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\id MAT
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\h मत्ती
\toc1 मत्ती
\toc2 मत्ती
\toc3 mat
\mt1 मत्ती
\s5
\c 1
\p
\v 1 यह अभिलेख राजा दाउद के और अब्राहम के वंशज यीशु मसीह के पूर्वजों का है।
\v 2 अब्राहम इसहाक का पिता था। इसहाक याकूब का पिता था। याकूब यहूदा और उसके भाइयों का पिता था।
\v 3 यहूदा पेरेस और जेरह का पिता था, और उनकी माता तामार थी। पेरेस हेस्रोन का पिता था। हेस्रोन एराम का पिता था।
\s5
\v 4 एराम अम्मीनादाब का पिता था। अम्मीनादाब नहशोन का पिता था। नहशोन सलमोन का पिता था।
\v 5 सलमोन और उसकी पत्नी राहाब, जो गैर-यहूदी स्त्री थी, बोअज के माता-पिता थे। बोअज ओबेद का पिता था। ओबेद की माता रूत थी, वो भी एक गैर-यहूदी स्त्री थी। ओबेद यिशै का पिता था।
\v 6 यिशै राजा दाऊद का पिता था। दाऊद सुलैमान का पिता हुआ; सुलैमान की माता ऊरिय्याह की पत्नी थी।
\s5
\v 7 सुलैमान रहबाम का पिता था। रहबाम अबिय्याह का पिता था। अबिय्याह आसा का पिता था।
\v 8 आसा यहोशाफात का पिता था। यहोशाफात योराम का पिता था। योराम उज्जिय्याह का पूर्वज था।
\s5
\v 9 उज्जिय्याह योताम का पिता था। योताम आहाज का पिता था। आहाज हिजकिय्याह का पिता था।
\v 10 हिजकिय्याह मनश्शे का पिता था। मनश्शे आमोन का पिता था। आमोन योशिय्याह का पिता था
\v 11 योशिय्याह यकुन्याह और उसके भाइयों का दादा था। वे उस समय रहते थे जब बेबीलोन की सेना इस्राएलियों को बंदी बनाकर बेबीलोन देश ले गई थी।
\p
\s5
\v 12 इस्राएलियों को बंदी बनाकर बेबीलोन पहुंचाए जाने के बाद, यकुन्याह शालतियेल का पिता बना। शालतियेल जरूब्बाबेल का पूर्वज था।
\v 13 जरूब्बाबेल अबीहूद का पिता था। अबीहूद एलयाकीम का पिता था। एलयाकीम अजोर का पिता था।
\v 14 अजोर सादोक का पिता था। सादोक अखीम का पिता था। अखीम एलीहूद का पिता था
\s5
\v 15 एलीहूद एलिआजार का पिता था। एलिआजार मत्तान का पिता था। मत्तान याकूब का पिता था।
\v 16 याकूब यूसुफ का पिता था। यूसुफ मरियम का पति था, और मरियम यीशु की माता थी। यीशु ही वह है जिसे मसीह कहा जाता है।
\p
\v 17 यीशु के पूर्वजों की यही सूची है: अब्राहम के समय से लेकर दाऊद के समय तक चौदह पीढियाँ थीं। दाऊद के समय के बाद से लेकर इस्राएलियों के बेबीलोन पहुँचाए जाने के समय तक चौदह पीढियाँ और हुईं फिर उस समय से लेकर मसीह के पैदा होने तक चौदह पीढियाँ और हुई।
\p
\s5
\v 18 यह वह घटना है जो मसीह के जन्म से पहले हुई थीं। उनकी माता मरियम ने यूसुफ से विवाह करने का वचन दिया था, परन्तु पति और पत्नी के समान साथ रहने से पहले उन्हें पता चला कि मरियम पवित्र आत्मा की शक्ति से गर्भवती थी।
\v 19 यूसुफ, जिसे उनका पति होना था, वह एक ऐसा व्यक्ति था जो परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करता था, इसलिए उसने उससे विवाह न करने का फैसला किया। परन्तु वह अन्य लोगों के सामने उसे लज्जित करना नहीं चाहता था। इसलिए उसने चुपचाप उसके साथ विवाह करने की अपनी योजनाओं को छोड़ने का निर्णय लिया।
\s5
\v 20 जब वह गंभीरता से इस पर विचार कर रहा था, तब एक स्वर्गदूत ने जिसे परमेश्वर ने भेजा था, उसे एक सपने में आकर आश्चर्यचकित कर दिया। स्वर्गदूत ने कहा, “यूसुफ, राजा दाऊद के वंशज, मरियम से विवाह करने से मत डर। क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की और से है।
\v 21 वह एक पुत्र को जन्म देगी। क्योंकि वही अपने लोगों को उनके पापों से बचाएंगे, इसलिए उन का नाम यीशु रखना।”
\s5
\v 22 यह सब इसलिए हुआ कि परमेश्वर ने भविष्यद्वक्ता यशायाह से बहुत पहले जो लिखने को कहा था, वह पूरा हो। यशायाह ने लिखा,
\v 23 “सुनो, एक कुंवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र को जन्म देगी। वे उन्हें इम्मानुएल कहेंगे” जिसका अर्थ है, “परमेश्वर हमारे साथ है।”
\s5
\v 24 जब यूसुफ नींद से जागा, तो उसने वही किया जो स्वर्गदूत ने उसे करने के लिए कहा था। वह मरियम को पत्नी के रूप में लाकर उसके साथ रहने लगा।
\v 25 लेकिन जब तक उसने पुत्र को जन्म नहीं दिया तब तक वह उसके साथ नहीं सोया। और यूसुफ ने उन्हें यीशु नाम दिया।
\s5
\c 2
\p
\v 1 यीशु का जन्म यहूदिया प्रांत के बैतलहम नगर में हुआ था, उस समय राजा हेरोदेस वहां शासन करता था। यीशु के जन्म के कुछ समय बाद, बहुत दूर पूर्व में से कुछ पुरुष जो तारों का अध्ययन करते थे यरूशलेम शहर में आए।
\v 2 उन्होंने लोगों से पूछा, “यहूदियों का राजा जिनका जन्म हुआ है कहाँ है? हमने पूर्व में एक तारा देखा है जो हमें दिखाता है कि उनका जन्म हुआ है, इसलिए हम उनकी आराधना करने आए हैं।”
\p
\v 3 जब राजा हेरोदेस ने सुना कि ये लोग क्या पूछ रहे थे, तो वह बहुत चिंतित हो गया। यरूशलेम के बहुत से लोग भी चिंतित हुए।
\s5
\v 4 फिर हेरोदेस ने सभी प्रधान याजकों और यहूदी व्यवस्था के शिक्षकों को बुलाया। उसने उनसे पूछा कि भविष्यद्वक्ता ने क्या भविष्यद्वाणी की थी कि मसीह का जन्म कहाँ होना था।
\v 5 उन्होंने उससे कहा, “वह यहाँ यहूदिया प्रांत में बैतलहम के नगर में जन्म लेंगे, क्योंकि भविष्यद्वक्ता मीका ने बहुत पहले लिखा था,
\v 6 “तुम जो यहूदा के देश में बैतलहम में रहते हो, तुम्हारा नगर निश्चित रूप से बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि तुम्हारे नगर का एक व्यक्ति शासक बन जाएगा। वह इस्राएल में रहनेवाले मेरे लोगों का मार्गदर्शन करेगा।”
\p
\s5
\v 7 तब राजा हेरोदेस ने चुपके से उन पुरुषों को बुलाया जिन्होंने तारों का अध्ययन किया था। उसने उनसे पूछा कि तारा सबसे पहले कब दिखाई दिया था।
\v 8 तब उसने उनसे कहा, “बैतलहम जाकर इस बालक के विषय में अच्छी तरह से पूछताछ करो कि वह कहाँ है। जब तुम बालक को खोज लो तो वापस आकर मुझे जानकारी देना जिससे कि मैं भी वहां जाकर उस बालक की आराधना करूं।”
\p
\s5
\v 9 वे लोग बैतलहम नगर की ओर चल दिये। उनके आश्चर्य के लिए, जब वे पूर्वी देश में थे तब उन्होंने जो तारा देखा था वह फिर से उनके आगे-आगे चला और उस घर के ऊपर जाकर ठहर गया जहाँ वह बालक था।
\v 10 जब उन्होंने तारे को देखा, तो वे बहुत आनन्दित हुए और उसके पीछे गए।
\s5
\v 11 उनको वह घर मिल गया और उन्होंने उसमें, प्रवेश किया, और बालक और उनकी माता, मरियम को देखा। उन्होंने भूमि पर घुटने टेके और उनकी आराधना की। तब उन्होंने अपने उपहार वाले बकसों को खोला और उन्होंने बालक को सोना, महंगा लोबान और गंधरस भेंट किया।
\v 12 तब परमेश्वर ने उनको सपने में चेतावनी दी कि राजा हेरोदेस के पास वापस न जाएँ। इसलिए वे अपने देश के लिए रवाना हुए, लेकिन उसी रास्ते पर वापस जाने की अपेक्षा, वे दूसरे रास्ते से होकर चले गए।
\p
\s5
\v 13 तारों का अध्ययन करने वाले पुरुषों के बैतलहम से जाने के बाद, प्रभु का एक स्वर्गदूत सपने में यूसुफ को दिखाई दिए। स्वर्गदूत ने कहा, “उठ बालक और उनकी माता को लेकर मिस्र देश को भाग जा। जब तक मैं तुझे वहाँ से निकलने को न कहूँ तब तक वहीं रहना, क्योंकि राजा हेरोदेस सैनिकों को भेजने पर है कि वे बालक को ढूँढकर उन्हें मार दे।”
\v 14 इसलिए यूसुफ उसी रात उठा गया; उसने बालक और उनकी माता को लिया, और वे मिस्र को भाग गए।
\v 15 जब तक राजा हेरोदेस नहीं मरा, तब तक वे वहां रहे, और फिर उन्होंने मिस्र छोड़ दिया। इस प्रकार, परमेश्वर ने हौशे भविष्यद्वक्ता को जो लिखने के लिये कहा था, वह सच हो गया, “मैंने अपने पुत्र को मिस्र से बाहर आने के लिए बुलाया है।”
\p
\s5
\v 16 राजा हेरोदस की मृत्यु से पहले, उसने महसूस किया कि उन पुरुषों ने उसे धोखा दिया है, और वह क्रोधित हो गया। उसने सोचा कि यीशु अभी भी बैतलहम में थे, इसलिए हेरोदेस ने वहाँ सैनिकों को भेजा कि वे दो साल के और उससे छोटे सभी लड़कों को मार डालें। तारे के सबसे पहले दिखने के समय को तारों का अध्ययन करने वाले पुरुषों के बताने के अनुसार हेरोदेस ने अनुमान लगाया कि बालक की आयु कितनी थीं।
\s5
\v 17 जब हेरोदेस ने ऐसा किया, तो भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह ने बहुत समय पहले जो लिखा था, वह सच हो गया, जब उन्होंने रामा नगर के पास के बैतलहम के विषय में लिखा था:
\q
\v 18 रामा की स्त्रियाँ विलाप कर रही थीं और चीख-चीखकर रो रही थीं।
\q उन स्त्रियों की पूर्वज, राहेल अपने मृत बच्चों के लिए रो रही थीं।
\q लोग उसे दिलासा देने का प्रयास करते थे, लेकिन वे नहीं कर सके, क्योंकि उसके सभी बच्चे मर चुके थे।
\p
\s5
\v 19 हेरोदस के मरने के बाद और जब यूसुफ और उसका परिवार मिस्र में ही था, परमेश्वर ने एक स्वर्गदूत को भेजा जो यूसुफ को सपने में दिखाई दिया। स्वर्गदूत ने यूसुफ से कहा,
\v 20 “उठ और बालक और उनकी माता को लेकर इस्राएल के देश में रहने के लिए वापस चला जा, क्योंकि जो लोग बालक को मारने को प्रयास कर रहे थे, वे मर चुके हैं।”
\v 21 तब यूसुफ ने बालक और उनकी माँ को लिया, और वे वापस इस्राएल लौट गए।
\s5
\v 22 जब यूसुफ ने सुना कि अरखिलाउस अब अपने पिता, राजा हेरोदेस महान के स्थान पर यहूदिया प्रांत में शासन करता है, तो वह वहां जाने से डरता था। तब परमेश्वर ने यूसुफ को एक सपने में निर्देश दिया कि उसे क्या करना चाहिए, इसलिए यूसुफ, मरियम और बालक को लेकर गलील जिले में चला गया।
\v 23 वे रहने के लिए नासरत नगर में गए। और जो भविष्यद्वक्ताओं ने बहुत पहले कहा था वह सच हो गया: “लोग कहेंगे कि वह नासरत का है।”
\s5
\c 3
\p
\v 1 जब यीशु अभी नासरत के नगर में ही थे, यूहन्ना, जिसे लोग बपतिस्मा देनेवाला कहते थे, यहूदिया प्रांत के एक वीरान स्थान में गया। वह वहां आए हुए लोगों में प्रचार कर रहा था। वह कह रहा था,
\v 2 "तुम्हें पाप करना त्याग देना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर का शासन जो स्वर्ग से है, वह निकट है, और यदि तुम पाप करना नहीं त्याग ते हो तो वह तुम्हें अस्वीकार करेंगे ।"
\v 3 जब यूहन्ना ने प्रचार करना शुरू किया, तो यशायाह भविष्यद्वक्ता ने जो बहुत समय पहले कहा था वह सच हुआ। उन्होंने कहा था, "जंगल में लोग किसी को चिल्लाते हुए सुनते हैं, कि जब प्रभु आते हैं तो उन्हें स्वीकार करने के लिए तैयार हो जाओ! उनके लिए सब कुछ तैयार करो!"
\p
\s5
\v 4 यूहन्ना ऊंट के बाल से बने कपड़े पहनता था। जैसे एलिय्याह भविष्यद्वाक्ता ने बहुत पहले किया था, वह अपनी कमर पर ओर एक चमड़े का पट्ठा बाँधता था। उसका खाना केवल टिड्डियाँ और शहद था जो उसे जंगल में मिलता था।
\v 5 यरूशलेम शहर में रहने वाले लोग, यहूदिया जिले के अन्य स्थानों पर रहने वाले बहुत से लोग, और बहुत से अन्य लोग जो यरदन नदी के पास रहते थे, यूहन्ना के पास प्रचार सुनने के लिए आए।
\v 6 जब उन्होंने उसे सुना, तो उन्होंने अपने पापों को खुलकर स्वीकार किया, और फिर उसने उन्हें यरदन नदी में बपतिस्मा दिया।
\p
\s5
\v 7 परन्तु यूहन्ना ने बहुत से फरीसियों और सदूकियों को देखा जो उसके पास बपतिस्मा लेने के लिए आ रहे थे। उसने उनसे कहा, "तुम लोग जहरीले सांपों के बच्चे हो! क्या किसी ने भी तुम्हें चेतावनी नहीं दी कि एक दिन परमेश्वर सब को जो पाप करते हैं दण्ड देंगे ? मत सोचो तुम उस से बच सकते हो!
\v 8 यदि तुमने वास्तव में पाप करना बंद कर दिया है, तो इसे दिखाने के लिए सही काम करो।
\v 9 मुझे पता है कि परमेश्वर ने अब्राहम के वंशजों के साथ रहने की प्रतिज्ञा की थी। परन्तु अपने आप से यह मत कहो, क्योंकि हम अपने पूर्वज अब्राहम के वंशज हैं, इसलिए हमारे पाप करने के उपरान्त भी परमेश्वर हमें दण्ड नहीं देंगे। नहीं! मैं तुमसे कहता हूँ कि वह इन पत्थरों को अब्राहम के वंश में बदल सकते हैं!
\s5
\v 10 परमेश्वर इसी समय एक ऐसे पुरुष के समान तुम्हे दण्ड देने के लिए तैयार हैं जो उस पेड़ की जड़ों को काटना शुरू कर देता है जो अच्छे फल नहीं देता, हैं। वह ऐसे हर एक पेड़ को काट देंगे और आग में फेंक देंगे।"
\p
\v 11 " मैं स्वयं बहुत महत्वपूर्ण नहीं हूँ, क्योंकि मैं तुम्हें केवल पानी से बपतिस्मा देता हूं। मैं ऐसा तब करता हूँ, जब लोगों को अपने पापों का पछतावा होता है। लेकिन कोई हैं और वह शीघ्र ही आएंगे जो बहुत शक्तिशाली काम करेंगे। वह मेरी तुलना में अधिक महान हैं, मैं उनकी जूतियाँ उठाकर ले जाने के लायक भी नहीं हूँ।
\p वह पवित्र आत्मा और आग से तुम्हें बपतिस्मा देंगे।
\v 12 वह अपना सूप पकड़े हुए हैं, और भूसे से अच्छे अनाज को अलग करने के लिए तैयार हैं। वह भूसे को उस स्थान से बाहर निकालने के लिए तैयार हैं जहाँ पर उन्होंने अनाज को इकट्ठा किया है। जैसे एक किसान अपने गेहूं को अपने गोदाम में डालता है, वैसे ही वह धर्मी लोगों को घर ले जाएंगे; परन्तु जैसे कोई भूसी को जलाता है, वैसे ही वह दुष्ट लोगों को ऐसी आग में जला देंगे, जो कभी नहीं बुझती।"
\s5
\v 13 उस समय, यीशु गलील के जिले से यरदन नदी तक गए, जहां यूहन्ना था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि यूहन्ना उन्हें बपतिस्मा दे।
\v 14 जब यीशु ने यूहन्ना को बपतिस्मा देने के लिए कहा, तो यूहन्ना ने मना कर दिया; उसने कहा, "मुझे आपसे बपतिस्मा लेने की आवश्यक्ता है! आप तो पापी नहीं हो, तो आप मेरे पास क्यों आए हो?"
\v 15 लेकिन यीशु ने उस से कहा, "अब मुझे बपतिस्मा दे, क्योंकि इस प्रकार हम दोनों परमेश्वर की इच्छा को पूरा करेंगे।" तब यूहन्ना उन्हें बपतिस्मा देने के लिए सहमत हो गया।
\p
\s5
\v 16 उसके बाद, यीशु तुरंत पानी से निकले। तभी ऐसा हुआ कि आकाश खुल गया, और यीशु ने देखा कि परमेश्वर के आत्मा नीचे आ रहे हैं और कबूतर के रूप में आकर उनके ऊपर बैठ गए हैं।
\v 17 फिर स्वर्ग से परमेश्वर ने कहा, "यह मेरा पुत्र है, मैं इससे प्रेम करता हूँ, और मैं इससे बहुत प्रसन्न हूँ।"
\s5
\c 4
\p
\v 1 फिर परमेश्वर के आत्मा यीशु को शैतान द्वारा परीक्षा के लिए जंगल में ले गए।
\v 2 चालीस दिन तक, दिन और रात खाना न खाने के कारण, उन्हें भूख लगी थीं।
\v 3 परखनेवाला शैतान, उनके पास आया और कहा, "अगर तू वास्तव में परमेश्वर का पुत्र हैं', तो इन पत्थरों को आज्ञा दे कि वे रोटी बन जाएँ !"
\v 4 परन्तु यीशु ने उस से कहा, "नहीं, मैं ऐसा नहीं करूँगा, क्योंकि परमेश्वर ने धर्मशास्त्र में कहा है, 'लोगों को वास्तव में जीवित रहने के लिए, भोजन से भी अधिक परमेश्वर द्वारा कहे गए हर एक वचन को सुनना आवश्यक है।' "
\s5
\v 5 तब शैतान यीशु को यरूशलेम ले गया, जो परमेश्वर का विशेष नगर था। उसने उन्हें आराधनालय के सबसे ऊँचे स्थान पर खड़ा किया
\v 6 और उनसे कहा, "यदि तू वास्तव में परमेश्वर का पुत्र हैं, तो यहाँ से नीचे कूद जा। तुझे निश्चय ही चोट नहीं लगेगी, क्योंकि परमेश्वर ने धर्मशास्त्र में कहा है, 'परमेश्वर तेरी रक्षा करने के लिए अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देंगे। जब तू गिरेगा, तब वे तुझे अपने हाथों में उठा लेंगे, और वे तेरे पैरों को पत्थर से टकराने से भी बचाएंगे।"
\s5
\v 7 परन्तु यीशु ने कहा," नहीं, मैं नीचे नहीं कूदूँगा, क्योंकि परमेश्वर ने धर्मशास्त्र में यह भी कहा है, 'ऐसा प्रयास मत कर कि परमेश्वर अपने आप को सिद्ध करे कि वह कौन है।'
\v 8 तब शैतान उन्हें एक बहुत ही ऊँचे पर्वत के ऊपर ले गया। वहां उसने उन्हें संसार के सब देशों और उन देशों की भव्य वस्तुओं को दिखाया।
\v 9 तब उसने उनसे कहा, मैं तुझे इन सब देशों पर शासन करने और उसमें की सब भव्य वस्तुएँ दूँगा, यदि तू झुक कर मेरी उपासना करें।
\s5
\v 10 परन्तु यीशु ने उस से कहा, "नहीं, शैतान मैं तेरी उपासना नहीं करूँगा, इसलिए चला जा! परमेश्वर ने धर्मशास्त्र में कहा है, 'तू केवल अपने परमेश्वर यहोवा के आगे झुकना, और उन की ही उपासना करना!'"
\v 11 तब शैतान चला गया, और उसी समय, स्वर्गदूत यीशु के पास आए और उनकी सेवा करने लगे।
\p
\s5
\v 12 जब यीशु यहूदिया प्रांत में थे, तो यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के शिष्य उनके पास आए। और उनसे कहा कि हेरोदेस ने यूहन्ना को जेल में डाल दिया है। तब यीशु गलील जिले के नासरत नगर में लौट आए।
\v 13 फिर नासरत से निकलकर वह कफरनहूम नगर में वहां रहने के लिए चले गए। कफरनहूम गलील की झील के पास, उस क्षेत्र में स्थित है, जो पहले जबूलून और नप्ताली के गोत्रों का था।
\s5
\v 14 वह वहां गए, कि भविष्यद्वक्ता यशायाह ने बहुत पहले जो लिखा था, वह सच हो जाए:
\v 15 "जबूलून और नप्ताली के क्षेत्र, यरदन नदी के पूर्वी हिस्से पर, झील की ओर जाने वाली सड़क से, गलील के क्षेत्रों में, कई गैर इस्राएलियों के घर थे!
\v 16 जो लोग परमेश्वर को नहीं जानते, ऐसे थे जैसे कि वे अंधेरे में हैं, परन्तु वे सच्चाई को जानेंगे, जैसे कि एक तीव्र प्रकाश उन पर चमका था। हाँ, वे मरने से बहुत डरते हैं, परन्तु एक तीव्र प्रकाश उन पर चमका है!"
\p
\s5
\v 17 उस समय, यीशु कफरनहूम शहर में थे, उन्होंने लोगों में प्रचार करना शुरू किया, "स्वर्ग के परमेश्वर का शासन निकट हैं, और जब वह शासन करेंगे, तब वह तुम्हारा न्याय करेंगे। इसलिए पाप करना त्याग दो!
\p
\s5
\v 18 एक दिन जब यीशु गलील की झील के किनारे से जा रहे थे, तब उन्होंने दो पुरुषों को देखा, शमौन जो बाद में पतरस कहलाया और उसका छोटा भाई अन्द्रियास। वे अपने मछली पकड़ने के जाल को पानी में डाल रहे थे क्योंकि वे मछली पकड़कर बेचते थे।
\v 19 यीशु ने उनसे कहा, "मेरे साथ आओ और मैं तुम्हें सिखाऊंगा कि कैसे मेरे शिष्य बनाने के लिए लोगों को एकत्र करना है। मैं तुम्हें मनुष्य को पकड़ने वाला बनाऊँगा।
\v 20 उन्होंने तुरंत उस काम को जो वे कर रहे थे छोड़ दिया और यीशु के साथ चले गए।
\p
\s5
\v 21 जैसे ही वे तीनों वहां से आगे की ओर बढ़े, यीशु ने दो अन्य पुरुषों, याकूब और याकूब के छोटे भाई यूहन्ना को देखा। वे अपनी नाव में अपने पिता जब्दी के साथ थे, और अपने मछली पकड़ने के जाल को सुधार रहें थे। यीशु ने उन्हें कहा कि उन्हें अपना काम छोड़कर उनके साथ जाना चाहिए।
\v 22 वे तुरंत अपनी नाव और अपने पिता को छोड़कर यीशु के साथ चले गए।
\p
\s5
\v 23 यीशु गलील जिले के सब स्थानों में इन चारों लोगों को लेकर गए। वह आराधनालयों में लोगों को शिक्षा देते रहे। वह परमेश्वर के शासन के विषय में सुसमाचार प्रचार कर रहे थे। वह सब बीमार लोगों को भी चंगा कर रहे थे।
\v 24 जब सीरिया जिले के अन्य भागों में रहने वाले लोगों ने यह सुना कि वह क्या कर रहे हैं, तो वे बीमारों को उनके पास लेकर आए जो ऐसे लोग थे जो कई प्रकार के रोगों से पीड़ित थे, जो लोग गंभीर पीड़ा से परेशान थे, जो लोग दुष्ट-आत्मा के वश में थे, जो लोग मिरगी के रोगी थे, और जो लोग लंगड़े थे और यीशु ने उन्हें स्वस्थ किया।
\v 25 फिर बड़ी भीड़ उनके साथ चलने लगी। वे लोग गलील से, दस शहरों से, यरूशलेम शहर में से, यहूदिया प्रांत के अन्य भागों से, और यरदन नदी के पूर्वी क्षेत्रों से थे।
\s5
\c 5
\p
\v 1 जब यीशु ने भीड़ को देखा, तो वह पहाड़ पर चढ़ गए। उन्होंने वहां बैठकर अपने पीछे आनेवालों को शिक्षा दीं। वे उनकी बात सुनने के लिए उनके पास आए,
\v 2 तब उन्होंने उन्हें यह कहकर शिक्षा देना आरंभ किया,
\v 3 "परमेश्वर उन लोगों से प्रसन्न हैं जो स्वीकार करते हैं कि उन्हें उनकी आवश्यकता हैं; वह स्वर्ग से उन पर शासन करने के लिए तैयार होंगे।
\v 4 परमेश्वर इस पापी दुनिया के कारण शोक करने वाले लोगों से प्रसन्न हैं; वह उन्हें प्रोत्साहित करेंगे।
\s5
\v 5 परमेश्वर नम्र लोगों से प्रसन्न हैं; वे उस धरती के वारिस होंगे जिसे परमेश्वर नया बनाएंगे।
\v 6 परमेश्वर उन लोगों से प्रसन्न हैं जो न्यायपूर्वक जीने की उतनी तीव्र इच्छा रखते हैं जैसे कि कोई खाने और पीने की इच्छा रखता है, वह उन्हें न्यायपूर्वक जीने में सक्षम करेंगे।
\v 7 परमेश्वर उन लोगों से प्रसन्न हैं जो दूसरों के प्रति दया दर्शाते हैं; वह उन पर दया करेंगे।
\v 8 परमेश्वर उन लोगों से प्रसन्न हैं जो वही करने का प्रयास करते हैं जो परमेश्वर को प्रसन्न करे; किसी दिन वे वहाँ होंगे जहां परमेश्वर हैं और उन्हें देखेंगे।
\s5
\v 9 परमेश्वर उन लोगों से प्रसन्न हैं जो शान्ति से रहने के लिए अन्य लोगों की सहायता करते हैं; वह अपनी सन्तान के समान उनका सम्मान करेंगे।
\v 10 परमेश्वर उन लोगों से प्रसन्न हैं जो धार्मिकता से रहते हैं; परमेश्वर सम्मानित होते हैं जब उनके धर्मी जीवन के कारण, बुरे लोग उनका अपमान करते हैं और उनके साथ बुरा व्यवहार करते हैं। परमेश्वर स्वर्ग से इन्हीं धर्मी लोगों पर शासन करते हैं।
\s5
\v 11 परमेश्वर तुमसे प्रसन्न हैं जब अन्य लोग तुम्हारा अपमान करते हैं; और जब वे तुम्हारे साथ बुराई करते हैं और जब वे तुम्हारे विषय में झूठ बोलते हैं, और कहते हैं कि तुम बुरे हो, तो उन्हें सम्मान मिलता हैं।
\v 12 जब ऐसा होता है, तो आनन्दित और प्रसन्न होना, क्योंकि परमेश्वर तुमको स्वर्ग में एक बड़ा प्रतिफल देंगे। स्मरण रखो, इसी प्रकार उन्होंने भविष्यद्वक्ताओं को भी सताया था, जो बहुत समय पहले रहते थे।
\p
\s5
\v 13 भोजन के लिए नमक जो करता है, वही तुम दुनिया के लिए करोगे। लेकिन अगर नमक अपना गुण खो देता है, तो कोई भी उसे फिर से अच्छा नहीं कर सकता। लोग उसे बाहर फेंक देते हैं और उस पर चलते हैं।
\v 14 अंधेरे में लोगों के लिए प्रकाश जो करता है, वही तुम दुनिया के लिए करोगे। जैसे एक पर्वत की ढलान पर बने शहर को लोग देखते हैं, वैसे ही सारे लोग तुमको देख पाएंगे।
\s5
\v 15 कोई भी दीपक को जला कर उसे टोकरी के नीचे नहीं रखता है। इसकी अपेक्षा, वे उसे रोशनदान पर रखते हैं जिससे कि वह घर में सब को प्रकाश दे सके।
\v 16 इसी प्रकार तुम्हें सही कामों को करने की आवश्यक्ता है कि अन्य लोग तुम्हारे काम को देख सकें। जब वे उन्हे देखेंगे, तो वे तुम्हारे पिता की जो स्वर्ग में है, स्तुति करेंगे।"
\p
\s5
\v 17 "तुम यह नहीं मानना कि मैं भविष्यद्वक्ताओं की लिखी बातों को या उन नियमों को दूर करने के लिए आया हूँ जो परमेश्वर ने मूसा को दिए थे। इसकी अपेक्षा, मैं उन बातों का पुरे करने के लिए आया हूँ जो कही गई थी कि होंगी।
\v 18 यह एक सच्ची बात है: परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को हटा सकते हैं, लेकिन परमेश्वर उन नियमों में से कुछ भी नहीं हटाएंगे, यहां तक कि छोटी से छोटी बात या छोटे से छोटा बिन्दु, जब तक कि परमेश्वर सब कुछ जो उन नियमों में कहा गया है पूरा न करे जैसा कि उन्होंने कहा था कि होगा।
\s5
\v 19 क्योंकि यह सच है, कि यदि तुम सबसे कम महत्वपूर्ण आज्ञाओं को तोड़ते हो, तो तुम स्वर्ग में परमेश्वर के शासन में सब से कम महत्वपूर्ण व्यक्ति होगे। परन्तु यदि तुम इन सब आज्ञाओं को मानते हो और दूसरों को परमेश्वर की आज्ञा मानना सिखाते हो, तो तुम स्वर्ग में परमेश्वर के शासन में बहुत महत्वपूर्ण होगे।
\v 20 मैं तुमसे कहता हूँ कि व्यवस्था के शिक्षकों के मुकाबले तुम्हें उन नियमों का अधिक पालन करना चाहिए, और जो सही है उसे तुम्हें अपने दिल से करना चाहिए। और तुम्हें फरीसियों से बेहतर करना चाहिए वरना तुम कभी भी परमेश्वर के स्वर्ग राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे।
\p
\s5
\v 21 "दूसरों ने तुम्हें बताया है कि परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों से कहा था, 'तुम्हें किसी की हत्या नहीं करनी चाहिए' और 'यदि तुम किसी की हत्या करते हो, तो न्यायालय के अधिकारी तुम्हें दण्ड दे सकते हैं।'
\v 22 परन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि यदि तुम किसी पर क्रोध करोगे, तो परमेश्वर स्वयं तुम्हारा न्याय करेंगे। अगर तुम किसी से कहते हो, 'तुम बेकार हो,' तो न्यायालय के अधिकारी तुम्हारा न्याय करेंगे। यदि तुम किसी से कहते हो, 'तुम मूर्ख हो,' तो परमेश्वर तुम्हें नरक की आग में डाल देंगे।
\s5
\v 23 जब तुम परमेश्वर के लिए अपना उपहार वेदी पर लाते हो, और यदि तुम्हे स्मरण होता है कि तुमने किसी को अप्रसन्न किया है,
\v 24 तो वेदी पर अपना उपहार छोड़ दो, और पहले जिस व्यक्ति को तुमने अप्रसन्न किया है उसके पास जाओ। उस व्यक्ति को बताओ कि तुमने जो किया उसके लिए तुम्हें पछतावा है, और उस व्यक्ति से क्षमा मांगों । फिर वापस जाओ और परमेश्वर को अपनी भेंट चढाओ।
\s5
\v 25 यदि कोई व्यक्ति तुम्हारे कुछ गलत करने पर तुम पर आरोप लगाकर न्यायालय में ले जाता है, तो उस व्यक्ति के साथ शीघ्र ही समझौता कर लो, जब तुम उस व्यक्ति के साथ न्यायालय जाने के रास्ते में ही हो। समय रहते ऐसा करो जिससे कि वह तुम्हें न्यायाधीश के पास न ले जाए, क्योंकि न्यायाधीश कह सकता है कि तुम दोषी हो और तुम को बन्दीगृह के रखवाले के हाथ में सौंप देगा, और बन्दीगृह का रखवाला तुमको बन्दीगृह में डाल देगा।
\v 26 ध्यान रखो: यदि तुम बन्दीगृह में डाले जाते हो, तो तुम कभी बाहर नहीं निकल पाओगे क्योंकि तुम कभी भी उस न्यायधीश द्वारा निरधारित जुर्माने का भुगतान नहीं कर पाओगे। इसलिए अपने भाइयों के साथ शान्ति बनाए रखो।"
\p
\s5
\v 27 "तुमने सुना है कि परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों से कहा था, 'व्यभिचार न करना।'
\v 28 परन्तु मैं तुम से कहता हूँ कि यदि कोई पुरुष किसी स्त्री को उसके साथ सोने की मनसा से देखे, तो परमेश्वर की दृष्टि में वह पुरुष उसके साथ अपने मन में ही व्यभिचार कर चुका है।
\s5
\v 29 यदि तुम किसी वस्तु को देखकर पाप करना चाहते हो, तो उनको देखना बन्द करो। यहां तक कि अगर तुमको अपनी दोनों आँखों को नष्ट करना पड़े, तो ऐसा करो, यदि ऐसा करने से तुम पाप करने से बचने में सक्षम हो जाओ क्योंकि अंधा होना और पाप करना छोड़ देना उत्तम होगा, अपेक्षा इसके कि परमेश्वर तुम्हें आँख रहते हुए नरक में डाल दें।
\v 30 और यदि तुम्हारे हाथों में से कोई एक तुमसे पाप करवाता है, तो अपने हाथ का उपयोग करना बंद कर दो। यहां तक कि अगर तुम्हें अपना हाथ काट कर फेंक देना पड़े, तो ऐसा करो, यदि ऐसा करके तुम पाप करने से बचने में सक्षम हो जाओ। अपने शरीर का एक हिस्सा खोना अधिक उत्तम होगा, अपेक्षा इसके कि परमेश्वर तुम्हारे पूरे शरीर को नरक में डाल दे।"
\p
\s5
\v 31 "परमेश्वर ने धर्मशास्त्र में कहा है, 'यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को तलाक दे रहा है, तो वह एक दस्तावेज लिखे जिस पर वह बताए कि वह उसे तलाक दे रहा है।'
\v 32 परन्तु अब जो मैं तुम से कहता हूँ, सुनो: कोई पुरुष अपनी पत्नी को केवल तभी तलाक दे सकता है जब उसने व्यभिचार किया हो। अगर कोई व्यक्ति किसी अन्य कारण से अपनी पत्नी को तलाक देता है, और अगर वह किसी और से विवाह कर लेती है तो वह व्यभिचार करती है और जो व्यक्ति उससे विवाह करता है वह भी व्यभिचार करता है।"
\p
\s5
\v 33 "तुमने यह भी सुना है कि बहुत पहले लोगों को बताया गया था, 'तुमको कभी झूठ बोलकर शपथ नहीं खानी चाहिए! इसकी अपेक्षा, तुमको अपने प्रतिज्ञा को ऐसे पूरा करना चाहिए जैसे कि तुम तब करते जब परमेश्वर स्वयं तुम्हारे सामने खड़े होते।'
\v 34 अब मैं तुम्हें कुछ और कहूंगा: किसी भी कारण शपथ न खाना! अपनी बात को पक्का करने के लिए स्वर्ग का नाम न लेना जहाँ परमेश्वर रहता है। क्योंकि स्वर्ग उनका महान सिंहासन है और वहां से वह सब चीजों पर शासन करते हैं।
\v 35 और अपनी शपथ के लिए धरती को गवाह नहीं बनाना। ऐसा मत करना, क्योंकि धरती वह स्थान है जहां परमेश्वर अपने पाँवों को रखते हैं। कभी यरूशलेम शहर की शपथ न खाना, क्योंकि यरूशलेम हमारे महान राजा परमेश्वर का नगर है।
\p
\s5
\v 36 इसके अतिरिक्त, यह प्रतिज्ञा नहीं करना कि तुम कुछ करोगे और फिर कहो कि अगर तुम ऐसा नहीं करो तो लोग तुम्हारा सिर काट दें। तुम ऐसी महत्वपूर्ण प्रतिज्ञा कैसे कर सकते हो, जब कि तुम अपने सिर के एक बाल का रंग भी बदल नहीं सकते।
\v 37 यदि तुम कुछ करने के विषय में बात करते हो, तो बस कहो 'हाँ, मैं यह करूँगा' या 'नहीं, मैं यह नहीं करूँगा।' यदि तुम उससे अधिक कुछ कहते हो, तो वह बुराई करने वाला शैतान है जिसने तुम्हें यह सुझाव दिया है कि तुम इस तरह से बात करो।"
\p
\s5
\v 38 "तुमने सुना है कि हमारे पूर्वजों को बताया गया था, "यदि किसी ने तुम्हारी आँखों में से किसी एक को नुकसान पहुंचाया है, तो उन्हें भी उस व्यक्ति की आँखों में से एक को नुकसान पहुंचाना है। और यदि कोई तुम्हारे दांतों को हानि पहुँचाता है, तो उन्हें भी उस व्यक्ति के दांत को हानि पहुँचाना है।'
\v 39 परन्तु अब जो मैं तुम से कहता हूँ सुनो: जो कोई तुम्हें हानि पहुँचाए, उस से बदला लेना तो छोड़ो, उसे रोकने का प्रयास भी मत करो। इसकी अपेक्षा, यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारकर तुम्हारा अपमान करता है, तो अपना दूसरा गाल उस व्यक्ति की तरफ कर दो ताकि वह उस पर भी मार दे।
\s5
\v 40 यदि कोई तुम्हारा अंगरखा लेने के लिए न्यायालय में तुम पर मुकदमा करना चाहता है, तो उस व्यक्ति को अपना अंगरखा और अपना बाहरी वस्त्र दोनों उतारकर दे दो, जो तुम्हारे लिए और भी अधिक मूल्यवान है।
\v 41 और यदि कोई रोमी सैनिक तुम्हें उसका सामान उठाकर उसके साथ एक मील जाने के लिए विवश करता है, तो उसे दो मील तक ले जाओ।
\v 42 अतिरिक्त यदि अगर कोई तुमसे कुछ माँगता है, उसे दे दो। अगर कोई तुमसे कुछ उधार देने के लिए कहता है, तो आगे बढ़ो और उसे उधार दे दो। "
\p
\s5
\v 43 "तुमने सुना है कि परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों से कहा था, "अपने भाई इस्राएलियों से प्रेम करो और विदेशियों से घृणा करो, क्योंकि वे तुम्हारे शत्रु हैं।"
\v 44 परन्तु अब जो मैं तुमसे कहता हूँ, सुनो: अपने शत्रुओं से अपने मित्रों के समान प्रेम करो, और उन लोगों के लिए प्रार्थना करो, जो तुम्हें दुख पहुंचाते हैं।
\v 45 परमेश्वर, तुम्हारे पिता जो स्वर्ग में है, उनके जैसा बनने के लिए ऐसा करो। वह सब लोगों पर दया करते हैं। उदाहरण के लिए, वह सूर्य को दुष्ट लोगों और अच्छे लोगों पर समान रूप से चमकने के लिए उगाते हैं, और वह उन सभी लोगों के लिए बारिश भेजते हैं, जो उनके व्यवस्था का पालन करते हैं और जो लोग नहीं करते हैं।
\s5
\v 46 यदि तुम केवल उन लोगों से प्रेम करते हो जो तुमसे प्रेम करते हैं, तो यह आशा नहीं करना कि परमेश्वर तुमको प्रतिफल देंगे! यहां तक कि ऐसे लोग जो बुरे काम करते हैं, जैसे कर वसूलने वाले, वे भी उनसे प्रेम करते हैं जो उन्हें प्रेम करते हैं। तुमको तो उनसे बेहतर करना चाहिए!
\v 47 हाँ, और यदि तुम केवल अपने मित्रों को नमस्कार करते हो और परमेश्वर से उन्हें आशीर्वाद देने के लिए कहते हो, तो तुम अन्य लोगों की तुलना में कुछ भी अच्छा काम नहीं कर रहे हो। गैर-यहूदी भी, जो परमेश्वर के व्यवस्था का पालन नहीं करते, ऐसा ही काम करते हैं!
\v 48 अत: तुम्हें अपने परमेश्वर पिता के प्रति, जो स्वर्ग में है उनके प्रति पूर्ण विश्वासयोग्य रहना है, जैसे वह तुम्हारे साथ पूरी तरह विश्वासयोग्य हैं।"
\s5
\c 6
\p
\v 1 "निश्चित करो कि जब तुम अच्छे कर्म करते हो तो इसलिये नहीं कर रहे हो कि लोग देखें कि तुम क्या करते हो। यदि तुम दिखावे के लिए भले काम करते हो, तो परमेश्वर तुम्हारे पिता जो स्वर्ग में है, तुम्हें इसका कोई प्रतिफल नहीं देंगे।
\v 2 इसलिए जब भी तुम गरीबों को कुछ देते हो, तो दूसरे लोगों को न दिखाओ, ऐसा न लगे कि जैसे तुरही बजा रहे हो। ऐसा काम ढ़ोंगी लोग सभाओं और मुख्य सड़कों में करते हैं ताकि लोग उनकी प्रशंसा कर सकें। यही एकमात्र प्रतिफल है जो उन कपटियों को मिलेगा!
\s5
\v 3 उनकी तरह ऐसा करने की अपेक्षा, जब तुम गरीबों को कुछ देते हो, तो अन्य लोगों को यह पता न चले कि तुम क्या कर रहे हो।
\v 4 इस प्रकार, तुम गुप्त रूप से गरीबों की सहायता करोगे। परिणामस्वरुप, जब कोई तुम्हें नहीं देखता, तो परमेश्वर, तुम्हारे पिता जो तुम्हें देखते हैं, तुम्हें प्रतिफल देंगे।
\p
\s5
\v 5 "जब भी तुम प्रार्थना करो, तो कपटियों के समान मत करो। वे प्रार्थना करने के लिए सभाओं और मुख्य सड़कों के कोनों पर खड़े रहना पसंद करते हैं, कि लोग उन्हें देख सकें और उन्हें अत्यधिक महान समझें। वे केवल यही प्रतिफल प्राप्त करेंगे।
\v 6 परन्तु जब तुम प्रार्थना करो, तो अपने निजी कमरे में जाकर द्वार बंद करके परमेश्वर अपने पिता से प्रार्थना करो, जिन्हें कोई नहीं देख सकता है। वह तुम पर ध्यान देंगे और तुम्हें प्रतिफल देंगे।
\v 7 जब तुम प्रार्थना करो, तो शब्दों को बार-बार मत दोहराना, क्योंकि ऐसी प्रार्थना वे लोग करते हैं जो परमेश्वर को नहीं जानते।
\s5
\v 8 शब्दों को बार-बार न दोहराएं, जैसे वे करते हैं, क्योंकि परमेश्वर तुम्हारे पिता तुम्हारे माँगने से पहले जानते हैं' कि तुम्हें क्या चाहिए।
\v 9 अत: इस प्रकार प्रार्थना करो: 'हे पिता, आप जो स्वर्ग में हैं, सब लोग आपका सम्मान करें।
\v 10 आप सब के ऊपर और सब कुछ पर पूर्ण शासन करें। जैसा आप चाहें, वैसे ही सब कुछ धरती पर हो, ठीक वैसे जैसे स्वर्ग में होता है।
\s5
\v 11 हमें प्रतिदिन का भोजन दें जिसकी हमें इस दिन आवश्यकता है।
\v 12 हमारे पापों को वैसे ही क्षमा करें जैसे हम उन लोगों को क्षमा करते हैं जिन्होंने हमारे विरुद्ध पाप किए हैं।
\v 13 जब हम परीक्षा में पड़ते हैं, तो हमे गलत काम करने न दें, और जब शैतान हमारी हानि करने का प्रयास करता है, तो हमें बचा लें।
\p
\s5
\v 14 जो लोग तुम्हारे विरुद्ध पाप करते हैं, उन्हें क्षमा कर दो, क्योंकि यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम्हारे पिता परमेश्वर जो स्वर्ग में हैं, तुम्हारे पापों को क्षमा करेंगे।
\v 15 परन्तु यदि तुम अन्य लोगों को क्षमा नहीं करते हो, तो परमेश्वर भी तुम्हारे पापों को क्षमा नहीं करेंगे।
\p
\s5
\v 16 जब तुम परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए भोजन नहीं करते हो, तो दु:खी नहीं दिखना, जैसे ढ़ोंगी दिखते हैं। वे अपना चेहरा उदास बना लेते हैं कि लोग यह देखें कि वे भोजन नहीं खा रहे हैं। ध्यान रखो कि उन लोगों को केवल यही प्रतिफल मिलेगा !
\v 17 इसकी अपेक्षा, तुम में से प्रत्येक, जब तुम भोजन नहीं करते हो, तो अपने बालों को कंघी करना और अपना चेहरा सदा के समान धोना,
\v 18 कि लोग यह न देखें कि तुम उपवास कर रहे हो। परन्तु परमेश्वर, तुम्हारे पिता, जिन्हें कोई नहीं देख सकता है, ध्यान देते हैं कि तुम खाना नहीं खा रहे हो। वह तुमको देखते हैं, भले ही कोई और तुमको नहीं देखता हो, और वह तुमको प्रतिफल देंगे।
\p
\s5
\v 19 स्वार्थी रूप से बड़ी मात्रा में धन और भौतिक वस्तुओं को इस धरती पर अपने लिए जमा न करो, क्योंकि पृथ्वी पर सब कुछ नाश हो जाता है- जहां कीड़ों द्वारा कपड़ों का विनाश होता है, जंग धातुओं को नष्ट कर देता है, और चोर अन्य लोगों का सामान चुराते हैं।
\v 20 इसकी अपेक्षा, ऐसे कार्य करो जो परमेश्वर को खुश कर दें कि तुम स्वर्ग में धन इकट्ठा कर सको। स्वर्ग में कुछ भी नाश नहीं होता है। स्वर्ग में कोई कीड़ा कपड़ों को नष्ट नहीं कर सकता है, वहाँ कोई जंग नहीं है, और वहाँ चोरी करने वाला कोई चोर नहीं है।
\v 21 याद रखो कि जो भी तुम्हारे लिए सबसे अधिक आवश्यक है, उसी के विषय में तुम सोचोगे।
\p
\s5
\v 22 "तुम्हारी आँखें तुम्हारे शरीर के लिए दीपक के समान हैं, क्योंकि वे देखने में तुम्हें सक्षम बनाती हैं। इसलिए यदि तुम ऐसे देखते हो जैसे परमेश्वर देखते हैं, तो उस से ऐसा होगा कि तुम्हारा पूरा शरीर प्रकाश से भरा हुआ होगा।
\v 23 लेकिन अगर तुम्हारी आंखें बुरी हैं, तो तुम चीजों को भलिभाँति देखने में सक्षम नहीं हो। तुम पूर्ण अंधेरे में होंगे। तुम कितने लालची हो जाओगे!
\p
\v 24 "कोई भी एक ही समय में दो अलग-अलग स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता है। यदि वह ऐसा करने का प्रयास करता है, तो वह उनमें से किसी एक से घृणा करता है और दूसरे से प्रेम करता है, या वह उनमें से एक के प्रति विश्वासयोग्य होगा और दूसरे के साथ धोखा करेगा। वैसे ही, तुम एक ही समय में परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते हो।"
\p
\s5
\v 25 यही कारण है कि मैं तुमसे कहता हूँ कि तुम्हें उन वस्तुओं के विषय में चिंता नहीं करनी चाहिए जिनकी तुमको जीवन जीने के लिए आवश्यक्ता है! चिंता न करो कि क्या तुम्हारे पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन होगा और पीने के लिए वस्तुएँ होंगी, या पहनने के लिए पर्याप्त कपड़े होंगे। तुम अपने जीवन का संचालन कैसे करते हो, वह इन सब वस्तुओं की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है।
\v 26 पक्षियों के विषय में सोचो। वे बीज नहीं बोते हैं, और वे फसल की कटाई नहीं करते या खत्तों में अनाज एकत्र नहीं करते हैं। वे सदा खाने के लिए भोजन पाते हैं क्योंकि परमेश्वर, तुम्हारे पिता जो स्वर्ग में हैं, उनके लिए भोजन देते हैं।
\s5
\v 27 तुम में से कोई भी चिंता करके, क्या अपने जीवन में कुछ वर्ष जोड़ सकता है। तुम अपने जीवन में एक पल भी नहीं जोड़ सकते हो! तो तुम्हें उन वस्तुओं के विषय में चिंता नहीं करना चाहिए जिनकी तुमको आवश्यकता है।
\p
\v 28 तुम्हें इस बात की भी चिंता नहीं करनी चाहिए कि तुम्हारे पास पहनने के लिए पर्याप्त कपड़े होंगे या नहीं। मैदानों में बढ़ने वाले फूलों के विषय में सोचो। वे पैसे कमाने के लिए काम नहीं करते, और वे अपने कपड़े नहीं बनाते।
\v 29 लेकिन मैं तुम्हें बताता हूँ कि, राजा सुलैमान, जो बहुत वर्ष पहले रहता था, बहुत सुंदर कपड़े पहनता था, उसके कपड़े उन फूलों में से किसी एक के समान सुन्दर न थे।
\s5
\v 30 परमेश्वर जंगली पौधों को बहुत सुंदर बनाते हैं, परन्तु वे मैदान में केवल कुछ समय के लिए बड़े होते हैं। एक दिन वे उगते हैं, और अगले दिन लोग उन्हें जलाने के लिए भट्ठी में डाल देंगे। परन्तु तुम जंगली पौधों की तुलना में परमेश्वर के लिए अधिक महत्वपूर्ण हो, और तुम बहुत लंबे समय तक जीवित रहते हो। तुम जो इतने कम विश्वास वाले हो, परमेश्वर पर भरोसा रखो!
\v 31 इसलिये चिंता करके मत कहो, 'क्या हमारे पास खाने के लिए कुछ होगा?' या 'क्या हमारे पास पीने के लिए कुछ होगा?' या 'क्या हमारे पास पहनने के लिए कपड़े होंगे?'
\s5
\v 32 जो लोग परमेश्वर को नहीं जानते, वे सदा ही ऐसी वस्तुओं के विषय में चिंता करते हैं। परन्तु परमेश्वर, तुम्हारे पिता जो स्वर्ग में है, जानते हैं कि तुम्हें उन सब चीजों की आवश्यक्ता है।
\v 33 इसकी अपेक्षा, इस बात को सबसे महत्वपूर्ण समझो कि परमेश्वर पूरी पृथ्वी पर शासन करे और हर एक जन वही करे जो परमेश्वर चाहते हैं। यदि तुम ऐसा करते हो, तो वह तुम्हें वह सभी वस्तुएँ देंगे जो तुमको चाहिए।
\v 34 इसलिए चिंता मत करो कि अगले दिन तुम्हारे साथ क्या होगा, क्योंकि जब वह दिन आएगा, तो तुम्हारे पास चिंता करने के पर्याप्त विषय होंगे। इसलिए समय से पहले चिंता मत करो।"
\s5
\c 7
\p
\v 1 इस के विषय में बात मत करो कि दूसरों ने कितने पाप किए हैं, जिससे कि परमेश्वर यह न कहे कि तुमने कितने पाप किए हैं।
\v 2 यदि तुम अन्य लोगों की निंदा करते हो, तो परमेश्वर तुम्हारी निंदा करेंगे। तुम दूसरों की जितनी निंदा करते हो, तुम्हारी भी उतनी निंदा की जाएगी।
\s5
\v 3 तुममें से किसी को भी किसी की छोटी गलतियों के विषय में चिंतित नहीं होना चाहिए! यह तो उस व्यक्ति की आंखों में भूसे के तिनके को देखने के समान होगा। लेकिन तुमको अपने खुद के बड़े दोषों के विषय में चिंतित होना चाहिए क्योंकि तुम अपनी आंखों के एक बड़ी लकड़ी के टुकड़े पर ध्यान नहीं देते।
\v 4 तुम्हें अन्य लोगों को उनके मामूली दोषों के विषय में नहीं टोकना चाहिए, 'मुझे तेरी आंखों से तिनका निकालने दे!' जबकि तुम्हारी अपनी आंखों में अभी भी एक लकड़ी का टुकड़ा है।
\v 5 यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम एक पाखंडी हो! किसी और की आंख से तिनका बाहर निकालने का प्रयास करने से पहले तुमको अपनी आंख से वह टुकड़ा बाहर निकालना चाहिए।"
\p
\s5
\v 6 "तुम परमेश्वर से संबंधित वस्तुएँ कुत्तों को नहीं देते जो तुम पर हमला करते हैं और तुम मूल्यवान मोतियों को सूअरों के सामने नहीं फेंकते, क्योंकि वे सिर्फ उन पर चलते हैं। इसी प्रकार, परमेश्वर के विषय में उन्हें अद्भुत बातें मत बताना जिन्हें तुम जानते हो कि वे बदले में तुम्हारे साथ बुराई करेंगे।
\p
\s5
\v 7 "तुमको जो आवश्यकता है उसके लिए परमेश्वर से माँगते रहो। और उनसे ही आशा रखो कि वह तुम्हें देंगे।
\v 8 जो कोई परमेश्वर से कुछ माँगता है, और जो उनसे आशा करता है कि वह उसे देंगे, उसे वह अवश्य पाएगा।
\p
\v 9 यदि तुम्हारा पुत्र तुमसे रोटी मांगे तो तुम में से कोई भी उसे पत्थर नहीं देगा, क्या दोगे?
\v 10 यदि तुम्हारा पुत्र तुमसे मछली के लिए कहता है, तो तुम उसे साँप नहीं दोगे, क्या दोगे?
\s5
\v 11 भले ही तुम बुरे हो, तो भी तुम अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएँ देना जानते हो। तो परमेश्वर, तुम्हारे पिता जो स्वर्ग में है, निश्चय ही उस से भी अधिक अच्छी वस्तुएँ उनको देंगे जो उनसे माँगते हैं।
\p
\v 12 तो जिस प्रकार तुम चाहते हो कि दूसरे तुम्हारे साथ व्यवहार करें, वैसे ही तुम्हें भी उनके साथ व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर के व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं ने बहुत पहले जो कुछ लिखा था, उसका अर्थ यही है।
\p
\s5
\v 13-14 "स्वर्ग में परमेश्वर के साथ सदा के लिए रहना कठिन है, यह एक कठिन मार्ग के समान है जिस पर तुमको जाना चाहिए। एक और रास्ता है, जो कि अधिकतर लोग अपनाते हैं। वह सड़क चौड़ी है; वे एक चौड़े दरवाजे तक पहुंचने तक उस पर चलते हैं, लेकिन जब वे उसमें प्रवेश करते हैं, तो वे मरेंगे। इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ कि कठिन मार्ग से जाओ और स्वर्ग में परमेश्वर के साथ सदा रहने के लिए सकरे द्वार में प्रवेश करो।"
\p
\s5
\v 15 जो लोग तुम्हारे पास आते हैं और झूठ बोलते हैं कि वे तुम्हें बता रहे हैं कि परमेश्वर ने क्या कहा है, उन से सावधान रहो। वे भेड़ियों के समान हैं जो खुद को भेड़-बकरियों की खाल से ढंकते हैं, जो तुम्हें हानि न पहुँचानेवाले दिखाई देते हैं, परन्तु वे तुम पर आक्रमण करेंगे।
\v 16 पौधों का फल देखकर तुम जानते हो कि वे किस प्रकार के पौधे हैं। काँटे वाली झाड़ियाँ अंगूर नहीं ला सकती हैं, और ऊँटकटारों से अंजीर पैदा नहीं हो सकते हैं इसलिए कोई भी झाड़ियों से अंगूर या ऊँटकटारों से अंजीर पाने की आशा नहीं करता है।
\v 17 यहां एक और उदाहरण है: सभी अच्छे फलों के पेड़ अच्छे फल को उत्पन्न करते हैं, परन्तु सभी बुरे पेड़ बुरे फल उत्पन्न करते हैं।
\s5
\v 18 अच्छे फल का कोई पेड़ बुरा फल पैदा नहीं करता है, और कोई बुरा पेड़ अच्छे फल का उत्पन्न नहीं करता है।
\v 19 मजदूर उन सब पेड़ों को काटकर जला देते हैं जो अच्छा फल उत्पन्न नहीं करते हैं।
\v 20 पेड़ों के फल देखकर तुम जान जाते हो कि वे किस प्रकार के पेड़ हैं। इसी प्रकार, जब तुम देखते हो कि जो लोग तुम्हारे पास आते हैं वे कैसे काम करते हैं, तो तुम जान लोगे कि क्या वे वास्तव में अच्छे हैं या नहीं।
\p
\s5
\v 21 बहुत से लोगों का स्वभाव है कि, मुझे प्रभु कहें, यह दिखाते हुए कि उनके पास मेरे अधिकार हैं, परमेश्वर उनमें से कुछ पर स्वर्ग से शासन करने के लिए सहमत नहीं होंगे, क्योंकि वे ऐसे काम नहीं करते जैसे परमेश्वर चाहते हैं। मेरे पिता केवल उन पर शासन करने के लिए सहमत होंगे जो उनकी इच्छा के अनुसार चलते हैं।
\v 22 जिस दिन परमेश्वर सब का न्याय करेंगे, बहुत से लोग मुझसे कहेंगे, हे प्रभु, हमने आपके प्रेरितों के समान परमेश्वर के संदेश को सुनाया! आपके प्रेरितों के समान हमने लोगों में से दुष्ट-आत्माओं को निकाला! और आपके प्रेरितों के समान, हमने अनेक शक्तिशाली कार्य किए!'
\v 23 तब मैं सबके सामने उनसे कहूंगा, 'मैंने कभी स्वीकार नहीं किया है कि तुम मेरे साथ थे। हे बुराई करनेवालों, मुझ से दूर चले जाओ!'
\p
\s5
\v 24 तो जो मेरी बातों को सुनता है और जो मेरी आज्ञा के अनुसार करता है वह एक बुद्धिमान व्यक्ति के समान होगा जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया।
\v 25 और जब बारिश हुई और नदी में बाढ़ आई, और हवाएँ चली और उस घर पर लगीं, वह नहीं गिरा क्योंकि यह ठोस चट्टान पर बनाया गया था।
\s5
\v 26 दूसरी ओर, जो कोई मेरी बातें सुनता है, परन्तु मेरी आज्ञा नहीं मानता वह एक मूर्ख व्यक्ति के समान होगा जिसने रेत पर अपना घर बनाया।
\v 27 जब बारिश गिरी, और नदी में बाढ़ आई, और हवाएँ चली और उस घर पर लगीं, तो वह घर टूट गया और पूरी तरह बिखर गया क्योंकि यह रेत पर बनाया गया था। इसलिए जो मैंने तुमसे कहा है, उसे मानना चाहिए।"
\p
\s5
\v 28 जब यीशु ने इन सब बातों को सिखाना समाप्त किया, तो उनको सुननेवाली भीड़ उनकी शिक्षा देने की विधि से आश्चर्यचकित थी।
\v 29 उन्होंने एक ऐसे शिक्षक के रूप मैं सिखाया जो सिखाने के लिए अपने ज्ञान पर निर्भर करता है। उन्होंने उन लोगों के समान नहीं सिखाया जो यहूदी व्यवस्था को सिखाते थे, उन विभिन्न बातों को दोहराते थे जिन्हें अन्य लोगों ने सिखाया था।
\s5
\c 8
\p
\v 1 जब यीशु पहाड़ी से नीचे उतरे तब बड़ी भीड़ उनके पीछे आई।
\v 2 जब यीशु ने लोगों को छोड़ दिया, एक व्यक्ति जिसे कोढ़ की बीमारी हुई थी, उनके पास आया और उनके सामने घुटने टेक दिए। उसने यीशु से कहा, "हे प्रभु, कृपया मुझे स्वस्थ करें, क्योंकि मैं जानता हूँ कि यदि आप चाहें तो मुझे स्वस्थ कर सकते हैं।"
\v 3 तब यीशु ने अपना हाथ बढ़ाकर व्यक्ति को छुआ। उन्होंने उससे कहा, "मैं तुझे स्वस्थ करना चाहता हूँ, और अब मैं तुझे स्वस्थ करूंगा।" तुरंत ही वह मनुष्य अपनी बीमारी से स्वस्थ हो गया।
\s5
\v 4 "फिर यीशु ने उस से कहा," यह सुनिश्चित करना कि मैंने जो तुझे स्वस्थ किया है, तू उसके विषय में याजक के अतिरिक्त किसी और को नहीं बताएगा। फिर यरूशलेम के आराधनालय में जाकर मूसा की आज्ञा के अनुसार भेंट चढ़ा, जिससे कि लोगों को तेरी चंगाई के विषय में पता चले।"
\p
\s5
\v 5 जब यीशु कफरनहूम शहर में गए, तो एक रोमी अधिकारी जो सौ सैनिकों का सेनापति था उनके पास आया। उसने यीशु से उसकी सहायता करने के लिए विनती की।
\v 6 उसने यीशु से कहा, हे प्रभु, मेरा दास घर में बिस्तर पर पड़ा है, और वह लकवा ग्रस्त है, और वह बहुत पीड़ा में है।
\v 7 यीशु ने उस से कहा, "मैं तेरे घर चलकर उसे चंगा करूंगा।"
\s5
\v 8 परन्तु अधिकारी ने उनसे कहा, "आप मेरे घर आएँ, मैं इस योग्य नहीं हूँ, बस कह दें कि मेरा दास ठीक हो गया है, और वह ठीक हो जाएगा।
\v 9 मेरे साथ भी ऐसा ही होता है। मैं भी एक सैनिक हूँ; मुझे मेरे सरदारों के आदेशों का पालन करना है, और मेरे पास भी सैनिक हैं जिन्हें मैं आज्ञा देता हूं। जब मैं उनमें से एक को कहता हूँ 'जा!' तो वह जाता है। जब मैं किसी दूसरे को कहता हूँ 'आ!' तो वह आता है। जब मैं अपने दास को कहता हूँ, 'यह कर!' तो वह करता है।"
\v 10 जब यीशु ने यह सुना, तो वह आश्चर्यचकित हुए। उन्होंने उनके साथ भीड़ से कहा, "सुनो: मैंने पहले कभी भी ऐसा कोई जन नहीं पाया जो मुझ पर इस गैर-यहूदी व्यक्ति के जैसा विश्वास करता है। इस्राएल में भी, जहां मुझे आशा है कि लोग मुझ पर विश्वास करेंगे, मुझे कोई भी नहीं मिला, जो मुझ पर इतना भरोसा करता है!
\s5
\v 11 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जब परमेश्वर स्वर्ग से सब पर पूरी तरह शासन करेंगे, तब बहुत से गैर-यहूदी लोग भी मुझ पर विश्वास करेंगे, और वे दूर देशों से आएंगे, जिनमें दूर पूर्व और दूर पश्चिम के लोग होंगे, और वे अब्राहम, इसहाक और याकूब के साथ भोज के लिए बैठेंगे।
\v 12 परन्तु जिन यहूदियों पर शासन करने का परमेश्वर का विचार है उन्हें वह नरक में डाल देंगे, जहां पर घोर अंधेरा है। वे अपने दुःखों के कारण रोएंगे, और वे अपने दांतों को पीसेंगे क्योंकि उन्हें बहुत पीड़ा होगी।"
\v 13 तब यीशु ने अधिकारी से कहा, "घर जा, तू ने जैसा विश्वास किया है वैसा ही होगा।" तब अधिकारी घर गया और पता चला कि उसका दास ठीक उसी समय पर स्वस्थ हो गया था जब यीशु ने उसे कहा था कि वह उसे ठीक कर देंगे।
\p
\s5
\v 14 जब यीशु और उनके कुछ शिष्य पतरस के घर गए, तो यीशु ने पतरस की सास को देखा। वह एक बिस्तर पर पड़ी थी क्योंकि उसे बुखार था।
\v 15 उन्होंने उसका हाथ छुआ, और तुरंत उसका बुखार चला गया। फिर वह उठी और उन्हें कुछ भोजन परोसा।
\p
\s5
\v 16 उस शाम जब सब्त समाप्त हो गया, तब भीड़ कई लोगों को यीशु के पास लेकर आई, जो दुष्ट-आत्माओं के वश में थे, और अन्य लोग जो बीमार थे। उन्होंने दुष्ट-आत्माओं को केवल उनसे बात करके ही निकाल दिया, और उन्होंने सभी बीमार लोगों को स्वस्थ किया।
\v 17 जब उन्होंने ऐसा किया, तो यशायाह भविष्यद्वक्ता ने जो लिखा था, वह सच हो गया, "उन्होंने लोगों को बीमारियों से मुक्त किया और उन्होंने उन्हें स्वस्थ किया।"
\p
\s5
\v 18 "यीशु ने अपने चारों ओर भीड़ को देखा तो उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि वे उन्हें नाव से झील के दूसरी ओर ले चलें।
\v 19 जब वे नाव की ओर जा रहे थे, तो एक व्यक्ति जिसने यहूदी व्यवस्था की शिक्षा पाई थी, आया और कहा, "गुरु, जहाँ भी आप जाएंगे, मैं आपके साथ जाऊंगा।"
\v 20 यीशु ने उसे उत्तर दिया, "लोमड़ियों की भूमि में गुफाएँ होती हैं, जहां वे रहतीं हैं, और पक्षियों के घोंसले होते हैं, परन्तु मैं मनुष्य का पुत्र हूँ, लेकिन मेरे पास घर नहीं है जहां मैं सो सकूं।"
\s5
\v 21 यीशु के शिष्यों में से और एक व्यक्ति ने उनसे कहा, "हे प्रभु, पहले मुझे घर जाने की अनुमति दें। मेरे पिता के मरने के बाद मैं उसे दफ़न कर दूँगा और फिर आपके साथ आऊंगा।"
\v 22 परन्तु यीशु ने उस से कहा, "मेरे साथ अभी आ। जो लोग मरे हुओं के समान हैं, उन्हें ही अपने लोगों के मरने की प्रतीक्षा करने दे।"
\p
\s5
\v 23 फिर यीशु नाव पर चढ़ गए और उनके शिष्य उनके पीछे हो लिए।
\v 24 अचानक तेज हवाएँ पानी पर चलीं, और बहुत अधिक ऊँची लहरें नाव से टकरा रही थीं और नाव में पानी भर रहा था। परन्तु यीशु सो रहे थे।
\v 25 शिष्यों ने उन्हें जगाया, और कहा, "प्रभु, हमें बचाओ! हम डूब रहे हैं!"
\s5
\v 26 उन्होंने उनसे कहा, "तुमको डरना नहीं चाहिए! क्या तुम्हे विश्वास नहीं कि मैं तुमको बचा सकता हूँ।" तब वह उठे और हवा को डाँटा और लहरों को शांत रहने के लिए कहा। तुरंत हवा का चलना बंद हो गया और पानी शांत हो गया।
\v 27 वे लोग चकित हो गए, और उन्होंने एक-दूसरे से कहा, "यह पुरुष एक असाधारण व्यक्ति है! सब कुछ इनके वश में है, यहां तक कि हवाएँ और लहरें भी उनकी बात मानती हैं!"
\p
\s5
\v 28 जब वे झील के पूर्वी हिस्से में आए, तो वे उस क्षेत्र में पहुंचे जहां गदरेनी लोग रहते थे। फिर दो पुरुष जिनको दुष्ट-आत्माओं ने अपने वश में किया हुआ था, उस कब्रिस्तान से बाहर निकल गए जहां वे रहते थे। क्योंकि वे बेहद हिंसक थे और लोगों पर आक्रमण कर देते थे इसलिए, कोई भी वहाँ उस सड़क पर यात्रा करने का साहस नहीं करता था।
\v 29 वे अकस्मात ही चिलाकर यीशु से कहने लगे, "आप परमेश्वर के पुत्र हैं! क्योंकि आपमें और हममें कुछ भी समान नहीं है, हमें अकेला छोड़ दें! क्या आप उस समय से पहले जो परमेश्वर ने हमें दण्ड देने के लिए नियुक्त किया है, हमें यहाँ पर दुःख देने के लिए आए हैं?"
\s5
\v 30 वहाँ सूअरों का एक बड़ा झुंड चर रहा था वह अधिक दूर नहीं था।
\v 31 "अत: दुष्ट-आत्माओं ने यीशु से विनती की और कहा," आप इन लोगों में से हमें बाहर निकालने जा रहे हैं, तो हमें उन सूअरों में भेज दें!"
\v 32 यीशु ने उनसे कहा, "अगर तुम यही चाहते हो, तो जाओ!" इसलिए दुष्ट-आत्माओं ने पुरुषों को छोड़ दिया और सूअरों में प्रवेश किया। अचानक, सूअरों का पूरा झुंड टीले पर से पानी में कूदकर डूब गया।
\s5
\v 33 "जो लोग सूअरों की देख रेख कर रहे थे, वे डर गए और शहर में भाग गए और जो कुछ हुआ था, उन दो पुरुषों, के विषय में जो दुष्ट-आत्माओं के वश में थे और सूअरों के साथ क्या हुआ था उसके विषय में सबको बताया।
\v 34 और ऐसा प्रतीत होता था कि उस शहर में रहने वाले सब लोग यीशु से मिलने को निकल आए हैं। जब उन्होंने यीशु को और उन दो पुरुषों को जो दुष्ट-आत्माओं के वश में थे देखा, तो उन्होंने यीशु से अनुरोध किया कि वह उनके क्षेत्र से चले जाएँ।
\s5
\c 9
\p
\v 1 यीशु और उनके शिष्य नाव पर चढ़ गए और झील के मार्ग द्वारा कफरनहूम गए, जहां वह रह रहे थे।
\v 2 कुछ लोग उनके पास एक व्यक्ति को लेकर आए जो लकवा ग्रस्त था और बिस्तर पर लेटा हुआ था। जब यीशु को पता चला कि उन्हें विश्वास था कि वह उस लकवा ग्रस्त व्यक्ति को स्वस्थ कर सकते हैं, तो उन्होंने उससे कहा, "हे जवान, साहस बाँध! मैं तेरे पापों को क्षमा करता हूँ।"
\s5
\v 3 कुछ लोग जो यहूदी व्यवस्था के जानकार थे, उन्होंने आपस में कहा, "यह व्यक्ति सोचता है कि वह परमेश्वर है, वह पापों को क्षमा नहीं कर सकता है!"
\v 4 यीशु जानते थे कि वे क्या सोच रहे थे, इसलिए उन्होंने कहा, "तुम्हारे मन में बुरे विचार नहीं आना चाहिएँ!"
\v 5 क्या कहना आसान है, यह कि उसके पापों को क्षमा कर दिया गया है या यह कि उठ और चल फिर?
\v 6 इसलिए मैं कुछ ऐसा करने जा रहा हूँ ताकि तुम जान सको कि परमेश्वर ने मनुष्य के पुत्र को पाप क्षमा करने का अधिकार दिया है। "फिर उन्होंने लकवा ग्रस्त व्यक्ति से कहा," उठ, अपना बिस्तर उठा, और घर जा! "
\s5
\v 7 वह व्यक्ति तुरन्त खड़ा हो गया और अपना बिस्तर उठा कर घर चला गया!
\v 8 जब भीड़ ने ये देखा, तो वे विस्मय और भय से भर गए। उन्होंने मनुष्य को ऐसा अधिकार देने के लिए परमेश्वर की स्तुति की।
\p
\v 9 जब यीशु वहाँ से जा रहे थे, तो उन्होंने मत्ती नामक एक व्यक्ति को देखा। वह एक मेज पर बैठा था, जहां से वह रोमी सरकार के लिए कर एकत्र किया करता था। यीशु ने उस से कहा, "मेरे साथ आ और मेरा शिष्य हो जा!" अत: मत्ती तुरन्त उठ गया और उनके साथ चला गया।
\s5
\v 10 यीशु और उनके शिष्य एक घर में खाने के लिए बैठे। जब वे खाना खा रहे थे, तो कई कर लेनेवाले और अन्य लोग आये और उनके साथ खाना खाया।
\v 11 जब फरीसियों ने यह देखा, तो उन्होंने यीशु के शिष्यों के पास जाकर कहा, "यह घृणित है कि तुम्हारा गुरु कर वसूलने वालों और उनके जैसे अन्य लोगों के साथ खाता है और मेलजोल रखता हैं।"
\s5
\v 12 उन्होंने जो कुछ कहा, उसे यीशु ने सुना था, इसलिए उन्होंने उन्हें यह दृष्टान्त कहा: "जो लोग बीमार होते हैं, उन्हें ही चिकित्सक की जरूरत है, न कि उन लोगों को जो स्वस्थ हैं।
\v 13 तुमको यह जानने की आवश्यकता है कि परमेश्वर द्वारा कहे गए इन शब्दों का क्या अर्थ है: 'मैं चाहता हूँ कि तुम लोगों के प्रति दया के कार्य करो, केवल बलिदान ही नहीं चढाओं।' ध्यान रखो कि मैं तुम्हारे पास उन लोगों को बुलाने नहीं आया हूँ, जो सोचते हैं कि वे धर्मी है और अपने पापी जीवन को दूर करके मेरे पास आए हैं, परन्तु मैं उन लोगों को बुलाने आया हूँ, जो जानते हैं कि वे पापी हैं।"
\p
\s5
\v 14 तब यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के शिष्य यीशु के पास आए और उनसे पूछा, "हम और फरीसी अक्सर उपवास करते हैं क्योंकि हम परमेश्वर को प्रसन्न करना चाहते हैं, परन्तु आपके शिष्य ऐसा नहीं करते हैं। वे उपवास क्यों नहीं करते हैं?"
\v 15 यीशु ने उत्तर दिया," जब विवाह करने के लिए तैयार दूल्हा अपने दोस्तों के साथ होता है, तो क्या वे लोग शोक करते हैं? नहीं, क्योंकि वे उस समय उदास नहीं हैं। परन्तु जब दूल्हा उन्हें छोड़कर चला जाएगा, वे उपवास करेंगे, क्योंकि वे उदास होंगे।
\p
\s5
\v 16 लोग एक छेद को सुधारने के लिए पुराने वस्त्रों पर नए कपड़ा का पैबंद नहीं लगाते हैं। अगर उन्होंने ऐसा किया, तो वस्त्र को धोने पर, पैबंद सिकुड़ जाएगा और कपड़े को फाड़ देगा, और छेद बड़ा हो जाएगा।
\s5
\v 17 कोई भी सुरक्षित रखने के लिए पुराने चमड़े के थैलों में ताजा अंगूर का रस नहीं भरता है। अगर कोई ऐसा करता है, तो जब रस दाखरस बन जाता है, तब वह चमड़े का थैला फट जाता है। इस प्रकार थैला भी फट जाएगा, और दाखरस भूमि पर गिर जाएगा। इसकी अपेक्षा, लोग नए दाखरस को चमड़े के नए थैले में भरते हैं, और जब दाखरस तैयार होगा तब थैला फैल जाएगा। इस प्रकार, दाखरस और थैला दोनों सुरक्षित हो जाएंगे।"
\p
\s5
\v 18 यीशु यह कह ही रहे थे कि, नगर से एक सरदार आया और उनके सामने झुक गया। फिर उसने कहा, "मेरी बेटी अभी-अभी मर गई है! परन्तु अगर आप आकर उस पर अपना हाथ रखें, तो वह फिर से जीवित हो जाएगी!"
\v 19 अत: यीशु उठे, और वह और शिष्य उस मनुष्य के साथ चले गए।
\s5
\v 20 फिर एक स्त्री जिसका बारह वर्ष से लगातार लहू बह रहा था, यीशु के पास आई। वह उनके पीछे आई और उनके वस्त्र के सिरे को छुआ।
\v 21 वह स्वयं से कह रही थी, "अगर मैं सिर्फ उनके वस्त्र को छूती हूँ, तो मैं ठीक हो जाऊँगी।"
\v 22 फिर यीशु ने मुड़कर देखा कि उन्हें किसने छुआ था। और जब उस स्त्री को देखा, तो उन्होंने उससे कहा, "हे प्रिय स्त्री, साहस बाँध। क्योंकि तूने विश्वास किया कि मैं तुझे ठीक कर सकता हूँ, इसलिए मैंने तुझे ठीक किया है।" वह स्त्री उसी पल चंगी हो गई थी।
\p
\s5
\v 23 यीशु उस व्यक्ति के घर आए और बांसुरी बजानेवालों को अंतिम संस्कार का संगीत बजाते देखा; वहाँ कई शोक करनेवाले थे जो ऊँचे शब्द से रो रहे थे क्योंकि लड़की की मृत्यु हो गई थी।
\v 24 "उन्होंने उनसे कहा," चले जाओ और यह अंतिम संस्कार का संगीत और रोना बंद करो, क्योंकि लड़की मरी नहीं है! वह केवल सो रही है!" लोग उन पर हँसे, क्योंकि वे जानते थे कि वह मर गई थी।
\s5
\v 25 लेकिन यीशु ने उन्हें घर से बाहर निकल जाने के लिए कहा। फिर वह उस कमरे में गए जहां लड़की लेटी हुई थी। उन्होंने उसका हाथ पकड़ा और वह फिर से जीवित हो गई और उठ गई।
\v 26 और उस पूरे क्षेत्र के लोगों ने इसके विषय में सुना।
\p
\s5
\v 27 "जब यीशु वहाँ से चले गए, तो दो अंधे व्यक्ति उनके पीछे आए और चिल्लाने लगे, "हे राजा दाऊद के वंशज, हम पर दया करो और हमें ठीक करो!"
\v 28 यीशु घर में गए, और वे अंधे व्यक्ति भी अंदर चले गए। यीशु ने उनसे कहा, "क्या तुम विश्वास करते हो कि मैं तुम्हें ठीक कर सकता हूँ?" उन्होंने उनसे कहा, "हाँ, प्रभु!"
\s5
\v 29 तब यीशु ने उनकी आंखों को छुआ और उन्होंने उनसे कहा, "क्योंकि तुम विश्वास करते हो कि मैं तुम्हारी आंखों को ठीक कर सकता हूँ, मैं उन्हें अभी इस समय ठीक कर रहा हूँ!"
\v 30 और वे देखने में सक्षम हुए! फिर यीशु ने उन्हें कठोरता से कहा, "यह सुनिश्चित करो कि मैंने तुम्हारे लिए जो कुछ किया है, तुम किसी को नहीं बताओगे!"
\v 31 परन्तु वे बाहर गए और उस पूरे क्षेत्र में समाचार फैला दिया।
\p
\s5
\v 32 जब वे दो लोग जा रहे थे, तो कुछ लोग यीशु के पास एक व्यक्ति को लाए जो बोलने में असमर्थ था क्योंकि एक दुष्ट-आत्मा उसे वश में किए हुई थी।
\v 33 यीशु ने उस दुष्ट-आत्मा को बाहर निकाल दिया तो वह व्यक्ति बोलने लगा! भीड़ ने इसे देखा और वे चकित हो गए और कहा, "इससे पहले हमने ऐसा अद्भुत काम इस्राएल में होते नहीं देखा है!"
\v 34 परन्तु फरीसियों ने कहा, "वह शैतान है, जो दुष्ट-आत्माओं पर शासन करता है, इसी कारण यह मनुष्यों में से दुष्ट-आत्माओं को निकालने में समर्थ है।"
\p
\s5
\v 35 फिर यीशु और उनके शिष्य गलील जिले के कई शहरों और नगरों में गए। वह आराधनालयों में सिखा रहे थे और सुसमाचार प्रचार कर रहे थे कि कैसे परमेश्वर स्वर्ग से शासन करेंगे। साथ ही वह उन लोगों को भी ठीक कर रहे थे जो विभिन्न रोगों और बीमारियों से पीड़ित थे।
\v 36 जब उन्होंने लोगों की भीड़ देखी, तो उन्हे उन पर दया आई क्योंकि वे परेशान और चिंतित थे। वे उन भेड़ों के समान थे जो बिना चरवाहे की थीं।
\s5
\v 37 फिर उन्होंने अपने शिष्यों से कहा: "जो लोग मेरा संदेश मानने के लिए तैयार हैं, वे उस खेत के समान हैं जहां फसल कटाई के लिए तैयार है। परन्तु फसलों को एकत्र करने के लिए लोग नहीं हैं।
\v 38 इसलिये प्रार्थना करो और परमेश्वर से विनती करो कि अपनी फसलों को एकत्र करने के लिए बहुत से लोगों को भेजे।
\s5
\c 10
\p
\v 1 यीशु ने अपने बारह शिष्यों को पास बुलाया और। उन्हें मनुष्यों को वश में करनेवाली दुष्ट-आत्माओं को निकालने की शक्तियां दीं। उन्होंने उन्हें रोगियों को चंगा करने में भी समर्थ किया।
\s5
\v 2 यहाँ उन बारह शिष्यों की एक सूची है, जिन्हें यीशु ने प्रेरित कहा। वे ये थे- शमौन, जिसका उन्होंने नया नाम पतरस रखा; पतरस का छोटा भाई, अन्द्रियास; जब्दी का पुत्र याकूब; याकूब का छोटा भाई, यूहन्ना;
\v 3 फिलिप्पुस; बरतुल्मै; थोमा; कर वसूलनेवाला मत्ती; हलफाई का पुत्र याकूब; तद्दै;
\v 4 शमौन कनानी; और यहूदा इस्करियोती, जिसने यीशु के साथ विश्वासघात किया था और उसने अधिकारियों का मार्गदर्शन भी किया कि यीशु को बन्दी बना लें।
\p
\s5
\v 5 जब यीशु अपने बारह प्रेरितों को विभिन्न स्थानों में लोगों को सुसमाचार सुनाने के लिए भेजने पर थे, तो उन्होंने उन्हें ये निर्देश दिए: "जहां पर गैर-यहूदी रहते हैं या उन शहरों में जहां सामरी लोग रहते हैं वहाँ मत जाना।
\v 6 इसके बजाय, इस्राएल के लोगों में जाओ; वे भेड़ों के समान हैं जो अपने चरवाहे से दूर, भटक गई हैं।
\v 7 जब तुम उनके पास जाते हो, तो उन से प्रचार करना कि परमेश्वर शीघ्र ही स्वर्ग से शासन करेंगे।
\s5
\v 8 बीमारों को चंगा करो, मरे हुओं को जीवित करो, कुष्ठ रोगियों को स्वस्थ करो और उन्हें समाज में वापस लाओ, और जो मनुष्य दुष्ट-आत्माओं के वश में हैं उनमें से दुष्ट-आत्माओं को निकलने का आदेश दो। लोगों की सहायता करने के बदले पैसे न लेना, क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हारी सहायता करने के लिए कुछ नहीं लिया है।
\v 9 अपने साथ पैसा लेकर नहीं चलना।
\v 10 और न ही अपने सामान के लिए थैला, जो तुमने पहन रखा है उसके अतिरिक्त न कुरता लेना, न ही चप्पल लेना, और न ही चलने के लिए लाठी, हर काम करनेवाला उन लोगों से भुगतान पाने के योग्य है, जिनके लिए वह काम करता है, इसलिए तुम जिन लोगों के पास जाते हो उनसे भोजन प्राप्त करने के योग्य हो।
\s5
\v 11 जिस किसी शहर या गांव में तुम प्रवेश करते हो, उसमें ऐसा व्यक्ति ढूँढ़ो जो तुम्हे अपने घर में ठहराना चाहता है।
\v 12 जब तुम उस घर में जाते हो, तो वहां रहनेवाले लोगों के लिए परमेश्वर से कुशल की विनती करो। जब तक तुम उस शहर या गांव को नहीं छोड़ देते उसी घर में रहना।
\v 13 यदि उस घर में रहने वाले लोग तुम्हारा अच्छी तरह से स्वागत करते हैं, तो परमेश्वर वास्तव में उनके लिए अच्छा काम करेंगे। परन्तु यदि वे तुम्हारा स्वागत नहीं करते हैं, तो तुम्हारी प्रार्थना उनकी सहायता नहीं करेगी, और परमेश्वर उनका भला नहीं करेंगे।
\s5
\v 14 यदि कोई भी घर या शहर में रहने वाले लोग तुम्हारा स्वागत नहीं करते हैं, न ही तुम्हारे संदेश को सुनते हैं, तो उस स्थान को छोड़ देना। निकलते समय, अपने पैरों से धूल झाड़ दो। ऐसा करने से, तुम उन्हें चेतावनी दोगे कि परमेश्वर उन्हें अस्वीकार कर देंगे, जैसा कि उन्होंने तुम्हारी बातों को अस्वीकार कर दिया।
\v 15 इस पर गम्भीरता से ध्यान दें: उस समय जब परमेश्वर सब लोगों का न्याय करेंगे तब, वह सदोम और गमोरा में रहने वाले दुष्ट लोगों को दण्ड देंगे। परन्तु जिस शहर के लोग तुमको अस्वीकार करते हैं, परमेश्वर उन्हें और अधिक गंभीर दण्ड देंगे।
\p
\s5
\v 16 "ध्यान दें: जब मैं तुम्हें बाहर भेजता हूँ, तो तुम भेड़ियों जैसे मनुष्यों के मध्य भेड़ों के समान ऐसे असुरक्षित हो जाओगे, जैसे भेड़ें। इसलिए सावधान रहो, जैसे साँप सावधान रहते हैं, साथ ही उनके लिए ऐसे हानिरहित रहो जैसे कबूतर हानिरहित होते हैं।
\v 17 इसके साथ ही, ऐसे लोगों से बचकर रहो, क्योंकि वे तुमको बन्दी बनाकर और तुम्हें न्यायपालिका के सदस्यों तक ले जाएंगे कि तुम पर मुकदमा चला सके। वे अपनी सभाओं में तुम्हें कोड़े मारेंगे।
\v 18 और क्योंकि तुम मेरे हो, वे तुम्हें राज्यपालों और राजाओं के सामने ले जाएंगे कि वे मुकद्दमा चलाकर तुम्हे दण्ड दे सकें। परन्तु तुम उन शासकों और अन्य गैर-यहूदियों को मेरे विषय में गवाही दोगे।
\s5
\v 19 जब ये लोग तुमको गिरफ्तार करते हैं, तब इस बात की चिन्ता नहीं करना कि तुम उन्हे क्या उत्तर दोगे क्योंकि जो शब्द तुम्हे कहने हैं वे तुम्हे मिल जाएँगे।
\v 20 ऐसा नहीं है कि तुम सोचोगे कि क्या कहना है। इसकी अपेक्षा तुम वह कहोगे जो तुम्हारे स्वर्गीय पिता के आत्मा तुमको बोलने के लिए कहे।
\s5
\v 21 वे तुम्हें अधिकारियों के पास मारने के लिए ले जाएंगे क्योंकि तुम मुझ पर विश्वास करते हो। उदाहरण के लिए, लोग अपने भाइयों के साथ ऐसा करेंगे और पिता अपने बच्चों के साथ ऐसा करेंगे। बच्चे अपने माता-पिता के विरुद्ध विद्रोह करेंगे और उनके मारे जाने का कारण बनेंगे।
\v 22 बहुत से लोग तुमसे घृणा करेंगे क्योंकि तुम मुझ में विश्वास करते हो। परन्तु जो मरते दम तक मुझ में सच्चा भरोसा रखेंगे, उन लोगों को परमेश्वर बचाएंगे।
\v 23 जब एक शहर के लोग तुमको सताते हैं, तो किसी अन्य शहर में भाग जाना। ध्यान दें: तुम्हारे पूरे इस्राएल में एक शहर से दूसरे शहर तक जाने और लोगों को मेरे विषय में बताना समाप्त करने से पहले, मैं, मनुष्य का पुत्र, निश्चय ही पृथ्वी पर लौट आऊँगा।
\p
\s5
\v 24 शिष्य को अपने गुरु से बड़ा होने की आशा नहीं करनी चाहिए, और सेवक अपने स्वामी से उत्तम नहीं हैं।
\v 25 तुम यह आशा नहीं करते कि लोग गुरु की तुलना में शिष्य की अधिक उत्तम सेवा करें, या यह कि वे एक सेवक को उसके स्वामी से अधिक उत्तम। इसी प्रकार, क्योंकि मैं तुम्हारा शिक्षक और स्वामी हूँ, तुम आशा कर सकते हो कि लोग तुम्हारी बुराई करेंगे, क्योंकि उन्होंने मेरे साथ बुरा व्यवहार किया है। मैं एक घर के शासक के समान हूँ, जिसे वे शैतान कहते हैं। यदि वे मुझसे ऐसा व्यवहार करते हैं, तो तुमको क्या लगता है कि वे तुमसे कैसा व्यवहार करेंगे?"
\p
\s5
\v 26 "उन लोगों से मत डरो। जो कुछ भी छिपा हुआ है, वह खोला जाएगा, और हर रहस्य सामने लाया जाएगा।
\v 27 इसलिए, डरने की अपेक्षा जो मैं रात के काम करनेवालों के समान गुप्त में कहता हूँ उसे दिन में काम करनेवालों के समान सब के सामने कहना। जो मैं तुम्हें निजी तौर पर कहता हूँ, जैसे लोग तुमसे कानाफूसी करते हैं, तो उसे सबके सामने कहना।
\s5
\v 28 उन लोगों से मत डरो, जो तुम्हारे शरीर को मार सकते हैं पर तुम्हारी आत्मा को नष्ट नहीं कर सकते हैं। परमेश्वर से डरो, क्योंकि वह नरक में तुम्हारे शरीर और आत्मा दोनों को नष्ट कर सकते हैं।
\v 29 चिड़ियों के विषय में सोचो। उनका इतना कम मूल्य है कि तुम उनमें से दो केवल एक छोटे सिक्के से खरीद सकते हो। परन्तु जब कोई चिड़िया भूमि पर गिर जाती है और मर जाती है, तो परमेश्वर, तुम्हारे स्वर्गीय पिता, यह जानते हैं, क्योंकि वह सब कुछ जानते हैं।
\v 30 वह तुम्हारे विषय में भी सब कुछ जानते हैं। यहाँ तक कि वह यह भी जानते हैं कि तुम्हारे सिर पर कितने बाल हैं!
\v 31 परमेश्वर के लिए चिड़ियों की तुलना में तुम्हारा मूल्य कहीं अधिक हैं। अत: उन लोगों से डरा मत करो जो तुम्हें मारने की धमकी देते हैं!
\s5
\v 32 यदि लोग दूसरों को यह बताने के लिए तैयार हैं कि वे मेरे हैं, तो मैं भी स्वर्ग में रहने वाले मेरे पिता के सामने यह स्वीकार करूँगा कि वे मेरे हैं।
\v 33 परन्तु यदि वे दूसरों के सामने कहने से डरते हैं कि वे मेरे हैं, तो मैं अपने पिता को, जो स्वर्ग में है, कह दूंगा कि वे मेरे नहीं हैं।"
\p
\s5
\v 34 "यह न सोचो कि मैं पृथ्वी पर इसलिए आया हूँ कि लोग शान्ति में एक साथ रह सकें। क्योंकि मैं आया हूँ, इसलिए मेरे पीछे आने वाले कुछ लोग मरेंगे।
\v 35 क्योंकि मैं पृथ्वी पर आया हूँ, इसलिए जो लोग मुझ पर विश्वास नहीं करते हैं वे उन लोगों के विरुद्ध होंगे जो मुझ पर विश्वास करते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ बेटे अपने पिता का विरोध करेंगे, कुछ बेटियां अपनी माँ का विरोध करेंगी, और कुछ बहुएँ अपनी सासों का विरोध करेंगी।
\v 36 इससे प्रकट होता है कि कभी-कभी किसी व्यक्ति के शत्रु उसके अपने घर के सदस्य होंगे।
\s5
\v 37 जो लोग अपने पिता या माताओं को मुझसे अधिक प्रेम करते हैं, वे मेरे होने के योग्य नहीं हैंI और जो लोग मुझसे अधिक, अपने पुत्र या पुत्रियों से प्रेम करते हैं, वे मेरे होने के योग्य नहीं हैंI
\v 38 यदि तुम मेरे कारण मरने के लिए तैयार नहीं हो, तो तुम मेरे होने के योग्य नहीं हो।
\v 39 जो लोग मरने से बचने के लिए मना करते हैं कि वे मुझ पर विश्वास करते हैं, तो वे सदा के लिए परमेश्वर के साथ नहीं रहेंगे, परन्तु जो लोग अपने जीवन को खोने के लिए तैयार हैं, क्योंकि वे मुझ में विश्वास करते हैं, तो वे सदा के लिए परमेश्वर के साथ रहेंगे।"
\p
\s5
\v 40 "परमेश्वर मानते हैं कि जो कोई तुम्हारा स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है, और वह मानते हैं कि जो कोई मेरा स्वागत करता है, वह उनका स्वागत करता है, जिन्होंने मुझे भेजा हैं।
\v 41 जो किसी व्यक्ति का स्वागत करता है, क्योंकि वे जानते हैं कि वह व्यक्ति एक भविष्यद्वक्ता है - उन्हें वही प्रतिफल मिलेगा जो भविष्यद्वक्ताओं को परमेश्वर से प्राप्त होंगे। इसी प्रकार, जो व्यक्ति किसी व्यक्ति का स्वागत करता है, क्योंकि वे जानते हैं कि वह व्यक्ति धर्मी है - उन्हें वही प्रतिफल मिलेगा जो धर्मी लोगों को परमेश्वर से प्राप्त होता है।
\s5
\v 42 ध्यान दें: मान लो कि लोग देख रहे हैं कि तुम प्यासे हो और तुम्हे ठंडा पानी पिलाएँ क्योंकि उन्हें पता है कि तुम मेरे शिष्य हो, भले ही तुम एक महत्वपूर्ण व्यक्ति न हो। परमेश्वर निश्चय ही ऐसा करने वाले लोगों को प्रतिफल देंगे।"
\s5
\c 11
\p
\v 1 जब यीशु ने अपने बारह शिष्यों को यह निर्देश दे दिए, तो उन्होंने उन्हें विभिन्न इस्राएली शहरों में भेज दिया। फिर यीशु उस क्षेत्र के अन्य इस्राएली शहरों में सिखाने और प्रचार करने गए।
\p
\v 2 जब यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने बन्दीगृह में सुना कि मसीह क्या कर रहे थे। इसलिए उसने अपने कुछ शिष्यों को उनके पास भेजा
\v 3 उनसे पूछने के लिए, "क्या आप मसीह है जिनके विषय में भविष्यद्वक्ताओं ने कहा था कि वह आएंगे, या क्या वह कोई और है जिनके आने की हमें आशा करनी है?"
\s5
\v 4 "यीशु ने यूहन्ना के शिष्यों को उत्तर दिया," वापस जाओ और यूहन्ना को बताओ जो तुमने मुझे लोगों को बताते हुए सुना और जो तुमने मुझे करते देखा है।
\v 5 मैं अंधे लोगों को फिर से देखने और लंगडे लोगों को चलने योग्य कर रहा हूं। मैं उन लोगों को स्वस्थ कर रहा हूँ जिनको कुष्ठ रोग है। मैं बहरे लोगों को फिर से सुनने योग्य कर रहा हूँ और मरे हुए लोगों को फिर से जीवित कर रहा हूं। मैं गरीब लोगों को परमेश्वर का सुसमाचार सुना रहा हूँ।
\v 6 यूहन्ना को यह भी बताओ कि परमेश्वर उन लोगों से प्रसन्न हैं जो मुझ पर विश्वास करना बंद नहीं करते, कि उन्हें मेरे काम पसंद नहीं हैं।"
\p
\s5
\v 7 जब यूहन्ना के शिष्य चले गए, तो यीशु ने यूहन्ना के विषय में लोगों की भीड़ से चर्चा की। उन्होंने उनसे कहा, "जब तुम जंगल में यूहन्ना को देखने के लिए गए थे तो तुमने क्या देखने की आशा की थीं? तुम हवा में उड़ने वाले लंबे घास को देखने के लिए तो नहीं गए थे?
\v 8 तो तुम किस प्रकार के व्यक्ति को देखने की आशा कर रहे थे? निश्चय ही एक ऐसे मनुष्य को नहीं जो मूल्यवान वस्त्र पहने हुए हो। नहीं! तुम भलिभाँति जानते हो कि जो लोग ऐसे कपड़े पहनते हैं वे जंगल में नहीं राजाओं के महलों में रहते हैं।
\s5
\v 9 तो वास्तव में, तुम किस प्रकार के व्यक्ति को देखने की आशा कर रहे थे? एक भविष्यद्वक्ता? अरे हाँ! लेकिन मैं तुमको ये बताता हूं: यूहन्ना केवल कोई साधारण भविष्यद्वक्ता नहीं है।
\v 10 वह वही है जिसके विषय में परमेश्वर ने धर्मशास्त्र में किसी के द्वारा कहा था, 'यह ध्यान रखो! मैं अपने दूत को तुम्हारे आगे भेज रहा हूँ कि वह तुम्हारे आगमन के लिए मनुष्यों को तैयार करे।'
\p
\s5
\v 11 ध्यान दें: उन सभी लोगों में से जो कभी जीवित रहे, परमेश्वर ने किसी को भी यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से बड़ा नहीं माना। उसी समय, परमेश्वर उस राज्य में जिस पर वह स्वर्ग से शासन करेंगे, उन लोगों को जो महत्तवपूर्ण नहीं समझे जाते, यूहन्ना की तुलना में अधिक महान मानेंगे।
\v 12 जिस समय से यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने प्रचार किया, तब से लेकर अब तक, कुछ लोग अपने रीति से परमेश्वर को स्वर्ग से शासन करवाने का प्रयास कर रहे हैं, और वे इस उद्देश्य के लिए बल का प्रयोग भी कर रहे हैं।
\s5
\v 13 मैं यूहन्ना के विषय में जो कह रहा हूँ, वह तुम भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों में और यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के समय तक जो कुछ व्यवस्था में लिखा गया है, उसमें पढ़ सकते हो।
\v 14 केवल इतना ही नहीं, यदि तुम इसे समझने का प्रयास करने के लिए तैयार हो, तो मैं तुमको बताता हूँ कि यूहन्ना वास्तव में दूसरा एलिय्याह है, वह भविष्यद्वक्ता जो भविष्य में आने वाला था।
\v 15 यदि तुम इसे समझना चाहते हो, तो तुमको ध्यान से इस विषय में सोचना चाहिए कि मैंने अभी क्या कहा है।
\p
\s5
\v 16 परन्तु तुम और अभी जो जीवित हैं, ऐसे बच्चों के समान हैं जो बाज़ार में खेल खेल रहे हैं। उनमें से कुछ अपने मित्रों से कहते हैं,
\v 17 'हमने तुम्हारे लिए बांसुरी पर खुशी का संगीत बजाया है, परन्तु तुमने नाचने से मना कर दिया! फिर हमने तुम्हारे लिए दु:ख भरे अंतिम संस्कार के गीत गाए, परन्तु तुमने रोने से मना कर दिया!'
\s5
\v 18 मैं इसलिए यह कहता हूँ कि तुम यूहन्ना से और मुझसे, दोनों से असंतुष्ट हो! जब यूहन्ना आया और तुम्हें उपदेश दिए, तो उसने अच्छा भोजन नहीं खाया और दाखरस नहीं पीया, जैसा अधिकांश लोग करते हैं। परन्तु तुमने उसे अस्वीकार कर दिया और कहा, 'वह दुष्ट-आत्मा के वश में है!'
\v 19 मैं, मनुष्य का पुत्र, यूहन्ना के समान नहीं हूँ। मैं अन्य लोगों के समान भोजन खाता हूँ और दाखरस पीता हूँ। लेकिन तुम मुझे भी अस्वीकार करते हो और कहते हो, 'देखो! यह व्यक्ति बहुत अधिक भोजन खाता है और बहुत अधिक दाखरस पीता है, और वह कर वसूलनेवालों और अन्य पापियों का मित्र है! परन्तु जो कोई सचमुच बुद्धिमान है, वह अपने अच्छे कर्मों से उसे प्रकट करेगा।"
\p
\s5
\v 20 उन शहरों में जहां यीशु ने अपने अधिकांश चमत्कार किए थे, वहां भी लोग परमेश्वर के पास आने से मना कर रहे थे। इसलिये उन्होंने उन्हें यह कहकर डाँटना आरम्भ किया,
\v 21 "तुम लोग जो खुराजीन शहर में और तुम जो बैतसैदा शहर में रहते हो, तुम पीड़ित होगे! मैंने तुम्हारे शहरों में बहुत अच्छे चमत्कार किए, लेकिन तुमने पाप करना बंद नहीं किया। बहुत समय पहले यदि मैंने वे चमत्कार सूर और सैदा के शहरों में किए होते, तो उन दुष्ट लोगों ने पाप करना बंद कर दिया होता; वे अपने ऊपर टाट डाल लेते और आग की ठंडी राख पर बैठते, और अपने किए हुए कामों का पछतावा करते।
\v 22 मैं तुमको यह बता दूँ कि परमेश्वर सूर और सैदा के दुष्ट लोगों को दण्ड देंगे, परन्तु अंतिम दिन जब वह सब लोगों का न्याय करेंगे, तो वह तुम्हें और भी अधिक गंभीर दण्ड देंगे।
\s5
\v 23 मेरे पास तुम लोगों से भी जो कफरनहूम शहर में रहते हो कहने के लिए कुछ है। क्या तुमको लगता है कि दूसरे तुम्हारी इतनी प्रशंसा करेंगे कि तुम सीधा स्वर्ग चले जाओगे? ऐसा नहीं होगा! इसके विपरीत, तुम नीचे जाओगे जहां लोगों के मरने के बाद परमेश्वर उनको दण्ड देते हैं! यदि मैंने बहुत समय पहले सदोम में यह चमत्कार किए होते, तो उन दुष्ट लोगों ने निश्चय ही पाप करना त्याग दिया होता, और उनका शहर यहां आज भी होता। परन्तु तुमने पाप करना नहीं त्यागा है।
\v 24 मैं तुमको यह बता दूँ कि परमेश्वर सदोम में रहने वाले दुष्ट लोगों को दण्ड देंगे, परन्तु अंतिम दिन जब वह सब लोगों का न्याय करेंगे, तो वह तुमको और भी अधिक गंभीर दण्ड देंगे।"
\p
\s5
\v 25 उस समय यीशु ने प्रार्थना की, "हे पिता, आप स्वर्ग में और धरती पर सब कुछ पर शासन करते हैं। मैं धन्यवाद करता हूँ कि आप इन बातों को जानने से ऐसे लोगों को रोकते हो, जो सोचते हैं कि वे बुद्धिमान हैं और बहुत शिक्षित हैं। इसकी अपेक्षा आपने इन बातों को उन लोगों पर प्रकट किया है जो आपकी सच्चाई को इस प्रकार स्वीकार करते हैं, जैसे कि छोटे बच्चे बड़ों की बातों को मानते हैं।
\v 26 हाँ, हे पिता, आपने ऐसा किया है क्योंकि ऐसा करना आपको अच्छा लगा।"
\p
\v 27 तब यीशु ने लोगों से कहा, "मेरे पिता परमेश्वर ने मुझे मेरा काम करने के लिए जो कुछ जानने की आवश्यकता है, वह सब मुझे बता दिया है। केवल मेरे पिता जानते हैं कि मैं कौन हूँ। अतिरिक्त केवल मैं और जिन लोगों पर मैं उन्हें प्रकट करना चाहता हूँ वे ही वास्तव में मेरे पिता को जानते हैं।
\s5
\v 28 तुम सब लोग मेरे पास आओ, जो अगुवों के निर्देशन में नियमों का पालन करने के प्रयास से बहुत थक चुके हो। मैं तुम्हें उन सब से विश्राम दूँगा।
\v 29 जैसे एक बैल अपने जुए के अधीन हो जाता है, वैसे ही तुम भी मेरे अधीन हो जाओ और जो मुझे तुम्हें सिखाना है, उसे सीखो। मैं कोमल और विनम्र हूँ, और तुम वास्तव में विश्राम पाओगे।
\v 30 जो बोझ मैं तुम पर डालूँगा वह हल्का है, और तुम उसे आसानी से उठा लोगे।"
\s5
\c 12
\p
\v 1 उस समय सब्त के दिन, यीशु और शिष्य कुछ अनाज के खेतों से होकर जा रहे थे। शिष्यों को भूख लगी थी, तो उन्होंने कुछ अनाज की बालें लीं और उनको खा लिया, मूसा की व्यवस्था में ऐसा करने की अनुमति नहीं थी।
\v 2 कुछ फरीसियों ने उन्हें ऐसा करते देखा, तो उन्होंने यीशु से कहा, "देख, तेरे शिष्य हमारे विश्राम के दिन में काम कर रहे हैं।
\s5
\v 3 "लेकिन यीशु ने उन्हें उत्तर दिया," धर्मशास्त्रों में लिखा है कि हमारे पूर्वज राजा दाऊद ने क्या किया था जब उसे और उसके साथियों को भूख लगी थी।
\v 4 राजा दाऊद ने आराधना के पवित्र तम्बू में प्रवेश किया और जो रोटी परमेश्वर के लिए भेंट की हुई थीं उन्हे खाया। परन्तु मूसा की व्यवस्था के अनुसार, केवल याजकों को वह रोटी खाने की अनुमति थी, दाऊद और उसके साथियों ने उन्हे खाया था।
\s5
\v 5 इसके अतिरिक्त तुमने निश्चय ही पढ़ा होगा जो मूसा ने लिखा है, याजक, सब्त के दिन आराधनालय में काम करके, यहूदी विश्राम दिवस के व्यवस्था का पालन नहीं करते हैं, तो भी वे दोषी नहीं हैं।
\v 6 मैं तुम्हें समझता हूँ कि इसका क्या अर्थ है: मैं तुम्हारे पास आया हूँ, और मैं, आराधनालय से ज्यादा महत्वपूर्ण हूं।
\s5
\v 7 तुमको धर्मशास्त्रों में लिखे हुए परमेश्वर के इन वचनों पर विचार करना चाहिए: 'मैं चाहता हूँ कि तुम लोगों के साथ दया का व्यवहार करो और केवल बलिदान न चढ़ाओ।' यदि तुम समझते हो कि इसका क्या अर्थ है, तो तुम मेरे शिष्यों की निंदा नहीं करोगे, जिन्होंने कोई गलत काम नहीं किया है।
\v 8 मैं मनुष्य का पुत्र हूँ, और मेरे पास लोगों को यह बताने का अधिकार है कि वे सब्त के दिन क्या कर सकते हैं।"
\p
\s5
\v 9 उसी दिन यीशु वहाँ से निकलकर, एक आराधनालय में गए।
\v 10 वहां उन्होंने एक सूखे हाथ वाले व्यक्ति को देखा। फरीसी सब्त के विषय में यीशु के साथ विवाद करना चाहते थे, इसलिए उनमें से एक ने उनसे पूछा, "क्या परमेश्वर हमें विश्राम के दिन में लोगों को चंगा करने की अनुमति देते हैं?"
\s5
\v 11 वे अपेक्षा कर रहे थे कि यीशु कुछ गलत कह कर पाप करेंगे। उन्होंने उन्हें उत्तर दिया, "मान लो कि तुम्हारे पास एक ही भेड़ है, और वह सब्त के दिन एक गहरे गड़हे में गिर गई, क्या तुम उसे वहां छोड़ दोगे? कदापि नहीं! तुम उसे पकड़ोगे और उठाकर तुरन्त बाहर निकालोगे!
\v 12 परन्तु मनुष्य भेड़ की तुलना में बहुत अधिक मूल्यवान है। इसलिए यह निश्चय ही हमारे लिए सही होगा, कि किसी भी व्यक्ति को स्वस्थ करके भलाई करें, चाहे वह हमारे विश्राम का दिन ही क्योंकि हो!"
\s5
\v 13 तब उन्होंने उस व्यक्ति से कहा, "अपना हाथ बढ़ा!" उसने अपना सूखा हाथ बढ़ाया, और वह, दूसरे हाथ के समान स्वस्थ हो गया!
\v 14 तब फरीसी आराधनालय छोड़कर चले गए। उन्होंने एक साथ योजना बनाना आरंभ कर दिया कि वे यीशु को कैसे मार सकते थे।
\p
\s5
\v 15 क्योंकि यीशु को पता था कि फरीसी उन्हें मारने का षड्यन्त्र रच रहे हैं, वह शिष्यों को लेकर वहां से चले गए। कई बीमार लोगों सहित एक बड़ी भीड़, उनके पीछे हो ली, और उन्होंने उन सब को स्वस्थ किया।
\v 16 परन्तु उन्होंने उन्हें दृढ़ता से कहा कि वे किसी को भी इसके विषय में नहीं बताएँ।
\v 17 ऐसा करने से उन्होंने वह पूरा किया जो यशायाह भविष्यद्वक्ता ने बहुत पहले लिखा था। उसने लिखा,
\s5
\v 18 "यह मेरे दास हैं जिन्हें मैंने चुना है, जिनसे मैं प्रेम करता हूँ और जिन्होंने मुझे प्रसन्न किया है। मैं उनमें अपना आत्मा डालूंगा, और वह गैर-यहूदियों के लिये न्याय और उद्धार लाएँगे।"
\s5
\v 19 वह लोगों के साथ झगड़ा नहीं करेंगे, न ही वह चिल्लाएँगे और सड़कों में उनका शब्द सुनाई नहीं देगा।
\v 20 वह निर्बल लोगों के साथ कोमल होंगे; अगर कोई व्यक्ति बड़ी कठिनाई से जीवित है, तो वह उसे नहीं मारेंगे। और वह लोगों का न्याय निष्पक्षता से करेंगे और घोषित करेंगे कि वे दोषी नहीं हैं।
\v 21 इसलिए गैर-यहूदी आत्मविश्वास से उन पर भरोसा करेंगे।"
\p
\s5
\v 22 एक दिन कुछ लोग यीशु के पास एक अंधे और बोलने में असमर्थ व्यक्ति को लाए, जिसमें एक दुष्ट-आत्मा थी। यीशु ने दुष्ट-आत्मा को निकाल दिया और उसे स्वस्थ किया। तब वह व्यक्ति बात करने लगा और देखने में सक्षम हो गया।
\v 23 सारी भीड़ यह देखकर आश्चर्यचकित हुई। वे एक दूसरे से कहने लगे, "क्या यह मनुष्य मसीह है, राजा दाऊद का वंशज, जिनकी हम आशा कर रहे थे?"
\s5
\v 24 क्योंकि फरीसियों ने इस चमत्कार के विषय में सुना, उन्होंने कहा, "यह परमेश्वर नहीं है, यह दुष्ट-आत्माओं के शासक बालजबूल की सहायता से लोगों में से दुष्ट-आत्माओं को निकालता है!"
\v 25 यीशु जानते थे कि फरीसी क्या सोच रहे थे। इसलिए उन्होंने उनसे कहा, "यदि एक देश के लोग एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ते हैं, तो वे अपने देश को नष्ट कर देंगे। अगर एक ही शहर या घर में रहने वाले लोग एक-दूसरे से लड़ते हैं, तो वे एक समूह या परिवार के रूप में नहीं रह सकते हैं।
\s5
\v 26 इसी प्रकार यदि शैतान अपने स्वयं के दुष्ट-आत्माओं को निकाल रहा है, तो वह स्वयं के विरुद्ध लड़ रहा है। वह अपने दासों पर शासन नहीं कर पाएगा!
\v 27 इसके अतिरिक्त यदि यह सच है कि शैतान मुझे दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकालने में समर्थ बनाता है, तो क्या यह भी सच है कि तुम्हारे शिष्य भी जो दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकालते हैं, क्या शैतान की शक्ति से ऐसा करते हैं? नहीं! इसलिए वे तुम्हारा न्याय करेंगे क्योंकि तुमने कहा कि उनके काम के पीछे शैतान की शक्ति थी।
\s5
\v 28 परन्तु क्योंकि यह परमेश्वर के आत्मा हैं जो मुझे दुष्ट-आत्माओं को निकालने में समर्थ बनाते हैं, यह सिद्ध करता है कि स्वर्ग से परमेश्वर का शासन पहले से ही यहाँ हैं।
\p
\v 29 मैं तुमको दिखाता हूँ कि मैं दुष्ट-आत्माओं को निकालने में क्यों समर्थ हूँ। जैसे शैतान बलवन्त है वैसे एक बलवन्त मनुष्य के घर में कोई नहीं जा सकता है, और यदि वह पहले उस बलवन्त मनुष्य को नहीं बाँधे तो उसकी संपत्ति को नहीं ले सकता है। लेकिन यदि वह उसे बाँध देता है, तो वह उसकी संपत्ति लेने में समर्थ हो जाएगा।
\p
\v 30 कोई भी निष्पक्ष नहीं हो सकता। जो लोग यह स्वीकार नहीं करते हैं कि पवित्र आत्मा मुझे दुष्ट-आत्माओं को निकालने में समर्थ बनाते हैं, वे मेरा विरोध करते हैं, और जो मेरे शिष्य बनने के लिए लोगों को इकट्ठा नहीं करते हैं, वे लोगों को मुझ से दूर कर रहे हैं।
\p
\s5
\v 31 तुम कह रहे हो कि यह पवित्र आत्मा नहीं हैं जो मुझे दुष्ट-आत्माओं को निकालने में समर्थ बना रहे हैं। तो मैं तुम से ये कहूंगा: यदि जो लोग किसी भी तरह से किसी व्यक्ति का अपमान करते हैं और उन्हें अपनी गलती का पछतावा होता है और वे परमेश्वर से क्षमा माँगते हैं तो परमेश्वर उन्हें क्षमा करेंगे। परन्तु वह उन लोगों को क्षमा नहीं करेंगे जो पवित्र आत्मा का अपमान करते हैं।
\v 32 जो लोग मेरी अर्थात मनुष्य के पुत्र की आलोचना करते हैं, उन्हें क्षमा करने के लिए परमेश्वर इच्छुक हैं। परन्तु मैं तुमको चेतावनी देता हूँ कि वह उन लोगों को क्षमा नहीं करेंगे जो पवित्र आत्मा के विषय में बुरी बातें कहते हैं। परमेश्वर न तो उन्हे इस समय क्षमा करेंगे, न ही आने वाले संसार में क्षमा करेंगे।"
\p
\s5
\v 33 "जब तुम किसी पेड़ में फल देखते हो, तो तुम निर्णय लेते हो कि क्या फल अच्छा है या बुरा है। यदि फल अच्छा है, तो तुम जानते हो कि उसका पेड़ भी अच्छा है। यदि मैं अच्छे काम कर रहा हूँ, तो तुमको पता होना चाहिए कि मैं अच्छा हूँ या नहीं।
\v 34 तुम जहरीले सांपों के बच्चों के समान हो! तुम कुछ भी अच्छा नहीं कह सकते, क्योंकि तुम बुरे हो। व्यक्ति वही कहता है जो उसके मन में होता है।
\v 35 अच्छे लोग अच्छी बातें कहते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने इन सब अच्छी वस्तुओं को किसी सुरक्षित स्थान में रखा है और किसी भी समय उन्हें बाहर निकाल सकते हैं। परन्तु बुरे लोग बुरी बातें करते हैं। ऐसा इसलिए है कि उन्होंने इन सब बुरी वस्तुओं को एकत्र कर रखा है और उन्हें उस जगह से किसी भी समय बाहर निकाल सकते हैं जहां उन्होंने उसे एकत्र किया हुआ है।
\s5
\v 36 मैं तुमसे कहता हूँ कि उस दिन जब परमेश्वर न्याय करेंगे, तो वह लोगों को उनके हर एक व्यर्थ के शब्द को याद कराएंगे, जो उन्होंने कहे हैं, और वह उन लोगों द्वारा कहीं गई बातों के अनुसार, उनका न्याय करेंगे।
\v 37 परमेश्वर या तो तुम्हारे द्वारा कहे गए उन शब्दों के आधार पर तुम्हें धर्मी घोषित करेंगे, या जो तुमने कहा है उसके आधार पर तुम्हें दोषी घोषित करेंगे।
\p
\s5
\v 38 "फिर कुछ फरीसियों और यहूदी धर्म के शिक्षकों ने यीशु को उत्तर दिया," गुरु, हम आपको एक चमत्कार करते देखना चाहते हैं जिससे हम जाने कि परमेश्वर ने आपको भेजा है।"
\v 39 "फिर यीशु ने उनसे कहा," तुमने पहले ही मुझे चमत्कार करते देखा है, परन्तु तुम बुरे हो, और तुम सच्चाई से परमेश्वर की उपासना नहीं करते हो! तुम मुझसे यह सिद्ध करवाना चाहते हो कि परमेश्वर ने मुझे भेजा है, परन्तु परमेश्वर तुमको केवल एक चमत्कार दिखाएंगे जो वैसा ही होगा जैसा योना भविष्यद्वक्ता के साथ हुआ था।
\v 40 योना एक बड़ी मछली के पेट में तीन दिन और तीन रात था, इससे पहले कि परमेश्वर ने उसे बाहर आने दिया। इसी प्रकार, तीन दिन और रात तक, मनुष्य के पुत्र पृथ्वी की गहराई में होंगे, और फिर परमेश्वर मुझे फिर से जीने के लिए योग्य करेंगे।
\s5
\v 41 जब परमेश्वर हर सब का न्याय करेंगे, तो जो लोग नीनवे शहर में रहते थे वह तुम्हारे साथ परमेश्वर के सामने खड़े होंगे। परन्तु जब योना ने उनको चेतावनी दी, तब उन्होंने पाप करना बंद कर दिया। अब मैं तुम्हारे पास आया हूँ, और मैं योना की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण हूँ, परन्तु तुमने पाप करना नहीं त्यागा है। इसलिए परमेश्वर तुम्हारा न्याय करेंगे।
\s5
\v 42 इस्राएल देश के दक्षिण से शीबा की रानी, कई वर्षों पहले बहुत दूर से सुलैमान की बातें सुनने के लिए आई क्योंकि वह बुद्धिमानी की बातों की शिक्षा देता था। अब मैं तुम्हारे पास आया हूँ, और मैं सुलैमान की तुलना में बहुत अधिक महत्तवपूर्ण हूँ, परन्तु तुमने पाप करना नहीं त्यागा है। इसलिए जब परमेश्वर सब का न्याय करेंगे तब शीबा की रानी परमेश्वर के सामने तुम्हारे पास खड़ी होगी और वह तुम्हें दोषी ठहराएगी। "
\p
\s5
\v 43 "जब एक दुष्ट-आत्मा मनुष्य को छोड़ देती है, तो वह निर्जन क्षेत्रों में भटकती है, ताकि कोई ऐसा जन मिले, जिसमें वह आराम कर सके। यदि उसे कोई नहीं मिलता है,
\v 44 तब वह कहती है, "मैं उस व्यक्ति में वापस लौट जाऊँगी जिसमें मैं पहले रहती थी।" तो वह वापस चली जाती है और उसे पता चलता है कि उस व्यक्ति का जीवन परमेश्वर के आत्मा के वश में नहीं है। उस व्यक्ति का जीवन एक ऐसे घर के समान है जिसे साफ किया गया है और सब कुछ व्यवस्थित है परन्तु यह खाली है।
\v 45 तब यह दुष्ट-आत्मा जाती है और सात अन्य दुष्ट-आत्माओं को साथ ले लेती है जो और भी अधिक बुरी हैं, और वे सब उस व्यक्ति में प्रवेश करती हैं और वहां रहने लगती हैं। इसलिए हालांकि उस व्यक्ति की स्थिति, अब पहले की तुलना में बहुत खराब हो जाती है। यही तुम दुष्ट लोगों के साथ होगा, जिन्होंने मुझे शिक्षा देते हुए सुना है।"
\p
\s5
\v 46 "जब यीशु भीड़ से बात कर रहे थे, तब उनकी माँ और छोटे भाई आए। वे घर के बाहर खड़े हुए थे, और वे उनके साथ बात करना चाहते थे।
\v 47 किसी ने उनसे कहा, "आपकी माँ और आपके छोटे भाई घर के बाहर खड़े हैं, और वे आपसे बात करना चाहते हैं।"
\s5
\v 48 तब यीशु ने उस व्यक्ति से कहा, "मैं तुम्हें बताता हूँ कि वास्तव में मेरी माता और भाई कौन हैं।'
\v 49 तब उन्होंने अपने शिष्यों की ओर संकेत करके कहा, "ये मेरी माँ और मेरे भाइयों का स्थान लेते हैं।
\v 50 जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा के अनुसार काम करते हैं, वही मेरे भाई, मेरी बहन या मेरी माँ का स्थान लेते हैं।"
\s5
\c 13
\p
\v 1 उसी दिन यीशु ने शिष्यों के साथ उस घर को छोड़ दिया जहां वह शिक्षा दे रहे थे और गलील की झील के किनारे पर गए। और वह वहां बैठ गए,
\v 2 और एक बड़ी भीड़ उनके आस-पास उनकी शिक्षा सुनने के लिए एकत्र हो गई। जगह न होने के कारण, वह एक नाव पर चढ़ गए और उन्हें सिखाने के लिए बैठ गए। भीड़ किनारे पर खड़ी हो गई और उनकी बात सुनने लगी।
\s5
\v 3 उन्होंने उन्हें कई दृष्टान्तों के द्वारा शिक्षा दी। उन्होंने कहा, "सुनो! एक मनुष्य अपने खेत में बीज बोने के लिए गया।
\v 4 जब वह खेत में बीज बिखेर रहा था, तो कुछ बीज रास्ते पर गिर गए थे। और पक्षी आए और उन बीजों को खा गए।
\v 5 कुछ बीज वहाँ गिर गए जहां चट्टान के ऊपर अधिक मिट्टी नहीं थी। ये बीज बहुत जल्दी उग आए, क्योंकि सूरज उथली मिट्टी को शीघ्र गर्म करता था।
\v 6 लेकिन जब पौधे उगे, तो वे सूरज के प्रकाश में बहुत गरम हो गए, और सूख गए क्योंकि उनकी गहरी जड़ें नहीं थीं।
\s5
\v 7 कुछ बीज कंटीली झाड़ियों वाली भूमि में गिर गए। कंटीली झाड़ियाँ छोटे पौधे के साथ मिलकर बड़ी हो गई, और उन्होंने पौधों को घेरकर दबा दिया।
\v 8 परन्तु कुछ बीज अच्छी मिट्टी में गिरे, और पौधे बड़े हुए और बहुत सारे अनाज का उत्पादन किया। कुछ पौधों ने सौ गुणा अधिक उत्पादन किया। कुछ पौधों ने साठ गुणा ज्यादा उत्पादन किया। कुछ पौधों ने तीस गुणा ज्यादा उत्पादन किया।
\v 9 यदि तुम इसे समझ सकते हो, तो तुमको ध्यान से विचार करना चाहिए कि मैंने अभी क्या कहा हैं।"
\p
\s5
\v 10 शिष्यों ने बाद में यीशु के निकट आकर उनसे पूछा, "जब आप भीड़ से बात करते हैं तो आप दृष्टान्तों का उपयोग क्यों करते हैं?"
\v 11 उन्होंने उत्तर दिया, "परमेश्वर तुम्हारे सामने उन बातों को स्पष्ट करते हैं जो उन्होंने पहले प्रकट नहीं की थीं, वह स्वयं को राजा के रूप में दर्शाने जा रहे हैं। परन्तु उन्होंने इन अन्य लोगों पर उन बातों को प्रकट नहीं किया है।
\v 12 जो लोग मेरी बातों को समझते हैं, और उनके विषय में सोचने में सक्षम हैं, परमेश्वर उन्हें और अधिक समझने की क्षमता प्रदान करेंगे। परन्तु जो लोग मेरी बातों पर ध्यान देकर सोचने में सक्षम नहीं हैं, वे जो कुछ पहले से जानते हैं, उसे भी भूल जाएंगे।
\s5
\v 13 इसीलिए जब मैं लोगों से बात करता हूँ तब मैं दृष्टान्तों का प्रयोग करता हूँ, क्योंकि वे देखते हैं कि मैं क्या करता हूँ, वे समझते नहीं हैं कि इसका क्या अर्थ है, और जो मैं कहता हूँ उसे सुनते हैं, तो वे वास्तव में उसका अर्थ नहीं सीखते हैं।
\v 14 ये लोग जो करते है, वह बहुत पहले भविष्यद्वक्ता यशायाह द्वारा कहे गए परमेश्वर के वचनों की पूर्ति है, तुम मेरी बात सुनोगे, लेकिन तुम इसे समझ नहीं पाओगे। तुम देखोगे कि मैं क्या करता हूँ, लेकिन तुम इसका अर्थ नहीं जान पाओगे।
\p
\s5
\v 15 परमेश्वर ने यशायाह से यह भी कहा, "ये लोग मेरी बात सुनने में सक्षम हैं, लेकिन वे कभी भी संदेश को नहीं समझेंगे। उनके पास आंखें हैं जो देख सकती हैं, लेकिन वे कभी भी स्पष्ट रूप से नहीं देखेंगे कि वे क्या देख रहे हैं। उन्होंने अपनी आँखें बंद कर ली हैं ताकि वे देख न सकें। वे अपनी आंखों से नहीं देख सकते हैं, और वे अपने कानों से नहीं सुन सकते हैं, और वे समझ नहीं सकते हैं। यदि वे देख सकते और सुन सकते और समझ सकते हैं, तो वे मुड़कर मेरी और आ जाएँगे, और मैं उन्हें स्वस्थ कर दूंगा।"
\p
\s5
\v 16 लेकिन, परमेश्वर ने तुमको सक्षम बनाया है क्योंकि तुमको पता है कि मैंने क्या किया है और क्योंकि तुम समझते हो कि मैं क्या कहता हूँ।
\v 17 ध्यान दो पूर्वकाल में कई भविष्यद्वक्ताओं और धर्मी लोगों ने इन सब कामों को देखना चाहा था जो तुम मुझे करता हुआ देख रहे हो। परन्तु वे देख नहीं पाए। वे उन बातों को सुनना चाहते थे जो तुमने मुझसे सुनी हैं, परन्तु वे सुन नहीं पाए।
\p
\s5
\v 18 अब उस दृष्टान्त का अर्थ सुनो जो मैंने तुमको बताया था।
\v 19 कुछ लोग यह सुनते हैं कि परमेश्वर शासन कर रहे हैं, परन्तु उसे समझते नहीं हैं। वे उस रास्ते के समान हैं जहां कुछ बीज गिर गए। बुराई करने वाला शैतान आता है और इन लोगों ने जो सुना है, उसे भुला देता है।
\s5
\v 20 कुछ लोग परमेश्वर का संदेश सुनते हैं और उसे तुरंत आनन्दित होकर स्वीकार करते हैं। वे चट्टानों वाली भूमि के समान हैं जहां कुछ बीज गिर गए थे।
\v 21 क्योंकि यह उनके दिल की गहराई में प्रवेश नहीं करता है, वे केवल थोड़े समय के लिए इसे मानते हैं। वे ऐसे पौधे के समान हैं जिनकी गहरी जड़ें नहीं थीं। जब दूसरों ने उनके साथ बुरा व्यवहार किया और उन्हें पीड़ित किया क्योंकि वे उस बात पर विश्वास करते हैं जो मैंने उन्हें बताया है, तो वे उसमें विश्वास करने से मना करते हैं।
\s5
\v 22 कुछ लोग परमेश्वर का संदेश सुनते हैं, लेकिन वे अमीर बनना चाहते हैं, इसलिए वे केवल पैसे से और धन से वे क्या खरीद सकते हैं उनके विषय में चिंतित हैं। परिणामस्वरूप, वे परमेश्वर का संदेश भूल जाते हैं और वे उन कामों को नहीं करते हैं जो परमेश्वर चाहते हैं कि वे करें। ये लोग उस मिट्टी के समान हैं जिसमें कांटेदार झाड़ियों की जड़ें थीं।
\v 23 परन्तु कुछ लोग मेरे संदेश सुनते हैं और उसे समझते हैं। उनमें से कुछ ऐसे काम करते हैं जो परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं, कुछ और अधिक ऐसे काम करते हैं जो परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं, और कुछ और भी अधिक ऐसे काम करते हैं जो परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं। वे अच्छी भूमि के समान हैं जहां कुछ बीज गिर गए थे।"
\p
\s5
\v 24 यीशु ने भीड़ को एक और दृष्टान्त सुनाया। उन्होंने कहा, "जब परमेश्वर स्वर्ग से शासन करते हैं, तो वह एक खेत के मालिक के समान होंगे जिसने अपने दासों को अपने खेत में अच्छे बीज बोने के लिए भेजा था।
\v 25 जब वे खेत की रखवाली करने की अपेक्षा सो रहे थे, तो जमींदार का बैरी आया और गेहूं के बीच में खरपतवार के बीज बिखेर कर चला गया।
\v 26 बीज अंकुरित हुए और हरे पौधे बढ़े और अनाज की बालें बनने लगीं तो। खरपतवार भी बढ़ीं।
\s5
\v 27 तो खेत के मालिक के पास सेवक आए और उससे कहा, 'स्वामी, तूने हमें अच्छे बीज दिए और वही हम लोगों ने अपने खेत में बोए हैं। तो यह खरपतवार कहाँ से उग आई हैं?'
\v 28 खेत के मालिक ने उनसे कहा, 'मेरे दुश्मन ने ऐसा किया है।' उसके सेवकों ने उससे कहा, 'क्या तू चाहता है कि हम खरपतवार उखाड़ दें?'
\s5
\v 29 उसने उनसे कहा, 'नहीं, ऐसा मत करो, क्योंकि तुम ऐसा करते समय कुछ गेहूं को भी उखाड़ दोगे।
\v 30 गेहूं और खरपतवार को कटाई के समय तक एक साथ बढ़ने दो। उस समय मैं उन कटनी करनेवाले लोगों को कहूंगा, 'पहले खरपतवार को इकट्ठा करो, और जलाने के लिये उनके गट्ठे बाँध लो। तब गेहूं इकट्ठा करो और उसे मेरे गोदाम में डाल दो।'
\p
\s5
\v 31 "यीशु ने यह दृष्टान्त भी कहा:" जब परमेश्वर स्वर्ग से शासन करते हैं, यह सरसों के उस बीज के समान है जिसे किसी व्यक्ति ने अपने खेत में बो दिया और वह बढ़ने लगा।
\v 32 मनुष्यों के द्वारा बोए जानेवाले बीजों में सरसों का बीज सबसे छोटा होता है, परन्तु यहां इस्राएल में वे बड़े पौधे बन जाते हैं। जब पौधे पूरी तरह से बड़े हो जाते हैं, तो वे बगीचे के दूसरे पौधों से बड़े होते हैं। वे वृक्षों के रूप में बड़ा झाड़ बनते हैं, और वे पक्षियों द्वारा उनकी शाखाओं में घोंसले बनाने के लिए स्थान रखते हैं।"
\p
\s5
\v 33 यीशु ने यह दृष्टान्त भी कहा: "जब स्वर्ग से परमेश्वर शासन करते हैं, तो वह एक ऐसी स्त्री के समान है जो रोटी बना रही थी। उसने लगभग चालीस किलो आटा लिया और उसमें थोड़ा सा खमीर मिला दिया, और रोटियाँ फूल गईं।"
\p
\s5
\v 34 यीशु ने इन सब बातों को सिखाने के लिए भीड़ से दृष्टान्तों में बातें कीं। जब भी वह उनसे बात करते थे, तो स्वभावतः इसी प्रकार कहानियों में ही बात करते थे।
\v 35 ऐसा करने से, उन्होंने वह सच साबित कर दिया जो परमेश्वर ने भविष्यद्वक्ताओं में से एक को बहुत पहले लिखने के लिए कहा था।
\p मैं दृष्टान्तों में बात करूंगा; दुनिया को बनाने के बाद से मैंने जो रहस्य रखें हैं उसे सिखाने के लिए दृष्टान्तों को सुनाऊँगा।
\p
\s5
\v 36 "जब यीशु ने भीड़ को भेज दिया, तो वह घर में गए। तब शिष्यों ने उनके पास आकर उनसे कहा, "गेहूं के खेत में खरपतवार वाले दृष्टान्त को हमें समझा दें।"
\v 37 उन्होंने उत्तर दिया, "जो उत्तम बीज बोता है, वह मनुष्य का पुत्र, अर्थात मैं हूँ।
\v 38 खेत इस संसार का प्रतीक है, जहां लोग रहते हैं। जो बीज अच्छे से बढ़ते हैं, वे उन लोगों को दर्शाते हैं जिन पर परमेश्वर शासन करते हैं। खरपतवार उन लोगों को दर्शाती है जो बुराई करने वाले शैतान की बात मानते हैं।
\v 39 जिस शत्रु ने खरपतवार के बीज बोए वह शैतान का प्रतीक है। जिस समय कटनी करनेवाले फसल की कटाई करेंगे, वह उस समय को दर्शाते है जब संसार का अन्त हो जाएगा। कटनी करनेवाले स्वर्गदूतों का प्रतीक हैं।
\s5
\v 40 खरपतवार एकत्र करके जला दिया जाता है। यह दर्शाता है कि जब परमेश्वर सभी लोगों का न्याय करेंगे, और जब संसार का अन्त हो जाएगा तब ऐसा होगा:
\v 41 मैं मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजूंगा, और वे उन सब लोगों में से जिन पर मैं शासन करता हूँ, उनको एकत्र करेंगे जो दूसरों के लिए पाप करने का कारण बनते हैं और जो लोग परमेश्वर की इच्छा का उल्लंघन करते हैं।
\v 42 स्वर्गदूत उन लोगों को नरक की आग में डाल देंगे। वहां उन लोगों का रोना और दातों का पीसना होगा क्योंकि वे भयंकर दर्द के कारण बहुत पीड़ित होंगे।
\v 43 परन्तु जिन लोगों का जीवन परमेश्वर की इच्छा के अनुसार है वे ऐसे उज्जवल होकर चमकेंगे जैसे सूरज चमकता है। वे चमकेंगे क्योंकि परमेश्वर, उनके पिता, उन पर शासन करेंगे। यदि तुम इसे समझने में सक्षम हो, तो तुमको ध्यान से सोचना चाहिए कि मैंने अभी क्या कहा है।"
\p
\s5
\v 44 "स्वर्ग से परमेश्वर का शासन इतना बहुमूल्य है कि वह एक ऐसे व्यक्ति के समान है जिसने एक महान खजाना पाया जो किसी अन्य व्यक्ति ने एक खेत में दबा दिया था। जब इस मनुष्य ने इसे खोदकर पाया था तो, उसने इसे फिर से दबा दिया, ताकि कोई और देख न पाए। तब वह चला गया और अपनी सारी संपत्ति बेचकर उस खेत को खरीदने के लिए धन प्राप्त किया। तब वह गया और उस खेत को खरीद लिया, और वह उस खजाने को प्राप्त करने में समर्थ हुआ।
\p
\v 45 इसके अतिरिक्त स्वर्ग से परमेश्वर का शासन इतना अनमोल है कि वह एक व्यापारी के समान है जो खरीदने के लिए अच्छी गुणवत्ता के मोती खोज रहा था।
\v 46 जब उसे एक बहुत महंगा मोती बिक्री के लिए मिला, तो उसने उस मोती को खरीदने के लिए पर्याप्त धन प्राप्त करने के लिए अपनी सारी संपत्ति को बेच दिया। तब वह गया और उसे खरीद लिया।
\p
\s5
\v 47 जब परमेश्वर स्वर्ग से शासन करते हैं, तो वह ऐसा है जैसा मछुवे एक बड़े जाल में मछलियाँ पकड़ते हैं। उन्होंने सभी प्रकार की मछलियाँ पकड़ीं, उपयोगी और निकम्मी दोनों।
\v 48 जब जाल भर गया, तो मछुओं ने उसे किनारे पर खींच लिया। फिर वे वहां बैठे और अच्छी मछलियों को बाल्टी में डाला, परन्तु उन्होंने निकम्मी मछलियों को दूर फेंक दिया।
\s5
\v 49 यह ऐसा है जैसे उस समय लोगों के साथ होगा जब संसार का अन्त होगा। स्वर्गदूत वहां आएंगे, जहां परमेश्वर लोगों का न्याय करेंगे और दुष्ट लोगों को धर्मी लोगों से अलग करेंगे।
\v 50 वे दुष्ट लोगों को नरक की आग में डाल देंगे। और वे दुष्ट लोग रोएंगे और अपने दांतों को पीसेंगे क्योंकि वे भयंकर पीड़ा से पीड़ित होंगे।"
\p
\s5
\v 51 तब यीशु ने शिष्यों से पूछा, "क्या तुम ये सब दृष्टान्तों को समझते हो जो मैंने तुम्हें सुनाए हैं?" उन्होंने यीशु से कहा, "हाँ, हम उन्हें समझते हैं।"
\v 52 तब यीशु ने कहा, "वे शिक्षक और अनुवादक, जो इन दृष्टान्तों को समझते हैं और स्वर्ग से परमेश्वर के शासन के अधीन होकर कार्य करते हैं, एक घर के मालिक के समान हैं जो अपने भंडार कक्ष से नई चीजों और पुरानी चीजों दोनों को काम में लेता है।"
\p
\v 53 जब यीशु ने इन दृष्टान्तों को कहना समाप्त कर दिया, तो उन्होंने शिष्यों के साथ उस क्षेत्र को छोड़ दिया।
\s5
\v 54 फिर वे नासरत नगर में गए, जहाँ यीशु रहते थे। सब्त के दिन उन्होंने लोगों को आराधनालय में सिखाया। परिणाम यह हुआ कि लोग वहाँ चकित थे। लेकिन कुछ ने कहा, "यह मनुष्य हमारे जैसा एक साधारण व्यक्ति है! तो ऐसा कैसे है कि वह इतना जानता है और इतना समझता है ? और वह ऐसा चमत्कार कैसे कर सकता है?
\v 55 वह सिर्फ एक बढ़ई का पुत्र है, है ना? उसकी माँ मरियम है, और उनके छोटे भाई याकूब, यूसुफ, शिमोन और यहूदा हैं!
\v 56 और उनकी बहनें भी यहाँ हमारे शहर में रहती हैं। तो वह इन सब बातों को कैसे सिखा और कर सकते है?
\s5
\v 57 वहाँ लोगों ने स्वीकार करने से मना कर दिया कि यीशु के पास ऐसे अधिकार हैं। इसलिए यीशु ने उनसे कहा, "लोग मेरे और अन्य भविष्यद्वक्ताओं का हर जगह जहाँ भी वे जाएँ सम्मान करते हैं, परन्तु हमारे अपने नगर में हमें सम्मान नहीं मिलता है, और यहाँ तक कि हमारे परिवार भी हमारा सम्मान नहीं करते हैं!"
\v 58 यीशु ने वहां बहुत चमत्कार नहीं किए क्योंकि लोगों को यह विश्वास नहीं था कि उनके पास ऐसे अधिकार हैं।
\s5
\c 14
\p
\v 1 उस समय शासक हेरोदेस अंतिपस ने यीशु के चमत्कारों के विषय में सुना।
\v 2 उसने अपने सेवकों से कहा, "यह यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला होना चाहिए। वह मरे हुओं में से उठ गया होगा, और यही कारण है कि उसके पास ऐसे चमत्कार करने की शक्ति है।"
\s5
\v 3-4 हेरोदेस का इस प्रकार से विचार करने का कारण यह था- हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप्पुस की पत्नी हेरोदियास से विवाह किया था , जबकि हेरोदियास का पति फिलिप्पुस अभी भी जीवित था। तो यूहन्ना ने उस से कहा, "तूने जो किया है वह परमेश्वर के नियमों के विरुद्ध है!" तब हेरोदियास को प्रसन्न करने के लिए, हेरोदेस ने अपने सैनिकों को यूहन्ना को बन्दी बनाने का आदेश दिया। उन्होंने उसे जंजीरों में बांधा और उसे जेल में डाल दिया।
\v 5 हेरोदेस यूहन्ना को मारने का आदेश देना चाहता था, परन्तु वह आम जनता से डरता था, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि यूहन्ना एक भविष्यद्वक्ता था जो परमेश्वर की ओर से बोलता था।
\p
\s5
\v 6 एक दिन, हेरोदेस ने अपने जन्मदिन का उत्सव मनाने के लिए एक भोज का आयोजन किया, और हेरोदियास की बेटी ने उसके मेहमानों के लिए नृत्य किया। हेरोदेस को उसका नाच बहुत अच्छा लगा,
\v 7 इसलिए उसने कहा कि वह जो कुछ भी माँगेगी वह उसे देगा, और उसने परमेश्वर को अपनी प्रतिज्ञा का गवाह ठहराया।
\s5
\v 8 इसलिए हेरोदियास की बेटी गई और अपनी माँ से पूछा कि क्या मांगे। उसकी माँ ने उससे कहा कि वह क्या माँगे। तब उसकी बेटी वापस आई और हेरोदेस से कहा, "मैं चाहती हूँ कि तू बपतिस्मा देनेवाले यूहन्ना के सिर को काट कर एक थाली में यहां ला ताकि मालुम हो कि वह सचमुच मर चुका है!"
\v 9 राजा को अब बहुत खेद हुआ कि उसने हेरोदियास की बेटी को जो कुछ भी वह चाहती थी, देने की प्रतिज्ञा की थी। क्योंकि उसने परमेश्वर के सामने यह प्रतिज्ञा की थी, और उसके सब अतिथियों ने उसे ऐसा कहते सुना था, इसलिए उसने जो कहा था उसे करना ही होगा। अत: उसने अपने सेवकों को आदेश दिया कि वह जो कहती है, करें।
\s5
\v 10 उसने सैनिकों को बन्दीगृह में भेजा और यूहन्ना का सिर कटवा दिया।
\v 11 उन्होंने ऐसा ही किया, और उन्होंने यूहन्ना के सिर को थाली में रखा और उस लड़की के पास लाए। तब वह लड़की उसे अपनी माँ के पास ले गई।
\v 12 बाद में यूहन्ना के शिष्य बन्दीगृह में गए, और यूहन्ना के शरीर को ले जाकर दफ़न कर दिया। तब वे गए और यीशु को बताया कि क्या हुआ था।
\s5
\v 13 जब यीशु ने ये समाचार सुना तो अपने साथ शिष्यों को लेकर नाव द्वारा गलील की झील के उस स्थान पर गए जहां कोई नहीं था।
\p जब भीड़ ने सुना कि वे वहां गए हैं, तो उन्होंने अपने शहरों को छोड़ दिया और किनारे पर चलते हुए उनका पीछा किया।
\v 14 जब यीशु किनारे पर आए, तो उन्होंने एक बहुत बड़ी भीड़ को देखा जो उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। उन्हे उन पर तरस आया, और उन्होंने उन बीमार लोगों को स्वस्थ किया जो उनके बीच थे।
\p
\s5
\v 15 "जब शाम हुई, तो शिष्य यीशु के पास आए और कहा," यह एक ऐसी जगह है जहां कोई नहीं रहता है, और बहुत देर हो चुकी है। लोगों को जाने के लिए कह दें ताकि वे पास के नगरों में जाकर भोजन खरीद सकें।"
\s5
\v 16 परन्तु यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, "उन्हें खाने के लिए कहीं जाने की आवश्यक्ता नहीं है, तुम ही उन्हें खाने के लिए कुछ दो!"
\v 17 शिष्यों ने कहा, "परन्तु हमारे पास केवल पांच रोटियां और दो पकी हुई मछली हैं!"
\v 18 उन्होंने कहा, "उसे मेरे पास लाओ!"
\s5
\v 19 यीशु ने उन लोगों की भीड़ को घास पर बैठने के लिए कहा जो वहां थे। फिर उन्होंने पाँच रोटियां और दो मछली लीं। उन्होंने स्वर्ग की ओर देखा, उनके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया और उन्हें टुकड़ों में तोड़ दिया। तब उसने अपने शिष्यों को टुकड़े दिए, और उन्होंने उन्हें भीड़ में बांट दिया।
\v 20 जब तक उनकी भूख नहीं मिटी तब तक सब लोगों ने खाया। फिर कुछ लोगों ने बचे हुए टुकड़ों को इकट्ठा किया और उनसे बारह टोकरियाँ भर लीं।
\v 21 उस समय लगभग पांच हजार पुरुषों ने खाना खाया, और इसमें महिलाओं और बच्चों की गिनती नहीं की गई!
\p
\s5
\v 22 इसके ठीक बाद, यीशु ने शिष्यों से कहा कि वे नाव पर चढ़कर उनके आगे गलील की झील के दूसरी ओर जाएँ। इस बीच, उन्हें भीड़ को उनके घर भेजना था।
\v 23 जब उन्होंने भीड़ को विदा कर दिया, और वह स्वयं पहाड़ों पर प्रार्थना करने के लिए चले गए। जब शाम हुई, तो वह अब भी वहां अकेले थे।
\v 24 इस समय शिष्य नाव में किनारे से बहुत दूर थे। हवा प्रबल थी और विपरीत दिशा में होने के कारण शिष्य नाव चलाने में कठिनाई का अनुभव कर रहे थे। हवा ने बहुत बड़ी लहरें उत्पन्न कीं जिसके कारण नाव पानी में आगे पीछे हो रही थी।
\s5
\v 25 फिर यीशु पहाड़ियों से पानी पर उतर आए। सुबह के करीब तीन और छह बजे के बीच में वह पानी पर चलकर नाव के पास आए।
\v 26 जब शिष्यों ने उन्हें पानी पर चलते हुए देखा, तो उन्होंने सोचा कि वह कोई भूत हैं। वे डर गए, और वे डर में चिल्लाए।
\v 27 तुरन्त यीशु ने उनसे कहा, "हिम्मत रखो, यह मैं हूँ। मत डरो!"
\s5
\v 28 पतरस ने उनसे कहा, हे प्रभु, यदि आप हो, तो मुझे पानी पर चलकर आपके पास आने के लिए कहें।
\v 29 यीशु ने कहा, "आ!" तो पतरस नाव से बाहर आया और यीशु की ओर बढ़ने लगा।
\v 30 लेकिन जब पतरस ने प्रबल हवा पर ध्यान दिया, तो वह डर गया। वह पानी में डूबने लगा और चिल्लाया, "हे प्रभु, मुझे बचाओ!"
\s5
\v 31 ठीक उसी समय यीशु ने अपने हाथ को बढ़ाकर पतरस को पकड़ लिया। उन्होंने उससे कहा, "तुझे मेरी शक्ति में केवल थोड़ा सा विश्वास है! तूने संदेह क्यों किया कि मैं तुझे डूबने से बचा सकता हूँ?"
\v 32 फिर यीशु और पतरस नाव में आ गए, और हवा चलना तुरंत बन्द हो गया।
\v 33 जितने शिष्य नाव में थे, उन सबने यीशु को झुककर प्रणाम किया और कहा, "आप सचमुच परमेश्वर के पुत्र हैं!"
\p
\s5
\v 34 जब वे नाव द्वारा झील में आगे चले गए, तो वे गन्नेसरत शहर के तट पर पहुंचे।
\v 35 उस क्षेत्र के लोगों ने यीशु को पहचान लिया, इसलिए उन्होंने लोगों को उस पूरे क्षेत्र में रहने वाले लोगों को सूचित करने के लिए भेजा कि यीशु वहाँ आए हैं। इसलिए लोग हर एक बीमार व्यक्ति को यीशु के पास लाए।
\v 36 बीमार लोग उनसे याचना करते थे कि वह उन्हें उसे या उसके वस्त्रों को ही छूने की अनुमति दें ताकि वे ठीक हो जाएं। जिस किसी ने यीशु को या उनके वस्त्र को छुआ वे चंगे हो गए।
\s5
\c 15
\p
\v 1 तब कुछ फरीसी और यहूदी व्यवस्था के शिक्षक यरूशलेम से यीशु के साथ बात करने के लिए आए। उन्होंने कहा,
\v 2 "हम देखते हैं कि तेरे शिष्य हमारे पूर्वजों की परंपराओं की अवज्ञा करते हैं! वे खाने से पहले अपने हाथों को धोने के उचित अनुष्ठान नहीं मानते हैं!"
\v 3 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "और मैं देखता हूँ कि तुम परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने से मना करते हो ताकि तुम्हारे पूर्वजों ने जो तुम्हें सिखाया है उसका अनुसरण कर सको!
\s5
\v 4 परमेश्वर ने ये दो आज्ञाएँ दीं हैं: 'अपने पिता और अपनी माता का आदर करो,' और 'जो लोग अपने पिता या माता के विषय में बुरा बोलते हैं उन्हें मार डाला जाना चाहिए।'
\v 5 लेकिन तुम लोगों को बताते हो, 'तुम अपने पिता या माता से कह सकते हो,' जो कुछ मैं तुम्हें तुम्हारी सहायता के लिए दे रहा था, मैंने अब उसे परमेश्वर को देने की प्रतिज्ञा की है।'
\v 6 जब तुम ऐसा करते हो, तो तुम सोचते हो कि तुम्हें अपने माता-पिता को कुछ भी देने की आवश्यक्ता नहीं है। इस प्रकार तुम परमेश्वर के आज्ञाओं को अनदेखा करते हो, कि तुम्हें जो भी तुम्हारे पूर्वजों ने सिखाया हो उसका अनुसरण कर सको!
\s5
\v 7 तुम केवल अच्छा होने का दिखावा करते हो! यशायाह ने भी तुम्हारे विषय में सच्चाई व्यक्त की है, जब उसने तुम्हारे पूर्वजों के विषय में परमेश्वर के विचारों को प्रकट किया था।
\v 8 'ये लोग ऐसे बातें करते हैं जैसे वे मुझे सम्मान देते हैं, परन्तु वे मुझे कुछ नहीं समझते हैं,'
\v 9 उनके लिए मेरी आराधना करना व्यर्थ है, क्योंकि वे वही सिखाते हैं जिन्हें लोग उनकी आधिकारिक शिक्षा समझते हैं।' "
\p
\s5
\v 10 फिर यीशु ने भीड़ को बुलाया कि वह उनके अधिक निकट आए। उन्होंने उन से कहा, "जो कुछ मैं तुम्हें बताता हूँ उसे सुनो और उसे समझने का प्रयास करो।
\v 11 मनुष्य खाने के लिए मुँह में जो कुछ भी डालता है, वह उसे अशुद्ध नहीं करता है। इसकी अपेक्षा, लोग जो कहते हैं जो शब्द उनके मुंह से निकलते हैं वे ही मनुष्य को नीच बनाते हैं।"
\p
\s5
\v 12 बाद में शिष्य यीशु के पास गए और कहा, "क्या आप जानते हैं कि फरीसियों ने सुना है कि आपने क्या कहा और वे आप पर क्रोधित हो गए हैं।"
\v 13 तब यीशु ने उन्हें यह दृष्टान्त बताया। "जैसे एक किसान उन पौधों से छुटकारा पाता है, जिनको उसने नहीं बोया और वह उनको खींच कर जड़ से उखाड़ देता है, वैसे ही स्वर्ग में विराजमान मेरे पिता उन सब लोगों से छुटकारा पाएंगे जो ऐसी शिक्षा देते हैं, जो उनकी बातों के विरुद्ध हैं।
\v 14 फरीसियों पर कोई ध्यान मत दो। वे लोगों को परमेश्वर की आज्ञाओं को समझने में सहायता नहीं करते हैं जैसे अंधा मार्गदर्शक, अंधे लोगों को मार्ग देखने में सहायता नहीं कर सकता है। वे सब गड्ढ़े में गिर जाते हैं।"
\p
\s5
\v 15 पतरस ने यीशु से कहा, "हमें व्यक्ति जो खाता है उस दृष्टान्त का अर्थ समझा दें।"
\v 16 "यीशु ने उसे उत्तर दिया," मैं जो कुछ भी सिखाता हूँ उसे निश्चय ही तुम्हें समझना चाहिए, परन्तु मुझे निराशा है कि तुम नहीं समझते।
\v 17 तुमको यह समझना चाहिए कि जो भी भोजन लोग खाते हैं, उनके पेट में प्रवेश करता है, और बाद में जो भी बचता है वह उनके शरीर से बाहर निकल जाता है।
\s5
\v 18 इसकी अपेक्षा, जो मुँह से बुरे शब्दों को बोलता है, उसी के कारण परमेश्वर किसी व्यक्ति को अस्वीकार करते हैं, क्योंकि वे मनुष्य की सोची हुई बुराइयों से निकलते हैं।
\v 19 क्योंकि यह मनुष्य का भीतरी मन ही है, जो उनको बुरे काम के विषय में सोचने, लोगों की हत्या करने, व्यभिचार करने, अन्य यौन सम्बंधित पापों को करने, चोरी करने, झूठी गवाही देने और दूसरों के विषय में बुराई करने के लिए प्रेरित करता है।
\v 20 यह वे कार्य हैं जो परमेश्वर द्वारा लोगों को अस्वीकार करने पर विचार करने का कारण बनते हैं। लेकिन बिना धुले हाथों से खाना खा लेने से परमेश्वर लोगों को अस्वीकार नहीं करते हैं।"
\p
\s5
\v 21 यीशु शिष्यों को अपने साथ लेकर गलील के जिले को छोड़ कर उस क्षेत्र की ओर चले गए जहां सूर और सैदा के शहर स्थित थे।
\v 22 इस क्षेत्र में रहने वाले, कनानियों में से एक स्त्री, यीशु के पास आई। वह पुकार-पुकारकर उनसे कह रही थी, "हे प्रभु, आप राजा दाऊद के वंशज हैं, आप मसीह हैं, मुझ पर और मेरी पुत्री पर दया करें! वह बहुत बीमार है क्योंकि दुष्ट-आत्मा के वश में है।"
\v 23 परन्तु यीशु ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया। शिष्यों ने उनसे कहा, "उसे जाने के लिए कह दें, क्योंकि वह हमारे पीछे आकर चिल्लाते हुए हमें परेशान करती है।"
\s5
\v 24 यीशु ने उनसे कहा, "परमेश्वर ने मुझे सिर्फ इस्राएल के लोगों के लिए भेजा है, क्योंकि वे भेड़ों के समान हैं जिन्होंने अपना रास्ता खो दिया है।"
\v 25 लेकिन उस स्त्री ने यीशु के निकट आकर उनके सामने घुटने टेक दिए। उसने विनती की, "हे प्रभु, मेरी सहायता करें!"
\v 26 तब उन्होंने उससे कहा, "किसी के लिए ऐसा करना ठीक नहीं है, कि जो खाना उसके बच्चों के लिए तैयार किया गया है उसे लेकर घर के छोटे कुत्तों के आगे फेंक दे।"
\s5
\v 27 लेकिन उस स्त्री ने उत्तर दिया, "हे प्रभु, आप जो कहते हैं वह सच है, परन्तु छोटे कुत्ते भी ऐसे टुकड़ों को खाते हैं जो फर्श पर गिर जाते हैं जब उनके स्वामी अपनी मेज पर बैठकर खाना खाते हैं!"
\v 28 तब यीशु ने उससे कहा, "हे स्त्री, क्योंकि तू मुझ पर दृढ़ विश्वास रखती है, इसलिए, मैं तेरी पुत्री को तेरी इच्छा के अनुसार ठीक कर दूंगा।" उसी पल दुष्ट-आत्मा ने उसकी बेटी को छोड़ दिया, और वह ठीक हो गई।
\p
\s5
\v 29 तब यीशु और उनके शिष्य उस क्षेत्र से गलील की झील के पास चले गए। तब यीशु वहां की पहाड़ी पर चढ़कर लोगों को सिखाने के लिए बैठ गए।
\v 30 अगले दो दिनों तक बड़ी भीड़ उनके पास आई और लंगड़े, अपंग और अंधे लोगों को, और जो बात करने में असमर्थ थे, और कई अन्य बीमारियों से पीड़ित लोगों को लेकर आए। उन्होंने उन्हें यीशु के सामने लिटा दिया ताकि वह उन्हें ठीक कर दें। और यीशु ने उन्हें स्वस्थ किया।
\v 31 लोगों ने यीशु को ऐसे लोगों को ठीक करते देखा जो बात नहीं कर सकते थे, अपंग थे, लंगड़े थे, और अंधे थे, और वे चकित हुए। उन्होंने कहा, "परमेश्वर की स्तुति करो जो इस्राएल में हमारे ऊपर शासन करते हैं!"
\p
\s5
\v 32 फिर यीशु ने अपने शिष्यों को पास बुलाया और कहा, "लोगों की यह भीड़ मेरे साथ तीन दिन से है और उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं बचा है। मुझे उनके लिए खेद है। मैं उन्हें ऐसे ही भूखा नहीं भेजना चाहता हूँ। क्योंकि अगर मैंने ऐसा किया, तो वे घर जाते-जाते मार्ग में ही बेहोश हो सकते हैं।"
\v 33 "शिष्यों ने उनसे कहा," इस जगह में जहां कोई नहीं रहता है, हम इतनी बड़ी भीड़ को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन प्राप्त नहीं कर सकते!"
\v 34 यीशु ने उनसे पूछा, "तुम्हारे पास कितनी रोटियां हैं?" उन्होंने उत्तर दिया, "सात छोटी रोटियां और कुछ छोटी पकाई हुई मछली।"
\v 35 फिर यीशु ने लोगों को जमीन पर बैठने के लिए कहा।
\s5
\v 36 उन्होंने सात रोटियां और पकी हुई मछलियों को ले लिया। उसके बाद उन्होंने उनके लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया, और उन्हें टुकड़ों में तोड़ कर और शिष्यों को देने लगे। और शिष्य उन्हें भीड़ में बाँटते रहे।
\v 37 क्योंकि यीशु ने भोजन को चमत्कारिक ढंग से बढ़ाया, इसलिए उन सब ने भरपेट खाया। तब शिष्यों ने बचे हुए भोजन के टुकड़े एकत्र किए, और उन्होंने उनसे सात बड़ी टोकरियाँ भर लीं।
\v 38 वहां चार हजार पुरुष थे जिन्होंने खाया, परन्तु किसी ने भी स्त्रियों और बच्चों की गिनती नहीं की, जिन्होंने उनके साथ खाया था।
\p
\v 39 "जब यीशु ने भीड़ को विदा कर दिया, तो वह और शिष्य नाव में चढ़ गए और झील से होकर मगदन के क्षेत्र की ओर रवाना हुए।
\s5
\c 16
\p
\v 1 कुछ फरीसियों और सदूकियों ने यीशु के पास आकर उनसे कहा, "हमें चिन्ह दिखाएँ कि परमेश्वर ने ही आपको हमारे पास भेजा है! आकाश में एक चमत्कार करो और हमें विश्वास दिलाने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग करो!"
\v 2 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "हमारे देश में, यदि शाम को आसमान लाल है, तो हम कहते हैं, 'कल अच्छा मौसम होगा।'
\s5
\v 3 परन्तु यदि सुबह आसमान लाल हो तो हम कहते हैं, 'आज तूफानी मौसम होगा।' आकाश को देखकर, तुम बता सकते हो कि मौसम कैसा होगा, परन्तु जब तुम तुम्हारे चारों ओर कामों को होता हुआ देख रहे हो, तो तुम समझ नहीं पा रहे हो कि परमेश्वर क्या कर रहे हैं।
\v 4 तुम बुरे लोगों ने मुझे चमत्कार करते हुए देखा है, परन्तु तुम सच्चे मन से परमेश्वर की आराधना नहीं करते हो। इसलिए मैं तुम्हारे लिए कोई चमत्कार नहीं करूंगा, केवल वही जो चमत्कार योना भविष्यद्वक्ता के साथ हुआ था, जिसने एक बड़ी मछली के पेट में तीन दिन बिताए थे, और फिर से बाहर निकल आया।" तब यीशु उन्हें छोड़कर अपने शिष्यों के साथ चले गए।
\p
\s5
\v 5 वे सब गलील की झील के दूसरी ओर जाने के लिए नाव में चले गए। तब शिष्यों को ध्यान आया कि वे अपने साथ खाने के लिए कुछ भी लाना भूल गए हैं।
\v 6 उस समय यीशु ने उनसे कहा, "सावधान रहो कि उस खमीर को स्वीकार न करो जो फरीसी और सदूकी तुम्हें देना चाहते हैं।"
\v 7 उन्होंने यीशु की बात को समझने का प्रयास किया और उन्होंने एक दूसरे से कहा, "यीशु ने ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि हम खाने के लिए कुछ भी लेना भूल गए हैं!"
\v 8 परन्तु यीशु जानते थे कि वे क्या कह रहे है इसलिए उनसे कहा, "मुझे निराशा है कि तुम यह सोचते हो कि तुम रोटी लेना भूल गए इसलिए मैंने फरीसियों और सदूकियों के खमीर के विषय में बात की थीं। जो मैं तुम्हारे लिए कर सकता हूँ उस पर तुम केवल थोड़ा सा विश्वास करते हो।
\s5
\v 9 मत सोचो कि मैं खाना खाने के विषय में चिंतित हूँ। क्या तुम वास्तव में भूल गए हो कि मैंने पाँच हज़ार लोगों को पाँच रोटियों से भोजन कराया, या बचे हुए भोजन के कितने टोकरे तुमने इकट्ठे किए थे?
\v 10 या उन चार हजार लोगों के विषय में जिन्होंने खाना खाया, जब मैंने सात छोटी रोटियों को बहुत बढ़ा दिया? और तब कितनी टोकरी भरकर तुमने टुकड़ों को इकट्ठा किया था?
\s5
\v 11 तुमको समझना चाहिए कि मैं वास्तव में रोटी के विषय में नहीं कह रहा था। फरीसियों और सदूकियों के खमीर को मत स्वीकार करो।"
\v 12 तब शिष्य समझ गए कि यीशु रोटी में खमीर के विषय में बात नहीं कह रहे थे। इसके बजाय, वह फरीसियों और सदूकियों की गलत शिक्षाओं के विषय में कह रहे थे।
\p
\s5
\v 13 जब यीशु और उनके शिष्य कैसरिया फिलिप्पी के पास के क्षेत्र में गए, तो उन्होंने उन से पूछा, "लोग क्या कहते हैं कि मैं मनुष्य का पुत्र, सचमुच कौन हूँ?"
\v 14 उन्होंने उत्तर दिया, "कुछ लोग कहते हैं कि आप यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले हैं, जो फिर से जी गये है। दूसरे लोग कहते हैं कि आप एलिय्याह भविष्यद्वक्ता हैं जो परमेश्वर की प्रतिज्ञा के अनुसार स्वर्ग से आए हैं। फिर कुछ अन्य लोग कहते हैं कि आप यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता या अन्य भविष्यद्वक्ताओं में से एक हैं, जो बहुत पहले जीवित थे, जो फिर से जीवित हो गए हैं।"
\v 15 यीशु ने उनसे कहा, "तुम बताओ? तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?"
\v 16 शमौन पतरस ने उनसे कहा, "आप मसीह हैं! आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पुत्र हैं।"
\s5
\v 17 "तब यीशु ने उस से कहा," योना के पुत्र शमौन, परमेश्वर तुझ से प्रसन्न हैं, तू ने जो कहा है, वह किसी मनुष्य ने तुझ पर प्रगट नहीं किया है। परन्तु मेरे पिता जो स्वर्ग में रहते हैं, उन्होंने तुझ पर यह प्रगट किया है।
\v 18 मैं तुझे यह भी बताऊंगा: तू पतरस है, जिसका अर्थ है 'चट्टान।' तू उन लोगों के समूह के लिए सहारा होगा, जो मुझ पर विश्वास करते हैं, जैसे कि एक बड़ी चट्टान एक ऊँची इमारत को सहारा देती है, और यहां तक कि मृत्यु की शक्तियां भी इसके विरुद्ध खड़े होने के लिए साहस नहीं करेगी।"
\s5
\v 19 फिर उन्होंने कहा, "मैं तुझे स्वर्ग से परमेश्वर के शासन के अधीन आने वाले लोगों के लिए रास्ता खोलने या बंद करने में सक्षम बना दूँगा। जो कुछ भी तू पृथ्वी पर होने देगा, परमेश्वर स्वर्ग में उसे होने की अनुमति देंगे। जो कुछ भी तू पृथ्वी पर होने के लिए मना करेगा, परमेश्वर स्वर्ग में उसके लिए मना करेंगे।"
\v 20 तब यीशु ने शिष्यों को चेतावनी दीं कि वे उस समय किसी को नहीं बताएँ कि वह मसीह थे।
\p
\s5
\v 21 उस समय से यीशु ने शिष्यों को सिखाना शुरू कर दिया कि उनके लिए यरूशलेम शहर जाना आवश्यक हैं। वहाँ सत्ता रखनेवाले प्राचीन, प्रधान याजकों, और यहूदी व्यवस्था के शिक्षक उनको पकड़कर सताएँगे और मार डालेंगे। उसके बाद तीसरे दिन, वह फिर से जीवित हो जाएँगे।
\v 22 परन्तु पतरस ने यीशु को एक ओर ले जाकर खड़ा कर दिया और इन बातों के विषय में उन्हें डांटा। उसने कहा, "हे प्रभु, परमेश्वर कभी भी आपके साथ ऐसा होने की अनुमति न दें! ऐसा कभी नहीं होना चाहिए!"
\v 23 फिर यीशु ने पतरस की तरफ देखा, और उस से कहा, "मेरी दृष्टि से दूर हो जा, क्योंकि शैतान तेरे माध्यम से बोल रहा है। तू मुझसे पाप करवाने का प्रयास कर रहा है। तू वह नहीं सोच रहा है जो परमेश्वर सोचते हैं, लेकिन केवल वह जो लोग सोचते हैं!"
\p
\s5
\v 24 फिर यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, "यदि कोई मुझ पर भरोसा करना चाहता है और वहां जाना चाहता है जहां मैं जा रहा हूँ, तो उसे अपनी इच्छाओं और उद्देश्यों का त्याग करना होगा, और उसे अपना क्रूस उठाना होगा, और वहां जाना होगा जहां मैं जाता हूँ।
\v 25 जो कोई भी अपनी जान को बचाने का प्रयास करता है, वह जानेगा कि अपनी जान बचाने की अपेक्षा, वह इसे खो देगा। परन्तु जो कोई मेरे लिए अपनी जान देता है, वह जीवन पाएगा।
\v 26 किसी व्यक्ति को क्या लाभ होगा यदि वह इस संसार में सब कुछ प्राप्त कर ले जो वह चाहता है, परन्तु फिर उसे अपनी जान गवाँना पड़े? मनुष्य को अपनी संपत्ति से ऐसा क्या लाभ होगा जो उसके अपने ही जीवन के जितना मूल्यवान होगा?
\s5
\v 27 ध्यान से सुनो: मैं मनुष्य का पुत्र, इस धरती को छोड़ दूंगा, परन्तु मैं वापस आऊंगा, और स्वर्ग के स्वर्गदूत मेरे साथ आएंगे। उस समय मैं अपने पिता की महिमा में आऊंगा, और मैं सब को इस संसार में उनके द्वारा किए गए कामों के अनुसार प्रतिफल दूंगा।
\v 28 ध्यान से सुनो! तुम में से कुछ लोग जो यहां हैं, वे मुझे, जो स्वर्ग से आता देखेंगे, जब मैं राजा के रूप में लौटता हूँ। तुम मरने से पहले इसे देखोगे! "
\s5
\c 17
\p
\v 1 यीशु के इन बातों के कहने के एक सप्ताह बाद, यीशु ने पतरस, याकूब और याकूब के छोटे भाई यूहन्ना को अपने साथ लिया, और उन्हें एक ऊँचे पर्वत पर ले गए जहां वे अन्य लोगों से दूर थे।
\v 2 जब वे वहां थे, तो उन तीनों शिष्यों ने देखा कि यीशु का रूप बदल गया है। उनका चेहरा सूरज के समान चमकने लगा, और उनके कपड़े चमकने लगे और उज्जवल रौशनी के जैसे हो गए।
\s5
\v 3 अचानक, मूसा और एलिय्याह, जो कई साल पहले महत्वपूर्ण भविष्यद्वक्ता थे, दिखाई दिए और उनके साथ बातें करने लगे।
\v 4 "पतरस ने उन्हें देखा और यीशु से कहा," हे प्रभु, यहां पर होना हमारे लिए अच्छा है, यदि आप चाहे तो मैं तीन तंबू बनाऊंगा, एक आपके लिए, एक मूसा के लिए और एक एलिय्याह के लिए।"
\s5
\v 5 जब पतरस बोल ही रहा था, एक उज्जवल बादल उन पर आया। उन्होंने बादल में से यीशु के विषय में परमेश्वर की वाणी सुनी। उन्होंने कहा, "यह मेरे पुत्र है, मैं इनसे प्रेम करता हूँ, वह मुझे बहुत प्रसन्न करते हैं इसलिए तुम्हें उनकी बात सुननी चाहिए।
\v 6 जब तीनों शिष्यों ने परमेश्वर की बात सुनीं, तो वे बहुत डर गए। और भूमि पर मुँह के बल गिर गए।
\v 7 "परन्तु यीशु उन के पास गए और उनको छू कर उन से कहा, उठो, अब मत डरो!
\v 8 और जब उन्होंने ऊपर देखा तो क्या देखा कि यीशु अकेले ही थे जो अभी भी वहां थे।
\p
\s5
\v 9 जब वे पहाड़ पर से नीचे उतर रहे थे, तो यीशु ने उन्हें निर्देश दिया, "किसी को भी मत बताना कि तुमने पहाड़ की चोटी पर क्या देखा था, जब तक कि परमेश्वर मुझ मनुष्य के पुत्र को मरने के बाद फिर से जीवित न कर दें।"
\v 10 उन तीनों शिष्यों ने यीशु से पूछा, "यदि आप जो कहते हैं, वह सत्य है, तो ये लोग जो यहूदी व्यवस्था को सिखाते हैं, क्यों कहते हैं कि मसीह के आने से पहले एलिय्याह का वापस आना आवश्यक है।"
\s5
\v 11 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, "यह सच है कि परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की थी कि मसीह के आने के लिए बहुत से लोगों को तैयार करने के लिए एलिय्याह आएगा।
\v 12 लेकिन ध्यान दो एलिय्याह पहले ही आ चुका है और हमारे अगुवों ने उसे देखा है, परन्तु उसे पहचान नहीं पाए कि यही वह है जो मसीह से पहले आएगा। इसकी अपेक्षा, उन्होंने उसके साथ बुरा व्यवहार किया, जैसा वे चाहते थे। और वही शासक शीघ्र ही मेरे साथ भी जो स्वर्ग से आया है उसी प्रकार से व्यवहार करेंगे।"
\v 13 तब तीनों शिष्य समझ गए कि जब वह एलिय्याह के विषय में बात कर रहे थे, तो वह यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के संदर्भ में कह रहे थे।
\p
\s5
\v 14 जब यीशु और तीनों शिष्य और अन्य शिष्य एकत्र थे और लोगों के पास लौट आए, तो एक मनुष्य यीशु के पास आया और उनके सामने घुटने टेके।
\v 15 उसने यीशु से कहा, "हे प्रभु, मेरे पुत्र पर दया करें और उसे ठीक कर दें! उसे मिर्गी आती है और वह बहुत पीड़ित है। इस बीमारी के कारण वह आग में और पानी में कई बार गिर चुका है।
\v 16 मैं उसे आपके शिष्यों के पास लाया कि वे उसे ठीक कर सकें, परन्तु वे उसे ठीक नहीं कर पाए।
\s5
\v 17 यीशु ने जवाब दिया, "तुम इस समय के लोग परमेश्वर की शक्ति पर विश्वास नहीं करते हो। तुम कैसी उलझन में हो! मैं जो कुछ करता हूँ उसे तुम करने में सक्षम बनो, इसके लिए मुझे तुम्हारे साथ कितना समय रहना पड़ेगा?"
\v 18 जब वे लड़के को यीशु के पास लाए, तो यीशु ने मिर्गी उत्पन्न करनेवाली दुष्ट-आत्मा को कठोरता से डांटा और वह दुष्ट-आत्मा उस लड़के में से निकल गई, और उसी समय से लड़का स्वस्थ हो गया।
\s5
\v 19 बाद में, कुछ शिष्य यीशु के पास अकेले में आए और उनसे पूछा, "हम दुष्ट-आत्मा को बाहर निकालने में समर्थ क्यों नहीं हुए?"
\v 20-21 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "ऐसा इसलिए है कि तुमने परमेश्वर की शक्ति पर विश्वास नहीं किया था। इस विषय में सोचो: सरसों के बीज बहुत छोटे होते हैं, लेकिन वे बढ़कर बड़े पेड़ बनते हैं। इसी तरह, यदि तुम थोड़ा सा भी मानते हो कि तुम जो कहोगे उसे परमेश्वर करेंगे, तो तुम कुछ भी करने में समर्थ हो जाओगे! तुम इस पर्वत को भी कह सकते हो, 'यहां से वहां चला जा!' और यह वहां चला जाएगा जहां तुमने इसे जाने के लिए कहा था। "
\p
\s5
\v 22 जब शिष्य गलील जिले में एकत्र हुए, तो यीशु ने उनसे कहा, "कोई मुझे मनुष्य के पुत्र को, शीघ्र ही अधिकारियों के हाथ पकड़वा देगा।
\v 23 वे मुझे मार डालेंगे, परन्तु मेरे मरने के बाद परमेश्वर मुझे तीसरे दिन फिर से जीवित करेंगे।" जब शिष्यों ने यह सुना तो वे बहुत उदास हो गए।
\p
\s5
\v 24 जब यीशु और शिष्य कफरनहूम शहर में आए, तो जो व्यक्ति आराधनालय के लिए कर वसूलते थे, उन्होंने पतरस के पास आकर उससे कहा, "तेरे गुरु आराधनालय के कर चुकाते हैं या नहीं?"
\v 25 उसने उत्तर दिया, "हाँ, वह उसे चुकाते हैं।" जब शिष्य यीशु के घर में आए, तो इससे पहले कि पतरस कुछ बोलता, यीशु ने उस से कहा, "शमौन, तू क्या सोचता है कि शासक आय या कर किससे वसूलते हैं? क्या वे अपने देश के नागरिकों से कर लेते हैं? या उन देशों के नागरिकों से जिनको उन्होंने जीत लिया है?"
\s5
\v 26 पतरस ने उसे उत्तर दिया, "अन्य देशों के नागरिकों से।" तब यीशु ने उस से कहा, "तो अपने ही देश के नागरिकों को कर भुगतान की आवश्यक्ता नहीं है।
\v 27 लेकिन आगे बढ़ और हमारे लिए कर का भुगतान कर कि आराधनालय के कर लेनेवाले हम से क्रोधित न हों। गलील की झील पर जा, और अपना मछली पकड़ने का काँटा और बंसी डाल और जो भी पहली मछली तू पकड़े उसे ले लेना। जब तू उसका मुहँ खोलेगा तो तुझे एक चांदी का सिक्का मिलेगा जो तेरे और मेरे लिए कर भुगतान के लिए पर्याप्त है। उस सिक्के को लेकर आराधनालय के कर वसूलने वालों को दे देना।"
\s5
\c 18
\p
\v 1 ठीक उसी समय, शिष्य यीशु के पास आए और उनसे पूछा, "जब परमेश्वर आपको स्वर्ग से राजा बना देंगे तब हम में से कौन सबसे महत्त्वपूर्ण होगा?"
\v 2 यीशु ने एक बच्चे को अपने पास बुलाया, और उन्होंने उस बच्चे को उनके बीच में रखा।
\v 3 उन्होंने कहा, "मैं तुमसे सच कहता हूँ: यदि तुम बदलकर छोटे बच्चों के समान विनम्र नहीं बन जाते तो निश्चय ही तुम स्वर्ग से परमेश्वर के शासन के अधीन नहीं आओगे।
\s5
\v 4 जो लोग इस बच्चे के समान विनम्र हो जाते हैं, वे उन लोगों में सबसे महत्वपूर्ण होंगे, जिन पर परमेश्वर स्वर्ग से शासन करेंगे।
\v 5 जब लोग ऐसे एक बच्चे का स्वागत करते हैं क्योंकि वे मुझसे प्रेम करते हैं, तो परमेश्वर मानते हैं कि वे मेरा स्वागत कर रहे हैं।"
\p
\v 6 "यदि कोई व्यक्ति किसी से जो मुझ पर विश्वास करता है पाप करवाता है, भले ही वह व्यक्ति इस छोटे बच्चे के समान महत्वहीन है, तौभी परमेश्वर उस पाप करवाने वाले व्यक्ति को गंभीर दण्ड देंगे। वह उस व्यक्ति को ऐसा दण्ड देंगे कि जैसे किसी ने उसकी गर्दन में बड़े भारी पत्थर को बांधकर उसे समुद्र के गहरे पानी में फेंक दिया है!
\s5
\v 7 उन लोगों के लिए यह कितना भयानक होगा जो दूसरों के पाप करने का कारण बनते हैं। पाप करने के लिए प्रलोभन तो सदा ही होंगे परन्तु जो दूसरों से पाप करवाता है, उसके लिए कैसा भयानक होगा।
\v 8 इसलिए यदि तुम अपने हाथों या पैरों में से किसी एक का उपयोग पाप करने के लिए करना चाहते हो, तो उस हाथ या पैर का उपयोग करना बंद करो! चाहे तुम्हें उसे काट देना हो ताकि तुम पाप न करो! मान लो कि तुम्हारे पास केवल एक हाथ या एक पैर है परन्तु तुम्हारे दोनों हाथों और दोनों पैरों के होते हुए परमेश्वर तुमको तुम्हारे पाप के कारण नरक की अनन्त आग में डाल दें, तो अपंग होकर परमेश्वर के साथ सदा रहना कितना उत्तम है।
\s5
\v 9 हाँ, और अगर तुम जो देखते हो वह तुम्हारे लिए पाप का कारण हो तो उन वस्तुओं का मत देखो! यहां तक कि यदि तुम्हे अपनी आँखों में से एक को बाहर निकाल कर फेंकना पड़े तो ऐसा ही करो! मान लो कि तुम्हारे पास केवल एक आंख है और फिर भी तुम परमेश्वर के साथ सदा काल के लिए रहो, तो यह उससे कितना अधिक अच्छा है, अपेक्षा इसके कि तुम्हारे पास दोनों आँखें हैं और परमेश्वर तुमको नरक की अनन्त आग में डाल दें।"
\p
\s5
\v 10 "इन बच्चों में से किसी एक को भी तुच्छ न जानना। मैं तुमको सच बताता हूँ कि जो स्वर्गदूत इनकी रक्षा करते हैं, वे कभी भी मेरे पिता के पास जाकर उन्हें जानकारी दे सकते हैं, यदि तुम इन बच्चों के साथ बुरा व्यवहार करते हो।"
\s5
\v 12 तुम क्या सोचते हो कि तुम निम्नलिखित स्थिति में क्या करोगे? यदि तुममें से किसी के पास सौ भेड़ें हों और उनमें से एक खो जाए, तो तू निश्चय ही निन्यानवे भेड़ों को पहाड़ी पर छोड़ देगा और जाकर उस खोई हुई को ढूँढ़ेगा, क्या वह ऐसा नहीं करेगा?
\v 13 और जब तू उसे पा ले, तो मैं दावे के साथ कहता हूँ कि तू बहुत आनन्दित होगा। तू खुश होगा कि निन्यानवे भेड़ें नहीं भटकी, परन्तु तू और भी अधिक आनन्दित होगा क्योंकि तुझको वह भेड़ मिल गई जो खो गई थी।
\v 14 उसी तरह जैसे कि चरवाहा नहीं चाहता कि उसकी भेड़ों में से कोई एक भटक जाए, तो परमेश्वर, तुम्हारे पिता भी जो स्वर्ग में हैं, कभी नहीं चाहते कि इन बच्चों में से एक भी नरक में जाए।"
\p
\s5
\v 15 "यदि कोई साथी विश्वासी तेरे विरुद्ध पाप करता है, तो उसके पास जा जब तू उसके साथ अकेले में हो, और तेरे विरुद्ध पाप करने के लिए उसे झिड़क दे। यदि वह व्यक्ति तेरी बात सुनता है और शोक करता है कि उसने तेरे विरुद्ध पाप किया है, तो तू और वह एक बार फिर अच्छे भाई होगे।
\v 16 यदि, वह व्यक्ति तेरी बात नहीं सुनता है, तो एक या दो अन्य विश्वासियों को अपने साथ ले। उन्हें अपने साथ लेकर जा, क्योंकि व्यवस्था इस प्रकार कहती है, 'हर आरोप की पुष्टि के लिए दो या तीन गवाह हों।'
\s5
\v 17 यदि वह व्यक्ति जिसने तेरे विरुद्ध पाप किया है, वह उनकी बात नहीं सुनता है, तो इस विषय को पूरी मण्डली को बता जिससे कि वह उसे सही कर सकें। और अगर वह व्यक्ति मण्डली की बात नहीं सुनता, तो उसे तुम अपने बीच में से बाहर कर दो, जैसे तुम मूर्तिपूजा करनेवालों और कर वसूलने वालों को घोर पापी मानकर बाहर करते हो।
\s5
\v 18 यह ध्यान में रखो: जो कुछ भी तुम पृथ्वी पर अपनी मण्डली के किसी सदस्य को दण्ड देने या दण्ड न देने के विषय में निर्णय लेते हो, वही परमेश्वर के द्वारा स्वर्ग में माना गया है।
\v 19 इस पर भी ध्यान दो: यदि पृथ्वी पर रहने वाले तुम में से कम से कम दो जन जो कुछ भी एक साथ सहमत होकर माँगते हैं, तो मेरे पिता जो स्वर्ग में हैं, तुमको वह देंगे।
\v 20 यह सच है, क्योंकि जहां कहीं भी तुम में से कम से कम दो या तीन एकत्र होते हैं, जो मुझ पर विश्वास करते हो तो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।"
\p
\s5
\v 21 तब पतरस ने यीशु के पास आकर उनसे कहा, "कितनी बार मुझे मेरे एक ऐसे साथी विश्वासी को क्षमा कर देना चाहिए जो मेरे विरुद्ध लगातार पाप करता है? अगर वह मुझसे क्षमा मांगता रहता है, तो क्या मुझे उसे सात बार क्षमा करना चाहिए?"
\v 22 यीशु ने उस से कहा, "मैं कहता हूँ कि जितनी बार तुझे किसी को क्षमा करना चाहिए वह केवल सात बार तक न हो, परन्तु तुझको उसे सतहत्तर बार क्षमा कर देना चाहिए।
\s5
\v 23 स्वर्ग से परमेश्वर का शासन एक राजा और उसके अधिकारियों के समान है। वह राजा चाहता था कि उसके अधिकारी उसके द्वारा उधार दिए गए धन का वापस भुगतान करें।
\v 24 वे अधिकारी राजा के पास अपने कर्ज को चुकाने के लिए आए। राजा के पास लाए गए अधिकारियों में से एक ने उससे जो कर्ज लिया था वह लगभग तीन मीट्रिक टन से अधिक सोने के मूल्य के बराबर था।
\v 25 क्योंकि उसके पास लिये गए कर्जे का भुगतान करने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं था, तो राजा ने मांग की कि उसकी पत्नी, उसके बच्चे और उसका सब कुछ किसी और को बेचा जाए और उससे मिले धन के द्वारा राजा के लिए कर्जे का भुगतान किया जाए।
\s5
\v 26 तब वह अधिकारी, यह जानकर कि उस बड़े कर्ज का भुगतान करने के लिए उसके पास धन नहीं है, राजा के सामने घुटनों पर गिर गया और उसने उससे विनती की, 'मेरे साथ धीरज रख, और अंततः मैं तुझे सब कुछ चुका दूंगा।'
\v 27 राजा ने यह जानकर कि वह अधिकारी उस बड़े कर्ज का भुगतान कभी नहीं कर सकता, उस पर दया कि । इसलिए उसने उसका कर्ज रद्द कर दिया और उसे छोड़ दिया।
\s5
\v 28 तब यही अधिकारी राजा के अधिकारियों में से किसी एक के पास गया, जिस पर उसका एक वर्ष की मजदूरी से कम कर्जा था। उसने गले से उसे पकड़ा, और उसका गला घोंट दिया, और कहा, 'मेरा जितना भी कर्ज तुझ पर है, उसे वापस कर दे!'
\v 29 वह अधिकारी घुटनों पर गिर गया और उससे विनती की, 'मेरे साथ धीरज रख, और अंततः मैं तुझे सब कुछ चुका दूंगा।
\s5
\v 30 परन्तु उस अधिकारी ने उस छोटे कर्ज को रद्द करने से मना कर दिया जो उस व्यक्ति को देना था। इसकी अपेक्षा, उसने उस अधिकारी को बन्दीगृह में डाल दिया जिससे कि पूरा कर्ज चुकाने तक वह बन्दीगृह में ही रहे।
\v 31 जब राजा के अन्य अधिकारियों को यह मालूम पड़ा कि ऐसा हुआ है, वे बहुत ही परेशान हुए। इसलिए वे राजा के पास गए और उसे विस्तार से बताया कि क्या हुआ था।
\s5
\v 32 तब राजा ने उस अधिकारी को बुलाया जिसको उसने तीन मीट्रिक टन से ज्यादा सोने का कर्ज दिया था। उस ने उस से कहा, हे दुष्ट दास! मैंने उस बड़े कर्ज को रद्द कर दिया जो मुझे तुझसे लेना था क्योंकि तूने मुझसे ऐसा करने के लिए विनती की थी!
\v 33 तुझको भी दयालु होना चाहिए था और अपने साथी अधिकारी के कर्जे को रद्द करना चाहिए, था जैसे मैं तेरे लिए दयालु था और तेरे कर्ज को रद्द कर दिया था!
\s5
\v 34 राजा बहुत क्रोधित था। उसने इस अधिकारी को जेल के अधिकारीयों को सौंप दिया और वे कर्ज भुगतान तक, उसे गंभीर यातना देने लगे।"
\v 35 फिर यीशु ने कहा, स्वर्ग में मेरे पिता तुम्हारे साथ ऐसा ही करेंगे यदि तुम दयालु नहीं होते और तुम्हारे विरुद्ध पाप करनेवाले एक साथी विश्वासी को सच्चे मन से क्षमा नहीं करते।"
\s5
\c 19
\p
\v 1 यीशु ने यह कहने के बाद, अपने शिष्यों को लिया और गलील का जिला छोड़ दिया। वे यरदन नदी के पूर्व में यहूदिया जिले के क्षेत्र में गए।
\v 2 वहां बड़ी भीड़ उनके पीछे हो ली, और उन्होंने उन के बीच में बीमारों को स्वस्थ किया।
\p
\s5
\v 3 कुछ फरीसियों ने उनसे संपर्क किया और उनसे कहा, "क्या हमारी यहूदी व्यवस्था किसी व्यक्ति को किसी भी कारण से अपनी पत्नी को तलाक देने की अनुमति देती है?" उन्होंने उनके साथ विवाद करने के लिए ऐसा कहा।
\v 4 यीशु ने उनसे कहा, "तुमने धर्मशास्त्रों में पढ़ा है, इसलिए तुमको पता होना चाहिए कि जब परमेश्वर ने पहले मनुष्यों को बनाया था, 'उन्होंने एक पुरुष बनाया, और एक स्त्री बनाईं।'
\s5
\v 5 यह वर्णन करता है कि परमेश्वर ने क्यों कहा, 'यही कारण है कि एक पुरुष अपने पिता और माता को छोड़ कर अपनी पत्नी से विवाह करता है। वे दोनों ऐसे एक साथ रहेंगे जैसे कि वे एक ही व्यक्ति थे। '
\v 6 इसका परिणाम यह होता है कि वे पहले दो अलग-अलग मनुष्यों के रूप में कार्य करते थे, अब वे ऐसे हो जाते हैं जैसे वे एक व्यक्ति हैं। क्योंकि यह सच है, एक मनुष्य को अपनी पत्नी से अलग नहीं होना चाहिए जिसे परमेश्वर ने उससे जोड़ा है।"
\p
\s5
\v 7 "फिर फरीसियों ने उस से कहा," अगर यह सच है, तो मूसा ने क्यों कहा था कि जो व्यक्ति अपनी पत्नी को तलाक देना चाहता है, उसको उसे तलाक देने का कारण बताते हुए एक लिखित पत्र देना चाहिए और फिर उसे भेज देना चाहिए?"
\v 8 यीशु ने उनसे कहा, "ऐसा इसलिए था क्योंकि तुम्हारे पूर्वजों ने हठ करके इच्छा की थी कि मूसा उनको उनकी पत्नियों को तलाक देने की अनुमति दे, और तुम भी अपने पूर्वजों से अलग नहीं हो। परन्तु जब परमेश्वर ने पहले एक पुरुष और एक स्त्री बनाए थे तब उन्होंने उन्हें एक दूसरे से अलग करने का विचार नहीं किया था।
\v 9 मैं तुमसे प्रभावशाली ढंग से कह रहा हूँ कि परमेश्वर मानते हैं कि जो कोई अपनी पत्नी को तलाक दे और दूसरी स्त्री से विवाह करे वह व्यभिचार करता है, जब तक कि उसकी पहली पत्नी ने व्यभिचार न किया हो।
\s5
\v 10 शिष्यों ने उनसे कहा, "यदि यह सच है, तो पुरुषों के लिए कभी विवाह न करना ही अच्छा है!"
\v 11 उन्होंने उत्तर दिया, "हर एक व्यक्ति इस शिक्षा को ग्रहण नहीं कर सकता है, जिस मनुष्य को परमेश्वर इसे ग्रहण करने योग्य किया है वही इसे समझेगा।
\v 12 ऐसे पुरुष हैं, जो विवाह नहीं करते हैं, क्योंकि उनके जन्म के समय से ही उनके निजी अंग दोषपूर्ण रहे हैं। ऐसे पुरुष भी है जो विवाह नहीं करते हैं क्योंकि उनके निजी अंग को काटा गया है। फिर ऐसे पुरुष भी है जो स्वर्ग से शासन करने वाले परमेश्वर की अधिक उत्तम सेवा करने के लिए विवाह नहीं करने का निर्णय लेते हैं। तुम जो विवाह के विषय में मेरी बातों को उसे समझने में सक्षम हो, उन्हें इसे स्वीकार करना चाहिए और इसका पालन करना चाहिए।"
\p
\s5
\v 13 तब कुछ छोटे बच्चों को यीशु के पास लाया गया कि वह उन पर हाथ रख कर उनके लिए प्रार्थना करें। परन्तु शिष्यों ने ऐसा करने के लिए लोगों को डांटा।
\v 14 "तो यीशु ने कहा," बच्चों को मेरे पास आने दो, और उनको मत रोको! जो लोग इन बच्चों के समान नम्र और भरोसा करनेवाले हैं वही स्वर्ग से परमेश्वर के शासन से संबंधित हैं।"
\v 15 तब यीशु ने बच्चों को आशीर्वाद देने के लिए उन पर अपने हाथ रखें। फिर उन्होंने उस स्थान को छोड़ दिया।
\p
\s5
\v 16 "जैसे यीशु चल रहे थे, एक जवान पुरुष ने उनके पास आकर कहा," हे गुरु, सदा के लिए परमेश्वर के साथ जीने के लिए मुझे कौन सा अच्छा काम करना चाहिए?"
\v 17 "यीशु ने उस से कहा," तू मुझसे क्यों पूछ रहा है कि क्या अच्छा है? केवल एक ही है जो अच्छे हैं और वास्तव में जानते हैं कि क्या अच्छा है। वह परमेश्वर हैं। परन्तु परमेश्वर के साथ सदा जीने की इच्छा के विषय में तेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए, मैं तुझे उन आज्ञाओं को मानने के लिए कहूंगा जो परमेश्वर ने मूसा को दी थीं।"
\s5
\v 18 उस व्यक्ति ने यीशु से पूछा, "मुझे कौन सी आज्ञाएं माननी चाहिए?" यीशु ने उत्तर दिया, "किसी की हत्या मत कर, व्यभिचार मत कर, सामानों की चोरी मत कर, झूठी गवाही मत दे,
\v 19 अपने पिता और अपनी माता का सम्मान कर, और जितना तू अपने आप से प्रेम करता है, उतना हर किसी से प्रेम कर।"
\s5
\v 20 उस जवान पुरुष ने यीशु से कहा, "मैंने सदा इन सब आज्ञाओं का सदैव पालन किया है। परमेश्वर के साथ सदा रहने के लिए मुझे और क्या करना चाहिए?"
\v 21 यीशु ने उससे कहा, "यदि तू चाहता है कि तू वास्तव में वैसा बनें जैसा परमेश्वर तुझे बनाना चाहते हैं तो, घर जा, अपना सब कुछ बेच दे, और गरीबों को पैसे बाँट दे। परिणाम यह होगा कि तू स्वर्ग में धनी होगा। तब आ, मेरे पीछे हो ले और मेरा शिष्य बन!"
\v 22 जब उस जवान पुरुष ने ये शब्द सुने, तो वह बहुत उदास हो कर चला गया, क्योंकि वह बहुत धनवान था और वह अपनी संपत्ति को छोड़ना नहीं चाहता था।
\p
\s5
\v 23 फिर यीशु ने शिष्यों से कहा, "यह ध्यान में रखो: धनवानों को अपने जीवन पर परमेश्वर का शासन स्वीकार करने के लिए तैयार होना बहुत कठिन है।
\v 24 यह भी ध्यान रखो: जैसे एक ऊंट के लिए एक सुई के छेद से होकर निकलना असंभव है। धनवानों के लिए परमेश्वर के शासन के अधीन आना इससे भी अधिक कठिन है।"
\s5
\v 25 जब शिष्यों ने यह सुना, तो वे बहुत चकित हुए। उन्होंने सोचा था कि धनवानों ही को परमेश्वर ने सबसे अधिक आशीष दी हैं इसलिए उन्होंने यीशु से कहा, "यदि ऐसा है, तो किसी का भी बच पाना संभव नहीं हैं!"
\v 26 फिर यीशु ने उन पर ध्यान दिया और कहा, "हाँ, लोगों के लिए स्वयं को बचाना असंभव है, परन्तु परमेश्वर उन्हें बचा सकते हैं, क्योंकि परमेश्वर कुछ भी करने में समर्थ हैं!"
\v 27 तब पतरस ने उन से कहा, "आप जानते हैं कि हमने अपना सब कुछ छोड़ दिया है और हम आपके शिष्य बन गए हैं कि आपके पीछे चले। तो हमें ऐसा करने से क्या लाभ मिलेगा?"
\s5
\v 28 यीशु ने उनसे कहा, "यह स्मरण रखो: तुमको बहुत से लाभ मिलेंगे। जब परमेश्वर नई धरती बनाएंगे और जब मैं, मनुष्य का पुत्र, अपनी महिमा में मेरे सिंहासन पर बैठूँगा, तुम में से हर एक जो मेरे साथ थे एक सिंहासन पर बैठोगे, और तुम इस्राएल के बारह गोत्रों के लोगों का न्याय करोगे।
\s5
\v 29 परमेश्वर उन लोगों को प्रतिफल देंगे, जिन्होंने मेरे शिष्य होने के कारण अपना घर या भूमि, अपने भाइयों, अपनी बहनों, अपने पिता, अपनी माता, अपने बच्चों, या किसी अन्य परिवार के सदस्यों को पीछे छोड़ दिया। उन्होंने जितना त्याग किया है उस से सौ गुणा अधिक परमेश्वर उन्हे लाभ देंगे। और वे सदा के लिए परमेश्वर के साथ रहेंगे।
\v 30 परन्तु जो लोग इस जीवन में महत्वपूर्ण हैं, उनमें से अनेक जन भविष्य में महत्वहीन होंगे, और जो लोग अब महत्वहीन हैं, वे भविष्य में महत्वपूर्ण होंगे।"
\s5
\c 20
\p
\v 1 "परमेश्वर स्वर्ग से जिस प्रकार शासन करते हैं, उसकी तुलना एक विशाल भू-भाग के स्वामी से की जा सकती है। सुबह होते ही वह बाज़ार में गया, जहां वे लोग थे जो काम करना चाहते थे। वह वहाँ गया कि उसकी दाख की बारी में काम करने के लिए भाड़े पर मजदूर लाए।
\v 2 उसने उन पुरुषों को वचन दिया जिनको उसने काम पर रखा था कि वह एक दिन काम करने के लिए उनको सामान्य मजदूरी देगा । फिर उसने उन्हें अपनी दाख की बारी में भेज दिया।
\s5
\v 3 उसी सुबह नौ बजे वह बाज़ार में फिर गया। वहां उसने और पुरुषों को देखा जिनके पास काम नहीं था।
\v 4 उसने उनसे कहा, 'मेरी दाख की बारी में जाओ, जैसे दूसरे लोगों ने किया, और वहां काम करो। मैं तुमको जो कुछ भी सही मजदूरी होगी, दूंगा।' इसलिए वे भी उसकी दाख की बारी में गए और काम करने लगे।
\s5
\v 5 दोपहर में लगभाग तीन बजे वह फिर से बाज़ार में गया और मजदूरों को देखा, उनको भी उसने उचित मजदूरी देने का वचन दिया।
\v 6 पांच बजे वह बाज़ार में एक बार फिर गया और वहां खड़े अन्य पुरुषों को देखा जो काम नहीं कर रहे थे। उसने उनसे कहा, 'तुम पूरे दिन यहाँ क्यों खड़े रहे और काम क्यों नहीं किया ?'
\v 7 उन्होंने उससे कहा, 'किसी ने हमें काम पर नहीं रखा है।' उसने उनसे कहा, 'मैं तुमको काम पर रखूँगा। मेरी दाख की बारी में जाओ, जैसा कि अन्य मनुष्यों ने किया है, और वहां काम करो।' तो वे चले गए।
\p
\s5
\v 8 शाम के समय, उस दाख की बारी के स्वामी ने अपने प्रबंधक से कहा, 'पुरुषों को आने के लिए कह कि तू उन्हें उनकी मजदूरी दे। सबसे पहले, उन पुरुषों का भुगतान करो जिन्होंने अंत में काम करना शुरु किया, और उन पुरुषों को अन्त में भुगतान करना जिन्होंने पहले काम करना आरंभ किया था।'
\v 9 प्रबंधक ने उस प्रत्येक व्यक्ति को एक दिन का सामान्य वेतन दिया जिन्होंने दोपहर में पांच बजे तक काम करना शुरू नहीं किया था।
\v 10 जब सुबह शीघ्र काम करना आरंभ करनेवाले अपनी मजदूरी लेने गए तो उन्होंने सोचा कि वे सामान्य मजदूरी से अधिक प्राप्त करेंगे। परन्तु उन्हें केवल सामान्य मजदूरी ही मिली।
\s5
\v 11 इसलिए उन्होंने दाख की बारी के स्वामी से शिकायत की क्योंकि उन्होंने सोचा कि उनकी मजदूरी अनुचित थी।
\v 12 उन्होंने उससे कहा, 'तू निष्पक्ष नहीं है! जिन सभी पुरुषों ने हम सबके बाद काम करना आरंभ किया, उन्होंने केवल एक घंटा काम किया! तूने उन्हें वही मजदूरी दी जो तूने हमें दी है! जबकि हमने पूरे दिन कठोर परिश्रम किया है वरन् हमने दिन के सबसे गर्म समय में काम किया!
\s5
\v 13 दाख की बारी के स्वामी ने उन लोगों में एक से कहा जो शिकायत करता थे, 'मित्र, मैंने तुम्हारे साथ गलत व्यवहार नहीं किया। तुम एक दिन के सामान्य वेतन पर पूरे दिन काम करने के लिए मेरे साथ सहमत हुए थे।
\v 14 मुझ से शिकायत करना बंद करो! अपनी मजदूरी लो और जाओ! यह मेरी इच्छा है कि जो लोग तुम्हारे बाद काम करने आए थे, अर्थात जब तुम काम करना आरंभ कर चुके थे, उन्हे तुम्हारे बराबर मजदूरी दूँ।
\s5
\v 15 मुझे निश्चय ही अपनी इच्छा के अनुसार अपने पैसे खर्च करने का अधिकार है, है ना? मेरे उदार होने के विषय में तुमको ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए!' "
\v 16 "इसी प्रकार, परमेश्वर कुछ ऐसे लोगों को प्रतिफल देंगे जो अभी कम महत्वपूर्ण हैं, और वह कुछ ऐसे लोगों को प्रतिफल नहीं देंगे जो अभी अधिक महत्वपूर्ण लगते हैं।"
\p
\s5
\v 17 जब यीशु अपने बारह शिष्यों के साथ यरूशलेम के रास्ते पर जा रहे थे, तो वह उन्हें एक स्थान पर ले गए जहाँ वह उनसे व्यक्तिगत रूप से बात कर सकें। तब उन्होंने उनसे कहा,
\v 18 "ध्यान से सुनो! अब हम यरूशलेम के लिए जा रहे हैं। जब हम वहां होंगे, तो कोई व्यक्ति प्रधान याजकों और व्यवस्था को सिखाने वाले पुरुषों को मुझे, मनुष्य के पुत्र को, पकड़वा देगा और वे मुझ पर मुकद्दमा चलाएंगे। वे मेरी निंदा करेंगे और कहेंगे कि मुझे मरना चाहिए।
\v 19 तब वे मुझे गैर-यहूदियों के हाथ में दे देंगे कि वे मेरा ठट्ठा करें मुझे कोड़े मारें और मुझे क्रूस पर चढ़ाकर मुझे मार डालें। परन्तु उसके बाद तीसरे दिन, परमेश्वर मुझे फिर से जीवित कर देंगे।"
\p
\s5
\v 20 फिर, जब्दी के पुत्र याकूब और यूहन्ना की माता अपने दोनों पुत्रों को यीशु के पास लाई। उसने यीशु के सामने झुककर प्रणाम किया और उनसे एक अनुग्रह करने की विनती की।
\v 21 यीशु ने उससे कहा, "तू क्या चाहती है कि मैं तेरे लिए करूं?" उसने उनसे कहा, "जब आप राजा बन जाए, तो मेरे इन दो पुत्रों को एक को आपके दाहिने हाथ पर और दूसरे को आपके बाएं हाथ पर स्थित सबसे अधिक सम्मान के पदों पर बैठाना।"
\s5
\v 22 यीशु ने उससे और उसके पुत्रों से कहा, "तुम जो मांग रहे हो, तुम उसे समझते नहीं हो। क्या तुम दुख उठा सकते हो जैसे दुख मुझे उठाने हैं?" याकूब और यूहन्ना ने उत्तर दिया, "हाँ, हम ऐसा करने में सक्षम हैं।"
\v 23 फिर यीशु ने उनसे कहा, "हाँ, तुम दुख उठाओगे जैसा मैं दुख उठाऊंगा।" लेकिन मैं उन लोगों को नहीं चुनता जो मेरे साथ बैठेंगे और मेरे साथ शासन करेंगे। परमेश्वर, मेरे पिता, उन जगहों को उन्हें देंगे जिन्हें वह नियुक्त करते हैं।"
\p
\v 24 जब दस अन्य शिष्यों ने सुना कि याकूब और यूहन्ना ने क्या निवेदन किया था, तो वे उन पर क्रोधित हुए क्योंकि वे भी यीशु के साथ सबसे अधिक सम्मान के पद पर शासन करना चाहते थे।
\s5
\v 25 इसलिए यीशु ने उन सभी को एक साथ बुलाया और उनसे कहा, "तुम जानते हो कि जो लोग गैर-यहूदियों पर शासन करते हैं, वे दिखाना पसंद करते हैं कि वे शक्तिशाली हैं। उनके मुख्य शासक उनके अधीन के लोगों को आज्ञा देना पसंद करते हैं।
\v 26 तुमको उनके समान नहीं होना चाहिए। इसके विपरीत, तुम में से हर कोई जो चाहता है कि परमेश्वर उसे महान माने तो वह तुम में से बाकी सबका दास बने।
\v 27 हाँ, और तुम में से हर कोई जो चाहता है कि परमेश्वर उसे सबसे महत्वपूर्ण माने, तो वह तुम में से बाकी सबका दास बने।
\v 28 तुमको मेरी नकल करनी चाहिए। यद्यपि मैं मनुष्य का पुत्र हूँ, मैं दूसरों से अपनी सेवा करवाने के लिए नहीं आया हूँ। इसके विपरीत, मैं उनकी सेवा करने के लिए और उन्हें मुझे मारने की अनुमति देने के लिए आया हूँ, जिससे कि मेरा मरना कई लोगों को उनके पापों के कारण दण्ड पाने से बचाने के लिए भुगतान के समान होगा।"
\p
\s5
\v 29 जब वे यरीहो शहर छोड़ रहे थे, तो लोगों की एक बड़ी भीड़ उनके पीछे हो ली।
\v 30 जब वे जा रहे थे, उन्होंने देखा कि दो अंधे पुरुष सड़क के किनारे बैठे हैं। जब उन अंधों ने यह सुना कि यीशु पास से जा रहे हैं, तो उन्होंने चिल्ला कर कहा, "हे प्रभु, राजा दाऊद के वंशज, आप मसीह है, हम पर दया करें!"
\v 31 भीड़ में लोगों ने उन्हें डांटा और उन्हें चुप रहने के लिए कहा। परन्तु अंधेरे लोग भी चिल्लाने लगे, "हे राजा दाऊद के वंशज, तुम मसीह हो! हम पर दया करो!"
\s5
\v 32 यीशु रुक गए और उनको अपने पास बुलाया फिर उन्होंने उनसे कहा, "तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए करूं?"
\v 33 "उन्होंने उनसे कहा," हे प्रभु, हमारी आंखें ठीक कर दीजिए, ताकि हम देख सकें।"
\v 34 यीशु को उनके लिए दुःख हुआ और उन्होंने उनकी आंखों को छुआ। वे तुरंत देखने लगे, और यीशु के पीछे चलने लगे।
\s5
\c 21
\p
\v 1-2 जब यीशु और उनके शिष्य यरूशलेम के पास पहुंचे तो वे जैतून पहाड़ के पास बैतफगे गांव में आए। यीशु ने अपने दो शिष्यों से कहा, "तुम सामने के गांव में जाओ, जैसे ही तुम प्रवेश करते हो, तुम एक गदही और उसके बच्चे को बंधे हुए देखोगे। उन्हें खोलो और मेरे पास यहां ले आओ।
\v 3 यदि कोई तुमको कुछ कहता है, तो उससे कहना, 'प्रभु को इनकी आवश्यक्ता है।' तब वह उन्हें लेकर जाने की तुम्हे अनुमति दे देगा।"
\s5
\v 4-5 जब यह सब हुआ, तो भविष्यद्वक्ताओं में से एक ने जो लिखा था, वह सच हो गया। उस भविष्यद्वक्ता ने लिखा था, "यरूशलेम में रहने वाले लोगों को बताओ, 'देखो, तुम्हारे राजा तुम्हारे पास आ रहे हैं। वह नम्रता से आएंगे। वह दिखाएंगे कि वह नम्र हैं, क्योंकि वह एक गदही के बच्चे पर बैठे होंगे।'"
\p
\s5
\v 6 इसलिए दोनों शिष्य चले गए और वही किया जो यीशु ने उन्हें करने के लिये कहा था।
\v 7 वे गदही और उसके बच्चे को यीशु के पास लाए। उन्होंने उन पर अपने कपड़े डाल दिए जिससे कि वह उन पर बैठ सके। फिर यीशु चढ़कर कपड़ों पर बैठ गए।
\v 8 फिर एक बडी भीड़ ने सड़क पर अपने बाहरी कपड़ों को फैला दिया, और अन्य लोगों ने खजूर के पेड़ से शाखाओं को काटकर सड़क पर फैला दिया।
\s5
\v 9 जो भीड़ उनके आगे चल रही थी और जो उनके पीछे पीछे थे, वे चिल्ला रहे थे, "राजा दाऊद के वंशज मसीह की स्तुति करो!" "प्रभु परमेश्वर उन को आशीष दे, जो परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में हैं और परमेश्वर के अधिकार के साथ आते हैं।" "परमेश्वर जो सबसे ऊँचे स्वर्ग में हैं उनकी स्तुति करो!"
\v 10 जब यीशु ने यरूशलेम में प्रवेश किया, तो शहर भर के बहुत से लोग उत्साहित होकर कह रहे थे, "वे इस पुरुष को ऐसा सम्मान क्यों दे रहे हैं?"
\v 11 जो लोग पहले से ही उनके पीछे चल रहे थे, उन्होंने उत्तर दिया, "यह यीशु, गलील के नासरत के भविष्यद्वक्ता हैं!"
\p
\s5
\v 12 तब यीशु आराधनालय के आंगन में गए और उन सब को बाहर निकाल दिया, जो सामान बेच रहे थे और खरीद रहे थे। उन्होंने आराधनालय के कर देने के लिए रोमी सिक्के को बदलने वाले लोगों के तख्तों को भी उलट दिया, और उन्होंने बलि के लिए कबूतरों को बेचने वालों के तख्तों को उखाड़ दिए।
\v 13 फिर उन्होंने उनसे कहा, "एक भविष्यद्वक्ता ने धर्मशास्त्रों में लिखा है कि परमेश्वर ने कहा था, 'मैं चाहता हूँ कि मेरा घर एक ऐसा स्थान हो जहां लोग मुझसे प्रार्थना करते हैं, परन्तु तुम लोगों ने इसे एक ऐसा स्थान बना दिया जहां लुटेरे एकत्र होते हैं।'
\p
\v 14 उसके बाद, कई अंधे और लंगड़े लोग आराधनालय में यीशु के पास आए कि वह उन्हें ठीक कर दें, और उन्होंने ऐसा किया।
\s5
\v 15 प्रधान याजकों और लोगों को यहूदी व्यवस्था सिखाने वाले पुरुषों ने उन अद्भुत कामों को देखा जो यीशु ने किए थे। उन्होंने बच्चों को भी आराधनालय में चिल्लाते हुए देखा, "हम राजा दाऊद के वंशज मसीह की स्तुति करते हैं!" इस पर वे क्रोधित हुए।
\v 16 उन्होंने उनसे पूछा, "आप इसे कैसे सहन कर सकते हैं? क्या आप सुनते हैं कि ये लोग क्या चिल्ला रहे हैं?" फिर यीशु ने उनसे कहा, "हाँ, मैं उन्हें सुनता हूँ, यदि तुम याद करो जो पवित्रशास्त्र में बच्चों के द्वारा मेरी स्तुति करने के विषय में पढ़ा है, तो तुम जान लोगे कि परमेश्वर उनसे प्रसन्न हैं। भजनकार ने परमेश्वर से कहा, शिशुओं और बच्चों को आपने आपकी स्तुति प्रशंसा करना भलिभाँति सिखाया है।''
\p
\v 17 फिर यीशु ने वह शहर छोड़ दिया। शिष्य उनके साथ बैतनिय्याह गांव में गए, और वे उस रात वहाँ रहे।
\p
\s5
\v 18 अगली सुबह जब वे शहर लौट रहे थे, तो यीशु भूखे थे।
\v 19 उन्होंने सड़क के पास एक अंजीर के पेड़ को देखा, इसलिए वह कुछ अंजीर खाने के लिए उसके पास गए। परन्तु जब वह पास गए, तो उन्होंने देखा कि वृक्ष में अंजीर नहीं थे, केवल पत्तियां थीं। इसलिए उन्होंने अंजीर के पेड़ से कहा, " तुझ में फिर कभी अंजीर के फल नहीं लगेंगे!" और, अंजीर का पेड़ तुरंत सूख गया।
\s5
\v 20 अगले दिन शिष्यों ने देखा कि अंजीर का पेड़ मर चुका था। वे चकित हुए और यीशु से कहा, "अंजीर का पेड़ अति शीघ्र कैसे सूख गया?"
\v 21 यीशु ने उनसे कहा, "इस विषय में सोचो: यदि तुम मानते हो कि परमेश्वर के पास वह करने की शक्ति है जो करने के लिए तुम उनसे कहते हो और तुम उसमें शक नहीं करते हो, तो जैसा इस अंजीर के पेड़ के साथ मैंने किया, तुम भी इस तरह के काम करने में सक्षम होगे। यहाँ तक कि तुम कई अद्भुत काम करोगे जैसे कि इस पहाड़ से कहोगे, 'उखड़ कर समुद्र में चला जा,' और यह हो जाएगा!
\v 22 इसके अतिरिक्त, जब भी तुम किसी वस्तु के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करते हो और विश्वास करते हो कि वह तुम्हे वह दे देंगे तो तुम उसे प्राप्त करोगे।"
\p
\s5
\v 23 उसके बाद, यीशु आराधनालय के आंगन में गए। जब वह लोगों को सिखा रहे थे, तो प्रधान याजकों और लोगों के प्राचीनों ने उनसे संपर्क किया। उन्होंने पूछा, "आप किस अधिकार से इन कामों को कर रहे हैं? आपने कल यहाँ जो किया, उसे करने का अधिकार आपको किसने दिया?"
\v 24 यीशु ने उन से कहा, "मैं भी तुमसे एक प्रश्न पूछूंगा, और यदि तुम मुझे उत्तर दोगे, तो मैं तुम्हें बताऊंगा कि इन कामों को करने के लिए मुझे किसने अधिकार दिया है?
\s5
\v 25 आने वाले लोगों को बपतिस्मा देने का अधिकार यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले को कहाँ से मिला था? क्या उसने इसे परमेश्वर से पाया था या लोगों से प्राप्त किया?' प्रधान याजकों और प्राचीनों ने अपने बीच में चर्चा की कि उन्हें क्या उत्तर देना चाहिए। उन्होंने एक दूसरे से कहा, "यदि हम कहते हैं, 'यह परमेश्वर की ओर से था,' तो वह हमसे कहेगा, 'फिर तुमको उसका संदेश मानना चाहिए था!'
\v 26 परन्तु यदि हम कहते हैं, 'यह लोगों की ओर से था,' तो भीड़ हमारे विरुद्ध हिंसक हो सकती है, क्योंकि लोग मानते हैं कि यूहन्ना एक भविष्यद्वक्ता था जिसे परमेश्वर ने भेजा था।
\v 27 "इसलिए उन्होंने यीशु को उत्तर दिया," हम नहीं जानते कि यूहन्ना को कहाँ से उसका अधिकार मिला था।" फिर यीशु ने उनसे कहा, "क्योंकि तुमने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया, मैं तुमको नहीं बताऊंगा कि कल जो मैंने यहाँ किया, उस काम को करने का अधिकार मुझे किसने दिया?"
\p
\s5
\v 28 "मुझे बताओ कि तुम इस विषय में क्या सोचते हो, जो मैं तुमसे कहने वाला हूँ। एक व्यक्ति था, जिसके दो पुत्र थे। वह अपने बड़े पुत्र के पास गया और कहा, 'हे मेरे पुत्र, जा और आज मेरी दाख की बारी में काम कर!'
\v 29 उसने अपने पिता से कहा, 'मैं नहीं जाऊँगा!' परन्तु बाद में उसने अपना मन बदल दिया, और वह दाख की बारी में गया और काम किया।
\v 30 तब पिता अपने छोटे पुत्र के पास गया और वही कहा जो उसने अपने बड़े पुत्र से कहा था। उस पुत्र ने कहा, 'महोदय, आज मैं दाख की बारी में जाकर काम करूंगा।' परन्तु वह नहीं गया।
\s5
\v 31 "तो, उस पुरूष के दोनों पुत्रों में से किसने अपने पिता की इच्छा के अनुसार किया?" उन्होंने उत्तर दिया, "बड़े पुत्र ने।" तब यीशु ने उनसे कहा, "इसलिये इस बात पर विचार करो: परमेश्वर तुम पर शासन करने के लिए सहमत होने से पूर्व, कर वसूलने वालों और वेश्याओं पर दया करके उन पर शासन करने के लिए मान जाएंगे। यह सच है, भले ही तुम उन लोगों की निंदा करते हो क्योंकि वे मूसा की व्यवस्था की उपेक्षा करते हैं।
\v 32 मैं तुमसे ये कहता हूँ क्योंकि, यहाँ तक कि यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने तुमको समझाया कि सही तरीके से कैसे जीना है, तुमने उसका संदेश नहीं माना। लेकिन कर लेनेवालों और वेश्याओं ने उसका संदेश मान लिया, और वे अपने पापी व्यवहार से मुक्त हो गए। इसके विपरीत, भले ही तुमने देखा कि वे बदल गए हैं, तुमने पाप करना त्याग ने से मना किया, और तुमने यूहन्ना के संदेश पर विश्वास नहीं किया।"
\p
\s5
\v 33 "एक अन्य दृष्टान्त सुनों। एक खेत का मालिक था, जिसने दाख की बारी लगाई थी। उसने उस बारी के चारों ओर एक बाड़े का निर्माण किया। उसने अंगूर से निकलने वाले रस को एकत्र करने के लिए कुण्ड बनाया। उसने एक मीनार भी बनाई। जिस में कोई उस दाख की बारी की रक्षा करने के लिए बैठ सकता था। उसने कुछ किसानों को दाख की बारी किराए पर दे दी थी, जो उसकी देखभाल करेंगे और बदले में उसको कुछ अंगूर देंगे। फिर वह किसी दूसरे देश में चला गया।
\v 34 जब अंगूर की फसल काटने का समय आया, तो खेत के मालिक ने अपने कुछ सेवकों को उन मनुष्यों के पास जो दाख की बारी की देखभाल कर रहे थे, दाख की बारी में उगे अंगूरों का अपना भाग लेने के लिए भेजा।
\s5
\v 35 परन्तु किराएदारों ने सेवकों को कैद कर लिया। उन्होंने उनमें से एक को मारा-पीटा, उन्होंने दूसरे को मार डाला, और तीसरे की पत्थर मार-मार कर हत्या कर दी।
\v 36 तब उस बारी के स्वामी ने पहली बार भेजे गए सेवकों की तुलना में अधिक सेवकों को भेजा। किराएदारों ने उन सेवकों के साथ भी उसी प्रकार का व्यवहार किया जिस प्रकार का व्यवहार उन्होंने अन्य सेवकों के साथ किया था।
\v 37 इसके विषय में सुनने के बाद, बारी के स्वामी ने अंगूरों का अपना भाग पाने के लिए अपने स्वयं के पुत्र को किराएदारों के पास भेजा। जब उसने उसे भेजा, तो उसने मन में कहा, 'वे मेरे पुत्र का सम्मान करेंगे और उसे अंगूरों का मेरा भाग दे देंगे।'
\s5
\v 38 परन्तु जब किराए दारों ने उसके बेटे को आते देखा, तो उन्होंने एक-दूसरे से कहा, 'यह वह व्यक्ति है जो इस दाख की बारी का उत्तराधिकारी होगा! आओ हम एक साथ मिलकर उसे मार डालें और इस संपत्ति को आपस में बाँट लें। '
\v 39 इसलिए उन्होंने उसे पकड़ा, उसे दाख की बारी से बाहर खींचा, और उसे मार डाला।
\s5
\v 40 अब मैं तुम से पूछता हूँ, जब दाख की बारी का स्वामी अपनी दाख की बारी में लौटेगा, तो तुम क्या सोचते हो कि वह उन किराएदारों के साथ करेगा?"
\v 41 लोगों ने उत्तर दिया, "वह उन दुष्टों को पूरी तरह से नष्ट कर देगा। तब वह दूसरों को दाख की बारी किराए पर देगा। जब अंगूर पक जाएंगे, तब वे अंगूरों मैं से उसका भाग उसे देंगे।"
\s5
\v 42 यीशु ने उनसे कहा, "तुमको धर्मशास्त्रों के इन शब्दों के विषय में सावधानी से सोचना चाहिए: 'जो लोग बड़ी इमारत का निर्माण कर रहे थे, उन्होंने एक विशेष पत्थर का तिरस्कार कर दिया। परन्तु दूसरों ने उसी पत्थर को उसकी उचित जगह में रखा, और वह इमारत का सबसे महत्वपूर्ण पत्थर बन गया। परमेश्वर ने यह किया है, और हम इसे देखकर आश्चर्य करते हैं।'
\p
\s5
\v 43 इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ: परमेश्वर अब तुमको अपने लोगों के समान रहने नहीं देंगे जो उनके भाग हैं। इसकी अपेक्षा, वह अपने लिए ऐसे लोगों को चुनेंगे, जो उनकी इच्छा के अनुसार करते हैं।
\v 44 जो कोई इस पत्थर पर गिरता है, वह टुकड़ों में टूट जाएगा, और यह पत्थर जिस पर गिरता है उसे कुचल डालेगा।"
\p
\s5
\v 45 जब प्रधान याजकों और फरीसी और प्राचीनों ने यह दृष्टान्त सुना, तो उन्हें पता चला कि वह उन पर दोष लगा रहे हैं क्योंकि उन्होंने विश्वास नहीं किया था कि वह मसीह थे।
\v 46 वे उन्हें पकड़ना चाहते थे, परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि वे भीड़ से डरते थे कि यदि वे ऐसा करेंगे तो भीड़ क्या करेगी, क्योंकि लोगों की भीड़ यह मानती थीं कि यीशु एक भविष्यद्वक्ता हैं।
\s5
\c 22
\p
\v 1 फिर यीशु ने यहूदी अगुवों को अन्य दृष्टान्त सुनाए। यह उन दृष्टान्तों में से एक है।
\v 2 "स्वर्ग से परमेश्वर का शासन एक राजा के समान है, जिसने अपने कर्मचारियों को बताया कि उन्हें उसके पुत्र के लिए एक विवाह के भोज का आयोजन करना चाहिए।
\v 3 जब भोज तैयार हो गया, तब राजा ने अपने कर्मचारियों को आमन्त्रित जनों के पास भेजकर सूचना दी कि विवाह के भोज का समय हो गया है। सेवक निकल गए और आमन्त्रित लोगों को बताया। परन्तु आमन्त्रित नहीं आना चाहते थे।
\s5
\v 4 तब राजा ने अन्य सेवकों को फिर से भेजा कि उन लोगों को भोज में आने के लिए कहें। उसने उन सेवकों से कहा, 'जिन लोगों को मैंने भोज पर आने के लिए बुलाया है, उनसे कहो,' राजा तुमसे यह कहता है, 'मैंने भोजन तैयार किया हुआ है, बैल और मोटे बछड़ों को काटकर पकाया गया है। सब कुछ तैयार है। अब तुम्हारा विवाह के भोज में आने का समय है! ''
\s5
\v 5 परन्तु जब सेवकों ने उनसे यह कहा तो उन्होंने सेवकों की बातों, की उपेक्षा की। उनमें से कुछ अपने खेत में चले गए। अन्य अपने व्यवसाय के स्थान पर चले गए।
\v 6 बाकी बचे हुओं ने राजा के सेवकों को कैद कर लिया, उनसे दुर्व्यवहार किया, और उन्हें मार डाला।
\v 7 जब राजा ने सुना कि क्या हुआ, तो वह क्रोधित हो गया। उसने अपने सैनिकों को आज्ञा दी कि जाकर उन हत्यारों को मार डालें और उनके नगर को जला दें।
\s5
\v 8 उसके सैनिकों ने ऐसा ही किया तब राजा ने अपने दूसरे कर्मचारियों से कहा, 'मैंने विवाह का भोज तैयार किया है, परन्तु जो लोग आमंत्रित थे, वे इसके योग्य नहीं थे।
\v 9 तो मुख्य सड़कों के चौराहों पर जाओ जो कोई मिले उनको बताओ कि उन्हें विवाह के भोज में आना है।
\v 10 तो सेवक वहां गए, और जो कोई भी उनको मिला, उन्होंने उनको एकत्र किया। उन्होंने बुरे लोगों और अच्छे लोगों दोनों को एकत्र किया। वे उन्हें उस भवन में ले आए जहां विवाह का भोज तैयार था। भवन लोगों से भरा था।
\s5
\v 11 लेकिन जब राजा अतिथियों को देखने के लिए भवन में गया, तो उसने एक ऐसे व्यक्ति को देखा जो विवाह भोज के लिए दिए वस्त्र नहीं पहने हुए था।
\v 12 राजा ने उस से कहा, 'मित्र, तुझे इस भवन में कभी नहीं आना चाहिए था, क्योंकि तूने वह कपड़े नहीं पहने हुए हैं, जो अतिथि विवाह के भोज पर पहनते हैं!' उस व्यक्ति ने कुछ नहीं कहा, क्योंकि उसे नहीं पता था कि क्या कहना है।
\s5
\v 13 तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, 'इस व्यक्ति के पैर और हाथों को बाँध कर बाहर फेंक दो, जहाँ घोर अंधेरा है, जहाँ लोग रोते हैं और अपने दांतों को पीसते हैं क्योंकि वे दर्द में हैं।'
\v 14 फिर यीशु ने कहा, "इस दृष्टान्त का उद्देश्य यह है कि परमेश्वर ने कई लोगों को उनके पास आने के लिए आमंत्रित किया है, परन्तु केवल कुछ लोग ही है जिन्हें उन्होंने वहाँ रहने के लिए चुना है।"
\p
\s5
\v 15 यीशु के यह कहने के बाद, सब फरीसी यह योजना बनाने के लिए एक साथ इकट्ठा हुए कि वे उन्हें कुछ ऐसा कहने के लिए कैसे प्रेरित करें जिससे कि वे उन पर आरोप लगा सकें।
\v 16 उन्होंने उनके पास अपने कुछ शिष्यों को हेरोदेस दल के लोंगों के साथ भेजा। उन लोगों ने यीशु से कहा, "गुरु, हम जानते हैं कि आप सच्चे हैं और यह कि परमेश्वर जो चाहते हैं कि हम करें, उसके विषय में सच्ची बात सिखाते हैं। हम यह भी जानते हैं कि आप जो कुछ सिखाते हैं, उसे बदलते नहीं चाहे कोई आपके विषय में कुछ भी कहे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे किस तरह के व्यक्ति हैं।
\v 17 तो हमें बतायें कि आप रोमी सरकार को कर देने के विषय में क्या सोचते हैं: क्या यह सही है या नहीं कि हम रोमी सरकार को कर दें?"
\s5
\v 18 लेकिन यीशु जानते थे कि वे जो सच में करना चाहते थे वह बुरा था। वे उनसे ऐसा कुछ कहलवाना चाहते थे जो उन्हें यहूदी अधिकारियों या रोमी अधिकारियों के साथ परेशानी में डालें। इसलिए उन्होंने उनसे कहा, "तुम ढ़ोंगी हो; तुम चाहते हो कि मैं कुछ कहूं जिससे कि तुम मुझ पर आरोप लगा पाओ।
\v 19 मुझे उन सिक्कों में से एक सिक्का दिखाओ, जिसके द्वारा लोग रोमी कर का भुगतान करते हैं। "इसलिए उन्होंने उसे एक सिक्का दिखाया जो कि एक दीनार था।
\s5
\v 20 उन्होंने उनसे कहा, "इस सिक्के पर किसका चित्र है? और इस पर किसका नाम है?"
\v 21 उन्होंने उत्तर दिया, "इसमें कैसर का चित्र और नाम है, जो रोमी सरकार का मुखिया है।" तब उन्होंने उनसे कहा, "जो सरकार मांगती है, वह उसे दे दो, और परमेश्वर को जो चाहिए, वह उन्हें दे दो।"
\v 22 जब उन लोगों ने यीशु को यह कहते हुए सुना तो वे इस बात से चकित हो गए कि उनका उत्तर किसी को भी उन पर दोष लगाने में सक्षम नहीं करता है। फिर उन्होंने यीशु को छोड़ दिया।
\p
\s5
\v 23 उसी दिन कुछ सदूकी यीशु के पास आए। वह एक यहूदी समूह हैं जो विश्वास नहीं करता है कि लोग मरने के बाद फिर से जीवित हो जाएंगे। उन्होंने यीशु से पूछा,
\v 24 "हे गुरु, मूसा ने धर्मशास्त्र में लिखा है, 'यदि कोई व्यक्ति मरता है, जिसके पास कोई बच्चा नहीं है, तो उसके भाई को मृत व्यक्ति की विधवा से शादी करनी चाहिए ताकि वह उसके द्वारा एक बच्चा पाए। बच्चे को मरे हुए व्यक्ति का वंशज माना जाएगा और इस तरह मृतक के वंशज होंगे। '
\s5
\v 25 एक परिवार में सात लड़के थे। सबसे बड़े लड़के ने किसी से विवाह किया। उसके और उसकी पत्नी के पास कोई बच्चा नहीं था, और वह मर गया। तो दूसरे भाई ने उस विधवा से विवाह किया। परन्तु वह भी बच्चा पैदा किए बिना मर गया।
\v 26 तीसरे भाई के साथ और अन्य चार भाइयों के साथ भी ऐसा ही हुआ, जिन्होंने एक-एक करके उस विधवा से विवाह किया था।
\v 27 अन्त में उस स्त्री की भी मृत्यु हो गई।
\v 28 तो, जब परमेश्वर मरे हुओं को जीवित करेंगे और लोगों को जिलाएंगे, तो आपके विचार में उन सात भाइयों में से कौन उसका पति होगा? ध्यान रहे कि उन सभी का उससे विवाह हुआ था।"
\s5
\v 29 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "तुम जो सोच रहे हो, उसमें तुम निश्चित रूप से गलत हो, तुम नहीं जानते कि धर्मशास्त्र में क्या लिखा है। तुम यह भी नहीं जानते कि परमेश्वर के पास लोगों को फिर से जीवित करने की शक्ति हैं।
\v 30 सच्चाई यह है कि वह स्त्री उनमें से किसी की पत्नी नहीं होगी, क्योंकि परमेश्वर द्वारा सब मरे हुओं को फिर से जीवित करने के बाद, कोई भी विवाहित नहीं होगा। इसकी अपेक्षा, लोग स्वर्ग के स्वर्गदूतों के समान होंगे। वे विवाह नहीं करते।
\s5
\v 31 लेकिन मृत लोगों के फिर से जीवित होने के विषय में, परमेश्वर ने कुछ कहा था। मुझे विश्वास है कि तुमने इसे पढ़ लिया है। अब्राहम, इसहाक और याकूब की मृत्यु के बहुत समय बाद, परमेश्वर ने मूसा से कहा,
\v 32 'मैं वह परमेश्वर हूँ जिनकी अब्राहम आराधना करता है, जिन की इसहाक आराधना करता है, और जिन की याकूब आराधना करता है।' मरे हुए लोग परमेश्वर की आराधना नहीं करते हैं। यह जीवित लोग हैं जो उनकी आराधना करते हैं। इसलिए हमें विश्वास है कि उनकी आत्माएं अब भी जीवित हैं!"
\v 33 जब लोगों की भीड़ ने यीशु को यह शिक्षा देते सुना, तो वे चकित हो गए।
\p
\s5
\v 34 परन्तु जब फरीसियों ने सुना कि यीशु ने सदूकियों को ऐसा उत्तर दिया कि सदूकियों को कुछ भी नहीं समझ आया, कि उन्हें क्या उत्तर, तो फरीसी योजना बनाने के लिए एकत्र हुए कि वे यीशु से क्या कहें। फिर उन्होंने उससे संपर्क किया।
\v 35 उनमें एक व्यक्ति था जो एक वकील था, जिसने मूसा को दी गई परमेश्वर की व्यवस्था का उचित अध्ययन किया हुआ था। वह यीशु से विवाद करना चाहता था। उसने यीशु से पूछा,
\v 36 "गुरु, जो नियम परमेश्वर ने मूसा को दिए थे उनमें सबसे महत्वपूर्ण आज्ञा कौन सी है?"
\s5
\v 37 यीशु ने उत्तर में धर्मशास्त्रों से समझाते हुए कहा, "'तुझे अपने परमेश्वर से अपने संपूर्ण भीतरी मनुष्यत्व के साथ प्रेम करना चाहिए। दिखा कि तू अपनी पूरी इच्छा से, पूरी भावना से और संपूर्ण सोच से उनसे प्रेम करता है।'
\v 38 यह मूसा की व्यवस्था में सबसे महत्वपूर्ण आज्ञा है जो परमेश्वर ने दी थी।
\s5
\v 39 अगली सबसे महत्वपूर्ण आज्ञा यह है जो हर किसी को माननी चाहिए: 'जितना तू स्वयं से प्रेम करता है, उतना ही प्रेम तू उन लोगों से कर जिनके संपर्क में तू आता है।'
\v 40 यह दोनों आज्ञाएं मूसा द्वारा धर्मशास्त्र में लिखी व्यवस्था तथा भविष्यद्वक्ताओं द्वारा लिखी गई सब बातों का आधार हैं।
\p
\s5
\v 41 जबकि फरीसी अभी यीशु के आस-पास ही थे, तो यीशु ने उनसे पूछा,
\v 42 "तुम मसीह के विषय में क्या सोचते हो, वह किसका वंशज है?" उन्होंने उनसे कहा, "वह राजा दाऊद के वंशज हैं।"
\s5
\v 43 यीशु ने उनसे कहा, "यदि मसीह राजा दाऊद का वंशज है, तो दाऊद को उन्हें 'प्रभु' नहीं कहना चाहिए था, जब वह पवित्र आत्मा की प्रेरणा से कह रहा था।
\v 44 दाऊद ने मसीह के विषय में धर्मशास्त्र में यह लिखा है: 'परमेश्वर ने मेरे प्रभु से कहा,' मेरे दाहिनी ओर मेरे साथ बैठो, जहां मैं आपको बहुत आदर दूंगा, जब तक मैं आपके शत्रुओं को आपके पैरों के नीचे न कर दूं।'
\s5
\v 45 इसलिए, जब राजा दाऊद ने मसीह को 'मेरे प्रभु' कहा, तो 'मसीह दाऊद से निकले कोई साधारण जन नहीं हो सकते हैं!' उन्हे दाऊद से बहुत अधिक महान होना चाहिए!"
\v 46 जो कोई भी यीशु की बातों को सुन रहे थे, उनकी समझ में यीशु को उत्तर देने के लिए उनके पास एक भी शब्द नहीं था। उसके बाद, किसी ने भी उन्हें फंसाने का प्रयास करने में और एक प्रश्न पूछने का साहस नहीं किया।
\s5
\c 23
\p
\v 1 तब यीशु ने भीड़ और अपने शिष्यों से कहा,
\v 2 "हमारी यहूदी व्यवस्था को सिखाने वाले पुरुषों और फरीसियों ने स्वयं को उन नियमों की व्याख्या करने वालें बना लिया है, जो परमेश्वर ने इस्राएल के लोगों के लिए मूसा को दिए थे।
\v 3 अत: जो कुछ भी वे तुमको करने के लिए समझाते हैं, तुमको वह करना चाहिए। लेकिन वे जो करते हैं, वह मत करो, क्योंकि वे स्वयं उन नियमों का पालन नहीं करते हैं।
\s5
\v 4 वे तुम्हें कई नियमों का पालन करने की आवश्यकता बताते हैं जिनका पालन करना कठिन है। लेकिन वे स्वयं किसी भी नियम का पालन करने में किसी की सहायता नहीं करते हैं। ऐसा लगता है कि वे बहुत भारी बोझ को उठाने के लिए तुम्हारे कंधों पर रख रहे हैं। परन्तु उसे उठाकर ले जाने में वे तुम्हारी सहायता करने के लिए अपनी एक उंगली भी नहीं लगाएँगे।
\v 5 जो भी वे करते हैं, वे उन कामों को इसलिए करते हैं कि लोग उन्हें देखें और उनकी प्रशंसा करें। उदाहरण के लिए, वे उन तावीजों को ज्यादा चौड़े बनाते हैं जिसमें पवित्रशास्त्र के अंश हैं जिनको वे अपनी बाँहों पर पहनते हैं। वे अपने वस्त्रों की छोर बढ़ा देते है कि दूसरों को लगे कि वे परमेश्वर का सम्मान करते हैं।
\s5
\v 6 वे चाहते हैं कि अन्य लोग उन्हें सम्मान दें। उदाहरण के लिए, भोज में वे वहां बैठते हैं जहां सबसे महत्वपूर्ण लोग बैठते हैं। सभाओं में वे भी ऐसे ही स्थानों पर बैठना चाहते हैं।
\v 7 उन्हे अच्छा लगता कि लोग बाज़ारों में महान सम्मान के साथ उनका अभिवादन करें लोग उन्हें 'गुरु' कहकर पुकारें।
\s5
\v 8 परन्तु तुम, मेरे शिष्यों लोगों को तुम्हें 'गुरु' कहने की अनुमति नहीं देना जैसा वे अन्य यहूदी गुरुओं के साथ करते हैं। केवल मैं ही वास्तव में तुम्हारा गुरु हूँ। इसका अर्थ यह है कि तुम सब एक दूसरे के बराबर हो, जैसे भाई और बहन।
\v 9 धरती पर किसी को भी 'पिता' के रूप में संबोधित करके उसे सम्मान न देना, क्योंकि परमेश्वर, तुम्हारे स्वर्गीय पिता, तुम्हारे एकमात्र सच्चे पिता हैं।
\v 10 लोगों को तुम्हें 'गुरु' कहने की अनुमति न देना, क्योंकि मसीह ही तुम्हारे एकमात्र गुरु हैं।
\s5
\v 11 इसकी अपेक्षा, तुम में से हर कोई जो चाहता है कि परमेश्वर उसे महत्वपूर्ण मानें, उसे सेवकों के समान दूसरों की सेवा करनी चाहिए।
\v 12 परमेश्वर उनको नम्र करेंगे जो स्वयं को महत्वपूर्ण बनाने का प्रयास करते हैं। जो लोग स्वयं को विनम्र करते हैं, परमेश्वर उन्हें वास्तव में महत्वपूर्ण बना देंगे।"
\p
\s5
\v 13-14 "हे व्यवस्था के शिक्षकों और फरीसियों, तुम ढ़ोंगी हो! परमेश्वर तुम्हे भयंकर रीति से दण्ड देंगे, क्योंकि तुमने स्वर्ग के शासन के अधीन आने से मना किया और दूसरों को भी आने नहीं देते हो। तुम स्वयं तो भीतर नहीं जाना चाहते, तुम दूसरों को भी प्रवेश करने से दूर रखते हो।"
\p
\v 15 "हे व्यवस्था के शिक्षकों और फरीसियों, तुम ढ़ोंगी हो! परमेश्वर तुम्हे भयंकर रीति से तुम्हें दण्ड देंगे! तुम कठोर परिश्रम करते हो कि एक मनुष्य ही तुम्हारी शिक्षा पर विश्वास करे। ऐसा करने के लिए तुम यहाँ तक कि समुद्रों पर और धरती पर दूर के स्थानों की यात्रा करते हो और परिणामस्वरूप, जब कोई व्यक्ति तुम्हारी सिखाई बातों पर विश्वास करता है, तो तुम उस व्यक्ति को अपने से अधिक नरक में जाने के योग्य बना देते हो।"
\p
\s5
\v 16 "हे यहूदी अगुवों, परमेश्वर तुम्हे भयंकर रीति से दण्ड देंगे! तुम उन अंधे लोगों के समान हो जो दूसरों की अगुवाई करने का प्रयास करते हैं। तुम कहते हो, 'यदि कोई आराधनालय की शपथ खाकर कुछ करने की प्रतिज्ञा करता है जैसे कि मन्दिर एक मनुष्य है और यदि वह ऐसा नहीं करता जैसी उसने शपथ खाई तो कोई बात नहीं है। परन्तु यदि वह आराधनालय में के सोने की शपथ खाता है कि वह कुछ करेगा, तो उसे ऐसा करना ही होगा।
\v 17 तुम मूर्ख हो, और तुम ऐसे लोगों के समान हो जो अंधे हैं। आराधनालय में का सोना महत्वपूर्ण है, परन्तु आराधनालय उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह आराधनालय ही है जो सोने को परमेश्वर का बना देता है।
\s5
\v 18 तुम यह भी कहते हो, 'यदि कोई वेदी की शपथ खाकर कुछ करने की प्रतिज्ञा करता है कि वेदी एक व्यक्ति है, और यदि वह ऐसा नहीं करता जैसी उसने शपथ खाई , तो कोई बात नहीं। परन्तु यदि वह बलि की शपथ खाता है जो उसने वेदी पर रखा है तो उसे ऐसा करना ही होगा।
\v 19 तुम ऐसे लोगों के समान हो जो अंधे हैं। वेदी पर चढ़ाई बलि महत्वपूर्ण हैं, परन्तु वेदी उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वेदी ही है जो बलि को केवल परमेश्वर का बनाती है।
\s5
\v 20 यदि कोई कुछ करने की प्रतिज्ञा करके उसको पुष्ट करने के लिए वेदी की शपथ खाता है तो वह वेदी पर चढ़ाए जाने वाली वस्तुओं की भी शपथ खा रहा है।
\v 21 हाँ, और जो कोई कुछ करने की प्रतिज्ञा करता है और फिर उसे पुष्ट करने के लिए आराधनालय की शपथ खाता है तो वे परमेश्वर की शपथ भी खा रहां है जिनका यह आराधनालय है, वही उस बात की पुष्टि करेंगे।
\v 22 और जो कोई कुछ करने की प्रतिज्ञा करता है और फिर उसे पुष्ट करने के लिए स्वर्ग की शपथ खाता है तो वे परमेश्वर के सिंहासन की भी शपथ खा रहा है, और वे परमेश्वर की भी शपथ खा रहा है, जो उस सिंहासन पर बैठते हैं।"
\p
\s5
\v 23 "हे व्यवस्था के शिक्षकों और फरीसियों, तुम्हे परमेश्वर भयंकर दण्ड देंगे! तुम ढ़ोंगी हो, क्योंकि भले ही तुम परमेश्वर को जड़ी बूटियों का दसवां हिस्सा दे देते हो, जैसे पुदीना, सौंफ और जीरा, परन्तु तुम परमेश्वर के नियमों का पालन नहीं करते, जो अधिक महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए, तुम दूसरों के प्रति न्यायपूर्ण व्यवहार नहीं करते हो, तुम लोगों को दया नहीं दिखाते और तुम दूसरों की वस्तुएं लेने के लिए बल का प्रयोग करते हो। तुम्हारी जड़ी-बूटियों का दसवां हिस्सा परमेश्वर को देना अच्छा है, लेकिन तुम्हें इन अन्य अति महत्वपूर्ण नियमों का भी पालन करना चाहिए।
\v 24 तुम अगुवे अंधे लोगों के समान हो जो दूसरों का मार्गदर्शन करने का प्रयास कर रहे हैं। जब तुम पानी पीते हो, उस समय छोटे से कीड़े को निगलने से परमेश्वर को नाराज न करने के विषय तुम सावधान हो, परन्तु तुम जिस बुरी रीति से व्यवहार करते हो, तो ऐसा लगता है कि तुम ऊंट को निगल रहे हो!
\p
\s5
\v 25 "हे व्यवस्था के शिक्षकों और फरीसियों, तुम ढ़ोंगी हो! परमेश्वर तुमको कैसा भयंकर दण्ड देंगे। तुम स्वयं को अच्छे लोगों के समान दूसरों के सामने प्रकट करते हो। परन्तु, वास्तव में परमेश्वर के विरुद्ध पाप करते हो और अपने लालच के द्वारा दूसरों की वस्तुएँ, अपने सुख और विलास के लिए ले लेते हो। तुम उन बरतनों के समान हो जो बाहर से साफ हैं लेकिन भीतर से गंदे हैं।
\v 26 हे अंधे फरीसियों! आवश्यक है कि पहले तुम बुराई करना त्याग दो जैसे कि दूसरों का सामान चोरी करना। तब तुम जो उचित है, वह कर पाओगे और उस बरतन के जैसे हो जाओगे जो बाहर और भीतर दोनों ओर से साफ है।"
\p
\s5
\v 27 "हे व्यवस्था के शिक्षकों और फरीसियों, तुम ढ़ोंगी हो! परमेश्वर तुमको भयंकर दण्ड देंगे! तुम लोगों की कब्रों के गुम्मटों के समान हो, ऐसी कब्रें जिनको सफेद रंग दिया जाता है ताकि लोग उन्हें देख सकें और उन्हें छूने से बच सकें। बाहर से कब्रों के गुम्मट सुंदर हैं, लेकिन भीतर वे मृत लोगों की हड्डियों और गंदगी से भरी हुई हैं।
\v 28 तुम उन कब्रों के समान हो। जब लोग तुम पर ध्यान देते हैं, तो वे सोचते हैं कि तुम धर्मी हो, परन्तु अपने भीतरी मन में तुम ढ़ोंगी हो, क्योंकि तुम परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन नहीं करते हो।
\p
\s5
\v 29 "हे यहूदी व्यवस्था सिखाने वालों और फरीसियों, तुम ढ़ोंगी हो। परमेश्वर तुमको कैसा भयंकर दण्ड देंगे! तुम भविष्यद्वक्ताओं की कब्रों को फिर से बनवाते हो, जिनको लोगों ने बहुत पहले मार डाला था। तुम धर्मी लोगों के सम्मान में बनाई गई स्मारकों को सजाते हो।
\v 30 तुम कहते हो, 'अगर हमारे पूर्वजों के समय में हम रहते होते, तो हम उन लोगों की सहायता नहीं करते जिन्होंने भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला।'
\v 31 इस तरह तुम स्वीकार करते हो कि तुम उन हत्यारों के वंशज हो; इसलिये तुम उनके समान हो!
\s5
\v 32 तुम भी आगे बढ़ो और उन सभी पापों को पूरा करो जो तुम्हारे पूर्वजों ने आरंभ किए थे।
\v 33 तुम लोग बहुत दुष्ट हो! तुम जहरीले सांपों के समान खतरनाक हो! तुम मूर्खता से सोचते हो कि तुम नरक में दण्ड पाने के लिए परमेश्वर से बच जाओगे!
\s5
\v 34 ध्यान दो कि, यही कारण है कि मैं भविष्यद्वक्ताओं, बुद्धिमान लोगों और शिक्षकों को भेजूंगा। तुम उनमें से कुछ को क्रूस पर चढाकर मार डालोगे, और तुम कुछ को अन्य प्रकार से मार डालोगे। तुम उन में से कुछ को उन जगहों पर कोड़े मारोगे जहां तुम आराधना करते हो और शहर से शहर में तुम उनका पीछा करोगे।
\v 35 तो परमेश्वर तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को उन सब धर्मी लोगों को मारने के लिए दोषी मानेंगे, जो कभी धरती पर रहते थे, जिसमें आदम का पुत्र हाबिल, है जो एक धर्मी व्यक्ति था, और बिरिक्याह का पुत्र जकर्याह भी हैं, जिसे तुम्हारे पूर्वजों ने तुम्हारे आराधनालय और वेदी के बीच पवित्र स्थान में मार डाला था। तुमने उन सभी भविष्यद्वक्ताओं को भी मार डाला जो इन दोनों मनुष्यों के बीच के समय में रहते थे।
\v 36 इस विषय में सोचो: तुम लोग जिन्होने मेरी सेवा को देखा है, तुम ही हो जिनको परमेश्वर उन सभी भविष्यद्वक्ताओं को मारने के लिए दण्ड देंगे!"
\p
\s5
\v 37 "हे यरूशलेम के लोगों, तुम लोग जिन्होंने भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला जो बहुत समय पहले रहा करते थे, और जिनकी तुम ने पत्थर मार-मार का हत्या कर दी, उन्हे परमेश्वर ने तुम्हारे पास भेजा था। कई बार, मैंने तुमको सुरक्षित करने के लिए एक साथ एकत्र करना चाहा जैसे एक मुर्गी अपने पंखों के नीचे अपने बच्चों को एकत्र करती हैं। परन्तु तुम नहीं चाहते थे कि मैं ऐसा करूँ।
\v 38 इसलिए यह सुनो: तुम्हारा शहर निर्जन स्थान बन जाएगा।
\v 39 इसे ध्यान में रखो: जब मैं वापस आऊंगा, केवल तब तुम मुझे फिर से देखोगे, जब तुम मेरे विषय में कहोगे, 'परमेश्वर वास्तव में इस व्यक्ति से प्रसन्न हैं जो परमेश्वर के अधिकार के साथ आते हैं।'
\s5
\c 24
\p
\v 1 यीशु आराधनालय के आंगन को छोड़ कर चले गए। जब वह जा रहे थे, तो उनके शिष्य उनके पास आए और मन्दिर की सुन्दरता की चर्चा करने लगे।
\v 2 उन्होंने उनसे कहा, "मैं तुमको इन इमारतों के विषय में सच्चाई बताता हूँ जो कि तुम देख रहे हो: एक सेना पूरी तरह से उनको नष्ट कर देगी। वे इन इमारतों के हर एक पत्थर को गिरा देंगे। एक पत्थर के ऊपर दूसरा पत्थर रखा नहीं रहेगा।"
\p
\s5
\v 3 बाद में, जब यीशु जैतून के पर्वत के ढलान पर अकेले बैठे थे, तो उनके शिष्य उनके पास आए और उनसे पूछा, "आराधनालय की इमारतों के साथ यह घटना कब होगी? और यह दिखाने के लिए क्या होगा कि आप फिर से आने वाले हैं, और यह दिखाने के लिए कि यह दुनिया समाप्त होने वाली हैं?"
\p
\v 4 यीशु ने उत्तर दिया, "मुझे जो कहना है वह यह है कि सुनिश्चित कर लो कि कोई भी तुमको इस विषय में धोखा न दें कि क्या होने वाला है!
\v 5 बहुत से लोग आएंगे और कहेंगे कि वे मसीह हैं। हाँ, वे वास्तव में कहेंगे, 'मैं मसीह हूँ,' और वे कई लोगों को धोखा दे देंगे।
\s5
\v 6 तुम युद्धों के विषय में सुनोगे जो कि पास हैं और युद्ध जो दूर हैं, लेकिन तुमको इससे परेशान नहीं होना चाहिए। ध्यान रखों कि परमेश्वर ने कहा है कि ये बातें अवश्य होंगी। परन्तु जब ऐसा होता है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि दुनिया का अंत आ गया है!
\v 7 लोगों के समूह एक-दूसरे पर आक्रमण करेंगे, और राजा एक-दूसरे के विरुद्ध सेनाओं का नेतृत्व करेंगे। विभिन्न स्थानों पर अकाल और भूकंप आएंगे।
\v 8 ये बातें पहले होंगी, लेकिन वे ऐसे ही होंगी जैसे एक बच्चे को जन्म देने से पहले एक स्त्री को पीड़ा सहनी पड़ती है।
\p
\s5
\v 9 अधिकाधिक बुरे काम होंगे। जो लोग तुम्हारा विरोध करते हैं वे तुमको पीड़ित करने और मरने के लिए दूर ले जाएंगे। सभी जातियों के लोग तुमसे घृणा करेंगे क्योंकि तुम मुझ में विश्वास करते हो।
\v 10 इसके अतिरिक्त, बहुत से लोग दु:ख उठाने के कारण, विश्वास करना बंद कर देंगे। वे अपने साथी विश्वासियों से विश्वासघात करेंगे और एक-दूसरे से घृणा करेंगे।
\v 11 कई लोग ऐसा कहते हुए आएंगे कि वे भविष्यद्वक्ता हैं, परन्तु वे झूठ बोल रहे होंगे, और वे कई लोगों को धोखा देंगे।
\s5
\v 12 क्योंकि अधिक से अधिक लोग परमेश्वर के नियमों की अवज्ञा करेंगे, कई विश्वासी अब एक दूसरे से प्रेम नहीं रखेंगे।
\v 13 परन्तु जो लोग अपने जीवन के अंत तक विश्वास करते रहेंगे, परमेश्वर उन्हें बचाएंगे।
\v 14 इसके अतिरिक्त, विश्वासी लोग सुसमाचार सुनाएँगे कि परमेश्वर पृथ्वी के हर भाग पर शासन कर रहे हैं, जिससे कि सब जातियों में इसकी घोषणा कर सकें। तब संसार का अंत आ जाएगा।"
\p
\s5
\v 15 "परन्तु संसार समाप्त होने से पहले, घृणित व्यक्ति जो पवित्र आराधनालय को अशुद्ध कर देगा और लोगों के इसे छोड़ने का कारण बनेगा, आराधनालय में खड़ा होगा। दानिय्येल भविष्यद्वक्ता ने इस विषय में बहुत समय पहले कहा और लिखा था। जो कोई भी इसको पढ़ता है, वह ध्यान दे क्योंकि मैं तुमको चेतावनी दे रहा हूँ।
\v 16 जब तुम आराधनालय में ऐसा होते देखो, तो तुम में से जो यहूदिया के क्षेत्र में हैं वे ऊंचे पहाड़ों पर भाग जाना!
\v 17 जो अपने घर के बाहर हैं, उन्हें भागने से पहले सामान लेने के लिए अपने घरों में वापस नहीं जाना चाहिए।
\v 18 जो लोग किसी खेत में काम कर रहे हैं, उन्हें भागने से पहले अपने बाहरी कपड़े उठाने के लिए वापस नहीं जाना चाहिए।
\s5
\v 19 वह समय गर्भवती महिलाओं के लिए और उनके बच्चों की देख भाल करने वाली महिलाओं के लिए कैसा भयानक होगा, क्योंकि उनके लिए भागना बहुत मुश्किल होगा!
\v 20 प्रार्थना करो कि तुम्हें सर्दियों में भागना न पड़े, जब यात्रा करना कठिन होगा या सब्त के विश्रामदिन में ऐसा न हो;
\v 21 क्योंकि जब ये बातें होंगी तब लोग बहुत गंभीर दुःख उठाएंगे। जब से परमेश्वर ने दुनिया को बनाया है, तब से अब तक लोगों ने कभी भी ऐसे गंभीर दुःखों का सामना नहीं किया है, और न ही कोई भी कभी फिर से इस तरह से पीड़ित होगा।
\v 22 यदि परमेश्वर ने उस समय को कम करने का फैसला नहीं किया होता, जब लोग ऐसा दुःख भोगेंगे, तो हर कोई मर जाता। परन्तु परमेश्वर ने इसे कम करने का निर्णय लिया है क्योंकि उन्हें उन लोगों के विषय में चिंता हैं जिनको उन्होंने चुना हैं।"
\p
\s5
\v 23 "उस समय, यदि कोई तुमसे कहते हैं, 'देखो, यहां मसीह है!' या अगर कोई कहता है, 'वहां मसीह है!' तो विश्वास मत करना!
\v 24 वे लोगों को धोखा देने के लिए कई तरह के चमत्कार और अद्भुत काम करेंगे। वे तुम लोगों को धोखा देने का भी प्रयास करेंगे, जिन्हें परमेश्वर ने चुना हैं।
\v 25 यह मत भूलो कि इससे पहले कि यह सब हो, मैंने तुमको इसके विषय में चेतावनी दी है।
\s5
\v 26 इसलिए यदि कोई तुमसे कहता है, 'देखो, मसीह जंगल में है!' वहां मत जाओ। इसी तरह, अगर कोई तुमसे कहता है, 'देखो, वह एक गुप्त कमरे में है!' उस व्यक्ति पर विश्वास मत करो,
\v 27 क्योंकि जिस तरह बिजली पूर्व से पश्चिम तक चमकती है, और लोग इसे देखते हैं, उसी तरह, जब मनुष्य का पुत्र फिर से वापस आएगा, तो सब देखेंगे।
\v 28 यह सब के लिए स्पष्ट होगा जैसे जब तुम गिद्धों को एकत्र हुआ देखते हो तो तुम जानते हो कि वहां किसी पशु की लाश है।"
\p
\s5
\v 29 "उस समय लोगों के दुःख उठाने के तुरंत बाद, सूरज अंधेरा हो जाएगा। चंद्रमा में चमक नहीं होगी। तारे आकाश से गिर पड़ेंगे। और परमेश्वर आकाश में की सब वस्तुओं को अपने स्थान से हिलाएंगे।
\s5
\v 30 उसके बाद, सब लोग आकाश में दिखाई दे रहे मनुष्य के पुत्र को देखेंगे। तब धरती पर सब जातियों समूहों के अविश्वासी लोग ऊंची आवाज में विलाप करेंगे क्योंकि वे डरेंगे। वे मुझे, मनुष्य के पुत्र को, शक्ति और महान महिमा के साथ बादलों पर आते हुए देखेंगे।
\v 31 वह अपने स्वर्गदूतों को स्वर्ग के प्रत्येक स्थान में से पृथ्वी पर भेज देंगे। जब वे तुरही की प्रबल ध्वनि को सुनेंगे, तो वे पूरी धरती से परमेश्वर के लोगों को एकत्र करेंगे, जिन्हें उन्होंने चुना हैं।
\p
\s5
\v 32 "अब अंजीर के पेड़ कैसे बढ़ता है उससे कुछ सीखो। जब अंजीर के पेड़ की शाखाएं कोमल होती हैं और उसके पत्ते निकलना आरंभ होते हैं, तो तुम जानते हो कि गर्मी का मौसम पास है।
\v 33 इसी तरह, जब तुम इन सब बातों को होता देखो, तो तुमको पता चल जाएगा कि उनके वापस आने का समय बहुत करीब है।
\s5
\v 34 इसे ध्यान में रखो: यह सभी घटनाएँ उन सब लोगों के मरने से पहले होगी, जिन्होंने इन बातों को देखा है।
\v 35 तुम निश्चित हो सकते हो कि ये बातें जो मैंने तुम्हें बताई हैं वे होंगी। पृथ्वी और आकाश एक दिन विलोप हो जाएंगे, लेकिन मैं जो कहता हूँ वह होकर ही रहेगा।"
\p
\s5
\v 36 "लेकिन कोई अन्य व्यक्ति, न ही स्वर्ग में कोई स्वर्गदूत और न ही स्वयं पुत्र, वह दिन या घड़ी को जानते हैं जब ये सब बातें होंगी। केवल पिता परमेश्वर ही जानते हैं।
\s5
\v 37-39 नूह के जीवित रहते समय जो हुआ यह उसके समान होगा। जब तक बाढ़ नहीं आई, लोगों को नहीं पता था कि उनके साथ कुछ बुरा होगा। वे हमेशा के समान खा और पी रहे थे। पुरुष विवाह कर रहे थे, और माता-पिता अपनी पुत्रियों को विवाह में पुरुषों को दे रहे थे। वे यह सब उस दिन तक कर रहे थे जब तक कि नूह और उसके परिवार ने बड़ी नाव में प्रवेश नहीं किया। और फिर बाढ़ आई और वे सभी डूब गए जो नाव में नहीं थे। इसी प्रकार, अविश्वासी लोगों को नहीं पता होगा कि मनुष्य के पुत्र कब वापस आएंगे।
\s5
\v 40 जब ऐसा होता है तब सब लोगों को स्वर्ग में उठा नहीं लिया जाएगा। उदाहरण के लिए, दो लोग खेतों में होंगे। उनमें से एक को स्वर्ग में उठा लिया जाएगा और दूसरे व्यक्ति को दण्ड भोगने के लिए यहां छोड़ दिया जाएगा।
\v 41 इसी प्रकार, दो महिलाएं एक साथ हाथ की चक्की से अनाज पीस रही होंगी। इनमें से एक को स्वर्ग में उठा लिया जाएगा और दूसरी को छोड़ दिया जाएगा।
\v 42 इसलिए, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारे प्रभु किस दिन पृथ्वी पर लौट आएंगे, तुमको हर समय तैयार रहना होगा।
\s5
\v 43 तुम जानते हो कि अगर घर के मालिक को पता हो कि रात को चोर किस समय आएगा, तो वह जागता रहेगा और चोरों को अन्दर आने से रोकेगा। इसी प्रकार, मनुष्य के पुत्र चोर के समान अचानक आ जाएंगे।
\v 44 इसलिए तुमको तैयार रहना होगा क्योंकि मनुष्य के पुत्र ऐसे समय में पृथ्वी पर लौट आएंगे जब तुम उनके आने की आशा नहीं करोगे।"
\p
\s5
\v 45 "इस बात पर विचार करो कि हर एक निष्ठावान और बुद्धिमान कर्मचारी किस के समान है। घर का स्वामी एक सेवक को दूसरे सेवकों की निगरानी करने के लिए नियुक्त करता है। वह उन्हें उचित समय पर भोजन देने के लिए उसे कहता है। फिर स्वामी लम्बी यात्रा पर चला जाता है।
\v 46 यदि सेवक उस काम को कर रहा है, जब घर का मालिक वापस आ जाता है, तो घर का मालिक उससे बहुत प्रसन्न होगा।
\v 47 इस विषय में सोचो: घर का स्वामी उस एक सेवक को अपनी सारी संपत्ति पर अधिकारी नियुक्त करेगा।
\s5
\v 48 परन्तु एक दुष्ट सेवक अपने आप से कह सकता है, 'स्वामी तो लम्बे समय के लिए दूर चला गया है, इसलिए वह शायद शीघ्र ही वापस नहीं लौटेगा कि देखे मैं क्या कर रहा हूँ।'
\v 49 तो वह अन्य सेवकों को मारना पीटना शुरू कर देगा और नशे में धुत लोगों के साथ खाएगा पीएगा।
\v 50 तो घर का स्वामी ऐसे समय वापस आएगा जब सेवक उसके आने की आशा नहीं करता हो।
\v 51 वह उस सेवक को गंभीर दण्ड देगा और वह उसे उस जगह में रखेगा जहां ढ़ोंगी लोगों को रखा जाता है। उस स्थान में लोग रोते हैं और अपने दांतों को पीसते हैं क्योंकि वे बहुत अधिक पीड़ित होते हैं।"
\s5
\c 25
\p
\v 1 "स्वर्ग से परमेश्वर का शासन ऐसा होगा जैसा कि दस अविवाहित लड़कियों के साथ हुआ जो विवाह समारोह में जाने के लिए तैयार हो गईं। उन्होंने अपनी मशाले ले लीं और जाकर दुल्हे के आने की प्रतीक्षा करने लगीं।
\v 2 अब इन में पांच लड़कियां मूर्ख थीं, और पांच बुद्धिमान थीं।
\v 3 मूर्ख लड़कियों ने अपनी मशालें लीं, परन्तु उन्होंने उनके लिए कोई अतिरिक्त जैतून का तेल नहीं लिया।
\v 4 लेकिन बुद्धिमान लड़कियों ने अपनी कुप्पियों में तेल और साथ ही मशालें भी लीं।
\s5
\v 5 दुल्हे के आने में काफी समय लग रहा था, और रात में देर हो गई थी। इसलिए सभी लड़कियों को नींद आ गई और वे सो गईं।
\v 6 रात के मध्य में किसी ने चिल्लाकर उन्हें जगाया, 'वह यहाँ है! दूल्हा आ रहा है! बाहर जाओ और उससे मिलो! '
\s5
\v 7 इसलिए सभी लड़कियों ने उठकर जलाने के लिए अपनी मशालों को ठीक किया।
\v 8 मूर्ख लड़कियों ने बुद्धिमानों से कहा, 'हमें अपना कुछ तेल दे दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझी जा रही हैं!'
\v 9 बुद्धिमान लड़कियों ने उत्तर दिया, 'नहीं, क्योंकि यहां हमारी और तुम्हारी मशालों के लिए पर्याप्त तेल नहीं हो सकता है। बेचने वालों के पास जाओ और तेल खरीदो!
\s5
\v 10 जब मूर्ख लड़कियां तेल खरीदने के लिए रास्ते में ही थीं, कि दूल्हा वहां आ पहुँचा। तब बुद्धिमान लड़कियाँ, जो तैयार थीं, उसके साथ विवाह के भवन में गईं, जहां दुल्हन इंतजार कर रही थी, तब दरवाजा बंद हो गया।
\v 11 बाद में, वे पांच लड़कियां विवाह के भवन में आईं, और उन्होंने दुल्हे को बुलाया, 'महोदय, हमारे लिए द्वारा खोलो!'
\v 12 उसने उनसे कहा, 'सच यह है कि मैं तुम्हें नहीं जानता, इसलिए मैं तुम्हारे लिए द्वारा नहीं खोलूंगा।'
\v 13 फिर यीशु ने आगे कहा, "तुम्हारे साथ ऐसा न हो, इसलिए तैयार रहो क्योंकि तुम नहीं जानते कि यह कब होगा।"
\p
\s5
\v 14 "जब मनुष्य के पुत्र स्वर्ग से राजा के रूप में लौटते हैं, तो वह उस मनुष्य के जैसे होंगे जो लम्बी यात्रा पर जाने वाला था। उसने अपने कर्मचारियों को एक साथ बुलाया और उन्हें अपनी धन-संपत्ति में से कुछ निवेश करने और उसके लिए अधिक धन कमाई करने के लिए दिया।
\v 15 उसने उन्हें पैसे का प्रयोग करने की उनकी क्षमता के अनुसार पैसा दिया। उदाहरण के लिए, उसने एक सेवक को सोने के पांच थैले दिए, जिनका वजन लगभग 165 किलोग्राम था, उसने एक और सेवक को दो थैले दिए जिनका वजन लगभग छियासठ किलोग्राम था, और उसने एक और सेवक को एक थैला दिया, जिसका वजन लगभग तैतींस किलोग्राम था। फिर वह अपनी यात्रा पर चला गया।
\v 16 जिस दास को सोने के पाँच थैले मिले थे, वह तुरंत चला गया और उस पैसे का प्रयोग करके पांच और थैले कमाए।
\s5
\v 17 इसी प्रकार, जिस दास को सोने के दो थैले मिले थे, उसने दो थैले और कमाए।
\v 18 परन्तु जिस दास को सोने का एक थैला मिला था उसने जाकर भूमि में एक गड़हा खोदा और उसे सुरक्षित रखने के लिए वहां छिपा दिया।
\p
\s5
\v 19 एक लंबे समय के बाद सेवकों का स्वामी लौट आया। उसने उन सबको एक साथ बुलाया कि पता करे कि उन्होंने उसके पैसे के साथ क्या किया था।
\v 20 जिस दास को सोने के पाँच थैले मिले थे, वह उसके पास दस थैले लेकर आया। उसने कहा, 'स्वामी, तूने मुझे 5 सोने के थैले सौंप दिए थे। देख, मैंने पाँच और कमाए हैं!'
\v 21 उसके मालिक ने उत्तर दिया, 'तू एक बहुत अच्छा सेवक है! तू मेरे लिए बहुत विश्वासयोग्य रहा है। तूने थोड़े पैसे को बहुत अच्छे से संभाला है, इसलिए मैं तुझे कई वस्तुओं का उत्तरदायित्व सौपूंगा। आ और मेरे साथ आनंद मना!'
\p
\s5
\v 22 जिस दास ने सोने के दो थैले पाए थे, वह भी आया, और उसने कहा, 'हे स्वामी, तूने मुझे सोने के दो थैले सौंप दिए थे। देख, मैंने दो और कमाए हैं! '
\v 23 उसके स्वामी ने उत्तर दिया, 'तू एक बहुत अच्छा सेवक है! तू मेरे लिए बहुत विश्वासयोग्य रहा है। तूने थोड़े पैसे को बहुत अच्छे से संभाला है, इसलिए मैं तुझे कई वस्तुओं का उत्तरदायित्व सौपूंगा । आ और मेरे साथ आनंद मना!'
\p
\s5
\v 24 फिर जिस दास को सोने का एक थैला मिला था वह आया। उसने कहा, 'स्वामी, मैं तुझसे डर गया था। मुझे पता था कि तू एक ऐसा व्यक्ति है जो बहुत पैसा कमाने की इच्छा रखता है, भले ही तू कुछ भी न निवेश करे, जैसे एक किसान जो उस खेत की कटाई करने का प्रयास करता है जिसमें उसने फसल नहीं बोई थी।
\v 25 मुझे डर था कि तू क्या करेगा यदि मैंने तेरे द्वारा निवेश करने के लिए दिये गए पैसे को खो दिया, तो मैंने इसे भूमि में छिपा दिया। ये अब यहां है; कृपया इसे वापस ले ले!'
\s5
\v 26 उसके स्वामी ने उत्तर दिया, 'तू दुष्ट और आलसी सेवक है! तू जानता था कि मैं पैसा कमाने की इच्छा रखता हूँ, चाहे मैंने कुछ निवेश नहीं किया है।
\v 27 तो फिर, तुझे कम से कम मेरा पैसा किसी बैंक में जमा कर देना चाहिए था, ताकि जब मैं लौटाता तब मैं इसे कमाए गए ब्याज के साथ वापस ले लेता!'
\s5
\v 28 तब मालिक ने अपने दूसरे सेवकों से कहा, 'उस से सोने का थैला ले लो और उस सेवक को दे दो जिस के पास दस थैले हैं।
\v 29 जो लोग प्राप्त की वस्तुओं का उत्तम उपयोग करते हैं, परमेश्वर उनको और अधिक देंगे, और उनके पास बहुत कुछ होगा। लेकिन उन लोगों से जो प्राप्त की हुई वस्तुओं का उपयोग नहीं करते हैं, तो जो पहले से उनके पास है, उनसे वह भी ले लिया जाएगा।
\v 30 इसके अतिरिक्त, उस निकम्मे सेवक को बाहर अंधेरे में छोड़ दो, जहां वह उन लोगों के साथ होगा जो दर्द में चीख रहे हैं, और दांत पीस रहे हैं।'
\p
\s5
\v 31 "जब मनुष्य के पुत्र फिर से अपने उज्ज्वल प्रकाश में आते हैं और अपने सभी स्वर्गदूतों को लाते हैं, तो वह सब के न्याय के लिए अपने सिंहासन पर राजा के रूप में बैठेंगें।
\v 32 सभी लोगों के समूहों में से हर एक जन उनके सामने आएगा । तब वह लोगों को एक दूसरे से अलग करेंगे, जैसे चरवाहा अपनी भेड़ों को अपनी बकरियों से अलग करता है।
\v 33 भेड़-बकरियों के समान वह धर्मी लोगों को अपनी दाईं ओर और कुटिल लोगों को अपनी बाईं ओर रखेंगे।"
\p
\s5
\v 34 तब वह अपने दाहिनी ओर वालों से कहेंगे 'हे मेरे पिता से आशीष प्राप्त करने वाले लोगों, आओ! सब अच्छी वस्तुएँ जो वह तुम्हें देंगे, उन्हें प्राप्त करो, क्योंकि वह तुमको अपने शासन के आशीषें दे रहे हैं- वह वस्तुएँ जो वह दुनिया के बनाए जाने के समय से ही तैयार कर रहे हैं।
\v 35 ये वस्तुएँ तुम्हारी हैं, क्योंकि जब मुझे भूख लगी थी तब तुमने मुझे खाने के लिए कुछ दिया था। जब मुझे प्यास लगी तो तुमने मुझे कुछ पीने के लिए दिया था। जब मैं तुम्हारे शहर में एक अजनबी था, तो तुमने मुझे अपने घरों में रहने के लिए आमंत्रित किया था।
\v 36 जब मुझे कपड़ों की आवश्यक्ता थी, तो तुमने मुझे कुछ पहनने को दिया था। जब मैं बीमार था, तो तुमने मेरी देखभाल की थी। जब मैं बन्दीगृह में था, तुम मुझसे मिलने आए थे।'
\p
\s5
\v 37 तब लोग जिनको परमेश्वर ने अच्छा कहा है, वे उत्तर देंगे, 'हे प्रभु, आप कब भूखे थे, और हमने आपको देखा और आपको खाने के लिए कुछ दिया था? आप कब प्यासे थे और हमने आपको कुछ पीने के लिए दिया था?
\v 38 आप कब हमारे शहर में एक अजनबी थे और हमने आपको हमारे घरों में रहने के लिए आमंत्रित किया था? आपको कपड़ों की आवश्यकता कब हुई और हमने आपको वस्त्र दिए?
\v 39 आप कब बीमार थे या बन्दीगृह में थे और हम आपसे मिलने गए थे? आपके लिए इनमें से किया गया कोई भी काम हमें याद नहीं है।
\p
\v 40 राजा उत्तर देंगे, 'सच्चाई यह है कि जो कुछ तुमने अपने साथी विश्वासियों में से किसी एक के लिए किया था, यहां तक कि सबसे अधिक महत्वहीन के लिए किया था, वह तुमने निश्चित रूप से मेरे लिए किया है।'
\p
\s5
\v 41 लेकिन तब वह अपनी बाईं ओर वालों से कहेंगे, 'हे लोगों जिनको परमेश्वर ने शाप दिए हैं, मुझे छोड़ दो! उस अनन्त आग में जाओ जिसे परमेश्वर ने शैतान और उसके स्वर्गदूतों के लिए तैयार की है!
\v 42 तुम्हारे लिए यह सही है कि तुम वहां जाओ, क्योंकि जब मुझे भूख लगी थी तुमने मुझे खाने के लिए कुछ नहीं दिया था। जब मुझे प्यास लगी थी तो तुमने मुझे पीने के लिए कुछ नहीं दिया।
\v 43 जब मैं तुम्हारे शहर में एक अजनबी था, तो तुमने मुझे अपने घरों में आमंत्रित नहीं किया था। जब मुझे आवश्यक्ता थी तब तुमने मुझे कोई कपड़े नहीं दिए थे। जब मैं बीमार था या बन्दीगृह में था, तब तुमने मेरी देखभाल नहीं की।'
\p
\s5
\v 44 वे उत्तर देंगे, 'हे प्रभु, कब आप भूखे या प्यासे या अजनबी थे या कपड़ों की जरुरत में थे, या बीमार थे, या बन्दीगृह में थे, और हमने आपकी सहायता नहीं की?'
\p
\v 45 वह उत्तर देंगे, 'सच्चाई यह है कि जब भी तुम मेरे लोगों में से किसी भी व्यक्ति की सहायता करने के लिए कुछ भी नहीं करते हो, चाहे वह सबसे अधिक महत्तवहीन व्यक्ति हो, तो वह मैं था जिसके लिए तुमने ऐसा नहीं किया।'
\p
\v 46 तब मेरी बाईं ओर वाले लोग उस स्थान में चले जाएंगे जहां परमेश्वर उन्हें सदा के लिए दण्ड देंगे, परन्तु जो लोग परमेश्वर की दृष्टि में अच्छे हैं, वे वहां जाएंगे जहां वे सदा के लिए परमेश्वर के साथ रहेंगे।
\s5
\c 26
\p
\v 1 जब यीशु ने ये सब बातें कहना समाप्त किया, तो उन्होंने अपने शिष्यों से कहा,
\v 2 "तुम जानते हो कि अब से दो दिन बाद हम फसह का पर्व मनाएंगे। उस समय कोई व्यक्ति मनुष्य के पुत्र को उन लोगों को पकड़वा देगा जो उन्हें क्रूस पर चढ़ाएंगे।"
\p
\s5
\v 3 उसी समय प्रधान याजक और यहूदी प्राचीन, महायाजक के घर एकत्र हुए, जिसका का नाम काइफा था।
\v 4 वहां उन्होंने यह निर्णय लिया कि वे कैसे चालाकी से यीशु को बन्दी बनाएँ कि वे उन्हें मार डालें।
\v 5 परन्तु उन्होंने कहा, "हमें फसह के पर्व के समय ऐसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि अगर हम ऐसा करते हैं, तो लोग दंगा कर सकते हैं।"
\p
\s5
\v 6 जब यीशु और उनके शिष्य बैतनिय्याह गांव में थे, तो उन्होंने शमौन के घर में खाना खाया, जिसे यीशु ने कुष्ठ रोग से स्वस्थ किया था।
\v 7 भोजन के समय, एक स्त्री घर में आई। वह बहुत मूल्यवान इत्र से भरा हुआ एक सुन्दर पत्थर का पात्र लिए हुए थी। जब वे खा रहे थे, तो वह यीशु के पास गई और उनके सिर पर सारा इत्र उण्डेल दिया।
\v 8 जब शिष्यों ने यह देखा तो वे क्रोदित हुए। उनमें से एक ने कहा, "यह दुःख की बात है कि यह इत्र व्यर्थ कर दिया गया!
\v 9 हम इसे बेच सकते थे और इसके लिए बहुत सारे पैसे कमा सकते थे! तब हम गरीब लोगों को वह पैसा दे सकते थे।"
\s5
\v 10 यीशु जानते थे कि वे क्या कह रहे थे, इसलिए उन्होंने उनसे कहा, "तुम्हें इस स्त्री को परेशान नहीं करना चाहिए! उसने मेरे लिए एक सुंदर काम किया है।
\v 11 ध्यान में रखो कि तुम हमेशा तुम्हारे बीच गरीब लोगों को पाओगे, कि जब भी तुम चाहो तब उनकी सहायता कर सको। परन्तु मैं सदा तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा!
\s5
\v 12 जब उसने मेरे शरीर पर यह इत्र डाला, तो ऐसा लगता था कि जैसे वह जानती थी कि मैं शीघ्र ही मर जाऊंगा। और यह ऐसा है जैसे उसने मेरे शरीर को दफनाने के लिए अभिषेक किया है।
\v 13 मैं तुमसे कहता हूँ: पूरे विश्व में जहां भी लोग मेरे विषय में सुसमाचार सुनाएँगे, वे इस स्त्री के इस काम की चर्चा करेंगे जो इस स्त्री ने किया है, और इस प्रकार लोग सदा उसे स्मरण करेंगे।"
\p
\s5
\v 14 तब यहूदा इस्करियोती, जो बारह शिष्यों में से एक था, प्रधान याजकों के पास गया।
\v 15 उसने उनसे पूछा, "यदि मैं यीशु को बन्दी बनाने में तुम्हारी सहायता करता हूँ, तो तुम मुझे कितना पैसा दे सकते हो?" वे उसे तीस चांदी के सिक्के देने पर सहमत हुए। इसलिए उन्होंने सिक्कों की गिनती की और उन्हें उसको दे दिया।
\v 16 उस समय से यहूदा अवसर की खोज में था वे कब यीशु को पकड़ सकते हैं।
\p
\s5
\v 17 अखमीरी रोटी के सप्ताह भर के पर्व के पहले दिन, शिष्य यीशु के पास गए और पूछा, "आप कहां चाहते हैं कि हम फसह के पर्व के लिए भोजन तैयार करें कि हम इसे आपके साथ खा सकें?"
\v 18 यीशु ने दो शिष्यों को निर्देश दिया कि वे क्या करें। उन्होंने उनसे कहा, "उस व्यक्ति के पास नगर में जाओ, जिस के साथ मैंने पहले यह व्यवस्था की है। उसे बताओ कि गुरु ने, यह कहा है: 'जिस समय के विषय में मैंने तुमसे कहा था वह निकट है। मैं फसह के भोजन का उत्सव तेरे घर में अपने शिष्यों के साथ मनाने जा रहा हूँ, और मैंने इन दोनों को भोजन तैयार करने के लिए भेजा है।'
\v 19 तो उन दो शिष्यों ने यीशु के कहे अनुसार किया। उन्होंने जाकर उस व्यक्ति के घर में फसह का भोजन तैयार किया।
\p
\s5
\v 20 जब वह शाम आई, तो यीशु बारह शिष्यों के साथ भोजन करने बैठे।
\v 21 उन्होंने उनसे कहा, "इसे ध्यान से सुनो: तुम में से एक मुझे पकड़वाने में मेरे शत्रुओं की सहायता करने जा रहा है।"
\v 22 शिष्य बहुत उदास हुए। वे एक के बाद एक उनसे कहने लगे, "हे प्रभु, निश्चित रूप से वह मैं नहीं!"
\s5
\v 23 उन्होंने उत्तर दिया, "जो मुझे पकड़वाने में मेरे शत्रुओं का सहायक है वह तुम में से एक है जिसने मेरे साथ थाली में हाथ डाला है।
\v 24 यह निश्चित है कि मैं मनुष्य का पुत्र मर जाऊंगा, क्योंकि धर्मशास्त्र मेरे विषय में यही कहते हैं। लेकिन उस मनुष्य के लिए भयानक दण्ड होगा जो मुझे पकड़वाने में मेरे शत्रुओं को सक्षम बनाता है! उस मनुष्य के लिए अच्छा होता कि वह कभी जन्म नहीं लेता!"
\v 25 तब यहूदा ने, जो उसे धोखा देने वाला था, कहा, "गुरु, निश्चित रूप से यह मैं नहीं हूँ।" यीशु ने उत्तर दिया, "हाँ, तू इसे स्वीकार कर रहा है।"
\p
\s5
\v 26 जब वे खा रहे थे, तो यीशु ने एक रोटी ली और उसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। उन्होंने उसे टुकड़ों में तोड़ दिया, शिष्यों को दिया, और कहा, "यह रोटी लो और इसे खा लो। यह मेरा शरीर है।"
\s5
\v 27 बाद में उन्होंने एक दाखरस का कटोरा लिया और उसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर उन्होंने उन्हें वह दे दिया और कहा, "इस कटोरे से, तुम सब पिओ।
\v 28 इस कटोरे में का दाखरस मेरा लहू है, जो शीघ्र ही मेरे शरीर से बहाया जाएगा। यह लहू नई वाचा का चिन्ह है जो परमेश्वर कई लोगों के पापों को क्षमा करने के लिए कर रहे हैं।
\v 29 सावधानी से इस पर ध्यान दो: जब तक मैं इसे तुम्हारे साथ एक नए अर्थ के साथ न पीऊँ तब तक मैं इस तरह से दाखरस नहीं पीऊँगा। ऐसा तब होगा जब मेरे पिता पूरी तरह से शासन करेंगे।"
\p
\s5
\v 30 उन्होंने एक भजन गाया, उसके बाद वे जैतून के पहाड़ की ओर चले गए।
\v 31 रास्ते में, यीशु ने उनसे कहा, "आज रात मेरे साथ जो होगा उसके कारण से तुम सब मुझे छोड़ दोगे। यह होना निश्चित है क्योंकि परमेश्वर की कही हुई ये बातें धर्मशास्त्र में लिखी गई हैं: 'मैं लोगों के द्वारा चरवाहे को मरवा डालूँगा, और वे सब भेड़ों को तितर-बितर करेंगे।'
\v 32 परन्तु मेरे मरने और फिर से जीवित होने के बाद, मैं तुम्हारे आगे गलील को जाऊंगा और वहां तुमसे मिलूँगा।
\s5
\v 33 पतरस ने उत्तर दिया, "शायद अन्य सब शिष्य जो आपके साथ होता है उसे देखकर आपको छोड़ दे, परन्तु मैं निश्चय ही आपको कभी नहीं छोडूँगा!"
\v 34 यीशु ने उसे उत्तर दिया, "सच यह है कि आज की रात, मुर्गे के बांग देने से पहले, तू तीन बार कहेगा कि तू मुझे नहीं जानता!"
\v 35 "पतरस ने उस से कहा," जब मैं आपका बचाव करता हूँ, उस समय यदि वे मुझे मार भी डालेंगे, तो भी मैं कभी नहीं कहूंगा कि मैं आपको नहीं जानता। " बाकी सब शिष्यों ने भी यही कहा।
\p
\s5
\v 36 तब यीशु शिष्यों के साथ गतसमनी नाम के एक स्थान पर गए। वहां उन्होंने कहा, "यहां रुके रहो जब मैं वहाँ जाकर प्रार्थना कर रहा हूँ।"
\v 37 उन्होंने अपने साथ पतरस, याकूब और यूहन्ना को ले लिया। वह अत्यधिक परेशान हो गए।
\v 38 "फिर उन्होंने उनसे कहा," मैं बहुत दु:खी हूँ, इतना कि मुझे लगता है जैसे कि मैं मरने पर हूँ, यहाँ पर ठहरे रहो और मेरे साथ जागते रहो!"
\s5
\v 39 थोड़ी दूर जाने के बाद, उन्होंने स्वयं को जमीन पर मुँह के बल गिरा दिया। उन्होंने प्रार्थना की, "हे मेरे पिता, यदि संभव हो, तो मुझे उस प्रकार से दु:ख न दें जिस प्रकार से मैं जानता हूँ कि मैं दु:ख उठाऊंगा। परन्तु वैसा न करें जैसा मैं चाहता हूँ। परन्तु जैसा आप चाहते हैं वैसा ही करें!
\v 40 तब वह तीनों शिष्यों के पास लौट गए और देखा कि वे सो रहे थे। उन्होंने पतरस को जगाया और कहा, "मैं निराश हूँ कि तुम लोग सो गए और कुछ समय तक भी मेरे साथ जाग नहीं पाए!
\v 41 तुम्हें सचेत रहना और प्रार्थना करना चाहिए जिससे कि तुम उनका विरोध कर सको जो तुम्हे पाप कराने की परीक्षा में डालने का प्रयास करे। जो मैं तुमसे कहता हूँ तुम वह करना तो चाहते हो, परन्तु तुम वास्तव में ऐसा करने के लिए दृढ़ता में पूर्ण नहीं हो। "
\p
\s5
\v 42 वह दूसरी बार चले गए। उन्होंने प्रार्थना कीं, "हे मेरे पिता, अगर मेरे लिए दुःख भोगना आवश्यक है, तो आप जो चाहते हैं, वह हो!"
\p
\v 43 जब वह तीनों शिष्यों के पास लौट आए, तो उन्होंने देखा कि वे फिर से सो रहे थे। वे अपनी आँखें खुली नहीं रख सकते थे।
\v 44 इसलिए उन्होंने उन्हें छोड़ दिया और फिर से चले गए। उन्होंने तीसरी बार प्रार्थना कीं, उन्होंने इस बार भी प्रार्थना में उन्हीं बातों को कहा जो उन्होंने पहले भी प्रार्थना कीं थी।
\s5
\v 45 तब वह सब शिष्यों के पास गए। उन्होंने उन्हें जगाया और उनसे कहा, "मैं निराश हूँ कि तुम अभी भी सो रहे हो और आराम कर रहे हो! देखो! कोई मुझ मनुष्य के पुत्र को, गिरफ्तार करवाने के लिए पापी मनुष्यों की सहायता कर रहा है।
\v 46 उठो! आओ हम उनसे मिलने जाते हैं! वह यहाँ आ रहा है जो मुझे पकड़वाने में उनको सक्षम बना रहा है!"
\p
\s5
\v 47 यीशु अभी कह ही रहे थे, कि यहूदा आ पहुँचा। यद्यपि वह बारह शिष्यों में से एक था, वह यीशु को पकड़वाने में उनके शत्रुओं को सक्षम करने के लिए आया था। उनके साथ तलवारें और ड़ंड़े लेकर एक बड़ी भीड़ आ रही थी। प्रधान याजकों और प्राचीनों ने उन्हें भेजा था।
\v 48 यहूदा ने पहले उन्हें संकेत देने की व्यवस्था की थी। उसने उनसे कहा था, "जिस व्यक्ति का मैं चुम्बन लूँगा वही वह है जिसे तुम चाहते हो। उसे बन्दी बना लेना!"
\s5
\v 49 वह तुरंत यीशु के पास गया और कहा, "नमस्कार, गुरु!" फिर उसने यीशु को चूमा।
\v 50 यीशु ने उत्तर दिया, "मित्र, तू जो कर रहा है, शीघ्र कर।" तब जो लोग यहूदा के साथ आए थे, उन्होंने आगे बढ़कर यीशु को पकड़ लिया।
\s5
\v 51 अचानक, जो पुरुष यीशु के साथ थे उनमें से एक ने अपनी तलवार को म्यान से खींच लिया। उसने महायाजक के दास को मार डालने के लिए वार किया, परन्तु केवल उसका कान काट पाया।
\v 52 यीशु ने उस से कहा, "अपनी तलवार को अपनी म्यान में रखो! वे सब जो तलवार से दूसरों को मारने का प्रयास करते हैं, कोई और उनको तलवार से मार डालेगा!
\v 53 तुम क्या सोचते हो कि यदि में अपने पिता से कहूँ, तो क्या वह मेरी सहायता करने के लिए तुरन्त स्वर्गदूतों की बारह सेना से अधिक नहीं भेजेंगे?
\v 54 परन्तु यदि मैंने ऐसा किया, तो भविष्यद्वक्ताओं ने धर्मशास्त्र में जो लिखा है कि मसीह के साथ होना है, वह पूरा नहीं होगा।
\p
\s5
\v 55 उस समय यीशु ने उन लोगों से कहा, जो उन्हें पकड़ रहे थे, "तुम यहां तलवारों और ड़ंड़ों के साथ मुझे पकड़ने आए हो, जैसे कि मैं एक डाकू हूँ; लगभग हर दिन मैं आराधनालय के आंगन में बैठा हुआ, लोगों को सिखाता रहा। तब तुमने मुझे क्यों नहीं बन्दी बनाया?
\v 56 परन्तु यह सब भविष्यद्वक्ताओं द्वारा मेरे विषय में धर्मशास्त्र में लिखी बातों को पूरा करने के लिए हो रहा है। "तब शिष्य यीशु को छोड़कर भाग गए।
\p
\s5
\v 57 जो लोग यीशु को बन्दी बना चुके थे, वे उन्हें उस घर ले गए जहां महायाजक काइफा रहता था। यहूदी व्यवस्था के सिखाने वाले पुरुष और यहूदी प्राचीन, वहाँ पहले से एकत्र थे।
\v 58 पतरस ने दूर रहकर यीशु का पीछा किया। वह महायाजक के आंगन में आया। वह आंगन में घुस गया और सुरक्षाकर्मियों के साथ बैठ गया कि देखें क्या होगा।
\p
\s5
\v 59 प्रधान याजकों और यहूदी परिषद उन लोगों को ढूँढ़ने का प्रयास कर रही थी जो यीशु के विषय में झूठी गवाही दें जिससे कि वे उन्हें मौत की सजा दे सकें।
\v 60 कई लोगों ने उनके विषय में झूठी गवाहियाँ दीं परन्तु उन्हें कोई ऐसा नहीं मिला जिसने कुछ भी ऐसा कहा हो जो उपयोगी था। अंत में दो मनुष्य आगे आए
\v 61 और कहा, 'इस व्यक्ति ने कहा, 'मैं परमेश्वर के आराधनालय को नष्ट करने और तीन दिनों के भीतर इसे फिर से बनाने में सक्षम हूँ।'
\s5
\v 62 तब महायाजक ने खड़े होकर यीशु से कहा, "तू कोई उत्तर क्यों नहीं दे रहा है? तुझ पर जो आरोप लगाया जा रहा है उसके विषय में तू कुछ क्यों नहीं कहता है?"
\v 63 परन्तु यीशु चुप रहे। तब महायाजक ने उनसे कहा, मैं आपको सच्चाई बताने का आदेश देता हूँ; आपको पता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर आपकी बात सुन रहे हैं: क्या आप मसीह, परमेश्वर के पुत्र हैं?
\v 64 "यीशु ने उत्तर दिया," हाँ, यह ऐसा है जैसा तूने कहा है। परन्तु मैं तुम सब से यह कहूंगा: कुछ दिनों में तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास बैठे और शासन करते देखोगे। तुम उसे स्वर्ग से बादलों पर आते हुए भी देखोगे।"
\p
\s5
\v 65 महायाजक इतना परेशान था कि उसने अपना बाहरी वस्त्र फाड़ दिया। फिर उसने कहा, "इस व्यक्ति ने परमेश्वर का अपमान किया है! वह परमेश्वर के समान होने का दावा करता है! हमें निश्चय ही इस व्यक्ति के विरुद्ध किसी और की गवाही की आवश्यकता नहीं है! उसने जो कहा, तुम सबने सुना है!
\v 66 तुम क्या सोचते हो?" यहूदी अगुवों ने उत्तर दिया, "हमारी व्यवस्था के अनुसार, वह दोषी हैं और मृत्यु दण्ड के योग्य हैं! "
\s5
\v 67 तब उनमें से कुछ ने उनके चेहरे पर थूका। दूसरों ने उन्हें अपने मुक्के से मारा। अन्य लोगों ने उन्हें थप्पड़ मारे
\v 68 और कहा, "क्योंकि तू दावा करता हैं कि तू मसीह है, तो हमें बता कि तुझे किसने मारा!"
\p
\s5
\v 69 पतरस बाहर आंगन में बैठा था। एक दासी लड़की उसके पास आई और उसने उसे देखा। उसने कहा, "तू भी, गलील जिले के उस मनुष्य, यीशु के साथ था!"
\v 70 जब वहां उपस्थित सब जन सुन रहे थे, तो उसने इस बात का मना कर दिया। उसने कहा, "मैं नहीं जानता कि तू किस विषय में बात कर रही है!"
\s5
\v 71 तब वह आंगन के द्वार के बाहर चला गया। वहाँ एक और दासी ने उसे देखा और उन लोगों से कहा जो पास खड़े थे, "यह व्यक्ति भी उस यीशु के साथ था, जो नासरत से है।"
\v 72 परन्तु पतरस ने फिर से मना कर दिया। उसने कहा, "यदि मैं झूठ बोल रहा हूँ तो परमेश्वर मुझे दण्ड दें! मैं तुमको बताता हूँ, मैं उस मनुष्य को जानता भी नहीं।"
\s5
\v 73 थोड़ी देर के बाद, जो लोग वहां खड़े थे, उन्होंने पतरस के पास जाकर उस से कहा, "यह निश्चय है कि तू उन लोगों में से एक है, जो उस मनुष्य के साथ थे। हम तेरे उच्चारण से कह सकते हैं कि तू गलील से है।"
\v 74 तो पतरस ने जोर देकर घोषणा की कि अगर वह झूठ बोल रहा था तो परमेश्वर को उसे शाप देना चाहिए। उसने स्वर्ग के परमेश्वर को गवाह ठहराकर यह शपथ खाई कि वह सच कह रहा था और कहा, "मैं उस मनुष्य को नहीं जानता!" तुरंत मुर्गे ने बांग दी।
\v 75 तब पतरस ने उन शब्दों को याद किया जो यीशु ने उससे कहे थे, "मुर्गे के बांग देने से पहले तू तीन बार कहेगा, कि तू मुझे नहीं जानता।" और पतरस आंगन से बाहर निकल गया, और फूट-फूट कर रोने लगा, क्योंकि उसने जो कुछ किया था, उसके कारण वह बहुत दु:खी था।
\s5
\c 27
\p
\v 1 अगली भोर, के समय सभी प्रधान याजकों और यहूदी प्राचीनों ने यीशु को मार डालने के लिए किसी तरह रोमियों को राजी करने का निर्णय लिया।
\v 2 तब उन्होंने उनके हाथों को बांध दिया और उन्हें रोमी राज्यपाल पिलातुस के पास ले गए।
\p
\s5
\v 3 तब यहूदा को, जिसने यीशु को धोखा दिया था, यह मालुम हुआ कि उन्होंने निर्णय किया है कि यीशु को मरना चाहिए। तो उसने जो किया था, उसका उसे पछतावा हुआ। उसने तीस सिक्कों को प्रधान याजकों और प्राचीनों को वापस कर दिया।
\v 4 उसने कहा, "मैंने पाप किया है। मैंने एक निर्दोष व्यक्ति को धोखा दिया है।" उन्होंने उत्तर दिया, "इससे हमें कोई मतलब नहीं है! यह तेरी समस्या है!"
\v 5 इसलिए यहूदा ने पैसे लेकर उसे आराधनालय के आंगन में फेंक दिया। फिर वह चला गया और स्वयं को फांसी पर लटका दिया।
\p
\s5
\v 6 प्रधान याजकों ने सिक्कों को उठाया और कहा, "यह पैसा हम ने एक मनुष्य के मरने के लिए भुगतान किया है, और हमारी व्यवस्था हमें इस तरह के धन को आराधनालय के खजाने में डालने की अनुमति नहीं देती है।"
\v 7 इसलिए उन्होंने उस पैसे का उपयोग करने के लिए एक खेत खरीदने का निर्णय किया जिसे कुम्हार का खेत कहा जाता था। उन्होंने उस खेत को एक ऐसा स्थान बना दिया, जहां उन्होंने यरूशलेम में मरे हुए अजनबियों को दफ़नाया।
\v 8 यही कारण है कि उस स्थान को अभी भी "लहू का खेत" कहा जाता है।
\s5
\v 9 उस खेत को खरीदकर, उन्होंने इन शब्दों को सच कर दिया जो भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह ने बहुत पहले लिखे थे: "उन्होंने तीस चांदी के सिक्कों को ले लिया - यही उनका मूल्य था जो इस्राएल के अगुवों ने निर्धारित किया था।
\v 10 और उस पैसे के साथ उन्होंने कुम्हार का खेत खरीदा। उन्होंने ऐसा किया जैसा कि यहोवा ने मुझे आज्ञा दीं थी।"
\p
\s5
\v 11 तब यीशु राज्यपाल के सामने खड़े हुए। राज्यपाल ने उनसे पूछा, "क्या तू कहता हैं कि तू यहूदियों का राजा है?" यीशु ने उत्तर दिया, "हाँ, यह ऐसा ही है जैसा तूने कहा है।"
\p
\v 12 लेकिन जब प्रधान याजकों और प्राचीनों ने यीशु पर कई गलत काम करने का आरोप लगाए, तो यीशु ने उत्तर नहीं दिया।
\v 13 इसलिए पिलातुस ने उनसे कहा, "आप सुनते हैं कि वे आप पर कितने आरोप लगा रहे हैं, क्या आप उत्तर नहीं देंगे?"
\v 14 परन्तु यीशु ने कुछ नहीं कहा। उन्होंने उन बातों का जवाब नहीं दिया, जिनके विषय में वे उन पर आरोप लगा रहे थे। यह देख राज्यपाल बहुत आश्चर्यचकित था।
\p
\s5
\v 15 यह राज्यपाल की रीति थी कि वह हर साल जेल में कैद एक व्यक्ति को फसह के उत्सव के समय बन्दीगृह से मुक्त करे जिस बन्दी को लोग चाहते थे वह उसे छोड़ दिया करता था।
\v 16 उस समय यरूशलेम में एक प्रसिद्ध कैदी था जिसका नाम बरअब्बा था।
\s5
\v 17 जब भीड़ एकत्र हुई, तो पिलातुस ने उन से पूछा, "तुम किस बन्दी को चाहते हो कि उसे मैं तुम्हारे लिए छोड़ दूँ: बरअब्बा को या यीशु को जिसे वे मसीह कहते हैं?"
\v 18 उसने यह प्रश्न इसलिए पूछा क्योकि वह जानता था कि महायाजक यीशु को उसके पास इस कारण लाए थे कि वे यीशु से ईर्ष्या करते थे। और पिलातुस ने सोचा कि भीड़ यही चाहेगी कि वह यीशु को छोड़ दे।
\p
\v 19 जब पिलातुस न्यायधीश की कुर्सी पर बैठा था, तब उसकी पत्नी ने उसे यह संदेश भेजा: "आज सुबह मैंने उस व्यक्ति के विषय में एक बुरा सपना देखा था। इसलिए उस धर्मी व्यक्ति की निन्दा मत करना!"
\p
\s5
\v 20 परन्तु प्रधान याजकों और प्राचीनों ने भीड़ को उकसाया कि वे बरअब्बा को छोड़ने के लिए पिलातुस पर बल डालें और वह आदेश दे कि यीशु मार डाले जाए।
\v 21 इसलिए जब राज्यपाल ने उनसे पूछा, "तुम इन दो लोगों में से किसे चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए छोड़ दूँ?" उन्होंने उत्तर दिया, "बरअब्बा को!"
\v 22 पिलातुस ने उन से पूछा, "तो मुझे यीशु के साथ क्या करना चाहिए, जिसे तुम में से कुछ कहते हैं वह मसीह है?" उन सभी ने उत्तर दिया, "यह आदेश दे कि तेरे सैनिक उसे क्रूस पर चढ़ा दें!"
\s5
\v 23 पिलातुस ने जवाब दिया, "उसने क्या अपराध किए हैं?" लेकिन वे और भी ज़ोर से चिल्लाए , "उसे क्रूस पर चढ़ाया जाए!"
\p
\v 24 पिलातुस ने देखा कि वह कोई निर्णय नहीं ले पा रहा था। उसने देखा कि लोग दंगा करना शुरू कर रहे थे। इसलिए उसने पानी का एक बरतन लिया और भीड़ के देखते हुए अपने हाथ धोए। उसने कहा, "मेरे हाथों को धोने से मैं तुमको दिखा रहा हूँ कि यदि यह मनुष्य मर जाता है, तो यह तुम्हारी गलती है, मेरी नहीं!"
\s5
\v 25 और सभी लोगों ने उत्तर दिया, "उसके मरने के लिए हम दोषी ठहरें, और हमारे बच्चे भी इसके दोषी हों!"
\v 26 फिर उसने सैनिकों को उनके लिए बरअब्बा को छोड़ने का आदेश दिया। लेकिन उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे यीशु को कोड़े मारे। और फिर उसने यीशु को सैनिकों के पास भेज दिया, कि वे यीशु को क्रूस पर चढ़ा दें।
\p
\s5
\v 27 तब राज्यपाल के सैनिक यीशु को सैनिकों के सेनावास में ले गए। पूरी रोमी सेना के दल यीशु के पास एकत्र हुए।
\v 28 उन्होंने उनके कपड़े उतार लिए और उस पर चमकीला लाल बागा डाल दिया, ताकि ऐसा लगे कि, वह राजा है।
\v 29 उन्होंने कांटों वाली कुछ शाखाएं लीं और उनका एक मुकुट बनाकर उनके सिर पर रख दिया। उन्होंने उनके दाहिने हाथ में एक छड़ी जैसा सरकण्डा पकड़ा दिया जैसे कि राजा का राजदण्ड है। तब वे उनके सामने घुटने टेक कर और यह कहकर उनका ठट्ठा करने लगे, "यहूदियों के राजा को नमस्कार!"
\s5
\v 30 वे उन पर थूक रहे थे। वे छड़ी को लेकर उससे उनके सिर पर मार रहे थे।
\v 31 जब उन्होंने उनका ठट्ठा करना समाप्त कर दिया, तो उन्होंने बागा उतार लिया और उनके कपड़े उन पर डाल दिए। तब वे उन्हें उस जगह ले गए जहां वे उन्हें क्रूस पर चढ़ाने वाले थे।
\p
\s5
\v 32 जब यीशु क्रूस को थोड़ी दूरी उठाकर चले, तब सैनिकों ने शमौन नाम के एक व्यक्ति को देखा जो कुरेने शहर से था। उन्होंने यीशु का क्रूस उठाकर ले चलने के लिए उसे विवश किया।
\v 33 वे गुलगुता नामक एक स्थान पर आए। उस नाम का अर्थ है "खोपड़ी के जैसा स्थान।"
\v 34 जब वे वहां आए, तो उन्होंने दाखरस के साथ कुछ मिला लिया जो बहुत कड़वा था। उन्होंने यीशु को इसे पीने के लिए दिया ताकि जब वे क्रूस पर उन्हें चढ़ाएँ, तो उन्हें अधिक पीड़ा न हो। लेकिन जब उन्होंने उसे चखा, तो उन्होंने इसे पीने से मना कर दिया। कुछ सैनिक उनके कपड़े ले गए।
\s5
\v 35 तब उन्होंने उन्हें क्रूस पर चढ़ा दिया। बाद में, उन्होंने उनके कपड़ों को पासे की जैसी किसी वस्तु से जुआ खेलकर निर्णय लिया कि किसको कौन सा कपड़ा मिलेगा और कपड़ों को आपस में बाँट लिया।
\v 36 तब सैनिक उनकी निगरानी करने के लिए वहां बैठ गए, जिससे कि उन्हें कोई बचाने का प्रयास करे तो उसे रोक पाएँ
\v 37 उन्होंने यीशु के सिर के ऊपर क्रूस पर एक तख्ती टांग दी, जिस पर लिखा गया था कि वे उन्हें क्रूस पर क्यों चढ़ा रहे थे। परन्तु उस पर यह लिखा था, 'यह यहूदियों के राजा यीशु हैं।'
\s5
\v 38 उन्होंने दो डाकुओं को भी क्रूस पर चढ़ाया। उन्होंने एक क्रूस को यीशु के दाहिनी ओर और दूसरे को बाईं और रखा।
\v 39 जो लोग वहां से आते-जाते थे वे अपने सिरों को हिलाकर उनको अपमानित कर रहे थे, जैसे कि वह एक बुरे मनुष्य थे।
\v 40 "उन्होंने कहा, "तू ने कहा था कि तू आराधनालय को नष्ट कर देगा और फिर तीन दिन के भीतर इसे फिर से बना देगा! यदि तू ऐसा कर सकता है, तो तुझे स्वयं को बचाने में भी समर्थ होना चाहिए! यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो क्रूस से नीचे उतर आ!"
\p
\s5
\v 41 इसी प्रकार, प्रधान याजकों, यहूदी व्यवस्था को सिखाने वाले पुरुषों, और प्राचीनों ने उनका ठट्ठा किया। उन्होंने इस प्रकार की बातें कहीं,
\v 42 "उसने दूसरों को उनकी बीमारियों से बचाया, लेकिन वह स्वयं की सहायता नहीं कर सकता है!" "वह कहता है कि वह इस्राएल का राजा है। इसलिए उसे क्रूस से उतर आना चाहिए। फिर हम उस पर विश्वास करेंगे!"
\s5
\v 43 "वह कहता है कि वह परमेश्वर पर भरोसा रखता है, और ऐसा व्यक्ति हैं जो परमेश्वर भी हैं। इसलिए यदि परमेश्वर उससे प्रसन्न हैं, तो परमेश्वर को उसे अब बचा लेना चाहिए!"
\v 44 और दो डाकू जो उनके साथ क्रूस पर चढ़े हुए थे, उन्होंने भी उनका अपमान किया, और इसी प्रकार की बातें कहीं।
\p
\s5
\v 45 दोपहर में पूरे देश में अंधेरा हो गया। दोपहर में तीन बजे तक यह अंधेरा रहा।
\v 46 लगभग तीन बजे यीशु जोर से चिल्लाए, "एली, एली, लमा शबक्तनी?" इसका अर्थ है, "हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, आपने मुझे क्यों छोड़ दिया है?"
\v 47 जब वहाँ खड़े लोगों में से कुछ ने "एली" शब्द सुना, तो उन्होंने सोचा कि वह भविष्यद्वक्ता एलिय्याह को बुला रहे हैं।
\s5
\v 48 उनमें से एक तुरंत भागा और स्पंज लेकर आया। उसने इसे खट्टी दाखरस से भर दिया। फिर उसने स्पंज को एक सरकंडे की नोक पर रख दिया और उसे पकड़ कर यीशु के मुँह के पास तक ले गया, ताकि यीशु उस दाखरस को चूस सके जो उसमें था।
\v 49 परन्तु वहां उपस्थित अन्य लोगों ने कहा, "ठहरो! हम देखते हैं कि एलिय्याह उसे बचाने के लिए आता है या नहीं!"
\v 50 उसके बाद यीशु फिर से जोर से चिल्लाए, और परमेश्वर को अपनी आत्मा सौंपकर मर गए।
\s5
\v 51 उसी क्षण भारी मोटा पर्दा जो आराधनालय में अति पवित्र स्थान को बंद करता था, ऊपर से नीचे तक दो टुकड़ों में फट गया। धरती हिल गई, और कुछ बड़ी चट्टानें फट गई थीं।
\v 52 कब्रें खुल गई, और कई लोगों के शरीर जिन्होंने परमेश्वर का सम्मान किया था, फिर से जीवित हो गए।
\v 53 वे कब्रिस्तान से बाहर निकल गए, और यीशु के फिर से जीवित होने के बाद, वे यरूशलेम में गए और वहां कई लोगों को दिखाई दिए।
\p
\s5
\v 54 यीशु को क्रूस पर चढ़ाने वाले सैनिकों की देखरेख करने वाला अधिकारी पास खड़ा था। क्रूसों की निगरानी करनेवाले उसके सैनिक भी वहां थे। जब उन्होंने भूकंप और जो कुछ भी हो रहा था उसको देखा, वे डर गए और वे पुकार उठे, "सचमुच वह परमेश्वर के पुत्र थे!"
\p
\v 55 वहां कई महिलाएं थीं, जो दूर से देख रही थीं। ये वे महिलाएं थीं जो यीशु की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गलील से उनके साथ आई थीं।
\v 56 इन स्त्रियों में मरियम जो मगदला से थी, एक और मरियम जो याकूब और यूसुफ की माता थीं, और याकूब और यूहन्ना की माता भी थीं।
\p
\s5
\v 57 जब लगभग शाम हो चुकी थी तब, यूसुफ नाम का एक धनी व्यक्ति वहां आया। वह अरिमतियाह के शहर से था। वह भी यीशु का एक शिष्य था।
\v 58 वह पिलातुस के पास गया और पिलातुस से कहा कि उसे यीशु के शरीर को लेने और उन्हें दफ़नाने के लिए अनुमति दी जाए। पिलातुस ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि उसे यीशु के शरीर को लेने की अनुमति दी जाए।
\s5
\v 59 इसलिए यूसुफ और अन्य लोगों ने शरीर को ले लिया और उसे एक साफ सफेद कपड़े में लपेटा।
\v 60 तब उन्होंने उसे यूसुफ की अपनी नई कब्र में रख दिया, जो मजदूरों ने एक चट्टान में खोदी थी। उन्होंने कब्र के प्रवेश द्वार के सामने एक विशाल गोल चपटा पत्थर रख दिया था। फिर वे चले गए।
\v 61 मगदला से मरियम और दूसरी मरियम कब्र के सामने बैठी, निगरानी कर रही थीं।
\p
\s5
\v 62 अगला दिन शनिवार, यहूदियों का विश्राम दिवस था। प्रधान याजक और कुछ फरीसी पिलातुस के पास गए।
\v 63 उन्होंने कहा, "महोदय, हमें याद है कि जब वह धोखेबाज जीवित था तब उसने कहा था, 'मेरे मरने के तीन दिन बाद मैं फिर से जीवित हो जाऊंगा।'
\v 64 तो हम तुझ से निवेदन करते हैं कि तीन दिन के लिए कब्र पर पहरा देने के लिए सैनिकों को आदेश दे। यदि तू ऐसा नहीं करता है, तो उसके शिष्य आकर उसके शरीर को चोरी कर सकते हैं। तब वे लोगों से कहेंगे कि वह मरे हुओं में से जी उठा है। यदि वे लोगों को यह कहते हुए धोखा देंगे तो यह उस धोखे से भी अधिक होगा जो इससे पहले उन्होंने लोगों को दिया था।"
\s5
\v 65 पिलातुस ने उत्तर दिया, "तुम कुछ सैनिकों को ले जा सकते हो। कब्र पर जाओ और उसे उतना सुरक्षित करो जिनता तुम करना जानते हो।"
\v 66 इसलिए वे चले गए और चट्टान की कब्र के प्रवेश द्वार के सामने रखे पत्थर को दोनों तरफ से एक रस्सी से बांधकर सुरक्षित कर दिया और उस पर मुहर लगा दी। कब्र की रक्षा के लिए उन्होंने कुछ सैनिकों को भी वहाँ छोड़ दिया।
\s5
\c 28
\p
\v 1 सब्त के समाप्त होने के बाद, रविवार की सुबह भोर के समय मगदला शहर की मरियम और दूसरी मरियम यीशु की कब्र पर देखने के लिए गईं।
\v 2 एक भयानक भूकंप वहाँ हुआ क्योंकि परमेश्वर के एक स्वर्गदूत स्वर्ग से नीचे आए थे। स्वर्गदूत कब्र के पास गए और पत्थर को प्रवेश द्वार से लुढ़काकर दूर कर दिया। फिर वह पत्थर पर बैठ गए।
\s5
\v 3 उनका शरीर बिजली के समान उज्ज्वल था, और उनके कपड़े बर्फ के समान सफेद थे।
\v 4 सुरक्षाकर्मी कांपने लगे क्योंकि वे बहुत डर गए थे, और फिर वे मरे हुए पुरुषों के समान गिर गए।
\p
\s5
\v 5 स्वर्गदूत ने उन दो महिलाओं से कहा, "तुम्हें डरना नहीं चाहिए! मुझे पता है कि तुम यीशु की खोज कर रही हो, जिन्हें क्रूस पर चढ़ा दिया गया था।
\v 6 वह यहाँ नहीं है! परमेश्वर ने उन्हें फिर से जीवित कर दिया है, जैसे यीशु ने तुमसे कहा था कि होगा! आओ और उस जगह को देखो जहां उनका शरीर था!
\v 7 फिर शीघ्र जाओ और उनके शिष्यों से कहो, 'वह मरे हुओं में से जी उठे हैं। वह तुम्हारे आगे गलील के जिले में जाएंगे। तुम उन्हें वहां देखोगे।' मैंने तुमसे जो कहा है उस पर ध्यान दो! "
\p
\s5
\v 8 इसलिए वे महिलाएँ शीघ्र ही कब्र से चली गईं। वे डरी हुई थीं, परन्तु वे बहुत आनन्दित भी थीं। वे शिष्यों को समाचार देने के लिए भागीं।
\v 9 जब वे दौड़ रही थीं, तब यीशु ने उनको दर्शन दिया। उन्होंने कहा, "तुम को नमस्कार!" वे महिलाएं उनके करीब आईं। वे घुटने टेक कर उनके पैरों में गिर गईं और उनकी आराधना की।
\v 10 फिर यीशु ने उनसे कहा, "मत डरो! जाओ और मेरे सब शिष्यों से कहो कि वे गलील में जाए। वे मुझे वहाँ देखेंगे।"
\p
\s5
\v 11 जब महिलाएं जा रही थीं, तो कुछ सैनिक जो कब्र की रक्षा कर रहे थे, शहर में चले गए। उन्होंने प्रधान याजकों को जो कुछ हुआ था, बताया।
\v 12 इसलिए महायाजक और यहूदी प्राचीन एक साथ मिले। उन्होंने यह बताने के लिये एक तरीका सोचा कि कब्र क्यों खाली थी। उन्होंने सैनिकों को रिश्वत के रूप में बहुत सारा पैसा दिया।
\v 13 उन्होंने कहा, "लोगों को बताओ, "उनके शिष्य रात के समय आए और जब हम सो रहे थे तो यीशु का शरीर चुरा लिया।
\s5
\v 14 यदि राज्यपाल इस विषय में सुनता है, तो हम स्वयं यह सुनिश्चित करेंगे कि वह क्रोधित न हो और तुमको दण्ड न दे। तो तुमको चिंता करने की आवश्यक्ता नहीं है।"
\v 15 इसलिए सैनिकों ने पैसे ले लिए और जैसा कि बताया गया था वैसे ही किया। और यह कहानी यहूदियों के बीच आज के दिन तक बताई जाती है।
\p
\s5
\v 16 बाद में ग्यारह शिष्य गलील के जिले में गए। वे उस पहाड़ पर गए जहां यीशु ने उन्हें जाने के लिए कहा था।
\v 17 उन्होंने उन्हें वहां देखा और उनकी आराधना की। लेकिन कुछ लोगों को संदेह था कि क्या यह वास्तव में यीशु थे और क्या वह फिर से जीवित हो गए थे।
\s5
\v 18 तब यीशु ने उनके पास आकर कहा, "मेरे पिता ने मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर हर वस्तु और हर किसी पर सारा अधिकार दिया है।
\v 19 इसलिए जाओ, और मेरे अधिकार का उपयोग करके सभी जनसमूहों के लोगों को मेरा संदेश सिखाओ जिससे कि वे मेरे शिष्य बन सकें। उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के अधिकार के अधीन लाने के लिए बपतिस्मा दो।
\s5
\v 20 उन सब बातों का पालन करना उन्हें सिखाओ जो मैंने तुमको आज्ञा दी हैं। और याद रखो कि मैं इस युग के अंत तक सदा तुम्हारे साथ रहूंगा।"

