक व्यक्ति को चुनें जो तुम सभी के लिए युद्ध कर सकता है और उसे यहाँ मेरे पास भेजो!
\v 9 यदि वह मेरे साथ युद्ध करके मुझे मारता है, तो मेरे साथी पलिश्ती सभी तुम्हारे गुलाम होंगे। लेकिन यदि मैं उसे पराजित करता हूँ और उसे मार डालता हूँ, तो तुम सभी इस्राएली हमारे दास होंगे।
\s5
\v 10 तुम में से कोई भी इस्राएली पुरुष मुझे पराजित नहीं कर सकता! मेरे पास एक व्यक्ति भेजो जो मेरे साथ युद्ध करे! "
\v 11 जब शाऊल और सब इस्राएली सैनिकों ने यह सुना, तो वे बहुत डरे हुए थे।
\p
\s5
\v 12 अब यिशै का पुत्र दाऊद एप्राती के वंश से था। वह यहूदा के गोत्र के क्षेत्र में बैतलहम में रहता था। यिशै के आठ बेटे थे। जब शाऊल राजा था, यिशै पहले से ही बहुत बूढ़ा हो गया था।
\v 13 यिशै के तीन सबसे बड़े बेटे, एलीआब, अबीनादाब और शम्मा, शाऊल के साथ पलिश्तियों से लड़ने के लिए गए थे।
\s5
\v 14 दाऊद यिशै का सबसे छोटा बेटा था। जबकि उसके तीन सबसे बड़े भाई शाऊल के साथ थे,
\v 15 दाऊद आगे-आगे चला गया। कभी-कभी वह शाऊल की छावनी में जाता था, और कभी-कभी वह अपने पिता की भेड़ों की देखभाल करने के लिए बैतलहम में रहा करता था।
\p
\v 16 चालीस दिनों तक गोलियात पलिश्ती छावनी से निकलता और इस्राएलियों की सेना का मज़ाक उड़ाता। वह इस्राएलियों को कहता की अपने में से एक व्यक्ति को चुनों जो मुझसे युद्ध करे। वह प्रतिदिन सुबह और शाम ऐसा किया करता था।
\p
\s5
\v 17 एक दिन, यिशै ने दाऊद से कहा, "यहाँ भुना हुआ अनाज और दस रोटी है। इन्हें शीघ्र अपने बड़े भाइयों के पास ले जाओ।
\v 18 और यहाँ पनीर के दस बड़े टुकड़े हैं। उन्हें उनके अधिकारी के पास ले जाओ। और देखो की तुम्हारे बड़े भाइयों के साथ क्या चल रहा हैं। फिर यदि वे सुरक्षित हैं, तो यह दिखाने के लिए कोई निशानी लाओ कि वे ठीक हैं।
\p
\s5
\v 19 तेरे भाई शाऊल और अन्य सभी इस्राएली सैनिकों के साथ हैं, वे पलिश्तियों से युद्ध करने की तैयारी में एला घाटी के पास डेरा डाले हुए हैं। "
\v 20 तब दाऊद ने भेड़ों की देखभाल करने के लिए एक और चरवाहे की व्यवस्था की। अगली सुबह यिशै के कहने के अनुसार उसने खाना लिया और इस्राएली छावनी में गया। वह वहाँ पहुँचा तो इस्राएली सैनिक युद्ध के मैदान में जा रहे थे। चलते हुए वे युद्ध का नारा लगा रहे थे।
\v 21 पलिश्ती सेना और इस्राएली सेना पहाड़ियों के किनारों पर खड़ी, एक दूसरे का सामना कर रही थी और युद्ध के लिए तैयार थी।
\s5
\v 22 दाऊद ने उस व्यक्ति को भोजन दिया जो युद्ध के साधन की देखभाल कर रहा था। उसने उसे उस भोजन की देखभाल करने के लिए कहा जो वह लाया था, और फिर वह गया और अपने बड़े भाइयों को नमस्कार किया।
\v 23 जब वह उनके साथ बात कर रहा था, उसने देखा कि गोलियात पलिश्ती सैनिकों में से बाहर निकलकर इस्राएलियों को ललकार रहा है और उससे युद्ध करने के लिए किसी को भेजने की चुनौती दे रहा है। दाऊद ने सुना जो गोलियात कह रहा था।
\v 24 गोलियात को देखकर इस्राएली सैनिक डर गए और भागने लगे।
\s5
\v 25 वे एक-दूसरे से कह रहे थे, " देखो! वह हमारे पास आ रहा है और सुनों कि वह इस्राएलियों की कैसे निंदा कर रहा है! राजा कहता है कि वह इस व्यक्ति को मारने वाले को बड़ा इनाम देगा। वह यह भी कहता है कि वह उसकी पुत्री का विवाह उससे कर देगा, और उस व्यक्ति के परिवार को कर भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होगी। "
\p
\s5
\v 26 दाऊद ने उन लोगों में से कुछ से बात की जो उसके पास खड़े थे। उसने कहा, "यह पलिश्ती-यह खतनारहित व्यक्ति सर्वसामर्थी परमेश्वर की निंदा नहीं कर सकता। उस व्यक्ति को क्या दिया जाएगा जो इस पलिश्ती को मारे और हम इस्राएलियों को लज्जित करने से रोकना है?"
\p
\v 27 पुरुषों ने उसे वही बात बताई जो दूसरे पुरुषों ने कहा था, राजा गोलियात को मारने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए क्या करेगा।
\p
\s5
\v 28 परन्तु जब दाऊद के सबसे बड़े भाई एलीआब ने उसे पुरुषों से बात करते देखा, तो वह गुस्से में आ गया। उसने दाऊद से कहा, "तुम यहाँ क्यों आए हो? क्या कोई उन भेड़ों की देखभाल कर रहा है जिन्हें तुमने मरुभूमि में छोड़ा है? मुझे पता है कि तुम सिर्फ एक परेशानी लाने वाले लड़के हो! तुम सिर्फ लड़ाई देखना चाहते हो!"
\p
\v 29 दाऊद ने उत्तर दिया, "क्या मैंने कुछ गलत किया है? मैं केवल एक सवाल पूछ रहा था!"
\v 30 फिर उसने दूसरे व्यक्ति के पास जाकर वही सवाल पूछा, लेकिन उस व्यक्ति ने उसे वही उत्तर दिया। हर बार जब उसने किसी से पूछा, तो उसे वही उत्तर मिला।
\s5
\v 31 अन्त में, किसी ने राजा शाऊल से कहा कि दाऊद ने क्या कहा था, और शाऊल ने किसी को दाऊद को उसके पास लाने के लिए भेजा।
\p
\v 32 दाऊद ने राजा शाऊल से कहा, "उस पलिश्ती व्यक्ति की वजह से किसी को भी चिंता नहीं करनी चाहिए। मैं जाऊंगा और उसके साथ युद्ध करूँगा!"
\p
\v 33 शाऊल ने दाऊद से कहा, "तुम केवल एक जवान लड़के हो, और वह अपने पूरे जीवन में एक बहुत शक्तिशाली सैनिक रहा है। इसलिए तुम उसके साथ युद्ध नही कर पाओगे!"
\p
\s5
\v 34 दाऊद ने उत्तर दिया, "मैं कई वर्षों से अपने पिता की भेड़ों की रखवाली कर रहा हूँ। जब भी शेर या भालू आया और भेड़ का बच्चा ले गया,
\v 35 तब मैं गया और उस पर वार किया और भेड़ के बच्चे को उसके मुंह से बचा लिया। तब मैंने उस जानवर को उसके जबड़े से पकड़ा और उसे मार डाला।
\s5
\v 36 मैंने शेर और भालू दोनों को मार डाला है। और मैं इस पलिश्ती के साथ भी ऐसा ही करूंगा, क्योंकि उसने सशक्त परमेश्वर की सेना को अपमानित किया है!
\s5
\v 37 यहोवा ने मुझे शेरों और भालू के पंजे से बचा लिया है, और वे मुझे इस पलिश्ती से भी बचाएँगे! "तब शाऊल ने दाऊद से कहा," ठीक है, जाओ और उससे युद्ध करो, और मुझे आशा है कि यहोवा तुम्हारी सहायता करेंगे! "
\p
\v 38 तब शाऊल ने अपने वस्त्रों को दाऊद को दिया जो कि वह हमेशा युद्ध में पहनता था, और उसने उसे कांस्य टोप और धातु का कवच भी दिया।
\s5
\v 39 दाऊद ने इन को पहना। तब उसने उन पर अपनी तलवार रखी और चलने का प्रयास की। लेकिन वह नहीं चल सका, क्योंकि वह उन को पहनने का आदी नहीं था। तब दाऊद ने शाऊल से कहा, "मैं इन वस्त्रों को पहनकर युद्ध नहीं कर सकता, क्योंकि मैं उन्हें पहनने का आदी नहीं हूँ!" तो उसने उन्हें उतार दिया।
\p
\v 40 फिर उसने पैदल चलने वाली अपनी लाठी ली; और फिर नाले में से पाँच चिकने पत्थरों को चुना। उसने उन्हें अपने कंधे के थैले में रखा। फिर उसने अपना गोफन अपने हाथ में लिया और गोलियात की ओर चलना शुरू कर दिया।
\p
\s5
\v 41 गोलियात दाऊद की ओर चला , जो सैनिक उसकी ढाल को लेकर उसके सामने चल रहा था। जब वह दाऊद के पास पहुँचा,
\v 42 उसने दाऊद को बारीकी से देखा। उसने देखा कि दाऊद का एक सुंदर चेहरा और स्वस्थ शरीर था, परन्तु वह केवल एक जवान लड़का था। उसने दाऊद का ठट्ठा किया।
\v 43 उसने दाऊद से कहा, " तुम मेरे पास लाठी ले कर आ रहे हो क्या तुम यह सोचते हो कि मैं कोई कुत्ता हूँ?" तब उसने दाऊद हानि के लिए अपने देवताओं को पुकारा।
\s5
\v 44 उसने दाऊद से कहा, "मेरे पास आओ, मैं तुम्हें मार कर तुम्हारे मृत शरीर को पक्षियों और जंगली जानवरों को खाने के लिए दूंगा!"
\p
\v 45 दाऊद ने उत्तर दिया, "तुम मेरे पास तलवार और भाला और एक छोटे से भाले के साथ आ रहे हो। परन्तु मैं तुम्हारे पास सेनाओं के यहोवा के नाम से आ रहा हूँ। वे परमेश्वर जिनकी इस्राएली सेना आराधना करती है, जिनकी तुमने निंदा की है।
\s5
\v 46 आज यहोवा तुम्हें पराजित करने में मुझे सक्षम करेंगे। मैं तुम्हें मार डालूंगा और तुम्हारा सिर काट दूंगा। और हम इस्राएली कई पलिश्ती सैनिकों को मार डालेंगे और तुम्हारे शरीर को पक्षियों और जंगली जानवरों को खाने के लिए देंगे। और दुनिया में हर कोई इसके विषय में सुनेगा और जान लेगा कि हम इस्राएली लोग एक सशक्त परमेश्वर की आराधना करते हैं।
\v 47 और यहाँ सब लोग जान लेंगे कि यहोवा तलवार या भाले के बिना लोगों को बचा सकते हैं। यहोवा हमेशा अपनी लड़ाई जीतते हैं, और वे हमें तुम सभी पलिश्तियों को हराने में सक्षम बनाते हैं। "
\p
\s5
\v 48 जैसे ही गोलियात दाऊद पर वार करने के लिए निकट आया, दाऊद उसकी ओर भागा।
\v 49 उसने अपना हाथ उसके कंधे के थैले में डाला और एक पत्थर निकालकर अपनी गोफन में रखा और घुमाकर गोलियात को मारा। पत्थर गोलियात के सिर में लगा और खोपड़ी तोड़ दी, और वह भूमि पर गिर गया।
\p
\s5
\v 50-51 तब दाऊद भाग कर गोलियात पर खड़ा हुआ। उसने गोलियात की तलवार उसकी म्यान से खींच ली और उसे उसी से मार डाला, और फिर उसका सिर काट दिया। इस तरह दाऊद ने अपनी तलवार के बिना पलिश्ती को हरा दिया। उसने केवल एक गोफन और एक पत्थर का उपयोग किया था!
\p जब अन्य पलिश्तियों ने देखा कि उनका महान योद्धा मर चुका है, तो वे भागने लगे।
\s5
\v 52 इस्राएली पुरुष ललकार कर उनके पीछे भागे। उन्होंने गत शहर और एक्रोन के द्वार तक उनका पीछा किया। भागते-भागते उन्होंने उन्हें मार डाला और शारीम से गत और एक्रोन तक मार्ग पलिश्तियों की लाशों से भरा था।
\v 53 जब इस्राएली पलिश्तियों का पीछा करके लौट आए, तो उन्होंने पलिश्ती छावनी लूट ली।
\v 54 दाऊद बाद में गोलियात के सिर को यरूशलेम ले गया, परन्तु उसने गोलियात के हथियारों को अपने तम्बू में रखा।
\p
\s5
\v 55 जब शाऊल ने दाऊद को गोलियात की और जाते देखा, तो उसने अपनी सेना के सेनापति अब्नेर से पूछा, "अब्नेर, यह जवान किसका पुत्र है?" अब्नेर ने उत्तर दिया, "तुम्हारे जीवन की शपथ, मुझे नहीं पता।"
\p
\v 56 तब राजा ने कहा, "पता लगाओ कि वह किसका पुत्र है!"
\p
\s5
\v 57 बाद में, जैसे दाऊद गोलियात को मारकर लौट आया, अब्नेर उसे शाऊल के पास ले गया। दाऊद गोलियात का सिर ले जा रहा था।
\p
\v 58 शाऊल ने उससे पूछा, "हे जवान, तुम किसके पुत्र हो?" दाऊद ने उत्तर दिया, "महोदय, मैं तुम्हारे दास यिशै का पुत्र हूँ, जो बैतलहम में रहता है।"
\s5
\c 18
\p
\v 1 शाऊल के साथ बात करने के बाद, दाऊद की भेंट शाऊल के पुत्र योनातान से हुई। योनातान को तुरंत दाऊद पसंद आया; सच तो यह है की वह उससे प्रेम करने लगा।
\v 2 उस दिन से, शाऊल ने दाऊद को उसकी सेवा करने के लिए रखा; उसने उसे घर वापस जाने नहीं दिया।
\s5
\v 3 क्योंकि योनातान दाऊद से बहुत प्रेम करता था, उसने दाऊद के साथ एक गंभीर समझौता किया। उन्होंने एक दूसरे को वचन दिया कि वे सदैव मित्र रहेंगे।
\v 4 योनातान ने अपना बाहरी वस्त्र उतार कर दाऊद को दे दिया। उसने दाऊद को अपने सैनिक की कटिबन्ध, अपनी तलवार, धनुष और तीर और अपनी कमरबन्ध भी दी।
\p
\s5
\v 5 शाऊल दाऊद को जहाँ भी भेजता, वह वहाँ जाता था। और शाऊल ने उसे जो भी करने के लिए कहा, दाऊद ने इसे बहुत सफलतापूर्वक किया। अतः, शाऊल ने दाऊद को सेना में एक सेनापति नियुक्त किया। सेना के सभी अधिकारियों और अन्य पुरुषों ने भी इसको स्वीकार किया।
\p
\s5
\v 6 परन्तु जब दाऊद ने गोलियात को मार डाला था, और सेना घर लौट रही थी, तब इस्राएली स्त्रियाँ शहरों और कस्बों से निकलीं। उन्होंने गाते, नाचते, डफ और विणा बजाते हुए शाऊल को बधाई दी।
\v 7 नाचते हुए उन्होंने यह गीत गाया:
\q1 "शाऊल ने एक हजार शत्रु सैनिकों को मार गिराया,
\q2 परन्तु दाऊद ने दस हजार को मार गिराया है। "
\p
\s5
\v 8 जब शाऊल ने उन्हें गाते हुए सुना, तो उसे यह अच्छा नहीं लगा। उसका खून खोल उठा था. उसने मन में कहा, "वे कह रही हैं कि दाऊद ने दस हजार लोगों की हत्या की, लेकिन मैंने केवल एक हजार की हत्या कर की है। यों तो वे शीघ्र ही उसे अपना राजा बनाना चाहेंगे!"
