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\id JDG
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\h न्यायियों
\toc1 न्यायियों
\toc2 न्यायियों
\toc3 jdg
\mt1 न्यायियों
\s5
\c 1
\p
\v 1 यहोशू की मृत्यु के बाद, इस्राएलियों ने यहोवा से पूछा, "हमारे गोत्रों में से किसे कनानियों पर पहले आक्रमण करना चाहिए?"
\p
\v 2 यहोवा ने उत्तर दिया, "यहूदा के गोत्र के लोगों को पहले आक्रमण करना चाहिए। कनानियों को पराजित करने में मैं यहूदा के गोत्र को सामर्थ दूँगा।"
\p
\v 3 यहूदा के लोग अपने साथी इस्राएली, शिमोन के गोत्र के लोगों के पास गए और उनसे कहा, "आओ और कनानियों से युद्ध में हमारी सहायता करो कि हम उनसे वह देश ले सकें जिसे यहोवा ने हमें दिया है। यदि तुम हमारी सहायता करोगे तो हम भी तुम्हारे साथ चलकर उस देश के लोगों को पराजित करने में तुम्हारी सहायता करेंगे जिसे यहोवा ने तुम्हे देने की प्रतिज्ञा की है।" इसलिए शिमोन के गोत्र के लोग यहूदा के गोत्र के लोगों के साथ गए।
\p
\s5
\v 4 जब उन दो गोत्रों के लोगों ने आक्रमण किया, तब यहोवा ने उन्हें बेजेक शहर में रहने वाले कनानियों और परिज्जियों के दस हजार लोगों के हाथों पराजित करवाया।
\v 5 युद्ध में उन्हें शहर का अगुवा, अदोनीबेजेक मिला।
\p
\s5
\v 6 अदोनीबेजेक ने भागने की कोशिश की, इस्राएलियों ने उसका पीछा किया और उसे पकड़ लिया। फिर उन्होंने उसके हाथों के अंगूठों को और उसके पैरों के अंगूठों को काट दिया।
\p
\v 7 अदोनीबेजेक ने कहा, "मेरी सेना ने सत्तर राजाओं को पकड़ा था। हमने उनके हाथों के अंगूठों को और उसके पैरों के अंगूठों को काट दिया था, उसके बाद, हमने उन राजाओं को हमारी मेज से गिरने वाली चूरचार खाने के लिए विवश कर दिया था। मैंने जैसा किया था वैसा ही बदला परमेश्वर ने मुझे दिया है।" तब यहूदा के लोग अदोनीबेजेक को यरूशलेम ले गए और वह वहाँ मर गया।
\p
\s5
\v 8 यहूदा की सेना ने यरूशलेम के लोगों से युद्ध किया और उस नगर पर अधिकार लिया। से उन्होंने वहाँ रहने वाले लोगों को तलवार से मार डाला और उस शहर के घरों को जला दिया।
\p
\v 9 बाद में, यहूदा के लोग पहाड़ी देश में, दक्षिणी यहूदिया की मरुस्थल में और पश्चिम की तलहटी में रहने वाले कनानियों से युद्ध करने के लिए नीचे गए।
\v 10 यहूदा (हेब्रोन शहर जिसे किर्यतर्बा नाम दिया गया था) के कनानियों से युद्ध करने के लिए भी गए (जिसे किर्यतर्बा नाम दिया गया था)। उन्होंने शेशै, अहीमन और तल्मै राजाओं की सेनाओं को पराजित किया।
\p
\s5
\v 11 तब उन्होंने उस क्षेत्र को छोड़ दिया और दबीर शहर में रहने वाले लोगों से युद्ध किया (इस शहर को पहले किर्यत्सेपेर नाम दिया गया था।)
\v 12 उस शहर पर हमला करने से पहले, कालेब ने उनसे कहा, "जो व्यक्ति किर्यत्सेपेर पर हमला करके उस पर अधिकार कर लेगा, उसका विवाह मैं अपनी पुत्री से कर दूँगा।"
\v 13 ओत्नीएल ने, जो कालेब के छोटे भाई केनाज का पुत्र था, उस शहर पर अधिकार कर लिया। इसलिए कालेब ने अपनी पुत्री अकसा को उसकी पत्नी होने के लिए दे दिया।
\p
\s5
\v 14 अकसा से विवाह के बाद, ओत्नीएल ने कहा कि वह उसके पिता कालेब से अनुरोध करे कि वह उसे एक खेत दे दे। तब वह अपने गधे पर सवार होकर अपने पिता कालेब के घर गई। जब वह गधे से उतरी तब कालेब ने उससे पूछा, "तुझे क्या चाहिए?"
\p
\v 15 उसने उत्तर दिया, "मैं चाहती हूँ कि आप मुझ पर एक कृपा करें, आपने मुझे दक्षिणी यहूदिया की मरुस्थल का देश दिया है, पर वह बहुत सूखा है, तो कृपया मुझे ऐसी भूमि भी दीजिए जिसमें पानी के सोते हों।" इसलिए कालेब ने उसे ऊँची जगह पर कुछ भूमि दी जिसमें एक सोता था और निचली जगह पर भी कुछ भूमि दी जिसमें पानी का सोता था।
\p
\s5
\v 16 केनी लोग जो मूसा के ससुर के वंशज थे उन्होंने यरीहो को छोड़ दिया, जिसे "खजूर के पेड़ों का शहर" कहा जाता था। वे यहूदा के कुछ लोगों के साथ रहने के लिए उनके साथ अराद शहर के पास दक्षिणी यहूदिया की मरुस्थल में चले गए।
\p
\v 17 यहूदा और शिमोन के गोत्रों के साथी इस्राएलियों ने सपत शहर में रहनेवाले कनानी लोगों को पराजित किया। उन्होंने शहर को पूरी तरह से नष्ट कर दिया और उसे एक नया नाम दिया, होर्मा, जिसका अर्थ है "पूर्ण विनाश।"
\s5
\v 18 यहूदा के लोगों ने गाजा, अश्कलोन और एक्रोन शहरों को और उन शहरों के निकट के सारे देश पर भी अधिकार कर लिया।
\v 19 यहोवा ने यहूदा के लोगों की सहायता की कि वे पहाड़ी देश पर अधिकार करें, लेकिन वे मैदान में रहनेवाले लोगों को निकालने में सफल नहीं हुए, क्योंकि उनके शत्रुओं पास बेहतर हथियार थे और उनके पास लोहे के रथ भी थे।
\p
\s5
\v 20 हेब्रोन का शहर कालेब को दिया गया था क्योंकि मूसा ने उससे प्रतिज्ञा की थी कि उसे वह शहर मिलेगा। कालेब ने अनाक से निकले तीन कुलों को उस क्षेत्र से निकल जाने के लिए विवश कर दिया।
\v 21 परन्तु बिन्यामीन के गोत्र के लोग यबूसी लोगों को यरूशलेम छोड़ने के लिए विवश नहीं कर पाए। इसलिए, उसी समय से यबूसी लोग यरूशलेम में बिन्यामीन के गोत्र के साथ रहते हैं।
\p
\s5
\v 22 एप्रैम और मनश्शे के गोत्रों के लोग बेतेल शहर के लोगों से युद्ध करने के लिए गए, और यहोवा ने उनकी सहायता की।
\v 23 उन्होंने कुछ जासूसों को बेतेल के बारे में भेद लेने के लिए भेजा, जिसे पहले लूज कहा जाता था।
\v 24 जासूसों ने एक मनुष्य को देखा जो शहर से बाहर आ रहा था। उन्होंने उससे कहा, "यदि तू हमें शहर में जाने का रास्ता दिखाएगा, तो हम तुझ पर दया करेंगे और तुझे मार नहीं डालेंगे।"
\s5
\v 25 इसलिए उस मनुष्य ने उन्हें शहर में प्रवेश करने का रास्ता दिखाया। एप्रैम और मनश्शे के गोत्रों के लोग शहर में प्रवेश कर गए और अपनी तलवारों से सब लोगों को मार डाला, परन्तु उस मनुष्य को और उसके परिवार को नहीं मार डाला क्योंकि उसने उन्हें शहर में प्रवेश करने का मार्ग दिखाया था।
\v 26 वह मनुष्य उस क्षेत्र में गया जहाँ हेत के वंशज रहते थे, और उसने एक नगर बनाया। उसने उस शहर को लूज नाम दिया, और उस शहर का नाम आज भी वही है।
\p
\s5
\v 27 कुछ कनानी लोग बेतशान, तानाक, दोर, इबलेम और मगिद्दो नगरों और आसपास के गाँवों में रहते थे। मनश्शे के गोत्र के लोग उन्हें उन नगरों को छोड़ने के लिए विवश कर पाए, क्योंकि कनानियों को वहाँ रहने का दृढ़ संकल्प था।
\v 28 बाद में, इस्राएली शक्तिशाली हो गए, और उन्होंने कनानियों को दास होकर काम करने के लिए विवश कर दिया, परन्तु सब कनानियों को देश छोड़ने के लिए विवश नहीं किया।
\p
\s5
\v 29 एप्रैम के गोत्र के लोगों ने कनानियों को गेजेर शहर छोड़ने के लिए विवश नहीं किया था इसलिए कनानी लोग एप्रैम के गोत्र के साथ ही रहते रहे।
\p
\s5
\v 30 जबूलून के गोत्र के लोग कित्रोन और नहलोल के शहरों में रहने वाले कनानियों को निकलने के लिए विवश नहीं कर पाए थे। वे वहीं रह गए थे और जबूलून के गोत्र के साथ रहते थे, परन्तु जबूलून के लोगों ने उन्हें दास बनाकर काम करने के लिए विवश किया।
\s5
\v 31 आशेर के गोत्र के लोगों ने अक्को, सीदोन, अहलाब, अकजीब, हेलवा, अपीक और रहोब शहरों में रहने वाले कनानियों को निकलने के लिए विवश नहीं किया था।
\v 32 इसलिए आशेर का गोत्र वहाँ बचे हुए कनानी लोगों के साथ रहा (जो अभी भी वहाँ थे)।
\s5
\v 33 नप्ताली के गोत्र के लोगों ने बेतशेमेश और बेतनात के शहरों में रहने वाले लोगों को निकलने के लिए विवश नहीं किया, इसलिए वे उन शहरों में कनानी लोगों के साथ ही रहते रहे थे, परन्तु कनानियों को नप्ताली गोत्र के लोगों ने दास बनाकर काम करने के लिए विवश किया।
\s5
\v 34 एमोरियों ने दान के गोत्र को पहाड़ियों में ही रहने के लिए विवश किया। उन्होंने उन्हें नीचे मैदान में आकर रहने की अनुमति नहीं दी।
\v 35 एमोरियों ने हेरेस पर्वत और अय्यालोन और शालबीम के शहरों में रहने का दृढ़ संकल्प किया था। परन्तु जब इस्राएली शक्तिशाली हो गए, तब उन्होंने एमोरियों को दास बनाकर काम करने के लिए विवश कर दिया।
\v 36 जहाँ एमोरी लोग रहते थे वह देश बिच्छू मार्ग से पश्चिम की तरफ पहाड़ी देश में, सेला के पार तक फैला हुआ था।
\s5
\c 2
\p
\v 1 यहोवा का दूत गिलगाल से एक स्थान पर गया जिसे इस्राएल के लोग शीघ्र ही बोकीम कहेंगे। उसने इस्राएली लोगों से कहा, "मैं तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से यहाँ लाया था। मैं उन्हें इस देश में ले आया था जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों को देने की गंभीर प्रतिज्ञा की थी। मैंने उनसे कहा था, 'मैं तुम्हारे साथ, बाँधी गई वाचा को कभी नहीं तोड़ूँगा।
\v 2 परन्तु तुम्हे इस देश में रहने वाले लोगों के साथ शान्ति बनाए रखने के लिए कभी सहमत नहीं होना है। तुम उन वेदियों को तोड़ डालना जहाँ वे मूर्तियों के लिए बलि चढ़ाते हैं।' परन्तु तुमने मेरी आज्ञा का पालन नहीं किया है।
\s5
\v 3 इसलिए अब, मैं तुमसे कहता हूँ कि जब तुम आगे बढ़ोगे तब, मैं तुम्हारे शत्रुओं को बाहर नहीं निकालूँगा। वे तुम्हारी पसलियों में काँटे के समान होंगे। और वे तुम्हे अपनी मूर्तियों की पूजा करने के लिए तुम्हे सहमत करके फँसाने का प्रयास करेंगे।"
\p
\v 4 उसके ऐसा कहने के बाद सब इस्राएलियों ने, ऊँची आवाज में विलाप किया।
\v 5 उन्होंने उस जगह का नाम बोकीम रखा, जिसका अर्थ है "रोना।" वहाँ उन्होंने यहोवा के लिए बलि चढ़ाई।
\p
\s5
\v 6 यहोशू से विदा लेने के बाद इस्राएलियों का प्रत्येक समूह उस क्षेत्र पर अधिकार करने के लिए चला गया जो स्थायी रूप से दिया गया था।
\v 7 यहोशू और यहोवा द्वारा किए गए महान कामों को देखनेवाले बुजुर्ग जब तक जीवित थे, इस्राएलियों ने यहोवा की आज्ञाओं को माना।
\p
\v 8 तब यहोवा के दास यहोशू की मृत्यु हो जब गई। वह 110 साल का होकर मर गया।
\s5
\v 9 उन्होंने उनके शरीर को उस देश में दफनाया जिसे उसने मूसा से गाश पर्वत के उत्तर में तिम्नथेरेस में प्राप्त किया था, उस क्षेत्र में एप्रैम के वंशज रहते थे।
\p
\v 10 यहोशू के समय के सब लोगों के मरने के बाद, अन्य लोग जो अब बड़े हो गए थे, वे यहोवा को नहीं जानते थे और उन्होंने इस्राएल के लिए किए गए यहोवा के महान कामों को नहीं देखा था।
\s5
\v 11-13 उन्होंने वही काम किए जिनके लिए यहोवा ने कहा था कि वे बहुत बुरे हैं। उन्होंने बाल देवता और प्रजनन देवी, अश्तारोत की मूर्तियों की पूजा की। उन्होंने अपने पड़ोस के लोगों के उन विभिन्न देवताओं की पूजा की। उन्होंने अपने पुर्वजों के परमेश्वर यहोवा की आराधना करना बंद कर दिया, वही परमेश्वर जो उनके पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाल लाए थे। इन कामों से ने यहोवा को बहुत क्रोधित हो गए।
\s5
\v 14 क्रोध के कारण यहोवा ने अन्य समूहों के लोगों को उन पर आक्रमण करने और उनकी फसलों को और जानवरों को चुरा लेने का मार्ग खोल दिया। अब उनमें शत्रुओं का विरोध करने की शक्ति नहीं थीं, यहोवा ने उनके चारों ओर के शत्रुओं को उन्हें पराजित करने दिया।
\v 15 इस्राएली जब भी शत्रुओं से युद्ध करने के लिए गए, यहोवा ने सदैव उनके विरुद्ध काम किया और उन्हें शत्रुओं के हाथों पराजित करवाया उन्होंने कहा था कि वह ऐसा ही करेंगे। इसलिए इस्राएली बहुत परेशान थे।
\p
\s5
\v 16 तब यहोवा ने उनके लिए अगुवों को खड़ा किया। इन अगुवों ने इस्राएलियों को उन लोगों से बचाया जो उन पर आक्रमण करते थे।
\v 17 परन्तु इस्राएली अब भी अपने अगुवों का आज्ञा पालन नहीं किया। उन्होंने वेश्याओं के समान मूर्ति पूजा के लिए यहोवा के साथ विश्वासघात किया। वे उनके पूर्वजों के समान नहीं थे। उनके पूर्वजों ने यहोवा की आज्ञाओं का पालन किया था परन्तु इन नए लोगों ने अपने पूर्वजों का सा व्यवहार करना बंद कर दिया था।
\s5
\v 18 जब भी यहोवा ने उनके लिए कोई अगुवा खड़ा किया तब उन्हें उनके पास लाया, तो यहोवा ने उस अगुवे की सहायता की और इस्राएलियों को शत्रुओं से बचाने के योग्य उसे किया। परमेश्वर यहोवा ने तब तक ऐसा किया जब तक कि अगुवा जीवित था। जब वे अत्याचार और कष्टों के कारण दुःख से चिल्लाए तब यहोवा ने उन पर दया की।
\v 19 परन्तु उस अगुवे की मृत्यु के बाद, लोग सदैव ही पूर्वजों से अधिक बुरा व्यवहार करना आरंभ कर देते थे। उन्होंने अन्य देवताओं की पूजा करते और उनके सामने झुकते थे और उन सब कामों को करते थे जो उनकी समझ में देवता चाहते थे।
\p
\s5
\v 20 इसलिए यहोवा इस्राएलियों से बहुत क्रोधित थे। उसने कहा, "इन लोगों ने उनके पूर्वजों के साथ बाँधी गई मेरी वाचा को तोड़ दिया है। उन्होंने वह नहीं किया है जो मैंने उन्हें करने के लिए कहा था।
\v 21 इसलिए अब मैं उन अन्यजाति लोगों को बाहर नहीं करूँगा जिनको मृत्यु के समय यहोशू इस देश में छोड़ गया था।
\v 22 मैं इस्राएलियों को परखने के लिए उनका उपयोग करूँगा कि यह देख सकूँ कि ये वही लोग करेंगे जो मैं चाहता हूँ जैसा उनके पूर्वजों ने किया था।"
\v 23 यहोवा ने इस्राएलियों के आने के बाद लम्बे समय तक उस देश में अन्यजातियों को रहने दिया। उन्होंने यहोशू और उसके लोगों द्वारा उन्हें पराजित करके बाहर नहीं किया।
\s5
\c 3
\p
\v 1 उस समय कनान में कई अन्यजाति समूह थे। यहोवा ने उन्हें इस्राएलियों को परखने के लिए वहाँ छोड़ दिया था क्योंकि कनान में रहने वाले बहुत से इस्राएली पिछले युद्धों में से किसी एक में भी नहीं गए थे।
\v 2 इसलिए यहोवा ने इस्राएलियों की नई पीढ़ी को युद्ध करना सिखाने के लिए ऐसा किया।
\v 3 यह उन लोगों के समूह की एक सूची है जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियों को परखने के लिए वहाँ छोड़ दिया था: पलिश्ती और उनके पाँच अगुवे, सीदोन शहर के पास के क्षेत्र में रहने वाले लोग, कनान के वंशज, और हिब्बी जो बालहेर्मोन और लेबोहमात पर्वत ("हमात का मार्ग") के बीच लबानोन के पहाड़ों में रह रहे थे।
\s5
\v 4 यहोवा ने इस्राएलियों को परखने करने के लिए इन लोगों अन्यजाति के समूह को वहाँ छोड़ दिया, कि देखे क्या वे मूसा को दिए गए उनके आदेशों का पालन करेंगे।
\v 5 इस्राएल के लोग कनानियों, हिव्वियों, एमोरियों, परिज्जियों और यबूसी लोगों के बीच रहते थे।
\v 6 परन्तु इस्राएलियों ने उन लोगों की पुत्रियों को अपनी पत्नियाँ बनाने के लिए ले लिया, और विवाह में उन लोगों को अपनी पुत्रियाँ दीं। इस प्रकार, उन्होंने उन लोगों के देवताओं की पूजा की।
\p
\s5
\v 7 इस्राएलियों ने उन कामों को किया जिनके लिए यहोवा ने कहा था कि वे बहुत बुरे थे। वे यहोवा, अपने परमेश्वर के बारे में भूल गए, और उन्होंने उन मूर्तियों की पूजा करना शुरू किया जो बाल देवता और देवी अशेरा की थीं।
\v 8 इस कारण यहोवा इस्राएल से बहुत क्रोधित थे, और उन्होंने उन्हें राजा कूशत्रिशातैम की शक्ति के अधीन रहने के लिए दे दिया वह मेसोपोटामिया में अरम्नहरैम का राजा था। इस्राएल के लोगों ने आठ वर्षों तक कूशत्रिशातैम की सेवा की।
\s5
\v 9 परन्तु जब उन्होंने सहायता के लिए यहोवा से विनती की तब उन्हें बचाने के लिए उन्होंने एक अगुवा खड़ा किया। वह ओत्नीएल (कालेब के छोटे भाई, केनाज का पुत्र) था।
\v 10 यहोवा के आत्मा ने उसे शक्ति और अंतर्दृष्टि दी, और वह उनका अगुवा बन गया। ओत्नीएल एक सेना का नेतृत्व किया और कूशत्रिशातैम की सेना से युद्ध किया और उन्हें पराजित किया।
\v 11 उसके बाद, ओत्नीएल की मृत्यु तक चालीस वर्ष देश में शान्ति थी।
\p
\s5
\v 12 उसके बाद, इस्राएलियों ने फिर वही काम किए जिनके लिए, यहोवा ने उन्हें मना किया था। यहोवा ने मोआब के राजा एग्लोन की सेना को, इतना शक्तिशाली कर दिया कि वह इस्राएलियों को पराजित कर सके।
\v 13 एग्लोन ने अम्मोनियों और अमालेकियों के अगुवों को इस्राएल पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेना के साथ होने के लिए तैयार कर लिया। उन्होंने यरीहो पर कब्जा कर लिया, जिसे "खजूर के पेड़ों का शहर" कहा जाता था।
\v 14 राजा एग्लोन ने अठारह वर्षों तक इस्राएलियों पर शासन किया।
\p
\s5
\v 15 तब इस्राएलियों ने सहायता करने के लिए यहोवा से फिर विनती की। इसलिए उन्हें बचाने के लिए उन्होंने एक और अगुवे को खड़ा किया। वह बिन्यामीन के वंशजों गेरा का पुत्र एहूद था, जो वह बाएँ हाथ का उपयोग करता था। इस्राएलियों ने उसे राजा एग्लोन के पास वह धन देने के लिए भेजा जिसके कारण वह उन पर आक्रमण नहीं करता था।
\s5
\v 16 एहूद ने अपने साथ एक छोटी दोनों तरफ धार वाली तलवार रख ली थी, जो आधा मीटर लम्बी थी। उसने तलवार को अपनी दाहिनी जाँघ पर बाँध कर अपने कपड़ों के नीचे छिपा लिया था।
\v 17 उसने राजा एग्लोन को पैसा दिया, जो बहुत मोटा आदमी था।
\v 18 तब एहूद ने उन लोगों के साथ घर लौटने के लिए चला जो पैसा लेकर आए थे।
\s5
\v 19 जब वे गिलगाल के पास पत्थर की खदानों तक पहुँचे, तो उसने साथ के लोगों से आगे जाने के लिए कहा, परन्तु वह स्वयं मुड़ कर वापस मोआब के राजा के पास गया। जब वह महल में पहुँचा, तो उसने राजा से कहा, "हे महामहिम, मेरे पास आपके लिए एक गुप्त संदेश है।" इसलिए राजा ने अपने सब कर्मचारियों को चुप रहने की आज्ञा दी और उन्हें कमरे से बाहर भेज दिया।
\p
\v 20 फिर, जब एग्लोन अपने महल के ऊपरी कमरे की हवादार अटारी में अकेला बैठा था, एहूद उसके निकट आया और कहा, "मेरे पास आपके लिए परमेश्वर की ओर से एक संदेश है।" राजा तुरन्त अपनी कुर्सी से उठ गया।
\s5