1088
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\id MRK Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h MARK
\toc1 The Gospel of Mark
\toc2 Mark
\toc3 mrk
\mt1 मरकुस
\s5
\c 1
\p
\v 1-2 यह परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह से संबंधित सुसमाचार है। यशायाह भविष्यद्वक्ता ने इस सुसमाचार का उल्लेख करते हुए लिखा था: "सुनो! मैं अपने संदेशवाहक को आप के आगे भेज रहा हूँ। वह आपका स्वागत करने के लिए लोगों को तैयार करेगा।
\v 3 मरुभूमि में उसकी वाणी सुननेवाले मनुष्य से वह कहेगा, प्रभु का स्वागत करने के लिए अपने को तैयार करो।'
\p
\s5
\v 4 जिस दूत के बारे में यशायाह ने लिखा था; वह यूहन्ना था। लोग उसे "बपतिस्मा देने वाला" कहते थे। यूहन्ना जंगल में रहता था; वह लोगों को बपतिस्मा दे रहा था और उनसे कह रहा था, "क्षमा माँगों कि तुमने पाप किया है, और पापों का त्याग करने का निर्णय लो, कि परमेश्वर तुमको क्षमा करे; तब मैं तुम्हे बपतिस्मा दूँगा।"
\v 5 यहूदिया और यरूशलेम शहर के लोगों की एक बड़ी संख्या यूहन्ना की बात सुनने के लिए जंगल में निकल गई। उनमें से बहुत से लोगों ने सुना और स्वीकार किया कि उन्होंने पाप किए हैं। तब यूहन्ना ने उन्हें यरदन नदी में बपतिस्मा दिया।
\v 6 यूहन्ना ऊँट के बाल से बने कपड़े पहने था और कमर में चमड़े का पटुका था। वह टिड्डियाँ और शहद खाता था जो उसे जंगल में मिलते थे।
\s5
\v 7 वह उपदेश दे रहा था, "बहुत जल्द ही कोई आएंगे जो बहुत महान है, मैं उनकी तुलना में कुछ नहीं हूँ। मैं नीचे झुक कर उनके जूते के फीते खोलने के योग्य भी नहीं हूँ।
\v 8 मैंने तुमको पानी से बपतिस्मा दिया, परन्तु वह तुमको पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देंगे।"
\p
\s5
\v 9 जब यूहन्ना प्रचार कर रहा था, तब यीशु गलील क्षेत्र के नासरत से वहाँ आए। वह वहाँ गए जहाँ यूहन्ना प्रचार कर रहा था, और यूहन्ना ने उन्हें यरदन नदी में बपतिस्मा दिया।
\v 10 यीशु के पानी से निकलने के तुरंत बाद, उन्होंने स्वर्ग को खुलते हुए देखा और परमेश्वर के आत्मा को अपने ऊपर उतरते देखा। परमेश्वर के आत्मा कबूतर के रूप में उन पर उत्तरा।
\v 11 परमेश्वर ने स्वर्ग से कहा, "आप मेरे पुत्र हो, जिसे मैं बहुत प्रेम करता हूँ। मैं आप से बहुत खुश हूँ।"
\s5
\v 12 तब परमेश्वर के आत्मा यीशु को जंगल में ले गए।
\v 13 वह चालीस दिन तक वहाँ थे। उस समय शैतान उन्हें परख रहा था। वहाँ जंगली जानवर थे, और स्वर्गदूत उनका ध्यान रख रहे थे।
\p
\s5
\v 14 बाद में, जब यूहन्ना को जेल में डाल दिया गया, यीशु गलील में गए। गलील में, वह परमेश्वर का सुसमाचार प्रचार कर रहे थे
\v 15 वह कह रहे थे, "अन्त का समय आ गया है, परमेश्वर शीघ्र ही यह दिखाएँगे कि वह राजा हैं। क्षमा माँगो कि तुमने पाप किया है, और पाप त्यागने का निर्णय करो कि परमेश्वर तुमको क्षमा करे। सुसमाचार पर विश्वास करो।
\p
\s5
\v 16 एक दिन, जब यीशु गलील की झील के किनारे चल रहे थे, तो उन्होंने शमौन और उसके भाई अन्द्रियास को देखा। वे झील में मछली पकड़ने के जाल को डाल रहे थे। वे मछली पकड़कर बेचने का काम करते थे।
\v 17 तब यीशु ने उनसे कहा, "मेरे साथ आओ, जैसे तुम मछली पकड़ रहे हो, वैसे ही मैं तुमको मनुष्यों को पकड़ना सिखाऊँगा।"
\v 18 उन्होंने तुरंत अपने जाल को छोड़ दिया, और उनके साथ चल दिए।
\s5
\v 19 कुछ और आगे जाने के बाद, यीशु ने दो अन्य पुरुषों, को देखा जिनके नाम याकूब और यूहन्ना थे। वे दोनों भाई थे, वे जब्दी नाम के एक मनुष्य के पुत्र थे। वे दोनों नाव में मछली पकड़ने के जाल को सुधार रहे थे।
\v 20 जब यीशु ने उन्हें देखा, तो उन्होंने उनसे कहा कि वे उनके साथ आएँ। इसलिए उन्होंने अपने पिता को छोड़ दिया, जो किराए के दासों के साथ नाव में था, और वे यीशु के साथ चले गए।
\p
\s5
\v 21 यीशु और उसके शिष्य कफरनहूम नाम के एक नगर के पास गए। अगले सब्त के दिन वह आराधनालय में गए और वहाँ एकत्र हुए लोगों को शिक्षा देना शुरू कर दिया।
\v 22 वह जिस तरह से सिखाते थे, उसे देख वे आश्चर्यचकित हुए। वह ऐसे शिक्षक के समान सिखाते थे जो स्वयं के ज्ञान पर निर्भर रहता है। वह उन लोगों के समान शिक्षा नहीं देते थे जो यहूदी नियमों को सिखाते थे, और उन बातों को दोहराते थे अन्य शिक्षकों द्वारा सिखाई गई थीं।
\s5
\v 23 आराधनालय में, जहाँ यीशु सिखाया करते थे, वहाँ एक व्यक्ति था जिसे दुष्ट-आत्मा ने अपने वश में किया हुआ था। दुष्ट-आत्मा वाला वह व्यक्ति चिल्लाने लगा,
\v 24 "हे! नासरत के यीशु! हम दुष्ट-आत्माओं को आप से कोई काम नहीं है! क्या आप हमें नाश करने के लिए आए हो? मुझे पता है कि आप कौन हो। आप परमेश्वर के पवित्र जन हैं!
\v 25 यीशु ने दुष्ट-आत्मा को यह कहते हुए डाँटा, "चुप हो जा और उससे बाहर निकल!"
\v 26 दुष्ट-आत्मा ने उस व्यक्ति को बुरी तरह से हिला दिया। वह जोर से चिल्लाई, और फिर वह उस व्यक्ति से बाहर आ गई और चली गई।
\s5
\v 27 जो लोग वहाँ थे वे सब चकित हो गए! उन्होंने आपस में यह चर्चा की, "यह आश्चर्यजनक है! वह न केवल एक नए और आधिकारिक तरीके से सिखाते हैं, वरन् वह दुष्ट-आत्माओं को भी आज्ञा देते हैं और वे उनकी आज्ञा मानती हैं!"
\v 28 यीशु ने जो किया था, लोगों ने अति शीघ्र गलील के पूरे क्षेत्र में सब लोगों को बता दिया।
\p
\s5
\v 29 आराधनालय से निकलने के बाद, यीशु, शमौन और अन्द्रियास, याकूब और यूहन्ना के साथ, सीधे शमौन और अन्द्रियास के घर गए।
\v 30 शमौन की सास बिस्तर पर लेटी थी क्योंकि उसे बहुत तेज बुखार था। किसी ने यीशु को उसके बीमार होने की खबर दी।
\v 31 यीशु उसके पास गए, हाथ पकड़ कर उसे उठाया, और उसकी सहायता की। उसका बुखार तुरन्त उतर गया और उसने उनकी सेवा करना आरंभ कर दिया।
\p
\s5
\v 32 उस शाम, सूर्य डूबने के बाद, कुछ लोग यीशु के पास अनेक बीमारों को उन्हे भी जिन्हें दुष्ट-आत्माओं ने वश में किया हुआ था।
\v 33 ऐसा प्रतीत होता था जैसे कि शहर में रहने वाले सब लोग शमौन के घर के दरवाजे पर एकत्र हो गए थे।
\v 34 यीशु ने कई लोगों को स्वस्थ किया जो कई बीमारियों से पीड़ित थे। उन्होंने कई दुष्ट-आत्माओं को भी लोगों से बाहर आने के लिए विवश किया। उन्होंने दुष्ट-आत्माओं को उनके बारे में लोगों को बताने की आज्ञा नहीं दी, क्योंकि वे जानती थीं कि वह परमेश्वर के पवित्र जन हैं।
\p
\s5
\v 35 अगली सुबह यीशु बहुत जल्दी उठ गए, जबकि अंधेरा था। वह घर से निकले और शहर से दूर चले गए जहाँ कोई नहीं था। वहाँ उन्होंने प्रार्थना की।
\v 36 शमौन और उसके साथी उन्हें खोजने लगे!
\v 37 जब उन्होंने उन्हें ढूँढ़ लिया तो उन्होंने कहा, "शहर में सब लोग आपको खोज रहे हैं।"
\s5
\v 38 उन्होंने उनसे कहा, "हमें पड़ोसी शहरों में जाना है कि मैं वहाँ भी प्रचार कर सकूँ। यही कारण है कि मैं यहाँ आया हूँ।"
\v 39 तब वे गलील के पार चले गए। जब वे चले गए, तो यीशु ने आराधनालयों में प्रचार किया और दुष्ट-आत्माओं को लोगों से बाहर आने के लिए विवश किया।
\p
\s5
\v 40 एक दिन एक व्यक्ति जिसे कुष्ठ रोग था, यीशु के पास आया। उसने यीशु के सामने घुटने टेक कर कहा, "कृपया मुझे स्वस्थ करें, क्योंकि अगर आप चाहें तो मुझे स्वस्थ कर सकते हैं!"
\v 41 यीशु को उस पर दया आई! उन्होंने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया और उसे छूआ। तब उन्होंने उससे कहा, "क्योंकि मैं तुझे स्वस्थ करने की इच्छा रखता हूँ! स्वस्थ हो जा।"
\v 42 तुरंत ही वह व्यक्ति ठीक हो गया! वह अब एक कुष्ठ रोगी नहीं रहा!
\s5
\v 43 उस व्यक्ति को भेजते समय यीशु ने उसे चेतावनी दी!
\v 44 उन्होंने कहा, "जो अभी हुआ वह किसी को नहीं बताना! याजक के पास जा और अपने आप को उसे दिखा, वे तेरी जाँच करें और देखें कि अब तुम्हें कुष्ठ रोग नहीं है। फिर वह भेंट चढ़ा परमेश्वर ने जो मूसा द्वारा कुष्ठ रोगियों के चंगा होने पर ठहराई है। यह समाज के लिए गवाही होगी कि अब तुझे को कुष्ठ रोग नहीं है।"
\s5
\v 45 उस व्यक्ति ने यीशु के निर्देशों का पालन नहीं किया। उसने कई लोगों को बताना शुरू कर दिया कि कैसे यीशु ने उसे स्वस्थ किया था! इस कारण यीशु अब शहरों में सबके सामने प्रवेश नहीं कर पा रहे थे, क्योंकि लोगों की भीड़ उन्हें घेर लेती थी। इस कारण, वह नगरों के बाहर उन स्थानों में रहे जहाँ कोई भी नहीं रहता था। परन्तु लोग उस पूरे क्षेत्र से यीशु के पास आते जा रहे थे।
\s5
\c 2
\p
\v 1 कुछ दिन बीत जाने के बाद, यीशु कफरनहूम लौट आए और लोगों ने शीघ्र ही समाचार फैला दिया कि यीशु वापस अपने घर लौट आए हैं।
\v 2 शीघ्र ही बहुत लोग वहाँ एकत्र हो गए, जहाँ यीशु ठहरे हुए थे। लोगों की संख्या इतनी अधिक थी कि पूरा घर लोगों से भर गया। वहाँ खड़े रहने के लिए बिल्कुल भी जगह नहीं बची थी, द्वार के आसपास भी नहीं। यीशु ने उन्हें परमेश्वर का संदेश सुनाया।
\s5
\v 3 कुछ लोग एक लकवे के रोगी को लेकर उस घर में यीशु के पास आए। चार व्यक्ति उसे एक खाट पर उठा कर लाए थे।
\v 4 भीड़ के कारण वे चारों उस व्यक्ति को यीशु के पास लाने में असमर्थ थे। इसलिए, वे घर की छत पर चढ़ गए और यीशु के ऊपर वाली छत में एक बड़ा छेद बनाया। उन्होंने लकवे के रोगी को खाट पर ही छेद के माध्यम से यीशु के सामने उतार दिया।
\s5
\v 5 जब यीशु ने उन पुरुषों का विश्वास देखा कि वह इस व्यक्ति को ठीक कर सकते हैं, उन्होंने लकवा मारे हुए व्यक्ति से कहा, "हे मेरे पुत्र, मैंने तेरे पापों को क्षमा कर दिया है!"
\v 6 कुछ लोग जो यहूदी नियमों के शिक्षक थे, वहाँ बैठे हुए थे। वे आपस में सोचने लगे,
\v 7 "यह मनुष्य अपने आप को क्या समझता है? यह घमंडी है और ऐसा कहकर यह परमेश्वर का अपमान कर रहा है! क्योंकि परमेश्वर ही पापों को क्षमा कर सकते हैं!"
\s5
\v 8 यीशु जानते थे कि वे क्या सोच रहे हैं। उन्होंने उनसे कहा, तुम ऐसा क्यों सोच रहे हो?
\v 9 मेरे लिए क्या कहना आसान होगा, 'मैंने तुम्हारे पाप क्षमा कर दिए हैं' या 'उठ! अपनी खाट उठा और चल?
\s5
\v 10 मैं तुम्हें दिखाऊँगा कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पापों को क्षमा करने का अधिकार है।" फिर उन्होंने लकवा मारे हुए व्यक्ति से कहा,
\v 11 "उठ! अपनी खाट उठा और घर जा!"
\v 12 वह व्यक्ति तुरंत उठ खड़ा हुआ! उसने अपनी खाट उठाई, और सबके सामने से निकलकर चला गया। वे सब हैरान हो गए, और उन्होंने परमेश्वर की स्तुति की और कहा, "हमने ऐसा पहले कभी नहीं देखा जो अभी हुआ है!"
\p
\s5
\v 13 यीशु कफरनहूम से निकले और गलील सागर के किनारे गए। एक बड़ी भीड़ उनके पास आई और उन्होंने उन्हें उपदेश दिया।
\v 14 जाते हुए, उन्होंने हलफईस के पुत्र, लेवी नाम के एक मनुष्य को देखा। वह अपने कार्यालय में बैठा हुआ था जहाँ वह कर एकत्र करता था। यीशु ने उससे कहा, "मेरे साथ आ।" वह उठा और यीशु के साथ चला गया।
\s5
\v 15 बाद में, यीशु लेवी के घर में खाना खा रहे थे! कई पापी लोग और चुंगी लेने वाले लोग, यीशु और उनके शिष्यों के साथ भोजन कर रहे थे।
\v 16 जो यहूदी कानूनों को सिखाते थे और जो फरीसी पंथ के सदस्य थे, उन्होंने देखा कि यीशु पापियों और कर लेने वालों के साथ भोजन कर रहे हैं। उन्होंने यीशु के शिष्यों से पूछा, "वह पापियों और कर लेने वालों के साथ क्यों खा और पी रहे हैं?"
\s5
\v 17 "जब यीशु ने उनका प्रश्न सुना तो उन्होंने यहूदी नियम सिखाने वालों से कहा, "स्वस्थ लोगों को वैद्य की आवश्यक्ता नहीं होती है। जो बीमार हैं, उन्हें ही वैद्य की आवश्यक्ता है! मैं उन्हें आमंत्रित करने नहीं आया जो सोचते हैं कि वे धर्मी हैं, परन्तु उन्हें जो जानते हैं कि उन्होंने पाप किया है।"
\p
\s5
\v 18 इस समय, यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के शिष्य और फरीसी संप्रदाय के कुछ पुरुष किसी-किसी दिन भोजन नहीं करते थेयह उनका एक अभ्यास था। कुछ लोग यीशु के पास आए और उनसे पूछा, "यूहन्ना के शिष्य और फरीसी किसी-किसी दिन भोजन नहीं करते है। आपके शिष्य ऐसा क्यों नहीं करते हैं?"
\v 19 यीशु ने उनसे कहा, "जब कोई पुरुष एक स्त्री से विवाह कर रहा होता है, तो उसके मित्रों को तब तक भोजन से परहेज नहीं रखना चाहिए जब तक कि वह उनके साथ है। दुल्हे के साथ भोज खाने और उत्सव मनाने का समय होता है। यह भोजन ने करने का समय नहीं होता है, विशेष करके जब दूल्हा उनके साथ है।
\s5
\v 20 परन्तु एक दिन, दूल्हे को उनसे दूर ले जाया जाएगा। उन दिनों वे भोजन नहीं करेंगे।"
\p
\v 21 यीशु ने उनसे कहा, "लोग एक छेद को सुधारने के लिए पुराने वस्त्रों पर नए कपड़ों के टुकड़े नहीं सिलते हैं। यदि उन्होंने ऐसा किया, तो जब वे कपड़े धोते हैं, तो नए कपड़े का टुकड़ा सिकुड़ेगा और पुराने कपड़े को और अधिक फाड़ देगा। परिणामस्वरूप, छेद भी बड़ा हो जाएगा!
\s5
\v 22 इसी प्रकार, लोग नए दाखरस को रखने के लिए पुराने चमड़े की थैलियों में नहीं भरते हैं। अगर उन्होंने ऐसा किया, तो नया दाखरस चमड़े की थैली को फाड़ देगा क्योंकि दाखरस के फैलते समय थैली फैल नहीं पाएगी। परिणाम यह होगा कि दाखरस और चमड़े की थैलियाँ दोनों नष्ट हो जाएँगे! इसके विपरीत, लोगों को नया दाखरस नई चमड़े की थैली में भरना चाहिए!"
\p
\s5
\v 23 एक सब्त के दिन यीशु अपने शिष्यों के साथ अनाज के कुछ खेतों में से होकर जा रहे थे। जब वे अनाज के खेतों के साथ साथ चल रहे थे, तो शिष्य कुछ अनाज की बालों को तोड़ कर खा रहे थे।
\v 24 कुछ फरीसियों ने देखा कि वे क्या कर रहे थे और यीशु से कहा, देखो, वे यहूदी सब्त का नियम तोड़ रहे हैं, वे ऐसा क्यों कर रहे हैं?
\s5
\v 25 यीशु ने उनसे कहा, "क्या तुमने राजा दाऊद और उसके साथ रहने वाले पुरुषों के बारे में कभी नहीं पढ़ा, जब वे भूखे थे?
\v 26 उस समय अबियातार महायाजक था, राजा दाऊद ने परमेश्वर के घर में प्रवेश किया और वे रोटियों के लिए पूछा। महायाजक ने उसे कुछ रोटियाँ दी जो परमेश्वर के सामने रखी हुई थीं। हमारे नियमों के अनुसार, केवल याजक ही वे रोटियाँ खा सकते थे! परन्तु दाऊद ने इसमें से कुछ खाया। फिर उसने उन लोगों को भी थोड़ा दिया जो उसके साथ थे।"
\s5
\v 27 यीशु ने उनसे आगे कहा, "सब्त का दिन लोगों की आवश्यक्ताओं के लिए स्थापित किया गया था। लोगों को सब्त की आवश्यकता को पूरा करने के लिए नहीं बनाया गया था!
\v 28 इसलिए स्पष्ट समझ लो कि मनुष्य का पुत्र सब्त के दिन का भी प्रभु है।"
\s5
\c 3
\p
\v 1 दूसरे सब्त के दिन यीशु फिर से एक आराधनालय में गए। वहाँ एक व्यक्ति था जिसका हाथ सूखा हुआ था।
\v 2 फरीसी संप्रदाय के कुछ लोग उनको ध्यान से देख रहे थे कि वह सब्त के दिन उस व्यक्ति को ठीक करेंगे या नहीं; वे उन पर गलत काम करने का आरोप लगाना चाहते थे।
\s5
\v 3 यीशु ने उस व्यक्ति से कहा, जिसका हाथ सूखा हुआ था, "यहाँ सब के सामने खड़ा हो जा!" वह व्यक्ति खड़ा हो गया।
\v 4 फिर यीशु ने लोगों से कहा, "क्या वे नियम, जो परमेश्वर ने मूसा को दिए थे, सब्त के दिन भले कार्य करने की अनुमति देते हैं या बुरा करने की? क्या नियम हमें सब्त के दिन किसी व्यक्ति के जीवन को बचाने की अनुमति देते हैं या हमें किसी व्यक्ति के जीवन बचाने से इन्कार करने और उसे मरने के लिए छोड़ देने की अनुमति देते हैं?" परन्तु उन्होंने उत्तर नहीं दिया।
\s5
\v 5 यीशु ने उन्हें क्रोध में देखा! वह बहुत निराश थे क्योंकि वे हठीले थे और उस व्यक्ति की सहायता के लिए तैयार नहीं थे। इसलिए उन्होंने उस व्यक्ति से कहा, "अपना हाथ बढ़ाओ!" जब व्यक्ति ने अपना सूखा हाथ बढ़ाया और वह फिर से ठीक हो गया!
\v 6 फरीसी आराधनालय छोड़ कर निकल गए। वे तुरन्त कुछ यहूदियों से मिले जो गलील के शासक हेरोदेस अन्तिपास का समर्थन करते थे। उन्होंने एक साथ योजना बनाई कि वे यीशु को कैसे मार सकते हैं।
\p
\s5
\v 7 यीशु और उसके शिष्यों ने उस नगर को छोड़ दिया और गलील सागर किनारे एक क्षेत्र में चले गए! लोगों की एक बड़ी भीड़ उनके पीछे पीछे आई। उनके पीछे आए हुए लोग गलील और यहूदिया से,
\v 8 यरूशलेम से, यहूदिया जिले के नगरों से, इदूमिया क्षेत्र से, यरदन नदी के पूर्वी ओर के क्षेत्र से, और सोर और सीदोन शहरों के आसपास के क्षेत्रों से आए थे। वे सब उनके पास आए क्योंकि उन लोगों ने उनके आश्चर्य के कामों के बारे में सुना था।
\s5
\v 9-10 क्योंकि उन्होंने कई लोगों को स्वस्थ किया था, अन्य रोगी जिन्हें विभिन्न बीमारियाँ थीं, उन्हें छूने के लिए आगे बढ़े। उनका मानना था कि यदि वे केवल उन्हें छू लें, तो वह उन्हें स्वस्थ कर देंगे। इसलिए उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि एक छोटी सी नाव तैयार करें जिससे कि वह नाव में चढ़ जाएँ और जो लोग उन्हें छूने के लिए आगे बढ़ें तो उस भीड़ में दब जाने से बचें।
\s5
\v 11 जब भी दुष्ट-आत्माओं ने यीशु को देखा, वे लोग जिन्हें दुष्ट आत्माओं ने वश में किया हुआ था, वे यीशु के सामने गिरते और पुकारते थे, "आप परमेश्वर के पुत्र हैं!"
\v 12 यीशु ने दुष्ट-आत्माओं को कठोर आज्ञा दी कि वे किसी को नहीं बताएँगी कि वह कौन हैं।
\p
\s5
\v 13 यीशु पहाड़ी पर चढ़ गए। और उन्होंने उनको बुलाया जिन्हें वह अपने साथ ले जाना चाहते थे और वे उनके पास आ गए।
\v 14 उन्होंने अपने साथ रहने और प्रचार करने के लिए बारह पुरुष नियुक्त किए। उन्होंने उन्हें प्रेरित कहा।
\v 15 उन्होंने उन्हें शक्ति भी दी ताकि वे दुष्ट-आत्माओं को लोगों से बाहर आने के लिए विवश कर सकें।
\v 16 वे बारह पुरुष जिन्हें यीशु ने चुन लिया था: वे शमौन (और यीशु ने उसे नया नाम पतरस दिया)।
\s5
\v 17 और पतरस के साथ, यीशु ने जब्दी के पुत्र याकूब और याकूब के भाई यूहन्ना को भी नियुक्त किया, उन दोनों को उनके उग्र उत्साह के कारण उन्होंने नया नाम दिया, 'ऐसे पुरुष जो गर्जन के जैसे हैं';
\v 18 और उन्होंने अन्द्रियास, और फिलिप्पुस, और बरतुल्मै, और मत्ती, और थोमा, और याकूब को जो हलफईस का पुत्र था, नियुक्त किया; और उन्होंने तद्दै, और शमौन कनानी,
\v 19 और यहूदा इस्करियोती (जिसने बाद में उन्हें धोखा दे दिया) को नियुक्त किया।
\p
\s5
\v 20 यीशु और उनके शिष्य एक घर में गए। वहाँ भी जहाँ वह ठहरे हुए थे एक भीड़ एकत्र हो गई। उनके चारों ओर बहुत से लोगों की भीड़ थी। उन्हें और उनके शिष्यों के पास भोजन करने का समय भी नहीं था।
\v 21 जब उनके संबन्धियों ने इस बारे में सुना, तो वे उनको अपने साथ घर लेकर आने के लिए गए क्योंकि कुछ लोग कह रहे थे, "वह पागल हो गया है।"
\p
\v 22 यहूदी नियम सिखाने वाले कुछ व्यक्ति यरूशलेम से आए थे। उन्होंने सुना कि यीशु दुष्ट-आत्माओं को लोगों से बाहर आने के लिए विवश कर रहे हैं। इसलिए वे लोगों से कह रहे थे, "बअलजबूल, जो दुष्ट-आत्माओं पर शासन करता है, यीशु को अपने वश में किए हुए है। वही है जो यीशु को लोगों में से दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकालने की शक्ति देता है!"
\s5
\v 23 इसलिए यीशु ने उन लोगों को अपने पास बुलाया। यीशु ने दृष्टान्तों में उनसे बात की और कहा, "शैतान ही शैतान को कैसे निकाल सकता है?
\v 24 यदि एक ही देश में रहने वाले लोग एक दूसरे के विरुद्ध लड़ रहे हों, तो उनका देश संगठित देश नहीं होगा।
\v 25 और यदि एक ही घर में रहने वाले लोग एक दूसरे से लड़ते हैं, तो वे एक परिवार के रूप में एकजुट नहीं रहेंगे।
\s5
\v 26 इसी प्रकार यदि शैतान और उसकी दुष्ट-आत्माएँ एक दूसरे से लड़ें तो वे शक्तिशाली होने की अपेक्षा शक्तिहीन हो जाएँगे।
\v 27 कोई भी शक्तिशाली व्यक्ति के घर में जाकर उसके पास से संपत्ति चुराकर नहीं ला सकता जब तक कि वह पहले उस शक्तिशाली व्यक्ति को बाँध न ले। उसके बाद ही वह उस व्यक्ति के घर में चोरी कर पाएगा।"
\s5
\v 28 यीशु ने यह भी कहा, "एक बात पर ध्यान से विचार करो: लोग कई तरह से पाप कर सकते हैं और वे परमेश्वर के बारे में बुरा बोल सकते हैं। परमेश्वर भी उन्हें क्षमा कर सकते हैं,
\v 29 परन्तु यदि कोई पवित्र आत्मा के बारे में बुरा बोलता है, तो परमेश्वर उन्हें कभी क्षमा नहीं करेंगे। वह व्यक्ति सदा पाप का दोषी होगा।"
\p
\v 30 यीशु ने उनसे ऐसा इसलिए कहा कि वे कह रहे थे, "एक दुष्ट-आत्मा उसे वश में किए हुए है।"
\p
\s5
\v 31 यीशु की माँ और छोटे भाई बहन आए। जब वे बाहर खड़े थे, तो उन्होंने उनको बाहर बुलाने के लिए किसी को भीतर भेजा।
\v 32 एक भीड़ यीशु के आसपास बैठी थी। उनमें से एक ने उनसे कहा, "आपकी माँ और छोटे भाई बहन बाहर हैं। वे आपको देखना चाहते हैं।"
\s5
\v 33 यीशु ने उनसे पूछा, " मेरी माँ कौन है? मेरे भाई बहन कौन हैं? "
\v 34 जब उन्होंने अपने साथ आसपास बैठे लोगों को देखा तो उन्होंने कहा, "यहाँ देखो! तुम मेरी माँ और मेरे भाई-बहन हो।
\v 35 जो लोग ऐसे काम करते हैं जो परमेश्वर चाहते हैं वे मेरे भाई, मेरी बहन और मेरी माँ हैं!"
\s5
\c 4
\p
\v 1 एक बार यीशु गलील सागर के पास लोगों को शिक्षा दे रहे थे उनके चारों ओर एक बड़ी भीड़ एकत्र हो गई थी। वह एक नाव में बैठ गए और नाव को पानी में उतार दिया, कि भीड़ से बातें करने में उन्हे आसानी हो। भीड़ पानी के किनारे पर ही खड़ी थी।
\v 2 फिर जब वह उन्हें सिखा रहे थे तो उन्होंने उन्हे कई दृष्टान्त सुनाए। उन्होंने कहा:
\s5
\v 3 "यह सुनो: एक मनुष्य अपने खेत में कुछ बीज बोने के लिए गया।
\v 4 क्योंकि वह उन्हें बिखेर कर बो रहा था, कुछ बीज रास्ते पर गिर गए थे। फिर कुछ पक्षी आए और उन बीजों को खा गए।
\v 5 कुछ बीज ऐसी भूमि पर गिर गए, जहाँ चट्टान के ऊपर बहुत अधिक मिट्टी नहीं थी। बीज शीघ्र ही अंकुरित हो गए, क्योंकि सूरज ने नमी वाली मिट्टी को तेज़ी से गर्म कर दिया, जहाँ वह गहरी नहीं थी।
\s5
\v 6 लेकिन जब उन नए पौधों पर सूर्य का प्रकाश चमका, वे झुलस गए। फिर वे सूख गए क्योंकि उनकी जड़ें गहरी नहीं थीं।
\v 7 कुछ बीज ऐसी भूमि पर गिरे जिनमें काँटेदार पौधों की जड़ें थीं। बीज बढ़े, और साथ ही काँटेदार पौधे भी बड़े और काँटेदार पौधों ने अच्छे पौधों को घेर लिया। इसलिए पौधों से अनाज उत्पन्न नहीं हुआ।
\s5
\v 8 परन्तु जब उसने बोया, तो शेष बीज अच्छी मिट्टी पर गिरे। वे अंकुरित हुए, और अच्छे से बढ़े, और बहुत अनाज उत्पन्न किया। कुछ पौधों ने बीज का तीस गुना फल दिया। कुछ ने साठ गुना फल दिया, कुछ ने सौ गुना फल दिया।"
\v 9 फिर यीशु ने कहा, "यदि तुम इसे समझना चाहते हो, तो तुम्हें ध्यान से विचार करना चाहिए कि मैंने अभी क्या कहा है।"
\p
\s5
\v 10 बाद में, जब केवल बारह शिष्य और अन्य अनुयायी उनके साथ थे, उन्होंने उनसे उन दृष्टान्तों के बारे में पूछा।
\v 11 उन्होंने उनसे कहा, "मैं तुम्हें यह संदेश समझाऊँगा कि परमेश्वर स्वयं को राजा के रूप में कैसे प्रकट करते हैं, परन्तु दूसरों के लिए मैं दृष्टान्तों में बात करूँगा।
\v 12 जब वे देखते हैं कि मैं क्या कर रहा हूँ, वे नहीं सीखेंगे।
\q जब वे मेरी बात सुनते हैं, तो वे समझ नहीं पाएँगे।
\q यदि उन्होंने सीखा या समझ लिया,
\q तो उन्हें खेद होगा कि उन्होंने पाप किया और पाप न करने का निर्णय लेंगे, और परमेश्वर उन्हें क्षमा कर देंगे।"
\p
\s5
\v 13 फिर उन्होंने उनसे कहा, "क्या तुम इस दृष्टान्त को नहीं समझते हो? तो फिर जब मैं तुमको अन्य दृष्टान्त सुनाऊँगा, तो तुम कैसे समझोगे?
\v 14 इस दृष्टान्त में जो मैंने तुमको सुनाया था, जो व्यक्ति बीज बोता है वह किसी ऐसे व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है जो लोगों को परमेश्वर का संदेश सुनाता है।
\v 15 कुछ लोग उस रास्ते के समान हैं जहाँ कुछ बीज गिर गए हैं। जब वे परमेश्वर का संदेश सुनते हैं, तो शैतान जो उन्होंने सुना था आता है और उन्हें भुलवा देता है ।
\s5
\v 16 कुछ लोग उस भूमि के समान हैं, जहाँ चट्टान पर गहरी मिट्टी नहीं थी। जब वे परमेश्वर का संदेश सुनते हैं, तो वे इसे तुरंत आनंद से स्वीकार करते हैं।
\v 17 परन्तु, क्योंकि संदेश गहराई में नहीं पहुँच पाता है, वे केवल थोड़े समय के लिए विश्वास करते हैं। वे ऐसे पौधों के समान हैं जिनकी जड़ें गहरी नहीं हैं। जब लोग उनसे बुरा व्यवहार करते उन्हें परमेश्वर के संदेश पर विश्वास करने के कारण सताव सहना पड़ता है तो वे पीड़ित होकर शीघ्र ही, परमेश्वर के संदेश पर विश्वास करना छोड़ देते हैं।
\s5
\v 18 कुछ लोग उस मिट्टी के समान हैं जिसमें काँटेदार झाड़ियाँ हैं। वे लोग परमेश्वर का संदेश सुनते हैं,
\v 19 परन्तु वे अमीर होने की इच्छा रखते हैं और वे कई अन्य वस्तुओं के स्वामी बनना चाहते हैं। इसलिए वे केवल उसी के बारे में चिंता करते हैं और वे परमेश्वर के संदेश को भूल जाते हैं और वे ऐसे काम नहीं करते हैं जिन्हें परमेश्वर चाहते हैं कि वे करें।
\v 20 परन्तु कुछ लोग अच्छी मिट्टी के समान हैं। वे परमेश्वर के संदेश को सुनते हैं और स्वीकार करते हैं और वे इसे मानते हैं, और वे उन कामों को करते हैं जिन्हें परमेश्वर चाहते हैं कि वे करें। वे अच्छे पौधे के समान हैं जो तीस गुणा, साठ गुणा या सौ गुणा अनाज को उत्पन्न करते हैं।"
\p
\s5
\v 21 उन्होंने एक और दृष्टान्त सुनाया "लोग निश्चित रूप से एक तेल के दीपक को इसलिए नहीं जलाते और फिर उसको अपने घर लेकर नहीं आते हैं कि उसके प्रकाश को ढ़ाँक दिया जाए। इसकी अपेक्षा, वे इसे एक दीवट पर रख देते हैं ताकि प्रकाश दे।
\v 22 इसी प्रकार जो छिपे हुए काम थे, एक दिन सब लोग उन्हें जानेंगे, और जो बातें गुप्त में हुई हैं - एक दिन सब लोग उन्हें पूरे उजियाले में देखेंगे।
\v 23 यदि तुम इसे समझना चाहते हो, तो तुम्हें सावधानी से विचार करना चाहिए कि तुमने अभी क्या सुना है।"
\p
\s5
\v 24 "ध्यान से देखो कि तुम मुझे क्या कहते हुए सुनते हो। तुम किसी भी आकार के बर्तन का उपयोग करते हो, वह तुम्हारे लिए भर जाएगा।
\v 25 यदि व्यक्ति को कुछ समझ है, तो उसे और भी प्राप्त होगा। परन्तु यदि किसी व्यक्ति को समझ नहीं है, तो उसके पास जो कुछ भी थोड़ा है, वह उसे खो देगा।"
\p
\s5
\v 26 यीशु ने यह भी कहा, "जब परमेश्वर स्वयं को राजा के रूप में प्रकट करना आरंभ कर देते हैं, तो वह एक ऐसे व्यक्ति के समान है जो भूमि पर बीज बिखेर रहा है।
\v 27 इसके बाद वह हर रात सोया और बीजों की चिन्ता किये बिना हर दिन उठा। उस समय के दौरान बीज अंकुरित हो गए और इस प्रकार बढ़े हुए कि उसे समझ नहीं आया।
\v 28 भूमि ने फसल का उत्पादन अपने आप किया। पहले डाली दिखाई दी, तब बाल दिखाई दी। फिर बाल में पूरे बीज दिखाई दिए ।
\v 29 जैसे ही अनाज पका, उसने लोगों को फसल काटने के लिए भेजा, क्योंकि यह अनाज काटने का समय था।"
\p
\s5
\v 30 यीशु ने उन्हें एक और दृष्टान्त सुनाया। उन्होंने कहा, "जब परमेश्वर स्वयं को राजा के रूप में प्रकट करना आरंभ कर देते हैं, तो यह कैसा है? मैं इसका वर्णन करने के लिए किस दृष्टान्त का उपयोग कर सकता हूँ?
\v 31 यह राई के बीज के समान है। तुम जानते हो कि जब हम उन्हें लगाते हैं, तो राई के बीज का क्या होता है। यद्दपि राई का बीज सबसे छोटे बीजों में से हैं, परन्तु वे बड़े पौधे बन जाते हैं।
\v 32 जब वे लगाए जाते हैं, वे बढ़ते हैं और बगीचे के दूसरे पौधों की तुलना में अधिक बड़े हो जाते हैं। उनकी शाखाएँ बड़ी हो जाती हैं ताकि और पक्षी उन में घोंसले बना लेते हैं।"
\p
\s5
\v 33 लोगों को परमेश्वर का सन्देश सुनाते समय यीशु दृष्टान्तों का उपयोग करते थे। अगर वे समझने में सक्षम होते थे, तो वह उन्हें और अधिक बताते थे।
\v 34 जब उन्होंने उनसे बात की तो उन्होंने हमेशा दृष्टान्तों का उपयोग किया। परन्तु वह जब शिष्यों के साथ अकेले होते थे तब वह उन्हे दृष्टान्तों का अर्थ समझाते थे।
\p
\s5
\v 35 उसी दिन, जब सूरज डूब रहा था, तब यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, "हम झील की दूसरी ओर जाएँगे।"
\v 36 यीशु पहले से ही नाव में थे, इसलिए उन्होंने लोगों की भीड़ को छोड़ दिया और दूर चले गए। अन्य लोग भी उनके साथ अपनी नौकाओं में चले गए।
\v 37 एक तेज़ हवा चली और लहरें नाव में आने लगी! नाव शीघ्र ही पानी से भर गई थी!
\s5
\v 38 यीशु नाव के पीछे के हिस्से में थे। वह एक तकिए पर अपना सिर रख कर सो रहे थे। तो शिष्यों ने उनको जगाया और कहा, "हे गुरू, क्या आप को चिन्ता नहीं है कि हम मरने वाले हैं?"
\v 39 "यीशु ने उठकर हवा को डाँटा और समुद्र से कहा," शान्त हो जा!" हवा का बहना बंद हो गया और फिर समुद्र बहुत शांत हो गया।
\s5
\v 40 उन्होंने शिष्यों से कहा, "तुम क्यों डरते हो? क्या तुम्हें अभी भी विश्वास नहीं है?"
\v 41 वे डर गए थे। उन्होंने एक दूसरे से कहा, "यह मनुष्य कौन हैं? हवा और लहरें भी इनका कहना मानती हैं!"
\s5
\c 5
\p
\v 1 यीशु और उनके शिष्य गलील सागर की दूसरी ओर पहुँचे। जहाँ वे उतरे उस जगह पर रहने वाले लोगों को गिरासेनी कहते थे।
\v 2 जब यीशु ने नाव से बाहर कदम निकाला, तो कब्रिस्तान की कब्रों में से एक व्यक्ति निकल कर आया। दुष्ट-आत्माओं ने उस व्यक्ति को वश में किया हुआ था।
\s5
\v 3 वह कब्रिस्तान से निकला क्योंकि वह कब्रों में रहता था। लोग उसे जानते थे और कभी-कभी उन्होंने उसे रोकने का प्रयास किया परन्तु वे उसे रोक नहीं सके, जंजीरों से भी नहीं।
\v 4 जब भी वे जंजीरों और बंधनों का इस्तेमाल करते थे, तो वह उन्हें तोड़ कर अलग कर देता था। वह इतना ताकतवर था कि कोई भी उसे वश में नहीं कर सकता था।
\s5
\v 5 दिन और रात वह कब्रिस्तान में अपना समय बिताता था, वह ज़ोर से चिल्लाता और धारदार पत्थरों से अपने को काटता था।
\v 6 जब उसने यीशु को थोड़ी दूर से नाव से बाहर आते हुए देखा, तो वह उनके पास दौड़कर आया और उनके सामने घुटने टेक दिए।
\s5
\v 7-8 यीशु ने उसके भीतर कि दुष्ट-आत्मा से कहा, "हे दुष्ट-आत्मा, इस मनुष्य से निकल आ!" परन्तु दुष्ट-आत्मा जल्दी से नहीं निकली। वह बहुत जोर से चिल्लाया, "हे यीशु, मुझे पता है कि आप परमेश्वर के पुत्र हो, इसलिए हम में कुछ भी समान नहीं है। मुझे अकेला छोड़ दो! परमेश्वर के नाम पर, मैं आप से प्रार्थना करता हूँ। मुझ पर अत्याचार न करो!"
\s5
\v 9 यीशु ने उससे पूछा, "तेरा नाम क्या है?" उसने उत्तर दिया, "मेरा नाम सेना है क्योंकि इस व्यक्ति में हम कई दुष्ट-आत्माएँ हैं।"
\v 10 तब दुष्ट-आत्माओं ने यीशु से कहा कि वह उन्हें इस क्षेत्र से बाहर न भेजे।
\s5
\v 11 इसी समय, पहाड़ों पर सूअरों का एक बड़ा झुंड चर रहा था।
\v 12 इसलिए दुष्ट-आत्माओं ने यीशु से विनती की, "हमें सूअरों में जाने की आज्ञा दो ताकि हम उनमें प्रवेश कर सकें!"
\v 13 यीशु ने उन्हें ऐसा करने की अनुमति दी तो दुष्ट-आत्माओं ने उस व्यक्ति को छोड़ दिया और सूअरों में प्रवेश किया। वह झुंड, जिनकी गिनती दो हजार की थी, झील में खड़ी पहाड़ी से नीचे कूद गया, जहाँ वे डूब गए।
\p
\s5
\v 14 जो लोग सूअरों की देखभाल कर रहे थे, वे भाग कर गाँव में गए और बताया कि वहाँ क्या हुआ था। बहुत से लोग स्वयं देखने के लिए गए कि क्या हुआ था।
\v 15 वे उस स्थान पर आए जहाँ यीशु थे। फिर उन्होंने उस मनुष्य को देखा जिसे दुष्ट-आत्माओं ने पहले वश में किया हुआ था। वह वहाँ कपड़े पहनकर बैठा हुआ था और मानसिक रूप से शांत था। यह सब देख कर वे डर गए।
\s5
\v 16 जिन लोगों ने उन घटनाओं को देखा था, उन्होंने शहर से और ग्रामीण इलाकों से आए लोगों को उस बारे में बताया,जो उस व्यक्ति के साथ हुआ जिसे दुष्ट-आत्माओं ने पहले वश में किया हुआ था। उन्होंने यह भी बताया कि सूअरों को क्या हुआ था।
\v 17 तब लोगों ने यीशु से अनुरोध किया कि उनके क्षेत्र को छोड़ कर चले जाएँ।
\p
\s5
\v 18 जब यीशु नाव में गए, तो उस व्यक्ति ने जिसे दुष्ट-आत्माओं ने पहले वश में किया हुआ था, यीशु से विनती की, "कृपया मुझे अपने साथ चलने दो!"
\v 19 परन्तु यीशु ने उसे साथ चलने की अनुमति नहीं दी इसकी अपेक्षा, उन्होंने उससे कहा, "अपने घर, अपने परिवार में जा और उन्हें बता कि प्रभु ने तेरे लिए क्या किया है, और उन्हें बता कि वह तुझ पर कैसे दयालु हुए है।"
\v 20 इसलिए वह गया और उस क्षेत्र के दस नगरों के आसपास यात्रा की। उसने लोगों को बताया कि यीशु ने उसके लिए कितना कुछ किया। सब लोग जो सुनते थे, वे आश्चर्यचकित थे।
\p
\s5
\v 21 एक बार फिर जब यीशु एक नाव में गलील सागर को पार करके दूसरी ओर गए, जब वह वहाँ पहुँचे, तो एक बड़ी भीड़ यीशु के पास एकत्र हुई, जो तट पर खड़ी थी।
\v 22 उनमें से एक मनुष्य, जो यरूशलेम के आराधनालय का गुरू था, जिसका नाम याईर था, वहाँ आया था। जब उसने यीशु को देखा, तो वह उनके पैरों पर गिर गया।
\v 23 तब उसने आग्रहपूर्वक विनती करके उनसे कहा, "मेरी पुत्री बीमार है और लगभग मर चुकी है, कृपया मेरे घर पर आओ और अपने हाथों को उस पर रखो, उसे ठीक करो और उसे जीवित कर दो!"
\v 24 यीशु और शिष्य उसके साथ चल दिए। एक बड़ी भीड़ ने उनका पीछा किया और बहुत से लोग यीशु से टकरा रहे थे।
\s5
\v 25 भीड़ में एक स्त्री थी जिसे लहू बहने का रोग था। उसको बारह वर्ष से प्रतिदिन लहू बहता था।
\v 26 वह कई वर्षों से पीड़ित थी जबकि वैद्य उसका इलाज कर रहे थे। वैद्यों का भुगतान करने के लिए उसने अपने सब पैसे खर्च कर दिए थे और जो कुछ भी उन्होंने किया, उसके बाद भी, उसे कोई लाभ नहीं हुआ वरन् उसकी दशा और बिगड़ गई।
\v 27 जब उसने सुना कि यीशु ने लोगों को ठीक किया, तो वह वहाँ पहुँची जहाँ वह थे और भीड़ को धकेलती हुई यीशु के पीछे उनके निकट पहुँच गई।
\s5
\v 28 वह सोच रही थी, "अगर मैं उन्हें छू लूँ या मैं उनके कपड़े को भी छू लूँ तो मैं ठीक हो जाऊँगी।" इसलिए उसने यीशु के कपड़े को छूआ।
\v 29 तुरंत उसका लहू बहना बंद हो गया। उसी समय, उसने स्वयं के अन्दर महसूस किया कि वह अपनी बीमारी से ठीक हो गई थी।
\s5
\v 30 यीशु ने तुरंत ही अपने में जान लिया कि उनकी शक्ति ने किसी को ठीक किया है, इसलिए उन्होंने भीड़ में पीछे मुड़कर पूछा, "किसने मेरे कपड़े छूए?"
\v 31 उनके शिष्यों ने उत्तर दिया, "आप देख सकते हैं कि बहुत से लोग आपके पास भीड़ में खड़े हैं! बहुत से लोगों ने आपको छुआ होगा! इसलिए आप क्यों पूछ रहे हैं, 'मुझे किसने छुआ है?'
\v 32 परन्तु जिसने यह किया था, यीशु उसे ढूँढ़ते रहे।
\s5
\v 33 वह स्त्री बहुत डरी हुई थी और काँप रही थी। उसने उनके सामने घुटने टेक कर कहा कि उसने ऐसा किया है।
\v 34 उन्होंने कहा, "हे पुत्री, क्योंकि तूने विश्वास किया है कि मैं तुझे ठीक कर सकता हूँ, मैंने तुझे ठीक किया है। तू अपने दिल में शान्ति के साथ घर जा सकती है, मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि तू इस रोग से फिर पीड़ित नहीं होगी।"
\p
\s5
\v 35 जब यीशु उस स्त्री से बात कर रहे थे, तो याईर के घर से आए कुछ लोग वहाँ पहुँचे। उन्होंने कहा, "तेरी बेटी की मृत्यु हो गई है, इसलिए अब गुरू को अपने घर लाने के लिए परेशान करने की आवश्यक्ता नहीं है।"
\s5
\v 36 "जब यीशु ने यह बातें सुनीं, तो उन्होंने याईर से कहा, "यह मत सोचो कि यह स्थिति निराशाजनक है! बस विश्वास रख कि वह जीएगी!"
\v 37-38 फिर वह केवल अपने तीन शिष्यों - पतरस, याकूब और यूहन्ना को अपने साथ याईर के घर ले गए। उन्होंने किसी अन्य व्यक्ति को उनके साथ जाने की आज्ञा नहीं दी। घर के पास पहुँचने के बाद, यीशु ने देखा कि लोग वहाँ दुःखी थे। कुछ रो रहे थे और कुछ लोग विलाप कर रहे थे।
\s5
\v 39 उन्होंने घर में प्रवेश किया और फिर उनसे कहा, "तुम इतने दुःखी क्यों हो और क्यों रो रहे हो? बच्ची मरी नहीं है, केवल सो रही है।"
\v 40 लोग उन पर हँसे, क्योंकि वे जानते थे कि वह मर गई थी। उन्होंने सब लोगों को घर से बाहर कर दिया। फिर उन्होंने बच्ची के माता-पिता और अपने तीनों शिष्यों को साथ ले लिया। वह उस कमरे में गए, जहाँ बच्ची लेटी हुई थी।
\s5
\v 41 उन्होंने बच्ची के हाथ पकड़े और उसे अपनी भाषा में कहा, "तलीता कूमी!" इसका अर्थ है, "हे छोटी लड़की, उठ!"
\v 42 तुरंत लड़की उठी और चलने लगी। (यह आश्चर्य की बात नहीं थी कि वह चल सकती थी, क्योंकि वह बारह वर्ष की थी।) जब यह हुआ, तो सब जो वहाँ उपस्थित थे, बहुत आश्चर्यचकित हुए।
\v 43 यीशु ने उन्हें सख्ती से आज्ञा दी, "मैंने जो कुछ किया है किसी को मत बताना!" फिर उन्होंने उनसे कहा कि लड़की को खाने के लिए कुछ दो।
\s5
\c 6
\p
\v 1 यीशु ने कफरनहूम छोड़ दिया और अपने नगर, नासरत में गए और उनके शिष्य उनके साथ गए।
\v 2 सब्त के दिन उन्होंने आराधनालय में प्रवेश किया और लोगों को शिक्षा दी। बहुत से लोग जो उनकी सुन रहे थे, वे बहुत आश्चर्यचकित थे। वे सोचते थे कि इन्होंने इतना ज्ञान और चमत्कार करने की सामर्थ्य कहाँ से प्राप्त की है।
\v 3 उन्होंने कहा, "वह सिर्फ एक साधारण बढ़ई है! हम उसे और उसके परिवार को जानते हैं! हम उसकी माता मरियम को जानते हैं! हम इसके छोटे भाई याकूब, योसेस, यहूदा और शमौन को जानते हैं! और उसकी छोटी बहनें भी हमारे साथ यहीं पर रहती हैं!" इसलिए उन्होंने उसका विरोध किया
\s5
\v 4 यीशु ने उनसे कहा, "यह सच है कि लोग अन्य जगहों पर मेरा और अन्य भविष्यद्वक्ताओं का सम्मान करते हैं, लेकिन हमारे नगरों में नहीं! यहाँ तक कि हमारे रिश्तेदारों और हमारे घरों में रहने वाले लोग भी हमें सम्मान नहीं देते!"
\p
\v 5 इसलिए, फिर भी उन्होंने वहाँ कुछ बीमार लोगों को ठीक किया, इसके अतिरिक्त उन्होंने और कोई चमत्कार नहीं किया।
\v 6 वह उनके अविश्वास से चकित थे, परन्तु वह उनके गाँव में गए और उन्हें शिक्षा दी।
\p
\s5
\v 7 एक दिन उन्होंने बारह शिष्यों को एक साथ बुलाया, और फिर उन्होंने उन्हें दो-दो करके कई शहरों में लोगों को शिक्षा देने के लिए भेजा। उन्होंने लोगों में से दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकालने के लिए उन्हें सामर्थ्य प्रदान की।
\v 8-9 उन्होंने उन्हें यात्रा में जूते पहनने और छड़ी साथ लेने का निर्देश दिया। उन्होंने उनसे कहा कि भोजन न लें, और न ही थैला जिसमें आवश्यक्ता की वस्तुएँ रख सकें, और न ही यात्रा के लिए कोई पैसा। उन्होंने उनको अतिरिक्त कुर्ता रखने की भी अनुमति नहीं दी थी।
\s5
\v 10 उन्होंने यह भी निर्देश दिया, "किसी भी शहर में प्रवेश करने के बाद, यदि कोई तुम्हें अपने घर में रहने के लिए आमंत्रित करता है, तो उसके घर में जाना।
\v 11 जिस स्थान के लोग तुम्हारा स्वागत नहीं करते और तुम्हारी बात नहीं सुनते हैं, उस जगह से निकलते समय अपने पैरों से धूल झाड़ देना। ऐसा करने से, तुम यह प्रमाणित करोगे कि उन्होंने तुम्हारा स्वागत नहीं किया।"
\s5
\v 12 इसके बाद शिष्यों ने विभिन्न नगरों में जाकर प्रचार किया कि लोग लज्जित हों कि वे पाप करते हैं, और पापों का त्याग करने का निर्णय लें जिससे कि परमेश्वर उन्हें क्षमा करें।
\v 13 उन्होंने कई दुष्ट-आत्माओं को भी लोगों में से बाहर निकलने के लिए विवश किया और वे कई बीमार लोगों को जैतून के तेल से ठीक कर रहे थे।
\p
\s5
\v 14 अब राजा हेरोदेस अंतिपास ने सुना कि यीशु क्या कर रहे थे, क्योंकि बहुत से लोग इस बारे में बात कर रहे थे। कुछ लोग यीशु के बारे में कह रहे थे, "वह यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला होगा! वह मुर्दों में से जीवित हो उठा है, इसलिए उनके पास इन चमत्कारों को करने के लिए परमेश्वर का सामर्थ्य है!"
\v 15 अन्य लोग यीशु के बारे में कह रहे थे, "वह प्राचीन भविष्यद्वक्ता एलिय्याह है, जिसे परमेश्वर ने फिर से वापस भेजने की प्रतिज्ञा की थी।" अन्य लोग यीशु के बारे में कह रहे थे, "नहीं, वह एक अलग भविष्यद्वक्ता है, उन भविष्यद्वक्ताओं में से एक जो बहुत समय पहले रहते थे।"
\s5
\v 16 लोग जो कह रहे थे उसे सुनकर राजा हेरोदेस अंतिपास ने स्वयं से यह कहा, "जो व्यक्ति ये चमत्कार कर रहा है वह यूहन्ना होना चाहिए! मैंने अपने सैनिकों को उसका सिर काटने का आदेश दिया था, परन्तु वह फिर से जीवित हो गया है!
\v 17 जो घटना हुई थी वह यह थी कि कुछ समय पहले हेरोदेस ने हेरोदियास से विवाह कर लिया था; वह उसके भाई फिलिप्पुस की पत्नी थी।
\s5
\v 18 उसके बाद यूहन्ना ने हेरोदेस से कहा, "परमेश्वर की व्यवस्था तुझे अपने भाई के जीवित रहते उसकी पत्नी से विवाह करने की अनुमति नहीं देती है।" तब, क्योंकि हेरोदियास ने यूहन्ना को जेल में डलवाने का आग्रह किया, हेरोदेस ने अपने सैनिकों को यूहन्ना के पास भेज कर यूहन्ना को बन्दी बनवाया और उसे बन्दीगृह में डाल दिया।
\v 19 परन्तु हेरोदियास यूहन्ना से अधिक बदला लेना चाहती थी, इसलिए वह चाहती थी कि कोई उसे मार डाले, परन्तु वह ऐसा नहीं कर पाई क्योंकि यूहन्ना बन्दीगृह में था, हेरोदेस ने यूहन्ना को उससे सुरक्षित रखा।
\v 20 हेरोदेस ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह यूहन्ना का सम्मान करता था, क्योंकि वह जानता था कि वह एक धर्मी व्यक्ति था, जिसने अपने आप को परमेश्वर के लिए समर्पित कर दिया था। जब हेरोदेस ने उसकी बात सुनी, तो वह बहुत परेशान हो गया और उसे पता नहीं था कि उसे उसके साथ क्या करना चाहिए, लेकिन वह उसे सुनना पसंद करता था।
\s5
\v 21 परन्तु हेरोदियास को आखिरकार यूहन्ना को मार डालने वाला मिला जो उसे मार सकता था। एक दिन हेरोदेस के जन्मदिन पर उसको सम्मान देने के लिए सबसे महत्वपूर्ण सरकारी अधिकारियों, सबसे महत्वपूर्ण सेना के अधिकारियों और गलील के सबसे महत्वपूर्ण नागरिकों को उसके साथ खाने और जन्मदिन मनाने के लिए आमंत्रित किया गया।
\v 22 जब वे खा रहे थे, तो हेरोदियास की बेटी कमरे में आई और राजा और उसके मेहमानों के लिए नृत्य किया। उसने राजा हेरोदेस और उसके मेहमानों को इतना प्रसन्न किया कि उसने उससे कहा, "तुझे मुझसे जो कुछ भी माँगना है माँग, जो भी तेरी इच्छा है, मैं उसे तुझे दे दूँगा!"
\s5
\v 23 उसने उससे यह भी कहा, "तू जो कुछ भी माँगेगी, मैं उसे दे दूँगा! अगर तू माँगे तो मैं अपना आधा राज्य भी तुझे दे दूँगा।"
\v 24 लड़की कमरे से निकल कर अपनी माँ के पास गई। उसने उसे बताया कि राजा ने क्या कहा, और उससे पूछा, "मुझे क्या माँगना चाहिए?" उसकी माँ ने उत्तर दिया, "राजा से यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का सिर माँग!"
\v 25 लड़की ने फिर से कमरे में प्रवेश किया। वह राजा के पास गई और उससे कहा, "मैं चाहती हूँ कि तू किसी को यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का सिर काटकर थाली में लाने की आज्ञा दे।"
\s5
\v 26 जब उसने यह सुना जो उसने माँगा, तो राजा बहुत परेशान हो गया, क्योंकि वह जानता था कि यूहन्ना एक बहुत ही धर्मी व्यक्ति था। लेकिन वह उसके अनुरोध इन्कार भी नहीं कर सकता था क्योंकि उसने वचन दे दिया था कि वह उससे कुछ भी माँग सकती है और उसके मेहमानों ने सुना था कि उसने क्या वचन दिया है।
\v 27 इसलिए राजा ने तुरंत किसी को यूहन्ना का सिर काटकर लाने का आदेश दिया और उसे लड़की के पास लेकर आए। उस व्यक्ति ने बन्दीगृह में जाकर और यूहन्ना का सिर काट दिया।
\v 28 और एक थाली में रख कर ले आया और लड़की को दे दिया। लड़की उसे अपनी माँ के पास ले गई।
\v 29 जब यूहन्ना के शिष्यों ने यह सुना कि क्या हुआ, तो उन्होंने बन्दीगृह में जाकर यूहन्ना का शरीर लिया; तब उन्होंने उसे दफ़न कर दिया।
\p
\s5
\v 30 बारह प्रेरित उन जगहों से यीशु के पास लौटे जहाँ से वे चले गए थे। उन्होंने उनको यह बताया कि उन्होंने क्या किया और लोगों को क्या क्या सिखाया।
\v 31 उन्होंने उनसे कहा, "मेरे साथ एक ऐसी जगह पर आओ, जहाँ कोई भी नहीं रहता है, कि हम अकेले रह सकें और थोड़ी देर आराम कर सकें।" उन्होंने यह कहा क्योंकि कई लोग लगातार उनके पास आ और जा रहे थे, जिसके परिणामस्वरूप यीशु और उनके शिष्यों को खाने या कुछ भी करने का समय नहीं मिला।
\v 32 इसलिए वे एक नाव में एक जगह पर चले गए, जहाँ कोई भी नहीं रहता था।
\s5
\v 33 परन्तु बहुत से लोगों ने उन्हें जाते हुए देखा था। उन्होंने यह भी देखा कि वे यीशु और उनके शिष्य थे, और उन्होंने देखा कि वे कहाँ जा रहे थे। इसलिए वे सभी पास के नगरों से उस जगह की ओर आगे बढ़े, जहाँ यीशु और उनके शिष्य जा रहे थे। वे वास्तव में यीशु और शिष्यों से पहले वहाँ पहुँच गए।
\v 34 जब यीशु और उनके शिष्य नाव से उतरे, तो यीशु ने इस बड़ी भीड़ को देखा। यीशु को उन पर दया आई, क्योंकि वे परेशान थे, ऐसी भेड़ों के समान जिनके पास चरवाहा नहीं था। इसलिए यीशु ने उन्हें बहुत सी बातें सिखाईं।
\p
\s5
\v 35 देर दोपहर बाद शिष्यों ने उनके पास आकर कहा, "यह एक ऐसी जगह है जहाँ कोई नहीं रहता है, और बहुत देर हो चुकी है।
\v 36 इसलिए लोगों को विदा करें कि वे आसपास के स्थानों में जा सकें, जहाँ लोग रहते हैं और गाँवों में वे कुछ खरीद कर खा सकें!"
\s5
\v 37 "परन्तु यीशु ने उनसे कहा," नहीं, तुम उन्हें खाने के लिए कुछ दो!" उन्होंने उत्तर दिया, "हम इस भीड़ को खिलाने के लिए पर्याप्त रोटी नहीं खरीद सकते हैं, चाहे हमारे पास 200 दिनों के काम से कमाया गया पैसा हो।
\v 38 यीशु ने उनसे कहा, "तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं? जाओ और पता करो!" वे गए और पता किया, और फिर उन्होंने उनसे कहा, "हमारे पास केवल पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं!"
\s5
\v 39 उन्होंने शिष्यों को निर्देश दिया कि वे सभी लोगों को हरी घास पर बैठने के लिए कहें।
\v 40 इसलिए लोग समूह में बैठ गए। कुछ समूहों में पचास लोग और दूसरे समूह में एक सौ लोग थे।
\v 41 यीशु ने पाँच रोटियों और दो मछलियों को लिया और स्वर्ग की ओर देखा और उनके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर उन्होंने रोटियों और मछलियों को टुकड़ों में तोड़ दिया और उन्हें शिष्यों को दे दिया कि वे उन्हें लोगों में बाँटें।
\s5
\v 42 लोगों ने तब तक खाया, जब तक कि उनका पेट नहीं भरा!
\v 43 फिर शिष्यों ने रोटी के टुकड़े और मछलियों से बारह टोकरियाँ भरकर उठाईं।
\v 44 वे पाँच हजार पुरुष थे जिन्होंने मछलियाँ और रोटियाँ खाईं। उन्होंने महिलाओं और बच्चों की गिनती नहीं की थी।
\p
\s5
\v 45 ठीक उसी समय, यीशु ने अपने शिष्यों को नाव में चढ़ने के लिए कहा और फिर अपने आगे बैतसैदा को भेज दिया, जो कि गलील सागर के आसपास था। और भीड़ को विदा करने के लिए वह वहीं रहे जो वहाँ थे।
\v 46 लोगों को विदा करने के बाद, वह प्रार्थना करने के लिए पहाड़ों पर चले गए।
\v 47 जब शाम हुई, तो शिष्यों की नाव झील के बीच में थी, और यीशु स्वयं भूमि पर थे।
\s5
\v 48 उन्होंने देखा कि हवा उनके विरुद्ध चल रही है क्योंकि वे नाव में थे। जिसके कारण, वे बड़ी कठिनाई में थे। वह सुबह जल्दी जब अँधेरा ही था उनके पास पानी पर चलकर पहुँचे, उनकी इच्छा शिष्यों से पहले पहुँचने की थी।
\v 49 उन्होंने यीशु को पानी पर चलते देखा, तो सोचा कि वह भूत है। वे चिल्लाए
\v 50 क्योंकि वे उन्हें देखकर डर गए थे। परन्तु उन्होंने उनसे कहा, "शांत हो जाओ, डरो मत, क्योंकि यह मैं हूँ!"
\s5
\v 51 वह नाव में गए और उनके साथ बैठ गए और हवा का बहना बंद हो गया। जो उन्होंने किया उससे वे बहुत आश्चर्यचकित थे।
\v 52 जबकि उन्होंने देखा था कि यीशु ने पाँच रोटी और दो मछली को बढ़ा दिया था, उन्हें समझ नहीं आया कि वह कितने सामर्थी थे, जैसा कि उन्हें होना चाहिए था।
\p
\s5
\v 53 जब वे एक नाव में गलील सागर की ओर से थोड़ा दूर चले तो वे गन्नेसरत के तट पर आए। फिर उन्होंने वहाँ नाव को बाँध दिया।
\v 54 जब वे नाव से बाहर निकल आए, तो वहाँ के लोग यीशु को पहचानते थे।
\v 55 उन्होंने पूरे क्षेत्र में भागकर दूसरों को बताया कि यीशु वहाँ हैं। तब लोगों ने उन लोगों को खाटों पर रखा जो बीमार थे और वे उन्हें उस हर एक स्थान में ले गए जहाँ उन्होंने लोगों को यह कहते सुना कि यीशु थे।
\s5
\v 56 जिस भी गाँव, शहर या स्थान जहाँ वह गए, वहाँ जो भी बीमार थे, लोग उनको बाजारों में लेकर आए। तब बीमार लोगों ने यीशु से विनती की कि वह उन्हें उनको या उनके कपड़े के किनारे को छूने दे जिससे कि यीशु उन्हें ठीक कर सकें। वे सब जिसने उन्हें या उसके वस्त्र को छुआ वे ठीक हो गए।
\s5
\c 7
\p
\v 1 एक दिन कुछ फरीसी और कुछ लोग जो यहूदी नियमों को पढ़ाते थे वे यरूशलेम से आए और यीशु के पास एकत्र हुए।
\s5
\v 2 फरीसियों ने देखा कि यीशु के शिष्य अपने हाथों को धोए बिना भोजन करते थे।
\v 3-4 वे और अन्य यहूदी अपने पूर्वजों की परंपराओं का सख्ती से पालन करते थे। विशेष करके वे एक विशेष रूप से अपने कटोरों बर्तनों, पात्रों और बिस्तरों को विधि अनुसार धोते थे कि इन वस्तुओं का प्रयोग करने से परमेश्वर उन्हें अस्वीकार न कर दें। उदाहरण के लिए, वे तब तक खाना नहीं खाते थे जब तक कि वे विशेष रूप से अपने हाथों को विशेष विधि के अनुसार धो न लें, विशेषकर के बाज़ार से सामान खरीद कर लौटने के बाद। ऐसी कई अन्य परम्पराएँ हैं जो वे मानते हैं और उनका पालन करने का प्रयास करते हैं।
\p
\s5
\v 5 उस दिन, फरीसियों और यहूदी कानूनों को पढ़ाने वाले पुरुषों ने देखा कि यीशु के कुछ शिष्य अपने हाथों को विशेष विधि के अनुसार धोए बिना अपने हाथों से भोजन कर रहे थे। इसलिए उन्होंने यीशु से प्रश्न किया, "आपके शिष्य हमारे प्राचीनों की परम्पराओं का पालन नहीं करते हैं! वे भोजन क्यों करते हैं अगर उन्होंने हमारी विधि के अनुसार अपने हाथों को नहीं धोया है!"
\s5
\v 6 यीशु ने उनसे कहा, "यशायाह ने तुम्हारे पूर्वजों की निन्दा की, और उसके शब्द तुम लोगों का अच्छी तरह से वर्णन करते हैं जो केवल अच्छा होने का दिखावा करते हैं। उसने इन शब्दों को लिखा है कि परमेश्वर ने कहा: 'ये लोग बोलते हैं जैसे कि वे मुझे सम्मान देते हैं, परन्तु वे मुझे सम्मानित करने के बारे में बिलकुल सोच भी नहीं सकते हैं।
\v 7 वे व्यर्थ ही मेरी आराधना करते हैं, क्योंकि वे लोगों को केवल वही पढ़ाते हैं जो लोग कहते हैं जैसे कि मैंने स्वयं उन्हें यह करने के लिए कहा हो।'
\p
\s5
\v 8 तुमने अपने पूर्वजों की तरह परमेश्वर की आज्ञा मानने से मना कर दिया। इसकी अपेक्षा, तुम केवल उन परंपराओं का पालन करते हो जिन्हें दूसरों ने सिखाया है।"
\v 9 यीशु ने उनसे कहा, "तुम सोचते हो कि तुम चालाक हो जो परमेश्वर के आदेशों का पालन करने से इन्कार कर रहे हो जिससे कि तुम अपनी परम्पराओं का पालन कर सको!
\v 10 उदाहरण के लिए, हमारे पूर्वज मूसा ने परमेश्वर की आज्ञा को लिखा, 'अपने पिता और अपनी माता का सम्मान कर'। उसने यह भी लिखा, 'अधिकारियों को उस व्यक्ति को प्राणदण्ड देना चाहिए जो अपने पिता या माता के बारे में बुरा बोलता है।'
\s5
\v 11-12 लेकिन तुम लोगों को यह सिखाते हो कि अगर कोई अपने माता-पिता की सहायता नहीं करता तो यह ठीक है। तुम लोगों को यह सिखाते हो कि अगर वे अपने माता-पिता के स्थान में परमेश्वर को वह दें जो उन्हें परमेश्वर को देना है तो यह उचित है। तुम उन्हें अपने माता-पिता से कहने की अनुमति देते हो, 'मैं तुम्हारे लिए जो कुछ देने वाला था, मैंने अब वह परमेश्वर को देने की प्रतिज्ञा की। इसलिए मैं अब तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता!' अत: तुम वास्तव में लोगों को बता रहे हो कि अब उन्हें अपने माता-पिता की सहायता नहीं करनी है!
\v 13 इस प्रकार तुम इस बात की उपेक्षा करते हो कि परमेश्वर ने क्या आज्ञा दी है! तुम अपनी स्वयं की बातें दूसरों को सिखाते हो और उन्हें बताते हो कि उन्हें उनका पालन करना चाहिए! और तुम ऐसे कई अन्य काम करते हो।"
\p
\s5
\v 14 तब यीशु ने फिर से लोगों को करीब आने के लिए बुलाया। तब उन्होंने उनसे कहा, "तुम सब लोग जो मेरी बातें सुनते हो! समझने की कोशिश करो कि मैं तुमसे क्या कह रहा हूँ।
\v 15 जो कुछ मनुष्य खाता है परमेश्वर उसके कारण उसे अशुद्ध नहीं मानते। इसके विपरीत, जो कुछ मनुष्य के भीतरी मन से निकलता है उससे परमेश्वर उसको अशुद्ध ठहराते हैं।"
\p
\s5
\v 17 यीशु ने भीड़ को छोड़कर, शिष्यों के साथ एक घर में प्रवेश किया। उन्होंने उनसे इस दृष्टान्त के बारे में पूछा जो उन्होंने बोला था।
\v 18 उन्होंने उनको उत्तर दिया, "क्या तुम समझ नहीं पाए कि इसका क्या मतलब है? तुम्हें यह समझना चाहिए कि जो बाहर से अन्दर प्रवेश करता है उसे परमेश्वर अशुद्ध नहीं समझते हैं।
\v 19 हमारे मन में प्रवेश करने और अशुद्ध करने की अपेक्षा, यह हमारे पेट में जाता है, और बाद में हमारे शरीर से निकल जाता है।" यह कहकर, यीशु यह घोषणा कर रहे थे कि लोग बिना किसी विचार के भोजन को खा सकते हैं जिससे कि परमेश्वर उन्हें अशुद्ध करने का विचार न करे।
\s5
\v 20 उन्होंने यह भी कहा, "यह वह विचार और कार्य हैं जो लोगों के भीतर से आते हैं, जिससे परमेश्वर उन्हें अशुद्ध मानते हैं।
\v 21 यह लोगों का आन्तरिक अस्तित्व ही है जो बुरी बातों के सोचने का कारण बनता है; वे अनैतिक काम करते हैं, वे चोरी करते हैं, वे हत्या करते हैं।
\v 22 वे व्यभिचार करते हैं, वे लालच करते हैं, वे बुरे विचार से कार्य करते हैं, वे लोगों को धोखा देते हैं, वे अशिष्ट व्यवहार करते हैं, वे लोगों से ईर्ष्या करते हैं, वे दूसरों के बारे में बुरा बोलते हैं, वे गर्व करते हैं, और वे मूर्खता से कार्य करते हैं।
\v 23 ऐसे विचार लोगों के मन में होते हैं और फिर वे इन बुरे कामों को करते हैं, और यही कारण है कि परमेश्वर उन्हें अपवित्र ठहराते हैं।"
\p
\s5
\v 24 यीशु और उनके शिष्य गलील से निकल कर वे सोर और सीदोन शहरों के आसपास के क्षेत्र में चले गए। जब वह किसी निश्चित घर में ठहरे तब वह नहीं चाहते थे कि कोई उन्हें जान सके, परन्तु लोगों को शीघ्र ही पता चल गया कि वह वहाँ हैं।
\v 25 एक स्त्री ने, जिसकी बेटी में दुष्ट-आत्मा थी, यीशु के बारे में सुना। वह उनके पास आई और उनके पैरों में गिर गई।
\v 26 यह महिला एक यहूदी नहीं थी। उसके पूर्वज भी यहूदी नहीं थे। वह स्वयं सीरिया के क्षेत्र में फीनीके क्षेत्र के आसपास के क्षेत्र में जन्मी थी। उसने यीशु से विनती की कि वह उसकी बेटी के भीतर से दुष्ट-आत्मा को निकाल दे।
\s5
\v 27 उन्होंने स्त्री से कहा, "पहले बच्चों को वह सब खाने दो जो वे चाहते हैं, क्योंकि किसी के लिए यह उच्चित नहीं कि माँ के द्वारा बच्चों के लिए तैयार किए गए भोजन को लेकर कुत्तों के आगे फेंक दे।"
\v 28 उसने कहा, "महोदय, आप जो कहते हैं वह सही है, परन्तु यहाँ तक कि कुत्ते भी, जो मेज़ के नीचे बैठते हैं, बच्चों के द्वारा गिराए हुए टुकड़ों को खाते हैं।"
\s5
\v 29 यीशु ने उससे कहा, "तूने जो कहा है, उसके कारण घर जा। मैंने दुष्ट-आत्मा को तेरी बेटी में से निकाल दिया है।"
\v 30 वह महिला अपने घर लौट आई और उसने देखा कि उसकी बेटी खाट पर चुपचाप पड़ी है और दुष्ट-आत्मा निकल गई है।
\p
\s5
\v 31 यीशु और उनके शिष्यों ने सोर के क्षेत्र को छोड़ दिया और उत्तर में सीदोन क्षेत्र में गए, फिर पूर्व में दस नगरों के क्षेत्र में, और फिर दक्षिणी गलील समुद्र के नगरों के पास गए।
\v 32 वहाँ लोग उनके पास एक व्यक्ति को लाए जो बहरा था और बोल नहीं पाता था। उन्होंने यीशु से विनती की कि वह उसे ठीक करने के लिए उस पर हाथ रखे।
\s5
\v 33 इसलिए यीशु उसे भीड़ से दूर ले गए ताकि वह दोनों अकेले हों। फिर उन्होंने अपनी ऊँगलियों में से एक को उसके हर एक कानों में डाल दिया। अपनी ऊँगलियों पर थूकने के बाद, उन्होंने अपनी ऊँगलियों से मनुष्य की जीभ को छुआ।
\v 34 तब उन्होंने ऊपर स्वर्ग की ओर देखा, उन्होंने आँह भरी और फिर अपनी भाषा में उस मनुष्य के कानों में कहा, "एफ़फाथा," जिसका अर्थ है, "खुल जा!"
\v 35 अब वह व्यक्ति स्पष्ट रूप से सुन सकता था। उसने स्पष्ट रूप से बात करना भी आरंभ कर दिया था, क्योंकि उसे बोलने में असमर्थ होने से ठीक किया गया था।
\s5
\v 36 यीशु ने लोगों से कहा कि उन्होंने जो कुछ भी किया था उसे किसी को न बताना। यद्यिप यीशु ने उन्हे और अन्य सब लोगों से कहा कि इसके बारे में किसी से कुछ न कहें परन्तु वे इसके बारे में और अधिक चर्चा करने लगे।
\v 37 जो लोग इसके बारे में सुनते थे, वे बहुत ही आश्चर्यचकित होते थे और कहते थे, "उन्होंने जो कुछ किया वह अद्भुत है। आश्चर्यजनक कामों को करने के अतिरिक्त, वह बहरे लोगों को सुनने योग्य भी बनाते हैं और वह उनको बोलने में सक्षम बनाते हैं जो बोल नहीं सकते हैं!"
\s5
\c 8
\p
\v 1 उन दिनों, लोगों की एक बड़ी भीड़ फिर से एकत्र हुई। दो दिनों तक वहाँ रहने के बाद, भीड़ के पास खाने के लिए भोजन नहीं था। इसलिए यीशु ने शिष्यों को अपने पास बुलाया, और फिर उनसे कहा,
\v 2 "ये लोग तीन दिन से मेरे साथ हैं, और इनके पास खाने के लिए कुछ नहीं बचा है, इसलिए अब मैं इनके लिए बहुत चिंतित हूँ।
\v 3 इनके भूखे रहने के बाबजूद भी अगर मैं इन्हें घर भेजता हूँ तो इनमें से कुछ तो घर के रास्ते में ही बेहोश हो जाएँगे, क्योंकि कुछ लोग तो बहुत दूर से आए हैं।"
\v 4 शिष्यों को मालूम था कि यीशु सुझाव दे रहे थे कि वे लोगों को खाने के लिए कुछ दें, तो शिष्यों में से एक ने उत्तर दिया, "हम इस भीड़ के लिए पर्याप्त भोजन का प्रबंध नहीं कर सकते हैं क्योंकि यहाँ कोई नहीं रहता है।"
\s5
\v 5 यीशु ने अपने शिष्यों से पूछा, "तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?" उन्होंने उत्तर दिया, "हमारे पास सात रोटियाँ हैं।"
\v 6 यीशु ने भीड़ को आज्ञा दी, "जमीन पर बैठ जाओ!" जब वे बैठ गए, तो उन्होंने सात रोटियाँ लीं, उनके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया, उन्हें टुकड़ों में तोड़ दिया, और उन्हें अपने शिष्यों को दे दिया ताकि लोगों में बाँटा जा सके।
\s5
\v 7 उन्होंने यह भी देखा कि उनके पास कुछ छोटी मछलियाँ थीं। अत: इनके लिए परमेश्वर का धन्यवाद करने के बाद, उन्होंने शिष्यों से कहा, "इन्हें भी बाँट दो।" भीड़ को मछली बाँटने के बाद,
\v 8 लोगों ने जब पेट भरकर भोजन खा लिया, और सन्तुष्ट हो गए। तो शिष्यों ने भोजन के टुकड़ों को इकट्ठा किया और सात बड़े टोकरे भर दिए।
\v 9 शिष्यों ने अनुमान लगाया कि उस दिन लगभग चार हजार लोग खा चुके थे। फिर यीशु ने भीड़ को विदा कर दिया।
\v 10 इसके तुरंत बाद, वह अपने शिष्यों के साथ नाव में चढ़ गए, और गलील सागर के पास दलमनूता प्रदेश में चले गए।
\p
\s5
\v 11 कुछ फरीसी यीशु के पास आए। उन्होंने उनके साथ विवाद करना आरंभ कर दिया और दवाब दिया कि वह यह दिखाने के लिए एक चमत्कार करे कि परमेश्वर ने उन्हें भेजा है।
\v 12 यीशु ने मन में सोचा, और फिर उन्होंने उनसे कहा, "तुम मुझसे एक चमत्कार करने के लिए क्यों कह रहे हो? मैं तुम्हारे लिए चमत्कार नहीं करूँगा!"
\v 13 तब उन्होंने उनको छोड़ दिया। वह फिर से अपने शिष्यों के साथ नाव में गए, और वे पार चले गए।
\s5
\v 14 शिष्य भोजन साथ लाना भूल गए थे। विशेष रूप से, उनके पास नाव में केवल एक रोटी थी।
\v 15 जब वे जा रहे थे, तो यीशु ने उन्हें चेतावनी दी और कहा, "सचेत रहो! फरीसियों और हेरोदेस के खमीर से सावधान रहो!"
\s5
\v 16 शिष्यों ने उन्हें गलत समझा। इसलिए उन्होंने एक दूसरे से कहा, "उन्होंने यह इसलिए कहा होगा कि हमारे पास कोई रोटी नहीं है।"
\v 17 यीशु जानते थे वे एक दूसरे से क्या चर्चा कर रहे थे। इसलिये उन्होंने उनसे कहा, "तुम पर्याप्त रोटी न होने के बारे में क्यों बात कर रहे हो? तुमको समझ लेना चाहिए कि मैंने अब तक क्या कहा है! क्या तुम विचार नहीं कर रहे हो!
\s5
\v 18 तुम्हारे पास आँखें हैं, लेकिन तुम जो देखते हो उसे समझ नहीं पा रहे हो! तुम्हारे पास कान हैं, लेकिन तुम जो कुछ सुन रहे हो उसे समझ नहीं सकते!" फिर उन्होंने पूछा, "क्या तुम्हें याद नहीं है कि क्या हुआ
\v 19 जब मैंने केवल पाँच रोटियाँ तोड़ी थी और पाँच हजार लोगों को खाना खिलाया था? न केवल सभी संतुष्ट थे, लेकिन वहाँ पर खाना बच भी गया था! रोटी के टुकड़ों के कितने टोकरे थे, जो उठाए गए थे?" उन्होंने उत्तर दिया, "हम ने बारह टोकरे भरे थे।"
\s5
\v 20 फिर उन्होंने पूछा, "जब मैंने चार हज़ार लोगों को खिलाने के लिए सात रोटियों को तोड़ा था, फिर जब सब के खाने के लिए पर्याप्त था, तब रोटी के टुकड़ों के कितने बड़े टोकरे उठाए गए थे?" उन्होंने उत्तर दिया, "हमने सात बड़े टोकरे उठाए थे।"
\v 21 फिर उन्होंने उनसे कहा, "क्या तुम समझते नहीं हो?"
\p
\s5
\v 22 वे नाव से बैतसैदा पहुँचे। लोग यीशु के पास एक अंधे व्यक्ति को लाए और उनसे विनती की कि वह उसे चंगाई देने के लिए छू ले।
\v 23 यीशु ने अंधे व्यक्ति का हाथ पकड़ लिया और उसे शहर के बाहर ले गए। फिर उन्होंने व्यक्ति की आँखों में थूक कर अपना हाथ व्यक्ति की आँखों पर रख दिया और फिर उससे पूछा, "क्या तू कुछ देख पा रहा है?"
\s5
\v 24 व्यक्ति ने देखा और फिर कहा, "हाँ, मैं लोगों को देखता हूँ! वे चारों ओर घूम रहे हैं, लेकिन मैं उन्हें स्पष्ट रूप से नहीं देख सकता। वे पेड़ों के समान दिखते हैं!"
\v 25 यीशु ने फिर से अंधे व्यक्ति की आँखों को छूआ। व्यक्ति ने तुरन्त देखा, और उस पल में वह पूरी तरह से स्वस्थ हो गया! अब वह सब कुछ स्पष्ट रूप से देख सकता था।
\v 26 यीशु ने उस से कहा, "नगर में मत जा!" फिर उन्होंने उस व्यक्ति को उसके घर भेज दिया।
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\s5
\v 27 यीशु और शिष्य बैतसैदा छोड़कर कैसरिया फिलिप्पी के पास के गाँवों में गए; रास्ते में उन्होंने उनसे सवाल किया, "लोग मुझे क्या कहते हैं?"
\v 28 उन्होंने कहा, "कुछ लोग कहते हैं कि आप यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले हैं, दूसरे कहते हैं कि आप एलिय्याह भविष्यद्वक्ता हैं और अन्य लोग कहते हैं कि आप पहले के भविष्यद्वक्ताओं में से कोई एक हैं।"
\s5
\v 29 उन्होंने उनसे पूछा, "मेरे बारे में तुम्हारा क्या विचार है? तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?" पतरस ने उनसे कहा, "आप मसीह हैं!"
\v 30 फिर यीशु ने उन्हें चेतावनी दी कि वे किसी से न कहें कि वह मसीह हैं।
\p
\s5
\v 31 फिर यीशु ने उन्हें शिक्षा देना शुरू कर दिया कि वह, मनुष्य के पुत्र, निश्चित रूप से बहुत दुःख उठाएंगे। वह प्राचीनों, महायाजकों, और यहूदी व्यवस्था को पढ़ाने वाले पुरुषों द्वारा अस्वीकृत कर दिए जाएँगे। वह मार भी डाले जाएँगे। लेकिन मरने के तीसरे दिन के बाद वह फिर से जीवित हो जाएँगे।
\v 32 उन्होंने उन्हें यह स्पष्ट रूप से कहा। परन्तु पतरस यीशु को अलग ले गया और इस तरह बात करने के लिए उन्हें डाँटा।
\s5
\v 33 यीशु ने फिर कर अपने शिष्यों को देखा। फिर उन्होंने पतरस को झिड़क कर कहा, "ऐसा सोचने का प्रयास मत कर! शैतान तुझे ऐसा कहने के लिए प्रेरित कर रहा है! इसकी अपेक्षा कि परमेश्वर मुझसे क्या कराना चाहते हैं, तुम चाहते हो कि मैं केवल वही करूँ जो लोग मुझसे चाहते हैं।
\p
\v 34 तब उन्होंने अपने शिष्यों के साथ भीड़ को बुलाया ताकि वे भी उन्हें सुन सकें। उन्होंने उनसे कहा, "यदि तुम में से कोई भी मेरा शिष्य बनना चाहता है, तो तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए, जो तुमको आसानी से जीवित रखे। तुम्हें उन अपराधियों जैसे पीड़ित होने के लिए तैयार रहना चाहिए, जिन्हें अपना क्रूस उठाकर उस स्थान पर ले जाने के लिए तैयार होना चाहिए जहाँ उन्हें क्रूस पर चढ़ाया जाएगा। जो कोई भी मेरा शिष्य बनना चाहता है, उसे यही करना होगा।
\s5
\v 35 तुम्हें ऐसा करना होगा, क्योंकि जो लोग अपना जीवन बचाने का प्रयास करते हैं, और मेरे साथ अपने संबन्ध से इन्कार करते हैं, वे अपना जीवन खो देंगे। जो लोग इसलिए मारे गए हैं कि वे मेरे शिष्य हैं और मनुष्यों को सुसमाचार सुनाते हैं, वे सदा मेरे साथ रहेंगे।
\v 36 लोगों को इस संसार में वह सब कुछ मिल सकता है, जो वे चाहते हैं, परन्तु वे वास्तव में कुछ नहीं प्राप्त कर रहे हैं यदि वे अनन्त जीवन प्राप्त नहीं करते हैं!
\v 37 इस तथ्य के बारे में सावधानी से सोचें कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो लोग परमेश्वर को दे सकते हैं, जिससे कि वे अनन्त जीवन प्राप्त कर पाएँ!
\s5
\v 38 और इस बारे में सोचें: जो लोग यह कहने से इन्कार करते हैं कि वे मेरे हैं, और जो अनेक लोग परमेश्वर से अलग हो गए हैं और अत्यधिक पापी हैं, मेरी बातों को स्वीकार नहीं करते हैं, तो मैं, मनुष्य का पुत्र भी यह कहने से इन्कार कर दूँगा कि वे मेरे लोग हैं, जब मैं पवित्र स्वर्गदूतों के साथ वापस आऊँगा और मेरे पिता की महिमा में होऊँगा।
\s5
\c 9
\p
\v 1 उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, "ध्यान से सुनो! तुम में से कुछ लोग जो इस समय यहाँ हैं, वे परमेश्वर को महान सामर्थ्य के साथ राजा के रूप में प्रकट होता देखेंगे। तुम मरने से पहले उन्हें ऐसा करते देखोगे।
\p
\v 2 छः दिन बाद यीशु ने पतरस, याकूब और याकूब के भाई यूहन्ना को साथ लिया और उन्हें एक ऊँचे पर्वत पर ले गए। जब वे वहाँ ऊपर अकेले थे, तो वे उनको बहुत अलग दिखाई दे रहे थे।
\v 3 उनके कपड़े चमकदार सफेद हो गए। पृथ्वी पर कोई भी उनके वस्त्रों को साफ करके वैसा सफेद नहीं बना सकता था।
\s5
\v 4 दो भविष्यद्वक्ता जो बहुत पहले थे, मूसा और एलिय्याह उनको दिखाई दिए। तब उन दोनों ने यीशु के साथ बाते करना आरंभ कर दिया।
\v 5 थोड़े समय के बाद, पतरस ने कहा, "हे गुरू, यहाँ आना बहुत अच्छा है, इसलिए हमें तीन तम्बुओं का निर्माण करने की अनुमति दो, एक आपके लिए होगा, एक मूसा के लिए होगा, और एक एलिय्याह के लिए होगा!"
\v 6 उसने यह कहा क्योंकि वह कुछ कहना चाहता था, लेकिन उसे नहीं पता था कि क्या कहना है। वह और दूसरे दो शिष्य डर गए थे।
\s5
\v 7 फिर एक चमकीला बादल दिखाई दिया, जिसने उन्हें घेर लिया। परमेश्वर ने उनसे बादल में से कहा, "यह मेरा पुत्र है। यह वही है जिसे मैं प्रेम करता हूँ। इसलिए, उनकी बात सुनो!"
\v 8 जब तीनों शिष्यों ने चारों ओर देखा, तो उन्होंने देखा कि अचानक यीशु उनके साथ अकेले थे, और अब वहाँ कोई और नहीं था।
\p
\s5
\v 9 जब वे पहाड़ से नीचे आ रहे थे, तब यीशु ने उनसे कहा कि जो भी अभी उनके साथ हुआ वह किसी को न बताएँ। उन्होंने कहा, "तुम बाद में उन्हें बता देना, जब मैं, मनुष्य का पुत्र, मरने के बाद जी उठूँगा।"
\v 10 इसलिए उन्होंने दूसरों को इसके बारे में लंबे समय तक नहीं बताया परन्तु आपस में विचार किया इसका अर्थ क्या था जब उन्होंने कहा कि वह मरे हुओं में से जी उठेंगे।
\p
\s5
\v 11 उन्होंने यीशु से पूछा, "जो लोग हमारे नियमों को सिखाते हैं, कहते हैं कि मसीहा के पृथ्वी पर आने से पहले एलिय्याह का पृथ्वी पर वापस आना आवश्यक है?"
\v 12-13 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, "यह सच है कि परमेश्वर ने एलिय्याह के पहले आने की प्रतिज्ञा की है। एलिय्याह तो पहले ही आ चुका है, और हमारे अगुवों ने उसके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया, ठीक जैसे वे करना चाहते थे, जैसे भविष्यद्वक्ताओं ने बहुत पहले कहा था कि वे ऐसा करेंगे, परन्तु मेरे बारे में, मनुष्य के पुत्र के लिए धर्मशास्त्र में बहुत कुछ लिखा हुआ है। धर्मशास्त्र का कहना है कि मुझे बहुत दुःख उठाना होगा और लोग मुझे अस्वीकार करेंगे।
\p
\s5
\v 14 तब यीशु और वे तीनों शिष्य वहाँ पहुँचे, जहाँ दूसरे शिष्य थे। उन्होंने शिष्यों के चारों ओर एक बड़ी भीड़ देखी, और कुछ यहूदी नियमों की शिक्षा देने वाले पुरुष उनके साथ विवाद कर रहे थे।
\v 15 उन्हें आता हुआ देखकर भीड़ बहुत आश्चर्यचकित थी। इसलिए वे दौड़कर उनके पास पहुँचे और उन्हें नमस्कार किया।
\v 16 यीशु ने उनसे पूछा, "तुम किस बारे में विवाद कर रहे हो?"
\s5
\v 17 भीड़ में से एक व्यक्ति ने उन्हें उत्तर दिया, "हे गुरू, मैं अपने पुत्र को यहाँ लाया था कि आप उसे ठीक करें। उसमें एक दुष्ट-आत्मा है जो उसे बात करने में असमर्थ करती है।
\v 18 जब भी आत्मा उस को नियंत्रित करना शुरू करती है, तब उसे नीचे फेंक देती है। वह मुँह से झाग उगलता है, वह अपने दाँतों को एक साथ पीसता है, और वह अकड़ जाता है। मैंने आपके शिष्यों से दुष्ट-आत्मा को निकालने को कहा, परन्तु वे ऐसा करने में समर्थ नहीं हुए।"
\v 19 यीशु ने उन लोगों से कहा "हे अविश्वासी लोगों, तुम मेरे धीरज की परीक्षा करते हो! लड़के को मेरे पास लाओ।"
\s5
\v 20 अतः वे लड़के को यीशु के पास लेकर आए। जैसे ही दुष्ट-आत्मा ने यीशु को देखा, तो उसने लड़के को बुरी तरह से हिलाकर रख दिया, और लड़का जमीन पर गिर गया। वह चारों तरफ लोटने लगा और उसके मुँह से झाग आने लगा।
\v 21 यीशु ने लड़के के पिता से पूछा, "इसे कितना समय हो गया है। उसने उत्तर दिया, "यह तब आरम्भ हुआ जब वह बच्चा था।
\v 22 आत्मा न केवल ऐसा करता है, वरन् वह उसे मारने के लिए प्रायः आग में या पानी में डाल देता है। यदि आप कर सकते हैं तो हम पर दया करो और हमारी सहायता करो!"
\s5
\v 23 यीशु ने उससे कहा, "मैं कर सकता हूँ! परमेश्वर उन लोगों के लिए कुछ भी कर सकते हैं जो उन पर विश्वास करते हैं!"
\v 24 तुरन्त बच्चे के पिता ने चिल्ला कर कहा, "मुझे विश्वास है कि आप मेरी सहायता कर सकते हैं, लेकिन मुझे पक्का विश्वास नहीं है। अधिक दृढ़ता से विश्वास करने में मेरी सहायता करें!"
\v 25 यीशु ने देखा कि भीड़ बढ़ रही थी। उन्होंने दुष्ट-आत्मा को डाँटा: "हे दुष्ट-आत्मा, इस लड़के को सुनने और बात करने में तूने असमर्थ किया है, मैं तुझे बाहर आने के लिए और उसमें फिर से प्रवेश न करने के लिए कहता हूँ!"
\s5
\v 26 दुष्ट-आत्मा ने चिल्लाकर लड़के को हिंसक रूप से हिलाकर रख दिया; दुष्ट-आत्मा ने लड़के का शरीर छोड़ दिया। परन्तु लड़का नहीं हिला। वह एक मरे हुए का सा दिख रहा था। इसलिए अधिकांश लोगों ने कहा, "वह मर चुका है!"
\v 27 यीशु ने उसे हाथ से पकड़ा और उसे उठने में सहायता की। फिर लड़का खड़ा हो गया।
\s5
\v 28 बाद में, जब यीशु और उनके शिष्य अकेले एक घर में थे, तो उन्होंने उनसे पूछा, "हम दुष्ट-आत्मा को बाहर क्यों नहीं निकाल सके?"
\v 29 उन्होंने उनसे कहा, "तुम इस तरह की बुरी आत्मा को प्रार्थना ही से बाहर निकाल सकते हो। दूसरा कोई और रास्ता नहीं है।"
\p
\s5
\v 30 यीशु और उनके शिष्यों ने उस क्षेत्र को छोड़ दिया, तब वे गलील से होकर यात्रा करने लगे। यीशु नहीं चाहते थे कि कोई और जान सके कि वह कहाँ थे।
\v 31 वह अपने शिष्यों को शिक्षा देने के लिए समय चाहते थे। वह उनसे कह रहे थे, "कुछ दिनों में मेरे शत्रु मुझे बन्दी बनाएँगे, और मुझे अन्य मनुष्यों के हाथों में दे दिया जाएगा, ये लोग मुझे मार डालेंगे, लेकिन मरने के बाद तीसरे दिन मैं फिर जीवित हो जाऊँगा!"
\v 32 वे समझ नहीं पा रहे थे कि वह क्या कह रहे थे, और वे उनसे पूछने से डरते थे कि उनके कहने का अर्थ क्या था।
\p
\s5
\v 33 फिर यीशु और उनके शिष्य कफरनहूम लौट आए। जब वे घर में थे, तो उन्होंने उनसे पूछा, "जब तुम यात्रा कर रहे थे, तब तुम क्या बात कर रहे थे?"
\v 34 लेकिन उन्होंने उत्तर नहीं दिया। वे एक दूसरे के साथ विवाद कर रहे थे कि उनमें से कौन सबसे महत्वपूर्ण था।
\v 35 वह बैठ गए, उन्होंने बारह शिष्यों को अपने निकट बुलाया और फिर उनसे कहा, "यदि कोई चाहता है कि परमेश्वर उसे सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण समझे तो उसे स्वयं को छोटा मानकर सबकी सेवा करनी चाहिए।
\s5
\v 36 फिर उन्होंने एक बच्चे को लिया और उसे उनके बीच में खड़ा किया। उन्होंने बच्चे को अपनी बाँहों में लिया और फिर उनसे कहा,
\v 37 "बच्चे को जो लोग इस तरह स्वीकार करते हैं, तो वे मुझसे प्रेम करते हैं, और परमेश्वर मानते हैं कि वे मुझे स्वीकार करते हैं। यह भी सच है कि वे परमेश्वर को भी स्वीकार करते हैं, जिन्होंने मुझे भेजा है।"
\p
\s5
\v 38 यूहन्ना ने यीशु से कहा, "हे गुरू, हम ने देखा है कि एक व्यक्ति लोगों में से दुष्ट-आत्माओं को बाहर आने के लिए विवश कर रहा था। उसने दावा किया कि उसे आपके पास से ऐसा करने का अधिकार था, इसलिए हम ने उसे ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि वह शिष्यों में से नहीं था।"
\v 39 यीशु ने कहा, "उसे ऐसा करने से मत रोकना। क्योंकि मेरे अधिकार के साथ सामर्थ्य के काम करने के बाद कोई भी मेरे बारे में बुरी बातें नहीं कहेगा।
\s5
\v 40 जो लोग हमारा विरोध नहीं कर रहे हैं, वे वही लक्ष्य हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं जो हम कर रहें हैं।
\v 41 परमेश्वर निश्चित रूप से उनको पुरस्कार देंगे जो तुम्हारी किसी भी तरह से सहायता करते हैं, भले ही वे तुम्हें पीने के लिए एक कटोरा पानी दें, क्योंकि तुम मेरे पीछे हो लिए हो, जो मसीह है!
\p
\s5
\v 42 यीशु ने यह भी कहा, "परन्तु यदि तुम उससे पाप करवाओ जो मुझ पर विश्वास करते हैं, तो परमेश्वर तुम्हें कठोर दण्ड देंगे, भले ही वह व्यक्ति इस छोटे बच्चे की तरह सामाजिक रूप से महत्वहीन हो। अगर कोई इनके विश्वास में ठोकर का कारण होता है तो उसकी गर्दन के चारों ओर भारी पत्थर बाँध कर और उसे समुद्र में फेंक दिया जाए। तुम्हारे लिए यह उससे बेहतर होगा कि परमेश्वर तुम्हें उस व्यक्ति को पाप करवाने के लिए दण्ड दे जो मुझ पर विश्वास करता है।
\v 43 इसलिए यदि तुम पाप करने के लिए अपने एक हाथ का उपयोग करना चाहते हो, तो उसका उपयोग न करो! यहाँ तक कि अगर तुमको पाप करने से बचने के लिए अपना हाथ काटकर फेंकना पड़े, तो ऐसा ही करो! यह अच्छा है कि तुम हमेशा जीवित रहो, भले ही तुम पृथ्वी पर बिना एक हाथ के हो। परन्तु यह अच्छा नहीं है कि तुम पाप करो और उसका परिणाम हो कि परमेश्वर तुम्हारे पूरे शरीर को नरक में डाल दे।
\s5
\v 45 यदि तुम अपने पैरों में से एक को पाप करने के लिए काम में लेना चाहते हो, तो उसका उपयोग न करो! यहाँ तक कि अगर तुमको पाप करने से बचने के लिए अपना पैर काट देना है, तो ऐसा ही करो! यह अच्छा है कि तुम हमेशा जीवित रहो, भले ही तुमको पृथ्वी पर रहते हुए अपने पैरों में से एक की कमी हो। परन्तु यह अच्छा नहीं है कि तुम पाप करो और परमेश्वर तुम्हारे पूरे शरीर को नरक में डाल दे।
\s5
\v 47 यदि तुम देखते हो कि तुम्हें पाप करने के लिए बहकाया गया है, तो उन वस्तुओं को देखना बंद करो! यहाँ तक कि अगर तुमको अपनी आँख को बाहर निकालना पड़े और पाप करने से बचने के लिए इसे फेंकना पड़े, तो ऐसा ही करो! सिर्फ एक आँख ही इससे बेहतर है कि परमेश्वर तुम पर शासन करने के लिए सहमत है, इसकी अपेक्षा कि तुम दो आँखों के होते हुए नरक में डाले जाओ।
\v 48 उस जगह में कीड़े सदा लोगों को खाते हैं और आग कभी नहीं बुझती है।"
\p
\s5
\v 49 क्योंकि परमेश्वर हर एक पर आग डालेंगे, जैसे लोग अपने भोजन पर नमक डालते हैं।
\v 50 भोजन पर डालने के लिए नमक उपयोगी होता है, परन्तु यदि उसका स्वाद बिगड़ गया तो फिर यह कैसे नमकीन किया जाएगा। हमें नमक के समान होना हैं जो भोजन को स्वाद देता है और एक दूसरे के साथ शान्ति के साथ जीवन जीना है।"
\s5
\c 10
\p
\v 1 यीशु अपने शिष्यों के साथ उस स्थान से यहूदिया नगर के पार और यरदन नदी के पूर्व की ओर चले गए। जब लोगों की भीड़ फिर से उनके चारों ओर एकत्र हुई, तो उन्होंने फिर से उन्हें उपदेश दिया, जैसा कि वह सामान्यतः करते थे।
\v 2 जब वह उन्हें उपदेश दे रहे थे, कुछ फरीसी उनके पास आए और पूछा, "क्या हमारी व्यवस्था में किसी व्यक्ति को अपनी पत्नी को तलाक देने की अनुमति है?" उन्होंने उनसे इसलिए पूछा ताकि उनके "हाँ" या "न" के उत्तर से उनकी आलोचना कर सकें।
\v 3 उन्होंने उत्तर दिया, "मूसा ने तुम्हारे पूर्वजों को इस बारे में क्या आज्ञा दी?"
\v 4 उनमें से एक ने उत्तर दिया, "मूसा ने आज्ञा दी थी कि कोई पुरुष तलाक के कागज़ात लिख सकता है जिससे कि वह उस स्त्री को छोड़ सके।"
\s5
\v 5 यीशु ने उनसे कहा, "तुम्हारे पूर्वज हठीले होकर अपनी पत्नियों को छोड़ देने में सक्षम होना चाहते थे। यही कारण है कि मूसा ने उस कानून को लिखा था।
\v 6 परन्तु परमेश्वर ने जब मनुष्यों को बनाया, तो लिखा है, 'परमेश्वर ने उन्हें नर और नारी करके बनाया।'
\s5
\v 7 इससे यह भी स्पष्ट होता है कि क्यों परमेश्वर ने कहा, 'जब कोई पुरुष विवाह करता है, तो उसे अपने माता-पिता को छोड़ कर अपनी पत्नी से जुड़ना होगा।
\v 8 वे एक ही व्यक्ति के समान हो जाएँगे। वे अब दो व्यक्तियों के समान नहीं एक तन जैसे होंगे।'
\v 9 क्योंकि यह सच है, एक पुरुष को अपनी पत्नी से अलग नहीं होना चाहिए। परमेश्वर ने उन्हें एक साथ जोड़ा है और वह उन्हें एक साथ रखना चाहते हैं!"
\p
\s5
\v 10 जब यीशु और उनके शिष्य एक घर में अकेले थे, तो शिष्यों ने इस बारे में फिर से उनसे पूछा।
\v 11 उन्होंने उनसे कहा, "परमेश्वर मानते हैं कि जो कोई पुरुष अपनी पत्नी को तलाक दे और दूसरी स्त्री से विवाह करे, वह व्यभिचार करता है।
\v 12 परमेश्वर यह भी मानते हैं कि जो स्त्री अपने पति को तलाक दे और दूसरे पुरुष से विवाह करे, वह व्यभिचार करती है।"
\p
\s5
\v 13 लोग अब बच्चों को यीशु के पास ला रहे थे कि वह उन्हें छूकर आशीर्वाद दें। परन्तु शिष्यों ने उन लोगों को रोका।
\v 14 जब यीशु ने यह देखा तो, वह क्रोधित हो गए। उन्होंने शिष्यों से कहा, "बच्चों को मेरे पास आने दो! उन्हें मना मत करो! जिन लोगों में बच्चों के समान गुण होंगे परमेश्वर उन पर शासन करने के लिए सहमत होंगे।
\s5
\v 15 ध्यान दीजिए: जो लोग बच्चों के समान परमेश्वर को अपने राजा के रूप में नहीं देखते हैं, तो निश्चय है कि परमेश्वर उन पर शासन करने के लिए सहमत नहीं होंगे।"
\v 16 फिर उन्होंने बच्चों को गले लगा कर उन पर हाथ रखा और परमेश्वर से प्रार्थना की कि उनका भला करें।
\p
\s5
\v 17 जब यीशु अपने शिष्यों के साथ फिर से यात्रा पर निकल रहे थे, तो एक व्यक्ति उनके पास दौड़ा आया। उसने यीशु के सामने घुटने टेक कर पूछा, "हे अच्छे गुरू, मुझे अनन्त जीवन पाने के लिए क्या करना चाहिए?"
\v 18 यीशु ने उससे कहा, "तू मुझे अच्छा क्यों कहता है? केवल परमेश्वर ही अच्छे हैं!
\v 19 लेकिन तेरे प्रश्न के उत्तर के लिए, तू मूसा की आज्ञाओं को जानता है: "किसी की हत्या ना करना, व्व्यभिचार नहीं करना, चोरी नहीं करना, झूठा आरोप नहीं लगाना, किसी को धोखा न दो, और अपने पिता और माता का आदर करना।"
\s5
\v 20 उस व्यक्ति ने उनसे कहा, "हे गुरू, जब मैं छोटा था तब ही से मैंने इन सभी आज्ञाओं का पालन किया है।"
\v 21 यीशु ने उसे देखा और उससे प्रेम किया, उन्होंने उससे कहा, "एक बात है जिसे तूने अभी तक नहीं किया, अपने घर जा, अपना सब कुछ बेच दे, और गरीबों को दान कर दे। परिणामस्वरूप, तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा। मैंने जो कुछ कहा है वह तू कर, और मेरे पीछे आ!"
\v 22 जब उसने यीशु के निर्देशों को सुना, तो वह मनुष्य निराश हो गया। वह बहुत दुःखी हुआ, क्योंकि वह बहुत धनवान था।
\s5
\v 23 यीशु ने आस-पास के लोगों को देखा। फिर अपने शिष्यों से कहा, "जो धनी है उन लोगों के लिए बहुत कठिन है कि परमेश्वर उन पर शासन करे।"
\v 24 उन्होंने जो कुछ कहा शिष्य उसके द्वारा उलझन में थे। यीशु ने फिर कहा, "हे मेरे प्रिय मित्रों, किसी का अपने ऊपर परमेश्वर द्वारा शासन करने के लिए सहमत होना बहुत कठिन है।
\v 25 वास्तव में, एक बहुत बड़े जानवर जैसे कि एक ऊँट का सुई के नाके में प्रवेश करना सरल है, परन्तु धनवान लोगों के लिए यह स्वीकार करना आसान नहीं होगा कि परमेश्वर उन पर शासन करे।"
\s5
\v 26 शिष्य बहुत चकित थे। इसलिए उन्होंने एक दूसरे से कहा, "यदि ऐसा है, तो कोई नहीं बच पाएगा!"
\v 27 यीशु ने उनको देखा और फिर कहा, "हाँ, लोगों के लिए स्वयं को बचाना असंभव है! परन्तु परमेश्वर निश्चय ही उन्हें बचा सकते हैं, क्योंकि परमेश्वर कुछ भी कर सकते हैं!"
\v 28 पतरस ने कहा, "देखो, हम ने सब कुछ छोड़ दिया है और आपके पीछे हो लिए हैं।"
\s5
\v 29 यीशु ने उत्तर दिया, "मैं चाहता हूँ कि तुम यह जान लो: जिन लोगों ने अपने घर, अपने भाइयों, अपनी बहनों, अपने पिता, अपनी माता, अपने बच्चों, या अपनी भूमि को मेरे लिए और सुसमाचार के लिए छोड़ दिया है,
\v 30 वे इस जीवन में जो कुछ त्याग चुके हैं उससे सौ गुणा अधिक प्राप्त करेंगे। इसमें घर और प्रिय लोगों के रूप में भाई, बहन, माँ और बच्चे, और भूमि आदि सब होंगे। इसके अतिरिक्त, लोग उन्हें पृथ्वी पर सताएँगे क्योंकि वे मुझ पर विश्वास करते हैं, परन्तु भविष्य में वे अनन्त जीवन प्राप्त करेंगे।
\v 31 लेकिन मैं तुम सबको चेतावनी देता हूँ: जो लोग स्वयं को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं, वे भविष्य में अयोग्य होंगे, और जो अब स्वयं को अयोग्य मानते हैं वह भविष्य में बहुत महत्वपूर्ण होंगे!"
\p
\s5
\v 32 कुछ दिन बाद यीशु और उनके शिष्य यरूशलेम को जा रहे थे। यीशु उनसे आगे चल रहे थे। शिष्य आश्चर्यचकित थे और उनके साथ चल रहे अन्य लोग डरे हुए थे। वह बारह शिष्यों को अकेले अपने साथ एक स्थान में ले गए। तब उन्होंने उन्हें फिर से बताना शुरू किया कि उनके साथ क्या होने वाला है; उन्होंने कहा,
\v 33 "ध्यान से सुनो, हम यरूशलेम को जा रहे हैं, वहाँ महायाजकों और नियमों को सिखाने वाले पुरूष मुझ, मनुष्य के पुत्र को बन्दी बनाएँगे और घोषित करेंगे कि मुझे मरना होगा, तब वे मुझे रोमी अधिकारियों के अधीन कर देंगे।
\v 34 उनके लोग मुझे मारेंगे और मुझ पर थूकेंगे। वे मुझे अपमानित करेंगे, और फिर वे मुझे मार डालेंगे। परन्तु उसके बाद तीसरे दिन मैं फिर से जीवित हो जाऊँगा!"
\p
\s5
\v 35 रास्ते में, याकूब और यूहन्ना ने, जो जब्दी के दो पुत्र थे, यीशु से कहा, "हे गुरू, हम चाहते हैं कि आप हमारे लिए कुछ करें!"
\v 36 यीशु ने उनसे कहा, "तुम मुझसे क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए करूँ?"
\v 37 उन्होंने यीशु से कहा, "जब आप अपने राज्य में शासन करते हैं, तो हम में से एक को अपने दाहिनी ओर और एक को अपनी बाईं ओर बैठाएँ।"
\s5
\v 38 परन्तु यीशु ने उनसे कहा, "तुम जो माँग रहे हो, वह तुम नहीं समझते।" फिर यीशु ने उनसे पूछा, "क्या तुम उस पीड़ा को सह सकते हो, जिससे मैं पीड़ित होने वाला हूँ? क्या तुम उस प्रकार की मृत्यु से मर सकते हो, जिससे मैं मरने वाला हूँ?"
\v 39 उन्होंने कहा, "हाँ, हम ऐसा कर सकते हैं!" तब यीशु ने उनसे कहा, "यह सच है कि जैसे मुझे भुगतना पड़ेगा तुम भी भुगतोगे, और वे तुम को भी मार डालेंगे, जैसे वे मुझे मार डालेंगे।
\v 40 परन्तु मैं नहीं चुन सकता कि कौन मेरे साथ में बैठेगा। परमेश्वर उन स्थानों को उन लोगों को दे देंगे जिन्हें उन्होंने पहले से ही चुन लिया है।"
\p
\s5
\v 41 दूसरे दस शिष्यों ने बाद में सुना कि याकूब और यूहन्ना ने क्या अनुरोध किया था। इसलिए वे उन दो शिष्यों से अप्रसन्न थे।
\v 42 फिर यीशु ने उन सब को एक साथ बुलाया और कहा, "तुम जानते हो कि राजाओं और अन्य जन जो लोगों पर शासन करते हैं, वे इस बात का आनंद उठाते हैं कि वे शक्तिशाली हैं। तुम यह भी जानते हो कि उनके अधिकारी दूसरों को आज्ञा देना पसंद करते हैं।
\s5
\v 43 परन्तु तुम उनके जैसे मत बनो! इसके विपरीत, तुम में जो महान बनना चाहता है, उसके लिए आवश्यक है कि वह पहले दास बने।
\v 44 इसके अतिरिक्त, यदि तुम में से कोई चाहता है कि परमेश्वर उसे सबसे महत्वपूर्ण माने, तो उसे तुम लोगों के साथ दास के समान काम करे।
\v 45 मैं, मनुष्य का पुत्र, सेवा करवाने के लिए नहीं आया हूँ। इसके विपरीत, मैं दूसरों की सेवा करने और कई लोगों के लिए अपना जीवन देकर उनको मुक्त करने के लिए आया हूँ।"
\p
\s5
\v 46 यरूशलेम के रास्ते में, यीशु और शिष्य यरीहो के पास आए। फिर, जब वे एक बड़ी भीड़ के साथ यरीहो छोड़ रहे थे, एक अंधा व्यक्ति जो विनम्रता से पैसे माँगता था सड़क के पास बैठा था। उसका नाम बरतिमाई था, और उसके पिता का नाम तिमाई था।
\v 47 जब उसने लोगों को यह कहते सुना कि नासरत के यीशु वहाँ से जा रहे हैं, तो वह चिल्लाया, "हे यीशु! आप जो मसीह हो, राजा दाऊद के पुत्र, मुझ पर दया करो!"
\v 48 बहुत से लोगों ने उसे डाँटा और उससे कहा चुप होजा। परन्तु वह और अधिक चिल्लाया, "आप मसीह, जो राजा दाऊद के वंश से आए हो, मुझ पर दया करो!"
\s5
\v 49 यीशु रुके और कहा, "उसे बुलाओ!" उन्होंने अंधे व्यक्ति को कहा, "यीशु तुझे बुला रहे हैं! तो खुश हो और उठ और आ!"
\v 50 उसने कूदते हुए अपने कपड़े को फेंक दिया, और वह यीशु के पास आया।
\s5
\v 51 यीशु ने उससे पूछा, "तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ?" अंधे व्यक्ति ने उनसे कहा, "हे गुरू, मैं फिर से देखना चाहता हूँ!"
\v 52 यीशु ने उस से कहा, "मैं तुझे स्वस्थ कर रहा हूँ क्योंकि तू मुझ पर विश्वास करता है। इसलिए तू जा सकता है!" वह तुरंत देखने लगा। और वह सड़क पर यीशु के साथ चलने लगा।
\s5
\c 11
\p
\v 1 जब यीशु और उनके शिष्य यरूशलेम के निकट आए, तो वे जैतून पहाड़ के पास बैतफगे और बैतनिय्याह नगर में आए। यीशु ने अपने दो शिष्यों को बुलाया
\v 2 और उनसे कहा, "उस गाँव में जाओ जो हमारे सामने है, जैसे ही तुम प्रवेश करोगे तो तुम्हें एक गधे का बच्चा बंधा हुआ दिखाई देगा जिस पर कभी भी कोई सवार नहीं हुआ है। उसे खोलकर मेरे पास ले आओ।
\v 3 यदि कोई तुमसे कहता है, 'तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?' तो उनसे कहना, 'प्रभु को इसके उपयोग की आवश्यकता है। जैसे ही उन्हें इसकी आवश्यकता नहीं होगी वह इसे किसी व्यक्ति के साथ यहाँ वापस भेज देंगे।'
\s5
\v 4 इसलिए दोनों शिष्य चले गए और उन्हें एक गधे का बच्चा मिल गया। वह एक घर के द्वार के पास था, जो सड़क के पास था। तब उन्होंने उसे खोल लिया।
\v 5 वहाँ के कुछ लोगों ने उनसे कहा, "तुम उस गधे के बच्चे को क्यों खोल रहे हो?"
\v 6 जो भी यीशु ने कहा था उन्होंने उनको बताया, इसलिए लोगों ने उन्हें गधे का बच्चा ले जाने की अनुमति दी।
\s5
\v 7 दोनों शिष्य गधे का बच्चा यीशु के पास लाए और उस पर कपड़े डाले और उनके बैठने के लिए उसे तैयार किया।
\v 8 कई लोगों ने अपने कपड़ों को उसके सामने सड़क पर फैला दिया। दूसरों ने पास के खेतों में से खजूर के पेड़ों से शाखाएँ तोड़ लीं और उन्हे सड़क पर फैला दिया।
\v 9 जो लोग उनके सामने और उनके पीछे जा रहे थे, वे सब चिल्लाकर कह रहे थे, "परमेश्वर की स्तुति हो!" और "प्रभु इसे आशीष दे जो उनके अधिकार के साथ आता है।"
\v 10 उन्होंने यह भी कहा, "जब आप हमारे पूर्वज राजा दाऊद की तरह शासन करते हो तो धन्य हो!" और "परमेश्वर की स्तुति करो जो सबसे ऊँचे स्वर्ग में है!"
\p
\s5
\v 11 यीशु ने यरूशलेम में उनके साथ प्रवेश किया, और फिर वह मंदिर के आँगन में गए। उन्होंने चारों ओर सब कुछ देखने के बाद, वह शहर छोड़ दिया, क्योंकि दोपहर का समय समाप्त होता जा रहा था। वह बारह शिष्यों के साथ बैतनिय्याह लौट आए।
\p
\v 12 अगले दिन, जब यीशु और उनके शिष्य बैतनिय्याह से निकलकर जा रहे थे, तो उसको भूख लगी।
\s5
\v 13 उन्होंने कुछ दूरी पर एक अंजीर का वृक्ष देखा, उसकी पत्तियाँ भी उस पर थी, इसलिए वह यह देखने गए कि क्या उस में कोई फल मिल सकता है या नहीं। परन्तु जब वह उसके पास आए, तो उस पर कोई फल नहीं पाया, क्योंकि अभी अंजीरों के आने का मौसम नहीं था।
\v 14 उन्होंने पेड़ से कहा, "कोई भी अब से फिर कभी तेरे फल नहीं खाएगा।" और शिष्यों ने यह सुना।
\p
\s5
\v 15 यीशु और उनके शिष्य यरूशलेम में वापस गए और मंदिर के आँगन में प्रवेश किया। उन्होंने लोगों को बलिदान के लिए पशुओं को बेचते और खरीदते देखा। उन्होंने मंदिर के आँगन से उन लोगों को बाहर किया। उन्होंने रोमी सिक्कों के बदले मंदिर के कर के पैसे बदलने वालों के तख्त भी पलट दिए। और उन्होंने उन लोगों के पीढ़ों को उखाड़ दिया जो बलिदान के लिए कबूतर बेच रहे थे।
\v 16 उन्होंने किसी भी व्यक्ति को मंदिर के अन्दर कुछ भी बेचने के लिए ले जाने की अनुमति नहीं दी।
\s5
\v 17 उन्होंने उन लोगों को बताने के लिए उनसे कहा, "यह धर्मशास्त्र में लिखा है कि परमेश्वर ने कहा था, 'मैं अपने भवन को एक ऐसा घर बनाना चाहता हूँ जहाँ सब जातियों के लोग प्रार्थना कर सकते हैं, परन्तु तुमने इसे डाकुओं की गुफा के समान बना दिया है जहाँ लुटेरे छिपते हैं।"
\v 18 महायाजकों और यहूदी नियमों की शिक्षा देने वाले पुरुषों ने बाद में सुना कि उसने क्या किया है। तो वे योजना बनाने लगे कि वे उसे कैसे मार सकते हैं, लेकिन उन्हें डर था क्योंकि वे यह जान गए कि वह जो सिखा रहा था, उससे भीड़ चकित थी।
\v 19 हर शाम को यीशु और उनके शिष्य शहर से चले जाया करते थे।
\p
\s5
\v 20 अगली सुबह जब वे यरूशलेम की तरफ जा रहे थे, तो उन्होंने देखा कि जिस अंजीर के पेड़ को यीशु ने शाप दिया था, वह पूरी तरह से सूख गया था।
\v 21 पतरस ने याद किया कि यीशु ने अंजीर के पेड़ से क्या कहा था और उसने यीशु से कहा, "हे गुरू, अंजीर के पेड़ को देखो। वह सूख गया है!"
\s5
\v 22 यीशु ने उत्तर दिया, "परमेश्वर पर विश्वास करो!
\v 23 यह भी ध्यान रखो: अगर कोई इस पर्वत से कहता है, 'उठ और जाकर समुद्र में गिर!' और अगर वह इस बात पर सन्देह नहीं करता है कि यह होगा, इसलिए यदि वह मानता है कि ऐसा होगा, तो परमेश्वर उसके लिए ऐसा करेंगे।
\s5
\v 24 इसलिए मैं तुमसे से कहता हूँ, जब तुम प्रार्थना करते समय किसी वस्तु के लिए परमेश्वर से कहते हो, तो विश्वास करो कि तुम प्राप्त करोगे, और यदि तुम विश्वास करते हो, तो परमेश्वर तुम्हारे लिए ऐसा ही करेंगे।
\v 25 अब, मैं भी तुमसे यह कहता हूँ: जब भी तुम प्रार्थना करते हो, यदि तुम उन लोगों के प्रति क्रोधित हो, जिन्होंने तुम्हें नुकसान पहुँचाया है, तो उन्हें क्षमा करो, कि तुम्हारा पिता जो स्वर्ग में है, वह भी तुम्हारे पापों को क्षमा करें।
\p
\s5
\v 27 यीशु और उनके शिष्य यरूशलेम में फिर से मंदिर के आँगन में आए। जब यीशु वहाँ टहल रहे थे, तो एक समूह में महायाजक, और यहूदी नियमों को सिखाने वाले कुछ लोग, और प्राचीन मिलकर उनके पास आए।
\v 28 उन्होंने उनसे कहा, "आप किस अधिकार से इन बातों को कर रहे हैं? आपने कल यहाँ जो किया, उन कामों के लिए आपको किसने अधिकार दिया है?"
\s5
\v 29 यीशु ने उनसे कहा, "मैं तुमसे से एक प्रश्न पूछता हूँ, यदि तुम मुझे उत्तर देते हो, तो मैं तुम्हें बताता हूँ कि मुझे ऐसे काम करने के लिए किसने अधिकार दिया है।
\v 30 क्या यह परमेश्वर थे जिन्होने यूहन्ना को भेजा था कि उसके पास आने वाले लोगों को बपतिस्मा दे या यह लोग ही थे जिन्होंने उसे यह अधिकार दिया था?"
\s5
\v 31 वे आपस में कहने लगे कि उन्हें क्या उत्तर देना चाहिए। उन्होंने एक दूसरे से कहा, "अगर हम कहते हैं कि वह परमेश्वर है जिन्होंने उसे अधिकार दिया था, तो वह हमें कहेंगे, 'फिर जो यूहन्ना ने कहा था, तुमने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया!'
\v 32 दूसरी ओर, "वे यूहन्ना के बारे में यह कहने से डरते थे कि अगर हम कहते हैं कि यह लोग ही हैं जिन्होंने यूहन्ना को अधिकार दिया था, तो हमारे साथ क्या होगा? क्योंकि वे जानते थे कि लोग उन पर बहुत क्रोधित होंगे। उन्हें पता था कि लोग वास्तव में मानते थे कि यूहन्ना एक भविष्यद्वक्ता था जिसे परमेश्वर ने भेजा था।
\v 33 उन्होंने उत्तर दिया, "हम नहीं जानते कि यूहन्ना ने किससे अपना अधिकार प्राप्त किया था।" फिर यीशु ने उनसे कहा, "क्योंकि तुमने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया, इसलिए मैं भी तुम्हें नहीं बताऊँगा कि मुझे ऐसे काम करने का अधिकार किसने दिया है।"
\s5
\c 12
\p
\v 1 तब यीशु ने उन्हें एक दृष्टान्त सुनाया किय। उन्होंने कहा, "एक व्यक्ति ने दाख की बारी लगाई, उसने उसके चारों ओर एक बाड़ा भी बनाया उसने अंगूर के रस को इकट्ठा करने के लिए एक पत्थर का कुण्ड बनाया। उसने अपने बगीचे की रक्षा करने के लिए एक ऊँचा स्थान बनाया। उसने किसानों को खेती करने के लिए रखा। और फिर वह किसी दूसरे देश में चला गया।
\v 2 जब अंगूर की फसल निकालने का समय आया, तो दाख की बारी के मालिक ने एक दास को अपनी दाख की बारी के किसानों के पास भेजा, जिन्होंने उस दाख की बारी को किराए पर लिया था, क्योंकि वह दाख की बारी से उत्पन्न उन अंगूरों से अपना भाग लेना चाहता था।
\v 3 जब वह दास आया, तो उन्होंने उसे पकड़ा और मारा पीटा, और उन्होंने उसे कोई फल नहीं दिया। तब उन्होंने उसे भगा दिया।
\s5
\v 4 बाद में मालिक ने एक और दास को उनके पास भेजा। परन्तु उन्होंने उसको सिर पर मारा और उसे बहुत दुःख दिया, जिसके लिए उन्हें लज्जा आनी चाहिए।
\v 5 बाद में मालिक ने फिर से एक और दास भेजा। उस व्यक्ति को किसानों ने मार डाला। उन्होंने कई अन्य दासों को भी परेशान किया, जिनको मालिक ने भेजा था। कुछ को मारा पीटा और कुछ को मार दिया।
\s5
\v 6 मालिक के पास अभी भी एक अन्य व्यक्ति था, उसका पुत्र, जिसे वह बहुत प्रेम करता था। इसलिए उसने अपने पुत्र को उनके पास भेजा, क्योंकि उसने सोचा कि वे उसका सम्मान करेंगे।
\v 7 लेकिन जब किसानों ने उसके बेटे को आते देखा, तो उन्होंने एक दूसरे से कहा, देखो! यहाँ मालिक का पुत्र आता है, जो कुछ दिनों में दाख की बारी का उत्तराधिकारी होगा! इसलिए हम उसे मार डालें ताकि यह दाख की बारी हमारी हो जाए!
\s5
\v 8 उन्होंने मालिक के पुत्र को पकड़ लिया और उसे मार डाला। तब उन्होंने दाख की बारी के बाहर उसके शरीर को फेंक दिया।
\v 9 क्या तुम जानते हो कि दाख की बारी का स्वामी अब क्या करेगा? वह आएगा और उन बुरे लोगों को मार डालेगा, जिन्होंने उसकी दाख की बारी को किराए पर लिया था। तब वह इसकी देखभाल करने के लिए किसी और की व्यवस्था करेगा।
\s5
\v 10 अब इन शब्दों के बारे में ध्यान से सोचें, जिसे तुमने धर्मशास्त्र में पढ़ा है: "इमारत का निर्माण करने वाले पुरूषों ने एक पत्थर को काम में लेने से इन्कार कर दिया था। परन्तु परमेश्वर ने उसी पत्थर को यथास्थान रखा है, और वह पत्थर इमारत में सबसे महत्वपूर्ण पत्थर बन गया है!
\v 11 परमेश्वर ने यह किया है, और हम इसे देखकर आश्चर्यचकित हैं।"
\p
\v 12 तब यहूदी अगुवों ने यह जान लिया कि यीशु उन दुष्ट किसानों की कहानी सुनाकर हम पर आरोप लगा रहे थे। इसलिए वे उन्हें बन्दी बनाना चाहते थे परन्तु वे डरते थे कि यदि वे ऐसा करते हैं तो लोगों की भीड़ क्या करेगी। इसलिए उन्होंने यीशु को छोड़ दिया और चले गए।
\p
\s5
\v 13 यहूदी अगुवों ने यीशु के पास कुछ फरीसियों और कुछ सदस्यों को भेजा, जो हेरोदेस एन्तिपास का समर्थन करते थे। वे यीशु को धोखा देना चाहते थे; वे उनसे कुछ गलत कहलवाना चाहते थे, जिससे कि वे लोगों को दिखा सकें कि उन्होंने गलत कामों को सिखाया और वे उन पर आरोप लगा सकें।
\v 14 उनके आने के बाद, उन्होंने उनसे कहा, "हे गुरू, हम जानते हैं कि आप सत्य को सिखाते हैं। हम यह भी जानते हैं कि आप इसके बारे में चिंतित नहीं हैं कि लोग आपके बारे में क्या कहते हैं, भले ही किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति को आप क्या कहते हैं, इसकी अपेक्षा, आप सच्चाई से सिखाते हैं कि परमेश्वर क्या करना चाहते हैं। इसलिए हमें बताएँ कि आप इस विषय के बारे में क्या सोचते हैं: क्या यह सही है कि हम रोमी सरकार को कर दें या नहीं? क्या हमें करों का भुगतान करना चाहिए या हमें भुगतान नहीं करना चाहिए?"
\v 15 यीशु जानते थे कि वे वास्तव में यह नहीं जानना चाहते थे कि परमेश्वर क्या करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने उनसे कहा, "मुझे पता है कि तुम मुझसे कुछ गलत बुलवाने का प्रयास कर रहे हो, जिसके लिए तुम मुझ पर आरोप लगा सको। लेकिन मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर भी दूँगा। मुझे एक सिक्का दो कि मैं उसे देख सकूँ।"
\s5
\v 16 उन्होंने यीशु को एक सिक्का लाकर दिया, यीशु ने उनसे पूछा, "इस सिक्के पर किसका चित्र है? और इस पर किसका नाम है?" उन्होंने उत्तर दिया, "यह एक कैसर की तस्वीर और उसी का नाम है।"
\v 17 यीशु ने उनसे कहा, "यह सही है, तो जो कैसर का है वह कैसर को दो, और जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर को दो।" जो उन्होंने कहा उससे वे पूरी तरह से चकित थे।
\p
\s5
\v 18 सदूकियों के समूह से जुड़े पुरुष अन्य यहूदियों के समान नहीं मानते थे कि लोग मरने के बाद फिर से जीवित हो जाते हैं। कुछ सदूकियों ने यीशु के पास आकर पूछा,
\v 19 "हे गुरू, मूसा ने यहूदियों के लिए यह लिखा है कि यदि किसी का भाई मर जाए और बिना बच्चों के पत्नी को छोड़ जाए, तो उसके भाई को उस विधवा से विवाह करके अपने भाई के लिए वंश पैदा करना चाहिए।
\s5
\v 20 इसलिए यहाँ एक उदाहरण है। एक परिवार में सात भाई थे। सबसे बड़े भाई ने एक स्त्री से विवाह किया, परन्तु वह और उसकी पत्नी को बच्चे नहीं हुए। तब बाद में उस व्यक्ति की मृत्यु हो गई।
\v 21 दूसरे भाई ने भी उस महिला से विवाह किया, लेकिन वह भी बच्चे को जन्म नहीं दे पाया। बाद में उसकी भी मृत्यु हो गई। तीसरे भाई ने अपने दूसरे भाइयों के समान किया था, परन्तु वह भी बच्चे को पैदा नहीं कर पाया, और उसकी भी मृत्यु हो गई।
\v 22 अंततः सभी सात भाइयों ने उस स्त्री से एक के बाद एक विवाह किया, परन्तु किसी के पास कोई बच्चा नहीं था, और एक के बाद एक वे मर गए। बाद में महिला की भी मृत्यु हो गई।
\v 23 अब उस दिन जब लोग मरने के बाद फिर से जीवित हो जाएँगे, तब वह महिला किसकी पत्नी होगी? ध्यान रखें कि उसकी सभी सात भाइयों से शादी हुई है!"
\s5
\v 24 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "तुम निश्चय ही गलत हो, तुम्हें नहीं पता है कि धर्मशास्त्र ने इस बारे में क्या कहा है। तुम लोग फिर से जीवित करने के लिए परमेश्वर की शक्ति को नहीं समझते हो।
\v 25 वह स्त्री, उन भाइयों में से किसी की पत्नी नहीं होगी, क्योंकि जब लोग फिर से जीवित हो जाते हैं, तो पति पत्नी होने की अपेक्षा, वे स्वर्ग में स्वर्गदूतों के समान होंगे। स्वर्गदूत विवाह नहीं करते हैं।
\s5
\v 26 मुझे उन लोगों के बारे में बात करने दो जो मरने के बाद फिर से जीवित होंगे। उस पुस्तक में जिसे मूसा ने लिखा था, उसने उन लोगों के बारे में लिखा है जो मर चुके हैं; मुझे विश्वास है कि तुमने इसे पढ़ा है। जब मूसा जलती हुई झाड़ी को देख रहा था, तो परमेश्वर ने उससे कहा, 'मैं वही परमेश्वर हूँ, जिसकी आराधना अब्राहम, इसहाक और याकूब ने की है।'
\v 27 अब ये मृत व्यक्ति नहीं हैं जो परमेश्वर की आराधना करते हैं। यह उन लोगों को जीवित करते हैं जो उनकी आराधना करते हैं। इसलिए जब तुम कहते हो कि मृत लोग फिर से जीवित नहीं होते हैं, तो तुम बहुत गलत हो।"
\p
\s5
\v 28 एक व्यक्ति जो यहूदी नियमों को सिखाता है वह उनकी चर्चा सुनता है। वह जानता था कि यीशु ने सदूकियों के सवाल का बहुत अच्छा उत्तर दिया था। इसलिये उसने आगे बढ़कर यीशु से पूछा, "कौन सी आज्ञा सबसे महत्वपूर्ण है?"
\v 29 यीशु ने उत्तर दिया, "सबसे महत्वपूर्ण आज्ञा यह है: हे इस्राएल 'सुन, हमारा परमेश्वर यहोवा एक ही प्रभु है।
\v 30 तुम्हें अपने परमेश्वर से अपनी संपूर्ण इच्छा, भावना, विचारों और कर्मों से प्रेम करना चाहिए!
\v 31 अगली सबसे महत्वपूर्ण आज्ञा यह है कि 'तुम अपने चारों ओर के लोगों को उतना प्रेम करो जितना अपने आप से प्रेम करते हो।' कोई अन्य आज्ञा इन दोनों से अधिक महत्वपूर्ण नहीं है!"
\s5
\v 32 उस शिक्षक ने यीशु से कहा, "हे गुरू, आप ने सही कहा कि परमेश्वर ही एकमात्र प्रभु है, और कोई परमेश्वर नहीं है।
\v 33 आपने यह भी सही कहा है कि जो कुछ भी हम सोचते हैं, और जो कुछ हम करते हैं, हम जो चाहते हैं और भावना रखते हैं, उसमें हमें परमेश्वर से प्रेम करना चाहिए। और आपने सही कहा है कि हमें उन लोगों से जिनके साथ हम संपर्क में आते हैं जितना हम अपने आप से प्रेम करते हैं उनसे भी प्रेम करना चाहिए। और आपने यह भी सही कहा है कि परमेश्वर को पशुओं की बलि या अन्य बलिदानों को जलाने से ज्यादा इन बातों के मानने से प्रसन्नता होती है।"
\v 34 यीशु ने देखा कि इस व्यक्ति ने बुद्धिमानी से उत्तर दिया है इसलिए उन्होंने उससे कहा, "तू उनके निकट है, जहाँ परमेश्वर तुझ पर शासन करने के लिए सहमत होंगे।" उसके बाद, यहूदी अगुवे उनसे और अधिक छल के प्रश्न पूछने से डरते थे।
\p
\s5
\v 35 फिर, जब यीशु मंदिर के आँगन में उपदेश दे रहे थे, तो उन्होंने लोगों से कहा, "नियम सिखाने वाले लोग जो कहते हैं - और वे सही कह रहे हैं कि मसीह दाऊद का पुत्र है?
\v 36 पवित्र आत्मा ने दाऊद को मसीह के बारे में कहने के लिए प्रेरित किया, 'परमेश्वर ने मेरे प्रभु से कहा, 'मेरे दाहिने हाथ बैठ, जहाँ मैं तुझे सबसे अधिक सम्मान दूँगा! यहाँ बैठ कि मैं पूरी तरह से तेरे शत्रुओं को तेरे पाँव के नीचे कर दूँ!"
\v 37 दाऊद के इस भजन में मसीह को 'प्रभु' के रूप में संदर्भित करता है। तो व्यवस्था के शिक्षक कैसे कह सकते हैं - कि मसीह दाऊद का पुत्र हो सकता है?" बहुत से लोग यीशु की शिक्षाओं को को सहर्ष से सुनते थे।
\p
\s5
\v 38 जब यीशु लोगों को सिखा रहे थे, तो उन्होंने उनसे कहा," सावधान रहो कि तुम उन लोगों की तरह काम न करो जो यहूदी नियमों को सिखाते हैं। वे लोगों से सम्मान पाना उनको अच्छा लगता है, इसलिए वे लम्बे वस्त्रों को पहनते हैं और वे चारों ओर घूमते हैं और लोगों को यह दिखाते हैं कि वे कितने महत्वपूर्ण हैं। उन्हें यह भी अच्छा लगता हैं कि लोग बाजारों में सम्मान के साथ उनका अभिवादन करें।
\v 39 सभाओं में सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में बैठना उन्हें अच्छा लगता है। त्योहारों में, उन्हें ऐसे स्थानों में बैठना अच्छा लगता है जहाँ सबसे अधिक सम्मानित लोग बैठते हैं।
\v 40 वे धोखा देकर विधवाओं के घरों और उनकी संपत्तियों को ले लेते हैं। और वे दिखाते हैं कि वे सार्वजनिक रूप से लम्बे समय तक प्रार्थना करते हुए वे अच्छे होने का ढोंग करते हैं। परमेश्वर निश्चय ही उन्हें गंभीर दण्ड देंगे!"
\p
\v 41 तब यीशु परमेश्वर के भवन में दान पात्रों के सामने बैठ गए, जिसमें लोग अपनी भेंट डालते थे। जब वह वहाँ बैठे थे, तो उन्होंने देखा कि लोग वहाँ एक पात्र में पैसे डाल रहे हैं। कई धनवानों लोगों ने बहुत पैसे डाले।
\v 42 तब एक गरीब विधवा आई और दो छोटे तांबे के सिक्के डाले, जिसका बहुत कम मूल्य था।
\v 43-44 यीशु ने अपने शिष्यों को अपने आस-पास बुलाया और उनसे कहा, "सच्चाई यह है कि उन लोगों के पास बहुत पैसा है, परन्तु इन्होंने इसका एक छोटा भाग दिया। यह महिला, जो बहुत गरीब है, अपनी सारी पूंजी दान कर दी, जिससे उसको आज की आवश्यक चीज़ों के लिए भुगतान करना था। इसलिए इस गरीब विधवा ने अन्य सब की तुलना में दानपात्र में अधिक धन डाल दिया है!"
\s5
\c 13
\p
\v 1 जब यीशु मंदिर से होकर जा रहे थे, तो उनके शिष्यों में से एक ने उनसे कहा, "हे गुरू, देखो ये विशाल पत्थर कितने आश्चर्यजनक हैं और यह इमारतें कितनी अद्भुत हैं!"
\v 2 यीशु ने उनसे कहा, "हाँ, यह इमारतें जो तुम देख रहे हो बहुत अच्छी हैं, परन्तु मैं तुम्हें उनके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ। वे पूरी तरह से नष्ट हो जाएँगीं। इस मंदिर में एक भी पत्थर दूसरे के ऊपर नहीं रहेगा।"
\p
\s5
\v 3 जब वे मंदिर से जैतून के पहाड़ पर पहुँचे, तो यीशु बैठ गए। जब पतरस, याकूब, यूहन्ना और अन्द्रियास उनके साथ अकेले थे, तो उन्होंने यीशु से पूछा,
\v 4 "हमें बताओ, यह कब होगा? हमें यह कैसे पता चलेगा कि यह बातें होने वाली हैं?"
\s5
\v 5 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "सावधान रहो कि कोई तुम्हें धोखा न दे!
\v 6 बहुत से लोग आएँगे और कहेंगे कि मैंने उन्हें भेजा है। वे कहेंगे, 'मैं मसीह हूँ!' वे कई लोगों को धोखा देंगे।
\s5
\v 7 जब तुम युद्धों में लड़ रहे सैनिकों की आवाज़ सुनो, या जब तुम युद्ध के बारे में समाचार सुनो, तो परेशान मत होना। ये बातें निश्चित रूप से होंगी, परन्तु जब ऐसा होता है, तो यह नहीं सोचना कि परमेश्वर उसी समय सब योजनाओं को पूरा करेंगे।
\v 8 विभिन्न देशों में रहने वाले समूह एक दूसरे से युद्ध करेंगे, और विभिन्न राजा और अगुवे एक दूसरे से युद्ध करेंगे। विभिन्न स्थानों पर भूकंप आएँगे, और अकाल पड़ेगा। फिर भी, जब यह बातें होती हैं, तो लोग केवल पीड़ित होने लगेंगे। यह आरम्भ की बातें जब वे पीड़ित होते हैं, ऐसी होंगी जैसे एक महिला को प्रसव के समय हो रही पहली पीड़ा, जो एक बच्चे को पैदा करने वाली है। इसके बाद उन्हें बहुत अधिक भुगतना होगा।
\p
\s5
\v 9 उस समय जो लोग तुम्हारे साथ करेंगे उसके लिए तैयार रहो। वे तुम्हें गिरफ्तार करेंगे और अधिकारियों के समूह के समक्ष तुम पर मुकदमा चलाएँगे। लोग तुम्हें विभिन्न सभाओं में मारेंगे वे उच्च सरकारी प्राधिकारियों की उपस्थिति में तुम पर मुकदमेबाजी करेंगे। जिसके परिणामस्वरूप, तुम उन्हें मेरे बारे में बताओगे।
\v 10 इससे पहले कि परमेश्वर ने जो योजना बनाई है वह पूरी हो जाए, मेरे विश्वासियों के लिए आवश्यक है कि वे सब जातियों में सुसमाचार सुना दें।
\s5
\v 11 जब लोग तुम्हें बन्दी बनाएँगे तो चिन्ता न करना कि तुम क्या कहोगे। तुम वही कहना जो कि उस समय परमेश्वर तुम्हें मन में कहेंगे क्योंकि वह तुम नहीं होगे जो बोल रहे होगे, यह पवित्र आत्मा होंगे जो तुम्हारे माध्यम से बात करेंगे।
\v 12 कुछ भाई और बहनें दूसरे भाइयों और बहनों को धोखा देंगे। कुछ पिता अपने बच्चों को धोखा देंगे। कुछ बच्चे अपने माता-पिता को धोखा दे देंगे, जिससे कि सरकारी अधिकारी उनके माता-पिता को मार डालें।
\v 13 लोग तुम से ईर्ष्या करेंगे, क्योंकि तुम मुझ पर विश्वास करते हो। परन्तु जो भी लोग मुझ पर भरोसा रखते रहेंगे उनका जीवन समाप्त नहीं होगा, परन्तु बचा लिया जाएगा।
\p
\s5
\v 14 उस समय घृणित वस्तु मंदिर में प्रवेश करेगी। यह मंदिर को अशुद्ध कर देगी और लोगों से इसका त्याग करवा देगी। जब तुम उसे वहाँ देखते हो जहाँ उसे नहीं होना चाहिए, तो तुम्हें शीघ्र से भाग जाना चाहिए! (जो कोई यह पढ़ रहा है वह इस चेतावनी पर ध्यान दे!) उस समय वे लोग जो यहूदिया नगर में हैं वे ऊँची पहाड़ियों में भाग जाएँ।
\v 15 जो लोग अपने घरों से बाहर हैं, उन्हें कुछ भी लेने के लिए अपने घरों में प्रवेश नहीं करना चाहिए।
\v 16 जो लोग खेतों में काम कर रहे हैं, वे अतिरिक्त कपड़े लेने के लिए अपने घर वापस न जाएँ।
\s5
\v 17 मैं उन स्त्रियों के लिए बहुत दुःख मनाता हूँ जो उन दिनों में गर्भवती होंगी और जो अपने बच्चों की देखभाल कर रही होंगी, क्योंकि उन्हें भागने में बहुत कठिनाई होगी!
\v 18-19 उन दिनों में लोग बहुत गंभीर रूप से पीड़ित होंगे। जिस समय से परमेश्वर ने संसार को बनाया है, तब से लेकर अब तक कभी भी लोग ऐसे पीड़ित नहीं हुए हैं; और फिर कभी लोग इस तरह से पीड़ित नहीं होंगे। इसलिए प्रार्थना करो कि यह पीड़ादायक समय सर्दियों में न हो, जिस समय यात्रा करना कठिन होगा।
\v 20 यदि प्रभु परमेश्वर ने यह निर्णय नहीं लिया होता कि वह इस दुःख भोग के समय को कम कर दें, तो हर कोई मर जाता। परन्तु उन्होंने उस समय को कम करने का निर्णय लिया है क्योंकि वह उन लोगों के बारे में चिंतित हैं जिन्हें उन्होंने चुना है।
\s5
\v 21-22 उस समय लोग झूठ बोलेंगे कि वे मसीह हैं। और कुछ लोग परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता होने का दावा करेंगे। तब वे कई प्रकार के चमत्कार करेंगे। वे उन लोगों को धोखा देने का भी प्रयास करेंगे, जिन्हें परमेश्वर ने चुना है। इसलिए उस समय यदि कोई तुमसे कहे, 'देखो, मसीह यहाँ है' या अगर कोई कहे, 'देखो, वह वहाँ है', तो उस पर विश्वास मत करना!
\v 23 सतर्क रहो! याद रखो कि इससे पहले कि जब यह सब हो मैंने तुम्हें चेतावनी दे दी है!
\p
\s5
\v 24 उस समय के बाद जब लोग इस तरह से पीड़ित होते हैं, सूरज अंधियारा हो जाएगा, और चाँद में चमक नहीं होगी;
\v 25 सितारे आकाश से गिर जाएँगे, और आकाश के सब शक्तिशाली गण अपने स्थान से हिल जाएँगे।
\v 26 तब लोग मुझे, मनुष्य के पुत्र को, बादलों के माध्यम से शक्तिशाली और महिमामय रूप से आते हुए देखेंगे।
\v 27 तब मैं अपने स्वर्गदूतों को भेजूँगा कि वे उन लोगों को एकत्र करें जिन्हें परमेश्वर ने हर स्थान से पृथ्वी के सबसे दूर के स्थानों से चुना है।
\p
\s5
\v 28 अब मैं चाहता हूँ कि तुम इसके द्वारा कुछ सीखो कि अंजीर का वृक्ष कैसे बढ़ता है। जब उनकी शाखाओं की कोपलें आती हैं और उनके पत्ते अंकुरित होने लगते हैं, तो तुम जानते हो कि गर्मियों के दिन निकट हैं।
\v 29 इसी तरह, जो कुछ मैंने अभी वर्णन किया है जब तुम उसे होता हुआ देखो, तो तुम स्वयं ही जान जाओगे कि मेरे वापस आने का समय बहुत निकट है। यह ऐसा होगा जैसे कि मैं दरवाजे पर ही हूँ।
\s5
\v 30 यह ध्यान में रखो: यह पीढ़ी तब तक नहीं मरेगी जब तक कि यह बातें पूरी न हो जाएँ।
\v 31 तुम निश्चित हो सकते हो कि यह बातें पूरी होंगी, जिनकी मैंने भविष्यद्वाणी की है। यह पृथ्वी और जो कुछ आकाश में है, एक दिन नष्ट हो जाएगा, लेकिन मेरी कही हुई ये बातें निश्चय पूरी होंगी।
\v 32 लेकिन मैं कब वापस आऊँगा, इसका सही समय कोई भी नहीं जानता। स्वर्ग के स्वर्गदूत भी नहीं जानते हैं। यहाँ तक कि मैं, परमेश्वर का पुत्र, भी नहीं जानता। परन्तु केवल मेरा पिता जानता है।
\s5
\v 33 इसलिए तैयार रहो! हमेशा सतर्क रहो, क्योंकि तुम्हें नहीं पता कि वह समय कब आएगा जब यह सब घटनाएँ होंगी!
\v 34 जब कोई व्यक्ति दूर के स्थान पर जाना चाहता है तो वह अपने घर छोड़ने के बारे में, वह अपने कर्मचारियों से कहता है कि उन्हें घर का प्रबंधन करना है। वह हर एक को बताता है कि उसे क्या करना है। फिर वह द्वारपाल को अपनी वापसी के लिए तैयार होने के लिए कहता है।
\s5
\v 35 उस व्यक्ति को हमेशा तैयार रहना चाहिए, क्योंकि वह नहीं जानता है कि उसका स्वामी शाम को वापस आ जाएगा, या आधी रात को, या मुर्गे की बाँग पर, या भोर में। इसी तरह, तुम्हें भी सदा तैयार रहना चाहिए, क्योंकि तुम्हें नहीं पता कि मैं कब लौट आऊँगा।
\v 36 ऐसा न हो कि जब मैं अचानक आ जाऊँ, तो मुझे पता चले कि तुम तैयार नहीं हो!
\v 37 यह वचन जो मैं अपने शिष्यों से कह रहा हूँ, मैं हर किसी से कहता हूँ: सदैव तैयार रहो!"
\s5
\c 14
\p
\v 1 सप्ताह तक चलने वाले फसह के पर्व को मनाने में केवल दो दिन ही थे। उन दिनों उन्होंने एक और पर्व मनाया, जिसे वे अखमीरी रोटी का पर्व कहते थे। महायाजकों और यहूदी नियमों को सिखाने वाले अन्य पुरुषों ने योजना बनाई कि वे कैसे गुप्त रूप से यीशु को बन्दी बना करके मार सकते हैं।
\v 2 लेकिन वे एक दूसरे से कह रहे थे, "हमें पर्व के समय ऐसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि अगर हम ऐसा करते हैं तो लोग हम से बहुत क्रोधित होंगे और दंगा कर देंगे।"
\p
\s5
\v 3 यीशु बैतनिय्याह में शमौन के घर में थे, जो कुष्ठ रोगी था। जब वे भोजन कर रहे थे, तब एक स्त्री उनके पास आई। उसके पास एक पत्थर का पात्र था जिसमें महंगा सुगन्धित इत्र था, जिसे जटामांसी का इत्र कहा जाता था। उसने पात्र को खोला और फिर यीशु के सिर पर सारा इत्र डाल दिया।
\v 4 कुछ लोग जो उपस्थित थे, वे क्रोधित हो गए और स्वयं से कहा, "यह अच्छा नहीं है कि उसने इस इत्र को नष्ट कर दिया!
\v 5 यह लगभग एक वर्ष की मजदूरी के लिए बेचा जा सकता था और फिर गरीब लोगों को पैसा दिया जा सकता था!" इसलिए उन्होंने उसे डाँटा।
\s5
\v 6 लेकिन यीशु ने कहा, "मत डाँटों! उसने मेरे साथ जो किया है वह मैंने बहुत उचित माना है। इसलिए तुम्हें उसे परेशान नहीं करना चाहिए!
\v 7 तुम्हारे साथ हमेशा गरीब लोग होंगे। इसलिए जब तुम चाहते हो तब उनकी सहायता कर सकते हो। परन्तु मैं यहाँ तुम्हारे साथ बहुत समय तक नहीं रहूँगा।
\v 8 उसने जो भी किया है, वह उचित है। ऐसा लगता है कि जैसे वह जानती थी कि मैं शीघ्र ही मर जाऊँगा, क्योंकि उसने मेरे शरीर का समय से पहले अभिषेक कर दिया है, कि वह दफ़न के लिए तैयार हो।
\v 9 मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूँ: जहाँ भी मेरे अनुयायी संसार भर में सुसमाचार का प्रचार करेंगे, वे इस स्त्री के इस काम की चर्चा करेंगे और लोग इसे याद करेंगे।
\p
\s5
\v 10 तब यहूदा इस्करियोती यीशु को पकड़ने में सहायता करने के बारे में बात करने के लिए महायाजकों के पास गया। यद्यपि वह बारह शिष्यों में से था, उसने ऐसा किया ।
\v 11 जब महायाजकों ने सुना कि वह उनके लिए कुछ करने को तैयार है, तो वे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वे बदले में उसे बड़ी धनराशि देंगे। यहूदा ने सहमति व्यक्त की और यीशु पर हाथ डालने का एक अवसर ढूँढ़ने लगा।
\p
\s5
\v 12 पर्व के पहले दिन जिसे वे अखमीरी रोटी का दिन कहते हैं, जब वे फसह के लिए भेड़ के बच्चे को मारते हैं, तो यीशु के शिष्यों ने उनसे कहा, "आप हमें कहाँ भेजकर फसह के उत्सव के लिए भोजन तैयार करवाना चाहते हैं कि हम उसे खाएँ?"
\v 13 अत: यीशु ने अपने दो शिष्यों को सब कुछ तैयार करने के लिए चुना। उन्होंने उनसे कहा, "यरूशलेम में जाओ, एक व्यक्ति तुम्हें मिलेगा, जो पानी से भरा एक बड़ा पात्र ले जा रहा होगा। उसके पीछे जाना।
\v 14 जब वह घर में प्रवेश करे, तो उस व्यक्ति से कहना जो घर का स्वामी है, कि 'हमारे प्रभु चाहते हैं कि हम यहाँ फसह के उत्सव का भोजन तैयार करें, कि वे अपने शिष्य के साथ खा सकें। कृपया हमें कमरा दिखा।'
\s5
\v 15 वह तुम्हें एक बड़ा कमरा दिखाएगा जो घर की ऊपरी मंजिल पर है। वह हमारे लिए तैयार होगा कि हम वहाँ भोजन करें। फिर हमारे लिए भोजन तैयार करो।"
\v 16 अतः दोनों शिष्य गए। वे शहर में चले गए और उन्होंने सब कुछ वैसा ही पाया, जैसा यीशु उनसे कहा था। उन्होंने वहाँ फसह समारोह के लिए भोजन तैयार किया।
\s5
\v 17 जब शाम हुई, तो यीशु उस घर में बारह शिष्यों के साथ पहुँचे।
\p
\v 18 जब वे सब वहाँ बैठे थे और भोजन कर रहे थे, यीशु ने कहा, "ध्यान से सुनो: तुम में से एक मेरे शत्रुओं के लिए मुझे पकड़ना सरल बना देगा। वह तुम में से एक है जो अभी मेरे साथ खा रहा है!"
\v 19 शिष्य बहुत दुःखी हो गए और उन्होंने एक-एक करके कहा, "निश्चय ही वह मैं नहीं हूँ?"
\s5
\v 20 फिर उन्होंने उनसे कहा, "वह तुम्हारे बीच बारह शिष्यों में से एक है, जो मेरे साथ रोटी खा रहा है।
\v 21 यह निश्चित है कि मैं, मनुष्य का पुत्र मर जाऊँगा, क्योंकि यह मेरे बारे में लिखा गया है। परन्तु जो मुझे धोखा देगा, उस व्यक्ति का दण्ड भयानक होगा! वास्तव में, यदि उसका जन्म ही नहीं हुआ होता तो अच्छा होता!"
\p
\s5
\v 22 जब वे खा रहे थे, तो उन्होंने एक रोटी ली और इसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर उन्होंने उसे टुकड़ों में तोड़ दिया और उन्हें दे दिया और कहा, "यह रोटी मेरी देह है। इसे लो और इसे खा लो।"
\v 23 इसके बाद, उन्होंने एक कटोरा लिया, जिसमें दाखरस था और उसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर उन्होंने उनको दिया और उन सब ने पीया।
\v 24 उन्होंने कहा, "यह दाखरस मेरा लहू है, जो मेरे शत्रुओं द्वारा मेरी हत्या की में याद दिलाता है। इस लहू से मैं उस वाचा को दृढ़ करता हूँ जो परमेश्वर ने कई लोगों के पापों को क्षमा करने के लिए बाँधी है।
\v 25 मैं चाहता हूँ कि तुम यह जानो कि जब तक मैं परमेश्वर को स्वयं राजा के रूप में न दिखाऊँ, तब तक मैं कभी दाखरस नहीं पीऊँगा।"
\s5
\v 26 उन्होंने एक भजन गाया, फिर वे जैतून के पहाड़ की ओर निकल गए।
\p
\v 27 जब वे अपने रास्ते पर थे, यीशु ने उनसे कहा, "धर्मशास्त्र में लिखा है कि परमेश्वर ने मेरे बारे में कहा, 'मैं चरवाहे को मारूँगा और उसकी भेड़ों को तितर बितर करूँगा।' ये वचन सच होंगे। तुम मुझे छोड़कर भाग जाओगे।
\s5
\v 28 परन्तु जब परमेश्वर मुझे फिर से जीवित करेंगे, तब मैं तुमसे पहले गलील के नगर जाऊँगा और वहाँ तुमसे मिलूँगा।"
\v 29 पतरस ने उनसे कहा, "हो सकता है कि सब शिष्य आपको छोड़ दें। परन्तु मैं नहीं छोड़ूँगा! मैं आपको नहीं छोड़ूँगा!"
\s5
\v 30 फिर यीशु ने उससे कहा, "सच तो यह है कि आज रात को मुर्गे के दो बार बाँग देने से पहले, तू तीन बार कहेगा, कि तू मुझे नहीं जानता।
\v 31 परन्तु पतरस ने जोर देकर कहा, "अगर वे मुझे मार डालें तो भी मैं नहीं कहूँगा कि मैं आपको नहीं जानता।" और अन्य सब शिष्यों ने भी यही कहा।
\p
\s5
\v 32 रास्ते में, यीशु और शिष्य उस जगह पर आए, जिसे लोग गतसमनी कहा करते थे। फिर उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, "तुम यहाँ बैठे रहो, जब तक मैं प्रार्थना करता हूँ!"
\v 33 तब वह अपने साथ पतरस, याकूब और यूहन्ना को ले गए। वह अत्यधिक परेशान हो गए।
\v 34 उन्होंने उनसे कहा, "मैं बहुत दुःखी हूँ। यह ऐसा है जैसे मैं मरने वाला हूँ। तुम यहाँ ठहरो और जागते रहो!"
\s5
\v 35 वह थोड़ा आगे चले गए और स्वयं को भूमि पर गिरा दिया। फिर उन्होंने प्रार्थना की कि अगर संभव हो, तो उन्हें यह भुगतना न पड़े।
\v 36 उन्होंने कहा, "हे मेरे पिता, क्योंकि आप सब कुछ कर सकते हैं, मुझे बचाओ कि मुझे यह भुगतना न पड़े। परन्तु जो कुछ मैं चाहता हूँ वह मत करो। जो आप चाहते हो वह करो।
\s5
\v 37 फिर वह लौट आए और शिष्यों को सोता हुआ पाया। उन्होंने उन्हें जगाया और कहा, "हे शमौन, क्या तुम सो रहे हो? क्या तुम थोड़े समय के लिए जाग नहीं सकते थे?"
\v 38 और उन्होंने उनसे कहा, "मैं जो भी कहता हूँ। तुम वह करना चाहते हो, परन्तु तुम निर्बल हो। इसलिये जागते रहो और प्रार्थना करो, जिससे कि जब तुम पर परीक्षा आए, तो तुम दृढ़ रह सको!"
\v 39 वह फिर से चले गए और वही प्रार्थना की जो उन्होंने पहले की थी।
\s5
\v 40 जब वह लौट आए, तो उन्होंने देखा कि वे फिर से सो रहे थे; वे बहुत नींद में थे इसलिए वे अपनी आँखें खुली नहीं रख सकते थे, क्योंकि वे लज्जित थे, इसलिए उन्हें नहीं पता था कि जब यीशु ने उन्हें जगाया, तो क्या कहें।
\v 41 वह फिर गए और फिर प्रार्थना की। वह तीसरी बार लौटे और उन्हें फिर से सोता हुआ देखा। उन्होंने उनसे कहा, "तुम अब भी सो रहे हो? इससे अधिक नहीं, मेरे लिए पीड़ा का समय आरंभ होने वाला है, देखो! कोई पापी मनुष्यों के द्वारा मुझे, मनुष्य के पुत्र को पकड़ने में समर्थ करने वाला है।
\v 42 इसलिए उठो! अब चलें! देखो! यहाँ एक है जो मुझे पकड़ने के लिए उनको समर्थ बना रहा है!
\p
\s5
\v 43 जब वह अभी बोल ही रहे थे, कि यहूदा आ गया। हालाँकि वह यीशु के बारह शिष्यों में से एक था, वह यीशु को शत्रुओं के हाथों पकड़वाने के लिए आया था। तलवारें लिए हुए उन्हें पकड़कर ले जाने वाली भीड़ उसके साथ थी। यहूदी परिषद के अगुवों ने उन्हें भेजा था।
\v 44 यहूदा ने यीशु को धोखा दिया था, उसने पहले ही भीड़ से कहा था, कि "जिस व्यक्ति को मैं चूमता हूँ, वह वही होगा जिसे तुम पकड़ना चाहते हो। जब मैं उसे चूमूँ, तो तुम उसे पकड़ कर ले जाना।"
\v 45 जब यहूदा आ पहुँचा, तो वह तुरन्त यीशु के पास गया और कहा, "हे मेरे प्रभु!"; फिर उसने यीशु को चूमा।
\v 46 तब लोगों ने यीशु को पकड़ लिया।
\s5
\v 47 लेकिन जो शिष्य खड़े थे, उनमें से एक ने अपनी तलवार निकाली। और महायाजक के सेवक को मारा, परन्तु उसने केवल उसका कान काट दिया था।
\v 48-49 यीशु ने उनसे कहा, "यह विचित्र बात है कि तुम तलवारें लिए और भीड़ के साथ मुझे पकड़ने के लिए यहाँ आए हो, जैसे कि मैं एक डाकू हूँ! मैं तो प्रतिदिन तुम्हारे साथ परमेश्वर के भवन के आँगन में था और लोगों को शिक्षा देता था! क्या वहाँ तुम मुझे पकड़ नहीं सकते थे? परन्तु जो भविष्यद्वक्ताओं ने मेरे बारे में धर्मशास्त्र में लिखा है, वह पूरा हो रहा है।
\p
\v 50 शिष्यों उन्हें छोड़कर भाग गए।
\s5
\v 51 उस समय, एक जवान व्यक्ति यीशु का अनुसरण कर रहा था। वह अपने शरीर पर केवल एक सनी का वस्त्र पहने हुए था। भीड़ ने उसे पकड़ लिया,
\v 52 लेकिन, जब वह उनसे दूर हट रहा था, तब उसने उनके हाथों में सनी का कपड़ा छोड़ दिया, और फिर वह नंगा ही भाग गया।
\p
\s5
\v 53 जो लोग यीशु को पकड़ चुके थे, वे उसे महायाजक के घर ले गए। यहूदी परिषद वहाँ एकत्र थी।
\v 54 पतरस कुछ दूरी से यीशु का पीछा कर रहा था। वह महायाजक के घर के आँगन में गया, और महायाजक के घर की रक्षा करने वाले मनुष्यों के साथ बैठ गया। वह आग के पास में स्वयं को गर्म कर रहा था।
\s5
\v 55 महायाजक और यहूदी परिषद यीशु के विरुद्ध गवाही खोज रही थी, जो उन्हें मार डालने के लिए दृढ़ हो। लेकिन उन्हें कोई गवाह नहीं मिला जो उन्हे मृत्यु दण्ड देने के लिए अधिकारियों को आवश्यक प्रतीत हो।
\v 56 कई लोगों ने यीशु के बारे में झूठ बोला परन्तु उन्होंने जो गवाहियाँ दीं वह एक दूसरे के साथ मेल नहीं खाती थी। और इसलिए, उनकी गवाहियाँ यीशु के विरूद्ध आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं थीं।
\s5
\v 57 अंत में, कुछ लोग खड़े हुए और यह कह कर उन पर आरोप लगाने लगे,
\v 58 "हम सुन रहे थे जब यह कह रहा था। 'मैं परमेश्वर के इस भवन को नष्ट कर दूँगा जिसे मनुष्यों द्वारा बनाया गया, और फिर तीन दिन मैं किसी और की सहायता के बिना एक और परमेश्वर का भवन का निर्माण करूँगा।'
\v 59 लेकिन इनमें से कुछ लोगों ने जो कहा, वह दूसरों ने जो कहा उससे अलग था, वे इसके साथ भी सहमत नहीं हुए।
\p
\s5
\v 60 तब महायाजक खुद उनके सामने खड़ा हो गया और यीशु से कहा, "क्या तू उत्तर देना नहीं चाहता? तू इन सब आरोपों के बारे में क्या कहना चाहता हैं?"
\v 61 परन्तु यीशु चुप थे और उन्होंने उत्तर नहीं दिया। तब महायाजक फिर से प्रयास किया कर रहा था। उसने उनसे पूछा, क्या तू मसीह है, क्या तू कहता है कि तू परमेश्वर का पुत्र है?
\v 62 यीशु ने कहा, "मैं हूँ।" इसके अतिरिक्त, तुम मुझे, मनुष्य के पुत्र को परमेश्वर के साथ शासन करते हए देखोगे, जो पूरी तरह से शक्तिशाली है। तुम मुझे बादलों के माध्यम से आकाश से उतरते हुए भी देखोगे!
\s5
\v 63 जब यीशु ने यह कहा, तो महायाजक ने विरोध में अपना स्वयं का वस्त्र फाड़ा, और महायाजक ने कहा, "क्या हमें इस व्यक्ति के विरुद्ध गवाही देने के लिए और अधिक गवाह चाहिए?
\v 64 तुमने उसकी निंदा को सुना है! वह परमेश्वर होने का दावा करता है!" वे सब इस बात पर सहमत हुए कि यीशु दोषी थे और वह मृत्यु दण्ड के योग्य थे।
\v 65 तब उनमें से कुछ ने यीशु पर थूकना शुरू कर दिया। उन्होंने उनकी आँखों पर पट्टी बाँध दी, और फिर उन्होंने उन्हें मारना शुरू कर दिया और कहा, "यदि तू एक भविष्यद्वक्ता है, तो हमें बता कि तुझे कौन मार रहा है!" और जो लोग यीशु की रक्षा कर रहे थे उन्होंने उन्हें अपने हाथों से मारा।
\p
\s5
\v 66 जबकि पतरस महायाजक के घर के आँगन में बाहर था, तब महायाजक के लिए काम करने वाली लड़कियों में से एक उसके पास आई।
\v 67 जब उसने देखा कि पतरस स्वयं को आग से गर्म कर रहा है, तो उसने उसे ध्यान से देखा। फिर उसने कहा, "तू भी नासरत में यीशु के साथ था!"
\v 68 लेकिन उसने यह कहते हुए इन्कार किया, "मुझे नहीं पता कि तू किस के बारे में बात कर रही है! मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता!" तब वह वहाँ से आँगन के फाटक के पास गया;
\s5
\v 69 दासी लड़की ने उसे वहाँ देखा और फिर जो लोग खड़े थे, उनसे कहा, "यह व्यक्ति उन लोगों में से एक है, जो उस व्यक्ति के साथ रहा है जिसे उन्होंने गिरफ्तार किया है।"
\v 70 परन्तु उसने फिर से इन्कार किया। थोड़ी देर के बाद, जो खड़े थे, उन्होंने पतरस को फिर से कहा, "तू भी गलील से है। इसलिए यह निश्चित है कि तू उन लोगों में से एक है जो यीशु के साथ थे!"
\s5
\v 71 लेकिन वह कहने लगा कि अगर वह सच्चाई नहीं बता रहा है तो परमेश्वर उसे सज़ा दे; उसने कहा, "मैं उस व्यक्ति को जानता, भी नहीं जिस के बारे में तुम बात कर रहे हो!"
\v 72 तुरन्त मुर्गे ने दूसरी बार बाँग दी। तब पतरस ने यह याद किया कि यीशु ने उससे पहले क्या कहा था: "मुर्गे के दूसरी बार बाँग देने से पहले, तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।" जब उसे समझ में आया कि उसने उनका तीन बार इन्कार कर दिया, तो उसने रोना शुरू कर दिया।
\s5
\c 15
\p
\v 1 सुबह बहुत जल्दी, महायाजकों ने यहूदी लोगों के साथ मिलकर निर्णय लिया कि कैसे रोमी राज्यपाल के सामने यीशु पर आरोप लगाया जाए। उनके रक्षकों ने यीशु के हाथ फिर से बाँध दिए और उन्हें पिलातुस के निवास में ले गए,
\v 2 पिलातुस ने यीशु से पूछा, "क्या तू कहता है कि तू यहूदियों का राजा है?" यीशु ने उसे उत्तर दिया, "तू ने खुद ही ऐसा कहा है।"
\v 3 तब महायाजकों ने दावा किया कि यीशु ने कई बुरे काम किए हैं।
\s5
\v 4 इसलिए पिलातुस ने उससे फिर पूछा, "क्या तेरे पास उत्तर देने के लिए कुछ नहीं है? सुनो, वे तुम पर कितने बुरे कामों का दोष लगाते हैं!"
\v 5 लेकिन यीशु ने कुछ नहीं कहा। इसका परिणाम यह हुआ कि पिलातुस बहुत विस्मित हुआ।
\p
\s5
\v 6 अब हर वर्ष फसह के उत्सव के समय राज्यपाल के बन्दीगृह से एक व्यक्ति को मुक्त करने की प्रथा थी। वह लोगों की माँग पर किसी भी बन्दी को छोड़ देता था।
\v 7 उस समय बरअब्बा नामक एक व्यक्ति था जो कुछ अन्य पुरुषों के साथ बन्दीगृह में था क्योंकि उसने रोमी सरकार के विरुद्ध विद्रोह किया, और हत्याएँ की थीं।
\v 8 एक भीड़ ने पिलातुस से संपर्क किया और पहले के जैसे ही उसे किसी को छोड़ने के लिए कहा।
\s5
\v 9 पिलातुस ने उन्हें उत्तर दिया, "क्या तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए इस व्यक्ति को छोड़ दूँ जिसे तुम लोग अपना राजा कहते हो?"
\v 10 उसने यह पूछा इसलिए क्योंकि उसे यह मालूम हो गया था कि महायाजक क्या चाहते थे। वे यीशु पर इसलिए आरोप लगा रहे थे कि वे उनसे ईर्ष्या करते थे, क्योंकि बहुत से लोग उनके शिष्य बन रहे थे।
\v 11 परन्तु महायाजकों ने लोगों को पिलातुस से आग्रह करने को कहा कि यीशु के बदले बरअब्बा को छोड़ दे।
\s5
\v 12 पिलातुस ने फिर से उनसे कहा, "यदि मैं बरअब्बा को छोड़ देता हूँ, तो तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे राजा के साथ करूँ?"
\v 13 वे चिल्लाए, "उसे क्रूस पर चढ़ाओ!"
\s5
\v 14 तब पिलातुस ने उनसे कहा, "क्यों? उसने क्या अपराध किया है?" परन्तु वे और भी ऊँचे शब्द से चिल्लाए, "उसे क्रूस पर चढ़ाओ!"
\v 15 पिलातुस भीड़ को प्रसन्न करना चाहता था, उसने बरअब्बा को उनके लिए छोड़ दिया। फिर उसके सैनिकों ने यीशु को कोड़े मारे; उसके बाद, पिलातुस ने उसे ले जाने और उसे क्रूस पर चढ़ाने के लिए दे दिया।
\p
\s5
\v 16 सैनिक यीशु को सैनिकनिवास से आँगन में ले गए। तब उन्होंने सब कर्मचारियों को बुलाया जो कार्य करते थे।
\v 17 सैनिकों ने एकत्र होने के बाद, यीशु पर एक बैंगनी वस्त्र डाला। फिर उन्होंने उनके सिर पर एक मुकुट रखा जो कि कंटीली झाड़ी की शाखाओं से बुना हुआ था।
\v 18 तब उन्होंने उन्हें नमस्कार किया जैसे कि वे एक राजा को नमस्कार करते हैं, ताकि उनका ठट्ठा कर सकें। उन्होंने कहा, "यहूदियों के राजा को नमस्कार!"
\s5
\v 19 वे बार-बार एक सरकंडे से उनके सिर पर मारते थे और उन पर थूकते थे। उन्होंने उन्हें सम्मान देने का ढोंग करने के लिए उनके सामने घुटने टेक दिए।
\v 20 जब वे उनका ठट्ठा कर चुके, तो उन्होंने बैंगनी वस्त्र को खींच लिया। उन्होंने उनके कपड़े उसे दिए, और फिर उसे शहर के बाहर ले जाने लगे ताकि उसे क्रूस पर चढ़ा सकें।
\p
\v 21 शमौन नाम का एक मनुष्य वहाँ से जा रहा था। वह कुरेनी था सिकन्दर और रूफुस का पिता था, वह कहीं से शहर में आ रहा था वह यीशु के पास से होकर निकला तो। सैनिकों ने शमौन को यीशु का क्रूस उठाने के लिए विवश किया।
\s5
\v 22 सैनिकों ने उन दोनों को उस जगह पर पहुँचा दिया, जिसे वे गुलगुता भी कहते हैं। उस नाम का अर्थ है, "खोपड़ी के जैसा स्थान।"
\v 23 फिर उन्होंने यीशु को मुर्र मिला हुआ दाखरस देने का प्रयास किया। परन्तु उन्होंने इसे पीने से इन्कार कर दिया।
\v 24 कुछ सैनिक उनके कपड़े ले गए। फिर उन्होंने उन्हें एक क्रूस पर चढ़ा दिया। बाद में, उन्होंने जूए के द्वारा उनके कपड़े आपस में बाँट लिए।
\p
\s5
\v 25 यह सुबह नौ बजे का समय था जब उन्होंने उन्हें क्रूस पर चढ़ाया।
\v 26 उन्होंने क्रूस पर यीशु के सिर के ऊपर एक दोषपत्र लगाया, पर उन्हे क्रूस पर चढ़ाने का यह कारण लिखा गया था कि वे उसे क्रूस पर क्यों चढ़ा रहे थे। उस पर लिखा था, "यहूदियों का राजा।"
\v 27 दो और व्यक्तियों को क्रूस पर चढ़ाया गया था जो कि डाकू थे। एक को यीशु के दाईं तरफ और एक को बाईं तरफ लटकाया गया।
\s5
\v 29 जो लोग वहाँ से आ-जा रहे थे उन्होंने अपने सिरों को हिला कर उनको अपमानित किया। उन्होंने कहा, "आहा! तूने कहा था कि तू परमेश्वर के भवन को नष्ट कर देगा और तीन दिन में उसे फिर से बना लेगा।
\v 30 यदि तू ऐसा कर सकता है, तो क्रूस से नीचे उतरकर खुद को बचा ले!"
\s5
\v 31 महायाजकों के साथ यहूदी नियमों को पढ़ाने वाले पुरुष भी यीशु का ठट्ठा कर रहे थे। उन्होंने एक दूसरे से कहा, "उसने दूसरों को संकट से बचाया है, परन्तु वह स्वयं को बचा नहीं सकता!
\v 32 उसने कहा था, 'मैं मसीह हूँ। मैं राजा हूँ जो इस्राएल के लोगों पर शासन करता है।' यदि उसके वचन सत्य हैं, तो उसे क्रूस से अब नीचे आ जाना चाहिए! तब हम उस पर भरोसा करेंगे!" उन दो पुरुषों ने भी उनका अपमान किया जो उसके साथ क्रूस पर चढ़ाए गए थे।
\p
\s5
\v 33 दोपहर में पूरे देश में अंधेरा हो गया, और दोपहर में तीन बजे तक अंधेरा रहा।
\v 34 तीन बजे यीशु जोर से चिल्लाए, "इलोई, इलोई, लमा शबक्तनी?" इसका अर्थ है, "हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, आप ने मुझे क्यों छोड़ दिया है?"
\v 35 जब कुछ लोग ने जो वहाँ खड़े थे यह 'इलोई' शब्द सुना, तो उन्होंने इसे गलत समझा और कहा, "सुनो! वह एलिय्याह भविष्यद्वक्ता को पुकार रहा है!"
\s5
\v 36 उनमें से एक भागा और पनसोख्‍ता को खट्टे दाखरस में भिगोया। उसने इसे एक सरकंडे की नोक पर रख दिया, और फिर इसे पकड़कर यीशु को चूसाने की कोशिश की। उसने कहा, "रुको! हम देखते हैं कि एलिय्याह उसे क्रूस से नीचे उतारने के लिए आएगा या नहीं!"
\v 37 तब यीशु जोर से चिल्लाए, और साँस लेना बंद कर दिया, और मर गए।
\v 38 उसी पल परमेश्वर के भवन का पर्दा ऊपर से नीचे तक दो टुकड़ों में विभाजित हो गया।
\s5
\v 39 वह अधिकारी यीशु के सामने खड़ा था जो उन सैनिकों की देख-रेख करता था जिन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ाया था। जब उसने देखा कि यीशु की मृत्यु कैसे हुई, तो उसने कहा, "यह सचमुच परमेश्वर के पुत्र थे!"
\v 40-41 वहाँ कुछ स्त्रियाँ भी थीं; वे एक दूरी से इन घटनाओं को देख रही थीं। जब यीशु गलील में थे, तो वे उनके साथ थीं, और जो उन्हें जो आवश्यक्ता होती थी वह उनको प्रदान करती थी। वे यरूशलेम में उनके साथ आई थीं। उन महिलाओं में मरियम मगदलीनी थी। वहाँ एक और मरियम थी, जो छोटे याकूब और योसेस की माता थीं। वहाँ सलोमी भी थी।
\p
\s5
\v 42-43 जब शाम करीब थी, तो अरिमतियाह का यूसुफ नाम का एक व्यक्ति वहाँ आया। वह यहूदी परिषद का सदस्य था, जिसका हर कोई सम्मान करता था। वह उनमें से एक था, जो आशा कर रहे थे कि परमेश्वर स्वयं को राजा के रूप में दिखाएँगे। अब शाम हो रही थी। यह सब्त के एक दिन पहले का दिन था, उस दिन को यहूदी तैयारी का दिन कहते थे। इसलिए वह पिलातुस के पास साहस के साथ गया और उससे कहा कि वह उसे यीशु के शरीर को क्रूस से नीचे उतारने और उसे तुरंत दफ़नाने की अनुमति दे।
\v 44 पिलातुस यह सुनकर आश्चर्यचकित हुआ कि यीशु तो मर चुका है। इसलिए उसने उस अधिकारी को बुलाया जो उन सैनिकों का प्रभारी था, जिन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ाया था, और उसने उससे पूछा कि क्या यीशु मर चुका था।
\s5
\v 45 जब अधिकारी ने पिलातुस से कहा कि यीशु मर चुका था, तो पिलातुस ने यीशु के शरीर को ले जाने की अनुमति यूसुफ को दे दी।
\v 46 यूसुफ ने एक सनी का कपड़ा खरीदा और कुछ लोगों की सहायता से यीशु के शरीर को क्रूस से नीचे उतारा। उन्होंने उन्हें सनी के कपड़े में लपेटा और उन्हें एक कब्र में रख दिया, जिसे पहले से ही एक चट्टान में खोद लिया गया था। फिर उन्होंने कब्र के प्रवेश द्वार के सामने एक विशाल पत्थर को लुढ़का दिया।
\v 47 मरियम मगदलीनी और योसेस की माता मरियम देख रही थीं कि यीशु के शरीर को कहाँ रखा गया था।
\s5
\c 16
\p
\v 1 जब सब्त का समय समाप्त हो गया, तो मरियम मगदलीनी, याकूब की माता और सलोमी ने यीशु के शरीर को अभिषेक करने के लिए सुगंधित द्रव्य खरीदे।
\v 2 सप्ताह के पहले दिन बहुत जल्दी, सूरज उगने के ठीक बाद, वे सुगंधित द्रव्यों को लेकर कब्र पर गईं।
\s5
\v 3 जब वे वहाँ जा रही थीं, तो वे एक दूसरे से पूछ रही थीं, "हमारे लिए कब्र के प्रवेश द्वार से पत्थर कौन हटाएगा?"
\v 4 वहाँ पहुँचने के बाद, उन्होंने देखा कि किसी ने पत्थर को लुढ़का रखा है, जो कि बहुत बड़ा था।
\s5
\v 5 उन्होंने कब्र में प्रवेश किया और एक स्वर्गदूत को देखा जो एक जवान व्यक्ति के समान था। वह गुफा के दाहिनी ओर बैठा था। वह सफेद वस्त्र पहने हुए था। उसे देखकर वे चकित थीं।
\v 6 उस जवान व्यक्ति ने उनसे कहा, "अचंभित मत हो! मुझे पता है कि तुम यीशु की, जो नासरत से हैं खोज कर रही हो, जिन्हें क्रूस पर चढ़ाया गया था। परन्तु वह तो जीवित हो गए हैं! वह यहाँ नहीं है। देखो! यह वह जगह है जहाँ उनका शरीर रखा गया था।
\v 7 जाओ और बाकी शिष्यों को बताओ। विशेष रूप से तुम पतरस को बताओ। उन्हें बताओ, 'यीशु तुमसे पहले गलील को जाएँगे, और तुम उसे वहाँ देखोगे, जैसे उन्होंने पहले तुम्हें बताया था!'
\s5
\v 8 वे स्त्रियाँ बाहर निकलीं और कब्र से भाग गईं। वे भयभीत थीं क्योंकि वे डर गई थीं, और वे चकित थीं। परन्तु उन्होंने इस बारे में किसी को भी कुछ नहीं कहा, क्योंकि वे डरी हुई थीं।
\p
\s5
\v 9 जब सप्ताह के पहले दिन यीशु फिर से जीवित हो गए, तो वह पहली बार मरियम मगदलीनी के सामने आए। वह वही महिला थी, जिसमें से उन्होंने पहले सात दुष्ट-आत्माओं को निकाला था।
\v 10 वह उन लोगों के पास गई जो यीशु के साथ थे, जबकि वे शोक में थे और रो रहे थे। उसने उन्हें बताया कि उसने क्या देखा था।
\v 11 लेकिन जब उसने उनसे कहा कि यीशु फिर से जीवित हो गए हैं और उसने उन्हें देखा है, तो उन्होंने इस पर विश्वास नहीं किया।
\s5
\v 12 उस दिन के बाद यीशु अपने दो शिष्यों को अलग रूप में दिखाई दिए, जब वे यरूशलेम से पास के क्षेत्र में जा रहे थे।
\v 13 उन्हें पहचान लेने के बाद, वे दोनों यरूशलेम लौट आए। उन्होंने उनके दूसरे अनुयायियों को बताया कि क्या हुआ था, परन्तु उन्हें विश्वास नहीं था।
\s5
\v 14 बाद में यीशु ग्यारह प्रेरितों को दिखाई दिए, जब वे खा रहे थे। उन्होंने उनको डाँटा क्योंकि वे उन लोगों की गवाही पर विश्वास करने से इन्कार करते थे, जिन्होंने उन्हें फिर से जीवित होने के बाद देखा था।
\p
\v 15 उन्होंने उनसे कहा, "पूरे संसार में जाकर सबके लिए सुसमाचार का प्रचार करो!
\v 16 जो कोई तुम्हारा संदेश मानता है और जो बपतिस्मा लेता है, तो परमेश्वर उन्हें बचाएँगे। वह उन सब को दोषी ठहराएँगे जो विश्वास नहीं करते।
\s5
\v 17 जो लोग सुसमाचार पर विश्वास करते हैं, वे चमत्कार दिखाएँगे, क्योंकि मैं उनके साथ हूँ। मेरी शक्ति से वे चमत्कार करेंगे: वे लोगों में से दुष्ट-आत्माओं को निकालेंगे। वे उन भाषाओं में बात करेंगे, जो उन्होंने नहीं सीखी हैं।
\v 18 यदि वे साँप उठा लें या यदि वे किसी भी जहरीले तरल को पी लेते हैं, तो उन्हें कोई हानि नहीं होगी। परमेश्वर उन बीमार लोगों को स्वस्थ करेंगे, जिन पर वे अपने हाथ रख देंगे।"
\p
\s5
\v 19 प्रभु यीशु शिष्यों से यह कह ही रहे थे कि परमेश्वर ने उन्हें स्वर्ग में उठा लिया। तब वह उनके साथ शासन करने के लिए, परमेश्वर के पास सर्वोच्च सम्मान के स्थान में अपने सिंहासन पर बैठ गए।
\v 20 शिष्य यरूशलेम से निकल गए, और फिर वे हर जगह प्रचार करते थे। जहाँ भी वे जाते थे, प्रभु ने उन्हें चमत्कार करने में समर्थ किया। ऐसा करके, उन्होंने लोगों पर प्रकट किया कि परमेश्वर का संदेश सच है।