\v 9 उस समय से, शाऊल दाऊद पर विशेष ध्यान रखने लगा क्योंकि उसे संदेह हो गया था कि दाऊद राजा बनने का प्रयास करेगा।
\p
\s5
\v 10 अगले दिन, परमेश्वर द्वारा भेजी गयी दुष्ट-आत्मा ने अचानक शाऊल को वश में किया। वह अपने घर में एक पागल के सामान व्यवहार करने लगा। दाऊद उसके लिए प्रतिदिन की समान विणा बजा रहा था। शाऊल ने अपने हाथ में एक भाला पकड़ रखा था,
\v 11 उसने दाऊद पर उससे वार कर दिया, यह सोचकर कि, "मैं दाऊद को भाले के साथ दीवार में जड़ दूँगा!" उसने दो बार ऐसा किया, परन्तु दाऊद दोनों बार बच गया।
\p
\v 12 यह तो स्पष्ट हो गया कि यहोवा ने शाऊल को त्याग दिया था, परन्तु वे दाऊद की सहायता कर रहे थे, शाऊल दाऊद से डरता था।
\s5
\v 13 अतः उसने दाऊद को एक हजार सैनिकों पर सेनापति नियुक्त किया और दाऊद को स्वयं से दूर भेज दिया, वह सोचता था कि दाऊद युद्ध में मारा जाएगा। परन्तु जब दाऊद युद्ध में अपने सैनिकों का नेतृत्व करता था,
\v 14 वह सदैव सफल होता था, क्योंकि यहोवा उसकी सहायता कर रहे थे।
\s5
\v 15 जब शाऊल ने सुना कि दाऊद और उसके सैनिक बहुत सफल हो रहे हैं, तो वह दाऊद से और अधिक डर गया।
\v 16 परन्तु इस्राएल और यहूदा के सभी लोग दाऊद से प्रेम करते थे, क्योंकि वह युद्ध में सैनिकों का बहुत सफलतापूर्वक नेतृत्व करता था।
\p
\s5
\v 17 एक दिन शाऊल ने दाऊद से कहा, "यदि तुम यहोवा के लिए पलिश्तियों से युद्ध करते हो तो मैं अपनी बड़ी पुत्री मेरबा से तुम्हारा विवाह करूंगा।" उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उसने सोचा था, "मैं अपने आप तो दाऊद से छुटकारा पाने प्रयास नहीं करूंगा। यह काम मैं पलिश्तियों करने देता हूँ।"
\p
\v 18 परन्तु दाऊद ने शाऊल से कहा, "मैं एक महत्वपूर्ण व्यक्ति नहीं हूँ, और मेरा परिवार भी महत्वपूर्ण नहीं है। इसके अतिरिक्त मेरा कुल भी महत्वपूर्ण इस्राएली कुल नहीं है। इसलिए मैं तुम्हारा दामाद बनने के योग्य नहीं हूँ । "
\s5
\v 19 जब समय आया की मेरबा को दाऊद की पत्नी होने के लिए दिया जाये, तो शाऊल ने उसे महोलाई अद्रीएल नाम के एक व्यक्ति को दे दिया।
\p
\s5
\v 20 शाऊल की दूसरी बेटी मीकल, दाऊद से प्रेम करती थी। जब शाऊल को उस विषय में बताया गया तो वह प्रसन्न हुआ।
\v 21 उसने सोचा, "मैं उसे मीकल दूंगा, ताकि वह उसे फँसा सके, और पलिश्ती उसे मारने में सक्षम हों।" इसलिए उसने दाऊद से कहा, "तुम मीकल से विवाह कर सकते हो," और यह कहकर, उसने दूसरी बार संकेत दिया कि दाऊद उसका दामाद बन जाएगा।
\p
\s5
\v 22 शाऊल ने अपने सेवकों से कहा, "दाऊद से निजी तौर पर बात करो, और उससे कहो, 'सुनो, राजा तुम से प्रसन्न है, और हम सब उसके सेवक तुमसे प्रेम करते हैं। इसलिए अब हम सोचते हैं कि तुमको मीकल से विवाह कर लेना चाहिए और राजा का दामाद बनना चाहिए। ''
\p
\s5
\v 23 अतः उन्होंने दाऊद से ऐसी चर्चा की। परन्तु दाऊद ने कहा, "राजा का दामाद बनना बहुत अच्छा सम्मान होगा। परन्तु मेरे विचार से मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि मैं केवल एक गरीब और महत्वहीन व्यक्ति हूँ।"
\p
\v 24 शाऊल के सेवक ने उसे बताया कि दाऊद ने क्या कहा था।
\s5
\v 25 शाऊल ने उत्तर दिया, "जाओ और दाऊद से कहो, मीकल से विवाह करने के लिए तुम्हें सौ पलिश्तियों को मारकर उनकी खलड़ियाँ काटकर लानी होंगी कि सिद्ध हो कि तुम ने उन्हें वास्तव में मारा है तब राजा तुम्हें मीकल से विवाह करने की अनुमति देगा। इस प्रकार वह अपने शत्रुओं से बदला लेगा। '' परन्तु सच तो यह है कि शाऊल चाहता था कि, ऐसे युद्ध में दाऊद पलिश्तियों के हाथों मारा जाये।
\p
\v 26 जब सेवकों ने दाऊद को राजा की बात सुनाई, तो वह बहुत प्रसन्न हुआ कि वह ऐसा करके राजा का दामाद बन सकता था। राजा ने इसके लिए दाऊद को समय दे दिया था।
\s5
\v 27 परन्तु समय समाप्त होने से पहले ही दाऊद और उसके लोग आ गए, और एक सौ नहीं, परन्तु दो सौ पलिश्तीयों को मारा और उनकी खलडियाँ लेकर आए, और शाऊल के देखते हुए उन्हें गिना कि राजा की शर्त पूरी हो और वह शाऊल का दामाद बन सके। अतः शाऊल विवश हो गया कि मीकल का विवाह दाऊद से करे।
\p
\v 28 परन्तु जब शाऊल को समझ में आया कि यहोवा दाऊद की सहायता कर रहे थे, और उसकी पुत्री दाऊद से प्रेम करती थी,
\v 29 वह दाऊद से और अधिक डर गया। अतः जब तक शाऊल जीवित था, वह दाऊद का शत्रु बना रहा।
\p
\s5
\v 30 पलिश्ती सेनाएं बार-बार इस्राएलियों से युद्ध करने आईं, और जब-जब युद्ध हुआ तब-तब दाऊद और उसके सैनिक शाऊल के अन्य सेनापतियों में से से से अधिक सफल रहे थे। परिणामस्वरूप, दाऊद बहुत प्रसिद्ध हो गया।
\s5
\c 19
\p
\v 1 तब शाऊल ने अपने सब कर्मचारियों और उसके पुत्र योनातान से आग्रह किया कि वे दाऊद को मार डालें। परन्तु योनातान दाऊद को बहुत पसंद करता था।
\v 2 इसलिए उसने दाऊद को चेतावनी दी, "मेरे पिता शाऊल तुम्हें मारने के लिए उपाय खोज रहे हैं। इसलिए सावधान रहो। कल सुबह जाओ और मैदान में छिपने के लिए एक जगह खोजो।
\v 3 मैं अपने पिता से वहाँ जाने के लिए कहूंगा। जब हम वहाँ होंगे। मैं उनसे तुम्हारे विषय में बात करूंगा। तब मैं तुम्हें वह सब कुछ बताऊंगा जो वह मुझसे कहेंगा। "इसलिए दाऊद ने वही किया जो योनातन ने उसे करने के लिए कहा था।
\p
\s5
\v 4 अगली सुबह, योनातान ने अपने पिता के साथ बातें करते हुए, दाऊद के विषय में कई अच्छी बातें कहीं। उसने कहा, "तुमको अपने दास दाऊद को हानि पहुंचाने के लिए कभी भी कुछ नहीं करना! उसने कभी तुमको हानि पहुंचाने के लिए कुछ भी नहीं किया है! उसने जो भी किया है, वह तुम्हारी सहायता के लिए ही था।
\v 5 जब उसने पलिश्ती सेना के महान सैनिक गोलियात से युद्ध किया तब वह मारे जाने के संकट में था। उसकी हत्या के लिये दाऊद को सक्षम करके, यहोवा ने इस्राएल के सभी लोगों को बड़ी विजयी दिलाई थी। उसे देखकर तुम भी बहुत प्रसन्न हुए थे,अब तुम ही दाऊद को हानि पहुंचाने का यत्न क्यों चाहते हो? उसे मारने का कोई कारण नहीं है, क्योंकि उसने कुछ भी गलत नहीं किया है! "
\p
\s5
\v 6 शाऊल ने योनातान कि, उसकी बात सुनी। तब शाऊल ने कहा, "मैं सच्ची प्रतिज्ञा करता हूँ, यहोवा के जीवन की निश्चितता, मैं दाऊद को नहीं मारूँगा।"
\p
\v 7 इसके बाद, योनातान ने दाऊद को बुलाया और उसे बताया कि उसके और शाऊल के बीच क्या बात हुई थी। तब योनातान ने दाऊद को शाऊल के पास लाया, और दाऊद ने शाऊल की पहले जैसी ही सेवा की।
\p
\s5
\v 8 एक दिन फिर से युद्ध शुरू हुआ, और दाऊद ने पलिश्तियों के विरुद्ध अपने सैनिकों का नेतृत्व किया। दाऊद की सेना ने उन पर आक्रमण किया, जिसके परिणामस्वरूप पलिश्ती सेना भाग खड़ी हुई।
\p
\v 9 परन्तु एक दिन शाऊल अपने घर में बैठा था, तब अचानक यहोवा से भेजी गई एक दुष्ट आत्मा शाऊल पर आई। दाऊद शाऊल के लिए वीणा बजा रहा था।
\s5
\v 10 शाऊल ने दाऊद पर भाला फेंका ताकि भाला दाऊद को बेधते हुए दीवार में धस जाए। दाऊद झुक गया, और भाले के वार से बाख गया। भाला दीवार में फंस गया और दाऊद अंधेरे में भाग गया।
\p
\v 11 तब शाऊल ने दाऊद के घर दूत भेजे। उसने उन्हें घर की चौकसी करने की आज्ञा दी और कहा कि जब वह अगले दिन सुबह घर से निकले तो उसकी हत्या कर देना। लेकिन दाऊद की पत्नी मीकल ने उसे देख लिया और उसे चेतावनी दी, "अपने जीवन को बचाने के लिए, तुम्हें आज रात ही भाग जाना चाहिए, क्योंकि यदि तुम ऐसा नहीं करोगे, तो तुम कल मारे जाओगे!"
\s5
\v 12 इसलिए उसने दाऊद को खिड़की से बाहर उतार दिया, और वह भाग गया।
\v 13 तब मीकल ने एक मूर्ति ली जो घर में थी और उसे बिस्तर में रख दिया। उसने इसे दाऊद के कपडो से ढक दिया, और मूर्ति के सिर पर कुछ बकरी के बाल रख दिए।
\p
\s5
\v 14 जब दूत अगली सुबह घर आए, तो उसने उनसे कहा कि दाऊद बीमार है और बिस्तर से बाहर नहीं आ सकता।
\p
\v 15 जब उन्होंने शाऊल को बताया, तो उन्होंने उन्हें दाऊद के घर वापस जाने के लिए कहा। उसने उनसे कहा, "उसे बिस्तर समेत लिए लाओ, ताकि मैं उसे मार सकूँ!"
\s5
\v 16 परन्तु जब उन लोगों ने दाऊद के घर में प्रवेश किया, तो उन्होंने देखा कि बिस्तर पर केवल एक मूर्ति थी, बकरी के बाल उसके सिर पर थे।
\p
\v 17 उन्होंने आकर शाऊल को बताया, तब शाऊल ने मीकल को बुलाया और कहा, "तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? तुमने मेरे शत्रु को भागने की अनुमति क्यों दी!" मीकल ने शाऊल को उत्तर दिया, "दाऊद ने मुझे कहा कि यदि मैं उसे भागने में मदद नहीं की, तो वह मुझे मार डालेगा!"
\p
\s5
\v 18 दाऊद शाऊल से बच निकलने के बाद, शमूएल के पास गया रामा में गया वह अपने घर पर था। उसने शमूएल को सब कुछ बताया कि शाऊल ने उसे कैसे-कैसे मारने का प्रयास की थी। तब दाऊद और शमूएल नबायोत गए, और वे वहाँ रहे।
\v 19 किसी ने शाऊल से कहा कि दाऊद नबायोत में था,
\v 20 तब शाऊल ने उसे पकड़ने के लिए कुछ दूत भेजे। जब वे दूत रामा में पहुंचे, तो वे उन लोगों से मिले जो यहोवा के संदेश सुना रहे थे, और शमूएल वहाँ उनके अगुवे के रूप में था। जब शाऊल के दूत उन्हें मिले, तो परमेश्वर के आत्मा शाऊल के दूतों पर आया, और उन्होंने भी उसी तरह चिल्लाने लगे।
\s5
\v 21 जब शाऊल ने उसके विषय में सुना, तो उसने और दूत भेजे, परन्तु वे भी यहोवा का संदेश बोलने लगे।
\v 22 अंत में, शाऊल रामा गया। जब वह सेकू नाम की जगह पर जो बड़े गड्डे में है पहुंचा, तो उन्होंने वहाँ लोगों से पूछा, "शमूएल और दाऊद कहां हैं?"
\p लोगों ने उत्तर दिया, "वे रामा शहर के पास नबायोत में हैं।"
\s5
\v 23 जब शाऊल नबायोत की ओर जा रहा था, तब परमेश्वर के आत्मा उसके ऊपर आया। और वह चलते-चलते यहोवा के पाए संदेश को चिल्लाकर सुनाता जा रहा था जब तक वह नबायोत नहीं पहुँचा।
\v 24 वहाँ उसने अपने बाहरी कपड़े निकाल दिए, और शमूएल के सामने परमेश्वर के संदेश सुनाए। वह पूरे दिन और पूरी रात भूमि पर पड़ा रहा। यही कारण है कि जब लोग किसी को देखते हैं जो अकस्मात ही कुछ करने लगता है तो वे कहते हैं, "क्या शाऊल भी एक भविष्यद्वक्ता है?"
\s5
\c 20
\p
\v 1 दाऊद नबायोत से भाग गया। वह योनातान के पास गया और उससे पूछा, "मैंने तुम्हारे पिता को अप्रसन्न करने के लिए क्या किया है? मैंने क्या गलत किया है? वह मुझे मारने का प्रयास क्यों कर रहा है?"