\v 21 जैसे ही राजा उठा, एहूद ने अपने बाएँ हाथ को बढ़ाया और अपनी दाहिनी जाँघ से तलवार को खींच लिया, और उसे राजा के पेट में घोंप दिया।
\v 22 उसने तलवार इतनी भीतर कर दी कि उसका हत्था भी राजा के पेट में चला गया, और तलवार का फल राजा की पीठ से बाहर निकल गया। एहूद ने तलवार को बाहर नहीं खींचा। राजा की चर्बी में हत्थे के साथ धँसे हुए उसने उसे वहीं छोड़ दिया।
\v 23 तब एहूद ने कमरे से निकल कर चला गया। वह ओसारे से होकर बाहर चला गया। उसने कमरे के द्वार को बंद कर दिए और उन पर ताले लगा दिए।
\p
\s5
\v 24 उसके जाने के बाद, जब राजा के कर्मचारी आए, तो उन्होंने देखा कि कमरे के द्वारों पर ताले लगाए गए थे। उन्होंने कहा, "अवश्य ही राजा भीतरी कमरे में शौच करता होगा।"
\v 25 इसलिए उन्होंने प्रतीक्षा की परन्तु जब राजा ने कमरे के द्वारों को नहीं खोला, तो थोड़ी देर के बाद वे चिंतित हो गए। वे एक चाबी लेकर आए और दरवाजों के ताले को खोल दिया। और उन्होंने देखा कि उनका राजा फर्श पर मरा हुआ पड़ा था।
\p
\s5
\v 26 इस बीच, एहूद बच निकला। वह पत्थर की खदानों से होकर गुजर गया और पहाड़ी देश में सेराह में पहुँचा, जहाँ एप्रैम के वंशज रहते थे।
\v 27 वहाँ उसने घोषणा करने के लिए तुरही फूँकी कि मोआबियों से युद्ध करने के लिए सब लोगों को उसके साथ होना होगा। इसलिए इस्राएली पहाड़ियों से उसके साथ गए। वे यरदन नदी की ओर गए, एहूद ने उनका नेतृत्व किया।
\p
\s5
\v 28 उसने लोगों से कहा, "यहोवा हमें हमारे शत्रुओं, मोआब के लोगों को पराजित करने के लिए कहता है। इसलिए मेरे पीछे आओ!" अतः वे उसके पीछे नदी की ओर गए, और उन्होंने उनके कुछ लोगों को उस स्थान पर रखा जहाँ से लोग नदी पार जाते थे कि वे बचकर नदी पार करनेवाले मोआबियों को मारें।
\v 29 उस समय, इस्राएलियों ने मोआब से लगभग दस हजार लोगों को मार डाला। वे सभी बलवन्त और योग्य पुरुष थे, उनमें से एक भी बच नहीं पाया था।
\v 30 उस दिन, इस्राएलियों ने मोआब के लोगों पर विजय प्राप्त की। इसके बाद अस्सी वर्षों तक उनके देश में शान्ति थी।
\p
\s5
\v 31 एहूद की मृत्यु के बाद, शमगर उनका अगुवा बन गया। उसने इस्राएलियों को पलिश्तियों से बचाया। एक युद्ध में उसने छः सौ पलिश्तियों को एक बैल के पैने से मार डाला था।
\s5
\c 4
\p
\v 1 एहूद की मृत्यु के बाद, इस्राएलियों ने यहोवा की बातों का पालन नहीं किया और उन्होंने बुरे काम किए, और यहोवा ने देखा कि वे क्या कर रहे थे।
\v 2 इसलिए उसने कनान के क्षेत्र के राजाओं में से एक याबीन, जो हासोर शहर पर शासन करनेवाले याबीन की सेना को इस्राएलियों पर विजय दिलाई। उनकी सेना का सरदार सीसरा था, जो हरोशेत में रहता था (जहाँ से बहुत से ऐसे लोग रहते थे जो इस्राएल नहीं थे)।
\v 3 सीसरा की सेना में लोहे से बने नौ सौ रथ थे। बीस वर्षों तक उसने क्रूरता से इस्राएलियों पर अत्याचार किया। तब उन्होंने यहोवा से सहायता की विनती की।
\p
\s5
\v 4 अब दबोरा, एक स्त्री जो यहोवा का वचन सुनाया करती थी (जो लप्पीदोत की पत्नी थी), उस समय इस्राएल में एक प्रमुख न्यायी थी।
\v 5 वह पहाड़ी देश में रामा और बेतेल के बीच एक जगह पर जहाँ एप्रैम के वंशज रहते थे, अपने खजूर के पेड़ के नीचे बैठा करती थी (उसे "दबोरा का खजूर" कहते थे) और लोग उसके पास उनके कानूनी विवादों का समाधान पूछने आते थे। वह सही और निष्पक्ष निर्णय लेती थी।
\s5
\v 6 एक दिन उसने अबीनोअम के पुत्र बाराक के पास किसी को भेजकर बुलवाया। वह केदेश का रहने वाला था (उस क्षेत्र में जहाँ नप्ताली के वंशज रहते थे)। उसने उससे कहा, "यहोवा, जिस परमेश्वर की हम आराधना करते हैं, वह तुझे आज्ञा दे रहा है: 'दस हजार पुरुष, कुछ नप्ताली में से और कुछ जुबुलून में से अपने साथ ले जा, और अपने सब लोगों को ताबोर पर्वत पर एकत्र कर।
\v 7 यहोवा मुझे याबीन की सेना के सरदार सीसरा को उनके रथों और उसकी सेना के साथ कुछ मील दूर कीशोन नदी तक आने के लिए मनाने में सक्षम करेगा। वहाँ में तेरे पुरुषों को उन्हें पराजित करने में सक्षम करूँगी।'"
\p
\s5
\v 8 बाराक ने उत्तर दिया, "मैं केवल तभी जाऊँगा जब तू मेरे साथ चलेगी । अगर तू मेरे साथ नहीं जाएगी, तो मैं भी नहीं जाऊँगा।"
\p
\v 9 उसने उत्तर दिया, "मैं निश्चय ही तेरे साथ चलती, परन्तु क्योंकि तूने ऐसा करने का निर्णय लिया है, इसलिए यहोवा सीसरा को पराजित करने में एक स्त्री को सक्षम करेंगे, और परिणाम यह होगा कि कोई भी तुझे सम्मान नहीं देगा।" इसलिए दबोरा बाराक के साथ केदेश को गई।
\s5
\v 10 वहाँ उसने जबूलून और नप्ताली से लोगों को बुलाया। दस हजार लोग उसके पास आए, और फिर वे दबोरा के साथ ताबोर पर्वत पर गए।
\p
\s5
\v 11 उस समय हेबेर (केनी) अपनी पत्नी याएल के साथ केनियों से दूर चला गया, और केदेश के पास, सानन्नीम में बड़े बांज के पेड़ के पास अपना तम्बू खड़ा किया। (हेबर मूसा के ससुर होबाब के वंशज थे।)
\p
\s5
\v 12 किसी ने सीसरा से कहा कि अबीनोअम का पुत्र बाराक एक सेना के साथ ताबोर पर्वत पर चढ़ गया था।
\v 13 सीसरा ने उनके नौ सौ रथों के साथ अपनी सेना एकत्र की, और वे हरोशेत (जहाँ गैर-इस्राएली रहते थे) से कीशोन नदी की ओर चले गए।
\p
\s5
\v 14 तब दबोरा ने बाराक से कहा, "बढ़ जा! आज वह दिन है जब यहोवा सीसरा की सेना को पराजित करने में तेरी सेना को योग्य करते है। यहोवा तेरे आगे जा रहा है!" तब बाराक ने अपने लोगों का नेतृत्व किया और वे ताबोर पर्वत से उतरे थे।
\s5
\v 15 जैसे ही वे आगे बढ़े, यहोवा ने सीसरा और उसके रथों और उनकी सेना के लिए आगे बढ़ने में बड़ी कठिनाई उत्पन्न कर दी। अतः सीसरा अपने रथ से नीचे कूद कर भाग गया।
\v 16 परन्तु बाराक और उसके लोगों ने अन्य रथों और शत्रु सैनिकों का हरोशेत तक (जहाँ गैर-इस्राएली रहते थे) पीछा किया। उन्होंने सीसरा की सेना में सब लोगों को मार डाला। एक भी पुरुष बच नहीं पाया।
\p
\s5
\v 17 परन्तु सीसरा याएल के तम्बू में भाग गया। उसने ऐसा इसलिए किया कि सीसरा का स्वामी हासोर शहर का याबीन, उसके पति हेबेर का एक अच्छा मित्र था।
\p
\v 18 याएल सीसरा का अभिवादन करने के लिए बाहर गई। उसने उससे कहा, "महोदय, मेरे तम्बू में आओ! डरो मत!" इसलिए वह तम्बू में गया और नीचे लेट गया, और उसने उसे एक कंबल से ढाँप दिया।
\p
\s5
\v 19 उसने उससे कहा, "मैं प्यासा हूँ, क्या तू मुझे थोड़ा पानी दे सकती है?" इसलिए उसने दूध के चमड़े के थैले को खोला, और उसे एक प्याला दूध दिया। तब उसने उसे एक कंबल से फिर से ढाँप दिया।
\p
\v 20 उसने उससे कहा, "तम्बू के प्रवेश द्वार में खड़ी हो जा। यदि कोई आता है और पूछता है, 'क्या कोई और है?', तो कहना 'नहीं' है।"
\p
\s5
\v 21 सीसरा बहुत थक गया था, इसलिए वह शीघ्र ही सो गया था। जब वह सो रहा था, याएल एक हथौड़ा और एक तम्बू की खूँटी पकड़े हुए चुपचाप उसके पास दबे पाँव गई। उसने उसकी खोपड़ी के माध्यम से खूँटी को ठोक दिया, और उसके सिर में खूँटी को इस तरह से ठोका कि वह पार होकर जमीन में धँस गई, और वह मर गया।
\p
\v 22 जब बाराक सीसरा की तलाश में याएल के तम्बू में आया, तो वह उसका अभिवादन करने के लिए बाहर गई। उसने कहा, "भीतर आ, और मैं तुझ वह पुरुष दिखाऊँगी जिसे तू खोज रहा है!" अतः वह उसके तम्बू में चला गया, और उसने देखा कि सीसरा वहाँ मरा हुआ पड़ा है, तम्बू की खूँटी अभी भी उसके सिर में ठुकी पड़ी है।
\p
\s5
\v 23 उस दिन परमेश्वर ने इस्राएलियों के हाथों कनानियों के राजाओं में से एक याबीन की सेना को पराजित करवाया।
\v 24 इस्राएली अधिकाधिक शक्तिशाली हो गए, और उन्होंने याबीन और उसकी सेना को नष्ट कर दिया।
\s5
\c 5
\p
\v 1 उस दिन, दबोरा और बाराक (अबीनोअम के पुत्र) ने यह गीत गाया:
\q1
\v 2 "जब इस्राएली लोगों के अगुवे वास्तव में उनका नेतृत्व करते हैं, और लोग अपनी इच्छा से उनके पीछे चलते हैं, तो वह यहोवा की स्तुति करने का समय होता है!
\q1
\s5
\v 3 हे राजाओं, सुनो! हे अगुवों, ध्यान दो!
\q2 मैं यहोवा के लिए एक गीत गाऊँगा। इस गीत के द्वारा मैं इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की स्तुति करूँगा।
\q1
\v 4 हे यहोवा, जब आप सेईर से आए, तब आप उस देश से होकर निकले, जिसे एदोम भी कहा जाता था,
\q2 धरती हिल गई,
\q2 और आसमान से वर्षा होने लगी।
\q1
\s5
\v 5 जब आप आए तो पहाड़ हिल गए थे,
\q2 जैसे सीनै पर्वत हिल गया था जब आप वहाँ प्रगट हुए थे,
\q2 क्योंकि आप यहोवा हैं,
\q2 इस्राएल के परमेश्वर हो।
\m
\v 6 जब शमगर हमारा अगुवा था और याएल के दिनों में,
\q2 हम मुख्य मार्गों पर चलने से डरते थे;
\q2 इसके बजाय, यात्रियों के कारवाँ घुमावदार, कम यात्रा वाली मार्ग पर चलते थे,
\q1 लूटमार से बचने के लिए।
\q2
\s5
\v 7 इस्राएल में कुछ ही योद्धा युद्ध के लिए तैयार थे
\q2 जब तक कि मैं, दबोरा, उनकी अगुवा नहीं बन गई।
\q2 मैं इस्राएली लोगों के लिए एक माँ बन गई।
\v 8 जब इस्राएली लोगों ने यहोवा को त्याग दिया और नए देवताओं को चुना,
\q2 शत्रुओं ने शहरों के फाटकों पर आक्रमण किया,
\q1 और फिर उन्होंने चालीस हजार इस्राएली सैनिकों से ढाल और भाले छीन लिए।
\q2 किसी के भी पास कोई धातु का हथियार नहीं छोड़ा गया था।
\q1
\s5
\v 9 मैं उन अगुवों और सैनिकों के लिए आभारी हूँ जो अपनी इच्छा से युद्ध के लिए आगे आए।
\q2 हे यहोवा, उनके लिए मैं आपकी स्तुति करता हूँ!
\q1
\v 10 तुम अमीर लोग जो गधों पर सवारी करते हैं,
\q2 अच्छी गद्देदार काठी पर बैठते हैं,
\q2 और आप लोग जो सड़क पर चलते हैं,
\q1 इस सब के बारे में सोचो!
\q1
\s5
\v 11 उन गायकों की आवाजें सुनों जो जानवरों के पानी पीने वाले स्थान पर इकट्ठा होते हैं।
\q2 वे सुनाते हैं कि यहोवा ने कैसे धार्मिकता से काम किया
\q2 जब उन्होंने इस्राएली योद्धाओं को उनके शत्रुओं पर विजय प्रदान की।
\q1 यहोवा के लोग शहर के फाटकों से प्रवेश कर गए।
\q1
\s5
\v 12 लोग मेरे घर आए और चिल्लाने लगे,
\q2 'दबोरा, उठो! उठो और गीत गाना शुरू करो!'
\q1 वे यह भी चिल्लाए,
\q2 'बाराक (अबीनोअम के पुत्र), उठो, और हमारे शत्रुओं को पकड़ो!'
\q1
\v 13 बाद में, कुछ इस्राएली लोग जो युद्ध से बच गए थे
\q1 ऊँचे स्थानों से नीचे आए जहाँ उनके अगुवे थे।
\q2 ये वे पुरुष थे जो यहोवा के थे, मेरे पास नीचे आए थे
\q1 इन योद्धाओं के साथ अपने शत्रुओं से युद्ध करने के लिए।
\q1
\s5
\v 14 कुछ एप्रैम के वंशजों के गोत्र से आए थे।
\q2 वे उस देश से आए थे जो एक समय अमालेकियों के वंशजों का था।
\q1 बिन्यामीन के वंशजों से निकले गोत्र के लोग उनके पीछे पीछे गए थे।
\q2 माकीर के वंशजों से निकले समूह के सैनिक भी नीचे आए,
\q1 और जबूलून के वंशजों के गोत्र से अधिकारी नीचे आकर, यह दिखाने के लिए कर्मचारियों को ले गए कि वे महत्वपूर्ण थे।
\q2
\s5
\v 15 इस्साकार के वंशजों के गोत्र से अगुवे बाराक और मेरे साथ हो गए।
\q2 वे बाराक के पीछे पीछे, दौड़ते हुए घाटी में गए।
\q1 लेकिन रूबेन के वंशजों के गोत्र से लोग यह तय नहीं कर सके कि उन्हें क्या करना चाहिए।
\q1
\s5
\v 16 तुम लोग अपनी भट्ठियों के पास क्यों ठहर गए थे,
\q2 अपने भेड़ों के झुंड को भेड़शालाओं में आने को बुलाने वाले चरवाहें का सीटी बजाना सुनने की प्रतीक्षा कर रहे थे?
\q2 रूबेन के वंशजों के गोत्र के पुरुष निर्णय नहीं ले सके
\q2 कि उनको हमारे शत्रुओं से युद्ध करने के लिए हम से जुड़ना चाहिए या नहीं।
\q1
\s5
\v 17 इसी प्रकार से, यरदन नदी के पूर्व में गिलाद क्षेत्र में रहने वाले लोग घर पर ही रहे।
\q1 और दान के वंशजों के गोत्र के पुरुष,
\q2 वे घर में क्यों रुके रहे?
\q1 आशेर के वंशजों के गोत्र के लोग समुद्र के किनारे बैठे थे।
\q1 वे अपनी खोहों में ही रह गए थे।
\q1
\v 18 परन्तु जबूलून के वंशजों के गोत्र के पुरुषों ने युद्ध के मैदान पर अपने जीवन को खतरे में डाल दिया था,
\q2 और नप्ताली के वंशजों के गोत्र के पुरुष भी ऐसा करने के लिए तैयार थे।
\q1
\s5
\v 19 तानाक में मगिद्दो की घाटी के सोतों के पास कनान के राजा हम से लड़े।
\q1 लेकिन चूँकि उन्होंने हमें पराजित नहीं किया,
\q2 वे युद्ध से कोई भी चाँदी या अन्य खजाने को नहीं ले गए।
\q1
\v 20 ऐसा लगता था कि आकाश में सितारे हमारे लिए लड़े थे
\q2 और जैसे कि वे सितारे सीसरा के विरुद्ध उनके में मार्गों में लड़े थे।
\q1
\s5
\v 21 कीशोन नदी ने उनको दूर बहा दिया-
\q2 वह नदी जो कई युगों से वहाँ मौजूद है।
\q2 मैं खुद को बहादुर होने के लिए कहूँगा और आगे बढ़ता रखूँगा।
\q1
\v 22 सीसरा की सेना के घोड़ों की टापों ने भूमि को पीस दिया।
\q2 वे शक्तिशाली घोड़े यहाँ वहाँ कूदते रहे।
\q1
\s5
\v 23 यहोवा की ओर से भेजे गए स्वर्गदूत ने कहा,
\q2 'मैं मेरोज शहर के लोगों को शाप देता हूँ
\q1 क्योंकि वे यहोवा की सहायता करने के लिए नहीं आए थे
\q2 कनान के शक्तिशाली योद्धाओं को पराजित करने के लिए।'
\q1
\s5
\v 24 परन्तु परमेश्वर याएल से बहुत प्रसन्न हैं,
\q2 (केनी हेबेर की पत्नी)।
\q2 वह तम्बू में रहने वाली सभी अन्य महिलाओं की तुलना में उससे बहुत प्रसन्न हैं।
\q1
\v 25 सीसरा ने थोड़ा पानी माँगा,
\q2 और याएल ने उसे थोड़ा दूध दिया।
\q1 वह उसके लिए एक कटोरे में थोड़ा दही लाई जो राजाओं के लिए उपयुक्त था।
\q1
\s5
\v 26 फिर, जब वह सो गया, तो उसने अपना बायाँ हाथ एक तम्बू की खूँटी के लिए बढ़ाया,
\q2 और उसने अपना दाहिना हाथ एक हथौड़े के लिए बढ़ाया।
\q1 इसके साथ उसने जोर से सीसरा को मारा और उसके सिर को कुचल दिया।
\q2 उसने तम्बू की खूँटी को उसके सिर के आर-पार ठोक दिया।
\q1
\v 27 वह उसके पैरों पर झुक गया
\q2 और वह गिर गया और वह वहाँ पड़ा रहा और हिल नहीं पाया।
\q1 वह नीचे उसके पैरों पर पस्त हो गया,
\q2 और वहाँ वह लंगड़ा कर गिर गया। वो मर चुका था।
\q1
\s5
\v 28 सीसरा की माँ ने अपनी खिड़की से बाहर देखा।
\q2 वह उसके लौटने की प्रतीक्षा में थी।
\q1 उसने कहा, 'वह अपने रथ में घर आने के लिए इतना लंबा समय क्यों ले रहा है?
\q2 मैं उसके रथ के पहियों की आवाज क्यों नहीं सुनती? '
\q1
\s5
\v 29 उसकी बुद्धिमान राजकुमारियों ने उसे उत्तर दिया,
\q2 और उसने उन शब्दों को दोहराकर स्वयं को सांत्वना दी:
\q1
\v 30 'शायद वे युद्ध के बाद अधिकार में लिए गए लोगों और सामानों को विभाजित कर रहे हैं।
\q2 हर एक सैनिक को एक या दो महिलाएँ मिलेंगी जो उनके लिए बच्चों को पैदा करेंगी।
\q2 सीसरा को कुछ सुंदर वस्त्र मिलेंगे,
\q2 और मेरे लिए कुछ सुंदर कढ़ाई किए हुए वस्त्र।'
\q1
\s5
\v 31 लेकिन जो हुआ वह यह नहीं था! हे यहोवा, मुझे आशा है कि आपके सभी शत्रु वैसे ही मर जाएँगे जैसे सीसरा मरा!
\q2 और मैं चाहती हूँ कि जो लोग तुमसे प्रेम करते हैं, हे यहोवा, वे सूर्य के जैसे दृढ़ हों है!"
\p फिर से देश में चालीस वर्षों तक शान्ति थी।
\s5
\c 6
\p
\v 1 इस्राएलियों ने फिर वही किया जिसे यहोवा ने बहुत बुरा कहा था। इसलिए उसने मिद्यान के लोगों को उन्हें जीत लेने और उन पर सात साल तक शासन करने की अनुमति दी।
\v 2 मिद्यान के लोगों ने इस्राएलियों के साथ ऐसी क्रूरता का व्यवहार किया कि इस्राएली पहाड़ों पर भाग गए। वहाँ उन्होंने रहने के लिए गुफाओं में और सुरक्षित रहने स्थानों को बनाया।
\s5
\v 3 उस समय जब इस्राएलियों ने खेतों में अपनी फसल लगाई, मिद्यान और अमालेक के लोग और पूर्व के लोगों ने इस्राएलियों पर आक्रमण किया।
\v 4 उन्होंने उस क्षेत्र में तम्बू खड़े किए, और फिर दक्षिण में गाजा तक फसलों को नष्ट कर दिया। उन्होंने इस्राएलियों के खाने के लिए कुछ भी नहीं छोड़ा और भेड़ों, मवेशियों और गधों को लेकर चले गए।
\s5
\v 5 वे अपने तंबुओं और अपने पशुओं के साथ टिड्डियों के झुंड के समान इस्राएल में आए। उनमें से बहुत से लोग अपने ऊँटों पर सवारी करते हुए आए थे उन्हें कोई गिन भी नहीं सकता था। वे रुक गए ताकि वे भूमि को नष्ट कर सकें।
\v 6 मिद्यान के लोगों ने इस्राएलियों के स्वामित्व की लगभग हर वस्तु ले ली। अन्त में इस्राएलियों ने यहोवा से सहायता की विनती की।
\p
\s5
\v 7 मिद्यान के लोगों ने उनके साथ जो किया था उसके कारण जब इस्राएली लोगों ने सहायता के लिए यहोवा से विनती की,
\v 8 यहोवा ने उनके पास एक भविष्यद्वक्ता को भेजा, जिसने कहा, "इस्राएल के परमेश्वर यहोवा कहते हैं, 'मैं तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाल कर लाया, एक ऐसे स्थान से बाहर निकाल लाया जहाँ तुम सब दास थे।
\s5
\v 9 परन्तु मैंने उन्हें मिस्र के अगुवों और उन सब लोगों से बचाया जिन्होंने तुम पर अत्याचार किए थे। मैंने उनके शत्रुओं को इस देश से निकाल दिया, और इसे तुमको दे दिया।
\v 10 मैंने तुम से और तुम्हारे पूर्वजों से कहा, "मैं यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर हूँ। अब तुम एमोरियों के देश में हो, परन्तु तुम इस देश में उनके देवताओं की पूजा नहीं करोगे ।" लेकिन तुमने मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया।'"
\p
\s5
\v 11 एक दिन यहोवा का स्वर्गदूत प्रकट हुआ और ओप्रा शहर में एक बड़े बांज के पेड़ के नीचे बैठ गया। (वह पेड़ योआश का था, जो अबीएजेर के वंश से था।) योआश का पुत्र गिदोन गड्ढे में गेहूँ झाड़ रहा था जहाँ वे शराब बनाने के लिए अंगूर रौंदते थे। वह मिद्यान के लोगों से छिपाने के लिए वहाँ अनाज को झाड़ रहा था।
\v 12 यहोवा गिदोन के पास गया और उससे कहा, " हे पराक्रमी योद्धा, यहोवा तेरी सहायता कर रहा है!"