1971
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\toc1 The Gospel of Luke
\toc2 Luke
\toc3 luk
\mt1 लूका
\s5
\c 1
\p
\v 1 प्रिय थियुफिलुस,
\p बहुत से लोगों ने उन अद्भुत घटनाओं के बारे में जो हमारे बीच हुईं हैं, लिखा है।
\v 2 हमने इन घटनाओं के बारे में उन लोगों से सुना है जिन्होंने उन्हें आरंभ से देखा था। इन्ही लोगों ने दूसरों को परमेश्वर के संदेश की शिक्षा दी थी।
\v 3 इन लोगों ने जो लिखा और सिखाया है, उन सब का मैंने स्वयं ध्यान से अध्ययन किया है। इसलिए, प्रिय थियुफिलुस मैंने यह निर्णय लिया है कि इन सबका सही विवरण तेरे लिए लिखूं तो अच्छा होगा।
\v 4 मैं यह इसलिए लिख रहा हूँ कि तू जान ले कि जो तुझे सिखाया गया है वह सच है।
\p
\s5
\v 5 जब राजा हेरोदेस यहूदिया प्रान्त पर राज्य करता था, तब वहाँ जकर्याह नामक एक यहूदी याजक था। वह अबिय्याह नामक याजकों के समूह से सम्बन्धित था। वह और उसकी पत्नी एलीशिबा दोनों हारून के कुल से थे।
\v 6 परमेश्वर उन दोनों को मानते थे, कि वे धर्मी हैं, क्योंकि वे परमेश्वर की सारी आज्ञाओं का पालन करने में नहीं चूकते थे,
\v 7 परन्तु उनकी कोई सन्तान नहीं थी, क्योंकि एलीशिबा सन्तान को जन्म देने में असमर्थ थी। इसके अतिरिक्त, वह और उसका पति बहुत बूढ़े थे।
\p
\s5
\v 8 एक दिन जकर्याह अपने समूह के नियत समय यरूशलेम के मन्दिर में एक याजक के तौर पर सेवा कर रहा था।
\v 9 उनकी रीति के अनुसार, याजकों ने परमेश्वर के मन्दिर में जाकर धूप जलाने के लिए चिट्ठी डाली तो जकर्याह का नाम निकला।
\v 10 जब धूप जलाने का समय आया, तो बहुत से लोग मन्दिर के बाहर आँगन में प्रार्थना कर रहे थे।
\s5
\v 11 तब परमेश्वर की ओर से भेजा गया एक स्वर्गदूत, उसके सामने प्रकट हुआ। स्वर्गदूत धूप की वेदी के दाहिनी ओर खड़ा था।
\v 12 जब जकर्याह ने स्वर्गदूत को देखा, तो वह चौंक गया और बहुत डर गया।
\v 13 परन्तु स्वर्गदूत ने उस से कहा, “हे जकर्याह, मत डर। जब तू प्रार्थना कर रहा था, तो प्रभु ने तेरी विनती सुनी, इसलिए तेरी पत्नी एलीशिबा तेरे लिए एक पुत्र को जन्म देगी। तू उसका नाम यूहन्ना रखना।
\s5
\v 14 तुझे बहुत आनन्द होगा, और उसके जन्म लेने से अनेक लोग भी आनन्दित होंगे।
\v 15 वह परमेश्वर के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होगा। वह दाखरस या कोई अन्य मदिरा कभी न पीये। वह जन्म से पहले ही पवित्र आत्मा की शक्ति से भरा हुआ होगा।
\s5
\v 16 वह इस्राएल के वंशजों को पाप करने से रोकेगा और अपने परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना आरंभ करने के लिए प्रेरित करेगा।
\v 17 तेरा पुत्र प्रभु के आगे आगे उनके दूत के रूप में चलेगा और वह अपनी आत्मा में भविष्यद्वक्ता एलिय्याह के समान शक्तिशाली होगा। वह माता-पिता को फिर से अपने बच्चों से प्रेम करने की प्रेरणा देगा। ऐसे अनेक लोगों को जो परमेश्वर की आज्ञा का पालन नहीं करते हैं उन्हें वह बुद्धिमानी से जीने के लिए और धर्मी लोगों के समान परमेश्वर की आज्ञा मानने के लिए उभारेगा। वह ऐसा इसलिए करेगा कि प्रभु के आने पर बहुत से लोग तैयार रहें।”
\p
\s5
\v 18 तब जकर्याह ने स्वर्गदूत से कहा, “मैं बहुत बूढ़ा हूँ, मेरी पत्नी भी बहुत बूढ़ी है। तो मैं कैसे विश्वास करूँ कि तूने जो कहा है वह वास्तव में होगा?”
\p
\v 19 तब स्वर्गदूत ने उस से कहा, “मैं गब्रिएल हूँ! मैं परमेश्वर की उपस्थिति में खड़ा रहता हूँ! तुझे यह शुभ समाचार सुनाने के लिए कि तेरे साथ क्या होगा मुझे भेजा गया है।
\v 20 मैंने जो तुझ से कहा है वह परमेश्वर के उचित समय पर पूरा होकर ही रहेगा, परन्तु तूने मेरे वचनों पर विश्वास नहीं किया। इसलिए तेरे पुत्र के जन्म के दिन तक परमेश्वर तुझे बोलने की क्षमता से रहित रखेगा!”
\s5
\v 21 इधर जकर्याह और स्वर्गदूत मन्दिर में बात कर रहे थे, और उधर आँगन में लोग जकर्याह के बाहर आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। वे आश्चर्य कर रहे थे कि वह मन्दिर में इतनी देर तक क्यों रुका हुआ है।
\v 22 जब वह बाहर आया, तो वह उनसे बात नहीं कर पा रहा था। क्योंकि वह बोल नहीं पा रहा था इसलिए उसने अपने हाथों के संकेत से उसके साथ हुई घटना को समझाने का प्रयास किया। वे समझ गए कि जब वह मन्दिर में था, तब उसने परमेश्वर की ओर से एक दर्शन देखा है।
\p
\v 23 मन्दिर में याजक की सेवा करने का समय समाप्त हो जाने पर वह यरूशलेम छोड़कर अपने घर चला गया।
\p
\s5
\v 24 इस घटना के कुछ समय बाद उसकी पत्नी एलीशिबा गर्भवती हुई, परन्तु वह पाँच महीनों तक सबके सामने बाहर नहीं गई।
\v 25 उसने अपने आप से कहा, “परमेश्वर ने मुझे गर्भवती होने में समर्थ किया है। इस प्रकार उन्होंने मुझ पर दया की है और लोगों में मेरा तिरस्कार होने का कारण हटा दिया है!”
\p
\s5
\v 26 जब एलीशिबा लगभग छह महीने की गर्भवती थी, तो परमेश्वर ने गब्रिएल को गलील जिले के नासरत नगर में भेजा।
\v 27 वह वहाँ एक कुँवारी से बात करने के लिए गया था जिसकी मंगनी यूसुफ नाम के एक पुरुष से हुई थी, जो राजा दाऊद का वंशज था। उस कुँवारी का नाम मरियम था।
\v 28 तब स्वर्गदूत ने उससे कहा, “नमस्कार! प्रभु तेरे साथ है और उन्होंने तेरे प्रति महान कृपा दिखाई है!”
\v 29 परन्तु मरियम ऐसा अभिवादन सुनकर बहुत परेशान हो गई। वह आश्चर्य करने लगी कि स्वर्गदूत द्वारा कहे गए इन वचनों का क्या अर्थ है।
\s5
\v 30 तब स्वर्गदूत ने उससे कहा, “मरियम, मत डर, क्योंकि तूने परमेश्वर का अनुग्रह प्राप्त किया है!
\v 31 तू गर्भवती होगी और एक पुत्र को जन्म देगी, और तू उसका नाम यीशु रखना।
\v 32 वह महान होंगे और उन्हें परमप्रधान परमेश्वर का पुत्र कहा जाएगा। प्रभु परमेश्वर उन्हें उनके पूर्वज दाऊद के समान अपने लोगों के ऊपर राजा बनाएँगे।
\v 33 वह याकूब के वंशजों पर सदा के लिए शासन करेंगे। उनके शासन का अन्त नहीं होगा!”
\p
\s5
\v 34 तब मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, “यह कैसे हो सकता है, क्योंकि मैं कुँवारी हूँ?”
\v 35 स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, “पवित्र आत्मा तुझ पर आएगा और परमेश्वर की शक्ति तुझ पर छा जाएगी, इसलिए जिस बालक को तू जन्म देगी वह पवित्र होगा, और वह परमेश्वर के पुत्र कहलाएँगे।
\s5
\v 36 और सुन, तेरी संबन्धि एलीशिबा बूढ़ी होने पर भी गर्भवती है। और पुत्र को जन्म देगी यद्यपि लोगों ने सोचा था कि वह सन्तान को जन्म दे नहीं सकती, अब वह इस समय लगभग छह महीने की गर्भवती है।
\v 37 क्योंकि परमेश्वर कुछ भी कर सकते हैं!”
\v 38 फिर मरियम ने कहा, “ठीक है, मैं प्रभु की दासी हूँ, इसलिए जो कुछ तूने मेरे बारे में कहा है, वैसा ही हो जाए!” तब स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।
\p
\s5
\v 39 इसके तुरन्त बाद, मरियम तैयार हुई और यहूदिया के पहाड़ी क्षेत्र के शहर में जहाँ जकर्याह रहता था गई।
\v 40 उसने उसके घर में प्रवेश किया और उसकी पत्नी एलीशिबा को नमस्कार किया।
\v 41 जैसे ही एलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना, वैसे ही एलीशिबा के गर्भ में बच्चा उछला। तुरन्त ही पवित्र आत्मा ने एलीशिबा को परमेश्वर की स्तुति करने की प्रेरणा दी।
\s5
\v 42 उसने ऊँचे स्वर में मरियम से कहा, “परमेश्वर ने तुझे अन्य स्त्रियों की तुलना में अधिक आशीष दी है, और जिस बच्चे को तू जन्म देगी उसे भी आशीष दी है!
\v 43 यह कितना अद्भुत है कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आई है!
\v 44 जैसे ही मैंने तेरा अभिवादन सुना वैसे ही बच्चा मेरे गर्भ में उछला क्योंकि वह बहुत खुश हुआ कि तू आई है!
\v 45 तू धन्य है क्योंकि तूने विश्वास किया कि परमेश्वर ने जो कहा वह सच हो जाएगा।”
\p
\s5
\v 46 तब मरियम ने यह कहते हुए परमेश्वर की स्तुति की:
\q “आहा, मैं कैसे परमेश्वर की स्तुति करती हूँ!
\q
\v 47 मैं परमेश्वर के बारे में बहुत आनन्दित हूँ,
\q वह मेरा उद्धार करने वाला है
\q
\s5
\v 48 मैं केवल उसकी दीन दासी थी, परन्तु वह मुझे नहीं भूला ।
\q इसलिए अब से, हर युग में रहने वाले लोग कहेंगे कि परमेश्वर ने मुझे आशीर्वाद दिया है।
\q
\v 49 वे उन महान कामों के कारण जो सामर्थी परमेश्वर ने मेरे लिए किया है, ऐसा कहेंगे। उनका नाम पवित्र है!
\q
\s5
\v 50 जो लोग उनका सम्मान करते हैं उन लोगों के प्रति वह पीढ़ी से पीढ़ी तक दया के काम करते है।
\q
\v 51 वह लोगों को दिखाते हैं कि वह बहुत शक्तिशाली हैं।
\q वह उन लोगों को तितर-बितर करते है, जो अपने मन के भीतर घमण्ड रखते हैं।
\q
\s5
\v 52 उन्होंने राजाओं को शासन करने से रोक दिया है,
\q और उन्होंने पीड़ित लोगों को सम्मानित किया है।
\q
\v 53 उन्होंने भूखों को खाने के लिए अच्छी वस्तुएँ दी हैं,
\q और उन्होंने अमीरों को खाली हाथ वापस भेज दिया है।
\q
\s5
\v 54 उन्होंने इस्राएलियों की जो उनकी सेवा करते हैं सहायता की है।
\q पूर्व काल में उन्होंने हमारे पूर्वजों से प्रतिज्ञा की कि वह उनके प्रति दयालु रहेंगे।
\q
\v 55 उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की है और अब्राहम और उसके वंशजों को सदैव दया दिखाई है।”
\p
\s5
\v 56 मरियम एलीशिबा के साथ लगभग तीन महीने तक रही। फिर वह अपने घर लौट गई।
\p
\v 57 जब बच्चे को जन्म देने का समय आया, तब एलीशिबा ने एक पुत्र को जन्म दिया।
\v 58 उसके पड़ोसियों और संबन्धियों ने सुना कि परमेश्वर ने उस पर कैसी दया की है तो उन्होंने एलीशिबा के साथ आनन्द मनाया।
\s5
\v 59 इसके बाद, आठवें दिन लोग बालक का खतना करने के समारोह में एकत्र हुए। क्योंकि उसके पिता का नाम जकर्याह था, इसलिए वे बच्चे को भी वही नाम देना चाहते थे।
\v 60 परन्तु उसकी माता ने कहा, “नहीं, उसका नाम यूहन्ना होना चाहिए!”
\v 61 उन्होंने उससे कहा, “परन्तु यूहन्ना नाम तो तेरे संबन्धियों में से किसी का भी नहीं है!”
\s5
\v 62 तब उन्होंने उसके पिता को हाथों से इशारा करके पूछा कि वह अपने पुत्र को क्या नाम देना चाहता है।
\v 63 तब उसने संकेत से समझाया कि उसे लिखने के लिए एक पट्टी दी जाए । जब उन्होंने उसे एक पट्टी दी, तो उसने उस पर लिखा, “उसका नाम यूहन्ना है।” वहाँ उपस्थित सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए!
\s5
\v 64 तुरन्त जकर्याह फिर से बोलने लगा, और वह परमेश्वर की स्तुति करने लगा।
\v 65 जो लोग आस-पास रहते थे वे परमेश्वर के काम को देखकर बहुत अचम्भित थे। उन्होंने अनेक लोगों को घटी हुई बातें सुनाई और यह समाचार यहूदिया के सब पहाड़ी क्षेत्रों में फैल गया।
\v 66 जो कोई इस घटना के बारे में सुनता, वह उसके बारे में सोचता रहता था। वे कहते, “हम सोचते हैं कि यह बच्चा बड़ा होकर क्या करेगा!” जो कुछ भी हुआ था उसके कारण उन्हें यकीन था कि परमेश्वर सामर्थी रीति से उसकी सहायता करेंगे।
\s5
\v 67 पुत्र का जन्म होने के बाद, जकर्याह पवित्र आत्मा के नियन्त्रण में आया और उसने परमेश्वर की ओर से ये वचन कहे:
\q
\v 68 “प्रभु परमेश्वर की स्तुति करो जिसकी हम इस्राएली लोग उपासना करते हैं,
\q क्योंकि वह हमें, अपने लोगों को स्वतंत्र करने के लिए आए हैं।
\q
\s5
\v 69 वह सामर्थी रीति से हमारा उद्धार करने के लिए किसी को भेज रहें हैं,
\q जो उनके दास राजा दाऊद का वंशज है।
\q
\v 70 बहुत पहले परमेश्वर ने अपने भविष्यद्वकताओं को यह कहने के लिए प्रेरित किया था कि वह ऐसा करेंगे।
\q
\v 71 यह सामर्थी उद्धारकर्ता हमें हमारे शत्रुओं से बचाएँगे,
\q और वह हमें उन सब की शक्ति से बचाएँगे जो हमसे घृणा करते हैं।
\q
\s5
\v 72 उन्होंने यह इसलिए किया है कि वह हमारे पूर्वजों के प्रति दयालु हैं और अपनी पवित्र वाचा को स्मरण करते हैं,
\q
\v 73 यही वह शपथ है जो उन्होंने हमारे पूर्वज अब्राहम से खाई थी
\q
\v 74-75 परमेश्वर ने हमें हमारे शत्रुओं की प्रभुता से बचाने,
\q और हमें निडर होकर संपूर्ण जीवन पवित्र और धार्मिक रीति से,
\q उसकी सेवा करने के योग्य बनाने का वायदा किया।
\q
\s5
\v 76 तब जकर्याह ने अपने नन्हे पुत्र से कहा:
\q हे मेरे पुत्र, तू परमप्रधान परमेश्वर का भविष्यद्वक्ता कहलाएगा
\q तू प्रभु के आगे चलेगा
\q कि लोगों को उनके आने के लिए तैयार करे।
\q
\v 77 तू लोगों को बताएगा कि परमेश्वर उन्हें क्षमा कर सकते हैं और उन्हें उनके पापों के दण्ड से बचा सकते हैं।
\q
\s5
\v 78 परमेश्वर हमें क्षमा करेंगे क्योंकि वह हमारे प्रति दयालु और कृपालु हैं।
\q और इसके कारण, यह उद्धारकर्ता, जो उगते सूरज जैसा है,
\q हमारी सहायता करने के लिए स्वर्ग से हमारे पास आएँगे।
\q
\v 79 वह उन लोगों पर चमकेंगे जो आत्मिक अंधेरे और मौत के भय में रहते हैं।
\q वह हमारा मार्गदर्शन करेंगे ताकि हम शान्ति पूर्वक रह सकें।
\p
\s5
\v 80 समय के साथ, जकर्याह और एलीशिबा का पुत्र बड़ा हुआ और आत्मिक रूप से दृढ़ हो गया। फिर वह एक निर्जन क्षेत्र में रहने लगा और वहीं रहते हुए परमेश्वर की प्रजा, इस्राएल के लिए प्रचार करने लगा।
\s5
\c 2
\p
\v 1 उस समय कैसर औगुस्तुस ने आज्ञा दी कि, कि रोमी साम्राज्य में रहने वाले हर व्यक्ति को सरकारी अभिलेख में अपना नाम लिखवाना होगा।
\v 2 यह पहली बार उस समय हुआ था जब क्विरिनियुस सीरिया के प्रान्त का राज्यपाल था।
\v 3 इसलिए सब को अपने परिवार के गृहनगर जाकर नाम लिखवाना पड़ा।
\s5
\v 4-5 यूसुफ भी मरियम के साथ अपने गृहनगर गया, मरियम से उसकी मंगनी हो गई थी और वह गर्भवती थी। क्योंकि यूसुफ राजा दाऊद का वंशज था, वह गलील क्षेत्र के नासरत नगर से यहूदिया क्षेत्र के बैतलहम शहर में गया, जिसे दाऊद का शहर भी कहा जाता है। यूसुफ और मरियम सरकारी अभिलेख में नाम लिखवाने के लिए वहाँ गए थे।
\s5
\v 6-7 जब वे बैतलहम पहुँचे, तो वहाँ ठहरने के स्थान खाली नहीं थे। इसलिए उन्हें ऐसे स्थान पर रहना पड़ा जहाँ भेड़-बकरियाँ रात को सोते थे। जब वे वहाँ थे, तब मरियम का जन्म देने का समय आ गया और उसने अपने पहले बच्चे को, जो पुत्र था जन्म दिया। उसने उसे कपड़े के बड़े टुकड़ों में लपेटा और उसे जानवरों के खाना खाने के पात्र में रख दिया।
\p
\s5
\v 8 उस रात, कुछ चरवाहे बैतलहम के पास के खेतों में अपनी भेड़ों की देखभाल कर रहे थे।
\v 9 प्रभु के एक स्वर्गदूत ने उन्हें दर्शन दिया। प्रभु की महिमा दिखाते हुए, उनके चारों ओर एक चमकदार रोशनी चमक गई इसलिए वे बहुत डर गए।
\s5
\v 10 परन्तु स्वर्गदूत ने उन से कहा, “डरो मत! मैं तुम्हें एक अच्छा समाचार सुनाने आया हूँ, जो सब लोगों के लाभ का है और तुम्हें आनन्द से भर देगा!
\v 11 आज, दाऊद के शहर में, एक बालक जन्मा है जो तुमको तुम्हारे पापों से बचाएगा! वही मसीह प्रभु है!
\v 12 तुम उन्हें इस तरह पहचान सकोगे: बैतलहम में तुम्हें एक बालक मिलेगा जो कपड़ों के टुकड़ों में लपेटा हुआ और पशुओं के खाने के पात्र में रखा हुआ है।”
\p
\s5
\v 13 तब अकस्मात स्वर्गदूतों का एक बड़ा समूह स्वर्ग से उतरता दिखाई दिया और उस दूत के साथ मिलकर, वे सब परमेश्वर की स्तुति करते हुए कह रहे थे,
\q
\v 14 “ सर्वोच्च स्वर्ग में सब स्वर्गदूत परमेश्वर की स्तुति करें! और पृथ्वी पर जो लोग परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं उनके बीच शान्ति हो!”
\p
\s5
\v 15 जब स्वर्गदूत उनके पास से स्वर्ग लौट गए, तब चरवाहों ने एक दूसरे से कहा, “हमें इस अद्भुत बात को जिसे परमेश्वर ने हमें बताया है देखने के लिए बैतलहम जाना चाहिए!”
\v 16 इसलिए वे तुरन्त निकल पड़े और जब उस स्थान पर पहुँच गए जहाँ मरियम और यूसुफ रह रहे थे, तो उन्होंने पशुओं के खाने के पात्र में बच्चे को लेटा हुआ देखा।
\s5
\v 17 उसे देखने के बाद, जो कुछ उन्हें इस बच्चे के बारे में बताया गया था, वह सब को बताया।
\v 18 सब लोग चरवाहों की बातें सुनकर आश्चर्यचकित हुए।
\v 19 परन्तु मरियम, उन सब बातों के बारे में जो उसने सुनी, सोचती और उनका ध्यान करती रही।
\v 20 चरवाहे मैदान में लौट गए, जहाँ उनकी भेड़ें थीं। वे इस बारे में बात करते रहे कि परमेश्वर कितने महान हैं और उन सब बातों के लिए उसकी स्तुति करते रहे जो उन्होंने सुनी और देखी थीं, क्योंकि सब बातें वैसे ही थी जैसी स्वर्गदूतों ने उनसे कही थी।
\p
\s5
\v 21 आठ दिन बाद, जब बच्चे का खतना करने का दिन था तो उन्होंने उसका नाम यीशु रखा। यह वही नाम था जो स्वर्गदूत ने बच्चे के गर्भ में आने से पहले उन्हें बताया था।
\p
\s5
\v 22 जब मूसा की व्यवस्था के अनुसार, उनके शुद्ध होने के दिन पूरे हुए, तब मरियम और यूसुफ अपने पुत्र को परमेश्वर के लिए समर्पित करने हेतु यरूशलेम को गए।
\v 23 यह प्रभु की व्यवस्था में लिखा गया था, “प्रत्येक पहलौठे नर को प्रभु के लिए पवित्र करके अलग किया जाएगा।”
\v 24 प्रभु की व्यवस्था में यह भी कहा गया है कि नवजात पुत्र के माता-पिता: “पण्‍डुकों का एक जोड़ा, या कबूतर के दो बच्चे बलि चढ़ाएँ।”
\p
\s5
\v 25 उस समय यरूशलेम में शमौन नामक एक बूढ़ा पुरुष रहता था। वह वही करता था जो परमेश्वर को भाता था और परमेश्वर के नियमों का पालन करता था। वह बड़ी जिज्ञासा से परमेश्वर के मसीह के आने की प्रतीक्षा कर रहा था, जो इस्राएली लोगों को प्रोत्साहित करेंगे, और पवित्र आत्मा उसका निर्देशन कर रहे थे।
\v 26 पवित्र आत्मा ने उसे पहले से बता दिया था कि वह अपनी मृत्यु से पहले प्रभु की प्रतिज्ञा के मसीहा को देखेगा।
\s5
\v 27 जब यूसुफ और मरियम परमेश्वर की व्यवस्था में दी गई आज्ञा के अनुसार धार्मिक संस्कारों को पूरा करने के लिए अपने बालक, यीशु को मन्दिर में, ले आए तो आत्मा ने शमौन को मन्दिर के आँगन में प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया।
\v 28 तब उसने यीशु को अपनी गोद में लिया और परमेश्वर की स्तुति की,
\q
\v 29 “हे प्रभु, आपने मुझे संतुष्ट किया है और अब मैं आपकी प्रतिज्ञा के अनुसार शान्ति से मर सकता हूँ।
\q
\s5
\v 30 अपने लोगों को बचाने के लिए आपने जिन्हें भेजा है, मैंने उन्हें देख लिया है,
\q
\v 31 जिन्हें आप ने सब लोगों के बीच में से तैयार किया है।
\q
\v 32 वह प्रकाश के समान होंगे जो अन्यजातियों के सामने आपकी सच्चाई को प्रकट करेंगे, और वह इस्राएलियों को सम्मान दिलाएँगे।”
\p
\s5
\v 33 शमौन ने यीशु के बारे में जो कहा, उससे उसके पिता और माता बहुत आश्चर्यचकित थे। तब शमौन ने उन्हें आशीष दी और यीशु की माता, मरियम से कहा,
\v 34 “मेरी बातों पर ध्यान दें: परमेश्वर ने यह निर्धारित किया है कि इस बालक के कारण, बहुत से इस्राएली लोग परमेश्वर से दूर हो जाएँगे, और बहुत से लोग परमेश्वर के पास आएँगे। वह लोगों को चेतावनी देने के लिए, एक चिन्ह के समान होंगे, और बहुत से लोग उनका विरोध करेंगे।
\v 35 और परिणाम यह होगा कि, कई लोगों के विचार स्पष्ट हो जाएँगे। एक तलवार से तेरी आत्मा छिद जाएगी।”
\p
\s5
\v 36 मन्दिर के आँगन में हन्नाह नाम की एक भविष्यद्वक्तिन थी जो बहुत बूढ़ी थी। उसका पिता फनूएल आशेर के गोत्र का सदस्य था। सात वर्ष तक वह विवाहित रही और उसके बाद उसके पति की मृत्यु हो गई थी।
\v 37 उसके बाद, वह चौरासी वर्ष से एक विधवा के रूप में रह रही थी। वह सदा मन्दिर के क्षेत्र में सेवा करती थी और रात-दिन परमेश्वर की आराधना करती थी। वह अधिकतर उपवास रखती थी और प्रार्थना करती थी।
\v 38 उसी समय, हन्नाह उनके पास आई और बालक के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करना आरम्भ किया। फिर उसने कई लोगों से यीशु के बारे में बात की, जो यरूशलेम के छुटकारे के लिए परमेश्वर में आशा लगाए हुए थे।
\p
\s5
\v 39 जब यूसुफ और मरियम ने प्रभु की व्यवस्था के अनुसार जो कुछ आवश्यक था पूरा कर लिया, तब वे गलील जिले के नासरत शहर में लौट गए।
\v 40 जैसे-जैसे बालक बड़ा हुआ, वह बलवन्त और बुद्धिमान बन गया, और परमेश्वर उस से बहुत प्रसन्न थे।
\p
\s5
\v 41 हर साल यीशु के माता-पिता फसह मनाने के लिए यरूशलेम जाते थे।
\v 42 जब यीशु बारह वर्ष के हुए, तब वे पर्व के लिए यरूशलेम गए जैसा वे हमेशा करते थे।
\v 43 जब पर्व के दिन समाप्त हो गए, तब उनके माता-पिता घर लौट रहे थे, परन्तु यीशु यरूशलेम में ही रह गए। उनके माता-पिता नहीं जानते थे कि वह अभी भी वहाँ है।
\v 44 उन्होंने सोचा कि वह उनके साथ यात्रा कर रहे अन्य लोगों के साथ होंगे। पूरे दिन की यात्रा करने के बाद, उन्होंने अपने संबन्धियों और मित्रों के बीच उन्हें खोजा।
\s5
\v 45 जब उन्हें वह नहीं मिले, तब वे उन्हें खोजने के लिए यरूशलेम लौट आए।
\v 46 तीन दिन के बाद, उन्होंने उन्हें मन्दिर के आँगन में यहूदी धर्म गुरुओं के बीच में बैठा हुआ पाया। वह उन्हें सिखा रहे थे, और उनसे सवाल पूछ रहे थे।
\v 47 सब लोग जो उन्हें सुन रहे थे, वे उनकी समझ और उनके उत्तर सुनकर अचंभित थे।
\s5
\v 48 जब उनके माता-पिता ने उन्हें देखा, तो वे बहुत आश्चर्यचकित हुए। उनकी माता ने उनसे कहा, “हे मेरे पुत्र, तुमने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? तुम्हारे पिता और मैं बहुत चिंतित होकर तुम्हें खोज रहे थे!”
\v 49 उन्होंने उनसे कहा, “आप मुझे क्यों ढूँढ़ रहे थे? क्या आप नहीं जानते थे कि मुझे अपने पिता के काम में सहभागी होना आवश्यक है?”
\v 50 परन्तु वे उनकी बात का अर्थ समझ न सके।
\s5
\v 51 तब वह उनके साथ नासरत में लौट आए और सदा उनकी आज्ञा का पालन करते रहे। उनकी माता उन सब बातों के बारे में गहराई से सोचती रहती थी।
\p
\v 52 कुछ वर्षों के बीतने के साथ, यीशु बुद्धि और शरीर में विकास करते गए । परमेश्वर और लोगों से उन्हें अधिक से अधिक अनुग्रह प्राप्त होता रहा।
\s5
\c 3
\p
\v 1 जब कैसर तिबिरियुस रोमी साम्राज्य पर पन्द्रह वर्षों से शासन कर रहा था, पुन्तियुस पिलातुस यहूदिया प्रान्त का राज्यपाल था, और हेरोदेस अंतिपास गलील जिले पर शासन कर रहा था, उसका भाई फिलिप्पुस इतूरैया और त्रखोनीतिस के क्षेत्रों पर शासन कर रहा था, और लिसानियास अबिलेने के क्षेत्र पर शासन कर रहा था।
\v 2 उस समय, जब हन्ना और कैफा, यरूशलेम में महायाजक थे, तब परमेश्वर ने जकर्याह के पुत्र यूहन्ना से जंगल में बात की।
\s5
\v 3 यूहन्ना यरदन नदी के आस-पास के सभी क्षेत्रों में यात्रा करता था। वह लोगों से कहता था कि, यदि तुम परमेश्वर से अपने पापों की क्षमा चाहते हो, तो तुमको पश्चाताप करना होगा, तब मैं तुम्हें बपतिस्मा दूँगा!
\s5
\v 4 भविष्यद्वक्ता यशायाह ने इन शब्दों को एक पुस्तक में बहुत समय पूर्व लिखा था:
\q1 “जंगल में, कोई पुकारेगा:
\q1 परमेश्वर के लिय मार्ग तैयार करो,
\q1 उसके लिए सीधे रास्ते बनाओ
\q1
\s5
\v 5 हर एक घाटी भर दी जाएगी,
\q1 और हर एक पहाड़ और पहाड़ी समतल बनाया जाएगा;
\q1 टेढ़ी सड़कें सीधी की जाएँगी,
\q1 और टेढ़े मार्ग चौरस किए जाएँगे।
\q1
\v 6 तब सभी लोग देखेंगे कि परमेश्वर लोगों को किस तरह बचाते है।”
\p
\s5
\v 7 यूहन्ना ने उन लोगों की भीड़ से जो बपतिस्मा लेने के लिए उसके पास आ रहे थे, कहा “तुम लोग जहरीले साँपों की तरह बुरे हो! क्या किसी ने भी तुम्हें चेतावनी नहीं दी कि एक दिन परमेश्वर सब पाप करने वालों को दण्ड देंगे तुम यह ना सोचो कि तुम उन से बच सकते हो!
\s5
\v 8 ऐसे काम करो जिनसे प्रकट हो कि तुम वास्तव में अपने पापमय व्यवहार से दूर हो गए हो! और अपने आप से यह मत कहो, हम अब्राहम के वंशज हैं! क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि परमेश्वर इन पत्थरों से भी अब्राहम के वंशज उत्पन्न कर सकते हैं!
\s5
\v 9 कुल्हाड़ी पेड़ों की जड़ पर रखी गई है, कि हर पेड़ जो अच्छा फल नहीं लाता, काट दिया जाए और आग में फेंक दिया जाए।”
\s5
\v 10 तब भीड़ में से कुछ लोगों ने उससे पूछा, “तो फिर हमें क्या करना चाहिए?”
\v 11 उसने उत्तर दिया, “यदि तुम्हारे पास दो कुरते हैं, तो तुम उसमें से एक उसको देना जिसके पास वस्त्र नहीं है। यदि तुम्हारे पास बहुत सारा भोजन है, तो तुम उसमें से कुछ उसको देना जिसके पास भोजन नहीं है।”
\s5
\v 12 कुछ महसूल लेनेवाले भी यूहन्ना के पास बपतिस्मा लेने आए, उन्होंने उससे पूछा, “गुरु, हमें क्या करना चाहिए?”
\v 13 उसने उनसे कहा, “रोमी सरकार ने जितना महसूल लेने को कहा है उस से एक पैसा भी अधिक मत लो!”
\s5
\v 14 कुछ सैनिकों ने उससे पूछा, “और हमें क्या करना चाहिए?” उसने उनसे कहा, “लोगों को धमकी देकर तुम पैसे देने के लिए विवश मत करना, और किसी पर भी गलती करने का झूठा आरोप मत लगाओ! अपनी कमाई में सन्तुष्ट रहो”
\s5
\v 15 लोग बहुत आशा कर रहे थे कि मसीह शीघ्र आने वाले है, और उनमें से बहुत से सोच रहे थे कि यूहन्ना मसीह तो नहीं।
\v 16 परन्तु यूहन्ना ने उनको उत्तर दिया, “नहीं, मैं मसीह नहीं हूँ। मसीह मुझ से कहीं अधिक महान् हैं। वह इतने महान हैं कि मैं उनके जूतों का फीता खोलने के योग्य भी नहीं हूँ! जब मैंने तुम्हें बपतिस्मा दिया, तो मैंने केवल पानी का इस्तेमाल किया। परन्तु जब मसीह आएँगे, तो वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगे।
\s5
\v 17 उनके हाथ में उनका सूप है, जो बेकार भूसी से अच्छे अनाज को अलग करने के लिए तैयार है। वह अनाज को अपने खलिहान में सुरक्षित रखेंगे परन्तु भूसी को हमेशा जलने वाली आग में जला देंगे।
\s5
\v 18 इस प्रकार यूहन्ना ने परमेश्वर का सुसमाचार सुना कर लोगों से पश्चाताप करने और परमेश्वर के पास लौट आने के लिए विनती की।
\v 19 उसने राजा हेरोदेस को अपने भाई के जीवित रहते उसकी पत्नी हेरोदियास से विवाह करने और कई अन्य बुरे कर्मों के लिए भी डाँटा।
\v 20 फिर हेरोदेस ने एक और बुरा काम किया कि उसने अपने सैनिकों को आदेश देकर यूहन्ना को बन्दीगृह में डलवा दिया।
\s5
\v 21 परन्तु बन्दीगृह में डाले जाने से पहले यूहन्ना लोगों को बपतिस्मा दे रहा था, उसी समय यीशु ने भी बपतिस्मा लिया। उसके पश्चात जब वह प्रार्थना कर रहे थे, तब आकाश खुल गया।
\v 22 और पवित्र आत्मा कबूतर के रूप में यीशु पर उतरा। और परमेश्वर ने स्वर्ग से यीशु से कहा, “तू मेरा पुत्र है, जिससे मैं बहुत प्रेम करता हूँ। मैं तुझसे बहुत प्रसन्न हूँ!”
\p
\s5
\v 23 जब यीशु ने परमेश्वर के लिए सेवा करना आरंभ किया, तो वह लगभग तीस वर्ष के थे। वह यूसुफ के पुत्र थे (यह सोचा जाता था)। यूसुफ एली का पुत्र था।
\v 24 एली मत्तात का पुत्र था, मत्तात लेवी का पुत्र था। लेवी मलकी का पुत्र था, मलकी यन्ना का पुत्र था, यन्ना यूसुफ का पुत्र था।
\s5
\v 25 यूसुफ मत्तित्याह का पुत्र था, मत्तित्याह आमोस का पुत्र था, आमोस नहूम का पुत्र था, नहूम असल्याह का पुत्र था, असल्याह नग्‍गई का पुत्र था।
\v 26 नग्‍गई मात का पुत्र था, मात मत्तित्याह का पुत्र था, मत्तित्याह शिमी का पुत्र था, शिमी योसेख का पुत्र था, योसेख योदाह का पुत्र था।
\s5
\v 27 योदाह यूहन्ना का पुत्र था, यूहन्ना रेसा का पुत्र था, रेसा जरुब्बाबेल का पुत्र था। जरुब्बाबेल शालतियेल का पुत्र था, शालतियेल नेरी का पुत्र था।
\v 28 नेरी मलकी का पुत्र था मलकी अद्दी का पुत्र था, अद्दी कोसाम का पुत्र था, कोसाम एल्‍मदाम का पुत्र था, एल्‍मदाम एर का पुत्र था।
\v 29 एर यहोशू का पुत्र था। यहोशू एलीएजेर का पुत्र था, एलीएजेर योरीम का पुत्र था, योरीम मत्तात का पुत्र था, मत्तात लेवी का पुत्र था।
\s5
\v 30 लेवी शमौन का पुत्र था। शमौन यहूदा का पुत्र था, यहूदा यूसुफ का पुत्र था, यूसुफ योनान का पुत्र था, योनान एलयाकीम का पुत्र था।
\v 31 एलयाकीम मलेआह का पुत्र था, मलेआह मिन्नाह का पुत्र था। मिन्नाह मत्तता का पुत्र था, मत्तता नातान का पुत्र था, नातान दाऊद का पुत्र था।
\v 32 दाऊद यिशै का पुत्र था, यिशै ओबेद का पुत्र था, ओबेद बोअज का पुत्र था, बोअज सलमोन का पुत्र था, सलमोन नहशोन का पुत्र था।
\s5
\v 33 नहशोन अम्मीनादाब का पुत्र था, अम्मीनादब आदमीन का पुत्र था, आदमीन अरनी का पुत्र था, अरनी हेस्रोन का पुत्र था, हेस्रोन पेरेस का पुत्र था, पेरेस यहूदा का पुत्र था।
\v 34 यहूदा याकूब का पुत्र था, याकूब इसहाक का पुत्र था, इसहाक अब्राहम का पुत्र था, अब्राहम तेरह का पुत्र था, तेरह नाहोर का पुत्र था।
\v 35 नाहोर सरूग का पुत्र था, सरूग रऊ का पुत्र था रऊ पेलेग का पुत्र था। पेलेग एबेर का पुत्र था, एबेर शिलह का पुत्र था।
\s5
\v 36 शिलह केनान का पुत्र था, केनान अरफक्षद का पुत्र था, अरफक्षद शेम का पुत्र था, शेम नूह का पुत्र था नूह लेमेक का पुत्र था।
\v 37 लेमेक मथूशिलह का पुत्र था, मथूशिलह हनोक का पुत्र था, हनोक यिरिद का पुत्र था, यिरिद महललेल का पुत्र था, महललेल केनान का पुत्र था।
\v 38 केनान एनोश का पुत्र था, एनोश शेत का पुत्र था, शेत आदम का पुत्र था। आदम परमेश्वर का पुत्र था, वह मनुष्य जिसको परमेश्वर ने सृजा था।
\s5
\c 4
\p
\v 1 फिर, यीशु पवित्र आत्मा से भरकर, यरदन नदी से लौटे, और पवित्र आत्मा उन्हें जंगल में ले गए।
\v 2 पवित्र आत्मा उन्हें चालीस दिन के लिए जंगल में ले गए। जब वह वहाँ थे, शैतान उनकी परीक्षा करता रहा। जितने समय यीशु जंगल में थे उन्होंने कुछ नहीं खाया था, इसलिए जब चालीस दिन पूरे हो गए, तब उन्हें बहुत भूख लगी।
\s5
\v 3 फिर शैतान ने यीशु से कहा, “यदि तुम सच में परमेश्वर के पुत्र हो, तो इन पत्थरों को आज्ञा दो कि वे तुम्हारे खाने के लिए रोटी बन जाए!”
\v 4 यीशु ने उत्तर दिया, “नहीं, मैं ऐसा नहीं करूँगा, क्योंकि शास्त्रों में लिखा है, ‘लोगों को जीवित रहने के लिए भोजन के अतिरिक्त भी कई वस्तुओं की आवश्यक्ता होती हैं।’
\s5
\v 5 तब शैतान यीशु को एक ऊँचे पहाड़ की चोटी पर ले गया और उन्हें दुनिया के सब देश पल भर में दिखाए।
\v 6 फिर उसने यीशु से कहा, “मैं तुम्हे इन सब देशों पर राज्य करने का अधिकार दूँगा और तुम उनकी सारी महिमा और धन प्राप्त करोगे। परमेश्वर ने मुझे इन सब को अपने वश में रखने की अनुमति दी है, और इसलिए मैं जो भी उनके साथ करना चाहूँ वह कर सकता हूँ।
\v 7 यदि तुम मेरी आराधना करो, तो मैं तुम्हे इन सब पर शासन करने दूँगा!”
\s5
\v 8 पर यीशु ने उत्तर दिया, “नहीं, मैं तेरी आराधना नहीं करूँगा, क्योंकि शास्त्रों में लिखा है, ‘तू केवल अपने प्रभु परमेश्वर की आराधना करना, केवल उन्हीं की सेवा करना।
\p
\s5
\v 9 तब शैतान यीशु को यरूशलेम ले गया। उसने उन्हें मन्दिर के ऊँचे भाग पर खड़ा कर दिया और कहा, “यदि तुम परमेश्वर के पुत्र हैं, तो यहाँ से नीचे कूद जाओ।
\v 10 तुम्हे चोट नहीं लगेगी, क्योंकि शास्त्रों में लिखा है, ‘परमेश्वर तुम्हे बचाने के लिए अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देंगे।’
\v 11 और यह भी लिखा है, ‘जब तुम गिरो, तब वे तुम्हे अपने हाथों में उठा लेंगे ताकि तुम्हे चोट न लगे। तुम्हारे पैर को भी पत्थर से ठेस न लगे।’”
\s5
\v 12 परन्तु यीशु ने उत्तर दिया, “नहीं, मैं ऐसा नहीं करूँगा, क्योंकि शास्त्रों में लिखा है: ‘अपने परमेश्वर यहोवा की परीक्षा लेने का प्रयास मत करना।”
\p
\v 13 जब शैतान ने यीशु को लुभाने के कई उपाय कर लिए तो कुछ समय के लिए उन्हें छोड़कर चला गया।
\p
\s5
\v 14 इसके बाद, यीशु जंगल से आकर गलील जिले में लौट गए। पवित्र आत्मा उन्हें शक्ति दे रहे थे। उस पूरे क्षेत्र में, लोगों ने यीशु के बारे में सुना और दूसरों को उनके बारे में बताया।
\v 15 उन्होंने लोगों को उनके आराधनालयों में शिक्षा दी और उनके उपदेशों के कारण सब लोग उनकी बहुत बड़ाई करते थे।
\p
\s5
\v 16 तब यीशु नासरत में आए, जहाँ वह पाले-पोसे गए थे। सब्त के दिन वह आराधनालय में गए, जैसे वह आमतौर पर किया करते थे। वह शास्त्रों से कुछ पढ़ने के लिए उठ खड़े हुए।
\v 17 आराधनालय के एक सेवक ने उन्हें एक पुस्तक दी, जिसमें भविष्यद्वक्ता यशायाह के द्वारा पूर्व काल में लिखे हुए वचन थे। यीशु ने पुस्तक को खोला और वह अंश निकाला जहाँ ये वचन लिखे गए थे:
\q
\s5
\v 18 “प्रभु का पवित्र आत्मा मुझ पर है
\q उन्होंने मुझे नियुक्त किया है कि गरीबों को परमेश्वर का सुसमाचार सुनाऊँ।
\q उन्होंने मुझे यहाँ प्रचार करने के लिए भेजा है कि बंदी मुक्त हो जाएँ,
\q और जो लोग अन्धे हैं उन्हें कहूँ कि वे फिर से देखें।
\q मैं उन लोगों को मुक्त कर दूँ जिन्हें दबाया जाता है।
\q
\v 19 उन्होंने मुझे यहाँ यह घोषणा करने के लिए भेजा है कि अब समय आ गया है कि प्रभु लोगों के लिए कृपा के काम करेंगे।”
\p
\s5
\v 20 फिर उन्होंने पुस्तक बन्द करके उसे सेवक को वापस कर दिया, और बैठ गए। आराधनालय में सब लोग उनकी ओर ध्यान से देख रहे थे।
\v 21 उन्होंने उनसे कहा, “आज ही यह लेख पूरा हुआ जिसे तुमने सुना है।”
\v 22 वहाँ उपस्थित सब जनों ने यीशु की बातों को सुना और आश्चर्य किया और उनके बोलने की कुशलता देख कर आश्चर्यचकित हो गए। लेकिन उनमें से कुछ लोगों ने कहा, “क्या यह यूसुफ का पुत्र नहीं?”
\s5
\v 23 उन्होंने उनसे कहा, “निश्चित रूप से तुम में से कुछ यह कहावत मुझसे कहोगे कि ‘हे वैद्य, पहले अपने आप को ठीक कर! तुम कहोगे, यहाँ अपने जन्म स्थान में भी वैसे चमत्कार कर जैसे तू ने कफरनहूम में किए हैं!’”
\v 24 फिर उन्होंने कहा, “यह निश्चय ही सच है कि भविष्यद्वक्ता के जन्म स्थान के लोग उस के संदेश को स्वीकार नहीं करते।
\s5
\v 25 परन्तु इस बारे में सोचो: एलिय्याह भविष्यद्वक्ता के जीवन काल में जब अकाल पड़ा था तब इस्राएल में अनेक विधवाएँ थीं अकाल भयंकर था क्योंकि साढ़े तीन वर्ष वर्षा नहीं हुई थी।
\v 26 परन्तु परमेश्वर ने एलिय्याह को उन इस्राएली विधवाओं में से किसी की सहायता के लिए नहीं भेजा, परमेश्वर ने उसे सीदोन के समीप के सारफत नगर में भेजा, ताकि वहाँ वह एक विधवा की सहायता करे।
\v 27 एलीशा भविष्यद्वक्ता के जीवन काल में इस्राएल में बहुत से कोढ़ी थे। परन्तु एलीशा ने उन में से किसी को भी ठीक नहीं किया। उसने केवल सीरिया के नामान नामक व्यक्ति को स्वस्थ किया।”
\s5
\v 28 आराधनालय में उपस्थित लोगों ने उसे यह कहते सुना, तो वे बहुत क्रोधित हुए।
\v 29 उन सब ने उठकर उन्हें शहर से बाहर निकाला। वे उन्हें अपने शहर के बाहर पहाड़ी की चोटी पर ले गए ताकि उन्हें चोटी से नीचे गिरा दें और उन्हें मार डालें।
\v 30 लेकिन वह उनके बीच में से निकलकर चले गए।
\p
\s5
\v 31 एक दिन वह गलील जिले के कफरनहूम नगर में गए। अगले सब्त के दिन, उन्होंने लोगों को आराधनालय में शिक्षा दी।
\v 32 वे जो शिक्षा देते थे , उससे लोग लगातार चकित होते थे, क्योंकि वह अधिकार से बातें करते थे।
\s5
\v 33 उस दिन, आराधनालय में एक व्यक्ति आया था जो एक दुष्ट-आत्मा के वश में था। वह व्यक्ति ऊँचे शब्द से चिल्लाया,
\v 34 “हे नासरत के यीशु, दुष्ट-आत्माओं का तुम्हारे साथ कुछ काम नहीं है, क्या तुम हम सब को नाश करने के लिए आए हो? मैं जानता हूँ कि तुम कौन हो, तुम परमेश्वर के पवित्र जन हो!
\s5
\v 35 यीशु ने दुष्ट-आत्मा को डाँटा और कहा, “चुप हो जा और उस मनुष्य में से निकल जा!” तब दुष्ट-आत्मा ने उस व्यक्ति को लोगों के बीच में जमीन पर गिरा दिया और उसे बिना हानि पहुँँचाए उसमें से बाहर निकल आया।
\v 36 आराधनालय में उपस्थित सब जन बहुत चकित थे। उन्होनें एक दूसरे से कहा, “वह दृढ़ता से बोलते है, और उनके वचनों में इतना सामर्थ है! यहाँ तक कि दुष्ट-आत्माएँ भी उनकी आज्ञा मानती हैं और जब वह उन्हें आज्ञा देते हैं, तो वह लोगों में से निकल जाती है!”
\v 37 और आस-पास के क्षेत्रों में और हर जगह, लोगों ने यीशु के कामों के बारे में चर्चा की।
\p
\s5
\v 38 फिर यीशु आराधनालय को छोड़कर शमौन के घर गए। शमौन की सास बीमार थी और उसे तेज बुखार था। वहाँ उपस्थित कुछ लोगों ने उसकी चंगाई के लिए यीशु से कहा।
\v 39 तो वह उसके ऊपर झुक गए और बुखार को निकल जाने की आज्ञा दी। तुरन्त वह अच्छी हो गई और उठकर उन्हें खाने को दिया।
\p
\s5
\v 40 उस दिन सूर्यास्त के समय, बहुत से लोग यीशु के पास अपने मित्रों और संबन्धियों को लेकर आए, जो अनेक रोगों से बीमार थे। उन्होंने उन पर हाथ रखकर उन सब को स्वस्थ किया।
\v 41 उन्होंने दुष्ट-आत्माओं को लोगों से बाहर आने के लिए विवश कर दिया था। जब दुष्टआत्माएँ उन लोगों को छोड़कर निकल रहीं थी, तब उन्होंने यीशु से चिल्लाकर कहा, “आप परमेश्वर के पुत्र हैं!” परन्तु उन्होंने उन दुष्ट-आत्माओं को आज्ञा दी, कि वह लोगों को उनके बारे में न बताए, क्योंकि वे जानती थी कि वह मसीह हैं।
\p
\s5
\v 42 अगली सुबह यीशु एक निर्जन स्थान पर गए। लोगों की भीड़ उन्हें खोज रही थी और जब वह वहाँ पहुँचे जहाँ यीशु थे तो उन्होंने यीशु को जाने से रोकने का प्रयास किया।
\v 43 लेकिन उन्होंने उनसे कहा, “मुझे अन्य शहरों के लोगों को भी बताना है कि परमेश्वर कैसे शासन करने जा रहें हैं , क्योंकि यही करने के लिए मुझे भेजा गया है।”
\v 44 इसलिये वह यहूदिया प्रान्त के विभिन्न नगरों के आराधनालयों में प्रचार करते रहे।
\s5
\c 5
\p
\v 1 एक दिन, जब बहुत से लोग यीशु के आस-पास इकट्ठे थे और उनसे परमेश्वर के संदेश की शिक्षा सीख रहे थे और सुन रहे थे, वह गन्नेसरत झील के किनारे खड़े थे।
\v 2 उन्होंने झील के किनारे पर दो मछली पकड़ने वाली नावों को देखा। मछुआरे नावों से उतर कर अपने मछली पकड़ने वाले जाल को धो रहे थे।
\v 3 यीशु दो नावों में से एक पर चढ़ गए। (यह नाव शमौन की थी) यीशु ने शमौन से कहाँ कि वह नाव को तट से कुछ दूर ले जाए। यीशु नाव में बैठ गए और, वहाँ से भीड़ को सिखाते रहे।
\s5
\v 4 जब उनका उपदेश समाप्त हुआ तब उन्होंने शमौन से कहा, “नाव को गहरे पानी में ले चल और मछलियों को पकड़ने के लिए अपना जाल पानी में डाल।”
\v 5 शमौन ने कहा, “गुरु, हमने रात भर कड़ी मेहनत की है, और फिर भी हम मछली नहीं पकड़ पाए, लेकिन मैं फिर से जाल डालूँगा, क्योंकि आपने मुझसे कहा है।”
\v 6 तो शमौन और उसके साथियों ने अपने जाल डाल दिए और उन्होंने इतनी सारी मछलियाँ पकड़ी कि उनके जाल फटने लगे।
\v 7 उन्होंने अपने मछली पकड़ने वाले साथियों को जो दूसरी नाव में थे, उनकी सहायता करने के लिए संकेत करके बुलाया। तब वे आए और मछलियों से दोनों नावों को इतना भर लिया कि वे डूबने लगीं।
\s5
\v 8 यह देखकर, शमौन पतरस यीशु के पैरों पर गिर पड़ा और कहा, “ हे प्रभु, कृपया मुझे छोड़कर चले जाएँ, क्योंकि मैं पापी मनुष्य हूँ।”
\v 9 उसने यह इसलिए कहा क्योंकि वह मछलियों की बड़ी संख्या के कारण, जिन्हें उन्होंने पकड़ा था आश्चर्यचकित था। उसके साथ रहने वाले सब लोग भी आश्चर्यचकित थे, जिनमें जब्दी के पुत्र याकूब और यूहन्ना भी थे, जो शमौन के साथ मछली पकड़ने वाले दो साझेदार थे।
\v 10 परन्तु यीशु ने शमौन से कहा, “मत डर, अब तक तू मछलियों को पकड़ता था, परन्तु अब से तू लोगों को मेरा शिष्य बनाने के लिए एकत्र करेगा।”
\v 11 तब नावों को किनारे पर पहुँँचाकर, वे अपने मछली पकड़ने के व्यवसाय को और अन्य सब को छोड़कर यीशु के साथ चल दिए।
\p
\s5
\v 12 जब यीशु पास के एक नगर में थे, तो वहाँ एक मनुष्य था जिसका शरीर कोढ़ से भरा हुआ था। जब उसने यीशु को देखा, तो उनके सामने भूमि पर झुककर उनसे विनती की, “हे प्रभु, कृपया मुझे स्वस्थ करें, क्योंकि यदि आप चाहें तो मुझे स्वस्थ कर सकते हैं !”
\v 13 तब यीशु ने अपना हाथ बढ़ाकर उस व्यक्ति को छुआ। उन्होंने कहा, “मैं तुझे स्वस्थ करना चाहता हूँ, और अब मैं तुझे स्वस्थ करता हूँ!” तुरन्त वह व्यक्ति स्वस्थ हो गया, उसे अब कोढ़ नहीं था!
\s5
\v 14 फिर यीशु ने उससे कहा, “यह सुनिश्चित कर कि तू लोगों को तुरन्त अपनी चंगाई के बारे में नहीं बताएगा। सबसे पहले, यरूशलेम में एक याजक के पास जा और अपने आप को दिखा कि वह तेरी जाँच करे और देखे कि अब तुझे कोढ़ नहीं है। इसके अतिरिक्त मूसा ने कोढ़ से चंगे होने वालों को जो भेंट चढ़ाने की आज्ञा दी है उसे भी याजक के पास ले जा।”
\s5
\v 15 लेकिन बहुत से लोगों ने सुना कि यीशु ने उस कोढ़ी को स्वस्थ किया था। इसका परिणाम यह हुआ कि भीड़ की भीड़ यीशु के उपदेश सुनने के लिए और अपनी बीमारियों से चंगाई पाने के लिए उनके पास आने लगी।
\v 16 लेकिन वह प्रायः भीड़ से दूर निर्जन क्षेत्रों में जाकर प्रार्थना किया करते थे।
\p
\s5
\v 17 एक दिन जब यीशु सिखा रहे थे, तब फरीसी पंथ के कुछ पुरुष आस पास बैठे हुए थे। उनमें से कुछ यहूदी व्यवस्था के विशेषज्ञ और शिक्षक थे। वे गलील जिले के कई गाँवों से और यरूशलेम के प्रान्त में और यहूदिया के अन्य शहरों से आए थे। उसी समय परमेश्वर, यीशु को लोगों को स्वस्थ करने की शक्ति दे रहे थे।
\s5
\v 18 जब यीशु वहाँ थे, तो कई पुरूष उनके पास एक आदमी को लाए जो लकवे का रोगी था। वे उस आदमी को एक खाट पर लेकर आए थे और उसे यीशु के सामने रखने के लिए घर में लाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
\v 19 लेकिन वे उसे भीतर लाने में असमर्थ थे क्योंकि घर में लोगों की बहुत बड़ी भीड़ थी, इसलिए वे बाहर की ओर से छत पर चढ़ गए। फिर उन्होंने छत से कुछ खपरैल हटाकर उसमें एक छेद बना दिया। उन्होंने उस व्यक्ति को उसकी खाट समेत उस छेद में से भीड़ के बीच यीशु के सामने नीचे उतारा।
\s5
\v 20 जब यीशु ने देखा कि उन लोगों को विश्वास है कि वह उस व्यक्ति को स्वस्थ कर सकते हैं, तब उन्होंने उस से कहा, “मित्र, मैं तेरे पापों को क्षमा करता हूँ!”
\v 21 यहूदी व्यवस्था के शिक्षक फरीसी अपने आप में सोचने लगे, “यह व्यक्ति घमंडी है और ऐसा कहकर परमेश्वर का अपमान करता है! हम सब जानते हैं कि परमेश्वर के अतिरिक्त कोई भी पापों को क्षमा नहीं कर सकता है!”
\s5
\v 22 यीशु जानते थे कि वे क्या सोच रहे थे। इसलिए उन्होंने उनसे कहा, “मैंने जो कुछ कहा है, उसके बारे में तुम्हें अपने आप में सवाल नहीं करना चाहिए। इस बात पर ध्यान दो:
\v 23 यह कहना कितना आसान है, ‘तेरे पाप क्षमा हुए हैं’ क्योंकि कोई नहीं देख सकता है कि उस व्यक्ति के वास्तव में पाप क्षमा किए गए हैं या नहीं। लेकिन यह कहना आसान नहीं है ‘उठ और चल’ क्योंकि लोग तुरन्त देख सकते हैं कि वह स्वस्थ हुआ है या नहीं।
\v 24 इसलिए अब मैं इस व्यक्ति को स्वस्थ करूँगा ताकि तुम जान लो कि परमेश्वर ने मुझे अर्थात् मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पापों को क्षमा करने का भी अधिकार दिया है।” फिर उन्होंने उस व्यक्ति से कहा जो लकवे का मारा था, “तुझ से मैं कहता हूँ, उठ, अपनी खाट उठा, और घर जा!”
\s5
\v 25 तुरन्त ही वह व्यक्ति स्वस्थ हो गया! वह उन सब के सामने उठ गया, उसने अपनी खाट जिस पर वह लेटा हुआ था उठाई, और वह परमेश्वर की स्तुति करता हुआ घर चला गया।
\v 26 सब लोग आश्चर्यचकित थे! उन्होंने परमेश्वर की स्तुति की और उन्होंने जो कुछ यीशु को करते देखा उस पर आश्चर्य किया। उन्होंने कहा, “आज हमने अद्भुत काम देखे हैं!”
\p
\s5
\v 27 फिर यीशु ने उस जगह को छोड़ दिया और लेवी नामक एक व्यक्ति को देखा जो रोमी सरकार के लिए चुंगी लेता था। वह अपनी चौकी पर बैठा था, जहाँ लोग उसे सरकार द्वारा ठहराई गई चुंगी देने के लिए आते थे। यीशु ने उससे कहा, “मेरे साथ आ और मेरा शिष्य बन!”
\v 28 लेवी ने तुरन्त अपना काम छोड़ दिया और यीशु के साथ चला गया।
\p
\s5
\v 29 बाद में, लेवी ने यीशु और उनके शिष्यों के लिए अपने घर में एक बड़ी दावत की। वहाँ चुंगी लेनेवालों का एक बड़ा समूह उनके साथ भोजन कर रहा था।
\v 30 फरीसी पंथ के कुछ लोगों ने और यहूदी व्यवस्था को सिखाने वालों ने, यीशु के शिष्यों से शिकायत की, “तुम्हें चुंगी लेनेवालों और अन्य घोर पापियों के साथ भोजन नहीं खाना चाहिए।
\v 31 तब यीशु ने उनसे कहा, “वैद्य की आवश्कता उन लोगों को होती है जो बीमार होते हैं, न कि उन्हें जो सोचते हैं कि वे भले-चंगे हैं।
\v 32 अत: मैं स्वर्ग से उन लोगों को आमंत्रित करने के लिए नहीं आया जो सोचते हैं कि वे मेरे पास आने के लिए धर्मी हैं। इसके विपरीत, मैं उन लोगों को आमंत्रित करने आया हूँ जो जानते हैं कि वे पापी हैं, और अपने पापमय व्यवहार से मुड़कर मेरे पास आते हैं।”
\p
\s5
\v 33 उन यहूदी अगुवों ने यीशु से कहा, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के शिष्य अक्सर भोजन को त्याग कर प्रार्थना करते हैं, और फरीसियों के शिष्य भी ऐसा करते हैं, परन्तु तेरे शिष्य खाते और पीते हैं!”
\v 34 यीशु ने उत्तर दिया, “क्या तुम दुल्हे के मित्रों को जो उसके साथ होते हैं, उपवास करने के लिए कह सकते हो जब दुल्हा उनके साथ है? नहीं, कोई भी ऐसा नहीं करेगा!
\v 35 परन्तु वे दिन आएगा जब दूल्हा अपने मित्रों से दूर ले जाया जाएगा। तब, उस समय, वे भोजन को त्यागेंगे।”
\p
\s5
\v 36 फिर यीशु ने अन्य उदाहरणों से अपनी बात समझाई: उन्होंने कहा, “लोग नए कपड़ों से एक टुकड़ा फाड़कर उसे पुराने कपड़ों में नहीं जोड़ते हैं। अगर वे ऐसा करते हैं, तो वह नए कपड़े को फाड़कर बर्बाद करता हैं और नये कपड़े का टुकड़ा पुराने कपड़े से मेल नहीं खाता।
\s5
\v 37 और कोई नए दाखमधु को पुरानी मशकों में नहीं भरता है। अगर कोई ऐसा करता है, तो मशके फटकर खुल जाएँगी क्योंकि नए दाखमधु के बनने और फैलने से मशकों में खिंचाव होगा। तब मशके फट जाएँगी, और दाखमधु भी नष्ट हो जाएगा क्योंकि वह बाहर बह जाएगा।
\v 38 इसके विपरीत, नया दाखमधु नई मशकों में ही डाला जाना चाहिए।
\p
\v 39 इसके अतिरिक्त, जो केवल पुराना दाखमधु पीते हैं वे उस से सन्तुष्ट होते हैं। वे नया दाखमधु पीना नहीं चाहते है क्योंकि वे कहते हैं पुराना दाखमधु अच्छा है!”
\s5
\c 6
\p
\v 1 एक सब्त के दिन, जब यीशु और उसके शिष्य कुछ अनाज के खेतों के बीच में से चल रहे थे, तब शिष्य अनाज के कुछ बालें तोड़ कर हाथों से मलकर भूसी को अनाज से अलग करके, अनाज खा रहे थे।
\v 2 कुछ फरीसियों ने यह देखकर उनसे कहा, “तुमको यह काम नहीं करना चाहिए, हमारी व्यवस्था हमें सब्त के दिन काम करने से रोकती हैं!”
\s5
\v 3 यीशु ने फरीसियों को उत्तर दिया, “तुमने दाऊद के राजा बनने से पहले, का वृत्तान्त तो शास्त्रों में पढ़ा होगा कि जब उसे और उसके साथियों को भूख लगी थी तब उसने क्या किया था?
\v 4 जैसा कि तुम जानते हो, दाऊद मिलाप बाले तम्बू में गया और खाने के लिए भोजन माँगा। याजक ने उस रोटी को जो परमेश्वर के सामने भेंट की गई थी, उसे दे दी। मूसा की व्यवस्था में एक नियम है कि परमेश्वर ने कहा था कि केवल याजकों को उस रोटी को खाने की अनुमति है। दाऊद और उसके साथी तो याजक नहीं थे, फिर भी उसने और उसके साथियों ने वह रोटी खाई।”
\v 5 यीशु ने उनसे कहा, “उसी प्रकार, मनुष्य के पुत्र को निर्धारित करने का अधिकार है कि लोगों के लिए सब्त के दिन क्या करना उचित है!”
\p
\s5
\v 6 किसी दूसरे सब्त के दिन, यीशु आराधनालय में लोगों को सिखा रहे थे और वहाँ एक व्यक्ति था जिसका दाहिना हाथ सूख गया था।
\v 7 वहाँ जो यहूदी व्यवस्था के शिक्षक और फरीसी मौजूद थे वे यीशु को बारीकी से देख रहे थे। वे यह देखना चाहते थे कि वह उस व्यक्ति को स्वस्थ करेंगे या नहीं, और फिर वे उन पर आरोप लगाएँगे कि सब्त के दिन काम नहीं करने के विषय में वह यहूदी व्यवस्था का उल्लंघन करते हैं।
\v 8 लेकिन यीशु जानते थे कि वे क्या सोच रहे हैं। इसलिए उन्होंने सूखे हाथ वाले व्यक्ति से कहा, “आ और यहाँ सबके सामने खड़ा हो।” तब वह व्यक्ति उठ गया और वहाँ खड़ा हुआ।
\s5
\v 9 फिर यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे यह पूछता हूँ: मूसा की व्यवस्था में परमेश्वर ने लोगों को सब्त के दिन अच्छे काम करने या हानि करने का आदेश दिया था? सब्त के दिन क्या जीवन बचाना है या उसे नष्ट करना है?
\v 10 किसी ने भी उन्हें उत्तर नहीं दिया, इसलिए उन्होंने उन सभी की ओर देखा और फिर उस व्यक्ति से कहा, “अपने सूखे हाथ को बढ़ा।” व्यक्ति ने ऐसा किया, और उसका हाथ फिर पूरी तरह से ठीक हो गया!
\v 11 धर्म के अगुवे इस बात पर बहुत क्रोधित थे, और उन्होंने एक दूसरे के साथ चर्चा की कि वे यीशु से छुटकारा पाने के लिए क्या कर सकते हैं।
\p
\s5
\v 12 इसके कुछ समय बाद, एक दिन यीशु पहाड़ पर प्रार्थना करने के लिए गए। उन्होंने सारी रात परमेश्वर से प्रार्थना की।
\v 13 अगले दिन उन्होंने अपने सब शिष्यों को अपने पास बुलाया। उन में से उन्होंने बारह पुरुषों को चुना जिन्हें उन्होंने प्रेरित कहा।
\s5
\v 14 ये पुरुष थे: शमौन, जिसे उन्होंने नया नाम पतरस दिया; अन्द्रियास, पतरस का छोटा भाई; याकूब और उसका छोटा भाई, यूहन्ना ; फिलिप्पुस; बरतुल्मै;
\v 15 मत्ती, जिसका दूसरा नाम लेवी था; थोमा; एक और याकूब जो हलफईस का पुत्र था; शमौन जो जेलोतेस कहलाता था,
\v 16 याकूब नाम एक अलग व्यक्ति का पुत्र यहूदा। और यहूदा इस्करियोती, जिसने बाद में यीशु को धोखा दिया।
\p
\s5
\v 17 यीशु अपने शिष्यों के साथ पहाड़ी से उतरकर एक समतल भूमि पर खड़े हुए। वहाँ उनके शिष्यों की एक बड़ी भीड़ थी। वहाँ उस बड़े समूह में यरूशलेम और यहूदिया के इलाके और सोर और सीदोन के शहरों के पास के तटीय इलाकों से आए हुए लोग भी थे।
\v 18 वे यीशु के उपदेश सुनने और अपनी बीमारियों से चंगाई पाने के लिए आए थे। उन्होंने उन लोगों को भी ठीक किया जो दुष्ट-आत्माओं से परेशान थे।
\v 19 भीड़ में सभी लोग उन्हें छूने की कोशिश करते थे, क्योंकि वह सब को अपने सामर्थ से स्वस्थ कर रहे थे।
\s5
\v 20 फिर उन्होंने अपने शिष्यों को देखा और कहा, “तुम जो गरीब हो यह तुम्हारे लिए बहुत अच्छा है, क्योंकि परमेश्वर तुम पर शासन कर रहे हैं।
\v 21 तुम्हारे लिए यह बहुत अच्छा है, यदि तुम अभी भूखे हो, क्योंकि परमेश्वर तुम्हारी हर ज़रूरत को पूरी करेंगे।
\p तुम्हारे लिए बहुत अच्छा है यदि तुम अभी दुखी हो, क्योंकि परमेश्वर एक दिन तुमको प्रसन्नता के साथ हँसाएगे।
\p
\s5
\v 22 यह बहुत अच्छा है जब दूसरे लोग तुमसे घृणा करते हैं, जब वे तुम्हारा तिरस्कार करते हैं, जब वे तुम्हारा अपमान करते हैं और कहते हैं कि तुम बुरे हो क्योंकि तुम मेरा अर्थात् मनुष्य के पुत्र का अनुसरण करते हो।
\v 23 जब ऐसा हो, तो आनन्द करो! उछलो और कूदो क्योंकि तुम बहुत खुश होगे! परमेश्वर तुमको स्वर्ग में एक महान प्रतिफल देंगे! मत भूलो कि पूर्व काल में उनके पूर्वजों ने परमेश्वर के भविष्यद्वक्ताओं के साथ भी ऐसा ही किया था!
\p
\s5
\v 24 परन्तु जो अमीर हैं, उनके के लिए दुख की बात है; तुम्हारा धन तुम को विश्राम दे चुका है।
\v 25 तुम्हारे लिए कितने दुःख की बात है जिन्हें लगता है कि अब तुम्हारे पास सब कुछ है; तुम जान लोगे कि इन वस्तुओं से तुमको संतुष्टी नहीं होगी।
\p जो इस समय आनन्दित हैं उनके लिए कैसी दुख की बात हैं कि बाद में तुम्हें दुःखी और अति उदास होना पड़ेगा।
\s5
\v 26 यह कितने दुःख की बात है जब हर कोई तुम्हारे बारे में अच्छी बातें कहता है। उसी तरह, उनके पूर्वजों ने परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता होने का झूठा दावा करने वालों के बारे में भी ऐसी अच्छी बातें कही थी।
\p
\s5
\v 27 “लेकिन तुम जो मेरी बातों को सुनते हो, मैं ये कहता हूँ कि न केवल अपने मित्रों से वरन् अपने शत्रुओं से भी प्रेम करो! जो लोग तुमसे घृणा करते हैं, उनके लिए अच्छा काम करो!
\v 28 तुम्हे शाप देने वालों के लिए परमेश्वर से विनती करो कि उन्हें आशीर्वाद दे! उन लोगों के लिए प्रार्थना करो जो तुम्हारे साथ बुरा व्यवहार करते हैं!
\s5
\v 29 अगर कोई तुम्हारे गाल पर मारकर अपमान करता है, तो अपना मुँह फेर दे कि वह दूसरे गाल पर भी मार सके। यदि कोई तुम्हारी चादर ले जाना चाहता है, तो उसे अपना कुर्ता भी दें दो।
\v 30 जो कोई तुमसे कुछ माँगे, उसे कुछ न कुछ अवश्य दो। अगर कोई तुमसे तुम्हारी कोई वस्तु माँगे, तो उससे वापस मत माँगो।
\s5
\v 31 जिस रीति से तुम चाहते हो कि दूसरे तुम्हारे साथ व्यवहार करें, उसी रीति से तुमको भी उनके साथ व्यवहार करना चाहिए।
\p
\v 32 यदि तुम केवल उनसे प्रेम करते हो जो तुमसे प्रेम करते हैं, तो ऐसा करने के लिए परमेश्वर से अपनी प्रशंसा की आशा न रखना, क्योंकि पापी भी अपने से प्रेम करने वालों से प्रेम करते हैं।
\v 33 यदि तुम केवल उन लोगों के लिए भलाई करते हो जो तुम्हारे लिए अच्छे काम करते हैं, तो ऐसा करने के लिए परमेश्वर से प्रतिफल पाने की आशा न करना, क्योंकि पापी भी ऐसा करते हैं।
\v 34 यदि तुम केवल उन लोगों को पैसे या संपत्ति उधार देते हो जो तुमको वापस दे सकते हैं, तो आशा न करो कि ऐसा करने के लिए परमेश्वर तुमको प्रतिफल देंगे! पापी भी अन्य पापियों को उधार देते हैं, क्योंकि वे पूरा-पूरा वापस पाने की आशा रखते हैं।
\s5
\v 35 इसके अतिरिक्त, अपने शत्रुओं से प्रेम करो! उनके लिए अच्छे काम करो! उन्हें उधार दो, और उनसे कुछ भी वापस पाने की आशा न रखो! तब परमेश्वर तुमको महान प्रतिफल देंगे और तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर की सन्तान हो जाओगे, क्योंकि परमेश्वर उन लोगों पर भी दया करते हैं जो धन्यवाद नहीं देते और दुष्ट हैं।
\v 36 इसलिए तुम भी अन्य लोगों के लिए दया के काम करो, जैसे तुम्हारे स्वर्गीय पिता लोगों के लिए दया के काम करते हैं।
\p
\s5
\v 37 लोगों की कठोर आलोचना मत करो, तो परमेश्वर तुम्हारी भी कठोर आलोचना नहीं करेंगे। अन्य लोगों की निन्दा मत करो, तो वह भी तुम्हारी निन्दा नहीं करेंगे। दूसरों को उनके बुरे कामों के लिए क्षमा करो, तो परमेश्वर भी तुम्हें क्षमा कर देंगे।
\s5
\v 38 दूसरों को अच्छी वस्तुएँ दो, तो परमेश्वर भी तुम्हें अच्छी वस्तुएँ देंगे। यह ऐसा ही होगा जैसे वह तुमको एक टोकरी में अनाज दबा-दबा कर और टोकरी को हिला-हिला कर उदारता से दे रहे हों, यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह पूरी तरह से भरा हुआ है, यहाँ तक कि कुछ अनाज टोकरी के बाहर भी फैल जाता है! याद रखो कि जिस नाप को तुम दूसरों की आलोचना करने या आशीष देने के लिए उपयोग करते हो, वही नाप परमेश्वर तुम्हारे लिए भी न्याय करने या तुमको आशीर्वाद देने के लिए उपयोग करेंगे।”
\p
\s5
\v 39 उन्होंने अपने शिष्यों को यह दृष्टान्त भी दिया: “एक अंधे व्यक्ति को दूसरे अंधे व्यक्ति का नेतृत्व करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। अगर वह ऐसा करेगा, तो वे दोनों गड्ढे में गिर जाएँगे!
\v 40 एक शिष्य अपने शिक्षक से बड़ा नहीं होता परन्तु जब वह पूरी तरह से प्रशिक्षित जो जाता है, तब वह अपने शिक्षक के समान बन जाएगा। इसलिए तुमको भी मेरे जैसे बनना चाहिए।
\p
\s5
\v 41 तुम में से कोई भी अन्य लोगों की छोटी गलतियों पर ध्यान न दे। यह ऐसा है जैसे एक व्यक्ति अपनी आँखों में एक बड़ा लट्ठा नहीं देखता परन्तु दूसरों की आँखों के तिनके को देखता है।
\v 42 यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम पाखंडी हो! किसी और की आँख से तिनका निकालने का प्रयास करने से पहले, तुमको सबसे पहले अपनी आँख से लट्ठा बाहर निकालना चाहिए। जब तुम पाप करना छोड़ो, तब तुम दूसरों को उनके पापों से छुटकारा पाने में सहायता करने के लिए आत्मिक अंतर्दृष्टि प्राप्त करोगे।
\p
\s5
\v 43 हर कोई जानता है कि अच्छे पेड़ पर बुरे फल नहीं लगते और बुरे पेड़ पर अच्छे फल नहीं लगते हैं।
\v 44 और फल को देख कर कोई भी बता सकता है कि पेड़ किस प्रकार का है। उदाहरण के लिए, एक झाड़ी अंजीर का उत्पादन नहीं कर सकती है और न झड़बेरी अंगूर का उत्पादन कर सकती। उसी तरह एक व्यक्ति के कामों को देख कर यह जानना आसान है कि वह भीतर से कैसा है।
\s5
\v 45 अच्छे लोग अच्छे काम करते हैं जिससे प्रकट होता है कि वे अच्छे विचार रखते हैं, और बुरे लोग बुरे काम करते हैं जिससे प्रकट होता हैं कि वे बुरे विचार रखते हैं। लोग अपने मन में जो सोचते है उसके अनुसार वे बोलते और काम करते है।
\p
\s5
\v 46 यीशु ने लोगों से कहा, “तुम मुझे ‘प्रभु’ क्यों कहते हो, जब तुम मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं करते?
\v 47 मैं तुम्हें बताता हूँ कि जो लोग मेरे पास आते हैं, मेरी शिक्षाओं को सुनते हैं और उनका पालन करते हैं, वह कैसे होंगे।
\v 48 वे एक ऐसे व्यक्ति के समान हैं जो अपने घर बनाने के लिए भूमि में गहराई से खोदे। वह सुनिश्चित करता है कि घर की नींव ठोस चट्टान पर बनाई जाए। फिर जब बाढ़ आती है और लहरे घर पर लगती हैं तो वे। घर को हिला भी नहीं सकती हैं क्योंकि घर एक ठोस नींव पर बनाया गया था।
\s5
\v 49 लेकिन कुछ लोग जो मेरी शिक्षाओं को सुनते हैं, पर उन्हें नहीं मानते, वे ऐसे व्यक्ति के समान हैं, जिसने नींव डाले बिना भूमि पर घर बनाया हैं। जब नदी में बाढ़ आई, तो उसका घर तुरन्त गिर गया और पूरी तरह नष्ट हो गया।”
\s5
\c 7
\p
\v 1 लोगों से बात करने के बाद, यीशु कफरनहूम नगर में गए
\s5
\v 2 उस शहर में रोमी सेना का एक सूबेदार था जिसका एक दास था जो उसे बहुत प्रिय था। यह दास इतना बीमार था कि वह मरने वाला था।
\v 3 जब सूबेदार ने यीशु के बारे में सुना, तो उसने कुछ यहूदी प्राचीनों को यीशु से यह कहने के लिए भेजा कि वह आकर उसके दास को स्वस्थ करें।
\v 4 जब वे यीशु के पास आए, तो उन्होंने विनम्रता से विनती की कि वह उस सूबेदार के दास की सहायता करें। उन्होंने कहा, “वह इस योग्य है कि आप उसके लिए ऐसा करें,
\v 5 क्योंकि वह हमारे लोगों से प्रेम करता है और उसने हमारे लिए आराधनालय का निर्माण भी किया है।”
\s5
\v 6 इसलिए यीशु उनके साथ सूबेदार के घर गए। जब वह लगभग वहाँ पहुँँच गए, तो सूबेदार ने अपने कुछ मित्रों को यीशु को यह संदेश देने के लिए भेजा: “हे प्रभु, आप कष्ट न उठाएँ, क्योंकि मैं इस योग्य नहीं हूँ कि आप मेरे घर में आएँ।
\v 7 यही कारण है कि मैं स्वयं आपके पास नहीं आया क्योंकि मुझे अायोग होने का बोध हो रहा है। आप केवल एक वचन से मेरे दास को स्वस्थ कर सकते हैं।
\v 8 मैं जानता हूँ कि आप ऐसा कर सकते हैं क्योंकि मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जिसे अपने उच्च अधिकारियों के आदेशों का पालन करना पड़ता और मेरे पास भी ऐसे सैनिक हैं जिन्हें मेरे आदेशों का पालन करना पड़ता है। जब मैं उनमें से एक से कहता हूँ, ‘जा’ तो वह जाता है, और जब मैं किसी दूसरे को कहता हूँ, ‘आ’ तो वह आता है। जब मैं अपने दास को कहता हूँ, ‘यह कर! तो वह उसे करता है।
\s5
\v 9 जब यीशु ने सूबेदार की यह बातें सुनी, तो वह आश्चर्यचकित हुए। तब उन्होंने उनके साथ जो भीड़ थी उस की ओर मुड़कर कहा, “मैं तुमसे कहता हूँ, मैं ने ऐसा कोई भी इस्राएली नहीं पाया, जो मुझ पर इतना ज्यादा विश्वास करता है, जितना ये अन्यजाति का व्यक्ति करता है।”
\v 10 जब वे लोग जो सूबेदार के पास से आए थे, उसके घर लौट गए, तो उन्हें मालूम पड़ा कि दास फिर से स्वस्थ हो गया है।
\p
\s5
\v 11 इसके तुरन्त बाद, यीशु नाईन नामक नगर में गए। उनके शिष्य और एक बड़ी भीड़ उनके साथ जा रही थी।
\v 12 जब यीशु नगर के फाटक के निकट आए, तो उन्होंने एक बड़ी भीड़ को नगर से बाहर आते हुए देखा, जो एक मुर्दे को जो अभी-अभी मरा था ले जा रहे थे। उसकी माँ एक विधवा थी, और वह उसका एकलौता पुत्र था। वह भीड़ के साथ थी, और वे उसके पुत्र को दफनाने जा रहे थे।
\v 13 जब प्रभु ने उसे देखा, तो उन्हें उस पर तरस आया और उन्होंने उससे कहा, “मत रो।”
\v 14 तब वह उनके पास आए और अर्थी को छुआ जिस पर शव पड़ा था। उसे ले जाने वाले लोग रुक गए। उन्होंने कहा, “जवान, मैं तुझसे कहता हूँ, उठ जा!”
\v 15 वह व्यक्ति तुरन्त उठ बैठा और बोलने लगा! तब यीशु ने उसे उसकी माँ को सौंप दिया।
\s5
\v 16 हर कोई आश्चर्य से भर गया था। उन्होंने परमेश्वर की स्तुति की और एक दूसरे से कहा, “हमारे बीच एक बड़े भविष्यद्वक्ता आए हैं! और “परमेश्वर अपने लोगों की सुधि लेने आए हैं!”
\v 17 यीशु ने जो कुछ किया था, उसके बारे में यह खबर यहूदिया और आस-पास के अन्य सभी क्षेत्रों में फैल गई।
\p
\s5
\v 18-19 यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के शिष्यों ने उसे इन सब बातों के बारे में बताया। इसलिए यूहन्ना ने अपने शिष्यों में से दो को बुलाया और उनको प्रभु के पास जाकर पूछने के लिए भेजा: “क्या आप वही हैं जिसके बारे में परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की थी, या हमें किसी और की प्रतीक्षा करनी चाहिए?”
\v 20 जब ये दोनों पुरूष यीशु के पास आए, तो उन्होंने कहा, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने हमें आपसे यह पूछने के लिए भेजा है, क्या आप वही व्यक्ति हैं जिसके बारे में परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की थी, या हमें किसी और की प्रतीक्षा करनी चाहिए?”
\s5
\v 21 उस समय यीशु बहुत लोगों को बीमारियों और गंभीर रोगों से स्वस्थ कर रहे थे और दुष्टआत्माओं को निकाल रहे थे। उन्होंने कई अंधे लोगों को भी स्वस्थ किया जिससे वे देखने लगे।
\v 22 फिर उन्होंने उन दो पुरूषों को उत्तर दिया, “वापस जाओ और जो कुछ तुमने देखा और सुना है, उसे यूहन्ना को बताओ: जो लोग अंधे थे वे अब देख रहे हैं। जो लोग लंगड़े थे, अब चल रहे हैं, जो कोढ़ी थे, वे शुद्ध किए गए हैं। जो बहरे थे, अब सुन सकते हैं। जो लोग मर चुके थे उन्हें फिर से जीवन मिल गया है और गरीबों को सुसमाचार सुनाया जा रहा है।
\v 23 और उसे यह भी बताओ, “जो कोई मेरे कामों को देखकर और मेरे उपदेशों को सुनकर, मुझसे दूर नहीं होता, उन्हें परमेश्वर आशीष देंगे।”
\p
\s5
\v 24 जब यूहन्ना के भेजे हुए लोग चले गए, तब यीशु ने भीड़ से यूहन्ना के बारे में बात करना शुरू किया। उन्होंने कहा, “तुम जंगल में क्या देखने गए थे? हवा से हिलने वाले सरकण्डे को?
\v 25 तुम क्या देखने के लिए गए थे? क्या सुन्दर वस्त्र पहने हुए एक व्यक्ति को? देखो, जो सुन्दर कपड़े पहनते हैं और जिनके पास सब कुछ सबसे अच्छा है वे राजा के महलों में रहते हैं।
\v 26 फिर तुम वहाँ क्या देखने के लिए गए थे? एक भविष्यद्वक्ता? हाँ! परन्तु मैं तुम से कहता हूँ कि यूहन्ना एक साधारण भविष्यद्वक्ता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
\s5
\v 27 यह वह है जिसके बारे में भविष्यद्वक्ताओं ने बहुत पहले लिखा था: ‘देख, मैं अपने दूत को तुम्हारे आगे भेज रहा हूँ। वह तुम्हारे आने के लिए लोगों को तैयार करेगा।’
\p
\v 28 मैं तुमसे कहता हूँ कि आज तक जितने भी लोग रहे है, उनमें से कोई भी यूहन्ना से बड़ा नहीं है। तो भी, परमेश्वर के साथ उसके रहने के स्थान में रहनेवाला, सबसे तुच्छ व्यक्ति भी यूहन्ना की तुलना में अधिक बड़ा होगा।”
\p
\s5
\v 29 जब चुंगी लेनेवालों सहित सभी लोगों ने जिन्होंने यूहन्ना से बपतिस्मा लिया था, यीशु की बातें सुनी, तो वे सहमत थे कि परमेश्वर सच्चे हैं।
\v 30 लेकिन फरीसियों और यहूदी व्यवस्था के विशेषज्ञों ने यूहन्ना द्वारा बपतिस्मा नहीं लिया था और उन्होंने अपने लिए परमेश्वर की इच्छा को टाल दिया था।
\p
\s5
\v 31 फिर यीशु ने यह भी कहा, “इस समय में रहने वाले तुम लोग किस के समान हो? मैं तुम्हें बताऊँगा:
\v 32 तुम एक खुली जगह में खेलते हुए बच्चों के समान हो। वे एक दूसरे से कह रहे हैं, ‘हमने तुम्हारे लिए बाँसुरी बजाई, लेकिन तुमने नृत्य नहीं किया! फिर हमने तुम्हारे लिए मातम के गीत गाए, लेकिन तुम नहीं रोए!
\s5
\v 33 इसी प्रकार जब यूहन्ना तुम्हारे पास आया और उसने साधारण भोजन नहीं खाया और दाखमधु नहीं पीया, तो तुमने उसे अस्वीकार कर दिया और कहा, दुष्ट-आत्मा उसे अपने वश में किए हुए है!
\v 34 परन्तु जब मनुष्य का पुत्र तुम्हारे पास आया और वह साधारण भोजन खाता और दूसरों की तरह दाखमधु पीता है, तो तुमने उसे अस्वीकार कर दिया और कहा, ‘देखो! यह मनुष्य बहुत अधिक भोजन खाता है और बहुत अधिक दाखमधु पीता है, और वह चुंगी लेनेवालों और अन्य पापियों के साथ मेल-जोल रखता है!
\v 35 परन्तु, परमेश्वर का ज्ञान उनकी आज्ञा का पालन करने वालों द्वारा सही ठहरा है।
\p
\s5
\v 36 एक दिन, शमौन नामक एक फरीसी ने यीशु को उसके साथ भोजन करने के लिए आमंत्रित किया। इसलिए यीशु उस व्यक्ति के घर गए और खाने के लिए एक मेज़ पर बैठ गए।
\v 37 उस शहर की एक महिला भी थी जिसे लोग एक वेश्या मानते थे। जब उसने सुना कि यीशु फरीसी के घर में भोजन कर रहे हैं, तो वह एक संगमरमर का पात्र लेकर वहाँ आई, उसमें इत्र था।
\v 38 जब यीशु भोजन कर रहे थे, तब वह स्त्री उनके पैरों के पीछे खड़ी थी। वह रो रही थी, और उसके आँसू यीशु के पैरों पर गिर रहे थे। वह लगातार उनके पैरों को अपने बालों से पोंछती, रही और चूमती रही और उसने इत्र से उनका अभिषेक किया।
\s5
\v 39 जिस फरीसी ने यीशु को भोज पर बुलाया था देखा कि वह स्त्री क्या कर रही थी, तो उसने सोचा, “अगर यह व्यक्ति वास्तव में एक भविष्यद्वक्ता है, तो उसे पता होता कि यह स्त्री कौन है जो उसे छू रही है, और वह कैसी स्त्री है, वह एक पापी स्त्री है।”
\v 40 जवाब में, यीशु ने उस से कहा, “शमौन, मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हूँ।” उसने कहा, “हे गुरु, कहिए?”
\s5
\v 41 यीशु ने उसे यह कहानी सुनाई: “दो लोग एक साहूकार के कर्ज़दार थे, इस साहूकार का व्यापार ही लोगों को पैसे उधार पर देना था। इनमें से एक व्यक्ति को उसने पाँच सौ चाँदी के सिक्के दिए, और दूसरे को उसने पचास चाँदी के सिक्के दिए।
\v 42 वे ॠण दोनों अपने कर्ज का भुगतान करने योग्य नहीं थे, इसलिए उस साहूकार ने बहुत ही दया से कहा कि उन्हें कुछ भी लौटाने की आवश्यक्ता नहीं है। तो, उन दोनों पुरुषों में से कौन उस साहूकार से अधिक प्रेम करेगा?”
\v 43 शमौन ने उत्तर दिया, “मुझे लगता है कि जिस पर अधिक पैसे का कर्ज था वह उससे अधिक प्रेम करेगा।” यीशु ने उस से कहा, “तू सही कहता है।”
\s5
\v 44 फिर उन्होंने स्त्री की ओर मुड़कर शमौन से कहा, इस स्त्री ने जो किया उसके बारे में सोच! जब मैंने तुम्हारे घर में प्रवेश किया था, तो तूने मेरा स्वागत वैसे नहीं किया जैसे घर का स्वामी सामान्यतः अतिथियों का स्वागत करता है। तू ने मेरे पैरों को धोने के लिए मुझे पानी नहीं दिया, परन्तु इस स्त्री ने मेरे पैरों को अपने आसुओं से धोया और फिर उन्हें अपने बालों से पोंछा है!
\v 45 तुमने मेरा स्वागत चुम्बन से नहीं किया, लेकिन जब से मैं आया हूँ, तब से उसने मेरे पैरों को चूमना नहीं छोड़ा !
\s5
\v 46 तू ने मेरे सिर का अभिषेक जैतून के तेल से नहीं किया, परन्तु उसने मेरे पैरों का अभिषेक सुगन्धित इत्र से किया है।
\v 47 इसलिए मैं तुझसे कहता हूँ कि उसे अपने अनेक पापों के लिए क्षमा किया गया है और यही कारण है कि वह मुझसे बहुत प्रेम करती है। लेकिन एक व्यक्ति जो सोचता है कि उसके केवल कुछ ही पाप हैं जो क्षमा किए गए है, वह मुझसे थोड़ा प्रेम करेगा।”
\s5
\v 48 फिर उन्होंने स्त्री से कहा, “तुम्हारे पाप क्षमा किए गए हैं।”
\v 49 तब जो लोग उनके साथ भोजन कर रहे थे, वे आपस में कहने लगे, “यह कौन है जो कहता है कि वह पापों को क्षमा कर सकता है?”
\v 50 परन्तु, यीशु ने उस स्त्री से कहा, “क्योंकि तूने मुझ पर विश्वास किया है, इसलिए परमेश्वर ने तुझे बचा लिया है। जा परमेश्वर तुझे शान्ति दें!”
\s5
\c 8
\p
\v 1 उसके बाद, यीशु और उसके बारह शिष्य विभिन्न शहरों और गाँवों में से होकर गए, और यीशु ने लोगों में प्रचार किया, और यह शुभ सन्देश सुनाया कि परमेश्वर शीघ्र ही स्वयं को राजा के रूप में प्रकट करेंगे।
\v 2 उनके साथ यात्रा करने वाली कई महिलाएँ भी थीं जिन्हें उन्होंने दुष्टआत्माओं और बीमारियों से ठीक किया था। इनमें मगदला गाँव से मरियम भी शामिल थी, जिनमें से उन्होंने सात दुष्टआत्माओं को निकाला था;
\v 3 हेरोदेस अंतिपास के भण्डारी खोजे की पत्नी योअन्ना थी, सूसन्नाह और बहुत सी अन्य स्त्रियाँ भी थीं। वे यीशु और उनके शिष्यों की सेवा करने के लिए अपनी धन सम्पत्ति का उपयोग करती थीं।
\p
\s5
\v 4 एक दिन एक बहुत बड़ी भीड़ एकत्र हुई थी, क्योंकि अलग-अलग शहरों से लोग यीशु को देखने के लिए आ रहे थे। तब उन्होंने उन्हें यह कहानी सुनाई:
\v 5 “एक व्यक्ति अपने खेत में कुछ बीज बोने के लिए गया जब वह बीज को मिट्टी पर बिखेर रहा था, तब कुछ बीज कठोर मार्ग पर गिर गए। फिर लोगों ने उन बीजों पर चलकर उन्हें कुचल दिया, और पक्षियों ने उन्हें खा लिया।
\v 6 कुछ बीज पथरीलि भूमि पर गिरे जहाँ बहुत कम मिट्टी थी। इसलिए जैसे ही बीज बढ़े, पौधे सूख गए क्योंकि उन्हें नमी नहीं मिली।
\s5
\v 7 कुछ बीज उस भूमि पर गिरे जहाँ कटीले पौधों के बीज भी थे। कटीले पौधे छोटे अनाज के पौधों के साथ बड़े हुए और उन्हें दबा दिया, जिससे वे बढ़ न सकें।
\v 8 परन्तु कुछ अनाज के बीज उपजाऊ मिट्टी में गिरे, और इतने अच्छे से बढ़े कि उनसे एक अच्छी फसल निकली जो कि सौ गुणा फल लाए। “इन बातों को कहने के बाद, यीशु ने उनसे कहा, “तुम में से हर एक जिसने अभी मुझसे सुना है उसके बारे में ध्यान से सोचो!”
\p
\s5
\v 9 तब यीशु के शिष्यों ने उनसे कहा कि उन्हें कहानी का अर्थ बताएँ।
\v 10 उन्होंने कहा, “परमेश्वर राजा होकर कैसे शासन करेंगे, इस विषय में छिपी हुई बातों को जानने के लिए तुम्हें विशेषाधिकार दिया गया है। परन्तु मैं अन्य सब लोगों से दृष्टान्तों में ही कहता हूँ, क्योंकि
\q ‘यद्यपि वे देखते हैं, वे नहीं बूझते, और यद्यपि वे सुनते हैं, वे नहीं समझते हैं।’
\p
\s5
\v 11 अब, इस कहानी का अर्थ यह है: बीज परमेश्वर के वचन को दर्शाता है।
\v 12 मार्ग पर गिरने वाले बीज यह दिखाते हैं कि लोग परमेश्वर का वचन सुनते हैं, लेकिन बाद में शैतान आता है और उस वचन को उनके मन और मस्तिष्क से दूर ले जाता है। परिणामस्वरुप, वे वचन पर विश्वास नहीं करते और उद्धार नहीं पाते।
\v 13 पथरीली भूमि पर गिरने वाले बीज यह दिखाते हैं कि लोग परमेश्वर के वचन को सुनते हैं और वचन को आनन्द से ग्रहण करते हैं, परन्तु उनकी जड़ गहरी नहीं होती है। परिणामस्वरुप, वे केवल थोड़े समय के लिए विश्वास करते हैं। जैसे ही परेशानियाँ आती हैं, वे परमेश्वर के वचन पर विश्वास करना बन्द कर देते हैं।
\s5
\v 14 कटीले पौधों के बीच गिरने वाले बीज यह दिखाते हैं कि लोग परमेश्वर के वचन को सुनते हैं, परन्तु जीवन की चिन्ताएँ, धन और सुख विलास की बातें उनके जीवन में परमेश्वर के वचन को बढ़ने नहीं देती हैं। परिणामस्वरूप, वे आत्मिक रूप से परिपक्व नहीं हो पाते हैं।
\v 15 लेकिन उपजाऊ जमीन पर गिरने वाले बीज यह दिखाते हैं कि लोग परमेश्वर के वचन को सुनते हैं और वचन को सम्मान के साथ सच्चे मन से ग्रहण करते हैं, वे विश्वास करने और वचन का पालन करने में दृढ़ रहते हैं, और इसलिए वे अच्छे आत्मिक फल लाते हैं।
\p
\s5
\v 16 दीया जलाकर, लोग उसे टोकरी से नहीं ढाँकते न उसे खाट के नीचे रखते हैं। इसके बजाय, वे उसे एक दीवट पर रखते हैं, ताकि कमरे में प्रवेश करने वाले हर व्यक्ति को उसका प्रकाश मिले।
\v 17 इससे प्रकट होता है कि जो कुछ अभी छिपा हुआ है, वह एक दिन दिखाई देगा। और जो कुछ अब गुप्त है, उसे एक दिन प्रकट किया जाएगा।
\v 18 इसलिए यह सुनिश्चित करो कि जो कुछ मैं बताता हूँ, उसे तुम ध्यान से सुनो, क्योंकि परमेश्वर उन लोगों को जो उनके सत्य पर विश्वास करते है, और अधिक समझने योग्य बनाएँगे। परन्तु परमेश्वर उन लोगों को जो उनकी सच्चाई पर विश्वास नहीं करते हैं, थोड़ा सा भी जो उन्हें लगता है कि वे समझ गए हैं, समझने में सक्षम कर देंगे।”
\p
\s5
\v 19 एक दिन यीशु की माता और भाई उनसे मिलने के लिए आए, लेकिन वे उनके पास नहीं जा सके क्योंकि उस घर में जहाँ वह थे बड़ी भीड़ थी।
\v 20 तब किसी ने उन्हें बताया, “आपकी माता और आपके भाई आपसे मिलना चाहते हैं।”
\v 21 परन्तु उन्होंने उन से कहा, “जो लोग परमेश्वर के वचन को सुनते हैं और उसका पालन करते हैं, वे मुझे मेरी माता और मेरे भाइयों के समान प्रिय हैं।”
\p
\s5
\v 22 एक और दिन, यीशु अपने शिष्यों के साथ एक नाव में चढ़ गए। उन्होंने उनसे कहा, “मैं चाहता हूँ कि हम झील की दूसरी ओर जाएँ।” इसलिए वे झील को पार करने लगे।
\v 23 परन्तु जब वे नाव में यात्रा कर रहे थे, यीशु सो गए। तब झील में घोर तूफान उठा। शीघ्र ही नाव में पानी भरने लगा, और वे संकट में पड़ गए।
\s5
\v 24 तब यीशु के शिष्य उनके पास आए और उन्हें उठाया। उन्होंने उनसे कहा, “गुरु! गुरु! हम मरने वाले है!” तब वह उठ गए और हवा और हिंसक लहरों को शान्त होने का आदेश दिया और वे शान्त हो गए सब जगह शान्ति हो गई।
\v 25 फिर उन्होंने उनसे कहा, “तुम्हारा विश्वास इतना दुर्बल क्यों है?” जो कुछ हुआ था, उसके कारण शिष्य भयभीत और आश्चर्यचकित थे। वे एक दूसरे से कह रहे थे, “यह कौन हैं, कि वह हवाओं और पानी को भी आज्ञा देतें हैं, और वे उनकी आज्ञा मानते हैं?”
\p
\s5
\v 26 यीशु और उनके शिष्य नाव में यात्रा करके झील के पार गलील के दूसरी ओर, गिरासेनियों के क्षेत्र में आए।
\v 27 जब यीशु नाव से भूमि पर उतर गए, तो उस इलाके के एक शहर के एक व्यक्ति से उनकी मुलाकात हुई। इस मनुष्य में दुष्टात्माएँ थी। इस कारण लम्बे समय से इस व्यक्ति ने कपड़े नहीं पहने थे और वह घर में नहीं रहता था। वह कब्रों में रहता था।
\p
\s5
\v 28 जब उसने यीशु को देखा, तो वह मनुष्य चिल्लाया, उसके सामने मुँह के बल गिरा, और ऊँचे स्वर से कहा, “हे यीशु, हे परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र, आप मुझसे क्या चाहते हैं मैं निवेदन करता हूँ, मुझे दुःख मत दीजिए!”
\v 29 उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उसी समय यीशु ने उस दुष्ट-आत्मा को उससे बाहर आने की आज्ञा दी थी। यद्यपि उस व्यक्ति की कलाई और टखने जंजीरों से बंधे हुए थे, और लोग उसकी रखवाली करते थे, तो भी कई बार दुष्ट-आत्मा अचानक उसे बल से पकड़ लेती थी। तब वह जंजीरों को तोड़ देता और दुष्ट-आत्मा उसे निर्जन स्थानों में ले जाती थी।
\s5
\v 30 फिर यीशु ने उससे पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?” उसने कहा, “मेरा नाम सेना है।” उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि कई दुष्टात्माएँ उसमें समा गई थीं।
\v 31 दुष्ट-आत्माओं ने यीशु से विनती करते हुए कहा कि वे उन्हें गहरे अथाह कुण्ड में जाने की आज्ञा न दें, जहाँ परमेश्वर दुष्ट-आत्माओं को दण्ड देते हैं।
\s5
\v 32 पास की पहाड़ी पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था। दुष्ट-आत्माओं ने यीशु से विनती की कि वह उन्हें सूअरों में प्रवेश करने की अनुमति दें, और उन्होंने उन्हें अनुमति दी।
\v 33 तब दुष्ट-आत्माओं ने उस मनुष्य को छोड़ दिया और सूअरों में प्रवेश किया, और सूअरों का झुण्ड झील के किनारे पर से झपटकर झील में जा गिरा और डूब मरा।
\p
\s5
\v 34 जब सूअरों की देखभाल करने वाले पुरुषों ने देखा कि क्या हुआ, तो वे भाग गए! उन्होंने जो कुछ हुआ था उसके बारे में शहर और ग्रामीण इलाकों में लोगों को बताया।
\v 35 तब लोग जो हुआ उसे देखने के लिए बाहर निकल आए। जब वे वहाँ आए, जहाँ यीशु थे, तो उन्होंने देखा कि जिसमें से दुष्टात्माएँ निकली थी, वह यीशु के पैरों पर बैठा था, और उन्हें सुन रहा था उन्होंने देखा कि उसने कपड़े पहने हुए थे, और उसका मन फिर से सामान्य हो गया था, और वे डर गए।
\s5
\v 36 जिन लोगों ने सब कुछ होते हुए देखा था, उन्होंने उन लोगों को बताया जो अभी आए थे कि यीशु ने उस मनुष्य को कैसे स्वस्थ किया था जो दुष्ट-आत्माओं के वश में था।
\v 37 तब गिरासेनियों के आस-पास के इलाकों के बहुत से लोगों ने यीशु से उस क्षेत्र को छोड़ने के लिए कहा क्योंकि वे बहुत डर गए थे। इसलिये यीशु और उनके शिष्य वापस झील के पार जाने के लिए नाव में चढ़ गए।
\s5
\v 38 वापस जाने से पहले, जिस मनुष्य से दुष्टात्माएँ निकली थी, उसने यीशु से यह कहते हुए विनती की, "कृपया मुझे अपने साथ चलने दें!" परन्तु, यीशु ने उसे यह कहकर वापस भेजा,
\v 39 “नहीं, अपने घर वापस जाओ और लोगों को बताओ कि परमेश्वर ने तुम्हारे लिए कितना बड़ा काम किया है!” इसलिये वह मनुष्य वहाँ से चला गया और उसने पूरे शहर में लोगों को बताया कि यीशु ने उसके लिए कितना बड़ा काम किया।
\p
\s5
\v 40 तब यीशु और उनके शिष्य झील के पार कफरनहूम में वापस आ गए। लोगों की भीड़ उनके लिए प्रतीक्षा कर रही थी, और उन्होंने उनका स्वागत किया।
\v 41 उसी समय याईर नामक एक मनुष्य, जो वहाँ के आराधनालय के प्रमुख अगुओं में से एक था, यीशु के समीप आया और वह उनके पाँव पर मुँह के बल गिरा। उसने यीशु से अनुरोध किया कि वह उसके घर आए
\v 42 क्योंकि उसकी एकलौती बेटी, जो बारह साल की थी, मरने पर थी और वह चाहता था कि यीशु उसे जीवन दें। परन्तु जैसे यीशु वहाँ गए, बहुत से लोग उनके चारों ओर इखट्ठे हो गए।
\s5
\v 43 अब भीड़ में एक स्त्री थी, जो एक बीमारी से पीड़ित थीं, जिसके कारण बारह वर्ष से लगातार उसका खून बह रहा था। उसने अपने इलाज के लिए वैद्यों पर अपना सारा पैसा खर्च कर दिया था, लेकिन कोई भी उसे स्वस्थ नहीं कर पाया था।
\v 44 वह यीशु के पीछे आ गई और उनके वस्त्र की छोर को छुआ। तुरन्त उसका खून बहना बन्द हो गया।
\s5
\v 45 यीशु ने कहा, “मुझे किसने छुआ?” क्योंकि यीशु के आस-पास हर कोई कह रहा था कि उन्होंने उन्हें नहीं छुआ था, इसलिए पतरस ने कहा, “हे गुरु, बहुत से लोग आप के चारों ओर घूम रहे हैं और आपको दबा रहे हैं, इसलिए उनमें से कोई भी आप को छू सकता है।”
\v 46 लेकिन यीशु ने कहा, “मैं जानता हूँ कि किसी ने मुझे जानबूझ कर छुआ है, क्योंकि उस व्यक्ति को स्वस्थ करने के लिए मुझ में से शक्ति निकली है।”
\s5
\v 47 और जब स्त्री को पता चला कि वह छिप नहीं सकती, तब वह उनके पास काँपती हुई आई और उनके सामने मुँह के बल गिरी। जब अन्य लोग सुन रहे थे, उसने यीशु को बताया कि उसने उन्हें क्यों छुआ और कैसे वह तुरन्त स्वस्थ हो गई।
\v 48 और यीशु ने उससे कहा, “मेरी पुत्री, क्योंकि तू विश्वास करती थी कि मैं तुम्हें ठीक कर सकता हूँ, इसलिए अब तू ठीक है। अब तू अपने रास्ते पर जाओ और परमेश्वर की शान्ति तेरे साथ हो।”
\p
\s5
\v 49 जब वह उस स्त्री से बात कर ही रहे थे, तब याईर के घर से एक व्यक्ति आया और कहा, “तुम्हारी पुत्री की मृत्यु हो गई है। तो अब गुरु को परेशान मत कर!”
\v 50 परन्तु जब यीशु ने यह सुना, तो उन्होंने कहा, “मत डर, बस मुझ पर विश्वास कर और वह फिर से जीवित हो जाएगी।”
\s5
\v 51 जब वह घर के बाहर पहुँचे, तो यीशु ने पतरस, यूहन्ना और याकूब और लड़की के माता-पिता को छोड़कर और किसी को अपने साथ घर के भीतर आने की अनुमति नहीं दी।
\v 52 और सभी लोग जोर से रो रहे थे कि वे दिखाए कि वे बहुत उदास हैं क्योंकि लड़की की मृत्यु हो गई थी। लेकिन यीशु ने उनसे कहा, “रोओ मत! वह मरी नहीं है! सो रही है!”
\v 53 और लोग उन पर हँसे, क्योंकि वे जानते थे कि लड़की मर चुकी थी।
\s5
\v 54 परन्तु यीशु ने उसका हाथ पकड़ा और उसे पुकार कर कहा, “पुत्री, उठ जा!”
\v 55 और तुरन्त उसकी आत्मा उसके शरीर में लौट आई और वह उठ गई। यीशु ने उसे खाने के लिए कुछ देने को कहा।
\v 56 और उसके माता-पिता अचंभित थे, परन्तु यीशु ने उनसे कहा था कि जो कुछ भी हुआ था उसकी चर्चा वह किसी और से न करें।
\s5
\c 9
\p
\v 1 तब यीशु ने अपने बारह शिष्यों को बुलाया और उन्हें सभी प्रकार के दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकालने और लोगों के रोगों को स्वस्थ करने का अधिकार और शक्ति दी।
\v 2 उन्होंने उन्हें लोगों को स्वस्थ करने और उन्हें यह सिखाने के लिए भेजा कि परमेश्वर स्वयं को राजा के रूप में कैसे दर्शाएँगे।
\s5
\v 3 शिष्यों के निकलने से पहले, यीशु ने उनसे कहा, “अपनी यात्रा के लिए कुछ भी मत लो। लाठी या झोली या भोजन या पैसे न लो, दो-दो कुरते भी नहीं।
\v 4 तुम जिस घर में प्रवेश करो, उस क्षेत्र को छोड़ने तक उस ही घर में रहना।
\s5
\v 5 किसी भी शहर में जहाँ लोग तुम्हारा स्वागत नहीं करते हैं, तुम वहाँ मत रहना। जब तुम उस शहर से निकलो तब अपने पैरों से धूल झाड़ दो। यह उनके विरुद्ध एक चेतावनी के रूप में करो क्योंकि उन्होंने तुम्हें अस्वीकार किया था।”
\v 6 तब यीशु के शिष्य चले गए और कई गाँवों में से होकर यात्रा की। जहाँ-जहाँ वे गए, उन्होंने लोगों को परमेश्वर का सुसमाचार सुनाया और बीमारों को स्वस्थ किया।
\p
\s5
\v 7 हेरोदेस जो गलील जिले का शासक था, उसने जो कुछ भी हो रहा था, उसके बारे में सुना। वह उलझन में था, क्योंकि कुछ लोग कह रहे थे कि यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला फिर से जीवित हो गया है।
\v 8 अन्य लोग कह रहे थे कि एलिय्याह फिर दोबारा प्रकट हुआ है, और अन्य लोग यह कह रहे थे कि पूर्व काल के अन्य भविष्यद्वक्ताओं में से कोई एक फिर से जीवित हो गया है।
\v 9 लेकिन हेरोदेस ने कहा, “यह यूहन्ना नहीं हो सकता क्योंकि मैंने उसका सिर कटवाया था। तो यह कौन है जिसके बारे में मैं यह सुन रहा हूँ?” और वह यीशु से मिलने के लिए एक उपाय खोजने लगा।
\p
\s5
\v 10 जब प्रेरित अपनी यात्रा से लौट आए, तो जो कुछ उन्होंने किया था, सब कुछ यीशु को बताया। तब वह केवल उन्हें अपने साथ लेकर बैतसैदा नगर को गए।
\v 11 लेकिन जब लोगों ने सुना कि यीशु वहाँ गए हैं, तो वे उनके पीछे हो लिए। उन्होंने उनका स्वागत किया और उनसे बात की कि कैसे परमेश्वर जल्द ही स्वयं को राजा के रूप में दिखाएँगे, और उन्होंने उन लोगों को जो रोगी थे और स्वस्थ होना चाहते थे।
\p
\s5
\v 12 अब क्योंकि दिन ढलने पर था, इसलिए बारह शिष्यों ने उनके पास आकर कहा, “कृपया लोगों की बड़ी भीड़ को भेज दो ताकि वे कुछ खाने और रहने के स्थान के लिए आस-पास के गाँवों और खेतों में जा सकें, क्योंकि हम इस निर्जन क्षेत्र में हैं।”
\v 13 लेकिन उन्होंने उनसे कहा, “तुम ही उन्हें खाने को कुछ दो!” उन्होंने उत्तर दिया, “हमारे पास केवल पाँच रोटी और दो छोटी मछली हैं। हम जाकर इन सब लोगों के लिए पर्याप्त भोजन भी नहीं खरीद सकते हैं!”
\v 14 उन्होंने यह इसलिए कहा, क्योंकि वहाँ लगभग पाँच हज़ार पुरूष थे। तब यीशु ने शिष्यों से कहा, “लोगों को पचास पचास के समूह में बैठने को कहो।”
\s5
\v 15 तब शिष्यों ने ऐसा किया और सब लोग बैठ गए।
\v 16 फिर यीशु ने पाँच रोटी और दो मछली लीं, स्वर्ग की ओर देखा और उनके लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया। फिर उसने उनके टुकड़े करके शिष्यों को दिया कि वह लोगों में बाँट दे।
\v 17 उन सभी ने खाया और सभी के खाने के लिए भोजन पर्याप्त था। तब शिष्यों ने बचे हुए टुकड़ों को इकट्ठा किया, जिससे बारह टोकरी भर गयी!
\p
\s5
\v 18 एक दिन जब यीशु निजी तौर पर प्रार्थना कर रहे थे, तो उनके शिष्य उनके पास आए और यीशु ने उनसे पूछा, “लोग क्या कह रहे हैं कि मैं कौन हूँ?”
\v 19 शिष्यों ने कहा, “कुछ लोग कहते हैं कि आप यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले हैं, परन्तु दूसरों का कहना है कि आप एलिय्याह भविष्यद्वक्ता हैं, और फिर कई अन्यों का कहना है कि आप पूर्व काल के भविष्यद्वक्ताओं में से एक हैं, जो फिर से जीवित हो गए हैं।”
\s5
\v 20 यीशु ने उनसे पूछा, “तुम मेरे बारे में क्या कहते हो? मैं कौन हूँ?” पतरस ने उत्तर दिया, “आप मसीह है, जो परमेश्वर की ओर से आए हैं।”
\v 21 तब यीशु ने उन्हें चेतावनी दी कि वे किसी को अभी यह न बताएँ।
\v 22 फिर उन्होंने कहा, “मनुष्य के पुत्र को कई दु:खों से पीड़ित होना पड़ेगा: मैं यहूदी प्राचीनों, प्रधान याजकों और व्यवस्था के शिक्षकों द्वारा अस्वीकार किया जाऊँगा, और तब मुझे मार डाला जाएगा। फिर तीसरे दिन, मैं फिर से जीवित हो जाऊँगा।”
\p
\s5
\v 23 तब उन्होंने उनसे कहा, “यदि तुम में से कोई मेरा शिष्य बनना चाहता है, तो तुम जो कुछ भी करना चाहते हो, केवल वह न करो, प्रतिदिन तुम्हें अपना जीवन छोड़ने तक दुःख उठाना पड़ेगा।
\v 24 तुम्हें ऐसा करना होगा, क्योंकि जो लोग स्वयं के लिए अपना जीवन बचाने की कोशिश करते हैं वे उसे हमेशा के लिए खो देंगे, परन्तु जो लोग मेरे शिष्य होने के कारण, अपने जीवन को त्याग देते हैं, वे हमेशा के लिए अपने जीवन को बचाएँगे।
\v 25 अगर तुमने इस दुनिया में सब कुछ प्राप्त कर लिया, तो इससे क्या लाभ होगा, यदि तुम अपने जीवन को खो दो या समाप्त कर दो?
\s5
\v 26 जो लोग मेरे सन्देश को अस्वीकार करते हैं और वे मेरे हैं यह कहने से इन्कार करते हैं, मैं अर्थात् मनुष्य का पुत्र भी, जब मैं अपने पिता और स्वर्गदूतों की महिमा में आऊँगा उनके सामने यह कहने से इन्कार करूँगा कि वे मेरे हैं।
\v 27 लेकिन मैं तुम्हें यह सच कहता हूँ: तुम में से कुछ लोग जो यहाँ खड़े हैं तब तक नहीं मरेंगे जब तक कि परमेश्वर को स्वयं राजा के रूप में नहीं देखेंगे!”
\p
\s5
\v 28 यीशु के इन वचनों को कहने के आठ दिन बाद, वह अपने साथ पतरस, यूहन्ना और याकूब को लेकर प्रार्थना करने के लिए एक पहाड़ पर चढ़ गए।
\v 29 जब वह प्रार्थना कर रहे थे, तो उनके चेहरे का रूप बदल गया और उनके वस्त्र श्वेत होकर तेज चमकने लगे।
\s5
\v 30 और पूर्व काल के दो भविष्यद्व्कता वहाँ आए और यीशु के साथ बातें करने लगे; वे मूसा और एलिय्याह थे।
\v 31 वे महिमा में घिरे हुए थे, और यीशु के साथ उनके प्रस्थान के बारे में बातें कर रहे थे, जो जल्द ही यरूशलेम में पूरा होना था।
\s5
\v 32 पतरस और उसके साथ जो अन्य शिष्य थे बहुत नींद में थे। जब वे उठ गए, तो उन्होंने यीशु की महिमा देखी और उन्होंने दो लोगों को उनके साथ खड़े देखा।
\v 33 जब मूसा और एलिय्याह यीशु को छोड़कर जाने लगे, तब पतरस ने उनसे कहा, “हे गुरु, हमारा यहाँ रहना भला है! हम तीन तम्बू बनाएँगे, एक आपके लिए, एक मूसा के लिए, और एक एलिय्याह के लिए।” लेकिन वह नहीं जानता था कि वह क्या कह रहा था।
\s5
\v 34 जब वह ये बातें कह रहा था, तो एक बादल ने आकर उनको ढक दिया। शिष्य भयभीत थे क्योंकि बादल ने उन्हें घेरा हुआ था।
\v 35 तब बादल में से परमेश्वर की वाणी सुनाई दी, “यह मेरा पुत्र है, जिसे मैंने चुना है, इनकी बात सुनो!”
\v 36 वाणी के रुकते ही, तीनों शिष्यों ने देखा कि केवल यीशु ही वहाँ थे। वे चुप थे और एक लम्बे समय तक उन्होंने जो देखा था उसे किसी को भी नहीं बताया।
\p
\s5
\v 37 अगले दिन जब वे पहाड़ से उतर आए, तो लोगों की एक बड़ी भीड़ यीशु से मिलने आई।
\v 38 तब भीड़ में से एक व्यक्ति ने पुकार कर कहा, “हे गुरु, मैं आपसे विनती करता हूँ, मेरे पुत्र की सहायता करें! वह मेरा एकलौता पुत्र है।
\v 39 एक दुष्ट-आत्मा अकस्मात ही उसे पकड़ लेती है और वह चिल्लाता है। वह उसे बलपूर्वक मरोड़ती है और वह मुँह में फेन भर लाता है। वह जब मेरे पुत्र को छोड़ती है, तो उसे गंभीर रूप से चोट पहुँँचाती है।
\v 40 मैंने आपके शिष्यों से कहा कि वे दुष्ट-आत्मा को उससे बाहर आने के लिए आज्ञा दे, परन्तु वे ऐसा करने में असमर्थ थे!”
\s5
\v 41 उत्तर में, यीशु ने कहा, “इस पीढ़ी के लोग विश्वास नहीं करते हैं और इस कारण तुम्हारी सोच भ्रष्ट है! मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँ, कि तुम विश्वास करो? फिर उन्होंने लड़के के पिता से कहा, अपने पुत्र को यहाँ मेरे पास लाओ!”
\v 42 जब वे लड़के को उनके पास ला रहे थे, तो दुष्ट-आत्मा ने उस लड़के को भूमि पर फेंक दिया और उसे बलपूर्वक मरोड़ा। परन्तु यीशु ने दुष्ट-आत्मा को डाँटा और लड़के को स्वस्थ किया। तब उन्होंने उसे उसके पिता के पास लौटा दिया।
\s5
\v 43 तब सब लोग परमेश्वर की महान शक्ति से पूरी तरह आश्चर्यचकित हुए।
\p जब वे सब चमत्कारों पर आश्चर्य करके बातें कर रहे थे, तब यीशु ने अपने शिष्यों से कहा,
\v 44 “जो कुछ मैं तुम्हें बताने जा रहा हूँ उसे ध्यान से सुनो: मैं अर्थात् मनुष्य का पुत्र, शीघ्र ही मेरे शत्रुओं को सौंप दिया जाऊँगा।”
\v 45 लेकिन शिष्य समझ न सके कि इसका अर्थ क्या था। परमेश्वर ने उन्हें यह समझने से रोका, ताकि वे उस समय उसका अर्थ न जान पाएँ, और वे उनसे इसका अर्थ पूछने से डरते थे।
\p
\s5
\v 46 कुछ समय बाद, शिष्यों के बीच में बहस हुई कि उनमें से कौन सबसे महत्वपूर्ण होगा।
\v 47 लेकिन यीशु को पता था कि वे क्या सोच रहे थे, इसलिए उन्होंने एक छोटे बच्चे को अपने पास खड़ा करने के लिए बुलाया।
\v 48 उन्होंने उनसे कहा, “अगर कोई इस बच्चे का स्वागत करता है, तो वह मेरा स्वागत करने के समान है, और अगर कोई मेरा स्वागत करता है, तो वह परमेश्वर का स्वागत करता है, जिसने मुझे भेजा है। तुम्हारे बीच में जो सबसे कम महत्वपूर्ण लगते हैं, उसे ही परमेश्वर सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं।”
\p
\s5
\v 49 यूहन्ना ने यीशु को उत्तर दिया, “हे गुरु, हमने एक व्यक्ति को देखा जो आप के नाम से दुष्ट-आत्माओं को लोगों से बाहर निकलने की आज्ञा दे रहा था। इसलिए हमने उसे ऐसा करने के लिए मना किया, क्योंकि वह हमारे समूह का हिस्सा बनकर आपका अनुसरण नहीं कर रहा है।”
\v 50 लेकिन यीशु ने कहा, “उसे ऐसा करने से मत रोको! अगर कोई ऐसा काम नहीं कर रहा है जो तुम्हारे लिए हानिकारक है, तो वह जो कर रहा है वह तुम्हारे लिए सहायक है!”
\p
\s5
\v 51 जब वह दिन करीब आ रहा था जब परमेश्वर उन्हें वापस स्वर्ग ले जाए, तब यीशु ने यरूशलेम को जाने का दृढ़ संकल्प किया।
\v 52 उन्होंने कुछ दूतों को उससे आगे जाने के लिए भेजा, और वे सामरिया प्रदेश के एक गाँव में गए, कि उनके लिए तैयारी करें।
\v 53 परन्तु सामरियों ने यीशु को अपने गाँव में आने की अनुमति नहीं दी क्योंकि वह यरूशलेम को जा रहे थे।
\s5
\v 54 और जब उनके दो शिष्यों, याकूब और यूहन्ना ने यह सुना, तो उन्होंने कहा, हे प्रभु, क्या आप चाहते हैं कि हम परमेश्वर से प्रार्थना करें कि वे उन लोगों को नाश करने के लिए स्वर्ग से आग भेज दें?
\v 55 लेकिन यीशु ने उनकी ओर मुड़कर कठोरता से कहा कि उनका ऐसा कहना गलत है।
\v 56 इसलिए वे एक अन्य गाँव में गए।
\p
\s5
\v 57 जब यीशु और शिष्य सड़क पर चल रहे थे, किसी ने उनसे कहा, “आप जहाँ भी जाओगे, मैं आपके साथ जाऊँगा!”
\v 58 यीशु ने उत्तर दिया, “लोमड़ियों के रहने के लिए भूमि में भट हैं, और पक्षियों के घोंसले हैं, लेकिन मेरे अर्थात् मनुष्य के पुत्र के लिए सोने की कोई जगह नहीं है!”
\s5
\v 59 यीशु ने एक अन्य व्यक्ति से कहा, “मेरे पीछे हो ले!” लेकिन उस व्यक्ति ने कहा, “हे प्रभु, मुझे पहले घर जाकर मेरे मरे हुए पिता को दफनाने दें।”
\v 60 यीशु ने उस से कहा, “मरे हुओं को अपने मुर्दों को दफनाने दो, परन्तु तुम जाकर लोगों को बताओ कि परमेश्वर शीघ्र ही स्वयं को राजा के रूप में प्रकट करेंगे!”
\s5
\v 61 किसी अन्य ने कहा, “हे प्रभु, मैं आप के साथ आऊँगा और आपका शिष्य बनूँगा, लेकिन पहले मुझे अपने लोगों से विदा होने के लिए घर जाने दें।”
\v 62 यीशु ने उस से कहा, “जो कोई अपने खेत की जुताई करना आरंभ करके पीछे देखता है, वह परमेश्वर की, जब वह राजा के रूप में शासन करेंगे, सेवा करने के लिए योग्य नहीं है।”
\s5
\c 10
\p
\v 1 इसके बाद, प्रभु यीशु ने प्रचार करने के लिए सत्तर अन्य लोगों को नियुक्त किया। उसने हर शहर और गाँव में जहाँ वह स्वयं जाना चाहते थे, उन्हें दो-दो करके भेजा कि वे उनके आगे जाए।
\v 2 उन्होंने उनसे कहा, “फसल निश्चय ही बहुत है परन्तु मजदूर बहुत कम हैं। इसलिए खेत के स्वामी से प्रार्थना करो और विनती करो कि वह फसल काटने के लिए और मजदूरों को भेजे।
\s5
\v 3 अब जाओ, लेकिन याद रखो कि मैं तुम्हें अपना सन्देश उन लोगों को सुनाने के लिए भेज रहा हूँ जो तुम्हें मार डालने का प्रयास करेंगे। तुम भेड़ियों के बीच में भेड़ के समान होगे।
\v 4 अपने साथ पैसा मत लेना। यात्रा के लिए झोली न लेना। अतिरिक्त जूते न लेना। रास्ते में लोगों को नमस्कार करने के लिए मत रुकना।
\s5
\v 5 जब भी तुम किसी घर में प्रवेश करते हो, तो पहले उन लोगों से कहो, ‘परमेश्वर इस घर में रहनेवालों को शान्ति दे!
\v 6 यदि वहाँ रहने वाले लोग परमेश्वर की शान्ति चाहते हैं, तो वे उस शान्ति का अनुभव करेंगे जिसका तुमने उन्हें आशीर्वाद दिया है। अगर वहाँ रहने वाले लोग परमेश्वर की शान्ति पाने की इच्छा नहीं रखते हैं, तो तुम्हारे द्वारा दी गई शान्ति तुम्हारे पास वापस आ जाएगी।
\v 7 जब तक तुम उस गाँव को नहीं छोड़ देते तब तक उसी घर में रहो। एक घर से दूसरे में न जाओ, वे जो कुछ भी तुम्हें खाने को दें, खाओ और पीओ, क्योंकि एक मजदूर अपने काम के लिए मजदूरी प्राप्त करने के योग्य है।
\s5
\v 8 जब भी तुम किसी शहर में प्रवेश करते हो और वहाँ के लोग तुम्हारा स्वागत करते हैं, तो जो कुछ वे तुम्हें खाने को देते हैं वही खाओ।
\v 9 वहाँ के बीमार लोगों को स्वस्थ करो। उन्हें बताओ, ‘परमेश्वर शीघ्र ही हर जगह राजा के रूप में शासन करेंगे।’
\s5
\v 10 लेकिन अगर तुम एक ऐसे शहर में प्रवेश करते हो जहाँ के लोग तुम्हारा स्वागत नहीं करते हैं, तो उस शहर के मुख्य मार्ग मुख्य सड़कों पर जाओ और कहो,
\v 11 ‘तुम्हारे लिए चेतावनी के रूप में, हम अपने पैरों पर लगी हुई धूल को भी झाड़ देते हैं क्योंकि हम तुम्हारे शहर को छोड़कर जा रहें हैं। लेकिन यह बात निश्चित है कि परमेश्वर शीघ्र ही राजा होकर सब पर शासन करेंगे।’
\v 12 मैं तुम से कहता हूँ कि अंतिम दिन जब परमेश्वर सब का न्याय करेंगे, तब उस शहर के लोगों को, पूर्व काल के सदोम शहर में रहने वाले दुष्ट लोगों की तुलना में अधिक गंभीर दण्ड दिया जाएगा!
\p
\s5
\v 13 खुराजीन और बैतसैदा के शहरों में रहने वाले तुम लोगों के लिए यह कितना भयानक होगा, क्योंकि तुम पश्चाताप करने से इन्कार करते हो! अगर तुम्हारे लिए मैंने जो चमत्कार किए थे, यदि वह सोर और सीदोन के प्राचीन शहरों में किए गए होते, तो वहाँ रहने वाले दुष्ट लोगों ने बहुत पहले से ही टाट पहनकर, और भूमि पर बैठकर और अपने सिर पर राख डालकर, दिखा देते कि वे अपने पापों के लिए कितने शोकित हैं।
\v 14 तो अन्तिम दिन में जब परमेश्वर सब का न्याय करेंगे, तो वह तुम्हें सोर और सीदोन में रहने वाले दुष्ट लोगों की तुलना में अधिक गंभीर दण्ड देंगे क्योंकि तुम ने पश्चाताप नहीं किया और मुझ पर भरोसा नहीं किया, जब कि तुमने मुझे अनेक चमत्कार करते देखा है!
\v 15 मुझे कफरनहूम शहर में रहने वाले लोगों से भी कुछ कहना है। क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हें स्वर्ग में सम्मानित किया जाएगा? इसके विपरीत, तुम्हें मरे हुओं के स्थान तक गिराया जाएगा!
\p
\s5
\v 16 यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, “जो कोई तुम्हारा सन्देश सुनेगा, वह मेरी बात सुनेगा और जो कोई तुम्हारा सन्देश अस्वीकार करेगा, वह मुझे अस्वीकार करेगा। और जो कोई मुझे अस्वीकार करेगा, वह मुझे भेजनेवाले परमेश्वर को अस्वीकार करेगा।”
\p
\s5
\v 17 वे सत्तर पुरुष जिन्हें यीशु ने नियुक्त किया था, चले गए और यीशु की आज्ञा के अनुसार किया। जब वे लौट आए, तो वे अति आनन्दित थे। उन्होंने कहा, “हे प्रभु, दुष्ट-आत्माओं ने हमारी आज्ञा का पालन किया जब हम ने आपके दिए अधिकार से उन्हें लोगों में से निकल जाने का आदेश दिया!”
\v 18 उन्होंने उत्तर दिया, “जब तुम ऐसा कर रहे थे, तो मैंने शैतान को स्वर्ग से बिजली के समान अकस्मात ही अति शीघ्र गिरते हुए देखा!
\v 19 सुनो! मैंने तुम्हें दुष्ट-आत्माओं पर अधिकार दिया है। वे तुम्हारी हानि नहीं करेंगी। मैंने तुम्हें हमारे शत्रु शैतान से अधिक शक्तिशाली होने का अधिकार दिया है। किसी वस्तु से तुम्हारी हानि नहीं होगी।
\v 20 तुम आनन्दित हो कि दुष्टात्माएँ तुम्हारी आज्ञा मानती हैं, परन्तु तुम्हें इससे अधिक आनन्दित होना चाहिए क्योंकि तुम्हारे नाम स्वर्ग में लिखे गए हैं।”
\p
\s5
\v 21 उसी समय, यीशु पवित्र आत्मा में होकर महान आनन्द से भर गए। उन्होंने कहा, “हे पिता, आप जो स्वर्ग में और धरती पर सब के प्रभु हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि वे बुद्धिमान हैं क्योंकि उन्हें अच्छी शिक्षा मिली हैं, लेकिन मैं आपकी स्तुति करता हूँ कि आपने उन्हें इन बातों को जानने से रोका है। बल्कि आपने ऐसे लोगों को, जो आपकी सच्चाई को छोटे बच्चे की तरह आसानी से स्वीकार करते हैं, उन पर ये बातें प्रकट की है। हाँ, पिता, आपने ऐसा किया है, क्योंकि आपको ऐसा करना अच्छा लगा।
\s5
\v 22 यीशु ने शिष्यों से कहा, मेरे पिता परमेश्वर ने सब कुछ मुझे दिया है। केवल मेरे पिता ही मुझे अर्थात् अपने पुत्र को भली-भांति जानते हैं। इसके अलावा, केवल पुत्र ही वास्तव में जानता है कि पिता कौन है- अर्थात् केवल मैं और वे लोग जिन पर मैं उन्हें प्रकट करने के लिए चुनता हूँ, वास्तव में उन्हें जानते हैं।”
\p
\s5
\v 23 फिर जब उनके शिष्य उनके साथ अकेले थे, तो उन्होंने उनकी ओर मुड़कर कहा, “जो कुछ मैंने किया है, उसे देखने का विशेषाधिकार परमेश्वर ने तुम्हें एक महान वरदान के रूप में दिया है!
\v 24 मैं चाहता हूँ कि तुम जानो कि पूर्व काल के कई भविष्यद्वक्ता और राजा इन बातों को देखने के इच्छुक थे जो तुम मुझे करते देख रहे हो, लेकिन वे देख नहीं सके, क्योंकि ये बातें तब नहीं हुईं थी। वे उन बातों को सुनना चाहते थे जिन्हें तुम मुझसे सुनते हो, लेकिन मैंने इन बातों को उस समय प्रकट नहीं किया था।”
\p
\s5
\v 25 एक दिन जब यीशु लोगों को सिखा रहे थे, यहूदी व्यवस्था का एक शिक्षक वहाँ था। वह एक कठिन सवाल पूछकर यीशु की परीक्षा लेना चाहता था। इसलिए वह खड़ा हुआ और पूछा, “गुरु, मुझे परमेश्वर के साथ सदा रहने के लिए क्या करना चाहिए?”
\v 26 यीशु ने उस से कहा, “तूने पढ़ा है कि मूसा ने परमेश्वर द्वारा दी गई व्यवस्था में, क्या लिखा है। नियम क्या कहते हैं?”
\v 27 उस पुरुष ने कहा, “अपने परमेश्वर को अपने सारे मन से, अपनी सारी आत्मा से, अपनी सारी शक्ति से और अपनी सारी बुद्धि से प्रेम कर। और अपने पड़ोसी से जितना स्वयं से प्रेम करते हो उतना प्रेम कर।”
\v 28 यीशु ने उत्तर दिया, “तूने सही उत्तर दिया है। यदि तू ऐसा करता है, तो सर्वदा परमेश्वर के साथ रहेगा।”
\p
\s5
\v 29 लेकिन वह व्यक्ति अन्य लोगों के साथ अपने व्यवहार को उचित सिद्ध करना चाहता था। इसलिए उसने यीशु से कहा, “मेरा पड़ोसी कौन है, जिससे मुझे प्रेम करना चाहिए?”
\v 30 यीशु ने उत्तर दिया, “एक दिन, एक यहूदी मनुष्य यरूशलेम से यरीहो के रास्ते पर जा रहा था। जब वह यात्रा कर रहा था, तो कुछ डाकुओं ने उस पर आक्रमण किया और उन्होंने उसके सारे कपड़े और जो कुछ उसके पास था सब कुछ ले लिया और जब तक वह अधमरा न हो गया तब तक उसे मारा। तब उन्होंने उसे छोड़ दिया।
\s5
\v 31 ऐसा हुआ कि एक यहूदी याजक उस रास्ते से जा रहा था। जब उसने उस व्यक्ति को देखा, तो उसकी सहायता करने की अपेक्षा, वह सड़क के दूसरी ओर से चला गया।
\v 32 इसी तरह, एक लेवी, जो परमेश्वर के मन्दिर में काम करता था, वहाँ आया और उस व्यक्ति को देखा। लेकिन वह भी सड़क के दूसरी ओर चला गया।
\s5
\v 33 फिर सामरिया प्रदेश का एक व्यक्ति उस सड़क पर आया जहाँ वह व्यक्ति पड़ा था। जब उसने उस व्यक्ति को देखा, तो उसे उस पर दया आई।
\v 34 वह उसके पास गया और उसके घावों पर कुछ जैतून का तेल और दाखमधू डाला ताकि घाव जल्द ठीक हो सकें। उसने घावों को कपड़े की पट्टियों से भी लपेटा। फिर वह उस व्यक्ति को अपने गधे पर चढ़ाकर एक सराय में ले गया और उसकी देखभाल की।
\v 35 अगली सुबह उसने सराय के मालिक को दो चाँदी के सिक्के दिए और कहा, ‘इस व्यक्ति को संभालना। यदि तुम और अधिक खर्च करते हो, तो मैं लौटकर तुम्हें दे दूँगा।’
\s5
\v 36 फिर यीशु ने कहा, तीन लोगों ने उस व्यक्ति को देखा जिस पर डाकुओं ने आक्रमण किया था। उनमें से किसने दिखाया कि वह उस व्यक्ति का सच्चा पड़ोसी है?”
\v 37 व्यवस्था के शिक्षक ने जवाब दिया, “जिसने उस पर दया की।” यीशु ने उस से कहा, “हाँ, तो अब तू जाकर सब के साथ ऐसा ही व्यवहार कर !”
\p
\s5
\v 38 जब यीशु और उनके शिष्य यात्रा कर रहे थे, तो वे यरूशलेम के निकट के एक गाँव में गए। एक स्त्री ने जिसका नाम मार्था था, उन्हें अपने घर आने के लिए आमंत्रित किया।
\v 39 उसकी छोटी बहन, जिसका नाम मरियम था, यीशु के पैरों के पास बैठी थी। वह उनके उपदेशों को सुन रही थी।
\s5
\v 40 लेकिन मार्था भोजन तैयार करने के बारे में बहुत चिंतित थी। वह यीशु के पास गई और कहा, “हे प्रभु, क्या आप को चिन्ता नहीं कि मेरी बहन ने मुझे सब कुछ तैयार करने के लिए अकेला छोड़ दिया है? कृपया उससे कहें कि वह मेरी सहायता करे!”
\v 41 परन्तु प्रभु ने उत्तर दिया, “मार्था, मार्था, तुम बहुत सी बातों के बारे में चिंतित हो।
\v 42 परन्तु, वास्तव में केवल एक ही बात आवश्यक है और वह है, मेरे उपदेशों को सुनना। मरियम ने सबसे अच्छा भाग चुना है। ऐसा करके उसने जो आशीष प्राप्त की है उससे कोई छीन नहीं सकता।”
\s5
\c 11
\p
\v 1 एक दिन यीशु किसी स्थान पर प्रार्थना कर रहे थे। जब उन्होंने प्रार्थना समाप्त की, तो उनके शिष्यों में से एक ने उनसे कहा, "हे प्रभु, हमें सिखाएँ कि जब हम प्रार्थना करते हैं तो क्या कहना चाहिए, जैसा यूहन्ना ने अपने शिष्यों को सिखाया था!"
\s5
\v 2 उन्होंने उनसे कहा, "जब तुम प्रार्थना करते हो, तो कहो: 'हे पिता, सब लोग आपका नाम पवित्र माने। आप शीघ्र ही हर एक स्थान पर और सब लोगों पर शासन करें।
\s5
\v 3 कृपया प्रतिदिन का भोजन हमें दें जो हमें चाहिए।
\v 4 कृपया हमारे द्वारा किए गए अनुचित कामों के लिए हमें क्षमा कर दें, जैसे हम हमारे विरुद्ध किए गए अनुचित कामों के लिए लोगों को क्षमा करते हैं। जब हमारी परीक्षा होती है तो हमें पाप न करने में हमारी सहायता करें।'"
\p
\s5
\v 5 तब उन्होंने उनसे कहा, "मान लो कि तुम में से कोई आधी रात को एक मित्र के घर जाता है। और बाहर खड़े होकर उसे पुकार कर कहता है, 'हे मेरे मित्र, कृपया मुझे तीन रोटियाँ दे दो!
\v 6 मेरा एक मित्र जो यात्रा कर रहा है, अभी मेरे घर पहुँँचा है, लेकिन मेरे पास उसे देने के लिए कोई भोजन नहीं है!
\v 7 मान लो कि वह तुम्हें घर के अन्दर से जवाब दे, "मुझे परेशान मत करो! दरवाजा बन्द कर दिया गया है और मेरा सारा परिवार बिस्तर में है। तो मैं उठकर तुम्हें कुछ नहीं दे सकता!"
\v 8 मैं तुमसे कहता हूँ, वह तुम्हारा मित्र होने पर भी यदि उठकर तुम्हें कुछ भोजन देना नहीं चाहता हो। तो क्योंकि तुम उससे लगातार माँगते रहते हो, इसलिए वह निश्चय ही उठकर तुम्हें जो चाहिए वह दे देगा।
\s5
\v 9 अत: मैं तुमसे कहता हूँ: तुम्हें जो भी आवश्यकता है उसके लिए परमेश्वर से लगातार माँगते रहो, और वह तुम्हें वो दे देंगे। उनकी इच्छा को खोजो और वह उसे तुम पर प्रकट करेंगे। परमेश्वर से निरन्तर प्रार्थना करते रहो, जैसे कोई दरवाजे पर खटखटाता है, और वह तुम्हारे लिए मार्ग बना देगा जिस के द्वारा तुम अपनी प्रार्थना का उत्तर प्राप्त करोगे।
\v 10 याद रखो कि जो कोई माँगेगा, उसे प्राप्त होगा और जो कोई भी ढूँढ़ेगा, वह पाएगा, और जो भी खटखटाएगा उसके लिए द्वार खोल दिया जाएगा।
\s5
\v 11 यदि तुम में से किसी का पुत्र खाने के लिए मछली माँगे, तो क्या तुम उसे एक जहरीला साँप खाने को दोगे, कदापि नहीं?
\v 12 और अगर उसने तुमसे अंडा माँगे तो क्या तुम उसे एक बिच्छू दोगे, कदापि नहीं?
\v 13 यद्यपि तुम लोग जो पापी हो, परन्तु अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएँ देना जानते हो, तो निश्चय तुम्हारा पिता जो स्वर्ग में है तुम्हें पवित्र आत्मा देगा यदि तुम उससे माँगोगे।"
\p
\s5
\v 14 एक दिन एक व्यक्ति यीशु के पास आया जो बोल नहीं सकता था क्योंकि एक दुष्ट-आत्मा उसे वश में किया हुआ था। यीशु ने दुष्ट-आत्मा को बाहर निकाला, तब वह व्यक्ति बात करने लगा और लोगों की भीड़ आश्चर्यचकित हो गई।
\v 15 परन्तु उनमें से कुछ ने कहा, "यह शैतान का राजा बअलजबूल है, जो इस मनुष्य को दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकालने में सक्षम बनाता है!"
\s5
\v 16 अन्य लोगों ने उनसे कहा कि वह कोई चिन्ह दिखाकर सिद्ध करें कि वह परमेश्वर की ओर से हैं।
\v 17 लेकिन उन्हें पता था कि वे क्या सोच रहे थे। इसलिए उन्होंने उनसे कहा, "यदि एक देश के लोग एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ते हैं, तो उनका देश नष्ट हो जाएगा। अगर एक परिवार में लोग एक-दूसरे का विरोध करते हैं, तो उनका परिवार टूट जाएगा।
\s5
\v 18 इसी तरह, अगर शैतान और उसकी दुष्टात्माएँ एक दूसरे के विरुद्ध लड़ेंगे, तो उनका शासन निश्चय ही समाप्त हो जाएगा! मैं यह इसलिए कहता हूँ कि तुम कह रहे हो कि मैं दुष्ट-आत्माओं के शासक की शक्ति से दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकालता हूँ!
\v 19 अब, अगर यह वास्तव में सच है कि शैतान मुझे दुष्ट-आत्माओं को बाहर करने की शक्ति देता है, तो क्या यह भी सच है कि तुम्हारे शिष्य जो दुष्ट-आत्माओं को निकालते है वे भी शैतान की शक्ति से ऐसा करते हैं? कभी नही! इसलिए वे सिद्ध करते हैं कि तुम गलत हो।
\v 20 परन्तु क्योंकि वास्तव में, मैं परमेश्वर की शक्ति से दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकालता हूँ, इस से मैं प्रकट करता हूँ कि परमेश्वर ने तुम पर शासन करना आरंभ कर दिया है।
\p
\s5
\v 21 यीशु ने आगे कहा, जब एक बलवन्त व्यक्ति, जिसके पास बहुत से हथियार हैं स्वयं अपने घर की रखवाली करता है, तब कोई भी उसके घर में चोरी नहीं कर सकता।
\v 22 लेकिन जब कोई अन्य व्यक्ति जो उससे भी अधिक बलवन्त है उस पर आक्रमण करता है और उसे अपने अधीन कर लेता है, तो वह उन हथियारों को छीन सकता है, जिस पर वह व्यक्ति भरोसा करता था। तब वह उस व्यक्ति के घर से जो कुछ भी लेना चाहता है, वह ले सकता है।
\v 23 जो कोई मेरा समर्थन नहीं करता है, वह मेरा विरोध करता है, और जो कोई लोगों को मेरे पास नहीं लाता, वह उन्हें मुझसे दूर ले जाता है।
\p
\s5
\v 24 फिर यीशु ने यह कहा: कभी-कभी जब कोई दुष्ट-आत्मा किसी को छोड़ देती है, तो वह राहत के लिए उजाड़ क्षेत्रों में भटकती है। अगर उसे कोई विश्राम स्थान नहीं मिलता है, तो वह स्वयं से कहती है, 'मैं उस व्यक्ति के पास वापस लौट जाऊँगी जिसमें मैं वास करती थी!
\v 25 तो वह वापस आकर पाती है कि वह व्यक्ति एक ऐसे घर के समान है जिसे साफ और व्यवस्थित किया गया है, लेकिन खाली है।
\v 26 तब वह दुष्ट-आत्मा जाती है और सात अन्य दुष्ट-आत्माओं को जो उससे भी ज्यादा बुरी हैं साथ लेकर आती है। वे सब उस व्यक्ति में प्रवेश करती हैं और वहाँ रहने लगती हैं। इसलिए, उस व्यक्ति की स्थिति पहले से भी बहुत अधिक खराब हो जाती है।"
\p
\s5
\v 27 जब यीशु ने यह कहा तो, एक स्त्री जो सुन रही थी, जोर से पुकारकर कहने लगी, "परमेश्वर ने उस स्त्री को, जिसने तुझे जन्म दिया और उन स्तनों को, जिसने तुम्हें दूध पिलाया कितनी आशीष दी है! "
\v 28 तब उन्होंने कहा, "परमेश्वर ने उससे भी अधिक आशीष उन्हें दी है जो इस सन्देश को सुनते हैं और उसका पालन करते हैं!"
\p
\s5
\v 29 जब अधिक से अधिक लोग यीशु के चारों ओर एकत्र हो रहे थे तब उन्होंने कहा, "इस युग में रहनेवाले लोग बुरे हैं। तुम में से बहुत सारे लोग मुझे चमत्कार करते देखना चाहते हैं, जिससे यह प्रमाणित हो कि मैं परमेश्वर की ओर से आया हूँ। तुम्हारे लिए एकमात्र प्रमाण वह चमत्कार है जो योना के साथ हुआ था।
\v 30 जिस तरह से जो चमत्कार परमेश्वर ने योना के लिए बहुत पहले किया था, वह नीनवे शहर के लोगों के लिए एक प्रमाण था, उसी प्रकार परमेश्वर, मनुष्य के पुत्र के लिए भी ऐसा ही एक चमत्कार करेंगे जो तुम लोगों के लिए एक प्रमाण होगा।
\s5
\v 31 पूर्व काल में, शेबा की रानी लम्बी यात्रा करके, सुलैमान की बुद्धिमानी की बातें सुनने आई थी। और अब तो सुलैमान से बहुत अधिक महान व्यक्ति यहाँ है, परन्तु तुमने सचमुच मेरी बातें नहीं सुनी। इसलिए, उस समय जब परमेश्वर सब लोगों का न्याय करेंगे, यह रानी वहाँ खड़े होकर तुम लोगों को अपराधी ठहराएगी।
\s5
\v 32 जो लोग नीनवे के प्राचीन शहर में रहते थे, वे योना का प्रचार सुनकर अपने पापमय जीवन से मुड़ गए थे। और अब मैं, जो योना से बड़ा हूँ, आया हूँ और तुम्हें उपदेश देता हूँ, परन्तु तुम अपने पापमय जीवन से नहीं मुड़े। इसलिए, उस समय जब परमेश्वर सब लोगों का न्याय करेंगे, जो लोग नीनवे में रहते थे, वहाँ खड़े होकर तुम लोगों को दोषी ठहराएँगे।
\p
\s5
\v 33 लोग दिपक जलाकर उसे छिपाते नहीं या टोकरी के नीचे नहीं रखते हैं, बल्कि उसे दीवट पर रखते है कि कमरे या घर में प्रवेश करनेवाले को प्रकाश दिख सके।
\v 34 तुम्हारी आँख तुम्हारे शरीर का दीपक है, यदि तुम्हारी आँख स्वस्थ है, तो तुम्हारा पूरा शरीर प्रकाश से भरा हुआ है। दूसरी ओर, यदि आँख अस्वस्थ है, तो तुम्हारा शरीर अन्धेरे से भरा है।
\v 35 इसलिए, सावधान रहो कि तुम्हारे भीतर का प्रकाश अन्धकार न हो जाए।
\v 36 अगर तुम्हारा पूरा शरीर प्रकाश से भरा हुआ है और उसका कोई भी भाग अन्धकारमय नहीं है, तो तुम्हारा पूरा शरीर प्रकाशमान होगा, जैसे एक दीपक की रोशनी जो सब कुछ स्पष्ट रूप से देखने में सहायता करती है।"
\p
\s5
\v 37 जब यीशु ने इन बातों को कहना पूरा किया, तब एक फरीसी ने उन्हें अपने साथ भोजन करने के लिए आमन्त्रित किया। इसलिए यीशु फरीसी के घर में गए और खाने के लिए मेज़ पर बैठ गए।
\v 38 फरीसी को यह देखकर बड़ा अचम्भा हुआ कि यीशु ने खाने से पहले अपने हाथ नहीं धोए थे।
\s5
\v 39 प्रभु यीशु ने उस से कहा, "तुम फरीसी खाने से पहले कटोरे और थाली को बाहर से धोते हो, परन्तु तुम भीतर से बहुत लालची और दुष्ट हो।
\v 40 हे मूर्ख लोगों! तुम निश्चय ही जानते हो कि परमेश्वर ने केवल बाहर के भाग को ही नहीं भीतर के भाग को भी बनाया हैं!
\v 41 थाली की साफ-सफाई के बारे में चिन्ता करने की बजाय, दयालु बनो और भोजन उन लोगों को दो जिन्हें आवश्कता है, तब तुम अन्दर और बाहर दोनों ओर से साफ हो जाओगे।
\p
\s5
\v 42 परन्तु तुम फरीसियों के लिए यह कितना भयानक होगा! तुम ध्यान से अपनी सभी चीजों का दसवाँ अंश परमेश्वर को देते हो, जिसमें तुम्हारे बगीचों के सागपात भी हैं। लेकिन तुम परमेश्वर से प्रेम नहीं करते और न दूसरों के प्रति न्याय से व्यवहार करते हो। तुम्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तुम परमेश्वर से प्रेम करते हो और परमेश्वर को देने के साथ-साथ दूसरों के साथ भी न्यायपूर्ण व्यवहार करते हो।
\s5
\v 43 तुम फरीसियों के लिए यह कितना भयानक होगा, क्योंकि तुम आराधनालयों में सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में बैठना पसन्द करते हो, और तुम चाहते हो कि लोग तुम्हें बाजारों में विशेष सम्मान के साथ नमस्कार करें।
\v 44 यह तुम्हारे लिए कितना भयानक होगा, क्योंकि तुम उन अनगिनत छिपी कब्रों के समान हो, जिन पर लोग भूल से चलते हैं और अशुद्ध होते हैं।"
\p
\s5
\v 45 उनमें से एक यहूदी व्यवस्था के शिक्षक ने कहा, "गुरु, यह कह कर आप हमारी भी आलोचना कर रहे हैं!"
\v 46 यीशु ने कहा "यह तुम्हारे लिए कितना भयानक होगा तुम जो यहूदी व्यवस्था के शिक्षक हो, तुम लोगों को बहुत भारी बोझ से लादते हो, फिर भी तुम उन बोझों को उठाने के लिए, उनकी थोड़ी भी सहायता नहीं करते!
\s5
\v 47 यह तुम्हारे लिए कितना भयानक होगा, क्योंकि तुम भविष्यद्वक्ताओं की कब्रों पर भवनों का निर्माण करते हो, लेकिन तुम्हारे पूर्वजों ने ही उन्हें मार डाला था!
\v 48 इसलिए जब तुम इन भवनों को बनाते हो, तो तुम यह घोषणा कर रहे हो कि तुम अपने पूर्वजों से, जिन्होंने भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला था, सहमत हो।
\s5
\v 49 इसलिए परमेश्वर ने जो बहुत बुद्धिमान है कहा, मैं अपने लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए भविष्यद्वक्ताओं और प्रेरितों को भेजूँगा। परन्तु वे उन्हें बहुत दु:ख देंगे और मार डालेंगे।
\v 50 परिणामस्वरुप, इस युग में रहनेवाले बहुत से लोग संसार के आरंभ से परमेश्वर के भविष्यद्वक्ताओं की हत्या के दोषी माने जाएँगे,
\v 51 जिसमें, अपने भाई द्वारा मार डाले गए हाबिल से लेकर जकर्याह नबी तक जो मन्दिर में वेदी और पवित्र स्थान के बीच मारा गया था सब हैं। हाँ, इस युग में रहनेवाले लोगों को इन सब भविष्यद्वक्ताओं की हत्याओं का दोषी माना जाएगा!
\s5
\v 52 यह तुम्हारे लिए कितना भयानक होगा तुम व्यवस्था के शिक्षक हो, तुम्हारे कारण, लोगों को पता नहीं है कि कैसे परमेश्वर उन पर शासन करेंगे! तुम परमेश्वर को अपने ऊपर शासन करने नहीं देते और तुम उन लोगों के रास्ते में भी बाधा बनते हो जो अपने ऊपर परमेश्वर का शासन चाहते हैं।"
\p
\s5
\v 53 जब यीशु यह बातें कह चुके, तब वह वहाँ से चले गए। फिर यहूदी व्यवस्था के शिक्षक और फरीसी, उनके प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने लगे। उन्होंने कई बातों के बारे में उनसे कठोर प्रश्न किए।
\v 54 वे प्रतीक्षा कर रहे थे कि वह कुछ गलत बोलें और वे उन पर दोष लगा सकें।
\s5
\c 12
\p
\v 1 इस बीच, हजारों लोग यीशु के चारों ओर एकत्र हो गए यहाँ तक कि एक दूसरे पर गिरे पड़ते थे। परन्तु उन्होंने पहले अपने शिष्यों से कहा, "सावधान रहो कि तुम फरीसियों के जैसे मत बनो, जो जनता के सामने धर्म के काम करते हैं, परन्तु गुप्त में बुराई करते हैं। जैसे थोड़े से खमीर से आटा पूरा खमीर हो जाता है, वैसे ही उनके बुरे व्यवहार से दूसरे लोग भी कपटी बन जाते हैं।
\s5
\v 2 लोग अपने पापों को ढाँक नहीं सकते, किसी न किसी दिन परमेश्वर सब के कामों को जिन्हें वे छिपाने का प्रयास कर रहे हैं, प्रकट करेंगे।
\v 3 जो कुछ भी तुम अन्धेरे में कहते हो, किसी दिन लोग उसे दिन के उजाले में सुनेंगे। जो भी तुम अपने कमरे में धीरे से बोलते हो वह किसी दिन सब को सुनाई देगा, जैसे कि छतों से चिल्लाया गया हो।
\p
\s5
\v 4 "मेरे मित्रों, ध्यान से सुनो! मनुष्यों से मत डरो, वे तुम्हें मार सकते हैं, लेकिन उसके बाद वे कुछ भी नहीं कर सकते।
\v 5 लेकिन मैं तुम्हें उसके बारे में चेतावनी दूँगा जिस से तुम्हें वास्तव में डरना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर से डरना चाहिए, क्योंकि उनके पास केवल लोगों को मारने का ही नहीं, परन्तु उस के बाद उन्हें नरक में फेंकने का भी अधिकार हैं! हाँ, वही हैं जिनसे तुम्हें वास्तव में डरना चाहिए!
\s5
\v 6 गौरैयों के बारे में सोचो। उनका मूल्य इतना कम है कि तुम उनमें से पाँच को केवल दो छोटे सिक्कों में खरीद सकते हो, लेकिन फिर भी परमेश्वर उनमें से किसी को नहीं भूलते हैं!
\v 7 परमेश्वर यह भी जानते हैं कि तुम्हारे सिर पर कितने बाल हैं। डरो मत, क्योंकि तुम कई गौरैयों की तुलना में परमेश्वर के लिए अधिक मूल्यवान हो।
\p
\s5
\v 8 मैं तुमसे यह भी कहता हूँ, कि यदि लोग दूसरों के सामने मान लेते हैं कि वे मेरे शिष्य हैं, तो मैं, मनुष्य का पुत्र परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने कहूँगा कि वे मेरे शिष्य हैं।
\v 9 लेकिन अगर वे दूसरों के सामने कहते हैं कि वे मेरे शिष्य नहीं हैं, तो मैं परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने कहूँगा कि वे मेरे शिष्य नहीं हैं।
\v 10 मैं तुमसे यह भी कहता हूँ कि यदि लोग मेरे अर्थात् मनुष्य के पुत्र के बारे में बुरी बातें कहते हैं, तो परमेश्वर उस के लिए उन्हें क्षमा कर देंगे। लेकिन अगर लोग पवित्र आत्मा के बारे में बुरी बातें कहते हैं, तो परमेश्वर उस के लिए उन्हें कभी भी क्षमा नहीं करेंगे।
\s5
\v 11 इसलिए जब लोग तुम्हें धार्मिक नेताओं और राज्य करनेवाले अन्य लोगों के सामने प्रश्न पूछने के लिए आराधनालयों में ले जाएँगे, तो चिन्ता न करना कि तुम उनको क्या उत्तर दोगे या तुम क्या कहोगे,
\v 12 क्योंकि पवित्र आत्मा उस वक्त तुम्हें बताएँगे कि क्या क्या कहना चाहिए।"
\p
\s5
\v 13 तब भीड़ में से एक व्यक्ति ने यीशु से कहा, "गुरु, मेरे भाई से मेरे पिता की संपत्ति को मेरे साथ बाँटने के लिए कहो!"
\v 14 परन्तु यीशु ने उसको उत्तर दिया, "हे मनुष्य, मुझे लोगों के बीच संपत्ति से संबंधित विवादों का न्याय करने के लिए न्यायाधीश नहीं बनाया है!"
\v 15 फिर उन्होंने भीड़ से कहा, "सावधान रहो कि किसी भी तरह के लालच में न पड़ो! मनुष्य के जीवन का मूल्य उसकी संपत्ति के द्वारा निर्धारित नहीं होता है।"
\p
\s5
\v 16 फिर उन्होंने उन्हें यह दृष्टान्त सुनाया: "एक अमीर व्यक्ति के खेत में अधिक मात्रा में फसल का उत्पादन हुआ।
\v 17 इसलिए उसने अपने आप में सोचा, "मैं नहीं जानता कि मैं क्या करूं, क्योंकि मेरे पास कोई बड़ा स्थान नहीं है जहाँ मैं अपनी सारी फसल को रख सकूँ!
\v 18 फिर उसने अपने आप में सोचा, "मुझे पता है कि मुझे क्या करना चाहिए! मैं अपने खलिहान को तोड़कर, एक बड़े खलिहान का निर्माण करूँगा! तब मैं अपना सारा अनाज और अन्य वस्तुओं को उस बड़े खलिहान में रखूँगा।
\v 19 फिर मैं अपने आप से कहूँगा, "अब मेरे पास अनेक वर्षों के लिये बहुत संपत्ति रखी है, इसलिए अब मैं जीवन को चैन से बिताऊँगा। मैं खाऊँगा-पिऊँगा, और आनन्द करूँगा!"
\s5
\v 20 परन्तु परमेश्वर ने उस से कहा, 'हे मूर्ख! आज रात तू मरेगा! तब तूने जो कुछ भी जमा किया है वह किसी और का होगा!'
\p
\v 21 तब यीशु ने इस दृष्टान्त को यह कहते हुए समाप्त कर दिया: लोग अपने लिए वस्तुओं को एकत्र करते हैं, परन्तु जिन वस्तुओं को परमेश्वर मूल्यवान समझते हैं, उनको कीमती नहीं मानते हैं, तो उनके साथ ऐसा ही होगा।"
\p
\s5
\v 22 फिर यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, "तो मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूँ: जीवित रहने के लिए जिन वस्तुओं की आवश्यक्ता है, उनकी चिन्ता मत करो। इसकी चिन्ता मत करो कि तुम्हारे पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन या पहनने के लिए पर्याप्त कपड़े हैं या नहीं।
\v 23 तुम्हारा जीवन भोजन से अधिक आवश्यक है और तुम्हारा शारीर कपड़ों से अधिक आवश्यक है जिनसे तुम अपने शरीर को ढाँकते हो।
\s5
\v 24 पक्षियों के बारे में सोचो: वे बीज नहीं बोते हैं, और वे फसल नहीं काटते हैं। उनके पास भण्डार और खत्ते नहीं हैं, जिसमें वह फसल को एकत्र करें। परन्तु परमेश्वर उन्हें भी भोजन देते हैं। तुम निश्चय ही पक्षियों की तुलना में अधिक मूल्यवान हो।
\v 25 तुम में से कोई भी चिन्ता करके अपने जीवन में एक पल भी नहीं बड़ा सकता है!
\v 26 इसलिए जब तुम यह छोटा सा काम भी नहीं कर सकते, तो निश्चय ही तुम्हे किसी और वस्तु की चिन्ता नहीं करनी चाहिए।
\s5
\v 27 फूलों के बढ़ने के तरीके के बारे में सोचो: वे पैसे कमाने के लिए काम नहीं करते हैं और वे अपने कपड़े नहीं बनाते हैं। लेकिन मैं तुम्हें बताता हूँ कि राजा सुलैमान, जो पूर्व काल में था, बहुत सुन्दर कपड़े पहनता था, फिर भी वह उनमें से किसी एक के समान अच्छे वस्त्र पहने हुए न था।
\v 28 परमेश्वर पौधों को सुन्दर बनाते हैं, हालांकि वे केवल थोड़े समय के लिए उगते हैं, फिर उन्हें काट दिया जाता है और आग में डाल दिया जाता है। परन्तु तुम परमेश्वर के लिए बहुत ही अनमोल हो, और वह पौधों से अधिक तुम्हारी चिन्ता करते हैं और तुम्हारी देखभाल करेंगे। तुम उन पर इतना कम भरोसा क्यों करते हो?
\s5
\v 29 क्या खाओगे और क्या पिओगे इसकी चिन्ता मत करो, और उन वस्तुओं के विषय में चिन्तित न रहो।
\v 30 जो लोग परमेश्वर को नहीं जानते, वे इन वस्तुओं के बारे में चिन्ता करते हैं। लेकिन तुम्हारे पिता जो स्वर्ग में हैं जानते हैं कि तुम्हारी आवश्यक्ताएँ क्या हैं।
\s5
\v 31 इसकी अपेक्षा तुम्हारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण बात यह हो कि तुम परमेश्वर के शासन को स्वीकार करो। तब वह तुम्हें सब कुछ दे देंगे।
\p
\v 32 अत: हे छोटे झुंड तुम्हें डरना नहीं चाहिए। तुम्हारे पिता जो स्वर्ग में हैं, उन्होंने जो निर्णय लिया है, वह उसके अनुसार तुम्हें सब आशीषें देंगे जब वह सब पर राज्य करेंगे।
\s5
\v 33 इसलिए अब अपनी संपत्ति को बेच दो, और जिनको भोजन और कपड़ों की आवश्यक्ता है या रहने के लिए स्थान की आवश्कता है, उन्हें दे दो। अपने लिये ऐसे बटुए बनाओ, जो पुराने नहीं होते और स्वर्ग में अपने लिए खज़ाना इकट्ठा करो, जहाँ वह हमेशा सुरक्षित रहेगा। वहाँ, चोर चोरी करने के लिए नहीं आ सकता है, और कोई कीड़ा तुम्हारे कपड़ों को नष्ट नहीं कर सकता है।
\v 34 तुम सदैव अपनी संपदा के बारे में सोचोगे और अपना समय उसी में लगा ओगे।
\p
\s5
\v 35 परमेश्वर का काम करने के लिए सदैव तैयार रहो, उन लोगों के समान जिन्होंने अपने कामवाले वस्त्र पहने हैं और जिनके दीये सारी रात जलते रहते हैं।
\v 36 मेरे वापस आने के लिए तैयार रहो, उन दासों की तरह जो विवाह के भोज में रहने के बाद अपने स्वामी के लौट आने की प्रतीक्षा करते हैं। जैसे ही वह आता है और द्वार पर दस्तक देता है वे उसके लिए द्वार खोलने की प्रतीक्षा करते हैं।
\s5
\v 37 जब वह वापस आएगा, और दासों को प्रतीक्षा करते देखेगा तो वह उन्हें उसका फल देगा। मैं तुमसे कहता हूँ: वह उनकी सेवा करने के लिए तैयार हो जाएगा, उन्हें बैठने के लिए कहेगा, और वह उनको खाना परोसेगा।
\v 38 यदि वह आधी रात या सूर्योदय के बीच में आए और अपने दासों को जागता और सेवा के लिए तैयार पाए तो वह उनसे बहुत प्रसन्न होगा।
\s5
\v 39 लेकिन तुम्हें यह भी याद रखना चाहिए: अगर घर के मालिक को पता होता कि चोर कब आएगा, तो वह जागता रहता और चोर को अपने घर में घुसने नहीं देता।
\v 40 इसलिए तैयार रहो, क्योंकि मैं मनुष्य का पुत्र, उस समय आऊँगा जब तुम मुझसे आशा नहीं कर रहे होगे।"
\p
\s5
\v 41 पतरस ने पूछा, "हे प्रभु, क्या आप यह उदाहरण केवल हमारे लिए या सब के लिए भी दे रहे हैं?"
\v 42 प्रभु ने उत्तर दिया, "मैं उन सब के लिए कह रहा हूँ जो एक विश्वास योग्य और बुद्धिमान दास के समान हैं जो अपने स्वामी के घर का प्रबंधक हैं। उसका स्वामी उसे यह सुनिश्चित करने का अधिकार देता है कि अन्य दास उचित समय पर अपना भोजन करें ।
\v 43 जब उसका मालिक लौटेगा, तो यदि वह दास को ऐसा ही करते पाए, तो उसका मालिक उसे इसका फल देगा।
\v 44 मैं तुमसे कहता हूँ: स्वामी उस दास को अपनी सभी संपत्ति पर अधिकारी बनाएगा।
\s5
\v 45 लेकिन अगर वह दास स्वयं से कहता है, मेरा मालिक बहुत समय से दूर गया हुआ है, तो वह अन्य नौकरों को, स्त्री और पुरुष दोनों को मारना शुरू कर दे। और ।
\v 46 तो उसका मालिक ऐसे समय पर वापस आएगा जब दास उसके लौटने की आशा नहीं कर रहा हो। तब उसका स्वामी उसे कठोर दण्ड देगा और उसे उन लोगों के साथ रख देगा जो उसकी सेवा में विश्वासयोग्य नहीं हैं।
\s5
\v 47 वह दास जो अपने मालिक की इच्छा को जानता था, परन्तु तैयार नहीं हुआ, उसे गम्भीर दण्ड दिया जाएगा।
\v 48 परन्तु वह दास जो अपने स्वामी की इच्छा को नहीं जानता था उसने कोई अनुचित काम किया तो कम दण्ड मिलेगा। जिन्हें बहुत दिया गया है, उन लोगों से बहुत आशा की जाती है। जिन्हें बहुत सौंपा गया है, उन लोगों से कहीं अधिक की आशा की जाती है।
\p
\s5
\v 49 मैं पृथ्वी को आग लगाने आया हूँ। मैं चाहता हूँ कि आग अभी लग जाए।
\v 50 शीघ्र ही, मुझे भयंकर दुःखों का बपतिस्मा लेना होगा। मेरा दुख समाप्त होने तक, मैं व्याकुल रहूँगा।
\s5
\v 51 क्या तुम यह सोचते हो कि पृथ्वी पर मेरे आने से लोग एक साथ शान्तिपूर्वक रहेंगे? नहीं! मैं तुमसे कहता हूँ कि वे एक दूसरें से अलग हो जाएँगे।
\v 52 क्योंकि एक घर में कुछ लोग मुझ पर विश्वास करेंगे और कुछ नहीं करेंगे, अत: वे अलग हो जाएँगे। एक घर में तीन लोग जो मुझ पर विश्वास नहीं करते हैं वे उन दो का विरोध करेंगे जो मुझ पर विश्वास करते हैं।
\v 53 एक पुरुष अपने पुत्र का विरोध करेगा, या एक पुत्र अपने पिता का विरोध करेगा। एक स्त्री अपनी पुत्री का विरोध करेगी, या एक स्त्री अपनी माता का विरोध करेगी। एक स्त्री अपनी बहू का विरोध करेगी, या एक स्त्री अपनी सास का विरोध करेगी।"
\p
\s5
\v 54 उन्होंने भीड़ से कहा, "जब तुम पश्चिम में एक काले बादल को उठता देखते हो, तो तुम तुरन्त कहते हो आज बारिश होगी! और ऐसा ही होता है।
\v 55 जब हवा दक्षिण से चलती है, तो तुम कहते हो, यह बहुत गर्म दिन होगा! और तुम सही कहते हो।
\v 56 हे कपटियों! बादलों और हवा को देखकर, तुम मौसम के बारे में समझ जाते हो कि क्या होगा। तो तुम इस बात को क्यों नहीं समझ पा रहे हो कि परमेश्वर इस समय क्या कर रहे हैं?
\p
\s5
\v 57 तुम में से प्रत्येक को यह निर्णय लेना होगा कि समय रहते क्या करना तुम्हारे लिए उचित है!
\v 58 तुझे न्यायालय जाते जाते ही उस व्यक्ति के साथ मुक़दमे का समाधान खोजने का प्रयास करना चाहिए जिसने तुझ पर आरोप लगाया है। यदि वह तुझे न्यायाधीश के पास ले जाए तो न्यायाधीश तुझे दोषी ठहराएगा और तुझे दण्ड देनेवाले अधिकारी के पास भेज देगा। तब वह अधिकारी तुझे बन्दीगृह में डाल देगा।
\v 59 मैं तुझसे कहता हूँ कि अगर तू बन्दीगृह में डाल दिया गया, तो तब तक बाहर नहीं निकल पाएगा जब तक कि तू न्यायाधीश द्वारा ठहराया गया भुगतान पाई-पाई तक न चुका दे।"
\s5
\c 13
\p
\v 1 उस समय, कुछ लोगों ने यीशु को कुछ गलीलियों के बारे में बताया जिन्हें सैनिकों ने हाल ही में यरूशलेम में मारा था। पिलातुस ने, जो रोमी राज्यपाल था, सैनिकों को उन्हें मारने का आदेश दिया था जब वे मन्दिर में बलिदान चढ़ा रहे थे।
\v 2 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "तुम्हारे विचार में क्या उनके साथ ऐसा इसलिए हुआ कि वे अन्य गलीलियों की तुलना में अधिक पापी थे?
\v 3 मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ, कि इसका यह कारण नहीं था! परन्तु तुम्हें यह याद रखना होगा कि यदि तुम अपने पापी व्यवहार से नहीं बदले तो परमेश्वर इसी तरह तुम्हें भी दण्ड देंगे।
\s5
\v 4 और उन अठारह लोगों के बारे में क्या हुआ, जो यरूशलेम के बाहर शीलोह की मीनार के गिरने से मर गए? तुम्हारे विचार में क्या इसका कारण यह कि वे यरूशलेम के लोगों की तुलना में अधिक पापी थे?
\v 5 मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ, कि इसका कारण यह नहीं था! परन्तु तुमको यह समझ लेना चाहिए कि यदि तुम अपने पापी व्यवहार से नहीं बदले तो परमेश्वर तुम्हें भी ऐसा ही दण्ड देंगे!"
\p
\s5
\v 6 तब यीशु ने एक कहानी सुनाई "किसी व्यक्ति ने अपने बगीचे में अंजीर का पेड़ लगाया। प्रति वर्ष वह अंजीर लेने के लिए आता था, परन्तु उस पेड़ पर कोई फल नहीं लगते थे।
\v 7 फिर उसने माली से कहा, 'इस पेड़ को देखो! मैं पिछले तीन साल प्रति वर्ष इसमें फल खोज रहा हूँ, लेकिन इसमें एक भी अंजीर नहीं हैं। इसको काट दो! यह मिट्टी से व्यर्थ में भोजन ले रहा है!'
\s5
\v 8 लेकिन माली ने उत्तर दिया, महोदय, इसे एक और साल के लिए छोड़ दो। मैं इसके चारों ओर खोदूँगा और इसे खाद दूँगा।
\v 9 अगर अगले साल इस पर अंजीर आते हैं, तो हम इसे बढ़ने देंगे परन्तु यदि इसके बाद भी इसमें फल उत्पन्न नहीं हुए तो इसे काट देना।"
\p
\s5
\v 10 एक दिन यहूदियों के विश्राम दिन पर, यीशु एक आराधनालय में लोगों को सिखा रहे थे।
\v 11 वहाँ एक स्त्री थी जिसमें एक दुष्ट-आत्मा थी उसने उसे अठारह वर्ष से अपंग किया हुआ था। वह कुबड़ी थी; वह सीधी खड़ी नहीं हो सकती थी।
\s5
\v 12 जब यीशु ने उसे देखा, तो उसे अपने पास बुलाया। उन्होंने उससे कहा, "स्त्री, मैंने तुम्हें इस बीमारी से स्वस्थ किया है!"
\v 13 उन्होंने अपना हाथ उसके ऊपर रखा, तुरन्त वह सीधी खड़ी होकर परमेश्वर की स्तुति करने लगी!
\v 14 लेकिन आराधनालय का सरदार क्रोधित हुआ क्योंकि यीशु ने उसे यहूदियों के विश्राम दिवस पर ठीक किया था। इसलिए उसने लोगों से कहा, "हर सप्ताह छः दिन होते हैं जिसमें हमारी व्यवस्था लोगों को काम करने की अनुमति देती है। अगर तुम्हें चंगाई की आवश्यकता है, तो उन दिनों में आराधनालय में आओ और स्वस्थ हो जाओ। हमारे विश्राम के दिन पर मत आओ!"
\s5
\v 15 तब प्रभु ने उसे उत्तर दिया, "तू और तेरे साथी धर्म गुरु सब ढोंगी हैं, तुम सब भी तो विश्राम के दिन काम करते हो! क्या तुम अपने बैल या गधे को खाने और पीने के लिए नहीं खोलते?
\v 16 यह स्त्री एक यहूदी है, अब्राहम की वंशज है! लेकिन शैतान ने उसे अठारह वर्ष तक अपंग रखा था, जैसे कि उसने इसे बाँध दिया था! तुम निश्चय ही मुझसे सहमत होंगे कि उसे शैतान के बन्धन से मुक्त करना एक उचित काम है, चाहे मैं विश्राम के दिन ऐसा करूँ!
\s5
\v 17 जब उसने ऐसा कहा तो उसके विरोधी लज्जित हो गए। परन्तु अन्य सब लोग उन अद्भुत कामों से प्रसन्न थे जो वह कर रहे थे।
\p
\s5
\v 18 फिर उन्होंने कहा, "मैं कैसे समझाऊँ कि जब परमेश्वर स्वयं को राजा के रूप में प्रकट होंगे तब कैसा होगा? मैं तुम्हें बताता हूँ कि यह कैसा होगा।
\v 19 यह एक छोटे सरसों के बीज की तरह है जिसे एक व्यक्ति ने अपने खेत में बोया। व उगकर एक बड़ा पेड़ हो गया। व इतना बड़ा था कि पक्षियों ने उसकी शाखाओं में घोंसले बनाए।"
\p
\s5
\v 20 फिर उन्होंने कहा, मैं एक और उदाहरण द्वारा तुम्हे समझाता हूँ कि जब परमेश्वर राजा के रूप में प्रकट होंगे तब कैसा होगा।
\v 21 एक महिला ने पच्चीस किलो आटे में थोडा सा ख़मीर मिलाया। उस थोड़े से ख़मीर ने पूरे आटे को ख़मीर कर दिया।"
\p
\s5
\v 22 यीशु यरूशलेम की ओर जा रहे थे। वह मार्ग में सब नगरों और गाँवों में रुक कर लोगों को उपदेश सुनाते हुए आगे बढ़ रहे थे।
\v 23 किसी ने उनसे पूछा, "हे प्रभु, क्या परमेश्वर केवल कुछ लोगों को ही बचाएँगे?" यीशु ने उत्तर दिया,
\v 24 "सकेत द्वार से प्रवेश करने के लिए तुम्हें कठोर परिश्रम करने की आवश्यक्ता है। मैं तुमसे कहता हूँ कि बहुत से लोग किसी न किसी प्रकार प्रवेश करने का प्रयास करेंगे, परन्तु वे भीतर नहीं पहुँच पाएँगे।
\s5
\v 25 घर का स्वामी उठकर द्वार पर ताला लगा देगा और, तुम बाहर खड़े रहोगे तुम द्वार पर दस्तक दोगे। और तुम घर के स्वामी से विनती करके कहोगे, 'हे प्रभु, हमारे लिए द्वार खोलो!' परन्तु वह उत्तर देंगे, नहीं, मैं नहीं खोलूँगा, क्योंकि मैं तुम्हें नहीं जानता, और नहीं यह जानता हूँ कि तुम कहाँ से आए हो!
\v 26 फिर तुम कहोगे, आप भूल गए हैं कि हमने आपके साथ भोजन खाया है, और आपने हमारे कस्बों की गलियों में सिखाया है!'
\v 27 लेकिन वह कहेंगे, 'मैं तुम्हें फिर कहता हूँ, मैं तुम्हें नहीं जानता, और यह भी नहीं जानता कि तुम कहाँ से आए हो। तुम दुष्ट लोग हो! यहाँ से चले जाओ!'
\s5
\v 28 फिर यीशु ने कहा, तुम दूर से अब्राहम , इसहाक और याकूब को देखोगे, हर एक भविष्यद्वक्ता जो बहुत पहले जीवित रहते थे, वे भी वहाँ होंगे, जहाँ परमेश्वर राजा होकर शासन करते हैं, परन्तु तुम बाहर हो जाओगे, जहाँ रोना और दाँत पीसना होगा!
\v 29 इसके अतिरिक्त कई गैर-यहूदी लोग वहाँ होंगे। वहाँ ऐसे लोग होंगे जो भूमि के उत्तर, पूर्व, दक्षिण और पश्चिम से आएँगे। वे उत्सव मना रहे होंगे क्योंकि परमेश्वर सब पर शासन करते हैं।
\v 30 विचार करो कुछ लोग जो यहाँ कम से कम महत्वपूर्ण लगते हैं, वे सबसे महत्वपूर्ण होंगे, और जो यहाँ महत्वपूर्ण हैं, उनका महत्त्व वहाँ कम से कम होगा।"
\p
\s5
\v 31 उसी दिन कुछ फरीसियों ने यीशु के पास आकर कहा, "इस क्षेत्र को छोड़ दो, क्योंकि शासक हेरोदेस अन्तिपास तुम्हें मारना चाहता है!"
\v 32 यीशु ने उनसे कहा, "हेरोदेस को यह सन्देश सुनाओ: सुन, आज मैं दुष्ट-आत्माओं को निकालता हूँ और आज चमत्कार करता हूँ, और मैं थोड़े समय के लिए ऐसा ही करता रहूँगा, उसके बाद, मेरा काम पूरा हो जाएगा।
\v 33 लेकिन आने वाले दिनों में मुझे यरूशलेम पहुँचना आवश्यक है, क्योंकि यरूशलेम के अतिरिक्त अन्य किसी स्थान में भविष्यद्वक्ता का मारा जाना उचित नहीं है।
\p
\s5
\v 34 हे यरूशलेम के लोगों! तुमने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो बहुत समय पहले थे, मार डाला और तुमने उन लोगों को पत्थर मार-मार कर मार डाला, जिन्हें परमेश्वर ने तुम्हारे पास भेजा था। कई बार मैं तुम्हें एकत्र करना चाहता था, जैसे मुर्गी अपने पंखों के नीचे अपने छोटे बच्चों को एकत्र करती है। कि रक्षा करूँ परन्तु तुम नहीं चाहते थे कि मैं ऐसा करूँ।
\v 35 अब देखो! यरूशलेम के लोगों, परमेश्वर अब तुम्हारी रक्षा नहीं करेंगे। मैं तुमसे यह भी कह देता हूँ मैं केवल एक बार तुम्हारे शहर में प्रवेश करूँगा। उसके बाद, जब तक मैं वापस नहीं आऊँगा, तब तक तुम मुझे नहीं देखोगे, और तुम मेरे बारे में कहोगे, 'परमेश्वर उस व्यक्ति को आशीष देंगे जो परमेश्वर के अधिकार के साथ आता है!"
\s5
\c 14
\p
\v 1 एक दिन, जब विश्राम का दिन था, यीशु फरीसियों के एक सरदार के घर में खाना खाने गए, और वह विश्राम का दिन था फरीसी उन्हें ध्यान से देख रहे थे।
\v 2 यीशु के ठीक सामने एक ऐसा व्यक्ति था जिसके हाथ और पैर रोग के कारण बहुत सूज गए थे।
\v 3 यीशु ने वहाँ उपस्थित यहूदी व्यवस्था के विशेषज्ञों और फरीसियों से पूछा "क्या व्यवस्था में विश्राम के दिन लोगों को स्वस्थ करने की अनुमति है या नहीं?"
\s5
\v 4 उन्होंने उत्तर नहीं दिया। इसलिए यीशु ने अपना हाथ उस व्यक्ति पर रखा और उसे स्वस्थ किया। फिर उन्होंने उस व्यक्ति से कहा कि वह जा सकता है।
\v 5 और उन्होंने दूसरों से कहा, "यदि तुम्हारा बच्चा या बैल विश्राम के दिन कुएँ में गिरता है, तो क्या तुम उसे तुरन्त बाहर नहीं खींचोगे?"
\v 6 वे उसे उत्तर नहीं दे पाए।
\p
\s5
\v 7 यीशु ने देखा कि जिन लोगों को भोजन के लिए आमंत्रित किया गया था, वे उन जगहों पर बैठने का चुनाव कर रहे थे जहाँ महत्वपूर्ण लोग आम तौर पर बैठते थे। अत: यीशु ने उनको यह परामर्श दिया:
\v 8 "जब तुम में से किसी को विवाह के भोज के लिए आमंत्रित किया जाता है, तो उस जगह पर न बैठो, जहाँ महत्वपूर्ण लोग बैठते हैं। हो सकता है कि तुम से भी अधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति दावत में आमंत्रित किया गया है।
\v 9 जब वह व्यक्ति आता है, तो जिसने तुम दोनों को बुलाया है, वह तुम से कहेगा, 'इस व्यक्ति को अपना स्थान दे दो!' तब तुम्हें सबसे कम महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण करना होगा, जिसके कारण तुम लज्जित होगे।
\s5
\v 10 अत: जब तुम्हें भोज में आमंत्रित किया जाता है, तो जाकर सबसे कम महत्वपूर्ण स्थान पर बैठना, जब वह व्यक्ति जिसने सब को आमंत्रित किया है, वह कहेगा, 'मित्र, आकर अच्छे स्थान में बैठो!' तब सब लोग जो तुम्हारे साथ खा रहे हैं, वे देखेंगे कि वह तुम्हारा सम्मान कर रहा है।
\v 11 क्योंकि परमेश्वर उनको विनम्र करेंगे, जो अपने को बड़ा समझते हैं, और वह उनको ऊँचा उठाएँगे जो विनम्र हैं।"
\p
\s5
\v 12 यीशु ने उस फरीसी को जिसने उन्हें खाने के लिए बुलाया था कहा, "जब तू दोपहर या शाम के भोजन के लिए लोगों को आमंत्रित करे केवल अपने मित्रों, सम्बन्धियों या अमीर पड़ोसियों ही को आमंत्रित मत कर, क्योंकि वे भी तुम्हें भोजन के लिए आमंत्रित करेंगे।
\s5
\v 13 इसकी अपेक्षा जब तू भोज तैयार करे तो गरीबों, को अपंगों को, लंगड़ों को या अन्धों को आमंत्रित कर।
\v 14 वे इस योग्य नहीं कि बदले में तुझे आमंत्रित करके आभार चुकाएँ। परन्तु परमेश्वर तुझे आशीर्वाद देंगे! धर्मियों के जी उठने पर वह तुझे प्रतिफल देंगे।"
\p
\s5
\v 15 उन लोगों में से एक जो उनके साथ भोजन कर रहा था, उसने यह बात सुनी। उसने यीशु से कहा, "परमेश्वर ने उन सब को आशीष दी है, जो परमेश्वर के राज में मनाए जानेवाले उत्सव में सहभागी होंगे!"
\v 16 यीशु ने उस से कहा, "एक बार एक व्यक्ति ने एक बड़ा भोज तैयार करने का विचार किया। उसने कई लोगों को आने के लिए आमंत्रित किया।
\v 17 जब भोज का दिन था, तो उसने अपने दास को उन आमंत्रित लोगों के पास भेज कर कहलवाया, 'आओ, क्योंकि सब कुछ तैयार है!'
\s5
\v 18 परन्तु सब आमंत्रित लोगों ने उसके दास को अपना अपना कारण बता कर निमंत्रण को टाल दिया। पहला व्यक्ति जिसके पास दास गया, उसने कहा, 'मैंने अभी एक खेत खरीदा है, और मुझे वहाँ जाकर देखना चाहिए। कृपया अपने स्वामी से मेरी अनुपस्थिति के लिए क्षमा मांग लेना!'
\v 19 दुसरे ने कहा, 'मैंने अभी अभी पाँच जोड़ी बैल खरीदे हैं, और मुझे उन्हें जाँचना होगा। कृपया अपने स्वामी से मेरी अनुपस्थिति के लिए क्षमा मांग लेना!'
\v 20 एक अन्य व्यक्ति ने कहा, 'मैंने अभी अभी विवाह किया है, इसलिए मैं नहीं आ सकता।'
\s5
\v 21 तब दास अपने स्वामी के पास लौट आया और उन लोगों ने जो कुछ कहा था, उसे बताया। घर का स्वामी क्रोधित हुआ और अपने दास से कहा, 'अति शीघ्र शहर की सड़कों और गलियों में जाओ और गरीब, अपंग और अन्धे और लंगड़े लोगों को मिलो, और उन्हें मेरे घर में ले आओ!'
\v 22 तब दास ने जाकर ऐसा ही किया, और उसने वापस आकर कहा, 'हे स्वामी तू ने जो कहा है मैंने वही किया है, परन्तु अभी भी और लोगों के लिए स्थान है।'
\s5
\v 23 इसलिए उसके स्वामी ने उससे कहा, 'तो फिर शहर से बाहर निकल जाओ। राजमार्गों पर लोगों को खोजो। सकेत सड़कों पर भी खोजो, जहाँ बाड़े है। उन स्थानों में लोगों से आग्रह करो कि वे मेरे घर आएँ। मैं अपने घर को लोगों से भरना चाहता हूँ!
\v 24 और मैं तुमसे कहता हूँ, जो पहले आमंत्रित थे वे मेरे भोज का आनन्द नहीं ले पाएँगे क्योंकि उन्होंने आने से इन्कार कर दिया है।'"
\p
\s5
\v 25 लोगों की एक बड़ी भीड़ यीशु के साथ यात्रा कर रही थी। उन्होंने लोगों की ओर मुड़कर कहा,
\v 26 "यदि कोई मेरे पास आता है, यदि कोई अपने पिता, माता, पत्नी और बच्चों और भाइयों और बहनों को मुझसे ज्यादा प्रेम करता है, तो वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता। आवश्यक है कि वे मुझे अपने जीवन से भी अधिक प्रेम करें।
\v 27 जो कोई अपना क्रूस नहीं उठाता और जो कोई मेरी आज्ञा नहीं मानता वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।
\s5
\v 28 यदि तुम में से कोई एक मीनार का निर्माण करने की इच्छा रखता है, तो क्या वह पहले बैठकर उसकी लागत का निर्धारित आंकलन नहीं करेगा कि कितनी होगी? और तब वह देखेगा कि उसके पास उसे पूरा करने के लिए पर्याप्त पैसा है या नहीं।
\v 29 अन्यथा, तुमने नींव डाली और मीनार को पूरा करने में असमर्थ हो, तो देखनेवाले उसका ठट्ठा करेंगे।
\v 30 वे कहेंगे, 'इस व्यक्ति ने मीनार का निर्माण शुरू तो कर दिया, परन्तु वह इसे पूरा नहीं कर पा रहा है!'
\s5
\v 31 या, अगर किसी राजा ने दूसरे राजा के विरुद्ध युद्ध करने के लिए अपनी सेना भेजने का निर्णय लिया तो वह निश्चय ही परामर्श देनेवालों के साथ बैठेगा। औरवे यह देखेंगे कि उनकी सेना, जिसमें केवल दस हजार सैनिक हैं, दूसरे राजा की सेना को पराजित कर सकते हैं या नहीं, जिसकी सेना में बीस हजार सैनिक हैं।
\v 32 यदि वह देखता है कि उसकी सेना दूसरी सेना को नहीं पराजित कर सकती है, तो वह उस राजा के पास एक दूत भेजेगा, जबकि दूसरी सेना भी दूर ही है। वह दूत के हाथ राजा के लिए सन्देश भेजेगा, "तुम्हारे साथ शान्ति बनाए रखने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?"
\v 33 इसी तरह, अगर तुममें से किसी ने पहले यह निर्णय नहीं किया कि तुम सब कुछ छोड़ने को तैयार हो, तो तुम मेरे शिष्य नहीं बन सकते हो।
\p
\s5
\v 34 यीशु ने यह भी कहा, "तुम नमक की तरह हो, जो बहुत उपयोगी है, लेकिन यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो क्या वह फिर से नमकीन बन सकता है?
\v 35 यदि नमक अब फिर से नमकीन नहीं हो सकता है, तो यह मिट्टी या खाद के लिए भी अच्छा नहीं है। लोग इसे फेंक देते हैं। तुम में से हर एक को ध्यान से सोचना चाहिए कि मैंने अभी तुम से क्या कहा है!"
\s5
\c 15
\p
\v 1 अब, कई चुंगी लेनेवाले और अन्य लोग जिन्हें महापापी माना जाता था, यीशु के पास उपदेश सुनने के लिए आते थे।
\v 2 जब फरीसी और यहूदी धर्म के शिक्षकों ने ये देखा, तो वे कुड़कुड़ाकर कहने लगे, "यह मनुष्य पापियों की संगति करता है और उनके साथ खाता भी है।" उनके विचार में यीशु ऐसा करके स्वयं को अशुद्ध कर रहे हैं।
\s5
\v 3 इसलिए यीशु ने उन्हें यह दृष्टान्त बताया:
\v 4 "मान लो कि तुम में से किसी की सौ भेड़े हों और उनमें से एक भेड़ खो जाती है तो निश्चय ही वह निन्यानवे भेड़ों को जंगल में छोड़ कर खोई हुई भेड़ की खोज में जाएगा और मिलने तक उसकी खोज करेगा।
\v 5 और जब वह उसे खोज लेता है तो उसे अपने कंधे पर रख कर आनन्द के साथ अपने घर जाता है।
\s5
\v 6 घर पहुँच कर वह अपने मित्रों और पड़ोसियों से कहेगा, 'मेरे साथ आनन्द करो, क्योंकि मेरी खोई हुई भेड़ मिल गई है!'
\v 7 मैं तुमसे कहता हूँ कि, इसी प्रकार जब एक पापी अपने पापों से मन फिराता है तब स्वर्ग में और भी अधिक आनन्द मनाया जाता है, उन अनेक लोगों की तुलना में जो पहले से ही परमेश्वर के साथ सही थे और उन्हें पश्चाताप करने की आवश्यक्ता नहीं है।
\p
\s5
\v 8 या, मान लीजिए कि एक स्त्री के पास बहुत ही मूल्यवान दस चाँदी के सिक्के हैं और फिर वह उनमें से एक को खो देती है। निश्चय ही वह एक दीया जलाएगी और फर्श पर झाड़ती बुहारती रहेगी जब तक वह सिक्का उसे मिल नहीं जाता।
\v 9 जब वह उसे पाती है, तो वह अपने मित्रों और पड़ोसियों से मिलकर कहती है, 'मेरे साथ आनन्द करो, क्योंकि मुझे वह सिक्का मिल गया है जो खो गया था!'
\v 10 मैं तुमसे कहता हूँ, इसी प्रकार परमेश्वर के स्वर्गदूतों आनन्द मनाते हैं जब एक पापी अपने पापों से मन फिराता है।"
\p
\s5
\v 11 फिर यीशु ने आगे कहा, "एक बार एक व्यक्ति था, उसके दो बेटें थे।
\v 12 एक दिन छोटे बेटे ने अपने पिता से कहा, 'हे पिता, अब मुझे अपनी संपत्ति का हिस्सा दे दीजिए, जो रीति के अनुसार तेरी मृत्यु के बाद मुझे मिलेगा।' तो पिता ने अपने दोनों बेटों के बीच अपनी संपत्ति को विभाजित कर दिया।
\s5
\v 13 कुछ दिन बाद छोटे बेटे ने अपने उत्तराधिकार की सब वस्तुओं को एकत्र किया और दूर देश की यात्रा पर चला गया। उस देश में वह बेकार, अनैतिक जीवन जीने लगा और अपना सारा पैसा मूर्खता से खर्च कर दिया।
\v 14 अपने सारे पैसे खर्च करने के बाद, उस देश में एक गम्भीर अकाल पड़ा, अब उसके पास जीने के लिए कुछ नहीं बचा।
\s5
\v 15 तो वह एक व्यक्ति के पास गया जो उस देश में रहता था और उस ने उसे काम पर रखने के लिए कहा। उस व्यक्ति ने उसे अपने खेतों में सूअरों को चराने के लिए रख लिया।
\v 16 उसे इतनी भूख लगी कि वह यह इच्छा करता था कि वह सूअरों के खाने से फली अलग करके खा ले, फिर भी किसी ने उसे खाने के लिए कुछ नहीं दिया।
\s5
\v 17 अंत में, उसने सोचा कि वह कैसा मूर्ख है और स्वयं से कहा: 'मेरे पिता के सब नौकरों के पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन है, लेकिन यहाँ मैं मर रहा हूँ क्योंकि मेरे पास खाने के लिए कुछ नहीं है!
\v 18 इसलिए मैं यह स्थान छोड़ कर अपने पिता के पास लौट जाऊँगा। मैं उससे कहूँगा, हे पिता, मैंने परमेश्वर के विरुद्ध और तेरे विरुद्ध पाप किया है।
\v 19 अब मैं तेरा बेटा कहलाने के योग्य नहीं हूँ; कृपया मुझे अपने काम करनेवाले नौकरों के रूप में ही सेवा करने के लिए नियुक्त कर दें।'
\s5
\v 20 अत: वह वहाँ से उठा और अपने पिता के घर वापस जाने के लिए चल पड़ा। परन्तु जब वह घर से दूर ही था, तो उसके पिता ने उसे देखा और उसके लिए करुणा से भर गया। वह अपने बेटे के पास दौड़ा और उसे गले लगा लिया और उसके गाल पर चूमा।
\v 21 उसके बेटे ने उससे कहा, 'हे पिता, मैंने परमेश्वर के विरुद्ध और तेरे विरुद्ध पाप किया है। इसलिए मैं अब तेरा पुत्र कहलाने के योग्य नहीं हूँ।'
\s5
\v 22 लेकिन उसके पिता ने अपने कर्मचारियों से कहा; 'तुरन्त जाओ और मेरा सबसे अच्छा वस्त्र लाओ और मेरे बेटे को पहनाओ। इसके अतिरिक्त उसकी उंगली में एक अंगूठी पहनाओ और पाँव में जूते पहनाओं,
\v 23 और विशेष अवसर के लिए रखा मोटा बछड़ा लाओ और उसे मारो, ताकि हम उसे खाएँ और उत्सव मना सकें!
\v 24 हमें उत्सव मनाने की जरूरत है क्योंकि यह मेरा पुत्र एक मरे हुए व्यक्ति के समान था, लेकिन अब यह फिर से जीवित हो गया है! यह एक खोए हुए व्यक्ति के समान था, लेकिन अब यह मिल गया है!' इसलिए उन सब ने उत्सव मनाया।
\p
\s5
\v 25 जब यह सब हो रहा था, तब पिता का बड़ा बेटा जो खेतों में काम कर रहा था। काम करने के बाद जब वह घर के निकट पहुँँचा, उसने सुना कि लोग संगीत बजा रहे हैं और नृत्य कर रहे हैं।
\v 26 उसने एक नौकर को बुलाया और पूछा कि क्या हो रहा है।
\v 27 नौकर ने उससे कहा, 'तेरा भाई घर आया है। तेरे पिता ने हमें एक मोटे बछड़े को मारने के लिए कहा है क्योंकि तेरा भाई सुरक्षित और स्वस्थ लौट आया है।
\s5
\v 28 लेकिन बड़ा भाई क्रोधित हुआ, वह घर में नहीं जाना चाहता था। तो उसका पिता बाहर आया और उससे भीतर आने के लिए अनुरोध किया।
\v 29 लेकिन उसने अपने पिता से कहा, 'सुनो! मैंने इतने वर्ष तेरे लिए दास के समान कठोर परिश्रम किया है। तूने जो कहा, मैंने सदैव वही किया, परन्तु तूने मुझे खाने के लिए एक मेम्ना भी नहीं दिया कि मैं अपने मित्रों के साथ भोज कर सकूँ।
\v 30 लेकिन अब तेरा यह पुत्र वेश्याओं पर अपने सारे पैसे नष्ट करने के बाद घर वापस आ गया है, तो तूने उत्सव मनाने के लिए अपने सेवकों से मोटा बछड़ा कटवाया है।
\s5
\v 31 परन्तु उसके पिता ने उस से कहा, हे मेरे बेटे, तू मेरे साथ हमेशा रहता है और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा है।
\v 32 परन्तु हमारे लिए आनन्द करना और उत्सव मनाना उचित है, क्योंकि यह इस प्रकार है कि तेरा भाई मर चुका था और फिर जीवित हो गया है! वह खो गया था और अब मिल गया है!'"
\s5
\c 16
\p
\v 1 यीशु ने अपने शिष्यों से यह भी कहा, "एक बार एक धनी व्यक्ति के घर में एक प्रबंधक था। एक दिन उस धनवान व्यक्ति को बताया गया कि उसका सहायक उसकी संपत्ति का उचित प्रबन्ध नहीं कर रहा है कि वह धनवान व्यक्ति धन और माल की हानि उठा रहा है।
\v 2 इसलिये उसने उस सहायक को अपने पास बुलाया और कहा, 'तुम जो कर रहे हो वह गलत है! मुझे पूरा लेखा लिखकर दे कि तू किस प्रकार प्रबन्ध करता है, क्योंकि तू अब मेरे घर का सहायक नहीं रहेगा!
\s5
\v 3 तब प्रबंधक ने स्वयं से कहा, 'मेरा मालिक मुझे प्रबंधक पद से निकालने जा रहा है, इसलिए मुझे सोचना चाहिए कि आगे मुझे क्या करना चाहिए। मैं खुदाई करके कमा ने के योग्य नहीं हूँ, और मुझे पैसे माँगने में शर्म आती है।
\v 4 मुझे पता है कि मैं क्या करूँगा, कि प्रबन्ध के काम से हटाए जाने के बाद लोग मुझे अपने घर ले जाएँ और मेरी सहायता कर सकें!
\s5
\v 5 तो एक-एक करके उसने उन सब से पूछा कि उनके स्वामी को उन्हें कितने पैसे वापस करने हैं। उसने पहले से पूछा, तुम्हें मेरे स्वामी को कितना कर्ज देना है?
\v 6 उसने उत्तर दिया, 3,000 लीटर 'जैतून का तेल।' प्रबंधक ने उस से कहा, अपना खाता लेकर बैठ और तुरन्त इसे 1,500 लीटर में बदल दे!
\v 7 उसने दूसरे व्यक्ति से कहा, 'तेरा कितना निकलता है?' उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, 'गेहूँ की एक हजार टोकरियाँ।' प्रबंधक ने उस से कहा, 'अपना खाता ले और इसे आठ सौ टोकरियों में बदल दो!'
\s5
\v 8 जब मालिक ने अपने प्रबंधक के काम के बारे में सुना, तो उसने इतना चतुर होने के लिए उस बेईमान प्रबंधक की प्रशंसा की। सच्चाई यह है कि जो लोग इस संसार से जुड़े हैं वे अपने आस-पास के लोगों से व्यवहार करने में परमेश्वर के लोगों से अधिक बुद्धिमान हैं।
\v 9 मैं तुमसे कहता हूँ, इस दुनिया में अपने धन के द्वारा मित्र बनाओ। फिर जब पैसा चला जाएगा, तो तुम्हारे पास मित्र होंगे जो तुम्हारा अपने घरों में स्वागत करेंगे।
\s5
\v 10 जो लोग थोड़े से पैसे का खरा प्रबन्ध करते हैं, उन पर बहुत अधिक के लिए भी भरोसा किया जा सकता है। जो लोग छोटे काम में खरे नहीं वे बड़े काम में भी खरे नहीं होंगे।
\v 11 इसलिए यदि तुमने परमेश्वर के दिए हुए धन का इस दुनिया में खराई से उपयोग नहीं किया, तो वह निश्चय ही तुम्हें स्वर्ग का सच्चा धन नहीं देंगे।
\v 12 यदि तुमने अन्य लोगों की संपत्ति की देखभाल निष्कपट नहीं की तो किसी से संपत्ति प्राप्त करने की आशा नहीं करना चाहिए।
\s5
\v 13 कोई सेवक एक ही समय में दो अलग-अलग स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता है। यदि वह ऐसा करने का प्रयास करता है, तो वह उनमें से एक से घृणा करेगा है और दूसरे से प्रेम करेगा या वह उनमें से एक के प्रति भक्ति दिखाएगा और दूसरे को तुच्छा समझेगा। यदि तुम अपने जीवन को धन और माल प्राप्त करने के लिए समर्पित करोगे, तो तुम परमेश्वर की सेवा में अपने जीवन को समर्पित नहीं कर सकते।"
\p
\s5
\v 14 जब वहाँ खड़े फरीसियों ने यीशु को यह कहते सुना तो उन्होंने उनका ठट्ठा किया क्योंकि उन्हें धन प्राप्त करना अच्छा लगता था।
\v 15 परन्तु यीशु ने उनसे कहा, "तुम लोगों को यह दिखाने का प्रयास करते हो कि तुम धर्मी हो, परन्तु परमेश्वर तुम्हारे मन को जानते हैं । ध्यान रखो कि जिन वस्तुओं को तुम बहुत महत्त्वपूर्ण मानते और सराहते हो, परमेश्वर उनसे घृणा करते हैं।
\p
\s5
\v 16 जो नियम परमेश्वर ने मूसा को दिए थे और जो भविष्यद्वक्ताओं ने लिखा था, उन्हें जब तक यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला आया था, तब तक प्रचार किया गया था। तब से मैं प्रचार कर रहा हूँ कि परमेश्वर शीघ्र ही राजा के रूप में प्रकट होंगे। बहुत से लोग इस सन्देश को स्वीकार कर रहे हैं और बहुत उत्सुकता से अपने जीवन पर शासन करने के लिए परमेश्वर से कह रहे हैं।
\v 17 परमेश्वर की पूरी व्यवस्था, यहाँ तक कि वे नियम भी जिसे तुच्छ समझा जाता है, स्वर्ग और पृथ्वी से अधिक स्थायी हैं।
\p
\s5
\v 18 कोई भी व्यक्ति जो अपनी पत्नी को तलाक देकर दूसरी स्त्री से विवाह करता है, वह व्यभिचार करता है, और जो कोई भी अपने पति से तलाक लेने वाली स्त्री से विवाह करता है, वह भी व्यभिचार करता है।
\p
\s5
\v 19 यीशु ने यह भी कहा, "एक बार एक धनवान व्यक्ति था जो उत्तम बैंगनी और मलमल के कपड़े पहनता था। वह प्रतिदिन उत्सव मनाता था।
\v 20 और एक गरीब व्यक्ति जिसका नाम लाजर था, उस धनवान के घर के द्वार पर छोड़ दिया जाता था। लाजर का शरीर घावों से भरा हुआ था।
\v 21 वह इतना भूखा था कि वह मेज से, जहाँ अमीर व्यक्ति की मेज़ से गिरने वाली जूठन खाना चाहता था। वहाँ कुत्ते आकर उसके घावों को चाटते थे।
\s5
\v 22 अंततः गरीब व्यक्ति की मृत्यु हो गई। तब स्वर्गदूत उसे उसके पूर्वज अब्राहम के पास ले गए। वह धनवान व्यक्ति भी मर गया, और उसका शरीर दफनाया गया।
\v 23 अधोलोक में, वह धनवान व्यक्ति बहुत पीड़ित था, उसने ऊपर देखा और अब्राहम को दूर से देखा और लाजर को अब्राहम के बहुत निकट बैठा देखा।
\s5
\v 24 उस धनवान व्यक्ति ने पुकार कर कहा 'पिता अब्राहम , मैं इस आग में बहुत पीड़ित हूँ! कृपया मुझ पर दया करें, और लाजर को यहाँ भेजो, कि वह अपनी उंगली पानी में डुबा कर मेरी जीभ पर लगा दे कि मेरी जीभ ठण्डी हो जाए।'
\s5
\v 25 परन्तु अब्राहम ने उत्तर दिया, 'पुत्र, याद कर कि जब तू पृथ्वी पर जीवित था, तो तू अच्छी अच्छी वस्तुओं का आनन्द उठाता था। परन्तु लाजर दुखी था। अब वह यहाँ आनन्दित है, और तू पीड़ित है।
\v 26 इसके अतिरिक्त, परमेश्वर ने तुम्हारे और हमारे बीच एक बड़ी खाई ठहराई है, कि जो लोग यहाँ से वहाँ जाना चाहते हैं, वे नहीं जा सकते हैं। और वहाँ से हमारे पास, इस पार नहीं आ सकते।
\s5
\v 27 तब उस धनवान व्यक्ति ने कहा, 'यदि ऐसा है, तो पिता अब्राहम, मैं तुम से आग्रह करता हूँ कि लाजर को मेरे पिता के घर भेज दें।
\v 28 मेरे पाँच भाई हैं जो वहाँ रहते हैं। उससे कहें कि वह उन्हें चेतावनी दे जिससे वे इस स्थान में ना पहुँँचें, जहाँ हमें बहुत तकलीफ हो रही है!
\s5
\v 29 परन्तु अब्राहम ने उत्तर दिया, 'नहीं, मैं ऐसा नहीं करूँगा, क्योंकि तुम्हारे भाइयों के पास मूसा और भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा बहुत पहले लिखा हुआ वचन है। उन्होंने जो लिखा है, उन्हें उसका पालन करना चाहिए!'
\v 30 परन्तु उस धनवान व्यक्ति ने कहा, 'नहीं, पिता अब्राहम , यह पर्याप्त नहीं है! यदि अगर मरे हुओं में से कोई व्यक्ति उनके पास वापस जाए और उन्हें चेतावनी दे तो वे अपने पापी व्यवहार से मन फिराएँगे।
\v 31 अब्राहम ने उससे कहा, 'नहीं! यदि वे मूसा और भविष्यद्वक्ताओं के लिखे हुए वचन नहीं सुनते हैं, तो अगर कोई मर कर जीवित हो और उन्हें चेतावनी दे तो भी वे अपने पापों से मन फिराने के लिए आश्वस्त नहीं होंगे।'"
\s5
\c 17
\p
\v 1 यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, "पाप करने के लिए लुभाने वाली बातें तो निश्चय ही होंगी परन्तु जो इसका कारण होते हैं उनके लिए कैसा भयानक परिणाम होगा।
\v 2 विश्वास में कमजोर व्यक्ति के लिए कोई पाप करने का कारण बने तो उचित यही होगा कि उसकी गर्दन में एक विशाल पत्थर बाँध दें और उसे समुद्र में फेंक दें।
\s5
\v 3 सावधान रहो कि तुम कैसे काम करते हो। यदि तुम्हारे भाइयों में से एक पाप करता है, तो उसे डाँटो। यदि वह कहता है कि वह पाप करने के लिए क्षमा चाहता है और तुमसे क्षमा माँगता है तो तुम्हें उसे क्षमा कर देना चाहिए।
\v 4 अगर एक दिन में वह तुम्हारे विरुद्ध सात बार पाप करता है, तो भी अगर वह हर बार तुम्हारे पास आकर कहता है, मैंने जो किया उसके लिए मैं क्षमा चाहता हूँ, तो तुम्हें उसे क्षमा करते रहना चाहिए।"
\p
\s5
\v 5 तब प्रेरितों ने प्रभु से कहा, "हमें ओर अधिक विश्वास दें!"
\v 6 प्रभु ने उत्तर दिया, "अगर तुम्हारा विश्वास इस छोटे से सरसों के बीज से बड़ा न भी हो, तो तुम इस शहतूत के पेड़ से कह सकते हो, अपनी जड़ों को जमीन से बाहर खींचकर खुद को समुद्र में लगा और यह तुम्हारी आज्ञा का पालन करेगा!
\p
\s5
\v 7 यीशु ने यह भी कहा, "मान लो कि तुम्हारा एक सेवक है, जो तुम्हारे खेतों में हल जोत रहा हो या तुम्हारी भेड़ों की देखभाल करता है। तो उसके मैदान से घर आने के बाद तुम नहीं कहोगे- 'तुरन्त आकर भोजन करने बैठ!'
\v 8 इसके बजाय, तुम उससे कहोगे, मेरे लिए भोजन तैयार कर! फिर सेवा करने के अपने कपड़ों को पहन और मेरी सेवा कर ताकि मैं खा सकूँ और पी सकूँ। बाद में तू खा सकता है और पी सकता है।
\s5
\v 9 तू अपने दास को दिया गया काम करने के लिए धन्यवाद नहीं कहेगा!
\v 10 इसी प्रकार जब तुम परमेश्वर से कहा वह सब काम करते हो जिन्हें करने के लिए परमेश्वर ने कहा है तो तुम्हें यह कहना चाहिए, 'हम केवल परमेश्वर के सेवक हैं और हम इस योग्य भी नहीं कि वह हमें धन्यवाद कहे। हमने केवल वही किया है जो उन्होंने हमसे करने को कहा था।'"
\p
\s5
\v 11 जब यीशु और उनके शिष्य यरूशलेम जा रहे थे, तब वे सामरिया और गलील के क्षेत्रों से निकले ।
\v 12 जैसे ही यीशु ने एक गाँव में प्रवेश किया, तो दस कोढ़ी उनके पास आए, लेकिन कुछ दूर पर खड़े रहे।
\v 13 उन्होंने कहा, "यीशु, स्वामी, कृपया हम पर दया करें!"
\s5
\v 14 जब यीशु ने उन्हें देखा, तो उन्होंने उनसे कहा, "जाकर अपने आप को याजक को दिखाओ।" तो वे चले गए, और जब वे जा ही रहे थे, तो वे ठीक हो गए।
\v 15 तब उनमें से एक, ने देखा कि वह ठीक हो गया है, तो वह लौटकर आया ओर ऊँचे स्वर में परमेश्वर की स्तुति करने लगा।
\v 16 वह यीशु के पास गया और वह यीशु के पैरों पर मुँह के बल भूमि पर लेट गया, और उसने उन्हें धन्यवाद दिया। यह व्यक्ति एक सामरी था।
\s5
\v 17 फिर यीशु ने कहा, "मैंने दस कोड़ियों को ठीक किया है! अन्य नौ वापस क्यों नहीं आए?
\v 18 केवल यह विदेशी व्यक्ति ही परमेश्वर का धन्यवाद करने के लिए वापस आया है; दूसरों में से कोई भी वापस नहीं आया!"
\v 19 फिर उन्होंने उस पुरूष से कहा, "उठो और अपने रास्ते जाओ। परमेश्वर ने तुमको ठीक किया है क्योंकि तुझे मुझ पर भरोसा है।"
\p
\s5
\v 20 एक दिन कुछ फरीसियों ने यीशु से पूछा, "परमेश्वर सब पर शासन करना कब आरंभ करेंगे? उन्होंने उत्तर दिया, यह लक्षणों को देखने की बात नहीं है कि लोग अपनी आँखों से देख सकें हैं।
\v 21 ऐसा नहीं होगा कि लोग कहें, देखो! वह यहाँ शासन कर रहा है! या वह वहाँ शासन कर रहा है! क्योंकि, लोगों की सोच के विपरीत, परमेश्वर ने तुम्हारे भीतर शासन करना आरंभ कर दिया है।"
\p
\s5
\v 22 यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, "एक समय ऐसा होगा जब तुम मुझे अर्थात् मनुष्य के पुत्र को सामर्थ से शासन करते देखना चाहोगे। लेकिन तुम ये नहीं देखोगे।
\v 23 लोग तुमसे कहेंगे, 'देखो, मसीह वहाँ है!' या कहेंगे, 'देखो, वह यहाँ है!' जब वे ऐसा कहते हैं, तो उनका अनुसरण न करना।
\v 24 क्योंकि जब बिजली चमकती है और एक तरफ से दूसरी तरफ तक आकाश को प्रकाश देती है, तो हर कोई इसे देख सकता है। इसी तरह, जब मैं, मनुष्य का पुत्र फिर से वापस आऊँगा, तो सब लोग मुझे देखेंगे।
\s5
\v 25 लेकिन ऐसा होने से पहले, मुझे कई प्रकार से पीड़ित होना पड़ेगा, और लोग मुझे अस्वीकार करेंगे।
\v 26 परन्तु जब मैं, मनुष्य का पुत्र फिर से आऊँगा, तब लोग ऐसे काम करेंगे जैसे लोग नूह के जीवनकाल में किया करते थे।
\v 27 उस समय लोग खाते पीते थे, और विवाह करते थे और उस दिन तक करते रहे जब तक नूह और उसके परिवार ने बड़ी नाव में प्रवेश नहीं किया। लेकिन फिर बाढ़ आ गई और उन सब को नष्ट कर दिया, जो नाव में नहीं थे।
\s5
\v 28 इसी प्रकार, जब लूत सदोम शहर में रहता था, वहाँ के लोग खाते और पीते रहे। वे खरीदते और बेचते थे। उन्होंने फसलों को लगाया और उन्होंने घर भी बनाए।
\v 29 लेकिन जिस दिन लूत सदोम से निकला, उस दिन आग और गन्धक आकाश से बरसी और शहर में रहने वाले सब लोगों को नष्ट कर दिया।
\s5
\v 30 इसी प्रकार, जब मैं, मनुष्य का पुत्र, पृथ्वी पर लौट आऊँगा,, तब लोग तैयार नहीं होंगे।
\v 31 उस दिन, जो अपने घरों के बाहर हैं, उनके पास अपनी सब घरों के वस्तुएँ लेने के लिए घर के भीतर जाने का समय नहीं होगा। इसी प्रकार, जो लोग खेत में काम कर रहे हैं, उन्हें सामान लेने के लिए घर नहीं लौटना चाहिए; उन्हें अति शीघ्र भाग जाना होगा।
\s5
\v 32 याद रखें कि लूत की पत्नी के साथ क्या हुआ था!
\v 33 जो कोई भी अपने जीवन को अपने तरीके से जी रहा है वह मर जाएगा। परन्तु जो कोई मेरे लिए अपना मार्ग छोड़ देता है, वह हमेशा के लिए जीवित रहेगा।
\s5
\v 34 मैं तुम से कहता हूँ: जिस रात मैं वापस आऊँगा, तब दो लोग एक ही बिस्तर पर सो रहे होंगे। जो मुझ पर विश्वास करता है वहउठा लिया जाएगा और दूसरे को पीछे छोड़ दिया जाएगा।
\v 35-36 दो महिलाएँ एक साथ अनाज पीस रही होंगी; एक उठा ली जाएगी और दूसरी को पीछे छोड़ दिया जाएगा।"
\v 37 उनके शिष्यों ने उनसे कहा, हे प्रभु, यह कहाँ होगा? उन्होंने उनको उत्तर दिया, "जहाँ भी मृत शरीर है, गिद्ध उसे खाने के लिए एकत्र होंगे।"
\s5
\c 18
\p
\v 1 यीशु ने अपने शिष्यों को एक और कहानी सुनाई कि उन्हें लगातार प्रार्थना करने की शिक्षा मिले और यदि परमेश्वर तुरन्त उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर नहीं देते तो निराश नहीं होना चाहिए।
\v 2 उन्होंने कहा, "किसी शहर में एक न्यायाधीश था जो परमेश्वर का भय नहीं मानता था और लोगों के बारे में भी परवाह नहीं करता था।
\s5
\v 3 उस शहर में एक विधवा थी जिसने उस न्यायाधीश के पास आकर कहा, 'कृपया मुझे उस व्यक्ति से न्याय दिलाओ जो अदालत में मेरा विरोध कर रहा है।'
\v 4 एक लम्बे समय के लिए न्यायाधीश ने उसकी सहायता करने से मना कर दिया। लेकिन बाद में, उसने स्वयं से कहा, 'मैं परमेश्वर का भय नहीं मानता और मुझे लोगों की परवाह भी नहीं है,
\v 5 लेकिन यह विधवा मुझे परेशान करती है! इसलिए मैं उसके मामले का न्याय करूँगा और यह सुनिश्चित करूँगा कि उसे उचित न्याय मिले, क्योंकि अगर मैं ऐसा नहीं करता, तो वह लगातार मेरे पास आकर मुझे सताती रहेगी!'"
\s5
\v 6 तब प्रभु यीशु ने कहा, "उस अधर्मी न्यायाधीश की बातों के बारे में सावधानी से सोचो।
\v 7 परमेश्वर, जो धर्मी है, अपने चुने हुए लोगों को न्याय अवश्य देंगे, जो रात और दिन उनसे प्रार्थना करते हैं! और वह हमेशा उनके साथ धीरज रखते हैं।
\v 8 मैं तुमसे कहता हूँ, कि परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों के लिए शीघ्र ही न्याय करेंगे। फिर भी, जब मैं, मनुष्य का पुत्र, पृथ्वी पर वापस आऊँगा, तब भी ऐसे लोग होंगे जो मुझ पर विश्वास नहीं करेंगे।"
\p
\s5
\v 9 तब यीशु ने उन लोगों के लिए जो सोचते थे कि वे धर्मी हैं और दूसरों को तुच्छ समझते थे, एक कहानी सुनाई।
\v 10 उन्होंने कहा, "दो लोग मन्दिर में प्रार्थना करने के लिए यरूशलेम गए। उनमें से एक फरीसी था और दूसरा रोमी सरकार के लिए लोगों से कर वसूलने वाला था।
\s5
\v 11 फरीसी खड़ा होकर अपने आप के बारे में इस तरह से प्रार्थना कर रहा था, 'हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि मैं अन्य लोगों की तरह नहीं हूँ। कुछ लोग दूसरों के पैसे चोरी करते हैं, कुछ दूसरों के साथ अन्याय का व्यवहार करते हैं, और कुछ व्यभिचार करते हैं। मैं ऐसा कुछ भी नहीं करता हूँ और मैं निश्चय ही इस पापी चुंगी लेनेवाले के समान नहीं हूँ जो लोगों को धोखा देता है!
\v 12 हर हफ्ते मैं दो दिन उपवास रखता हूँ और मैं मन्दिर में अपनी कमाई का दसवाँ अंश भी देता हूँ!'
\s5
\v 13 "लेकिन चुंगी लेनेवाला मन्दिर के आँगन में, दूसरे लोगों से दूर खड़ा हुआ था। उसने स्वर्ग की ओर भी नहीं देखा। उसने अपनी छाती पिटी और कहा, हे परमेश्वर, कृपया मुझ पर दया करें और मुझे क्षमा करें, क्योंकि मैं एक घौर पापी हूँ।"
\v 14 फिर यीशु ने कहा, "मैं तुमसे कहता हूँ, कि चुंगी लेनेवाला घर जाते समय क्षमा कर दिया गया था, परन्तु फरीसी नहीं। यह इसलिए कि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह नम्र किया जाएगा, और जो कोई अपने आप को नम्र बनाएगा उसे ऊँचा किया जाएगा।"
\p
\s5
\v 15 एक दिन लोग अपने बच्चों को भी यीशु के पास ला रहे थे ताकि वह उन पर हाथ रखें और उन्हें आशीष दें। जब शिष्यों ने यह देखा, तो उन्होंने उन्हें ऐसा करने से रोका।
\v 16 लेकिन यीशु ने बच्चों को अपने पास बुलाया। उनसे कहा, "छोटे बच्चों को मेरे पास आने दो, उनको मत रोको! बच्चों की तरह विनम्र और विश्वासयोग्य लोगों पर परमेश्वर शासन करेंगे।
\v 17 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जो कोई एक बच्चे के समान विनम्रता के साथ परमेश्वर के शासन को स्वीकार नहीं करता है, परमेश्वर उस व्यक्ति को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करेंगे।"
\p
\s5
\v 18 एक बार एक यहूदी अगुवे ने यीशु से पूछा, "अच्छे गुरु, अनन्त जीवन पाने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?"
\v 19 यीशु ने उससे कहा, "तुम मुझे अच्छा क्यों कहते हो? परमेश्वर ही एकमात्र ऐसा है जो वास्तव में अच्छा है!
\p
\v 20 तुम्हारे प्रश्न के उत्तर में, तुम निश्चय ही उन आज्ञाओं को जानते हो जो परमेश्वर ने मूसा को हमारे पालन करने के लिए दी थी: 'व्यभिचार मत कर, किसी की हत्या मत कर, चोरी मत कर, झूठी गवाही मत दे, अपने माता-पिता का सम्मान कर।'"
\v 21 उस व्यक्ति ने कहा, "जब से मैं छोटा था तब से मैंने इन सब आज्ञाओं का पालन किया है।"
\s5
\v 22 जब यीशु ने सुना, तो उन्होंने उसको उत्तर दिया, "तुझे अभी भी एक काम करने की आवश्यकता है, अपना सब कुछ बेच दे, और उन लोगों को पैसे दे जिनके पास जीने के लिए बहुत कम हैं और तू स्वर्ग में आत्मिक धन प्राप्त करेगा। तब आ और मेरा शिष्य बन जा!"
\v 23 यह सुनकर वह बहुत दुःखी हो गया क्योंकि वह बहुत धनवान था।
\s5
\v 24 जब यीशु ने देखा कि वह व्यक्ति कितना उदास था, तो वह बहुत दुखी हो गए। उन्होंने कहा, "धनी लोगों के लिए परमेश्वर को अपने ऊपर शासन करने की अनुमति देना बहुत कठिन है।"
\v 25 वास्तव में, ऊँट के लिए सुई की आँख से निकल जाना, आसान है अपेक्षा इसके कि धनवान परमेश्वर को अपने जीवन पर शासन करने दें।"
\s5
\v 26 जिन लोगों ने यीशु को यह कहते सुना, उन्होंने उत्तर दिया, "फिर ऐसा लगता है कि कोई भी नहीं बच सकता है!"
\v 27 लेकिन यीशु ने कहा, "लोगों के लिए जो असंभव है, परमेश्वर के लिए संभव है।"
\s5
\v 28 तब पतरस ने कहा, देखो, हम तेरे शिष्य बनने के लिए सब कुछ छोड़ चुके हैं।
\v 29 यीशु ने उनसे कहा, "हाँ, और मैं तुमसे कहता हूँ कि जिन्होंने मेरी इच्छा को पूरा करने के लिए अपने घर, पत्नियाँ, अपने भाई, अपने माता-पिता, या अपने बच्चों को छोड़ दिया है,
\v 30 इस जीवन में जो कुछ उन्होंने छोड़ा है, उससे कई गुणा अधिक वे प्राप्त करेंगे, और आने वाले युग में उन्हें अनन्त जीवन भी मिलेगा।"
\p
\s5
\v 31 यीशु बारह शिष्यों को अकेले में एक स्थान में ले गए और उनसे कहा, "ध्यान से सुनो, अब हम यरूशलेम जा रहे हैं, जब हम वहाँ होंगे, तो जो कुछ भविष्यद्वक्ताओं ने मेरे अर्थात् मनुष्य के पुत्र के बारे में बहुत समय पहले लिखा था, वह पूरा किया जाएगा।
\v 32 मेरे शत्रु मुझे गैर-यहूदियों के अधीन कर देंगे। वे मेरा ठट्ठा करेंगे, मेरा तिरस्कार करेंगे, और मुझ पर थूकेंगे।
\v 33 वे मुझे कोड़े मारेंगे और फिर वे मुझे मार डालेंगे। परन्तु तीन दिन बाद, मैं फिर से जीवित हो जाऊँगा।"
\s5
\v 34 परन्तु शिष्यों ने उन सब बातों को नहीं समझा जो उन्होंने उनसे कही थी। परमेश्वर ने उन्हें इसका अर्थ समझने से रोका।
\p
\s5
\v 35 जब यीशु और उनके शिष्य यरीहो शहर के पास आए, तो एक अन्धा व्यक्ति सड़क के पास बैठा था। वह पैसों के लिए भीख माँग रहा था।
\v 36 जब उसने लोगों की भीड़ के चलने की आवाज़ सुनी, तो उसने पूछा, "क्या हो रहा है?"
\v 37 उन्होंने उससे कहा, "यीशु जो नासरत के नगर से है, यहाँ से जा रहे हैं।"
\s5
\v 38 वह चिल्लाया, "हे यीशु, आप जो राजा दाऊद के वंशज हैं, मुझ पर दया करें!"
\v 39 जो लोग भीड़ के सामने चल रहे थे, उन्होंने उसे डाँटा और उसे चुप रहने के लिए कहा। परन्तु उसने और भी जोर से चिल्लाया, "आप जो राजा दाऊद के वंशज हैं, मुझ पर दया करें!"
\s5
\v 40 यीशु रुके और लोगों को उसे पास लाने की आज्ञा दी। जब अन्धा मनुष्य पास आ गया, तब यीशु ने उससे पूछा,
\v 41 "तुम क्या चाहते हो, मैं तुम्हारे लिये करूँ?" उसने उत्तर दिया, "हे प्रभु, मैं चाहता हूँ कि आप मुझे देखने योग्य कर दें!"
\s5
\v 42 यीशु ने उस से कहा, "देख, क्योंकि तू ने मुझ पर विश्वास किया है, मैंने तुझे स्वस्थ किया है!"
\v 43 तुरन्त वह देखने लगा और वह परमेश्वर की स्तुति करता हुआ यीशु के साथ चलने लगा। और जब सब लोगों ने यह देखा, तो उन्होंने भी परमेश्वर की स्तुति की।
\s5
\c 19
\p
\v 1 यीशु यरीहो में गए और वह शहर से होकर जा रहे थे।
\v 2 वहाँ एक व्यक्ति था जिसका नाम जक्कई था। वह चुंगी लेनेवालों का प्रधान था और बहुत धनवान था।
\s5
\v 3 वह यीशु को देखना चाहता था लेकिन वह उसे भीड़ के पार नहीं देख सकता था। वह बहुत छोटे कद का व्यक्ति था और यीशु के आस-पास बहुत से लोग थे।
\v 4 तो वह भाग कर आगे गया। वह एक गूलर के पेड़ पर चढ़ गया कि जब यीशु वहाँ आएँ तो उन्हें देख सके।
\s5
\v 5 जब यीशु वहाँ पहुँचे, तो उन्होंने ऊपर की ओर देख कर कहा, "जक्कई, शीघ्र नीचे आ, मुझे आज रात तेरे घर में रहना है!"
\v 6 तो वह तुरन्त नीचे आ गया। वह अपने घर में यीशु का स्वागत करने में प्रसन्न था।
\v 7 परन्तु जिन लोगों ने यीशु को देखा, वे कुड़कुड़ाकर कहने लगे, "वह एक पापी का अतिथि हो गया है!"
\s5
\v 8 फिर जब वे खा रहे थे तब जक्कई ने यीशु से कहा, "हे प्रभु, मैं चाहता हूँ कि आप जान लो कि मैं गरीब लोगों को अपनी आधी सम्पत्ति दे दूँगा। और जिन लोगों को मैंने धोखा दिया है, मैं उन्हें उस राशि का चार गुणा वापस दे दूँगा।"
\v 9 यीशु ने उस से कहा, "आज परमेश्वर ने इस घर को बचाया है, क्योंकि इस मनुष्य ने दिखाया है कि वह अब्राहम का सच्चा वंशज है।
\v 10 याद रखो: मैं, मनुष्य का पुत्र, तुम्हारे जैसे लोगों को जो भटक कर परमेश्वर से दूर हो गए हैं; ढूँढ़ने और बचाने के लिए आया हूँ।
\p
\s5
\v 11 यीशु ने जो कुछ कहा, सब लोग सुन रहे थे। क्योंकि वह यरूशलेम के निकट पहुँच रहे थे, इसलिए यीशु ने उन्हें एक और कहानी सुनाने का निर्णय लिया। वह उनके भ्रम को दूर करना चाहते थे कि यरूशलेम पहुँचते ही वह परमेश्वर के लोगों पर राजा बन जाएँगे।
\v 12 उन्होंने कहा, "एक राजकुमार अपने प्रान्त पर राजा होने के लिए बड़े राजा से अधिकार प्राप्त करने के लिए एक दूर देश में जाने की तैयारी कर रहा था। राजा होने का अधिकार मिलने के बाद, वह अपने लोगों पर शासन करने के लिए वापस आएगा।
\s5
\v 13 जाने से पहले, उसने अपने दस दासों को बुलाया। उसने उनमें से प्रत्येक को बराबर राशि दी। उसने उनसे कहा, 'जब तक मैं वापस नहीं लौटाता इस पैसे के साथ व्यापार करो!' फिर वह चला गया।
\v 14 परन्तु उसके देश के बहुत से लोग उससे घृणा करते थे। इसलिए उन्होंने उसके पीछे कुछ दूत भेजे और बड़े राजा से कहा, 'हम इस व्यक्ति को हमारे राजा के रूप में नहीं चाहते हैं!'
\v 15 परन्तु फिर भी उसे राजा बना दिया गया। वह राजा बनकर लौट आया। तब उसने उन दासों को बुलाया जिनके पास उसने पैसे दिए थे। वह जानना चाहता था कि उसने जो पैसे दिए थे, उसके साथ व्यवसाय करके उन्होंने कितना कमाया था।
\s5
\v 16 पहला व्यक्ति उसके पास आया और कहा, 'गुरु, आपके पैसों से मैंने दस गुना अधिक कमाया है!'
\v 17 उसने उस व्यक्ति से कहा, 'तुम एक अच्छे दास हो! तुमने बहुत अच्छा किया है! क्योंकि तुमने खराई से इस छोटी सी राशि का ध्यान रखा है, मैं तुम्हें शासन करने के लिए दस शहर दे दूँगा।'
\s5
\v 18 फिर दूसरा दास आया और कहा, 'हे स्वामी, जो पैसे आपने दिए थे वह अब पाँच गुना अधिक हैं!'
\v 19 उसने उस दास से कहा, 'अच्छा! मैं तुम्हें पाँच शहरों के ऊपर अधिकार दूँगा।'
\s5
\v 20 फिर एक और दास आया। उसने कहा, 'गुरु, यह तुम्हारा पैसा है। मैंने इसे एक कपड़े में लपेट कर सुरक्षित रखने के लिए छिपा दिया था।
\v 21 मुझे डर था कि अगर मैं व्यवसाय में विफल रहू तो आप मेरे साथ क्या करोगे। मैं जानता हूँ कि आप एक कठोर व्यक्ति हो जो दूसरों से वह भी लेता है जो वास्तव में आपका नहीं है। आप एक किसान के समान हो जो दूसरों के खेतों के अनाज को काटता है।'
\s5
\v 22 उसने उस दास से कहा, 'हे दुष्ट दास! मैं उन शब्दों से जो तू ने कहे तुझे दोषी ठहराऊँगा। तुझे पता था कि मैं एक कठोर व्यक्ति हूँ, क्योंकि मैं वह लेता हूँ, जो मेरा नहीं है और जो मैंने बोया नहीं उसे काटता हूँ।
\v 23 तो तुझे कम से कम मेरे पैसों को उधार देने वालों को देना चाहिए था! फिर जब मैं लौटता तो मैं उस राशि से अधिक ब्याज कमा सकता था!'
\s5
\v 24 तब राजा ने उन लोगों से कहा, जो पास खड़े थे, 'उसके पास से पैसे ले लो, और उस दास को दे दो जिसने दस गुणा अधिक बढ़ाया है!'
\v 25 उन्होंने विरोध किया, 'परन्तु स्वामी, उसके पास पहले ही से बहुत पैसे हैं!'
\s5
\v 26 परन्तु राजा ने कहा, 'मैं तुमसे कहता हूँ: जो मैं देता हूँ उसका उचित उपयोग करने वालों को और भी दूँगा। परन्तु उन लोगों से जो उसका उचित उपयोग नहीं करते हैं, मैं उनसे वह भी ले लूँगा जो उनके पास पहले से है।
\v 27 अब, मेरे उन बैरियों के बारे में, जो नहीं चाहते थे कि मैं उन पर शासन करूँ, उन्हें यहाँ लाकर मेरी आँखों के सामने मार डालो!'"
\p
\s5
\v 28 इन बातों को कहने के बाद, यीशु यरूशलेम के रास्ते पर अपने शिष्यों से आगे चलने लगे।
\s5
\v 29 जब वे जैतून पहाड़ के पास बैतफगे और बैतनिय्याह के गाँवों के पास पहुँचे,
\v 30 उन्होंने अपने दो शिष्यों से कहा, "अपने सामने के गाँव में जाओ। जैसे तुम उसमें प्रवेश करोगे, वहाँ एक गधे का बच्चा बन्धा हुआ मिलेगा, जिस पर कोई भी कभी नहीं बैठा है, उसे खोलो और मेरे पास ले आओ।
\v 31 यदि कोई तुम से पूछता है, 'तुम गधे को क्यों खोल रहे हो?' उससे कहना, 'प्रभु को इसकी आवश्यकता है।"
\s5
\v 32 इसलिए दोनों शिष्य गाँव में चले गए और उन्होंने गधे को वैसा ही पाया, जैसा यीशु ने उन्हें कहा था
\v 33 जैसे वे उसे खोलने लगे तो, उसके मालिकों ने उनसे कहा, "तुम हमारे गधे को क्यों खोल रहे हो?"
\v 34 उन्होंने कहा, "प्रभु को इसकी आवश्यकता है।"
\v 35 तब शिष्य गधे को यीशु के पास ले आए। उन्होंने गधे की पीठ पर अपने कपड़ों को डाल दिया और उस पर बैठने में यीशु की सहायता की।
\v 36 फिर जब वह जा रहे थे, तो अन्य लोगों ने अपने कपड़ों को उनके सामने सड़क पर फैलाया कि उनको सम्मान दें।
\s5
\v 37 जब वे जैतून के पहाड़ से नीचे उतर कर सड़क पर आए, तो उनके शिष्यों की भीड़ ने आनन्दित होकर जयजयकार किया और उन्होंने यीशु द्वारा किए गए सब महान चमत्कारों के लिए परमेश्वर की स्तुति की।
\v 38 वे कह रहे थे, "परमेश्वर हमारे राजा को आशीर्वाद दे, जो परमेश्वर के अधिकार के साथ आता है! स्वर्ग के परमेश्वर और हमारे बीच में शान्ति हो, और सब लोग परमेश्वर की स्तुति करें!"
\s5
\v 39 कुछ फरीसी जो भीड़ में थे, उन्होंने उनसे कहा, हे गुरु, अपने शिष्यों से कह, कि वे ये बातें न कहें!
\v 40 उन्होंने उत्तर दिया, "मैं तुमसे कहता हूँ: यदि ये लोग चुप रहेंगे, तो पत्थर मेरी स्तुति करने के लिए चिल्लाएँगे!"
\p
\s5
\v 41 जब यीशु यरूशलेम के पास आए तो नगर के लोगों के लिए विलाप किया।
\v 42 उन्होंने कहा, "मैं चाहता हूँ कि आज तुम लोग जान पाते कि परमेश्वर की शान्ति कैसे मिल सकती है। परन्तु अभी तुम इसे जानने में समर्थ नहीं हो।
\s5
\v 43 मैं चाहता हूँ कि तुम यह जान लो जल्द ही तुम्हारे शत्रु आएँगे और तुम्हारे शहर के आस-पास एक बाड़ा स्थापित करेंगे। वे शहर के चारों ओर घूमेंगे और उस पर चारों ओर से आक्रमण करेंगे।
\v 44 वे दीवारों को तोड़ देंगे और सब कुछ नष्ट कर देंगे। वे इसे, तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को नष्ट कर देंगे। जब वे सब कुछ नष्ट कर चुके होंगे, तब पत्थर पर पत्थर नहीं रहेगा। यह सब इसलिए होगा क्योंकि तुम उस समय को नहीं पहचान पाए जब परमेश्वर तुम्हें बचाने के लिए आए थे!"
\p
\s5
\v 45 यीशु यरूशलेम में प्रवेश कर गए और मन्दिर के आँगन में गए। उन्होंने उस जगह को देखा जहाँ लोग सामान बेच रहे थे,
\v 46 और वह उन्हें बाहर निकालने लगे। उन्होंने उनसे कहा, "यह शास्त्रों में लिखा गया है, 'मैं अपने घर को एक ऐसी जगह बनाना चाहता हूँ, जहाँ लोग प्रार्थना कर सके, लेकिन तुमने इसे चोरों के लिए एक ठिकाना बना दिया है!"
\p
\s5
\v 47 उस सप्ताह के हर एक दिन यीशु ने मन्दिर के आँगन में लोगों को शिक्षा दी। प्रधान याजक, धार्मिक व्यवस्था के शिक्षक, और अन्य यहूदी अगुवे उन्हें मारने का मार्ग खोजने का प्रयास कर रहे थे।
\v 48 परन्तु उन्हें ऐसा करने का कोई मार्ग नहीं मिला, क्योंकि सभी लोग उनकी सुनने के लिए उत्सुक थे।
\s5
\c 20
\p
\v 1 उस सप्ताह एक दिन यीशु लोगों को मन्दिर के आँगन में शिक्षा दे रहे थे और उन्हें परमेश्वर का सुसमाचार सुना रहे थे। तब प्रधान याजक, यहूदी व्यवस्था के शिक्षक, और अन्य प्राचीन उनके पास आए।
\v 2 उन्होंने उनसे कहा, "हमें बताएँ कि तुम्हें यह सब काम करने का क्या अधिकार है? और किस ने तुम्हें यह अधिकार दिया?"
\s5
\v 3 यीशु ने कहा, "मैं भी तुमसे एक प्रश्न पूछता हूँ।
\v 4 यूहन्ना के बपतिस्मा देने के बारे में मुझे बताओ कि क्या परमेश्वर ने उसे आज्ञा दी थी कि लोगों को बपतिस्मा दे या मनुष्य ने उसे आज्ञा दी थी?"
\s5
\v 5 उन्होंने आपस में एक चर्चा की। उन्होंने कहा, "यदि हम कहें, 'परमेश्वर ने उसे आज्ञा दी,' तो वह कहेंगे, 'तो तुमने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया?'
\v 6 परन्तु यदि हम कहें, 'यह केवल मनुष्य थे जिन्होंने उसे बपतिस्मा देने के लिए कहा था,' तो लोग हमें पत्थर मार मार कर मार डालेंगे, क्योंकि वे सब मानते हैं कि यूहन्ना एक भविष्यद्वक्ता था जिसे परमेश्वर ने भेजा था।
\s5
\v 7 इसलिए उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं मालूम कि यूहन्ना को बपतिस्मा देने के लिए किसने कहा था।
\v 8 तब यीशु ने उनसे कहा, "मैं भी तुम्हें नहीं बताऊँगा कि मुझे किसने इन कामों को करने के लिए भेजा है।"
\p
\s5
\v 9 फिर यीशु ने लोगों को एक दृष्टान्त सुनाया, "एक व्यक्ति ने दाख की बारी लगा दी, उसने दाख की बारी को कुछ पुरुषों को दे दिया कि उसकी देखभाल करे, और वह किसी दूसरे देश में चला गया और वहाँ एक लम्बे समय तक रहा।
\v 10 जब अँगूर की फसल तोड़ने का समय आया, तो उसने दाख की बारी की देखभाल करनेवालों के पास एक नौकर भेजा, कि वे अँगूर की फसल में से उसके हिस्से को दें। परन्तु उन्होंने उस नौकर को मारा और अँगूर के बिना उसे वापस भेज दिया।
\s5
\v 11 बाद में, मालिक ने एक और नौकर भेजा। लेकिन उन्होंने उसे भी मारा और लज्जित किया। उन्होंने उसे भी अँगूर के बिना वापस भेज दिया।
\v 12 फिर भी, मालिक ने एक और नौकर भेजा। इस तीसरे नौकर को उन्होंने घायल किया और दाख की बारी के बाहर फेंक दिया।
\s5
\v 13 इसलिए दाख की बारी के मालिक ने सोचा, 'अब मुझे क्या करना चाहिए? मैं अपने पुत्र को भेजूँगा, जिससे मैं बहुत प्रेम करता हूँ। वे शायद उसका सम्मान करेंगे।'
\v 14 इसलिये उसने अपने पुत्र को भेजा, परन्तु जब दाख की बारी की देखभाल करने वालों ने उसे देखा, तो उन्होनें एक दूसरे से कहा, 'यह व्यक्ति आ रहा है जो किसी दिन दाख की बारी का उत्तराधिकारी होगा! आओ हम उसे मार डालें ताकि यह दाख की बारी हमारी हो जाए!'
\s5
\v 15 अतः वे उसे बाग के बाहर खींच लाए और उसे मार डाला। मैं तुम्हें बताता हूँ कि दाख की बारी का मालिक उनके साथ क्या करेगा!
\v 16 वह आएगा और उन मनुष्यों को मार डालेगा जो दाख की बारी की देखभाल कर रहे थे। तब वह अन्य लोगों को इसकी देखभाल करने के लिए नियुक्त करेगा। "जब जो लोग यीशु को सुन रहे थे, उन्होंने यह बात सुनी, तो उन्होंने कहा, "ऐसी स्थिति कभी न हो!"
\s5
\v 17 परन्तु यीशु ने उनकी ओर सीधा देखा और कहा, "तुम यह कह सकते हो, परन्तु उन वचनों के अर्थ के बारे में सोचो, जो शास्त्रों में लिखे गए हैं,
\q1 'जिस पत्थर को भवन बनानेवालों ने ठुकराया, वही भवन में सबसे महत्वपूर्ण पत्थर बन गया है।
\p
\v 18 जो कोई उस पत्थर पर गिरता है, वह टुकड़े टुकड़े हो जाएगा, और यह जिस पर गिरता है उसे कुचल डालेगा।"
\p
\s5
\v 19 यीशु का दृष्टान्त सुनकर प्रधान याजकों और यहूदी व्यवस्था के शिक्षकों ने सोचा कि वह उन पर आरोप लगा रहे हैं। इसलिए वे उन्हें तुरन्त बन्दी बनाने का उपाय खोजने का प्रयास करने लगे, परन्तु वे उन्हें बन्दी नहीं बना पाए, क्योंकि वे डरते थे कि अगर वे ऐसा करेंगे तो लोग क्या करेंगे।
\v 20 तो उन्होंने उन्हें ध्यान से देखा। उन्होंने भेदियों को भी भेजा जो धर्मी होने का नाटक करते थे लेकिन वे वास्तव में यीशु को कुछ गलत कहने के लिए उकसाते थे, ताकि उस पर आरोप लगा सकें। वे प्रान्त के राज्यपाल के हाथों उसे पकड़वाना चाहते थे।
\s5
\v 21 इसलिए एक भेदिए ने उनसे पूछा, "गुरु, हम जानते हैं कि आप सही बोलते और सिखाते हैं.आप सच बोलते हो, भले ही महत्वपूर्ण लोग इसे पसन्द न करते हों। आप सच्चाई से सिखाते हैं कि परमेश्वर हमसे क्या कराना चाहते हैं।
\v 22 तो हमें बताएँ कि आप इस विषय में क्या सोचते हैं: क्या यह सही है कि हम रोमी सरकार को कर दें?"
\s5
\v 23 परन्तु यीशु जानते थे कि वे उन्हें चतुराई से फँसाने का प्रयास किया जा रहा है, या तो यहूदियों के साथ, जो उन कर का भुगतान करने से घृणा करते थे या रोमन सरकार के साथ। इसलिए उन्होंने उनसे कहा,
\v 24 "मुझे एक रोमी सिक्का दिखाओ। फिर मुझे बताओ कि किसकी तस्वीर उस पर है और किसका नाम लिखा है।" इसलिए उन्होंने उसे एक सिक्का दिखाया और कहा, "इसमें कैसर का चित्र और नाम है, जो रोमी सरकार का राजा है।"
\s5
\v 25 उन्होंने उनसे कहा, "जो सरकार का है, वह सरकार को दो और जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर को दो।"
\v 26 भेदिए उसके जवाब से आश्चर्यचकित हुए, इतना कि वे उसे जवाब नहीं दे सके। यीशु ने अपने सामने खड़े लोगों से कुछ नहीं कहा जिससे कि भेदिए उसकी गलती निकाल सकें।
\p
\s5
\v 27 उसके बाद, कुछ सदूकी यीशु के पास आए। वे यहूदियों के एक समूह के थे जो कहते थे कि मरे हुओं में से कोई जीवित नहीं होता है।
\v 28 वे भी यीशु से सवाल पूछना चाहते थे। उनमें से एक ने उससे कहा, हे गुरू, मूसा ने यहूदियों के लिए यह लिखा है कि यदि कोई पुरुष जिसके पास पत्नी हो, परन्तु कोई सन्तान नहीं हो, मर जाता है तो उसके भाई को विधवा से विवाह करना चाहिए कि वह उसके द्वारा सन्तान उत्पन्न करे। इस रीति से लोग उस सन्तान को उस व्यक्ति का वंशज मानेंगे जो मर गया।
\s5
\v 29 एक परिवार में सात भाई थे। सबसे बड़े व्यक्ति ने एक स्त्री से विवाह किया, लेकिन उसके कोई सन्तान नहीं थी। बाद में वह मर गया, और उसे विधवा छोड़ दिया।
\v 30 दूसरे भाई ने इस नियम का पालन किया और उस विधवा से विवाह किया, लेकिन वही बात उसके साथ हुई।
\v 31 फिर तीसरे भाई ने उससे विवाह किया, लेकिन वही बात फिर से हुई। सातों भाइयों ने एक-एक करके उस स्त्री से विवाह किया, लेकिन उनके पास कोई सन्तान नहीं थी, और एक के बाद एक वे मर गए।
\v 32 बाद में, वह स्त्री भी मर गई।
\v 33 इसलिए, अगर यह सच है कि मरे हुए लोग फिर से जीवित हो जाएँगे, तो आप के अनुसार वह स्त्री किस की पत्नी होगी? ध्यान रखें कि उसने सभी सातों भाइयों से विवाह किया था!"
\s5
\v 34 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, "इस दुनिया में, पुरुष पत्नियाँ लेते हैं, और लोग अपनी बेटियों को विवाह में पुरुषों को दे देते हैं।
\v 35 परन्तु परमेश्वर मरकर जीवित होनेवालों में से जिनको जी उठकर स्वर्ग में होने के योग्य समझते हैं, वे विवाह नहीं करेंगे।
\v 36 इसके अतिरिक्त, वे अब कभी नहीं मरेंगे, क्योंकि वे परमेश्वर के स्वर्गदूतों के समान होंगे जो हमेशा के लिए जीवित रहते हैं। वे परमेश्वर की सन्तान होंगे, जिन्हें परमेश्वर ने नए जीवन में जिलाया है।
\s5
\v 37 परन्तु झाड़ी की कथा में, मूसा ने मरे हुओं के जीवित रहने की चर्चा की है। उन्होंने लिखा था, 'अब्राहम का परमेश्वर और इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर।' मूसा ने हमें दिखाया कि परमेश्वर के लोगों के अगुवे, मरने के बाद भी परमेश्वर की उपासना करते हैं और उनका सम्मान करते हैं, क्योंकि वे अभी भी परमेश्वर के सामने रहते हैं। इससे सिद्ध होता है, कि परमेश्वर मरे हुओं को, फिर से जीवित करते हैं।
\v 38 अब वह उन लोगों के परमेश्वर हैं जो जीवित हैं। वह मरे हुओं के परमेश्वर नहीं हैं! परन्तु हम सब को जीवन दिया जाता है कि हम परमेश्वर के साथ रहें, और जब हम उनके साथ हों, हम उन्हें सम्मान दें!"
\p
\s5
\v 39 यहूदी व्यवस्था के कुछ शिक्षकों ने जवाब दिया, "गुरु, आपने अति उत्तम उत्तर दिया है!"
\v 40 उसके बाद, उसे फँसाने के लिए किसी ने भी उनसे और सवाल पूछने का साहस नहीं किया।
\p
\s5
\v 41 फिर यीशु ने उनसे कहा, "मैं तुम्हें दिखाता हूँ कि जब लोग कहते हैं कि मसीह केवल राजा दाऊद के वंशज है, तो वे गलत हैं!
\v 42 दाऊद ने स्वयं भजन की पुस्तक में लिखा था,
\q परमेश्वर ने मेरे प्रभु से कहा,
\q 'मेरे दाहिनी ओर मेरे पास बैठ, जहाँ मैं तुम्हें बहुत सम्मान दूँगा।
\q
\v 43 यहाँ बैठो जब तक मैं पूरी तरह से तुम्हारे शत्रुओं को हरा न दूँ।
\p
\v 44 राजा दाऊद ने मसीह को 'मेर्रे प्रभु' कहा! तो मसीह राजा दाऊद के वंशज नहीं हो सकते! मैंने जो कहा वह साबित करता है कि वह दाऊद से अधिक महान है।"
\p
\s5
\v 45 जब सभी अन्य लोग सुन रहे थे, यीशु ने अपने शिष्यों से कहा,
\v 46 सावधान रहो कि तुम हमारे यहूदी व्यवस्था के शिक्षकों के जैसे काम न करो। वे लम्बे वस्त्रों को पहनना पसन्द करते हैं और लोगों को लगता है कि वे बहुत महत्वपूर्ण हैं। वे चाहते है कि लोग उन्हें बाजारों में आदर के साथ नमस्कार करें। वे आराधनालयों में सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में बैठना पसन्द करते हैं। भोज में वे उन स्थानों में बैठना पसन्द करते हैं जहाँ सबसे सम्मानित लोग बैठते हैं।
\v 47 वे विधवाओं की सारी सम्पत्ति चोरी करते हैं। फिर वे सावर्जनिक रीति से लम्बे समय तक प्रार्थना करते हैं। परमेश्वर निश्चय ही उन्हें गम्भीर दण्ड देंगे।"
\s5
\c 21
\p
\v 1 यीशु जहाँ बैठे थे, वहाँ से उन्होंने देखा कि धनवान अपनी भेंटें मन्दिर की दान पेटी में डाल रहे हैं।
\v 2 उन्होंने एक गरीब विधवा को बहुत कम मूल्य के दो छोटे सिक्के डालते देखा।
\v 3 और उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, "सच यह है कि इस गरीब विधवा ने इन सब धनवान लोगों की तुलना में दान पेटी में अधिक धन डाला है।
\v 4 उन सब के पास बहुत सारा पैसा है, लेकिन उन्होंने उसका एक छोटा हिस्सा दिया। परन्तु इस विधवा ने, जो बहुत गरीब है, उसने वह सब कुछ डाल दिया है जिससे उसे कुछ खरीदने की आवश्यकता थी।
\p
\s5
\v 5 यीशु के कुछ शिष्य बात कर रहे थे कि मन्दिर को कैसे सुन्दर पत्थरों से बनाया गया है और लोगों द्वारा दी गई भेंटों से सजाया गया है। परन्तु यीशु ने कहा,
\v 6 "जो तुम देख रहे हो, वह पूरी तरह से नष्ट हो जाएगा। हाँ, समय आ रहा है जब इन पत्थरों में से कोई एक दूसरे के ऊपर नहीं रहेगा।"
\p
\s5
\v 7 फिर उन्होंने उससे पूछा, "हे गुरु, ये सब कब होगा? और इसके लिए क्या चिन्ह होगा कि ये बातें होने वाली हैं?"
\v 8 यीशु ने उत्तर दिया, "सावधान रहो कि कोई तुम्हें धोखा न दे, क्योंकि बहुत से लोग आएँगे और प्रत्येक मेरे नाम का दावा करेंगे। हर एक जन कहेगा, 'मैं मसीह हूँ!' वे यह भी कहेंगे, 'समय आ गया है, जब परमेश्वर राजा के रूप में शासन करेंगे!' तुम उनके पीछे न होना की उनके शिष्य बनो!
\v 9 इसके अतिरिक्त, जब तुम युद्धों के और लोगों के एक-दूसरे से लड़ने के बारे में सुनो, तो डरना नहीं। दुनिया के अन्त से पहले इन बातों का होना आवश्यक है।"
\p
\s5
\v 10 "लोगों के विभिन्न समूह एक दूसरे पर आक्रमण करेंगे, और विभिन्न राजा एक दूसरे से युद्ध करेंगे।
\v 11 और विभिन्न स्थानों में बड़े भूकंप आएँगे, साथ ही साथ अकाल और भयानक रोग होंगे। बहुत सी ऐसी घटनाएँ होंगी जो लोगों को बहुत डराएँगी, और लोग आकाश में विचित्र वस्तुओं को देखेंगे जिससे प्रकट होगा कि कुछ महत्वपूर्ण होने वाला है।
\s5
\v 12 लेकिन इन सब बातों से पहले, वे तुम्हें गिरफ्तार करेंगे, तुमसे बुरा व्यवहार करेंगे और मुकद्दमा चलाने के लिए तुम्हें आराधनालयों में सौंपेंगे और तुम्हें बन्दीगृह में डालेंगे। वे राजाओं और उच्च सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति में तुम पर मुकदमे चलाएँगे क्योंकि तुम मेरे अनुयाई हो।
\v 13 तब तुम्हें उनको मेरे बारे में सच्चाई बताने का समय होगा।
\s5
\v 14 अपने बचाव में तुम क्या कहोगे, समय से पहले इसकी चिन्ता न करने का निश्चय कर लो।
\v 15 क्योंकि मैं तुमको सही शब्द और ज्ञान दूँगा कि तुम जान सको कि क्या कहना है। इसका परिणाम यह होगा कि तुम पर आरोप लगाने वाले लोगों में से कोई भी यह नहीं कह पाएगा कि तुम गलत हो।
\s5
\v 16 और यहाँ तक कि तुम्हारे माता-पिता, भाई और अन्य सम्बन्धी और दोस्त तुम्हें धोखा देंगे, और वे तुम में से कुछ को मार डालेंगे।
\v 17 सामान्य तौर पर, सभी लोग तुमसे घृणा करेंगे क्योंकि तुम मुझ पर विश्वास करते हो।
\v 18 परन्तु तुम्हारे सिर का एक भी बाल नष्ट नहीं होगा।
\v 19 यदि तुम कठिन समय में परमेश्वर पर अपना भरोसा सिद्ध करते हो, तो तुम स्वयं को बचा लोगे।"
\p
\s5
\v 20 "जब तुम देखो कि सेनाओं ने यरूशलेम को चारों ओर से घेर लिया है, तो तुम जान लोगे कि वे शीघ्र ही इस शहर को नष्ट कर देंगे।
\v 21 उस समय जो यहूदिया के क्षेत्र में हैं, उन्हें पहाड़ों पर भाग जाना चाहिए। और तुम में से जो इस शहर में हैं, उन्हें भी शहर से निकल जाना चाहिए और जो पास के ग्रामीण क्षेत्रों में हों, उन्हें शहर में नहीं आना चाहिए।
\v 22 क्योंकि वह समय परमेश्वर के दण्ड का होगा जो; वह इस शहर को देंगे, तब धर्म शास्त्र के वचन सच होंगे।
\s5
\v 23 वे दिन गर्भवती स्त्रियों और दूध पिलाने वाली स्त्रियों के लिए कितना भयानक होगा, क्योंकि देश में बड़े कष्ट होंगे, और देश के लोगों को बहुत दुःख होगा क्योंकि परमेश्वर उनसे क्रोधित होंगे।
\v 24 उनमें से बहुत से मरेंगे क्योंकि सैनिक उन पर हथियारों के साथ आक्रमण करेंगे। कई लोग बन्दी बनाए जाएँगे और उन्हें संसार के विभिन्न स्थानों में भेजा जाएगा। जब तक परमेश्वर अनुमति देंगे, तब तक अन्यजाति यरूशलेम की सड़कों पर अपने सैनिकों को चलने देंगी।"
\p
\s5
\v 25 "इस समय, सूरज, चँद्रमा और तारों के साथ विचित्र घटनाएँ होंगी और धरती पर, लोगों का समूह बहुत डर जाएगा, और वे समुद्र के गर्जन के कारण और उसकी विशाल तरंगों के कारण घबरा जाएँगे।
\v 26 लोग इतने भयभीत होंगे कि वे मुर्छित हो जाएँगे, क्योंकि वे संसार की आनेवाली घटनाओं की प्रतीक्षा करेंगे। आकाश में तारों को अपना नियत स्थान छोड़ना होगा।
\s5
\v 27 तब सब लोग मुझे मनुष्य के पुत्र को बादलों में शक्ति और शानदार प्रकाश के साथ आते हुए देखेंगे।
\v 28 इसलिए जब ये भयानक घटनाएँ आरम्भ होने लगेंगी, तो सीधे खड़े होकर ऊपर की ओर देखना, क्योंकि परमेश्वर शीघ्र ही तुम्हें बचाएँगे।"
\p
\s5
\v 29 तब यीशु ने उन्हें एक दृष्टान्त सुनाया: "अंजीर के पेड़ों और अन्य सब पेड़ों के बारे में सोचो।
\v 30 जब भी तुम देखते हो कि उनके पत्ते अंकुरित हो रहे हैं, तो तुम जानते हो कि गर्मियों का समय निकट है।
\v 31 उसी तरह, जब तुम इन घटनाओ को देखो, जिनका वर्णन मैं ने अभी किया है, तो तुम जान लोगे कि परमेश्वर शीघ्र ही स्वयं को राजा के रूप में प्रकट करेंगे।
\s5
\v 32 मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: मनुष्यों की यह पीढ़ी मेरी इन सब बातों के पूरा होने तक समाप्त नहीं होगी।
\v 33 आकाश और पृथ्वी का अन्त हो जाएगा, लेकिन जो मैं तुम्हें कहता हूँ उनका अन्त कभी नहीं होगा।
\p
\s5
\v 34 स्वयं को वश में रखने के लिए बहुत सावधान रहो। उन उत्सवों में मत जाना जहाँ लोग अनैतिक काम करते हैं या शराब पीकर नशे में हो जाते हैं। और इस जीवन की चिन्ताओं में डूब न जाना। यदि तुम ऐसा जीवन जीओगे, तो तुम मेरे वापस आने की प्रतीक्षा करना बन्द कर दोगे। और फिर, उस पल में, मैं आकर तुम्हें आश्चर्यचकित करूँगा। मेरा आना अकस्मात ही होगा जैसे पशुओं को पकड़ने का फँदा बिना चेतावनी बन्द हो जाता है।
\v 35 सच तो यह है कि मैं बिना चेतावनी के वापस आऊँगा, और वह दिन तब आएगा जब तुम मुझे देखने के लिए तैयार नहीं होगे।
\s5
\v 36 तो तुम्हें मेरे आने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए। और सदैव प्रार्थना करना चाहिए कि तुम इन सब संकटों में सुरक्षित रह सको, कि जब मैं, मनुष्य का पुत्र, संसार का न्याय करने आऊँ, तो तुम्हें निर्दोष घोषित कर सकूँ।"
\p
\s5
\v 37 यीशु मन्दिर में प्रतिदिन लोगों को सिखाते रहते थे। परन्तु शाम को वह नगर से निकलकर जैतून पहाड़ पर रात बिताते थे।
\v 38 और प्रतिदिन सुबह सब लोग उनसे सुनने के लिए शीघ्र ही मन्दिर में उनके पास आ जाते थे।
\s5
\c 22
\p
\v 1 अब अखमीरी रोटी के उत्सव का समय लगभग आ गया था, जिसे लोग फसह भी कहते हैं।
\v 2 अब प्रधान याजक और यहूदी व्यवस्था के शिक्षक यीशु को मारने का उपाय खोज रहे थे क्योंकि वे उनके पीछे चलने वाले लोगों से डरते थे।
\p
\s5
\v 3 तब शैतान यहूदा में समाया, जो इस्करियोती कहलाता था, और बारह शिष्यों में से एक था।
\v 4 उसने जाकर प्रधान याजकों और मन्दिर के अधिकारियों के साथ बातें की कि वह यीशु को कैसे उनके हाथों में दे सकता है।
\s5
\v 5 वे बहुत प्रसन्न थे कि यहूदा ऐसा करना चाहता है। उन्होंने इस काम के लिए उसे पैसे देने का प्रस्ताव रखा।
\v 6 तो यहूदा सहमत हो गया, और उसके बाद उसने यीशु को पकड़वाने में सहायता करने के लिए उपाय खोजना आरम्भ कर दिया, जब भीड़ उनके साथ न हो।
\p
\s5
\v 7 तब अखमीरी रोटी का दिन आया, उस दिन फसह के पर्व के लिए भेड़ के बच्चे को मारना था।
\v 8 यीशु ने पतरस और यूहन्ना से कहा, "जाओ और हमारे लिए फसह का उत्सव मनाने के लिए भोजन की तैयार करो ताकि हम एक साथ खा सकें।"
\v 9 उन्होंने उत्तर दिया, "आप कहाँ चाहते हैं कि हम खाने की तैयारी करें?"
\s5
\v 10 उन्होंने उत्तर दिया, "ध्यान से सुनो। जब तुम शहर में जाओगे, तो एक व्यक्ति बड़ा घड़ा उठाकर लाता हुआ तुम्हें मिलेगा; उसके पीछे उस घर में प्रवेश करना, जिसमें वह जाएगा।
\v 11 उस घर के स्वामी से कहना, 'हमारे गुरु कहते हैं कि आप हमें वह कमरा दिखाएँ जहाँ वह हमारे साथ, अर्थात् उनके शिष्यों के साथ फसह का भोजन खा सकते हैं।'
\s5
\v 12 वह तुम्हें एक बड़ा कमरा दिखाएगा जो घर की ऊपरी मंजिल पर है। वहाँ सब कुछ मेहमानों के लिए तैयार होगा। वहाँ हमारे लिए भोजन तैयार करो।
\v 13 तब वे दोनों शिष्य शहर में चले गए। उन्होंने सब कुछ वैसा ही पाया जैसा यीशु ने उनसे कहा था। इसलिए उन्होंने वहाँ फसह मनाने के लिए भोजन तैयार किया।
\p
\s5
\v 14 जब भोजन का समय हुआ तब यीशु आए और प्रेरितों के साथ बैठ गए
\v 15 उन्होंने उनसे कहा, "मैं दुःख भोगकर मरने से पहले तुम्हारे साथ यह भोजन करना बहुत अधिक चाहता था।
\v 16 मैं तुमसे कहता हूँ, मैं इसे दोबारा तब तक नहीं खाऊँगा जब तक कि परमेश्वर हर जगह सब पर शासन नहीं करते, और उन्होंने फसह के द्वारा जो आरम्भ किया है उसे पूरा नहीं करते।
\s5
\v 17 फिर उन्होंने एक कटोरे में दाखरस लिया और उसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा, "यह लो, और आपस में इसे बाँट लो।
\v 18 क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि जब तक परमेश्वर हर जगह हर किसी पर शासन नहीं करते, तब तक मैं इस दाखरस को फिर से नहीं पीऊँगा।"
\s5
\v 19 फिर उन्होंने कुछ रोटी ली और उसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। उन्होंने इसे टुकड़ों में तोड़ दिया और उन्हें खाने के लिए दिया। जब वह ऐसा कर रहे थे, तब उन्होंने कहा, "यह रोटी मेरा शरीर है, जो मैं तुम्हारे लिए बलि करने पर हूँ। मुझे स्मरण करने के लिए यह बाद में भी करते रहना।"
\v 20 इस तरह, भोजन करने के बाद, उन्होंने दाखरस का प्याला ले लिया और कहा, "यह नई वाचा है जो मैं अपने लहू के द्वारा जो तुम्हारे लिए बहाया गया है, बाँधता हूँ।
\s5
\v 21 लेकिन, देखो! वह व्यक्ति जो मुझे मेरे शत्रुओं के हाथ में देगा, वह मेरे साथ खा रहा है।
\v 22 निश्चिय मैं, अर्थात् मनुष्य का पुत्र मर जाएगा, क्योंकि परमेश्वर ने यही योजना बनाई है। परन्तु उस मनुष्य के लिए कितना भयानक होगा जो मेरे शत्रुओं के हाथ में मुझे देगा!"
\v 23 तब प्रेरितों ने एक दूसरे से पूछा, "हम में से कौन यह काम करने की योजना बना रहा है?"
\p
\s5
\v 24 उसके बाद, प्रेरितों ने आपस में बहस करना शुरू कर दिया; उन्होंने कहा, "जब यीशु राजा बन जाएँगे, तो हम में से सबसे अधिक सम्मानित कौन होगा?"
\v 25 यीशु ने उनसे कहा, "अन्यजातियों के राजा लोगों को दिखाना चाहते है कि वे शक्तिशाली हैं, फिर भी वे स्वयं को यह शीर्षक देते हैं, 'जो लोगों की सहायता करते हैं।'
\s5
\v 26 लेकिन तुम उन शासकों की तरह न बनो! इसकी अपेक्षा, तुम्हारे बीच सबसे सम्मानित व्यक्तियों को इस तरह से कार्य करना चाहिए जैसे कि वे सबसे छोटे हैं, और जो अगुवाई करते हैं उन्हें दास के समान काम करना चाहिए।
\v 27 तुम जानते हो कि महत्वपूर्ण व्यक्ति वह है जो मेज़ पर खाता है, न कि दास जो खाना लाता है। लेकिन मैं तुम्हारा दास हूँ।
\p
\s5
\v 28 तुम वही लोग हो, जो मेरे साथ थे जब मैंने सब कठिनाईयों को झेला था।
\v 29 इसलिए, जब मेरे पिता सब पर शासन करेंगे, तब मैं तुम्हें शक्तिशाली अधिकारियों के रूप में नियुक्त करूँगा, जैसे मेरे पिता ने मुझे राजा नियुक्त किया है।
\v 30 जब मैं राजा बन जाऊँगा, तब तुम मेरे साथ बैठोगे और मेरे साथ खाओगे और पीओगे। वास्तव में, तुम सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों के लोगों का न्याय करोगे।
\p
\s5
\v 31 "शमौन, शमौन, सुन! शैतान ने परमेश्वर से पूछा कि वह तुम्हारी परीक्षा करे, जैसा कोई अनाज को फटकता है, और परमेश्वर ने उसे ऐसा करने के लिए अनुमति दी है।
\v 32 लेकिन मैंने शमौन तुम्हारे लिए, प्रार्थना की है कि तुम मुझ पर विश्वास करना त्याग न दो। तो जब तुम मेरे पास वापस आओ, तो इन पुरुषों को जो तुम्हारे भाई हैं, फिर से साहस दो।
\s5
\v 33 पतरस ने उनसे कहा, "हे प्रभु, मैं आपके साथ बन्दीगृह में जाने के लिए तैयार हूँ; मैं आपके साथ मरने को भी तैयार हूँ।"
\v 34 यीशु ने उससे कहा, "पतरस, मैं चाहता हूँ तुम जानो कि आज रात, मुर्गे के बाँग देने से पहले, तुम तीन बार कहोगे कि तुम मुझे नहीं जानते!"
\p
\s5
\v 35 फिर यीशु ने शिष्यों से पूछा, "जब मैंने तुम्हें गाँवों में भेजा, और तुम बिना किसी पैसे, भोजन या जूते के गए, क्या वहाँ तुम्हारी आवश्यकताएँ ऐसी थीं। जो पूरी नहीं हुई?" उन्होंने उत्तर दिया, "कुछ नहीं!"
\v 36 और उन्होंने कहा, "लेकिन, अब, यदि तुम्हारे बीच में किसी के पास धन है, तो वह उसे अपने साथ ले ले। इसके अतिरिक्त, जिस किसी के पास खाना है, उसे वह अपने साथ ले ले, और जिसके पास तलवार नहीं है, वह अपने कपड़े बेच कर खरीद ले!"
\s5
\v 37 मैं तुमसे यह इसलिए कहता हूँ क्योंकि शास्त्रों में एक भविष्यद्वक्ता ने मेरे बारे में जो लिखा है, वह पूरा होगा: 'लोग उसे अपराधी मानेंगे।' शास्त्र में मेरे बारे में जो कुछ भी लिखा है वह हो रहा है।
\p
\v 38 शिष्यों ने कहा, "हे प्रभु, देखो, हमारे पास दो तलवारें हैं!" उन्होंने कहा, "बस करो। अब ऐसा मत बोलो।"
\p
\s5
\v 39 यीशु ने शहर को छोड़ दिया और जैतून के पहाड़ पर गए, जैसा वह साधारणतः करते थे; उनके शिष्य उनके साथ गए।
\v 40 जब वह उस स्थान पर आए जहाँ वह जाना चाहते थे, तो उन्होंने उनसे कहा, "प्रार्थना करो कि परमेश्वर तुम्हारी सहायता करे कि तुम पाप करने की परीक्षा में न पड़ो।"
\s5
\v 41 तब वह उनसे लगभग तीस मीटर की दूरी पर गए और घुटने टेककर प्रार्थना की। उन्होंने कहा,
\v 42 "पिता, मेरे साथ जो भयानक बातें होने वाली: हैं यदि आप उन्हें रोकने के लिए तैयार हैं, तो ऐसा करें। परन्तु जो भी मैं चाहता हूँ, वह नहीं आप जो चाहते हैं वही करें।"
\s5
\v 43 तब स्वर्ग से एक स्वर्गदूत आया और उन्हें सांत्वना दी।
\v 44 वह काफी पीड़ित थे। इसलिए उन्होंने अधिक तीव्रता से प्रार्थना की। उनका पसीना भूमि पर खून की बड़ी बड़ी बूंदों में गिर रहा था।
\s5
\v 45 जब वह प्रार्थना करने से उठ गए, तो वह अपने शिष्यों के पास गए। उन्होंने पाया कि उनके दुःख के कारण वे इतने थके हुए थे कि वे सो रहे थे।
\v 46 उन्होंने उन्हें जगाया और कहा, "तुम लोगों को सोना नहीं चाहिए, उठो! प्रार्थना करो कि परमेश्वर तुम लोगों की सहायता करे ताकि कोई तुम को पाप करने के लिए न उकसाये।"
\p
\s5
\v 47 जब यीशु बातें कर ही रहे थे, तो लोगों की भीड़ उनके पास आ गई। यहूदा, जो बारह शिष्यों में से एक था, उनका नेतृत्व कर रहा था। वह यीशु को चूमने के लिए उनके पास आया।
\v 48 परन्तु यीशु ने उस से कहा; हे यहूदा, क्या तू सचमुच मुझे, मनुष्य के पुत्र को चूमने के लिए आया है, कि मेरे शत्रुओं के हाथ में दे दे?
\s5
\v 49 जब शिष्यों ने जाना कि क्या हो रहा है, तो उन्होंने कहा, "प्रभु, क्या हम उन्हें हमारी तलवार से मार दें?"
\v 50 उनमें से एक ने महायाजक के दास को मारा, लेकिन केवल उसका दाहिना कान काट दिया।
\v 51 परन्तु यीशु ने कहा, "अब बस करो।" फिर उन्होंने दास के कान को छुआ और उसे स्वस्थ किया।
\s5
\v 52-53 तब यीशु ने प्रधान याजकों, मन्दिर के रक्षकों और यहूदी पुरूषों को जो उन्हें बन्दी बनाने के लिए आए थे कहा, "यह आश्चर्य की बात है कि तुम यहाँ मुझे तलवारें और लाठियों के साथ बन्दी बनाने के लिए आए हो, जैसे कि मैं एक डाकू हूँ। बहुत दिनों से मैं मन्दिर में तुम्हारे साथ था, लेकिन तुमने मुझे बन्दी बनाने का कोई प्रयास नहीं किया! परन्तु यह वह समय है जब तुम जो चाहते हो वह कर रहे हो। यह वह समय भी है जब शैतान बुरा काम कर रहा है जिसे वह करना चाहता है।
\p
\s5
\v 54 उन्होंने यीशु को पकड़ लिया और उन्हें लेकर चले गए। वे उसे महायाजक के घर ले गए। पतरस ने बहुत दूर से उनका पीछा किया।
\v 55 लोगों ने आँगन के बीच में आग लगा दी और एक साथ बैठ गए। पतरस उनके बीच बैठ गया।
\s5
\v 56 एक दासी ने आग के प्रकाश में पतरस को वहाँ बैठा देखा। उसने उसे ध्यान से देखा और कहा, "यह व्यक्ति भी उस व्यक्ति के साथ था जिसे उन्होंने बन्दी बनाया है!"
\v 57 लेकिन उसने इन्कार करके कहा, "हे स्त्री, मैं उसे नहीं जानता!"
\v 58 थोड़ी देर बाद किसी ने पतरस को देखा और कहा, "तू उन लोगों में से एक है जो बन्दी बनाए गए थे!" परन्तु पतरस ने कहा, "मनुष्य, मैं उनमें से एक नहीं हूँ!"
\s5
\v 59 लगभग एक घंटे बाद किसी और ने बल देकर कहा, "जिस तरह से यह व्यक्ति बोलता है, उससे प्रकट होता है कि वह गलील के क्षेत्र से है। निश्चय ही यह व्यक्ति उस व्यक्ति के साथ भी था जिसे उन्होंने बन्दी बनाया है!"
\v 60 लेकिन पतरस ने कहा, "हे मनुष्य, मैं नहीं जानता कि तुम क्या कह रहे हो!" जबकि वह बोल ही रहा था, कि एक मुर्गे ने बाँग दी।
\s5
\v 61 प्रभु यीशु ने मुड़कर सीधा पतरस को देखा। तब पतरस ने याद किया कि प्रभु ने उससे क्या कहा था, "आज रात, मुर्गे के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मेरा इन्कार करके कहेगा कि तू मुझे नहीं जानता।"
\v 62 वह आँगन से बाहर चला गया और अत्यधिक दु:ख के साथ रोया।
\p
\s5
\v 63 जो लोग यीशु की रखवाली कर रहे थे, वे उसका ठट्ठा करके उसे मार रहे थें।
\v 64 उन्होंने उसकी आँखों पर पट्टी बाँध दी और कहा, "हमें दिखाओ कि तुम एक भविष्यद्वक्ता हो! हमें बताओ कि किसने तुम्हें मारा!"
\v 65 उन्होंने उसके बारे में कई अन्य बुरी बातें कहीं और उसका अपमान किया।
\p
\s5
\v 66 अगली सुबह भोर के समय कई यहूदी अगुवे एकत्र हुए। इस समूह में प्रधान याजक थे और यहूदी व्यवस्था को सिखाने वाले पुरुष थे। वे यीशु को यहूदी परिषद के कक्ष में ले गए। वहाँ उसने उनसे कहा,
\v 67 "क्या तुम मसीह हो, हमें बताओ!" लेकिन उन्होंने जवाब दिया, "अगर मैं कहता हूँ कि मैं वही हूँ, तो तुम मुझ पर विश्वास नहीं करोगे।
\v 68 यदि मैं तुमसे पूछता हूँ कि तुम मसीह के बारे में क्या सोचते हों, तो तुम मुझे जवाब नहीं दोगे।
\s5
\v 69 परन्तु अब से, मैं, मनुष्य का पुत्र, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के साथ बैठूँगा और शासन करूँगा!"
\v 70 तब उन सब ने पूछा, "यदि ऐसा है, तो क्या तू यह कहना चाहता है कि तू परमेश्वर का पुत्र है?" उसने उत्तर दिया, "हाँ, तुमने जो कहा है वैसे ही होगा।"
\v 71 तो उन्होंने एक दूसरे से कहा, "हमें लोगों की आवश्यकता नहीं है कि वे उसके खिलाफ गवाही दे! हमने स्वयं इसे यह कहते सुना है कि वह परमेश्वर के बराबर है।"
\s5
\c 23
\p
\v 1 तब पूरा समूह उठकर, उन्हें पिलातुस के पास ले गया, जो रोमी राज्यपाल था।
\v 2 उन्होंने पिलातुस के सामने उन पर आरोप लगाया: "हमने इस व्यक्ति को हमारे लोगों को झूठ बोलकर बहकाते हुए देखा है। वह रोमी सम्राट कैसर को कर का भुगतान नहीं करने के लिए कह रहा था। इसके अतिरिक्त, वह यह कह रहा था कि वह मसीह है, एक राजा है!"
\s5
\v 3 पिलातुस ने उन से पूछा, "क्या तुम यहूदियों के राजा हो?" यीशु ने उत्तर दिया, "हाँ, यह जैसा तुमने मुझसे पूछा वैसा ही है।"
\v 4 फिर पिलातुस ने प्रधान याजकों और लोगों से कहा, "यह व्यक्ति किसी अपराध का दोषी नहीं है।"
\v 5 लेकिन वे यीशु पर आरोप लगाते रहे; उन्होंने कहा, "वह लोगों को भड़काने का प्रयास कर रहा है, वह यहूदिया के सभी क्षेत्रों में अपने विचारों को सिखा रहा है। उसने यह काम गलील के क्षेत्र से आरम्भ किया और अब वह यहाँ भी कर रहा है।"
\p
\s5
\v 6 जब पिलातुस ने उनके वचन सुने, तो उसने पूछा, "क्या यह व्यक्ति गलील के जिले से आया है?"
\v 7 क्योंकि पिलातुस को पता चला कि यीशु गलील का हैं, जहाँ हेरोदेस अंतिपास का शासन था, उसने यीशु को उसके पास भेजा, क्योंकि हेरोदेस उस समय यरूशलेम में था।
\s5
\v 8 जब हेरोदेस ने यीशु को देखा, तो वह अत्यधिक प्रसन्न हुआ। वह लम्बे समय से यीशु को देखना चाहता था, क्योंकि वह उसके बारे में बहुत कुछ सुन रहा था और उसे एक चमत्कार करते हुए देखना चाहता था।
\v 9 उसने यीशु से कई सवाल पूछे, लेकिन यीशु ने उनमें से किसी का भी उत्तर नहीं दिया।
\v 10 और यहूदी व्यवस्था के प्रधान याजक और कुछ विशेषज्ञ उसके पास खड़े थे, और उन्होंने उन पर सभी तरह के अपराधों का दोष लगाया।
\s5
\v 11 तब हेरोदेस और उसके सैनिकों ने यीशु का ठट्ठा किया। उन्होनें उसे महँगे कपड़े पहनाए ताकि ढोंग करें कि वह राजा है। तब हेरोदेस ने उसे पिलातुस के पास वापस भेजा दिया।
\v 12 उस समय तक हेरोदेस और पिलातुस एक-दूसरे के शत्रु थे, लेकिन उसी दिन वे मित्र बन गए।
\p
\s5
\v 13 पिलातुस ने प्रधान याजक और अन्य यहूदी अगुओं और जो भी वहाँ उपस्थित थे, सबको एकत्र किया।
\v 14 उसने उनसे कहा, "तुम इस व्यक्ति को मेरे पास लाए, और कहा कि वह विद्रोह करने के लिए लोगों का नेतृत्व कर रहा है। परन्तु मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो कि जब तुम सुन रहे थे, तो मैंने उसे जाँचा, और जिन बातों के बारे में तुमने मुझे बताया है, उनमें से किसी का भी वह दोषी प्रतीत नहीं होता है।
\s5
\v 15 हेरोदेस के विचार में भी वह दोषी नहीं है। मैं यह इसलिए जानता हूँ, कि उसने उसे बिना किसी दण्ड के वापस भेज दिया। तो यह स्पष्ट है कि यह व्यक्ति मरने के योग्य नहीं है।
\v 16 इसलिए मैं अपने सैनिकों को उसे कोड़े मारने के लिए कह देता हूँ और फिर उसे मुक्त कर दूँगा।"
\v 17 (पिलातुस ने ये इसलिए कहा था क्योंकि उसे फसह के उत्सव में एक कैदी को मुक्त करना पड़ता था।)
\s5
\v 18 परन्तु सारी भीड़ ने एक साथ चिल्लाते हुए कहा, "इस मनुष्य को मार डालो! बरअब्बा को हमारे लिए छोड़ दो!"
\v 19 अब बरअब्बा एक व्यक्ति था जिसने रोमी सरकार से विद्रोह करने के लिए शहर में कुछ लोगों का नेतृत्व किया था। वह एक खूनी भी था। वह इन अपराधों के कारण बन्दीगृह में था, और वह मृत्यु दण्ड की प्रतीक्षा कर रहा था।
\s5
\v 20 परन्तु पिलातुस यीशु को मुक्त करना चाहता था, इसलिए उसने फिर से भीड़ से बात करने का प्रयास किया।
\v 21 वे चिल्लाने लगे, "उसे क्रूस पर चढ़ाओ! उसे क्रूस पर चढ़ाओ!"
\v 22 पिलातुस ने तीसरी बार उनसे पूछा, "क्यों? उन्होंने क्या अपराध किया है? उन्होंने कुछ नहीं किया है जिसके लिए वह मरने के हकदार हो, इसलिए मैं अपने सैनिकों से उन्हें कोड़े लगवा देता हूँ और उन्हें मुक्त कर देता हूँ। "
\s5
\v 23 लेकिन वे ऊँचे स्वर से बोल रहे थे कि यीशु को क्रूस पर मरना चाहिए। अन्त में, क्योंकि वे बहुत चिल्ला रहे थे, पिलातुस सहमत हो गया,
\v 24 कि उनकी माँग पूरी हो।
\v 25 इसलिए उसने उस व्यक्ति को मुक्त कर दिया जो बन्दीगृह में था क्योंकि उसने सरकार से विद्रोह किया था और लोगों की हत्या की थी! उसने सैनिकों को आज्ञा दी कि यीशु को ले जाएँ और जो भीड़ चाहती थी वैसे ही करें।
\p
\s5
\v 26 अब शमौन नाम का एक मनुष्य था, जो अफ्रीका के कुरेने शहर से था। वह ग्रामीण क्षेत्रों से यरूशलेम में आ रहा था। जब सैनिक यीशु को ले जा रहे थे, तब उन्होंने शमौन को पकड़ा। उन्होनें यीशु से क्रूस को ले लिया जो उन्होंने उनसे उठाने के लिए कहा था, और उसे शमौन के कंधे पर रख दिया। उन्होंने उससे कहा कि वह उसे उठाकर यीशु के पीछे चले।
\s5
\v 27 अब एक बड़ी भीड़ यीशु के पीछे चल रही थी। इसमें कई स्त्रियाँ थीं जो अपनी छाती पीट रही थीं और उनके लिए रो रही थीं।
\v 28 फिर यीशु ने उनसे कहा, "हे यरूशलेम की स्त्रियों, मेरे लिए मत रोओ! इसके बजाए, जो कुछ हो रहा है, उसके कारण तुम अपने लिए और अपने बच्चों के लिए रोओ!
\s5
\v 29 मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो कि शीघ्र ही ऐसा समय आएगा जब लोग कहेंगे, 'कितनी धन्य हैं वे स्त्रियाँ, जिन्होंने कभी बच्चों को जन्म नहीं दिया या बच्चों को दूध नहीं पिलाया!'
\v 30 फिर इस शहर के लोग कहेंगे, 'हम चाहते हैं कि पहाड़ हमारे ऊपर गिर जाए और पहाड़ी हमें ढँक दे!'
\v 31 मुझे मरना है, भले ही मैंने कुछ भी गलत नहीं किया, निश्चय ही उन लोगों के साथ भयानक बातें होंगी जो मरने के योग्य हैं।
\p
\s5
\v 32 दो अन्य अपराधी भी उस जगह ले जाए जा रहे थे जहाँ वे यीशु को मारने के लिए ले जा रहे थें।
\s5
\v 33 जब वे 'खोपड़ी' नामक जगह पर आए, तो वहाँ उन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ाया। उन्होंने दो अपराधियों के साथ भी यही किया। उन्होंने एक को यीशु के दाहिनी ओर और एक को बाईं ओर रखा।
\v 34 परन्तु यीशु ने कहा, "हे पिता, इन लोगों को क्षमा कर दो, जिन्होंने ये किया, क्योंकि वे वास्तव में नहीं जानते कि वे किस के साथ यह कर रहे हैं।" तब सैनिकों ने उनके कपड़ों को चिट्ठियाँ डालकर बाँट लिया कि किस को कपड़ों का कौन सा भाग मिलेगा।
\s5
\v 35 बहुत से लोग पास खड़े हुए देख रहे थे। यहूदी अगुवे यीशु का ठट्ठा करके कह रहे थे: "उन्होंने अन्य लोगों को बचाया! अगर परमेश्वर ने सचमुच उन्हें मसीह चुना है, तो वह स्वयं को बचा ले!"
\s5
\v 36 सैनिकों ने भी उनका ठट्ठा किया। वे उनके पास आए और उन्हें कुछ खट्टा दाखरस दिया।
\v 37 उन्होंने उन से कहा, "यदि तुम यहूदियों के राजा हो, तो स्वयं को बचा लो!"
\v 38 उन्होंने उनके सिर के ऊपर क्रूस पर एक दोष पत्र लगाया, जिस पर लिखा था, 'यह यहूदियों का राजा है।'
\p
\s5
\v 39 अपराधियों में से एक ने, जो क्रूस पर लटका था, यीशु का अपमान किया; उसने कहा, "तुम मसीहा है, तो अपने आप को बचाओ? और हमें भी बचाओ!"
\v 40 लेकिन अन्य अपराधी ने उसे बोलने से रोक दिया; उसने कहा, "तुझे परमेश्वर के दण्ड से डरना चाहिए! वे उन्हें और हमें एक ही दण्ड दे रहे हैं।
\v 41 वे हमें हमारे अपराधों का दण्ड दे रहे हैं जिसके योग्य हम हैं। परन्तु इस व्यक्ति ने तो कुछ भी गलत नहीं किया!"
\s5
\v 42 तब उसने यीशु से कहा, "हे प्रभु, जब आप राजा के रूप में शासन करना आरम्भ करें, तो मुझे भी बचाना!"
\v 43 यीशु ने कहा, "मैं चाहता हूँ कि तू जान लें कि तू आज मेरे साथ स्वर्ग में होगा!"
\p
\s5
\v 44 तो यह लगभग दोपहर का समय था। लेकिन दोपहर में तीन बजे तक पूरे देश में अंधेरा हो गया।
\v 45 सूर्य की कोई रोशनी नहीं थी और मोटा पर्दा जो मन्दिर में सबसे पवित्र स्थान को अलग करता है, दो भागों में विभाजित हो गया।
\s5
\v 46 जब ऐसा हुआ, तो यीशु जोर से चिल्लाए, "हे पिता, मैं अपनी आत्मा आपके हाथों में देता हूँ!" उन्होंने इतना कहा और सांस लेना बन्द कर दिया और मर गए।
\p
\v 47 जब सेनापति जो सैनिकों के ऊपर है, उसने देखा की क्या हुआ, उसने कहा, "सचमुच इस व्यक्ति ने कुछ भी गलत नहीं किया!" उन्होंने जो कहा उससे परमेश्वर को सम्मान मिला।
\s5
\v 48 जब लोगों की भीड़ जो इन पुरुषों को मरते देखने के लिए एकत्र हुई थी, देखा कि वास्तव में क्या हुआ, वे अपने घर लौट गए, अपने छाती पीटते हुए अपना दुख प्रकट किया।
\v 49 यीशु के सब परिचित, जिनमें गलील के क्षेत्र से आई कुछ स्त्रियाँ भी थीं, कुछ दूरी पर खड़े थे और सब कुछ देखा था।
\p
\s5
\v 50-51 अब यूसुफ नाम का एक व्यक्ति था, जो अरिमतियाह नामक एक यहूदी शहर का था। वह एक अच्छा और धर्मी जन था, और वह यहूदी परिषद का सदस्य था। उसने सब कुछ होते देखा था, परन्तु जब उन्होंने यीशु को मारने का निर्णय लिया था, तब वह परिषद के अन्य सदस्यों के साथ सहमत नहीं था। वह उस समय की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा था जब परमेश्वर अपने राजा को शासन करने के लिए भेजेंगे।
\s5
\v 52 यूसुफ पिलातुस के पास गया और पिलातुस से कहा कि उसे यीशु के शरीर को दफनाने के लिए अनुमति दें। पिलातुस ने उसे अनुमति दी,
\v 53 इसलिए उसने यीशु के शरीर को क्रूस से नीचे उतारा। उसने उन्हें एक सनी के कपड़े में लपेटा। फिर उसने उनके शरीर को एक कब्र में रखा, जिसे किसी ने चट्टान में काटकर बनाया था। इसमें पहले कभी किसी का शव नहीं रखा गया था।
\s5
\v 54 यह वह दिन था जब लोग यहूदियों के विश्राम दिन जिसे सब्त कहते है, उसकी तैयारी करते थे। सूर्यास्त के साथ सब्त के दिन का आरम्भ होने जा रहा था।
\v 55 जो स्त्रियाँ गलील के जिले से यीशु के साथ आई थीं, यूसुफ और उसके साथियों के पीछे गईं। उन्होंने कब्र को देखा, और उन्होंने देखा कि पुरुषों ने यीशु के शरीर को भीतर कैसे रखा।
\v 56 तब स्त्रियाँ जहाँ वे रह रही थी वहाँ वापस चली गईं, ताकि यीशु के शरीर पर लगाने के लिए वे मसाले और सुगन्धित वस्तुएँ और इत्र तैयार करें। हालांकि, उन्होंने सब्त के दिन यहूदी व्यवस्था के अनुसार कोई काम नहीं किया।
\s5
\c 24
\p
\v 1 रविवार को भोर से पहले ये स्त्रियाँ कब्र पर गईं। उन्होंने उन मसालों को ले लिया जो उन्होंने यीशु के शरीर पर लगने के लिए तैयार किए थे।
\v 2 जब वे आईं, तो उन्होंने देखा कि किसी ने कब्र के सामने से पत्थर को लुढ़का दिया है।
\v 3 वे कब्र में गईं, परन्तु प्रभु यीशु का शरीर वहाँ नहीं था!
\s5
\v 4 वे कुछ नहीं समझ पा रही थीं, तब अकस्मात ही दो पुरुष उज्ज्वल, चमकते हुए कपड़े पहने उनके पास प्रकट हुए!
\v 5 स्त्रियाँ डर गईं थीं। जब वे जमीन पर नीचे झुक गईं, तो दो पुरुषों ने उनसे कहा, "तुम्हें किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश मरे हुओं को दफनाने वाले स्थान में नहीं करना चाहिए, जो जीवित है!
\s5
\v 6 वह यहाँ नहीं है; वह फिर से जीवित कर दिए गए हैं! याद करो, कि जब वह तुम्हारे साथ गलील में थे, तो उन्होंने तुम से कहा था,
\v 7 "वे मुझे, मनुष्य के पुत्र को पापियों के हाथों में सौंप देंगे। वे मुझे क्रूस पर चढाकर मार देंगे। परन्तु उसके बाद तीसरे दिन, मैं फिर से जीवित हो जाऊँगा।'"
\s5
\v 8 स्त्रियों को याद आया कि यीशु ने उनसे क्या कहा था।
\v 9 इसलिए उन्होंने कब्र को छोड़ दिया और ग्यारह प्रेरितों और उनके अन्य शिष्यों के पास गईं और उन्हें पूरा हाल सुनाया।
\v 10 जिन स्त्रियों ने इन बातों को प्रेरितों को बताया, वे मगदाला गाँव की मरियम, योअन्ना, याकूब की माँ मरियम, और अन्य स्त्रियाँ थीं जो उनके साथ थीं।
\s5
\v 11 परन्तु प्रेरितों ने उनके वचनों को निरर्थक समय पर टाल दिया।
\v 12 परन्तु, पतरस उठा और कब्र की ओर भागा। उसने नीचे झुककर अन्दर देखा। उसने सनी के कपड़ों को देखा जिसमें यीशु के शरीर को लपेटा गया था, परन्तु यीशु वहाँ नहीं थे। वह आश्चर्य करता हुआ घर लौट गया।
\p
\s5
\v 13 उसी दिन यीशु के दो शिष्य इम्माऊस नामक एक गाँव को जा रहे थे। वह यरूशलेम से दस किलोमीटर दूर था।
\v 14 वे यीशु के साथ जो हुआ था, उसके विषय में आपस में बातें कर रहे थे।
\s5
\v 15 जब वे उन घटनाओं की बाते कर रहे थे और उन पर विचार कर रहे थे, तो यीशु उनके पास आए और उनके साथ चलने लगे।
\v 16 परन्तु परमेश्वर ने उन्हें यीशु को पहचानने से रोक रखा था।
\s5
\v 17 यीशु ने उनसे कहा, "जब तुम चल रहे थे, तो आप दोनों क्या बात कर रहे थे?" वे रुक गए, उनके चेहरे बहुत दुखी थे।
\v 18 उनमें से एक ने, जिसका नाम क्लियुपास था कहा, "आप एक ही ऐसे व्यक्ति हैं जो यरूशलेम में आए, और हाल ही में हुई घटनाओं को नहीं जानते!"
\s5
\v 19 उन्होंने उनसे कहा, "कौन सी घटनाएँ?" उन्होंने उत्तर दिया, "जो घटनाएँ यीशु के साथ हुई, जो नासरत के व्यक्ति हैं, वह भविष्यद्वक्ता थे।" परमेश्वर ने उन्हें महान चमत्कार करने और अद्भुत सन्देश देने की शक्ति दी थी। लोगों के विचार में वह अद्भुत थे।"
\v 20 परन्तु हमारे प्रधान याजकों और अगुवाओं ने उन्हें रोमी अधिकारियों के हाथ में सौंप दिया। अधिकारियों ने उन्हें मरने का दण्ड दिया, और उन्होंने उन्हें क्रूस पर चढ़ाकर मार दिया।
\s5
\v 21 हमें आशा थी कि वही हम इस्राएलियों को हमारे शत्रुओं से मुक्त करा देंगे! परन्तु अब यह सम्भव नहीं है, क्योंकि तीन दिन पहले ही वह मर चुके हैं।
\s5
\v 22 परन्तु हमारे समूह की कुछ स्त्रियों ने हमें आश्चर्यचकित कर दिया। वे सुबह सुबह कब्र पर गईं,
\v 23 परन्तु यीशु का शरीर वहाँ नहीं था! वे वापस आई और कहा कि उन्होंने एक दर्शन में कुछ स्वर्गदूतों को देखा है। स्वर्गदूतों ने कहा कि वह जीवित हैं!
\v 24 तो हमारे साथियों में से कुछ लोग कब्र पर गए। उन्होंने देखा कि जैसा स्त्रियों ने कहा था वैसा ही था। लेकिन उन्होंने यीशु को नहीं देखा।"
\s5
\v 25 उन्होंने उनसे कहा, "हे मूर्खों! मसीह के बारे में भविष्यद्वक्ताओं ने जो लिखा है उस पर विश्वास करने में तुम इतने धीमें हो।
\v 26 तुम निश्चय ही जानते हों कि मसीह के लिए आवश्यक था कि उन सब बातों को भोगे और मर जाए, और फिर वह स्वर्ग में अपने महिमामय घर में प्रवेश करें!"
\v 27 तब उन्होंने उन्हें वे सब बातें समझाई जिन्हें भविष्यद्वक्ताओं ने उनके बारे में शास्त्रों में लिखा था। उन्होंने मूसा के लेखों से आरम्भ किया और फिर उन्हें समझाया कि अन्य सब भविष्यद्वक्ताओं ने क्या लिखा था।
\p
\s5
\v 28 वे गाँव के पास आए, जहाँ वे दो लोग जा रहे थे। उन्होंने संकेत दिया कि उन्हें आगे जाना होगा,
\v 29 परन्तु उन्होंने उनसे आग्रह किया कि वे ऐसा न करें। उन्होंने कहा, "आज रात हमारे साथ रहो, क्योंकि बहुत देर हो चुकी है और शीघ्र ही अन्धेरा होगा।" तो वह उनके साथ रहने के लिए घर में गए।
\s5
\v 30 जब वे खाने के लिए बैठे, तो उन्होंने कुछ रोटी ली और उसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। उन्होंने उसे तोड़ा और उन्हें टुकड़े दिये।
\v 31 और तब परमेश्वर ने उन्हें पहचानने की क्षमता प्रदान की। परन्तु वह लोप हो गए!
\v 32 उन्होंने एक दूसरे से कहा, "जब हम सड़क पर चल रहे थे और उन्होंने हमारे साथ बात की और हमें शास्त्रों से समझाया तब, हमने सोचा कि कुछ बहुत अच्छा, होने वाला था, हालांकि हमें नहीं पता था क्या होने वाला है। हमें यहाँ नहीं रहना चाहिए, हमें दूसरों को बताना चाहिए कि क्या हुआ!
\s5
\v 33 इसलिए वे तुरन्त निकल गए और यरूशलेम लौट आए। वहाँ उन्होंने ग्यारह प्रेरितों और अन्य लोगों को एकत्र हुआ पाया।
\v 34 उन्होंने उन दो लोगों को बताया, "यह सच है कि प्रभु फिर से जीवित हो गए है, और वह शमौन को दिखाई दिए है!"
\v 35 तब उन दो लोगों ने उन्हें बताया कि जब वे सड़क पर जा रहे थे तो क्या हुआ था। उन्होंने यह भी बताया कि जब यीशु ने रोटी तोड़ कर दी तब दोनों ने उन्हें पहचाना।
\p
\s5
\v 36 जब वे लोग ये कह ही रहे थे कि अचानक यीशु स्वयं उनके बीच में दिखाई दिए। उन्होंने उनसे कहा, "परमेश्वर तुम्हें शान्ति दे!"
\v 37 वे चौंक गए और डर गए, क्योंकि उन्हें लगा कि वे भूत देख रहे हैं!
\s5
\v 38 उन्होंने उनसे कहा,"तुम्हें चकित नहीं होना चाहिए! और तुम्हें सन्देह नहीं करना चाहिए कि मैं जीवित हूँ।
\v 39 मेरे हाथों और मेरे पाँवों के घावों को देखो! तुम मुझे स्पर्श करके मेरे शरीर को देख सकते हो। तब तुम विश्वास करोगे कि सच में मैं ही हूँ। तब तुम कह सकते हो कि वास्तव में मैं जीवित हूँ क्योंकि भूतों के शरीर नहीं होते, जैसा कि तुम देखते हो कि मेरे पास है!"
\v 40 यह कहने के बाद, उन्होंने उन्हें अपने हाथों और पाँवों के घाव दिखाए।
\s5
\v 41 वे हर्षित और आश्चर्यचकित हुए, लेकिन वे अभी भी विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि वे वास्तव में जीवित हैं। इसलिए उन्होंने उनसे कहा, "क्या तुम्हारे पास खाने के लिए कुछ है?"
\v 42 तो उन्होंने उसे भुनी हुई मछली का एक टुकड़ा दिया।
\v 43 जब वे देख रहे थे, उन्होंने उसे ले लिया और खा लिया।
\p
\s5
\v 44 तब उन्होंने उनसे कहा, "जब मैं तुम्हारे साथ था तब मैंने तुमसे जो कहा था उसे मैं दोहराता हूँ: मूसा की व्यवस्था में, भविष्यद्वक्ताओं के लेखों में, और भजन में, जो कुछ भी मेरे बारे में लिखा हुआ था, सब का पूरा होना आवश्यक था!"
\s5
\v 45 तब उन्होंने उन्हें उन बातों को समझने में समर्थ किया जिनके बारे में शास्त्रों में लिखा गया था।
\v 46 उन्होंने उनसे कहा, "शास्त्रों में तुम यह पढ़ सकते हो: कि मसीह पीड़ित किया जाएगा और मारा जाएगा, लेकिन उसके बाद तीसरे दिन वह फिर से जीवित हो जाएगा।
\v 47 उन्होंने यह भी लिखा है कि जो लोग उन पर विश्वास करते हैं, उन्हें हर जगह प्रचार करना चाहिए कि लोग पाप करना छोड़ कर परमेश्वर की ओर मुड़ें, और वह उनके पापों को क्षमा करें। मसीह के अनुयायियों को उस सन्देश का प्रचार करना चाहिए क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें ऐसा करने के लिए भेजा है। उन्होंने लिखा है कि उन्हें यरूशलेम में प्रचार करना आरम्भ करके सब जातियों में और फिर जाकर प्रचार करना चाहिए।
\s5
\v 48 तुम्हें लोगों को बताना चाहिए कि तुम जानते हो कि मेरे साथ जो कुछ हुआ वह सच है।
\v 49 और मैं चाहता हूँ कि तुम जानो कि मैं तुम्हारे पास पवित्र आत्मा को भेजूँगा, जैसी मेरे पिता ने प्रतिज्ञा की थी। परन्तु तुम्हें इस शहर में रहना होगा, जब तक कि तुम पवित्र आत्मा की शक्ति से नहीं भर जाते।"
\p
\s5
\v 50 तब यीशु उन लोगों को नगर के बाहर ले गए, और वे बैतनिय्याह गाँव के पास आए। वहाँ उन्होंने अपना हाथ ऊपर उठाया और उन्हें आशीर्वाद दिया।
\v 51 जब वह ऐसा कर रहे थे, वह उन्हें छोड़कर स्वर्ग में चले गए।
\s5
\v 52 उन्होंने उनकी आराधना की, और फिर वे आनन्द से यरूशलेम लौट आए।
\v 53 वे प्रतिदिन मन्दिर के आँगन में जाते थे, और परमेश्वर की स्तुति करते हुए बहुत समय बिताते थे।

