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\id LEV Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h लैव्यव्यवस्था
\toc1 लैव्यव्यवस्था
\toc2 लैव्यव्यवस्था
\toc3 lev
\mt1 लैव्यव्यवस्था
\s5
\c 1
\p
\v 1 मूसा जब पवित्र-तम्बू के द्वार पर खड़ा था तब यहोवा ने उसे भीतर से पुकारा और उससे कहा,
\v 2 इस्राएलियों से कह, जब तुम यहोवा के लिए भेंट लाओ तो बलि-पशु गाय, बैल या भेड़, बकरियों में से हो।
\s5
\v 3 यदि तुम्हारी होम-बलि बैल की हो तो उनमें किसी प्रकार का दोष न हो और वे वेदी पर पूर्ण रूप से जलाई जाए। उसे पवित्र-तम्बू के द्वार पर ले जाना कि वे यहोवा के लिए ग्रहण करने योग्य हो।
\v 4 उस बैल के सिर पर हाथ रखना। इस प्रकार यहोवा उसकी मृत्यु को तुम्हारी मृत्यु के समान ग्रहण करेंगे कि तुम्हारे पापों को क्षमा किया जाए।
\s5
\v 5 तब उस बछड़े की बलि यहोवा के सामने देना। तब हारून के पुत्र जो याजक हैं उसका लहू लेकर पवित्र-तम्बू के द्वार पर बनी वेदी पर चारों ओर छिड़कें।
\v 6 बलि-पशु की खाल उतारी जाए और उस पशु के टुकड़े किए जाएँ। उस बछड़े के भीतरी अंगों और टांगों को धोना।
\s5
\v 7 तब हारून के पुत्र वेदी पर लकड़ियाँ रख कर आग जलाएँ।
\v 8 तब वे उस पशु के टुकड़ों को सिर और चर्बी को जलती हुई लकड़ियों पर रखें।
\v 9 तब याजकों में से एक उसे वेदी पर पूर्ण रूप से जला दे। उसकी सुगंध यहोवा को प्रसन्न करेगी।
\s5
\v 10 यदि तुम भेड़ या बकरी की बलि चढ़ाओ तो वह नर पशु हो जिसमें किसी प्रकार का दोष न हो।
\v 11 उसे यहोवा के सामने - वेदी की उत्तर दिशा में मारना। उसका लहू एक कटोरे में ले लेना। हारून के पुत्र उस लहू को वेदी के चारों ओर छिड़कें।
\s5
\v 12 उस पशु के टुकड़े करना और उसके भीतरी अंगों तथा टांगों को धोना। तब याजक उन टुकड़ों को, सिर को और चर्बी को जलती हुई लकड़ियों पर रखे।
\v 13 तब एक याजक उन सब को वेदी पर पूर्ण रूप से जला दे। उसके जलने की सुगंध यहोवा को प्रसन्न करेगी।
\s5
\v 14 यदि तुम यहोवा को पक्षी चढ़ाओ तो पंडुकों या कबूतरों का चढ़ावा चढ़ाना।
\v 15 याजक उसे वेदी पर ले जाकर उसकी गर्दन मरोड़ कर सिर को धड़ से अलग कर दे और उसका सिर वेदी पर जलाए तथा उसका लहू वेदी पर चारों ओर गिराए।
\s5
\v 16 याजक उसकी अंतड़ियाँ और मल थैली आदि निकाल कर वेदी की पूर्व दिशा में जहाँ राख डालते हैं, वहां फेंक दे।
\v 17 तब वह उस पक्षी के पंख पकड़ कर बीच से उसे फाड़े परन्तु पूरा नहीं और वेदी की आग पर जलाए। उसकी सुगंध से यहोवा प्रसन्न होंगे।
\s5
\c 2
\p
\v 1 यदि तुम यहोवा को आटे की भेंट चढ़ाओ तो मैदा चढ़ाया जाए। उसके ऊपर जैतून का तेल और थोड़ी धूप रखी जाए।
\v 2 उसे याजक को दो और याजक उसका मुट्ठी भर अंश लेकर वेदी पर जलाए। यह यहोवा के सामने हमारी प्रार्थनाओं के पहुँचने का प्रतीक है। उसके उपकारों के लिए धन्यवाद का प्रतीक।
\v 3 उसका शेष भाग जो जलाया नहीं गया हारून और उसके पुत्रों का होगा। यह यहोवा को चढ़ाई गई भेंटों में से याजकों के लिए अलग किया गया अंश है।
\s5
\v 4 यदि तुम यहोवा को तन्दूर में पकाई गई अन्न-बलि चढ़ाते हो तो वह मैदे की हो। अखमीरी रोटी में जैतून का तेल डाल कर रोटियाँ बनाई जाएँ या पापड़ जैसी रोटियाँ बनाकर उन पर तेल लगा कर लाएँ। वह भी अखमीरी आटे से बनी हों।
\v 5 यदि अन्न-बलि तवे पर पकाई गई हो तो वह भी अखमीरी आटे की हो और उसे जैतून के तेल में गूंधा गया हो।
\s5
\v 6 उसे चूर-चूर कर के उस पर जैतून का तेल डालना। यह तुम्हारी अन्न बलि होगी।
\v 7 यदि उसे कढ़ाही में पकाया गया हो तो वह जैतून के तेल में गूंधा गया मैदा हो।
\s5
\v 8 यहोवा के लिए लाई गई अन्न बलि याजक को दी जाए और वह उसे वेदी पर चढ़ाए।
\v 9 वह उसका एक अंश प्रतीक स्वरूप लेकर वेदी पर जलाए। उसकी सुगंध से यहोवा प्रसन्न होंगे।
\v 10 उस भेंट का शेष भाग जो जलाया नहीं गया हारून और उसके पुत्रों का होगा। यह यहोवा के लिए अलग किया गया अंश ठहरेगा।
\s5
\v 11 अन्न के आटे की बलि जो यहोवा के लिए चढ़ाओ वह सब खमीर रहित हो। याजक जिन बलियों को वेदी पर चढ़ाए उसमें न तो खमीर हो और न ही शहद हो।
\v 12 तुम यहोवा के लिए अपनी फसल का आरंभिक भाग भेंट करोगे परन्तु वह यहोवा के लिए सुखदायक सुगंध के लिए जलाया नहीं जाए।
\v 13 अपनी सब अन्न-बलियों पर नमक अवश्य डालना। नमक तुम्हारे साथ बाँधी गई यहोवा की वाचा का प्रतीक है। इसलिए अन्न-बलियों पर नमक डालना कभी मत भूलना।
\s5
\v 14 यदि अपनी फसल के आरंभिक भाग से भेंट चढ़ाओ तो गेहूँ की बालों को आग में सेंक कर दाने साफ कर लेना।
\v 15 उस पर जैतून का तेल और धूप रखना। यह तुम्हारी अन्न-बलि होगी।
\v 16 याजक उसका एक अंश लेगा जो संपूर्ण भेंट का प्रतीक होगा कि वह यहोवा के लिए है। याजक उस अंश को वेदी पर जलाएगा। यह यहोवा के लिए हवन होगा।
\s5
\c 3
\p
\v 1 जब तुम यहोवा के लिए मेल की बलि चढ़ाओ तब अपने पशुओं में से एक बैल या गाय ले आना परन्तु वह निर्दोष हो।
\v 2 उस पशु को पवित्र-तम्बू के द्वार पर लाना और उसके सिर पर अपने हाथ रखना। तब उसकी बलि दे कर के उसका लहू एक पात्र में लेकर हारून का कोई पुत्र, याजकों में से एक, उस लहू को वेदी के चारों ओर छिड़क दे।
\s5
\v 3 उस भेंट में से एक भाग याजक को दिया जाए कि वह उसे आग में जला दे। यह भाग होगा पशु के भीतर की सब चर्बी और भीतरी अंगों पर लगी चर्बी।
\v 4 गुर्दे और ऊपर चढ़ी हुई चर्बी तथा कलेजी की चर्बी।
\v 5 याजक इन सब को पशु के अन्य अंगों के साथ वेदी पर पूर्ण रूप से जला दे। यह यहोवा के लिए सुखदायक हवन होगा।
\s5
\v 6 यदि यहोवा के साथ मेल की बलि भेड़ या बकरी हो तो वह भी निर्दोष हो।
\v 7 यदि तुम मेम्ना बलि करो तो उसे पवित्र-तम्बू के द्वार पर यहोवा को चढ़ाओ और उस मेम्ने के सिर पर हाथों को रख कर उसकी बलि देना। उसका लहू एक पात्र में लो।
\v 8 तब याजक उस लहू को लेकर वेदी पर चारों ओर छिड़के।
\s5
\v 9 उस बलि के इन अंगों को यहोवा के लिए बलि करनाः उसकी चर्बी, उसकी पूंछ को रीढ़ की हड्डी के पास से काट लेना और उसके शरीर के भीतर की सब चर्बी-
\v 10 नीचे के भाग में चर्बी वाले गुर्दे और कलेजी की झिल्ली।
\v 11 याजक इन सब को यहोवा के लिए वेदी पर चढ़ाए। यह सब तुम्हारे भोज्य पदार्थों में से हों।
\s5
\v 12 यदि तुम बकरा बलि करो तो उसे यहोवा के पास लाओ।
\v 13 उसके सिर पर अपने हाथ रखो और पवित्र-तम्बू के सामने बलि देना। हारून का एक पुत्र उसका लहू लेकर वेदी के चारों ओर छिड़के।
\v 14 उस बलि-पशु के इन अंगों को यहोवा के लिए होम करने के लिए अलग कर लेनाः पशु के भीतर की सारी चर्बी और अंगों पर चढ़ी हुई चर्बी।
\s5
\v 15 कमर से चर्बी चढ़े हुए गुर्दे और कलेजी की चर्बी।
\v 16 याजक इन सब को यहोवा के लिए वेदी पर जलाए। यह सब भोजन सामग्री का भाग हो जो यहोवा के लिए अच्छी सुगंध ठहरे। बलि-पशु की सारी चर्बी यहोवा की है।
\v 17 यह आज्ञा तुम्हारे और तुम्हारी संतानों के लिए सदा पालन करने के लिए है। तुम न तो चर्बी खाओगे और न ही लहू।
\s5
\c 4
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 इस्राएलियों से कहा, "यदि कोई अनजाने में पाप करे अर्थात यहोवा की किसी आज्ञा का उल्लंघन उससे हो जाए तो वह यह करे।
\v 3 यदि प्रधान याजक पाप करता है जिसके कारण संपूर्ण समुदाय दोषी हो जाए तो वह एक निर्दोष बछड़ा पाप बलि करके यहोवा को चढ़ाए। यह यहोवा की आज्ञा के अनुसार पाप बलि है।
\s5
\v 4 वह उस बछड़े को पवित्र-तम्बू के द्वार पर लाए और उसके सिर पर अपने हाथ रख कर यहोवा के सामने उसकी बलि दे। उसका लहू एक पात्र में लिया जाए।
\v 5 याजक वह लहू लेकर पवित्र-तम्बू में जाए।
\s5
\v 6 और उस लहू में अपनी एक अंगुली डुबाकर यहोवा की उपस्थिति में पवित्र स्थान और परम पवित्र स्थान को विभाजित करने वाले परदे के सामने सात बार छिड़के।
\v 7 फिर कुछ लहू धूप की वेदी के सींगों पर जो पवित्र स्थान में है, लगाए। यह यहोवा की उपस्थिति में है। शेष लहू को वह पवित्र-तम्बू के द्वार पर जहाँ बलि जलाई जाती है, वहाँ नीचे डाल दे।
\s5
\v 8 उस बलि-पशु के इन सब अंगों को प्रधान याजक वेदी पर जलाने के लिए अलग कर ले। पशु के भीतर की सब चर्बी-
\v 9 उसकी कमर की और गुर्दों की चर्बी और कलेजी की चर्बी।
\v 10 प्रधान याजक यह सब वेदी पर पूर्ण रूप से जला दे। यह सब वैसा ही हो जैसा यहोवा के साथ मेल बलि के लिए चर्बी अलग करने में था।
\s5
\v 11 बलि-पशु की खाल, सिर और टांगें, उसके भीतरी अंग और अंतड़ियाँ,
\v 12 लेकर वह शिविर के बाहर यहोवा द्वारा ग्रहण किए गए स्थान में जहाँ राख डाली जाती है, वहाँ राख के ढेर पर उन्हें जला दे।
\s5
\v 13-14 यदि इस्राएलियों से अनजाने में पाप हो जाए अर्थात यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन हो जाए और उन्हें उसका बोध हो जाए तो अपने पाप के लिए वे सब मिल कर पवित्र-तम्बू के सामने एक बछड़ा बलि करें और उसका लहू एक पात्र में लें।
\v 15 समुदाय के सब प्रधान उस बछड़े के सिर पर अपने हाथ रखें और यहोवा के सामने उसकी बलि दें तथा लहू एक पात्र में एकत्र कर लें।
\s5
\v 16 तब प्रधान याजक उस लहू को लेकर पवित्र-तम्बू में जाए।
\v 17 और उस परदे के सामने जो परम पवित्र स्थान को पवित्र स्थान से अलग करता है, यहोवा की उपस्थिति में वह अपनी एक उंगली से उस लहू को सात बार छिड़के।
\s5
\v 18 इसके बाद पवित्र-तम्बू की वेदी के सींगों पर जो यहोवा के सामने है, उस लहू को लगाए। शेष लहू को याजक पवित्र-तम्बू के द्वार पर की वेदी, जहाँ होम किया जाता है, उसके आधार पर डाल दे।
\v 19 बलि-पशु की सारी चर्बी निकाल कर याजक वेदी पर जलाए।
\s5
\v 20 याजक इस बलि के बछड़े के साथ सब कुछ वैसा ही करे जैसा उसने अपने पाप की बलि के बछड़े से क्षमादान के लिए किया था।
\v 21 इसके बाद याजक बलि-पशु के बचे हुए अंगों को वैसे ही छावनी के बाहर जला दे जैसे उसने अपनी पाप-बलि के साथ किया था। यह संपूर्ण समुदाय के पाप की बलि होगी और उनके पाप क्षमा किए जाएँगे।
\s5
\v 22 यदि किसी प्रधान से अनजाने में पाप हो जाए अर्थात उससे यहोवा की आज्ञाओं का उल्लंघन हो गया हो तो वह दोषी ठहरेगा।
\v 23 जब उसे यह बोध हो कि उससे पाप हो गया है तो वह एक निर्दोष बकरा ले कर आए।
\s5
\v 24 वह यहोवा की उपस्थिति में उसके सिर पर अपने हाथ रखे और होम-बलि के पशुओं की बलि देने के स्थान में उसकी बलि दे। यह उसके पाप की बलि होगी।
\v 25 याजक उस बलि-पशु का लहू एक पात्र में ले और उसमें उंगली डुबा कर वेदी के चारों सींगों पर लगाए और शेष लहू वेदी के आधार पर डाल दे।
\s5
\v 26 इसके बाद वह बलि-पशु की सारी चर्बी यहोवा के साथ मेल-बलि के जैसे चर्बी को वेदी पर जला दे। इस प्रकार वह प्रधान दोष मुक्त हो जाएगा और उसके पाप क्षमा किए जाएँगे।
\s5
\v 27 याजक की अपेक्षा यदि किसी इस्राएली से अनजाने में पाप हो जाए अर्थात उसके परमेश्वर यहोवा की किसी आज्ञा का वह अनजाने में उल्लंघन करे तो भी वह दोषी होगा।
\v 28 जब उसे अपने पाप का बोध हो तो वह एक निर्दोष बकरी लाए।
\s5
\v 29 वह बकरी के सिर पर अपने हाथ रखे और उसे उस स्थान में बलि दे जहाँ होम-बलि के पशु बलि किए जाते हैं। उसका लहू एक पात्र में एकत्र किया जाए।
\v 30 याजक उस लहू में अपनी उंगली डुबा कर वेदी के चारों सींगों पर लगाए। शेष लहू वह वेदी के आधार पर डाल दे।
\s5
\v 31 इसके बाद याजक उसकी सारी चर्बी वैसे ही वेदी पर जला दे जैसे मेल-बलि के पशु के चर्बी जलाई गई थी। उसकी सुगंध यहोवा को प्रसन्न करेगी। याजक के इस काम से उसका दोष दूर होगा और उसे पाप क्षमा प्राप्त होगी।
\s5
\v 32 यदि वह मेम्ने की बलि चढ़ाए तो वह भेड़ का निर्दोष बच्चा लेकर आए
\v 33 और उसके सिर पर अपने हाथ रख कर होम-बलि के पशुओं के बलि के स्थान पर उसकी बलि दे और एक पात्र में उसका लहू एकत्र करे।
\s5
\v 34 याजक उस लहू में अपनी उंगली डुबा कर वेदी के चारों सींगों पर लगाए और शेष लहू को वेदी के आधार पर डाल दे।
\v 35 इसके बाद वह मेल बलि के पशु के जैसे उसकी सारी चर्बी लेकर वेदी पर जलाए। चर्बी को वह उन सब वस्तुओं के ऊपर जलाए जो यहोवा के लिए जलाई जा रही हैं। इस प्रकार याजक उसके पापों की क्षमा के लिए यहोवा से विनती करेगा और उसे क्षमा प्राप्त होगी।
\s5
\c 5
\p
\v 1 यदि न्यायी किसी से पूछे कि उसने क्या देखा या क्या सुना और वह सत्य का वर्णन न करे तो उसे सत्य का इन्कार करने के लिए दंड भोगना होगा।
\v 2 यदि कोई अनजाने में यहोवा द्वारा अशुद्ध ठहराई हुई वस्तु का स्पर्श करे जैसे मरा हुआ वन पशु या अपने ही पालतू पशु की मृतक देह या रेंगने वाले जन्तु की मृतक देह, तो उसे उसका दंड भोगना होगा।
\s5
\v 3 यदि कोई मनुष्य को अशुद्ध करने वाली किसी भी वस्तु को अनजाने में स्पर्श कर ले और उसे उसका बोध हो जाए तो वह उसका दंड भोगे।
\v 4 यदि कोई भली या बुरी बात की शपथ खाए और उसे पूरा न कर पाए तो उसे उसका दंड भोगना होगा।
\s5
\v 5 यदि तुम में से कोई ऐसे किसी भी पाप का दोषी हो तो वह अपने पाप को स्वीकार करे।
\v 6 और उसका दंड होगा कि वह अपने पाप के लिए यहोवा के सामने एक भेड़ या बकरी लाए। याजक उसे बलि चढ़ाएगा तब वह दोषमुक्त हो जाएगा।
\s5
\v 7 यदि कोई गरीब हो कि भेड़ न ला पाए तो वह यहोवा के सामने दो पंडुक या कबूतर लाए। उनमें से एक पाप बलि और एक होम-बलि हो कि वेदी पर पूर्ण रूप से जलाई जाए।
\v 8 वह उनको याजक के पास ले आए। याजक पहले एक पाप बलि करे। वह उसका गला घोंट कर उसे मारे परन्तु उसका सिर धड़ से अलग न करे।
\v 9 उसका कुछ लहू याजक वेदी पर चारों ओर छिड़के और शेष लहू याजक वेदी के आधार पर डाल दे। यह उसकी पाप बलि होगी।
\s5
\v 10 तब याजक मेरी आज्ञा के अनुसार करे और दूसरे पक्षी को पूर्ण रूप से वेदी पर जलाए। तब वह अपने पाप का दोषी नहीं होगा। यहोवा उसे क्षमा कर देगा।
\s5
\v 11 तथापि, यदि कोई इतना गरीब हो कि पंडुक और कबूतर भी न ला पाए तो वह दो किलोग्राम मैदा ले आए परन्तु उस पर न तो जैतून का तेल डाले, न ही धूप रखे क्योंकि वह पाप-बलि है।
\s5
\v 12 उसे वह याजक को दे। याजक उसमें से मुट्ठी भर लेकर जो संपूर्ण का प्रतीक है, अन्य सब भेंटों के साथ वेदी पर जलाए।
\v 13 ऐसा करके याजक उसे अपने पापों के दोष से मुक्ति दिलाएगा और परमेश्वर उसे क्षमा करेगा। उस भेंट का शेष भाग जो जलाया नहीं गया, वह याजक का होगा जैसे अन्न-बलि का शेष भाग उसका हुआ था।
\s5
\v 14 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा कि इस्राएलियों से कह,
\v 15 "यदि कोई अनजाने में ऐसा पाप करे कि यहोवा की ओर से अनिवार्य वस्तु चढ़ाने में चूक जाए तो एक निर्दोष मेढ़ा लाकर पवित्र-तम्बू के स्वीकृत नाप के अनुसार उसका मूल्य चाँदी में ज्ञात करे। यह उसे दोष मुक्त करने की भेंट होगी।
\v 16 इसके साथ यहोवा के लिए अलग की गई वस्तु की क्षतिपूर्ति का भुगतान किया जाए और उसके अतिरिक्त उसके मूल्य का पाँचवा भाग भी दिया जाए। यह याजक को दिया जाए। वह मेढ़े को पाप-बलि करेगा और उसे दोषमुक्त करेगा और मैं उसे क्षमा करूँगा।
\s5
\v 17 यदि कोई आज्ञाओं में वर्जित काम करके पाप करे चाहे वह अनजाने में हुआ हो फिर भी वह दोषी है। इसका दंड उसे भरना होगा।
\v 18 जब उसे अपने अनाचार का बोध हो तब वह निर्दोष होने के लिए याजक के पास एक मेढ़ा लाए। वह मेढ़ा निर्दोष हो। याजक मुझे वह मेढ़ा बलि चढ़ाएगा। इस प्रकार वह दोष मुक्त होगा और मैं उसे क्षमा करूँगा।
\v 19 यह मेरे विरूद्ध पाप के दोष से मुक्त होने की बलि है।
\s5
\c 6
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 2 “यदि तुम किसी को धोखा देकर मेरे विरूद्ध पाप करो उदाहरणार्थ, किसी से उधार ली हुई वस्तु न लौटाओ या किसी की वस्तु चुरा लो,
\v 3 या किसी की खोई हुई वस्तु तुम पाओ और शपथ खाओ कि तुम्हारे पास वह वस्तु नहीं है तो तुम दोषी ठहरो।
\v 4 तुम्हें चुराई हुई वस्तु उसके स्वामी को लौटानी होगी या उधार ली हुई वस्तु जो तुमने रख ली उसे लौटाना होगा या किसी की खोई हुई वस्तु जो तुमने पाई है या जिसके बारे में तुमने झूठ बोला है
\s5
\v 5 तुम्हें वह वस्तु उसके स्वामी को लौटाना मात्र ही नहीं, उसके मूल्य का पाँचवा भाग भी उसे अतिरिक्त देना होगा।
\v 6 तुम्हें याजक के पास एक मेढ़ा मेरे लिए बलि करने को लाना होगा कि तुम उसके दोषी न बने रहो। वह मेढ़ा निर्दोष हो और स्वीकृत रूप से निर्धारित मूल्य का हो।
\v 7 तब याजक उसे तुम्हारे लिए दोष बलि करके चढ़ाएगा और मैं तुम्हारे उस कुकर्म के लिए क्षमा प्रदान करूँगा।”
\s5
\v 8 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 9 “हारून और उसके पुत्रों से कह, ‘वेदी पर होम-बलि चढ़ाने की विधि यह हैः होम-बलि पूरी रात वेदी पर पड़ी रहे और वेदी की आग सदा जलती रहे।
\s5
\v 10 अगले दिन सुबह याजक अपने मलमल के भीतरी वस्त्र पहने और पोशाक धारण करे। तब आग में से बलि की राख निकाले और वेदी के एक ओर रख दे।
\v 11 इसके बाद वह वस्त्र बदल कर उस राख को छावनी के बाहर उस स्थान में ले जाए जिसे मैं ने स्वीकृति दी है।
\s5
\v 12 वेदी की आग सदैव जलती रहे। याजक उस आग को बुझने न दे। प्रतिदिन याजक उस पर और अधिक लकड़ियाँ डाल दे। तब उस आग पर होम-बलि रखे और यहोवा के लिए मेल-बलि की चर्बी चढ़ाए।
\v 13 वेदी की आग कभी न बुझने पाए। याजक उसे बुझने न दे।
\s5
\v 14 अब अन्न-बलि के विषय निर्देशन ये हैं- मैदा चढ़ाने की विधि। हारून के पुत्र उसे वेदी के सामने यहोवा के लिए लाएँ।
\v 15 याजक मुट्ठी भर कर मैदा ले जिसमें जैतून का तेल और धूप मिली हो और उसे वेदी पर जलाए। इस मुट्ठी भर मैदे का अर्थ है कि वह संपूर्ण अन्न-बलि मेरी ही है और उसके जलने से उत्पन्न सुगंध से मैं प्रसन्न हो जाऊँगा।
\s5
\v 16 हारून और उसके पुत्र उस अन्न-बलि का शेष भाग खा सकते हैं। परन्तु वे उस स्थान में ही खाएँ जो यहोवा के लिए अलग किया गया है, अर्थात् पवित्र-तम्बू के आँगन में।
\v 17 उसमें खमीर न हो। पाप-बलि और दोष-बलि के समान यह बलि मेरे लिए अलग से परम पवित्र ठहरे।
\v 18 हारून के वंशजों के पुत्रों को उसे खाने की अनुमति है क्योंकि मुझे चढ़ाई गई भेंटों में जो वेदी पर जलाई जाती है वह उनका सदा का भाग है। उनका स्पर्श करने वाला परमेश्वर के सम्मान के निमित्त अलग हो जाएगा।
\s5