\p
\v 2 योनातान ने उत्तर दिया, "मेरे पिता निश्चय ही तुम्हें मारने का प्रयास नहीं कर रहे हैं! वह कुछ भी करने से पहले अपनी योजना वह मुझे बताता है। वह मुझे महत्वपूर्ण और महत्वहीन दोनों ही की योजना मुझे बताता है। यदि वह तुम्हें मारने की योजना बना रहा है तो मुझसे क्यों छिपाएगा? अतः तुम जो कह रहे हो वह सच नहीं हो सकता।"
\p
\s5
\v 3 तब दाऊद ने योनातान से सच कह दिया: "तुम्हारे पिता भली-भांति जानता है कि तुम और मैं बहुत अच्छे मित्र हैं, इसलिए वह मन में सोचता है, कि 'मैं योनातान को नहीं बताऊंगा मैं क्या करने जा रहा हूँ। यदि मैं योनातान को बताता हूँ, वह परेशान होगा, और फिर वह दाऊद को बताएगा। ' लेकिन यहोवा के जीवन की निश्चितता और तुम्हारे जीवन की निश्चितता, मैं मारे जाने से केवल एक कदम दूर हूँ। "
\p
\s5
\v 4 योनातान ने दाऊद से कहा, "जो भी तुम मुझे करने के लिए कहो मैं करूँगा।"
\p
\v 5 दाऊद ने उत्तर दिया, "कल हम नए चंद्रमा के त्यौहार मनाएंगे। मैं हमेशा उस त्यौहार पर राजा के साथ खाता हूँ। लेकिन कल मैं मैदान में छिपा रहूँगा, और मैं वहाँ एक रात रहूंगा। मैं वहाँ परसों शाम तक रहूंगा।
\s5
\v 6 यदि तुम्हारे पिता पूछते हैं कि मैं त्यौहार में क्यों नहीं हूँ, तो कहना, 'दाऊद ने मुझसे अनुरोध किया कि वह बैतलहम में अपने घर जाएगा, जहाँ उसका परिवार वार्षिक बलिदान चढ़ाएगा।'
\v 7 यदि तुम्हारा पिता 'बहुत अच्छा' कहता है, तो मुझे पता है कि मैं सुरक्षित रहूंगा। परन्तु यदि वह क्रोधित हो जाता है, तो तुम समझ लेना कि वह मुझे हानि पहुंचाने के लिए दृढ़ है।
\s5
\v 8 कृपया मुझ पर दया करो। यहोवा ने हमारी गंभीर प्रतिज्ञा को सुना है जो मैंने और तुमने अच्छे मित्र बने रहने की शपथ खाई थी, परन्तु यदि मैं दण्ड के योग्य हूँ तो तुम्हारे पिता की अपेक्षा तुम मुझे मार देना। "
\p
\v 9 योनातान ने उत्तर दिया, "मैं कभी ऐसा नहीं करूंगा! यदि मुझे कभी पता चला कि मेरे पिता तुम्हें हानि पहुँचाने की ठान ली है तो मैं निश्चय ही तुमको बता दूंगा।"
\p
\s5
\v 10 दाऊद ने उससे पूछा, "मुझे कैसे पता चलेगा कि तुम्हारे पिता ने तुमसे कठोर बातें की हैं?"
\v 11 योनातान ने उत्तर दिया, "मेरे साथ आओ। हम मैदान में बाहर जाएँगे।" तो वे मैदान में एक साथ गए।
\p
\s5
\v 12 वहाँ योनातान ने दाऊद से कहा, "मैं इस्राएलियों के परमेश्वर, जिनकी हम आराधना करते हैं, उनके सुनते हुए मैं यह वचन देता हूँ:” परसों इसी समय, मैं यह पता लगा लूँगा कि मेरा पिता तुम्हारे विषय में क्या सोच रहे हैं। यदि वह तुम्हारे विषय में अच्छा कहते हैं तो मैं तुम्हें संदेश भेज कर बता दूंगा।
\v 13 परन्तु यदि वह तुम्हें चोट पहुंचाने की योजना बना रहा है, अतः यदि मैं तुमको पहले से सतर्क न करूं और भागने में तुम्हारी सहायता न करूं, तो यहोवा मुझे कठोर दण्ड देंगे, ताकि तुम सुरक्षा में चले जाओ। मुझे आशा है कि यहोवा तुम्हारे साथ रहेंगे और तुम्हारी सहायता करेंगे जैसे उन्होंने मेरे पिता की सहायता की है।
\s5
\v 14 परन्तु जब तक मैं जीवित हूँ, तो यहोवा के सम्मुख खाई शपथ के कारण कृपया मुझ पर दया करना; जब तुम राजा बन जाते हो तो मुझे मत मारना।
\v 15 परन्तु यदि मैं मर जाऊं, तो हमारी शपथ के कारण कृपया मेरे परिवार के प्रति दया दिखाना नहीं छोड़ना, चाहे यहोवा ने पृथ्वी पर तुम्हारे सब शत्रुओं का नाश कर दिया हो। "
\p
\v 16 तब योनातान ने दाऊद और उसके वंशजों के साथ एक गंभीर समझौता किया। और उसने कहा, "मुझे आशा है कि यहोवा तुम्हारे सब शत्रुओं का अंत कर देंगे।"
\s5
\v 17 और योनातान ने दाऊद से आग्रह किया कि वह उसका घनिष्ठ मित्र होने की अपनी शपथ को दोहराए, क्योंकि योनातान दाऊद से उतना ही प्रेम किया जितना वह स्वयं से प्रेम करता था।
\p
\v 18 तब योनातान ने कहा, "कल हम नए चंद्रमा का त्यौहार मनाएंगे। और तुम अपने स्थान पर जहाँ तुम बैठ कर खाना खाते हो नहीं दिखोगे, अतः मेरे पिता तुम्हारी उनुपस्थिती को देखेंगे।
\v 19 परसों शाम को उस स्थान पर जाना जहाँ तुम पहले छुपे थे। पत्थरों के ढेर से प्रतीक्षा करना।
\s5
\v 20 मैं बाहर आऊंगा और तीन तीर चलाऊँगा जैसे कि मैं एक लक्ष्य को भेदने का प्रयास करूंगा। तीर पत्थरों के ढेर के निकट भूमि पर मरूँगा।
\v 21 तब मैं तीर को मेरे पास वापस लाने के लिए एक दास को भेजूंगा। यदि तुम मुझे उससे यह कहते सुनो, 'वे मेरे निकट हैं,' तो यहोवा के जीवन की निश्चतता, तुम समझ लेना कि सब कुछ ठीक है, और तुमको मार डाला नहीं जाएगा।
\s5
\v 22 परन्तु यदि मैं उससे कहूं, 'तीर दूर हैं,' तो तुम समझ लेना कि तुमको तुरंत भाग जाना चाहिए, क्योंकि यहोवा चाहते हैं कि तुम भाग जाओ।
\v 23 मुझे आशा है कि यहोवा तुम पर और मुझ पर दृष्टी रखेंगे और हमें इस योग्य बनाएँगे कि हम आपस में खाई हुई शपथ कभी न भूलें। "
\p
\s5
\v 24 तब दाऊद चला गया और मैदान में जा छिपा। जब नए चंद्रमा का त्यौहार आरम्भ हुआ, तो राजा खाने के लिए बैठ गया।
\v 25 वह वहीँ बैठा जहाँ वह सामान्यतः पर दीवार के निकट बैठता था। योनातान उसके पास बैठा, और सेना के सेनापति अब्नेर शाऊल के साथ बैठा। परन्तु जहाँ दाऊद बैठता था, वहाँ कोई नहीं था।
\s5
\v 26 उस दिन, शाऊल ने दाऊद के विषय में कुछ भी नहीं कहा, क्योंकि वह सोच रहा था, "कुछ ऐसा हुआ होगा जिससे दाऊद परमेश्वर की आराधना करने के लिए अस्वीकार्य हो जाए।"
\v 27 परन्तु अगले दिन, जब दाऊद उस स्थान पर नहीं बैठा था जहाँ वह सामान्यतः बैठता था, तब शाऊल ने योनातान से पूछा, "यिशै का पुत्र आज हमारे साथ क्यों नहीं खा रहा है?"
\p
\s5
\v 28 योनातान ने उत्तर दिया, "दाऊद ने मुझ से विनम्रता से अनुरोध किया कि मैं उसे बैतलहम जाने की अनुमति दूं।
\v 29 उसने कहा, 'कृपया मुझे जाने दो, क्योंकि हमारा परिवार बलि चढ़ाने जा रहा है। मेरे बड़े भाई ने जोर देकर कहा कि मैं वहाँ रहूँ। तो कृपया मुझे अपने बड़े भाइयों के साथ रहने की अनुमति दो। ' मैंने दाऊद को जाने की अनुमति दी है, और यही कारण है कि वह हमारे साथ नहीं खा रहा है। "
\p
\s5
\v 30 शाऊल क्रोधित हो गया! उसने योनातान से कहा, "मुझे पता है कि तुम यिशै के उस पुत्र के प्रति वफादार हो। परन्तु तुम अपने और अपनी लज्जा का कारण होगे।
\v 31 जब तक यिशै का पुत्र जीवित रहेगा, तब तक तुम कभी राजा नहीं बनोगे, और तुम कभी भी इस राज्य पर शासन नहीं करोगे! तो अब, दाऊद को बुलाओ, और उसे मेरे पास लाओ। उसे मार देना चाहिए! "
\p
\s5
\v 32 योनातान ने अपने पिता से पूछा, "दाऊद क्यों मार डाला जाना चाहिए? उसने क्या गलत किया है?"
\v 33 तब शाऊल ने योनातान को मारने के लिए भाला फेंका, परन्तु भाला उसे नहीं लगा। तो योनातान को विश्वास हो गया था कि उसके पिता वास्तव में दाऊद को मारना चाहते हैं।
\p
\v 34 योनातान बहुत क्रोधित था, वह कमरे से निकल गया। त्यौहार के दूसरे दिन उन्होंने कुछ भी खाने से मना कर दिया। उसके पिता ने जो किया उसके लिए घृणित था, और वह दाऊद के विषय में चिंतित था।
\p
\s5
\v 35 अगले दिन सुबह योनातान अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार दाऊद को संदेश देने के लिए मैदान में गया। उसने अपने साथ एक दास को लिया।
\v 36 योनातान ने दास से कहा, "भाग कर जाओ और जो तीर मैं चलाऊंगा उन्हें ढूंढ कर लाना।" दास ने दौड़ना शुरू कर दिया, और योनातान ने दास से आगे एक तीर छोड़ा।
\v 37 दास उस स्थान पर भाग गया जहाँ तीर भूमि पर गिरा, परन्तु योनातान ने कहा, "तीर आगे है!"
\s5
\v 38 फिर वह दास पर चिल्लाया, "जल्दी जाओ, रुको मत!" दास ने तीर उठाया और उसे वापस योनातान को दिया।
\v 39 लेकिन योनातान ने जो कहा था, दास को उसका अर्थ समझ में नहीं आया; केवल योनातान और दाऊद समझते थे।
\v 40 तब योनातान ने दास को अपना धनुष और तीर दिया और कहा, "शहर वापस जाओ।"
\p
\s5
\v 41 जब दास चला गया, तब दाऊद पत्थरों के ढेर के पीछे से निकला, जहाँ वह छिपा हुआ था। वह योनातान के पास गया और तीन बार योनातान के सामने झुक गया, उसका चेहरा भूमि को छू रहा था। तब दाऊद और योनातान ने गाल पर एक-दूसरे को चूमा, और वे एक साथ रोये। परन्तु दाऊद योनातान से अधिक रोया।
\p
\v 42 योनातान ने दाऊद से कहा, "तुम्हारी यात्रा मंगलमय हो। यहोवा ने हमारी शपथ को सुना है कि हम सदैव एक दूसरे के लिए क्या करेंगे।" तब दाऊद चला गया, और योनातान लौटकर शहर आ गया।
\s5
\c 21
\p
\v 1 दाऊद वहाँ से भाग गया और याजक अहीमेलेक से भेंट करने के लिए नोब शहर गया। जब उसने दाऊद को देखा तो अहीमेलेक थरथराया क्योंकि वह डर गया था कि कुछ बुरा हुआ हो। उसने दाऊद से कहा, "तुम अकेले क्यों हो? तुम्हारे साथ कोई व्यक्ति क्यों नहीं आया?"
\p
\v 2 दाऊद ने अहीमेलेक से झूठ कहा, "राजा ने मुझे भेजा है। परन्तु वह नहीं चाहता कि जिस काम के लिए उसने मुझे भेजा है वह किसी को पता ना चले। मैंने अपने लोगों से कह दिया है कि उन्हें मुझसे कहाँ मिलना चाहिए।
\s5
\v 3 अब मैं जानना चाहता हूँ, कि क्या तुम्हारे पास मेरे खाने के लिए कुछ है? क्या तुम मुझे पाँच रोटी दे सकते हो, या जो भी खाना तुम दे सकते हो? "
\p
\v 4 याजक ने दाऊद से कहा, "यहाँ कोई साधारण रोटी नहीं है, परन्तु मेरे पास कुछ पवित्र रोटी है जो यहोवा के सामने रखी गई थी। यदि तुम हाल ही में स्त्रियों के साथ सोए नहीं हो तो तुम्हारे लोग इसे खा सकते हैं।"
\p
\s5
\v 5 दाऊद ने उत्तर दिया, "वे कई दिनों से स्त्रियों के पास नहीं गये हैं । युद्ध की तैयारी करते समय मैं अपने पुरुषों को स्त्रियों के साथ सोकर स्वयं को अशुद्ध करने की अनुमति नहीं देता हूँ। उन्हें साधारण यात्रा में स्वयं को परमेश्वर के स्वीकार्य योग्य रहना होता है तो आज उन्होंने निश्चित रूप से स्वयं को परमेश्वर के स्वीकार्य योग्य रखा है क्योंकि अब हम एक अति विशेष कार्य करने जा रहे हैं। "
\v 6 अब याजक के पास केवल वही रोटियाँ थी जो पवित्र तम्बू में यहोवा के सामने रखी जाती थी। अतः याजक ने दाऊद को उन रोटियों में से दे दी। उस दिन याजक ने उन रोटी को मेज से उठाया था और उनके स्थान में ताजा रोटियाँ रखी थी।
\p
\s5
\v 7 ऐसा हुआ कि उस दिन एदोमी दोएग वहाँ यहोवा के सामने अपने आपको स्वीकार्य बनाने के लिए आया था, और उसने वह देखा जो अहीमेलेक ने किया। वह शाऊल के अधिकारियों में से एक था और शाऊल के चरवाहों का मुखिया था।
\p
\s5
\v 8 दाऊद ने अहीमेलेक से पूछा, "क्या तुम्हारे पास भाला या तलवार है जिसका मैं उपयोग कर सकता हूँ? राजा ने हमें यह काम करने के लिए नियुक्त किया और हमें तुरंत जाने के लिए कहा, इसलिए मेरे पास हथियार लाने का समय नहीं था।"
\p
\v 9 अहीमेलेक ने उत्तर दिया, "मेरे पास केवल वही तलवार है जो पलिश्ती दानव गोलियात की थी, जिसे तुमने एला घाटी में मारा था। वह एक कपड़े में लपेटी हुई है, और पवित्र तम्बू में पवित्र एपोद के पीछे है। यदि तुम चाहते हो, तो उसे ले लो, क्योंकि मेरे पास अन्य कोई हथियार नहीं है। "
\p दाऊद ने उत्तर दिया, "सचमुच, कोई और तलवार नहीं है जो इतनी अच्छी हो! इसे मुझे दो।"
\s5
\v 10 तब अहीमेलेक ने उसे दे दिया, और दाऊद वहाँ से चला गया। वह और उसके लोग राजा आकीश के साथ रहने के लिए पलिश्तियों के क्षेत्र में गत शहर गए।
\v 11 परन्तु राजा आकीश के अधिकारियों ने दाऊद को आने की अनुमति नहीं दी। उन्होंने राजा आकीश से कहा, "यह मनुष्य दाऊद अपनी भूमि के राजा के समान शक्तिशाली है। हमारे शत्रु, इस्राएली लोगों ने उन्हें नृत्य और गायन से सम्मानित किया था,
\q1 'शाऊल ने अपने हजार शत्रुओं को मार डाला है,
\q2 लेकिन दाऊद ने दस हजार को मारा है!'"