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\toc2 John
\toc3 jhn
\mt1 यूहन्ना
\s5
\c 1
\p
\v 1 आरम्भ में शब्द था। शब्द परमेश्वर के साथ था, और शब्द ही परमेश्वर था।
\v 2 इससे पहले कि परमेश्वर कुछ भी बनाते वह उनके साथ था।
\v 3 यह वही है जिन्होंने सब कुछ बनाने के लिए परमेश्वर के आदेश को पूरा किया - हाँ निश्चय ही, जो कुछ भी बनाया गया था।
\s5
\v 4 शब्द में सम्पूर्ण जीवन है, इसलिए वह सब को और हर एक को जीवन दे सकते हैं। शब्द परमेश्वर का प्रकाश था जो हर स्थान हर किसी पर चमकता था।
\v 5 यह प्रकाश अंधेरे में चमका, और अंधेरे ने इसे समाप्त कर देने का प्रयास किया, परन्तु वह ऐसा नहीं कर पाया।
\p
\s5
\v 6 परमेश्वर ने यूहन्ना नामक एक व्यक्ति को भेजा।
\v 7 वह प्रकाश के विषय में लोगों को गवाही देने आया था। उसने जो कहा वह सच था, और उसने उस संदेश को घोषित किया जिससे कि हर कोई विश्वास करे।
\v 8 यूहन्ना स्वयं प्रकाश नहीं था, परन्तु वह लोगों को प्रकाश के विषय में बताने के लिए आया था।
\s5
\v 9 वह सच्चा प्रकाश जो हर किसी पर चमका, और वह प्रकाश संसार में आ रहा था।
\p
\s5
\v 10 वह शब्द संसार में था, और हालांकि उन्होंने संसार को बनाया था, परन्तु संसार के लोगों में से किसी को पता नहीं चला कि वह कौन था,
\v 11 यद्यपि वे संसार में आए जो उनका था, यहाँ तक की अपने लोगों के पास आए, जो यहूदी थे, फिर भी उन्हें अस्वीकार किया गया।
\s5
\v 12 परन्तु जिन्होंने उन्हें अपने जीवन में ग्रहण किया और उन पर विश्वास किया, उन्होंने उन लोगों को परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया।
\v 13 ये सन्तान परमेश्वर से जन्मी हैं। न उनका जन्म साधारण संतानोत्पत्ति के रूप में हुआ, न ही मनुष्य की इच्छा या चुनाव के कारण; और न ही पिता बनने की पति की इच्छा के कारण।
\p
\s5
\v 14 अब वह शब्द एक वास्तविक मनुष्य बन गए और वे यहाँ रहे जहाँ हम कुछ समय के लिए रह रहे हैं। हमने उनके महिमाशाली और आश्चर्यजनक स्वभाव को देखा, पिता के एकमात्र पुत्र के स्वभाव को देखा है, जो हमें दिखाता है कि परमेश्वर हमें ईमानदारी (सच्चे मन) से प्रेम करते हैं और हमें अपनी सच्चाई के विषय में सिखाते है।
\p
\v 15 एक दिन यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला लोगों को शब्द के विषय में बता रहा था, और यीशु उसके पास आए। यूहन्ना ने अपने चारों ओर खड़ी भीड़ को चिल्ला कर कहा, "मैंने तुमसे कहा था कि कोई मेरे बाद आएंगे जो मुझसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। वे मुझसे बहुत समय पहले से अस्तित्व में हैं, मेरे जन्म से पहले - अन्नत काल से हैं। यह व्यक्ति जो यहाँ हैं। यही वह व्यक्ति है जिनके विषय में मैं बात कर रहा था।"
\s5
\v 16 हमने उनके द्वारा किये गये कार्यों से बहुत लाभ उठाया है। उन्होंने बार-बार हम पर बहुत दया की है।
\v 17 मूसा ने यहूदी लोगों के लिए परमेश्वर की व्यवस्था का प्रचार किया। यीशु मसीह हमारे लिए हमारी योग्यता से कहीं अधिक दयालु थे और उन्होंने हमें परमेश्वर के विषय में सच्ची बातें सिखाई।
\v 18 किसी ने कभी भी परमेश्वर को नहीं देखा है परन्तु, यीशु मसीह, जो स्वयं परमेश्वर हैं, हमेशा पिता के निकट रहते हैं, उन्ही के द्वारा ही हम पिता को जान पायें है।
\p
\s5
\v 19 यूहन्ना ने अपनी गवाही यही दी: यहूदियों ने यरूशलेम से याजक और लेवियों को भेजा। वे यूहन्ना के पास पूछने आये, "तू कौन है?"
\v 20 तब यूहन्ना ने उनको गवाही दी और कहा, "मैं मसीह नहीं हूँ!"
\v 21 तब उन्होंने उस से पूछा, "तू अपने विषय में क्या कहेगा? क्या तू एलिय्याह है?" उसने कहा "नहीं"।" उन्होंने फिर से पूछा, "क्या तू वही भविष्यद्वक्ता है जिनके विषय में भविष्यद्वक्ताओं ने कहा था कि आएंगे?" यूहन्ना ने उत्तर दिया, "नहीं।"
\s5
\v 22 उन्होंने उससे एक बार फिर पूछा, "फिर तू कौन है? हमें बता कि हम वापस जाकर उन्हें बता सके, जिन्होंने हमें भेजा है। तू अपने विषय में क्या कहता है?"
\v 23 उसने उत्तर दिया जैसे कि यशायाह भविष्यद्वक्ता ने लिखा था, "मैं वही हूँ जो जंगल में चिल्ला रहा है, 'प्रभु के लिए मार्ग को अच्छा बनाओ कि वे हमारे पास आ सके।'
\p
\s5
\v 24 इनमें से फरीसियों के कुछ लोग यूहन्ना के पास आए थे।
\v 25 उन्होंने उससे पूछा, "क्योंकि तू कहता है कि तू न तो मसीह है और न ही एलिय्याह है और न ही भविष्यद्वक्ता है, तो तू बपतिस्मा क्यों दे रहा है?"
\s5
\v 26 "यूहन्ना ने उत्तर दिया," मैं लोगों को जल से बपतिस्मा देता हूँ, परन्तु अब कोई तुम्हारे बीच में खड़े है जिन्हें तुम नहीं जानते।
\v 27 वो मेरे बाद आते हैं, परन्तु मैं इस योग्य भी नहीं कि उनकी जूती को खोल सकूँ।"
\p
\v 28 ये बातें बैतनिय्याह के एक गांव में हुईं जो पूर्व की ओर यरदन नदी के किनारे था। यही वह स्थान है जहाँ यूहन्ना बपतिस्मा दे रहा था।
\p
\s5
\v 29 अगले दिन यूहन्ना ने यीशु को अपनी ओर आते देखा। उन्होंने लोगों से कहा, "देखो, परमेश्वर का मेम्ना, जो संसार के पापों को दूर करने के लिए अपना जीवन बलिदान कर देंगे।
\v 30 ये वही हैं जिनके विषय में मैंने कहा था, 'कोई मेरे बाद आएंगे जो मेरे से भी अधिक महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि वह मुझसे बहुत समय पहले से अस्तित्व में हैं, मेरे जन्म से पहले से - अनन्त युग से।'
\v 31 मैं उन्हें पहले नहीं जानता था, परन्तु अब मुझे पता है कि वे कौन हैं। मेरा काम था आना और उन लोगों को जल के साथ बपतिस्मा देना, जो क्षमा मांग कर और अपने पापों से मुड़ गए है। मैं चाहता हूँ कि इस्राएलियों को पता चले कि वह कौन है।"
\p
\s5
\v 32 यूहन्ना का काम था कि हमे बताये की उसने क्या देखा था। उसने इस प्रकार कहा: "मैंने स्वर्ग से परमेश्वर के आत्मा को कबूतर के रूप में उतरते हुए देखा। आत्मा नीचे आए और यीशु पर ठहर गया।
\v 33 पहले, मैं स्वयं उन्हें नहीं जानता था, परन्तु परमेश्वर ने मुझे लोगों को जल से बपतिस्मा देने के लिए भेजा, उन लोगों को जो कहते थे कि वे अपने पापी तरीकों से मुड़ना चाहते है। परमेश्वर ने मुझसे कहा, "जिस मनुष्य पर तुम मेरे आत्मा को उतरते हुए और ठहरते हुए देखोगे वह वही है जो तुम सब को पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देंगे।"
\v 34 मैंने देखा है और मैं तुम को गवाही देता हूँ कि वह परमेश्वर के पुत्र हैं।"
\p
\s5
\v 35 "यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला अगले दिन फिर से उसी स्थान अपने दो शिष्यों के साथ था।
\v 36 जब उन्होंने यीशु को वहाँ से गुज़रते देखा, तो उसने कहा, "देखो, परमेश्वर का मेम्ना, वह मनुष्य जिसे परमेश्वर ने अपने प्राण देने के लिए चुना है, वे इस्राएल के लोगों के द्वारा उनके पापों के भुगतान के लिए एक भेड़ के बच्चे के समान मारे जाएँगे।"
\s5
\v 37 यूहन्ना के दो शिष्यों ने जब यूहन्ना को सुना, तो यूहन्ना को छोड़ कर यीशु के पीछे चल दिए।
\v 38 यीशु ने उन्हें पीछे मुड़कर देखा, और उनसे पूछा, "तुम क्या ढूढ रहे हो?" उन्होंने उनसे कहा, "रब्बी (जिसका अर्थ है 'शिक्षक'), हमें बताओ कि आप कहां रहते हो ।"
\v 39 उन्होंने उत्तर दिया, "मेरे साथ आओ, और स्वयं देखो !" तो वे आए और देखा कि यीशु कहाँ रह रहे थे। वे उस दिन यीशु के साथ रहे क्योंकि शाम हो रही थी (लगभग 4 बजे का समय था।)
\p
\s5
\v 40 यीशु के पीछे आने वाले दो शिष्यों में से एक का नाम अन्द्रियास था; वह शमौन पतरस का भाई था।
\v 41 अन्द्रियास पहले अपने भाई शमौन को ढूंढने के लिए निकल गया जब वह उसके पास आया, तो उसने कहा, "हमे मसीह (जिसका अर्थ है 'मसीह') मिल गए है।"
\v 42 अन्द्रियास शमौन को यीशु के पास ले गया यीशु ने पतरस पर गौर किया, और कहा, "तू शमौन है, तेरे पिता का नाम यूहन्ना है, तुझे कैफा नाम दिया जाएगा।" कैफा एक अरामी नाम है जिसका अर्थ है 'ठोस चट्टान।' (पतरस का अर्थ यूनानी भाषा में भी यही है।)
\p
\s5
\v 43 अगले दिन यीशु ने यरदन नदी घाटी छोड़ने का फैसला किया। वह गलील के आस-पास के क्षेत्र में गए और उन्हें फिलिप्पुस नाम का एक व्यक्ति मिला। यीशु ने उससे कहा, "मेरे साथ आ।"
\v 44 फिलिप्पुस, अन्द्रियास और पतरस सब बैतसैदा (गलील में) नगर से थे।
\v 45 फिलिप्पुस अपने मित्र नतनएल की खोज करने के लिए गया। जब वह उसके पास आया, तो उससे कहा, "हमने उन्हें ढूंढ लिया है जिनके विषय में मूसा ने लिखा था, वह मसीह हैं। भविष्यद्वक्ताओं ने भविष्यवाणी की कि वह आएंगे।" यीशु मसीह हैं। वह नासरत के नगर से है। उनके पिता का नाम यूसुफ है।
\s5
\v 46 नतनएल ने उत्तर दिया, "नासरत से? क्या नासरत से कुछ अच्छा निकल सकता है?" फिलिप्पुस ने उत्तर दिया, "आ और स्वयं देख!"
\v 47 जब यीशु ने नतनएल को पास आते हुए देखा, तो उन्होंने उसके विषय में यह कहा, "देखो! एक ईमानदार और अच्छा इस्राएली; उसने कभी भी किसी को धोखा नहीं दिया।"
\v 48 नतनएल ने उससे पूछा, "आप कैसे जानते हैं कि मैं किस तरह का मनुष्य हूँ? आप मुझे नहीं जानते।" यीशु ने उत्तर दिया, "मैंने तुझे फिलिप्पुस द्वारा बुलाए जाने से पहले अंजीर के पेड़ के नीचे बेठे हुए देखा था।"
\s5
\v 49 तब नतनएल ने कहा, "हे गुरु, आप परमेश्वर के पुत्र हो! आप इस्राएल के राजा हो, हम आप ही की प्रतीक्षा कर रहे थे!"
\v 50 यीशु ने उसे उत्तर दिया, "क्या तू मुझ पर विश्वास इसलिए करता है क्योंकि मैंने तुझसे कहा कि मैंने तुझे अंजीर के पेड़ के नीचे देखा है? तू मुझे इससे महान कार्यों को करते हुए देखेगा!"
\v 51 तब यीशु ने उससे कहा, "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: जैसे तुम्हारे पूर्वज याकूब ने बहुत पहले देखा था, किसी दिन तुम स्वर्ग को खुलते देखोगे और तुम परमेश्वर के स्वर्गदूतों को ऊपर जाते हुए और निचे आते हुए अर्थात् मनुष्य के पुत्र पर उतरते हुए देखोगे।"
\s5
\c 2
\p
\v 1 तीन दिन बाद, गलील शहर के काना गाँव में एक विवाह था, और यीशु की मां वहीं थी।
\v 2 उन्होंने यीशु और उनके शिष्यों को भी विवाह में आमंत्रित किया था।
\s5
\v 3 वे विवाह में भाग लेने वालों को दाखरस परोस रहे थे और अतिथियों ने सारा दाखरस पी लिया। यीशु की माता ने यीशु से कहा, "उनका दाखरस समाप्त हो गया है "
\v 4 यीशु ने उनसे कहा, "महोदया, इससे मेरा क्या वास्ता है? मेरा सबसे महत्वपूर्ण काम करने का चुना हुआ समय अभी तक नहीं आया है।"
\v 5 यीशु की माता ने मुड़कर सेवकों से कहा, "जो कुछ भी यीशु तुमसे कहे वह करो ।"
\s5
\v 6 वहां छह खाली पत्थर के मटके थे। उनमें जल रखा जाता था ताकि अतिथि और सेवक अपने हाथों और पैरों को धो सके, और सफाई के अन्य यहूदी रिवाजों को पूरा किया जा सके। प्रत्येक मटके में 75 से 115 लीटर जल आ सकता था।
\v 7 यीशु ने सेवकों से कहा, " मटकों को जल से भर दो!" तो उन्होंने मटकों को ऊपर तक लबा-लब करके भर दिया।
\v 8 फिर यीशु ने उनसे कहा, "अब, एक मटके से जल निकालो और इसे दावत के प्रबंधक के पास ले जाओ।" तो सेवकों ने वैसा ही किया।
\s5
\v 9 दावत के प्रबंधक ने जल को चखा, जो अब दाखरस बन चुका था। वह नहीं जानता था कि दाखरस कहाँ से आया था, परन्तु सेवक जानते थे। तो उसने दुल्हे को अपने पास बुलाया।
\v 10 " सबसे अच्छा दाखरस पहले दिया जाता है, और बाद में जब अतिथि बहुत नशे में हो जाते हैं और अच्छा दाखरस समाप्त हो जाता है, तब वे सस्ता दाखरस देते हैं। परन्तु तूने अब तक सबसे अच्छा दाखरस बचा कर रखा था।"
\s5
\v 11 यह पहला चमत्कार था जो यीशु ने किया था, जो कि यीशु की सच्चाई को दर्शाता है। उन्होंने यह सब गलील के क्षेत्र के काना गांव में किया था। वहां उन्होंने दिखाया कि वह अद्भुत काम कर सकते हैं। इसलिए शिष्यों ने उन पर विश्वास किया।
\p
\s5
\v 12 इस के बाद यीशु, अपनी माता, भाइयों और अपने शिष्यों के साथ कफरनहूम नगर में गए, और वे वहां कुछ दिनों तक रहे।
\p
\s5
\v 13 अब यह लगभग यहूदियों के फसह के पर्व का समय था। यीशु और उनके शिष्य यरूशलेम को गए।
\v 14 वहां आराधनालय के आंगन में उन्होंने देखा कि लोग पशु, भेड़ और कबूतर बेच रहे हैं। जिन्हें आराधनालयों में बलि किया जाता था। यीशु ने उन लोगों को भी देखा जो तख्त पर बैठ कर पैसो का लेन-देन कर रहे थे ।
\s5
\v 15 इसलिए यीशु ने कुछ चमड़े की डोरियों से एक कोड़ा बनाया और उन्होंने उससे आराधनालय से भेड़ों और पशुओं को बाहर निकाल दिया। उन्होंने पैसे के लेन-देन करने वालो की चौकियों को उलट दिया और उनके सिक्कों को भूमि पर बिखेर दिया ।
\v 16 "उन्होंने कबूतरों को बेचने वालों को आदेश दिया," इन कबूतरों को यहाँ से ले जाओ! मेरे पिता के घर को बाज़ार में मत बदलो!"
\s5
\v 17 इससे उनके शिष्यों को उस विषय में याद आया जो किसी ने बहुत पहले धर्मशास्त्र में लिखा था, "हे परमेश्वर, मैं आपके घर से बहुत प्रेम करता हूँ, इतना कि मैं इसके लिए मर जाऊंगा।"
\p
\v 18 यहूदी अगुओं ने उनसे पूछा, "आप हमारे लिए ऐसा क्या चमत्कार कर सकते हो जिससे आप सिद्ध कर सको कि जो कुछ भी आप कर रहे हो वो आपने परमेश्वर की अनुमति से किया है?"
\v 19 यीशु ने उनसे कहा, "इस आराधनालय को नष्ट कर दो, और तीन दिन में मैं इसका फिर से निर्माण करूँगा।"
\s5
\v 20 " क्या आप यह कह रहे हो कि आप इस पूरे आराधनालय का पुनर्निर्माण सिर्फ तीन दिन में करने वाले हो ?" उन्होंने यीशु से कहा "इस आराधनालय का निर्माण करने में छियालीस साल लगे थे ।"
\v 21 हालांकि, जिस आराधनालय के विषय में यीशु बात कर रहे थे वह उनका शरीर था न कि आराधनालय।
\v 22 बाद में, यीशु की मृत्यु के बाद जब परमेश्वर ने उन्हें मरे हुओं में से जिलाया, उनके शिष्यों को याद आया कि उन्होंने आराधनालय के विषय में क्या कहा था। तब उन्होंने दोनों पर विश्वास किया जो शास्त्र कहता है और जो यीशु ने स्वयं कहा था।
\p
\s5
\v 23 जब यीशु फसह के पर्व के दौरान यरूशलेम में थे, तब बहुत से लोगों ने उन पर विश्वास किया क्योंकि उन्होंने चमत्कारों को देखा था जो यीशु के विषय में सच्चाई को दर्शाते थे।
\v 24 फिर भी, यीशु जानते थे कि लोग कैसे हैं, और क्योंकि वे उन्हें इतनी अच्छी तरह जानते थे, इसलिए उन्होंने उन पर विश्वास नहीं किया।
\v 25 उन्हें किसी को यह बताने की आवश्यकता नहीं थी कि लोग कैसे दुष्ट थे। वह उनके विषय में सब कुछ जानते थे।
\s5
\c 3
\p
\v 1 नीकुदेमुस नाम का एक व्यक्ति था। वह फरीसियों का सदस्य था, उन दिनों यहूदी विश्वास में फरीसियों का एक कट्टर समूह था। वह एक महत्वपूर्ण व्यक्ति था, जो सबसे ऊची यहूदी शासकीय परिषद का सदस्य था।
\v 2 वह रात को यीशु से मिलने के लिए आया। उस ने यीशु से कहा, हे गुरू, हम यह जानते हैं कि आप एक शिक्षक हैं जो परमेश्वर की ओर से आए हैं। हम यह जानते हैं क्योंकि कोई भी ऐसे चमत्कार नहीं कर सकता जब तक परमेश्वर उसकी सहायता ना करें।
\s5
\v 3 यीशु ने नीकुदेमुस से कहा, "मैं तुझसे सच कह रहा हूँ, कोई भी परमेश्वर के राज्य में तब तक प्रवेश नहीं कर सकता जब तक वह फिर से जन्म ना ले।"
\v 4 फिर नीकुदेमुस ने उनसे कहा, "बूढ़ा होने के बाद कोई व्यक्ति फिर से जन्म कैसे ले सकता है? कोई भी अपनी मां के गर्भ में प्रवेश कर के दूसरी बार जन्म नहीं ले सकता !"
\s5
\v 5 यीशु ने उत्तर दिया, "मैं विश्वास दिलाता हूँ कि यह भी सत्य है, कि कोई भी परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता जब तक कि वह जल और आत्मा दोनों के द्वारा जन्म न ले लें।
\v 6 अगर कोई मनुष्य से जन्म लेता है, तो वह मनुष्य होता है। पर वे लोग जो परमेश्वर के आत्मा के कार्य से फिर से जन्म लेते हैं, उनमें एक नया आत्मिक स्वभाव होता है जो परमेश्वर उनमें बनाते है।
\s5
\v 7 इससे अचंभित न हो, जब मैं कहता हूँ कि तुझे फिर से जन्म लेना चाहिए।
\v 8 यह इस प्रकार है: हवा जहाँ भी चाहती है वहां बहती है। तुम हवा की आवाज सुन सकते हो, परन्तु नहीं जानते कि वह कहां से आती है या कहां को जाती है। यह उन सब लोगों के समान है जो आत्मा के द्वारा जीवित किए गए हैं: आत्मा जिसको भी चाहे उसे नया जन्म दे सकते हैं।
\s5
\v 9 नीकुदेमुस ने उत्तर दिया, "यह कैसे सच हो सकता है?"
\v 10 यीशु ने उस को उत्तर दिया, "तू इस्राएल में एक महत्वपूर्ण शिक्षक है, और फिर भी तू समझ नहीं पा रहा कि मैं क्या कह रहा हूँ?
\v 11 मैं तुझ को सच कह रहा हूँ, हम उन बातों को ही कहते हैं जिन्हें हम सच मानते हैं और हम तुमको वह बता रहे हैं जो हमने देखा है, परन्तु तुम जिनसे हम इन बातों की चर्चा करते हैं, कोई भी हमारी बातों पर विश्वास नहीं करता है।
\s5
\v 12 यदि तू पृथ्वी के विषय में बताई गयी मेरी इन बातों पर जिनका मैं उल्लेख कर रहा हूँ, विश्वास नहीं करता तो जब मैं तुझसे स्वर्ग की बातें करूँगा तब तू मेरी उन बातों का विश्वास कैसे करेगा?
\v 13 मैं, मनुष्य का पुत्र, ही वह हूँ जो ऊपर स्वर्ग तक गया, और मैं ही हूँ जो यहाँ निचे पृथ्वी पर आया है।
\s5
\v 14 बहुत समय पहले मूसा, जब वह निर्गमन के समय जंगल में था, तब उसने एक विषैले साँप को एक खम्भे पर ऊँचा उठाया था और जिन्होंने उसकी ओर देखा वे बच गए थे। उसी प्रकार, मनुष्य के पुत्र को ऊपर उठाया जाना आवश्यक है।
\v 15 ताकि जो कोई ऊपर देखे और उन पर विश्वास करे, उसे अनन्त जीवन मिले।
\p
\s5
\v 16 परमेश्वर ने संसार से ऐसा प्रेम किया की उन्होंने अपना एकलोता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई भी उन पर विश्वास करेगा, वह मरेगा नहीं, परन्तु अनन्त जीवन पाएगा।
\v 17 परमेश्वर ने अपने पुत्र को संसार में दण्ड देने के लिए नहीं इस संसार को बचाने के लिए भेजा।
\v 18 जो कोई पुत्र पर विश्वास करता है, परमेश्वर उसे कभी भी दोषी नहीं ठहराएँगे, परन्तु जो कोई उन पर विश्वास नहीं करता है, परमेश्वर ने पहले से ही उसे दण्ड के लिए ठहरा दिया है, क्योंकि उसने परमेश्वर के एकलोते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं किया।
\s5
\v 19 परमेश्वर ने पापी लोगों के लिए अपने न्याय को सरल बनाया है ताकि सब देख सके: उनका प्रकाश संसार में आ गया है, परन्तु इस संसार के लोगों ने अपने अंधेरे से प्रेम किया और वे प्रकाश से छिपते हैं। वे अंधेरे से प्रेम करते थे क्योंकि वे जो कर रहे थे वह बुरा और दुष्ट था ।
\v 20 जो कोई दुष्ट काम करता है वह प्रकाश से घृणा करता है, और वे कभी उसके पास नहीं आएंगे क्योंकि प्रकाश उनके द्वारा किए गए कार्यों को उजागर करता है और प्रकट करता है कि वे कितने दुष्ट हैं।
\v 21 परन्तु जो लोग अच्छे और सच्चे काम करते हैं, वे प्रकाश के पास आते हैं जिससे की सब उनके कामों को देखें और जान लें कि जब वे इन कामों को करते है तो वे परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते है।
\p
\s5
\v 22 उन बातों के बाद यीशु और उनके शिष्य यहूदिया के क्षेत्र में गए। वह अपने शिष्यों के साथ कुछ समय तक वहाँ रहे और उन्होंने कई लोगों को बपतिस्मा दिया।
\p
\v 23 यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला भी सामरिया के इलाके में स्थित सालेम के पास ऐनोन के गांव में लोगों को बपतिस्मा दे रहा था। वहाँ बहुत जल था, और बहुत सारे लोग यूहन्ना के पास आते रहे
\v 24 यह उस समय से पहले कि बात है जब यूहन्ना के शत्रुओं ने उसे बंदीगृह में डाल दिया था।
\s5
\v 25 यूहन्ना के कुछ शिष्यों और एक यहूदी व्यक्ति के बीच पानी से धोकर शुद्ध होने के विषय में विवाद उठा कि परमेश्वर ऐसे ही स्वीकार करते हैं।
\v 26 जो लोग विवाद कर रहे थे, वे यूहन्ना के पास आए और कहा, "गुरु, वहाँ एक व्यक्ति था जो तेरे साथ था, जब तू यरदन नदी के दूसरी ओर के लोगों को बपतिस्मा दे रहा था। तूने उनकी तरफ इशारा किया और हमें बताया कि वह कौन थे। अब वह यहूदिया के पार बपतिस्मा दे रहे है और बहुत से लोग उनके पास जा रहे हैं।"
\s5
\v 27 "यूहन्ना ने उनको उत्तर दिया," मनुष्यों को कुछ भी नहीं मिल सकता, जब तक कि परमेश्वर उसको ना दें।
\v 28 तुम जानते हो कि मैं सच कह रहा था जब मैंने तुमसे कहा था, 'मैं मसीह नहीं हूँ, परन्तु मुझे उनसे पहले भेजा गया ताकि मैं उनके आने के लिए मार्ग को अच्छा बना सकूँ।'
\s5
\v 29 मैं दूल्हे के मित्र के समान हूँ। मैं दूल्हे के आने की प्रतीक्षा में हूँ। दूल्हे का मित्र बहुत आनन्दित होता है जब वह अंततः दुल्हे के आने का शब्द सुनता है। क्योंकि यह सब हो चुका है, मेरा आनन्द उमड़ रहा है क्योंकि वह आ गए हैं।
\v 30 समय के साथ वह स्थिति और महत्व में बढ़ेगा, और मैं कम और कम महत्वपूर्ण होता जाऊंगा ।
\p
\s5
\v 31 यीशु स्वर्ग से आए हैं, और वह किसी और की तुलना में ऊँचे पद पर हैं। हमार पृथ्वी पर वास करते है, और हम केवल पृथ्वी से संबंधित वस्तुओं की बात कर सकते हैं। जो स्वर्ग से आए हैं वह पृथ्वी पर और जो कुछ उसमें है उन सब से ऊपर हैं।
\v 32 अब यहाँ एक है जो उन बातों की गवाही देते हैं जो उन्होंने देखी और सुनी है, परन्तु कोई भी उन्हें स्वीकार नहीं करता और ना ही विश्वास करता है; कि यह सच है।
\v 33 परन्तु, जो लोग उन पर विश्वास करते हैं, वे यह प्रमाणित करते हैं कि परमेश्वर सम्पूर्ण सच्चाई के स्रोत हैं, और एकमात्र वही उन सब बातों के माप और मानक हैं जो सत्य है।
\s5
\v 34 परमेश्वर ने अपने प्रवक्ता को भेजा है, और जो उन्होंने कहा है वह सच है, क्योंकि वह परमेश्वर के शब्दों को कहते हैं और वह अपनी आत्मा निश्चिन्त होकर देते हैं कि कितना दे रहे है।
\v 35 पिता पुत्र से प्रेम करते हैं और उन्होंने सब कुछ उनकी शक्ति के अधीन रखा है।
\v 36 जो कोई परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करता है, उसके पास अनन्त जीवन है। जो कोई परमेश्वर के पुत्र का आज्ञा पालन नहीं करता है, वह अनन्त जीवन प्राप्त नहीं कर सकता है और जो भी पाप उस व्यक्ति ने किए है उसके लिए परमेश्वर का धार्मिक क्रोध उस पर सदा रहेगा।
\s5
\c 4
\p
\v 1 यीशु को फरीसियों के विषय में एक खबर मिली। उन्होंने जान लिया है कि यीशु यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले की तुलना में अधिक अनुयायी बना रहे हैं और वह यूहन्ना की तुलना में अधिक लोगों को बपतिस्मा दे रहे हैं;
\v 2 पर यीशु स्वयं बपतिस्मा नहीं दे रहे थे; उनके शिष्य ऐसा कर रहे थे।
\v 3 इसलिए यीशु और उनके शिष्यों ने यहूदिया के क्षेत्र को छोड़ दिया और एक बार फिर गलील में लौट आए।
\s5
\v 4 अब उन्हें सामरिया के क्षेत्र से जाना था।
\v 5 इसलिए वे सामरिया के क्षेत्र में सूखार नामक एक नगर में पहुंचे। सूखार उस भूमि के पास था जो याकूब ने अपने पुत्र यूसुफ को बहुत समय पहले दिया था।
\s5
\v 6 सूखार शहर के बाहर याकूब का कुआँ था। यीशु अपनी लंबी यात्रा से बहुत थक गए थे और वह कुएं के पास आराम करने के लिए बैठ गए। यह लगभग दोपहर का समय था।
\v 7 सामरिया की एक स्त्री कुएं से जल भरने के लिए आई। यीशु ने उससे कहा, "मुझे थोड़ा जल पिला।"
\v 8 उनके शिष्यों ने उनको अकेला छोड़ दिया था क्योंकि वे शहर में भोजन खरीदने के लिए गए थे।
\s5
\v 9 उस स्त्री ने उनसे कहा, "मुझे आश्चर्य है कि आप, एक यहूदी; सामरिया कि एक स्त्री से जल पीने के लिए मांग रहे हैं।"
\v 10 यीशु ने उसे उत्तर दिया, "यदि तुझे पता होता की परमेश्वर तुझे कौन-सा उपहार देना चाहते हैं और यदि तू जानती कि तुझसे कौन जल पीने के लिए मांग रहा है, तो तू मुझसे जल पीने के लिए मांगती और मैं तुझे जीवन का जल देता।"
\s5
\v 11 "महोदय, आपके पास बाल्टी या रस्सी नहीं है जिसके द्वारा जल को कुएं से बाहर निकाल सकोगे और यह कुआँ गहरा है। आप इस जीवन के जल को कहाँ से ले पाएंगे?
\v 12 आप हमारे पिता याकूब से महान नहीं हो सकते जिन्होंने यह कुआँ खोदा जिसे हम आज तक उपयोग कर रहे है, जहाँ से उन्होंने स्वयं जल पीया और उनके बच्चों और जानवरों ने भी पीया था। "
\s5
\v 13 यीशु ने उससे कहा, "जो कोई इस कुएं से जल पीता है, वह फिर से प्यासा होगा,
\v 14 परन्तु जो लोग वह जल पीते हैं जो मैं उन्हें दूंगा तो वे फिर कभी प्यासे नहीं होंगे। जो जल मैं उनको देता हूँ वह जल का सोता बन जाएगा जो उन्हें भर देता है और उन्हें अनन्त जीवन प्रदान करेगा।"
\s5
\v 15 उस स्त्री ने उनसे कहा, हे महोदय, मुझे यह जल दे दो, ताकि मैं कभी भी प्यासी ना रहूँ या मुझे जल निकालने के लिए यहाँ फिर से आना ना पड़े ।
\p
\v 16 यीशु जानते थे कि वह समझ नहीं पाई कि वह क्या कह रहे थे, इसलिए उन्होंने उससे कहा, "महोदया, जा और अपने पति को यहाँ ले आ।"
\s5
\v 17 उस स्त्री ने उन्हें उत्तर दिया, "मेरा कोई पति नहीं है।" यीशु ने उससे कहा, "तू सही कह रही है कि तेरा कोई पति नहीं है,
\v 18 क्योंकि तेरा केवल एक पति नहीं पांच पति थे और अब जिस व्यक्ति के साथ तू रह रही है वह भी तेरा पति नहीं है। तूने पति न होने की बात जो कही है वह सच है।"
\p
\s5
\v 19 स्त्री ने उनसे कहा, हे महोदय, मैं देख रही हूँ कि आप एक भविष्यद्वक्ता हैं।
\v 20 हमारे पूर्वजों ने यहाँ इस पहाड़ पर परमेश्वर की आराधना की थी, परन्तु आप यहूदियों का कहना है कि यरूशलेम वह स्थान है जहाँ हमें परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए। कौन सही है?"
\s5
\v 21 यीशु ने उससे कहा, "महोदया, मुझ पर विश्वास कर जब मैं कहता हूँ कि ऐसा समय आने वाला है जब न तो इस पहाड़ पर और ना ही यरूशलेम में लोग पिता की आराधना करेंगे।
\v 22 तुम सामरिया के लोग उसकी आराधना करते हो जिसे तुम नहीं जानते। हम यहूदी उपासक जानते हैं कि हम किसकी आराधना करते हैं क्योंकि उद्धार यहूदियों से आता है
\s5
\v 23 समय आ रहा है वरन आ गया है जब परमेश्वर की आराधना करने वाले लोग आत्मिकता और सच्चाई से पिता की आराधना करेंगे। पिता ऐसे लोगों की खोज करते हैं कि वे इस प्रकार उनकी आराधना करें।
\v 24 परमेश्वर आत्मा हैं, और जो लोग उनकी आराधना करते हैं, उन्हें आत्मिक रूप से उनकी आराधना करनी चाहिए, और आवश्यक है कि सत्य आराधना में उनकी अगुवाई करे।"
\s5
\v 25 स्त्री ने उनसे कहा, "मुझे पता है कि मसीह आ रहे हैं (जिन्हें "मसीह" भी कहा जाता है)। जब वह आएँगे, तो वह हमें सब कुछ बताएँगे जिसको सुनने की हमें आवश्यक्ता है।"
\v 26 "यीशु ने उससे कहा," मैं, जो तुमसे अभी बात कर रहा हूँ, मैं वही हूँ।"
\p
\s5
\v 27 तभी, शिष्य शहर से वापस आये। वे हैरान थे कि यीशु एक स्त्री से बात कर रहे थे जो उनके परिवार की सदस्य नहीं थी (यह यहूदी रिवाज के विरुद्ध था।) लेकिन, कोई भी इतना साहसी नहीं था, कि उनसे पूछताछ करें । "आप उस स्त्री से क्या बात कर रहे थे?" या "आप उसके साथ क्यों बात कर रहे थे?"
\p
\s5
\v 28 उस स्त्री ने वहां अपना जल का मटका छोड़ा और वापस शहर में चली गयी। उसने शहर के लोगों से कहा,
\v 29 "आओ और एक ऐसे मनुष्य को देखो जिसने मुझे वह सब बताया जो कुछ आज तक मैंने किया है! वह मसीह नहीं हो सकते, क्या वह हो सकते हैं?
\v 30 बहुत से लोग शहर से बाहर जाने लगे, जहाँ यीशु थे।
\p
\s5
\v 31 "उनके शिष्य, जो भोजन के साथ वापस आये ही थे, उन्होंने आग्रह किया," गुरु, कुछ खा लीजिए।"
\v 32 यीशु ने उनसे कहा, "मेरे पास खाने के लिए भोजन है जिसके विषय में तुम कुछ भी नहीं जानते।"
\v 33 "इसलिए वे एक दूसरे से कहने लगे," कोई और उनके लिए कुछ खाने को नहीं ला सकता, या कोई ला सकता है?"
\s5
\v 34 यीशु ने कहा, "मैं बताता हूँ कि मैं सबसे अधिक किस के लिए भूखा हूँ: अर्थात् वह कार्य करने के लिए जो मेरे पिता चाहते है और उनके सारे काम को पूरा करने के लिए जिन्होंने मुझे भेजा है।
\v 35 साल के इस समय तुम आमतौर पर कहते हो, 'चार महीने शेष हैं, और उसके बाद हम फसल काटेंगे।' अभी भी अपने चारों ओर देखो! इस समय फसल कटने के लिए तैयार हैं। गैर-यहूदी अब चाहते है कि परमेश्वर उन पर शासन करे; वे ऐसी फसलों के समान हैं जो अब कटाई के लिए तैयार हैं।
\v 36 जो इस पर विश्वास करता है और इस प्रकार के खेत में काम करने के लिए तैयार है वह पहले से ही अपनी मजदूरी प्राप्त कर रहा है और अनन्त जीवन के लिए बहुत फल एकत्र कर रहा है। जो बीज बोते हैं और जो लोग फसल काटते हैं, वे एक साथ आनन्दित होंगे।
\s5
\v 37 यह कथन सही है: एक व्यक्ति बीज बोता है, और दूसरा व्यक्ति फसलों की कटनी करता है।
\v 38 मैंने तुमको खेत से फसल एकत्र करने के लिए भेजा है जिसे तुम ने नहीं लगाया। दूसरों ने बहुत परिश्रम किया है, परन्तु अब तुम उनके काम में सहभागी हो रहे हो।"
\p
\s5
\v 39 सूखार शहर में रहने वाले कई सामरियों ने यीशु पर विश्वास किया क्योंकि उन्होंने जो भी यीशु के विषय में उस स्त्री से सुना था उसने कहा था, "उन्होंने मुझे सब कुछ बताया जो मैंने आज तक किया है।"
\v 40 जब सामरी लोग यीशु के पास आये, तब उन्होंने उनसे लम्बे समय तक वहां रहने का आग्रह किया; तो वह दो दिन और वहां रहे।
\s5
\v 41 उनमें से बहुतों ने यीशु पर उनके वचनों के कारण विश्वास किया
\v 42 उन्होंने उस स्त्री से कहा, "हम यीशु पर विश्वास करते हैं, इसलिए नहीं कि जो तुने उनके विषय में बताया है, परन्तु इसलिए कि हमने स्वयं उनका संदेश सुना है। अब हम जानते हैं कि यह सचमुच जगत के उद्धारकर्ता हैं।"
\p
\s5
\v 43 दो दिन बाद, यीशु और उसके शिष्य सामरिया से गलील चले गए।
\v 44 (यीशु ने स्वयं यह पुष्टि की कि एक नबी को कई जगहों पर सम्मान मिलता है, परन्तु वहाँ नहीं जहाँ वह पला-बढा हो।)
\v 45 जब वह गलील में पहुंचे, तो बहुत से लोगों ने वहां उनका स्वागत किया, वे जानते थे कि वह कौन है क्योंकि उन्होंने हाल ही में हुए फसह के पर्व के समय यरूशलेम में जो कुछ यीशु ने किया था, उसे देखा था।
\s5
\v 46 फिर यीशु गलील में काना के पास गए। (यह वही स्थान था जहाँ उन्होंने जल को दाखरस में बदल दिया था।) राजा का एक अधिकारी जो सत्ताईस किलोमीटर दूर कफरनहूम में रहता था, उसका पुत्र बहुत बीमार था।
\v 47 जब उस व्यक्ति ने सुना की यीशु यहूदिया से गलील में लौट आए हैं, तो वह काना में यीशु के पास गया और उनसे विनती की, "कफरनहूम में आकर मेरे पुत्र को स्वस्थ कर दें।" वह मरने वाला है!"
\s5
\v 48 यीशु ने उससे कहा, "जब तक तू मुझे वह कार्य करते हुए ना देख ले, जो सिद्ध करती हैं कि मैं कौन हूँ और मुझे चमत्कार करते हुए ना देख लो, तब तक तुम मुझ पर विश्वास नहीं करोगे!"
\v 49 "फिर भी अधिकारी ने उन से कहा," महोदय, मेरे पुत्र के मरने से पहले कृपया मेरे घर चलिए!"
\v 50 यीशु ने उससे कहा, "जा, तेरा पुत्र जीवित रहेगा।" उस व्यक्ति ने यीशु की कही बातों पर विश्वास किया और अपने घर वापस जाने लगा।
\s5
\v 51 जब वह कफरनहूम में अपने घर लौट रहा था, उसके सेवक उससे मार्ग पर मिले। उन्होंने कहा, "तुम्हारा पुत्र जीवित है।"
\v 52 अधिकारी ने उनसे पूछा, "किस समय मेरे पुत्र के स्वास्थ में सुधार आया ?" उन्होंने उससे कहा, "उसका बुखार कल दोपहर एक बजे उतर गया था।"
\s5
\v 53 तब लड़के के पिता को समझ में आया कि यही वह समय था जब यीशु ने उससे कहा था, "तेरा पुत्र जीवित रहेगा।" इसलिए उसने अपने घर में रहने वाले हर एक के साथ, यीशु पर विश्वास किया।
\p
\v 54 यह दूसरी बार था जब यीशु ने लोगों पर यह सिद्ध करने के लिए कुछ किया कि वह कौन हैं। उन्होंने यह उस समय के दोरान किया जब वह गलील क्षेत्र के यहूदिया से यात्रा करते हुए आए थे।
\s5
\c 5
\p
\v 1 फिर दूसरे यहूदी पर्व का समय आया और यीशु उसके लिए यरूशलेम गए।
\v 2 यरूशलेम में एक द्वार के पास, जो शहर की ओर जाता है, एक स्थान है जिसे भेड़-फाटक कहा जाता है। उस द्वार पर बैतहसदा नामक एक कुण्ड है (जैसा कि अरामी भाषा में कहा जाता है)। कुण्ड के बगल में पाँच ओसारे या स्तंभावली हैं।
\v 3-4 वहाँ बहुत से लोग थे, जो बीमार, अंधे और लंगड़े थे। कई लोग जो चल नहीं सकते थे, वे ओसारे पर लेटे थे।
\s5
\v 5 एक व्यक्ति जो चलने में असमर्थ था, वह वहाँ अड़तीस वर्षों से था।
\v 6 यीशु ने उसे पड़े हुए देखा और जान लिया कि वह इस स्थिति में लंबे समय से है। उन्होंने उस व्यक्ति से कहा, "क्या तू स्वस्थ और बलवंत होना चाहता है?"
\s5
\v 7 उस व्यक्ति ने उनको उत्तर दिया, "महोदय, यहाँ कोई नहीं है जो मुझे कुण्ड में उतरने में सहायता करे, जब जल हिलाया जाता है। जब भी मैं कुण्ड में पहुचने का प्रयास करता हूँ कोई और मुझ से पहले वहाँ पहुँच जाता है।"
\v 8 यीशु ने उससे कहाँ, "उठ, अपना बिस्तर उठा और चल।"
\s5
\v 9 तुरंत ही वह व्यक्ति ठीक हो गया, और उसने अपना बिस्तर उठाया और चला गया।
\p अब वह दिन सब्त का अर्थात विश्राम का दिन था।
\s5
\v 10 इसलिए यहूदी अगुवों ने उस व्यक्ति से कहा, जो ठीक हो गया था, "यह सब्त का दिन है, और तू जानता है कि यह हमारे व्यवस्था के विरुद्ध है कि तू इस विश्राम के दिन पर अपना बिस्तर उठा कर चले।"
\v 11 जो व्यक्ति स्वस्थ किया गया था, उसने यहूदी अगुवों से कहा, "परन्तु जिन्होंने मुझे स्वस्थ किया था, उन्होंने मुझे से कहा, 'अपना बिस्तर उठा और चल।'"
\s5
\v 12 उन्होंने उससे पूछा, "वह व्यक्ति कौन था?"
\v 13 यद्यपि यीशु ने उस व्यक्ति को स्वस्थ किया था, परन्तु उस व्यक्ति को यीशु का नाम नहीं पता था। उसे स्वस्थ करने के बाद, यीशु ने उस व्यक्ति को छोड़ दिया और भीड़ में गायब हो गए।
\p
\s5
\v 14 बाद में, यीशु को वह व्यक्ति आराधनालय में मिला और कहा, "देख, तू अब ठीक है। अब पाप मत करना, तो कुछ भी बुरा नहीं होगा।"
\v 15 वह व्यक्ति वहाँ से चला गया और यहूदी अगुवों से कहा कि जिस व्यक्ति ने उसे ठीक किया, वह यीशु थे।
\s5
\v 16 इसलिए यहूदियों ने यीशु को रोकने के प्रयास आरम्भ किए क्योंकि वह अद्भुत काम कर रहे थे और अपनी शक्ति दिखा रहे थे और क्योंकि वह प्रायः सब्त के दिन उन कामों को करते थे।
\v 17 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, "मेरे पिता अब तक काम कर रहे है, और मैं भी काम कर रहा हूँ।"
\v 18 यही कारण है कि यहूदी अगुवों ने यीशु को मार डालने के लिए और अधिक प्रयास करना आरम्भ कर दिया, केवल इसलिए नहीं कि वे सब्त के दिन के नियम को तोड़ रहे थे, परंतु इसलिए भी की उन्होंने परमेश्वर को अपना पिता कहा और दावा किया कि वे परमेश्वर के बराबर है।
\p
\s5
\v 19 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: मैं, मनुष्य का पुत्र, अपने अधिकार से कुछ नहीं कर सकता। मैं केवल वही कर सकता हूँ जो मैं पिता को करते हुए देखता हूँ। जो भी पिता करते है, वही मैं, उनका पुत्र, करता हूँ।
\v 20 पिता मुझसे प्रेम करते है, अर्थात् अपने पुत्र को और वह मुझे सब कुछ दिखाते है, जो वह करते है। पिता इससे भी महान काम मुझे दिखाएँगे, जिससे कि तुम देख सको कि मैं क्या कर सकता हूँ और आश्चर्यचकित हो।
\s5
\v 21 जैसे पिता उनको जीवित करते है जो मर चुके है और उन्हें फिर से जीवन देते है, इसलिए मैं, उनका पुत्र, जिसे चाहूँ उसे जीवन प्रदान कर सकता हूँ।
\v 22 पिता किसी का न्याय नहीं करते, परन्तु उन्होंने मुझे सबका न्याय करने का अधिकार दिया है,
\v 23 जिससे कि सब लोग मुझे, उनके पुत्र को, वैसे ही आदर दे जैसे वे पिता का आदर करते हैं। जो कोई मेरा आदर नहीं करता है वह पिता का आदर नहीं कर सकता।
\s5
\v 24 मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: जो कोई मेरा संदेश सुनता है और विश्वास करता है कि परमेश्वर ने मुझे भेजा है, वह अनन्त जीवन पायेगा और परमेश्वर के न्याय में नहीं आएगा। इसकी अपेक्षा, वह मृत्यु से जीवन में चला गया है।
\p
\s5
\v 25 मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: वह समय आ रहा है जब वे लोग जो मर चुके है वे मेरी वाणी सुनेंगे, मैं जो परमेश्वर का पुत्र हूँ और जो मेरी वाणी सुनेंगे वे जीवित रहेंगे।
\s5
\v 26 जैसे कि पिता लोगों को जीवन देने में सक्षम है, वैसे ही उन्होंने मुझे उनके पुत्र को, सामर्थ दी है, कि लोगों के जीने का कारण बने।
\v 27 पिता ने मुझे वह करने का अधिकार दिया है जो वह जानते है कि न्यायोचित है, क्योंकि मैं मनुष्य का पुत्र हूँ।
\s5
\v 28 इससे आश्चर्यचकित न हो क्योंकि ऐसा समय आएगा जब वे लोग जो मर चुके है; मेरी बुलाहट सुनेंगे
\v 29 और वे अपनी कब्रों से बाहर निकल आएंगे। परमेश्वर उन्हें अनन्त जीवन देने के लिए जिलाएंगे जिन्होंने भलाई की हैं; परन्तु जो लोग बुरा करते हैं, परमेश्वर उनको भी जिलाएंगे परन्तु केवल उनको दोषी ठहराने और अनन्त काल का दण्ड देने के लिए ।
\s5
\v 30 मैं अपने आप कुछ नहीं कर सकता, मैं पिता से सुनता हूँ, उसी प्रकार न्याय करता हूँ, और मैं निष्पक्ष न्याय करता हूँ। मैं उचित न्याय करता हूँ क्योंकि मैं ऐसा कार्य करने का प्रयास नहीं करता जैसा में चाहता हूँ वरन् वह करता हूँ जो मेरे पिता चाहते है, जिन्होंने मुझे यहाँ भेजा है।
\p
\v 31 यदि केवल मैं ही स्वयं अपना गवाह होता, तो कोई भी मेरी गवाही को सच्चा या विश्वसनीय नहीं मानता।
\v 32 फिर भी, कोई और है जो मेरे विषय में गवाही देता है, और मुझे पता है कि मेरे विषय में उसकी गवाही सच्ची है।
\s5
\v 33 तुमने यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के पास दूत भेजे और उसने तुमको मेरे विषय में सच्चाई बताई।
\v 34 वास्तव में उसको या किसी और को मेरे विषय में गवाही देने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु मैं ये बातें इसलिए कह रहा हूँ कि परमेश्वर तुमको बचा सकें।
\v 35 "यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला एक जलता और चमकता हुआ दीपक था, और तुम उसके प्रकाश में थोड़ी देर के लिए आनन्दित हुए।
\s5
\v 36 तथापि जो गवाही मैं अपने विषय में देता हूँ, वह यूहन्ना कि गवाही से भी महान है जो उसने मेरे विषय में दी है। उन सब कामों को जो पिता ने मुझे करने की अनुमति दी है - उन कामों को मैं हर दिन करता हूँ और तुम मुझे वह करते हुए देखते हो - ये सब काम बताते है कि मैं कौन हूँ, और मेरे यहाँ आने का उद्देश्य क्या है। यह प्रमाण हैं कि पिता ने मुझे भेजा है।
\v 37 जिस पिता ने मुझे भेजा है, यह वही हैं जिन्होंने मेरे विषय में गवाही दी है। तुमने कभी उनकी वाणी नहीं सुनी और न ही उन को शारीरिक रूप में कभी देखा है।
\v 38 तुम मुझ पर विश्वास नहीं करते, यह एक प्रमाण है कि उनका वचन तुम में जीवित नहीं है, जिसे पिता ने भेजा है।
\s5
\v 39 तुम सावधानी से धर्मशास्त्र का अध्ययन करते हो क्योंकि तुमको लगता है कि उन्हें पढ़ कर तुम अनन्त जीवन पाओगे और वे शास्त्र मेरे विषय में बताता है।
\v 40 फिर भी तुम मेरे पास आने से मना कर देते हो ताकि तुम मुझसे अनन्त जीवन प्राप्त कर सको।
\p
\s5
\v 41 यदि लोग मेरी प्रशंसा करते या मुझे बधाई देते हैं, तो मैं उनको अनदेखा करता हूँ।
\v 42 मैं तुम्हारे विषय में यह जानता हूँ, तुम परमेश्वर से प्रेम नहीं करते।
\s5
\v 43 मैं अपने पिता के अधिकार के साथ आया हूँ, परन्तु फिर भी तुम मेरा स्वागत नहीं करते या मुझ पर विश्वास नहीं करते हो। यदि कोई अन्य व्यक्ति अपने अधिकार के साथ आए, तो तुम उसकी बात सुनोगे।
\v 44 जब तुम दूसरों से आदर प्राप्त करने के लिय कठिन परिश्रम करते हो, तो तुम मुझ पर विश्वास कैसे करोगे? फिर भी, सम्पूर्ण समय तुम सच्चे आदर की तलाश करने से मना करते हो जो मात्र परमेश्वर से आता है।
\p
\s5
\v 45 यह मत सोचो कि मैं वही हूँ जो तुम्हें अपने पिता के सामने दोषी ठहराता है। तुमने सोचा कि मूसा तुम्हारी रक्षा करेगा, इसलिए तुम ने उस से अपनी आशा बांधी। परन्तु, यह मूसा ही है जो तुम पर आरोप लगाता है।
\v 46 यदि तुमने मूसा की बात को स्वीकार किया होता, तो तुमको सत्य के रूप में वह प्राप्त होता जो मैंने कहा;
\v 47 क्योंकि तुमने उस पर भी विश्वास नहीं किया जो मूसा ने लिखा, तो यह कैसे सम्भव है कि तुम उन बातों पर विश्वास करोगे जो मैंने तुमसे कही है।"
\s5
\c 6
\p
\v 1 यीशु झील के पार दूसरी ओर गए। कुछ लोगों के लिए झील का नाम "गलील का सागर" था; अन्य लोगों ने इसे "तिबिरियास का सागर" कहा।
\v 2 एक बड़ी भीड़ उनके पीछे आई क्योंकि उन्होंने उन चमत्कारों को देखा था जो यीशु ने उन लोगों को ठीक करने के लिए किए थे जो बहुत बीमार थे।
\v 3 यीशु एक पहाड़ी की ढ़लान पर चढ़ गए और अपने शिष्यों के साथ बैठ गए।
\s5
\v 4 अब यह समय वर्ष के फसह पर्व का था, यह यहूदियों का विशेष उत्सव था।
\v 5 यीशु ने ऊपर की ओर ध्यान दिया और देखा कि लोगों की एक बहुत बड़ी भीड़ उनकी तरफ बढ़ रही है। यीशु ने फिलिप्पुस से कहा, "हम रोटी कहाँ से खरीद सकते है जिससे इन सब लोगों को कुछ खिला सकें?"
\v 6 यीशु ने फिलिप्पुस से यह प्रश्न उसकी परिक्षा लेने के लिए पूछा, कि वह किस तरह से उत्तर देगा। जबकि, यीशु पहले से ही जानते थे कि वह इस समस्या के विषय में क्या करने वाले है।
\s5
\v 7 "फिलिप्पुस ने उत्तर दिया," अगर हमारे पास इतने पैसे हों जो एक व्यक्ति दो सौ दिन काम करके कमाता है, तो भी वह पैसा पर्याप्त नहीं होगा की इतनी बड़ी भीड़ में हर व्यक्ति को रोटी का एक टुकड़ा भी खरीद के खिला पाएँ।"
\v 8 उनके शिष्यों में से एक, अन्द्रियास, जो शमौन पतरस का भाई था, उसने यीशु से कहा,
\v 9 "यहाँ एक लड़का है जिसके पास पांच जौ की रोटियां और दो छोटी मछलियां हैं। फिर भी, इतना कम भोजन इतने सारे लोगों के लिए पर्याप्त नहीं होगा?"
\s5
\v 10 वह स्थान जहाँ से सब लोग एक साथ आ रहे थे वहाँ बहुत सी घास थी। इसलिए यीशु ने कहा, "लोगों को बैठने के लिए कहो।" तो सब लोग बैठ गए, और शिष्यों के द्वारा लोगों की गिनती करने के बाद उन्हें पता चला कि वे लगभग पांच हज़ार लोग थे।
\v 11 तब यीशु ने उन रोटियों और छोटी मछलियों को लिया और उनके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर उन्होंने भूमि पर बैठे सब लोगों के बीच रोटियां और मछलियां बाँटी, लोग जितना चाहते थे उतनी रोटियां और मछलियां खाईं।
\v 12 जब सब ने भोजन कर लिया, तो यीशु ने शिष्यों से कहा, "सब टुकड़ों को एकत्र करो जो लोगों ने नहीं खाया। कुछ भी नाश न होने देना।"
\s5
\v 13 इस प्रकार उन्होंने जौ की रोटियों के सारे टुकड़ों को एकत्र किया और जो कुछ भी बचा हुआ था उससे उन्होंने बारह बड़ी टोकरीयों को भरा।
\p
\v 14 लोगों ने यीशु के इस चमत्कार को देखा जो यीशु ने उनके सामने किया था, उन्होंने कहा, "निश्चय ही यही वे भविष्यद्वक्ता है जिसे परमेश्वर संसार में भेजने वाले थे।"
\v 15 यीशु जानते थे कि लोग क्या योजना बना रहे थे; वे उनके पास आने वाले थे और उन्हें अपना राजा बनाने के लिए मजबूर करेंगे। इसलिए यीशु ने उन्हें छोड़ दिया और पहाड़ पर चढ़ गये।
\p
\s5
\v 16 जब शाम हुई, तो उनके शिष्य गलील सागर के तट पर गए,
\v 17 फिर एक नाव पर चढ़े और कफरनहूम शहर के लिए समुद्र पार करते हुए नाव चलाना आरम्भ कर दिया। अब अंधेरा हो चुका था, और यीशु उनके साथ नहीं थे।
\v 18 तभी तेज हवा चलने लगी और समुद्र पर लहरें बहुत उठने लगीं।
\s5
\v 19 पांच या छह किलोमीटर खेने के बाद, शिष्यों ने यीशु को जल पर चलते और नाव के पास आते हुए देखा। वे भयभीत हो गए।
\v 20 यीशु ने उनसे कहा, "मैं हूँ, डरो मत!"
\v 21 वे उन्हें नाव में लेने में बहुत आनन्दित थे। जैसे ही यीशु उनके साथ आए, उनकी नाव उस स्थान पर पहुंची जहाँ वे सब जा रहे थे।
\p
\s5
\v 22 अगले दिन झील की दूसरी ओर रहने वाले लोगों को समझ में आया कि पिछले दिन वहाँ केवल एक नाव थी। वे यह भी जानते थे कि यीशु अपने शिष्यों के साथ नाव में नहीं गए थे।
\v 23 कुछ पुरुष तिबिरियास शहर से दूसरी नावों में झील के पार आए थे। उन्होंने उन जगहों के पास अपनी नावें रोकीं जहाँ लोगों ने रोटी खाई थी, वह रोटी जिसके लिए प्रभु ने परमेश्वर का धन्यवाद किया था।
\s5
\v 24 जब भीड़ को पता चला कि न तो यीशु और न ही उनके शिष्य वहाँ थे, उनमें से कुछ उन नावों में चढ़े और यीशु को खोजने के लिए कफरनहूम गए।
\p
\v 25 उन्होंने कफरनहूम में यीशु की खोज की और गलील के सागर की दूसरी और उन्हें देखा; उन्होंने यीशु से पूछा, "गुरु, आप यहाँ कब आए?"
\s5
\v 26 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: तुम मेरी खोज इसलिए नहीं कर रहे थे क्योंकि तुमने मुझे चमत्कार करते हुए देखा जो बताता है कि मैं कौन हूँ। नहीं! तुम तलाश इसलिए कर रहे थे क्योकि तुमने मेरी दी हुई रोटियां तब तक खायी जब तक तुम्हारा पेट नहीं भर गया।
\v 27 उस भोजन के लिए काम करना बंद करो जो शीघ्र ही खराब हो जायेगा; इसकी अपेक्षा, उस भोजन के लिए काम करो जो तुम्हारे लिए अनन्त जीवन लाएगा; यही वह रोटी है जिसे मैं, मनुष्य का पुत्र, परमेश्वर का चुना हुआ, तुमको दूँगा। जैसे पिता परमेश्वर मुझे हर प्रकार से स्वीकार करते हैं।"
\p
\s5
\v 28 तब लोगों ने उनसे पूछा, "परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए हम क्या काम और सेवा करें?"
\v 29 यीशु ने उत्तर दिया, "परमेश्वर तुमसे जो कार्य चाहते हैं, वह यह है: मुझ पर विश्वास करो, जिसे उन्होंने भेजा है।"
\s5
\v 30 "फिर उन्होंने यीशु से कहा," एक और चमत्कार करके दिखाओ, यह सिद्ध हो कि आप कौन हो, जिससे कि हम देख सके और विश्वास कर सकें कि आप परमेश्वर की ओर से आए हैं। आप हमारे लिए क्या करोगे ?
\v 31 हमारे पूर्वजों ने मन्ना खाया, जैसे कि पवित्र धर्मशास्त्र में लिखा है: "परमेश्वर ने उन्हें खाने के लिए स्वर्ग से रोटी दी।' "
\p
\s5
\v 32 यीशु ने उनसे कहा, "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: वह मूसा नहीं था, जो तुम्हारे पूर्वजों को स्वर्ग से रोटी देता था। नहीं, वह मेरे पिता थे, जो तुमको स्वर्ग से सच्ची रोटी दे रहे थे।
\v 33 परमेश्वर की सच्ची रोटी मैं हूँ, जो स्वर्ग से नीचे आया है ताकि संसार में हर किसी को वास्तव में जीने में सक्षम बना सकूँ। "
\p
\v 34 उन्होंने कहा, "महोदय, हमें हमेशा यह रोटी दें।"
\s5
\v 35 "यीशु ने उनसे कहा," जैसे लोगों को खाने के लिए भोजन की आवश्यक्ता होती है, वैसे ही आत्मिक रूप से जीने के लिए हर एक को मेरी आवश्यक्ता है। जो साधारण खाना और जल लेते हैं उन्हें फिर से भूख और प्यास लगेगी, परन्तु जो मुझसे पूछते हैं, और आत्मिक रूप से जीने के लिए मुझ पर विश्वास करते है, मैं उनके लिए ऐसा ही करूंगा।
\v 36 फिर भी, मैंने तुमको यह बता दिया है जबकि तुम मुझे देखते हो, परन्तु मुझ पर विश्वास नहीं करते हो।
\v 37 वे सब लोग जो मेरे पिता ने मुझे दिए हैं, मेरे पास आएंगे और जो भी मेरे पास आएगा, मैं उनको कभी भी दूर नहीं करूंगा।
\s5
\v 38 मैं स्वर्ग से नीचे आया, परन्तु जो मैं चाहता हूँ वह करने के लिए नहीं, अपितु मुझे भेजने वाले की इच्छा को पूरी करने के लिए।
\v 39 जिन्होंने मुझे भेजा है, वह यह चाहते हैं कि मैं उन लोगों में से किसी को भी ना खोऊँ, जिसे उन्होंने मुझे दिया है और उन सब को मैं अंतिम दिन जी उठाऊंगा।
\v 40 यही मेरे पिता चाहते है कि जो मुझ पर, उनके पुत्र पर विश्वास रखते है और विश्वास रखते हैं, उन्हें अनन्त जीवन मिलेगा। मैं उन्हें अंतिम दिन जी उठाऊंगा। "
\p
\s5
\v 41 यहूदी अगुवों ने यीशु के विषय में शिकायत करना आरम्भ कर दिया क्योंकि उन्होंने कहा था, "मैं वह रोटी हूँ जो स्वर्ग से नीचे आयी है।"
\v 42 उन्होंने कहा, "क्या यह यीशु नहीं है, जिसका पिता यूसुफ है? क्या हम उसके पिता और मां को नहीं जानते? वह कैसे सच कह सकता है, कि 'मैं स्वर्ग से आया हूँ?'
\s5
\v 43 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, "आपस में बड़बड़ाना बंद करो।
\v 44 कोई भी मेरे पास तब तक नहीं आ सकता जब तक कि पिता जिन्होंने मुझे भेजा है उसे मेरे पास खींचकर नहीं लाते। जो मेरे पास आता है, मैं उसे अंतिम दिन जी उठाऊंगा।
\v 45 यह भविष्यद्वक्ताओं के लेखों में लिखा है, 'परमेश्वर उन्हें सब कुछ सिखाएँगे।' जो कोई सुनता है और पिता से सीखता है, वह मेरे पास आता है।
\s5
\v 46 मुझे छोड़कर किसी ने भी कभी पिता को नहीं देखा है, मैं जो परमेश्वर की ओर से आया हूँ, केवल मैंने पिता को देखा है।
\v 47 मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: जो मुझ पर विश्वास करता है, उसके पास अनन्त जीवन है।
\s5
\v 48 मैं वह रोटी हूँ जो सच्चा जीवन देता है।
\v 49 तुम्हारे पूर्वजों ने जंगल में मन्ना खाया, फिर भी वे मर गए।
\s5
\v 50 तथापि, जिस रोटी के विषय में मैं कह रहा हूँ वह स्वर्ग से नीचे आता है और जो उसे खाएगा वह कभी नहीं मरेगा।
\v 51 मैं वह रोटी हूँ जो लोगों को वास्तव में जीवित रखता है, वह रोटी जो स्वर्ग से नीचे आया है यदि कोई यह रोटी खाता है, तो वह हमेशा के लिए जीवित रहेगा। जो रोटी मैं संसार के जीवन के लिए देता हूँ वह मेरी शारीरिक देह की मृत्यु है।"
\p
\s5
\v 52 जिन यहूदियों ने यीशु की बात सुनी थी वे अब आपस में गुस्से में बहस कर रहे थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि कोई ऐसी प्रतिज्ञा कैसे कर सकता है कि कोई दूसरा उसके शरीर को खाए!
\v 53 इसलिए यीशु ने उनका कठोर शब्दों से सामना किया: "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: जब तक तुम मेरा, मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ और मेरा लहू न पीओ, तुम हमेशा के लिए जीवित नहीं रह पाओगे।
\s5
\v 54 जो मेरा मांस खाते हैं और मेरा लोहू पीते हैं वे हमेशा के लिए जीवित रहेंगे, और मैं उन्हें अंतिम दिन फिर जीवित कर दूंगा।
\v 55 क्योंकि मेरा मांस सच्चा भोजन है और मेरा लहू सच्चा पेय है।
\v 56 जो मेरा मांस खाता है और मेरा लहू पीता है, वह मेरे साथ जुड़ जाएगा, और मैं उसके साथ जुड़ जाऊंगा।
\s5
\v 57 मेरे पिता, जो हर किसी को जीवित करते है, उन्होंने मुझे भेजा है, और मैं जीता हूँ क्योंकि मेरे पिता ने मुझे सक्षम बनाया है। उसी प्रकार, जो मुझे खाता हैं, वह मेरे कारण हमेशा के लिए जीवित रहेगा।
\v 58 मैं सच्ची रोटी हूँ जो स्वर्ग से नीचे आयी है। जो कोई मुझे खाता है वह कभी भी नहीं मरेगा, परन्तु हमेशा के लिए जीवित रहेगा। मैं जो करता हूँ वह वैसा नहीं है, जो तुम्हारे पूर्वजों के साथ हुआ, क्योंकि उन्होंने मन्ना खाया और फिर मर गये। "
\v 59 यीशु ने यह बातें उस समय कही जब वह कफरनहूम नगर के आराधनालय में सिखा रहे थे।
\p
\s5
\v 60 उनके शिष्यों में से कइयों ने कहा, "वह जो सिखा रहे हैं वह समझना मुश्किल है, जो वह कह रहे हैं वह कोई कैसे स्वीकार कर सकता है?"
\v 61 यीशु को पता था कि उनके कुछ शिष्य शिकायत कर रहे है, इसलिए उन्होंने उनसे कहा, "क्या मैं जो सिखाता हूँ वह तुम्हें लज्जित करता है?
\s5
\v 62 तुम क्या कहोगे यदि तुम मनुष्य के पुत्र को स्वर्ग में वापस जाता देखोगे ?
\v 63 केवल आत्मा ही जीवन दे सकता है जिससे कोई भी हमेशा के लिए जीवित रह सकता है। मानव स्वभाव इस विषय में कोई सहायता नहीं कर सकता। जो मैंने तुम्हें सिखाया है वह तुमको आत्मा के विषय में बताता है, और वह तुमको अनन्त जीवन के विषय में बताता है।
\s5
\v 64 परन्तु तुममें से कुछ लोग उस पर विश्वास नहीं करते जो मैं तुम्हें सिखाता हूँ । "यीशु ने यह कहा क्योंकि वह अपनी सेवा के आरम्भ से जानते थे कि कौन उन पर विश्वास नहीं करेगा, और वह उस व्यक्ति को जानते थे जो उनसे विश्वासघात करेगा।
\p
\v 65 "फिर उन्होंने कहा, "यही कारण है कि मैंने तुमसे कहा था कि कोई भी मेरे पास नहीं आ सकता है और सदा जीवित नहीं रह सकता जब तक पिता उसे मेरे पास आने के लिए सक्षम न कर दें।"
\p
\s5
\v 66 उस समय से, यीशु के कई शिष्यों ने उनके पीछे आना छोड़ दिया ।
\v 67 तो उन्होंने बारहों से कहा, "क्या तुम मुझे छोड़ना नहीं चाहते, या चाहते हो ?"
\v 68 शमौन पतरस ने उत्तर दिया, "हे प्रभु, हम किसके पास जाएंगे? केवल आपके पास वह संदेश है जो हमें अनन्त जीवन देता है!
\v 69 हम आप पर विश्वास करते हैं, और हमें पता है कि आप वह पवित्र हैं जिसे परमेश्वर ने भेजा है! "
\s5
\v 70 "यीशु ने उनसे कहा," क्या मैंने तुम बारह शिष्यों को नहीं चुना? फिर भी तुममें से एक शैतान है।"
\v 71 वह शमौन इस्करियोती के पुत्र यहूदा के विषय में बात कर रहा था। यद्यपि यहूदा बारहों में से एक था, वह वही था जो आगे चलकर यीशु को धोखा देगा।
\s5
\c 7
\p
\v 1 इसके बाद, यीशु गलील के अन्य क्षेत्रों में गए। उन्होंने यहूदिया की यात्रा करना न चाहा क्योंकि यहूदी अधिकारी उनको किसी अपराध में फंसाने का उपाय ढूढ़ रहे थे ताकि वे उन्हें मृत्युदण्ड दे सके।
\v 2 अब यहूदीयों के झोपड़ियों के पर्व का समय था। यह उनके लिए उस समय को स्मरण करने का एक समय था जब यहूदी लोग निर्गमन के समय तम्बुओं में रहते थे।
\s5
\v 3 क्योंकि यह पर्व यहूदिया में होना था, यीशु के भाईयों ने उनसे कहा, "इस स्थान को छोड़कर यहूदिया जाओ, ताकि तुम्हारे अन्य अनुयायी तुम्हारे शक्तिशाली कार्यों को देख सके जो तुम कर सकते हो।
\v 4 कोई भी अपना काम नहीं छिपाता यदि वह लोगों को बताना चाहता है कि वह कैसा व्यक्ति है। अपने आप को संसार को दिखा।"
\s5
\v 5 उनके भाइयों ने भी उन पर विश्वास न किया या न सोचा कि वह सच कह रहे थे।
\v 6 इसलिए यीशु ने उनसे कहा," मेरा समय नहीं आया कि मैं अपना कार्य समाप्त कर दूं। हालांकि, तुम अपनी इच्छा को पूरा करने के लिए कोई भी समय चुन सकते हो ।
\v 7 जो लोग स्वयं के लिए जीते हैं और इस संसार की वस्तुओं से प्रेम करते हैं, वे तुम से घृणा नहीं कर सकते, परन्तु वे मुझसे घृणा करते हैं क्योंकि मैं उनको बताता हूँ कि वे अपने जीवन के साथ जो करते हैं, वह बुरा है।
\s5
\v 8 तुम पर्व में जाओ, मैं अभी नहीं जा रहा हूँ ; यह मेरे लिए सही समय नहीं है।"
\v 9 उनके यह कहने के बाद, यीशु गलील में थोड़ी देर ओर रुके।
\p
\s5
\v 10 हालांकि, उनके भाइयों के पर्व में जाने के कुछ दिन बाद, वे भी पर्व में गए, परन्तु अत्यंत गुप्त रूप से।
\v 11 यीशु के यहूदी विरोधी उन्हें खोज रहे थे, वह आशा कर रहे थे कि उन्हें पर्व में ढूढ़ लेंगे। वे लोगों से पूछ रहे थे, "यीशु कहाँ है? क्या वे यहाँ है?"
\s5
\v 12 भीड़ के बीच, बहुत से लोग चुपचाप यीशु के विषय में एक दूसरे से बात कर रहे थे। कुछ लोग कह रहे थे, "वह एक अच्छा व्यक्ति है!" परन्तु कुछ लोग कह रहे थे, "नहीं, वह धोखेबाज़ है और भीड़ को मार्ग से भटका रहा है!"
\v 13 क्योंकि वे यीशु के यहूदी शत्रुओं से डरते थे, इसलिए किसी ने भी उनके विषय में किसी सार्वजनिक स्थान पर कोई बात नहीं की, जहाँ अन्य लोग सुन सके कि वह क्या कह रहे थे ।
\p
\s5
\v 14 जब झोपड़ियों का पर्व लगभग आधा समाप्त हो गया था, तो यीशु आराधनालय के आंगन में गए और वहां शिक्षा देने लगे।
\v 15 यहूदी उनकी बातें सुनकर चकित थे। उन्होंने कहा, "इस व्यक्ति ने कभी भी स्वीकृत गुरु के पास हमारे सिद्धांतों का अध्ययन नहीं किया, वह हमारे पाठशालाओं में कभी नहीं गया, तो वह इतना सब कैसे जानता है?"
\v 16 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "जो मैं सिखाता हूँ, वह मुझ से नहीं आता परन्तु परमेश्वर की और से आता हैं, जिन्होंने मुझे भेजा है।
\s5
\v 17 यदि कोई परमेश्वर की इच्छा पूरी करने का चुनाव करता है, तो वह जान लेगा कि मैं जो सिखाता हूँ वह परमेश्वर की और से आता है या फिर मैं केवल अपने अधिकार से बोलता हूँ।
\v 18 जो कोई अपने अधिकार से बोलता है वह अन्य लोगों से आदर प्राप्त करने के लिए करता है। परन्तु, यदि कोई सेवक उस व्यक्ति का आदर करने में कठोर परिश्रम करता है जिसने उसे भेजा है, कि उसे एक विश्वासयोग्य व्यक्ति के रूप में अच्छी प्रतिष्ठा मिले, तो ऐसे सेवक में कोई दोष नहीं है।
\s5
\v 19 क्या मूसा ने तुम्हें व्यवस्था नहीं दी? फिर भी तुम में से कोई भी वह नहीं करता जो व्यवस्था चाहती है। तुम वही लोग हो जो अभी मेरी हत्या करने की योजना बना रहे हो।
\p
\v 20 भीड़ में से किसी ने उत्तर दिया, "तुम्हारे में दुष्ट-आत्मा है, उस व्यक्ति का नाम बताओ जो तुमको मारना चाहता है!"
\s5
\v 21 यीशु ने भीड़ को उत्तर दिया, "क्योंकि मैंने तुम्हें दिखाने के लिए एक सामर्थ्य का काम किया है, तुम सब उस पर आश्चर्यचकित हो।
\v 22 मूसा ने तुम्हें व्यवस्था दी, और उस व्यवस्था के अनुसार तुमको अपने नर बच्चों का खतना करना चाहिए और बच्चों के जन्म के ठीक सात दिन बाद ही तुमको ऐसा करना है। (सटीक होने के लिए, यह रीती तुम्हारे पूर्वजों, अब्रहाम, इसहाक और याकूब से थी न कि मूसा से, जिसने इस अभ्यास के विषय में व्यवस्था लिखी थी।) व्यवस्था की इस आवश्यकता के कारण, तुमको कभी-कभी किसी बच्चे का सब्त के दिन खतना करना पड़ता है और यह होता रहा है।
\s5
\v 23 तुम कभी कभी सब्त के दिन लड़कों का खतना करते हो ताकि तुम मूसा की व्यवस्था का उल्लंघन न करों। तो तुम मुझसे क्यों क्रोधित हो की मैंने सब्त के दिन किसी व्यक्ति को स्वस्थ किया। किसी को स्वस्थ करना अद्भुत है और किसी बच्चे का खतना करने से अधिक बड़ा काम है।
\v 24 परमेश्वर की व्यवस्था को बिना सोचे समझे गलत रीती से लागू करने के अनुसार यह निर्णय लेना बंद कर दो कि क्या इस व्यक्ति को स्वस्थ करना सही था या गलत, इसकी अपेक्षा, यह निर्णय लो कि किसी व्यक्ति को क्या करना चाहिए और उसका न्याय कैसे करना चाहिए, इस सिद्धांत के अनुसार कि क्या सही है परमेश्वर के अनुसार, न कि मनुष्य के अनुसार।
\p
\s5
\v 25 यरूशलेम के कुछ लोग कह रहे थे, "क्या यह वह व्यक्ति नहीं है जिसे लोग मार डालने का प्रयास कर रहे हैं?
\v 26 वह ये बातें सार्वजनिक रूप से कह रहा है, परन्तु अधिकारियों ने उसके विरोध में कुछ भी नहीं कहा है। क्या यह इसलिए है कि वे जानते हैं कि वह मसीह है?
\v 27 परन्तु यह मसीह नहीं हो सकता! हम जानते हैं कि यह व्यक्ति कहाँ से आया है, परन्तु जब मसीह आएगे, तब कोई भी नहीं जान पाएगा कि वह कहां से आते हैं।"
\p
\s5
\v 28 "जब यीशु आराधनालय के आंगन में शिक्षा दे रहे थे, तो जैसा उन्होंने सिखाया वैसे ही उन्होंने पुकार के कहा, "हाँ, तुम कहते हो कि तुम मुझे जानते हो, और तुम सोचते हो कि तुम जानते हो मैं कहां से हूँ, परन्तु मैं यहाँ इसलिए नहीं आया कि मैं स्वयं को नियुक्त करता हूँ। इसकी अपेक्षा, जिन्होंने मुझे भेजा है, वह मेरी सच्चाई अपनी गवाही के रूप में देते हैं, और तुम उन्हें नहीं जानते।
\v 29 मैं उन्हें जानता हूँ क्योंकि मैं उनके पास से आया हूँ, यह वही हैं जिन्होंने मुझे भेजा है।"
\p
\s5
\v 30 तब लोगों ने यीशु को पकड़ने का प्रयास किया, परन्तु कोई उन्हें पकड़ नहीं सका क्योंकि यह उनके काम को पूरा करने का और उनके जीवन को खत्म करने का समय नहीं था।
\v 31 भीड़ में से बहुत लोगों ने, उनको सुनने और उनके कामों को देखने के बाद, उन पर विश्वास किया। उन्होंने कहा, "जब मसीह आएंगे, तो क्या वह इस व्यक्ति से अधित चमत्कारी चिन्ह दिखायेंगे?"
\v 32 फरीसियों ने यीशु के विषय में इन बातों को चुपचाप सुना, फिर प्रधान याजकों और फरीसियों ने कुछ अधिकारियों को उन्हें बन्दी बनाने के लिए भेजा।
\p
\s5
\v 33 "फिर यीशु ने कहा," मैं तुम्हारे साथ थोड़े समय तक ही हूँ, फिर मैं उनके पास वापस जा रहा हूँ जिन्होंने मुझे भेजा है।
\v 34 तुम मेरी खोज करोगे, परन्तु तुम मुझे ढूढ़ नहीं पाओगे मैं जहाँ जा रहा हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते।"
\s5
\v 35 इसलिए यहूदी लोग जो उनके शत्रु थे आपस में कहने लगे, "यह व्यक्ति कहाँ जा रहा है जहाँ हम उसे नहीं ढूढ़ पाएंगे? क्या यह वहाँ जाने कि सोच रहा है जहाँ यहूदी लोग यूनानी लोगों के बीच फैले हुए हैं और क्या वह वहां लोगों को इन नई बातों को सिखायेगा?
\v 36 उसका क्या अर्थ था जब उसने कहा, 'तुम मुझे खोजोगे, परन्तु तुम मुझे ढूढ़ नहीं पओगें,' और जब उसने कहा, 'मैं वहाँ जा रहा हूँ, जहाँ तुम नहीं आ सकते?'
\p
\s5
\v 37 पर्व के अंतिम दिन, अर्थात् महान दिन, यीशु ने ऊँचे स्वर से चिल्लाकर कहा, "यदि कोई प्यासा है, तो वह मेरे पास आकर पीए।"
\v 38 जो कोई मुझ पर विश्वास करता है, जैसा कि पवित्र शास्त्र में कहा गया है, 'उसके हृदय से जीवित जल की नदियों का प्रवाह होगा।'
\s5
\v 39 उन्होंने आत्मा के विषय में यह कहा था, जिन्हें पिता उन पर विश्वास करने वालों को देने वाले थे। परमेश्वर ने पवित्र आत्मा अब तक उन लोगों में नहीं भेजा था जो उन पर विश्वास करते थे, क्योंकि यीशु ने अभी तक अपना काम पूरा नहीं किया था, वह काम जो उनकी मृत्यु द्वारा लोगों को बचाकर परमेश्वर के लिए महान आदर लायेगा।
\p
\s5
\v 40 जब भीड़ में से कुछ लोगों ने यह शब्द सुना तो उन्होंने कहा, "यह वास्तव में भविष्यद्वक्ता है जिसकी हम आशा कर रहे थे।"
\v 41 अन्य लोगों ने कहा, "मसीह गलील से नहीं आ सकते।
\v 42 क्या पवित्र धर्मशास्त्र में नहीं लिखा कि मसीह को दाऊद के वंशजों में से आना है और उनका जन्म बैतलहम में होगा, वह गाँव जहाँ दाऊद का घर था ?"
\s5
\v 43 इसलिए यीशु के विषय में उनके विचारों में विभाजन हुआ।
\v 44 कुछ लोग उन्हें बन्दी बनाना चाहते थे। फिर भी कोई भी उन को पकड़ नहीं पाया ।
\p
\s5
\v 45 तब वे अधिकारी प्रधान याजकों और फरीसियों के पास लौट आए। ये वे अधिकारी थे जिन्हें शासकों ने यीशु को गिरफ्तार करने के लिए भेजा था। फरीसियों ने अधिकारियों से कहा, "तुम उसे पकड़ कर यहाँ क्यों नहीं लाये?"
\v 46 "अधिकारियों ने उत्तर दिया," किसी ने भी आज तक इस व्यक्ति के समान बात नहीं की ।"
\s5
\v 47 फिर फरीसियों ने उत्तर दिया, "क्या तुम भी धोखेबाज़ हो?
\v 48 यहूदी अधिकारियों या फरीसियों में से कोई भी यीशु पर विश्वास नहीं करता था।
\v 49 यह भीड़ जो हमारी व्यवस्था की शिक्षाओं को नहीं जानती है, वह श्रापित हो।"
\p
\s5
\v 50 फिर नीकुदेमुस ने कहा। (वह वही था जो रात में यीशु से बात करने गया था, और वह फरीसियों में से एक था।) उसने उनसे कहा,
\v 51 "हमारी यहूदी व्यवस्था हमें किसी व्यक्ति को दण्ड देने की अनुमति नहीं देती, इससे पहले कि हम उसे सुन न लें। सबसे पहले, हमे उसे सुनना हैं, और जो कुछ भी उसने किया है हमे उसके विषय में जानना है।"
\v 52 उन्होंने उत्तर दिया, "क्या तू भी गलील से है? ध्यान से खोजो और पढों कि पवित्र धर्मशास्त्र में क्या लिखा है। तुम्हें पता चलेगा कि कोई भी भविष्यद्वक्ता गलील से नहीं आता।"
\p
\s5
\v 53 तब वे सब वहाँ से निकले और अपने- अपने घर चले गए।
\s5
\c 8
\p
\v 1 यीशु अपने शिष्यों के साथ जैतून पहाड़ पर गए और वे उस रात वहां रहे।
\v 2 अगली सुबह, यीशु आराधनालय के आंगन में लौट आए, बहुत से लोग उनके चारों ओर एकत्र हुए, और यीशु उन्हें सिखाने के लिए बैठ गए।
\v 3 तब जो लोग यहूदी व्यवस्था को पढ़ाते थे और कुछ फरीसियों ने उनके सामने एक स्त्री को लाकर खड़ा किया। वह व्यभिचार में पकड़ी गई थी- वह एक ऐसे व्यक्ति के साथ रह रही थी जो उसका पति नहीं था। उन्होंने उसे इस समूह के सामने खड़ा किया ताकि वे यीशु से प्रश्न कर सकें।
\s5
\v 4 उन्होंने यीशु से कहा, "गुरु, यह स्त्री एक पुरुष के साथ व्यभिचार करती हुई पकड़ी गयी थी, जो उसका पति नहीं है।
\v 5 मूसा ने हमें व्यवस्था में आदेश दिया है कि हमें ऐसी स्त्री पर पत्थराव करके मार डालना चाहिए। फिर भी, आप क्या कहते हैं कि हमें करना चाहिए?"
\v 6 उन्होंने यीशु को फसाने के लिए यह प्रश्न पूछा कि वे कुछ गलत कहने के आरोप में उन पर दोष लगा सकें। यदि वह कहते कि उन्हें उस स्त्री को नहीं मारना चाहिए, तो वे कहते कि यीशु ने मूसा की व्यवस्था का अपमान किया है और यदि वह कहते कि स्त्री को मारना चाहिए, तो वह रोमी कानून को तोड़ते, क्योकि केवल राज्यपाल को ही यह अधिकार प्राप्त है कि लोगों को मृत्युदंड दें। यीशु नीचे झुककर अपनी अंगुली से भूमि पर कुछ लिखने लगे
\s5
\v 7 जब फरीसियों ने यीशु से प्रश्न करना जारी रखा, तब उन्होंने खड़े होकर उनसे कहा, "तुम में से जिसने कभी भी कोई पाप नहीं किया, उसी व्यक्ति को उसे दण्ड देने के लिए लोगों का नेतृत्व करना चाहिए। वही पहले उस को पत्थर मारे।"
\v 8 फिर यीशु नीचे झुक कर भूमि पर दुबारा कुछ लिखने लगे।
\s5
\v 9 इसके बाद जब फरीसियों ने वह सब सुना जो यीशु ने कहा, तो वे लोग जो उनसे प्रश्न कर रहे थे, एक-एक करके वहाँ से दूर जाने लगे, सबसे पहले बड़ी उम्र के लोग और फिर छोटी उम्र के लोग। वे जानते थे कि वे सब पापी है। अंत में केवल यीशु ही उस स्त्री के साथ थे।
\v 10 यीशु ने खड़े होकर उससे पूछा, "हे स्त्री, वे लोग कहाँ गये जो तुझ पर आरोप लगा रहे थे? क्या किसी ने तुझ पर कोई आरोप नहीं लगाया कि तुझे दण्ड दिया जाए?"
\v 11 उसने कहा, "नहीं, महोदय, किसी ने भी नहीं।" फिर यीशु ने कहा, " तो मैं भी तुझ पर दोष नहीं लगता हूँ। अब घर जा, और अब से, इस प्रकार पाप मत करना।"
\p
\s5
\v 12 यीशु ने फिर से लोगों से बात की। उन्होंने कहा, "मैं संसार का प्रकाश हूँ; जो कोई मेरे पीछे हो लेगा उसे वह प्रकाश मिलेगा जो जीवन देता है, और वह अंधेरे में फिर कभी नहीं चलेगा।
\v 13 इसलिए फरीसियों ने उनसे कहा, "ऐसा लगता है जैसे तू हमें अपने विषय में अधिक से अधिक बता कर मनाने का प्रयास कर रहा है कि हम तुम पर विश्वास करे। तुम जो स्वयं के विषय में कहते हो,वह कुछ भी सिद्ध नहीं करता।"
\s5
\v 14 यीशु ने उत्तर दिया, "यदि मैं स्वयं की गवाही देता हूँ, तो मेरी गवाही सच्ची है क्योंकि मुझे पता है कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ। परन्तु तुम नहीं जानते कि मैं कहां से आया और कहाँ जा रहा हूँ।
\v 15 तुम मनुष्यों के मानकों और नियमों के अनुसार न्याय करते हो; मैं इस समय किसी का न्याय करने नहीं आया।
\v 16 जब मैं न्याय करता हूँ, तो वह सही होगा क्योंकि केवल में अकेला नहीं हूँ जो न्याय लाएगा। मैं और पिता जिन्होंने मुझे भेजा है, हम एक साथ न्याय को लागू करेंगे।
\s5
\v 17 यह तुम्हारी व्यवस्था में लिखा है कि कोई विषय तब ही निश्चित किया जा सकता है जब उस विषय में गवाही देने के लिए कम से कम दो गवाह हों।
\v 18 मैं अपने विषय में तुम्हें गवाही दे रहा हूँ और मेरे पिता जिन्होंने मुझे भेजा है, वह भी मेरे विषय में गवाही दे रहे हैं, तो तुमको इस बात पर विश्वास करना चाहिए कि हम जो कहते हैं, वह सच है।"
\p
\s5
\v 19 तब उन्होंने यीशु से पूछा, "तुम्हारा पिता कहां है?" यीशु ने उत्तर दिया, "तुम मुझे नहीं जानते, और तुम मेरे पिता को भी नहीं जानते, यदि तुम मुझे जानते, तो तुम मेरे पिता को भी जानते।"
\v 20 उन्होंने यह बातें तब कहीं जब वह आराधनालय के आंगन में भंडार घर के पास थे, जिस स्थान पर लोग अपनी भेंट चढ़ाते थे, फिर भी किसी ने उन्हें बन्दी नहीं बनाया क्योंकि उनकी मृत्यु का समय अभी नहीं आया था।
\p
\s5
\v 21 यीशु ने उनसे कहा, "मैं जा रहा हूँ, और तुम मुझे ढूंढ़ोगे, परन्तु यह निश्चित है कि तुम अपने पाप में मरोगे। मैं जहाँ जा रहा हूँ, तुम वहां नहीं आ सकते।
\v 22 उनके यहूदी विरोधियों ने आपस में कहा, "शायद वह सोच रहा है कि वह स्वयं को मार डालेगा, और यही उसका अर्थ है जब वह कहता है, 'मैं वहां जा रहा हूँ, जहाँ तुम नहीं आ सकते।"
\s5
\v 23 यीशु ने उनसे कहा, "तुम नीचे इस पृथ्वी से हो, परन्तु मैं स्वर्ग से हूँ, तुम इस संसार से हो, मैं इस संसार से नहीं हूँ।
\v 24 मैंने तुमसे कहा था कि तुम मर जाओगे और यह कि परमेश्वर तुम्हारे पापों के लिए तुम्हें दोषी ठहराएगे। यह निश्चित रूप से तब तक होगा जब तक तुम विश्वास नहीं करते कि मैं परमेश्वर हूँ, जैसा कि मैं कहता हूँ।"
\p
\s5
\v 25 "तुम कौन हो?" उन्होंने यीशु से पूछा, यीशु ने उनसे कहा, "मैं आरम्भ ही से तुम से कह रहा हूँ।
\v 26 मैं तुम्हारा न्याय कर सकता हूँ और कह सकता हूँ कि तुम कई बातों में दोषी हो। परन्तु, मैं केवल यही कहूँगा: जिन्होंने मुझे भेजा है, वह सच कहते है, और मैं संसार में लोगों को वही बताता हूँ जो मैंने उनसे सुना है।
\p
\v 27 फरीसियों को समझ नहीं आया कि वह पिता के विषय में बात कर रहे थे।
\s5
\v 28 इसलिए यीशु ने कहा, "जब तूम मुझे क्रूस पर मारने के लिए चढ़ाओगे, मुझे अर्थात् मनुष्य के पुत्र को तब तुम्हें पता चल जयेगा कि मैं परमेश्वर हूँ, और तुमको पता चलेगा कि मैं अपने अधिकार से कुछ नहीं करता, परन्तु मैं केवल वही कहता हूँ जो मेरे पिता ने मुझे कहने के लिए सिखाया है।
\v 29 जिन्होंने मुझे भेजा है वह मेरे साथ हैं, और उन्होंने मुझे अकेला नहीं छोड़ा है क्योंकि मैं केवल वही काम करता हूँ जो उन्हें प्रसन्न करते हैं।"
\v 30 "जब यीशु यह बातें कह रहे थे, तब बहुत लोग उन पर विश्वास करने लगे।
\p
\s5
\v 31 फिर यीशु ने उन यहूदीयों से कहा जो अब कह रहे थे कि वे उन पर विश्वास करने लगे है, "यदि तुम सब कुछ सुनोगे जो मैं तुमको सिखाता हूँ और जो कुछ कार्य करते हो उन सब में उन शिक्षाओं के द्वारा जीते हो, तो तुम वास्तव में मेरे शिष्य हो।
\v 32 तुम सत्य को जान लोगे, और सत्य तुमको उन सब से स्वतंत्र होने में सहायता करेगा जो तुमको दास बनाते हैं।"
\v 33 "उन्होंने उत्तर दिया, "हम अब्राहम की सन्तान हैं, और हम कभी किसी के दास नहीं बने हैं, तुम क्यों कहते हो कि हमें स्वतंत्र होने की आवश्यकता है?
\s5
\v 34 यीशु ने उत्तर दिया, "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: जो कोई भी पाप करता है वह अपने पापी इच्छाओं का पालन करता है, ठीक वैसे, जैसे दास को अपने स्वामी की आज्ञा माननी पड़ती है।
\v 35 एक दास परिवार के स्थायी सदस्यों के समान नहीं रह सकता, परन्तु उसे घर लौटने की स्वतंत्रता है या बेचा जा सकता है; परन्तु एक पुत्र हमेशा के लिए परिवार का सदस्य होता है।
\v 36 इसलिए यदि पुत्र ने तुमको स्वतंत्र किया है, तो तुम निश्चित स्वतंत्र होंगे।
\s5
\v 37 मुझे पता है कि तुम अब्राहम के परिवार में हो; तुम उसके वंशज हो फिर भी, तुम्हारे लोग मुझे मारने का प्रयास कर रहे है। तुम मेरी कही किसी बात पर विश्वास नहीं करोगे।
\v 38 मैं तुमको चमत्कारों और बुद्धि के विषय में सब कुछ बताता हूँ जो मेरे पिता ने मुझे दिखाया है, परन्तु तुम वही कर रहे हो जो तुम्हारे पिता ने तुम्हें करने को कहा था।
\p
\s5
\v 39 "उन्होंने उत्तर दिया," अब्राहम हमारा पूर्वज है।" यीशु ने उनसे कहा, "यदि तुम अब्राहम की सन्तान होते, तो तुम उन कामों को करते जो उसने किये थे ।
\v 40 मैं तुमसे सच कहता आया हूँ कि मैंने परमेश्वर से सुना है, परन्तु तुम मुझे मार डालने का प्रयास कर रहे हो। अब्राहम ने ऐसा कुछ नहीं किया।
\v 41 नहीं! तुम उन कामों को कर रहे हो जो तुम्हारे असली पिता ने किया। "उन्होंने उनसे कहा," हम तुम्हारे विषय में नहीं जानते, परन्तु हम अवैध बच्चे नहीं हैं। हमारा केवल एक ही पिता है, और वह परमेश्वर हैं।"
\s5
\v 42 "यीशु ने उनसे कहा," यदि तुम्हारे पिता परमेश्वर होते, तो तुम मुझसे प्रेम करते क्योंकि मैं परमेश्वर की ओर से आया हूँ और अब मैं इस संसार में हूँ। मैं इसलिए नहीं आया कि मैंने स्वयं आने का निर्णय लिया था, परन्तु उन्होंने मुझे भेजा है।
\v 43 मैं तुमको बताता हूँ कि तुम क्यों समझ नहीं पा रहे हो कि मैं क्या कह रहा हूँ। ऐसा इसलिए है कि तुम मेरे संदेश या मेरी शिक्षाओं को स्वीकार नहीं करते हो।
\v 44 तुम अपने पिता, शैतान से हो, और तुम वही करने कि इच्छा रखते हो जो वह चाहता हैं। वह उस समय से हत्यारा है, जब लोगों ने पहला पाप किया था। उसने परमेश्वर की सच्चाई को त्याग दिया; वह उसमें है ही नहीं, जब भी वह झूठ बोलता है, वह अपने चरित्र के अनुसार बोलता है क्योंकि वह झूठा है; जो झूठ बोलता है वह वही करता है जो शैतान उससे कराना चाहता है।
\s5
\v 45 क्योंकि मैं तुमसे सच कहता हूँ, तुम मुझ पर विश्वास नहीं करते!
\v 46 तुम में से कौन मुझे पाप का दोषी मानता है? क्योंकि मैं तुमको सच्चाई बताता हूँ, तुम मुझ पर विश्वास न रखने के लिए क्या कारण देते हो ?
\v 47 जो लोग परमेश्वर से संबंध रखते हैं, वे परमेश्वर की बातों को सुनते और उनका पालन करते हैं। परन्तु तुम उनके संदेश न तो सुनते हो और ना ही उनका पालन करते हो, इसका कारण यह है कि तुम परमेश्वर के नहीं हो।
\p
\s5
\v 48 उनके यहूदी शत्रुओं ने उन से कहा, "हम निश्चित रूप से सही कह रहे हैं कि तुम एक सामरी हो- तुम वास्तव में एक सच्चे यहूदी नहीं हो! और यह कि तुममें एक दुष्ट-आत्मा रहती है!"
\v 49 "यीशु ने उत्तर दिया," दुष्ट-आत्मा मुझ में नहीं रहता! मैं अपने पिता का आदर करता हूँ, और तुम मेरा अपमान करते हो।
\s5
\v 50 मैं लोगों को मेरी प्रशंसा के लिए राजी करने का प्रयास नहीं करता हूँ; परन्तु कोई और है जो मुझे वह देना चाहता है जिसके मैं योग्य हूँ, और एक वही है; जो मेरी बातों का और मेरे कामों का न्याय करेंगे।
\v 51 मैं तुम से सच कह रहा हूँ: यदि कोई मेरे शब्दों पर दृढ़ रहेगा और उन पर विश्वास करेगा जैसा मैंने दिया था, तो वह व्यक्ति कभी नहीं मरेगा।"
\p
\s5
\v 52 तब उनके यहूदी शत्रुओं ने उन से कहा, "अब हमें विश्वास हो गया है कि तुम में दुष्टात्मा है, अब्राहम और भविष्यद्वक्ता बहुत पहले ही मर चुके हैं। फिर भी तुम कहते हो कि जो भी तुम सिखाते हो उस पर दृढ़ रहने वाला कोई भी नहीं मरेगा।
\v 53 तुम हमारे पिता अब्राहम से श्रेष्ट नहीं हो। वह मर गया और सब भविष्यद्वक्ता उसके साथ मर गए तो तुम अपने आप को क्या समझते हो? "
\s5
\v 54 यीशु ने उत्तर दिया, "यदि मैं लोगों को मेरी प्रशंसा करने के लिए कहता हूँ, तो यह व्यर्थ होगा। मेरे पिता हैं जो मेरे चरित्र और भलाई की प्रशंसा करते है, यह वही है जिन्हें तुम कहते हो, 'वह हमारे परमेश्वर हैं।'
\v 55 यद्यपि तुम उन्हें नहीं जानते, मैं उन्हें जानता हूँ। अगर मैंने कहा कि मैं उन्हें नहीं जानता, तो मैं तुम जैसा झूठा बन जाऊंगा। मैं उन्हें जानता हूँ और मैं हमेशा उनकी आज्ञापालन करता हूँ।
\v 56 तुम्हारा पिता अब्राहम प्रसन्न हुआ जब, एक भविष्यद्वक्ता के रूप में, उसने प्रतीक्षा की और देखा कि मैं क्या कर सकता हूँ।"
\p
\s5
\v 57 तब यहूदी अगुवों ने उन से कहा, "तुम पचास वर्ष के नहीं हो। तुमने अब्राहम को देखा?"
\v 58 यीशु ने उनसे कहा, "अब्राहम से पहले, मैं हूँ, मैं तुमसे सच कह रहा हूँ।"
\v 59 इसलिए उन्होंने उसे मारने के लिए पत्थर उठाए। हालांकि, यीशु ने स्वयं को छुपाया और आराधनालय से निकल गए और कहीं और चले गए।
\s5
\c 9
\p
\v 1 जब यीशु मार्ग से जा रहे थे, उन्होंने एक व्यक्ति को देखा जो जन्म से ही अंधा था।
\v 2 शिष्यों ने उन से पूछा, "गुरु, किसके पाप के कारण, यह व्यक्ति अंधा पैदा हुआ? क्या इस व्यक्ति ने स्वयं पाप किया या उसके माता-पिता ने किया?"
\s5
\v 3 यीशु ने उत्तर दिया," ऐसा नहीं है कि इस व्यक्ति ने या इसके माता-पिता ने पाप किया। वह अंधा इसलिए पैदा हुआ था, कि आज लोग उस शक्तिशाली काम को देख सकें जो परमेश्वर इसके द्वारा करेंगे ।
\v 4 हमें उनके कामों को करना चाहिए जिसने मुझे भेजा है, जब तक कि दिन है; रात आने वाली है और जब वह आ जाएगी, कोई भी काम करने में सक्षम नहीं होगा।
\v 5 जब तक मैं संसार में हूँ, मैं संसार का प्रकाश हूँ।"
\p
\s5
\v 6 जब उन्होंने यह कहा, तो उन्होंने भूमि पर थूका, उन्होंने अपने थूक के साथ मिट्टी सानी, और उस व्यक्ति की आंखों पर दवा के समान लगा दी।
\v 7 फिर यीशु ने उस से कहा, "जाओ और शीलोह के कुण्ड में इसे धो लो।" (कुण्ड के नाम का अर्थ 'भेजे गए' है) वह व्यक्ति गया और कुण्ड में धोया। जब वह वापस आया, तो वह देखने लगा था ।
\s5
\v 8 उस व्यक्ति के पड़ोसी और अन्य लोग जिन्होंने उसे भीख मांगते हुए देखा था, उन्होंने कहा, "क्या वह वो नहीं है जो यहाँ बैठ कर भीख मांगता था?"
\v 9 कुछ ने कहा, "वह वही है।" दूसरों ने कहा, "नहीं, परन्तु वह बस उस व्यक्ति के समान दिखता है।" जबकि, उस व्यक्ति ने स्वयं कहा, "हां, मैं वही व्यक्ति हूँ।"
\s5
\v 10 लोगों ने उससे कहा, "यह कैसे हुआ कि तुम अब देख पा रहे हो ?"
\v 11 "उसने कहा," यीशु नाम के एक व्यक्ति ने मिट्टी सानकर उसे दवा के समान प्रयोग किया और उसे मेरी आँखों पर लगाया। फिर उन्होंने मुझे शीलोह के कुण्ड में आँखे धोने के लिए कहा। तो मैं वहां गया और आँखों को धोया, और फिर मैं पहली बार देख सका।"
\v 12 उन्होंने कहा, "वह मनुष्य कहां है?" उसने कहा, "मैं नहीं जानता।"
\p
\s5
\v 13 कुछ लोग उस व्यक्ति को फरीसियों की सभा में ले गए।
\v 14 यह सब्त का दिन था जब यीशु ने यह चमत्कार किया था।
\v 15 तो फरीसियों ने फिर से उस व्यक्ति से पूछा कि वह अब कैसे देख पा रहा था। उसने उनसे कहा, "एक व्यक्ति ने मेरी आंखों पर मिट्टी सानकर लगाई और मैंने धोया, और अब मैं देख सकता हूँ।"
\s5
\v 16 कुछ फरिसियों ने कहा, "हम इस व्यक्ति यीशु को जानते हैं, जो परमेश्वर की ओर से नहीं है क्योंकि वह सब्त का दिन नहीं मानता।" उस समूह के अन्य लोगों ने पूछा; "अगर वह एक पापी है, तो वह ऐसे सामर्थ्य के काम कैसे कर सकता है जिसे सब देखते है?" इसलिए फरीसियों के बीच मतभेद उत्पन्न हो गया।
\v 17 उन्होंने फिर से अंधे मनुष्य से पूछा, "तू उसके विषय में क्या कहता है, क्योंकि वह वही है जिसने तुझे आँखों कि ज्योति दी है?" उस व्यक्ति ने कहा, "वह भविष्यद्वक्ता है।"
\p
\v 18 यहूदी जो यीशु के विरोध में थे, उन्होंने विश्वास नहीं किया कि वह मनुष्य अंधा था और फिर देखने में सक्षम हो गया। इसलिए उन्होंने किसी को उसके माता-पिता को लाने के लिए भेजा ताकि उनसे भी पूछताछ की जाए।
\s5
\v 19 उन्होंने उसके माता-पिता से पूछा, "क्या यह तुम्हारा पुत्र है? क्या तुम कहते हो कि वह उस दिन से अंधा था जब वह पैदा हुआ था, तो यह अब कैसे देखने लगा ?"
\v 20 उसके माता-पिता ने उत्तर दिया, "हम जानते हैं कि यह हमारा पुत्र है। हम जानते हैं कि जब वह पैदा हुआ था, तब वह अंधा था।
\v 21 फिर भी, हम नहीं जानते कि वह अब कैसे देखने लगा । हम यह भी नहीं जानते कि किसने उसकी आंखों को ठीक किया है, उससे पूछो, वह स्वयं बात करने के लिए सयाना है।"
\s5
\v 22 जो यहूदी यीशु के विरुद्ध थे, वे पहले से एक दूसरे के साथ सहमत थे कि जो कोई घोषणा करेगा कि यीशु ही मसीह है उसे आराधनालय से निकाल दिया जाएगा।
\v 23 इसलिए उसके माता-पिता ने कहा, "उससे पूछो, वह स्वयं उत्तर देने के लिए सयाना है।"
\p
\s5
\v 24 इसलिए उन्होंने उस व्यक्ति को बुलाया जो अंधा था, और उन्होंने उसे दूसरी बार उनके सामने आने के लिए कहा। जब वह वहाँ पहुंचा, तो उन्होंने उससे कहा, "परमेश्वर की शपथ खा कि तू केवल सच बोलेगा। हम जानते हैं कि जिसने तुझे स्वस्थ किया है वह पापी है और वह व्यवस्था नहीं मानता जो मूसा ने हमें दी थी।"
\v 25 उसने उत्तर दिया, "वह पापी है या नहीं, मैं नहीं जानता। एक बात मैं जानता हूँ कि मैं अंधा था, परन्तु अब मैं देख सकता हूँ।"
\s5
\v 26 तो उन्होंने उससे कहा, "उसने तेरे साथ क्या किया, उसने तुझे कैसे ठीक किया, जिससे अब तू देख पा रहा है?"
\v 27 उसने उत्तर दिया, "मैंने तुमको यह पहले ही बता दिया था, परन्तु तुमने मुझ पर विश्वास नहीं किया, तुम क्यों चाहते हो कि मैं फिर से तुम्हें बताऊं? क्या तुम वास्तव में उसके शिष्य बनना चाहते हो?"
\v 28 तब वे क्रोधित हो गए और उसे अपमानित किया: "तू उस व्यक्ति का शिष्य होगा, परन्तु हम मूसा के शिष्य हैं।
\v 29 हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा से बात की थी; परन्तु इस व्यक्ति के विषय में, हमें यह भी नहीं पता कि वह कहां से आया है।"
\s5
\v 30 उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, "यह बड़े आश्चर्य की बात है; की तुम नहीं जानते कि वह कहां से आए हैं, परन्तु यह वही है जिन्होंने मेरी आँखों को खोला है ताकि मैं देख सकूँ।
\v 31 हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की प्रार्थनाओं को नहीं सुनते, जो उनकी व्यवस्था की उपेक्षा करते हैं, परन्तु वह उन लोगों की सुनते है जो उनकी आराधना करते हैं और जो वह चाहते हैं वैसा ही करते है।
\s5
\v 32 क्योंकि संसार के आरम्भ के बाद से यह कहीं भी नहीं सुना गया है कि कोई किसी अंधे व्यक्ति की आंखें खोलने में सक्षम हो, जो जन्म से अंधा था।
\v 33 यदि यह व्यक्ति परमेश्वर से नहीं आया था, तो वह ऐसा कुछ नहीं कर पाता।"
\v 34 उन्होंने उत्तर दिया, "तू पाप में पैदा हुआ था और अपना पूरा जीवन पाप में जी रहा था, क्या तुझको लगता है कि तू हमें सिखाने के योग्य हो?" तब उन्होंने उसे आराधनालय से निकाल दिया।
\p
\s5
\v 35 यीशु ने सुना कि फरीसियों ने उस व्यक्ति के साथ क्या किया जिसे उन्होंने स्वस्थ किया था, कैसे फरीसियों ने उसे आराधनालय से बाहर निकाल दिया। तो यीशु गए और उस मनुष्य को ढूंढा। जब उन्हें वह मिल गया, तो उन्होंने उस से कहा, क्या तू मुझ पर विश्वास करता है, जो मनुष्य का पुत्र है ?
\v 36 उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, "हे प्रभु, वह कौन है? मुझे बताओ, कि मैं उस पर विश्वास कर सकूँ।"
\v 37 यीशु ने उस से कहा, "तूने उसे देखा है। वह अब तुझसे बात कर रहा है।"
\v 38 व्यक्ति ने कहा, "प्रभु, मुझे विश्वास है।" तब वह घुटनों पर बैठ गया और उसकी आराधना की।
\p
\s5
\v 39 यीशु ने कहा, "मैं इस संसार में संसार का न्याय करने के लिए आया हूँ ताकि जो लोग नहीं देखते हैं वे देख सकें और जो देखते हैं, वे अंधे हो जाएँ।"
\v 40 कुछ फरीसी जो उनके साथ थे, उन्हें यह कहते हुए सुना, और उन्होंने यीशु से पूछा, "क्या हम भी अंधे हैं?"
\v 41 "यीशु ने उनसे कहा," यदि तुम अंधे होते, तो तुम पर दोष नहीं लगता, क्योंकि अब तुम अपना बचाव करते हो और कहते हो, 'हम देखते हैं,' तुम्हारा अपराध तुम्हारे साथ रहता है।
\s5
\c 10
\p
\v 1 "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: जो भेड़ो के बाड़े में प्रवेश करता है, उसे हमेशा द्वार से प्रवेश करना चाहिए। यदि वह किसी अन्य स्थान से चढ़ता हैं, तो वह भेड़ों का रखवाला नहीं है, वह एक चोर है और एक आपराधी जो भेड़ों को चुरा लेता है।
\v 2 जो व्यक्ति द्वार से बाड़े में प्रवेश करता है वह सच्चा चरवाहा है, क्योंकि वह भेड़ों को सम्भालने वाला है।
\s5
\v 3 चरवाहे के न होने पर भाड़े का वह व्यक्ति जो द्वारपाल है, चरवाहे के वापस आने पर उसके लिए द्वार खोल देगा। भेड़ केवल चरवाहे की आवाज को पहचानती हैं जब वह उन्हें नाम से बुलाता है। फिर वह उन्हें खिलाने के लिए और उन्हें जल देने के लिए बाड़े के बाहर ले जाता है।
\v 4 जब वह अपनी सब भेड़ों को निकाल लेता है, तब वह उनके आगे जाता है। उसकी भेड़ें उसके पीछे चलने के लिए उत्सुक होती है क्योंकि वे उसकी आवाज पहचानती हैं।
\s5
\v 5 वे कभी भी किसी अजनबी का पीछा नहीं करेंगी जो उन्हें बुलाता हैं। वे उससे दूर चली जाएँगी क्योंकि वे अजनबी की आवाज नहीं पहचानती हैं।"
\p
\v 6 यीशु ने यह दृष्टान्त चरवाहों के काम से लिया था फिर भी, उनके शिष्यों को समझ नहीं आया कि वह क्या कहना चाहते थे।
\s5
\v 7 इसलिए यीशु ने फिर से उनसे कहा, "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: मैं वह द्वार हूँ जिसके द्वारा भेड़ें बाड़े में प्रवेश करती हैं।
\v 8 जो मुझ से पहले आए थे, वे चोर और अपराधी थे जिन्होंने भेड़ों को चुरा लिया था; परन्तु भेड़ों ने उनकी बात नहीं सुनी, और वे उनके पीछे चलने के लिए तैयार नहीं थी।
\s5
\v 9 मैं स्वयं उस द्वार के समान हूँ यदि कोई द्वार में से प्रवेश करता है और बाड़े में जाता है, जहाँ भेड़ें है, तो वह सुरक्षित रहेगा और वह बाहर जा सकेगा और अच्छी चरागाह पाएगा।
\v 10 चोर केवल चुराने, मारने और नष्ट करने के लिए आता है। मैं आया हूँ ताकि उन्हें जीवन मिले और वह जीवन उमड़ने तक भरपूर होगा।
\p
\s5
\v 11 मैं एक अच्छे चरवाहे के समान हूँ। अच्छा चरवाहा उसकी भेड़ को बचाने और सुरक्षित रखने के लिए मर जाएगा।
\v 12 कोई भेड़ों की देखभाल करने के लिए मजदूर को पैसे देता है। वह उन भेड़ों का ध्यान इस प्रकार नहीं रखता जैसे वो उसकी अपनी हैं। वह सिर्फ एक कर्मचारी है जो नौकरी कर रहा है। तो जब वह देखेगा की एक भेड़िया भेड़ को मारने के लिए आता है, तो वह अपने प्राण को संकट में नहीं डालेगा। वह भेड़ को छोड़कर भाग जाता है जिससे सम्भव है की भेड़िया भेड़ पर हमला कर दे और उनमें से कुछ को पकड़ ले और दूसरों को तितर-बितर कर दे।
\v 13 मजदूर भाग जाता है क्योंकि वह केवल पैसे के लिए काम कर रहा है। वह चिंता नहीं करता कि भेड़ों के साथ क्या होगा।
\s5
\v 14 मैं स्वयं, अच्छा चरवाहा हूँ मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ, और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं,
\v 15 जैसे मैं अपने पिता को जानता हूँ, और मेरे पिता मुझे जानते हैं इस कारण, मैं अपनी भेड़ों के लिए मरने को तैयार हूँ।
\v 16 मेरे पास अन्य भेड़ें भी हैं जो इन भेड़ों के समान इस समूह की नहीं है जिसके तुम हो; मैं उन्हें भी प्रेरित करूँगा की वे मेरी बात सुनें। वे मेरी बात सुनेंगी, तो अंत में मेरे पास भेड़ों का एक झुंड होगा और केवल मैं एकमात्र उसका चरवाहा होऊँगा।
\s5
\v 17 मेरे पिता मुझसे इस कारण प्रेम करते है कि मैं अपना जीवन बलिदान करूंगा। मैं अपना जीवन दे दूंगा, और मैं उसे फिर से जीने के लिए वापस ले लूँगा।
\v 18 मैं किसी के कारण अपना जीवन नहीं त्याग रहा हूँ। मैंने स्वयं को बलिदान के लिए चुना है मुझे अपना जीवन त्यागने का अधिकार है और मुझे उसे वापस लेने और फिर से जीने का अधिकार भी है। यह काम मेरे पिता की ओर से है, और उन्होंने मुझे यह करने की आज्ञा दी है।"
\p
\s5
\v 19 इन शब्दों को सुनने के बाद जो यीशु बोल रहे थे, यहूदियों में फिर मतभेद हो गया।
\v 20 उनमें से कुछ लोगों ने कहा, "एक दुष्ट-आत्मा उसे नियंत्रित कर रहा है और उसे पागल बना रहा है। उसे सुनने मैं अपना समय नाश मत करो।
\v 21 अन्य लोगों ने कहा, "वह जो कह रहा है वह ऐसा नहीं है, जिस पर किसी दुष्ट-आत्मा का दबाव हो। कोई दुष्ट-आत्मा किसी अंधे की आंखों को नहीं खोल सकती।"
\p
\s5
\v 22 समर्पण पर्व को मनाने का समय आ गया था, उस समय जब यहूदी लोग याद करते है, जब उनके पूर्वजों ने यरूशलेम में आराधनालय को शुद्ध किया और फिर उसे परमेश्वर को दिया। यह सर्दियों के मौसम में हुआ था।
\v 23 यीशु आराधनालय के आंगन में उस स्थान पर चल रहे थे, जिसे सुलैमान का बरामदा कहा जाता था।
\v 24 यीशु के यहूदी विरोधी उनके चारों ओर एकत्र हुए और कहा, "तुम कितने समय तक हमें ये सोचने पर विवश करोगे कि तुम कौन हो? अगर तुम मसीह हो, तो हमें स्पष्ट रूप से बताओ कि हम जान सकें।"
\s5
\v 25 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "मैंने तुमसे कहा था, परन्तु तुम मुझ पर विश्वास नहीं करोगे, तुम उन चमत्कारों के कारण जो मैंने अपने पिता के नाम से और उनके अधिकार से किये उनसे जानते हो मैं कौन हूँ । वो तुम्हें मेरे विषय में बतायेंगी।
\v 26 तुम मुझ पर विश्वास नहीं करते क्योंकि तुम मेरे नहीं हो तुम वो भेड़ें हो जो दूसरे चरवाहो की हैं।
\s5
\v 27 मेरी भेड़ें मेरी आवाज सुनती हैं मैं उनमें से हर एक को नाम से जानता हूँ; वे मेरे पीछे चलती हैं और मेरी आज्ञा मानती हैं।
\v 28 मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ। कोई उनको कभी भी नष्ट नहीं कर सकता, और कोई कभी भी उन्हें मुझसे दूर नहीं ले जा सकता ।
\s5
\v 29 मेरे पिता ने उनको मुझे दिया है मेरे पिता हर किसी से महान हैं, इसलिए कोई भी उन्हें उनसे चुरा नहीं सकता।
\v 30 मैं और पिता एक हैं।"
\p
\v 31 यीशु के शत्रुओं ने फिर उन पर फेंकने और उन्हें मारने के लिए पत्थर उठाए।
\s5
\v 32 फिर यीशु ने उनसे कहा, "तुमने मुझे कई अच्छे काम करते देखा हैं जो कुछ भी मेरे पिता ने मुझसे करने के लिए कहा था। उनमें से किसके लिए तुम लोग मुझे पत्थर मारने जा रहे हो?"
\v 33 यहूदी विरोधियों ने उत्तर दिया, "हम तेरा जीवन लेना चाहते हैं, इसलिए नहीं कि तू ने कोई अच्छा काम किया है, परन्तु क्योंकि तू, केवल एक ऐसा मनुष्य है, जो परमेश्वर का अपमान कर रहा है और स्वयं को परमेश्वर बना रहा है।"
\s5
\v 34 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "पवित्र धर्मशास्त्र में यह लिखा गया है कि परमेश्वर ने उन शासकों को जिन्हें उन्होंने नियुक्त किये थे, उनसे कहा था: 'मैंने कहा है कि तुम ईश्वरों (अति सम्मानित और बहुत लोगों पर शक्ति के साथ) के समान हो।'
\v 35 परमेश्वर ने उन अगुवों को यह कहा जब उन्होंने उन्हें नियुक्त किया। किसी ने उस पर आपत्ति नहीं की, और न ही लेखो में जो है वह गलत सिद्ध हो सकता है।
\v 36 मैं वही हूँ जिसको मेरे पिता ने इस संसार में भेजने के लिए चुना। तो तुम मुझसे क्यों क्रोधित हो यह कहने के लिए कि मैं परमेश्वर के बराबर हूँ जब मैंने कहा, 'मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ'?
\s5
\v 37 अगर मैं उन कामों को नहीं करता जो मेरे पिता ने मुझसे कहे थे, तो मैं तुम से यह आशा नहीं करता कि मुझ पर विश्वास करो।
\v 38 यद्यपि तुम मेरी बातों पर विश्वास नहीं करते कम से कम मेरे इन कामों के कारण तो मुझ पर विश्वास करो क्योंकि वे प्रकट करते हैं कि मैं कैसा हूँ। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम जान लोगे और समझ लोगे कि मेरे पिता मुझ में है और मैं अपने पिता में हूँ।
\p
\v 39 यह सुनकर उन्होंने फिर से यीशु को पकड़ने का प्रयास किया, परन्तु वह एक बार फिर उनसे बचकर निकल गए।
\p
\s5
\v 40 तब यीशु फिर से यरदन नदी के पूर्व की ओर गए। वह उस स्थान पर गए जहाँ यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने अपनी सेवा के आरंभ में बहुत से लोगों को बपतिस्मा दिया था। यीशु कई दिनों तक वहां रहे।
\v 41 कई लोग उनके पास आये वे ये कह रहे थे, "यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने कभी चमत्कार नहीं किए, परन्तु इस व्यक्ति ने कई चमत्कार किए हैं। यूहन्ना ने इस मनुष्य के विषय में जो कुछ कहा, वह सच है।"
\v 42 कई लोग उन पर विश्वास करने लगे; वे विश्वास करने लगे थे कि वह कौन हैं और वह उनके लिए क्या करेंगे।
\s5
\c 11
\p
\v 1 लाज़र नाम का एक व्यक्ति बहुत बीमार हो गया। वह बैतनिय्याह गांव में रहता था, जहाँ मरियम और मार्था रहती थीं।
\v 2 यह वही मरियम है जो बाद में अपना प्रेम और आदर दिखाने के लिए प्रभु पर इत्र डालेगी और उनके पैरों को अपने बालों से पोछेगी। यह उसका भाई लाज़र था जो बीमार था।
\s5
\v 3 इसलिए दोनों बहनों ने किसी को यीशु के पास भेजा कि लाज़र के विषय में उन्हें बताये; उन्होंने कहा, "हे प्रभु, जिससे आप प्रेम करते है वह बीमार है।"
\v 4 जब यीशु ने लाज़र की बीमारी के विषय में सुना, तो उन्होंने कहा, "यह बीमारी लाज़र की मृत्यु में खत्म नहीं होगी। इस बीमारी का उद्देश्य यह है कि लोग देख सकें और जान सकें कि परमेश्वर कितने महान है, कि वह अद्भुत कामों को करते हैं और मैं, परमेश्वर का पुत्र भी उनकी महान शक्ति को दिखाऊंगा।"
\s5
\v 5 यीशु मार्था, उसकी बहन मरियम और लाज़र से प्रेम करते थे।
\v 6 परन्तु, जब यीशु ने लाज़र की बीमारी के विषय में सुनकर भी उसे देखने में देरी की। वह जहाँ थे वहां दो दिनों के लिए और रहे।
\p
\v 7 फिर उन्होंने शिष्यों से कहा, "आओ हम यहूदिया में वापस चले।"
\s5
\v 8 शिष्यों ने कहा, "गुरु, थोड़े समय पहले आपका विरोध करनेवाले यहूदी पत्थरों से मार कर आपकी हत्या करना चाहते थे, और अब आप फिर से वहां वापस जाना चाहते हो।"
\v 9 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, "तुम जानते हो कि एक दिन में बारह घंटे रोशनी होती है, क्या यह सच नहीं है? जो दिन में चलता है वह सुरक्षित रूप से चलेगा क्योंकि वह देख सकता है कि मार्ग पर क्या है।
\s5
\v 10 परन्तु, जब कोई व्यक्ति रात के समय चलता है, तो वह सरलता से ठोकर खा सकता है क्योंकि वह देख नहीं सकता है।"
\p
\v 11 इन बातों को कहने के बाद, उन्होंने उनसे कहा, "हमारा मित्र लाज़र सो गया है, मैं उसे जगाने के लिए वहां जाऊंगा।"
\s5
\v 12 शिष्यों ने उस से कहा, हे प्रभु, यदि वह सो गया है, तो वह ठीक हो जाएगा।
\v 13 यीशु वास्तव में लाज़र की मृत्यु के विषय में कह रहे थे, परन्तु शिष्यों ने सोचा कि वह उसकी नींद के विषय में बात कर रहे हैं जो हम सब जानते हैं हमें विश्राम देती है।
\v 14 तब यीशु ने उन्हें स्पष्ट रूप से बताया, "लाजर मर गया है।"
\s5
\v 15 यीशु ने कहा," परन्तु, तुम्हारे लिए, मैं प्रसन्न हूँ कि मैं वहां नहीं था जब वह मरा, जिससे कि तुम जान सको कि तुम मुझ पर विश्वास क्यों कर सकते हो। अब यह समय है, हम उसके पास चले।"
\v 16 फिर थोमा, जिसे 'दिदुमुस' कहा जाता है, उसने अन्य शिष्यों से कहा, "हम भी यीशु के साथ चलते हैं कि हम उनके साथ मर सकें।"
\p
\s5
\v 17 जब यीशु बैतनिय्याह पहुंचे, तो उन्होंने जाना कि लाज़र पहले ही मर चुका था और चार दिनों से कब्र में था।
\v 18 बैतनिय्याह से यरूशलेम लगभग तीन किलोमीटर दूर था
\v 19 कई यहूदी लाज़र और उसके परिवार को जानते थे, और वे यरूशलेम से मार्था और मरियम को उनके भाई की मृत्यु पर दिलासा देने के लिए आए।
\v 20 जब मार्था ने किसी से सुना कि यीशु पास में है, तो वह उनसे मिलने के लिए सड़क पर गई। मरियम उठी नहीं परन्तु घर पर रही।
\s5
\v 21 जब मार्था ने यीशु को देखा, तो उसने उनसे कहा, "हे प्रभु, यदि आप यहाँ होते, तो मेरा भाई नहीं मरता।
\v 22 फिर भी, मैं जानती हूँ कि अब भी आप परमेश्वर से जो कुछ भी माँगेंगे, परमेश्वर आप को देंगे।"
\v 23 यीशु ने उससे कहा, "तेरा भाई फिर से जी उठेगा।"
\s5
\v 24 मार्था ने उनसे कहा, "मुझे पता है कि वह उस दिन फिर से जीवित होगा जब अंतिम दिन परमेश्वर सब मृतकों को जीवित करेंगे।"
\v 25 यीशु ने उससे कहा, "मैं ही वह हूँ जो मरे हुओं में से लोगों को जी उठाता हूँ, मैं ही वह हूँ जो उनको जीवन देता हूँ, जो मुझ पर विश्वास करता है, वह मर भी जाए, तो भी वह फिर से जीवित हो जायेगा ।
\v 26 जो लोग जीवन प्राप्त करके मुझसे जुड़ जाते हैं और जो मुझ पर विश्वास करते हैं, वे कभी नहीं मरेंगे। क्या तू मुझ पर विश्वास करती है ?"
\s5
\v 27 मार्था ने उनसे कहा, "हाँ, प्रभु, मुझे आपकी बात पर विश्वास है और मुझे विश्वास है की आप कौन हैं, आप मसीह, परमेश्वर के पुत्र हैं, जिनकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने की थी कि वह संसार में आएँगे।
\p
\v 28 यह कहने के बाद, वह घर लौट आई और अपनी बहन को एक ओर ले गई और उससे कहा, "गुरु यहाँ हैं, और वह तुझे बुला रहे हैं।"
\v 29 जब मरियम ने यह सुना, तो वह शीघ्र ही उठकर उनके पास गई।
\s5
\v 30 यीशु अब तक गांव में नहीं आए थे; वह अभी भी उस स्थान पर थे जहाँ मार्था उनसे मिली थी ।
\v 31 जो लोग घर में बहनों को दिलासा देने के लिए आए थे, उन्होंने देखा कि मरियम शीघ्र उठकर बाहर गई है। इसलिए वे यह सोचकर उसका पीछा करने लगे, कि वह कब्र के पास शोक के लिए जा रही है जहाँ उन्होंने उनके भाई लाज़र को दफनाया था।
\p
\v 32 मरियम उस स्थान पर आई जहाँ यीशु थे; जब उसने उन्हें देखा, तो उसने उनके पैरो में गिरकर कहा, "हे प्रभु, यदि आप यहाँ होते, तो मेरा भाई नहीं मरता।"
\s5
\v 33 "जब यीशु ने उसे दुःखी और रोते हुए देखा, और जो शोकग्रस्त लोग उसके साथ आए थे, वे भी रो रहे थे, तो वह अपनी आत्मा में पीड़ा के कारण रोये, और वह बहुत उदास थे।
\v 34 उन्होंने पूछा, "तुमने उसकी देह कहाँ रखी है?" उन्होंने उनसे कहा, "हे प्रभु, आओ और देखो।"
\v 35 यीशु रोए।
\s5
\v 36 तो यहूदियों ने कहा, "देखो, यह लाज़र से कितना प्रेम करते हैं।"
\v 37 परन्तु, कुछ लोगों ने कहा, "क्या उसने अंधे मनुष्य की आंखें नहीं खोली? तो क्या इस व्यक्ति को मरने से नहीं रोक सकता था?"
\p
\s5
\v 38 जब वह कब्र पर आए, तो यीशु शारीरिक रूप से शोकित हो गए थे और भावनात्मक रूप से उदास थे। वह एक गुफा थी, और उसके प्रवेश द्वार को एक बड़े पत्थर के द्वारा बंद किया गया था
\v 39 जो लोग वहाँ खड़े थे उन्हें यीशु ने आज्ञा दी "पत्थर को हठाओं"। हालांकि, मार्था ने आपत्ति जताई, "हे प्रभु, अब तो उसमें से दुर्गन्ध आती होगी, क्योंकि वह चार दिन पहले मर चुका है।"
\v 40 यीशु ने उससे कहा, "क्या मैंने तुझको सच नहीं कहा था जब मैंने तुझसे कहा था कि यदि तू मुझ पर विश्वास करती है, तो तू देखेगी कि परमेश्वर कौन हैं और तू जान पाती कि परमेश्वर क्या कर सकते हैं?"
\p
\s5
\v 41 तो उन्होंने पत्थर को हटा दिया। यीशु ने स्वर्ग की ओर देखा और कहा, "पिताजी, मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरी सुन ली है।
\v 42 मैं जानता हूँ कि आप हमेशा मुझे सुनते हैं, मैंने यह उन लोगों के लिए कहा जो यहाँ खड़े हैं ताकि वे आप पर विश्वास कर सकें और इस तथ्य पर भी विश्वास करें कि आपने मुझे भेजा है। "
\s5
\v 43 उनके यह कहने के बाद, वे बहुत ऊँचे स्वर के साथ बोले ओर कहा, "लाज़र, बाहर निकल आ!"
\v 44 जो व्यक्ति मर गया था वह बाहर निकल आया! उसके हाथ अभी भी लिपटे हुए थे और पैर भी कपड़े के सन की पट्टियों से बंधे थे, और उसके चेहरे के चारों ओर एक कपड़ा लपेटा हुआ था। यीशु ने उनसे कहा, "उन कपड़े की पट्टियों को हटा दो जिस से वह बंधा हुआ है और उसे खोल दो। उसे जाने दो।"
\p
\s5
\v 45 फलस्वरूप, जो यहूदी मरियम को देखने आए थे और यीशु द्वारा किए गए काम के गवाह बने, उन्होंने यीशु पर विश्वास किया।
\v 46 फिर भी, उन में से कुछ लोग, फरीसियों के पास गए और उन्हें बताया की यीशु ने क्या किया था।
\s5
\v 47 तब प्रधान याजकों और फरीसियों ने यहूदी परिषद के सब सदस्यों को एकत्र किया। वे एक-दूसरे से कह रहे थे, "हम क्या करने जा रहे हैं? यह मनुष्य कई चमत्कार कर रहा है।
\v 48 यदि हम उसे यह करते रहने देते हैं, तो हर कोई उस पर विश्वास करेगा और रोम के विरुद्ध विद्रोह करेगा तब रोमी सेना आ जाएगी और हमारे आराधनालय और हमारे देश दोनों को नष्ट कर देगी।"
\p
\s5
\v 49 परिषद में से एक काइफा था, वह उस वर्ष का महायाजक था, उस ने उन से कहा, "तुम सब कुछ नहीं जानते हो!
\v 50 क्या तुमको इस बात की समझ नहीं कि एक व्यक्ति का सब लोगों के लिए मरना, समस्त राष्ट्र के विनाश से अधिक उत्तम है? "
\s5
\v 51 उसने ऐसा इसलिये नहीं कहा क्योंकि उसने स्वयं यह सोचा था। परन्तु, क्योंकि वह उस वर्ष महायाजक था, वह भविष्यवाणी कर रहा था कि यीशु यहूदी जाती के लिए मर जाएँगे।
\v 52 परन्तु वह यह भी भविष्यवाणी कर रहा था कि यीशु न केवल यहूदियों के लिए ही मर जाएँगे, वरन इसलिये कि वह परमेश्वर की सब संतानों को अन्य देशों से एक राष्ट्र में एकत्र कर सके।
\v 53 तो उस दिन से, परिषद ने यीशु को पकड़ने और किसी भी तरह से उन्हें मारने का उपाय खोजना आरम्भ कर दिया।
\p
\s5
\v 54 इस कारण, यीशु अपने यहूदी विरोधियों के बीच खुलकर यात्रा नहीं करते थे। उन्होंने यरूशलेम छोड़ दिया और शिष्यों के साथ, एप्रैम नामक एक नगर में, जंगल के पास और रेगिस्तान के क्षेत्र में चले गए। वहां वे थोड़े समय के लिए अपने शिष्यों के साथ रहे।
\p
\v 55 यह अब यहूदियों के फसह के पर्व का समय था, और कई भक्त अन्य देशों और गांवों से यरूशलेम आए, वे स्वयं को यहूदी नियमों के अनुसार शुद्ध करने के लिए तैयार हुए, कि उन्हें फसह मनाने की अनुमति मिले।
\s5
\v 56 जो लोग फसह के पर्व के लिए यरूशलेम आए थे, वे सब यीशु की खोज में थे। जब वे आराधनालय में आए और खड़े होकर एक दूसरे से कहने लगे, "तुम क्या सोचते हो, क्या वह फसह में नहीं आएगा?"
\v 57 यहूदियों के प्रधान याजकों और फरीसियों ने आदेश दिया कि अगर किसी को पता चल जाए कि यीशु कहाँ हैं, तो उन्हें समाचार दे ताकि वे यीशु को पकड़ सकें।
\s5
\c 12
\p
\v 1 फसह पर्व के आरम्भ होने से छः दिन पहले यीशु बैतनिय्याह पहुंचे। बैतनिय्याह वह गाँव था जहाँ लाज़र रहता था, वह व्यक्ति जिसे यीशु ने मरे हुओं में से जीवित किया था।
\v 2 बैतनिय्याह में, उन्होंने यीशु के आदर में रात का भोज रखा। मार्था ने रात के खाने के लिए तैयारी की, और लाज़र उन लोगों में से एक था जो उनके साथ बैठे थे और खा रहे थे।
\v 3 तब मरियम ने महंगी इत्र की एक बोतल (जिसे जटामांसी कहा गया) ली और यीशु का आदर करने के लिए, उसने उनके पैरों पर उसे उंडेल दिया और फिर उनके पैरों को अपने बालों से पौछा। इत्र की सुगन्ध पूरे घर में फैल गई।
\p
\s5
\v 4 हालांकि, उनके शिष्यों में से एक, यहूदा इस्करियोती, (वह जिसने यीशु के विश्वास को तोड़ दिया था, वह शीघ्र ही यीशु को उनके शत्रुओं को सौंप देगा) ने विरोध किया और कहा,
\v 5 "हमें इस इत्र को तीन सौ दिन के वेतन के मोल में बेच देना चाहिए था और उन पैसों को गरीबों को दे देना चाहिए था।"
\v 6 उसने यह इसलिए नहीं कहा, क्योंकि वह गरीब लोगों की चिंता करता था, वरन इसलिए कि वह एक चोर था। वह पैसे की थैली को अपने पास रखता था, परन्तु अपनी आवश्यकताओं के लिए उसमें से निकाल लेता था
\s5
\v 7 तब यीशु ने कहा, "उसे अकेला छोड़ दो! उसने इस इत्र को उस दिन के लिए खरीदा जब मैं मर जाऊंगा और वे मुझे दफन करेंगे।
\v 8 तुम्हारे साथ हमेशा गरीब रहेंगे, परन्तु मैं तुम्हारे साथ सदा नहीं रहूँगा।"
\p
\s5
\v 9 यरूशलेम में यहूदियों की एक बड़ी भीड़ ने सुना कि यीशु बैतनिय्याह में हैं, इसलिए वे वहां आ गए। वे वहां केवल इसलिए नहीं आए कि यीशु वहां थे, वे लाज़र को देखने के लिए भी आए, जिसे यीशु ने जीवित कर दिया था।
\v 10 तब प्रधान याजकों ने निर्णय लिया की लाज़र को भी मार डालना आवश्यक है,
\v 11 क्योंकि उसके कारण कई यहूदी प्रधान याजकों की शिक्षाओं पर विश्वास नहीं कर रहे थे। इसकी अपेक्षा, वे यीशु पर विश्वास कर रहे थे।
\p
\s5
\v 12 अगले दिन फसह पर्व के लिए आने वाली बड़ी भीड़ ने सुना कि यीशु यरूशलेम जा रहे है।
\v 13 तो उन्होंने खजूर के पेड़ से शाखाओं को काट लिया और उनके शहर में आने के बाद उनका स्वागत करने के लिए बाहर निकले। वे चिल्ला रहे थे, "होशाना, परमेश्वर की स्तुति करो! परमेश्वर उनको आशीर्वाद दे जो प्रभु के नाम पर आते हैं! स्वागत है, इस्राएल के राजा!"
\s5
\v 14 जब यीशु यरूशलेम के निकट आए, तो उन्हें एक गदहे का बच्चा मिला और वे उस पर सवार होकर शहर के भीतर गए, ऐसा करके उन्होंने पवित्र शास्त्र में जो लिखा था, उसे पूरा किया:
\v 15 "डरो मत, तुम जो यरूशलेम में रहते हो। देखो! तुम्हारा राजा आ रहा है। वह एक गदहे के बच्चे पर सवारी कर रहा है।"
\p
\s5
\v 16 जब ऐसा हुआ, तो उनके शिष्यों ने यह नहीं समझा कि यह भविष्यवाणी की पूर्ति थी। परन्तु जब यीशु ने अपना कार्य पूरा किया और परमेश्वर के रूप में अपनी सब शक्तियों को फिर से प्राप्त किया, तब शिष्यों ने पिछली बातों को याद किया कि भविष्यद्वक्ताओं ने यीशु के विषय में क्या लिखा था और लोगों ने उनके साथ क्या किया।
\p
\s5
\v 17 जो भीड़ यीशु के साथ चल रही थी, उन्होंने दूसरों को वह सब बताया जो कुछ उन्होंने देखा था: यीशु ने लाज़र को आवाज देकर कब्र से बाहर निकाला और उसे फिर से जीवित कर दिया था।
\v 18 भीड़ के कुछ लोग, जो यीशु से मिलने के लिए शहर के द्वार से बाहर निकल गए थे, उन लोगों ने ऐसा इसलिए किया कि उन्होंने सुना था कि यीशु ने अपनी शक्ति दिखाने के लिए बहुत से महान काम किए थे।
\v 19 "फिर फरीसियों ने एक दूसरे से कहा," देखा, हम यहाँ कोई लाभ नहीं उठा रहे हैं, देखो! पूरा संसार उसके पीछे हो रहा है।"
\p
\s5
\v 20 जो लोग फसह पर्व के समय यरूशलेम में आए थे, उनमें से कुछ यूनानी थे।
\v 21 वे फिलिप्पुस के पास आए, जो गलील के जिले के बैतसैदा से था। उन लोगों के पास उससे पूछने के लिए कुछ था; उन्होंने कहा, "महोदय, क्या तू यीशु से हमारा परिचय करवाएगा?"
\v 22 तो फिलिप्पुस ने इस बात को अन्द्रियास को बताया, और वे दोनों गए और यीशु को बताया।
\s5
\v 23 यीशु ने फिलिप्पुस और अन्द्रियास को उत्तर दिया, "यह समय है कि परमेश्वर लोगों को वह सब दिखायेंगे जो मैंने, मनुष्य के पुत्र, ने किया है और उन सब को बतायेंगे जो मैंने कहा है।
\v 24 मैं तुम से सच कह रहा हूँ: जब तक कि गेहूँ का बीज भूमि में नहीं लगाया जाता है और मर नहीं जाता, तब तक यह केवल एक बीज ही रहता है; परन्तु भूमि में मरने के बाद वह बढ़ेगा और कई बीजों की फसल का उत्पादन करेगा।
\s5
\v 25 जो कोई स्वयं को प्रसन्न करने के लिए जीवित रहने का प्रयास करता है, वह असफल हो जायेगा, परन्तु जो स्वयं को प्रसन्न करने के लिए नहीं जीता, वह सदा का जीवन रखेगा।
\v 26 यदि कोई मेरी सेवा करना चाहता है, तो उसे मेरे पीछे चलना चाहिए क्योंकि मेरे सेवक को वहां होना चाहिए जहाँ मैं हूँ। पिता उसका आदर करेंगे जो मेरी सेवा करेगा।
\p
\s5
\v 27 अब मेरी आत्मा बहुत परेशान है। क्या मैं यह कहूँ, 'पिताजी, उस समय से मुझे बचाओ जब मैं पीड़ित होकर मर जाऊंगा!' नहीं, क्योंकि इसी कारण के लिए मैं इस संसार में आया हूँ।
\v 28 हे मेरे पिताजी, दिखाओ कि आपने जो कहा है आपने जो किया है, और आप जो कुछ हैं, उसमें आप कितने समर्थि हैं।"
\p तब परमेश्वर ने स्वर्ग से कहा, "मैंने अपना स्वभाव, अपने शब्द को और अपने काम पहले ही से प्रकट कर दिये हैं, और मैं फिर से प्रकट करूंगा।"
\v 29 जो भीड़ वहां थी उसने परमेश्वर की वाणी को सुना, परन्तु कुछ ने कहा कि यह सिर्फ बिजली की गड़गड़ाहट है। कुछ ने कहा कि किसी स्वर्गदूत ने यीशु से बात की है।
\s5
\v 30 यीशु ने उनको उत्तर दिया," जिस आवाज को तुमने सुना है वह परमेश्वर की वाणी थी। हालांकि, उन्होंने मेरे लाभ के लिए नहीं परन्तु तुम्हारे लिए बात की है।
\v 31 अब वह समय है जब परमेश्वर इस संसार का न्याय करेंगे। अब वह समय है जब वे शैतान को निकालकर बाहर करेंगे, जो इस संसार पर शासन करता है।
\s5
\v 32 मेरी जहाँ तक बात है, जब लोग मुझे क्रूस पर चढ़ाएंगे, तब मैं सब को अपने पास खींच लूँगा।"
\v 33 उन्होंने यह इसलिए कहा कि लोगों को पता चले कि उनकी मृत्यु कैसे होगी।
\p
\s5
\v 34 "किसी ने उन्हें उत्तर दिया," हम धर्मशास्त्र से समझते हैं कि मसीह हमेशा के लिए जीवित रहेंगे। तो आप क्यों कहते हो कि मनुष्य का पुत्र मर जाएगा? यह मनुष्य का पुत्र कौन है?"
\v 35 "यीशु ने उत्तर दिया," मेरा प्रकाश तुम पर थोड़े समय के लिए चमकेगा, प्रकाश में चलो जब तक मेरा प्रकाश तुम में है, अन्यथा अन्धकार तुम को घेर लेगा। अंधेरे में चलनेवाले लोग नहीं देख पाते कि वे कहाँ जा रहे हैं।
\v 36 उस प्रकाश पर विश्वास करो जब तक तुम्हारे पास प्रकाश है; तो तुम प्रकाश के होगे।
\p इन सब बातों को कहने के बाद, यीशु उन्हें छोड़ कर उनसे छिप गए।
\s5
\v 37 यद्यपि यीशु ने कई चमत्कार किये थे, अधिकांश लोगों ने उन की बातों पर विश्वास नहीं किया।
\v 38 यशायाह भविष्यद्वक्ता ने बहुत पहले जो लिखा था, वह सच सिद्ध हो रहा था: "प्रभु, कौन उन बातों पर विश्वास करता है जो उन्होंने हमारे द्वारा सुनी है? प्रभु ने हमें दिखाया है कि वे हमें कैसे शक्तिशाली तरीके से बचा सकते हैं।"
\s5
\v 39 फिर भी, यशायाह ने जो लिखा था, उसके कारण वे उन पर विश्वास नहीं कर सकते थे:
\v 40 "प्रभु ने उन्हें ऐसा बनाया है ताकि वे देख न सकें, और उन्होंने उन्हें हठीला बना दिया है; वे अपनी आंखों से भी नहीं देख सकते हैं, यदि वे देख सकें, तो वे समझेंगे; वे पश्च्याताप करेंगे और प्रार्थना करेंगे कि मैं उन्हें क्षमा कर दूं। इस कारण से, मैं उन्हें स्वस्थ नहीं कर सकता।"
\p
\s5
\v 41 यशायाह ने उन शब्दों को बहुत पहले लिखा था क्योंकि वह समझ गया था कि मसीह शक्तिशाली रूप से परमेश्वर की सेवा करेंगे।
\p
\v 42 यद्यपि यह सच था, यहूदी लोगों के कई अगुओं ने यीशु पर विश्वास किया। परन्तु उन्हें बहुत डर था कि फरीसी लोग सभा में आने से उन पर प्रतिबंध लगा देंगे, इसलिए उन्होंने यीशु पर विश्वास करने के विषय में बात नहीं की।
\v 43 वे इस बात को पसंद करते थे कि लोग उनकी प्रशंसा और आदर करें, अपेक्षा इसके कि परमेश्वर उनकी प्रशंसा करें।
\p
\s5
\v 44 यीशु वहाँ एकत्र हुई भीड़ पर, चिल्लाए, "जो मुझ पर विश्वास करते हैं, वे न केवल मुझ पर विश्वास करते हैं, वरन मेरे पिता पर विश्वास करते हैं, जिन्होंने मुझे भेजा है।
\v 45 जब तुम मुझे देख रहे हो, तो तुम उन्हें भी देख रहे हो जिन्होंने मुझे भेजा है।
\s5
\v 46 मैं संसार का प्रकाश होकर संसार में आया हूँ; जो कोई मुझ पर विश्वास करता है, वह अंधकार में नहीं रहेगा।
\p
\v 47 मैं उन लोगों का न्याय नहीं करता जो मेरी बातों को सुनते हैं परन्तु उनका जो मेरी आज्ञा मानने से अस्वीकार करते हैं, मैं संसार को दोषी ठहराने के लिए संसार में नहीं आया;
\s5
\v 48 फिर भी, ऐसा कोई कारण है जो उनकी निंदा करेगी जो मुझे अस्वीकार करते हैं, और मेरे संदेश का ग्रहण नहीं करते हैं। वह उन संदेशों द्वारा दोषी ठहराए जाएँगे जो मैंने उन्हें दिये हैं।
\v 49 जब मैंने परमेश्वर के विषय में सिखाया था, तब मैं केवल अपनी सोच से नहीं कह रहा था। पिता, जिन्होंने मुझे भेजा है, उन्होंने मुझे स्पष्ट निर्देश दिए थे कि मुझे क्या कहना है और मुझे यह कैसे कहना है।
\v 50 मैं जानता हूँ कि पिता के सबसे महत्वपूर्ण निर्देश वे हैं जो लोगों को सदा जीवित रहना सिखाते हैं, और मैंने वैसे ही कहा जैसा कि मेरे पिता ने मुझसे कहने के लिए कहा है।"
\s5
\c 13
\p
\v 1 अब फसह पर्व के आरम्भ होने से एक दिन पहले। यीशु जानते थे कि वह समय आ गया था जब उन्हें इस संसार को छोड़कर अपने पिता के पास वापस जाना है। उन्होंने दिखाया कि वे उन लोगों से कितना प्रेम करते थे जो उनके साथ इस संसार में थे, और उन्होंने अपने जीवन के अंत तक उनसे प्रेम किया।
\v 2 यीशु और शिष्यों के शाम के भोजन से पहले, शैतान ने पहले ही शमौन के पुत्र यहूदा इस्करियोती के मन में यह विचार डाल दिया था, कि वह यीशु को उनके शत्रुओं के हाथ पकडवा दे।
\s5
\v 3 फिर भी यीशु जानते थे कि उनके पिता ने उन्हें सब पर पूर्ण शक्ति और अधिकार दिया है। वह यह भी जानते थे कि वह स्वयं परमेश्वर की और से आए हैं और शीघ्र ही परमेश्वर के पास लौट जाएँगे।
\v 4 यीशु रात के खाने से उठ गए उन्होंने अपने बाहरी वस्त्र हटा दिये और अपनी कमर पर एक तौलिया लपेट लिया।
\v 5 उन्होंने थोड़ा जल बर्तन में डाल लिया और शिष्यों के पैरों को धोने लगें और तौलिए से पोछ कर सुखाया।
\p
\s5
\v 6 वह शमौन पतरस के पास गए तो उसने उनसे कहा, हे प्रभु, क्या आप मेरे पैरों को धोएँगे?
\v 7 "यीशु ने उसको उत्तर दिया," तुम अभी समझ नहीं पा रहे हो कि मैं तुम्हारे लिए क्या कर रहा हूँ, परन्तु बाद में तुम समझ जाओगे ।"
\v 8 पतरस ने कहा, "आप मेरे पैरों को कभी नहीं धोएँगे!" यीशु ने उसको उत्तर दिया, "यदि मैं तेरे पैर नहीं धोता, तो तेरा मुझसे कोई मेल नहीं है।"
\v 9 तब शमौन पतरस ने उनसे कहा, “हे प्रभु, केवल मेरे पैरों को ही नहीं, मेरे हाथों और मेरे सिर को भी धो दो।”
\s5
\v 10 यीशु ने उस से कहा, "जिसने स्नान किया है, उसको केवल पैरों को धोने की आवश्यक्ता है, उसका सारा शरीर पहले से ही साफ है, तुम साफ हो, परन्तु तुम सब नहीं।"
\v 11 वह जानते थे कि उन्हें कौन पकडवाने वाला था। यही कारण है कि उन्होंने कहा, "तुम सब साफ नहीं हो।"
\p
\s5
\v 12 उन्होंने शिष्यों के पैरों को धोने के बाद, फिर से अपना बाहरी वस्त्र पहना और अपने स्थान पर बैठ गए और कहा, "क्या तुम समझते हो कि मैंने तुम्हारे लिए क्या किया है?
\v 13 तुम मुझे 'शिक्षक' और ' प्रभु कहते हो; तुम सही कहते हो; क्योंकि मैं यही हूँ।
\v 14 यदि मैं, तुम्हारे शिक्षक और प्रभु ने तुम्हारे पैरों को धोया है, तो तुमको भी एक दूसरे के पैरों को धोना चाहिए।
\v 15 मैंने तुमको ऐसा करने का एक उदाहरण दिया है, जिससे कि तुम वैसा ही करो जैसा मैंने किया है।
\s5
\v 16 मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: कि सेवक अपने स्वामी से श्रेष्ट नहीं है, न ही एक सन्देशवाहक अपने भेजने वाले से बड़ा है।
\v 17 यदि तुम इन चीजों को जानते हो, तो तुम कितने धन्य होंगे यदि तुम उन्हें करोगे।
\p
\v 18 मैं तुम सब के विषय में यह नहीं कह रहा हूँ; मैं उन लोगों को जानता हूँ जिन्हें मैंने चुना है परन्तु, धर्मशास्त्र में जो लिखा है उसे पूरा होना चाहिए: 'जिसने मेरे साथ एक मित्र के समान भोजन किया है, वह मेरे विरुद्ध हो गया और मेरे साथ शत्रु के समान व्यवहार किया।'
\p
\s5
\v 19 इससे पहले कि वह मुझे उनके हाथों पकडवा दे, मैं तुम्हें यह बता रहा हूँ कि जब ऐसा हो, तब तुम मुझ पर विश्वास कर सको कि मैं परमेश्वर हूँ।
\v 20 मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: यदि तुम उसको ग्रहण करते जिसे मैंने तुम्हारे पास भेजा है, तो तुम मुझे भी ग्रहण कर रहे हो; और जो कोई मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे पिता को भी ग्रहण करता है, जिन्होंने मुझे भेजा है।"
\p
\s5
\v 21 यीशु ऐसा कहने के बाद, अपने मन में परेशान हुए, उन्होंने गंभीरता से घोषणा की, "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: तुम में से एक मुझे मेरे शत्रुओं को सौंप देगा।"
\v 22 शिष्यों ने एक दूसरे को देखा वे इस विषय में उलझन में थे कि वह किस के विषय में बात कर रहे है।
\s5
\v 23 शिष्यों में से एक, यूहन्ना, जिसे यीशु विशेष रूप से प्रेम करते थे, वह तख्त पर यीशु के साथ था
\v 24 शमौन पतरस ने यूहन्ना से कहा कि उसे यीशु से पूछना चाहिए कि वह किस शिष्य के विषय में बात कर रहे हैं।
\v 25 तब यूहन्ना यीशु की ओर झुका और धीरे से पूछा, "हे प्रभु, वह कौन है?"
\s5
\v 26 "यीशु ने उत्तर दिया," यह वह है जिसे मैं रोटी का टुकड़ा कटोरे में डुबो कर दूंगा।" फिर उन्होंने रोटी को डुबा कर शमौन इस्करियोती के पुत्र यहूदा को दिया।
\v 27 जैसे ही यहूदा ने रोटी का टुकड़ा लिया, वैसे ही शैतान उसमें समा गया और उसे अपने नियंत्रण में कर लिया। यीशु ने उस से कहा, "जो भी तुझे करना है, उसे शीघ्र कर।"
\s5
\v 28 मेज पर कोई यह नहीं जानता था कि यीशु ने उसे ऐसा क्यों कहा था
\v 29 कुछ लोग सोचते थे कि यहूदा के पास पैसे की थैली थी, इसलिए यीशु उससे कह रहे होंगे कि जाकर फसह पर्व के लिए कुछ आवश्यक वस्तुएं खरीद लाये। दूसरों ने सोचा कि यीशु यहूदा को गरीबों को कुछ देने के लिए कह रहे थे।
\v 30 रोटी ग्रहण करने के तुरंत बाद, यहूदा बाहर निकल गया। वह रात का समय था।
\p
\s5
\v 31 यहूदा के जाने के बाद, यीशु ने कहा, "अब परमेश्वर लोगों पर प्रकट करेंगे कि मैं, मनुष्य का पुत्र क्या कर रहा हूँ। मैं मनुष्य का पुत्र, लोगों को यह बता दूंगा कि परमेश्वर क्या कर रहे है, और लोग इसके लिए उनकी प्रशंसा करेंगे
\v 32 क्योंकि मैं, मनुष्य का पुत्र, लोगों पर प्रकट करूँगा, परमेश्वर को जानने दूँगा और क्योंकि मैं उनका आदर करता हूँ, परमेश्वर भी मेरा सम्मान करेंगे। वरन तुरंत करेंगे।
\p
\v 33 हे मेरे बच्चों, मैं थोड़ी देर तुम्हारे साथ हूँ तुम मुझे खोजोगे; परन्तु जैसा मैंने यहूदियों से कहा था, और जैसा कि अब मैं तुमसे कह रहा हूँ, जहाँ मैं जा रहा हूँ, वहां तुम नहीं आ सकते।
\s5
\v 34 मैं तुम्हें यह नई आज्ञा दूँगा: तुम्हें एक दूसरे से प्रेम करना है, जैसे मैंने तुम्हें प्रेम किया है।
\v 35 यदि तुम एक दूसरे से प्रेम करते हो, तो सब लोग जान लेंगे कि तुम मेरे शिष्य हो।"
\p
\s5
\v 36 शमौन पतरस ने उन से कहाँ, हे प्रभु, आप कहाँ जा रहे हैं? यीशु ने उत्तर दिया, "जहाँ मैं जा रहा हूँ, तुम मेरे साथ वहां नहीं आ सकते, परन्तु तुम बाद में आओगे।"
\v 37 पतरस ने कहा," हे प्रभु, मैं आपके साथ क्यों नहीं आ सकता? मैंने अपना पूरा जीवन आपके लिए अर्पित कर दिया है
\v 38 यीशु ने उत्तर दिया," क्या तू सचमुच मेरे लिए अपना जीवन अर्पित करेगा, पतरस? मैं तुझसे सच कह रहा हूँ: मुर्गा सुबह तब तक बाँग नहीं देगा जब तक तू तीन बार यह न कह दे कि तू मुझे नहीं जानता।
\s5
\c 14
\p
\v 1 "परेशान मत हो ना ही चिंतित हो। तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो, मुझ पर भी विश्वास करो।
\v 2 जहाँ मेरे पिता रहते हैं वहां रहने के लिए कई स्थान हैं अगर यह सच नहीं होता, तो मैं तुमसे कह देता। मैं तुम्हारे लिए स्थान तैयार करने के लिए वहां जाता हूँ।
\v 3 यदि मैं वहां तुम्हारे लिए स्थान तैयार करने के लिए जा रहा हूँ, तो मैं वापस आऊँगा और तुम्हें अपने साथ ले जाऊँगा, कि जहाँ मैं हूँ, वहां तुम मेरे साथ रहो ।
\s5
\v 4 तुम्हें पता है मैं कहाँ जा रहा हूँ, और तुम रास्ता जानते हो।"
\p
\v 5 थोमा ने उन से कहा, हे प्रभु, हम नहीं जानते कि आप कहाँ जा रहे हैं। हम कैसे जान सकते हैं?
\v 6 "यीशु ने उस से कहा," मैं मार्ग हूँ, मैं सत्य हूँ, और मैं जीवन हूँ। कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता है और तब तक उनके साथ नहीं रह सकता है जब तक वह मेरे द्वारा न आए।
\v 7 यदि तुम मुझे जानते, तो तुम मेरे पिता को भी जानते। अब से, तुम उन्हें जानते हो और तुमने उन्हें देखा है।"
\p
\s5
\v 8 फिलिप्पुस ने यीशु से कहा, "हे प्रभु, हमें पिता दिखाएं और हम केवल यही जानना चाहेंगे।"
\v 9 यीशु ने उस से कहा, "फिलिप्पुस, मैं तुम्हारे साथ बहुत समय तक रहा हूँ, और तू अभी भी मुझे नहीं जानता, और जिन्होंने मुझे देखा है, उन्होंने मेरे पिता को देखा है। तो तू क्यों कह रहा है हमें पिता को दिखाओ'?
\s5
\v 10 क्या तू विश्वास नहीं करता कि मैं अपने पिता से जुड़ चुका हूँ और मेरे पिता मुझसे जुड़ गए हैं? मैंने तुमको जो कुछ कहा है, मैंने इन सब बातों के विषय में सोचा नहीं था; परन्तु, यह मेरे पिता है, जिन्होंने मुझे इन सब बातों को बताने के लिए भेजा है, क्योंकि मेरे पिता मुझसे जुड़े है और मेरे माध्यम से काम करते है।
\v 11 मुझ पर विश्वास करो क्योंकि मैंने तुमसे कहा है कि मैं पिता से जुड़ गया हूँ और पिता मुझसे जुड़ चुके है, या फिर मुझ पर विश्वास रखो, क्योंकि तुमने मुझे उन सब चिन्हों और शक्तिशाली कामों को करते देखा है।
\s5
\v 12 मैं तुम से सच कह रहा हूँ: जो कोई मुझ पर विश्वास करता है, वह भी उन कामों को करेगा जो मैं करता हूँ। वह इससे भी बड़े काम करेगा क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूँ।
\v 13 जो भी तुम मेरे नाम से मांगोगे, वह मैं करूँगा। मैं ऐसा इसलिए करूँगा कि हर कोई पिता का आदर कर सके और जो मैं अर्थात् उनका पुत्र, करता हूँ उसके द्वारा सब लोग पिता को जान सकें।
\v 14 यदि तुम पिता से कुछ भी मांगते हो क्योंकि तुम मेरे हो, तो मैं उसको करूँगा।
\p
\s5
\v 15 यदि तुम मुझसे प्रेम करते हो, तो तुम वैसा जीवन जिओगे जैसा मैंने तुमको सिखाया है।
\v 16 तब मैं पिता से तुम्हारे लिए एक और वरदान देने के लिए कहूँगा, और वह तुम्हारे लिए एक सहायक भेज देंगे, जो तुम्हारे साथ सदा रहेंगे।
\v 17 वह पवित्र आत्मा हैं जो परमेश्वर के विषय में सत्य बताते है। इस संसार के अविश्वासी लोग उनका कभी भी स्वागत नहीं करेंगे क्योंकि संसार उन्हें न देख पाता है और न उन्हें जान सकता है। तुम उन्हें जानते हो क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहते हैं और वह तुम्हारे साथ जुड़ जाएँगे।
\s5
\v 18 मैं तुम्हें त्यागूँगा नहीं और न ही बेसहारा छोडूँगा; मैं तुम्हारे पास आऊंगा।
\v 19 शीघ्र ही संसार मुझे और नहीं देखेगा, पर तुम मुझे देखोगे क्योंकि मैं जीवित हूँ, तुम भी जीवित रहोगे।
\v 20 जब तुम मुझे फिर से देखोगे, तो तुम जान लोगे कि मैं पिता के साथ जुड़ा हुआ हूँ और तुम मेरे साथ जुड़े हुए हो और मैं तुम्हारे साथ।
\s5
\v 21 जिस ने मेरी आज्ञाओं को सुना है और उनका पालन करता है, वही है जो मुझसे प्रेम करते हैं। और जो मुझ से प्रेम करते हैं, उनसे मेरे पिता भी प्रेम करेंगे; मैं उन से प्रेम करूंगा और मैं अपने आप को उन पर प्रकट करूंगा।"
\p
\v 22 फिर यहूदा (इस्करियोती नहीं, बल्कि उसी नाम का एक दूसरा शिष्य) ने यीशु से कहा, "हे प्रभु, आप अपने आप को केवल हम पर कैसे प्रकट करेंगे, पूरे संसार पर नहीं?"
\s5
\v 23 यीशु ने उस को उत्तर दिया, "तुम इस प्रकार कह सकते हो कि लोग मुझसे प्रेम करते हैं: यदि वे उन कार्यों को करते हैं जो मैंने तुम्हें करने के लिए कहा है। ऐसे लोगों से मेरे पिता प्रेम करेंगे। वह और मैं उसके पास जाएँगे और उसके साथ रहेंगे
\v 24 जो लोग मुझसे प्रेम नहीं करते, वे उन बातों का पालन नहीं करेंगे जो मैंने उन्हें सिखाई हैं। जो बातें मैंने तुमसे कही हैं, वह मैंने अपने निर्णय से नहीं कहीं हैं; वरन् वह वे बातें हैं जो मेरे पिता ने तुम्हें सिखने के लिए मुझे भेजा है।
\s5
\v 25 मैंने यह सब बातें तुम्हें सिखाई, जब तक मैं तुम्हारे साथ हूँ।
\v 26 जो सहायक, तुम्हारे साथ रहने के लिए आएंगे-मेरे पिता उन्हें तुम्हारे पास मेरे नाम से भेजेंगे, वे तुम्हें वह सब कुछ सिखायेंगे जो तुम्हें जानने की आवश्यकता है। वह तुन्हें उन सब बातों को भी याद करायेंगे जो मैंने तुमसे कही हैं
\v 27 जब मैं तुम्हें शान्ति में छोड़ जाता हूँ, तो मैं अपनी शान्ति तुम्हें देता हूँ, मैं तुम्हें ऐसी शान्ति देता हूँ जो इस संसार से जुड़ा कोई भी तुमको नहीं दे सकता। इसलिए परेशान न होना और न ही चिंतित होना; और भयभीत न होना।
\p
\s5
\v 28 तुमने मुझे यह कहते सुना है कि मैं जा रहा हूँ और बाद में तुम्हारे पास लौट आऊंगा। यदि तुम मुझसे प्रेम करते, तो तुम आनन्दित होते कि मैं पिता के पास वापस जा रहा हूँ क्योंकि पिता मुझ से भी महान हैं।
\v 29 मैंने तुम्हें इन बातों के होने से पहले बता दिया है, ताकि जब वे पूरी हो, तो तुम मुझ पर विश्वास करते रहो।
\v 30 मैं तुम्हारे साथ बहुत समय तक बात नहीं कर पाऊंगा क्योंकि इस संसार का शासक आ रहा है। हालांकि, उसका मुझ पर कोई अधिकार नहीं है,
\v 31 और मैं वह करूंगा जिसकी आज्ञा मेरे पिता ने मुझे दी है। यह इसलिए है कि यह संसार सदा के लिए जान ले कि मैं पिता से प्रेम करता हूँ। आओ, हम यहाँ से चलें।"
\s5
\c 15
\p
\v 1 "मैं सच्ची दाखलता हूँ, और मेरे पिता माली हैं।
\v 2 हर एक शाखा जो मुझ में है और फल नहीं लाती - मेरे पिता उसे काट देते है और दूर कर देते हैं; पर जो शाखा अच्छे फल लाती है, वे उसे छंटाई कर के साफ करते हैं, ताकि वह अधिक फल उपजा सके।
\s5
\v 3 जो संदेश मैंने तुम्हें सुनाया था, उसके कारण तुम पहले से ही शुद्ध हो।
\v 4 मेरे साथ जुड़ें रहो और मैं तुम्हारे साथ जुड़ा रहूँगा। जैसा कि शाखा अपने आप में कोई फल पैदा नहीं कर सकती है, न ही तुम फल पैदा कर सकते हो; जब तक कि तुम मेरे साथ जुड़े न रहो और सब वस्तुओं के लिए मुझ पर निर्भर न रहो।
\p
\s5
\v 5 मैं दाखलता हूँ; तुम शाखाएं हो। यदि तुम मेरे साथ जुड़े रहो और मैं तुम्हारे साथ जुड़ा रहूँ, तो तुम बहुत फल लाओगे, क्योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते हो।
\v 6 जो कोई मुझ से जुड़ा नहीं रहता और अपना जीवन मुझ से अलग करता है, वह एक मरी हुई शाखा के समान फेंक दिया जाएगा। उन शाखाओं को एकत्र किया जाता है और आग में डाल कर जला दिया जाता है।
\v 7 यदि तुम मेरे साथ जुड़े रहो और मेरे संदेश पर जीवन जीते रहो, तो तुम परमेश्वर से कुछ भी मांग सकते हो, और वे तुम्हारे लिए करेंगे।
\s5
\v 8 जब तुम अधिक फल लाते हो, तो मनुष्यों द्वारा पिता के आदर का कारण होते हो। तब तुम मेरे शिष्य ठहरोगे।
\p
\v 9 जैसे पिता मुझ से प्रेम करते हैं, वैसे ही मैंने तुम से प्रेम किया है। मुझे तुमसे प्रेम करते रहने दो।
\s5
\v 10 यदि तुम उन बातों का पालन करो जो मैं तुम्हें करने के लिए कहता हूँ, तो तुम मुझे तुमसे प्रेम करते रहने की अनुमती दोगे। इस प्रकार तुम मेरे जैसे ठहरोगे: मैंने अपने पिता की आज्ञा को माना था, और मेरी आज्ञाकारिता के कारण, मैं उनके प्रेम में बना रहा हूँ। यह तुम्हारे लिए भी सच होगा।
\v 11 मैंने तुमको ये बातें बताईं ताकि मेरा आनन्द तुम में हो, और इस तरह तुम पूरी तरह आनन्दित रहो।
\s5
\v 12 मैं तुमको जो आज्ञा देता हूँ वह ऐसी है: एक दूसरे से प्रेम करो जिस तरह से मैंने तुम्हें प्रेम किया है।
\v 13 कोई भी उस व्यक्ति की तुलना में अधिक प्रेम नहीं करता जो अपने मित्रों के लिए अपना जीवन दे देता है।
\s5
\v 14 तुम मेरे मित्र हो यदि तुम मेरी आज्ञाओं को सुनते ही नहीं परन्तु उनके अनुसार जीते भी हो।
\v 15 मैं तुम्हें अपना सेवक नहीं कहता हूँ, क्योंकि सेवक नहीं समझता कि उसका स्वामी क्या कर रहा है। मैं अब तुम्हें मित्र कहता हूँ, क्योंकि मैंने जो कुछ अपने पिता से सुना है, वह तुम सबको बताया है जिससे कि तुम उसे समझ सको।
\s5
\v 16 तुमने मुझे नहीं चुना, परन्तु मैंने तुम्हें किसी कारण से चुना है, कि तुम बाहर जाकर अधिक फल उत्पन्न करो, और तुम्हारा फल सदा बना रहे । इसके फलस्वरूप, तुम मेरे नाम से पिता से सब कुछ मांगो, वे तुम्हारे लिए करेंगे।
\v 17 मैं तुम्हें यही आज्ञा देता हूँ: एक दूसरे से प्रेम करो।
\p
\s5
\v 18 यदि संसार तुमसे घृणा करता है, तो तुम जानते हो कि उसने पहले मुझसे घृणा की थी।
\v 19 यदि तुम इस संसार के अविश्वासियों के हो, तो संसार तुम से प्रेम करेगा, और तुम उससे प्रेम करोगे जिससे वे प्रेम करते है और वह काम करोगे जो वे करते हैं। परन्तु तुम उनके नहीं हो; मैंने तुम्हें उन लोगों के बीच में से बाहर निकलने के लिए चुना है। यही कारण है कि इस संसार के अविश्वासी तुम से घृणा करते हैं।
\s5
\v 20 याद रखो जब मैंने तुमको यह सिखाया था: 'एक सेवक अपने स्वामी से बड़ा नहीं है।' क्योंकि उन्होंने मुझे पीड़ित किया है, इसलिए तुम यह सुनिश्चित कर सकते हो कि वे तुमको भी पीड़ित करेंगे। यदि उनमें से किसी ने मेरी शिक्षाओं को ग्रहण किया और उनका पालन करते हैं, तो वे उनका अनुसरण भी करेंगे जो तुम उन्हें सिखाओगे।
\v 21 इस संसार में अविश्वासी तुम्हारे साथ बहुत बुरा व्यवहार करेंगे क्योंकि तुम मेरा प्रतिनिधित्व करते हो और क्योंकि वे मेरे पिता को नहीं जानते, जिन्होंने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।
\v 22 यदि मैं आकर परमेश्वर का संदेश उनको नहीं सुनाता, तो वे मुझे और मेरे संदेश को अस्वीकार करने के दोषी नहीं ठहरते। परन्तु, मैं आया हूँ और उन्हें परमेश्वर का संदेश सुनाया है, और अब उनके पास अपने पाप का कोई बहाना नहीं है।
\s5
\v 23 जो कोई मुझे से घृणा करता है वह मेरे पिता से भी घृणा करता है
\v 24 यदि मैंने उन कामों को उनके बीच नहीं किया होता, तो वे चीजें जिन में मैंने अपनी शक्ति दिखायी थी, वे काम जो किसी ने कभी नहीं कि, तो वे पाप के दोषी नहीं होते। यद्यपि अब उन्होंने मुझे देखा है, वे मुझसे घृणा करते हैं, और वे मेरे पिता से भी घृणा करते हैं।
\v 25 ये शब्द उनकी व्यवस्था में लिखा गया था और अब पूरा हो गया है: 'उन्होंने मुझसे बिना किसी कारण के घृणा की।'
\p
\s5
\v 26 जब सहायक आएँगे, तो वह पिता की ओर से आएँगे और तुमको शान्ति देगे। वे पवित्र आत्मा हैं जो परमेश्वर और मेरे विषय में सच्चाई बताते हैं। वे सब को बतायेंगे कि मैं कौन हूँ, और सब कुछ जो मैंने किया है, वह सबको दिखाएँगे।
\v 27 तुम भी जो मेरे विषय में जानते हो; सबको बताओ, क्योंकि तुम पहले दिन से ही हर समय मेरे साथ थे जब मैंने लोगों को शिक्षा देना आरम्भ किया था और चमत्कार किये। "
\s5
\c 16
\p
\v 1 मैंने तुमको ये बातें इसलिए बताईं ताकि तुम ठोकर न खाओ या मुझ पर विश्वास करना त्याग न दो।
\v 2 कठिन दिन आने वाले हैं तुम्हारे शत्रु तुमको सभाओं में आराधना करने से रोकेंगे। परन्तु, कुछ इससे भी बुरा होगा, वह दिन आ रहे हैं जब लोग तुम्हें मार डालेंगे और सोचेंगे कि वे परमेश्वर को प्रसन्न कर रहे हैं।
\s5
\v 3 वे ऐसा करेंगे क्योंकि वह पिता को और मुझ को नहीं जानते है।
\v 4 मैंने तुमको ये बातें बताई हैं ताकि जब ऐसे कलेश आ जाएँ तब तुमको याद आएगा कि मैंने तुमको चेतावनी दी थी। मैंने तुमको ये बातें आरंभ में नहीं बताई क्योंकि तब मैं तुम्हारे साथ था।
\p
\s5
\v 5 "अब मैं पिता के पास वापस जा रहा हूँ, पिता वही है जिन्होंने मुझे भेजा है। फिर भी तुम में से कोई मुझसे यह पूछने का साहस नहीं करता, 'आप कहाँ जा रहे हैं?'
\v 6 क्योंकि मैंने तुम से ये बातें कही हैं, तो अब तुम्हारा हृदय शोक से भर गया है।
\v 7 मैं तुमसे सच कहता हूँ, तुम्हारे लिए यह भला है कि मैं जा रहा हूँ; जब तक मैं नहीं जाऊँगा, तब तक तुमको शान्ति देनेवाले सहायक नहीं आएंगे। अगर मैं चला जाऊं, तो मैं उन्हें तुम्हारे पास भेजूंगा।
\s5
\v 8 जब सहायक आएंगे, तो वे उन्हें उनके पापों के लिए दोषी ठहराएंगे; वह उन्हें दिखाएँगे कि वे परमेश्वर की भलाई के स्तर तक नहीं पहुंचते हैं; और वह उनसे प्रतिज्ञा करते हैं कि परमेश्वर उनका न्याय करेंगे क्योंकि उन्होंने वह कार्य किया जिसे न करने की आज्ञा परमेश्वर ने उन्हें दी थी।
\v 9 उनके पाप का दोष इसलिए है क्योंकि वे मुझ पर विश्वास नहीं करते हैं।
\v 10 परमेश्वर की अच्छाई के स्तर तक पहुँच पाने की उनकी असफलता इसलिए दृढ हो गई है क्योंकि मैं अपने पिता के पास वापस जा रहा हूँ, और तुम मुझे और नहीं देख पाओगे।
\v 11 उनका अंतिम लेखा आ जाएगा, जब परमेश्वर उनके पापों के विरुद्ध उनको दण्ड देंगे। यह इस संसार के सरदार शैतान को दिए जाने वाले दण्ड के द्वारा प्रकट किया जायेगा, जो कि इस संसार का राजकुमार है, क्योंकि वह परमेश्वर के विरुद्ध लड़ा था।
\p
\s5
\v 12 मेरे पास बहुत सी बातें हैं जो मैं तुमको बताना चाहता हूँ। परन्तु, यदि मैं तुमको अभी बताता हूँ, तो तुम इन बातों को सह नहीं पाओगे।
\v 13 जब सत्य के पवित्र आत्मा आएंगे, तो वह तुमको उन सब सच्चाइयों की ओर ले जाएँगे जिनको जानने की तुमको आवश्यकता है। वह अपने अधिकार से बात नहीं करेंगे, परन्तु वह जो कुछ भी सुनते है वह तुमको बतायेंगे, और वह तुमको समय से आगे उन बातों के विषय में बतायेंगे जो होने वाली है।
\v 14 पवित्र आत्मा तुमको यह बताकर कि मैं कौन हूँ और यह दिखाकर कि मैंने क्या किया है; मुझे आदर देंगे। वे तुमको सब कुछ समझायेंगे जो उन्होंने मुझसे सुना है।
\s5
\v 15 सब कुछ जो मेरे पिता का है वह मेरा है; इसलिए मैंने कहा था कि पवित्र आत्मा मुझसे प्राप्त करके तुमको सब समझायेंगे।
\p
\v 16 थोड़ी देर बाद, तुम मुझे नहीं देख पाओगे। फिर थोड़ी देर बाद, तुम मुझे फिर से देखोगे।"
\s5
\v 17 उनके कुछ शिष्य एक दूसरे से कहने लगे, "यीशु का क्या अर्थ है जब वे हम से कहते है कि 'थोड़े समय बाद तुम मुझे नहीं देखोगे' और 'थोड़े समय के बाद, तुम मुझे फिर से देखोगे' और उनके यह कहने का क्या अर्थ है 'क्योंकि मैं अपने पिता के पास वापस जा रहा हूँ'?"
\v 18 वे पूछते रहे, उनके यह कहने का क्या अर्थ है "थोड़ी देर के बाद", हम समझ नहीं पा रहे हैं कि वह क्या कह रहे है।
\p
\s5
\v 19 यीशु ने देखा कि वे उनसे और भी प्रश्न पूछना चाहते है। इसलिए उन्होंने शिष्यों से कहा, "तुम एक दूसरे से क्यों पूछ रहे हो कि मेरा क्या अर्थ था? मैंने कहा था कि थोड़ी देर में तुम मुझे नहीं देखोगे, और फिर कुछ समय बाद तुम मुझे फिर से देखोगे।
\v 20 मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: तुम रोओगे और शोक करोगे, परन्तु जो लोग इस संसार के हैं, वे आनंद करेंगे। तुमको बहुत दुःख सहना होगा, परन्तु तुम्हारा दुःख आनंद में बदल जाएगा।
\v 21 यह एक स्त्री के समान है जो बच्चे को जन्म देने के समय दर्द से पीड़ित होती है। परन्तु उसके बच्चे के जन्म होने के बाद, वह अपनी पीड़ा को उस आनन्द के कारण भूल जाती है क्योंकि उसके बच्चे का जन्म संसार में हुआ है।
\s5
\v 22 तुम जैसे, अभी दुखी हो, परन्तु मैं तुम को फिर से देखूंगा और परमेश्वर तुमको बहुत आनन्द देंगे, वह आनन्द जो कोई भी तुमसे ले नहीं सकता।
\v 23 उस दिन, तुम्हारे पास मुझसे पूछने के लिए कोई प्रश्न नहीं होंगे। मैं तुमसे सच कह रहा हूँ: जो कुछ भी तुम पिता से माँगोगे, वे तुमको दे देंगे क्योंकि तुम मुझसे जुड़ चुके हो।
\v 24 अब तक, तुमने इस तरह से कुछ भी नहीं मांगा है मांगो और तुम उसे प्राप्त करोगे, और परमेश्वर तुमको आनन्द से भरपूर करेंगे।
\p
\s5
\v 25 मैं इन बातों को दृष्टान्तों और पहेलियों के द्वारा बोल रहा हूँ, परन्तु शीघ्र ही ऐसा समय आएगा जब मैं इस भाषा का उपयोग नहीं करूँगा इसकी अपेक्षा, मैं तुमको अपने पिता के विषय में सब कुछ उस भाषा में बताऊंगा जिसे तुम स्पष्ट रूप से समझ सकते हो।
\s5
\v 26 उस समय तुम मेरे नाम से परमेश्वर से विनती करोगे और परमेश्वर के उद्देश्यों के अनुसार करोगे। मुझे पिता से तुम्हारी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नहीं कहना होगा;
\v 27 क्योंकि पिता स्वयं तुमसे प्रेम करते है, क्योंकि तुमने मुझ से प्रेम किया है और मुझ पर अपना विश्वास रखा है और तुम जानते हो कि मैं परमेश्वर की ओर से आया हूँ।
\v 28 मैं पिता की ओर से आया हूँ, और मैंने इस संसार में प्रवेश किया है अब मैं इस संसार को छोड़ रहा हूँ, और मैं वापस पिता के पास जा रहा हूँ।"
\p
\s5
\v 29 फिर उनके शिष्यों ने कहा, " अब आप स्पष्ट रूप से बात कर रहे हैं और दृष्टान्तो की भाषा का उपयोग नहीं कर रहे हैं।
\v 30 अब हम यह समझते हैं कि आप सब कुछ जानते हैं अब आपसे प्रश्न पूछने की आवश्यक्ता नहीं है। यही कारण है कि हम आप पर विश्वास रखते है, और हमें पता है कि आप परमेश्वर की ओर से आए हैं।"
\p
\v 31 "यीशु ने उनको उत्तर दिया," क्या तुम अब अंततः मुझ पर विश्वास रख रहे हो ?
\s5
\v 32 देखो! समय आ रहा है जब दूसरे तुम को हर जगह तितर-बितर कर के चले जाएँगे। प्रत्येक व्यक्ति अपने घर की ओर जायेगा, और तुम मुझे छोड़ दोगे परन्तु, मैं अकेला नहीं रहूँगा क्योंकि पिता हमेशा मेरे साथ हैं।
\v 33 मैंने तुमको ये बातें बताई हैं कि मुझमें तुम्हें शान्ति मिले। संसार में तुम पर परिक्षाएं और कई क्लेश आएँगे, परन्तु साहसी बनो। मैंने संसार को जीत लिया है।"
\s5
\c 17
\p
\v 1 इन बातों को कहने के बाद यीशु ने आकाश की ओर देखा और कहा, "हे पिता, यह समय है कि आप सबको घोषणा करके बताएँ कि मैं आपका पुत्र कौन हूँ, और जो मैंने किया है वह सब को दिखाए। ऐसा करें जिससे कि मैं, आपका पुत्र, यह सब उन पर प्रकट कर सकूँ कि आप वास्तव में क्या हैं, एक महान राजा जो कुछ भी कर सकते हैं।
\v 2 ठीक वैसा ही करें जैसा कि आपने मुझे, अपने पुत्र को सब लोगों पर शासन करने की अनुमति दी है। हे पिता, आपने यह किया है ताकि मैं उनको अनन्त जीवन दे सकूँ- जिन्हें आप ने मुझे दिया है।
\s5
\v 3 आप को जानना ही अनन्त जीवन है क्योंकि केवल आप ही एकमात्र सच्चे परमेश्वर है और मुझे भी जानना; अर्थात् यीशु मसीह को जिनको आपने संसार में भेजा है ।
\v 4 मैं सब लोगों को आपके पास लाया ताकि वे आपके विषय में सब कुछ जान सकें। मैंने यह आपके द्वारा दिए गए कार्य को पूरा करके किया है
\v 5 हे पिता, अपनी उपस्थिति में लाने के द्वारा मुझे आदर दें, जैसा कि हम इस संसार को बनाने से पहले थे।
\p
\s5
\v 6 जिन लोगों को आपने इस संसार में से चुना ताकि वे मेरे ठहरे, मैंने उनको सिखाया है कि आप वास्तव में कौन हैं और आप कैसे हैं। वे आप के थे और आपने उन्हें मुझे दिया है। उन्होंने उस बात पर विश्वास किया जो आपने उनसे कहा, और उन्होंने उसका पालन भी किया है।
\v 7 अब वे जानते हैं कि जो कुछ आपने मुझे दिया है वह सब आप की ओर से आता है।
\v 8 मैंने उनको वह संदेश दिया जो आपने मुझे दिया था। उन्होंने उसे स्वीकार किया, और अब वे निश्चित है कि मैं आप की ओर से आया हूँ, और वे विश्वास करते हैं कि आपने मुझे भेजा है
\s5
\v 9 मैं उनके लिए प्रार्थना कर रहा हूँ। मैं उन लोगों के लिए प्रार्थना नहीं कर रहा हूँ जो इस संसार के हैं, जो निरंतर आप का विरोध करते हैं। मैं उन लोगों के लिए प्रार्थना कर रहा हूँ जिन्हें आपने मुझे दिया है क्योंकि वे आप के हैं।
\v 10 जो भी मेरा हैं वह आपका है, और जो आपका है वह मेरा है। वे जानते हैं कि मैं कौन हूँ, और वे सत्यनिष्ठा से बताते हैं कि मैं कौन हूँ।
\v 11 मैं संसार में अब और नहीं रह पाऊँगा। परन्तु, वे संसार में रह रहे हैं। मैं आपके पास आ रहा हूँ। पवित्र पिता, उन्हें सुरक्षित रखें; उन्हें उसी शक्ति के द्वारा अपने से जोड़कर रखें जो आपने मुझे दी थी, ताकि वे एकजुट हों, जैसे हम हैं।
\s5
\v 12 जब मैं उनके साथ था, मैंने उन्हें सुरक्षित रखा और आपकी शक्तियों से उनकी रखवाली की। उनमें से एक भी खोया नहीं था, अपेक्षा उसके जिसे आप ने विनाश के लिए निर्धारित किया था, जैसा कि धर्म शास्त्र में पहले से बताया गया था।
\p
\v 13 अब मैं आपके पास आ रहा हूँ, पिता। मैंने यह सब बातें तब कहीं हैं जब मैं इस संसार में हूँ ताकि मैं उन्हें सम्पूर्ण आनंद दे सकूँ।
\v 14 मैंने आपका संदेश उन्हें सुनाया है, और संसार उनसे घृणा करता है और आपके संदेश को नहीं सुनता। संसार उनसे घृणा करता है क्योंकि, मेरे समान, वे भी इस संसार से जुड़े नहीं है, परन्तु उनके पास दूसरा घर है।
\s5
\v 15 मैं आपसे उन्हें इस संसार से उठा ले जाने के लिए नहीं कह रहा हूँ, इसके बदले आप उन्हें हानि से बचाएँ जो दुष्ट उनके साथ कर सकता है।
\v 16 वे इस संसार के नहीं हैं, जैसे मैं नहीं हूँ।
\v 17 उन्हें आपके विषय में सच्चाई सिखा कर उन्हें अलग करें। उन्हें सिखाये जो उन्हें जानने की आवश्यक्ता है जिससे की आप उन्हें अलग कर सकें, क्योंकि आपके संदेश पूर्णरूप से सच हैं।
\s5
\v 18 जैसे आपने मुझे संसार में भेजा है, मैं उन्हें संसार में भेज रहा हूँ।
\v 19 मैं उनके लिए स्वयं को पूर्णरूप से आपको दे रहा हूँ जिससे कि वे वास्तव में स्वयं को आपको दे।
\p
\s5
\v 20 "मैं सिर्फ इनके लिए ही प्रार्थना नहीं कर रहा हूँ, परन्तु उन लोगों के लिए भी प्रार्थना कर रहा हूँ जो मुझ पर विश्वास करेंगे जब वे इनका संदेश सुनेंगे।
\v 21 मैं प्रार्थना करता हूँ कि वे सब एक हों, जैसे आप और मैं एक हैं। पिता, आप मुझमें हैं, और मैं आप में हूँ - वे भी हमारे साथ एक हो सकें। ऐसा कीजिये जिससे कि संसार जान सके कि आपने मुझे भेजा है।
\s5
\v 22 मैंने उन्हें दिखाया है कि मैं कौन हूँ, और उन्होंने देखा जो मैंने किया है। मैंने उन्हें यह सिखाया है ताकि वे एक हों, जैसा कि आप और मैं एक हैं।
\v 23 मैं उनके साथ एक हूँ और आप मेरे साथ एक हैं। मैंने ऐसा इसीलिए किया है ताकि वे पूर्णरूप से एकजुट हो सकें और अविश्वासी जान सके कि आपने मुझे भेजा है और आप उन्हें प्रेम करते हैं, जैसे आप मुझे प्रेम करते हैं।
\p
\s5
\v 24 "पिता, मैं चाहता हूँ कि जिन्हें आपने मुझे दिया है वे मेरे साथ सदा रहे जहाँ मैं रहता हूँ जिससे कि जब मैं आपके साथ हूँ तब वे उस वैभव और महिमा को देख सके जो आप मुझे देंगे। आप ऐसा करते हैं क्योंकि आपने मुझे संसार के निर्माण से पहले प्रेम किया है।
\p
\s5
\v 25 हे धर्मी पिता, संसार आपको नहीं जानता, परन्तु मैं आपको जानता हूँ; और जो यहाँ मेरे साथ है वे भी जानते हैं कि आपने मुझे उनके लिए भेजा है।
\v 26 मैंने उन्हें बताया है कि आप कौन हैं। मैं ऐसा करता रहूँगा जिससे कि आप उनसे प्रेम कर सकें जैसे आप मुझसे प्रेम करते हैं और मैं उनके साथ एक हो सकूँ।
\s5
\c 18
\p
\v 1 जब यीशु ने अपनी प्रार्थना समाप्त की, तो वह अपने शिष्यों के साथ किद्रोन घाटी पार कर गए। दूसरी ओर जैतून के पेड़ों का बगीचा था, और उन्होंने वहां प्रवेश किया।
\p
\v 2 यहूदा, जो यीशु को उनके शत्रुओं से पकड़वाने वाला था, वह जानता था कि यह स्थान कहां थी क्योंकि यीशु अक्सर अपने शिष्यों के साथ प्रायः वहां जाया करते थे।
\v 3 तब प्रधान याजकों और फरीसियों ने कुछ सैनिकों और अधिकारियों को यहूदा के साथ जाने का आदेश दिया। इसलिए वे उस बगीचे में लालटेनों, मशालों, और हथियारों के साथ गए।
\s5
\v 4 यीशु जानते थे कि उनके साथ क्या होने वाला है, तो वे आगे गए और उनसे पूछा, "तुम किसको खोज रहे हो?"
\v 5 उन्होंने उत्तर दिया, "यीशु नासरी" यीशु ने उनसे कहा, "मैं वह व्यक्ति हूँ।" (अब यहूदा जो उसे पकडवा रहा था, उनके साथ खड़ा था।)
\s5
\v 6 जब यीशु ने उनसे कहा, "मैं वह व्यक्ति हूँ," वे तुरंत पीछे हटे और भूमि पर गिर गए।
\v 7 उन्होंने फिर से उनसे पूछा, "तुम किसको खोज रहे हो?" उन्होंने उत्तर दिया, "यीशु नासरी"
\s5
\v 8 यीशु ने उनको उत्तर दिया, "मैंने तुम्हें बताया कि मैं वह व्यक्ति हूँ, क्योंकि तुम मुझे खोज रहें हो, इन बाकी पुरुषों को जाने दो।
\v 9 यह उन शब्दों को पूरा करने के लिए हुआ जो उन्होंने पिता से प्रार्थना करते समय कहा था, "मैंने उन लोगों में से एक को भी नहीं खोया जो आपने मुझे दिये थे।"
\p
\s5
\v 10 तब शमौन पतरस ने एक छोटी तलवार निकली और महायाजक के सेवक को मारा जिसका नाम मलखुस था, और उसका दाहिना कान काट दिया।
\v 11 यीशु ने पतरस से कहा, "अपनी तलवार को वापस म्यान में रख। मैं निश्चय ही उस प्रकार पीड़ा सहूंगा जो मेरे पिता ने मेरे लिए योजना बनाई है।"
\p
\s5
\v 12 तब सैनिकों का समूह, उनके कप्तान और कुछ आराधनालय के रक्षकों ने यीशु को पकड़ लिया और उन्हें बाँध दिया ताकि वे बचकर ना जा सकें।
\v 13 तब वे यीशु को काइफा के ससुर हन्ना के पास ले गए, जो उस वर्ष का महायाजक था।
\v 14 यह काइफा था जिसने अन्य अगुओं को सलाह दी थी कि एक व्यक्ति का सब लोगों के लिए मरना, समस्त राष्ट्र के विनाश से अधिक अच्छा है।
\p
\s5
\v 15 शमौन पतरस और दूसरा एक और शिष्य भी यीशु के पीछे-पीछे चले। दूसरा शिष्य महायाजक का परिचित था, इसलिए उसे महायाजक के आंगन में प्रवेश करने की अनुमति थी जब सैनिक यीशु को वहाँ ले गए
\v 16 पतरस को द्वार के बाहर रुकना पड़ा। तो दूसरा शिष्य फिर से बाहर निकला और द्वारपालिन से बात की और उसने पतरस को भीतर जाने दिया।
\s5
\v 17 उस द्वारपालिन ने पतरस से कहा, तू उस व्यक्ति का शिष्य है जिसे उन्होंने पकड़ा है, क्या तू नहीं है?" उसने कहा, "नहीं, मैं नहीं हूँ।"
\v 18 यह ठण्ड का समय था, इसलिए महायाजक के सेवक और आराधनालय के रक्षकों ने कोयले की आग लगाई और चारों तरफ खड़े होकर आग ताप रहे थे। पतरस भी उनके साथ था, वह खड़ा होकर आग ताप रहा था।
\p
\s5
\v 19 महायाजक ने यीशु से उनके शिष्यों और उनकी शिक्षाओं के विषय में पूछताछ की।
\v 20 यीशु ने उत्तर दिया, "मैंने हर किसी से साथ खुल कर बात की थी। मैंने सभाओं और आराधनालय में, जहाँ लोग एकत्र होते हैं, सदा सिखाया हैं। मैंने कुछ भी गुप्त में नहीं सिखाया है।
\v 21 तो आप मुझसे यह प्रश्न क्यों पूछ रहे हैं? उन लोगों से पूछो जिन्होंने मेरी शिक्षाओं को सुना है। वे जानते हैं कि मैंने क्या कहा।"
\s5
\v 22 जब यीशु ने यह बातें कहीं, तो उनके पास खड़े एक आराधनालय के रक्षक ने अपने हाथ से उन्हें जोर से मारा। उसने कहा, "यह महायाजक को उत्तर देने का सही तरीका नहीं है।"
\v 23 यीशु ने उसे उत्तर दिया, "अगर मैंने कुछ गलत कहा, तो मुझे बताओ कि क्या गलत कहा। परन्तु, यदि मैंने जो कहा वह सही था, तो मुझे थप्पड़ नहीं मारना चाहिए था।"
\v 24 तब हन्ना ने यीशु को, जो अभी तक बंधे हुए थे; महायाजक काइफा के पास भेजा।
\p
\s5
\v 25 शमौन पतरस अभी भी वहां खड़ा था और आग ताप रहा था। एक अन्य व्यक्ति ने उससे कहा, तू भी उस व्यक्ति के शिष्यों में से एक हो जिसे उन्होंने गिरफ्तार किया है, क्या तू नहीं है?" उसने कहा, "नहीं, मैं नहीं हूँ।"
\v 26 महायाजक के सेवकों में से एक, जो उस पुरूष का रिश्तेदार था जिसका कान पतरस ने काटा था, उस से कहा, " मैंने अवश्य तुझे जैतून के पेड़ के बगीचे में उस व्यक्ति के साथ जिसे उन्होंने पकड़ा है; देखा था, क्या मैंने नहीं देखा था ?"
\v 27 पतरस ने फिर से अस्वीकार कर दिया, और तुरंत एक मुर्गे ने बाँग दी।
\p
\s5
\v 28 तब सैनिक यीशु को काइफा के घर से पिलातुस के मुख्यालय तक ले गए जो रोम का राज्यपाल था। यह भोर का समय था; पिलातुस एक यहूदी नहीं था, इसलिए यीशु पर दोष लगाने वालों ने सोचा कि यदि वे उसके मुख्यालय में प्रवेश करेंगे, तो वे स्वयं को अशुद्ध कर देंगे और फसह का पर्व मनाने में असमर्थ होंगे इसलिए वे भीतर नहीं गए।
\v 29 अतः पिलातुस उनसे बात करने के लिए बाहर निकल आया। उसने कहा, "तुम इस व्यक्ति पर क्या आरोप लगा रहे हो?"
\v 30 उन्होंने उत्तर दिया "यदि यह व्यक्ति आपराधी नहीं होता, तो हम इसे तेरे पास नहीं लाते।"
\s5
\v 31 तब पिलातुस ने उन से कहा, "उसे ले जाओ और अपनी व्यवस्था के अनुसार उसका न्याय करो।" फिर यहूदी अगुओं ने कहा, "हम उसे मृत्युदण्‍ड देना चाहते हैं, परन्तु तुम्हारा रोमी कानून हमें ऐसा करने से रोकता है।"
\v 32 उन्होंने यह इसलिए कहा जिससे वह कथन सच हो जो यीशु ने अपनी मृत्यु के विषय में कहा था कि उनकी मृत्यु कैसे होगी।
\p
\s5
\v 33 फिर पिलातुस अपने मुख्यालय में वापस चला गया। उसने यीशु को बुलाकर कहा, "क्या तुम यहूदियों के राजा हो?"
\v 34 यीशु ने उत्तर दिया, "क्या तू इसलिए पूछ रहा है क्योंकि तू स्वयं जानना चाहता है या दूसरों ने तुझको यह प्रश्न पूछने के लिए कहा है?"
\v 35 पिलातुस ने उत्तर दिया, "मैं एक यहूदी नहीं हूँ, तुम्हारे अपने देश और प्रधान याजकों ने तुमको मेरे हाथों में सौंपा है। तुमने क्या गलत किया है?"
\s5
\v 36 यीशु ने उत्तर दिया, "मेरा राज्य इस संसार का हिस्सा नहीं है। यदि मेरा राज्य इस संसार का होता, तो मेरे सेवक मेरे यहूदी शत्रुओं से लड़ाई करते ताकि मैं तेरे हाथ में सौंपा ना जाऊं, पर मेरा राज्य इस संसार का नहीं है ।"
\v 37 तब पिलातुस ने उन से कहा, "तो क्या तुम राजा हो?" यीशु ने उत्तर दिया, "हाँ, मेरे जन्म का कारण और इस संसार में आना इसलिए था कि मैं लोगों को परमेश्वर के विषय में सच्चाई बता सकूँ। जो सच्चाई से प्रेम करता है वह मेरी सुनता है।"
\s5
\v 38 पिलातुस ने उनसे पूछा, "सच क्या है? यीशु से प्रश्न पूछने के बाद पिलातुस बाहर गया और यहूदी अगुओं से फिर से बात की। उसने उनसे कहा, "मेरे विचारों में इसने कोई कानून नहीं तोड़ा है।
\v 39 यद्यपि तुम यहूदियों की एक प्रथा है की प्रतिवर्ष फसह के पर्व के समय, तुम मुझसे एक बन्‍दी को मुक्त करने को कहते हो जो जेल में है। तो क्या तुम चाहते की मैं यहूदियों के राजा को मुक्त कर दूँ?"
\v 40 वे फिर से चिल्लाकर बोले, "नहीं, इस व्यक्ति को मुक्त मत करना, बरअब्बा को मुक्त कर दो!" बरअब्बा एक डाकू था ।
\s5
\c 19
\p
\v 1 फिर पिलातुस ने यीशु को उसके सैनिकों के पास भेजा उसके सैनिकों ने उन्हें कोड़ो से बुरी तरह मारा।
\v 2 सैनिकों ने एक कांटो का मुकुट बनाया और उन्होंने उसे उनके सिर पर रखा। उन्होंने उन्हें बैंगनी वस्त्र भी पहनाया।
\v 3 उन्होंने उनका ठट्ठा किया और कहा, "प्रणाम, यहूदियों के राजा!" और वे उन पर लगातार प्रहार करके मारते गये ।
\p
\s5
\v 4 पिलातुस फिर से बाहर आया और लोगों से कहा, "देखो, मैं उसे तुम्हारे पास ला रहा हूँ कि तुम जान सको कि मुझे उसे दण्ड देने का कोई कारण नहीं मिला ।
\v 5 तो यीशु, कांटों का मुकुट और बैंगनी वस्त्र पहने हुए बाहर निकले। पिलातुस ने उनसे कहा, "देखो, यह मनुष्य यहाँ है!"
\v 6 जब प्रधान याजकों और आराधनालय के पहरेदारों ने उन्हें देखा, तो उन्होंने चिल्लाकर कहा, "उसे क्रूस पर चढ़ाओ! उसे क्रूस पर चढ़ाओ!" पिलातुस ने उनसे कहा, "उसे स्वयं ले जाओ और उसे क्रूस पर चढ़ाओ! जहाँ तक मेरी बात है, मुझे उसे दण्ड देने का कोई कारण नहीं मिला। "
\s5
\v 7 यहूदी अगुओं ने पिलातुस को उत्तर दिया, "हमारे पास एक निश्चित व्यवस्था है जो कहती है कि उसे मरना चाहिए क्योंकि वह अपने आप को परमेश्वर का पुत्र कहता है।"
\v 8 जब पिलातुस ने यह सुना, तो वह और भी डर गया।
\v 9 उसने एक बार फिर अपने मुख्यालय में प्रवेश किया और सैनिकों को यीशु को वापस भीतर लाने के लिए बुलाया। फिर उसने यीशु से कहा,"तुम कहां से आए हो?" हालांकि, यीशु ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया।
\s5
\v 10 इसलिए पिलातुस ने उससे कहा, "क्या तुम मुझसे बात नहीं करोगे? क्या तुम नहीं जानते कि मुझे अधिकार है कि तुम्हें मुक्त कर दूँ और मुझे तुम्हें क्रूस पर चढ़ाने का भी अधिकार है?"
\v 11 यीशु ने उत्तर दिया, "यदि परमेश्वर ने नहीं दिया होता तो तेरा मुझ पर कोई अधिकार नहीं होता। इसलिये जिसने मुझे तेरे अधीन किया है, वह अधिक बुरे पाप का दोषी है।"
\p
\s5
\v 12 उस क्षण से लेकर, पिलातुस यीशु को मुक्त करने का प्रयास करता रहा। परन्तु यहूदी अगुओं ने चिल्लाकर कहा, "यदि तू इस व्यक्ति को मुक्त कर देता है, तो तू कैसर का मित्र नहीं है! जो कोई स्वयं को राजा बनाता है, वह कैसर का विरोध करता है।"
\v 13 जब पिलातुस ने यह सुना, तो यीशु को बाहर ले गया। तब पिलातुस न्‍यायासन पर बैठा, उस स्थान पर जहाँ वह आम तौर पर निर्णय सुनाता है । इसे "चबूतरा" कहा जाता है और जो इब्रानी में ‘गब्बता' कहलाता था ।
\s5
\v 14 अब यह फसह के पर्व से एक दिन पहले था, तैयारियों का दिन था। यह लगभग दोपहर का समय था जब पिलातुस ने यहूदियों से कहा, "देखो, यह तुम्हारा राजा है।"
\v 15 उन्होंने चिल्लाकर कहा, "उसे दूर ले जाओ! उसे दूर ले जाओ! उसे क्रूस पर चढ़ाओ!" पिलातुस ने उन से कहा, क्या मैं तुम्हारे राजा को क्रूस पर चढ़ा दूँ? प्रधान याजकों ने उत्तर दिया, "हमारे पास कैसर के अलावा कोई राजा नहीं है!"
\v 16 इसलिए पिलातुस ने यीशु को उनके हाथों में दे दिया, और वे उन्हें ले गए।
\p
\s5
\v 17 वह बाहर गए और अपना क्रूस स्वयं उठाये हुए उस स्थान पर जिसे "खोपड़ी का स्थान" कहा जाता है, जिसे इब्रानी में ‘गुलगुता’ कहा जाता है, जा रहे थे।
\v 18 वहां उन्होंने उनको क्रूस पर चढ़ाया, और साथ ही उन्होंने दो अन्य अपराधियों को भी क्रूस पर चढ़ाया। एक को एक ओर और दुसरे को दूसरी ओर और यीशु को बीच में चढ़ाया।
\p
\s5
\v 19 पिलातुस ने किसी को एक दोष-पत्र लिखने और यीशु के क्रूस पर बांधने के लिए कहा। उस पर लिखा था, 'नासरत का यीशु, यहूदियों का राजा।'
\v 20 कई यहूदियों ने उस दोष-पत्र को पढ़ा, क्योंकि जिस स्थान पर यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया था वह शहर के पास था, और दोष-पत्र तीन भाषाओं में लिखा गया था: इब्रानी,लतीनी और यूनानी।
\s5
\v 21 प्रधान याजकों ने पिलातुस के पास वापस आकर कहा, "तुझे यहूदियों का राजा नहीं लिखना चाहिए था, इसकी अपेक्षा लिखना था, इस व्यक्ति ने कहा कि मैं यहूदियों का राजा हूँ।'
\v 22 पिलातुस ने उत्तर दिया, "जैसा मैंने लिखा है, तुम्हें उसे वैसे ही छोड़ देना चाहिए।"
\s5
\v 23 यीशु को क्रूस पर चढ़ाने के बाद सैनिकों ने उनके कपड़े ले लिए और उसे चार भागों में बांट दिया, प्रत्येक सैनिक के लिए एक भाग। परन्तु, उन्होंने उसके कुरते को अलग रखा यह कुरता कपड़े के एक टुकड़े से ऊपर से नीचे तक बुना गया था।
\v 24 उन्होंने एक दूसरे से कहा, "चलो इसको न फाड़े, इसकी अपेक्षा, हम चिट्ठी डाल कर यह निश्चित करें कि इसे कौन लेगा।" इससे धर्मशास्त्र में लिखा वचन पूरा हुआ, "उन्होंने आपस में मेरे कपड़ों को बांट लिया, उन्होंने मेरे कपड़ो पर चिट्ठी डाली।"
\p
\s5
\v 25 सैनिकों ने यह सब किया। यीशु की मां, उनकी मौसी, क्लोपास की पत्नी मरियम और मरियम मगदलीनी उनके क्रूस के समीप खड़ी थीं।
\v 26 जब यीशु ने अपनी माता को वहाँ खड़े देखा और जिस शिष्य को वे विशेष रूप से प्रेम करते थे, यूहन्ना पास में खड़ा था, उन्होंने अपनी मां से कहा, "मां, यह वह है जो एक पुत्र के समान है।"
\v 27 और उन्होंने शिष्य से कहा, "यह तेरी माँ है।" तो उसी क्षण से, वह शिष्य उसे अपने घर में रहने के लिए साथ ले गया।
\p
\s5
\v 28 थोड़ी देर बाद, यीशु जानते थे कि परमेश्वर ने उन्हें जो करने के लिए भेजा था, वह अब पूरा हो गया है, और एक अंतिम बात को पूरा करने के लिए जो धर्मशास्त्र में पहले से लिखा गया है, उन्होंने कहा, "मैं प्यासा हूँ।"
\v 29 वहां एक खट्टे दाखरस का पात्र रखा हुआ था, इसलिए उन्होंने जुफे के पौधे से एक छोटी शाखा ली और उसमें पनसोख्‍ता लगाया, और उन्होंने उसको खट्टी दाखरस में डूबोया और यीशु के मुंह पर लगाया।
\v 30 खट्टी दाखरस पीने के बाद, यीशु ने कहा, "सब पूरा हुआ" और उन्होंने अपना सिर झुकाया और अपने प्राण त्याग दिए।
\p
\s5
\v 31 यह फसह की तैयारी का दिन था (और अगला दिन एक बहुत ही विशेष सब्त का दिन था)। यह व्यवस्था के विरुद्ध था कि मृत शरीर सब्त के दिन क्रूस पर लटका रहे, इसलिए वे पिलातुस के पास गए और उनसे तीनो पुरुषों के पैरों को तोड़ने के लिए कहा ताकि वे शीघ्र मर जाएँ और उनके मृत शरीरों को हटा दिया जाए।
\v 32 इसलिए सैनिकों ने आकर पहले व्यक्ति के पैरों को तोड़ दिया और फिर दुसरे व्यक्ति के भी, वे दोनों पुरुष जिन्हें यीशु के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया था ।
\v 33 जब वे यीशु के पास आए, तो उन्होंने देखा कि वह पहले से ही मर चुके हैं। इसलिए उन्होंने उनके पैरों को नहीं तोड़ा।
\s5
\v 34 इसके अतिरिक्त, सैनिकों में से एक ने भाले से यीशु के बगल में छेद दिया और तुरंत उसके शरीर से रक्त और जल गिरा।
\v 35 जिसने यह देखा वह गवाह है - उसकी गवाही सही है, और वह जानता है कि वह सच कह रहा है- ताकि तुम यीशु पर विश्वास रख सको।
\s5
\v 36 जो धर्मशास्त्र में लिखा, उसे पूरा करने के लिए ऐसा हुआ: "कोई भी उनकी हड्डियों को नहीं तोड़ेगा।"
\p
\v 37 और उन्होंने धर्मशास्त्र के एक और वचन को पूरा किया, जो कहता हैं: 'वे उन्हें देखेंगे जिनको उन्होंने छेदा था।'
\p
\s5
\v 38 इन बातों के बाद, अरिमतियाह के यूसुफ, यीशु का शिष्य था परन्तु एक गुप्त शिष्य था क्योंकि वह यहूदियों से डरता था; वह पिलातुस के पास गया और उससे पूछा कि क्या वह यीशु के शरीर को ले जा सकता है? पिलातुस ने यूसुफ को अनुमति दी, इसलिए वह आया और यीशु के शरीर को ले गया।
\v 39 नीकुदेमुस, जो एक बार रात में यीशु के पास आया था, वह भी आया और अपने साथ गन्‍धरस और अगरु के मसालों का एक मिश्रण लाया ताकि दफनाने के लिए शरीर तैयार किया जा सके, मसाले 33 किलोग्राम वजन के थे।
\s5
\v 40 उन्होंने यीशु के शरीर को लिया और कपड़ों की पट्टीयों के टुकड़ों में लपेटा, और उन्होंने सब मसालों से भर कर उसे लपेट कर बांध दिया ।
\v 41 जहाँ यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया था, वहां एक बगीचा था, और बगीचे के किनारे पर एक नई कब्र थी जिसमें किसी को दफनाया नहीं गया था।
\v 42 फसह उस शाम को आरम्भ होने वाला था, और उन्होंने उस कब्र को चुना क्योंकि वह निकट थी और वे यीशु को शीघ्र दफना सकते थे इसलिए उन्होंने यीशु के शरीर को वहां रख दिया।
\s5
\c 20
\p
\v 1 अब सप्ताह के पहले दिन, मरियम मगदलीनी भोर के समय कब्र पर गई, उस समय अंधेरा ही था। उसने देखा कि किसी ने पत्थर को कब्र से हटा दिया है
\v 2 इसलिए वह दौड़कर यरूशलेम गई, जहाँ शमौन पतरस और दूसरा शिष्य, जिसे यीशु विशेष रूप से प्रेम करते थे, रह रहे थे और उनसे कहा, "उन्होंने प्रभु को कब्र से ले लिया है, और हम नहीं जानते कि उन्होंने उनको कहाँ रखा है।"
\s5
\v 3 जब उन्होंने यह सुना, तो पतरस और दूसरा शिष्य कब्र पर गए।
\v 4 वे दोनों दौड़ रहे थे, परन्तु दूसरा शिष्य पतरस की तुलना में तेज़ था और कब्र पर पहले पहुँच गया।
\v 5 वह नीचे झुका और कब्र में देखा; उसने देखा कि वहाँ कपड़े की पट्टियाँ थीं, परन्तु वह अंदर जाने से झिझक रहा था
\s5
\v 6 फिर शमौन पतरस जो उसके पीछे दौड़ रहा था, वहाँ पहुँचा, और कब्र के भीतर गया। उसने भी, वहाँ कपड़े की पट्टियाँ पड़ी देखीं।
\v 7 उसने उस कपडे को भी देखा जो यीशु के सिर पर था, वह कपड़े की पट्टियों से अलग एक तरफ तह लगा कर रखा हुआ था।
\s5
\v 8 फिर दूसरा शिष्य भी भीतर गया; उसने इन चीजों को देखा और विश्वास किया कि यीशु मरे हुओं में से जी उठे हैं।
\v 9 वे अभी भी धर्मशास्त्र को समझ नहीं पाए थे; जो बताता है कि यीशु को मरे हुओं में से जी उठना होगा।
\p
\v 10 तो शिष्य अपने घर वापस लौट गए।
\s5
\v 11 मरियम कब्र के बाहर खड़ी रो रही थी। जैसे ही उसने रोते हुए झुक कर कब्र में देखा;
\v 12 वहाँ दो स्वर्गदूतों को सफेद वस्त्र पहने हुए उसी जगह पर बैठे देखा जहाँ यीशु का शरीर था, एक को सिरहाने और दूसरे को पैताने बैठा देखा था।
\v 13 उन्होंने उससे कहा, "हे स्त्री, तू क्यों रो रही है?" उसने उनसे कहा, "वे मेरे प्रभु को ले गए है, और मुझे नहीं पता कि उनको कहाँ रखा है।"
\s5
\v 14 उसके यह कहने के बाद, वह पीछे मुड़ी और देखा कि यीशु वहाँ खड़े थे, परन्तु वह नहीं पहचान पाई कि वे ही थे।
\v 15 उन्होंने उससे कहा, "हे स्त्री, तू क्यों रो रही है? तू किसको ढूँढ़ रही है?" उसने सोचा कि वह माली है, और उसने उनसे कहा, "महोदय, अगर तुम उन्हें ले गये हो, तो मुझे बताओ कि तुमने उन्हें कहाँ रखा है, और मैं उन्हें ले जाऊँगीं।"
\s5
\v 16 यीशु ने उससे कहा, "मरियम।" उसने मुड़कर उनसे इब्रानी में कहा, "रब्बी!" (जिसका अर्थ है "शिक्षक")।
\v 17 "यीशु ने उससे कहा," मुझे मत छूओ, क्योंकि मैं अभी तक अपने पिता के साथ स्वर्ग में नहीं गया हूँ। मेरे शिष्यों के पास जा और उन्हें बता, 'मैं अपने पिता के साथ रहने के लिए स्वर्ग में लौट रहा हूँ जो तेरा पिता, जो मेरा परमेश्वर और तेरा परमेश्वर है।'
\v 18 मरियम मगदलीनी शिष्यों के पास गई और घोषणा की, "मैंने प्रभु को देखा है" और उसने उन्हें बताया कि यीशु ने उससे क्या कहा था।
\p
\s5
\v 19 उस दिन की शाम को, सप्ताह के पहले दिन, द्वार बंद थे, और शिष्य भीतर थे क्योंकि उन्हें डर था कि यहूदी अधिकारी उन्हें पकड़ लेंगे। अकस्मात यीशु आए और उनके समूह के बीच में खड़े हो गए; उन्होंने उनसे कहा, "परमेश्वर तुम्हें शान्ति दे।"
\v 20 यह कहने के बाद, उन्होंने उन्हें अपना हाथ और अपना पंजर दिखाया। प्रभु को देखकर शिष्यों को बहुत प्रसन्नता हुई।
\s5
\v 21 फिर यीशु ने उनसे कहा, "परमेश्वर तुम्हें शान्ति दे, जैसे पिता ने मुझे भेजा है, अब मैं तुम्हें भेज रहा हूँ।"
\v 22 यह कहने के बाद, उन्होंने उन पर फूँका और कहा, "पवित्र आत्मा प्राप्त करों ।
\v 23 यदि तुम किसी के पापों को क्षमा करते हो, तो परमेश्वर उन्हें क्षमा कर देंगे । यदि तुम किसी के पापों को क्षमा नहीं करते हो, तो वह उनके विरुद्ध रखा जाएगा।"
\p
\s5
\v 24 थोमा, जो बारहों में से एक था, जिसे "दिदुमुस" कहा जाता था, वह शिष्यों के साथ नहीं था, जब यीशु उनके पास आए थे।
\v 25 दूसरे शिष्यों ने उससे कहा, "हमने प्रभु को देखा है।" परन्तु, उसने उनसे कहा, "जब तक कि मैं उनके हाथों में कीलों के छेद नहीं देख लूँ और उन छेदों में जो कीलों से बने है, उनमें अपनी उंगलियों को डालकर नहीं परख लूँ, और जब तक मैं अपने हाथ को उनके पंजर के घावों में नहीं डालता, मैं उन पर कभी भरोसा नहीं करूँगा।"
\p
\s5
\v 26 आठ दिन बाद, उनके शिष्य फिर घर के अंदर थे, और इस बार थोमा उनके साथ था। यद्यपि द्वार बंद थे, यीशु आ गए और उन के बीच खड़े हो गए और उन्होंने उनसे कहा, "परमेश्वर तुम्हें शान्ति दे।"
\v 27 तब उन्होंने थोमा से कहा, "अपनी उंगली को यहाँ रखो और मेरे हाथों को देखो और अपने हाथ को मेरी पसली में रखो। सन्देह करना बंद करो कि यह मैं ही हूँ, मुझ पर भरोसा रखो।"
\s5
\v 28 थोमा ने उन्हें उत्तर दिया, "मेरे प्रभु और मेरे परमेश्वर।"
\v 29 यीशु ने उस से कहा, "अब तू इस पर विश्वास करता है कि मैं जी उठा हूँ क्योंकि तूने मुझे देखा है। फिर भी परमेश्वर उन लोगों को बहुत आनंद देते हैं जिन्होंने मुझे नहीं देखा और फिर भी विश्वास करते हैं।"
\p
\s5
\v 30 यीशु ने कई अन्य सामर्थ्य के काम और चमत्कार किये जिससे सिद्ध हुआ, कि वे कौन हैं। शिष्यों ने उन्हें देखा था, परन्तु वे इतने सारे थे कि मैंने इस पुस्तक में उन सब को नहीं लिखा।
\v 31 फिर भी, मैंने ये लिखा है कि तुम को इस बात पर साहस रहे कि यीशु मसीह, परमेश्वर के पुत्र हैं, और उन पर भरोसा रखने से तुम अनन्त जीवन प्राप्त कर सकते हो।
\s5
\c 21
\p
\v 1 इसके बाद, यीशु अपने शिष्यों को तिबिरियास झील पर दिखाई दिए (जिसे गलील सागर के नाम से भी जाना जाता है)। उन्होंने स्वयं को इस प्रकार से परिचित करवाया:
\v 2 शमौन पतरस, थोमा (दिदुमुस), गलील में काना के नतनएल, जब्दी के पुत्र (याकूब और यूहन्ना) और दो अन्य शिष्य एक साथ थे।
\v 3 शमौन पतरस ने उन से कहा, "मैं मछली पकड़ने जा रहा हूँ।" उन्होंने कहा, "हम तेरे साथ जाएँगे।" वे बाहर निकले और नाव में चढ़े, परन्तु उस रात उन्होंने कुछ नहीं पकड़ा।
\s5
\v 4 सुबह जब दिन का आरम्भ हो रहा था यीशु किनारे पर खड़े थे, परन्तु शिष्यों को नहीं पता था कि वह यीशु हैं।
\v 5 यीशु ने उनसे कहा, "मेरे मित्रों, क्या तुम्हारे पास कोई मछली है?" उन्होंने कहा, "नहीं"
\v 6 उन्होंने उनसे कहा, "नाव के दाहिनी ओर अपना जाल फेंको तो तुम्हें कुछ मिलेगी।" उन्होंने वैसा ही किया और उन्होंने जाल में इतनी सारी मछलियों को पकड़ा कि वे जाल को नाव में खींच नहीं पा रहे थे।
\s5
\v 7 यूहन्ना, जिस शिष्य को यीशु विशेष रूप से प्रेम करते थे, उसने पतरस से कहा, "यह प्रभु हैं!" जब शमौन पतरस ने उसे यह कहते सुना, तो उसने अपनी कमर पर अपना बाहरी वस्त्र कस लिया (उसने काम करते समय लगभग कुछ भी नहीं पहना था), और जल में कूद गया।
\v 8 दूसरे शिष्य मछलियों से भरे जाल को पीछे खींचते हुए नाव में किनारे पर आ गए। वे किनारे से दूर नहीं थे, केवल नब्बे मीटर दूर।
\v 9 जब वे किनारे पर पहुँच गए, तो उन्होंने कोयले की आग को देखा जो तैयार और गर्म थी, उस पर मछली पक रही थी और कुछ रोटी थी
\s5
\v 10 यीशु ने उनसे कहा, "कुछ मछलियों को लाओ जो तुमने अभी पकड़ी है।"
\v 11 शमौन पतरस नाव में वापस आ गया और जाल को किनारे पर खींच लाया, जिसमें 153 बड़ी मछलियाँ थी। फिर भी, जाल टुटा नहीं था।
\s5
\v 12 यीशु ने उनसे कहा, "आओ और नाश्ता करो।" किसी भी शिष्य ने उनसे पूछने का साहस नहीं किया, "आप कौन हो?" वे जानते थे कि वह प्रभु हैं।
\v 13 यीशु आए और रोटी लेकर उन्हें दी। उन्होंने मछली के साथ भी यही किया।
\v 14 यह तीसरी बार था जब यीशु अपने शिष्यों को दिखाई दिए जब परमेश्वर ने उन्हें मरे हुओं में से जीवित किया था।
\p
\s5
\v 15 जब उन्होंने नाश्ता कर लिया, तो यीशु ने शमौन पतरस से कहा, "यूहन्ना के पुत्र शमौन, क्या तू मुझे से बाकि सब से ज्यादा प्रेम करता है? पतरस ने उन से कहा, "हे प्रभु, आप जानते हैं कि मैं आपसे प्रेम करता हूँ।" यीशु ने कहा, "मेरे मेम्नों को चरा।"
\v 16 यीशु ने उसे दूसरी बार कहा, "यूहन्ना के पुत्र शमौन, क्या तू मुझे से प्रेम करता है?" उसने उत्तर दिया, "हाँ प्रभु, आप जानते हैं कि मैं आपसे प्रेम करता हूँ।" यीशु ने उस से कहा, "मेरी भेड़ों का चरवाहा बन।"
\s5
\v 17 यीशु ने उसे तीसरी बार कहा, "यूहन्ना के पुत्र शमौन, क्या तू मुझ से प्रेम करता है?" पतरस दुखी हुआ क्योंकि यीशु ने उससे तीन बार पूछा, "क्या तू मुझ से प्रेम करता है?" पतरस ने कहा, "हे प्रभु, आप सब जानते हो। आपको पता है कि मैं आपसे प्रेम करता हूँ।" यीशु ने कहा, "मेरी भेड़ों को चरा।"
\v 18 मैं तुझको सच्चाई बता रहा हूँ: जब तू जवान था, तब तू स्वयं कपड़े पहनता था और तू जहाँ भी जाना चाहता था, वहाँ जाता था परन्तु, जब तू बूढ़ा होगा, तब तू अपने हाथों को आगे बढ़ाएगा, और कोई तुझको कपड़े पहनाएगा और तुझको वहाँ ले जाएगा जहाँ तू नहीं जाना चाहता।"
\s5
\v 19 यीशु ने यह इसलिए कहा कि पतरस परमेश्वर की महिमा के निमित्त कैसे मरेगा; तब यीशु ने उससे कहा, "मेरे पीछे हो ले।"
\p
\s5
\v 20 पतरस ने पीछे मुड़कर यूहन्ना को उनके पीछे आते देखा; वह शिष्य जिसे यीशु विशेष कर के प्रेम करते थे। वह वही था जिसने मेज के पास यीशु की छाती पर झुककर कहा, "हे प्रभु, कौन आपको शत्रुओं के हाथ सौंप देगा?"
\v 21 जब पतरस ने उसे देखा, तब उसने यीशु से कहा, हे प्रभु, इस व्यक्ति का क्या होगा?
\s5
\v 22 यीशु ने उस से कहा, "यदि मैं चाहता हूँ कि वह जीवित रहे जब तक मैं वापस नहीं लौटता, वह तेरी परेशानी नहीं है, तू मेरे पीछे आ।"
\v 23 तो यह खबर भाइयों और बहनों के बीच फैल गई कि यह शिष्य नहीं मरने वाला, परन्तु यीशु ने यह नहीं कहा कि वह मरेगा नहीं; उन्होंने केवल यह कहा, "यदि मैं चाहता हूँ के वह मेरे वापस लौटने तक न मरे, वह तेरी परेशानी नहीं है।"
\p
\s5
\v 24 मैं, यूहन्ना, वही शिष्य हूँ जो इन सब बातों के बारे में गवाही देता है और मैंने उन्हें लिखा है। हम जानते हैं कि उसकी गवाही सच है।
\p
\v 25 यीशु ने अन्य कई काम किए, इतने सारे कि यदि वे सब लिखे जाते, तो मुझे लगता है कि जो पुस्तकें लिखी जातीं वह संसार भर में भी नहीं समा पाती।

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\id ACT Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h ACTS
\toc1 The Acts of the Apostles
\toc2 Acts
\toc3 act
\mt1 प्रेरितों के काम
\s5
\c 1
\p
\v 1 प्रिय थियुफिलुस,
\p मेरी पहली किताब जो मैंने तेरे लिए लिखी थी, उसमें मैंने यीशु के कामों और शिक्षाओं के बारे में लिखा था।
\v 2 जिस दिन तक परमेश्वर ने उन्हें स्वर्ग में उठा नहीं लिया उन्होंने उस दिन तक पवित्र आत्मा की शक्ति से अपने प्रेरितों को वह सब समझाया जो वे चाहते थे कि उनके लिए जानना आवश्यक है।
\v 3 क्रूस पर दु:ख उठाने और मर जाने के बाद, वे फिर से जीवित हो गए थे। क्योंकि वह अगले चालीस दिन तक दिखाई देते रहे। प्रेरितों ने उन्हें कई बार देखा। उन्होंने कई बातों से सिद्ध कर दिया था कि वे जीवित हैं। उन्होंने उनके साथ यह भी चर्चा की कि परमेश्वर अपने राज्य में लोगों के जीवन पर शासन करेंगे।
\p
\s5
\v 4 एक बार जब वह उनके साथ थे, तो उन्होंने उनसे कहा, "यरूशलेम को मत छोड़ो, यहाँ प्रतीक्षा करो जब तक कि मेरे पिता अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अपना आत्मा तुम्हारे पास न भेज दें। तुमने उन की चर्चा करते हुए मुझे सुना है।
\v 5 यूहन्ना ने लोगों को पानी में बपतिस्मा दिया, परन्तु कुछ दिन बाद परमेश्वर तुमको पवित्र आत्मा में बपतिस्मा देंगे।"
\p
\s5
\v 6 एक दिन जब प्रेरितों ने एकत्र होकर यीशु के साथ भेंट की, तो उन्होंने पूछा, "हे प्रभु, क्या आप इसी समय इस्राएल के राजा होंगे?"
\v 7 "उन्होंने उत्तर दिया, "तुमको इसके समय और दिनों के बारे में जानने की आवयश्कता नहीं है। ऐसा कब होगा, यह केवल मेरे पिता का अपना निर्णय है।
\v 8 परन्तु जब पवित्र आत्मा तुम पर उतरेंगे तब तुम दृढ़ हो जाओगे। तब तुम यरूशलेम में और यहूदिया प्रांत में, सामरिया और सारी दुनिया में लोगों को मेरे बारे में बताओगे।"
\s5
\v 9 यह कहने के बाद वे स्वर्ग पर उठा लिए गए, और एक बादल ने उन्हें छिपा लिया कि वे प्रेरित उन्हें और देख न सकें।
\p
\v 10 उनके स्वर्ग में जाते समय प्रेरित आकाश की और ही देख रहे थे, कि अकस्मात दो पुरुष सफेद कपड़े पहने हुए उनके पास आकर खड़े हो गए। वे स्वर्गदूत थे।
\v 11 उनमें से एक ने कहा, "हे गलील के पुरूषों, तुम्हें आकाश की ओर देखते हुए यहाँ पर और अधिक खड़े रहने की आवयश्कता नहीं है! एक दिन यही यीशु, जिन्हें परमेश्वर ने स्वर्ग में उठा लिया है, वे पृथ्वी पर वापस आएँगे। वे वैसे ही लौटकर आएँगे जैसे तुमने अभी उन्हें स्वर्ग में जाते देखा है।"
\p
\s5
\v 12 उन दोनों स्वर्गदूतों के जाने के बाद, सब प्रेरित जैतून के पहाड़ से जो यरूशलेम से कुछ ही दूर था लौट आए।
\v 13 शहर में प्रवेश करने के बाद, वे उस घर के ऊपर के कमरे में गए जहाँ वे रह रहे थे। वहाँ उपस्थित लोगों में निम्नलिखित लोग थे: पतरस, यूहन्ना, याकूब, अन्द्रियास, फिलिप्पुस, थोमा, बरतुल्मै, मत्ती, हलफईस का पुत्र याकूब, शमौन जेलोतेस और एक अन्य याकूब नाम के व्यक्ति का पुत्र यहूदा।
\v 14 इन प्रेरितों ने एक साथ निरन्तर प्रार्थना करना शुरू कर दिया। उनके साथ प्रार्थना करने वाले अन्य लोगों में यीशु के साथ रही स्त्रियाँ, यीशु की माता मरियम,और उनके छोटे भाई भी थे।
\p
\s5
\v 15 उन्हीं दिनों में पतरस अपने साथी विश्वासियों के बीच खड़ा हुआ। उस स्थान पर यीशु के लगभग 120 अनुयायियों का समूह था। उसने कहा,
\v 16 "हे मेरे भाइयों, यहूदा के बारे में वचन हैं जो कि राजा दाऊद ने बहुत पहले लिख दिया था। और वह वचन सच होना था, और वह सच हुआ भी, क्योंकि वह पवित्र आत्मा की प्रेरणा से दाऊद ने लिखा था।
\s5
\v 17 यहूदा हमारे जैसा ही एक प्रेरित था, परन्तु उसने उन लोगों का मार्गदर्शन किया जिन्होंने यीशु को पकड़ लिया और उन्हें मार डाला।"
\p
\v 18 अब इस व्यक्ति ने इस बुराई से पैसा कमाया। इस पैसे से उसने एक खेत खरीदा। फिर वह वहाँ भूमि पर गिर पड़ा, उसका शरीर फट गया, और उसकी सारी अंतड़ियां बाहर निकल आईं।
\v 19 यरूशलेम में रहने वाले सब लोगों ने इस बारे में सुना था, इसलिए उन्होंने उस खेत को अपनी अरामी भाषा के अनुसार हकलदमा नाम दिया, जिसका अर्थ है "लहू का खेत", क्योंकि वहां पर किसी की मृत्यु हो गई थी।
\p
\s5
\v 20 पतरस ने यह भी कहा, "मैं देखता हूँ कि यहूदा के साथ जो कुछ हुआ, वह ऐसा है जैसा कि भजन संहिता कहता है: 'उसका परिवार मर जाए, उसमें से कोई भी नहीं बचे।' और ऐसा लगता है कि दाऊद ने जो ये दूसरे वचन लिखा था, वह भी यहूदा के बारे में है: 'कोई और उसके अगुवा होने के पद पर काम करे।'
\p
\s5
\v 21 "इसलिए हम प्रेरितों के लिए आवश्यक है कि यहूदा के स्थान पर एक व्यक्ति को चुनें। वह अवश्य ही ऐसा व्यक्ति हो जो प्रभु यीशु के समय से ही सदा हमारे साथ रहा हो।
\v 22 अर्थात यूहन्ना का बपतिस्मा पाने के बाद से लेकर यीशु का हमें छोड़कर स्वर्ग में उठा लिए जाने तक। यहूदा के स्थान पर आनेवाले व्यक्ति के लिये आवश्यक है कि वह हमारे साथ मिलकर लोगों को यीशु के बारे में सुनाए और यह भी कि वे मरने के बाद फिर से जीवित हो गये हैं।"
\p
\v 23 इसलिए प्रेरितों और अन्य विश्वासियों ने दो व्यक्तियों के नाम का सुझाव दिया। एक व्यक्ति यूसुफ बरसब्बास था, जिसका नाम यूस्तुस भी था। दूसरा मत्तियाह था।
\s5
\v 24-25 तब उन्होंने प्रार्थना की: "हे प्रभु यीशु, यहूदा ने प्रेरित होने का पद खो दिया। उसने पाप किया और उस जगह पर चला गया, जहाँ होने के वह योग्य है। आप जानते हैं कि मनुष्य अपने मन में क्या सोचता है, तो कृपया हमको बताएँ कि आपने इन दो लोगों में से किसको यहूदा का स्थान देने के लिए चुना है।"
\v 26 तब उन्होंने उन दोनों के बीच में चयन करने के लिए चिट्ठियाँ डालीं, और मत्तियाह के नाम पर चिट्टी निकली, और वह अन्य ग्यारह प्रेरितों के साथ एक प्रेरित हो गया।
\s5
\c 2
\p
\v 1 जिस दिन यहूदी पिन्तेकुस्त का पर्व मना रहे थे, उस दिन सब विश्वासी यरूशलेम में एक स्थान में एकत्र थे।
\v 2 अकस्मात ही आकाश में प्रचण्ड आँधी की सी ध्वनी सुनाई दी। वहाँ उपस्थित सब लोगों ने उस ध्वनी को सुना।
\v 3 तब उन्होंने आग की लपटों जैसा कुछ देखा। ये लपटें अलग-अलग होकर विश्वासियों में से हर एक पर उतर आईं।
\v 4 और सब विश्वासी पवित्र आत्मा से भर गए और जैसा आत्मा ने हर एक को सक्षम बनाया वे अलग-अलग भाषाएँ बोलने लगे।
\p
\s5
\v 5 उस समय कई यहूदी पिन्तेकुस्त का पर्व मनाने के लिए यरूशलेम में ठहरे हुए थे। वे यहूदी लोग थे जो सच्चे मन से परमेश्वर की आराधना करते थे। वे अलग-अलग देशों से आए थे।
\v 6 जब उन्होंने आँधी की सी ध्वनी सुनी, तो विश्वासियों के एकत्र होने के स्थान पर भीड़ लग गई। भीड़ के लोग चकित थे क्योंकि उनमें से हर एक ने किसी ना किसी विश्वासी को उनकी अपनी भाषा में बोलते हुए सुना।
\v 7 वे पूरी तरह आश्चर्यचकित हो गए, और उन्होंने एक दूसरे से कहा, "ये सभी पुरुष जो बोल रहे हैं, वे गलील से आए हैं, तो वे हमारी भाषा कैसे जान सकते हैं?
\s5
\v 8 परन्तु हम सब ने उन्हें अपनी-अपनी भाषा बोलते हुए सुना है, जो हमने जन्म से सीखी है!
\v 9 हम में से कुछ पारथी और मेदी और एलाम के इलाकों से हैं, और हम में से अन्य मेसोपोटामिया, यहूदिया, कप्पदूकिया, पुन्तुस और आसिया के इलाकों से हैं।
\v 10 कुछ लोग फ्रूगिया और पम्फूलिया, मिस्र, और लीबिया के क्षेत्रों में से भी हैं, जो कि कुरेने शहर के पास हैं। हम में से कुछ अन्य लोग भी हैं जो रोम से यरूशलेम आए हैं।
\v 11 उनमें देशी यहूदियों के साथ-साथ गैर-यहूदी भी हैं, जो हम यहूदियों के विश्वास को मानते हैं। और हम में से अन्य क्रेते द्वीप से और अरब के क्षेत्र से हैं। तो ऐसा कैसे है कि ये लोग परमेश्वर द्वारा किये गए महान कामों के बारे में हमारी भाषाओं में बोल रहे हैं?"
\s5
\v 12 लोग आश्चर्यचकित थे और उनको पता नहीं था कि जो हो रहा है, इसके बारे में क्या विचार करें। तो वे एक दूसरे से पूछने लगे, "इसका क्या मतलब है?"
\v 13 लेकिन उनमें से कुछ ने जो देखा था उसका ठट्ठा करके कहा, "ये लोग इस तरह से बात कर रहे हैं क्योंकि इन्होंने नया दाखरस बहुत अधिक पी लिया है!"
\p
\s5
\v 14 इसलिए पतरस अन्य ग्यारह प्रेरितों के साथ खड़ा हुआ और ऊँची आवाज में लोगों की भीड़ से बोला; उसने कहा, "हे यहूदी पुरुषों और हे अन्य लोगों जो यरूशलेम में रह रहे हो, तुम सब मेरी सुनो, और मैं तुमको समझाऊँगा कि क्या हो रहा है!
\v 15 तुम में से कुछ सोचते हैं कि हम नशे में हैं, लेकिन हम नशे में नहीं हैं। अभी सुबह के नौ बजे हैं, और यहाँ के लोग दिन के इस समय कभी नशे में नहीं होते हैं!
\s5
\v 16 इसके अतिरिक्त, हमारे साथ जो हुआ है वह एक चमत्कार है जिसके बारे में भविष्यद्वक्ता योएल ने बहुत पहले लिखा था। उसने लिखा: परमेश्वर कहते हैं,
\v 17 'अन्तिम दिनों में, मैं सब लोगों को अपना पवित्र आत्मा दूँगा, और तुम्हारे बेटे और बेटियाँ मेरा संदेश लोगों को सुनाएँगे, और मैं युवाओं को दर्शन दूँगा और मैं बुजुर्गों को स्वप्न दूँगा।
\s5
\v 18 उन दिनों के दौरान मैं अपना पवित्र आत्मा अपने दासों को दूँगा, कि वे लोगों को मेरा सन्देश सुनाएँ।
\v 19 मैं यह दिखाने के लिए कि महत्तवपूर्ण एवं आश्चर्यजनक बातें होने वाली हैं, आकाश में अद्भुत बातें करूँगा और पृथ्वी पर चमत्कार करूँगा। धरती पर हर स्थान में लहू, आग और धूआँ होगा।
\s5
\v 20 आकाश में सूरज लोगों को अंधेरे के समान दिखाई देगा और चाँद उनको लाल दिखाई देगा। न्याय के लिए मेरे अर्थात् प्रभु परमेश्वर के आने से पहले ऐसा होगा।
\v 21 और जो लोग सहायता के लिए मुझे पुकारते हैं, उन सब को मैं बचा लूँगा। ''
\p
\s5
\v 22 पतरस ने आगे कहा, "मेरे साथी इस्राएलियों, मेरी बात सुनो! जब यीशु नासरी तुम्हारे बीच में रहते थे, तब परमेश्वर ने उन्हें कई अद्भुत काम करने की क्षमता प्रदान की थी और तुम्हारे लिए सिद्ध कर दिया था कि उन्होंने ही यीशु को भेजा है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि वे परमेश्वर की ओर से थे। तुम स्वयं जानते हो कि यह सच है।
\v 23 यद्यपि तुम यह जानते थे, तुमने इस पुरुष यीशु को उनके शत्रुओं के हाथों में सौंप दिया। परन्तु यह तो परमेश्वर की ही योजना थी, और वे इसके बारे में सब कुछ जानते थे। तब तुम ने उन लोगों से जो परमेश्वर के नियमों का पालन नहीं करते थे यीशु को मारने का आग्रह किया। उन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ाकर मार डाला।
\v 24 वह मर गए, परन्तु परमेश्वर ने उन्हें फिर से जीवित किया, क्योंकि उनके लिए मरा रहना सम्भव नहीं था। परमेश्वर ने यीशु को फिर से जीवित कर दिया।"
\p
\s5
\v 25 "बहुत समय पहले राजा दाऊद ने मसीह के वचनों को लिख दिया था, मैं जानता था कि आप, प्रभु परमेश्वर, हमेशा मेरी सुनोगे। आप मेरी ओर हैं, इसलिए मैं उन लोगों से नहीं डरूँगा जो मुझे हानि पहुँचाना चाहते हैं।
\v 26 इस कारण मेरा मन प्रसन्न था और मैं आनन्दित हुआ; यद्यपि मैं एक दिन मर जाऊँगा, मुझे पता है कि आप हमेशा मेरी सहायता करेंगे।
\s5
\v 27 आप मुझे मरे हुओं के स्थान में नहीं रहने देंगे। आप मेरे शरीर को भी सड़ने नहीं देंगे, क्योंकि मैं आपका भक्त हूँ और सदा आपकी बात मानता हूँ।
\v 28 आपने मुझे दिखाया है कि कैसे फिर से जीवित होना है। आप मुझे बहुत प्रसन्न करेंगे क्योंकि आप सदा मेरे साथ होंगे।"
\p
\s5
\v 29 पतरस ने कहा, "मेरे साथी यहूदियों, मुझे निश्चय है कि हमारे पूर्वज, राजा दाऊद की मृत्यु हो गई थी, और लोगों ने उसे दफ़न कर दिया था। और जिस स्थान पर उन्होंने उसका शरीर दफन किया था, वह आज भी यहाँ है।
\v 30 राजा दाऊद एक भविष्यद्वक्ता था और वह जानता था कि परमेश्वर ने उससे प्रतिज्ञा की है कि उसके वंशजों में से एक राजा बनेगा।
\v 31 बहुत समय पहले से ही दाऊद जानता था कि परमेश्वर क्या करेंगे। उसने कहा था कि परमेश्वर यीशु को, जो मसीह है, मरने के बाद फिर से जीवित करेंगे। परमेश्वर उसे कब्र में नहीं रहने देंगे, और वह उनके शरीर को सड़ने नहीं देंगे।"
\p
\s5
\v 32 "इस पुरुष यीशु की मृत्यु के बाद, परमेश्वर ने उन्हें फिर से जीवित कर दिया। हम सब, उनके अनुयायी, यह जानते हैं क्योंकि हमने उन्हें देखा है।
\v 33 परमेश्वर ने यीशु को अपने दाहिने हाथ पर बैठाकर बहुत सम्मानित किया है कि वह उनके अर्थात् पिता के साथ शासन करें। उन्होंने हमें पवित्र आत्मा दिया है, और वही तुम आज यहाँ देख और सुन रहे हो।
\s5
\v 34 हम जानते हैं कि दाऊद अपने बारे में नहीं कह रहा था क्योंकि दाऊद यीशु के समान स्वर्ग में नहीं गया था। इसके अतिरिक्त, दाऊद ने स्वयं यीशु के बारे में जो मसीह है, यह कहा था: प्रभु परमेश्वर ने मेरे प्रभु मसीह से कहा, 'मेरे दाहिने हाथ बैठकर शासन करो,
\v 35 जबकि मैं तुम्हारे शत्रुओं को पूरी तरह से पराजित कर दूँ।'
\p
\v 36 पतरस ने यह कह कर समाप्त किया, "इसलिये मैं चाहता हूँ कि तुम और अन्य सब इस्राएली यह जान लो कि परमेश्वर ने यीशु को प्रभु और मसीह दोनों बना दिया है, वही यीशु जिसे तुमने क्रूस पर चढ़ाया और मार डाला।"
\p
\s5
\v 37 जब लोगों ने पतरस और दूसरे प्रेरितों की बात सुनी, तो वे जान गए कि उन्होंने गलत किया था। लोगों ने उनसे कहा, "हमें क्या करना चाहिए?"
\p
\v 38 पतरस ने उन्हें उत्तर दिया, "तुम में से हर एक को अपने पापी व्यवहार से मुड़ जाना चाहिए। यदि तुम अब यीशु पर विश्वास करते हो तो हम तुमको बपतिस्मा देंगे। परमेश्वर तुम्हारे पापों को क्षमा करेंगे और वह तुमको अपना पवित्र आत्मा देंगे।
\v 39 परमेश्वर ने तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों के लिए, और उन अन्य लोगों के लिए जो यीशु पर विश्वास करते हैं, यहाँ तक कि उन लोगों के लिए भी जो यहाँ से दूर रहते हैं ऐसा करने की प्रतिज्ञा की है। प्रभु हमारे परमेश्वर उन सब को अपना पवित्र आत्मा देंगे, जिन्हें वह अपने लोग होने के लिए बुलाते हैं।
\s5
\v 40 पतरस ने और अधिक बातें की, और दृढ़ता से बातें कीं। उसने उनसे कहा, "परमेश्वर से प्रार्थना करो कि वे तुम्हें बचाएँ, ताकि जब वह इन बुरे लोगों को जिन्होंने यीशु को अस्वीकार कर दिया है दण्ड देते हैं तो वह दण्ड तुम्हें न मिले!"
\p
\v 41 इसलिए जिन लोगों ने पतरस के संदेश को मान लिया था, उन्होंने बपतिस्मा लिया। वहाँ लगभग तीन हजार लोग थे जो उस दिन विश्वासियों के समूह में आ गए थे।
\v 42 प्रेरितों ने उनको जो सिखाया उन्होंने लगातार उन बातों का पालन किया। वे अन्य विश्वासियों के साथ भागी हुआ करते थे और वे प्रतिदिन एक साथ भोजन करते थे और एक साथ प्रार्थना किया करते थे।
\p
\s5
\v 43 यरूशलेम में रहने वाले सब लोगों ने परमेश्वर का बहुत आदर और सम्मान किया क्योंकि प्रेरित अनेक अद्भुत काम कर रहे थे।
\v 44 यीशु में विश्वास करने वाले लोगों का विश्वास एक सा ही था और वे नियमित रूप से एकत्र होते थे। वे एक दूसरे के साथ अपना सब कुछ साझा करते रहते थे।
\v 45 समय-समय पर उनमें से कुछ लोगों ने अपनी भूमि और कुछ अन्य वस्तुएँ जिसके वे स्वामी थे, बेच दीं, और उन्होंने उनमें से कुछ पैसे उनके बीच के अन्य विश्वासियों को उनकी आवश्यकता के अनुसार दे दिए।
\s5
\v 46 हर दिन वे आराधनालय के परिसर में एकत्र होते थे, और फिर वे अपने घरों में एक साथ भोजन किया करते थे। एक साथ भोजन करते हुए वे खुश थे, और उन्होंने एक दूसरे के साथ जो उनके पास था साझा किया।
\v 47 ऐसा करते हुए, वे परमेश्वर की स्तुति करते रहे, और यरूशलेम के सब लोगों ने उन्हें सम्मान दिया। इन सब बातों के साथ प्रभु यीशु उन लोगों की संख्या में वृद्धि कर रहे थे जो अपने पापों के दण्ड से बचाए जा रहे थे।
\s5
\c 3
\p
\v 1 एक दिन पतरस और यूहन्ना आराधनालय के आंगन में जा रहे थे। यह दोपहर के तीन बजे का समय था, जब लोग वहाँ प्रार्थना किया करते थे।
\v 2 वहाँ एक व्यक्ति था जो पैदा होने के समय से ही चल नहीं पाता था। वह सुंदर नामक फाटक के पास बैठा था, जो आराधनालय के आंगन के प्रवेश द्वार के पास था। लोग उसे हर दिन वहां ले आते थे, कि वह आराधनालय में आनेवाले लोगों से पैसा माँगे।
\p
\v 3 पतरस और यूहन्ना आराधनालय के आंगन में प्रवेश करने ही वाले थे, कि उस व्यक्ति ने उनसे कुछ पैसे माँगे।
\s5
\v 4 पतरस और यूहन्ना ने उसकी ओर देखा, पतरस ने उससे कहा, "हमें देख!"
\v 5 तो उसने सीधे उनकी ओर देखा, वह उनसे कुछ पैसे मिलने की आशा में था।
\v 6 फिर पतरस ने उससे कहा, "मेरे पास पैसे तो है नहीं, परन्तु जो मैं कर सकता हूँ, वह मैं तेरे लिए करूँगा। नासरत के यीशु मसीह के नाम से तू स्वस्थ हो जा। उठो और चलो!"
\s5
\v 7 तब पतरस ने उस व्यक्ति के दाहिने हाथ को पकड़ लिया और उसे खड़े होने में सहायता की। उसी पल उस व्यक्ति के पैरों और टखनो में शक्ति आ गई।
\v 8 वह उछलकर खड़ा हो गया और उसने चलना शुरू कर दिया! फिर उसने चलते और उछलते हुए और परमेश्वर की स्तुति करते हुए पतरस और यूहन्ना के साथ आराधनालय परिसर में प्रवेश किया!
\p
\s5
\v 9 आराधनालय में उपस्थित सब लोगों ने उसे चलते फिरते और परमेश्वर की स्तुति करते देखा।
\v 10 उन्होंने पहचान लिया कि यह वही व्यक्ति है जो आराधनालय के आंगन के सुंदर फाटक पर बैठता था और लोगों से पैसे माँगता था! इसलिये वहाँ जितने लोग थे वे सब उसके साथ जो हुआ था, उससे बहुत आश्चर्यचकित थे।
\s5
\v 11 जब वह व्यक्ति पतरस और यूहन्ना के साथ था, सब लोग आश्चर्य कर रहे थे और नहीं जानते थे कि क्या सोचें! इसलिए वे सब भागकर पतरस और यूहन्ना के पास आराधनालय के आंगन में उस स्थान पर पहुंचे, जिसे सुलैमान का ओसारा कहते हैं।
\p
\v 12 जब पतरस ने लोगों को देखा, तो उसने उनसे कहा, "हे साथी इस्राएलियों, इस व्यक्ति के साथ जो हुआ है उसके बारे में तुम्हें आश्चर्य नहीं करना है! तुम हमारी ओर क्यों देख रहे हो जैसे कि हमारे पास इस व्यक्ति को चलाने के लिए कोई शक्ति है?
\s5
\v 13 मैं तुमको बताऊँगा कि वास्तव में क्या हो रहा है। अब्राहम, इसहाक और याकूब सहित हमारे पूर्वजों ने परमेश्वर की आराधना की। और अब परमेश्वर ने यीशु को बहुत आदर प्रदान किया है। तुम्हारे अगुवे यीशु को पिलातुस राज्यपाल के पास ले गए, कि उसके सैनिक उन्हें मार डालें। तुम लोगों ने पिलातुस की उपस्थिति में यीशु को अस्वीकार कर दिया था, जब पिलातुस ने निर्णय लिया था कि उसे यीशु को छोड़ देना चाहिए।
\v 14 यद्यपि यीशु इस्राएल के लिये परमेश्वर के अपने मसीह थे, जो धर्मी थे, तुमने उनके बदले एक हत्यारे को स्वतंत्र करने की माँग की थी!
\s5
\v 15 परमेश्वर मानते हैं कि तुमने यीशु को जो लोगों को अनन्त जीवन प्रदान करते हैं, मार डाला है। लेकिन परमेश्वर ने उन्हें फिर से जीवित कर दिया। उनके फिर से जी उठने के बाद हमने कई बार यीशु को देखा।
\v 16 क्योंकि यह व्यक्ति यीशु पर विश्वास करता है इसलिए वह फिर से स्वस्थ है और तुम सब के सामने चलने में सक्षम है।"
\p
\s5
\v 17 "अब, हे मेरे साथी देशवासियों, मुझे पता है कि तुम और तुम्हारे अगुवों ने यीशु को मार डाला है क्योंकि तुमको नहीं पता था कि वे मसीह हैं।
\v 18 परमेश्वर ने तो बहुत पहले यह भविष्यद्वाणी की थी कि लोग यीशु को मार देंगे। परमेश्वर ने सब भविष्यद्वक्ताओं को यह लिखने के लिये कहा कि लोग मसीह के साथ क्या करेंगे। उन्होंने लिखा है कि मसीह को, जिन्हें परमेश्वर भेजेंगे, दु:ख भोगना होगा और मरना होगा।
\s5
\v 19 इसलिए, अपने पापी जीवन से दूर हो जाओ और परमेश्वर से सहायता माँगो कि वे तुम्हें उन कामों को करने में सहायता करें जिससे वह प्रसन्न होते हैं, कि वे तुम्हें तुम्हारे पापों के लिए पूरी तरह से क्षमा कर दें और तुम्हें शक्ति प्रदान करें।
\v 20 यदि तुम ऐसा करते हो, तो ऐसे अवसर आएंगे जब तुमको पता चलेगा कि प्रभु परमेश्वर तुम्हारी सहायता कर रहे हैं। और किसी दिन वह फिर से मसीह को जिन्हें उन्होंने तुम्हें दिया है पृथ्वी पर वापस भेजेंगे। वह व्यक्ति यीशु हैं।
\s5
\v 21 यीशु निश्चित रूप से स्वर्ग में उस समय तक रहेंगे जब तक कि परमेश्वर सारी सृष्टि को नया न बना दें। बहुत पहले परमेश्वर ने ऐसा करने की प्रतिज्ञा की थी, और लोगों को यह बताने के लिए उन्होंने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं को चुना था।
\v 22 उदाहरण के लिए, भविष्यद्वक्ता मूसा ने मसीह के बारे में यह कहा था: 'तुम्हारे परमेश्वर यहोवा तुम्हारे बीच में से मेरे जैसे एक भविष्यद्वक्ता को भेजेंगे; जो कुछ भी वह तुमसे कहते हैं तुमको अवश्य ही वह सब सुनना चाहिए।
\v 23 जो लोग उस भविष्यद्वक्ता की बात नहीं सुनते हैं और उसका पालन नहीं करते हैं, वे परमेश्वर के लोग नहीं होंगे, और परमेश्वर उन्हें नष्ट कर देंगे।''
\s5
\v 24 पतरस ने आगे कहा, "सब भविष्यद्वक्ताओं ने इन दिनों के बारे में बताया था कि इन दिनों में क्या होगा। उन भविष्यद्वक्ताओं में शमूएल और उसके बाद वाले अन्य सभी भविष्यद्वक्ता हैं, जिन्होंने इन घटनाओं के बारे में इनके होने से पहले चर्चा की थी।
\v 25 जब परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों को आशीष देने की प्रतिज्ञा की थी, तो उन्होंने निश्चय ही तुमको भी आशीर्वाद देने की प्रतिज्ञा की थी। उन्होंने अब्राहम से मसीह के बारे में कहा, 'तेरा वंशज जो करेगा, उसके परिणामस्वरूप मैं पृथ्वी की सब जातियों को आशीष दूँगा।'
\v 26 पतरस ने यह कह कर समाप्त किया, "इसलिए जब परमेश्वर ने यीशु को पृथ्वी पर मसीह के रूप में उनकी सेवा करने के लिए भेजा, तो परमेश्वर ने उनको सबसे पहले तुम इस्राएलियों को आशीष देने के लिए भेजा, ताकि तुमको बुराई करने से रोक सकें।"
\s5
\c 4
\p
\v 1 इसी बीच, वहाँ आराधनालय के आंगन में कुछ याजक थे। वहाँ आराधनालय के सुरक्षाकर्मियों का प्रभारी भी था, और सदूकी पंथ के कुछ सदस्य भी थे। वे सब पतरस और यूहन्ना के पास आये, जब वे दोनों लोगों से बातें कर रहे थे।
\v 2 ये लोग बहुत क्रोधित हुए क्योंकि वे दोनों प्रेरित यीशु के बारे में लोगों को सिखा रहे थे। वे उनसे कह रहे थे कि यीशु के मारे जाने के बाद परमेश्वर ने उन्हें फिर से जीवित कर दिया।
\v 3 इसलिये इन लोगों ने पतरस और यूहन्ना को बन्दी बना लिया और उन्हें बंदीगृह में डाल दिया। यहूदी परिषद को पतरस और यूहन्ना से सवाल करने के लिए अगले दिन तक प्रतीक्षा करनी पडी क्योंकि शाम हो चुकी थी।
\v 4 हालाँकि, कई लोग जिन्होंने पतरस की बातें सुनी थी, उन्होंने यीशु में विश्वास किया। यीशु में विश्वास करने वालों की संख्या बढ़ कर लगभग पांच हजार तक हो गई।
\p
\s5
\v 5 अगले दिन महायाजक ने अन्य प्रधान याजकों, यहूदी व्यवस्था के शिक्षकों और यहूदी परिषद के अन्य सदस्यों को बुलाया, और वे यरूशलेम में एक स्थान पर एकत्र हुए;
\v 6 पूर्व महायाजक हन्ना भी वहाँ था। इसके अतिरिक्त नया महायाजक काइफा, यूहन्ना और सिकन्दर, और अन्य व्यक्ति जो महायाजक से सम्बन्धित थे, वे भी वहाँ थे।
\v 7 उन्होंने सुरक्षाकर्मियों को आज्ञा दी कि वे पतरस और यूहन्ना को कक्ष में ले आएँ फिर उन्होंने पतरस और यूहन्ना से पूछा, " उस व्यक्ति को जो चल नहीं सकता था, स्वस्थ करने की शक्ति तुम्हें किसने दी ?"
\p
\s5
\v 8 पवित्र आत्मा के सामर्थ्य से, पतरस ने उनसे कहा, "हे साथी इस्राएलियों जो हम पर शासन करते हो, और अन्य सभी प्राचीनों, मेरी बात सुनो!
\v 9 आज तुम हम से एक अच्छे काम के बारे में पूछताछ कर रहे हो, जो हमने एक ऐसे व्यक्ति के लिए किया जो चल नहीं सकता था, और तुम हमसे पूछते हो कि वह कैसे स्वस्थ हो गया। इसलिये मैं तुमको और अन्य सब इस्राएलियों को यह बताता हूँ:
\v 10 नासरत के यीशु मसीह के नाम से यह व्यक्ति ठीक हो गया, इस कारण अब वह तुम्हारे सामने खड़ा होने के योग्य है। वह तुम थे जिन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ा दिया और उन्हें मार डाला, परन्तु परमेश्वर ने उन्हें फिर से जीवित कर दिया है।
\p
\s5
\v 11 नासरत के यीशु मसीह वही हैं जिनके विषय में धर्मशास्त्र कहता है: "राजमिस्त्रियों ने जिस पत्थर को फेंक दिया था वही इमारत का सबसे महत्वपूर्ण पत्थर बन गया है।"
\v 12 केवल यीशु ही हमें बचा सकते हैं, क्योंकि परमेश्वर ने हमें दुनिया में कोई अन्य व्यक्ति नहीं दिया है, जो हमें हमारे पापों के दोष से बचा सकता है!"
\p
\s5
\v 13 यहूदी अगुवों को अनुभव हुआ कि पतरस और यूहन्ना उनसे डर नहीं रहे हैं। उन्हें यह भी पता चला कि ये दोनों व्यक्ति सामान्य लोग हैं जिन्होंने विद्यालयों में पढ़ाई नहीं की थी। इसलिये अगुवे आश्चर्यचकित थे। वे जानते थे कि इन लोगों ने यीशु के साथ समय बिताया था।
\v 14 उन्होंने उस व्यक्ति को भी पतरस और यूहन्ना के साथ खड़ा देखा जो स्वस्थ हुआ था, इसलिए वे उनके विरुद्ध कुछ भी नहीं बोल पाए।
\p
\s5
\v 15 यहूदी अगुवों ने सुरक्षाकर्मियों को पतरस, यूहन्ना और उस स्वस्थ हुए व्यक्ति को सभा के कमरे से बाहर ले जाने के लिए कहा। उनके ऐसा करने के बाद, अगुवों ने पतरस और यूहन्ना के बारे में एक दूसरे से बात की।
\v 16 उन्होंने कहा, "हम इन दोनों लोगों को दण्ड देने के लिए कुछ भी नहीं कर सकते हैं! जो कोई यरूशलेम में रहता है, वह जानता है कि उन्होंने एक आश्चर्यजनक चमत्कार किया है, इसलिए हम लोगों को नहीं कह सकते कि ऐसा नहीं हुआ!
\v 17 परन्तु, हमें अन्य लोगों को यीशु के बारे में इनकी शिक्षा सुनने से, रोकना चाहिए। अत: हमें इन लोगों को चेतावनी देनी चाहिए कि यदि वे लोगों को यीशु के बारे में बताते रहेंगे तो हम उन्हें दण्ड देंगे। जिनके बारे में वे कहते हैं कि उन्होंने उन्हें इस व्यक्ति को स्वस्थ करने की शक्ति दी है।"
\v 18 इसलिए यहूदी अगुवों ने सुरक्षाकर्मियों को उन दोनों प्रेरितों को कमरे में दोबारा लाने के लिए कहा। सुरक्षाकर्मियों के ऐसा करने के बाद, उन्होंने उन दोनों को बताया कि वे अब किसी से भी यीशु के बारे में बात न करें और न ही उनके बारे में सिखाएँ।
\p
\s5
\v 19 परन्तु पतरस और यूहन्ना ने कहा, "क्या परमेश्वर की दृष्टि में यह सही होगा कि हम तुम्हारी आज्ञा मानें और उनकी आज्ञा का पालन न करें? तुम ही निर्णय लो कि क्या सही है।
\v 20 लेकिन, हम तुम्हारी आज्ञा का पालन नहीं कर सकते। हम लोगों को उन कामों के बारे में बताने से नहीं रुकेंगे जिन्हें हमने यीशु को करते देखा है और जो उन्हें सिखाते हुए सुना है।"
\p
\s5
\v 21 तब यहूदी अगुवों ने फिर से पतरस और यूहन्ना को उनकी आज्ञा का उल्लंघन न करने के लिए कहा, परन्तु उन्होंने उनको दण्ड न देने का निर्णय किया, क्योंकि जो उस व्यक्ति के साथ हुआ जो चल नहीं सकता था उसके कारण यरूशलेम में सब लोग परमेश्वर की स्तुति कर रहे थे।
\v 22 वह चालीस वर्ष से अधिक आयु का था, और जिस दिन वह पैदा हुआ था उसी दिन से वह चलने में सक्षम नहीं था।
\p
\s5
\v 23 जब पतरस और यूहन्ना परिषद के पास से चले गए तो वे अन्य विश्वासियों के पास गए और उन्होंने उन सब को प्रधान याजकों और यहूदी प्राचीनों की बातें सुनाई।
\v 24 जब विश्वासियों ने यह सुना, तो उन सब ने एक मन होकर एक साथ परमेश्वर से प्रार्थना की, "हे प्रभु! आपने आकाश, पृथ्वी और समुद्रों और उनमें की सारी वस्तुओं को बनाया है।
\v 25 पवित्र आत्मा ने हमारे पूर्वज, राजा दाऊद को, जिसने आपकी सेवा की, इन शब्दों को लिखने के लिए प्रेरित किया: 'संसार की जातियों के समूह क्यों क्रोधित हुए? और इस्राएली परमेश्वर के विरुद्ध व्यर्थ की योजना बनाते हैं?
\s5
\v 26 संसार के राजाओं ने परमेश्वर के शासक से युद्ध करने की तैयारी की, और शासक उनके साथ जुड़ गए है कि प्रभु परमेश्वर का और जिन्हें उन्होंने मसीह होने के लिये चुना है उनका विरोध करें।
\p
\s5
\v 27 यह सच है! हेरोदेस और पुन्तियुस पिलातुस दोनों ने और गैर-यहूदियों ने इस्राएलियों का साथ देकर, इस शहर में यीशु के विरुद्ध खड़े हुए, यीशु जिन्हें आपने मसीह होकर आपकी सेवा करने के लिये चुना।
\v 28 आपने उन्हें ऐसा करने दिया है क्योंकि आपने बहुत पहले ही यह निर्णय ले लिया था।"
\p
\s5
\v 29 इसलिये अब, हे प्रभु, जो वे कह रहे हैं उसे सुन कि वे हमें कैसे दण्ड देंगे! हमारी सहायता करो, जो आपकी सेवा करते हैं कि हम हर किसी को यीशु के बारे में बता सकें!
\v 30 अपने पवित्र सेवक, यीशु के नाम से चंगाई के अद्भुत चमत्कार, चिन्ह और आश्चर्यकर्म करने के लिए अपनी ताकत का उपयोग करो!"
\p
\v 31 जब विश्वासियों ने प्रार्थना करना समाप्त कर दिया, तो वह स्थान जहाँ वे सभा कर रहे थे, हिल गया। पवित्र आत्मा ने उन सब को परमेश्वर द्वारा दिये गए वचनों को साहस के साथ सुनाने की शक्ति प्रदान की, और उन्होंने ऐसा ही किया।
\p
\s5
\v 32 यीशु में विश्वास करनेवालों का समूह अपने विचारों में और कामों में, जो कुछ वे पूर्ण सहमत थे। उनमें कोई भी नहीं कहता था कि कोई वस्तु उसके अकेले की है। इसके अपेक्षा, जो कुछ भी उनके पास था उन्होंने एक दूसरे के साथ उसे साझा किया।
\v 33 प्रेरितों ने दृढ़ता से दूसरों को बताया कि परमेश्वर ने प्रभु यीशु को फिर से जीवित कर दिया है। और परमेश्वर सब विश्वासियों की बहुत सहायता कर रहे हैं।
\s5
\v 34-35 कुछ विश्वासियों ने जिनके पास भूमि या घर थे अपनी सम्पत्ति बेच दी और अपनी बेची हुई सम्पत्ति के पैसे को लाकर प्रेरितों को दे दिया। तब प्रेरित विश्वासियों में से जिस किसी को आवश्यक्ता होती थी उसको पैसे दे देते थे। इसलिए सभी विश्वासियों के जीवन की आवश्यकताएँ पूरी होती थीं।
\p
\s5
\v 36 वहाँ यूसुफ नाम का एक व्यक्ति था, जो लेवी के गोत्र का था और जो साइप्रस द्वीप से आया था। प्रेरितों ने उसे बरनबास कहा; यहूदियों की भाषा में उस नाम का अर्थ है जो हमेशा दूसरों को प्रोत्साहित करता है।
\v 37 उसने एक खेत को बेच दिया और पैसे लेकर प्रेरितों को दे दिए कि वे दूसरे विश्वासियों को दे सकें।
\s5
\c 5
\p
\v 1 विश्वासियों में एक व्यक्ति था जिसका नाम हनन्याह था, और उसकी पत्नी का नाम सफीरा था। उसने भी कुछ भूमि बेची।
\v 2 उसने भूमि बेचकर मिले पैसों में से कुछ अपने लिए रख लिए, उसकी पत्नी को पता था कि उसने ऐसा किया था। फिर वह शेष पैसे लेकर आया और प्रेरितों को दे दिए।
\p
\s5
\v 3 तब पतरस ने कहा, "हनन्याह, तूने शैतान को स्वयं पर पूर्णरूप से नियंत्रण करने दिया है जिससे तुम ने पवित्र आत्मा को धोखा देने का प्रयास किया है। तुम ने इतना भयानक काम क्यों किया? तुम ने भूमि बेचकर प्राप्त पैसों में से कुछ पैसा अपने पास रख लिया है। तुम ने हमें सारा पैसा नहीं दिया है।
\v 4 उस भूमि को बेचने से पहले, तुम सचमुच उसके मालिक थे। और उसे बेचने के बाद भी पैसा तेरा ही था। तो तुम ने ऐसी दुष्टता के काम के बारे में क्यों सोचा? तुम केवल हमें धोखा देने का प्रयास नहीं कर रहे हो! नहीं, तुम ने स्वयं परमेश्वर को धोखा देने का प्रयास किया है !"
\v 5 जब हनन्याह ने इन शब्दों को सुना, तो तुरंत ही गिरकर मर गया। और जिन्होंने हनन्याह की मृत्यु के बारे में सुना, वे सब डर गए।
\v 6 कुछ जवान आगे आए, उसके शरीर को एक चादर में लपेटा, और उसे बाहर ले गए और दफ़न कर दिया।
\p
\s5
\v 7 लगभग तीन घंटे के बाद, उसकी पत्नी आई, उसे नहीं पता था कि क्या हुआ था।
\v 8 फिर पतरस ने उसे वह पैसा दिखाया जो हनन्याह लाया था और उससे पूछा, "मुझे बता, क्या यह वह पैसा है जो तुम दोनों को भूमि बेचने से मिला था?" उसने कहा, "हाँ, यही है जो हमें मिला था।"
\s5
\v 9 तो पतरस ने उससे कहा, "तुम दोनों ने एक भयानक काम किया है! तुम दोनों परमेश्वर के आत्मा को धोखा देने के प्रयास में सहमत हो गए हो! सुनो! क्या तुम ने तुम्हारे पति को दफन करने वाले लोगों के कदमों की आहट को सुना है? वे बिल्कुल इस द्वार के बाहर हैं, और वे तुझे भी बाहर ले जाएँगे!"
\v 10 तुरंत ही सफीरा मर कर पतरस के पैरों में गिर पड़ी। तब वे जवान अंदर आए। जब उन्होंने देखा कि वह भी मर गई है, तो वे उसके शरीर को बाहर ले गए और उसे उसके पति के शरीर के पास दफ़न कर दिया।
\p
\v 11 परमेश्वर ने हनन्याह और सफीरा के साथ जो किया था उसके कारण यरूशलेम के सब विश्वासी बहुत भयभीत हो गए। और जिसने इन बातों के बारे में सुना, वह भी बहुत भयभीत हो गया।
\p
\s5
\v 12 परमेश्वर प्रेरितों को कई आश्चर्यजनक चमत्कार करने में समर्थ कर रहे थे, जो यह प्रकट कर रहा था कि वे लोगों के बीच में जो प्रचार कर रहे थे वह सच है। सभी विश्वासी नियमित रूप से आराधनालय के आंगन में सुलैमान के ओसारे नाम की जगह पर एक साथ एकत्र होते थे।
\v 13 अन्य लोग जिन्होंने यीशु पर विश्वास नहीं किया था वे विश्वासियों के साथ होने से डरते थे। परन्तु, उन लोगों ने विश्वासियों का बहुत आदर किया।
\s5
\v 14 कई और पुरुषों और स्त्रियों ने प्रभु यीशु में विश्वास किया, और वे विश्वासियों के समूह में आ गये।
\v 15 इसके परिणाम स्वरूप, लोग बीमारों को सड़कों पर ले आते थे और उन्हें खाटों पर और चादरों पर लिटा देते थे, ताकि जब पतरस वहाँ से हो कर निकले तो कम से कम उसकी छाया उनमें से कुछ पर गिरकर उन्हें स्वस्थ कर दे।
\v 16 यरूशलेम के आस-पास के नगरों से भी लोगों की बड़ी भीड़ प्रेरितों के पास आ रही थी। वे बीमारों को और जो दुष्ट-आत्माओं से पीड़ित थे उनको ला रहे थे, और परमेश्वर ने उन सब को स्वस्थ किया।
\p
\s5
\v 17 तब महायाजक और उसके साथ रहनेवाले सब लोग - जो सदूकी समूह के सदस्य थे - प्रेरितों से बहुत ईर्ष्या रखने लगे।
\v 18 इसलिए उन्होंने आराधनालय के सुरक्षाकर्मियों को प्रेरितों को गिरफ्तार करने और उन्हें सार्वजनिक बंदीगृह में डाल देने का आदेश दिया।
\s5
\v 19 परन्तु रात में प्रभु परमेश्वर के एक स्वर्गदूत ने बन्दीगृह के द्वार खोल दिये और प्रेरितों को बाहर निकाल लिया। तब स्वर्गदूत ने प्रेरितों से कहा,
\v 20 "आराधनालय के आंगन में जाकर वहाँ खड़े हो जाओ, और लोगों को अनन्त जीवन का संदेश सुनाओ।"
\v 21 यह सुनने के बाद, प्रेरितों ने भोर को आराधनालय के आंगन में प्रवेश किया और लोगों को फिर से यीशु के बारे में सिखाना शुरू कर दिया। इस बीच, महायाजक और उसके साथ रहने वाले लोगों ने यहूदी परिषद के अन्य सदस्यों को बुलाया। वे सब इस्राएल के अगुवे थे। जब वे एकत्र हुए, तो उन्होंने प्रेरितों को लाने के लिए सुरक्षाकर्मियों को बंदीग्रह भेजा।
\s5
\v 22 परंतु जब सुरक्षाकर्मी बंदीग्रह पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि प्रेरित वहाँ नहीं थे। इसलिए वे परिषद में लौटे और उनको बताया,
\v 23 "हमने देखा कि बन्दीगृह के द्वार बहुत ही सुरक्षित रूप से बंद किये हुए थे, और सुरक्षाकर्मी द्वार पर खड़े थे। परन्तु जब हमने द्वार खोले और उन लोगों को लेने के लिये भीतर गए, तो उनमें से कोई भी बन्दीगृह में नहीं था।"
\s5
\v 24 जब आराधनालय के सुरक्षाकर्मियों के कप्तान और प्रधान याजकों ने यह सुना, वे बहुत उलझन में पड़ गए, और वे विस्मित थे कि इन सब घटनाओं का क्या परिणाम होगा।
\p
\v 25 फिर किसी ने आकर उनको बताया, "यह सुनो! तुमने जिन व्यक्तियों को बन्दीगृह में डाला था, इस समय वे आराधनालय के आंगन में खड़े हैं, और वे लोगों को शिक्षा दे रहे हैं!"
\s5
\v 26 इसलिए आराधनालय के सुरक्षाकर्मियों का कप्तान अन्य अधिकारियों के साथ आराधनालय के आंगन में गया, और वे प्रेरितों को परिषद के कमरे में वापस लेकर आए। लेकिन उन्होंने उनके साथ बुरा व्यवहार नहीं किया, क्योंकि वे डर रहे थे कि लोग उन पर पत्थर फेंक फेंक कर उन्हें मार देंगे।
\p
\v 27 जब कप्तान और उसके अधिकारी प्रेरितों को परिषद के कमरे में लेकर आ गए थे, तो उन्होंने उनको परिषद के सदस्यों के सामने खड़ा होने का आदेश दिया और महायाजक ने उनसे प्रश्न किया।
\v 28 उसने उनसे कहा, "हमने तुम लोगों को उस मनुष्य यीशु के बारे में नहीं सिखाने की आज्ञा दी थी! परन्तु तुमने हमारी आज्ञा का उल्लंघन किया है, और तुमने सारे यरूशलेम के लोगों को उसके बारे में सिखाया है! इसके अतिरिक्त, तुम ऐसा कह रहे हो कि उस पुरुष की मृत्यु के लिए हम लोग ही दोषी हैं!"
\s5
\v 29 लेकिन पतरस ने अपने और दूसरे प्रेरितों की ओर से यह उत्तर दिया, "परमेश्वर ने हमें जो करने की आज्ञा दी है, हम को उसे मानना है, न कि तुम लोगों की आज्ञा को!
\v 30 तुम ही तो हो जिन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ा कर उन्हें मार डाला! परन्तु हमारे पूर्वजों द्वारा आराधना किये जाने वाले परमेश्वर ने यीशु के मरने के बाद उन्हें फिर से जीवित कर दिया।
\v 31 परमेश्वर ने सबसे अधिक यीशु को सम्मानित किया है। उन्होंने हमें बचाने और हमारे ऊपर शासन करने के लिए उन्हें समर्थ बनाया है। उन्होंने हम इस्राएलियों को पाप करने से रुक जाने की शक्ति दी है, जिससे कि वे हमें हमारे पापों के लिए क्षमा कर सकें।
\v 32 हम लोगों को उन बातों के बारे में बताते हैं जो हमें पता है कि यीशु के साथ हुई थीं। पवित्र आत्मा, जो उनकी आज्ञा मानते हैं जिन्हें परमेश्वर ने हमारे लिये भेजा है, वह भी यह पुष्टि कर रहे हैं कि ये बातें सत्य हैं।"
\s5
\v 33 जब परिषद के सदस्यों ने यह सुना, तो वे प्रेरितों पर बहुत क्रोधित हो गए, और वे उन्हें मार डालना चाहते थे।
\p
\v 34 लेकिन वहाँ गमलीएल नामक एक परिषद का सदस्य था। वह फरीसी समूह का एक सदस्य था। वह लोगों को यहूदी व्यवस्था को सिखाया करता था, और सब यहूदी लोग उसे सम्मान देते थे। वह परिषद में खड़ा हुआ और सुरक्षाकर्मियों को थोड़े समय के लिए प्रेरितों को कमरे से बाहर ले जाने की आज्ञा दी।
\s5
\v 35 जब सुरक्षाकर्मी प्रेरितों को बाहर ले गए, तो उसने परिषद के सदस्यों से कहा, "हे साथी इस्राएलियों, तुम इन मनुष्यों के साथ क्या करना चाहते हो, तुमको अवश्य ही इस बारे में ध्यान से सोचना चाहिए।
\v 36 कुछ साल पहले थियूदास नाम के एक व्यक्ति ने सरकार के विरुद्ध विद्रोह किया था। उसने लोगों से कहा कि वह एक महत्वपूर्ण व्यक्ति है, और लगभग चार सौ लोग उसके साथ हो गए। लेकिन वह मार डाला गया, और जो लोग उसके साथ थे वे बिखर गए। इसलिए वे अपनी योजनाओं को पूरा करने में सक्षम हुए।
\v 37 इसके बाद, उस समय जब लोगों के नाम लिखे जा रहे थे, कि उन पर कर लगाया जाए, गलील के क्षेत्र से यहूदा नाम के एक व्यक्ति ने विद्रोह किया और कुछ लोगों को प्रेरित करके अपने साथ कर लिया था। लेकिन वह भी मार डाला गया, और जो लोग उसके साथ थे वे अलग-अलग दिशाओं में चले गए।
\s5
\v 38 तो अब मैं तुमसे यह कहता हूँ: इन लोगों की हानि मत करो! उन्हें छोड़ दो! मैं यह इसलिये कह रहा हूँ कि यदि इस समय जो कुछ हो रहा है, वह कुछ ऐसा है जिसकी योजना मनुष्यों ने बनाई है, तो वे रोक दिए जाएँगे। वे विफल हो जाएँगे।
\v 39 लेकिन अगर परमेश्वर ने उन्हें यह काम करने की आज्ञा दी है, तो तुम उन्हें रोक नहीं पाओगे, क्योंकि तुम यह जान लोगे कि तुम परमेश्वर के विरुद्ध काम कर रहे हो।" परिषद के अन्य सदस्यों ने गमलीएल की कही गई बात मान ली।
\s5
\v 40 उन्होंने आराधनालय के सुरक्षाकर्मियों से कहा कि वे प्रेरितों को लाएँ और उन्हें मारें पीटें। इसलिए सुरक्षाकर्मी उन्हें परिषद के कमरे में ले आए और उन्हें मारा पीटा। तब परिषद के सदस्यों ने उन्हें आदेश दिया कि वे लोगों में यीशु का प्रचार न करें, और उन्होंने प्रेरितों को छोड़ दिया।
\p
\v 41 तब प्रेरित परिषद से बाहर निकल आए। वे आनन्द मना रहे थे क्योंकि उन्हें पता था कि परमेश्वर ने उन्हें सम्मानित किया है जब कि मनुष्यों ने उन्हें यीशु के पीछे चलने के कारण अपमानित किया था।
\v 42 उसके बाद , प्रेरित प्रतिदिन आराधनालय परिसर में और लोगों के घरों में जाते थे और लोगों को लगातार शिक्षा देते रहे और बताते रहे कि यीशु ही मसीह है।
\s5
\c 6
\p
\v 1 उस समय के दौरान, बहुत से लोग मसीही विश्वास में आ रहे थे। विदेशी यहूदियों ने स्वदेशी इस्राएलियों के बारे में शिकायत करना शुरू कर दिया था, क्योंकि उनकी विधवाओं को दैनिक भोजन का उचित भाग नहीं मिल रहा था।
\p
\s5
\v 2 इसलिये, जब बारह प्रेरितों ने सुना कि वे क्या कह रहे थे, तो उन्होंने सब विश्वासियों को यरूशलेम में एकत्र होने के लिये बुलाया। तब प्रेरितों ने उनसे कहा, "यदि हम लोगों को भोजन देने के लिए परमेश्वर के संदेश का प्रचार करना और शिक्षा देना बंद कर दें तो यह उचित नहीं होगा!
\v 3 अत: मेरे साथी विश्वासियों, तुम अपने में से सात ऐसे लोगों का चुनाव करो, जिन लोगों के बारे में तुम जानते हो कि परमेश्वर के आत्मा उनका निर्देशन करता है और वे बहुत बुद्धिमान हैं। तब हम उन्हें यह काम करने के लिए निर्देश देंगे।
\v 4 और हम प्रार्थना करने और यीशु के बारे में संदेश देने और सिखाने के लिए अपना समय काम में लेंगे।"
\p
\s5
\v 5 प्रेरितों का सुझाव सुनकर सब विश्वासी प्रसन्न हो गए। इसलिए उन्होंने स्तिफनुस को चुना, जो एक ऐसा व्यक्ति था जो परमेश्वर में दृढ़ विश्वास रखता था और जो पूरी तरह से पवित्र आत्मा के नियंत्रण में था। साथ ही उन्होंने फिलिप्पुस, प्रुखुरुस, नीकानोर, तीमोन, परमिनास और अन्ताकिया शहर के नीकुलाउस को भी चुना। यीशु में विश्वास करने से पहले नीकुलाउस ने यहूदी धर्म स्वीकार कर लिया था।
\v 6 विश्वासी इन सातों पुरुषों को प्रेरितों के पास लाए। तब प्रेरितों ने उन लोगों के लिए प्रार्थना की और उन सब के सिर पर हाथ रखकर उन्हें यह काम करने के लिए नियुक्त किया।
\p
\s5
\v 7 और विश्वासी लोगों में परमेश्वर के संदेश का प्रचार करते रहे। यरूशलेम में यीशु पर विश्वास करने वाले लोगों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी। उनके बीच में कई यहूदी याजक भी थे जो उस संदेश का पालन कर रहे थे कि वे किस प्रकार यीशु पर भरोसा करें।
\p
\s5
\v 8 परमेश्वर ने स्तिफनुस को लोगों के बीच कई आश्चर्यजनक चमत्कार करने की शक्ति दी थी, जो दिखाते हैं कि यीशु का संदेश सच था।
\v 9 कुछ लोगों ने स्तिफनुस का विरोध भी किया। वे एक ऐसे समूह वाले यहूदी थे जो नियमित रूप से एक आराधनालय में मिलते थे जिन्हें लिबिरतीनों का आराधनालय कहा जाता था, और उनमें कुरेने और सिकन्दरिया के शहरों और किलिकिया और आसिया के प्रांतों से भी लोग थे। वे सभी स्तिफनुस के साथ विवाद करने लगे।
\s5
\v 10 परन्तु वे यह साबित करने योग्य नहीं हुए थे कि उसने जो कहा वह गलत था, क्योंकि परमेश्वर के आत्मा उसे बुद्धिमानी से बोलने में समर्थ करते थे।
\p
\v 11 इसलिए उन्होंने गुप्त रूप से कुछ लोगों को स्तिफनुस पर झूठा आरोप लगाने के लिए मना लिया। उन लोगों ने कहा, "हमने उसे मूसा और परमेश्वर के बारे में बुरी बातें कहते सुना है।"
\s5
\v 12 इसलिए उन्होंने अन्य यहूदियों को स्तिफनुस पर क्रोध दिलाया, जिसमें प्राचीन और यहूदी व्यवस्था के शिक्षक भी थे। तब उन सब ने स्तिफनुस को पकड़ लिया और उसे यहूदी परिषद के सामने ले गए।
\v 13 वे कुछ पुरुषों को भी भीतर ले गए और उन्हें पैसे दिए ताकि वे झूठी गवाही दें। उन्होंने कहा, "यह व्यक्ति इस पवित्र आराधनालय के बारे में और मूसा द्वारा परमेश्वर से प्राप्त नियमों के बारे में बुरी बातें कहता है।
\v 14 हमारा मतलब यह है कि हमने उसे कहते सुना है कि नासरत शहर के यीशु इस आराधनालय को नष्ट कर देंगे और जो नियम मूसा ने हमारे पूर्वजों को सिखाये थे, उनसे अलग नियमों का पालन करने के लिये हम से कहेंगे।
\p
\v 15 परिषद के कमरे में उपस्थित सब लोगों ने स्तिफनुस को घूर कर देखा और उन्होंने देखा कि उसका चेहरा एक स्वर्गदूत के चेहरे के समान हो गया।
\s5
\c 7
\p
\v 1 तब महायाजक ने स्तिफनुस से पूछा, "क्या ये बातें सच हैं जो ये लोग तुम्हारे बारे में कह रहे हैं?"
\v 2 स्तिफनुस ने उत्तर दिया, "हे साथी यहूदियों और सम्मानित अगुवों, कृपया मेरी बात सुनो! वह महिमामय परमेश्वर जिनकी हम आराधना करते हैं, उन्होंने हमारे पूर्वज अब्राहम को हारान शहर में जाने से पहले दर्शन दिया, जिस समय वह मेसोपोटामिया में ही रहता था।
\v 3 परमेश्वर ने उससे कहा, 'इस देश को छोड़ दे, जहाँ तू और तेरे सम्बंधी रहते हैं, और उस देश में जा जिसमें मैं तुम्हें ले जाऊँगा।'
\s5
\v 4 इस प्रकार अब्राहम ने उस देश को छोड़ दिया, जिसे कसदियों का देश भी कहा जाता था, और वह हारान में पहुँचा और वहाँ रहने लगा। उसके पिता के मरने के बाद, परमेश्वर ने उसे उस देश में जाने के लिए कहा था जिसमें तुम और मैं आज रहते हैं।
\p
\v 5 उस समय परमेश्वर ने अब्राहम को यहाँ अपनी भूमि नहीं दी, भूमि का एक छोटा सा टुकड़ा भी नहीं दिया। लेकिन परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की थी वह बाद में उसे और उसके वंशजों को यह देश दे देंगे, और तब यह हमेशा के लिये उनका होगा। कि, उस समय अब्राहम के पास सन्तान नहीं थी जो इसकी वारिस होती।
\p
\s5
\v 6 बाद में परमेश्वर ने अब्राहम से कहा, 'तुम्हारा वंश जाकर एक पराए देश में रहेगा। वे वहाँ चार सौ वर्ष तक रहेंगे, और उस समय के दौरान उस देश के अगुवे तुम्हारे वंशजों के साथ बुरा व्यवहार करेंगे और बलपूर्वक उनसे दास का काम करवाएँगे।
\v 7 'लेकिन मैं उन लोगों को दण्ड दूँगा जो उनसे दासों का काम करवाते हैं। उसके बाद, तुम्हारे वंशज उस देश से निकल जाएँगे, और वे इस देश में आएँगे और मेरी उपासना करेंगे।'
\p
\v 8 तब परमेश्वर ने आज्ञा दी कि अब्राहम के घराने के सभी पुरूषों और उसके सभी पुरूष वंशजों को यह दिखाने के लिए खतना करवाना चाहिए कि वे सब परमेश्वर के हैं। बाद में अब्राहम के बेटे, इसहाक का जन्म हुआ, और जब इसहाक आठ दिन का था, तो अब्राहम ने उसका खतना किया। बाद में इसहाक के बेटे, याकूब का जन्म हुआ। याकूब उन बारह पुरूषों का पिता था, जिसे हम यहूदी अपने कुलपिता, हमारे पूर्वज कहते हैं।
\p
\s5
\v 9 तुम्हें पता है कि याकूब के बड़े पुत्र जलते थे, क्योंकि उनका पिता उनके छोटे भाई यूसुफ को पसंद करता था। इसलिए उन्होंने उसे व्यापारियों को बेच दिया, जो उसे मिस्र में ले गए, जहाँ वह एक दास बन गया। लेकिन परमेश्वर ने यूसुफ की सहायता की;
\v 10 जब भी लोग उसे पीड़ित करते थे परमेश्वर उसे सुरक्षित करते थे। उन्होंने यूसुफ को बुद्धिमान बना दिया, और उन्होंने मिस्र के राजा फ़िरौन को यूसुफ की भलाई के बारे में विचार करने के लिए प्रेरित किया। इसलिए फ़िरौन ने उसे मिस्र पर शासन करने और फ़िरौन की सारी सम्पत्ति की देखभाल करने के लिए नियुक्त किया।
\p
\s5
\v 11 जब यूसुफ उस काम को कर रहा था, तो ऐसा समय आया कि मिस्र और कनान में भोजन की बहुत कमी हो गई। लोग परेशान हो गए। कनान में याकूब और उसके पुत्रों के लिए भी भोजन पर्याप्त नहीं था।
\v 12 याकूब को लोगों ने बताया कि मिस्र में अनाज है और लोग उसे खरीद सकते हैं, तो उसने यूसुफ के बड़े भाइयों को अनाज खरीदने के लिए वहाँ भेज दिया। उन्होंने जाकर यूसुफ से अनाज खरीदा, परन्तु उन्होंने उसे नहीं पहचाना। तब वे घर लौट आए।
\v 13 जब यूसुफ के भाई दूसरी बार मिस्र गए, तब उन्होंने फिर यूसुफ से अनाज खरीदा। लेकिन इस बार उसने उन्हें बताया कि वह कौन है। और फ़िरौन को पता चला कि यूसुफ के लोग इब्रानी हैं और जो पुरुष कनान से आए थे वे उसके भाई हैं।
\s5
\v 14 इसके बाद यूसुफ ने अपने भाइयों को घर वापस भेज दिया, उन्होंने अपने पिता याकूब से कहा कि यूसुफ उसे और उसके पूरे परिवार को मिस्र में बुलाना चाहता है। उस समय याकूब के परिवार में पचहत्तर लोग थे।
\v 15 तो जब याकूब ने यह सुना, वह और उसका सारा परिवार मिस्र में रहने के लिए चला गया। बाद में, याकूब वहाँ मर गया, और हमारे अन्य पूर्वज, उनके पुत्रों की वहाँ मृत्यु हो गई।
\v 16 उनके शरीरों को हमारे देश में वापस लाया गया और उन्हें कब्र में दफनाया गया, जिसे अब्राहम ने शेकेम शहर में हमोर के पुत्रों से खरीदा था।
\p
\s5
\v 17 जब हमारे पूर्वज संख्या में बहुत अधिक हो गए थे तब वह समय आया कि परमेश्वर उन्हें मिस्र से छुडाए जिसकी उन्होंने अब्राहम से प्रतिज्ञा की थी कि वह करेंगे।
\v 18 मिस्र पर अब दूसरा राजा शासन कर रहा था। वह नहीं जानता था कि उससे बहुत पहले, यूसुफ ने मिस्र के लोगों की बहुत सहायता की थी।
\v 19 उस राजा ने निर्दयतापूर्वक हमारे पूर्वजों से छुटकारा पाने का प्रयास किया। उसने उन पर अत्याचार किया और उन्हें बहुत पीड़ित किया। यहाँ तक कि उसने उन्हें आज्ञा दी कि वे अपने नये जन्मे शिशुओं को घरों के बाहर फेंक दें जिससे कि वे मर जाएँ।
\p
\s5
\v 20 उस समय मूसा का जन्म हुआ था, और परमेश्वर ने देखा कि वह एक बहुत ही सुंदर बालक है। इसलिए उसके माता-पिता ने तीन महीने तक उसे अपने घर में ही रखा और गुप्त रूप से उसकी देखभाल की।
\v 21 तब उन्हें उस बालक को अपने घर से बाहर करना पड़ा, परन्तु फ़िरौन की बेटी को वह मिल गया और उसने उसकी ऐसी देखभाल की, जैसे कि वह उसका ही पुत्र हो।
\s5
\v 22 मूसा को मिस्र की सब शिक्षा मिली जो मिस्रियों को दी जाति थी। और जब वह बड़ा हुआ, तो वह बात करने और काम करने में सशक्त था।
\p
\v 23 जब मूसा चालीस वर्ष का था, तब एक दिन उसने निर्णय लिया कि वह जाकर अपने लोगों अर्थात् इस्राएलियों से मिलेगा।
\v 24 उसने एक मिस्री को इस्राएलियों में से एक के साथ बुरा व्यवहार करते देखा। इसलिये वह इस्राएली पुरुष की सहायता करने के लिए गया, और उसने उस मिस्री को मारकर इस्राएली का बदला लिया।
\v 25 मूसा ने सोचा था कि उसके साथी इस्राएलियों को यह समझ आ जाएगा कि परमेश्वर ने उन्हें गुलामी से छुड़ाने के लिए उसे भेजा है। लेकिन उन्हें यह समझ नहीं आया।
\s5
\v 26 अगले दिन, मूसा ने देखा कि दो इस्राएली पुरुष एक दूसरे से लड़ रहे हैं। उसने उनसे यह कह कर लड़ाई रोकने का प्रयास किया की, 'भाइयों, तुम दोनों ही इस्राएली हो! तुम एक दूसरे को चोट क्यों पहुँचा रहे हो?
\v 27 लेकिन जो पुरुष दूसरे को मार रहा था, उसने मूसा को धक्का दिया और कहा, 'तुझे हम पर शासक और न्यायाधीश किसी ने नहीं ठहराया है!
\v 28 क्या तू मुझे भी मार डालना चाहता है जैसे तुने कल मिस्री को मार डाला था?
\s5
\v 29 जब मूसा ने यह सुना, तो वह मिस्र से मिद्यान देश में भाग गया। वहाँ वह कुछ वर्षों तक रहा। उसने विवाह किया, और उसके और उसकी पत्नी के दो पुत्र हुए।
\p
\v 30 चालीस वर्ष बाद, एक दिन प्रभु परमेश्वर मूसा के सामने एक स्वर्गदूत के रूप में प्रकट हुए। परमेश्वर उसे सीनै पर्वत के निकट रेगिस्तान में एक जलती हुई झाड़ी की आग में दिखाई दिए।
\s5
\v 31 जब मूसा ने उसे देखा, तो वह चकित हो गया, क्योंकि झाड़ी जल नहीं रही थी। जब वह और पास से देखने के लिये गया, तो उसने प्रभु परमेश्वर की वाणी सुनी जो कह रही थी,
\v 32 'मैं परमेश्वर हूँ जिनकी तुम्हारे पूर्वज आराधना करते थे। मैं परमेश्वर हूँ जिनकी अब्राहम, इसहाक और याकूब आराधना करते थे।' मूसा इतना डर गया था कि वह काँपने लगा। वह अब झाड़ी को देखने से भी डरता था।
\s5
\v 33 फिर प्रभु परमेश्वर ने उससे कहा, 'अपनी जूतियों को उतार दे जिससे यह प्रकट हो कि तुम मेरा सम्मान करते हो। क्योंकि मैं यहाँ हूँ, और जिस जगह पर तुम खड़े हो वह विशेष रूप से मेरी है।
\v 34 मैंने निश्चय ही देखा है कि मिस्र के लोग कैसे मेरे लोगों को दुःख दे रहे हैं। और जब वे अपने दुःख के कारण कराहते हैं। तो उनकी पुकार मुझ तक पहुँचती है इसलिए मैं उन्हें मिस्र से छुड़ाने के लिए नीचे आया हूँ। अब तैयार हो जा, क्योंकि मैं तुझे वापस मिस्र भेजने पर हूँ।'
\p
\s5
\v 35 इसी मूसा ने हमारे इस्राएली लोगों की सहायता करने का प्रयास किया था, परन्तु जिसे उन्होंने यह कहकर अस्वीकार कर दिया था, 'किसी ने भी तुम्हें शासक और न्यायाधीश नहीं ठहराया है!' मूसा को स्वयं परमेश्वर ने उन पर शासन करने के लिए और गुलामी से उन्हें मुक्त करने के लिए भेजा था। वही था जिसे झाड़ी में एक स्वर्गदूत ने ऐसा करने का आदेश दिया था।
\v 36 मूसा ही था जो हमारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाल लाया था। मिस्र में, लाल समुद्र में और उन चालीस वर्षों में भी जब इस्राएली लोग मरुभूमि में थे, उसने कई प्रकार के चमत्कार किए थे कि यह प्रकट हो कि परमेश्वर उनके साथ थे।
\v 37 यह मूसा ही था जिसने इस्राएली लोगों से कहा था, 'परमेश्वर तुम्हारे लोगों में से मेरे समान एक और व्यक्ति को तुम्हारे लिए एक भविष्यद्वक्ता होने के लिए तैयार करेंगे।'
\s5
\v 38 यह मूसा ही था जो इस्राएली लोगों के बीच था जब वे मरुभूमि में एक साथ थे। वह स्वर्गदूत के साथ था जिसने सीनै पर्वत पर उसके साथ बात की थी। यह मूसा ही है जिसे परमेश्वर ने सीनै पर्वत पर स्वर्गदूत के द्वारा हमारे नियम दिए थे। उसी ने हमारे पूर्वजों को बताया जो स्वर्गदूत ने कहा था। वही था जिसने परमेश्वर से वचनों को प्राप्त किया था और उन्हें हमारे पास पहुँचाया, जो हमें बताते हैं कि कैसे जीना है।
\p
\v 39 परन्तु, हमारे पूर्वजों ने मूसा की बातों को मानना नहीं चाहा। इसकी अपेक्षा, उन्होंने उसे अपने अगुवे के रूप में अस्वीकार कर दिया और मिस्र लौट जाना चाहते थे।
\v 40 इसलिये उन्होंने उसके बड़े भाई हारून से कहा, 'हमारे लिए मूर्तियाँ बना, जो हमारी अगुवाई करने के लिये हमारे देवता हो। उस व्यक्ति मूसा के बारे में, जिसने हमें मिस्र से बाहर निकाला, हमें नहीं पता कि उसके साथ क्या हुआ है!'
\s5
\v 41 इसलिए उन्होंने एक मूर्ति बनाई जो एक बछड़े के समान दिखती थी। तब उन्होंने उस मूर्ति का आदर करने के लिए बलि चढ़ाई, और उन्होंने अपने हाथों की बनाई वस्तु के कारण गीत गाए और नृत्य किया।
\v 42 अत: परमेश्वर ने उन्हें सुधारना बंद कर दिया। उन्होंने उन्हें आकाश के सूर्य, चंद्रमा और तारों की आराधना करने के लिए छोड़ दिया। यह उन वचनों से सहमत है जो भविष्यद्वक्ताओं में से एक ने लिखे थे: परमेश्वर ने कहा, 'हे इस्राएली लोगों, जब तुमने बार-बार जानवरों को मारा और उन चालीस वर्षों तक उनको बलि के रूप में चढ़ाया, जब तुम मरुभूमि में थे, क्या तुम उन्हें मेरे लिए चढ़ा रहे थे?
\s5
\v 43 इसके विपरीत, तुम उस तम्बू को एक स्थान से दूसरे स्थान ले गए जिसमें वह मूर्ति थी जो मोलेक देवता का प्रतिनिधित्व करती थी जिसकी तुमने आराधना की थी। तुमने अपने साथ रिफान नाम के तारे की मूर्ति भी ली थी। वे मूर्तियाँ थीं जो तुमने बनाई थीं, और तुमने मेरी अपेक्षा उनकी पूजा की थी। इस कारण मैं ऐसा करूँगा कि तुम्हें तुम्हारे घरों से कहीं दूर ले जाया जाएगा, ऐसे देश में जो बाबेल देश से भी कहीं दूर हैं।'
\p
\s5
\v 44 "जब हमारे पूर्वज मरुभूमि में थे, तब वे पवित्र तम्बू में परमेश्वर की उपासना करते थे, जिससे प्रकट होता था कि वे वहाँ उनके साथ थे। उन्होंने तम्बू को बिल्कुल उसी प्रकार बनाया था जैसे परमेश्वर ने मूसा को बनाने के लिए आज्ञा दी थी। यह बिल्कुल उसी नमूने के अनुसार बनाया गया था जो मूसा ने देखा था जब वह ऊपर पहाड़ पर था।
\v 45 बाद में, हमारे पूर्वज तम्बू को अपने साथ उठाकर चले। जब यहोशू उन्हें इस देश में लेकर आया तब उस समय उन्होंने इस देश को अपने लिए ले लिया, जब परमेश्वर ने यहाँ रहनेवाले लोगों को यहाँ से निकलने के लिये विवश किया। इस प्रकार इस्राएली इस देश पर अधिकार करने में सक्षम हुए। तम्बू इस देश में बना रहा और उस समय भी यहाँ था जब राजा दाऊद ने शासन किया था।
\v 46 दाऊद ने परमेश्वर को प्रसन्न किया, और उसने परमेश्वर से कहा कि वह उसे एक भवन बनाने दे जहाँ वह और हमारे सभी इस्राएली लोग परमेश्वर की आराधना कर सकें।
\s5
\v 47 परन्तु, परमेश्वर ने दाऊद के पुत्र सुलैमान को एक भवन बनाने के लिए कहा जहाँ लोग उनकी आराधना कर सकें।"
\p
\v 48 हम जानते हैं कि परमेश्वर सब वस्तुओं से बड़े हैं, और वे उन भवनों में नहीं रहते, जो लोगों ने बनाए हैं। यशायाह भविष्यद्वक्ता ने लिखा था:
\v 49-50 परमेश्वर ने कहा, "स्वर्ग मेरा सिंहासन है और पृथ्वी मेरे पैर रखने की चौकी है। मैंने स्वर्ग में और पृथ्वी पर सब कुछ बनाया है। तो तुम मनुष्य जाति मेरे रहने के लिए अच्छा और पर्याप्त नहीं बना सकते!"
\p
\s5
\v 51 "तुम लोग बहुत हठीले हो! तुम बिल्कुल अपने पूर्वजों के समान हो! तुम सदैव पवित्र आत्मा का विरोध करते हो, जैसे वे किया करते थे!
\v 52 तुम्हारे पूर्वजों ने हर भविष्यद्वक्ता को पीड़ित किया। उन्होंने उनको मार भी डाला जिन्होंने बहुत पहले ही घोषणा की थी कि मसीह आएँगे, वह जिन्होंने सदैव वही किया जिससे परमेश्वर प्रसन्न होते हैं। और मसीह आ गये हैं! यह वही है जिन्हें तुमने हाल ही में उनके शत्रुओं को सौंप दिया और कहा कि वे उसे मार डालें!
\v 53 तुम ऐसे लोग हो जिन्होंने परमेश्वर की व्यवस्था को प्राप्त किया है। इस व्यवस्था को परमेश्वर ने स्वर्गदूतों के द्वारा हमारे पूर्वजों को दिया था। लेकिन, तुमने उनकी बातों को नहीं माना है!"
\p
\s5
\v 54 जब यहूदी परिषद के सदस्यों और अन्य लोगो ने जो वहां थे, स्तिफनुस की बात सुनी, तो वे बहुत क्रोधित हो गए। वे एक साथ अपने दाँत पीस रहे थे क्योंकि वे उससे बहुत क्रोधित थे!
\p
\v 55 लेकिन पवित्र आत्मा ने हर प्रकार से स्तिफनुस को नियंत्रित किया। उसने ऊपर स्वर्ग की ओर देखा और परमेश्वर से आता एक प्रकाश देखा और उसने यीशु को परमेश्वर के दाहिने ओर खड़े देखा।
\v 56 "देखो," उसने कहा, "मैं स्वर्ग को खुला देख रहा हूँ, और मैं मनुष्य के पुत्र को परमेश्वर के दाहिनी ओर खड़े देखता हूँ!"
\p
\s5
\v 57 जब यहूदी परिषद के सदस्यों और अन्य लोगों ने यह सुना, वे जोर से चिल्लाए। उन्होंने अपने हाथों को अपने कानों पर रखा ताकि वे उसे न सुनें, और तुरंत वे सब उसके पास चले गए।
\v 58 वे उसे खींच कर यरूशलेम शहर के बाहर ले गए और उस पर पत्थर मारना आरंभ कर दिया। जो लोग उस पर आरोप लगा रहे थे, उन्होंने पत्थरों को आसानी से फेंकने के लिए अपना बाहरी वस्त्र उतार दिया, और उन्होंने अपने कपड़ों को एक जवान व्यक्ति के पास भूमि पर रख दिया, जिसका नाम शाऊल था, कि वह उनकी निगरानी कर सके।
\s5
\v 59 जबकि वे स्तिफनुस पर पत्थर फेंक रहे थे, तो स्तिफनुस ने प्रार्थना की, "हे प्रभु यीशु, मेरी आत्मा को ग्रहण कर!"
\p
\v 60 तब स्तिफनुस घुटनों पर गिर पड़ा और चिल्ला उठा, "हे प्रभु, इस पाप के लिए उन्हें सज़ा न देना!" उसके यह कहने के बाद, वह मर गया।
\s5
\c 8
\p
\v 1-2 तब कुछ लोगों ने जो परमेश्वर के भक्त थे, एक कब्र में स्तिफनुस के शरीर को दफन कर दिया, और उन्होंने उसके लिए बहुत शोक और विलाप किया।
\p उसी दिन लोगों ने यरूशलेम में रहने वाले विश्वासियों को गम्भीर रूप से सताना आरंभ कर दिया। इसलिए विश्वासी भाग कर यहूदिया और सामरिया के प्रांतों में दूसरे स्थानों पर चले गए। प्रेरित यरूशलेम में ही रहे।
\v 3 जब वे स्तिफनुस को मार रहे थे, शाऊल वहाँ इस बात से सहमत था कि उन्हें स्तिफनुस को मारना चाहिए। इसलिए शाऊल ने भी विश्वासियों के समूह को नष्ट करने का प्रयास करना आरम्भ कर दिया। वह प्रत्येक घर में गया, और जो यीशु में विश्वास करते थे वह उन पुरुषों और स्त्रियों को खींच कर लाया, और फिर उन्हें बंदीगृह में डाल दिया।
\p
\s5
\v 4 जिन विश्वासियों ने यरूशलेम छोड़ दिया वे अलग-अलग स्थानों पर चले गए, वे यीशु के बारे में संदेश का प्रचार करते रहे।
\v 5 उन विश्वासियों में से एक जिसका नाम फिलिप्पुस था, वह यरूशलेम से सामरिया जिले के एक शहर में चला गया। वहाँ वह लोगों को बता रहा था कि यीशु ही मसीह हैं।
\s5
\v 6 वहाँ कई लोगों ने फिलिप्पुस की बातें सुनी और उन चमत्कारिक कामों को देखा जो वह कर रहा था। इसलिए उन सभी ने उसके वचनों पर विशेष ध्यान दिया।
\v 7 उदाहरण के लिए, फिलिप्पुस ने कई लोगों में से दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकलने का आदेश दिया, और वे चिल्लाती हुई बाहर निकल गई। इसके अतिरिक्त, बहुत से लोग जिन्हें लकवा और बहुत से जो लंगड़े थे स्वस्थ हो गए थे।
\v 8 इसलिये उस शहर के बहुत सारे लोगों ने आनंद किया।
\p
\s5
\v 9 उस शहर में एक व्यक्ति था जिसका नाम शमौन था। वह लम्बे समय से जादूगरी कर रहा था, और वह अपने जादू से सामरिया जिले के लोगों को चकित करता था। उसका दावा था कि वह "महापुरुष शमौन" है!
\v 10 चाहे साधारण चाहे महत्वपूर्ण, वहाँ सभी लोग उसकी बात सुनते थे। वे कहते थे, "ये व्यक्ति परमेश्वर की महान शक्ति है।"
\v 11 वे बड़े ध्यान से उसकी बातें सुनते थे, क्योंकि उसने लम्बे समय से जादू टोना दिखा कर उन्हें चकित किया हुआ था।
\s5
\v 12 लेकिन जब उन्होंने फिलिप्पुस के संदेश पर विश्वास किया जो परमेश्वर के राजा के रूप में प्रगट होने के विषय में और यीशु मसीह के विषय में था। यीशु में विश्वास करने वाले पुरुषों और स्त्रियों ने बपतिस्मा लिया।
\v 13 शमौन ने भी फिलिप्पुस के संदेश पर विश्वास किया और बपतिस्मा लिया। उसने लगातार फिलिप्पुस के साथ रहना शुरू कर दिया, और जिन महान चमत्कारों को फिलिप्पुस कर रहा था, वे काम जो प्रगट करते थे कि फिलिप्पुस सत्य बोल रहा था उनको देख कर वह विस्मत था।
\p
\s5
\v 14 जब यरूशलेम में प्रेरितों ने सुना कि पूरे सामरिया जिले के बहुत लोगों ने परमेश्वर के संदेश पर विश्वास किया है, तो उन्होंने वहाँ पतरस और यूहन्ना को भेजा।
\v 15 जब पतरस और यूहन्ना सामरिया में आए, तो उन्होंने उन नये विश्वासियों के लिए पवित्र आत्मा प्राप्त करने की प्रार्थना की।
\v 16 क्योंकि यह स्पष्ट था कि पवित्र आत्मा अभी तक उनमें से किसी पर नहीं आये थे। उन्होंने केवल प्रभु यीशु के नाम पर बपतिस्मा लिया था।
\v 17 तब पतरस और यूहन्ना ने उन पर हाथ रखा, और उन्होंने पवित्र आत्मा पाया।
\p
\s5
\v 18 शमौन ने देखा कि प्रेरितों के द्वारा उन पर हाथ रखने से पवित्र आत्मा लोगों को दिया गया था। इसलिए उसने प्रेरितों को पैसे देने चाहे,
\v 19 उसने कहा, "तुम जो कर रहे हो उसे करने के लिए मुझे भी सक्षम करो, ताकि जिस पर भी मैं अपना हाथ रखूँ वह पवित्र आत्मा प्राप्त कर सके।"
\s5
\v 20 पतरस ने उससे कहा, "तू और तेरा पैसा नष्ट हो जाए, क्योंकि तुने पैसे से परमेश्वर के वरदान को पाने का प्रयास किया है!
\v 21 हम जो काम कर रहे हैं, उसमें तू हमारे साथ काम नहीं कर सकता, क्योंकि तुम्हारा मन परमेश्वर के साथ सही नहीं है!
\v 22 इसलिये इस प्रकार दुष्टता से सोचना बंद कर, और परमेश्वर से याचना कर कि अगर वे इच्छा रखते हैं, तो तुने जो बुराई करने के लिए अपने मन में विचार किया है उसके लिये तुझे क्षमा कर दें!
\v 23 अपने बुरे कामों से दूर हो जा, क्योंकि मुझे लगता है कि तू हम से बहुत जलता है, और तू निरन्तर बुराई करने की इच्छा का दास है।
\s5
\v 24 तब शमौन ने उत्तर दिया, "प्रभु से प्रार्थना करो कि तुमने जो कुछ अभी कहा, वह मेरे साथ प्रभु न करें!"
\p
\s5
\v 25 पतरस और यूहन्ना ने वहाँ लोगों को प्रभु यीशु के बारे में वह सब सुनाया जो वे व्यक्तिगत रूप से जानते थे और प्रभु के संदेश की घोषणा की, उसके बाद वे दोनों यरूशलेम लौट आए। मार्ग में उन्होंने सामरिया जिले के लोगों में यीशु के बारे में सुसमाचार का प्रचार किया।
\p
\s5
\v 26 एक दिन, फिलिप्पुस को एक स्वर्गदूत ने जिसे यहोवा परमेश्वर ने भेजा था आदेश दिया, "तैयार हो और दक्षिण दिशा में उस मार्ग पर जाओ जो यरूशलेम से गाजा शहर तक जाता है।" यह मार्ग रेगिस्तानी क्षेत्र में था।
\v 27 अत: फिलिप्पुस तैयार होकर उस मार्ग पर चला गया। उस मार्ग पर वह एक व्यक्ति से मिला जो इथोपिया देश से था। वह एक महत्वपूर्ण अधिकारी था जो इथोपिया की रानी के सारे धन का ध्यान रखता था। उसकी भाषा में लोग अपनी रानी को कन्दाके बुलाते थे। यह व्यक्ति यरूशलेम में परमेश्वर की आराधना करने गया था,
\v 28 और वह घर लौट रहा था और अपने रथ पर सवार होकर बैठा था। जब वह सवारी कर रहा था, तो वह यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक ऊँची आवाज में पढ़ रहा था।
\p
\s5
\v 29 परमेश्वर के आत्मा ने फिलिप्पुस को बताया, "उस रथ के पास जा और उसके पास चलता रह!"
\v 30 फिलिप्पुस रथ के पास दौड़ा और अधिकारी को यशायाह भविष्यद्वक्ता द्वारा लिखी बातों को पढ़ते सुना। उसने उस व्यक्ति से पूछा, "तू जो पढ़ रहा है, क्या उसे समझता भी है?"
\v 31 उसने फिलिप्पुस को उत्तर दिया, "नहीं! सच तो यह है कि यदि कोई मुझे नहीं समझाए तो, मैं यह समझ नहीं सकता! यदि मुझे यह समझाने के लिए कोई नहीं हो!" तब उस पुरुष ने फिलिप्पुस से कहा, "कृपया ऊपर आकर मेरे पास बैठ।"
\s5
\v 32 धर्मशास्त्र का जो भाग वह अधिकारी पढ़ रहा था वह यह था: "वह एक भेड़ के समान शांत है जिसे लोग उस स्थान पर ले जाते हैं जहाँ वे उसे मारने जा रहे हैं, या एक मेम्ने के समान चुपचाप है, जब उसका ऊन काटा जाता है।
\v 33 उसे अपमानित किया जाएगा। उसे न्याय नहीं मिलेगा। कोई भी उसके वंशजों के बारे में नहीं बता पाएगा- क्योंकि उसका कोई वंश नहीं होगा- क्योंकि वे इस पृथ्वी पर से उसका जीवन ले लेगे।"
\p
\s5
\v 34 अधिकारी ने फिलिप्पुस से उन वचनों के बारे में पूछा, जो वह पढ़ रहा था, "मुझे बताओ, भविष्यद्वक्ता किस के बारे में लिख रहा है? क्या वह अपने बारे में लिख रहा है या किसी और के बारे में लिख रहा है?"
\v 35 तब फिलिप्पुस ने उसे उत्तर दिया; उसने वचन के उस भाग से शुरू किया, और उसने उसे यीशु के बारे में सुसमाचार बताया।
\p
\s5
\v 36-37 मार्ग पर यात्रा करते हुए, वे एक स्थान पर पहुँचे जहाँ थोड़ा पानी था। तब अधिकारी ने फिलिप्पुस से कहा, "देख, यहाँ थोड़ा पानी है! मैं चाहता हूँ कि तू मुझे बपतिस्मा दे, क्योंकि मैं ऐसे किसी बात को नहीं जानता जो मुझे बपतिस्मा लेने से रोके।"
\v 38 इसलिए अधिकारी ने सारथी से रथ रोकने के लिए कहा। फिर फिलिप्पुस और अधिकारी दोनों पानी में उतर गए, और फिलिप्पुस ने उसे बपतिस्मा दिया।
\s5
\v 39 जब वे पानी से बाहर निकल आए, तो अचानक परमेश्वर के आत्मा फिलिप्पुस को उठा ले गया। अधिकारी ने फिलिप्पुस को फिर कभी नहीं देखा। लेकिन यद्यपि उसने फिलिप्पुस को फिर कभी नहीं देखा, अधिकारी अत्यन्त प्रसन्नता के साथ मार्ग में आगे बढ़ गया।
\p
\v 40 तब फिलिप्पुस को समझ में आया कि आत्मा चमत्कारी रूप से उसे अश्दोद के शहर में ले आया है। जब वह उस क्षेत्र में चारों ओर यात्रा कर रहा था, तब उसने अश्दोद और कैसरिया शहरों के बीच के सभी नगरों में यीशु के संदेश का प्रचार किया। और जब वह अन्त में कैसरिया में पहुँचा, तब भी वह इस संदेश का प्रचार कर रहा था।
\s5
\c 9
\p
\v 1 इस बीच, शाऊल क्रोध में उन लोगों को मारने की धमकी देता रहा, जिन्होंने प्रभु का अनुसरण किया था। वह यरूशलेम में महायाजक के पास गया
\v 2 और दमिश्क में यहूदी आराधनालयों के अगुवों के लिए उसे परिचय पत्र लिखने का अनुरोध किया। पत्रों में उनसे कहा गया था कि वे शाऊल को उस किसी भी स्त्री या पुरुष को पकड़ने का अधिकार प्रदान करें, जो यीशु की सिखाई गई बातों का अनुसरण करते हैं, और उन्हें बन्दी बनाकर यरूशलेम में ले जाए कि यहूदी अगुवे उनका न्याय कर सकें और उन्हें दण्ड दे सकें।
\p
\s5
\v 3 जब शाऊल और उसके साथ के लोग यात्रा कर रहे थे, तो वे दमिश्क के पास पहुँचे। अकस्मात ही स्वर्ग से एक तीव्र प्रकाश शाऊल के चारों ओर चमका।
\v 4 तुरंत ही वह भूमि पर गिर पड़ा। तब उसने किसी की आवाज़ सुनी जिसने उससे कहा, "हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे दु:ख देने का प्रयास क्यों कर रहा है?"
\s5
\v 5 शाऊल ने उससे पूछा, "हे प्रभु, आप कौन है?" उन्होंने उत्तर दिया, "मैं यीशु हूँ, जिसे तू दु:ख पहुँचा रहा है।
\v 6 अब खड़ा हो जा और शहर में जा! वहाँ तुझे कोई बताएगा कि मैं तुझसे क्या करवाना चाहता हूँ।"
\v 7 जो लोग शाऊल के साथ यात्रा कर रहे थे, वे इतने अचम्भित हुए कि वे कुछ कह नहीं पाए। वे सिर्फ वहाँ खड़े रहे। उन्होंने प्रभु की बात सुनी, लेकिन उन्होंने किसी को नहीं देखा।
\s5
\v 8 शाऊल भूमि पर से उठा, लेकिन जब उसने अपनी आँखें खोलीं तो वह कुछ नहीं देख सकता था। अत: उसके साथी उसका हाथ पकड़कर उसे दमिश्क में ले गए।
\v 9 अगले तीन दिन तक शाऊल कुछ भी नहीं देख पाया, और उसने कुछ नहीं खाया और न पिया।
\p
\s5
\v 10 दमिश्क में हनन्याह नामक यीशु का एक अनुयायी था। प्रभु यीशु ने उसे एक दर्शन देकर कहा, "हे हनन्याह!" उसने उत्तर दिया, "हे प्रभु, मैं सुन रहा हूँ।"
\v 11 प्रभु यीशु ने उससे कहा, "यहूदा नामक व्यक्ति के घर में जा, जो सीधी गली में है। वहाँ किसी से तरसुस के निवासी शाऊल नामक व्यक्ति से बात करने का आग्रह कर, क्योंकि वह इस समय मुझसे प्रार्थना कर रहा है।
\v 12 शाऊल ने एक दर्शन देखा है जिसमें हनन्याह नाम के एक व्यक्ति ने उस घर में प्रवेश किया, जहाँ वह ठहरा हुआ है और उस पर अपना हाथ रखा ताकि वह फिर से देख सके।"
\s5
\v 13 हनन्याह ने उत्तर दिया, "परन्तु हे प्रभु, बहुत से लोगों ने मुझे इस व्यक्ति के बारे में बताया है! उसने यरूशलेम में आप पर विश्वास करने वाले लोगों के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया था!
\v 14 प्रधान याजकों ने उसे दमिश्क में आने का अधिकार दिया है ताकि वह उन सब लोगों को बन्दी बना सके जो आप में विश्वास करते हैं!"
\v 15 परन्तु प्रभु यीशु ने हनन्याह से कहा, "शाऊल के पास जा! जो मैं कहता हूँ उसे कर, क्योंकि मैंने उसे मेरी सेवा करने के लिए चुना है कि वह मेरे बारे में गैर-यहूदी लोगों, और उनके राजाओं और इस्राएली लोगों को बाता सके।
\v 16 मैं स्वयं उसे बताऊँगा कि लोगों को मेरे बारे में बताने के कारण उसे अक्सर पीड़ित होना पड़ेगा।"
\s5
\v 17 अत: हनन्याह चला गया और जिस घर में शाऊल था उसे खोजने के बाद, उसमें प्रवेश किया। शाऊल से भेंट करने के तुरंत बाद, उसने अपना हाथ उसके ऊपर रखा और उसने कहा, "भाई शाऊल, प्रभु यीशु ने स्वयं मुझे तेरे पास आने का आदेश दिया है। वही तुझ पर प्रगट हुए थे, जब तू दमिश्क जाने वाले मार्ग पर यात्रा कर रहा था। उन्होंने मुझे तेरे पास भेजा है ताकि तू फिर से देख सके और तू पवित्र आत्मा के वश में हो सको।
\v 18 तुरन्त ही, मछली की छिलके जैसी चीजें शाऊल की आँखों से गिरी, और वह फिर से देखने लगा। फिर वह उठ खड़ा हुआ और बपतिस्मा लिया।
\v 19 भोजन करने के बाद, वह फिर से सशक्त हो गया। शाऊल दमिश्क के अन्य विश्वासियों के साथ कई दिनों तक रहा।
\p
\s5
\v 20 उसी समय से उसने यहूदियों के आराधनालयों में यीशु के बारे में प्रचार करना आरंभ कर दिया। उसने उनसे कहा कि यीशु परमेश्वर के पुत्र हैं।
\v 21 सभी लोग जिन्होंने उसे प्रचार करते सुना वे चकित थे। उनमें से कुछ कह रहे थे, "हमें विश्वास नहीं हो रहा है कि यह वही व्यक्ति है जो यरूशलेम में विश्वासियों का पीछा करता था और जो यहाँ भी इसलिये आया था कि उन्हें बन्दी बनाकर यरूशलेम के प्रधान याजकों के पास ले जाए!"
\v 22 परन्तु परमेश्वर ने शाऊल को इस योग्य किया कि वह बहुत लोगों को विश्वास दिलाकर प्रचार करे। वह शास्त्रों से सिद्ध कर रहा था कि यीशु ही मसीह है। इसलिए दमिश्क के यहूदी अगुवों को समझ में नहीं आया कि जो उसने कहा उसे कैसे झूठा ठहराएँ।
\p
\s5
\v 23 कुछ समय बाद, यहूदी अगुवों ने उसे मारने का षड्यंत्र रचा।
\v 24 वे प्रतिदिन रात के समय शहर के फाटक से आने जाने वाले लोगों की लगातार निगरानी करते रहे कि जब वे शाऊल को देखें, तो उसे मार डालें। उनकी योजना के बारे में किसी ने शाऊल को बता दिया।
\v 25 उसने यीशु पर विश्वास करने में जिन लोगों की अगुवाई की थी, वे उसे शहर को चारों ओर से घेरने वाली ऊँची पत्थर की दीवार पर ले गए। उन्होंने दीवार के एक झरोखे से उसे एक बड़ी टोकरी में बैठा कर रस्सी से नीचे उतार दिया। इस प्रकार वह दमिश्क से बच कर निकल गया।
\p
\s5
\v 26 जब शाऊल यरूशलेम में पहुँचा, तो उसने अन्य विश्वासियों के साथ मिलने का प्रयास किया। लेकिन, सभी उससे डरते थे, क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि वह विश्वासी हो गया है।
\v 27 परन्तु बरनबास उसे लेकर प्रेरितों के पास आया। उसने प्रेरितों को समझाया कि जब शाऊल दमिश्क के मार्ग पर जा रहा था, तब उसने प्रभु यीशु को देखा था और कैसे प्रभु ने उससे बात की थी। उसने उनको यह भी बताया कि शाऊल ने कैसे साहस करके दमिश्क के लोगों में यीशु का प्रचार किया।
\s5
\v 28 तब शाऊल ने यरूशलेम में प्रेरितों और अन्य विश्वासियों के साथ मिलना शुरू कर दिया, और उसने लोगों से साहस रखकर प्रभु यीशु के बारे में बात की।
\p
\v 29 शाऊल यीशु के बारे में यूनानी भाषा बोलने वाले यहूदियों के साथ भी बात करता था, और वह उनके साथ वादविवाद करता था। लेकिन वे लगातार उसे मार डालने का प्रयास करने युक्ति कर रहे थे।
\v 30 जब अन्य विश्वासियों ने सुना कि वे उसे मार डालने की योजना बना रहे थे, तो उनमें से कुछ ने शाऊल को कैसरिया शहर में भेज दिया। वहाँ उन्होंने उसे एक जहाज पर चढ़ा दिया, जो उसकी जन्मभूमि तरसुस को जा रहा था।
\p
\s5
\v 31 इसलिए यहूदिया, गलील, और सामरिया के क्षेत्र में विश्वासियों के समूह शांतिपूर्वक रहते थे क्योंकि अब उन्हें कोई नहीं सता रहा था। पवित्र आत्मा उन्हें दृढ़ता प्रदान करते रहे थे और उन्हें प्रोत्साहित कर रहे थे। वे प्रभु यीशु का सम्मान करते रहे, और पवित्र आत्मा अनेको को विश्वासी बनने की क्षमता प्रदान कर रहे थे।
\p
\v 32 जब पतरस उन क्षेत्रों में यात्रा कर रहा था, तो एक बार वह तटीय मैदानी क्षेत्र के विश्वासियों से मिलने के लिए गया, जो लुद्दा शहर में रहते थे।
\s5
\v 33 वहाँ उसकी एक व्यक्ति से भेंट हुई जिसका नाम ऐनियास था। ऐनियास आठ साल से अपने बिस्तर से उठने में सक्षम नहीं था क्योंकि उसे लकवा था।
\v 34 पतरस ने उससे कहा, "ऐनियास, यीशु मसीह तुम्हें स्वस्थ करते हैं! उठो और अपना बिस्तर उठा लो!" उसी समय ऐनियास उठ कर खड़ा हो गया।
\v 35 परमेश्वर द्वारा स्वस्थ किए जाने के बाद लुद्दा और शारोन के मैदानी क्षेत्र में रहने वाले अधिकांश लोगों ने ऐनियास को देखा, इसलिए उन्होंने प्रभु यीशु पर विश्वास किया।
\p
\s5
\v 36 याफा के शहर में तबीता नाम की एक भक्त विश्वासी स्त्री थी। यूनानी भाषा में उसका नाम दोरकास था। वह हमेशा गरीब लोगों के लिए उनकी आवश्यकता की वस्तुएँ देकर उनके लिए अच्छे काम करती थी।
\v 37 जब पतरस लुद्दा में था, वह बीमार हो गई और मर गई। वहाँ की कुछ स्त्रियों ने यहूदी परम्परा के अनुसार उसके शरीर को धोया। फिर उन्होंने उसके शरीर को कपड़े से ढक दिया और उसे उसके घर में ऊपर के कमरे में रख दिया।
\p
\s5
\v 38 लुद्दा याफा शहर के पास था, इसलिए जब शिष्यों ने सुना कि पतरस अभी भी लुद्दा में है, तो उन्होंने दो लोगों को पतरस के पास भेजा। जब वे वहाँ पहुँचे जहाँ पतरस था, तो उन्होंने उससे आग्रह किया, "कृपया तुरंत हमारे साथ याफा को चल!"
\v 39 पतरस तुरंत तैयार हो गया और उनके साथ चला गया। जब वह याफा में घर पर पहुँचे, तो वे उसे ऊपर के कमरे में ले गए जहाँ दोरकास का शरीर रखा हुआ था। सभी विधवाएँ वहाँ उसके आस पास खड़ी थीं। वे उन कुरतों और अन्य कपड़ों को दिखाते हुए रो रही थीं जो दोरकास ने जीवित रहते समय उन के लिए बनाए थे।
\s5
\v 40 लेकिन पतरस ने उन सब को कमरे से बाहर भेज दिया। फिर उसने घुटने टेक कर प्रार्थना की। फिर, उसके शरीर की और मुड़कर, उसने कहा, "तबीता, खड़ी हो जा!" तुरंत उसने अपनी आँखें खोलीं और, जब उसने पतरस को देखा तो वह बैठ गई।
\v 41 उसने उसके हाथ पकड़ कर उसे खड़े होने में सहायता की। बाद में उसने विश्वासियों को और विशेष रूप से उनके बीच की विधवाओं को भीतर आने के लिए कहा, पतरस ने उन्हें दिखाया कि वह फिर से जीवित हो गई है।
\v 42 शीघ्र ही याफा में सब स्थानों में लोगों को उस चमत्कार के बारे में पता चल गया, और कई लोगों ने प्रभु यीशु में विश्वास किया।
\v 43 पतरस कई दिन तक याफा में, पशु की खालों से चमड़ा बनाने वाले शमौन नाम के एक मनुष्य के पास, ठहरा रहा।
\s5
\c 10
\p
\v 1 एक व्यक्ति था जो कैसरिया शहर में रहता था जिसका नाम कुरनेलियुस था। वह एक अधिकारी था जो इतालिया के सौ रोमी सैनिकों का सेनाध्यक्ष था।
\v 2 वह हमेशा ऐसे काम करने का प्रयास करता था जो परमेश्वर को प्रसन्न करे; वह और उसका पूरा परिवार गैर-यहूदी थे, परन्तु परमेश्वर की आराधना करना उनका अभ्यास था। उसने कई गरीब यहूदी लोगों की सहायता करने के लिए पैसा दिया, और वह नियमित रूप से परमेश्वर से प्रार्थना करता था।
\p
\s5
\v 3 एक दिन दोपहर में लगभग तीन बजे कुरनेलियुस ने एक दर्शन देखा। उसने स्पष्ट रूप से एक स्वर्गदूत को देखा जिसे परमेश्वर ने भेजा था। उसने देखा कि स्वर्गदूत उसके कमरे में आकर उससे कह रहा है, "कुरनेलियुस!"
\v 4 कुरनेलियुस ने स्वर्गदूत को देखा और भयभीत हो गया। फिर उसने डरते हुए पूछा, "श्रीमान, तुम क्या चाहते हो?" स्वर्गदूत ने जिसे परमेश्वर ने भेजा था उसे उत्तर दिया, "तुने परमेश्वर को प्रसन्न किया है क्योंकि तू नियमित रूप से उनसे प्रार्थना करता है और तुने गरीब लोगों की सहायता करने के लिए पैसे भी दिये हैं। ये काम परमेश्वर के सामने एक स्मरण योग्य बलिदान के समान हैं।
\v 5 तो अब कुछ पुरुषों को याफा में जाने के लिए आदेश दे और उन्हें शमौन नाम के एक व्यक्ति को अपने साथ यहाँ लाने के लिए कह, उसका दूसरा नाम पतरस है।
\v 6 वह एक व्यक्ति के पास ठहरा है, उसका भी नाम शमौन है, जो चमड़ा बनाता है। उसका घर समुद्र के पास है।"
\s5
\v 7 जब कुरनेलियुस से बात करने वाला स्वर्गदूत चला गया, तो उसने अपने घर के दो सेवकों और एक सैनिक को जो उसकी सेवा करता था, बुलवाया वह भी परमेश्वर की आराधना किया करता था।
\v 8 उसने स्वर्गदूत की सब बातों को उन्हें समझा दिया। तब उसने उनसे कहा याफा शहर जाकर पतरस को कैसरिया आने के लिए कहो।
\p
\s5
\v 9 अगले दिन दोपहर के समय वे तीनों लोग मार्ग में यात्रा कर रहे थे और याफा के पास आ गए थे। जब वे याफा पहुँचने वाले थे, तो पतरस प्रार्थना करने के लिए घर की छत पर चढ़ गया।
\v 10 उसे भूख लगी और वह कुछ खाना चाहता था। जब कुछ लोग भोजन की तैयारी कर रहे थे, तो पतरस ने एक दर्शन देखा।
\v 11 उसने आकाश को खुला हुआ देखा और एक बड़ी चादर जैसा कुछ धरती पर उतर आया, उसके चारों कोने ऊपर उठे हुए थे।
\v 12 चादर में सब प्रकार के जीव जन्तु थे। इसमें वे पशु और पक्षी भी थे जिन्हें खाना मूसा की व्यवस्था में मना था। उसमें कुछ चार पैर वाले थे, दूसरे भूमि पर रेंगने वाले थे, और अन्य जंगली पक्षी थे।
\s5
\v 13 तब उसने परमेश्वर को उससे कहते सुना, "पतरस, खड़ा हो जा, इनमें से कुछ को मार डाल और उनको खा ले!"
\v 14 परन्तु पतरस ने उत्तर दिया, "हे प्रभु, सचमुच आप नहीं चाहते कि मैं ऐसा करूँ क्योंकि मैंने कभी भी ऐसा कुछ भी नहीं खाया है जिसके बारे में हमारी यहूदी व्यवस्था कहती है कि वह तुम्हें अस्वीकार्य है या कोई ऐसी वस्तु जिसे हमें खाना नहीं चाहिए!"
\v 15 तब पतरस ने दूसरी बार परमेश्वर को उससे बात करते सुना। उन्होंने कहा, "मैं परमेश्वर हूँ, इसलिए यदि मैंने कुछ खाने के लिये स्वीकार्य बनाया है, तो यह मत कह कि यह खाने के लिये स्वीकार्य नहीं है!"
\v 16 यह तीन बार हुआ। इसके तुरंत बाद, उन पशुओं और पक्षियों के साथ चादर को फिर से आकाश में उठा लिया गया।
\p
\s5
\v 17 जबकि पतरस समझने का प्रयास कर रहा था कि उस दर्शन का अर्थ क्या है, कुरनेलियुस द्वारा भेजे गए व्यक्ति पहुँच गए। उन्होंने लोगों से पूछा कि शमौन के घर कैसे जाना है। अत: उनको उसका घर मिल गया और वे आकर द्वार के बाहर खड़े हुए।
\v 18 उन्होंने आवाज लगाई और पूछा कि क्या शमौन नाम का एक व्यक्ति, जिसका दूसरा नाम पतरस है, यहाँ ठहरा हुआ है या नहीं।
\s5
\v 19 जबकि पतरस अभी भी यह समझने का प्रयास कर रहा था कि दर्शन का अर्थ क्या है, परमेश्वर के आत्मा ने उससे कहा, "सुन! तीन पुरुष यहाँ आए हैं जो तुमसे मिलना चाहते हैं।
\v 20 इसलिये उठ और सीढ़ियों से नीचे उतर कर उनके साथ चला जा! मत सोच कि तुझे उनके साथ नहीं जाना चाहिए, क्योंकि मैंने उन्हें यहाँ भेजा है।"
\v 21 अत: पतरस नीचे उतर कर उन लोगों के पास गया और उनसे कहा, "नमस्कार! मैं ही वह व्यक्ति हूँ जिसको तुम लोग खोज रहे हो। तुम लोग किस काम से आए हो?"
\s5
\v 22 उन्होंने उत्तर दिया, "कुरनेलियुस, जो रोमी सेना में एक अधिकारी है, उसने हमें यहाँ भेजा है। वह एक अच्छा व्यक्ति है जो परमेश्वर की आराधना करता है, और सब यहूदी लोग जो उसके बारे में जानते हैं, वे कहते हैं कि वह बहुत अच्छा व्यक्ति है। एक स्वर्गदूत ने उससे कहा; कुछ पुरुषों को याफा में जाकर शमौन पतरस से मिलने और उसे यहाँ लाने के लिए कह, ताकि जो उसे कहना है तुम उसे सुन सको।
\v 23 अत: पतरस ने उन्हें घर में बुलाया और उनसे कहा कि वे उस रात वहीं पर ठहर जाएँ।
\p अगले दिन पतरस तैयार होकर उन पुरुषों के साथ चला गया। याफा के कई विश्वासी भी उसके साथ गए।
\s5
\v 24 एक दिन के बाद, वे कैसरिया शहर में पहुँचे। कुरनेलियुस उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसने अपने संबन्धियों और निकट के मित्रों को भी आमंत्रित किया था, इसलिए वे वहाँ उसके घर में थे।
\s5
\v 25 जब पतरस घर में प्रवेश कर रहा था, तो कुरनेलियुस उससे मिला और उसका आदर करने के लिए उसके सामने नीचे झुक गया।
\v 26 परन्तु पतरस ने कुरनेलियुस को हाथ से पकड़ लिया और उसे अपने पैरों पर से उठाया। उसने कहा, "खड़ा हो जा! झुक कर मेरा आदर मत कर! मैं तुम्हारे जैसा ही एक मनुष्य हूँ!"
\p
\s5
\v 27 जब वह कुरनेलियुस से बात कर रहा था, तब पतरस और अन्य विश्वासियों ने घर में प्रवेश किया और देखा कि कई लोग वहाँ एकत्र हुए थे।
\v 28 फिर पतरस ने उनसे कहा, "तुम सब जानते हो कि हम यहूदी समझते है कि हम अपने यहूदी व्यवस्था की अवज्ञा कर रहे हैं यदि हम गैर - यहूदी माता-पिता की संतानों से मेल रखें या उनके घरों में जाएँ। परन्तु, परमेश्वर ने मुझे एक दर्शन में दिखाया है कि मुझे यह नहीं कहना चाहिए कि कोई भी इतना अपवित्र और अशुद्ध है कि परमेश्वर उसे स्वीकार नहीं करेंगे।
\v 29 इसलिए जब तुमने कुछ पुरूषों को भेजा कि मुझे यहाँ आने के लिए कहें तो मैं तुरंत बिना किसी आपत्ति के यहाँ आया। इसलिये, कृपया मुझे बताओ, तुमने मुझे यहाँ आने के लिए क्यों कहा है?"
\p
\s5
\v 30 कुरनेलियुस ने उत्तर दिया, "तीन दिन पहले इसी समय मैं अपने घर में परमेश्वर से प्रार्थना कर रहा था, जैसा कि मैं दोपहर तीन बजे नियमित रूप से करता हूँ। अचानक एक पुरुष जिसके कपड़े बहुत चमकदार थे मेरे सामने खड़ा हो गया
\v 31 और कहा, 'कुरनेलियुस, परमेश्वर ने तेरी प्रार्थना सुन ली है। उन्होंने यह भी देखा है कि तुमने गरीब लोगों की सहायता के लिए अधिकतर पैसे दिए हैं, और वे उससे प्रसन्न हैं।
\v 32 तो अब, याफा शहर में जाने के लिए दूतों को भेज ताकि वे शमौन को जिसका दूसरा नाम पतरस है यहाँ आने के लिए कहें। वह समुद्र के पास एक घर में ठहरा है जो एक अन्य शमौन नाम के व्यक्ति का है जो चमड़ा बनाता है।'
\v 33 इसलिए मैंने तुरंत कुछ लोगों को भेजा जिन्होंने तुझे यहाँ आने के लिए कहा, और निश्चय ही तुझे धन्यवाद कहता हूँ कि तुम यहाँ आया है। अब हम सब एकत्र हैं, यह जानते हुए कि परमेश्वर हमारे साथ है, कि तुझसे वह सब बातें सुने जिन्हें सुनाने के लिए परमेश्वर ने तुझे आदेश दिया है। तो कृपया हमें सुना।"
\p
\s5
\v 34 तब पतरस ने उनसे बातें करना आरंभ कर दिया। उसने कहा, "अब मैं समझ गया हूँ कि यह सच है कि परमेश्वर केवल कुछ विशेष समूहों के लोगों का पक्ष नहीं लेते हैं।
\v 35 इसकी अपेक्षा वह सब जातियों में से उन सब को स्वीकार करते हैं जो उन्हें सम्मान देते हैं और वही करते हैं जो उन्हें प्रसन्न करता है।
\s5
\v 36 तुम उस संदेश को जानते हो जो परमेश्वर ने हम इस्राएलियों के पास भेजा। उन्होंने हम पर उस सुसमाचार की घोषणा की कि यीशु मसीह ने जो किया है उसके कारण लोगों का परमेश्वर के साथ मेल हो गया। ये यीशु केवल हम इस्राएलियों के ही प्रभु नहीं हैं। वह सभी लोगों पर शासन करने वाले एक ही प्रभु हैं।
\v 37 तुम जानते हो कि उन्होंने गलील से शुरू करके यहूदिया के सारे प्रदेश में क्या-क्या किया। यूहन्ना बपतिस्मा देने के पहले कहता था कि लोग बपतिस्मा लेने से पहले अपने पापी स्वभाव से दूर हो जाएँ। यीशु ने उसके बाद अपनी सेवा आरंभ की थी।
\v 38 तुम जानते हो कि परमेश्वर ने नासरत नगर के यीशु को अपना पवित्र आत्मा दिया, और उन्हें चमत्कार करने की शक्ति दी। तुम यह भी जानते हो कि कैसे यीशु अनेक स्थानों में गए और सदैव अच्छे काम करते रहे और लोगों को स्वस्थ करते रहे। वह उन सब लोगों को स्वस्थ कर रहे थे जिनको शैतान पीड़ित कर रहा था। यीशु के इस काम में सामर्थ थी क्योंकि परमेश्वर सदा उनकी सहायता करते रहते थे।"
\p
\s5
\v 39 हम सब ने उन कामों को देखा था जो यीशु ने यरूशलेम में और अपने देश इस्राएल के हर भाग में किये। उनके शत्रुओं ने उन्हें लकड़ी के क्रूस पर चढ़ा कर मार दिया।
\v 40 परमेश्वर ने उनके मरने के बाद तीसरे दिन उन्हें जीवित कर दिया, और सुनिश्चित किया कि उनके फिर से जीवित हो जाने के बाद कई लोग उन्हें जीवित देखें। लोगों को विश्वास हो गया था कि यह वही हैं जो मर गए थे, और अब उन्होंने अपनी आँखों से देखा और विश्वास किया कि वह फिर से जीवित हैं।
\v 41 उस समय परमेश्वर ने हर किसी को उन्हें देखने की क्षमता प्रदान नहीं की थी परमेश्वर ने जब उन्हें जीवित किया था तब आरंभ के दिनों में उन्होंने केवल उन लोगों को ही सक्षम बनाया जिन्हें उन्होंने उनके साथ समय बिताने और भोजन करने के लिए चुना था।
\s5
\v 42 परमेश्वर ने हमें सब लोगों में प्रचार करने और यह बताने का आदेश दिया है कि उन्होंने एक दिन हर एक का न्याय करने के लिए यीशु को नियुक्त किया है, उस दिन जिसका आना सुनिश्चित है। वह उन सब लोगों का न्याय करेंगे तब जो लोग उस समय से पहले मर चुके होंगे वो फिर से जीवित होंगे।
\v 43 सभी भविष्यद्वक्ता जिन्होंने उनके बारे में बहुत पहले लिखा था उन्होंने लोगों को उनके बारे में बताया। उन्होंने लिखा है कि यदि कोई उन पर विश्वास करता है, तो यीशु ने जो किया है उसके कारण परमेश्वर उनके सभी पापों को क्षमा कर देंगे।"
\p
\s5
\v 44 पतरस अभी उनसे बातें ही कर रहा था कि अकस्मात ही उन सभी गैर-यहूदी लोगों पर जो संदेश सुन रहे थे, पवित्र आत्मा उतर आए।
\v 45 याफा से पतरस के साथ आये हुए यहूदी विश्वासी चकित थे कि परमेश्वर ने अन्य जातियों के लोगों को बड़ी आराद्ता से पवित्र आत्मा दिए हैं।
\s5
\v 46 यहूदी विश्वासी समझ गए थे कि परमेश्वर ने यह किया था क्योंकि वे उन लोगों को उन भाषाओं में बातें करते सुन रहे थे, जिन्हें उन्होंने नहीं सीखा था और वे परमेश्वर की महानता का वर्णन कर रहे थे। तब पतरस ने
\v 47 अन्य यहूदी विश्वासियों से कहा जो वहाँ थे, "परमेश्वर ने उन्हें पवित्र आत्मा दिए हैं जैसे उन्होंने हम यहूदी विश्वासियों को दिए थे , अत: तुम सब निश्चय ही सहमत होंगे कि हमें इन लोगों को बपतिस्मा देना चाहिए!"
\v 48 तब पतरस ने उन गैर-यहूदी लोगों को बताया कि उन्हें यीशु मसीह में विश्वास करने वालों के रूप में बपतिस्मा लेना चाहिए। इसलिए उन्होंने उन सब को बपतिस्मा दिया। बपतिस्मा लेने के बाद, उन्होंने अनुरोध किया कि पतरस कुछ दिनों तक उनके साथ रहे। अत: पतरस और अन्य यहूदी विश्वासियों ने ऐसा ही किया।
\s5
\c 11
\p
\v 1 प्रेरितों और अन्य विश्वासियों ने जो यहूदिया प्रांत के विभिन्न शहरों में रहते थे लोगों को यह कहते सुना कि कुछ गैर-यहूदी लोगों ने भी यीशु के बारे में परमेश्वर के संदेश पर विश्वास कर लिया है।
\v 2 परन्तु यरूशलेम में कुछ यहूदी विश्वासी थे जो चाहते थे कि मसीह के सभी अनुयायियों का खतना होना चाहिए। जब पतरस कैसरिया से यरूशलेम लौट आया, तो वे उस से मिले और उसकी आलोचना की।
\v 3 उन्होंने उससे कहा, "न केवल यह गलत था कि तू उन बिना खतना किये हुए गैर-यहूदियों के घरों में गए, बल्कि तू ने तो उनके साथ खाया पिया भी है!"
\p
\s5
\v 4 इसलिए पतरस ने उन्हें समझाना शुरू किया कि वास्तव में क्या हुआ था।
\v 5 उसने कहा, "मैं याफा शहर में अकेले ही प्रार्थना कर रहा था, तो ध्यानमग्न अवस्था में मैंने एक दर्शन देखा था। मैंने देखा कि जहाँ मैं था, वहाँ आकाश से एक बड़ी चादर के समान उसके चारों कोनों द्वारा कुछ नीचे उतारा गया।
\v 6 जब मैं बड़े ध्यान से इसे देख रहा था, मैंने कुछ पालतु पशु और साथ ही कुछ जंगली पशु, रेंगने वाले जन्तु, और जंगली पक्षियों को देखा।
\s5
\v 7 तब मैंने सुना कि परमेश्वर मुझे आदेश दे रहे थे, 'पतरस, उठ जा, इनको मार और खा!'
\v 8 परन्तु मैंने उत्तर दिया, 'हे प्रभु, निश्चय ही आप सचमुच नहीं चाहते हो कि मैं ऐसा करूँ, क्योंकि मैंने कभी भी ऐसा कुछ नहीं खाया है जिसके बारे में हमारी व्यवस्था कहती है कि हमें नहीं खाना चाहिए! '
\v 9 परमेश्वर ने मुझसे स्वर्ग से दूसरी बार कहा, 'मैं परमेश्वर हूँ, इसलिए यदि मैंने कुछ खाने को स्वीकार्य बनाया है, तो यह मत कह कि वह अस्वीकार्य है।'
\v 10 बिल्कुल यही बात दो बार और हुई, और फिर उन सभी जानवरों और पक्षियों के साथ चादर फिर से स्वर्ग में खींच लिया गया।
\p
\s5
\v 11 उसी क्षण में, कैसरिया से भेजे गए तीन व्यक्ति उस घर पर पहुँचे जहाँ मैं ठहरा हुआ था।
\v 12 परमेश्वर के आत्मा ने मुझे बताया कि मुझे उनके साथ जाने में संकोच नहीं करना चाहिए, भले ही वे यहूदी नहीं थे। छह यहूदी विश्वासी भी मेरे साथ कैसरिया गए, और फिर हम उस गैर-यहूदी व्यक्ति के घर में गए।
\v 13 उसने हमें बताया कि उसने एक स्वर्गदूत को अपने घर में खड़ा देखा था। स्वर्गदूत ने उससे कहा, 'कुछ लोगों को याफा भेज कि वे शमौन को जिसका दूसरा नाम पतरस है आने के लिए कहे।
\v 14 वह तुम्हें बताएगा कि तू और तेरे घर के सब लोग कैसे बच सकेंगे।
\s5
\v 15 जैसे ही मैंने बोलना शुरू किया, अचानक पवित्र आत्मा उन पर उतर आए, जैसे वह पिन्तेकुस्त के पर्व के समय पहले हमारे ऊपर उतर आए थे।
\v 16 फिर मुझे याद आया कि परमेश्वर ने क्या कहा था: 'यूहन्ना ने तुम्हें पानी से बपतिस्मा दिया, परन्तु परमेश्वर तुमको पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देंगे।'
\s5
\v 17 परमेश्वर ने उन गैर-यहूदियों को वही पवित्र आत्मा दिए जो उन्होंने हमें दिए थे जब हम ने प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास किया था। तो मैं परमेश्वर को नहीं कह सका कि उन्होंने यह गलत किया कि उन्हें पवित्र आत्मा दे दिए!"
\p
\v 18 पतरस की बातों को सुनने के बाद, उन यहूदी विश्वासियों ने उसकी आलोचना करना बंद कर दिया। इसकी अपेक्षा, उन्होंने परमेश्वर की स्तुति करते हुए कहा, "फिर यह हमारे लिए स्पष्ट है कि परमेश्वर गैर-यहूदियों को भी स्वीकार करते हैं कि वे अनन्त जीवन पाए, यदि वे अपने पापी व्यवहार से मुड़ें।"
\p
\s5
\v 19 स्तिफनुस की मृत्यु के बाद, कई विश्वासियों ने यरूशलेम छोड़ दिया और अन्य स्थानों में चले गए क्योंकि वे यरूशलेम में दु:ख उठा रहे थे। उनमें से कुछ फीनीके चले गए, कुछ साइप्रस द्वीप चले गए, और अन्य लोग सीरिया के एक शहर अन्ताकिया में चले गए। उन स्थानों में वे निरन्तर लोगों को यीशु के बारे में संदेश सुना रहे थे, परन्तु उन्होंने केवल अन्य यहूदी लोगों को ही सुनाया था।
\v 20 विश्वासियों में से कुछ लोग उत्तरी अफ्रीका के साइप्रस द्वीप और कुरेने शहर के थे। वे अन्ताकिया चले गए और वे गैर-यहूदी लोगों में भी प्रभु यीशु के बारे में प्रचार कर रहे थे।
\v 21 प्रभु परमेश्वर शक्तिशाली रूप से उन विश्वासियों को प्रभावी प्रचार के लिए क्षमता प्रदान कर रहे थे। इसका परिणाम यह हुआ कि बहुत से गैर-यहूदी लोगों ने उनके संदेश को ग्रहण कर के प्रभु पर भरोसा किया।
\p
\s5
\v 22 यरूशलेम में विश्वासियों के समूह ने लोगों को कहते सुना कि अन्ताकिया में बहुत से लोग यीशु में विश्वास कर रहे हैं। इसलिये यरूशलेम में विश्वासियों के अगुवों ने बरनबास को अन्ताकिया भेजा।
\v 23 जब वह वहाँ पहुँचा, तो उसने अनुभव किया कि परमेश्वर ने विश्वासियों के प्रति कृपापूर्वक काम किया है। इसलिए वह बहुत प्रसन्न था, और वह सब विश्वासियों को प्रभु यीशु में पूरी तरह भरोसा करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा था।
\v 24 बरनबास एक अच्छा व्यक्ति था जो पूरी तरह से पवित्र आत्मा के नियंत्रण में था, और परमेश्वर पर पूरा भरोसा रखता था। बरनबास ने जो किया, उसके कारण वहाँ कई लोगों ने प्रभु यीशु पर विश्वास किया।
\p
\s5
\v 25 तब बरनबास शाऊल की खोज में किलकिया के तरसुस शहर में चला गया।
\v 26 जब वह उसे मिल गया, तो बरनबास उसे विश्वासियों को सिखाने में सहायता करने के लिए अन्ताकिया में लौटा लाया। अत: पूरे एक वर्ष तक बरनबास और शाऊल वहाँ कलीसिया के साथ नियमित रूप से मिलते रहे और यीशु के बारे में बड़ी संख्या में लोगों को सिखाते रहे। यह अन्ताकिया में था कि शिष्यों को पहली बार मसीही कहा गया था।
\p
\s5
\v 27 उस समय जब बरनबास और शाऊल अन्ताकिया में थे, कुछ विश्वासी जो भविष्यद्वक्ता थे यरूशलेम से वहाँ पहुँचे।
\v 28 उनमें से एक, जिसका नाम अगबुस था, बोलने के लिए उठ खड़ा हुआ। परमेश्वर के आत्मा ने उसे भविष्यवाणी की क्षमता प्रदान की उसने कहा कि शीघ्र ही कई देशों में अकाल होगा। (यह अकाल तब हुआ जब क्लौदियुस रोमी सम्राट था।)
\s5
\v 29 अगबुस ने जो कहा था जब वहाँ के विश्वासियों ने सुना, तो उन्होंने निर्णय लिया कि वे यहूदिया में रहने वाले विश्वासियों की सहायता करने के लिए पैसे भेजेंगे। उनमें से हर एक ने अपनी क्षमता के अनुसार पैसा देने का निर्णय लिया।
\v 30 उन्होंने बरनबास और शाऊल के हाथ यरूशलेम में विश्वासियों के अगुवों को पैसा भेज दिया।
\s5
\c 12
\p
\v 1 यही समय था कि राजा हेरोदेस अग्रिप्पा ने यरूशलेम में विश्वासियों के समूह के कुछ अगुवों को बन्दी बनाने के लिए सैनिकों को भेज दिया। सैनिकों ने उन्हें बंदीगृह में डाल दिया। उसने ऐसा इसलिये किया क्योंकि वह विश्वासियों को पीड़ित करना चाहता था।
\v 2 उसने प्रेरित यूहन्ना के बड़े भाई, प्रेरित याकूब का सिर काटने के लिए एक सैनिक को आदेश दिया। अत: सैनिक ने ऐसा किया।
\s5
\v 3 जब हेरोदेस को मालूम हुआ कि उसने यहूदी लोगों के अगुवों को प्रसन्न कर दिया है, तो उसने सैनिकों को पतरस को भी बन्दी बनाने का आदेश दिया। यह उस पर्व के समय हुआ जब यहूदी लोग बिना खमीर वाली रोटी खाते थे।
\v 4 पतरस को बन्दी बनाने के बाद, उन्होंने उसे बंदीगृह में डाल दिया। उन्होंने पतरस की निगरानी के लिए सैनिकों के चार दलों को आदेश दिया। हर एक दल में चार सैनिक थे। हेरोदेस फसह का पर्व समाप्त होने के बाद पतरस को बंदीगृह से बाहर निकाल कर यहूदी लोगों के सामने उसका न्याय करना चाहता था। उसके बाद उसने पतरस को मारने की योजना बनाई।
\p
\s5
\v 5 इसलिये कई दिनों तक पतरस बंदीगृह में रहा। लेकिन यरूशलेम में उनके समूह के अन्य विश्वासियों ने पूरी तत्परता के साथ परमेश्वर से प्रार्थना की थी कि वह पतरस की सहायता करें।
\v 6 हेरोदेस ने जिस दिन पतरस को सार्वजनिक रूप से मार डालने के लिए बंदीगृह से बाहर लाने की योजना बनाई थी, उससे एक रात पहले पतरस दो जंजीरों से बंधा हुआ, दो सैनिकों के बीच बंदीगृह में सो रहा था। अन्य दो सैनिक बंदीगृह के द्वार की निगरानी कर रहे थे।
\s5
\v 7 अकस्मात प्रभु परमेश्वर की ओर से एक स्वर्गदूत पतरस के पास आकर खड़ा हो गया, और उसकी कोठरी में एक चमकदार रोशनी चमकी। स्वर्गदूत ने पतरस को हिलाकर जगाया और कहा, "जल्दी उठ!" जब पतरस उठ ही रहा था, तो जंजीरें उसकी कलाई से खुल कर गिर पड़ीं। सैनिकों को पता नहीं था कि क्या हो रहा था।
\v 8 तब स्वर्गदूत ने उससे कहा, "अपना कमरबंद बाँध ले और अपनी जूतियाँ पहन ले!" अत: पतरस ने ऐसा किया। तब स्वर्गदूत ने उससे कहा, "अपना वस्त्र पहन और मेरे पीछे आ!"
\s5
\v 9 इसलिए पतरस ने अपने कपड़े और जूतियां पहन लीं और बंदीगृह की कोठरी से स्वर्गदूत के पीछे हो लिया, लेकिन उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि यह सब वास्तव में हो रहा था। उसने सोचा कि वह सपना देख रहा है।
\v 10 पतरस और स्वर्गदूत उन दो सैनिकों के पास से होकर निकल गए जो द्वारों की निगरानी कर रहे थे, लेकिन सैनिकों ने उन्हें नहीं देखा। तब वे उस लोहे के फाटक पर पहुँचे, जो शहर में प्रवेश कराता था। फाटक अपने आप ही खुल गया, और पतरस और स्वर्गदूत बंदीगृह से बाहर निकल गए। जब वे उस मार्ग पर कुछ दूर पहुँचे, तब स्वर्गदूत अचानक लोप हो गया।
\s5
\v 11 तब पतरस को समझ में आया कि उसके साथ जो कुछ हुआ वह एक दर्शन नहीं था, वह वास्तव में हुआ था। इसलिए उसने सोचा, "अब मुझे सच में पता है कि प्रभु परमेश्वर ने मेरी सहायता करने के लिए एक स्वर्गदूत भेजा था। उन्होंने मुझे हेरोदेस की योजना से यहूदी अगुवों की अपेक्षाओं से बचाया है।
\p
\v 12 जब पतरस को मालूम हुआ कि परमेश्वर ने उसे बचा लिया है, तो वह मरियम के घर गया। वह यूहन्ना की माँ थी, यूहन्ना का दूसरा नाम मरकुस था। कई विश्वासी वहाँ एकत्र होकर प्रार्थना कर रहे थे कि परमेश्वर किसी प्रकार से पतरस की सहायता करें।
\s5
\v 13 जब पतरस ने बाहरी प्रवेश द्वार पर दस्तक दी, रूदे नामक एक दासी देखने के लिये आई कि द्वार पर कौन है।
\v 14 जब पतरस ने उसे उत्तर दिया, तो उसने उसकी आवाज़ पहचान ली, परन्तु वह इतनी प्रसन्न और उत्साहित थी कि उसने द्वार नहीं खोला! वह फिर से घर में भाग गयी। उसने अन्य विश्वासियों को बताया कि पतरस द्वार पर खड़ा है।
\v 15 परन्तु उनमें से एक ने उससे कहा, "तू पागल है!" लेकिन वह लगातार कहती रही कि यह वास्तव में सच है। वे बार बार कहते रहे, "नहीं, वह पतरस नहीं हो सकता है। शायद यह उसका स्वर्गदूत है।"
\s5
\v 16 परन्तु पतरस द्वार पर लगातार दस्तक दे रहा था। इसलिए जब किसी ने द्वार खोल दिया, तो उन्होंने देखा कि यह पतरस ही था, और वे विस्मित थे!
\v 17 पतरस ने अपने हाथ के संकेत से उन्हें चुप कराया। फिर उसने उनको बताया कि प्रभु परमेश्वर ने उसे बंदीगृह से कैसे बाहर निकाला था। उसने यह भी कहा, "हमारे समूह के अगुवे याकूब, और हमारे दूसरे साथी विश्वासियों को बताओ कि क्या हुआ है।" तब पतरस निकल कर कहीं और चला गया।
\p
\s5
\v 18 अगली सुबह पतरस की निगरानी करने वाले सैनिक बहुत परेशान हो गए, क्योंकि वे नहीं जानते थे कि उसके साथ क्या हुआ था।
\v 19 फिर हेरोदेस ने इस बारे में सुना। इसलिए उसने सैनिकों को पतरस की खोज करने का आदेश दिया, लेकिन वे उसे ढूँढ़ नहीं पाए। फिर उसने उन सैनिकों से सवाल किया जो पतरस की निगरानी कर रहे थे, और उन्हें ले जाकर मार डालने का आदेश दिया। बाद में, हेरोदेस यहूदिया प्रांत से कैसरिया शहर चला गया, जहाँ वह कुछ समय तक रहा।
\p
\s5
\v 20 राजा हेरोदेस सोर और सीदोन के नगरों में रहनेवाले लोगों से बहुत क्रोधित था। फिर एक दिन उनका प्रतिनिधित्व करने वाले कुछ व्यक्ति कैसरिया शहर में एकत्र हुए ताकि हेरोदेस से मिलें। उन्होंने बलास्तुस को, जो हेरोदेस के महत्वपूर्ण अधिकारियों में से एक था, हेरोदेस को यह बताने के लिए राजी किया कि उनके शहर के लोग उसके साथ शान्ति स्थापित करना चाहते हैं। वे उन लोगों के साथ जिन पर हेरोदेस का शासन है व्यापार करना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें उन क्षेत्रों से भोजन खरीदने की आवश्यक्ता थी।
\v 21 जिस दिन हेरोदेस ने उनसे मिलने की योजना बनाई थी, उस दिन उसने बहुत महंगे कपड़ों को पहना था जो यह दिखाते थे कि वह राजा था। तब वह अपने सिंहासन पर बैठ गया वहाँ एकत्र हुए सब लोगों को औपचारिक रूप से सम्बोधित किया।
\s5
\v 22 जो लोग उसे सुन रहे थे बार-बार चिल्लाते हुए कहते हैं, "यह व्यक्ति जो बोल रहा है, यह कोई मनुष्य नहीं, एक देवता है!"
\v 23 क्योंकि हेरोदेस ने परमेश्वर की स्तुति करने की अपेक्षा अपनी प्रशंसा करने दी तो प्रभु परमेश्वर के भेजे एक स्वर्गदूत ने हेरोदेस को तुरन्त गंभीर रूप से बीमार कर दिया। उसकी अंतड़ियों को कीड़े खा गए, और वह बहुत पीड़ा से शीघ्र ही मर गया।
\p
\s5
\v 24 विश्वासी कई स्थानों में लोगों को परमेश्वर का संदेश सुनाते रहे, और यीशु पर विश्वास करने वालों की संख्या लगातार बढ़ती रही।
\p
\v 25 जब बरनबास और शाऊल ने यहूदिया प्रांत के यहूदी विश्वासियों की सहायता करने के लिए पैसे पहुँचा दिये, तो वे यरूशलेम छोड़कर सीरिया प्रांत के अन्ताकिया शहर में लौट आए। वे यूहन्ना को, जिसका दूसरा नाम मरकुस था, अपने साथ ले गए।
\s5
\c 13
\p
\v 1 सीरिया प्रांत के अन्ताकिया शहर में विश्वासियों के समूह में भविष्यद्वक्ता और यीशु के बारे में सिखाने वाले लोग थे। वहाँ बरनबास; शमौन, जिसे नीगर भी कहा जाता था; लूकियुस, जो कुरेने से था; मनाहेम, जो राजा हेरोदेस अन्तिपास के साथ बड़ा हुआ था; और शाऊल थे।
\v 2 जब वे प्रभु की आराधना कर रहे थे और उपवास कर रहे थे, तो पवित्र आत्मा ने उनसे कहा, "बरनबास और शाऊल को मेरी सेवा करने के लिए अलग करो और जिस काम को करने के लिए मैंने उनको चुना है, उन्हें जाकर उस काम को करने दो।"
\v 3 इसलिए वे उपवास और प्रार्थना करते रहे। तब उन्होंने बरनबास और शाऊल पर हाथ रखकर प्रार्थना की कि परमेश्वर उनकी सहायता करें। तब उन्होंने उनको उस काम को करने के लिए भेज दिया जिसका आदेश पवित्र आत्मा ने दिया था।
\p
\s5
\v 4 पवित्र आत्मा ने बरनबास और शाऊल को निर्देश दिया कि वे कहाँ जाएँ। इसलिए वे समुद्र के मार्ग से होकर अन्ताकिया से नीचे सिलूकिया शहर में चले गए। वहाँ से वे जहाज से साइप्रस द्वीप पर सलमीस शहर में गए।
\v 5 जब वे सलमीस में थे, तो वे यहूदियों के सभा करने के स्थान में गए। वहाँ उन्होंने यीशु के बारे में परमेश्वर के संदेश का प्रचार किया। यूहन्ना मरकुस उनके साथ गया था और उनकी सहायता कर रहा था।
\p
\s5
\v 6 वे तीनों जन उस पूरे द्वीप से होते हुए पाफुस शहर चले गए। वहाँ उनकी मुलाकात एक जादूगर से हुई, जिसका नाम बार-यीशु था। वह एक यहूदी था जिसने झूठा दावा किया था कि वह एक भविष्यद्वक्ता है।
\v 7 वह उस द्वीप के राज्यपाल सिरगियुस पौलुस के साथ था, जो एक बुद्धिमान व्यक्ति था। राज्यपाल ने किसी को भेजा कि वह बरनबास और शाऊल को उसके पास आने के लिए कहे, क्योंकि वह परमेश्वर का वचन सुनना चाहता था।
\v 8 परन्तु जादूगर ने, जिसके नाम का अनुवाद यूनानी भाषा में एलीमास है, उन्हें रोकने का प्रयास किया। उसने बार-बार राज्यपाल को मनाने का प्रयास किया कि वह यीशु पर विश्वास न करे।
\s5
\v 9 तब शाऊल ने, जो अब स्वयं को पौलुस कहता है, पवित्र आत्मा द्वारा सशक्त होकर, जादूगर को ध्यान से देखा और कहा,
\v 10 "तू शैतान की सेवा कर रहा है, और तू सब कुछ जो अच्छा है उसे रोकने का प्रयास करता है! तू हमेशा लोगों से झूठ बोलता है और उनके साथ बुरे काम कर रहा है। तुझे यह कहना बंद कर देना चाहिए कि प्रभु परमेश्वर के बारे में यह सच्चाई झूठी है!
\s5
\v 11 प्रभु परमेश्वर तुझे इसी समय दण्ड देने जा रहे हैं! तू अंधा हो जाएगा और थोड़ी देर के लिए तू सूर्य को नहीं देख पाएगा।" उसी क्षण वह अंधा हो गया, जैसे कि वह गहरी धुंध में हो, और वह इधर उधर टटोल कर किसी को ढूँढ़ने लगा कि कोई उसके हाथ को पकड़ ले और उसे ले चले।
\v 12 जब राज्यपाल ने इलीमास के साथ हुई इस घटना को देखा, तो उसने यीशु पर विश्वास किया। वह उन बातों से चकित था जो पौलुस और बरनबास प्रभु यीशु के बारे में सिखा रहे थे।
\p
\s5
\v 13 उसके बाद, पौलुस और उसके साथी पाफुस से चल कर जहाज द्वारा पम्फूलिया प्रांत में पिरगा शहर में पहुँचे। पिरगा में यूहन्ना मरकुस ने उन्हें छोड़ दिया और यरूशलेम में अपने घर लौट गया।
\v 14 तब पौलुस और बरनबास ने पिरगा से थल मार्ग से यात्रा की और गलातिया प्रांत के पिसिदिया जिले के अन्ताकिया शहर में पहुँचे। सब्त के दिन वे आराधनालय में गए और जाकर बैठ गए।
\v 15 किसी ने ऊँची आवाज में व्यवस्था की पुस्तक में से पढ़ा, जो मूसा ने लिखा था। अगला कोई भविष्यद्वक्ताओं द्वारा लिखी गई बातों से पढ़ता है। तब यहूदी सभा स्थल के अगुवों ने पौलुस और बरनबास को एक संदेश भेजा: "साथी यहूदियों, यदि तुम दोनों में से कोई यहाँ लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ कहना चाहता है, तो कृपया अभी कहो और हमें सुनाओ।
\p
\s5
\v 16 तब पौलुस उठ खड़ा हुआ और हाथ से संकेत दिया कि लोग उसे सुनें। तब उसने कहा, "हे साथी इस्राएलियों और तुम गैर-यहूदी लोग भी जो परमेश्वर की आराधना करते हो, कृपया मेरी बात सुनो!
\v 17 परमेश्वर, जिनकी हम इस्राएली आराधना करते हैं, उन्होंने हमारे पूर्वजों को उनके अपने लोग होने के लिये चुना, और जब वे मिस्र में परदेशी होकर रह रहे थे तब उन्हें संख्या में बहुत अधिक बढ़ा दिया। फिर परमेश्वर ने उन्हें दासत्व से निकालने के लिए शक्तिशाली कामों को किया।
\v 18 यद्यपि उन्होंने बार-बार उनकी आज्ञाओं का उल्लंघन किया, फिर भी वह लगभग 40 वर्ष तक मरुभूमि में उनके व्यवहार को सहन करते रहे।
\s5
\v 19 उन्होंने इस्राएलियों का समर्थ किया कि वे कनान देश में रहने वाली सात जातियों पर विजयी हो, और उन्होंने उनका देश सदा के लिए इस्राएलियों को दे दिया।
\v 20 उनके पूर्वजों के मिस्र जाने के करीब 450 साल बाद ये सब बातें घटित हुईं।
\p "इसके बाद, इस्राएली लोगों पर शासन करने के लिए परमेश्वर ने उन्ही लोगों में से न्यायियों और अगुवों को सेवा करने के लिए चुना। वे अगुवे हमारे लोगों पर शासन करते रहे। शमूएल भविष्यद्वक्ता उन पर शासन करने वाला अंतिम न्यायी था।
\s5
\v 21 तब, जबकि शमूएल अभी भी उनका अगुवा था, लोगों ने माँग की कि वह उन पर शासन करने के लिए एक राजा चुने। इसलिए परमेश्वर ने बिन्यामीन गोत्र के लोगों में से कीश के पुत्र शाऊल को उनका राजा होने के लिए चुना। उसने उन पर चालीस वर्ष तक शासन किया।
\v 22 शाऊल से राज्य ले लेने के बाद परमेश्वर ने दाऊद को उनका राजा बना दिया। परमेश्वर ने उसके बारे में कहा, "मैंने देखा है कि यिशै का पुत्र दाऊद, ठीक वही व्यक्ति है जो वही इच्छा रखता है जो मैं इच्छा रखता हूँ। वह सब कुछ वैसा ही करता है जैसा मैं उससे करवाना चाहता हूँ।''
\p
\s5
\v 23 "दाऊद के वंशजों में से, परमेश्वर ने एक व्यक्ति यीशु को, हम इस्राएलियों को बचाने के लिए भेजा, जिसकी प्रतिज्ञा दाऊद और हमारे अन्य पूर्वजों ने की थी।
\v 24 यीशु द्वारा अपना काम शुरू करने से पहले, यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने उसके पास आने वाले सब इस्राएली लोगों को प्रचार किया। उसने उनसे कहा कि वे अपने पापी व्यवहार से दूर होकर परमेश्वर से कहें कि वह उन्हें क्षमा कर दें। तब वह उन्हें बपतिस्मा देगा।
\v 25 जब यूहन्ना उस काम को पूरा करने वाला था जो परमेश्वर ने उसे दिया था, तो वह कह रहा था, 'क्या तुम सोचते हो कि मैं मसीह हूँ जिसे भेजने की प्रतिज्ञा परमेश्वर ने की है? नहीं, मैं वह नहीं हूँ। परन्तु सुनो! मसीह शीघ्र ही आएँगे। वह इतने महान है कि मैं उनके पैरों से जूतियाँ उतारने के भी योग्य नहीं हूँ।"
\p
\s5
\v 26 "हे प्रिय भाइयों, और तुम सब जो अब्राहम की सन्तान हो, और तुम्हारे बीच में से जो गैर-यहूदी लोग भी परमेश्वर की आराधना करते हैं, कृपया सुनो! यह हम सब के लिए है कि परमेश्वर ने संदेश भेजा कि वह लोगों को कैसे बचाते हैं।
\v 27 यरूशलेम में रहने वाले लोगों ने और उनके शासकों ने यीशु को नहीं पहचाना। वे अपने स्वयं के भविष्यद्वक्ताओं के सन्देशों को नहीं समझ पाए थे, भले ही भविष्यद्वक्ताओं को हर सब्त के दिन ऊँचे स्वर में पढ़ा, और फिर भविष्यद्वक्ताओं ने बहुत पहले ही जो भविष्यद्वाणी की थी वह सत्य सिद्ध हुई जब उन्होंने यीशु को मृत्युदंड का दोषी ठहराया।
\s5
\v 28 कई लोगों ने यीशु पर दुष्टता के कामों को करने का आरोप लगाया, परन्तु भले ही वह यह सिद्ध नहीं कर सके कि उन्होंने मृत्युदंड का दोषी होने के लिए कुछ किया, उन्होंने पिलातुस राज्यपाल से कहा कि वह यीशु को मृत्युदंड दे।
\v 29 उन्होंने यीशु के साथ वही सब किया, जो भविष्यद्वक्ताओं ने बहुत पहले लिखा था कि लोग उनके साथ क्या-क्या करेंगे। उन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ा कर मार डाला। फिर उनके शरीर को क्रूस पर से उतारा गया और एक कब्र में रखा गया।
\s5
\v 30 परन्तु, परमेश्वर ने उन्हें मरे हुओं में से जी उठाया।
\v 31 वह कई दिन तक अपने अनुयायियों के सामने बार-बार प्रगट हुए जो उनके साथ गलील से यरूशलेम तक आए थे। जिन लोगों ने उन्हें देखा था वह अब उनके बारे में लोगों को बता रहे हैं।"
\p
\s5
\v 32 "अब हम तुमको यह अच्छा संदेश सुना रहे हैं। हम तुमको यह बताना चाहते हैं कि परमेश्वर ने हमारे यहूदी पूर्वजों को जो प्रतिज्ञा दी थी, उसे पूरा कर दिया है!
\v 33 अब उन्होंने हमारे लिए जो उनके वंशज हैं और तुम गैर-यहूदियों के लिए भी यीशु को फिर से जीवित करके यह किया है। यह ठीक वैसा ही है जैसा दाऊद ने दूसरे भजन में लिखा था, जब परमेश्वर अपने पुत्र को भेजने के बारे में कह रहे थे, 'तुम मेरे पुत्र हो, आज मैं तुम्हारा पिता बन गया हूँ।
\p
\v 34 परमेश्वर ने मसीह को मरे हुओं में से जी उठाया है और उन्हें कभी मरने नहीं देंगे। परमेश्वर ने हमारे यहूदी पूर्वजों से कहा, 'मैं निश्चय ही तुम्हारी सहायता करूँगा, जैसी मैंने दाऊद से करने की प्रतिज्ञा की थी।'
\s5
\v 35 दाऊद के एक अन्य भजन में भी वह मसीह के बारे में कहता है: 'तू अपने पवित्र जन के शरीर को सड़ने नहीं देगा।'
\v 36 दाऊद ने जीवित रहते हुए वही किया जो परमेश्वर उससे करवाना चाहते थे। और जब वह मर गया तो उसके शरीर को दफन कर दिया गया, जैसे उसके पूर्वजों के शवों को दफन कर दिया गया था, और उसका शरीर सड़ गया। अतः वह इस भजन में स्वयं के बारे में नहीं कह सकता था।
\v 37 परन्तु वह यीशु ही थे जिन्हें प्रभु परमेश्वर ने मरे हुओं में से जीवित किया था, और उनका शरीर सड़ने नहीं पाया।
\p
\s5
\v 38 "इसलिए, मेरे साथी इस्राएलियों और अन्य मित्रों, यह जानना तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण है कि यीशु ने जो किया है इसके कारण परमेश्वर तुम्हारे पापों के लिए तुमको क्षमा कर सकते हैं। वह उन कामों के लिए भी तुमको क्षमा कर देंगे जिनके लिये तुमको मूसा द्वारा लिखे गए कानूनों के अनुसार क्षमा नहीं किया जा सकता।
\v 39 वे सब जो यीशु पर विश्वास करते हैं, वे उन किये गए कामों के दोषी नहीं रह जाते हैं, जिनसे उन्होंने परमेश्वर को क्रोधित किया है।
\s5
\v 40 इसलिये अब सावधान रहो कि परमेश्वर तुम्हारा न्याय नहीं करें, जैसा कि भविष्यद्वक्ताओं ने कहा था कि परमेश्वर करेंगे!
\v 41 एक भविष्यद्वक्ता ने लिखा है कि परमेश्वर ने कहा: 'तुम जो मेरा उपहास करते हो, जब तुम देखोगे कि मैं क्या कर रहा हूँ, तो तुम निश्चय ही अचम्भित होओगे, और तब तुम नष्ट हो जाओगे। तुम अचम्भित हो जाओगे क्योंकि मैं तुम्हारे जीवित रहते तुम्हारे लिए एक भयानक काम करूँगा। कोई तुमको बताए तौभी तुम विश्वास नहीं करोगे कि मैं ऐसा करूँगा।''
\p
\s5
\v 42 पौलुस अपनी बात समाप्त करने के बाद जब जा रहा था, तब बहुत से लोगों ने उससे कहा कि वे अगले सब्त के दिन फिर से आए और उन्हें इन बातों को एक बार और सुनाए।
\v 43 जब सभा समाप्त हो गई तो उनमें से कई लोगों ने पौलुस और बरनबास का अनुसरण किया। ये लोग यहूदी और गैर-यहूदी दोनों थे, जो परमेश्वर की आराधना करते थे। पौलुस और बरनबास उनसे बातें करते रहे, और उनसे लगातार आग्रह करते रहे कि यीशु ने जो किया था उसके कारण परमेश्वर लोगों के पापों को क्षमा करते हैं, वे इस पर विश्वास करें।
\p
\s5
\v 44 अगले सब्त के दिन, अन्ताकिया के अधिकांश लोग यहूदियों के सभा के स्थान में आए कि पौलुस और बरनबास से प्रभु यीशु के बारे में सुनें।
\v 45 परन्तु यहूदियों ने देखा कि पौलुस और बरनबास को सुनने के लिए बड़ी भीड़ आ रही है तो ईर्ष्या से भर गए। अतः उन्होंने पौलुस द्वारा कही गई बातों का खण्डन किया और उसका अपमान करना आरम्भ कर दिया।
\s5
\v 46 तब, बहुत साहसपूर्वक बोलते हुए, पौलुस और बरनबास ने उन यहूदियों के अगुवों से कहा, "हमें यीशु के बारे में परमेश्वर के संदेश को पहले तुम यहूदियों को देना था इससे पहले कि हम इसे गैर-यहूदियों में प्रचार करें, क्योंकि परमेश्वर ने हमें ऐसा करने के लिए आज्ञा दी है। परन्तु तुम परमेश्वर के संदेश को अस्वीकार कर रहे हो। ऐसा करके, तुमने दिखाया है कि तुम अनन्त जीवन के योग्य नहीं हो। इसलिए, हम तुमको छोड़ रहे हैं, और अब हम परमेश्वर का संदेश सुनाने के लिए गैर-यहूदी लोगों में जाएँगे।
\v 47 हम यह इसलिए कर रहे हैं कि प्रभु परमेश्वर ने हमें इसकी आज्ञा दी है। उन्होंने शास्त्रों में कहा है, 'मैंने तुम्हें उन गैर-यहूदी लोगों पर मेरी बातों को प्रगट करने के लिए चुना है जो उनके लिये प्रकाश के समान होगी। मैंने तुम्हें संसार में हर स्थान के लोगों को यह संदेश सुनाने के लिए चुना है क्योंकि मैं उन्हें बचाना चाहता हूँ।'
\p
\s5
\v 48 जब गैर-यहूदी लोगों ने इन शब्दों को सुना, तो वे आनन्दित हो गए और उन्होंने यीशु के बारे में उस संदेश के लिए परमेश्वर की स्तुति की। सब गैर-यहूदी लोगों ने, जिनको परमेश्वर ने अनन्त जीवन के लिए चुना था, प्रभु यीशु के बारे में संदेश पर विश्वास किया।
\v 49 उस समय, कई विश्वासियों ने उस क्षेत्र में चारों ओर घूमते हुए, जहाँ भी वे गए, हर स्थान में प्रभु यीशु के बारे में संदेश को सुनाया।
\p
\s5
\v 50 परन्तु, यहूदियों के कुछ अगुवों ने उनके साथ आराधना करने वाली कुछ महत्वपूर्ण स्त्रियों से बात की, साथ ही उनसे भी बात की जो शहर में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति भी थे। उन्होंने उनको पौलुस और बरनबास को रोकने का प्रयास करने के लिए प्रेरित किया। इसलिये उन गैर-यहूदी लोगों ने बहुत से लोगों को पौलुस और बरनबास के विरुद्ध उकसाया, और उन्हें अपने क्षेत्र से निकाल दिए।
\v 51 जब वे दोनों प्रेरित जा रहे थे तो उन्होंने उन अगुवों को यह दिखाने के लिए अपने पैरों से धूल को झाड़ दिया कि परमेश्वर ने उन्हें अस्वीकार कर दिया है और वह उन्हें दण्ड देंगे। तब उन्होंने अन्ताकिया शहर छोड़ दिया और इकुनियुम के नगर में गए।
\v 52 इस बीच में विश्वासी आनंद से और पवित्र आत्मा की शक्ति से भरते गये।
\s5
\c 14
\p
\v 1 इकुनियुम में पौलुस और बरनबास पहले के समान यहूदी सभा के स्थान में गए और प्रभु यीशु के बारे में बड़े शक्तिशाली रूप से बात की। परिणामस्वरूप, कई यहूदियों और गैर-यहूदियों ने यीशु पर विश्वास किया।
\v 2 परन्तु कुछ यहूदियों ने उस संदेश पर विश्वास करने से मना कर दिया। उन्होंने गैर-यहूदियों से कहा कि इस पर विश्वास न करें; उन्होंने कुछ गैर-यहूदियों को विश्वासियों के विरुद्ध क्रोध दिलाया।
\s5
\v 3 अतः पौलुस और बरनबास ने वहाँ प्रभु के लिए साहसपूर्वक बोलते हुए बहुत समय बिताया, और प्रभु यीशु ने उन्हें कई चमत्कार करने में सक्षम बनाया। इस प्रकार उन्होंने लोगों को संदेश की सच्चाई दिखायी कि, परमेश्वर हमें बचाते हैं हालाँकि हम इस योग्य नहीं हैं।
\p
\v 4 इकुनियुम में रहने वाले लोग दो अलग-अलग विचार रखते थे। कुछ यहूदियों के साथ सहमत थे। दूसरों ने प्रेरितों के साथ सहमति व्यक्त की।
\s5
\v 5 तब गैर-यहूदी लोगों और यहूदियों ने जिन्होंने पौलुस और बरनबास का विरोध किया था अपने बीच में इस बारे में बात की कि वे पौलुस और बरनबास को कैसे सता सकते थे। उस शहर के कुछ महत्वपूर्ण लोग उनकी सहायता करने के लिए सहमत हो गये। एक साथ मिल कर, उन्होंने निर्णय लिया कि वे पौलुस और बरनबास पर पत्थर फेंक कर उनको मार देंगे।
\v 6 परन्तु पौलुस और बरनबास ने उनकी योजना के बारे में सुना, इसलिए वे शीघ्र ही लुकाउनिया जिले को चले गए। वे उस जिले में लुस्त्रा और दिरबे के शहरों में और आस-पास के क्षेत्र में गए।
\v 7 जब वे उस क्षेत्र में थे, तो उन्होंने लगातार लोगों को प्रभु यीशु के बारे में संदेश सुनाया।
\p
\s5
\v 8 लुस्त्रा में, वहाँ एक व्यक्ति बैठा था जो पैरों से अपंग था। जब उसकी मां ने उसे जन्म दिया, तब से वह पैरों से अपंग था, इसलिए वह कभी भी चलने में सक्षम नहीं था।
\v 9 जब पौलुस प्रभु यीशु के बारे में बात कर रहा था तो उसने सुना। पौलुस ने सीधे उसकी ओर ध्यान से देखा और वह उस व्यक्ति के चेहरे पर देख सकता था कि उसे विश्वास है कि प्रभु यीशु उसे ठीक कर सकते हैं।
\v 10 तो एक जोर की आवाज के साथ, पौलुस ने उससे कहा, "खड़ा हो जा!" जब उस व्यक्ति ने यह सुना, वह तुरंत उछल पड़ा और इधर-उधर चलने लगा।
\p
\s5
\v 11 जब भीड़ ने इस काम को देखा जो पौलुस ने किया था, तो उन्होंने सोचा कि पौलुस और बरनबास वही देवता थे जिनकी वे आराधना करते थे। इसलिए वे उत्साहपूर्वक अपनी लुकाउनिया भाषा में चिल्लाए, "देखो! देवता स्वयं मनुष्य के रूप में हमारी सहायता करने के लिए आसमान से उतर आए है!"
\v 12 वे यह कहने लगे कि हो सकता है बरनबास मुख्य देवता ज्यूस हो। और वे कहने लगे कि पौलुस देवताओं का दूत हिर्मेस है। उन्होंने ऐसा इसलिये सोचा क्योंकि पौलुस ही अधिकतर बोला करता था।
\v 13 शहर के द्वार के एकदम बाहर एक आराधनालय था जहाँ लोग ज्यूस की आराधना करते थे। वहाँ के याजक ने जब सुना कि पौलुस और बरनबास ने क्या किया था, तो वह शहर के द्वार पर आया, जहाँ पहले से बहुत से लोग एकत्र हुए थे। वह गले में फूलों की मालाएँ पहने हुए दो बैल लाया। याजक और लोगों की भीड़ पौलुस और बरनबास की आराधना करने के लिए विधि पूर्वक बैलों को मारना चाहते थे।
\s5
\v 14 परन्तु जब प्रेरित बरनबास और प्रेरित पौलुस ने यह सुना, तो वे बहुत परेशान हुए, इसलिए उन्होंने अपने कपड़े फाड़ डाले। वे दौड़ कर लोगों के बीच पहुँचे और चिल्लाने लगे,
\v 15 "हे पुरुषों, तुम्हें हमारी आराधना करने के लिए उन बैलों को नहीं मारना चाहिए! हम देवता नहीं हैं! हम तुम्हारे समान भावनाओं वाले मनुष्य हैं! हम तुम्हें सुसमाचार सुनाने आए हैं! हम तुमको परमेश्वर के बारे में बताने के लिए आए हैं जो सर्व-शक्तिमान हैं। वे चाहते हैं कि तुम अन्य देवताओं की आराधना करना बंद कर दो, क्योंकि वो तुम्हारी सहायता नहीं कर सकते हैं। उन सच्चे परमेश्वर ने ही आकाश, पृथ्वी, महासागरों और उनमें की सभी चीजों को बनाया है।
\v 16 पहले के समय में, तुम सभी गैर-यहूदी लोग जिस किसी भी देवता की पूजा करना चाहते थे तुमने उसकी पूजा की है। परमेश्वर ने तुमको उनकी पूजा करने दिया, क्योंकि तुम परमेश्वर को नहीं जानते थे।
\s5
\v 17 लेकिन उन्होंने हमें दिखाया है कि वे हम पर दया करते है। वही है जो वर्षा होने देते हैं और फसलों का विकास करते हैं। वही है जो तुमको भरपूर भोजन देते हैं, और तुम्हारे मन को आनन्द से भरते हैं।"
\v 18 जो पौलुस ने कहा उसे लोगों ने सुना, लेकिन वे अभी भी यह सोचते थे कि उनको पौलुस और बरनबास की आराधना करने के लिये बैलों को बलि करना चाहिए। परन्तु अंत में, लोगों ने ऐसा न करने का निर्णय लिया।
\p
\s5
\v 19 परन्तु, कुछ यहूदी अन्ताकिया और इकुनियुम से आए और उन्होंने लुस्त्रा के कई लोगों को बहका दिया कि जो संदेश पौलुस कह रहा था वह सच नहीं है। जिन लोगों ने उन यहूदियों की कही हुई बातों पर विश्वास किया वे पौलुस से क्रोधित हो गए। उन्होंने यहूदियों को उस पर तब तक पत्थर फेंकने दिया जब तक कि वह बेहोश होकर गिर नहीं गया। उन सभी ने सोचा कि वह मर गया है, इसलिए वे उसे घसीट कर शहर के बाहर ले गए और उसे वहाँ पड़ा हुआ छोड़ दिया।
\v 20 परन्तु लुस्त्रा के कुछ विश्वासी आए और पौलुस के चारों ओर खड़े हो गए, जहाँ वह भूमि पर पड़ा हुआ था। और पौलुस को होश आ गया! वह खड़ा हुआ और विश्वासियों के साथ शहर में वापस चला गया।
\p अगले दिन, पौलुस और बरनबास लुस्त्रा शहर छोड़ कर दिरबे शहर चले गए।
\s5
\v 21 वे वहाँ कई दिनों तक रहे, और वे लोगों को यीशु के बारे में सुसमाचार सुनाते रहे। बहुत से लोग विश्वासी बन गए। उसके बाद, पौलुस और बरनबास अपने मार्ग पर चल दिये। वे फिर से लुस्त्रा में गए। तब वे वहाँ से इकुनियुम गए, और तब वे पिसिदिया प्रांत के अन्ताकिया शहर में गए।
\v 22 प्रत्येक जगह, उन्होंने विश्वासियों से प्रभु यीशु पर भरोसा बनाए रखने का आग्रह किया। उन्होंने विश्वासियों से कहा, "इससे पूर्व कि परमेश्वर सदा के लिए हमारे ऊपर शासन करें, हमें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।"
\s5
\v 23 पौलुस और बरनबास ने प्रत्येक मण्डली के लिए अगुवों को चुना। इससे पहले कि पौलुस और बरनबास ने हर जगह को छोड़ा, उन्होंने विश्वासियों को एकत्र किया और प्रार्थना और उपवास करने में कुछ समय बिताया। तब पौलुस और बरनबास ने उन अगुवों और अन्य विश्वासियों को प्रभु यीशु को सौंप दिया, जिस पर उन्हें विश्वास था, कि वह उनकी देखभाल करे।
\p
\v 24 पौलुस और बरनबास पिसिदिया जिले के माध्यम से यात्रा करने के बाद, दक्षिण की ओर पम्फूलिया जिले में गए।
\v 25 उस जिले में, वे पिरगा शहर में पहुँचे और वहाँ के लोगों को प्रभु यीशु के बारे में परमेश्वर का संदेश सुनाया। तब वे अत्तलिया शहर के समुद्रतट पर उतरे।
\v 26 वे वहाँ से एक जहाज पर चढ़ गए और सीरिया प्रांत के अन्ताकिया शहर लौट आए। यही वह स्थान था जहाँ पौलुस और बरनबास को अन्य स्थानों में जाकर प्रचार करने के लिए चुना गया था, और जहाँ विश्वासियों ने परमेश्वर से कहा था कि वह पौलुस और बरनबास की उस काम में सहायता करे जो अब उन्होंने पूरा कर दिया है।
\s5
\v 27 जब वे अन्ताकिया शहर में पहुँचे तो उन्होंने विश्वासियों को एक साथ बुलाया। तब पौलुस और बरनबास ने उनको वह सब बताया जिसको करने में परमेश्वर ने उनकी सहायता की थी। विशेष रूप से, उन्होंने उन्हें बताया कि परमेश्वर ने कितने गैर-यहूदी लोगों को यीशु पर विश्वास करने योग्य बनाया था।
\v 28 तब पौलुस और बरनबास अन्ताकिया में दूसरे विश्वासियों के साथ लम्बे समय तक रहे।
\s5
\c 15
\p
\v 1 फिर कुछ यहूदी विश्वासी यहूदिया प्रांत से अन्ताकिया गए। वे वहाँ गैर-यहूदी विश्वासियों को यह कहकर शिक्षा देने लगे, "तुम परमेश्वर के हो यह दिखाने के लिए तुम्हें खतना करवाना चाहिए, जैसा कि मूसा ने परमेश्वर द्वारा दी गयी व्यवस्था में आज्ञा दी है। यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, तो तुम बचाए नहीं जाओगे।"
\v 2 पौलुस और बरनबास दृढ़तापूर्वक उन यहूदियों से असहमत थे और उन्होंने उनके साथ विवाद करना आरम्भ कर दिया। इसलिए अन्ताकिया के विश्वासियों ने पौलुस और बरनबास और कुछ अन्य विश्वासियों को यरूशलेम जाने के लिए नियुक्त किया, ताकि वे इस विषय में प्रेरितों और अन्य अगुवों के साथ विचार कर सकें।
\p
\s5
\v 3 पौलुस, बरनबास और अन्य लोगों को अन्ताकिया के विश्वासियों द्वारा उनके मार्ग पर भेज दिये जाने के बाद, उन्होंने फीनीके और सामरिया के प्रान्तों से होकर यात्रा की। जब वे रास्ते में अलग-अलग जगहों पर रुके, तो उन्होंने विश्वासियों को यह जानकारी दी कि बहुत से गैर-यहूदी विश्वासी बन गए है। इस कारण, उन स्थानों के सब विश्वासियों ने बहुत आनन्द किया।
\v 4 जब पौलुस, बरनबास और अन्य लोग यरूशलेम में पहुँचे, तो प्रेरितों, अन्य प्राचीनों और उनके समूह के अन्य विश्वासियों ने उनका स्वागत किया। तब पौलुस और बरनबास ने उन बातों की सूचना दी जिन्हें परमेश्वर ने उन्हें गैर-यहूदी लोगों के बीच करने में सफल बनाया था।
\p
\s5
\v 5 परन्तु फरीसी सम्प्रदाय के कुछ यहूदी विश्वासियों ने अन्य विश्वासियों के बीच खड़े होकर उनसे कहा, "जिन गैर-यहूदियों ने यीशु पर विश्वास किया है, उन्हें खतना करवाना चाहिए, और जिन नियमों को परमेश्वर ने मूसा को दिया उन्हें उनका पालन करने के लिए कहा जाना चाहिए।"
\p
\v 6 तब इस विषय पर बात करने के लिए सब प्रेरित और प्राचीन एक साथ मिले।
\s5
\v 7 उन्होंने एक लम्बे समय तक इस पर चर्चा की, इसके बाद पतरस ने उठकर उनसे बात की। उसने कहा, "हे भाइयों, तुम सब जानते हो कि बहुत समय पहले परमेश्वर ने तुम अन्य प्रेरितों के बीच में से मुझे चुना ताकि मैं गैर-यहूदी लोगों को परमेश्वर के प्रेम के बारे में बताऊँ, कि वे उस पर विश्वास करें।
\v 8 परमेश्वर सब के मन को जानते हैं। उन्होंने गैर-यहूदियों को पवित्र आत्मा देकर, मुझे और दूसरों को भी यह दिखाया कि उन्होंने उन्हें अपने लोग होने के लिए स्वीकार किया है, जैसे उन्होंने हमारे लिए भी किया है।
\v 9 परमेश्वर ने हमारे और उनके बीच कोई अंतर नहीं किया, क्योंकि उन्होंने उन्हें प्रभु यीशु पर विश्वास करने के कारण उन्हें भीतर से शुद्ध कर दिया है। ठीक उसी प्रकार उन्होंने हमें भी क्षमा किया है।
\s5
\v 10 तुम क्यों गैर-यहूदी विश्वासियों को हमारी यहूदी परम्पराओं और नियमों का पालन करने के लिए विवश करना चाहते हो? ऐसा करना उन पर भारी बोझ डालने के समान है, क्योंकि यह उन्हें उन नियमों का पालन करने के लिए विवश करता है, जिनको हमारे पूर्वजों ने भी तोड़ा और जिनका आज भी हम यहूदी पालन करने में असमर्थ हैं! तो फिर, ऐसा करके परमेश्वर को क्रोधित करना बंद करो!
\v 11 हम जानते हैं कि प्रभु यीशु ने हमारे लिए जो किया था उसी कारण से परमेश्वर हम यहूदियों को हमारे पापों से बचाते हैं। परमेश्वर हम यहूदियों को ठीक उसी प्रकार से बचाते हैं जैसे वह उन गैर-यहूदियों को बचाते हैं जो प्रभु यीशु पर विश्वास करते हैं।"
\p
\s5
\v 12 पतरस के बोलने के बाद वहाँ उपस्थित सब लोग चुप हो गए। तब उन सब ने बरनबास और पौलुस की बात सुनी, क्योंकि उन दोनों ने कई महान चमत्कारों के बारे में बताया था जिनको परमेश्वर ने उन्हें गैर-यहूदी लोगों के बीच करने में सक्षम बनाया था, उन चमत्कारों ने दिखाया था कि परमेश्वर ने गैर-यहूदियों को स्वीकार कर लिया है।
\p
\s5
\v 13 जब बरनबास और पौलुस ने बोलना समाप्त कर दिया, तब यरूशलेम में विश्वासियों के समूह के अगुवे याकूब ने उनसे बात की। उसने कहा, "हे साथी विश्वासियों, मेरी बात सुनो।
\v 14 शमौन पतरस ने तुमको बताया है कि कैसे परमेश्वर ने गैर-यहूदियों को पहले आशीष दी थी। परमेश्वर ने उन में से कुछ लोगों को अपना होने के लिए चुनकर ऐसा किया है।
\s5
\v 15 जिन वचनों को परमेश्वर ने बहुत पहले कहा था और भविष्यद्वक्ताओं में से एक के द्वारा लिखे गए थे, इस बात से सहमत हैं:
\v 16 बाद में मैं वापस आऊँगा और मैं दाऊद के वंशजों में से एक राजा चुनूँगा। यह एक ऐसे व्यक्ति के समान होगा जो टूटने के बाद फिर से घर को बनाता है।
\v 17 मैं ऐसा इसलिए करूँगा कि सब अन्य लोग मुझे, प्रभु परमेश्वर को जान सकें। इसमें उन गैर-इस्राएली लोगों को भी सहभागी किया जाएगा जिनको मैंने अपना होने के लिये बुलाया तुम्हें निश्चय हो कि ऐसा ही होगा क्योंकि मैंने, यहोवा परमेश्वर ने, ये वचन कहे हैं।
\v 18 मैंने इन कामों को किया है, और मैंने अपने लोगों को बहुत पहले से उनके बारे में बताया है।"
\p
\s5
\v 19 याकूब बात करना जारी रखता है। उसने कहा, "इसलिए मुझे लगता है कि हमें उन गैर-यहूदी लोगों को परेशान करना बंद कर देना चाहिए जो अपने पापों से दूर होकर परमेश्वर की ओर मुड़ रहे हैं। इसी कारण से, हमें यह माँग करना बंद कर देना चाहिए कि उनको हमारे सभी नियमों और परम्पराओं का पालन करना है।
\v 20 इसकी अपेक्षा, हमें उनको केवल चार बातों को मानने की आज्ञा देनी है, और उसके विषय एक पत्र लिखना चाहिए: उन्हें वह माँस नहीं खाना चाहिए, जो लोगों ने मूर्तियों को चढ़ाया है; उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति के साथ यौन संबंध नहीं बनाने चाहिए, जिससे उन्होंने शादी नहीं की है; उन्हें गला घोंट कर मारे गए जानवरों का माँस नहीं खाना चाहिए; और उन्हें जानवरों के लहू को नहीं खाना चाहिए।
\v 21 कई शहरों में, लोगों ने बहुत लम्बे समय से उन नियमों का प्रचार किया है जिनको मूसा ने लिखा था, वे नियम जो उन बातों पर प्रतिबंध लगाते हैं। और प्रत्येक सब्त पर उन नियमों को यहूदी सभा स्थलों में पढ़ा जाता है। इसलिए अगर गैर-यहूदी उन नियमों के बारे में अधिक जानकारी पाना चाहते हैं, तो वे हमारे आराधना स्थलों में पा सकते हैं। "
\p
\s5
\v 22 प्रेरितों और अन्य प्राचीनों और यरूशलेम के अन्य सभी विश्वासियों ने, याकूब की बात को स्वीकार किया। तब उन्होंने निर्णय लिया कि उन्हें अपने बीच में से पुरुषों को चुनना चाहिए और उन्हें पौलुस और बरनबास के साथ अन्ताकिया भेजना चाहिए, ताकि वहाँ के विश्वासियों को यह पता चले कि यरूशलेम के अगुवों ने क्या निर्णय लिया था। इसलिए उन्होंने यहूदा को, जिसे बरसब्बास भी कहा जाता था और सीलास को चुना। ये दोनों यरूशलेम में विश्वासियों के बीच अगुवे थे।
\v 23 फिर उन्होंने निम्नलिखित पत्र लिखा जिसे उन्होंने यहूदा और सीलास को अन्ताकिया में विश्वासियों के पास लेकर जाने के लिए कहा: "हम प्रेरित और प्राचीन जो तुम्हारे साथी विश्वासी हैं, अन्ताकिया में और सीरिया और किलिकिया के प्रांतों के अन्य स्थानों में रहने वाले, तुम गैर-यहूदी विश्वासियों को यह पत्र लिख कर अपनी शुभकामनाएँ भेजते हैं।
\s5
\v 24 लोगों ने हमें बताया है कि हमारे बीच में से कुछ लोग तुम्हारे पास गए, जबकि हमने उन्हें तुम्हारे पास नहीं भेजा था। हमने सुना है कि उन्होंने तुमको ऐसी बात बता कर परेशान किया है जो तुम्हारी सोच को भ्रमित कर रही है।
\v 25 इसलिये हम यहाँ एक साथ मिले, उसके बाद हमने कुछ लोगों को चुनने का फैसला किया और बरनबास और पौलुस के साथ, जिनसे हम बहुत प्रेम करते हैं, उन्हें तुम्हारे पास भेजा।
\v 26 वे दोनों अपने जीवन को खतरे में डालते हैं क्योंकि वे हमारे प्रभु यीशु मसीह की सेवा करते हैं।
\s5
\v 27 हमने तुम्हारे पास यहूदा और सीलास को भी भेजा है। वे तुमको उन्हीं बातों को बताएँगे जो हम पत्र में लिख रहे हैं।
\v 28 पवित्र आत्मा को और हमें यह सही लगा कि तुमको बहुत भारी यहूदी नियमों का पालन करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। इसकी अपेक्षा, हमारे अनुसार तुमको केवल निम्नलिखित निर्देशों का पालन करने की आवश्यकता है,
\v 29 तुमको वह भोजन नहीं खाना चाहिए, जो लोगों ने मूर्तियों के लिए बलिदान किया है। तुमको जानवरों का लहू नहीं खाना चाहिए, और तुमको उन जानवरों का माँस नहीं खाना चाहिए, जिन्हें लोगों ने गला घोंट कर मारा है। इसके अलावा, उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति के साथ यौन संबंध नहीं होना चाहिए जिससे तुमने शादी नहीं की है। यदि तुम इन बातों को करने से बचते हो, तो तुम वह कर रहे हो जो सही है। अलविदा।"
\p
\s5
\v 30 जिन चार लोगों को उन्होंने चुना था वे यरूशलेम से निकल कर अन्ताकिया आ गए। जब सब विश्वासी एकत्र हो गए, तो उन्होंने उन्हें वह पत्र दिया।
\v 31 जब वहाँ विश्वासियों ने पत्र पढ़ा, तो वे आनन्दित हुए, क्योंकि उनके संदेश ने उन्हें प्रोत्साहित किया था।
\v 32 भविष्यद्वक्ता होने के नाते, यहूदा और सीलास ने वहाँ के विश्वासियों को बहुत कुछ कहा और प्रोत्साहित किया, और प्रभु यीशु में अधिक दृढ विश्वास करने में उनकी सहायता की।
\p
\s5
\v 33 यहूदा और सीलास वहाँ कुछ समय तक रहे और फिर वे यरूशलेम लौटने के लिए तैयार हो गये, अन्ताकिया के विश्वासियों ने उन्हें शुभकामनाएँ दी थी, और फिर वे चले गए।
\v 35 लेकिन, पौलुस और बरनबास अन्ताकिया में ही रहे। जब वे वहाँ थे, तो अन्य कई लोगों के साथ, वे लोगों को सिखा रहे थे और उन्हें प्रभु यीशु के बारे में संदेश सुनाते रहे।
\p
\s5
\v 36 कुछ समय बाद पौलुस ने बरनबास से कहा, "हम वापस जाकर हर शहर में अपने भाइयों से मिलें, जहाँ पहले हमने प्रभु यीशु के बारे में संदेश को सुनाया था। इस प्रकार हम जान जाएँगे कि वे प्रभु यीशु पर विश्वास करने में कैसी उन्नति कर रहे हैं।"
\v 37 बरनबास पौलुस के साथ सहमत हुआ और कहा कि वह यूहन्ना को, जिसका दूसरा नाम मरकुस था, उनके साथ फिर से ले जाना चाहता है।
\v 38 लेकिन, पौलुस ने बरनबास से कहा कि इसके विचार में मरकुस को उनके साथ ले जाना ठीक नहीं होगा, क्योंकि जब वे पहले पम्फूलिया के क्षेत्र में थे, तब मरकुस ने उन्हें छोड़ दिया था और उनके साथ काम नहीं कर रहा था।
\s5
\v 39 पौलुस और बरनबास इस मामले में एक-दूसरे के साथ असहमत थे, इसलिए वे एक-दूसरे से अलग हो गए। बरनबास ने मरकुस को अपने साथ ले लिया। वे एक जहाज पर चढ़ गए और साइप्रस द्वीप चले गए।
\v 40 पौलुस ने सीलास को अपने साथ काम करने के लिए चुना, जो अन्ताकिया में लौट आया था। वहाँ के विश्वासियों ने प्रभु परमेश्वर से प्रार्थना की, और परमेश्वर से विनती की कि पौलुस और सीलास की दयालुता से सहायता करें। फिर वे दोनों अन्ताकिया से चले गए।
\v 41 पौलुस ने सीलास के साथ सीरिया और किलिकिया प्रांतों के माध्यम से यात्रा करना जारी रखा। उन जगहों पर वे विश्वासियों के समूहों की सहायता करते रहे है कि वे प्रभु यीशु पर दृढ़ विश्वास करें।
\s5
\c 16
\p
\v 1 पौलुस और सीलास दिरबे और लुस्त्रा के नगरों में गए और वहाँ के विश्वासियों से मिले। एक विश्वासी जिसका नाम तीमुथियुस था लुस्त्रा में रहता था। उसकी माता एक यहूदी विश्वासी थी, लेकिन उसका पिता यूनानी था।
\v 2 लुस्त्रा और इकुनियुम के विश्वासियों ने तीमुथियुस के बारे में अच्छी बातें कहीं,
\v 3 और पौलुस तीमुथियुस को उसके साथ अन्य जगहों पर ले जाना चाहता था, इसलिए उसने तीमुथियुस का खतना किया। उसने ऐसा इसलिये किया था कि उन जगहों पर रहने वाले यहूदी तीमुथियुस को स्वीकार करें, क्योंकि वे जानते थे कि उसके गैर-यहूदी पिता ने उसका खतना नहीं किया था।
\p
\s5
\v 4 इसलिए तीमुथियुस पौलुस और सीलास के साथ चला गया, और वे कई अन्य नगरों में गए। प्रत्येक नगर में उन्होंने विश्वासियों को उन नियमों के बारे में बताया जो यरूशलेम के प्रेरितों और प्राचीनों ने ठहराए थे।
\p
\v 5 उन नगरों में उन्होंने विश्वासियों की सहायता की कि वे प्रभु यीशु में और अधिक दृढ़ विश्वास करें, और प्रतिदिन बहुत लोग विश्वास में आने लगे।
\p
\s5
\v 6 पौलुस और उसके साथियों को पवित्र आत्मा ने आसिया में वचन सुनाने से रोक दिया था, इसलिए वे फ्रूगिया और गलातिया के क्षेत्रों में चले गए।
\v 7 वे मूसिया प्रांत की सीमा पर पहुँचे, और वे उत्तर में बितूनिया प्रांत में जाना चाहते थे, लेकिन फिर से यीशु के आत्मा ने उन्हें वहाँ जाने से रोक दिया।
\v 8 वे मूसिया प्रांत से होकर समुद्र के निकट त्रोआस शहर में पहुँचे।
\s5
\v 9 उसी रात परमेश्वर ने पौलुस को एक दर्शन दिया जिसमें उसने मकिदुनिया प्रांत के एक व्यक्ति को देखा। वह पौलुस को यह कह कर बुला रहा था, "मकिदुनिया में आओ और हमारी सहायता करो!"
\v 10 उसके इस दर्शन को देखने के बाद, हम मकिदुनिया के लिए रवाना हुए, क्योंकि हमें विश्वास था कि परमेश्वर ने हमें वहाँ के लोगों में सुसमाचार का प्रचार करने के लिए बुलाया था।
\p
\s5
\v 11 हम नाव पर चढ़ कर त्रोआस से सुमात्राके के लिये रवाना हुए, और अगले दिन नियापुलिस शहर में पहुँचे।
\v 12 तब हम नियापुलिस छोड़कर फिलिप्पी गए। मकिदुनिया का यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण शहर था, जहाँ कई रोमी नागरिक रहते थे। हम कई दिनों तक फिलिप्पी में रहे।
\p
\v 13 सब्त के दिन हम शहर के बाहर नदी की ओर निकल गए। हमने किसी को कहते सुना था कि यहूदी लोग वहाँ प्रार्थना करने के लिए एकत्र होते है। जब हम पहुँचे, हमने कुछ महिलाएँ देखीं जो प्रार्थना करने के लिए एकत्र हुई थीं, इसलिए हम बैठ गए और उन्हें यीशु के बारे में बताने लगे।
\s5
\v 14 उन स्त्रियों में एक स्त्री थी, जिसका नाम लुदिया था, वह पौलुस को सुन रही थी। वह थुआथिरा शहर से थी, वह बैंगनी कपड़ा बेचा करती थी, और परमेश्वर की आराधना करती थी। प्रभु परमेश्वर ने उसको उस संदेश पर जो पौलुस बता रहा था, ध्यान देने के लिए प्रेरित किया और उसने उस पर विश्वास किया।
\v 15 जब पौलुस और सीलास ने लुदिया और उसके घर में रहनेवाले अन्य लोगों को बपतिस्मा दे दिया, उसके बाद उसने उनसे कहा, "यदि तुम मानते हो कि मैं प्रभु के प्रति विश्वासयोग्य हूँ, तो मेरे घर में आकर रहना।" जब उसने यह कहा, तो हम उसके घर पर रहे।
\p
\s5
\v 16 एक और दिन, जब हम उस स्थान जा रहे थे जहाँ लोग प्रार्थना करने के लिए इकट्ठे होते थे, हम एक जवान स्त्री से मिले, जो एक दासी थी। एक दुष्ट-आत्मा उसे लोगों के भविष्य के बारे में बताने के लिये अपनी शक्ति देती थी। लोग उसके मालिकों को पैसा देते थे कि वह उन्हें बताए कि उनके साथ क्या होगा।
\v 17 इस जवान स्त्री ने पौलुस और बाकी हम सभी का पीछा करते हुए चिल्लाकर कहा, "ये लोग परमेश्वर की सेवा करते हैं जो सभी देवताओं में सबसे महान हैं! वे तुमको बता रहे हैं कि परमेश्वर तुमको कैसे बचा सकते हैं।"
\v 18 वह कई दिनों तक ऐसा करती रही। अंत में, पौलुस क्रोधित हो गया, इसलिये उसने जवान स्त्री की ओर मुड़कर उस दुष्ट-आत्मा से बात की जो उसके अन्दर थी। उसने कहा, "यीशु मसीह के नाम से, उसमें से निकल जा!" उसी समय दुष्ट-आत्मा ने उसे छोड़ दिया।
\s5
\v 19 और फिर उसके मालिकों को मालूम हुआ कि वह अब उनके लिए पैसे नहीं कमा सकती क्योंकि वह अब यह भविष्यद्वाणी नहीं कर सकती थी कि लोगों के साथ क्या होगा, इसलिए वे क्रोधित हुए। उन्होंने पौलुस और सीलास को पकड़ा और उन्हें सार्वजनिक चौक में ले गए जहाँ शहर के शासक थे।
\v 20 उस जवान स्त्री के मालिक उन्हें शहर के शासकों के पास लेकर आए और उनसे कहा, "ये पुरुष यहूदी हैं, और वे हमारे शहर के लोगों को परेशान कर रहे हैं।
\v 21 वे यह सिखा रहे हैं कि हमें उन नियमों का पालन करना चाहिए, जिन्हें हमारा रोमी कानून हमें पालन करने की अनुमति नहीं देता है!"
\s5
\v 22 जो लोग पौलुस और सीलास पर आरोप लगा रहे थे, उनके साथ भीड़ से कई लोग मिल गए, और उन्होंने उन्हें पीटना शुरू कर दिया। तब रोमी शासकों ने सैनिकों को पौलुस और सीलास के वस्त्रों को फाड़ डालने और उन्हें छड़ियों से पीटने के लिए कहा।
\v 23 इसलिये सैनिकों ने छड़ियों से पौलुस और सीलास को बहुत बुरी तरह से पीटा। उसके बाद, उन्होंने उन्हें ले जाकर बंदीगृह में डाल दिया। उन्होंने दरोगा को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि वे बाहर न निकलें।
\v 24 क्योंकि अधिकारियों ने उसे ऐसा करने के लिए कहा था, दरोगा ने पौलुस और सीलास को उस कमरे में रखा जो कि बंदीगृह के बहुत भीतर था। वहाँ उसने उन्हें फर्श पर बैठा कर उनके पैरों को फैला दिया। फिर उसने उनके टखनों को लकड़ी के दो बड़े टुकड़ों के बीच छेद में कस दिया, ताकि पौलुस और सीलास अपने पैरों को हिला न सकें।
\p
\s5
\v 25 आधी रात के लगभग, पौलुस और सीलास गीत गाते हुए परमेश्वर से प्रार्थना कर रहे थे और उनकी स्तुति कर रहे थे। अन्य कैदी उन्हें सुन रहे थे।
\v 26 अकस्मात एक प्रबल भूकम्प आया जिसने बंदीगृह को हिलाकर रख दिया था। भूकम्प ने बंदीगृह के सब द्वारों को खोल दिया और जंजीरें जिनसे कैदियों को बांधा हुआ था, गिर गई थीं।
\s5
\v 27 दरोगा जागा और देखा कि बंदीगृह के द्वार भूकम्प से खुल गए थे। उसने सोचा कि कैदी बंदीगृह से भाग गए हैं, इसलिए उसने स्वयं को मार डालने के लिये अपनी तलवार को निकाल लिया, क्योंकि वह जानता था कि यदि कैदी स्वतंत्र हो गए तो शहर के शासक उसे मार डालेंगे।
\v 28 पौलुस ने दरोगा को देखा और चिल्लाया, "स्वयं को मत मार! हम सब कैदी यहाँ हैं!"
\s5
\v 29 दरोगा ने चिल्ला कर किसी को मशाल लाने के लिए कहा ताकि वह देख सके कि बंदीगृह में कौन है। भय से कांपते हुए, वह पौलुस और सीलास के सामने गिर गया।
\v 30 तब वह पौलुस और सीलास को बंदीगृह से बाहर ले गया और पूछा: "हे श्रीमानों, बचाए जाने के लिये मुझे क्या करने की आवश्यकता है?"
\v 31 उन्होंने उत्तर दिया, "प्रभु यीशु पर विश्वास कर, तो तू और तेरा परिवार बच जाएगा।"
\p
\s5
\v 32 फिर पौलुस और सीलास ने उसे और उसके परिवार के सभी लोगों को प्रभु यीशु के बारे में बताया।
\v 33 तब दरोगा ने उसी समय आधी रात में उनके घावों को धोया। तब पौलुस और सीलास ने उसे और उसके परिवार के सब लोगों को बपतिस्मा दिया।
\v 34 फिर दरोगा पौलुस और सीलास को अपने घर ले गया और उन्हें खाने के लिये भोजन परोसा। वह और उसके परिवार के सब लोग बहुत प्रसन्न थे क्योंकि उन्होंने परमेश्वर में विश्वास किया था।
\p
\s5
\v 35 अगले दिन सुबह, शहर के शासकों ने कुछ सैनिकों से कहा कि वे बंदीगृह में जाकर दरोगा से यह कहो, "उन दोनों कैदियों को अब जाने दो!"
\v 36 जब दरोगा ने यह सुना, तो उसने जाकर पौलुस से कहा, "शहर के शासकों ने मुझे कहा है कि तुमको जाने दूँ। इसलिये अब तुम दोनों बंदीगृह को छोड़ कर शान्ति से चले जाओ!"
\s5
\v 37 लेकिन पौलुस ने दरोगा से कहा, "शहर के शासकों ने भीड़ के सामने हमें पीटने के लिए लोगों से कहा और हमें बंदीगृह में डाल दिया, जबकि हम रोमी नागरिक हैं। और अब वे किसी को बताए बिना हमें भेजना चाहते हैं। हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे! उन शहर के शासकों को स्वयं आकर हमें बंदीगृह से मुक्त करना होगा।"
\v 38 इसलिए सैनिकों ने जाकर शहर के शासकों को पौलुस की बात बताई। जब शहर के शासकों ने सुना कि पौलुस और सीलास रोमी नागरिक थे, तो वे डर गए क्योंकि उन्होंने गलत काम किया था।
\v 39 इसलिए शहर के शासकों ने पौलुस और सीलास के पास आकर उनसे कहा कि उन्होंने उनके साथ जो कुछ किया था, उसके लिए वे खेदित हैं। शहर के शासकों ने उन्हें बंदीगृह से बाहर निकाला और उन्हें शहर छोड़ने के लिए कहा।
\s5
\v 40 पौलुस और सीलास बंदीगृह से निकलने के बाद, लुदिया के घर गए। वहाँ वे उससे और अन्य विश्वासियों से मिले। उन्होंने विश्वासियों को प्रभु यीशु पर भरोसा बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया, और फिर उन दोनों प्रेरितों ने फिलिप्पी शहर छोड़ दिया।
\s5
\c 17
\p
\v 1 उन्होंने अम्फिपुलिस और अपुल्लोनिया के शहरों से होकर यात्रा की और थिस्सलुनीके शहर में आए। वहाँ पर एक यहूदी सभा स्थल था।
\v 2 सब्त के दिन पौलुस सभा स्थल पर गया जैसे वह आमतौर पर किया करता था। तीन हफ्ते तक वह हर एक सब्त के दिन वहाँ गया। उसने लोगों को बताया की कि पवित्र शास्त्रों में कहा है कि यीशु ही मसीह है।
\s5
\v 3 उसने भविष्यद्वक्ताओं द्वारा लिखे गये शास्त्रों से दिखाया कि मसीह का मरना और फिर से जीवित होना अवश्य था। उसने कहा, "यह व्यक्ति यीशु मसीह ही हैं। वह मर गये और फिर से जीवित हो गये हैं, जैसा भविष्यद्वक्ताओं ने कहा।"
\v 4 वहाँ यहूदियों में से कुछ ने पौलुस की बातों पर विश्वास किया और पौलुस और सीलास से मिलना आरम्भ कर दिया। वहाँ कई गैर-यहूदी लोग और महत्वपूर्ण महिलाएँ भी थीं जो परमेश्वर की आराधना करते थे, उन्होंने भी यीशु के संदेश पर विश्वास किया, और वे भी पौलुस और सीलास के साथ मिलने लगे।
\p
\s5
\v 5 लेकिन यहूदियों के कुछ अगुवे क्रोधित हो गए क्योंकि पौलुस की सिखाई बातों पर कई लोगों ने विश्वास किया था। इसलिए वे सार्वजनिक चौक में गए और कुछ बुरे लोगों को उनके पीछे आने के लिए राजी किया। इस प्रकार, यहूदियों के अगुवों ने एक भीड़ को एकत्र किया और उन्हें बहुत शोर मचाने के लिए प्रेरित किया। वे यहूदी लोग और अन्य लोग भाग कर यासोन नाम के एक व्यक्ति के घर पहुँचे जहाँ पौलुस और सीलास रह रहे थे। वे पौलुस और सीलास को निकाल कर बाहर ले जाना चाहते थे जहाँ लोगों की भीड़ थी।
\v 6 उनको पता चला कि पौलुस और सीलास घर में नहीं थे, लेकिन यासोन उनको मिला और उन्होंने उसे पकड़ लिया। वे उसको और कुछ अन्य विश्वासियों को जो उसके साथ थे खींच कर वहाँ ले गए, जहाँ शहर के शासक थे। उन्होंने कहा, "जिन लोगों ने दुनिया में सब स्थानों में परेशानी खड़ी कर दी है, वे यहाँ भी आए हैं,
\v 7 और इस व्यक्ति यासोन ने उन्हें अपने घर में रहने के लिए स्थान दिया। वे सम्राट के विरुद्ध काम कर रहे हैं। वे कहते हैं कि कोई व्यक्ति, जिनका नाम यीशु है, असली राजा हैं!"
\s5
\v 8 जब लोगों की भीड़ ने और शहर के शासकों ने इसे सुना, तो वे बहुत क्रोधित और उत्तेजित हो गए।
\v 9 शहर के शासकों ने यासोन और अन्य विश्वासियों पर जुर्माना लगा दिया और उन्हें बताया कि अगर पौलुस और सीलास ने और कोई भी मुसीबत खड़ी नहीं की तो वे पैसे वापस दे देंगे। फिर शहर के शासकों ने यासोन और अन्य विश्वासियों को जाने दिया।
\p
\s5
\v 10 इसलिये उसी रात विश्वासियों ने पौलुस और सीलास को थिस्सलुनीके से बिरीया नगर भेज दिया। जब पौलुस और सीलास वहाँ पहुँचे, तो वे यहूदी सभा स्थल पर गए।
\v 11 थिस्सलुनीके के अधिकांश यहूदी परमेश्वर का संदेश सुनने के इच्छुक नहीं थे, लेकिन जो यहूदी बिरीया में रहते थे, वे सुनने के बहुत इच्छुक थे, इसलिए उन्होंने ध्यान से यीशु के बारे में संदेश को सुना। प्रतिदिन उन्होंने यह पता लगाने के लिये स्वयं ही शास्त्रों को पढ़ा कि जो कुछ पौलुस ने यीशु के बारे में कहा था, क्या वह सच था।
\v 12 पौलुस की शिक्षा के कारण, यहूदियों में से कई लोगों ने यीशु पर विश्वास किया था, और साथ ही कुछ महत्वपूर्ण गैर-यहूदी स्त्रियों और कई गैर-यहूदी पुरुषों ने भी उन पर विश्वास किया था।
\p
\s5
\v 13 परन्तु थिस्सलुनीके के यहूदियों ने सुना कि पौलुस बिरीया में यीशु के बारे में परमेश्वर के संदेश का प्रचार कर रहा है। इसलिए वे बिरीया गए और वहाँ लोगों से कुछ बातें कहीं, जिन बातों ने उन्हें पौलुस से बहुत अधिक क्रोधित कर दिया।
\v 14 बिरीया में से कुछ विश्वासी पौलुस को दूसरे शहर में जाने के लिए समुद्र के किनारे तक ले गए। परन्तु सीलास और तीमुथियुस बिरीया में ही रहे।
\v 15 जब पौलुस और दूसरे लोग समुद्र तट पर पहुँचे, तो वे नाव पर चढ़ गए और एथेंस शहर में गए। तब पौलुस ने उन पुरुषों से कहा, जो उसके साथ आए थे, "सीलास और तीमुथियुस से कहना कि वे अतिशीघ्र एथेंस में मेरे पास आएँ।" तब उन पुरुषों ने एथेंस को छोड़ दिया और बिरिया लौट आए।
\p
\s5
\v 16 एथेंस में, पौलुस सीलास और तीमुथियुस के आने का प्रतीक्षा कर रहा था। इस बीच, वह शहर में चारों ओर घूमने चला गया। वह बहुत चिंतित हो गया क्योंकि शहर में कई मूर्तियाँ थीं।
\v 17 इसलिए वह यहूदी सभा स्थल पर गया और यहूदियों के साथ यीशु के बारे में चर्चा की और उन यूनानियों के साथ भी बातें की, जिन्होंने यहूदियों की मान्यताओं को स्वीकार किया था। वह प्रतिदिन सार्वजनिक चौक में जाता था और उन लोगों से जिनसे वह वहाँ मिलाता था, बातें करता था।
\p
\s5
\v 18 पौलुस ने कुछ शिक्षकों से भेंट की, उन्हें इस बारे में बात करना पसंद था कि लोग क्या विश्वास करते हैं। लोग उनमें से कुछ को इपिकूरी कहते थे, और वे दूसरों को स्तोईकी कहते थे। उन्होंने पौलुस को बताया कि वे क्या विश्वास करते थे, और उन्होंने उससे पूछा कि वह क्या विश्वास करता है। फिर उनमें से कुछ ने एक दूसरे से कहा, "वह अनोखे देवताओं के बारे में कुछ कह रहा है।" उन्होंने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि पौलुस उनसे कह रहा था कि यीशु मर गए थे और फिर से जीवित हो गए।
\p
\s5
\v 19 इसलिए वे उसे उस जगह पर ले गए जहाँ शहर के अगुवे बैठते थे। जब वे वहाँ पहुँचे तो उन्होंने पौलुस से कहा, "कृपया हमें बता, यह नया संदेश क्या है जो तू लोगों को सुना रहा है?
\v 20 तू कुछ ऐसी बातें सिखा रहा है जिसे हम समझ नहीं पाते हैं, इसलिए हम जानना चाहते हैं कि उनका क्या अर्थ है।"
\v 21 एथेंस के लोग और वहाँ रहने वाले अन्य क्षेत्रों के लोग उन विषयों के बारे में बात करना पसंद करते थे जो उनके लिए नया होता था।
\p
\s5
\v 22 तब पौलुस ने लोगों के सामने खड़े होकर कहा, "एथेंस के लोगों, मैं देखता हूँ कि तुम बहुत धार्मिक हो।
\v 23 मैं ऐसा इसलिये कहता हूँ, क्योंकि जब मैं जा रहा था, मैंने उन मूर्तियों को देखा जिनकी तुम आराधना करते हो, यहाँ तक कि मैंने एक वेदी को भी देखा था, जिस पर किसी ने इन शब्दों की खुदाई की हुई थी: यह उन परमेश्वर के सम्मान में है जिनको हम नहीं जानते हैं। इसलिये अब मैं तुमको उन परमेश्वर के बारे में बताऊँगा जिनकी तुम आराधना तो करते हो, परन्तु तुम उसे जानते नहीं हो।
\p
\s5
\v 24 वही परमेश्वर है जिन्होंने संसार और उसकी सब वस्तुओं को बनाया। वे स्वर्ग में और पृथ्वी पर सभी प्राणियों पर शासन करते हैं, और वे ऐसे भवनों में नहीं रहते हैं जिसे लोगों ने बनाया है।
\v 25 उन्हें आवश्यक्ता नहीं कि लोग उनके लिए कुछ बनाएँ क्योंकि वही लोगों को जीवित रखते और साँस देते हैं, और जो उन्हें चाहिए वह सब कुछ उन्हें देते हैं।
\p
\s5
\v 26 आरंभ में, परमेश्वर ने एक जोड़े को बनाया, और उनसे परमेश्वर ने सब जातियों को उत्त्पन्न किया जो अब पृथ्वी पर हर स्थान में रहती हैं। उन्होंने एक समय के लिए प्रत्येक जाती को उनके स्थान में रखा।
\v 27 वे चाहते थे कि लोगों को अपनी आवश्यकताओं का बोध हो। तब हो सकता है वे उसकी खोज करेंगे और उसे ढूँढेंगे। परमेश्वर चाहते हैं कि हम उनकी खोज करें, यद्यपि वह हम सब के बहुत निकट है।
\s5
\v 28 परमेश्वर ही के कारण हम जीवित रहते हैं, आगे बढ़ते हैं और अस्तित्व में हैं, जैसा कि तुम में से एक ने कहा है, 'क्योंकि हम उनकी सन्तान हैं।'
\p
\v 29 इसलिए, क्योंकि हम परमेश्वर की सन्तान हैं, हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि परमेश्वर सोने, चाँदी, या पत्थर के सामान है, जो मनुष्य द्वारा किसी रूप में बनाया जाता है।
\s5
\v 30 उस समय जब लोगों को पता नहीं था कि परमेश्वर उनसे क्या करवाना चाहते थे, तो उन्होंने जो कुछ भी किया, उसके लिए परमेश्वर ने उन्हें दण्ड नहीं दिया। परन्तु अब परमेश्वर हर स्थान के सब लोगों को बुरे कामों से दूर रहने की आज्ञा देते हैं।
\v 31 वह हमें बताते हैं कि एक निश्चित दिन जिसे उन्होंने चुना है वह उस व्यक्ति के द्वारा जिसे उन्होंने चुना है, धार्मिकता से सब का न्याय करने जा रहे हैं, इस पुरुष को मरे हुओं में से जी उठा कर वह सुनिश्चित कर रहे हैं कि हम समझें।
\p
\s5
\v 32 जब पुरुषों ने सुना कि पौलुस कहता है कि मृत्यु के बाद एक पुरुष फिर से जीवित हो गया, तो उनमें से कुछ उस पर हंस रहे थे। परन्तु अन्य लोगों ने उसे किसी और दिन वापस आने और इस बारे में फिर से बात करने के लिए कहा।
\v 33 उनके यह कहने के बाद, पौलुस चला गया।
\v 34 हालाँकि, कुछ लोग पौलुस के साथ गए और यीशु के बारे में उसके संदेश पर विश्वास किया। उनमें से जो लोग यीशु पर विश्वास करते थे, उनमें से एक दियुनुसियुस नाम का व्यक्ति था जो परिषद का सदस्य था। इसके अतिरिक्त, वहाँ दमरिस नाम की एक स्त्री और उसके साथ कुछ अन्य लोग थे जिन्होंने विश्वास किया था।
\s5
\c 18
\p
\v 1 उसके बाद, पौलुस एथेंस शहर छोड़कर कुरिन्थुस शहर चला गया।
\v 2 वहाँ वह एक यहूदी व्यक्ति से मिला जिसका नाम अक्विला था, जो पुन्तुस क्षेत्र से था। अक्विला और उसकी पत्नी प्रिस्किल्ला थोड़े समय पहले ही इतालिया के रोम शहर से आए थे। वे रोम छोड़ कर आ गए क्योंकि रोमी सम्राट क्लौदियुस ने आदेश दिया था कि सभी यहूदियों को रोम छोड़ देना चाहिए।
\v 3 अक्विला और प्रिस्किल्ला पैसे कमाने के लिए तम्बू बनाते थे। पौलुस भी तम्बू बनाता था, इसलिए वह उनके साथ रहा, और उन्होंने एक साथ काम किया।
\s5
\v 4 हर एक सब्त के दिन, पौलुस यहूदियों के सभा स्थल में जाता था, जहाँ उसने यहूदियों और गैर-यहूदियों दोनों से बातें की। उसने उन्हें यीशु के बारे में सिखाया।
\p
\v 5 जब सीलास और तीमुथियुस मकिदुनिया के क्षेत्र से आए, पौलुस पवित्र आत्मा की प्रेरणा से सशक्त होकर यहूदियों को यह बताने लगा कि यीशु ही मसीह हैं।
\v 6 परन्तु यहूदी पौलुस के विरुद्ध हो गए और उसके बारे में बुरी बातें कहना शुरू कर दिया। इसलिए उसने अपने कपडो से धूल को झाड़ दिया और उसने उनसे कहा, "अगर परमेश्वर तुम्हें दण्ड दें, तो यह तुम्हारी करनी हो, मेरी नहीं! अब से मैं उन लोगों से बात करूँगा जो यहूदी नहीं हैं!"
\s5
\v 7 इसलिए पौलुस यहूदी सभा स्थल छोड़ कर उस घर में गया जो उसके पास में था, और वहाँ प्रचार किया। घर का मालिक तीतुस यूस्तुस नामक एक गैर-यहूदी व्यक्ति था जो परमेश्वर की आराधना करता था।
\v 8 उसके बाद, यहूदी सभा स्थल के शासक, जिसका नाम क्रिसपुस था, और उसके सारे परिवार ने प्रभु पर विश्वास किया। कुरिन्थुस के कई अन्य लोगों ने क्रिसपुस और उनके परिवार के बारे में सुना और उन्होंने भी यीशु पर विश्वास किया और बपतिस्मा लिया।
\p
\s5
\v 9 एक रात पौलुस ने एक दर्शन देखा जिसमें प्रभु यीशु ने उससे कहा, "उन लोगों से मत डर, जो तेरे विरुद्ध हैं, परन्तु तू मेरे बारे में बताता रह,
\v 10 क्योंकि मैं तुम्हारी सहायता करूँगा और कोई भी तुझे यहाँ चोट नहीं पहुँचा सकेगा। उन्हें मेरे बारे में बता, क्योंकि इस शहर में मेरे बहुत से लोग हैं।"
\v 11 इसलिए पौलुस लोगों को यीशु के बारे में परमेश्वर के संदेश को सुनाते हुए डेढ़ वर्ष तक कुरिन्थुस में रहा था।
\p
\s5
\v 12 जब गल्लियो अखाया प्रांत का रोमी राज्यपाल बन गया, तो यहूदी अगुवों ने मिलकर पौलुस को पकड़ लिया। वे उसे राज्यपाल के सामने ले गए और उस पर आरोप लगाया,
\v 13 उन्होंने यह कहा, "यह व्यक्ति लोगों को परमेश्वर की आराधना करने के ऐसे उपाय सिखा रहा है जो हमारे यहूदी नियमों के विरुद्ध जाते हैं।"
\s5
\v 14 जब पौलुस बात करने ही वाला था, गल्लियो ने यहूदियों से कहा, "अगर इस व्यक्ति ने हमारे रोमी कानूनों को तोड़ा होता, तो मैं सुनता कि तुम यहूदी मुझसे क्या कहना चाहते हो।
\v 15 परन्तु, तुम शब्दों और नामों और अपने स्वयं के यहूदी नियमों के बारे में बात कर रहे हो, इसलिये तुम स्वयं ही इस बारे में उससे बात करो। मैं इन बातों का न्याय नहीं करूँगा!"
\s5
\v 16 गल्लियो ने यह कहने के बाद, सैनिकों को आदेश दिया कि यहूदी अगुवों को अदालत से बाहर कर दिया जाए।
\v 17 तब लोगों ने यहूदियों के अगुवे सोस्थिनेस को पकड़ लिया। उन्होंने न्यायाधीश के आसन के सामने ही उसे पीटा। लेकिन गल्लियो ने इसके बारे में कुछ नहीं किया।
\p
\s5
\v 18 पौलुस कई दिनों तक कुरिन्थुस के विश्वासियों के साथ रहा। फिर वह प्रिस्किल्ला और अक्विला के साथ एक जहाज पर सीरिया के प्रांत के लिए रवाना हुआ। उसने क्रिंखिया में अपने बाल कटवा दिये क्योंकि उसने एक प्रतिज्ञा की थी।
\v 19 वे इफिसुस नगर में पहुँचे, और प्रिस्किल्ला और अक्विला वहाँ रहे। पौलुस ने स्वयं यहूदियों के सभा स्थल में प्रवेश किया और यहूदियों से यीशु के बारे में बात की।
\s5
\v 20 उन्होंने उससे और अधिक रुकने के लिए कहा, लेकिन वह रुकने के लिए सहमत नहीं हुआ।
\v 21 परन्तु जब वह जाने लगा, उसने उनसे कहा, "यदि परमेश्वर चाहे तो मैं वापस आऊँगा।" फिर वह जहाज पर चढ़ गया और इफिसुस से दूर चला गया।
\p
\s5
\v 22 जब जहाज कैसरिया शहर में आया, तो पौलुस उतर गया। वह यरूशलेम गया और वहाँ विश्वासियों को नमस्कार किया। फिर वह सीरिया के क्षेत्र में अन्ताकिया शहर चला गया।
\p
\v 23 पौलुस ने वहाँ विश्वासियों के साथ कुछ समय बिताया। फिर उसने अन्ताकिया को छोड़ दिया और गलातिया और फ्रूगिया के क्षेत्रों के कई शहरों में गया। उसने विश्वासियों से आग्रह किया कि वे यीशु के बारे में परमेश्वर के संदेश पर और अधिक विश्वास करें।
\p
\s5
\v 24 जब पौलुस गलातिया और फ्रूगिया से होकर जा रहा था, तो अपुल्लोस नाम का एक यहूदी इफिसुस में आया। वह सिकन्दरिया शहर से था और शास्त्रों के बारे में बहुत अच्छी रीती से बातें करता था।
\v 25 अन्य विश्वासियों ने अपुल्लोस को सिखाया था कि प्रभु यीशु लोगों से चाहते हैं की कैसा जीवन जियें, और उसने बड़े उत्साह से उन बातों को लोगों को सिखाया। लेकिन, वह यीशु के बारे में सब कुछ नहीं सिखा रहा था, क्योंकि वह केवल यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के बपतिस्मा के बारे में जानता था।
\v 26 अपुल्लोस यहूदी सभा स्थल पर गया, और उसने लोगों को उन बातों के बारे में बताया जो उसने सीखी थीं। जब प्रिस्किल्ला और अक्विला ने जो वह सिखाता था सुना, तो उन्होंने उसे अपने घर आने के लिए कहा, जहाँ उन्होंने उसे यीशु के बारे में और अधिक सिखाया।
\p
\s5
\v 27 जब अपुल्लोस ने निर्णय लिया कि वह अखाया क्षेत्र में जाएगा, तो इफिसुस के विश्वासियों ने उसे बताया कि उसके लिए यह करना ठीक होगा। इसलिए उन्होंने अखाया में विश्वासियों को एक पत्र लिखा कि वे अपुल्लोस का स्वागत करें। उसके वहाँ पहुँचने के बाद, उसने उन लोगों की सहायता की जिन्हें परमेश्वर ने यीशु पर विश्वास करने में सक्षम किया था।
\v 28 अपुल्लोस यहूदियों के अगुवों के साथ बहुत शक्तिशाली रूप से बात कर रहा था, जबकि कई अन्य लोग सुन रहे थे। शास्त्रों से पढ़ कर, उसने उन्हें दिखाया कि यीशु ही मसीह हैं।
\s5
\c 19
\p
\v 1 जिस समय अपुल्लोस कुरिन्थुस में था, पौलुस ने फ्रूगिया और गलातिया को छोड़ दिया और एशिया से होते हुए इफिसुस में वापस आ गया। उसने कुछ लोगों से भेंट की जिन्होंने कहा कि वे विश्वासी है।
\v 2 उसने उनसे पूछा, "जब तुमने परमेश्वर के संदेश पर विश्वास किया था, तब क्या तुमको पवित्र आत्मा प्राप्त हुए?" उन्होंने उत्तर दिया, "नहीं, हमने नहीं पाए। हमने तो पवित्र आत्मा है यह भी नहीं सुना है।"
\s5
\v 3 तो पौलुस ने पूछा, "तो जब तुमने बपतिस्मा लिया, तो तुमको क्या पता था?" उन्होंने उत्तर दिया, "यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने जो सिखाया था, हम ने उस पर विश्वास किया था।"
\v 4 पौलुस ने कहा, "यूहन्ना का बपतिस्मा एक संकेत था कि लोग परमेश्वर की ओर मुड़ रहे थे और अपने बुरे विचारों और कामों से दूर हो रहे थे। उसने उनको किसी और में विश्वास करने को कहा, जो उसके बाद आ रहे हैं, और वह व्यक्ति यीशु हैं।"
\s5
\v 5 तो जब उन लोगों ने यह सुना, तो उन्होंने प्रभु यीशु के नाम में बपतिस्मा लिया।
\v 6 उसके बाद, पौलुस ने अपने हाथों को एक-एक करके उनके सिरों पर रखा, और उनमें से हर एक पर पवित्र आत्मा की शक्ति आ गई। पवित्र आत्मा ने उन्हें उन भाषाओं में बोलने की शक्ति दी, जिन्हें उन्होंने नहीं सीखा, और उन्होंने उन संदेशों को भी सुनाया जो पवित्र आत्मा ने उन्हें दिये थे।
\v 7 वहाँ वे बारह व्यक्ति थे जिनको पौलुस ने बपतिस्मा दिया और जिन्होंने पवित्र आत्मा को पाया।
\p
\s5
\v 8 इसके बाद तीन महीने तक, पौलुस हर एक सब्त के दिन इफिसुस में यहूदी सभा स्थल में जाकर लोगों को यीशु के बारे में और परमेश्वर स्वयं को राजा के रूप में कैसे प्रकट करेंगे उसके बारे में सिखाता और समझाता रहा।
\v 9 लेकिन कुछ यहूदियों ने संदेश पर विश्वास नहीं किया और इसे और अधिक सुनना नहीं चाहते थे। पौलुस जो सिखा रहा था उन्होंने उसके बारे में कई बुरी बातें कहीं। इसलिए पौलुस ने उन्हें छोड़ दिया और तुरन्नुस के सभा स्थल में मिलने के लिए विश्वासियों को अपने साथ ले लिया।
\v 10 वहाँ दो साल तक पौलुस ने लोगों को शिक्षा दी। इस प्रकार, आसिया के क्षेत्र में रहने वाले अधिकांश यहूदियों और गैर-यहूदियों ने प्रभु यीशु के बारे में संदेश सुना।
\p
\s5
\v 11 परमेश्वर ने पौलुस को चमत्कार करने की शक्ति भी दी।
\v 12 यदि कुछ लोग जो ऐसे बीमार थे कि पौलुस के पास नहीं आ सकते थे, तो पौलुस के द्वारा छूए गए कपड़े के टुकड़े ले जाकर बीमार लोगों पर रखते थे। और बीमार लोग ठीक हो जाते थे, और दुष्ट-आत्माएँ उन्हें छोड़ देती थी।
\p
\s5
\v 13 ऐसे कुछ यहूदी भी थे जो नगर नगर जाते थे, और दुष्ट-आत्माओं को लोगों में से निकल जाने का आदेश देते थे। उनमें से कुछ यहूदियों ने दुष्ट-आत्माओं को लोगों में से बाहर निकल आने के लिए यह कहा, "मैं तुम्हें प्रभु यीशु की सामर्थ से बाहर आने के लिए कहता हूँ, जिस पुरुष के बारे में पौलुस सिखाता है!"
\v 14 वे सात व्यक्ति थे जो ये कर रहे थे। वे स्क्किवा नाम के एक यहूदी व्यक्ति के बेटे थे, जो स्वयं को प्रधान याजक कहता था।
\s5
\v 15 लेकिन एक दिन जब वे ऐसा कर रहे थे, तो वह दुष्ट-आत्मा उस व्यक्ति में से बाहर नहीं निकला। इसकी अपेक्षा, दुष्ट-आत्मा ने उनसे कहा, "मैं यीशु को जानता हूँ, और मैं पौलुस को जानता हूँ, परन्तु तुम्हें किसी ने शक्ति नहीं दी कि मेरा कुछ करो!"
\v 16 यह कहने के बाद, अचानक वह व्यक्ति जिस में दुष्ट-आत्मा थी, स्क्किवा के बेटों पर कूद पड़ा। उसने उन सब को नीचे गिरा दिया और उनमें से हर एक को चोट पहुँचाई। उसने उनके कपड़े फाड़ दिए और उन्हें घायल कर दिया। वे डर गए और घर से बाहर भाग गए।
\v 17 इफिसुस में रहनेवाले सब लोग, यहूदियों और गैर-यहूदियों, ने इस घटना के बारे में सुना। वे भयभीत हो गए क्योंकि उन्होंने देखा कि वह दुष्ट-आत्मा वाला व्यक्ति बहुत बलवंत था। उसी समय, उन्होंने प्रभु यीशु के नाम का सम्मान किया।
\p
\s5
\v 18 उस समय, जबकि अन्य विश्वासी सुन रहे थे, कई विश्वासियों ने उन बुरे कामों के बारे में बताया जो वे कर रहे थे।
\v 19 कुछ जादूगरों ने अपनी पुस्तकें लीं, जो सिखाती थीं कि जादूगरी कैसे करें और उन जगहों पर जला दी जहाँ हर कोई उन्हें देख सकता था। जब लोगों ने पुस्तकों की कीमत को जोड़ा, तो उनका मूल्य पचास हजार चाँदी के सिक्के आया।
\v 20 इस तरह, कई लोगों ने प्रभु यीशु के बारे में संदेश सुना और उन पर विश्वास किया।
\p
\s5
\v 21 पौलुस ने जब इफिसुस में अपना काम पूरा कर लिया तो, आत्मा ने उसे यरूशलेम जाने का निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया, परन्तु पहले उसने मकिदुनिया और अखाया के क्षेत्रों में विश्वासियों को देखने की योजना बनाई। पौलुस ने कहा, "जब मैं यरूशलेम में पहुँच जाऊँ, तो उसके बाद मैं रोम भी जाऊँगा।"
\v 22 उसने अपने दो सहायक, तीमुथियुस और इरास्तुस को मकिदुनिया भेज दिया। परन्तु पौलुस आसिया प्रांत के इफिसुस नगर में ही रहा।
\p
\s5
\v 23 इसके तुरंत बाद, इफिसुस के लोग यीशु और उसके शिक्षाओं के कारण बड़ी मुश्किलें पैदा करने लगे।
\v 24 वहाँ एक व्यक्ति था जिसका नाम दिमेत्रियुस था। वह चाँदी से देवी अरतिमिस (जिसे डायना के नाम से भी जाना जाता है) की मूर्तियाँ बनाता था। दिमेत्रियुस ने उन सब के लिए बहुत पैसा कमाया जो इन मूर्तियों को बनाते और बेचते थे।
\p
\v 25 दिमेत्रियुस ने उन कारीगरों को बुलाया जो मूर्तियों को बनाते थे। उसने उनसे कहा, "हे पुरुषों, तुम जानते हो कि हम अपने काम से बहुत पैसा कमाते हैं।
\s5
\v 26 तुम जानते हो कि पौलुस ने इफिसुस में रहने वाले बहुत से लोगों को सिखाया है कि हम जो मूर्तियाँ बनाते हैं उनको वे नहीं खरीदें। अब हमारे प्रांत के कई नगरों के लोग हम जो बनाते हैं, उसे खरीदना नहीं चाहते हैं। पौलुस लोगों से कहता है कि हम जिन देवताओं की आराधना करते हैं वे देवता नहीं हैं और हमें उनकी आराधना नहीं करनी चाहिए।
\v 27 यदि लोग उसे सुनते हैं, तो हमारा व्यापार बंद हो जाएगा। लोग नहीं सोचेंगे कि उनको अब अरतिमिस (जिसे डायना के नाम से जाना जाता है) की आराधना करने के लिए उसके आराधनालय में आना चाहिए। लोग अरतिमिस को महान नहीं मानेंगे। फिर भी आसिया के सभी प्रांत और यहाँ तक कि सारी दुनिया उसकी पूजा करती है!"
\s5
\v 28 दिमेत्रियुस ने जो कहा, उसे सुन कर सब लोग पौलुस पर क्रोधित हो गए। वे चिल्लाने लगे, "इफिसियों की देवी अरतिमिस महान है!"
\v 29 शहर के बहुत से लोग पौलुस पर क्रोधित हो गए और चिल्लाने लगे। कुछ लोगों ने गयुस और अरिस्तर्खुस को पकड़ लिया, वे दो लोग जिन्होंने मकिदुनिया से पौलुस के साथ यात्रा की थी। फिर लोगों की सारी भीड़, उन लोगों को अपने साथ घसीटती हुई, शहर के रंगमंच की ओर भागी ।
\s5
\v 30 पौलुस रंगमंच में जाकर लोगों से बात करना चाहता था, परन्तु अन्य विश्वासियों ने उसे वहाँ जाने नहीं दिया।
\v 31 कुछ शहर के शासकों ने, जो पौलुस के मित्र थे, सुना कि क्या हो रहा था। उन्होंने किसी को पौलुस को यह बताने के लिए भेजा कि वह रंगमंच में न जाए।
\p
\v 32 रंगमंच में लोगों की भीड़ लगातार चिल्ला रही है। कुछ लोग एक बात के लिये चिल्लाए, और कुछ लोग किसी और बात के लिये चिल्लाए। लेकिन उनमें से आधिकतर जानते भी नहीं थे कि वे वहां क्यों आये थे!
\s5
\v 33 यहूदियों में सिकन्दर नाम का एक व्यक्ति वहाँ था। कुछ यहूदियों ने उसे भीड़ के सामने धकेल दिया जिससे कि वह लोगों से बात कर सके। सिकन्दर ने अपने हाथों को उठा कर भीड़ को चिल्लाने से मना करने का प्रयास किया। वह उन्हें बताना चाहता था कि यहूदियों ने परेशानी नहीं खड़ी की थी।
\v 34 परन्तु कई गैर-यहूदी लोगों को पता था कि सिकन्दर एक यहूदी था और जानते थे कि यहूदी देवी अरतिमिस की आराधना नहीं करते थे। इसलिए गैर-यहूदी दो घंटे तक चिल्लाते हुए कहते रहे, "इफिसियों की देवी अरतिमिस महान है!"
\p
\s5
\v 35 तब शहर के शासकों में से एक ने लोगों को चिल्लाने से रोका। उसने उनसे कहा, "मेरे साथी नागरिकों, संसार में हर कोई जानता है कि हमारी देवी अरतिमिस की पवित्र प्रतिमा स्वर्ग से गिरी थी!
\v 36 हर कोई यह जानता है, और कोई भी यह नहीं कह सकता कि ये बातें सच नहीं हैं। तो अब तुमको शांत होना चाहिए। मुर्खता मत करो।
\v 37 इन दोनों व्यक्तियों को यहाँ नहीं लाना चाहिए था, क्योंकि उन्होंने कुछ भी बुरा नहीं किया है। उन्होंने हमारे मंदिरों में जाकर वहाँ से चीजें नहीं ली हैं, और उन्होंने हमारी देवी की बुराई नहीं की है।
\s5
\v 38 इसलिए, अगर दिमेत्रियुस और उसके साथी कारीगर किसी पर भी बुराई करने का आरोप लगाते हैं, तो उन्हें उचित विधि से ऐसा करना चाहिए। यहां न्यायालय हैं जहाँ यदि वे चाहते हैं तो जा सकते हैं, और वहाँ न्यायाधीश हैं जिन्हें सरकार द्वारा चुना गया है। तुम वहाँ किसी पर भी दोष लगा सकते हो।
\v 39 परन्तु अगर तुम किसी और बात के बारे में पूछना चाहते हो, तो जब तुम्हारे शासक एक साथ आएँगे तब तुमको अपने शासकों से यह कहना चाहिए कि वे इस मामले की जाँच करें।
\v 40 यहाँ एकत्र होना सही नहीं है! इस समस्या के विषय उचित विधि से निर्णय लें क्योंकि हम सरकार के विरुद्ध नहीं जाना चाहते हैं। यदि शासकों ने मुझसे पूछा कि तुम लोग किस बारे में चिल्ला रहे थे, तो मैं उन्हें अच्छा उत्तर नहीं दे पाउँगा।"
\v 41 शहर के शासक ने भीड़ से यही कहा था। फिर उसने उन सब को घर जाने के लिए कहा, और वे अपने घर चले गए।
\s5
\c 20
\p
\v 1 इफिसुस के लोगों द्वारा दंगा करना बंद कर देने के बाद, पौलुस ने विश्वासियों को एक साथ बुलाया। उसने उनसे प्रभु यीशु पर भरोसा बनाए रखने का आग्रह किया। इसके तुरंत बाद, उसने उन्हें "अलविदा" कहा और मकिदुनिया के क्षेत्र में जाने के लिए निकल गया।
\v 2 जब वह वहाँ पहुँचा, तो उसने उनसे प्रभु यीशु पर भरोसा बनाए रखने का आग्रह किया। फिर वह यूनान चला गया।
\v 3 वह यूनान में तीन महीने तक रहा। फिर उसने जहाज से सीरिया लौटने की योजना बनाई, लेकिन उसने सुना कि कुछ यहूदी वहाँ उसकी यात्रा में उसे मार डालने की योजना बना रहे थे। इसलिए उसने थल मार्ग से जाने का निर्णय लिया, और फिर से मकिदुनिया होकर गया।
\s5
\v 4 जो लोग उसके साथ यरूशलेम जाने के लिये यात्रा करने जा रहे थे, वे थे, सोपत्रुस, जो पुरूर्स का पुत्र था और बिरीया शहर से था; अरिस्तर्खुस और सिकुन्दुस, जो थिस्सलुनीके शहर से थे; गयुस, जो दिरबे शहर से था; तीमुथियुस, जो गलातिया के क्षेत्र से था; और तुखिकुस और त्रुफिमुस, जो आसिया के प्रांत से थे।
\v 5 ये सात लोग मकिदुनिया से जहाज पर पौलुस और मेरे, लूका, से आगे निकल गए, इसलिए हमसे पहले वे त्रोआस शहर में पहुँच गए और हम दोनों की प्रतीक्षा की।
\v 6 परन्तु पौलुस और मैं ने फिलिप्पी शहर तक थल मार्ग द्वारा यात्रा की। यहूदियों के बिना खमीर की रोटी वाले पर्व के बाद, हम एक जहाज पर चढ़ गए जो त्रोआस शहर जा रहा था। पाँच दिन के बाद हम त्रोआस में पहुँचे और हम से आगे जाने वाले अन्य साथियों से मिले। तब हम सब सात दिन तक त्रोआस में रहे।
\p
\s5
\v 7 सप्ताह के पहले दिन, हम एक साथ एकत्र होते थे और हम अन्य विश्वासियों के साथ भोजन साझा करते थे। पौलुस ने विश्वासियों से आधी रात तक बात की, क्योंकि वह अगले दिन त्रोआस छोड़ने की योजना बना रहा था।
\v 8 ऊपरी कमरे में जिसमें हम एकत्र हुए थे वहाँ कई तेल के दीये जल रहे थे।
\s5
\v 9 वहाँ यूतुखुस नाम का एक युवक था। वह घर की तीसरी मंजिल पर खुली खिड़की की चौखट पर बैठा था। क्योंकि पौलुस लम्बे समय तक बातें कर रहा था, यूतुखुस को नींद आने लगी। अंत में, वह सो गया। वह खिड़की से भूमि पर गिर गया। कुछ विश्वासी तुरंत नीचे गए और उसे उठा लिया। लेकिन वह मर गया था।
\v 10 पौलुस भी नीचे चला गया। वह उस जवान व्यक्ति के ऊपर लेट गया और अपने हाथ उसके चारों ओर डालकर उसे गले लगा लिया। फिर उसने उन लोगों से कहा जो चारों ओर खड़े थे, "चिंता न करो, वह फिर से जीवित है!"
\s5
\v 11 पौलुस फिर से ऊपर चला गया और उसने भोजन तैयार किया और उसने उसे खाया। बाद में वह विश्वासियों के साथ बातें कर रहा था जब तक कि सूरज उग नहीं गया। फिर वह चला गया।
\v 12 अन्य लोग उस जवान को घर ले गए, और बहुत शान्ति पाई क्योंकि वह फिर से जीवित था।
\p
\s5
\v 13 तब हम जहाज पर चढ़ गए। परन्तु पौलुस त्रोआस में हमारे साथ जहाज पर नहीं चढ़ा, क्योंकि वह थल मार्ग द्वारा अतिशीघ्र अस्सुस नगर को जाना चाहता था। शेष हम सब जहाज पर चढ़ कर अस्सुस के लिए रवाना हुए।
\v 14 हम अस्सुस में पौलुस से मिले। वह हमारे साथ जहाज पर चढ़ गया, और हम मितुलेने शहर में जाने के लिए रवाना हुए।
\s5
\v 15 एक दिन बाद हम मितुलेने पहुँचे, हम वहाँ से रवाना हुए और खियुस द्वीप के पास एक जगह पर पहुँचे। उसके एक दिन के बाद, हम सामुस द्वीप के लिए रवाना हुए। अगले दिन हम ने सामुस छोड़ दिया और मीलेतुस शहर के लिए रवाना हुए।
\v 16 मीलेतुस इफिसुस शहर के दक्षिणी कोने में था। पौलुस इफिसुस में नहीं रुकना चाहता था क्योंकि वह आसिया में समय नहीं बिताना चाहता था। यदि संभव होता, तो वह पिन्तेकुस्त के पर्व के समय तक यरूशलेम में पहुँचना चाहता था, और उस पर्व का समय निकट था।
\p
\s5
\v 17 जब मीलेतुस में जहाज पहुँचा, तो पौलुस ने एक दूत इफिसुस को भेजा, ताकि विश्वासियों के समूह के प्राचीन वहां आकर उसके साथ बात कर सके।
\p
\v 18 जब प्राचीन उसके पास आए, तो पौलुस ने उनसे कहा, "पहले ही दिन से जब मैं यहाँ आसिया के प्रांत में पहुँचा था, तब से लेकर वहाँ से निकलने के दिन तक, तुम्हें पता है कि मैंने तुम्हारे बीच में उस पूरे समय कैसा व्यवहार किया जब मैं तुम्हारे साथ था।
\v 19 तुम जानते हो कि कैसे मैं प्रभु यीशु की सेवा बहुत नम्रता से कर रहा था और कैसे कभी-कभी मैं रोता था। तुम यह भी जानते हो कि मुझे कैसा दु:ख उठाना पड़ा क्योंकि यहूदी जो विश्वासी नहीं थे, उन्होंने मुझे सदैव हानि पहुँचाने का प्रयास किया।
\v 20 तुम यह भी जानते हो कि, जब मैंने तुमको परमेश्वर का संदेश सुनाया था, तो मैंने तुमसे कभी ऐसा कुछ नहीं छिपाया जिससे तुम्हारी सहायता होती। तुम जानते हो कि मैंने तुमको कई लोगों के साथ परमेश्वर का संदेश सुनाया था और मैं तुम्हारे घर भी गया था और वहाँ तुमको शिक्षा दी थी।
\v 21 मैं यहूदियों और गैर-यहूदियों दोनों को उपदेश देता था और उन सब से कहता था कि उन्हें अपने पापी व्यवहार से दूर हो जाना चाहिए और हमारे प्रभु यीशु पर विश्वास करना चाहिए।"
\p
\s5
\v 22 "और अब मैं यरूशलेम जा रहा हूँ, क्योंकि पवित्र आत्मा ने मुझे स्पष्ट रूप से दिखाया है कि मुझे वहाँ जाना चाहिए, और मुझे उनका आज्ञापालन करना है। मुझे नहीं पता कि वहाँ मेरे साथ क्या होगा?
\v 23 परन्तु मुझे पता है कि हर एक शहर में जहाँ मैंने भ्रमण किया है, पवित्र आत्मा ने मुझे बताया है कि यरूशलेम में लोग मुझे बंदीगृह में डाल देंगे और मुझे पीड़ा पहुचाएंगे।
\v 24 परन्तु यदि लोग मुझे मार भी डालते हैं तो मुझे चिंता नहीं है, यदि पहले मैं उस कार्य को पूरा करने में सक्षम हूँ जो प्रभु यीशु ने मुझे करने को कहा था। उन्होंने मुझे लोगों को यह सुसमाचार देने के लिए बुलाया कि परमेश्वर हमको अपने काम के द्वारा बचाते हैं, जिसके हम योग्य नहीं हैं।
\s5
\v 25 मैंने तुमको यह संदेश दिया है कि परमेश्वर कैसे स्वयं को राजा के रूप में प्रकट करेंगे। परन्तु अब मुझे पता है कि आज यह अंतिम बार है जब तुम साथी विश्वासी मुझे देखोगे।
\v 26 तो मैं यह चाहता हूँ कि तुम सब यह समझो कि अगर किसी ने मुझे प्रचार करते सुना है और वह यीशु पर विश्वास किए बिना मर जाता है, यह मेरी गलती नहीं है,
\v 27 क्योंकि मैंने तुमको वह सब बातें बताईं है जिसकी परमेश्वर ने हमारे लिए योजना बनाई है।
\s5
\v 28 तुम अगुवों को परमेश्वर के संदेश पर विश्वास करते रहना और उनका पालन भी करते रहना है। तुमको उन सब विश्वासियों की सहायता भी करनी चाहिए जिन्हें पवित्र आत्मा ने तुम्हें सौंपा है कि तुम उनकी देखभाल करो। जैसे चरवाहा अपनी भेड़ों की रखवाली करता है, वैसे स्वयं की और प्रभु के विश्वासियों के समूह की रखवाली करो। परमेश्वर ने क्रूस पर अपने पुत्र के शरीर से बहने वाले लहू से उन्हें खरीदा है।
\v 29 मैं भलीभांति जानता हूँ कि मेरे जाने के बाद, जो लोग झूठी शिक्षाएँ देते हैं वे तुम्हारे बीच में आ जाएँगे और विश्वासियों को बहुत हानि पहुँचाएँगे। वे भयंकर भेड़ियों की तरह होंगे जो भेड़ को मारते हैं।
\v 30 यहाँ तक कि तुम्हारे अपने अगुवों के समूह में कुछ ऐसे लोग होंगे जो विश्वासियों को गलत बातें सिखाने के द्वारा उनसे झूठ बोलेंगे। वे उन संदेशों को सिखाएँगे जिससे कि कुछ लोग उन पर विश्वास करेंगे और उनके अनुयायी बन जाएँगे।
\s5
\v 31 तो सावधान रहो कि तुम में से कोई भी हमारे प्रभु यीशु के बारे में सच्चे संदेश पर विश्वास करने से न चुके! याद रखो कि तीन साल तक दिन और रात, मैंने तुम्हें इस संदेश के बारे में सिखाया और तुमको परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य होने के लिए आँसुओं के साथ चेतावनी दी।"
\p
\v 32 "अब जब मैं तुम्हें छोड़ कर जाता हूँ मैं परमेश्वर से तुम्हारी सुरक्षा करने के लिए प्रार्थना करता हूँ और इस संदेश पर तुम्हारे विश्वास को स्थिर रखने के लिये प्रार्थना करता हूँ कि परमेश्वर हमको अपने काम के द्वारा बचाते हैं, जिसके हम योग्य नहीं हैं। अगर तुम उस संदेश पर विश्वास करते रहो जो मैंने तुमको बताया, तो तुम दृढ हो जाओगे, और परमेश्वर तुम्हें सदा के लिए वह अच्छी वस्तुएँ देंगे जो उन्होंने उन सब को देने की प्रतिज्ञा कि है जो उनके लोग हैं।
\p
\s5
\v 33 अपने बारे में कहूँ तो, मैंने कभी भी किसी के पैसे या अच्छे कपड़ों को नहीं चाहा था।
\v 34 तुम स्वयं जानते हो कि मैंने अपनी और अपने मित्रों की आवश्यकता के लिए पैसा कमाने के लिए अपने हाथों से काम किया है।
\v 35 इन सब कामों में जो मैंने किये, मैंने तुमको दिखाया कि हमें कठोर परिश्रम करके पैसा कमाना चाहिए ताकि आवश्यक्ता में पड़े लोगों को देने के लिए तुम्हारे पास पर्याप्त पैसे हो। हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारे प्रभु यीशु ने स्वयं कहा था, 'एक व्यक्ति अधिक प्रसन्न तब होता है जब वह दूसरों को देता है, अपेक्षा इसके कि जब वह उनसे लेता है।'
\p
\s5
\v 36 जब पौलुस बोलना समाप्त कर चुका, तो उसने सभी प्राचीनों के साथ घुटने टेक कर प्रार्थना की।
\v 37 वे सब बहुत रोए, और उन्होंने पौलस को गले लगाया और उसे चूमा।
\v 38 वे बहुत उदास थे क्योंकि उसने कहा था कि वे उसे फिर कभी नहीं देखेंगे। तब वे सब उसके साथ जहाज तक गए।
\s5
\c 21
\p
\v 1 इफिसुस के प्राचीनों को अलविदा कहने के बाद, हम जहाज़ पर चढ़ गए और कोस के द्वीप जाने के लिये जलयात्रा की, जहाँ रात के लिए जहाज़ रुक गया। अगले दिन हम जहाज़ से कोस से रुदुस द्वीप तक गए, जहाँ जहाज़ फिर से रुक गया। एक दिन बाद हम पतरा शहर में गए, जहाँ जहाज़ ठहर गया।
\v 2 पतरा पर हम ने उस जहाज़ को छोड़ दिया, और किसी ने हमें बताया कि वहाँ एक जहाज़ था जो फीनीके क्षेत्र में जाएगा। तो हम उस जहाज़ पर चढ़ गए, और जहाज़ चल दिया।
\s5
\v 3 जब तक कि हम ने साइप्रस द्वीप को नहीं देखा, हमने समुद्र से होकर यात्रा की। हम द्वीप के दक्षिणी भाग से होकर निकले और जब तक कि हम फीनीके क्षेत्र में न पहुँचे, जो सीरिया प्रांत के सोर शहर में है, तब तक जहाज़ आगे बढ़ता रहा। जहाज़ वहाँ कई दिनों तक ठहरने जा रहा था क्योंकि इसके कर्मचारियों को जहाज़ में से माल उतारना था।
\p
\v 4 किसी ने हमें बताया कि सोर में रहनेवाले विश्वासी कहाँ रहते थे, इसलिए हम वहां गए और सात दिन तक उनके साथ रहे। क्योंकि परमेश्वर के आत्मा ने उन्हें बताया कि लोग यरूशलेम में पौलुस को पीड़ित करेंगे, उन्होंने पौलुस से कहा कि उसे वहाँ नहीं जाना चाहिए।
\s5
\v 5 परन्तु जब जहाज़ के चलने का समय था, तो हम अपने मार्ग पर यरूशलेम जाने को तैयार थे। जब हम ने सोर को छोड़ा, तो सभी पुरुष और उनकी पत्नियाँ और बच्चे समुद्र के किनारे तक हमारे साथ गए। हम सब ने रेत पर घुटने टेक कर प्रार्थना की।
\v 6 तब हम सब ने अलविदा कहा और पौलुस और हम, उसके साथी जहाज़ पर चढ़ गए, और अन्य विश्वासी अपने घरों को वापस लौट गए।
\p
\s5
\v 7 सोर छोड़ने के बाद, हम ने उस जहाज़ पर पतुलिमयिस शहर की ओर आगे बढ़ते रहे। वहाँ विश्वासी थे, और हम ने उन्हें नमस्कार किया और उस रात उनके साथ रहे।
\v 8 अगले दिन हम ने पतुलिमयिस छोड़ दिया और कैसरिया शहर के लिये रवाना हुए, जहाँ हम फिलिप्पुस के घर में रहे, जो अपना समय दूसरों को यह बताने में बिताया करता था कि यीशु के अनुयायी कैसे बनें। वह उन सात व्यक्तियों में से एक था, जिन्हें यरूशलेम में विश्वासियों ने विधवाओं की देखभाल करने के लिए चुना था।
\v 9 उसकी चार बेटियाँ थीं जिनकी शादी नहीं हुई थी। उनमें से हर एक उन संदेशों को सुनती थीं जो पवित्र आत्मा उन्हें बताते थे।
\p
\s5
\v 10 फिलिप्पुस के घर में कई दिनों तक रहने के बाद, एक विश्वासी जिसका नाम अगबुस था यहूदिया जिले से कैसरिया में आया। वह उन संदेशों को बोलता था जो पवित्र आत्मा उसे बताते थे।
\v 11 जहाँ हम थे, वहाँ आकर उसने पौलुस के कमरबंद को ले लिया। फिर उसने अपने पैरों और हाथों को उससे बाँध दिया और कहा, पवित्र आत्मा कहते हैं, 'यरूशलेम के यहूदी अगुवे इस कमरबंद के मालिक के हाथों और पैरों को इस प्रकार से बाँधेंगे, और वे उसे गैर-यहूदी लोगों के हाथों में एक बन्दी के रूप में सौंप देंगे।'
\s5
\v 12 जब हम सब ने यह सुना तो हम ने और अन्य विश्वासियों ने पौलुस से कहा, "कृपया यरूशलेम को मत जाओ!"
\v 13 परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, "कृपया रोना बंद करो और मुझे जाने से निराश करने का प्रयास मत करो! तुम क्यों रो रहे हो और मुझे जाने से रोकने का प्रयास क्यों कर रहे हो? मैं बन्दिग्रह में जाने और यरूशलेम में मरने के लिए भी तैयार हूँ क्योंकि मैं प्रभु यीशु की सेवा करता हूँ।"
\v 14 जब हमें मालूम हो गया कि वह यरूशलेम अवश्य जाएगा, तो हम ने उसे रोकने के लिए और कोई प्रयास नहीं किया। हमने कहा, "परमेश्वर की इच्छा पूरी हो!"
\p
\s5
\v 15 कैसरिया में बिताए उन दिनों के बाद, हमने अपना सामान तैयार किया और भूमि के मार्ग से यरूशलेम जाने के लिए चल दिये।
\v 16 कैसरिया के कुछ विश्वासी भी हमारे साथ आए थे। वे हमें एक व्यक्ति के घर में रहने के लिए ले गए, जिसका नाम मनासोन था। वह साइप्रस के द्वीप से था, और जब लोगों ने पहली बार यीशु के संदेश के बारे में सुनना शुरू किया, तभी उसने यीशु पर विश्वास किया था।
\p
\s5
\v 17 जब हम यरूशलेम पहुँचे, तो विश्वासियों के एक समूह ने सहर्ष हमारा अभिवादन किया।
\v 18 अगले दिन वहाँ की कलीसिया के अगुवे याकूब से बात करने के लिए पौलुस और हम सब गए। यरूशलेम की कलीसिया के सभी अन्य अगुवे भी वहाँ उपस्थित थे।
\v 19 पौलुस ने उन्हें नमस्कार किया, और फिर उसने उनको वे सब बातें बताईं जिनको परमेश्वर ने उसे गैर-यहूदी लोगों के बीच करने में सक्षम बनाया था।
\s5
\v 20 जब उन्होंने यह सुना, तो याकूब और अन्य प्राचीनों ने परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर उनमें से एक ने पौलुस से कहा, "हे भाई, तुम जानते हो कि यहाँ हम कई हजार यहूदी लोग हैं जिन्होंने प्रभु यीशु पर विश्वास किया है। इसके अतिरिक्त, तुम जानते हो कि हम सभी उन नियमों का पालन करने के लिए बहुत सावधानी से चलते हैं जो मूसा ने हमें दिये थे।
\v 21 परन्तु हमारे साथी यहूदी विश्वासियों को यह बताया गया है कि जब तुम गैर-यहूदियों के बीच में होते हो, तो तूम ने वहाँ रहने वाले यहूदियों विश्वासियों को कहा है कि वे मूसा के नियमों का पालन करना बंद कर दें। लोग कहते हैं कि तूम ने उन यहूदी विश्वासियों को कहा है कि वे अपने पुत्रो का खतना न करें और हमारे दूसरे नियमों का पालन न करें। हमें विश्वास नहीं है कि वे तुम्हारे बारे में सच कह रहे हैं।
\s5
\v 22 परन्तु हमारे साथी यहूदी विश्वासी सुनेंगे कि तुम आए हो, और वे तुमसे क्रोधित होंगे। तो तुमको कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे यह प्रकट हो कि उन्होंने जो तुम्हारे बारे में सुना है वह सच नहीं है।
\v 23 तो कृपया वैसा करो जैसा हम तुम्हें सुझाव दे रहे हैं। हमारे बीच में चार पुरुष हैं जिन्होंने परमेश्वर से एक प्रतिज्ञा की है।
\v 24 इन लोगों के साथ आराधनालय में जाओ और वहाँ आराधनालय में आराधना करने के लिये तुम्हारे और इनके लिये आवश्यक संस्कारों को करो। फिर, जब उनके लिए बलि चढ़ाने का समय होता है, तो जो भी बलिदान वे लाते हैं उसके पैसों का भुगतान कर। उसके बाद, वे यह दिखाने के लिए अपने सिरों का मूण्डन कर सकते हैं कि उन्होंने जो करने की शपथ खाई थी उसे पूरा किया है। जब लोग तुमको उन पुरुषों के साथ आराधनालय के आंगनों में देखते हैं, तो वे जान लेंगे कि तुम्हारे बारे में जो कुछ कहा गया है वह सच नहीं है। और उन सब को पता चल जाएगा कि तुम हमारे सभी यहूदी नियमों का पालन करते हो।
\s5
\v 25 गैर-यहूदी विश्वासियों के लिए, यहाँ हम यरूशलेम के प्राचीनों ने इस बारे में बात की है कि उन्हें हमारे कौन से नियमों का पालन करना चाहिए, और हमने क्या निर्णय किया है उनको यह बताने के लिये हमने उन्हें एक पत्र लिखा था। हमने लिखा था कि उन लोगों को किसी भी मूर्ति को बलिदान के रूप में चढ़ाए गए माँस को नहीं खाना चाहिए, उन्हें जानवरों का लहू नहीं खाना चाहिए और उन्हें ऐसे जानवरों का माँस नहीं खाना चाहिए, जिन्हें लोगों ने गला घोंट कर मार दिया है। हमने उन्हें यह भी बताया है कि उन्हें किसी ऐसे के साथ नहीं सोना चाहिए जिससे उन्होंने शादी नहीं की है।"
\v 26 इसलिए उन्होंने जो कुछ कहा, वह करने के लिए पौलुस सहमत हो गया, और अगले दिन उसने चार लोगों को साथ लिया, और उन्होंने एक साथ अपने आप को शुद्ध किया। उसके बाद, पौलुस आराधनालय के आंगन में गया और याजक को बताया कि उनके शुद्ध होने के दिन कब समाप्त होंगे और कब वे अपने में से हर एक के लिए बलिदान के रूप में पशुओं को लाएँगे।
\p
\s5
\v 27 जब अपने आप को शुद्ध करने के लगभग सात दिन समाप्त होने पर थे, तो पौलुस आराधनालय के आंगन में वापस आया। आसिया के कुछ यहूदियों ने उसे वहाँ देखा, और वे उस पर बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने पौलुस को पकड़ने में सहायता करने के लिए आराधनालय के आंगन में उपस्थित कई यहूदियों को बुलाया।
\v 28 वे चिल्लाए, "हे साथी इस्राएलियों, आओ और हमें इस पुरुष को दण्ड देने में हमारी सहायता करो! यह वही है जो जहाँ भी जाता है वहां के लोगों को सिखा रहा है, कि वे यहूदी लोगों से घृणा करें। वह लोगों को सिखाता है कि उन्हें अब मूसा के नियमों का पालन नहीं करना चाहिए और न ही इस पवित्र आराधनालय का सम्मान करना चाहिए। यहाँ तक कि वह गैर-यहूदियों को यहाँ हमारे आराधनालय के आंगन में भी लाया है, जिससे यह स्थान अशुद्ध हो गया है!"
\v 29 उन्होंने यह इसलिये कहा था क्योंकि उन्होंने पौलुस को त्रुफिमुस के साथ यरूशलेम में घूमते देखा था, जो एक गैर-यहूदी था। उनके नियम गैर-यहूदियों को आराधनालय में आने की अनुमति नहीं देते, और उन्हें ऐसा लगा कि पौलुस उस दिन त्रुफिमुस को आराधनालय के आंगन में ले आया था।
\s5
\v 30 पूरे शहर के लोगों ने सुना कि आराधनालय के आंगन में गड़बड़ है, और वे दौड़ते हुए वहाँ आने लगे। उन्होंने पौलुस को पकड़ा और उसे आराधनालय परिसर के बाहर घसीट कर ले गए। आराधनालय के आंगन के द्वार बंद कर दिये गए थे, ताकि लोग आराधनालय परिसर में उपद्रव न करें।
\p
\v 31 जबकि वे पौलुस को मार डालने का प्रयास कर रहे थे, तो कोई आराधनालय के पास चौकी तक दौड़ा और रोमी सरदार को बताया कि यरूशलेम में बहुत से लोग आराधनालय में उपद्रव कर रहे थे।
\s5
\v 32 सरदार ने तुरंत कुछ अधिकारियों और सैनिकों के एक बड़े समूह को ले लिया और आराधनालय परिसर जाने के लिये दौड़ा जहाँ भीड़ थी। जब लोगों की भीड़ जो चिल्ला रहे थे और पौलुस को पीट रहे थे, उन्होंने सरदार और सैनिकों को आते देखा, तो उन्होंने उसे पीटना बंद कर दिया।
\p
\v 33 वह सरदार वहाँ आया जहाँ पौलुस था और उसे पकड़ लिया। उसने सैनिकों को पौलुस के दोनों हाथों को एक जंजीर से बाँधने का आदेश दिया। फिर उसने भीड़ के लोगों से पूछा, "यह व्यक्ति कौन है, और इसने क्या किया है?"
\s5
\v 34 भीड़ के लोगों में से कुछ एक बात चिल्ला रहे थे, और दूसरे कुछ और चिल्ला रहे थे। क्योंकि वे इतनी जोर से निरन्तर चिल्लाते रहे, सरदार समझ नहीं सका कि वे क्या कह रहे थे। इसलिए उसने कहा कि पौलुस को चौकी में ले जाया जाए ताकि वह वहाँ पर उससे प्रश्न कर सके।
\v 35 सैनिक पौलुस को लेकर चौकी की सीढ़ियों पर गए, परन्तु बहुत से लोग पौलुस को मार डालने के प्रयास में उसका पीछा करते रहे। इसलिए सरदार ने सैनिकों से कहा कि वह पौलुस को सीढ़ियों पर से चौकी में ले जाएँ।
\v 36 उसका पीछा करने वाली भीड़ लगातार चिल्लाती रही, "उसे मार डालो! उसे मार डालो!"
\p
\s5
\v 37 जब पौलुस को चौकी में ले जाया जा रहा था, उसने यूनानी भाषा में सरदार से कहा, "क्या मैं तुमसे बात कर सकता हूँ?" सरदार ने कहा, "मुझे आश्चर्य है कि तू यूनानी भाषा बोल सकता है!
\v 38 मैंने सोचा था कि तू मिस्र का वह व्यक्ति है जो कुछ समय पहले सरकार के विरुद्ध विद्रोह करना चाहता था, और जो चार हजार हिंसक पुरुषों को अपने साथ रेगिस्तान में ले गया, ताकि हम उसे पकड़ न सकें।
\s5
\v 39 पौलुस ने उत्तर दिया, "नहीं, मैं वह नहीं हूँ, मैं एक यहूदी हूँ। मैं तरसुस में पैदा हुआ था, जो किलिकिया प्रांत का एक महत्वपूर्ण शहर है। मैं तुझसे अनुरोध करता हूँ कि तू मुझे लोगों से बात करने दे।"
\v 40 तब सरदार ने पौलुस को बात करने की अनुमति दी। इसलिए पौलुस सीढ़ियों पर खड़ा हो गया और लोगों को चुप रहने के लिए अपने हाथ से इशारा किया। और जब भीड़ में लोग शांत हो गए, तो उनकी इब्रानी भाषा में पौलुस ने उनसे बात की।
\s5
\c 22
\p
\v 1 पौलुस ने कहा, "हे यहूदी अगुवों और मेरे साथी यहूदियों, अब मेरी बात सुनो जब मैं उनसे बात करता हूँ जो मुझ पर आरोप लगा रहे हैं!"
\v 2 जब लोगों की भीड़ ने पौलुस को अपनी इब्रानी भाषा में उनसे बोलते हुए सुना, तो वे चुप हो गए और सुनने लगे। तब पौलुस ने उनसे कहा,
\s5
\v 3 "मैं एक यहूदी हूँ, जैसा कि तुम सब हो। मैं किलिकिया प्रांत के तरसुस शहर में पैदा हुआ था, लेकिन मैं यहाँ यरूशलेम में बड़ा हुआ था। जब मैं छोटा था, तब मैंने उन नियमों को सीखा जो मूसा ने हमारे पूर्वजों को दिए थे। गमलीएल मेरा शिक्षक था। मैंने उन नियमों का पालन किया क्योंकि मैं परमेश्वर की आज्ञा मानना चाहता था, और मुझे निश्चय है कि तुम सब भी उन नियमों का पालन करते हो।
\v 4 इसीलिए मैंने उन लोगों को गिरफ्तार करने का प्रयास किया जिन्होंने यीशु के बारे में परमेश्वर के संदेश पर विश्वास किया था। मैंने उन्हें मार डालने की विधियों की खोज की। जब भी मुझे ऐसे पुरुष या स्त्रीयां मिले जिन्होंने संदेश पर विश्वास किया था, मैंने उन्हें बन्दिग्रह में डाल दिया।
\v 5 महायाजक और अन्य लोग भी जो हमारी यहूदी परिषद से सम्बन्धित हैं, इस बात को जानते हैं। उन्होंने मुझे दमिश्क शहर में उनके साथी यहूदियों के पास जाने के लिए पत्र दिए। उन पत्रों में मुझे वहाँ जाकर यीशु पर विश्वास करने वाले लोगों को गिरफ्तार करने का अधिकार दिया गया था। तब मुझे उन्हें बन्दी बनाकर यरूशलेम में लेकर आना था, ताकि उन्हें यहाँ दण्ड दिया जाए।
\p
\s5
\v 6 तो मैं दमिश्क गया। लगभग दोपहर को, जैसे ही मैं दमिश्क के पास पहुँचा, अचानक आकाश से एक तीव्र प्रकाश मेरे चारों ओर चमका।
\v 7 वह प्रकाश इतना उज्ज्वल था कि मैं भूमि पर गिर पड़ा। फिर मैंने आकाश से किसी की आवाज़ को सुना, जो मुझसे बात कर रहे थे, यह कह कर, 'हे शाऊल! हे शाऊल! तू मुझे दु:ख देने के लिए काम क्यों करता है? '
\v 8 मैंने उत्तर दिया, 'हे प्रभु, आप कौन हैं?' उन्होंने उत्तर दिया, 'मैं नासरत का यीशु हूँ जिसे तू चोट पहुँचा रहा है।'
\s5
\v 9 मेरे साथ यात्रा करने वाले पुरूषों ने तीव्र प्रकाश तो देखा, परन्तु वे समझ नहीं पाए कि आवाज ने क्या कहा।
\v 10 तब मैंने पूछा, 'हे प्रभु, आप मुझसे क्या करवाना चाहते हैं?' प्रभु ने मुझसे कहा, 'उठ और दमिश्क में जा। वहाँ एक व्यक्ति तुझे सब बताएगा कि मैंने तुम्हारे लिए क्या करने की योजना बनाई है।'
\v 11 उसके बाद, मैं नहीं देख सकता था, क्योंकि उस तीव्र प्रकाश ने मुझे अंधा बना दिया था। इसलिए मेरे साथ वाले लोग मेरा हाथ पकड़कर मुझे दमिश्क ले गए।
\s5
\v 12 एक व्यक्ति मुझसे मिलने आया जिसका नाम हनन्याह था। वह एक ऐसा व्यक्ति था जो परमेश्वर का आदर करता था और यहूदी नियमों का पालन करता था। दमिश्क में रहने वाले सब यहूदियों ने उसके बारे में अच्छी बातें कहीं।
\v 13 वह आया और मेरे पास खड़ा हो गया और मुझसे कहा, 'मेरे मित्र शाऊल, फिर से देखने लग !' मैं तुरन्त देखने लगा और मैंने उसे मेरे पास खड़े देखा।
\s5
\v 14 फिर उसने कहा: 'जिस परमेश्वर की हम आराधना करते हैं और जिनकी हमारे पूर्वजों ने आराधना की है उन्होंने तुझे चुना है और वह तुझे दिखाएँगे कि वे तुझसे क्या करवाना चाहते हैं। उन्होंने तुझे यीशु मसीह को दिखाया है जो धर्मी हैं, और तुने स्वयं उन्हें बाते करते सुना है।
\v 15 वह चाहते हैं कि तू ने जो देखा और सुना है उसे स्थानों के लोगो को बता।
\v 16 तो अब देरी मत कर! खड़ा हो जा, मुझे तुझे बपतिस्मा देने दे, और प्रभु यीशु से प्रार्थना करने दे और परमेश्वर से कहने दे कि वे तुझे तेरे पापों के लिए क्षमा कर दें।
\p
\s5
\v 17 "बाद में, मैं यरूशलेम लौट आया। एक दिन मैं आराधनालय के आंगन में गया और जब मैं वहाँ प्रार्थना कर रहा था, तो मैंने एक दर्शन देखा।
\v 18 प्रभु ने मुझसे कहा, 'यहाँ रुका ना रह! यरूशलेम को अब छोड़ दे, क्योंकि जो तू मेरे बारे में यहाँ के लोगों को बताएगा उस पर वे विश्वास नहीं करेंगे!'
\s5
\v 19 परन्तु मैंने प्रभु से कहा, हे प्रभु, वे जानते हैं कि मैं उन लोगों की जो आप पर विश्वास करते हैं, खोज में उनके अनेक आराधनालयों में गया था। मैं उन लोगों को बन्दिग्रह में डाल रहा था जिन्हें मैंने पाया कि उन्होंने आप पर विश्वास किया है, और यहाँ तक कि मैं उनको पीट भी रहा था।
\v 20 उन्हें याद है कि जब स्तिफनुस को मार डाला था, क्योंकि उसने लोगों को आपके बारे में बताया था, मैं वहाँ खड़ा हुआ देख रहा था और जो वे कर रहे थे उसे सहमति दे रहा था। यहाँ तक कि जो लोग उसकी हत्या कर रहे थे, मैंने उन लोगों के फेंके हुए बाहरी कपड़ों की रखवाली की!
\v 21 परन्तु प्रभु ने मुझ से कहा, नहीं, यहाँ नहीं रुकना। यरूशलेम को छोड़ दे, क्योंकि मैं तुझे यहाँ से बहुत दूर दूसरे लोगों के समूह, गैर-यहूदियों के पास भेजने वाला हूँ।"
\p
\s5
\v 22 पौलुस जो कह रहा था उसे लोगों ने सुना जब तक कि उसने अन्य जातियों में भेजे जाने के बारे में बात नहीं की। फिर उन्होंने चिल्लाना शुरू कर दिया, "उसे मार डालो! उसे अब जीने का अधिकार नहीं है!"
\v 23 जब वे चिल्ला रहे थे, तो उन्होंने अपने बाहरी कपड़े उतार दिए और धूल को हवा में फेंका, जिससे प्रकट होता था कि वे कितने क्रोधित थे।
\v 24 इसलिए अगुवे ने आज्ञा दी कि पौलुस को बन्दिग्रह में ले जाया जाए। उसने सैनिकों से कहा कि उन्हें पौलुस को कोड़े मारने चाहिए ताकि वह बताए कि उसने ऐसा क्या किया था जिससे उसने यहूदियों को इतना क्रोध दिलाया था।
\s5
\v 25 तब उन्होंने उसके हाथों को आगे बढ़ाकर उन्हें बांध दिया ताकि वे उसकी पीठ पर कोड़े मार सकें। परन्तु पौलुस ने उसके पास के सैनिक से कहा, "यदि तुम मुझे एक रोमी नागरिक को, जिस पर किसी ने भी मुकदमा नहीं चलाया और न ही अपराधी ठहराया है, मारते हो, तो तुम कानून के विरोध में काम करोगे!"
\v 26 जब अधिकारी ने यह सुना तो वह सरदार के पास गया और उसे इसकी सूचना दी। उसने सरदार से कहा, "यह व्यक्ति एक रोमी नागरिक है! तुम उसे कोड़े मारने के लिए हमें आज्ञा नहीं दोगे!"
\s5
\v 27 जब उसने यह सुना, तब सरदार आश्चर्यचकित हुआ। वह स्वयं बन्दिग्रह में गया और पौलुस से कहा, "मुझे बता, क्या तू वास्तव में एक रोमी नागरिक है?" पौलुस ने उत्तर दिया, "हाँ, मैं हूँ।"
\v 28 तब सरदार ने कहा, "मैं भी एक रोमी नागरिक हूँ। मैंने रोमी नागरिक बनने के लिए बहुत पैसे दिए हैं।" पौलुस ने कहा, "लेकिन मैं जन्म से ही एक रोमी नागरिक हूँ।"
\v 29 सैनिक पौलुस को कोड़े मारने और उससे सवाल पूछने ही वाले थे कि उसने क्या किया था। परन्तु जब पौलुस ने जो कहा वह उन्होंने सुना, तो उन्होंने उसे छोड़ दिया। सरदार भी डर गया, क्योंकि वह जानता था कि पौलुस एक रोमी नागरिक था और जब उसने सैनिकों को पौलुस के हाथों को बांधने का आदेश दिया था तो उसने कानून का उल्लंघन किया था ।
\p
\s5
\v 30 सरदार अब भी जानना चाहता था कि यहूदी पौलुस पर क्यों आरोप लगा रहे थे। इसलिये अगले दिन उसने सैनिकों से पौलुस की जंजीरें खोल देने के लिए कहा। उसने प्रधान याजकों और अन्य परिषद के सदस्यों को भी मिलने के लिए बुलाया था। तब वह पौलुस को वहाँ ले गया जहाँ परिषद की बैठक हो रही थी और उससे उनके सामने खड़े होने के लिये कहा।
\s5
\c 23
\p
\v 1 पौलुस ने यहूदी परिषद के सदस्यों को देखा और कहा: "मेरे साथी यहूदियों, मैंने अपने परमेश्वर का सम्मान करते हुए अपना सारा जीवन व्यतीत किया है, और मुझे ऐसा कुछ भी नहीं पता है कि जो मैंने किया, वह गलत था।"
\v 2 जब हनन्याह महायाजक ने पौलुस की बात सुनी, तो उसने उन लोगों से जो पौलुस के पास खड़े थे कहा कि उसके मुँह पर थप्पड़ मारो।
\v 3 तब पौलुस ने हनन्याह से कहा, "हे ढोंगी, परमेश्वर तुझे उस काम के लिए दण्ड देंगे! तू वहाँ बैठता है और परमेश्वर द्वारा मूसा को दिये गए नियमों के द्वारा मेरा न्याय करता है। लेकिन तू स्वयं उन नियमों का पालन नहीं करता, क्योंकि तूने बिना सिद्ध किये हुए कि मैंने कुछ भी ऐसा किया है जो गलत है, मुझे थप्पड़ मारने की आज्ञा दी है! "
\s5
\v 4 जो लोग पौलुस के समीप खड़े थे, उन्होंने उससे कहा, "तुझे, परमेश्वर के सेवक, हमारे महायाजक को बुरा नहीं बोलना चाहिए!"
\v 5 पौलुस ने उत्तर दिया, "मेरे साथी यहूदियों, मुझे खेद है कि मैंने ऐसा कहा। मुझे नहीं पता था कि वह व्यक्ति जिसने तुम में से एक से कहा कि मुझे थप्पड़ मारे, वह महायाजक है। अगर मुझे यह पता होता, तो मैं हमारे महायाजक के बारे में बुरा नहीं बोलता, क्योंकि मुझे पता है कि हमारे यहूदी व्यवस्था में यह लिखा है, 'अपने किसी भी शासक के बारे में बुरा मत बोलो।'
\p
\s5
\v 6 पौलुस को पता था कि परिषद के कुछ सदस्य सदूकी थे और अन्य फरीसी थे। इसलिए उसने परिषद भवन में कहा, "मेरे साथी यहूदीयों, मैं फरीसी हूँ, और मेरे परिवार में भी सभी फरीसी थे। यहाँ मुझ पर मुकदमा चलाया जा रहा है क्योंकि मुझे यकीन है कि एक दिन परमेश्वर उन लोगों को जो मर गए हैं फिर से जीवित कर देंगे।"
\v 7 जब उसने यह कहा, फरीसियों और सदूकियों ने एक दूसरे के साथ बहस करना शुरू कर दिया कि जो लोग मर चुके हैं क्या वे फिर से जीवित हो जाएँगे या नहीं, और उनमें से प्रत्येक जन दूसरे के साथ विवाद कर रहे थे।
\v 8 सदूकियों का मानना है कि लोगों के मरने के बाद, वे फिर से जीवित नहीं होंगे। वे यह भी मानते हैं कि स्वर्गदूत नहीं हैं और अन्य आत्माएँ नहीं हैं। परन्तु फरीसी इन सब बातों पर विश्वास करते थे।
\s5
\v 9 विवाद करते हुए उन्होंने एक दूसरे पर चिल्लाना शुरू कर दिया। व्यवस्था के कुछ शिक्षक जो फरीसी थे, उठ खड़े हुए। उनमें से एक ने कहा, "हमें लगता है कि इस व्यक्ति ने कुछ भी गलत नहीं किया है। हो सकता है कि एक स्वर्गदूत या किसी अन्य आत्मा ने उससे बात की और जो वह कहता है सच है।"
\v 10 फिर फरीसी और सदूकी एक-दूसरे के साथ हिंसक हो गए। इसलिए सरदार को डर था कि वे पौलुस को टुकड़े टुकड़े कर देंगे। उसने सैनिकों से कहा कि वे बन्दिग्रह ले जाकर पौलुस को परिषद के सदस्यों के पास से निकाल कर ऊपर सैनिकों की छावनी में ले आएँ।
\p
\s5
\v 11 उस रात, पौलुस ने देखा कि प्रभु यीशु आये और उसके पास खड़े हो गए। प्रभु ने उस से कहा, "साहस रख! तूने यहाँ यरूशलेम में लोगों को मेरे बारे में बताया है, और तुझे रोम के लोगों को भी मेरे बारे में बताना होगा।"
\p
\s5
\v 12 अगली सुबह पौलुस से घृणा करने वाले कुछ यहूदियों ने भेंट की और उसे मारने के बारे में बातचीत की। उन्होंने स्वयं से कहा था कि जब तक वह मर नहीं जाएगा, तब तक वे कुछ भी नहीं खाएँगे या पीएँगे। उन्होंने परमेश्वर से उनको शाप देने के लिए कहा, यदि उन्होंने अपनी शपथ पूरी नही की।
\v 13 वे चालीस से अधिक लोग थे जो पौलुस को मारना चाहते थे।
\s5
\v 14 वे प्रधान याजकों और यहूदी प्राचीनों के पास गए और उनसे कहा, "परमेश्वर ने हमें यह शपथ खाते सुना है कि जब तक हम पौलुस को मार न डालें तब तक हम कुछ नहीं खाएँगे या पीएँगे।
\v 15 तो हम तुमसे अनुरोध करते हैं कि तुम सरदार के पास जाओ और यहूदी परिषद की ओर से उससे कहो, कि पौलुस को हमारे पास लाए। सरदार को बताओ कि तुम पौलुस से थोड़ी बात और करना चाहते हो। जब वह यहाँ आने के मार्ग पर होगा तो हम पौलुस को मार डालने के लिये इसकी प्रतीक्षा करेंगे।"
\p
\s5
\v 16 लेकिन पौलुस की बहन के पुत्र ने सुन लिया कि वे क्या करने की योजना बना रहे थे, इसलिए वह गढ़ में गया और पौलुस को बता दिया।
\v 17 जब पौलुस ने यह सुना, तो उसने अधिकारियों में से एक को बुलाया और उससे कहा, "कृपया इस युवक को सरदार के पास ले जाओ, क्योंकि यह उसको कुछ बताना चाहता है।"
\s5
\v 18 तो अधिकारी उस जवान पुरुष को सरदार के पास ले गया। अधिकारी ने सरदार से कहा, "कैदी पौलुस ने मुझे बुलाया और कहा, 'कृपया इस जवान पुरुष को सरदार के पास ले जाओ, क्योंकि यह उसको कुछ बताना चाहता है।'"
\v 19 सरदार ने जवान पुरुष को हाथ से पकड़कर, उसे अपने साथ लेकर चला गया, और उससे पूछा, "तू मुझको क्या बताना चाहता है?"
\s5
\v 20 उसने कहा, "कुछ यहूदी लोग हैं जो कल पौलुस को अपनी परिषद के सामने ले जाना चाहते हैं। वे कहेंगे कि वे उससे थोड़े और सवाल पूछना चाहते हैं। लेकिन यह सच नहीं है।
\v 21 जो काम करने के लिए वे तुमसे कहते हैं, वह मत करना, क्योंकि वहाँ चालीस से अधिक यहूदी लोग हैं, जो छिपे बैठे होंगे और परिषद जाने वाले मार्ग से होकर जाते हुए पौलुस को मारने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यहाँ तक कि उन्होंने परमेश्वर से शपथ खाई है कि जब तक वे पौलुस की हत्या नहीं करते, तब तक वे कुछ भी नहीं खाएँगे या पीएँगे। वे इसे करने के लिए तैयार हैं, और अभी वे तुम्हारे सहमत होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि तू वह करे जो वे तुझसे करने को कह रहे हैं।"
\s5
\v 22 सरदार ने जवान पुरुष से कहा, "किसी को भी नहीं बताना कि तूने मुझे उनकी योजना के बारे में बताया है।" फिर उसने उस जवान पुरुष को भेज दिया।
\p
\v 23 तब सरदार ने अपने दो अधिकारियों को बुलाकर कहा, "दो सौ सैनिकों के एक समूह को यात्रा करने के लिये तैयार करो। सत्तर घोड़ों की सवारी करने वाले सैनिकों को, और दो सौ अन्य भाले वाले सैनिकों को साथ में लो। तुम सभी को आज रात नौ बजे कैसरिया शहर में जाने के लिए निकलने को तैयार रहना है।
\v 24 और पौलुस को सवारी करने के लिए घोड़े साथ लो, और उसे सुरक्षित राज्यपाल फेलिक्स के महल में ले जाओ।"
\s5
\v 25 तब सरदार ने राज्यपाल को भेजने के लिए एक पत्र लिखा। जो उसने लिखा वह यह है:
\v 26 "मैं क्लौदियुस लूसियास तुम्हें पत्र लिख रहा हूँ। तू, फेलिक्स, हमारा राज्यपाल है जिसका हम सम्मान करते हैं, और मैं तुझको मेरा नमस्कार भेजता हूँ।
\v 27 मैंने तेरे पास इस व्यक्ति, पौलुस को भेजा है, क्योंकि कुछ यहूदियों ने उसे पकड़ लिया था और उसे मारने डालने वाले थे। लेकिन मैंने सुना, किसी ने मुझे बताया कि वह एक रोमी नागरिक है, इसलिए मैंने और मेरे सैनिकों ने जाकर उसे बचाया।
\s5
\v 28 मैं यह जानना चाहता था कि ये यहूदी क्या कह रहे थे कि उसने क्या गलत किया था, इसलिए मैं उसे उनकी यहूदी परिषद में ले गया।
\v 29 जब उन्होंने इस व्यक्ति से सवाल पूछे और इसने उन्हें उत्तर दिया, मैं सुना रहा था। जिन बातों के लिये उन्होंने इस पर आरोप लगाया था वह उनके यहूदी कानूनों के बारे में था। लेकिन पौलुस ने हमारे किसी भी रोमी कानून का उल्लंघन नहीं किया है। इसलिए हमारे अधिकारियों को उसको नहीं मारना चाहिए या उसे बन्दिग्रह में भी नहीं डालना चाहिए।
\v 30 किसी ने मुझे बताया कि कुछ यहूदी इस व्यक्ति को मारने की योजना बना रहे थे, इसलिए मैंने इसे तुम्हारे पास भेजा है, ताकि तू वहाँ उसे एक निष्पक्ष सुनवाई दे सके। मैंने उन यहूदियों को भी आज्ञा दी है जिन्होंने उस पर आरोप लगाया है कि वहाँ कैसरिया में जाएँ और तुझको बताएँ कि वे किस बारे में उस पर आरोप लगा रहे हैं। अलविदा।"
\p
\s5
\v 31 अत: सरदार ने जो कुछ उनसे कहा था, सैनिकों ने किया। वे पौलुस को लेकर रात के समय ही अन्तिपत्रिस चले गए।
\v 32 अगले दिन, पैदल सैनिक यरूशलेम को लौट आए, और जो सैनिक घोड़ों पर सवार थे वे पौलुस के साथ चले गए।
\v 33 जब वे कैसरिया शहर में आए, तो उन्होंने राज्यपाल को पत्र दिया, और उन्होंने पौलुस को उसके सामने खड़ा किया।
\s5
\v 34 राज्यपाल ने पत्र पढ़ा और फिर उसने पौलुस से कहा, "तू किस प्रांत से है?" पौलुस ने उत्तर दिया, "मैं किलिकिया से हूँ।"
\v 35 तब राज्यपाल ने कहा, "जब वे लोग जो तुझ पर आरोप लगाते हैं आएंगे, तो मैं तुम में से हर एक की बात को सुनूँगा और फिर मैं तुम्हारे मामले का न्याय करूँगा।" तब उसने आज्ञा दी कि पौलुस उस महल में निगरानी में रखा जाएगा जो महान राजा हेरोदेस ने बनाया था।
\s5
\c 24
\p
\v 1 पाँच दिन बाद, हनन्याह महायाजक यरूशलेम से कुछ अन्य यहूदी प्राचीनों और एक भाषण देने वाले तिरतुल्लुस नाम के व्यक्ति के साथ वहाँ गया। वहाँ उन्होंने राज्यपाल को बताया कि पौलुस ने क्या किया था, जिसके कारण उन्होंने सोचा था कि वह गलत है।
\v 2 राज्यपाल ने आज्ञा दी कि पौलुस को भीतर लाया जाए। जब पौलुस आ गया तो तिरतुल्लुस ने उस पर आरोप लगाना शुरू किया। उसने राज्यपाल से कहा, "माननीय राज्यपाल फेलिक्स, जितने वर्ष तूने हम पर शासन किया है, हम ने अच्छी तरह से जीवन जिया है। बुद्धिमानी से योजना बनाकर, तूने इस प्रांत में कई बातों में सुधार किया है।
\v 3 इसलिए, राज्यपाल फेलिक्स, हम उन सब कामों के लिए सदैव तुम्हारा धन्यवाद करते हैं जो तूने हम सब के लिए किये हैं।
\s5
\v 4 परन्तु मैं तेरा बहुत समय नहीं लूँगा, मैं तुझ से विनती करता हूँ कि जो मुझे कहना है कृपया तू मेरी बात सुने।
\v 5 हमने देखा है कि यह व्यक्ति, जहाँ भी जाता है, यहूदियों के लिए परेशानी उत्पन्न करता है। वह उस पूरे समूह का नेतृत्व भी करता है जिनको लोग नासरी के अनुयायी कहते हैं।
\v 6 उसने यरूशलेम के आराधनालय में ऐसे कामों को करने का प्रयास भी किया की, जिससे वह दूषित हो जाए, इसलिए हमने उसे गिरफ्तार कर लिया।
\s5
\v 8 यदि तू स्वयं उससे प्रश्न करे, तो तू यह जान पाएगा कि यह सब बातें जिनके बारे में हम उस पर आरोप लगा रहे हैं वे सच हैं।
\v 9 तब वहाँ यहूदी अगुवों ने राज्यपाल को बताया कि तिरतुल्लुस ने जो कहा था, वह सच था।
\p
\s5
\v 10 तब राज्यपाल ने अपने हाथ से संकेत करके पौलुस को कहा कि उसे बोलना चाहिए। अत: पौलुस ने उत्तर दिया, "राज्यपाल फेलिक्स, मुझे पता है कि तूने इस यहूदी प्रांत का कई सालों से न्याय किया है। इसलिए मैं सहर्ष अपना बचाव करता हूँ। मुझे पता है कि तू मेरी बात सुनेगा और मेरे साथ उचित न्याय करेगा।
\v 11 तू जानता है कि बारह दिनों से अधिक समय नहीं हुआ है जब मैं यरूशलेम में परमेश्वर की आराधना करने गया था।
\v 12 कोई भी यह नहीं कह सकता कि उन्होंने मुझे आराधनालय के आंगन में किसी के साथ विवाद करते देखा क्योंकि मैंने ऐसा नहीं किया था। कोई भी यह नहीं कह सकता कि उन्होंने मुझे किसी यहूदी आराधनालय में लोगों को दंगा करने के लिये भड़काते या यरूशलेम में कहीं और परेशानी खड़ी करते देखा, क्योंकि मैंने ऐसा नहीं किया।
\v 13 इसलिये वे उन बातों को सिद्ध नहीं कर सकते हैं जिनके बारे में वे अब मुझ पर आरोप लगा रहे हैं।
\s5
\v 14 लेकिन मैं तुम्हारे सामने स्वीकार करता हूँ कि यह सच है: मैं परमेश्वर की आराधना करता हूँ जिनकी हमारे पूर्वजों ने आराधना की थी। यह सच है कि यीशु ने हमें जो सिखाया है, मैं उसका अनुसरण करता हूँ। मुझे उन सब बातों पर भी विश्वास है जो मूसा ने उन नियमों में लिखीं जिसे परमेश्वर ने उसे दिया था और उन सब बातों पर जो अन्य भविष्यद्वक्ताओं ने अपनी पुस्तकों में लिखीं हैं।
\v 15 मैं विश्वास करता हूँ, जैसे इन लोगों को भी विश्वास है, कि किसी दिन परमेश्वर उन सभी को जो मर चुके हैं फिर से जीवित करेंगे, दोनों को जो अच्छे थे और जो दुष्ट थे।
\v 16 क्योंकि मैं विश्वास करता हूँ, कि वह दिन आएगा, इसलिए मैं हमेशा परमेश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करता हूँ और अन्य लोग सोचते हैं कि वे काम सही है।
\s5
\v 17 मैं कई सालों तक अन्य स्थानों में रहने के बाद, अपने साथी यहूदियों के लिये जो गरीब हैं कुछ पैसे लेकर यरूशलेम लौटा।
\v 18 आसिया के कुछ यहूदियों ने मुझे आराधनालय के आंगन में देखा था जब मेरे धार्मिक संस्कार पूरे हुए जो किसी को भी परमेश्वर की आराधना करने के लिए अनुमति मिलती है। मेरे साथ कोई भीड़ नहीं थी, और मैं लोगों को दंगा के लिए भड़का नहीं रहा था।
\v 19 लेकिन ये वही यहूदी थे जिन्होंने लोगों को उपद्रव करने के लिये भड़काया था। यदि उन्हें लगता है कि मैंने कुछ गलत किया हो उन्हें यहाँ तेरे सामने मुझ पर आरोप लगाने के लिए होना चाहिए।
\s5
\v 20 परन्तु अगर वे ऐसा नहीं करना चाहते हैं, तो ये यहूदी व्यक्ति जो यहाँ हैं उन्हें तुझे बताना चाहिए कि उनके विचारों में क्या सोचते हैं कि मैंने गलत किया है, जब मैंने उनकी परिषद में स्वयं का बचाव किया था।
\v 21 वे कह सकते हैं कि मैंने कुछ गलत किया जब मैं चिल्लाया, 'आज तुम मेरा न्याय कर रहे हो क्योंकि मैं विश्वास करता हूँ कि परमेश्वर उन सब लोगों को जो मर गए हैं फिर से जीवित कर देंगे।'
\p
\s5
\v 22 फेलिक्स पहले से ही उस पंथ के बारे में बहुत कुछ जानता था जिसे लोग मार्ग कहते थे, और इसलिए उसने मुकदमे को रोक दिया। उसने उनसे कहा, "बाद में, जब सरदार लूसियास यहाँ आएगा, तो मैं इस मामले का निर्णय करूँगा।"
\v 23 फिर उसने पौलुस की निगरानी करने वाले अधिकारी से कहा कि पौलुस को बन्दिग्रह लौटा ले जाए, कि पौलुस की हर समय निगरानी सुनिश्चित की जाए। लेकिन उसने कहा कि पौलुस को जंजीर में न बाँधा जाए, और अगर उसके मित्र उससे मिलने आए, तो अधिकारी को उन्हें किसी भी प्रकार से पौलुस की सहायता करने की अनुमति दे।
\p
\s5
\v 24 कई दिन बाद फेलिक्स अपनी पत्नी द्रूसिल्ला के साथ जो एक यहूदी थी वापस आ गया, और पौलुस को उसके साथ बात करने के लिए बुलाया। यीशु मसीह पर भरोसा करने के बारे में पौलुस ने उससे जो कहा, फेलिक्स ने सुना।
\v 25 पौलुस ने उसके सामने भी वही कहा कि परमेश्वर क्या चाहते हैं कि लोग करें और वह प्रसन्न हो। उसने उसे यह भी समझाया कि लोगों को किस प्रकार अपने कामों पर नियंत्रण करना चाहिए क्योंकि एक ऐसा समय आएगा जब परमेश्वर सब लोगों का न्याय करेंगे। फेलिक्स उन बातों को सुनकर डर गया, इसलिये उसने पौलुस से कहा, "अभी के लिये मैं बस इतना ही सुनना चाहता हूँ। जब मेरे पास समय होगा, तब मैं तुम्हें फिर से मेरे पास आने को कहूँगा।"
\s5
\v 26 फेलिक्स आशा कर रहा था कि पौलुस उसे कुछ पैसे देगा, इसलिए उसने कई बार पौलुस को अपने सामने बुलवाया। पौलुस ने कई बार फेलिक्स से बात की, परन्तु उसने फेलिक्स को कोई पैसा नहीं दिया, और फेलिक्स पौलुस को बन्दिग्रह से मुक्त करने के लिये सैनिकों को आज्ञा नहीं दी।
\p
\v 27 दो वर्ष बीत जाने पर, फेलिक्स के स्थान पर पुरकियुस फेस्तुस राज्यपाल बन गया। फेलिक्स ने पौलुस को बन्दिग्रह में रख छोड़ा था क्योंकि वह यहूदी अगुवों को खुश करना चाहता था।
\s5
\c 25
\p
\v 1 फेस्तुस ने प्रांत का राज्यपाल होकर शासन करना शुरू किया। तीन दिन बाद, वह कैसरिया शहर से निकल कर यरूशलेम को चला गया।
\v 2 वहाँ, प्रधान याजकों और अन्य यहूदी अगुवे फेस्तुस के समक्ष खड़े हुए और कहा कि पौलुस ने जो काम किये थे वे बहुत गलत थे।
\v 3 उन्होंने फेस्तुस से कहा कि पौलुस को तुरंत यरूशलेम में लाकर मुकदमा चलाया जाए। परन्तु वे वास्तव में उस पर मार्ग में ही आक्रमण कर उसे मार डालने की योजना बना रहे थे।
\s5
\v 4 फेस्तुस ने उत्तर दिया, "पौलुस कैसरिया में निगरानी में है, उसे वहाँ रहने दो। मैं स्वयं शीघ्र ही कैसरिया जाऊँगा।"
\v 5 "इसलिये," उसने कहा, "जो लोग ऐसा करने में सक्षम हैं, उन्हें वहाँ मेरे साथ आना चाहिए। अगर तुम्हारे पास पौलुस पर आरोप लगाने के लिए कुछ है, तो तुम इसे वहाँ कह सकते हैं।"
\p
\s5
\v 6 फेस्तुस आराधनालय के अगुवों के साथ यरूशलेम में आठ या दस दिनों तक और रहा। फिर वह कैसरिया शहर में वापस चला गया। अगले दिन फेस्तुस ने आदेश दिया कि पौलुस को उसके पास लाया जाए, जहाँ वह न्यायाधीश के आसन पर बैठा था।
\v 7 पौलुस को न्यायाधीश के आसन के सामने प्रस्तुत करने के बाद, यहूदी अगुवे, जो यरूशलेम से आए थे, उस पर कई गम्भीर आरोप लगाने के लिए उसके आस-पास इकट्ठा हो गए, लेकिन वे उन आरोपों में से किसी को भी सिद्ध नहीं कर पाए।
\v 8 तब पौलुस ने स्वयं का बचाव करते हुए कहा। उसने कहा, "मैंने न तो यहूदियों के कानून के विरुद्ध और न आराधनालय के विरुद्ध और न सम्राट के विरुद्ध कुछ भी किया है।"
\s5
\v 9 परन्तु फेस्तुस यहूदी अगुवों को प्रसन्न करना चाहता था, इसलिये उसने पौलुस से पूछा, "क्या तू यरूशलेम को जाने के लिए तैयार है, कि वहाँ मैं इन बातों के बारे में तेरा न्याय कर सकूँ?"
\v 10 पौलुस ने उत्तर दिया, "नहीं, मैं अभी तेरे सामने खड़ा हूँ, जो सम्राट का प्रतिनिधित्व करता है। इसी जगह पर मेरा न्याय होना चाहिए। जैसा कि तू भलीभांति जानता है कि मैंने यहूदी लोगों के साथ कुछ भी गलत नहीं किया है।
\s5
\v 11 यदि मैंने मृत्यु के योग्य कुछ किया होता, तो मैं मरने से मना नहीं करता; परन्तु उन्होंने मुझ पर जो आरोप लगायें हैं, उसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जिसके लिये मृत्यु दण्ड मिले। उन्हें संतुष्ट करने के लिए मुझे अपराधी नहीं ठहराया जा सकता। मैं कहता हूँ कि कैसर स्वयं मेरा न्याय करे।"
\v 12 अपने सलाहकारों से बातचीत करने के बाद फेस्तुस ने कहा, "तुमने कैसर की दोहाई दी है, और इसलिये तुम्हें कैसर के पास ही जाना होगा।"
\p
\s5
\v 13 कई दिनों के बाद, हेरोदेस अग्रिप्पा अपनी बहन बिरनीके के साथ कैसरिया में पहुँचा। वे फेस्तुस के प्रति अपना सम्मान प्रगट करने आए थे।
\v 14 राजा अग्रिप्पा और बिरनीके कैसरिया में कई दिनों तक रहे। कुछ समय बीत जाने के बाद, फेस्तुस ने अग्रिप्पा को पौलुस के बारे में बताया। उसने कहा, "यहाँ एक व्यक्ति है जिसे फेलिक्स बन्दिग्रह में छोड़ गया है।
\v 15 जब मैं यरूशलेम गया, तो प्रधान याजकों और यहूदी अगुवे मेरे सामने आए और मुझसे कहा की मैं उसे मृत्युदण्ड का अपराधी ठहराऊँ।
\v 16 लेकिन मैंने उनसे कहा कि जब किसी व्यक्ति पर गम्भीर अपराध का आरोप लगाया जाता है, तो रोम में उस व्यक्ति को तुरंत अपराधी ठहराने की कोई व्यवस्था नहीं है। इसकी अपेक्षा, हम अभियुक्त को आरोप लगाने वालों के सामने खड़ा होने और उनके आरोपों के विरुद्ध अपना बचाव करने की अनुमति देते हैं।
\s5
\v 17 इसलिए जब वे यहूदी यहाँ कैसरिया में आए थे, तो मैंने मुकदमा सुनने में बिल्कुल भी देरी नहीं की। उनके आने के एक दिन बाद, मैं न्यायाधीश के आसन पर बैठ गया और सुरक्षाकर्मियों को आदेश दिया कि वे बन्दी को उपस्थित करें।
\v 18 लेकिन जब यहूदी अगुवों ने मुझे बताया कि कैदी ने क्या गलत किया है, तो मुझे नहीं लगा कि जो कुछ भी उन्होंने कहा वह गंभीर था।
\v 19 इसके अतिरिक्त, वे उसके साथ जो विवाद करते थे, वह उनके अपने धर्म के बारे में था और एक ऐसे व्यक्ति के बारे में, जिनका नाम यीशु था जो मर चुके हैं, जिसके बारे में पौलुस ने कहा कि वह जीवित है।
\v 20 मैं इन मामलों को,समझ नहीं पाया और न ही सच्चाई को समझ पाया। इसलिये मैंने पौलुस से पूछा, "क्या तू यरूशलेम को जाने के लिए तैयार है, कि वहाँ मैं इन बातों के बारे में तेरा न्याय कर सकूँ?"
\s5
\v 21 परन्तु पौलुस ने कैसर के द्वारा अपने मामले का न्याय करने के लिए कहा, इसलिए जब तक कि मैं उसे कैसर के पास न भेजूँ मैंने उसे निगरानी में रखवा दिया।"
\v 22 अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, "मैं स्वयं यह सुनना चाहूँगा कि इस व्यक्ति को क्या कहना है।" फेस्तुस ने उत्तर दिया, "मैं कल तुम्हारे सामने उसकी सुनवाई का प्रबन्ध कर दूँगा।"
\p
\s5
\v 23 अगले दिन अग्रिप्पा और बिरनीके ने न्याय के भवन में प्रवेश किया, और अन्य सभी लोग उन्हें सम्मान दे रहे थे। कुछ रोमी सरदार और कैसरिया के महत्वपूर्ण व्यक्ति उनके साथ आए थे। तब फेस्तुस ने सुरक्षाकर्मियों को आज्ञा दी कि वे पौलुस को ले आएँ।
\v 24 पौलुस के प्रवेश करने के बाद फेस्तुस ने कहा, "राजा अग्रिप्पा और बाकी सब लोग, जो यहाँ हैं, तुम इस व्यक्ति को देखते हो। यहूदियों के बहुत से अगुवों ने, यरूशलेम में और यहाँ दोनों जगहों पर, मुझसे कहा कि मैं इस व्यक्ति को और जीवित न रहने दूँ।
\s5
\v 25 परन्तु मैंने उसमें मृत्युदंड के योग्य कुछ भी नहीं पाया। फिर भी, उसने अपने मामले का न्याय करने के लिए कैसर को कहा है, इसलिए मैंने उसे रोम भेजने का निर्णय किया है।
\v 26 परन्तु मुझे समझ नहीं आता कि उसके बारे में सम्राट को क्या लिखना चाहिए। यही कारण है कि मैं उसे तुम सब से और विशेष रूप से राजा अग्रिप्पा, तुझसे बात करने के लिए यहाँ उपस्थित किया है! मैंने ऐसा इसलिए किया है ताकि तुम उससे सवाल पूछ सको। तब संभव है कि मुझे सम्राट को पत्र लिखने का कारण मिले।
\v 27 मेरे विचार में बन्दी को सम्राट के पास रोम भेज दो और यह न बताओ कि लोगों ने उस पर क्या आरोप लगाए हैं तो यह अनुचित होगा जो लोगों ने कहा कि इसने किए हैं।"
\s5
\c 26
\p
\v 1 तब अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, "अब हम तुम्हें अनुमति देते है कि तुम अपनी बात कहो।" तब पौलुस ने अपना हाथ बढ़ा कर दिखाया कि वह बोलने के लिए तैयार है। उसने कहा,
\v 2 "राजा अग्रिप्पा, मैं स्वयं को धन्य मानता हूँ कि आज मैं तुझको समझा सकता हूँ कि यहूदी अगुवे क्यों गलत हैं जब वे यह कहते हैं कि मैंने गलत किया हैं।
\v 3 मैं विशेष रूप से धन्य हूँ क्योंकि तुम हम यहूदियों के सारे रीति-रिवाजों और उन सवालों के बारे में जानते हो जिन पर हम विवाद करते रहे हैं। इसलिए मैं तुम से कहता हूँ कि धीरज रखकर मेरी बात सुनो।"
\p
\s5
\v 4 "मेरे सभी यहूदी साथी जानते हैं कि जब मैं बच्चा ही था तब से मैंने अपने जीवन को कैसे अनुशासन में रखा है। वे जानते हैं कि मैं उस शहर में, जहाँ मेरा जन्म हुआ था और बाद में यरूशलेम में भी कैसे रहा।
\v 5 वे मुझे आरम्भ से ही जानते हैं, और अगर वे चाहें तो तुमको बता सकते हैं, कि जब मैं बहुत ही छोटा था, तब से ही मैंने बहुत सावधानी से हमारे धर्म के सबसे कठोर रीति-रिवाजों का पालन किया है। मैं अन्य फरीसियों के समान ही रहता था।
\s5
\v 6 आज मैं सुनवाई पर हूँ क्योंकि मैं विश्वास के साथ अपेक्षा कर रहा हूँ कि परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों से जो प्रतिज्ञा की थी उसे वह पूरा करेगा।
\v 7 हमारे बारह यहूदी गोत्र भी दिन-रात परमेश्वर का सम्मान करके और उपासना करके विश्वास के साथ प्रतीक्षा कर रहे हैं कि परमेश्वर ने जो प्रतिज्ञा की थी उसे वह हमारे लिये पूरी करें। हे सम्मानित राजा, मुझे विश्वास के साथ अपेक्षा है कि परमेश्वर ने जो प्रतिज्ञा की थी वह उसे करेंगे, और यहूदी भी यह मानते हैं! परन्तु मैं परमेश्वर से ऐसा करने की अपेक्षा करता हूँ, तो वे कहते हैं कि मैंने गलत किया है।
\v 8 तुममें से कोई क्यों सोचता है कि परमेश्वर मरे हुओं को जीवित नहीं कर सकते हैं?
\p
\s5
\v 9 एक समय ऐसा भी था जब मुझे भी विश्वास था कि मुझे लोगों को नासरत शहर के यीशु पर विश्वास करने से रोकने के लिए सब कुछ करना चाहिए।
\v 10 इसलिए जब मैं यरूशलेम में रहता था, तब मैंने ऐसा ही किया । मैंने कई विश्वासियों को बन्दिग्रह में बंद कर दिया, जिसका अधिकार वहाँ के प्रधान याजकों ने मुझे दिया था। और जब उनके लोगों ने विश्वासियों को मार डाला, तो मैं उनके पक्ष में था।
\v 11 मैंने उन यहूदी लोगों को ढूंढ-ढूंढ कर आराधनालयों में दण्ड दिया था। मैं उनसे इतना क्रोधित था कि उन्हें विवश करता था कि वे परमेश्वर का अपमान करें और उनके नाम को श्राप दें। मैं उनको खोजने के लिए विदेशी शहरों में भी गया था कि मैं उन्हें रोकने के लिए अपनी पूरी शक्ति से काम कर सकूँ।
\p
\s5
\v 12 "प्रधान याजकों ने मुझे दमिश्क में विश्वासियों को गिरफ्तार करने का अधिकार दिया, और मैं वहाँ गया। परन्तु जब मैं अपने मार्ग पर था,
\v 13 तो लगभग दोपहर के समय में, मैंने आकाश में एक तीव्र प्रकाश देखा। यह सूर्य से भी अधिक तीव्र था! यह मेरे चारों ओर, और मेरे साथ यात्रा कर रहे लोगों के आस-पास चमका।
\v 14 हम सब भूमि पर गिर गए। तब मैंने इब्रानी भाषा में किसी आवाज़ को मुझसे बात करते सुना। उसने कहा, 'हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सता रहा है? नुकीली वस्तु पर लात मारना तेरे लिए कठिन है।'
\s5
\v 15 तब मैंने कहा, 'हे प्रभु, आप कौन हैं?' उन्होंने कहा, 'मैं यीशु हूँ! मैं वही हूँ, जिसके विरुद्ध तू लड़ रहा है।
\v 16 उठ और अपने पैरों पर खड़ा हो जा! मैं तुझ पर प्रकट हुआ हूँ कि तुझको एक सेवक और एक गवाह बनाऊँ कि जो तू ने देखा है और जो तू मेरे बारे में अब जानता है और जो मैं तुझको बाद में बताऊंगा उसका प्रचार कर।
\v 17 मैं तुझे उन लोगों से और गैर-यहूदियों से जिनके बीच में मैं तुझे भेजूंगा, तुझे सुरक्षित भी रखूँगा।
\v 18 उनकी आँखें खोलने के लिए, उन्हें अंधेरे से प्रकाश में लाने के लिये, और बैरी की शक्ति से निकलकर परमेश्वर के पास लाने के लिए। इस प्रकार परमेश्वर उनके पापों को क्षमा कर देंगे और उन्हें वह सब देंगे जो मेरे लोगों अर्थात विश्वास के द्वारा जो मेरे है, उसके पास सदा के लिए होगा।
\p
\s5
\v 19 "इसलिए, हे राजा अग्रिप्पा, मैंने वैसा किया जैसा परमेश्वर ने मुझे दर्शन देकर करने के लिए कहा था।
\v 20 सबसे पहले, मैंने दमिश्क में और यरूशलेम में और यहूदिया के सभी गाँवों में यहूदियों और गैर-यहूदियों से भी बात की। मैंने उन्हें बताया कि उन्हें पाप करना बंद कर देना चाहिए और परमेश्वर से सहायता माँगनी चाहिए। मैंने उनसे यह भी कहा कि उन्हें ऐसे काम करने चाहिए जो दिखाते हैं कि उन्होंने पाप करना छोड़ दिया है।
\p
\v 21 क्योंकि मैंने इस संदेश का प्रचार किया इसलिए कुछ यहूदियों ने मुझे बन्दी बना लिया जब मैं आराधनालय के आंगन में था और मुझे मार डालने का प्रयास किया।
\s5
\v 22 परन्तु, परमेश्वर मेरी सहायता कर रहे हैं, इसलिए मैंने आज के दिन तक इन बातों का प्रचार किया है। मैंने आम लोगों और महत्वपूर्ण लोगों दोनों को बिल्कुल ठीक वही सब बता दिया है जो भविष्यद्वक्ताओं ने और मूसा ने कहा था कि होगा।
\v 23 वे कहते थे कि मसीह को पीड़ित होना और मरना होगा, कि वह मरे हुओं में से जीवित होने वाले सबसे पहले होगें। उन्होंने यह भी कहा कि वह अपने लोगों और गैर-यहूदी लोगों दोनों के लिए भी घोषणा करेंगे, कि परमेश्वर वास्तव में उन्हें बचाने में सक्षम हैं।"
\p
\s5
\v 24 इससे पहले कि पौलुस आगे कुछ और कह पाता, फेस्तुस गरज कर बोला: "पौलुस, तुम पागल हो! तुमने बहुत पढ़ाई की है, और उसने तुम्हें पागल बना दिया है!"
\v 25 परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, "महामहिम फेस्तुस, मैं पागल नहीं हूँ! इसके विपरीत, जो मैं कह रहा हूँ वह सच है और बहुत समझदारी की बात है!
\v 26 राजा अग्रिप्पा को उन बातों की जानकारी है जिनके बारे में मैं बोल रहा हूँ, और मैं उससे इस बारे में स्वतंत्र रूप से बात कर सकता हूँ। मुझे विश्वास है कि इन बातों में से कोई भी उसकी जानकारी से छिपी नहीं होगी, क्योंकि इनमें ऐसा कुछ नहीं है जो गुप्त में हुआ था।"
\s5
\v 27 "राजा अग्रिप्पा, क्या तुम भविष्यद्वक्ताओं ने जो लिखा है उस पर विश्वास करता है? मुझे पता है कि तू उन बातों पर विश्वास करता है।"
\v 28 फिर अग्रिप्पा ने पौलुस को उत्तर दिया, "थोड़े ही समय में तूने मुझे लगभग एक मसीही बनने के लिए राजी कर लिया है!"
\v 29 पौलुस ने उत्तर दिया, "चाहे थोड़े समय में या लम्बा समय लगे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि तू और अन्य सब लोग जो आज मेरी बात सुन रहे हैं वे इन जंजीरों को छोड़, वे मेरे समान होंगे!"
\s5
\v 30 तब राजा खड़ा हो गया। राज्यपाल, बिरनीके, और अन्य सब भी उठ खड़े हुए
\v 31 और कमरा छोड़ कर चले गए। उनके चले जाने के बाद, उन्होंने एक दूसरे से कहा, "इस व्यक्ति ने मौत के या उसकी जंजीरों के योग्य कुछ भी नहीं किया है।"
\v 32 अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, "अगर इस व्यक्ति ने कैसर की दोहाई नहीं दी होती, तो उसे छोड़ा जा सकता था।"
\s5
\c 27
\p
\v 1 जब राज्यपाल ने निर्णय लिया कि हमें इतालिया के लिए जाना चाहिए, तो उसने पौलुस और कुछ अन्य कैदियों को सेना के कप्तान के नियंत्रण में रखा, जिसका नाम यूलियुस था। वह सूबेदार का पद सम्भालता था और सम्राट के सीधे आदेश के नियंत्रण में रहने वाले सैनिकों की बहुत बड़ी संख्या का एक भाग था।
\v 2 हम आसिया में अद्रमुत्तियुम शहर से एक जहाज़ पर चढ़ गए। यह जहाज़ आसिया के तटीय स्थानों के लिए समुद्री यात्रा पर जाने वाला था। इस प्रकार हम समुद्र मार्ग से होकर चले। मकिदुनिया के थिस्सलुनीके से अरिस्तर्खुस, हमारे साथ चला।
\s5
\v 3 अगले दिन हम सीदोन पहुँचे। यूलियुस ने पौलुस के साथ अच्छा व्यवहार किया और उसे जाकर अपने मित्रों से मिलने की अनुमति दी, कि वे उसकी सेवा करें।
\v 4 तब जहाज़ वहाँ से रवाना होने के लिये तैयार हो गया। हम साइप्रस के तट के किनारे से होकर चले गए, जो हवा से बचा हुआ था, क्योंकि हवा हमारे विरुद्ध थी।
\v 5 उसके बाद, हम किलिकिया और पम्फूलिया के तट के निकट से समुद्र पार कर गए। जहाज़ मूरा में पहुँचा, जो लूसिया में है। हम वहाँ जहाज़ से उतर गए।
\v 6 मूरा में, यूलियुस को एक जहाज़ मिला जो कि सिकन्दरिया से आया था और शीघ्र ही इतालिया जाने के लिये समुद्री यात्रा पर होगा। इसलिये उसने उस जहाज़ पर हमारे जाने की व्यवस्था की, और हम चल दिये।
\s5
\v 7 हम कई दिनों तक धीरे-धीरे चलते हुए कनिदुस के पास आये, लेकिन हमें वहाँ कठिनाई हुई, क्योंकि हवाएँ हमारे विरुद्ध थीं। उसके बाद, हवा बहुत प्रचण्ड हो गई थी और हवा ने जहाज़ को सीधे पश्चिम की ओर आगे बढ़ने नहीं दिया। अतः हम क्रेते द्वीप के किनारे से होकर आगे बढ़े, जहाँ हवा का बहाव तीव्र नहीं था, और हम सलमोने के पास पहुँचे, जो पानी से लगा हुआ भूमि का एक टुकड़ा था।
\v 8 हवा अभी भी प्रबल थी, और इसने जहाज़ को तेजी से आगे बढ़ने से रोका। इसलिए हम क्रेते के किनारे से होकर धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए, और हम लसया के पास एक शहर में पहुँचे, जिसे शुभलंगरबारी कहा जाता था।
\p
\s5
\v 9 बहुत समय बीत चुका था, और अब यह समुद्री यात्रा करने के लिए खतरनाक हो गया था, क्योंकि यहूदियों का उपवास पहले ही निकल चुका था और समुद्र बहुत तूफानी हो जाएगा। इसलिए पौलुस ने जहाज़ पर मौजूद लोगों से कहा,
\v 10 "हे लोगों, मैं देख रहा हूँ कि अगर हम अब समुद्री यात्रा पर जाते हैं, तो यह हमारे लिए बहुत क्षतिपूर्ण और हानिकारक होगा, न केवल माल और जहाज़ का, बल्कि हमारे जीवन का भी।"
\v 11 लेकिन रोमी कप्तान ने पौलुस पर विश्वास नहीं किया। इसकी अपेक्षा, उसने जहाज़ चलाने वालो का और जहाज़ के मालिक की बातों पर विश्वास किया, और उन्होंने जो कुछ भी सुझाव दिया उसने वही करने का निर्णय लिया।
\s5
\v 12 वह बंदरगाह सर्दियों में रुकने के लिए एक उचित स्थान नहीं था, इसलिए अधिकांश नाविकों ने वहाँ से समुद्र में जाने का सुझाव दिया। उन्हें आशा थी कि वे फीनिक्स तक पहुँच सकते हैं और वहाँ सर्दियां बिता सकते हैं। फीनिक्स क्रेते में एक शहर है। वहाँ पर दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम दोनों ओर से हवाएँ चलती थीं।
\v 13 क्योंकि वहाँ दक्षिण से चलने वाली केवल एक धीमी हवा थी, जहाज़ के चालक दल ने सोचा कि जैसे वे चाहते थे, वे वैसे यात्रा कर सकते थे। इसलिए उन्होंने समुद्र में से लंगर ऊपर उठा दिये, और जहाज़ क्रेते द्वीप के तट के एकदम किनारे-किनारे होकर आगे रवाना हुआ।
\s5
\v 14 लेकिन, थोड़े समय के बाद, किनारे से एक तूफानी हवा चली। यह उत्तर की ओर के द्वीप में से आई थी और जहाज़ से आकर टकराई। उस हवा को यूरकुलीन कहा जाता है, "पूर्वोत्तर हवा।"
\v 15 यह हवा जहाज़ के सामने की ओर से बहुत ही तीव्रता से चली, और हम इसके विरुद्ध आगे नहीं जा पाए। तो नाविकों ने जहाज़ को हवा की दिशा में चलने दिया।
\v 16 फिर जहाज़ कौदा नाम के एक छोटे से द्वीप के किनारे से होकर चलता गया। हम जहाज़ में जीवनरक्षक नौका को कठिनाई के साथ बाँध कर सुरक्षित करने में सक्षम हुए।
\s5
\v 17-18 नाविकों द्वारा जीवनरक्षक नौका को जहाज़ पर उठाए जाने के बाद, उन्होंने जहाज़ को दृढ़ता प्रदान करने के लिए रस्सियों को जहाज़ के नीचे से लेकर बाँध दिया। नाविकों को डर था कि हम सुरतिस नामक चोरबालू पर चक्कर लगाएँगे, इसलिए उन्होंने समुद्र के लंगर को नीचे किया और इस प्रकार हम हवा के साथ बहते चले गए। हवा और लहरें जहाज़ को लगातार धक्के मारती रही, इसलिए अगले दिन नाविकों ने जहाज़ पर से सामान फेंकना शुरू कर दिया।
\s5
\v 19 तूफान के तीसरे दिन, नाविकों ने जहाज़ को हल्का करने के लिए अधिकांश पाल, रस्सियों और डंडों को फेंक दिया। उन्होंने यह अपने हाथों से किया था।
\v 20 हवा कई दिनों तक बहुत तीव्रता से चलती रही, और आकाश काले बादलों से दिन-रात भरा हुआ था इस कारण हम सूरज या तारों को देख न सके। हम ने आशा खो दी थी कि हम जीवित बचेंगे।
\p
\s5
\v 21 जहाज़ पर हम में से किसी ने भी कई दिनों तक कुछ खाया नहीं था। फिर एक दिन, पौलुस हमारे सामने खड़ा हो गया और कहा, "मित्रों, तुमको मेरी बात सुननी चाहिए थी जब मैंने कहा था कि हमें क्रेते से निकल कर समुद्री यात्रा पर नहीं जाना चाहिए।
\v 22 परन्तु अब, मैं तुमसे आग्रह करता हूँ, मत डरो, क्योंकि हम में से कोई भी नहीं मरेगा। तूफान जहाज़ को नष्ट कर देगा, लेकिन हमें नहीं।
\s5
\v 23 मुझे यह पता है, क्योंकि कल रात परमेश्वर ने, जिनका मैं हूँ और जिनकी मैं सेवा करता हूँ, एक स्वर्गदूत भेजा जो आकर मेरे पास खड़ा हो गया।
\v 24 स्वर्गदूत ने मुझ से कहा, 'पौलुस, डर मत। तुझे रोम जाना है और वहाँ सम्राट के सामने खड़ा होना है ताकि वह तेरा न्याय कर सके। मैं तुझे यह बताना चाहता हूँ कि परमेश्वर ने तुझे और इन सब लोगों को जो तेरे साथ जहाज़ पर यात्रा कर रहे हैं जीवित रखना स्वीकार किया है।'
\v 25 इसलिये, मेरे मित्रों, आनन्द करो, क्योंकि मुझे विश्वास है कि परमेश्वर ऐसा ही करेंगे, ठीक वैसे ही जैसे स्वर्गदूत ने मुझसे कहा है।
\v 26 जहाज़ किसी द्वीप पर दुर्घटनाग्रस्त हो जाएगा, परन्तु हम वहाँ किनारे पर चले जाएँगे।"
\p
\s5
\v 27 तूफान के शुरू होने के बाद के चौदहवीं रात थी और जहाज़ अब भी अद्रिया समुद्र में चला जा रहा था। आधी रात के लगभग, नाविकों ने सोचा कि जहाज़ भूमि के निकट जा रहा है।
\v 28 इसलिए उन्होंने पानी की गहराई को मापने के लिए एक रस्सी को नीचे किया। जब उन्होंने रस्सी को बाहर निकला और माप कर देखा कि पानी चालीस मीटर गहरा था। थोड़ी देर बाद, उन्होंने फिर से मापा और तीस मीटर पाया।
\v 29 उन्हें डर था कि जहाज़ कुछ चट्टानों में जा सकता है, इसलिए उन्होंने जहाज़ के पीछे की ओर से चार लंगरों को फेंक दिया। तब उन्होंने प्रार्थना की कि जल्दी से भोर हो जाए ताकि वे देख सकें कि जहाज़ कहाँ जा रहा था।
\s5
\v 30 कुछ नाविक जहाज़ से बच कर भागने की योजना बना रहे थे, इसलिए उन्होंने समुद्र में जीवनरक्षक नौका को उतार दिया, ताकि किसी को भी मालूम न हो कि उन्होंने क्या करने की योजना बनाई थी, उन्होंने ऐसा ढोंग किया कि वे जहाज़ के आगे से कुछ लंगरों को नीचे करना चाहते हैं।
\v 31 परन्तु पौलुस ने सेना के कप्तान और सैनिकों से कहा, "यदि नाविक जहाज़ में नहीं रहते हैं, तो तुम्हारे जीवित रहने की कोई उम्मीद नहीं है।"
\v 32 तो सैनिकों ने रस्सियों को काट दिया और जीवनरक्षक नौके को पानी में गिर जाने दिया।
\p
\s5
\v 33 भोर होने के ठीक पहले, पौलुस ने जहाज़ पर उपस्थित सब से भोजन खा लेने का आग्रह किया। उसने कहा, "पिछले चौदह दिनों से तुम प्रतीक्षा कर रहे हो और देख रहे हो और तुमने कुछ भी नहीं खाया।
\v 34 तो, अब मैं तुमसे कुछ खा लेने के लिए आग्रह करता हूँ। तुमको जीवित रहने के लिए ऐसा करना चाहिए। तुम्हारे सिरों का एक भी बाल नष्ट नहीं होगा।"
\v 35 पौलुस ने यह कहने के बाद, जब सभी देख रहे थे, तो उसने रोटी ली और इसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर उसने रोटी तोड़ी और उसमें से कुछ खाने लगा।
\s5
\v 36 तब वे सब प्रसन्न हो गए और खाना खाया।
\v 37 कुल मिलाकर हम जहाज़ पर 276 जन थे।
\v 38 जब सबने भरपूर खा लिया तो उन्होंने जहाज़ को हल्का करने के लिये गेहूं को समुद्र में फेंक दिया।
\p
\s5
\v 39 भोर में हम भूमि देख सकते थे, परन्तु नाविकों को नहीं पता था कि हम कहाँ थे। वे पानी के किनारे पर एक खाड़ी और रेत के एक विस्तृत क्षेत्र को देख सकते थे। उन्होंने जहाज़ को समुद्र तट पर चलाने का प्रयास करने का निर्णय लिया।
\v 40 इसलिए उन्होंने लंगरों को खोल दिया और उन्हें समुद्र में गिरा दिया। उसी समय, उन्होंने पतवारों को बाँधने वाली रस्सियों को खोल दिया, और उन्होंने आगे की पाल को उठाया ताकि हवा उस पर लग कर उसे चला सके। वे जहाज़ को किनारे की ओर बढ़ा रही थी।
\v 41 परन्तु जहाज़ अशांत जल में चला गया और किनारे की रेत पर जो लहरों के नीचे थी फँस गया। जहाज़ के सामने का हिस्सा वहाँ फँस गया और हिल नहीं सका, और बड़ी लहरें जहाज़ के पीछे के हिस्से पर लगने लगीं, जिससे कि जहाज़ टूटना शुरू हो गया।
\p
\s5
\v 42 सैनिकों के मन में यह था कि सभी कैदियों को मार डालना चाहिए ताकि उनमें से कोई भी तैर कर पार न हो जाये कि बच कर भाग सके।
\v 43 लेकिन सेना का कप्तान पौलुस को बचाना चाहता था, इसलिए उसने सैनिकों को ऐसा करने से रोक दिया। इसके अतिरिक्त, उसने आज्ञा दी कि तैरने वाले हर व्यक्ति को पानी में कूदना चाहिए और तैर कर किनारे तक जाना चाहिए।
\v 44 फिर उसने जहाज़ से दूसरे लोगों को तख्तों या अन्य टुकड़ों को पकड़ कर किनारे पर जाने के लिए कहा। उसने जो कहा वह हमने किया, और इस प्रकार हम सभी सुरक्षित रूप से भूमि पर पहुँच गए।
\s5
\c 28
\p
\v 1 जब हम किनारे पर सुरक्षित पहुँच गए, तो हमें यह मालूम हुआ कि यह माल्टा नामक एक द्वीप था।
\v 2 वहाँ रहने वाले लोगों ने सामान्य से अच्छा अतिथि सत्कार किया। उन्होंने आग जलाई और हमें गर्म हो जाने के लिए आमंत्रित किया, क्योंकि वर्षा हो रही थी और मौसम ठंडा था।
\s5
\v 3 जब पौलुस ने लकड़ी की कुछ छड़ें एकत्रित कीं और उन्हें आग में डाल दिया तो गर्मी से बचने के लिए एक जहरीला साँप आग से बाहर निकल आया, और उसने पौलुस के हाथ को डस लिया और वहीँ लिपट गया।
\v 4 द्वीप के लोगों ने पौलुस के हाथ मे झूलते हुए साँप को देखा, तो उन्होंने एक दूसरे से कहा, "इस व्यक्ति ने संभव है कि किसी की हत्या की है। यद्यपि वह समुद्र में डूबने से बच गया है, न्याय का देवता उसे मारेंगे।"
\s5
\v 5 परन्तु पौलुस ने आराम से हाथ को झटक कर साँप को आग में फेंक दिया, और उसे कुछ भी नहीं हुआ।
\v 6 लोग सोच रहे थे कि पौलुस का शरीर शीघ्र ही तेज बुखार के साथ सूज जाएगा या वह अचानक गिर जाएगा और मर जाएगा। परन्तु लंबे समय के बाद उन्होंने देखा कि उसके साथ कुछ भी गलत नहीं हुआ था। इसलिए लोगों ने अपने विचार बदलकर एक दूसरे से कहा, "यह व्यक्ती कोई हत्यारा नहीं है! एक देवता है!"
\p
\s5
\v 7 अब वहाँ पास की ही एक जगह में जहाँ वे थे, कुछ खेत थे जो पुबलियुस नाम के एक व्यक्ति के थे। वह द्वीप पर मुख्य अधिकारी था। उसने हमें आकर उसके घर में रहने के लिए आमंत्रित किया। उसने तीन दिन तक हमारी बहुत अच्छी देखभाल की।
\v 8 उस समय पुबलियुस के पिता को बुखार और पेचिश हुआ था, और वह बिस्तर पर लेटा हुआ था। इसलिए पौलुस ने उससे भेंट की और उसके लिए प्रार्थना की। तब पौलुस ने उस पर हाथ रखकर उसे स्वस्थ किया।
\v 9 पौलुस के ऐसा करने के बाद, उस द्वीप के अन्य लोग जो बीमार थे, वे उसके पास आए, और उसने उन्हें भी स्वस्थ किया।
\v 10 वे हमारे लिये उपहार लाए और अन्य तरीकों से दिखाया कि वे हमारा बहुत सम्मान करते हैं। जब हम तीन महीने बाद निकलने के लिए तैयार थे, तो वे हमारे लिये भोजन और अन्य वस्तुएँ लाए जिनकी हमें जहाज़ पर आवश्यकता होगी।
\p
\s5
\v 11 तीन महीने वहाँ रहने के बाद हम सिकन्दरिया के एक जहाज़ पर चढ़ गए जो इतालिया जा रहा था और हम रवाना हो गए। जहाज़ के सामने के हिस्से पर दो जुड़वाँ देवताओं की तराशी हुई प्रतिमाएँ थीं जिनके नाम कास्टर और पोलक्स थे।
\v 12 जब हम सुरकूसा शहर में पहुँचे, तो हम वहाँ तीन दिन रहे।
\s5
\v 13 तब हम रवाना हुए और इतालिया में रेगियुम शहर में पहुँचे। अगले दिन, हवा दक्षिण से बह रही थी, इसलिए केवल दो दिनों में हम पुतियुली शहर में पहुँचे। वहाँ हम जहाज़ से उतर गए।
\v 14 पुतियुली में हम कुछ साथी विश्वासियों से मिले जो चाहते थे कि हमें सात दिनों तक उनके साथ रहें। अंततः हम रोम पहुँचे।
\p
\v 15 रोम में, कुछ साथी विश्वासियों ने हमारे बारे में सुना था, इसलिए वे हमसे मिलने आए। उनमें से कुछ ने हम से शहर में अप्पियुस मार्ग के चौक पर भेंट की, और अन्य लोग शहर में हमें तीन सराए नामक जगह पर मिले। जब पौलुस ने उन विश्वासियों को देखा, तो उसने परमेश्वर का धन्यवाद किया और प्रोत्साहित हुआ।
\s5
\v 16 हमारे रोम में पहुँचने के बाद, पौलुस को एक घर में रहने की अनुमति दी गई थी। लेकिन वहाँ सदैव एक सैनिक होता था जो कि उसकी निगरानी करता था।
\p
\v 17 वहाँ पहुँचने के तीन दिन के बाद, पौलुस ने यहूदियों के अगुवों के पास एक संदेश भेजा कि वे आकर उसके साथ बात करें। जब वे उसके पास आए, तो पौलुस ने उनसे कहा, "हे मेरे प्रिय भाइयों, मैंने अपने लोगों का विरोध नहीं किया, न ही हमारे पूर्वजों के रीति-रिवाजों के विषय में कुछ बोला परन्तु यरूशलेम में हमारे अगुवों ने मुझे बन्दी बना लिया। परन्तु इससे पहले कि वे मुझे मार डालते, एक रोमी सरदार ने मुझे बचाया और बाद में मुझ पर मुकदमा चलाने के लिए कैसरिया शहर में रोमी अधिकारियों के पास भेज दिया।
\v 18 रोमी अधिकारियों ने मुझ से सवाल किये और मुझे छोड़ना चाहते थे, क्योंकि मैंने कोई भी गलत बात नहीं की थी जिसके लिए मुझे सजा दी जानी चाहिए।
\s5
\v 19 परन्तु जब यहूदी अगुवों ने मुझे मुक्त करने की रोमियों की इच्छा के विरुद्ध कहा, तो मैंने उनसे यह अनुरोध किया कि यहाँ रोम में सम्राट ही मेरा न्याय करे। लेकिन ऐसा करने का मेरा कारण यह नहीं था कि मैं हमारे अगुवों पर कुछ भी आरोप लगाना चाहता हूँ।
\v 20 अतः मैंने यहाँ आने के लिए तुमसे अनुरोध किया है कि मैं तुमको बताऊँ कि मैं क्यों कैदी हूँ। इसका कारण यह है क्योंकि मैं उस बात पर विश्वास करता हूँ जिसकी इस्राएल के लोग बड़ी आशा के साथ प्रतीक्षा कर रहे हैं कि परमेश्वर हमारे लिए करेंगे।"
\s5
\v 21 फिर यहूदी अगुवों ने कहा, "यहूदिया से हमारे साथी यहूदियों के पास से हमें तुम्हारे बारे में कोई पत्र नहीं मिला है। साथ ही, हमारे साथी यहूदियों में से जो कोई भी यहूदिया से यहाँ आया है किसी ने भी तुम्हारे बारे में कुछ गलत बात नहीं कही है।
\v 22 लेकिन हम यह सुनना चाहते हैं कि तू इस समूह के बारे में क्या सोचता है जिससे तू सम्बंधित हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि कई स्थानों में लोग इसके विरुद्ध बोल रहे हैं।"
\p
\s5
\v 23 इसलिए उन्होंने निर्णय लिया कि वे किसी अन्य दिन फिर आकर पौलुस की बात सुनेंगे। जब वह दिन आया, तो पहले से कहीं ज्यादा लोग वहाँ आ गए जहाँ पौलुस रह रहा था। पौलुस ने उन्हें बताया कि कैसे परमेश्वर सब पर शासन करेंगे; उसने बताया कि कैसे मूसा की व्यवस्था में और भविष्यद्वक्ताओं ने यीशु के बारे में बताया था। पौलुस ने सुबह से लेकर शाम तक उन सभी लोगों से बात की जो सुनना चाहते थे।
\v 24 उन यहूदियों में से कुछ विश्वास करने के लिए तैयार हुए, कि जो पौलुस ने यीशु के बारे में कहा वह सच था, लेकिन दूसरों ने विश्वास नहीं किया कि यह सच था।
\s5
\v 25 जब वे एक-दूसरे के साथ असहमत हो गए और जब वे जाने ही वाले थे, तो पौलुस ने एक और बात कही: "पवित्र आत्मा ने तुम्हारे पूर्वजों के लिये सच बात बताई, जब उसने यशायाह भविष्यद्वक्ता से इन वचनों को कहा:
\v 26 अपने लोगों के पास जा और उनसे कह: 'तुम अपने कानों से सुनते हो, लेकिन तुम कभी भी नहीं समझ सकते कि परमेश्वर क्या कह रहे हैं। तुम अपनी आँखों से देखते हो लेकिन वास्तव में उन कामों को कभी नहीं देखते हो जो परमेश्वर करते हैं।
\s5
\v 27 ये लोग नहीं समझते हैं, क्योंकि वे हठीले हो गए हैं। उनके कान लगभग बहरे हैं; और उन्होंने अपनी आँखें बंद कर ली हैं क्योंकि वे देखना नहीं चाहते हैं। वे अपने कानों से सुनना या अपने मन से समझना नहीं चाहते हैं, परन्तु वे मेरे पास लौटकर आएँगे और मैं उन्हें स्वस्थ कर दूँगा।
\p
\s5
\v 28 इसलिए तुमको समझना चाहिए कि परमेश्वर गैर-यहूदियों को बचाना चाहते हैं, और वे सुनेंगे।"
\v 29 जब उसने यह कहा तो यहूदी आपस में बहुत विवाद करने लगे और वहाँ से चले गए।
\p
\s5
\v 30 पूरे दो साल तक पौलुस वहाँ एक घर में रहा जो उसने किराए पर लिया था। बहुत से लोग उससे मिलने आए, और उसने उन सब का सहर्ष स्वागत किया और उनके साथ बात की।
\v 31 उसने लोगों में प्रचार किया और उन्हें सिखाया कि कैसे परमेश्वर स्वयं को राजा के रूप में प्रकट करेंगे, और उसने उन्हें प्रभु यीशु मसीह के बारे में सिखाया। उसने बड़े साहस के साथ ऐसा किया, और किसी ने भी उसे रोकने का प्रयास नहीं किया।