\v 19 यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 20 “हारून और उसके पुत्रों से कह कि जिस दिन उनमें से किसी एक का अभिषेक किया जाए उस दिन वह मेरे सम्मुख यह भेंट ले आएँ: वह व्यक्ति दो किलो मैदा भेंट चढ़ाए। सुबह वह उसका आधा भाग और संध्या समय आधा भाग ले आए।
\s5
\v 21 उसे वह जैतून के तेल में गूंध कर तवे पर पकाए और उसे वेदी पर जलाने के लिए चूर-चूर कर दे। उसके जलने की सुगंध से मैं प्रसन्न हो जाऊँगा।
\v 22 यह मेरी आज्ञा है कि हारून के मरने के बाद जो प्रधान याजक बनेगा वह इसे तैयार करेगा और मुझे बलि चढ़ाने के लिए उसे वेदी पर पूर्ण रूप से जलाएगा कि मेरे लिए बलि ठहरे।
\v 23 याजक हर एक अन्न-बलि चढ़ाए, वह पूर्ण रूप से जलाई जाए। उसे कोई नहीं खाए।”
\s5
\v 24 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा कि वह
\v 25 हारून और उसके पुत्रों से कहे, “लोगों के पापों की बलि की विधि यह है, याजक बलि-पशु को उस स्थान बलि दे जहाँ बलि जलाई जाती है। वह यहोवा के सामने बलि दी जाती है और बलि यहोवा के लिए चढ़ाई जाती है।
\v 26 जो याजक पाप-बलि चढ़ाता है वह यहोवा के लिए चढ़ाई गई बलि को खा सकता है। वह उसे आँगन में उसी स्थान में खाएगा जो बलि का माँस खाने के लिए अलग किया गया है।
\s5
\v 27 यदि कोई अन्य व्यक्ति उस माँस का स्पर्श करे तो वह अपने वस्त्र पवित्र स्थान में धोए।
\v 28 यदि वह माँस मिट्टी के बर्तन में पकाया जाए तो वह बर्तन बाद में तोड़ दिया जाए। यदि वह माँस पीतल के बर्तन में पकाया जाए तो उस बर्तन को बाद में माँज कर धोया जाए और फिर पानी से धोया जाए।
\s5
\v 29 याजक के परिवार में से पुरुष उस माँस को खा सकते हैं। वह माँस पवित्र है।
\v 30 परन्तु यदि उन बलियों का लहू उनके पापों की क्षमा के लिए पवित्र-तम्बू में लाया जाए तो उस बलि-पशु का माँस खाया न जाए। याजक उसका माँस पूर्ण रूप से भस्म कर दे।
\s5
\c 7
\p
\v 1 यहोवा को जो देना है उससे चूक जाने पर दोष-बलि चढ़ाने की विधि यह है। वे परमपवित्र वस्तुएँ हैं।
\v 2 दोष-बलि के लिए जो पशु लाया जाए उसे याजक उस स्थान पर बलि दे जहाँ होम-बलि के पशु बलि किए जाते हैं। याजक उस बलि-पशु का लहू वेदी के चारों ओर छिड़के।
\v 3 उस बलि-पशु की सारी चर्बी- उसकी चर्बी वाली पूंछ रीढ़ की हड्डी के निकट से काट कर, भीतरी अंगों की सब चर्बी जो उन पर चढ़ी रहती है, वेदी पर जलाई जाए।
\v 4 गुर्दे और उन पर की चर्बी, कलेजी की चर्बी, याजक इन चर्बी वाले अंगों को अलग करे।
\s5
\v 5 याजक इन सब को मुझ यहोवा के निमित्त जलाए कि वह इस्राएलियों के अनिवार्य अनुष्ठानों की चूक के लिए मुझसे क्षमा प्राप्त के लिए हो।
\v 6 याजक के परिवार के सब पुरुषों को इस पशु बलि के माँस को खाने की अनुमति है परन्तु वह मेरे निमित्त अलग किए गए स्थान में ही खाया जाए। वह मेरे लिए अति पवित्र है।
\s5
\v 7 मेरे सम्मुख दोबारा ग्रहण योग्य होने के लिए जो बलि (पापबलि) चढ़ाई जाए उसकी और मुझे अनिवार्य भेंट चढ़ाने में चूकने पर जो बलि चढ़ाई जाए (दोष-बलि) की विधि, दोनों एक ही हैं और जो याजक इन बलियों को चढ़ाए वही उनका माँस ले ले।
\v 8 जो याजक होम-बलि के पशु की बलि दे तो होम-बलि के पशु की खाल उसी याजक की होगी।
\s5
\v 9 अन्न-बलि चाहे तन्दूर में पकाई गई हो या तवे पर या कढ़ाई में, वह बलि चढ़ाने वाले याजक की होगी।
\v 10 मैदे की अन्न-बलि चाहे जैतून के तेल में हो या तेल रहित, हारून के वंशजों की ही होगी।
\s5
\v 11 यहोवा के साथ मेल की बलि की विधि यही है।
\v 12 यदि कोई यहोवा के लिए धन्यवाद की बलि चढ़ाने के लिए जो पशु की बलि दी जाए उसके साथ मैदे को जैतून के तेल में गूंध कर रोटी पकाई जाए और मैदे के पापड़ तेल से सने हों परन्तु वे भी खमीर रहित हों।
\s5
\v 13 यहोवा के लिए धन्यवाद की बलि के साथ खमीरी रोटियाँ भी लाई जाएँ।
\v 14 यहोवा के लिए इस प्रकार की एक-एक रोटी चढ़ाई जाए और ये रोटियाँ उसी याजक की हों जो यहोवा के साथ मेल की बलि के पशु का लहू वेदी पर छिड़कता है।
\s5
\v 15 मेल बलि का माँस उसी दिन खाया जाए जिस दिन वह पशु बलि किया जाता है। उस का थोड़ा सा अंश भी अगले दिन तक के लिए न छोड़ा जाए।
\v 16 तथापि, यदि बलि यहोवा के लिए मानी गई मन्नत की हो जो स्वेच्छा वाली है तो उसका माँस उसी दिन खाया जाए और शेष माँस अगले दिन खाया जा सकता है।
\s5
\v 17 परन्तु यदि दूसरे दिन भी माँस बचता है तो उसे पूर्ण रूप से जला दिया जाए। वह तीसरे दिन के लिए नहीं रखा जाए।
\v 18 यदि मेल-बलि का माँस बचा कर तीसरे दिन खाया गया तो वह बलि निरर्थक ठहरेगी क्योंकि यहोवा उसे ग्रहण नहीं करेंगे। और जो उसे तीसरे दिन खाएगा उसे यहोवा के लिए दंड भरना होगा।
\s5
\v 19 यदि माँस यहोवा की दृष्टि में अशुद्ध वस्तु के स्पर्श में आ जाए तो वह कदापि खाया न जाए। उसे पूर्ण रूप से भस्म कर दिया जाए। जहाँ तक परमेश्वर की दृष्टि में ग्रहण करने योग्य बलि का माँस है, वह अनुष्ठान के करनेवाले के द्वारा खाया जा सकता है।
\v 20 परन्तु मेल-बलि का माँस अन्य कोई, जिसने वह अनुष्ठान नहीं किया, खाए वह परमेश्वर की प्रजा का सदस्य न रहने दिया जाए क्योंकि वह माँस यहोवा के लिए था।
\s5
\v 21 यदि कोई परमेश्वर की दृष्टि में अशुद्ध एवं घृणित वस्तु का स्पर्श करे चाहे वह मानवीय हो या पाशविक, और यहोवा के साथ मेल की बलि का माँस खा ले तो उसे परमेश्वर की प्रजा की सहभागिता से अलग कर दिया जाए।
\s5
\v 22 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 23 “इस्राएलियों से कह, ‘गाय-बैल, भेड़-बकरी की चर्बी कभी नहीं खाना।
\v 24 यदि कोई पशु मर जाए या वन पशु द्वारा मार डाला जाए तो उसकी चर्बी अन्य किसी भी काम में ली जा सकती है परन्तु खाने के लिए नहीं।
\s5
\v 25 यदि कोई यहोवा के लिए चढ़ाई गई बलि की चर्बी खाए तो वह यहोवा की प्रजा से अलग कर दिया जाए।
\v 26 वे जहाँ भी रहें, न तो किसी पशु का और न ही किसी पक्षी का लहू खाने के माँस में न रहने दें।
\v 27 यदि कोई लहू खाए तो वह समाज से निकाल दिया जाए।'”
\s5
\v 28 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 29 “इस्राएलियों से कह, ‘यहोवा के साथ मेल करने के लिए जब मेल-बलि चढ़ाई जाए तब उसका एक अंश यहोवा के लिए होम-बलि किया जाए।
\v 30 वह स्वयं उसे ले आए कि वह आग में भस्म किया जाए। पशु के सीने के साथ चर्बी यहोवा के सामने उठाई जाए कि वह यहोवा के लिए भेंट हो।
\s5
\v 31 याजक चर्बी को तो आग में जला दे परन्तु सीने का माँस हारून और उसके वंशजों का हो।
\v 32 यहोवा के लिए मेल-बलि में से बलिपशु का दाहिना पुट्ठा याजक का हो।
\s5
\v 33 हारून का पुत्र जो बलि का लहू और चर्बी चढ़ाए उसी के लिए बलि-पशु का दाहिना पुट्ठा हो।
\v 34 इस्राएली यहोवा के लिए जो मेल बलि चढ़ाते हैं उसके लिए यहोवा ने कह दिया है कि वह हारून और उसके वंशजों को दी जाए- सीना जिसे हिलाया जाए और दाहिना पुट्ठा जिसे उठाने की भेंट की जाए।
\s5
\v 35 जिस दिन मूसा तू हारून और उसके पुत्रों को यहोवा के निमित्त याजकीय सेवा के लिए अभिषेक करके अलग कर देगा उस दिन से यहोवा के सामने लाई गई होम-बलियों का यह अंश उनके लिए सदाकालीन होगा।
\v 36 यहोवा की आज्ञा है कि उनका अभिषेक होते ही इस्राएली यह भाग उन्हें सदैव दिया करें वरन् उनके वंशजों को भी दिया जाए।'”
\s5
\v 37 इस प्रकार होम-बलियों के लिए ये निर्देश हैं- होम-बलि, अन्न-बलि, पापबलि, दोष-बलि, मेल-बलि और याजकों के अभिषेक की बलि आदि सब के।
\v 38 यहोवा ने मूसा को ये सब निर्देश सीनै पर्वत पर दिए थे कि जंगल में रहते समय वे यहोवा के लिए क्या-क्या चढ़ाएँ और कैसे-कैसे चढ़ाएँ।
\s5
\c 8
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 2 “तू हारून और उसके पुत्रों को, उनके याजकीय वस्त्रों को, अभिषेक के तेल को, परमेश्वर द्वारा ग्रहण किए जाने की बलि के बछड़े को और दो मेढ़े तथा अखमीरी रोटी की टोकरी आदि सब लेकर आ।
\v 3 सब इस्राएलियों को भी पवित्र-तम्बू के द्वार पर एकत्र कर।”
\s5
\v 4 मूसा ने वही किया जो यहोवा ने कहा था और सब इस्राएली वहाँ एकत्र हो गए।
\v 5 तब मूसा ने इस्राएलियों से कहा, “यहोवा ने हमें जो आज्ञा दी है, वह यह है।”
\s5
\v 6 तब उसने हारून और उसके पुत्रों को आगे लाकर स्नान करवाया।
\v 7 और हारून को याजक के वस्त्र पहनाकर उस पर कमरबंध बांधा तथा बागा पहनाया। इसके बाद एपोद पहनाकर काढ़े हुए पट्टे से एपोद को कस दिया और
\s5
\v 8 सीनाबन्द धारण करवा कर उसमें वह दोनों पत्थर, ऊरीम और तुम्मीम भी रख दें जिनसे वह परमेश्वर की इच्छा जान पाएगा।
\v 9 उसने हारून के सिर पर पगड़ी भी रखी और पगड़ी पर सोने की वह चिट भी लगा दी जिस पर लिखा था कि वह यहोवा को समर्पित है। यह सब यहोवा की आज्ञा के अनुसार था।
\s5
\v 10 तब मूसा ने अभिषेक का तेल लेकर पवित्र-तम्बू और उसकी हर एक वस्तु का यहोवा के निमित्त अभिषेक किया।
\v 11 उसने वेदी पर सात बार तेल छिड़का। वेदी के साथ उसकी सब उपयोगी वस्तुओं का तथा पानी की हौदी और उसके आधार का भी यहोवा के लिए अभिषेक किया।
\s5
\v 12 मूसा ने हारून के सिर पर तेल उंडेल कर उसका अभिषेक किया कि यहोवा के लिए समर्पित हो जाए।
\v 13 इसके बाद वह हारून के पुत्रों को सामने लाया और उन्हें अंगरखे पहनाए और कटिबंध बांधे तथा टोपियाँ पहनाईं। सब कुछ वैसे ही किया जैसे यहोवा ने आज्ञा दी थी।
\s5
\v 14 तब मूसा परमेश्वर के सामने ग्रहण करने योग्य पाप-बलि के बछड़े को लाया और हारून तथा उसके पुत्रों ने उसके सिर पर अपने हाथ रखे।
\v 15 मूसा ने उस बछड़े की बलि देकर उसका लहू एक पात्र में लिया और अपनी उंगली से उस लहू को वेदी के चारों सींगों पर लगाया कि वेदी शुद्ध हो जाए। उसने शेष लहू वेदी के आधार पर उंडेल दिया। इस प्रकार मूसा ने वेदी को पाप की होम-बलि के योग्य बनाया।
\s5
\v 16 तब मूसा ने उस बछड़े के भीतर की सब चर्बी, कलेजी और गुर्दों को भी लेकर वेदी पर जला दी।
\v 17 इसके बाद मूसा ने उस बछड़े को खाल और अंतड़ियों समेत छावनी के बाहर ले जाकर जला दिया, जैसी आज्ञा यहोवा ने दी थी।
\s5
\v 18 इसके बाद मूसा होम-बलि के लिए एक मेढ़ा लाया जिसके सिर पर हारून और उसके पुत्रों ने हाथ रखे।
\v 19 मूसा ने उस मेढ़े की बलि दे कर उसका लहू वेदी पर चारों ओर छिड़क दिया।
\s5
\v 20 इसके बाद मूसा ने उस मेढ़े के टुकड़े किए और उन्हें भीतरी अंगों के साथ धोया। उसकी टांगें भी धोईं और सिर और चर्बी तथा उन टुकड़ों को भी वेदी पर जलाया।
\v 21 जब वह जला तब उसका धूआं यहोवा के लिए सुखदायक सुगंध हुआ। यह बलि यहोवा की आज्ञा के अनुसार जलाई गई थी।
\s5
\v 22 फिर मूसा याजकों को समर्पित करने का मेढ़ा लाया और हारून और उसके पुत्रों ने उसके सिर पर हाथ रखे।
\v 23 उसे बलि दे कर मूसा ने उसका लहू पात्र में लेकर हारून के दाहिने कान पर, दाहिने हाथ और दाहिने पाँव के अंगूठों पर लगाया।
\v 24 ऐसा ही मूसा ने हारून के पुत्रों के दाहिने कानों, दाहिने हाथों के अंगूठों और दाहिने पाँवों अंगूठों पर लगाया कि उनका सुनना, उनका करना और उनका आना-जाना यहोवा के मार्गदर्शन के निमित्त समर्पित हो।
\s5
\v 25 मेढ़े की सारी चर्बी, उसकी चर्बीयुक्त पूंछ, भीतरी अंगों की चर्बी- कलेजी और गुर्दों की चर्बी और मेढ़े का पुट्ठा
\v 26 और अखमीरी रोटियों की जो टोकरी जो यहोवा के सम्मुख रखी गई थी, उसमें से तेलरहित एक रोटी, तथा तेल में गूंधे हुए आटे की एक रोटी और एक पापड़ लेकर
\v 27 हारून और उसके पुत्रों के हाथों में चर्बी के साथ रख दीं और उन्होंने उसे यहोवा के सामने हिलाया कि वह यहोवा के लिए भेंट ठहरें।
\s5
\v 28 तब मूसा ने उसे उनके हाथों से लेकर वेदी पर जला दिया। यह हारून और उसके पुत्रों को याजक नियुक्त करने की भेंट थी। जब वह जली तब उसकी सुगंध से यहोवा प्रसन्न हुए।
\v 29 इस दूसरे मेढ़े का सीना लेकर मूसा ने यहोवा के सामने उठाया कि उसे भेंट चढ़ाए। याजक के समर्पण के मेढ़े का यह सीना मूसा का हुआ। यह मूसा को दी गई यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही किया गया।
\s5
\v 30 तदोपरान्त मूसा ने अभिषेक का तेल और वेदी पर से लहू लेकर हारून और उसके वस्त्रों तथा उसके पुत्रों और उनके वस्त्रों पर छिड़के। इस प्रकार मूसा ने हारून को और उसके पुत्रों को भी याजक होने के लिए अलग किया। और उनके वस्त्रों को भी अलग किया।
\s5
\v 31 तब मूसा ने हारून और उसके पुत्रों से कहा, “इस दूसरे मेढ़े के माँस को पवित्र-तम्बू के द्वार पर पका कर टोकरी में रखी रोटियों के साथ वहीं खाना।
\v 32 यदि रोटी और माँस बच जाए तो उसे भस्म कर देना।
\v 33 तुम्हारे याजक होने के लिए अलग होने का समय सात दिन का होगा इसलिए पवित्र-तम्बू के द्वार से सात दिन तक बाहर नहीं निकलना।
\s5
\v 34 आज हमने जो किया है वह यहोवा की आज्ञा है कि तुम्हारे पाप क्षमा किए जाएँ।
\v 35 तुम्हें पवित्र-तम्बू के द्वार पर सात दिन, सात रात रहना है और वही करना जो यहोवा अनिवार्य कहता है कि अवज्ञा के कारण तुम मर न जाओ। मैं तुमसे यह कहता हूँ क्योंकि यहोवा ने मुझे यह आज्ञा दी है।
\v 36 इसलिए हारून और उसके पुत्रों ने वही किया जो यहोवा ने मूसा के द्वारा कहा था।
\s5
\c 9
\p
\v 1 आठवें दिन मूसा ने इस्राएल के प्रधानों को एकत्र किया।
\v 2 उसने हारून से कहा, “एक बछड़ा लेकर अपने पापों के लिए बलि चढ़ा और एक मेढ़ा वेदी पर होम-बलि कर। दोनों बलिपशु निर्दोष हों। यहोवा के लिए यह बलि चढ़ा।
\s5
\v 3 तब इस्राएलियों से कह, ‘एक बकरा अपने पापों के लिए बलि करो। एक निर्दोष बछड़ा और एक निर्दोष मेम्ना लेकर वेदी पर होम करो।
\v 4 एक बैल और मेढ़ा यहोवा के लिए मेल बलि कर और उसके साथ जैतून के तेल में गूंधा हुआ मैदा चढ़ाओ। ऐसा करो क्योंकि यहोवा आज तुम्हें दर्शन देंगे।
\v 5 मूसा से निर्देश पाकर इस्राएली इन सब वस्तुओं के साथ पवित्र-तम्बू के सामने आँगन में एकत्र हो गए।
\s5
\v 6 तब मूसा ने उनसे कहा, “यहोवा ने तुम्हें यह आज्ञा इसलिए दी है कि उसकी महिमा का तेज तुम पर प्रकट हो।”
\v 7 फिर मूसा ने हारून से कहा, “अपने पापों की क्षमा के लिए वेदी के निकट जाकर पाप बलि के पशु को चढ़ा। वेदी पर पूर्ण होम-बलि का पशु भी ले आ। इन बलियों के द्वारा यहोवा तेरे और इस्राएल के पाप क्षमा कर देगा। यहोवा की आज्ञा के अनुसार ऐसा ही कर।
\s5
\v 8 इसलिए हारून ने वेदी के निकट आकर अपने पापों के लिए बछड़ा बलि दिया।
\v 9 हारून के पुत्र उसका लहू एक पात्र में लेकर उसके पास आए। हारून ने लहू में अपनी उंगली डुबा कर वेदी के चारों सींगों पर लगाया और शेष लहू को वेदी के आधार पर उण्डेल दिया।
\s5
\v 10 और यहोवा की आज्ञा के अनुसार सारी चर्बी को, कलेजी और गुर्दों को ढाँकनेवाली चर्बी को भी वेदी पर जला दिया।
\v 11 इसके बाद हारून ने बलि-पशु को छावनी के बाहर ले जाकर उसकी खाल समेत जला दिया।
\s5
\v 12 फिर हारून ने होम-बलि के पशु को बलि किया और उसके पुत्रों ने उसका लहू एक पात्र में लेकर उसे दिया जिसे उसने वेदी पर चारों ओर छिड़क दिया।
\v 13 तब उसके पुत्रों ने बलि-पशु के टुकड़े और सिर उसे दिए और उसने उन्हें वेदी पर पूर्ण रूप से जला दिया।
\v 14 उसने बलि-पशु के भीतरी अंगों को और टांगों को धोकर, अन्य टुकड़ों के साथ वेदी पर जला दिया।
\s5
\v 15 तब हारून ने इस्राएलियों द्वारा लाए गए बलि-पशुओं में से एक बकरा लेकर उनके पापों के निमित्त बलि दिया। ठीक वैसे ही जैसे उसने अपने पाप-बलि के बकरे के लिए रीति निभाई थी।
\v 16 फिर उसने होम-बलि के पशु की भी बलि दे कर यहोवा द्वारा निर्देशित विधि के अनुसार चढ़ाई।
\v 17 उसने मैदे से तैयार की गई अन्न-बलि को भी लिया और उसमें से मुट्ठी भर वेदी पर जला दिया। जैसे उसने प्रातःकालीन बलि के पशु के साथ किया था।
\s5
\v 18 इसके बाद उसने यहोवा के साथ मेल के लिए प्रजा द्वारा लाए गए बैल और मेढ़े को बलि किया। उसके पुत्रों ने लहू का कटोरा उसके हाथों में दिया और उसने वेदी के चारों ओर लहू छिड़का।
\v 19 और बैल और मेढ़े की चर्बी और मेढ़े की चर्बी वाली पूंछ को रीढ़ की हड्डी के पास से काट कर, गुर्दों और कलेजी की चर्बी के साथ लेकर,
\s5
\v 20 बलि-पशुओं के सीनों पर रख कर जलाने के लिए वेदी के निकट ले गया।
\v 21 तब मूसा की आज्ञा के अनुसार उसने उन पशुओं का सीना और दाहिना पुट्ठा ऊपर उठाया कि वे दोनों पशु यहोवा के हैं।
\s5
\v 22 फिर हारून ने हाथों को उठा कर यहोवा से प्रजा के लिए आशीर्वाद माँगा।
\v 23 तब हारून और मूसा पवित्र-तम्बू में चले गए। जब वे कुछ समय बाद बाहर आए तब उन्होंने यहोवा के नाम में अपनी प्रजा को आशीर्वाद दिया ही था कि यहोवा की महिमा का तेज संपूर्ण प्रजा पर प्रकट हुआ।
\v 24 और यहोवा की उपस्थिति से आग निकली तथा चर्बी तथा होम-बलि के तत्व उससे भस्म हो गए। यह दृश्य देख प्रजा ने आनंद से भरकर जय का नारा लगाया और भूमि पर गिर कर यहोवा को दण्डवत् किया।
\s5
\c 10
\p
\v 1 हारून के पुत्र, नादाब और अबीहू ने धूप जलाने के लिए अपना-अपना धूपदान लेकर उसमें कोयले भरे और उस पर धूप डाली परन्तु कोयले उस आग के थे जो यहोवा को ग्रहण योग्य नहीं थी।
\v 2 इसका परिणाम यह हुआ कि, यहोवा की उपस्थिति से आग निकली और उन दोनों को जला दिया। दोनों वहीं के वहीं यहोवा के सामने मर गए।
\s5
\v 3 तब मूसा ने हारून से कहा, “यहोवा के कहने का अर्थ यही था जब उसने कहा, ‘जो याजक मेरे निकट आएँ उन पर मैं प्रकट कर दूँगा कि वे मुझे निश्चय ही पवित्र समझें; संपूर्ण प्रजा की दृष्टि में वे मेरा महिमा प्रकट करें।” यह सुन कर हारून के पास शब्द नहीं थे कि कुछ कह पाए।
\v 4 तब मूसा ने हारून के चाचा उज्जीएल के पुत्रों मीशाएल और एलसाफान को बुलवाकर कहा, “अपने भतीजों के शवों को पवित्र-तम्बू के सामने से उठा कर छावनी के बाहर कर दो।”
\s5
\v 5 इसलिए उन्होंने उनके शवों को जो याजकीय वस्त्रों में ही थे, छावनी के बाहर ले जाकर जला दिया।
\v 6 इस घटना के बाद मूसा ने हारून और उसके अन्य दो पुत्रों एलीआजार और ईतामार से कहा, “तुम्हें नादाब और अबीहू की मृत्यु का दुख है परन्तु तुम्हारा व्यवहार सामान्य ही रहे। अपने सिरों के बालों को मत बिखराओ और न ही अपने वस्त्र फाड़ो। यदि तुम ऐसा करोगे तो यहोवा का क्रोध तुम पर और संपूर्ण प्रजा पर भड़क उठेगा। यहोवा की आग से नष्ट होने वालों के लिए तुम्हारे संबन्धी और इस्राएली विलाप करें।