\p
\s5
\v 12 दाऊद ने सुना कि वे लोग क्या कह रहे थे, इसलिए वह डर गया कि राजा आकीश उसके साथ क्या कर सकता है।
\v 13 तो उसने पागल होने का नाटक किया। उसने शहर के द्वारों खरोंचना आरम्भ कर दिया और अपनी दाढ़ी पर लार को गिराने लगा।
\p
\s5
\v 14 तब राजा आकीश ने अपने लोगों से कहा, "इस व्यक्ति को देखो! वह पागल व्यक्ति की तरह काम कर रहा है! तुम उसे मेरे पास क्यों लाए हो?
\v 15 क्या तुम इसे इसलिए लाये हो की मेरे घर में ही पागलों की कमी है। "
\s5
\c 22
\p
\v 1 दाऊद और उसके पुरूष गत को छोड़कर अदुल्लाम शहर के पूर्व में एक पहाड़ी की गुफा में छिपने के लिए गए। वहाँ शीघ्र ही उसके बड़े भाई और उसके सभी रिश्तेदार आए और वहाँ उसके साथ रहे।
\v 2 तब दूसरे लोग वहाँ आए। कुछ ऐसे व्यक्ति थे जो परेशान थे, कुछ ऐसे लोग थे जो कर्जदार थे, और कुछ ऐसे पुरुष थे जो किसी कारण से अप्रसन्न थे। वे तब तक आते रहे जब तक वहाँ चार सौ पुरुष हो गये, और दाऊद उनका अगुवा बन गया।
\p
\s5
\v 3 बाद में वे वहाँ से चले गए और मोआब देश में मिस्पा शहर के पूर्व में गए। वहाँ दाऊद ने मोआब के राजा से पूछा, "कृपया मेरे पिता और माता को यहाँ तुम्हारे साथ रहने दें, जब तक कि मुझे पता न हो कि परमेश्वर मेरे लिए क्या करने जा रहा है।"
\v 4 राजा ने उसे अनुमति दे दी, इसलिए दाऊद के माता-पिता मोआब के राजा के साथ उस समय तक रहे, जब तक दाऊद और उसके साथ रहने वाले लोग उस क्षेत्र में छिपे रहे।
\p
\v 5 एक दिन भविष्यवक्ता गाद ने दाऊद से कहा, "यहाँ छिपना छोड़ दो और यहूदा लौट जाओ।" इसलिए दाऊद और उसके साथी यहूदा में हेरेत मरुभूमि में गए।
\p
\s5
\v 6 एक दिन, किसी ने शाऊल से कहा कि दाऊद और उसके लोग यहूदा में आए हैं। उस दिन, शाऊल गिबा के नगर के पास एक पहाड़ी पर तामार के पेड़ के नीचे बैठा था। वह अपना भाला पकडे हुए था और अपने सेना के अधिकारियों से घिरा हुआ था।
\s5
\v 7 वह उन पर चिल्लाया, "हे बिन्यामीन के गोत्र के लोग, मेरी बात सुनो! क्या तुम सोचते हो कि यिशै का पुत्र राजा बनकर तुम्हारे सारे खेत और दाख की बारियां दे देगा? क्या वह तुम सब को अपनी सेना में कप्तान और सेनापति बना देगा?
\v 8 क्या तुमने इसी कारण मेरे विरुद्ध षड्यंत्र रचा है, जैसा वह आज कर रहा है? तुम में से किसी ने भी मुझे नहीं बताया कि मेरे अपने पुत्र ने उसके साथ मित्रता की है! तुम में से किसी को भी मुझ पर दया नहीं आई या मुझे बताया है कि मेरे पुत्र ने यिशै के पुत्र को मेरे विरुद्ध विद्रोह करने के लिए प्रोत्साहित किया है, कि वह यहाँ से निकलकर छिप जाए! "
\p
\s5
\v 9 एदोमी दोएग, शाऊल के अधिकारियों के साथ वहाँ खड़ा था। उसने शाऊल से कहा, "जब मैं नोब में था, मैंने देखा कि यिशै का पुत्र याजक अहीमेलेक से बात कर रहा था।
\v 10 अहीमेलेक ने यहोवा से पूछा कि दाऊद को क्या करना चाहिए। तब अहीमेलेक ने दाऊद को कुछ भोजन और पलिश्ती दानव गोलियात की तलवार दी। "
\p
\s5
\v 11 तब शाऊल ने अहीमेलेक और अहीमेलेक के सब सम्बन्धियों को बुलाया जो नोब में याजक थे। वे सब राजा के पास आए।
\v 12 शाऊल ने अहीमेलेक से कहा, "हे अहीतूब का पुत्र, मेरी बात सुनो!"
\p अहीमेलेक ने उत्तर दिया, "हाँ, महोदय!"
\v 13 शाऊल ने कहा, "तुम और यिशै का पुत्र मुझसे छुटकारा पाने की साजिश क्यों कर रहे हो? तुमने उसे कुछ रोटी और तलवार दी। तुमने परमेश्वर से अनुरोध किया कि दाऊद को बताएं की क्या करना है। दाऊद ने मुझ से विद्रोह किया है, और अभी वह कहीं छिपा हुआ है, मुझ पर हमला करने की प्रतीक्षा कर रहा है। "
\p
\s5
\v 14 अहीमेलेक ने उत्तर दिया, "मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि तुम ऐसा क्यों कह रहे हो, क्योंकि दाऊद, तुम्हारा दामाद, तुम्हारा अंगरक्षकों का कप्तान, तुम्हारे प्रति बहुत निष्ठावान है। कोई भी दाऊद से अधिक निष्ठावान नहीं है! घर में उसका बहुत सम्मान किया जाता है।
\v 15 इसके अतिरिक्त, निश्चय ही यह पहली बार नहीं था जब मैंने परमेश्वर से यह कहने का अनुरोध किया कि दाऊद को क्या करना चाहिए, वह बताएं। और यह तुम्हारे लिए सही नहीं है कि तुम मुझ पर या किसी सम्बन्धी पर दोष लगाओ कि हम तुमसे छुटकारा पाना चाहते हैं क्योंकि मैं किसी के विषय में कुछ नहीं जनता जो ऐसा करना चाहता है। "
\p
\s5
\v 16 तब राजा चिल्लाया, "अहीमेलेक, तुम और तुम्हारे सभी सम्बन्धियों को इसी समय मार डाला जाएगा!"
\p
\v 17 तब उसने अपने अंगरक्षकों को आज्ञा दी, "यहोवा के इन याजकों को मार डालो, क्योंकि वे दाऊद के सहयोगी हैं, और वे दाऊद के साथ मेरे विरूद्ध षड्यंत्र रच रहे हैं! वे जानते थे कि दाऊद मुझसे दूर भागने का प्रयास कर रहा है, परन्तु उन्होंने मुझे नहीं बताया! "
\p लेकिन शाऊल के अंगरक्षकों ने यहोवा के याजकों को मारने से मनाकर दिया।
\p
\s5
\v 18 तब राजा ने दोएग से कहा, "तुम उन्हें मार दो!" तो एदोमी दोएग बाहर गया और उन्हें अपनी तलवार से मारा। उस दिन उसने पचासी लोगों को मार डाला जो पवित्र एपोद पहने हुए थे क्योंकि वे सभी परमेश्वर के याजक थे।
\v 19 वह नोब, में गया उस नगर में जहाँ बहुत से लोग रहते थे, वहाँ भी कई लोगों को मार डाला। उसने पुरुषों, स्त्रियों, बच्चों, मवेशियों, गधे और भेड़ों को मार डाला।
\p
\s5
\v 20 परन्तु अबीमेलेक का पुत्र एब्यातार बच निकला। वह भाग गया और दाऊद और उसके साथ रहने वाले पुरुषों में मिल गया।
\v 21 उसने दाऊद से कहा कि शाऊल ने यहोवा के याजकों को मारने के लिए दोएग को आज्ञा दी थी।
\s5
\v 22 तब दाऊद ने उससे कहा, "एदोमी दोएग उस दिन नोब में ही था जब मैं वहाँ गया था, मैं जानता था कि वह शाऊल को अवश्य बताएगा कि क्या हुआ है। तो यह मेरी गलती है कि तुम्हारे पिता और उनका सारा परिवार मारा गया है।
\v 23 तुम मेरे साथ रहो, और डरो मत। वह व्यक्ति जो तुमको मारना चाहता है, मुझे भी मारना चाहता है, लेकिन यदि तुम मेरे साथ रहो तो सुरक्षित रहोगे। "
\s5
\c 23
\p
\v 1 एक दिन किसी ने दाऊद से कहा, "तुमको यह जानना होगा कि पलिश्ती सेना किला शहर पर आक्रमण कर रही है और वे खलिहानों से अनाज चुरा रहे हैं।"
\v 2 दाऊद ने यहोवा से पूछा, "क्या मेरे पुरुष और मैं पलिश्ती लोगों से युद्ध करें?"
\p यहोवा ने उत्तर दिया, "हाँ, जाओ। उन पर आक्रमण करो, और किले के लोगों को बचाओ।"
\s5
\v 3 परन्तु दाऊद के पुरूषों ने उससे कहा, "हमें डर हैं कि शाऊल यहाँ यहूदा में आक्रमण करेगा। यदि हम किला में जाते हैं तो हम और अधिक डरेंगे क्योंकि वहाँ पलिश्ती सेना है!"
\p
\v 4 तब दाऊद ने फिर से यहोवा से पूछा कि क्या हमे किला में जाना चाहिए। यहोवा ने उत्तर दिया, "हाँ, किले के पास जाओ। पलिश्तियों को पराजित करने में मैं तुम्हारी सहायता करूंगा।"
\s5
\v 5 तब दाऊद और उसके लोग किला गए। उन्होंने पलिश्तियों से युद्ध किया और उनके कई मवेशियों को पकड़ लिया। दाऊद और उसके लोगों ने कई पलिश्ती पुरुषों को मार डाला और किला के लोगों को बचा लिया।
\p
\v 6 अहीमेलेक का पुत्र एब्यातार, किला में दाऊद के साथ रहने के लिए भाग गया, और वह यह निर्धारित करने के लिए एक पवित्र एपोद लेकर आया कि परमेश्वर क्या चाहते हैं कि वह करे।
\p
\s5
\v 7 शीघ्र ही शाऊल ने पता लगाया कि दाऊद किला में था। तो उसने कहा, "यह अच्छा है! परमेश्वर उसे पकड़ने में मेरी सहायता कर रहे हैं! वह उस शहर में स्वयं को फंसा रहा है, क्योंकि उसके चारों ओर ऊंची दीवारों के साथ द्वार भी हैं।"
\p
\v 8 तब शाऊल ने अपनी सेना को बुलाया, और वे दाऊद और उसके लोगों पर आक्रमण करने के लिए किला में जाने के लिए तैयार हुए।
\p
\v 9 लेकिन दाऊद को पता चला कि शाऊल उसकी सेना के साथ हमला करने की योजना बना रहा था। इसलिए उसने याजक एब्यातार से कहा, "पवित्र एपोद यहाँ लाओ।"
\s5
\v 10 जब एब्यातार उसे लाया, तब दाऊद ने प्रार्थना की, "हे यहोवा, इस्राएलियों का परमेश्वर, मैंने सुना है कि शाऊल यहाँ अपनी सेना के साथ आकर और किला को नष्ट करने की योजना बना रहा है क्योंकि मैं यहाँ हूँ।
\v 11 क्या शाऊल यहाँ किला आएगा, जैसा कि लोगों ने मुझे बताया है? क्या किला के अगुवों ने मुझे पकड़ने में शाऊल को सक्षम बनाया? हे यहोवा, हमारे इस्राएल के स्वामी, कृपया मुझे बताओ! "
\p यहोवा ने उत्तर दिया, "हाँ, शाऊल आ जाएगा।"
\s5
\v 12 तब दाऊद ने पूछा, "यदि हम यहाँ रहे तो क्या किला के अगुवे शाऊल की सेना को मुझे और मेरे पुरुषों को पकड़ने में शाऊल की सेना को सक्षम करेंगे।"
\p पवित्र एपोद के पत्रों के द्वारा यहोवा ने उत्तर दिया, "हाँ, वे करेंगे।"
\s5
\v 13 तब दाऊद और उसके छः सौ पुरुषों ने किला छोड़ा। वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहे, जहाँ उन्होंने सोचा कि शाऊल उन्हें नहीं ढूंढ पाएगा। जब शाऊल को पता चला कि दाऊद किला से बच निकला है, तो वह वहाँ नहीं गया।
\p
\v 14 दाऊद और उसके लोग मरुभूमि में और जीप मरुभूमि की पहाड़ियों में छिपे हुए थे। शाऊल ने प्रतिदिन लोगों को दाऊद की खोज में भेजता रहा, परन्तु यहोवा ने उन्हें दाऊद को पकड़ने की अनुमति नहीं दी।
\p
\s5
\v 15 जब दाऊद और उसके लोग जीप के जंगल में होरेस नाम के एक स्थान पर थे, तब उन्होंने पाया कि शाऊल उसे मारने के लिए वहाँ आ रहा था।
\v 16 परन्तु शाऊल का पुत्र योनातान होरेश में दाऊद के पास गया और उसे परमेश्वर पर भरोसा रखने के लिए प्रोत्साहित किया।
\s5
\v 17 योनातान ने उससे कहा, "डरो मत, क्योंकि मेरे पिता तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। कुछ दिनो में तुम इस्राएल के राजा बनोगे, और मैं इस्राएल में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति बनूंगा। मेरे पिता शाऊल भी यह जानते हैं।"
\v 18 तब उन दोनों ने अपनी गंभीर शपथ को दोहराया जिसे यहोवा पहले सुन चुके थे, कि वे सदैव एक दूसरे के प्रति सच्चे रहेंगे। तब योनातान घर चला गया, परन्तु दाऊद होरेस में रहा।
\p
\s5
\v 19 जीप के कुछ लोग शाऊल के पास गए जब वह गिबा में था, और उन्होंने उसे बताया, "दाऊद और उसके लोग हमारे स्थान में छिपे हुए हैं! वे हकीला की पहाड़ी पर होरेश के स्थानों पर छिप रहे हैं, जो यशीमोन के दक्षिण में है।
\v 20 तो, हे राजा तुम जब चाहो वहाँ आ सकते हो। उसे पकड़ना और उसे तुम्हारे हाथों में सोपना हमारा कर्तव्य है। "
\p
\s5
\v 21 शाऊल ने उत्तर दिया, "मुझे आशा है कि यहोवा तुमको यह बताने के लिए आशीष देंगे।
\v 22 वापस जाओ और उसके विषय में और पता लगाओ। सही सही पता लगाओ कि वह कहां रह रहा है, और पता लगाओ कि उसे वहाँ किसने देखा है। लोग मुझे बताते हैं कि वह बहुत चालाक है, इसलिए हमें भी बहुत चालाक होना होगा उसे पकड़ने के लिए।
\v 23 उन सब स्थानों का पता लगाओ जहाँ वह और उसके लोग छिपते है। फिर वापस आओ और जो कुछ पता चला है मुझे बताओ। तब मैं अपनी सेना साथ लेकर तुम्हारे साथ जाऊंगा। यदि दाऊद यहूदा के कुलों में से किसी एक में है, तो हम उसे खोज लेंगे! "
\p
\s5
\v 24 तब शाऊल के वहाँ जाने से पहले वे लोग वापस जीप गए। उस समय दाऊद और उसके लोग यिशिमोन के दक्षिण में माओन की मरुभूमि में थे।
\v 25 शाऊल और उसके सैनिक दाऊद की खोज करने गए, परन्तु दाऊद ने इसके विषय में सुना। तो वह और उसके लोग माओन की मरुभूमि में एक चट्टानी पहाड़ी पर दक्षिण की ओर चले गए। जब शाऊल ने उस विषय में सुना, तो वह और उसके पुरुषों ने दाऊद और उसके पुरूषों का माओन की मरुभूमि तक पीछा किया।
\p
\s5
\v 26 शाऊल और उसके सैनिक पहाड़ी की एक ओर चल रहे थे, और दाऊद और उसके लोग दूसरी तरफ थे। दाऊद और उसके लोग शाऊल के सैनिकों से बचने के लिए जल्दी चल रहे थे। क्योंकि शाऊल और उसके सैनिक बहुत करीब आ रहे थे।
\v 27 परन्तु फिर एक दूत शाऊल के पास आया और उससे कहा, "जल्दी चलो! पलिश्ती सेना हमारी भूमि पर लोगों पर आक्रमण कर रही है!"