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\id ROM
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\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h रोमियों
\toc1 रोमियों
\toc2 रोमियों
\toc3 rom
\mt1 रोमियों
\s5
\c 1
\p
\v 1 मैं, पौलुस, जो मसीह यीशु की सेवा करता हूँ, रोम नगर के सब विश्वासियों को यह पत्र लिख रहा हूँ। परमेश्वर ने मुझे प्रेरित होने के लिए चुना, और उन्होंने ही मुझे नियुक्त किया है कि मैं उनके सुसमाचार का प्रचार करूं।
\v 2 यीशु के पृथ्वी पर आने से बहुत पहले, परमेश्वर ने इस सुसमाचार को प्रकट करने की प्रतिज्ञा की थी जिसका उल्लेख भविष्द्क्ताओं ने पवित्र शास्त्र में किया है।
\v 3 यह सुसमाचार उनके पुत्र के विषय में हैं। शारीरिक रूप से उनके यह पुत्र राजा दाऊद के वंशज थे।
\s5
\v 4 उनके ईश्वरीय स्वभाव के अनुसार वह परमेश्वर के अपने पुत्र हैं, जो शक्तिशाली रूप से दिखाया गया है। परमेश्वर ने यह तब प्रकट किया जब परमेश्वर के पवित्र आत्मा ने उन्हें मरे हुओं में से फिर जीवित कर दिया। यही यीशु मसीह हमारे प्रभु हैं।
\v 5 उन्होंने हमें महान दया दिखाई है और प्रेरित होने के लिए हमें नियुक्त किया है। उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि सब जातियों में से सब लोग उन पर विश्वास करें और उनकी आज्ञा का पालन करें।
\v 6 रोम में रहनेवाले तुम विश्वासियों को भी उन लोगों में सहभागी किया गया है जिन्हें परमेश्वर ने यीशु मसीह के होने के लिए चुना है।
\s5
\v 7 मैं रोम में रहनेवाले तुम सब विश्वासियों को यह पत्र लिख रहा हूँ, जिनसे परमेश्वर प्रेम करते हैं और जिन्हें उन्होंने अपने लोग होने के लिए चुना है। मैं प्रार्थना करता हूँ कि हमारे पिता परमेश्वर और हमारे प्रभु यीशु मसीह तुम्हारे प्रति दयालु रहें और तुम्हें शान्ति दें।
\p
\s5
\v 8 जैसे कि मैं यह पत्र लिखना आरंभ करता हूँ, तो मैं रोम में रहनेवाले तुम सब विश्वासियों के लिए अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ। यीशु मसीह ने हमारे लिए जो किया है उसके कारण ही मैं ऐसा करने में सक्षम हूँ। मैं प्रभु का धन्यवाद करता हूँ क्योंकि सम्पूर्ण रोमी साम्राज्य के लोग मसीह में तुम्हारे विश्वास कि चर्चा कर रहे हैं।
\v 9 परमेश्वर, जिनके पुत्र के विषय में मैं लोगों को पूरे समर्पण के साथ सुसमाचार सुनाता हूँ, जानते हैं कि मैं सत्य बोलता हूँ जब मैं कहता हूँ कि जब भी मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूँ, तब मैं हमेशा तुम्हें स्मरण करता हूँ।
\v 10 मैं विशेष रूप से परमेश्वर से विनती करता हूँ कि यदि यह परमेश्वर की इच्छा है कि तुम्हारे पास आऊँ तो अन्तत: किसी न किसी प्रकार मैं तुमसे मिलने में सफल हो जाऊं।
\s5
\v 11 मैं यह प्रार्थना इसलिए करता हूँ कि मैं तुमसे मिलकर तुम्हारी सहायता करना चाहता हूँ कि तुम मसीह में अधिक से अधिक विश्वास करो और उनको सम्मान दो।
\v 12 मेरा कहने का अर्थ है कि मैं चाहता हूँ कि हम एक-दूसरे को यह कह कर प्रोत्साहित करें कि हम यीशु में कैसा विश्वास करते हैं।
\s5
\v 13 मेरे साथी विश्वासियों, कई बार मैंने तुमसे मिलने की योजना बनाई थी। मैं निश्चय ही चाहता हूँ कि तुम यह जानो। परन्तु मैं तुम्हारे पास नहीं आ पाया क्योंकि किसी न किसी बात ने मुझे सदा ही रोके रखा है। मैं आना चाहता हूँ जिससे कि तुम में से और लोग भी यीशु में विश्वास करें, जैसे गैर-यहूदियों के बीच अन्य स्थानों में हुआ है।
\v 14 मैं सब गैर-यहूदी लोगों को सुसमाचार सुनाने के लिए विवश हूँ, जो यूनानी भाषा बोलते हैं और जो नहीं बोलते हैं, उन लोगों के लिए जो पढ़े-लिखे हैं और जो पढ़े-लिखे नहीं हैं।
\v 15 इस कारण मैं बड़ी उत्सुकता से चाहता हूँ कि मैं रोम में रहनेवाले तुम लोगों को भी यह सुसमाचार सुनाऊँ।
\p
\s5
\v 16 मैं बड़े आत्मविश्वास के साथ मसीह के काम का सुसमाचार सुनाता हूँ क्योंकि यह सुसमाचार वह सामर्थी मार्ग है जिसमें होकर परमेश्वर उन लोगों को बचाते हैं जिन्होंने उनके लिए किए गए मसीह के कामों में विश्वास किया है- परमेश्वर पहले तो विश्वास करनेवाले यहूदियों को फिर गैर-यहूदियों को बचाते हैं।
\v 17 इस सुसमाचार के द्वारा परमेश्वर प्रकट करते हैं कि वह लोगों को कैसे अपने साथ उचित संबंध में लाते हैं। जैसा एक भविष्यद्वक्ता ने बहुत पहले धर्मशास्त्र में लिखा हैं, "जिन लोगों को परमेश्वर ने अपने साथ उचित संबंध में ले लिया है, वे जीवित रहेंगे क्योंकि वे उन पर विश्वास करते हैं।"
\p
\s5
\v 18 स्वर्ग के परमेश्वर यह स्पष्ट करते हैं कि वह उन सब लोगों से क्रोधित है जो उन्हें आदर नहीं देते हैं और जो बुरे काम करते हैं। परमेश्वर उन्हें दिखाते हैं कि वे उनसे दण्ड पाने के योग्य हैं। क्योंकि वे बुरे काम करते हैं, वरन् वे अन्य लोगों को भी परमेश्वर के विषय में सच नहीं जानने देते हैं।
\p
\v 19 सभी गैर-यहूदी स्पष्ट रूप से जान सकते हैं कि परमेश्वर कैसे हैं, क्योंकि परमेश्वर ने स्वयं यह सब पर प्रकट किया है।
\s5
\v 20 लोग वास्तव में अपनी आंखों से नहीं देख सकते हैं कि परमेश्वर कैसे हैं। परन्तु जबसे उन्होंने जगत की रचना की है, तब से सृजित वस्तुएँ हमें उनके विषय में समझने में सहायता करती हैं- उदाहरण के लिए, वह सदा से शक्तिशाली काम करने में सक्षम हैं। एक और उदाहरण यह है कि हर कोई जानता है कि वह अपनी सृष्टि से पूरी रीति से भिन्न हैं। अत: कोई भी सच में यह नहीं कह सकता, "हम परमेश्वर के विषय में कभी नहीं जानते थे।"
\v 21 यद्यपि गैर-यहूदी जानते थे कि परमेश्वर कैसे हैं, उन्होंने उन्हें परमेश्वर के योग्य सम्मान नहीं दिया, और न ही उन्होंने उनके किए हुए काम के लिए उनका धन्यवाद किया। इसकी अपेक्षा, वे उनके विषय में मूर्खता की बातें सोचने लगे, और वे कभी नहीं समझ पाए कि परमेश्वर उन्हें अपने विषय में क्या बताना चाहते थे।
\s5
\v 22 यद्यपि उन लोगों ने प्रतिज्ञा कि वे बुद्धिमान है, वे मूर्ख बन गए,
\v 23 और उन्होंने यह स्वीकार करने से इन्कार कर दिया कि परमेश्वर महिमा से पूर्ण हैं और अनन्त हैं। इसकी अपेक्षा, उन्होंने नाश्मान मनुष्यों की मूर्तियाँ बनाईं और उसकी उपासना की, और फिर उन्होंने पक्षियों और चार पैरोंवाले पशुओं की भी मूर्तियाँ बनाईं, और अन्त में उन्होंने रेंगनेवाले प्राणियों के रूप में मूर्तियाँ बनाईं।
\p
\s5
\v 24 इसलिए परमेश्वर ने गैर-यहूदियों को अनैतिक यौनाचार में छोड़ दिया क्योंकि यह उनकी गहरी अभिलाषा थी। वे सोचते थे कि उन्हें ऐसा करना आवश्यक था क्योंकि यह उनकी अनियन्त्रित इच्छा थी। इसका परिणाम यह हुआ कि वे यौनाचार द्वारा एक दूसरे के शरीर का अपमान करने लगे।
\v 25 यही नहीं, उन्होंने परमेश्वर के विषय में सच को स्वीकार करने की अपेक्षा, झूठे देवताओं की पूजा करने को चुना। उन्होंने सबके सृजनहार परमेश्वर की आराधना को छोड़कर उनके द्वारा बनाई गई वस्तुओं की उपासना की, वह परमेश्वर जिनकी हम सब को सदा स्तुति करना चाहिए, आमीन!
\p
\s5
\v 26 अत: परमेश्वर ने गैर-यहूदियों को लज्जा के यौनाचार के लिए छोड़ दिया जिसकी लालसा वे करते थे। उनकी स्त्रियाँ अन्य स्त्रियों के साथ शारीरिक संबंध बनाने लगीं जो अस्वाभाविक स्वभाव है।
\v 27 इसी प्रकार, बहुत से पुरुषों ने स्त्रियों के साथ अपने प्राकृतिक संबंधों को त्याग दिया। इसकी अपेक्षा, उन्होंने एक दूसरे के लिए प्रबल कामवासना विकसित की। उन्होंने अन्य पुरुषों के साथ लज्जा जनक समलैंगिक संबंध बनाए। इसका परिणाम यह हुआ कि, परमेश्वर ने उन्हें शारीरिक रोगों का दण्ड दिया, जो ऐसे पाप का सीधा परिणाम है।
\p
\s5
\v 28 इसके अतिरिक्त, क्योंकि उन्होंने यह निर्णय लिया कि परमेश्वर को जानना व्यर्थ है, इसलिए परमेश्वर ने उन्हें उनके निकम्मे विचारों के वश में छोड दिया इसका परिणाम यह हुआ कि वह ऐसे बुरे काम करने लगे जिन्हें किसी को करना नहीं चाहिए।
\s5
\v 29 उनमें अन्यों के लिए अनुचित एवं दुष्टता के कामों की लालसा उत्पन्न हो गयी कि उन्हें लूटें और नाना प्रकार से उन्हें हानि पहुँचाएँ। बहुतों में तो दूसरों से जलन रखने और हत्या करने की इच्छा उत्पन्न हो गई तथा मनुष्यों में विवाद एवं झगडे करवाना और धोका देना एवं दसरों के विरुद्ध घृणा की बातें करना।
\v 30 कई लोग दूसरों के विषय में बुरी बातें कहते हैं और दूसरों का नाम खराब करते हैं। अनेक जन तो विशेष करके परमेश्वर के विरुद्ध घृणा के काम करते और मनुष्यों के साथ मारपीट करते तथा उनका अपमान करते और घमंड करते हैं और दूसरों के प्रति हिंसक तरीके से व्यवहार करते हैं और दूसरों से घृणा करते हैं और दूसरों से खुद की बड़ाई करते तथा दुराचार के नए नए मार्ग खोजते हैं। संतान अपने माता-पिता की आज्ञा नहीं मानती हैं।
\v 31 कई लोग परमेश्वर को दु:खी करने के लिए मूर्खता के काम करते हैं और किसी से की गई प्रतिज्ञा को पूरा नहीं करते अपने परिवार के सदस्यों से प्रेम भी नहीं रखते वे मनुष्यों के साथ दया का व्यवहार भी नहीं करते हैं।
\s5
\v 32 यद्यपि वे जानते हैं कि परमेश्वर ने ऐसे काम करने वालों के लिए मृत्युदण्ड की आज्ञा दी है, वे ऐसे दुष्टता के काम करते हैं वरन् ऐसे काम करने वालों को अच्छा कहते हैं।
\s5
\c 2
\p
\v 1 तुम कह सकते हो कि परमेश्वर घृणित काम करनेवालों को दण्ड दें परन्तु जब तुम यह कहते हो तो तुम वास्तव में यह कह रहे हो कि परमेश्वर तुम्हें दण्ड दे क्योंकि तुमने भी तो वैसा ही जीवन जीआ है। तुमने भी तो ऐसे ही काम किए जैसे उन्होंने किए हैं।
\v 2 हम भलिभाँति जानते हैं कि परमेश्वर ऐसे बुरे काम करने वालों का न्याय करेंगे और उन्हें उचित दण्ड देंगे।
\s5
\v 3 अत: तुम कहते हो कि परमेश्वर बुरा काम करने वाले लोगों को दण्ड दें तो तुम स्वयं ही बुरे काम करते हो तो तुम कैसे सोच सकते हो कि जब वह दण्ड देंगे तो तुम बच जाओगे।
\v 4 और तुमको यह नहीं कहना चाहिए, "परमेश्वर मेरे लिए तो अत्यधिक सहनशील एवं उदार है इसलिए मुझे पापों से मन फिराने की आवश्यकता नहीं है।" तुम्हारे लिए आवश्यक है कि तुम समझो कि परमेश्वर धीरज रखकर प्रतीक्षा कर रहे हैं कि तुम अपने पापों से मन फिराओं।
\s5
\v 5 परन्तु तुम हठ करके पाप करना नहीं छोड़ते इसलिए परमेश्वर तुमको और भी अधिक कठोर दण्ड देंगे। वह ऐसा तब करेंगे जब वह अपना क्रोध प्रकट करेंगे और सबका निष्पक्ष न्याय करेंगे।
\p
\v 6 परमेश्वर हर एक को उनके कामों के अनुसार उचित बदला देंगे।
\v 7 विशेष रूप से, कुछ लोग अच्छे काम करते रहते हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि परमेश्वर उन्हें सम्मान दें, और वे सदा उसके साथ रहना चाहते हैं। परमेश्वर उन्हें उसी प्रकार से प्रतिफल देंगे।
\s5
\v 8 परन्तु कुछ लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने के ही काम करते हैं और विश्वास करना नहीं चाहते कि परमेश्वर जो कहते हैं वह सच है वरन् ऐसे काम करते हैं जिन्हें परमेश्वर कहते हैं कि वे अनुचित हैं। इस कारण परमेश्वर बहुत क्रोधित हो जाएँगे और उन्हें कठोर दण्ड देंगे।
\v 9 जिन्हें बुरे काम करने का अभ्यास हो चूका है उन्हें परमेश्वर बहुत कष्ट देंगे और उनके क्लेश भी बहुत होंगे। परमेश्वर के सन्देश को स्वीकार नहीं करनेवाले यहूदियों के साथ तो निश्चय ही ऐसा होगा क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें उनके विशेष जन होने का सौभाग्य प्रदान किया था परन्तु गैर-यहूदियों के साथ भी ऐसा ही होगा।
\s5
\v 10 परन्तु परमेश्वर हर एक जन जो की अच्छे काम करने के अभ्यास में है, प्रशंसा करेंगे और उसे सम्मान देंगे और शान्ति की आत्मा प्रदान करेंगे। वह यहूदियों के साथ निश्चय ही ऐसा करेंगे क्योंकि उन्हें परमेश्वर ने अपने विशेष जन होने के लिए चुना है परन्तु वह गैर-यहूदियों के लिए भी ऐसा ही करेंगे।
\v 11 परमेश्वर निष्पक्षता से ऐसा करेंगे, क्योंकि कोई कितना भी महत्त्वपूर्ण हो वह उसकी चिंता नहीं करते हैं।
\p
\v 12 यद्यपि गैर-यहूदियों के पास मूसा द्वारा दी गई परमेश्वर की व्यवस्था नहीं है फिर भी वे व्यवस्था के बिना पाप करते हैं, परमेश्वर उन्हें सदा के लिए नाश कर देंगे। वह उन सब यहूदियों को भी दण्ड देंगे जो उनकी व्यवस्था का उल्लंघन करते हैं, क्योंकि उनका न्याय व्यवस्था के आधार पर ही किया जाएगा।
\s5
\v 13 परमेश्वर का उन्हें दण्ड देना उचित ही है क्योंकि परमेश्वर व्यवस्था के जाननेवालों ही को धर्मी नहीं ठहराते। वरन उन्हें जो परमेश्वर की व्यवस्था का पूरा पालन करते हैं, केवल उन्हें ही परमेश्वर धर्मी ठहराते हैं।
\v 14 जबकी गैर-यहूदी, जिनके पास परमेश्वर की व्यवस्था नहीं है, वे स्वभाव से व्यवस्था की सी बातों का पालन करते हैं क्योंकि उनके लिए वह प्राकृतिक प्रकाश है तो वे सिद्ध करते हैं कि उनके मन में व्यवस्था है यद्यपि उनके पास मूसा द्वारा दी गई परमेश्वर कि व्यवस्था कभी नहीं थी।
\s5
\v 15 वे दिखाते हैं कि वे अपने मन में जानते हैं कि परमेश्वर अपनी व्यवस्था में क्या आज्ञा देते हैं, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का विवेक उसके बुरे व्यवहार पर दोषी ठहराता है या उसका बचाव करता है।
\v 16 परमेश्वर उस समय उनको दण्ड देंगे, जब वह लोगों को उनके गुप्त विचारों और कामों के अनुसार उनका न्याय करेंगे। वह मनुष्यों का न्याय करने के लिए मसीह यीशु को अधिकार देकर न्याय करेंगे। मैं मनुष्यों को सुसमाचार सुनाता हूँ, तो मैं लोगों को यही बताता हूँ।
\p
\s5
\v 17 अब मैं तुम यहूदियों में से हर एक को जिन्हें यह पत्र लिख रहा हूँ कुछ कहना चाहता हूँ: तुम्हें भरोसा है कि परमेश्वर तुम्हें बचाएंगे क्योंकि तुम मूसा द्वारा दी गई व्यवस्था को जानते हो। तुम घमण्ड करते हो कि तुम परमेश्वर के हो।
\v 18 तुम जानते हो कि परमेश्वर क्या चाहते हैं। क्योंकि तुम्हें परमेश्वर की व्यवस्था की शिक्षा दी गई है इसलिए तुम जान सकते हो कि उचित क्या है और उनको करने का चुनाव कर सकते हो।
\v 19 तुम्हें निश्चय है कि तुम गैर-यहूदियों को परमेश्वर की सच्चाई दिखाने में सक्षम हो, और तुम उन लोगों को शिक्षा दे सकते हो जो परमेश्वर के विषय में कुछ नहीं जानते हैं।
\v 20 तुम्हें निश्चय है कि तुम उन लोगों को शिक्षा दे सकते हो जो परमेश्वर के विषय में मूर्खता की बातों को सच मानते हैं और जो बच्चों के समान हैं, क्योंकि वे उनके विषय में कुछ भी नहीं जानते हैं। तुम इन सबके विषय में निश्चित हो क्योंकि तुम्हारे पास व्यवस्था है जो तुम्हें परमेश्वर के विषय में सच्ची शिक्षा देती है।
\s5
\v 21 क्योंकि तुम यहूदी होने के कारण यह दावा करते हो कि तुम्हारे पास यह सब लाभ हैं, यह घृणित है कि तुम दूसरों को सिखाते हो परन्तु स्वयं व्यवस्था का पालन नहीं करते हो! तुम जो उपदेश देते हो कि लोगों को चोरी नहीं करनी चाहिए, यह घृणित है कि तुम स्वयं चोरी करते हो!
\v 22 तुम जो मनुष्यों से कहते हो कि उसके साथ नहीं सोना चाहिए जिसके साथ तुम्हारा विवाह नहीं हुआ हैं, यह घृणित है कि तुम स्वयं व्यभिचार करते हो! तुम जो लोगों को मूर्तियों की पूजा के विरुद्ध आदेश देते हो, यह घृणित है कि तुम इन घृणित वस्तुओं से नही बचें रहते हो।
\s5
\v 23 तुम जो घमण्ड से कहते हो, "मेरे पास परमेश्वर की व्यवस्था है," यह घृणित है कि तुम उसी व्यवस्था का पालन नहीं करते हो! इसका परिणाम यह होता है कि तुम परमेश्वर का अपमान कर रहे हो!
\v 24 यह वैसा ही है जैसा धर्मशास्त्र कहता है, "तुम यहूदियों के बुरे कामों के कारण, गैर-यहूदी परमेश्वर के विषय में अपमान की बातें बोलते हैं।"
\p
\s5
\v 25 तुम में से जो कोई भी यह दिखाने के लिए खतना करता है कि वह परमेश्वर का हैं तो वह तब ही उसका लाभ उठा सकता है जब वह परमेश्वर द्वारा मूसा को दी गयी व्यवस्था का पालन करता है। परन्तु यदि तू एक खतनावाला व्यक्ति है व्यवस्था का पालन नहीं करता है तो परमेश्वर तुझे अपनी दृष्टि में एक खतनारहित से अधिक अच्छा नहीं मानते हैं।
\v 26 इसका अर्थ यह है कि परमेश्वर निश्चय ही गैर-यहूदियों को, जिन्होंने खतना नहीं किया है, अपनी प्रजा मानेंगे, यदि वे उन नियमों का पालन करते हैं जिनकी आज्ञा उन्होंने अपनी व्यवस्था में दी थीं।
\v 27 वे लोग, जिन्होंने खतना नहीं किया है, परन्तु परमेश्वर के नियमों का पालन करते हैं, वे कहेंगे कि जब परमेश्वर तुम्हें दण्ड देते हैं, तो वह सही हैं, क्योंकि तुम खतना वाले हो, परन्तु फिर भी व्यवस्था को तोड़ते हो।
\s5
\v 28 जो लोग परमेश्वर के लिए संस्कारपूर्ति करते हैं, वे सच्चे यहूदियों नहीं हैं, और न ही देह में खतना करवाने से, परमेश्वर उन्हें स्वीकार करेंगे।
\v 29 इसके विपरीत, हम जिन्हें परमेश्वर ने भीतर से बदल दिया हैं, वे ही सच्चे यहूदी हैं। परमेश्वर ने हमें स्वीकार कर लिया है और परमेश्वर के आत्मा ने हमारे स्वभाव को बदल दिया है, इसलिए नहीं कि हम व्यवस्था कि आज्ञा के अनुसार संस्कार पूर्ति करते हैं। चाहे अन्य लोग हमारी प्रशंसा नहीं करें, परमेश्वर हमारी प्रशंसा करेंगे।
\s5
\c 3
\p
\v 1 अत: कोई यह कह सकता है, "यदि यह सच है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि गैर-यहूदियों कि तुलना में यहूदी होने का कोई लाभ नहीं है, और खतना करने से हम यहूदियों को कोई लाभ नहीं है।"
\v 2 परन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि यहूदी होने के कई लाभ हैं। सबसे पहले यह कि उनके पूर्वजों को परमेश्वर ने अपने वचनों को दिया था, जो हमें बताते हैं कि वह कौन हैं।
\s5
\v 3 क्या यहूदियों का विश्वसनीय न होने का अर्थ यह है कि परमेश्वर उन्हें अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार आशीष नहीं देंगे।
\v 4 कदापि नहीं, इसका अर्थ यह नहीं है! परमेश्वर सदा अपनी प्रतिज्ञा पूरी करते हैं, चाहे मनुष्य न करें। जो लोग परमेश्वर पर आरोप लगाते हैं कि वह हम यहूदियों के लिए अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं करते हैं, वे सब बहुत गलत हैं। राजा दाऊद ने इस विषय में लिखा: "इसलिए सब को यह स्वीकार करना चाहिए कि आपने उनके विषय में जो कहा है वह सच है, और जब कोई आप पर गलत काम करने का आरोप लगाते हैं तो आप सदैव उस मामले को जीतोगे।"
\p
\s5
\v 5 इसलिए यदि परमेश्वर हमारी दुष्टता के कारण हमें आशीष नहीं देते, तो क्या हम कह सकते हैं कि उन्होंने अन्याय किया है? क्या वह अपने क्रोध में हमें दण्ड देने के लिए गलत थे? (मैं ऐसी बातें कर रहा हूँ जैसी सामान्य मनुष्य करते हैं।)
\v 6 हमें ऐसा निष्कर्ष कभी नहीं निकालना चाहिए कि परमेश्वर को न्याय नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि परमेश्वर न्याय नहीं करेंगे, तो संसार का न्याय करना संभवता: उनके लिए उचित नहीं होगा!
\s5
\v 7 लेकिन कोई कहे, "परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरा करते हैं यह तथ्य स्पष्ट होता है क्योंकि उदाहरण के लिए, मैंने एक झूठ कहा और इसका परिणाम यह है कि लोग परमेश्वर की दया के कारण उनकी स्तुति करते हैं! तो परमेश्वर को अब कहना नहीं चाहिए कि मुझे मेरे इस पाप करने के कारण दण्ड दिया जाना चाहिए, क्योंकि लोग इसके कारण परमेश्वर की स्तुति कर रहे हैं!
\v 8 यदि तू, पौलुस, जो कह रहा है, वह सच है, तो हम बुरे काम करें जिससे कि उनके द्वारा अच्छे अच्छे परिणाम मिल जाए! "कुछ लोग मेरे विषय में बुरा कहते हैं क्योंकि वे मुझ पर इस तरह से बोलने का आरोप लगाते हैं। जो लोग मेरे विषय में ऐसी बातें कहते हैं उन्हें परमेश्वर दण्ड देंगे क्योंकि वे इस योग्य हैं कि परमेश्वर उन्हें दण्ड दें!
\p
\s5
\v 9 क्या हम यह निष्कर्ष निकालें कि परमेश्वर हमारे साथ अधिक कृपापूर्वक व्यवहार करेंगे और गैर-यहूदियों से कम कृपापूर्वक व्यवहार करेंगे? हम निश्चय ही ऐसा निष्कर्ष नहीं निकाल सकते हैं! यहूदी और गैर यहूदी दोनों ने पाप किया है और इसलिए वे परमेश्वर के दण्ड के योग्य हैं।
\v 10 धर्मशास्त्र में लिखे गए निम्नलिखित शब्द इसका समर्थन करते हैं,
\p कोई धर्मी नहीं है एक भी धर्मी जन नहीं है!
\s5
\v 11 कोई नहीं है जो समझाता है कि उचित जीवन कैसे जीना है। कोई भी नहीं है जो परमेश्वर को जानने कि खोज करता है!
\p
\v 12 सच में हर एक जन परमेश्वर से दूर हो गया है, परमेश्वर उन्हें भ्रष्ट समझते हैं। कोई भी नहीं जो उचित कार्य करता है; नहीं, एक भी नहीं है!
\s5
\v 13 मनुष्य जो कहता है वह गंदा है जैसे खुली कब्र की दुर्गन्ध, मनुष्यों की बातें लोगों को धोखा देती हैं।
\q वे अपनी बातों से मनुष्यों को चोट पहुँचाते हैं जैसे सांपों का विष लोगों को चोट पहुंचाता है।
\q
\v 14 वे लगातार दूसरों को श्राप देते हैं और कठोर बातें बोलते हैं।
\q
\s5
\v 15 वे लोगों की हत्या करने के लिए शीघ्र जाते हैं।
\q
\v 16 जहाँ भी वे जाते हैं, सब कुछ नष्ट कर देते हैं और लोगों को दु:खी करते हैं।
\q
\v 17 वे कभी नहीं जान पाए कि लोगों के साथ शान्ति से कैसे जीना चाहिए।
\q
\v 18 वे परमेश्वर का सम्मान करने से सर्वदा इन्कार करते हैं!
\p
\s5
\v 19 हम जानते हैं कि जो भी व्यवस्था में आज्ञा दी गई है, वह उनके लिए है जिनसे उसके पालन कि अपेक्षा की गई है। इसका अर्थ यह है कि यहूदी हो या गैर-यहूदी, जब परमेश्वर उनसे पाप करने का कारण पूछेंगे, तब वे इसके विपरीत कुछ भी कहने योग्य नहीं होंगे।
\v 20 परमेश्वर मनुष्यों के पापों का लेखा मिटा देंगे, वो इसलिए नहीं कि उन्होंने परमेश्वर की अनिवार्यताओं को पूरा किया है, क्योंकि किसी ने भी उन अनिवार्यताओं को पूरा नहीं किया है। सच तो यह है परमेश्वर की व्यवस्था को जानने का परिणाम यह है कि हम स्पष्ट जानते हैं कि हमने पाप किया है।
\p
\s5
\v 21 जब परमेश्वर हमें उनके साथ उचित संबंध में घोषित करते हैं तो वह हमारे द्वारा मूसा को दी गई उनकी व्यवस्था का पालन करने पर निर्भर नहीं करता है। व्यवस्था में और भविष्यद्वक्ताओं कि पुस्तक में लिखा है कि परमेश्वर हमारे पापों को एक अलग रीति से क्षमा करते हैं।
\v 22 परमेश्वर हमारे पापों का लेखा मिटाते हैं क्योंकि हम यीशु मसीह द्वारा हमारे लिए किए गए काम पर विश्वास करते हैं। परमेश्वर हर व्यक्ति के लिए ऐसा करते हैं जो मसीह में विश्वास करता है, क्योंकि वह यहूदियों और गैर-यहूदियों के बीच कोई अंतर नहीं मानते हैं।
\s5
\v 23 सब लोगों ने पाप किया है, और हर एक जन परमेश्वर द्वारा स्थापित उन महिमामय लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल रहा है।
\v 24 हमारे पापों का लेखा उनकी दया से हमारे पापों को क्षमा करने के कारण मिटाया गया है, हमने उसे प्राप्त करने के लिए कुछ नहीं किया है। मसीह यीशु ने हमें मुक्ति दिलाकर इसे उपलब्ध करवाया है।
\s5
\v 25 परमेश्वर ने दिखाया कि मसीह ने अपनी मृत्यु द्वारा लहू बहाकर उनका क्रोध दूर कर दिया है, और हमें उनके द्वारा हमारे लिए किए गए काम में विश्वास करना चाहिए। मसीह का बलिदान दर्शाता है कि परमेश्वर ने न्यायोचित काम किया है। अन्यथा, कोई यह नहीं सोचता कि वह न्याय में उचित है, क्योंकि उन्होंने अपने सहनशीलता के कारण उन पापों को अनदेखा किया है, जो पहले लोगों ने किए थे।
\v 26 परमेश्वर ने मसीह को हमारे लिए मरने के लिए नियुक्त किया। ऐसा करने से, वह अब दिखाते हैं कि वह न्यायी है, और वह दिखाते हैं कि वह यीशु में विश्वास करनेवाले सब लोगों के पापों का लेखा पूरी तरह से न्यायपूर्वक मिटा सकते हैं।
\p
\s5
\v 27 परमेश्वर हमारे पापों का लेखा मिटाते हैं तो वह इसलिए नहीं कि हम मूसा के व्यवस्था का पालन करते हैं। इसलिए हमें घमण्ड करने का कोई कारण नहीं है कि परमेश्वर हमारे पक्ष में है, क्योंकि हमने उन व्यवस्था का पालन किया है। इसकी अपेक्षा, परमेश्वर हमारे पापों का लेखा इसलिए मिटाते हैं कि हम मसीह में विश्वास करते हैं।
\v 28 तो यह स्पष्ट है कि परमेश्वर अपने साथ किसी को उचित संबंध में लाते हैं जब वह व्यक्ति मसीह में विश्वास करता है- न कि जब वह व्यक्ति व्यवस्था का पालन करता है।
\s5
\v 29 तुम जो यहूदी हो तुम्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि तुम ही केवल वे लोग हो, जिन्हें परमेश्वर स्वीकार करेंगे! तुमको निश्चय ही यह समझ लेना चाहिए कि वह गैर-यहूदियों को भी स्वीकार करेंगे। नि: सन्देह, वह गैर यहूदीयों को स्वीकार करेंगे,
\v 30 क्योंकि, तुम दृढ़ विश्वास करते हो कि एक ही परमेश्वर है। यही परमेश्वर यहूदियों को- जो खतना किए हुए हैं- अपने साथ उचित संबंध में लेंगे क्योंकि वे मसीह में विश्वास करते हैं, और यही परमेश्वर गैर-यहूदियों को- जो खतनारहित है- अपने साथ उचित संबंध में लेंगे, क्योंकि वे भी मसीह में विश्वास करते हैं।
\s5
\v 31 यदि तुम कहते हो कि परमेश्वर हमें अपने साथ उचित संबंध में इसलिए लेते हैं कि हम मसीह में विश्वास रखते हैं तो क्या इसका अर्थ यह है कि व्यवस्था अब बेकार है? कदापि नहीं। यह व्यवस्था वास्तव में वैध है।
\s5
\c 4
\p
\v 1 अब्राहम हम यहूदियों का आदरणीय पूर्वज है। तो विचार करो कि अब्राहम के साथ जो हुआ, उससे हम सीख सकते हैं।
\v 2 यदि अब्राहम के अच्छा काम करने के कारण से परमेश्वर ने उसे अपने साथ उचित संबंध में लिया था, तो अब्राहम के पास लोगों के सामने घमण्ड करने का कारण होता, (परन्तु फिर भी उसके पास परमेश्वर से घमण्ड करने का कोई कारण नहीं होता।)
\v 3 याद रखिए कि धर्मशास्त्र में यह लिखा गया है कि अब्राहम ने परमेश्वर कि प्रतिज्ञापर विश्वास किया था, इस कारण से, परमेश्वर ने अब्राहम को अपने साथ उचित संबंध में स्वीकार किया।
\s5
\v 4 यदि हमें काम के लिए मजदूरी मिलती है, तो वह मजदूरी दान नहीं मानी जाती है। इसकी अपेक्षा, मजदूरी को हमारे द्वारा अर्जित किया हुआ अधिकार माना जाता है। इसी प्रकार, अगर हम परमेश्वर को हम पर दयालु होने के लिए विवश कर सकते हैं, तो वह दान नहीं होगा।
\v 5 परन्तु सच तो यह है, परमेश्वर अपने साथ उन लोगों को उचित संबंध में लेते हैं, जिन्होंने पहले उन्हें कभी सम्मान नहीं दिया। परन्तु अब, वे उन पर विश्वास करते हैं, इसलिए परमेश्वर उन्हें अपने साथ उचित संबंध में लाते हैं।
\s5
\v 6 इसी प्रकार, जैसे दाऊद ने भजन में उनके विषय में लिखा था, जिन्हें बिना किसी काम के परमेश्वर ने अपने साथ उचित संबंध में लिया है:
\v 7 वे लोग कितने धन्य हैं जिनके पापों को परमेश्वर ने क्षमा किया है, जिनके पाप वे अब नहीं देखते हैं।
\v 8 वे लोग कितने धन्य हैं जिनके पापों का वह अब लेखा नहीं रखते हैं।
\p
\s5
\v 9 इस प्रकार से भाग्यशाली होने का अनुभव केवल यहूदियों का नहीं है। नहीं, इसका अनुभव गैर-यहूदी भी कर सकते हैं। हम यह जानते हैं, क्योंकि धर्मशास्त्र में यह लिखा गया है कि अब्राहम ने परमेश्वर में विश्वास किया, इसलिए परमेश्वर ने उसे अपने साथ उचित संबंध में स्वीकार किया ।
\v 10 जब परमेश्वर ने अब्राहम के लिए ऐसा किया था, तो वह अब्राहम के खतना करने से पहले था, बाद में नहीं।
\s5
\v 11 परमेश्वर ने अब्राहम को खतना करने की आज्ञा कई वर्षों के बाद दी, परमेश्वर ने उस से पहले ही उसे स्वीकार कर लिया था। खतना एक चिन्ह था कि अब्राहम पहले से ही परमेश्वर के साथ उचित संबंध में था। तो हम यहाँ सीख सकते हैं कि परमेश्वर ने अब्राहम को उन सब का पूर्वज मान लिया था जो उस में विश्वास करते हैं, उन लोगों का भी जिनका खतना नहीं हुआ हैं। इस प्रकार, परमेश्वर इन सब लोगों को अपने साथ उचित संबंध में स्वीकार करते हैं।
\v 12 इसी प्रकार, परमेश्वर अब्राहम को हम सब सच्चे यहूदियों का पूर्वज मानते हैं, अर्थात् उन सब यहूदियों का जिनके न केवल शरीर पर खतना का चिन्ह है, परन्तु उससे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि वे हमारे पूर्वज अब्राहम के समान जीवन जीते हैं जैसा वह खतना करने से पहले जीवन जीता था, जब वह केवल परमेश्वर में विश्वास करता था।
\p
\s5
\v 13 परमेश्वर ने अब्राहम और उसके वंशजों से प्रतिज्ञा की थी कि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे। परन्तु जब उन्होंने यह प्रतिज्ञा की थी तो वह इसलिए नहीं थी कि अब्राहम व्यवस्था का पालन कर रहा था। इसकी अपेक्षा, वह इसलिए था कि अब्राहम मानता था कि परमेश्वर प्रतिज्ञा करते हैं तो वह उसे पूरी करेंगे। इसलिए परमेश्वर ने अब्राहम को अपने साथ उचित संबंध में माना था।
\v 14 यदि लोग पृथ्वी के अधिकारी इस कारण होते, कि वे परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करते हैं, तो किसी भी बात के लिए परमेश्वर में विश्वास करना व्यर्थ होता, और उनकी प्रतिज्ञाओं का कोई अर्थ नहीं होता।
\v 15 याद रखें कि वास्तव में, परमेश्वर अपनी व्यवस्था में कहते हैं कि वह उन सब को दण्ड देंगे जो पूरी तरह से इसका पालन नहीं करते हैं। यह भी याद रख, कि जिन लोगों के पास कोई व्यवस्था नहीं है, उनके लिए व्यवस्था की अवज्ञा करना असंभव है।
\s5
\v 16 इसलिए कि हम परमेश्वर में विश्वास करते हैं, हमें वह वस्तुएँ मिलेंगी जो उन्होंने हमें एक वरदान के रूप में देने की प्रतिज्ञा की हैं, क्योंकि वह बहुत दयालु है। वह उन सब को यह वरदान देते हैं जिन्हें वह अब्राहम के सच्चे वंश मानते हैं अर्थात हम यहूदी विश्वासियों को, जिनके पास परमेश्वर की व्यवस्था है और उन पर भरोसा रखते है, और उन गैर-यहूदियों को भी, जिनके पास परमेश्वर की व्यवस्था नहीं हैं, परन्तु जो परमेश्वर पर अब्राहम के समान विश्वास करते हैं। परमेश्वर अब्राहम को हम सभी विश्वासियों का सच्चा पूर्वज मानते हैं।
\v 17 परमेश्वर ने धर्मशास्त्र में अब्राहम से यह कहा है: "मैं तुझे कई जातियों का पूर्वज बनाऊँगा।" अब्राहम ने यह सीधे परमेश्वर से प्राप्त किया जो मरे हुए लोगों को जिलाते हैं और शून्य से सृष्टि करते हैं।
\s5
\v 18 उसने परमेश्वर की प्रतिज्ञा में दृढ़ विश्वास किया जब कि वंश पाने की आशा करने का उसके पास कोई शारीरिक कारण नहीं था क्योंकि सन्तान को जन्म देने के लिए वह और उसकी पत्नी बहुत बूढ़े थे। परमेश्वर ने अब्राहम से प्रतिज्ञा की थी कि वह कई जातियों का पूर्वज होगा परमेश्वर ने कहा कि "तेरे वंशज आकाश में तारों के समान होंगे।"
\v 19 उसे परमेश्वर द्वारा अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने में सन्देह नहीं था। जबकि वह जानता था कि वह शरीर से इस योग्य नहीं है कि सन्तान को जन्म दे। (वह लगभग एक सौ वर्ष का था), और वह जानता था कि सारा को भी सन्तान नहीं होगी, विशेषकर अब, क्योंकि वह बहुत बूढ़ी थी।
\s5
\v 20 उसने संदेह नहीं किया कि परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करेंगे। इसकी अपेक्षा, उसने परमेश्वर पर अधिक दृढ़ता से भरोसा किया, और परमेश्वर जो उसके लिए करेंगे उसका उसने परमेश्वर को धन्यवाद किया।
\v 21 उसे विश्वास था कि परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करेंगे।
\v 22 और यही कारण है कि परमेश्वर ने अब्राहम को अपने साथ उचित संबंध में माना।
\p
\s5
\v 23 धर्मशास्त्र के वचन, "परमेश्वर ने उसे अपने साथ उचित संबंध में माना क्योंकि वह उन पर भरोसा करता था," केवल अब्राहम के विषय में नहीं है।
\v 24 यह हमारे विषय में भी लिखा गया था, जिन्हें परमेश्वर ने अपने साथ उचित संबंध में स्वीकार किया है क्योंकि हम उस में विश्वास करते हैं, जिन्होंने हमारे प्रभु यीशु को मृत्यु के बाद फिर से जिलाया था।
\v 25 परमेश्वर ने हमारे बुरे कामों के कारण यीशु को मारने की अनुमति दी थीं। और परमेश्वर ने यीशु को फिर से जिलाया क्योंकि परमेश्वर हमें अपने साथ सही करना चाहते हैं।
\s5
\c 5
\p
\v 1 परमेश्वर ने हमें अपने साथ उचित संबंध में किया क्योंकि हम अपने प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करते हैं। तो हम अब परमेश्वर के साथ शान्ति में हैं।
\v 2 क्योंकि मसीह ने हमारे लिए जो किया है, वह ऐसा है जैसे कि परमेश्वर ने हमें वहां जाने के लिए एक द्वार खोल दिया है जहाँ वह हमारे प्रति दयालु होंगे। इसलिए हम आनन्दित होते हैं क्योंकि हमें पूरा विश्वास है कि परमेश्वर अपनी महिमा हमारे साथ साझा करेंगे।
\s5
\v 3 जब हम पीड़ित होते हैं क्योंकि हम मसीह के साथ जुड़े हुए हैं, तो हम आनन्दित भी होते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि जब हम पीड़ित होते हैं, तब हम धीरज से कष्टों को सहना सीख रहे हैं।
\v 4 और हम जानते हैं कि जब हम दु:ख सहने में धीरज धरते हैं, तो परमेश्वर हमें स्वीकार करते हैं। और जब हम जानते हैं कि परमेश्वर ने हमें स्वीकार किया है, तो हम पूरी तरह से आशा कर सकते हैं कि वह हमारे लिए महान काम करेंगे।
\v 5 और हम बहुत आश्वस्त हैं कि हम उन वस्तुओं को प्राप्त करेंगे जिनके लिए हम प्रतीक्षा करते हैं, क्योंकि परमेश्वर हमसे बहुत प्रेम करते हैं। उनके पवित्र आत्मा, जिन्हें उन्होंने हमें दिया था, हमें यह समझने योग्य बनाते हैं कि परमेश्वर हमसे कितना प्रेम करते हैं।
\p
\s5
\v 6 जब हम स्वयं को बचाने में असमर्थ थे, तो वह मसीह थे, जो परमेश्वर के निर्धारित समय में, हमारे लिए मर गए, जबकि हम परमेश्वर का सम्मान नहीं करते थे।
\v 7 कोई किसी के लिए मरे ऐसा दुर्लभ ही है, भले ही वह व्यक्ति धर्मी हो, संभव है कि एक अच्छे व्यक्ति के लिए कोई मरने का साहस करे।
\s5
\v 8 फिर भी, परमेश्वर ने अपना प्रेम इस रीति से प्रकट किया कि मसीह हमारे लिए मर गए जब कि हम उस समय भी परमेश्वर के विरूद्ध विद्रोह कर रहे थे।
\v 9 तो यह और भी निश्चित है कि मसीह हमें पाप के प्रति, परमेश्वर के क्रोध से बचाएंगे, क्योंकि हम परमेश्वर के साथ उचित संबंध में हैं क्योंकि मसीह हमारे लिए मर गए और हमारे पापों के लिए अपना लहू बहा दिया।
\s5
\v 10 उस समय जब हम उनके शत्रु थे, तब भी परमेश्वर ने हमें अपना मित्र बनाया क्योंकि उनके पुत्र हमारे लिए मर गए। इसलिए कि मसीह फिर जीवित है, यह और भी निश्चित है कि मसीह हमें बचाएंगे।
\v 11 और यही नहीं! अब हम और भी आनन्दित हैं क्योंकि हमारे प्रभु यीशु मसीह ने हमारे लिए जो किया हैं, उसके कारण हम परमेश्वर के मित्र बन गए हैं।
\p
\s5
\v 12 सब लोग पापी हैं क्योंकि आदम; जिसे परमेश्वर ने सबसे पहले बनाया था, उसने बहुत पहले पाप किया था। क्योंकि उसने पाप किया, इस कारण उसकी मृत्यु हो गई। इसलिए जितने लोग तब से जीवित है, सब पापी हो गए, और वे सब मर गए।
\v 13 पृथ्वी के लोगों ने, परमेश्वर द्वारा मूसा को दी गई व्यवस्था से पहले पाप किया, परन्तु उस व्यवस्था के बिना पाप को पहचानने की कोई विधि नहीं थी।
\s5
\v 14 परन्तु हम जानते हैं कि आदम के समय से मूसा के समय तक सब लोग पाप करते थे, और इस कारण वे सब मर गए। सब लोग मर गए, वे लोग भी जिन्होंने परमेश्वर का सीधा आदेश नहीं तोड़ा था, जैसा आदम ने किया था। आदम के पाप ने सब लोगों को प्रभावित किया, वैसे ही जब मसीह आए तो उन्होंने जो किया, वह भी सब लोगों को प्रभावित करता है।
\v 15 परन्तु परमेश्वर का वरदान आदम के पाप के समान नहीं है। क्योंकि आदम ने पाप किया, सब लोग मर जाते हैं। परन्तु क्योंकि एक और पुरुष, यीशु मसीह, हम सब के लिए मर गए, परमेश्वर ने हमें अनन्त जीवन का यह वरदान दिया है, जबकि हम उसके योग्य नहीं हैं।
\s5
\v 16 एक और मार्ग है जिसमें परमेश्वर का वरदान आदम के पाप से अलग है। क्योंकि आदम ने पाप किया, और उसके बाद सब लोग पापी हो गए, इसलिए परमेश्वर ने घोषणा की कि सब लोग दण्ड के योग्य है। परन्तु दया के वरदान के रूप में, परमेश्वर हमें अपने साथ उचित संबंध में लाते हैं।
\v 17 एक पुरुष आदम के पाप के कारण सब लोग मरते हैं। परन्तु अब हम में से बहुत से लोग अनुभव करते हैं कि परमेश्वर ने हमें बहुत ही महान वरदान दिए हैं, जिसके योग्य हम नहीं हैं- और उन्होंने हमें अपने साथ उचित संबंध में कर दिया है। यह भी निश्चित है कि हम स्वर्ग में मसीह के साथ शासन करेंगे। यह सब एक मनुष्य, यीशु मसीह के द्वारा हमारे लिए किए हुए काम के कारण होगा।
\p
\s5
\v 18 इसलिए, क्योंकि एक पुरुष, आदम ने, परमेश्वर की व्यवस्था का पालन नहीं किया, सब लोग दण्ड पाने के योग्य हैं। उसी प्रकार, क्योंकि एक पुरुष, यीशु ने अपने जीवन और मृत्यु में परमेश्वर की आज्ञा का पालन करके धर्म का काम किया, इसलिए परमेश्वर सब को अपने उचित संबंध में साथ करते हैं, जिससे वे हमेशा के लिए जीवित रहें।
\v 19 एक व्यक्ति, आदम ने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी इस कारण बहुत से लोग पापी हो गए। उसी प्रकार, एक व्यक्ति यीशु ने, अपनी मृत्यु के द्वारा परमेश्वर की आज्ञा मानी जिससे कि वह अनेक लोगों को अपने साथ उचित संबंध में करें।
\s5
\v 20 परमेश्वर ने मूसा को अपनी व्यवस्था दी थी कि लोगों को पता चले कि उन्होंने कितने अधिक पाप किए थे। लेकिन जैसे जैसे लोगों के पाप बढ़ते गए, वैसे वैसे परमेश्वर उनके साथ और भी अधिक दया के कार्य करते गए जबकि वे इसके योग्य नहीं थे।
\v 21 उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि, लोग पाप के कारण मर जाते हैं, परन्तु उनकी दया का वरदान उन्हें परमेश्वर के साथ उचित संबंध में कर सकता है। हमारे प्रभु यीशु ने उनके लिए जो किया है उसके कारण लोग सदा के लिए जीवित रह सकते हैं।
\s5
\c 6
\p
\v 1 मैंने जो कुछ लिखा है, उसके उत्तर में कोई यह कह सकता है कि परमेश्वर ने हमारे प्रति दया से काम किया है, इसलिए हमें पाप को करते रहना चाहिए कि उनकी दया बढ़े।
\v 2 नहीं, निश्चित रूप से नहीं! हम उन लोगों के समान हैं जो मर चुके हैं, जो अब कोई बुराई नहीं कर सकते हैं। इसलिए हमें पाप करते रहना नहीं चाहिए।
\v 3 जब हमने मसीह यीशु के साथ जुड़ने का बपतिस्मा लिया, तो परमेश्वर ने हमें मसीह के साथ क्रूस पर मरने की समानता में देखा। क्या तुम यह नहीं जानते?
\s5
\v 4 इसलिए, जब हमने बपतिस्मा लिया, तो परमेश्वर ने हमें मसीह के साथ उनके कब्र में होने की समानता में देखा। परमेश्वर पिता ने मसीह को मरे हुओं में से जिलाने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग किया; उसी प्रकार, उन्होंने हमारे लिए भी एक नए रूप में जीवन जीना संभव बनाया।
\v 5 जब परमेश्वर हमें मसीह के साथ मरता हुए देखते हैं, तो वह हमें भी मृतकों में से उनके साथ जीवित करेंगे।
\s5
\v 6 परमेश्वर हमारे पापी स्वभाव को समाप्त करने के लिए, हम पापियों को मसीह के साथ क्रूस पर मरने के रूप में देखते हैं। इस कारण, हमें अब पाप नहीं करना चाहिए।
\v 7 क्योंकि जो भी मर चुका है, वह फिर पाप नहीं करता है।
\s5
\v 8 इसलिए कि जब मसीह मरे, तब परमेश्वर हमें मसीह के साथ मरता देखते हैं, इसलिए हम मानते हैं कि हम उनके साथ जीवित रहेंगे।
\v 9 हम जानते हैं कि जब परमेश्वर ने मसीह को मृत्यु के बाद फिर से जीवित करने में समर्थ किया, तो मसीह फिर से कभी नहीं मरेंगे। कभी भी कुछ भी उन्हें फिर से मारने में समर्थ नहीं होगा।
\s5
\v 10 जब वह मर गए, तो वह हमारी पापी दुनिया से मुक्त हो गए थे, और वह फिर से नहीं मरेंगे; क्योंकि वह फिर से जीवित हैं, तो वह परमेश्वर की सेवा के लिए जीवित हैं।
\v 11 उसी प्रकार, तुम्हें अपने आप को वैसे ही देखना है जैसे परमेश्वर तुम्हें देखते हैं। तुम मरे हुए लोग हो, और अब पाप करने में असमर्थ हो; परन्तु तुम लोग जीवित भी हो, और परमेश्वर की सेवा करने के लिए जी रहे हो और मसीह यीशु के साथ जुड़े हुए हो।
\s5
\v 12 इसलिए जब तुम पाप करना चाहते हो, तो जो करना चाहते हो, उसे करने का अपने आप को अवसर मत दो। याद रखो कि तुम्हारा शरीर एक दिन मर जाएगा।
\v 13 अपने शरीर के किसी भी भाग को बुरा करने के लिए उपयोग न करो। इसकी अपेक्षा, अपने आप को परमेश्वर के सामने मरे हुओं से फिर जीवित किए हुए नये लोगों के समान प्रस्तुत करो। परमेश्वर के लिए अपने शरीर के हर अंग का उपयोग करो। परमेश्वर को अवसर दो वह तुम्हें धर्म के कामों को करने के लिए उपयोग करें।
\v 14 जब तुम पाप करना चाहते हो, तो ऐसा मत करो! मूसा को दिए गई परमेश्वर की व्यवस्था तुम्हें पाप न करने की सामर्थ नहीं देते हैं। परन्तु अब परमेश्वर तुम पर अधिकार रखते हैं और दया से तुम्हें पाप न करने में सहायता करते हैं।
\p
\s5
\v 15 हम इससे ऐसा सोच सकते हैं, कि परमेश्वर ने जो व्यवस्था मूसा को दी थी, उस व्यवस्था से हमें पाप करने से रोकने में समर्थ नहीं किया और अब परमेश्वर हमारे प्रति दयालु होकर काम कर रहे हैं, तो परमेश्वर हमें पाप करते रहने की अनुमति देते हैं। बिलकुल नहीं!
\v 16 यदि तुम किसी की आज्ञा का पालन करने का निर्णय लेते हो, तो तुम उसके दास बन जाते हो। यदि तुम पाप करना चाहते हो, तो तुम पाप के दास बन जाते हो और इस कारण मर जाते हो। परन्तु यदि तुम परमेश्वर की आज्ञा मानते हो, तो तुम उनके दास बन जाते हो, और इस कारण, वह सही काम करते हो जो परमेश्वर तुमसे कराना चाहते हैं।
\s5
\v 17 पहले तो, तुम जैसे पाप करना चाहते थे, वैसे करते थे- तुम पाप के दास थे। परन्तु तुम सच्चे मन से मसीह की सिखाई हुई बातों पर चलने लगे। मैं इसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ।
\v 18 इसलिए अब तुम्हें कभी भी पाप करने की आवश्यकता नहीं है; पाप अब तुम्हारा स्वामी नहीं है। इसकी अपेक्षा, तुम परमेश्वर के दास हो, जो धर्मी हैं।
\s5
\v 19 मैं तुमको इस रीति से लिख रहा हूँ कि साधारण लोग भी समझ सकते हैं। पहले तुम अपनी इच्छाओं के दास थे, इसलिए तुम सभी प्रकार के गंदे और बुरे काम करते थे। परन्तु अब परमेश्वर के समान उचित कार्य करो, कि वह तुम को अपने लोगों के रूप में अलग कर दें।
\v 20 यह सच है कि पहले, तुमने उन लोगों के समान व्यवहार किया जो परमेश्वर की शक्ति और धार्मिकता से अलग थे (क्योंकि तुम्हारे दुष्ट मन ने जो भी करने के लिए कहा तुमने वही किया)। तुमने उचित काम नहीं किए।
\v 21 तुम पाप के दास थे, परन्तु परमेश्वर ने तुम्हें पाप से मुक्त किया है और तुम्हें अपना दास बनाया है। इसका परिणाम यह है कि तुम पवित्र बन रहे हो, और इस कारण तुम सदा उनके साथ रहोगे।
\s5
\v 22 परन्तु अब तुमको और पाप नहीं करना है। तुम अब उसके दास नहीं हो। इसकी अपेक्षा, तुम परमेश्वर के दास हो गए हो और उन्होंने तुम्हें अपने लोगों के रूप में अलग किया है, और वह तुमको सदा के लिए उनके साथ रहने की अनुमति देंगे।
\v 23 जो लोग अपने बुरे मन के अनुसार काम करते हैं उन्हें उसकी मजदूरी मिलती है, यह मजदूरी मृत्यु है। वह सदा के लिए परमेश्वर से अलग हो जाएँगे। लेकिन परमेश्वर अपने दासों को मजदूरी नहीं देते हैं। इसकी अपेक्षा, वह हमें एक मुफ्त वरदान देते हैं: वह हमें हमारे प्रभु मसीह यीशु के साथ जुड़कर उनके साथ सदा के लिए जीवित रहने की अनुमति देते हैं।
\s5
\c 7
\p
\v 1 मेरे साथी विश्वासियों, तुम व्यवस्था के विषय में जानते हो। तो तुम निश्चय ही से यह भी जानते होंगे कि लोगों को केवल तब तक व्यवस्था को मानना होता है जब तक जीवित हैं।
\s5
\v 2 उदाहरण के लिए, जब तक एक स्त्री का पति जीवित है, तब तक उसे अपने पति के प्रति विश्वासयोग्य रहना चाहिए। लेकिन अगर उसके पति की मृत्यु हो जाती है, तो उसे विवाहित स्त्री के समान व्यवहार करने की आवश्यकता नहीं है। व्यवस्था उसे विवाह से मुक्त करती है।
\v 3 परन्तु यदि वह अपने पति के जीवित रहते हुए दूसरे पुरुस के पास जाती है, तो वह व्यभिचारिणी होगी। लेकिन अगर उसका पति मर जाता है, तो उसे अब उस व्यवस्था का पालन करना नहीं पड़ता है। फिर यदि वह दूसरे पुरुष से विवाह करे, तो वह व्यभिचारिणी नहीं होगी।
\s5
\v 4 उसी प्रकार, मेरे भाइयों और बहनों, जब तुम मसीह के साथ उनके क्रूस पर मर गए, तो परमेश्वर की व्यवस्था अब तुम पर नियंत्रण नहीं कर सकती हैं। तुम मसीह के साथ रहने के लिए स्वतंत्र हो, जिससे कि तुम परमेश्वर का सम्मान कर सको। तुम ऐसा कर सकते हो क्योंकि तुम फिर से जीवित हो। परमेश्वर ने मसीह के साथ तुम्हें जोड़ दिया है, और उन्होंने मसीह को मरे हुओं में से जीवित किया है।
\v 5 जब हम अपने बुरे विचारों के अनुसार काम करते थे, और जब हम ने परमेश्वर की व्यवस्था को सीखा तब हम और अधिक पाप करना चाहते थे। इसलिए हमने बुरे कामों को किया जो परमेश्वर को सदा के लिए हमसे अलग करते थे।
\s5
\v 6 परन्तु अब परमेश्वर ने मूसा की व्यवस्था का पालन करने से हमें मुक्त किया है- यह एक प्रकार से हमारी मृत्यु है, और व्यवस्था अब हमें आज्ञा नहीं दे सकती कि हमें क्या करना चाहिए। परमेश्वर ने हमारे लिए ऐसा इसलिए किया है कि हम एक नई रीति से उनकी आराधना कर सकें, जैसे आत्मा हमारा मार्गदर्शन करें, न कि व्यवस्था की पुरानी रीति से।
\p
\s5
\v 7 क्या हम यह कह सकते हैं, यदि लोग परमेश्वर के व्यवस्था को जानते हैं तो वे अधिक पाप करना चाहते हैं? तब तो यह नियम अपने में बुरे हैं। नहीं बिलकुल नहीं! व्यवस्था बुरी नहीं है! परन्तु सच यह है कि मुझे तब तक नहीं पता था कि पाप क्या है जब तक कि मैंने इसके विषय में व्यवस्था से नहीं जाना। उदाहरण के लिए, मुझे नहीं पता था कि जो तेरा नहीं है उसकी इच्छा करना बुरा है, जब तक मैंने यह नहीं सीखा कि व्यवस्था कहती है, "जो तेरा नहीं है, उसकी इच्छा नहीं करनी चाहिए।"
\v 8 और उस आज्ञा के कारण, मेरी पापी इच्छाओं ने मुझे दूसरों की वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए कई प्रकार से लालच करने के लिए उकसाया। लेकिन जहाँ व्यवस्था नहीं है, वहाँ पाप भी नहीं है।
\s5
\v 9 पहले में, जब मुझे पता नहीं था कि परमेश्वर की व्यवस्था क्या चाहती है, तो मैं अपने कर्म की चिंता के बिना पाप करता था। लेकिन जब मुझे पता चला कि परमेश्वर ने हमें अपनी व्यवस्था दीं हैं, तो मुझे समझ आता है कि मैं पाप कर रहा था,
\v 10 और मुझे बोध हुआ कि मैं परमेश्वर से अलग था। यह व्यवस्था जो मुझे सदा का जीवन देने के लिए थी, यदि मैं उसे मानता, तो वह मुझे मृत्यु की ओर ले जाती है।
\s5
\v 11 जब मैं पाप करना चाहता था, तो मैंने सोचा कि यदि मैं व्यवस्था का पालन करता हूँ तो मैं हमेशा के लिए जीवित रहूंगा। परन्तु मैं गलत था: मैंने सोचा कि मैं पाप करता रह सकता हूँ। वास्तव में, परमेश्वर मुझे सदा के लिए उनसे अलग करने जा रहे थे क्योंकि मैं सचमुच व्यवस्था का पालन नहीं करता था।
\v 12 इसलिए हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा को जो व्यवस्था दी थी, वह पूरी तरह से अच्छी है। परमेश्वर हमें कुछ भी करने के लिए आज्ञा देते हैं, वह सब कुछ अचूक, न्यायोचित और अच्छा है।
\p
\s5
\v 13 तो क्या हम यह कह सकते हैं कि परमेश्वर ने मूसा को जो व्यवस्था दी थी जो अच्छी है, उसने हमें परमेश्वर से दूर कर दिया! निश्चित रूप से उसने ऐसा नहीं किया! परन्तु इसकी अपेक्षा, व्यवस्था ने, जो अच्छी है, मुझमें पाप करने की इच्छा जगाई। और, मुझे पता चला कि, मैं परमेश्वर से बहुत दूर हूँ। और क्योंकि मुझे यह भी पता चला कि परमेश्वर ने क्या आज्ञा दीं थी, तो मुझे समझ में आया कि जो मैं कर रहा था वह सचमुच पापमय था।
\p
\v 14 हम जानते हैं कि व्यवस्था परमेश्वर से आई थी और हमारे विचारों को बदलती है। परन्तु मैं ऐसा व्यक्ति हूँ जिसका व्यवहार पाप की ओर जाता है। ऐसा लगता है कि मुझे पाप करने की इच्छा का दास बनने के लिए विवश किया जा रहा था- मेरी जो इच्छा होती थी, मैं वही करता था।
\s5
\v 15 मैं जो करता हूँ, उसे मैं प्राय: समझ नहीं पाता हूँ। यह कि, मैं अच्छे काम करना तो चाहता हूँ परन्तु मैं नहीं करता। और जिन बुरी बातों से मुझे घृणा है मैं वही करता हूँ।
\v 16 इसलिए कि मैं उन बुरी चीजों को करता हूँ जो मैं करना नहीं चाहता, मैं मानता हूँ कि परमेश्वर की व्यवस्था मुझे उचित निर्देश देती है।
\s5
\v 17 अत: ऐसा नहीं है कि मैं पाप करना चाहता हूँ इसलिए मैं पाप करता हूँ। इसकी अपेक्षा, मैं पाप करता हूँ क्योंकि पाप की इच्छा मुझमें पाप करने का कारण बनती है।
\v 18 मुझे पता है कि जब मैं अपनी इच्छा का पालन करता हूँ, तो मैं कुछ भी अच्छा नहीं कर सकता। मुझे यह इसलिए पता है कि मैं अच्छा करना चाहता हूँ, परन्तु जो अच्छा है वह मैं नहीं करता।
\s5
\v 19 मैं जिन अच्छे कामों को करना चाहता हूँ, उन्हें नहीं करता हूँ। इसकी अपेक्षा वह बुरे काम जिन्हें मैं नहीं करना चाहता हूँ, वही मैं करता हूँ।
\v 20 जब मैं उन बुरे कामों को करता हूँ जिन्हें मैं करना नहीं चाहता, तो ऐसा नहीं है कि मैं वास्तव में, उन कामों को करता हूँ। परन्तु, मेरा स्वाभाव जो पापी है, वह मुझसे पाप कराता है।
\v 21 मैं देखता हूँ कि जो सदा होता है वह यह कि जब मैं अच्छा करना चाहता हूँ, तो मेरे भीतर की बुरी इच्छा मुझे अच्छा करने से रोकती है।
\s5
\v 22 मेरे नए स्वाभाव में, मैं परमेश्वर की व्यवस्था से बहुत खुश हूँ।
\v 23 फिर भी, मुझे लगता है कि मेरे शरीर में एक अलग शक्ति है, यह मेरे मन की इच्छा के विरोध में है, और यह मुझे मेरे पुराने पापमय स्वभाव के अनुसार कार्य कराती है।
\s5
\v 24 जब मैं इस पर विचार करता हूँ, तो मुझे लगता है कि मैं बहुत अभागा व्यक्ति हूँ। मैं चाहता हूँ कि कोई मुझे मेरे शरीर की इच्छाओं से मुक्त कर दे, कि मैं परमेश्वर से अलग न हो जाऊं।
\v 25 मैं परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ कि हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर हमें हमारे शरीर की इच्छा के नियंत्रण से मुक्त करते हैं। हमारे मन में, मैं एक ओर परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करना चाहता हूँ। परन्तु, मैं अधिकतर अपने पुराने पापी स्वभाव के कारण पापमय इच्छाओं के वश में हो जाता हूँ।
\s5
\c 8
\p
\v 1 इसलिए परमेश्वर उन्हें जो यीशु मसीह के साथ जुड़े हुए हैं दोषी न ठहराएँगे' और उन्हें दण्ड न देंगे।
\v 2 परमेश्वर के आत्मा हमें एक नय जीवन के लिए प्रेरित करते हैं क्योंकि हम मसीह यीशु के साथ जुड़े हुए हैं। अत: जब मेरे मन में पाप का विचार आता है, तो मैं पाप नहीं करता हूँ और मैं अब परमेश्वर से अलग नहीं रहूंगा।
\s5
\v 3 हमने परमेश्वर के साथ रहने के लिए परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करने का प्रयास किया परन्तु यह सोचना व्यर्थ था कि हम ऐसा कर सकते थे- हम पाप करने से नहीं रूक सकते थे। इसलिए परमेश्वर ने हमारी सहायता की: उन्होंने अपने ही पुत्र को संसार में भेजा कि उनके पुत्र हमारे पाप का प्रायश्चित करें। उनके पुत्र शरीर में होकर आए थे-ऐसा शरीर जो हम पापियों के शरीर के समान था। उनके पुत्र हमारे पापों के लिए स्वयं को बलिदान करने के लिए आए थे। जब उन्होंने ऐसा किया, तो उन्होंने यह भी दिखाया कि हमारे पाप वास्तव में दुष्ट हैं, और जो कोई भी पाप करतें है वे दण्ड के योग्य हैं।
\v 4 तो अब हम परमेश्वर की व्यवस्था की सभी अनिवार्यताओं को पूरा कर सकते हैं। हम अपने पुराने बुरे स्वभाव की इच्छाओं के अनुसार कार्य नहीं करते है, बल्कि हम परमेश्वर के आत्मा की इच्छा के अनुसार जीते हैं।
\v 5 जो लोग अपने बुरे स्वभावों से जीते हैं, वे उन स्वभावों पर ध्यान देते हैं। परन्तु जो लोग परमेश्वर के आत्मा की इच्छा के अनुसार जीते हैं, वे आत्मिक बातों के विषय में सोचते हैं।
\s5
\v 6 जो लोग अपने बुरे स्वभाव की इच्छाओं के अनुसार जीवन जीते हैं, वे सदा के लिए जीवित नहीं रहेंगे। परन्तु जो परमेश्वर के आत्मा की इच्छाओं को चाहते हैं वे सदा के लिए जीवित रहेंगे और उन्हें शान्ति मिलेगी।
\v 7 मुझे यह समझाने दो। जितना लोग अपने बुरे स्वभाव को चाहते हैं, उतना वे परमेश्वर के विपरीत काम करतें हैं। वे उनकी व्यवस्था का पालन नहीं करते हैं। वास्तव में, वे उनकी व्यवस्था का पालन करने के योग्य नहीं हैं।
\v 8 जो लोग अपने बुरे स्वभाव के अनुसार काम करते हैं वे परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते हैं।
\s5
\v 9 लेकिन हमें अपने पुराने बुरे स्वभाव के वश में रहने की आवश्कता नहीं है। इसकी अपेक्षा, हमें परमेश्वर के आत्मा को हम पर नियंत्रण करने देना है, क्योंकि वह हमारे भीतर रहते हैं। यदि आत्मा जो मसीह की ओर से आते हैं, वह लोगों में नहीं रहते हैं, तो वे लोग मसीह के नहीं हैं।
\v 10 परन्तु क्योंकि मसीह अपने आत्मा के द्वारा तुम्हारे अन्दर रहते हैं, तो परमेश्वर तुम्हारे शरीर को मृत मानते हैं, इसलिए तुमको अब पाप करना नहीं पड़ता है। और वह तुम्हारी आत्माओं को जीवित मानते हैं, क्योंकि उन्होंने तुमको अपने साथ सही रखा है।
\s5
\v 11 परमेश्वर ने यीशु को मरने के बाद फिर से जीवित किया। क्योंकि उनके आत्मा तुम्हारे अन्दर रहते हैं, तो परमेश्वर तुम्हारे शरीर को भी जो अब मरने के लिए निश्चित है, फिर से जीवित करेंगे। उन्होंने मरने के बाद मसीह को फिर से जीवित किया, और वह अपनी आत्मा के द्वारा तुम्हें फिर से जीवित करेंगे।
\p
\s5
\v 12 इसलिए, मेरे साथी विश्वासियों, हम आत्मा के निर्देशन के अनुसार रहने के लिए विवश है। हम अपने पुराने बुरे स्वभाव के अनुसार रहने के लिए विवश नहीं हैं।
\v 13 यदि तुम अपने पुराने बुरे स्वाभाव के अनुसार काम करते हो, तो तुम निश्चय ही परमेश्वर के साथ सदा के लिए जीवित नहीं रहोगे। परन्तु यदि आत्मा तुमको उन बातों को करने से रोकते हैं, तो तुम सदा के लिए जीवित रहोगे।
\p
\s5
\v 14 हम जो परमेश्वर के आत्मा की आज्ञा का पालन करते हैं, वे परमेश्वर की सन्तान हैं।
\v 15 ऐसा इसलिए है कि तुम्हें ऐसी आत्मा नहीं मिली है जो तुमको डराती हैं। तुम दासों के समान नहीं हो जो अपने स्वामी से डरते हैं। इसके विपरीत, परमेश्वर ने तुम्हें अपना आत्मा दिया है, और उनके आत्मा ने हमें परमेश्वर की सन्तान बना दिया है। आत्मा अब हमें इस योग्य बनाते हैं कि हम पुकारें "आप मेरे पिता हो!"
\s5
\v 16 जो हमारी आत्माएं कहती हैं, उसे आत्मा स्वयं प्रमाणित करती हैं कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं।
\v 17 क्योंकि हम परमेश्वर की सन्तान हैं, हम एक दिन परमेश्वर की प्रतिज्ञा के वारिस होंगे, और हम उसे मसीह के साथ मिलकर पाएंगे। लेकिन हमें मसीह के समान भलाई करने के लिए दुख उठाने होंगे, ताकि परमेश्वर हमें सम्मानित कर सकें।
\p
\s5
\v 18 मेरे विचारों में, वर्तमान समय में हम जो भी कष्ट उठाते हैं, वह ध्यान देने के योग्य नहीं है, क्योंकि भविष्य की महिमा जो परमेश्वर हम पर प्रकट करेंगे वह इतनी बड़ी होगी।
\v 19 परमेश्वर ने जो सृष्टि की है, वह उस समय का प्रतीक्षा कर रही हैं जब वह प्रकट करेंगे कि उनकी सच्ची सन्तान कौन हैं।
\s5
\v 20 परमेश्वर ने अपनी सृष्टि को ऐसा किया, कि वह उनकी इच्छा को पूरा करने में असमर्थ हो। ऐसा इसलिए नहीं था कि वे असफल होना चाहते थे। इसके विपरीत, परमेश्वर ने उन्हें ऐसा बनाया क्योंकि वह निश्चित थे,
\v 21 कि उनकी सृष्टि, एक दिन न तो मरेगी, न क्षय होगी और न ही नष्ट होगी। वह इन बातों को उस से मुक्त कर देंगे, जिससे कि वह इन बातों के लिए भी वही अद्भुत काम कर सकें जो वह अपनी सन्तान के लिए करेंगे।
\v 22 हम जानते हैं कि अब तक ऐसा प्रतीत होता है कि परमेश्वर ने जो वस्तुएँ बनाई वे सब एक साथ कराहती हैं, और वे चाहती हैं कि परमेश्वर उनके लिए अद्भुत काम करे। परन्तु इस समय यह एक ऐसी स्त्री के समान है, जिसे बच्चे को जन्म देने से पहले आने वाली पीड़ाएं हो रही है।
\s5
\v 23 न केवल ये वस्तुएँ कराहती हैं, हम भी अपने भीतर कराहते हैं। हमारे पास परमेश्वर के आत्मा हैं, जो हमें दिए गए वरदान का एक अंश हैं हम उन सब वस्तुओं कि प्रतीक्षा करते हैं, जो परमेश्वर हमें देंगे, हम भीतर से कराहते हैं। हम तब तक कराहते रहते हैं जब तक हम परमेश्वर की लेपालक सन्तान होने के हमारे पूर्ण अधिकार प्राप्त न कर लें, हम उस समय की उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं। इसमें हमारे शरीर को उन बातों से मुक्त करना भी है जो हमें धरती पर बाँधती हैं। वह हमें नया शरीर देकर ऐसा करेंगे।
\v 24 परमेश्वर ने हमें बचा लिया क्योंकि हमें विश्वास था। यदि हमारे पास अब वे वस्तुएँ होती, जिनकी हम प्रतीक्षा करते है, तो हमें उनके लिए प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं होती। यदि तुम्हें वे वस्तुएँ मिल जाएँ जिनकी तुम आशा कर रहे हो, तो निश्चय ही तुम्हें उनकी प्रतीक्षा करने की आश्यकता नहीं है।
\v 25 परन्तु क्योंकि हम उन वस्तुओं को पाने की आशा करते हैं जो हमारे पास नहीं हैं, तो हम उत्सुकता और धीरज के साथ इसके लिए प्रतीक्षा करते हैं।
\p
\s5
\v 26 इसी प्रकार, जब हम निर्बल होते हैं, तब परमेश्वर के आत्मा हमारी सहायता करते हैं। हम नहीं जानते कि हमारे लिए क्या प्रार्थना करना उचित है। परन्तु परमेश्वर के आत्मा जानते हैं; जब वह हमारे लिए प्रार्थना करते हैं, वह इस रीति से कराहते हैं जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।
\v 27 परमेश्वर, जो हमारे आंतरिक स्वाभाव और मन की जांच करते हैं, समझते हैं कि उनके आत्मा क्या चाहते हैं। उनके आत्मा हमारे लिए प्रार्थना करते हैं, अर्थात उनके लिए जो परमेश्वर से जुड़े हैं, ठीक उसी प्रकार जैसे परमेश्वर चाहते हैं कि वह प्रार्थना करे।
\p
\s5
\v 28 और हम जानते हैं कि जो परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उनके लिए परमेश्वर इस प्रकार से काम करते हैं कि उनकी भलाई उत्पन्न होती है। वह अपने चुने हुए लोगों के लिए ऐसा करते हैं, क्योंकि उन्होंने ऐसा करने की योजना बनाईं है।
\v 29 परमेश्वर पहले से जानते थे कि हम उन में विश्वास करेंगे। हम उन लोगों में से हैं जिन्हें परमेश्वर ने ठहराया कि उनके पुत्र के चरित्र के समान चरित्र हो। परिणाम यह है कि मसीह परमेश्वर के पहलौठे है, और जो लोग परमेश्वर की सन्तान हैं, वे यीशु भाई हैं।
\v 30 और जिन्हें परमेश्वर ने पहले से ठहराया था कि उनके पुत्र के समान हों, उन्होंने उन्हें अपने साथ रहने के लिए बुलाया भी और जिन लोगों को उन्होंने साथ रहने के लिए बुलाया, उन्हें उन्होंने अपने साथ उचित संबंध में भी कर दिया। और जिनको उन्होंने अपने साथ उचित संबंधों में किया है, उन्हें वे सम्मान भी देंगे।
\p
\s5
\v 31 अत: मैं तुमको बताता हूँ कि परमेश्वर हमारे लिए जो करते हैं उन सबसे क्या सीखना चाहिए। क्योंकि परमेश्वर हमारी ओर से कार्य कर रहे हैं, इसलिए कोई भी हम पर विजयी नहीं हो सकता है!
\v 32 परमेश्वर ने अपने पुत्र को भी नहीं छोड़ा। उन्होंने उन्हें दूसरों के हाथों में दे दिया कि बड़ी निर्दयता से मार डाले जाएँ जिससे कि हम लोग जो उन पर विश्वास करते हैं, हमें उनकी मृत्यु से लाभ हो सके। क्योंकि परमेश्वर ने ऐसा किया, इसलिए वह निश्चय ही हमें वह सब कुछ भी देंगे जो हमें उनके लिए जीवित रहने हेतु आवश्यक है।
\s5
\v 33 कोई भी परमेश्वर के सामने हम पर अनुचित काम करने का दोष नहीं लगा सकता है, क्योंकि उन्होंने हमें चुना है कि हम उनके हो। उन ही ने हमें उनके साथ उचित संबंध में कर दिया है।
\v 34 कोई भी अब हमें दोषी नहीं ठहरा सकता। मसीह हमारे लिए मर गए- और मरे हुओं में से जीवित भी किए गए- और वह सम्मान के स्थान में बैठकर परमेश्वर के साथ शासन कर रहे हैं, और वही हमारे लिए विनती कर रहे हैं।
\s5
\v 35 सचमुच, कोई भी मसीह को हमसे प्रेम करने से रोक नहीं सकता है! चाहे कोई हमें कष्ट दे, या कोई हमें हानि पहुँचाए, या हमारे पास खाने के लिए कुछ भी न हो या अगर हमारे पास पर्याप्त कपड़े न हो, या अगर हम एक भयानक स्थिति में रहते हैं, या कोई हमें मार भी डाले।
\v 36 ऐसी ही बातें हमारे साथ हो सकती हैं, जैसे लिखा गया है जो दाऊद ने परमेश्वर से कहा, "क्योंकि हम परमेश्वर के लोग हैं, दूसरे लोग बार-बार हमें मारने का प्रयास करते हैं। वे हमें केवल मारे जाने के योग्य मानते हैं, जैसे कसाई भेड़ को मार डालने का पशु ही समझता है।"
\s5
\v 37 भले ही हमारे साथ ऐसी सब बुराई होती है, हम विजयी ही होते हैं क्योंकि मसीह जो हमसे प्रेम करते हैं, हमारी सहायता करते हैं।
\v 38 मुझे पूरा विश्वास है कि न ही मरे हुओं के संसार से न ही इस जीवन की घटनाओं से जो कुछ हमारे साथ होता है, जब हम जीते हैं, न ही स्वर्गदूत, न ही दुष्ट-आत्मा, न ही वर्तमान की घटनाएँ, न ही भविष्य की घटनाएँ, न ही कोई शक्तिशाली प्राणी,
\v 39 न ही आकाश के शक्तिशाली प्राणी या न ही नीचे के शक्तिशाली प्राणी, और न ही परमेश्वर द्वारा बनाई गई वस्तुएँ परमेश्वर को हमसे प्रेम करने से रोक सकती हैं। परमेश्वर ने प्रभु यीशु मसीह को हमारे निमित्त मरने के लिए भेजकर यह दिखाया कि वह हमसे प्रेम करते हैं।
\s5
\c 9
\p
\v 1 क्योंकि मैं मसीह से जुड़ा हुआ हूँ, इसलिए मैं तुमको सच बताऊंगा। मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ! जो मैं कहता हूँ, मेरा विवेक उसकी पुष्टि करता है क्योंकि पवित्र आत्मा मुझे नियंत्रित करते हैं।
\v 2 मैं तुमको बताता हूँ कि मैं अपने साथी इस्राएलियों के लिए बहुत अधिक वरन् गहरा शोक करता हूँ।
\s5
\v 3 मैं व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर से श्राप पाने और सदा के लिए मसीह से अलग किए जाने के लिए तैयार हूँ यदि उससे मेरे साथी इस्राएलियों को जो मेरे प्राकृतिक कुटुम्बी है, मसीह में विश्वास करने में सहायता मिले।
\v 4 वे मेरे जैसे इस्राएली हैं। परमेश्वर ने उन्हें अपनी सन्तान होने के लिए चुना है। उन्होंने उन्हें दिखाया कि यह कितना अद्भुत हैं। उन्होंने उनके साथ अपनी वाचाएं बाँधी हैं। उन्होंने उनको व्यवस्था दी। ये वे ही लोग हैं जो परमेश्वर की आराधना करते हैं। ये वे ही लोग हैं जिनसे परमेश्वर ने अनेक प्रतिज्ञाएँ की हैं।
\v 5 हमारे ही पूर्वज- अब्राहम, इसहाक और याकूब को परमेश्वर ने हमारी जाति का आरंभ करने के लिए चुना। और, सबसे महत्वपूर्ण बात है कि हमारे इस्राएलियों में ही मसीह का मानव रूप में जन्म हुआ। वह एकमात्र परमेश्वर हैं, जो सदा हमारी स्तुति के योग्य है! यह सच है!
\p
\s5
\v 6 परमेश्वर ने अब्राहम, इसहाक और याकूब से प्रतिज्ञा की थी कि उनके सब वंशज परमेश्वर से आशीष पाएँगे। यद्यपि मेरे इस्राएली भाइयों में से अधिकांश ने मसीह को अस्वीकार कर दिया, तो इससे यह सिद्ध नहीं होता कि परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरा करने में असफल रहे। क्योंकि याकूब के सारे वंशजों को ही नहीं जो अपने को इस्राएली कहते हैं, परमेश्वर वास्तव में अपने लोग समझते हैं।
\v 7 और परमेश्वर अब्राहम के सभी शारीरिक वंशजों को भी अब्राहम के सच्चे वंशज नहीं मानते। परमेश्वर केवल उनमें से कुछ को अब्राहम के सच्चे वंशज मानते हैं। परमेश्वर ने अब्राहम से जो कहा था यह उससे मेल खाता है: "इसहाक ही को मैं तेरे वंश का पिता मानूंगा, तेरे और किसी भी पुत्र को नहीं।"
\s5
\v 8 मेरा कहने का अर्थ यह है कि, अब्राहम के सभी वंशजों को परमेश्वर अपनी सन्तान स्वीकार नहीं करते हैं। इसकी अपेक्षा, वह केवल उन लोगों को अपनी सन्तान मानते हैं जो उनके मन में थे जब उन्होंने अब्राहम को वंश देने की प्रतिज्ञा की थी, उन्हीं को वह अब्राहम के सच्चे वंशज और अपनी सन्तान समझते हैं।
\v 9 परमेश्वर ने अब्राहम से यह प्रतिज्ञा की थी: "अगले वर्ष, इसी समय मैं तेरे पास वापस आऊंगा, और तेरी पत्नि सारा एक पुत्र जनेगी।" परमेश्वर ने यह प्रतिज्ञा की थी, और उसे पूरा किया।
\s5
\v 10 यह रिबका के साथ भी हुआ जो अब्राहम के पुत्र इसहाक की पत्नी थी, जब रिबका ने जुड़वाँ पुत्रों को जन्म दिया।
\v 11 याकूब और एसाव, जुड़वा पुत्र पैदा हुए थे,
\v 12 इससे पहले की बच्चों ने कुछ भी अच्छा या बुरा किया था, परमेश्वर ने रिबका से कहा, "प्रचलित रीति-रिवाज़ के विपरीत जेठा पुत्र छोटे पुत्र की सेवा करेगा।" परमेश्वर ने यह इसलिए कहा था कि हम यह जान सकें: जब वह कुछ करना चाहते हैं, तो वह लोगों को चुनते हैं क्योंकि वह उन्हें चुनना चाहते हैं, इसलिए नहीं कि उन्होंने उनके लिए कुछ भी किया है।
\v 13 परमेश्वर ने धर्मशास्त्र में यही कहा है: "मैंने याकूब को जो छोटा पुत्र है चुना है, मैंने बड़े बेटे एसाव को अस्वीकार कर दिया।"
\p
\s5
\v 14 कोई मुझसे पूछ सकता है, "क्या परमेश्वर केवल कुछ लोगों को चुनकर अन्याय नहीं करते हैं?" मैं उत्तर दूंगा, वह निश्चित रूप से अन्याय नहीं करते हैं!"
\v 15 परमेश्वर ने मूसा से कहा, "जिसे मैं चुनता हूँ उस पर मैं दया करता हूँ और उनकी सहायता करता हूँ!"
\v 16 परमेश्वर लोगों को चुनते हैं, तो इसलिए नहीं कि वे चाहते हैं कि परमेश्वर उन्हें चुन ले, या इसलिए नहीं कि वे उन्हें प्रसन्न करने का कठोर परिश्रम करते हैं। इसकी अपेक्षा, वह लोगों को चुनते हैं क्योंकि वह स्वयं अयोग्य लोगों पर दया करते हैं।
\s5
\v 17 परमेश्वर ने फ़िरौन से जो कहा था उसे मूसा ने लिखा है कि, "इसी कारण, मैंने तुझे मिस्र का राजा बनाया है: कि मैं तुझसे युद्ध करूं और संसार में हर कोई मेरी प्रतिष्ठा का सम्मान करने के लिए एक दुसरे की सहायता करें।"
\v 18 इसलिए हम जानते हैं कि परमेश्वर उन लोगों की सहायता करते हैं जिन पर वह दया करते हैं। और हम यह भी जानते हैं कि वह उन्हें हठीला बनाते हैं जिन्हें वह हठीला बनाना चाहते हैं, जैसे कि उन्होंने फ़िरौन के साथ किया।
\p
\s5
\v 19 हो सकता तुम में से कोई मुझसे कह सकता है, "क्योंकि परमेश्वर समय से पहले सब कुछ निर्धारित करते हैं कि लोग क्या करेंगे और कोई भी परमेश्वर की इच्छा का विरोध नहीं कर सकता, तो परमेश्वर के लिए पाप करने वालों को दण्ड देना सही नहीं है।"
\v 20 मैं उत्तर दूंगा, "तुम केवल मनुष्य हो, इसलिए तुमको परमेश्वर की आलोचना करने का कोई अधिकार नहीं है! वह एक ऐसे व्यक्ति के समान हैं जो मिट्टी के बर्तन बनाता है। एक घड़े को अपने निर्माता से पूछने का कोई अधिकार नहीं है, "तूने मुझे इस प्रकार क्यों बनाया?"
\v 21 परन्तु, कुम्हार को निश्चय ही यह अधिकार है कि मिट्टी का उपयोग करके एक सुन्दर बर्तन बनाए जिसे लोग बहुत मूल्यवान मानते हों- और फिर मिट्टी के शेष हिस्से से वह बर्तन बनाये जिसका प्रतिदिन उपयोग हो। परमेश्वर को निश्चय ही यह अधिकार है।
\s5
\v 22 यद्यपि परमेश्वर पाप के विषय में अपनी अप्रसन्नता व्यक्त करना चाहते हैं और यद्यपि वह यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि वह पाप करनेवालों को कठोर दण्ड दे सकते हैं, फिर भी वह बहुत धीरज रखकर उन लोगों को सहन करते रहे, जिन्होंने उन्हें क्रोधित किया और जो नष्ट होने के लिए थे।
\v 23 परमेश्वर धीरज रखे हुए हैं ताकि वह यह स्पष्ट कर सकें कि वह उन लोगों के लिए कितने अद्भुत काम करते हैं जिन पर वह दया करते हैं, जिन्हें उन्होंने समय से पहले तैयार किया था जिससे कि वे उनके साथ रह सकें।
\v 24 इसका अर्थ यह है कि उन्होंने हमें चुना है, न केवल हम यहूदियों को, वरन् गैर-यहूदियों को भी।
\s5
\v 25 यहूदियों और गैर-यहूदियों में से चुनने का अधिकार परमेश्वर को है, जैसे भविष्यद्वक्ता होशे ने लिखा:
\q "बहुत से लोग जो मेरे लोग नहीं थे- मैं कहूंगा कि वे मेरी प्रजा हैं।
\q बहुत पहले जिनसे मैंने प्रेम नहीं किया था, मैं कहूंगा कि अब मैं उनसे प्रेम करता हूँ।"
\p
\v 26 और एक अन्य भविष्यद्वक्ता ने लिखा: "जहाँ पहले परमेश्वर ने उनसे कहा था, 'तुम मेरी प्रजा नहीं हो,' उसी स्थान पर उनसे कहा गया कि वे सच्चे परमेश्वर की सन्तान होंगे।"
\p
\s5
\v 27 यशायाह ने भी इस्राएलियों के विषय में कहा: "यद्यपि इस्राएली समुद्र के तट की रेत के कणों के जैसे इतने अधिक लोग हैं, कि कोई भी उनकी गणना नहीं कर सकता, परन्तु उनमें से एक छोटा सा भाग ही बचेंगा,
\v 28 क्योंकि यहोवा उस देश में रहने वाले लोगों को पूरी तरह से और शीघ्रता से दण्ड देंगे, जैसा उन्होंने कहा था कि वह करेंगे।"
\p
\v 29 यशायाह ने यह भी लिखा, "यदि स्वर्गीय सेनाओं के यहोवा ने दया से हमारे वंश में से कुछ लोगों को जीवित रहने की अनुमति नहीं दीं होती, तो हम सदोम और अमोरा के शहरों के लोगों के समान बन गए होते, जिन्हें परमेश्वर ने पूरा नष्ट कर दिया था।"
\p
\s5
\v 30 हमें यह निष्कर्ष निकालना चाहिए: यद्यपि गैर-यहूदी पवित्र होने का प्रयास नहीं कर रहे थे, उन्होंने जाना कि अगर वे मसीह पर भरोसा रखते हैं तो परमेश्वर उन्हें अपने साथ सही कर देंगे।
\v 31 परन्तु इस्राएल के लोगों ने परमेश्वर के नियमों का पालन करके पवित्र बनने का प्रयास किया, परन्तु वे नहीं कर सके।
\s5
\v 32 वे ऐसा करने में सक्षम नहीं थे, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए काम करने का प्रयास किया। उन्होंने अपना संतुलन खो दिया जब उन्होंने मसीह में विश्वास के द्वारा पापों की क्षमा पाने के लिए परमेश्वर पर भरोसा नहीं किया।
\v 33 एक भविष्यद्वक्ता ने भविष्य की घटना के विषय में यह कहा: "सुनो, मैं इस्राएल में, एक ऐसे व्यक्ति को रखने वाला हूँ, जो एक पत्थर के समान होगा, जिस पर लोग ठोकर खाएंगे। वह जो करेगा, उसके कामों से लोग क्रोधित होंगे। परन्तु, जो लोग उस पर विश्वास करते हैं, वे लज्जित न होंगे।"
\s5
\c 10
\p
\v 1 मेरे साथी विश्वासियों, मैं जो चाहता हूँ और जो मैं परमेश्वर से सच्ची प्रार्थना करता हूँ वह यह है कि वह मेरे लोगों को अर्थात् यहूदियों को बचाए।
\v 2 मैं सच्चाई से उनके विषय में घोषणा करता हूँ कि यद्यपि वे सच्चे मन से परमेश्वर के पीछे जाते हैं, तो भी नहीं समझते है कि उन्हें उनके पीछे सही रीति से कैसे जाना है।
\v 3 वे नहीं जानते कि परमेश्वर कैसे लोगों को अपने साथ उचित संबंध में लाते हैं। वे स्वयं को परमेश्वर के साथ सही संबंध में लाना चाहते हैं, इसलिए वे उन बातों को स्वीकार नहीं करते जो परमेश्वर उनके लिए करना चाहते हैं।
\s5
\v 4 मसीह ने व्यवस्था का पूरा पालन किया जिससे कि हर किसी को जो उन में विश्वास करते हैं, उन्हें परमेश्वर के साथ उचित संबंध में ले आएँ। इसलिए व्यवस्था अब आवश्यक नहीं है।
\p
\v 5 मूसा ने उन लोगों के विषय में लिखा था जिन्होंने परमेश्वर की व्यवस्था का पूर्ण पालन करने का प्रयास किया था: "जो लोग पूरी तरह से व्यवस्था की सब आज्ञाओं के अनुसार काम करते हैं वे ही सदा के लिए जीवित रहेंगे।"
\s5
\v 6 परन्तु जिन लोगों को परमेश्वर ने मसीह में विश्वास के कारण अपने साथ उचित संबंध में लिया है उनसे मूसा कहता है, "किसी को भी स्वर्ग जाने का प्रयास नहीं करना चाहिए," अर्थात् मसीह को हमारे पास लाने के लिए।
\v 7 मूसा उनसे यह भी कहता है: "किसी को भी मरे हुओं के पास नीचे जाने का प्रयास नहीं करना चाहिए," अर्थात् मसीह को हमारे लिए मरे हुओं में से वापस लाने के लिए।
\s5
\v 8 लेकिन इसकी अपेक्षा, जो मसीह में विश्वास करते हैं, वे मूसा द्वारा लिखे गए वचनों को दोहरा सकते हैं: "तुम परमेश्वर के संदेश के विषय में बहुत आसानी से खोज सकते हो। तुम इसके विषय में बात कर सकते हो और इसके विषय में सोच सकते हो।" इसी संदेश की हम घोषणा करते हैं: लोगों को मसीह में विश्वास करना चाहिए।
\v 9 यह वह संदेश है कि यदि तुम में से कोई यह पुष्टि करे कि यीशु ही प्रभु हैं, और यदि तुम वास्तव में विश्वास करते हो कि परमेश्वर ने उन्हें मरे हुओं में से जीवित किया है, तो वह तुमको बचाएँगे।
\v 10 यदि लोग इन बातों पर विश्वास करते हैं, तो परमेश्वर उन्हें अपने साथ उचित संबंध में ले आएँगे और जो लोग सार्वजनिक तौर पर अंगीकार करते हैं कि यीशु ही प्रभु हैं- परमेश्वर उन्हें बचाएँगे।
\s5
\v 11 मसीह के विषय में धर्मशास्त्र में यह लिखा है, "जो उन पर विश्वास करते हैं, वह निराश या लज्जित नहीं होंगे।"
\v 12 इस प्रकार, परमेश्वर यहूदियों और गैर-यहूदियों के साथ एक सा व्यवहार करते हैं। क्योंकि वह उन पर विश्वास करने वाले सब लोगों के प्रभु है, और वह उन सब की सहायता करते हैं जो उनसे सहायता मांगते हैं।
\v 13 यह वैसा ही है, जैसा धर्मशास्त्र में कहा गया है: "प्रभु परमेश्वर उन सब को बचाएंगे जो उनसे मांगते हैं।"
\p
\s5
\v 14 अधिकांश लोग मसीह में विश्वास नहीं करते हैं, और कुछ लोग यह समझाने का प्रयास भी करते हैं कि उन्होंने विश्वास क्यों नहीं किया है। वे कह सकते हैं, "लोग निश्चय ही मसीह से सहायता नहीं मांग सकते हैं यदि उन्होंने पहले उन पर विश्वास नहीं किया है! और वे निश्चय ही उन पर विश्वास नहीं कर सकते हैं यदि उन्होंने उनके विषय में नहीं सुना है! और यदि कोई उनके लिए प्रचार नहीं करता हो तो वे निश्चय ही उनके विषय में नहीं सुन सकते!
\v 15 और जो लोग मसीह के विषय में उनके लिए प्रचार कर सकते थे, निश्चय ही ऐसा नहीं कर सकते यदि परमेश्वर उन्हें न भेजे। परन्तु यदि कुछ विश्वासी उनमें प्रचार करें, तो वह धर्मशास्त्र के कहने के अनुसार होगा: 'जब लोग आकर सुसमाचार सुनाते हैं तो यह कितना अद्भुत होता है!'"
\s5
\v 16 मैं उन लोगों को जो ऐसी बातें कहते हैं, इस प्रकार उत्तर दूंगा: परमेश्वर ने निश्चय ही मसीह के विषय में संदेश का प्रचार करने के लिए लोगों को भेजा है। परन्तु इस्राएल के सब लोगों ने सुसमाचार पर ध्यान नहीं दिया! यह उसके जैसा है, जब यशायाह बहुत निराश था, "हे परमेश्वर, ऐसा लगता है कि किसी ने भी हमारे प्रचार को सुनकर विश्वास नहीं किया है!"
\v 17 तो अब, मैं तुमको बताता हूँ कि लोग मसीह पर विश्वास कर रहे हैं क्योंकि वे उनके विषय में सुनते हैं, और लोग संदेश को सुन रहे हैं क्योंकि दूसरे लोग मसीह के विषय में प्रचार कर रहे हैं!
\p
\s5
\v 18 परन्तु यदि किसी ने उन लोगों से कहा, "नि:सन्देह इस्राएलियों ने यह सन्देश सुना है," मैं कहूंगा, "हाँ, निश्चय ही यह धर्मशास्त्र के कहने जैसा है: "पूरे विश्व में रहने वाले लोगों ने सृष्टि को देखा है और जो वह परमेश्वर के विषय में सिद्ध करती है उसे देखा है- यहाँ तक कि पृथ्वी की छोर के रहने वाले लोगों ने भी इसे समझ लिया है!"
\p
\s5
\v 19 इसके अतिरिक्त, यह सच है कि इस्राएलियों ने वास्तव में यह संदेश सुना था। उन्होंने इसे समझा भी था, लेकिन उन्होंने इस पर विश्वास करने से इन्कार कर दिया। याद रखें कि मूसा इस प्रकार के लोगों को चेतावनी देने वाला पहला व्यक्ति था। उसने उनसे कहा कि परमेश्वर ने कहा, "तुम सोचते हो कि गैर-यहूदी जातियां असली जातियां नहीं हैं, परन्तु उनमें से कुछ मुझ पर विश्वास करेंगे, और मैं उन्हें आशीष दूंगा। फिर तुम उनसे ईर्ष्या करोगे और उन पर क्रोधित होंगे, जिन के विषय में तुम सोचते हो कि वे मुझे नहीं समझते हैं।"
\s5
\v 20 यह भी याद रखें कि परमेश्वर ने यशायाह के माध्यम से बहुत साहसपूर्वक कहा था, "गैर-यहूदियों ने मुझे जानने का प्रयास नहीं किया, परन्तु वे निश्चय ही मुझे ढूढ़ लेंगे! और जिन्होंने मुझसे नहीं माँगा था, मैं निश्चय ही से उन पर अपने आप को प्रकट करूंगा!"
\p
\v 21 परन्तु परमेश्वर इस्राएलियों के विषय में भी कहते हैं, "लंबे समय तक मैंने उन लोगों के लिए अपनी बाहों को पसारे रखा, जिन्होंने मेरी आज्ञा को नहीं माना और मुझसे विद्रोह किया, कि उन्हें मेरे पास वापस आने के लिए आमंत्रित करूँ।"
\s5
\c 11
\p
\v 1 यदि मैं पूछूँ, "क्या परमेश्वर ने अपने लोगों को अर्थात् यहूदियों को अस्वीकार कर लिया है?" तो उत्तर यह होगा, "निश्चय ही नहीं! याद रखो, कि मैं भी इस्राएली लोगों में से हूँ। मैं अब्राहम का वंशज हूँ, और मैं बिन्यामीन गौत्र का हूँ, परन्तु परमेश्वर ने मुझे अस्वीकार नहीं किया है!
\v 2 नहीं, परमेश्वर ने अपने लोगों का तिरस्कार नहीं किया है, जिन्हें उन्होंने बहुत समय पहले अपनी प्रजा होने के लिए चुना, जिन्हें वह विशेष रूप से आशीषित करते हैं। याद रखें कि एलिय्याह ने गलती से इस्राएल के लोगों के विषय में परमेश्वर से शिकायत की, जैसे धर्मशास्त्र में कहा गया है:
\v 3 "हे प्रभु, उन्होंने आपके सारे भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला है, और उन्होंने आपकी वेदियों को नष्ट कर दिया है। केवल मैं ही एक हूँ जो आप पर विश्वास करता हूँ और जीवित हूँ, और अब वे मुझे भी मारने का प्रयास कर रहे हैं!"
\s5
\v 4 परमेश्वर ने उसे इस प्रकार उत्तर दिया: "तू अकेला नहीं है जो मेरे प्रति विश्वासयोग्य है, मैंने इस्राएल के सात हजार पुरूषों को अपने लिए रखा है, वे लोग जिन्होंने झूठे देवता बाल की उपासना नहीं की है।"
\v 5 उसी प्रकार, इस समय भी हम यहूदियों का एक बचा हुआ समूह है, जो विश्वासी बन गया है। परमेश्वर ने हमें विश्वासी होने के लिए चुना है केवल इसलिए क्योंकि वह हम पर दया करते हैं, जिसके हम योग्य नहीं हैं।
\s5
\v 6 क्योंकि यह केवल इसलिए है कि वह उन लोगों पर दया करते हैं जिन्हें वह चुनते हैं, तो यह इस कारण नहीं है कि उन्होंने अच्छे काम किए हैं, परन्तु इसलिए की उन्होंने उन्हें चुना है। यदि परमेश्वर लोगों को इसलिए चुनते क्योंकि उन्होंने अच्छे काम किए थे, तो उन्हें उन पर दया करने की आवश्यक्ता नहीं होती।
\p
\v 7 क्योंकि परमेश्वर ने इस्राएल के केवल कुछ लोगों को चुना है, इससे हमें यह पता चलता है कि अधिकांश यहूदी जिसकी खोज कर रहे थे उन्हें पाने में वे विफल रहे- (यद्यपि जिन यहूदियों को परमेश्वर ने चुना था, उन्हें वह मिले)।
\v 8 अधिकांश यहूदी यह समझने के इच्छुक नहीं थे कि परमेश्वर उनसे क्या कह रहे हैं। यशायाह ने इसी के विषय में लिखा था: "परमेश्वर ने उन्हें हठीला कर दिया। उन्हें मसीह के विषय में सच्चाई समझने में सक्षम होना चाहिए था, परन्तु वे समझ नहीं सकते हैं। जब परमेश्वर कहते हैं, तब उन्हें उनकी आज्ञा माननी चाहिए, परन्तु वे नहीं करते। यह आज के दिन तक ऐसा ही है।"
\s5
\v 9 यहूदी लोग मुझे राजा दाऊद की बात याद दिलाते है, जब उसने परमेश्वर से कहा कि उसके शत्रुओं की इंद्रियाँ सुस्त हो जाएँ: "उन्हें मूर्ख बना दे, ऐसे पशुओं के समान जो जाल या फंदे में पड़ते हैं! उन्हें सुरक्षा का ऐसा आभास हो जैसे वे अपने भोजों में सुरक्षित रहते हैं, परन्तु उन पर्वों को ऐसे समय बना दें जब आप उन्हें पकड़ लेंगे, और वे पाप करेंगे, जिसके परिणामस्वरूप आप उन्हें नष्ट कर देंगे।
\v 10 वे खतरे को न देख सकें जब वह उनके ऊपर आए। आप उनकी परेशानियों के कारण उन्हें सदा कष्ट सहने दें।"
\p
\s5
\v 11 यदि मैं पूछूँ, "जब यहूदियों ने मसीह पर विश्वास नहीं करके पाप किया, तो क्या इसका मतलब यह था कि वे सदा के लिए परमेश्वर से अलग हो गए?" मैं उत्तर दूँगा, "नहीं, वे निश्चित रूप से परमेश्वर से सदा के लिए अलग नहीं हुए हैं! इसकी अपेक्षा, कि उन्होंने पाप किया, परमेश्वर गैर-यहूदियों को बचा रहे हैं जिससे की यहूदियों को गैर-यहूदियों की आशीषों के कारण उनसे ईर्ष्या हो, और यहूदी भी मसीह को उन्हें बचाने के लिए कहें।"
\v 12 जब यहूदियों ने मसीह का तिरस्कार किया, तो परिणाम यह हुआ कि परमेश्वर ने पृथ्वी के अन्य लोगों को विश्वास करने का अवसर देकर उन्हें भरपूर आशीर्वाद दिया। और जब यहूदी आत्मिक रूप से असफल हो गए, तो परिणाम यह हुआ कि परमेश्वर ने गैर-यहूदियों को बहुतायत से आशीर्वाद दिया। क्योंकि यह सच है, तो यह सोचो कि यह कैसा अद्भुत होगा जब परमेश्वर की चुनी हुई यहूदियों की पूरी संख्या मसीह पर विश्वास करेगी!
\p
\s5
\v 13 अब मैं तुम गैर-यहूदियों से कह रहा हूँ कि इस के आगे क्या होगा। मैं तुम्हारे समान अन्य गैर-यहूदियों के लिए प्रेरित हूँ, और मैं इस काम को बहुत महत्व देता हूँ जिसे परमेश्वर ने मुझे करने के लिए नियुक्त किया है।
\v 14 परन्तु मैं यह भी आशा करता हूँ कि मेरे इस परिश्रम के द्वारा मैं अपने साथी यहूदियों को ईर्ष्या दिलाऊ, जिसके परिणामस्वरूप उनमें से कुछ विश्वास करें और इस प्रकार बचाए जाएँ।
\s5
\v 15 परमेश्वर ने मेरे साथी यहूदियों में से अधिकांश का तिरस्कार कर दिया क्योंकि उन्होंने विश्वास नहीं किया, जिसका परिणाम यह हुआ की परमेश्वर ने अपने और पृथ्वी के अन्य लोगों के बीच शान्ति बनाईं। तो यदि अधिकांश यहूदियों द्वारा मसीह का तिरस्कार करने के बाद यह हुआ, तो उन उत्तम बातों के विषय में सोचो जो यहूदियों के विश्वास करने के बाद होंगी। यह ऐसा होगा जैसे की वे मरे हुओं में से जी उठे हैं!
\v 16 जैसे आटा पूरी प्रकार से परमेश्वर का होता है, जब लोग उसके पहले भाग से पकाई गई रोटी परमेश्वर के पास लाते हैं, उसी प्रकार सब यहूदी परमेश्वर के होंगे क्योंकि उनके पूर्वज परमेश्वर के थे। और जैसे एक पेड़ की शाखाएं परमेश्वर की होती हैं यदि जड़ परमेश्वर की होती है, और क्योंकि हमारे महान यहूदी पूर्वज, परमेश्वर के थे इसलिए उनके वंशज भी किसी दिन परमेश्वर के होंगे।
\p
\s5
\v 17 परमेश्वर ने अनेक यहूदियों का तिरस्कार कर दिया, जैसे लोग पेड़ की सूखी शाखाओं को तोड़ देते हैं। और तुम में से प्रत्येक गैर-यहूदी जिसे परमेश्वर ने स्वीकार कर लिया है वह एक जंगली जैतून के पेड़ की शाखा के समान है जो एक अच्छे जैतून के पेड़ के तने में जोड़ा गया है। परमेश्वर ने तुमको हमारे पहले यहूदी पूर्वजों के साथ आशीष देकर तुम्हें लाभ पहुँचाया है, जैसे शाखाएँ जैतून के वृक्ष की जड़ से भोजन का लाभ लेती हैं।
\v 18 परन्तु तुम गैर-यहूदियों के लिए यहूदियों को तुच्छ जानना उचित नहीं जिन्हें परमेश्वर ने अस्वीकार कर दिया था, भले ही वे उन शाखाओं के समान हों, जो किसी पेड़ से तोड़े गए हों! यदि तुम इस बात पर घमण्ड करना चाहते हो कि परमेश्वर ने तुमको कैसे बचाया है, तो यह याद रखो: शाखाएँ जड़ को नहीं खिलाती, इसकी अपेक्षा, जड़ शाखाओं को खिलाती है। इसी प्रकार, तुमने यहूदियों से जो कुछ प्राप्त किया है, उसके कारण परमेश्वर ने तुम्हारी सहायता की है! परन्तु तुमने यहूदियों को कुछ नहीं दिया है जो उनकी सहायता कर सके।
\s5
\v 19 हो सकता है कि तुम मुझसे यह कहो, "परमेश्वर ने यहूदियों को अस्वीकार कर दिया जैसे लोग पेड़ से बुरी शाखाओं को तोड़ देते और उन्हें फेंक देते है, और उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि वह हम गैर-यहूदियों को स्वीकार कर सकें, जैसे लोग जंगली जैतून के पेड़ की शाखाओं को एक अच्छे पेड़ के तने के साथ जोड़ देते हैं ।"
\v 20 मैं उत्तर दूँगा कि यह सच है। क्योंकि यहूदियों ने मसीह में विश्वास नहीं किया, इसलिए परमेश्वर ने उन्हें अस्वीकार कर दिया। क्योंकि तुम मसीह पर विश्वास करते हो केवल इसी के कारण तुम दृढ खड़े हो! तो गर्व न करो, परन्तु भय से भरे रहो!
\v 21 क्योंकि परमेश्वर ने उन अविश्वासी यहूदियों को नहीं छोड़ा, जो वृक्ष की प्राकृतिक शाखाओं के समान जड़ से उगकर बड़े हुए थे, तो जान लो, अगर तुम विश्वास नहीं करते, तो वह तुम्हें भी नहीं छोड़ेंगे!
\p
\s5
\v 22 ध्यान दो, कि परमेश्वर दया भाव से कार्य करते हैं, परन्तु वह कठोरता का व्यवहार भी करते हैं। उन्होंने मसीह में विश्वास नहीं करने वाले यहूदियों के प्रति कठोरता का व्यवहार किया। परमेश्वर ने तुम्हारे साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार किया है, परन्तु यदि तुम मसीह पर भरोसा नहीं रखते हो, तो वह तुम्हारे साथ भी कठोरता का व्यवहार करेंगे।
\s5
\v 23 और यदि यहूदी मसीह में विश्वास करेंगे, तो परमेश्वर उन्हें फिर से पेड़ से जोड़ देंगे, क्योंकि परमेश्वर ऐसा करने में सक्षम हैं।
\v 24 तुम गैर-यहूदी जो पहले परमेश्वर से अलग थे, यहूदियों को दी गई परमेश्वर की आशीषों का लाभ उठा रहे हो। यह ऐसा है, जैसे शाखाओं को एक जंगली जैतून के पेड़ से काट दिया हो - एक पेड़ जिसे किसी ने नहीं लगाया पर स्वयं बढ़ा- और आम तौर पर लोग जैसा करते हैं उसके विपरीत, उन्हें एक जैतून के वृक्ष के साथ साटा। तो परमेश्वर कितनी अधिक सरलता से यहूदियों को वापस ग्रहण करेंगे क्योंकि वे पहले उनके ही थे! यह मूल शाखाओं को जिन्हें किसी ने काट दिया था, वापस जैतून के पेड़ में लगाए जाने जैसा होगा, जिसकी वे पहले से थी!
\p
\s5
\v 25 मेरे गैर-यहूदी साथी विश्वासियों, मैं निश्चित रूप से तुम्हें इस गुप्त सच्चाई को समझाना चाहता हूँ, कि तुम यह न सोचों कि तुम सब कुछ जानते हो: इस्राएल के बहुत से लोग आगे भी हठीले रहेंगे, जब तक सब गैर-यहूदी जिन्हें परमेश्वर ने चुना है, वे परमेश्वर पर विश्वास नहीं कर लेते हैं।
\s5
\v 26 और तब परमेश्वर सब इस्राएलियों को बचाएँगे। फिर धर्मशास्त्र का ये शब्द सत्य हो जाएगा:
\p "जो अपने लोगों को मुक्त करते हैं, वह वहाँ से आएंगे, जहाँ से परमेश्वर यहूदियों के बीच हैं। वह इस्राएलियों के पापों को क्षमा करेंगे।"
\p
\v 27 और जैसा कि परमेश्वर कहते हैं,
\p "जो वाचा मैं उनके साथ बाँधूँगा, उसके द्वारा मैं उनके पापों को क्षमा करूँगा।"
\p
\s5
\v 28 यहूदियों ने मसीह के विषय में सुसमाचार को अस्वीकार कर दिया और अब परमेश्वर उन्हें अपना शत्रु मानते हैं। परन्तु इस बात से तुम गैर-यहूदियों को सहायता मिली है। परन्तु क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर ने चुना है, परमेश्वर अभी भी उनसे प्रेम करते हैं क्योंकि उन्होंने उनके पूर्वजों से प्रतिज्ञा की थी।
\v 29 वह अब भी उनसे प्रेम करते हैं, क्योंकि उन्होंने उन्हें देने की जो प्रतिज्ञा की थी और उन्होंने उन्हें अपनी प्रजा बुलाया था, उससे वे नहीं बदलते हैं।
\s5
\v 30 तुम गैर-यहूदियों ने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी थी, परन्तु अब उन्होंने तुम्हारे प्रति दया का व्यवहार किया है, क्योंकि यहूदियों ने उनकी आज्ञा नहीं मानी।
\v 31 इसी प्रकार, अब यहूदियों ने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी है, इसका परिणाम यह है कि जिस प्रकार उन्होंने तुम्हारे प्रति दया का व्यवहार किया, उसी प्रकार वह उनके प्रति भी फिर से दया का व्यवहार करेंगे।
\v 32 परमेश्वर ने घोषणा की और सिद्ध कर दिया है कि सब लोगों ने, यहूदियों और गैर-यहूदियों दोनों ने उनकी आज्ञा नहीं मानी है। उन्होंने यह घोषित किया है क्योंकि वह हम पर दया करना चाहते हैं।
\p
\s5
\v 33 मैं आश्चर्य करता हूँ कि परमेश्वर के बुद्धि के काम और उनका सदा का ज्ञान कैसा महान हैं ! कोई भी उन्हें समझ नहीं सकता है और न ही उन्हें पूर्णरूप से समझ सकता है।
\v 34 मुझे याद है कि धर्मशास्त्र में लिखा है, "किसी ने कभी नहीं जाना कि परमेश्वर क्या सोचते हैं। कोई भी कभी उन्हें परामर्श नहीं दे पाया।"
\s5
\v 35 और, "किसी ने भी परमेश्वर को कुछ नहीं दिया है जिसके लिए परमेश्वर उसे प्रतिफल दें।"
\p
\v 36 परमेश्वर ही ने सब वस्तुओं को बनाया है। वही सब वस्तुओं को संभालते हैं। उन्होंने उन्हें इसलिए बनाया था, कि वे उनकी प्रशंसा कर सकें। सब लोग सदा के लिए उनका सम्मान करें! ऐसा ही हो!
\s5
\c 12
\p
\v 1 मेरे साथी विश्वासियों, क्योंकि परमेश्वर ने अनेक प्रकार से तुम्हारे प्रति कृपा दर्शाई है, मैं तुम सब लोगों से निवेदन करता हूँ कि तुम अपने आप को एक बलिदान के रूप में चढ़ाओ, एक ऐसा बलिदान जो जीवित है, जो तुम स्वयं परमेश्वर को देते हो और जो उन्हें प्रसन्न करे। उनकी आराधना करने की यही एकमात्र उचित विधि है।
\v 2 तुम अपने व्यवहार में अविश्वासियों को मार्गदर्शन नहीं करने देना। इसकी अपेक्षा, परमेश्वर को तुम्हारे सोचने के रीति को बदलकर नया बनाने दो, जिससे कि तुम जान सको कि वह क्या चाहते हैं, और तुम जान सको कि उन्हें प्रसन्न करने के लिए कैसे कार्य करने चाहिए, जैसे वह स्वयं कार्य करते हैं।
\p
\s5
\v 3 क्योंकि परमेश्वर ने दया करके मुझे अपना प्रेरित होने के लिए नियुक्त किया है, जिसके लिए मैं योग्य नहीं था, मैं तुम में से हर एक से यह कहता हूँ: मत सोचो कि तुम जो हो उससे अधिक उत्तम हो। इसकी अपेक्षा, अपने विषय में समझदारी से सोचो, वैसे ही जैसे परमेश्वर ने तुम्हें उन पर भरोसा करने की अनुमति दी है।
\s5
\v 4 यद्यपि एक मनुष्य के शरीर में कई अंग होते है। सब अंग शरीर के लिए आवश्यक हैं, परन्तु वे सब एक ही प्रकार से कार्य नहीं करते हैं।
\v 5 इसी तरह, यद्यपि हम बहुत से हैं, हम सब एक समूह में एकजुट हैं क्योंकि हम मसीह से जुड़े हुए हैं, और हम एक दूसरे के हैं। इसलिए किसी को भी ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए की जैसे वह दूसरों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है!
\s5
\v 6 इसकी अपेक्षा, कि हम में से हर एक अलग-अलग कार्य कर सकते हैं क्योंकि परमेश्वर ने हमें एक-दूसरे से अलग बनाया है, इसलिए हमें उन अलग-अलग कामों को उत्सुकता और उत्साहपूर्वक करना चाहिए! हममें से जिनको परमेश्वर ने दूसरों के लिए संदेश दिया है, उन्हें परमेश्वर पर हमारे भरोसा के अनुसार बोलना चाहिए।
\v 7 जिन्हें परमेश्वर ने दूसरों की सेवा करने में सक्षम बनाया है, उन्हें ऐसा ही करना चाहिए। जिन लोगों को परमेश्वर ने अपनी सच्चाई को सिखाने में सक्षम बनाया है, उन्हें ऐसा ही करना चाहिए।
\v 8 जिन्हें परमेश्वर ने दूसरों को प्रोत्साहित करने के लिए सक्षम किया है, उन्हें पूरे मन से ऐसा करना चाहिए। जिन लोगों को परमेश्वर ने दूसरों को दान देकर सहायता करने में सक्षम बनाया है, उन्हें बिना संकोच ऐसा करना चाहिए। जिन लोगों को परमेश्वर ने प्रबन्ध करने में सक्षम बनाया है, उन्हें सहर्ष ऐसा करना चाहिए, वरन सावधानी पूर्वक करना चाहिए। जिन लोगों को परमेश्वर ने आवश्यक्ता में पड़े लोगों की सहायता करने में सक्षम बनाया है, उन्हें सहर्ष ऐसा करना चाहिए।
\p
\s5
\v 9 तुम लोगों को पुरे सच्चे ह्रदय से दूसरों से प्रेम करना चाहिए! बुराई से घृणा करो! परमेश्वर जिन बातों को भला समझते हैं उन्हें उत्सुकता से करते रहो!
\v 10 एक दूसरे को एक ही परिवार के सदस्य के समान प्रेम करो; और एक-दूसरे का सम्मान करने के संबंध में, तुम को सब से आगे होना चाहिए!
\s5
\v 11 आलसी मत बनो, इसकी अपेक्षा, परमेश्वर की सेवा करने के लिए उत्सुक बनो! तुम परमेश्वर की सेवा करने के लिए उत्साहित रहो!
\v 12 आनंद करो क्योंकि तुम विश्वास से उन वस्तुओं की प्रतीक्षा कर रहे हो जो परमेश्वर तुम्हारे लिए करेंगे! जब तुम कष्ट में पड़ो, तो धीरज रखो! प्रार्थना करते रहो और कभी हार न मानो!
\v 13 यदि परमेश्वर के किसी भी जन को कमी है, तो तुम्हारे पास जो है वह उसके साथ साझा करो! दूसरों के अतिथिसत्कार में अपनी ओर से सोचो!
\s5
\v 14 अपने सतानेवालों पर दया करने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करो क्योंकि तुम यीशु में विश्वास करते हो! उन पर दया करने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करो; उनके लिए बुराई की कामना मत करो।
\v 15 यदि वे आनन्दित होते हैं, तो तुम्हें उनके साथ आनंद करना चाहिए! यदि वे उदास हैं, तो तुम्हें उनके साथ दु:खी होना चाहिए!
\v 16 दूसरों के लिए ऐसी इच्छा रखो जैसी तुम स्वयं के लिए रखते हो। अपनी सोच में घमंडी मत बनो; इसकी अपेक्षा, महत्वहीन मनुष्यों के मित्र बनो। अपने आप को बुद्धिमान मत समझो।
\s5
\v 17 तुम्हारे साथ बुरा करने वालों के साथ भी बुराई के काम मत करो। ऐसा व्यवहार करो जिसे सब लोग अच्छा माने!
\v 18 अन्य लोगों के साथ जब तक संभव हो शांतिपूर्वक रहो, जब तक कि तुम्हारे वश में है।
\p
\s5
\v 19 मेरे साथी विश्वासियों, जिनसे मैं प्रेम करता हूँ, जब लोग तुम्हारे साथ बुराई करते हैं, तब बदले में बुराई मत करो! इसकी अपेक्षा, परमेश्वर को उन्हें दण्ड देने का अवसर दो। धर्मशास्त्र कहता है, "मैं बुराई करनेवालों को बदला दूँगा।" यहोवा का यही वचन है।
\v 20 जो लोग तुम्हारे साथ बुरा करते हैं, उनके साथ बुराई करने की अपेक्षा, धर्मशास्त्र के अनुसार करो: "यदि तुम्हारे शत्रु भूखे हों, तो उन्हें खाना दो! अगर वे प्यासे हों, तो उन्हें कुछ पीने के लिए दो। तुम्हारे ऐसा करने से उन्हें लज्जा की पीड़ा का आभास होगा और संभव है कि वे तुम्हारे प्रति अपना व्यवहार बदल लें।"
\v 21 बुरे कर्मों को जो दूसरों ने तुम्हारे साथ किए हैं, उन्हें स्वयं पर प्रभावित होने न दो। इसकी अपेक्षा, उन्होंने जो तुम्हारे साथ किया है उससे अच्छा उनके साथ करो!
\s5
\c 13
\p
\v 1 प्रत्येक विश्वासी को सरकारी अधिकारियों की आज्ञा का पालन करना चाहिए। याद रखें कि परमेश्वर ही एकमात्र अधिकारी है जो अधिकारियों को उनके अधिकार देते हैं। इसके अतिरिक्त, ये अधिकारी परमेश्वर के द्वारा नियुक्त किए गए हैं।
\v 2 जो कोई भी अधिकारियों का विरोध करता है, वह परमेश्वर का विरोध करता है जिन्होंने उन्हें नियुक्त किया है। इसके अतिरिक्त, जो अधिकारियों का विरोध करते हैं, वे अधिकारियों के द्वारा दण्ड पाएँगे।
\s5
\v 3 मैं यह कहता हूँ, क्योंकि शासक कभी अच्छे कर्म करने वाले लोगों के लिए डर का कारण नहीं होते है। वे बुरा करनेवालों के लिए डर का कारण हैं। इसलिए यदि तुम में से कोई अच्छा काम करता है, तो वे तुम्हें दण्ड देने की अपेक्षा तुम्हारी प्रशंसा करेंगे!
\v 4 सब अधिकारी परमेश्वर की सेवा के लिए हैं, कि वे तुम में से प्रत्येक की सहायता कर सकें। यदि तुम में से कोई बुरे काम करता है, तो निश्चय ही तुम्हें उनसे डरना चाहिए। अधिकारी बुराई करने वालों को दण्ड देने के द्वारा परमेश्वर की सेवा करते हैं।
\v 5 इसलिए, तुम्हें अधिकारियों की आज्ञा का पालन करना आवश्यक है, केवल इसलिए नहीं कि यदि तुम उनकी आज्ञा नहीं मानोगे, तो वे तुम्हें दण्ड देंगे, परन्तु इसलिए कि तुम स्वयं जानते हो कि तुम्हें उनके अधीन होना चाहिए!
\s5
\v 6 इस कारण तुम करों का भी भुगतान करते हो, क्योंकि अधिकारी लोग लगातार अपना काम करने के द्वारा परमेश्वर की सेवा करते हैं।
\v 7 उन सब अधिकारियों को जो देना चाहिए, दे दो! उन लोगों को जो कर मांगते है, उनको करों का भुगतान करो, उन वस्तुओं पर भी करों का भुगतान करो, जिन पर तुम्हें कर का भुगतान करना हैं। उन लोगों का सम्मान करो जिनका तुम्हें सम्मान करना चाहिए। उन लोगों का आदर करो जिनका तुम्हें आदर करना चाहिए।
\p
\s5
\v 8 अपने ऋणों का भुगतान निर्धारित समय पर करो। केवल एक प्रकार का ऋण जिसे तुम्हें कभी देना बंद नहीं करना चाहिए, वह है एक दूसरे से प्रेम करना। जो भी दूसरों को प्रेम करता है, उसने सब कुछ पूरा कर किया है जिसकी परमेश्वर अपने व्यवस्था में आज्ञा देते हैं।
\v 9 कई बातें हैं जिसकी परमेश्वर ने अपनी व्यवस्था में आज्ञा दी है, जैसे कि व्यभिचार न करो, किसी की हत्या न करो, चोरी न करो, और किसी और की किसी भी वस्तु की इच्छा न करो। लेकिन हम इस वाक्य में पूरी व्यवस्था का अर्थ समझ सकते हैं: "अपने पड़ोसी से प्रेम करो जैसा कि तुम स्वयं से प्रेम करते हो।"
\v 10 यदि तुम अपने चारों ओर सब से प्रेम करते हो, तो तुम किसी को भी हानि नहीं पहुंचाओगे। इसलिए जो दूसरों से प्रेम करता है, वह परमेश्वर की व्यवस्था की सब मांगों को पूरा करता है।
\p
\s5
\v 11 जो मैंने तुम्हें बताया है उन्हें करने का यत्न करो, विशेष करके जब तुम जानते हो कि यह समय जिसमें तुम रहते हो कितना महत्वपूर्ण है। तुम जानते हो कि यह समय तुम्हारे पूर्णरूप से सतर्क और सक्रिय होने का है, जैसे लोग जो नींद से जाग गए हैं, क्योंकि वह समय निकट है जब मसीह अंततः इस संसार के पाप और दुखों से हमें छुडाएंगे। जब हमने पहले मसीह में विश्वास किया था, तब से अब वह समय अधिक निकट है।
\v 12 इस संसार में रहने का हमारा समय लगभग समाप्त हो गया है, जैसे एक रात लगभग समाप्त हो गई है। मसीह के लौटने का समय निकट आ गया है। इसलिए हमें दुष्टता के उन कामों को नहीं करना है जिन्हें रात में लोगों को करना अच्छा लगता है, और हमें ऐसे काम करने चाहिए जो बुराई का विरोध करने में हमारी सहायता करें, जैसे सैनिक दिन में अपने हथियार पहनते हैं जिससे अपने शत्रुओं का विरोध करने के लिए तैयार हो।
\s5
\v 13 हमें ऐसा उचित व्यवहार करना चाहिए, जैसे कि मसीह के लौट आने का समय आ गया है। हम मतवाले न बने और दूसरों के साथ बुरा न करें। हमें किसी प्रकार का अनैतिक यौनाचार या अनियन्त्रित कामुक व्यवहार नहीं करना चाहिए। हमें झगड़ा नहीं करना चाहिए, हमें अन्य लोगों से जलन नहीं करना चाहिए।
\v 14 इसके विपरीत, हमें प्रभु यीशु मसीह के समान होना चाहिए जिससे कि अन्य लोग देखें कि वह कैसे हैं। तुम्हें उन कामों को नहीं करना चाहिए जो तुम्हारा पुराना स्वाभाव करना चाहता है।
\s5
\c 14
\p
\v 1 उन लोगों को स्वीकार करो जो यह निश्चित नहीं कर पा रहे हैं कि परमेश्वर उन्हें कुछ काम करने की अनुमति देते हैं या नहीं, ऐसे काम जो कुछ लोग गलत मानते हैं। लेकिन जब तुम उन्हें स्वीकार करते हो, तो उनके साथ उनकी सोच के विषय में विवाद न करो। इस प्रकार के प्रश्न केवल व्यक्तिगत राय हैं।
\v 2 कुछ लोग मानते हैं कि वे सब प्रकार के भोजन खा सकते हैं दूसरों का मानना है कि परमेश्वर उन्हें कुछ वस्तुएँ खाने की अनुमति नहीं देते हैं, और कुछ लोगों का मानना है कि वे केवल सब्जियां ही खा सकते हैं।
\s5
\v 3 जो यह सोचता है कि उन्हें सब प्रकार के भोजन खाने का अधिकार है, तो उन्हें उनसे घृणा नहीं करनी चाहिए जो ऐसा नहीं सोचते हैं। जो यह सोचता है कि उन्हें सब प्रकार के भोजन खाने का अधिकार नहीं है, उनको अपने से अलग सोचने वालों की निंदा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि परमेश्वर ने उन लोगों को भी स्वीकार कर लिया है।
\v 4 जब तुम किसी और के सेवक की जाँच करते हो तो तुम गलत करते हो, हम सब परमेश्वर के सेवक हैं, इसलिए परमेश्वर हम सब के स्वामी है। वही निर्णय लेंगे कि उन लोगों ने गलत किया है या नहीं! इस संबंध में किसी को भी दूसरे का न्याय नहीं करना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर उन्हें अपने प्रति विश्वासयोग्य रखने में सक्षम हैं।
\p
\s5
\v 5 कुछ लोग कुछ दिनों को दूसरे दिनों से अधिक पवित्र मानते हैं। अन्य लोग सब दिनों को परमेश्वर की आराधना करने के लिए एक समान उचित मानते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को इस प्रकार के मामलों के विषय में पूर्णतः से आश्वस्त होना चाहिए, स्वयं के विषय में सोचना और निर्णय लेना चाहिए और दूसरों के विषय में नहीं।
\v 6 जो लोग मानते हैं कि उन्हें सप्ताह के एक निश्चित दिन पर आराधना करनी चाहिए, तो वे परमेश्वर का सम्मान करने के लिए ही ऐसे दिन आराधना करते हैं। और जो लोग सोचते हैं कि सब प्रकार के भोजन खाना उचित है, तो वे प्रभु का सम्मान करने के लिए वे उन भोजन को खाते हैं, क्योंकि वे अपने भोजन के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं। जो लोग कुछ प्रकार के भोजन खाने से बचते हैं, वह भी प्रभु का सम्मान करने के लिए वे भोजन नहीं खाते हैं और वे भी खाने के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं। तो ये लोग गलत नहीं हैं, भले ही उनका सोचना अलग है।
\s5
\v 7 हम में से किसी को भी स्वयं को ही प्रसन्न करने के लिए जीवन नहीं जीना चाहिए, और हममें से किसी को भी यह नहीं सोचना चाहिए कि जब हम मर जाते हैं, तो यह केवल हमें प्रभावित करता है।
\v 8 जब हम जीवित हैं, तो हम प्रभु के है और उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं, न कि स्वयं को प्रसन्न करने की। और जब हम मर जाते हैं, तो हमें परमेश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करना चाहिए। अतः, जब हम जीवित रहें या मरें हमें परमेश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि हम उनके हैं।
\v 9 क्योंकि मसीह मर गए और फिर जीवित हो गए ताकि वह सब के प्रभु हो, जीवितों के और मरे हुओं के भी, लोगों को उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए।
\p
\s5
\v 10 यह लज्जा की बात है कि तुम कुछ नियमों का पालन करते हो, और कहते हो कि परमेश्वर तुम्हारे साथी विश्वासियों को दण्ड देंगे जो उनकी आज्ञा का पालन नहीं करते हैं। क्योंकि परमेश्वर हम में से हर एक का न्याय करेंगे।
\v 11 हम यह जानते हैं क्योंकि धर्मशास्त्र में लिखा है:
\q "हर एक जन मेरे सामने झुकेगा!
\q और हर एक जन मेरी स्तुति करेगा।"
\p
\s5
\v 12 इसलिए हम सब को परमेश्वर को बताना होगा कि हमने क्या किया है और निर्णय उनके हाथों में है कि वह इसे स्वीकार करें या नहीं करें।
\p
\v 13 क्योंकि परमेश्वर ही हर एक का न्याय करेंगे, इसलिए हमें ऐसा नहीं कहना चाहिए कि परमेश्वर को हमारे कुछ भाई-बहनों को दण्ड देना चाहिए! इसकी अपेक्षा, तुम्हें किसी अन्य भाई या बहन को पाप करने के लिए या मसीह पर भरोसा करने से रोकने के लिए कभी कुछ न करने का दृढ़ संकल्प होना चाहिए।
\s5
\v 14 क्योंकि मैं प्रभु यीशु से जुड़ा हुआ हूँ, इसलिए मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे खाने के लिए कुछ भी अनुचित है। परन्तु यदि कुछ लोगों के विचारों में कुछ वस्तुएँ खाना अनुचित नहीं है, तो उनके लिए वो खाना ठीक नहीं है। तो तुम्हें उन वस्तुओं को खाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए।
\v 15 यदि तुम ऐसा कुछ खाते हो जो एक साथी विश्वासी सोचता है कि खाने के लिए गलत है, तो तुम उसके लिए परमेश्वर की आज्ञा का पालन न करने का कारण बन सकते हो। इस प्रकार तुम उससे प्रेम नहीं करोगे। किसी भी साथी विश्वासी के लिए मसीह में विश्वास करने में बाधा न बनो। अंततः, मसीह उसके लिए भी मरे थे!
\s5
\v 16 इसी प्रकार, कुछ ऐसा न करो जिसे साथी विश्वासी बुरा कहते हैं, भले ही तुम्हारे लिए वह सही हो।
\v 17 जब परमेश्वर हमारे जीवन पर अधिकार रखते हैं, तो हम इस बात की चिंता नहीं करते कि हम क्या खाते हैं और क्या पीते हैं। इसकी अपेक्षा, हम इस बात पर विचार करते हैं कि उनकी आज्ञा का पालन करने की, एक दूसरे के साथ शान्ति रखने की, और पवित्र आत्मा के कारण आनन्दित होने की उचित रीति क्या है।
\s5
\v 18 जो इस प्रकार मसीह की सेवा करते हैं, वे परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं, और दूसरे लोग भी उनका सम्मान करेंगे।
\p
\v 19 इसलिए हमें सदैव ऐसे जीवन के लिए उत्सुक रहना चाहिए जिससे साथी भाई-बहनों के बीच शान्ति बनी रहे, और हमें ऐसे काम करने का प्रयास करना चाहिए जिससे एक दूसरे को मसीह में विश्वास और मसीह के आज्ञाकरी बनने में सहायता मिले।
\s5
\v 20 इसलिए कि तुम कुछ खाना चाहते हो, परमेश्वर ने जिस विश्वासी को बचाया है, उसे नष्ट न करो। यह सच है कि परमेश्वर हमें हर प्रकार के भोजन खाने की अनुमति देते हैं परन्तु यदि तुम कुछ ऐसा खा लेते हो जिसे दूसरे विश्वासी गलत मानते हैं तो, तुम उसे ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हो जिसे वह गलत मानता है।
\v 21 मांस न खाना और दाखमधू न पीना तो अच्छा है, और न ही ऐसा कोई काम कभी करना अच्छा है, यदि इससे तुम्हारे साथी विश्वासी को परमेश्वर में विश्वास करने में बाधा उत्पन्न हो।
\s5
\v 22 परमेश्वर तुम्हें बताएँ कि तुम्हारे लिए क्या करना उचित हैं, परन्तु दूसरों को अपनी धारणा स्वीकार करने के लिए विवश करने का प्रयास न करो। और यदि तुम्हें अपने विश्वास के विषय में कोई संदेह नहीं है, तो तुम परमेश्वर को प्रसन्न करोगे।
\v 23 परन्तु कुछ विश्वासियों को डर है कि यदि वे कुछ प्रकार के भोजन खाते हैं तो परमेश्वर उनसे प्रसन्न नहीं होंगे। और परमेश्वर निश्चय ही कहेंगे कि उन्होंने गलत किया है, यदि वे जिसे उचित मानते हैं इसे न करें। यदि हम यह सुनिश्चित किए बिना कुछ भी करते हैं कि परमेश्वर इसे स्वीकार करेंगे या नहीं, तो हम पाप कर रहे हैं।
\s5
\c 15
\p
\v 1 हम में से जिन विश्वासियों को विश्वास है कि परमेश्वर हमें उन विश्वासियों की तुलना में छूट देते हैं, जिन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं है- हमें उनके साथ धीरज धरना चाहिए और उनके द्वारा उत्पन्न असुविधा को स्वीकार करना चाहिए। यह अपने आप को प्रसन्न करने से अधिक महत्वपूर्ण है।
\v 2 हम सब को ऐसे काम करने चाहिए जो हमारे साथी विश्वासियों को प्रसन्न करे और उनकी सहायता करें, ऐसे काम जिनसे उन्हें मसीह पर विश्वास करने के लिए प्रोत्साहन मिले।
\s5
\v 3 हमें अपने साथी विश्वासियों को प्रसन्न करना चाहिए, क्योंकि मसीह हमारे लिए उदाहरण हैं। उन्होंने स्वयं को प्रसन्न करने के लिए काम नहीं किया। इसके विपरीत, उन्होंने परमेश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास किया, जबकि अन्य लोगों ने उनका अपमान किया। जैसा धर्मशास्त्र में कहा गया है: "जब लोगों ने तेरा अपमान किया, तो ऐसा लगता था कि वे मेरा भी अपमान कर रहे थे।"
\v 4 याद रखें कि धर्मशास्त्र में लिखी सब बातें हमें सिखाने के लिए हैं, कि हम कठिनाई में धीरजवन्त हो सकें। इस प्रकार धर्मशास्त्र हमें यह आशा करने के लिए प्रोत्साहित करता है कि परमेश्वर हमारे लिए वह सब करेंगे जिसकी उन्होंने प्रतिज्ञा की है।
\p
\s5
\v 5 मैं प्रार्थना करता हूँ कि परमेश्वर तुमको सहनशीलता और प्रोत्साहन प्रदान करें कि तुम सब एक दूसरे के साथ शान्ति में जी सको, जैसे यीशु मसीह ने किया वैसे ही करो।
\v 6 यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम सब एक साथ परमेश्वर की जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के पिता हैं स्तुति करोगे।
\p
\v 7 इसलिए मैं रोम के सब विश्वासियों से कहता हूँ, एक-दूसरे को स्वीकार करो। यदि तुम ऐसा करते हो, तो लोग परमेश्वर की स्तुति करेंगे क्योंकि वे तुमको मसीह के समान व्यवहार करते देखेंगे। एक दूसरे को स्वीकार करो जैसे मसीह ने तुम्हें स्वीकार किया!
\s5
\v 8 मैं चाहता हूँ कि तुम यह स्मरण रखो कि मसीह ने परमेश्वर के विषय में सच्चाई जानने के लिए हम यहूदियों की सहायता की। अर्थात्, वह उन सब बातों को सच करने के लिए आए थे जिनकी परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों से प्रतिज्ञा की थी।
\v 9 परन्तु वह गैर-यहूदियों की सहायता करने के लिए भी आए थे, जिससे कि वे परमेश्वर की दया के लिए उनकी स्तुति करें। परमेश्वर की दया के विषय में धर्मशास्त्र में दाऊद के वचन लिखे हुए हैं: "तो मैं गैर-यहूदियों के बीच आपकी स्तुति करूँगा, मैं भजन गाकर आपकी स्तुति करूँगा।"
\s5
\v 10 मूसा ने भी लिखा था, "तुम जो गैर-यहूदी हो हमारे साथ जो परमेश्वर के लोग हैं आनन्द करो।"
\v 11 और दाऊद ने धर्मशास्त्र में यह भी लिखा है, "सभी गैर-यहूदी प्रभु की स्तुति करो, हर कोई उनकी स्तुति करें।"
\s5
\v 12 और यशायाह ने धर्मशास्त्र में लिखा है, "राजा दाऊद के वंशजों में से एक गैर-यहूदियों पर शासन करेंगे। वे विश्वास करेंगे कि उन्होंने जो प्रतिज्ञा की है उसे वह पूरा करेंगे।"
\p
\s5
\v 13 मैं प्रार्थना करता हूँ कि परमेश्वर ऐसा करें की तुम उनकी प्रतिज्ञा के पूरा होने की पक्की आशा रखो। मैं प्रार्थना करता हूँ कि जब तुम उन पर भरोसा करते हो, तो वह तुम्हें आनन्द और शान्ति से परिपूर्ण करें। पवित्र आत्मा तुम्हें परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को प्राप्त करने में अधिक से अधिक पक्की आशा का सामर्थ प्रदान करें।
\p
\s5
\v 14 मेरे साथी विश्वासियों, मुझे पूरा विश्वास है कि तुमने दूसरों के साथ पूर्णरूप से अच्छे काम किए। तुमने यह इसलिए किया है क्योंकि तुम पूर्णरूप से वह सब जानते हो, जो परमेश्वर तुम्हें बताना चाहते हैं और तुम एक-दूसरे को सिखाने में सक्षम भी हो।
\s5
\v 15 फिर भी, मैंने तुमको इस पत्र में कुछ बातों के विषय में खुलकर लिखा है जिससे कि तुम्हें उनके विषय में स्मरण दिलाऊँ। मैंने यह इसलिए लिखा है क्योंकि परमेश्वर ने मुझे एक प्रेरित बनाया है, जबकि मैं इसके योग्य नहीं हूँ।
\v 16 उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि मैं गैर-यहूदियों के बीच यीशु मसीह के लिए काम कर सकूँ। परमेश्वर ने मुझे एक याजक के समान काम करने के लिए नियुक्त किया है, ताकि मैं उनके सुसमाचार का प्रचार करूँ और परमेश्वर उन गैर-यहूदियों को स्वीकार करें जो मसीह में विश्वास करते हैं। वे एक ऐसी भेंट के समान होंगे, जिनको पवित्र आत्मा ने पूर्णरूप से परमेश्वर के लिए अलग किया है।
\p
\s5
\v 17 परिणामस्वरुप, मसीह यीशु के साथ मेरे सम्बंध के कारण, मैं परमेश्वर के लिए अपने काम से प्रसन्न हूँ।
\v 18 मैं केवल उस कार्य के विषय में साहस से कहूंगा, जो मसीह ने मेरे द्वारा पूरे किए हैं, कि गैर-यहूदियों ने मसीह के विषय में संदेश पर मन लगाया है। ये उपलब्धियां शब्दों और कर्मों से प्राप्त हुई है
\v 19 मनुष्यों को विश्वास दिलाने के लिए चिन्हों और अन्य अद्भुत कामों द्वारा मैंने उन चीजों को किया है जिसके लिए परमेश्वर के आत्मा ने मुझे सक्षम किया है। इस प्रकार मैं यरूशलेम से लेकर इल्लुरिकुम के प्रान्त तक हर स्थान पर यात्रा कर चुका हूँ, और मैंने उन सब स्थानों में मसीह के विषय में संदेश सुनाने का काम पूरा कर लिया है।
\s5
\v 20 जब मैंने उस संदेश का प्रचार किया, तो मैं सदा उस स्थान में प्रचार करने का प्रयास करता हूँ जहाँ लोगों ने पहले मसीह के विषय में नहीं सुना है। मैं ऐसा इसलिए करता हूँ ताकि मैं उस कार्य को करता न रहूँ जिसे किसी और ने पहले ही आरम्भ कर दिया है। मैं किसी ऐसे व्यक्ति के समान नहीं बनना चाहता हूँ जो किसी और की नींव पर एक घर बनाता है।
\v 21 इसके विपरीत, मैं गैर-यहूदियों को सिखाता हूँ, ताकि जो कुछ हो वह इस लिखे गए वचन के अनुसार हो: "जिन लोगों ने मसीह के विषय में समाचार नहीं सुना हैं, वे उन्हें देखेंगे। और जिन्होंने कभी उनके विषय में नहीं सुना हैं वे समझेंगे।"
\p
\s5
\v 22 क्योंकि मैंने उन स्थानों में मसीह के विषय में संदेश सुनाने का प्रयास किया है, जहाँ मनुष्यों ने मसीह के विषय में नहीं सुना हैं, इस कारण मैं तुम्हारे पास आने से कई बार रोका गया।
\v 23 परन्तु अब इन क्षेत्रों में कोई और स्थान नहीं है जहाँ लोगों ने मसीह के विषय में नहीं सुना है। इसके अतिरिक्त मैं कई वर्षो से तुमसे मिलना चाहता था।
\s5
\v 24 अतः मुझे स्पेन जाने की आशा है, और मुझे आशा है कि तुम इस यात्रा में मेरी सहायता करोगे। और मैं तुम्हारे साथ रहने का आनंद लेने के लिए कुछ समय तुम्हारे पास रुकना चाहता हूँ।
\v 25 पर अभी मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकता क्योंकि परमेश्वर के लोगों के लिए पैसे लेकर मैं यरूशलेम जा रहा हूँ।
\s5
\v 26 मकिदुनिया और अखाया के प्रान्तों में विश्वास करने वालों ने यरूशलेम में परमेश्वर के लोग, जो गरीब हैं, उन विश्वासियों की सहायता करने के लिए पैसा दान करने का निर्णय लिया।
\v 27 यह उनका अपना निर्णय है, परन्तु वास्तव में वे यरूशलेम के परमेश्वर के लोगों के ऋणी हैं। गैर-यहूदी विश्वासियों ने यहूदी विश्वासियों से आत्मिक रूप से लाभ उठाया क्योंकि उन्होंने उनसे मसीह के विषय में संदेश सुना था, अतः गैर-यहूदियों को भी भौतिक वस्तुओं के द्वारा यरूशलेम में यहूदी विश्वासियों की सहायता करनी चाहिए।
\s5
\v 28 जब मै मकिदुनिया और अखाया के विश्वासियों द्वारा दिए गए इस दान को, देने का काम पूरा कर देता हूँ, तो मैं यरूशलेम छोड़कर इसपानिया की ओर यात्रा करूँगा और रोम में तुम्हारे पास आऊँगा।
\v 29 और मैं जानता हूँ कि जब मैं तुमसे मिलूंगा, तो मसीह हमें बहुत अधिक आशीष देंगे।
\p
\s5
\v 30 क्योंकि हम अपने प्रभु यीशु मसीह के हैं और क्योंकि परमेश्वर के आत्मा हमें एक-दूसरे से प्रेम करने की प्रेरणा देते हैं, इसलिए मैं तुम सब से आग्रह करता हूँ कि तुम मेरे लिए परमेश्वर से प्रार्थना करके मेरी सहायता करो।
\v 31 प्रार्थना करो कि जब मैं यहूदिया में रहूं, तो परमेश्वर मुझे अविश्वासी यहूदियों से बचायें। और प्रार्थना करो कि यरूशलेम के विश्वासी इस दान को ग्रहण करके जो मैं उन के लिए ला रहा हूँ आनन्दित हो।
\v 32 इन बातों के लिए प्रार्थना करो जिससे कि परमेश्वर मुझे तुम्हारे पास आने में प्रसन्न हो, और मैं तुम्हारे बीच और तुम्हारे साथ कुछ समय के लिए विश्राम कर सकूँ और तुम मेरे साथ विश्राम पाओ।
\s5
\v 33 मैं प्रार्थना करता हूँ कि परमेश्वर, हमें शान्ति दें, और वह तुम सब के साथ रहें और तुम्हारी सहायता करें। ऐसा ही हो!
\s5
\c 16
\p
\v 1 इस पत्र के माध्यम से मैं इस पत्र को लाने वाले हमारे साथी विश्वासी फीबे का तुम्हें परिचय दे रहा हूँ और उसको सराह रहा हूँ, जो यह पत्र तुम्हारे पास लायेगी वह किंख्रिया शहर की सभा की सेविका है।
\v 2 मैं तुमसे अनुरोध करता हूँ कि तुम उसे स्वीकार करो क्योंकि तुम सब परमेश्वर से जुड़ चुके हो। तुमको ऐसा करना चाहिए क्योंकि परमेश्वर के लोगों को अपने साथी विश्वासियों का स्वागत करना चाहिए। मैं यह भी अनुरोध करता हूँ कि उसको जो कुछ भी आवश्यक्ता है उसे देकर उसकी सहायता करो, क्योंकि उसने मुझे मिलाकर कई लोगों की सहायता की है।
\p
\s5
\v 3 प्रिस्किल्ला और उसके पति अक्विला से कहो कि मैं उन्हें नमस्कार कहता हूँ। उन्होंने मसीह यीशु के लिए मेरे साथ काम किया,
\v 4 और वे मेरे लिए मरने को भी तैयार थे। मैं उनका धन्यवाद करता हूँ, और गैर-यहूदी कलीसियाएं भी मेरा जीवन बचाने के लिए उनका धन्यवाद करती हैं।
\v 5 उस कलीसिया को भी बताएं जो उनके घर में एकत्र होती हैं कि मैं उन्हें अपना नमस्कार भेजता हूँ। मेरे प्रिय मित्र इपैनितुस को भी यह बात बताएं। मसीह में विश्वास करने वाला वह आसिया का पहला व्यक्ति है।
\s5
\v 6 मरियम को, जिसने तुम्हारी सहायता करने के लिए मसीह में कठोर परिश्रम किया है, कहना कि मैं उसे अपनी शुभकामनाएं भेजता हूँ।
\v 7 यही बात अन्द्रुनीकुस और उसकी पत्नी यूनियास को बताना, जो मेरे साथी यहूदी है और मेरे साथ जेल में थे। वे प्रेरितों के बीच अच्छी प्रकार से जाने जाते हैं, और मुझसे पहले वे मसीही विश्वास में आए थे।
\v 8 मैं अम्पलियातुस को भी अपनी शुभकामनाएं भेजता हूँ, जो एक प्रिय मित्र है और परमेश्वर से जुड़ गया है।
\s5
\v 9 मैं उरबानुस को जो हमारे साथ मसीह के लिए काम करता है और मेरे प्रिय मित्र इस्तखुस को भी अपनी शुभकामनाएं भेजता हूँ।
\v 10 अपिल्लेस को भी मैं अपनी शुभकामनाएं भेजता हूँ, जिसे मसीह ने स्वीकार किया हैं क्योंकि उसने सफलतापूर्वक परीक्षाओं का सामना किया है। अरिस्तुबुलुस के घर में रहनेवाले विश्वासियों को भी बताएं कि मैं उन्हें अपनी शुभकामनाएं भेजता हूँ।
\v 11 हेरोदियोन से भी कहो, जो मेरा साथी यहूदी है, कि मैं उसे अपना नमस्कार भेजता हूँ। नरकिस्सुस के घर में रहने वाले लोगों को भी यही बताना जो प्रभु के हैं।
\s5
\v 12 त्रूफैना और उसकी बहन त्रूफोसा को जो परमेश्वर के लिए कठोर परिश्रम करते हैं, उन्हें भी यही बात बताएं। मैं पिरसिस को भी अपनी शुभकामनाएं भेजता हूँ। हम सब उससे प्रेम करते हैं, और उसने परमेश्वर के लिए बहुत परिश्रम किया है।
\v 13 रूफुस को, जो एक उत्कृष्ट मसीही है, बताओ कि मैं उसे अपना नमस्कार भेजता हूँ। उसकी माता को भी यही बात बताओ, जिसने मेरे साथ अपने पुत्र के समान व्यवहार किया है।
\v 14 असुंक्रितुस, फिलगोन, हिर्मेस, पत्रुबास, हर्मास और उनके साथ संगती करने वाले भाई-बहनों को बताएं कि मैं उन्हें अपनी शुभकामनाएं भेज रहा हूँ।
\s5
\v 15 मैं फिलुलुगुस और उसकी पत्नी यूलिया को, नेर्युस और उसकी बहन को, और उलुम्पास और उन सब को जो इनके साथ संगती करते हैं, अपनी शुभकामनाएं भेजता हूँ ।
\v 16 जब तुम एक साथ एकत्र होते हो, तो एक दूसरे का पवित्र प्रेम से अभिवादन करो। सब कलीसियाओं के विश्वासी जो मसीह से जुड़े हुए है, तुम्हें नमस्कार कहते हैं।
\p
\s5
\v 17 मेरे साथी विश्वासियों, मैं तुमको बताता हूँ कि तुम्हें उन लोगों के विषय में सावधान रहना चाहिए जो तुम्हारे बीच में विभाजन पैदा कर रहे हैं और लोगों को परमेश्वर का सम्मान करने से रोकते हैं। ऐसे लोगों से दूर रहो!
\v 18 वे हमारे प्रभु मसीह की सेवा नहीं करते हैं! इसके विपरीत, वे केवल अपनी इच्छाओं को पूरा करना चाहते हैं। वे चिकनी चुपड़ी बातों और प्रशंसा के द्वारा धोखा देते हैं ताकि लोग यह नहीं समझ सकें कि वे परेशानी उत्पन्न करने वाले झूठी बातें सिखा रहे हैं।
\s5
\v 19 हर स्थान में विश्वासियों को पता है कि सुसमाचार में मसीह ने जो कहा है, तुमने उन बातों का पालन किया है। इसलिए मैं तुम्हारे विषय में आनन्द करता हूँ परन्तु मैं यह भी चाहता हूँ कि तुम अच्छाई को समझो और बुराई से दूर रहो।
\v 20 यदि तुम यह सब करते हो, तो परमेश्वर, जो हमें अपनी शान्ति देते हैं, शीघ्र ही तुम्हारे अधिकार के कारण शैतान का काम नष्ट कर देंगे! मैं प्रार्थना करता हूँ कि हमारे प्रभु यीशु तुम पर दया करते रहें।
\p
\s5
\v 21 और मेरे साथ काम करने वाले तीमुथियुस, लूकियुस, यासोन और सोसिपत्रुस, जो मेरे साथी यहूदी हैं, चाहते हैं कि तुम यह जान लो कि वे तुम्हें अपना नमस्कार भेज रहे हैं।
\v 22 मैं, तिरतियुस, जो प्रभु का हूँ, चाहता हूँ कि तुम जानो कि मैं तुम्हें अपनी शुभकामनाएं भेज रहा हूँ। मैं इस पत्र को वैसे लिख रहा हूँ जैसा पौलुस मुझसे कहता है।
\s5
\v 23-24 मैं, पौलुस, गयुस के घर में रह रहा हूँ, और यहाँ की पूरी सभा उसके घर में संगती करती है। वह भी चाहता है कि तुम यह जान लो कि वह तुम्हें शुभकामनाएं भेज रहा है। इरास्तुस भी, जो शहर के पैसे का प्रबंधन करता है, तुमको हमारे भाई क्वारतुस के साथ शुभकामनाएं भेजता है।
\p
\s5
\v 25 अब परमेश्वर, जो यीशु मसीह के सुसमाचार की मेरी घोषणा से तुम्हें आत्मिक रूप से दृढ कर सकते हैं, वह सुसमाचार जिसे परमेश्वर ने हमारे समय से पहले किसी भी युग में प्रकट नहीं किया था -
\v 26 परन्तु अब परमेश्वर ने उसे धर्मशास्त्र के कहने के अनुसार प्रकट किया है, - कि दुनिया के सब जातियों के लोग मसीह में विश्वास करें और उनकी आज्ञा का पालन कर सकें।
\s5
\v 27 यीशु मसीह ने हमारे लिए जो किया है, उसके कारण, परमेश्वर की, जो एकमात्र बुद्धिमान है, स्तुति सर्वदा तक होती रहें। ऐसा ही हो!