\v 7 तुम पवित्र-तम्बू के द्वार से निकल कर विलाप करने वालों में सहभागी मत होना अन्यथा तुम भी मर जाओगे। मत भूलो कि यहोवा ने तुम्हें यहाँ सेवा करने के लिए अलग कर लिया है इसलिए वह कदापि नहीं चाहता कि तुम शव के स्पर्श से अशुद्ध हो जाओ।” इसलिए उन्होंने मूसा की आज्ञा का पालन किया। उन्होंने अपने भाइयों की मृत्यु पर समाज के साथ विलाप नहीं किया।
\s5
\v 8 तब यहोवा ने हारून से कहा,
\v 9 “तू और तेरे ये दोनों पुत्र जो जीवित हैं पवित्र-तम्बू में प्रवेश करें तो न तो मदिरा पीना और न ही किसी भी प्रकार का मद्य सेवन करना, कहीं ऐसा न हो कि तुम भी मर जाओ। इस आज्ञा का तुम और तुम्हारे वंशज सदैव पालन करें।
\v 10 यह तुम्हें इसलिए करना है कि पवित्र और अपवित्र में अन्तर समझ पाओ और यह भी जान लो कि मुझे क्या ग्रहणयोग्य है और क्या ग्रहणयोग्य नहीं है।
\v 11 तुम्हें इस्राएलियों को उन सब नियमों की शिक्षा भी देना है जिन्हें मैंने मूसा के माध्यम से तुम तक पहुँचाए हैं।”
\s5
\v 12 तब यहोवा ने हारून और उसके जीवित दोनों पुत्रों, एलीआजार और ईतामार से कहा, “मैदे की जो अन्न-बलि, एक अंश यहोवा के लिए होम करने के बाद शेष रहती है, उसे वेदी के निकट ही खाना। उसे कहीं और ले जाकर नहीं खाना क्योंकि वह अति पवित्र होती है।
\v 13 उसे पवित्र स्थान में ही खाना। तेरे लिए और तेरे पुत्रों के लिए यह यहोवा को चढ़ाई गई होम-बलियों का भाग है। यहोवा ने मुझे आज्ञा दी है कि तुझे समझा दूँ।
\s5
\v 14 परन्तु तू और तेरे पुत्र-पुत्रियाँ यहोवा के सामने उठाई हुई छाती और पुट्ठे का माँस खा सकते हो। उसे तुम पवित्र स्थान में कहीं खाना। यह भाग तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को इस्राएलियों की मेल बलियों से अधिकार के साथ प्राप्त है।
\v 15 यहोवा के सामने उठाया जाने वाला पुट्ठा और छाती का माँस उस चर्बी के साथ ही लाया जाए जिसे जलाया जाना है कि यहोवा की उपस्थिति में उठाया जाकर भेंट किया जाए। यह तुम्हारे और तुम्हारे वंशजों के लिए सदा का भाग हो।”
\s5
\v 16 जब मूसा ने इस्राएलियों के पाप-बलि के बकरे की जाँच पड़ताल की तो उसे ज्ञात हुआ कि याजकों ने उसे पूरा जला दिया था। इसलिए उसने एलीआजार और ईतामार से क्रोधित होकर कहा,
\v 17 “तुमने पाप-बलि का माँस पवित्र-तम्बू के निकट क्यों नहीं खाया? वह यहोवा के निमित्त अति पवित्र था। उसने वह तुम्हें दिया था कि इस्राएलियों के पापों को वह क्षमा करे।
\v 18 क्योंकि उस का लहू पवित्र-तम्बू में पवित्र स्थान में नहीं ले जाया गया था, तुम्हें मेरी आज्ञा के अनुसार उस बकरे का माँस पवित्र-तम्बू के बाहर खाना आवश्यक था।”
\s5
\v 19 हारून ने मूसा से कहा, “आज इस्राएली अपने पापों की क्षमा के लिए बलि और यहोवा के लिए जलाने के लिए होम-बलि लाए थे कि वह प्रसन्न हो। अब मेरे स्वर्गीय पुत्रों के साथ जो भयानक घटना घटी, उस पर तो ध्यान दे! यदि मैं इनकी पाप-बलि से कुछ खा लेता तो क्या यहोवा प्रसन्न होता?”
\v 20 यह सुन कर मूसा को संतोष हुआ और फिर उसने कुछ नहीं कहा।
\s5
\c 11
\p
\v 1 यहोवा ने हारून और मूसा से कहा,
\v 2 “इस्राएलियों से कहो कि मैं यह कहता हूँ, ‘पृथ्वी के सब जीव-जन्तुओं में से जिनका माँस खाने की तुम्हें अनुमति है वे हैं,
\s5
\v 3 जिन पशुओं के खुर चिरे हुए हैं और वे जुगाली करते हैं, उन पशुओं का माँस तुम खा सकते हो।
\v 4 अब कुछ पशु जुगाली तो करते हैं परन्तु उनके खुर चिरे हुए नहीं हैं और कुछ पशुओं के खुर चिरे हुए तो हैं परन्तु वे जुगाली नहीं करते। ऐसे पशुओं का माँस तुम नहीं खाना।
\s5
\v 5 उदाहरणार्थ ऊँट जुगाली तो करता है परन्तु उसके खुर चिरे हुए नहीं हैं, इसलिए उसका माँस नहीं खाना। शापान जुगाली तो करता है परन्तु उसका खुर चिरा हुआ नहीं है, इसलिए उसका माँस नहीं खाना।
\v 6 खरगोश जुगाली करता है परन्तु उसका खुर चिरा हुआ नहीं है इसलिए उसका माँस भी नहीं खाना।
\v 7 दूसरी ओर शूकर का खुर चिरा हुआ है इसलिए उसका माँस भी नहीं खाना।
\v 8 ये सब जन्तु तुम्हारे लिए खाने योग्य नहीं है। तुम न तो उनका माँस खाना और न ही उनको छूना।
\s5
\v 9 जलचरों में अर्थात समुद्री नदियों और जलाशयों में जितने भी जन्तुओं के पंख और शल्क हों वे सब खाने के योग्य हैं।
\v 10 परन्तु जिन जलचरों के पंख और शल्क न हों उनसे घृणा करना, इनमें छोटे-छोटे जल जन्तु भी हैं।
\s5
\v 11 तुम उनसे घृणा करना और उनका माँस नहीं खाना। उनकी मरी हुई देहों से भी घृणा करना।
\v 12 पानी में रहने वाले जिन जन्तुओं के पंख और शल्क न हों उन सबसे तुम घृणा करना।
\s5
\v 13 कुछ पक्षी भी ऐसे हैं जिनका माँस तुम नहीं खाओगे। वरन् उनसे घृणा करोगे: उकाब, गिद्ध,
\v 14 चील, बाज की सब प्रजातियाँ,
\v 15 कौए की सब प्रजातियाँ
\v 16 शुतुर्मुर्ग, तखमास, जलकुक्कुट, शिकरे की सब प्रजातियाँ
\s5
\v 17 बड़ा उल्लू, छोटा उल्लू, समुद्री चील,
\v 18 श्वेत उल्लू, मत्स्यकुररी,
\v 19 लकलक, बगुले की सब प्रजातियाँ, हुदहुद और चमगादड़
\s5
\v 20 उड़ने वाले कीट जो भूमि पर भी चलते हैं, उन्हें मत खाना वरन् घृणित मानना।
\v 21 परन्तु तुम पंखों वाले कीट जिनकी टांगों में जोड़ हो और भूमि पर कूद कर चलते हैं
\v 22 जैसे टिड्डी की प्रजातियाँ, फनगे, झिंगुर, टिड्डे।
\v 23 परन्तु इनकी अपेक्षा अन्य पँखधारी चार टांगों के कीट मत खाना वरन् उनसे घृणा करना।
\s5
\v 24 कुछ जन्तुओं के मर जाने पर उनका स्पर्श तुम्हें मेरे सामने अग्रहणीय बनाता है। ऐसा मनुष्य शाम तक अशुद्ध ठहरेगा इसलिए वह किसी का स्पर्श न करे।
\v 25 यदि कोई इनको मरा हुआ उठा ले तो उसे अपने वस्त्र धोने होंगे और वह संध्या तक किसी को न छुए क्योंकि वह अशुद्ध हो गया है।
\s5
\v 26 जिन पशुओं के मर जाने पर स्पर्श निषेध हैं वे हैं, चिरेखुर के पशु परन्तु खुर पूरे न फटे हों, ऐसे पशु या जुगाली न करने वाले पशु। ऐसे पशुओं का स्पर्श करने पर मनुष्य अशुद्ध हो जाता है।
\v 27 जितने पशु भूमि पर चलते हैं उनमें नाखूनदार पंजे वाले पशुओं की मृतक देह का स्पर्श हो जाने पर वह व्यक्ति किसी के संपर्क में न आए। वह संध्याकाल तक अशुद्ध रहेगा।
\v 28 यदि किसी को ऐसे पशुओं की मरी देह उठाना पड़े तो उसे अपने वस्त्र धोना आवश्यक है और वह संध्याकाल तक अन्य किसी मनुष्य का स्पर्श न करे क्योंकि मरे हुए पशु की देह के स्पर्श के कारण वह मेरे सम्मुख ग्रहणयोग्य नहीं है।
\s5
\v 29 धरती के पशुओं में जिनके स्पर्श से मनुष्य अशुद्ध होता है वे हैं: नेवला, चूहे, गोह,
\v 30 छिपकली, मगर, अन्य छिपकलियाँ, टिकटिक, सांडा और गिरगिट।
\s5
\v 31 रेंगने वाले जन्तु मुझे अस्वीकार्य हैं। उनकी मरी हुई देह का स्पर्श करने पर तुम संध्याकाल तक अशुद्ध रहोगे और संध्याकाल तक किसी का स्पर्श नहीं करोगे।
\v 32 यदि इनमें से किसी भी जन्तु की मरी हुई देह किसी भी वस्तु पर गिरे तो वह चाहे उपयोगी वस्तु हो, अशुद्ध हो जाएगी। वह लकड़ी, वस्त्र, पशु की खाल या सन की ही क्यों न बनी हो। उसे पानी में डाल कर संध्याकाल तक प्रयोग में नहीं लेना है।
\v 33 यदि किसी मिट्टी के बर्तन में ऐसा जन्तु गिर जाए तो उसमें रखी वस्तु अशुद्ध हो जाती है। उस पात्र को तोड़ दिया जाए।
\s5
\v 34 यदि अनजाने में उस पात्र का पानी भोजन में डल गया तो वह भोजन खाया न जाए। उस पात्र का पानी भी नहीं पीना।
\v 35 जिस किसी वस्तु पर ऐसा मरा हुआ जन्तु गिरे, वह अशुद्ध हो जाती है। यदि ऐसा जन्तु तन्दूर या खाना पकाने के पात्र में गिरे तो वे तोड़ दिए जाएँ। वह हर एक वस्तु जिस पर ऐसा जन्तु गिरे वह तोड़ दी जाए। वह मेरे लिए अस्वीकार्य है। उसका दोबारा उपयोग न किया जाए।
\s5
\v 36 यदि ऐसा मरा हुआ जन्तु सोते में या संग्रहित जल में गिरे तो पानी तो पीया जा सकता है परन्तु उसका स्पर्श करने वाला मेरे सामने अस्वीकार्य है।
\v 37 यदि ऐसा मरा हुआ जन्तु बोने वाले बीजों पर गिरे तो बीज बोने के लिए स्वीकार्य हैं।
\v 38 परन्तु यदि बीजों पर पानी डाला गया इसके बाद वह मरा हुआ जन्तु उन बीजों पर गिरा तो बीज फेंक दिए जाएँ। उन्हें अस्वीकार्य मानना।
\s5
\v 39 जिस पशु का माँस खाने के लिए मना नहीं, यदि वह पशु मर जाए तो उसे स्पर्श करने वाला संध्याकाल तक किसी का स्पर्श न करे।
\v 40 यदि ऐसे मरा हुआ पशु का कोई माँस खा ले तो उसे अपने वस्त्र धोने होंगे और वह संध्याकाल तक किसी का स्पर्श न करे।
\s5
\v 41-42 पृथ्वी पर रेंगने वाले सब जन्तु, पेट के बल चलने वाले भी घृणित हैं। उनका माँस खाना मना है।
\s5
\v 43 ऐसे किसी भी जन्तु का माँस खाकर अशुद्ध नहीं होना। इस विषय में अत्यधिक सावधान रहो।
\v 44 मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा पवित्र हूँ। इसलिए मेरे सम्मान के निमित्त पवित्र रहो वरन् अलग हो जाओ। ऐसी वस्तुएँ खाने से बचो जिनके कारण तुम मेरे सामने ग्रहणयोग्य न ठहरो। भूमि पर रेंगने वाले जन्तुओं का माँस खा कर मेरे सामने अस्वीकार्य न हो।
\v 45 मैं यहोवा हूँ जिसने तुम्हें मिस्र के दासत्व से छुड़ाया है कि तुम मेरी ही उपासना करो। इस कारण तुम पवित्र बने रहो क्योंकि मैं पवित्र हूँ।
\s5
\v 46 सब पशुओं, पक्षियों, रेंगने वाले जन्तुओं तथा जलचरों के विषय में ये निर्देश हैं।
\v 47 तुम्हें गांठ बांध लेना है कि मुझे क्या स्वीकार्य है और क्या अस्वीकार्य है- तुम क्या खा सकते हो और क्या नहीं खा सकते।”
\s5
\c 12
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 2 “इस्राएलियों से कह, ‘कोई स्त्री यदि पुत्र को जन्म दे तो वह सात दिन तक अलग रहे जिस प्रकार कि वह मासिक दिनों के समय रहती है।
\v 3 पुत्र का जन्म के आठवें दिन उसका खतना किया जाए।
\s5
\v 4 इसके बाद वह स्त्री सन्तानोत्पत्ति के रक्त के बहने से शुद्ध होने के लिए तैंतीस दिन तक प्रतीक्षा करे। वह किसी भी पवित्र वस्तु को जो मेरी है, स्पर्श न करे और न ही समय पूरा होने तक पवित्र-तम्बू के क्षेत्र में प्रवेश करे।
\v 5 यदि कोई स्त्री पुत्री को जन्म दे तो दो सप्ताह अलग रहे जिस प्रकार वह अपने मासिक दिनों में रहती है। इसके बाद वह शोधन के लिए छियासठ दिन प्रतीक्षा करे- सन्तानोत्पत्ति के बाद।
\s5
\v 6 जब उसके शुद्ध हो जाने के दिन पूरे हो जाएँ तब वह पवित्र-तम्बू के द्वार पर याजक के पास एक वर्ष का एक मेम्ना लाए। याजक उसे वेदी पर पूर्ण रूप से भस्म कर दे। वह बलि के लिए याजक के पास एक पंडुकी या कबूतर का बच्चा लाए कि यहोवा उसे ग्रहण करे।
\s5
\v 7 इस प्रकार, वह सन्तानोत्पत्ति के रक्त के बहने की अशुद्धता से शुद्ध होगी। पुत्र या पुत्री को जन्म देने वाली स्त्री के लिए यह विधि है।
\v 8 यदि सन्तान को जन्म देनेवाली स्त्री मेम्ना लाने में अयोग्य है तो वह दो पंडुकियाँ या कबूतर के दो बच्चे लाए। एक वेदी पर जलाया जाएगा और दूसरा उसे परमेश्वर की दृष्टि में ग्रहणयोग्य बनाएगा। ऐसा करके याजक उसे पाप से मुक्ति दिलाकर अलग होने से उबारेगा।’”
\s5
\c 13
\p
\v 1 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
\v 2 “किसी की त्वचा पर सूजन या चमकीला दाग हो जो संक्रमण का प्रतीत हो तो उसे हारून के पास लाया जाए या उसके पुत्रों में से एक के पास। क्योंकि वे भी याजक हैं।
\s5
\v 3 याजक उस व्यक्ति की त्वचा के उस स्थान का निरीक्षण करे। यदि त्वचा पर वहाँ के बाल सफेद हो गए हैं और घाव त्वचा में गहरा प्रतीत हो तो वह त्वचा का संक्रामक रोग है जो दूसरों को भी लग सकता है। यदि याजक को इस बात का निश्चय हो जाए तो वह घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति मनुष्यों के संपर्क के योग्य नहीं है।
\v 4 यदि उसकी त्वचा का वह दाग सफेद है परन्तु गहरा घाव प्रतीत नहीं होता तो याजक उसे सात दिन तक अलग रखे।
\s5
\v 5 सात दिनों के बाद याजक उसका दोबारा निरीक्षण करे। यदि याजक देखे कि सूजन में परिवर्तन नहीं है और वह फैली भी नहीं तो याजक और सात दिन उसे अलग रखे।
\v 6 सात दिन बाद याजक दूसरी बार उसका निरीक्षण करे। यदि सूजन समाप्त हो गई है और फैली नहीं तो याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति सामाजिक संपर्क के योग्य है। उसकी त्वचा पर मात्र एक दाग़ था। वह संक्रामक नहीं है। वह अपने वस्त्र धो ले और याजक उसे समाज में रहने योग्य ठहराए।
\s5
\v 7 परन्तु याजक के निरीक्षण के बाद यदि सूजन बढ़ जाती है तो वह व्यक्ति फिर से याजक के पास जाए।
\v 8 याजक उसका दुबारा निरीक्षण करके देखे। यदि सूजन फैल गई है तो वह त्वचा का लगनेवाला रोग है। याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति सामाजिक संपर्क के योग्य नहीं है।
\s5
\v 9 यदि किसी को संक्रामक त्वचा रोग है तो वह याजक के पास लाया जाए।
\v 10 याजक उसका निरीक्षण करे। यदि त्वचा में सफेद सूजन है और उस स्थान पर बाल भी सफेद हो गए हैं तथा पीड़ादायक हैं,
\v 11 तो वह एक स्थायी रोग है। याजक घोषणा कर दे कि वह सामाजिक संपर्क के योग्य नहीं है। आवश्यक नहीं कि वह और सात दिन अलग रखा जाए क्योंकि याजक को निश्चय हो गया है कि वह सामाजिक संपर्क के योग्य नहीं है।
\s5
\v 12 यदि किसी के संपूर्ण शरीर में रोग फैल गया है और याजक देखता है कि सिर से पाँव तक उसकी त्वचा संक्रमण की हो गई है,
\v 13 और श्वेत हो गई है तो वह रोग समाप्त हो गया है। याजक घोषणा कर दे कि उसे समाज से अलग रहने की आवश्यकता नहीं है।
\v 14 परन्तु यदि उसकी त्वचा पर घाव हैं तो उसका वह रोग संक्रामक है और वह मनुष्यों के संपर्क में आने के योग्य नहीं है।
\s5
\v 15 ऐसी स्थिति में याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति को संक्रामक त्वचा रोग है। और वह मनुष्यों के संपर्क में आने के योग्य नहीं है।
\v 16 परन्तु यदि उसकी त्वचा के नीचे का माँस श्वेत हो गया है तो वह दोबारा याजक के पास जाए।
\v 17 याजक उसका फिर से निरीक्षण करे और देखे कि उसके दाग़ सफेद हो गए हैं तो याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति अब मनुष्यों के संपर्क के योग्य है।
\s5
\v 18 यदि किसी की त्वचा पर फोड़ा होकर अच्छा हो गया है
\v 19 परन्तु उस स्थान पर सफेद सूजन है या दाग़ में लाली है, तो वह याजक के पास फिर से जाए।
\v 20 याजक परीक्षण करके देखे कि वह त्वचा के भीतर है और उस स्थान के बाल सफेद हो गए हैं तो वह एक संक्रामक रोग हो गया है। याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति मनुष्यों के संपर्क के योग्य नहीं है।
\s5
\v 21 परन्तु यदि याजक देखे कि उस स्थान पर बाल सफेद नहीं हैं और व्याधि मात्र सतही है और लाली भी घट गई है तो याजक उसे सात दिन अलग रखे।
\v 22 यदि वह फैल रहा है तो रोग संक्रामक है। याजक घोषणा कर दे कि वह मनुष्य किसी के भी संपर्क के योग्य नहीं है।
\v 23 परन्तु यदि वह दाग़ फैला नहीं और बदला नहीं तो वह फोड़े का दाग मात्र है। याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति मनुष्यों के संपर्क के योग्य है।
\s5
\v 24 यदि किसी की त्वचा में जला हुआ दाग हो और उस पर श्वेत या लाली लिए हुए आभा दिखाई देती है और उस स्थान में पीड़ा उठती है,
\v 25 तो याजक उसका निरीक्षण करके देखे। यदि उस स्थान के बाल सफेद हो गए और वह गहरा प्रतीत होता है तो उस जले हुए स्थान में संक्रामक रोग हो गया है। याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति मनुष्यों के संपर्क के योग्य नहीं है।
\s5
\v 26 परन्तु यदि याजक देखे कि उस स्थान के बाल सफेद नहीं हैं और घाव सतही है और उसकी लालिमा मन्द पड़ गई है तो याजक उस व्यक्ति को सात दिन तक अलग रखे।
\v 27 सात दिन के बाद याजक उसका फिर से निरीक्षण करे। यदि घाव फैल रहा है तो वह संक्रामक रोग है। याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति मनुष्यों के संपर्क के योग्य नहीं है।
\v 28 परन्तु यदि घाव फैला नहीं और उसकी लालिमा बढ़ने की अपेक्षा घट गई है तो याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति मनुष्यों के संपर्क के योग्य है।
\s5
\v 29 यदि किसी स्त्री या पुरुष के सिर में या दाढ़ी में व्याधि है,
\v 30 तो याजक उसका निरीक्षण करे। यदि घाव गहरा है और उस स्थान में बाल उड़ गए हैं और उसका रंग पीलापन लिए हुए है तो वह संक्रामक रोग है जिसमें खुजली भी होती है। ऐसी स्थिति में याजक उसे मनुष्यों के संपर्क के अयोग्य घोषित कर दे।
\s5
\v 31 परन्तु यदि याजक निरीक्षण करके देखे कि उसका घाव सतही है और वहां के बाल काले नहीं हैं तो याजक उसे सात दिन तक अलग रखे।
\s5
\v 32 सातवें दिन याजक उसका निरीक्षण करे। यदि दाग़ फैले नहीं हैं और उस स्थान पर बाल पीले नहीं हुए और दाग़ केवल सतही हैं
\v 33 तो वह व्यक्ति व्याधि के स्थान के आसपास के बाल मुंडवाए परन्तु व्याधि के बाल नहीं और याजक उसे दूसरे सात दिन तक अलग रखे।
\s5
\v 34 सातवें दिन याजक उसका फिर से निरीक्षण करे। यदि वह दाग़ फैलता नहीं और सतही है तो याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति मनुष्यों के संपर्क के योग्य है। वह अपने वस्त्र धोकर समाज में प्रवेश करे।
\s5
\v 35 यदि दाग़ बाद में फैल जाएँ,
\v 36 तो याजक उसका फिर से निरीक्षण करे। यदि खुजली बढ़ गई है तो याजक को आवश्यकता नहीं कि वहाँ के बालों पर ध्यान दे। वह संक्रामक रोग ही है।
\v 37 परन्तु यदि याजक देखे कि वह दाग़ फैला नहीं और वहाँ के बाल काले उग रहे हैं तो स्पष्ट है कि खुजली ठीक हो गई है। याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति मनुष्यों के संपर्क के योग्य है।
\s5
\v 38 यदि किसी स्त्री या पुरुष की त्वचा पर सफेद दाग़ है
\v 39 याजक निरीक्षण करके देखता है कि दाग कम उजले हैं तो वे सामान्य दाग़ हैं। याजक उसे मनुष्यों के संपर्क के योग्य घोषित कर दे।
\s5
\v 40 यदि किसी पुरुष का सिर गंजा हो जाए तो उसे अलग रखने की आवश्यकता नहीं है।
\v 41 ऐसा ही उसके सिर के बाल उड़ने पर है जब उसके सिर गंजा हो गया।
\s5
\v 42 यदि उसके गंजे सिर पर और माथे पर लालिमा लिए दाग़ हो तो उसका रोग संक्रामक है।
\v 43 याजक उसका निरीक्षण करे। यदि उसके सिर का दाग त्वचा के दाग के समान संक्रामक लाली लिए हुए है
\v 44 तो याजक घोषणा कर दे कि उसे संक्रामक रोग है और वह मनुष्यों के संपर्क के योग्य नहीं है।
\s5
\v 45 जिस व्यक्ति को संक्रामक चर्म रोग है वह फटे वस्त्र धारण करे और बालों को नहीं संवारे। मनुष्यों के सामने आने पर वह अपने चेहरे का निचला भाग ढांक पुकारे, ‘मेरे निकट मत आओ! मुझे संक्रामक चर्म रोग है!