\s5
\v 28 तब शाऊल ने दाऊद का पीछा करना छोड़ दिया और वह और उसके सैनिक पलिश्ती सेना से युद्ध करने गए। यही कारण है कि लोग उस स्थान को “बचने की चट्टान” कहते हैं।
\v 29 दाऊद और उसके पुरूष भी उस स्थान को छोड़कर एनगेदी में छिपने के लिए सुरक्षित स्थानों में चले गए।
\s5
\c 24
\p
\v 1 शाऊल और उसके सैनिक पलिश्ती सेना से युद्ध करने के बाद घर वापस लौटे, तब किसी ने शाऊल से कहा कि दाऊद और उसके लोग एनगदी के पास मरुभूमि में गए थे।
\v 2 जब शाऊल ने यह सुना, तो उसने इस्राएल के विभिन्न इलाकों के तीन हजार लोगों को चुना, और उन्हें जंगली बकरियों की चट्टानों पर दाऊद और उसके लोगों की खोज करने भेजा।
\p
\s5
\v 3 ऐसे स्थान पर जहाँ सड़क कुछ भेड़शालाओं के निकट थी, शाऊल सड़क छोड़कर शौंच के लिए एक गुफा में गया। उसे नहीं पता था कि दाऊद और उसके पुरुष उसी गुफा के भीतर छिपे हुए हैं!
\v 4 दाऊद के पुरुषों ने शाऊल को देखा और दाऊद से धीरे से कहा, "आज वह दिन है जिसके विषय में यहोवा ने कहा था, 'मैं तुमको तुम्हारे शत्रु को हराने में सक्षम करूंगा।' तुम जो चाहो उसके साथ कर सकते हो! " तो दाऊद गुफा के प्रवेश द्वार की ओर रेंगता हुआ गया और शाऊल के वस्त्र के एक छोटे टुकड़े को अपने चाकू से काट लिया।
\s5
\v 5 और फिर वह अपने लोगों के पास लौट आया।
\p परन्तु शाऊल के वस्त्र के टुकड़े को काटने के दाऊद ने स्वयं को दोषी माना।
\v 6 उसने अपने लोगों से कहा, "मुझे राजा के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था! मुझे आशा है कि यहोवा मुझे उस व्यक्ति पर हमला करने की अनुमति नहीं देंगे जिसे परमेश्वर ने नियुक्त किया है, क्योंकि यहोवा ही वे हैं जिन्होंने उसे राजा बनने के लिए चुना है। "
\v 7 यह कहकर, दाऊद ने अपने लोगों को रोका और शाऊल को मारने की अनुमति नहीं दी।
\p
\s5
\v 8 शाऊल ने गुफा छोडी और फिर मार्ग पर चलना आरम्भ किया, तब दाऊद गुफा से निकल आया और चिल्लाकर शाऊल को पुकारा, "राजा शाऊल!" शाऊल ने चारों ओर मुड़कर देखा, और दाऊद ने झुककर अपने चेहरे से भूमि को छूआ।
\v 9 तब उसने शाऊल से कहा, "जब लोग तुम से कहते हैं कि दाऊद तुमको हानि पहुँचाना चाहता है है तो तुम उनकी बातों पर ध्यान क्यों देते हो?"
\s5
\v 10 आज तुम अपनी आंखों से देख सकते हो कि वे जो कहते हैं वह सच नहीं है। यहोवा ने तुम्हें उस स्थान में रखा जहाँ मैं और मेरे लोग, तुम्हें इस गुफा में मार सकते थे। मुझे ऐसा करना चाहिए, परन्तु मैं ने उन्हें इसकी अनुमति नही दी। मैंने उनसे कहा, 'मैं अपने स्वामी को हानि नहीं पहुंचाऊंगा, क्योंकि वह राजा है जिसे यहोवा ने नियुक्त किया है।'
\v 11 हे महामहिम, मेरे हाथ में तुम्हारे वस्त्र के इस टुकड़े को देख! मैंने इसे तुम्हारे वस्त्र से काटा, लेकिन मैंने तुम्हें मारा नहीं। तो अब तुमको यह समझ लेना चाहिए कि मैं तुम्हारे साथ कुछ भी बुरा करने की योजना नहीं बना रहा हूँ। मैंने तुम्हारे लिए कुछ भी गलत नहीं किया है, परन्तु तुम मुझे मारने के लिए खोज रहे हो।
\s5
\v 12 मैं चाहता हूँ कि यहोवा तुमको उन गलत कामों के लिए दण्ड दें जो तुमने मेरे साथ किए हैं। परन्तु मैंने तुमको कभी नुकसान पहुंचाने का प्रयास नहीं करूंगा।
\v 13 एक कहावत है जिसमें शब्दों का अर्थ है, 'बुरे लोगों द्वारा दुष्ट काम किया जाता है।' परन्तु मैं दुष्ट नहीं कि मैं तुम्हारे साथ दुष्टता करूं।
\p
\s5
\v 14 तुम इस्राएल के राजा हो। तो तुम मेरे पीछे क्यों आ रहे हो? तुम किसका पीछा कर रहे हो? मैं एक मृत कुत्ते या एक पिस्सू से अधिक कुछ नहीं हूँ।
\v 15 मुझे आशा है कि यहोवा यह तय करेंगे कि इस मामले में कौन सही है, तुम या मैं? और जब वह मेरे पक्ष में निर्णय करते हैं, तो मुझे आशा है कि वह मेरी रक्षा करेंगे और मुझे अपनी शक्ति से बचाएँगे। "
\p
\s5
\v 16 जब दाऊद शाऊल से यह कह चुका, तब शाऊल ने पुकारकर उससे कहा, "हे मेरे पुत्र दाऊद, क्या मैं तुम्हारी आवाज़ सुन रहा हूँ?" फिर वह जोर से रोया।
\s5
\v 17 उसने कहा, "तुम मुझसे अच्छे व्यक्ति हो। मैंने सदैव तुम्हारे लिए बहुत बुरा करने का प्रयास किया जबकि तुमने मेरे साथ बहुत भला किया है।
\v 18 जब यहोवा ने मुझे उस गुफा में एक ऐसे स्थान में रखा जहाँ तुम मुझे आसानी से मार सकते थे। परन्तु तुमने ऐसा नहीं किया।
\s5
\v 19 शत्रु हाथ में आ जाये तो कोई उसे नहीं छोड़ता है परन्तु तुम ने ऐसा किया है। मुझे आशा है कि तुमने मुझ पर आज जो दया की है उसके लिए यहोवा तुम्हें प्रतिफल देंगे।
\v 20 मैं जानता हूँ कि एक दिन तुम निश्चित रूप से राजा बन जाओगे, और जब तुम इस्राएली लोगों पर शासन करोगे तो तुम्हारा राज्य समृद्ध होगा।
\s5
\v 21 अब जब यहोवा सुन रहा है, सच्ची शपथ लो कि तुम मेरे परिवार को नहीं मारोगे और मेरे सभी वंशजों का अंत नहीं करोगे। "
\p
\v 22 दाऊद ने शाऊल को वचन दिया कि वह शाऊल के परिवार को हानि नहीं पहुंचाएगा। तब शाऊल घर वापस चला गया, और दाऊद और उसके लोग अपने छिपने के स्थान पर लौट आए।
\s5
\c 25
\p
\v 1 इसके तुरंत बाद, शमूएल की मृत्यु हो गई, और सभी इस्राएली लोग एकत्र हुए और उसके लिए शोक किया। उन्होंने रामा में उसके घर के बाहर उसके शरीर को दफनाया।
\p तब दाऊद और उसके लोग पारान की मरुभूमि में चले गए।
\s5
\v 2 माओन शहर में एक बहुत अमीर व्यक्ति था। इस व्यक्ति ने अपनी संपत्ति और पशुधन को पास के एक शहर में रखा जिसे कर्मेल कहा जाता है। उसके पास बहुत संपत्ति और पशुधन था और उसके पास तीन हजार भेंडे और एक हजार बकरियां थीं। कर्मेल में वह अपनी भेड़ों का ऊन कतरता था।
\v 3 उसका नाम नाबाल था; वह कालेब का वंशज था। उसकी पत्नी अबीगैल एक बुद्धिमान और सुंदर स्त्री थी, लेकिन नाबाल बहुत क्रूर था और लोगों के साथ बहुत निर्दयतापूर्वक व्यवहार करता था।
\p
\s5
\v 4 एक दिन जब दाऊद और उसके लोग मरुभूमि में थे, तब किसी ने उसे बताया कि नाबाल अपनी भेड़ों का ऊन कतर रहा है।
\v 5 अतः दाऊद ने अपने दस लोगों से कहा, "कर्मेल में नाबाल के पास जाओ और उसे मेरे लिए नमस्कार करो।
\v 6 फिर मेरा यह संदेश उसे देना: 'मैं चाहता हूँ कि तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का और तुम्हारी सारी सम्पदा का भला हो।
\p
\s5
\v 7 मैंने सुना है कि लोग कहते हैं, तुम अपनी भेड़ों का ऊन कतर रहे हो। इससे पहले, जब तुम्हारे चरवाहे हमारे बीच थे, हमने उन्हें कोई हानि नहीं पहुँचाई। तुम्हारे चरवाहे हमारे बीच ऊंट पर थे, हमने उनकी किसी भेड़ को नहीं चुराया।
\v 8 तुम अपने सेवकों से पूछ सकते हो कि यह सच है या नहीं और वे तुम्हें बताएंगे कि यह सच है। हम यहाँ ऐसे समय आए हैं जब तुम आनन्द मना रहे हो, इसलिए मैं तुमसे विनती करता हूँ कि कृपया हम पर दयालु रहे और इन पुरुषों को जो भी अतिरिक्त भोजन है, मुझ दाऊद और मेरे लोगों को खाने के लिए दे। '"
\p
\s5
\v 9 दाऊद के लोग वहाँ पहुंचे जहाँ नाबाल था। और उन्होंने उसे दाऊद का संदेश सुनाया, और उसके उत्तर की प्रतीक्षा की। परन्तु नाबाल ने उनसे कठोरता से बात की।
\v 10 उसने उनसे कहा, "यह व्यक्ति कौन है, यिशै का पुत्र अपने आप को क्या समझता है? आज अनेक दास अपने स्वामियों के पास से भाग रहे हैं और ऐसा लगता है कि यह भी उनमें से एक है।
\v 11 मैं उन लोगों को रोटी और पानी देता हूँ जो मेरी भेड़ों से ऊन कतर रहे हैं, और मैं उन्हें ही उन जानवरों का माँस देता हूँ जिन्हें मैंने उनके लिए मारा है। समाज से निकले हुए लोगों को मैं उसमें से क्यों दूँ? "
\p
\s5
\v 12 तब दाऊद के लोग लौट आए और नाबाल ने जो कहा उसे सुनाया।
\v 13 जब दाऊद ने यह सुना, तो उसने अपने लोगों से कहा, "हम नाबाल को मारने जा रहे हैं, अपनी तलवारें बाँध लो!" अतः उसने अपनी तलवार भी बाँध ली, और लगभग चार सौ पुरुषों ने भी अपनी-अपनी तलवारें बाँधी और उसके साथ चले गए। उनके दो सौ पुरुष थे जो वही अपने सामान के पास रुक गये थे।
\p
\s5
\v 14 नाबाल के कर्मचारियों में से एक को पता चला कि दाऊद और उसके लोग क्या करने की योजना बना रहे थे, इसलिए वह नाबाल की पत्नी अबीगैल के पास गया और उससे कहा, "दाऊद ने हमारे स्वामी नाबाल को नमस्कार करने के लिए मरुभूमि से कुछ दूत भेजे थे, लेकिन नाबाल ने उनका अनादर किया।
\v 15 जब हम उनके पास के खेतों में होते थे, तब दाऊद के लोग हमारे लिए बहुत दयालु थे। उन्होंने हमें हानि नहीं पहुँचाई। उन्होंने हमारा कुछ नही चुराया।
\s5
\v 16 उन्होंने दिन के समय और रात के समय हमे सुरक्षित किया। जब हम अपनी भेड़ों का ख्याल रखते थे, तो वे हमारी रक्षा करने के लिए हमारे चारों ओर एक दीवार की तरह थे।
\v 17 तो अब तुमको ही इसके विषय में सोचना है और निर्णय लेना है कि तुम क्या कर सकती हो। यदि तुम कुछ नहीं करती हो, तो हमारे स्वामी और उसके परिवार के लिए भयानक परिणाम होगा। नाबाल एक अत्याधिक दुष्ट व्यक्ति है, इसलिए यदि कोई उसे बताए कि क्या करना है तो वह किसी की भी नहीं सुनता है। "
\p
\s5
\v 18 अबीगैल ने यह सुना, तो उसने अति शीघ्र दो सौ रोटियाँ एकत्र की, और दो चमड़े के मश्के भी दाखरस से भरे, पाँच भेडो का मांस, भुना हुआ अनाज, किशमिश कि सौ टिकिया, और दो सौ टिकिया सूखे अंजीर उसने उन सभी चीजों को गधे पर लादा।
\v 19 उसने अपने सेवकों से कहा, "मेरे आगे जाओ। मैं तुम्हारे पीछे आती हूँ।" लेकिन उसने अपने पति को यह नहीं बताया कि वह क्या करने जा रही है।
\p
\s5
\v 20 अबीगैल अपने गधे पर सवार होकर पहाड़ियों में उस स्थान पर उतर गई जहाँ दाऊद और उसके लोग रह रहे थे। अचानक दाऊद और उसके पुरुष उससे मिले।
\s5
\v 21 दाऊद अपने लोगों से कह रहा था, "इस मरुभूमि में उस व्यक्ति और उसकी सारी संपत्तियों की रक्षा करना हमारे लिए व्यर्थ था। हमने उसका कुछ भी नहीं चुराया, उसके प्रति किये गये हमारे अच्छे कार्यों के बदले में उसने हमारे साथ बुरा किया।