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\h 1 CORINTHIANS
\toc1 The First Letter to the Corinthians
\toc2 First Corinthians
\toc3 1co
\mt1 1 कुरिन्थियों
\s5
\c 1
\p
\v 1 मैं पौलुस यह पत्र लिख रहा हूँ। हमारा साथी विश्वासी सोस्थिनेस इस समय मेरे साथ है। परमेश्वर ने मुझे उनकी सेवा करने के लिए मसीह यीशु का प्रेरित नियुक्त किया है, और अपने निमित्त प्रेरित होने के लिए चुना है।
\v 2 यह पत्र कुरिन्थुस में परमेश्वर की उस कलीसिया के लिए है, जिनको मसीह यीशु ने उन सब लोगों के साथ जिन्हें प्रभु यीशु ने हर जगह परमेश्वर के लिए अलग किया है, जो परमेश्वर को उद्धार के निमित्त हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम से पुकारते हैं; अर्थात् उनके और हमारे प्रभु।
\p
\v 3 हमारे परमेश्वर पिता और प्रभु यीशु मसीह तुमसे प्रेम करें और तुमको शान्ति दे।
\p
\s5
\v 4 उन अनेक वरदानों के लिए जो मसीह यीशु ने तुमसे प्रेम करने के कारण तुम्हें दिए हैं; मैं प्रति दिन परमेश्वर का धन्यवाद करता रहता हूँ।
\v 5 मसीह ने तुमको बहुत वरदान दिए हैं। उन्होंने तुम्हारे बोलने में और तुम्हारे सारे ज्ञान में तुम्हारी सहायता की है।
\v 6 तुम स्वयं प्रमाण हो कि मसीह के बारे में यह कथन सत्य है।
\s5
\v 7 यही कारण है कि जब तुम प्रतीक्षा करते हो कि परमेश्वर प्रभु यीशु मसीह को प्रकट करेंगे और सब को दिखाएँगे, तो तुम्हें परमेश्वर के आत्मा की ओर से किसी वरदान की कमी नहीं है।
\v 8 परमेश्वर तुमको शक्ति भी देंगे कि तुम अंत तक उनकी सेवा कर सको, जिससे कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह के पृथ्वी पर लौट आने के दिन लज्जित न हो।
\v 9 इसके लिए परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर रहे हैं। परमेश्वर ने तुमको बुलाया है, ताकि तुम उनके पुत्र अर्थात् मसीह यीशु, जो हमारे प्रभु है हैं; जानो और उनसे प्रेम करो।
\p
\s5
\v 10 मेरे भाइयों और बहनों, मैं यीशु के अधिकार से विनती करता हूँ, कि तुम समझौता कर लो और अपने मतभेद दूर करो और आगे को दल बन्दी मत करो। हर बात में तुम सबका दृष्टिकोण एक ही हो इस एक ही काम को करने में एक जुट हो।
\v 11 खलोए के घर के लोगों ने मुझे बताया है कि तुम में से कुछ लोगों के बीच विभाजन और मतभेद हैं।
\s5
\v 12 समस्या यही तो है। तुम में से प्रत्येक जन किसी न किसी अगुवे के प्रति निष्ठा का दावा करता है। एक कहता है, “मैं पौलुस का हूँ।,” दूसरा कहता है, “मैं अपुल्लोस का हूँ।,” कोई अन्य कहता है, "मैं पतरस का हूँ।" और अन्त में कोई कहता है, "परन्तु मैं तो मसीह का भक्त हूँ।"
\v 13 परन्तु, मसीह अपनी विश्वसनीयता को विभाजित नहीं करते हैं। पौलुस तुम्हारे लिए क्रूस पर नहीं चढ़ाया गया था। जिस व्यक्ति ने तुमको बपतिस्मा दिया था, उस ने तुम्हें पौलुस के नाम पर बपतिस्मा नहीं दिया था।
\s5
\v 14 मैं परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ कि मैंने वहाँ केवल कुछ लोगों को ही बपतिस्मा दिया है; जिनमें क्रिस्पुस और गयुस है।
\v 15 यह सच नहीं कि मैंने उन्हें अपने नाम में बपतिस्मा दिया है।
\v 16 (अब मुझे याद आता है कि मैंने स्तिफनास के घराने को भी बपतिस्मा दिया था, पर उन लोगों के अलावा, मुझे याद नहीं की मैंने कुरिन्थ में किसी और को बपतिस्मा दिया है।
\s5
\v 17 सबसे महत्वपूर्ण काम जो मसीह ने मुझे करने के लिए भेजा है वह यह है कि हर किसी को उनके बारे में सुसमाचार सुनाऊँ, न कि लोगों को बपतिस्मा दूँ। मैंने मानवीय ज्ञान या चालाकीपूर्ण शब्दों का उपयोग करते हुए सुसमाचार का प्रचार नहीं किया, इसकी अपेक्षा मैंने क्रूस पर मरने वाले मसीह के कामों की शक्ति का उपयोग किया है।
\p
\s5
\v 18 क्योंकि जो लोग परमेश्वर की बातों के लिए मर चुके हैं, वे उन्हें समझ नहीं सकते हैं। मसीह उनके लिए क्रूस पर मर गए, परन्तु यह संदेश उनके लिए अर्थहीन है। परन्तु, उन लोगों के लिए जिन्हें परमेश्वर ने बचाया और जीवन दिया है, इस संदेश के द्वारा परमेश्वर हम में शक्तिशाली काम करते हैं।
\v 19 एक भविष्यद्वक्ता ने शास्त्रों में लिखा था:
\q "जो लोग सोचते हैं कि वे ज्ञानी हैं, मैं उनके ज्ञान को नष्ट कर दूँगा,
\q और मैं बुद्धिमान की प्रतिभाशाली योजनाओं को पूरी तरह से विफल कर दूँगा।"
\p
\s5
\v 20 इस संसार के बुद्धिमान लोग कहाँ हैं? वे परमेश्वर के बारे में कुछ नहीं समझ पाए हैं। और न ही विद्वानों ने, और न ही विवाद करने में निपुण लोगों ने समझा है। क्योंकि परमेश्वर ने दिखाया है कि जिसे वे ज्ञान समझते हैं वह वास्तव में मूर्खता है।
\v 21 परमेश्वर के ज्ञान में, अविश्वासियों ने अपने ज्ञान से परमेश्वर को नहीं जाना। इसलिए परमेश्वर इसमें प्रसन्न थे कि वे उस संदेश का उपयोग करे, जिसे उन्होंने मूर्खता समझा। यही संदेश हमने घोषित किया है और इसमें सब विश्वासियों को बचाने की शक्ति है।
\s5
\v 22 यहूदियों को किसी का अनुसरण करने के लिए चमत्कारी शक्तियों का सार्वजनिक प्रदर्शन चाहिए। यूनानियों को आत्मिक बातों पर विचार करने के लिए नए एवं आधुनिक तर्क द्वारा ज्ञान की खोज है।
\v 23 परन्तु हम क्रूस पर मारे गए मसीह के बारे में एक संदेश का प्रचार करते हैं। यहूदी मसीह के क्रूस के संदेश को प्राप्त नहीं कर सकते हैं, क्योंकि क्रूस की मृत्यु शाप लाती है। यूनानियों के लिए यह मूर्खता है कि इस पर ध्यान दिया जाए।
\s5
\v 24 परन्तु हमारे लिए, जिन्हें परमेश्वर ने बुलाया, कि उन्हें जानें, यह सन्देश दर्शाता है कि हमारे लिए परमेश्वर ने मसीह को मरने के लिए भेजकर सामर्थ्य और बुद्धिमानी का काम किया है। सुसमाचार किसी भी जाति या तत्वज्ञान से जुड़ा नहीं है; मसीह में, यहूदियों और अन्य सब जातियों और पृथ्वी के सब कुलों के बीच कोई अंतर नहीं है।
\v 25 परमेश्वर की बातें मूर्खतापूर्ण तो लगती हैं, परन्तु वे वास्तव में मनुष्य की कल्पना के सबसे अधिक बौद्धिक विचारों से अधिक बुद्धि की बात है और सबसे अधिक निर्बल दिखाई देनेवाली परमेश्वर की बातें, पृथ्वी के सबसे अधिक शक्तिशाली और महान मनुष्यों की तुलना में अधिक शक्तिशाली हैं।
\p
\s5
\v 26 हे भाइयों और बहनों, समझो कि तुम किस प्रकार के व्यक्ति थे, जब परमेश्वर ने तुमको बुलाया था। समझो कि तुम कैसे महत्वहीन थे। तुम मनुष्यों में सबसे अधिक बुद्धिमान नहीं थे, तुम इतने महत्वपूर्ण नहीं थे कि लोग तुम्हारी बात मान लें। तुम्हारे पूर्वज भी महत्त्वपूर्ण नहीं थे।
\v 27 परन्तु, परमेश्वर ने ऐसी बातों को चुना जो अविश्वासियों की समझ से बाहर थीं जिससे कि वे अपनी प्रशंसा करना बंद कर दें। परमेश्वर ने दुर्बलों को चुना कि शक्तिशाली समझे जानेवालों को लज्जित करें।
\s5
\v 28 अविश्वासियों के लिए परमेश्वर ने महत्त्वहीन बातों को चुना कि यह दिखाएं कि जिन बातों को वे महत्वपूर्ण समझते हैं, उनका कोई मूल्य नहीं है।
\v 29 परमेश्वर ने ऐसा इसलिए किया कि किसी भी मनुष्य के पास अपनी प्रशंसा करने का कोई कारण न हो और वे सारी महिमा परमेश्वर को दें।
\s5
\v 30 परमेश्वर ने जो किया है, उसके कारण अब तुम मसीह यीशु से जुड़ गए हो, जिन्होंने हम पर यह स्पष्ट किया है कि परमेश्वर कितने बुद्धिमान हैं। उन्होंने हमें परमेश्वर के साथ उचित सम्बन्ध में कर दिया है, उन्होंने हमें परमेश्वर के लिए अलग कर दिया है, और उन्होंने हमें बचाया है और हमें सुरक्षा में ले आए हैं।
\v 31 इसलिए, जैसा शास्त्रों में कहा गया है:
\q "जो अपनी प्रशंसा करता है, वह अपनी प्रशंसा केवल उस काम में करे जो परमेश्वर ने उसके लिए किया है।"
\s5
\c 2
\p
\v 1 हे भाइयों और बहनों, जब मैं तुम्हारे पास आया, मैंने अच्छे भाषण नहीं दिए, और न ही मैंने उन बातों को दोहरा कर तुम्हें सुनाया जो बुद्धिमानों ने कही थीं। मैंने तो तुम्हें परमेश्वर के बारे में वह सच्चाई बताई जिसे लोग नहीं जानते थे।
\v 2 मैंने निर्णय लिया है कि तुम से यीशु मसीह और क्रूस पर उनकी मृत्यु के अतिरिक्त अन्य कोई बात नहीं करूँगा।
\s5
\v 3 तुम जानते हो कि जब मैं तुम्हारे साथ था तब मैं कितना निर्बल था। तुम जानते हो कि मेरे दिल में डर भर गया था, और तुमने मुझे डर से काँपते हुए देखा था।
\v 4 परन्तु तुमने मेरा संदेश सुना, और तुम जानते हो कि मैंने तुमसे बात की तो मैंने अपनी बातों को सोच समझकर नहीं गढ़ा था। इसकी अपेक्षा, परमेश्वर के आत्मा ने मेरे वचनों की सच्चाई को उन चमत्कारों की शक्ति से तुमको दिखाया जो उन्होंने मेरे द्वारा किए थे।
\v 5 मैंने इस प्रकार सिखाया जिससे कि तुम परमेश्वर पर उनकी शक्ति के कारण उन पर विश्वास करो, न कि किसी भी मनुष्य के ज्ञान की बातों पर।
\p
\s5
\v 6 अब जो हम उन लोगों से बात कर रहे हैं जो मसीह में पूरा विश्वास करते हैं। अब तुम्हारे पास ज्ञान है, और इस ज्ञान का इस जीवन में उन राजाओं और राज्यपालों के साथ कुछ भी लेना-देना नहीं है, क्योंकि वे शीघ्र ही मर मिटेंगे।
\v 7 नहीं, हम उस ज्ञान का प्रचार करते हैं जिसे परमेश्वर ने अब तक प्रकट नहीं किया था; यह ज्ञान उन बुद्धि के कार्यों के बारे में है जिन्हें उन्होंने सृष्टि के पहले करने का निर्णय लिया था, और उन्होंने ऐसा करने का निर्णय इसलिए लिया कि हमारा सम्मान हो।
\s5
\v 8 जो लोग इस संसार पर शासन करते हैं, उनमें से किसी ने भी परमेश्वर की बुद्धिमानी की योजनाओं को नहीं समझा था। यदि वे उन्हें समझते तो वे कभी भी उस प्रभु को क्रूस पर नहीं चढ़ाते, जो इतने महान हैं।
\v 9 लेकिन शास्त्रों में यह कहा गया है:
\q "वे बातें जो किसी ने नहीं देखी हैं,
\q जो किसी ने भी नहीं सुनी हैं,
\q और जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता-
\q वही हैं जिनको परमेश्वर ने अपने प्रेम करनेवालों के लिए तैयार किया है।"
\p
\s5
\v 10 यही वे बातें हैं जो परमेश्वर ने आत्मा के द्वारा हमें दिखाई हैं। क्योंकि आत्मा सब कुछ देखते हैं और वह सबकुछ जानते हैं। यहाँ तक कि वह उन रहस्यों को भी जानते हैं जिन्हें परमेश्वर ही जानते हैं और वे गहरे और गुप्त भेद हैं।
\v 11 व्यक्ति की आत्मा को छोड़कर कोई नहीं जानता कि वह क्या सोच रहा है। वैसे ही परमेश्वर के आत्मा को छोड़कर कोई भी परमेश्वर की छिपी हुई बातों को नहीं जानता।
\s5
\v 12 परमेश्वर ने हमें जो आत्मा दिए हैं, वह आत्मा इस संसार से नहीं आते हैं। हमें जो आत्मा प्राप्त हुए हैं वह परमेश्वर से आते हैं। यह आत्मा हमें उन सभी आशीषों को समझने में सहायता करते हैं जिनको परमेश्वर ने हमें बिना मूल्य के दिया है।
\v 13 हम जो शिक्षा देते हैं, उसे इस संसार के ज्ञान में शिक्षित लोग समझ नहीं सकते हैं। यह शिक्षाएँ केवल परमेश्वर के आत्मा द्वारा सिखाई जाती है। वह इन बातों का अर्थ समझने में हमारी सहायता करते हैं।
\s5
\v 14 जो परमेश्वर को नहीं जानता, वह इन आत्मिक शिक्षाओं को स्वीकार नहीं कर सकता है। उन्हें ये शिक्षाएँ मूर्खता की लगती हैं। यदि वह उन्हें स्वीकार करना भी चाहता हो, तो वह ऐसा नहीं कर पाएगा, क्योंकि इन बातों को केवल वही लोग समझ सकते हैं, जिनके पास परमेश्वर की ओर से आने वाला ज्ञान है।
\v 15 जो परमेश्वर को जानता है वह सब बातों का मूल्यांकन करता है, परन्तु परमेश्वर अपने बारे में उसके मूल्यांकन को स्वीकार नहीं करेंगे।
\v 16 जैसा कि हमारे भविष्यद्वक्ताओं में से एक ने लिखा था:
\q "परमेश्वर के मन में जो है उसे जानना किसी के लिए भी संभव नहीं है"
\q कोई भी परमेश्वर को सिखा नहीं सकता है।" परन्तु हम मसीह के विचारों को जान सकते हैं।
\s5
\c 3
\p
\v 1 मेरे भाइयों और बहनों, जब मैं तुम्हारे साथ था, तुम परमेश्वर के विषय में कठिन सत्यों को सुनने के लिए तैयार नहीं थे। मैं तुम से छोटे बच्चों के समान जो अभी-अभी मसीह से जुड़े है, बातें कर पाता था।
\v 2 मैंने तुमको वे बातें सिखाईं जो समझने में आसान थी, जैसे कि एक माँ अपने बच्चों को दूध पिलाती है। तुम ठोस भोजन के लिए तैयार नहीं थे। और अब भी, तुम तैयार नहीं हो।
\s5
\v 3 मैं यह इसलिए कहता हूँ क्योंकि तुम अब भी अविश्वासियों के समान काम कर रहे हो, भले ही तुम मसीही हो। मैं जानता हूँ कि तुम तैयार नहीं हो क्योंकि तुम में से बहुत से ईर्ष्या करते हैं और एक-दूसरे के साथ झगड़े करते हैं, और तुम्हारा सोचना समझना अभी भी अविश्वासियों जैसा ही है।
\v 4 तुम में से कुछ कहते हैं, मैं, पौलुस, की शिक्षाओं का अनुसरण कर रहा हूँ; दूसरों का कहना है कि अपुल्लोस ने जो सिखाया है हम उसका अनुसरण कर रहे हैं; तुम अविश्वासियों का सा व्यवहार कर रहे हो।
\p
\v 5 परमेश्वर ने तुम्हारे जीवन में जो महान कार्य किया है उसकी तुलना में, अपुल्लोस महत्वपूर्ण नहीं है, पौलुस भी महत्वपूर्ण नहीं है। हम दोनों दास हैं, और हम दोनों एक ही परमेश्वर की सेवा उस रीति से करते हैं जिस रीति से उन्होंने हमें सेवा करने को कहा है।
\s5
\v 6 मैं तुम में परमेश्वर के वचन के बीज का पौधा लगाने वाला सबसे पहला था, परन्तु वह अपुल्लोस था जिसने विश्वास में तुमको बढ़ाया। परन्तु वह केवल परमेश्वर ही थे जो तुमको आत्मिक उन्नति दे सकते थे।
\v 7 मैं इसे फिर कहता हूँ: जो लोग बीज लगाते हैं और उन्हें पानी देते हैं, हमारा कोई मूल्य नहीं है। परमेश्वर ही हैं जो विकास कराते हैं, तुम एक बगीचे की तरह हो जो उन्होंने लगाया है।
\s5
\v 8 पौधों को लगानेवाला और पानी देनेवाला दोनों एक ही काम करते हैं, और प्रत्येक व्यक्ति को जो मजदूरी मिलेगी वह उसका प्रतिफल होगा। प्रतिफल वह राशि है जो प्रत्येक व्यक्ति के परिश्रम के अनुसार उसे दी जाती है।
\v 9 हम परमेश्वर के साथ मिलकर काम कर रहे हैं और हम दोनों परमेश्वर के हैं। परन्तु तुमको, परमेश्वर अपने खेत में बढ़ा रहे हैं। यह ऐसा है जैसे वह एक भवन के रूप में तुम्हारा निर्माण कर रहे हैं।
\p
\s5
\v 10 परमेश्वर ने उदारता से मुझे कुशलता प्रदान की है कि मैं उनके लिए यह कार्य कर सकूँ। मैंने तुम्हारे बीच बड़ी सावधानी से एक निपुण राजमिस्‍त्री के समान काम किया है। परन्तु मेरे बाद, कोई और उस पर निर्माण करेगा, जिसका आरम्भ मैंने किया है। हर कोई दूसरों की रचना पर बनाता है, परन्तु प्रत्येक व्यक्ति को सावधान रहना चाहिए कि वह कैसे निर्माण करता है।
\v 11 क्योंकि, पहले से ही रखी गई नींव को छोड़, कोई अन्य नींव नहीं रखी जा सकती है। यह नींव यीशु मसीह हैं।
\s5
\v 12 हम उन राजमिस्‍त्रियों के समान हैं जो चुनाव करते हैं कि नींव के ऊपर क्या रखना हैं। राजमिस्‍त्री सोने, चाँदी और मूल्यवान पत्थरों जैसी बहुमूल्य सामग्रियों का उपयोग कर सकते हैं, या वे लकड़ी, घास-फूस जैसी बेकार सामग्री का उपयोग कर सकते हैं।
\v 13 परमेश्वर हमारे काम का न्याय करेंगे और प्रकट करेंगे कि हम में से प्रत्येक ने उनके लिए क्या किया है। वे हमारे द्वारा किए गए कार्य को परखने के लिए आग भेजेंगे। वह आग हमारे काम की गुणवत्ता को सिद्ध करेगी।
\s5
\v 14 यदि किसी व्यक्ति का काम आग की परख में बच जाता है, तो उसे अपने काम के लिए प्रतिफल मिलेगा,
\v 15 परन्तु अगर आग उसके सारे काम को जला देती है, तो वह अपना प्रतिफल खो देगा, परन्तु परमेश्वर उसे फिर भी बचा सकते हैं, चाहे आग उसके किए गए सारे कामों को पूरी तरह से नष्ट कर दे।
\p
\s5
\v 16 तुम निश्चय ही जानते हो कि तुम परमेश्वर का निवास स्थान हो जहाँ परमेश्वर रहते हैं, कि तुम उनका मन्दिर हो। और तुम यह भी जानते हो कि परमेश्वर के आत्मा तुम्हारे अंदर रहते हैं।
\v 17 परमेश्वर की प्रतिज्ञा है कि जो उनके मन्दिर को नष्ट करने का प्रयास करेगा, वह उसे नष्ट कर देंगे। इसका कारण यह है कि उनका मन्दिर केवल उनका है। और वह इसी प्रतिज्ञा के आधार पर तुम्हारी रक्षा करते हैं, क्योंकि अब तुम उनका मन्दिर हो और तुम केवल उनके ही हो!
\p
\s5
\v 18 सावधान रहो कि तुम स्वयं को धोखा न दो। यदि तुम में से कोई सोचता है कि उसके पास बहुत ज्ञान है जिसकी अविश्वासी लोग प्रशंसा करेंगे तो उसे सावधान रहना चाहिए। उसके लिए अच्छा होगा कि वह उन सब बातों का त्याग कर दे जिनकी अविश्वासी इच्छा रखते हैं, चाहे वे ऐसा करने के लिए उसे मूर्ख समझें। जब वह उन बातों को छोड़ देता है, तो वह सच्चे ज्ञान को ग्रहण करना आरम्भ कर देगा।
\v 19 संसार जिसे महान ज्ञान समझता है, वास्तव में वह परमेश्वर के लिए मूर्खता है। शास्त्र कहता है, "परमेश्वर बुद्धिमानों को उनकी मूर्खता की योजनाओं में ही पकड़ लेते हैं।"
\v 20 और फिर शास्त्र सिखाता है, "परमेश्वर बुद्धिमानों की सब योजनाओं को सुनते हैं, और वह जानते हैं कि अंत में, वे सब कुछ खो देंगे।"
\p
\s5
\v 21 इसलिए इस बारे में घमंड करना छोड़ो कि कौन सा मसीही अगुवा कितना अच्छा है। क्योंकि परमेश्वर ने तुमको सब कुछ दिया है।
\v 22 परमेश्वर ने तुमको पौलुस दिया, और उन्होंने तुमको अपुल्लोस और पतरस दिए। और परमेश्वर ने तुमको यह संसार दिया, तुम्हें जीवन दिया तथा मौत पर उनकी विजय भी दी। और परमेश्वर तुमको वह सब कुछ देते हैं जो आज हैं और भविष्य में जो कुछ होगा वह सब तुम्हारा है;
\v 23 और तुम मसीह के हो, और मसीह परमेश्वर के हैं।
\s5
\c 4
\p
\v 1 मनुष्य हमें मसीह के सेवक, और सुसमाचार में निहित सत्यों के नियुक्त रखवाले समझें।
\v 2 हमें परमेश्वर ने जो काम पूरा करने के लिए सौंपा है, उसे विश्वासयोग्यता के साथ करना चाहिए क्योंकि उन्हें हम पर भरोसा है कि हम उसे करेंगे।
\s5
\v 3 यदि कोई मनुष्य या न्याय पालिका भी मेरे जीवन को परखे, तो मैं इसकी बहुत ही कम चिन्ता करता हूँ। मैं स्वयं अपने आप को परखना किसी लाभ का नहीं समझता।
\v 4 मैं तो ऐसे किसी मनुष्य को नहीं जानता जो मुझ पर गलत काम करने का आरोप लगाता है। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं निर्दोष हूँ। मेरा न्याय करनेवाले तो प्रभु ही हैं।
\s5
\v 5 इसलिए समय से पहले किसी का न्याय न करो। प्रभु जब लौटकर आएँगे तब वही यह काम करेंगे। वही हैं जो पूर्ण अंधेरे में भी छिपी हुई सब बातों को प्रकाश में ला सकते हैं, और वही उचित निर्णय कर सकते हैं क्योंकि वह जानते हैं कि प्रत्येक मनुष्य वास्तव में क्या सोचता है। जब वे आएँगे, तब हर एक जन को प्रभु से वह सम्मान मिलेगा, जिसके वे योग्य हैं।
\p
\s5
\v 6 अब, भाइयों और बहनों, हम जिस नियम का पालन करते हैं वह यह है - "शास्त्रों में जो लिखा है उससे परे मत जाओ।" अपुल्लोस और मैं इसके आधार पर ही जीते हैं। तुम्हारे लिए ही तो हम इस प्रकार से सिखाते हैं कि तुम हमसे सीख सको। यह तुमको उन लोगों के बारे में घमण्ड करने से बचाता है जो तुमको ऐसी शिक्षा देते हैं, चाहे वह मैं हूँ या अपुल्लोस हो।
\v 7 तुम्हारे और किसी और विश्वासी में कोई अंतर नहीं है। तुम सब को जो कुछ मिला है वह वरदान होता है। तुम में से कोई भी अन्य किसी से अधिक अच्छा नहीं है। तुम में से किसी को भी घमंड नहीं करना चाहिए कि तुम औरों से अलग हो। हम सब एक जैसे ही हैं।
\p
\s5
\v 8 परन्तु तुम इस प्रकार का व्यवहार करते हो जैसे कि जो कुछ तुम चाहते हो, वह सब तुम्हारे पास है! तुम ऐसे जीते हो, जैसे कि तुम अमीर हो! और तुम ऐसे जी रहे हो जैसे कि तुम राजाओं और रानियों के समान शासन कर रहे थे वह भी हमारी सहायता के बिना। भला होता कि तुम सचमुच राजा और रानी बन गए होते, क्योंकि फिर हम भी तुम्हारे साथ शासन कर सकते थे!
\v 9 परन्तु वास्तव में, ऐसा लगता है कि परमेश्वर ने हम प्रेरितों को, युद्ध के बाद बन्दी बनाए गए लोगों की पंक्ति के अंत में प्रदर्शन होने के लिए रखा है। हम उन मनुष्यों के समान हैं जिन्हें मृत्यु दण्ड की सज़ा सुनाई गई है; हमें पूरे संसार अर्थात् स्वर्गदूतों और मनुष्यों दोनों को दिखाने के लिए प्रदर्शनी में रखा गया है।
\s5
\v 10 दूसरे लोग हम प्रेरितों को मूर्ख समझते हैं क्योंकि हम मसीह के लिए जीवित हैं, और फिर भी तुम स्वयं को बुद्धिमान समझते हो। हम दुर्बल दिखाई देते हैं, परन्तु तुम बलवन्त प्रतीत होते हो! तुम स्वयं की प्रशंसा करते और सम्मान देते हो, परन्तु हम प्रेरितों से लोग घृणा करते हैं।
\v 11 इस समय तक, हम प्रेरित भूखे और प्यासे फिरते हैं। हम इतने गरीब हो गए हैं कि हम अपने कपड़े स्वयं खरीद नहीं सकते। अधिकारियों ने हमें बार-बार निर्दयता से मारा है। अपना घर कहने के लिए हमारे पास कोई स्थान नहीं है।
\s5
\v 12 हम अपने ही हाथों से कठोर परिश्रम करके जीविका कमाते हैं। जब दूसरे हमें श्राप देते हैं, तो हम उन्हें बदले में आशीर्वाद देते हैं। जब लोग हमें पीड़ित करते हैं, तो हम उन्हें सहन करते हैं।
\v 13 जब लोग हमारे बारे में झूठ बोलते हैं, तो हम उनको नम्रता से उत्तर देते हैं। और फिर भी, वे हमें संसार के कूड़े और गंदगी की तरह मानते हैं, जिसे लोग कचरे के ढेर में फेंकना चाहते हैं।
\p
\s5
\v 14 मैं तुम्हें लज्जित करने का प्रयास नहीं कर रहा हूँ, परन्तु मैं तुमको सुधारना चाहता हूँ जैसे प्रेम करने वाले माता पिता अपने बच्चे को सुधारते हैं।
\v 15 यदि तुम्हारे पास दस हजार शिक्षक हैं जो तुमको मसीह के बारे में बताते हैं, तो भी तुम्हारे पास केवल एक आत्मिक पिता होगा। मैं मसीह में तुम्हारा पिता बन गया, जब तुमने उस सुसमाचार पर विश्वास किया जिसे मैंने तुम्हें सुनाया था, तो मैं मसीह में तुम्हारा पिता हुआ।
\v 16 इसलिए मैं निवेदन करता हूँ कि तुम मेरे उदाहरण पर चलो।
\s5
\v 17 इसलिए मैंने तीमुथियुस को तुम्हारे पास भेजा है। मैं उससे प्रेम करता हूँ, और वह मेरा विश्वासयोग्य पुत्र है। वह तुमको स्मरण कराएगा कि मैं कैसा जीवन जीता हूँ, मैं जो मसीह से जुड़ा हूँ। मैं हर स्थान में और हर एक कलीसिया में, जहाँ हम जाते हैं, एक ही शिक्षा देता हूँ।
\p
\v 18 तुम में से कुछ अभिमानी हो गए हैं। तुम ऐसा जीवन जी रहे हो कि जैसे मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास वापस नहीं आऊँगा।
\s5
\v 19 परन्तु यदि प्रभु चाहते हैं कि मैं आ जाऊँ, तो मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास आऊँगा। तब मैं न केवल यह जानूँगा कि ये अभिमानी लोग कैसी बातें करते हैं, परन्तु वरन मुझे यह भी पता चल जाएगा कि उनके पास परमेश्वर की शक्ति है या नहीं।
\v 20 परमेश्वर का राज्य तुम्हारी बातों में नहीं है, यह परमेश्वर की शक्ति में है।
\v 21 तुम मुझ से क्या कराना चाहते हो? क्या मैं तुमको कठोर अनुशासन के साथ दण्ड देने आऊँ, या मैं नम्रता से आऊँ कि तुम मेरी कोमलता के व्यवहार से जान सको कि मैं तुमसे कितना प्रेम करता हूँ?
\s5
\c 5
\p
\v 1 हमें यह भी बताया गया है कि तुम्हारी कलीसिया में एक ऐसा व्यक्ति है जो अनैतिकता यौनाचार का जीवन जी रहा है, ऐसी अनैतिक, जिसकी अविश्वासी भी अनुमति नहीं देते हैं। वह व्यक्ति अपने पिता की पत्नी के साथ यौन सम्बंध रखता है!
\v 2 और तुम, अभिमान करते हो! बल्कि तुमको इस पाप पर विलाप करना चाहिए था, और इस व्यक्ति को तुम्हारी कलीसिया से निकाल देना चाहिए था।
\s5
\v 3 मैं शारीरिक रूप से तुम्हारे साथ नहीं हूँ, परन्तु मैं तुम सब के लिए बहुत चिंतित हूँ, और मैं अपनी आत्मा में तुम्हारे साथ हूँ। और मैंने पहले ही ऐसा करने वाले का न्याय कर दिया है, जैसे कि मैं तुम्हारे साथ ही हूँ।
\v 4 जब तुम प्रभु यीशु के अधिकार के अधीन आराधना करने के लिए एक साथ इकट्ठा होते हो - और मैं आत्मा में तुम्हारे साथ आराधना कर रहा हूँ-
\v 5 तो तुम्हारे लिए आवश्यक है कि उस व्यक्ति को बाहर संसार में शैतान को सौंप दो, ताकि उसका शरीर तो नष्ट हो परन्तु प्रभु के वापस आने के दिन परमेश्वर उसकी आत्मा को बचा सकें।
\p
\s5
\v 6 यह अच्छा नहीं है कि तुम स्वयं की प्रशंसा कर रहे हो। निश्चित रूप से तुम जानते हो कि बुराई खमीर के समान है: थोड़ा सा खमीर पूरे आटे को खमीर कर देता है
\v 7 पाप उस खमीर के जैसा है। तुमको इस पुराने खमीर को साफ करके फेंक देना चाहिए ताकि यह पूरे आटे को ख़राब न कर सके। तुम गूँधे हुए अखमीरी आटे के समान हो। जैसे फसह के पर्व में, खमीर को रोटी से दूर रखा जाता है। मसीह हमारे फसह का मेम्ना है: वह हमारे लिए बलिदान हो गए।
\v 8 इसलिए आओ हम फसह के पर्व का उत्सव मनाते हैं, और शोधन के सब नियमों का पालन करते हैं। हमें पुराना खमीर, जो अवज्ञा और दुष्टता का प्रतीक है, फेंक देना चाहिए और हमें परमेश्वर की आज्ञा का पालन करके और एक दूसरे से सच बोलकर, यह पर्व मनाना चाहिए। यदि हम ऐसा करते हैं, तो हम उस रोटी की तरह होंगे जिसमें खमीर नहीं है।
\p
\s5
\v 9 मैंने तुमको लिखा था, कि तुम को यौन अनैतिक यौनाचार करनेवाले लोगों के साथ कोई संगति नहीं रखनी चाहिए।
\v 10 स्पष्ट रूप से मेरा अर्थ यह नहीं था कि तुम अविश्वासियों के साथ सहभागिता न करो, जो अनैतिक हैं, या जो स्वार्थी इच्छा के कारण बहुत सी चीजें चाहते हैं, या जो दूसरों से छल और धोखा करते हैं, या मूर्तियों की पूजा करते हैं। तुमको ऐसे सब लोगों से बचने के लिए इस संसार को छोड़ना होगा।
\s5
\v 11 परन्तु मेरे कहने का अर्थ है कि तुम किसी ऐसे विश्वासी व्यक्ति से मित्रता न रखो, जो अनैतिक यौनाचार में रह रहा है। हमें अन्य पाप जैसे लालच, या मूर्तिपूजा, या दूसरों के साथ बातचीत करने में गाली देनेवाला, या एक शराबी या ठगने वाला व्यक्ति आदि को भी शामिल करना चाहिए। तुमको इन लोगों के साथ भोजन भी नहीं खाना चाहिए जो मसीह पर विश्वास करने का दावा करते हैं, फिर भी वे ऐसे भयानक काम करते हैं।
\v 12 क्योंकि मसीह की कलीसिया के बाहर वालों का न्याय करने के लिए मैं विवश नहीं हूँ। तुम्हारा कर्तव्य है कि तुम कलीसिया के लोगों का न्याय करो।
\v 13 कलीसिया के बाहर के लोगों का न्याय परमेश्वर स्वयं ही करेंगे। शास्त्र हमें आज्ञा देता है,
\q "तुम्हारे बीच में जो बुरा व्यक्ति है, उसको दूर कर दो!"
\s5
\c 6
\p
\v 1 जब तुम्हारा किसी अन्य विश्वासी के साथ विवाद हो, तो तुम्हे उस मामले को एक नागरिक न्यायाधीश के पास, जो एक अविश्वासी है, ले जाने का साहस नहीं करना चाहिए। इस मामले को अपने साथी विश्वासियों के पास ले जाओ, जिन्हें परमेश्वर ने अपने लिए अलग किया है।
\v 2 तुमको पता होना चाहिए कि हम जो परमेश्वर के हैं वे संसार का न्याय करेंगे। यदि एक दिन तुम संसार का न्याय करोगे, तो तुम्हे छोटे-मोटे मामलों का समाधान करने में स्वयं ही सक्षम होना चाहिए।
\v 3 तुमको पता होना चाहिए कि तुम स्वर्गदूतों का न्याय करोगे! तो तुम इस जीवन के मामलों का न्याय करने में निश्चय ही सक्षम हो।
\s5
\v 4 और यदि तुम ऐसे मामलों का न्याय कर सकते हो जो इस जीवन में महत्वपूर्ण हैं, तो तुमको मसीही लोगों के बीच के विवादों को सुलझाने के लिए अविश्वासियों के पास जाने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
\v 5 मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ कि तुमने स्वयं को कितना अपमानित किया है। कलीसिया में निश्चय ही ऐसा समझदार व्यक्ति तो होगा जो मसीही भाई बहनों के बीच के इन विवादों को सुलझा पाए।
\v 6 परन्तु इसकी अपेक्षा, तुम में कुछ विश्वासियों ने दूसरे विश्वासियों पर अदालत में दोष लगाया है और तुम एक अविश्वासी न्यायाधीश के पास न्याय के लिए जाते हो!
\p
\s5
\v 7 जब तुम्हारे बीच में एक दूसरे के साथ विवाद हो, तो इसका अर्थ यह है कि तुमने वह नहीं किया है जो तुमको करना चाहिए था। किसी भाई या बहन को अदालत में ले जाने की अपेक्षा तुम उन्हें अनुचित लाभ ही उठाने दो।
\v 8 इसकी अपेक्षा, तुमने औरों के साथ गलत किया और उन्हें धोखा दिया परन्तु जिन लोगों को तुमने धोखा दिया है वे तुम्हारे ही अपने भाई-बहन हैं।
\p
\s5
\v 9 तुम निश्चय ही समझते हो कि दुष्ट, परमेश्वर के शासन में स्थान नहीं पाएँगे। अगर कोई इसके विपरीत कहे तो उन पर विश्वास न करें। सच्चाई यह है कि अनैतिक यौनाचार करने वाले, परमेश्वर को छोड़ किसी भी वस्तु या व्यक्ति की उपासना करने वाले, अपने विवाह की शपथ को तोड़नेवाले, भ्रष्टाचारी जैसे यौन संबन्धित पूजा करनेवाले, और समलैंगिक आदि परमेश्वर के शासन में स्थान नहीं पाएँगे,
\v 10 जो लोग चोरी करते हैं, जो लोग लालची हैं, जो पियक्कड़ हैं, जो दूसरों के बारे में झूठ बोलते हैं, और जो दूसरों की चीजें चुराने के लिए छल करते हैं और धोखा देते हैं, ये कभी परमेश्वर के शासन में स्थान नहीं पाएँगे।
\v 11 तुम में से कुछ ये काम करते थे। परन्तु परमेश्वर ने तुमको तुम्हारे पापों से शुद्ध कर दिया है, उन्होंने तुमको अपने लिए अलग किया है, और उन्होंने अपने साथ तुम्हारा मेल कराया है। उन्होंने यह सब प्रभु यीशु मसीह की शक्ति और हमारे परमेश्वर के आत्मा के द्वारा किया है।
\p
\s5
\v 12 कुछ लोग कहते हैं: "मैं जो कुछ भी चाहूँ उसे करने के लिए स्वतंत्र हूँ, क्योंकि मैं मसीह से जुड़ गया हूँ।" हाँ, परन्तु क्योंकि कुछ भी करने की अनुमति है इसका अर्थ यह नहीं है कि ऐसा करना मेरे लिए अच्छा है। "मैं जो कुछ भी चाहूँ उसे करने के लिए स्वतंत्र हूँ," परन्तु मैं किसी को भी अपना स्वामी नहीं होने दूँगा।
\v 13 लोग यह भी कहते हैं, "भोजन को मनुष्य के लिए बनाया गया है कि, वह उसे खाकर पचा ले और मनुष्य को भोजन खाने के लिए बनाया गया है" - परन्तु परमेश्वर शीघ्र ही भोजन को और शरीर के सामान्य कार्य दोनों को नष्ट करेंगे। निःसन्देह, ये लोग वास्तव में यौन सम्बंध के बारे में बात कर रहे हैं। परन्तु परमेश्वर ने हमारे शरीर इसलिए नहीं बनाए कि हम अनैतिक यौनाचार करें। शरीर परमेश्वर की सेवा करने के लिए है, और परमेश्वर शरीर के लिए प्रबंध करेंगे।
\s5
\v 14 परमेश्वर ने प्रभु को मरे हुओं में से जीवित किया, और वह हमें भी अपनी सामर्थ के द्वारा जीवित करेंगे।
\p
\v 15 तुमको पता होना चाहिए कि तुम्हारा शरीर मसीह से जुड़ा हुआ है। क्या तुम्हें इस शरीर को लेकर जो मसीह का हिस्सा है, एक वेश्या के साथ जुड़ जाना चाहिए? कभी नहीं!
\s5
\v 16 तुम समझते हो कि जो कोई वेश्या के साथ सोता है उसके साथ एक हो जाता है। यह शास्त्रों में जो विवाह के बारे में लिखा है उसकी तरह है: "वे दोनों एक तन हो जाएँगे।"
\v 17 और जो लोग परमेश्वर से जुड़े हुए हैं वे उनके साथ एक आत्मा हो जाते हैं।
\p
\s5
\v 18 इसलिए जब तुम यौनाचार का पाप करना चाहते हो, तो शीघ्र-अति-शीघ्र उससे दूर भाग जाओ! लोग कहते हैं, " मनुष्य पाप करता है तो वह शरीर के बाहर किया जाता है" - अपेक्षा यौन सम्बंध के जिससे वह अपने शरीर के प्रति पाप करता है।
\s5
\v 19 तुमको पता होना चाहिए कि तुम्हारा शरीर घर है, तुम्हारे भीतर पवित्र आत्मा का मंदिर है। परमेश्वर ने तुमको अपना आत्मा दिया और अब तुम स्वयं के नहीं हो। इसकी अपेक्षा, तुम परमेश्वर के हो।
\v 20 परमेश्वर ने अपने पुत्र के जीवन की कीमत देकर तुमको खरीदा है। इसलिए तुम अपने मानवीय शरीर में जो भी करते हो, उससे परमेश्वर का आदर करो।
\s5
\c 7
\p
\v 1 तुमने लिखकर मुझसे कुछ प्रश्न पूछे जो विवाहित विश्वासियों की जीवनशैली के विषय में हैं। मेरा उत्तर है कि कई बार ऐसा हो सकता है कि विवाहित जीवन में यौन संबंधों से दूर रहना अच्छा होता है।
\v 2 परन्तु लोग अनैतिक यौनाचार के कारण बहुत बार परीक्षा में पड़ते हैं। इसलिए प्रत्येक पति की अपनी पत्नी होनी चाहिए, और प्रत्येक पत्नी का अपना पति होना चाहिए।
\s5
\v 3 और प्रत्येक विवाहित विश्वासी को अपने पति या पत्नी के साथ सोने का अधिकार होना चाहिए।
\v 4 क्योंकि पति अपने शरीर का अधिकार अपनी पत्नी को देता है और पत्नी अपने शरीर का अधिकार अपने पति को देती है।
\s5
\v 5 इसलिए साथ सोने के अधिकार से एक दूसरे को वंचित न करो, जब तक तुम दोनों प्रार्थना करने के लिए कुछ समय अलग होने का निर्णय नही लेते। परन्तु उस समय के पूरे हो जाने के बाद, फिर से एक साथ आओ। शैतान को अवसर मत दो कि वह तुमको लुभाए क्योंकि तुम स्वयं को वश में नहीं रख सकते हो।
\p
\v 6 मैं तुम को विवाह करने का आदेश नहीं दे रहा हूँ, परन्तु इस विषय में मुझे समझौता करना पड़ेगा क्योंकि मुझे पता है कि तुम में से बहुत से विवाहित हैं या विवाह करना चाहते हैं।
\v 7 मेरा उदाहरण तुम्हारे सामने है: मैं अकेला हूँ, और कभी-कभी मैं चाहता हूँ कि तुम सब भी परमेश्वर की सेवा करने के लिए अकेले रहो। परन्तु परमेश्वर अपने बच्चों को अलग-अलग वरदान देते हैं; वह किसी को विवाह के योग्य बनाते हैं, और किसी को अकेले रहने की क्षमता प्रदान करते हैं।
\p
\s5
\v 8 तुम में से जिन्होंने कभी विवाह नहीं किया और वे जिनके पति की मृत्यु हो गई है, मैं कहता हूँ कि अगर तुम मेरे जैसे अकेले ही रहो तो अच्छा होगा।
\v 9 परन्तु अगर तुम्हें स्वयं को वश में करने में कठिनाई हो, तो तुमको विवाह करना चाहिए। अपेक्षा इसके कि काम वासना के दास हों।
\p
\s5
\v 10 प्रभु तुमको जो विवाहित हैं अपनी आज्ञाएँ देते हैं: "पत्नी को अपने पति से अलग नहीं होना चाहिए।"
\v 11 (परन्तु अगर वह अपने पति से अलग हो जाती है, तो उसे फिर से विवाह नहीं करना चाहिए, या फिर उसे अपने पति से मेल करना चाहिए।) और, "पति को अपनी पत्नी को नहीं त्यागना चाहिए।"
\p
\s5
\v 12 और मुझे यह कहना है यह मेरा परामर्श है, परमेश्वर की आज्ञा नहीं है तुमको जिनके पास ऐसी पत्नी है जो विश्वासी नहीं है। यदि वह तुम्हारे साथ रहने से संतुष्ट है, तो उसे मत त्यागो।
\v 13 और यदि तुम ऐसी स्त्री हो जिसका पति विश्वासी नहीं है, और यदि वह तुम्हारे साथ रहने से संतुष्ट है, तो उसे मत त्यागो।
\v 14 अविश्वासी पति को परमेश्वर में विश्वास करनेवाली पत्नी के कारण विशेष रीति से अलग किया गया है, यह एक अविश्वासी स्त्री के पति के लिए भी है जो परमेश्वर पर भरोसा करता है। यह उनके बच्चों के लिए भी ऐसा ही है: वे परमेश्वर के लिए एक विशेष रीति से अलग हैं, क्योंकि माता-पिता में से एक मसीह पर विश्वास करता है।
\p
\s5
\v 15 परन्तु, यदि वह अविश्वासी साथी तुमको छोड़ना चाहता हो, तो तुमको उस व्यक्ति को जाने देना चाहिए। इस स्थिति में, तुम्हारे विवाह की शपथ जो तुमने खाई है, वह अब तुम्हारे लिए बन्धन नहीं है। परमेश्वर ने हमें शान्ति के लिए बुलाया है।
\v 16 तुम नहीं जानते कि तुम्हारे अविश्वासी जीवन साथी के साथ तुम्हारा जो जीवन है उसके माध्यम से परमेश्वर तुम्हारे अविश्वासी पति या पत्नी में कैसा काम कर सकते हैं। और तुम नहीं जानते कि तुम्हारा जीवन कैसे एक साधन बन सकता है जिससे परमेश्वर तुम्हारे पति या पत्नी को बचा सकते हैं।
\p
\s5
\v 17 हमें वैसा जीवन जीना चाहिए जैसा परमेश्वर ने हमारे लिए निश्चित किया है, और हमें परमेश्वर की बुलाहट का पालन करना चाहिए। यह सिद्धांत सब कलीसियाओं के लिए है।
\v 18 यदि मसीही बनने से पहले तुम्हारा खतना किया गया था, तो तुम उस खतने के निशान को हटाने की कोशिश नहीं करना। जब परमेश्वर ने तुमको बचाया था, तब तुम ने खतना नहीं किया हो, तो तुम में से किसी को भी खतना करवाने की आवश्यकता नहीं है।
\v 19 खतना या खतनारहित यह हमारे लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं। परन्तु महत्वपूर्ण यह है कि हम परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने वाले हों।
\s5
\v 20 इसलिए, उसी रीति से रहो और काम करो जिस रीति से तुम उस समय करते थे, जब परमेश्वर ने तुमको मसीह में विश्वास करने के लिए बुलाया था।
\v 21 यदि तुम दास थे जब परमेश्वर ने तुमको बचाया, तो इसके बारे में चिंता मत करो। परन्तु यदि तुम्हारे पास स्वतंत्रता प्राप्त करने का अवसर है, तो उसका लाभ अवश्य उठाएँ।
\v 22 क्योंकि परमेश्वर जब किसी को दासत्व की दशा में बुलाते हैं तो वह प्रभु में एक स्वतंत्र व्यक्ति है। उसी तरह, जब तुमको बुलाया गया, तब तुम परमेश्वर के दास बन जाते हो, भले ही तुम किसी के भी दास न रहे हों।
\v 23 परमेश्वर ने तुमको अपने पुत्र की कीमत देकर खरीदा है; तुम्हारी स्वतंत्रता बहमूल्य है। इसलिए मनुष्यों के दास मत बनो।
\v 24 मसीह में मेरे भाइयों और बहनों, जब परमेश्वर ने तुमको बुलाया तब तुम जो कुछ भी थे, चाहे तुम दास या स्वतंत्र थे, उसी स्थिति में रहो।
\p
\s5
\v 25 अविवाहित लोगों से सम्बंधित प्रश्न के बारे में, मैं अपने विचार प्रस्तुत करता हूँ, परन्तु इस प्रश्न पर मेरे पास परमेश्वर से कोई विशेष आज्ञा नहीं है। परन्तु तुम मेरे उत्तर पर भरोसा कर सकते हो क्योंकि परमेश्वर ने मुझ पर दया की है और मुझे ऐसा व्यक्ति बनने में समर्थ किया है जिस पर लोग भरोसा कर सकते हैं।
\v 26 इसलिए, उन कठिन समयों की वजह से जो हम सब पर आ रहे हैं, मुझे लगता है कि तुम्हारे लिए वैसे रहना अच्छा होगा जैसे तुम थे, जब परमेश्वर ने तुमको बुलाया था।
\s5
\v 27 तुम में से जो विवाहित हैं, उनसे मैं यह कहता हूँ: अपनी शपथ से मुक्त होने का प्रयास न करो। तुम जो अविवाहित हो, पत्नी को खोजने का प्रयास न करो।
\v 28 परन्तु जो लोग अविवाहित हैं, उनसे मैं कहता हूँ, यदि तुम विवाह करते हो तो तुमने कोई पाप नहीं किया है। मैं अविवाहित स्त्रियों को भी यही परामर्श देता हूँ: यदि तुम विवाह करती हो तो तुमने कोई पाप नहीं किया है। परन्तु, यदि तुम विवाह करते हो तो तुम पर कई सांसारिक परेशानियाँ आएँगी, और मैं तुमको उन परेशानियों से बचाना चाहता हूँ।
\p
\s5
\v 29 हे भाइयों-बहनों यह समय, जिसमें हम जी रहे हैं, उसके बारे में मेरा अर्थ यह है: हमारे पास थोड़ा ही समय बचा हैं। आने वाली समस्याओं के कारण, जो विवाहित हैं, उन्हें अब से ऐसे रहना होगा जैसे कि वे विवाहित नहीं हैं।
\v 30 जो लोग दुःख से भरे हैं वे न रोएँ। जो कोई किसी अद्भुत घटना पर आनंद कर रहे हैं उनके चेहरे पर कोई प्रसन्नता नहीं होनी चाहिए। जिन लोगों ने कुछ खरीदने के लिए पैसा खर्च किया है, उन्हें उसमें आनन्द नहीं करना चाहिए ; उन्हें इस तरह रहना चाहिए कि उनके पास कुछ भी नहीं है।
\v 31 और जो संसार में काम करते हैं, उन्हें संसार का ही नहीं हो जाना चाहिए। क्योंकि सांसारिक प्रणाली का संपूर्ण विनाश हो जाएगा।
\p
\s5
\v 32 मैं चाहता हूँ कि तुम चिन्ता की बातों से मुक्त रहो। जैसा कि तुम देखते हो, अविवाहित व्यक्ति उन मामलों के लिए चिंतित है जो परमेश्वर के लिए महत्वपूर्ण हैं। वह परमेश्वर की सेवा करना चाहता है और वह जो चाहता है वह करता है।
\v 33 परन्तु जो व्यक्ति विवाहित है वह सांसारिक जीवन के साथ-साथ, अपनी पत्नी की सेवा करने और उसे प्रसन्न रखने के विषय में चिंतित है।
\v 34 इसलिए विवाहित पुरुषों को जो आवश्यक काम करने होते हैं उनमें से वे केवल कुछ काम ही कर पाते हैं। यह विधवा और जवान स्त्रियों के लिए भी है जिन्होंने विवाह नहीं किया है। वे विश्वासी स्त्रियों के समान, अपनी पूरी शारीरिक क्षमता से, अपनी देह और आत्मा से परमेश्वर की सेवा करने के लिए अपना समय बिताने की चिन्ता करती हैं। परन्तु विवाहित स्त्रियाँ दैनिक सांसारिक चिन्ताओं से घिरी रहती हैं जैसे अपने पतियों को कैसे प्रसन्न रखें।
\s5
\v 35 मैं तुम्हारी सहायता करने के लिए ऐसा कह रहा हूँ, न कि तुम्हे अपने अधीन करने का प्रयास कर रहा हूँ। यदि तुम मेरा परामर्श मानते हो तो तुम उन चिन्ताओं से मुक्त रह कर प्रभु की सेवा कर सकते हो जिनसे विवाहित जन घिरे रहते हैं।
\p
\s5
\v 36 यदि कोई पुरुष किसी स्त्री को विवाह करने का वचन देता है, परन्तु अगर उसे लगता है कि वह उसके साथ सम्मान से व्यवहार नहीं करता है क्योंकि वह विवाह के लिए बहुत बूढ़ी हो रही है, तो उसे विवाह कर लेना चाहिए। यह एक पाप नहीं है।
\v 37 परन्तु यदि वह निर्णय लेता है कि वह अभी उससे विवाह करने की इच्छा नहीं रखता है, और यदि स्थिति उसके नियंत्रण में है, तो वह विवाह न करने का निर्णय लेता है तो अच्छा करता है।
\v 38 इसलिए जो अपनी मंगेतर से विवाह करता है वह अच्छा करता है और पाप नहीं करता है; और जो विवाह नहीं करने का निर्णय लेता है, वह उत्तम निर्णय लेता है।
\p
\s5
\v 39 स्त्री को अपने पति के साथ तब तक रहना चाहिए जब तक वह जीवित है; यदि उसका पति मर जाता है, तो वह जिस से भी चाहती है, उससे विवाह करने के लिए स्वतंत्र है, परन्तु उसे केवल उसी व्यक्ति से विवाह करना चाहिए जो प्रभु में विश्वास रखता हो।
\v 40 परन्तु मेरा मानना है कि यदि वह फिर से विवाह नहीं करेगी तो वह विधवा खुश रहेगी। और मुझे लगता है कि मुझ में भी परमेश्वर के आत्मा है।
\s5
\c 8
\p
\v 1 अब, जो सवाल तुमने मूर्तियों को चढ़ाए गए भोजन खाने के बारे में पूछा था: हम जानते हैं कि लोग कहते हैं, "हम सब के पास ज्ञान है।" परन्तु यदि तुमको लगता है कि तुम बहुत कुछ जानते हो, तो वह तुम्हारे लिए घमण्ड का कारण हो सकता है। परन्तु तुम दूसरों से प्रेम करते हो, तो तुम उन्हें विश्वास में दृढ़ बनाने में सहायता करते हो।
\v 2 सच्चाई यह है कि अगर कोई यह मानता है कि वह कुछ जानता है, तो उसने अभी तक नम्रता नहीं सिखी है जो उसे जानना चाहिए।
\v 3 जब तुम परमेश्वर से प्रेम करते हो, तो परमेश्वर तुमको जानते हैं।
\p
\s5
\v 4 अब मूर्तियों के लिए चढ़ाए गये बलिदानों को खाने के बारे में: आइए, हम इस सिद्धांत के साथ शुरू करें कि, "इस संसार में मूर्तियां कुछ भी नहीं हैं।" और हमें कोई सन्देह नहीं है कि, "केवल एक ही परमेश्वर है।" इसलिए मूर्तियाँ परमेश्वर नहीं हैं; वे जीवित परमेश्वर नहीं हैं।
\v 5 परन्तु मुझे पता है कि कुछ लोग कहते हैं कि स्वर्ग और पृथ्वी पर कई देवता और प्रभु हैं, और लोग उनकी पूजा करते हैं ।
\v 6 पवित्रशास्त्र यह स्पष्ट रूप से कहता है,,
\q "एक ही परमेश्वर पिता हैं,
\q1 उनके पास से सब वस्तुएँ आती हैं, और हम परमेश्वर के लिए जीते हैं।
\q और केवल एक ही प्रभु, यीशु मसीह हैं;
\q1 उन्होंने सब कुछ बनाया है, और वह हमें जीवन देते हैं।"
\p
\s5
\v 7 परन्तु हर कोई यह नहीं जानता है। कुछ लोग पहले के समय में, मूर्ति की पूजा करते थे, और अब, यदि वे मूर्ति के लिए बलिदान किया हुआ खाना खाते हैं, तो वे सोचते हैं कि वे अब भी उस देवता की पूजा कर रहे हैं। वे दो मान्यताओं के बीच पिस रहे हैं। ऐसे लोग मसीह में अपने विश्वास में कमजोर हैं, इसलिए जब वे उस भोजन को खाते हैं जो मूर्ति को चढ़ाया गया था, तो वे उनके विचार में मूर्ति का सम्मान कर रहे हैं।
\s5
\v 8 हम जानते हैं कि जो भोजन हम खाते हैं वह परमेश्वर के सामने हमें अच्छा या बुरा नहीं बनाता है।
\v 9 परन्तु मसीह में तुम्हारे भाई-बहन महत्वपूर्ण हैं। तुम उस भोजन को खाने के लिए स्वतंत्र हो, परन्तु तुम्हारी खाने की इस स्वतंत्रता से तुम अन्य लोगों के लिए उनके विश्वास से गिरने का कारण न बनो।
\v 10 तुम जानते हो कि मूर्तियाँ कभी जीवित नहीं थीं, न ही वे परमेश्वर थीं, परन्तु अगर कोई भाई-बहन जो सही और गलत के बीच का अंतर नहीं जानते हैं और वे तुमको मूर्ति के मंदिर में भोजन करते देखेंगे, तो वे सोचेंगे कि तुम उन्हें मूर्तिपूजा में लौट आने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हो।
\s5
\v 11 यदि परिणामस्वरूप, तुम्हारा कमजोर भाई या बहन तुमको मूर्तियों को चढ़ाए हुए मांस को खाते देखते हैं क्योंकि उस मांस को खाने के लिए तुम्हारे अपने मन में स्वतंत्रता है परन्तु उनके पास वह स्वतंत्रता नहीं है - तो तुम अपनी स्वतंत्रता के उपयोग से उस साथी विश्वासी को नष्ट करते हो जिसके लिए मसीह मरा था।
\v 12 इसलिए, जब तुम उन्हें कुछ ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करते हो, तो तुम अपने दुर्बल भाइयों और बहनों के विरुद्ध पाप करते हो, जो उनके सही और गलत का बोध उन्हें नहीं करने देता है। यह मसीह के विरुद्ध पाप है।
\v 13 इसलिए, अगर मेरे भाई या बहन परमेश्वर की सेवा करने में असमर्थ हैं क्योंकि उन्होंने मुझे कुछ खाते हुए देखा है, तो मैं फिर कभी मांस नहीं खाऊँगा! मैं कुछ भी ऐसा नहीं करना चाहता जो उनके लिए विश्वास से गिरने का कारण बने।
\s5
\c 9
\p
\v 1 जो लोग मेरे काम करने की आलोचना करते हैं, उन्हें मैं इस तरह उत्तर देता हूँ: मैं एक प्रेरित हूँ। मैंने हमारे प्रभु यीशु को देखा है। मैं स्वतंत्र हूँ। तुम मेरे काम का परिणाम हो - तुम मेरी कारीगरी हो।
\v 2 भले ही, कुछ लोग नहीं मानते कि मैं एक सच्चा प्रेरित हूँ, तो भी मैं तुम्हारे लिए एक सच्चा प्रेरित हूँ। प्रभु की स्वीकृति की मुहर से, तुम मेरे सच्चे प्रेरित होने का प्रमाण हो।
\p
\s5
\v 3 मैं उन लोगों को उत्तर देता हूँ जो कहते हैं कि मैं सच्चा प्रेरित नहीं हूँ, क्योंकि मैं विश्वासियों के द्वारा मेरी सेवा के लिए दिए गए पैसे का इस्तेमाल नहीं करता हूँ।
\v 4 निःसन्देह हमें ऐसे पैसों पर जीवन जीने का अधिकार है।
\v 5 हमें निश्चित रूप से विश्वासी पत्नी के साथ यात्रा करने का अधिकार है, जैसे अन्य प्रेरित, जैसे प्रभु के भाई और कैफा करते हैं।
\v 6 किसी ने भी यह नियम नहीं बनाया है कि केवल बरनबास और मुझे स्वयं की जीविका कमाने के लिए काम करना चाहिए।
\s5
\v 7 कोई भी सैनिक अपने स्वयं के खर्च पर सेना में कार्यरत नहीं होता। कोई भी ऐसा नहीं जो दाख की बारी लगा कर, उसमें से अंगूर या दाखमधु का सेवन नहीं करता हो। कोई भी ऐसा चरवाहा नहीं जो झुंड की रखवाली करके, उन पशुओं से प्राप्त दूध को न पीता हो।
\p
\v 8 यह सामान्य बात है। परन्तु व्यवस्था भी यही कहती है।
\s5
\v 9 मूसा की व्यवस्था कहती है, "जब एक बैल अनाज को दाँवता है, तो उसे खाने से न रोकना।" इस व्यवस्था में परमेश्वर अन्य कई बातों की चर्चा करते हैं।
\v 10 यह व्यवस्था हमारे बारे में है। मूसा कह रहा है कि जो लोग किसी भी व्यवसाय में काम करते हैं, उन्हें उस काम के फल से लाभ होना चाहिए, जैसे बैल उस अनाज को खाए जिसे वह दाँवता है।
\v 11 यदि हमने तुम में सुसमाचार का बीज बोया है, तो हमारी देख रेख के लिए तुमसे आर्थिक सहायता प्राप्त करना क्या अनुचित है?
\s5
\v 12 कुछ सेवकों ने तुमसे ऐसी सहायता प्राप्त की है, और हमने यह सिद्ध कर दिया है कि हम इसके लिए उनसे अधिक योग्य हैं।
\p फिर भी, हमने तुम से कुछ भी स्वीकार नहीं किया है, भले ही हमे अधिकार थे। इसकी अपेक्षा, हम सब प्रकार की कठिनाइयों का सामना करते हैं कि हम लोगों के लिए मसीह के सुसमाचार पर विश्वास करना और अधिक कठिन न बनाएँ।
\v 13 तुम निश्चित रूप से जानते हो कि जो लोग परमेश्वर के भवन में बलिदान चढ़ाने के लिए सहायता करते थे, उन्हें बलिदान में से कुछ अपनी आवश्यकताओं के लिए प्राप्त होता था। वे परमेश्वर को चढ़ाए जाने वाले भोजन में से कुछ प्राप्त करते थे।
\v 14 इसी प्रकार, परमेश्वर ने आज्ञा दी है कि जो लोग सुसमाचार का प्रचार करते हैं, वे अपनी जीविका को सुसमाचार के प्रचार से कमाएँ। जो परमेश्वर को चढ़ाया जाता है, उसमें से उन्हें अपनी आवश्यकताओं के लिए एक भाग मिलता है।
\p
\s5
\v 15 परन्तु मैंने अपने लिए ऐसा कुछ भी नहीं माँगा है। मेरे इस पत्र को लिखने का कारण यह नहीं है। मैं घमण्ड से कहता हूँ कि मैं तुमसे इन वस्तुओं की माँग कभी नहीं करता हूँ, यदि तुम्हे मुझे पैसे देने हों तो मैं घमण्ड करना छोड़ दूँगा। मेरे लिए तो पैसे माँगने से अधिक अच्छा है कि मर जाऊँ।
\v 16 अगर मैं सुसमाचार सुनाता हूँ, तो मैं ऐसा कुछ भी नहीं कर रहा हूँ जिसके लिए मुझे घमंड करना चाहिए। मैं सुसमाचार का प्रचार करने के लिए विवश हूँ। अगर परमेश्वर ने मुझे जो करने के लिए बुलाया वह मैं नहीं कर सकता तो मैं आँसू बहाकर बहुत शोक करूँगा।
\s5
\v 17 मैं सुसमाचार का प्रचार स्वतंत्र रूप से करता हूँ, तो मेरे लिए एक बहुत अच्छा प्रतिफल रखा है। परन्तु यदि मैं केवल इसलिए प्रचार करता हूँ, कि किसी ने मुझे प्रचार करने के लिए विवश किया है, तो भी मुझे प्रचार करना होगा, क्योंकि परमेश्वर इस सेवा के लिए मुझ पर भरोसा रखते हैं।
\v 18 तो परमेश्वर मुझे क्या प्रतिफल देते हैं? यह कि जब मैं सुसमाचार का प्रचार उन लोगों में करता हूँ, जो मुझे इसके लिए कुछ नहीं देते। मैं इसे बिना पैसों के करता हूँ कि परमेश्वर ने मुझे पैसे लेने का अधिकार दिया है परन्तु मैं उसके बिना प्रचार करूँगा।
\p
\s5
\v 19 मैं किसी के आभार के नीचे नहीं हूँ, परन्तु मैं हर एक का सेवक हूँ, ताकि मैं मसीह पर विश्वास करने के लिए अधिक से अधिक लोगों को प्रेरित कर सकूँ।
\v 20 यहूदी लोगों के साथ काम करते समय, मैं एक यहूदी के समान हो जाता हूँ, ताकि मैं उन्हें मसीह के लिए जीत सकूँ। जो व्यवस्था के अधीन जी रहे हैं, (भले ही मैं व्यवस्था के अनुसार अपना जीवन नहीं जीता हूँ ),मैं ने उनके जैसा जीवन जीया, ताकि वे जो व्यवस्था में जी रहे हैं, वे मसीह में विश्वास कर सकें जैसे मैं विश्वास करता हूँ।
\s5
\v 21 जब मैं गैर-यहूदी लोगों के साथ हूँ, जो मूसा के व्यवस्था से अलग हैं, तो मैं उनके जैसा बन जाता हूँ (हालाँकि मैं स्वयं परमेश्वर की व्यवस्था के बाहर नहीं हूँ, और मैं मसीह के व्यवस्था के प्रति आज्ञाकारी हूँ), ताकि मैं मसीह में विश्वास करने के लिए व्यवस्था के बाहर के लोगों को प्रेरित कर सकूँ।
\v 22 जो नियमों और व्यवस्थाओं के बारे में दुर्बल हैं, उनके लिए मैं उनके जैसा जीवन जीता था, ताकि मैं उन्हें मसीह में विश्वास करने के लिए प्रेरित कर सकूँ। मैं कई नियमों और कई जीवनशैलियों में और सब प्रकार के लोगों के साथ रहता था कि परमेश्वर जिस प्रकार काम करना चाहें करें और उनमें से कुछ को बचाएं।
\v 23 मैं यह सब करता हूँ ताकि मैं मसीह के सुसमाचार का प्रचार कर सकूँ, ताकि मैं उन अच्छी बातों का भी अनुभव करूँ जो सुसमाचार हमें देता है।
\p
\s5
\v 24 तुम जानते हो कि जब लोग दौड़ में भाग लेते हैं, तो सब दौड़ते हैं, परन्तु उनमें से केवल एक ही पुरस्कार जीतता है इसलिए तुमको भी पुरस्कार जीतने के लिए दौड़ना चाहिए।
\v 25 हर खिलाड़ी अपने प्रशिक्षण पर ध्यान देता है। वे दौड़ रहे हैं इसलिए उनमें से एक को जीत का मुकुट मिलेगा जो उनके सिर पर रखा जाता है; परन्तु वह जैतून के पत्तों से बना होता है, और वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है और फेंक दिया जाता है। परन्तु हम दौड़ रहे हैं कि हम एक ऐसा मुकुट प्राप्त कर सकें जो सदा का होगा।
\v 26 इसलिए, जो कुछ मैं करता हूँ, उसमें एक उद्देश्य है। मैं अपना प्रयास व्यर्थ नहीं जाने देना चाहता हूँ और न ही उस मुक्केबाज़ के समान हवा में मुक्के मारकर थकना चाहता हूँ जिसके सामने कोई नहीं है।
\v 27 मैं अपने शरीर को अनुशासित करता हूँ और मैं उससे मेरे आदेशों का पालन कराता हूँ। मैं नहीं चाहता कि दूसरों को सुसमाचार का प्रचार करके स्वयं अपना प्रतिफल इस कारण खो दूँ कि परमेश्वर ने मुझे जो आज्ञा दी है उसे पूरा करने से चूक जाऊँ।
\s5
\c 10
\p
\v 1 हे भाइयों और बहनों, मैं चाहता हूँ कि तुम याद रखो कि हमारे यहूदी पूर्वजों ने परमेश्वर का अनुसरण किया था उन्होंने एक बादल की अगुवाई में उन लोगों को दिन के समय मिस्र से बाहर निकाला और लाल समुद्र के सूखे तल पर से पार कराया।
\v 2 और जैसे हमने मसीह में बपतिस्मा लिया है, वैसे ही इस्राएलियों को मूसा का अनुसरण करना था जैसे उसने परमेश्वर का अनुसरण किया जो बादल में था और समुद्र को पार किया था।
\v 3 उन सब ने अलौकिक मन्ना खाया जो कि परमेश्वर ने उन्हें स्वर्ग से दिया,
\v 4 और उन सब ने अलौकिक पानी पिया, जो परमेश्वर ने उन्हें दिया था, जब मूसा ने चट्टान को मारा था। वह चट्टान मसीह थे।
\s5
\v 5 परन्तु परमेश्वर उनमें से अधिकांश पर क्रोधित हुए क्योंकि उन्होंने अन्य देवताओं की उपासना की और परमेश्वर से विद्रोह किया, इसलिए उनके मृत शरीर जंगल में पड़े रहे।
\p
\v 6 अब ये बातें हमारे लिए एक उदाहरण हैं, ताकि हम सीखें कि बुरी वस्तुओं की लालसा न करें, जैसा उन्होंने किया था।
\s5
\v 7 हमारे पूर्वजों में से कुछ ने भी मूर्तियों की पूजा की। जैसा शास्त्रों में लिखा है, "लोग खाने और पीने के लिए बैठ गए और फिर वे कामुक होकर उठे और नाचने लगे।"
\v 8 हमारे यहूदी पूर्वजों में से तेईस हजार लोग एक दिन में अपने अनैतिक यौनाचार के कारण मर गए।
\s5
\v 9 हम मसीह की आज्ञा तोड़कर उनके अधिकार को न परखें, जैसा कि हमारे पूर्वजों में से कुछ ने किया था, और जहरीले साँपों ने उन्हें मार डाला था।
\v 10 परमेश्वर के प्रबंधों के विरुद्ध न कुड़कुड़ाओ, जैसा हमारे कुछ पूर्वजों में से कुछ ने किया था, और एक स्वर्गदूत ने उन्हें नष्ट कर दिया था।
\p
\s5
\v 11 अब ये बातें हमारे पूर्वजों के साथ घटीं; यह इसलिए लिखा गया है कि हम उनसे सीख सकें - हम, जो संसार के अंत समय के बहुत निकट हैं।
\v 12 और इसलिए शिक्षा यह है: यदि तुमको लगता है कि तुम दृढ़ हो और दृढ़ता से खड़े हो, तो सावधान रहो, क्योंकि उसी समय तुम गिर सकते हो।
\v 13 हर एक लालच जिसके विरुद्ध तुम लड़ चुके हो, वह हम सब ने भी सहा है, परन्तु परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की है और वह पाप से लड़ने की तुम्हारी क्षमता से अधिक तुम्हारी परीक्षा होने नहीं देंगे। जब लालच आता है, तो परमेश्वर तुमको मुक्त होने के लिए एक रास्ता भी दिखाएँगे जिससे कि तुम पाप करने की लालसा पर जय पा सको।
\p
\s5
\v 14 इसलिए, मेरे प्रिय जनों, जितना शीघ्र हो सके उतना शीघ्र तुम मूर्तिपूजा से दूर भागो।
\v 15 मैं उन लोगों के समान तुमसे बातें करता हूँ जो अपने जीवन पर सावधानी से विचार करते हैं। मैं जो कह रहा हूँ उस पर विचार करो।
\v 16 जब हम दाखरस के प्याले में से पीते हैं जिसे हम आशीर्वाद देते हैं, तो हम मसीह के लहू में भागीदार होते हैं। जब हम रोटी तोड़ते हैं, हम मसीह के शरीर में भागीदार होते हैं।
\v 17 केवल एक ही रोटी है, और हम, यद्यपि बहुत हैं, हम संगठित होकर एक शरीर को बनाते हैं, और हम सब एक रोटी में से एक साथ खाते हैं।
\p
\s5
\v 18 इस्राएल के लोगों के बारे में सोचो। जो वेदी पर बलि चढ़ा कर खाते हैं और वे वेदी के सहभागी होते हैं।
\v 19 इसलिए मैं कह रहा हूँ कि मूर्ति कोई वास्तविक शक्ति नहीं है और मूर्ति के लिए बलिदान करने वाला भोजन खाना महत्वपूर्ण नहीं है। परन्तु फिर भी, यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं।
\s5
\v 20 मेरा अर्थ यह है कि: जब गैर-यहूदी अपने बलिदान चढ़ाते हैं, तो वे वास्तव में उन्हें दुष्ट-आत्माओं के लिए चढ़ा रहे हैं, परमेश्वर के लिए नहीं। और मैं नहीं चाहता कि तुम दुष्ट-आत्माओं के साथ कुछ भी साझा करो।
\v 21 तुम परमेश्वर के कटोरे से पीकर, फिर बाद में दुष्ट-आत्माओं के कटोरे में से नहीं पी सकते हो। तुम परमेश्वर की मेज़ में हिस्सा लेकर, फिर बाद में दुष्ट-आत्माओं के साथ भोजन नहीं कर सकते हो।
\v 22 ऐसा करने से तुम अपनी स्वामी भक्ति को विभाजित करते हो और इस कारण परमेश्वर को क्रोध दिलाते हो। तुम उनसे अधिक शक्तिशाली नहीं हो!
\p
\s5
\v 23 कुछ लोग कहते हैं, "सब कुछ उचित है," परन्तु सब कुछ हमारे अच्छे या अन्य लोगों के अच्छे के लिए नहीं है। हाँ, "सब कुछ उचित है," परन्तु वह सब कुछ लोगों को परमेश्वर के साथ उनके जीवन में दृढ़ता प्रदान नहीं करता है।
\v 24 केवल अपनी भलाई के लिए काम न करें, अन्य लोगों की भलाई के लिए भी काम करें। हम सब को सभी लोगों के साथ ऐसे काम करना चाहिए, जिससे सब की सहायता हो।
\s5
\v 25 यह हमारा नियम है: तुम बाज़ार से जो भी मांस चाहते हो, उसे खरीद कर खा सकते हो, बिना पूछे कि यह मूर्तियों के लिए बलि किया गया था या नहीं।
\v 26 जैसा कि भजनकार कहता है, "पृथ्वी और जो कुछ उसमें है सब प्रभु का है।"
\v 27 यदि एक गैर-यहूदी अविश्वासी तुम को भोजन करने के लिए आमंत्रित करता है, और तुम जाने की इच्छा रखते हो, तो जो भी वह तुमको परोसता है उसे खाओ। परमेश्वर तुमसे यह पूछने की अपेक्षा नहीं करते कि उन्होंने खाना कहाँ से खरीदा था।
\s5
\v 28 परन्तु अगर कोई तुमको कहता है, "हमने यह भोजन मूर्ति के मन्दिर में से लिया था और इसे देवताओं के लिए बलि किया गया था," तो उस भोजन को उस परोसने वाले व्यक्ति की अच्छाई के कारण न खाओ, जिससे कि सही और गलत के बोध में टकराव उत्पन्न न हो जाए।
\v 29 मेरे कहने का अर्थ है कि तुम्हे सावधान रहना है कि दूसरे व्यक्ति की समझ में सही क्या है और गलत क्या है, उसके प्रति सावधान रहो कि तुम इसके बारे में कैसे सोचते हो। मेरे व्यक्तिगत चुनाव को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा सही या गलत मानने के कारण बदला नहीं जा सकता।
\v 30 अगर मैं धन्यवाद के साथ भोजन का आनंद लेता हूँ, तो मुझे किसी और व्यक्ति को मेरा न्याय करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
\p
\s5
\v 31 यहाँ नियम यह है कि चाहे तुम खाओ या पीओ या तुम कुछ भी करो, सब कुछ इस तरह करो कि तुम परमेश्वर की स्तुति कर सको।
\v 32 इन विषयों में न यहूदियों के लिए, न यूनानियों के लिए, और न ही परमेश्वर की कलीसिया के लिए ठोकर खाने का कारण बनो।
\v 33 मैं इसे अपना कर्तव्य समझता हूँ कि मैं हर संभव प्रयास करके हर प्रकार से किसी को प्रसन्न करूँ। मैं अपनी भलाई की खोज में यह नहीं करता हूँ। इसकी अपेक्षा, मैं दूसरों की सहायता करके उन्हें उठाने का प्रयास करता हूँ, कि परमेश्वर उन्हें बचा लें।
\s5
\c 11
\p
\v 1 मेरे उदाहरण पर चलो, जैसे मैं मसीह के उदाहरण पर चलता हूँ।
\p
\v 2 मैं तुम्हारी प्रशंसा करता हूँ क्योंकि तुम सभी कामों में मुझे याद करते हो, और तुम उन सभी महत्वपूर्ण शिक्षाओं को दृढ़ता से पकडे हुए हो, जो मैंने तुमको सौंपी थी और तुमने उन्हें उसी तरह माना है जैसे मैंने तुमको सिखाया था।
\v 3 मैं चाहता हूँ कि तुम समझो कि मसीह हर एक जन पर अधिकार रखते हैं, और एक पुरुष को एक स्त्री पर अधिकार है, और परमेश्वर को मसीह पर अधिकार है।
\v 4 इसलिए यदि कोई पुरुष जब प्रार्थना करते समय या परमेश्वर का संदेश सुनते समय अपने सिर को ढाँके, तो वह अपना अपमान करता है।
\s5
\v 5 परन्तु अगर कोई स्त्री प्रार्थना करती है या परमेश्वर द्वारा उसे दिए गए संदेश का प्रचार करते समय अपने सिर को खुला रखती है, वह अपना अपमान करती है। क्योंकि यह ठीक वैसे ही है जैसे कि उन्होंने अपने सिर का मुंडन किया हो।
\v 6 यदि एक स्त्री अपने सिर को ढाँकने से इन्कार करती है, तो उसे अपने बालों को किसी पुरुष की तरह काट देना चाहिए। लेकिन तुम जानते हो कि स्त्री के लिए उसके बालों को कटवाना या उसके सिर का मुंडन करना लज्जाजनक है। इसलिए, उसे अपने सिर को ढाँकना चाहिए।
\s5
\v 7 पुरुष अपना सिर नहीं ढाँके क्योंकि परमेश्वर ने उसे अपने जैसा बनाया है, और वह परमेश्वर की छवि को दर्शाता है। परन्तु स्त्रियाँ पुरुष की छवि को दर्शाती हैं।
\v 8 परमेश्वर ने आदम को हव्वा के लिए नहीं बनाया; इसकी अपेक्षा, उन्होंने स्त्री हव्वा को पुरुष आदम के लिए बनाया।
\s5
\v 9 परमेश्वर ने पुरुष को स्त्री की सहायता करने के लिए नहीं बनाया, परन्तु उन्होंने स्त्री को पुरुष की सहायता करने के लिए बनाया।
\v 10 यही कारण है कि स्त्रियों को अपने सिर को पुरुष के अधिकार के संकेत के रूप में और स्वर्गदूतों के कारण ढाँकना चाहिए।
\p
\s5
\v 11 जैसे कि हम प्रभु से जुड़े रहते हैं, वैसे ही स्त्रियों को अपनी सहायता के लिए पुरुषों की आवश्यक्ता होती है, और पुरुषों को अपनी सहायता के लिए स्त्रियों की आवश्यक्ता होती है।
\v 12 ऐसा इसलिए है क्योंकि स्त्री को पुरुष मैं से निकालकर बनाया गया था, और पुरुष स्त्री से पैदा होता है। वे एक दूसरे पर निर्भर हैं। लेकिन सब कुछ परमेश्वर से आता है।
\s5
\v 13 तुम स्वयं ही इसका न्याय करो: क्या किसी स्त्री के लिए उसके सिर पर बिना किसी आवरण के प्रार्थना करना उचित है?
\v 14 प्रकृति ही हमें सिखाती है कि पुरुष के लम्बे बाल होना लज्जाजनक है,
\v 15 लेकिन प्रकृति यह भी सिखाती है कि एक स्त्री के लिए लम्बे बाल उसकी सुंदरता का प्रदर्शन है। उसके बाल परमेश्वर ने उसकी सुंदरता को ढाँकने के लिए दिए हैं।
\v 16 लेकिन अगर कलीसिया में कोई भी इस विषय में विवाद करना चाहता है, तो हमारे पास इसके अतिरिक्त कोई अन्य रीति नहीं है, न ही किसी और कलीसिया में इससे अलग काम किया जाता है।
\p
\s5
\v 17 इन निर्देशों में, मैं प्रभु भोज के विषय में तुम्हारी प्रशंसा नहीं कर सकता। जब तुम खाने के लिए एकत्र होते हो, तो एक दूसरे को प्रोत्साहित करने और एक दूसरे की सहायता करने की अपेक्षा, तुम कलीसिया की सहभागिता को और भी बुरा बनाते हो।
\v 18 चिंता का पहला विषय यह है कि जब तुम एक साथ आते हो, तो तुम विभिन्न समूहों और दलों में आते हो। यह लोगों ने मुझे बताया है, और मुझे विश्वास है कि वे जो कुछ कहते हैं वह सच है।
\v 19 ऐसा प्रतीत होता है कि तुमको अपने बीच अलग-अलग समूहों की आवश्यकता है ताकि तुम उन लोगों को परखकर उनका अनुमोदन करो और स्वीकृती दे सको, जिन्हें सम्मान का स्थान मिले, और अन्यों को नहीं।
\s5
\v 20 तुम एकत्र होकर प्रभु भोज नहीं खाते हो।
\v 21 प्रभु भोज के समय एक व्यक्ति भोजन लाता है और जैसे ही वह आता है उसे खाने लगता है; वह किसी और के लिए प्रतीक्षा नहीं करता है। एक व्यक्ति भूखा रह जाता है जबकि अन्य लोग इतना दाखमधु पीते हैं कि वे मतवाले हो जाते हैं।
\v 22 तुम ऐसा व्यवहार करते हो जैसे तुम्हारे पास खाने और पीने के लिए अपने घर में कुछ नहीं हैं! तुम कलीसिया को अपमानित करते हो, और तुम एकत्र होने के उद्देश्य को तुच्छ जानते हो। तुम गरीबों को अपमानित करते हो। मैं इस बारे में कुछ भी अच्छा नहीं कह सकता। यह एक लज्जा की बात है।
\p
\s5
\v 23 क्योंकि जो कुछ मैंने प्रभु की ओर से प्राप्त किया उसे मैंने तुमको सौंप दिया कि जिस रात को प्रभु यीशु को उनके शत्रुओं के हाथ सौंप दिया गया था, उन्होंने रोटी ली,
\v 24 और धन्यवाद करने के बाद, उन्होंने उसे तोड़ा और कहा, "यह मेरा शरीर है जो तुम्हारे लिए है, मुझे याद करने के लिए ऐसा किया करो।"
\s5
\v 25 इसी तरह, उन्होंने खाने के बाद कटोरा भी लिया, और कहा, "यह कटोरा मेरे लहू में नई वाचा है। जितनी बार तुम पीते हो, मुझे याद किया करो।"
\v 26 क्योंकि हर बार जब तुम यह रोटी खाते और इस कटोरे में से पीते हो, तो उनके फिर से आने तक प्रभु की मृत्यु का प्रचार करते हो।
\p
\s5
\v 27 जो लोग प्रभु भोज के इस उत्सव में आते हैं, उन्हें इस भोज में सहभागी होकर परमेश्वर का सम्मान करने के लिए आना चाहिए। जो लोग रोटी खाते और कटोरे में से पीते हैं, वे ऐसी रीति से करें कि प्रभु को सम्मान मिले। जो कोई रोटी और कटोरे का अपमान करता है वह प्रभु के शरीर और लहू का दोषी ठहरेगा।
\v 28 इसलिए हम सब को भोज में सहभागी होने से पहले अपने आपको जाँचना चाहिए। हम स्वयं को जाँचने के बाद ही इस रोटी में से खाएँ और कटोरे में से पीएँ।
\v 29 जो कोई यह भोज खाता और पीता है और प्रभु के शरीर को नहीं पहचानता है, और इस बात पर ध्यान नहीं देता है, वह इसे खाने और पीने से अपने ऊपर परमेश्वर का न्याय लाता है।
\v 30 तुम ने प्रभु के शरीर के साथ जो व्यवहार किया है, उसके कारण तुम में से कई शारीरिक रूप से रोगी हैं, और कई लोग मर भी गए हैं।
\s5
\v 31 अगर हम प्रभु भोज में सहभागी होने से पहले स्वयं को जाँचते हैं, तो परमेश्वर हमारा न्याय नहीं करेंगे।
\v 32 परन्तु जब प्रभु हमारा न्याय करते हैं और हमें दण्ड देते हैं, तो वे हमें सुधारने के लिए अनुशासित करते हैं, जिससे कि वे हमें संसार के साथ, जिसने परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया है दोषी न ठहराएँ।
\p
\s5
\v 33 मेरे साथी विश्वासियों, जब तुम प्रभु भोज के लिए एकत्र होते हो, तो एक दूसरे की प्रतीक्षा करो।
\v 34 यदि तुम में से किसी को भूख लगी है, तो घर पर खाए - ताकि जब तुम कलीसिया के रूप में एक साथ आओ, तो यह तुम्हारे लिए परमेश्वर द्वारा अनुशासित करने का समय नहीं हो।
\p और जब मैं तुम्हारे पास आऊँगा, तो मैं तुमको उन अन्य मामलों के बारे में निर्देश दूँगा, जो तुमने मुझे लिखे हैं।
\s5
\c 12
\p
\v 1 भाइयों और बहनों, अब मैं तुमको आत्मिक वरदानों के बारे में सिखाता हूँ। मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो कि उनका उपयोग कैसे करें।
\v 2 तुमको याद होगा कि जब तुम मूर्तियों की पूजा करते थे - मूर्तियाँ जो एक शब्द भी नहीं बोल सकतीं - उन्होंने तुमको भटकने के लिए प्रेरित किया।
\v 3 परमेश्वर के आत्मा यह घोषणा करने में तुम्हारी सहायता करते हैं, "यीशु मसीह प्रभु हैं।" कोई भी जो पवित्र आत्मा से भरा हुआ है कभी नहीं कह सकता, "यीशु श्रापित हैं!"
\p
\s5
\v 4 आत्मा मसीह के लोगों को कई अलग-अलग वरदान देते हैं, लेकिन वे एक ही आत्मा हैं।
\v 5 परमेश्वर की सेवा करने के लिए भी कई अलग-अलग विधियाँ हैं, परन्तु प्रभु एक ही हैं।
\v 6 परमेश्वर के राज्य में लोगों के लिए काम करने की कई विधियाँ हैं, परन्तु जो उन्हे शक्ति देते हैं कि वे उनके लिए काम करें।
\p
\s5
\v 7 परमेश्वर प्रत्येक विश्वासी के लिए संभव करते हैं कि वह दिखाए कि उसके पास आत्मा की शक्ति का अंश है परमेश्वर ऐसा इसलिए करते हैं, कि सब विश्वासियों को एक साथ उन पर भरोसा करने और उन्हें और अधिक आदर देने में सहायता मिले।
\v 8 क्योंकि पवित्र आत्मा एक व्यक्ति को परमेश्वर से महान ज्ञान के साथ संदेश सुनने में सक्षम बनाते है, और वह दूसरे व्यक्ति को परमेश्वर के ज्ञान को बाँटने के लिए सक्षम बनाते हैं।
\s5
\v 9 किसी विश्वासी को आत्मा अद्भुत बातों के लिए परमेश्वर पर भरोसा करने का वरदान देते हैं। और किसी को वे लोगों को स्वस्थ करने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करने की क्षमता देते हैं।
\v 10 आत्मा कुछ विश्वासियों को शक्तिशाली कामों को करने में सक्षम बनाते हैं कि लोग परमेश्वर की स्तुति करें। कुछ विश्वासियों को, वे परमेश्वर के संदेश सुनाने की क्षमता प्रदान करते हैं। आत्मा विश्वासियों को उन आत्माओं को परखने में सक्षम बनाते हैं जो आत्माएँ परमेश्वर का सम्मान करती हैं और जो नहीं करती हैं। और लोगों को, आत्मा विभिन्न प्रकार की भाषाओं में परमेश्वर के संदेश को बोलने का वरदान देते हैं और वह कुछ को उन संदेशों को हमारी भाषा में व्याख्या करने की क्षमता प्रदान करते हैं।
\v 11 बार-बार हम अलग-अलग वरदानों को देखते हैं, परन्तु एक ही आत्मा है जो इन वरदानों को, उन व्यक्तियों को देते हैं जिन्हें वह चुनते हैं।
\p
\s5
\v 12 जिस प्रकार कि मानव शरीर कई अंगों से बनकर एक होता है, और शरीर का हर एक अंग उसे पूर्णता प्रदान करता या पूरा बनाता है, उसी प्रकार मसीह के साथ भी है।
\v 13 क्योंकि मसीह की आत्मा के द्वारा जब हम ने बपतिस्मा लिया था, तब हम सब मसीह के शरीर में एक साथ जुड़ गए थे। इससे कोई अन्तर नहीं पड़ा कि हमारी पृष्ठभूमि क्या थी, यहूदी या यूनानी, दास या स्वतंत्र, लेकिन हम में से प्रत्येक को पवित्र आत्मा का वरदान मिला।
\p
\s5
\v 14 याद रखो, शरीर अपने आप में एक अंग नहीं है, परन्तु विभिन्न अंग साथ मिलकर पुरे शरीर को बनाते हैं।
\v 15 यदि तुम्हारा पैर तुम से बात करे और कहे, "मैं हाथ नहीं हूँ, इसलिए मैं तुम्हारे शरीर का हिस्सा नहीं हूँ," क्या इस कारण वह तुम्हारे शरीर का एक अंग नहीं रहेगा, क्योंकि वह तुम्हारे हाथ की तरह नहीं था।
\v 16 और अगर तुम्हारा कान तुम से कहता है, "मैं आँख नहीं हूँ, इसलिए शरीर में मेरा कोई स्थान नहीं है," क्या इस कारण वह तुम्हारे शरीर का एक अंग नहीं रहेगा क्योंकि वह एक आँख नहीं थी।
\v 17 यदि तुम्हारा संपूर्ण शरीर एक आँख हो, तो सुनने के लिए कुछ भी नहीं होगा। यदि तुम्हारा पूरा शरीर केवल कान हो, तो सूँघने के लिए कुछ भी नहीं होगा।
\s5
\v 18 लेकिन परमेश्वर ने शरीर के प्रत्येक अंग को एक साथ जोड़ा है, और यह उसी तरह काम करता है जैसा उन्होंने इसे बनाया है। हर अंग की आवश्यकता है।
\v 19 यदि हम में से हर एक बिल्कुल दूसरे भागों के समान है, तो हमारे पास शरीर नहीं होगा।
\v 20 हम सब अनेक सदस्य हैं, परन्तु शरीर एक ही है।
\s5
\v 21 तुम्हारे शरीर में, आँख हाथ से नहीं कह सकती, "मुझे तेरी आवश्यक्ता नहीं है" उसे निश्चय ही हाथ की आवश्यक्ता है। सिर पैर से नहीं कह सकता, "मुझे तेरी आवश्यक्ता नहीं है।"
\v 22 यहाँ तक कि जो अंग दुर्बल हैं, वे भी शरीर की पूर्णता के लिए आवश्यक हैं।
\v 23 जिन अंगों को दूसरों को दिखाने में हम शर्मिंदा होते हैं, हम उन्हें ढाँकने के लिए अधिक ध्यान देते हैं। इस तरह हम उनके लिए अधिक सम्मान दिखाते हैं।
\v 24 परन्तु परमेश्वर ने कम महत्वपूर्ण अंगों को विशिष्ट अंगों के साथ जोड़ा है और परमेश्वर उन कम प्रदर्शनीय अंगों को सम्मान देते हैं, क्योंकि वे सब शरीर के अंश हैं।
\s5
\v 25 परमेश्वर इस तरह पूरे शरीर को सम्मान देते हैं ताकि कलीसिया में कोई विभाजन न हो और मसीह के शरीर के सदस्य, शरीर के हर सदस्य की देखभाल उसी स्नेह के साथ करें, फिर चाहे उनके उद्देश्य या भूमिका, वरदान या क्षमता कुछ भी हो।
\v 26 क्योंकि हम एक शरीर हैं, जब एक सदस्य को दुःख उठाना पड़ता है, तो हम सभी पीड़ित होते हैं। जब एक सदस्य को मसीह के लिए कुछ करने के कारण कुछ सम्मान दिया जाता है, तो पूरा शरीर एक साथ प्रसन्न होता है।
\p
\v 27 अब तुम मसीह का शरीर हो, और व्यक्तिगत रूप से, तुम सब इसके सदस्य हो।
\s5
\v 28 परमेश्वर ने भी लोगों को कलीसिया के लिए वरदान के रूप में दिया है। उन्होंने कलीसिया को पहले प्रेरितों, दूसरे भविष्यद्वक्ताओं, तीसरे शिक्षकों को दिया, फिर जो शक्तिशाली कार्य करते हैं, वे लोग जो स्वस्थ करते हैं, जो सहायता प्रदान करते हैं, जो लोग प्रशासन के काम करते हैं, और जिनके पास विभिन्न प्रकार की भाषाएँ है जो आत्मा ने उन्हें दी हैं।
\v 29 हम सभी प्रेरित नहीं हैं, सभी भविष्यद्वक्ता नहीं हैं, सभी शिक्षक नहीं हैं, सभी शक्तिशाली काम नहीं करते।
\s5
\v 30 हम सब बीमारों को स्वस्थ नहीं कर सकते, हम सब विशेष भाषाओं में नहीं बोल सकते, हम सब अन्य भाषाओं के संदेशों की व्याख्या नहीं कर सकते हैं।
\v 31 लेकिन मैं चाहता हूँ कि तुम बड़े से बड़े वरदानों की तलाश में रहो। और अब, मैं तुमको अधिक श्रेष्ठ मार्ग दिखाता हूँ।
\s5
\c 13
\p
\v 1 यदि मैं बोल कर मनुष्यों को चकित कर दूँ और उन से वह काम करवा लूँ जो मैं चाहता हूँ या यदि मैं स्वर्गदूतों की भाषा बोल सकता हूँ - परन्तु यदि मैं लोगों से प्रेम नहीं करता, तो मेरी सारी बातें ठनठनाती हुई घंटी या एक झनझनाती हुई झांझ से भी घटिया होंगी।
\v 2 यदि मैं परमेश्वर के संदेश की घोषणा कर सकूँ, अगर मैं परमेश्वर के बारे में गुप्त सच्चाइयों को समझा सकूँ, और अगर मैं परमेश्वर पर इतना भरोसा करूँ कि मैं एक पर्वत को हटा सकूँ-परन्तु यदि मैं लोगों से प्रेम नहीं करता, तो मेरा मूल्य कुछ भी नहीं है।
\v 3 अगर मैं गरीबों को खिलाने के लिए सम्पूर्ण सम्पत्ति दे देता हूँ, या अगर मैं किसी और को बचाने के लिए स्वयं जलने के लिए तैयार हो जाता हूँ - लेकिन अगर मैं लोगों से प्रेम नहीं करता, तो मुझे कुछ लाभ नहीं मिलेगा।
\p
\s5
\v 4 यदि तुम वास्तव में दूसरों से प्रेम करते हो, तो तुम सहर्ष कठिनाइयों को सहन करोगे। यदि तुम वास्तव में प्रेम करते हो, तो तुम दूसरों पर दया करोगे। यदि तुम वास्तव में प्रेम करते हो, तो तुम लोगों से उन वस्तुओं के कारण बुरा नहीं मानोगे जो तुम्हारे पास नहीं हैं। यदि तुम वास्तव में प्रेम करते हो, तो तुम स्वयं के बारे में घमंड नहीं करोगे या अभिमान नहीं करोगे।
\v 5 यदि तुम वास्तव में दूसरों से प्रेम करते हो, तो तुम उनसे बुरा व्यवहार नहीं करोगे। तुम स्वयं को प्रसन्न करने के लिए नहीं जीयोगे। तुम्हे कोई भी शीघ्र क्रोधित नहीं कर पाएगा। लोगों ने जो गलत काम किए हैं, तुम उसकी गिनती नहीं रखोगे।
\v 6 यदि तुम दूसरों से प्रेम करते हो, तो जब कोई बुरा काम करता है तब तुम आनन्दित नहीं होगे; इसके बजाए, जब लोग परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य हैं, तो तुम आनन्दित होगे।
\v 7 यदि तुम वास्तव में दूसरों से प्रेम करते हो, तो जो कुछ भी होता है तुम उसे सहन करोगे। तुम भरोसा करोगे कि परमेश्वर लोगों के लिए सर्वोत्तम काम करेंगे। तुम परमेश्वर पर भरोसा रखोगे, चाहे कुछ भी हो जाए। तुम परमेश्वर की आज्ञा का पालन करोगे चाहे तुम कैसी भी कठिनाइयों का सामना कर रहे हों।
\p
\s5
\v 8 यदि तुम वास्तव में प्रेम करते हो, तो तुम प्रेम करने से नही रुकोगे । जो लोग परमेश्वर का संदेश बोलने में सक्षम हैं, अन्यभाषाओं में बोलते हैं, या छिपी हुई सच्चाइयों को जानते हैं, वे इन सब बातों को केवल कुछ समय के लिए ही करते हैं। एक दिन वे यह काम करना बंद कर देंगे।
\v 9 अब, इस जीवन में, हम उन सब बातों का भाग एक अंश ही जानते हैं जिन्हें जानने की हमें आवश्यक्ता है। जो लोग परमेश्वर के संदेश का प्रचार करते हैं, वे केवल उसकी थोड़ी सी ही अभिव्यक्ति करते हैं।
\v 10 लेकिन जब चीजें पूरी हो जाएँगी, तो जो कुछ भी थोडा या अपूर्ण है, वह समाप्त हो जाएगा।
\s5
\v 11 जब मैं एक छोटा बच्चा था, तो मैं बच्चे के समान बातें करता था, मेरी सोच एक बच्चे की सोच के समान थी, और मैंने बच्चे के समान ही निर्णय लिया। परन्तु जब मैं वयस्क बन गया, तो मैंने बच्चे के समान काम करना छोड़ दिया, और मैंने एक वयस्क के समान काम करना आरंभ कर दिया।
\v 12 जो कुछ हम मसीह के बारे में अब समझते हैं, वह सिद्धता में नहीं है, वह पूर्ण नहीं है। लेकिन जब मसीह आएँगे, तो हम उन्हें आमने-सामने देखेंगे। इस समय हम सत्य को थोड़ा सा ही जानते हैं। परन्तु तब हम उन्हे पूर्ण रूप से जानेंगे, जैसे वह हमें पूर्ण रूप से जानते हैं।
\v 13 यह महत्वपूर्ण है कि हम अब मसीह पर विश्वास करते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हमें निश्चय हैं कि उन्होंने जो प्रतिज्ञा की है उसे वह हमारे लिए पूरा करेंगे। और यह महत्वपूर्ण है कि हम उनसे और एक दूसरे से प्रेम करते रहें। परन्तु सबसे महत्वपूर्ण विश्वास, आशा, और प्रेम है, ये तीन गुण हमारे लिए अति आवश्यक हैं। इनमें सबसे बड़ा प्रेम है।
\s5
\c 14
\p
\v 1 दूसरों को प्रेम करने और अपने साथी विश्वासियों को दृढ़ करने वाले वरदानों के लिए कड़ी मेहनत करो। विशेष रूप से उनके संदेश का, जो वे तुमको कहने के लिए देते हैं प्रचार करने में सक्षम होने का प्रयास करते रहो।
\v 2 जब कोई व्यक्ति आत्मा द्वारा दी गई भाषा में बोलता है, तो वह लोगों से बात नहीं कर रहा है, क्योंकि कोई उसे समझ नहीं सकता, लेकिन वह परमेश्वर से बात कर रहा है। वह आत्मा की अगुवाई से उनसे बातें कर रहा है।
\v 3 दूसरी ओर, वह भविष्यद्वक्ता जो परमेश्वर के संदेश का प्रचार करता है, वह सीधे लोगों से बातें करता है। वह ऐसा इसलिए करता है कि उन्हें दृढ़ बनाकर उनकी सहायता करे, उन्हें स्थिर बनाने में सहायता करे, और उन्हें सांत्वना दे ताकि वे कठिनाइयों में भी आनन्दित रहें।
\v 4 एक व्यक्ति जो आत्मा द्वारा दी गई भाषा में बोलता है, स्वयं का निर्माण करता है और स्वयं की सहायता करता है, परन्तु जो व्यक्ति परमेश्वर के संदेश का प्रचार करता है वह सब का निर्माण करता है और कलीसिया में सब को अपने विश्वास में दृढ़ होने में सहायता करता है।
\p
\s5
\v 5 अब मेरी इच्छा है कि तुम सब ऐसी भाषाओं में बात करो, लेकिन यह पूरी कलीसिया के लिए अच्छा होगा यदि तुम में से अधिक से अधिक लोगों को परमेश्वर का संदेश बोलने का वरदान मिले। जो परमेश्वर का संदेश बोलता है, वह अपने साथी विश्वासियों को दृढ़ बनने में सहायता करता है। इस कारण से, वह जो काम कर रहा है वह अन्य भाषाओं में संदेश देने वाले लोगों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है - जब तक कि कोई उन संदेशों की व्याख्या करने में समर्थ न हो।
\p
\v 6 यदि मैं तुम्हारे पास आऊँ और केवल आत्मा से दी गई भाषाओं में ही बात करता रहूँ, तो यह तुम्हारी सहायता कैसे कर सकता है? यह तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता जब तक कि मैं तुम से बात न करूँ और तुमको उन बातों को जानने में सहायता न करूँ जो तुम्हारे लिए छिपी हुई हैं, या जब तक कि मैं उन तथ्यों को समझने में तुम्हारी सहायता न करूँ जिन्हें तुम नहीं जानते, या जब तक कि मैं तुमको कुछ ऐसे संदेश न सुनाऊँ जो तुमने पहले नहीं सुने या जब तक कि मैं तुमको कुछ ऐसे नियम न सिखाऊँ जिन्हें तुमने पहले कभी नहीं सीखा था।
\s5
\v 7 यदि कोई बांसुरी या वीणा बजा रहा है (वे जीवित चीजें नहीं हैं), और अगर बांसुरी या वीणा के स्वर एक-दूसरे से अलग सुनाई न दें, तो कोई भी यह नहीं बता पाएगा कि मैं कौन सी धुन बजा रहा हूँ।
\v 8 और अगर कोई सिपाही विधिवत् तुरही न फूँके तो सेना समझ नहीं पाएगी कि युद्ध के लिए तैयार होना है या नहीं।
\v 9 ऐसा ही होता है जब तुम ऐसे शब्द बोलते हो जो कोई नहीं समझ सकता है: कोई भी नहीं जान पाएगा कि तुमने क्या कहा है।
\s5
\v 10 संसार में निश्चित रूप से कई भाषाएँ हैं, और वे भाषाएँ उन लोगों के लिए ही अर्थ पूर्ण हैं जो उन्हें समझते हैं।
\v 11 लेकिन यदि मैं किसी की भाषा नहीं समझता, तो मैं उसके लिए एक विदेशी हूँ, और वह मेरे लिए भी एक विदेशी होगा।
\s5
\v 12 इसलिए कि तुम बहुत अधिक चाहते हो कि आत्मा का काम तुम में हो, तो कलीसिया में विश्वासियों को मसीह पर भरोसा करने और उनकी आज्ञा का पालन करने में सहायता करने का प्रयास करो।
\p
\v 13 इस कारण प्रार्थना करो कि परमेश्वर तुमको उस भाषा की व्याख्या करने के लिए सक्षम करे जो कि परमेश्वर ने तुमको दी है।
\v 14 यदि कोई अन्य भाषा में प्रार्थना करता है, तो उसका आत्मा निश्चय ही प्रार्थना करता है, परन्तु उसका मन प्रार्थना नहीं करता है।
\s5
\v 15 इसलिए हमें अपनी आत्मा में तो प्रार्थना करनी चाहिए, परन्तु हमें मन से भी प्रार्थना करनी चाहिए। और यही बात परमेश्वर की स्तुति करने पर भी लागू है।
\v 16 यदि तुम केवल अपनी आत्मा में परमेश्वर की स्तुति करने पर बल देते हो, तो जो कुछ भी तुम कह रहे हो एक बाहरी व्यक्ति उसे कभी भी समझ नहीं पाएगा, और कभी भी वह संदेश के साथ सहमत नहीं हो सकता।
\s5
\v 17 यदि तुम अपनी आत्मा में धन्यवाद देते हो, तो यह तुम्हारे लिए अच्छा और उचित है, लेकिन तुम अन्य विश्वासियों की सहायता नहीं कर रहे हो।
\v 18 मैं परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ कि मैं तुम लोगों से कहीं अधिक अन्यभाषा में बोलता हूँ।
\v 19 परन्तु कलीसिया में, अन्यभाषा में दस हजार शब्दों को बोलने की तुलना में, मैं अपने मन से पाँच शब्द बोलना अच्छा समझता हूँ, जिनसे मैं दूसरों को सिखा सकता हूँ।
\p
\s5
\v 20 भाइयों और बहनों, तुमको वयस्कों की तरह सोचना चाहिए। परन्तु जब तुम बुरी चीजों के बारे में सोचते हो, तो तुमको छोटे बच्चों की तरह सोचना चाहिए। तुम्हारी सोच में समझदारी होनी चाहिए।
\v 21 व्यवस्था में लिखा है कि परमेश्वर कहते हैं,
\q "मैं अपने इस्राएली लोगों से विदेशियों द्वारा बात करूँगा
\q ऐसे लोग जो अन्य भाषाओं में बोलते हैं;
\q लेकिन मेरे लोग तब भी मुझे नहीं समझेंगे।"
\p
\s5
\v 22 इसलिए यदि कोई विश्वासी ऐसी भाषा में बोलता है जो परमेश्वर ने उसे दी है, तो वह सुनने वाले अविश्वासियों को प्रभावित करता है। परन्तु यदि कोई विश्वासी परमेश्वर का संदेश सुनाता है, तो वह अन्य विश्वासियों को प्रभावित करता है।
\v 23 तुम समझ सकते हो कि अगर सब विश्वासियों एक साथ मिलकर अलग-अलग भाषाओं में बोलने लगें तो कैसा हुल्लड़ हो जाएगा। कोई अविश्वासी जो यह सुनेगा वह तुम सब को पागल कहेगा।
\s5
\v 24 परन्तु यदि तुम सब परमेश्वर की ओर से सच्चे संदेश को बारी बारी से बोलते हो, तो किसी भी अविश्वासी व्यक्ति को बोध हो जाएगा कि वह परमेश्वर के विरुद्ध पाप करने का दोषी है।
\v 25 वह उस अविश्वासी को समझ में आ जाएगा कि उसके मन की गहराई में क्या था। वह आश्चर्य और भय से अपने मुँह के बल भूमि पर गिर जाएगा, और वह परमेश्वर की स्तुति करेगा और कहेगा कि परमेश्वर वास्तव में तुम्हारे बीच में है।
\p
\s5
\v 26 भाइयों और बहनों, जब तुम एक साथ परमेश्वर की आराधना करते हो तो आवश्यक है कि इस प्रकार से करों। तुम में से प्रत्येक जन गाने के लिए भजन, के साथ आए या सिखाने के लिए शास्त्र में से कुछ, लाए या परमेश्वर ने तुमसे जो बात की है, या जो भाषा परमेश्वर ने तुम्हे दी है उसमें एक संदेश, या ऐसे संदेश की व्याख्या आदि, के साथ आराधना के लिए आओ। तुम जो कुछ भी एक साथ करते हो, उससे एक दूसरे को प्रोत्साहन मिलना चाहिए, क्योंकि तुम मसीह की कलीसिया हो।
\v 27 यदि कोई भी परमेश्वर से प्राप्त किसी भाषा में संदेश सुनाना चाहता है, तो दो या तीन से अधिक व्यक्ति न बोलें और। उन्हें एक एक करके बोलना चाहिए, और आवश्यक है कि कोई उस संदेश की व्याख्या करे।
\v 28 परन्तु, यदि संदेशों की व्याख्या करने के लिए कोई नहीं है, तो जो आत्मा द्वारा अन्य भाषाओं में बोलते हैं, उन्हें चुप रहना चाहिए और केवल परमेश्वर से बातें करनी चाहिए।
\p
\s5
\v 29 अगर कोई ऐसा व्यक्ति है जो परमेश्वर से प्राप्त संदेश बोलना चाहता हो, तो केवल दो या तीन व्यक्ति ही बोलें; और शेष सब उन संदेशों को परखें कि वे शास्त्रों के अनुसार सही हैं या नहीं।
\v 30 परन्तु यदि परमेश्वर सभा में बैठे किसी व्यक्ति को संदेश समझने की अनुमति देते हैं, तो जो संदेश बोल रहा है वह चुप हो जाए। इस प्रकार सब विश्वासी संदेश का अर्थ सुन सकते हैं।
\s5
\v 31 परमेश्वर के संदेश का प्रचार करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा करना चाहिए। परन्तु उन्हें ऐसा बारी बारी से, अनुशासन के साथ करना चाहिए, जिससे कि सब विश्वासी सीख सकें और परमेश्वर से प्रेम करने के लिए साहस प्राप्त कर सकें।
\v 32 जो लोग वास्तव में परमेश्वर का संदेश सुनाते हैं, वे आत्मा को नियंत्रित करते हैं जिसमें वे ऐसा करते हैं।
\v 33 क्योंकि, परमेश्वर भ्रम पैदा नहीं करते हैं; इसके बजाए , वह शान्ति बनाते हैं।
\p इस अगले प्रश्न का उत्तर परमेश्वर के लोगों की सभी कलीसियाओं में एक ही है।
\s5
\v 34 स्त्रियों को कलीसिया में चुप रहना चाहिए क्योंकि उन्हें बोलने की अनुमति नहीं है। वे उस व्यक्ति को न रोकें, जो परमेश्वर का संदेश बोल रहा है, लेकिन उन्हें हमेशा अपने पतियों का आज्ञापालन करना चाहिए, जैसा कि नियम भी कहता है।
\v 35 जब स्त्रियों को सीखने की इच्छा हो, तो आराधना में बोलने की अपेक्षा, उन्हें घर पर अपने पतियों से पूछना चाहिए। आराधना सभा के बीच में एक स्त्री का दखल देना अपने पति का अनादर करना है।
\v 36 क्या परमेश्वर का वचन तुम लोगों को ही दिया गया था? और क्या केवल तुम ही लोगों के पास वचन आया हैं?
\s5
\v 37 तुम में से जो सोचते हैं कि वे भविष्यद्वक्ता हैं या आत्मिक हैं, उन्हें यह मानना चाहिए कि मैं जो बातें लिखता हूँ, वह परमेश्वर की आज्ञा है और जो मैंने लिखा है उसका अनुसरण उन्हें करना चाहिए।
\v 38 लेकिन जो लोग मेरे द्वारा लिखी गई बातों को स्वीकार नहीं करते हैं, तुम उन्हें अपनी सभा में स्वीकार न करो।
\p
\s5
\v 39 इसलिए, हे भाइयों और बहनों, कलीसिया में परमेश्वर के संदेश को उत्सुकता से बोलो; और किसी को भी उन भाषाओं में बोलने से मना न करो जो परमेश्वर देते हैं।
\v 40 जो भी तुम कलीसिया की आराधना में करते हो, उसे मनोहर और व्यवस्थित रीति से करो।
\s5
\c 15
\p
\v 1 और अब भाइयों और बहनों, मैं तुमको सुसमाचार के बारे में स्मरण दिलाना चाहता हूँ, जिसकी घोषणा मैंने तुम्हारे लिए की थी। तुमने इस संदेश पर विश्वास किया और अब तुम इसके अनुसार जीवन जीते हो।
\v 2 यह सुसमाचार तुमको बचाता है यदि तुम उसे दृढ़ता से थामे रहते हो, अन्यथा तुमने वास्तव में इस पर विश्वास नहीं किया।
\p
\s5
\v 3 क्योंकि दूसरों ने जो बात मुझे पहले बताई, वही बात मैंने तुम तक पहुँचा दी, कि मसीह हमारे पापों के लिए मर गये, जैसा पवित्रशास्त्र ने भविष्यवाणी की थी कि वे ऐसा करेंगे;
\v 4 और यह भी कि उन्होंने उन्हें कब्र में रखा, और परमेश्वर ने तीसरे दिन, उन्हें जीवित कर दिया, वे सब बातें शास्त्रों के अनुसार हुईं।
\s5
\v 5 फिर कैफा (जिसे पतरस के नाम से जाना जाता है) को मसीह दिखाई दिये, और फिर वे अन्य सब प्रेरितों के सामने प्रकट हुए।
\v 6 वे बाद में प्रभु के पाँच सौ से अधिक भाई और बहनों को दिखाई दिए, जब वे सब एक साथ थे। उनमें से कुछ की मृत्यु हो गई है, परन्तु अधिकांश अब भी जीवित हैं और इसे सिद्ध कर सकते हैं।
\v 7 फिर वे याकूब को दिखाई दिये, और फिर सब प्रेरितों के पास गये।
\s5
\v 8 अन्त में, वे मुझे भी दिखाई दिये, हालाँकि मैं अन्य प्रेरितों से बहुत अलग हूँ।
\v 9 क्योंकि मैं प्रेरितों में सबसे छोटा हूँ। मैंने मसीह की कलीसिया को बहुत सताया है, इसलिए मैं एक प्रेरित होने के योग्य नहीं हूँ।
\s5
\v 10 परन्तु परमेश्वर ने मुझ पर बहुत दया की है, इसलिए मैं एक प्रेरित हूँ, और उन्होंने मेरे द्वारा बहुत अच्छे काम किए हैं। वास्तव में, मैंने अन्य सब प्रेरितों की तुलना में अधिक कठिन परिश्रम किया है। परन्तु, यह वास्तव में मैंने नहीं किया, परन्तु परमेश्वर ने मुझे सामर्थ दी है।
\v 11 इसलिये चाहे किसी अन्य प्रेरित ने या मैंने तुम्हारे लिए प्रचार किया हो, हमने मसीह का सुसमाचार सुनाया है, और तुम ने हम पर विश्वास किया है।
\p
\s5
\v 12 अब, तुम में से कुछ यह कह रहे हैं कि जो लोग मर चुके हैं वे अब कभी नहीं जी उठेंगे। यह सच नहीं हो सकता, क्योंकि हमने तुम पर यह घोषणा की है कि मसीह मरे हुओं में से जी उठे थे।
\v 13 अगर कोई भी मरे हुओं में से नहीं जी उठता है, तो निश्चय ही परमेश्वर ने मसीह को नहीं जिलाया है।
\v 14 और अगर उन्होंने मसीह को मरे हुओं में से नहीं जिलाया है, तो हम जो प्रचार करते हैं, उसका कोई अर्थ नहीं है, और तुम जो मसीह के बारे में विश्वास करते हो उससे तुमको इस जीवन में या तुम्हारी मृत्यु में कुछ भी लाभ नहीं है।
\s5
\v 15 इसके अतिरिक्त, लोग जान जाएँगे कि हमने परमेश्वर के बारे में झूठ बोला है, यदि मरे हुए वास्तव में फिर से नहीं जी उठते।
\v 16 मैं फिर से कहता हूँ, अगर कोई भी मरे हुओं में से जी नहीं उठता है, तो परमेश्वर ने मसीह को भी नहीं जिलाया है।
\v 17 और अगर उन्होंने मसीह को नहीं जिलाया है, तो तुम जो विश्वास रखते हो वह बेकार है, और परमेश्वर अभी भी तुमको दोषी मानते हैं क्योंकि तुमने पाप किया है।
\s5
\v 18 यदि यह बात है, तो जो लोग मसीह पर विश्वास करके मर गए हैं, वे भी पुनरुत्थान की आशा के बिना ही मर गए हैं।
\v 19 अगर केवल इस जीवन में ही हमें मसीह में आशा है, और हम अपेक्षा नहीं करते हैं कि हमारे मरने के बाद वह हमारे लिए कुछ भी करेंगे, तो सब लोगों में से हम सबसे अधिक अभागे हैं, क्योंकि हमने एक झूठ पर विश्वास किया है।
\p
\s5
\v 20 लेकिन वास्तव में, परमेश्वर ने मसीह को मरे हुओं में से जीवित किया है, और बहुत से लोगों में से केवल वही पहले हैं जिसे परमेश्वर जिलाकर उठाएँगे।
\v 21 आदम ने जो किया उसके कारण संसार में हर व्यक्ति मर जाता है। परन्तु, जो लोग मर चुके हैं वे एक मनुष्य अर्थात मसीह यीशु के काम के द्वारा फिर से जीएँगे।
\s5
\v 22 क्योंकि, जैसे सब आदम के पाप के कारण मर जाते हैं, उसी प्रकार सब मसीह के काम के कारण फिर से जीएँगे।
\v 23 परन्तु वे एक निश्चित क्रम में मरे हुओं में से जी उठेंगे: मसीह मरे हुओं में से जी उठनेवालों में पहले व्यक्ति हैं; और फिर जब वह पृथ्वी पर लौट आएँगे, तो मसीह से जुड़े हुए लोग फिर से जीवित होंगे।
\s5
\v 24 तब संसार का अन्त आ जाएगा, जब मसीह सारे संसार को पिता परमेश्वर के सामने उपस्थित करेंगे, कि वह उस पर शासन करें। तब मसीह हर एक शासक की उपाधि को, और इस संसार के सब अधिकारों और शक्ति के सिंहासनों को जो सब पर राज्य करते हैं, समाप्त कर देंगे।
\v 25 क्योंकि मसीह को तब तक शासन करना होगा जब तक कि परमेश्वर उनके हर एक शत्रु पर विजयी नहीं होते हैं, और उन्हें मसीह के पैरों के नीचे नहीं कर देते हैं ताकि यह दिखा सके कि उनके पास अब कोई शक्ति नहीं है।
\v 26 अंतिम शत्रु जिसे परमेश्वर नष्ट करेंगे वह मृत्यु ही है।
\s5
\v 27 क्योंकि शास्त्रों में कहा गया हैं, "परमेश्वर ने सब कुछ उनके पैरों के नीचे कर दिया है," अर्थात मसीह के पैरों के नीचे। परन्तु यह स्पष्ट है कि इसमें परमेश्वर उनके पैरों की नीचे नहीं होंगे।
\v 28 और जब परमेश्वर सब कुछ मसीह की शक्ति के अधीन कर देंगे तब, पुत्र स्वयं को परमेश्वर पिता की शक्ति के अधीन करेंगे, जिससे कि परमेश्वर हर एक जन और हर एक वस्तु के सम्बंध में एक ही हो।
\p
\s5
\v 29 यदि मरे हुओं का पुनरूत्थान नहीं होता है, जैसा कि कुछ कहते हैं, तो लोगों को मरे हुओं के लिए बपतिस्मा लेने का कोई कारण नहीं है, जैसा कि कुछ करते भी हैं। यदि परमेश्वर किसी मरे हुए व्यक्ति को वापस जीवित नहीं करते हैं, तो जीवित लोगों को मरे हुए लोगों के लिए बपतिस्मा लेने का कोई कारण नहीं है।
\v 30 यदि मृतकों का पुनरुत्थान नहीं होता है, तो सुसमाचार का प्रचार करने के लिए हम प्रेरितों को हर दिन अपने जीवन को खतरे में डालने का कोई कारण नहीं होगा, जैसा कि हम करते हैं
\s5
\v 31 मेरे भाइयों और बहनों, मुझे तुम पर गर्व है; तुम मेरी संपत्ति के समान हो जो मैं अपने प्रभु यीशु मसीह को दिखाता हूँ। हर दिन मैं मरने के संकट में रहता हूँ!
\v 32 यदि परमेश्वर मरे हुओं को जीवित नहीं करते हैं, तो मेरा इफिसुस में उन जंगली जानवरों के साथ लड़ना व्यर्थ है। भजनकारों ने जो लिखा था, वह सच होगा: "आओ, हम आज खाते और आज दाखमधु पीते हैं, क्योंकि हम कल मरेंगे।"
\s5
\v 33 धोखा न खाओ: "यदि तुम्हारे पास बुरे मित्र हैं, तो तुम किसी भी प्रकार सही तरीके से जीने की परवाह नहीं करोगे।"
\v 34 सचेत हो जाओ! सही तरीके से जीवन बिताओ और पाप करते न रहो। तुम में से कुछ लोग परमेश्वर को बिल्कुल नहीं जानते हैं। मैं यह तुमको लज्जित करने के लिए कहता हूँ।
\p
\s5
\v 35 कोई तुम से पूछ सकता है, "मरे हुए कैसे जी उठ सकते हैं? उनका शरीर किस प्रकार का शरीर होगा?"
\v 36 तुम कुछ नहीं जानते हो! तुम इस तथ्य के बारे में नहीं सोचते हो कि जो भी बीज तुम जमीन में लगाते हो वह तब तक नहीं बढ़ेगा जब तक कि वह मर न जाए।
\s5
\v 37 और किसान जैसा बोता है, पौधा वैसा नहीं दिखता है। यह केवल बीज है; और यह पूर्ण रूप से किसी अन्य रूप में बदल जाएगा।
\v 38 परमेश्वर अपनी इच्छा के अनुसार उसे एक नया शरीर देंगे, और प्रत्येक बीज को जो भूमि में डाला गया है, उसे एक अलग शरीर देंगे।
\v 39 सब जीवित प्राणी एक समान नहीं हैं। यहाँ मनुष्य होते हैं, कई प्रकार के जानवर भी होते हैं, और पक्षी और मछली भी होती हैं। सब अलग-अलग हैं।
\s5
\v 40 स्वर्ग में भी विभिन्न प्रकार की चीजें हैं। आकाश में की वस्तुओं की प्रकृति, इस संसार की वस्तुओं की प्रकृति से अलग है।
\v 41 उज्जवल सूरज के लिए एक प्रकार की प्रकृति है, और नरम चंद्रमा के लिए एक अन्य प्रकार की प्रकृति है। तारों की भी एक अन्य प्रकार की प्रकृति है, लेकिन सभी तारे एक दूसरे से कई प्रकार से भिन्न होते हैं।
\p
\s5
\v 42 मरे हुओं का जी उठना भी ऐसा ही होगा। जो भूमि में चला जाता है, वह मर गया है, लेकिन जो जी उठता है वह फिर से कभी नहीं मरेगा।
\v 43 जब वह भूमि में जाता है, तो वह मिट्टी में होता है, परन्तु जब परमेश्वर उसे फिर से जीवित करके उठाते हैं, तो वह सम्मान और शक्ति के साथ बढ़ता है।
\v 44 जो भूमि में जाता है, वह इस धरती का होता है, परन्तु जो मरे हुओं में से जी उठता है उसमें परमेश्वर की शक्ति है। इसलिए, ऐसी चीजें भी हैं जो इस पृथ्वी की हैं, और ऐसी चीजें भी हैं जिनमें परमेश्वर की शक्ति है, जो हमेशा तक बनी रहती हैं।
\p
\s5
\v 45 इसलिए शास्त्रों में कहा गया है, "पहला पुरुष, आदम, एक जीवित प्राणी था, जिसने अपनी सन्तान और वंश को जीवन दिया।" परन्तु मसीह ने, जो दूसरे आदम हैं, लोगों को हमेशा के लिए जीने की शक्ति दी है।
\v 46 पहले इस धरती की चीजें अर्थात् प्राकृतिक चीजें आईं, और फिर जो परमेश्वर का है, अर्थात् आत्मिक चीजें आईं।
\s5
\v 47 पहला पुरुष, आदम, धरती का था, क्योंकि वह मिट्टी से बनाया गया था। लेकिन दूसरे आदम, मसीह स्वर्ग के हैं।
\v 48 जैसे आदम मिट्टी से बना था,ओर वे सब भी जो उससे आये हैं,मिट्टी से बने हैं। स्वर्ग से सम्बंधित सब लोग मसीह के समान हैं, जो स्वर्ग के हैं।
\v 49 जैसे परमेश्वर ने हमें उस पुरुष के समान बनाया, जो मिट्टी से बनाया गया था, वैसे ही वह हमें स्वर्ग के मनुष्य के समान भी बना देंगे।
\p
\s5
\v 50 अब भाइयों और बहनों, मैं यह कहता हूँ, जो मरते हैं, वे उन चीजों को प्राप्त नहीं कर सकते हैं जो परमेश्वर ने उन सब को देने की प्रतिज्ञा की है जिन पर वे शासन करेंगे। यह ऐसा ही है जैसे कि मरने वाली चीजें कभी भी न मरने वाली चीजों के समान नहीं हो सकती हैं।
\v 51 देखो! मैं तुमको कुछ बताता हूँ जो परमेश्वर ने हम से छिपा रखा है। सभी विश्वासी नहीं मरेंगे, लेकिन परमेश्वर हम सब को बदल देंगे।
\s5
\v 52 पलक झपकने की तेज़ी से, वे हमें एक पल में बदल देंगे, जब परमेश्वर के स्वर्गदूत अंतिम तुरही फूँकेंगे। क्योंकि वे तुरही फूँकेंगे, और फिर परमेश्वर मरे हुओं को जीवित करेंगे जिससे कि वे फिर कभी न मरें।
\v 53 क्योंकि यह देह तो मर जाएगी, परन्तु परमेश्वर उन्हें हमेशा के लिए जीवित कर देंगे, ताकि वे फिर कभी न मरें, और यह शरीर नष्ट किया जा सकता है, परन्तु परमेश्वर उन्हें नया बना देंगे, कि वे फिर कभी न मरें।
\s5
\v 54 जब ऐसा होगा, तो यह सच हो जाएगा, जो शास्त्रों में कहा गया है: परमेश्वर ने पूर्ण रूप से मृत्यु को हरा दिया है।"
\q1
\v 55 "मृत्यु फिर कभी नहीं जीतेगी!
\q मरने का दर्द दूर किया जा चुका है!"
\p
\s5
\v 56 पाप ही ऐसा दर्द लाता है जब हम मरते हैं। और व्यवस्था के कारण पाप की शक्ति हमारे जीवन में आती है।
\v 57 लेकिन अब हम परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं क्योंकि उन्होंने हमें हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा मृत्यु पर विजय दी है!
\p
\s5
\v 58 इसलिए, मेरे प्रिय भाइयों और बहनों, अपने विश्वास में दृढ़ रहो, अपने जीवन में अटल बनो और प्रभु के काम में अधिक से अधिक बढ़ते जाओ। तुम जानते हो कि जो भी तुम उनके लिए करते हो वह हमेशा के लिए स्थिर रहेगा।
\s5
\c 16
\p
\v 1 अब मैं तुम्हारे उन प्रश्नों का उत्तर दूँगा जो उन पैसों के बारे में है जो हम यरूशलेम में परमेश्वर के लोगों के लिए एकत्र कर रहे हैं। जो निर्देश मैंने गलातिया की कलीसियाओं को दिया है, तुमको भी वैसा ही करना चाहिए।
\v 2 हर रविवार को, तुम में से प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता के आधार पर कुछ पैसों को अलग करना चाहिए, ताकि जब मैं आऊँगा तब तुमको एका-एक धन जुटाने की आवश्यकता नहीं होगी।
\s5
\v 3 तुम जिसे चाहो, चुन लेना जो तुम्हारी भेंटों को यरूशलेम में ले जाये। और जब मैं आऊँगा, तो मैं उनके साथ तुम्हारी भेंटों के बारे में पत्र भेजूँगा।
\v 4 यदि यह करना उचित होगा, तो वे मेरे साथ यरूशलेम की यात्रा करेंगे।
\p
\s5
\v 5 मैं मकिदुनिया के इलाके से यात्रा करते समय तुम्हारे पास आने की योजना बना रहा हूँ।
\v 6 सम्भव है कि मैं तुम्हारे साथ पूरी सर्दियों में रहूँगा, ताकि तुम मेरी यात्रा में मेरी सहायता कर सको।
\s5
\v 7 मैं तुमको केवल थोड़े समय के लिए देखना नहीं चाहता, मुझे आशा है कि परमेश्वर मुझे तुम्हारे साथ पर्याप्त समय व्यतीत करने की अनुमति देंगे ताकि हम एक दूसरे की सहायता कर सकें।
\v 8 मैं पिन्तेकुस्त के पर्व तक इफिसुस में रहना चाहता हूँ,
\v 9 क्योंकि परमेश्वर ने मेरे लिए एक द्वार खोल दिया है, जबकि कई लोग अब भी हमारा विरोध करते हैं।
\p
\s5
\v 10 जब तीमुथियुस आएगा, तो कृपया उसकी देखभाल करने में दया दिखाना और सुनिश्चित करना कि उसे किसी बात का डर न हो क्योंकि वह परमेश्वर का काम करता है, जैसे मैं कर रहा हूँ।
\v 11 उसके साथ कोई भी ऐसा व्यवहार न करे कि जैसे वह महत्वहीन है। जितना हो सके उतना उसकी यात्रा के लिए सहायता करना; उसे शान्ति से भेजना, ताकि वह मेरे पास आ सके। मुझे आशा है कि वह उन अन्य भाइयों के साथ यात्रा कर रहा है जो मेरे पास आ रहे हैं।
\p
\v 12 तुमने हमारे भाई अपुल्लोस के बारे में पूछा। मैंने उसे दृढ़ता से आग्रह किया है कि जब वह अन्य भाइयों के पास जाये तो तुम्हारे पास भी आए। उसने अभी न आने का निर्णय लिया है, परन्तु बाद में जब मौका मिलेगा तो वह तुम्हारे पास आएगा।
\p
\s5
\v 13 सावधान रहो, अपने विश्वास से भटक न जाओ। परिपक्व लोगों के समान परमेश्वर के लिए काम करो, और दृढ़ बनो।
\v 14 सब कुछ प्रेम की शक्ति से करो।
\p
\s5
\v 15 तुम लोग स्तिफनास के घर को जानते हो। तुम जानते हो कि वे अखाया के प्रान्त में विश्वास करने वाले सबसे पहले लोग थे, और वे परमेश्वर के लोगों की सहायता करने के लिए दृढ़ हैं। भाइयों और बहनों, मैं तुमसे आग्रह करता हूँ,
\v 16 ऐसे लोगों की आज्ञा का पालन करो जो परमेश्वर के काम में सहायता करते हैं और हमारे साथ कठोर परिश्रम भी करते हैं।
\s5
\v 17 मैं स्तिफनास, फूरतूनातुस और अखइकुस के कुरिन्थुस से यहाँ आने से खुश हुआ, क्योंकि उन्होंने तुम्हारी कमी पूरी की, क्योंकि तुम यहाँ नहीं थे।
\v 18 उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया और मेरी आत्मा में मेरी सहायता की, और उन्होंने तुम्हारी भी सहायता की। दूसरों को बताओ कि उन्होंने तुम्हारी कितनी सहायता की थी।
\p
\s5
\v 19 आसिया के कलीसियाएँ तुमको नमस्कार भेजती हैं। अक्विला और प्रिस्किल्ला, तुमको परमेश्वर के काम के लिए बहुत शुभकामनाएँ भेजते हैं, और अन्य विश्वासी जो उनके घर में मिलते हैं, वे भी ऐसा ही करते हैं।
\v 20 बाकी शेष भाई और बहन भी तुमको नमस्कार करते हैं। भाईचारे के चुंबन से एक दूसरे को नमस्कार करो।
\p
\s5
\v 21 मैं, पौलुस, यह वाक्य अपने हाथ से लिख रहा हूँ।
\v 22 यदि कोई प्रभु से प्रेम नहीं करता, तो उस पर श्राप पड़े। हे प्रभु, आओ!
\v 23 प्रभु यीशु की दया जिसके हम लायक नहीं हैं, तुम्हारे साथ हो।
\v 24 मैं तुम्हे स्मरण कराते हुए लिख रहा हूँ कि मैं तुम सब से प्रेम करता हूँ, क्योंकि तुम सब मसीह यीशु के साथ जुड़े हुए हो।

476
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\id 2CO Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h 2 CORINTHIANS
\toc1 The Second Letter to the Corinthians
\toc2 Second Corinthians
\toc3 2co
\mt1 2 कुरिन्थियों
\s5
\c 1
\p
\v 1 मैं पौलुस, हमारे भाई तीमुथियुस के साथ, यह पत्र तुमको लिखता हूँ। मसीह यीशु ने मुझे उनकी सेवा करने और परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने के लिए भेजा है। हम उन लोगों को यह पत्र भेज रहे हैं जो कुरिन्थुस के नगर में परमेश्वर के लोगों के रूप में एकत्र होते हैं; हम यह पत्र उन सब मसीही विश्वासियों को भी भेज रहे हैं जो अखाया के इलाके में रहते हैं-जिन्हें परमेश्वर ने अपने लिए अलग कर रखा है।
\v 2 परमेश्वर तुमको अपने प्रेम और शान्ति का मुफ्त वरदान दे- जो हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से आता है।
\p
\s5
\v 3 हम हमेशा अपने प्रभु यीशु मसीह के पिता परमेश्वर की स्तुति करते रहें-वही हम पर दया करते हैं और हमेशा हमें सांत्वना देते हैं।
\v 4 जब हम किसी भी कष्टदायक परीक्षा में होते हैं तो परमेश्वर हमें सांत्वना देते हैं। उनकी सांत्वना हमारे जीवन को स्वस्थ कर देती है जिससे हम उन लोगों को भी सांत्वना दे सकें जो कष्टों में हैं।
\s5
\v 5 जैसा कि हम मसीह के कष्टों का अनुभव करते हैं, जिसे नापा नहीं जा सकता है, वैसे ही हम मसीह की सांत्वना का भी अनुभव करते हैं जिसे नापा नहीं जा सकता।
\v 6 इसलिए जब भी हम दु:खों का अनुभव करते हैं, तो ऐसा इसलिए होता है कि परमेश्वर तुमको शान्ति दें और खतरे से बचा सकें। जब भी परमेश्वर हमें शान्ति देते हैं, तो ऐसा इसलिए होता है कि तुम और भी अधिक शान्ति प्राप्त कर सको, ताकि जब तुम उसी तरह दुःख उठाते हो जैसा हम उठाते हैं, तो वह तुमको परमेश्वर की प्रतीक्षा करना सिखा सके।
\v 7 हम निश्चय ही जानते हैं कि तुम्हारे साथ क्या होगा; क्योंकि तुम हमारे समान दुःख उठाते हो, तो परमेश्वर तुमको भी सांत्वना देंगे जैसा वह हमारे साथ करते हैं।
\p
\s5
\v 8 मसीह में मेरे भाइयों और बहनों, हम चाहते हैं कि तुम आसिया के प्रान्त में हमारे क्लेश के बारे में जानो। उस क्लेश ने हमें ऐसी पीड़ा पहुँचाई कि हम उसे सहन नहीं कर सके। हमें तो निश्चय हो गया था कि हम मरने जा रहे थे।
\v 9 उन्होंने हमें मृत्यु दण्ड सुना दिया था; हम मारे जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उस मृत्यु दण्ड ने हमें सिखाया कि हम अपनी शक्ति पर नहीं, परमेश्वर पर भरोसा रखें, जो मरे हुओं को जीवित करते हैं और उन्हें जीवन में वापस लाते हैं।
\v 10 परन्तु परमेश्वर ने हमें उन भयानक खतरों से बचाया, और वे हमें भविष्य में बचाने की भी प्रतिज्ञा करते हैं।
\s5
\v 11 वह ऐसा करेंगे जब तुम प्रार्थना द्वारा हमारी सहायता करोगे। अब कई लोग परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं क्योंकि वे हमारे प्रति बहुत दयालु हैं, क्योंकि कई लोगों ने हमारे लिए प्रार्थना की थी।
\p
\s5
\v 12 हम बहुत खुशी से कह सकते हैं कि हम ने सब लोगों के प्रति सच्चा और निष्कपट जीवन व्यतीत किया है। हम संसार में परमेश्वर के लोगों के रूप में रहते थे और हमें परमेश्वर पर गहरा विश्वास है, जो उनकी ओर से एक वरदान था। हम संसार की रीति से नहीं जीते हैं। जब हम चुनते हैं कि हम क्या करेंगे तो हम संसार के ज्ञान की बातें नहीं सुनते हैं। इसके बजाय, परमेश्वर ने हमारी जीवनशैली को सच्चा और पवित्र बना दिया है।
\v 13 तुमने मेरे पत्रों को पढ़ा है। मैंने उन्हें इसलिए लिखा है कि तुम उन्हें समझ सको।
\v 14 तुमको पहले से ही हमारे बारे में थोड़ी सी जानकारी है, लेकिन उस दिन जब प्रभु यीशु वापस आएंगे, मुझे आशा है कि तुम उनकी उपस्थिति में हमारे बारे में बहुत ही गर्व करोगे, और हम तुम पर बहुत गर्व करेंगे।
\p
\s5
\v 15 मुझे पूरा विश्वास है कि मैं पहले तुम्हारे पास आना चाहता था, ताकि मैं तुम से दो बार भेंट कर सकूँ।
\v 16 जब मैं मकिदुनिया जाने के रास्ते पर था और जब मैं वहाँ से वापस आ रहा था, तो मैंने तुम को दोनों बार देखने की योजना बनाई थी, ताकि तुम मुझे यहूदिया के रास्ते भेज दो।
\s5
\v 17 मैंने अपना मन बना लिया था कि यही योजना होगी। मैं तुमको "हाँ" कह कर फिर तुमको "ना" नहीं कह रहा था। मैं अविश्वासियों के समान अपनी योजनाएँ नहीं बना रहा था।
\v 18 लेकिन परमेश्वर हमारा मार्गदर्शन करने के लिए विश्वासयोग्य हैं, और हम तुमको भ्रमित नहीं करते हैं, हम अपनी योजना बनाते हैं और उसे पूरा करते हैं।
\s5
\v 19 हमारा "हाँ" परमेश्वर के पुत्र, यीशु मसीह की ओर से आता है, जिनके बारे में हमने तुमको बताया था; और उनमें कभी भी कोई भ्रम नहीं था- उनके साथ कभी "हाँ और फिर बाद में ना" नहीं है। इसके बजाय, उनमें हमेशा "हाँ" ही रहा है।
\v 20 क्योंकि परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ "हाँ" हैं, क्योंकि वे उनकी ओर से आते हैं। और हम अपना पुष्टीकरण उस "हाँ" में जोड़ते हैं। और हम परमेश्वर के सम्मान के बारे में कहते हैं: "हाँ! यह सच है!"
\s5
\v 21 परमेश्वर हम मसीहियों के सम्बन्धों को दृढ़ बनाते हैं क्योंकि हम दोनों मसीह से जुड़े हुए हैं, और वही हैं जो हमें लोगों को सुसमाचार सुनाने के लिए भेजते हैं।
\v 22 उन्होंने हमारे ऊपर अपनी आधिकारिक मुहर लगाई, जिससे कि लोगों को पता चल जाए कि वह हमे प्रमाणित करते हैं। और उन्होंने हमें वह आत्मा दिया है जो हमारे अन्दर रहते हैं, और एक अटूट प्रतिज्ञा करते हैं कि वे हमारे लिए कहीं अधिक करेंगे।
\p
\s5
\v 23 मेरा तुम्हारे पास न आने के कारण के बारे में परमेश्वर स्वयं तुमको, कुरिन्थुस के मसीहियों को आश्वस्त करें: ऐसा इसलिए कि जब मैं तुमको सुधारूँ, तुमको मेरा सामना न करना पड़े।
\v 24 हम स्वामियों के समान नहीं हैं, जो तुमको आदेश देते हैं कि तुमको परमेश्वर पर कैसे विश्वास करना चाहिए। परन्तु, हम तुम्हारे साथ काम करना चाहते हैं, कि तुम परमेश्वर पर भरोसा करना सीख सको, चाहे कुछ भी हो जाए, और उन पर भरोसा करने में आनन्द प्राप्त कर सको।
\s5
\c 2
\p
\v 1 कुरिन्थुस में मेरी पिछली यात्रा में, मुझे पता है कि मैंने तुमको जो कुछ कहा था, उससे तुमको बहुत दुःख हुआ। मैंने इस बार निर्णय लिया है कि मैं तुम्हारे पास फिर एक दुःखदायी यात्रा नहीं करूँगा।
\v 2 मैंने अपनी पिछली यात्रा पर तुमको बहुत दुःख दिया था, और जो लोग मुझे सबसे अधिक प्रसन्नता देते हैं, उन्हीं लोगों को मैंने दु:खी किया, जब मैं वहाँ था।
\s5
\v 3 मैंने तुमको वह पत्र इसलिए लिखा था, कि जब मैं तुम्हारे पास आऊँ, तुम मुझे फिर से दुःखी न करो- तुम, जिनको वास्तव में मुझे आनन्दित करना चाहिए! मुझे निश्चय था कि हम सब के पास आनन्द करने का कारण हैं।
\v 4 मैंने तब तुमको लिखा था क्योंकि मेरे दिल में अब भी बहुत दुःख और पीड़ा है-मैंने तुम्हारे लिए बहुत से आँसू बहाए और मैं तुमको अब और दुःखी नहीं करना चाहता था। मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो कि मैं तुम सब को कितना प्रेम करता हूँ।
\p
\s5
\v 5 वह व्यक्ति जो पाप में गिर गया है - उसने अपने पापों के द्वारा केवल मुझे ही दुःखी नहीं किया परन्तु तुम सब को भी दुःखी किया।
\v 6 हम सब इस बात से सहमत हैं कि उस व्यक्ति और उसके पाप के बारे में हमें क्या करना चाहिए। अब उसे दण्ड दिया जा चुका है और उसकी सजा निष्पक्ष थी।
\v 7 अतः हमारी स्थिति यह है: उसने अपने दण्ड का कष्ट भोग लिया है परन्तु अब उसे उसके काम के लिए क्षमा करने का और उससे प्रेम करने का समय है जिससे कि वह बहुत उदास होकर निराश न हो।
\p
\s5
\v 8 सब विश्वासियों के सामने, उसे बताओ कि तुम उससे कितना प्रेम करते हो।
\v 9 मैंने तुमको यह बताने के लिए लिखा था कि क्या तुम परमेश्वर की आज्ञा मानोंगे और इस समस्या से निपटोगे।
\s5
\v 10 इसलिए जिस व्यक्ति को तुम क्षमा कर चुके हो, उसे मैं भी क्षमा करता हूँ। जो कुछ भी मैंने क्षमा किया है - यहाँ तक कि सबसे छोटा मामला - मैंने उसे तुम्हारे लिए मेरे प्रेम से क्षमा किया है, और मैं ऐसे क्षमा करता हूँ, जैसे कि मसीह मेरे सामने खड़े हैं।
\v 11 इस व्यक्ति को क्षमा करने के द्वारा, हमने ऐसा किया कि शैतान हमारे साथ छल करके कुछ और बुरा न कर पाए। हम उसकी चाल और उसके झूठ के बारे में सब जानते हैं।
\p
\s5
\v 12 यद्यपि परमेश्वर ने त्रोआस शहर में हमारे लिए सुसमाचार प्रचार करने के बहुत से रास्ते खोल दिए,
\v 13 मैं अपने भाई तीतुस के बारे में चिंतित था, क्योंकि मुझे वह वहाँ नहीं मिला। इसलिए मैंने त्रोआस में विश्वासियों को छोड़ दिया और उसे ढूँढ़ने के लिए मकिदुनिया लौट गया।
\s5
\v 14 हम परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं कि हम मसीह के साथ जुड़ गए हैं, और मसीह हमेशा हमें अपने विजय के जुलूस में ले जाते हैं। हमारे जीवन और हमारे संदेश के माध्यम से, हम हर एक स्थान में, जहाँ हम जाते हैं, हम उन लोगों के समान हैं जो जलती हुई धूप के पास हैं; परन्तु हमारी सुगन्ध असली धूप से नहीं आती है, यह मसीह को जानने से आती है, और क्योंकि हम उन्हें जानते हैं इसलिए हमारे पास उनकी सुगन्धित सुगन्ध है।
\v 15 परमेश्वर इसी सुगन्ध को सूँघते हैं, और यह उन्हें मसीह की याद दिलाती है। और जिनको परमेश्वर ने बचाया, वे इसी सुगन्ध को हम में पाते हैं। यहाँ तक कि जिन लोगों को परमेश्वर नहीं बचाते, वे इस सुगन्ध को सूँघते हैं जो उन्हें मसीह की याद दिलाती है।
\s5
\v 16 जिनको परमेश्वर नही बचाते, उन लोगों के लिए मसीह की सुगंध एक मरे हुए व्यक्ति की गंध की तरह है जो एक बार फिर से मर रहा है। परन्तु परमेश्वर जिन लोगों का बचाव कर रहे हैं - वे उस मसीह की सुगन्ध लेते हैं, जो जीवित हैं, और उन्हें जीवित करने के लिए आ भी रहे हैं। वास्तव में, कोई भी इस सुगन्ध को फैलाने के लिए स्वयं में समर्थ नहीं है!
\v 17 तुम जानते हो कि बहुत से लोग पैसे के लिए शहर से शहर जाकर परमेश्वर का वचन बेच रहे हैं। परन्तु हम उनके समान नहीं हैं। हम परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए कठोर परिश्रम करते हैं और जो वह चाहते हैं हम वही करते हैं। और हम मसीह के बारे में बोलते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि जो कुछ हम करते हैं, वह परमेश्वर देखते हैं, और हम मसीह का प्रचार करते हैं क्योंकि हम उनके साथ जोड़े गए हैं।
\s5
\c 3
\p
\v 1 तुम हमें भलि भांति जानते हो, और तुमको हम पर भरोसा करना चाहिए। एक अनजान व्यक्ति को तुम्हारे किसी जानने वाले की आवश्यकता हो सकती है कि परिचय देने के लिए एक पत्र लिखे, परन्तु तुम हमें भलि भांति जानते हो।
\v 2 तुम स्वयं एक ऐसे पत्र की तरह हो जो अन्य लोगों के सामने हमारा परिचय करवाता है, क्योंकि जो कोई तुमको जानता है वह देख सकता है कि तुम हम पर कितना विश्वास करते हो।
\v 3 जिस तरह से तुम जीते हो वह एक ऐसे पत्र के समान है जिसे मसीह ने स्वयं लिखा है और हम तुम्हारे लिये लाए हैं। निःसंदेह, यह स्याही से लिखा गया पत्र या पत्थर की तख्तियाँ नहीं हैं। नहीं, यह एक ऐसा पत्र है जो सच्चे परमेश्वर के आत्मा ने तुम्हारे दिल पर लिखा है।
\p
\s5
\v 4 इस प्रकार हम परमेश्वर पर भरोसा करते हैं, क्योंकि हम मसीह से जुड़ गए हैं।
\v 5 हम परमेश्वर के लिए अपनी सामर्थ्य से कुछ भी करने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए हम सक्षम होने का दावा भी नहीं कर सकते। इसकी अपेक्षा, परमेश्वर ही हैं जो हमें वह सब कुछ देते हैं जो उनकी सेवा करने के लिये आवश्यक है।
\v 6 परमेश्वर ने हमें वह सब दिया जो हमें नई वाचा के सेवक होने के लिए आवश्यक था। यह वाचा लिखे गए कानून से नहीं, परन्तु परमेश्वर के आत्मा से शक्ति प्राप्त करती है। कानून के शब्द मृत्यु लाते हैं, परन्तु आत्मा जीवन देते हैं।
\p
\s5
\v 7 परमेश्वर की व्यवस्था मृत्यु को लाती है, जिसे उन्होंने पत्थर की तख्तियों पर लिखा था, और उन्होंने उसे मूसा को दिया था। यह उस तीव्र प्रकाश के साथ आई, जो परमेश्वर की उपस्तिथि में हमेशा चमकता है। और उसी महिमा ने मूसा के चेहरे को चमकाया; उसके चेहरे की चमक ऐसी तीव्र थी कि इस्राएली उसके चेहरे को नहीं देख सकते थे। वह तीव्र प्रकाश धीरे धीरे उसके चेहरे से लोप होता चला गया।
\v 8 तो आत्मा की सेवा और कितने अधिक तेजस्वी रूप से चमकेगी!
\s5
\v 9 यहाँ तक कि व्यवस्था भी परमेश्वर के तीव्र प्रकाश से चमकती थी। परन्तु व्यवस्था का वह तीव्र प्रकाश हर किसी के लिये केवल मृत्यु ही ला सकता है। इसलिए जब परमेश्वर स्वयं के साथ हमको सही सम्बन्ध में लाते हैं, तो उनका तीव्र प्रकाश कितना और अधिक तेजोमय रूप से हम में चमकता है।
\v 10 अतः जब व्यवस्था की तीव्र प्रकाश की तुलना उस काम से की जाती है, जो हमें उनके साथ सही सम्बन्ध में लाता है तो वह ऐसा होता है कि कानून उतना बढ़िया नहीं है, क्योंकि उसके स्थान पर अब जो आ गया है वह कहीं अधिक अच्छा है।
\v 11 इसलिए तुम देख सकते हो कि कानून जो मिटता जा रहा है, वह बहुत बढ़िया था, परन्तु तुम यह भी देख सकते हो कि वह जो उसके स्थान में है वह और भी अधिक बढ़िया होगा; और यह सदा के लिए रहेगा।
\p
\s5
\v 12 क्योंकि हम प्रेरित भविष्य के लिए परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं, इसलिए हमारे पास बहुत साहस है।
\v 13 हम मूसा के समान नहीं हैं, जो अपने चेहरे पर पर्दा डालता है, ताकि इस्राएलियों का वंश परमेश्वर के लुप्त होते प्रकाश को न देख पाए।
\s5
\v 14 बहुत पहले, इस्राएल के वंशजों ने परमेश्वर के संदेश पर विश्वास करने से मना कर दिया। आज भी, जब पुरानी व्यवस्था को पढ़ा जाता है, वे उसी पर्दे को डाले रहते हैं। जब हम मसीह के साथ जुड़ जाते हैं तब ही परमेश्वर उस पर्दे को दूर कर देते हैं।
\v 15 हाँ, आज भी, जब वे मूसा की व्यवस्था को पढ़ते हैं, तो ऐसा लगता है कि उनके मन पर एक पर्दा है।
\v 16 लेकिन जब कोई व्यक्ति परमेश्वर के पास जाता है, तो परमेश्वर उस पर्दे को हटा देते हैं।
\s5
\v 17 अब "प्रभु" शब्द का अर्थ "आत्मा" है। जहाँ प्रभु के आत्मा हैं, वहाँ लोग स्वतंत्र हो जाते हैं।
\v 18 परन्तु हम सब जो विश्वास करते हैं, हम हमारे चेहरों पर बिना कोई पर्दा डाले उनकी ओर देखते हैं, और हम उनके तीव्र प्रकाश को अधिक से अधिक प्रदर्शित करते हैं। यह यहोवा करते हैं; और वे आत्मा हैं।
\s5
\c 4
\p
\v 1 परमेश्वर ने हमें यह उत्तरदायित्व सौंपा है, और उन्होंने हम पर दया भी की थी। इसलिए हम निराश नहीं हैं।
\v 2 हम सावधान रहें कि हम लज्जित होने के लिए कुछ न करें, और हमारे पास किसी से भी छिपाने के लिए कुछ नहीं है। हम किसी ऐसी बात की प्रतिज्ञा नहीं करते जो परमेश्वर नहीं देते हैं, और हम उस बात का भरोसा नहीं दिलाते है जो परमेश्वर नहीं देंगे और हम परमेश्वर के वचन को अपनी इच्छा अनुसार नहीं बदल सकते। हम केवल सच बताते हैं। इस प्रकार, हम अपने आप को तुम्हारे सामने प्रस्तुत करते हैं कि हमें परखो क्योंकि हम परमेश्वर के सामने खड़े होते हैं।
\s5
\v 3 अगर सुसमाचार एक पर्दे से छिपाया गया है, तो यह उन लोगों से छिपा हुआ है जो परमेश्वर के बिना मर रहे हैं।
\v 4 उनके लिए, इस संसार के ईश्वर ने उन्हें सच्चाई के प्रति अंधा कर दिया है क्योंकि वे मसीह के अद्भुत सम्मान के सुसमाचार पर विश्वास नहीं करते - क्योंकि यह मसीह हैं जो हमें दिखाते हैं कि परमेश्वर कैसे हैं।
\s5
\v 5 हम तुम पर अपने आप को ऐसे व्यक्ति के समान प्रगट नहीं करते हैं जो तुमको किसी बुराई से बचा सकते हैं। इसकी अपेक्षा, हम मसीह यीशु को हमारे स्वामी के रूप में प्रचार करते हैं, और हम तुम्हारे सेवक हैं क्योंकि हम यीशु से जुड़े हुए हैं।
\v 6 क्योंकि परमेश्वर ने कहा है, "प्रकाश अंधकार में चमकेगा।" उन्होंने अपना प्रकाश हमारे दिलों में चमकाया है, कि जब हम यीशु मसीह पर विश्वास करें, तो हम यह जान सकें कि परमेश्वर कितने अद्भुत हैं।
\p
\s5
\v 7 अब हम परमेश्वर के इन अनमोल वरदानों को अपने शरीरों में धारण करते हैं, जो कि मिट्टी के बर्तनों के जैसे कोमल हैं। इसमें कोई गलती नहीं हो सकती है कि हमारी शक्ति कहाँ से आती है: वह केवल परमेश्वर से आती है
\v 8 हमने कई विभिन्न परेशानियों का सामना किया है, लेकिन उन्होंने हमें नष्ट नहीं किया है। हम इस बारे में भ्रमित हो सकते हैं कि हमें क्या करना चाहिए, परन्तु हम हार कभी नहीं मानते।
\v 9 कुछ लोग हमें हानि पहुँचाने का प्रयास करते हैं, परन्तु हम अकेले नहीं होते हैं; ऐसा लगता है जैसे कुछ लोगों ने हमें मारकर गिरा दिया है, परन्तु हम सदैव उठकर खड़े हो जाते हैं।
\v 10 हम प्रायः मृत्यु के संकट में होते हैं, जैसे यीशु की मृत्यु हो गई थी, परन्तु हमारे शरीर फिर से जीवित होंगे, क्योंकि यीशु जीवित हैं।
\s5
\v 11 हम में से जो जीवित हैं, परमेश्वर सदैव हमारी अगुवाई करते हैं कि हम मृत्यु का सामना करें क्योंकि हम यीशु में जोड़े गए हैं, जिससे कि जब लोग हमें देखें, तो वे जान सकें कि यीशु जीवित हैं।
\v 12 इसलिए तुम देख सकते हो कि मृत्यु हम में अपना काम कर रही है, परन्तु जीवन तुम में काम कर रहा है।
\p
\s5
\v 13 हम परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं, जैसे शास्त्रों में कहा गया है: "मैं परमेश्वर पर भरोसा रखता हूँ, यही कारण है कि मैं बोलता हूँ।" हम भी परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं, और हम वह भी सुनाते हैं जो उन्होंने हमारे लिए किया है।
\v 14 हम जानते हैं कि परमेश्वर, जिन्होंने प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जी उठाया है, उनके साथ हमें भी मरे हुओं में से जी उठाएँगे, और यीशु तुम्हारे साथ हमें वहाँ ले जाएँगे, जहाँ परमेश्वर हैं।
\v 15 मैं ने जितना भी कष्ट उठाया है, वह तुम्हारी सहायता करने के लिए है, जिससे कि अधिक से अधिक लोग जान सकें कि कैसे परमेश्वर उन्हें स्वतंत्र रूप से प्रेम करते हैं, और इसलिए वे उनकी अधिक से अधिक स्तुति कर सकें।
\p
\s5
\v 16 हम निराश नहीं हैं जब हमारे शरीर बाहर से प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा मर रहे हैं, परमेश्वर हमें प्रतिदिन भीतर से नया बना रहे हैं।
\v 17 क्योंकि दु:खों का यह थोड़ा और आसान समय हमें उस दिन के लिए तैयार कर रहा है, जब परमेश्वर हमें सदा के लिए अद्भुत बना देंगे, ऐसा अद्भुत जिसकी कोई तुलना या व्याख्या नहीं कर सकता।
\v 18 क्योंकि हम उन चीजों की प्रतीक्षा नहीं कर रहे हैं जिनको हम देख सकते हैं, परन्तु उन चीजों की प्रतीक्षा कर रहे हैं जिनको हम नहीं देख सकते हैं। जिन चीजों को हम अब देख सकते हैं वे अस्थायी हैं, परन्तु जिन चीजों को हम नहीं देख सकते, वे सदा तक बनी रहती हैं।
\s5
\c 5
\p
\v 1 हम जानते हैं कि ये शरीर तम्बुओं के समान केवल अस्थायी निवास स्थान हैं, जो बहुत लम्बे समय तक नहीं टिकता है। परन्तु हम जानते हैं कि जब हम मर जाते हैं, तो परमेश्वर हमें एक स्थायी स्थान देते हैं जिसमें हम रहेंगे, एक ऐसा शरीर जो हमेशा तक बना रहता है, एक ऐसा शरीर जिसे परमेश्वर ने बनाया है।
\v 2 जब तक हम अपने भौतिक शरीर में रहते हैं, हम उन शरीरों को पाने की लालसा से कराहते हैं जिन्हें हम तब पाएँगे जब हम परमेश्वर के साथ रहेंगे -
\v 3 क्योंकि जब परमेश्वर हमें नए शरीर पहनाते हैं, तो यह कपड़ों की तरह, हमारा आवरण होगा।
\p
\s5
\v 4 क्योंकि हम इन शरीरों में रहते हैं जो एक दिन मर जाएँगे, और हम उस दिन की कामना करते हैं जब हम इन शरीरों से अलग हो जाएँगे। ऐसा नहीं है कि हम मरने के लिए उत्सुक हैं, परन्तु हम अपने अविनाशी शरीरों को पहनने के लिए उत्सुक हैं, जैसा कि एक कहावत में कहते हैं, "जो कुछ भी मर जाता है, वह जीवन द्वारा निगल लिया जाएगा।"
\v 5 परमेश्वर स्वयं हमारे नए शरीरों को हमारे लिए तैयार करते हैं, और वह अपने आत्मा देकर आश्वासन देते हैं कि हम उन्हें प्राप्त करेंगे।
\p
\s5
\v 6 इसलिए तुमको हमेशा यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि जब तक हम पृथ्वी पर हमारे शरीरों में रहते हैं, हम प्रभु से दूर हैं, जो स्वर्ग में है
\v 7 (हम उन पर भरोसा करके अपना जीवन जीते हैं, उस पर भरोसा करके नहीं जो हम देख सकते हैं)।
\v 8 क्योंकि हमने उन पर भरोसा रखा है, हम अपने वर्तमान शरीरों को छोड़ देना चाहते हैं कि हम परमेश्वर के साथ निश्चिन्त होकर रह सकें।
\s5
\v 9 इसलिए हम उनकी आज्ञा का पालन करने को अपना लक्ष्य बनाते हैं, चाहे हम यहाँ हों या स्वर्ग में हों।
\v 10 जब मसीह न्यायाधीश के रूप में बैठेंगे, तब हम सब मसीह के सामने खड़े होंगे। वह इस बात का न्याय करेंगे कि जब हम इस जीवन में थे तब हमने क्या किया था। मसीह हमें वह देंगे जिसके हम योग्य हैं, और जो अच्छा या बुरा था वह उसका न्याय करेंगे।
\p
\s5
\v 11 इसलिए हम जानते हैं कि परमेश्वर का सम्मान करना क्या है, इसलिए हम लोगों को यह बताना सुनिश्चित कर लें कि वह कैसे परमेश्वर हैं। परमेश्वर जानते हैं कि हम कैसे लोग हैं, और मुझे आशा है कि तुम भी यह समझते हो कि हम अच्छे या बुरे काम कर रहे हैं या नहीं।
\v 12 हम फिर से यह सिद्ध करने का प्रयास नहीं कर रहे हैं कि हम परमेश्वर के सच्चे दास हैं। हम केवल यह चाहते हैं कि तुम जान लो कि हम कैसे लोग हैं और तुमको हम पर गर्व करने का एक कारण दें। हम ऐसा इसलिए करते हैं, कि तुम उन लोगों को उत्तर दे सको जो अपने कार्यों की प्रशंसा करते हैं, परन्तु चिन्ता नहीं करते कि वे वास्तव में अपने भीतरी मनुष्यत्व में क्या है।
\s5
\v 13 यदि लोग सोचते हैं कि हम पागल हैं, तो ठीक है, हम परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं। परन्तु यदि हम पागल नहीं हैं, तो यह तुम्हारी सहायता करने के लिए है।
\v 14 मसीह के लिए हमारा प्रेम हमें लिए चलता है। हमें इसका तो पूरा विश्वास है: कि मसीह सब के लिए मर गए, इसलिए हम सब उनके साथ मर गए हैं।
\v 15 मसीह सब के लिए मर गए, जिससे कि जीवित रहने वाले स्वयं के लिए जीवित न रहें, वरन मसीह के लिए जीवित रहें, जो उनके पापों के लिए मर गए; और वही है जिन्हें परमेश्वर ने मरे हुओं में से जीवित किया।
\p
\s5
\v 16 क्योंकि हम अपने लिए अब जीवित नहीं हैं, हम किसी का न्याय इस प्रकार नहीं करते जिस प्रकार कि अविश्वासी करते हैं। हमने एक बार मसीह को भी मनुष्यों के मानकों से देखा था। परन्तु मसीही होने के कारण, अब हम किसी का भी न्याय ऐसे नहीं करते हैं।
\v 17 जब कोई मसीह के साथ जुड़ जाता है और उनमें भरोसा रखता है, तो वह एक नया व्यक्ति बन जाता है। अतीत का सब कुछ समाप्त हो गया है - देखो! परमेश्वर तुम में सब कुछ नया बना देते हैं।
\s5
\v 18 ये सब वरदान परमेश्वर की ओर से आते हैं। उन्होंने हमारे साथ शान्ति बना ली इसलिए अब हम परमेश्वर के शत्रु नहीं हैं। अब हम मसीह के क्रूस के माध्यम से परमेश्वर के साथ शान्ति रखते हैं। इसके अतिरिक्त, परमेश्वर ने हमें यह प्रचार करने का दायित्व सौंपा है कि वह लोगों को और स्वयं को एक साथ ला रहे हैं।
\v 19 यह संदेश परमेश्वर और मनुष्यों को एक साथ लाता है और बताता है कि परमेश्वर ने मसीह के काम द्वारा संसार के साथ शान्ति बना ली है। परमेश्वर उनके पापों को उनके खाते में नहीं रख रहे हैं। मसीह ने हमारे पापों को दूर कर दिया है और हमें वह संदेश दिया है जो शान्ति बनाता है और परमेश्वर और मनुष्यों को एक साथ लाता है।
\s5
\v 20 इसलिए परमेश्वर ने हमें मसीह का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त किया है। परमेश्वर हमारे माध्यम से तुम से विनती करते हैं। इसलिये हम मसीह की ओर से तुम से विनती करते हैं: मसीह के द्वारा, वह तुम्हारे साथ शान्ति बनाए और तुमको अपने पास लाए।
\v 21 परमेश्वर ने मसीह को पाप का बलि बनाया– उन्हें जिन्होंने कभी पाप नहीं किया इसलिए जब हम मसीह पर भरोसा रखते हैं और उन पर विश्वास करते हैं तो परमेश्वर हमे अपने में धर्मी बनाते हैं।
\s5
\c 6
\p
\v 1 हम एक साथ काम करते हैं, और हम तुम से अनुरोध करते हैं कि तुम परमेश्वर के प्रेम के वरदान को ऐसे प्राप्त न करो जिस से तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता हो।
\v 2 परमेश्वर ने कहा,
\q "उस समय जब मैंने अपनी प्रेमपूर्ण दया दिखाई, तब मैंने तुम्हारी बात सुनी,
\q और जब मैंने अपने उद्धार का काम पूरा किया तब मैंने तुम्हारी सहायता की।" देखो, यह वह दिन है जब परमेश्वर तुम पर दया कर रहे हैं; यह वह दिन है जब वह तुमको बचाते हैं।
\p
\v 3 हम निश्चय ही किसी को भी गलत करने का कारण नहीं देना चाहते, क्योंकि हम नहीं चाहते हैं कि कोई हम पर आरोप लगाए कि हम बुराई को प्रोत्साहित करने के लिए सुसमाचार का प्रचार करते हैं।
\s5
\v 4 हमने बार-बार सिद्ध किया है कि हम परमेश्वर के सच्चे सेवक हैं। हम बहुत दुःख सहन करते हैं, हम साहस के साथ उनका सामना करते हैं जो हमें चोट पहुँचाते हैं, और हम कठिन समयों में जीवन जीते हैं।
\v 5 लोगों ने हमें बहुत बुरी तरह पीटा; दूसरों ने हमें जेल में बंद कर दिया; हम लोगों के लिए दंगा करने का कारण बने थे; हमने कठिन शारीरिक परिश्रम किया है; हम ने नींद के बिना कई लम्बी रातें काटी हैं, और हम बहुत कम भोजन के साथ भी रहे हैं।
\v 6 परन्तु इन सब में, हमारा जीवन पवित्र है, हमारा ज्ञान गहरा है, और जब तक परमेश्वर हमारी पीड़ा को समाप्त नहीं करते, तब तक हम प्रतीक्षा करने में समर्थ हैं। हम जानते हैं कि मसीह हमारे लिए कितना दयालु हैं; हम पवित्र आत्मा से भरे हैं, और हम मनुष्यों से प्रेम करते हैं।
\v 7 हम परमेश्वर के सच्चे वचन के अनुसार जीते हैं। और हमारे पास परमेश्वर की शक्ति है। मसीह के द्वारा, परमेश्वर ने अपने साथ हमारा मेलमिलाप कर लिया है। यह वह सच है जिस पर हम लगातार विश्वास करते हैं; यह कवच की तरह है जिसे एक सैनिक पहनता है, और यह उसके दोनों हाथों के लिए हथियारों के जैसा है।
\s5
\v 8 कभी-कभी लोग हमें सम्मान देते हैं; अन्य समय में, वे हमारा अपमान करते हैं। कभी वे हमारे बारे में बहुत बुरी बातें कहते हैं; तो कभी वे हमारी प्रशंसा करते हैं। वे हम पर झूठ बोलने का आरोप लगाते हैं, भले ही हम सत्य ही बोलते हैं।
\v 9 हम ऐसे लोगों के समान रहते हैं जिनके बारे में कोई नहीं जानता, परन्तु कुछ लोग हमें भली भांति जानते हैं। मसीह के बारे में संदेश सुनाने पर कुछ लोग हमारी हत्या करने का प्रयास करते हैं, भले ही किसी ने कानूनी रूप से कभी हमें मृत्यु दण्ड नहीं दिया।
\v 10 हम बहुत दुःख के साथ रहते हैं परन्तु हम सदा आनन्दित रहते हैं। हम बहुत गरीब लोगों के समान रहते हैं, परन्तु हमारे पास सुसमाचार का खजाना है, जो बहुतों को धनवान बनाता है। तुम देख सकते हो कि हमारे पास कुछ भी नहीं है, परन्तु सच्चाई यह है कि सब कुछ हमारा है।
\p
\s5
\v 11 हे साथी विश्वासियों, हमने कुरिन्थ में तुम से बहुत खुलकर और निष्कपट बातें की हैं। हमने तुमको खुलकर दिखाया है कि हम तुम से प्रेम करते हैं।
\v 12 हम वह नहीं जो कुछ छिपाते हैं, परन्तु तुम यह दिखाने के लिए संकोच करते हो कि तुम हम से प्रेम करते हो।
\v 13 यह एक निष्पक्ष लेन-देन होगा - मैं तुमसे ऐसे बात कर रहा हूँ जैसे बच्चों से - कि तुम बदले में हम से प्रेम करो।
\p
\s5
\v 14 जो लोग मसीह पर भरोसा नहीं रखते हैं, उन लोगों के साथ अनुचित विधि से काम न करो। जो लोग परमेश्वर के मानकों और नियमों के आधार पर जीते हैं, उनका उन लोगों के साथ क्या काम, जो परमेश्वर के कानूनों को तोड़ते हैं और अपनी इच्छा से काम करते है? अंधकार और प्रकाश एक साथ नहीं हो सकते।
\v 15 दुष्ट-आत्मा बलियाल के साथ किसी भी तरह से मसीह कैसे सहमत हो सकते हैं? जो व्यक्ति परमेश्वर पर भरोसा रखता है, उसकी किसी अन्य व्यक्ति के साथ जो परमेश्वर पर भरोसा नहीं रखता है क्या समानता है?
\v 16 अन्यजातियों की मूर्तियों को परमेश्वर के मन्दिर में लाना कितना सही होगा? क्योंकि हम जीवित परमेश्वर का मन्दिर हैं, जैसे परमेश्वर ने कहा:
\q "मेरा घर अपने लोगों के बीच होगा
\q मैं उनके बीच अपना जीवन जीऊँगा।
\q मैं उनका परमेश्वर रहूँगा
\q और वे मेरी प्रजा होंगे।"
\p
\s5
\v 17 शास्त्र इसलिए कहता हैं:
\q "अविश्वासियों के बीच से बाहर आओ
\q1 और उनसे अलग हो जाओ," परमेश्वर कहते हैं,
\q "उन वस्तुओं को न लो, जो तुमको अशुद्ध बनाती हैं और मेरी आराधना करने में असमर्थ बनाती हैं;
\q1 और मैं अपनी बाँहें खोलूँगा और तुम्हारा स्वागत करूँगा,
\v 18 और मैं तुम्हारा पिता होऊँगा,
\q1 और तुम मेरे पुत्र और पुत्रियाँ होंगे।" सर्वशक्तिमान-परमेश्वर यह कहते हैं।
\s5
\c 7
\p
\v 1 प्रियजनों, क्योंकि परमेश्वर ने हमारे लिए इन बातों को करने की प्रतिज्ञा की है, हमें अपने शरीर या मन से ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जो हमें परमेश्वर की आराधना करने से रोकता है। हमें पाप करने से बचने का प्रयास करते रहना चाहिए; हमें परमेश्वर का सम्मान करते रहना चाहिए और उनकी उपस्थिति में काँपते रहें।
\p
\s5
\v 2 अपने दिलों को हमारे लिए खोलो! चाहे तुमने हमारे बारे में कुछ भी सुना हो, हमने किसी का बुरा नहीं किया है, और हमने कभी किसी से भी अनुचित लाभ नहीं उठाया है।
\v 3 मैं तुमको दोषी ठहराने के लिए नहीं डाँटता हूँ। हम तुमको हमारे पूरे दिल से प्रेम करते हैं! हम उद्देश्य में एकजुट हैं और हम तुम्हारे साथ जीएँगे और तुम्हारे साथ मरेंगे।
\v 4 इसके अतिरिक्त, मैं सिर्फ तुम से प्रेम ही नहीं करता, मैं दूसरों से तुम्हारी प्रशंसा भी करता हूँ और मैं तुम्हारे कारण इतने आनन्द से भर गया हूँ, भले ही हम गंभीर क्लेशों में हों।
\p
\s5
\v 5 जब हम मकिदुनिया में तुम्हारे पास आए, तो हम थक गए थे। हमारे लिए हर तरफ परेशानी थी- हम उन कठिनाइयों का सामना करते थे जो अन्य लोगों ने पैदा की थीं, और हमें बहुत सी बातों का डर था।
\v 6 लेकिन जब हम निराश हो जाते थे, तब परमेश्वर हमेशा हमें सांत्वना देते थे, और उस समय तीतुस को हमारे साथ रहने के लिए भेजकर उन्होंने हमें सांत्वना दी।
\v 7 तीतुस का आना हमारे लिए बहुत अच्छा था, परन्तु जब तुम उसके साथ थे तब तुमने उसे शान्ति दिलाई थी। जब वह हमारे पास आया, तो उसने हमारे प्रति तुम्हारे गहरे प्रेम के बारे में, और हमारे दुःखों के कारण तुमको होनेवाले दुःख के विषय हमें बताया। उसने हमें यह भी बताया कि तुम मेरे लिए कितना चिन्तित थे, इसलिए मैं तुम्हारे कारण और भी अधिक आनन्दित हुआ।
\p
\s5
\v 8 मुझे पता है कि मैंने तुमको जो पत्र लिखा था, उस से मैंने तुमको दु:खी किया था, परन्तु मुझे उसे लिखना पड़ा। जब मैंने उसे लिखा था, तब मुझे पछतावा तो हुआ था, परन्तु कलीसिया की समस्याओं से निपटने में तुम्हारी सहायता करने के लिए मैंने तुमको लिखा था। मुझे पता था कि तुम्हारा दु:ख थोड़े ही समय तक रहेगा।
\v 9 और इसलिए अब मैं आनन्दित हो सकता हूँ, इसलिए नहीं कि, जब तुमने मेरा पत्र पढ़ा तो तुमको दुःख हुआ, परन्तु इसलिए कि तुम्हारे दु:ख ने तुम्हारे पाप से जो तुमको बहुत दु:ख पहुँचा रहा था, मन फिराने में सहायता की और इससे तुम्हारा दुःख शोक में बदल गया जो परमेश्वर की ओर से था, ऐसा शोक जिस से तुमने जो खो दिया था उससे कहीं अधिक पाया।
\v 10 इस प्रकार का शोक एक व्यक्ति को पाप से दूर कर देता है ताकि परमेश्वर उसे बचा सके; इस तरह का शोक होने से अंत में, लोगों को आनन्द ही मिलता है। दूसरी ओर, सांसारिक शोक, तुम्हारे पापों के लिए दुःख ही है क्योंकि तुम उन पापों में फँसे हुए थे, जो तुमको केवल मृत्यु ही दे सकता था।
\s5
\v 11 अब सोचो कि तुम कितना अच्छा करना चाहते थे क्योंकि तुमको यह दुःख हुआ था जो परमेश्वर ने तुमको दिया था। तुम मुझे दिखाना चाहते थे कि तुम निर्दोष थे। तुम उस पाप के आरोप के बारे में बहुत चिंतित थे, और तुम इतने चिंतित थे कि उस व्यक्ति ने कैसे पाप किया था। तुम चाहते थे कि न्याय किया जाए। संक्षेप में, तुमने दिखाया कि तुम निर्दोष थे।
\v 12 जो मैंने तुमको लिखा था, वह उसके लिए नहीं था जिसने गलत किया, और यह उस व्यक्ति के लिए भी नहीं लिखा गया, जिसने गलत सहा, परन्तु यह तुमको समझाने के लिए लिखा गया था कि तुम हमारे प्रति कितने निष्ठावान हो। परमेश्वर जानते हैं कि तुम हमारे प्रति निष्ठावान हो।
\s5
\v 13 इस सबके द्वारा हम बहुत उत्साहित हैं! हम तीतुस की बातें सुनकर बहुत आनन्दित हुए और हम इसलिए भी आनन्दित थे कि तुमने उसे विश्राम दिया था और उसकी सहायता की थी।
\v 14 मैंने उसे तुम्हारे बारे में बहुत अच्छी बातें बताई थीं, मैं तुम पर कितना गर्व करता था, और जब वह आया तो तुमने मुझे लज्जित नहीं होने दिया। हमने तीतुस से तुम्हारी बहुत प्रशंसा की थी, और तुमने सिद्ध किया कि यह सब सच था!
\s5
\v 15 अब तुम्हारे लिए उसका प्रेम और भी बढ़ गया है, क्योंकि उसने स्वयं देखा है कि तुम परमेश्वर का कैसा अनुसरण करते हो, और वह जानता है कि तुमने कैसे उसका स्वागत किया था - तुमने डरते हुए उसका स्वागत किया, क्योंकि परमेश्वर पवित्र है और काँपते हुए क्योंकि तुम जानते हो कि परमेश्वर महान है।
\v 16 मैं आनन्द से भरा हुआ हूँ क्योंकि हर बात में मुझे तुम पर विश्वास है।
\s5
\c 8
\p
\v 1 हम चाहते हैं कि तुम भाइयों और बहनों को जानना चाहिए कि परमेश्वर ने मकिदुनिया प्रान्त की कलीसियाओं के बीच कैसे अद्भुत तरीके से काम किए हैं।
\v 2 यद्यपि वहाँ के विश्वासी बहुत अधिक दुःख उठा रहे थे, तो भी वे आनन्दित थे, यद्यपि वे गरीब हैं, उन्होंने यरूशलेम के विश्वासियों के लिए बहुत पैसा दिया।
\s5
\v 3 उन्होंने जितना वे सक्षम थे उतना दिया - और मैं गवाही देता हूँ कि यह सच है - और कुछ लोगों ने आत्मत्याग किया और इतना दे दिया कि वे स्वयं ही घटी में हो गए, परन्तु उन्होंने फिर भी दिया। वे देना चाहते थे,
\v 4 और उन्होंने हम से बार-बार विनती की और हम से अनुरोध किया कि हम उन्हें इस दान में देने की अनुमति दें, जिससे कि वे उन विश्वासियों की सहायता कर सकें जिन्हें परमेश्वर ने अपने लिए अलग किया है।
\v 5 हमें नहीं लगता था कि वे इस प्रकार से दे सकते हैं। परन्तु उन्होंने पहले अपने को परमेश्वर को दे दिया, और फिर उन्होंने अपने को हमारे लिए दे दिए।
\s5
\v 6 तीतुस ने तुमको पैसों का योगदान देने के लिए प्रोत्साहित करना पहले ही शुरू कर दिया है, इसलिए हमने उसे संग्रह के अंत तक तुम्हारा मार्गदर्शन करने के लिए आग्रह किया।
\v 7 जैसा तुम दूसरों की तुलना में अधिक अच्छा करते हो, न केवल परमेश्वर पर तुम्हारे विश्वास में, परन्तु तुम्हारे उत्साह दिलानेवाले शब्दों में भी तुमने जो कुछ सीखा है उसमें, काम को पूरा करने में और हमारे लिए अपने प्रेम में भी तुम अधिक अच्छे हो, वैसे ही सुनिश्चित करो कि तुम भली भांति इस दान के काम को भी पूरा करो।
\p
\s5
\v 8 मैं तुमको, आदेश नहीं दे रहा हूँ, परन्तु मैं चाहता हूँ कि तुम आवश्यकता में पड़े लोगों की सहायता करके, यह सिद्ध करो कि तुम परमेश्वर से कितना प्रेम करते हो।
\v 9 मैं यह इसलिए कहता हूँ, कि तुम जानते हो कि यीशु मसीह तुम्हारे साथ कितने दयालु रहे हैं। यद्यपि उनके पास सब कुछ था, उन्होंने सब कुछ त्याग दिया और गरीब बन गए। उन्होंने तुमको धनवान बनाने के लिए ऐसा किया था।
\s5
\v 10 और इस में मुझे तुमको देने के लिए कुछ प्रोत्साहन भरे शब्द है: तुमने एक वर्ष पहले सहायता की इस सेवा को आरम्भ किया था, और जब तुमने इसे आरम्भ किया था, तब तुम इसे करने के लिए उत्सुक थे।
\v 11 उसी प्रकार, तुमको यह काम पूरा करना चाहिए। जैसे तुम यह काम शुरू करने के लिए उत्सुक थे, वैसे ही तुमको इसे समाप्त करने के लिए उत्सुक होना चाहिए, और यह जितना शीघ्र हो सके उतना शीघ्र करो।
\v 12 यदि तुम इसे करने के लिए उत्सुक हो, तो इस कार्य में जो भी तुम करते हो, परमेश्वर उसे स्वीकार करेंगे। जो पैसा तुम्हारे पास है उसमें से पैसे देकर तुमको यह काम पूरा करना होगा। जो तुम्हारे पास नहीं है, उसे तुम दे नहीं सकते हो।
\s5
\v 13 हम तुम पर कर नहीं लगा रहे हैं क्योंकि हम नहीं चाहते कि दूसरे लोगों को अपनी जिम्मेदारी उठानी न पड़े। परन्तु उनकी सहायता करना तुम्हारे लिए उचित है।
\v 14 इस समय तुम्हारे पास जरूरत से अधिक है; जितना तुम्हारे पास बचा है वह उनके लिए पर्याप्त होगा। भविष्य में, उनकी आवश्यकता से अधिक उनके पास होगा, और संभव है कि तब, वे तुम्हारी सहायता करने में समर्थ होंगे। यह सभी के लिए उचित है।
\v 15 यह शास्त्रों का वचन है:
\q "जिसके पास बहुत कुछ था उसके पास बाँटने के लिए कुछ नहीं बचा;
\q1 परन्तु जिसके पास केवल थोड़ा सा था, उसे कुछ भी घटी नहीं हुई।"
\p
\s5
\v 16 हम परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं क्योंकि उन्होंने तीतुस को तुम्हारे लिए मेरे जितनी चिंता करने का मन दिया है।
\v 17 जब हमने उससे तुम्हारी सहायता करने के लिए कहा, तो वह ऐसा करने के लिए सहमत हो गया। वह तुम्हारी सहायता करने के लिए इतना उत्सुक था कि उसने स्वयं तुम्हारे पास आने का निर्णय लिया।
\s5
\v 18 हमने तीतुस को एक और मसीही भाई के साथ भेजा है। कलीसिया के सभी विश्वासियों ने उसकी प्रशंसा की क्योंकि वह सुसमाचार का अच्छा प्रचार करता है।
\v 19 कलीसियाओं के विश्वासियों ने उसे हमारे साथ यरूशलेम जाने के लिए कहा कि विश्वासियों की सहायता करने के लिए जो दान तुमने और अन्य लोगों ने दिया है, उसे हम यरूशलेम ले जाएँ। हम इस पैसे का योगदान इसलिए करना चाहते हैं कि प्रभु का सम्मान हो और हर किसी को दिखाएँ कि हम विश्वासी एक दूसरे की कितनी सहायता करते हैं।
\p
\s5
\v 20 हम जो कुछ कर सकते हैं वह सब कर रहे हैं ताकि कोई न पूछे कि हम ये पैसे क्यों माँग रहे हैं जो तुम इतनी उदारता से दे रहे हो।
\v 21 हम यह सब एक ईमानदारी से और बिना छिपाए करने के लिए हर सावधानी कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि सब लोग यह जान लें कि हम यह कैसे कर रहे हैं, और हम जानते हैं कि परमेश्वर भी हमें देखते हैं।
\s5
\v 22 और इन भाइयों के साथ जिन्हें हम तुम्हारे पास भेज रहे हैं, हम एक और भाई को जोड़ रहे हैं। हमने देखा है कि यह भाई बहुत ही सच्चाई से महत्वपूर्ण कामों को करता है। अब वह तुम्हारी सहायता करने के लिए और भी अधिक उत्सुक है क्योंकि वह तुम पर बहुत विश्वास करता है।
\v 23 तीतुस के लिए क्या कहूँ, वह मेरा साथी है; वह मेरे साथ काम करता है। दूसरे भाइयों को हमारे क्षेत्र की कलीसियाओं ने भेजा कि वे हमारे साथ यरूशलेम को जाएँ। जब अन्य लोग उन्हें देखते हैं, तो वे उनके कारण मसीह की स्तुति करेंगे।
\v 24 इसलिए इन भाइयों को दिखाओ कि तुम उनसे कितना प्रेम करते हो; उन्हें दिखाओ क्यों हमने तुम्हारे बारे में इतनी अच्छी बात की, और क्यों हम सभी कलीसियाओं को यह कहना बंद न करें कि हम तुम पर कितना गर्व करते हैं।
\s5
\c 9
\p
\v 1 अब यरूशलेम के विश्वासियों के लिए जिन्हें परमेश्वर ने अपने लिए अलग किया है, पैसे के इस दान के बारे में- मुझे वास्तव में तुमको और कुछ भी लिखने की आवश्यकता नहीं है।
\v 2 मुझे पहले से ही पता है कि तुम सहायता करना चाहते हो, और मैंने मकिदुनिया के विश्वासियों से इस बात के लिए तुम्हारी प्रशंसा की है। बल्कि, मैंने उन्हें बताया कि तुम और अखाया प्रान्त के अन्य लोग पिछले वर्ष से इस दान के लिए तैयारी कर रहे थे। तुम्हारा उत्साह एक उदाहरण है जिसने मकिदुनिया के विश्वासियों को कार्य करने के लिए प्रेरित किया है।
\s5
\v 3 क्योंकि मैं अपने भाइयों को अपने आगे भेज रहा हूँ, ताकि जब वे तुम से मिले, तो वे देखेंगे कि हमने तुम्हारी प्रशंसा ऐसे ही नहीं की है। मैंने उन्हें अपने आगे इसलिए भी भेजा है कि तुम यह काम पूरा करने के लिए तैयार रहो, जैसा कि मैंने दूसरों को वचन दिया कि तुम तैयार पाए जाओगे।
\v 4 मुझे डर है कि जब मैं कुछ समय बाद आऊँगा कुछ मकिदुनी लोग मेरे साथ आ सकते हैं और उन्हें पता चल जाएगा कि तुम जो भी देना चाहते हो वह देने के लिए तैयार नहीं हो। अगर ऐसा होता है, तो हम लज्जित होंगे कि हम तुम्हारे बारे में बहुत अच्छी बातें करते थे - और तुम भी लज्जित होगे।
\v 5 मैंने निर्णय लिया है कि भाइयों को तुम्हारे पास भेजने का हर संभव प्रयास करना आवश्यक है, जिससे कि वे तुम्हारे द्वारा प्रतिज्ञा किए हुए दान को प्राप्त करने के लिए आवश्यक सब वस्तुओं को व्यवस्थित कर सकें। इस प्रकार, यह पैसा ऐसा होगा जिसे तुम स्वतंत्र रूप से देते हो, न कि तुमसे कर की तरह लिया जा रहा है जिसका हम तुम से भुगतान करवा रहे हैं।
\p
\s5
\v 6 मुद्दा यह है, जो भी कम बीज बोता है उसकी फसल छोटी सी होगी, परन्तु जो कोई बड़ी मात्रा में बीज बोता है वह एक बड़ी फसल काटेगा।
\v 7 पहले अपने मन में ठान लो कि कितना पैसा देना है, ताकि जब तुम इसे दोगे, तो तुमको दुःख नहीं होगा। तुमको ऐसा न लगे कि कोई तुमको देने के लिए विवश कर रहा है, क्योंकि परमेश्वर ऐसे व्यक्ति से प्रेम करते हैं जो देने के लिए प्रसन्न होता है।
\s5
\v 8 परमेश्वर तुमको सब प्रकार के वरदान अधिक से अधिक प्रदान कर सकते हैं ताकि तुम्हारे पास हमेशा अपनी आवश्यकता के लिए हो, और साथ ही अच्छे काम करने के लिए भी पर्याप्त हो।
\v 9 जैसा कि शास्त्रों में लिखा है:
\q "वह हर जगह लोगों को अच्छी वस्तुएँ देते हैं,
\q और वह गरीबों को आवश्यकता की वस्तुएँ, देते हैं। वह इन कामों को सदा करते हैं।
\p
\s5
\v 10 जो बीज बोता है, परमेश्वर उसको बीज देते हैं, और जो रोटी पकाता है वह उसे रोटी देते हैं। वह तुम्हारे लिए बीज भी उपलब्ध करेंगे और जो तुम दूसरों को देने में समर्थ हो; उसे भी बढ़ा देंगे।
\v 11 परमेश्वर तुमको कई रीति से धनवान बना देंगे, ताकि तुम उदार बन सको। इसका परिणाम यह होगा कि, बहुत से लोग हम प्रेरितों की सेवा के कारण जो प्राप्त करते हैं; उसके कारण परमेश्वर का धन्यवाद करेंगे।
\p
\s5
\v 12 हम इस पैसे को न केवल हमारे मसीही भाई-बहनों की सहायता करने के लिए प्राप्त करते हैं; वरन इसलिए भी कि बहुत से विश्वासी परमेश्वर का धन्यवाद करें।
\v 13 क्योंकि तुमने यह कार्य आरम्भ किया है, इससे तुमने दिखाया है कि तुम किस प्रकार के लोग हो। तुम उस परमेश्वर की आज्ञा मानने और मसीह के सुसमाचार में जो कुछ भी कहा गया है उस पर विश्वास करने के द्वारा परमेश्वर का आदर करते हो। तुम उदारता से देकर भी उनका आदर करते हो।
\v 14 जिन लोगों को तुम दे रहे हो वे तुमको देखने की बहुत इच्छा रखते हैं; वे तुम्हारे लिए प्रार्थना करेंगे, क्योंकि परमेश्वर अद्भुत रीति से तुम पर दयालु हुए हैं।
\v 15 हम परमेश्वर के इस दान के लिए उनका धन्यवाद करते हैं - उनका दान इतना बड़ा है कि हम इसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते हैं।
\s5
\c 10
\p
\v 1 अब मैं, पौलुस तुम से विनती करता हूँ - और मैं नम्र और दीन होकर ऐसा करता हूँ, क्योंकि मसीह ने मुझे ऐसा बनाया है: मैं, जब तुम्हारे सामने था तब मैं लजाता था, परन्तु जब मैं दूर से यह पत्र लिख रहा हूँ तब मैं सशक्त हूँ:
\v 2 मैं तुम से विनती करता हूँ कि जब मैं आऊँगा, तो मुझे तुम्हारे साथ कठोर होना न पड़े। परन्तु, मुझे डर है, कि मुझे उन लोगों के साथ कठोर होना ही पड़ेगा, जो मानते हैं कि हम मानवीय मानकों के अनुसार काम करते हैं।
\s5
\v 3 यद्यपि हम अब हमारे भौतिक शरीर में रह रहे हैं, हमारा युद्ध ऐसा है जैसे सेनाएँ युद्ध कर रही हैं।
\v 4 और हम हथियारों के साथ युद्ध कर रहे हैं, परन्तु ये हथियार मनुष्यों द्वारा नहीं, परन्तु परमेश्वर द्वारा बनाए गए हैं। ये हथियार शक्तिशाली हैं, और इतने शक्तिशाली हैं कि वे किसी भी झूठे तर्क का खंडन कर सकते हैं।
\s5
\v 5 इस तरह हम हर झूठे तर्क को और जो भी परमेश्वर के विरुद्ध उठते हैं उनका खंडन कर सकते हैं। ये वे लोग हैं जो लोगों को परमेश्वर को जानने से रोकने का प्रयास करते हैं। हम लोगों के हर विचार को पकड़ते हैं और हम उन विचारों को हमारे बन्दियों के जैसे मानते हैं। परमेश्वर उन लोगों में काम करेंगे, जिन्होंने उनकी आज्ञा नहीं मानी, और वे उनकी ओर मुड़ेंगे, और एक दिन वे मसीह की आज्ञा का पालन करेंगे।
\v 6 जब तुम पूरी तरह से मसीह की आज्ञा मानोगे, तब हम उन सभी को दण्ड देने के लिए तैयार होंगे, जो अब भी उनकी आज्ञाओं का पालन नहीं करते हैं।
\p
\s5
\v 7 तुमको स्पष्ट तथ्यों को देखना चाहिए। अगर किसी को विश्वास है कि वह मसीह का है, तो उसे याद दिलाएँ कि जैसे वह मसीह का है, वैसे ही हम भी मसीह के हैं!
\v 8 जब मैं ने स्वयं प्रेरित के रूप में अपने अधिकारों के बारे में अपनी प्रशंसा की, तो यह तुम्हारे लिए बहुत अधिक हो गया होगा। प्रभु ने मुझे यह अधिकार तुमको नाश करने के लिए नहीं, परन्तु तुम्हारी सहायता करने और तुमको दृढ़ बनाने के लिए दिया है। इसलिए मुझे प्रभु ने जो अधिकार दिया है उसके विषय में मैं लज्जित नहीं हूँ।
\s5
\v 9 जब तुम मेरे पत्रों को पढ़ते हो, तब वे तुमको कठोर लगते होंगे, परन्तु मैं नहीं चाहता कि तुम उन्हें पढ़ते समय डरो। मैंने तुमको डराने के लिए उन्हें नहीं लिखा है।
\v 10 कुछ लोग जो मुझे जानते हैं और मेरे पत्रों को पढ़ते हैं, वह कहते हैं, "हमें उसके पत्रों को गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि वे शक्तिशाली बातें कहता है, परन्तु जब पौलुस हमारे साथ है, तब वह शारीरिक रूप से कमजोर है और वह सुनने योग्य भी नहीं है।"
\s5
\v 11 जो लोग मेरी आलोचना करते हैं, वे जानते हैं कि हमारे पत्रों में हम तुमको जो कुछ लिखते हैं, वह वही है जो हम करते हैं जब हम तुम्हारे साथ होते हैं।
\p
\v 12 जो अपनी प्रशंसा स्वयं करते हैं, हम उन लोगों के साथ स्वयं की तुलना करने का प्रयास भी नहीं करेंगे। जब वे स्वयं की एक दूसरे के साथ तुलना करते हैं, तो यह सिद्ध होता है कि वे मूर्ख हैं।
\s5
\v 13 हम स्वयं की प्रशंसा केवल उन बातों के लिए करेंगे जो परमेश्वर ने हमें करने के लिए दी हैं। और हम केवल उसी प्रकार काम करेंगे जैसे उन्होंने हमें काम करने के लिए कहा है; हमारे काम में तुम भी हो।
\v 14 जब हम तुम्हारे पास पहुँचे, हम उस स्थान से आगे नहीं गए जहाँ परमेश्वर ने हमें काम करने के लिए नियुक्त किया था। उन्होंने हमें तुम्हारा क्षेत्र सौंपा और हम पहले लोग थे जिन्होंने तुमको मसीह के बारे में सुसमाचार सुनाया।
\p
\s5
\v 15 परमेश्वर ने दूसरो को जो काम दिया है उसके बारे में हम घमंड नहीं कर रहे हैं, कि जैसे हमने वह काम किया। इसकी अपेक्षा, हम आशा करते हैं कि तुम अधिक से अधिक परमेश्वर पर भरोसा करोगे, और इसी प्रकार, परमेश्वर हमें काम करने के लिए एक बड़ा क्षेत्र प्रदान करेंगे।
\v 16 इसके लिए हम आशा करते हैं, ताकि हम उन लोगों के साथ सुसमाचार बाँट सकें, जो तुम से दूर रहते हैं। हम उस काम के लिए श्रेय नहीं लेंगे जो परमेश्वर का कोई अन्य दास अपने क्षेत्र में कर रहा है जहाँ वह उनकी सेवा करता है।
\s5
\v 17 शास्त्रों में कहा गया है,
\q "जो गर्व करता है, उसे प्रभु पर गर्व करना चाहिए।"
\p
\v 18 जब कोई व्यक्ति अपने काम के लिए स्वयं की प्रशंसा करता है, तो परमेश्वर उसे ऐसा करने के लिए प्रतिफल नहीं देते। इसकी अपेक्षा, वह उन लोगों को प्रतिफल देते हैं जिनका उन्होंने अनुमोदन किया है।
\s5
\c 11
\p
\v 1 किसी व्यक्ति के लिये अपनी स्वयं की प्रशंसा करना मूर्खता है, परन्तु मैं यही कर रहा हूँ। कृपया मुझे थोड़ा समय देकर सहन करो।
\v 2 क्योंकि मैं तुमको सावधानी से सुरक्षित करना चाहता हूँ। मैं तुम्हारी रक्षा करना चाहता हूँ जिस तरह परमेश्वर स्वयं तुम्हारी रक्षा करते हैं। मैं एक ऐसे पिता के समान हूँ जिसने एक ही पति के साथ तुम्हारा विवाह करने की प्रतिज्ञा की और जो तुमको शुद्ध कुँवारी दुल्हन के रूप में मसीह को प्रस्तुत करना चाहता है।
\s5
\v 3 परन्तु जैसा मैं तुम्हारे बारे में सोचता हूँ, तो मुझे डर लगता है कि किसी ने तुमको धोखा दिया है, जैसे शैतान ने हव्वा को धोखा दिया था। मुझे डर है कि किसी ने तुमको बहका दिया है कि सच्चे मन से मसीह से प्रेम करना छोड़ दो।
\v 4 मैं यह इसलिए कहता हूँ कि जब कोई आकर तुम्हें मसीह के बारे में ऐसी बातें सुनाता है जो हमने नहीं सुनाई जो तुम सुनते हो, या वह तुम्हें परमेश्वर के आत्मा से भिन्न आत्मा पाने के लिए कहता है या भिन्न सुसमाचार सुनाता है तो तुम उसे सहन करते हो।
\s5
\v 5 लोग उन शिक्षकों को "बड़े प्रेरित" कहते हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे मुझसे ज्यादा बड़े हैं।
\v 6 यह सच हो सकता है कि मैंने कभी भी उत्तम भाषण देने का अध्ययन नहीं किया, लेकिन मैं निश्चित रूप से परमेश्वर के बारे में बहुत सी बातें जानता हूँ, जैसा कि तुमने देखा जब मैंने तुमको बताया था।
\p
\s5
\v 7 क्या मेरा एक दीन व्यक्ति के रूप में इस तरह से तुम्हारी सेवा करना गलत था कि दूसरों ने मेरी नहीं तुम्हारी प्रशंसा की? मैं ने तुमसे कोई पैसा न लेकर सुसमाचार का प्रचार किया तो क्या वह गलत था?
\v 8 हाँ, मैंने अन्य कलीसियाओं में विश्वास करने वालों को मुझे पैसा देने की अनुमति दी, ताकि मैं तुम्हारी सेवा कर सकूँ। शायद तुम कहोगे कि मैं उन्हें लूट रहा था। परन्तु मैंने तुम से कुछ नहीं माँगा।
\v 9 एक समय था जब मैं तुम्हारे साथ था तो मुझे कई वस्तुओं की आवश्यकता थी, परन्तु मैंने तुम से पैसा कभी नहीं माँगा। मकिदुनिया से आने वाले भाई-बहनों ने मेरी सभी आवश्यकताओं को पूरा किया। मैंने वह सब कुछ किया है जो मैं कर सकता था, कि तुमको मेरे कारण कठिनाई न हो, और मैं ऐसा करता भी रहूँगा।
\s5
\v 10 मैं मसीह के बारे में पूरी सच्चाई बता रहा हूँ और मैंने उसके लिए कैसे काम किया है वह भी बता रहा हूँ। और मैं अखाया के सब क्षेत्रों में हर किसी को यह बताता रहूँगा।
\v 11 तुम वास्तव में यह सोचते हो कि मैंने तुम से पैसे लेने से इसीलिए मना किया क्योंकि मैं तुमको प्रेम नहीं करता; क्या तुम ऐसा सोचते हो? इससे बिलकुल विपरीत! परमेश्वर जानते हैं कि मैं तुम से प्रेम करता हूँ।
\p
\s5
\v 12 मैं इसी तरह तुम्हारी सेवा करता रहूँगा, कि मैं उन लोगों को रोकूँ जो कहते हैं कि वे हमारे बराबर हैं। उनके पास अपने दावों के लिए कोई बहाना नहीं होगा।
\v 13 ऐसे लोग झूठे प्रेरित हैं जो दावा करते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें भेजा है। वे ऐसे मज़दूर हैं जो हमेशा झूठ बोलते हैं, और वे मसीह के प्रेरित होने का स्वाँग करते हैं।
\s5
\v 14 हमें उनके बारे में परेशान नहीं होना चाहिए। क्योंकि, शैतान भी परमेश्वर की उपस्तिथि के प्रकाश से चमकने वाले एक स्वर्गदूत का रूप धारण करके दिखावा करता है।
\v 15 उसके सेवक भी परमेश्वर की सेवा करने का नाटक करते हैं; वे अच्छे होने का दिखावा करते हैं। परमेश्वर उन्हें उनके योग्य दण्ड देंगे।
\p
\s5
\v 16 किसी को भी यह नहीं सोचना चाहिए कि मैं मूर्ख हूँ। परन्तु यदि तुम वास्तव में मुझे मूर्ख समझते हो, तो मैं अपने बारे में थोड़ी और प्रशंसा करूँगा।
\v 17 जब मैं इस प्रकार से बोलता हूँ, तो प्रभु मेरे बारे में ऐसा नहीं बोलते हैं; केवल मैं ही हूँ जो मूर्खों के समान बोल रहा हूँ।
\v 18 कई लोग इस बात पर गर्व करते हैं कि वे इस जीवन में कौन हैं। मैं भी उस तरह से गर्व कर सकता हूँ।
\s5
\v 19 तुम निश्चित रूप से मेरी मूर्खता को सह लोगे, क्योंकि तुम इतने बुद्धिमान हो!
\v 20 मैं यह इसलिए कहता हूँ कि तुमने उन अगुवों को सहन किया है जो तुम्हारे साथ दासों का सा व्यवहार करते हैं; तुमने उन लोगों का अनुसरण किया जिन्होंने तुम्हारे बीच विभाजन कर दिया; तुमने अपने अगुवों को तुमसे लाभ उठाने दिया; तुमने अपने अगुवों को दूसरों की तुलना में स्वयं को अधिक उत्तम समझने की अनुमति दी; और तुमने उन्हें तुम्हारे चेहरे पर थप्पड़ मारने की भी अनुमति दी, परन्तु तुमने कुछ नहीं किया। तो क्या तुम सच में अपने आप को बुद्धिमान कहते हो?
\v 21 मैं लज्जित हो सकता हूँ, क्योंकि जब हम तुम्हारे साथ थे, तो हम तुम से ऐसा व्यवहार करने से बहुत डरते थे।
\s5
\v 22 क्या वे लोग इब्रानी हैं? मैं भी हूँ। क्या वे इस्राएली हैं? मैं भी हूँ। क्या वे अब्राहम के वंशज हैं? मैं भी हूँ।
\v 23 क्या वे मसीह के सेवक हैं? मैं एक ऐसे व्यक्ति के समान बोलता हूँ जिसका दिमाग ख़राब हो गया है! मैंने उनमें से हर किसी की तुलना में अधिक कठिन परिश्रम किया; मैं उनकी तुलना में अधिक बार जेलों में रहा हूँ; मुझे उनकी तुलना में अधिक गंभीर मार पड़ी है, और मुझे उनकी तुलना में अधिक बार मौत का सामना करना पड़ा है।
\s5
\v 24 पाँच बार यहूदियों ने मुझे उनतालीस उनतालीस कोड़ों का दण्ड दिया, हर बार तब तक मारा जब तक कि मैं लगभग मर नहीं गया।
\v 25 तीन बार मुझे बन्दी बनाने वालों ने लाठी से पीटा था, एक बार उन्होंने मुझे मारने के लिए मुझ पर पत्थर फेंके, तीन अलग-अलग जहाजों पर मैं तूफानों में फँस गया था, और मैंने बचाव की आशा में खुले समुद्र में एक रात और एक दिन बिताया है।
\v 26 मैं कई यात्राओं पर गया हूँ और मुझे नदियों में खतरा हुआ, मैं लुटेरों से खतरे में था, मेरे अपने लोग यहूदियों से खतरे में था, गैर-यहूदियों से खतरे में था, शहरों में खतरे में था, जंगल में खतरे में था, समुद्र में खतरे में था, झूठे भाइयों से खतरे में था जिन्होंने मुझे धोखा दिया था।
\s5
\v 27 मैंने कठोर परिश्रम किया है और मैं कठिनाई में रहा हूँ, नींद के बिना चलता रहा; मैं भोजन के बिना भूखा और प्यासा रहा हूँ, मैं ठंड में पर्याप्त कपड़ों के बिना रहा हूँ।
\v 28 इन सब के अतिरिक्त, मैं हर दिन चिंता करता हूँ कि कलीसिया का क्या हाल है, वे कितने अच्छे होंगे।
\v 29 कोई भी साथी विश्वासी दुर्बल नहीं कि मैं उसके साथ दुर्बल न होता। कोई भी साथी विश्वासी ऐसा नहीं है जो किसी को पाप में ले गया और मैं क्रोधित न हुआ।
\p
\s5
\v 30 यदि मुझे घमंड करना है, तो मैं केवल इस तरह की बातों के बारे में घमंड करूँगा, जो दिखाती है कि मैं कितना दुर्बल हूँ।
\v 31 परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह के पिता - हर एक व्यक्ति और हर एक वस्तु उनकी स्तुति करे! - वह जानते हैं कि मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ।
\p
\s5
\v 32 दमिश्क शहर में, राजा अरितास के राज्यपाल ने मुझे गिरफ्तार करने की आशा से शहर के चारों ओर पहरा बैठा दिया।
\v 33 परन्तु मेरे मित्रों ने मुझे एक टोकरी में डाल कर मुझे दीवार से एक खिड़की से शहर के बाहर निकाल दिया, और मैं उससे बच गया।
\s5
\c 12
\p
\v 1 यद्यपि, यह अच्छा नहीं है, फिर भी मैं स्वयं का बचाव करूँगा, इसलिए मैं कुछ दर्शनों के बारे में घमंड करता रहूँगा जो परमेश्वर ने मुझे दिया था।
\v 2 चौदह वर्ष पहले परमेश्वर मुझे, एक ऐसे व्यक्ति को जो मसीह से जुड़ गया है, उच्चतम स्वर्ग तक ले गए - हालाँकि, केवल परमेश्वर जानते हैं कि उन्होंने मुझे केवल मेरी आत्मा में उठाया था या मेरे शरीर को भी।
\s5
\v 3 और मैं - चाहे मेरी आत्मा में या मेरे शरीर में, केवल परमेश्वर ही जानते हैं -
\v 4 स्वर्ग में एक जगह तक ले जाया गया, वहाँ मैंने ऐसी बातें सुनीं जो इतनी पवित्र थीं कि मैं उन्हें तुमको नहीं बता पा रहा हूँ।
\v 5 मैं इसके बारे में घमंड कर सकता हूँ - परन्तु यह सब परमेश्वर ने किया, न कि मैंने। मैं केवल इस बात पर स्वयं पर गर्व कर सकता हूँ कि परमेश्वर मुझ में, जो एक दुर्बल व्यक्ति है, कैसे काम करते हैं।
\s5
\v 6 अगर मैं अपने बारे में घमंड करता रहा, तो भी मैं मूर्ख नहीं ठहरूँगा, क्योंकि मैं केवल सच ही कह रहा हूँ। यद्यपि, मैं अब और घमंड नहीं करूँगा, कि तुम मुझ से जो कुछ सुन चुके हो, या तुम पहले से ही मेरे बारे में जानते थे, उसके द्वारा तुम मेरा न्याय करो।
\v 7 इसलिए मैं उस अद्भुत दर्शन का विषय छोड़ दूँगा जिसे परमेश्वर ने मुझे दिया था; अपेक्षा इसके कि मुझे तुमको यह बताना चाहिए कि परमेश्वर ने मुझे एक असहनीय कष्ट दिया जो शैतान ने मुझे पीड़ित करने के लिए किया था। परमेश्वर ने ऐसा इसलिए किया है कि मैंने जो दर्शन देखा था, उसके बारे में मुझे घमंड न हो।
\s5
\v 8 मैंने इस बात के बारे में परमेश्वर से तीन बार प्रार्थना की; हर बार मैंने उसे हटाने के लिए उनसे विनती की,
\v 9 परन्तु उन्होंने मुझ से कहा, "नहीं, मैं इसे तुझ से दूर नहीं करूँगा। क्योंकि तुझे केवल मेरे प्रेम की और मेरे साथ की आवश्यकता है, क्योंकि जब तू निर्बल होता है तब मेरा सबसे शक्तिशाली काम तुझ में होता है।" यही कारण है कि मैं अपनी निर्बलता पर गर्व करता हूँ, ताकि मसीह की शक्ति मुझ में समाकर मुझे बल दे।
\v 10 मैं किसी भी बात का सामना कर सकता हूँ क्योंकि मसीह मेरे साथ है। ऐसा हो सकता है कि मुझे निर्बल होना पड़े, या अन्य लोग मेरी निन्दा करें, या यह कि मुझे बड़े क्लेश हों, या अन्य लोग मुझे मारने का प्रयास करें। ऐसा हो सकता है कि मुझे विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों का सामना करते रहना पड़े। किसी भी स्थिति में, जब मेरी शक्ति समाप्त हो जाती है, तब मैं सबसे अधिक शक्तिशाली होता हूँ।
\p
\s5
\v 11 जब मैं इस तरह से लिखता हूँ, तो मैं अपनी प्रशंसा करता हूँ। परन्तु मुझे ऐसा करना पड़ा, क्योंकि तुमको मुझ पर विश्वास होना चाहिए था। मैं इन "बड़े-प्रेरितों" की तुलना में उतना ही अच्छा हूँ, भले ही मैं वास्तव में कुछ नहीं हूँ।
\v 12 मैंने तुमको एक सच्चे प्रेरित होने का प्रमाण या सच्चा संकेत दिया है - चमत्कार जो मैंने तुम्हारे बीच में बहुत धीरज के साथ किए थे: वह अद्भुत चमत्कार जो सिद्ध करते हैं कि मैं वास्तव में यीशु मसीह की सेवा करता हूँ।
\v 13 तुम निश्चय ही अन्य सब कलीसियाओं के समान ही महत्वपूर्ण थे! केवल तुम इस तरह अलग थे, कि मैंने तुम से पैसा नहीं लिया था, जैसा मैंने उनसे लिया था। मुझे क्षमा कर दो कि मैंने तुम से यह नहीं माँगा!
\p
\s5
\v 14 इसलिए यह बात सुनो! अब मैं तुम्हारे पास आने को तीसरी बार यात्रा करने के लिए तैयार हूँ, और अन्य सभी यात्राओं की तरह, इस यात्रा में भी, मैं तुम में से किसी से भी पैसे नहीं माँगूँगा। मुझे तुम से कुछ नहीं चाहिए। मैं केवल तुमको चाहता हूँ! तुम इस सिद्धांत को जानते हो कि हम सभी अपने परिवारों में पालन करते है: बच्चों को अपने माता-पिता के खर्चों का भुगतान नहीं करना चाहिए, परन्तु माता-पिता बच्चों के खर्चों का भुगतान करने के लिए पैसा बचाते हैं।
\v 15 मैं संपूर्ण आनन्द से तुम्हारे लिए सब कुछ करूँगा जो मैं कर सकता हूँ, भले ही उसमें मुझे मेरा जीवन खोना हो। अगर इसका मतलब है कि मैं तुम से पहले से कहीं अधिक प्रेम करता हूँ, तो निश्चय ही तुमको भी पहले से कहीं अधिक मुझ से प्रेम करना चाहिए।
\p
\s5
\v 16 और इसलिए, कोई यह कह सकता है कि यद्यपि मैंने तुम से पैसे नहीं माँगे, मैंने अपनी आवश्यकताओं के लिए, स्वयं ही भुगतान करने के लिए तुमको धोखा दिया।
\v 17 क्या मैंने कभी तुमको किसी और को पैसों के लिए भेजकर धोखा दिया है?
\v 18 उदाहरण के लिए, मैंने तीतुस और दूसरे भाई को तुम्हारे पास भेजा था, परन्तु उन्होंने उनकी देखभाल करने के लिए तुम से कुछ नहीं माँगा, क्या उन्होंने माँगा? क्या तीतुस ने कभी तुम से अपने खर्चों का भुगतान कराया? तीतुस और दूसरे भाई ने तुम से मेरे जैसा ही व्यवहार किया, क्या ऐसा नहीं है? हम अपना जीवन एक ही तरह जीते हैं; तुमको हमारे लिए कुछ भी भुगतान नहीं करना पड़ा।
\p
\s5
\v 19 क्या तुमको सच में लगता है कि मैं इस पत्र में स्वयं का बचाव करने का प्रयास कर रहा हूँ? परमेश्वर जानते हैं कि मैं मसीह से जुड़ा हुआ हूँ, और मैंने यह सब इसलिए लिखा ताकि तुमको उन पर भरोसा रखने के लिए दृढ़ करूँ।
\s5
\v 20 परन्तु जब मैं तुम्हारे पास आऊँगा, तो मैं तुमको जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं पाऊँगा। जब मैं आऊँगा तो तुम मेरी बात सुनना नहीं चाहोगे। मुझे डर है कि तुम अपने बीच में बहुत बहस कर रहे हो और तुम में से कुछ लोग एक दूसरे से ईर्ष्या करते हैं, और तुम में से कुछ एक दूसरे से बहुत क्रोधित हो गए हैं। मुझे डर है कि तुम में से कुछ अपने को पहले स्थान पर रखते हैं, कि तुम एक दूसरे के बारे में चुगली करते हो, और तुम में से कुछ बहुत स्वार्थी हैं।
\v 21 मुझे डर है कि जब मैं तुम्हारे पास आऊँगा और तुमको देखूँगा, तो परमेश्वर मुझे दीनता प्रदान करेंगे। मुझे डर है कि मुझे उन लोगों के लिए शोक करना होगा जिन्होंने पहले परमेश्वर की आज्ञा न मानी और व्यभिचार के पाप करना नहीं छोड़ा।
\s5
\c 13
\p
\v 1 यह तीसरी बार है कि मैं इन मामलों को निपटाने के लिए तुम्हारे पास आ रहा हूँ। इन मुद्दों से निपटने का सिद्धांत यही है जो पवित्र शास्त्र में कहा गया है: "एक दूसरे के विरुद्ध प्रत्येक आरोप, दो या तीन व्यक्तियों की गवाही पर आधारित होना चाहिए," न कि केवल एक व्यक्ति के आरोप पर।
\v 2 जब मैं वहाँ दूसरी यात्रा में आया था, मैंने उन लोगों से कहा था जिन्होंने पाप किया था और जिन पर पूरी कलीसिया के सामने आरोप लगाया गया था, और पूरी कलीसिया से कहा था, और अब मैं इसे फिर से कहूँगा: मैं इन आरोपों को अनदेखा नहीं करूँगा।
\s5
\v 3 मैं तुमको यह इसलिए लिखता हूँ कि तुम प्रमाण ढूँढ़ रहे हो कि मसीह मेरे द्वारा बोल रहे हैं। वह तुम्हारे साथ व्यवहार करने के लिए निर्बल नहीं है; इसकी अपेक्षा, वह अपनी महान शक्ति के द्वारा तुम में काम कर रहे हैं।
\v 4 हम मसीह के उदाहरण से सीखते हैं, क्योंकि उन लोगों ने उनकी दुर्बलता में उन्हें क्रूस पर चढ़ाया था, फिर भी परमेश्वर ने उन्हें फिर जीवित कर दिया है। और हम भी दुर्बल हैं जब हम अपने जीवन में हैं उनके उदाहरण का अनुसरण करते हैं, परन्तु यीशु के साथ, परमेश्वर हमें भी दृढ़ करेंगे, जब हम तुम से उन पापों के बारे में बात करते हैं जो तुम में से कुछ लोगों ने किए हैं।
\p
\s5
\v 5 तुम अपने को परखो और देखो कि तुम कैसे जी रहे हो। तुमको उन प्रमाणों को खोजना चाहिए जिस से सिद्ध हो कि तुम परमेश्वर पर भरोसा रखते हो कि परमेश्वर तुम से प्रेम करते हैं और तुम पर दया करते हैं। तुमको ही स्वयं को परखना होगा और पूछना होगा कि यीशु मसीह तुम्हारे अन्दर रहते हैं या नहीं? निःसन्देह, वह तुम में से हर एक में रहते हैं, जब तक कि तुम इस परीक्षा में विफल नहीं होते हो।
\v 6 और मुझे आशा है कि तुम पाओगे कि हम परीक्षा में उत्तीर्ण हुए हैं और मसीह हम में वास करते हैं।
\s5
\v 7 अब हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं कि तुम कुछ भी गलत न करो। हम यह प्रार्थना इसलिए नहीं करते हैं कि हम उस परीक्षा में उत्तीर्ण होकर अपने को तुम से अधिक अच्छा दिखाना चाहते हैं। इसकी अपेक्षा, हम चाहते हैं कि तुम सही बातों को जान लो और उसे करो। यहाँ तक कि यदि हम असफल होते हैं, तो भी हम चाहते हैं कि तुम सफल हो जाओ।
\v 8 सच्चाई हम पर नियंत्रण करती है; हम सच्चाई के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकते हैं।
\s5
\v 9 जब हम निर्बल होते हैं और तुम दृढ़ होते हो तब हमें प्रसन्नता होती है। हम प्रार्थना करते हैं कि तुम पूर्ण रूप से परमेश्वर पर भरोसा रखो और उनकी आज्ञा का पालन कर सको।
\v 10 मैं अब तुम से दूर हूँ जब मैं तुमको यह पत्र लिखता हूँ। जब मैं तुम्हारे पास आऊँगा, तो मुझे तुम्हारे साथ कठोर व्यवहार करने की आवश्यकता नहीं होगी। क्योंकि परमेश्वर ने मुझे एक प्रेरित बनाया, इसलिए मैं तुमको प्रोत्साहित करना चाहता हूँ और तुमको हताश नहीं करना चाहता।
\p
\s5
\v 11 अंतिम बात यह है, भाइयों और बहनों: आनंदित रहो! अपने पहले किए गए कामों से बढ़कर काम और व्यवहार करो, और परमेश्वर को अनुमति दो कि वह तुमको साहस दें। एक दूसरे से सहमत हो जाओ और शान्ति से एक साथ रहो। यदि तुम यह काम करते हो, तो परमेश्वर, जो तुमसे प्रेम करते हैं और तुमको शान्ति देते हैं, तुम्हारे साथ होंगे।
\v 12 एक दूसरे का इस तरह से स्वागत करो जिससे तुम सबको दिखाओ कि तुम एक दूसरे से कितना प्रेम करते हो।
\s5
\v 13 हम सब जो यहाँ है, जिन्हें परमेश्वर ने स्वयं के लिए अलग किया है, तुमको नमस्कार करते हैं!
\v 14 प्रभु यीशु मसीह तुम्हारे प्रति दया का व्यवहार करें, परमेश्वर तुम से प्रेम करें, और पवित्र आत्मा तुम सब के साथ रहें।

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\id GAL Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h GALATIANS
\toc1 The Letter to the Galatians
\toc2 Galatians
\toc3 gal
\mt1 गलातियों
\s5
\c 1
\p
\v 1-2 मैं पौलुस गलातिया प्रान्त के मेरे प्यारे भाइयों और बहनों को यह पत्र लिख रहा हूँ। मैं पौलुस एक प्रेरित हूँ, मुझे किसी समूह के लोगों ने प्रेरित नियुक्त नहीं किया है और न ही परमेश्वर ने किसी से कहा कि मुझे प्रेरित नियुक्त करे। इसकी अपेक्षा, मैं प्रेरित इसलिए हूँ कि यीशु मसीह और पिता परमेश्वर ने मुझे एक प्रेरित के रूप में भेजा है-हाँ, परमेश्वर पिता, जिन्होंने मसीह को मरने के बाद फिर से जीवित किया! मैं और सब साथी विश्वासी जो मेरे साथ यहाँ हैं, गलातिया प्रान्त की कलीसियाओं को नमस्कार करते हैं।
\s5
\v 3 मैं प्रार्थना करता हूँ कि हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह कृपा करके तुम्हारी सहायता करें और तुम्हें शान्ति दें।
\v 4 मसीह ने हमारे पापों के कारण अपने आप को परमेश्वर के सम्मुख बलि कर दिया, कि हमें इस संसार से जहाँ पर लोग बुरे काम करते हैं; दूर ले जाएँ। यीशु ने ऐसा इसलिए किया कि हमारे पिता परमेश्वर उनसे यही चाहते थे।
\v 5 क्योंकि यह सच है, इसलिए आओ अब हम परमेश्वर की स्तुति सदा सर्वदा करते रहें।
\p
\s5
\v 6 जैसा कि तुम जानते हो मसीह ने तुम्हें अपनी दया से बुलाया है कि तुम उन पर विश्वास करो। लेकिन अब मुझे आश्चर्य होता है कि तुमने उन पर विश्वास करना त्याग दिया है! अब तुम किसी और सुसमाचार पर विश्वास करते हो, जिसे कुछ लोग कहते हैं कि वह परमेश्वर का सच्चा सुसमाचार है।
\v 7 मसीह ने तो हमें कभी भी किसी दूसरे सुसमाचार के बारे में नहीं बताया, लेकिन दूसरे लोग तुम्हें उलझन में डाल रहे हैं। वे मसीह के सच्चे सुसमाचार को बदल देना चाहते हैं; वे चाहते हैं कि तुम विश्वास करो कि मसीह ने वास्तव में कुछ अलग बात बतायी है।
\s5
\v 8 लेकिन यदि हम प्रेरित या स्वर्ग से कोई स्वर्गदूत भी आकर तुम्हें कोई सुसमाचार सुनाएँ जो उस सुसमाचार से भिन्न हो जो हमने आरंभ में तुम्हे सुनाया था तो परमेश्वर उस व्यक्ति को सदा के लिए दण्ड दे।
\v 9 हमने तुमसे पहले भी कहा है, और मैं अब फिर से कहता हूँ कि कोई तुम्हें एक भिन्न सुसमाचार सुना रहा है जिसे वह कहता है कि ये सही है, परन्तु यह वह सुसमाचार नहीं है जिस पर तुम ने विश्वास किया था। अत: मैं परमेश्वर से यह विनती करता हूँ कि वह उस व्यक्ति को हमेशा के लिए दोषी ठहराए।
\v 10 आवश्यक नहीं कि लोग मुझे पसंद करें, क्योंकि परमेश्वर ही मुझे सही ठहराते है। मैं लोगों को प्रसन्न करने का प्रयास नहीं कर रहा हूँ। यदि मैं लोगों को प्रसन्न कर रहा हूँ तो मैं वास्तव में मसीह की सेवा नहीं कर रहा हूँ।
\p
\s5
\v 11 मेरे साथी विश्वासियों, मैं चाहता हूँ कि तुम यह जान लो कि जो सन्देश मैं मसीह के बारे में लोगों को सुनाता हूँ वह किसी व्यक्ति द्वारा नहीं रचा गया।
\v 12 मैंने यह सुसमाचार किसी साधारण मनुष्य से नहीं पाया है, और ना ही किसी व्यक्ति ने मुझे दिया है। इसकी अपेक्षा, स्वयं यीशु मसीह ने मुझे यह सिखाया था।
\p
\s5
\v 13 लोगों ने तुम्हें यह बताया है कि पहले मैंने क्या किया था जब मैं यहूदी विधि से परमेश्वर की आराधना करता था। मैंने परमेश्वर द्वारा स्थापित विश्वासियों के समूह के विरुद्ध सदैव बुरे काम ही किए थे। मैंने विश्वासियों को और उनके समूहों को नष्ट करने का प्रयास किया था।
\v 14 मैं यहूदीयों की रीति के अनुसार अपनी उम्र के किसी भी यहूदी की तुलना में परमेश्वर का अधिक सच्चे मन से आदर करता था। मैं बहुत क्रोधित होता था जब देखता था कि दूसरे यहूदी हमारे पूर्वजों की परम्पराओं को मानने से इन्कार करते हैं।
\s5
\v 15 तथापि, मैं अपनी माँ के गर्भ में ही था जब परमेश्वर ने मुझे अपनी सेवा करने के लिए चुना, और उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्हें ऐसा करने से प्रसन्नता हुई।
\v 16 उन्होंने मुझ पर प्रकट किया कि यीशु ही उनके पुत्र है; उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि मैं गैर यहूदियों के क्षेत्रों में लोगों को उनके पुत्र के बारे में सुसमाचार सुनाऊँ। परन्तु मैं उस संदेश कोअधिक उत्तमता में समझने के लिए तुरंत ही किसी मनुष्य के पास नहीं गया।
\v 17 और मैं तुरन्त दमिश्क से भी बाहर नहीं निकला और न यरूशलेम में प्रेरितों से मिलने के लिए गया, जो मेरे प्रेरित होने से पहले ही प्रेरित थे। इसकी अपेक्षा, मैं अरब के एक ऐसे प्रदेश में चला गया, जो मरुस्थल का प्रदेश है। उसके बाद, मैं एक बार फिर दमिश्क शहर में लौट आया।
\s5
\v 18 सच तो यह है कि परमेश्वर द्वारा इस सुसमाचार के प्रकाशन के तीन वर्ष बाद ही मैं पतरस से मिलने के लिए यरूशलेम को गया था। मैं उसके साथ पंद्रह दिन तक रहा।
\v 19 मैं याकूब से भी मिला, जो हमारे प्रभु यीशु का भाई है और यरूशलेम में विश्वासियों का अगुवा है, परन्तु मैं किसी और प्रेरित से नहीं मिला।
\v 20 परमेश्वर जानते है कि जो कुछ भी मैं तुम्हें लिख रहा हूँ पूर्ण रूप से सच है।
\s5
\v 21 यरूशलेम को छोड़ने के बाद मैं सीरिया और किलिकिया के क्षेत्रों में गया।
\v 22 उस समय मसीही कलीसियाओं के विश्वासी लोग जो यहूदिया प्रान्त में थे, उन्होंने मुझे कभी नहीं देखा था।
\v 23 उन्होंने केवल दूसरों को यह कहते हुए सुना था कि "पौलूस, जो पहले हमें सताया करता था, वह अब इसी सुसमाचार का प्रचार कर रहा है जिस पर हम विश्वास करते हैं और जिसे उसने रोकने का प्रयास किया था।"
\v 24 मेरे साथ जो हुआ उसके कारण वे परमेश्वर की स्तुति करते रहे।
\s5
\c 2
\p
\v 1 चौदह वर्ष बाद, बरनबास, तीतुस और मैं फिर से यरूशलेम गए।
\v 2 परमेश्वर ने मुझे आज्ञा दी थी कि हम वहाँ जाएँ इसलिए हम वहाँ गए। मैंने विश्वासियों के सबसे मुख्य अगुवों को अकेले में उस सुसमाचार के बारे में बताया जिसे मैं गैर-यहूदियों के क्षेत्रों में प्रचार कर रहा था। मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मैं यह सुनिश्चित करना चाहता था कि जो मैं प्रचार कर रहा था उसे वे स्वीकृती दें। मैं यह सुनिश्चित करना चाहता था कि मैं व्यर्थ में परिश्रम तो नहीं कर रहा था।
\s5
\v 3 परन्तु उन अगुवों ने तीतुस को भी खतना करने के लिए नहीं कहा, जो मेरे साथ था और वह एक खतनारहित अन्यजातिय व्यक्ति था।
\v 4 जिन लोगों को उसका खतना करवाने की इच्छा थी वे सच्चे विश्वासी नहीं थे, परन्तु वे केवल नाटक कर रहे थे कि वे हमारे साथी विश्वासी हैं। उन्होंने हमें बहुत करीब से देखा कि कैसे हम सब यहूदी नियमों और परम्पराओं का पालन किए बिना ही परमेश्वर की आज्ञा मानते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि मसीह यीशु ने हमें इन बँधनों से स्वतन्त्र कर दिया है। ये झूठे विश्वासी हमें इन नियमों का दास बनाना चाहते हैं।
\v 5 परन्तु हम खतना के बारे में उनके साथ थोड़ा भी सहमत नहीं थे। हमने उनका विरोध किया जिससे कि मसीह के बारे में सच्चा सुसमाचार तुम्हारे लिए लाभकारी हो।
\s5
\v 6 लेकिन जिन्हें दूसरे लोग अगुवे मानते है, उन्होंने मेरे प्रचार में कुछ भी नहीं जोड़ा। वे अगुवे महत्वपूर्ण पुरुष हैं, लेकिन इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि परमेश्वर एक को दूसरे से बड़ा समझने का पक्षपात नहीं करते हैं।
\v 7 उन अगुवों ने समझ लिया था कि परमेश्वर ने मुझे गैर- यहूदियों में यह सुसमाचार सुनाने का कार्य सौंपा है, वैसे ही जैसे पतरस यहूदियों में सुसमाचार सुना रहा था।
\v 8 अर्थात्, जिस तरह परमेश्वर ने पतरस को प्रेरित के रूप में यहूदियों के पास परमेश्वर का संदेश देने के लिए समर्थ किया, उसी प्रकार उन्होंने मुझे भी समर्थ किया कि मैं एक प्रेरित होकर इस सन्देश को गैर- यहूदियों में पहुँचा दूँ।
\s5
\v 9 उन अगुवों ने समझ लिया था कि परमेश्वर ने बड़ी कृपा करके मुझे यह विशेष कार्य दिया है। इसलिए याकूब, पतरस और यूहन्ना, जो मसीह में विश्वास करनेवालों के अगुवे हैं जिन्हें लोग जानते थे और आदर भी करते थे- उन लोगों ने हमारे साथ हाथ मिलाया क्योंकि हम उनके सहकर्मी थे। हमने यह माना है कि परमेश्वर ने हमें गैर- यहूदियों के पास भेजा है, जिनका खतना नहीं हुआ है, और परमेश्वर ने उन्हें यहूदियों के पास भेजा है जिनका खतना हो चुका है।
\v 10 उन्होंने हमसे केवल यह अनुरोध किया कि यरूशलेम में रहने वाले साथी विश्वासियों के बीच गरीबों की मदद करना याद रखें और यही मैं करना चाहता था।
\p
\s5
\v 11 परन्तु बाद में, जब मैं अन्ताकिया शहर में था, तब पतरस वहां आया था तो, मैंने उसकी आँखों में देखकर उससे कहा कि वह जो कर रहा था वह गलत है।
\v 12 ऐसा हुआ था। पतरस अन्ताकिया में आया और गैर-यहूदी विश्वासियों के साथ रोज़ खाया करता था। बाद में अन्ताकिया में कुछ यहूदी विश्वासी आए जिन्होंने दावा किया कि याकूब ने उन्हें भेजा था, जो येरूशलेम के विश्वासियों का अगुवा था। और जब ये लोग आए, तो पतरस ने गैर-यहूदी विश्वासियों के साथ खाना बंद कर दिया और उनसे किनारा करने लगा। उसे डर था कि यरूशलेम के यहूदी विश्वासी उसकी आलोचना करेंगे कि वह गैर- यहूदियों के साथ जुड़ा हुआ है।
\s5
\v 13 अन्ताकिया के अन्य यहूदी विश्वासी भी, गैर-यहूदी विश्वासियों से स्वयं को अलग करके पतरस के ढोंग में शामिल हो गए। यहाँ तक कि बरनबास ने भी यह सोचा कि उसे गैर-यहूदियों के साथ मिलना त्याग देना चाहिए।
\v 14 परन्तु जब मुझे यह एहसास हुआ कि वे मसीह के सुसमाचार के सत्य को नहीं मान रहे थे, तब जब सब साथी विश्वासी एकत्र हुए तो मैंने उन सब के सामने पतरस से कहा, "तू यहूदी है, लेकिन तू गैर-यहूदियों के समान जीवन जी रहा है, जो व्यवस्था का पालन नहीं करता है। तो तू गैर-यहूदियों को यहूदियों के समान जीने के लिए कैसे विवश कर सकता है?"
\s5
\v 15 हम यहूदीयों की तरह पैदा हुए थे, न कि गैर-यहूदी पापियों की तरह जो परमेश्वर की व्यवस्था के बारे में कुछ नहीं जानते।
\v 16 परन्तु हम अब जानते हैं कि परमेश्वर किसी भी व्यक्ति को उस मूसा की व्यवस्था के पालन के द्वारा अपनी दृष्टि में उचित नहीं ठहराते है। यीशु मसीह पर विश्वास करने के कारण ही परमेश्वर मनुष्य को उचित ठहराते हैं। हममे से कुछ यहूदियों ने भी मसीह यीशु पर विश्वास किया है। हमने ऐसा इसलिए किया कि परमेश्वर हमें अपनी दृष्टि में धर्मी ठहराए,क्योंकि हम मसीह पर विश्वास करते हैं , इसलिए नहीं कि हम परमेश्वर द्वारा दी गई मूसा की व्यवस्था का पालन करने का प्रयास करते है। परमेश्वर ने कहा है कि वह अपनी दृष्टि में किसी को भी धर्मी केवल इसलिए नहीं ठहराएगें क्योंकि वे व्यवस्था का पालन करते हैं।
\s5
\v 17 परन्तु जब हमने परमेश्वर से कहा कि मसीह पर विश्वास करने के द्वारा वह हमें अपनी दृष्टि में उचित ठहराएँ तो हमने व्यवस्था का पालन करने का प्रयास त्याग दिया ऐसा करने के कारण व्यवस्था ने हमें पापी ठहराया। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि मसीह पाप के पक्ष में है। कदापि नहीं!
\p
\v 18 यदि मैंने फिर से यह विश्वास किया कि व्यवस्था का पालन करने से परमेश्वर मुझे अपनी दृष्टि में उचित ठहराएगें, तो मैं एक ऐसे व्यक्ति की तरह हूँ जो एक पुरानी टूटी-फूटी इमारत को फिर से बनाता है सब लोग यह देख सकते हैं कि मैं परमेश्वर की व्यवस्था को तोड़ रहा था।
\v 19 जब मैं परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करने का प्रयास कर रहा था तब, मैं एक मरे हुए व्यक्ति के समान हो गया था; यह ऐसा था कि व्यवस्था ने मुझे मार डाला है। कि मैं परमेश्वर की आराधना करने के लिए जीवित हो जाऊं।
\s5
\v 20 मसीह की क्रूस पर मृत्यु हो जाने से मेरे पुराने जीवन का अंत हो गया। अब मैं अपने जीवन का संचालन नहीं करता। मसीह जो अब मेरे ह्रदय में रहते है और, मुझे बताते है कि मुझे कैसा जीवन जीना है, और अब जीवित रहते हुए मैं जो कुछ भी करता हूँ, मैं उसे परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करके करता हूँ। उन्हीं ने मुझसे प्रेम किया और उन्होंने स्वयं को बलि के रूप में दे दिया कि मुझे परमेश्वर की क्षमा प्रप्त हो।
\v 21 मैं परमेश्वर की कृपा को अस्वीकार नहीं करता, कि व्यवस्था को मानने से हम परमेश्वर के साथ उचित संबन्ध में आ जाएँगे। यदि ऐसा हो तो, मसीह का क्रूस पर मरना व्यर्थ होगा।
\s5
\c 3
\p
\v 1 गलातिया में रहने वाले हमारे साथी विश्वासियों तुम बड़े मूर्ख हो! किसी ने तुम्हें अपनी बुरी नज़र से अवश्य मोहित किया है! मैंने तुहारे लिए ज्यों का त्यों वर्णन किया था कि उन्होंने यीशु मसीह को कैसे क्रूस पर चढ़ाया था, क्या मैंने नहीं किया था?
\v 2 तो मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे केवल यह एक बात बताओ: जब पवित्र आत्मा तुम्हारे पास आये थे, तो क्या वह इसलिए आये थे कि तुम मूसा की व्यवस्था का पालन कर रहे थे? या पवित्र आत्मा तुम्हारे पास इसलिए आये थे कि तुमने सुसमाचार सुना और मसीह पर विश्वास किया? निश्चय ही ऐसा ही हुआ था।
\v 3 तुम बहुत मूर्ख हो! तुम पहले इसलिए मसीही हुए क्योंकि परमेश्वर के आत्मा ने तुम्हें समर्थ किया था। परन्तु अब तुम सोचते हो कि तुम व्यवस्था का पालन करने के लिए जितना हो सके उतना कठिन प्रयास करते रहोगे जब तक कि तुम मर नही जाते।
\s5
\v 4 यदि तुम मसीह में विश्वास नहीं करते तो मसीह पर विश्वास करने के बाद तुमने जिन कठिनाइयों का अनुभव किया, उसका कोई मूल्य नहीं होगा।
\v 5 अब, जब परमेश्वर अपना आत्मा तुम्हें बड़ी उदारता से देते है और तुम्हारे बीच में बड़े बड़े काम करते है, तो क्या तुम यह सोचते हो कि ये काम इसलिए हो रहे हैं कि तुम परमेश्वर की व्यवस्था को मानते हो? निश्चय ही तुम यह जानते हो कि ऐसा इसलिए है क्योंकि जब तुमने मसीह के सुसमाचार को सुना था तो तुमने मसीह पर विश्वास किया था!
\p
\s5
\v 6 जो कुछ तुमने अनुभव किया है वह वैसे ही है जैसे मूसा ने अब्राहम के बारे में धर्मशास्त्र में लिखा था। उसने लिखा कि अब्राहम ने परमेश्वर पर विश्वास किया, और उसका परिणाम यह हुआ कि परमेश्वर ने उसे अपनी दृष्टी में धर्मी ठहराया।
\v 7 इसलिए तुम्हें भलिभाँति समझ लेना चाहिए, कि जो लोग बचाए जाने के लिए मसीह पर विश्वास करते हैं उन्हें परमेश्वर ने अब्राहम का वंशज बनाया है।
\v 8 इससे पहले कि परमेश्वर ने गैर-यहूदियों को मसीह में विश्वास करने के कारण अपनी दृष्टि में धर्मी बनाया लोगों ने धर्मशास्त्र में लिख दिया था कि वे ऐसा करेगें। परमेश्वर ने यह सुसमाचार अब्राहम को सुनाया था, जैसा हमने धर्मशास्त्र में पढ़ा हैं, "क्योंकि जो कुछ तू ने किया है, उसके कारण मैं संसार के सब जातियों के लोगों को आशीष दूंगा।"
\v 9 तो इस से हम यह जानते हैं कि उन सब लोगों को जो मसीह में विश्वास करते हैं, उन्हें परमेश्वर ने अब्राहम के साथ आशीष दी है, जिसने परमेश्वर पर भरोसा किया था।
\s5
\v 10 परमेश्वर उन सभी लोगों को श्राप देते है जो सोचते हैं कि वे व्यवस्था का पालन करके परमेश्वर को प्रसन्न कर सकते हैं। जैसा कि तुम धर्मशास्त्र में पढ़ सकते हो, "परमेश्वर सदा के लिए उन सब को अनन्त दण्ड देंगे जो व्यवस्था की पुस्तक में मूसा द्वारा लिखे गए सब नियमों का निरंतर और पूर्ण रूप से पालन नहीं करते हैं।"
\v 11 परन्तु परमेश्वर ने कहा है कि यदि वह किसी भी व्यक्ति को अपनी दृष्टि में धर्मी घोषित करते हैं, तो ऐसा इसलिए नहीं होगा कि उसने उनकी व्यवस्था का पालन किया है। तुम धर्मशास्त्र में पढ़ सकते हो, "वह प्रत्येक व्यक्ति जिसे परमेश्वर उचित ठहराते हैं जीवित रहेगा क्योंकि वह परमेश्वर पर विश्वास करता है।"
\v 12 जो कोई भी व्यवस्था का पालन करने का प्रयास करता है, वह मसीह पर भरोसा नहीं करता है, "जो व्यवस्था की बातों का पालन करने का प्रयास करता है, उसे पूरी व्यवस्था का पालन करना होगा।"
\p
\s5
\v 13 मसीह ने परमेश्वर को हमें श्राप देने से रोक दिया है जैसा कि व्यवस्था में लिखा है कि परमेश्वर को करना चाहिए। ऐसा तब हुआ जब परमेश्वर ने हमारी जगह मसीह को श्राप दिया। तुम धर्मशास्त्र में पढ़ सकते हो, "परमेश्वर उन सबको श्राप देते है जिन्हें पेड़ पर लटकाया जाता है।"
\v 14 परमेश्वर ने मसीह को इसलिए श्रापित किया कि वह गैर- यहूदियों को जो मसीह पर विश्वास करते हैं आशीष दें जैसे उन्होंने अब्राहम को आशीष दी और उन्होंने गैर-यहूदियों को आशीष दी कि हम आत्मा को प्राप्त कर सकें, जिसे उन्होंने उन सब को देने की प्रतिज्ञा की थी जो मसीह पर विश्वास करते हैं।
\p
\s5
\v 15 मेरे साथी विश्वासियों, परमेश्वर की प्रतिज्ञा दो लोगों के बीच की वाचा के समान है। उस पर हस्ताक्षर करने के बाद, कोई भी उसे रद्द नहीं कर सकता, न ही उसमें कुछ जोड़ सकता है।
\v 16 परमेश्वर ने अब्राहम और उसके विशेष वंशज को आशीष देने की प्रतिज्ञा की है। पवित्रशास्त्र यह नहीं कहता है, "तेरे वंशजों को," अर्थात बहुत से लोगों को, परन्तु "तेरे वंशज" अर्थात्, केवल एक व्यक्ति, मसीह।
\s5
\v 17 मैं जो कह रहा हूँ वह यह है। परमेश्वर ने अब्राहम के साथ जो वाचा बाँधी थी, उसे 430 वर्ष बाद मूसा को दी गई व्यवस्था रद्द नहीं कर सकती है।
\v 18 यह इसलिए है कि यदि परमेश्वर हमें जो कुछ आशीषे दे रहे हैं, यदि वह हमें इसलिए मिलती हैं कि हम व्यवस्था को मानते हैं, तो वह उन आशीषों को इसलिए नहीं देते हैं कि उन्होंने ऐसा करने की प्रतिज्ञा की थी। सच तो यह है कि परमेश्वर ने अब्राहम को यह आशीष इसलिए दी कि उन्होंने उदारता से इसे देने की प्रतिज्ञा की थी।
\p
\s5
\v 19 तो फिर परमेश्वर ने बाद में हमें अपनी व्यवस्था क्यों दी? परमेश्वर ने हमें यह सिखाने के लिए अपनी व्यवस्था दी कि हम सब जानबूझकर इसे तोड़ते हैं। और भविष्य को देखते हुए, परमेश्वर ने यह व्यवस्था उस समय के लिए दी जब अब्राहम का एक वंशज आएगा। वह वंशज ही उस प्रतिज्ञा को प्राप्त करेगा, जो पहले अब्राहम से की गई थी। स्वर्गदूतों ने उस व्यवस्था की सुरक्षा की और उसे एक व्यक्ति के अधिकार के द्वारा लागू किया, जो परमेश्वर और लोगों के बीच खड़ा होगा।
\v 20 अब, जब एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के साथ सीधे बात करता है, तो उनके बीच में कोई मध्यस्थ नहीं होता और स्वयं परमेश्वर ने अब्राहम से प्रत्यक्ष रूप से प्रतिज्ञा की थी।
\p
\s5
\v 21 तो क्या व्यवस्था की बातें परमेश्वर की प्रतिज्ञा के विरुद्ध बोलती हैं? कदापि नहीं। यदि हम व्यवस्था का पालन कर सकते और फिर परमेश्वर के साथ हमेशा जीवित रहते, तो वह अवश्य ही हमें अपनी दृष्टि में धर्मी मानते।
\v 22 परन्तु यह असंभव था। इसकी अपेक्षा क्योंकि हम पाप करते हैं, शास्त्रों में जो व्यवस्था है, वह हमें और सब वस्तुओं को बन्धन में रखती है जैसे कि हम कैद में है। अत: जब परमेश्वर ने हमें उस कैद से स्वतन्त्र करने की प्रतिज्ञा की तो वह यीशु मसीह पर विश्वास करनेवाले प्रत्येक मनुष्य के संदर्भ में बात कर रहे थे।
\s5
\v 23 इससे पहले की परमेश्वर ने सुसमाचार को प्रकट किया, कि लोगों को कैसे मसीह पर विश्वास करना चाहिए, उनकी व्यवस्था एक सिपाही की तरह थी, जो हमें कैद में रखती कि हम आ-जा न सकें।
\v 24 जैसे की एक पिता अपने छोटे बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए एक दास को उसकी देखभाल करने के लिए रखता है, वैसे ही परमेश्वर मसीह के आने तक अपनी व्यवस्था के द्वारा हम पर दृष्टि रखे हुए थे। उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि मसीह में विश्वास करें तो अब वह हमें अपनी दृष्टी में उचित ठहरा सकें।
\v 25 परन्तु अब जब हम मसीह में विश्वास कर सकते हैं, तो हमें परमेश्वर की व्यवस्था की निगरानी में रहने की आवश्यकता नहीं है।
\p
\v 26 मैं यह इसलिए कहता हूँ कि तुम सब परमेश्वर की सन्तान हो क्योंकि तुमने मसीह यीशु पर विश्वास किया है।
\s5
\v 27 तुम सब जो मसीह पर विश्वास करते हो और बपतिस्मा भी लिया है कि तुम मसीह के साथ जुड़ सको, तुमने मसीह के जीवन के गुणों को अपना लिया है।
\v 28 यदि तुम विश्वासी हो, तो परमेश्वर को इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता कि तुम यहूदी हो या गैर-यहूदी दास हो या स्वतंत्र व्यक्ति पुरुष हो या महिला क्योंकि तुम सब एक साथ मसीह यीशु से जुड़ गए हो।
\v 29 इसके अतिरिक्त, क्योंकि तुम मसीह के हो, तो वह तुम्हें अब्राहम के वंशज बना देते हैं, और तुम वह सब कुछ पाओगे जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने अब्राहम से और हमसे की है।
\s5
\c 4
\p
\v 1 अब, मैं सन्तान और उत्तराधिकारियों के बारे में चर्चा करूँगा। उत्तराधिकारी एक पुत्र है जो आगे चलकर अपने पिता की पूरी सम्पति को प्राप्त करेगा। परन्तु जब तक वह उत्तराधिकारी बच्चा है, वह एक दास की तरह ही है जिसे नियंत्रत में रखा जाता हैं।
\v 2 उसके पिता ने जिस दिन को पहले से निर्धारित किया है, उस दिन तक कोई और उस बच्चे की देखरेख करते हैं और उसकी सम्पत्ति का प्रबन्ध करते हैं।
\s5
\v 3 इसी प्रकार, जब हम बच्चों के समान थे, हम बुरे नियमों के अधीन थे जिनके अनुसार इस संसार में हर कोई रहता है। वे नियम हमें इस तरह से नियंत्रित करते हैं जिस प्रकार स्वामी अपने दासों को नियंत्रित करते हैं।
\v 4 परन्तु जब वह समय आया जिसे परमेश्वर ने ठहराया था, तो उन्होंने अपने पुत्र यीशु को इस संसार में भेजा। यीशु का जन्म एक मानवीय माँ से हुआ था, और उन्हें व्यवस्था का पालन करना पड़ा।
\v 5 परमेश्वर ने यीशु को भेजा कि वह हमें दास बनानेवाली इस व्यवस्था से छुडाएँ। उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि वह हमें अपने बच्चों के समान गोद लें।
\s5
\v 6 क्योंकि अब तुम परमेश्वर के पुत्र हो, उन्होंने अपने पुत्र के आत्मा को भेजा कि हम में से प्रत्येक में वास करें। यह उनका ही आत्मा है जो हमें इस योग्य बनाता है कि हम परमेश्वर को "हे पिता, हमारे प्रिय पिता!" कहें। इससे प्रकट होता है कि हम परमेश्वर के पुत्र हैं।
\v 7 इसलिए, परमेश्वर ने जो किया है उसके कारण अब तुम में से कोई भी दास के समान नहीं है। तुम में से हर एक जन परमेश्वर की सन्तान है। क्योंकि अब तुम सब परमेश्वर की सन्तान हो इसलिए परमेश्वर तुम्हें वह सब कुछ देगें जिसकी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। परमेश्वर स्वयं ऐसा करेगें!
\p
\s5
\v 8 जब तुम परमेश्वर को नहीं जानते थे, तब तुम उन देवताओं की पूजा करते थे जो वास्तव में जीवित नहीं थे। तुम उनके दास थे।
\v 9 परन्तु अब तुम परमेश्वर को जानते हो कि वह परमेश्वर हैं। तथापि, यह कहना उचित होगा, कि अब परमेश्वर तुम में से हर एक को जानते हैं। तो फिर तुम इस संसार के निर्बल और निकम्मे, बुरे नियमों का पालन करने के लिए फिर से क्यों लौट रहे हो? तुम निश्चय ही उनके दास बनना नहीं चाहते, क्या तुम चाहते हो?
\s5
\v 10 ऐसा प्रतीत होता है कि तुम यही चाहते हो! तुम एक बार फिर उन नियमों का पालन कर रहे हो, जिन पर लोग बल देकर कहतें हैं कि तुम्हें विशेष दिनों में और महीने के विशेष समय में, या मौसम में, और वर्षों में करना चाहिए।
\v 11 मैं तुम्हारे बारे में चिंता करता हूँ! मैंने तुम्हारे लिए इतना परिश्रम किया, परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि वह सब कुछ किसी काम का नहीं था।
\s5
\v 12 मेरे साथी विश्वासियों, मैं तुमसे यह अनुरोध करता हूँ कि तुम मेरे समान बनो, क्योंकि मैं व्यवस्था को अपने ऊपर नियंत्रण करने नहीं देता हूँ। जब मैं व्यवस्था से स्वतन्त्र हो गया, तो मैं तुम्हारे समान गैर-यहूदी बन गया, इसलिए तुम्हें भी उन देवताओं से अपने आप को स्वतन्त्र करना चाहिए। जब मैं पहली बार तुम्हारे पास आया था, तब तुमने मुझे कोई हानि नहीं पहुंचाया, परन्तु अब तुम अपने बारे में मुझे बहुत अधिक चिंतित कर रहे हो।
\p
\v 13 तुम्हें याद होगा कि पहली बार मैंने तुम्हें सुसमाचार सुनाया था तब मैं बीमार था।
\v 14 यद्यपि तुम मुझे तुच्छ मान सकते थे क्योंकि मैं बीमार था, तुमने मुझे अस्वीकार नहीं किया। इसकी अपेक्षा, तुमने मेरा स्वागत किया था जैसे तुम एक स्वर्गदूत का स्वागत करते, जो परमेश्वर की ओर से आया हो। तुमने मेरा स्वागत इस प्रकार से किया था जिस प्रकार कि तुम स्वयं मसीह यीशु का स्वागत करते!
\s5
\v 15 लेकिन अब तुम प्रसन्न नहीं हो! मैं निश्चय जानता हूँ कि तुम मेरी सहायता करने के लिए कुछ भी कर सकते थे। तुम अपनी आंखें निकाल कर मुझे दे सकते थे, यदि उसकी आवश्यक्ता पड़ती!
\v 16 यही कारण है कि मैं अब बहुत उदास हो गया हूँ। तुम यह सोचते हो कि मैं तुम्हारा शत्रु बन चुका हूँ क्योंकि मैं मसीह के बारे में तुम्हें सत्य बताता रहता हूँ।
\s5
\v 17 लोग यहूदी व्यवस्थाओं का पालन करने के लिए तुम पर दबाव डाल रहे हैं, परन्तु वे तुम्हारी भलाई के लिए ऐसा नहीं कर रहे हैं। वे तुम्हें मुझसे दूर रखना चाहते हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि तुम मेरा नहीं उनका अनुसरण करो।
\v 18 सही कामों को करने के लिए दबाव डालना अच्छा है; तुम्हें सदैव ऐसा ही करना चाहिए, और केवल तब नहीं जब मैं तुम्हारे साथ हूँ। लेकिन यह निश्चय कर लो कि जो तुम्हें सिखा रहे हैं वे सही लोग हैं या नहीं।
\s5
\v 19 तुम मेरे बच्चों के समान हो, एक बार फिर मैं तुम्हारे बारे में बहुत चिंतित हूँ, और तब तक चिंता करता रहूँगा जब तक तुम मसीह के समान नहीं बन जाते।
\v 20 लेकिन मेरी यह इच्छा है कि मुझे अभी तुम्हारे साथ होना चाहिए था कि मैं तुमसे अधिक कोमलता से बात करूं, क्योंकि अभी मुझे नहीं पता कि तुम्हारे बारे में क्या करूं।
\p
\s5
\v 21 मैं फिर से यह समझाने का प्रयास करता हूँ। तुममें से कुछ लोग परमेश्वर की पूरी व्यवस्था का पालन करना चाहते हैं, लेकिन क्या तुम सचमुच में इस बात पर ध्यान देते हो कि व्यवस्था क्या कहती है?
\v 22 व्यवस्था में हमने पढ़ा है कि अब्राहम दो पुत्रों का पिता बना। उसकी दासी, हाजिरा ने एक पुत्र को जन्म दिया, और उसकी पत्नि सारा, जो एक दासी नहीं थी, उसने दूसरे पुत्र को जन्म दिया।
\v 23 इश्माएल, वह पुत्र है जो हाजिरा दासी के द्वारा स्वाभाविक रूप से जन्मा था। परन्तु इसहाक सारा का पुत्र था वह दासी नहीं थी, उसका गर्भवती होना एक आश्चर्य की बात थी परन्तु यह परमेश्वर की प्रतिज्ञा थी कि उसे पुत्र प्राप्त होगा।
\s5
\v 24 अब ये दो महिलाएँ दो वाचाओं की प्रतीक हैं। परमेश्वर ने पहली वाचा इस्राएल के लोगों के साथ सीनै पर्वत पर बाँधी थी। उस वाचा के अनुसार इस्राएलियों को व्यवस्था के दास बनकर रहने की आवश्यकता थी। हाजिरा जो एक दासी थी, इस वाचा का प्रतीक है।
\v 25 अत: हाजिरा अरब देश के सीनै पर्वत का प्रतीक है। परन्तु हाजिरा आज के यरूशलेम शहर का भी प्रतीक है। यह इसलिए है क्योंकि यरूशलेम एक दासी माता के समान है: वह और उसके सब बच्चे - अर्थात् उसके लोग- सब दासों के समान हैं, क्योंकि उन सब को उस व्यवस्था का पालन करना है जिसे परमेश्वर ने सीनै पर्वत पर इस्राएलियों को दी थी।
\s5
\v 26 परन्तु स्वर्ग में एक नया यरूशलेम है, और हम सब के लिए जो मसीह में विश्वास करते हैं, यह शहर एक माँ के समान है, और वह शहर स्वतन्त्र है!
\v 27 इस नए यरूशलेम में पुराने यरूशलेम की तुलना में अधिक लोग होंगे, ऐसा इसलिए है कि यशायाह भविष्यद्वक्ता ने लिखा था,
\q "तुम जो यरूशलेम में रहते हो, तुम आनन्दित हो!
\q अभी तेरे पास कोई बच्चे नहीं है,
\q2 एक ऐसी स्त्री के समान जिसके बच्चे नहीं हो सकते है!
\q लेकिन एक दिन तू आनन्द से चिल्लाऐगी
\q2 यद्यपि तेरे पास अभी कोई बच्चा नहीं है।
\q एक ऐसी स्त्री की तरह जो किसी बच्चे को जन्म नहीं दे सकती,
\q2 तेरी भावनाएँ एक त्यागी हुई स्त्री के समान हैं।
\q तेरे पास विवाहित स्त्री की तुलना में, जो अपने पति के द्वारा बच्चे को जन्म दे सकती है; अधिक बच्चे होंगे।"
\p
\s5
\v 28 अब मेरे साथी विश्वासियों, तुम परमेश्वर की सन्तान हो गए हो क्योंकि परमेश्वर ने जो हमें देने की प्रतिज्ञा की थी उस पर तुमने विश्वास किया है। तुम इसहाक के समान हो जिसका जन्म इसलिए संभव हुआ था कि अब्राहम ने परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर विश्वास किया था।
\v 29 परन्तु बहुत समय पहले अब्राहम का पुत्र इश्माएल, जो स्वाभाविक रूप से पैदा हुआ था, अब्राहम के पुत्र इसहाक के लिए परेशानी बन गया, जिसका जन्म पवित्र आत्मा के द्वारा सम्भव हुआ था। आज भी ऐसा ही होता है। जो लोग परमेश्वर की व्यवस्था के दास हैं, वे हमें जो मसीह की प्रतिज्ञाओं पर विश्वास करतें हैं सताते हैं।
\s5
\v 30 परन्तु धर्मशास्त्र में यह शब्द लिखें हैं: " उस स्त्री का पुत्र जो दासी नहीं थी, उसे विरासत में अपने पिता की सारी सम्पति मिलेगी। दासी के पुत्र को कुछ भी नहीं मिलेगा। इसलिए दासी और उसके पुत्र को यहाँ से दूर भेज दो!"
\v 31 मेरे साथी विश्वासियों, हम ऐसे बच्चे नहीं हैं जिनकी माँ एक दासी है, परन्तु हम ऐसे बच्चे हैं जो एक स्वतंत्र महिला से पैदा हुए हैं, और इसलिए हम भी स्वतंत्र हैं!
\s5
\c 5
\p
\v 1 मसीह ने हमें व्यवस्था से स्वतन्त्र कर दिया जिससे कि व्यवस्था अब हमें नियंत्रित न कर सके। इसलिए उन लोगों को जो यह कहते हैं कि तुम अभी भी व्यवस्था के दास हो और व्यवस्था को फिर से तुम्हें नियंत्रित करने दो, रोको और दास बनाने की अनुमति न दो।
\v 2 सावधानी से उन बातों के बारे में विचार करो, जो मैं पौलुस एक प्रेरित तुम्हें बताता हूँ। यदि तुम किसी को भी अपना खतना करने देते हो, तो जो मसीह ने तुम्हारे लिए किया है, उससे तुम्हारी कोई सहायता नहीं होगी!
\s5
\v 3 एक बार फिर मैं गंभीरता से उन सभी पुरुषों को बताता हूँ जिनका उन्होनें खतना किया है, कि उन्हें व्यवस्था का पालन संपूर्णता से करना पड़ेगा, जिससे कि परमेश्वर तुम्हें अपनी दृष्टि में उचित घोषित करे।
\v 4 यदि तुम आशा करते हो कि परमेश्वर तुम्हें अपनी दृष्टि में उचित घोषित करेंगे क्योंकि तुम व्यवस्था का पालन करने का प्रयास करते हो, तो तुम अपने आप को मसीह से अलग करते हो; इसलिए परमेश्वर अब तुम्हारे प्रति दया का व्यवहार नहीं करेंगे।
\s5
\v 5 हम जिन्हें परमेश्वर के आत्मा मसीह पर विश्वास करने के लिए सक्षम बनाते है, आत्मविश्वास से उस समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं जब परमेश्वर हमें अपनी दृष्टि में उचित घोषित करेगें।
\v 6 परमेश्वर को यह चिंता नहीं है कि हमारा खतना हुआ है या नहीं। इसकी अपेक्षा, परमेश्वर यह चिंता करते है कि हम मसीह पर विश्वास करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप हम दूसरों से प्रेम करते हैं क्योंकि हम उन पर विश्वास करते हैं।
\p
\v 7 तुम बहुत अच्छी तरह से मसीह का अनुसरण कर रहे थे! किसने तुम्हें उनके सच्चे संदेश को मानने से रोक दिया?
\v 8 परमेश्वर, जिन्होंने तुम्हें चुना है, वह तुम्हें ऐसा सोचने के लिए विवश नहीं करते हैं!
\s5
\v 9 यह गलत शिक्षा जो तुम्हें दी जा रही है, उसका तुम सब में फैलने का खतरा है, जैसे आटे में जब थोड़ा सा खमीर होता है, तो वह पूरे आटे को फुला देता है।
\v 10 मुझे पूरा भरोसा है कि प्रभु यीशु तुम्हें अपने सच्चे सुसमाचार के अतिरिक्त किसी और बात पर विश्वास करने नहीं देगें। परमेश्वर सचमुच में उसे दण्ड देगें जो तुम्हें झूठी शिक्षा दें कर उलझा रहा है, चाहे वह जो कोई भी हो।
\s5
\v 11 लेकिन, मेरे साथी विश्वासियों, हो सकता है कि कोई तुमसे यह कहे कि मैं अब भी यह सिखाता हूँ कि तुम उन्हें तुम्हारा खतना करने दो। मसीह का अनुयाई बनने से पहले, मैं निश्चय ही यह सिखाता था, परन्तु अब मैं यह नहीं सिखाता हूँ। परन्तु वे जो कह रहे हैं वह सच नहीं हो सकता है; नहीं तो इस समय कोई भी मुझे नहीं सताता। नहीं, मैं तुमसे कहता हूँ कि यदि लोग सोचते हैं कि उन्हें मसीह का अनुसरण करने के लिए खतना करना जरूरी है, तो मसीह की क्रूस की मृत्यु के सच से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता।
\v 12 भला होता कि जो लोग तुम्हें उलझा रहे हैं वे पूरे के पूरे नपुंसक ही बन जाएँ !
\p
\s5
\v 13 मेरे साथी विश्वासियों, परमेश्वर ने तुम्हें स्वतन्त्र होने के लिए बुलाया है। परन्तु यह मत सोचना कि उन्होंने तुम्हें स्वतन्त्र इसलिए किया है कि तुम पाप कर सको। इसकी अपेक्षा, एक-दूसरे से प्रेम करो और एक-दूसरे की सेवा करो, क्योंकि अब तुम ऐसा करने के लिए स्वतन्त्र हो!
\v 14 यीशु की बात को याद करो कि। उन्होंने कहा था कि सम्पूर्ण व्यवस्था का सार है: " हर एक व्यक्ति से वैसे ही प्रेम करो जैसे तुम स्वयं से प्रेम करते हो।"
\v 15 अत: यदि जंगली पशुओं के समान तुम एक दूसरे को मारते और हानि पहुंचाते हो, तो तुम एक-दूसरे को पूरी तरह से नष्ट कर दोगे।
\p
\s5
\v 16 इसलिये मैं तुमसे यह कहता हूँ: परमेश्वर के आत्मा को सदा तुम्हारी अगुवाई करने दो। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम उन पापों को नहीं करोगे जो संभवतः तुम करना चाहते हो।
\v 17 जब तुम पाप करना चाहते हो, तो तुम परमेश्वर के आत्मा के विरुद्ध जाते हो। और परमेश्वर के आत्मा तुम्हारे पाप करने की इच्छा के विरुद्ध जाते हैं। ये दोनों सदा एक दूसरे के विरुद्ध लड़ते रहते हैं। परिणाम यह है कि तुम सदा अच्छी चीजें नहीं करते जो तुम वास्तव में करना चाहते हो।
\v 18 परन्तु जब परमेश्वर के आत्मा तुम्हारी अगुवाई करते हैं, तो व्यवस्था तुम पर नियंत्रण नहीं करती है।
\p
\s5
\v 19 यह समझना आसान है कि पाप क्या होता है । पापी लोग गन्दे काम करते हैं, व्यभिचार करते हैं जो प्रकृति के बिलकुल विरुद्ध होता है, और वे उन कामों की इच्छा रखते हैं जो अच्छे नियमों के विरुद्ध है।
\v 20 वे झूठे देवताओं और उन वस्तुओं की पूजा करते हैं जो उन देवताओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। वे दुष्ट-आत्माओं से अपना काम करवाने का प्रयास करते हैं। लोग एक दूसरे के शत्रु हैं। वे एक-दूसरे के साथ झगड़ा करते हैं। वे ईर्ष्या करते हैं। वे क्रोध से व्यवहार करते हैं। वे चाहतें हैं कि उनके बारे में लोग बहूत अच्छा समझें और यह नहीं सोचते की दूसरे क्या चाहते हैं। वे दूसरों के साथ मिलजुलकर नहीं रहते। वे केवल उन्हीं के साथ मिलजुलकर रहना चाहते हैं जो उनके साथ सहमत होते हैं।
\v 21 वे लोग दूसरों की वस्तुएँ चाहते हैं। वे नशे में रहते हैं। वे मतवाले होकर दंगा करते हैं। और वे ऐसे ही अन्य निकम्मे काम करते हैं। मैं तुम्हें अब चेतावनी देता हूँ, जैसे मैंने तुम्हें पहले चेतावनी दी थी, जो लोग निरंतर इस प्रकार के काम करते और सोचते हैं, वे उन वस्तुओं को प्राप्त नहीं करेंगे जिन को परमेश्वर ने अपने लोगों के लिए रखा है जब वे अपने आप को राजा के रूप में सब पर प्रकट करेंगे।
\s5
\v 22 परन्तु जब हम मसीह पर विश्वास करते हुए बढ़ते जाते हैं, तो परमेश्वर के आत्मा हमें दूसरों से प्रेम करने के लिए प्रेरित करते हैं। हम आनंदित हैं। हम शांतिपूर्ण है। हम धीरज वंत है। हम दयालु हैं। हम भले हैं। लोग हम पर भरोसा कर सकते हैं।
\v 23 हम विनम्र हैं। हम अपने व्यवहार को अपने नियंत्रण में रखते हैं। ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो यह कहती हो कि लोगों को इस प्रकार से नहीं सोचना चाहिए और न ही इस प्रकार कोई काम करना चाहिए।
\v 24 इसके अतिरिक्त, हम जो मसीह यीशु के हैं, हमने उन बुरी बातों का त्याग कर दिया है जो हम पहले करते थे। यह ऐसा है कि जैसे हमने उन बातों को क्रूस पर किलों से जड़ दिया है और इन बुरी बातों को मार डाला है!
\p
\s5
\v 25 क्योंकि परमेश्वर के आत्मा ने हमें नई जीवन शैली के लिए सक्षम बनाया है, तो हमें वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा आत्मा हमारी अगुवाई करते हैं।
\v 26 हमें अपने ऊपर घमण्ड नहीं करना चाहिए। हमें एक-दूसरे को अप्रसन्न नहीं करना चाहिए। हमें एक-दूसरे से जलन नहीं रखनी चाहिए।
\s5
\c 6
\p
\v 1 मेरे साथी विश्वासियों, यदि तुम्हें पता चलता है कि कोई भाई या बहन गलत कर रहा हैं, तो जिन्हें परमेश्वर के आत्मा अगुवाई करते हैं, उन्हें नम्रता से उस व्यक्ति को सुधारना चाहिए। इसके अतिरिक्त, जब तुम किसी को सुधारते हो, तो तुम्हें बड़ा सावधान रहना चाहिए कि तुम स्वयं पाप में न गिर जाओ।
\v 2 जब किसी भाई या बहन को कोई परेशानी हो, तो तुम्हें एक-दूसरे की सहायता करनी चाहिए। ऐसा करने से तुम मसीह के आदेशों का पालन करोगे।
\s5
\v 3 मैं यह इसलिए कहता हूँ कि जो लोग अपने आप को बड़ा समझते हैं, वे अपने आप को मूर्ख बनाते हैं।
\v 4 इसके अतिरिक्त, तुम में से हर एक को अपने आप को लगातार जाँचते रहना चाहिए और यह निर्णय लेना चाहिए कि तुम जो कर रहे हो और जो सोच रहे हो, क्या तुम उसको स्वीकार कर सकते हो। तुम गर्व कर सकते हो क्योंकि जो तुमने किया है वह अच्छा है, परन्तु इसलिए नहीं कि जो तुमने किया है वह किसी और की तुलना में अच्छा है।
\v 5 मैं यह इसलिए कहता हूँ कि तुम में से हर एक अपने काम को पूरा करे।
\p
\s5
\v 6 यदि साथी विश्वासी लोग परमेश्वर की सच्चाई के बारे में तुम्हें सीखाते हैं, तो अपनी सम्पति को उनके साथ बांटों।
\v 7 तुम्हें अपने आप को धोखा नहीं देना चाहिए। याद रखना की कोई भी परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकता है। जैसे एक किसान वही फसल काटेगा जिसका बीज उसने बोया है, वैसे ही परमेश्वर लोगों को उनके कामों के अनुसार प्रतिफल देंगे।
\v 8 परमेश्वर उन्हें अनन्त काल के लिए दण्ड देगें जो अपनी इच्छा के अनुसार पाप करते हैं। परन्तु जो लोग परमेश्वर के आत्मा को प्रसन्न करते हैं, परमेश्वर के आत्मा उनके लिए जो करेंगे उसके कारण, वे लोग परमेश्वर के साथ सदा के लिए जीवित रहेंगे।
\s5
\v 9 लेकिन हमें परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले कामों को करने में कभी भी थकना नहीं चाहिए, क्योंकि अंत में, उस समय में, जिसे परमेश्वर ने निर्धारित किया है, हमें प्रतिफल मिलेगा, यदि तुम उन अच्छे कामों को करना न छोड़ोगे।
\v 10 इसलिए जब भी हमारे पास अवसर होता है, हमें सब लोगों के लिए अच्छा करना चाहिए। परन्तु विशेष करके हमें अपने सब साथी विश्वासियों की भलाई करना चाहिए।
\p
\s5
\v 11 मैं अब इस पत्र के अन्तिम भाग को अपनी लिखावट में लिख रहा हूँ। जिन बडे अक्षरों से मैं अब लिख रहा हूँ, उन पर ध्यान दे।
\v 12 कुछ यहूदी विश्वासी तुम्हारा खतना करना चाहते हैं ताकि दूसरे यहूदी लोग तुम पर घमण्ड कर सकें कि उन्होनें तुम्हें यहूदी धर्म में बदल दिया। परन्तु वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं कि लोग उन्हें उनके विश्वास के कारण न सताएँ, कि मसीह हमें बचाने के लिए क्रूस पर मर गये।
\v 13 मैं यह इसलिए कह रहा हूँ कि वे लोग स्वयं भी परमेश्वर की व्यवस्था का पालन नहीं करते; इसके बजाय, वे तुम्हारा खतना करना चाहते हैं कि वे घमण्ड कर सकें कि उन्होंने और अधिक लोगों को यहूदी विश्वास में बदल दिया है।
\s5
\v 14 मैं स्वयं, ऐसी किसी बात के बारे में घमण्ड करना नहीं चाहता हूँ। मैं केवल एक बात पर घमण्ड करूँगा- हमारे प्रभु यीशु मसीह और उनकी क्रूस की मृत्यु पर। जब वह क्रूस पर मरे, तो उन्होंने मेरी दृष्टि में उन बातों को जिनकी अविश्वासी लोग चाह रखते है, उसे मूल्यरहित बना दिया, और जिन वस्तुओं को मैं चाहता था, वे भी मेरी दृष्टि में मूल्यरहित हो गई।
\v 15 मैं इसके बारे में बहुत गर्व करूँगा, क्योंकि परमेश्वर को इसकी परवाह नहीं है कि लोगों का खतना हुआ है या नहीं। इसके अपेक्षा, वह केवल इस बात की चिन्ता करते है कि वह उन्हें नए मनुष्य में बदल दे।
\v 16 जो कोई इस प्रकार से जीते हैं, उन्हें परमेश्वर शान्ति दें और तुम्हारे प्रति दया करें। ये विश्वासी लोग सच्चे इस्राएली हैं जो परमेश्वर के हैं!
\p
\s5
\v 17 मैं कहता हूँ कि लोगों ने मुझे यीशु के बारे में सच्चाई को बताने के लिए सताया है, और इसका परिणाम, तुम्हारे नए शिक्षकों के विपरीत, मेरे शरीर पर चिन्ह हैं। इसलिए, अब इन विषयों के बारे में कोई मुझे परेशान न करें!
\p
\v 18 मेरे साथी विश्वासियों, हमारे प्रभु यीशु मसीह तुम सब पर दया करते रहें। आमीन!