\p
\s5
\v 13 गिदोन ने उत्तर दिया, "महोदय, यदि यहोवा हमारी सहायता कर रहा है, तो यह सब बुरे काम हमारे साथ क्यों हुए? हमने उन सभी चमत्कारों के बारे में सुना जो यहोवा ने हमारे पूर्वजों के लिए किए थे। हमने सुना है कि उसने कैसे उन्हें मिस्र में दास होने से बचाया। परन्तु अब यहोवा ने हमें त्याग दिया है, और अब मिद्यान के लोग हम पर राज करते हैं।"
\p
\s5
\v 14 तब यहोवा ने उसकी ओर मुड़कर कहा, "तेरे पास इस्राएलियों को मिद्यानियों से बचाने की शक्ति है। मैं तुझे इस काम के लिए भेज रहा हूँ!"
\p
\v 15 गिदोन ने उत्तर दिया, "परन्तु हे प्रभु, मैं इस्राएलियों को कैसे बचा सकता हूँ? मेरा कुल मनश्शे के वंशजों से पैदा हुए पूरे गोत्र में सबसे कम महत्वपूर्ण है, और मैं अपने पूरे परिवार में सबसे कम महत्वपूर्ण व्यक्ति हूँ!"
\p
\s5
\v 16 यहोवा ने उससे कहा, "मैं तेरी सहायता करूँगा। इसलिए तू मिद्यानी सेना को आसानी से पराजित करेगा, जैसे कि तू केवल एक मनुष्य से लड़ रहा है!"
\p
\v 17 गिदोन ने उत्तर दिया, "यदि आप सचमुच मुझसे प्रसन्न हैं, तो ऐसा कुछ करो जो सिद्ध करे कि आप जो मुझसे बात कर रहे हैं, वह सचमुच यहोवा ही हैं।
\v 18 परन्तु जब तक मैं जाकर आपके लिए कुछ भेंट न ले आऊँ तब तक चले मत जाना।"
\p यहोवा ने उत्तर दिया, "बहुत अच्छा, मैं तेरे वापस आने तक यहाँ ठहरा रहूँगा।"
\p
\s5
\v 19 गिदोन जल्दी से अपने घर चला गया। उसने एक जवान बकरी को मारा और इसे पकाया। फिर उसने लगभग बीस लीटर आटा लिया और खमीर के बिना कुछ रोटियाँ पकाई। तब उसने पके हुए माँस को एक टोकरी में रखा, और माँस के शोरबे को एक बर्तन में डाल लिया, और उसे पेड़ के नीचे बैठे यहोवा के पास ले गया।
\p
\v 20 तब परमेश्वर के स्वर्गदूत ने उससे कहा, "इस चट्टान पर माँस और रोटी रखो। फिर उसके ऊपर शोरबा डाल।" अतः गिदोन ने ऐसा किया।
\s5
\v 21 तब यहोवा ने हाथ की लाठी को बढ़ाकर माँस और रोटी को छुआ। चट्टान से एक आग निकली और उसने माँस और रोटी को जिसे गिदोन लाया था, जला दिया! और फिर यहोवा का स्वर्गदूत गायब हो गया।
\s5
\v 22 जब गिदोन को एहसास हुआ कि यह यहोवा का स्वर्गदूत है, वह पुकार उठा, "हे प्रभु यहोवा, मैंने यहोवा के स्वर्गदूत का चेहरा देखा है!"
\p
\v 23 परन्तु यहोवा ने उसे पुकार कर कहा, "डर मत! तू मरेगा नहीं!"
\p
\v 24 तब गिदोन ने वहाँ यहोवा की आराधना करने के लिए एक वेदी बनाई। उसने इसे 'यहोवा शान्ति है' नाम दिया। वह वेदी आज भी अबीएजेरियों के ओप्रा शहर में है।
\p
\s5
\v 25 उस रात यहोवा ने गिदोन से कहा, "उस बैल को जो तेरे पिता का है और एक अन्य बैल, जो सात वर्ष का है, ले और उस वेदी को तोड़ दे जिसे तेरे पिता ने बाल देवता की पूजा करने के लिए बनाया था। साथ ही उन लाठों को भी काट डाल जो इसके साथ हैं और देवी अशेरा की पूजा करने के लिए हैं।
\v 26 तब इस पहाड़ी पर, मेरे अर्थात तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की आराधना के लिए एक पत्थर की वेदी बना। अशेरा की जिन लाठों को तू ने काट डाला है उनकी लकड़ी ले, और मेरे लिए जलाने वाली भेंट के लिए इन बैलों के माँस को जलाने के लिए आग जलाओ।"
\p
\s5
\v 27 इसलिए गिदोन और उसके दस कर्मचारियों ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार किया। परन्तु उन्होंने रात में ऐसा किया था, क्योंकि वे डर रहे थे कि उसके परिवार के सदस्यों और शहर के अन्य लोगों जब पता चलेगा कि उसने ऐसा किया है तब वे उनके साथ क्या करेंगे।
\p
\s5
\v 28 अगली सुबह, जैसे ही लोग जागे, उन्होंने देखा कि बाल की वेदी खंडहर हो गई है, और अशेरा की लाठें वहाँ नहीं हैं। उन्होंने देखा कि वहाँ एक नई वेदी थी, और उस पर जो कुछ बचा हुआ था वह बैल का भाग था जिसे बलि चढ़ाया गया था।
\p
\v 29 लोगों ने एक-दूसरे से पूछा, "यह किसने किया?" उनके जाँच करने के बाद, किसी ने उनसे कहा कि यह योआश का पुत्र गिदोन था जिसने ऐसा किया था।
\p
\s5
\v 30 नगर के लोगों ने योआश से कहा, "अपने बेटे को यहाँ ला! उसे मार डाला जाना चाहिए, क्योंकि उसने हमारे बाल देवता की वेदी को नष्ट कर दिया है और अशेरा की लाठों को काट दिया हैं जिनकी हम पूजा करते है।"
\p
\s5
\v 31 पर योआश ने उन लोगों से कहा जो उसके विरूद्ध आए थे, "क्या तुम बाल की रक्षा करने का प्रयास कर रहे हो? क्या तुम उसके पक्ष में विवाह करना चाहते हो? कोई भी जो बाल की रक्षा करने का प्रयास करता है उसे कल सुबह तक मार डाला जाना चाहिए! अगर बाल वास्तव में देवता है, तो उसे स्वयं की रक्षा करने में समर्थ होना चाहिए, कि उसकी वेदी को कोई कैसे तोड़ डाला।"
\v 32 उस समय से, लोगों ने गिदोन को यरूब्बाल कहा, जिसका अर्थ है "बाल को स्वयं की रक्षा करना चाहिए" क्योंकि उसने बाल की वेदी को तोड़ दिया था।
\p
\s5
\v 33 इसके तुरंत बाद, मिद्यान और अमालेक के लोगों की सेना और पूर्व के लोग एक साथ एकत्र हुए। उन्होंने इस्राएलियों पर आक्रमण करने के लिए यरदन नदी को पार किया। उन्होंने यिज्रेल की घाटी में अपने तम्बू खड़े किए।
\s5
\v 34 तब यहोवा की आत्मा ने गिदोन पर नियंत्रण किया। उसने युद्ध के लिए तैयार होने हेतु पुरुषों को बुलाने के लिए एक मेढ़े के सींग को फूँका। अतः अबीएजेर के वंश के लोग उसके पास आए।
\v 35 उसने मनश्शे, आशेर, जबूलून और नप्ताली के सब गोत्रों में से सैनिकों को आने के निवेदन हेतु दूत भेजे, और वे सब आए।
\p
\s5
\v 36 तब गिदोन ने परमेश्वर से कहा, "यदि आप सच में अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार इस्राएलियों को बचाने के लिए मुझे समर्थ करने जा रहे हैं,
\v 37 तो इसकी पुष्टि करें: आज रात मैं अपने अनाज झाड़ने के स्थान में एक सूखा ऊन डाल दूँगा। कल सुबह, यदि ऊन ओस से गीला हो परन्तु भूमि सूखी रहे, तो मैं जान जाऊँगा कि वह मैं हूँ जिसे आप इस्राएलियों को बचाने में समर्थ करेंगे जैसा कि आपने प्रतिज्ञा किया है।"
\s5
\v 38 और यही हुआ। जब गिदोन अगली सुबह जागा, तो उसने ऊन को उठा लिया, और उससे पानी निचोड़कर एक कटोरे भर लिया!
\p
\s5
\v 39 तब गिदोन ने परमेश्वर से कहा, "मुझसे कुपित न हों, परन्तु मैं आपसे एक और काम करने के लिए कहूँगा। आज रात मैं ऊन को फिर से बाहर रखूँगा। इस बार, ऊन सूखी रहे, परन्तु भूमि ओस के कारण गीली हो जाए। "
\v 40 तो उस रात, परमेश्वर ने वही किया जो गिदोन ने उनसे कहा था। अगली सुबह ऊन सूखी थी, लेकिन भूमि ओस से ढंकी हुई थी।
\s5
\c 7
\p
\v 1 अगली सुबह, यरूब्बाल (उसका नाम गिदोन भी है) और उसके लोग जल्दी उठकर हरोद सोते तक चले गए। उसके उत्तर में मोरे की पहाड़ी के पास घाटी में मिद्यान की सेना ने छावनी डाली हुई थी।
\s5
\v 2 यहोवा ने गिदोन से कहा, "तेरे पास बहुत सैनिक हैं। यदि मैं तुम सब को मिद्यान की सेना से युद्ध करने दूँ और तेरी सेना उन्हें पराजित कर दे, तो वे मेरे सामने घमंड करेंगे कि उन्होंने बिना मेरी सहायता के शत्रुओं को अपने आप पराजित कर दिया।
\v 3 इसलिए लोगों से कह, 'जो डरता है या भीरु है, वह हमें छोड़कर गिलाद पर्वत से जा सकता है।' " इसलिए गिदोन के उनसे ऐसा कहा तो उनमें से बाईस हजार घर लौट गए। वहाँ केवल दस हजार पुरुष ही बचे थे।
\p
\s5
\v 4 परन्तु यहोवा ने गिदोन से कहा, "अभी भी बहुत सारे लोग हैं! उन्हें सोते के पास ले जा, और वहाँ मैं उनमें से चुनूँगा, कि कौन तेरे साथ जाएँगे और कौन से नहीं जाएँगे।"
\p
\s5
\v 5 गिदोन लोगों को सोते के पास ले गया, तो यहोवा ने उससे कहा, " वे पानी पीते हैं, तो उन लोगों को एक समूह में अलग कर ले जो कुत्तों के समान अपनी जीभ से पानी को चपड़ चपड़ करके पीते हैं। और जो घुटने टेक कर पानी में मुँह डाल कर पीते हैं उनको अलग समूह में रख।"
\v 6 इसलिए जब उन्होंने पानी पिया, तो केवल तीन सौ पुरुषों ने अपनी जीभ से चपड़ चपड़ करके पानी पिया। बाकी सभी घुटने टेक कर पानी में अपने मुँह डालकर पीते थे।
\p
\s5
\v 7 तब यहोवा ने गिदोन से कहा, "यह तीन सौ पुरुष जो पानी को चपड़ चपड़ करके पीते हैं, तेरी सेना में होंगे! मैं मिद्यानी सेना को पराजित करने में उनकी सहायता करूँगा। अन्य सब को घर जाने दे!"
\v 8 इसलिए गिदोन के तीन सौ पुरुषों ने अन्य सब पुरुषों से भोजन और भेड़ के सींगों को एकत्र किया (जो तुरही के रूप में इस्तेमाल किए जाते थे), और उसने उन्हें घर भेज दिया।
\p मिद्यानी लोग गिदोन के स्थान से नीचे घाटी में डेरा डाले हुए थे।
\s5
\v 9 उस रात को यहोवा ने गिदोन से कहा, "उठो और उनके शिविर में जाओ, और तू कुछ ऐसा सुनेगा जिस से विश्वास हो जाएगा कि मैं तेरे पुरुषों को उन्हें पराजित करने में समर्थ करूँगा।
\v 10 परन्तु यदि तू अकेला जाने से डरता है, तो अपने दास फूरा को अपने साथ ले जा।
\v 11 नीचे जा और मिद्यानी सैनिकों की बातें सुन कि वे क्या कहते हैं। तब तू बहुत प्रोत्साहित हो जाएगा, और उनके शिविर पर आक्रमण करने के लिए तैयार हो जाएगा।" इसलिए गिदोन ने अपने साथ फूरा को लिया, और वे नीचे शत्रु के शिविर के किनारे पर गए।
\s5
\v 12 मिद्यान और अमालेक के लोगों की सेनाओं ने पूर्व में अपने तम्बू खड़े किए थे और वे टिड्डियों के झुंड की समान दिखते थे। ऐसा लगता था कि उनके ऊँट समुद्र के किनारे की रेत के किनकों के समान गिनने के लिए बहुत अधिक थे।
\p
\s5
\v 13 गिदोन पेट के बल खिसक कर समीप गया और एक पुरुष का स्वप्न सुना वह अपने मित्र को अपना स्वप्न सुना रहा था। उसने कहा, "मैंने अभी एक स्वप्न देखा है, मैंने देखा कि जौ की एक गोल रोटी हमारे मिद्यानी शिविर में लुड़कते लुड़कते आई। उसने एक तम्बू पर इतनी ज़ोर से टक्कर मारी कि वह तम्बू उलट गया और गिर पड़ा!"
\p
\v 14 उसके दोस्त ने कहा, "तेरे स्वप्न का केवल एक ही अर्थ हो सकता है। इसका अर्थ है कि परमेश्वर इस्राएल के पुरुष गिदोन को हम मिद्यानी लोगों के साथ यहाँ उपस्थित सेनाओं को पराजित करने में समर्थ करेगा।"
\p
\s5
\v 15 जब गिदोन ने उस आदमी को अपने सपने के बारे में बताते और उस सपने के अर्थ को सुना, तो उसने परमेश्वर का धन्यवाद किया। तब वह और फूरा इस्राएल के शिविर में लौट आए, और उसने पुरुषों से ऊँचे स्वर में कहा, "उठो! क्योंकि परमेश्वर तुमको मिद्यान के पुरुषों को पराजित करने में समर्थ करते है!"
\v 16 उसने अपने पुरुषों को तीन समूहों में विभाजित किया। उसने हर एक आदमी को एक मेढ़े का सींग (तुरही के रूप में) और एक खाली मिट्टी का घड़ा दिया। और ले चलने के लिए एक एक मशाल भी दी।
\p
\s5
\v 17 तब उसने उनसे कहा, "मुझे देखते रहना। जब हम शत्रु को शिविर के निकट पहुँचते हैं, तब शिविर के चारों ओर फैल जाना। फिर जो मैं करता हूँ बिलकुल वही करना।
\v 18 जैसे ही मेरे लोग उनके मेढ़े सींग को फूँकते हैं, वैसे ही तुम जो शिविर को घेरे हुए दो अन्य समूहों के पुरुष हो अपने अपने सींगों को फूँकना और चिल्लाना, 'हम यह यहोवा के लिए और गिदोन के लिए कर रहे हैं!'"
\p
\s5
\v 19 आधी रात से पहले के समय, "घड़ी के बीचोंबीच", जब पहरेदारों का नया दल पिछले पहरेदारों के स्थानों को लेता है, तो गिदोन और उनके साथ सौ पुरुष मिद्यानी शिविर के किनारे पहुँचे। उसने और उसके पुरूषों ने अपने अपने सींगों को फूँक दिया, और उन घड़ों को तोड़ दिया जिनको वे साथ में लिए हुए थे।
\s5
\v 20 तब तीनों ही समूहों के पुरुषों ने अपने अपने सींगों को फूँका और अपने घड़ों को तोड़ दिया। उन्होंने मशालों को अपने बाएँ हाथों से ऊँचा रखा, और सींगों को अपने दाहिने हाथों से पकड़े रखा और उन्हें फूँकते रहे और चिल्लाते रहे, "हमारे पास यहोवा के लिए और गिदोन के लिए लड़ने की तलवार है!"
\v 21 गिदोन का हर एक पुरुष शत्रु के शिविर के चारों ओर अपनी स्थिति में खड़ा था। उन्होंने देखा, कि सब मिद्यानी पुरुषों ने इधर उधर भागना और एक आतंक में चिल्लाना शुरू कर दिया है।
\p
\s5
\v 22 जबकि तीन सौ इस्राएली पुरुष अपने अपने सींग फूँकते रहे यहोवा ने मिद्यानी लोगों को अपनी तलवारों से एक-दूसरे से ही युद्ध करना आरंभ करवा दिया। उनमें से कुछ ने एक-दूसरे को मार डाला। बाकी भाग गए। कुछ दक्षिण की ओर बेतशित्ता में भाग गए। कुछ तब्बात के पास, आबेल-महोला की सीमा तक, सरेरा शहर में भाग गए।
\v 23 इस्राएलियों ने नप्ताली, आशेर और मनश्शे के गोत्रों से अधिक मनुष्यों को एक साथ इकट्ठा किया और वे मिद्यानी सेना के पीछे गए।
\s5
\v 24 गिदोन ने पूरे पहाड़ी देश में दूत भेजे, जहाँ एप्रैम के वंशज रहते थे और कहा, "नीचे जाकर मिद्यान की सेना पर हमला करो। शत्रु सैनिकों को इसे पार करने से रोकने के लिए नीचे यरदन नदी के उन स्थानों पर जाओ, जहाँ से वे लोग पार जा सकते हैं! दूर दक्षिण में बेतबारा तक अपने लोगों को तैनात कर दो।"
\p अतः एप्रैम के लोगों ने वही किया जो गिदोन ने उनसे कहा था।
\v 25 उन्होंने मिद्यानी सेना के दो सेनापतियों ओरेब और जेब को भी पकड़ लिया। उन्होंने ओरेब को बड़ी चट्टान पर मार डाला जिसे अब ओरेब की चट्टान कहा जाता है, और उन्होंने जेब को उस स्थान पर मार डाला जहाँ वे अंगूर को रौंदते थे जिसे अब जेब का दाखरस का कुंड कहा जाता है। बाद में, इस्राएलियों ने ओरेब और जेब के सिरों को काट दिया और उन्हें गिदोन के पास लाए, जो यरदन नदी के दूसरी ओर था।
\s5
\c 8
\p
\v 1 तब एप्रैम के गोत्र के सैनिकों ने गिदोन से कहा, "तू ने हमारे जैसे ऐसा क्यों किया है? जब तू मिद्यानी सेना से युद्ध के लिए गया था तब हमें सहायता करने के लिए क्यों नहीं बुलाया?" उन्होंने गिदोन के साथ बहुत विवाद किया।
\p
\s5
\v 2 परन्तु गिदोन ने उत्तर दिया, "तुमने जो किया है उसकी तुलना में मैंने बहुत कम किया है! एप्रैम के देश में जिन अंगूरों को लेने की तुम चिन्ता नहीं करते हो, वे अबीएजेर के वंशजों की पूरी फसल की तुलना में कहीं अधिक उत्तम होते हैं!
\v 3 परमेश्वर ने मिद्यान के सेनापतियों ओरेब और जेब को पराजित करने में तुम्हारी सहायता की है। यह मेरे कामों की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण है!" गिदोन के उनसे यह तो वे उससे अप्रसन्न नहीं रहे कि उसने ऐसा किया है।
\p
\s5
\v 4 तब गिदोन और उसके तीन सौ लोग पूर्व में गए। वे यरदन नदी पर आए और इसे पार किया। वे बहुत थके हुए थे परन्तु, फिर भी वे अपने शत्रुओं का पीछा करते रहे।
\v 5 जब वे सुक्कोत नगर पहुँचे, तो गिदोन ने नगर के अगुवों से कहा, "कृपया मेरे लोगों को रोटी दो कि वे इसे खा सकें! वे बहुत थके हुए हैं। हम मिद्यान के राजाओं जेबह और सलमुन्ना का पीछा कर रहे हैं।"
\p
\s5
\v 6 परन्तु सुक्कोत के अगुवों ने उत्तर दिया, "तुम जेबह और सलमुन्ना को पकड़ने और अपनी शक्ति से उन्हें कैदी बनाने के लिए तैयार हो तो तुम। अपने लिए भोजन पाने के लिए पर्याप्त शक्ति रखते हो। अत: तेरी सेना को रोटी देने की हमें क्या आवश्यक्ता हैं?"
\p
\v 7 गिदोन ने उत्तर दिया, "क्योंकि तुमने ऐसा कहा है, यहोवा जेबह और सलमुन्ना को पकड़ने में और उन्हें तुम से ले लेने में हमारी सहायता करेगा। हम लौटकर तुम्हारे पास आएँगे और मरुस्थल में उगने वाले काँटों और धारदार कंटियों से चाबुक बनाएँगे और उनसे तुम्हारे माँस को उधेड़ेंगे।"
\p
\s5
\v 8 गिदोन और उसके तीन सौ पुरुष पनूएल गए और उसी तरह वहाँ भोजन की माँग की। लेकिन उन लोगों ने भी उसे बिलकुल वही उत्तर दिया।
\v 9 तब उसने पनूएल के लोगों से कहा, "उन राजाओं को पराजित करने और शान्ति बनाने के बाद, मैं आकर इस गुम्मट को ढा दूँगा।"
\p
\s5
\v 10 उस समय तक, जेबह और सलमुन्ना पंद्रह हजार सैनिकों के साथ कर्कोर शहर चले गए थे। यह सभी वे थे जो पूर्व से आए लोगों की सेना में से बच गए थे, और उनके 1,20,000 पुरुष पहले से ही मारे गए।
\s5
\v 11 गिदोन और उसके लोग सड़क से होते हुए पूर्व में गए जिस पर कारवाँ यात्रा करते थे। वे नोबह और योग्बहा के गाँवों से होकर निकले और शत्रु के शिविर में अचानक से पहुँच गए।
\v 12 जेबह और सलमुन्ना भाग गए, लेकिन गिदोन के पुरुषों ने उनका पीछा किया। उसने मिद्यान के दो राजाओं जेबह और सलमुन्ना को पकड़ लिया, और उनकी पूरी सेना में घबराहट उत्पन्न कर दी।
\p
\s5
\v 13 उसके बाद, गिदोन और उसके लोगों ने जेबह और सलमुन्ना को अपने साथ ले लिया और हेरेस के पार से गुजरते हुए, वापस आना आरंभ किया।
\v 14 वहाँ वह सुक्कोत से एक युवक से मिला, और उससे राय माँगी। उसने उससे शहर के सब अगुवों के सभी नामों की पहचान करवाने के लिए कहा। उस युवक ने उसे सतहत्तर पुरुषों के नाम बताए।
\s5
\v 15 तब गिदोन और उसके लोग सुक्कोत लौटे और उन अगुवों से कहा, "जेबह और सलमुन्ना यहाँ हैं। जब हम पहले यहाँ थे, तो तुमने मेरा ठठ्ठा किया और कहा था, 'तूने अभी तक जेबह और सलमुन्ना को पकड़ा नहीं है! उन्हें पकड़ लेने के बाद, हम तेरे थके हुए पुरुषों को भोजन देंगे।'"
\v 16 तब गिदोन के लोगों ने नगर के अगुवों को पकड़ लिया और उन्हें मरुस्थल के बिच्छु पेड़ों से बने चाबुकों से कोड़े लगा लगा कर मार डाला, यह सिखाने के लिए कि वे ऐसे कामों को करने के लिए दण्ड के योग्य हैं।
\v 17 तब वे पनूएल गए और गुम्मट को तोड़ दिया, और नगर के सब लोगों को मार डाला।
\p
\s5
\v 18 तब गिदोन ने जेबह और सलमुन्ना से कहा, "तुमने जिन लोगों को ताबोर पर्वत के पास मारा था, वे किसके समान दिखते थे?"