\v 22 मुझे आशा है कि परमेश्वर मुझे मार डालेंगे यदि कल सुबह तक वह या उसका एक भी व्यक्ति जीवित बचा।
\p
\s5
\v 23 जब अबीगैल ने दाऊद को देखा, तो वह जल्दी से अपने गधे से उतर गई और उसके सामने झुकी, उसका चेहरा भूमि पर छू रहा था।
\v 24 तब वह दाऊद के चरणों गिरी और कहा, "महोदय, मेरे पति ने जो किया उसके लिए मैं दण्ड के योग्य हूँ। कृपया जो कुछ मैं तुमसे कहती हूँ, उसे सुनो।
\s5
\v 25 कृपया इस निक्कमे नाबाल की बातों पर ध्यान न दो। इसके तो नाम का अर्थ ही मुर्ख है और वह वास्तव में मुर्ख है। परन्तु मैं, तुम्हारी दासी ने तुम्हारे दूतों को नही देखा था। परन्तु मैं, जो तुम्हारी दासी बनने को तैयार हूँ, मैंने उन दूतों को नहीं देखा जिन्हें तुमने उसके पास भेजा था।
\v 26 यहोवा ने किसी से बदला लेने और किसी को मारने से तुम्हें रोका है। यहोवा के जीवन की निश्चतता और तुम्हरे जीवन की निश्चतता, मुझे आशा है कि तुम्हारे शत्रु नाबाल के समान श्रापित हों।
\s5
\v 27 मैं तुम्हारे लिए और तुम्हारे साथ रहने वाले लोगों के लिए एक भेंट लायी हूँ।
\v 28 यदि मैंने तुम्हारे साथ कुछ भी गलत किया है। तो कृपया करके मुझे क्षमा कर दो यहोवा तुमको और तुम्हारे वंशजों को इस्राएल का राजा बनने का सौभाग्य प्रदान करके तुम्हें प्रतिफल दें, क्योंकि तुम्हारा संघर्ष यहोवा की इच्छा के अनुसार है और मैं जानती हूँ कि तुमने अपने पुरे जीवन में कभी भी गलत नहीं किया है।
\s5
\v 29 यहाँ तक कि वे जो तुम्हें मारने के प्रयास में तुम्हारा पीछा करते हैं तोभि तुम सुरक्षित रहोगे। क्योंकि परमेश्वर यहोवा तुम्हारी देखभाल करते हैं। तुमको एक सुरक्षित बंधी हुई गठरी की तरह संरक्षित किया जाएगा। परन्तु तुम्हारे शत्रु उन पत्थरों की तरह लोप हो जाएंगे जो एक गोफन से फेंक दिए जाते हैं।
\s5
\v 30 यहोवा ने तुम्हारे लिए भलाई करने की प्रतिज्ञा की है, और वे अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेंगे। और वे तुम्हें इस्राएली लोगों का शासक बनाएंगे।
\v 31 जब ऐसा होता है, तब उसके घर के किसी भी व्यक्ति को मत मारना। तब तुम यह नहीं सोचोगे कि तुमने निर्दोषों को दण्ड दिया और उनकी हत्या की है इसलिए तुम दण्ड के योग्य हो। और जब यहोवा तुमको राजा बनाएँ, तो कृपया मुझ पर दया करना मत भूलना। "
\p
\s5
\v 32 दाऊद ने अबीगैल से कहा, "मैं यहोवा की स्तुति करता हूँ, जिनकी हम इस्राएली आराधना करते हैं, क्योंकि उन्होंने मुझसे बात करने के लिए तुम्हें भेजा है।
\v 33 मैं आशा करता हूँ कि आज परमेश्वर तुम्हारी सहायता करें क्योंकि तुमने बुद्धिमानी से आज मुझे लोगों को मारने और बुराई के बदले बुराई करने से बचाया है।
\s5
\v 34 जैसा कि निश्चित रूप से यहोवा परमेश्वर है जिनकी हम इस्राएलि आराधना करते हैं, वे जीवित हैं, उन्होंने मुझे तुम्हारी हानि करने से रोका है। यदि तुम मुझसे बात करने के लिए ऐसी शीघ्रता नहीं करती तो, नाबाल के पुरुष या लड़कों में से एक भी कल सुबह तक जीवित नहीं रहता। "
\p
\v 35 तब दाऊद ने उस भेंट को स्वीकार किया जो अबीगैल उसके लिए लायी थी। उसने उससे कहा, "मुझे आशा है कि तुम्हारा भला हो, जो भी तुमने कहा है वह मैंने सुना है और मैं वही करूँगा।"
\p
\s5
\v 36 जब अबीगैल नाबाल के पास लौट आयी, तो वह अपने घर में था, जिसमें राजाओं का सा एक बड़ा उत्सव मनाया जा रहा था। वह बहुत नशे में था और बहुत खुशी अनुभव कर रहा था। इसलिए अबीगैल ने उस रात दाऊद के साथ उसकी भेंट के विषय में कुछ नहीं कहा।
\s5
\v 37 अगली सुबह, जब वह नशे में नहीं था, उसने उसे सबकुछ बताया जो उसने दाऊद के साथ उसकी बात हुई थी। तुरंत, उसके मन का हियाव जाता रहा और वह आगे नहीं बढ़ सका।
\v 38 लगभग दस दिन बाद यहोवा ने उसे फिर से मारा, और वह मर गया।
\p
\s5
\v 39 दाऊद ने सुना कि नाबाल मर चुका है, तो उसने कहा, "मैं यहोवा की स्तुति करता हूँ! नाबाल ने मुझे अपमानित किया, परन्तु यहोवा ने दिखाया है कि मैं सही हूँ। उन्होंने मुझे कुछ भी गलत करने से रोका है। और उन्होंने नाबाल को उसकी गलती के लिए दंडित किया है। "
\p तब दाऊद ने अबीगैल के पास दूत भेजे, उससे पूछने के लिए कि क्या वह उसकी पत्नी बन जाएगी।
\v 40 उसके कर्मचारी कर्मेल गए और अबीगैल से कहा, "दाऊद ने हमें भेजा है कि तुम्हें उनकी पत्नी बनाने के लिए ले जाएँ।"
\s5
\v 41 अबीगैल ने जमीन पर गिर कर दण्डवत किया। तब उसने दाऊद को यह बताने के लिए दूतों से कहा, "मैं तुम्हारी पत्नी बनने में प्रसन्न हूँ। मैं तुम्हारी दासी बनूंगी। और मैं तुम्हारे कर्मचारियों के चरणों को धोने को तैयार हूँ।"
\v 42 अबीगैल जल्दी ही दाऊद के दूतों के साथ अपने गधे पर गयी। उसके साथ पाँच स्त्री दासियाँ गयी। जब वह वहाँ पहुंची जहाँ दाऊद था। तो वह उसकी पत्नी बन गई।
\s5
\v 43 दाऊद ने पहले कर्मेल के पास यिज़्रेल की एक स्त्री अहिनोअम से विवाह किया था। तो अबीगैल और अहिनोअम दोनों अब दाऊद की पत्नियां थीं।
\v 44 राजा शाऊल की पुत्री मीकल भी दाऊद की पत्नी थी, परन्तु शाऊल ने उसे लैश के पुत्र पलती को दे दिया, जो गैलीम शहर में था।
\s5
\c 26
\p
\v 1 एक दिन जब शाऊल गिबा में था तब जीप शहर के कुछ लोग शाऊल के पास आए और उन्होंने उससे कहा, "दाऊद यशीमोन शहर के पूर्व में हाकीला पहाड़ी पर एक गुफा में छिपा हुआ है।"
\p
\v 2 तब शाऊल ने तीन हजार इस्राएली सैनिकों को चुना और दाऊद की खोज करने के लिए उनके साथ जीप की मरुभूमि में गया।
\s5
\v 3 शाऊल और उसके पुरूषों ने यशीमोन शहर के पूर्व में हाकीला पहाड़ी पर मार्ग के निकट अपने तंबू खड़े किये, परन्तु दाऊद और उसके लोग मरुभूमि में ही रहे। जब दाऊद ने सुना कि शाऊल उसकी खोज कर रहा है।
\v 4 उसने यह जानने के लिए कुछ जासूस भेजे कि क्या यह सच है कि शाऊल हाकिला में आया है।
\p
\s5
\v 5 तब उस शाम को दाऊद उस स्थान पर गया जहाँ शाऊल ने अपना तम्बू खड़ा किया था। कुछ दूरी से उसने देखा कि शाऊल और उसकी सेना के सेनापति अब्नेर सो रहे थे। शाऊल के चारो और शाऊल की सारी सेना सो रही थी।
\p
\s5
\v 6 दाऊद वहाँ गया जहाँ उसके लोग थे और हेहेथ लोगों के अहीमेलेक से और योआब के भाई अबीशै, जिनकी मां दाऊद की बड़ी बहन सरूयाह थी, बात की उनसे पूछा, "मेरे साथ कौन शाऊल के स्थान में चलेगा ?"
\p अबीशै ने उत्तर दिया, "मैं तुम्हारे साथ जाऊंगा।"
\v 7 तब उस रात दाऊद और अबीशै शाऊल की छावनी में चले गए। उन्होंने देखा कि शाऊल सो रहा था। उसका भाला उसके सिर के पास भूमि में धंसा हुआ है। शाऊल छावनी के बीच में सो रहा था। अब्नेर और दूसरे सैनिक शाऊल के चारों ओर सो रहे थे।
\p
\v 8 अबीशै ने दाऊद से धीरे से कहा, "आज यहोवा ने हमें अपने शत्रु को मारने में सक्षम बनाया है! मुझे अपने भाले को मारकर शाऊल को भूमि में लगा देने की अनुमति दे। मेरे लिए केवल एक ही बार उसे मारना होगा। मुझे इसकी आवश्यकता नहीं कि उसे दूसरी बार मारूं। "
\p
\s5
\v 9 परन्तु दाऊद ने अबीशै से धीरे से कहा, "नहीं, शाऊल को मत मारो। यहोवा ने उसे राजा बनने के लिए नियुक्त किया है, इसलिए यहोवा निश्चय ही उसके हत्यारे को दण्ड देंगे।
\v 10 यहोवा के जीवन की निश्चितता, वह स्वयं शाऊल को दंडित करेंगे। शाऊल के मरने का समय होने पर संभवतः यहोवा उसे मार डालेंगे, या संभवतः शाऊल युद्ध में मारा जाएगा।
\s5
\v 11 परन्तु मुझे आशा है कि यहोवा अपने अभिषिक्त राजा को हानि पहुंचाने से मुझे रोक देंगे, जिसे उन्होंने नियुक्त किया है। हम शाऊल के भाले और पानी के पात्र को जो उसके सिर के पास है ले जाएँ। तो चलो यहाँ से निकल चले! "
\p
\v 12 दाऊद ने भाला और पानी का पात्र लिया, और वह और अबीशै वहाँ से चले गये। किसी ने उन्हें नहीं देखा या नहीं जाना कि वे क्या कर रहे थे, और कोई भी नहीं जागा, क्योंकि यहोवा ने उन्हें सुलाया था।
\p
\s5
\v 13 दाऊद और अबीशै घाटी में चले गए और शाऊल की छावनी से बहुत दूर पहाड़ी की चोटी पर चढ़ गए।
\p
\v 14 तब दाऊद ने ऊँची आवाज में अब्नेर से कहा, "अब्नेर, क्या तुम मुझे सुन सकते हो?"
\p अब्नेर ने उत्तर दिया, "तुम कौन हो, जो मुझे पुकारकर राजा को जगा रहे हो।"
\s5
\v 15 दाऊद ने उत्तर दिया, "मुझे विश्वास है कि तुम इस्राएल में सबसे महान मनुष्य हो! तो तुमने अपने स्वामी, राजा की रक्षा क्यों नहीं की? कोई तुम्हारे स्वामी, राजा को मारने के लिए तुम्हारी छावनी में आया था।
\v 16 तुमने शाऊल की रक्षा करने के काम में बहुत ढिलाई की है। तो यहोवा के जीवन की निश्चितता, तुम और तुम्हारे लोगों को मार डालना चाहिए! तुमने अपने स्वामी की रक्षा नहीं की है जिसे यहोवा ने राजा बनने के लिए नियुक्त किया है। राजा का भाला और पानी का पात्र कहां है जो उसके सिर के निकट था? "
\p
\s5
\v 17 शाऊल उठ गया और पहचान लिया वह दाऊद की आवाज़ है। उसने कहा, "मेरे बेटे दाऊद, क्या यह तुम्हारी आवाज़ है?" दाऊद ने उत्तर दिया, "हाँ, तुम्हारी महिमा हो यह मेरी ही आवाज़ है।"
\p
\v 18 तब दाऊद ने कहा, "महोदय, तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे हो। मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है!
\s5
\v 19 महामहिम, मेरी बात सुनो! यदि यहोवा ने तुम्हें मुझसे क्रोधित किया है, तो मैं चाहता हूँ कि वे मुझसे बलिदान स्वीकार करें। लेकिन यदि वे लोग हैं जिन्होंने तुमको मुझसे क्रोधित किया है, तो मैं आशा करता हूँ कि यहोवा उन्हें शाप देंगे। उन्होंने मुझे उस देश को छोड़ने के लिए विवश किया है जिसे यहोवा ने मुझे दिया था। उन्होंने मुझसे कहा, 'कहीं और जाओ और अन्य देवताओं की आराधना करो!'