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\h EPHESIANS
\toc1 The Letter to the Ephesians
\toc2 Ephesians
\toc3 eph
\mt1 इफिसियों
\s5
\c 1
\p
\v 1 मैं, पौलुस, अपने प्रिय साथी विश्वासियों को यह पत्र लिखता हूँ, जिनको परमेश्वर ने अपने लिए अलग किया है और जो मसीह यीशु के प्रति विश्वासयोग्य हैं - मैं उन भाइयों के लिए लिख रहा हूँ जो इफिसुस शहर में रहते हैं। मैं पौलुस हूँ, जिसे परमेश्वर ने चुना और जिसे उन्होंने यीशु मसीह के प्रेरित के रूप में तुम्हारे पास भेजा है।
\v 2 मैं प्रार्थना करता हूँ कि हमारे पिता परमेश्वर और हमारे प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें दया और शान्ति मिले।
\p
\s5
\v 3 हमारे प्रभु यीशु मसीह के पिता की स्तुति करो! उन्होंने हमें हर प्रकार के स्वर्गीय आत्मिक आशिषों के द्वारा, जो मसीह हमें देते हैं; महान आनन्द दिया है।
\v 4 परमेश्वर ने जगत को बनाने से पहले ही हमें मसीह के द्वारा अपने लोग होने के लिए चुना, जिन्होंने हमें परमेश्वर के लिए अलग कर दिया कि हम उनकी दृष्टि में निर्दोष जीवन जीएँ।
\s5
\v 5 इसलिए कि वे हमसे प्रेम करते हैं, परमेश्वर ने बहुत पहले से ही यीशु मसीह के किए हुए कार्य के द्वारा, हमें गोद लेकर अपने बच्चों के रूप में अपनाने की योजना बनाई। उन्होंने हमें गोद लेने की योजना इसलिए बनाई क्योंकि उन्हें यह भाया कि हम उनके बच्चे ठहरें, इसलिए जैसी उनकी इच्छा थी, उन्होंने वैसा ही किया।
\v 6 इस कारण अब हम परमेश्वर की स्तुति करते हैं, जिन्होंने हमें अपने पुत्र के द्वारा, जिन्हें वे प्रेम करते हैं; अद्भुत दया की है, ऐसी दया; जिसके हम योग्य नहीं थे।
\p
\s5
\v 7 यीशु ने हमें स्वतंत्र किया हैं; जैसे कि उन्होंने एक गुलामों के बाज़ार से हमें मोल लेकर बाहर निकाला है। उन्होंने हमें अपनी मृत्यु के द्वारा स्वतंत्र किया; अर्थात्, परमेश्वर ने हमारे पापों को क्षमा कर दिया है, क्योंकि वे हमारे प्रति बहुत दयालु है।
\v 8 वे हमारे प्रति अति दयालु रहे हैं, और उन्होंने हमें हर प्रकार का ज्ञान दिया हैं।
\s5
\v 9 परमेश्वर ने अब अपनी योजना का रहस्य समझाया है। उन्होंने हमें मसीह के उस महान काम को जानने में मदद की है जिसकी योजना उन्होंने बनाई थी। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्होंने इसे इसी रीति से करना पसंद किया, और हमें दिखाया कि मसीह हमारे लिए क्या करेंगे।
\v 10 परमेश्वर ने योजना बनाई कि वे अपने नियुक्त किये गये समय पर स्वर्ग और पृथ्वी की सारी वस्तुओं को एकजुट करेंगे, और मसीह उन पर राज्य करेंगे।
\s5
\v 11 बहुत पहले से परमेश्वर ने हमें मसीह के साथ एकजुट करने के लिए चुना। उन्होंने ऐसा करने की योजना बनाई, और वह हमेशा वही करते हैं जो वे करना चाहते हैं।
\v 12 परमेश्वर ने ऐसा इसलिए किया कि हम जो मसीह पर विश्वास करते हैं, वे परमेश्वर की महिमा की स्तुति करने के लिए जीवित रहें। हम मसीह पर भरोसा करने वाले पहले लोग थे।
\s5
\v 13 तुम ने भी स्वयं सत्य के वचन को, अर्थात् अपने उद्धार के सुसमाचार को सुनकर मसीह पर विश्वास किया और पवित्र आत्मा के द्वारा तुम पर मुहर लगाई गई।
\v 14 पवित्र आत्मा इस बात के प्रमाण हैं कि जो कुछ भी परमेश्वर ने वादा किया है उसे हम प्राप्त करेंगे। यह सब उनकी महान स्तुति करने का कारण है।
\p
\s5
\v 15 क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हारे लिए इतना कुछ किया है, और मैंने सुना है कि तुम प्रभु यीशु में कैसे भरोसा रखते हो और उन सभी को प्रेम करते हो जिन्हें परमेश्वर ने अपने लिए चुना है।
\v 16 मैं तुम्हारे लिए परमेश्वर का धन्यवाद करना नहीं छोड़ता और अक्सर तुम्हारे लिए प्रार्थना करता रहता हूँ।
\s5
\v 17 मैं प्रार्थना करता हूँ कि हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर पिता, जो चमकते प्रकाश में रहते हैं, वे तुम्हें बुद्धिमानी से सोचने और उन सारी बातों को जो वह तुम पर प्रकट करते हैं, उसे समझने में मदद करें।
\v 18 मैं प्रार्थना करता हूँ कि परमेश्वर तुम्हें यह सिखाए कि वे हमारे लिए क्या करना चाहते हैं, और यह कि हम क्यों उनकी बातों को सत्य मानते हैं। मैं प्रार्थना करता हूँ कि हम यह जान सकें कि जो कुछ वह हमें और उन सब को जिन्हें वे अपना होने के लिए चुनेंगे, देने का वादा करते हैं; वह कितनी बड़ी बात है,
\s5
\v 19 और मैं प्रार्थना करता हूँ कि तुम जान सको कि हम जो मसीह पर भरोसा रखनेवाले हैं हमारे लिए परमेश्वर कितने सामर्थ की रीति से कार्य करते हैं। वह हमारे लिए शक्तिशाली रीति से काम करते हैं,
\v 20 जिस प्रकार उन्होंने मसीह के लिए सामर्थ में होकर कार्य किया था कि जब उन्होंने मसीह को मृत्यु से फिर जीवित करके उन्हें स्वर्ग में सर्वोच्च सम्मान के स्थान पर बैठा दिया था।
\v 21 यह वह स्थान हैं जहाँ से, मसीह प्रत्येक सामर्थी आत्मा पर, हर अधिकार के स्तर पर और हर एक नाम के ऊपर जो अस्तित्व में है, सर्वोच्च के रूप में राज्य करते हैं। यीशु न केवल अब, परन्तु सर्वदा के लिए, हर एक प्राणी से अधिक ऊपर हैं।
\s5
\v 22 परमेश्वर ने सभी प्राणियों को मसीह के अधिकार में रखा है, मानो वे सब उनके पैरों के नीचे हैं। परमेश्वर ने सब जगहों के सभी विश्वासियों के बीच मसीह को सब वस्तुओं पर अधिकारी नियुक्त किया है।
\v 23 यह इस प्रकार है कि सभी विश्वासी एक साथ मिलकर मसीह का अपना शरीर है, और जैसे वे अपनी शक्ति से सम्पूर्ण संसार को भरते हैं, वैसे ही वे हर जगह के सभी विश्वासियों को अपनी शक्ति से भरते हैं।
\s5
\c 2
\p
\v 1 मसीह पर भरोसा करने से पहले, तुम परमेश्वर की आज्ञा मानने के लिए निर्बल थे। तुम मृत व्यक्ति के समान असहाय थे।
\v 2 तुम आज के संसार के अधिकांश लोगों की तरह थे, और तुम भी, वही करते थे जो शैतान चाहता है - शैतान दुष्ट-आत्माओं का शासक है, जो संसार पर ऐसी शक्ति रखता है। शैतान वह दुष्ट-आत्मा है जो परमेश्वर की आज्ञा न मानने वाले लोगों के जीवनों में काम करता है।
\v 3 एक समय हम भी उन लोगों में से थे जिन्होंने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी; हम अपनी इच्छा के अनुसार बुराई अर्थात् ऐसे काम जो हमारे शरीर और हमारे मनों को आनंद देते थे। इस कारण परमेश्वर हमारे साथ भी वैसे ही क्रोधित थे जैसे अन्य लोगों के साथ।
\p
\s5
\v 4 परन्तु परमेश्वर बहुत दया के साथ कार्य करते हैं, और वह हम से बहुत प्रेम करते हैं।
\v 5 हम मृत लोगों की तरह परमेश्वर की आज्ञा मानने में निर्बल थे, परन्तु उन्होंने हमें मसीह के साथ जोड़कर फिर से जीवित किया। परमेश्वर ने हमें इसलिए बचाया है क्योंकि वे हमारे प्रति बहुत दयालु है।
\v 6 उन्होंने हमें उन लोगों के बीच में से निकला जो मृत लोगों के समान हैं, और स्वर्गीय स्थानों में मसीह यीशु के साथ राज्य करने के लिए हमें आदर का सिंहासन दिया।
\v 7 उन्होंने यह इसलिए किया कि भविष्य में हमें यह दिखाए कि वे हमारे प्रति कितने दयालु रहे हैं, क्योंकि हम मसीह यीशु से जुड़ गए हैं।
\p
\s5
\v 8 परमेश्वर ने अपनी अति कृपा से तुम्हें दण्ड से बचाया है क्योंकि तुम यीशु पर विश्वास करते हो। तुम ने तो स्वयं को नहीं बचाया; यह परमेश्वर का दान है-
\v 9 ऐसा दान जो कोई कमा नहीं सकता है, इसलिए कोई भी घमंड करके यह नहीं कह सकता कि उसने खुद को बचा लिया है।
\v 10 इसलिए परमेश्वर ने हमें नए लोगों के समान रचा जो मसीह यीशु से जुड़ें है, ताकि हम अच्छे काम कर सकें- ऐसे काम जिनकी योजना परमेश्‍वर ने पहले से हमारे करने के लिये बनाई थी।
\p
\s5
\v 11 मत भूलो कि तुम गैर-यहूदी विश्वासियों को पहले अन्यजाति बुलाया जाता था, क्योंकि तुम जन्म से यहूदी नहीं थे। यहूदी, तुम्हें "खतनारहित नास्तिक" कहकर अपमानित करते थे। वे अपने आप को "खतनावाले" कहते हैं; इससे उनका मतलब यह है कि केवल वे ही परमेश्वर के लोग हैं, तुम नहीं, यद्यपि खतना तो केवल मनुष्य करते हैं, परमेश्वर नहीं।
\v 12 उस समय, तुम में मसीह का कोई अंश नहीं था और तुम उनकी प्रजा इस्राएल का हिस्सा नहीं थे। तुम परमेश्वर की प्रतिज्ञा और व्यवस्था को नहीं जानते थे। तुम्हें उस भविष्य पर भरोसा नहीं था जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने तुमसे किया था, और जिस रीति से तुम अपना जीवन जी रहे थे, तुम परमेश्वर को नहीं जानते थे।
\s5
\v 13 परन्तु अब मसीह यीशु ने जो कुछ किया है, उसके कारण तुम उन पर भरोसा कर सकते हो क्योंकि मसीह क्रूस पर मरने के लिए सहमत हो गए थे।
\p
\v 14 मसीह, यहूदियों और गैर-यहूदियों के बीच की रुकावट को दूर करके उनमें मेल और एकता ले आए, मानो उन्होंने नफ़रत की दीवार को नष्ट कर दिया था जो हम लोगों को एक दूसरे से अलग करती थी।
\v 15 उन्होंने हमारे लिए सभी यहूदी नियमों और आज्ञाओं का पालन करने की आवश्यकता को नहीं रखा। उन्होंने यहूदियों और गैर-यहूदियों को दो के बजाय एक जाति बना दिया क्योंकि उन्होंने हमारे बीच मेल कराया था।
\v 16 यीशु ने यहूदियों और गैर-यहूदियों को परमेश्वर के साथ मित्रता करने के लिए विश्वासियों का एक नया समूह बना दिया। क्रूस पर मरने के कारण यीशु ने यह संभव कर दिया कि वे एक दूसरे से नफ़रत करना बंद कर दें।
\s5
\v 17 यीशु ने आकर उस सुसमाचार की घोषणा की जो परमेश्वर के साथ मेल खाता है; उन्होंने इसकी घोषणा दोनों को की, तुम गैर-यहूदियों को जो परमेश्वर के बारे में नहीं जानते थे बताया, और हम यहूदियों को भी बताया, जो परमेश्वर के बारे में पहले से जानते थे।
\v 18 अब यीशु के द्वारा यहूदी और गैर-यहूदी दोनों पिता के साथ बात कर सकते हैं क्योंकि परमेश्वर के आत्मा सभी विश्वासियों में रहता है।
\p
\s5
\v 19 इसलिये अब तुम गैर-यहूदी परमेश्वर के लोगों के लिए अजनबी और विदेशी नहीं हो, बल्कि तुम उन लोगों के साथी हो जिन्हें परमेश्वर ने अपने लिए अलग किया है, और तुम परमेश्वर के परिवार के सदस्य हो, जिनके लिए परमेश्वर पिता हैं।
\v 20 तुम ऐसे पत्थरों के समान हो जिसे परमेश्वर ने अपने भवन का हिस्सा बनाया है, और यह भवन प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं की शिक्षाओं पर बनाया गया है। भवन का सबसे महत्वपूर्ण पत्थर, आधारशिला, मसीह यीशु स्वयं हैं।
\v 21 यीशु अपने विश्वासियों के परिवार को बढ़ा रहे हैं और उन्हें एक साथ ऐसे जोड़ रहे हैं जैसे पत्थरों के अराधनालय को बनाया और जोड़ा जाता है; क्योंकि प्रभु नए विश्वासियों को अपने साथ जोड़ते रहते हैं।
\v 22 यीशु ने यहूदियों और गैर-यहूदियों दोनों को एक परिवार बनाया जिसमें परमेश्वर अपने पवित्र आत्मा के द्वारा रहते हैं।
\s5
\c 3
\p
\v 1 क्योंकि परमेश्वर ने तुम, गैर-यहूदियों के लिए यह सब किया है, मसीह यीशु ने मुझ पौलुस को तुम्हारे लिए कैद में रखा है।
\v 2 मुझे लगता है कि तुम इस बात को जानते हो कि परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे लिए एक विशेष कार्य करने को देकर मुझे आदर दिया है।
\s5
\v 3 उन्होंने मुझे यह काम उस गुप्त सच्चाई के कारण दिया, जिसके विषय में मैंने तुम्हें संक्षेप में लिखा था;
\v 4 जब तुम यह पढ़ोगे कि मैंने इसके बारे में पहले से क्या लिखा है, तो यह समझ पाओगे कि मैं मसीह के बारे में सच्चाई को समझता हूँ।
\v 5 पूर्वकाल में, परमेश्वर ने उस सुसमाचार को जो आने वाला था, किसी पर भी पूरी तरह से प्रकट नहीं किया। यह ऐसा था जिसे किसी ने नहीं समझा, परन्तु अब उनके पवित्र आत्मा ने अपने प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं पर जिन्हें उन्होंने परमेश्वर की सेवा करने के लिए बुलाया है, यह सुसमाचार प्रकट किया;
\s5
\v 6 और छिपी हुई सच्चाई यह है कि गैर-यहूदी अब यहूदियों के संग परमेश्वर के आत्मिक धन के साझी हैं, और परमेश्वर के लोगों के एक समूह का हिस्सा हैं, और वे उन सभी चीजों को साझा करेंगे जिनका वादा परमेश्वर ने उनसे किया है क्योंकि वे मसीह यीशु से जुड़े हैं -यह सुसमाचार है।
\v 7 अब मैं सुसमाचार फैलाने के लिए परमेश्वर का सेवक हूँ, वैसे तो मैं यह काम करने के योग्य नहीं था, परन्तु परमेश्वर ने मुझ में अपनी शक्ति के द्वारा कार्य करने के अनुसार दिया है।
\p
\s5
\v 8 यद्यपि मैं परमेश्वर के सभी लोगों में सब से कम योग्य हूँ, फिर भी परमेश्वर ने अपनी दया और करुणा से मुझे सक्षम किया कि मैं गैर-यहूदियों को उस सुसमाचार के बारे में बताऊँ जो मसीह ने हमारे लिए किया, जो इतना विशाल है कि कोई भी इसके बारे में पूरी रीति से समझ नहीं सकता है।
\v 9 मेरा कार्य यह है कि मैं हर किसी को समझाऊँ कि परमेश्वर की वह योजना क्या है, जो परमेश्वर ने बहुत समय से अर्थात् - सृष्टि के आरम्भ से गुप्त रखी है।
\s5
\v 10 जो योजना परमेश्वर ने बुद्धिमानी से बनाई है, उसे उन्होंने अपने लोगों के द्वारा, जो मसीह पर भरोसा करते हैं; स्वर्ग में शक्तिशाली स्वर्गदूतों को दिखाया है।
\v 11 अनंत काल के लिए परमेश्वर ने यही योजना बनाई है, और यही उन्होंने हमारे प्रभु यीशु मसीह के काम से पूरा किया है।
\s5
\v 12 अतः अब जब हम प्रार्थना करते हैं, तो हम परमेश्वर के निकट साहस के साथ और बिना डर के आ सकते हैं, क्योंकि हम यीशु पर भरोसा करते हैं, जिसने परमेश्वर की योजना को पूरा किया है।
\v 13 इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ कि मेरे उन दुःखों के कारण निराश न होना, जो मैं कैद में तुम्हारे कारण उठाता हूँ, क्योंकि वास्तव में उनसे तुम्हारा सम्मान बढ़ता हैं।
\p
\s5
\v 14 क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हारे लिए यह सब किया है, इसलिए मैं घुटने टेककर हमारे परमेश्वर पिता से प्रार्थना करता हूँ।
\v 15 वही है जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर के हर परिवार को उनका नाम देते हैं।
\v 16 मैं उनकी महान शक्ति के कारण प्रार्थना करता हूँ कि परमेश्वर तुम्हें शक्ति दे और तुम्हें अपने पवित्र आत्मा से जो तुम्हारी आत्माओं के साथ रहता है; मजबूत करे।
\s5
\v 17 मैं प्रार्थना करता हूँ कि मसीह तुम्हारे दिलों में रहे क्योंकि तुम उन पर भरोसा रखते हो, और यह भी कि तुम एक दृढ़ जड़वाले पेड़ और पत्थर पर स्थापित भवन की तरह बनो,
\v 18 ताकि तुम उन सब के साथ, जो परमेश्वर के लिए अलग किए गए है, पूरी रीति से समझ सको कि मसीह का प्रेम कितना चौड़ा और लंबा और ऊँचा और गहरा है।
\v 19 क्योंकि यह प्रेम इतना बड़ा है कि हम इसे समझ नहीं सकते, लेकिन इस प्रेम के कारण, मैं प्रार्थना करता हूँ कि परमेश्वर तुम सभी को अपने आप से भर सकें।
\p
\s5
\v 20 परमेश्वर की शक्ति के द्वारा जो हमारे अन्दर काम कर रही है, हमारे मांगने से या हमारे सोचने से भी बढ़कर, बड़े-बड़े काम कर सकता हूँ।
\v 21 ऐसा हो पाए कि सभी विश्वासी जो परमेश्वर और मसीह यीशु की आराधना करने के लिए इकट्ठे होते है, वे अन्य सभी बातों से अधिक आदर परमेश्वर को दें। ऐसा हो पाए कि इतिहास की सब पीढ़ियों से सभी विश्वासी हमेशा के लिए उसकी प्रशंसा करते रहें। तो ऐसा ही किया जाए।
\s5
\c 4
\p
\v 1 इसलिए, इस कैद से, जहाँ मैं प्रभु यीशु का प्रचार करने के कारण से हूँ , मैं तुमसे, जिन्हें परमेश्वर ने चुना है, आग्रह करता हूँ कि तुम ऐसा जीवन जियो जिससे यीशु को, जिन्होंने तुम्हें बुलाया है, आदर मिले।
\v 2 नम्रतापूर्वक और कोमलता तथा धीरज से एक दूसरे की ज़रूरतों को पूरा करते रहो क्योंकि तुम एक-दूसरे से प्रेम करते हो।
\v 3 एक-दूसरे के साथ मिलकर शान्ति से रहो और एकजुट रहने के लिए जो कुछ भी करना पड़े; करो।
\s5
\v 4 सभी विश्वासियों से एक समूह बनता है, और केवल एक ही पवित्र आत्मा हैं, और तुम आशा के साथ परमेश्वर के वादों के पूरे होने की प्रतीक्षा करने के लिए चुने गए हो।
\v 5 केवल एक ही प्रभु हैं, जो यीशु मसीह हैं, और एक विश्वास है, जो परमेश्वर पर हमारा भरोसा है; और केवल एक ही सच्चा मसीही बपतिस्मा है।
\v 6 एक परमेश्वर हैं, जो सभी के सच्चे पिता हैं। वे हर किसी पर राज्य करते हैं, और वे सभी घटनाओं के द्वारा काम कर रहे हैं, और जो कुछ होता है, उसके अन्दर वे काम कर रहे हैं।
\p
\s5
\v 7 परमेश्वर ने प्रत्येक विश्वासी को आत्मिक आशीषें उदारता से दी हैं जिन्हें मसीह ने अपनी इच्छा के अनुसार हमें भरपूरी से दी हैं।
\v 8 यह उसके समान है जो भजनकार ने परमेश्वर के विषय में कहा कि परमेश्वर उन लोगों से भेंट का धन लेते हैं जिन पर उन्होंने विजय प्राप्त की है,
\q जब वे पहाड़ की चोटी पर अपने शहर में चढ़ गए,
\q वे कैदियों को कैद में ले गए
\q और उनकी अर्पित भेंटों को अपने लोगों को दे दिया।
\p
\s5
\v 9 "वे चढ़ गए" शब्द निश्चित रूप से हमें बताता है कि मसीह पहले भी स्वर्ग से पृथ्वी पर उतर आए थे, जैसे परमेश्वर के अभिषिक्त राजा यरूशलेम से युद्ध करने के लिए उतरता था।
\v 10 मसीह, जो बुराई पर विजय पाने के लिए पृथ्वी पर उतर आए, वही जिन्हें हमारे पापों के लिए क्रूस पर चढ़ाया गया था, फिर से जीवित हुआ और स्वर्ग में सबसे ऊंचे स्थान पर चढ़ गए, ताकि वे सब कुछ नियंत्रित कर सकें।
\s5
\v 11 उन्होंने कुछ विश्वासियों को प्रेरित, कुछ को भविष्यद्वक्ता, कुछ प्रचारक होने, और कुछ लोगों को नेतृत्व करने और दूसरों को विश्वासियों के समूह को सिखाने के लिए नियुक्त किया।
\v 12 यह परमेश्वर के लोगों को परमेश्वर का काम करने और दूसरों की सेवा करने को तैयार करने के लिए था, ताकि मसीह के सभी लोग आत्मिक रूप से मजबूत हो सकें
\v 13 वे चाहते हैं कि हम सभी विश्वासी एकजुट हो जाएँ क्योंकि हम सभी उन पर भरोसा करते हैं और उन्हें पूरी तरह समझने में बढ़ते जाते हैं। वे चाहते हैं कि हम परिपक्व विश्वासी बनें, एक साथ मिलकर सिद्ध होने की ओर बढ़ते जाएँ जैसे वे स्वयं सिद्ध हैं।
\s5
\v 14 जब हम परिपक्व हो जाएँगे तब हम छोटे बच्चों की तरह सच से अनजान नहीं रहेंगे। हम तब हर नई शिक्षा का पालन नहीं करेंगे, जैसे हवा और लहरों के बीच एक नाव हिलती-डुलती है। जो लोग झूठी शिक्षा देते हैं, उन्हें हम धोखा देने और बहकाने नहीं देंगे।
\v 15 इसके बजाय, हम परमेश्वर से प्रेम करते और उनकी सच्ची शिक्षाओं पर भरोसा करते रहेंगे, और हम हर तरह से मसीह की समानता में अधिक बदलते जाएँगे। वे अपने लोगों पर ऐसे नियंत्रण करते हैं जैसे किसी व्यक्ति का सिर उसके शरीर पर नियंत्रण करता है।
\v 16 वह सभी विश्वासियों को एक साथ बढ़ने और एक-दूसरे से प्रेम करने के लिए सक्षम बनाते हैं, जैसे एक व्यक्ति के शरीर के अंग एक-दुसरे के साथ जुड़े रहते हैं और जोड़ों की सहायता से पूरा शरीर एक साथ बंधा रहता है, जिससे शरीर को बढ़ने और खुद को पुष्ट रखने की क्षमता मिलती है, क्योंकि शरीर के अंग एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं।
\p
\s5
\v 17 प्रभु यीशु के अधिकार के द्वारा, मैं दृढ़ता के साथ कहता हूँ कि तुम अब अविश्वासी गैर-यहूदियों की तरह न रहना। उनके मन के तुच्छ विचार उन्हें निर्देशित करते हैं कि कैसे जीवन बिताना है।
\v 18 वे सही या गलत के बारे में स्पष्ट रूप से सोचने में असमर्थ हैं। वे परमेश्वर की आज्ञा पालन को समझ नहीं सकते क्योंकि वे उनके संदेश को सुनने से इन्कार करते हैं, और इसलिए उनके पास अनन्त जीवन नहीं है जो यीशु हमें देते हैं।
\v 19 उन्होंने बिना रुके उन शर्मनाक कार्यों को चुना, जो उनके शरीर की इच्छा के अनुसार था। वे सभी प्रकार के अनैतिक कार्य करते हैं और उन्हें अधिक से अधिक करने को उत्सुक रहते हैं, और वे हर उस वस्तु का लालच करते हैं जिसे वे पाना चाहते हैं।
\p
\s5
\v 20 लेकिन जब तुमने मसीह के बारे में सीखा, तो तुमने ऐसी चाल चलना नहीं सीखा था।
\v 21 अब जब कि तुमने यीशु के बारे में सुना है और उन्होंने तुम्हें सिखाया है, तो तुम जानते हो कि उनका मार्ग जीवन जीने का सच्चा मार्ग हैं।
\v 22 यीशु ने सिखाया था कि तुम जिस तरह जीवन जीते थे उसे रोकना होगा। तुम ऐसी लाशों की तरह थे जो सड़ रही थी, क्योंकि तुम अपनी अभिलाषाओं के कारण अपने आप को धोखा दे रहे थे।
\s5
\v 23 परमेश्वर को तुम्हारी आत्माओं और विचारों को बदलने की अनुमति दो।
\v 24 तुम्हें नए व्यक्तित्व की तरह रहना शुरू करना चाहिए। परमेश्वर ने तुम्हें नया व्यक्तित्व दिया है। तुम उनके लिए अलग किए गए हो। उन्होंने तुम्हें सही तरीके से जीने के लिए बनाया है, जो वास्तव में परमेश्वर के लिए समर्पित है।
\p
\s5
\v 25 इसलिए, एक दूसरे से झूठ बोलना छोड़ दो जैसा कि पवित्र शास्त्र कहता है, "एक-दूसरे से सच्चाई से बोलो क्योंकि अब हम आपस में साथी विश्वासी हैं।" अब परमेश्वर के परिवार में हम एक दूसरे के हैं।
\v 26 यदि तुम क्रोधित हो जाते हो तो अपने क्रोध को पाप न बनने दो। दिन की समाप्ति से पहले, गुस्सा छोड़ दो
\v 27 ताकि तुम शैतान को अपने ऊपर हमले करने का अवसर न दे सको।
\s5
\v 28 जो लोग चोरी करते थे, उन्हें अब चोरी नहीं करनी चाहिए। इसके बजाय, उन्हें स्वयं परिश्रम से रोज़ी-रोटी कमाने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए, जिससे जरूरतमंद लोगों को देने के लिए उनके पास कुछ हो।
\v 29 गलत भाषा का उपयोग न करें। इसके बजाय, अच्छी बातें बोलो, ऐसी बातें जिससे सुनने वालों को उनके जरूरत के समय सहायता मिले।
\v 30 परमेश्वर का पवित्र आत्मा को अपने जीवनशैली के द्वारा दुखी न करो। उन्होंने वादा किया हैं कि परमेश्वर एक दिन हमें इस दुष्ट संसार से बचाएंगे।
\s5
\v 31 दूसरों के प्रति द्वेष न रखो। किसी भी तरह क्रोधित न होना और न अपमानजनक रीति से दूसरों पर चिल्लाना। कभी दूसरों की निंदा न करना और कभी भी दूसरों के प्रति बुराई की योजना न बनाना।
\v 32 एक दूसरे पर कृपा करो। एक दूसरे के प्रति दयालु बनो। एक दूसरे को क्षमा करो, जैसे परमेश्वर ने भी तुम्हें मसीह के द्वारा किए गए कार्य के कारण क्षमा किया है।
\s5
\c 5
\p
\v 1 परमेश्वर का अनुकरण करो, क्योंकि वे हमसे प्रेम करते हैं और क्योंकि तुम उनके बच्चे हो।
\v 2 दूसरों से प्रेम करते हुए जीवन बिताओ, जैसे मसीह ने हमसे प्रेम किया जब उन्होंने क्रूस पर हमारे पापों के लिए परमेश्वर के सम्मुख अपने आप को भेंट और बलिदान स्वरूप अर्पित किया, जो परमेश्वर को बहुत प्रसन्न था।
\s5
\v 3 किसी भी प्रकार के अनैतिक कार्य का सुझाव न दो और दूसरों की किसी वस्तु की या दूसरों के बुरे कामों की इच्छा न करो, ऐसे पापों के कारण, लोगों को बुरी बातें बोलने का मौका मिल सकता है; जो परमेश्वर के लोग हैं, और पाप के लिए नहीं बल्कि परमेश्वर के लिए अलग किए गए हैं।
\v 4 दूसरों को अश्लील कहानियां न सुनाओ, न मूर्खता की बातें करो, न पाप करने के बारे में हंसी-मज़ाक करो। ऐसी बातें परमेश्वर के लोगों को नहीं बोलनी चाहिए, इसके बजाय, जब तुम दूसरों से बात करते हो तो परमेश्वर के प्रेम के लिए उनका धन्यवाद करो।
\s5
\v 5 तुम इसके बारे में सुनिश्चित हो सकते हो: कोई भी व्यक्ति जो यौन सम्बंधित अनैतिकता या अश्लील काम करता है, या लालची है (यह मूर्तिपूजा के समान है), वह परमेश्वर के लोगों के बीच, जिन पर मसीह राजा के रूप में राज्य करते हैं, न पाया जाए।
\v 6 कोई भी झूठे तर्कों से तुम्हें धोखा न दे। क्योंकि जो ये पापपूर्ण काम करते हैं, परमेश्वर उन अवज्ञाकारी लोगों पर क्रोधित होंगे।
\v 7 जो लोग ऐसे पाप करते हैं, उनके साथ न जुड़ो।
\p
\s5
\v 8 प्रभु यीशु पर विश्वास करने से पहले, तुम पापमय अवज्ञा में रह रहे थे, मानो कि एक अंधेरी रात तुम्हें हर समय घेरे हुई थी। परन्तु अब परमेश्वर के प्रकाश में बने रहो।
\v 9 जैसे प्रकाश अच्छे कामों को उत्पन्न करता है, वैसे ही जो भी यीशु के प्रकाश में रहते हैं, वे अच्छी, सही और सच्ची बातों को जानते और करते हैं।
\v 10 जाँच कर जानो कि प्रभु को क्या पसंद आता हैं।
\v 11 आत्मिक अंधकार में किए जाने वाले व्यर्थ कार्यों को करने वालों के सहभागी ना बनों। इसके बजाय, बस यह कहो, "वे पापमय कार्य व्यर्थ हैं,"
\v 12 क्योंकि लोग अंधेरे के गुप्त में जो बुरे काम करते हैं, उनका प्रकाश में वर्णन करना बहुत शर्मनाक हैं।
\s5
\v 13 जो कुछ प्रकाश में उजागर होता है वह सब स्पष्ट रूप से देखा और बेहतर समझा जा सकता है,
\v 14 क्योंकि प्रकाश बताता है कि यह वास्तव में क्या है। ऐसा तब होता है जब परमेश्वर का वचन उन पापों का वर्णन करता है जो लोगों को नष्ट करता है, और यीशु उन लोगों को क्षमा करते और नया बनाते हैं। इसलिए विश्वासी कहते हैं,
\q "अपनी नींद से जाग जाओ
\q और मृतकों में से जी उठो
\q मसीह तुम्हें अपनी क्षमा और नए जीवन को समझने में सक्षम करेंगे।"
\p
\s5
\v 15 इसलिए सावधान रहो कि तुम कैसे जीते हो। मूर्ख लोगों की तरह व्यवहार मत करो। इसके बजाय, बुद्धिमान लोगों की तरह व्यवहार करो।
\v 16 पृथ्वी पर तुम्हारे पास जितना समय है उसका बुद्धिमानी से उपयोग करो, क्योंकि यहाँ के दिन बुराई से भरे हैं।
\v 17 इसलिए मूर्ख मत बनो। इसके बजाय, समझो कि प्रभु यीशु तुमसे क्या कराना चाहते हैं, और वही करो।
\p
\s5
\v 18 मदिरा पीकर नशे में मत रहो, जो तुम्हारे जीवन को बर्बाद कर सकता है। इसके बजाय, तुम परमेश्वर के आत्मा को सदैव तुम्हारे हर कार्य को नियंत्रित करने दो।
\v 19 आपस में भजन गाओ, और मसीह के बारे में गीत गाओ, और परमेश्वर के आत्मा जो गीत तुम्हें दे, उसे गाओ। प्रभु यीशु की प्रशंसा करने के लिए इन गीतों और भजनों को अपने दिल से गाओ।
\v 20 प्रभु यीशु मसीह ने तुम्हारे लिए जो किया है, उसके लिए हर समय परमेश्वर पिता का धन्यवाद करते रहो।
\v 21 नम्रता से एक दूसरे के अधीन रहो क्योंकि तुम मसीह का आदर करते हो।
\p
\s5
\v 22-23 पत्नियों अपने पति के नेतृत्व के अधीन रहें, जैसे वे प्रभु यीशु के अधीन हैं, क्योंकि पति पत्नी का अगुवा है जैसे मसीह भी विश्वव्यापी विश्वासियों के मंडली के अगुवे हैं। वही उद्धारकर्ता हैं जिन्होंने सभी विश्वासियों को उनके पापों के कारण अपराधी ठहराए जाने से बचाया है।
\v 24 जैसे सभी विश्वासियों ने मसीह के अधिकार के अधीन अपने आप को सौंप दिया है, वैसे ही स्त्रियाँ को अपने पतियों के अधिकार के अधीन अपने आप को पूरी तरह से सौंप देना चाहिए।
\p
\s5
\v 25 तुम भी पतियों, अपने पत्नियों से प्रेम करो जैसे मसीह सभी विश्वासियों को प्रेम करते हैं और जिन्होंने क्रूस पर हमारे लिए अपना जीवन दे दिया,
\v 26 ताकि वे हमें अपने लिए अलग कर सके। अपने वचन की सामर्थ से यीशु ने हमारे पापों के दण्ड को मिटाकर विश्वासियों को शुद्ध किया, जैसे कि उन्होंने हमें पानी से धोया हो।
\v 27 अब मसीह सभी विश्वासियों को अपने सामने पूरी तरह से साफ, निर्दोष, क्षमा पाए हुए और पाप रहित समूह के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं।
\s5
\v 28 हर पुरुष को अपनी पत्नी से वैसा ही प्रेम करना चाहिए जैसा वह अपने शरीर से करता है। जब पुरुष अपनी पत्नी से प्रेम करें, तो वह ऐसा हो जैसे वे खुद को प्रेम कर रहे हैं,
\v 29-30 क्योंकि कोई भी कभी अपने स्वयं के शरीर से घृणा नहीं करता। इसके बजाय, वह अपने शरीर का पालन-पोषण करता है और उसकी देखभाल करता है, जैसे मसीह भी हमारे विश्वव्यापी विश्वासियों की मंडली के सभी विश्वासियों की देख-भाल करते हैं। हम विश्वासियों का एक समूह बन गए हैं जो उन के हैं।
\s5
\v 31 पवित्र-शास्त्र विवाह करने वाले लोगों के बारे में कहता है:
\q "जब एक पुरुष और एक स्त्री का विवाह होता है, तो उन्हें अपने पिता और माता को हमेशा के लिए छोड़ देना चाहिए। उन्हें पति और पत्नी के रूप में जुड़ना चाहिए, और उन दोनों को ऐसे हो जाना चाहिए मानो वे एक व्यक्ति हैं।"
\p
\v 32 इन बातों का अर्थ जो परमेश्वर ने अब प्रकट किया है समझना मुश्किल है, लेकिन मैं विश्वव्यापी विश्वासियों की मंडली के लिए मसीह के प्रेम के बारे में तुम्हें बता रहा हूँ।
\v 33 तथापि तुम्हारे लिए, प्रत्येक पुरुष अपनी पत्नी से प्रेम करे जैसे वह खुद को प्रेम करता है, और प्रत्येक स्त्री अपने पति का सम्मान करे।
\s5
\c 6
\p
\v 1 बच्चो, क्योंकि तुम प्रभु यीशु के हो, इसलिए अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करो, क्योंकि ऐसा करना तुम्हारे लिए उचित है।
\v 2 पवित्र-शास्त्रों में परमेश्वर ने आज्ञा दी है,
\p "अपने पिता और माता का अत्यन्त सम्मान करो।" यह पहला नियम है जिसमें परमेश्वर ने आज्ञा के साथ कुछ वादे भी किए थे। उसने वादा किया,
\p
\v 3 "यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम समृद्ध होगे, और तुम पृथ्वी पर लम्बा जीवन जियोगे।"
\p
\s5
\v 4 हे माता-पिता, अपने बच्चों के साथ ऐसा कठोर व्यवहार न करो कि वे क्रोधित हो जाए। इसके बजाय, जैसे प्रभु यीशु तुमसे चाहते हैं, वैसे निर्देश देकर और अनुशासित करके अच्छी तरह से उनका पालन-पोषण करो।
\p
\s5
\v 5 हे दासों, पृथ्वी पर जो तुम्हारे स्वामी हैं उनकी आज्ञा मानों। बहुत सम्मान और ईमानदारी से उनकी आज्ञा का पालन करो, जैसे तुम मसीह की आज्ञा का पालन करते हो।
\v 6 उनकी आज्ञा मानों, न केवल तब जब वे तुम्हें देख रहे हों। इसके बजाय, उनकी आज्ञा का पालन ऐसे करो जैसे कि तुम मसीह के दास हो, न कि अपने स्वामियों के दास हों। सब कुछ उत्साह के साथ करो जैसा परमेश्वर तुमसे चाहते हैं।
\v 7 खुशी से अपने स्वामियों की ऐसी सेवा करो, जैसे कि तुम प्रभु यीशु की सेवा करते हो, न कि ऐसे जैसे तुम सामान्यत लोगों की सेवा करते हो।
\v 8 ऐसा ही करो क्योंकि तुम जानते हो कि एक दिन प्रभु यीशु प्रत्येक व्यक्ति को उसके अच्छे कर्मों का प्रतिफल देंगे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह व्यक्ति दास था या स्वतंत्र।
\p
\s5
\v 9 स्वामियों, जैसे तुम्हारे दासों को तुम्हारी अच्छी तरह से सेवा करनी चाहिए, वैसे ही तुम्हें भी उनके साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। उन्हें धमकी देना बंद करो। यह मत भूलो कि वे जो उनके और तुम्हारे प्रभु हैं, वे स्वर्ग में हैं। वे पक्षपात के बिना हर व्यक्ति के कामों का न्याय करते हैं कि वे सही काम थे या नहीं।
\p
\s5
\v 10 अंत में, प्रभु यीशु पर पूरी तरह निर्भर रहो ताकि तुम उनकी बलवन्त शक्ति से आत्मिक रूप से मजबूत हो सको।
\v 11 एक सैनिक की तरह अपना सम्पूर्ण कवच पहन लो, जब शैतान तुम्हारे विरुद्ध चतुराई से योजना बनाता है, तो तुम्हें भी शैतान का सफलतापूर्वक विरोध करने के लिए परमेश्वर से प्राप्त हर एक संसाधन का उपयोग करना चाहिए।
\s5
\v 12 हम अन्य मनुष्यों के विरुद्ध नहीं लड़ रहे हैं, परन्तु हमारा युद्ध उन सब प्रकार के शैतानी शासकों और दुष्ट-आत्माओं से है जो आत्मिक अंधकार में रहते हैं।
\v 13 इसलिए, जैसे एक सैनिक अपने सारे हथियार उठाता है, वैसे ही तुम भी परमेश्वर के सभी हथियार उठा लो ताकि तुम पृथ्वी पर बुराई के इस समय में बुराई के विरुद्ध खड़े हो सको। परमेश्वर के हथियार के साथ, तुम बुराई के हमलों के विरुद्ध लड़ सकते हो और परमेश्वर के लिए जी सकते हो।
\p
\s5
\v 14 तुम स्थिर रहो जैसे सैनिक चौकसी पर है। सैनिक की तरह सच को अपने कमरबन्ध के समान बांध लो; और जैसे वह छाती पर झिलम पहनता है, वैसे तुम भी अपनी छाती पर परमेश्वर की आज्ञाकारिता की झिलम पहन लो।
\v 15 जैसे सैनिक अपने जूते पहनते हैं, वैसे ही सुसमाचार के खातिर कहीं भी जाने के लिए तैयार रहो। तुम जहाँ कहीं भी जाते हो, सुसमाचार को अपने साथ लिए चलते हो और तुम अपने साथ हर जगह शान्ति ले जाते हो।
\v 16 जैसे सैनिक अपनी सुरक्षा के लिए एक ढाल लेता है, उस प्रकार तुम भी विश्वास की ढाल ले लो, और वह ढाल उन जलते हुए तीरों को बुझा देगी जिसे दुष्ट तुम पर मारेगा; तुम्हारी ढाल तुम्हारी रक्षा करेगी।
\s5
\v 17 सैनिक अपने सिर की रक्षा के लिए एक टोप रखता है, तुम्हारी सुरक्षा का टोप तुम्हारा उद्धार है। सैनिक की तलवार होती है, लेकिन तुम्हारी तलवार परमेश्वर का वचन है, जो "पवित्र आत्मा की तलवार" है।
\v 18 और परमेश्वर के आत्मा को तुम्हें निर्देश देने दो कि तुम्हें कैसे और क्या प्रार्थना करना है। हर समय परमेश्वर से प्रार्थना करते रहो और अन्य लोगों की जरूरतों की पूर्ति के लिए परमेश्वर से मांगते रहो। यदि तुम अपनी प्रार्थनाओं में प्रभावी होना चाहते हो तो तुम्हें आत्मिक रूप से सतर्क रहना चाहिए। परमेश्वर के सभी पवित्र लोगों के लिए प्रार्थना करने के लिए विशेष ध्यान रखो,
\s5
\v 19 और मेरे लिए प्रार्थना करो। प्रार्थना करो कि जब भी मैं बोलूँ तो परमेश्वर मुझे बताए कि मैं क्या बोलूँ, ताकि मैं साहसपूर्वक मसीह के बारे में अन्य लोगों को सुसमाचार सुना सकूँ। लोगों को यह संदेश पहले नहीं पता था, परन्तु अब परमेश्वर ने मुझ पर यह प्रगट किया है।
\v 20 इस कारण मैं मसीह के एक प्रतिनिधि के रूप में कैद में हूँ। प्रार्थना करो कि जब मैं दूसरों को मसीह के बारे में बताऊँ, तो मैं निडर होकर बोल सकूँ, क्योंकि मुझे ऐसे ही बोलना चाहिए।
\p
\s5
\v 21 इसलिए कि तुम जान सको कि मेरे साथ क्या हो रहा है और मैं क्या कर रहा हूँ, मैं तुखिकुस को इस पत्र के साथ भेज रहा हूँ। वह तुम्हें सब कुछ बताएगा जो यहाँ हो रहा है। वह एक साथी विश्वासी है जिसे हम सब बहुत प्रेम करते हैं, और वह प्रभु यीशु की ईमानदारी से सेवा करता है।
\v 22 यही कारण है कि मैं उसे तुम्हारे पास भेज रहा हूँ; मैं चाहता हूँ कि तुम यह जानो कि मैं और मेरे साथी कैसे हैं। मैं चाहता हूँ कि वह तुम्हें सांत्वना दे और प्रोत्साहित करे।
\p
\s5
\v 23 मैं प्रार्थना करता हूँ कि हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह तुम सभी विश्वासी भाई-बहनों को आतंरिक शान्ति दे और एक-दूसरे से प्रेम करने और परमेश्वर पर भरोसा करने के लिए प्रेरित करे।
\v 24 परमेश्वर उन सभी लोगों पर अनुग्रह करें जो हमारे प्रभु यीशु मसीह से प्रेम करते हैं।

198
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\id PHP
\ide UTF-8
\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h फिलिप्पियों
\toc1 फिलिप्पियों
\toc2 फिलिप्पियों
\toc3 php
\mt1 फिलिप्पियों
\s5
\c 1
\p
\v 1 मैं, पौलुस, फिलिप्पी शहर में रहने वाले प्रिय साथी विश्वासियों को यह लिख रहा हूँ। हम, पौलुस और तीमुथियुस, फिलिप्पी में तुम सभी को यह पत्र भेज रहे हैं, जो मसीह यीशु में जोड़े गए हो, जिनको परमेश्वर ने अपने लिए अलग किया है। हम इस पत्र को अध्यक्षों और सेवकों को भेज रहे हैं जो वहाँ सेवा कर रहे हैं।
\v 2 हम प्रार्थना करते हैं कि हमारे पिता परमेश्वर और हमारे प्रभु यीशु मसीह तुम पर दया करें और तुमको शांति दें।
\p
\s5
\v 3 मैं जब भी तुम्हारे बारे में सोचता हूँ तो प्रार्थना में अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ।
\v 4 मैं लगातार आनन्द के साथ तुम्हारे लिए प्रार्थना करता हूँ
\v 5 और परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ क्योंकि तुम पहले दिन से आज तक सुसमाचार की घोषणा करने में तीमुथियुस और मेरे अन्य सब लोगों के साथ काम कर रहे हो।
\v 6 मुझे पता है कि परमेश्वर तुम्हारे बीच बहुत अच्छे काम कर रहे हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि वह उन कामों को उस समय पूरा करेंगे जब यीशु मसीह वापस आएँगे।
\s5
\v 7 तुम्हारे बारे में मेरी ऐसी भावना सही है क्योंकि मैं तुमको दिल से प्रेम करता हूँ। जिस काम को परमेश्वर ने मुझे आगे बढ़ाने के लिए दिया है, तुम उसमें मेरे साथ सहभागी रहे हो, चाहे अब मैं जेल में हूँ, या तब जब मैं सुसमाचार का सब लोगों में प्रचार करता हूँ और लोगों को बताता हूँ कि यह सच है।
\v 8 परमेश्वर देखते हैं कि मैं तुम्हारे साथ रहने की कैसी गहरी लालसा रखता हूँ, जैसे मैं तुम सभी को बहुत गहराई से प्रेम करता हूँ, जैसे मसीह यीशु ने हम सबसे बड़ी दया से प्रेम किया।
\p
\s5
\v 9 मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करता हूँ, कि तुम एक दूसरे से अधिक से अधिक प्रेम कर सको, और तुम यह जान सको और समझ सको कि परमेश्वर क्यों चाहते हैं कि तुम ऐसा करो।
\v 10 मैं यह भी प्रार्थना करता हूँ कि परमेश्वर तुमको समझने की शक्ति दें कि तुमको क्या विश्वास करना चाहिए और तुम्हारे व्यवहार के लिए सर्वोतम क्या है। मैं यह प्रार्थना इसलिए करता हूँ कि, जब मसीह वापस आएँ, तो तुम ईमानदार और निर्दोष पाए जाओ।
\v 11 मैं यह भी प्रार्थना करता हूँ कि जो तुम कर सकते हो तुम सदा उसे करते रहो क्योंकि परमेश्वर ने तुमको यीशु मसीह के कारण से अपनी दृष्टि में अच्छा घोषित किया है। तब दूसरे लोग यह देखेंगे कि तुम कैसे परमेश्वर का सम्मान करते हो।
\p
\s5
\v 12 हे मेरे साथी विश्वासियों, मैं चाहता हूँ कि तुम यह जान लो कि जिन मुश्किल परेशानियों का मुझे सामना करना पड़ा है, वे मुझे लोगों को सुसमाचार सुनाने से रोक नहीं सकीं। इसकी अपेक्षा मेरे कष्टों ने लोगों को मसीह के बारे में शुभसमाचार सुनाने के लिए और भी अधिक योग्य बनाया है।
\v 13 विशेष करके, इस शहर की सेना के सब सुरक्षाकर्मियों और अनेक अन्य लोगों को अब पता है कि मैं कैदी हूँ क्योंकि मैं मसीह के सुसमाचार का प्रचार करता हूँ।
\v 14 इसके अतिरिक्त, यहाँ अधिकांश विश्वासी लोग बिना डरे साहस के साथ यीशु के बारे में सुसमाचार फैलाते हैं क्योंकि वे उनकी सहायता करने के लिए परमेश्वर पर बहुत दृढ़ विश्वास करते हैं। वे यीशु के बारे में अधिक विश्वास से बोलते हैं क्योंकि उन्होंने देखा है कि प्रभु ने सुसमाचार सुनाने के लिए बन्दीगृह में भी मेरी सहायता की है।
\p
\s5
\v 15 कुछ लोग सुसमाचार का प्रचार इसलिए कर रहे हैं कि वे जलते हैं और वे चाहते हैं कि विश्वासी लोग उनका सम्मान करें, न कि मेरा। परन्तु शेष लोग सुसमाचार का प्रचार इसलिए कर रहे हैं कि वे मसीह से प्रेम करते हैं और वे चाहते हैं कि जिन्होंने यह सुसमाचार नहीं सुना है, वे भी सुनें।
\v 16 जो लोग सुसमाचार का प्रचार इसलिए करते हैं, क्योंकि वे मसीह से प्रेम करते हैं, वे जानते हैं कि परमेश्वर ने मुझे चुना है कि आम लोगों में प्रचार करूँ कि यह सुसमाचार सच्चा क्यों है।
\v 17 लेकिन जो लोग अपने स्वार्थ के कारणों के लिए मसीह के सुसमाचार का प्रचार कर रहे हैं, उनके पास ऐसा करने के लिए कोई उचित कारण नहीं हैं। वे विश्वास करते हैं कि जब मैं बन्दीगृह में हूँ, तो वे मुझे और अधिक दुःख पहुँचा रहे हैं।
\s5
\v 18 लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता! लोग मसीह के बारे में सुसमाचार का प्रचार कर रहे हैं, चाहे अच्छे कारण से या बुरे कारण से। इसलिए मुझे खुशी है कि लोग यीशु मसीह के बारे में संदेश को फैला रहे हैं! और मैं उसमें हमेशा आनन्द मनाऊँगा!
\p
\v 19 मैं आनन्द करता हूँ क्योंकि मुझे पता है कि परमेश्वर मुझे बन्दीगृह से मुक्त कर देंगे। वह ऐसा इसलिए करेंगे कि तुम लोग मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हो और क्योंकि यीशु मसीह के आत्मा मेरी सहायता कर रहे हैं।
\s5
\v 20 मैं उतावली से और विश्वास के साथ आशा करता हूँ कि मैं, कुछ भी करने के लिए कभी भी असफल नहीं हो सकता। मुझे अब इससे और साहस मिलेगा, जैसे कि पहले मिला करता था। मैं अपने शरीर के द्वारा मसीह का सम्मान करूँगा, चाहे मैं जीवित रहूँ या मर जाऊँ।
\p
\v 21 जहाँ तक कि मेरा सवाल है, मैं मसीह का सम्मान करने के लिए जीवित रहता हूँ। परन्तु यदि मैं मर जाऊँ, तो यह मेरे लिए और अधिक उत्तम होगा।
\s5
\v 22 दूसरी ओर, यदि मैं इस संसार में अपने शरीर में जीवित रहता हूँ, तो मैं यहाँ मसीह की सेवा कर सकता हूँ। इसलिए मुझे नहीं पता कि मैं जीवित रहना या मरना चाहता हूँ।
\v 23 मैं यह चुन नहीं सकता हूँ कि मैं जीऊँ या मरूँ। मैं मरना चाहता हूँ और इस संसार को छोड़ना चाहता हूँ और मसीह के साथ जाकर रहना चाहता हूँ, क्योंकि मसीह के साथ रहना औरों के साथ रहने से अधिक उत्तम है।
\v 24 परन्तु यह आवश्यक है कि मैं यहाँ पृथ्वी पर जीवित रहूँ क्योंकि तुमको अभी भी मेरी सहायता की आवश्यकता है।
\s5
\v 25 क्योंकि मुझे इसका आश्वासन है, तो मैं जानता हूँ कि मैं तुम लोगों के साथ जीवित रहूँगा कि मसीह में अधिक आनन्द करने और विश्वास करने के लिए तुम्हारी सहायता कर सकूँ।
\v 26 जब मैं एक बार फिर से तुम्हारे साथ हूँ, तो मसीह यीशु के कारण तुमको मेरे लिए आनन्दित होना चाहिए।
\p
\v 27 सबसे अधिक महत्तवपूर्ण तो यह है, कि अपने आस पास के लोगों में इस प्रकार का व्यवहार करो, जो यह दिखाता है कि तुम मसीह के बारे में शुभसमाचार का सम्मान करते हो। ऐसा करते रहो ताकि मैं तुमको देखने के लिए आऊँ या न आऊँ, तुम्हारे जीवन से मुझे प्रसन्नता प्राप्त होगी। उन्हें मुझे बताना चाहिए कि तुम एक साथ विश्वास करने के लिए पूरा प्रयास कर रहे हो और सुसमाचार के योग्य जीवन जी रहे हो जैसा वह हमें सिखाते है।
\s5
\v 28 अपने विरोधियों से मत डरो! जब तुम साहसी होकर और उनका सामना करते हो, तो यह दिखाओ कि परमेश्वर उन्हें नष्ट कर देंगे, लेकिन तुमको बचाएँगे।
\v 29 परमेश्वर तुम पर दयालु हैं: वह तुमको मसीह के लिए दुःख उठाने और उन पर विश्वास करने का अवसर दे रहे हैं।
\v 30 तुमको सुसमाचार का विरोध करनेवालों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे तुमने देखा था कि फिलिप्पी में मुझे ऐसे लोगों का सामना करना पड़ा था, और जैसा कि तुम सुनते हो कि अब भी, यहाँ पर मुझे ऐसे लोगों का सामना करना पड़ रहा है।
\s5
\c 2
\p
\v 1 क्योंकि मसीह हमें उत्साहित करते हैं, क्योंकि वह हम से प्रेम करते हैं और हमें शक्ति देते हैं, क्योंकि परमेश्वर के आत्मा हमारे साथ सहभागिता करते हैं, और क्योंकि मसीह हमारे प्रति बहुत दयालु हैं,
\v 2 निम्नलिखित बातों को करके मेरा आनन्द पूरा कर दो: एक दूसरे के साथ एक मन रहो, एक दूसरे से प्रेम करो, एक जैसा काम करो, और एक ही बात को पूरा करने का प्रयास करो।
\s5
\v 3 कभी भी दूसरों की तुलना में स्वयं को और अधिक महत्वपूर्ण बनाने का प्रयास मत करो और तुम जो कर रहे हो उसके बारे में घमंड न करो। इसकी अपेक्षा, नम्र बनो, विशेष करके, अपने से बढ़कर एक दूसरे का सम्मान करो।
\v 4 तुम में से हर एक केवल अपनी ही आवश्यकताओं के बारे में चिंता न करे। तुमको दूसरों के बारे में भी चिंता करनी चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर उनकी सहायता करनी चाहिए।
\p
\s5
\v 5 तुम्हारा सोचना वैसा ही हो जैसा मसीह का था।
\v 6 यद्यपि वह उन सभी सम्मानों के योग्य हैं जो परमेश्वर को मिलने चाहिए, उन्होंने अपने सम्मान को त्याग दिया, और उसे पकडे नहीं रखा।
\v 7 इसकी अपेक्षा, उन्होंने सब कुछ दे दिया,
\q एक दास के गुणों को अपना कर,
\q और वह एक मनुष्य बन गए।
\v 8 और मनुष्य का रूप लेकर स्वयं को नम्र किया,
\q और उन्होंने अपनी नम्रता में परमेश्वर की आज्ञा का पालन किया।
\q चाहे उनके लिए परमेश्वर की आज्ञाकारिता का अर्थ मरना था,
\q और वह एक भयानक मौत मरे, एक अपराधी की मौत, क्रूस की मौत।
\q
\s5
\v 9 मसीह की आज्ञाकारिता के कारण, परमेश्वर ने उनको बहुत सम्मान दिया;
\q उन्होंने उनको अन्य किसी से भी अधिक सम्मानित किया जो कभी जीवित रहा हो,
\v 10 जिससे कि जब सभी लोग यह नाम "यीशु" सुनेंगे तो सब लोग उनको सम्मान देने के लिए सिर झुकाएँगे,
\q वे लोग जो स्वर्ग में, और पृथ्वी पर, और पृथ्वी के नीचे हैं;
\v 11 ताकि सब लोग एक समान ही स्तुति करें,
\q कि यीशु मसीह ही प्रभु हैं,
\q और वे उनके कारण परमेश्वर पिता की स्तुति करेंगे।
\p
\s5
\v 12 हे मेरे प्यारे दोस्तों, जैसे तुम मेरे रहते हुए सदा परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते थे, तो अब जब मैं तुम्हारे साथ नहीं हूँ, तो उससे और भी अधिक उनकी आज्ञा मानो। एक साथ परमेश्वर का आदर करो, नम्र बनो, और जिन्हें परमेश्वर बचाते हैं, उनके जैसा जीवन जीने का पूरा यत्न करो।
\v 13 क्योंकि परमेश्वर तुम्हारे दिलों में काम कर रहे हैं ताकि तुम उन कामों को करना चाहो और फिर सचमुच में अच्छे कामों को करो जिनसे वह प्रसन्न हों।
\p
\s5
\v 14 सब काम बिना किसी शिकायत या विवाद के करो,
\v 15 ताकि तुम अविश्वासियों के बीच में रहते हुए न तो कुछ गलत करो और न ही गलत सोचो, क्योंकि इनमें से कई बुरे लोग हैं जो बुरी बातों को अच्छा कहते हैं। इन बुरे लोगों के बीच तुमको रात के सितारों की तरह होना चाहिए, जो अंधकार में चमकते हैं।
\v 16 सदा का जीवन देनेवाले संदेश पर विश्वास करते रहो। यदि तुम ऐसा करोगे, तो जब मसीह आएँगे तब मैं आनन्द मनाऊँगा, क्योंकि तब मैं जानूँगा कि मैंने तुम्हारे बीच में व्यर्थ काम नहीं किया।
\p
\s5
\v 17 और मैं तुम सब के साथ बहुत आनन्दित होऊँगा, भले ही वे मुझे मार डालें, और मेरा लहू परमेश्वर को चढ़ाने के लिए बह निकले। जैसे कि परमेश्वर पर भरोसा रखने के लिए स्वयं को बलिदान कर दिया।
\v 18 इसी प्रकार तुम भी मेरे साथ एकजुट आनन्दित रहो!
\p
\s5
\v 19 मैं प्रभु यीशु पर विश्वास करता हूँ कि मैं तीमुथियुस को शीघ्र ही तुम्हारे पास भेज सकूँ। मैं आशा करता हूँ कि जब वह लौटेगा, तो वह मुझे बताएगा कि परमेश्वर तुम्हारे जीवन में क्या कर रहे हैं।
\v 20 मेरे पास तीमुथियुस जैसा कोई भी नहीं है जो तुम्हारे लिए सच्ची चिंता करता हो।
\v 21 अन्य सभी लोग जिन्हें मैं तुम्हारे पास भेज सकता हूँ वे अपने ही बारे में चिंता करते हैं। वे यीशु मसीह के महत्व के निमित्त अधिक चिंता नहीं करते हैं।
\s5
\v 22 परन्तु तुम जानते हो कि तीमुथियुस एक परखा हुआ व्यक्ति है, क्योंकि पिता के साथ एक बेटे के समान उसने मेरे साथ सुसमाचार के प्रचार में सेवा की है।
\v 23 मुझे विश्वास है कि जैसे ही मुझे पता चलेगा कि मेरे साथ क्या होगा, वैसे ही मैं तीमुथियुस को तुम्हारे के पास भेज दूँगा।
\v 24 और क्योंकि मुझे विश्वास है कि परमेश्वर चाहते हैं कि ऐसा हो, मुझे पूरा भरोसा है कि वे शीघ्र ही मुझे छोड़ देंगे, और मैं स्वयं तुम्हारे पास आऊँगा।
\p
\s5
\v 25 मैं विश्वास करता हूँ कि मुझे इपफ्रुदीतुस को तुम्हारे पास वापस भेजना चाहिए। वह एक साथी विश्वासी है और मसीह कि सेवा में मेरा सहकर्मी और एक सैनिक है, और तुम्हारा दूत और सेवक है जिसे मेरी आवश्यकता में तुमने मेरी सहायता करने के लिए भेजा है।
\v 26 जब इपफ्रुदीतुस को पता चला कि तुमने उसके बीमार हो जाने के बारे में सुना, तो वह बहुत चिंतित हो गया और फिलिप्पी में तुम सभी के साथ रहने की इच्छा करने लगा।
\v 27 सचमुच में, वह इतना बीमार था कि वह लगभग मर गया था, परन्तु वह मरा नहीं। इसके बजाए, परमेश्वर ने उस पर बहुत दया की और मुझ पर भी, कि मेरे पास और दुःख मनाने का कोई कारण न हो।
\s5
\v 28 इसलिए मैं उसे अति-शीघ्र वापस भेज रहा हूँ। मैं ऐसा इसलिए करूँगा ताकि तुम उसे फिर से देख कर आनन्दित हो सको, और मुझे कम दुःख मनाना पड़े।
\v 29 इपफ्रुदीतुस का, जो हमारे पास है, सहर्ष स्वागत करना क्योंकि प्रभु यीशु हम से प्रेम करते हैं। उसका आदर करो और उसके जैसे दूसरे विश्वासियों का आदर करो।
\v 30 जब वह मसीह के लिए काम कर रहा था, तो वह लगभग मर गया था। वह मेरी आवश्यकता की वस्तुओं को पहुँचाने के लिए मरने का खतरा उठा रहा था, वह काम तुम नहीं कर सकते थे क्योंकि तुम मुझ से दूर थे।
\s5
\c 3
\p
\v 1 अंत में, हे मेरे साथी विश्वासियों, हमेशा आनन्दित रहो, क्योंकि तुम प्रभु के हो। अब मैं तुमको उन विषयों के बारे में लिखूँगा जो मैं तुमको पहले बता चुका था, यह मुझे थकाता नहीं है, और यह उन लोगों से तुम्हारी रक्षा करेगा जो तुमको हानि पहुँचाना चाहेंगे।
\p
\v 2 उन लोगों से सावधान रहो जो जंगली कुत्तों के समान तुम्हारे लिए खतरनाक हैं। वे पुरुषों के शरीर को खतना करते हैं, इसलिए कि वे यहूदी बनें।
\v 3 परन्तु परमेश्वर के आत्मा हमें परमेश्वर की आराधना करने में योग्य बनाता है; हम आनन्दित होते हैं क्योंकि हम मसीह यीशु पर विश्वास करते हैं; और रीतियों और रस्मों को जो लोग करते हैं हमारे लिए उसका कुछ भी महत्व नहीं है। इसलिए हम वह हैं जो खतना की सच्चाई के अर्थ को समझते हैं।
\s5
\v 4 अगर कोई परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए अधिक से अधिक कर सकता है, तो वह मैं हो सकता हूँ।
\p
\v 5 मेरे जन्म के सात दिन बाद उन्होंने मेरा खतना कर दिया। मैं इस्राएल के लोगों के जैसा ही पैदा हुआ था। मैं बिन्यामीन परिवार के गोत्र से हूँ। मुझसे अधिक इब्रानी मनुष्य तुम को मिल नहीं सकता! मेरे सभी पूर्वज इब्रानी थे! और मैं एक ऐसा फरीसी था जिसने मूसा और उनके पूर्वजों के बारे में जो हमें सिखाया गया था उन सभी नियमों का पालन किया।
\s5
\v 6 मैं लोगों को कानून का पालन करवाने के लिए इतना भावुक था कि मैं मसीह के विश्वासियों को दुःख देता था। कोई भी यह नहीं कह सकता था कि मैंने कभी कानून को नहीं माना।
\p
\v 7 परन्तु जो कुछ भी मैंने उस समय आवश्यक समझा था, उसे अब मैं व्यर्थ समझता हूँ, क्योंकि मसीह ने मुझे बदल दिया है।
\s5
\v 8 मैं अब सब बातों को न केवल व्यर्थ, वरन उसे कूड़े में फेंकने के योग्य समझता हूँ, जिसकी तुलना में मसीह यीशु को, जो मेरे प्रभु है, जानना कितना महान है। मैंने अपने जीवन से सब व्यर्थ की बातों को दूर कर दिया है, कि मसीह का लाभ उठा सकूँ।
\v 9 मैं अब पूरी तरह से मसीह का हूँ। मैं जानता हूँ कि नियमों को देखते हुए मैं परमेश्वर की दृष्टि में तुम को अच्छा नहीं बना सकता। इसकी अपेक्षा मैं पूरी तरह से मसीह पर भरोसा रखता हूँ, इसलिए परमेश्वर ने मुझे अपनी दृष्टि में अच्छा कहा है।
\v 10 जब परमेश्वर ने मुझे अपनी दृष्टि में अच्छा कहा है, तो उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि मैं मसीह को जानना शुरू कर सकूँ; कि परमेश्वर मेरे भीतर उसी सामर्थ के द्वारा काम करना शुरू कर सकें जिसके द्वारा उन्होंने मसीह को मरे हुओं में से जी उठाया; कि मैं मसीह के साथ दुःख उठा सकूँ, जैसा उन्होंने उठाया था; और कि मसीह मुझे अपने जैसा बना सकें जब वह मरे।
\v 11 यह सब इसलिए है कि मुझे पूरा विश्वास है कि परमेश्वर मुझे फिर से जीवन देंगे, जैसे कि उन्होंने प्रतिज्ञा की है।
\p
\s5
\v 12 मैं यह दावा नहीं करता हूँ कि ये सब बातें मेरे साथ पूरी हो चुकी हैं। परन्तु मैं इन बातों को पाने की कोशिश कर रहा हूँ, क्योंकि इन बातों के कारण मसीह यीशु ने मुझ पर अधिकार कर लिया है।
\v 13 हे मेरे साथी विश्वासियों, मुझे अभी तक यह नहीं लगता है कि ये सब चीजें मेरे साथ पूरी तरह से हो चुकी हैं। लेकिन मैं एक दौडने वाले की तरह हूँ, कि मैं पीछे नहीं देखता क्योंकि मैं अंत तक दौड़ता हूँ।
\v 14 मैं पुरस्कार जीतने के लिए अंतिम रेखा तक दौड़ता चला जा रहा हूँ, जो परमेश्वर के साथ सदा तक रहने के लिए है। परमेश्वर ने मुझे इसीलिए बुलाया है, और जो मसीह यीशु ने संभव किया है।
\s5
\v 15 अतः हम सभी को जो दृढ़ विश्वासी बन गए हैं, इसी प्रकार से सोचना चाहिए। परन्तु यदि तुम में से कोई भी ऐसा नहीं सोचता, तो परमेश्वर तुम पर यह प्रकट करेंगे।
\v 16 जो कुछ भी इस समय हमारे बारे में सच है, चाहे जिनती भी दूर से हम आए हैं, हम मसीह पर अधिक से अधिक विश्वास करें जैसा कि हमने अब तक किया है।
\p
\s5
\v 17 हे मेरे साथी विश्वासियों, मेरे साथ जुड़ जाओ और मेरे जैसा काम करो, और उन लोगों को बहुत करीब से देखो जो मेरे जैसे रहते हैं, और हमारे जैसे उदाहरण बनो।
\v 18 ऐसे बहुत से लोग हैं जो यह कहते हैं कि वे मसीह में विश्वास करते हैं, लेकिन वे वास्तव में हमारे निमित्त क्रूस पर किए गए उनके काम का विरोध करते हैं। मैंने तुमको पहले ही उन लोगों के बारे में कई बार बताया है, और अब मैं दुःखी हूँ, यहाँ तक कि मैं रोता हूँ, जब फिर से उनके बारे में तुमको बताता हूँ।
\v 19 परमेश्वर उन्हें अंत में नष्ट कर देंगे क्योंकि उनके खाने का लालच उनका ईश्वर है, और वे निर्लेज जीवन जीते हैं और सांसारिकता के बारे में सोचते हैं।
\s5
\v 20 हमारे लिए, हम स्वर्ग के नागरिक हैं। यह स्वर्ग से है कि हम अपने परमेश्वर और उद्धारकर्ता यीशु मसीह की वापसी के लिए उतावली से प्रतीक्षा कर रहे हैं।
\v 21 वह हमारे शरीरों को जो कमजोर और दीन हैं अपनी महिमा के शरीर के जैसा बदल देंगे। वह इसे उसी शक्ति से करेंगे जिससे वह सब वस्तुओं को नियंत्रित करते हैं।
\s5
\c 4
\p
\v 1 हे मेरे साथी विश्वासियों, मैं तुम से प्रेम करता हूँ और मैं तुम्हारे लिए बना रहता हूँ। तुम मुझे आनन्द देते हो; तुम मेरे लिए परमेश्वर के प्रतिफल का कारण होगे। हे मेरे प्रिय मित्रों, प्रभु में दृढ़ विश्वास करते रहो, जैसा कि मैंने तुमको इस पत्र में लिखा है।
\p
\v 2 हे यूओदिया, मैं तुझ से निवेदन करता हूँ, और हे सुन्तुखे, मैं तुझ से निवेदन करता हूँ, कि फिर से एक दूसरे के साथ शान्ति का व्यवहार रखो, क्योंकि तुम दोनों प्रभु यीशु में जोड़े गए हो।
\v 3 और हे मेरे विश्वासयोग्य साथी, मैं तुझ से यह भी निवेदन करता हूँ, कृपया इन महिलाओं की सहायता कर। उन्होंने विश्वास के साथ इस शुभसमाचार का प्रचार किया है और क्लेमेंस और मेरे साथी सहकर्मियों के साथ मिलकर मेरे साथ काम किया है, जिनके नाम जीवन की पुस्तक में हैं, जिनमें परमेश्वर ने उन सब लोगों के नाम लिखे हैं जो हमेशा के लिए जीवित रहेंगे।
\p
\s5
\v 4 हमेशा प्रभु यीशु में आनन्द करो! मैं फिर से कहता हूँ, आनन्द करो!
\v 5 सब लोगों को तुम्हें देखना है कि तुम विनम्र हो क्योंकि परमेश्वर निकट है।
\v 6 किसी भी बात के बारे में चिंता मत करो। हर स्थिति में परमेश्वर से प्रार्थना करो, उन्हें बताओ कि तुम्हें क्या आवश्कता है, और उनसे अपनी सहायता के लिए विनती करो। और परमेश्वर तुम्हारे लिए जो भी करते हैं, उनका धन्यवाद करो।
\v 7 तब परमेश्वर की शान्ति जो हमारी समझ से कहीं अधिक है, एक सैनिक की तरह होगी जो तुम्हारी भावनाओं और विचारों की रक्षा करेगी। क्योंकि हम मसीह यीशु में जोड़े गए हैं।
\p
\s5
\v 8 अंत में, हे मेरे साथी विश्वासियों, जो कुछ भी सत्य है, जो लोग सम्मान करने के योग्य हैं, जो कुछ भी सही है, जिसमें कोई भी दोष नहीं पा सकता है, जो कुछ भी सुहावना है, जो कुछ भी लोगों की प्रशंसा के योग्य है, जो कुछ भी अच्छा है, जो कुछ भी लोगों की प्रशंसा के योग्य है: ये ही ऐसी बातें हैं जिनके बारे में तुमको सदा सोचना चाहिए।
\v 9 जो बातें मैंने तुमको सिखाई हैं और जो तुमने मुझ से प्राप्त की हैं, उन बातों को जिनको तुमने मुझे कहते हुए सुना है और मुझे करते हुए देखा है, ये वे बातें हैं जिन्हें हमेशा तुमको स्वयं करना चाहिए। तब परमेश्वर जो हमें अपनी शांति देते हैं, तुम्हारे साथ रहेंगे।
\p
\s5
\v 10 मैं बहुत आनन्दित हूँ और परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ क्योंकि अब कुछ समय बाद, तुमने मुझे पैसा भेजा है, और तुमने एक बार फिर से यह दिखाया है कि तुमको मेरी चिंता है। जबकि, तुम सदैव मेरे बारे में चिंतित थे, लेकिन तुम्हारे पास इसे दिखाने का कोई अवसर नहीं था।
\v 11 मैं यह इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि मुझे कुछ आवश्यकता है। जबकि मैंने यह सीखा है कि जो कुछ भी मेरे पास है, मैं उसमें संतुष्ट रहूँ।
\v 12 मैं आवश्यकताओं को जानता हूँ और बहुत अधिक पा भी सकता हूँ। मैंने सब परिस्थितियों में संतुष्ट रहना सीख लिया है। मैं हर समय खुश रहने का रहस्य जानता हूँ।
\v 13 मैं सब कुछ करने में सामर्थी हूँ क्योंकि मसीह ने मुझे सुदृढ़ बनाया है।
\s5
\v 14 फिर भी, तुमने मेरे दुःख के दिनों में मेरे साथ सहभागी होने के लिए उचित काम किया।
\p
\v 15 फिलिप्पी में मेरे मित्र हैं, तुम स्वयं यह जानते हो कि जब मैं मकिदुनिया प्रांत से दूर जाने के लिए वहाँ गया था, तब मैंने पहली बार तुमको सुसमाचार सुनाया था, विश्वासियों की किसी भी सभा ने मुझे पैसा नहीं भेजा या केवल तुमको छोड़कर, मेरी किसी ने सहायता नहीं की!
\v 16 जब मैं थिस्सलुनीके शहर में था, तब तुमने मेरी सहायता के लिए एक बार से ज्यादा पैसे भेजे ताकि मेरी आवश्कता पूरी हो सके।
\v 17 मैं इसलिए नहीं कहता हूँ कि मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे अब और पैसे दो। इसकी अपेक्षा, मैं देखना चाहता हूँ कि तुम और भी कामों को करो जिससे परमेश्वर तुम्हारी प्रशंसा करें।
\p
\s5
\v 18 मेरे पास अब बहुत कुछ है। मेरे पास वह सब वस्तुएँ हैं जो तुमने इपफ्रुदीतुस के द्वारा मुझे भेजीं थीं। ये उन चीजों जैसी हैं, जब याजक परमेश्वर के लिए एक पशु को बलि करता है और उसे उसकी खुशबू अच्छी लगती है।
\v 19 परमेश्वर, जिसकी मैं सेवा करता हूँ, वह तुमको हर एक वस्तु देंगे जिसकी तुमको आवश्कता है, क्योंकि तुम यीशु मसीह के हो, जो स्वर्ग की महिमा और धन के मालिक हैं।
\v 20 इसलिए लोगों को हमारे पिता परमेश्वर की महिमा करनी चाहिए, जो सदा सर्वदा के लिए तीव्र प्रकाश में राज्य करेंगे! आमीन!
\p
\s5
\v 21 मेरी ओर से सब विश्वासियों को नमस्कार करो। वे सब परमेश्वर के हैं! जो मेरे साथ विश्वासी हैं वे भी तुमको नमस्कार करते हैं।
\v 22 परमेश्वर के सब लोग यहाँ से तुमको नमस्कार भेजते हैं। विशेष करके उन साथी विश्वासियों को जो कैसर के महल में काम करते हैं, जो एक सम्राट है, उनका नमस्कार तुमको भेजा है।
\p
\v 23 मेरी इच्छा है कि हमारे प्रभु यीशु मसीह तुम्हारे ऊपर दया करते रहें।

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\toc1 कुलुस्सियों
\toc2 कुलुस्सियों
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\mt1 कुलुस्सियों
\s5
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\p
\v 1 मैं, पौलुस, कुलुस्से शहर के प्रिय साथी विश्वासियों को यह लिख रहा हूँ। यह मुझ पौलुस की ओर से है, जिसे परमेश्वर ने चुनकर तुम्हारे पास मसीह यीशु का प्रेरित होने के लिए भेजा है, और यह पत्र तीमुथियुस की ओर से भी है, जो हमारा साथी विश्वासी है और मसीह से जुड़ गया है। हम यह पत्र तुम सब को भेज रहे हैं।
\v 2 हम यह पत्र उन लोगों को भेज रहे हैं जिन्हें परमेश्वर ने अपने लिए अलग कर दिया है - जो विश्वासयोग्य विश्वासी हैं, और जो मसीह के हैं। हम प्रार्थना करते हैं कि हमारे पिता परमेश्वर तुम्हें अपनी दया और शान्ति दें।
\p
\v 3 जब भी हम तुम्हारे लिए प्रार्थना करते हैं, तो परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के पिता हैं।
\s5
\v 4 हम परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं क्योंकि हमने सुना है कि तुम प्रभु यीशु में विश्वास करते हो और तुम उन सब लोगों से प्रेम करते हो जिन्हें परमेश्वर ने अपने लिए अलग किया है।
\v 5 तुम हमारे साथी विश्वासियों से प्रेम करते हो क्योंकि तुम पूरे विश्वास से उन वस्तुओं की प्रतीक्षा कर रहे हो जो स्वर्ग में परमेश्वर तुम्हारे लिए तैयार कर रहे हैं। तुमने इन वस्तुओं के बारे में तब सुना था जब तुमने सच्चा संदेश अर्थात, मसीह के बारे में सुसमाचार सुना था।
\v 6 विश्वासी लोग इस सुसमाचार का प्रचार दुनिया भर में हर किसी से कर रहे हैं जिसे तुमने कुलुस्से में सुना है। पहले दिन से जब तुमने इसे सुना और समझा है कि परमेश्वर कैसे दयालु हैं, तब से इस सुसमाचार ने तुम्हारे मन में काम किया है। सुसमाचार एक खेत के समान है जिसमें बहुत फसल उगाई जा रही है और कटाई के समय बहुत फल देगी।
\s5
\v 7 इपफ्रास ने तुम्हें सुसमाचार की शिक्षा दी है। हम उससे प्रेम करते हैं क्योंकि वह हमारे साथ मसीह की सेवा करता है और हमारे स्थान पर ईमानदारी से मसीह के लिए काम करता है।
\v 8 उसने हमें बताया है कि तुम सब परमेश्वर के लोगों से प्रेम करते हो क्योंकि परमेश्वर के आत्मा ने तुम्हें परमेश्वर से और दूसरे लोगों से प्रेम करने में सशक्त किया है।
\p
\s5
\v 9 जब से हमने सुना कि तुम किस तरह से लोगों से प्रेम करते हो, हम सदा तुम्हारे लिए प्रार्थना करते रहते हैं। हमने परमेश्वर से यह प्रार्थना की है कि वह हर काम तुम्हें सुझाएँ जो वह तुमसे कराना चाहते हैं, और तुम्हें बुद्धिमान बनाएँ ताकि तुम यह समझ सको कि परमेश्वर के आत्मा तुम्हें क्या सिखा रहे हैं।
\v 10 हम प्रार्थना करते हैं कि तुम इस प्रकार से जीयो जिससे दूसरों को भी परमेश्वर का सम्मान करने में सहायता मिले, कि वह तुमसे प्रसन्न हों। हम प्रार्थना करते हैं कि तुम परमेश्वर को और अधिक समझने के लिए आगे बढ़ सको और वह हर एक अच्छा काम करो जो वह तुमसे करने के लिए कहें।
\s5
\v 11 हम प्रार्थना करते हैं कि परमेश्वर तुम्हें अपनी महान शक्ति से बलवन्त करें, कि तुम धीरज से सभी कठिनाईयों को सह सको।
\v 12 हम प्रार्थना करते हैं कि तुम हमारे पिता परमेश्वर में आनंदित रहो और उनका धन्यवाद करते रहो, क्योंकि उन्होंने तुम्हें उन दूसरों के साथ, योग्य ठहराया है जिनको उन्होंने अपने लिए अलग किया है; ऐसा इसलिए है कि जब तुम उनके प्रकाश की उपस्थिति में उनके साथ हो, तब वह तुम्हें वह सब कुछ दे सके जो उन्होंने तुम्हारे लिए रखा है।
\p
\s5
\v 13 हमारे पिता परमेश्वर ने हमें उस बुराई से बचाया है जो हमें अपने वश में रखती थी; उन्होंने अपने पुत्र को, जिस से वह बहुत प्रेम करते हैं, अब हमारे ऊपर प्रभु ठहराया है।
\v 14 अपने पुत्र के द्वारा उन्होंने हमें उस बुराई से स्वतंत्र कर दिया है; अर्थात् उन्होंने हमारे पापों को क्षमा कर दिया है।
\s5
\v 15 जब हम पुत्र को जानते हैं, तो हम जानते हैं कि परमेश्वर कैसे हैं, भले ही हम उन्हें देख नहीं सकते। जो कुछ भी उन्होंने बनाया है, पुत्र का उन सब पर पहला अधिकार है।
\v 16 पुत्र ने सब वस्तुओं को बनाया, जैसे पिता उनसे कराना चाहते थे: आकाश में की सभी वस्तुएँ और पृथ्वी पर की सब वस्तुएँ, जो कुछ हम देख सकते हैं और जो कुछ हम नहीं देख सकते हैं, जैसे की सब प्रकार के स्वर्गदूत और दिव्य प्राणी, शक्तियां और प्रधानताएँ, सब वस्तुएँ इसलिए अस्तित्व में हैं कि पुत्र ने उन्हें बनाया क्योंकि पिता चाहते थे कि वह ऐसा करें। और वे उनके लिए ही अस्तित्व में हैं।
\v 17 किसी भी वस्तु के अस्तित्व में आने से पहले पुत्र उपस्थित थे, और सब वस्तुएँ उन्हीं में स्थिर रहती हैं।
\s5
\v 18 वह सब विश्वासियों पर अधिकार रखते हैं अर्थात् कलीसिया पर- जैसे एक व्यक्ति का सिर उसके शरीर पर अधिकार रखता है। वह कलीसिया पर राज्य करते हैं क्योंकि उन्होंने उसकी स्थापना कीं। वह एक सिद्ध शरीर के साथ मृत्यु से जीवन में वापस आने वाले पहले मनुष्य थे। इसलिए वह हर बात में महान हैं।
\v 19 परमेश्वर पिता को यह भाया कि उनकी परिपूर्णता मसीह में वास करें।
\v 20 परमेश्वर को इस बात में भी प्रशंसा हुई कि मसीह के द्वारा हर वस्तु को अपने साथ वापस शान्ति में लायें। परमेश्वर ने सब लोगों और सब वस्तुओं को जो धरती पर और स्वर्ग में है, शान्ति प्रदान कीं। उन्होंने ऐसा अपने पुत्र के क्रूस पर एक बलिदान के रूप में लहू बहाकर मरने के द्वारा किया।
\p
\s5
\v 21 तुम्हारे मसीह पर विश्वास करने से पहले, परमेश्वर तुम्हें अपना शत्रु समझते थे, और तुम परमेश्वर के साथ मित्रता नहीं रखते थे क्योंकि तुम बुरी बातें सोचते और करते थे।
\v 22 परन्तु अब परमेश्वर ने तुम्हारे और अपने बीच शान्ति स्थापित की, और उन्होंने तुम्हें अपना मित्र बना लिया है। उन्होंने ऐसा किया क्योंकि यीशु ने मरने के द्वारा हमारे लिए अपना शरीर और जीवन छोड़ दिया। इसके द्वारा हमारा परमेश्वर के साथ रहना संभव हो गया; अब वह हमारे अन्दर कुछ भी गलत नहीं पाते हैं, और ना ही हममें कोई दोष पाते हैं।
\v 23 लेकिन तुम्हें पूरी तरह से मसीह पर विश्वास करते रहना है; तब तुम उस घर की तरह होंगे जो चट्टान पर बना है। परमेश्वर ने तुम्हारे लिए जो करने की प्रतिज्ञा की है उस पर विश्वास करना न छोड़ो, जो तुमने सुसमाचार में सुना था, जो संसार भर में सब लोगों ने भी सुना है। यह वही सुसमाचार है जिसका प्रचार लोगों में करने के द्वारा, मैं, पौलुस, परमेश्वर की सेवा कर रहा हूँ।
\p
\s5
\v 24 अब मैं आनन्दित हूँ कि मैं तुम्हारे लाभ के लिए दुःख उठाता हूँ। हाँ, कलीसिया की सहायता करने के लिए, जो मसीह के शरीर के समान है, मैं दुःख उठाता हूँ, जो अभी होना है।
\v 25 परमेश्वर ने मुझे अपना दास बनाया और मुझे विशेष काम करने के लिए दिए हैं, कि तुम्हारे जैसे लोगों को जो यहूदी लोग नहीं हैं, परमेश्वर का पूरा संदेश सुनाऊँ।
\v 26 पुराने समय से, अनेक पीढ़ियों तक, परमेश्वर ने यह सुसमाचार प्रकट नहीं किया था परन्तु अब उन्होंने उन रहस्यों को उन पर प्रकट किया है जिन्हें उन्होंने अपने लिए अलग किया हुए है।
\v 27 परमेश्वर ने इन महिमामय भेदों को- यहूदी और तुम गैर-यहूदी लोगों को बताने की योजना बनाई हैं। भेद यह है: मसीह तुम में वास करेंगे और तुम्हें पूरे विश्वास से परमेश्वर की महिमा में भागी होने की आशा देंगे!
\s5
\v 28 हम बुद्धिमानी से सब लोगों को मसीह के बारे में चेतावनी और शिक्षा देते हैं जिससे कि हम मसीह से जुडे सब लोगों को परमेश्वर की उपस्थिति में परमेश्वर के बारे में पूरे ज्ञान के साथ ला सके।
\v 29 ऐसा करने के लिए मैं सबसे अधिक परिश्रम करता हूँ, क्योंकि मसीह मुझे साहस देते हैं।
\s5
\c 2
\p
\v 1 मैं चाहता हूँ कि तुम यह जानो कि मैं तुम्हारी और लौदीकिया के लोगों की और उन विश्वासियों की, जिन्होंने मुझे व्यक्तिगत रूप से कभी नहीं देखा है, सहायता करने की पूरा प्रयास कर रहा हूँ।
\v 2 मैं ऐसा इसलिए करता हूँ कि मैं उन्हें और तुम्हें भी प्रोत्साहित कर सकूँ और तुम एक दूसरे से प्रेम कर सको और एक साथ मिलकर रह सको। मैं चाहता हूँ कि तुम सब पूरे विश्वास से और पूरी तरह से परमेश्वर की इस भेद भरी सच्चाई के बारे में जान सको और यह भेद मसीह के बारे में हैं!
\v 3 हम केवल मसीह के द्वारा ही यह जान सकते हैं कि परमेश्वर क्या सोच रहे हैं और वह कितने बुद्धिमान हैं।
\s5
\v 4 मैं तुम्हें यह इसलिए बता रहा हूँ कि कोई तुम्हें धोखा न दे सके।
\v 5 यद्यपि मैं शारीरिक रूप से तुम्हारे पास नहीं हूँ, मैं तुम्हारे बारे में बहुत चिंतित रहता हूँ, जैसे कि मैं सचमुच में तुम्हारे साथ था। फिर भी मैं आनन्दित हूँ क्योंकि मुझे पता है कि तुम मसीह की आज्ञा का इस तरह से पालन करते हो कि कोई भी तुम्हें रोक नहीं सकता, और तुम बिना हारे मसीह पर विश्वास करते हो।
\p
\s5
\v 6 जैसे तुम ने मसीह यीशु को प्रभु मान कर विश्वास करना शुरू किया, वैसे ही उस पर विश्वास करके जीवित रहो।
\v 7 तुम्हें पूर्णत: से प्रभु, मसीह यीशु पर विश्वास करना चाहिए, जैसे एक पेड़ अपने जड़ों को ज़मीन की गहराई में फैला देता है। तुम कुछ इस प्रकार से मसीह पर बहुत विश्वास करना सीख गए, जिस प्रकार पुरुषों ने अच्छी नींव डालकर एक घर बनाया हो। और तुम्हें सदा परमेश्वर का धन्यवाद देना चाहिए।
\p
\s5
\v 8 ऐसों पर विश्वास मत करो जो यह बताते है कि मनुष्यों द्वारा सिखाई गई रीति के अनुसार परमेश्वर का आदर कैसे करना चाहिए या इस संसार में वे कैसे आराधना करते हैं यह मानना चाहिए। इसकी अपेक्षा, मसीह की आज्ञा का पालन करो,
\v 9 क्योंकि यीशु मसीह जो मनुष्य हैं, पूर्ण परमेश्वर भी हैं।
\s5
\v 10 अब परमेश्वर ने तुम्हें वह सब कुछ दिया है जिसकी तुम्हें आवश्यकता है क्योंकि उन्होंने तुम्हें मसीह में शामिल किया है, और वह हर व्यक्ति, आत्मा और स्वर्गदूत पर शासन करते हैं।
\v 11 ऐसा लगता है जैसे परमेश्वर ने तुम्हारा खतना भी किया है। लेकिन यह खतना वह नहीं कि इंसान ने तुम्हारे शरीर का टुकड़ा काट दिया हो। इसकी अपेक्षा, यीशु ने तुम्हारे भीतरी पाप को अपनी शक्ति से दूर कर दिया है, और यह "खतना" मसीह करते हैं जब उन्होंने तुम्हारे पापी स्वाभाव पर जीत प्राप्त कर ली है और उन पापों को तुमसे बहूत दूर कर दिया है।
\v 12 क्योंकि उन्होंने तुम्हें बपतिस्मा दिया है, परमेश्वर यह मानते हैं कि जब लोगों ने मसीह को भूमि में गाड़ा, तो तुम भी उनके साथ गाड़े गए थे। परमेश्वर यह मानते हैं कि जब उन्होंने मसीह को फिर से जीवित किया तो उन्होंने तुम्हें भी जीवित कर दिया, क्योंकि तुमने उन पर भरोसा किया कि वह तुम्हें फिर से जीवित कर सकते हैं।
\p
\s5
\v 13 परमेश्वर ने तुम्हें मरा हुआ माना, क्योंकि तुम उनके विरुद्ध पाप कर रहे थे, और क्योंकि तुम यहूदी नहीं थे, इसलिए तुमने उनकी आराधना नहीं कीं। परन्तु उन्होंने तुम्हें मसीह के साथ जीवित किया; उन्होंने हमारे सब पापों को क्षमा कर दिया है।
\v 14 हम सब ने बहुत पाप किए हैं, परन्तु परमेश्वर ने हमारे पापों को क्षमा कर दिया है। यह एक ऐसे मनुष्य के समान है, जो उन लोगों को क्षमा करता है जो उसके पैसों के कर्जदार हैं, इसलिए वह, उन कागजातों को फाड़ देता है, जिन पर बन्दियों के समान उन्होंने हस्ताक्षर किये थे जब उसने उन्हें पैसे उधार दिए थे। परन्तु परमेश्वर के लिए यह ऐसा है, जैसे उन्होंने उन कागज़ों को जिन पर उन्होंने हमारे सभी पापों और उन सभी नियमों को लिखा था जिसे हमने तोड़ा था, उस क्रूस पर कीलों से जड़ दिया जिस पर मसीह की मौत हुईं।
\v 15 इसके अतिरिक्त, परमेश्वर ने उन दुष्ट-आत्माओं को हराया जो इस दुनिया में लोगों पर शासन करते हैं, और उन्होंने सब को यह भी बताया कि उन्होंने उन दुष्ट-आत्माओं को पराजित किया है। यह ऐसा था जैसे कि उन्होंने कैदियों की तरह सड़कों पर उनका जुलूस निकला हो।
\p
\s5
\v 16 ऐसे किसी व्यक्ति का सम्मान मत करो जो कहते हैं कि परमेश्वर तुम्हें दण्ड देंगे क्योंकि तुम मना कि हुई वस्तुएँ खाते और पीते हो या क्योंकि तुम वर्ष के विशेष पर्व को या नया चाँद के दिखने के दिन को या सप्ताह के सब्त के दिन को नहीं मनाते हो।
\v 17 इन प्रकार के नियम और घटनाएं आने वाले सच की केवल छबि है। जो सच में आने वाले हैं, वह मसीह स्वयं हैं।
\p
\s5
\v 18 यह लोग नम्र होने का नाटक करते हैं, और वे स्वर्गदूतों की आराधना करना पसंद करते हैं। ऐसा करने के लिए वे तुम्हें न मनायें। अगर तुम ऐसा करते हो, तो तुम उन वस्तुओं को खो दोगे जिनको देना की मसीह ने तुमसे प्रतिज्ञा की है। ये लोग सदा उन दर्शनों के बारे में बात करते हैं जिनको वे कहते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें दिखाए हैं। वे इन बातों के बारे में घमंड करते हैं क्योंकि वे उन लोगों के समान सोचते हैं जो परमेश्वर का सम्मान नहीं करते हैं।
\v 19 ऐसे लोग मसीह में सहभागी नहीं हुए हैं। मसीह शरीर का सिर है, और वह शरीर वे लोग हैं जो उस पर विश्वास करते हैं। पूरा शरीर सिर पर निर्भर करता है। सिर शरीर के हर एक भाग का ध्यान रखता है और सब हड्डियों और अस्थिबंध को एक साथ जोड़ता है ताकि वे एक साथ काम कर सकें, और परमेश्वर ही इसे बढ़ाते हैं।
\p
\s5
\v 20 परमेश्वर यह मानते हैं कि तुम मसीह के साथ मर गए हो जब वह मरे। तो अब आत्मायें और सब नियम जो लोग परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए बनाते हैं - इनमें से कोई भी बात या नियम तुम्हारे ऊपर अधिकार नहीं रखता। तो तुम इस तरह से क्यों जी रहे हो जैसे की यह सब सत्य हो? तुम अब भी उनको क्यों मानते हो?
\v 21 ये नियम ऐसे हैं जैसे: "कुछ वस्तुओं को मत करो। कुछ वस्तुओं को मत चखो। कुछ वस्तुओं को मत छुओ।" यह मत सोचो कि तुम्हें अब भी ऐसे आज्ञाओं का पालन करना है।
\v 22 ये नियम उन सभी चीजों से संबंधित हैं जो इस दुनिया में लोगों के इस्तेमाल करने से नाश हो जाते हैं, और ये नियम परमेश्वर के द्वारा नहीं मनुष्यों के द्वारा बनाये और सीखाये गये थे।
\v 23 ये नियम अच्छे लगते तो है परन्तु लोगों ने उन्हें बनाया क्योंकि वे अपने तरीके से परमेश्वर का सम्मान करना चाहते थे। यही कारण है कि ये लोग अधिकतर नम्र दिखते हैं; यही कारण है कि वे अक्सर अपने शरीर को चोट पहुँचाते हैं। लेकिन अगर हम इन आज्ञाओं का पालन करते हैं, तो हम वास्तव में पाप करना चाहते है।
\s5
\c 3
\p
\v 1 परमेश्वर ने मसीह के मरने के बाद फिर जीवित किया था इसलिए वह मानते हैं कि उन्होंने तुम्हें भी फिर से जीवित किया है। और मसीह स्वर्ग में हैं और परमेश्वर के दाहिने तरफ बैठे हैं, वह स्थान महान सम्मान और शक्ति के व्यक्ति के लिए है। तुम्हें यहाँ ऐसे रहने का प्रयास करना चाहिए जैसे कि तुम पहले से ही वहां पर हो।
\v 2 उन वस्तुओं की इच्छा रखो जिन्हें तुम्हें देने के लिए यीशु ने स्वर्ग में रखी हैं; पृथ्वी पर की वस्तुओं की इच्छा मत रखो।
\v 3 क्योंकि परमेश्वर समझते हैं कि तुम मर गए हो और अब तुम इस दुनिया के नहीं हो। वह समझते हैं कि उन्होंने तुम्हें सुरक्षित रखने के लिए मसीह के साथ छिपा लिया है।
\v 4 जब परमेश्वर मसीह को पृथ्वी पर सब के लिए अपने चमकते प्रकाश में प्रकट करेंगे, तब वे तुम्हें भी उसी प्रकाश में प्रकट करेंगे, क्योंकि मसीह तुम्हें जीवित करते हैं।
\p
\s5
\v 5 इसलिए, इस दुनिया में बुराई करने की अपनी इच्छाओं को शत्रुओं के रूप में देखो जिन्हें मरना है। तुम्हें जरूर उन्हें मार डालना है: व्यभिचार या अशुद्ध काम करने का प्रयास मत करो। दुष्कामना मत करो या बुरी रीति से मत सोचो। और लालची मत बनो, क्योंकि वह मूर्ति पूजा करने के समान है।
\v 6 क्योंकि लोग ऐसा करते हैं इसलिए परमेश्वर उनसे अप्रसन्न हैं और उन्हें दण्ड देंगे, क्योंकि वे उनकी आज्ञा का पालन नहीं करते हैं।
\v 7 तुम भी पहले ऐसे ही रहते थे जब तुम उन लोगों के साथ सहभागी होते थे जो ऐसा व्यवहार करते थे।
\v 8 परन्तु अब तुम्हें यह सब काम त्याग देना चाहिए। एक-दूसरे पर क्रोधित न होना; एक दूसरे को परेशान करने का प्रयास मत करो। एक दूसरे का अपमान मत करो या निर्लज एवं अद्भुत बातें मत करो।
\s5
\v 9 और एक दूसरे से झूठ मत बोलो। इन सभी कामों को मत किया करो, क्योंकि अब तुम एक नए व्यक्ति बन गए हो, एक ऐसा व्यक्ति जो अब इन बुरी बातों को नहीं करता।
\v 10 तुम एक नए व्यक्ति हो, और परमेश्वर तुम्हें उन्हें और अधिक उत्तमता से जानने में सहायता करते हैं और उनके समान बना रहे हैं, जैसा बनने के लिए उन्होंने तुम्हें सृजा।
\v 11 परमेश्वर ने हमें नए मनुष्य बनाया है जो मसीह के साथ जुड़े हुए हैं, और वह सदा हमें नया बनाते जाते हैं। तो अब यह अधिक आवश्यक नहीं है कि कोई गैर-यहूदी है या यहूदी है, या किसी का खतना हुआ है या खतना नहीं हुआ है या कोई परदेशी है, या चाहे असभ्य है, या कोई किसी का गुलाम है या नहीं है। परन्तु इसके बजाए सबसे अधिक आवश्यक है, मसीह है, जो तुम सब में सब कुछ है।
\p
\s5
\v 12 क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हें चुना है और तुम्हें अपने लोगों के समान अलग किया है, और क्योंकि वह तुमसे प्रेम करते हैं, इसलिए दूसरों की सेवा सहानुभूति के साथ और दया के साथ और कृपा के साथ करते रहो। नम्रतापूर्वक और धीरज रखकर एक दूसरे की देखभाल करो
\v 13 और एक दूसरे की सहा करो। अगर कोई किसी के विरुद्ध शिकायत करता है, तो एक दूसरे को क्षमा कर दो। जैसे प्रभु यीशु ने तुम्हें क्षमा किया है, उसी प्रकार तुम्हें भी एक-दूसरे को क्षमा करना चाहिए।
\v 14 और सबसे अधिक आवश्यक बात यह है कि एक-दूसरे से प्रेम करो, क्योंकि ऐसा करके तुम एक साथ बंध जाओगे।
\p
\s5
\v 15 मसीह ही तुम्हें परमेश्वर और एक दूसरे के साथ शान्ति से रहना सिखाते हैं, इसलिए ऐसा व्यवहार करो जिससे हमेशा शान्ति बनी रहे। इसलिए की तुम एक साथ रहने के लिए बुलाए गए हो। और हर बात के लिए सदा परमेश्वर का धन्यवाद करते रहो।
\v 16 जैसा तुम जीवन जीते और परमेश्वर की सेवा करते हो, तो जो मसीह ने तुम्हें सिखाया है उसका सदैव पालन करो। एक दूसरे को बुद्धि के साथ सिखाओ और समझाओ; परमेश्वर की स्तुति और धन्यवाद करो जब तुम भजन गाते हो, गुनगुनाते हो, और वह गीत गाते हो जिससे उनका सम्मान होता है तो परमेश्वर की स्तुति और धन्यवाद करो।
\p
\v 17 जो भी तुम कहते हो, और जो भी तुम करते हो, यह सब परमेश्वर और यीशु की महिमा के लिए करो, और जो मसीह ने तुम्हारे लिए किया है, उसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद करते हुए ऐसा करो।
\p
\s5
\v 18 पत्नियों, अपने अपने पति का कहना मानो; यह सही है और प्रभु यीशु की आज्ञा के अनुसार है।
\v 19 पतियों, अपनी अपनी पत्नि से प्रेम करो और उनके साथ कठोर न बनो।
\p
\v 20 बच्चों, हर तरह से अपने माता-पिता की आज्ञाओं का पालन करो, क्योंकि जब तुम ऐसा करते हो तो प्रभु परमेश्वर को प्रसन्नता होती है।
\v 21 पिताओं, अपने बच्चों के क्रोध दिलाने का कारण मत बनो, जिससे कि वे निराश न हो सकें।
\p
\s5
\v 22 दासों, इस संसार में हर प्रकार से अपने स्वामियों की आज्ञाओं का पालन करो। अपने स्वामी की आज्ञाओं का पालन केवल तब मत करो, जब वे तुम्हें देख रहे हों, जैसा वे लोग करते हैं जो अपने स्वामी को दिखाना चाहते हैं कि वे सदा उनकी आज्ञाओं का पालन करतें हैं। इसकी अपेक्षा, अपने स्वामियों का पालन सच्चाई से और अपने पूरे दिल से करो क्योंकि तुम प्रभु यीशु का सम्मान करते हो।
\v 23 जो भी काम तुम करते हो, अपने पूरे दिल से दूसरों के लिए नहीं प्रभु यीशु के लिए करो। उन लोगों के समान काम न करो जो केवल अपने शारिरिक स्वामी के लिए काम करते हैं,
\v 24 क्योंकि तुम जानते हो कि प्रभु इसका फल तुम्हें अवश्य देंगे; तुम्हें प्रभु की प्रतिज्ञा के अनुसार अपना भाग आवश्य मिलेगा। यीशु मसीह ही वो सच्चे स्वामी हैं जिनकी तुम सेवा कर रहे हो।
\v 25 परन्तु परमेश्वर हर व्यक्ति का न्याय एक समान करेंगे; वह उन लोगों को दण्ड देंगे जो गलत काम करते हैं, जिसके वे योग्य हैं।
\s5
\c 4
\p
\v 1 स्वामियों, ईमानदारी से अपने दासों के साथ व्यवहार करो और न्यायपूर्वक उनकी आवश्यकता के अनुसार उन्हें दो, क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हारा भी एक स्वामी है जो स्वर्ग में है।
\p
\s5
\v 2 बिना रूके प्रार्थना करते रहो। आलसी मत बनो, इसके बजाय परमेश्वर से प्रार्थना करते रहो और उसका धन्यवाद करते रहो।
\v 3 हमारे लिए भी प्रार्थना करते रहो, ताकि परमेश्वर मसीह का वह भेद जिसे वह अब हर स्थान में प्रकट कर रहे हैं अर्थात् सुसमाचार को समझाने का स्वतंत्र अवसर प्रदान करे। क्योंकि हमने इस सुसमाचार की घोषणा की, इसलिए अब मैं कैद में हूँ।
\v 4 प्रार्थना करो कि मैं सुसमाचार को पूरी रीति से समझा सकूँ।
\p
\s5
\v 5 अविश्वासियों के साथ बुद्धिमानी से रहो और हर अवसर का बुद्धिमानी से उपयोग करके उसे बहुमूल्य बनाओ।
\v 6 सदा विनयपूर्वक और खुशी से और मनभावन रीति से उन लोगों से बात करो, जो प्रभु यीशु में विश्वास नहीं करते हैं। तब तुम्हें यह मालूम होगा कि हर एक व्यक्ति से परमेश्वर के बारे में कैसे बात करना चाहिए।
\p
\s5
\v 7 तुखिकुस तुम्हें सब कुछ बताएगा जो मेरे साथ हो रहा है। वह एक साथी विश्वासी है जिसे मैं प्रेम करता हूँ, जो मेरी सहायता सच्चेमन से करता है, और जो मेरे साथ प्रभु यीशु की सेवा करता है।
\v 8 तुखिकुस को इस पत्र के साथ तुम्हारे पास भेजने का कारण यह है कि तुम हमारे बारे में जान सको और वह तुम्हें प्रोत्साहित करे।
\v 9 मैं उसे उनेसिमुस के साथ तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, जो एक भरोसेमंद साथी विश्वासी है, जिसे मैं प्रेम करता हूँ और जो तुम्हारा नगरवासी है। वे तुम्हें सब बताएंगे जो यहाँ हो रहा है।
\p
\s5
\v 10 अरिस्तर्खुस, जो मेरे साथ बन्दीगृह में है, और मरकुस, जो बरनबास का चचेरा भाई है, तुम्हारा अभिनंदन करते हैं। मैंने तुम्हें मरकुस के बारे में बता दिया है, इसलिए जब वह तुम्हारे पास आए, तो उसका स्वागत करना।
\v 11 यीशु, जिसे यूस्तुस भी कहा जाता है, तुम्हारा अभिनंदन करता है। यहूदी विश्वासियों में से केवल ये तीन पुरुष ही मेरे साथ काम करते हैं कि मसीह यीशु के द्वारा परमेश्वर के राजा होने का प्रचार करे। उन्होंने मेरी बहुत सहायता की और मुझे साहस बँधाया है।
\s5
\v 12 इपफ्रास, जो तुम्हारा नगरवासी और मसीह यीशु का दास है, तुम्हें नमस्कार करता है। वह अक्सर तुम्हारे लिए ईमानदारी से प्रार्थना करता रहता है, जिससे कि तुम मजबूत हो सको और तुम हर उस बात पर विश्वास कर सको जो परमेश्वर हमें सिखाता है और हमसे प्रतिज्ञा करता है।
\v 13 मैं कह सकता हूँ कि उसने तुम्हारे लिए बहुत मेहनत की है, उनके लिए भी जो लौदीकिया शहर में रहते हैं और जो हियरापुलिस के शहर में रहते हैं।
\v 14 लूका जो एक वैद्य है, जिसे मैं प्रेम करता हूँ, और देमास तुम्हें नमस्कार करते हैं।
\p
\s5
\v 15 लौदीकिया में रहने वाले साथी विश्वासियों को नमस्कार करो और नुमफास और उसके घर में मिलने वाले विश्वासियों के झुण्ड को नमस्कार करो।
\v 16 तुम्हारे बीच में इस पत्र के पढ़े जाने के बाद, इसे लौदीकिया की कलीसिया में भी पढ़ने के लिए भेजो। और लौदीकिया से आए हुए पत्र को भी तुम्हारे मध्य पढ़ा जाए।
\v 17 अरखिप्पुस से कहो कि जो काम परमेश्वर ने उसे करने के लिए कहा है वह उसे पूरा करे।
\p
\s5
\v 18 मैं, पौलुस, अब अपनी स्वयं की लिखावट में तुम्हें नमस्कार करता हूँ। मुझे याद रखना और मेरे लिए जो बंदीगृह में हूँ प्रार्थना करना। मैं प्रार्थना करता हूँ कि हमारे प्रभु यीशु मसीह तुम्हारे लिए अनुग्रह के साथ काम करते रहें।

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\mt1 1 थिस्सलुनीकियों
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\v 1 मैं, पौलुस, यह पत्र लिख रहा हूँ। सीलास और तीमुथियुस मेरे साथ हैं। हम तुमको यह पत्र भेज रहे हैं, जो थिस्सलुनीके शहर के विश्वासियों का समूह है, जो पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह के साथ जुड़े हैं। परमेश्वर तुम पर दया करें और तुमको शान्ति दें।
\p
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\v 2 हम अपनी प्रार्थनाओं में तुमको स्मरण करते हैं और सदा तुम सब के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं।
\v 3 हम लगातार स्मरण रखते हैं कि तुम परमेश्वर के लिए काम करते हो, जो हमारे पिता हैं, क्योंकि तुम उस पर भरोसा करते हो और सच्ची लगन से तुम लोगों की सहायता करते हो क्योंकि तुम उन्हें प्रेम करते हो। भविष्य में तुम्हारा दृढ़ भरोसा है, क्योंकि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह को जानते हो!
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\v 4 हे मेरे साथी विश्वासियों, जिनसे परमेश्वर प्रेम करते हैं, हम भी उनका धन्यवाद करते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि परमेश्वर ने तुमको अपने लोग होने के लिए चुना है।
\v 5 हम जानते हैं कि उन्होंने तुमको चुना है, क्योंकि जब हम ने तुमको सुसमाचार सुनाया तो यह शब्दों से कहीं अधिक था। पवित्र आत्मा ने शक्तिशाली रूप में तुम्हारे बीच काम किया, और उन्होंने दृढ़ता से हमें आश्वासन दिया है कि हम ने जो संदेश तुमको दिया, वह सच्चा है। उसी तरह, तुम जानते हो कि हम ने कैसी बातें कीं और जब हम तुम्हारे साथ थे तब स्वयं को कैसे दर्शाया, ताकि हम तुम्हारी सहायता कर सकें।
\s5
\v 6 अब हम ने सुना है कि तुम वैसे ही रह रहे हो जैसे हम रहते हैं और हमारे उदाहरण का अनुसरण करते हो। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम भी हमारे प्रभु की तरह रह रहे हो, जैसे वह रहते थे। तुम ने परमेश्वर के प्रेम के संदेश को बहुत आनन्द के साथ ग्रहण किया, जो केवल पवित्र आत्मा की ओर से आता है, यद्यपि तुमको कई परीक्षाओं और कठिनाइयों से हो कर जाना पड़ा।
\v 7 मकिदुनिया और अखाया के प्रान्तों में रहने वाले सब विश्वासी इस बात को सीख रहे हैं कि परमेश्वर पर कैसे भरोसा करना चाहिए जैसे कि तुमने सीखा है और परमेश्वर पर भरोसा करते हो।
\s5
\v 8 अन्य लोगों ने तुमको प्रभु यीशु का संदेश देते हुए सुना है। तब उन्होंने मकिदुनिया और अखाया में रहने वाले लोगों को भी सुसमाचार सुनाया। इतना ही नहीं, बल्कि बहुत दूर के स्थानों में रहने वाले लोगों ने भी सुना है कि तुम परमेश्वर पर भरोसा रखते हो। इसलिए हमें लोगों को यह बताने की आवश्यक्ता नहीं है कि परमेश्वर ने तुम्हारे जीवन में क्या-क्या किया है।
\v 9 तुम से दूर रहने वाले लोग सब को बताते हैं कि जब हम तुम्हारे पास आए तो तुम ने कितने उत्साह से हमारा स्वागत किया। वे यह भी बताते हैं कि तुमने झूठे देवताओं की उपासना करना त्याग दिया है और अब तुम परमेश्वर की आराधना और सेवा करते हो, केवल वही जीवित परमेश्वर हैं, और वही वास्तविक और एकमात्र परमेश्वर हैं।
\v 10 वे हमें यह भी बताते हैं कि अब तुम बड़ी आशा के साथ प्रतीक्षा करते हो कि परमेश्वर के पुत्र स्वर्ग से पृथ्वी पर लौट आएँ। तुम दृढ़ विश्वास करते हो कि परमेश्वर ने उन्हें मरने के बाद फिर से जी उठने का अधिकार दिया है, तुम यह भी विश्वास करते हो कि यीशु हम सब को जो उन पर भरोसा रखते है, बचा लेंगे जब परमेश्वर पूरे संसार के लोगों को दण्ड देंगे।
\s5
\c 2
\p
\v 1 हे मेरे साथी विश्वासियों, तुम जानते हो कि तुम्हारे साथ बिताया हुआ हमारा समय बहुत उपयोगी था।
\v 2 यद्यपि फिलिप्पी शहर के लोगों ने पहले हमारे साथ बुरा व्यवहार किया और हमारा अपमान किया, जैसा कि तुम जानते हो, परमेश्वर ने हमें साहस दिया था। इसका परिणाम यह हुआ कि हम ने तुमको परमेश्वर का सुसमाचार सुनाया जिसे बताने के लिए उन्होंने हमें वहाँ भेजा था, यद्यपि तुम्हारे शहर के कुछ लोगों ने हमारा बहुत विरोध किया था।
\s5
\v 3 हम ने तुमको परमेश्वर के संदेश का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया, तो हम ने कोई बात नहीं की। और हम गलत अपने लिए कुछ भी अनुचित प्राप्त करना नहीं चाहते। हम तुमको या किसी को भी धोखा देने का प्रयास नहीं करते हैं।
\v 4 इसके विपरीत, परमेश्वर ने तुमको सुसमाचार सुनाने के लिए हम पर भरोसा किया, क्योंकि उन्होंने हमारी जाँच की और हमें यह काम करने के लिए सही लोग माना। कि हम लोगों को सिखाते हैं तो हम वह नहीं कहते हैं जो वे सुनना पसंद करते हैं। इसकी अपेक्षा, हम वही कहते हैं जो परमेश्वर चाहते हैं, क्योंकि जो कुछ हम सोचते हैं उसे वह जाँचते हैं।
\s5
\v 5 तुम जानते हो कि तुम से कुछ पाने के लिए हम कभी भी तुम्हारी प्रशंसा नहीं करते। और हम ने तुमको ऐसा कुछ भी नहीं कहा कि ऐसा प्रतीत हो कि हम तुम को कुछ चीजें देने के लिए मना रहे हैं। परमेश्वर जानते हैं कि यह सच है!
\v 6 हम ने कभी भी तुम से या किसी और से भी सम्मान पाने का प्रयास नहीं किया जबकि हम माँग कर सकते थे कि तुम्हारे साथ रहते हुए हमें रहने के लिए आवश्यक वस्तुएँ दो, क्योंकि मसीह ने हमें तुम्हारे पास भेजा था।
\s5
\v 7 इसके विपरीत, जब हम तुम लोगों के बीच में थे, तब हम ने कोमलता का व्यवहार किया, जैसे एक माँ अपने बच्चों की देखभाल करती है।
\v 8 इसलिए, क्योंकि हम तुम से प्रेम करते हैं, हम तुमको व्यक्तिगत रूप से सुसमाचार सुनाने के लिए प्रसन्न हुए, जो परमेश्वर ने हमें दिया था। परन्तु हम तुम्हारी सहायता करने के लिए भी सब कुछ करने में प्रसन्न हुए, क्योंकि हम तुमको बहुत प्रेम करने लगे थे।
\v 9 हे मेरे साथी विश्वासियों, तुमको स्मरण है कि हम दिन और रात कठोर परिश्रम करते थे। हम ने पैसा ऐसे ही कमाया कि हमें तुम से कहने की आवश्यक्ता न हो कि हमें क्या आवश्यक्ता है। हम ने ऐसा ही किया था जब हम ने तुमको परमेश्वर के बारे में सुसमाचार सुनाया था।
\s5
\v 10 तुम और परमेश्वर दोनों जानते हैं कि तुम विश्वासियों के प्रति हमारा व्यवहार बहुत अच्छा और उचित था, कि कोई भी आलोचना न कर सकें!
\v 11 तुम यह भी जानते हो कि हम ने तुम में से हर एक के प्रति एक पिता के जैसा व्यवहार किया, जैसा एक पिता करता है जो अपने बच्चों से प्रेम करता है।
\v 12 हम तुमको दृढ़ता से समझाते थे और प्रोत्साहित करते थे कि तुमको परमेश्वर के लोगों के जैसा रहना चाहिए। क्योंकि परमेश्वर ने तुमको जिन्हें वह स्वयं को सबसे अद्भुत शक्ति के साथ राजा के रूप में दिखाएँगे अपने लोग होने के लिए बुलाया है।
\p
\s5
\v 13 यही कारण है कि हम हमेशा परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं, क्योंकि जब तुमने उस सन्देश को सुना जो हम ने तुमको सुनाया, तो तुमने उसे सच्चा संदेश मानकर स्वीकार किया वह सुसमाचार परमेश्वर ने हमें दिया था! हम ने स्वयं इसे नहीं रचा था। हम परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं कि वह तुम्हारा जीवन बदल रहे हैं क्योंकि तुम इस संदेश पर विश्वास करते हो।
\s5
\v 14 हम इन बातों के बारे में निश्चित हैं, क्योंकि तुमने यहूदियों के विश्वासी समूहों के समान कार्य किया। वे भी मसीह यीशु में आ गए हैं, और जैसे वे इसे सहन करते थे जब उनके साथी देशवासियों ने मसीह की वजह से उनके साथ बुरा व्यवहार किया था, वैसे ही तुम ने भी किया जब तुम्हारे अपने देशवासियों ने तुम से बुरा व्यवहार किया।
\v 15 उन यहूदियों ने प्रभु यीशु और कई भविष्यद्वक्ताओं को भी मार डाला था। अन्य अविश्वासी यहूदियों ने हमें कई शहरों को छोड़ने के लिए विवश किया। वे वास्तव में परमेश्वर को क्रोधित करते हैं, और जो काम सब मनुष्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ हैं वे उसके विरुद्ध काम करते हैं!
\v 16 उदाहरण के लिए, वे हमें गैर-यहूदियों को सुसमाचार सुनाने से रोकने का प्रयास करते हैं; वे नहीं चाहते थे कि परमेश्वर उन्हें बचाए। उन्होंने अपने पाप का घड़ा लगभग पूरा भर दिया है जितना परमेश्वर उनको दण्ड देने से पूर्ण करने देंगे!
\p
\s5
\v 17 हे मेरे साथी विश्वासियों, जब हमें थोड़े समय के लिए तुम से दूर रहना पड़ता था, तो हमें उन माता-पिता के जैसा लगता था जिन्होंने अपने बच्चों को खो दिया हो। हमारी बड़ी इच्छा थी कि हम तुम्हारे साथ उपस्थित रहें।
\v 18 वास्तव में मुझ पौलुस, ने तुमको देखने के लिए कई बार आने का यत्न किया परन्तु शैतान ने हर बार हमें आने से रोका।
\v 19 सच तो यह है कि हम तुम्हारे कारण ही परमेश्वर के काम को भलीभांति करने की आशा रखते हैं; यह तुम ही हो जिनके कारण हमें गर्व होता है; यह तुम्हारे कारण है कि हम परमेश्वर की सेवा करने में सफल होने की आशा रखते हैं। यह तुम्हारे और साथ ही दूसरों के कारण है कि हम आशा करते हैं कि जब प्रभु यीशु पृथ्वी पर वापस आएँगे, तो हमें प्रतिफल देंगे।
\v 20 वास्तव में, यह तुम्हारे कारण है कि अब भी हम प्रसन्न हैं और आनंदित हैं।
\s5
\c 3
\p
\v 1 इसके परिणामस्वरूप, जब मैं तुम्हारे बारे में चिन्ता करते-करते सहन नहीं कर पाया, तो मैंने निर्णय लिया कि सीलास और मैं एथेंस शहर में अकेले रह जाएँगे,
\v 2 और हम ने तीमुथियुस को तुम्हारे पास भेजा दिया। तुम जानते हो कि वह हमारा निकट सहयोगी है और मसीह के बारे में सुसमाचार सुना कर परमेश्वर के लिए काम करता है। सीलास और मैंने उसे भेजा है ताकि वह तुम से मसीह पर दृढ़ विश्वास रखने के लिए आग्रह करे।
\v 3 हम नहीं चाहते थे कि तुम में से कोई भी परेशान होकर कष्ट सहने के डर से मसीह से फिर जाए। तुम भलीभांति जानते हो कि परमेश्वर भी जानते हैं कि लोग मसीह के कारण हमारे साथ बुरा व्यवहार करेंगे।
\s5
\v 4 स्मरण रखो कि जब हम तुम्हारे साथ उपस्थित थे, तो हम तुमको यह बताते थे कि दूसरे लोग हम से बुरा व्यवहार करेंगे और ऐसा ही हुआ, जैसा कि तुम जानते हैं।
\v 5 इसलिए मैंने तीमुथियुस को तुम्हारे पास भेजा है, क्योंकि मैं यह जानने के लिए और प्रतीक्षा नहीं कर सका कि तुम क्या अभी भी मसीह पर भरोसा रखते हो। मुझे डर था कि शैतान, जो हमारी परीक्षा करता है, उसने तुमको मसीह पर विश्वास करने से रोक न दिया हो। मुझे डर था कि हम ने जो कुछ भी तुम लोगों के बीच में किया था वह व्यर्थ न हो गया हो।
\p
\s5
\v 6 परन्तु अब तीमुथियुस तुम्हारे पास से सीलास और मेरे पास लौटा है, और उसने हमें यह अच्छा समाचार सुनाया है कि तुम अभी भी मसीह पर भरोसा रखते हो और तुम उससे प्रेम करते हो। उसने हमें यह भी बताया कि तुम हमेशा हमें खुशी से स्मरण करते हो और तुम बहुत अधिक चाहते हो कि हम तुम से मिलें, जैसा कि हम स्वयं भी तुम से मिलना चाहते हो।
\v 7 हे मेरे साथी विश्वासियों, भले ही हम लोगों के व्यवहार के कारण कष्ट उठा रहे हैं, हमें फिर भी शान्ति मिली है, क्योंकि तीमुथियुस ने हमें बताया कि तुम अभी भी मसीह पर भरोसा रखते हो।
\s5
\v 8 अब यह ऐसा है जैसे हम नए रीति से जी रहे हैं, क्योंकि तुम प्रभु यीशु पर बहुत भरोसा रखते हो।
\v 9 उन्होंने तुम्हारे लिए जो कुछ किया है, उसके लिए परमेश्वर का जितना अधिक धन्यवाद करें वह कम है। जब हम अपने परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, तो हम तुम्हारे लिए बहुत आनन्दित होते हैं!
\v 10 हम लगातार उत्साह के साथ परमेश्वर से विनती करते हैं कि हम तुम से मिल सकें और तुमको मसीह में अधिक दृढ़ता से भरोसा करने में सहायता कर सकें।
\p
\s5
\v 11 हम परमेश्वर, हमारे पिता और हमारे प्रभु, यीशु से प्रार्थना करते हैं कि वे हमें तुम्हारे पास वापस आने में सहायता करें।
\v 12 तुम्हारे लिए, हम प्रार्थना करते हैं कि प्रभु यीशु तुमको एक दूसरे से और अन्य लोगों के साथ अधिक प्रेम करने में सहायता करेंगे, जैसे कि हम तुम को लगातार और भी ज्यादा प्रेम करते रहते हैं।
\v 13 हम प्रार्थना करते हैं कि हमारे प्रभु यीशु तुम को इस योग्य बनाएँ कि तुम अधिक से अधिक उनको प्रसन्न कर सको। हम प्रार्थना करते हैं कि हमारे पिता परमेश्वर तुम को अधिक से अधिक उनकी तरह बनने में सक्षम करें, और कोई भी तुम्हारी आलोचना न कर पाए। हम यह प्रार्थना करते हैं, कि जब यीशु पृथ्वी पर वापस आएँगे और जो लोग उसके हैं वे उसके साथ आएँगे, वह तुम से प्रसन्न होंगे।
\s5
\c 4
\p
\v 1-2 अब, हे मेरे साथी विश्वासियों, मैं कुछ अन्य बातों के बारे में लिखना चाहता हूँ। मैं तुम से आग्रह करता हूँ - और जब मैं तुम से आग्रह करता हूँ, तो वह ऐसा है जैसे प्रभु यीशु तुम से आग्रह कर रहे हों, कि तुम अपने जीवन को इस तरह से बनाओ कि परमेश्वर उससे प्रसन्न हो। हम ने तुमको ऐसा करना सिखाया है क्योंकि प्रभु यीशु ने हमें यह सिखाने के लिए कहा था। हम जानते हैं कि तुम अपने जीवन का संचालन उसी तरह कर रहे हो, लेकिन हम दृढ़ता से आग्रह करते हैं कि तुम और भी अधिक ऐसा करते रहो।
\p
\s5
\v 3 परमेश्वर चाहते हैं कि तुम कोई पाप न करो, और इस तरह से जीयो कि तुम पूरी तरह से परमेश्वर के हो। वह चाहते हैं कि तुम हर तरह के अनैतिक यौनाचार से बचो।
\v 4 वह यह चाहते हैं कि तुम में से हर एक यह जाने कि उसे अपनी पत्नी के साथ कैसे रहना है, कि पत्नी को सम्मान मिले और तुम उसके विरुद्ध पाप न करो।
\v 5 तुम अपनी वासना को संतुष्ट करने के लिए उसका उपयोग न करो (जैसे गैर-यहूदी करते हैं क्योंकि वे परमेश्वर को नहीं जानते)।
\v 6 परमेश्वर चाहते हैं कि तुम में से हर एक जन अपनी वासना को नियन्त्रण में रखे, जिससे कि तुम में से कोई भी अपने साथी विश्वासियों के विरुद्ध पाप न करे और इस तरह से तुम उनका लाभ न उठाओ। स्मरण रखो कि हम ने तुमको पहले ही चेतावनी दी थी कि प्रभु यीशु उन सब लोगों को दण्ड देंगे जो अनैतिक यौनाचार करते हैं।
\s5
\v 7 जब परमेश्वर ने हम विश्वासियों को चुना तो वह नहीं चाहते थे कि हम लोग एक अनैतिक यौनाचार करने वाले लोग हों। इसके विपरीत, वह चाहते हैं कि हम ऐसे लोग हों जो पाप नहीं करते हैं।
\v 8 इसलिए मैंने तुमको चेतावनी दी है कि जो लोग मेरी इस शिक्षा की उपेक्षा करते हैं, वे सिर्फ मेरी उपेक्षा नहीं करते जो कि एक मनुष्य हूँ। इसके विपरीत, वे परमेश्वर को अनदेखा कर रहे हैं, क्योंकि परमेश्वर ने इसकी आज्ञा दी थी। स्मरण रखें कि परमेश्वर ने अपने आत्मा को जो पाप नहीं करते, तुम में रहने के लिए भेजा है!
\p
\s5
\v 9 मैं तुम से फिर आग्रह करता हूँ कि तुमको अपने साथी विश्वासियों से प्रेम करना चाहिए। तुमको वास्तव में इसकी जरूरत नहीं है कि कोई तुमको इसके बारे में लिखे, क्योंकि परमेश्वर ने तुमको पहले ही एक दूसरे से प्रेम करना सिखाया है!
\v 10 और क्योंकि तुम पहले से ही दिखा रहे हो कि तुम मकिदुनिया के अपने प्रांत में अन्य जगहों पर रहने वाले अपने साथी विश्वासियों को प्रेम करते हो। फिर भी, हे मेरे साथी विश्वासियों, हम तुमसे आग्रह करते है कि एक दूसरे से अधिक से अधिक प्रेम करो।
\v 11 हम तुमसे आग्रह करते हैं कि अपना-अपना काम देखो, दूसरों के मामलों में हस्तक्षेप न करो हम तुमसे यह भी कहते हैं कि अपने व्यवसायों का काम करो कि तुमको जीने के लिए जो भी आवश्यक्ता हो वह पूरी हो जाए। स्मरण रखो कि हम ने तुमको पहले ही ऐसे जीवन की शिक्षा दी है।
\v 12 यदि तुम ऐसा करते हो, तो अविश्वासी मान लेंगे कि तुम्हारा व्यवहार सम्मान के योग्य है और तुमको अपनी आवश्यक्ताओं को पूरा करने के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा।
\p
\s5
\v 13 हे मेरे साथी विश्वासियों, हम यह भी चाहते हैं कि तुम यह समझ लो कि हमारे उन साथी विश्वासियों का क्या होगा जो मर चुके हैं। तुम को अविश्वासियों की तरह नहीं होना चाहिए। वे मरने वालों के लिए गंभीर रूप से शोक करते हैं क्योंकि वे मरने के बाद फिर से जी उठने की आशा नहीं करते।
\v 14 हम विश्वासी जानते हैं कि यीशु मर गए और वह फिर से जीवित हो गए। इसलिए हम यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि परमेश्वर उन लोगों को फिर से जीने के लिए यीशु में जोड़ेंगे, और वह उन्हें यीशु के साथ वापस लाएँगे।
\v 15 मैं यह इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि यह प्रभु यीशु ने मुझ पर प्रगट किया है जो मैं तुम से अब कह रहा हूँ। तुम में से कुछ सोच सकते हैं कि जब प्रभु यीशु वापस आएँगे, तो हम विश्वासी जो अब भी जीवित हैं, वे मरे हुओं से पहले यीशु से मिलेंगे। यह निश्चय ही सच नहीं है!
\s5
\v 16 मैं इसे लिखता हूँ, जो स्वर्ग से उतरेंगे वह स्वयं प्रभु यीशु हैं। जब वह नीचे आएँगे, तो वह हम सब विश्वासियों को उठने की आज्ञा देंगे, प्रधान स्वर्गदूत एक बड़ी आवाज़ से चिल्लाएगा, और दूसरा स्वर्गदूत परमेश्वर के लिए तुरही फूँकेगा। तब जो पहली बात होगी, वह यह है कि जो लोग मसीह में जोड़े गए हैं वे फिर से जीवित होंगे।
\v 17 उसके बाद, परमेश्वर हम सब विश्वासियों को जो तब भी इस पृथ्वी पर रह रहे होंगे, बादलों में ले जाएँगे। वह हमें और उन अन्य विश्वासियों को जो मर चुके हैं ले जाएँगे , ताकि हम सब मिलकर आकाश में प्रभु यीशु से मिल सकें। इसका परिणाम यह होगा कि हम सब उसके साथ हमेशा के लिए रहेंगे।
\v 18 क्योंकि यह सब सच है, एक दूसरे के साथ इस शिक्षा को बाँट कर एक दूसरे को प्रोत्साहित करो।
\s5
\c 5
\p
\v 1 हे मेरे साथी विश्वासियों, मैं तुमको उस समय के बारे में और भी बताना चाहता हूँ जब प्रभु यीशु वापस आएँगे। तुमको इसके बारे में लिखने की आवश्यक्ता तो नहीं है,
\v 2 क्योंकि तुम स्वयं इसके बारे में पहले से ही उचित ज्ञान रखते हो! तुम जानते हो कि प्रभु यीशु का वापस आना अकस्मात ही होगा जब लोग उस की आशा नहीं करेंगे, जैसे कि कोई रात को आने वाले चोर की आशा नहीं करता।
\v 3 भविष्य में कुछ समय बाद बहुत से लोग कहेंगे, "सब कुछ शांतिपूर्ण हैं और हम सुरक्षित हैं!" तब अचानक परमेश्वर उन्हें अलग से दण्ड देने के लिए अकस्मात ही आ जाएँगे! जैसे एक गर्भवती स्त्री जो बच्चे को जन्म देने के दर्द का अनुभव करती है, उस दर्द को नहीं रोक सकती, वैसे ही उन लोगों को परमेश्वर से बचने का कोई रास्ता नहीं मिलेगा।
\s5
\v 4 परन्तु तुम हे मेरे साथी विश्वासियों, तुम अंधकार में रहने वाले लोगों के समान नहीं हो क्योंकि तुम परमेश्वर के बारे में सच्चाई जानते हो। इसलिए जब यीशु लौटेंगे तो तुम उनके लिए तैयार रहोगे।
\v 5 तुम दिन के प्रकाश से संबंधित हो! तुम उन लोगों के समान नहीं हो जो रात के समान अंधेरे से संबंधित हैं,
\v 6 इसलिए हम विश्वासियों को यह जानने के लिए जागरुक होना चाहिए कि क्या हो रहा है। हमें स्वयं पर नियंत्रण रखना और यीशु के आने के लिए तैयार रहना चाहिए।
\v 7 रात में जब लोग सोते हैं तो नहीं जानते कि क्या हो रहा है, और यह रात ही है जब लोग नशे में हो जाते हैं
\s5
\v 8 लेकिन हम विश्वासी दिन के हैं, इसलिए आओ, हम स्वयं को वश में रखें। आओ, हम सैनिकों के समान हों: जिस प्रकार वे छाती के कवच से अपनी रक्षा करते हैं, आओ, हम मसीह पर भरोसा करके और उससे प्रेम करने के द्वारा स्वयं को बचाएँ। जैसे वे टोप से अपने सिर की रक्षा करते हैं, हम भी इस आशा से स्वयं को सुरक्षित रखें कि मसीह हमें बुराई से पूरी तरह बचाएँगे।
\p
\v 9 जब परमेश्वर ने हमें चुना, तो उन्होंने ऐसा करने की योजना नहीं बनाई थी कि हम ऐसे लोग हों जिन्हें वह दण्ड दें। इसके विपरीत, उन्होंने हमें बचाने का फैसला किया क्योंकि हमारे प्रभु यीशु मसीह ने जो कुछ हमारे लिए किया, हमें उस पर भरोसा है।
\v 10 यीशु हमारे पापों का प्रायश्चित करने के लिए मर गए ताकि जब वह पृथ्वी पर वापस आएँगे तो हम उनके साथ रहें, चाहे हम जीवित हों या मर जाएँ।
\v 11 क्योंकि तुम जानते हो कि यह सच है, तो एक दूसरे को प्रोत्साहित करना जारी रखो, जैसा कि तुम अब कर भी रहे हो!
\p
\s5
\v 12 हे मेरे साथी विश्वासियों, हम विनती करते हैं कि तुम उन लोगों को अगुवों के रूप में पहचानो जो तुम्हारे लिए कठोर परिश्रम करते हैं। इसका अर्थ है कि तुमको इन अगुवों का अपने साथी विश्वासियों के रूप में आदर करना चाहिए तुम देखोगे कि वे कैसे तुम्हें विश्वास में बढ़ने में सहायता करते हैं। वे अगुवे तुम्हारा मार्गदर्शन करते हैं और वे तुमको सिखाते हैं कि कैसे परमेश्वर के लिए जीना है।
\v 13 क्योंकि तुम उनसे प्रेम करते हो इसलिए हम चाहते हैं कि उन कामों के कारण जो वे करते हैं तुम उन्हें सम्मान दो। हम तुम से एक दूसरे के साथ शान्ति से रहने की आग्रह करते हैं।
\p
\v 14 हे मेरे साथी विश्वासियों, हम आग्रह करते हैं कि तुम ऐसे विश्वासियों को चेतावनी दो जो काम करने के बजाए उनके सहारे चलना चाहते हैं जो उन्हें कुछ देते हैं। उन विश्वासियों को भी प्रोत्साहित करो जो भयभीत हैं, और उन सभी लोगों की सहायता करो जो किसी भी प्रकार से निर्बल हो। हम तुमसे आग्रह करते हैं कि सबके साथ धीरज रखो।
\s5
\v 15 सुनिश्चित करो कि तुम में से कोई भी बुराई करनेवाले के साथ बुरा न करे। इसके विपरीत, तुमको हमेशा एक दूसरे और हर किसी के लिए भलाई करने का प्रयास करना चाहिए।
\p
\v 16 हर समय आनन्दित रहो,
\v 17 लगातार प्रार्थना करते रहो,
\v 18 और सब परिस्थितियों में परमेश्वर का धन्यवाद करो। परमेश्वर चाहते हैं कि तुम ऐसा व्यवहार करो जैसा कि मसीह यीशु ने तुम्हारे साथ किया है।
\p
\s5
\v 19 परमेश्वर के आत्मा को तुम्हारे बीच काम करने से मत रोको।
\v 20 उदाहरण के लिए, पवित्र आत्मा की किसी भी बात को तुच्छ मत जानो।
\v 21 इसके विपरीत, ऐसे सभी संदेशों को जाँचो। उन बातों को स्वीकार करो जो अच्छे हैं और उनका पालन करो।
\v 22 किसी भी प्रकार के बुरे संदेशों का पालन मत करो।
\p
\s5
\v 23 परमेश्वर तुमको शान्ति दें और निर्दोष बनाए ताकि तुम पाप न करो। जब तक हमारे प्रभु यीशु मसीह पृथ्वी पर वापस न आएँ, तब तक वह किसी भी प्रकार का पाप करने से तुमको बचाए रखें।
\v 24 क्योंकि परमेश्वर ने तुमको अपने लोग होने के लिए बुलाया है, जिससे कि तुम निश्चित रूप से उस पर भरोसा कर सको और वह तुम्हारी सहायता कर सके।
\p
\s5
\v 25 हे मेरे साथी विश्वासियों, मेरे लिए, सीलास और तीमुथियुस के लिए प्रार्थना करो।
\v 26 जब तुम विश्वासियों के रूप में एकत्र होते हो, तो एक दूसरे को प्रेम से नमस्कार करो जैसा कि साथी विश्वासियों को करना चाहिए।
\v 27 निश्चित करो कि तुम इस पत्र को उन सब विश्वासियों को पढ़ाओगे जो तुम्हारे बीच में हैं। जब मैं तुम्हें यह बताता हूँ, तो यह ऐसा है जैसे परमेश्वर तुम से बात कर रहे हैं।
\v 28 हमारे प्रभु यीशु मसीह तुम सब के प्रति दया का कार्य करते रहें।

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\id 2TH Unlocked Dynamic Bible
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\h 2 THESSALONIANS
\toc1 The Second Letter to the Thessalonians
\toc2 Second Thessalonians
\toc3 2th
\mt1 2 थिस्सलुनीकियों
\s5
\c 1
\p
\v 1 मैं पौलुस, सीलास और तीमुथियुस, थिस्सलुनीके शहर में रहने वाले लोगों के लिए, जो विश्वासियों का एक समूह है और हमारे पिता परमेश्वर और हमारे प्रभु यीशु मसीह के साथ जुड़े हुए हैं, यह पत्र लिख रहे हैं।
\v 2 हम प्रार्थना करते हैं कि हमारे पिता परमेश्वर और हमारे प्रभु यीशु मसीह, तुम पर दया करते रहें और तुमको शान्ति दें।
\p
\s5
\v 3 हे हमारे साथी विश्वासियों, हम हमेशा परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं, और हमें ऐसा करना भी चाहिए, क्योंकि तुम प्रभु यीशु पर अधिक से अधिक भरोसा करते हो, और क्योंकि तुम सब एक दूसरे से और अधिक प्रेम करते हो।
\v 4 जिसके कारण हम परमेश्वर के विश्वासियों के अन्य समूहों से तुम्हारे बारे में गर्व की बातें करते हैं। हम उन्हें बताते हैं कि तुम कैसे धीरज रखते हो और तुम प्रभु यीशु पर कैसे भरोसा करते हो, भले ही लोग बार-बार तुमको बहुत परेशान करते हैं।
\v 5 क्योंकि, तुम इन सब परेशानियों को सहन कर रहे हो, हम स्पष्ट रूप से जानते हैं कि परमेश्वर सब लोगों का उचित न्याय करेंगे। तुम्हारे विषय में, वह सब पर प्रकट करेंगे कि तुम सदा के लिए उन के शासन के योग्य हो, क्योंकि तुम उन पर भरोसा करने के कारण कष्टों में हो।
\p
\s5
\v 6 परमेश्वर निश्चय ही उन लोगों के लिए क्लेश उत्पन्न करेंगे, जो तुम को क्लेश दे रहे हैं, क्योंकि उनके लिए ऐसा करना उचित है।
\v 7 और उनके विचार में यह भी उचित है कि वह तुमको तुम्हारी कठिनाइयों से बाहर लाकर तुमको प्रतिफल दें। जब वह स्वर्ग से अपने शक्तिशाली स्वर्गदूतों के साथ लौटेंगे, और स्वयं को सब के सामने प्रकट करेंगे, तब वह तुम्हारे और हमारे, दोनों के लिए ऐसा करेंगे।
\v 8 फिर धधकती हुई आग से वह उन लोगों को दण्ड देंगे जो उसके प्रति वफादार नहीं हैं और जिन्होंने हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को स्वीकार करने से मना किया था।
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\v 9 हमारे प्रभु यीशु उनको अपने से दूर कर देंगे, जहाँ वह उन्हें हमेशा के लिए नष्ट कर देंगे, उस स्थान से दूर जहाँ वह अपनी बड़ी शक्ति के साथ शासन करेंगे।
\v 10 प्रभु यीशु ऐसा तब करेंगे जब वह स्वर्ग से परमेश्वर के नियुक्त समय में वापस आएँगे। इसका परिणाम यह होगा कि हम सब जो उनके लोग हैं, उनकी स्तुति करेंगे और उन पर आश्चर्य करेंगे। और तुम भी वहाँ होगे, क्योंकि हम ने जो कुछ सत्यनिष्ठा से तुम से कहा था तुमने उस पर विश्वास किया है।
\p
\s5
\v 11 जिससे कि तुम इस तरह यीशु की स्तुति कर सको, हम भी हमेशा तुम्हारे लिए प्रार्थना करते रहते हैं। हम प्रार्थना करते हैं कि परमेश्वर तुमको उस नए जीवन में जीने के योग्य बनाएँ, जिसके लिए तुमको बुलाया गया है। हम यह भी प्रार्थना करते हैं कि वह तुमको जैसा तुम चाहते हो वैसे ही हर तरह से अच्छे काम करने में समर्थ बनाएँ, और क्योंकि वह बहुत शक्तिशाली हैं, इसलिए वह तुमको हर अच्छा काम करने की सामर्थ्य प्रधान करें क्योंकि तुम उन पर भरोसा करते हो।
\v 12 हम यह प्रार्थना इसलिए करते हैं कि हम चाहते हैं कि तुम हमारे प्रभु यीशु की स्तुति करो, और हम चाहते हैं कि वह तुम्हारा आदर करें। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि परमेश्वर, जिसकी हम आराधना करते हैं, और हमारे प्रभु यीशु मसीह तुम्हारे प्रति दया का व्यवहार करते रहते हैं।
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\c 2
\p
\v 1 अब मैं तुमको उस समय के बारे में लिखना चाहता हूँ जब हमारे प्रभु यीशु मसीह वापस आएँगे और जब परमेश्वर हमें यीशु के साथ एकत्र करेंगे। हे मेरे साथी विश्वासियों, मैं तुम से आग्रह करता हूँ,
\v 2 कि जो कोई संदेश तुम्हारे पास आता है उस पर शान्ति से विचार करो। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह संदेश कहाँ से आता है, चाहे कोई दावा करे कि परमेश्वर के आत्मा ने यह प्रकट किया है, या कोई व्यक्ति स्वयं बोले, या कोई पत्र हो जो यह दावा करता है कि मैंने लिखा है: मैं नहीं चाहता कि तुम इस बात पर विश्वास करो कि प्रभु यीशु पहले से ही पृथ्वी पर वापस आ चुके हैं।
\p
\s5
\v 3 कोई भी इस प्रकार के संदेश द्वारा तुमको विश्वास दिलाने का अवसर न पाए। परमेश्वर तुरंत नहीं आएँगे। सबसे पहले, बहुत से लोग परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करेंगे। वे एक ऐसे व्यक्ति को स्वीकार करेंगे और उसकी आज्ञा मानेंगे जो परमेश्वर के विरुद्ध बहुत पाप करेगा; उसको परमेश्वर नष्ट करेंगे।
\v 4 वह परमेश्वर का सबसे बड़ा शत्रु होगा। वह घमण्ड से उन सब चीजों के विरुद्ध काम करेगा जिसे लोग परमेश्वर मानते हैं और आराधना करते हैं। वह परमेश्वर के मंदिर में भी प्रवेश करेगा और शासन करने के लिए वहाँ बैठेगा! वह सार्वजनिक रूप से घोषणा करेगा कि वही परमेश्वर है!
\p
\s5
\v 5 मुझे विश्वास है कि तुमको स्मरण होगा कि मैं तुमको यह बातें बताता रहता था, जब मैं थिस्सलुनीके में तुम्हारे साथ था।
\v 6 तुम यह भी जानते हो की कुछ है जो इस व्यक्ति को अभी रोक रहा है कि सब पर प्रकट न हो। वह उस समय तक स्वयं को प्रदर्शित नहीं कर पाएगा, जब तक कि परमेश्वर उसे अनुमति न दें।
\v 7 यद्यपि शैतान पहले से ही चुपके से लोगों को परमेश्वर की व्यवस्था को अस्वीकार करने के लिए प्रेरित कर रहा है, लेकिन जो इस व्यक्ति को स्वयं को प्रकट करने से रोक रहा है, वह तब तक रोके रहेगा जब तक कि परमेश्वर उसे हटा नहीं देते।
\p
\s5
\v 8 तब परमेश्वर इस व्यक्ति को अनुमति देंगे, जो पूरी तरह से परमेश्वर की व्यवस्था को अस्वीकार करता है, ताकि स्वयं को संसार में प्रकट करे। तब प्रभु यीशु एक आदेश देंगे, जो उसे नष्ट कर देगा। जब वह वापस आएँगे, तब वह सब पर प्रकट होने के द्वारा, उस व्यक्ति को पूरी तरह से शक्तिहीन बनाएँगे।
\v 9 परन्तु इससे पहले कि यीशु उसे नाश करें, शैतान उस व्यक्ति को बहुत बड़ी शक्ति देगा। जिसके कारण वह सब प्रकार के अलौकिक चमत्कार और आश्चर्यजनक कार्य करेगा, और बहुत से लोग इस बात पर विश्वास करेंगे कि परमेश्वर उसे उन कामों को करने में समर्थ बना रहे हैं।
\v 10 और दुष्ट कर्म करके, वह व्यक्ति उन लोगों को धोखा देगा जो नाश होने के लिए अपराधी हैं। वह उन्हें धोखा देने में इसलिए सफल होगा क्योंकि वे सच्चे संदेश से प्रेम करने के लिए तैयार नहीं थे कि कैसे यीशु उन्हें बचा सकते हैं।
\p
\s5
\v 11 इसलिए परमेश्वर इस व्यक्ति को आसानी से उन्हें धोखा देने में सफल करेंगे, और वे उस व्यक्ति के झूठे दावों पर विश्वास करेंगे।
\v 12 जिसका परिणाम यह होगा कि परमेश्वर उन सब लोगों का न्याय करेंगे और दोषी ठहराएँगे जिन्होंने मसीह के बारे में सच्चाई पर विश्वास करने से इन्कार कर दिया, वे हर बुरे काम को करने का आनंद उठाते थे।
\p
\s5
\v 13 हे हमारे साथी विश्वासियों, जिन्हें हमारे प्रभु यीशु प्रेम करते हैं, हमें हमेशा तुम्हारे लिए परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए। हमें ऐसा इसलिए करना चाहिए क्योंकि उसने तुमको उन पहले लोगों में शामिल होने के लिए चुना, जिन्होंने यीशु के बारे में सच्चाई पर विश्वास किया, जिन्हें परमेश्वर ने बचाया, और जिन्हें अपने आत्मा के द्वारा उसने स्वयं के लिए अलग किया।
\v 14 हम परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं कि उसने तुमको मसीह के बारे में हमारे संदेश की घोषणा के परिणामस्वरूप चुना है, जिससे कि परमेश्वर तुमको कुछ ऐसे तरीकों से सम्मान दे सकें जैसे वह हमारे प्रभु यीशु मसीह का सम्मान करते हैं।
\v 15 इसलिए, हे हमारे साथी विश्वासियों, मसीह में दृढ़ता से विश्वास करते रहो। जो सच्ची बातें हम ने तुमको अपनी बातों से और अपने पत्र के द्वारा सिखाई हैं, उन बातों को मानते रहो।
\p
\s5
\v 16 हम प्रार्थना करते हैं कि हमारे प्रभु यीशु मसीह स्वयं और हमारे पिता परमेश्वर, जो हम से प्रेम करते हैं और हमें हमेशा प्रोत्साहित करते हैं और जो हमें अपनी दया से अच्छी चीजें प्राप्त करने की आशा देते हैं -
\v 17 परमेश्वर और यीशु मसीह एक साथ तुम को प्रोत्साहित करें! और वे तुमको अच्छी बातें करने और कहने के लिए प्रेरित करते रहें।
\s5
\c 3
\p
\v 1 अन्य विषयों के बारे में, हे हमारे साथी विश्वासियों, हमारे लिए प्रार्थना करो कि अधिक से अधिक लोग शीघ्र ही हमारे प्रभु यीशु के बारे में हमारा संदेश सुनें और उसका सम्मान करें, जैसे तुमने किया था।
\v 2 हमारे लिए भी प्रार्थना करो कि परमेश्वर दुष्ट और बुरे लोगों को हमारी हानि करने से बचाएँ, क्योंकि हर कोई प्रभु पर विश्वास नहीं करते हैं।
\v 3 फिर भी, प्रभु यीशु विश्वासयोग्य हैं! इसलिए हमें विश्वास है कि वह तुमको मजबूत बने रहने के लिए प्रेरित करेंगे। हमें यह भी निश्चय है कि वह तुमको दुष्ट शैतान से भी बचाएँगे।
\p
\s5
\v 4 क्योंकि हम सब हमारे प्रभु यीशु के साथ जुड़े हुए हैं, हमें विश्वास है कि जो आदेश हम ने तुमको दिए हैं उनका पालन तुम कर रहे हो, और हम इस पत्र में जो आज्ञा देते हैं, तुम उन्हें भी मानोगे।
\v 5 हम प्रार्थना करते हैं कि हमारे प्रभु यीशु यह जानने में कि परमेश्वर तुम से कितना प्रेम करते हैं और मसीह ने तुम्हारे लिए कितना कुछ सहन किया है , तुम्हारी निरन्तर सहायता करें।
\p
\s5
\v 6 हे हमारे साथी विश्वासियों, हम तुम को आज्ञा देते हैं और मानो कि प्रभु यीशु मसीह स्वयं यह कह रहेहैं - कि तुम आलसी और कामचोरी करने वाले हर विश्वासी भाई या बहन के साथ संगति करना त्याग दो। कहने का अर्थ है, कि तुमको उन लोगों से दूर रहना चाहिए जो अपने जीवन का संचालन उन उपदेशों के आधार पर नहीं करते हैं जो हम ने तुमको सिखाए हैं, और दूसरों ने हमें सिखाए थे।
\v 7 हम तुमको यह इसलिए बताते हैं क्योंकि तुम स्वयं जानते हैं कि तुमको हमारे जैसा व्यवहार करना चाहिए। तुम्हारे साथ रहते समय हम बिना काम के बैठे हुए नहीं थे।
\v 8 कहने का अर्थ यह है कि हम ने किसी का भोजन बिना भुगतान किए नहीं खाया। हम ने दिन और रात स्वयं की सहायता करने के लिए बहुत परिश्रम किया की हमें अपनी आवश्कताओं के लिए किसी पर निर्भर रहने की आवश्यक्ता न हो।
\v 9 हमारे पास धन के लिए तुम पर निर्भर रहने का अधिकार था क्योंकि मैं प्रेरित हूँ, परन्तु हम ने तुम्हारे लिए अच्छा उदाहरण बनने के लिए कठोर परिश्रम किया जिससे कि तुम हमारे जैसा व्यवहार करो।
\s5
\v 10 स्मरण रखो कि जब हम तुम्हारे साथ थे, तो हम तुमको आज्ञा देते रहे कि अगर कोई भी साथी विश्वासी काम करने से मना करे, तो उसे खाने के लिए भोजन मत दो।
\v 11 अब हम तुमको यह फिर से बताते हैं, क्योंकि किसी ने हमें बताया है कि तुम में से कुछ लोग आलसी हैं और बिल्कुल भी काम नहीं करते हैं। इतना ही नहीं, तुम में कुछ ऐसे भी हैं जो दूसरों के काम में हस्तक्षेप करते हैं।
\v 12 हम उन भाई-बहनों को आज्ञा देते हैं जो काम नहीं कर रहे हैं, और उनसे आग्रह करते हैं, जैसे कि प्रभु स्वयं बोल रहे हों, कि तुम अपने काम पर ध्यान दो, अपनी जीविका स्वयं कमाओ, और अपनी जरूरतों को स्वयं पूरा करो।
\p
\s5
\v 13 हे साथी विश्वासियों! कभी भी भले काम करने से थक न जाओ!
\v 14 यदि कोई भी साथी विश्वासी इस पत्र में जो लिखा है उसका पालन नहीं करता है, तो सार्वजनिक रूप से उस व्यक्ति की पहचान करो। फिर उसके साथ सम्बन्ध न रखो, ताकि वह लज्जित हो।
\v 15 उसे अपना शत्रु न समझो; परन्तु उसे चेतावनी दो जैसे तुम अपने दूसरे साथी विश्वासियों को देते हो।
\p
\s5
\v 16 मैं प्रार्थना करता हूँ कि हमारे प्रभु यीशु स्वयं, जो अपने लोगों को शान्ति देते हैं, तुमको हमेशा और हर स्थिति में शान्ति दें। मैं प्रार्थना करता हूँ कि हमारे प्रभु यीशु तुम सभी की सहायता करते रहें।
\v 17 अब मैंने अपने लेखक से कलम ले ली है, और मैं, पौलुस स्वयं तुमको यह शुभकामना लिखकर भेज रहा हूँ। मैं अपने सभी पत्रों में ऐसा करता हूँ ताकि तुम जान सको कि वास्तव में, यह पत्र मैंने ही भेजा है। ऐसे ही मैं अपने पत्र को समाप्त करता हूँ।
\v 18 मैं प्रार्थना करता हूँ कि हमारे प्रभु यीशु मसीह तुम सब के साथ दया का व्यवहार करते रहें।

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\id 1TI Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h 1 TIMOTHY
\toc1 The First Letter to Timothy
\toc2 First Timothy
\toc3 1ti
\mt1 1 तीमुथियुस
\s5
\c 1
\p
\v 1-2 मैं पौलुस, यह पत्र तीमुथियुस को लिख रहा हूँ। हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर और मसीह यीशु जो हमारे भविष्य के लिए भरोसा हैं, और मसीह ने मुझे प्रेरित होने का आदेश दिया। तु मसीही तब बना, जब मैंने तुझे मसीह यीशु के बारे में बताया था और तु प्रभु में मेरा सच्चा पुत्र है। पिता परमेश्वर और हमारे प्रभु मसीह यीशु तुझ पर दया करें और तुझे शान्ति दें।
\p
\s5
\v 3 मकिदुनिया जाने के दौरान मैंने तुझको इफिसुस में रहने का आग्रह इसलिए किया था, ताकि तु कुछ पुरुषों को यह आदेश दे सके, की वे हमारी शिक्षा से अलग शिक्षा ना दें।
\v 4 और उनको आदेश दे कि वे व्यर्थ की पुरानी कहानियों और वंशावलियों पर अपना समय और ध्यान न दें, जिनके बारे में लोगों का सोचना कभी समाप्त नहीं होगा। ये बातें केवल लोगों में विवाद करने का कारण बनती है, लेकिन उन्हें बचाने के लिए परमेश्वर की योजना जानने में उनकी सहायता नहीं करती - एक योजना जिसे हम विश्वास से मानते हैं।
\s5
\v 5 उसकी अपेक्षा, हम तुझको सिखाने के लिए जो आदेश देते हैं, वह यह है कि परमेश्वर के प्रति हमारा प्रेम शुद्ध मन, अच्छे विवेक और कपट रहित विश्वास से हो।
\v 6 इन अच्छे कामों को करने का प्रयास करने की अपेक्षा; कुछ लोग व्यर्थ की बातें कर रहे हैं।
\v 7 वे व्यवस्था के बारे में सिखाना तो चाहते हैं, परन्तु वे स्वयं उसे नहीं समझते और जोर देते हैं कि जो बातें वे सिखाते हैं वह सच है।
\p
\v 8 परन्तु हम जानते हैं कि नियम तो सब भले हैं, अगर हम जान लें कि व्यवस्था के अनुसार इसका उपयोग कैसे किया जाए।
\s5
\v 9 हम यह जानते हैं कि नियम अच्छे लोगों पर लागू होने के लिए नहीं, पर उनके लिए है जो विद्रोही हैं, वे जो परमेश्वर का आदर नहीं करते, उन अधर्मियों और अपमानित व्यक्तियों, हत्यारों और अपने माता-पिता की हत्या करने वालों के लिए है।
\v 10 यह समलैंगिकों और अनुचित यौन व्यवहार करने वाले सभी लोगों को नियंत्रित करने के लिए भी बना हैं, उन लोगों को नियंत्रित करने के लिए जो दूसरों की चोरी करते हैं और उन्हें दासों के रूप में बेचते हैं, झूठ बोलने वाले और न्यायालयों में झूठी गवाही देने वालों के लिए और उन सब बातों को रोकने के लिए जो हमारी खरी और अच्छी शिक्षा से अलग हैं।
\v 11 यह सब बातें उस अद्भुत सुसमाचार से सहमत हैं कि परमेश्वर जिनकी हम स्तुति करते हैं, और जिन्होंने हमें सिखाया है और वे मुझ पर भरोसा रखते हैं कि यह सुसमाचार मैं दूसरों में भी बाँटूँ।
\p
\s5
\v 12 मैं मसीह यीशु हमारे प्रभु का धन्यवाद करता हूँ, जिन्होंने मुझे अपनी सेवा करने के लिए बल दिया है। वे अपनी सेवा करने के लिए मुझ पर भरोसा करते हैं।
\v 13 बीते समय में, मैंने विश्वासियों का अपमान किया और उन्हें सताया। मैंने हिंसक कार्य भी किए, परन्तु परमेश्वर की दया मुझ पर हुई, क्योंकि मैंने अविश्वास की दशा में यह सब कार्य किए और मैं नहीं जानता था कि मैं क्या कर रहा था।
\v 14 परमेश्वर ने मुझ पर अत्यधिक दया दिखाई और मुझे मसीह यीशु पर विश्वास करने और उनसे प्रेम रखने में सक्षम बनाया, क्योंकि उन्होंने मुझे यीशु के साथ जोड़ दिया।
\p
\s5
\v 15 हर किसी को इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिए क्योकि हम इस पर पूर्ण भरोसा कर सकते हैं: यीशु मसीह पापियों का उद्धार करने के लिए जगत में आए, यह सत्य है की मैं सबसे बड़ा पापी हूँ।
\v 16 क्योंकि मैं सबसे बड़ा पापी हूँ, परमेश्वर ने मुझ पर दूसरों से पहले दया प्रकट की जिससे कि, वे देख सकें कि परमेश्वर कितने धैर्यवान हैं, परमेश्वर धीरज से उन लोगों को अनन्त जीवन देने की प्रतीक्षा कर रहे हैं जो उन पर विश्वास करते हैं।
\p
\v 17 सनातन राजा को कोई देख नहीं सकता, और वे अविनाशी है। वे ही एकमात्र परमेश्वर हैं, केवल उनका सब आदर और स्तुति युगानायुग करेंगे। आमीन।
\s5
\v 18 हे पुत्र तीमुथियुस, मैं तुझे आज्ञा देता हूँ कि कुछ विश्वासियों ने पहले तेरे विषय में जो भविष्यद्वाणी की थी; उसे याद रखना, और उसका स्मरण करते हुए प्रभु के लिए कड़ा परिश्रम करना।
\v 19 परमेश्वर पर भरोसा कर और अच्छे विवेक को बनाए रख। कुछ लोगों ने अपने विवेक पर ध्यान नहीं दिया इस कारण उनका विश्वास नष्ट हो गया।
\v 20 उन्हीं में से हुमिनयुस और सिकन्दर ये दो व्यक्ति हैं, जिन पर हमला करने के लिए मैंने उन्हें शैतान को सौंप दिया है ताकि वे परमेश्वर की निंदा करना न सीखें।
\s5
\c 2
\p
\v 1 सबसे महत्वपूर्ण बात, क्योंकि झूठे शिक्षक खतरनाक हैं, इसलिए मैं सभी विश्वासियों से आग्रह करता हूँ कि वे सब लोगों की सहायता के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करें और उनके लिए धन्यवाद दें।
\v 2 राजाओं और उन सब के लिए प्रार्थना करो, जिनको लोगों पर अधिकार है ताकि हम चुपचाप और शान्तिपूर्वक जीवन जिए जिस से हम परमेश्वर और सब लोगों का सम्मान कर सकें।
\v 3 परमेश्वर जो हमें बचाते हैं, जब हम इस प्रकार प्रार्थना करते हैं तो वे हमारी सुनते हैं; और उनकी दृष्टि में यह भला है।
\v 4 वे यह चाहते हैं कि सब मनुष्यों का उद्धार हो, वे बच जाएँ और उनके विषय में जो सत्य है वह सब जान लें।
\s5
\v 5 सत्य यह है कि परमेश्वर एक ही हैं और केवल एक ही व्यक्ति है जो हमें परमेश्वर के सामने ग्रहण योग्य बना सकते हैं अर्थात मसीह यीशु; जो मनुष्य हैं।
\v 6 उन्होंने सब लोगों को मुक्त करने के लिए स्वयं को दे दिया - और यह सबूत था कि परमेश्वर मसीह की मृत्यु के द्वारा क्या कर रहे थे।
\v 7 इस सच्चाई को घोषित करने के लिए, परमेश्वर ने मुझे एक सन्देशवाहक और प्रेरित बनाया है। मैं सच बोलता हूँ; मैं झूठ नहीं बोल रहा, मैं अन्यजातियों को ऐसी बातें सिखाता हूँ जिनका उन्हें वास्तव में विश्वास करना चाहिए।
\p
\s5
\v 8 इसलिये, मैं चाहता हूँ कि पुरुष हर जगह हाथ उठाकर परमेश्वर से प्राथना करे, जो परमेश्वर को स्वीकारयोग्य हो। विश्वासियों को परमेश्वर के विषय में क्रोध या संदेह दिखाने के लिए प्रार्थना नहीं करनी चाहिए।
\v 9 मैं यह भी चाहता हूँ कि स्त्रियाँ खुद को सावधानी से तैयार करें; वे स्वयं को नियंत्रण में रखें और दूसरों को लुभाने के लिए तैयार न हों। बाल गूँथने, सोना, मोती या महंगे कपड़ों के बजाए
\v 10 उन्हें इस प्रकार से श्रृंगार करना चाहिए जो भले काम करनेवाली स्त्रियों के लिए उचित हो, और जो कहती हैं कि वे परमेश्वर को आदर देती हैं।
\s5
\v 11 जब पुरुष विश्वासियों को शिक्षा दे रहे हैं, तो स्त्रियों को चुपचाप सुनकर अपने शिक्षकों को सम्मान देना चाहिए और उनसे सीखने का पूरा प्रयास करना चाहिए।
\v 12 मैं स्त्रियों को उपदेश देने की अनुमति नहीं देता और न ही वे पुरुषों को बताए की उन्हें क्या करना हैं। वे स्त्रियाँ जो परमेश्वर का आदर करती हैं; वे चुप रहती हैं जब विश्वासी सीखने आते हैं।
\s5
\v 13 आदम को पहले और उसके बाद हव्वा को बनाया गया था,
\v 14 और वह आदम नहीं था जिसको साँप ने धोखा दिया। वह स्त्री थी जिसको उसने पूरी तरह से धोखा दिया और उसने पाप किया।
\v 15 परन्तु परमेश्वर स्त्री को बच्चे जनने के द्वारा बचाएँगे, यदि वे विश्वास और प्रेम और पवित्रता में विनम्रता के साथ बनी रहे।
\s5
\c 3
\p
\v 1 मेरी इन बातों पर भरोसा करो जो मैं बताता हूँ: यदि कोई विश्वासियों की देखरेख करने की इच्छा रखता हो, तो वह वास्तव में भले काम की इच्छा रखता है।
\v 2 इस कारण, अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिस पर कोई भी किसी बुरी बात का दोष न लगाए। उसकी केवल एक पत्नी होनी चाहिए। उसे कुछ भी अत्यधिक नहीं करना चाहिए और बुद्धिमानी से सोचना चाहिए। उसे अच्छा व्यवहार करना चाहिए और उसे अपरिचित व्यक्ति का भी अतिथि-सत्कार करना चाहिए। वह दूसरों को शिक्षा देने में सक्षम हो।
\v 3 वह शराबी नहीं होना चाहिए और लड़ने के लिए तत्पर नहीं होना चाहिए। इसकी अपेक्षा वह धीरजवंत हो और दूसरों के साथ शान्ति बनाकर रखने वाला हो। वह धन के लिए लालची न हो।
\p
\s5
\v 4 उसे अपने घर के सदस्यों का उचित प्रबन्ध करना चाहिए और उसके बच्चों को सम्मान के साथ उसका पालन करना चाहिए।
\v 5 मैं यह इसलिए कहता हूँ अगर कोई व्यक्ति अपने ही घर के लोगों का प्रबन्ध करना नहीं जानता हो, तो वह परमेश्वर के लोगों का कैसे ख्याल रख सकता है?
\s5
\v 6 एक नए विश्वासी को अध्यक्ष नहीं होना चाहिए, क्योंकि वह यह सोच सकता है कि वह अन्य लोगों से अच्छा है। अगर ऐसा हुआ तो परमेश्वर ने जैसे शैतान को दण्ड दिया था, उसे भी दण्ड दे सकते हैं।
\v 7 कलीसिया के बाहर के लोग भी उसके विषय में अच्छा सोचते हों, अन्यथा वह लज्जित हो सकता है और शैतान उसे पाप करने के लिए बहका सकता है।
\p
\s5
\v 8 सेवक (डीकन) भी वैसे ही हो, जिसका लोग सम्मान करें। जब वह बोले तो ईमानदारी के साथ बोले। उन्हें ज्यादा दाखरस नहीं पीना चाहिए और वे धन के लोभी न हों।
\v 9 उन्हें उन सच्ची बातों पर विश्वास करना चाहिए जो परमेश्वर ने हमें बताई हैं और उसके साथ ही क्या सही है यह जान लें और फिर उसे करें।
\v 10 पहले उनमें इन गुणों को खोजें, और फिर उन्हें सेवा के लिए चुनें क्योंकि फिर कोई भी उनमें कोई गलती नहीं ढूँढ पाएगा।
\s5
\v 11 इसी तरह, अन्य लोग भी सेवकों (डीकन) की पत्नियों का सम्मान करें। उनकी पत्नियाँ अन्य लोगों के बारे में बुरी बातें न करें। उन्हें कुछ भी आवश्यकता से अधिक नहीं करना चाहिए और जो कुछ वे करती हैं उन सब में वे निष्ठावान रहें।
\v 12 एक सेवक (डीकन) की केवल एक ही पत्नी होनी चाहिए और उसे अपने बच्चों और अपनी सम्पत्ति का अच्छा प्रबन्ध करना चाहिए।
\v 13 अच्छे सेवक (डीकन) वे हैं जिन्हें दूसरे विश्वासी अत्यधिक सम्मान देते हैं। उनका यीशु मसीह में बहुत भरोसा हो।
\p
\s5
\v 14 जैसे कि मैं यह बातें लिख रहा हूँ, मैं तेरे पास शीघ्र आने की आशा करता हूँ।
\v 15 परन्तु यदि मैं शीघ्र नहीं आ पाया, तो मैं यह पत्र लिख रहा हूँ कि तु जान ले कि परमेश्वर के परिवार में कैसा व्यवहार करना है, वह परमेश्वर में विश्वास करनेवालों का समूह है। यह वह परमेश्वर है जो सबको जीवन देते हैं। और यह वह है जो सच्चाई सिखाते है और उसकी गवाही देता है कि यह सत्य है।
\s5
\v 16 और हम यह एक साथ कहते हैं कि जो सत्य परमेश्वर ने हम पर प्रकट किया है, वह अति महान है और हम इसके लिए उनका सम्मान करते हैं:
\q मसीह परमेश्वर थे जो मनुष्य शरीर में प्रकट हुए।
\q पवित्र आत्मा ने यह सिद्ध किया कि वे खरे थे।
\q स्वर्गदूतों ने उन्हें देखा।
\q विश्वासियों ने उन्हें सब जातियों के बीच में घोषित किया।
\q संसार के कई भागों के लोगों ने उन पर विश्वास किया।
\q परमेश्वर ने उन्हें स्वयं अपने पास ऊपर उठा लिया और उन्हें अपनी शक्ति दी।
\s5
\c 4
\p
\v 1 अब पवित्र आत्मा स्पष्ट रूप से कहते हैं कि आनेवाले समय में, कुछ लोग मसीह के बारे में सच्चाई पर विश्वास करना त्याग देंगे और उन आत्माओं पर ध्यान देंगे जो विश्वासियों को धोखा देती हैं और उन दुष्ट-आत्माओं पर जो झूठी बातें सिखाती हैं।
\v 2 ये लोग एक बात कहेंगे, परन्तु किसी भी बुरी बात को करेंगे जो वे चाहेंगे, मानो जैसे एक गर्म लोहे ने उनके अन्तः करण को जला दिया हो।
\p
\s5
\v 3 वे विश्वासियों को शादी से रोकने की कोशिश करेंगे। वे उन्हें कुछ चीजें खाने से मना करेंगे, भले ही परमेश्वर ने उन चीजों को बनाया है, ताकि विश्वासी जिनको सत्य की पहचान हुई है वे उन्हें परमेश्वर को धन्यवाद देते हुए एक दूसरे के साथ साझा कर सकें।
\v 4 मैं यह इसलिए कहता हूँ कि परमेश्वर ने जो कुछ बनाया है वह अच्छा है। जो परमेश्वर से मिलता है, उसके लिए उनका धन्यवाद करते हुए हमें कुछ भी अस्वीकार नहीं करना चाहिए।
\v 5 क्योंकि परमेश्वर से प्रार्थना करके और उनके वचन पर विश्वास करके हम उसे उनके लिए अलग कर देते हैं।
\s5
\v 6 यदि तु यह सत्य भाइयों और बहनों को समझाता है, तो तु मसीह का अच्छा दास होगा। तु उनकी अच्छी सेवा करेगा, क्योंकि जिस संदेश पर हम विश्वास करते हैं वह तुझको दृढ़ता प्रदान करता रहेगा, जैसे कि परमेश्वर की सिखाई हुई अच्छी बातें और तेरे द्वारा उनका पालन किया जाना।
\v 7 परन्तु उन बातों को न सुन जिनका कोई अर्थ नहीं है और उन कहानियों को जिन्हें केवल बूढ़ी स्त्रियाँ सुनाती हैं। इसकी अपेक्षा, परमेश्वर का सम्मान करने के लिए स्वयं को तैयार कर।
\v 8 शारीरिक व्यायाम केवल थोड़ी सहायता करता है, लेकिन यदि तू परमेश्वर को आदर देता है, तो इससे तुझे सांसारिक जीवन की हर बात में सहायता मिलेगी, और जैसे भविष्य में भी जब तू परमेश्वर के साथ रहेगा।
\s5
\v 9 जो मैंने अभी लिखा है वह कुछ ऐसा है जिस पर तू भरोसा कर सकता है। यह पूरी तरह से विश्वास करने के योग्य है।
\v 10 इस वजह से हम जितना कर सकें उतना कठोर परिश्रम करते हैं, क्योंकि हमारी आशा परमेश्वर में है जो जीवित है, सारी मनुष्यजाति के उद्धारकर्ता, परन्तु विशेष करके उन लोगों के उद्धारकर्ता जो विश्वास करते हैं।
\s5
\v 11 विश्वासियों को यह बातें सिखा।
\p
\v 12 किसी को अवसर मत दे कि तुझे निकम्मा कहे, क्योंकि तू युवा है। इसकी अपेक्षा विश्वासियों को समझा कि कैसे जीवन जीना है और यह तू अपने वचनों द्वारा अपने आपसी प्रेम के द्वारा, परमेश्वर पर भरोसा रखने के द्वारा और दुष्ट कर्मों से बचने के द्वारा दिखा सकता है।
\v 13 जब तक मैं तेरे पास न आऊँ, तब तक इस बात का ध्यान रख कि तू परमेश्वर का वचन सार्वजनिक रूप से विश्वासियों की संगति में पढ़ते रहें, और उसको उन्हें समझाएँ और सिखाएँ भी।
\s5
\v 14 तुझे दिए गए वरदान को उपयोग में अवश्य ला, जो परमेश्वर ने तब दिया जब प्राचीनों ने तुझ पर हाथ रखे और परमेश्वर का सन्देश तुझको सुनाया।
\v 15 इन सब बातों का पूरी तरह से पालन कर और उसके अनुसार जीवन बिता। इस तरह से, सभी विश्वासी यह देखेंगे कि तू उनसे और अधिक उत्तम बनाता जा रहा है।
\p
\v 16 स्वयं को संयम में रख और सावधानी से वह सारे काम कर जो हम सिखाते हैं। इन बातों का पालन करते रह। यदि ऐसा करता रहेगा तो तू स्वयं को भी बचा पाएगा और उन लोगों को भी जो तुझे सुनते हैं।
\s5
\c 5
\p
\v 1 अपने से अधिक आयु के व्यक्ति से कठोरता से बात न कर। इसकी अपेक्षा, उसे प्रोत्साहित कर जैसे कि वह तेरे पिता हैं। जवानों के साथ भी ऐसा ही कर जैसे कि वे तेरे भाई हैं।
\v 2 वृद्ध महिलाओं को माताओं के रूप में प्रोत्साहित कर, और युवा महिलाओ को बहनों के समान। उनके प्रति ऐसा व्यवहार रख कि कोई ऊँगली न उठा सके।
\p
\s5
\v 3 उन विधवाओं का आदर कर जो सचमुच में विधवा हैं।
\v 4 लेकिन अगर किसी विधवा के बच्चे हों या पोते हों, तो उन्हें घर पर अपनी माँ का सम्मान करना चाहिए और उसे उन सब बातों के लिए खर्चा देना चाहिए जो उसने उनके लिए की हैं। यदि वे ऐसा करते हैं, तो वे परमेश्वर को प्रसन्न करेंगे।
\s5
\v 5 अब, एक सच्ची विधवा वह है जिसके परिवार में कोई नहीं है। इसलिए वह उसी पर निर्भर रहती है जो परमेश्वर उसे देते हैं, जब वह उनसे माँगती है और दिन रात प्रार्थना करती है।
\v 6 परन्तु एक विधवा जो स्वयं को सुख देने के लिए जीवन बिताती है, वह मर चुकी है, चाहे वह जीवित है।
\s5
\v 7 तुझे इन बातों की घोषणा करनी चाहिए जिससे यह विधवाएँ और उनके परिवार कुछ गलत न करें।
\v 8 लेकिन जो कोई अपने ही संबन्धियों की सहायता करने का यत्न नहीं करता, विशेष रूप से वह जो उसके घर में रहते हैं (अपना परिवार), वह व्यक्ति उस बात को अस्वीकार करता है जिस पर हम विश्वास करते हैं। सच तो यह है कि, वह एक अविश्वासी से भी अधिक बुरा है।
\p
\s5
\v 9 उस महिला को सूची में लिखना जिसकी आयु साठ वर्ष से अधिक हो। जिसका केवल एक ही पति हुआ हो, और जिसके प्रति वह निष्ठावान रही हो।
\v 10 लोगों को यह पता होना चाहिए कि वह भले काम करती है; मुमकिन है कि वह बच्चों की देखभाल करती हो; मुमकिन है कि अपरिचित व्यक्ति का भी स्वागत करती हो; मुमकिन है कि विश्वासियों या पीड़ित लोगों की सहायता करती है; या मुमकिन है कि वह अनेक प्रकार के अच्छे कामों के लिए जानी जाती हो।
\s5
\v 11 परन्तु युवा विधवा को विधवाओं की सूची में न डालना, क्योंकि वे फिर से विवाह करना चाहेंगी, जब उनका मन बदल जाता है और वे विवाह प्रेम को मसीह से पहले रखती हैं।
\v 12 जब वे ऐसा करती हैं, तब वे विधवा होने की अपनी शपथ को तोड़ने की दोषी ठहराई जाती हैं।
\v 13 इसके अतिरिक्त, वे घर-घर फिरकर कुछ नहीं करने की आदत में पड़ जाती हैं। वे मूर्खता और तुच्छ कर्मों में भी सहभागी हो जाती हैं और ऐसी बातें करती हैं जो उन्हें नहीं करनी चाहिए।
\s5
\v 14 इसलिए मेरा मानना यह है कि युवा विधवाओं को विवाह कर लेना चाहिए, कि उनके बच्चे हों, और वे अपने परिवारों को चलाएँ, जिससे कि हमारे शत्रु शैतान को उन पर कोई गलत काम करने का आरोप लगाने का अवसर न मिले।
\v 15 मैं यह बातें इसलिए लिखता हूँ कि कुछ युवा विधवाएँ पहले ही मसीह के मार्ग को छोड़कर शैतान के पीछे जा चुकी हैं।
\p
\v 16 यदि किसी विश्वासिनी के अपने संबन्धियों में कोई विधवा है, तो वे उसकी सहायता करें, जिससे कि वे विधवाएँ कलीसिया पर बोझ न बनें और वे उन दूसरी विधवाओं की सहायता करने में सक्षम हो पाएँगे।
\p
\s5
\v 17 जो प्राचीन विश्वासियों का अच्छी तरह से नेतृत्व करते हैं उन्हें दो गुना आदर दो, और खासकर उन प्राचीनों को जो परमेश्वर के वचन का प्रचार करते हैं और सिखाते हैं।
\v 18 क्योंकि पवित्र शास्त्र में कहा गया है, "तू उस बैल को वह अनाज खाने से मत रोकना, जिस पर वह चल रहा है" और "मजदूर को उसका वेतन पाने का हक है।"
\p
\s5
\v 19 किसी ऐसे व्यक्ति की न सुनो जो किसी प्राचीन पर गलत कार्य करने का आरोप लगाता है, जब तक कि दो या तीन व्यक्ति उसकी गवाही न दें।
\v 20 जो लोग पाप में बने रहते हैं, उन्हें वहाँ ठीक करो जहाँ सब तुम्हें देख सकते हैं, जिससे कि शेष लोग भी पाप करने से डरेंगे।
\p
\s5
\v 21 परमेश्वर, और मसीह यीशु, और चुने हुए स्वर्गदूत मुझे देखते हैं जब मैं निश्चित रूप से तुझे इन सब बातों को करने की आज्ञा देता हूँ। सुनिश्चित कर कि तू समय से पहले किसी का न्याय नहीं करेगा। सुनिश्चित कर कि जब तू विश्वासियों का नेतृत्व कर रहा हो तो किसी पर पक्षपात न करना।
\p
\v 22 जब तू चाहता हैं कि कोई व्यक्ति विश्वासियों की सेवा करने में आगे बढे, तो कोई भी निर्णय अधीर होकर न लेना ताकि तू उनका चुनाव अति शीघ्र न कर ले। और किसी के साथ पाप करने में सहभागी न होना। तुझे स्वयं को दोषरहित रखना चाहिए।
\s5
\v 23 अब हे तीमुथियुस, केवल पानी मत पीना, तुम्हारे पेट की कई बीमारियों के लिए थोड़ा दाखरस का सेवन करना।
\v 24 कुछ लोगों के पाप सबको साफ़ नज़र आते हैं, और कलीसिया को उनका न्याय करने के लिए अधिक समय नहीं लगता है। परन्तु कुछ पापों का कलीसिया को देर में समाचार मिलता है।
\v 25 उसी तरह, कुछ अच्छे कर्म हर किसी को स्पष्ट नज़र आते हैं, परन्तु कुछ अच्छे कर्म भविष्य में स्पष्ट नज़र आएँगे।
\s5
\c 6
\p
\v 1 उन विश्वासियों के लिए जो दास हैं, उन्हें हर तरह से अपने स्वामी का सम्मान करना चाहिए ताकि कोई भी परमेश्वर का अपमान न करे और उसका भी जो हम सिखाते हैं।
\p
\v 2 वे दास जिनके स्वामी स्वयं विश्वासी हैं, उन्हें उनके सम्मान में कमी नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे भाई हैं। उन्हें उनकी सेवा और भी अधिक उत्तम रीति से करनी चाहिए, क्योंकि जिन स्वामियों की वे सेवा करते हैं वे उनके भाई हैं जिससे उन्हें प्रेम करना चाहिए। विश्वासियों को इन बातों की शिक्षा दे और घोषणा कर।
\p
\s5
\v 3 यदि कोई भी गलत सिद्धांतों को सिखाता है जो हमारे प्रभु यीशु मसीह की विश्वसनीय और सच्ची शिक्षाओं से मेल नहीं खाते,
\v 4 तो वह व्यक्ति बहुत घमंडी है और कुछ भी समझता नहीं है। वे महत्वहीन मामलों और कुछ खास शब्दों के बारे में विवाद करना चाहता है, और जो लोग उसे सुनते हैं वह दूसरों से ईर्ष्या करते हैं। वे दूसरों के साथ झगड़ा करते हैं और आपस में भी लडते हैं। वे दूसरों के बारे में बुरी बातें कहते हैं और शक करते हैं कि अन्य लोग बुरे इरादे रखते हैं।
\v 5 उनकी सोच पूरी तरह से गलत हो गई है, क्योंकि उन्होंने सच्ची बातों को छोड़ दिया है। परिणामस्वरूप, वे यह सोचने की गलती करते हैं कि धर्म के काम करने से उन्हें बहुत पैसा मिलेगा।
\p
\s5
\v 6 इसलिए, वास्तव में हमें बहुत लाभ मिलता है, जब हमारा व्यवहार इस तरह का हो जो परमेश्वर को आदर दे और जब हमारे पास जो है उसके साथ हम संतुष्ट होते हैं,
\v 7 वास्तव में, जब हमारा जन्म हुआ था, तब हम संसार में कुछ भी नहीं लाए थे, और जब हम मरते हैं तब भी हम संसार से कुछ नहीं ले जा सकते।
\v 8 इसलिए यदि हमारे पास भोजन और कपड़े हैं, तो हमें इनसे संतुष्ट होना चाहिए।
\s5
\v 9 परन्तु कुछ लोगों में धनवान होने की तीव्र इच्छा होती है। परिणामस्वरूप, वे पैसा पाने के लिए गलत काम करते हैं, और यह उन्हें ऐसा फँसा देता है जैसे कि पिंजरे में जानवर पकड़ में आ जाता है। वे मूर्खता में बहुत चीजों को पाने की इच्छा रखते हैं और फिर इसी कारण उन्हें चोट लगती है। परमेश्वर उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर देंगे।
\v 10 जब लोग अधिक पैसों का लालच करते हैं तब वे सब प्रकार के बुरे काम करते हैं। अब क्योंकि कुछ लोगों ने पैसों के लिए बड़ी लालसा की तो उन्होंने उस सच्चाई पर विश्वास करना त्याग दिया है जिस पर हम सब विश्वास करते हैं और इस तरह खुद के लिए दुःख उत्पन्न कर लिए।
\p
\s5
\v 11 परन्तु तू, जो परमेश्वर की सेवा करता है, इस तरह के पैसों से पूरी तरह दूर रह। यह निर्णय ले कि तू जो करेगा वह सही करेगा, और तू परमेश्वर की महिमा करेगा। परमेश्वर पर भरोसा रख, और दूसरों से प्रेम कर। मुश्किल परिस्थितियों को सह ले। लोगों के साथ हमेशा कोमल व्यवहार रख।
\v 12 उस विश्वास के लिए एक अच्छी लड़ाई लड़ जो तुझको बचाता है। अनन्त जीवन के इस महान वरदान को पकड़े रह और उससे जो कुछ तू अनुभव करता है उसके माध्यम से उससे जुड़े रह, चाहे तू कहीं भी चले जाए। याद रख कि परमेश्वर ने तुझको सदा उनके साथ रहने के लिए चुना है। परमेश्वर के ये वरदान तेरे अन्दर हैं और तू ने इसको अच्छी तरह स्वीकार किया जब तू कई लोगों के सामने खड़ा हुआ था।
\p
\s5
\v 13 परमेश्वर, जो सब वस्तुओं को जीवन देते हैं, वह तेरे सब कामों को जानते हैं। मसीह यीशु भी वह सब कुछ जानते हैं जो तू करता है। उन्होंने दृढ़ता से सत्य की घोषणा की, जब पुन्तियुस पिलातुस के सामने उन पर मुकदमा चलाया जा रहा था।
\v 14 जैसे तू इन बातों को याद करता है, मैं तुझे आज्ञा देता हूँ कि जो कुछ मसीह यीशु ने हमें आज्ञा दी है उसे पकड़े रह। उन शिक्षाओं को इस तरह से पकड़े रह कि यीशु मसीह को किसी गलत बातों के लिए तेरी आलोचना न करनी पड़े जब तक वह फिर से नहीं आते।
\s5
\v 15 याद रख कि परमेश्वर उचित समय पर यीशु को फिर से आने देंगे। परमेश्वर अद्भुत है! वह एकमात्र शासक है! वह अन्य सभी शासन करने वाले लोगों पर शासन करते हैं!
\v 16 एक वही हैं जो कभी नहीं मरेंगे और वह ऐसी अगम्य ज्योति में रहते हैं जो इतनी उज्जवल है कि कोई भी वहाँ प्रवेश नहीं कर सकता! यह वही है जिनको किसी ने कभी नहीं देखा और जिनको कोई भी व्यक्ति नहीं देख सकता! मेरी यह इच्छा है कि सब लोग उनका आदर करें और वह सामर्थ के साथ सदा के लिए राज्य करें! आमीन!
\p
\s5
\v 17 जो विश्वासी इस संसार में धनवान है उनसे कह कि वे घमंडी न हों, और अपनी अधिक धन संपत्ति पर भरोसा न करें, क्योंकि वे निश्चित रूप से नहीं जानते कि वह उनके पास कितने समय रहेगी। इसकी अपेक्षा उन्हें परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए। परमेश्वर ही हैं जो भरपूरी से हमें सब कुछ देते हैं और वह हमारे पास है कि हम उसका आनंद उठा सकें।
\v 18 इसके अलावा उनसे कह कि वे अच्छे काम करें। यही सच्चा धन है। सच में उन्हें बहुत कुछ जो उनके पास है वह दूसरों के साथ बाँटना चाहिए।
\v 19 यदि वे ऐसा करते हैं, तो ऐसा होगा जैसे कि वे अपने लिए बहुत वस्तुएँ एकत्र कर रहे हैं जो परमेश्वर उन्हें देने वाले हैं। जब वे ऐसा करते हैं, तो उनके पास जो जीवन होगा वह एक खरा जीवन होगा।
\p
\s5
\v 20 हे तीमुथियुस, विश्वसनीय होकर सत्य के सन्देश का प्रचार कर जो यीशु ने तुझे दिया है। उन लोगों से दूर रह जो उन विषयों में बड़बड़ाना चाहते हैं, जो परमेश्वर के लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं। उन लोगों से दूर रह जो कहते हैं कि उनके पास सच्चा ज्ञान है, परन्तु वे वह बातें करते हैं जो हमारे द्वारा सिखाई गई सच्ची बातों के विरुद्ध हैं।
\v 21 कुछ लोग ऐसी बातें सिखाते हैं और इसलिए वे सत्य पर विश्वास करना त्याग देते हैं। परमेश्वर तुम सब पर दयावान हो।

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56-2TI.usfm Normal file
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\id 2TI Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h 2 TIMOTHY
\toc1 The Second Letter to Timothy
\toc2 Second Timothy
\toc3 2ti
\mt1 2 तीमुथियुस
\s5
\c 1
\p
\v 1 मैं, पौलुस, तीमुथियुस को लिख रहा हूँ। मसीह यीशु ने मुझे सब लोगों को यह बताने के लिए एक प्रेरित के रूप में भेजा है कि यदि वे सब उसके साथ एकजुट हो जाते हैं, तो परमेश्वर उन्हें अब और हमेशा के लिए जीवित रखने की प्रतिज्ञा करते हैं।
\v 2 हे तीमुथियुस, मैं तुझसे अपने पुत्र के समान प्रेम करता हूँ। ऐसा हो कि हमारे पिता परमेश्वर और हमारे प्रभ यीशु मसीह तेरे प्रति दया, और करुणा और शान्ति से कार्य करें।
\p
\s5
\v 3 मैं परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ और मैं उनकी सेवा करता हूँ क्योंकि सच में, मैं वही करना चाहता हूँ जो वह चाहते हैं, जैसे मेरे पूर्वजों ने किया था। हे तीमुथियुस, मैंने दिन और रात तेरे लिए प्रार्थना करना सदा स्मरण रखा है।
\v 4 मैं वास्तव में तुझको देखना चाहता हूँ क्योंकि मुझे स्मरण है कि तू मेरे लिए कैसे रोया था। अगर मैं तुमको फिर से देखता हूँ तो मैं बहुत आनंदित हो जाऊँगा।
\v 5 मुझे याद है कि तू सच में यीशु पर विश्वास करता है! पहले तेरी नानी लोइस, और तेरी माता यूनीके ने अपने जीवन के लिए यीशु मसीह पर भरोसा किया, और मुझे विश्वास है कि तू भी यीशु मसीह पर वैसे ही भरोसा रखता है जैसे वे रखती थीं!
\p
\s5
\v 6 क्योंकि तू यीशु पर भरोसा रखता है, मैं तुझको स्मरण दिलाता हूँ, कि तू फिर से उन वरदानों का उपयोग करना आरम्भ कर दे जो परमेश्वर ने तुझको तब दिए थे, जब मैंने तुझ पर अपना हाथ रखा था और तेरे लिए प्रार्थना की थी।
\v 7 जब परमेश्वर के आत्मा हमारे पास आए, तो उन्होंने हमें डरने नहीं दिया; इसके बजाय, उन्होंने हमें परमेश्वर की आज्ञा मानने, और दूसरों को प्रेम करने, और स्वयं को वश में रखने का सामर्थ दिया है।
\p
\s5
\v 8 इसलिए यह मत सोच कि यीशु मसीह के बारे में प्रचार करने से तुझको लज्जित होना पड़ेगा। और यह मत सोच कि मेरा मित्र होने के कारण भी तुझको लज्जित होना पड़ेगा, क्योंकि मैं यीशु पर विश्वास करता हूँ और इसी कारण बन्दीगृह में हूँ। इसकी अपेक्षा, जब तू दूसरों को सुसमाचार सुनाता है, तब दुःख उठाने के लिए तैयार रह। परमेश्वर तुझको सभी कठिनाइयों को सहन करने का सामर्थ्य प्रदान करेंगे।
\v 9 वह ऐसा करेंगे क्योंकि उन्होंने हमें बचाया है और हमें अपने लोग होने के लिए बुलाया है। परमेश्वर ने हमें हमारे अच्छे कामों के कारण नहीं बचाया है, उन्होंने हमें इसलिए बचाया है कि हमें यह वरदान देने की योजना बनाई हुई थी! पृथ्वी के आरम्भ से पहले ही परमेश्वर ने मसीह यीशु को चुना कि उनके द्वारा हमें यह वरदान मिले।
\v 10 अब सब लोग यह देख सकते हैं कि परमेश्वर उन्हें बचा सकते हैं, क्योंकि हमारे उद्धारकर्ता मसीह यीशु आए और उन्होंने मृत्यु को पराजित कर दिया और सबको वह सुसमाचार सुनाया, जो सत्य है की वही सब लोगों को सदा के लिए जीवित रखते है।
\v 11 और यह इसी कारण से था कि परमेश्वर ने मुझे एक प्रेरित, उपदेशक और शिक्षक होने के लिए भेजने का निर्णय किया।
\s5
\v 12 इन कार्यों में मैं पीड़ा उठाता हूँ, परन्तु मैं लज्जित नहीं हूँ, क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैंने यीशु मसीह पर विश्वास किया है, और मुझे यह विश्वास है कि वह अंतिम दिन तक मेरे विश्वास की रक्षा करने में समर्थ है।
\p
\v 13 जैसे कि तू यीशु मसीह पर विश्वास करता है और उनसे प्रेम करता है, तो उन सच्चे वचनों के अर्थ का पालन भी कर, जो तूने मुझसे सुने हैं।
\v 14 परमेश्वर तुझ पर भरोसा करते हैं कि तुम उस सुसमाचार का प्रचार करेगा जो उन्होंने तुझको दिया है। पवित्र आत्मा पर भरोसा करने के द्वारा जो हम में बसे हुए हैं उस सुसमाचार को सुरक्षित भी रख।
\p
\s5
\v 15 तू जानता है कि आसिया के लगभग सभी विश्वासियों ने मेरी मित्रता छोड़ दी है, जिनमें फूगिलुस और हिरमुगिनेस भी हैं।
\v 16 परन्तु मैं प्रार्थना करता हूँ कि प्रभु उनेसिफुरूस के परिवार के प्रति दयालु हों। उसने बहुत बार मेरी सहायता की है, और वह लज्जित नहीं था कि मैं बन्दीगृह में हूँ।
\v 17 इसके विपरीत, जब वह यहाँ रोम में आया था, तो वह तब तक मेरी खोज करता रहा जब तक कि मैं उसे मिल नहीं गया।
\v 18 ऐसा हो कि प्रभु अंतिम दिन में उनेसिफुरूस पर दया करे। तू सब जानता है कि उसने कैसे इफिसुस में मेरी सहायता की थी।
\s5
\c 2
\p
\v 1 तू मेरे लिए पुत्र के समान है। इसलिए मैं तुझ से यह आग्रह भी करता हूँ कि मसीह के तुम्हारे प्रति दयालु होने के कारण, परमेश्वर को तुझको सशक्त बनाने देना।
\v 2 विश्वसनीय विश्वासियों को आदेश दे और उन पर भरोसा कर कि वे दूसरों को भी वह बातें सिखाएँ जो उन्होंने मुझ से और कई अन्य लोगों से सुनी हैं जिन्होंने दूसरों को भी वैसे ही गवाही दी है।
\p
\s5
\v 3 जो हम प्रभु यीशु के लिए सहते हैं उसे मेरी तरह सह ले, जैसे एक अच्छा योद्धा दुःख सहता है।
\v 4 तू जानता है कि योद्धा, अपने कप्तान को प्रसन्न करने के लिए, आम नागरिक के मामलों में नहीं पड़ जाते हैं।
\v 5 इसी प्रकार, खेल में प्रतिस्पर्धा करने वाले खिलाड़ी भी खेलों में तब तक नहीं जीत सकते, जब तक कि वे नियमों का पालन नहीं करते हैं।
\s5
\v 6 और जो किसान कड़ा परिश्रम करता है उसे सबसे पहले फसल का हिस्सा मिलना चाहिए।
\v 7 जो मैंने अभी लिखा है उसके बारे सोच, क्योंकि यदि तू ऐसा करता है तो प्रभु तुझको वह सब कुछ समझने में सक्षम करेंगे जिसे समझने की तुझे आवश्यकता है।
\s5
\v 8 जब तू कष्ट उठाता है, तो मसीह यीशु को स्मरण कर जो राजा दाउद के वंश के थे और जिनको परमेश्वर ने मरे हुओं में से जीवित किया। यही वह सुसमाचार है जिसका मैं प्रचार करता हूँ।
\v 9 इस सुसमाचार के लिए ही मैं दुःख उठाता हूँ और एक अपराधी की तरह बन्दीगृह में हूँ। परन्तु परमेश्वर का वचन बन्दीगृह में नहीं है।
\v 10 इसलिए मैं अपनी इच्छा से उन सब के लिए जिन्हें परमेश्वर ने चुना है, सारे दुःख उठाता हूँ, और मैं ऐसा इसलिए करता हूँ कि मसीह यीशु उन्हें भी बचाएँगे, और वे भी हमेशा के लिए उनके साथ उस महिमामय स्थान में हों जहाँ वह हैं।
\s5
\v 11 तुम उन शब्दों पर निर्भर कर सकते हो जिन्हें हम कभी-कभी कहते हैं:
\q "यदि हम यीशु के साथ मर चुके हैं, तो हम उनके साथ जीएँगे भी।
\v 12 यदि हम सहते रहें, तो हम उनके साथ राज्य भी करेंगे।
\q परन्तु यदि हम उनका इन्कार करेंगे, तो वह भी हमारा इन्कार करेंगे।
\v 13 यदि हम यीशु के विश्वासघाती हैं, तो वह विश्वासयोग्य ही बने रहते हैं; क्योंकि वह स्वयं अपना इन्कार नहीं कर सकते।
\p
\s5
\v 14 जिन लोगों को तुने मनुष्यों को परमेश्वर का सत्य सिखाने के लिए नियुक्त किया है; उन्हें इन बातों के बारे में याद दिलाते रह जो मैंने तुझे सिखाई हैं। परमेश्वर के समक्ष उन्हें चेतावनी देना कि वे मूर्खता की बातों पर लड़ाई न करें, क्योंकि ऐसा करने से किसी बात में सहायता नहीं होती और यह बातें सुनने वालों को बिगाड़ सकती हैं।
\p
\v 15 सर्वोत्तम प्रयत्न कर कि परमेश्वर तुझको एक ऐसे सेवक के रूप में स्वीकृति दे जिसे लज्जित होने की कोई आवश्यकता नहीं है, जो परमेश्वर के वचन को सही सही सिखाता है, कि हर कोई इस तथ्य पर निर्भर कर सकता है कि वह सत्य बताता है।
\p
\s5
\v 16 उन लोगों से दूर रह जो ऐसी बातें करते हैं जिससे परमेश्वर का अपमान होता है, क्योंकि इस प्रकार की बातचीत परमेश्वर का अधिक से अधिक अपमान करती है।
\v 17 इस तरह के शब्द एक संक्रामक रोग की तरह फैलेंगे। हुमिनयुस और फिलेतुस ऐसे दो उदाहरण हैं जो इस तरह से बात करते हैं।
\v 18 इन पुरुषों ने विश्वास करना बंद कर दिया है। वे कहते हैं कि मरे हुओं का पुनरूत्थान पहले ही हो चुका है। इस प्रकार से वे कुछ मसीही लोगों को विश्वास दिलाते हैं कि वे मसीह पर विश्वास करना छोड़ दें।
\s5
\v 19 फिर भी, परमेश्वर की सच्चाई अस्तित्व में रहेगी। यह एक इमारत की मजबूत नींव के समान है, जिस पर किसी ने यह शब्द लिखे हैं: "प्रभु उनको जानते हैं जो उनके हैं" और "जो कोई कहता है कि वह प्रभु का है, उसे दुष्ट कर्मों को करना बंद कर देना चाहिए।"
\p
\v 20 एक अमीर व्यक्ति के घर में केवल सोने और चाँदी से बने बर्तन ही नहीं होते हैं, बल्कि लकड़ी और मिट्टी के बने बर्तन भी होते हैं। विशेष अवसरों पर सोने और चाँदी के बर्तनों का उपयोग किया जाता है। लेकिन सामान्य समय में लकड़ी और मिट्टी के बर्तनों का उपयोग होता है।
\v 21 इसलिए, जो लोग स्वयं अपने जीवन की बुराई से छुटकारा पा लेते हैं, वे प्रभु के लिए उचित रूप से काम करने में सक्षम होंगे। वे किसी भी अच्छे काम को करने के लिए तैयार होंगे। वे स्वामी के लिए विशेष काम करने के लिए वास्तव में; हर अच्छे काम के लिए बहुत उपयोगी होंगे।
\s5
\v 22 जिन पापमय कामों को जवान व्यक्ति आम तौर पर करना चाहते हैं, उनको करने की इच्छा मत कर। इसकी अपेक्षा, सही काम करने का यत्न कर। परमेश्वर पर भरोसा रखने और उससे प्रेम करने का प्रयास कर। शान्ति में रहने का प्रयास कर। जो लोग गम्भीरता से परमेश्वर की आराधना करते हैं, उनके साथ मिलकर रह।
\p
\v 23 ऐसे किसी व्यक्ति से बात मत कर जो मूर्खता से उन मामलों के बारे में विवाद करना चाहे जो महत्वपूर्ण नहीं हैं। उनके साथ बात मत कर, क्योंकि तू जानता है कि जब ऐसे लोग मूर्ख विषयों की बात करते हैं तो लड़ना शुरू कर देते हैं।
\s5
\v 24 परन्तु जो प्रभु की सेवा करते हैं, उन्हें झगड़ा नहीं करना चाहिए। इसकी अपेक्षा, वे सब लोगों के प्रति दयालु हों, उन्हें परमेश्वर के सत्य की शिक्षा देने में सक्षम होना चाहिए, और लोगों के साथ धीरज रखना चाहिए।
\v 25 अर्थात्, उन्हें उन लोगों को नम्रता से समझाना चाहिए जो उनसे विवाद करते हैं। हो सकता है कि परमेश्वर उन्हें पश्चाताप करने और सच्चाई को जानने का अवसर दें।
\v 26 इस प्रकार वे उचित रूप से सोच सकते हैं और उन लोगों के समान हो सकते हैं जो शैतान द्वारा बिछाए जाल से बच गए हैं। यह शैतान ही है, जिसने उन्हें धोखा दिया है कि वह उनसे वह सब करवाए जो वह स्वयं करवाना चाहता है।
\s5
\c 3
\p
\v 1 मैं चाहता हूँ कि तुम यह जान लो: अंतिम दिनों में परमेश्वर के आने से पहले, समय बहुत संकट का होगा।
\v 2 लोग सबसे अधिक अपने आप से प्रेम करेंगे। वे पैसे से प्रेम करेंगे। वे स्वयं की बढ़ाई करेंगे। वे घमंडी होंगे। वे दूसरों का अपमान करेंगे। वे अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन नहीं करेंगे। वे किसी भी वस्तु के लिए किसी का धन्यवाद नहीं करेंगे। वे परमेश्वर का आदर नहीं करेंगे।
\v 3 वे अपने परिवारों से भी प्रेम नहीं करेंगे। वे किसी से भी शान्ति बनाकर नहीं रखेंगे। वे दूसरों की निंदा करेंगे। वे स्वयं को वश में नहीं रखेंगे। वे दूसरों के साथ क्रूर होंगे। वे अच्छाई से प्रेम नहीं रखेंगे।
\v 4 वे उन लोगों को धोखा देंगे जिनकी उन्हें रक्षा करनी चाहिए। वे बिना सोचे समझे खतरनाक कामों को करेंगे। वे घमंडी होंगे और परमेश्वर से प्रेम करने की अपेक्षा वे करेंगे जो उन्हें अच्छा लगता है।
\s5
\v 5 वे ऐसा दर्शाएँगे कि वे परमेश्वर का सम्मान करते हैं, परन्तु वे उस शक्ति को स्वीकार करने से इन्कार करेंगे जो परमेश्वर वास्तव में उन्हें देना चाहते हैं। इस तरह के लोगों से दूर रह।
\v 6 ये पुरुष मूर्ख महिलाओं को अपने घरों में आने के लिए राज़ी करते हैं, और फिर वे उन्हें धोखा देते हैं ताकि वे उनके विचारों को वश में कर सकें। ये वे स्त्रियाँ हैं जो हर समय पाप करती हैं, और इसलिए वे इन बुरे लोगों का पीछा करके हर प्रकार के बुरे कामों को करने का आनन्द लेती हैं।
\v 7 यद्दपि ये स्त्रियाँ सदा नई बातें सीखना चाहती हैं, परन्तु वे कभी भी वास्तविक सत्य को सीखने में सफल नहीं होती।
\s5
\v 8 जिस तरह से यन्नेस और यम्ब्रेस ने मूसा को रोकने की कोशिश की, उसी प्रकार ये पुरुष लोगों को सच्चाई का पालन करने से रोकने का प्रयास करते हैं। इन लोगों की मानसिकता भ्रष्ट हो चुकी है। वे विश्वास के मामलों में पाखंडी हैं।
\v 9 परन्तु वे जो कुछ करते हैं, उसमें वे अधिक सफल नहीं होंगे, क्योंकि अधिकांश लोग यह स्पष्ट तरीके से देख पाएँगे कि ये लोग कुछ भी नहीं समझते। यह वैसा ही है जैसे कि इस्राएल के लोगों ने देखा कि यन्नेस और यम्ब्रेस कितने मूर्ख थे।
\p
\s5
\v 10 हे तीमुथियुस, मैंने तुझको जो कुछ भी सिखाया है, उसका तुने पालन किया है। तुने मेरे जीवन जीने का तरीका देखा है। तुने देखा है कि मैं कैसे परमेश्वर की सेवा करना चाहता हूँ। तुने देखा है कि मैं उस पर कैसे भरोसा करता हूँ। तुने देखा है कि जब मैं पीड़ा में भी हूँ तब भी मुझे शान्ति है। तुने देखा है कि मैं परमेश्वर और विश्वासियों से कैसे प्रेम करता हूँ। तुने देखा है कि मैं अत्यधिक कठिन परिस्थितियों में भी कैसे परमेश्वर की सेवा करता रहता हूँ।
\v 11 तुने देखा है कि लोगों ने मुझे कैसे सताया है। तुने उस हर एक पीड़ा को देखा है जिसे मैं ने अन्ताकिया, इकुनियुम और लुस्त्रा में सहा था। मैंने इन स्थानों में बहुत दुःख उठाए हैं परन्तु प्रभु ने मुझे उन सब दुःखों से निकाला है।
\v 12 वास्तव में, वे उन सब लोगों को दुःख देंगे जो ऐसा जीवन जीना चाहते हैं जिससे वे मसीह यीशु का सम्मान करें।
\v 13 दुष्ट और पाखंडी लोग और भी बुरे बनते जाएँगे। वे लोगों को सत्य से दूर करेंगे और वैसे ही स्वयं को भी दूसरों के हाथों में सौंप देंगे।
\s5
\v 14 परन्तु तू उन कामों को करते रह जो तुने सीखे हैं, क्योंकि जिन बातों पर तुने विश्वास किया है वे सही हैं। मुझे स्मरण रखना क्योंकि मैंने ये बातें तुझको सिखाई हैं।
\v 15 यह भी याद रख कि जब तू एक छोटा बच्चा था, शास्त्रों में परमेश्वर क्या कहते हैं यह तुने सीखा है। यह बातें तुझको सिखा सकती हैं कि मसीह यीशु पर भरोसा रखने से हम कैसे बचाए जा सकते हैं।
\s5
\v 16 संपूर्ण शास्त्र परमेश्वर की आत्मा से आया है, इसलिए हमें उसे पढ़ना चाहिए ताकि हम परमेश्वर के सत्य को सिखा सकें। हमें उसे इसलिए भी पढ़ना चाहिए कि हम लोगों को सत्य पर विश्वास करने के लिए समझा सकें। और इसलिए भी कि जब लोग पाप करें तो उन्हें सुधार सकें। और लोगों को यह भी सिखा सकें कि जो उचित है उसे कैसे करें।
\v 17 हमें ये बातों करनी चाहिए ताकि परमेश्वर हर विश्वासी को प्रशिक्षित कर सकें और उसे हर वह चीजें दें जिससे कि वह हर प्रकार का अच्छा काम कर पाए।
\s5
\c 4
\p
\v 1 जब यीशु मसीह शीघ्र ही राज्य करने आएँगे, वह उन सबका न्याय करेंगे, जो जीवित हैं वरन उनका भी जो मर चुके हैं। और अब वह और परमेश्वर मुझे देख रहे हैं जब मैं तुमको आज्ञा दे रहा हूँ
\v 2 कि मसीह के सन्देश का प्रचार कर। इस काम को करने के लिए तैयार रह, जब वह आसान हो या आसान न हो। सही क्या है उन्हें विश्वास दिला जब उन्होंने गलत किया हो। उन्हें पाप न करने की चेतावनी दे। मसीह का अनुसरण करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करे। अपनी शिक्षाओं में यह सब सिखा और अधिक उत्तम करने के लिए उनकी प्रतीक्षा करने के लिए सदैव तैयार रह।
\s5
\v 3 मैं तुझको यह सब बताता हूँ, क्योंकि एक समय आएगा जब हमारे ही बीच के लोग परमेश्वर की सच्ची शिक्षाओं का पालन नहीं करेंगे। इसकी अपेक्षा, उन्हें ऐसे पुरुष मिलेंगे जो सिखाएँगे कि जो कुछ वे करने की इच्छा रखते हैं वह करना अच्छा है। इस तरह, वे हमेशा कुछ नया करने और अलग-अलग सीखने की खोज में रहेंगे।
\v 4 वे सत्य को सुनना त्याग देंगे, और वे मूर्खता भरी कथाओं पर ध्यान देंगे।
\v 5 परन्तु तू, हे तीमुथियुस स्वयं पर नियंत्रण रखना, चाहे जो कुछ भी हो, कठिन बातों को सहने के लिए तैयार रह। सुसमाचार प्रचार करने का काम कर। प्रभु की सेवा करने के लिए तुझको जो काम करना है उसे पूरा कर।
\p
\s5
\v 6 मैं तुझको यह सब बातें सिखाता हूँ, क्योंकि शीघ्र ही मेरी मृत्यु होगी और मैं इस संसार को छोड़ दूँगा। मैं दाखमधु के प्याले जैसा हो जाऊँगा जिसे वे वेदी पर डालेंगे और परमेश्वर के लिए बलिदान करेंगे।
\v 7 मैं एक खिलाड़ी के समान हूँ जिसने प्रतियोगिता में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। मैं एक धावक की तरह हूँ जिसने अपनी दौड़ पूरी की है। मैंने परमेश्वर की आज्ञा मानने के लिए सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया है।
\v 8 अब एक पुरस्कार मेरे लिए प्रतीक्षा कर रहा है क्योंकि मैंने अपना जीवन परमेश्वर के लिए उचित रूप से जिया है। प्रभु मेरा उचित न्याय करेंगे। जब वह वापस आएँगे तो वह मुझे यह पुरस्कार देंगे। और उन सबको भी देंगे जो उत्सुकता से उनके फिर से आने की प्रतीक्षा करते हैं।
\s5
\v 9 हे तीमुथियुस, शीघ्र ही मेरे पास आने की कोशिश कर।
\v 10 देमास ने मुझे पीछे छोड़ दिया है और थिस्सलुनीके को चला गया है, क्योंकि उसे संसार के जीवन से अधिक प्रेम है। क्रेसकेंस गलतिया को और तीतुस दलमतिया को चला गया है।
\s5
\v 11 केवल लूका मेरे साथ है: मरकुस को अपने साथ लेकर आ। क्योंकि वह मेरी बहुत सहायता कर सकता है।
\v 12 तुखिकुस को मैं ने इफिसुस भेजा है।
\v 13 जब तू आएगा, तब जो बागा मैं त्रोआस में करपुस के यहाँ छोड़ आया हूँ उसे लेकर आना। और उन पुस्तकों को भी, विशेष रूप से जो पशुओं की खाल से बनाई गई हैं।
\p
\s5
\v 14 सिकन्दर, धातु के कारीगर ने मेरे प्रति बहुत बुरा व्यवहार किया है। परमेश्वर उसे उसके काम का दण्ड देंगे।
\v 15 तुझको भी उससे सावधान रहना चाहिए क्योंकि उसने हमारे प्रचार को रोकने के लिए हर संभव प्रयास किया था।
\p
\v 16 पहली बार जब मैं न्यायालय में उपस्थित हुआ और अपने काम की व्याख्या की, तब मुझे प्रोत्साहित करने के लिए विश्वासियों में से कोई भी मेरे पक्ष में खड़ा नहीं था। वे सब दूर रहे। ऐसा हो कि परमेश्वर उन्हें इस बात का उत्तरदायी न ठहराएँ।
\s5
\v 17 परन्तु प्रभु मेरे साथ खड़े थे और उन्होंने मेरी सहायता की। उन्होंने मुझे सामर्थ दी कि मैं उनके वचन को पूर्णता से बोल पाऊँ और अन्यजातियों ने उसे सुना। इस तरह परमेश्वर ने मुझे मरने से बचा लिया।
\v 18 प्रभु मुझे उनकी हर बुरी बात से बचाएँगे, जो वे करते हैं। वह मुझे स्वर्ग में सुरक्षित ले जाएँगे जहाँ वह राज्य करते हैं। ऐसा हो कि लोग हमेशा उनकी स्तुति करते रहें। आमीन।
\p
\s5
\v 19 प्रिस्किल्ला और अक्विला को, और उनेसिफुरूस के घराने को नमस्कार!
\v 20 इरास्तुस कुरिन्थुस में रह गया, और त्रुफिमुस को मैं ने मीलेतुस में छोड़ा क्योंकि वह बीमार था।
\v 21 सर्दियों से पहले चले आने का प्रयत्न कर: यूबूलुस, और पूदेंस, और लीनुस और क्लौदिया, और सब भाइयों का तुमको नमस्कार!
\v 22 प्रभु तेरी आत्मा के साथ रहे। ऐसा हो कि वह तुम सब पर दयावान हो।

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\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
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\c 1
\p
\v 1 तीतुस, परमेश्वर के सेवक और मसीह यीशु के प्रेरित पौलुस की ओर से। मैंने परमेश्वर के जनों की सहायता की है कि वे उसमें अधिकाधिक विश्वास करें। परमेश्वर ने हम सबको चुना कि उसके लोग हों और मैं उनकी सहायता के लिए परिश्रम करता हूं कि वे परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए कैसे जीवन निर्वाह करें।
\v 2 उसके लोग सीख सकते हैं कि ऐसा जीवन कैसे जीएं क्योंकि उन्हें विश्वास है कि परमेश्वर उन्हें अनन्त जीवन देगा। परमेश्वर झूठ नहीं बोलता है। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से पूर्व उसने प्रतिज्ञा की थी कि वह हमें अनन्त जीवन देगा।
\v 3 तब सही समय आने पर उसने अपना सन्देश सबके लिए सुस्पष्ट कर दिया कि समझ पाएं क्योंकि उसने यह सन्देश सुनाने के लिए मुझ पर भरोसा रखा है। मैं परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार शुभ सन्देश सुनाता हूं, जो हमे बचाता है।
\v 1 तीतुस, मैं यह पत्र तुझे लिख रहा हूँ। मैं परमेश्वर का सेवक हूँ और यीशु मसीह का प्रेरित हूँ। परमेश्वर ने मुझे उन लोगों को शिक्षा देने के लिए भेजा है, जिन को उन्होंने अपने लिए चुना है जिससे कि वे परमेश्वर पर अधिक विश्वास करें। मैं उनके लोगों को यह जानने में सहायता करता हूँ कि सच क्या है, जिससे कि वे परमेश्वर को प्रसन्न करनेवाला जीवन जी सकें।
\v 2 परमेश्वर के लोग सीख सकते हैं कि ऐसा कैसे जीना है क्योंकि उन्हें दृढ़ निश्चय है कि परमेश्वर उन्हें अनन्त जीवन देंगे। परमेश्वर झूठ नहीं बोलते हैं। संसार के आरंभ से पहले, उन्होंने हमसे प्रतिज्ञा की है कि वह हमें अनन्त जीवन देंगे।
\v 3 फिर, सही समय पर, उन्होंने इस संदेश के द्वारा अपनी योजना को प्रकट किया और मुझे प्रचार करने के लिए सौंपा है। मैं यह इसलिए करता हूँ कि हमें बचानेवाले परमेश्वर की आज्ञा का पालन कर सकूँ।
\p
\s5
\v 4 तीतुस, तू मेरा पुत्र है क्योंकि हम दोनों मसीह यीशु में विश्वास करते हैं। पिता परमेश्वर और मसीह यीशु हमारा उद्धारक तुम पर दया करे और तुम्हें शान्ति प्रदान करे
\v 5 मैं तुझे क्रेते द्वीप में छोड़ कर आया था कि तू अपूर्ण कार्य को पूर्ण करे और प्रत्येक नगर में विश्वासियों की मण्डली में से प्राचीनों की नियुक्ति करे, जैसा मैंने तुझे करने को कहा था।
\v 4 मैं यह पत्र तीतुस तुझे लिख रहा हूँ; तुम मेरे लिए अपने पुत्र के समान बन गए हो, क्योंकि हम दोनों यीशु मसीह पर विश्वास करते हैं। परमेश्वर पिता और मसीह यीशु, जो हमें बचाते हैं, तुम पर दया करें और शान्ति प्रदान करते रहें
\v 5 मैंने तुमको इस कारण से क्रेते द्वीप पर छोड़ा था: ताकि जो काम अभी भी अधूरा है उसे तुम पूरा करो और प्रत्येक शहर के विश्वासियों के समूह के लिए प्राचीनों को भी नियुक्त करो, जैसा मैंने तुमको करने के लिए कहा था।
\s5
\v 6 प्रत्येक प्राचीन के लिए अनिवार्य है, कि वह किसी की आलोचना का पात्र न हो। उसकी एक ही पत्नी होनी चाहिए। उसके बच्चों का ईश्वर भक्त होना आवश्यक है। मनुष्य की राय उनके बारे में यह न हो कि वे दुष्ट हैं या आज्ञा न मानने वाले हैं।
\v 7 परमेश्वर की प्रजा के अगुवे, परमेश्वर के घर के प्रबंधन के समान होते है। अतः यह अनिवार्य है की मनुष्यों में वह कीर्तिवान हो, वह घमण्डी न हो, वह जल्दी क्रोधित नहीं होना चाहिए और किसी भी कारण से अधिक समय क्रोधित न रहे। वह पियक्कड़ न हो, झगड़ालू और बहस करने वाला न हो, लालची मनुष्य न हो।
\v 6 अब हर प्राचीन ऐसा हो जिसकी कोई भी आलोचना न कर सके। उसकी केवल एक पत्नी हो, उसके बच्चे परमेश्वर पर भरोसा रखते हों और उसके बच्चे नियंत्रण से बाहर या आज्ञा न मानने वाले न हों।
\v 7 हर व्यक्ति जो परमेश्वर के लोगों का नेतृत्व करता है वह ऐसे व्यक्ति की तरह होता है जो परमेश्वर के भवन का प्रबंधन करता है। इसलिए यह आवश्यक है की उस व्यक्ति की अच्छी प्रतिष्ठा हो। उसे घमंडी नहीं होना चाहिए और शीघ्र क्रोध करने वाला नहीं होना चाहिए। उसे पियक्कड़ नहीं होना चाहिए, न कोई ऐसा जो लड़ना और विवाद करना पसंद करता हो, और न ही लालची हो।
\p
\s5
\v 8 इसकी अपेक्षा, वह परदेशी विश्वासियों का सत्कार करने वाला हो तथा उन चीजों से प्रेम करे जो अच्छे हैं, उसमें आत्म-संयम हो और इमानदार हो, सत्यवादी हो और सबसे निष्पक्षता से व्यवहार करें। हर एक काम को करने वरन् सोच में भी वह सदैव परमेश्वर का ध्यान रखे और पाप से दूर रहे।
\v 9 वह सदैव हमारी शिक्षा की सच्ची बातों पर स्थिर रहे और उनके अनुकूल ही जीवन निर्वाह करे। उसका आचरण ऐसा हो जिससे की, मनुष्य उसे देख स्वयं भी वैसा ही जीवन जीएं और इसलिए भी कि जिन मनुष्यों का जीवन ऐसा न हो उनका सुधार हो सकें।
\v 8 इसकी अपेक्षा, वह अजनबियों का स्वागत करने वाला और उन बातों से प्रेम करने वाला हो जो भली हैं। उसे हमेशा समझदारी से काम करना चाहिए और अन्य लोगों के साथ उचित और सत्यनिष्ठ व्यवहार करना चाहिए। उसे सदा इस प्रकार का काम करना चाहिए जो परमेश्वर को समर्पित व्यक्ति के लिए उच्चित है और उसे हमेशा अपनी भावनाओं को नियंत्रित रखना चाहिए।
\v 9 उसे हमेशा उन सच्ची बातों पर विश्वास करना चाहिए जो हमने उसे सिखाई हैं और उसे उनके अनुसार जीवन जीना चाहिए। उसे ऐसा ही करना चाहिए जिससे कि लोगों को ऐसा जीवन जीने के लिए प्रेरित कर सके और यदि लोग इस तरह से जीना नहीं चाहते, तो उन लोगों को सुधार सके।
\p
\s5
\v 10 मैं तुझे ये निर्देश देता हूं क्योंकि अनेक विश्वासी हैं जो स्वाधीन जीवन जीना चाहते हैं, विशेष करके वे लोग जो मसीह के विश्वासियों को खतना करवाने पर विवश करते हैं। उनकी बातें अर्थहीन हैं। वे मनुष्यों को मूर्ख बनाकर गलत बातों पर विश्वास करने के लिए विवश करते हैं।
\v 11 तू और तेरे द्वारा नियुक्त किए गए अगुवे ऐसे लोगों द्वारा विश्वासियों को शिक्षा देने से रोकें, उन्हें ऐसी शिक्षा देने का अधिकार नहीं है। वे ऐसी शिक्षा देते हैं, जिससे कि विश्वासी उन्हें पैसा दें। यह बहुत ही लज्जाजनक बात है। वे संपूर्ण परिवार को झूठ पर विश्वास करने का कारण बनते है।
\v 10 मैं इसलिए ऐसा कहता हूँ कि बहुत से ऐसे लोग हैं, जो उन पर अधिकार रखने वालों की आज्ञा का पालन करने से इनकार करते हैं, उनकी बातों का कोई मूल्य नहीं होता। वे लोगों को गलत बातों पर विश्वास करने के लिए मनाते हैं। इस तरह के लोग अधिकतर उनके समान हैं, जो मसीह के सभी अनुयायियों को खतना करने के लिए कहते हैं।
\v 11 तू और जिन अगुओं को तू नियुक्त करेगा, ऐसे लोगों को विश्वासियों को शिक्षा देने से रोक। वे उन बातों को सिखा रहे हैं, जो उन्हें सिखाना नहीं चाहिए, जिसके कारण पूरा परिवार गलत बातों पर विश्वास कर रहा है। वे ऐसा केवल इसलिए करते हैं कि लोग उन्हें पैसा दें। यह बड़ी लज्जा की बात है।
\p
\s5
\v 12 क्रेते का एक व्यक्ति जिसे वहां के लोग भविष्यद्वक्ता मानते थे, उसने कहा था, “क्रेतेवासी सदैव आपस में झूठ बोलते हैं और वे हिंसक वन पशुओं के जैसे हैं तथा वे आलसी हैं और बहुत खाते हैं”।
\v 13 उसने जो कहा वह सच ही है, अतः उन्हें सुधारने में कठोरता रख कि वे परमेश्वर की सच्ची शिक्षाओं में विश्वास करें और वही सिखाएं।
\v 12 क्रेते का एक व्यक्ति, जिसे उसके लोग भविष्यद्वक्ता मानते थे, उसने कहा, "क्रेती लोग हमेशा एक दूसरे से झूठ बोलते हैं। वे खतरनाक जंगली जानवरों की तरह हैं। वे आलसी हैं और हमेशा बहुत अधिक खाना खाते हैं।"
\v 13 उसने जो कहा वह सच है, इसलिए उन्हें कठोरता से सुधार, जिससे वे परमेश्वर के बारे में सही बातों पर विश्वास करें और सिखाएँ।
\p
\s5
\v 14 वे यहूदियों की मूर्खतापूर्ण कहानियों तथा आज्ञाओं पर समय नष्ट न करें, ये मानवरचित है, परमेश्वर से नहीं है। ये लोग तो सत्य से विमुख हो गए हैं।
\v 14 उनको यहूदियों के द्वारा रचित कहानियों और उन आज्ञाओं के अनुसार जीवन जीना त्याग देना चाहिए जो मनुष्यों की ओर से है, परमेश्वर की ओर से नहीं, ऐसे लोगों ने सच्ची बातों का पालन करना छोड़ दिया है।
\p
\s5
\v 15 जिस मनुष्य के विचार और मन की इच्छा पाप से भरे हुए न हों, तो उसके लिए सब कुछ शुद्ध है। परन्तु यदि कोई दुष्ट है और मसीह यीशु में विश्वास नहीं करता, तो सब कुछ उसे अशुद्ध बनाता है। उनके विचार मलिन हैं और वे बुरे तरीके से कार्य करने का निर्णय लेते हैं
\v 16 यद्यपि वे परमेश्वर को जानने का दावा करते हैं, वे जो करते हैं उससे तो यही प्रकट होता है, कि वे परमेश्वर को नहीं जानते। कुछ मनुष्यों के लिए वे घृणित हैं। वे परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानते और उसके लिए कोई भी अच्छा काम नहीं कर सकते।
\v 15 यदि कुछ लोगों में पाप के विचार या इच्छाएँ नहीं हैं, तो उन लोगों के लिए सब कुछ अच्छा है। लेकिन यदि लोग दुष्ट हैं और मसीह यीशु में विश्वास नहीं करते हैं, तो जो कुछ वे करते हैं वह उन्हें अशुद्ध बनाता है। ऐसे लोगों के सोचने का तरीका नष्ट हो गया है। जब वे बुराई करते हैं तब उन्हें गलती का बोध नहीं होता
\v 16 भले ही वे दावा करते हैं की वे परमेश्वर को जानते हैं, परन्तु जो कार्य वे करते हैं, उससे यह स्पष्ट होता है कि वे परमेश्वर को नहीं जानते। वे घृणित हैं। वे परमेश्वर का आज्ञापालन नहीं करते हैं और उनके लिए कुछ भी अच्छा काम नहीं कर सकते हैं
\s5
\c 2
\p
\v 1 परन्तु तू, तीतुस, ऐसी शिक्षा दे जिससे मनुष्यों को परमेश्वर के सत्य में विश्वास करने के लिए सहायता मिले।
\v 2 वृद्ध पुरूष सदैव संयमी बने रहे और उनका आचरण ऐसा हो, कि मनुष्य उनका सम्मान करें और उनकी बातें बुद्धि की हों। वे भी परमेश्वर के सत्य में विश्वास करें, दूसरों से सच्चा प्रेम रखें और ऐसे काम लगातार करते रहें।
\v 1 लेकिन तीतुस तुझे लोगों को यह सिखाना होगा कि परमेश्वर की सच्चाई पर विश्वास करनेवाले लोगों का व्यवहार कैसा होना चाहिए।
\v 2 वृद्ध पुरुषों को बता कि उन्हें हर समय स्वयं पर नियंत्रण रखना चाहिए और वे ऐसा जीवन जीए जिसका दूसरे लोग सम्मान करें और उनको समझदारी से काम करना चाहिए। उन्हें बता कि उन्हें परमेश्वर के बारे में सच्ची बातों पर दृढ़ता से विश्वास करना चाहिए, दूसरों से सच्चा प्रेम करना चाहिए और वे इन सब बातों को तब भी करें जब ऐसा करना कठिन हो।
\p
\s5
\v 3 वृद्ध पुरूषों के समान वृद्ध स्त्रियां भी ऐसा जीवन आचरण रखें, कि सब देखनेवाले जान लें कि वे परमेश्वर का सम्मान करती हैं। वे मनुष्यों के बारे में बुरी-बुरी बातें न कहें, न ही वे मदिरापान अधिक करें। वे सदाचार की शिक्षा भी दें।
\v 4 इस प्रकार वे युवा स्त्रियों को बुद्धिमानी से सोचने की और अपने-अपने पति एवं सन्तान से प्रेम करने की शिक्षा दें।
\v 5 वृद्ध स्त्रियां युवा स्त्रियों को ऊंचे विचार रखने की शिक्षा दें, किसी भी पुरूष के साथ अनुचित कार्य न करे, घर का काम भलि-भांति करें, पति की आज्ञा मानें। वे ऐसा आचरण रखें की किसी को भी परमेश्वर के वचन की निन्दा करने का अवसर न मिले।
\v 3 वृद्ध स्त्रियों को बता कि पुरुषों के समान, वे भी जीयें, जिससे सब जानें कि वे परमेश्वर का बहुत सम्मान करती हैं। उन्हें बता कि उन्हें अन्य लोगों के बारे में ओछी या झूठी बातें नहीं कहनी चाहिए और वे दाखमधु पीने की आदी न हों। इसकी अपेक्षा, उन्हें दूसरों को अच्छी बातें सिखानी चाहिए।
\v 4 इस प्रकार, वे युवा स्त्रियों को अपने पति और बच्चों से प्रेम करना सिखा पाएँगी।
\v 5 वृद्ध स्त्रियों को उन युवा स्त्रियों को यह भी सिखाना चाहिए कि अपनी बातों और कामों को कैसे नियंत्रित करना चाहिए और किसी भी पुरुष के प्रति बुरा व्यवहार न करें, घर पर अच्छा काम करें और अपने पति की आज्ञा अनुसार करें। उन्हें इन सब बातों को करना चाहिए ताकि कोई भी परमेश्वर के संदेश का उपहास ना कर पाए।
\p
\s5
\v 6 और युवा पुरुषों के विषय में, उन्हें शिक्षा दे, कि वे संयमी हों।
\v 7 और तीतुस, जहां तक तेरी अपनी बात है, मेरे पुत्र, सत्कर्मों के लिए मनुष्यों के समक्ष अपना उदाहरण रख। उन्हें यह बोध करा कि तू विश्वासियों को सत्य, भलाई और परमेश्वर के बारे में सच्चे दिल से शिक्षा देता है।
\v 8 मनुष्यों को ऐसी शिक्षा दे कि किसी को आलोचना का अवसर न मिले जिससे कि यदि तुझे कोई शिक्षा देने से रोके तो अन्य लोग उसे ही लज्जित कर दें, क्योंकि हमारे बारे में बुरा कहने के लिए उसके पास कुछ नहीं है।
\v 6 वैसे ही युवा पुरुषों से विनती कर कि वे स्वयं को नियंत्रित करें।
\v 7 तुझे लगातार अच्छा कार्य करना चाहिए ताकि दूसरे जाने की उन्हें भी क्या करना चाहिए। जब तू विश्वासियों को सिखाता है, तो सुनिश्चित कर कि जो कुछ तू कहता है वह सच है और इस रीति से कह कि लोग तेरा सम्मान करे।
\v 8 संदेशों के द्वारा लोगों को सही शिक्षा दो, जिसकी कोई आलोचना न कर सके जिससे कि, यदि कोई तुमको रोकना चाहे, तो अन्य लोग उसे लज्जित करें, क्योंकि उनके पास हमारे बारे में कुछ भी बुरा कहने के लिए नहीं होगा।
\p
\s5
\v 9 हमारे भाइयों और उनके परिवार जो दास हैं, वे अपने-अपने स्वामी के अधीन रहो। जहां तक संभव हो, उनका व्यवहार ऐसा हो कि उनके स्वामी हर प्रकार से उनसे प्रसन्न रहें, वे उनसे विवाद न करें।
\v 10 वे छोटी से छोटी वस्तु की भी चोरी न करें, वरन् स्वामी के प्रति विश्वासयोग्य हों और उनका संपूर्ण आचरण ऐसा हो कि मनुष्य हमारे परमेश्वर के बारे में दी गई हमारी शिक्षा की प्रशंसा के लिए विवश हो जाए, जो हमे बचाता है।
\v 9 उन विश्वासियों के लिए जो दास हैं, उन्हें सिखा कि वे हमेशा अपने स्वामी के अधीन रहें। उन्हें ऐसा जीवन जीने के लिए कह, जो उनके स्वामियों को प्रसन्न करता हो और उनसे विवाद न करें।
\v 10 उन्हें अपने स्वामियों की छोटी सी वस्तु की भी चोरी नहीं करनी चाहिए; इसकी अपेक्षा, उन्हें उनके प्रति विश्वासयोग्य बने रहना चाहिए और उन्हें सब कुछ इस रीति से करना चाहिए जिस से लोग उन बातों की प्रशंसा करें जो हमारे बचानेवाले परमेश्वर के बारे में सिखाते हैं।
\p
\s5
\v 11 तीतुस, मैंने जो भी लिखा है उसका सारांश यह है, हर एक मनुष्य अब समझ गया है कि परमेश्वर उनके उद्धार की इच्छा रखता है। यह मनुष्य के लिए उसका उपहार है।
\v 12 परमेश्वर का यह उद्धारक अनुग्रह हमें प्रशिक्षण देता है कि जैसे हम बच्चे हैं, कि हम इस संसार की अभिलाषाओं का इन्कार करें। वह हमारी सहायता करता हैं कि हम उच्च विचार रखें, कि हम ईमानदार हों, सत्यवादी हों और मनुष्यों के साथ निष्पक्ष व्यवहार करें तथा जब तक इस संसार में हैं परमेश्वर को अपने मन मस्तिष्क एवं कार्यों में बसाए रखें।
\v 13 इसके साथ ही परमेश्वर हमें सिखाता है, कि वह भविष्य में हमारे लिए जो भी निश्चित रूप में करेगा, उसकी प्रतीक्षा करें, यह एक ऐसी बात है जो हमें अत्यधिक हर्षित करती है, अर्थात मसीह यीशु, हमारा उद्धारकर्ता एवं सर्वशक्तिमान परमेश्वर बड़े वैभव के साथ हमारे पास लौट आयेगा।
\v 11 विश्वासियों को ऐसा व्यवहार करना चाहिए क्योंकि परमेश्वर उपहार के रूप में सभी को बचाना चाहते हैं, जिसके योग्य कोई भी नहीं हैं।
\v 12 जब परमेश्वर मुफ्त वरदान के रूप में हमें बचाते हैं, तो वह हमें गलत काम से और संसार के लोग जो करना चाहते हैं, उसे करने से रोकने के लिए भी प्रशिक्षित करते हैं। वे हमें समझदार होना, सही काम करने और इस वर्तमान समय के दौरान परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना सिखाते हैं।
\v 13 साथ ही, परमेश्वर हमें यह सिखाते हैं कि वह भविष्य में जिस काम को निश्चत रूप से करेंगेउसकी प्रतीक्षा करें। यह हमें बहुत प्रसन्न कर देगा। अर्थात्, यीशु मसीह, हमारे उद्धारकर्ता और सामर्थी परमेश्वर, महान भव्यता के साथ हमारे पास लौट आएंगे।
\p
\s5
\v 14 उसने स्वयं को हमारी मुक्ति की छुड़ौती स्वरूप मरने के लिए दे दिया कि हमारे पापमय स्वभाव से हमे मुक्त करा ले, कि हम उसकी अनमोल सम्पदा हो जाएं, उसके द्वारा शुद्ध किए गए मूल्यवान मनुष्य जिनका महान आनन्द सत्कर्मों में है।
\v 14 उन्होंने हमारे अनैतिक स्वाभाव के भुगतान के रूप में अपने आप को मरने के लिए दे दिया, ताकि हमें शुद्ध करके ऐसे लोग बनाए जो उनकी विशेष संपत्ति हैं, और अच्छे काम करने के लिए उत्सुक हैं।
\p
\s5
\v 15 तीतुस इन बातों को संपूर्ण अधिकार के साथ सुना। श्रोताओं से आग्रह कर कि वे वैसा ही जीवन जीएं जैसा मैंने यहां वर्णन किया है, और आवश्यकता पड़ने पर अपने भाइयों और बहनों को सिखाने के लिए अपने पूर्ण अधिकार का उपयोग कर। कोई तेरी बातों को तुच्छ न समझने पाए
\v 15 हे तीतुस, इन बातों के बारे में शिक्षा दे। हमारे भाइयों और बहनों से ऐसा जीवन जीने के लिए आग्रह कर, जैसा मैंने वर्णन किया है और जब वे ऐसा नहीं करते तो उन्हें सुधार, यदि आवश्यक हो तो उन्हें आदेश देने के लिए अपने अधिकार का उपयोग कर। सुनिश्चित कर कि वे सब तेरे बातों पर ध्यान दे
\s5
\c 3
\p
\v 1 तीतुस, सुनिश्चित कर के अपने लोगों को याद दिलाना, कि जहां तक संभव हो, हमें हमारे समाज के प्रशासन संबन्धित नियमों एवं व्यवस्था का पालन करना है। हमें हर एक अवसर पर भलाई करने के लिए तैयार रहना चाहिए और आज्ञाओं का पालन करना चाहिए।
\v 2 हम किसी के लिये बुरी बातें न करें या किसी से विवाद न करें। अपनी इच्छा पूरी करने की अपेक्षा मनुष्यों को उनकी अपनी पसन्द के अनुसार चलने दें तथा सबके साथ कोमलता का व्यवहार कर।
\v 1 हे तीतुस, हमारे लोगों को यह याद दिलाना सुनिश्चित कर कि जितना संभव हो सके, उन्हें हमारे समाज के नियमों और कानूनों का पालन करना चाहिए। उन्हें आज्ञाकारी होना चाहिए और हर अवसर पर भलाई करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
\v 2 उन्हें किसी के बारे में अपमानजनक बातें नहीं कहनी चाहिए या लोगों के साथ विवाद नहीं करना चाहिए। उन्हें हर किसी के साथ कोमलता से व्यवहार करना चाहिए और अपने से अधिक महत्वपूर्ण समझना चाहिए।
\p
\s5
\v 3 एक समय था कि हम सब इन बातों के प्रति विचारहीन एवं असहमत थे। हम गुमराह थे और नाना प्रकार के मनोवेग तथा भोग-विलास के दास थे। हमने अपना जीवन मनुष्यों से ईर्ष्या करने और बुराई करने में व्यतीत किया था। हम मनुष्यों की घृणा के पात्र थे और एक दूसरे से घृणा करते थे।
\v 3 हमें याद रखना चाहिए कि एक ऐसा समय था जब हम स्वयं मूर्ख थे और इन सब बातों से असहमत थे। हमारी अभिलाषाएँ और सुख-विलास के प्रति हमारी इच्छा हमें गलत दिशा की ओर ले गई और हमने उनकी सेवा दास के समान की। हमने एक दूसरे से ईर्ष्या करते हुए और बुराई करते हुए अपना जीवन बिताया। हम लोगों के लिए घृणा करने का कारण हुए और हम एक दूसरे से घृणा करते थे।
\s5
\v 4 जब सब मनुष्यों के लिए हमारे उद्धारक परमेश्वर का प्रेम प्रकट हुआ,
\v 5 तब उसने हमें धोकर भीतर से शुद्ध करके हमारा उद्धार किया। हमें नया जन्म देकर पवित्र-आत्मा के द्वारा हमें नया बना दिया। उसने हमारे भले कामों के कारण हमारा उद्धार नहीं किया, उसने हमें बचाया क्योंकि वह दयालु है।
\v 4 परन्तु जब परमेश्वर ने हमें दिखाया कि वे हमें बचाने के लिए उदारता से काम कर रहे थे क्योंकि वे हम से प्रेम करते हैं,
\v 5 उन्होंने हमें अंदर से साफ करके, हमें एक नया जन्म देकर और पवित्र आत्मा द्वारा हमें नया बनाकर बचाया। उन्होंने हमें इसलिए नहीं बचाया कि हम अच्छे काम करते हैं, परन्तु उन्होंने हमें इसलिए बचाया कि वह दयालु है।
\s5
\v 6 मसीह यीशु ने हमारा उद्धार किया तो परमेश्वर ने हमें अपना धन्य पवित्र-आत्मा दे दिया।
\v 7 इस उपहार के द्वारा परमेश्वर ने घोषणा कर दी, कि उसके और हमारे मध्य सब कुछ अब उचित है। और उससे भी अधिक, प्रभु यीशु हमें जो भी देगा उसका उत्तराधिकार हमें प्राप्त होगा, विशेष करके उसके साथ हमारा अनन्त जीवन।
\v 6 परमेश्वर ने उदारता से हमें अपना पवित्र आत्मा दिया, जब यीशु मसीह ने हमें बचाया।
\v 7 इस वरदान के द्वारा, परमेश्वर ने घोषणा की है कि उनके और हमारे बीच में सब कुछ सही हो गया है, और इस से बढ़कर, हम उन सब वस्तुओं के भागीदार होंगे जो प्रभु यीशु हमें देंगे, विशेषकर उनके साथ अनन्त जीवन।
\p
\s5
\v 8 यह एक विश्वासयोग्य बात है। मैं चाहता हूं कि तू लगातार इन बातों पर बल देता रह, जिससे कि परमेश्वर में विश्वास करनेवाले परमेश्वर द्वारा स्थापित भले और सहायक कामों को करने के लिए सदैव समर्पित रहें। ये बातें सबके लिए अति उत्तम एवं लाभकारी हैं।
\v 8 यह एक कथन है जिस पर भरोसा किया जा सकता है। मैं चाहता हूँ कि तू इन बातों पर लगातार जोर दे ताकि परमेश्वर पर भरोसा रखने वाले लोग खुद को उन कामों को करने के लिए समर्पित कर सकें, जो अच्छे हैं और दूसरों की सहायता करते हैं। यह बातें सब के लिए उत्तम और लाभकारी हैं।
\p
\s5
\v 9 परन्तु निर्बुद्धि विवादों में यहूदी देशवासियों, धार्मिक नियमों पर मतभेद आदि में मत पड़। यह सब तेरे समय और शक्ति को निरर्थक गवांना है।
\v 10 यदि मनुष्य ऐसे विभाजनकारी कार्यों में उलझना आवश्यक समझे तो एक या दो बार उन्हें समझा उसके उपरांत उनसे संबन्ध तोड़ ले।
\v 11 क्योंकि ऐसे मनुष्य सत्य से भटक गए हैं। वे पाप में रहते हैं और अपने आपको दोषी ठहराते हैं।
\v 9 मूर्खतापूर्ण विवाद, यहूदी पूर्वजों की सूचियों के बारे में वाद-विवाद और धार्मिक कानूनों के तर्कों और विवादों से दूर रह। इस प्रकार की चर्चा समय गवाँन है और वे किसी भी प्रकार से तेरी सहायता नहीं करती हैं।
\v 10 यदि लोग तेरी एक या दो बार चेतावनी देने के बाद भी इन विभाजनकारी गतिविधियों में सहभागी होने पर बल देते हैं, तो उनके साथ कोई सम्बन्ध न रख,
\v 11 क्योंकि तू जानता है कि ऐसे लोग सत्य से दूर हो गए हैं; वे पाप कर रहे हैं और स्वयं को दोषी ठहराते हैं।
\p
\s5
\v 12 जब मैं तेरे पास अरतिमास या तुखिकुस को भेजूं, तो प्रयास करके मेरे पास निकुपुलिस नगर आने का यत्न करना, क्योंकि मैंने शरद ऋतु वहीं बिताने का निर्णय लिया है।
\v 13 विधिशास्त्री जेनास और अपुल्लोस को यात्रा के लिए आवश्यक सब वस्तुओं के साथ भेजने का प्रबन्ध कर।
\v 12 जब मैं तेरे पास अरतिमास या तुखिकुस को भेजूँ, तो मेरे पास निकुपुलिस शहर में आने के लिए यत्न करना, क्योंकि मैंने सर्दियों में वहाँ रहने का निर्णय किया है।
\v 13 जेनास को जो कानून विशेषज्ञ है और अपुल्लोस को उनकी यात्रा के लिए जिन वस्तुओं की आवश्यकता हो, उनके लिए सब कुछ कर।
\p
\s5
\v 14 सुनिश्चित कर कि अपने लोग भले कामों में व्यस्त रहें कि अन्य मनुष्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति हो। यदि वे ऐसा करें तो वे परमेश्वर के लिए फल उत्पन्न करेंगे।
\v 14 सुनिश्चित कर कि हमारे लोग उन लोगों के लिए भले कार्य करने के लिए खुद को व्यस्त रखना सीखें जिन्हें सहायता की आवश्यकता है। यदि वे ऐसा करते हैं तो वे परमेश्वर के लिए एक उपयोगी तरीके से जी रहे हैं।
\p
\s5
\v 15 तीतुस, जो मेरे साथ है वे सब नमस्कार कहते हैं। हमारे मित्र, जो विश्वासी भाई हैं उन्हें भी नमस्कार कहना। तुम सब पर अनुग्रह व्याप्त हो। आमीन
\v 15 हे तीतुस, जो लोग मेरे साथ हैं वे तुझको नमस्कार करते हैं। कृपया हमारे मित्रों को हमारा नमस्कार कहना, जो हमें अपने साथी विश्वासियों के समान प्रेम करते हैं। परमेश्वर तुम सभी पर अपनी बड़ी दया बनाए रखें

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\toc2 फिलेमोन
\toc3 phm
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\s5
\c 1
\p
\v 1 मैं, पौलुस, एक बन्दी हूँ जो मसीह यीशु की सेवा करता हूँ। मैं अपने साथी विश्वासी तीमुथियुस के साथ हूँ। फिलेमोन, हमारे प्रिय मित्र और सहकर्मी, मैं तुझे यह पत्र लिख रहा हूँ,
\v 2 मैं हमारी साथी विश्वासी अफफिया, और हमारे साथ एक सैनिक की तरह काम करनेवाले अरखिप्पुस को भी लिख रहा हूँ। और मैं उस विश्वासियों के समूह के लिए भी लिखता हूँ जो तुम्हारे घर में एकत्र होते हैं।
\v 3 मैं प्रार्थना करता हूँ कि हमारे पिता परमेश्वर और हमारे प्रभु यीशु मसीह तुम सब पर दया करते रहें। मैं प्रार्थना करता हूँ कि प्रभु तुम्हें शान्ति देते रहें।
\p
\s5
\v 4 जब मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करता हूँ, तो मैं सदा परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ,
\v 5 क्योंकि मैं सुनता हूँ कि तुम प्रभु यीशु में कैसा भरोसा रखते हो। मैं यह भी सुनता हूँ कि तुम कैसे सब विश्वासियों से प्रेम करते हो और उनकी सहायता करते हो।
\v 6 मैं प्रार्थना करता हूँ, क्योंकि तुम मसीह पर भरोसा रखते हो जैसे हम करते हैं, तो तुम हर अच्छी बात को जान सको जिसे हम तुम्हें मसीह के बारे में बता सकते हैं।
\v 7 मुझे बहुत आनन्द हुआ है और मुझे बहुत साहस है क्योंकि मेरे प्रिय मित्र, तू परमेश्वर के लोगों से प्रेम करता है और उनकी सहायता करता है।
\p
\s5
\v 8 तो मैं कुछ करने के लिए तुझसे निवेदन करना चाहता हूँ। मुझे पूरा भरोसा है कि मेरे पास तुझे आज्ञा देने का अधिकार है कि तुझे क्या करना चाहिए, क्योंकि मैं मसीह का प्रेरित हूँ।
\v 9 परन्तु क्योंकि मुझे पता है कि तू परमेश्वर के लोगों से प्रेम करता है, इसलिए मैं तुझे आज्ञा देने कि अपेक्षा अनुरोध करता हूँ। मैं पौलुस, एक बूढ़ा व्यक्ति और अब एक बन्दी हूँ क्योंकि मैं मसीह यीशु की सेवा करता हूँ। मैं तुझसे अनुरोध कर रहा हूँ।
\s5
\v 10 मैं अनुरोध करता हूँ कि तू उनेसिमुस के लिए कुछ करे। वह अब मेरे पुत्र के समान है क्योंकि मैंने उसे यहाँ बन्दीगृह में मसीह के बारे में बताया था।
\v 11 जैसा कि तू जानता है, उसके नाम का अर्थ है, "उपयोगी" है, हालांकि वह अतीत में तेरे लिए बेकार था। लेकिन अब वह तेरे और मेरे दोनों के लिए उपयोगी है।
\p
\v 12 हालांकि वह मेरे लिए बहुत प्रिय है, मैं उसे तेरे पास वापस भेज रहा हूँ।
\v 13 मैं उसे अपने साथ रखना चाहता था, कि वह तेरे स्थान में मेरी सेवा कर सके। मुझे उसकी आवश्यकता है क्योंकि मैं मसीह के बारे में संदेश का प्रचार करने के कारण बन्दीगृह में हूँ।
\p
\s5
\v 14 क्योंकि मैंने अभी तक तुझे से नहीं पूछा था और तूने मुझे उसे यहाँ मेरे साथ रखने की अनुमति नहीं दी थी, इसलिए मैंने उसे यहाँ न रखने का निर्णय किया है। मैंने निर्णय लिया है कि यदि तू वास्तव में मेरी सहायता करना चाहते हो, तो ही मेरी सहायता करे।
\v 15 हो सकता है परमेश्वर ने उनेसिमुस को तुझ से अलग होने की अनुमति इसलिए दी थी कि तू उसे सदा के लिए वापस पा सके।
\v 16 अब वह तुम्हारे लिए सिर्फ एक गुलाम के समान नहीं होगा। इसके बजाय, अब वह तुम्हारे लिए दास से अधिक होगा। वह तुम्हारे लिए एक साथी विश्वासी होगा! वह मेरे लिए बहुत प्रिय है, परन्तु वह निश्चय ही तेरे लिए और भी प्रिय हो जाएगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि अब वह न केवल तेरा दास है, बल्कि वह प्रभु का भी है।
\p
\s5
\v 17 इसलिए यदि तू मानता है कि तू और मैं परमेश्वर के कार्य को एक साथ कर रहे हैं, तो तू उसका स्वागत कर जैसा कि तू मेरा स्वागत करेगा
\v 18 यदि उसने तुझे किसी भी तरह का नुकसान पहुँचाया है, या यदि वह तेरा कर्जदार हैं, तो मुझे इसके लिए बोझ उठाने दे।
\v 19 मैं, पौलुस, अब अपनी स्वयं के हस्तलेख में यह लिख रहा हूँ: जो कुछ भी उसे तुझे देना है, मैं दे दूँगा। मैं तुझसे कह सकता हूँ कि उनेसिमुस कि तुलना में तू मेरा अधिक कर्जदार है, क्योंकि मैंने जो तुझे बताया उसने तेरे जीवन को बचाया है।
\v 20 हे मेरे भाई, प्रभु में मुझे तुझसे लाभ उठाने दो। क्योंकि हम दोनों मसीह से जुड़े हुए हैं, इसलिए मेरे दिल को आनन्दित करो।
\p
\s5
\v 21 मैंने तुझे यह पत्र लिखा है, क्योंकि मुझे विश्वास है कि मैं तुझसे जो करने का अनुरोध कर रहा हूँ, वह तू अवश्य करेगा। वास्तव में, मुझे पता है कि जो कुछ भी करने के लिए मैंने अनुरोध किया हैं तू उससे अधिक ही करेगा।
\v 22 इसके अलावा, मेरे लिए रहने के लिए एक अतिथि कमरा तैयार करना, क्योंकि मुझे विश्वास है कि मेरे लिए तुम्हारी प्रार्थनाओं के उत्तर में, मुझे बन्दीगृह से मुक्त किया जाएगा और मैं तुम सब के पास आऊँगा।
\p
\s5
\v 23 इपफ्रास तुझे नमस्कार करता है, जो मेरे साथ बन्दीगृह में दुःख उठाता है क्योंकि वह मसीह यीशु से जुड़ा हुआ है।
\v 24 मरकुस, अरिस्तर्खुस, देमास और लूका जो मेरे सहकर्मी है, वे भी तुझे नमस्कार करते हैं।
\v 25 मैं प्रार्थना करता हूँ कि प्रभु यीशु मसीह तुम पर दया करते रहें।

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\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h इब्रानियों
\toc1 इब्रानियों
\toc2 इब्रानियों
\toc3 heb
\mt1 इब्रानियों
\s5
\c 1
\p
\v 1 बहुत समय पहले परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों से बार-बार बातें की जिनको भविष्यद्वक्ताओं ने कहा और लिखा।
\v 2 लेकिन अब जब यह अंतिम युग आरंभ हो गया है, परमेश्वर ने अपने पुत्र द्वारा हम से बातें की हैं। परमेश्वर ने उनको सब बातों पर अधिकार रखने के लिए चुना है। उन्हीं के द्वारा परमेश्वर ने इस सष्टि को भी बनाया।
\v 3 परमेश्वर के पुत्र ही परमेश्वर की शक्तिशाली प्रतिभा का प्रकाश है। वह दिखाते हैं कि वास्तव में परमेश्वर कैसे हैं! सब कुछ जो अस्तित्व में हैं - वह उन्हें अपने शक्तिशाली आदेशों के द्वारा अस्तित्व में रखते हैं। उन्होंने अपने काम के द्वारा पापों को क्षमा कर दिया उसके बाद वह स्वर्ग में गए और परमेश्वर के दाहिने हाथ, सम्मान के सर्वोच्च स्थान पर बैठे, जहाँ वह उनके साथ शासन करते हैं।
\p
\s5
\v 4 परमेश्वर ने अपने पुत्र को स्वर्गदूतों की तुलना में इतना अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है कि उनके पास उनकी तुलना में कहीं अधिक सम्मान और अधिकार है।
\p
\v 5 शास्त्रों में किसी ने ऐसा नहीं बताया कि परमेश्वर ने अपने किसी स्वर्गदूत से वह कहा जो उन्होंने अपने पुत्र से कहा था: "आप मेरे पुत्र हो! आज मैंने सब पर यह घोषणा की है कि मैं आप का पिता हूँ!" उन्होंने किसी भी स्वर्गदूत के बारे में कभी ऐसा नहीं कहा, जो उन्होंने अपने पुत्र के बारे में एक अन्य वचन में कहा था: "मैं उनका पिता होऊँगा, और वह मेरे पुत्र होंगे।"
\s5
\v 6 जब परमेश्वर अपने सम्मानित पुत्र, अपने एकलौते पुत्र को संसार में लाए, तो उन्होंने आज्ञा दी: "मेरे सभी स्वर्गदूत उनकी आराधना करेंगे।"
\v 7 और शास्त्रों में स्वर्गदूतों के बारे में यह लिखा गया है: "परमेश्वर ने अपने स्वर्गदूतों को आत्माओं और सेवकों के रूप में बनाया है, जो धधकती आग की तरह उनकी सेवा करते हैं।"
\p
\s5
\v 8 परन्तु शास्त्रों में, परमेश्वर के पुत्र के बारे में यह भी लिखा गया है: "आप जो परमेश्वर हैं आप हमेशा राज करेंगे, और आप अपने राज्य पर न्यायपूर्वक शासन करेंगे।
\v 9 आप ने लोगों के अच्छे कर्मों से प्रेम किया है और आप ने लोगों के पापपूर्ण कार्यों से घृणा की है। इसलिए परमेश्वर, जिनकी आप आराधना करते हैं, उन्होंने आपको किसी और की तुलना में अधिक प्रसन्न किया है।"
\s5
\v 10 हम यह भी जानते हैं कि उनके पुत्र स्वर्गदूतों से महान हैं क्योंकि शास्त्रों में परमेश्वर के पुत्र के बारे में यह लिखा गया है, "हे परमेश्वर, वह आप ही हैं जिन्होंने आरंभ में पृथ्वी को बनाया था। आप ने सारे संसार को, सितारों को और आकाश में सब कुछ बनाया है।
\v 11 इन सबका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा, परन्तु आप सदा के लिए जीवित रहेंगे। वे वस्त्रों की तरह घिस जाएँगे।
\v 12 आप उन्हें ऐसे लपेटेंगे जैसे कि वे पुराने वस्त्र थे:
\q फिर आप सृष्टि में सब कुछ नया करने के लिए सब कुछ बदल देंगे,
\q जैसे कि किसी ने नए वस्त्र पहने हैं! परन्तु आप सदा ऐसे ही रहते हैं, और आप सदा जीवित हैं।"
\p
\s5
\v 13 परमेश्वर ने किसी भी स्वर्गदूत से कभी यह नहीं कहा जो उन्होंने अपने पुत्र से कहा था: "मेरे पास, सबसे महत्वपूर्ण स्थान पर बैठो और मेरे साथ शासन करो और मैं आपके सभी शत्रुओं को पराजित करूँगा कि आप उन पर शासन करो।"
\p
\v 14 स्वर्गदूत केवल आत्माएँ हैं जिनको परमेश्वर ने उन विश्वासियों की सेवा करने और उनकी देखभाल करने के लिए भेजा है जिन्हें परमेश्वर शीघ्र ही पूर्णरूप से बचाएँगे, क्योंकि उन्होंने उनसे प्रतिज्ञा की है।
\s5
\c 2
\p
\v 1 इसलिए, क्योंकि यह सच है, हम ने परमेश्वर के पुत्र के बारे में जो कुछ सुना है, उसके लिए हमें बहुत अधिक ध्यान देना चाहिए, जिससे कि हम इस पर धीरे-धीरे विश्वास करना समाप्त न कर दें।
\p
\s5
\v 2 जब स्वर्गदूतों ने इस्राएल के लोगों को परमेश्वर के नियम बताए, तो उन्होंने जो कहा वह उचित था। परमेश्वर ने न्याय का पालन करके उन सब को दण्ड दिया, जिन्होंने उनकी आज्ञा का पालन नहीं किया और उनके नियमों का उल्लंघन किया।
\v 3 क्योंकि यह सच है, हम निश्चय ही परमेश्वर से बच नहीं पाएँगे यदि हम इस सुसमाचार को अनदेखा करें कि वह हमें कैसे बचाते हैं तो वह निश्चय ही हमारा न्याय करेंगे! यह प्रभु यीशु ही थे, जिन्होंने पहले हमें इसके बारे में बताया था, और जिन शिष्यों ने सुना था, उन्होंने हमें विश्वास दिलाया कि उन्होंने ऐसा किया था।
\v 4 उनके सत्य को सिद्ध करने के लिए विश्वासियों को सामर्थी काम करने की शक्ति देकर परमेश्वर ने हमारे लिए प्रमाणित भी किया कि यह संदेश सच है। और पवित्र आत्मा अपनी इच्छा के अनुसार विश्वासियों को कई वरदान बाँटते हैं।
\p
\s5
\v 5 परमेश्वर ने स्वर्गदूतों को नए संसार का अधिकारी नहीं बनाया, इसकी अपेक्षा उन्होंने इसके लिए मसीह को अधिकार दिया है।
\v 6 किसी ने शास्त्रों में परमेश्वर से इसके बारे में गंभीरता से कहा है, "कोई भी मनुष्य इस योग्य नहीं कि आप उसके बारे में सोचें! कोई भी मनुष्य इस योग्य नहीं कि आप उसकी सुधि लें!
\s5
\v 7 आप ने मनुष्यों को स्वर्गदूतों की तुलना में थोड़ा सा कम महत्व दिया है, फिर भी आप ने उन्हें बहुत सम्मानित किया है, जैसे लोग राजाओं का सम्मान करते हैं।
\v 8 आप ने सब कुछ उनके नियंत्रण में कर दिया है।" परमेश्वर ने यह निश्चित किया है कि मनुष्य जाति सब चीजों पर शासन करेगी। इसका अर्थ है कि शासन करने के लिए उनसे कुछ नहीं छूटेगा। लेकिन अब, इस समय, हम मनुष्य जाति को सब वस्तुओं पर शासन करते हुए नहीं देखते!
\p
\s5
\v 9 हालाँकि, हम यीशु के बारे में जानते हैं, जो इस जीवन में स्वर्गदूतों की तुलना में थोड़ा कम महत्वपूर्ण बने। क्योंकि उन्होंने कष्ट सहे और मर गए, परमेश्वर ने उनको सबसे महत्वपूर्ण बना दिया है। उन्होंने यीशु को सब वस्तुओं पर राजा बना दिया है, क्योंकि यीशु सारी मनुष्य जाति के लिए मरे! ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि परमेश्वर हम पर बहुत दयालु थे।
\v 10 यह उचित था कि परमेश्वर यीशु को हर प्रकार से सिद्ध करें उन्हें हमारे लिए कष्ट देकर और मृत्यु देकर! परमेश्वर ही हैं जिन्होंने सब कुछ बनाया है, और वही हैं जिनके लिए सब वस्तुओं का अस्तित्व है। और यीशु ही हैं जो लोगों को बचाने के लिए परमेश्वर को सक्षम बनाते हैं।
\p
\s5
\v 11 यीशु, जो अपने लोगों को परमेश्वर के लिए अलग करते हैं, और उन लोगों को, जिन्हें परमेश्वर ने अपने सामने अच्छा बताया, वे सब एक ही स्रोत परमेश्वर से हैं इसलिए यीशु उन्हें अपने भाई और बहन कहने में संकोच नहीं करते है।
\v 12 भजनकार ने लिखा है कि मसीह ने परमेश्वर से कहा, "मैं अपने भाइयों में प्रचार करूँगा कि आप कितने अच्छे हैं। मैं विश्वासियों की मण्डली के बीच में आपकी स्तुति करूँगा!"
\s5
\v 13 और एक भविष्यद्वक्ता ने धर्म शास्त्र के दूसरे गद्यांश में वह लिखा है जो मसीह ने परमेश्वर के बारे में कहा था: "मैं उस पर भरोसा रखूँगा।" और धर्मशास्त्रों के एक अन्य गद्यांश में, मसीह ने उन लोगों के बारे में कहा जो उसके बच्चों के समान हैं, "मैं उन बच्चों के साथ यहाँ हूँ जिन्हें परमेश्वर ने मुझे दिया है।"
\p
\v 14 इसलिए परमेश्वर जिनको अपने बच्चे बुलाते हैं वे सब मनुष्य हैं, इसलिए यीशु भी उनकी तरह मनुष्य बने। शैतान के पास लोगों को मृत्यु से डराने की शक्ति है, परन्तु मसीह मनुष्य बने जिससे कि उनके मरने और मृत्यु को पराजित करने के द्वारा वह शैतान को शक्तिहीन बना सकें।
\v 15 यीशु ने हम सब को मुक्त करने के लिए ऐसा किया, जो जीवनभर, मृत्यु के डर से स्वयं को छुड़ा नहीं सकते थे।
\p
\s5
\v 16 क्योंकि यीशु मनुष्य बने, वह स्वर्गदूतों की सहायता करने के लिए नहीं आए थे। यह हम हैं जो परमेश्वर पर भरोसा करते हैं जैसे अब्राहम ने किया, जिसकी वह सहायता करना चाहते हैं।
\v 17 अत: परमेश्वर के लिए आवश्यक था कि यीशु को ठीक हमारे जैसा अर्थात् उनके मनुष्य "भाइयों" जैसा बनाए। वह महायाजक बने, जो सभी लोगों के लिए दयापूर्वक कार्य करते हैं और जो परमेश्वर के लिए निष्ठापूर्वक काम करते हैं, इसलिए वह लोगों के पापों के लिए मरे और परमेश्वर के लिए मनुष्यों के पापों को क्षमा करने का मार्ग तैयार किया।
\v 18 यीशु उन लोगों की सहायता करने में समर्थ हैं जिन पर पाप करने की परीक्षा आती है क्योंकि उन्होंने स्वयं कष्ट सहे और पाप की परीक्षा में पड़े, जिस तरह हम पाप करने के लिए परीक्षा में पड़ते हैं।
\s5
\c 3
\p
\v 1 हे मेरे साथी विश्वासियों, परमेश्वर ने तुमको अलग कर दिया है और तुमको अपना होने के लिए चुना है। इसलिए यीशु के बारे में सोचो! वह हमारे लिए परमेश्वर के प्रेरित हैं और वह महायाजक भी हैं, जिनके लिए हम कहते हैं कि हम एक साथ उन पर विश्वास करते हैं।
\v 2 उन्होंने अपने नियुक्त करनेवाले परमेश्वर की निष्ठापूर्वक सेवा की जैसे मूसा ने निष्ठापूर्वक परमेश्वर के सब लोगों की, जिन्हें हम परमेश्वर का घर कहते हैं, सेवा की थी।
\v 3-4 अब जिस प्रकार हर घर किसी के द्वारा बनाया जाता है, परमेश्वर ने सब कुछ बनाया। इसलिए परमेश्वर ने उचित समझा है कि यीशु लोगों के लिए मूसा की तुलना में अधिक सम्मान के योग्य हैं, जैसा कि घर बनाने वाला व्यक्ति घर के सम्मान से अधिक स्वयं के लिए सम्मान के योग्य होता है!
\p
\s5
\v 5 मूसा ने बड़ी निष्ठा से परमेश्वर की सेवा की, जब उसने परमेश्वर के सब लोगों की सहायता की, जैसे कि एक सेवक निष्ठापूर्वक अपने स्वामी की सेवा करता है। इसलिए मूसा ने उस बात की गवाही दी जो यीशु बाद में कहेंगे।
\v 6 लेकिन मसीह वह पुत्र हैं जो परमेश्वर के लोगों पर शासन करते हैं, और हम वह लोग हैं जिन पर वह शासन करते हैं, अगर हम मसीह में साहसपूर्वक विश्वास करते रहें और आत्मविश्वास के साथ परमेश्वर से आशा रखते हैं कि वह हमारे लिए अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार सब कुछ करें!
\p
\s5
\v 7 पवित्र आत्मा ने भजनकार को प्रेरित किया कि वह इस्राएलियों के लिए शास्त्रों में इन शब्दों को लिखे: "अब, जब परमेश्वर तुम से बात करते हैं,
\v 8 तो उनकी बातों का पालन करने से इन्कार न करो, और अपनी इच्छाओं को परमेश्वर के वचनों से ज्यादा महत्वपूर्ण न होने दो, अगर तुम ऐसा करते हो, तो तुम अपने पूर्वजों के समान हो जाओगे जो बहुत पहले परमेश्वर से दूर हो गए और उनकी बातों का पालन नहीं किया।
\s5
\v 9 तुम्हारे पूर्वजों ने यह देखने के लिए बार-बार मुझे परखा, कि क्या मैं उनके साथ धीरज रखूँगा, भले ही चालीस वर्षों तक उन्होंने उन सब अद्भुत कामों को देखा जिनको मैंने किया था।
\v 10 इसलिए मैं उन लोगों से क्रोधित हो गया, और मैंने उनसे कहा, 'वे कभी भी मेरे प्रति विश्वासयोग्य नहीं हैं, और वे नहीं समझते हैं कि मैं क्या चाहता हूँ कि वे अपने जीवन का प्रबन्ध करें।'
\v 11 मैं उनसे क्रोधित था और मैंने गंभीरता से उनसे कहा, 'वे कनान देश में प्रवेश नहीं करेंगे जहाँ मैं उन्हें विश्राम दूँगा।'
\p
\s5
\v 12 इसलिए, हे मेरे साथी विश्वासियों, सावधान रहो कि तुम में से कोई भी अपने दिल में छिपी बुराई के कारण मसीह पर भरोसा करना छोड़ न दे जिससे तुम जीवित परमेश्वर को अस्वीकार करो।
\v 13 इसकी अपेक्षा, जब भी तुमको अवसर मिले एक दूसरे को हर दिन प्रोत्साहित करते रहो। यदि तुम हठीले हो, तो दूसरे धोखा देकर तुमको पाप करने के लिए प्रेरित करेंगे।
\p
\s5
\v 14 यदि हम गंभीरता से और आत्मविश्वास से उन पर भरोसा रखते हैं तो हम अब मसीह में जुड़ गए हैं, उस समय से, जब हम ने उन पर पहली बार विश्वास किया और उस समय तक जब हम मर नहीं जाते हैं।
\v 15 भजनकार ने शास्त्र में लिखा है कि परमेश्वर ने कहा, "अब, जब तुम मुझे बात करते सुनते हो, तो अपने पूर्वजों के समान हठीले होकर मेरी आज्ञा का उल्लंघन न करो जैसे उन्होंने मेरे विरूद्ध विद्रोह किया था।"
\p
\s5
\v 16 स्मरण रखो कि किसने परमेश्वर से विद्रोह किया था, जबकि उन्होंने उसे उनसे बातें करते सुना! वे सब परमेश्वर के लोग थे जिन्हें मूसा ने मिस्र से बाहर निकाला था।
\v 17 और स्मरण रखो कि परमेश्वर चालीस वर्षों तक किससे क्रोधित थे! वे परमेश्वर के लोग थे जिन्होंने पाप किया, और उनके मृत शरीर वहाँ मरुस्थल में पड़े थे।
\v 18 और स्मरण रखो कि किसके बारे में परमेश्वर ने घोषणा की, वे उस देश में प्रवेश नहीं करेंगे जहाँ मैं उन्हें विश्राम दूँगा।" यह वे इस्राएली ही थे जिन्होंने परमेश्वर का आज्ञापालन नहीं किया था।
\v 19 इसलिए, उस उदाहरण से हम जानते हैं कि यह इसलिए था क्योंकि उन्होंने परमेश्वर पर भरोसा नहीं रखा और इसीलिए वे उस देश में प्रवेश करने में असमर्थ थे जहाँ परमेश्वर उन्हें विश्राम देते।
\s5
\c 4
\p
\v 1 परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की है कि हम विश्राम करेंगे, परन्तु हमें सावधान रहना होगा, क्योंकि हम परमेश्वर के विश्राम के स्थान से चूक सकते हैं।
\v 2 हम ने सुसमाचार में सुना है कि यीशु हमें परमेश्वर का विश्राम कैसे देते हैं, जैसे कि इस्राएलियों ने परमेश्वर की प्रतिज्ञा सुनी थी कि वे कनान में विश्राम करेंगे। परन्तु जैसे कि उस संदेश ने बहुत से इस्राएली लोगों की सहायता नहीं की, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर पर भरोसा नहीं रखा जैसे यहोशू और कालेब ने रखा था, वैसे ही मसीह का सुसमाचार हमारी सहायता नहीं करेगा, यदि हम परमेश्वर पर भरोसा नहीं रखते हैं।
\p
\s5
\v 3 हम, जिन्होंने मसीह पर विश्वास किया है, वे विश्राम के स्थान में प्रवेश करने में सक्षम हैं क्योंकि परमेश्वर ने कहा है,
" क्योंकि मैं इस्राएल के लोगों से क्रोधित था, मैंने घोषणा की, 'वे उस देश में प्रवेश नहीं करेंगे जहाँ मैं उन्हें विश्राम दूँगा।' परमेश्वर ने यह कहा जबकि उसकी योजना तब ही समाप्त हो गयी थी जब उन्होंने संसार बनाया।
\v 4 संसार बनाने के छः दिन के बाद शास्त्रों में सातवें दिन के बारे में जो लिखा है, वह दर्शाता है कि यह सच है: "फिर, सातवें दिन, परमेश्वर ने सब कुछ बनाने के काम से विश्राम किया।"
\v 5 परन्तु फिर से ध्यान दो कि परमेश्वर ने इस्राएल के लिए क्या कहा था, जैसा मैं पहले कह चुका हूँ कि परमेश्वर ने इस्राएलियों के बारे में कहा था: "वे उस देश में प्रवेश नहीं करेंगे जहाँ मैं उन्हें विश्राम दूँगा।"
\p
\s5
\v 6 कुछ लोग अभी भी परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करते हैं परन्तु वे इस्राएली लोग जिन्होंने सबसे पहले परमेश्वर की प्रतिज्ञा को सुना कि वे विश्राम करेंगे - वे विश्राम के स्थान में प्रवेश न कर सके, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर पर विश्वास करने से इन्कार किया था!
\v 7 लेकिन परमेश्वर दूसरा समय निर्धारित करते हैं जब हम उस विश्राम के स्थान में प्रवेश कर सकें! वह समय अब है! हम जानते हैं कि यह सच है क्योंकि बाद में जब इस्राएली लोगों ने मरुस्थल में परमेश्वर से विद्रोह किया था, उन्होंने राजा दाऊद को यह लिखने के लिए विवश किया, जिसका मैंने पहले ही उद्धरण किया था, "अब, जब तुम समझते हो कि परमेश्वर तुम से क्या कह रहे हैं, हठीले होकर उनकी आज्ञा का उल्लंघन न करो।"
\p
\s5
\v 8 यदि यहोशू इस्राएलियों को उस एकमात्र स्थान में प्रवेश करवा लेता जो परमेश्वर उन्हें देते, तब बाद में परमेश्वर दोबारा विश्राम के दूसरे दिन के बारे में बात न करते! परन्तु परमेश्वर ने उन्हें विश्राम की दूसरी प्रतिज्ञा दी।
\v 9 इसीलिए, जैसे कि परमेश्वर ने सब कुछ बनाने के बाद सातवें दिन विश्राम किया था, एक समय रहता है जब परमेश्वर के लोग सदा के लिए विश्राम करेंगे।
\v 10 जो भी परमेश्वर के विश्राम के स्थान में प्रवेश करता है, वह अपना काम समाप्त कर चुका है, जैसे परमेश्वर ने अपना सब कुछ बनाने का काम पूरा कर लिया।
\v 11 इसलिए हम मसीह का अनुसरण करके उत्सुकता से परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करते हैं, ताकि जो लोग अवज्ञा करते हैं उनका उदाहरण हमें प्रभावित न करे और न ही हमें नष्ट करे ।
\p
\s5
\v 12 परमेश्वर के वचन जीवित और शक्तिशाली हैं, और वे एक धारदार तलवार की तरह गहराई से काटने में सक्षम हैं - इतनी गहराई से कि यह हमारे प्राण और आत्मा के बीच के अंतर को अलग कर सकते हैं। परमेश्वर के वचन एक तलवार के समान हैं जो गहराई से काटती है, वह हमारे भीतर इतनी गहराई से काट सकते हैं जैसे कि एक धारवाली तलवार जानवर के जोड़ों को काटती है। ये वचन हमारे भीतर के सबसे कठोर अंगों को भी काटते हैं, जैसे कि एक तलवार जो हड्डियों के भीतर मज्जा को काट सकती है। परमेश्वर के वचन एक न्यायाधीश की तरह हैं, जो निर्णय लेते हैं कि कौन से विचार अच्छे हैं या कौन से विचार बुरे हैं, और उसके शब्द हमारे दिल के भीतर छिपे हुए उद्देश्यों को परखते हैं।
\v 13 परमेश्वर सब के बारे में सब कुछ जानते हैं। उससे कुछ भी छिपा नहीं है! सब कुछ उनके लिए पूरी तरह से खुला हुआ है और वह हमारे सब कामों को देखते हैं। हम सब को परमेश्वर के सामने आना होगा और हमें बताना होगा कि हम ने अपना जीवन कैसे जिया!
\p
\s5
\v 14 इसलिए हमारे पास एक महान महायाजक हैं जो स्वर्ग पर चढ़े जब वह परमेश्वर की उपस्थिति में लौट गए। वह परमेश्वर के पुत्र यीशु हैं! इसलिए आओ, हम साहसपूर्वक खुले रूप से यह कहें कि हम यीशु मसीह पर भरोसा रखते हैं।
\v 15 हमारे महायाजक नि:सन्देह हम पर दया करते हैं और हमें प्रोत्साहित करते हैं, हम जो आसानी से पाप करने की मानसिकता रखते हैं, क्योंकि शैतान ने भी उन्हें हर प्रकार से पाप करने के लिए ललचाया था जैसे कि वह हमें पाप करने के लिए परीक्षा में डालता है - परन्तु उन्होंने पाप नहीं किया।
\v 16 इसलिए आओ, हम साहसपूर्वक मसीह के पास आते हैं, जो स्वर्ग से शासन करते हैं और हमारे लिए वह करते हैं, जिसके हम योग्य नहीं हैं, जिससे कि जब हमें उनकी आवश्यक्ता हो तो वह दयालु होकर हमारी सहायता करें।
\s5
\c 5
\p
\v 1 जब परमेश्वर महायाजक चुनते हैं, तो वह लोगों में से एक व्यक्ति का चुनाव करते हैं। उस व्यक्ति को लोगों के लिए परमेश्वर की सेवा करनी चाहिए; उसे लोगों के पापों के लिए परमेश्वर के सम्मुख भेंट चढ़ाना और पशुओं की बलि देना होती है।
\v 2 एक महायाजक उन लोगों के साथ नम्रता का व्यवहार करता है जो परमेश्वर के बारे में कम जानते हैं और परमेश्वर के विरुद्ध पाप करते हैं। यह इसलिए कि महायाजक स्वयं पाप के कारण निर्बल होता है।
\v 3 इसीलिए, उसे भी पशुओं की बलि चढ़ाना आवश्यक होती है क्योंकि वह भी अन्य लोगों के समान पाप करता है।
\p
\s5
\v 4 परन्तु महायाजक बनने का निर्णय लेकर कोई भी अपना सम्मान नहीं कर सकता है, इसकी अपेक्षा परमेश्वर स्वयं ही महायाजक को चुनते हैं, जैसा कि उन्होंने हारून को पहला महायाजक चुना था।
\p
\v 5 इसी प्रकार मसीह ने महायाजक बनकर स्वयं का सम्मान नहीं किया। इसकी अपेक्षा, पिता परमेश्वर ने उसे यह कहते हुए नियुक्त किया जिसका उल्लेख भजनकार शास्त्रों में करता है: "आप मेरे पुत्र हो! आज मैंने घोषणा की है कि मैं आप का पिता हूँ!"
\s5
\v 6 और उन्होंने मसीह से यह भी कहा जो भजनकार ने शास्त्र के एक अन्य गद्यांश में लिखा: "आप एक महायाजक हो, जिस प्रकार मलिकिसिदक एक याजक था।"
\p
\s5
\v 7 उन दिनों में जब मसीह यहाँ संसार में रह रहे थे, उन्होंने परमेश्वर से प्रार्थना की और आँसुओं के साथ ऊँचे शब्द से उनको पुकारा। उन्होंने परमेश्वर से पूछा, जो उन्हें मरने से बचा सकते थे। और परमेश्वर ने उनकी बात सुनी, क्योंकि मसीह उनका सम्मान करते थे और उनकी आज्ञा मानते थे।
\v 8 जबकि मसीह परमेश्वर के अपने पुत्र हैं, उन्होंने कष्ट सहे और मर कर परमेश्वर का आज्ञापालन करना सीखा।
\p
\s5
\v 9 सब कुछ समाप्त करके जो परमेश्वर उनसे करवाना चाहते थे, वह अब पूरी तरह से उन सब को सदा के लिए बचाने में समर्थ हैं जो उनकी आज्ञा मानते हैं।
\v 10 परमेश्वर ने उन्हें हमारा महायाजक बनाने के लिए उसी प्रकार नियुक्त किया है, जिस प्रकार मलिकिसिदक महायाजक था।
\p
\v 11 मैं तुमको उन कई समानताओं के बारे में बताना चाहता हूँ जिनमें मसीह मलिकिसिदक जैसे दिखते हैं। मेरे लिए तुमको यह समझाना कठिन है क्योंकि तुमको समझना बहुत कठिन लगता है।
\p
\s5
\v 12 तुम बहुत पहले ही मसीही बन गए! इसलिए अब तक तुम को दूसरों को परमेश्वर की सच्चाई बतानी चाहिए। लेकिन तुमको अब भी किसी की आवश्यक्ता है जो तुमको शास्त्रों से परमेश्वर के वचनों के प्रारंभिक सत्यों को फिर से सिखाए, जो आरंभ से हैं। तुमको उन आधारभूत सत्यों की ऐसी आवश्यक्ता है जैसी शिशु को दूध की होती है! तुम अधिक कठिन बातें सीखने के लिए तैयार नहीं हो, जो विकसित लोगों की आवश्यक्ता वाले ठोस भोजन के समान हैं।
\v 13 स्मरण रखो कि जो लोग अभी भी इन प्रारंभिक सच्चाइयों को सीख रहे हैं वे उसे समझ नहीं पा रहे हैं कि परमेश्वर धार्मिक बनने के बारे में क्या कहते हैं। न ही वे गलत और सही में अन्तर जानते हैं। वे ऐसे बच्चों की तरह हैं जिन्हें दूध चाहिए!
\v 14 लेकिन अधिक कठिन धार्मिक सत्य उन लोगों के लिए हैं जो परमेश्वर को अधिक जानते हैं, जैसे कि ठोस भोजन बड़ो के लिए होता है। वे अच्छे और बुरे के बीच के अंतर को बता सकते हैं, क्योंकि उन्होंने यह सीख कर कि क्या सही है और क्या गलत है, स्वयं को शिक्षित किया है।
\s5
\c 6
\p
\v 1-3 इसलिए, मसीह के बारे में हम ने जो बातें पहले सीखी हैं, उस पर हमें चर्चा नहीं करनी चाहिए, उन बातों को तो सभी विश्वासियों को पहले सीखना चाहिए। इनमें से कुछ बातें हैं जैसे उन पापी कार्यों को रोकना जो मृत्यु की ओर ले जाते हैं, और परमेश्वर पर भरोसा रखना कैसे आरंभ करें। हम कुछ महत्वपूर्ण बातें भी सिखाते हैं: बपतिस्मा के विभिन्न प्रकार, हम एक दूसरे पर हाथ रखकर क्यों प्रार्थना करते हैं; और यह भी कि कैसे परमेश्वर हम सब को मरे हुओं में से जीवित करके उठाएँगे और हर किसी का न्याय करेंगे जो सदा का होगा। हम इन बातों पर बाद में फिर से चर्चा करेंगे, यदि परमेश्वर हमें ऐसा करने का अवसर दें। परन्तु अब हमें उन बातों की चर्चा करनी चाहिए जो समझने में कठिन हैं; चाहे जो कुछ भी हो, ये ऐसी बातें हैं, जो हमें हर समय मसीह पर भरोसा रखने में सहायता करेंगी!
\p
\s5
\v 4 मैं यह समझाऊँगा कि ऐसा करना क्यों महत्वपूर्ण है! कुछ लोगों ने एक बार मसीह के बारे में संदेश समझा है। उन्होंने यह सीखा है कि परमेश्वर के लिए उन्हें क्षमा करना और मसीह के लिए उन्हें प्रेम करना कैसा था, और उन्हें पवित्र आत्मा से वरदान मिले।
\v 5 उन्होंने स्वयं पाया कि परमेश्वर का संदेश अच्छा है, और उन्हें पता चला कि भविष्य में परमेश्वर कैसे शक्तिशाली काम करेंगे।
\v 6 लेकिन अब, अगर ये लोग मसीह को अस्वीकार करते हैं, तो कोई भी उन्हें पाप करने से रोकने और फिर से उस पर विश्वास करने के लिए प्रेरित करने में समर्थ नहीं होगा! ऐसा इसलिए है कि इन लोगों ने परमेश्वर के पुत्र को फिर से उसके क्रूस पर कीलों से ठोंक दिया है! वे दूसरों के सामने मसीह से घृणा करने वाले लोगों को उत्पन्न कर रहे हैं!
\p
\s5
\v 7 इस बारे में सोचें: परमेश्वर ने उस देश को आशीष दी है जिस पर लगातार बारिश आई है और जिस पर किसानों के लिए पौधे उगते हैं।
\v 8 लेकिन ऐसे विश्वासियों का क्या होगा जो परमेश्वर का आज्ञापालन नहीं करते हैं, वे उस देश के समान हैं जिस में केवल काँटें और झाड़ियाँ उगती हैं। ऐसा देश किसी योग्य नहीं है! यह ऐसा देश बन गए हैं जिसे किसान श्राप देगा और जिसके पौधे वह जला देगा।
\p
\s5
\v 9 हे प्रिय मित्रों, तुम देख सकते हो कि मैं तुमको चेतावनी दे रहा हूँ कि मसीह को अस्वीकार नहीं करना! साथ ही, मुझे विश्वास है कि तुम इससे अधिक अच्छा कर रहे हो। तुम उन कामों को कर रहे हो जो इस सच्चाई के अनुरूप हैं कि परमेश्वर तुम को बचा रहे हैं।
\v 10 क्योंकि परमेश्वर हमेशा न्यायपूर्ण कार्य करते हैं, वह उन कामों को अनदेखा नहीं करेंगे जो तुमने उनके लिए किए हैं; वह अनदेखा नहीं करेंगे कि किस तरह तुमने अपने साथी विश्वासियों से प्रेम किया और उनकी सहायता की, और किस तरह अब तक तुम उनकी सहायता कर रहे हो।
\p
\s5
\v 11 हमारी बड़ी लालसा हैं कि तुम में से प्रत्येक ऐसे प्रयास करके दिखाता रहे जो तुम अभी दिखा रहे हो, जिससे कि तुम्हारे जीवन के अंत में, तुम सुनिश्चित हो जाओगे कि तुमको वह सब कुछ मिलेगा जो परमेश्वर ने तुमको देने की प्रतिज्ञा की है।
\v 12 मैं नहीं चाहता कि तुम आलसी बनो। इसकी अपेक्षा मैं चाहता हूँ कि तुम वह सब करो जो दूसरे विश्वासियों ने किया है, और परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के वारिस हो गए है, क्योंकि वे उन पर भरोसा रखते थे और धीरज धरते थे।
\p
\s5
\v 13 जब परमेश्वर ने अब्राहम के लिए बड़े कामों को करने की प्रतिज्ञा की थी, तो उससे महान कोई भी नहीं था जिसे वह कह सकता था कि इन कामों को करने के लिए स्वयं को विवश करता। इसलिए उसने अपने ही से कहा।
\v 14 तब उन्होंने अब्राहम से कहा, "मैं तुझे अवश्य ही आशीष दूँगा और मैं अवश्य ही तेरे वंशजों की संख्या को बहुत बढ़ाऊँगा।"
\v 15 बाद में अब्राहम ने धीरज रखकर उनकी प्रतिज्ञा पूरी होने की प्रतीक्षा की, और परमेश्वर ने उसके लिए वही किया जिसकी उन्होंने प्रतिज्ञा की थी ।
\p
\s5
\v 16 ध्यान रखो कि जब लोग प्रतिज्ञा करते हैं, तो वे अपने से अधिक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति से कहते हैं कि यदि वे चूक गए तो वह उन्हें दण्ड दें! इसी प्रकार वे अक्सर विवादों का निपटारा करते हैं।
\v 17 इसलिए जब परमेश्वर हम पर यह स्पष्ट करना चाहते हैं, कि उन्होंने जो प्रतिज्ञा की है वह अपनी योजना को नहीं बदलेंगे, तो उन्होंने कहा कि यदि वह ऐसा न करें, तो वह स्वयं को दोषी ठहराएँगे।
\v 18 उन्होंने दृढ़ता से हमें प्रोत्साहित करने के लिए ऐसा किया, क्योंकि उनके पास दो बातें हैं जिन्हें वह नहीं बदल सकते: उन्होंने हमारी सहायता करने की प्रतिज्ञा की है, और उन्होंने हमें बताया है कि अगर वह हमारी सहायता नहीं करेंगे तो वह स्वयं को दोषी घोषित करेंगे। अब, परमेश्वर झूठ नहीं बोल सकते इसलिए हम ने उन पर भरोसा किया है, जैसा उन्होंने करने के लिए हमें प्रोत्साहित किया है!
\p
\s5
\v 19 हाँ, हम विश्वास सहित आशा रखते हैं कि हमें वह प्राप्त होगा जिसे करने की परमेश्वर ने हमसे प्रतिज्ञा की है। ऐसा लगता है कि हम एक जहाज़ हैं जिसका लंगर हमें एक स्थान पर दृढ़ता से पकड़े हुए है। जिसे हम आत्मविश्वास से पकड़ने की आशा करते हैं वह यीशु है, क्योंकि वह परमेश्वर की उपस्थिति में गए हैं। यही कारण है कि वह एक महायाजक के समान हैं जो पर्दे के पीछे मंदिर के भीतरी भाग में जाते हैं, जहाँ परमेश्वर उपस्थित हैं।
\v 20 यीशु हम से आगे परमेश्वर की उपस्थिति में गए जिससे कि हम उसी स्थान में प्रवेश करके परमेश्वर के साथ हों। यीशु हमेशा के लिए एक महायाजक बन गए हैं, जिस प्रकार से मलिकिसिदक महायाजक था।
\s5
\c 7
\v 1 अब मैं इस व्यक्ति मलिकिसिदक के बारे में और कहूँगा। वह सालेम शहर का राजा था और वह संसार पर राज्य करनेवाले परमेश्वर का याजक भी था। वह अब्राहम और उसके पुरुषों को मिला जो चार राजाओं की सेनाओं को पराजित करके घर लौट रहे थे। मलिकिसिदक ने अब्राहम को आशीष दी।
\v 2 तब अब्राहम ने उन सभी वस्तुओं का दसवाँ अंश उसे दिया जो उसने युद्ध जीतने के बाद ले ली थीं। अब मलिकिसिदक के नाम का पहला अर्थ है, "राजा जो सच्चाई से शासन करता है" और, क्योंकि सालेम का अर्थ "शान्ति" है, तो उसके नाम का अर्थ यह भी है, "राजा जो शांतिपूर्वक शासन करता है।"
\v 3 शास्त्रों में हमें मलिकिसिदक के पिता, माता या पूर्वजों की कोई जानकारी नहीं मिलती है; न ही शास्त्र हमें बताते हैं कि कब उसका जन्म हुआ या कब वह मरा। ऐसा लगता है कि वह हमेशा के लिए एक याजक बन गया है। इस प्रकार से, वह थोड़ा बहुत परमेश्वर के पुत्र के समान है।
\s5
\v 4 इस तथ्य से ही समझ सकते हो कि यह व्यक्ति मलिकीसिदक कितना महान था कि हमारे प्रसिद्ध पूर्वज अब्राहम ने उसे राजाओं के साथ युद्ध से प्राप्त हुई सबसे अच्छी वस्तुओं का दसवाँ भाग दिया था।
\v 5 परमेश्वर द्वारा मूसा को दिए नियमों के अनुसार, अब्राहम के परपोते लेवी, वंशजों को जो याजक थे परमेश्वर के लोगों से दशमांश लेना होता था, जो अब्राहम के वंशज होने के कारण उनके भाई हीं थे।
\v 6 लेकिन मलिकिसिदक को, जो लेवी के वंश में से नहीं था, अब्राहम से सब चीजों का दसवाँ अंश मिला। उसने अब्राहम को आशीष भी दी, अब्राहम को परमेश्वर ने कई वंशज देने की प्रतिज्ञा की थी।
\p
\s5
\v 7 अब हर कोई जानता है कि अधिक महत्वपूर्ण लोग कम महत्वपूर्ण लोगों को आशीष देते हैं, जैसे मलिकिसिदक ने अब्राहम को आशीष दी थी! इसलिए हम जानते हैं कि मलिकिसिदक अब्राहम से भी बड़ा था।
\v 8 लेवी की वंशावली वाले याजक एक दिन मरेंगे, परन्तु वे भी दशमांश प्राप्त करते थे। जबकि मलिकिसिदक जिसने अब्राहम से हर वस्तु का दसवां अंश प्राप्त किया - यह ऐसा है जैसे परमेश्वर ने गवाही दी कि मलिकिसिदक जीवित है, क्योंकि पवित्र शास्त्र उसकी मृत्यु के बारे में नहीं बताता है।
\v 9 और ऐसा लगता है जैसे लेवी, और सभी याजक स्वयं उसके द्वारा आए - जिन्होंने लोगों से दशमांश प्राप्त किया - वे मलिकिसिदक को दशमांश देते थे, क्योंकि उनके पूर्वज अब्राहम ने उसे दशमांश दिया था। जब अब्राहम ने मलिकिसिदक को दशमांश दिया, यह कुछ ऐसा था जैसे लेवी और उसके बाद के सभी याजकों ने यह स्वीकार किया था कि मलिकिसिदक अब्राहम से बड़ा था।
\v 10 यह सच है क्योंकि हम यह कह सकते हैं कि लेवी और उसके वंशज अब्राहम के शरीर में के थे जब मलिकिसिदक अब्राहम से मिला था।
\p
\s5
\v 11 परमेश्वर ने अपने लोगों को जब व्यवस्था दिए, उसी समय उसने याजकों के बारे में नियम दिए। इसलिए अगर याजक जो हारून और उसके पूर्वज लेवी से निकले थे, वे परमेश्वर के लिए उन नियमों का उल्लघंन करने के लिए लोगों को क्षमा प्राप्त करने की एक विधि दे सकते थे, तो वे याजक ही काफी होते। ऐसी स्थिति में, मलिकिसिदक जैसा कोई अन्य याजक आवश्यक नहीं होता।
\v 12 परन्तु हम जानते हैं कि वह याजक पर्याप्त नहीं थे, क्योंकि मलिकिसिदक जैसा एक नया याजक आ गया है। और जब परमेश्वर ने इस नए याजक को नियुक्त किया है, तो उसे कानून को भी बदलना पड़ा।
\p
\s5
\v 13 यीशु, जिस के बारे में मैं यह बातें कह रहा हूँ, वह लेवी के वंशज नहीं हैं; वह यहूदा के गोत्र से आए थे, जिसमें से कभी किसी व्यक्ति ने महायाजक के रूप में सेवा नहीं की थी।
\v 14 शास्त्र इस वाक्य को स्पष्ट करता है। और वास्तव में, मूसा ने कभी नहीं कहा था कि यहूदा के वंश में से कोई भी याजक बनेगा!
\p
\s5
\v 15 इसके अतिरिक्त , हम जानते हैं कि लेवियों से निकले याजक अपर्याप्त थे, क्योंकि यह और अधिक स्पष्ट है कि एक और याजक प्रकट हुआ है जो मलिकिसिदक के समान है।
\v 16 यह याजक यीशु हैं; वह एक याजक बन गए, परन्तु इसलिए नहीं कि उन्होंने लेवी के वंशज होने के बारे में परमेश्वर के कानून की अनिवार्यता पूरी की थी। इसकी अपेक्षा उनके पास इस प्रकार की शक्ति है जो एक ऐसे जीवन से आई जिसे कुछ भी नष्ट नहीं कर सकता है।
\v 17 हम यह जानते हैं क्योंकि परमेश्वर ने पवित्र शास्त्र में इसकी पुष्टि की थी जिसमें उसने अपने पुत्र से कहा था, "आप हमेशा के लिए याजक हो, जैसे मलिकिसिदक एक याजक था।"
\p
\s5
\v 18 परमेश्वर ने, याजक के बारे में जो आज्ञा दी थी, उसे वापस ले लिया क्योंकि वे याजक पापपूर्ण लोगों को पवित्र बनाने में असमर्थ हैं।
\v 19 परमेश्वर द्वारा मूसा को दिए नियमों का पालन करके, कोई भी अच्छा होने में सक्षम नहीं था। दूसरी ओर, परमेश्वर ने हमें उन पर भरोसा रखने का एक अधिक उत्तम कारण दिया है, क्योंकि वह हमारा उनके पास आना संभव बनाते हैं।
\p
\s5
\v 20 इसके अतिरिक्त जब परमेश्वर ने एक याजक के रूप में मसीह को नियुक्त किया, तो उन्होंने यह गंभीरता से घोषित किया। जब परमेश्वर ने पूर्वकाल के याजकों को नियुक्त किया था, तो उसने ऐसा नहीं किया था।
\v 21 परन्तु जब उन्होंने मसीह को याजक होने के लिए नियुक्त किया, तो वह इन शब्दों के द्वारा था जो भजनकार ने शास्त्र में लिखे थे: "परमेश्वर ने गंभीरता से घोषित किया है और वह अपना मन नहीं बदलेगे, 'आप हमेशा के लिए एक याजक होगे!'
\p
\s5
\v 22 इस कारण यीशु ने स्वयं कहा है कि नई वाचा पुरानी से अधिक उत्तम होगी।
\v 23 और पूर्वकाल के याजक याजकीय सेवा नहीं करते रहे क्योंकि उनकी मृत्यु हो जाती थी। और मरे हुए याजक का स्थान ग्रहण करने के लिए वहाँ अनेक याजक होते थे।
\v 24 परन्तु क्योंकि यीशु सदा के लिए जीवित हैं, वह सदा के लिए महायाजक बने रहेंगे!
\p
\s5
\v 25 इसलिए यीशु परमेश्वर के पास आनेवालों का परिपूर्ण एवं अनन्त उद्धार कर सकते हैं, क्योंकि वह परमेश्वर से उनकी क्षमा हेतु प्रार्थना करने के लिए और उनकी सुरक्षा के लिए सदा जीवित हैं!
\v 26 यीशु एक ऐसे महायाजक हैं जिनकी हमें आवश्यक्ता है। वह पवित्र थे, उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया, और वह निर्दोष थे। परमेश्वर ने अब उनको पापियों के बीच रहने से अलग कर दिया है, और अब उनको सर्वोच्च स्वर्ग तक ले गए हैं।
\p
\s5
\v 27 यहूदियों के मुख्य याजकों को हर दिन और साथ ही वर्षों तक पशुओं के बलिदान की आवश्यक्ता होती है। वे ऐसा करते हैं, जिससे कि वे सबसे पहले वे अपने पापों को ढाँप सकें, और फिर अन्य लोगों के पापों को ढाँप सकें। लेकिन क्योंकि यीशु ने कभी पाप नहीं किया, उन्हें ऐसा करने की आवश्यक्ता नहीं है। लोगों को बचाने के लिए उन्हें केवल एक काम करने की आवश्यक्ता थी कि वह एक बार स्वयं की बलि दें, और उन्होंने ठीक ऐसा ही किया!
\v 28 हमें यीशु जैसे एक महायाजक की आवश्यक्ता है, क्योंकि जिन याजकों को व्यवस्था की आज्ञा के अनुसार नियुक्त किया गया था, उन्होंने सब मनुष्यों के समान पाप किया था। परन्तु परमेश्वर ने मूसा को अपनी व्यवस्था देने के बाद गर्व से घोषणा की कि वह अपने पुत्र को महायाजक के रूप में नियुक्त करेंगे। अब उनका पुत्र, जो पुत्र परमेश्वर हैं, यीशु सदा के लिए एकमात्र सिद्ध महायाजक हैं!
\s5
\c 8
\p
\v 1 मैंने जो सब कुछ लिखा है उसका सबसे महत्वपूर्ण भाग यह है कि हमारे पास एक महायाजक हैं जो स्वर्ग में सबसे बड़े सम्मान के स्थान पर शासन करने के लिए बैठ गए हैं, जो स्वयं परमेश्वर के साथ है!
\v 2 वह पवित्र स्थान में, अर्थात स्वर्ग में आराधना के वास्तविक स्थान में सेवा करते हैं। यही सच्चा पवित्र तम्बू है, क्योंकि मूसा ने नहीं परमेश्वर ने इसे स्थापित किया है।
\p
\s5
\v 3 परमेश्वर लोगों के पापों के लिए प्रत्येक महायाजक को नियुक्त करते हैं कि वह भेंटें और बलि चढाए! इसलिए जब मसीह एक महायाजक बन गए, तो उन्हें भी कुछ देना था।
\v 4 क्योंकि पहले से ही वहाँ याजक हैं जो परमेश्वर के नियमों के अनुसार भेंटें चढ़ाते है, अगर मसीह अभी इस पृथ्वी पर जी रहे होते तो वह कभी महायाजक न बन पाते।
\v 5 यरूशलेम के याजक वह रीति-रिवाज निभाते हैं जो स्वर्ग में मसीह करते हैं। इसका कारण यह है कि जब मूसा पवित्र तम्बू स्थापित करने वाला था, तो परमेश्वर ने उससे कहा "सुनिश्चित कर कि जो कुछ मैंने तुझे सीनै पर्वत पर दिखाया, उसके अनुसार सब कुछ बने!"
\p
\s5
\v 6 परन्तु अब मसीह यहूदियों के याजकों से अधिक उत्तम रीति से सेवा करते हैं। उसी प्रकार परमेश्वर और लोगों के बीच जो नई वाचा उन्होंने स्थापित की, वह पुरानी से अधिक उत्तम है। जब उन्होंने नई वाचा की स्थापना की, तो उन्होंने मूसा को दिए गए नियमों से अधिक उत्तम वस्तुएँ देने की हमसे प्रतिज्ञा की।
\p
\v 7 परमेश्वर को इस नई वाचा की स्थापना की आवश्यक्ता थी, क्योंकि पहली वाचा ने सब कुछ सिद्धता में नहीं किया था।
\s5
\v 8 क्योंकि परमेश्वर ने घोषणा की कि इस्राएली पहली वाचा का पालन न करने के लिए दोषी थे, वे एक नई वाचा चाहते थे। एक भविष्यद्वक्ता ने इस बारे में यही लिखा था: "परमेश्वर कहते हैं, 'सुनो! जल्द ही एक समय होगा जब मैं इस्राएल के लोगों और यहूदा के लोगों के साथ एक नई वाचा बाँधूँगा।
\v 9 यह वाचा उस वाचा की तरह नहीं होगी जो मैंने उनके पूर्वजों के साथ बाँधी थी जब मैंने उन्हें मिस्र से इस प्रकार बाहर निकाला था जिस प्रकार कि एक पिता अपने छोटे बच्चे को मार्ग दिखाता है! परमेश्वर कहते हैं कि उन्होंने मेरी वाचा का पालन नहीं किया, इसलिए मैंने उन्हें अकेला छोड़ दिया।
\s5
\v 10 'पहली वाचा के समाप्त होने के बाद यह वह वाचा है जो मैं इस्राएलियों के साथ बाँधूँगा,' परमेश्वर कहते हैं: 'मैं उन्हें अपने कानूनों को समझने योग्य करूँगा, और मैं उन्हें इस योग्य बनाऊँगा कि वे सच्चे दिल से उनका पालन करें! मैं उनका परमेश्वर होऊँगा, और वे मेरी प्रजा होंगे।
\s5
\v 11 किसी को भी अपने साथ के नागरिक को या एक संबन्धी को सिखाने की आवश्यकता नहीं होगी, 'तुम मानते हो कि यहोवा ही परमेश्वर हैं,' क्योंकि मेरे सब लोग मुझे स्वीकार करेंगे। मेरे लोगों में से हर कोई, सबसे कम महत्वपूर्ण से सबसे अधिक महत्वपूर्ण तक, मुझे जान लेंगे।
\v 12 मैं दयापूर्वक उन दुष्ट कामों के लिए उन्हें क्षमा करूँगा जो उन्होंने किए हैं। अब मैं उन्हें उनके पापों के लिए दोषी नहीं ठहराऊँगा।"
\p
\s5
\v 13 क्योंकि परमेश्वर ने कहा था कि वह एक नई वाचा बाँध रहे हैं, हम जानते हैं कि उन्होंने स्वीकार किया है कि पहली वाचा अब प्रयोग में नहीं थी, और वह शीघ्र जल्द ही विलोप हो जाएगी।
\s5
\c 9
\p
\v 1 पहली वाचा में परमेश्वर ने इस्राएल के लोगों को नियम दिए कैसे आराधना करनी चाहिए, और उन्होंने उन्हें आराधना करने के लिए एक स्थान तैयार करने के लिए कहा।
\v 2 इस्राएलियों द्वारा स्थापित पवित्र स्थान पवित्र तम्बू था। उसके बाहरी कमरे में दीवट और मेज थे जिस पर उन्होंने परमेश्वर के सामने रोटियाँ रखी थीं। उस भाग को पवित्र स्थान कहा जाता था।
\p
\s5
\v 3 पवित्र स्थान के एक ओर पर्दे के पीछे एक और भाग था उसे परम पवित्र स्थान कहा जाता था।
\v 4 जलती हुई धूप के लिए उसमें एक वेदी थी जो सोने से मढ़ी हुई थी। इसमें पवित्र संदूक था। उसके सभी पक्षों को सोने से लपेटा गया था! इसमें सोने का एक बर्तन था जिस में भोजन के वह टुकड़े थे जिन्हें वे मन्ना कहते थे। संदूक में हारून की चलने की छड़ी भी थी जिसमें यह सिद्ध करने के लिए कलियाँ निकली हुई थीं कि वह परमेश्वर का सच्चा याजक है। संदूक में पत्थर की पटियाएँ भी थीं, जिन पर परमेश्वर ने दस आज्ञाएँ लिखी थीं।
\v 5 संदूक के ऊपर पंख वाले प्राणियों की प्रतिमाएँ थीं जो परमेश्वर की महिमा का प्रतीक थे। उनके पंखों ने पवित्र संदूक के ढक्कन को ढाँप हुआ था। जहाँ महा याजक लोगों के पापों के लिए लहू छिड़कते थे, मैं अब इन बातों के बारे में विस्तार से नहीं लिख सकता हूँ!
\p
\s5
\v 6 इन सब वस्तुओं को इस प्रकार व्यवस्थित करने के बाद यहूदी याजक अपने दैनिक कार्य करने के लिए तम्बू के बाहरी कमरे में जाते थे।
\v 7 लेकिन भीतर भाग में केवल महायाजक वर्ष में एक बार जाता है। वह सदा उन पशुओं का लहू लेते जाते हैं, जिनकी उन्होंने बलि दी है। वह अपने पापों और अन्य इस्राएलियों के पापों के लिए परमेश्वर को लहू चढ़ाते हैं। इसमें वे पाप भी थे, जिनके बारे में उन्हें नहीं पता था कि वे पाप कर रहे थे।
\p
\s5
\v 8 उन बातों से पवित्र आत्मा ने संकेत दिया कि परमेश्वर ने आम लोगों के लिए भीतर के भाग अर्थात, परम पवित्र स्थान, में प्रवेश करने का मार्ग प्रकट नहीं किया है, जबकि बाहरी भाग अब भी अस्तित्व में है। इस प्रकार, उसने सामान्य लोगों को परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करने का मार्ग प्रकट नहीं किया, जबकि यहूदियों ने पुराने रीति से बलि चढ़ाई।
\v 9 यह उस समय का प्रतीक था जिसमें अब हम जीवित हैं। पवित्र तम्बू में दी जाने वाली भेंट और बलि किसी व्यक्ति को सदैव गलत से सही पता लगाने या सदैव दिल से सही और परमेश्वर को प्रसन्न करने की विधि नहीं दिखाती हैं।
\v 10 वह नियम जो बताते हैं कि क्या खाना और पीना है और क्या धोना है - यह सारे नियम अब किसी काम के नहीं रहेंगे क्योंकि परमेश्वर ने हमारे साथ नई वाचा बाँधी हैं! यह नई वाचा एक अधिक उत्तम प्रणाली है।
\p
\s5
\v 11 लेकिन जब मसीह हमारे महायाजक के रूप में आए, तो वह अच्छी चीज़ ले कर आए जो अब हमारे पास है। फिर वह स्वर्ग में परमेश्वर की उपस्थिति में गए, जो पवित्र तम्बू की तरह है, परन्तु संसार का भाग नहीं है जिसकी परमेश्वर ने रचना की थी। यह तम्बू उस तम्बू से अधिक उत्तम है जिसे मूसा ने पृथ्वी पर स्थापित किया है क्योंकि यह सिद्ध है।
\v 12 जब महायाजक हर वर्ष तम्बू के भीतरी भाग में जाता है, तो वह बकरों के लहू और बछड़ों के लहू को बलि के रूप में प्रस्तुत करता है। परन्तु मसीह ने ऐसा नहीं किया। ऐसा लगता था कि वह केवल एक बार उस पवित्र स्थान में गए थे क्योंकि केवल एक बार, उन्होंने क्रूस पर अपना स्वयं का लहू दिया। ऐसा करके, उन्होंने हमें हमेशा के लिए छुड़ाया, क्योंकि उनका लहू स्वयं बह गया था!
\p
\s5
\v 13 याजक बकरों के लहू और बैलों के लहू और पानी को छिड़कता है जो लाल बछिया की राख के माध्यम से छाना गया है जिसे वे पूरी तरह जला चुके हैं। इस अनुष्ठान के द्वारा, वे कहते हैं कि परमेश्वर लोगों की आराधना को अब स्वीकार करेंगे।
\v 14 यदि यह सब सच है, तो यह और भी सच हो गया है, जब मसीह ने, जिसने कभी पाप नहीं किया, परमेश्वर के लिए स्वयं को बलि किया उन्होंने परमेश्वर के अनन्त आत्मा के सामर्थ से ऐसा किया। क्योंकि उन्होंने स्वयं को बलि किया, परमेश्वर अब हमें पाप करने के लिए क्षमा कर देते हैं, उन सब बातों के लिए जो हमें सदा के लिए मृत्यु देती हैं। अब ऐसा लगता है कि हम ने कभी पाप नहीं किया है; अब हम सच्चे परमेश्वर की आराधना कर सकते हैं।
\v 15 हमारे लिए मर कर, मसीह ने परमेश्वर के लिए हमारे साथ एक नई वाचा बाँधी है! हम पहली वाचा के माध्यम से परमेश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन फिर भी हम पाप करने के दोषी थे। जब वह मरे, उन्होंने हमें हमारे अपने पापों के लिए मरने से मुक्त किया। जिसके परिणामस्वरूप, हम सब जिनको परमेश्वर ने उन्हे जानने के लिए बुलाया है, उनको वह प्राप्त होगा जो उन्होंने हमें सदा के लिए देने की प्रतिज्ञा की है!
\p
\s5
\v 16 वाचा एक वसीयत के समान होती है! वसीयत में प्रावधानों को प्रभाव में लाने के लिए, किसी को यह सिद्ध करना होता है कि जिसने इसे बनाया है, वह मर चुका है।
\v 17 वसीयत तब ही प्रभावित होती है जब उसे बनाने वाला व्यक्ति मर जाए। यह तब प्रभावित नहीं है जब इसे बनाने वाला व्यक्ति अभी भी जीवित है।
\p
\s5
\v 18 और इसलिए परमेश्वर ने पहली वाचा को केवल पशुओं के लहू के माध्यम से प्रभावित किया था, जब याजक उनकी बलि देते थे।
\v 19 जब मूसा ने सब इस्राएलियों को उन सब नियमों को सुना दिया जिनकी आज्ञा परमेश्वर ने उसे अपनी व्यवस्था में दी थी, तो उन्होंने पानी के साथ बछड़े और बकरों के लहू को मिलाया। वह इसमें लाल रंग के ऊन को डुबोते, जिसे उन्होंने जूफा की टहनी पर बाँधा था। फिर उन्होने थोडा लहू उस पुस्तक पर जिसमें परमेश्वर के नियम थे। और सब लोगों पर छिड़का।
\v 20 उन्होंने उनसे कहा, "यह वह लहू है जो उस वाचा को प्रभावित करता है जिसकी परमेश्वर ने आज्ञा दी थी कि तुम उसे मानो।"
\p
\s5
\v 21 इस प्रकार उन्होंने पवित्र तम्बू पर और उसमें काम करने के लिए प्रयोग में आनेवाली हर एक वस्तु पर उस लहू को छिड़क दिया।
\v 22 यह लहू छिड़कने के द्वारा उसने लगभग सब कुछ साफ किया यही परमेश्वर की व्यवस्था में बताया गया था। यदि किसी पशु की बलि चढ़ाते समय उसका लहू नहीं बहता है, तो परमेश्वर उन लोगों के पापों को क्षमा नहीं करते।
\p
\s5
\v 23 इसलिए पशुओं की बलि से याजकों के लिए आवश्यक था कि उन वस्तुओं को शुद्ध करें जो उन बातों का प्रतीक थीं जिनको मसीह स्वर्ग में करते हैं। परन्तु परमेश्वर को स्वर्ग में उन से अधिक उत्तम बलि द्वारा शोधन करना आवश्यक है।
\v 24 मसीह ने उस पवित्र स्थान पर प्रवेश नहीं किया, जो मनुष्यों ने बनाया था, जो केवल सच्चे पवित्र स्थान का प्रतीक था। उसने स्वयं स्वर्ग में प्रवेश किया, जिससे कि वह परमेश्वर की उपस्थिति में रह कर परमेश्वर से हमारे लिए अनुरोध कर सकें!
\p
\s5
\v 25 महायाजक हर वर्ष एक बार पवित्र स्थान में प्रवेश करता है, वह लहू लिए हुए जो उसका स्वयं का नहीं है और इसे बलिदान के रूप में प्रस्तुत करता है। परन्तु जब मसीह ने स्वर्ग में प्रवेश किया, तो वह स्वयं को वहाँ बार-बार बलि करने के लिए नहीं था।
\v 26 यदि ऐसा था, तो जब परमेश्वर ने संसार का निर्माण किया था तब से उसे बार-बार पीड़ित होने और अपने लहू को बहाने की आवश्यकता होती। परन्तु इसकी अपेक्षा इस अंतिम युग में, मसीह एक बार प्रकट हुए है कि स्वयं की बलि करने के द्वारा, परमेश्वर हमारे सब पापों को क्षमा कर देंगे और हमें दण्ड के योग्य नहीं ठहराएँगे क्योंकि हम ने पाप किए हैं।
\p
\s5
\v 27 सभी लोगों को एक बार मरना चाहिए, और उसके बाद परमेश्वर उनके पापों के लिए उनका न्याय करेंगे।
\v 28 इसी प्रकार जब मसीह मरे, तब परमेश्वर ने उनको अनेक लोगों के स्थान में दण्ड देने, उनको एक बार बलि देने के लिए चढ़ा दिया। वह दूसरी बार पृथ्वी पर आएँगे, परन्तु उन लोगों के लिए फिर से बलि होने, के लिए नहीं जिन्होंने पाप किए हैं, परन्तु हमें बचाने के लिए जो उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं और उसके आने की आशा कर रहे हैं।
\s5
\c 10
\p
\v 1 कानून अच्छी तरह से वह नहीं बताता है जो परमेश्वर हमें बाद में देंगे! कानून किसी अन्य वस्तु की छाया के समान है! यदि लोग प्रति वर्ष एक ही प्रकार की बलि के द्वारा परमेश्वर की आराधना करते हैं, तो वे कभी भी सिद्ध नहीं हो सकते।
\v 2 यदि परमेश्वर ने उनके दोष को मिटा दिया होता जो यह बलि लेकर आए थे, तो उन्हें कभी बोध नहीं होता कि वे अभी भी दोषी हैं। और वे निश्चय ही उन बलियों का चढ़ाना रोक देते!
\v 3 परन्तु सच तो यह है कि वे प्रति वर्ष उन बलियों को चढ़ाते हैं जो उन्हें स्मरण दिलाता है कि वे अभी भी अपने पापों के लिए दोषी हैं।
\v 4 इसलिए हम जानते हैं कि भले ही हम परमेश्वर के लिए बैल या बकरों जैसे पशुओं का चढ़ावा देते हैं, भले ही वह उनके लहू को बहता हुआ देखते हैं, यह हमें दोषी होने से नहीं रोक सकेगा!
\p
\s5
\v 5 यही कारण है कि जब मसीह संसार में आ रहे थे, तो उन्होंने अपने पिता से कहा, "यह बलिदान और भेंट नहीं हैं जो आप चाहते थे, परन्तु आप ने मेरे लिए एक शरीर तैयार किया है कि उसे बलि करूँ।
\v 6 जब लोग पशुओं को आपके लिए चढ़ाते हैं तो उन्हें पूरा जला देते हैं, इन पशुओं ने आप को प्रसन्न नहीं किया है, और न ही अन्य बलिदान आप को प्रसन्न करते हैं!
\v 7 इस कारण मैंने कहा, 'हे परमेश्वर, सुनिए! मैं यहाँ वह करने आया हूँ जो आप मुझ से चाहते हैं, जैसा कि उन्होंने शास्त्रों में मेरे बारे में लिखा है।''
\p
\s5
\v 8 पहले मसीह ने कहा, "यह वे भेंटें और बलिदान और पशु नहीं हैं जिसे याजक पूरा जला देते हैं और मनुष्यों के पापों की क्षमा के लिए अन्य चढ़ावे आपने नहीं चाहे। उन्होंने आप को प्रसन्न नहीं किया है।" उन्होंने कहा कि भले ही यह उन कानूनों के अनुसार चढ़ाए गए जो कि परमेश्वर ने मूसा को दिए थे!
\v 9 तब, उन्होंने पापों का प्रायश्चित्त करने के लिए स्वयं को बलि के रूप में प्रस्तुत किया, उन्होंने कहा, "सुनिए! मैं यहाँ वह करने आया हूँ जो आप मुझ से करवाना चाहते हैं!" इस प्रकार मसीह ने पाप के लिए प्रायश्चित करने की पूर्व की विधि से छुटकारा पाया, ताकि पाप का प्रायश्चित करने के लिए दूसरी विधि स्थापित कि जा सके।
\v 10 क्योंकि यीशु मसीह ने वह किया जो परमेश्वर चाहते थे इसलिए परमेश्वर ने हमें अपने लिए अलग किया। यह तब हुआ जब यीशु ने बलि के लिए एक बार में अपना शरीर दिया, एक ऐसी बलि जिसको दोहराने की आवश्यकता नहीं होगी।
\p
\s5
\v 11 जैसा कि हर याजक वेदी के सामने प्रतिदिन खड़ा होता है, वह अनुष्ठान करता है और उसी प्रकार की बलि चढ़ाता है जो किसी के पापों के अपराध को कभी नहीं हटा सकती।
\v 12 परन्तु मसीह ने एक ऐसी बलि दी जो सदा के लिए पर्याप्त होगी, और उन्होंने केवल एक बार इसे करके! उसके बाद, वह सर्वोच्च आदर के स्थान पर परमेश्वर के पास शासन करने के लिए बैठ गए।
\v 13 अब, वह परमेश्वर की प्रतीक्षा कर रहें हैं कि वह उनके सब बैरियों को पूर्ण रूप से पराजित कर दें ।
\v 14 पाप के लिए बलिदान के रूप में एक बार स्वयं को चढ़ा कर, वह सदा उन लोगों को सिद्ध बना दिया है जिनमें परमेश्वर ने अपनी शुद्धता और पवित्रता का काम किया है
\p
\s5
\v 15 पवित्र आत्मा हमारे लिए इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह सच है। पहले वह कहते हैं:
\v 16 "जब मेरे लोगों के साथ पहली वाचा का समय समाप्त हो गया, मैं उनके साथ एक नई वाचा बाँधूँगा। मैं उनके लिए यह करूँगा: मैं उन्हें अपने कानूनों को समझने का कारण उत्पन्न करूँगा और मैं उनसे इनका पालन करवाऊँगा।"
\s5
\v 17 फिर उन्होंने कहा: "मैं उनके पापों के लिए उन्हें क्षमा करूँगा, उन्हें पाप का दोषी नहीं मानूँगा और मैं विचार करूँगा कि वे पाप करने के लिए दोषी नहीं हैं।"
\p
\v 18 जब परमेश्वर किसी के पापों को क्षमा कर देते हैं, तो उसे अपने पाप के लिए किसी और चढ़ावे की आवश्यक्ता नहीं होती है!
\s5
\v 19 इसलिए, हे मेरे साथी विश्वासियों, क्योंकि यीशु ने जो किया था हम उस पर विश्वास करते हैं कि जब उनका अपना लहू हमारे लिए बहा था, तो हम आत्मविश्वास से परमेश्वर की उपस्थिति में जा सकते हैं जिसका प्रतीक पवित्र तम्बू का परम पवित्र स्थान था।
\v 20 उन्होंने एक नया मार्ग बनाकर जिसमें हम सदा जीवित रह सकते हैं, हमें परमेश्वर की उपस्थिति में जाने के योग्य बनाया है। यह नया मार्ग यीशु हैं, जो हमारे लिए मर गए।
\v 21 मसीह एक महान याजक हैं जो हमारे ऊपर जो परमेश्वर के लोग हैं, शासन करते हैं।
\v 22 इसलिए हमें सच्चे मन से यीशु पर आत्मविश्वास के साथ भरोसा रखकर परमेश्वर के निकट जाना है। यह वही है जिन्होंने हमारे दिल को पाप करने से शुद्ध किया है। ऐसा लगता है जैसे कि वह हमारे दिल पर अपना लहू छिड़कते है, और जैसे उन्होंने हमारे शरीर को शुद्ध पानी में धोया है।
\p
\s5
\v 23 हमें दृढ़ होकर बताते रहना चाहिए कि हम क्या विश्वास करते हैं। क्योंकि परमेश्वर सत्यता में उन सब बातों को करते हैं जिन्हे करने की उन्होने प्रतिज्ञा की है, इसलिए हमें आत्मविश्वास के साथ उनसे इन बातों को करने की आशा करनी चाहिए।
\v 24 और हम विचार करें कि हम में से हर कोई एक दूसरे को प्रेम करने और अच्छे कर्मों को करने के लिए अच्छे से प्रोत्साहित कैसे कर सकता है।
\v 25 हम प्रभु की आराधना करने के लिए एकजुट होना न छोड़ें, जैसा कि कुछ लोगों ने किया है, इसकी अपेक्षा हम सब दूसरों को प्रोत्साहित करें। हम ऐसा और भी अधिक करें क्योंकि हम जानते हैं कि प्रभु का लौट आना निकट है।
\p
\s5
\v 26 यदि हम मसीह के बारे में सच्चा संदेश जान चुके हैं, और हम जानबूझकर पाप करते हैं, तो दूसरा कोई बलिदान नहीं जो हमारी सहायता करेगा।
\v 27 इसकी अपेक्षा हम डरते हुए आशा करते हैं कि परमेश्वर हमारा न्याय करेंगे, और फिर वह अपने सब दुश्मनों को भयानक आग में दण्ड देंगे।
\p
\s5
\v 28 जो लोग उन कानूनों को अस्वीकार करते थे जो परमेश्वर ने मूसा को दिए थे, उन्हें दया के बिना कम से कम दो या तीन की गवाही पर मरना पड़ा।
\v 29 यह गम्भीर दण्ड था परन्तु मसीह परमेश्वर के पुत्र हैं, और वह परमेश्वर भी है। यदि कोई उस वाचा को अस्वीकार करता है जिसे उन्होने बाँधी है और उस लहू को तुच्छ समझता है जिसे उन्होने बहाया है - अगर वह व्यक्ति उस लहू को अस्वीकार कर देता है, जिसके बदले परमेश्वर ने उसे क्षमा कर दिया है - अगर वह व्यक्ति परमेश्वर के आत्मा को अस्वीकार कर देता है, जिसने उस पर ऐसी दया की थी तो परमेश्वर उसे बहुत ही अधिक गम्भीर दण्ड देंगे।
\p
\s5
\v 30 हम यह निश्चित कर सकते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि परमेश्वर ने कहा था, "उनके पापों के योग्य लोगों को दण्ड देने के लिए अधिकार और शक्ति मेरे पास है। मैं उन्हे वही दण्ड दूँगा जिस के वे योग्य हैं।" और मूसा ने लिखा, "प्रभु अपने लोगों का न्याय करेंगे।"
\v 31 यह एक भयानक बात होगी यदि सर्वशक्तिमान परमेश्वर जो वास्तव में जीवित हैं, तुमको पकड़े और दण्ड दें!
\p
\s5
\v 32 पहले के समयों को स्मरण रखें जब तुमने पहली बार मसीह के बारे में सत्य को समझा था। तुमने अनेक कठिनाईयों का सामना किया, और जब तुमको कष्ट उठाना पड़ा, तब भी तुम परमेश्वर पर भरोसा रखते रहे।
\v 33 कई बार लोगों ने तुम्हारा जनता के सामने अपमान किया; दूसरी बार उन्होंने तुमको पीड़ित किया। ऐसा भी समय था जब तुम अन्य विश्वासियों के साथ उनके क्लेशों में साझी हुए।
\v 34 तुम न केवल उन लोगों के प्रति दयालु हो, जो जेल में थे, क्योंकि वे मसीह में विश्वास करने के कारण बन्दीगृह में थे परन्तु तुमने सहर्ष स्वीकार किया जब अविश्वासियों ने तुम्हारी संपत्ति को लूटा। तुमने इसे स्वीकार कर लिया क्योंकि तुम भलीभांति जानते थे कि तुम्हारे पास स्वर्ग में सदाकाल की सम्पत्ति है, वह सम्पत्ति जो उनके द्वारा तुम से ले ली गई वस्तुओं की तुलना में अधिक उत्तम है!
\p
\s5
\v 35 इसलिए जब वे तुमको परेशान करें तो निराश मत होना, क्योंकि यदि तुम परमेश्वर पर भरोसा रखते हो, तो वह तुमको बहुत प्रतिफल देंगें।
\v 36 तुमको धीरज रखकर उस पर भरोसा रखना चाहिए, क्योंकि तुम जो करते हो, वह परमेश्वर की इच्छा से करते हो, वह तुमको वह देंगे जिसकी उन्होंने प्रतिज्ञा की है।
\v 37 एक भविष्यद्वक्ता ने शास्त्रों में लिखा है कि परमेश्वर ने मसीह के बारे में कहा: "कुछ ही समय में जिनका मैंने वादा किया था वह निश्चय ही आ जाएँगे; वह आने में देरी नहीं करेंगे।
\s5
\v 38 लेकिन जो लोग मेरे साथ हैं, जो सच्चे काम करते हैं, वे मुझ पर भरोसा रखते रहेंगे। अगर वे कायर हैं और मुझ में विश्वास करना छोड़ देते हैं, तो मैं उनसे प्रसन्न नहीं होऊँगा।
\p
\v 39 लेकिन हम वह लोग नहीं हैं, जो कायर हैं और परमेश्वर को हमें नाश करने का अवसर देते हैं। इसकी अपेक्षा हम लोग उन पर भरोसा रखते हैं, कि वह हमें सदा के लिए बचाएँ।
\s5
\c 11
\p
\v 1 विश्वास वह होता है जब लोग परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं और उन्हें पूरा विश्वास होता है कि वे उन वस्तुओं को प्राप्त करेंगे जिन के लिए वह दृढ़ विश्वास के साथ उनसे आशा करते हैं। विश्वास वह होता है जब लोगें को निश्चय हो जाता हैं कि वे वह होते हुए देखेंगे, जिन्हें, अभी, देखा नहीं जा सकता है।
\v 2 क्योंकि हमारे पूर्वजों ने परमेश्वर पर भरोसा रखा, उन्होने उनको अच्छा माना।
\v 3 क्योंकि हम परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं, हम समझते हैं कि परमेश्वर ने यह आदेश देकर संसार को अस्तित्व में किया। इसलिए जो चीजें हम देखते हैं वह पहले से उपस्थित वस्तुओं से नहीं बनाई गई थी।
\p
\s5
\v 4 क्योंकि आदम के पुत्र हाबिल ने परमेश्वर पर भरोसा रखा, उसने परमेश्वर के लिए अपने बड़े भाई कैन की तुलना में अधिक उत्तम बलिदान दिया। इसलिए परमेश्वर ने हाबिल के बलिदान को अच्छा कहा, और परमेश्वर ने घोषणा की कि हाबिल धर्मी था। और यद्यपि हाबिल मर चुका है, हम अभी भी परमेश्वर पर भरोसा रखने के बारे में उससे सीखते हैं।
\s5
\v 5 क्योंकि हनोक ने परमेश्वर पर विश्वास किया, परमेश्वर ने उसे स्वर्ग में उठा लिया! हनोक मरा नहीं था, लेकिन कोई उसे खोज नहीं पाया! उसे ले जाने से पहले, परमेश्वर ने बताया कि हनोक ने उन्हें पूर्णतः से प्रसन्न किया।
\v 6 अब लोगों के लिए परमेश्वर को प्रसन्न करना संभव है अगर वे उस पर भरोसा रखें, क्योंकि जो कोई भी परमेश्वर के पास आना चाहता है, उसे पहले विश्वास करना होगा कि परमेश्वर मौजूद हैं और वह उन लोगों को प्रतिफल देते हैं जो उन्हे जानने का प्रयास करते हैं।
\p
\s5
\v 7 परमेश्वर ने नूह को चेतावनी दी कि वह एक बाढ़ भेजेंगे, और नूह ने विश्वास किया! उसने अपने परिवार को बचाने के लिए एक जहाज़ का निर्माण करके परमेश्वर का सम्मान किया। इस तरह से उसने दिखाया कि शेष लोग परमेश्वर के दण्ड के योग्य थे। अतः नूह एक ऐसा व्यक्ति हो गया, जिसे परमेश्वर ने सही ठहराया, क्योंकि नूह ने उस पर भरोसा रखा था।
\s5
\v 8 परमेश्वर ने अब्राहम को उस देश में जाने के लिए कहा जो वह उसके वंश को देंगे। क्योंकि अब्राहम ने उन पर भरोसा रखा, उसने परमेश्वर की आज्ञा मानी और अपना देश छोड़ दिया, जबकि वह नहीं जानता था कि वह कहाँ जा रहा है।
\v 9 क्योंकि अब्राहम ने परमेश्वर पर भरोसा रखा था, वह इस तरह रहता था जैसे वह एक ऐसे देश में विदेशी था जो परमेश्वर ने उसके वंश को देने का वादा किया था। अब्राहम तंबू में रहता था, और उसके पुत्र इसहाक और उसके पोते याकूब ने भी ऐसा ही किया। परमेश्वर ने इसहाक और याकूब को वही वस्तुएँ देने की प्रतिज्ञा की जो उसने अब्राहम को देने की प्रतिज्ञा की थी।
\v 10 अब्राहम उस स्थायी शहर में रहने की प्रतीक्षा कर रहा था जिसका निर्माण और रचना परमेश्वर स्वयं करते।
\p
\s5
\v 11 और भले ही सारा अपने बुढ़ापे के कारण बच्चों को जन्म देने में असमर्थ थी, तौभी अब्राहम को एक बच्चे का पिता होने की क्षमता मिली, क्योंकि उसने यहोवा को विश्वास योग्य माना क्योंकि उन्होने उससे प्रतिज्ञा थी कि उसे पुत्र मिलेगा।
\v 12 इसलिए, जबकि अब्राहम बच्चे को जन्म देने के लिए बहुत बूढ़ा था, उस एक व्यक्ति से वे सब लोग आए जो आकाश के सितारों के समान संख्या में बहुत थे और समुद्र तट के किनारे की रेत के किनकों के रूप में अनगिनत थे, जैसी कि परमेश्वर ने उससे प्रतिज्ञा की थी।
\s5
\v 13 इन सब लोगों की मृत्यु हो गई जबकि वे अब तक परमेश्वर पर भरोसा रखते थे। यद्यपि उन्होंने अभी तक उन वस्तुओं को प्राप्त नहीं किया था जिनकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने उनसे की थी, यह ऐसा था कि जैसे उन्होंने उन वस्तुओं को दूर से देखा था, और वे आनन्दित हुए थे। ऐसा लगता था जैसे कि उन्होंने यह स्वीकार किया था कि वे इस पृथ्वी के नहीं है, परन्तु वे यहाँ सिर्फ कुछ समय के लिए ही हैं।
\v 14 ऐसे लोगों के लिए जो ऐसी बातें कहते हैं, वे स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि वे ऐसे स्थान की इच्छा रखते हैं जो उनका अपना देश बन जाएगा।
\s5
\v 15 यदि वे यह सोच रहे होते कि उनकी अपनी जन्मभूमि वह स्थान था जहाँ से वे आए थे, तो वे वहाँ वापस जा सकते थे।
\v 16 परन्तु, वे एक अधिक उत्तम स्थान चाहते थे जहाँ वे जीएँ। वे स्वर्ग में एक घर चाहते थे इसलिए उनके साथ रहने के लिए परमेश्वर ने उनके लिए एक शहर तैयार किया है, और वह उन पर प्रसन्न है कि वह उनके परमेश्वर है।
\p
\s5
\v 17 क्योंकि अब्राहम परमेश्वर पर भरोसा रखता था, इसलिए वह अपने पुत्र इसहाक को बलि के रूप में मारने के लिए तैयार था जब परमेश्वर ने उसे परखा था। अब्राहम, जिसे परमेश्वर ने एक पुत्र देने की प्रतिज्ञा की थी, वह उस पुत्र को बलि देने जा रहा था जो उन्होंने उसे दिया था, वह एकमात्र पुत्र जिसे उसकी पत्नी ने जन्म दिया था!
\v 18 यह इस पुत्र के बारे में था जिसके लिए परमेश्वर ने कहा था, "यह केवल इसहाक से है कि मैं तेरे वंश को बढ़ाने पर विचार करूँगा।"
\v 19 अब्राहम ने माना लिया था कि अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए, परमेश्वर फिर से उसे जीवित कर सकते हैं, भले ही वह अब्राहम के बलि देने के बाद मर जाए! परिणाम यह था कि जब अब्राहम ने इसहाक को वापस पाया, जब परमेश्वर ने उससे कहा था कि वह इसहाक को हानि न पहुँचाए, तो ऐसा लग रहा था जैसे कि उसने उसकी मृत्यु के बाद उसे वापस पाया।
\p
\s5
\v 20 क्योंकि इसहाक ने परमेश्वर पर भरोसा किया, उसने प्रार्थना की कि परमेश्वर उसके पुत्रों याकूब और एसाव को उसकी मृत्यु के बाद आशीष दे।
\v 21 क्योंकि याकूब ने परमेश्वर पर भरोसा किया, इसलिए जब वह मर रहा था, उसने प्रार्थना की कि वह अपने ही पुत्र यूसुफ के हर पुत्र को आशीष दे। उसने परमेश्वर की आराधना की जब वह मरने से पहले अपनी चलने वाली छड़ी का सहारा लिए हुए था।
\v 22 क्योंकि यूसुफ ने परमेश्वर पर भरोसा किया, इसलिए जब वह मिस्र में मरने वाला था, उसने उस समय के बारे में सोचा जब इस्राएली मिस्र छोड़ देंगे, और उसने अपने लोगों को मिस्र छोड़ते समय अपनी हड्डियों को साथ ले जाने का निर्देश दिया।
\p
\s5
\v 23 क्योंकि मूसा के पिता और माता ने परमेश्वर पर भरोसा किया, उन्होंने अपने पुत्र को जन्म के तुरंत बाद तीन महीने तक छिपा कर रखा, क्योंकि उन्होंने देखा कि बच्चा बहुत सुंदर था। वे मिस्र के राजा के आदेश की अवज्ञा करने से नहीं डरते थे, कि सब यहूदी बालकों को मरना होगा।
\v 24 राजा, जिसे वह फ़िरौन बुलाते थे, उसकी बेटी ने मूसा को उठाया, लेकिन जब मूसा बड़ा हुआ, क्योंकि वह परमेश्वर पर भरोसा करता था, उसने राजसी सुविधाओं को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया जो उसकी होती यदि लोग उसे "फ़िरौन की बेटी का पुत्र" समझते।"
\v 25 उसने निर्णय लिया कि राजा के महल में क्षणिक पापमय आनंद लेने से अधिक उत्तम यह होगा परमेश्वर के लोगों के साथ उसके साथ भी बुरा व्यवहार किया जाए।
\v 26 उसने निर्णय लिया कि यदि वह मसीह के लिए दुःख सहेगा, तो परमेश्वर की दृष्टि में उसका मूल्य मिस्र के खज़ाने का मालिक होने की तुलना में कहीं अधिक होगा, जिसे वह फ़िरौन के परिवार के सदस्य रूप में प्राप्त करेगा! उसने उस समय की प्रतीक्षा की जब परमेश्वर उसे अनन्त प्रतिफल देंगे।
\s5
\v 27 क्योंकि वह परमेश्वर पर भरोसा करता था, मूसा ने मिस्र छोड दिया! वह घबराया हुआ नहीं था कि राजा गुस्सा होगा क्योंकि उसने मिस्र छोड़ा। वह चला जा रहा था क्योंकि ऐसा लग रहा था जैसे कि वह परमेश्वर को देख रहा है, जिसे कोई भी नहीं देख सकता।
\v 28 क्योंकि मूसा ने विश्वास किया कि परमेश्वर अपने लोगों को बचाएँगे, उसने फसह के बारे में परमेश्वर के आदेशों का पालन किया, और वह एक वार्षिक उत्सव बन गया। उसने लोगों को भेड़ के बच्चे को मारने और अपने दरवाज़े के चौखटों पर उस लहू को छिड़कने की आज्ञा दी जिससे कि वह स्वर्गदूत जो मृत्यु देता है, वह मिस्र के हर परिवार के पहले पुत्रों के साथ पहले इस्राएली पुरुषों को न मारे।
\p
\s5
\v 29 क्योंकि इस्राएलियों ने परमेश्वर पर भरोसा किया इसलिए वे लाल समुद्र से होकर चले, तो ऐसा लगा कि वे सूखी भूमि पर चल रहे थे! परन्तु, जब मिस्र की सेना ने भी समुद्र पार करने की कोशिश की, तो वे डूब गए, क्योंकि समुद्र का पानी वापस आया और उन्हें डुबा दिया!
\v 30 क्योंकि इस्राएल के लोग परमेश्वर पर भरोसा करते थे, यरीहो शहर के चारों ओर की दीवारें ढह गई, जब इस्राएली सात दिन तक दीवारों के चारों ओर चले।
\v 31 राहाब एक वेश्या थी, परन्तु क्योंकि वह परमेश्वर पर भरोसा करती थी, वह यरीहो के उन लोगों के साथ नष्ट नहीं हुई जो परमेश्वर की अवज्ञा करते थे! यहोशू ने शहर में जासूसों को नाश करने के तरीके खोजने के लिए भेजा था, परन्तु परमेश्वर ने राहाब को बचाया क्योंकि उसने उन जासूसों का शान्ति से स्वागत किया था।
\p
\s5
\v 32 मुझे नहीं पता कि मुझे और किन लोगों के बारे में कहना चाहिए, जिन्होंने परमेश्वर पर भरोसा किया। गिदोन, बराक, शिमशोन, यिप्तह, दाऊद, शमूएल और अन्य भविष्यद्वक्ताओं के बारे में बताने में बहुत समय लग जाएगा!
\v 33 क्योंकि वे परमेश्वर पर भरोसा रखते थे, उनमें से कुछ ने उनके लिए महान कार्य किए। कुछ लोगों ने उन देशों को जीता जिन पर शक्तिशाली लोग शासन करते थे! कुछ लोगों ने इस्राएल पर शासन किया और मनुष्यों और जातियों के साथ न्याय का व्यवहार किया! कुछ लोगों ने परमेश्वर से उसकी प्रतिज्ञाओं की पूर्ति को प्राप्त किया! कुछ ने शेरों को अपने मुँह बंद रखने के लिए विवश किया!
\v 34 कुछ आग में जलने से बच गए, कुछ ऐसे लोगों से बच गए जिन्होंने तलवारों से उन्हें मारने की कोशिश की। कुछ बीमार होने के बाद भी फिर से ठीक हो गए! कुछ लोग युद्धों में सामर्थी हुए! कुछ ने उन विदेशी सेनाओं को भगाया जो पराए देशों से आई थीं!
\s5
\v 35 परमेश्वर पर भरोसा रखने वाली कुछ स्त्रियों ने अपने संबन्धियों को फिर से प्राप्त किया, जब परमेश्वर ने उन्हें मरने के बाद जीवित किया। परन्तु वह लोग जो परमेश्वर पर भरोसा रखते थे, उन्हें तब तक परेशान किया गया जब तक कि उनकी मृत्यु न हो गई, उन पर अत्याचार किया गया, क्योंकि उन्होंने बैरियों की बात नहीं मानी जब वे कहते थे, "यदि तुम इन्कार करते हो कि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो तो हम तुमको छोड़ देंगे।" उन्होंने ऐसा करने से इन्कार कर दिया, क्योंकि वे हमेशा के लिए परमेश्वर के साथ रहना चाहते थे, जो पृथ्वी पर रहने से अधिक उत्तम है।
\v 36 परमेश्वर पर भरोसा रखने वाले अन्य लोगों का ठट्ठा किया गया। कुछ लोगों की पीठ को चाबुक से मार मार कर छलनी किया गया। कुछ को जंजीरो से बाँधा गया और जेल में डाल दिया गया।
\v 37 विश्वासियों में से कुछ को मौत की सजा सुनाई गई। दूसरों को दो भागों में पूरी तरह से काट दिया गया! अन्य तलवारों से मारे गए! इन लोगों में से जो परमेश्वर पर भरोसा रखते थे, वे भेड़ और बकरियों की खाल से बने वस्त्र पहन कर देश में आना जाना करते थे। उनके पास बिलकुल पैसा नहीं था! लोगों ने लगातार उन पर अत्याचार किया और उन्हें हानि पहुँचाई।
\v 38 पृथ्वी पर रहने वाले लोग, जिन्होंने उन लोगों को कष्ट दिया जो परमेश्वर पर भरोसा रखनेवाले थे वे ऐसे दुष्ट थे कि वे परमेश्वर पर भरोसा रखने वालों के साथ नहीं रह पाए। कुछ लोग जो परमेश्वर पर भरोसा करते थे, रेगिस्तान और पहाड़ों में घूमते थे। कुछ लोग गुफाओं में रहते थे और कुछ मैदान में बड़े गड्ढों में रहते थे।
\p
\s5
\v 39 यद्यपि परमेश्वर ने इन सब लोगों को पुष्टि की क्योंकि वे उस पर भरोसा रखते थे, उसने उन्हें वह नहीं दिया जिसकी उसने प्रतिज्ञा की थी।
\v 40 परमेश्वर को समय से पहले ही पता था कि वह हमें और उनको क्या देंगे और उनको प्रतिज्ञा की वस्तु तुरन्त देने की अपेक्षा बाद में अधिक उत्तम होगा। परमेश्वर की इच्छा यह है कि जब वह और हम एक साथ हों, तब हमारे पास वह सब होगा जो परमेश्वर हमें देना चाहते हैं!
\s5
\c 12
\p
\v 1 हम ऐसे कई लोगों के बारे में जानते हैं जिन्होंने यह सिद्ध किया कि वे परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं! आइए, हम वह सब कुछ उतार दें जो हम पर बोझ डालते हमें नीचे खीचता है और इसलिए हम उस पाप को दूर कर दें जो हम से लिपटा हुआ है। इसलिए आइए, हम अपनी दौड़ को धीरज रखकर दौड़ें और वह सब कुछ करें जो परमेश्वर हमें करने के लिए देते हैं, जब तक कि हम इस अंतिम रेखा तक न पहुँच जाएँ।
\v 2 और आइए, हम यीशु के बारे में सोचें और उन पर अपना पूरा ध्यान दें। वही हैं जो हमें मार्ग दिखाते हैं और हमारा विश्वास पूरा करते हैं। वही हैं जिन्होंने क्रूस पर भयानक दुःख का सामना किया और उन्होंने उन लोगों पर ध्यान नहीं दिया जिन्होंने उन्हें लज्जित करने का प्रयास किया था। उन्होंने ऐसा किया क्योंकि वह जानते थे कि परमेश्वर उन्हे बाद में कैसी प्रसन्नता देंगे। वह अब सिंहासन के पास सर्वोच्च सम्मान के स्थान में बैठते हैं जहाँ परमेश्वर स्वर्ग में शासन करते हैं।
\p
\v 3 जब धर्मी लोग उनके विरुद्ध घृणित कार्य करते थे, तो यीशु ने धीरज के साथ उसका सामना किया। अपने दिल और दिमाग को यीशु के उदाहरण के द्वारा दृढ़ करो जिससे कि तुम परमेश्वर पर भरोसा करना बंद न करो या हतोत्साहित न हों।
\s5
\v 4 जब तुम पाप की के प्रलोभन के विरुद्ध यत्न कर रहे थे, तब तुम्हारा लहू नहीं बहा, न ही तुम मरे जैसे यीशु मरे थे।
\v 5 उन शब्दों को मत भूलो जो सुलैमान ने अपने पुत्र से कहे थे; ये वही शब्द हैं जिससे परमेश्वर तुमको अपनी सन्तान के समान प्रोत्साहित करते हैं: "हे मेरे पुत्र, ध्यान दे, जब परमेश्वर तुझे अनुशासित करते हैं, और निराश न हो जब परमेश्वर तेरी ताड़ना करते हैं,
\v 6 क्योंकि हर कोई जो प्रभु से प्रेम करता है, प्रभु उसे अनुशासित करते हैं, और जिसे अपना कहते हैं उसका कठोरता से सुधार करते हैं।"
\p
\s5
\v 7 परमेश्वर तुम्हे कठिनायों को सहन करने की अनिवार्यताओं द्वारा अनुशासित कर सकते हैं। जब परमेश्वर तुमको अनुशासित करते हैं, तो वह तुम्हारे साथ वैसा व्यवहार करते हैं जैसा कि एक पिता अपनी सन्तान के साथ करता है! सब पिता अपनी सन्तान को अनुशासित करते हैं।
\v 8 यदि तुमने परमेश्वर के अनुशासित का अनुभव नहीं किया है जैसे वह अपनी सब सन्तान को अनुशासित करते हैं, तो तुम परमेश्वर की सच्ची संतान नहीं हो। तुम अवैध सन्तान के समान हो जिनके पास कोई पिता नहीं है कि उन्हें सुधारे।
\s5
\v 9 इसके अतिरिक्त, हमारे प्राकृतिक पिता ने हमें अनुशासित किया जब हम युवा थे, और हम ने ऐसा करने के लिए उन्हें सम्मान दिया। इसलिए हमें निश्चय ही परमेश्वर को जो हमारे आध्यात्मिक पिता हैं जो हमें अनुशासित करते हैं उस रूप में स्वीकार करना चाहिए जिससे कि हम सदा के लिए जी सकें!
\v 10 हमारे प्राकृतिक पिता ने हमें थोड़े समय के लिए अनुशासित किया जैसा वह सही समझते हैं, परन्तु परमेश्वर हमेशा हमें सदा अनुशासित करते हैं जिससे कि वह हमें उनके पवित्र स्वाभाव के भागीदार होने में सहायता मिले।
\v 11 जब परमेश्वर हमें अनुशासित करते हैं, तब हमें सुख नहीं मिलता है, इसके विपरीत हमें कष्ट होता है परन्तु बाद में, जिन्होने उससे शिक्षा ग्रहण की है, धार्मिकता का जीविन जीने का कारण बन जाता है जिससे हमें भीतरी शान्ति प्राप्त होती है।
\p
\s5
\v 12 अत: आत्मिक थकान का नाटक करने की अपेक्षा जैसे कि तुम आध्यात्मिक रूप से थके हुए थे, अभिनय अपने नए हो जाने के लिए परमेश्वर के अनुशासन पर भरोसा करो।
\v 13 मसीह के अनुसरण में सीधा आगे बढ़ो जिससे कि मसीह पर भरोसा रखने वाले निर्बल लोग तुम से शक्ति पाएँ और अपंग न हो जाएँ। इसकी अपेक्षा, वे एक घायल और निकम्में अंग के चंगा हो जाने के समान आत्मिकता में पुनर्जीवित हो जाएँगे।
\s5
\v 14 सभी लोगों के साथ शांतिपूर्वक रहने का प्रयास करो। पवित्र होने के लिए पूर्ण यत्न करो, क्योंकि कोई भी परमेश्वर को नहीं देख पाएगा अगर वह पवित्र नहीं है।
\v 15 सावधान रहो कि तुम में से कोई भी परमेश्वर पर भरोसा करना त्याग न दे क्योंकि परमेश्वर ने हमारे लिए ऐसे दयालु काम किए हैं जिसके हम योग्य नहीं हैं! सावधान रहो कि तुम में से कोई भी दूसरों के साथ बुरा व्यवहार न करे, क्योंकि यह एक बड़े पेड़ की जड़ के समान बढ़ेगा जो अनेक विश्वासियों को पाप की ओर ले जाएगा।
\v 16 कोई भी एसाव के समान अनैतिक कार्य न करे या परमेश्वर की अवज्ञा करे। उसने केवल एक भोजन के लिए अपना पहली संतान होने का अधिकार बेच दिया था।
\v 17 बाद में एसाव अपने जन्म के अधिकार को और वह सब जो उसके पिता इसहाक उसे आशीर्वाद में देते वापस लेना चाहता था। परन्तु इसहाक ने एसाव के अनुरोध का इन्कार कर दिया। इसलिए एसाव को अपने जन्म के अधिकार और आशीर्वाद को वापस पाने का कोई मार्ग नहीं मिला, जबकि उसने रो रोकर माँगा।
\p
\s5
\v 18 परमेश्वर के पास आने पर, तुमने सीनै पर्वत पर इस्राएली लोगों के अनुभव के जैसा कुछ भी चीजों का अनुभव नहीं किया है। वह उस पहाड़ पर पहुँचे, जिसे परमेश्वर ने उन्हें छूने के लिये मना किया था, क्योंकि वह स्वयं उस पहाड़ पर नीचे आए थे। वह एक धधकती आग के पास पहुँचे, और यह एक उग्र तूफान के साथ, धुंधला और अंधकारमय था।
\v 19 उन्होंने तुरही की आवाज़ सुनी, और उन्होंने परमेश्वर को एक संदेश देते हुए सुना। यह इतना शक्तिशाली था कि उन्होंने उससे अनुरोध किया कि वह फिर से उनसे ऐसे बात न करें।
\v 20 क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें आज्ञा दी थी, "यदि कोई व्यक्ति या जानवर भी इस पर्वत को छू लेता है, तो तुमको उसे मार देना है।" लोग डर गए थे।
\v 21 क्योंकि पहाड़ पर जो हुआ उसे देखने के बाद मूसा वास्तव में डर गया था, उसने कहा, "मैं काँप रहा हूँ क्योंकि मैं बहुत घबराया हुआ हूँ!"
\s5
\v 22 परन्तु, तुम परमेश्वर की उपस्थिति में आए हो जो वास्तव में स्वर्ग में, "नये यरूशलेम" में रहते हैं। यह ऐसे है जैसे तुम्हारे पूर्वजों ने किया, जब वे इस्राएल में सिय्योन पर्वत पर परमेश्वर की आराधना करने आए थे, जिस पर सांसारिक यरूशलेम को बनाया था। तुम वहाँ गए हो जहाँ अनगिनत स्वर्गदूत एकत्र हैं, और आनन्दित हैं।
\v 23 तुम उन सब विश्वासियों की सभा में सहभागी हो गए हो जिनके पास पहिलौठे पुत्रों के रूप में विशेषाधिकार हैं, जिनके नाम परमेश्वर ने स्वर्ग में लिखे हैं। तुम परमेश्वर के पास आए हो, जो सब का न्याय करेंगे। तुम ऐसे स्थान पर आए हो जहाँ परमेश्वर के उन लोगों की आत्माएँ हैं, जो लोग मरने से पहले धार्मिकता से रहते थे, और जिन्हें परमेश्वर ने अब स्वर्ग में परिपूर्ण बनाया है।
\v 24 तुम यीशु के पास आए हो, जिन्होंने क्रूस पर अपने बहाए हुए लहू से हमारे और परमेश्वर के बीच एक नई वाचा बाँधी है। यीशु के लहू ने यह संभव बनाया है ताकि परमेश्वर हमें क्षमा कर सकें और उनका लहू हाबिल के लहू की तुलना में हमारे लिए कहीं उत्तम है।
\p
\s5
\v 25 सावधान रहो कि तुम परमेश्वर की बात सुनने से इन्कार न करो, जो तुम से बात कर रहे हैं! जब मूसा ने पृथ्वी पर उन्हें चेतावनी दी थी, तब इस्राएली लोग परमेश्वर के दण्ड से बच नहीं पाए थे। इसलिए हम निश्चय ही परमेश्वर के दण्ड से बच नहीं पाएँगे यदि हम उनकी चेतावनी सुनने से इन्कार करते हैं जब वह हमें स्वर्ग से चेतावनी देते हैं!
\v 26 जब उसने सीनै पर्वत पर बात की तो पृथ्वी हिल गई। परन्तु अब उन्होने प्रतिज्ञा की है, "मैं एक बार फिर से, पृथ्वी और आकाश को भी हिला दूँगा।"
\s5
\v 27 "एक बार, फिर से" शब्द से पता चलता है कि परमेश्वर पृथ्वी पर उन वस्तुओं को हटा देंगे जिन्हे वह हिलाएँगे, अर्थात सृष्टि को! वह ऐसा करेंगे ताकि स्वर्ग में जो चीजें नहीं हिल सकतीं वह हमेशा के लिए रह सकें।
\v 28 इसलिए आइए, हम परमेश्वर का धन्यवाद करें कि हम ऐसे राज्य के सदस्य बनने जा रहे हैं जिसे कुछ भी हिला नहीं सकता है! आइए, हम आभारी होकर उनका धन्यवाद करें और उनकी महान शक्ति और प्रेम से भयभीत होकर परमेश्वर की आराधना करें।
\v 29 स्मरण रखो कि हम जिस परमेश्वर की आराधना करते हैं वह आग की तरह हैं जो सब अशुद्धता को जला देते हैं।
\s5
\c 13
\p
\v 1 अपने साथी विश्वासियों से प्रेम करना न त्यागो।
\v 2 आवश्यक्ता में पड़े यात्रियों का अतिथि सत्कार करना न भूलो! बिना यह जाने अजनबियों की देखभाल करके, कुछ लोगों ने अपने घरों में स्वर्गदूतों का स्वागत किया है।
\s5
\v 3 जेल में रहने वाले लोगों की सहायता करना स्मरण रखो क्योंकि वे विश्वासी हैं, ऐसी सहायता करो कि जैसे तुम उनके साथ जेल में थे और शारीरिक रूप से पीड़ित थे जैसे वे हैं।
\v 4 विवाहित स्त्री-पुरुष एक दूसरे का सम्मान करें, और वे एक दूसरे के प्रति विश्वासयोग्य ठहरें। परमेश्वर निश्चय ही उन लोगों को दण्ड देंगे जो अनैतिक व्यवहार करते हैं या व्यभिचार करते हैं।
\s5
\v 5 लगातार पैसे की लालसा के बिना जीते रहो, और आनन्द करते रहो, चाहे तुम्हारे पास अधिक हो या कम हो। स्मरण रखो कि मूसा ने क्या परमेश्वर के वचन लिखे थे, उन्होंने कहा: "मैं तुमको कभी नहीं छोडूँगा; मैं कभी भी तुमको देना बंद नहीं करूँगा।"
\v 6 इसलिए हम आत्मविश्वास से कह सकते हैं जैसा कि भजनकार ने कहा था, "क्योंकि यह परमेश्वर ही है जो मेरी सहायता करते हैं, इसलिए मैं नहीं घबराऊँगा! लोग मेरा कुछ नहीं कर सकते, जिससे कि वे परमेश्वर को मेरी सहायता करने से रोक सकें।"
\p
\s5
\v 7 तुम्हारे आध्यात्मिक अगुवों ने तुमको मसीह के बारे में संदेश बताया है। स्मरण रखो कि उन्होंने अपना जीवन कैसे जिया है और कैसे उन्होंने मसीह पर भरोसा रखा हुआ है, इसकी नकल करो।
\v 8 यीशु मसीह वैसे ही हैं जैसे कि वह सदा रहे हैं, और वह सदा के लिए वैसे ही रहेंगे।
\s5
\v 9 इसलिए लोग तुम्हे परमेश्वर के बारे में अन्य बातों पर विश्वास करने के लिए प्रेरित न कर पाएँ, अर्थात उन विचित्र बातों को जिन्हे तुमने हम से नहीं सीखी हैं! उदाहरण के लिए, वे बातें जो तुमको भोजन के लिए नियमों का पालन करने न दें कि क्या खाना है और क्या नहीं। ये नियम हमारी सहायता नहीं कर सकते।
\v 10 जो लोग पवित्र तम्बू में सेवा करते हैं, उन्हें पवित्र वेदी पर खाने का कोई अधिकार नहीं है जहाँ हम मसीह की आराधना करते हैं।
\v 11 जब महायाजक पाप बलि के पशु के लहू को परम पवित्र स्थान में ले आए, तो दूसरे लोग उन पशुओं के शरीरों को शिविर के बाहर जला दें।
\s5
\v 12 इसी प्रकार, यरूशलेम के फाटकों के बाहर यीशु ने कष्ट सहे और मर गए ताकि वह हमें, अपने लोगों को, परमेश्वर के लिए विशेष बना सकें। उन्होंने यह हमारे पापों के लिए अपना लहू दान देकर किया।
\v 13 इसलिए हमें बचने के लिए यीशु के पास जाना चाहिए; हमें दूसरों से हमारा अपमान सहन कर लेना चाहिए जैसे लोगों ने प्रभु का अपमान किया।
\v 14 यहाँ पृथ्वी पर, हम विश्वासियों के पास यरूशलेम जैसे शहर नहीं हैं। हम स्वर्गीय शहर की प्रतीक्षा कर रहे हैं जो सदा के लिए रहेगा।
\p
\s5
\v 15 क्योंकि यीशु हमारे लिए मरे चाहे जो कुछ हो हमें लगातार परमेश्वर की स्तुति करनी चाहिए, यह पशुओं की अपेक्षा हमारा बलिदान हैं। हमें संकोच के बिना कहने के लिए तैयार रहना चाहिए कि हम मसीह पर भरोसा करते हैं।
\v 16 लोगों के लिए सदा भले काम करो और जो तुम्हारे पास हैं उसे बाँटों, क्योंकि ऐसा करने से तुम ऐसा बलिदान चढ़ा रहे हो जो परमेश्वर को प्रसन्न करेगा!
\p
\v 17 अपने अगुवों का आज्ञापालन करो और, जो वे तुमको बताते हैं उसे मानो, क्योंकि वे ही हैं जो तुम्हारे कल्याण की रक्षा कर रहे हैं। एक दिन उन्हें परमेश्वर के सामने खड़ा होना होगा कि वह यह कह सकें कि क्या उन्होंने उनके कार्यों को स्वीकार किया है। उनका आज्ञापालन करो जिससे कि वे आनंद के साथ तुम्हारी रक्षा करने का काम कर सकें, न कि दु:खी होकर क्योंकि यदि तुम उन्हें दुःख देकर ऐसा करवा रहे हो, तो निश्चय ही वह तुम्हारी सहायता नहीं करेंगे।
\p
\s5
\v 18 मेरे लिए और उन लोगों के लिए प्रार्थना करो जो मेरे साथ हैं! मुझे विश्वास है कि मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे परमेश्वर अप्रसन्न हों। मैंने हर प्रकार से तुम्हारे प्रति अच्छा कार्य करने का प्रयास किया है।
\v 19 मैं सच्चे मन से तुमसे प्रार्थना करने का आग्रह करता हूँ कि परमेश्वर उन बाधाओं की अति शीघ्र दूर करे जो मुझे तुम्हारे पास आने से रोकती हैं!
\p
\s5
\v 20 यीशु एक महान चरवाहे के समान हमें सब कुछ देते हैं, हमारी रक्षा करते हैं, और हमारा मार्गदर्शन करते हैं जैसे वह अपनी भेड़ों के लिए करते है। और परमेश्वर, हमें शान्ति देनेवाले हैं, जिन्होंने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जीवित किया है। ऐसा करते हुए परमेश्वर ने हमारे साथ अपनी अनन्त वाचा को उनके क्रूस पर बहाए हुए लहू से दृढ़ किया है, उसकी पुष्ठी की है।
\v 21 इसलिए मैं प्रार्थना करता हूँ कि परमेश्वर तुमको उनकी इच्छा पूरी करने के लिए हर अच्छी बात से सुसज्जित करें। वह हम में उस काम को पूरा करें जो उन्हें प्रसन्न करता है, जैसे कि वह हमें यीशु के पीछे चलते हुए देखें जिन्होने हमारे लिए अपनी जान दे दी हैं! सभी लोग यीशु मसीह की सदा, स्तुति करें। आमीन!
\p
\s5
\v 22 हे मेरे साथी विश्वासियों, क्योंकि यह एक संक्षिप्त पत्र है जो मैंने तुमको लिखा है, मैं चाहता हूँ कि तुम धीरज धरकर इस पर विचार करो जो मैंने तुमको प्रोत्साहित करने के लिए लिखा है।
\p
\v 23 मैं चाहता हूँ कि तुम जानो कि हमारा साथी विश्वासी तीमुथियुस जेल से मुक्त हो गया है। यदि वह शीघ्र यहाँ आए, तो जब मैं तुमको देखने के लिए आऊँगा, वह मेरे साथ होगा!
\p
\s5
\v 24 अपने सब आध्यात्मिक अगुवों और अपने सब विश्वासी भाई-बहनों को जो तुम्हारे शहर में परमेश्वर के हैं, कहना कि मैं उन्हें प्रणाम करता हूँ। इतालिया से आने वाले इस क्षेत्र के विश्वासियों ने भी तुमको शुभकामनाएँ दी हैं।
\p
\v 25 परमेश्वर तुमसे सदा प्रेम करते रहें और तुम्हे अपनी दया से सुरक्षित रखें।