\v 46 जब तक वह संक्रामक रोग से ग्रस्त है उसे किसी के भी संपर्क में आने की अनुमति नहीं है। उसे शिविर के बाहर अकेला ही रहना है।”
\s5
\v 47-48 कभी-कभी वस्त्रों पर भी भुकड़ी लग जाती है। वस्त्र ऊन का हो, कपास का हो या चमड़े का हो या चमड़े की बनी अन्य कोई वस्तु हो।
\v 49 यदि दूषित स्थान हरा या लाल सा हो तो वह फैलने वाली भुकड़ी है और उसे याजक को दिखाना आवश्यक है।
\s5
\v 50 याजक उसका निरीक्षण करके उसे सात दिन के लिए अलग रखे।
\v 51 सातवें दिन वह उसका फिर से निरीक्षण करे। यदि भुकड़ी फैल गई है तो स्पष्ट है कि वह खा जाने वाली भुकड़ी है। वह वस्त्र या वस्तु काम में न ली जाए।
\v 52 वह कैसा भी वस्त्र हो या कैसी भी वस्तु हो, उसे पूर्ण रूप से जला दिया जाए।
\s5
\v 53 परन्तु याजक के निरीक्षण से ज्ञात हो कि भुकड़ी फैली नहीं है।
\v 54 तो वह उस वस्त्र या वस्तु के स्वामी से कहे कि उसे धोकर और सात दिन के लिए अलग रखा जाए।
\v 55 सात दिन के बाद याजक उसका फिर से निरीक्षण करे। यदि भुकड़ी फैली नहीं और उसके रंग में परिवर्तन नहीं आया है तो उसे उपयोग में नहीं लिया जाए। यदि भुकड़ी चाहे वस्तु के भीतर हो या बाहर, उसे जला दिया जाए।
\s5
\v 56 उस वस्तु या वस्त्र को धोने के बाद याजक देखे कि भुकड़ी का रंग उड़ गया है तो वह उस भाग को फाड़ कर अलग कर दे जिस पर भुकड़ी थी।
\v 57 यदि उस वस्त्र या वस्तु पर भुकड़ी फिर आ जाती है तो स्पष्ट है कि वह फैल रही है, इसलिए उस वस्तु को जला दिया जाए।
\v 58 परन्तु यदि धोने के बाद भुकड़ी मिट जाए तो वह वस्त्र या वस्तु फिर से धोई जाए। और उसे काम में लिया जा सकता है।
\s5
\v 59 ऊन, कपास और चमड़े की वस्तुओं के विषय ये निर्देश हैं कि उनका स्वामी निश्चित कर पाए कि उसे काम में लेना है या नहीं।
\s5
\c 14
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 2 “संक्रामक चर्म रोग से मुक्ति पाने वाले के विषय जो निर्देश हैं वे इस प्रकार हैं।
\s5
\v 3 ऐसे व्यक्ति के विषय याजक को सूचित किया जाए। याजक शिविर के बाहर जाकर उसका निरीक्षण करके देखे कि उस का चर्म रोग वास्तव में अच्छा हो गया है।
\v 4 याजक किसी के हाथ से यहोवा को स्वीकार्य दो जीवित पक्षी, और देवदार की लकड़ी, लाल धागा, और जूफा मंगवाए।
\v 5 तब याजक आज्ञा दे कि सोते से भरे जल अर्थात ताज़े पानी के मिट्टी के पात्र पर एक पक्षी बलि किया जाए।
\s5
\v 6 इसके बाद याजक दूसरे पक्षी को, देवदार की लकड़ी को, लाल धागे को और जूफा को उस रक्त रंजित जल में डुबाए।
\v 7 इसके बाद वह लहू मिश्रित जल उस स्वस्थ रोगी पर सात बार छिड़के और घोषणा करे कि वह व्यक्ति अब समाज में उठने-बैठने योग्य हो गया है। याजक दूसरे पक्षी को उड़ा दे।
\s5
\v 8 तब वह स्वस्थ व्यक्ति अपने वस्त्र धोए और सिर मुंडाकर स्नान करे। इस प्रकार वह व्यक्ति शिविर में प्रवेश करने पाए परन्तु फिर भी अपने डेरे से सात दिन तक बाहर रहे।
\v 9 सातवें दिन वह फिर सिर, दाढ़ी, भौंहें और संपूर्ण शरीर मुंडवाए और अपने वस्त्र धोकर स्नान करे। तब उसे मनुष्यों से संपर्क की अनुमति दी जाए।
\s5
\v 10 अगले दिन अर्थात आठवें दिन वह निर्दोष दो नर मेम्ने और एक वर्ष की भेड़ी तथा जैतून के तेल में गूंधा 6.5 किलो मैदा भेंट स्वरूप लाए, साथ में एक तिहाई लीटर जैतून का तेल भी लाए।
\v 11 जिस याजक ने उस व्यक्ति को रोग मुक्त घोषित किया था, वह याजक उस व्यक्ति को और उसके चढ़ावों को लेकर पवित्र-तम्बू के द्वार पर आए।
\s5
\v 12 याजक एक नर मेम्ने को जैतून के तेल के साथ ऊपर उठाए कि प्रकट हो कि वह यहोवा के सामने दोष बलि है क्योंकि वह व्यक्ति यहोवा की अनिवार्यताओं के अनुसार चढ़ावे नहीं ला पाया था।
\v 13 तब याजक उस नर मेम्ने को उस विशेष स्थान में मारे जहाँ बलि-पशु घात किए जाते हैं। पाप बलि के सदृश्य यहोवा दोष बलि को भी पवित्र मानता है इसलिए इनका माँस भी याजक का है।
\s5
\v 14 याजक उस बलि-पशु का कुछ लहू लेकर उस व्यक्ति के दाहिने कान पर, उसके दाहिने हाथ और पांव के अंगूठों पर लगाए।
\v 15 तब याजक जैतून का कुछ तेल अपने बायें हाथ की हथेली पर ले।
\v 16 उस तेल में याजक अपने दाहिने हाथ की पहली अँगुली डुबा कर यहोवा के सामने सात बार तेल छिड़के
\s5
\v 17 इसके बाद अपनी हथेली के तेल में से कुछ तेल उस व्यक्ति के दाहिने कान, दाहिने हाथ एवं दाहिने पाँव के अंगूठों पर लगाए- ठीक उन्हीं अंगों पर जहाँ उसने बलि-पशु का लहू लगाया था।
\v 18 अपनी हथेली के शेष तेल को याजक उस व्यक्ति के सिर पर लगा दे। इससे प्रकट होगा कि यहोवा ने उस व्यक्ति के पाप क्षमा कर दिए हैं।
\s5
\v 19 तब याजक उस व्यक्ति द्वारा लाई गई एक वर्ष की भेड़ की बलि दे। यह उस व्यक्ति द्वारा पाप-बलि है कि यहोवा उसे क्षमा करे। इसके बाद याजक दूसरे नर मेम्ने की बलि दे कर उसे वेदी पर भस्म कर दे।
\v 20 याजक वेदी पर अन्न-बलि के साथ पाप-बलि पूर्ण रूप से जला दे। इस प्रकार वह व्यक्ति शिविर में स्वीकार किया जायेगा और मनुष्यों में उठने-बैठने योग्य हो जाएगा।
\s5
\v 21 परन्तु यदि वह व्यक्ति जो रोग मुक्त हुआ है बलि के लिए इतनी सामग्री नहीं जुटा सकता तो वह यहोवा के निमित्त एक नर मेम्ना याजक के पास उठाने की भेंट स्वरूप लाए। यह यहोवा के अनिवार्य चढ़ावों से चूकने की क्षमा के लिए है। वह लगभग दो किलो ग्राम मैदा एक तिहाई लीटर जैतून के तेल में गूंध कर भी लाए। यह अन्न बलि है। वह एक तिहाई लीटर जैतून का तेल भी लाए।
\v 22 वह पंडुकियाँ या दो कबूतर भी लाए। एक यहोवा के निमित्त पाप-बलि के लिए और दूसरा वेदी पर होम-बलि के लिए।
\v 23 उसी दिन अर्थात आठवें दिन वह यह सब सामग्री लेकर पवित्र-तम्बू के द्वार पर याजक के पास आए कि यहोवा के सामने चढ़ाए।
\s5
\v 24 तब याजक दोष बलि का मेम्ना और तेल यहोवा के सामने ऊपर उठाए और यहोवा को अर्पित करे।
\v 25 और मेम्ने का बलि दे कर के उस का लहू एक पात्र में ले और उस व्यक्ति के दाहिने कान, दाहिने हाथ तथा दाहिने पाँव के अंगूठों पर लगाए।
\s5
\v 26 फिर कुछ जैतून का तेल अपने दाएँ हाथ की हथेली पर लेकर,
\v 27 यहोवा के सामने दाहिने हाथ की पहली अँगुली से सात बार छिड़के।
\s5
\v 28 हथेली के तेल ही में से याजक उस व्यक्ति के दाहिने कान, दाहिने हाथ के अंगूठे और दाहिने पाँव के अंगूठे पर वहीं लगाए जहाँ उसने मेम्ने का लहू लगाया था।
\v 29 अपनी हथेली का शेष तेल याजक रोग मुक्ति पाने वाले के सिर पर लगा दे। इससे प्रकट होगा कि यहोवा ने उस व्यक्ति के पाप क्षमा कर दिए हैं।
\s5
\v 30 इसके बाद याजक उस व्यक्ति द्वारा लाए गए कबूतरों या पंडुकियों को चढ़ाए।
\v 31 जो पक्षी वह ला सका है उनमें से एक पाप-बलि के लिए और दूसरा होम-बलि के लिए चढ़ाए तथा इसके साथ ही वह अन्न बलि भी चढ़ाए। इस प्रकार याजक उस व्यक्ति के पापों का प्रायश्चित करे।
\v 32 ये निर्देश मुक्ति पाए हुए चर्मरोगी के लिए और आर्थिक रूप से अयोग्य चर्म रोगी के लिए है कि वह समाज में फिर से उठने-बैठने योग्य हो जाए।
\s5
\v 33 यहोवा ने हारून और मूसा से यह भी कहा,
\v 34 “मैं तुम्हें कनान देश देने जा रहा हूँ कि तुम्हारा अपना देश हो। उस देश में ऐसा समय भी आएगा जब मैं किसी न किसी के घर में भुकड़ी होने का कारण उत्पन्न करूँ।
\v 35 ऐसी स्थिति में उस घर का मुखिया याजक के पास जाकर उसे सूचित करे कि उस के घर में भुकड़ी जैसा कुछ है।
\s5
\v 36 याजक उसे आज्ञा दे, ‘घर का सारा सामान बाहर निकाल दे कि मैं आ कर घर का निरीक्षण करूँ। यदि तू ऐसा न करे तो मैं पूरे घर को दूषित घोषित कर दूँगा।’
\v 37 जब उस घर का सारा सामान बाहर निकाल दिया जाए तब याजक उस घर में प्रवेश करके उसका निरीक्षण करे। यदि भुकड़ी हरी या लाल आभा लिए हुए है जो दीवारों की सतहों से अधिक गहरी है
\v 38 तो याजक बाहर निकल कर उस घर पर ताला डाल कर उसे सात दिन तक बन्द रहने दे।
\s5
\v 39 सातवें दिन याजक उस घर को खोल कर उस का फिर से निरीक्षण करे। यदि दीवारों पर भुकड़ी फैल गई है,
\v 40 तो याजक भुकड़ी लगी दीवारों के पत्थरों को खुदवाकर नगर के बाहर कूड़े में फिंकवा दे।
\s5
\v 41 तब उस घर का मुखिया शेष दीवारों की परत उतार दे और मलबा शहर के बाहर फिकवा दे।
\v 42 तब खोदे गए पत्थरों के स्थान पर नए पत्थर लगाए जाएँ और उनकी चुनाई एवं प्लस्तर नए गारे से की जाए।
\s5
\v 43 इसके बाद भी यदि भुकड़ी फिर से आ जाए,
\v 44 तो याजक उसका फिर से निरीक्षण करे। यदि भुकड़ी फैल गई है तो स्पष्ट है कि वह विनाशकारी है। इसलिए उस घर में किसी का भी रहना वर्जित किया जाए।
\s5
\v 45 वह घर पूरा का पूरा ढा दिया जाए और उस घर के पत्थर, गारा और लकड़ी आदि सब उठवाकर शहर के बाहर फिंकवा दिए जायें।
\v 46 जिस समय वह घर याजक द्वारा बन्द रखा जाए, उस समय यदि कोई उस घर में प्रवेश करे तो वह व्यक्ति सूर्यास्त तक किसी के संपर्क में न आए।
\v 47 इस समय यदि कोई उस घर में सोए या भोजन करे तो उसे अपने वस्त्र धोना अनिवार्य है।
\s5
\v 48 उस घर का पलस्तर हो जाने के बाद याजक उसका फिर से निरीक्षण करके देखे कि भुकड़ी दुबारा प्रकट नहीं है तो वह उसे निवास के योग्य घोषित कर दे क्योंकि वह घर भुकड़ी मुक्त हो गया है।
\s5
\v 49 परन्तु पुनर्वास से पूर्व याजक दो पक्षी, देवदार की लकड़ी, लाल धागा और जूफा ले आए।
\v 50 वह एक पक्षी को सोते के पानी से भरे मिट्टी के पात्र के ऊपर बलि दे।
\v 51 फिर याजक देवदार की लकड़ी, लाल धागा, जूफा और दूसरा पक्षी उस रक्त रंजित जल में डुबाए और वह लहू मिश्रित जल घर में सात बार छिड़के।
\s5
\v 52 इस प्रकार याजक उस घर को फिर से रहने के योग्य बनाए।
\v 53 तब याजक उस दूसरे पक्षी को उड़ा दे। इस अनुष्ठान के द्वारा वह उस घर को लोगों के निवास के लिए स्वीकार्य बनाएगा।
\s5
\v 54 ये निर्देश संक्रामक रोग के लिए हैं, खुजली के दाने,
\v 55 वस्त्रों और घरों में भुकड़ी,
\v 56 सूजन, चिकत्ते पर सफेद दाग आदि।
\v 57 इन निर्देशनों से ज्ञात होगा कि मनुष्य उन वस्तुओं का स्पर्श करे या न करे।”
\s5
\c 15
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा और हारून से यह भी कहा,
\v 2 “इस्राएलियों से कह, ‘यदि किसी पुरुष को प्रमेह हो तो वह किसी के स्पर्श योग्य नहीं है।
\v 3 चाहे उसका प्रमेह बहे या बहना बन्द हो जाए वह अशुद्ध ही रहेगा।
\s5
\v 4 वह व्यक्ति जिस बिस्तर में सोता है या जिस वस्तु पर वह बैठता है, सब अशुद्ध हैं।
\v 5 उस मनुष्य का बिस्तर छूने वाला स्नान करे और अपने वस्त्र धोए और संध्याकाल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\s5
\v 6 यदि कोई उस वस्तु पर बैठ जाए जिस पर वह बैठा था तो वह अपने वस्त्र धोकर स्नान करे और संध्या काल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\v 7 उस व्यक्ति का स्पर्श हो जाने से मनुष्य अपने वस्त्र धोए और स्नान करके संध्याकाल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\s5
\v 8 यदि प्रमेह रोगी किसी पर थूक दे तो वह किसी को अपना स्पर्श न करने दे और अपने वस्त्र धोकर संध्याकाल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\v 9 प्रमेह रोगी की घुड़सवारी या गधा सवारी की वस्तुओं का भी स्पर्श नहीं किया जाए।
\s5
\v 10 यदि कोई उसके द्वारा उपयोग में ली गई काठी या आसन का स्पर्श करे तो वह व्यक्ति संध्याकाल तक किसी के स्पर्श योग्य न ठहरे। उन वस्तुओं को उठाने वाला अपने वस्त्र धोकर स्नान करे तथा संध्याकाल तक किसी के स्पर्श योग्य न ठहरे।
\v 11 यदि प्रमेह रोगी किसी का स्पर्श करना चाहता है तो वह पहले अपने हाथ धोए। यदि वह ऐसा किए बिना किसी का स्पर्श करे तो वह व्यक्ति अपने वस्त्र धोकर स्नान करे और संध्याकाल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\v 12 यदि वह मिट्टी के पात्र का स्पर्श करे तो वह पात्र तोड़ दिया जाए। यदि वह किसी लकड़ी की वस्तु का स्पर्श करे तो वह वस्तु पानी में धोई जाए।
\s5
\v 13 प्रमेह रोग से मुक्ति पाने पर रोगी सात दिन प्रतीक्षा करने के पश्चात अपने वस्त्र धोए और सोते या झरने के पानी से स्नान करे। तब वह समाज में उठने बैठने योग्य होगा।
\v 14 आठवें दिन वह दो पंडुकियाँ या कबूतर लेकर यहोवा के पवित्र-तम्बू के द्वार पर उपस्थित हो और उन पक्षियों को याजक के हाथों में दे।
\v 15 याजक उन्हें बलि चढ़ाएगा। एक पक्षी उसकी पाप बलि होगा और दूसरा पक्षी याजक वेदी पर होम-बलि करेगा। तब वह व्यक्ति शुद्ध हो जाएगा और यहोवा को स्वीकार्य होगा।
\s5
\v 16 यदि किसी पुरुष का वीर्य स्खलित हो जाता है तो वह पूर्ण रूप से स्नान करे और संध्याकाल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\v 17 जिस वस्त्र या चमड़े पर वीर्य गिरा वह धोया जाए। उसे संध्याकाल तक कोई स्पर्श न करे।
\v 18 स्त्री के साथ संभोग करने पर स्त्री और पुरुष दोनों स्नान करके संध्याकाल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\s5
\v 19 मासिक दिनों में सात दिन तक स्त्री का स्पर्श कोई न करे। यदि कोई उसका स्पर्श करे तो वह व्यक्ति संध्याकाल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\v 20 मासिक दिनों में स्त्री जहाँ लेटे या बैठे, उसका स्पर्श कोई नहीं करे।
\s5
\v 21 उसके बिस्तर का स्पर्श करने वाला अपने वस्त्र धोकर स्नान करे तथा संध्याकाल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\v 22-23 जो उसके बिस्तर, आसन या उसकी किसी भी वस्तु का स्पर्श करे वह अपने वस्त्र धोए और संध्याकाल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\s5
\v 24 स्त्री की ऐसी स्थिति में पुरुष यदि उसके साथ सोए और उस स्त्री के मासिक दिनों का लहू उस पुरुष के लग जाये तो वह सात दिन तक किसी के स्पर्श में न आए और उसका बिस्तर भी कोई न छुए।
\s5
\v 25 यदि किसी स्त्री का रक्तस्राव कई दिन तक रहे अर्थात उसके मासिक दिनों के सामान्य रक्तस्राव के बाद या उसके मासिक दिनों के समाप्त होने के कई दिनों बाद भी।
\v 26 ऐसी स्थिति में उसका बिस्तर और आसन उसके सामान्य होने तक कोई न छुए जैसे उसके मासिक दिनों के समय उसके साथ व्यवहार किया जाता है।
\v 27 उन वस्तुओं का स्पर्श करनेवाला अन्य किसी वस्तु को न छुए। वह व्यक्ति अपने वस्त्र धोकर स्नान करे और संध्याकाल तक अशुद्ध रहे।
\s5
\v 28 जब वह स्त्री स्वस्थ हो जाए तब वह सात दिन तक किसी का स्पर्श न करे।
\v 29 आठवें दिन वह स्त्री दो पंडुकी या कबूतरी के बच्चे लेकर पवित्र-तम्बू के द्वार पर याजक के पास उपस्थित हो।
\v 30 उनमें से एक याजक उस स्त्री के पापों की क्षमा के लिए बलि करे और दूसरे को वेदी पर पूर्ण रूप से भस्म कर दे। तब वह स्त्री शुद्ध होगी और यहोवा की दृष्टि में ग्रहण-योग्य ठहरेगी।
\s5
\v 31 तुम्हारे लिए यह सब करना इसलिए आवश्यक है कि जब कोई अशुद्ध हो तो मेरे निवास के पवित्र-तम्बू को वह अशुद्ध न करे क्योंकि यदि वे उसे अशुद्ध करें तो मर जाएँगे।
\s5
\v 32 ये निर्देश प्रमेह रोगी के लिए हैं या उस पुरुष के लिए जो वीर्य स्खलित होने के कारण अशुद्ध हो गया है,
\v 33 तथा मासिक दिनों में स्त्री के लिए और मासिक दिनों के समय स्त्री के साथ सोने वाले पुरुष के लिए हैं।’”
\s5
\c 16
\p
\v 1 यहोवा की आज्ञा के विपरीत धूप जलाने के कारण हारून के दो पुत्रों की मृत्यु हो जाने के बाद यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “अपने भाई हारून से कह कि वह परदे के पीछे परम पवित्र स्थान में, जहाँ मैं पवित्र सन्दूक और उसके ढक्कन के ऊपर बादल के रूप में उपस्थित रहता हूँ, उचित समय के अतिरिक्त कभी न जाए, अन्यथा वह मर जाएगा।