\v 20 अब मुझे अपने देश और यहोवा की उपस्थिति से दूर करने के लिए विवश मत करो। तुम, राजा, मेरी खोज में हो, परन्तु मैं एक पिस्सू या जंगली पक्षी के रूप में हूँ जिसका पहाड़ियों में शिकार किया जाता है। "
\p
\s5
\v 21 तब शाऊल ने कहा, "हे मेरे पुत्र, दाऊद, मैंने तुम्हें मारने का प्रयास करके पाप किया है। तुम वापस घर आ जाओ। आज तुमने मेरा जीवन बहुत मूल्यवान माना है और इसलिए तुमने मुझे नहीं मारा। इसलिए मैं अब तुम्हें हानि पहुँचाने का प्रयास नहीं करूँगा। मैंने बहुत बड़ी गलती की है और मूर्खता का काम किया है। "
\p
\s5
\v 22 दाऊद ने उत्तर दिया, "मैं यहाँ तुम्हारा भाला छोड़ दूंगा। इसे ले जाने के लिए यहाँ अपने जवानों में से एक को भेज देना।
\v 23 यहोवा हमें उचित कार्य करने और अपने स्वामिभक्त होने का प्रतिफल देते हैं। यहाँ तक कि जब यहोवा ने मुझे ऐसे स्थान में रखा था जहाँ मैं तुम्हें सरलता से मार सकता था, मैंने ऐसा करने से मनाकर दिया, क्योंकि तुम्हें यहोवा ने राजा बनने के लिए नियुक्त किया है।
\s5
\v 24 जैसा कि मैंने तुम्हारा जीवन मूल्यवान माना और आज तुम्हारा जीवन बचाय है मुझे आशा है कि यहोवा भी मेरे जीवन को मूल्यवान मानेंगे और मेरे जीवन को छोड़ देंगे और मुझे अपनी सारी परेशानियों से बचाएंगे। "
\p
\v 25 तब शाऊल ने दाऊद से कहा, "हे मेरे पुत्र दाऊद, मैं प्रार्थना करता हूँ कि यहोवा तुमको आशीष दे। तुम महान कामों को सफलतापूर्वक कर पाए।"
\p तब दाऊद अपने लोगों के पास लौट आया, और शाऊल घर वापस चला गया।
\s5
\c 27
\p
\v 1 परन्तु दाऊद ने सोचा, "यदि मैं यहाँ रहूं तो शाऊल एक दिन मुझे पकड़ ही लेगा। इसलिए सबसे अच्छा काम जो मैं कर सकता हूँ वह यह है कि मैं पलिश्तियों के क्षेत्र में चला जाऊँ। यदि मैं ऐसा करता हूँ, तो शाऊल मुझे इस्राएल में खोजना बंद कर देगा, और मैं सुरक्षित रहूंगा। "
\p
\s5
\v 2 तब दाऊद और उसके छः सौ पुरुष इस्राएल छोड़कर माओक के पुत्र आकीश के पास गए, जो पलिश्तियों के क्षेत्र में गत शहर का राजा था।
\v 3 दाऊद और उसके लोग और उनके परिवार गत में रहने लगे, जहाँ राजा आकीश रहता था। दाऊद की दो पत्नियां उसके साथ थीं-यिज्रेल से अहिनोअम, और कर्मेल से नाबाल की विधवा अबीगैल।
\v 4 जब शाऊल ने सुना कि दाऊद भाग गया और गत में रह रहा है, तो उसने दाऊद की खोज बंद कर दी।
\p
\s5
\v 5 एक दिन दाऊद ने आकीश से कहा, "यदि तुम हमसे प्रसन्न हो, तो हमें उन छोटे गांवों में से एक जगह दे दो जहाँ हम रह सकते हैं। हमें उस शहर में रहने की आवश्यकता नहीं, जहाँ तुम राजा हो। "
\p
\v 6 आकीश को दाऊद का सुझाव पसंद आया। इस दिन आकीश ने दाऊद को सिगलक शहर दिया। परिणामस्वरूप, इस समय तक सिगलक यहूदा के राजाओं का है।
\p
\v 7 दाऊद और उसके लोग सोलह महीने तक पलिश्तियों के क्षेत्र में रहे।
\s5
\v 8 उस समय, दाऊद और उसके लोगों ने उन इलाकों में रहने वाले लोगों पर हमला किया जहाँ गशूरी, गिरज़ी और अमालेकी लोग रहते थे। वे लोग बहुत पहले से वहाँ रहते थे। वह क्षेत्र दक्षिण से शूर तक और मिस्र की सीमा तक फैला था।
\v 9 जब भी दाऊद के लोगों ने उन पर हमला किया, तो उन्होंने सभी पुरुषों और स्त्रियों को मार डाला, और उन्होंने सभी लोगों की भेड़ें, मवेशी, गधे और ऊंट और यहाँ तक कि उनके कपड़े भी ले लिए। तब वे उन चीजों को घर लाते, और दाऊद, आकीश से बात करने जाता।
\p
\s5
\v 10 हर बार आकीश दाऊद से पूछता, "आज तुम कहाँ गये थे?" कभी दाऊद कहता कि वो यहूदा के दक्षिणी भाग में गया था, और कभी वह कहता कि वे वहाँ गए थे जहाँ यरहमेली दक्षिण में रहते थे, या उन्होंने दक्षिण में रहने वाले केनी लोगों से युद्ध किया था।
\s5
\v 11 दाऊद के लोग कभी भी किसी स्त्री या पुरुष को जीवित गत में नहीं लाए। दाऊद ने सोचा, "यदि हम सब को मार नहीं देते हैं, तो उनमें से कुछ जो जीवित हैं, वे जाएँगे और आकीश को सच बताएंगे कि हमने वास्तव में क्या किया।" दाऊद ने ऐसा ही किया जब तक वह और उसके लोग पलिश्तियों के क्षेत्र में रहे।
\v 12 इसलिए आकीश ने दाऊद की बात पर विश्वास किया; उसने सोचा, "दाऊद ने जो ऐसा किया है, उसके कारण, उसके अपने ही लोग, इस्राएलियों को अब उससे बहुत घृणा करनी चाहिए। इसलिए उन्हें यहाँ रहना होगा और हमेशा के लिए मेरी सेवा करनी होगी।"
\s5
\c 28
\p
\v 1 कुछ समय बाद, पलिश्ती के लोगों ने फिर से इस्राएलियों पर हमला करने के लिए अपनी सेना एकत्र की। राजा आकीश ने दाऊद से कहा, "मैं उम्मीद कर रहा हूँ कि तुम और तुम्हारे लोग इस्राएलियों पर हमला करने के लिए मेरे लोगों के साथ जाएंगे।"
\p
\v 2 दाऊद ने उत्तर दिया, "हम तुम्हारे साथ जाएंगे, और फिर तुम स्वयं देखोगे कि हम क्या कर सकते हैं!"
\p आकीश ने कहा, "बहुत अच्छा, मैं तुमको अपना स्थायी अंगरक्षक होने के लिए नियुक्त करूंगा।"
\p
\s5
\v 3 जब शमूएल जीवित था, तब शाऊल ने ऐसे काम किये थे जिनसे यहोवा प्रसन्न हुआ था। उसके अचे कामों में से एक था, शाऊल ने उन सब लोगों को इस्राएल से बाहर निकाल दिया जो भावी कहते थे या जो मरे हुए लोगों की आत्माओं से बात करते थे। परन्तु शमूएल की मृत्यु हो गई थी, और सब इस्राएली लोगों ने उसके लिए शोक किया था। तब उन्होंने उसे उसके नगर रामा में दफनाया था।
\p
\v 4 पलिश्तियों की सेना एकत्र हुई और इस्राएल के उत्तर में शूनेम शहर में अपने तंबू खड़े किये। शाऊल ने इस्राएली सेना को एकत्र किया और उसी घाटी के पूर्वी हिस्से में गिलबो में अपने तंबू खड़े किये।
\s5
\v 5 पलिश्तियों की सेना को देखकर शाऊल इतना डर गया कि उसका दिल घबरा गया।
\v 6 उसने यहोवा से प्रार्थना की, परन्तु यहोवा ने उसे उत्तर नहीं दिया। यहोवा ने शाऊल को सपने में यह नहीं बताया कि उसे क्या करना चाहिए, न ही याजक को अपने पवित्र थैले में चिह्नित पत्थरों के द्वारा कुछ बताया या किसी भविष्यद्वक्ता को शाऊल के विषय में संदेश देकर भेजा कि उसे क्या करना चाहिए।
\v 7 तब शाऊल ने अपने सेवकों से कहा, "मेरे लिए एक ऐसी स्त्री खोजो जो मृत लोगों की आत्माओं से बात करे, ताकि मैं उससे पूंछू कि क्या होगा।" उसके सेवकों ने उत्तर दिया, "एन्दोर शहर में एक स्त्री है जो ऐसा करती है।"
\p
\s5
\v 8 तब शाऊल ने उन कपड़ों को उतारा जो दिखाते थे कि वह राजा है, और उसने अपनी पहचान छिपाने के लिए साधारण कपड़े पहन लिए। तब वह और उसके दो लोग रात के समय उस स्त्री से बात करने के लिए गए। शाऊल ने उससे कहा, "मैं चाहता हूँ कि तुम किसी मरे हुए की आत्मा से बात करो। उस व्यक्ति को बुलाना जिसका नाम मैं तुम्हें बताऊंगा।"
\p
\v 9 परन्तु उस स्त्री ने उत्तर दिया, "तुम निश्चित रूप से जानते हो कि शाऊल ने क्या किया है। उसने इस देश से उन सब लोगों को निकाल दिया जो मरे हुए लोगों की आत्माओं से बात करते हैं और भावी कहते हैं। मुझे लगता है कि तुम मुझे फंसाने का प्रयास कर रहे हो, ताकि मुझे मना किये हुए कार्य को करने के लिए मार डाला जाये। "
\p
\v 10 शाऊल ने गंभीरता से यहोवा से कहा कि वह जो कह रहा है उसे वह सुने, यहोवा के जीवन की निश्चितता, तुम्हें ऐसा करने का दण्ड नहीं दिया जाएगा।"
\p
\s5
\v 11 तब उस स्त्री ने कहा, "तुम किसको देखना चाहते हो?" शाऊल ने उत्तर दिया, "शमूएल को बुलाओ।"
\p
\v 12 तो उस स्त्री ने ऐसा किया। लेकिन जब उसने शमूएल को देखा, तो वह चिल्लाई। उसने कहा, "तुमने मुझे धोखा दिया है! तुम शाऊल हो! तुम मुझे ऐसा करने के लिए यहाँ से निकाल दोगे!"
\p
\s5
\v 13 शाऊल ने उससे कहा, "डरो मत। तुम क्या देखती हो?"
\p स्त्री ने कहा, "मुझे लगता है कि एक देवता भूमि में से बाहर आ रहा है।"
\v 14 शाऊल ने कहा, "वह कैसा दिखता है?"
\p स्त्री ने उत्तर दिया, "एक बूढ़ा व्यक्ति दिख रहा है।"
\p शाऊल जानता था कि यह शमूएल है। अतः वह भूमि पर गिर कर दण्डवत करने लगा।
\s5
\v 15 शमूएल ने शाऊल से कहा, "तुमने मुझे बुला कर मुझे परेशान क्यों किया?"
\p शाऊल ने कहा, "मैं बहुत चिंतित हूँ। पलिश्तियों की सेना मेरी सेना पर हमला करने जा रही है, और परमेश्वर ने मुझे छोड़ दिया है। वे अब मेरे प्रश्नों का उत्तर नहीं देते हैं। वे मुझे यह बताने के लिए सपने नहीं देते कि क्या करना है या भविष्यद्वक्ताओं को संदेश दे कर नहीं बताते कि मुझे क्या करना है। यही कारण है कि मैं तुमको देखने आया था। तो तुम मुझे बताओ कि मुझे क्या करना चाहिए! "
\s5
\v 16 शमूएल ने कहा, "यहोवा ने तुम्हें त्याग दिया है और तुम्हारा शत्रु बन गया है। तो तुम मुझसे क्यों पूछ रहे हो कि तुमको क्या करना चाहिए?
\v 17 उन्होंने वही किया है जो उन्होंने मुझे पहले बताया था कि वे तुम्हारे साथ क्या करेंगे। उन्होंने तुम से राज्य ले लिया है, और वे उसे दाऊद को दे रहे हैं।
\s5
\v 18 तुमने यहोवा की आज्ञा का पालन नहीं किया। अमालेकी लोगों से यहोवा बहुत क्रोधित थे। तुमने उनके सब जानवरों को नहीं मारा, जिसके परिणामस्वरूप तुमने उन्हें यह नहीं दिखाया कि यहोवा उनसे बहुत नाराज थे। यही कारण है कि वे आज तुमको उत्तर देने से मनाकर रहे हैं।
\v 19 यहोवा पलिश्ती सेना को तुम्हें और अन्य सब इस्राएली सैनिकों को पराजित करने में सक्षम करेंगे। और कल तुम और तुम्हारे पुत्र मेरे साथ उस स्थान में होंगे जहाँ मरे हुए लोगों की आत्माएं हैं। यहोवा पूरी इस्राएली सेना को पलिश्ती सेना के हाथों पराजित करेंगे। "शमूएल यह सब कह कर वहाँ से गायब हो गया।
\p
\s5
\v 20 शाऊल तुरंत भूमि पर गिर गया। शमूएल की बात सुनकर वह इतना डर गया था कि उसमें शक्ति ही नहीं रही। वह वैसे ही बहुत दुर्बल था क्योंकि उसने उस दिन और रात में कुछ भी नहीं खाया था।
\p
\v 21 स्त्री ने देखा कि वह बहुत चिंतित है। उसने उससे कहा, "मेरी बात सुनो! मैंने वह किया है जो तुमने मुझसे करने का अनुरोध किया था। मुझे ऐसा करने के लिए मृत्यु दण्ड दिया जा सकता था।
\s5
\v 22 तो अब मैं जो कहती हूँ उस पर ध्यान दो। मुझे तुम्हारे लिए भोजन परोसने की अनुमति दो, ताकि तुम भोजन खा सको और अपनी सेना में वापस जाने के लिए पर्याप्त शक्ति प्राप्त कर सको।"
\p
\v 23 लेकिन शाऊल ने मनाकर दिया। उसने कहा, "नहीं, मैं कुछ भी नहीं खाऊंगा।" तब शाऊल के सेवकों ने भी कुछ खाने के लिए उससे आग्रह किया, और अंत में उसने उनकी बात सुनी। वह भूमि से उठा और बिस्तर पर बैठ गया।
\p
\s5
\v 24 उस स्त्री के पास एक मोटा बछड़ा उसके घर के निकट था। उसने जल्दी से उसे मारा और पकाया। उसने कुछ आटा लिया और जैतून का तेल मिलाकर खमीर में डाले बिना पकाया।
\v 25 उसने शाऊल और उसके सेवकों के सामने भोजन रखा, और उन्होंने कुछ खा लिया। फिर उसी रात वे उठकर चले गए।
\s5
\c 29
\p
\v 1 पलिश्ती सेना अपेक की घाटी में एकत्र हुई। इस्राएलियों ने वहीं यिज्रेल शहर में अपने तंबू लगाए थे।
\v 2 पलिश्तियों के राजाओं ने अपने लोगों को दलों में बांटा; कुछ दलों में एक सौ सैनिक थे और कुछ समूहों में एक हजार सैनिक थे। राजा आकीश के साथ दाऊद और उसके लोग पीछे चल रहे थे।
\s5
\v 3 परन्तु पलिश्ती सेनापतियों ने पूछा, "ये इब्रानी यहाँ क्या कर रहे हैं, हमारे साथ युद्ध में चल रहे हैं?"
\p आकीश ने उत्तर दिया, "उनका अगुवा दाऊद है। उसने पहले इस्राएल के राजा शाऊल के लिए काम किया था, लेकिन अब वह एक वर्ष से भी अधिक समय से मेरे पास रहा है। शाऊल को छोड़ने के बाद से, मैंने नहीं देखा है कि उसमें कोई दोष है।"
\s5
\v 4 परन्तु पलिश्ती सेना के सेनापति आकीश पर क्रोधित हुए क्योंकि उसने दाऊद को साथ चलने की आज्ञा दी थी। उन्होंने उससे कहा, "दाऊद और उसके लोगों को उस शहर में वापस भेजो जिसे आपने उसे दिया था! हम नहीं चाहते कि वह हमारे साथ युद्ध में जाए। यदि वह हमारे साथ जाता है, तो हमारे बीच में हमारा शत्रु होगा! वह हमारे सैनिकों की हत्या करके शाऊल को प्रसन्न करेगा!