\p उन्होंने उत्तर दिया, "वे आपके जैसे थे; वे सब ऐसे दिखते थे जैसे कि वे राजा के पुत्र थे।"
\p
\v 19 गिदोन ने उत्तर दिया, "वे मेरे भाई थे! यहोवा के जीवन की निश्चितता से मैं कहता हूँ कि यदि तुमने, उन्हें मारा नहीं होता तो मैं तुम्हे नहीं मारता।"
\s5
\v 20 फिर वह अपने सबसे बड़े बेटे, यतेरे के पास गया। उसने उससे कहा, "उन्हें मार डालो!" लेकिन यतेरे केवल एक लड़का था, और वह डर गया था, इसलिए उसने उन्हें मारने के लिए अपनी तलवार नहीं खींची।
\p
\v 21 तब जेबह और सलमुन्ना ने गिदोन से कहा, "एक जवान लड़के से ऐसा काम करने के लिए मत कहो जो पुरुष को करना चाहिए!" अतः गिदोन ने उन दोनों को मार डाला। फिर उसने उनके ऊँटों की गर्दनों से सुनहरे चंद्रमा के आकार के गहने ले लिए।
\p
\s5
\v 22 तब इस्राएली पुरुषों का एक समूह गिदोन के पास आया और उससे कहा, "तू हमारा शासक हो जा! हम चाहते हैं कि तू और तेरा पुत्र और तेरे पोते हमारे शासक हों, क्योंकि तू ने हमें मिद्यानी सेना से बचाया है।"
\p
\v 23 परन्तु गिदोन ने उत्तर दिया, "नहीं, मैं तुम पर शासन नहीं करूँगा, और मेरा पुत्र भी तुम पर शासन नहीं करेगा। यहोवा तुम पर शासन करेगा।"
\s5
\v 24 फिर उसने कहा, "मैं केवल एक ही बात का अनुरोध करता हूँ। कि तुम में से हर एक जन मुझे युद्ध के बाद लिए गए सामानों में से एक एक कान की बाली दो।" अब इश्माएल से निकले सभी लोग कान की बाली पहनते थे।
\p
\v 25 उन्होंने उत्तर दिया, "हम आपको कान की बाली देने में प्रसन्न होंगे!" इसलिए उन्होंने भूमि पर एक कपड़ा फैलाया, और हर एक व्यक्ति ने उस पर उन सोने की बालियों को डाल दिया जिन्हें उन्होंने युद्ध में मारे गए लोगों से लिया था।
\s5
\v 26 सभी बालियों का वजन बीस किलोग्राम था। उन्होंने गिदोन को जो दिया इसमें अन्य वस्तुएँ नहीं थीं अर्थात अन्य गहने या लटकन या उनके राजा के पहने हुए कपड़े या उनके ऊँटों की गर्दन पर जो सोने की जंजीरें थीं।
\s5
\v 27 गिदोन ने लोगों के लिए एक पवित्र वस्त्र बनाया उन्होंने एकमात्र परमेश्वर की आराधना करने की बजाय पूजा की। गिदोन और उसके सारे परिवार ने उसकी पूजा करके पाप किया।
\p
\v 28 इस प्रकार इस्राएलियों ने मिद्यानी लोगों को हरा दिया। मिद्यानी लोग फिर कभी इस्राएल पर आक्रमण करने में पर्याप्त समर्थ नहीं हुए। इसलिए गिदोन जीवित रहते हुए, देश में चालीस वर्षों तक शान्ति थी।
\p
\s5
\v 29 गिदोन अपने घर लौट गया और वहीं रहने लगा।
\v 30 उसकी कई पत्नियाँ थीं, और उन्होंने उसके लिए सत्तर पुत्रों को जन्म दिया।
\v 31 शकेम शहर में उसकी एक रखैल भी थी, जिसने उसके लिए एक पुत्र पैदा किया जिसे उसने अबीमेलेक नाम दिया था।
\s5
\v 32 योआश का पुत्र गिदोन, बहुत बूढ़ा हो कर मर गया। उन्होंने उसके शरीर को अबीएजेरियों के देश ओप्रा में दफनाया, जहाँ उसके पिता योआश को दफनाया गया था।
\p
\v 33 परन्तु जैसे ही गिदोन की मृत्यु हुई, इस्राएलियों ने परमेश्वर को छोड़ दिया और बाल देवता की मूर्तियों की पूजा करने लगे, जैसे व्यभिचारिणी स्त्रियाँ अपने पतियों को छोड़ देती हैं और दूसरे पुरुषों के पास चली जाती हैं। वे बालबरीत को देवता मान कर उसकी पूजा करते थे।
\s5
\v 34 वे यहोवा को भूल गए, जिसने उन्हें चारों ओर से शत्रुओं से बचाया था।
\v 35 यद्यपि गिदोन ने इस्राएलियों के लिए बहुत अच्छे काम किए थे, फिर भी उन्होंने गिदोन के परिवार के प्रति दया के काम नहीं किए।
\s5
\c 9
\p
\v 1 गिदोन का पुत्र अबीमेलेक शकेम शहर में अपनी माँ के भाइयों से बात करने गया। गिदोन को यरूब्बाल भी कहा जाता था। उसने उनसे और अपनी माँ के सब संबन्धियों से कहा,
\v 2 "शकेम के सभी अगुवों से पूछो: 'क्या तुमको ऐसा लगता है कि गिदोन के सब सत्तर पुत्र तुम पर शासन करें तो अच्छा होगा? या क्या तुम पर शासन करने के लिए केवल एक ही व्यक्ति अबीमेलेक का होना उचित होगा?' और यह मत भूलना कि मैं तुम्हारे परिवार का अंश हूँ!"
\p
\s5
\v 3 इसलिए अबीमेलेक की माँ के भाइयों ने शकेम के सब अगुवों को अबीमेलेक की बातें सुनाई। उन्होंने एक-दूसरे से कहा, "हमें अबीमेलेक को हम पर शासन करने देना चाहिए, क्योंकि वह हमारा ही भाई है।"
\v 4 तब शकेम के अगुवों ने अपने देवता बालबरीत के मंदिर से एक किलोग्राम चाँदी को लिया और अबीमेलेक को दे दिया। उस चाँदी से उसने कुछ परेशानियाँ पैदा करने वालों को उसकी सहायता करने के लिए भुगतान किया, और जहाँ भी वह गया, वे अबीमेलेक के साथ गए।
\s5
\v 5 अबीमेलेक अपने पिता के नगर ओप्रा को गया, और अपने सत्तर भाइयों, अर्थात उसके पिता गिदोन के पुत्रों की हत्या कर दी। उसने उन पुरुषों को एक विशाल चट्टान पर मार डाला। लेकिन गिदोन का सबसे छोटा बेटा योताम, अबीमेलेक और उसके पुरूषों से छिपा रहा, और वह बच निकला।
\v 6 तब शकेम और बेतमिल्लो के नगरों के अगुवे शकेम के बड़े पवित्र पेड़ के नीचे इकट्ठा हुए। वहाँ उन्होंने अबीमेलेक को अपना अगुवा नियुक्त किया।
\p
\s5
\v 7 जब योताम ने इसके बारे में सुना, तो वह गरिज्जीम पर्वत पर चढ़ गया। वह पहाड़ के शिखर पर खड़ा हो गया और नीचे के लोगों को चिल्ला कर कहा, "हे शकेम के अगुवों, मेरी बात सुनो, कि परमेश्वर भी तुम्हारी सुन सके!
\v 8 एक दिन पेड़ों ने उन सभी पर शासन करने के लिए एक राजा नियुक्त करने का फैसला किया। इसलिए उन्होंने जैतून के पेड़ से कहा, 'तू हमारा राजा हो जा!'
\p
\s5
\v 9 लेकिन जैतून के पेड़ ने कहा, 'नहीं! मैं तुम्हारा राजा नहीं बनूँगा! पुरुष और देवता मेरे फल से तेल का आनंद लेते हैं। मैं अन्य पेड़ों पर शासन करने के लिए जैतून का उत्पादन बंद नहीं करूँगा जिससे उस तेल को बनाया जाता हैं!'
\p
\v 10 तब पेड़ों ने अंजीर के पेड़ से कहा, 'तू हमारा राजा हो जा!'
\p
\v 11 लेकिन अंजीर के पेड़ ने उत्तर दिया, 'नहीं! मैं अपने अच्छे मीठे फल का उत्पादन करना बंद नहीं करना चाहता, इसलिए अन्य पेड़ों पर शासन करना नहीं चाहता!'
\p
\s5
\v 12 तब पेड़ों ने अंगूर से कहा, 'आ और हमारे राजा बनो!'
\p
\v 13 लेकिन अंगूर ने उत्तर दिया, 'नहीं! मैं तुम्हारा राजा नहीं बनूँगा! मेरे अंगूरों से बनाई गई नई शराब लोगों और देवताओं को बहुत प्रसन्न कर देती है। मैं अंगूरों का उत्पादन करना बंद नहीं करना चाहता हूँ कि जाकर अन्य पेड़ों पर शासन करूँ!'
\p
\v 14 तब सब पेड़ों ने कंटीली झाड़ियों से कहा, 'आ और हमारा राजा बन!'
\p
\s5
\v 15 कंटीली झाड़ियों ने पेड़ों से कहा, 'यदि तुम सच में मुझे अपना राजा बनना चाहते हैं, तो मेरी छोटी शाखाओं की छाया में आओ। लेकिन यदि तुम ऐसा नहीं करना चाहते हैं, तो मुझे आशा है कि मुझसे आग निकलेगी और लबानोन देश के सब देवदार के पेड़ों को जला देगी!"
\p
\v 16 यह दृष्टांत कहने के बाद योताम ने उनसे कहा, "इसलिए अब मैं तुमसे पूछता हूँ, क्या तुम ईमानदार और गंभीर थे जब तुमने अबीमेलेक को अपना राजा बनने के लिए नियुक्त किया था? क्या तुमने गिदोन को (जिसे यरूब्बाल भी कहा जाता है) तुम्हारे लिए भलाई करने के लिए सम्मानित करने हेतु योग्य प्रतिफल दिया हैं? नहीं!
\s5
\v 17 यह मत भूलना कि मेरे पिता ने तुम्हारे लिए युद्ध किया था, और मिद्यानियों की शक्ति से मुक्त कराने के लिए यदि आवश्यक होता तो वह मरने को भी तैयार था।
\v 18 परन्तु अब तुमने मेरे पिता के परिवार से विद्रोह किया है, और उसके सत्तर पुत्रों को एक विशाल चट्टान पर मार डाला है। और अबीमेलेक को राजा होने के लिए नियुक्त किया है जो मेरे पिता की रखैल का पुत्र है, न कि उसकी पत्नी का पुत्र शकेम के लोगों पर शासन करेगा। तुमने ऐसा केवल इसलिए किया है कि वह तुम्हारे संबन्धियों में से एक है!
\s5
\v 19 इसलिए, यदि आज तुम वास्तव में गिदोन और उसके परिवार के प्रति ईमानदारी से और गंभीरता से विचार करते हो, तो मुझे आशा है कि वह तुम्हे प्रसन्न करेगा और तुम उसे प्रसन्न करोगे।
\v 20 परन्तु यदि तुमने जो किया वह उचित नहीं है, तो मैं चाहता हूँ कि अबीमेलेक शकेम और बेतमिल्लो को नष्ट कर दे!" मेरी इच्छा है कि शकेम और बेतमिल्लो के अगुवे भी अबीमेलेक को नष्ट कर दें!"
\p
\v 21 योताम यह कहने के बाद, वहाँ, से बचकर निकल गया और बेर शहर चला गया। वह वहीं रहा क्योंकि उसे डर था कि उसका भाई, अबीमेलेक उसे मारने का प्रयास करेगा।
\p
\s5
\v 22 तीन साल तक अबीमेलेक इस्राएल के लोगों का अगुवा था।
\v 23 तब परमेश्वर ने अबीमेलेक और शकेम के अगुवों के बीच परेशानी उत्पन्न करने के लिए एक दुष्ट आत्मा भेजी, जिसके कारण शकेम के अगुवों ने अबीमेलेक से विद्रोह किया।
\v 24 शकेम के अगुवों ने गिदोन के सत्तर पुत्रों की हत्या करने में अबीमेलेक की सहायता की थी, जो उसके भाई थे। इसलिए उन्होंने जो किया था उसके लिए अब परमेश्वर ने उन सब को दण्ड देने के लिए दुष्ट आत्मा भेजी।
\s5
\v 25 शकेम के अगुवों ने पहाड़ियों पर घातकों को बैठाया। उन लोगों ने हर एक आने जाने वाले को लूट लिया। किसी ने अबीमेलेक को इसके बारे में बताया, इसलिए वह उनके निकट नहीं गया। 4184
\p
\s5
\v 26 एबेद का पुत्र, गाल नाम का एक मनुष्य था जो शकेम में अपने भाइयों के साथ चला गया था। शकेम के अगुवों ने उस पर भरोसा किया।
\v 27 वे अंगूर लेने के लिए अपनी दाख की बारियों में गए। उन्होंने रस बनाने के लिए अंगूरों को रौंदा, और फिर उन्होंने शराब बनाई। तब अपने देवता के भवन में उन्होंने भोज किया, और बहुत भोजन खाया और बहुत शराब पी। तब उन्होंने अबीमेलेक को शाप दिया।
\s5
\v 28 एबेद के पुत्र गाल ने कहा, "हम अबीमेलेक को हम पर शासन करने की अनुमित क्यों दें? क्या वह यरूब्बाल का पुत्र नहीं है? और क्या जबूल उसका अधिकारी नहीं है? तुम्हे तो शकेम के पिता हमोर के लोगों की सेवा करनी चाहिए! हम अबीमेलेक की सेवा क्यों करें?
\v 29 यदि तुम मुझे अपना अगुवा नियुक्त करो, तो मैं अबीमेलेक से छुटकारा दिलाऊँगा। मैं उससे कहूँगा, 'अपनी सेना तैयार कर! आ और हमसे युद्ध कर!'"
\p
\s5
\v 30 गाल ने जो कहा था किसी ने गाल की बातें जबूल को बता दीं जिसे सुनकर वह बहुत क्रोधित हो गया।
\v 31 उसने अबीमेलेक के पास दूत भेजे। उन्होंने उससे कहा, "गाल और उसके भाई यहाँ शकेम में आए हैं, और वे लोगों को उकसा रहे हैं कि वे तुझ से विद्रोह करें।
\s5
\v 32 तू और तेरे लोग रात के समय उठ कर शहर के बाहर खेतों में छिप जाएँ।
\v 33 जैसे ही सुबह सूर्य उगता है, उठो और शहर पर आक्रमण। जब गाल और उसके पुरुष तुझ से युद्ध करने के लिए बाहर आते हैं, तब तू जो, उनके साथ कर सकता हैं।"
\p
\s5
\v 34 तब अबीमेलेक और उसके साथी रात के समय उठ गए। वे चार समूहों में विभाजित हो गए और शेकेम के निकट खेतों में जाकर छिप गए।
\v 35 अगली सुबह, गाल बाहर गया और शहर के प्रवेश द्वार पर खड़ा हो गया। जब वह वहाँ खड़ा था, अबीमेलेक और उसके सैनिक अपने छिपने वाले स्थानों से बाहर आए और शहर की ओर चलना शुरू कर दिया।
\p
\s5
\v 36 जब गाल ने सैनिकों को देखा, तो उसने जबूल से कहा, "देखो, पहाड़ से लोग नीचे आ रहे हैं!"
\p लेकिन जबूल ने कहा, "आप केवल पहाड़ियों पर पेड़ों की छाया देख रहे हैं। वे लोग नहीं हैं; वे केवल लोगों की तरह दिखते हैं।"
\v 37 परन्तु गाल ने फिर से देखा, और कहा, "देखो! देश के बींचोंबीच में लोग नीचे आ रहे हैं! उनमें से एक समूह बांज वृक्ष के रास्ते से नीचे आ रहा है जहाँ लोग मरे हुए लोगों की आत्माओं से बात करने का दावा करते हैं!"
\p
\s5
\v 38 जबूल ने गाल से कहा, "अब क्या तेरा डींग मारना अच्छा है? तू ने कहा था, 'अबीमेलेक कौन है कि हमें उसकी सेवा करनी चाहिए?' क्या ये वे पुरुष नहीं हैं जिनसे तू घृणा करता हैं? अब बाहर जा और उनसे युद्ध कर।
\p
\v 39 तब गाल अबीमेलेक की सेना से युद्ध करने के लिए शकेम के लोगों को शहर के बाहर ले गया।
\v 40 अबीमेलेक और उसके पुरूषों ने उनका पीछा किया, और इसके पहले कि वे शहर के फाटक में सुरक्षित लौटते उन्होंने गाल के कई लोगों को मार डाला।
\s5
\v 41 अबीमेलेक तब शकेम से लगभग पाँच मील दूर अरूमा में रहा, और जबूल के पुरुषों ने गाल और उसके भाइयों को शकेम छोड़ने के लिए विवश कर दिया।
\p
\v 42 अगले दिन, शकेम के लोग शहर छोड़ने और खेतों में काम करने के लिए तैयार हो गए। किसी ने अबीमेलेक को इस की सूचना दी,
\v 43 उसने अपने पुरुषों को तीन समूहों में विभाजित किया, और उन्हें खेतों में छिप जाने के लिए कहा। इसलिए उन्होंने ऐसा किया। और जब उन्होंने शहर से बाहर आने वाले लोगों को देखा, तो वे कूद पड़े और उन पर आक्रमण कर दिया।
\s5
\v 44 अबीमेलेक और उसके साथी शहर के फाटक की ओर भागे। अन्य दो समूह खेतों में लोगों के पीछे भागे और उन पर आक्रमण किया।
\v 45 अबीमेलेक और उसके पुरूषों ने पूरा दिन युद्ध किया। उन्होंने शहर पर अधिकार कर लिया और सब लोगों को मार डाला। उन्होंने सब इमारतों को तोड़ दिया, और खंडहरों पर नमक डाल दिया कि वहाँ कुछ उगे।
\p
\s5
\v 46 जब शकेम के बाहर गुम्मट में रहने वाले अगुवों ने सुना कि क्या हुआ है, तो वे भाग गए और किले में छिप गए, वह उनके देवता एलबरीत का मंदिर भी था।
\v 47 परन्तु किसी ने अबीमेलेक से कहा कि सभी अगुवे वहाँ इकट्ठा हुए हैं।
\s5
\v 48 अतः वह और उसके साथ रहने वाले सब लोग शकेम के निकट सल्मोन पर्वत पर चढ़ गए। अबीमेलेक ने कुल्हाड़ी से पेड़ों की कुछ शाखाओं को काट दिया, और उन्हें अपने कंधों पर रखा। तब उसने सब साथियों से कहा, शीघ्रता से वही करो जो मैं करता हूँ।"
\v 49 इसलिए उसके सब लोग शाखाओं को काटकर अबीमेलेक के पीछे पहाड़ से नीचे ले गए। वे किले में गए और उसकी दीवारों पर शाखाओं को ढेर कर दिया। तब उन्होंने आग लगा दी, और आग ने किले को जला दिया और जितने भी लोग भीतर थे सब को मार डाला। वे सब लोग जो किले के अंदर थे लगभग हजारों पुरुष और महिलाएँ सब मर गए।
\p
\s5
\v 50 तब अबीमेलेक और उसके लोग तेबेस शहर गए। उन्होंने इसे घेर लिया और उस पर अधिकार कर लिया।
\v 51 लेकिन शहर के भीतर एक दृढ़ गुम्मट था। इसलिए शहर के सब पुरुष, महिलाएँ और अगुवे गुम्मट में भाग गए। और भीतर से द्वार बंद कर दिया। फिर वे गुम्मट की छत पर चढ़ गए।
\s5
\v 52 अबीमेलेक और उसके लोग गुम्मट के समीप आए और वह आग लगा कर दरवाजे को जला देने के लिए अबीमेलेक द्वार के निकट आया।
\v 53 परन्तु जब अबीमेलेक द्वार के निकट आया, तब एक स्त्री ने छत पर से पीसने वाले पत्थर के ऊपरी भाग को उस पर गिरा दिया, जिसने उसकी खोपड़ी की हड्डी को तोड़ दिया।
\p
\v 54 अबीमेलेक ने जल्दी से उस युवक को बुलाया जो अबीमेलेक के हथियारों को उठाया करता था, और कहा, "अपनी तलवार खींच और मुझे मार दें! मैं नहीं चाहता कि लोग कहें कि 'एक स्त्री ने अबीमेलेक को मार डाला।'" अतः जवान ने अपनी तलवार अबीमेलेक के शरीर घोप दी, और अबीमेलेक की मृत्यु हो गई।
\s5
\v 55 जब इस्राएली सैनिकों ने देखा कि अबीमेलेक मर चुका है, तो वे सब अपने अपने घर लौट आए।
\p
\v 56 इस तरह परमेश्वर ने अबीमेलेक को उसके सब बुरे कामों का दण्ड दिया उसने अपने सत्तर भाइयों की हत्या करके अपने पिता के साथ बुराई की थी।
\v 57 परमेश्वर ने शकेम के लोगों को भी उनके बुरे कामों के लिए दण्ड दिया। इन सब घटनाओं ने यरूब्बाल के पुत्र योताम का अभिशाप सच कर दिया।
\s5
\c 10
\p
\v 1 अबीमेलेक के बाद पूआ का पुत्र और दोदो का पोता तोला राजा हुआ । वह इस्राएलियों को उनके शत्रुओं से बचाने के लिए अगुवा बन गया। वह इस्साकार के गोत्र से था, परन्तु एप्रैम के गोत्र के पहाड़ी देश के शामीर शहर में रहा करता था।
\v 2 उसने न्यायाधीश के रूप में इस्राएल पर पच्चीस वर्ष तक शासन किया। तब वह मर गया और उसे शामीर में दफनाया गया था।
\p
\s5
\v 3 तोला की मृत्यु के बाद, याईर (गिलादी) ने बीस वर्ष तक न्यायाधीश के रूप में इस्राएल पर शासन किया।
\v 4 उसके तीस पुत्र थे, और उनमें से हर एक के पास सवारी करने के लिए अपना अपना गधा था। उनके पास गिलाद के तीस शहर थे जिनका नाम आज तक भी हब्बोत्याईर (या याईर के शहर) हैं।
\v 5 तब याईर की मृत्यु हो गई और उसे कमोन शहर में दफनाया गया।
\p
\s5
\v 6 इस्राएलियों ने और भी बुराइयाँ की जिनको यहोवा ने देखा। उन्होंने बाल की मूर्तियों की और प्रजनन देवी अश्तारोत की मूर्तियों की पूजा की। उन्होंने अरामी, सीदोनी, मोआबी, अम्मोनी लोगों के समूह के देवताओं की और पलिश्तियों के देवताओं की भी पूजा की। वे यहोवा को भूल गए और उसकी आराधना करना बंद कर दिया।
\v 7 तब यहोवा उन पर क्रोधित हुआ, और उसने पलिश्तियों और अम्मोनियों को इस्राएल को पराजित करने के लिए उबारा।
\s5
\v 8 उस वर्ष उन्होंने इस्राएलियों को कुचल दिया और उन पर अत्याचार किया, और अट्ठारह वर्ष तक उन्होंने इस्राएल के उन सब लोगों पर अत्याचार किया जो यरदन नदी के पूर्व में रहते थे। वह एमोरियों का देश था, जो गिलाद में है।
\v 9 तब अम्मोनियों ने यरदन नदी को यहूदा, बिन्यामीन और एप्रैम के गोत्रों के लोगों से युद्ध करने के लिए यरदन नदी को पार किया। उन्होंने इस्राएलियों के जीवन को डर और आतंक से भर दिया।
\s5
\v 10 अतः इस्राएलियों ने यहोवा को यह कह कर पुकारा, "हमने आपके विरुद्ध पाप किया है। हमने आपको त्याग दिया है, और हमने बाल की मूर्तियों की पूजा की है।"
\p
\v 11 यहोवा ने उनसे कहा, "मैंने तुमको मिस्रियों, एमोरियों, अम्मोनियों, पलिश्तियों के लोगों के समूह से,
\v 12 और साथ ही सीदोनियों, अमालेकियों और मोआनियों से भी छुड़ाया है। मैंने ऐसा इसलिए किया था कि उन्होंने तुमको चोट पहुँचाई थी और कैद कर लिया था। तुमने मुझे पुकारा, और मैं तुम्हे मुक्त करवा लाया।
\s5
\v 13 परन्तु अब तुमने मुझे छोड़ दिया है, और स्वयं अन्य देवताओं की पूजा कर रहे हो। इसलिए, मैं तुमको बार-बार नहीं बचाऊँगा।
\v 14 तुमने उन देवताओं को चुन लिया है कि उनकी पूजा करते हो। तो उनसे ही सहायता माँगों वे ही तुम्हे परेशानियों से निकालें।"
\p
\s5
\v 15 परन्तु इस्राएलियों ने यहोवा से कहा, "हमने पाप किया है। आप जैसा चाहें हमें दण्ड दें। परन्तु कृपया आज हमें बचा लें।"
\v 16 तब इस्राएलियों ने उन विदेशी देवताओं की मूर्तियों को फेंक दिया जिनसे वे स्नेह करते थे, और उन्होंने यहोवा की आराधना की। उसने देखा कि वे बहुत पीड़ित थे, और वह इस्राएल के दुःखों पर वह अपने धीरज की सीमा तक पहुँच गया।
\p
\s5
\v 17 अम्मोनी लोग इस्राएलियों के विरूद्ध लड़ने के लिए इकट्ठा हुआ, और उन्होंने गिलाद में अपने तम्बू खड़े किए। इस्राएली सैनिक भी एकत्र हुए और मिस्पा में अपने तम्बू खड़े किए।
\v 18 गिलाद के लोगों के अगुवों ने एक दूसरे से कहा, "अम्मोनियों की सेना से युद्ध करने के लिए हमारी अगुवाई कौन करेगा? जो हमारा नेतृत्व करेगा वह गिलाद में रहनेवाले सब लोगों का अगुवा बन जाएगा।"
\s5
\c 11
\p
\v 1 गिलाद के क्षेत्र में यिप्तह नाम का एक व्यक्ति था। उसने स्वयं को एक महान योद्धा सिद्ध किया हुआ था। लेकिन उसकी माँ एक वेश्या थी। उसका पिता गिलाद था।
\v 2 गिलाद की पत्नी ने कई पुत्रों को जन्म दिया। जब वे बड़े हुए तब उन्होंने यिप्तह को घर छोड़ने के लिए विवश कर दिया, और कहा, "तुम एक अन्य स्त्री के पुत्र हो, न कि हमारी माँ के। इसलिए हमारे पिता की मृत्यु के बाद तुमको उसकी कोई संपत्ति नहीं मिलेगी।"
\v 3 तब यिप्तह अपने भाइयों के पास से भाग गया, और वह तोब देश में रहने लगा। जब वह वहाँ था, तो कुछ दुष्ट लोग एक साथ यिप्तह से मिले, और वे एक-दूसरे के साथ आने जाने लगे।
\p
\s5
\v 4 कुछ समय बाद, अम्मोनियों के सैनिकों ने इस्राएल के सैनिकों पर आक्रमण किया।
\v 5 और गिलाद के अगुवे यिप्तह को ढूँढ़ने के लिए बाहर निकले कि उसे तोब से लौटा लाएँ।
\v 6 उन्होंने उससे कहा, "हमारे साथ आ और हमारी सेना का नेतृत्व कर, और अम्मोन की सेना से लड़ने में हमारी सहायता कर!"