\s5
\v 3 जब हारून पवित्र-तम्बू में परम पवित्र स्थान में प्रवेश करे तब वह पहले एक बैल की बलि दे कर के अपने लिए पाप-बलि चढ़ाए और एक मेढ़ा होम-बलि करे।
\v 4 इसके बाद हारून स्नान करके मलमल का जांघिया और अंगरखा पहने। वह कमरबंध बांधे और सिर पर पगड़ी धारण करे। ये उसके पवित्र वस्त्र हैं।
\v 5 तब इस्राएली दो बकरे उसके पास लाकर अपने पापों के लिए उन्हें बलि करें और एक मेढ़ा वेदी पर पूर्ण रूप से भस्म करें।
\s5
\v 6 हारून वह बैल मेरे लिए बलि करे कि मैं उसके और उसके परिवार के लिए पापों को क्षमा करूँ।
\v 7 इसके बाद वह उन दोनों बकरों को पवित्र-तम्बू के द्वार पर ले आए।
\s5
\v 8 और उन पर चिट्ठियाँ डाल कर ज्ञात करे कि कौन सा बकरा बलि किया जाए और कौन सा छोड़ दिया जाए।
\v 9 अब जो बकरा बलि के लिए निकला उसे हारून प्रजा के पापों के लिए बलि करे।
\v 10 हारून दूसरे बकरे को भी मेरे सामने लाए परन्तु उसकी बलि न दे। वह जीवित छोड़ दिया जाए। हारून उसे जंगल में छुड़वाएगा तो मैं प्रजा के पाप क्षमा कर दूँगा।
\s5
\v 11 सबसे पहले हारून एक बैल को मेरे लिए बलि चढ़ाए। वह उसे उसके और उसके परिवार के पापों के लिए बलि दे और उसका लहू एक पात्र में ले।
\s5
\v 12 फिर वह पीतल की वेदी से कुछ कोयले लेकर धूपदान में रखे और कुटी हुई सुगंधित धूप से मुट्ठियाँ भरे और पवित्र-तम्बू में परदे के पीछे परम पवित्र स्थान में प्रवेश करे।
\v 13 यहोवा की उपस्थिति में वह कोयलों पर धूप डाले जिससे धूआं उठ कर पवित्र-तम्बू के ढक्कन पर जाएगा। वह मेरी आज्ञा के अनुसार करे तो वह यहोवा के सामने भेंट चढ़ाते समय नहीं मरेगा।
\s5
\v 14 फिर हारून लहू के पात्र में उंगली डुबा कर पवित्र सन्दूक के ढक्कन पर लहू छिड़के और पवित्र सन्दूक पर भी छिड़के।
\s5
\v 15 इसके बाद वह पवित्र-तम्बू से निकल कर प्रजा के पापों के लिए बकरा बलि करे और उसका लहू लेकर परदे के पीछे परम पवित्र स्थान में आए और कुछ लहू पवित्र सन्दूक के ढक्कन पर छिड़के तब पवित्र सन्दूक पर भी लहू छिड़के जैसा उसने बैल के लहू से किया था।
\v 16 ऐसा करके वह परम पवित्र स्थान को शुद्ध करेगा। वह पवित्र-तम्बू पर और अधिक लहू छिड़के क्योंकि मैं इस्राएलियों की छावनी के मध्य तम्बू में उपस्थित रहता हूँ। इस्राएली अपने पापों के कारण मेरी दृष्टि में अस्वीकार्य हो गए हैं।
\s5
\v 17 जब हारून पवित्र-तम्बू के परम पवित्र स्थान में प्रवेश करे कि उसका शोधन करे तब पवित्र-तम्बू में प्रवेश की अनुमति अन्य किसी को नहीं है। जब हारून अपने और अपने परिवार के और संपूर्ण प्रजा के पापों की क्षमा के लिए मेरे सम्मुख विधिपूर्ति कर ले तब ही किसी याजक को पवित्र-तम्बू में प्रवेश करने की अनुमति होगी।
\v 18 इसके बाद हारून तम्बू से बाहर आकर मेरी वेदी का शोधन करे जिसके लिए वह बैल का तथा बकरे का लहू लेकर बारी-बारी वेदी के चारों सींगों पर लगाए।
\v 19 इसके बाद हारून लहू में अपनी उंगली डुबा कर वेदी पर सात बार छिड़के। ऐसा करके वह मुझे अस्वीकार्य इस्राएलियों के व्यवहार से वेदी को अलग करेगा और वेदी मेरे लिए पवित्र की जाएगी।
\s5
\v 20 तम्बू के परम पवित्र स्थान, संपूर्ण पवित्र-तम्बू और वेदी का शोधन करने के पश्चात् हारून उस बकरे को ले जिसे छोड़ा जाना है।
\v 21 वह उसके सिर पर अपने दोनों हाथों को रखे और इस्राएलियों के सब पापों का स्वीकार करे। इस प्रकार वह उनके पापों का संपूर्ण दोष उस बकरे के सिर पर मढ़ देगा। तब वह एक चुने हुए व्यक्ति को वह बकरा सौंपे कि वह जंगल में छोड़ आए।
\v 22 वह बकरा मेरे लिए इस्राएलियों के सब पापों को उठा कर दूर जंगल में जाने वाला ठहरेगा।
\s5
\v 23 जब हारून परम पवित्र स्थान से निकल कर पवित्र-तम्बू के अन्य भाग में आए तब वह अपने मलमल के वस्त्र उतार कर वहीं रख दे।
\v 24 वह एक पवित्र स्थान में स्नान करके अपने साधारण वस्त्र धारण करे और बाहर जाकर अपने पापों के लिए और प्रजा के पापों के लिए होम-बलि के पशुओं की बलि दे तो यहोवा उनके पाप क्षमा करेंगे।
\s5
\v 25 वह वेदी पर उन दोनों पशुओं की सारी चर्बी जलाए।
\v 26 अब वह व्यक्ति जो बकरे को जंगल में छोड़ने गया था अपना काम पूरा करके लौटे तो अपने वस्त्र धोकर स्नान करे तब ही शिविर में प्रवेश करे।
\s5
\v 27 प्रायश्चित के लिए बलि किए गए बैल और बकरे को शिविर के बाहर ले जाकर जला दिया जाए- उसकी खाल, भीतरी अंग और गोबर आदि सब जला दिए जाएँ।
\v 28 जो मनुष्य उन्हें भस्म करने का काम करे वह शिविर में लौटने से पूर्व अपने वस्त्र धोकर स्नान करे।
\s5
\v 29 सातवें महीने के दसवें दिन को मैंने नियुक्त किया है कि सब इस्राएली उपवास रख कर हर प्रकार के काम से अवकाश लें। तुम्हें यह विधि सदा माननी है- सब इस्राएली और उनके मध्य वास करने वाले सब परदेशी इसका पालन करें।
\v 30 उस दिन मुझसे सब के पापों की क्षमा पाने के लिए हारून विधियों की पूर्ति करेगा तब मैं तुम्हें सब पापों के दोष से मुक्त कर दूँगा।
\v 31 वह दिन सब्त के दिन के समान काम से अवकाश एवं विश्राम का दिन होगा। उस संपूर्ण दिन तुम सब उपवास करोगे। यह तुम सब के लिए एक अटल आज्ञा है।
\s5
\v 32 याजक जिसका जैतून के तेल से अभिषेक करके यहोवा की सेवा के लिए सब से अलग किया गया है वह बलियाँ चढ़ाएगा और यहोवा की महिमा के निमित्त अलग किए गए मलमल के वस्त्र धारण करके बलियाँ चढ़ाएगा।
\v 33 इस प्रकार वह परम पवित्र स्थान, संपूर्ण पवित्र-तम्बू, वेदी, याजकों और सब इस्राएलियों को शुद्ध करेगा जैसा हारून ने किया है।
\s5
\v 34 यह तुम सब के लिए एक दम अटल आज्ञा है कि प्रतिवर्ष इसका पालन करो जिससे कि मैं तुम इस्राएलियों के पापों को क्षमा करूँ।
\d मूसा ने यहोवा द्वारा दी गई सब आज्ञाओं का पालन किया।
\s5
\c 17
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 2 हारून उसके पुत्रों और सब इस्राएलियों से कह कि मैं उन्हें यह आज्ञाएँ देता हूँ:
\v 3 जब तुम बछड़ा, मेम्ना या बकरी की बलि चढ़ाओ तब तुम उसे याजक के पास पवित्र-तम्बू के द्वार पर लाओगे कि वह उसे मेरे लिए बलि चढ़ाए।
\v 4 यदि तुम उसे अन्य किसी स्थान में बलि दो-छावनी में या बाहर कहीं, तो तुम उसका लहू एक अस्वीकार्य स्थान में बहाने के दोषी होगे और यहोवा की प्रजा से बहिष्कृत किए जाओगे।
\s5
\v 5 यहोवा यह आज्ञा इसलिए देता है कि तुम खुले मैदान में बलि न चढ़ाओ; तुम विधि के अनुसार उन्हें बलियाँ चढ़ाओ। तुम उन्हें पवित्र-तम्बू के द्वार पर याजक के पास लाओगे कि मेलबलि चढ़ाई जाए।
\v 6 बलि-पशु का बलि करके याजक पवित्र-तम्बू के द्वार पर स्थित वेदी पर उसका कुछ लहू छिड़के और यहोवा को प्रसन्न करने वाली सुगंध के लिए उसकी संपूर्ण चर्बी को जलाए।
\s5
\v 7 तुम बकरे की मूरतों के सामने अब से आगे बलि नहीं चढ़ाओगे। यह तुम्हारे लिए सदाकालीन आज्ञा है।
\s5
\v 8 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, “हारून और उसके पुत्रों से कह कि इस्राएलियों को निर्देश दें, ‘यदि कोई इस्राएली या उनके मध्य वास करने वाला होम-बलि के लिए याजक के पास पशु लाए या अन्य कोई बलि लाए।
\v 9 और उसे वह पवित्र-तम्बू के प्रवेश द्वार पर प्रस्तुत न करे कि मेरे लिए बलि हो तो वह मेरी प्रजा से बहिष्कृत किया जाए।
\s5
\v 10 इस्राएली हो या परदेशी किसी भी पशु का माँस उसके लहू के साथ खाए तो वह समाज से निकाल दिया जाए।
\v 11 क्योंकि लहू ही जीवन है और मैंने आज्ञा दी है कि लहू वेदी पर चढ़ाया जाए जिससे कि मैं तुम्हारे पापों को क्षमा करूँ।
\s5
\v 12 यही कारण है कि मैं आज्ञा देता हूँ कि न तो इस्राएली और न ही उनके मध्य वास करने वाला कोई भी परदेशी लहू सहित माँस खाए।
\v 13 कोई इस्राएली या उनके मध्य वास करने वाला कोई परदेशी किसी ऐसे पशु या पक्षी का शिकार करे जिसे खाने की अनुमति मैं ने दी है तो उसका लहू भूमि में बहाकर उसे मिट्टी से ढाँक दे।
\s5
\v 14 यह इसलिए कि प्राणी का प्राण लहू में होता है। यही कारण है कि मैं तुम इस्राएलियों को आज्ञा देता हूँ कि यदि कोई किसी पशु का माँस लहू सहित खाए तो वह समाज से निकाल दिया जाए।
\s5
\v 15 यदि कोई इस्राएली या उनके मध्य वास करने वाला परदेशी किसी मरे हुए पशु या वनपशु द्वारा मारे गए पशु का माँस खाए तो वह अपने वस्त्र धोकर स्नान करे और संध्याकाल तक मनुष्यों के स्पर्श से अलग रहे।
\v 16 इस आज्ञा का उल्लंघन करने वाले को मैं निश्चय ही दंड दूँगा।’”
\s5
\c 18
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 2 “इस्राएलियों से कह कि मैं यहोवा यह कहता हूँ, ‘मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर हूँ।
\v 3 जिन मिस्रियों के मध्य तुम वास कर रहे थे उनका जीवन तुमने देखा है। तुम्हें उनका सा जीवन नहीं रखना है। तुम्हें उन कनानियों का जीवन भी नहीं अपनाना है जिनके देश में मैं तुम्हें ले जा रहा हूँ। तुम्हें उनके कार्यों से पूर्ण रूप से अलग रहना है।
\s5
\v 4 तुम्हें मेरी सब विधियों और सब आज्ञाओं का पालन करना है क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।
\v 5 यदि तुम मेरी सब आज्ञाओं और आदेशों का पालन करोगे तो बहुत दिन जीओगे, यह मुझ यहोवा की प्रतिज्ञा है। मेरी आज्ञाएँ यह भी हैं:
\s5
\v 6 अपने किसी भी निकट परिजन के साथ नहीं सोना। मैं यहोवा यह आज्ञा देता हूँ।
\v 7 अपनी माता के साथ सो कर अपने पिता का निरादर मत करना। अपनी माता की मर्यादा को भंग मत करना।
\v 8 न ही अपने पिता की अन्य पत्नियों में से किसी के साथ सोना क्योंकि वह तेरे पिता का अपमान है।
\s5
\v 9 अपनी सगी या सौतेली बहन के साथ मत सोना चाहे वह तेरे परिवार में पोषित की गई हो या बाहर।
\v 10 अपनी नातिन या पोती के साथ भी मत सोना क्योंकि यह तेरा अपना अपमान है।
\v 11 अपनी सौतेली बहन के साथ मत सोना जिसका पिता तेरा पिता भी है क्योंकि वह तेरी बहन ही है।
\s5
\v 12 अपने पिता की बहन के साथ मत सोना क्योंकि वह तेरे पिता के लहू की संबंधिनी है।
\v 13 अपनी माता की बहन के साथ मत सोना क्योंकि वह तेरी माता के लहू की संबंधिनी है।
\v 14 अपने चाचा-ताऊ की पत्नी के साथ भी मत सोना क्योंकि वह चाची-ताई है।
\s5
\v 15 अपनी बहू के साथ भी मत सोना क्योंकि वह तेरे पुत्र की पत्नी है।
\v 16 अपने भाई की पत्नी के साथ मत सोना क्योंकि इससे तेरे भाई का अपमान होता है।
\s5
\v 17 जिस स्त्री के साथ तू पहले कभी सोया है उसकी न तो पुत्री के साथ सोना न ही नातिन-पोती के साथ क्योंकि वे उसके लहू संबंधी हैं। यह दुष्कर्म है।
\v 18 यदि तेरी पत्नी जीवित हो तो न तो उसकी बहन से विवाह करना न ही उसके साथ सोना।
\s5
\v 19 किसी भी स्त्री के साथ उसके मासिक दिनों के समय मत सोना।
\v 20 किसी अन्य पुरुष की स्त्री के साथ सोकर भ्रष्ट मत होना।
\s5
\v 21 अपने शिशुओं को मोलेक के सामने होम-बलि नहीं करना क्योंकि यह तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का अपमान है।
\s5
\v 22 कोई पुरुष किसी पुरुष के साथ नहीं सोए। यह घृणित काम है।
\v 23 कोई स्त्री या पुरुष किसी पशु के साथ न सोएँ क्योंकि यह भ्रष्ट आचरण है।
\s5
\v 24 अपने को ऐसे किसी भी कर्म द्वारा भ्रष्ट नहीं करना क्योंकि ऐसे ही काम करके अन्यजातियाँ मेरी दृष्टि में अयोग्य ठहरी हैं। उन जातियों को मैं उस देश से निकाल दूँगा जिसमें तुम प्रवेश करने जा रहे हो।
\v 25 उन्होंने तो उस भूमि को भी अशुद्ध कर दिया है, इसलिए मैंने उन्हें दंड दिया है और उस देश ने मानों उन्हें उल्टी करके त्याग दिया है।
\s5
\v 26 तुम्हें तो मेरी आज्ञाओं और आदेशों का पालन करना है- तुम इस्राएलियों को और तुम्हारे मध्य वास करने वाले परदेशियों को भी।
\v 27 तुम से पहले इस देश के निवासियों ने यह सब घृणित कार्य किए और उस भूमि को गन्दा किया है।
\v 28 तुम भी उस देश को अशुद्ध करोगे तो मैं तुम्हें भी उनके समान जो तुमसे पहले वहाँ थे, उस देश से बाहर कर दूँगा।
\s5
\v 29 तुम ऐसे घृणित कर्म करने वालों को मेरे लोगों के संपर्क में मत आने देना।
\v 30 मेरी सब आज्ञाओं का पालन करना। और तुमसे पहले वहाँ निवास करने वालों के किसी भी गलत काम का अनुकरण करके स्वयं को अशुद्ध नहीं करना। मैं यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर ही तुम्हें यह आज्ञा देता हूँ।'”
\s5
\c 19
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 2 इस्राएलियों से कह, ‘तुम्हें पवित्र रहना है क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा पवित्र है क्योंकि वह चाहता है कि तुम भी उसके जैसे पवित्र हो जाओ।
\v 3 तुम अपने पिता और माता का सम्मान करना। तुम सब्त के दिन को भी मानना। तुम्हारा परमेश्वर यहोवा ही तुम्हें यह आज्ञा देता है।
\v 4 निकम्मी मूर्तियों की पूजा नहीं करना, न ही अपने लिए धातु को गढ़ कर मूर्तियाँ बनाना। तुम केवल अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करना। तुम्हारा परमेश्वर यहोवा यह आज्ञा देता है।
\s5
\v 5 यहोवा यह भी कहता है कि जब तुम उसके साथ मेल करने के लिए बलि चढ़ाओ तो उसे विधि के अनुसार चढ़ाना कि यहोवा उसे स्वीकार करे।
\v 6 उसका माँस उसी दिन खाना, यदि बचे तो अगले दिन खाने की अनुमति तुम्हें है।
\v 7 परन्तु यदि उस का बचा हुआ भाग तुम तीसरे दिन खाओगे तो वह यहोवा की दृष्टि में घृणित है। इस कारण यहोवा कहते हैं कि वह उस बलि को स्वीकार नहीं करेंगे।
\v 8 यदि वह माँस तीसरे दिन खाया जाए तो यहोवा की पवित्रता का अपमान होने के कारण वह दंड का कारण होगा। ऐसा व्यक्ति समाज से निकाल दिया जाए।
\s5
\v 9 जब तुम फसल काटो तो खेत की छोर का और कोनों का अन्न नहीं काटना और जो भूमि पर गिर गया उसे नहीं उठाना।
\v 10 अंगूर की फसल उतारते समय बारी में दूसरी बार नहीं जाना। और भूमि पर गिरे हुए अंगूर भी नहीं उठाना। उन्हें दरिद्रों और तुम्हारे मध्य वास करने वाले परदेशियों के लिए रहने देना। मैं यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर यह आज्ञा देता हूँ।
\s5
\v 11 चोरी मत करना। झूठ नहीं बोलना। एक-दूसरे को धोखा मत देना।
\v 12 किसी झूठी बात को जानते हुए सिद्ध करके मुझे दंड देने के लिए विवश नहीं करना। झूठे का साथ देकर तुम मेरी अवज्ञा करोगे क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यह आज्ञा देता हूँ।
\s5
\v 13 किसी के साथ छल मत करना या किसी की वस्तु मत चुराना। अपने कर्मियों को जो मजदूरी देना निश्चित किया है, वह उसे पूरी की पूरी उसी दिन दे देना, अगले दिन पर नहीं टालना।
\v 14 बहरे को मत कोसो। और अन्धे के मार्ग में ठोकर खाने का कारण मत बनो। मैं यहोवा यह आज्ञा देता हूँ।
\s5
\v 15 निष्पक्ष न्याय मत करो। दरिद्र हो या धनवान किसी के साथ पक्षपात मत करो।
\v 16 किसी के बारे में झूठी अफवाह मत उड़ाओ। यदि तुम्हारी गवाही से निर्दोष फांसी से बच सकता है तो न्यायालय में चुप मत रहना। मैं यहोवा यह आज्ञा देता हूँ।
\s5
\v 17 किसी से घृणा मत करो परन्तु जिसके लिए आवश्यक हो उसे निश्चय झिड़को जिससे कि तुम निर्दोष ठहरो।
\v 18 बदला मत लो या अधिक समय तक क्रोधित मत रहो। इसकी अपेक्षा मनुष्यों से अपने बराबर प्रेम रखो। मैं तुम्हारा यहोवा यह आज्ञा देता हूँ।
\s5
\v 19 मेरी आज्ञाओं का पालन करो। पशुओं में दो जातियों से बच्चे पैदा मत करवाना। एक खेत में दो प्रकार के बीज मत उगाना। दो प्रकार के धागों से बने वस्त्र मत पहनना।
\s5
\v 20 यदि किसी के दासी का विवाह होने वाला है और वह खरीदी नहीं गई परन्तु दासी ही है, उसके साथ कोई सोए तो दोनों को दंड दिया जाए परन्तु क्योंकि वह दासी है इसलिए वह और उसके साथ सोने वाला मृत्यु दंड न पाएँ।