\p
\s5
\v 5 क्या तुम भूल गए हो कि यह वही दाऊद है जिसके विषय में इस्राएली नाचते हैं और गाते हैं,
\q1 'शाऊल ने हजार शत्रुओं को मारा,
\q2 लेकिन दाऊद ने दस हजार को मारा है?"
\p
\s5
\v 6 तब आकीश ने दाऊद को बुलाकर कहा, "यहोवा के जीवन की शपथ, तुम मेरे प्रति वफादार रहे हो। मैं तुम्हारे लिए अपनी सेना के साथ लड़ना चाहता हूँ। जिस दिन से तुम मेरे पास आए हो मुझे तुम में कोई गलती नहीं मिली है। लेकिन अन्य राजा तुम पर भरोसा नहीं करते हैं।
\v 7 तो तुम सब घर वापस जाओ, और मुझे ऐसा कुछ करने की आशा नहीं है कि पलिश्ती के अन्य राजा तुम से अप्रसन्न हों। "
\p
\s5
\v 8 दाऊद ने उत्तर दिया, "मैंने क्या गलत किया है? जिस दिन से मैं पहली बार तुम्हारे पास आया था, क्या मैंने ऐसा कुछ किया है जो तुम्हें बुरा लगे? महामहिम, तुम मुझे अपने शत्रुओं से युद्ध करने की अनुमति क्यों नहीं दे रहे? "
\p
\v 9 आकीश ने उत्तर दिया, "मैं जनता हूँ कि मैं तुम पर भरोसा कर सकता हूँ जितना मैं परमेश्वर के भेजे एक स्वर्गदूत पर भरोसा कर सकता हूँ। लेकिन मेरी सेना के सेनापति ने कहा है, 'हम दाऊद और उसके लोगों को युद्ध में हमारे साथ जाने की अनुमति नहीं देंगे। '
\s5
\v 10 अतः कल सुबह जल्दी तुम और तुम्हारे पुरुषों को जाना होगा। जैसे ही प्रकाश हो जाये तो तुम सब यहाँ से निकल जाओ। "
\p
\v 11 तब दाऊद और उसके लोग अगली सुबह उठकर उस क्षेत्र में लौट आए जहाँ पलिश्ती लोग रहते थे। परन्तु पलिश्ती सेना यिज्रेल शहर में गई।
\s5
\c 30
\p
\v 1 तीन दिन बाद, जब दाऊद और उसके लोग सिकलाग पहुंचे, तो उन्होंने पाया कि अमालेक समूह के लोगों ने सिकलाग और दक्षिणी यहूदा की मरुभूमि के कुछ कस्बों पर छापा मारा था। उन्होंने सिकलाग को नष्ट कर दिया और सभी इमारतों को जला दिया।
\v 2 उन्होंने महिलाओं और बच्चों और बाकि सब को भी पकड़ लिया था, और उन्हें दूर ले गये। लेकिन उन्होंने किसी की हत्या नहीं की थी।
\p
\s5
\v 3 जब दाऊद और उसके लोग सिकलाग आए, तो उन्होंने देखा कि नगर जला दिया गया था, और उनकी पत्नियों, पुत्रों और पुत्रियों को पकड़कर ले जाया गया था।
\v 4 दाऊद और उसके लोग जोर-जोर से रोते रहे, जब तक कि उनमे रोने की और शक्ति ना बची।
\s5
\v 5 दाऊद की दो पत्नियां, अहिनोम और अबीगैल को भी ले गए थे।
\v 6 दाऊद के लोग उसके ऊपर पत्थर फेंककर उसे मारने की धमकी दे रहे थे, क्योंकि वे बहुत क्रोधित थे क्योंकि उनके पुत्रों और पुत्रियों को लूट लिया गया था। दाऊद बहुत परेशान था, परन्तु उसके परमेश्वर यहोवा ने उसे बल दिया।
\p
\s5
\v 7 तब दाऊद को नहीं पता था कि क्या करना है, इसलिए उसने याजक एब्यातार से कहा, "पवित्र एपोद लाओ।" तो एब्यातार उन्हें लाया,
\v 8 और दाऊद ने यहोवा से पूछा, "क्या मैं और मेरे लोग उन मनुष्यों का पीछा करे जिन्होंने हमारे परिवारों को लूट लिया? क्या हम उन्हें पकड़ सकेंगे?"
\p यहोवा ने पवित्र एपोद के पत्थरों के माध्यम से उत्तर दिया: "हाँ, उनका पीछा करो। तुम उन्हें पकड़ लोगे, और तुम अपने परिवारों को बचाने में सक्षम होंगे।"
\s5
\v 9 तब दाऊद और उसके साथ छः सौ पुरुष चले गए, और वे बेसर की चट्टान पर आए। उनके कुछ पुरुष अपने सामान के साथ वहाँ रहे।
\v 10 दाऊद और चार सौ पुरुष अपने परिवारों को पकड़ने वाले पुरुषों का पीछा करते रहे। अन्य दो सौ लोग घाटी पर ठहर गये, क्योंकि वे इतने थक गए थे कि वे घाटी को पार नहीं कर सके।
\p
\s5
\v 11 जैसे दाऊद और चार सौ लोग जा रहे थे, उन्होंने मिस्र के एक व्यक्ति को खेत में देखा; इसलिए वे उसे दाऊद के पास ले गए। उन्होंने उस व्यक्ति को पीने के लिए पानी दिया और खाने के लिए कुछ खाना दिया।
\v 12 उन्होंने उसे अंजीर की टिकिया और किशमिश के दो गुच्छे भी दिए। उस व्यक्ति के पास तीन दिन और रात से खाने या पीने के लिए कुछ भी नहीं था, लेकिन जब उसने खाया और पी लिया, उसमें फुर्ती आई।
\p
\s5
\v 13 दाऊद ने उससे पूछा, "तुम्हारा स्वामी कौन है? और तुम कहाँ से आते हो?"
\p उसने उत्तर दिया, "मैं मिस्र से हूँ। मैं अमालेकी लोगों के समूह में से एक व्यक्ति का दास हूँ। तीन दिन पहले मेरे स्वामी ने मुझे यहाँ छोड़ दिया, क्योंकि मैं बीमार था और मैं उनके साथ नहीं जा सका।
\v 14 हमने केरेती लोगों के दक्षिणी यहूदियन जंगल और यहूदा के कुछ अन्य कस्बों और कालेबियों के दक्षिणी यहूदिया की मरुभूमि पर छापा मारा था। हमने सिकलाग भी जला दिया। "
\p
\s5
\v 15 दाऊद ने उससे पूछा, "क्या आप हमें लुटेरों के उस दल में ले जा सकते हो?"
\p उसने उत्तर दिया, "हाँ, मैं ऐसा करूँगा यदि तुम परमेश्वर से यह कहते हो कि यौम मुझे नहीं मरोगे और ना ही मुझे मेरे स्वामी को वापस नहीं दोगे। यदि तुम वादा करते हो, तो मैं तुम्हें उनके पास ले जाऊंगा।"
\s5
\v 16 दाऊद ऐसा करने के लिए तैयार हो गया, इसलिए मिस्र के उस व्यक्ति ने दाऊद और उसके लोगों को वहाँ ले गया जहाँ अमालेकी लोगों का दल था । वे लोग भूमि पर गिरे पड़े थे, खा रहे थे और पी रहे थे और जश्न मना रहे थे क्योंकि उन्होंने पलिश्ती और यहूदा केक्षत्र से बहुत सी वस्तुएँ की थीं।
\v 17 दाऊद और उसके लोगों ने उस दिन सूर्यास्त से अगले दिन की शाम तक उनसे युद्ध किया। उनमें से चार सौ ऊँटों पर चढ़कर भाग गए और कुछ ऊंटों पर चले गए, लेकिन उनमें से कोई भी बच न निकला।
\s5
\v 18 दाऊद ने अपनी दो पत्नियों को बचा लिया, और उसने और उसके लोग अमालेकी लोगों ने जो कुछ भी लिया था, उस लूट को वापस ले लिया।
\v 19 कुछ भी कम न था। उन्होंने अपने सब लोगों को वापस सिकलाग ले आये युवा लोगों और बुजुर्गों, उनकी पत्नियों, उनके पुत्रों और उनकी पुत्रियों को ले लिया। उन्होंने अन्य सब चीजों को भी पुनर्प्राप्त किया कि अमालेक लोगों के समूह ने सिकलाग से लिया था।
\v 20 उन्होंने उन भेड़ों और मवेशियों को वापस लिया जिन्हें पकड़ लिया गया था, और उसके पुरूषों ने इन जानवरों को बाकी पशुओं के आगे चला; उन्होंने कहा, "ये वे जानवर हैं जिन्हें हमने युद्ध में पकड़ा, वे दाऊद के हैं!"
\p
\s5
\v 21 दाऊद और उसके लोग वापस वहाँ लौटे, जहाँ दो सौ पुरुष प्रतीक्षा कर रहे थे, वे लोग दाऊद के साथ नहीं गए क्योंकि वे बहुत थके हुए थे। वे बेसर की चट्टान पर रहे थे। जब उन्होंने दाऊद और उसके लोगों को देखा, तो वे उन्हें बधाई देने के लिए बाहर गए। और दाऊद ने भी उन्हें बधाई दी।
\p
\v 22 परन्तु जो लोग दाऊद के साथ गए थे, वे बुरे और परेशान करने वाले पुरुष थे, उन्होंने कहा, "ये दो सौ पुरुष हमारे साथ नहीं गए थे। इसलिए हमें इन वस्तुओं में से उन्हें कुछ भी नहीं देना चाहिए जिन्हें हम वापस लाए हैं। वे केवल अपनी पत्नी और बच्चों को ले और घर वापस जाना जाओ। "
\p
\s5
\v 23 दाऊद ने उत्तर दिया, "नहीं, मेरे साथी इस्राएलियों, यह उचित नहीं है। यहोवा ने हमें बचाया है और हमें हमारे नगर पर आक्रमण करने वाले शत्रुओं को हराने में सक्षम बनाया है।
\v 24 यदि तुम ऐसा कहते हैं तो कौन तुम पर ध्यान देगा? जो लोग हमारे सामान के साथ यहाँ रहे थे वे भी उतना ही प्राप्त करेंगे जितना युद्ध में गए लोग प्राप्त करेंगे। वे सभी एक ही बराबर प्राप्त करेंगे। "
\v 25 दाऊद ने इस्राएलियों के लिए यह कानून बनाया, और यह अभी भी इस्राएल में एक कानून है।
\p
\s5
\v 26 जब दाऊद और सब लोग सिगलक पहुँचे, तो दाऊद ने अपने मित्रों को वे वस्तुएँ दीं जो उन्होंने अमालेकियों से ली थीं। उसने उनसे कहा, "यह तुम्हारे लिए एक उपहार है। ये वे वस्तुएँ हैं जिन्हें हमने यहोवा के शत्रुओं से लिया है।
\p
\v 27 यहाँ उन नगरों और कस्बों की एक सूची दी गई है जिनके अगुवों ने दाऊद को उपहार भेजा: बेतेल, यहूदा के दक्षिणी भाग में रामोथ, जातिर,
\v 28 अरोएर, सिपामोथ, एश्तेमोआ।
\s5
\v 29 राकल, उन नगरों में जहाँ रामेल के वंशज और जिन नगरों में केनीत लोगों के समूह रहते हैं,
\v 30 होर्मा, बोर आशान, अथक,
\v 31 हेब्रोन, और अन्य सभी जगह जहाँ दाऊद और उसके लोग अक्सर चले गए थे।
\s5
\c 31
\p
\v 1 बाद में, पलिश्तियों ने फिर से इस्राएलियों से युद्ध किया। इस्राएली वहाँ से भाग गए, और गिलबो पर्वत पर कई इस्राएली मारे गए।
\v 2 पलिश्तियों ने शाऊल को उसके तीन पुत्रों के साथ पकड़ा, और उन्होंने उसके तीन पुत्र योनातन और अबीनादाब और मल्कीशूअ को मार डाला।
\v 3 शाऊल के चारों ओर बहुत भयानक युद्ध हो रहा था। जब शाऊल पलिश्ती तीरंदाज के पास पहुँच गए, तो उन्होंने अपने तीरों से उसे बुरी तरह घायल कर दिया।
\p
\s5
\v 4 शाऊल ने उस मनुष्य से कहा, जो उसके हथियारों ढोता था, "अपनी तलवार निकालो और मुझे मार डालो, जिससे की ये पलिश्ती अपनी तलवारों से मुझे मारने में सक्षम न हों और मरने के दौरान मेरा ठट्ठा न उड़ा सकें । "
\p लेकिन वह व्यक्ति जो शाऊल के हथियारों ढोता था, डर गया, और ऐसा करने से मनाकर दिया। तो शाऊल ने अपनी तलवार ली और उस पर गिर गया। तलवार ने अपने शरीर को छेद दिया, और वह मर गया।
\v 5 जब उसके हथियार धोने वाले व्यक्ति ने देखा कि शाऊल मर चुका है, तो वह भी अपनी तलवार पर गिरा और मर गया।
\v 6 तब शाऊल, उसके तीन पुत्र, और जो व्यक्ति शाऊल के हथियारों को ढोता था, सब उसी दिन मर गए।
\p
\s5
\v 7 जब यिज्रैल की घाटी के उत्तर की ओर और यरदन नदी के पूर्व की ओर इस्राएलियों ने सुना कि इस्राएल की सेना भाग गई और शाऊल और उसके पुत्र मारे गए, तो उन्होंने अपने नगर छोड़ दिए और भाग गए। तब पलिश्ती आए और उनके नगरों पर अधिकार कर लिया।
\p
\v 8 अगले दिन, जब पलिश्ती मरे हुओं इस्राएली सैनिकों के हथियार ले जाने आए, तब उन्होंने शाऊल और उसके तीनों पुत्रों को गिलबोआ पर्वत पर पाया।
\s5
\v 9 उन्होंने शाऊल के सिर को काट दिया और उसके हथियार ले लिए। तब उन्होंने मंदिरों में समाचारों का प्रचार करने के लिए अपने पूरे देश में दूत भेजे, जहाँ उन्होंने अपनी मूर्तियों और अन्य लोगों को सुनाया, कि उनकी सेना ने इस्राएलियों को पराजित किया था।
\v 10 उन्होंने शाऊल के हथियारों को अपनी देवी अस्तोरेत के मंदिर में रखा। उन्होंने शाऊल और उसके पुत्रों के शरीर को उस दीवार पर रख दिया जो बेत शान शहर को घेरे हुए थी।
\p
\s5
\v 11 जब गिलाद के क्षेत्र के याबेश में रहने वाले लोगों ने सुना कि पलिश्तियों ने शाऊल के साथ किया क्या किया है,
\v 12 उनके सभी सबसे बड़े सैनिक बेतशान के लिए सारी रात चले। उन्होंने शाऊल और उसके पुत्रों की लाशों को शहर की दीवार से नीचे उतार लिया और उन्हें याबेश ले आये और वहाँ उनकी लाशों को जला दिया।
\v 13 उन्होंने हड्डियों को लिया और उन्हें एक बड़े झाऊ के पेड़ के नीचे दफनाया। फिर उन्होंने सात दिनों तक उपवास किया।