\p
\s5
\v 7 परन्तु यिप्तह ने उत्तर दिया, "तुमने तो मुझसे घृणा की! तुमने मुझे मेरे पिता का घर छोड़ने के लिए विवश कर दिया था! अब तुम मेरे पास क्यों आए हो, परेशानी में घिर जाने के बाद मुझसे सहायता माँगते हो?"
\p
\v 8 गिलाद के बुजुर्गों ने यिप्तह से कहा, "यही कारण है कि हम अब तेरे के पास आए हैं। आ और हमारे साथ युद्ध में अम्मोनियों के विरूद्ध हमारे सैनिकों का नेतृत्व कर, और तू गिलाद में रहने वालों का अगुवा होगा।"
\p
\s5
\v 9 यिप्तह ने उत्तर दिया, "यदि मैं तुम्हारे साथ गिलाद लौटकर अम्मोन की सेना से युद्ध करूँगा, और यदि यहोवा हमें उनको पराजित करने में हमारी सहायता करता है, तो मैं तुम्हारा अगुवा बनूँगा।"
\p
\v 10 उन्होंने उत्तर दिया, "जो कुछ हम तुमसे कह रहे हैं, यहोवा उसका साक्षी है। इसलिए यदि हम ऐसा नहीं करते तो हम शपथ खाकर कहते है कि वह हमे दण्ड दें।"
\v 11 अतः यिप्तह उनके साथ गिलाद को वापस गया, और लोगों ने उसे उनका अगुवा और उनकी सेना का सरदार बनने के लिए नियुक्त किया। यिप्तह ने मिस्पा में उनके समझौते की शर्तों को यहोवा के सामने दोहराया।
\p
\s5
\v 12 यिप्तह ने अम्मोनियों के राजा के पास दूत भेजे। उन्होंने राजा से पूछा, "हमने तुझे क्रोधित करने के लिए क्या किया है, कि तेरी सेना हमारे देश के लोगों से युद्ध करने के लिए आ रही है?"
\p
\v 13 राजा ने उत्तर दिया, "जब तुम मिस्र से यहाँ आए थे, तब तुमने हमारा देश ले लिया था। तुमने यरदन नदी के पूर्व में, दक्षिण की आर्नोन नदी से उत्तर में यब्बोक नदी तक सारा क्षेत्र ले लिया था। इसलिए अब बिना युद्ध के इसे हमें लौटा दो।"
\p
\s5
\v 14 तब यिप्तह ने फिर से दूतों को राजा के पास भेजा।
\v 15 उन्होंने उससे कहा, "यिप्तह कहता है: 'इस्राएलियों ने, मोआबियों और अम्मोनियों का देश नहीं लिया है।
\v 16 जब इस्राएली लोग मिस्र से निकल आए, तो वे मरुस्थल के मध्य से लाल समुद्र तक गए, और फिर उसके पार चले गए और एदोम के क्षेत्र की सीमा पर कादेश नगर के लिए यात्रा की।
\s5
\v 17 उन्होंने एदोमियों के राजा के पास दूतों को यह कहने के लिए भेजा, "कृपया हमें अपने देश से होकर निकल जाने दे।" परन्तु एदोमियों के राजा ने इन्कार कर दिया। बाद में उन्होंने मोआबियों के राजा को भी बिलकुल यही संदेश भेजा, लेकिन उन्होंने, उन्हें अपने देश से होकर निकल जाने की अनुमति देने से इन्कार कर दिया। इसलिए इस्राएली लंबे समय तक कादेश में ठहरे रहे।
\v 18 तब इस्राएली मरुभूमि में गए और एदोम और मोआब की सीमाओं के बाहर से होकर चले गए। वे मोआब के पूर्व में और फिर अर्नोन नदी के उत्तर से होकर चले गए, वह मोआब की उत्तरी सीमा है। वे मोआब के क्षेत्र में नहीं गए, क्योंकि अर्नोन मोआब की सीमा थी।
\p
\s5
\v 19 तब इस्राएल के अगुवों ने एमोरियों के राजा सीहोन को, जो हेशबोन में शासन करता था, संदेश भेजा। उन्होंने उससे कहा, "कृपया हम इस्राएली लोगों को अपने देश से होकर पार जाने की अनुमति दे दो ताकि हम उस देश में जा सकें जो हमारा है।"
\v 20 परन्तु सीहोन ने इस्राएलियों पर विश्वास नहीं किया कि वे शान्ति से उसके देश से होकर पार निकल जाएँगे। इसलिए उसने अपने सैनिकों को एकत्र किया और उन्होंने यहस गाँव में अपने तम्बू खड़े किए, और वहाँ इस्राएल से युद्ध किया।
\s5
\v 21 परन्तु इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने इस्राएलियों की सहायता की और उन्होंने सीहोन और उसकी सेना को पराजित कर दिया। तब उन्होंने उस सारे देश पर अधिकार कर लिया, जहाँ एमोरी रहते थे।
\v 22 इस्राएलियों ने एमोरियों के देश को दक्षिण की आर्नोन नदी से उत्तर में यब्बोक नदी तक और पूर्व में मरुस्थल से पश्चिम में यरदन नदी तक ले लिया।
\p
\s5
\v 23 इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने, इस्राएलियों के आगे बढ़ने पर एमोरियों को, उन के स्थानों को छोड़ने के लिए विवश किया था। इसलिए अब क्या तू सोचता है कि अब तू उनके देश पर अधिकार कर सकता हैं?
\v 24 तुझे उस भूमि पर अधिकार है जो कमोश तुझे देता है और हम उस देश में रहेंगे जो हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमें दिया है।
\v 25 क्या तू मोआब के राजा सिप्पोर के पुत्र बालाक से अधिक शक्तिशाली है? उसने कभी इस्राएल से युद्ध करने का साहस नहीं किया था।
\s5
\v 26 तीन सौ वर्षो से इस्राएली लोग हेशबोन और अरोएर, और उनके आसपास के नगरों और अर्नोन नदी के पास के सभी नगरों में रहते थे। उन वर्षों में तुम अम्मोनियों ने उन शहरों को वापस क्यों नहीं ले लिया था?
\v 27 हमने तुम्हारे विरुद्ध गलत नहीं किया है, परन्तु तू मुझ पर और मेरी सेना पर आक्रमण करके गलत कर रहा है। मुझे पूरा विश्वास है कि यहोवा, जो न्यायाधीश है, निर्णय लेगा कि इस्राएली सही हैं या अम्मोनी सही हैं।"
\m
\v 28 परन्तु अम्मोन के राजा ने यिप्तह से इस संदेश में छिपी चेतावनी को अनदेखा कर दिया।
\p
\s5
\v 29 तब यहोवा के आत्मा ने यिप्तह को नियंत्रण में लिया। यिप्तह गिलाद के और उस मनश्शे के गोत्र क्षेत्र के मध्य से होकर गया ताकि अपनी सेना के लिए पुरुषों को भर्ती करे। आखिर में उसने अम्मोनियों से युद्ध करने के लिए गिलाद के मिस्पा शहर में उनको एकत्र किया।
\v 30 वहाँ यिप्तह ने यहोवा से एक गंभीर प्रतिज्ञा की, "यदि आप अम्मोनियों को पराजित करने के लिए मेरी सेना की सहायता करेंगे,
\v 31 तो युद्ध से लौट आने पर जो भी मेरे घर से मुझे बधाई देने के लिए बाहर आएगा मैं उसे आपके लिए बलि कर दूँगा। वह आप का हो जाएगा।"
\p
\s5
\v 32 तब यिप्तह और उसके लोग अम्मोनियों पर आक्रमण करने के लिए मिस्पा से गए, और यहोवा ने उसकी सेना के हाथों उन्हें पराजित किया।
\v 33 यिप्तह और उसके पुरूषों ने उन्हें अरोएर शहर से मिन्नीत शहर के चारों ओर के क्षेत्र में मार डाला। उन्होंने आबेलकरामीम शहर तक बीस नगरों को नष्ट कर दिया। अतः इस्राएलियों ने अम्मोनियों को पूर्णतः पराजित कर दिया।
\p
\s5
\v 34 जब यिप्तह मिस्पा में अपने घर लौट आया, तो उसकी पुत्री उससे मिलने के लिए सबसे पहले घर से बाहर आई। वह प्रसन्न होकर डफ बजा रही थी और नाच रही थी। वह उसकी एकमात्र संतान थी और उसके कोई अन्य पुत्र या पुत्रियाँ नहीं थे।
\v 35 जब यिप्तह ने अपनी बेटी को देखा, तो उसने अपना दुःख प्रकट करने के लिए अपने कपड़े फाड़े वह जो करने जा रहा था उसके लिए वह बहुत दुःखी था। उसने उससे कहा, "मेरी पुत्री तुझे देखकर मैं भयंकर दुःख से कुचल दिया गया हूँ क्योंकि मैंने परमेश्वर से शपथ खाई थी कि मेरे घर से बाहर आने वाले पहले व्यक्ति को में यहोवा के लिए बलि कर दूँगा मुझे अपनी शपथ को पूरा करना ही होगा।"
\p
\s5
\v 36 उसकी बेटी ने कहा, "हे मेरे पिता, तूने यहोवा से गंभीर शपथ खाई है। इसलिए तू मेरे साथ अपनी शपथ के अनुसार ही कर, क्योंकि तूने कहा था कि यदि यहोवा हमारे शत्रु, अम्मोनियों को पराजित करने में तेरी सहायता करेगा तो तू ऐसा करेगा।"
\v 37 तब उसने यह भी कहा, "लेकिन मुझे एक काम करने की अनुमति दे। सबसे पहले, मुझे पहाड़ियों में जाने और इधर उधर दो महीने तक घूमने दे। क्योंकि मैं कभी विवाह नहीं करूँगी और बच्चे को जन्म नहीं दूँगी, तो मुझे और मेरी सहेलियों को जाकर एक साथ रोने की अनुमति दे।"
\p
\s5
\v 38 यिप्तह ने उत्तर दिया, "ठीक है, तू जा सकती है।" इसलिए वह दो महीने के लिए चली गई। वह और उसकी सहेलियां पहाड़ियों में रहे और वे उसके लिए रोईं क्योंकि वह कभी विवाह नहीं कर कर पाएगी।
\v 39 दो महीने बाद, वह अपने पिता यिप्तह के पास लौट आई, और उसने उसके साथ वही किया जिसकी गंभीर शपथ खाई थी। इसलिए उसकी पुत्री का विवाह कभी नहीं हुआ।
\p उस वजह से, अब इस्राएलियों में एक रिवाज है।
\v 40 हर साल जवान इस्राएली स्त्रियाँ यिप्तह की पुत्री के साथ जो हुआ, उसके याद रखने और रोने के लिए चार दिनों तक पहाड़ियों में जाती हैं।
\s5
\c 12
\p
\v 1 एप्रैम के गोत्र के लोगों ने अपने सैनिकों को एकत्र, किया और यरदन नदी पार करके सापोन नगर में यिप्तह से बात करने के लिए गए। उन्होंने उससे कहा, "तू ने हमें अम्मोनियों से युद्ध करने में अपनी सेना की सहायता हेतु क्यों नहीं कहा। इसलिए जब तू घर में होगा, हम तुझे तेरे घर के साथ जला देंगे।"
\p
\v 2 यिप्तह ने उत्तर दिया, "अम्मोनियों ने हम पर अत्याचार किया। और मैंने तुमसे निवेदन किया कि आकर हमें उनसे बचाओं तो तुमने मना कर दिया। जब मैंने तुमसे पुकार की, तो तुम हमारे बचाव के लिए नहीं आए।
\s5
\v 3 जब मैंने देखा कि तुम हमारी सहायता करने के लिए नहीं आओगे, तो मैंने हमारे लोगों को अम्मोनियों के मध्य होकर अपने लोगों की अगुवाई करने के लिए अपने जीवन का जोखिम उठाया। यहोवा ने उनको पराजित करने में हमारी सहायता की। अत: तुम आज मुझसे लड़ने के लिए क्यों आए हो? "
\p
\v 4 तब यिप्तह ने एप्रैम के सैनिकों से युद्ध करने के लिए गिलाद के सैनिकों को एकत्र किया। उन्होंने उन पर आक्रमण कर दिया क्योंकि एप्रैम के गोत्र के लोगों ने कहा था, "तुम गिलाद के लोग यहाँ एप्रैम और मनश्शे के देश में शरणार्थी हो।
\s5
\v 5 गिलादियों ने यरदन नदी के निचले स्थानों पर अधिकार कर लिया, जहाँ से लोग नदी पार करके एप्रैम के क्षेत्र में जा सकते थे। यदि एप्रैम के गोत्र में से कोई भागने के प्रयास में नदी पार करने के लिए आता, तो वह कहता था, "मुझे नदी पार करने की अनुमति दीजिए।" तब गिलाद के लोग उससे पूछते "क्या तू एप्रैम के गोत्र से हैं?" यदि वह कहता "नहीं,"
\v 6 वे उससे कहते, "शिब्बोलेत" शब्द का उच्चारण कर।" एप्रैम के लोग उस शब्द का सही उच्चारण नहीं कर पाते थे। तो यदि एप्रैम के गोत्र के व्यक्ति ने कहा, "सिब्बोलेत," तो वे जान जाते कि वह झूठ बोल रहा था और वह वास्तव में एप्रैम के गोत्र से था, और वे उसे वहाँ नदी पर मार डालते।
\p उस समय गिलाद के लोगों ने एप्रैम के गोत्र के बयालीस हजार लोगों की हत्या कर दी थी।
\m
\s5
\v 7 गिलाद के यिप्तह ने छः साल तक इस्राएल पर न्यायाधीश और अगुवे के रूप में सेवा की। तब वह मर गया और उसे गिलाद के नगरों में से एक में दफनाया गया था।
\p
\s5
\v 8 यिप्तह की मृत्यु के बाद, बेतलेहेम से इबसान नाम का एक व्यक्ति इस्राएल पर अगुवा और न्यायाधीश बन गया।
\v 9 उसके तीस पुत्र थे और उसने तीस पुत्रियों को विवाह में दे दिया। वह अपने कुल के बाहर के परिवारों से तीस बहुओं को लाया। वह सात साल तक इस्राएल पर अगुवा और न्यायाधीश रहा।
\s5
\v 10 मरने के बाद उसे बेतलेहेम में दफनाया गया।
\p
\v 11 इबसान की मृत्यु के बाद, जबूलून के गोत्र से एलोन नाम का एक पुरुष इस्राएल का अगुवा बना। वह दस साल तक उनका अगुवा रहा।
\v 12 तब वह मर गया और उसे अय्यालोन शहर के उस क्षेत्र में दफनाया गया था जहाँ जबूलून का गोत्र रहता था।
\p
\s5
\v 13 एलोन की मृत्यु के बाद, पिरातोन शहर से हिल्लेल के पुत्र अब्दोन नाम का एक व्यक्ति इस्राएल पर अगुवा और न्यायाधीश हुआ।
\v 14 उसके चालीस पुत्र और तीस पोते थे। उनके पास सत्तर गधे थे। अब्दोन आठ साल तक इस्राएल पर अगुवा और न्यायाधीश रहा।
\v 15 मृत्यु के बाद अब्दोन को अमालेकी लोगों के पहाड़ी देश में, अर्थात् एप्रैम देश के पिरातोन में दफनाया गया था।
\s5
\c 13
\p
\v 1 इस्राएली लोगों ने फिर से बुरा किया, और यहोवा ने उसे देखा। इसलिए यहोवा ने उन्हें पराजित करने में पलिश्तियों की सहायता की। उन्होंने चालीस वर्ष इस्राएलियों पर शासन किया।
\p
\v 2 दान के परिवार में मानोह नाम का एक मनुष्य था जो सोरा नगर में रहता था। उनकी पत्नी गर्भवती होने में असमर्थ थी, इसलिए उसने संतान को जन्म नहीं दिया था।
\s5
\v 3 एक दिन, यहोवा का स्वर्गदूत मानोह की पत्नी को दिखाई दिया और उससे कहा, "भले ही तू अब तक संतान को जन्म देने में समर्थ नहीं थीं, तू शीघ्र ही गर्भवती होगी और एक पुत्र को जन्म देगी।
\v 4 अब लेकर जब तक वह जन्म नहीं लेता तू शराब या अन्य कोई नशीला पेय नहीं पीएगी, और तुझे ऐसा कोई भोजन नहीं खाना है जिसकी व्यवस्था हमें अनुमति नहीं देता है।
\v 5 तू गर्भवती होगी। तेरे पुत्र के जन्म के बाद, उसके बालों को कभी नहीं काटा जाए। वह जन्म के पहले से मरने के दिन तक परमेश्वर को समर्पित होगा। वह उस काम को करेगा जिससे वह इस्राएलियों को पलिश्तियों की शक्ति से बचाएगा।"
\p
\s5
\v 6 वह स्त्री भाग कर गई और अपने पति से कहा, "एक पुरुष जिसे परमेश्वर ने भेजा मेरे पास आया था। मैं उससे बहुत डर गई थी, क्योंकि वह परमेश्वर की ओर से एक स्वर्गदूत के जैसा था। मैंने नहीं पूछा कि वह कहाँ से आया था, और उसने भी मुझे अपना नाम नहीं बताया।
\v 7 परन्तु उसने मुझसे कहा, 'तू गर्भवती है, और एक पुत्र को जन्म गी। उस समय तक, तुझे शराब या अन्य कोई नशीला पेय नहीं पीना है, और तुझे ऐसा कोई भोजन नहीं खाना है जिसे परमेश्वर की व्यवस्था मना करती है। तेरा पुत्र नाजीर होगा; पैदा होने के पहले से लेकर मरने तक परमेश्वर को समर्पित रहेगा।'"
\p
\s5
\v 8 तब मानोह ने यह कह कर यहोवा से प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, मैं आपसे विनती करता हूँ, उस पुरुष को जिसे आपने हमारे पास भेजा था फिर से भेज दीजिए कि वह हमें सिखाए कि हमें अपने होनेवाले पुत्र को कैसे पालना है।"
\p
\v 9 परमेश्वर ने मानोह की विनती को सुना, और उनका स्वर्गदूत फिर से उस स्त्री के पास आया। इस बार वह बाहर मैदान में थी। लेकिन फिर से उसका पति मानोह उसके साथ नहीं था।
\s5
\v 10 इसलिए वह भाग कर गई और अपने पति से कहा, "वह पुरुष जो कुछ दिन पहले मेरे सामने आया था, फिर से आ गया है!"
\p
\v 11 मानोह अपनी पत्नी के साथ भाग कर गया और उससे पूछा, "क्या तू ही वह पुरुष हैं जिसने मेरी पत्नी से कुछ दिन पहले बात की थी?" उसने उत्तर दिया, "हाँ, मैं ही हूँ।"
\p
\s5
\v 12 मानोह ने उससे पूछा, "जब तेरी प्रतिज्ञा पूरी हो जाएगी और मेरी पत्नी एक पुत्र को जन्म दे देगी, तो उस बच्चे के लिए कौन से नियम होंगे, और जब वह बड़ा हो जाएगा तब वह क्या करेगा?"
\p
\v 13 यहोवा के स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, "तेरी पत्नी को मैंने जो निर्देश दिए हैं, उसे उन सब का पालन करना होगा।
\v 14 बच्चे के जन्म से पहले, उसे अंगूर नहीं खाने हैं, दाखमधु या अन्य कोई नशीला पेय नहीं पीना है, और ऐसा कोई भोजन नहीं खाना है जिसके लिए व्यवस्था हमें मना करती है।"
\p
\s5
\v 15 मानोह ने कहा, "कृपया तब तक यहाँ ठहरे रहें जब तक हम आपके लिए एक जवान बकरी को मारें और उसे पका सकें।"
\p
\v 16 यहोवा के स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, "मैं यहाँ ठहरा रहूँगा, परन्तु मैं कुछ भी नहीं खाऊँगा। आप एक पशु को मार सकते हैं और यहोवा को होमबलि करके चढ़ा सकते हैं।" मानोह को अब तक समझ में नहीं आया था कि वह यहोवा का स्वर्गदूत है।
\p
\s5
\v 17 तब मानोह ने उससे पूछा, "आपका नाम क्या है? आपकी प्रतिज्ञा पूरी होने पर हम आपको सम्मान देना चाहते हैं।"
\p
\v 18 यहोवा के स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, "आप मुझसे मेरा नाम क्यों पूछते हो? यह बहुत ही अनोखा है।"
\s5
\v 19 तब मानोह ने एक जवान बकरी को मार डाला और यहोवा लिए बलि के रूप में अनाज की भेंट के साथ एक चट्टान पर जला दिया। फिर उसने मानोह और उसकी पत्नी के देखते हुए एक अद्भुत काम किया।
\v 20 जब आग की लौ वेदी से आकाश की ओर उठी तब यहोवा का स्वर्गदूत वेदी की लौ में होकर ऊपर चला गया। मानोह और उसकी पत्नी ने यह देखा और भूमि पर मुँह के बल गिर गए।
\s5
\v 21 यद्यपि यहोवा का दूत फिर कभी मानोह और उसकी पत्नी को दिखाई नहीं दिया, फिर भी मानोह को समझ में आ गया कि यह पुरुष वास्तव में कौन था।
\p
\v 22 इसलिए मानोह ने कहा, "अब हमारा मरना निश्चित है, क्योंकि हमने परमेश्वर को देखा है!"