\v 21 परन्तु वह पुरुष पवित्र-तम्बू के द्वार पर एक मेढ़ा बलि करे कि वह अपने पाप के दोष से मुक्त हो।
\v 22 याजक उस मेढ़े को मेरे लिए बलि करे और मैं उस पुरुष का पाप क्षमा कर दूँगा।
\s5
\v 23 जब तुम उस देश में प्रवेश करो जिसे देने की मैंने तुमसे प्रतिज्ञा की है तब तीन वर्ष तक तुम अपने लगाए हुए वृक्षों के फल नहीं खाना।
\v 24 चौथे वर्ष उन वृक्षों के सब फल तुम मुझे चढ़ा देना। उसे पवित्र मान कर स्तुति की भेंट चढ़ाना।
\v 25 पाँचवें वर्ष में तुम उनके फल खा सकते हो। यदि तुम ऐसा करो तो तुम्हारे वृक्ष बहुत फल लाएँगे। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा यह आज्ञा देता हूँ।
\s5
\v 26 ऐसा माँस नहीं खाना जिसमें लहू है। भविष्य जानने के लिए आत्माओं की सहायता नहीं लेना और न ही जादू-टोने करना।
\v 27 अन्य जातियों के समान अपने सिर के बाल नहीं मुंडाना।
\v 28 मरे हुओं के लिए विलाप करते समय अपने शरीर को मत काटना और न ही चिन्ह गुदवाना। तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की यह आज्ञा है।
\s5
\v 29 अपनी पुत्रियों को वेश्यावृत्ति में विवश करके उनका अपमान नहीं करना। अन्यथा तुम्हारा देश वेश्याओं का निवास हो जाएगा और मनुष्यों के कुकर्मों का अड्डा बन जाएगा।
\v 30 मेरे सब्त के दिनों को मानना। और मेरे पवित्र-तम्बू का सम्मान करना क्योंकि मैं यहोवा हूँ।
\s5
\v 31 मरे हुओं की आत्माओं से परामर्श खोजने वालों के संपर्क में मत आना। ऐसा करने वाले मेरे लिए ग्रहण करने योग्य नहीं हैं। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।
\s5
\v 32 वृद्धों के सम्मान में खड़े हो जाना। तुम्हें मेरा आदर करना है क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर, “मैं हूँ।”
\s5
\v 33 तुम्हारे देश में वास करने वाले परदेशियों पर अत्याचार नहीं करना।
\v 34 उनके साथ एक साथी नागरिक का सा व्यवहार करना। उनसे अपने बराबर प्रेम रखना। सदा स्मरण रखो कि तुम भी कभी मिस्र देश में परदेशी थे और मिस्री तुम पर अत्याचार करते थे। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा यह आज्ञा देता हूँ।
\s5
\v 35 वस्तुओं को नापने के लिए, गिनने के लिए और उनका भार ज्ञात करने के लिए,
\v 36 तुम्हारी लंबाई-चौड़ाई का नाप, तराजू, बाट और नापने के सब साधन स्वीकृत मानक के हों। मैं तुम्हारा परमेश्वर हूँ जो तुम्हें मिस्र देश से निकाल कर लाया है।
\v 37 मेरी सब आज्ञाओं और विधियों का गंभीरता से पालन करना। मैं यहोवा तुम्हें ये आज्ञाएँ देता हूँ।’”
\s5
\c 20
\p
\v 1 और यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “इस्राएलियों से कह, ‘इस्राएली हो या उनके मध्य वास करने वाला परदेशी, यदि वह अपने शिशु को मोलेक देवता के सम्मुख भेंट चढ़ाए तो वह मार डाला जाए। उसका पत्थरवाह किया जाए।
\s5
\v 3 ऐसे व्यक्ति को मैं त्याग दूँगा कि वह मेरी प्रजा का भाग न हो।
\v 4 यदि उसके नगरवासी मोलेक को चढ़ाई गई उसकी शिशु बलि को अनदेखा करके उसे पत्थरवाह नहीं करते,
\v 5 तो मैं स्वयं उसे और उसके कुल को दंड दूँगा। मेरी आज्ञा है कि उसको समाज से निकाल दिया जाए। इसी प्रकार, वे सब जो मुझसे भक्ति का त्याग कर मोलेक की पूजा करते हैं, मुझ से दंड पाएँगे।
\s5
\v 6 मरे हुओं की आत्माओं से परामर्श खोजने वालों से संपर्क करने वालों या आत्माओं को साध कर भविष्य बताने वालों से संपर्क करने वालों को मैं त्यागता हूँ। उन्हें समाज से निकाल दिया जाए।
\v 7 मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ। इसलिए मेरे सम्मान के निमित्त पवित्र रहो कि मेरी निज प्रजा ठहरो।
\s5
\v 8 मेरी प्रत्येक आज्ञा का पालन करने में सतर्क रहना। मैं यहोवा हूँ जिसने तुम्हें अन्य जातियों से अलग किया है कि तुम मेरा सम्मान करो।
\v 9 यदि कोई अपने पिता या अपनी माता को कोसता है तो वह मार डाला जाए। वह स्वयं अपनी हत्या का दोषी होगा।
\s5
\v 10 यदि कोई किसी की पत्नी के साथ व्यभिचार करे तो वे स्त्री और पुरुष दोनों मार डाले जाएँ।
\v 11 यदि कोई पुरुष अपने पिता की पत्नियों में से किसी एक के साथ सोता है तो वह अपने पिता का अपमान करता है। वे स्त्री और पुरुष दोनों मार डाले जायें। अपनी हत्या के वे ही दोषी होंगे।
\v 12 यदि कोई पुरुष अपनी बहू के साथ सोता है तो वे दोनों मार डाले जाएँ। उन्होंने भलाई को बुराई में बदला है। दोनों मृत्युदण्ड के योग्य हैं।
\s5
\v 13 यदि दो पुरुष साथ सोते हैं तो उनके इस घृणित काम के लिए वे दोनों मार डाले जायें। अपनी हत्या के वे स्वयं दोषी होंगे।
\v 14 यदि कोई पुरुष किसी स्त्री और उसकी माता दोनों से विवाह करता है तो वह कुकर्म है। तीनों को जला कर मार दिया जाए जिससे कि तुम्हारे मध्य कोई ऐसा कुकर्म न करे।
\s5
\v 15 यदि कोई पुरुष पशु के साथ शारीरिक संबन्ध बनाए तो वह पुरुष एवं पशु दोनों मार डाले जाएँ।
\v 16 इसी प्रकार किसी पशु के साथ शारीरिक संबन्ध बनाने वाली स्त्री और वह पशु दोनों को मार डाला जाए। उनकी हत्या उन्हीं के सिर पर हो।
\s5
\v 17 यदि कोई पुरुष अपने पिता या माता की पुत्री के साथ सोता है तो वह अपमानजनक बात है। वे मेरे समाज से निकाल दिए जाएँ। बहन के साथ सोने के कारण वह पुरुष दोषी है।
\v 18 किसी स्त्री के साथ उसके मासिक दिनों के समय सोने पर उन दोनों स्त्री-पुरुष, ने उनका लहू दिखाया है। वे दोनों मेरे समाज से निकाल दिए जाएँ।
\s5
\v 19 अपने पिता या अपनी माता की बहन के साथ कोई न सोए क्योंकि यह एक निकट संबन्धी का अपमान है। वह पुरुष और वह स्त्री दोनों दंड के योग्य हैं।
\v 20 अपनी चाची-ताई के साथ सोने वाले पुरुष और उस स्त्री दोनों को मैं सन्तान रहित मार कर दंड दूँगा।
\v 21 भाई के जीवन काल में उसकी पत्नी से विवाह करके पुरुष घृणित काम करता है। वे दोनों बिना सन्तान मरेंगे।
\s5
\v 22 मेरी सब आज्ञाओं और विधियों का गंभीरता से पालन करना जिससे कि तुम उस देश से निकाले न जाओ जहाँ मैं तुम्हें ले जा रहा हूँ।
\v 23 जिस देश में तुम प्रवेश करोगे उस देश के निवासियों के कार्यों की नकल नहीं करना क्योंकि उनके ऐसे ही घृणित कामों के कारण मैं उनको निकाल दूँगा।
\s5
\v 24 मैंने तुमसे कहा है कि तुम उनके देश पर अधिकार करोगे। मैं तुम्हें वह उपजाऊ देश दूँगा। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ जिसने तुम्हें सब जातियों से अलग कर लिया है।
\v 25 तुम्हें मेरे द्वारा स्वीकार्य तथा अस्वीकार्य पशु-पक्षियों में अन्तर करना सीखना है। इसलिए किसी भी अशुद्ध पशु-पक्षी या रेंगने वाले जीव-जन्तु को खाकर अशुद्ध मत होना।
\s5
\v 26 तुम्हारा जीवन आचरण ऐसा रखो कि मेरे सम्मान के निमित्त एक अलग जाति ठहरो क्योंकि मैं यहोवा स्वयं अलग हूँ। और सब कुछ अपने नाम के लिए ही करता हूँ। मैंने तुम्हें सब जातियों में से चुन कर अलग किया है क्योंकि तुम मेरे हो।
\s5
\v 27 तुममें जो भी मरे हुओं की आत्माओं या अन्य किसी आत्मा से संपर्क साधे उसे पथरवाह करके मार डालो। उनकी हत्या उन्हीं के सिर पर हो।’”
\s5
\c 21
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, “हारून के पुत्रों से, जो याजक हैं, यह कह,
\v 2 तुम याजकों को शव का स्पर्श करके मेरी सेवा में अयोग्य नहीं होना है। तुम केवल अपने निकट संबन्धियों के शवों का स्पर्श कर सकते हो जैसे माता-पिता, भाई, पुत्र-पुत्री।
\v 3 यदि तुम्हारी बहन अविवाहित है तो उसके शव का तुम स्पर्श कर सकते हो क्योंकि वह तुम्हारे घर में रहती है। और उसके लिए उसका पति नहीं है।
\s5
\v 4 परन्तु अन्य किसी भी परिजन के शव का स्पर्श करके मेरी सेवा में अयोग्य होना तुम्हारे लिए वर्जित है।
\v 5 तुम याजकों को सिर नहीं मुंडाना है और न ही दाढ़ी के बालों को कतरें, न ही किसी संबन्धी की मृत्यु पर शरीर को काट कर विलाप करें।
\v 6 तुम्हारा आचरण ठीक वैसा ही हो जैसा मैं तुम्हारा परमेश्वर अपने याजकों के लिए उचित समझता हूँ। तुम्हें मेरा अपमान नहीं होने देना है। तुम ही तो हो जो मेरे लिए होम-बलि चढ़ाओगे। यह बलि तुम्हारे खाने की वस्तुओं की होगी। इसलिए तुम्हें मेरे नाम के योग्य आचरण रखना है।
\s5
\v 7 याजक होने के नाते तुम न तो वैश्याओं से और न ही विधवाओं से विवाह करोगे क्योंकि याजक मेरे लिए अलग किए जा चुके हैं।
\v 8 तुम्हें स्मरण रखना है कि मैंने तुम्हें अपनी उपासना के निमित्त अलग कर लिया है। यह ऐसा है जैसे कि तुम अपने परमेश्वर अर्थात मेरे लिए भोजन परोस रहे हो। अपने को मेरी सम्पदा समझो क्योंकि मुझ यहोवा ने तुम्हें याजक नियुक्त किया है। और मेरा पाप से कोई संबंध नहीं- मैं पवित्र हूँ।
\v 9 यदि किसी याजक की पुत्री वैश्या हो तो उसे जला कर मार दिया जाए क्योंकि वह अपने पिता का अपमान करवाती है।
\s5
\v 10 प्रधान याजक अपने संबन्धियों में से चुन कर सेवा में नियुक्त किया गया है और उसके सिर पर जैतून के तेल से अभिषेक किया गया है। वह उन वस्त्रों को धारण करता है जो यहोवा के सम्मान में तैयार करके अलग किए गए हैं। उनके सिर के बाल सदैव कंघी किए हुए हों। वह किसी के लिए विलाप करते समय अपने वस्त्र न फाड़ें।
\v 11 जिस स्थान में शव रखा हो उस स्थान में वह प्रवेश न करे। ऐसा करके वह सेवा के अयोग्य न हो। चाहे शव उसकी माता का हो या उसके पिता का।
\v 12 वह पवित्र-तम्बू से निकल कर विलाप करने वालों के साथ न हो क्योंकि ऐसा करके वह सेवा में अयोग्य हो जाएगा और पवित्र-तम्बू को भी अशुद्ध कर देगा। वह पवित्र-तम्बू से कभी भी बाहर न निकले क्योंकि जैतून के तेल के अभिषेक के द्वारा वह अपने परमेश्वर की सेवा के लिए पवित्र-तम्बू में रखा गया है। मैं यहोवा ही हूँ जो तुम्हें यह आज्ञा देता है।
\s5
\v 13 याजक जिस स्त्री से विवाह करें उसका कुंवारी होना आवश्यक है।
\v 14-15 याजक विधवाओं, वैश्याओं या तलाक दी हुई स्त्रियों से विवाह न करें क्योंकि ऐसी स्त्रियों से उत्पन्न तुम्हारे पुत्र तुम्हारी प्रजा के याजक नहीं हो सकते। इसलिए अपने समुदाय की कुंवारियों से ही विवाह करना। मुझ यहोवा ने मेरे सम्मान और मेरे उपासकों के लिए याजकों को अलग किया है।’”
\s5
\v 16 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 17 हारून से कह, ‘तेरे वंशजों में से जिसके भी शरीर में किसी प्रकार की विकलांगता हो वह बलि चढ़ाने के लिए वेदी के निकट न आए क्योंकि बलि मेरे भोजन के समान है।
\s5
\v 18 अंधा, लंगड़ा, कुरूप या विकृत चेहरे वाला कोई भी
\v 19 टुंडा, लंगड़ा
\v 20 कुबड़ा, बौना, खराब आँखों वाला, चर्मरोगी, क्षतिग्रस्त गुप्तांग वाला आदि कोई भी मेरे निकट सेवा के योग्य न रहे।
\v 21 प्रथम प्रधान याजक, हारून का कोई भी वंशज, जिसमें शारीरिक दोष हो, अपने परमेश्वर यहोवा अर्थात मेरे लिए होम-बलि चढ़ाने न आए।
\s5
\v 22 परन्तु याजक मुझे चढ़ाए गए भोजन खा सकते हैं।
\v 23 पवित्र-तम्बू के परदे के निकट या वेदी के निकट आना उनके लिए मना है क्योंकि उनके ऐसा करने से मेरा पवित्र-तम्बू अशुद्ध हो जाएगा। मैं यहोवा हूँ जिसने इन स्थानों को अपने सम्मान के लिए अलग कर लिया है।’”
\v 24 इसलिए मूसा ने हारून और उसके पुत्रों वरन् सब इस्राएलियों को यहोवा की यह आज्ञा सुना दी।
\s5
\c 22
\p
\v 1 और फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “हारून और उसके पुत्रों को समझा दे कि वे इस्राएलियों द्वारा मुझे चढ़ाए गए समर्पित भोजन को कब स्पर्श न करें और न खाएँ। वे न तो मेरा और न ही मेरे नाम का अपमान करें। मैं यहोवा हूँ।
\v 3 उनसे कह दे कि भविष्य में कभी भी वे या उनके वंशज किसी भी कारणवश याजकीय सेवा में अयोग्य हो जाएँ तो वे इस्राएलियों द्वारा मेरे लिए लाई गई समर्पित बलियों के निकट न जाएँ। जो कोई मेरी इस आज्ञा का उल्लंघन करे वह समाज से निकाल दिया जाए। मैं यहोवा हूँ।
\s5
\v 4 हारून के वंशजों में जिसे चर्मरोग हो या गुप्तांगों में किसी प्रकार का रिसाव हो तो वह स्वस्थ होने तक कोई भी भेंट की पवित्र वस्तु न खाए। यदि वह शव के संबंध में आई हुई किसी वस्तु का स्पर्श करे या जिस का वीर्य स्खलित हुआ उसका स्पर्श करे, तो वह याजकीय सेवा के योग्य नहीं रहेगा।
\v 5 या भूमि पर रेंगने वाले किसी जन्तु के स्पर्श में आया हो या किसी ऐसे व्यक्ति के स्पर्श में आया हो कि सेवा के योग्य न रहे।
\v 6 किसी अशुद्ध के स्पर्श में आने के कारण याजक संध्याकाल तक अशुद्ध रहेगा। वह जब तक पानी से स्नान न करे, किसी भी पवित्र वस्तु को न खाए।
\s5
\v 7 सूर्यास्त के बाद वह पवित्र भेंटों में से खा सकता है क्योंकि वे वस्तुयें उसके भोजन की हैं।
\v 8 यदि कोई पशु प्राकृतिक रूप से मरे या वनपशु द्वारा मारा जाए उसे वह कदापि न खाए। यदि वह ऐसा करे तो वह मेरी सेवा के योग्य नहीं है। मैं यहोवा ये आज्ञाएँ देता हूँ।
\v 9 याजक मेरी आज्ञाओं का पालन करें। उनका तिरस्कार करें तो वे दोषी होकर मर जाएँगे। मैं यहोवा हूँ जिसने उन्हें अपने सम्मान के निमित्त अलग किया है।
\s5
\v 10 जो याजकों के परिवार का सदस्य नहीं है उसे पवित्र भेंटों में से खाने की अनुमति नहीं है। याजक का अतिथि या वैतनिक सेवक पवित्र वस्तुओं को खाने न पाए।
\v 11 यदि याजक ने किसी दास को मोल ले लिया है या दास उसके कुटुम्ब में जन्मा है तो वह उन्हें खा सकता है।
\s5
\v 12 यदि याजक की पुत्री का विवाह किसी ऐसे पुरुष से हुआ है जो याजक नहीं है तो उसे भी पवित्र वस्तुओं को खाने की अनुमति नहीं है- अर्थात् यहोवा को चढ़ाई गई भेंट या बलि।
\v 13 यदि याजक की स्त्री बिना सन्तान विधवा हो गई या उसे तलाक दे दिया गया है और वह अपने पिता के घर में अविवाहित स्थिति जैसी रहती है तो वह उस भोजन को खा सकती है जो उसका पिता खाता है। अन्य कोई भी उन वस्तुओं को खाने का अधिकार नहीं रखता है।
\s5
\v 14 यदि कोई भूल से पवित्र वस्तु खा ले तो वह याजक को उसका मूल्य चुकाए और उसके अतिरिक्त पाँचवा भाग और दे।
\v 15 जब इस्राएलियों द्वारा लाई गई पवित्र भेंटें याजक को सौंपते हैं कि वह उन्हें मेरे लिए चढ़ाए तब वे उन्हें मेरे लिए विशेष न समझने की भूल न करें।
\v 16 इस्राएली याजक के अतिरिक्त अन्य किसी को भी उन भेंटों में से न खाने दें। यदि वे ऐसा न करें तो वे दोषी होंगे। मैं यहोवा हूँ जिसने इस्राएलियों को अन्य जातियों से अलग किया है और अपने सम्मान के लिए उन्हें पवित्र किया है।”
\s5
\v 17 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 18 “हारून और उसके पुत्रों से वरन् सब इस्राएलियों से कह दे कि यह मेरी आज्ञा है, ‘यदि तुम में से कोई भी या परदेशी जो तुम्हारे मध्य वास करता है, मेरे लिए होम-बलि लाता है, चाहे वह मन्नत मानने की हो या स्वेच्छा बलि हो,
\v 19 तो वह तुम्हारे गाय, बैलों, भेड़ों, बकरियों में से निर्दोष पशु ही हों कि मैं उन्हें ग्रहण करूँ।
\s5
\v 20 ऐसे पशु कभी मत लाना जिनमें दोष हों क्योंकि उन्हें मैं कभी ग्रहण नहीं करूँगा।
\v 21 इसी प्रकार जब कोई अपने गाय-बैलों, भेड़-बकरियों में से मेल-बलि के लिए पशु लाता है कि मन्नत पूरी करे या स्वेच्छा बलि चढ़ाए तो उन्हें मेरे लिए ग्रहणयोग्य होने के लिए निर्दोष होना है।
\s5
\v 22 अंधा, घायल, लंगड़ा या जिसमें रसौली हो या खुजली हो उसे बलि मत करना।
\v 23 स्वेच्छा बलि के लिए तुम घायल या अविकसित बछड़ा या भेड़ चढ़ा तो सकते हो परन्तु तुम्हारी मन्नत कभी नहीं मानी जायेगी।
\s5
\v 24 तुम खस्सी पशु अर्थात् अंडकोश क्षतिग्रस्त पशु बलि नहीं करना, चाहे तुम देश में कहीं भी वास करते हो।