\p
\s5
\v 23 परन्तु उसकी पत्नी ने कहा, "नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता। अगर यहोवा हमें मारने का विचार करता, तो वह होमबलि और अनाज की भेंट को स्वीकार नहीं करता। और वह हमें नहीं दिखाई देता और हमारे साथ होनेवाली आश्चर्यजनक बातें नहीं बताता जो हमारे साथ होंगी, और वह इस चमत्कार को नहीं करता।"
\p
\s5
\v 24 जब उनके पुत्र का जन्म हुआ, तो उन्होंने उसे शिमशोन नाम दिया। जब वह बड़ा हुआ तब यहोवा ने उसे आशीर्वाद दिया।
\v 25 जब वह महनदान में था, जो सोरा और एशताओल के नगरों के बीच है, तब यहोवा के आत्मा ने उसे अपने नियन्त्रण में रखना आरंभ कर दिया था।
\s5
\c 14
\p
\v 1 शिमशोन तिम्ना नगर में गया, और वहाँ उसने एक जवान पलिश्ती स्त्री को देखा।
\v 2 जब वह घर लौट आया, तो उसने अपनी माँ और पिता से कहा, "मैंने तिम्ना में पलिश्तियों की पुत्रियों में से एक को देखा है, और मैं चाहता हूँ तुम उसे मेरे लिए ले आओ ताकि मैं उससे विवाह करूं ।"
\p
\s5
\v 3 उनकी माँ और पिता ने बहुत कड़ाई से विरोध किया। उन्होंने कहा, "क्या हमारे गोत्र में या अन्य इस्राएली गोत्रों में से कोई औरत नहीं है, जिससे कि तू विवाह करे? तू पलिश्तियों में से पत्नी लेना क्यों चाहता है, जिनका खतना नहीं होता और जो यहोवा की आराधना नहीं करते हैं?"
\p शिमशोन ने अपने पिता से कहा, "उसे मेरे लिए ले आओ! उसी को मैं चाहता हूँ!"
\v 4 उसके माता और पिता नहीं समझ पाए थे कि यह यहोवा की ओर से है। वह शिमशोन के लिए पलिश्तियों के साथ युद्ध करने का एक उपाय कर रहा था, क्योंकि उस समय वे इस्राएल पर शासन कर रहे थे।
\s5
\v 5 तब शिमशोन अपनी माता और पिता के साथ तिम्ना को गया। एक जवान शेर ने उस पर हमला किया और नगर के समीप दाख के बागों के पास उस पर दहाड़ने लगा।
\v 6 यहोवा के आत्मा शिमशोन पर आया, और उसने शेर को अपने हाथों से फाड़ कर दो भाग कर दिया। उसने इतनी आसानी से ऐसा किया कि जैसे वह एक बकरी का बच्चा हो। परन्तु उसने अपने माता-पिता को इसके बारे में नहीं बताया।
\s5
\v 7 जब वे तिम्ना में पहुँचे, तो शिमशोन ने उस जवान स्त्री से बात की, और वह उसे बहुत पसंद आई और उसके पिता ने विवाह करवाने का प्रबन्ध किया।
\p
\v 8 बाद में, जब शिमशोन विवाह के लिए तिम्ना लौट आया, तो शेर की लाश को देखने के लिए वह रास्ते से मुड़ गया। उसने पाया कि मधुमक्खियों के एक झुंड ने शव में छत्ता बना लिया था और उसमें कुछ शहद भी था।
\v 9 इसलिए उसने खोद कर अपने हाथों में शहद निकाल लिया और उसमें से चलते-चलते खाता गया। उसने उसमें से कुछ अपने माता-पिता को भी दिया, परन्तु उसने उन्हें नहीं बताया कि उसने शेर की लाश में से शहद लिया था।
\p
\s5
\v 10 जब उसका पिता विवाह के लिए अंतिम व्यवस्था कर रहा था, शिमशोन ने उस क्षेत्र के जवान पुरुषों को दावत दी। उनके क्षेत्र में जब वे विवाह करने वाले होते थे तो पुरुषों के द्वारा की जाने वाली यह एक परंपरा थी।
\v 11 जैसे ही उसके संबन्धियों ने उसे देखा, वे अपने तीस मित्रों को उसके साथ होने के लिए ले आए।
\p
\s5
\v 12 शिमशोन ने उनसे कहा, "मुझे तुमसे एक पहेली पूछने की अनुमति दो। यदि तुम उत्सव के इन सात दिनों में मेरी पहेली का सही अर्थ मुझे बताते हो तो मैं हर एक को एक सनी का कुरता और एक अतिरिक्त पोशाक की जोड़ी दूँगा।
\v 13 लेकिन यदि तुम मुझे सही अर्थ नहीं बता पाते हो, तो तुम में से हर जन को मुझे एक सनी का कुरता और एक अतिरिक्त पोशाक की जोड़ी देगा।" उन्होंने उत्तर दिया, "ठीक है। हमें अपनी पहेली बता।"
\p
\s5
\v 14 अतः उसने कहा,
\q1 "खाने वाले से मुझे खाने के लिए कुछ मिला;
\q2 शक्तिशाली में से मुझे कुछ मीठा मिला।"
\m लेकिन तीन दिनों तक वे उस पहेली का अर्थ उसे नहीं बता पाए।
\p
\s5
\v 15 चौथे दिन, उन्होंने शिमशोन की पत्नी से कहा, " चाल चल कर अपने पति को पहेली का अर्थ बताने के लिए फुसला। अगर तू ऐसा नहीं करेगी, तो हम तेरे पिता के घर को तेरे और तेरे परिवार के साथ जला देंगे! क्या तुमने हमें यहाँ इसलिए आमंत्रित किया है कि अपने पति के लिए बहुत सारे कपड़े खरीदवा कर हमें गरीब बना दे?"
\p
\s5
\v 16 इसलिए शिमशोन की पत्नी रोते हुए उसके पास आई। उसने उससे कहा, "तुम सचमुच मुझसे प्यार नहीं करते हो। तुम मुझसे घृणा करते हो! आपने हमारे मित्रों से एक पहेली पूछी है, लेकिन तुमने मुझे उसका उत्तर नहीं बताया है!"
\p उसने उत्तर दिया, "मैंने अपने स्वयं के माता-पिता को इसका अर्थ नहीं बताया है, तो मुझे तुम्हे क्यों बताना चाहिए?"
\v 17 बाकी के पूरे उत्सव के समय वह जब भी वह उसके साथ होती वह रोती ही रहती। अन्त में, सातवें दिन, क्योंकि उसने उसे तंग करना जारी रखा था, तो उसने उसे पहेली का अर्थ बता दिया क्योंकि वह परेशान करती रहती थी और उसने उन जवान पुरुषों को उसका अर्थ बता दिया।
\p
\s5
\v 18 अतः सातवें दिन सूरज के डूबने से पहले, जवान लोग शिमशोन के पास आए और उससे कहा,
\q1 "शहद से मीठा कुछ भी नहीं है;
\q2 शेर के समान कुछ भी शक्तिशाली नहीं है।"
\p शिमशोन ने उत्तर दिया, "लोग अपने खेतों की जुताई करने के लिए खुद के पशुओं का उपयोग करते हैं। मेरी दुल्हन एक जवान बछिया की तरह है जिसका आपने उपयोग किया है, परन्तु वह तुम्हारी नहीं है!
\q1 यदि तुम उसे विवश नहीं करते तो तुम्हे मेरी पहेली का अर्थ,
\q2 मालूम नहीं हुआ होता!"
\p
\s5
\v 19 तब यहोवा के आत्मा शक्तिशाली रूप से शिमशोन पर आया। वह अश्कलोन शहर के तट पर गया और तीस लोगों की हत्या कर दी। उसने उनके कपड़े ले लिए और तिम्ना वापस चला गया; तब उसने उन्हें दावत में आए पुरुषों को दे दिया। लेकिन जो कुछ घटित हुआ था वह उसके बारे में बहुत नाराज था, इसलिए वह अपने माता-पिता के साथ रहने के लिए घर लौट गया।
\v 20 इसलिए उसकी पत्नी के पिता ने उसे उस पुरुष को दे दिया जो विवाह के समय शिमशोन का विशेष मित्र था।
\s5
\c 15
\p
\v 1 उस समय जब वे गेहूँ की कटाई कर रहे थे, तब शिमशोन अपनी पत्नी के लिए उपहार स्वरूप एक जवान बकरी ले कर तिम्ना गया। वह अपनी पत्नी के साथ सोना चाहता था, परन्तु उसके पिता ने उसे उसके कमरे में जाने नहीं दिया।
\p
\v 2 उसने शिमशोन से कहा, "मैंने वास्तव में सोचा था कि तुम उससे घृणा करने लगे हो। इसलिए मैंने उसे उस पुरुष को दे दिया जो विवाह के समय तुम्हारा सबसे अच्छा मित्र था, और उसने उससे विवाह किया है। लेकिन देखो, उसकी छोटी बहन उससे ज्यादा सुंदर है। उसके स्थान में इसे ले लो।"
\p
\s5
\v 3 शिमशोन ने उत्तर दिया, "नहीं! अब मुझे तुम पलिश्तियों से बदला लेने का अधिकार है!"
\v 4 फिर वह बाहर खेतों में गया और तीन सौ लोमड़ियाँ पकड़ीं। उन्होंने उनकी पूँछों को एक साथ, दो दो करके बाँध दिया। और उनकी पूँछों में मशालें बाँध दीं।
\s5
\v 5 तब उसने मशालों को जला दिया और लोमड़ियों को पलिश्तियों के खेतों में भागने दिया। मशालों की आग ने भूमि के सारे अनाज को जला दिया, जिसमें कटाई किया हुआ अनाज और बंडलों में बँधा हुआ अनाज भी था। आग ने उनकी दाखलताओं को और उनके जैतून के पेड़ों को भी जला दिया।
\p
\v 6 पलिश्तियों ने पूछा, "यह किसने किया?" किसी ने उन्हें बताया, "शिमशोन ने ऐसा किया। उसने तिम्ना की एक औरत से विवाह किया, लेकिन फिर उसके ससुर ने उसे उस पुरुष को दे दिया जो विवाह के समय शिमशोन का सबसे अच्छा मित्र था, और उसने उससे विवाह कर लिया।" इसलिए पलिश्ती तिम्ना गए और उस स्त्री को और उसके पिता को पकड़ लिया, और उन्हें जला कर मार डाला।
\p
\s5
\v 7 शिमशोन को इसके बारे में पता चला और उनसे कहा, "क्योंकि तुमने यह किया है, इसलिए मैं तुम से बदला लूँगा, और फिर मैं खुश होऊँगा!"
\v 8 इसलिए उसने पलिश्तियों पर प्रचंड आक्रमण किया और उनमें से बहुतों को मार डाला। फिर वह एताम नामक जगह पर बड़ी चट्टान की एक गुफा में छिपने को चला गया।
\p
\s5
\v 9 पलिश्तियों को यह नहीं पता था कि वह कहाँ था, इसलिए वे यहूदा के वंशजों के पास गए, और युद्ध करने के लिए लही नगर में व्यवस्थित हुए।
\v 10 वहाँ के पुरुषों ने पलिश्तियों से पूछा, "आप हम पर आक्रमण करना क्यों चाहते हो?" पलिश्तियों ने उत्तर दिया, "हम शिमशोन को पकड़ने आए हैं। उसने हमारे साथ जो किया है उसका बदला लेने हम आए हैं।"
\p
\s5
\v 11 वहाँ किसी को पता था कि शिमशोन कहाँ छिपा हुआ है। अत: यहूदा के तीन हजार पुरूष शिमशोन को लाने के लिए नीचे चट्टान की गुफा में गए जहाँ वह छिपा हुआ था। उन्होंने शिमशोन से कहा, "क्या तुझे मालूम नहीं है कि पलिश्ती लोग हमारे ऊपर शासन कर रहे हैं? क्या तुझे मालूम नहीं है कि वे हमारे साथ क्या करेंगे?"
\p शिमशोन ने उत्तर दिया, "केवल एक काम जो मैंने किया वह यह था कि मैंने उनसे उसका बदला लिया।"
\p
\s5
\v 12 परन्तु यहूदा के लोगों ने उससे कहा, "हम तुझे बाँधकर पलिश्तियों के हाथों में देने के लिए आए हैं।"
\p शिमशोन ने कहा, "ठीक है, परन्तु प्रतिज्ञा करो कि तुम मुझे नहीं मारोगे!"
\p
\v 13 उन्होंने उत्तर दिया, "हम केवल तुझे बाँधेंगे और आपको पलिश्तियों के पास ले जाएँगे। हम तुझे नहीं मारेंगे।" इसलिए उन्होंने उसे दो नई रस्सियों से बाँध दिया और उसे गुफा से निकाल कर ले गए।
\s5
\v 14 जब वे लही पहुँचे, तो पलिश्ती युद्ध की ललकार करते हुए उसकी ओर आए। परन्तु यहोवा के आत्मा शक्तिशाली रूप से शिमशोन पर आया। उसने रस्सियों को अपनी बाँहों से इतनी आसानी से तोड़ दिया जैसे कि वे जले हुए सनी के डंठल थे, और वे उसकी कलाई से नीचे गिर गए।
\s5
\v 15 फिर उसने भूमि पर पड़ी हुए गधे के जबड़े की हड्डी को देखा। नई थी, इसलिए कठोर थी। उसने इसे उठाया और उससे एक हजार पलिश्ती पुरुषों को मार डाला।
\v 16 तब शिमशोन ने गाया:
\q1 "एक गधे के जबड़े की हड्डी से
\q2 मैंने उन्हें मरे हुए गधों के ढेर की तरह बना दिया है।
\q1 एक गधे के जबड़े की हड्डी से
\q2 मैंने एक हजार लोगों को मारा है।"
\m
\s5
\v 17 जब वह ऐसा कर चुका, उसने जबड़े की हड्डी को फेंक दिया, बाद में उस स्थान को रामतलही (या जबड़े की हड्डी की पहाड़ी) कहा जाता था।
\p
\v 18 तब शिमशोन बहुत प्यासा था, इसलिए उसने यहोवा को पुकार कर कहा, "आपने मुझे बड़ी जीत प्राप्त करने की शक्ति दी है। इसलिए क्या अब प्यास के कारण मुझे मर जाना चाहिए, जिससे कि मूर्तिपूजक, खतनारहित पलिश्ती मुझे पकड़ लेंगे?"
\s5
\v 19 अत: परमेश्वर ने लही की भूमि में एक गड़हे में से पानी निकाल दिया। शिमशोन ने उससे पी लिया और शीघ्र ही फिर से शक्ति प्राप्त की। उन्होंने उस स्थान को एनहक्कोरे (या "उसका सोता जिसे पुकारा गया था") नाम दिया। वह सोता, आज भी लही में मिल सकता है।
\p
\v 20 शिमशोन इस्राएल के ऊपर बीस साल तक अगुवा और न्यायाधीश था, परन्तु उस समय पूरे देश पर पलिश्तियों का राज था।
\s5
\c 16
\p
\v 1 शिमशोन गाजा शहर को गया था। उसने वहाँ एक वेश्या देखी, और उसने उसके साथ रात बिताई।
\v 2 गाजा के लोगों को बताया गया था, "शिमशोन यहाँ आया है।" उन्होंने उस स्थान को घेर लिया जहाँ शिमशोन था, और वे पूरी रात छिपे हुए इंतजार कर रहे थे। वे शहर के फाटक के पास थे, इसलिए वे निश्चित थे कि वह भाग नहीं पाएगा। उन्होंने कहा, "चलो, उजाला होने तक प्रतीक्षा करें, और फिर हम उसे मार देंगे।"
\p
\s5
\v 3 लेकिन शिमशोन पूरी रात वहाँ नहीं रुका था। आधी रात को, वह उठ गया। वह शहर के फाटक पर गया, उसने उसके दो पल्लों को पकड़ी, और उनके साथ जुड़े हुए बेंड़ों समेत उनको जमीन में से उखाड़ लिया। उसने इसे अपने कंधों पर रख लिया और हेब्रोन शहर के सामने, इसे कई मील की दूरी तक ऊपर पहाड़ पर ले गया।
\p
\s5
\v 4 बाद में शिमशोन दलीला नाम की एक महिला के प्यार में पड़ गया। वह सोरेक की घाटी में (पलिश्ती क्षेत्र में) रहती थी।
\v 5 पलिश्ती अगुवे उसके पास गए और कहा, "शिमशोन को फुसला कर पता लगा कि उसकी शक्ति कहाँ से आती है। और पता लगा कि हम उसे कैसे वश में कर सकते हैं और कैसे उसे बाँध सकते हैं। यदि तू ऐसा करती है, तो हम में से हर एक तुझे चाँदी के 1,100 टुकड़े देगा। "
\p
\s5
\v 6 अतः दलीला शिमशोन के पास गई और कहा, "कृपया मुझे बताओ कि आपको इतनी शक्ति देनेवाली क्या बात है, और मुझे बता कि कोई तुझे कैसे वश में कर सकता है और बाँध सकता है।"
\p
\v 7 शिमशोन ने कहा, "अगर कोई मुझे धनुष की सात नई तातों से बाँधता है, जो अभी तक सूखी नहीं हैं, तो मैं अन्य पुरुषों के समान निर्बल हो जाऊँगा।"
\p
\s5
\v 8 अतः दलीला के पलिश्ती अगुवों को यह बता दिया तो, वे धनुष की सात नई तातों को लेकर दलीला के पास आए।
\v 9 तब उसने अपने घर के कमरों में से एक में अगुवों को छिपा दिया। उसने शिमशोन को धनुष की तातों से बाँध दिया और फिर चिल्ला कर कहा, "शिमशोन! पलिश्ती तुझे पकड़ने आए हैं!" लेकिन शिमशोन ने धनुष की तातों को इतनी आसानी से तोड़ दिया जैसे कि मानो वे ऐसे तार थे जिनको आग में झुलसाया गया था। इसलिए पलिश्तियों को पता नहीं चल पाया कि किस कारण शिमशोन इतना शक्तिशाली था।
\p
\s5
\v 10 तब दलीला ने शिमशोन से कहा, "तू ने मुझे धोखा दिया है और मुझसे झूठ बोला है! अब मुझे सच बता कि तुझे कैसे सुरक्षित बाँधा जा सकता है।"
\p
\v 11 शिमशोन ने उत्तर दिया, "अगर कोई मुझे नई रस्सियों से बाँधता है, जो कभी भी इस्तेमाल नहीं की गई हों, तो मैं अन्य पुरुषों के समान निर्बल हो जाऊँगा।"
\p
\v 12 इसलिए फिर से, उसने पलिश्ती अगुवों को बता दिया, और फिर वे आए और कमरे में छिप गए जैसा उन्होंने पहले किया था। और फिर से उसने चिल्ला कर कहा, "शिमशोन! पलिश्ती तुझे पकड़ने आए हैं!" लेकिन शिमशोन ने रस्सियों को अपनी बाहों से इतनी आसानी से तोड़ दिया जैसे कि मानो वे धागे थे।
\p
\s5
\v 13 तब दलीला ने कहा, "तू ने फिर से मुझे धोखा दिया है और मुझसे झूठ बोला है! कृपया मुझे बता कि कोई तुझे कैसे बाँध सकता है!" शिमशोन ने उत्तर दिया, "यदि आप मेरे बालों के सात लटों को उस धागे में बुन देती हो जिससे तुम करघे पर बुनाई करती हो, और तब आप उस धागे को एक खूँटी से बाँध देती हो जो धागे को तंग बनाता है, तो मैं अन्य पुरुषों के समान निर्बल हो जाऊँगा।"
\p इसलिए फिर से, दलीला ने उसके बालों की सात लटों को पकड़ा, और उन्हें करघे के धागे में बुन दिया,
\v 14 और उसने उन्हें एक आलपिन लगा कर सुरक्षित किया। तब उसने चिल्ला कर कहा, "शिमशोन! पलिश्ती तुझे पकड़ने आए हैं!" शिमशोन जाग गया और उसके बालों को खींच लिया, उसके साथ करघे की आलपिन और करघे के कपड़े को साथ में निकाल लिया।
\p
\s5
\v 15 तब दलीला ने उससे कहा, "तू कैसे कह सकता है कि मुझसे प्यार करता है जब कि तू मुझे अपने बारे में सच्चाई नहीं बताता है? तूने मुझे तीन बार धोखा दिया है, और अभी तक नहीं बताया है कि वास्तव में तेरी शक्ति का भेद क्या है!"
\v 16 दिन प्रतिदिन वह कोई न कोई चाल चलकर उसे फुसलाती थी कि उसकी शक्ति के भेद को जान पाए। उसने सोचा कि वह उसके लगातार परेशान करने से मर जाएगा।
\p
\s5
\v 17 अन्त में शिमशोन ने उसे सच बता दिया। उसने कहा, "जिस दिन मेरा जन्म हुआ था, तब से मुझे परमेश्वर के लिए अलग कर दिया गया है। और इसके कारण, मेरे बाल कभी नहीं काटे गए हैं। अगर मेरे बाल मूंड दिए गए, तो मेरी शक्ति समाप्त हो जाएगी, और मैं अन्य पुरुषों के समान निर्बल हो जाऊँगा।"
\p
\s5
\v 18 दलीला ने महसूस किया कि इस बार उसने उसे सच बताया था। इसलिए उसने पलिश्ती अगुवों को एक साथ बुलाकर कहा, "एक और बार वापस आओ, क्योंकि शिमशोन ने अन्त में मुझे अपनी शक्ति का रहस्य बता दिया है।" इसलिए पलिश्ती अगुवे वापस लौटे और उन्होंने दलीला को वह पैसा दिया जिसकी उन्होंने उससे प्रतिज्ञा की थी।
\v 19 फिर से उसने शिमशोन के सिर को अपनी गोद में रख कर सोने के लिए उसे शांत किया। तब उसने पलिश्ती पुरुषों में से एक को बुलाया कि वह आकर शिमशोन के बालों को काट दे। जैसे ही उसने ऐसा किया, शिमशोन निर्बल हो गया; उसके पास ताकत नहीं रही।
\p
\s5
\v 20 तब उसने उसे बाँधने के बाद, उसने चिल्ला कर कहा, "शिमशोन! पलिश्ती तुझे पकड़ने आए हैं!"
\p वह जाग गया और सोचा, "जैसा मैंने पहले किया था मैं वैसा ही करूँगा। मैं इन रस्सियों को खुद से झटक कर गिरा दूँगा और मुक्त हो जाऊँगा!" लेकिन उसे बोध नहीं हुआ कि यहोवा ने उसे छोड़ दिया था।
\p
\v 21 इसलिए पलिश्ती पुरुषों ने उसे पकड़ लिया और उसकी आँखें निकाल दीं। तब वे उसे गाजा ले गए। वहाँ उन्होंने उसे जेल में डाल दिया और उसे काँसे की जंजीरों से बाँध दिया। उन्होंने उसे हर दिन अनाज पीसने के लिए एक बड़ा चक्की का पत्थर घुमाने वाला बना दिया।
\v 22 लेकिन काट दिए जाने के बाद उसके बाल फिर से बढ़ने लगे।
\p
\s5
\v 23 कई महीने बाद पलिश्ती अगुवों ने एक बड़ा पर्व मनाया। पर्व के समय उन्होंने उनके देवता दागोन के लिए बलि चढ़ाई। उन्होंने यह कह कर उसकी प्रशंसा की, "हमारे देवता ने हमें हमारे सबसे बड़े शत्रु शिमशोन को हराने में हमें समर्थ किया है!"
\p
\v 24 जब दूसरे लोगों ने शिमशोन को देखा, तो उन्होंने यह कह कर कि उनके देवता की प्रशंसा की,
\q1 "हमारे देवता ने हमारे सबसे बड़े शत्रु को हमारे हाथों में कर दिया है।
\q2 हमारे देवता ने उस पुरुष को पकड़ने में हमारी सहायता की जिसने हमारे देश को बहुत हानि पहुँचाई थी!"
\p
\s5
\v 25 उस समय तक लोग आधे नशे में थे। उन्होंने चिल्ला कर कहा, "शिमशोन को जेल से बाहर लाओ! उसे यहाँ लाओ कि वह हमारा मनोरंजन करे!"
\p इसलिए वे शिमशोन को जेल से बाहर लाए और उसे मंदिर के बींचोंबीच में खड़ा कर दिया। उन्होंने उसे उन दो खंभों के बीच में खड़ा कर दिया जिन पर छत टिकी थी।
\v 26 शिमशोन ने उस दास से कहा, जो उसका हाथ थाम कर उसका नेतृत्व कर रहा था, "मेरे हाथों को उन दो खंभों पर रख दो। मैं उन पर टिक कर आराम करना चाहता हूँ।"
\s5
\v 27 उस समय मंदिर पुरुषों और महिलाओं से भरा था। सब पलिश्ती अगुवे भी वहाँ थे। और छत पर लगभग तीन हजार लोग थे, जो शिमशोन को देख रहे थे और उसका ठट्ठा कर रहे थे।
\s5
\v 28 शिमशोन ने यहोवा से प्रार्थना की और उसने कहा, "हे प्रभु यहोवा, फिर से मेरे बारे में सोचो! कृपया मुझे केवल एक बार इस समय अधिक शक्ति दो, ताकि मैं पलिश्तियों से मेरी आँखें बाहर निकालने का बदला ले सकूँ!"
\v 29 तब शिमशोन ने दो बीच के खंभों पर टेक लगाया जिन पर इमारत टिकी हुई थी। उसने उन पर बल लगा दिया, उसके दाहिने हाथ से एक खंभे पर, और उसके बाएँ हाथ से दूसरे खंभे पर।
\s5
\v 30 फिर उसने परमेश्वर को पुकारा, "मुझे पलिश्तियों के साथ मरने दो!" उसने अपनी सारी ताकत के साथ धक्का दिया। खंभे ढह गए, और मंदिर पलिश्ती अगुवों और अन्य सभी पलिश्ती लोगों पर गिर गया, और वे सब मर गए। अतः शिमशोन ने मरते समय जितने लोगों को मार डाला था उनकी संख्या उन लोगों से कहीं अधिक थी जिन्हें उसने जीवित रहकर मारा था।
\p
\v 31 बाद में उसके भाई और उसके संबधी उसके शरीर को लेने के लिए सोरा से गाजा गए। वे उसे घर ले आए और उसे सोरा और एशताओल के बीच उस जगह पर दफनाया, जहाँ शिमशोन के पिता मानोह को दफनाया गया था। शिमशोन ने बीस वर्ष तक इस्राएल का नेतृत्व किया था।
\s5
\c 17
\p
\v 1 मीका नाम का एक आदमी था जो पहाड़ी देश में रहता था जहाँ एप्रैम का गोत्र रहता था।
\v 2 एक दिन उसने अपनी माँ से कहा, "मैंने सुना है कि आपने अपने घर से चाँदी के ग्यारह सौ टुकड़े चुराने वाले को श्राप दिया है मैंने ही वह चाँदी ली है, और मेरे पास वह अब भी है।" उसकी माँ ने उत्तर दिया, "हे मेरे पुत्र, मैं प्रार्थना करती हूँ कि यहोवा तुझे आशीर्वाद दे।"
\p
\s5
\v 3 मीका ने सारी चाँदी वापस अपनी माँ को दे दी। तब उसने कहा, "मैं यह चाँदी यहोवा को दूँगी। मैं इस चाँदी से एक नक्काशीदार आकृति और एक ढली हुई कलाकृति बनाने के लिए किसी को दूँगी।"
\p
\v 4 अपनी माँ को चाँदी देने के बाद, उसने दो सौ टुकड़े लिए और उन्हें धातु के कारीगर को दे दिया। उस चाँदी से उस मनुष्य ने एक नक्काशीदार आकृति और एक ढली हुई धातु की कलाकृति बना दी, और उन्हें मीका को दे दिया। मीका ने उन्हें अपने घर में रख दिया।
\p
\s5
\v 5 मीका के घर में एक कमरा था जिसमें वह अपनी मूर्तियों की पूजा किया करता था। उसने पुजारियों द्वारा पहना जाने वाला एक एपोद, और कुछ घरेलू देवताओं की मूर्तियों को बनाया था और मीका ने अपने पुत्रों में से एक को उसकी सभी मूर्तियों के लिए पुजारी होने का काम दिया था।
\v 6 उस समय, इस्राएल के पास कोई राजा नहीं था, और हर एक जन वही करता था जो उनकी नजर में सही था।
\p
\s5
\v 7 वहाँ एक युवक था जो यहूदा के गोत्र के क्षेत्र में बेतलेहेम में रह रहा था। वह पुजारी के रूप में काम करना चाहता था क्योंकि वह लेवी के गोत्र का था।
\v 8 इसलिए उसने रहने और काम करने के लिए स्थान खोजने के लिए बेतलेहेम छोड़ दिया। वह पहाड़ी देश में मीका के घर आया जहाँ एप्रैम का गोत्र रहता था।
\p
\v 9 मीका ने उससे पूछा, "तू कहाँ से है?"
\p उसने उत्तर दिया, "मैं बेतलेहेम से आया हूँ। मैं लेवी के गोत्र से हूँ, और मैं रहने के लिए स्थान और पुजारी के काम की खोज में हूँ।"
\s5
\v 10 मीका ने उससे कहा, "मेरे साथ रह, और मुझे परामर्श दिया कर और मेरा पुजारी बन जा। हर साल मैं तुझे चाँदी के दस टुकड़े और नए कपड़े दूँगा। मैं तेरे लिए भोजन भी दिया करूँगा।"
\v 11 अतः वह जवान पुरुष मीका के साथ रहने के लिए तैयार हो गया। वह मीका के पुत्रों में से एक के समान हो गया।
\s5
\v 12 मीका ने उसे पुजारी होने के लिए नियुक्त किया, और वह मीका के घर में रहने लगा।
\v 13 तब मीका ने कहा, "अब मैं जानता हूँ कि यहोवा मेरे लिए भले कामों को करेगा, क्योंकि मेरा पुजारी होने के लिए मेरे पास लेवी के गोत्र से एक पुरुष है।"
\s5
\c 18
\p
\v 1 उस समय इस्राएलियों के पास कोई राजा नहीं था।
\p दान का गोत्र, अपने लिए बसने को एक अच्छी जगह की तलाश में था। अन्य इस्राएली गोत्र उन्हें दिए गए क्षेत्रों पर अधिकार करने में समर्थ हुए परन्तु दान का गोत्र ऐसा करने में समर्थ नहीं हुआ था।
\v 2 इसलिए उन्होंने अपने कुलों से पाँच सैनिक चुने, जो लोग सोरा और एशताओल के नगरों में रहते थे, कि देश से निकल कर जाएँ और उसकी खोजबीन करें और ऐसी भूमि खोजने का प्रयास करें जहाँ उनका गोत्र रह सके।
\p वे पहाड़ी देश में मीका के घर आए जहाँ एप्रैम का गोत्र रहता था, और वे उस रात वहाँ रहे।
\s5
\v 3 जब वे उसके घर में थे, जब उन्होंने उस जवान पुरुष को बातें करते सुना जो मीका का पुजारी हो गया था, तो उन्होंने उसे उसकी बोली से पहचाना। अतः वे उसके पास गए और उससे पूछा, "तुझे यहाँ कौन लाया? तू यहाँ क्या कर रहा है? तू यहाँ क्यों आया है?"
\p
\v 4 उसने उन्हें वह सब बताया जो मीका ने उसके लिए किया था। और उसने कहा, "मीका ने मुझे काम पर रखा है, और मैं उसका पुजारी हूँ।"
\p
\s5
\v 5 इसलिए उन्होंने उससे कहा, "कृपया परमेश्वर से पूछो कि क्या, हम, इस यात्रा पर जो करने का प्रयास कर रहे हैं, उसमें सफल होंगे।"
\p
\v 6 जवान पुरुष ने उत्तर दिया, "इस ज्ञान से जाओ कि इस यात्रा पर यहोवा तुम्हारे साथ रहेगा।"
\p
\s5
\v 7 तब वे पाँच पुरुष चले गए। जब वे लैश शहर आए, तो उन्होंने देखा कि वहाँ के लोग सुरक्षित रहते थे, जैसे सीदोन शहर में लोग रहते हैं। वहाँ के लोगों ने सोचा कि वे सुरक्षित थे, क्योंकि उनके लिए परेशानी उत्पन्न करने के लिए कोई भी आसपास नहीं था, वे सीदोन से बहुत दूर थे, और बाहरी व्यक्ति से उनका संपर्क बहुत ही कम था।
\p
\v 8 जब वे पाँच पुरुष सोरा और एशताओल लौट आए, तो उनके संबन्धियों ने उनसे पूछा, "तुमने क्या खोजबीन की?"
\p
\s5
\v 9 उन्होंने उत्तर दिया, "हमें कुछ भूमि मिली है, और वह बहुत अच्छी है। हमें जाकर वहाँ रहने वाले लोगों पर आक्रमण करना चाहिए। तुम यहाँ क्यों रह रहे हो और कुछ भी नहीं कर रहे हो? अब और प्रतीक्षा मत करो! हमें तुरंत जाना चाहिए और उस देश पर अधिकार कर लेना चाहिए!
\v 10 तुम वहाँ जाओगे, तो देखोगे कि वह बहुत लम्बा चौड़ा देश है, और इसमें वह सबकुछ है जो हमें चाहिए। वहाँ के लोग किसी के भी आक्रमण के बारे में सोच नहीं सकते हैं परमेश्वर निश्चित रूप से वह देश हमें दे रहा है।"
\p
\s5
\v 11 अतः दान के गोत्र के छः सौ पुरुष अपने हथियारों को लेकर सोरा और एशताओल से निकल गए।
\v 12 अपने रास्ते में उन्होंने किर्यत्यारीम शहर के पास वाले क्षेत्र में अपने तम्बू खड़े किए वहाँ यहूदा का गोत्र रहता था। यही कारण है कि किर्यत्यारीम के पश्चिम वाले क्षेत्र को महनेदान (या "दान का शिविर") नाम दिया गया था, और उसका नाम आज भी वही है।
\s5
\v 13 वहाँ से, वे पहाड़ी देश गए जहाँ एप्रैम का गोत्र रहता था। और वे मीका के घर पहुँचे।
\p
\v 14 लैश के निकट के देश की खोज करने वाले उन पाँच लोगों ने अपने साथी इस्राएलियों से कहा, "क्या तुम जानते हैं कि इन घरों में से एक में एक पवित्र एपोद, बहुत से घरेलू देवताओं की मूर्तियाँ, एक नक्काशीदार आकृति और एक धातु की ढली हुई कलाकृति है? हम सोचते हैं कि तुम जानते हो तुम्हे क्या करना है।"
\s5
\v 15 इसलिए वे उस घर में गए जहाँ लेवी के गोत्र का पुरुष रहता था, अर्थात वे मीका के घर गए, और उन्होंने लेवी के गोत्र के उस जवान पुरुष को जो मीका का पुजारी था नमस्कार किया।
\v 16 दान के गोत्र के छः सौ पुरुष अपने हथियारों को लिए हुए घर के द्वार के बाहर खड़े हो गए।
\s5
\v 17 जिन पाँच लोगों ने देश की खोज की थी, वे मीका के घर के भीतर गए, और नक्काशीदार आकृति, पवित्र एपोद, घरेलू देवताओं की मूर्तियाँ, और धातु की ढली हुई कलाकृति ले गए। जब उन्होंने ऐसा किया, तब छः सौ पुरुष पुजारी के साथ बात करते हुए द्वार के बाहर खड़े रहे।
\p
\v 18 जब पुजारी ने उन्हें नक्काशीदार आकृति, पवित्र एपोद, घरेलू देवताओं की मूर्तियाँ, और धातु की ढली हुई कलाकृति बाहर लाते हुए देखा, तो उसने उनसे कहा, "तुम यह क्या कर रहे हो?"
\p
\s5
\v 19 उन्होंने उत्तर दिया, "चुप रह! कुछ भी मत कह! तू हमारे साथ आ और हमारे लिए पिता का स्थान ले और हमारा याजक भी बन जा। क्या तेरे लिए यहाँ रहकर एक ही परिवार के लोगों का होना अच्छा है या एक कुल वरन् संपूर्ण इस्राएल का याजक होना अच्छा है? "
\v 20 उस पुजारी को उनका सुझाव अच्छा लगा। इसलिए उसने पवित्र एपोद और घरेलू देवताओं और नक्काशीदार आकृति को ले लिया, और वह उन लोगों के साथ जाने के लिए तैयार हो गया।
\s5
\v 21 उन पुरुषों ने अपनी-अपनी पत्नियों और छोटे बच्चों, को तथा उनके पशुओं, और सब कुछ जो उनका था यात्रा में अपने आगे आगे चलाया।
\p
\v 22 अभी वे मीका के घर से कुछ दूरी ही पहुँचे थे कि मीका ने देखा जो हो रहा कि उन्होंने क्या किया है। मीका ने तुरन्त अपने पड़ोसियों को पुकारा और वे सब दौड़ते हुए दान गोत्र के लोगों के पास पहुँच गए।
\v 23 वे उन पर चिल्ला पड़े। दान के गोत्र के लोगों ने मुड़ कर मीका से कहा, "तेरी समस्या क्या है? तूने हमें इन मनुष्यों को लेकर हमारा पीछा क्यों किया है?"
\p
\s5
\v 24 मीका ने ऊँची आवाज़ में कहा, "तुमने मेरे लिए बनाई गई चाँदी की मूर्तियाँ ले लीं है! तुमने मेरे पुजारी को भी ले लिया है! मेरे पास अब कुछ भी नहीं बचा है! और तुम मुझसे पूछते हो, 'तेरी समस्या क्या है?'"
\p
\v 25 दान के गोत्र के लोगों ने उत्तर दिया, "उचित तो यही होगा कि तू इस विषय में कुछ न कहे। हमारे कुछ पुरुष क्रोध हो गए तो वे तुझ पर आक्रमण कर देंगे और तुझे और तेरे परिवार को मार डालेंगे!"
\v 26 तब दान के गोत्र के लोग आगे चलने लगे। मीका ने देखा कि उनका समूह बहुत बड़ा है उन से युद्ध करना उसके लिए व्यर्थ होगा। इसलिए लौट कर घर आ गया।
\p
\s5
\v 27 दान के गोत्र के लोग मीका के लिए बनाए गए सामान को उठाकर और उसके पुजारी को लेकर लैश की ओर चलते चले गए उन्होंने लैश में शान्ति से रहने वालों पर आक्रमण किया और उन्हें तलवारों से मार डाला उन्होंने शहर में सब कुछ जला दिया।
\v 28 वहाँ पुरुषों का ऐसा कोई दल भी नहीं था कि लैश में रहनेवालों को बचाले। दूसरी ओर लैश सीदोन से बहुत दूर था, इसलिए लैश के सीदोनी भी लैश के लोगों की सहायता नहीं कर पाए। लैश के लोगों का कोई मित्र समुदाय भी नहीं था। लैश बेत्रहोब नगर के पास एक घाटी में था।
\p दान के गोत्र के लोगों ने उस शहर का फिर से निर्माण किया और वहाँ रहने लगे।
\v 29 उन्होंने शहर को एक नया नाम दिया, उन्होंने इसे दान कहा, उनके पूर्वज "दान" के सम्मान में उन्होंने उस शहर का नाम दान रखा। दान इस्राएल के पुत्रों में से एक था। यह नगर पहले लैश कहलाता था।
\s5
\v 30 दान के गोत्र के लोगों ने शहर में मीका के घर से उठाई गई नक्काशीदार आकृति को स्थापित किया। गेर्शोन के पुत्र, और मूसा के पोते, योनातान को याजक नियुक्त किया। उनके वंशज इस्राएल की बन्धुआई तक वहाँ के याजक रहे थे।
\v 31 दान के गोत्र के लोगों के द्वारा स्थापित वह मीका के लिए बनाई गई नक्काशीदार आकृति तब तक वहाँ रही जब तक कि परमेश्वर का घर शिलोह में था।
\s5
\c 19
\p
\v 1 उस समय इस्राएली लोगों के पास कोई राजा नहीं था।
\p लेवी के गोत्र में से एक पुरुष था जो एप्रैमियों के पहाड़ी प्रदेश में एकान्त स्थान में रहता था। उसने पहले ही से साथ रहने के लिए एक दासी को रख लिया था। वह बेतलेहेम के उस क्षेत्र में से थी, जहाँ यहूदा का गोत्र रहता है।
\v 2 उसने अन्य पुरुषों के साथ भी सोना आरंभ कर दिया। तब वह उसे छोड़कर अपने पिता के पास बेतलेहेम लौट गई। वह चार महीनों तक वहाँ रही।
\s5
\v 3 तब उसका पति अपने एक दास के साथ दो गधे लेकर बेतलेहेम को गया कि उससे लौट आने का आग्रह करे। जब वह उसके पिता के घर पहुँचा, तो उसका पिता उसे देखकर प्रसन्न हुआ और उसे भीतर आने को कहा।
\v 4 उसकी पत्नी के पिता ने उसे ठहरने के लिए कहा। वह वहाँ तीन दिन तक रहा और उसने वहाँ खाया और पिया और सोया।
\p
\s5
\v 5 चौथे दिन, वे सब सुबह शीघ्र उठ गए। लेवी के गोत्र का पुरुष चलने की तैयारी कर रहा था, परन्तु उस स्त्री के पिता ने उससे कहा, "जाने से पहले कुछ खा लो।"
\v 6 इसलिए वे दोनों पुरुष एक साथ खाने और पीने के लिए बैठ गए। तब उस स्त्री के पिता ने उससे कहा, "कृपया एक रात और रुककर । आराम करो और आनन्द मनाओ।"
\s5
\v 7 लेवी के गोत्र का पुरुष तो चलना चाहता था, परन्तु उस स्त्री के पिता ने उससे एक रात और रुकने का अनुरोध किया। अतः वह उस रात भी रुक गया।
\v 8 पाँचवें दिन, पुरुष जल्दी उठ गया और चलने के लिए तैयार हो गया। लेकिन उस स्त्री के पिता ने उससे फिर कहा, "तब दोपहर तक निकल जाना।" अतः दोनों पुरुषों ने एक साथ खाया।
\p
\s5
\v 9 दोपहर में, जब लेवी के गोत्र का वह पुरुष और उसकी पत्नी और उसका दास चलने के लिए उठे, तो उस स्त्री के पिता ने कहा, "शीघ्र ही अंधेरा हो जाएगा। दिन लगभग समाप्त हो गया है। आज रात यहाँ रहो और आनन्द मनाओ। कल सुबह आप शीघ्र उठ जाना और अपने घर के लिए निकल जाना।"
\s5
\v 10 परन्तु लेवी के गोत्र का वह पुरुष एक और रात नहीं ठहरना चाहता था। उसने अपने दोनों गधों पर काठी कसी, और अपनी पत्नी और अपने दास के साथ यबूस शहर की ओर चल पड़ा, यबूस को अब यरूशलेम नाम दिया गया है।
\p
\v 11 जब दोपहर बाद वे यबूस के निकट आए। दास ने अपने स्वामी से कहा, "हमें इस शहर में रुक जाना चाहिए जहाँ यबूसी लोगों का समूह रहता है, हमें आज रात यहीं ठहरना चाहिए।"
\p
\s5
\v 12 परन्तु उसके स्वामी ने कहा, "नहीं, हमारे लिए यहाँ ठहरना अच्छा नहीं होगा यहाँ विदेशी लोग रहते हैं। यहाँ कोई इस्राएली लोग नहीं हैं। हम आगे गिबा शहर को जाएँगे।"
\v 13 उसने अपने दास से कहा, "चलो हम चलें। गिबा यहाँ से बहुत दूर नहीं है। हम वहाँ पहुँच सकते हैं, या हम थोड़ा और आगे रामा को जा सकते हैं। हम आज रात उन दो शहरों में से एक में ठहर सकते हैं।"
\s5
\v 14 इसलिए वे चलते रहे। जब वे गिबा के समीप आए, जहाँ बिन्यामीन के गोत्र के लोग रहते थे, तो सूर्य ढल रहा था।
\v 15 वे उस रात वहाँ ठहरने के लिए रुक गए। वे उस शहर के सार्वजनिक चौक में गए और बैठ गए। आने-जाने वालों में से किसी ने भी उन्हें उस रात ठहरने के लिए अपने घर आमंत्रित नहीं किया।
\p
\s5
\v 16 परन्तु एक बूढ़ा पुरुष वहाँ आया। वह खेतों में काम करता था। वह एप्रैम के गोत्र के पहाड़ी देश से था, परन्तु उस समय वह गिबा में रह रहा था।
\v 17 उसने समझ लिया कि लेवी के गोत्र का यह पुरुष केवल यात्रा कर रहा है और उसके पास उस शहर में ठहरने के लिए कोई स्थान नहीं है। इसलिए उसने उस पुरुष से पूछा, "तुम कहाँ से आए हो? और कहाँ जा रहे हो?"
\p
\s5
\v 18 उसने उत्तर दिया, "हम एप्रैम गोत्र के बेतलेहेम के पहाड़ी प्रदेश में अपने घर जा रहे हैं। मैं बेतलेहेम गया था, परन्तु अब हम शीलो जा रहे हैं जहाँ यहोवा का घर है। यहाँ किसी ने भी हमें आज रात ठहरने के लिए अपने घर में आमंत्रित नहीं किया है।
\v 19 हमारे पास हमारे गधों के लिए भूसा और आहार है, और मेरे लिए और इस स्त्री और मेरे दास के लिए रोटी और मदिरा है। हमें और किसी वस्तु की आवश्यक्ता नहीं है।"
\p
\s5
\v 20 उस बूढ़े पुरुष ने कहा, "तुम्हारा भला हो। मैं तुम्हारी हर एक आवश्यक्ता को पूरा कर सकता हूँ यहाँ चौक में रात मत बिताओ।"
\v 21 वह बूढ़ा आदमी उन्हें अपने घर ले गया। उसने गधे को आहार दिया। उसने उस पुरुष और स्त्री और दास को पैरों को धोने के लिए पानी दिया। और उस बूढ़े आदमी ने उन्हें खाने और पीने के लिए कुछ दिया।
\p
\s5
\v 22 जब वे एक साथ अच्छा समय बिता रहे थे, तब उस शहर के कुछ दुष्ट लोगों ने घर को घेर लिया और दरवाजे को पीटना आरंभ कर दिया था। उन्होंने उस बूढ़े व्यक्ति से चिल्ला कर कहा, "हमारे पास बाहर उस पुरुष को ला जो तेरे घर आया है। हम उसके साथ संभोग करना चाहते हैं।"
\p
\v 23 बूढ़ा व्यक्ति बाहर गया और उनसे कहा, "हे मेरे भाइयों, मैं ऐसा नहीं करूँगा। यह एक बहुत बुरा काम होगा। यह पुरुष मेरे घर में एक अतिथि है। तुम्हे ऐसा भयानक काम नहीं करनी चाहिए!