\v 25 परदेशियों से ऐसे पशु मोल भी नहीं लेना। मेरे भोजन के लिए ऐसे पशु मत चढ़ाना क्योंकि मैं विकृत या दोषपूर्ण पशु को ग्रहण नहीं करूँगा।’”
\s5
\v 26 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 27 “बछड़ा या मेम्ना या बकरी का बच्चा जन्म के सात दिन बाद तक माँ के पास रहे इसके बाद वह मेरे लिए होम-बलि के लिए लाया जा सकता है।
\s5
\v 28 गाय या भेड़ को उसके नवजात बच्चे के साथ एक ही दिन बलि मत चढ़ाना।
\v 29 मेरे उपकार के आभार में जब तुम धन्यवाद की बलि चढ़ाओ तो उसमें तुम्हारी विधि मेरी आज्ञा के अनुसार हो।
\v 30 उसका माँस उसी दिन खा लेना। उसे अगले दिन सुबह के लिए भी मत रखना। मैं यहोवा ही यह आज्ञा देता हूँ।
\s5
\v 31 मेरी सब आज्ञाओं का पालन करना। मैं यहोवा ही इन आज्ञाओं को देने वाला हूँ।
\v 32 मेरी अवज्ञां करके मेरा अपमान नहीं करना। तुम इस्राएलियों को स्वीकार करना है कि मैं यहोवा पवित्र हूँ और मैं ही तुम्हें पवित्र करता हूँ।
\v 33 मैं ही तुम्हें मिस्र देश से निकाल कर लाया हूँ कि मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर ठहरूँ।
\s5
\c 23
\p
\v 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “इस्राएलियों को यहोवा के उत्सवों के बारे में भी समझा दे- तुम सब को प्रतिवर्ष निश्चित समय उत्सव के लिए पवित्र सभाओं में मेरी उपासना के लिए एकत्र होना है।
\s5
\v 3 तुम सप्ताह में छः दिन काम करना परन्तु सातवें दिन तुम किसी प्रकार का काम नहीं करोगे। उस दिन तुम केवल विश्राम करोगे। वह एक दिन पवित्र है जिसमें तुम मेरी उपासना के लिए एकत्र होगे। तुम जहाँ भी रहो, उस दिन तुम्हें विश्राम करना है।
\s5
\v 4 मैं तुम्हारे लिए जो उत्सव दिवस निश्चित करता हूँ वे ये हैं, जब तुम्हें मेरी उपासना के लिए एकत्र होना है।
\v 5 पहला उत्सव फसह का है। यह उत्सव वसन्त ऋतु में निश्चित दिवस के संध्या समय आरंभ होकर अगले दिन समाप्त होगा।
\v 6 अगले दिन अखमीरी रोटी का उत्सव आरंभ होगा जो सात दिन तक रहेगा। इन सातों दिन तुम खमीर रहित रोटी खाओगे।
\s5
\v 7 इस उत्सव के पहले दिन तुम सब अपने दैनिक कार्यों से अवकाश लेकर मेरी उपासना के लिए एकत्र होगे।
\v 8 इन सातों दिनों में तुम प्रतिदिन अनेक पशुओं को होम-बलि करोगे। सातवें दिन तुम सब फिर से सब कामों को छोड़कर मेरी उपासना के लिए एकत्र होगे।”
\s5
\v 9 यहोवा ने मूसा को अन्य उत्सवों के बारे में भी कहा कि वह इस्राएलियों को निर्देश दे। यहोवा ने कहा,
\v 10 “जब तुम उस देश में पहुँच जाओ जो मैं तुम्हें देता हूँ और जब तुम वहाँ अपनी पहली फसल लगाओ तब कटनी के पहले अन्न का एक भाग याजक के पास ले आना।
\v 11 याजक उसे आने वाले सब्त के अगले दिन ऊपर उठा कर मुझे समर्पित करेगा कि मैं उसे ग्रहण करूँ।
\s5
\v 12 उसी दिन तुम मेरे लिए एक वर्ष का नर मेम्ना बलि करोगे जो निर्दोष हो। उसे तुम वेदी पर पूरा जला दोगे।
\v 13 इसके साथ तुम अन्न-बलि भी होम करोगे जिसमें 4.5 किलो मैदा, जैतून में गूंधा हुआ आटा। जब इनके जलने की सुगंध मुझ तक पहुँचेगी तब मैं प्रसन्न हो जाऊँगा। इसके साथ एक लीटर दाखमधु का अर्घ करना।
\v 14 उस दिन जब तक तुम मुझे, अपने परमेश्वर को यह सब भेंट न चढ़ा चुको तब तक न तो रोटी खाना और न ही सिंका हुआ या बिना सिंका अन्न खाना। तुम और तुम्हारे वंशज जहाँ भी रहें, मेरी इन आज्ञाओं का पालन करें।
\s5
\v 15 याजक जब गेहूँ के उस पूले को चढ़ा दे तब सात सप्ताह और एक दिन गिनना।
\v 16 तब उस सातवें सब्त के अगले दिन प्रत्येक परिवार मेरे लिए नई फसल के अन्न से भेंट लेकर आए।
\s5
\v 17 अपने-अपने घर से याजक के पास दो रोटियाँ लेकर भी आना। वह उसे ऊपर उठा कर मेरे लिए भेंट अर्पित करेगा। ये रोटियाँ 4.5 किलोग्राम आटे से बनाई जाएँ जिनमें खमीर डला हो। वे रोटियाँ तुम्हारे प्रतिवर्ष के नए आटे की होंगी।
\v 18 इन रोटियों के साथ तुम मेरे लिए एक वर्षीय सात निर्दोष मेम्ने, एक बछड़ा और दो मेढ़े चढ़ाओगे। वे सब वेदी पर पूरे जलाए जाएँ। यह सब भेंटों, अन्न-बलि तथा दाखमधु का अर्घ जलने पर मेरे लिए अच्छे सुगंध होंगे।
\s5
\v 19 तब एक बकरा तुम्हारे पापों के लिए बलि किया जाए और दो एक वर्ष के दो नर मेम्ने मेरे लिए प्रतिज्ञा की मेल-बलि किए जाएँ।
\v 20 याजक उन्हें ऊँचा उठा कर मेरे निमित्त समर्पित करे। तुम्हारी फसल की पहली कटनी के आटे की रोटियाँ भी चढ़ाना। ये भेंटें मेरे लिए विशिष्ट हैं और याजक की होंगी।
\v 21 उस दिन तुम अपने सब कामों को छोड़कर मेरी उपासना के लिए एकत्र होगे। तुम और तुम्हारे वंशज जहाँ भी वास करें मेरी इन सब आज्ञाओं का पालन करें।
\s5
\v 22 जब तुम अपनी फसल काटो तब खेत के छोर की फसल नहीं काटना और फसल काटने वालों से जो बालें भूमि पर गिरें उन्हें मत उठाना। उन्हें दरिद्रों एवं तुम्हारे मध्य वास करने वाले परदेशियों के लिए रहने दो। स्मरण रखो कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हें ये आज्ञाएँ दे रहा हूँ।”
\s5
\v 23 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 24 “इस्राएलियों से कह, ‘प्रतिवर्ष सातवें महीने के पहले दिन तुम सब त्यौहार मनाना और उस दिन तुम पूर्ण विश्राम करोगे। उस दिन तुम किसी प्रकार का काम नहीं करोगे। जब याजक तुरहियाँ फूँके तब तुम सब मेरी उपासना के लिए पवित्र सभा में उपस्थित होना।
\v 25 उस दिन कोई भी दैनिक कार्य नहीं करे। इसकी अपेक्षा तुम मेरे लिए होम-बलि चढ़ाना।”
\s5
\v 26 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 27 “तुम्हें पाप क्षमा का दिन भी मनाना है, उस दिन तुम मुझ से अपने पापों की क्षमा माँगोगे। यह दिन याजकों द्वारा तुरहियाँ फूँकने के दिन के बाद नौवां दिन होगा। उस दिन तुम कुछ नहीं खाओगे। तुम सब मेरी उपासना के लिए एकत्र होगे और मेरे लिए होम-बलि चढ़ाओगे।
\s5
\v 28 उस दिन तुम कोई काम नहीं करोगे क्योंकि वह प्रायश्चित दिवस होगा जब याजक तुम्हारे पापों के प्रायश्चित के लिए मुझे बलि चढ़ाएँगे।
\v 29 उस दिन यदि कोई उपवास न रखे तो वह समाज से निकाल दिया जाए।
\s5
\v 30 उस दिन जो मनुष्य काम करेगा उससे मैं छुटकारा पा लूँगा।
\v 31 तुम किसी भी प्रकार का काम नहीं करोगे। तुम और तुम्हारे वंशज जहाँ कहीं भी हों मेरी इन आज्ञाओं का पालन करोगे।
\v 32 वह दिन सब के लिए पूर्ण विश्राम का दिन होगा। उस दिन तुम उपवास रख कर अपने पापों के लिए दुख प्रकट करोगे। उपवास और विश्राम का वह दिन तुम्हारे प्रायश्चित के दिन से एक दिन पूर्व संध्याकाल से आरंभ होगा। और अगले दिन संध्याकाल समाप्त होगा।”
\s5
\v 33 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 34 “इस्राएलियों से कह, कि उन्हें प्रतिवर्ष झोपड़ियों का त्यौहार मनाना अनिवार्य है। यह त्यौहार प्रायश्चित दिवस के पाँच दिन बाद आरंभ होगा और सात दिन तक रहेगा।
\s5
\v 35 उस त्यौहार के पहले दिन सब इस्राएली हर एक काम छोड़कर मेरी उपासना के लिए एकत्र होंगे।
\v 36 इस त्यौहार के सात दिनों में से प्रत्येक दिन वे मेरे लिए पशुओं की होम-बलि चढ़ाएँगे। आठवें दिन वे पवित्र सभा में उपस्थिति होंगे और मेरी उपासना करेंगे और मेरे लिए एक और पशु होम-बलि करेंगे। यह सभा भी पवित्र होगी और वे उस दिन किसी प्रकार का काम नहीं करेंगे।
\s5
\v 37 सारांश में ये सब मेरे द्वारा नियुक्त त्यौहार हैं। इन त्यौहारों में सब एकत्र होकर मेरे लिए विभिन्न बलियाँ चढ़ा कर उत्सव मनाएँ। ये बलियाँ होंगीः होम-बलि, अन्न-बलि, मेल-बलि और अर्घ चढ़ाना। हर एक बलि मेरे द्वारा निर्धारित किए गए दिन पर लाई जाए।
\v 38 इन त्यौहारों का मनाया जाना सब्त दिनों के अतिरिक्त हो। ये सब बलियाँ स्वेच्छाबलियों के अतिरिक्त होंगी और मन्नतों की बलियों से भी अलग होंगी।
\s5
\v 39 अब झोपड़ियों के त्यौहार के विषय है कि यह त्यौहार कटनी समाप्त होने के बाद मनाया जाए। इस त्यौहार के पहले दिन और अंतिम दिन तुम पूर्ण रूप से विश्राम करोगे।
\s5
\v 40 परन्तु पहले दिन तुम्हें अनुमति है कि अपने वृक्षों के सब से अच्छे फल तोड़ो। तुम खजूर के वृक्षों की डालियाँ, अन्य वृक्षों की पत्तों वाली डालियाँ और सोतों के निकट उगने वाले वृक्षों की टहनियाँ जिनसे टोकरियाँ बनाई जाती हैं आदि सब लेकर एक सप्ताह तक रहने के लिए झोपड़ियाँ बनाना और सातों दिन मेरी उपस्थिति में आनंद मनाना।
\v 41 तुम प्रति वर्ष सात दिन तक यह त्यौहार मनाओगे। तुम और तुम्हारे वंशज जहाँ भी रहें, मेरी इन आज्ञाओं का पालन करें। इस त्यौहार को तुम सातवें महीने में मनाना।
\s5
\v 42 इस त्यौहार के सातों दिन तुम सब जो इस्राएली हों झोपड़ियों में रहोगे।
\v 43 यह त्यौहार तुम्हारे वंशजों को स्मरण कराएगा कि उनके वंशज अनेक वर्ष झोपड़ियों में रहे जब मैं उन्हें मिस्र से मुक्ति दिलाकर लाया था। तुम कभी मत भूलना कि मैं यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर ही तुम्हें यह आज्ञा देता हूँ।”
\v 44 इसलिए मूसा ने इस्राएलियों को उन सब त्यौहारों से संबंधित निर्देश दे दिए जिन्हें यहोवा चाहता था कि वे प्रतिवर्ष मनाएँ।
\s5
\c 24
\p
\v 1 और फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 इस्राएलियों को आज्ञा दे कि पवित्र-तम्बू में दीपों को लगातार जलाए रखने के लिए वे जैतून के अति शुद्ध तेल की भरपूरी से न चूकें।
\s5
\v 3 परम पवित्र स्थान के परदे के बाहर मेरी उपस्थिति में दीपों को पूरी रात जलते रखने के लिए हारून उनकी देखरेख करे। इस आज्ञा का पालन सदैव किया जाए।
\v 4 मेरी उपस्थिति में जलने वाले दीपों की देखरेख करना याजक का एक सदा का उत्तरदायित्व है।
\s5
\v 5 यह भी कि प्रति सप्ताह 4.5 किलोग्राम मैदा प्रति रोटी के अनुसार बारह रोटियाँ पकाई जाएँ।
\v 6 ये रोटियाँ छः का चट्ठा लगा कर सोने की मेज़ पर मेरे सम्मुख रखी जाएँ।
\s5
\v 7 उस सोने की मेज़ पर प्रत्येक चट्ठे पर शुद्ध धूप जलाना जो रोटियों के स्थान पर मेरे लिए भेंट होगी।
\v 8 प्रति सब्त दिवस याजक मेज़ पर ताजी रोटियाँ रखे कि मैंने इस्राएलियों के साथ जो वाचा बाँधी है उसके कभी न समाप्त होने का प्रतीक हो।
\v 9 जब ये रोटियाँ मेज़ पर से हटाई जाएँ तो वे हारून और उसके पुत्रों की होंगी और वे उन रोटियों को इस उद्देश्य निमित्त निश्चित स्थान पर ही खाएँ क्योंकि वे मेरी होम-बलि का ही एक भाग है।
\s5
\v 10-11 उस दिन ऐसा हुआ कि शेलोमइथ नामक एक स्त्री जो दानवंशी इब्री की पुत्री थी, उसका पुत्र एक मिस्री से उत्पन्न हुआ था। यह युवक एक इस्राएली युवक के साथ छावनी में लड़ने लगा। लड़ते-लड़ते इस युवक ने यहोवा को धिक्कारा।
\v 12 इस्राएलियों ने उसे पकड़ कर बन्द कर दिया कि उसके बारे में यहोवा से आदेश पाएँ।
\s5
\v 13 यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 14 “मुझे धिक्कारने वाले इस युवक को बांध कर छावनी के बाहर ले जाओ और जितनों ने उसके बुरे शब्द सुने हैं वे उसके सिर पर हाथ रखें कि उसका दोषी होना प्रकट हो और उसे पत्थरवाह करके मार दिया जाए।
\s5
\v 15 इस्राएलियों से कह, ‘यदि कोई मुझे धिक्कारे तो परिणाम वही भोगे।
\v 16 इसलिए मुझे धिक्कारने वाले को मृत्यु दंड दिया जाए। वह चाहे इस्राएली हो या परदेशी, उसे पत्थरवाह किया जाए।
\s5
\v 17 यह भी कि यदि कोई किसी की हत्या करे तो उसे मार डाला जाए।
\v 18 यदि कोई किसी के पशु को मार डाले तो वह उसके स्थान में उस मरे हुए पशु के स्वामी को दूसरा जीवित पशु दे।
\s5
\v 19 यदि कोई किसी को घायल करे तो जो मनुष्य घायल किया गया वह घायल करने वाले को वैसे ही घायल कर दे।
\v 20 यदि कोई मनुष्य दूसरे मनुष्य की हड्डी तोड़ दे तो वह भी उस मनुष्य की हड्डी तोड़ दे। यदि कोई मनुष्य किसी की आँख फोड़ दे तो वह उसकी भी आँख फोड़ दे। यदि कोई मनुष्य किसी का दांत तोड़ दे तो वह भी उसका दांत तोड़ दे। जैसे को तैसा ही प्रतिफल दिया जाए।
\v 21 पशु की हत्या के बदले जीवित पशु दिया जाए। परन्तु मनुष्य के हत्यारे को मृत्यु दंड दिया जाए।
\s5
\v 22 इस्राएली हो या इस्राएलियों के मध्य वास करने वाले परदेशी सब के लिए एक ही नियम है। मैं यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर यह आज्ञा देता हूँ।
\v 23 तब मूसा ने इस्राएलियों को निर्देश दे दिया कि यहोवा को धिक्कारने वाले के साथ क्या किया जाए। इसलिए वे उस युवक को शिविर के बाहर ले गए और पत्थरवाह कर दिया। उन्होंने वही किया जो यहोवा ने मूसा के माध्यम से उन्हें आदेश दिया था।
\s5
\c 25
\p
\v 1 सीनै पर्वत के ऊपर यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “इस्राएलियों से कह कि यहोवा उन्हें ये आज्ञाएँ देता हैः जब तुम उस देश में प्रवेश करो जो यहोवा तुम्हें देने जा रहा है, तब तुम प्रत्येक सातवें वर्ष भूमि को विश्राम दोगे अर्थात उस वर्ष तुम फसल नहीं उगाओगे।
\s5
\v 3 छः वर्ष तुम अपने खेतों में फसल उगाओगे, अपनी दाख उतारोगे, फसल काटोगे।
\v 4 परन्तु सातवें वर्ष अपनी भूमि को विश्राम देकर यहोवा का मान रखोगे। उस वर्ष तुम न तो खेती करोगे और न ही दाख उतारोगे।
\s5
\v 5 सातवें वर्ष तुम्हारे खेतों में जो अन्न उगे उसे काटने के लिए मजदूर नहीं लगाना और न ही दाख के फल तोड़ना। भूमि को संपूर्ण वर्ष विश्राम देना।
\v 6 उस वर्ष जो कुछ भी अपने आप उगे वह तुम खा सकते हो। तुम, तुम्हारे दास-दासी, तुम्हारे वैतनिक कर्मी और तुम्हारे मध्य वास करने वाले परदेशी उसे खा सकते हैं।
\v 7 तुम्हारे पशु और जंगली जानवर उस वर्ष उस को खा सकते हैं।
\s5
\v 8-9 उनन्चास वर्ष की समाप्ति पर तुम जयन्ति का उत्सव मनाओगे। अगले वर्ष के सातवें महीने के दसवें दिन संपूर्ण देश में तुरहियाँ फूंककर प्रायश्चित दिवस की घोषणा की जाए।
\s5
\v 10 उस दिन को यहोवा के सम्मान के निमित्त अलग करना। और सर्वत्र, सब लोगों में घोषणा करना कि इस वर्ष भूमि उसके स्वामियों को लौटाए जाने का समय है। यहोवा की प्रजा के जो दास हैं वे भी इस समय स्वतंत्र किए जाएँ।
\s5
\v 11 यह पचासवाँ वर्ष जो जयन्ति वर्ष होगा, उसमें तुम आनंद मनाओगे और यहोवा की आज्ञाओं का पालन करोगे। उस वर्ष न तो खेती की जाए और न ही बागवानी की जाए। न ही फसल और दाख जो अपने आप उगे, उसे एकत्र किया जाए।
\v 12 वह आनंद मनाने का वर्ष होगा- जयन्ति वर्ष। वह विशिष्ट समय माना जाए और जो कुछ अपने आप उगे वही खाना।
\s5
\v 13 जयन्ति वर्ष अर्थात महोत्सव के वर्ष में संपदा उसके अधिकृत स्वामी को लौटा दी जाए।
\v 14 यदि किसी ने किसी इस्राएली को भूमि बेची है या भूमि खरीदी है तो उसका निष्पक्ष लेनदेन किया जाए।
\s5
\v 15 यदि तुम भूमि खरीदते हो उसका मूल्य अगले जयन्ति वर्ष तक के वर्षों पर निर्भर करेगा। यदि कोई तुम्हें अपनी भूमि बेचता है तो उसका मूल्य आगामी जयन्ति वर्ष तक जितने भी वर्ष शेष हैं उसके अनुसार निश्चित किया जाएगा। क्योंकि उस वर्ष भूमि उसके स्वामी को लौटा दी जाएगी।
\v 16 यदि जयन्ति वर्ष बहुत दूर है तो भूमि का मूल्य अधिक होगा परन्तु यदि जयन्ति वर्ष निकट है तो उसका मूल्य गिर जाएगा। कहने का अर्थ है कि भूमि का मूल्य जयन्ति वर्ष तक प्रतिवर्ष उगने वाली फसल के अनुसार निश्चित किया जाएगा।
\v 17 एक-दूसरे के साथ छल मत करो। इसकी अपेक्षा यहोवा का सम्मान करो। हमारी आराधना का यहोवा ही हमें यह आज्ञाएँ देते हैं।
\s5
\v 18 मेरी सब आज्ञाओं का पालन करने में मत चूकना। ऐसा करके तुम अपने देश में सुरक्षित रहोगे।
\v 19 उस देश में तुम्हारी खेती फूलेगी-फलेगी। और तुम्हारे पास भोजन वस्तुओं की बहुतायत होगी।
\s5
\v 20 अब तुम पूछोगे, ‘यदि हम सातवें वर्ष खेती न करें तो क्या खाएँगे?