\s5
\v 24 देखो, मेरी कुँवारी बेटी और उसकी रखैल यहाँ हैं। मैं उन्हें तुम्हारे पास ले आता हूँ। तुम जैसा चाहो उनके साथ कर सकते हो, लेकिन इस पुरुष के साथ ऐसा भयानक काम मत करो!"
\p
\v 25 परन्तु उन पुरुषों ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। इसलिए उस पुरुष ने उसकी रखैल को लिया और उसे घर के बाहर, उनके पास भेज दिया। उन्होंने उसे उनके साथ बलपूर्वक संभोग किया और पूरी रात उसके साथ गलत काम किया। फिर भोर होते ही उसे जाने दिया।
\v 26 वह उस बूढ़े आदमी के घर लौट आई, और द्वार पर गिर गई और जब तक कि प्रकाश नहीं हुआ वह वहाँ पड़ी रही।
\p
\s5
\v 27 अगली सुबह, उसका स्वामी उठ गया और अपनी यात्रा जारी रखने के लिए घर के बाहर चला गया। उसने देखा कि उसकी रखैल घर के द्वार पर वहाँ पड़ी हुई है, उसके हाथ अभी भी दरवाजे को छू रहे हैं।
\v 28 उसने उससे कहा, "उठो! चलो हम चलें!" लेकिन उसने उत्तर नहीं दिया। उसने उसके शरीर को गधे पर रखा, और वह और उसका दास घर के लिए चल दिए।
\p
\s5
\v 29 जब वह घर पहुँचे, तो उसने एक चाकू लिया और उसने रखैल के शरीर को बारह टुकड़ों में काट दिया। फिर उसने इस्राएल के हर एक गोत्र में एक टुकड़ा भेजा, और साथ में एक संदेश दिया कि उनके साथ कैसी घटना घटी थी।
\v 30 जिस किसी ने भी शरीर के एक टुकड़े को देखा और संदेश को पड़ा उसने कहा, "पहले कभी ऐसा कुछ नहीं हुआ है। जब से हमारे पूर्वज मिस्र से निकल आए हैं, उस समय से हमने ऐसे भयानक काम के बारे में नहीं सुना है। हमें इसके बारे में सावधानी से विचार करने की आवश्यक्ता है। किसी को तो निर्णय लेना होगा कि क्या किया जाए।"
\s5
\c 20
\p
\v 1 इस्राएल के सभी सैनिक उत्तर में दान शहर से दक्षिण में बेर्शेबा और गिलाद के क्षेत्र से यरदन नदी के पूर्व तक सब एक हो गए, सब एकजुट हो गए, सब ने इस घटना के बारे में सुना था। इसलिए वे मिस्पा में यहोवा के सम्मुख एकत्र हुए।
\v 2 इस्राएल के ग्यारह गोत्रों के अगुवे वहाँ एकत्र होकर लोगों के सामने खड़े हुए थे। वहाँ 4,00,000 पुरुष, पैदल सैनिक थे जो योद्धा थे।
\s5
\v 3 बिन्यामीन के गोत्र के लोगों ने सुना कि सब इस्राएली मिस्पा गए है, परन्तु बिन्यामीन गोत्र का कोई भी व्यक्ति उस सभा में नहीं गया।
\p इस्राएल के लोगों ने उस दुःखद घटना के बारे में पूछा।
\v 4 अतः उस लेवी ने जो बलात्कार में मारी गई उस स्त्री का पति था, उत्तर दिया, "मेरी रखैल और मैं उस रात वहाँ ठहरने के विचार से गिबा को आए।
\s5
\v 5 उस शाम, गिबा के लोग मुझ पर हमला करने के लिए आए। उन्होंने उस घर को घेर लिया जहाँ मैं ठहरा हुआ था और मेरे साथ संभोग करना चाहते थे और फिर मुझे मार डालना चाहते थे। उन्होंने मेरी रखैल से रात भर बलात्कार किया और वह मर गई।
\v 6 मैं उसके शरीर को घर ले गया और इसे टुकड़ों में काट दिया। तब मैंने इस्राएल के हर एक गोत्र में एक टुकड़ा भेजा, क्योंकि मैं चाहता था कि तुम सब को इस्राएल में किए गए इस दुष्ट और अपमानजनक काम के बारे में जानना चाहिए।
\v 7 इसलिए अब, तुम सब इस्राएली कुछ सोचों और मुझे बताओ कि तुम्हारे विचार में क्या किया जाना चाहिए!"
\p
\s5
\v 8 सब लोग खड़े हो गए और एक आवाज़ में कहा, "हम में से कोई भी घर नहीं जाएगा! हम में से एक जन भी अपने घर नहीं लौटेगा!
\v 9 हमें गिबा के लोगों के साथ करना है वह है कि सबसे पहले, हम निर्णय लेने के लिए चिट्ठियाँ डालेंगे कि किस समूह को उन पर आक्रमण करना चाहिए।
\s5
\v 10 हम अपनी संख्या का दसवाँ हिस्सा चुनेंगे, ताकि इस्राएल में किए गए भयानक काम के लिए गिबा को दण्ड दिया जाए।"
\v 11 सब इस्राएली सहमत हुए कि गिबा के लोगों को दण्ड दिया जाना चाहिए।
\p
\s5
\v 12 तब इस्राएली पुरुषों ने बिन्यामीन गोत्र के पास दूतों को भेजा। उन्होंने कहा, "क्या तुम्हे मालूम है कि तुम्हारे कुछ लोगों ने बहुत बुरा काम किया है?
\v 13 उन दुष्ट मनुष्यों को हमारे पास लाओ, ताकि हम उन्हें मौत की सजा दें। ऐसा कर, हम इस बुरे काम से छुटकारा पाएँगे जो इस्राएल में हुआ है।"
\p लेकिन बिन्यामीन के गोत्र के लोगों ने उनके साथी इस्राएलियों की बात पर ध्यान नहीं दिया।
\v 14 बिन्यामीन के गोत्र के लोग उनके शहरों को छोड़कर अन्य इस्राएलियों से युद्ध करने के लिए गिबा में एकत्र हुए।
\s5
\v 15 एक ही दिन में बिन्यामीन के गोत्र के लोगों ने छब्बीस हजार योद्धाओं की भर्ती की। उन्होंने गिबा से भी सात सौ पुरुष चुने।
\v 16 उन सैनिकों में से सात सौ पुरुष ऐसे थे जो बाएँ हाथ का उपयोग करने वाले थे, और उनमें से हर एक जन गोफन चलाने में कुशल था और बाल जैसे छोटे से छोटे लक्ष्य को भेद सकता था।
\p
\s5
\v 17 इस्राएल के सैनिकों में, बिन्यामीन के सैनिकों को छोड़ पुरुषों की संख्या 4,00,000 थी। इन सब को तलवार चलाने की शिक्षा प्राप्त थी वे सब युद्ध के अनुभवी थे।
\p
\v 18 ये अन्य इस्राएली बेतेल गए और परमेश्वर से मार्गदर्शन खोजा कि, "बिन्यामीन के गोत्र के पुरुषों पर हमला करने वाला पहला गोत्र कौन सा होना चाहिए?"
\p यहोवा ने उत्तर दिया, "यहूदा के गोत्र के लोगों को पहले जाना है।"
\p
\s5
\v 19 अगली सुबह, इस्राएली लोग चले गए और गिबा के पास अपने तम्बू खड़े किए।
\v 20 तब वे बिन्यामीन के गोत्र के लोगों से लड़ने के लिए गए, और गिबा की ओर मुँह करके युद्ध की स्थिति में खड़े हो गए।
\v 21 बिन्यामीन के गोत्र के लोग गिबा से बाहर निकले और उनसे युद्ध किया, और उस दिन उन्होंने इस्राएल के बीस हजार सैनिकों को मार डाला।
\s5
\v 22 परन्तु इस्राएल के सैनिकों ने साहस धरा और अगले दिन भी उसी युद्ध व्यूह में युद्ध के लिए तैयार हो गए।
\v 23 तब वे एक साथ आए और सहायता के लिए यहोवा से आग्रह किया; उन्होंने शाम तक प्रार्थना की। उन्होंने यहोवा से इस बारे में मार्गदर्शन खोजी कि उन्हें क्या करना चाहिए: "क्या हमें अपने भाइयों, बिन्यामीन के लोगों से आज भी युद्ध करना चाहिए? यहोवा ने उत्तर दिया, "उन पर आक्रमण करो!"
\s5
\v 24 अगले दिन वे फिर युद्ध के लिए उसी युद्ध व्यूह में जैसा उन्होंने कल किया था।
\v 25 बिन्यामीन के गोत्र के लोग गिबा से बाहर निकले और इस्राएलियों पर आक्रमण किया, और उनके अट्ठारह हजार पुरुषों को मार डाला।
\p
\s5
\v 26 दोपहर में, इस्राएल के सब लोग जो मारे नहीं गए थे, फिर से बेतेल गए। वहाँ वे बैठकर यहोवा के आगे रोए, और उन्होंने शाम तक उपवास रखा। वे कुछ भेंटें लेकर आए जिनको उन्होंने वेदी पर पूरी तरह से जला दिया, और यहोवा के लिए मेल की बलि भी लेकर आए।
\s5
\v 27 इस्राएल के लोगों ने यहोवा से पूछा, क्योंकि उन दिनों में परमेश्वर के वाचा का सन्दूक वहाँ था,
\v 28 और एलीआजर का पुत्र पीनहास, जो हारून का पोता था; उन दिनों में सन्दूक के सामने सेवा कर रहा था "क्या हमें अपने भाई बिन्यामीन के लोगों से एक बार फिर युद्ध करने के लिए जाना चाहिए हैं, या विचार त्याग दें?" यहोवा ने कहा, "आक्रमण करो! क्योंकि कल मैं उन्हें पराजित करने में तुम्हारी सहायता करूँगा।"
\s5
\v 29 इस्राएली पुरुषों ने गिबा के चारों ओर के खेतों में घातकों को बैठा दिया।
\v 30 अन्य इस्राएली पुरुष गए और युद्ध की स्थिति में खड़े हो गए जैसा कि उन्होंने पिछले दिनों में किया था।
\s5
\v 31 जब बिन्यामीन के गोत्र के लोग युद्ध करने के लिए शहर से बाहर निकले, तब इस्राएली लोग पीछे हट गए, और बिन्यामीन के गोत्र के लोगों ने उनका पीछा किया। बिन्यामीन के गोत्र के लोगों ने कई इस्राएलियों को मार डाला, जैसा कि उन्होंने पहले किया था। उन्होंने खेतों में और मार्गों में लगभग तीस इस्राएली लोगों को मार डाला, एक मार्ग बेतल को थी और दूसरा मार्ग गिबा को गया था।
\p
\s5
\v 32 बिन्यामीन के गोत्र के लोगों ने कहा, "हम उन्हें ऐसे पराजित कर रहे हैं जैसा हमने पहले किया था!" परन्तु इस्राएली पुरुषों ने अपनी योजना के अनुसार किया। इस्राएली पुरुषों के मुख्य समूह ने पीछे हटकर गिबा के लोगों को धोखा दिया और उन्हें शहर के बाहर के मार्गों पर इस्राएली पुरुषों का पीछा करने दिया।
\p
\v 33 इस्राएली पुरुषों के मुख्य समूह ने अपनी स्थिति को छोड़ दिया और पीछे हट गए, और फिर बालतामार नाम की जगह पर वे फिर से अपनी युद्ध की स्थिति में खड़े हो गए। तब इस्राएल के सैनिक जो गुप्त स्थानों में छिप हुए थे, वे मारेगिबा में उनके स्थानों से दौड़ कर निकल आए।
\s5
\v 34 तब अन्य दस हजार इस्राएली उन जगहों से निकले जहाँ वे छिपे हुए थे, गिबा के पश्चिम में, और शहर पर हमला किया। वे वही पुरुष थे जो इस्राएल के सभी हिस्सों से आए थे। वहाँ एक बहुत बड़ा युद्ध हुआ। बिन्यामीन के गोत्र के लोगों को यह नहीं पता था कि विनाशकारी पराजय होने वाली थी।
\v 35 यहोवा ने बिन्यामीन के गोत्र के लोगों को पराजित करने में इस्राएलियों समर्थ बनाया। उन्होंने उनके 25,100 योद्धा मार डाले।
\s5
\v 36 अत: बिन्यामीन के सैनिकों ने देखा कि वे पराजित हो गए। इस्राएल के लोगों ने बिन्यामीन को पीठ दिखाई थी, क्योंकि वे गिबा के बाहर छिपे हुए अपने सैनिकों पर भरोसा किए हुए थे कि वे सही समय पर गुप्त स्थानों से बाहर निकलकर युद्ध को अपने पक्ष में कर लेंगें।
\v 37 तब जो लोग छिपे हुए थे वे उठे और दौड़ कर गिबा में घुस गए, और अपनी तलवारों से नगर में रहने वालों को मार डाला।
\v 38 अब इस्राएल के सैनिकों और छिपे हुए लोगों के बीच संकेत यह होगा कि धुएँ का एक बड़ा बादल शहर से उठेगा।
\p
\s5
\v 39 उस समय तक, इस्राएली पुरुष युद्ध से पीछे हटते रहे अत: बिन्यामीन के गोत्र के लोगों ने सोचा, "हम पहले के समान युद्ध जीत रहे हैं!"
\s5
\v 40 लेकिन तब शहर से जलती हुई इमारतों का धूआँ उठने लगा। बिन्यामीन के गोत्र के लोगों ने घूम कर देखा कि पूरा शहर जल रहा था।
\v 41 तब इस्राएली पुरुषों के मुख्य समूह ने भी धूआँ देखा, और संकेत को समझ गए कि अब उन्हें मुड़कर आक्रमण करना चाहिए। बिन्यामीन के गोत्र के लोग बहुत डरे हुए थे, क्योंकि वे समझ गए थे कि उनकी पराजय विनाशकारी होगी।
\s5
\v 42 तब बिन्यामीन के गोत्र के लोगों ने इस्राएलियों से बचने के लिए मरुस्थल की ओर भागने का प्रयास किया, परन्तु वे बच नहीं पाए क्योंकि जिन इस्राएली पुरुषों ने उन दो शहरों को जला दिया था, वे उन नगरों में से निकले और उनमें से अनेकों को मार डाला।
\s5
\v 43 उन्होंने बिन्यामीन के गोत्र के कुछ लोगों को घेर लिया, और दूसरों का गिबा के पूर्वी क्षेत्र में पीछा किया।
\v 44 उन्होंने बिन्यामीन के गोत्र के अट्ठारह हजार योद्धाओं को मार डाला।
\s5
\v 45 तब बिन्यामीन के गोत्र के बचे हुए लोग समझ गए कि वे पराजित हो चुके हैं। वे रिम्मोन की चट्टान की ओर भाग गए, परन्तु इस्राएली पुरुषों ने बिन्यामीन के गोत्र के और पाँच हजार पुरुषों को मार डाला जो मार्गों पर पीछे रह गए थे। उन्होंने बाकी गिदोम तक पीछा किया, और उन्होंने और दो हजार पुरुषों को मार डाला।
\p
\v 46 कुल मिलाकर, बिन्यामीन के गोत्र के पच्चीस हजार पुरुष मार डाले गए थे, वे सभी युद्ध के अनुभवी योद्धा थे।
\s5
\v 47 परन्तु बिन्यामीन के गोत्र के छः सौ लोग मरुस्थल में रिम्मोन की चट्टान पर भाग गए। वे चार महीनों तक वहाँ रहे।
\v 48 तब इस्राएली लोग बिन्यामीन के गोत्र के प्रदेश में वापस गए, और हर शहर में लोगों को मार डाला। उन्होंने सभी जानवरों को भी मार डाला, और उन्हें वहाँ जो कुछ भी मिला वह सब नष्ट कर दिया। और उन्होंने उन सब शहरों को जला दिया जिनसे वे आए थे।
\s5
\c 21
\p
\v 1 युद्ध आरंभ होने से पहले मिस्पा में इस्राएली पुरुष इकट्ठे हुए थे, तब उन्होंने गंभीर घोषणा की थी, "हम में से कोई भी कभी भी अपनी पुत्रियों को बिन्यामीन के गोत्र के किसी पुरुष से विवाह करने की अनुमति नहीं देगा!"
\v 2 परन्तु अब इस्राएली बेतेल गए और सूर्य के अस्त हो जाने तक पूरे दिन यहोवा के आगे ज़ोर-ज़ोर से रोते रहे।
\v 3 वे यह कहते रहे, "हे यहोवा, हम इस्राएली लोगों के परमेश्वर, हमारे इस्राएली गोत्रों में से एक अब अस्तित्व में नहीं है! यह हमारे साथ क्यों हुआ?
\p
\s5
\v 4 अगली सुबह भोर में लोगों ने एक वेदी बनाई। तब उन्होंने वेदी पर बलियाँ जलाईं, और परमेश्वर के साथ मेल करने के लिए अन्य बलि भी जलाईं।
\p
\v 5 उन्होंने गंभीर घोषणा की थी कि बिन्यामीन के गोत्र के लोगों से युद्ध करने में सहायता हेतु जो भी मिस्पा की सभा में उनके साथ उपस्थित नहीं होगा वह मार डाला जाएगा अत: उन्होंने आपस में पूछा, "क्या इस्राएल का ऐसा कोई गोत्र था जो यहोवा की उपस्थिति में हमारे साथ सभा करने मिस्पा नहीं आया?"
\p
\s5
\v 6 इस्राएलियों को अपने साथी इस्राएली बिन्यामीनियों के लिए खेद हुआ। उन्होंने कहा, "आज हमारे इस्राएली गोत्रों में से एक इस्राएल से काट दिया गया है।
\v 7 हम यह सुनिश्चित करने के लिए क्या कर सकते हैं कि बिन्यामीन के गोत्र के लोगों को जो मारे नहीं गए हैं पत्नियाँ मिलें? "यहोवा ने हमें गंभीरता से यह घोषणा करते सुना है कि हम अपनी एक भी पुत्री का विवाह बिन्यामीन के गोत्र के पुरुष से नहीं करेंगे।
\s5
\v 8 तब उनमें से एक ने पूछा, "इस्राएल के गोत्रों में से किस ने यहाँ मिस्पा में कोई पुरुष नहीं भेजा?"
\v 9 उन्हें मालूम हुआ कि जब सैनिकों की गिनती हुई थी, तब कोई भी नहीं था जो याबेश गिलाद शहर से आया था।
\p
\v 10 इसलिए सब इस्राएलियों ने याबेश गिलाद में बारह हजार बहुत अच्छे सैनिकों को भेजने का निर्णय लिया कि वे वहाँ स्त्री-पुरुष, महिलाओं और बच्चों को भी मार डालने के लिए भेजने का फैसला किया।
\s5
\v 11 उन्होंने उन लोगों से कहा: "तुम्हे जो करना है वह यह है: याबेश गिलाद में तुम सबको मार डालोगे हर एक विवाहित स्त्री को भी। परन्तु अविवाहित स्त्रियों को मत मारना।"
\v 12 अतः वे सैनिक याबेश गिलाद गए और सभी पुरुषों, विवाहित महिलाओं और बच्चों को मार डाला। लेकिन उन्हें वहाँ चार सौ कुँवारी महिलाएँ मिलीं। इसलिए वे उन्हें नदी के पार गिलाद के क्षेत्र से जो बिन्यामीन के गोत्र का था, कनान के शीलो में उनके शिविर में ले आए।
\p
\s5
\v 13 तब इकट्ठे हुए सभी इस्राएलियों ने रिम्मोन की चट्टान पर छः सौ पुरुषों को एक संदेश भेजा। उन्होंने कहा कि वे उनके साथ शान्ति बनाना चाहते हैं।
\v 14 अतः वे पुरुष रिम्मोन की चट्टान से वापस आए। इस्राएलियों ने उन्हें याबेश गिलाद की जवान महिलाओं को दे दिया। लेकिन वहाँ केवल चार सौ महिलाएँ थीं, वे उन छः सौ पुरुषों के लिए पर्याप्त महिलाएँ नहीं थीं।
\p
\v 15 इस्राएलियों को अभी भी बिन्यामीन के गोत्र के लोगों के लिए खेद था, क्योंकि यहोवा ने अन्य गोत्रों को उनके खिलाफ कर दिया था।
\s5
\v 16 इस्राएली अगुवों ने कहा, "हमने बिन्यामीन के गोत्र की सभी विवाहित महिलाओं को मार डाला है। जो पुरुष अब भी जीवित हैं हम कहाँ से उनकी पत्नियाँ होने के लिए महिलाओं को पा सकते हैं?
\v 17 इन पुरुषों के पास बच्चों को जन्म देने के लिए पत्नियाँ होनी चाहिए, ताकि बिन्यामीन का परिवार जारी रहें। यदि ऐसा नहीं होता है, तो इस्राएल के गोत्रों में से एक, के सभी लोग मर जाएँगे, और गोत्र नष्ट हो जाएगा।
\s5
\v 18 परन्तु हम अपनी बेटियों को इन पुरुषों से शादी करने की इजाजत नहीं दे सकते, क्योंकि हमने ईमानदारी से यह घोषणा की है कि यहोवा उसे शाप देगा जो कोई भी अपनी बेटियों में से एक को बिन्यामीन के गोत्र के किसी भी पुरुष की पत्नी बनने के लिए देता है।"
\v 19 तब उन्हें एक विचार आया। उन्होंने कहा, "हर साल वहाँ शीलो में यहोवा का सम्मान करने का पर्व होता है, जो बेतेल के उत्तर में है और बेतेल से शकेम तक फैली सड़क के पूर्व में है, और यह लाबोना शहर के दक्षिण में है।"
\p
\s5
\v 20 इसलिए इस्राएली अगुवों ने बिन्यामीन के गोत्र के लोगों से कहा, "जब वह पर्व का समय हो, तब शीलो के पास जाओ और दाख की बारियों में छिप जाओ।
\v 21 जवान महिलाओं को नृत्य करने के लिए शहर से बाहर आने के लिए देखना जारी रखें। जब वे बाहर निकलती हैं, तो दौड़ कर दाख के बागों से बाहर निकलो। तुम में से हर एक शीलो की एक जवान महिला को जब्त कर सकता है। तब आप सभी उन महिलाओं के साथ अपने घरों में वापस आ सकते हैं।
\s5
\v 22 यदि उनके पिता या भाई हमारे पास आकर तुम्हारी शिकायत करेंगे तो हम उनसे कहेंगे, 'कृपया बिन्यामीन के गोत्र के पुरुषों के प्रति दया दिखाओं। हमने उनसे युद्ध करते समय एक भी स्त्री को जीवित नहीं छोड़ा था कि उनके लिए पत्नियाँ हों और फिर तुमने भी तो उन्हें विवाह में अपनी पुत्रियाँ उन्हें नहीं दी हैं उन्होंने तो तुम्हारी पुत्रियों को चुराया है इसलिए तुम अपनी शपथ तोड़ने के दोषी नहीं हो कि तुम अपनी पुत्रियों का विवाह उनके पुरुषों से नहीं किया है।'"
\p
\s5
\v 23 इसलिए बिन्यामीन के गोत्र के पुरुषों ने यही किया। वे पर्व के समय शीलो गए। और जब जवान स्त्रियाँ नाच रही थीं, तो हर एक व्यक्ति ने उनमें से एक को पकड़ा और उसे घर ले गया और उससे विवाह किया। तब वे अपनी पत्नियों को उस देश में वापस ले गए जिसे परमेश्वर ने उन्हें दिया था। उन्होंने उनके नगरों का फिर से निर्माण किया जिनको जला दिया गया था, और वे वहाँ रहने लगे।
\p
\v 24 अन्य इस्राएली अपने अपने घर चले गए अर्थात परमेश्वर द्वारा उन्हें दिए गए स्थानों में जो उनके गोत्र और कुल के अनुसार थे।
\p
\s5
\v 25 उस समय, इस्राएली लोगों के पास कोई राजा नहीं था। हर एक अपनी समझ में जो उचित समझता था, वही करता था।