\v 21 यहोवा कहते हैं कि वह छठवें वर्ष इतनी उपज देंगे कि वह तीन वर्ष के लिए पर्याप्त होगी।
\v 22 तुम आठवें वर्ष में बीज डालोगे और फसल आने की प्रतीक्षा करोगे और नौवें वर्ष लवनी करोगे फिर भी छठवें वर्ष की उपज इतनी अधिक होगी कि तुम्हारे खाने के लिए कमी न हो।
\s5
\v 23 तुम किसी को भी अपनी भूमि स्थाई रूप से नहीं बेचोगे। क्योंकि वह तुम्हारी नहीं है। वह वास्तव में मेरी है। तुम उसके कुछ समय के स्वामी होकर मेरे लिए खेती कर रहे हो।
\v 24 संपूर्ण देश में यह बात स्मरण रखी जाए कि यदि कोई किसी को अपनी भूमि बेचता है तो उसे किसी भी समय उसे फिर से खरीद लेने का अधिकार है।
\v 25 इसलिए यदि कोई इस्राएली अपनी गरीबी के कारण अपनी भूमि का एक भाग बेच दे तो उसका निकट संबंधी आकर उसके स्थान पर उसका मूल्य चुकाकर उसे फिर से प्राप्त कर ले।
\s5
\v 26 परन्तु यदि उसके पास ऐसा कोई संबंधी नहीं है तो जब वह आर्थिक रूप से संपन्न हो जाए कि उसके पास उस भूमि को फिर से लेने के लिए पैसों का प्रबंध है तो वह उसे खरीद सकता है।
\v 27 तो वह गिने कि अगले जयन्ति वर्ष तक कितने वर्ष हैं तो वह उतने वर्षों की खेती की आय के अनुसार उस खरीददार को पैसा देकर अपनी भूमि फिर से प्राप्त कर ले।
\v 28 परन्तु यदि उस भूमि के स्वामी के पास इतना पैसा नहीं है कि अपनी भूमि को फिर से खरीद सके तो वह भूमि खरीददार के अधीन जयन्ति वर्ष तक रहेगी। उस वर्ष वह भूमि फिर से उसके अपने स्वामी की हो जाएगी और वह उस पर खेती कर सकेगा।
\s5
\v 29 अब यदि कोई मनुष्य अपने शहरी मकान को जो नगर की चारदीवारी से घिरा है, बेच देता है तो वह अगले वर्ष खरीददार से उसे फिर खरीद सकता है।
\v 30 यदि वह उस वर्ष अपना मकान फिर से प्राप्त करने में अयोग्य है तो वह मकान खरीददार और उसके वंशजों की सदा की संपदा हो जाएगी। उसे जयन्ति वर्ष में उस मकान को उसके स्वामी को लौटाने की आवश्यकता नहीं है।
\s5
\v 31 परन्तु ग्रामीण क्षेत्रों के मकान जो नगर की चारदीवारी में नहीं हैं वे खेतों के तुल्य ही समझे जाएँ। इसलिए ऐसे मकान बेचे जाएँ तो वह किसी भी समय उनके मालिकों द्वारा फिर से मोल लिए जा सकते हैं। यदि जयन्ति वर्ष तक ऐसा कोई मकान उसके स्वामी द्वारा फिर मोल नहीं लिया गया तो जयन्ति वर्ष में वह उसका हो जाएगा।
\v 32 लेवी के वंशजों की बात अलग है। यदि वे अपने शहरी मकान बेच देते हैं तो उन्हें अधिकार है कि वे कभी भी उन्हें फिर से मोल देकर ले लें।
\s5
\v 33 यदि वे अपने मकानों को जयन्ति वर्ष तक फिर से खरीद पाने में सक्षम नहीं तो जयन्ति वर्ष में वे स्वतः ही उनके हो जाएँगे क्योंकि उनके मकान शहरों में उन स्थानों में हैं जो इस्राएलियों ने उन्हें दिए हैं, उनके अपने नगरों में।
\v 34 परन्तु उनके नगरों के निकट जो चारागाहें हैं वे बेची न जायें। वे उनके स्वामियों की सदा की संपदा है।
\s5
\v 35 यदि तुम्हारा कोई इस्राएली भाई गरीब है और वह अपनी आवश्यकता की वस्तुयें नहीं खरीद सकता तो तुम उसकी वैसे ही सहायता करोगे जैसे तुम्हारे मध्य वास करने वाले किसी अस्थायी परदेशी की करते हो।
\v 36 यदि तुम उसे पैसा उधार देते हो तो ब्याज नहीं लेना। अपने कर्मों द्वारा तुम्हें प्रकट करना है कि तुम यहोवा का आदर करते हो। तुम्हें उसकी सहायता करना है कि वह तुम्हारे मध्य वास कर पाए।
\v 37 यदि तुमने उसे पैसा उधार दिया तो ब्याज नहीं लेना और यदि भोजन वस्तुएँ बेचते हो तो उतना ही पैसा लेना जितना तुमने उनकी खरीददारी में लगाया है। उससे लाभ कमाने का प्रयास नहीं करना।
\v 38 मत भूलो कि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा ही है जो तुम्हें ये आज्ञाएँ देता है। वही तो तुम्हें मिस्र देश से निकाल कर लाया है और यह देश तुम्हें दिया है।
\s5
\v 39 यदि तुम्हारा इस्राएली भाई गरीबी के कारण अपने को तुम्हारे हाथों में बेच देता है तो उसके साथ दास का सा व्यवहार नहीं करना।
\v 40 उसके साथ मजदूरों का सा ही व्यवहार करना या तुम्हारे देश में अस्थायी निवासी का सा व्यवहार करना। वह तुम्हारे पास केवल जयन्ति वर्ष तक ही काम करेगा।
\v 41 उस वर्ष तुम उसे स्वतंत्र कर दोगे। और वह अपने परिवार में, अपने पूर्वजों की भूमि में लौट जाएगा।
\s5
\v 42 हम सब इस्राएली एक प्रकार से यहोवा के दास हैं जिन्हें उसने मिस्र के दासत्व से मुक्ति दिलाई है। इस कारण तुम एक-दूसरे को खरीद कर दास नहीं बनाना।
\v 43 खरीदे हुए इस्राएली के साथ निर्दयता का व्यवहार नहीं करना। इसकी अपेक्षा अपने परमेश्वर यहोवा का सम्मान करो।
\v 44 यदि तुम दास रखना चाहते हो तो अपने आसपास की जातियों में से खरीद सकते हो।
\s5
\v 45 तुम्हारे मध्य वास करने वाले परदेशियों में से भी तुम दास खरीद सकते हो। तुम्हारे देश में जन्मे परदेशियों के कुलों में से भी तुम दास बना सकते हो।
\v 46 वे आजीवन तुम्हारे दास रहें और तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारी संतान उनके स्वामी हो। परन्तु अपने इस्राएली भाइयों के साथ पाशविक व्यवहार नहीं करना।
\s5
\v 47 यदि तुम्हारे मध्य वास करने वाला कोई परदेशी धनवान हो जाता है और एक गरीब इस्राएली स्वयं को दास होने के लिए उसके हाथ या उसके कुल में बेच देता है,
\v 48 तो कोई उसका मोल लौटा कर उसे छुड़ा ले या उसका संबन्धी भी उसका मोल देकर उसे छुड़ा सकता है।
\s5
\v 49 उसका चाचा या ताऊ या चाचा-ताऊ का पुत्र या उसके कुल से अन्य कोई संबन्धी उसको मोल देकर छुड़ा ले।
\v 50 यदि वह स्वयं अपनी मुक्ति का मोल देना चाहे तो वह अगले जयन्ति वर्ष तक के वर्षों की गणना करे और उतने वर्षों के वेतन को जोड़ कर अपने स्वामी को उतना धन देकर मुक्ति पाए।
\s5
\v 51 यदि जयन्ति वर्ष तक बहुत लम्बा समय है तो वह अपनी मुक्ति के लिए अधिक मूल्य चुकाए।
\v 52 यदि जयन्ति वर्ष तक कुछ ही वर्ष हैं तो उसका मुक्ति धन उसी लेखे के अनुसार कम होगा।
\s5
\v 53 जिस समय वह अपने खरीददार की सेवा कर रहा है उस संपूर्ण समय उसको खरीदने वाला उसके साथ मजदूर का सा व्यवहार करे। तुम सब को यह देखना है कि उसका स्वामी उसके साथ निर्दयता का व्यवहार न करे।
\v 54 यदि तुम्हारा इस्राएली भाई जिसने अपने को किसी धनवान के पास दास होने के लिए बेच दिया है, अपनी स्वतंत्रता को किसी भी प्रकार मोल नहीं ले सकता तो वह और उसकी संतान जयन्ति वर्ष में मुक्त कर दिए जाएँ।
\v 55 यह एक प्रकार से ऐसा है कि तुम इस्राएली मेरे दास हो जिन्हें मैं, तुम्हारा परमेश्वर यहोवा, मिस्र के दासत्व से छुड़ा कर ले आया हूँ।
\s5
\c 26
\p
\v 1 सीनै पर्वत पर यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, “तुम मूर्तियाँ नहीं बनाना या गढ़ी हुई मूरतों या पत्थरों को पवित्र मान कर परमेश्वर के समान उनकी उपासना नहीं करना। अपनी भूमि में तराशे हुए पत्थर को रख कर दण्डवत् नहीं करना। तुम्हें केवल मेरी, अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करना है।
\v 2 सब्त के दिनों का सम्मान करना और मेरे पवित्र-तम्बू का मान रखना क्योंकि मैं, यहोवा वहाँ वास करता हूँ।
\s5
\v 3 यदि तुम सच्चे मन से मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे
\v 4 तो मैं उचित समय तुम्हारे लिए वर्षा कराऊँगा जिससे तुम्हारी खेती फले और तुम्हारे वृक्षों में बहुत फल लगें।
\s5
\v 5 तुम अपनी फसलों को काटोगे और दांवनी करोगे जब तक कि दाख की उपज तैयार न हो और दाख की उपज तब तक रहेगी जब तक अगले वर्ष के लिए तैयारी न करो। तुम्हारे पास भोजन की भरपूरी होगी। और तुम इस देश में सुरक्षित रहोगे।
\v 6 यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे तो तुम्हारे देश में और तुम्हारे सोते समय शान्ति का वातावरण बना रहेगा। तुम्हें किसी बात का भय नहीं होगा। मैं तुम्हारे देश से भयानक पशुओं को निकाल दूँगा। और तुम्हारे देश में युद्ध भी नहीं होगा।
\s5
\v 7 तुम अपने शत्रुओं का पीछा करके उन्हें तलवार से मार गिराओगे।
\v 8 एक सौ शत्रुओं को तुम पाँच ही खदेड़ दोगे। और यदि तुम्हारे शत्रु हजारों की संख्या में हों तो तुम सौ ही उन्हें खदेड़ने और घात करने के लिए पर्याप्त होगे।
\s5
\v 9 यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे तो मैं तुम्हें आशीष दूँगा और तुम्हारी सन्तान को बढ़ाऊँगा और अपनी वाचा की पूर्ति करूँगा।
\v 10 तुम पिछले वर्ष की फसल खाते रहोगे और जब नई फसल आ जाएगी तो उसे रखने के लिए पुरानी फसल हटा कर स्थान बनाने की आवश्यकता पड़ेगी।
\s5
\v 11 मैं अपने पवित्र-तम्बू में तुम्हारे मध्य वास करूँगा। और तुम्हें कभी नहीं त्यागूँगा।
\v 12 मैं तुम्हारे मध्य वास करूँगा और सदा तुम्हारा परमेश्वर रहूँगा और तुम सदा मेरे लोग होगे।
\v 13 मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ जो तुम्हें मिस्र देश से निकाल लाया कि उनके दास न बने रहो। वहाँ तुम्हारी दशा पशुओं की सी थी जो मिस्रियों के लिए खेत जोत रहे थे परन्तु मैंने तुम्हारी गर्दनों पर से उनके जूए तोड़ दिए। मैंने तुम्हें सिर उठा कर जीने योग्य किया।
\s5
\v 14 परन्तु यदि तुम मुझ पर ध्यान न दो और मेरी आज्ञाओं को मानने से इन्कार करो,
\v 15 मेरे आदेशों और आज्ञाओं को तुच्छ समझो और मेरी आज्ञापालन न करो, और तुम्हारे साथ बाँधी गई मेरी वाचा का त्याग करो,
\s5
\v 16 तो मैं तुम्हारे साथ जो व्यवहार करूँगा, वह यह हैः मैं तुम पर विपत्तियाँ डालूँगा जिनसे तुम नष्ट हो जाओगे। तुम्हें भयंकर रोग लगेंगे। तुम्हारे लिए खेती करना व्यर्थ होगा क्योंकि शत्रु तुम्हारी फसलों को लूट लेंगे।
\v 17 मैं तुम्हें त्याग दूँगा और परिणामस्वरूप शत्रु तुम पर विजयी होंगे। वे तुम पर राज करेंगे और तुम भयभीत होकर भागोगे। जबकि वे तुम्हारा पीछा नहीं करेंगे।
\s5
\v 18 इन सब विपत्तियों के उपरान्त भी यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करने से इन्कार करो तो मैं तुम्हारे पापों का दंड देता रहूँगा।
\v 19 मैं तुम्हें इतना अधिक दंड दूँगा कि तुम्हारा हठ और घमंड चूर-चूर हो जाएगा।
\v 20 मैं तुम्हारे देश में वर्षा नहीं होने दूँगा। आकाश लोहा और भूमि पीतल के जैसे कठोर हो जाएँगे।
\s5
\v 21 बीज डालने के लिए तुम्हारा कठोर परिश्रम व्यर्थ हो जाएगा। क्योंकि कठोर भूमि पर खेती नहीं होगी और वृक्षों में फल नहीं लगेंगे।
\v 22 यदि तुम फिर भी मेरे विरूद्ध होकर मेरी आज्ञाओं को नहीं मानोगे तो मैं तुम पर विपत्तियाँ आने दूँगा। जिनका कारण तुम्हारे पाप होंगे। मैं वन पशुओं द्वारा तुम्हे नष्ट कराऊँगा। वे तुम्हारे बच्चों को मार डालेंगे और तुम्हारे पशुओं को खा जाएँगे। परिणामस्वरूप बहुत कम लोग जीवित बचेंगे कि तुम्हारी सड़कों पर चलते-फिरते दिखाई दें।
\s5
\v 23 जब तुम मेरे दंड का अनुभव करके भी मेरी ओर ध्यान नहीं दोगे और मेरे विरूद्ध व्यवहार करोगे
\v 24 तो मैं स्वयं ही तुम्हारा विरोध करके दंड पर दंड देता रहूँगा।
\s5
\v 25 मैंने तुम्हारे साथ वाचा बाँधी और तुमने उसकी आज्ञाओं को नहीं माना तो मैं तुम्हें दंड देने के लिए शत्रुओं की सेनाएँ भेजूँगा और यदि तुम शहरपनाह के पीछे छिप जाओगे तो भयंकर रोग भेजूँगा। मैं तुम्हें उन सेनाओं का बन्दी बनवा दूँगा।
\v 26 तुम्हारी भोजन सामग्री कम करवा दूँगा। तुम्हारे पास रोटियाँ पकाने का आटा कम पड़ जाएगा और परिणामस्वरूप दस स्त्रियाँ एक ही तन्दूर में रोटियाँ पका लेंगी। रोटियाँ पकाने के बाद जब बंटवारा होगा तब रोटियाँ कम पड़ेंगी। और वे सब भूखे ही रह जाएँगे।
\s5
\v 27 इन सब बातों के उपरान्त भी यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं करोगे और मेरा विरोध करते रहोगे
\v 28 तो मैं क्रोध में आकर तुम्हारा विरोधी हो जाऊँगा और तुम्हारे पापों का दंड देता चला जाऊँगा।
\s5
\v 29 तुम्हें ऐसा भूखा मारूँगा कि तुम अपने पुत्र-पुत्रियों को मार कर उनका माँस खा जाओगे।
\v 30 मैं सुनिश्चित करूँगा कि परदेशी उन पहाड़ों को नष्ट करें जहाँ तुमने मूर्तिपूजा की है। मैं उन वेदियों को नष्ट कर दूँगा जहाँ तुमने देवी-देवताओं के लिए धूप जलाई है। और तुम्हारे शवों का ढेर उन्हीं निर्जीव देवी-देवताओं पर लगवा दूँगा, और तुमसे घृणा करूँगा।
\s5
\v 31 मैं तुम्हारे नगरों को मलबे का ढेर बना दूँगा। और तुम्हारी मूर्तियों के घर ढा दूँगा। तुम वेदी पर होम-बलि चढ़ाओगे परन्तु मैं प्रसन्न नहीं होऊँगा।
\v 32 मैं तुम्हारे देश को पूर्ण रूप से नष्ट कर दूँगा और तुम्हें जीतने वाले तुम्हारे शत्रु भी यह देख चकित हो जाएँगे।
\v 33 मैं तुम्हारे शत्रुओं को इस योग्य कर दूँगा कि वे तुम्हें तलवार से नाश करें और तुम्हें जाति-जाति में तितर-बितर कर दें। मैं सुनिश्चित करूँगा कि वे तुम्हारे देश को नष्ट करें और तुम्हारे नगरों को नष्ट करें।
\s5
\v 34 जब ऐसा होगा तब जितने समय तुम अपने शत्रुओं के देश में रहोगे उतने समय तक मैं तुम्हारे देश की भूमि को विश्राम दूँगा जो उन्हें प्रति सातवें वर्ष मिलना था।
\v 35 वह पूरा समय जब तुम्हारा देश निर्जन पड़ा रहेगा, भूमि विश्राम पाएगी। वह स्थिति तुम्हारे निवास से भिन्न होगी क्योंकि तुमने उसे विश्राम नहीं दिया था।
\v 36 तुम जो अपने शत्रुओं के देश में बसाए जाओगे तब ऐसे भयभीत रहोगे कि हवा के बहने की आवाज से ही डर कर भागोगे।
\s5
\v 37 तुम ऐसे भागोगे कि जैसे कोई तलवार लेकर तुम्हारा पीछा कर रहा है। और तुम गिर पड़ोगे चाहे कोई तुम्हारा पीछा भी नहीं कर रहा हो। भागते समय तुम आपस में ही टकरा कर गिरोगे। तुम खड़े रह कर अपने शत्रुओं का सामना नहीं कर पाओगे।
\v 38 तुममें से अनेक जन शत्रुओं के देश में ही मर जाएँगे।
\v 39 और जो जीवित रहेंगे वे भी अपने और अपने पूर्वजों के पाप के कारण धीरे-धीरे मर कर सड़ेंगे।
\s5
\v 40-41 परन्तु तुम्हारे वंशजों को अपने और अपने पूर्वजों के पापों को स्वीकार करना पड़ेगा। उनके पूर्वजों ने मेरे साथ विश्वासघात किया और मुझसे बैर किया। इस कारण मैंने उन्हें उनके शत्रुओं के देश में पहुँचा दिया। परन्तु जब तुम्हारे वंशज मेरे सामने दीन होकर हठ का त्याग करेंगे और अपने पापों का दंड स्वीकार करेंगे,
\v 42 तब मैं तुम्हारे पितरों, अब्राहम, इसहाक और याकूब के साथ बांधी हुई वाचा और कनान देश के बारे में उनसे की गई अपनी प्रतिज्ञाओं पर ध्यान करूँगा।
\s5
\v 43 परन्तु इससे पूर्व मेरी प्रजा अपने देश से विस्थापित की जाएगी और परिणाम स्वरूप वह देश निर्जन पड़ा रहेगा और मैं अपनी प्रजा को मेरी अवज्ञां और आदेश विरोध का दंड देता रहूँगा, तब देश विश्राम करेगा।
\s5
\v 44 परन्तु मैं तब भी उन्हें नहीं त्यागूँगा, न ही उनसे घृणा करूँगा और न ही उनका सर्वनाश करूँगा। उनके साथ बंधी हुई अपनी वाचा को मैं कभी रद्द नहीं करूँगा। मैं यहोवा ही हूँ जिस परमेश्वर की उन्हें उपासना करना चाहिए।
\v 45 तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र देश से निकाल कर मैंने उनके साथ जो वाचा बांधी थी, और जिसके बारे में सब जातियों ने सुना था, उसे स्मरण रखूँगा। मैं ने इसलिए ऐसा किया था कि मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर बना रहूँ।”
\s5
\v 46 ये सब यहोवा और इस्राएलियों के मध्य सीनै पर्वत पर दी गई आज्ञाएँ, आदेश तथा नियम हैं जो मूसा द्वारा उन तक पहुँचाए गए।
\s5
\c 27
\p
\v 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 इस्राएलियों को मेरे ये आदेश सुना दे। यदि कोई यहोवा के लिए किसी को अलग करे कि वह यहोवा ही का हो, तो यहोवा उसे मुक्त करने के लिए तब तैयार होगा जब वह उत्तरदायी मनुष्य याजक को निर्धारित धनराशि दे। याजक उस मूल्य को यहोवा के तम्बू के मानक के अनुसार चाँदी में गिने।
\s5
\v 3 यहोवा ने ऐसे विनिमय के लिए जो धनराशि निश्चित की थी वह इस प्रकार हैः बीस वर्ष की आयु और साठ वर्ष की आयु के मध्य जो पुरुष है वह चाँदी के पचास टुकड़े दे,
\v 4 बीस वर्ष और साठ वर्ष के मध्य की स्त्री के लिए चाँदी के तीस टुकड़े
\s5
\v 5 पाँच वर्ष और बीस वर्ष के मध्य के युवकों के लिए चाँदी के बीस टुकड़े। पाँच और बीस वर्ष के मध्य की कन्याओं के लिए चाँदी के दस टुकड़े।
\v 6 एक महीने की आयु और पाँच वर्ष की आयु के मध्य के बालकों के लिए चाँदी के पाँच टुकड़े। एक महीने की आयु और पाँच वर्ष की आयु के मध्य की बालिकाओं के लिए चाँदी के दस टुकड़े।
\s5
\v 7 साठ वर्ष की आयु से अधिक के पुरुषों के लिए चाँदी के पन्द्रह टुकड़े।
\v 8 यदि ऐसी प्रतिज्ञा करने वाला यहोवा के लिए अलग किए गए मनुष्य को छुड़ाने के लिए मोल देने में सक्षम नहीं तो वह उस व्यक्ति को याजक के पास ले जाए तो याजक उसकी क्षमता के अनुसार मूल्य निर्धारण करे।
\s5
\v 9 यदि किसी ने यहोवा के ग्रहणयोग्य पशुओं में से एक पशु यहोवा को देने की प्रतिज्ञा की है तो वह पशु यहोवा के लिए अलग होकर उसी का हो जाता है।
\v 10 जिसने उस पशु को देने की प्रतिज्ञा की है वह उसी पशु को दे, उसकी अपेक्षा दूसरा पशु न दे- न तो उससे घटिया, न उससे अच्छा। यदि वह ऐसा करता है तो दोनों पशु यहोवा के होंगे।
\s5
\v 11 यदि वह पशु जिसे वह यहोवा को देना चाहता है, भेंट के योग्य नहीं हैं तो वह उसे याजक के पास ले जाए।
\v 12 याजक उसका मूल्य आंकेगा जो उस पशु की गुणवत्ता के आधार पर होगा। याजक ने जो मूल्य निर्धारित कर दिया है वही उस पशु का मूल्य होगा।
\v 13 यदि उस समर्पित पशु का स्वामी आगे चलकर उसे छुड़ाना चाहता है तो वह याजक को उसका मूल्य और मूल्य का दसवां भाग देगा।
\s5
\v 14 इसी प्रकार, यदि किसी ने अपना घर यहोवा को समर्पित कर दिया है और यहोवा के सम्मान के निमित्त उसे अलग कर दिया तो यहोवा उस घर की दशा के अनुसार उसका मूल्य निर्धारित करेंगे। याजक ने जो कह दिया वह उस घर का मूल्य होगा।
\v 15 अब यदि वह मनुष्य उस घर को जो उसने यहोवा को समर्पित कर दिया था, छुड़ाना चाहता है तो वह उसका निर्धारित मूल्य दे और मूल्य का पाँचवा भाग और दे, तब वह घर फिर से उसका हो जाएगा।
\s5
\v 16 यदि कोई अपनी पारिवारिक सम्पदा यहोवा के सम्मान में समर्पित करता है तो उसका मूल्य उस संपूर्ण भूमि में बीज डालने के आधार पर निर्धारित किया जाएगा और प्रत्येक 220 किलो बीज की कीमत चाँदी के दस टुकड़े गिनी जाएगी।
\s5
\v 17 यदि वह भूमि जयन्ति वर्ष में यहोवा को समर्पित की गई है तो उसका मूल्य पूरा होगा।
\v 18 परन्तु यदि वह भूमि जयन्ति वर्ष के बाद समर्पित की जाती है तो याजक अगले जयन्ति वर्ष तक के वर्ष गिनेगा और यदि वर्षों की संख्या अधिक नहीं है तो उसका मूल्य निर्धारित मूल्य से बहुत कम होगा।
\s5
\v 19 यदि उस भूमि को यहोवा को समर्पित करने वाला उसे फिर से प्राप्त करना चाहे तो वह याजक द्वारा निर्धारित मूल्य तथा उसके मूल्य का पाँचवा भाग अधिक देकर उसे फिर से प्राप्त कर ले और वह उसकी हो जाएगी।
\v 20 परन्तु यदि वह उसे फिर से मोल नहीं लेता या वह किसी और को बेच दी गई तो वह फिर कभी उसे प्राप्त नहीं कर पाएगा।
\v 21 जयन्ति वर्ष के महोत्सव में वह यहोवा के लिए पवित्र भेंट ठहरा कर अलग कर दी जाएगी और याजक को दे दी जाएगी।
\s5
\v 22 यदि कोई यहोवा के सम्मान में अपनी पैतृक भूमि के अतिरिक्त खरीदी हुई भूमि समर्पित करता है
\v 23 तो याजक अगले जयन्ति वर्ष तक के वर्षों को गिनेगा और उस भूमि का मूल्य निर्धारित करेगा और वह व्यक्ति याजक को उतना मूल्य देगा। तब वह भूमि उसकी हो जाएगी। और उसका पैसा यहोवा के लिए पवित्र भेंट ठहरेगा।
\s5
\v 24 परन्तु जयन्ति वर्ष में वह भूमि फिर से उसी व्यक्ति की हो जाएगी जिससे वह खरीदी गई थी। जिसकी वह पैतृक सम्पदा थी।
\v 25 जितनी भी चाँदी गिनी गई वह पवित्र-तम्बू के स्वीकृत माप के अनुसार गिनी जाएगी।
\s5
\v 26 गाय या भेड़ का पहला बच्चा समर्पित नहीं किया जाए क्योंकि वह तो पहले ही से यहोवा के हैं।
\v 27 यदि ऐसा पशु समर्पित किया जाए जो यहोवा को ग्रहणयोग्य नहीं तो वह उसके स्वामी द्वारा निर्धारित मूल्य तथा मूल्य का पाँचवा भाग देकर फिर से प्राप्त किया जा सकता है। यदि वह उसे फिर से खरीद नहीं सकता तो वह उसके निर्धारित मूल्य पर बेच दिया जाए।
\s5
\v 28 तथापि, दास या पशु या पैतृक भूमि यहोवा को समर्पित करने के बाद न तो बेची जा सकती है और न ही फिर खरीदी जा सकती है। क्योंकि वह यहोवा के लिए पवित्र हो जाती है।
\v 29 यहोवा की दृष्टि में जो दुष्टता का काम है उसे करने वाला छोड़ा न जाए। उसे मार डाला जाए।
\s5
\v 30 किसी के खेत और बारी की उपज का दसवां भाग- अन्न और फल, पवित्र हैं, वे यहोवा के हैं।
\v 31 यदि कोई उस दसवें अंश को दुबारा प्राप्त करना चाहता है तो वह याजक को उसका मूल्य तथा मूल्य का पाँचवा भाग दे।
\s5
\v 32 घरेलू पशुओं में से दसवां पशु भी यहोवा का है। जब चरवाहे अपनी लाठी के नीचे पशुओं को गिनें तब प्रत्येक दसवें पशु पर चिन्ह लगा दें कि वह यहोवा का है।
\v 33 ऐसा करने में वह उत्तम पशुओं को बचा कर घटिया पशु अलग न करे या उत्तम पशुओं के स्थान में घटिया पशुओं को नहीं रखें। यदि वह ऐसा करता है तो दोनों पशु यहोवा के होंगे जिन्हें वह फिर से खरीद नहीं पाएगा।”
\s5
\v 34 सीनै पर्वत पर यहोवा ने मूसा को ये आज्ञाएँ दीं कि इस्राएलियों को सुना दे।