211
60-JAS.usfm Normal file
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\id JAS Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h JAMES
\toc1 The Letter of James
\toc2 James
\toc3 jas
\mt1 याकूब
\s5
\c 1
\p
\v 1 मैं याकूब परमेश्वर की सेवा करता हूँ और प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर से बंधा हुआ हूँ। मैं यह पत्र बारह यहूदी गोत्रों को लिख रहा हूँ जो मसीह पर विश्वास करते हैं और जो पूरे संसार में फैले हुए हैं। मैं तुम सब का अभिनंदन करता हूँ।
\p
\v 2 मेरे साथी विश्वासियों, जब तुम विभिन्न प्रकार के कष्टों का अनुभव करते हो, तो इसको बहुत ही आनन्द की बात समझना।
\v 3 इस बात को समझो कि जब तुम कष्टों में परमेश्वर पर विश्वास रखते हो, तो इससे तुम्हें और भी अधिक कष्टों को सहने में सहायता मिलती हैं।
\p
\s5
\v 4 कष्टों को अंत तक सहते रहो, जिससे कि तुम हर प्रकार से मसीह का अनुसरण कर सको। तब तुम भला करने में असफल नहीं होंगे।
\v 5 यदि तुम में से कोई यह जानना चाहता है कि वह क्या करे, तो उसे परमेश्वर से पूछना चाहिए, जो उदारता से सब कुछ देते हैं और जो कोई उनसे पूछता है, उस पर वे क्रोध नहीं करते है।
\p
\s5
\v 6 परन्तु जब तुम परमेश्वर से पूछते हो, तो उन पर विश्वास करो कि वे तुम को उत्तर देंगे। संदेह न करो कि वे उत्तर देंगे या नहीं और वे सदा तुम्हारी सहायता करेंगे, क्योंकि जो लोग परमेश्वर पर संदेह करते रहते हैं, वे उनका अनुसरण नहीं कर सकते, वे समुद्र की लहरों के समान होते है जो हवा से आगे और पीछे उछलती रहती हैं और इस प्रकार वे एक दिशा में नहीं चल सकती।
\v 7 यह सच है कि जिसके मन में संदेह होता है उन्हें परमेश्वर से उत्तर पाने की आशा नहीं रखनी चाहिए।
\v 8 ये वे लोग हैं जो निर्णय नहीं ले पाते हैं कि वे यीशु के पीछे चलेंगे या नहीं चलेंगे। ऐसे लोग जो कहते हैं वह करते नहीं हैं।
\p
\s5
\v 9 विश्वासियों को प्रसन्न होना चाहिए क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें सम्मान दिया है।
\v 10 और जो विश्वासी धनवान हैं, उन्हें भी प्रसन्न होना चाहिए क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें विनम्र बना दिया है, जिससे उन्हें यीशु मसीह पर विश्वास करने में सहायता मिलती है, क्योंकि वे और उनकी धन संपत्ति समाप्त हो जाएगी, जैसे जंगली फूल सूख जाते हैं।
\v 11 जब सूरज उगता है, तो तपती गर्म हवा पौधे को सुखा देती है और फूल झड़ जाते हैं और वह फूल सुंदर नहीं रहता। झड़ने वाले फूल के समान, धनवान लोग पैसे कमाते हुए मर जाएँगे।
\p
\s5
\v 12 परमेश्वर उनका सम्मान करते हैं जो कठोर परीक्षाओं को सहते हैं, क्योंकि परमेश्वर उन्हें प्रतिफल में सदा का जीवन देंगे। यह उनसे प्रेम करने वाले सब लोगों के लिए उनकी प्रतिज्ञा है।
\v 13 जब हम पाप करने के लिए परीक्षा में फंसते है, तो हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि परमेश्वर हमारी परीक्षा ले रहे हैं, क्योंकि कोई भी परमेश्वर को बुराई करने के लिए विवश नहीं कर सकता, और न ही वह कभी किसी को बुराई करने के लिए विवश करते हैं।
\s5
\v 14 परन्तु हर कोई बुराई करना चाहता है, और इसलिए वे ऐसा करते है जैसे कि वे जाल में फंस रहे हैं।
\v 15 उसके बाद, उनके बुरे विचार उन्हें पाप की ओर ले जाते हैं, और यह पाप उनकी बुद्धि पर अधिकार कर लेता है जब तक कि वह उन्हें नष्ट न कर दे। फिर, जब बुरी इच्छाएं एक साथ आती हैं, तब पाप उत्पन्न होता है, जिसका अर्थ है कि व्यक्ति पाप करता है और केवल यीशु के द्वारा ही क्षमा किया जा सकता है और जब पाप अपना अंतिम परिणाम उत्पन्न करता है, तब मृत्यु आती है, शरीर की मृत्यु और आत्मा की मृत्यु दोनों, जिसका अर्थ यह है कि पापी सदा के लिए परमेश्वर से अलग हो जाता है। केवल यीशु ही हमें इस अंतिम मृत्यु से बचा सकते हैं।
\v 16 मेरे साथी विश्वासियों, जिन्हें मैं प्रेम करता हूँ, अपने आप को धोखा देना बंद करो।
\p
\s5
\v 17 हर सच्चा और उत्तम वरदान, परमेश्वर पिता की ओर से आता है, जो स्वर्ग में हैं। वे सच्चे परमेश्वर हैं जो हमें प्रकाश देते हैं। परमेश्वर सृजी हुई वस्तुओं के समान बदलते नहीं हैं, जैसे छाया जो प्रकट होती है और फिर लोप हो जाती है। परमेश्वर कभी नहीं बदलते और वे सदा भले हैं।
\v 18 जब हमने उनके सच्चे संदेश पर विश्वास किया तो परमेश्वर ने हमें आत्मिक जीवन देने का चुनाव किया। तो अब जो यीशु पर विश्वास करते है, वे सच्चे आत्मिक जीवन पाने वाले पहले व्यक्ति हैं। यह आत्मिक जीवन केवल यीशु ही दे सकते हैं।
\p
\s5
\v 19 मेरे साथी विश्वासियों, जिन्हें मैं प्रेम करता हूँ, तुम जानते हो कि तुम में से हर एक को परमेश्वर के सच्चे संदेश पर ध्यान देने के लिए उत्सुक होना चाहिए। तुमको अपने विचारों को शीघ्र प्रकट नहीं करना चाहिए, न ही शीघ्र क्रोधित होना चाहिए;
\v 20 क्योंकि जब हम क्रोधित हो जाते हैं तो हम उन धार्मिक कामों को नहीं कर पाते जो परमेश्वर हमसे कराना चाहते हैं।
\v 21 तो सब प्रकार की बुराइयों का त्याग करो और नम्रता से उस संदेश को स्वीकार करो जो परमेश्वर ने तुम्हारे मन में डाला था, क्योंकि उनके संदेश को स्वीकार करने पर ही वह तुम को बचा सकते हैं।
\p
\s5
\v 22 परमेश्वर अपने संदेश में जो आदेश देते हैं, उन्हें सुनो ही नहीं करो भी। क्योंकि जो लोग केवल सुनते हैं और मानते नहीं, वे इस धोखे में रहते है कि परमेश्वर उन्हें बचायेंगे।
\v 23 कुछ लोग परमेश्वर का संदेश सुनते हैं, परन्तु संदेश में जो कहा जाता है उसे नहीं करते। वे ऐसे व्यक्ति के समान हैं जो दर्पण में अपने चेहरे को देखता है।
\v 24 वह स्वयं को देखता है, और जब वह दर्पण से दूर चला जाता है तो तुरंत भूल जाता है कि वह कैसा दिखता है।
\v 25 परन्तु अन्य लोग परमेश्वर के संदेश को बारीकी से देखते हैं, जो सही है और जो लोगों को स्वतंत्र करता है जिससे कि वे स्वेच्छा से वह कार्य करें जो परमेश्वर चाहते हैं कि वे करें, और यदि वे परमेश्वर को सुनकर भूल नहीं जाते वरन उन पर मनन करते रहते हैं और परमेश्वर ने जो उन्हें करने के लिए कहा है, उसे करते भी हैं, तो परमेश्वर उनके कामों के लिए उन्हें आशीष देंगे।
\p
\s5
\v 26 कुछ लोग सोचते हैं कि वे परमेश्वर की उचित आराधना करते हैं, परन्तु अभ्यास के कारण बुरी बातें बोलते हैं। उन लोगों का यह सोचना गलत हैं कि वे परमेश्वर की उचित आराधना करते हैं। सच तो यह है कि वे व्यर्थ में परमेश्वर की आराधना करते हैं।
\v 27 परमेश्वर ने हमें जो कुछ करने के लिए कहा है, उनमें से एक काम यह है कि कष्टों में पड़े हुए अनाथों और विधवाओं की देखभाल करें। जो लोग ऐसा करते हैं, और जो परमेश्वर की आज्ञा न माननेवालों के समान अनैतिक कार्य नहीं करते और न ही उनका विचार करते हैं; वे वास्तव में हमारे पिता परमेश्वर की आराधना करते हैं और परमेश्वर उनको स्वीकार करते हैं।
\s5
\c 2
\p
\v 1 मेरे भाइयों और बहनों, हमारे प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करते हुए; यह मत सोचो कि तुम एक से अधिक दुसरे लोगों का सम्मान कर सकते हों क्योंकि प्रभु यीशु मसीह सबसे बड़े हैं।
\v 2 उदाहरण के लिए, मान लो कि कोई व्यक्ति सोने की अंगूठी पहनता है और अच्छे कपड़े पहनकर तुम्हारी सभा में प्रवेश करता है। और एक गरीब व्यक्ति भी आता है जिसने मैले कपड़े पहने हुए हैं।
\v 3 और तुम अच्छे कपड़े पहने हुए व्यक्ति पर विशेष ध्यान देते हुए कहते हो, "कृपया इस अच्छे आसन पर बैठो!" और तुम गरीब से कहते ,हो "तू वहां जाकर खड़ा हो जा या फर्श पर बैठ जा!"
\v 4 तुमने एक दूसरे का अनुचित न्याय किया है।
\p
\s5
\v 5 मेरे भाइयों और बहनों जिनसे मैं प्रेम करता हूँ, मेरी बात सुनों। परमेश्वर ने उन गरीब लोगों को जिनके पास कोई मूल्यवान वस्तु नहीं है, परमेश्वर पर विश्वास करने के लिए चुना है, इसलिए वे उन्हें महान वस्तुए देंगे जब परमेश्वर स्वयं हर जगह हर किसी पर शासन करेंगे। यही उन्होंने अपने सभी प्रेम करने वालों के लिए करने की प्रतिज्ञा की है।
\v 6 तुम गरीब लोगों का अपमान करते हो। इसके विषय में सोचो! धनवान लोग ही हैं, जो तुम को सताते हैं, गरीब लोग नहीं! धनवान लोग ही हैं, जो न्यायधीशों के सामने तुम पर दोष लगाने के लिए अदालत में ले जाते हैं;
\v 7 और धनवान लोग ही हैं जो प्रभु यीशु मसीह के विरुद्ध बुरा बोलते हैं, प्रभु जो प्रशंसा के योग्य है, जिनके तुम हो!
\p
\s5
\v 8 यदि तुम राजसीनियम का पालन करते हो, जैसा कि धर्मशास्त्र में लिखा है, तो तुम इस आदेश पर ध्यान दोगे, "अपने पड़ोसी से प्रेम करो जैसे तुम स्वयं से प्रेम करते हो।" यदि तुम दूसरों से प्रेम करते हो, तो वही कर रहे हो जो सही हैं।
\v 9 यदि तुम कुछ लोगों का आदर दूसरों की तुलना में अधिक करते हो, तो तुम गलत कर रहे हो; क्योंकि तुम वह नहीं कर रहे जिसको करने की आज्ञा परमेश्वर ने हमें दी है; इसलिए परमेश्वर तुम्हें दोषी ठहराते हैं, क्योंकि तुम उनके नियमों का उल्लंघन करते हो।
\p
\s5
\v 10 जो लोग परमेश्वर की व्यवस्था में से एक का उल्लंघन करते हैं, भले ही वे सम्पूर्ण व्यवस्था का पालन करते हैं; परमेश्वर उनको उतना ही दोषी मानेंगे जितना कि सम्पूर्ण व्यवस्था का उल्लंघन करने वालों को मानते हैं।
\v 11 उदाहरण के लिए, परमेश्वर ने कहा, "व्यभिचार मत करो," परन्तु उन्होंने यह भी कहा, "किसी की हत्या मत करो।" इसलिए यदि तुम व्यभिचार नहीं करते हो, परन्तु तुम किसी की हत्या करते हो, तो तुम एक ऐसे व्यक्ति बन गए हो जो परमेश्वर की व्यवस्था का पालन नहीं करता है।
\p
\s5
\v 12 दूसरों के सामने तुम्हारी बोली और तुम्हारा व्यवहार सदा ऐसे लोगों के समान हो, जिनका न्याय परमेश्वर उस व्यवस्था के अनुसार करेंगे जो हमें पापों के दण्ड से मुक्त करती है।
\v 13 क्योंकि जब परमेश्वर हमारा न्याय करते हैं, तो वे उन लोगों के प्रति दयालु नहीं होंगे, जो दूसरों के प्रति दयालु नहीं होते हैं। परन्तु यदि हम दूसरों के प्रति दयालु हैं, तो जब हमारा न्याय होगा तब हम परमेश्वर से नहीं डरेंगे।
\p
\s5
\v 14 मेरे भाइयों और बहनों, कुछ लोग कहते हैं, "मैं प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करता हूँ," परन्तु वे अच्छे काम नहीं करते तो वे जो कहते हैं उससे उन्हें कोई लाभ नहीं होगा। यदि वे केवल शब्दों से विश्वास करते हैं, तो परमेश्वर निश्चय ही उन्हें नहीं बचायेंगे।
\v 15 उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि किसी भाई या बहन को कपड़े या भोजन की कमी है।
\v 16 और तुम में से कोई उनसे कहता है, "चिंता मत करो, चले जाओ, गर्म रहो, और तुमको जो खाना चाहिए, वो तुम्हें मिले!" परन्तु यदि तुम उन्हें वो वस्तुएं नहीं देते जो उनके शरीर के लिए आवश्यक हैं, तो इससे उनकी कोई सहायता नहीं होगी।
\v 17 इसी प्रकार, यदि तुम दूसरों की सहायता करने के लिए अच्छे काम नहीं करते हो, तो तुम जो मसीह में विश्वास करने के विषय में कहते हो वह मरे हुए व्यक्ति के समान व्यर्थ है। तुम वास्तव में मसीह पर विश्वास नहीं करते।
\p
\s5
\v 18 परन्तु कोई मुझ से यह कह सकता है, "परमेश्वर कुछ लोगों को इसलिए बचाते है क्योंकि वे परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, और वे दूसरों को इसलिए बचाते है क्योंकि वे लोगों के लिए अच्छे काम करते हैं।" मैं उस व्यक्ति को उत्तर दूंगा, "तुम यह सिद्ध नहीं कर सकते कि लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं यदि वे दूसरों के लिए अच्छे काम नहीं करते हैं; परन्तु अच्छे काम करने के द्वारा मैं सिद्ध करूँगा कि मैं परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ!
\v 19 इसके विषय में सोचो! तुम मानते हो कि केवल एक सच्चे परमेश्वर हैं जो वास्तव में जीवित हैं, तो तुम ऐसा विश्वास करने में सही हो। परन्तु दुष्टात्माएं भी यह मानतीं हैं और वे डरती हैं क्योंकि वे भी जानती हैं कि परमेश्वर वास्तव में जीवित है, और वह उन्हें दण्ड देंगे।
\v 20 इसके अतिरिक्त, हे मुर्ख व्यक्ति, मैं तुझे प्रमाण दूंगा कि यदि कोई कहता है, "मैं परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ," परन्तु वह अच्छे काम नहीं करता, तो वह व्यक्ति जो कहता है, उससे उसे किसी भी प्रकार का लाभ नहीं है।
\p
\s5
\v 21 हम सब हमारे पूर्वज अब्राहम का आदर करते हैं। उसने परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने का प्रयास किया; उसने अपने पुत्र इसहाक को वेदी पर परमेश्वर को चढ़ाने का प्रयास किया। परमेश्वर ने अब्राहम को धर्मी व्यक्ति माना क्योंकि उसने उनकी आज्ञा मानी।
\v 22 इस प्रकार, अब्राहम ने परमेश्वर पर विश्वास किया और उनकी आज्ञा का पालन किया। जब उसने उनकी बात मानी, तो उसने वह काम पूरा किया जिसके लिए उसने परमेश्वर पर विश्वास किया था।
\v 23 और ऐसा हुआ जैसा कि धर्मशास्त्र में लिखा है, "क्योंकि अब्राहम ने परमेश्वर पर विश्वास किया, इसलिए परमेश्वर ने उसे ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जो उचित काम करता है।" परमेश्वर ने अब्राहम के विषय में यह भी कहा, "वह मेरा मित्र है।"
\v 24 अब्राहम के उदाहरण से तुम यह समझ सकते हो कि लोग अच्छे काम करते हैं इसलिए परमेश्वर उन्हें धर्मी मानते हैं, न केवल इसलिए कि वे उन पर विश्वास करते हैं।
\p
\s5
\v 25 इसी प्रकार, राहाब ने जो अच्छा काम किया उसके कारण परमेश्वर ने उसे उचित माना था। राहाब एक वेश्या थी, परन्तु उसने उन दूतों की देखभाल की जो देश की छानबीन करने के लिए आए थे, और उसने उन्हें एक अलग रास्ते से घर भेजकर उन्हें बचकर निकल जाने में सहायता की।
\p
\v 26 जैसे कोई व्यक्ति श्वास नहीं लेता तो वह मरा हुआ है और उसका शरीर निकम्मा है, वैसे ही कोई व्यक्ति जो कहता है कि वह परमेश्वर पर विश्वास करता है परन्तु अच्छा काम नहीं करता, उसका परमेश्वर पर विश्वास व्यर्थ है।
\s5
\c 3
\p
\v 1 मेरे भाइयों और बहनों, तुम में से बहुत से लोगों को परमेश्वर के वचन के शिक्षक बनने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि तुम जानते हो कि परमेश्वर हम शिक्षकों का दूसरों की तुलना में अधिक गंभीर न्याय करेंगे।
\v 2 हम अनेक प्रकार के अनुचित काम करते हैं। परन्तु जो लोग अपनी बातों पर नियंत्रण रखते हैं, वही ऐसे व्यक्ति बनेंगे जैसा परमेश्वर चाहते हैं। वे अपने सब कार्यों को नियंत्रित रखने में सक्षम होंगे।
\p
\s5
\v 3 उदाहरण के लिए, यदि हम घोड़े के मुंह में एक छोटा सा लगाम लगाते हैं कि घोड़ा हमारी आज्ञा का पालन करे, तो हम घोड़े के बड़े शरीर को मोड़ सकते हैं और उसे वहां ले जा सकते हैं जहाँ हम चाहते हैं।
\v 4 जहाजों के विषय में भी सोचो, यद्यपि जहाज बहुत बड़ा होता है और तेज हवाओं के कारण चलाया जाता है, तो भी एक बहुत छोटी सी पतवार के द्वारा लोग जहाज को जहाँ वो जाना चाहते हैं, वहां उसे चला सकते हैं।
\p
\s5
\v 5 उसी प्रकार, हालांकि हमारी जीभ बहुत छोटी है, यदि हम उसे अपने वश में नहीं रखते हैं, तो हम बड़ी बात करके लोगों को हानि पहुंचा सकते हैं। इसके विषय में भी सोचो कि आग की एक छोटी सी लौ बड़े जंगल को जला सकती हैं।
\v 6 जिस प्रकार आग जंगल को जलाती है, उसी प्रकार जब हम बुरी बातें बोलते हैं, तो हम बहुत से लोगों को नष्ट कर सकते हैं। हम जो कहते हैं वह प्रकट करता है कि हमारे भीतर बहुत बुराई है। हम जो कहते हैं वह हमारी सोच और काम दोनों को दूषित करता हैं। जैसे आग की लौ सरलता से आस-पास के पूरे क्षेत्र को जला देती है, वैसे ही हम जो बोलते हैं वह पुत्रों और पुत्रियों और उनके वंशजों को उनके सम्पूर्ण जीवन में बुराई करने के लिए प्रेरित कर सकता हैं। यह शैतान ही है जो हमें बुरा बोलने के लिए प्रभावित करता है।
\p
\s5
\v 7 हालांकि लोग सभी प्रकार के जंगली जानवरों, पक्षियों, रेंगनेवाले जन्तु और जल में रहनेवाले जीवों को प्रशिक्षित करने में सक्षम है और लोगों ने उन्हें प्रशिक्षित किया भी है,
\v 8 परन्तु कोई भी अपनी बोली को वश में रखने में सक्षम नहीं है। हम जो शब्द बोलते हैं वह एक अनियंत्रित बुराई है। जैसे जहर मारता है, वैसे ही हमारे शब्द बहुत हानि पहुचा सकते हैं।
\p
\s5
\v 9 हम अपनी जीभ का उपयोग परमेश्वर की स्तुति करने के लिए करते हैं, जो हमारे प्रभु और पिता हैं, परन्तु उसी जीभ से हम परमेश्वर से कहते हैं कि लोगों के साथ बुरा करें। यह बहुत गलत है, क्योंकि परमेश्वर ने लोगों को अपने जैसा बनाया है।
\v 10 हम अपने मुँह से परमेश्वर की स्तुति करते हैं, परन्तु उसी मुँह से कहते हैं कि लोगों के साथ बुरा हो। मेरे भाइयों और बहनों, ऐसा नहीं होना चाहिए।
\p
\s5
\v 11 यह तो निश्चित है कि कड़वा पानी और अच्छा पानी एक ही सोते से बाहर नहीं आते हैं।
\v 12 मेरे भाइयों और बहनों, अंजीर का पेड़ जैतून उत्पन्न नहीं कर सकता, न ही दाखलता अंजीर उत्पन्न कर सकती है; और न ही एक खारा सोता मीठा पानी उत्पन्न कर सकता है। इसी प्रकार, हमें केवल अच्छा ही बोलना चाहिए और हमें बुरी बातें नहीं बोलनी चाहिए।
\p
\s5
\v 13 यदि तुम में से कोई सोचता है कि तुम बुद्धिमान हो और बहुत कुछ जानते हो, तो तुमको सदैव अच्छा व्यवहार करना चाहिए कि लोगों को दिखा सको कि तुम्हारे अच्छे काम तुम्हारे वास्तव में बुद्धिमान होने का परिणाम है। बुद्धिमान होने से हमें दूसरों के साथ नम्रता से व्यवहार करने में सहायता मिलती है।
\v 14 परन्तु यदि तुम लोगों से ईर्ष्या करते हो और उनके विरुद्ध झूठ बोलते हो और उनके साथ गलत करते हो, तो तुमको ढोंग नहीं करना चाहिए कि तुम बुद्धिमान हो। इस प्रकार घमण्ड करके तुम कह रहे हो कि जो सच है, वह वास्तव में झूठ है।
\p
\s5
\v 15 जो लोग ऐसा सोचते हैं, वे परमेश्वर की इच्छा के अनुसार बुद्धिमान नहीं हैं। इसकी अपेक्षा, वे केवल उन लोगों के समान सोचते और कार्य करते है जो परमेश्वर का आदर नहीं करते हैं। वे अपनी बुरी इच्छाओं के अनुसार सोचते और कार्य करते हैं। वे वैसा ही करते हैं जैसा दुष्टात्माएं उनसे करवाना चाहती हैं।
\v 16 याद रखें कि जो लोग इस प्रकार सोचते हैं, वे स्वयं को नियंत्रित नहीं रखते हैं। वे लोगों से ईर्ष्या करते हैं और ऐसा दिखाते हैं जैसे वे जो कर रहे थे वह सही था, परन्तु यह उचित नहीं। वे हर प्रकार की बुराई करते हैं।
\v 17 स्वर्ग के परमेश्वर हमें बुद्धिमान बनाते हैं। सबसे पहले, वे हमें नैतिक रूप से शुद्ध होना सिखाते हैं। वह हमें सिखाते हैं कि दूसरों के साथ मेल कैसे बनाए। वह हमें दूसरों के प्रति दया दिखाने और उनकी सहायता करना सिखाते है। वह हमें उन लोगों के प्रति दयालु होना सिखाते हैं जो उसके लायक नहीं हैं। वह हमें अच्छे काम करने के लिए सिखाते हैं जिसके स्थायी परिणाम प्राप्त होते हैं। वह हमें सत्यनिष्ठा और उचित काम त्यागने की शिक्षा नहीं देते हैं।
\v 18 जो लोग दूसरों के साथ शान्ति से काम करते हैं, वे उन्हें भी शान्ति से काम करने के लिए प्रेरित करते हैं, और इसका परिणाम होता है कि वे सब एक साथ रहते हैं और उचित कार्य करते हैं।
\s5
\c 4
\p
\v 1 अब मैं तुमको बताता हूँ कि तुम आपस में क्यों लड़ रहे हो और एक दूसरे के साथ झगड़ा क्यों करते हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम में से हर कोई ऐसे बुरे काम करना चाहता है जिससे तुम्हें आनन्द मिलता है, परन्तु तुम्हारे साथी विश्वासियों को आनंदित नहीं करते हैं।
\v 2 ऐसी वस्तुएँ हैं जिनकी तुम बहुत अभिलाषा करते हो, परन्तु तुम उन वस्तुओं को प्राप्त नहीं करते हो, इसलिए तुम उन लोगों को मारना चाहते हो, जो तुम को उन्हें पाने से रोकते हैं। तुम अन्य लोगों की वस्तुओं का लालच करते हो, परन्तु तुम जो चाहते हो वह प्राप्त करने में असमर्थ हो, इसलिए तुम एक दूसरे से झगड़ा करते हो और लड़ते हो। तुम जो चाहते हो, वह तुम्हारे पास नहीं है क्योंकि तुम उसके लिए परमेश्वर से नहीं मांगते।
\v 3 तुम उनसे मांगते हो, तो वह तुम्हें उन वस्तुओं को जो तुम मांगते हो वो नहीं देतें क्योंकि तुम गलत कारणों से मांग रहे हो। तुम इसलिए मांग रहे हो कि तुम अपने भोग-विलास के लिए उनका अनुचित उपयोग करो।
\p
\s5
\v 4 एक स्त्री के समान जो अपने पति से विश्वासघात करती है, तुम अब परमेश्वर के साथ विश्वासघात कर रहे हो और अब उनकी आज्ञा का पालन नहीं कर रहे हो। जो लोग बुरे लोगों के समान व्यवहार करते हैं वे इस संसार के हैं और परमेश्वर के शत्रु हैं। सम्भव है कि तुम्हें इस बात की समझ नहीं है।
\v 5 तुम निश्चय ही सोचते कि परमेश्वर ने बिना किसी कारण से पवित्र धर्मशास्त्र में यह कहा है कि पवित्र आत्मा जिन्हें हम में बसाया हैं, वह हमारे लिए तड़पते हैं कि हम ऐसे जीवन जीयें जो परमेश्वर को प्रसन्न करें।
\p
\s5
\v 6 परन्तु परमेश्वर शक्तिशाली हैं और हमारे प्रति बहुत दयालु हैं, और वे हमारी बहुत सहायता करना चाहते हैं कि हम पाप करना त्याग दें। यही कारण है कि धर्मशास्त्र कहता है, "परमेश्वर उन लोगों का विरोध करते हैं, जो घमंड करते हैं, परन्तु नम्र लोगों की सहायता करते हैं।"
\v 7 इसलिए अपने आप को परमेश्वर के अधीन करो। शैतान का विरोध करो, और वह तुमसे दूर भाग जाएगा।
\p
\s5
\v 8 आत्मिकता से परमेश्वर के पास आओ। यदि तुम ऐसा करते हो, तो वह तुम्हारे पास आएंगे। तुम जो पापी हो, गलत काम करने से दूर हो जाओ और जो अच्छा है वह करो। तुम जो यह निर्णय नहीं ले पा रहे हो कि तुम अपने आप को परमेश्वर के लिए समर्पित करोगे या नहीं, गलत विचारों को सोचना छोड़ो, और केवल परमेश्वर के विचारों को मन में बसाओ।
\v 9 दुखी हो जाओ और अपने गलत कामों के कारण रोओ। अपनी स्वार्थी इच्छाओं का आनंद लेते हुए मत हँसो। इसकी अपेक्षा, दुखी हो जाओ क्योंकि तुमने गलत किया है।
\v 10 अपने आप को प्रभु के सामने नम्र करो; यदि तुम ऐसा करते हो, तो वह तुम को आदर देंगे।
\p
\s5
\v 11 मेरे भाईयों और बहनों, एक दूसरे के विरुद्ध बुरा बोलना त्याग दो, क्योंकि जो अपने साथी विश्वासी के विरुद्ध बुरा बोलता है और इस प्रकार किसी पर दोष लगता है जो एक भाई या बहन के समान है; वह वास्तव में उस व्यवस्था के विरुद्ध बोलता है जिसे परमेश्वर ने हमें मानने के लिए दी है। यदि तुम उनकी व्यवस्था के विरुद्ध बोलते हो, तो तुम एक न्यायाधीश के समान कार्य कर रहे हो जो दोष लगता है।
\v 12 परन्तु वास्तव में, केवल एक ही है जिनके पास हमारी बुराइयों को क्षमा करने और लोगों को दोषी ठहराने का अधिकार है, और वह परमेश्वर हैं। केवल वही लोगों को बचाने या लोगों को नष्ट करने में सक्षम हैं। परमेश्वर का स्थान लेने और दूसरों का न्याय करने का अधिकार तुमको नहीं है।
\p
\s5
\v 13 तुममें से कुछ अहंकार से कहते हो, "आज या कल हम एक शहर में जाएंगे। हम वहां एक साल बिताएंगे और हम वस्तुएँ खरीदेंगे और बेचेंगे और बहुत पैसा कमा लेंगे।" अब, तुम मेरी बात सुनो!
\v 14 तुमको ऐसा नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि तुम नहीं जानते कि कल क्या होगा, और तुम नहीं जानते कि तुम कब तक जीवित रहोगे; जैसे कोहरा थोड़े समय के लिए होता है और फिर लोप हो जाता है, वैसे ही तुम्हारा जीवन छोटा है।
\p
\s5
\v 15 तुम जो कह रहे हो, इसकी अपेक्षा, तुमको कहना चाहिए, "यदि परमेश्वर की इच्छा हुई, तो हम जीएंगे और ऐसा करेंगे, या हम वैसा करेंगे।"
\v 16 परन्तु तुम उन सब बातों के विषय में डींग मार रहे हो, जिन्हें करने की तुम योजना बना रहे हो। तुम्हारा ऐसे डींग मरना बुरा है।
\v 17 इसलिए यदि कोई सही काम जानता है जिसे करना उसके लिए आवश्यक है, परन्तु वह उसे नहीं करता, तो वह पाप करता है।
\s5
\c 5
\p
\v 1 अब मुझे तुम धनवान लोगों से कुछ कहना है जो कहते हैं कि तुम मसीह पर विश्वास करते हो। मेरी बात सुनो! तुमको रोना चाहिए और विलाप करना चाहिए क्योंकि तुमको भयानक परेशानियों का अनुभव करना होगा।
\v 2 तुम्हारा धन व्यर्थ है, जैसे कि वह सड़ गया हो। तुम्हारे अच्छे कपड़े व्यर्थ हैं, जैसे कि कीड़ो ने उन्हें नष्ट कर दिया हो।
\v 3 तुम्हारा सोना और चाँदी व्यर्थ है, जैसे कि उनमें काई लग गई हो। जब परमेश्वर तुम्हारा न्याय करेंगे, तब यह व्यर्थ धन इस बात का प्रमाण होगा कि तुम लालची होने के दोषी हो, और जैसे जंग और आग चीजों को नष्ट करते हैं, वैसे ही परमेश्वर तुमको गंभीर दण्ड देंगे। तुमने व्यर्थ ही धन एकत्र किया क्योंकि परमेश्वर तुम्हारा न्याय करने वाले हैं।
\p
\s5
\v 4 इस विषय में सोचों कि तुमने क्या किया है। तुमने अपने खेतों में फसल काटने वालों को जो वेतन देने की प्रतिज्ञा की थी वह उन्हें नहीं दिया। उनका वेतन तुमने अपने लिए रख लिया, वह मुझे तुम्हारा अपराध दिखाते हैं और यह भी कि तुमने उनके साथ कैसा अन्याय किया है। मजदूर तुम्हारे व्यवहार के कारण परमेश्वर को पुकारते हैं। और स्वर्गदूतों की सेना के प्रभु परमेश्वर ने उनके चिल्लाने की आवाज को सुना हैं।
\v 5 तुमने अपनी पसंद की सब वस्तुएँ खरीदी, ताकि तुम राजाओं के समान रह सको। जैसे कि मवेशी स्वयं को मोटा करते हैं, यह जाने बिना कि उनका वध किया जाएगा, तुम केवल वस्तुओं का आनंद लेने के लिए जीते हो, यह जाने बिना कि परमेश्वर तुम्हें गंभीर दण्ड देंगे।
\v 6 तुम ने निर्दोषों को दोषी ठहराने के लिए लोगों को तैयार किया है। तुमने उन्हें मारने के लिए अन्य लोगों को तैयार किया है, जबकि उन लोगों ने कुछ गलत नहीं किया। वे तुम्हारे विरुद्ध स्वयं का बचाव करने में असमर्थ थे। मेरे भाइयों और बहनों, उन धनवान लोगों से, जो तुम पर अत्याचार करते हैं, मेरा यही कहना है।
\p
\s5
\v 7 इसलिए, मेरे भाइयों और बहनों, धनवान लोग तुम को पीड़ित करते हैं, परन्तु प्रभु यीशु मसीह के वापस आने तक धीरज धरे रहो। याद रखो कि जब किसान खेत लगाते हैं, तो वे अपनी मूल्यवान फसलों के बढ़ने की प्रतीक्षा करते हैं। उन्हें मौसम में आने वाली वर्षा के लिए धीरज धर कर प्रतीक्षा करनी होती है और फसल की कटनी से ठीक पहले आने वाली वर्षा के लिए भी प्रतीक्षा करनी होता है। वे कटनी से पहले, फसल के बढ़ने और परिपक्व होने की प्रतीक्षा करते हैं।
\v 8 इसी प्रकार, तुमको धीरज धर कर प्रतीक्षा करनी चाहिए और प्रभु यीशु पर विश्वास करना चाहिए, क्योंकि वह शीघ्र ही वापस आ रहे हैं और सभी लोगों का निष्पक्ष न्याय करेंगे।
\p
\s5
\v 9 हे भाइयों और बहनों, एक दूसरे के विरुद्ध शिकायत मत करो, कि प्रभु यीशु तुम्हें दोषी ठहराकर सजा न दें। वही हमारा न्याय करेंगे, और उनका न्याय प्रकट होने के लिए तैयार है।
\v 10 मेरे भाइयों और बहनों, धीरज धरने के उदाहरण स्वरुप, उन भविष्यद्वक्ताओं पर विचार करो जिन्हें परमेश्वर ने बहुत पहले अपना संदेश सुनाने के लिए भेजा था। यद्यपि लोगों ने उन्हें बहुत दुख पहुंचाया, परन्तु उन्होंने धीरज धर कर उसे सहन किया।
\v 11 हम जानते हैं कि परमेश्वर उन लोगों की सहायता करते हैं जो उनके लिए कष्ट उठाते हैं। तुमने अय्यूब के विषय में भी सुना है। तुम जानते हो कि उसने बहुत दुख भोगा था, परन्तु प्रभु परमेश्वर ने अय्यूब के लिए भला करने की योजना बनाई क्योंकि उसने पीड़ा को सहन किया था; और इससे हम जानते हैं कि परमेश्वर बहुत करुणामय और दयालु हैं।
\p
\s5
\v 12 इसके अतिरिक्त, मेरे भाइयों और बहनों, मैं तुमसे तुम्हारी बोली के विषय में कुछ महत्वपूर्ण बात कहना चाहता हूँ। तुम्हें अपनी प्रतिज्ञाओं के लिए स्वर्ग या पृथ्वी का नाम लेकर उन्हें गवाह बनाकर शपथ नहीं खानी चाहिए। तुमको बस "हाँ" या "ना" कहने की आवश्यकता है। जब तुम उस से अधिक कहते हो, तो परमेश्वर तुम्हारा न्याय करेंगे।
\p
\s5
\v 13 तुम में से जो भी परेशानी में हो उसे प्रार्थना करनी चाहिए कि परमेश्वर उसकी सहायता करें। जो कोई भी आनंदित है उसे परमेश्वर के लिए स्तुति के गीत गाने चाहिए।
\v 14 तुम में से जो भी बीमार है, उसे अपने लिए प्रार्थना करने के लिए कलीसिया के अगुवों को बुलाना चाहिए। उन्हें उस पर जैतून का तेल डालकर प्रभु के अधिकार से प्रार्थना करना चाहिए।
\v 15 विश्वास के साथ परमेश्वर से जो प्रार्थना की जाती है, वह बीमार व्यक्ति को स्वस्थ कर देती है, और प्रभु उसको फिर से ज्यों का त्यों कर देंगे। यदि उस व्यक्ति ने पाप किया है, तो परमेश्वर उसे क्षमा कर देंगे।
\p
\s5
\v 16 क्योंकि प्रभु बीमारों को स्वस्थ करने और पापों को क्षमा करने में सक्षम हैं, इसलिए एक दूसरे को अपने किए पापों को बताओ और एक दूसरे के लिए प्रार्थना करो कि तुम स्वस्थ हो जाओ। यदि धर्मी लोग प्रार्थना करते हैं और परमेश्वर से कुछ करने के लिए विनती करते हैं, तो परमेश्वर सामर्थी कार्य करेंगे और ऐसा अवश्य करेंगे।
\v 17 यद्यपि भविष्यद्वक्ता एलिय्याह हमारे जैसा एक साधारण व्यक्ति था, उसने सच्चे मन से प्रार्थना की कि वर्षा न हो, और साढ़े तीन साल तक वर्षा नहीं हुई।
\v 18 फिर उसने वर्षा भेजने के लिए परमेश्वर से दुबारा प्रार्थना की और परमेश्वर ने वर्षा भेजी, और पौधे बड़े और फिर से फसल उत्पन्न हुई।
\p
\s5
\v 19 मेरे भाईयों और बहनों, यदि तुम में से कोई भी परमेश्वर के सच्चे संदेश का पालन करना छोड़ देता है, तो तुममें से कोई इस व्यक्ति को फिर से परमेश्वर की आज्ञा मानने के लिए प्रेरित करना चाहिए। यदि वह अनुचित काम करना छोड़ दे,
\v 20 तो तुम सब को यह याद रखना चाहिए कि उस दूसरे व्यक्ति के कारण, परमेश्वर उस पापी को आत्मिक मृत्यु से बचायेंगे और उसके अनेक पापों को क्षमा कर देंगे।

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\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h 1 पतरस
\toc1 1 पतरस
\toc2 1 पतरस
\toc3 1pe
\mt1 1 पतरस
\s5
\c 1
\p
\v 1 मैं पतरस, जिसे यीशु मसीह ने प्रेरित नियुक्त किया है, तुम्हें यह पत्र लिख रहा हूँ, जो उन पर विश्वास करते हैं, और जिन्हें परमेश्वर ने अपने लिए चुना है। मैं यह पत्र तुम्हें लिख रहा हूँ, जो कि पुन्तुस, गलातिया, कप्पदूकिया, आसिया और बितूनिया के प्रदेशों में रहते हो, जो तुम्हारे सच्चे घर से जो स्वर्ग में है, दूर हैं।
\v 2 हमारे पिता परमेश्वर ने तुम्हें चुना है क्योंकि उन्होंने स्वयं पहले इसका निश्चय किया, और उनके आत्मा ने तुम्हें अलग किया है कि तुम यीशु मसीह की बातों को मान सको, और उनका लहू तुम्हें परमेश्वर के लिए ग्रहणयोग्य बना सकें । परमेश्वर तुम पर बहुत दयालु हों, और वे तुम्हें अधिक से अधिक शान्ति का जीवन दें।
\p
\s5
\v 3 हमारे प्रभु यीशु मसीह के पिता परमेश्वर की स्तुति हो, क्योंकि वे हम पर दयालु हैं और उन्होंने हम को अपनी महान दया दिखाई है, जिससे हमने नए जन्म का अनुभव किया, जिनके द्वारा हमें एक जीवित आशा मिली, और हमें नया जीवन मिला क्योंकि परमेश्वर ने यीशु मसीह को मृतकों में से जीवित किया।
\v 4 उन्होंने हमें उन वस्तुओं को प्राप्त करने की आशा दी है जो उन्होंने स्वर्ग में रखी हैं, जो सदा के लिए होंगी।
\v 5 परमेश्वर, अपनी महान शक्ति के द्वारा, तुम्हारी रक्षा कर रहे हैं क्योंकि तुम यीशु पर विश्वास करते हो। वे तुम्हारी रक्षा करते हैं कि तुम्हें, इस अंत के समय में, जिसमें हम रह रहें हैं, पूरी तरह से शैतान की शक्ति से बचा सकें।
\s5
\v 6 तुम आगे होने वाली घटनाओं के कारण खुश हो, लेकिन अभी तुम कुछ समय के लिए दुखी हो क्योंकि अलग-अलग विपत्तियों का सामना करते हो। परमेश्वर तुम्हारी परीक्षा होने की अनुमति दे रहे हैं, जैसे कि हर मूल्यवान धातु को परखा जाता है कि उसकी शुद्धता की पहचान हो सके। ये परीक्षाएं जिसका तुम अनुभव कर रहे हो, वे आवश्यक हैं।
\v 7 ये कष्ट इस कारण से आते हैं कि सिद्ध हो कि तुम सच में यीशु पर विश्वास करते हो, इसका अर्थ है कि परमेश्वर की दृष्टी में तुम्हारा विश्वास सम्पूर्ण संसार के सोने से, जो आग में नाश हो जाता है; अधिक बहुमूल्य है, क्योंकि तुम यीशु पर भरोसा रखते हो, यीशु के फिर से आने पर परमेश्वर तुम्हें बहुत सम्मान देंगे।
\s5
\v 8 तुम यीशु से प्रेम करते हो, यद्यपि तुमने उन्हें नहीं देखा है। तुम उन्हें इस समय नहीं देखते हो, परन्तु तुम बहुत आनंदित हो।
\v 9 क्योंकि तुम उन पर विश्वास करते हो, परमेश्वर तुम्हें तुम्हारे पापों के दोष से छुटकारा दे रहे है।
\p
\v 10 बहुत पहले भविष्यद्वक्ताओं ने उन संदेशों को सुनाया था जो कि परमेश्वर ने उन पर प्रकट किया था कि वे एक दिन तुम्हें कैसे बचाएंगे। उन्होंने इन बातों की बहुत सावधानी से जांच की।
\s5
\v 11 वे यह जानना चाहते थे कि मसीह के आत्मा जो उनके भीतर थे, किसके विषय में बात कर रहे थे। वे यह भी जानना चाहते थे कि वे किस समय कि बात कर रहे हैं। ऐसा इसलिए था क्योंकि आत्मा उन्हें पहले से बता रहे थे कि मसीह को कष्ट सहना और मरना है, और उसके बाद उनकी तेजस्वी महिमा होगी।
\v 12 परमेश्वर ने उन्हें बताया कि इन बातों का खुलासा उनके लिए नहीं था, परन्तु यह तुम्हारे लिए था। उन्होंने तुम्हारे लिए इसका प्रचार किया क्योंकि पवित्र आत्मा ने, जिसे परमेश्वर ने स्वर्ग से भेजा था, उन्हें ऐसा करने में योग्य किया था। और स्वर्गदूत भी इस सत्य के विषय में अधिक जानना चाहते हैं कि परमेश्वर हमें कैसे बचाते हैं।
\p
\s5
\v 13 इसलिए, परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने के लिए अपने मन को तैयार करो। मेरे कहने का अर्थ है कि तुमको अपना मन अनुशासित करना चाहिए। आश्वस्त रहो कि जब यीशु मसीह स्वर्ग से लौट आएँगे, तब तुमको वे अच्छी वस्तुएँ मिलेंगी जो परमेश्वर तुम्हारे लिए करेंगे।
\v 14 और क्योंकि तुम्हें अपने स्वर्गीय पिता का आज्ञा पालन करना चाहिए, जैसे धरती पर बच्चे अपने पिता का पालन करते हैं, इसलिए उन बुरे कामों को न करो जो तुम पहले करना चाहते थे, जब तुम्हें परमेश्वर के विषय में सच्चाई नहीं पता थी।
\s5
\v 15 इसकी अपेक्षा, जिस प्रकार परमेश्वर पवित्र है, जिन्होंने अपने लिए तुम्हें चुना है, तुम्हें भी हर काम में, जो तुम करते हो, पवित्र होना चाहिए।
\v 16 पवित्र हो क्योंकि धर्मशास्त्र में लिखा है कि, परमेश्वर ने कहा, "तुम पवित्र बनो क्योंकि मैं पवित्र हूँ।"
\p
\v 17 परमेश्वर ही है जो हर एक का उनके कामों के अनुसार न्याय करते हैं, और बहुत ही निष्पक्षता से करते हैं। क्योंकि तुम उन्हें 'पिता' कहते हो, इसलिए जब तुम पृथ्वी पर रह रहे हो, तो उचित व्यवहार करो। तुम ऐसे लोगों के समान हो जिन्हें दूसरों ने अपने घरों से निकाला है, क्योंकि तुम स्वर्ग से दूर रह रहे हो, जो तुम्हारा सच्चा घर है।
\s5
\v 18 भय सहित श्रद्धा का जीवन जीओ क्योंकि तुम जानते हो कि सोने और चाँदी जैसी नाश होने वाली वस्तुओं से परमेश्वर ने तुम्हें नहीं खरीदा है, अतः तुम, अपने पूर्वजों से सीखा हुआ मूर्खता का व्यवहार करना त्याग दो।
\v 19 इसकी अपेक्षा, परमेश्वर ने तुम्हें मसीह के अनमोल लहू से, जो उनकी मृत्यु के समय उनके शरीर से बहा, खरीदा है। मसीह उस भेड़ के समान थे जिसे यहूदी याजक बलि करते थे: सिद्ध, बिना किसी दाग या दोष के।
\s5
\v 20 परमेश्वर ने उन्हें, संसार को बनाने से पहले ऐसा करने के लिए चुना था। परन्तु अब संसार के शीघ्र समाप्त होने के समय, परमेश्वर ने उन्हें तुम पर प्रकट किया।
\v 21 क्योंकि जो मसीह ने किया है, उसके कारण तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो, जिन्होंने उनकी मृत्यु के बाद उन्हें फिर से जीवित किया, और उन्हें बहुत सम्मान दिया। परिणामस्वरूप, परमेश्वर ही पर तुम विश्वास करते हो और आशा करते हो कि वे तुम्हारे लिए महान काम करेंगे।
\p
\s5
\v 22 क्योंकि तुमने परमेश्वर के विषय में उनकी सच्चाई का पालन किया है और तुमने उन्हें अपने आपको शुद्ध करने और हमारे भाई-बहनों से प्रेम करने की अनुमति दी है, एक दूसरे से नम्रता और ईमानदारी से प्रेम करते रहो।
\v 23 मैं तुम्हें ऐसा करने के लिए कहता हूँ, क्योंकि अब तुम एक नया जीवन जी रहे हो। तुम्हारा यह नया जीवन तुम्हे किसी नाश होने वाली वस्तु से नहीं मिला। यह तुम्हे ऐसी बात से मिला जो सदा बनी रहेंगी: अर्थात् परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं से जिन पर तुमने विश्वास किया है।
\s5
\v 24 हम जानते हैं कि यह सच है, क्योंकि जैसा यशायाह भविष्यद्वक्ता ने लिखा था,
\q "सभी मनुष्य घास के समान नाश हो जाएँगे, और सभी महानताएँ जो मनुष्य में है सदा के लिए नहीं रहेंगी,
\q जैसे मैदान के फूल लम्बे समय तक नहीं रह सकते हैं।
\q घास सूख जाती है और फूल मुर्झा जाते हैं,
\v 25 परन्तु परमेश्वर का संदेश सदा के लिए बना रहता है।" यह संदेश जो सदा बना रहता है, वह मसीह के विषय में है जिसे हमने तुम्हें सुनाया है।
\s5
\c 2
\p
\v 1 इसलिए, किसी भी प्रकार द्वेश की भावना से ग्रस्त कार्य न करो या दूसरों को धोखा न दो। कपटी न बनो, और दूसरों से ईर्ष्या न करो। कभी भी किसी के लिए झूठ कहकर बुरी बातें मत बोलो।
\v 2 जैसा कि नए पैदा हुए बच्चे अपनी माँ के शुद्ध दूध के लिए लालसा करते हैं, तुम भी परमेश्वर से सच्ची बातें सीखने की लालसा करो, कि तुम उसे सीखकर उन पर भरोसा करने के लिए वयस्क बन सको। तुम्हें यह तब तक करना चाहिए जब तक कि परमेश्वर तुम्हें इस संसार की सब बुराइयों से पूरी तरह दूर न कर दें।
\v 3 इसके अतिरिक्त, तुम्हें ऐसा इसलिए करना चाहिए कि तुमने अपने प्रति परमेश्वर की दया का अनुभव किया है।
\p
\s5
\v 4 प्रभु यीशु के पास आओ। वह एक इमारत की नींव में सबसे महत्वपूर्ण पत्थर के समान हैं, परन्तु वे जीवित हैं, पत्थर के समान निर्जीव नहीं हैं। बहुत से लोगों ने उन्हें ठुकरा दिया, परन्तु परमेश्वर ने उन्हें चुना और उन्हें बहुत मूल्यवान समझा है।
\v 5 और जैसे मनुष्य पत्थरों से घर बनाते हैं, परमेश्वर तुम्हें आपस में जोड़कर एक ऐसी इमारत के समान बना रहे हैं जिसमें उनके आत्मा रहते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं कि तुम ऐसा काम कर सको जो परमेश्वर को प्रसन्न करे; उन याजकों के समान जो वेदी पर बलि चढ़ाते हैं, क्योंकि यीशु मसीह ने तुम्हारे लिए जान दी है।
\s5
\v 6 पवित्रशास्त्र हमें यह बताता है कि यह सच है: "मैं यरूशलेम में एक ऐसे मनुष्य को रख रहा हूँ जो एक बहुत ही मूल्यवान पत्थर के समान है, इमारत का सबसे महत्वपूर्ण पत्थर, और जो लोग उस पर विश्वास करते हैं, वे कभी भी लज्जित नहीं होंगे।"
\p
\s5
\v 7 इसलिए, परमेश्वर तुम्हारा सम्मान करेंगे जो यीशु पर विश्वास करते हैं। परन्तु जो लोग उन पर विश्वास करने से इन्कार करते हैं वे उन राज मिस्त्रियों के समान हैं, जिनके विषय में पवित्रशास्त्र कहता है: "जिस पत्थर को राज मिस्त्रियों ने ठुकरा दिया, वही इमारत का सबसे महत्वपूर्ण पत्थर बन गया।"
\p
\v 8 पवित्रशास्त्र में यह भी लिखा है:
\q "वह एक ऐसे पत्थर के समान होगा जो लोगों को ठोकर खिलाएगा,
\q और एक ऐसी चट्टान के समान होगा जिस से लोगों को ठेस लगेगी
\p जिस प्रकार चट्टान से ठोकर खाने से लोग घायल हो जाते हैं,
\q उसी प्रकार जो लोग परमेश्वर के संदेश को नहीं मानते हैं वे अपने आप को चोट पहुँचाते हैं;
\q परमेश्वर ने निर्णय लिया है कि उनके साथ यही होना चाहिए।"
\p
\s5
\v 9 परन्तु तुम ऐसे लोग हो जिन्हें परमेश्वर ने चुना है कि तुम उनके लोग बनो। तुम एक ऐसे झुण्ड हो जो याजकों के समान परमेश्वर की अराधना करता है, और तुम राजाओं के समान परमेश्वर के साथ राज्य करते हो। तुम ऐसे एक झुण्ड हो जो परमेश्वर के लोग हैं, कि तुम उन अद्भुत कामों का प्रचार करो जो परमेश्वर ने किए हैं। उन्होंने तुम्हें तुम्हारे पुराने व्यवहार से निकाल कर बुलाया है, जब तुम उनकी सच्चाई से अनजान थे, और उन्होंने तुम्हें अपने विषय में अद्भुत सच्ची बातें समझाई हैं।
\v 10 पवित्रशास्त्र जो तुम्हारे विषय में कहता है वह सच है:
\q "पहले, तुम कोई जन समूह नहीं थे,
\q परन्तु अब तुम परमेश्वर के लोगों का झुण्ड हो।
\q एक समय परमेश्वर तुम्हारे प्रति दयालु नहीं थे,
\q परन्तु अब उन्होंने तुम पर बहुत दया की है।"
\p
\s5
\v 11 तुम लोगों को जिनसे मैं प्रेम करता हूँ, मैं तुमसे विनती करता हूँ कि इस विषय में सोचो: तुम परदेशियों के समान हो जिनका वास्तविक घर स्वर्ग में है। इसलिए तुम्हें पाप नहीं करना चाहिए जिनकी तुम पहले अभिलाषा करते थे, क्योंकि अगर तुम उन्हें करते हो, तो तुम परमेश्वर के साथ उचित जीवन नहीं जी पाओगे।
\v 12 उन लोगों के बीच तुम अच्छा व्यवहार करते रहो जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं। यदि तुम ऐसा करोगे, तो यद्यपि वे कहेंगे कि तुम जो करते हो वह बुरा है परन्तु जब वे देखेंगे कि तुम अच्छे काम कर रहे हो, और जब परमेश्वर सब का न्याय करने आएँगे, तब वे उनका सम्मान करेंगे।
\p
\s5
\v 13 क्योंकि तुम प्रभु यीशु का सम्मान करना चाहते हो, इसलिए हर एक अधिकारी का सम्मान करो। राजा का भी सम्मान करो, क्योंकि उसके पास सबसे बड़ी शक्ति है।
\v 14 राज्यपाल का भी सम्मान करो, क्योंकि परमेश्वर उन्हें भेजते हैं कि गलत काम करनेवालों को दण्ड दें और उचित काम करनेवालों की प्रशंसा करें।
\v 15 परमेश्वर तुमसे यह चाहते हैं कि तुम अच्छे काम करो। यदि तुम ऐसा करोगे, तो तुम उन मूर्ख लोगों को, जो परमेश्वर को नहीं जानते तुम्हारे विषय में गलत कहने का अवसर नहीं दोगे।
\v 16 अपने आप को स्वतंत्र समझो जैसे कि तुम किसी स्वामी की आज्ञा का पालन करने से स्वतंत्र हो, परन्तु ऐसा मत सोचो कि तुम इस कारण बुराई कर सकते हो। इसकी अपेक्षा, परमेश्वर के दासों के समान व्यवहार करो।
\v 17 सब के साथ सम्मान का व्यवहार करो। अपने हर एक साथी विश्वासियों से प्रेम करो। परमेश्वर का आदर करो, और राजा का सम्मान करो।
\p
\s5
\v 18 हे दासों तुम जो विश्वासी हो, अपने आपको अपने स्वामी के अधीन करो और उनका पूरा सम्मान करो। अपने आप को न केवल उन लोगों के अधीन करो जो अच्छे काम करते हैं और जो तुम्हारे लिए अच्छे कार्य करते हैं, परन्तु अपने आप को उन लोगों के भी अधीन करो जो तुम्हारे साथ कठोर व्यवहार करते हैं।
\v 19 तुम्हें ऐसा करना चाहिए क्योंकि परमेश्वर उन लोगों से प्रसन्न होते हैं जो जानते हैं कि परमेश्वर क्या चाहते हैं और उनकी आज्ञा का पालन करते हैं, और वे जो इस कारण से दुःख उठाते हैं क्योंकि उनके स्वामी उनके साथ अन्याय का व्यवहार करते हैं।
\v 20 परमेश्वर तुमसे कभी प्रसन्न नहीं होंगे यदि तुम कुछ गलत करते हो और तुम्हारे स्वामी तुम्हें उस काम के लिए पीटते हैं। परन्तु अगर तुम अच्छे काम करते हो और फिर भी नुकसान उठाते हो, तो तुम उस अच्छे काम के लिए दुःख उठाते हो। यदि तुम उसको सहन करते हो, तो परमेश्वर तुम्हारी प्रशंसा करेंगे।
\s5
\v 21 परमेश्वर ने तुम्हे चुना, इसका एक कारण यह है कि तुम्हें दुःख उठाना पड़े। जब मसीह ने तुम्हारे लिए दुःख उठाया, तो वह तुम्हारे लिए एक आदर्श बन गए, जिससे कि तुम भी वही करो जो उन्होंने किया।
\v 22 याद रखो कि मसीह ने कैसा व्यवहार किया,
\q उन्होंने कभी पाप नहीं किया,
\q और उन्होंने लोगों को धोखा देने के लिए कुछ नहीं कहा।
\q
\v 23 जब लोगों ने उनका अपमान किया, तो उन्होंने बदले में उन्हें अपमानित नहीं किया।
\q1 जब लोग उन्हें दुःख देते थे, तो उन्होंने बदला लेने की धमकी नहीं दी।
\q1 इसकी अपेक्षा, उन्होंने परमेश्वर को न्याय करने का अवसर दिया, जो हमेशा सच्चाई से न्याय करते हैं, कि यह सिद्ध कर सकें कि वे निर्दोष थे।
\q1
\s5
\v 24 उन्होंने स्वयं ही हमारे पापों को अपने ऊपर लेकर क्रूस पर जान दी, जिससे कि, हम पाप करना त्याग दें और उचित जीवन जीएँ।
\p क्योंकि उन्होंने उन्हें घायल किया इसलिए परमेश्वर ने तुम्हें स्वस्थ किया है।
\v 25 तुम वास्तव में भेड़ों के समान हो, जो खो गई थीं, परन्तु अब तुम यीशु के पास लौट आए हो, जो तुम्हारा ध्यान रखते हैं, जैसे एक चरवाहा अपनी भेड़ों का ध्यान रखता है।
\s5
\c 3
\p
\v 1 तुम विश्वासी स्त्रियों को अपने पति के अधीन रहना चाहिए। ऐसा इसलिए करो कि यदि उनमें से कोई मसीह के संदेश पर विश्वास न करता हो, तो वह अपने आप ही, बिना कुछ कहे विश्वासी हो जाए।
\v 2 जब वे देखेंगे कि तुम उनका सम्मान करती हो और तुम पूरी तरह से उनके प्रति विश्वासयोग्य हो तो वे मसीह पर विश्वास करेंगे।
\s5
\v 3 तुम्हें ऐसा अपने बाहरी शरीर को सजाकर विचित्र रीति से बालों को बनाने या सोने के गहने और अच्छे कपड़े पहनने के द्वारा नहीं करना चाहिए।
\v 4 इसकी अपेक्षा, तुम अपने आप को भीतर से सुंदर बनाओ जो कभी मुरझाती नहीं है। मेरा कहने का अर्थ है, एक नम्र और शान्त व्यवहार रखो, जिसे परमेश्वर बहुत मूल्यवान समझते हैं।
\s5
\v 5 पूर्व काल की स्त्रियां जो परमेश्वर का सम्मान करती थीं, वे अपने आपको इसी प्रकार सुंदर बनाती थीं। वे परमेश्वर पर विश्वासी करती थीं और अपने पति की बातों का पालन करती थीं।
\v 6 उदाहरण के लिए, सारा, अपने पति अब्राहम की बात मानती थी और उसे स्वामी कहकर पुकारती थी। परमेश्वर तुम्हें उनकी पुत्रियाँ ठहराएँगे यदि तुम सही काम करती हो और तुम्हें इस बात का कोई डर नहीं है कि तुम्हारे विश्वासी होने के कारण तुम्हारे पति या कोई और तुम्हारे साथ कुछ करेंगे।
\p
\s5
\v 7 तुम विश्वासी पुरुषों को भी अपनी पत्नियों का सम्मान करना चाहिए, अपने जीवन को उनके साथ उचित रीति से जीना चाहिए। उनका सम्मान करो, इस समझ के साथ कि वे तुम्हारी तुलना में दुर्बल हैं। इस बात की भी तुम्हें समझ होनी चाहिए कि परमेश्वर उन्हें भी तुम्हारे समान सदा के लिए जीवित रखेंगे। ऐसा इसलिए करो कि तुम्हारी प्रार्थना में कोई बाधा न डाल पाए।
\p
\s5
\v 8 मेरे पत्र के इस भाग के अंत में, मैं तुम सब को यह कहता हूँ, अपनी सोच में एक दूसरे के साथ सहमत हो। एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति रखो। एक-दूसरे से प्रेम करो जैसा एक परिवार के सदस्यों को करना चाहिए। एक-दूसरे के प्रति दया बनाये रखो। विनम्र बनो।
\v 9 जब लोग तुम्हारे साथ बुराई करें या तुम्हारा अपमान करें, तो तुम उनके लिए वैसा ही मत करना। इसकी अपेक्षा, परमेश्वर से उनकी सहायता करने के लिए विनती करो, क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हें ऐसा करने के लिए ही चुना है, कि परमेश्वर तुम्हारी सहायता कर सकें।
\s5
\v 10 ध्यान करो कि भजनकार ने हमारे जीवन को चलाने के उचित तरीके के विषय में क्या लिखा है:
\q "उन लोगों के लिए जो जीवन का आनंद लेना चाहते हैं और उनके साथ अच्छी बातें होने की इच्छा रखते हैं,
\q उन्हें बुरी बातें मुँह से नहीं निकालना चाहिए या ऐसे शब्दों का उपयोग नहीं करना चाहिए जिनसे कोई धोखा खाए।
\v 11 उन्हें लगातार बुराई करने से इन्कार करना चाहिए, और इसकी अपेक्षा भलाई करनी चाहिए।
\q उन्हें लोगों को एक-दूसरे के प्रति शान्तिपूर्वक काम करने में मदद करने की कोशिश करनी चाहिए;
\q उन्हें लोगों की सहायता करने का प्रयास करना चाहिए कि वे एक दूसरे के साथ शान्ति बनाए रखें,
\v 12 क्योंकि परमेश्वर धर्मी लोगों के काम को स्वीकार करते हैं।
\q वह धर्मी लोगों की प्रार्थना को सुनते हैं, और उनको उत्तर देते हैं।
\q परन्तु वह उन लोगों की प्रार्थना को अस्वीकार करते हैं जो बुरा करते हैं।"
\s5
\p
\v 13 यदि तुम अच्छा करने के लिए हर संभव प्रयास करते हो तो कौन तुम्हें हानि पहुँचाएगा?
\v 14 परन्तु तुम उचित काम करने के कारण दुःख उठाते हो, तो परमेश्वर तुम्हें आशीष देंगे। "उन बातों से मत डरो, जिससे दूसरे डरते हैं, और परेशान न हो जब लोग तुम्हारे साथ बुरा व्यवहार करें।"
\s5
\v 15 इसकी अपेक्षा, अपने भीतर यह मानो कि मसीह तुम्हारे स्वामी हैं, जिन्हें तुम प्रेम करते हो। हमेशा किसी को भी जवाब देने के लिए तैयार रहो जो यह मांग करते हैं कि तुम उन्हें बताओ कि तुम क्या विश्वास करते हो कि परमेश्वर तुम्हारे लिए करेंगे। परन्तु नम्रतापूर्वक और सम्मान के साथ उनको उत्तर दो,
\v 16 और यह सुनिश्चित करो कि तुम कुछ भी गलत न करो, जिससे कि जो लोग तुम्हारे विषय में बुरा बोलते हैं, वे लज्जित हो सकें, जब वे यह देखें कि तुम उचित जीवन जी रहे हो क्योंकि तुम मसीह से जुड़ गए हो।
\v 17 संभव है कि परमेश्वर चाहते हैं कि तुम दुःख उठाओ। यदि ऐसा है, तो अच्छा काम करना सही है, भले ही तुम्हे दुःख उठाना पड़े, अपेक्षा इसके कि तुम बुरा काम करो।
\s5
\v 18 मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ, कि मसीह एक बार उन लोगों के लिए मरे जिन्होंने पाप किया था। वह एक धर्मी व्यक्ति थे जो अधर्मी लोगों के लिए मरे। वह इसलिए मरे कि हमें परमेश्वर के पास ला सकें। उस समय में जब उनके पास सामान्य शरीर था, वे मार दिये गये थे, परन्तु परमेश्वर के आत्मा ने उन्हें फिर से जीवित कर दिया।
\v 19 और आत्मा ने उन्हें उन बुरी आत्माओं में परमेश्वर की विजय का प्रचार करने के लिए समर्थ किया। जिन्हें परमेश्वर ने बन्दी बनाकर रखा था।
\v 20 बहुत पहले, जब नूह एक बड़े जहाज़ का निर्माण कर रहा था, उन दुष्ट-आत्माओं ने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी, जबकि वे धीरज रखकर प्रतीक्षा कर रहे थे कि लोग अपने बुरे व्यवहार से वापस मुड़ें। केवल कुछ लोग ही उस जहाज़ में बचाए गए थे। विशेष करके, परमेश्वर ने केवल आठ लोगों को बाढ़ के पानी में से बचाया था, जबकि सब लोग उसमें डूब गए।
\s5
\v 21 वह पानी हमारे बपतिस्मे के पानी का प्रतीक है जिसमें हम बपतिस्मा लेते हैं, जिसके द्वारा परमेश्वर ने हमें बचाया है क्योंकि उन्होंने यीशु मसीह को मरे हुओं में से जीवित किया है। निःसन्देह यह पानी, हमारे शरीर से कोई गंदगी नहीं निकालता है। इसकी अपेक्षा, यह दिखाता है कि हम परमेश्वर से यह निवेदन कर रहे हैं कि वह हमें विश्वास दिलाएँ कि उन्होंने हमारे पाप के अपराधों को हटा दिया है।
\v 22 मसीह स्वर्ग में चले गए हैं और परमेश्वर द्वारा सब दुष्ट आत्माओं और शक्तिशाली आत्मिक प्राणियों को उनके आज्ञाकारी बनाए जाने के बाद वह परमेश्वर के पास सबसे ऊँचे स्थान पर बैठकर शासन कर रहे हैं।
\s5
\c 4
\p
\v 1 इसलिए, क्योंकि मसीह ने अपने शरीर में दुःख उठाया, तुम्हें भी दुःख उठाना चाहिए। जो अपने शरीर में दुःख उठाते हैं, उन्होंने पाप करना त्याग दिया है।
\v 2 इसका परिणाम यह है, कि पृथ्वी पर अपने रहने के शेष दिनों में, वे उन कामों को नहीं करते हैं जो पापी लोग करने की इच्छा रखते हैं, परन्तु इसकी अपेक्षा वे उन कामों को करते हैं जो परमेश्वर उनसे कराना चाहते हैं।
\s5
\v 3 मैं तुमसे यह कहता हूँ क्योंकि तुम पहले ही पृथ्वी पर उन कामों को करने में बहुत ज्यादा समय बिता चुके हो जो वे लोग करना चाहते हैं जो परमेश्वर को नहीं जानते है। तुम पहले ही सब प्रकार के बुरे कामों को कर चुके हो, तुम नशे में रहे और फिर व्यभिचार करने और दाखरस पीने में भाग लिया, और तुमने मूर्तियों की पूजा की, जो परमेश्वर के लिए घृणित है।
\v 4 अब तुम्हारे मित्र इस बात से चकित होते हैं कि तुम उनके साथ उन कामों में सहभागी नहीं होते, जिन्हें वे कर रहे होते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि, वे तुम्हारे विषय में बुरी बातें कहते हैं।
\v 5 परन्तु एक दिन, जो कुछ उन्होंने किया है, उसे उन्हें परमेश्वर के सामने स्वीकार करना होगा। वही उनका न्याय करेंगे।
\v 6 यही कारण है कि मसीह ने मरे हुओं में सुसमाचार का प्रचार किया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया, कि वे पवित्र आत्मा की शक्ति के द्वारा सदा के लिए जीवित रहें जैसे परमेश्वर जीवित हैं; जबकि परमेश्वर ने उनका न्याय किया था जब वे जीवित थे।
\s5
\v 7 सब कुछ जो इस धरती पर है शीघ्र ही समाप्त हो जाएगा। इसलिए, समझदारी से सोचो, और अपने विचारों को नियंत्रण में रखो ताकि तुम ठीक तरह से प्रार्थना कर सको।
\v 8 सबसे आवश्यक बात यह है कि, हम एक दूसरे से सच्चे मन से प्रेम करें, क्योंकि यदि हम दूसरों से प्रेम करेंगे तो हम उनमें यह ढूँढ़ने का प्रयास नहीं करेंगे कि उन्होनें क्या गलत किया है।
\v 9 उन मसीही यात्रियों के लिए भोजन और सोने के लिए एक स्थान का प्रबंध करो जो तुम्हारे बीच आते हैं, और बिना शिकायत के ऐसा करो।
\s5
\v 10 विश्वासियों को अपने सब वरदानों का उपयोग करना चाहिए जो परमेश्वर ने उन्हें दूसरों की सेवा करने के लिए दिए हैं। उन्हें परमेश्वर के दिए हुए इन वरदानों का उचित प्रबन्ध करना सीखना है।
\v 11 जो विश्वासियों की मण्डली में प्रचार करते हैं, उन्हें ऐसा प्रचार करना चाहिए जैसे कि वे परमेश्वर के ही वचन हैं। जो दूसरों के लिए अच्छा काम करते हैं, उन्हें यह उस शक्ति के अनुसार करना चाहिए जो परमेश्वर उन्हें देते हैं, जिससे कि तुम परमेश्वर का सम्मान कर सको जैसा यीशु मसीह हमें करने में योग्य बनाते हैं। हम सब परमेश्वर की स्तुति करते हैं क्योंकि उनके पास यह अधिकार है कि वे हमेशा के लिए सब पर राज करे: और ऐसा ही हो!
\s5
\v 12 तुम्हें, जिनसे मैं प्रेम करता हूँ, उन दुखद बातों के विषय में आश्चर्य नहीं करना चाहिए जिन्हें तुम सहते हो क्योंकि तुम मसीह के हो। ये बातें तुम्हारे परखने के लिए हैं जैसे लोग धातु को आग में डालकर परखते हैं। यह मत सोचना कि तुम्हारे साथ कुछ विचित्र बात हो रही है।
\v 13 इसकी अपेक्षा, आनन्द करो कि तुम भी उसी प्रकार से दुःख सह रहे हो जैसे मसीह ने दुःख सहे हैं। जब तुम दुखी होते हो तब आनन्द करो, ताकि मसीह के आने पर तुम बहुत आनंदित हो सको और सब को दिखा सको कि वे कितने महान हैं।
\v 14 यदि दूसरे तुम्हारा अपमान करते हैं क्योंकि तुम मसीह में विश्वास करते हो, तो परमेश्वर तुमसे प्रसन्न है, क्योंकि यह इस बात को दर्शाता है कि परमेश्वर के आत्मा, जो यह प्रकट करते हैं कि परमेश्वर कितने महान हैं, तुम्हारे भीतर रहते हैं।
\s5
\v 15 यदि तुम दुखी हो, तो ऐसा इसलिए न हो कि तुमने किसी की हत्या की है, या तुमने कुछ चुराया है, या किसी और प्रकार की बुरी बात की है या तुमने किसी और के मामलों में दखल दिया है।
\v 16 परन्तु यदि तुम दुःख उठाते हो क्योंकि तुम एक मसीही हो, तो तुम्हें इसके लिए लज्जित नहीं होना चाहिए। इसकी अपेक्षा, परमेश्वर की स्तुति करो कि तुम दुःख उठाते हो क्योंकि तुम मसीह के हो।
\s5
\v 17 मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ, कि अब यह समय है कि परमेश्वर लोगों का न्याय करें, सबसे पहले वे उन लोगों का न्याय करेंगे जो उनके अपने हैं। और क्योंकि वे हम विश्वासियों का न्याय पहले करेंगे, तो उन भयानक बातों के विषय में सोचो जो उन लोगों पर होंगी जिन्होंने सुसामाचार की बातों को नहीं माना जो उनके द्वारा दी गई थी!
\v 18 जैसा कि धर्मशास्त्र में लिखा है:
\q "स्वर्ग जाने से पहले कई धर्मी लोगों को अनेक कठिन परीक्षाएँ भुगतनी पड़ेंगी।
\q तो भक्तिहीन और पापी लोगों को अवश्य ही परमेश्वर से बहुत भयानक दंड भोगना पड़ेगा!"
\p
\v 19 इसलिए, जो लोग दुःख उठाते हैं क्योंकि परमेश्वर ऐसा चाहते हैं, उन्हें परमेश्वर पर भरोसा रखना चाहिए कि वे उन्हें स्थिर रखेंगे - परमेश्वर ने ही उन्हें बनाया है और जो उन्होंने प्रतिज्ञा की है वे उसे सदा पूरा करेंगे। इसलिए उन्हें सही काम करते रहना चाहिए।
\s5
\c 5
\p
\v 1 अब मैं उन लोगों से कहूंगा जो तुम्हारे बीच वृद्ध हैं, तुम जो विश्वासियों की सभाओं की अगुवाई करते हो: मैं भी एक बुजुर्ग हूँ। मैं भी उन लोगों में से एक हूँ जिन्होंने मसीह को दुःख उठाते देखा है, और मैं भी उस महिमा का भागी होऊँगा जो मसीह ने स्वर्ग में रखी है।
\v 2 मैं तुम वृद्धों से यह विनती करता हूँ कि तुम्हारी मण्डली के विश्वासियों की देखभाल करो। जैसे कि तुम उनके चरवाहे हो जो अपनी भेड़-बकरियों की देखभाल करते हैं। ऐसा सोचकर मत करो, कि तुम्हें ऐसा करना ही पड़ेगा, परन्तु अपनी इच्छा से करो, जैसा परमेश्वर चाहते हैं। पैसों का लालच मत करो, इसकी अपेक्षा उत्साह से ऐसा करो।
\v 3 उन लोगों पर जिन्हें परमेश्वर ने तुम्हें सौंपा है, अपना अधिकार दिखाकर काम कराओ, परन्तु अपनी जीवन शैली में उनके लिए आदर्श बनो।
\v 4 यदि तुम ऐसा करते हो, तो जब यीशु, जो हमारे मुख्य चरवाहे हैं, प्रकट होंगे, तो वे तुम सब को महिमामय पुरस्कार देंगे। वह पुरस्कार उन फूलों के हार के समान होगा, जो दौड़ में जीतने वाले खिलाड़ियों को दिया जाता है, परन्तु तुम्हारा पुरस्कार कभी नहीं सूखेगा जिस प्रकार उनका पुरस्कार सूख जाता है।
\p
\s5
\v 5 अब मैं तुम जवानों से यह कहूँगा। तुम्हें सभा में अपने वृद्धों की आज्ञा का पालन करना चाहिए। तुम सब विश्वासियों को एक दूसरे के प्रति विनम्रता का व्यवहार रखना चाहिए, क्योंकि यह सच है कि परमेश्वर उन लोगों का विरोध करते हैं, जो अभिमानी हैं, परन्तु वे नम्र लोगों से प्रेम रखते हैं।
\p
\v 6 इसलिए, यह एहसास करते हुए कि परमेश्वर अभिमानियों को दंड देने के लिए बहुत शक्तिमान है, अपने आप को दीन बनाओ ताकि वे उस समय तुम्हारा सम्मान कर सकें जब उनके द्वारा निर्धारित समय आएगा।
\v 7 क्योंकि वे तुम्हारा ख्याल रखते हैं, इसलिए उन्हें तुम्हारे चिन्ता के विषयों का ध्यान भी रखने दो।
\p
\s5
\v 8 सदा सतर्क रहो और ध्यान दो, क्योंकि शैतान, जो तुम्हारा बैरी है, तुम्हारे चारों ओर यह देखते हुए घूम रहा है कि, किन लोगों को नष्ट कर सके। वह एक शेर की तरह है जो गरजता है, जब वह लोगों की तलाश में इधर-उधर घूमता है कि उनको मारे और खा जाए।
\v 9 तुम्हें मसीह और उनके सन्देश में दृढ़ता से विश्वास करने के द्वारा उसका विरोध करना चाहिए, यह याद रखते हुए कि संसार भर में तुम्हारे साथी विश्वासियों को भी इसी तरह के दुखों का सामना करना पड़ रहा है।
\s5
\v 10 परमेश्वर ही हर स्थिति में दयावान होकर हमारी सहायता करते हैं, और परमेश्वर ने हमें चुना है कि हम मसीह से जुड़े होने के कारण स्वर्ग में उनकी अनन्त महिमा के भागी हो सकें। लोगों के द्वारा तुम्हारी हानि के लिए किए गए कामों के कारण तुम्हारे कुछ समय के कष्टों के बाद, वह तुम्हारे आत्मिक दोषों को दूर कर देंगे, वह तुम्हें और अधिक शक्ति देंगे कि उन पर तुम्हारा विश्वास और अधिक हो जाए, और वह हर प्रकार से तुम्हारी सहायता करेंगे।
\v 11 मैं प्रार्थना करता हूँ कि वह सदा के लिए शक्तिशाली राज्य करें। ऐसा ही हो!
\p
\s5
\v 12 सिलवानुस ने मेरे लिए यह पत्र लिखा है जैसा कि मैंने उससे लिखवाया है। मैं उसे एक विश्वासयोग्य विश्वासी साथी मानता हूँ। मैंने तुम्हें यह छोटा पत्र तुम्हे प्रोत्साहित करने के लिए लिखा है, और मैं तुम्हें यह विश्वास दिलाता हूँ कि मैंने जो कुछ लिखा है, वह हमारे लिए किए जानेवाले परमेश्वर के दयालु कामों के बारे में एक सच्चा संदेश है- जिन कामों के हम योग्य नहीं हैं। इस संदेश पर दृढ़ता से विश्वास करते रहो।
\p
\v 13 इस शहर को जिसे हम कभी-कभी 'बाबेल' कहते हैं, यहाँ के विश्वासी जिन्हें परमेश्वर ने चुना है, तुम्हें अपनी शुभकामनाएँ भेजते हैं। मरकुस, जो मेरे लिए एक बेटे के समान है, वह भी तुम्हें अपनी शुभकामनाएँ भेजता है।
\v 14 एक दूसरे को गाल पर चुंबन के द्वारा नमस्कार करो ताकि यह दिखा सको कि तुम एक दूसरे से प्रेम करते हो। मैं प्रार्थना करता हूँ कि परमेश्वर तुम सब को जो मसीह से जुड़े हुए हो, शान्ति दें।

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\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h 2 पतरस
\toc1 2 पतरस
\toc2 2 पतरस
\toc3 2pe
\mt1 2 पतरस
\s5
\c 1
\p
\v 1 मैं शमौन पतरस तुम्हें यह पत्र लिख रहा हूँ। मैं यीशु मसीह की सेवा करता हूँ, और मैं एक प्रेरित हूँ जिसे मसीह ने नियुक्त किया है। मैं यह पत्र तुम्हें भेज रहा हूँ जिन्हें परमेश्वर ने मसीह में विश्वास करने के लिए सहायता की जैसे उन्होंने हम प्ररितों को मसीह में विश्वास करने के लिए सहायता की। तुम्हें और हमें यीशु मसीह पर विश्वास करने से एक जैसा सम्मान मिला है। वह परमेश्वर हैं, वह पूरी तरह से धर्मी हैं जिनकी हम आराधना करते हैं, और वह हमारे उद्धारकर्ता हैं।
\v 2 मैं प्रार्थना करता हूँ कि परमेश्वर तुम्हारे प्रति बहुत दयालु बने रहे और तुम्हें असीम शान्ति दें क्योंकि तुम सचमुच परमेश्वर और हमारे प्रभु यीशु को जानते हो।
\p
\s5
\v 3 परमेश्वर ने हमें वह सब कुछ दिया है जिसकी हमें आवयश्कता है ताकि हम हमेशा के लिए जीवित रहें और उनका आदर करें। वह अपने परमेश्वर होने की शक्ति के द्वारा ऐसा करते हैं, और वह ऐसा इसलिए करते हैं कि हम उन्हें जानते हैं। और उन्हे जानने के कारण उन्होंने हमें यह दिया है। परमेश्वर ही ने हमें अपने लोग होने के लिए चुना है क्योंकि वे शक्तिशाली और भले हैं।
\v 4 क्योंकि वह ऐसे हैं, इसलिए उन्होंने हमसे प्रतिज्ञा की है कि वह हमारे लिए बहुत बड़ी और अनमोल बातों को करेंगे। उन्होंने तुमसे यह भी कहा है कि तुम उनकी प्रतिज्ञाओं पर विश्वास करो, तो तुम उचित काम कर पाओगे, जिस प्रकार परमेश्वर सही तरीके से काम करते हैं, और तुम बुरे कामों को करने की लालसा के कारण नाश होने के मार्ग पर नहीं रहोगे जैसे अविश्वासी हैं।
\p
\s5
\v 5 क्योंकि परमेश्वर ने वह सब किया है, इसलिए सर्वोत्तम यत्न करो न केवल मसीह में विश्वास करने के लिए, वरन् अच्छा जीवन जीने के लिए भी। और सुनिश्चित करो कि न केवल तुम अच्छा जीवन जी रहे हो, परन्तु तुम परमेश्वर के बारे में अधिक से अधिक सीख भी रहे हो।
\v 6 इसके अतिरिक्त, अपने सर्वोत्तम प्रयास से परमेश्वर के बारे में अधिक से अधिक जानना ही नहीं वरन्, अपने कामों एवं मुँह की बातों में भी संयम रखो। सुनिश्चित करो कि तुम केवल अपने कामों और मुँह की बातों को ही संयम में न रखो परन्तु तुम मसीही के निष्ठावान भी हों और सुनिश्चित करो कि तुम मसीह के निष्ठावान ही नहीं; उसके सम्मान करनेवाले भी हो।
\v 7 और यह भी सुनिश्चित करो कि तुम केवल उनका सम्मान ही नहीं करते हो, तुम अपने विश्वासी भाई-बहनों के लिए चिन्ता भी करते हो, जैसे कि भाइयों और बहनों को एक दूसरे के लिए करना चाहिए। और यह भी सुनिश्चित करो कि न केवल तुम अपने साथी विश्वासियों के लिए चिन्ता करते हो, तुम सबसे प्रेम भी करते हो।
\s5
\v 8 यदि तुम ये सब करते हो, और बहुतायत से करते हो, तो इससे प्रकट होता है कि हमारे प्रभु यीशु मसीह को जानने से तुम्हारे जीवन में बहुत अच्छे फल उत्पन्न होते हैं।
\v 9 परन्तु अगर ये बातें लोगों के जीवन में सच नहीं हैं, तो इसका अर्थ है कि उन्हें ये पता ही नहीं है कि ये बातें महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि एक अंधे व्यक्ति को नहीं पता होता की उसके आस-पास क्या है। वह केवल सांसारिक बातों के बारे में ही सोचता है, जैसे कि पास का दिखने वाले व्यक्ति को केवल अपने आस पास की वस्तुएँ ही दिखाई देती है। ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्य भूल गए हैं कि परमेश्वर ने उनके पुराने पापी जीवन को क्षमा कर दिया है।
\s5
\v 10 उन लोगों के समान काम करने की अपेक्षा, तुम्हें ऐसा जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए कि सबको ये पता चले कि परमेश्वर ने तुम्हें अपने लोग होने के लिए चुना है। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम परमेश्वर से कभी अलग नहीं होगे,
\v 11 और परमेश्वर पूरे मन से तुम्हारा उस जगह में स्वागत करेंगे जहाँ हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह अपने लोगों पर हमेशा के लिए राज्य करेंगे।
\p
\s5
\v 12 मैं बार-बार तुम्हें इन बातों को याद दिलाना चाहता हूँ, भले ही तुम उन्हें पहले से जानते हो और दृढ़ विश्वास भी रखते हो कि वे सही हैं।
\v 13 मैं इसे सही मानता हूँ कि जब तक मैं जीवित हूँ, मैं तुम्हारी सहायता करता हूँ कि तुम्हे इन विषयों के बारे में लगातार सोचते रहने में सहायता करता रहूँ,
\v 14 क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं शीघ्र ही मर जाऊँगा, जैसे हमारे प्रभु यीशु मसीह ने स्पष्ट रूप से मुझ पर प्रकट कर दिया है।
\v 15 इसके अतिरिक्त, मैं पूरा प्रयास करूँगा कि इन बातों को लिखूँ कि मेरे मरने के बाद तुम इन बातों को सदा स्मरण करने योग्य हो जाओ।
\p
\s5
\v 16 हम प्रेरितों ने तुम्हें बताया है कि हमारे प्रभु यीशु मसीह शक्तिशाली हैं और वह एक दिन वापस आएँगे। हमने यह बातें बनाई हुई कहानियों के आधार पर तुमसे नहीं कहीं, ऐसी कहानियाँ जिसे हमने बनाया है। इसकी अपेक्षा, हमने तुम्हें वो बताया था जो हमने अपनी आँखों से देखा था, कि प्रभु यीशु सबसे महान हैं।
\v 17 हमारे पिता परमेश्वर ने, उनको बहुत सम्मान दिया, जब परमेश्वर के महान प्रकाश ने उन्हें घेर लिया और उन्होंने कहा, "यह मेरे पुत्र है, जिनसे मैं बहुत प्रेम करता हूँ; मैं उनसे बहुत प्रसन्न हूँ।"
\v 18 हमने स्वयं परमेश्वर को स्वर्ग से यह कहते सुना था जब हम उस पवित्र पर्वत पर मसीह के साथ थे।
\s5
\v 19 हमें और भी विश्वास हैं कि जो भविष्यद्वक्ताओं ने मसीह के बारे में बहुत पहले लिखा था, वह पूरी तरह विश्वसनीय हैं। उन्होंने जो लिखा है उस पर ध्यान दो, क्योंकि यह एक दीपक की तरह है जो अंधेरे में चमक रहा है जिससे लोगों को यह देखने में सहायता मिलती है कि वे कहाँ जा रहे हैं। वह रोशनी उस समय तक चमकती रहेगी जब तक दिन का आरम्भ नहीं होती और सुबह का तारा तुम्हारे दिलों में उदय नहीं हो जाता।
\v 20 तुम्हें यह समझना आवश्यक है कि कोई भविष्यद्वक्ता अपनी कल्पना के आधार पर लिख नहीं सकता।
\v 21 कोई भी भविष्यद्वाणी किसी व्यक्ति के निर्णय से नहीं होती। जो लोग परमेश्वर के संदेश को सुनाते थे, उन्होंने ऐसा तब किया जब पवित्र आत्मा ने उनकी सहायता की। इसलिए इनका अर्थ समझाने में भी आत्मा को हमारी सहायता करनी चाहिए।
\s5
\c 2
\p
\v 1 बहुत पहले, इस्राएलियों के बीच बहुत से लोग परमेश्वर का सच्चा संदेश सुनाने का ढोंग करते थे, और लोग तुम्हारे साथ भी ऐसा ही करेंगे। पहले तुम्हें यह नहीं पता चलेगा कि वे कौन हैं, और वे कई लोगों को मसीह में विश्वास करने से हटा देंगे; वे सोचने लगेंगे कि प्रभु महत्वपूर्ण नहीं है- जबकि उन्हीं ने उनका उद्धार किया है। परन्तु शीघ्र ही, परमेश्वर इन झूठे भविष्यद्वक्ताओं को नष्ट कर देंगे।
\v 2 और बहुत से विश्वासी उन झूठे भविष्यद्वक्ताओं की नकल करके उनका सा जीवन जिएँगे। इस प्रकार वे परमेश्वर के बारे में सच्चाई का अपमान करेंगे।
\v 3 वे इस प्रकार से झूठ बोलेंगे कि वे तुमसे लाभ उठाएँगे। परमेश्वर उन्हें दंड देने के लिए अधिक प्रतीक्षा नहीं करेंगे; वे शीघ्र ही नष्ट हो जाएँगे।
\p
\s5
\v 4 परमेश्वर ने उन स्वर्गदूतों को नष्ट कर दिया जिन्होंने पाप किया था। परमेश्वर ने उन्हें नरक में, सबसे बुरे स्थान में, डाल दिया और उन्हें अंधेरे में बन्दी बना दिया जब तक कि वे उनका न्याय करके और उन्हें दंड न दें।
\v 5 परमेश्वर ने उन लोगों को भी नष्ट कर दिया जो बहुत पहले दुनिया में रहते थे। उन्होंने धर्मी प्रचारक नूह समेत केवल आठ लोगों को बचाया। उन्होंने ऐसा तब किया, जब उन्होंने बाढ़ के द्वारा सब अधर्मियों का नाश कर दिया जो उस समय जीवित थे।
\v 6 उन्होंने सदोम और गमोरा के शहरों को भी दोषी ठहराया और फिर उन्हें पूरी तरह से जला कर राख कर दिया। यह उन लोगों के लिए एक चेतावनी है, जो बाद में परमेश्वर को अपमानित करने के लिए जीते हैं।
\s5
\v 7 परन्तु उन्होंने अब्राहम के भतीजे लूत को बचाया, जो एक धर्मी व्यक्ति था। लूत सदोम के लोगों के अशुद्ध कामों के कारण बहुत परेशान था।
\v 8 वह धर्मी व्यक्ति पीड़ा में था क्योंकि वह हर दिन देखता और सुनता था की वे दुष्ट लोग परमेश्वर के नियमों के विरुद्ध काम करते हैं।
\v 9 और क्योंकि प्रभु परमेश्वर ने लूत को बचाया, तो तुम्हें यह पक्का मालूम होना चाहिए कि वे जानते हैं कि अपने सम्मान करने वालों को कैसे बचाना है, और वे जानते हैं कि जो उनका सम्मान नहीं करते, उन्हें न्याय करके दंड देने के समय के लिए कैसे तैयार रखना है।
\s5
\v 10 वे विशेष रूप से उन्हें गंभीरता से दंड देंगे जो अपनी इच्छा से वह सब करते हैं जो परमेश्वर को अप्रिय लगता हैं। बड़े साहस से वे जो कुछ करना चाहते हैं, वह करते हैं; यहाँ तक कि वे परमेश्वर के शक्तिशाली स्वर्गदूतों का भी अपमान करते हैं
\v 11 परन्तु परमेश्वर के स्वर्गदूत, जो उन लोगों से अधिक शक्तिशाली हैं, वे भी परमेश्वर के सामने किसी का भी अपमान नहीं करते, उनका भी नहीं!
\s5
\v 12 वे लोग जो झूठी बातें सिखाते हैं- वे ऐसे पशुओं के समान हैं जो हमारे जैसे नहीं सोच सकते हैं- वे परमेश्वर के बारे में बुरी बातें कहते हैं, जिन्हें वे जानते भी नहीं हैं। इसलिए वे उन्हें नष्ट कर देंगे जैसे हम उन जंगली पशुओं का शिकार करके उन्हें नष्ट करते हैं, जिनकी जरूरत प्रकृति को नहीं है।
\v 13 जो गलत काम वे करते हैं, वे स्वयं ही उन्हें नुकसान पहुँचाते हैं: वे उत्सव मनाते हैं और दिन-रात नशे में रहते हैं। वे उन वस्त्रों के समान हैं जो कभी साफ थे और उन पर दाग और धब्बे लग गए।
\v 14 वे हर स्त्री के साथ सोना चाहते हैं, जिसे वे देखते हैं। उनके पाप करने की कोई सीमा नहीं है। वे उन लोगों को अपने साथ जुड़ने के लिए सहमत कर लेते हैं जो परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य नहीं हैं। जैसा एक खिलाड़ी खेल के लिए अभ्यास करता है, ये लोग स्वयं को लालची बनाने के लिए अभ्यास करते हैं। परन्तु परमेश्वर ने उन्हें श्राप दे दिया है!
\s5
\v 15 वे परमेश्वर की इच्छा के अनुसार जीने से इन्कार करते हैं। उन्होंने बओर के पुत्र भविष्यद्वक्ता बिलाम की नक़ल की है। उसने सोचा कि वह दुष्टता का कार्य करेगा और एक पुरस्कार प्राप्त करेगा।
\v 16 परन्तु परमेश्वर ने उसे पाप करने का दंड दिया। और जबकि गदहे बोल नहीं पाते, परमेश्वर ने बिलाम के स्वयं के गदहे को मनुष्य की भाषा में बात करने के लिए उपयोग किया और उसके पागलपन को रोक दिया।
\p
\s5
\v 17 ये लोग जो झूठी शिक्षा देते हैं एक ऐसे झरने के समान हैं जो पानी नहीं देता; वे ऐसे बादलों के समान हैं जो वर्षा के होने से पहले ही अति शीघ्र चले जाते हैं। इसलिए, परमेश्वर ने उन शिक्षकों के लिए नरक के अंधेरे को तैयार किया है।
\v 18 वे अपने ऊपर घमंड करते हैं, परन्तु वे जो कहते हैं उसमें कुछ भी मूल्य नहीं है। वे उन लोगों को अपनी बुरी बातों में फंसा लेते हैं जो अभी अभी विश्वासी बने हैं और जिन्होंने अभी अभी बुरे कामों को छोड़ा है। वे उन कामों को करके, जो पाप करनेवालों को अच्छे लगते हैं, उन्हें फिर से पाप करने के लिए प्रेरित करते हैं।
\v 19 वे उन्हें यह बताते हैं कि वे स्वतन्त्र हैं और जो चाहें कर सकते हैं। परन्तु वे स्वयं अपने मन के दासत्व में हैं जो हर उन बुरी बातों को जो उनका मन कहता है, करते हैं। सच में, मनुष्य जिसके नियन्त्रण में हो उसी का दास होता है।
\s5
\v 20 परन्तु यह सोचो कि तुम ने हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह को जानना शुरू किया और तुमने उन कामों को करना त्याग दिया जो परमेश्वर के सामने तुम्हें स्वीकार होने से रोकते हैं। और यह सोचो कि तुम फिर से उन बुरे कामों को करने लगो, तो तुम पहले की तुलना में अब और भी अधिक बुरे हो जाओगे।
\v 21 उन्हें उचित जीवन जीने के बारे में कभी नहीं पता चलता, तो यह उनके लिए अच्छा होता। परन्तु परमेश्वर उन्हें और भी अधिक दंड देंगे, क्योंकि उन्होंने उस आदेश को जो उन्हें हम प्रेरितों नें दिया था अस्वीकार कर दिया है।
\v 22 जिस प्रकार से वे पुराना व्यवहार कर रहे हैं कि उन पर वह कहावत ठीक बैठती हैं: "वे उन कुत्तों के समान हैं जो अपनी उल्टी खाने के लिए वापस जातें हैं" और, "वे ऐसे सूअरों के समान हैं जो अपने आप को धो चुके हैं और फिर से कीचड़ में लोटते हैं।"
\s5
\c 3
\p
\v 1 यह मेरा दूसरा पत्र है, जो मैंने तुम्हें लिखा है, जिन्हें मैं प्रेम करता हूँ। मैंने तुम्हें ये दोनों पत्र इसलिए लिखे हैं कि तुम्हें उन बातों के बारे में याद दिलाऊँ जो तुम पहले से जानते हो, और मैं तुम्हें उन बातों के बारे में मन की सच्चाई से सोचने के लिए प्रोत्साहित कर सकता हूँ।
\v 2 मैं चाहता हूँ कि तुम उन वचनों को याद करो जो पवित्र भविष्यद्वक्ताओं ने बहुत पहले कहे थे, और यह भी याद रखना कि हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता ने क्या आज्ञा दी है, जो हम, प्रेरितों ने तुम्हें बताई है।
\p
\s5
\v 3 तम्हारे लिए यह समझना आवश्यक है कि मसीह के आने से ठीक पहले, लोग तुम्हारा ठट्ठा करेंगे जब तुम कहोगे कि मसीह वापस आने वाले हैं। वे लोग ऐसे बुरे काम करेंगे जिन्हें वे करना चाहते हैं।
\v 4 वे यह कहेंगे, " मसीह ने प्रतिज्ञा की थी कि वह वापस आएँगे, परन्तु वह नहीं आए, जब से पूर्वजों की मृत्यु हुई है, तब से सब कुछ वैसा ही है। सारी बातें वैसे ही हैं जैसी तब से हैं जब से परमेश्वर ने इस संसार को बनाया है।
\s5
\v 5 वे ऐसा कहेंगे क्योंकि वे जानबूझकर परमेश्वर की सच्चाई को अनदेखा करते हैं, कि परमेश्वर ने बहुत समय पहले आदेश दिया था कि ऐसा हो और वह स्वर्ग को अस्तित्व में लाए, और उन्होंने पृथ्वी को पानी से बाहर निकाला और पानी से अलग किया।
\v 6 और परमेश्वर ने यह आज्ञा देकर कि ऐसा हो, बाढ़ के पानी से उस संसार को नाश कर दिया, जो उस समय अस्तित्व में था।
\v 7 इसके अतिरिक्त, परमेश्वर ने यह आदेश देकर कि ऐसा हो, स्वर्ग और पृथ्वी को अलग कर दिया है जो अब हैं, और ये उस समय तक रहेंगे जब वे अधर्मी लोगों का न्याय करेंगे। और वह उस समय आकाश और पृथ्वी को जलाकर नाश कर देंगे।
\s5
\v 8 प्रिय मित्रों, मैं चाहता हूँ कि तुम इसे अच्छी तरह समझ लो कि प्रभु परमेश्वर इस संसार के लोगों का न्याय करने के लिए बहुत समय से प्रतीक्षा कर रहे हैं! परमेश्वर को कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोगों का न्याय करने से पहले कितना समय निकल गया है! वह जानते हैं कि एक दिन एक हज़ार वर्ष से अधिक तेज़ी से नहीं गुजरता है, और वह यह भी जानते हैं कि एक हज़ार वर्ष एक दिन के समान तेज़ी से बीत जाते हैं!
\v 9 इसलिए, तुम्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि मसीह अभी तक लोगों का न्याय करने के लिए वापस नहीं आये हैं, इसलिए प्रभु परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने में देरी कर रहे हैं। कुछ लोग यह सोचते हैं कि यह ऐसा ही है, और वे कहते हैं कि मसीह कभी भी वापस नहीं आएँगे। परन्तु तुम्हें यह समझना चाहिए कि मसीह अभी तक लोगों का न्याय करने के लिए वापस इसलिए नहीं आए हैं, कि परमेश्वर तुम्हारे प्रति धीरज रखते हैं, क्योंकि वह नहीं चाहते कि कोई भी अनंतकाल के लिए नाश हो जाए। इसकी अपेक्षा, वह चाहते हैं कि हर एक जन अपने पापों को त्यागकर लौट आए।
\s5
\v 10 परन्तु परमेश्वर का आगमन एक दिन अचानक ही हो जाएगा। वह चोर के समान बिना चेतावनी के आ जाएँगे। उस समय एक बड़ी गड़गड़ाहट की आवाज होगी। स्वर्ग अस्तित्व में न रहेगा। तत्वों को आग से नष्ट किया जाएगा, और पृथ्वी और उस में रहने वाले सब लोगों के काम, न्याय करने के लिए परमेश्वर के सामने प्रकट किए जाएँगे।
\p
\s5
\v 11 क्योंकि परमेश्वर निश्चय ही इन सब वस्तुओं को नष्ट कर देंगे जैसा कि मैंने अभी कहा था, इसलिए तुम्हें अवश्य यह जानना चाहिए कि तुम्हें किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए। तुम ऐसा व्यवहार करो जिससे परमेश्वर को आदर मिले,
\v 12 जब कि तुम उत्सुकता से मसीह की वापसी के दिन की प्रतीक्षा करते हो जिसे उन्होंने नियुक्त किया है, तुम्हें उस दिन के शीघ्र आने के लिए यत्न करना चाहिए। परमेश्वर उस दिन जो करेंगे उसके कारण, आकाश नाश होगा। तत्व पिघल जाएँगे और जल जाएँगे।
\v 13 यह सभी घटनाएँ तो होंगी, परन्तु हम आनन्दित होंगे क्योंकि हम नए आकाश और नई पृथ्वी की प्रतीक्षा कर रहे हैं जिसकी परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की है। केवल वही लोग नए आकाश और नई पृथ्वी पर होंगे जो लोग धर्मी हैं।
\p
\s5
\v 14 इसलिए, प्रिय मित्रों, क्योंकि जब तुम इन बातों के होने की प्रतीक्षा कर रहे हो, ऐसे करने का प्रयास करो जिससे परमेश्वर का सम्मान हो, और मसीह यह देख सकें कि तुम पाप नहीं करते हो और तुम एक दूसरे के साथ शान्ति से रह रहे हो।
\v 15 और इस बारे में सोचो: हमारे प्रभु यीशु मसीह धीरज धरते हैं क्योंकि वे लोगों को बचाना चाहते हैं। हमारे प्रिय भाई पौलुस ने भी इन बातों के बारे में तुम्हें बुद्धिमानी से लिखा है, क्योंकि परमेश्वर ने उसे इन घटनाओं के बारे में समझने में समर्थ किया है।
\v 16 पौलुस ने अपनी पत्री में कुछ ऐसी बातें लिखीं हैं जिसे समझना लोगों के लिए कठिन है। जो लोग परमेश्वर के बारे में कुछ नहीं जानते हैं और जो अंधाधुंध बाते करते हैं, वे इन बातों का गलत अर्थ निकालते हैं, जैसे वे धर्मशास्त्र की अन्य बातों का भी गलत अर्थ निकालते हैं। परिणामस्वरूप वे अपने आप को परमेश्वर के दंड के भागी होने का कारण बनाते हैं।
\s5
\v 17 इसलिए, प्रिय मित्रों, क्योंकि तुम पहले से ही इन झूठे शिक्षकों के बारे में जानते हो, उनसे चौकस रहो। इन दुष्ट लोगों को अवसर मत दो कि वे तुम्हें गलत बातें सिखाकर धोखा दें। जिन बातों पर तुम अब दृढ़ता से विश्वास करते हो, उन बातों पर सन्देह करने के लिए उन्हें समझाने का अवसर मत दो।
\v 18 इसकी अपेक्षा, ऐसा जीवन जीओ कि तुम हमारे उद्धारकर्ता यीशु मसीह की दया का अनुभव अधिक से अधिक कर सको, और तुम उसे और अधिक उत्तम रीति से समझ सको।
\p मैं प्रार्थना करता हूँ कि हर कोई यीशु मसीह को अब और सदा के लिए सम्मान दे! सच में ऐसा ही हो!

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\id 1JN Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h 1 JOHN
\toc1 The First Letter of John
\toc2 First John
\toc3 1jn
\mt1 1 यूहन्ना
\s5
\c 1
\p
\v 1 मेरा नाम यूहन्ना है, मैं तुमको उनके बारे में लिख रहा हूँ, जो किसी भी वस्तु के होने से पहले अस्तित्व में थे। ये वही हैं जिन्हें हम प्रेरितों ने सुना जब वह हमें सिखा रहे थे। हमने उन्हें देखा है। हमने खुद उन्हें ध्यान से देखा और अपने हाथों से छुआ है। यह वही हैं जिन्होंने हमें अनंत जीवन के संदेश के बारे में सिखाया।
\v 2 (क्योंकि वे पृथ्वी पर आए थे और हमने उन्हें देखा है, हम तुमको स्पष्ट रूप से यह प्रचार करते हैं कि जिस व्यक्ति को हमने देखा था, वह है और सदा जीवित है। पहले वे स्वर्ग में अपने पिता के साथ थे, फिर वे हमारे बीच में रहने आए थे।)
\s5
\v 3 हम तुमको उस संदेश की घोषणा कर रहे है जो यीशु के बारे में है, जिनको हमने देखा और सुना है, ताकि तुम हमारे साथ जुड़ सको। जिन के साथ हम जुड़े हैं वे परमेश्वर हमारे पिता और उनके पुत्र यीशु मसीह हैं।
\v 4 मैं इन बातों के बारे में तुमको लिख रहा हूँ ताकि तुम निश्चित हो जाओ कि वे ही सत्य हैं, और इसके परिणामस्वरूप पूरी तरह से हर्षित हो सको।
\p
\s5
\v 5 जो संदेश हमने परमेश्वर से सुना है और हम तुमको प्रचार कर रहे हैं, यह है: परमेश्वर कभी पाप नहीं करते। वे एक महिमामय प्रकाश की तरह हैं जिनमें बिल्कुल भी अंधकार नहीं है।
\v 6 यदि हम दावा करते हैं कि हम परमेश्वर के साथ जुड़ गए हैं, और फिर अशुद्ध तरीके से अपने जीवन का संचालन करते हैं, तो यह घोर अंधकार में रहने की तरह है और हम झूठे हैं। परिणाम स्वरूप हम परमेश्वर के सच्चे संदेश के अनुसार अपने जीवन का संचालन नहीं कर रहे हैं।
\v 7 लेकिन शुद्ध तरीके से जीना ऐसा है, जैसे परमेश्वर हर तरह से शुद्ध तरीके से जीते हैं। यह परमेश्वर के प्रकाश में रहने जैसा है। यदि हम ऐसा करते हैं, तो हम एक-दूसरे के साथ जुड़ सकते हैं। परमेश्वर हमें क्षमा करते हैं और स्वीकार भी करते हैं क्योंकि यीशु हमारे लिए मारे गए थे
\s5
\v 8 जो लोग कहते हैं कि उन्होंने कभी पाप नहीं किया है, वे खुद को धोखा दे रहे हैं और उस बात पर विश्वास नहीं कर रहे हैं जो कुछ परमेश्वर उनके बारे में कहते है।
\v 9 लेकिन परमेश्वर हमेशा वही करते है जो वे कहते है कि करेंगे, और वह जो भी करते है हमेशा सही करते है। इसलिए यदि हम उनके सामने यह स्वीकारते हैं कि हमने पाप किया है, तो वह हमारे पापों को क्षमा करेंगे और हमारे द्वारा किए गए सभी गलत कामों के अपराध बोध से हमें मुक्त करेंगे। इस वजह से, हमें उनके सामने यह स्वीकार करना चाहिए कि हमने पाप किया है।
\v 10 क्योंकि परमेश्वर कहते है कि हर किसी ने पाप किया है, जो लोग यह कहते हैं कि उन्होंने कभी पाप नहीं किया है, वे मानो यह बोलते हैं कि परमेश्वर झूठे है। जो परमेश्वर ने हम सब के बारे में कहा है वे उसे अस्वीकार करते हैं।
\s5
\c 2
\p
\v 1 तुम सब जो मेरे अपने बच्चों के समान प्रिय हो, मैं तुमको इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम पाप न करो। परन्तु यदि तुम में से किसी विश्वासी से पाप हो जाए, तो वह याद रखें कि यीशु मसीह, जो धर्मी है, और पिता से विनती करते हैं कि वे हमें क्षमा करें।
\v 2 यीशु मसीह ने स्वेच्छा से हमारे लिए अपने जीवन को बलिदान किया, जिसके परिणामस्वरूप परमेश्वर हमारे पापों को क्षमा करते है। हां, परमेश्वर हमारे पापों को क्षमा करने में सक्षम है, न केवल हमारे वरन् सारे संसार के भी।
\p
\v 3 मैं तुमको बताता हूँ कि हम कैसे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हम परमेश्वर को जानते हैं। यदि हम उनकी आज्ञा पालन करते हुए कार्य करते हैं, तो हमें यह दर्शाता है कि हम उनके साथ जुड़े हुए हैं।
\s5
\v 4 जो कहते हैं, "हम परमेश्वर को जानते हैं," और परमेश्वर की दी गई आज्ञा का पालन नहीं करते, वे झूठे हैं। वे परमेश्वर के सच्चे संदेश के अनुसार अपने जीवन का संचालन नहीं कर रहे हैं।
\v 5 लेकिन जो लोग परमेश्वर द्वारा दी गई आज्ञाओं का पालन करते हैं, वे हर तरह से परमेश्वर से प्रेम रखते हैं। इस प्रकार से हम भी सुनिश्चित कर सकते हैं कि हम परमेश्वर के साथ जुड़े हुए हैं।
\v 6 अगर हम कहते हैं कि हम परमेश्वर के साथ जुड़ गए हैं, तो हमें अपने जीवन का संचालन वैसे ही करना चाहिए जैसा मसीह ने किया था।
\p
\s5
\v 7 प्रिय मित्रों, मैं इसलिए नहीं लिख रहा हूँ कि तुमको कुछ नया करना चाहिए। परन्तु , मैं कुछ ऐसा लिख रहा हूँ जिसे करने के विषय में तुम उस समय से जानते हो जब तुमने मसीह पर पहली बार विश्वास किया था। यह उस संदेश का हिस्सा है जिसे तुमने हमेशा से सुना है।
\v 8 मैं इस विषय पर तुमको फिर से कुछ कहूँगा : मैं कह सकता हूँ कि मैं तुमको कुछ नया करने के लिए लिख रहा हूँ। यह नया है क्योंकि जो मसीह ने किया, वह नया था, और तुम जो कर रहे हो वह नया है। इसका कारण यह है कि तुम बुराई करना बंद कर रहे हो और अधिक से अधिक अच्छाई कर रहे हो। यह ऐसा है मानो रात गुज़र गई है और भोर हो चला, जैसे मसीह के सच्चे दिन का प्रगट होना।
\s5
\v 9 जो लोग दावा करते हैं कि वे उनकी तरह हैं जो प्रकाश में रहते हैं, लेकिन अपने किसी भी साथी विश्वासी से घृणा करते हैं, वे अब भी अंधकार में रहने वाले लोगों की तरह हैं।
\v 10 लेकिन जो अपने साथी-विश्वासियों से प्रेम करते हैं वे उन लोगों की तरह व्यवहार करते हैं जो प्रकाश में रह रहे हैं; उनके पास पाप करने का कोई कारण नहीं है।
\v 11 जो अपने साथी-विश्वासियों में से किसी से भी घृणा करते हैं, वे अभी भी उन लोगों की तरह हैं जो अंधकार में रह रहे हैं, और परमेश्वर के सत्य से अनजान है।
\p
\s5
\v 12 तुम सब को, जिन्हें मैं अपने बच्चों के समान प्रेम करता हूँ यह पत्र लिख रहा हूँ, मसीह ने जो तुम्हारे लिए किया है इस कारण से परमेश्वर ने तुम्हारे पापों को क्षमा किया है।
\v 13 प्रिय बुजुर्गों मैं तुमको इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि तुम मसीह को जानते हो, जो हमेशा से जीवित है। प्रिय जवानो मैं तुमको इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि तुमने शैतान को, जो बुराई करनेवाला है पराजित किया है। प्रिय बच्चों मैं तुमको इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि तुम पिता परमेश्वर को जानते हो।
\v 14 मैं इसे फिर से कहूँगा: मैं तुमको जो बुजुर्ग हो, यह लिख रहा हूँ क्योंकि तुम मसीह को जान गए हो, जिनका अस्तित्व हमेशा से है और मैं तुम जवानो को लिख रहा हूँ, क्योंकि तुम दृढ़ हो और तुम परमेश्वर द्वारा दी गई आज्ञाओं का पालन करते हो, और तुमने शैतान, जो बुराई करनेवाला है उसको पराजित किया है।
\p
\s5
\v 15 संसार के लोगों की तरह व्यवहार न करो जो परमेश्वर का आदर नहीं करते। उन वस्तुओं की इच्छा न करो जो वे चाहते हैं। अगर कोई भी उनकी तरह जीवन जीता है, तो वह यह साबित करता है कि वह हमारे पिता परमेश्वर से प्रेम नहीं करता।
\v 16 मैं यह लिख रहा हूँ, क्योंकि वह सभी गलत काम जो मनुष्य करते हैं, वह सब वस्तुए जो मनुष्य देखते हैं और अपने लिए उन्हें प्राप्त करने की कोशिश करते हैं, और जिन वस्तुओं पर वे घमंड करते हैं—इन सब वस्तुओं का स्वर्ग में विराजमान हमारे पिता के साथ कोई सम्बंध नहीं है। ये संसार से सम्बंधित हैं।
\v 17 संसार के लोग जो परमेश्वर का सम्मान नहीं करते, वे उन सब वस्तुओं के साथ जिनकी वह इच्छा करते हैं, मिट जाएंगे। परन्तु जो लोग परमेश्वर की इच्छा पूरी करते हैं वे हमेशा के लिए जीवित रहेंगे।
\p
\s5
\v 18 मेरे प्रियों, अब यीशु का आगमन इस पृथ्वी पर निकट है, और तुमने पहले से ही उस व्यक्ति के बारे में सुना है जो मसीह होने का झुठा दिखावा करता है, वह आ रहा है—वास्तव में, ऐसे कई लोग पहले से ही आ चुके हैं, लेकिन वे सभी मसीह के विरोधी हैं। इस कारण से, हम जानते हैं कि मसीह बहुत जल्द वापस आएगे।
\v 19 ये लोग हमारी मण्डलियों में जुड़े रहने से इनकार करते हैं, लेकिन वास्तव में वे पहले कभी हमारे साथ थे ही नहीं। जब उन्होंने हमें छोड़ा, तो हमने स्पष्ट रूप से देखा कि वे हमारे साथ कभी जुड़े ही नहीं थे।
\s5
\v 20 परन्तु तुम्हारे लिये, मसीह, जो पवित्र है, अपनी आत्मा तुमको देते है; यह उनकी आत्मा है जो तुम्हें सारी सच्चाई सिखाते है।
\v 21 मैं तुमको यह पत्र लिख रहा हूँ, इसलिए नहीं, क्योंकि तुम परमेश्वर के बारे में सच्चाई नहीं जानते हो, लेकिन इसलिए ताकि तुम जान लो कि सच क्या है। तुम यह भी जानते हो कि परमेश्वर हमें कुछ भी ऐसा नहीं सिखाते जो झूठा है; परन्तु, वह हमें केवल वही सिखाते है जो सच है।
\s5
\v 22 सबसे बड़े झूठे वे लोग हैं जो इस बात का इनकार करते हैं कि यीशु ही मसीह है। जो लोग ऐसा करते हैं वे मसीह के विरुद्ध हैं, क्योंकि वे पिता और पुत्र पर विश्वास करने से इनकार करते हैं।
\v 23 जो लोग यह स्वीकार करने से इनकार करते हैं कि यीशु परमेश्वर के पुत्र है, वे किसी भी तरह से पिता के साथ नहीं जुड़े हैं, लेकिन जो लोग स्वीकार करते हैं कि यीशु परमेश्वर के पुत्र हैं, वे पिता के साथ जुड़ चुके हैं।
\s5
\v 24 इसलिए तुमको मसीह की सच्चाई पर, जिसे तुमने पहले सुना था, विश्वास करते रहना चाहिए और उसके अनुसार जीना भी चाहिए। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम पुत्र और पिता के साथ जुड़े रहोगे,
\v 25 और परमेश्वर ने जो हमें बताया है वह यह है कि वह हमें हमेशा जीवित रहने के योग्य ठहराएंगे।
\p
\v 26 मैं ने तुमको उन लोगों के बारे में चेतावनी देने के लिए लिखा है जो तुमको मसीह की सच्चाई के विषय में धोखा देना चाहते हैं।
\s5
\v 27 परमेश्वर का आत्मा, जिन्हें तुमने मसीह से प्राप्त किया था, तुम में रहते हैं। तो तुमको किसी और को अपना शिक्षक बनाने की ज़रूरत नहीं है। परमेश्वर का आत्मा तुमको वह सब कुछ सिखा रहे है जिसे तुमको जानने की आवश्यकता है। वह हमेशा सत्य सिखाते है और झूठी बातों को कभी भी नहीं कहते। तो जिस तरह से उन्होंने तुमको सिखाया है, वैसे ही जीते रहो, और उनके साथ जुड़े रहो।
\p
\v 28 अब, हे मेरे प्रिय, मैं तुमसे आग्रह करता हूँ कि तुम मसीह के साथ जुड़े रहो। हमें ऐसा करने की आवश्यकता है ताकि हम भरोसा रख सकें कि जब वह फिर से वापस आएंगे तो वह हमें स्वीकार करेंगे। अगर हम ऐसा करते हैं, तो हम जब वह आएंगे तो उनके सामने खड़े होने पर शर्मिंदा नहीं होंगे।
\v 29 क्योंकि तुम जानते हो कि मसीह हमेशा वही करते है जो सही है; और तुम जानते हो कि जो लोग सही काम करते रहते हैं, वे वही हैं जो परमेश्वर के सन्तान बन गए हैं।
\s5
\c 3
\p
\v 1 इस बारे में सोचें कि हमारा पिता हमसे कितना प्रेम करते है: वह हमें यह कहने की अनुमति देते है कि हम उनकी सन्तान हैं। वास्तव में यह सच है। लेकिन अविश्वासी लोग यह समझ नहीं पाते कि परमेश्वर कौन है। इसलिए वे नहीं समझते कि हम कौन हैं, हम परमेश्वर के सन्तान हैं।
\v 2 प्रिय मित्रों, भले ही वर्तमान में हम परमेश्वर के सन्तान हैं, उन्होंने अभी तक हमें यह नहीं दिखाया है कि हम भविष्य में कैसे होंगे। जबकि, हम जानते हैं कि जब मसीह फिर से वापस आएंगे, तो हम उनके जैसे बन जाएंगे क्योंकि हम उन्हें आमने-सामने देखेंगे।
\v 3 इसलिए जो लोग पूर्ण-विश्वास के साथ मसीह को आमने-सामने देखने की प्रतीक्षा करते हैं, वे खुद को पाप करने से रोकेंगे, बिल्कुल मसीह के समान, जिसने कभी पाप नहीं किया।
\s5
\v 4 परन्तु जो कोई पाप करता रहता है, वह परमेश्वर के नियमों का पालन करने से इनकार करता है, क्योंकि परमेश्वर के नियमों का पालन करने से इनकार करना ही पाप है।
\v 5 तुम जानते हो कि मसीह हमारे पापों के अपराध बोध को पूरी तरह से हटाने के लिए आए थे। तुम यह भी जानते हो कि उन्होंने कभी पाप नहीं किया।
\v 6 जो लोग उन कार्यों को करते रहते है जो मसीह चाहते है, वे बार-बार पाप नहीं करते हैं, परन्तु जो लोग बार-बार पाप करते हैं वे यह समझ नहीं पाए कि मसीह कौन है, और न ही वे वास्तव में उनके साथ जुड़े हैं।
\s5
\v 7 इसलिए मेरे प्रियो, मैं तुमसे आग्रह करता हूँ कि कोई तुमको यह बताकर धोखा न दे कि पाप करना सही है। यदि तुम सही काम करना जारी रखते हो, तो तुम धर्मी हो, ठीक वैसे ही जैसे मसीह धर्मी है।
\v 8 परन्तु जो बार-बार पाप करना जारी रखता है वह शैतान की तरह है, क्योंकि शैतान संसार के आरम्भ से ही पाप करता आया है, और इसी कारण परमेश्वर के पुत्र मनुष्य बने, ताकि जो शैतान ने किया था उसे नष्ट कर दे।
\s5
\v 9 जो परमेश्वर के सन्तान बन जाते हैं, वे बार-बार पाप नहीं करते रहते। वे निरंतर पाप में नहीं रह सकते क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें अपना सन्तान बनाया है, और उन्होंने उन में वैसा चरित्र डाल दिया है जैसा उनका है।
\v 10 जो परमेश्वर के बच्चे हैं, वे शैतान के बच्चों से स्पष्ट रूप से अलग हैं। हम जिस तरह से यह जान सकते हैं कि शैतान के बच्चे कौन हैं, वह यह हैं : जो लोग सही काम नहीं करते हैं वे परमेश्वर के सन्तान नहीं हैं, और जो अपने साथी-विश्वासियों से प्रेम नहीं करते हैं वे भी परमेश्वर के सन्तान नहीं हैं।
\p
\s5
\v 11 जब तुमने पहली बार मसीह पर विश्वास किया था, तब जो संदेश तुमने सुना था वह यह है कि हमें एक-दूसरे से प्रेम करना चाहिए।
\v 12 हमें दूसरों से घृणा नहीं करनी चाहिए, जैसे आदम के पुत्र कैन ने की, जो बुराई करने वाले शैतान से था। क्योंकि कैन ने अपने छोटे भाई से घृणा की, इसलिए उसने उसकी हत्या कर दी। मैं तुमको बताऊँगा कि उसने अपने भाई की हत्या क्यों की। ऐसा इसलिए था क्योंकि कैन अपने छोटे भाई के साथ निरंतर बुरा व्यवहार करता था, और उससे घृणा करता था क्योंकि उसका छोटा भाई सही तरीके से व्यवहार करता था।
\s5
\v 13 जब अविश्वासी तुमसे घृणा करते हैं तो तुमको चकित नहीं होना चाहिए,
\v 14 क्योंकि हम अपने साथी विश्वासियों से प्रेम करते हैं, हम जानते हैं कि परमेश्वर ने हमें उनके साथ हमेशा जीने के लिए बनाया है। जो अपने साथी विश्वासी से प्रेम नहीं करता, परमेश्वर ऐसे व्यक्ति से ऐसा व्यवहार करते है मानो वह जीवन में नहीं वरन् मृत्यु की शक्ति के अधीन हो।
\v 15 जो अपने साथी-विश्वासियों से घृणा करते हैं, परमेश्वर उनके साथ ऐसा व्यवहार करते है मानो उन्होंने हत्या के बराबर कुछ गलत किया हो। जो अपने भाई से प्रेम नहीं करता वह मृत्यु के लिए जीता है, जीवन के लिए नहीं।
\s5
\v 16 अब हम जानते हैं कि हमें साथी-विश्वासियों से सचमुच कैसा प्रेम रखना चाहिए। हमें यह याद रखना चाहिए कि मसीह, अपनी स्वेच्छा से हमारे लिए मारे गए। ठीक उसी तरह, हमें भी अपने भाइयों के लिए सब कुछ करना चाहिए, यहाँ तक कि जरूरत पड़ने पर उनके लिए अपनी जान भी दे देनी चाहिए।
\v 17 हम में से बहुत से लोगों के पास ऐसी वस्तुए हैं जो इस संसार में रहने के लिए आवश्यक हैं। अगर हमें यह पता चलता है कि हमारे किसी भी साथी-विश्वासी के पास उनकी ज़रूरत का सामान नहीं है, और हम उन्हें वह वस्तुए देने से इनकार कर देते हैं, तो इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि हम परमेश्वर से प्रेम नहीं करते, जैसा कि हम दावा करते हैं।
\v 18 तुम, जिससे मैं बहुत प्रेम करता हूँ, कह रहा हूँ कि हम सिर्फ इतना न कहें कि हम एक दूसरे से प्रेम करते हैं, बल्कि एक दूसरे की सहायता करने के द्वारा प्रकट करें कि हम एक दूसरे से प्रेम करते है।
\p
\s5
\v 19 यदि हम अपने साथी-विश्वासियों से सचमुच प्रेम रखते हैं, तो हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हम मसीह के सच्चे संदेश के अनुसार जी रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप, हम परमेश्वर की उपस्थिति में स्वयं को दोषी महसूस नहीं करेंगे।
\v 20 अगर हमने गलत काम किए हैं जिनके कारण हम स्वयं को दोषी महसूस करते हैं, तो हम पूर्ण-विश्वास से प्रार्थना कर सकते हैं, क्योंकि हमारा परमेश्वर भरोसा करने के योग्य है। वह हमारे बारे में सब कुछ जानते है।
\v 21 प्रिय मित्रों, अगर हमारा मन हम पर पाप का आरोप नहीं लगाता, तो हम पूर्ण-विश्वास से परमेश्वर से प्रार्थना कर सकते हैं।
\v 22 जब हम पूर्ण-विश्वास के साथ उनसे प्रार्थना और जो कुछ अनुरोध करते हैं, तो उसे हम प्राप्त करते हैं; क्योंकि हम वह करते हैं जो वह हमें करने की आज्ञा देते है, और हम वही करते हैं जो उन्हें प्रसन्न करता है।
\s5
\v 23 मैं तुमको बताऊँगा कि वह हमें क्या करने का आदेश देते है : हमें विश्वास होना चाहिए कि यीशु मसीह उनके पुत्र है। हमें एक दूसरे से भी प्रेम करना चाहिए, जैसा परमेश्वर ने हमें करने का आदेश दिया था।
\v 24 जो लोग परमेश्वर के आदेशों का पालन करते हैं वे परमेश्वर के साथ जुड़ जाते हैं, और परमेश्वर उनके साथ, ऐसा इसलिए है क्योंकि हम में उनका आत्मा है, जिसे उन्होंने हमें दिया है, ताकि हम सुनिश्चित हो सकें कि परमेश्वर हमारे साथ जुड़े हुए है।
\s5
\c 4
\p
\v 1 प्रिय मित्रों, बहुत से लोग जिनके पास झूठा संदेश हैं, वे उसे लोगों को सिखा रहे हैं। लेकिन तुमको उन बातों के बारे में सावधानी से सोचना चाहिए कि वे तुमको क्या सिखाते हैं, ताकि तुम जान सको कि क्या वे उस सत्य को सिखा रहे हैं, जो परमेश्वर से आता है या नहीं।
\v 2 मैं तुमको बताऊंगा कि ये कैसे जाना जाए कि कोई व्यक्ति उसी सत्य की शिक्षा दे रहा है जो परमेश्वर का आत्मा से आता है। जो लोग इस बात की पुष्टि करते हैं कि यीशु मसीह हमारे जैसा मनुष्य बनकर परमेश्वर की ओर से आए थे, वह उस संदेश को सिखाते है जो परमेश्वर से है।
\v 3 परन्तु जो लोग यीशु के बारे में उस सच्चाई की पुष्टि नहीं करते, वे परमेश्वर से प्राप्त संदेश नहीं सिखाते हैं। यही वे शिक्षक हैं जो मसीह का विरोध करते हैं। तुमने सुना है कि इस तरह के लोग हमारे बीच आ रहे हैं; बल्कि वे तो पहले से ही हमारे बीच में हैं।
\p
\s5
\v 4 तुम जो मेरे बहुत प्रिय हो, तुम परमेश्वर के हो, और तुमने उन लोगों की शिक्षाओं पर विश्वास करने से इनकार कर दिया है, क्योंकि परमेश्वर, जो तुमको ऐसा करने में सक्षम बनाते है, वे महान हैं।
\v 5 जो लोग झूठी शिक्षा देते हैं, वे संसार के उन सभी लोगों के साथ हैं जो परमेश्वर का सम्मान करने से इनकार करते हैं। यही कारण है कि जो झूठे शिक्षक कहते हैं, वह संसारिक लोगों से आता है, और संसारिक लोग उनकी सुनते हैं।
\v 6 हम परमेश्वर के हैं। जो कोई परमेश्वर को जानता है वह उसे जो हम सिखाते हैं, सुनता है। परन्तु जो परमेश्वर से सम्बंधित नहीं है, वह उसे जो हम सिखाते हैं, नहीं सुनता। इस प्रकार हम उन लोगों के बीच अंतर कर सकते हैं जो परमेश्वर के बारे में सच्चाई सिखाते हैं, और जो दूसरों को धोखा देते हैं।
\p
\s5
\v 7 प्रिय मित्रो, हमें एक-दूसरे से प्रेम करना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर हमें एक-दूसरे से प्रेम करने में सक्षम बनाते है, और जो कोई अपने विश्वासी भाई-बहनों से प्रेम करता है, वह परमेश्वर का सन्तान बन जाता हैं और परमेश्वर को जानता है।
\v 8 परमेश्वर लोगों को अपना प्रेम दिखाते है। जो लोग अपने साथी-विश्वासियों से प्रेम नहीं करते, वे परमेश्वर को नहीं जानते हैं।
\s5
\v 9 मैं तुमको बताऊँगा कि परमेश्वर ने हमें कैसे दिखाया कि वह हमसे प्रेम करते है : उन्होंने अपने एकमात्र पुत्र को पृथ्वी पर भेजा ताकि हम उनके कारण अनंत काल तक जीने के लिए सक्षम हो सकें।
\v 10 और परमेश्वर ने हमें दर्शाया कि वास्तव में किसी से प्रेम करने का क्या मतलब होता है : इसका यह मतलब नहीं है कि हमने परमेश्वर से प्रेम किया, बल्कि परमेश्वर ने हमसे प्रेम किया था। इसलिए उन्होंने अपने पुत्र को बलिदान होने के लिए भेजा, ताकि अगर हमसे पाप हो जाता हैं, तो परमेश्वर—हमें क्षमा कर सकें।
\s5
\v 11 प्रिय मित्रों, क्योंकि परमेश्वर हमें इस तरह प्रेम करते है, हमें भी निश्चित रूप से एक दूसरे से प्रेम करना चाहिए।
\p
\v 12 किसी ने भी परमेश्वर को कभी नहीं देखा। फिर भी, अगर हम एक-दूसरे से प्रेम करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे वह हमसे चाहते है तो हम यह स्पष्ट कर देते है कि परमेश्वर हमारे अन्दर रहते है।
\v 13 मैं तुमको बताऊंगा कि हम कैसे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हम परमेश्वर के साथ जुड़े हुए हैं और परमेश्वर हमारे साथ है : उन्होंने अपना आत्मा को हमारे अन्दर रखा है।
\v 14 हम प्रेरितों ने परमेश्वर के पुत्र को देखा है, और हम निष्ठापूर्वक दूसरों को बताते हैं कि पिता ने उन्हें संसार में इसलिए भेजा, कि लोगों को उनके पापों के कारण सदा काल तक दंडित होने से बचाएं ।
\s5
\v 15 इसलिए परमेश्वर उन लोगों के साथ जुड़े रहते है जो यीशु के बारे में सच्चाई बोलते हैं। वे कहते हैं, "वह परमेश्वर के पुत्र है" और इसलिए वे परमेश्वर के साथ जुड़े रहते हैं।
\v 16 हमने अनुभव किया है कि परमेश्वर हमसे प्रेम करते है और हम विश्वास करते हैं कि वह हमसे प्रेम करते है। परिणामस्वरूप, हम दूसरों से प्रेम करते हैं। क्योंकि परमेश्वर का स्वभाव लोगों से प्रेम करना है, जो दूसरों से प्रेम करना जारी रखते हैं, वे परमेश्वर के साथ जुड़ जाते हैं, और परमेश्वर उनके साथ।
\s5
\v 17 हमें दूसरों से पूरी तरह से प्रेम करना चाहिए, और यदि हम ऐसा करते हैं, तो जब परमेश्वर हमारा न्याय करेंगे, तब हम इस बात से आश्वस्त होंगे कि वह हमें दोषी नहीं ठहराएंगे। हम इस सत्य पर भरोसा करेंगे क्योंकि हम इस संसार में परमेश्वर के साथ जुड़ कर जी रहे हैं, जैसा कि मसीह स्वयं परमेश्वर से जुड़े है।
\v 18 अगर हम वास्तव में उनसे प्रेम करते हैं तो हम परमेश्वर से डरेंगे नहीं, क्योंकि जो लोग परमेश्वर से पूरी तरह से प्रेम रखते हैं, वे उनसे डरते नहीं है। हम केवल तभी डरेंगे जब हम यह सोचें कि वह हमें दंडित करेंगे। जो लोग परमेश्वर से डरते हैं, वे निश्चित रूप से परमेश्वर से पूरी तरह से प्रेम नहीं करते।
\s5
\v 19 हम परमेश्वर और अपने साथी-विश्वासियों से प्रेम करते हैं क्योंकि परमेश्वर ने हमें सबसे पहले प्रेम किया था।
\v 20 इसलिए जो लोग कहते हैं, "मैं परमेश्वर से प्रेम करता हूँ" लेकिन अपने साथी-विश्वासी से घृणा करते हैं, वे झूठ बोलते हैं। जो लोग अपने साथी-विश्वासियों, जिनको उन्होंने देखा हैं, उन में से किसी एक को भी प्रेम नहीं करते, वे निश्चित रूप से परमेश्वर, जिनको उन्होंने नहीं देखा है, उन से प्रेम नहीं कर सकते,
\v 21 ध्यान रखें कि परमेश्वर ने हमें यह आज्ञा दी है : यदि हम उनसे प्रेम रखते हैं, तो अपने साथी-विश्वासियों से भी प्रेम रखें।
\s5
\c 5
\p
\v 1 वे सभी जो विश्वास करते हैं कि यीशु ही मसीह है, वे परमेश्वर की सन्तान हैं, जो परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं, और जो कोई पिता से प्रेम करते है, निश्चित रूप से उनकी संतानों से भी प्रेम करते है।
\v 2 हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हम वास्तव में परमेश्वर की सन्तान से प्रेम करते हैं जब हम परमेश्वर से प्रेम करते हैं और जो आज्ञाएँ उन्होंने हमें दी है उनका पालन करते हैं।
\v 3 मैं यह इसलिए कहता हूँ क्योंकि परमेश्वर वास्तव में चाहते है कि हम प्रेम रखें और वह हमें यही करने को कहते है। साथ ही, वह जो भी आदेश देते है उसे करना कठिन नहीं है।
\s5
\v 4 परमेश्वर ने हम सभी को, जिन्हें अपनी सन्तान ठहराया है, उन कामों का इनकार करने में सक्षम बनाया है, जो अविश्वासी करना चाहते हैं। हम उन सभी बातों की तुलना में अधिक शक्तिशाली हैं जो परमेश्वर के विरुद्ध हैं। हम गलत काम करने से मना कर सकते हैं क्योंकि हम मसीह पर विश्वास करते हैं।
\v 5 ऐसा व्यक्ति कौन है जो परमेश्वर के विरुद्ध खड़े होनेवाले सभी वस्तुओं से अधिक बलवान है? ऐसा वही व्यक्ति है जो यह विश्वास करता है कि यीशु परमेश्वर के पुत्र हैं।
\p
\s5
\v 6 यीशु मसीह के बारे में सोचो। वे वही हैं जो परमेश्वर की ओर से पृथ्वी पर आए थे। जब यूहन्ना ने पानी में यीशु को बप्तिस्मा दिया था, तब परमेश्वर ने यह दिखाया कि उन्होंने वास्तव में यीशु को भेजा है; और तब भी जब यीशु का लहू उनके शरीर से बहा और उनकी मृत्यु हुई। परमेश्वर का आत्मा सचमुच घोषित करता है कि यीशु मसीह परमेश्वर की ओर से आए थे।
\v 7 ये तीन उन तीन गवाहों की तरह हैं जो गवाही देते हैं:
\v 8 परमेश्वर का आत्मा, पानी और लहू। ये तीनों हमें एक ही बात बताते हैं।
\s5
\v 9 हम आम तौर पर जो लोग बताते हैं उस पर विश्वास करते हैं। लेकिन हमें निश्चित रूप से परमेश्वर की बातों पर अत्यधिक भरोसा करना चाहिए और उन्होंने अपने बेटे के बारे में निश्चित रूप से गवाही दी है।
\v 10 जो लोग परमेश्वर के पुत्र पर भरोसा करते हैं, वे अपने भीतरी व्यक्तित्व में जानते हैं कि उनके बारे में क्या सच है, लेकिन जो लोग परमेश्वर की बातों पर विश्वास नहीं करते, वे उन्हें झूठा ठहराते हैं, इसलिए कि उन्होंने यह विश्वास करने से इंकार कर दिया कि परमेश्वर ने अपने पुत्र के बारे में क्या गवाही दी है।
\s5
\v 11 परमेश्वर हमें यही कहते है : "मैंने तुमको अनन्त जीवन दिया है।" अगर हम उनके पुत्र के साथ जुड़े रहें तो हमेशा के लिए जीवित रहेंगे।
\v 12 जो परमेश्वर के पुत्र के साथ जुड़ते हैं, वे परमेश्वर के साथ सदा जीवित रहेंगे। जो उनके साथ जुड़े हुए नहीं हैं, वे अनन्त काल के लिए जीवित नहीं रहेंगे।
\p
\s5
\v 13 मैंने तुमको, जो विश्वास करते हैं, यह पत्र लिखा है कि यीशु परमेश्वर के पुत्र हैं, ताकि तुम जान सको कि तुम हमेशा के लिए जीओगे।
\v 14 क्योंकि हम उनके साथ जुड़ गए हैं, इसलिए हम बहुत आश्वस्त हैं कि जब भी हम उनसे कुछ भी करने के लिए कहते है जो उन्हें स्वीकृत है, तो वे हमारी सुनते है।
\v 15 इसके अलावा, अगर हम जानते हैं कि वे हमारी सुनते है, तो हम सुनिश्चित हो सकते हैं कि हम जो कुछ भी उनसे माँगते हैं, प्राप्त करते हैं।
\p
\s5
\v 16 मान लीजिए कि तुम हमारे साथी-विश्वासियों में से किसी को ऐसा पाप करते हुए देखते हो जो उसे अनंत मृत्यु दंड की ओर नहीं ले जाता, तो परमेश्वर से प्रार्थना करो कि परमेश्वर उस व्यक्ति को जीवन दान दे—यह उस व्यक्ति के लिए है जो ऐसा पाप नहीं कर रहा जिससे की वह अनंत मृत्यु दंड पाए, लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो उस पाप को करते हैं जिसका परिणाम अनंत मृत्यु दंड है। मैं यह नहीं कहता कि तुम उन लोगों के लिए परमेश्वर से विनती करो।
\v 17 जो कुछ गलत है वह परमेश्वर के विरूद्ध पाप है, परन्तु हर पाप हमें अनंत मृत्यु दंड की और नही ले जाता।
\s5
\v 18 हम जानते हैं कि यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर की सन्तान है, तो वह बार-बार पाप नहीं करता। और परमेश्वर के पुत्र भी उसकी रक्षा करते है ताकि शैतान, जो बुराई करनेवाला है, उसे नुकसान न पहुँचाए।
\v 19 हम जानते हैं कि हम परमेश्वर के हैं, और हम जानते हैं कि पूरा संसार बुराई करनेवाले के नियंत्रण में है।
\s5
\v 20 हम यह भी जानते हैं कि परमेश्वर के पुत्र हमारे बीच आए और हमें सत्य को समझने में सक्षम बनाए; हम उनके साथ जुड़े हुए हैं जो स्वयं सत्य है, अर्थात परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह। यीशु मसीह वास्तव में परमेश्वर है, और वह ही हैं जो हमें अनन्त जीवन प्राप्त करने में सक्षम बनाते है।
\p
\v 21 मैं तुमसे, जो मेरे लिए बहुत प्रिय हो, कहता हूँ कि अपने आपको उन झूठे देवताओं से दूर रखो, जिसके पास सच्ची शक्ति नहीं है।

34
64-2JN.usfm Normal file
View File

@ -0,0 +1,34 @@
\id 2JN Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h 2 JOHN
\toc1 The Second Letter of John
\toc2 Second John
\toc3 2jn
\mt1 2 यूहन्ना
\s5
\c 1
\p
\v 1 तुम सब मुझे प्रमुख अगुवे के रूप में जानते हो। मैं तुम सभी विश्वासियों को यह पत्र लिख रहा हूँ, खास कर उस मण्डली को जिसे मैं बहुत प्रेम करता हूँ। परमेश्वर ने तुमको चुना है, और मैं तुम से प्रेम करता हूँ, क्योंकि हम जो मसीह के बारे में जानते हैं वह सच है। न केवल मैं तुमसे प्रेम करता हूँ, बल्कि वे लोग जो यीशु के सिखाए गए सच्चे संदेश को जानते और स्वीकार करते हैं, वे भी तुमसे प्रेम करते हैं।
\v 2 ऐसा इसलिए है क्योंकि हम सभी परमेश्वर के सच्चे सन्देश पर विश्वास करते हैं। यह सन्देश हमारे अन्दर बसा है और हम इस पर हमेशा विश्वास करते रहेंगे।
\v 3 परमेश्वर पिता, और यीशु मसीह जो उनके पुत्र हैं, हम पर दया और करुणा सदा करते रहेंगे क्योंकि वे हम से प्रेम करते हैं। वे हमें शांति पाने में सक्षम करेंगे, क्योंकि वे वास्तव में हम से प्रेम करते हैं।
\p
\s5
\v 4 मैं बहुत खुश हूँ क्योंकि मैंने यह जान लिया है कि तुम में से कुछ उस सत्य के अनुसार जी रहे हैं जो परमेश्वर ने हमें सिखाया है। यह वही है जो हमारे पिता ने हमें करने का आदेश दिया था।
\p
\v 5 और अब, प्रिय मण्डली, मैं तुमसे उनकी आज्ञाओं का पालन करने के लिए विनती करता हूँ जो उन्होंने हमें दी हैं। यही कारण है कि मैं तुमको लिख रहा हूँ। उन्होंने जो आदेश दिया कि हमें एक-दूसरे से प्रेम करना चाहिए, इसमें कुछ नया नहीं है; जब हम ने पहली बार मसीह में विश्वास किया तभी हमने सीखा था कि हमें एक-दूसरे से प्रेम करना चाहिए।
\v 6 परमेश्वर से और एक-दूसरे से प्रेम करने का यही अर्थ है, कि हमें परमेश्वर के द्वारा दी गई आज्ञाओं का पालन करना चाहिए। परमेश्वर हमें यह करने की आज्ञा देते है कि हम उनसे और एक-दूसरे से प्रेम करते रहें।
\p
\s5
\v 7 बहुत से लोग जो दूसरों को धोखा देते हैं, उन्होंने तुम्हारी मण्डली को छोड़ दिया है, और अब तुम्हारे क्षेत्र में अन्य लोगों के बीच चले गए हैं। ये वे हैं जो यह विश्वास करने से इनकार करते हैं कि यीशु मसीह मनुष्य बने। ये वे लोग हैं जो दूसरों को धोखा देते हैं और खुद मसीह का विरोध करते हैं।
\v 8 इसलिए सावधान रहो कि तुम ऐसे शिक्षकों से धोखा न खाओ। यदि तुम उनसे धोखा खाते हो, तो तुम उस इनाम को खो सकते हो, जिसके लिए हम तुम्हारे साथ मिलकर परिश्रम कर रहे हैं, और तुम्हें परमेश्वर के साथ सदा रहने का बड़ा इनाम नहीं मिलेगा।
\p
\s5
\v 9 जो लोग मसीह की सिखाई गई बातों को बदलते हैं और जो उन्हें सिखाया उस पर विश्वास नहीं करते, वे परमेश्वर के साथ जुड़े नहीं हैं। परन्तु जो लोग मसीह की सिखाई गई बातों पर विश्वास करते है, वे परमेश्वर, हमारे पिता और उनके पुत्र दोनों के साथ जुड़ गए हैं।
\v 10 तो जब तुम्हारे पास कोई ऐसा आता है, जो मसीह की सिखाई शिक्षा से कुछ अलग सिखाता हो, तो उस का अपने घरों में स्वागत न करना। उसे अभिवादन या किसी भी तरह की शुभकामनाएं देकर प्रोत्साहित न करना ।
\v 11 मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ, क्योंकि अगर तुम ऐसे लोगों के साथ अपने साथी-विश्वासी के समान व्यवहार करते हो, तो तुम उनके बुरे कामों में उनकी मदद कर रहे हो।
\p
\s5
\v 12 भले ही मेरे पास बहुत कुछ है जो मैं तुमको बताना चाहता हूँ, पर मैंने फैसला किया है कि इस पत्र में नहीं बताऊँगा। इसके बजाय, मैं जल्द ही तुम्हारे साथ होने और आमने-सामने तुमसे बात करने की उम्मीद करता हूँ, और फिर हम एक साथ पूरी तरह से हर्षित हो सकेंगे।
\v 13 यहाँ की मण्डली के तुम्हारे साथी-विश्वासी, जिन्हें भी परमेश्वर ने चुना है, सभी तुमको नमस्कार करते हैं।

36
65-3JN.usfm Normal file
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@ -0,0 +1,36 @@
\id 3JN Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h 3 JOHN
\toc1 The Third Letter of John
\toc2 Third John
\toc3 3jn
\mt1 3 यूहन्ना
\s5
\c 1
\p
\v 1 तुम मुझे प्रमुख अगुवे के रूप में जानते हो। मैं तुमको यह पत्र लिख रहा हूँ, मेरे प्रिय मित्र गयुस, जिसे मैं वास्तव में प्रेम करता हूँ।
\v 2 प्रिय मित्र, मैं परमेश्वर से माँगता हूँ कि सब बातें हर तरह से तुम्हारे लिए लाभदायक हों, और तुम शारीरिक रूप से भी स्वस्थ रहो, जैसा कि तुम आत्मिक रूप से उन्नति कर रहे हो।
\v 3 मैं बहुत खुश हुआ जब कुछ साथी-विश्वासियों ने यहाँ आकर मुझे बताया कि तुम मसीह के सच्चे संदेश के अनुसार जी रहे हो। उन्होंने कहा कि तुम ऐसे तरीके से व्यवहार कर रहे हो जो परमेश्वर की सच्चाई के अनुरूप है।
\v 4 मैं बहुत खुश हुआ जब मैंने सुना कि जिन लोगों को मैंने मसीह पर विश्वास करने में मदद की थी, वे इस तरह से जी रहे हैं जो परमेश्वर की सच्चाई से मेल खाती है।
\s5
\v 5 प्रिय मित्र, जब भी तुम अपने साथी सह-विश्वासियों की मदद के लिए काम करते हो, यहाँ तक कि उन अजनबियों की भी जिन्हें तुम नहीं जानते और जो परमेश्वर का काम घूम-घूमकर कर रहे हैं, तो तुम विश्वासयोग्यता से यीशु की सेवा कर रहे हो।
\v 6 उनमें से कुछ ने यहाँ मण्डली के सामने बताया कि तुमने किस तरह यह दिखाया है कि तुम उन से प्रेम करते है। तुमको ऐसे लोगों की सहायता करना जारी रखना चाहिए जो अपने कामों को इस तरह करते हैं कि परमेश्वर को सम्मान मिले।
\p
\v 7 जब ये सह-विश्वासी यीशु के बारे में लोगों को बताने के लिए निकले थे, तब इन लोगों ने उन से कोई सहायता नहीं ली जो मसीह पर विश्वास नहीं करते थे ।
\v 8 इसलिए हम जो मसीह पर विश्वास करते हैं, उन्हें ऐसे लोगों को भोजन और अन्य सहायता देना चाहिए, ताकि हम उनके साथ मिलकर परमेश्वर के सच्चे संदेश को दूसरों को जानने में मदद कर सकें।
\p
\s5
\v 9 मैंने तुम्हारे विश्वासियों के समूह को एक पत्र लिखा था, जिसमें मैंने उन्हें उन अन्य विश्वासियों की मदद करने को कहा है। हालांकि, दियुत्रिफेस मेरे पत्र को स्वीकार नहीं करता है, क्योंकि वह तुम सब पर अधिकार जमाना चाहता है।
\v 10 इसलिए जब मैं वहां आऊंगा तो मैं सार्वजनिक रूप से सभी को बता दूंगा कि वह क्या करता है : वह दूसरों से हमारे बारे में बुराई करता है, ताकि हमें नुकसान पहुंचाए। वह केवल ऐसा ही करने से संतुष्ट नहीं है, बल्कि वह स्वयं उन विश्वासियों का स्वागत करने से इनकार करता है जो परमेश्वर का काम घूम-घूमकर करते हैं, और जो लोग उनका स्वागत करना चाहते हैं, उन्हें रोकने के लिए वह उनको मण्डली से भी निकाल देता है।
\p
\s5
\v 11 प्रिय मित्र, इस तरह के बुरे उदाहरण का अनुकरण मत करो। इसके बदले, अच्छे उदाहरणों का अनुकरण करते रहो। याद रखो कि जो लोग अच्छे काम करते हैं, वे वास्तव में परमेश्वर के हैं। जो भी बुरा करते रहते हैं उन्होंने कभी परमेश्वर को देखा ही नहीं है।
\p
\v 12 सभी विश्वासी जो देमेत्रियुस को जानते हैं वे कहते हैं कि वह एक अच्छा इंसान है। अगर सच्चाई एक व्यक्ति होता, तो वह भी यही बात कहता। हम भी यह कहते हैं कि वह एक अच्छा इंसान है, और तुम जानते हो कि हम जो उसके बारे में कहते हैं वह सच है।
\p
\s5
\v 13 जब मैंने इस पत्र को लिखना शुरू किया, तो मेरे पास तुमको बताने के लिए बहुत कुछ था। लेकिन अब मैं उसे पत्र में नहीं लिखना चाहता हूँ।
\v 14 इसके बदले, मैं उम्मीद करता हूँ कि जल्द ही आकर तुमसे मिलूँगा। फिर हम एक दूसरे के साथ आमने-सामने बात करेंगे।
\v 15 परमेश्वर तुमको अपनी शांति दे। यहाँ के मित्र तुमको नमस्कार कहते हैं। कृपया वहाँ हमारे सभी मित्रों को निजी तौर पर उनके नाम लेकर शुभकामनाएं देना।

56
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@ -0,0 +1,56 @@
\id JUD Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h JUDE
\toc1 The Letter of Jude
\toc2 Jude
\toc3 jud
\mt1 यहूदा
\s5
\c 1
\p
\v 1 मेरा नाम यहूदा है। मैं यीशु मसीह का दास और याकूब का भाई हूँ। मैं यह तुम्हें लिख रहा हूँ जिन्हें परमेश्वर ने अपने लिए बुलाया है, और जिनसे पिता परमेश्वर प्रेम करते है और जिन्हें यीशु मसीह के लिए सुरक्षित रखा हुआ है, उन्हें लिख रहा हूँ।
\v 2 परमेश्वर तुम पर बहुत दया करे। वह तुमको बहुत शांति दे, और वह तुमको बहुत प्रेम करे।
\p
\s5
\v 3 मैंने तुमको जिससे मैं प्रेम करता हूँ, पत्र लिखकर यह बताने की बहुत कोशिश की, कि किस प्रकार परमेश्वर ने हम सभी को एक साथ बचाया है। मुझे तुमको उन सच्ची बातों के बारे में, जिन पर हम विश्वास करते हैं प्रोत्साहन देने के लिए लिखने की आवश्यकता इसलिए पड़ी, ताकि तुम उनके प्रचार के काम को पूरा करने का प्रयास कर सको। ये वे बातें हैं जो परमेश्वर ने उन सभी को सिखाईं जो मसीह पर भरोसा करते हैं। ये बातें कभी भी नहीं बदलेंगी।
\v 4 ऐसे लोग भी हैं जो तुम्हारी सभाओं में चुपके से घुस आते हैं; ये उन दुष्ट लोगों की तरह हैं जिनके बारे में भविष्यद्वक्ताओं ने बहुत पहले से ही लिखा था, वे झूठी बातें सिखाते हैं और पाप करने की अनुमति देकर वे परमेश्वर की कृपा को लुचपन में बदल डालते हैं। इस तरह वे उन बातों का विरोध करते हैं जो यीशु मसीह के बारे में सच है, जो हमारा एकमात्र स्वामी और प्रभु है।
\p
\s5
\v 5 यद्यपि तुम पहले से ही इन सब बातों को जानते थे, फिर भी कुछ बातें हैं जिनके बारे में मैं तुमको याद दिलाना चाहता हूँ। यह मत भूलो कि यद्यपि परमेश्वर ने अपने लोगों को मिस्र से बचाया था, फिर भी उन्होंने उन लोगों में से जिन्होंने उस पर विश्वास नहीं किया था, अधिकांश को नष्ट कर दिया था।
\v 6 इसके अलावा, ऐसे कई स्वर्गदूत थे जिनको परमेश्वर ने स्वर्ग में अधिकार के पद सौंपे थे। लेकिन वे उन पदों पर अधिकार के साथ शासन नहीं कर पाए। इसके बजाय, उन्होंने उन स्थानों को छोड़ दिया। तब परमेश्वर ने उन स्वर्गदूतों को जंजीरों में जकड़ कर हमेशा के लिए नरक के अंधेरे में डाल दिया। वे उस न्याय के दिन तक वहां रहेंगे जब तक कि परमेश्वर उनका न्याय करके उन्हें सज़ा न दे।
\s5
\v 7 इसी प्रकार, सदोम और गमोरा और उनके आस-पास के शहरों में रहने वाले लोग यौन अनैतिकता करते थे। उन्होंने उन सभी प्रकार के यौन संबंधों की चाह रखी जो परमेश्वर की अनुमति से अलग थे। इसलिए परमेश्वर ने उन शहरों को नष्ट कर दिया। जो कुछ उन लोगों और स्वर्ग के उन स्वर्गदूतों के साथ हुआ, यह दर्शाता है कि परमेश्वर झूठे सिद्धांतों की शिक्षा देनेवाले लोगों को नरक की अनन्त आग में दंडित करेंगे।
\v 8 इसी प्रकार, तुम लोगों के बीच में ये लोग अनैतिक रूप से जीने के द्वारा अपने शरीर को भी अशुद्ध कर देते हैं। वे कहते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें दर्शन देकर ऐसा करने के लिए कहा है। परन्तु वे परमेश्वर के आदेशों का पालन नहीं करते हैं, और वे उसके महिमामय स्वर्गदूतों का अपमान करते हैं।
\p
\s5
\v 9 जब प्रधानदूत मीकाईल ने भी शैतान से इस बात पर तर्क किया कि किसके पास मूसा के शरीर का अधिकार होगा, तो उन्होंने अपमान और निंदा करने से स्वयं को रोका; उन्होंने केवल यह कहा, "परमेश्वर तुझे दंड दे।"
\v 10 परन्तु जिन लोगों के बारे में मैं लिख रहा हूँ, वे उन सारी अच्छी बातों के बारे में बुरा बोलते हैं, जिन्हें वे समझ नहीं पाते। वे जंगली जानवरों की तरह हैं जो सोच भी नहीं सकते है, क्योंकि वे उन सब बातों को जिन्हें वे सामान्य रूप से समझने में सक्षम हैं, नष्ट कर देते हैं।
\p
\v 11 परमेश्वर इन बातों के करने वालों को बहुत गंभीर रूप से दंडित करेंगे। वे कैन की तरह व्यवहार करते हैं। वे बिलकुल उस तरह का पाप करते हैं जैसा पाप बिलाम ने धन के लिए किया था। वे कोरह की तरह मरेंगे, जिसने मूसा के विरुद्ध विद्रोह किया था।
\s5
\v 12 ये लोग पानी के नीचे चट्टानों की तरह हैं, जिनकी वजह से जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। जब वे तुम्हारे प्रेम भोजों में हिस्सा लेते हैं, तो उन्हें कोई शर्म नहीं आती, क्योंकि वे केवल स्वयं को संतुष्ट करने के लिए खाते हैं। वे ऐसे बादलों की तरह हैं जो वर्षा नहीं देते, ऐसे बादल जिन्हें हवा उड़ा ले जाती है। वे कोई अच्छा काम नहीं करते, क्योंकि वे शरद ऋतु के वृक्षों की तरह हैं, जो फल नहीं लाते। वे ऐसे लोग हैं जो मनो दो बार मर चुके हैं; वे ऐसे पेड़ों की तरह हैं जो जड़ समेत उखाड़े जा चुके हैं।
\v 13 वे स्वयं को नियंत्रित नहीं करते हैं। वे तूफान में समुद्र की प्रचंड लहरों की तरह हैं, और वे अपनी शर्मिंदगी के साथ दूसरों को भी प्रदूषित करते हैं, जिस तरह लहरें समुद्री तटों पर झाग और गंदगी लाती हैं। वे ऐसे तारों की तरह हैं, जो आकाश में जहाँ उन्हें होना चाहिए वहाँ नहीं रहना चाहते है। परमेश्वर उन्हें हमेशा के लिए बहुत गहरे अंधेरे में डाल देंगे।
\p
\s5
\v 14 हनोक ने भी, जो आदम से सातवीं पीढ़ी में था, इन सिद्धांत के शिक्षको के बारे में कहा, ध्यान से सुनो : “परमेश्वर निश्चित रूप से अपने संतों की अनगिनत संख्या के साथ आएंगे।”
\v 15 वे सभी का न्याय करेंगे और सभी दुष्ट लोगों का, और उन लोगों का भी जो परमेश्वर का अनादर करते है, दण्डित करेंगे। स्वर्गदूत ऐसा इसलिए करेंगे क्योंकि इन लोगों ने परमेश्वर के खिलाफ़ कठोर बातें कहीं हैं।"
\v 16 परमेश्वर जो करते है उन बातों के बारे में यह झूठे सिद्धांतों के शिक्षक शिकायत करते है। वे उस बारे में शिकायत करते हैं जो उनके साथ होती है। वे बुरे काम करते हैं क्योंकि वे उन्हें करने की इच्छा रखते हैं। वे घमंड के साथ बात करते हैं। वे लोगों से चीजें पाने के लिए उनकी प्रशंसा करते हैं।
\p
\s5
\v 17 परन्तु तुम लोग, जिनको मैं प्रेम करता हूँ, याद रखो, जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के प्रेरितों ने बहुत पहले से कहा था।
\v 18 उन्होंने तुमको बताया, "अंतिम दिन आने से पहले, कुछ लोग उन सच्ची बातों पर हँसेंगे जो परमेश्वर ने हमें बताई हैं। वे अपने शरीर के साथ उन पापों को करेंगे जिन्हें वे करना चाहते हैं, क्योंकि वे परमेश्वर का अनादर करते हैं।"
\v 19 ये वे लोग हैं जो विश्वासियों के बीच में फूट डालते हैं। वे उन सभी दुष्ट कामों को करते हैं जो वे करना चाहते हैं। परमेश्वर का आत्मा उनके अन्दर नहीं रहता है।
\p
\s5
\v 20 लेकिन तुम जिनसे मैं प्रेम करता हूँ, परमेश्वर की उस सच्चाई का जिस पर तुम विश्वास करते हो, उपयोग करते हुए एक दूसरे को मज़बूत करो। पवित्र आत्मा प्रार्थना करने के तरीकों में तुम्हारा मार्गदर्शन करे।
\v 21 अपने जीवन को ऐसे निर्वाह करो, जो उन लोगों के लिए सही हो जिनसे परमेश्वर प्रेम करता है। लगातार यह उम्मीद करते रहो कि हमारे प्रभु यीशु मसीह आपके प्रति दयालुता से कार्य करें। इस बात को सुनिश्चित करते रहो, जब तक कि हमारा उनके साथ अनन्त काल का जीवन शुरू न हो जाए।
\p
\s5
\v 22 उन लोगों पर कृपा करो, जो इस बारे में निश्चित नहीं हैं कि उन्हें किस शिक्षा पर विश्वास करना चाहिए, और उनकी मदद करो।
\v 23 दूसरों को अनन्त दंड की आग में जाने से बचाओ। उन लोगों पर दया करो जो पाप करते हैं, लेकिन उन पापों में जुड़ने से डरो। यहाँ तक कि, उनके वस्त्रों से भी घृणा करते रहो, क्योंकि यह भी उनके पापों के द्वारा मैले हो चुके हैं।
\p
\s5
\v 24 परमेश्वर सक्षम है कि तुम्हारा भरोसा उन पर ही बनाए रखें। वह तुमको अपनी उपस्थिति में ले जाएगे, जहाँ महिमामय प्रकाश है। तुम बहुत प्रसन्न होंगे, और पाप से मुक्त हो जाओ।
\v 25 वहीं एकमात्र सच्चे परमेश्वर है। हमारे प्रभु यीशु मसीह ने जो हमारे लिए किया है, उसके परिणामस्वरूप उन्होंने हमें बचा लिया है। समय के आरम्भ से पहले ही से परमेश्वर महिमामय, महान और पराक्रमी हैं, और उन्होंने अपने महान अधिकार के साथ राज किया है। वह अभी भी ऐसे ही है, और हमेशा ऐसे ही रहेंगे! आमीन!

801
67-REV.usfm Normal file
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\id REV Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h REVELATION
\toc1 The Book of Revelation
\toc2 Revelation
\toc3 rev
\mt1 प्रकाशितवाक्य
\s5
\c 1
\p
\v 1 इस पुस्तक में वे बातें हैं जो यीशु मसीह ने मुझ यूहन्ना पर प्रकट की हैं। परमेश्वर ने इन बातों को यीशु को बताया कि वे उन बातों को अपने दासों को भी बता दे। ये बातें शीघ्र ही पूरी होने वाली हैं। यीशु ने अपने एक स्वर्गदूत को भेजकर, अपने सेवक, मुझ यूहन्ना को इन बातों की जानकारी दी।
\v 2 मुझ यूहन्ना ने जो कुछ देखा और जो परमेश्वर के वचन के विषय में सुना था, और जो सच्ची गवाही यीशु मसीह के विषय में दी गई थी, उनका साक्षी होकर बताया।
\v 3 जो इन वचनों को पढनेवाले और सुननेवाले हैं, वे परमेश्वर की भलाई के भागी होंगे। और जो लोग इन वचनों को ध्यान से सुनकर इनका पालन करते हैं, उन लोगों के साथ परमेश्वर भलाई ही करेंगे, क्योंकि इन बातों के पूरा होने का समय शीघ्र ही आ रहा है।
\p
\s5
\v 4 मैं, यूहन्ना, यह पत्र एशिया प्रांत में रहनेवाले विश्वासियों के सात समूहों को लिख रहा हूँ। परमेश्वर तुम पर कृपा करें और तुम्हें शान्ति दें, क्योंकि वे ही एकमात्र परमेश्वर हैं जो थे और अब भी हैं, और भविष्य में भी सदा रहेंगे। जो सात आत्माएँ परमेश्वर के सिंहासन के सामने उपस्थित रहती हैं, उनकी ओर से तुम्हारे लिये भी यह सब काम किए जाएँ।
\v 5 यीशु मसीह जो हमें परमेश्वर के विषय में सच्चाई बताने में विश्वासयोग्य रहें हैं, तुम पर दया करें और तुम्हें शान्ति प्रदान करें। क्योंकि वे ही पहले हैं जिन्हें परमेश्वर ने मरे हुओं में से जिलाया और वही है जो पृथ्वी के राजाओं पर राज्य करते हैं। वही है जो हमें प्रेम करते हैं और जिन्होंने क्रूस पर मरकर अपने लहू के द्वारा हमें हमारे पापों के दोष से मुक्त किया है।
\v 6 वही हैं जिन्होंने अपने राज्य पर शासन करना आरम्भ कर दिया है; उन्होंने हमें याजक होने के लिए अलग किया है, जो उनके पिता अर्थात परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार उनकी आराधना करते हैं। वह यीशु मसीह ही हैं जिनका हमें सदा सम्मान और स्तुति करनी चाहिए। यही सच है।
\p
\s5
\v 7 देखो! मसीह बादलों पर आनेवाले हैं, हर कोई उन्हें देखेगा, और वे भी देखेंगे जिन्होंने उन्हें क्रूस पर कीलों से जड़ कर मार डाला था। पृथ्वी के हर एक गोत्र के लोग दुःखी और परेशान होंगे जब वे यीशु को पृथ्वी पर दोबारा आते हुए देखेंगे। यह सच है!
\v 8 प्रभु परमेश्वर कहते हैं, "मैं ही अल्फा हूँ जिसने सभी चीजों को रचा, और मैं ही ओमेगा हूँ जो इन सब चीजों का अन्त करूँगा। मैं ही जीवित हूँ, और सदा रहा हूँ, और सदैव रहूँगा। मैं वही हूँ जो सब वस्तुओं पर और सब पर राज्य करता हूँ।"
\p
\s5
\v 9 मैं, यूहन्ना, तुम्हारा साथी विश्वासी, वैसे ही दुःख उठा रहा हूँ जैसे तुम दुःख उठा रहे हो। क्योंकि यीशु हमारे ऊपर शासन करते हैं। हम अपने विश्वास के लिए दुःख उठाने की बुलाहट आपस में बाँटते हैं। हम उनके राज्य का एक भाग हैं और सब बातों पर शासन करते हैं, और हम धीरज से हर कष्ट और परीक्षा जो हम पर आती है उसको सह लेते हैं। मुझे बंदी बनाकर पतमुस द्वीप पर भेज दिया गया है क्योंकि मैं लोगों को परमेश्वर के संदेश और यीशु की सच्चाई के विषय में बता रहा था।
\v 10 एक दिन हम अन्य विश्वासियों के साथ परमेश्वर की आराधना कर रहे थे, तब परमेश्वर के आत्मा मुझ पर उतरे। फिर मैंने किसी को अपने पीछे बोलते सुना। वह एक ऐसी आवाज थी जैसे कोई तुरही फूँक रहा हो।
\v 11 उन्होंने मुझ से कहा, "जो कुछ तू देखता है उसे पुस्तक में लिख ले, और उसे विश्वासियों के उन सात समूहों को भेज दे। जो इफिसुस, स्मुरना, पिरगमुन, थुआतीरा, सरदीस, फिलदिलफिया और लौदीकिया के शहरों में रहते हैं।"
\s5
\v 12 जब मैंने इन शब्दों को सुना तो मैं यह देखने के लिए घूमा कि कौन बोल रहा है, तब मैंने सात सोने के दीवट देखे।
\v 13 दीवटों के मध्य में मनुष्य जैसा कोई था। उनका वस्त्र पाँवो तक लम्बा था और उनकी छाती पर एक सोने का पटुका बंधा हुआ था।
\s5
\v 14 उनके सिर के बाल ऊन या गिरने वाली ताजा बर्फ के समान सफेद थे। उनकी आँखें धधकती आग के समान थीं।
\v 15 उनके पैर चमचमाते पीतल के समान दिखते थे। जब उन्होंने बात की तो उनकी आवाज में एक बड़ी नदी के बहते पानी के समान शोर था।
\v 16 वे अपने दाहिने हाथ में सात सितारे लिए हुए थे। उनके मुँह से दोधारी तलवार निकल रही थी। उनका चेहरा दोपहर में चमकते सूरज के समान तेज चमक रहा था।
\s5
\v 17 जब मैंने उनको देखा, तो मैं उनके पैरों पर गिर पड़ा और मैं मरा हुआ सा हो गया। परन्तु उन्होंने अपना दाहिना हाथ मुझ पर रखा और मुझ से कहा, "डर मत! मैं सबसे पहला हूँ, जिसने सब वस्तुओं को सृजा और मैं ही अंतिम हूँ जो सब का अंत करूँगा।
\v 18 मैं जीवित हूँ, भले ही मैं एक बार मर गया था, पर वास्तव में, मैं सदा के लिए जीवित हूँ! मृत्यु पर मेरा अधिकार है और मरे हुओं का स्थान मेरे निंयत्रण में है।
\s5
\v 19 इसलिए उसे जो अब हो रहा है, और जो भविष्य में होनेवाला है लिख ले, जो कुछ तूने देखा है उसे लिख ले।
\v 20 सात तारे जो तूने मेरे दाहिने हाथ में देखे हैं और सात सोने के दीवटों का अर्थ है: सात सितारे उन स्वर्गदूतों को दर्शाते हैं जो एशिया के विश्वासियों के सात समूहों की देखरेख करते हैं, और सात दीवट उन सात समूहों को दर्शाते हैं जो वहाँ हैं।"
\s5
\c 2
\p
\v 1 "इफिसुस नगर में रहने वाले विश्वासियों के समूह के स्वर्गदूत को यह सन्देश लिख: जो अपने दाहिने हाथ में सात सितारों को लिए हुए हैं, और जो सात सोने के दीवटों के बीच चलते हैं वे यह कहते हैं:
\v 2 तूने जो कुछ किया है वह मैं जानता हूँ। मैं जानता हूँ कि तू मेरे लिए कठोर परिश्रम करता है, मुझे पता है कि जब तू कठिन समय से गुजरता है तब भी तू धीरज रखता है। मैं यह भी जानता हूँ कि तू बुरे लोगों को सहन नहीं कर सकता, और तू लोगों से उनके विश्वास के विषय में प्रश्न करता है, और तू उन लोगों को जानता है जो प्रेरित होने का दावा तो करते हैं, लेकिन वे हैं नहीं।
\s5
\v 3 मैं यह भी जनता हूँ कि जब तू मुझ पर विश्वास करता है तो धीरज से दुःखों को सह लेता है। और तू निरन्तर मेरी सेवा करते रहने से टला नहीं, तू मेरे पीछे चलने के कारण पीड़ित किया गया, तू कठिन समय में भी मेरी ही सेवा करता रहा और मेरे वचनों को थामे रहा। तूने हार नहीं मानी, और न ही त्याग किया जबकि वह तेरे लिए कठिन हो गया था।
\v 4 फिर भी, तूने कुछ गलती की थी। तू अब एक दूसरे से और मुझसे प्रेम नहीं करता, जैसा तू तब करता था जब विश्वास में पहली बार आया था। अब मेरे लिए तेरा प्रेम पहले जैसा नहीं रहा।
\v 5 इसलिए, मैं तुझे यह याद दिलाने के लिए कहता हूँ कि तू मुझ से कितना प्रेम करता था। मुझे वैसे ही प्रेम करो जैसा तूने आरम्भ में किया था। अगर तू वैसे ही नहीं करता, तो मैं तेरे पास आकर अपने दीपक को हटा दूँगा ताकि तू आगे को मेरा न रहे।
\s5
\v 6 लेकिन तू एक काम बहुत अच्छी तरह से करता है : वह यह कि तू नीकुलइयों की बात नहीं मानता, जो यह कहते हैं कि तू मूर्तियों की उपासना कर सकता है और अनैतिक रूप से कार्य कर सकता है । वे जो भी करते हैं तू उससे वैसे ही घृणा करता है, जैसे मैं घृणा करता हूँ।
\v 7 जो कोई मेरे संदेश को समझना चाहता है, उसे उस संदेश को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए जो परमेश्वर के आत्मा विश्वासियों के एकत्रित समूह से कह रहे हैं। वह संदेश यह है: मैं जय पानेवालों को उस वृक्ष का फल खाने दूँगा जो अनन्त जीवन देता है और वह वृक्ष परमेश्वर की वाटिका में है।'"
\p
\s5
\v 8 "स्मुरना शहर के विश्वासियों के समूह के स्वर्गदूत को यह संदेश लिख: "मैं तुझसे कह रहा हूँ मैं सबसे पहला हूँ, जिसने सब वस्तुओं की रचना की है और मैं ही अंतिम हूँ, जो सब वस्तुओं का अन्त करता हूँ। मैं ही एकमात्र हूँ जो मर गया था और फिर से जीवित हो गया हूँ।
\v 9 मुझे पता है कि तूने कैसा दुःख उठाया है। मैं जानता हूँ कि तू गरीब है और तुझे बहुत सी वस्तुओं की आवश्यक्ता है। (परन्तु तू वास्तव में उन बातों में बहुत धनी है जो अनन्त हैं और जिन्हें कभी भी तुझसे वापस नहीं लिया जाएगा।) तू जानता है कि लोग तुझको शाप देते हैं और तेरे विषय में बुरी बातें कहते हैं क्योंकि तू मसीह का अनुसरण करता है। वे यहूदी (जो वास्तव में यहूदी नहीं हैं) तुझको शाप देते हैं और तेरे विषय में बुरी बातें कहते हैं, वे शैतान की सभा के सदस्य हैं, और वे परमेश्वर के लोगों की सभा के नहीं हैं।
\s5
\v 10 आने वाले दुःख से मत डर। सच्च यह है कि शैतान तुम में से कुछ को जेल में डाल देने पर है ताकि तुम को कठिन परिस्तिथियों का सामना करना पड़े। जहाँ तुम्हें परखा जाएगा कि तुम्हारा विश्वास कैसा है। कुछ समय के लिए तुमको दुःख उठाना पड़ेगा, मुझ पर भरोसा रखते रहना, भले ही वे तुमको मार डालें, क्योंकि तुम मुझ पर भरोसा रखते हो। और मैं तुम्हारे सिर पर मुकुट रखूँगा जो एक संकेत होगा कि तुम्हारे पास अनन्त जीवन है और तुम जय पा चुके हो।
\v 11 परमेश्वर के आत्मा एकत्र होने वाले विश्वासियों की सभा को जो सन्देश देते हैं उसे ध्यान से सुनो। जो भी विजय पा चुके, वे दूसरी बार नहीं मरेंगे।'"
\p
\s5
\v 12 "पिरगमुन शहर के विश्वासियों के समूह के स्वर्गदूत को यह संदेश लिख: 'मैं तुझ से जो बातें कह रहा हूँ। मेरे पास तेज दोधारी तलवार है।
\v 13 मैं जानता हूँ कि तू वहाँ रहता है, जहाँ शैतान की शक्ति बहुत अधिक है और उसका प्रभाव सब स्थानों में है। मैं जानता हूँ कि तेरा विश्वास दृढ है और जिस बात से मैं प्रेम करता हूँ और जो मेरे लिए महत्वपूर्ण है, उसको पकड़े रहता है। यहाँ तक कि जब उन्होंने मेरे स्वामिभक्त सेवक अन्तिपास को मार डाला, क्योंकि उसने लोगों को बताया कि मैं कौन हूँ और मैंने उनके लिए क्या किया है।
\s5
\v 14 परन्तु, मुझे कुछ ऐसी बातें दिखती हैं जो तेरी गवाही को हानि पहुँचा रही हैं और तेरी आज्ञाकारिता में बाधा डाल रही है। यहाँ तक कि तू अपने कुछ सदस्यों को बिलाम की सी शिक्षाओं की अनुमति देता है, जो उसने बहुत पहले सिखाई थी। उसने बालाक को मूर्तियों पर भेंट चढ़ाया गया भोजन खाना सिखाया था और परमेश्वर के लोगों के बीच यौन व्यभिचार आ गया था।
\v 15 इसी प्रकार, तू भी अपने कुछ सदस्यों को नीकुलइयों की शिक्षा पर चलने से नहीं रोकता है, वह व्यभिचार है, यह नि:सन्देह स्वीकार करने योग्य नहीं है।
\s5
\v 16 ऐसा मत कर और अपनी दिशा बदल ले, वरना मैं अकस्मात ही तेरे पास आऊँगा और मैं उनसे अपने मुँह की तलवार से जो परमेश्वर का वचन है, युद्ध करूँगा।
\v 17 उस संदेश को ध्यान से सुन जो परमेश्वर के आत्मा विश्वासियों के समूह से बोलते हैं। जो विजय प्राप्त करता है, मैं उसे गुप्त मन्ना दूँगा, जो उसे तृप्त करेगा और बल देगा और मैं उसे एक सफेद पत्थर भी दूँगा, जिस पर मैं उसके लिए एक नया नाम खुदवाऊँगा, और उस नाम को केवल वही जान सकेगा।'"
\p
\s5
\v 18 "इस संदेश को थुआतीरा शहर के विश्वासियों के समूह के स्वर्गदूत को लिखो: 'मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ, जिसकी आँखें आग की लपटों के समान चमकती हैं और जिसके पैर उत्तम पीतल के समान चमकते हैं, वही यह बातें तुझको बता रहा हूँ।
\v 19 जो अच्छे काम तू करता है, वह मैं जानता हूँ मुझे पता है कि तू मुझ से और एक दूसरे से प्रेम रखता है, और तू मुझ पर भरोसा रखता है। मैं जानता हूँ कि तू दूसरों की सेवा करते हुए कठिनाइयों का सामना करता है, परन्तु टलता नहीं। मुझे पता है कि तू उन कामों को अब और भी अधिक कर रहा है जो तूने पहले किए थे।
\s5
\v 20 फिर भी, तू ने कुछ तो गलती की है: तू अपने लोगों के बीच उस स्त्री को सहन कर रहा है जो प्राचीन काल की कुटिल रानी इजेबेल के जैसी है। वह कहती है कि वह एक भविष्यद्वक्तिनी है परन्तु, वह अपनी शिक्षाओं से मेरे सेवकों को धोखा दे रही है वह उन्हें अनैतिक यौनाचार और मूर्तियों को चढ़ाई गई बलियों को खाने का आग्रह करती है।
\v 21 यद्यपि मैंने उसे अनैतिकता यौनाचार और मूर्तिपूजक प्रथाओं से मन फिराने का समय दिया था, परन्तु वह उसे छोड़ना नहीं चाहती है।
\s5
\v 22 इसका परिणाम यह होगा कि मैं उसे बहुत बीमार कर दूँगा। मैं उनको भी बहुत दुःख दूंगा जो उसके जैसे अनैतिकता के काम करते हैं, मैं उन्हें बहुत दुःख दूँगा, यदि वे उसके जैसे कामों को करना नहीं छोड़ेंगे।
\v 23 कुछ लोग उसकी शिक्षाओं को ग्रहण करके उसकी सन्तान के जैसे हो गए हैं। इस कारण मैं उन्हें निश्चय ही मार दूँगा। तब विश्वासियों के सब समूह समझ जाएँगे कि मैं उनके विचारों को और उनकी इच्छाओं को जानता हूँ मैं तुम में से हर एक को उसके कार्यों के अनुसार प्रतिफल दूँगा।
\s5
\v 24 परन्तु थुआतीरा शहर के शेष सब विश्वासियों के विषय में मुझे कुछ अच्छा कहना है। यह अच्छा है कि तुम इन गलत बातों को स्वीकार नहीं करते। यह अच्छा है कि तुम उन शिक्षकों के "गुप्त कामों" को अस्वीकार कर देते हो जो शैतान ने उन्हें "सिखाए" थे। मैं तुम पर किसी अन्य आज्ञा का बोझ नहीं डालूँगा।
\v 25 बस मुझ पर दृढ़ विश्वास रखो और जब तक मैं न आऊँ, तब तक मेरी आज्ञा मानो।
\s5
\v 26 जो लोग शैतान पर जीत प्राप्त कर लेते हैं और जो भी आदेश मैं उन्हें देता हूँ उसे वे मरते दम तक मानते रहें, तो मैं उन्हें सब लोगों पर अपना अधिकार दूँगा।
\v 27 वे उन्हें इस तरह नियंत्रित करेंगे जैसे कि वे उन्हें लोहे की छड़ से मार रहे हों। वे दुष्टता के काम करने वालों को ऐसे नष्ट कर देंगे जैसे लोग मिट्टी के बर्तनों को चूर-चूर कर देते हैं।
\v 28 मैं यह सब उस अधिकार से करता हूँ जो मेरे पिता ने मुझे दिया है। और मैं उन लोगों को सुबह का सितारा दूँगा जो मेरे साथ राज्य करते हैं जिससे कि हमें हमारी जीत में बहुत खुशी हो।
\v 29 जो कोई समझना चाहता है, वह उस सन्देश को ध्यानपूर्वक सुने जो परमेश्वर के आत्मा विश्वासियों के समूहों को देते हैं जो एक साथ एकत्र होते हैं।'"
\s5
\c 3
\p
\v 1 "यह संदेश सरदीस शहर में इकट्ठे होने वाले विश्वासियों के समूह के स्वर्गदूत को लिख।" मैं तुझसे यह बातें कह रहा हूँ। मैं वही हूँ जिसके पास परमेश्वर की सात आत्माएँ और सात सितारे हैं। मैं वह सब कुछ जानता हूँ जो तूने किया है। तू जीवित प्रतीत होता है, लेकिन तू मर हुआ है।
\v 2 सतर्क रह! मेरे लिए और अधिक काम कर, अन्यथा जो तूने अब तक किया है, वह व्यर्थ हो जाएगा। तुझे ऐसा करना चाहिए क्योंकि मेरे परमेश्वर जानते हैं कि तूने अब तक पर्याप्त काम नहीं किया है।
\s5
\v 3 इसलिए, परमेश्वर के उस संदेश और सच्चाई को स्मरण रख जो तूने ग्रहण किया था। सदा इसका पालन कर और अपने पापी व्यवहार से दूर रह। यदि तू ऐसा नहीं करता है, तो मैं ऐसे समय पर तेरे पास आ जाऊँगा जिस समय के विषय में तू सोच भी नहीं सकता है जैसे चोर आ जाता है। तू कभी नहीं जान पाएगा कि मैं किस समय आकर तेरा न्याय करूँगा।
\v 4 फिर भी, तेरे पास सरदीस शहर में कुछ विश्वासी हैं, जो कभी कुछ गलत नहीं करते हैं। ऐसा करने से उन्होंने अपने वस्त्रों को गंदे नहीं होने दिया। इसलिए वे मेरे साथ रहने के योग्य हैं, वे मेरे साथ रहेंगे और हर तरह से शुद्ध होंगे, जैसे शुद्ध सफेद कपड़े पहने हुए लोग।
\s5
\v 5 जो लोग शैतान पर विजय प्राप्त कर लेते हैं, मैं उन्हें ये सफेद रंग के कपड़े पहनाऊँगा। मैं उनके नामों को जीवन की पुस्तक में से कभी न मिटाऊँगा, उस पुस्तक में अनन्त जीवन पाने वाले लोगों के नाम होंगे। इसके बजाय, मैं अपने पिता और उनके स्वर्गदूतों के सामने स्वीकार करूँगा कि वे मेरे हैं।
\v 6 जो कोई भी समझना चाहता है, वह इस संदेश को सावधानी से सुने, जो परमेश्वर के आत्मा उन विश्वासियों के समूहों को दे रहे हैं जो एक साथ एकत्र हैं।'"
\p
\s5
\v 7 फिलदिलफिया शहर में एकत्र हुए विश्वासियों के समूह के स्वर्गदूत को यह संदेश लिखो: "मैं जो तुम से ये बातें कह रहा हूँ। मैं एक पवित्र, सच्चा परमेश्वर हूँ। जैसे लोगों को यरूशलेम के प्राचीन शहर में प्रवेश करने की अनुमति देने का अधिकार राजा दाऊद के पास था, वैसे ही मेरे पास लोगों को अपने राज्य में प्रवेश करने की अनुमति देने का अधिकार है। मैं वह हूँ जो द्वारों को खोलता है तो कोई उन्हें बंद नहीं कर सकता और जो द्वार मैं बंद करता हूँ उन्हें कोई भी खोल नहीं सकता।
\v 8 तूने जो कुछ किया है उसे मैं जानता हूँ। ध्यान रख कि मैंने तेरे लिए एक द्वार खोला है जिसे कोई बंद नहीं कर सकता। मुझे पता है कि तेरे पास थोड़ी सी शक्ति है, मैं ने जो कहा है, तूने उसका पालन किया है, और तूने इस बात से मना नहीं किया कि तू मुझ पर विश्वास करता है।
\s5
\v 9 सावधान रह! मैं जनता हूँ कि तेरे कुछ लोग उन लोगों से मिलते हैं जो शैतान के अनुसार चलते हैं। वे यहूदी होने का दावा करते हैं, परन्तु मैं जनता हूँ कि वे सच्चे यहूदी नहीं हैं। वे झूठ बोलते हैं। मैं उन्हें तेरे पास आकर नम्रता से तेरे पैरों पर झुकने का कारण बनाऊँगा जिससे कि वे जानें कि मैं तुझसे प्रेम करता हूँ।
\p
\v 10 क्योंकि जब मैं ने दुःख को धीरज से सहने के लिए तुझे आज्ञा दी तो तूने मेरी आज्ञा मान ली। इसलिए मैं तुझे उन लोगों से सुरक्षित रखूँगा जो प्रयास करते हैं कि तू मेरी आज्ञा ना माने। वे शीघ्र ही पूरे संसार में हर एक के साथ ऐसा ही करेंगे।
\v 11 मैं शीघ्र ही आ रहा हूँ इसलिये मैंने तुझसे जो कहा है, वह करता रह, जिससे कि कोई भी तुझे उस प्रतिफल से वंचित न होने दे जिसे परमेश्वर ने तेरे लिए रखा हुआ है।
\s5
\v 12 मैं उन लोगों को सुरक्षित रखूँगा जो शैतान पर विजय पाते हैं। वे मेरे परमेश्वर के आराधनालय के खम्भों के समान दृढ़ होंगे, और वे सदा के लिए वहाँ रहेंगे। मैं अपने परमेश्वर के नाम का चिन्ह उन पर लगा दूँगा जिससे प्रकट होगा कि वे मेरे हैं। मैं उनको अपने परमेश्वर के शहर, नये यरूशलेम के नाम से भी चिन्हित करूँगा, जो कि मेरे परमेश्वर के स्वर्ग से उतरेगा। मैं उन पर अपने नए नाम का चिन्ह भी डालूँगा जिससे प्रकट हो कि वे मेरे हैं।
\v 13 समझने की इच्छा रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति इस संदेश को ध्यानपूर्वक सुने, जिसे परमेश्वर के आत्मा विश्वासियों के समूहों को दे रहे हैं जो एक साथ एकत्र हैं।'"
\p
\s5
\v 14 "यह संदेश लौदीकिया शहर में एकत्र हुए विश्वासियों के समूह के स्वर्गदूत को लिख: 'मैं तुझसे यह बातें कह रहा हूँ। मैं वही हूँ जो परमेश्वर की सभी प्रतिज्ञाओं का आश्वासन देता हूँ। मैं वही हूँ जो परमेश्वर पर भरोसा रखने की अचूक गवाही देता हूँ। मैं परमेश्वर की सम्पूर्ण सृष्टि पर शासक हूँ।
\v 15 जो कुछ तू ने किया है, वह सब मैं जनता हूँ: तू इस बात से मना नहीं करता कि तू मुझ पर भरोसा रखता है, परन्तु तू मुझसे अधिक प्रेम नहीं करता है। तू उस पानी के समान है जो न तो ठंडा है और न ही गर्म है। मैं चाहता हूँ कि तू या तो ठंडा हो जा या गरम हो जा।
\v 16 क्योंकि तू न तो गर्म हो और न तू ठंडा है, मैं तुझको अस्वीकार करने पर हूँ, जैसे कि मैं अपने मुँह से गुनगुने पानी को उगल रहा हूँ।
\s5
\v 17 तू कह रहा है, 'मैं अमीर हूँ और मैंने बहुत धन एकत्र किया है। मुझे कोई कमी नहीं है!' लेकिन यह नहीं जनता कि बहुत कमी है। तुम ऐसे लोगों के समान हो जो बहुत दु:खी और दयनीय, गरीब, अंधे, और नंगे हैं।
\v 18 मैं तुझे एक सुझाव देता हूँ कि जो कुछ तुझे चाहिए, वह सब मुझ से प्राप्त कर, जैसे कि तू मुझ से शुद्ध सोना खरीद रहा है ताकि तू वास्तव में धनवान हो जाए। आ, मैं तुझे धर्मी बनाऊँ, जैसे कि तू मुझसे सफेद वस्त्र खरीद रहा है ताकि तू नंगा और लज्जित होने की अपेक्षा कपड़े पहन सको। सत्य को समझने में मैं तेरी सहायता करता हूँ जैसे कि तू मुझसे अस्वस्थ आँखों में लगाने के लिए सुर्मा खरीद रहा है।
\s5
\v 19 क्योंकि मैं उन सब को डाँटता और सुधारता हूँ जिनसे मैं प्रेम करता हूँ, अपने पूरे मन से अपने पापी व्यवहार से दूर हो जा।
\v 20 मैं यहाँ हूँ! मैं हर एक को बुला रहा हूँ, और मैं खड़ा हूँ और तेरे द्वार पर प्रतीक्षा कर रहा हूँ और दरवाजे पर खटखटा रहा हूँ। यदि तू मेरी आवाज सुनकर दरवाजा खोलता है, तो मैं अंदर आऊँगा और हम एक साथ दोस्तों के समान खाना खाएँगे।
\s5
\v 21 मैं उन सभी को जो शैतान पर विजय पाते हैं कि मेरे सिंहासन पर मेरे साथ बैठकर शासन करने की अनुमति दूँगा। जैसे मैंने शैतान पर विजय पाई और अब अपने पिता के साथ उसके सिंहासन पर बैठकर शासन करता हूँ।
\v 22 जो कोई समझना चाहता है, वह उस संदेश को ध्यान से सुने जो परमेश्वर के आत्मा विश्वासियों के समूह को बता रहे हैं जो एक साथ एकत्रित हैं।'"
\s5
\c 4
\p
\v 1 इन बातों के बाद मुझ यूहन्ना ने दर्शन में देखा कि स्वर्ग में एक द्वार खुला था। जिन्होंने मुझसे पहले बात की थी, जिनकी आवाज तेज तुरही के समान थी उन्होंने मुझसे कहा, "यहाँ ऊपर आ! मैं तुझको वे घटनाएँ दिखाऊँगा, जो भविष्य में होने वाली हैं।"
\v 2 मैंने तुरंत अनुभव किया कि परमेश्वर के आत्मा विशेष रूप से मुझे नियंत्रित कर रहे थे। वहाँ स्वर्ग में एक सिंहासन था, और उस सिंहासन पर कोई बैठ कर राज्य कर रहा था।
\v 3 उनकी उपस्थिति एक चमकदार पारदर्शी यशब के समान थी और एक भव्य मणि के समान चमकदार थी। सिंहासन के चारों ओर एक मेघधनुष था जो शानदार हरे रंग के पन्ने के समान चमकता था।
\s5
\v 4 सिंहासन के चारों ओर चौबीस अन्य सिंहासन थे। इन सिंहासनों पर चौबीस प्राचीन बैठे थे। वे शुद्ध सफेद वस्त्र पहने हुए थे और उनके सिर पर सोने के मुकुट थे।
\v 5 सिंहासन में से बिजली और गड़गड़ाहट और गर्जन निकल रही थी। सिंहासन के सामने सात मशालें जल रही थीं, जो परमेश्वर के सात आत्माओं को दर्शाती हैं।
\s5
\v 6 सिंहासन के सामने काँच से बना हुआ कुछ था जो समुद्र के समान लगता था। यह काँच के समान साफ था। सिंहासन के चारों कोनों पर एक जीवित प्राणी था। प्रत्येक प्राणी के आगे और पीछे आँखें थी।
\s5
\v 7-8 पहला जीवित प्राणी शेर के समान था। दूसरा जीवित प्राणी एक बैल के समान था। तीसरे जीवित प्राणी का चेहरा मनुष्यों के चेहरे जैसा था। चौथा जीवित प्राणी उड़ते हुए ऊकाब के समान था। चारों जीवित प्राणियों के छ: छ: पंख थे। इन पंखों के ऊपर और नीचे दोनों ओर आँखें थी। वे दिन-रात लगातार कहते रहते हैं:
\q1 "प्रभु परमेश्वर पवित्र, पवित्र, पवित्र है, जो सब पर शासन करते हैं।
\q1 वे वही हैं जो सदा अस्तित्व में है,
\q1 जो अब भी है, और जो सदा रहेंगे।"
\p
\s5
\v 9-10 उन जीवित प्राणियों ने सिंहासन पर बैठने वाले की स्तुति की, और सम्मान दिया और धन्यवाद किया, वह सदा के लिए जीवित है। जब भी वे ऐसा करते हैं, तो चौबीस प्राचीन जो सिंहासन पर बैठे हैं उनके सामने भूमि पर गिर जाते हैं। वे उनकी आराधना करते हैं, जो सदा जीवित है। वे सिंहासन के सामने अपने मुकुट डाल देते है और कहते हैं:
\q1
\v 11 "हे हमारे प्रभु और परमेश्वर,
\q1 आप इस योग्य हैं कि सब प्राणी आपकी स्तुति करें;
\q1 आप इस योग्य हैं कि सभी प्राणी आपका सम्मान करें; तथा
\q1 आप इस योग्य हैं कि सभी प्राणी स्वीकार करें
\q1 कि आप ही सर्वशक्तिमान हैं।
\q1 क्योंकि आप ने ही सब वस्तुओं की रचना की हैं।
\q1 इसके अतिरिक्त, क्योंकि आप चाहते थे कि वे हों,
\q1 आप ने उन्हें रचा; इसलिए, वे आज हैं।"
\s5
\c 5
\p
\v 1 जो सिंहासन पर बैठे हुए थे उनके दाहिने हाथ में मैंने एक पुस्तक देखी। यह पुस्तक बाहर और अंदर से लिखी हुई थी। और इसे सात मुहरों से बंद कर दिया गया था।
\v 2 मैंने एक बलवन्त स्वर्गदूत को देखा जो एक बड़ी आवाज में घोषणा कर रहा था, "वह व्यक्ति जो उस पुस्तक की मुहरों को तोड़ने और फिर इसे खोलने के योग्य है वह आए और इसे खोले।
\s5
\v 3 परन्तु स्वर्ग में, पृथ्वी पर, या उसके नीचे का कोई भी प्राणी इस योग्य नहीं मिला जो पुस्तक को खोलने और उसमें लिखी गई बातों को देखने में समर्थ हो।
\v 4 मैं जोर से रोने लगा क्योंकि कोई ऐसा करने योग्य नहीं था।
\v 5 परन्तु उन प्राचीनों में से एक ने मुझ से कहा, "अब मत रो! देख, जिनको यहूदा के गोत्र का सिंह कहा जाता है, जो राजा दाऊद के वंशज और उत्तराधिकारी हैं, उन्होंने शैतान को हरा दिया है! जिसके परिणामस्वरूप, वह इस पुस्तक की सात मुहरों को तोड़ने और इसे खोलने के योग्य हैं!"
\s5
\v 6 फिर मैंने देखा कि एक मेमने चार जीवित प्राणियों और सिंहासन के चारों ओर प्राचीनों के बीच में खड़ा है। यद्यपि वह जीवित था, उस पर ऐसे निशान थे जैसे किसी ने उसे मार डाला हो। उसके सात सींग थे, और उसकी सात आँखें थीं जो परमेश्वर की सात आत्माएँ हैं जो कि सारी पृथ्वी पर परमेश्वर द्वारा भेजी जाती हैं।
\v 7 मेमने ने आकर जो सिंहासन पर बैठे थे उनके दाहिने हाथ से पुस्तक ले ली।
\s5
\v 8 जब उन्होंने पुस्तक ले ली, तो चारों जीवित प्राणी और चौबीसों प्राचीन उनके सामने मुँह के बल गिर पड़े। उनमें से हर एक के हाथ में वीणा थी, और उनके पास सोने के कटोरे थे जो परमेश्वर के लोगों की प्रार्थनाओं से भरे हुए थे।
\s5
\v 9 जीवित प्राणियों और प्राचीनों ने एक नया गीत गाया। उन्होंने गाया:
\q1 "आप पुस्तक प्राप्त करने और उसकी मुहरों को खोलने के योग्य हैं,
\q1 क्योंकि आप मारे गए थे, और क्योंकि आपने अपने लहू के द्वारा
\q1 परमेश्वर के लिए हर गोत्र, भाषा, लोगों में से परमेश्वर के
\q1 लोगों को बचाया है।
\q1
\v 10 आपने उनको ऐसे लोग बना दिया जिन पर हमारे परमेश्वर शासन करते हैं।
\q1 और उनकी सेवा करने वाले याजक बना दिया जो पृथ्वी पर राज्य करेंगे।"
\p
\s5
\v 11 जैसे मैं देख रहा था, मैंने सिंहासन के चारों ओर और जीवित प्राणियों और प्राचीनों के चारों ओर कई स्वर्गदूतों की आवाज सुनीं। वे कई लाख थे, एक इतनी बड़ी भीड़ कि कोई भी उन्हें गिन नहीं सकता था।
\v 12 वे ऊँची आवाज से गा रहे थे:
\q1 "वह मेमने जिन्हें उन्होंने मार डाला-
\q1 यह उचित है कि हमें उनकी शक्ति, धन, बुद्धि और सामर्थ्य की स्तुति करनी चाहिए।
\q1 यह उचित है कि सब सृजित वस्तुएँ उनका सम्मान और स्तुति करें!"
\p
\s5
\v 13 और मैंने स्वर्ग में और पृथ्वी पर और पृथ्वी के नीचे और समुद्र में हर प्राणी को कहते सुना:-
\q1 "हमें सदैव सिंहासन पर बैठने वाले मेमने की स्तुति, सम्मान और महिमा करनी चाहिए।
\q1
\q1 वे पूरी शक्ति के साथ सदा राज्य करें।
\p
\v 14 चारों जीवित प्राणियों ने कहा, "ऐसा ही हो।" तब प्राचीनों ने भूमि पर स्वयं मुँह के बल गिरकर परमेश्वर और मेमने की आराधना की।
\s5
\c 6
\p
\v 1 मैंने देखा कि मेमने ने पुस्तक की सात मुहरों में से पहली मुहर खोली। फिर चारों प्राणियों में से एक ने ऊँची आवाज में कहा, "आओ!"
\v 2 और एक सफेद घोड़ा दिखाई दिया। कोई उस पर सवार था और उसके पास एक धनुष और तीर थे। परमेश्वर ने उसके सिर पर पहनने के लिए उसे पत्तियों का हार दिया कि वह बुराई पर विजय पाए। वह युद्ध करने और जीतने के लिए बाहर निकला।
\s5
\v 3 तब मेमने के समान दिखने वाले ने दूसरी मुहर खोली, और मैंने दूसरे जीवित प्राणी को कहते सुना "आओ!"
\v 4 जब उसने यह कहा, तब एक लाल घोड़ा दिखाई दिया। उस पर भी एक सवार था और परमेश्वर ने उसे यह अधिकार दिया कि वह लोगों को कभी शान्ति से न रहने दे, वे एक दूसरे को नाश करें। इस काम के लिए वह एक बड़ी तलवार ले गया।
\s5
\v 5 तब मेमने ने तीसरी मुहर को खोला, और मैंने तीसरे जीवित प्राणी को कहते सुना, "आओ!" इस बार, मैंने एक काला घोड़ा देखा। उस पर भी एक सवार था, और उसके हाथ में तराज़ू की एक जोड़ी थी।
\v 6 तब मैंने चार जीवित प्राणियों के बीच से आती हुई एक आवाज सुनी। उसने घोड़े के सवार से कहा, "ऐसा कर कि एक किलो गेहूँ की कीमत इतनी हो, जिसको खरीदने के लिए एक व्यक्ति पूरे दिन काम करके पर्याप्त पैसा कमा सके। इसके साथ ही ऐसा कर कि तीन किलो जौ भी उतनी ही कीमत में बिके। लेकिन जैतून के तेल या दाखरस में कमी न होने देना।"
\s5
\v 7 तब मेमने ने चौथी मुहर को खोला, और मैंने चौथे जीवित प्राणी को यह कहते सुना, "आओ!"
\v 8 इस समय मैंने एक पीला घोड़ा देखा। कोई उस पर सवार था और उसका नाम मृत्यु था। "कोई और जो उसका पीछा कर रहा था; उस व्यक्ति का नाम मृत्युलोक है।" परमेश्वर ने इन दोनों व्यक्तियों को पृथ्वी के सभी लोगों की एक चौथाई को मारने की शक्ति दी। वे उन्हें हथियार, या अकाल, या बीमारी, या जंगली जानवरों के द्वारा मार सकते थे।
\p
\s5
\v 9 तब मेमने ने पाँचवीं मुहर खोली, और मैंने स्वर्ग में वेदी के नीचे परमेश्वर के सेवकों की आत्माओं को देखा, जिन्हें दूसरों ने मार डाला था क्योंकि इन सेवकों ने परमेश्वर के संदेश पर विश्वास किया था, जिस संदेश की परमेश्वर ने स्वयं ही गवाही दी थी।
\v 10 उन्होंने ऊँची आवाज़ से परमेश्वर से पूछा, "हे प्रभु, आप पवित्र और सच्चे हैं। आप उन लोगों को कब दण्ड देंगे जिन्होंने हमारी हत्या की थी?"
\v 11 तब परमेश्वर ने उनमें से हर एक को एक सफेद वस्त्र दिया, और उन्होंने उन्हें कुछ समय और धीरज धरने के लिए कहा। जब तक उन लोगों की संख्या भी पूरी न हो जाए जो घात किए जाएँगे, जिन्होंने प्रभु की सेवा की थी - जो कि मसीह में उनके भाई और बहन थे जो स्वयं भी अपने विश्वास के कारण मारे गए थे।
\p
\s5
\v 12 फिर मैंने देखा कि मेमने ने छठी मुहर को खोल दिया और पृथ्वी प्रबलता से काँप उठी। सूरज काले ऊन के बने कपड़े समान काला हो गया और पूरा चाँद लहू के समान लाल हो गया।
\v 13 सितारे बड़ी संख्या में पृथ्वी पर गिर गए जैसे प्रचण्ड वायु में अंजीर के वृक्ष से कच्चे अंजीर गिरते हैं।
\v 14 आकाश खुलकर दोनों तरफ विभाजित हो गया, जैसे एक पुरानी किताब खुल कर दोनों ओर अलग हो जाती है। हर एक पहाड़ और द्वीप अपने स्थान से हिल गया था।
\s5
\v 15 जिसके परिणामस्वरूप, पृथ्वी के सभी लोग, जिनमें राजा, ऊँचे पदवाले, सामान्य लोग, समृद्ध लोग, शक्तिशाली लोग, अन्य सभी के साथ-साथ दास और स्वतंत्र दोनों भी गुफाओं में और पहाड़ी चट्टानों के बीच छिप गए।
\v 16 वे पहाड़ों और चट्टानों से चिल्लाते हुए कहते हैं, "हम पर गिर पड़ो और हमें छिपा लो ताकि जो सिंहासन पर बैठे हैं, वह हमें न देख पाएँ और मेमने हमें दण्ड न दे पाएँ!
\v 17 यह एक भयानक दिन है जिसमें वह हमें दण्ड देंगे, कोई भी जीवित नहीं रह पाएगा!"
\s5
\c 7
\p
\v 1 इसके बाद मैंने चार स्वर्गदूतों को पृथ्वी पर खड़े देखा। एक उत्तर में, एक पूर्व में, एक दक्षिण में, और एक पश्चिम में खड़ा था। वे हवाओं को आगे बढ़ने से रोक रहे थे कि वह पृथ्वी पर, समुद्र में, या किसी भी वृक्ष को विनाश न करे।
\v 2 फिर मैंने एक और स्वर्गदूत को पूर्व की ओर से आते देखा। वह परमेश्वर की मुहर लिए हुए था। इस मुहर से सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अपने लोगों की रक्षा करने के लिए उन पर चिन्ह लगाते हैं। इस स्वर्गदूत ने ऊँचे शब्द से उन चारों स्वर्गदूतों को बुलाया, जिन्हें परमेश्वर ने पृथ्वी और समुद्र को हानि पहुँचाने के लिए कहा था।
\v 3 उसने उनसे कहा, "पृथ्वी या समुद्र या वृक्षों को हानि न पहुँचाना। जब तक कि हम अपने परमेश्वर के सेवकों के माथे पर चिन्ह नहीं लगा देते।
\s5
\v 4 तब स्वर्गदूत और उसके साथी स्वर्गदूतों ने परमेश्वर के सब सेवकों पर चिन्ह लगाए। मैंने उन लोगों की संख्या सुनी, जिन्हें उन्होंने चिन्हित किया था। यह संख्या 1,44,000 थी। वे इस्राएल के हर गोत्र के लोग थे।
\v 5 स्वर्गदूत ने यहूदा के गोत्र में से बारह हज़ार लोगों को, रूबेन के गोत्र में से बारह हज़ार, गाद के गोत्र में से बारह हज़ार,
\v 6 आशेर के गोत्र में से बारह हज़ार, नप्ताली के गोत्र में से बारह हज़ार, और मनश्शे के गोत्र में से बारह हज़ार लोगों पर चिन्ह लगाए।
\s5
\v 7 इसके अतिरिक्त, शिमोन के गोत्र में से बारह हज़ार , लेवी के गोत्र में से बारह हज़ार, इस्साकार के गोत्र में से बारह हज़ार,
\v 8 जबूलून के गोत्र में से बारह हज़ार, यूसुफ के गोत्र में से बारह हज़ार और बिन्यामीन के गोत्र में से बारह हज़ार लोग थे।
\p
\s5
\v 9 इन बातों के बाद, मैंने एक विशाल भीड़ देखी। वे इतने सारे लोग थे कि कोई भी उन्हें गिन नहीं सकता था। वे हर जाती, प्रत्येक गोत्र, प्रत्येक समुदाय और प्रत्येक भाषा बोलने वाले थे। वे सिंहासन और मेमने के सामने खड़े थे। वे सफेद वस्त्र पहने हुए थे और हिलाने के लिए खजूर की डालियों को अपने हाथों में पकड़े हुए थे ताकि उत्सव मना सकें।
\v 10 उन्होंने ऊँचे स्वर से पुकार कर कहा, "हमारे परमेश्वर, जो सिंहासन पर बैठे हैं, और मेमने ने हमें शैतान की शक्ति से बचा लिया है!"
\s5
\v 11 सब स्वर्गदूत सिंहासन के, प्राचीनों के और चारों जीवित प्राणियों के चारों ओर खड़े थे। वे सब सिंहासन के सामने गिर कर और अपने चेहरे भूमि की ओर किए हुए परमेश्वर की आराधना करते थे।
\v 12 उन्होंने कहा, "हाँ, यह ऐसा ही है! हम सदा, हमारे परमेश्वर की स्तुति, धन्यवाद और सम्मान करते हैं। हम स्वीकार करते हैं कि आप पूर्ण बुद्धिमान और शक्तिशाली हैं, जो सदा सब कुछ करने में समर्थ हैं।
\p
\s5
\v 13 तब एक प्राचीन ने मुझसे पूछा, "ये लोग जो सफेद वस्त्र पहने हुए हैं, क्या तू जानता है कि वे कौन हैं और वे कहाँ से आए हैं?"
\v 14 मैंने उत्तर दिया, "श्रीमान, मैं नहीं जानता। तू अवश्य जानता होगा कि वे कौन हैं!" उसने मुझ से कहा, "यह वे लोग हैं जो बड़े क्लेश से निकल कर आए हैं, मेमने ने उनके लिए जान दी थी और परमेश्वर ने उनके पापों के लिए उन्हें क्षमा किया है। यह ऐसा है कि जैसे उन्होंने मेमने के लहू में अपने कपड़े धो लिए हैं और स्वयं को साफ कर लिया है।
\s5
\v 15 इसके कारण, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने हैं, और वे उनके आराधनालय में दिन-रात उनकी आराधना करते हैं। परमेश्वर, जो सिंहासन पर बैठे हैं, उनकी रक्षा करेंगे।
\v 16 जिसके परिणामस्वरूप वे फिर कभी भूखे नहीं होंगे। वे फिर कभी प्यासे नहीं होंगे। सूरज फिर कभी उन्हें हानि नहीं पहुँचाएगा, न ही गर्मी उन्हें झुलसाएगी।
\v 17 ऐसा इसलिए होगा कि मेमने जो सिंहासन पर हैं वह उनकी देखभाल करेंगे, जैसे चरवाहा अपनी भेड़ों की देखभाल करता है। वह अनन्त जीवन की ओर बढ़ने के लिए उनका मार्गदर्शन करेंगे, जैसे चरवाहा अपनी भेड़ों को पानी के झरने की ओर ले जाता है। परमेश्वर उन्हें दु:खी नहीं रहने देंगे। एक प्रकार से वह उनकी आँखों से सभी आँसू पोंछ डालेंगे।"
\s5
\c 8
\p
\v 1 तब मेमने ने सातवीं मुहर खोली, और थोड़े समय के लिए स्वर्ग में कोई शब्द सुनाई नहीं दिया।
\v 2 मैंने सात स्वर्गदूतों को देखा जो परमेश्वर के सामने खड़े रहते हैं। उन्होंने उनमें से प्रत्येक को तुरही दी।
\s5
\v 3 एक और स्वर्गदूत आकर वेदी पर खड़ा हुआ। धूप जलाने के लिए उसके पास सोने का एक कटोरा था। परमेश्वर ने उसे बहुत धूप दी ताकि वह परमेश्वर के सिंहासन के सामने सोने की वेदी पर परमेश्वर के सब लोगों की प्रार्थनाओं के साथ उसे चढ़ाए। फिर उसने वेदी पर उस धूप को जला दिया।
\v 4 धूप का धुआँ परमेश्वर के लोगों की प्रार्थनाओं के साथ, परमेश्वर के पास पहुँचा।
\v 5 तब स्वर्गदूत ने सोने का कटोरा लेकर वेदी की आग के कोयले से भर दिया। उसने इसे पृथ्वी पर उंडेल दिया। गर्जन और गड़गड़ाहट हुई और बिजली कड़की और पृथ्वी हिल गई।
\p
\s5
\v 6 तब सातों स्वर्गदूत, जिनमें से प्रत्येक के पास एक तुरही थीं, उन्हें फूँकने के लिए तैयार हुए।
\v 7 पहले स्वर्गदूत ने अपनी तुरही फूँकी, और पृथ्वी पर लहू के साथ ओले और आग गिरा दी। जिसके परिणामस्वरूप, भूमि की सतह पर सब वस्तुओं का एक तिहाई भाग जल गया: एक तिहाई पेड़ जल गए, और सब हरी घास का एक तिहाई भाग जल गया।
\s5
\v 8 फिर दूसरे स्वर्गदूत ने अपनी तुरही फूँकी और कुछ ऐसी वस्तु जो आग से जलते विशाल पर्वत की सी थी, समुद्र में गिर गई। जिसके परिणामस्वरूप, समुद्र का एक तिहाई भाग लहू के समान लाल हो गया,
\v 9 समुद्र के एक तिहाई जीवित प्राणी मर गये, और समुद्र में जहाजों का एक-तिहाई भाग नष्ट हो गया।
\s5
\v 10 फिर तीसरे स्वर्गदूत ने अपनी तुरही फूँकी, और एक विशाल तारा, जो मशाल के समान जल रहा था, आकाश से नदियों की एक तिहाई पर और पानी के झरनों की एक तिहाई पर पड़ा।
\v 11 उस तारे का नाम कड़वाहट है। जिसके परिणामस्वरूप, एक तिहाई नदियों और झरनों में पानी कड़वा हो गया। बहुत से लोग उस पानी को पीने से मर गए क्योंकि वह कड़वा हो गया था।
\s5
\v 12 तब चौथे स्वर्गदूत ने अपनी तुरही फूँकी, और परमेश्वर ने सूर्य, चंद्रमा और सितारों को मारा ताकि वे एक तिहाई समय के लिए अपना प्रकाश खो दें। दिन के एक तिहाई के दौरान सूर्य नहीं चमका और रात के एक तिहाई के दौरान चंद्रमा और सितारे नहीं चमके।
\p
\s5
\v 13 जब मैंने देखा, तो मैंने एक उकाब को सुना जो आकाश में ऊँचाई पर उड़ते हुए ऊँचे स्वर में चिल्ला रहा था, "पृथ्वी पर रहने वाले लोगों के साथ भयानक बातें घटित होंगी, जब तीन शेष स्वर्गदूत तुरही फूँकेंगे और वे उन्हें फूँकने ही वाले हैं!"
\s5
\c 9
\p
\v 1 फिर पाँचवें स्वर्गदूत ने अपनी तुरही फूँकी और मैंने एक तारा देखा जो आकाश से पृथ्वी पर गिरा। परमेश्वर ने उसे उस कुंड की कुंजी दी जो कि नीचे की ओर जा रहा था लेकिन उसका अंत नहीं था।
\v 2 जब उसने उस कुंड को खोला, तो उसमें से ऐसा धुआँ निकला, जैसे एक बड़ी जलती हुई भट्टी में से निकला हो। उस धूएँ से सूर्य का प्रकाश और आकाश किसी को दिखाई नही दे रहा था।
\s5
\v 3 धुएँ में से टिड्डियाँ भी पृथ्वी पर आईं। परमेश्वर ने उन्हें लोगों को बिच्छू के समान डंक मारने की शक्ति दी।
\v 4 परमेश्वर ने टिड्डियों से कहा वे पृथ्वी की घास या किसी पौधे या किसी वृक्ष को हानि न पहुँचाएँ। परमेश्वर ने उन्हें कहा कि वे केवल उन लोगों को ही हानि पहुँचाएँ, जिनके माथों पर परमेश्वर का चिन्ह नहीं है।
\s5
\v 5 परमेश्वर ने टिड्डियों को लोगों को मारने की अनुमति नहीं दी थी। टिड्डियों ने लोगों को पाँच महीनों तक पीड़ित किया। उन लोगों को ऐसी पीड़ा होती थी जैसे बिच्छू के काटने से होती है।
\v 6 जब टिड्डियाँ विद्रोहियों को पीड़ित करेंगी तो ऐसी पीड़ा होगी कि लोग मरने का रास्ता ढ़ूँढ़ेंगे लेकिन उन्हें कोई रास्ता नहीं मिलेगा। वे मरना चाहेंगे लेकिन वे मर नहीं पाएँगे।
\s5
\v 7 वे टिड्डियाँ उन घोड़ों के समान दिखती थीं जो युद्ध के लिए तैयार हैं। उनके सिर पर कुछ था जो सोने के मुकुट के समान दिखता था। उनके चेहरे लोगों के चेहरे के समान थे।
\v 8 उनके बाल स्त्रियों के बालों जैसे लंबे थे। उनके दाँत शेर के दाँतों के समान दृढ थे।
\v 9 वे धातु से बना छाती का कवच पहने थीं। जब वे उड़ती थीं, तो उनके पंखों से उन घोड़ों की गर्जन जैसी आवाज आती थी जो रथों को युद्ध में खींच रहे हों।
\s5
\v 10 उनकी पूँछ बिच्छुओं की पूँछ के समान थीं। इन पूँछों से वे लोगों को डंक मार सकती थीं, उन पाँच महीनों तक लोगों को हानि पहुँचाने की शक्ति उनकी पूँछों में थी।
\v 11 जो राजा उन पर शासन करता था, वह उस कुंड का स्वर्गदूत था जो नीचे तक जाता था, जिसकी गहराई का अंत नहीं था। इब्रानी भाषा में उसका नाम "अबद्दोन" है और यूनानी भाषा में यह "अपुल्लयोन" है। इन दोनों नामों का अर्थ "नाश करने वाला" है।
\p
\v 12 यह पहली भयानक घटना का अन्त था। परन्तु ध्यान रखें कि और दो भयानक घटनाएँ अब भी होने वाली हैं।
\p
\s5
\v 13 तब छठे स्वर्गदूत ने अपनी तुरही फूँकी, और मैंने सोने की वेदी के चारों कोनों से जो परमेश्वर की उपस्थिति में है, एक आवाज सुनी।
\v 14 वह आवाज छठवें स्वर्गदूत से कह रही थी, जिसके पास तुरही थी, "उन चार स्वर्गदूतों को छोड़ दो, जिनको मैंने महान परात नदी पर बाँधा हुआ है।"
\v 15 तब उन चारों स्वर्गदूतों को मुक्त किया गया, जिन्होंने उस दिन, महीने, और वर्ष की प्रतीक्षा की थी। वे स्वतंत्र किए गए ताकि अपने सैनिकों को एक तिहाई लोगों को मारने के लिए सक्षम बना सकें।
\s5
\v 16 घोड़ों पर सवार हुए सैनिकों की संख्या बीस करोड़ थी। मैंने किसी को कहते सुना कि वे कितने थे।
\v 17 दर्शन में मैंने देखा कि घोड़े और जो सैनिक उन पर सवार थे वे किसके समान दिखते थे। सैनिकों की छाती पर बंधा कवच आग के समान लाल, धूएँ के समान मटमैला, और गंधक के समान पीले रंग का था। घोड़ों के सिर शेरों के सिरों के समान थे। उनके मुँह से आग, धुआँ और गंधक जलने का धुआँ निकल रहा था।
\s5
\v 18 इन तीनों चीजों - आग, धुएँ और जलते हुए गंधक ने जो घोड़ों के मुँह से निकलते थे, एक तिहाई लोगों को मार दिया।
\v 19 घोड़ों की शक्ति उनके मुँह में और उनकी पूँछों में थी। उनकी पूँछों में साँपों के समान सिर थे जिसके द्वारा उन्होंने लोगों को हानि पहुँचाई।
\s5
\v 20 परन्तु बाकी लोग, जो आग की पीड़ा और धुएँ और गंधक के जलाने से नहीं मारे गए थे, वे जो पाप कर रहे थे, उनसे नहीं फिरे। उन्होंने दुष्ट-आत्माओं या अपनी ही बनाई हुई सोने, चाँदी, कांसे, पत्थर और लकड़ी मूर्तियों की उपासना करना बंद नहीं किया। लोगों ने उनकी उपासना करना बंद नहीं किया, भले ही वे ऐसी मूर्तियाँ थीं जो देख नहीं सकती थीं, सुन नहीं सकती थीं और चल नहीं सकती थीं।
\v 21 वे लोगों की हत्या करने, या जादू का अभ्यास करने, या यौन अनैतिक यौनाचार के काम करने, या चीजों को चोरी करने से नहीं रुके।
\s5
\c 10
\p
\v 1 दर्शन में मैंने देखा कि एक और शक्तिशाली स्वर्गदूत स्वर्ग से नीचे आया। एक बादल उसे घेरे हुए था। उसके सिर पर एक मेघधनुष था। उसका चेहरा सूरज के समान चमक रहा था। उसके पैर आग के खम्भों के समान लग रहे थे।
\v 2 उसने अपने हाथ में एक छोटी सी पुस्तक ले रखी थी जो खुली हुई थी। उसने अपने दाहिने पैर को समुद्र में और अपने बाएँ पैर को भूमि पर रखा हुआ था।
\s5
\v 3 वह ऊँचे स्वर में कुछ चिल्लाया, उसकी आवाज एक शेर की गर्जन के समान थी। जब वह चिल्लाया, तो उसने सात बार गर्जन किया; उस गड़गड़ाहट में वे शब्द थे जो मैं समझ सकता था।
\v 4 मैं उन शब्दों को लिखने ही वाला था, जो मैंने सुने थे, परन्तु स्वर्ग से एक आवाज ने मुझ से कहा, जो गड़गड़ाहट ने कहा है, वह गुप्त रख और उसे मत लिख।
\s5
\v 5 तब वह स्वर्गदूत जिसे मैंने समुद्र और भूमि पर देखा था, उसने स्वर्ग की ओर अपना दाहिना हाथ उठाया,
\v 6 और उसने उस व्यक्ति से कहा जो सदा के लिए जीवित है - जिन्होंने स्वर्ग और जो कुछ उसमें है बनाया है, जिन्होंने पृथ्वी और जो कुछ उस पर है बनाया है, और जिन्होंने समुद्र और उसकी सब वस्तुओं को बनाया है, वह जो कहने वाला था उस सत्य को कहे। स्वर्गदूत ने कहा कि परमेश्वर ने जो करने की योजना बनाई है, उसे पूरा करने में अब देरी नहीं होगी।
\v 7 उसने कहा कि जब सातवें स्वर्गदूत के तुरही फूँकने का समय आएगा, तो परमेश्वर की गुप्त योजना पूरी हो जाएगी, जैसा कि उन्होंने अपने सेवकों और भविष्यद्वक्ताओं से बहुत पहले कहा था।
\p
\s5
\v 8 जिन्हें मैंने सुना था, उन्होंने स्वर्ग से फिर मुझ से बात की। उन्होंने कहा, "जाओ और वह खुली पुस्तक उस स्वर्गदूत के हाथ से ले ले जो समुद्र और भूमि पर खड़ा है।"
\v 9 इसलिए मैं स्वर्गदूत के पास गया और उससे वह छोटी पुस्तक देने के लिए कहा, उसने मुझ से कहा, "इसे ले ले और इसे खा ले। तेरे मुँह में यह मधु के समान मीठी लगेगी, लेकिन यह तेरे पेट को कड़वा कर देगी।"
\s5
\v 10 मैंने स्वर्गदूत के हाथ से उस छोटी सी पुस्तक को लिया और उसे खा लिया। मेरे मुँह में वह शहद के समान मीठी लगी, लेकिन फिर उसने मेरे पेट को कड़वा कर दिया।
\v 11 तब किसी ने मुझसे कहा, "तुझे कई देशों, जातियों, कई भाषाओं के बोलने वाले और कई राजाओं को फिर से परमेश्वर का संदेश सुनाना है।"
\s5
\c 11
\p
\v 1 तब एक स्वर्गदूत ने मुझे माप की छड़ी के समान एक सरकंडा दिया। परमेश्वर ने मुझ से कहा, "आराधनालय में जाकर उसको और वेदी को नाप, और उन लोगों की गिनती कर जो वहाँ आराधना करते हैं।
\v 2 लेकिन आराधनालय के बाहर के आँगन को मत नापना, क्योंकि मैंने इसे गैर-यहूदी लोगों के समूहों को दिया है। जिसके परिणामस्वरूप, वे यरूशलेम शहर को बयालीस महीनों तक रौंदेंगे।
\s5
\v 3 मैं दो गवाहों को घोषणा करने के लिए भेजूँगा जो मैं 1,260 दिनों तक उन पर प्रकट करूँगा। वे बकरी के बालों से बने कपडे पहनेगे जो लोगों के पाप के प्रति उनके दुःख को दर्शाएँगे।
\v 4 इन गवाहों का प्रतिनिधित्व पृथ्वी पर राज्य करने वाले परमेश्वर की उपस्थिति के जैतून के वृक्ष और दो दीवट करते हैं।
\v 5 यदि कोई उन गवाहों को हानि पहुँचाने का प्रयास करता है, तो गवाहों के मुँह से आग निकलती है और उन्हें नष्ट कर देती है। यदि कोई उनको हानि पहुँचाना चाहते हैं, तो वे इसी प्रकार उन्हें मार डालते हैं।
\s5
\v 6 उन गवाहों के पास अधिकार होगा कि वे परमेश्वर के संदेश की घोषणा करने के समय वर्षा रोके रहें। वे सब स्थानों में जल को लहू बना देने का अधिकार भी रखेंगे। उन्हें पृथ्वी पर सब प्रकार की महामारियों को भेजने का अधिकार भी होगा। वे जितनी बार चाहें, उतनी बार ऐसा करेंगे।
\v 7 जब वे लोगों को परमेश्वर का संदेश सुना चुकेंगे, तब वह पशु, जो उस अथाह कुंड से निकलेगा जो नीचे की ओर जाता है जिसकी गहराई का कोई अंत नहीं। वह उन पर विजयी होकर उन्हें मार डालेगा।
\s5
\v 8 दो गवाहों के शव महान शहर की गली में रखे होंगे, जहाँ उनके प्रभु को क्रूस पर चढ़ाया गया था। वह शहर जिसे सदोम या मिस्र का प्रतीक कहा जाता है, क्योंकि इसके लोग सदोम और मिस्र में रहने वाले लोगों के समान बहुत बुरे हैं।
\v 9 कई जातियाँ, गोत्र, भाषाओँ और कुलों के लोग साढ़े तीन दिनों तक उनके शवों को देखेंगे, लेकिन वे किसी को भी उनके शवों को दफनाने की अनुमति नहीं देंगे।
\s5
\v 10 जब पृथ्वी पर रहने वाले लोग देखेंगे कि गवाह मर चुके हैं, तो वे आनन्दित होंगे और उत्सव मनाएँगे। वे एक दूसरे को उपहार भेजेंगे, क्योंकि इन दोनों भविष्यद्वक्ताओं ने उन महामारियों को भेजा था जिनके कारण वे पीड़ित हुए थे।
\v 11 लेकिन साढ़े तीन दिनों के बाद, परमेश्वर उन्हें फिर से साँस देंगे ताकि वे जीवित रहें। वे खड़े होंगे, और जो लोग उन्हें देखेंगे, वे डर जाएँगे।
\v 12 वे दो गवाह स्वर्ग से यह कहते हुए एक ऊँची आवाज सुनेंगे "यहाँ आओ!" तब वे बादल में घिरे हुए स्वर्ग जाएँगे। उनके बैरी उन्हें ऊपर जाते हुए देखेंगे।
\s5
\v 13 उसी समय एक बड़ा भूकंप होगा, जिसके कारण शहर में इमारतों का दसवाँ हिस्सा गिर जाएगा, और सात हज़ार लोग मर जाएँगे। बाकी के लोग डर जाएँगे और स्वीकार करेंगे कि स्वर्ग में राज्य करने वाले परमेश्वर अद्भुत हैं।
\p
\v 14 यह दूसरी डरावनी घटना होगी। ध्यान रखें कि इसके बाद तीसरी डरावनी घटना शीघ्र होने वाली है।
\p
\s5
\v 15 फिर सातवें स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी। स्वर्ग में एक ऊँचा शब्द सुनाई दिया, "हमारे प्रभु परमेश्वर और मसीह जिन्हें परमेश्वर ने नियुक्त किया है, अब संसार के सब लोगों पर शासन कर सकते हैं, और वे उन लोगों पर सदा के लिए शासन करेंगे!"
\s5
\v 16 परमेश्वर की उपस्थिति में अपने सिंहासन पर बैठे चौबीस प्राचीनों ने अपने चेहरे भूमि की ओर झुकाकर उनकी आराधना की।
\v 17 उन्होंने कहा:
\q1 "हे प्रभु परमेश्वर, आप ही हैं जो सब पर राज्य करते हैं!
\q1 आप ही हैं जो जीवित हैं!
\q1 आप ही हैं जो सदा जीवित रहते हैं!
\q1 हम आपका धन्यवाद करते हैं कि आप ने हर एक को अपनी शक्ति से पराजित किया,
\q1 जिन्होंने आपके विरुद्ध बलवा किया।
\q1 और अब आप संसार के सब लोगों पर राज्य करते हैं।
\s5
\v 18 सब जातियों के अविश्वासी लोग क्रोधित होकर आप पर गरजे थे,
\q1 और परिणाम यह हुआ की आप क्रोधित हो गये।
\q1 आप ने निर्णय लिया है कि यही सही समय है जब आप उन सब का न्याय करें जो मर चुके हैं।
\q1 वह समय आ गया है कि आप अपने सब सेवकों को, भविष्यद्वक्ताओं और अन्य विश्वासियों को प्रतिफल दें।
\q1 और जो लोग आपको सम्मान देते हैं,
\q1 और इसमें जो छोटे और महान सब हैं।
\q1 आपके लिए समय आ गया है कि पृथ्वी को नष्ट करनेवाले सब लोगों को आप नष्ट कर दें।
\p
\s5
\v 19 तब परमेश्वर ने स्वर्ग में अपने आराधनालय को खोल दिया, और मैंने उसमें पवित्र संदूक को देखा, बिजली चमक रही थी; गर्जन और गड़गड़ाहट हो रही थी; पृथ्वी हिल गई, और आकाश से बड़े बड़े ओले गिरे।
\s5
\c 12
\p
\v 1 तब आकाश में एक बहुत महत्वपूर्ण दृश्य दिखाई दिया। वह एक स्त्री थी, जिसका वस्त्र सूरज था। चंद्रमा उसके पैरों के नीचे था। उसके सिर पर विजय की माला थी जो बारह सितारों से बनी थी।
\v 2 वह एक बालक को जन्म देने वाली थी, और वह पीड़ा के कारण चिल्लाती थी।
\s5
\v 3 आकाश में एक विचित्र दृश्य दिखाई दिया। वह एक विशाल लाल अजगर था। उसके सात सिर और दस सींग थे। उसके प्रत्येक सिर पर एक राजकीय मुकुट था।
\v 4 अजगर की पूँछ ने आकाश से एक तिहाई सितारों को खिंचकर उन्हें पृथ्वी पर गिरा दिया। अजगर उस स्त्री के सामने खड़ा हो गया कि वह जैसे ही बालक को जन्म दे, वह उसे खा जाए।
\s5
\v 5 तब उसने एक पुत्र को जन्म दिया जिसे पूरी सामर्थ के साथ सभी अधिकारियों के समूहों पर शासन करने को नियुक्त किया गया था जैसे कि वह लोहे की छड़ी का उपयोग कर रहा हो। परमेश्वर ने उसके बच्चे को झपटकर अपने सिंहासन पर ले लिया।
\v 6 लेकिन वह स्त्री जंगल में भाग गई। वहाँ उसके पास एक स्थान है जिसे परमेश्वर ने उसके लिए तैयार किया है, ताकि वह 1,260 दिनों तक उसकी देखभाल कर सके।
\p
\s5
\v 7 तब स्वर्ग में एक युद्ध हुआ। मीकाएल और उसके स्वर्गदूत जिनको उन्होंने आदेश दिया था कि वे अजगर के विरुद्ध लड़ें। अजगर और उसके स्वर्गदूतों ने मीकाएल और उसके स्वर्गदूतों के विरुद्ध युद्ध किया।
\v 8 लेकिन अजगर युद्ध नहीं जीत पाया; और न ही परमेश्वर ने अजगर और उसके स्वर्गदूतों को स्वर्ग में रहने की अनुमति दी थी।
\v 9 परमेश्वर ने उस विशाल अजगर को स्वर्ग से बहार फेंक दिया। वह अजगर प्राचीन सर्प है, जिसका नाम दुष्ट-आत्मा और शैतान है। यह वही है जो पूरी पृथ्वी पर लोगों को धोखा देता है। उसके सारे स्वर्गदूतों के साथ वह पृथ्वी पर फेंक दिया गया था।
\s5
\v 10 तब मैंने सुना कि स्वर्ग में कोई जोर से चिल्लाया,
\q1 "अब हमारे परमेश्वर ने अपने लोगों को अपनी शक्ति से बचाया है, और वह सब लोगों पर राज्य करते हैं!
\q1 अब मसीह ने शासन करना आरंभ कर दिया है!
\q1 क्योंकि परमेश्वर ने हमारे विश्वासी भाइयों के आरोपियों को स्वर्ग से बाहर निकाल दिया है।
\q1 यह वही था जो दिन-रात परमेश्वर के सामने खड़ा रहता था, और उसे बताता था कि उन्होंने क्या क्या गलत किया था।
\q1
\s5
\v 11 हमारे साथी विश्वासियों ने उस पर विजय पाई है, क्योंकि मेमने ने उनके लिए अपना लहू बहाया और उनके लिए मारे गये।
\q1 और क्योंकि उन्होंने अन्य लोगों से यीशु के विषय में सच बोला था।
\q1 उन्होंने जीवित रहने की खोज नहीं की थी,
\q1 वे तो यीशु के विषय में सत्य की चर्चा करने में मृत्यु से भी नहीं डरे थे।
\q1
\v 12 इसलिए स्वर्ग में हर किसी को आनन्दित होना चाहिए।
\q1 परन्तु पृथ्वी पर और समुंद्र में रहने वालों के साथ भयानक घटनाएँ घटेंगी, क्योंकि शैतान तुम्हारे पास नीचे उतर आया है।
\q1 वह बहुत गुस्से में है क्योंकि वह जानता है कि परमेश्वर से दण्ड पाने से उसके पास बहुत कम समय है।"
\p
\s5
\v 13 जब अजगर को समझ में आया कि उसे पृथ्वी पर फेंक दिया गया है तो उसने उस स्त्री का पीछा किया, जिसने एक पुत्र को जन्म दिया था।
\v 14 परन्तु परमेश्वर ने स्त्री को बड़े उकाब के समान दो पंख दिए ताकि वह उड़ कर जंगल में उस जगह चली जाए जो परमेश्वर ने उसके लिए तैयार की है। जहाँ परमेश्वर ने साढ़े तीन वर्ष तक उसकी देखभाल की! वह सर्प जो अजगर है, उस स्त्री के पास नहीं पहुँच सकता था।
\s5
\v 15 फिर सर्प ने स्त्री को पानी में बहाने के लिए अपने मुँह से स्त्री की ओर नदी के समान पानी बहाया।
\v 16 परन्तु भूमि ने खुलकर अजगर के मुँह से निकले पानी को पी लिया।
\v 17 तब अजगर स्त्री से बहुत क्रोधित हो गया, इसलिये वह स्त्री की सन्तानों के विरुद्ध युद्ध करने निकला। ये वे लोग हैं जो परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करते हैं और यीशु के विषय में सच बोलते हैं।
\v 18 तब अजगर समुद्र के किनारे पर खड़ा हो गया।
\s5
\c 13
\p
\v 1 फिर मैंने एक पशु को समुद्र से बाहर आते देखा। उसके दस सींग और सात सिर थे। उसके प्रत्येक सींग पर एक राजकीय मुकुट था। उसके प्रत्येक सिर पर एक ऐसा नाम था, जो परमेश्वर का अपमान करता था।
\v 2 यह पशु एक चीते के समान था। लेकिन उसके पाँव एक भालू के समान थे, और उसका मुँह सिंह के मुँह के समान था। अजगर ने उस पशु को बहुत शक्तिशाली बनाया। उसने उसे लोगों पर शासन करने के लिए राजा का अधिकार दिया।
\s5
\v 3 उस पशु के सिरों में से एक ऐसा सिर था जिस पर एक घाव था और ऐसा प्रतीत होता था की वह मर जायेगा। लेकिन उसका घाव ठीक हो गया था। इसलिए पृथ्वी के सब लोग उस पशु से आश्चर्यचकित हुए और उसका अनुसरण किया।
\v 4 उन्होंने अजगर की भी उपासना की क्योंकि उसने पशु को उन पर शासन करने का अधिकार दिया था। उन्होंने उस पशु की उपासना की और कहा, "कोई भी इस पशु के समान शक्तिशाली नहीं है, कौन इसके विरुद्ध लड़ सकता है?"
\s5
\v 5 परमेश्वर ने उस पशु को घमंड से बोलने और उसका अपमान करने की अनुमति दी। परमेश्वर ने उसे लोगों पर भी बयालीस महीनों तक शासन करने की अनुमति दी।
\v 6 जब वह पशु बोला तो उसने परमेश्वर का, उसके नाम का, उसके रहने के स्थान का और उन सब का जो स्वर्ग में रहते हैं अपमान किया।
\s5
\v 7 परमेश्वर ने उस पशु को अपने लोगों से लड़ने और उन्हें जीतने की अनुमति भी दी। उसके पास हर एक गोत्र पर, प्रत्येक जाती पर, प्रत्येक भाषा बोलने वालों, और कुलों पर राज्य करने का अधिकार था।
\v 8 पृथ्वी पर रहने वाले सब लोग इसकी उपासना करेंगे। जो लोग इसकी उपासना करते हैं वे वही हैं जिनके नाम जीवन की पुस्तक में नहीं लिखे हैं। यह वह पुस्तक थी जो संसार की रचना से पहले लिखी गई थी, और यह उस मेमने से सम्बन्धित है जिसे मार दिया गया था।
\s5
\v 9 जो लोग समझना चाहते हैं, उन्हें परमेश्वर के इस संदेश को ध्यान से सुनना चाहिए।
\v 10 यदि परमेश्वर ने निर्णय किया है कि कुछ लोग उनके दुश्मनों द्वारा बन्दी बना लिए जाएँ, तो उन्हें बन्दी बना लिया जाएगा। यदि परमेश्वर ने निर्णय लिया है कि कुछ लोग युद्ध में मरें, तो वे युद्ध में मरेंगे। इसलिए परमेश्वर के लोगों को दुःख सहन करना चाहिए और उसके प्रति विश्वासयोग्य रहना चाहिए।
\p
\s5
\v 11 फिर मैंने देखा कि एक और पशु पृथ्वी से ऊपर आ गया। उसके सिर पर भेड़ के सींग के समान दो छोटे सींग थे। वह भी अजगर के समान क्रूरता से बोलता था।
\v 12 वह लोगों पर अपनी पूरी शक्ति से राज्य करता था और उन्हें विवश करता था की पहले पशु की उपासना करें, अर्थात् उस पशु की जो लगभग मर गया था, परन्तु उसका घाव ठीक हो गया था।
\s5
\v 13 दूसरे पशु ने भी आश्चर्यजनक चमत्कार किए थे, यहाँ तक कि लोगों ने आकाश से पृथ्वी पर आग गिरते हुए देखी।
\v 14 उसने ये चमत्कार पहले पशु की ओर से किए। ऐसा करके, उसने पृथ्वी के लोगों को धोखा दिया, ताकि वे सोचें कि उनको पहले पशु की उपासना करनी चाहिए। लेकिन यह केवल इसलिए हुआ क्योंकि परमेश्वर ने ऐसा होने की अनुमति दी थी। इस दूसरे पशु ने पृथ्वी पर रहने वाले लोगों से कहा कि उस पहले पशु की मूर्ति बनाएँ जिसे तलवार से मार दिया था परन्तु अब जीवित है।
\s5
\v 15 परमेश्वर ने दूसरे पशु को उस मूर्ति में जीवन की साँस डालने की अनुमति दी, ताकि मूर्ति बोल सके। और पशु ने आज्ञा दी कि जो इस मूर्ति की उपासना करने से मना करते हैं, उनको मार डाला जाए।
\v 16 दूसरा पशु यह भी चाहता था कि लोगों को पहले पशु का नाम अपने दाहिने हाथ पर या माथे पर लिखवाना आवश्यक है, चाहे वे महत्वपूर्ण व्यक्ति हो या महत्वहीन व्यक्ति, अमीर हो या गरीब, स्वतंत्र हो या दास।
\v 17 दूसरा पशु यह चाहता था कि जिनके हाथों या माथों पर पशु के नाम का चिन्ह अर्थात उसका नाम या उसके नाम की संख्या नहीं है, वे कुछ भी खरीद न सकें और न कुछ बेच सकें।
\s5
\v 18 तुमको समझदारी से चिन्ह के अर्थ को समझना होगा। कोई भी व्यक्ति जो बुद्धिमानी से सोचता है, उसे यह समझना चाहिए कि वह संख्या मनुष्य जाति को दर्शाती है। यह 666 है।
\s5
\c 14
\p
\v 1 लेकिन फिर मैंने मेमने को यरूशलेम में सिय्योन पर्वत पर खड़े देखा। उसके साथ 1,44,000 लोग थे। उसका नाम और उसके पिता का नाम उनके माथे पर लिखा हुआ था।
\v 2 मैंने स्वर्ग से एक आवाज सुनी जो एक बड़े झरने या भारी गर्जन के समान तीव्र थी। यह ऐसी सुनाई दे रही थी जैसे कई लोग वीणा बजा रहे हों।
\s5
\v 3 जब वे 1,44,000 लोग सिंहासन के सामने, चार जीवित प्राणियों के सामने, और प्राचीनों के सामने, खड़े थे, वे एक नया गीत गा रहे थे। केवल वे 1,44,000 लोग ही उस गीत को सीख सकते थे, वे लोग जिन्हें मेमने ने पृथ्वी के लोगों में से छुड़ाया था। और कोई भी उस गीत को नहीं सीख सकता था!
\v 4 यह वे 1,44,000 लोग ही हैं जिन्होंने स्त्रियों के साथ स्वयं को भ्रष्ट नहीं किया; उन्होंने कभी यौन सम्बन्ध नहीं रखा था। यह वे लोग हैं जो मेमने का अनुसरण करते हैं, जहाँ कहीं वह जाते हैं। यह वे हैं, जिन्हें मेमने ने पृथ्वी के लोगों में से परमेश्वर के लिए छुड़ाया है; यह वे हैं, जिन्हें मेमने ने पहले परमेश्वर के लिए और फिर स्वयं के लिए अर्पित किया है।
\v 5 इन लोगों ने कभी झूठ नहीं बोला और न ही कभी अनैतिक कार्य किये।
\p
\s5
\v 6 फिर मैंने एक और स्वर्गदूत को आकाश और स्वर्ग के बीच उड़ते देखा। वह परमेश्वर के अनन्त सुसमाचार को पृथ्वी पर ला रहा था ताकि वह पृथ्वी पर रहने वाले लोगों पर उसका प्रचार करे। वह इसे हर गोत्र के, हर जाति के, हर भाषा के बोलने वालों के, और लोगों के समूहों के लिए प्रचार करेगा।
\v 7 उसने ऊँचे शब्द से कहा, परमेश्वर का सम्मान करो और उनकी स्तुति करो, क्योंकि अब उनके लिए हर एक का न्याय करने का समय है! उनकी आराधना करो, क्योंकि वही है जिन्होंने स्वर्ग, पृथ्वी, समुद्र और पानी के सोतों को बनाया है।"
\s5
\v 8 एक और स्वर्गदूत ने उसके पीछे आते हुए कहा, "बेबीलोन का बहुत बुरा शहर अब पूरी तरह से नष्ट हो गया है। बेबीलोन ने सब जातियों को अनैतिक यौनाचार के आवेश में अपना साथी बनाने के लिए विवश किया था। बेबीलोन ऐसे व्यक्ति के समान है जो किसी को पीने के लिए बहुत अधिक दाखरस देता है!"
\s5
\v 9 एक और स्वर्गदूत, अर्थात तीसरा स्वर्गदूत, ऊँचे शब्द में कहते हुए आया, "यदि लोग पशु और उसकी मूर्ति की उपासना करते हैं या उनके चिन्ह अपने माथों पर या अपने हाथों पर लगाते हैं,
\v 10 तो परमेश्वर का क्रोध उन पर भड़केगा और उनका क्रोध दाखरस के समान तेज होगा, जो वह उन्हें पिलाएँगे। वह अपने पवित्र स्वर्गदूतों की उपस्थिति में और मेमने की उपस्थिति में जलती हुई गंधक में उन्हें पीड़ा देंगे।
\s5
\v 11 आग से उठने वाला धुआँ सदा के लिए उन्हें पीड़ित करेगा। परमेश्वर दिन और रात उन्हें निरन्तर, पीड़ा देते रहेंगे। यह उन लोगों के साथ होगा जो पशु की और उसकी मूर्ति की उपासना करते हैं या उसका नाम अपने ऊपर लिखवाते हैं।"
\v 12 इसलिए परमेश्वर के लोग, जो उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं और जो यीशु पर भरोसा रखते हैं, उन्हें आवश्यक है कि विश्वासपूर्वक आज्ञा का पालन करें और उन पर भरोसा करते रहें।
\s5
\v 13 तब मैंने स्वर्ग से एक आवाज सुनी, "यह लिख: अब से वे लोग कितने धन्य हैं जो प्रभु में मरते हैं। परमेश्वर के आत्मा कहते हैं, "हाँ, मरने के बाद, उन्हें पीड़ा सहन नहीं करनी पड़ेगी, बल्कि वे आराम करेंगे, और हर कोई उनके अच्छे कामों को जानेगा जो उन्होंने किए हैं।"
\p
\s5
\v 14 फिर मैंने एक और आश्चर्यजनक बात देखी। यह एक सफेद बादल था, और बादल पर कोई बैठा हुआ था जो मनुष्य के पुत्र के समान दिखता था। वह अपने सिर पर एक सुनहरा मुकुट पहने था। उसके हाथ में एक तेज हंसुआ था।
\v 15 फिर एक और स्वर्गदूत आराधनालय से बाहर आया। उसने ऊँचे शब्द से बादल पर बैठे हुए व्यक्ति से कहा, "समय आ गया है कि पृथ्वी पर अनाज काटा जाए, अपने हंसुए से अनाज काटना होगा, क्योंकि अनाज पक चुका है।"
\v 16 तब बादल पर बैठे हुए व्यक्ति ने अपना हंसुआ पृथ्वी पर फेंक दिया और उसने पृथ्वी पर फसल काटी।
\s5
\v 17 स्वर्ग के आराधनालय से एक और स्वर्गदूत बाहर आया। उसके पास भी एक तेज हंसुआ था।
\v 18 वेदी से भी एक और स्वर्गदूत आया। यह वही है जो वेदी की आग का ख्याल रखता है। उसने उस स्वर्गदूत को जिसके पास हंसुआ था एक ऊँची आवाज में कहा, "हंसुए से पृथ्वी पर दाख की बारियों में से अंगूर के गुच्छों को काटकर एकत्र कर, क्योंकि अंगूर पक चुके हैं!"
\s5
\v 19 इसलिए स्वर्गदूत ने पृथ्वी पर अपना हंसुआ चलाया। फिर उसने अंगूरों को विशाल स्थान में फेंक दिया, जहाँ परमेश्वर क्रोध में दण्डित करेंगे।
\v 20 परमेश्वर ने अंगूरों को शहर के बाहर रसकुंड में कुचल दिया, और लहू निकला! लहू एक धारा में इतना बहा कि वह घोड़ों की लगाम तक पहुँच गया और तीन सौ किलोमीटर तक पहुँच गया।
\s5
\c 15
\p
\v 1 आकाश में एक और बहुत ही अद्भुत दृश्य दिखाई दिया। मैंने सात स्वर्गदूतों को देखा, जिनका यह काम था कि विद्रोही लोगों को सात प्रकार के दण्ड देने का अब अन्त है। परमेश्वर इस तरह से लोगों को दण्डित करेंगे, क्योंकि इससे उनके क्रोध की अधिकता प्रकट होगी।
\p
\s5
\v 2 जो मैंने देखा वह एक महासागर के सामान दिखता था, जैसे वह आग में मिलाकर काँच से बनाया गया है। मैंने उन लोगों को भी देखा जो पशु और उसकी मूर्ति की उपासना न करके उस पर विजयी हुए थे और जिन्होंने उसके दास को पशु कि संख्या अपने ऊपर लिखने नहीं दी थी। वे उस महासागर के पास खड़े थे (जो काँच के समान साफ था)। उनके हाथ में वाणी थीं, जो परमेश्वर ने उन्हें दी थीं।
\s5
\v 3 वे एक गीत गा रहे थे जैसा परमेश्वर के दास मूसा ने बहुत पहले गाया था। उन्होंने मेमने की स्तुति करने के लिए इस प्रकार गाया:-
\q1 "प्रभु परमेश्वर, जो हर एक पर शासन करते हैं,
\q1 जो भी आप करते हो वह शक्तिशाली और अद्भुत है!
\q1 आप सदा धार्मिकता और सच्चाई से कार्य करते हैं।
\q1 आप सब जातियों पर सदा के लिए राजा हैं!
\q1
\v 4 हे परमेश्वर, सब लोग आपका भय माने और आपका सम्मान करे, क्योंकि केवल आप ही पवित्र हैं।
\q1 सब लोग आएँगे और आप के सामने झुकेंगे
\q1 क्योंकि आप ने दिखाया है कि आप ने सबका न्याय उचित किया है।"
\p
\s5
\v 5 इसके बाद मैंने देखा कि स्वर्ग में आराधनालय खुला था, जहाँ पवित्र तम्बू था।
\v 6 सात स्वर्गदूत जिनका यह काम था कि विद्रोही लोगों को सात अलग-अलग दण्ड दें वे परम पवित्र स्थान से बाहर आए। स्वर्गदूत साफ, सफेद सनी के कपड़े पहने हुए थे; वे अपनी छाती पर सोने का पटुका पहने हुए थे।
\s5
\v 7 चारों प्राणियों में से एक ने सात स्वर्गदूतों में से प्रत्येक को दाखरस से भरा सोने का कटोरा दिया। दाखरस इस बात का प्रतीक है कि परमेश्वर जो सदा के लिए जीवित हैं, उन लोगों पर बहुत क्रोधित थे जिन्होंने विद्रोह किया और उन्हें दण्ड देने वाले थे।
\v 8 आराधनालय उस धुएँ से भर गया था जो महिमा और सर्व-शक्तिमान परमेश्वर की उपस्थिति का प्रतीक था। जब तक सात स्वर्गदूतों ने पृथ्वी के लोगों को सात प्रकार के दण्ड नहीं दिये, तब तक कोई भी आराधनालय में प्रवेश नहीं कर पाया था।
\s5
\c 16
\p
\v 1 दर्शन में मैंने किसी को आराधनालय में ऊँची आवाज से उस स्वर्गदूत से बात करते सुना, जिसके पास सात कटोरे थे। उसने कहा, "यहाँ से जाओ और सात कटोरों के दाखरस को पृथ्वी पर उंडेल दो। इससे लोगों को दुःख पहुँचेगा, क्योंकि परमेश्वर उनसे क्रोधित हैं।"
\s5
\v 2 इसलिए पहले स्वर्गदूत ने पृथ्वी पर उसके कटोरे में जो था उसे उंडेल दिया। उसके कारण वे लोग, जिन्होंने पशु के दासों को अपने ऊपर उसका नाम लिखने दिया था और उसकी मूर्ति की पूजा की थी, उन पर भयानक और पीड़ादायक फोड़े निकलेंगे।
\s5
\v 3 तब दूसरे स्वर्गदूत ने समुद्र पर वह दाखरस उंडेल दिया जो उसके कटोरे में था। जब उसने अपना कटोरा उंडेल दिया, तो पानी बदलकर लहू हो गया, लेकिन लहू में जीवन नहीं था। यह एक मरे हुए व्यक्ति के लहू के समान था, और महासागर में रहने वाले प्राणियों की मृत्यु हो गई।
\s5
\v 4 फिर तीसरे स्वर्गदूत ने नदियों और पानी के झरनों पर वह उंडेल दिया जो उसके कटोरे में था। जब उसने अपना कटोरा उंडेल दिया, तो नदियों और झरनों का पानी लहू में बदल गया।
\v 5 मैंने उस स्वर्गदूत को सुना जो पानी के ऊपर शक्ति रखता है, वह परमेश्वर से कहता है, "हे परमेश्वर, आप जीवित हैं और आप सदैव जीवित रहते हैं। आप ही एकमात्र पवित्र हैं। आप लोगों के निष्पक्ष न्यायाधीश हैं।
\v 6 जो लोग आप के विरुद्ध विद्रोह करते हैं, वे आप के पवित्र लोगों की और भविष्यद्वक्ताओं की हत्या करते हैं। इसलिए आप उन्हें पीने के लिए लहू देकर उन्हें दण्ड दे रहे हैं। वे इसी के योग्य हैं।"
\v 7 तब मैंने वेदी पर किसी को यह कहते सुना "हाँ, हे प्रभु परमेश्वर, आप जो हर एक पर राज्य करते हैं, आप लोगों को ठीक और न्यायपूर्ण रीति से दण्ड देते हैं।"
\s5
\v 8 तब चौथे स्वर्गदूत ने अपने कटोरे में जो था, सूरज पर उंडेल दिया। उससे सूरज इतना गर्म हो गया कि वह लोगों को झुलसा दे।
\v 9 लोग गंभीर रूप से जल गए, और उन्होंने परमेश्वर के विषय में बुरा कहा क्योंकि उनके पास लोगों को पीड़ित करने की ऐसी शक्ति थी। लेकिन उन्होंने अभी भी अपने बुरे व्यवहार को छोड़ने से मनाकर दिया और परमेश्वर की स्तुति करने से मना कर दिया।
\p
\s5
\v 10 जब पाँचवें स्वर्गदूत ने उस पशु के सिंहासन पर जो उसके कटोरे में था, उंडेल दिया, तो वहाँ अंधेरा हो गया जहाँ पशु ने शासन किया था। इसलिए पशु और जिन लोगों पर पशु ने शासन किया, वे अपनी जीभ चबा रहे थे क्योंकि उनकी पीड़ा सहने से बाहर थी।
\v 11 उन्होंने परमेश्वर का अपमान किया, जो स्वर्ग में शासन करते हैं क्योंकि उनके घाव बहुत पीड़ा दे रहे थे। परन्तु उन्होंने अपने उन बुरे कामों को छोड़ने से मना कर दिया।
\s5
\v 12 तब छठे स्वर्गदूत ने परात नदी पर जो उसके कटोरे में था, उंडेल दिया। नदी का पानी सूख गया ताकि पूर्वी देशों के शासक अपनी सेनाओं के साथ इसे पार कर सकें।
\v 13 तब मैंने दुष्ट-आत्माओं को देखा जो कि मेंढकों के समान दिखती थीं। एक अजगर के मुख से, एक पशु के मुँह से और एक झूठे भविष्यद्वक्ता के मुँह से निकली।
\v 14 वे दुष्ट-आत्माएँ थी जो चमत्कार करने में सक्षम थे। वे अपनी सेनाओं को एकत्र करने के लिए पूरे संसार के शासकों के पास चले गए। ऐसा इसलिए हुआ कि वे उस महत्वपूर्ण दिन युद्ध करेंगे जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर अपने दुश्मनों को दण्ड देते हैं।
\s5
\v 15 (मैंने प्रभु यीशु को यह कहते सुना, "तुमको मेरी बात ध्यान से सुनना चाहिए: मैं चोर के समान अकस्मात आ रहा हूँ। इसलिए मैं उन लोगों से प्रसन्न रहूँगा जो सतर्क रहते हैं और उचित जीवन जी रहे हैं ताकि वे लज्जित न हों। वे ऐसे व्यक्ति के समान होंगे जो अपने कपड़े पहने रहता है ताकि वह अन्य लोगों के सामने लज्जित न हो।")
\v 16 दुष्ट-आत्माएँ शासकों को इब्रानी भाषा के हर-मगिदोन नामक स्थान में एकत्र करेंगी।
\p
\s5
\v 17 तब सातवें स्वर्गदूत ने अपने कटोरे को हवा में उंडेल दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि किसी ने परम पवित्र स्थान में सिंहासन से ऊँची आवाज से कहा, "परमेश्वर के विद्रोही लोगों को दण्ड देने का समय समाप्त हो गया है।"
\v 18 जब स्वर्गदूत ने अपना कटोरा खाली कर दिया, तब बिजली कड़क रही थी, वहाँ गड़गड़ाहट और गर्जन का शब्द हो रहा था, और पृथ्वी हिल गई थी। जब से लोग पृथ्वी पर रहते हैं, तब से लेकर अब तक पृथ्वी ऐसी उग्रता से कभी नहीं हिली थी।
\v 19 जिसका परिणाम यह हुआ कि वह बड़ा शहर तीन भागों में विभाजित हो गया। परमेश्वर ने अन्य जातियों के शहरों को भी नष्ट कर दिया। परमेश्वर भूले नहीं थे कि बेबीलोन के लोगों ने बहुत पाप किए थे। इसलिए उन्होंने दाखरस का एक प्याला पिला कर उन्हें पीड़ित कर दिया क्योंकि परमेश्वर उनसे क्रोधित थे।
\s5
\v 20 भूकंप के कारण, हर द्वीप गायब हो गया, और पहाड़ भूमि बन गए।
\v 21 बड़े-बड़े ओले जिसका वजन तैंतीस किलोग्राम था, आकाश से लोगों पर गिरे। फिर लोगों ने परमेश्वर की निन्दा की क्योंकि उन्होंने उन्हें ऐसा भयानक दण्ड दिया था, क्योंकि ओले बहुत बड़े थे।
\s5
\c 17
\p
\v 1 सात स्वर्गदूतों में से एक, जिसके पास सात कटोरों में से एक कटोरा था, मेरे पास आया और कहा, "मेरे साथ आ और मैं तुझको दिखाता हूँ कि परमेश्वर उस वेश्या को कैसे दण्ड देंगे, वह स्त्री उस शहर का प्रतिनिधित्व करती है जिसमें पानी की कई नहरें हैं।
\v 2 पृथ्वी के राजाओं ने उसके साथ अनैतिक सम्बंध बनाए और मूर्तिपूजा की थी। और पृथ्वी के लोगों ने भी वैसे ही अनैतिक काम किए। यह सब ऐसा था कि उस स्त्री ने उन्हें दाखरस दिया और वे सब नशे में हो गये।"
\p
\s5
\v 3 तब परमेश्वर के आत्मा ने मुझ पर नियंत्रण किया, और स्वर्गदूत मुझे एक सुनसान जगह पर ले गया। वहाँ मैंने एक स्त्री को देखा जो एक लाल रंग के पशु पर बैठी थी। उस पशु ने अपने ऊपर ऐसे नाम लिखे हुए थे जिनसे परमेश्वर का अपमान होता था। उस पशु के सात सिर और दस सींग थे।
\v 4 स्त्री ने बैंगनी और लाल रंग के कपड़े पहने हुए थे। उसके पास सोने, कीमती पत्थरों और मोती के गहने थे; उसने अपने हाथ में एक सुनहरा प्याला पकड़ा हुआ था। वह प्याला पीने की उन घृणित और गन्दी वस्तुओं से भरा हुआ था जो उसने वह व्यभिचार करते समय की थीं।
\v 5 उसके माथे पर एक नाम था, एक ऐसा नाम जिसका अर्थ गुप्त था। उसका अर्थ है "यह स्त्री बेबीलोन है, जो बहुत बुरा शहर है! वह पृथ्वी पर की सभी वेश्याओं की माँ है। वह उन्हें संसार के सभी गंदे, अनैतिक काम करना सिखाती है।"
\s5
\v 6 मैंने देखा कि वह स्त्री नशे में पड़ी थी क्योंकि उसने परमेश्वर के लोगों का लहू पिया था, जिन्होंने यीशु के विषय में सच्चाई का प्रचार करने के लिए दुःख उठाया था। मैं उसे देखकर आश्चर्यचकित हो गया।
\p
\v 7 उस स्वर्गदूत ने मुझ से कहा, "चकित मत हो, मैं तुझे इस स्त्री और इस पशु के छिपे अर्थ को समझाऊँगा, जिस पर वह सवार है, जिसके सात सिर और दस सींग है।
\s5
\v 8 वह पशु जिसे तुमने देखा था पहले जीवित था। अंत में परमेश्वर उसे नष्ट करेंगे, परन्तु अब वह जीवित नहीं है। वह उस कुंड से ऊपर आने वाला है, जो नीचे तो चला गया, लेकिन इसका अंत नहीं हुआ है। जब वह पशु फिर से प्रकट होगा, तो पृथ्वी के लोग आश्चर्यचकित होंगे। वे ऐसे लोग हैं जिनके नाम सृष्टि के पहले जीवन की पुस्तक में नहीं लिखे गए हैं।
\s5
\v 9 इसे समझने के लिए लोगों को बुद्धिमानी से सोचने की आवश्यक्ता है: जिस पशु पर वह स्त्री बैठी है उसके सात सिर हैं। ये सिर उस शहर की सात पहाड़ियों के प्रतीक हैं, जिसका वह स्त्री प्रतिनिधित्व करती है। वे सात शासकों के प्रतीक भी हैं।
\v 10 उन शासकों में से पाँच की मृत्यु हो गई है। एक अभी भी जीवित है। सातवाँ शासक अभी तक नहीं आया है। जब वह आएगा, तो थोड़े ही समय का होगा।
\s5
\v 11 जो प्राणी पहले था और बाद में वह जीवित नहीं था, वह आठवाँ शासक होगा। वह वास्तव में उन सातों शासकों में से एक है, परन्तु परमेश्वर उसका निश्चय ही नाश कर देंगे।
\s5
\v 12 दस सींग जिन्हें तूने देखा है, वे दस शासकों को दर्शाते हैं जिन्होंने अभी तक शासन नहीं किया है। उन्हें पशु के साथ शासन करने का अधिकार प्राप्त होगा, परन्तु वे केवल थोड़े समय के लिए शासन करेंगे, जैसे कि वह केवल एक घंटे के लिए था।
\v 13 वे सब शासक एक ही काम करने के लिए सहमत होंगे। वे पशु को लोगों पर शासन करने का अपना अधिकार दे देंगे।
\v 14 शासक और पशु मेमने के विरुद्ध युद्ध करेंगे। वह उनको पराजित करेंगे क्योंकि वे प्रभु यीशु हैं जो सब प्रभुओं के प्रभु और राजाओं पर राज करने वाले राजा हैं। जो लोग उनके साथ हैं, उन्हें परमेश्वर ने चुना है और अपने पास बुलाया है, जो भक्ति के साथ उनकी सेवा करते हैं।"
\s5
\v 15 फिर स्वर्गदूत ने मुझसे कहा, "जो पानी तू ने शहर में देखा था, जिस पर वह वैश्या बैठी थी, वह विभिन्न लोगों, और विभिन्न जातियों और विभिन्न भाषाओं का प्रतिक है।
\s5
\v 16 दस सींग जिन्हें तूने देखा था वे शासकों के प्रतिक हैं। वे और पशु वेश्या से घृणा करेंगे। इसलिए जो कुछ शहर में है वह सब कुछ ले जाएँगे, जैसे कि वे इसे नंगा करके छोड़ रहे हैं। वे इसे ऐसे नाश करेंगे जैसे माँस खा रहे हैं, और वे इसे पूरा का पूरा जला देंगे।
\v 17 वे ऐसा इसलिए करेंगे क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें अपनी इच्छा पूरी करने के लिए ऐसा करने का निर्णय लेने पर विवश किया हैं। इसका परिणाम यह होगा कि वे पशु को शासन करने के लिए अपनी शक्ति काम में लेने देंगे जब तक कि वह बात पूरी न हो जाए जो परमेश्वर ने कही है।
\s5
\v 18 जो वेश्या तूने देखी वह उस बहुत बुरे शहर का प्रतिनिधित्व करती है जिसके अगुवे पृथ्वी के राजाओं पर शासन करते हैं।"
\s5
\c 18
\p
\v 1 इसके बाद मैंने एक और स्वर्गदूत को स्वर्ग से नीचे आते देखा जिसके पास एक बड़ा अधिकार था। उसकी तीव्र चमक से पृथ्वी उज्जवल हो गई।
\v 2 उसने ऊँचे शब्द से कहा, "परमेश्वर बहुत बुरे शहर बेबीलोन को पूरी तरह से नष्ट करने वाले हैं। और इसका परिणाम यह होगा कि वहाँ सब दुष्ट-आत्माओं का डेरा होगा और सब अशुद्ध और घृणित पक्षी वहाँ रहेंगे। बेबीलोन एक वेश्या के समान है
\v 3 जिसके साथ सब लोग अनैतिक यौन सम्बंध इस आवेग में बनाते थे, जैसे उन्होंने बहुत मदिरा पिली हो। हाँ, और पृथ्वी के राजाओं ने भी उसके साथ ऐसा ही किया है। संसार के व्यापारी अमीर बन गए क्योंकि वह बहुत अधिक व्यभिचार करना चाहती थी।"
\p
\s5
\v 4 मैंने यीशु को स्वर्ग से बोलते सुना। उन्होंने कहा, "हे मेरे लोगों, बेबीलोन से भागो ताकि तुम उन लोगों के समान पाप न करो। यदि तुम पाप करते हो, तो मैं तुम्हें भी वैसे ही सात प्रकार के दण्ड दूँगा, जैसे मैं उन्हें देने जा रहा हूँ।
\v 5 यह ऐसा है जैसे कि उनके पापों का ढेर स्वर्ग तक पहुँच गया है और परमेश्वर उन्हें स्मरण रखते हैं, इसलिए अब वह उन्हें दण्ड देंगे।"
\p
\v 6 परमेश्वर ने बेबीलोन को दण्ड देने के लिए जिस स्वर्गदूत को चुना, उससे यीशु ने कहा "उस शहर के लोगों को उतनी ही हानि पहुँचाओ, जितनी उन्होंने अन्य लोगों को हानि पहुँचाई है। जितना उन लोगों ने अन्य लोगों को दुःख दिया है, उसका दो गुना दुःख उन्हें दो।
\s5
\v 7 एक स्त्री की तरह, बेबीलोन ने जिस सीमा तक स्वयं को सम्मानित किया और उसने जो करना चाहा वही किया, उसी सीमा तक उसको सताओ और दुःख दो। ऐसा ही करो क्योंकि उसने अपने मन में सोचा था, 'मैं एक रानी के समान शासन करती हूँ! मैं एक विधवा नहीं हूँ, और मैं कभी भी विधवाओं के समान शोक नहीं करूँगी!'
\v 8 इसलिए एक ही दिन में, भयानक विपत्तियाँ उसके ऊपर आएँगी। उस शहर के लोग मरेंगे, अन्य लोग उनके लिए शोक करेंगे, लोग भूखे होंगे क्योंकि कुछ भी खाना नहीं होगा, और शहर जल जाएगा। प्रभु परमेश्वर उसे दण्ड देने में समर्थ हैं क्योंकि वे सामर्थी हैं।"
\p
\s5
\v 9 पृथ्वी के राजा जिन्होंने उसके साथ अनैतिक काम किए हैं और साथ वही किया जो वे करना चाहते थे, जब वे आग का धुआँ देखेंगे जो वहाँ जलेगी, तब वे रोएँगे और उसके लिए शोक करेंगे।
\v 10 वे बेबीलोन से दूर खड़े होंगे क्योंकि उन्हें भय होगा कि उन्हें भी उसके कष्ट उठाना न पड़े। वे कहेंगे, "इस दृढ शहर बेबीलोन के लिए यह कैसी भयानक बात है, और परमेश्वर उसे अकस्मात ही ऐसी फुर्ती से दण्ड दे रहे हैं!"
\s5
\v 11 पृथ्वी के व्यापारी रोएँगे और उसके लिए शोक करेंगे, क्योंकि उसमें से कोई भी फिर उनसे वे वस्तुएँ नहीं खरीद पाएँगे जो वे बेचते थे।
\v 12-13 वे सोने, चाँदी, कीमती पत्थरों और मोती से बने गहने बेचते हैं। वे सनी और रेशम से बने महंगे कपड़े बेचते हैं, ऐसे महंगे कपड़े जिनको बैंगनी और गहरे लाल रंग में रंगा गया है। वे सभी तरह की दुर्लभ लकड़ी, हाथीदाँत, महंगी लकड़ी, काँसा, लोहा और संगमरमर से बने सभी प्रकार के सामान बेचते हैं। वे दालचीनी, मसाले, इत्र, लोबान, दाखरस, जैतून का तेल, अच्छे आटे और अनाज बेचते हैं। वे बछड़े, भेड़, घोड़े और रथ बेचते हैं। वे मनुष्यों को भी दास के रूप में बेचते हैं|
\s5
\v 14 जो अच्छी वस्तुएँ तुम चाहते हो वे सब समाप्त हो चुकी हैं! तुम्हारी ऐश्वर्य और वैभव की सब संपत्ति लोप हो गई हैं! वे सदा के लिए समाप्त हो गई हैं!
\s5
\v 15 जिन व्यापारियों ने इन वस्तुओं को बेचा और अमीर बन गए थे, वे बहुत दूर खड़े होंगे क्योंकि वे डरेंगे कि जैसे शहर पीड़ित हुआ वैसे ही वे भी पीड़ित होंगे। वे रोएँगे और शोक करेंगे,
\v 16 वे कहेंगे, "उस महान शहर में भयानक बातें हुई हैं! यह शहर एक स्त्री के समान था, जो अच्छे और महंगे कपड़े, रंगीन बैंगनी और लाल रंग के कपड़े पहनती थी, और सोने, कीमती पत्थरों और मोतियों से सजी होती थी|
\v 17 परन्तु परमेश्वर ने अकस्मात ही बिना देर किये इन महंगी वस्तुओं को नष्ट कर दिया है।"
\p हर जहाज का कप्तान, जहाज से यात्रा करने वाले सब लोग, सब नाविक, और अन्य सब जो समुद्र पर यात्रा करके अपने जीवन के लिए कमाई करते हैं, वे उस शहर से बहुत दूर खड़े होंगे।"
\s5
\v 18 जब वे उस आग का धुआँ देखते हैं जो वहाँ जल रही है, तो वे यह कहते हुए चिल्लाएँगे, "उस महान शहर के समान अन्य कोई शहर नहीं था!"
\v 19 वे यह दिखाने के लिए अपने सिर पर धूल फेंकेंगे कि वे उदास हैं, और वे चिल्लाएँगे, रोएँगे, और शोक करेंगे। वे कहेंगे, "बेबीलोन में भयानक घटनाएँ हुई हैं। इस शहर ने बहुत से लोगों को अमीर बनाया, जिन लोगों के पास जहाज थे और उन्होंने अपनी महंगी वस्तुएँ बेचने के लिए समुद्र पर यात्रा की थी। परमेश्वर ने अकस्मात ही उस शहर को नष्ट कर दिया है!"
\p
\v 20 फिर स्वर्ग से कोई व्यक्ति कहता है, "तुम जो स्वर्ग में रहते हो, जो बेबीलोन के साथ हुआ है, उस पर आनन्द करो! तुम जो परमेश्वर के लोग हो, जिनमें प्रेरित और भविष्यद्वक्ता भी हैं, आनन्द मनाओ। तुमको आनन्दित होना चाहिए; परमेश्वर ने लोगों को उचित दण्ड दिया है क्योंकि उन लोगों ने तुम लोगों के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया था!"
\p
\s5
\v 21 फिर एक शक्तिशाली स्वर्गदूत ने अनाज पीसने के पत्थर के बराबर एक चट्टान उठाई, और उसने इसे समुद्र में फेंक दिया। फिर उसने कहा, "तुम लोग जो बेबीलोन के बड़े शहर में रहते हो, परमेश्वर तुम्हारे शहर को फेंक देंगे, और वह वैसे ही गायब हो जाएगा, जैसे यह पत्थर समुद्र में गायब हो गया! तुम्हारा शहर सदा के लिए समाप्त हो जाएगा!
\v 22 तुम्हारे शहर में, फिर कभी ऐसा कोई भी नहीं होगा जो बाजा बजाए, जो गीत गाए,, बांसुरी बजाए, या तुरही फूँके। अब वहाँ वस्तुएँ बनाने वाले कोई कुशल कारीगर नहीं रहेंगे। चक्कियों में कभी भी लोग अनाज नहीं पीसेंगे।
\s5
\v 23 वहाँ फिर दीपक जलता हुआ नहीं दिखेगा। वहाँ दुल्हे और उसकी दुल्हन के आनन्द का शब्द कभी सुनाई नहीं देगा। परमेश्वर तुम्हारे शहर को नष्ट कर देंगे, क्योंकि तुम्हारे व्यापारी संसार के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। तुम ने जादू-टोना करके सब जातियों को धोखा दिया था।
\v 24 तुम भविष्यद्वक्ताओं और परमेश्वर के लोगों की हत्या के लिए भी उत्तरदायी हो। वास्तव में, तुम पृथ्वी पर की गई हर एक हत्या के दोषी हो!"
\s5
\c 19
\p
\v 1 इन बातों के बाद मैंने स्वर्ग में एक विशाल भीड़ की सी आवाज सुनी। वे कुछ इस तरह चिल्ला रहे थे,
\q1 "हालेलूय्याह! उन्होंने हमें बचा लिया है!
\q1 वह गौरवशाली और शक्तिशाली हैं!
\q1
\v 2 उनकी स्तुति करो क्योंकि वह सच्चाई से और उचित रीति से न्याय करते हैं!
\q1 उन्होंने बहुत बुरे शहर को दण्ड दिया है जो एक वेश्या के समान था क्योंकि उसके लोगों ने पृथ्वी के अन्य लोगों को अपने जैसे अनैतिक कार्य करने के लिए प्रेरित किया था।
\q1 उनकी स्तुति करो क्योंकि उन्होंने अपने सेवकों की हत्या के लिए उन्हें दण्ड दिया है!"
\m
\s5
\v 3 भीड़ ने दूसरी बार चिल्लाकर कहा,
\q1 " हालेलूय्याह! उस आग का धुआँ जो उस शहर को जला रही है, वह सदा उठता रहेगा!"
\q1
\v 4 उन चौबीसों प्राचीनों और चारों जीवित प्राणियों ने परमेश्वर के सम्मुख स्वयं मुँह के बल गिरकर नमस्कार किया और उनकी आराधना की, जो सिंहासन पर बैठे हैं। उन्होंने कहा:
\q1 "यह सच है! हालेलूय्याह!"
\m
\s5
\v 5 किसी ने सिंहासन से बात की और कहा,
\q "तुम सब जो उसके दास हो, हमारे परमेश्वर की स्तुति करो!
\q1 तुम सब जो उसका सम्मान करते हो, चाहे तुम महत्वपूर्ण हो या नहीं, हर एक जन उसकी स्तुति करे!"
\m
\s5
\v 6 तब मैंने लोगों की एक बड़ी भीड़ जैसी आवाज के समान कुछ सुना, जैसे एक विशाल झरने हो, और तेज तालियों की गड़गड़ाहट हो। वे चिल्ला रहे थे:
\q1 "हालेलूय्याह! हमारे प्रभु परमेश्वर राज्य करते हैं, जो हर एक चीज पर शासन करते हैं!
\q1
\s5
\v 7 हमें आनन्दित होना चाहिए, हमें अत्यन्त प्रसन्न होना चाहिए, और हमें उनका सम्मान करना चाहिए,
\q1 क्योंकि अब यह समय है कि मेमने उस स्त्री से जुड़ जाए जिससे उनका विवाह हो रहा है। उसने स्वयं को तैयार किया है।
\q1
\v 8 परमेश्वर ने उसे चमकदार और साफ-सुथरे सनी के कपड़े पहनने को दिये है।
\p अच्छा, उज्जवल और स्वच्छ सनी परमेश्वर के लोगों के धार्मिक कार्यों को दर्शाता है।
\m
\p
\s5
\v 9 तब स्वर्गदूत ने मुझ से कहा, "यह लिख: वह लोग कितने धन्य हैं जिन्हें परमेश्वर मेमने के विवाह भोज पर आमंत्रित करते हैं जब मेमने अपनी पत्नी से विवाह करते हैं।" उसने मुझसे यह भी कहा: "यह शब्द जो परमेश्वर ने कहे हैं, सत्य हैं!"
\v 10 मैंने तुरंत उसकी आराधना करने के लिए उसके पैरों पर स्वयं को झुकाया। परन्तु उसने मुझसे कहा, "मेरी उपासना मत कर! मैं सिर्फ तेरा साथी सेवक और तेरा साथी विश्वासियों का साथी सेवक हूँ, जो कि यीशु के विषय में सच्चाई को बोलते हैं। परमेश्वर ही हैं जिनकी तुझे आराधना करनी चाहिए क्योंकि वह परमेश्वर के आत्मा हैं जो लोगों को यीशु के विषय में सच बोलने की शक्ति देते हैं!"
\p
\s5
\v 11 तब मैंने आकाश को खुला देखा, और मुझे एक सफेद घोड़ा देख कर आश्चर्य हुआ। यीशु, जो घोड़े पर सवारी कर रहे थे, उन्हें "विश्वासयोग्य और सच्चा" कहा जाता है। वह सभी लोगों का न्याय सच्चाई के अनुसार करते हैं; वह अपने शत्रुओं से न्याय का युद्ध करते हैं।
\v 12 उनकी आँखें आग की लपटों के समान चमकती थीं। उनके सिर पर कई शाही मुकुट थे। उस पर एक नाम लिखा हुआ था, केवल वही उस नाम का अर्थ जानते हैं|
\v 13 वह जो कपड़ा पहने हुए थे उस पर लहू छिड़का हुआ था। उसका नाम भी "परमेश्वर का संदेश" है।
\s5
\v 14 स्वर्ग की सेनाएँ उनके पीछे चल रही थीं। वे सफेद घोड़ों पर सवार थे। वे साफ सफेद सनी से बने कपड़े पहने हुए थे|
\v 15 एक तेज तलवार उसके मुँह से निकलती है; इससे वह विद्रोही लोगों के समूह को मार देंगे। वह स्वयं उन पर शक्तिशाली रूप से शासन करेंगे जैसे कि उसके पास लोहे की छड़ी है। वह अपने दुश्मनों को इस प्रकार कुचल डालेंगे जैसे कोई व्यक्ति दाखरस के कुंड में अंगूरों को कुचलता है। वह परमेश्वर के लिए ऐसा करेंगे, जो हर एक पर शासन करते हैं और जो उनके पापों के कारण उन पर बहुत क्रोधित हैं।
\v 16 उसकी जाँघ के ऊपर उसके कपड़े पर एक नाम लिखा हुआ था: "राजा जो अन्य सभी राजाओं पर शासन करते हैं और प्रभु जो अन्य सभी प्रभुओं पर शासन करते हैं।"
\p
\s5
\v 17 तब मैंने एक स्वर्गदूत को सूर्य के प्रकाश में खड़ा देखा। उसने आकाश में ऊँचाई पर उड़ने वाले सभी माँस खाने वाले पक्षियों को जोर से पुकार कर बुलाया, "आओ और बड़े पर्व के लिए एकत्र हो जाओ जो परमेश्वर तुम्हारे लिए प्रदान कर रहे हैं!
\v 18 आओ और परमेश्वर के सब बैरियों का माँस खाओ, जो मर चुके हैं। राजाओं का माँस, सेना के सरदारों का माँस, और घोड़ों का माँस और उन सैनिकों का माँस जो उन पर सवार थे, और अन्य लोगों का माँस, चाहे वे स्वतंत्र हों या दास, महत्वपूर्ण हों या नहीं, सभी प्रकार के लोगों का माँस!"
\s5
\v 19 फिर मैंने पशु और पृथ्वी के राजाओं को उनकी सेनाओं के साथ देखा; वे घोड़े और उसके सवार से युद्ध के लिए एकत्र हुए थे।
\v 20 सफेद घोड़े के सवार ने पशु और झूठे भविष्यद्वक्ता को पकड़ लिया। झूठे भविष्यद्वक्ता ने उस पशु की उपस्तिथी में चमत्कार किए थे। ऐसा करने से उसने उन लोगों को धोखा दिया था जिन्होंने अपने माथे पर पशु के चिन्ह को लगाया था और जिन्होंने उसकी मूर्ति की उपासना की थी| तब परमेश्वर ने पशु और झूठे भविष्यद्वक्ता को जीवित ही आग की झील में फेंक दिया जो गंधक से जलती है।
\s5
\v 21 घोड़े के सवार ने अपनी तलवार से जो उसके मुँह से निकलती थी उनकी सेनाओं को मार डाला, सभी पक्षी लोगों के और घोड़ों के माँस पर टूट पड़े, जिन्हें उसने मार डाला था।
\s5
\c 20
\p
\v 1 फिर स्वर्ग से मैंने एक स्वर्गदूत को नीचे आते देखा। उसके हाथ में गहरे कुंड की कुंजी थी, और वह अपने हाथ में एक बड़ी जंजीर लिए हुए था।
\v 2 उसने अजगर को पकड़ लिया। वह अजगर, जो प्राचीन साँप है, वह शैतान है। उस स्वर्गदूत ने उसे जंजीर से बाँध दिया। उस जंजीर को एक हज़ार वर्ष तक नहीं खोला जा सकता था।
\v 3 स्वर्गदूत ने उसे गहरे, अंधेरे कुंड में फेंक दिया। उसने कुंड के द्वार को बंद कर दिया, उस पर ताला लगा दिया, और उस पर मुहर लगा दी कि कोई उसे खोलने न पाए। उसने ऐसा किया ताकि शैतान अब किसी भी जाति के लोगों को धोखा न दे, जब तक कि एक हज़ार वर्ष समाप्त नहीं हो जाते। उस समय के बाद, शैतान को थोड़े समय के लिए स्वतंत्र किया जाएगा ताकि वह परमेश्वर की योजना के अनुसार काम करें।
\p
\s5
\v 4 मैंने सिंहासन देखे जिन पर लोग बैठे थे। परमेश्वर ने उन्हें न्याय करने का अधिकार दिया। मैंने अन्य लोगों की आत्माओं को भी देखा था जिनके सिर काट दिये गए थे, क्योंकि उन्होंने यीशु के विषय में सत्य कहा था और उन्होंने परमेश्वर का संदेश सुनाया था। यह वे लोग थे जिन्होंने पशु या उसकी प्रतिमा की उपासना करने से मना कर दिया था, और जिन्होंने पशु के दासों को, अपने माथों या अपने हाथों पर उसका चिन्ह लगाने की अनुमति नहीं दी थी। वे फिर से जीवित हो गए, और उन एक हज़ार वर्षों में उन्होंने मसीह के साथ शासन किया।
\s5
\v 5 वे ऐसे लोग थे जो पहली बार में दोबारा जीवित हुए थे जब परमेश्वर ने मरे हुओं को फिर से जीवित रहने के लिए उठाया था। बाकी सब विश्वासी जो मर चुके थे वे हज़ार वर्षों के बीतने तक जीवित नहीं होंगे।
\v 6 परमेश्वर उन लोगों से प्रसन्न होंगे जो पहली बार में फिर जी उठेंगे। परमेश्वर उन्हें पवित्र ठहराएँगे। वे दूसरी बार नहीं मरेंगे। इसके बजाए, वे याजक होंगे जो परमेश्वर और मसीह की सेवा करने वाले होंगे, और वे उन एक हज़ार वर्षों तक मसीह के साथ राज्य करेंगे।
\p
\s5
\v 7 जब एक हज़ार वर्ष पूरे हो जाएँगे, तो परमेश्वर शैतान को बन्दी गृह से छोड देंगे।
\v 8 शैतान पृथ्वी पर विद्रोही लोगों के समूह को धोखा देने के लिए बाहर निकल जाएगा। ये ऐसे राष्ट्र हैं, जिनको भविष्यद्वक्ता यहेजकेल ने गोग और मागोग कहा था। शैतान उन्हें परमेश्वर के लोगों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए एकत्र करेगा। उनमें से बहुत से लोग परमेश्वर के लोगों से युद्ध करेंगे और कोई भी उनकी गिनती नहीं कर पाएगा, जैसे कि कोई भी समुद्र के तट पर रेत के किनकों को नहीं गिन सकता।
\s5
\v 9 वे पूरी पृथ्वी पर चढ़ाई करेंगे और यरूशलेम में परमेश्वर के लोगों के छावनी को घेरेंगे, वह शहर जिससे परमेश्वर प्रेम करते हैं। तब परमेश्वर स्वर्ग से आग गिराएँगे, और वह आग उन्हें जला देगी।
\v 10 परमेश्वर शैतान को गंधक की झील में फेंक देंगे, जिसने उन लोगों को धोखा दिया था। यह वही जगह है जहाँ परमेश्वर ने पशु और झूठे भविष्यद्वक्ता को फेंक दिया था। और वे सदा के लिए लगातार घोर पीड़ा सहते रहेंगे।
\p
\s5
\v 11 तब मैंने एक विशाल सफेद सिंहासन देखा जिस पर परमेश्वर बैठे थे। वह इतना भयानक था कि पृथ्वी और आकाश उनके सामने से गायब हो गए; वे अब नहीं थे।
\v 12 मैंने देखा कि जो लोग मर चुके थे लेकिन अब फिर से जी गए हैं, और सिंहासन के सामने खड़े हैं। वे महत्वपूर्ण और महत्वहीन दोनों लोग थे! जिस पुस्तक में परमेश्वर लोगों के कामों का लेखा रखते हैं वह खोली गई। एक और पुस्तक भी खोली गई, जो जीवन की पुस्तक है जिसमें परमेश्वर ने उन लोगों के नाम लिखे हैं जिनके पास अनन्त जीवन है। जो लोग मर चुके थे और अब जीवित हैं परमेश्वर ने उनके उन कामों के अनुसार जो उसने पुस्तकों में लिखे हुए थे उन लोगों का न्याय किया।
\s5
\v 13 जो लोग समुद्र में दफन किए गए थे, वे फिर से जीवित हो गए कि परमेश्वर के सिंहासन के सामने खड़े हो सकें। जो भूमि में दफन किए गए थे, वे भी फिर से जीवित हो गए, कि सिंहासन के सामने खड़े हो सकें। परमेश्वर ने हर एक के कामों के अनुसार जो उन्होंने किए थे हर एक का न्याय किया।
\v 14 सभी अविश्वासी लोग जो उस जगह में थे जहाँ वे मरने के बाद प्रतीक्षा कर रहे थे - जलती झील में फेंक दिए गए। जलती हुई झील वह जगह है जहाँ लोग दूसरी बार मरते हैं।
\v 15 परमेश्वर ने उन लोगों को भी आग की झील में फेंक दिया, जिनके नाम उस पुस्तक में नहीं थे, जिसमें परमेश्वर ने उन लोगों के नाम लिखे थे जिनके पास अनन्त जीवन है।
\s5
\c 21
\p
\v 1 फिर मैंने एक नया स्वर्ग और एक नई पृथ्वी को देखा। पहला स्वर्ग और पहली पृथ्वी गायब हो चुके थे, और महासागर भी अब मौजूद नहीं था।
\v 2 मैंने परमेश्वर के पवित्र शहर को देखा, जो नया शहर यरूशलेम था। यह परमेश्वर के स्वर्ग से नीचे आ रहा था। परमेश्वर ने इसे तैयार किया था और इसे सजाया था। वैसे ही जैसे, विवाह करने के लिए एक स्त्री दुल्हन के रूप में सजती है।
\s5
\v 3 फिर मैंने परमेश्वर के सिंहासन से एक ऊँची आवाज को यह कहते सुना "इसे सुन। अब परमेश्वर लोगों के साथ रहेंगे। वह उन लोगों के बिल्कुल बीच में रहेंगे। वे उसके लोग होंगे। परमेश्वर स्वयं उनके साथ होंगे, और वह उनके परमेश्वर होंगे।
\v 4 वह अब कभी भी उन्हें दुःखी नहीं होने देंगे। वह उन्हें कभी भी फिर से रोने नहीं देंगे। उनमें से कोई भी फिर से नहीं मरेगा, या न शोक, न रोना और न दर्द सहना पड़ेगा क्योंकि परमेश्वर ने उन चीजों को हटा दिया है और वे सदा के लिए मिट गई हैं।
\p
\s5
\v 5 तब सिंहासन पर बैठे परमेश्वर ने कहा, "सुन, अब मैं सब कुछ नया कर रहा हूँ!" उन्होंने मुझसे कहा: "इन बातों को लिख ले जो मैंने तुझको बताई हैं। क्योंकि तू इस पर भरोसा कर सकता है कि मैं निश्चित रूप से उन्हें पूरा करने वाला हूँ।"
\v 6 उन्होंने मुझसे यह भी कहा, "मैंने यह सब काम पूरा कर दिया है! मैं वह हूँ जिसने सब कुछ शुरू किया था और वो जो सब बातों का अन्त कर देगा। हर कोई जो चाहता है, मैं उसे मुफ्त में सोते का जल दूँगा, जो सदा के लिए उनके जीने का कारण होगा।
\s5
\v 7 मैं इसे उन सभी को दूँगा जिन्होंने शैतान के ऊपर विजय प्राप्त की है। मैं उनका परमेश्वर होऊँगा, और वे मेरे बच्चे होंगे।
\v 8 परन्तु जो लोग कायर हैं, जो मुझ पर विश्वास नहीं करते हैं, जो घृणित काम करते हैं, जो हत्या करते हैं, जो यौन सम्बन्ध रखते हैं, जो जादू-टोना करते हैं, जो मूर्तियों की उपासना करते हैं, और सब झूठे लोग, आग और गंधक से जलती हुई झील में पीड़ित होंगे। यह जलती हुई झील दूसरी बार मरने का अर्थ है।"
\p
\s5
\v 9 तब सात स्वर्गदूतों में से एक दूत, जिनके पास सात दाखरस से भरे कटोरे थे - जो अन्तिम सात दुःखों का कारण दर्शाता है, आया और मुझ से कहा, "मेरे साथ आ और मैं तुझको उन लोगों को दिखाऊँगा जो स्थाई रूप से मेमने के साथ एकजुट हैं, एक स्त्री के रूप में जो एक व्यक्ति से विवाह करती है!"
\p
\v 10 तब परमेश्वर के आत्मा ने मुझ पर नियंत्रण किया, और स्वर्गदूत मुझे एक बहुत ऊँचे पहाड़ की चोटी पर ले गया। उसने मुझे परमेश्वर के पवित्र शहर नये यरूशेलम को दिखाया, जो परमेश्वर के स्वर्ग से नीचे उतर रहा था।
\s5
\v 11 यह उस उज्जवल प्रकाश से चमक रहा था जो स्वयं परमेश्वर में से निकल रहा था। शहर एक बहुत ही बहुमूल्य मणि के समान चमक रहा था, और यह यशब के समान साफ था।
\v 12 शहर के चारों ओर एक बहुत ही ऊँची दीवार थी। दीवार में बारह फाटक थे। प्रत्येक फाटक पर एक स्वर्गदूत था। इस्राएल के बारह गोत्रों के नाम फाटकों के ऊपर लिखे गए थे। प्रत्येक फाटक पर एक गोत्र का नाम लिखा था।
\v 13 पूर्व की ओर तीन द्वार थे, तीन द्वार उत्तर की ओर थे, तीन द्वार दक्षिण की ओर थे, और तीन द्वार पश्चिम की ओर थे।
\s5
\v 14 शहर की दीवार में बारह नींव के पत्थर थे। प्रत्येक पत्थर पर बारह प्रेरितों में से एक का नाम था जिसे मेमने ने नियुक्त किया था।
\p
\v 15 मेरे साथ जो स्वर्गदूत बात कर रहा था, वह एक सुनहरी मापने वाली छड़ी लिए हुए था, जिसे उसने शहर, उसके द्वार और उसकी दीवार को मापने के लिए इस्तेमाल किया।
\s5
\v 16 शहर आकार में चौकोर था; उसकी लम्बाई उसकी चौड़ाई के बराबर थी। स्वर्गदूत ने अपनी छड़ी से शहर को मापने के बाद बताया कि यह 2,200 किलोमीटर लंबा था, और इसकी प्रत्येक चौड़ाई और ऊँचाई इसकी लंबाई के समान थी।
\v 17 उसने उसकी दीवार को मापा और बताया कि यह छियासठ मीटर मोटी थी। स्वर्गदूत ने उसी माप का इस्तेमाल किया, जिसका लोग सामान्यतः उपयोग करते हैं।
\p
\s5
\v 18 शहर की दीवारें कुछ हरे पत्थर के समान बनाई गई थी जिसे हम यशब कहते हैं। शहर शुद्ध सोने से बना था जो कि काँच के समान साफ दिखता था।
\v 19 शहर की दीवार की नींव खूबसूरत कीमती पत्थरों से बनाई गई थी। सबसे पहली नींव का पत्थर यशब था, दूसरी नींव का पत्थर नीलमणि था, तीसरी नींव का पत्थर लालड़ी था, चौथी नींव का पत्थर पन्ना था,
\v 20 पाँचवीं नींव का पत्थर गोमेदक था, छठी नींव का पत्थर माणिक्य था, सातवीं नींव का पत्थर पीतमणि था, आठवीं नींव का पत्थर पेरोज था, नवीं नींव का पत्थर पुखराज था, दसवीं नींव का पत्थर लहसुनिया का था, ग्यारहवीं नींव का पत्थर घूम्रकान्त था, और बारहवीं नींव का पत्थर नीलम था।
\s5
\v 21 शहर के बारह फाटक बहुत बड़े मोती के समान थे। प्रत्येक फाटक एक मोती के समान था। शहर की सड़कों को शुद्ध सोने के रूप में दिखाया गया, जो साफ शीशे जैसी दिखती थीं।
\p
\v 22 शहर में कोई आराधनालय नहीं था क्योंकि स्वयं प्रभु परमेश्वर, जो सब पर राज्य करते हैं, और मेमने वहाँ पर हैं, इसलिए आराधनालय की कोई आवश्यकता नहीं थी।
\s5
\v 23 शहर को प्रकाश देने के लिए सूरज या चन्द्रमा की आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि परमेश्वर की ओर से आने वाला प्रकाश शहर को प्रकाशित करेगा, और मेमने भी इसका प्रकाश होगा।
\v 24 लोगों के समूह उन पर चमकते प्रकाश के साथ शहर में रहेंगे। पृथ्वी के राजा अपनी संपत्ति को परमेश्वर और मेमने को सम्मानित करने के लिए शहर में लाएँगे।
\v 25 शहर के फाटक दिन के अंत में बंद नहीं किए जाएँगे, जैसे वे आमतौर पर बंद हो जाते हैं क्योंकि वहाँ रात नहीं होगी।
\s5
\v 26 संसार के लोग भी शहर में अपनी संपत्ति लाएँगे।
\v 27 जो कुछ भी नैतिक रूप से अशुद्ध नहीं है, कोई भी जो ऐसा काम करता है जो परमेश्वर को घृणित लगता हो, और जो कोई भी झूठ बोलता हो, वह कभी उस शहर में प्रवेश नहीं करेगा। केवल वे लोग जिनके नाम मेमने की पुस्तक में लिखे गए हैं, जिस पुस्तक में उन लोगों के नाम लिखे हुए हैं जिनके पास अनन्त जीवन है, वे ही वहाँ पर होंगे।
\s5
\c 22
\p
\v 1 तब स्वर्गदूत ने मुझे नदी दिखाई जो कि उन लोगों को पीने के लिए पानी देती है कि वे सदा के लिए जीवित रहें। पानी चमकदार और यशब के सामान स्वच्छ था। नदी उस सिंहासन से बह रही थी जहाँ परमेश्वर और मेमने बैठे थे।
\v 2 यह नदी शहर की मुख्य सड़क के मध्य से बह रही थी। नदी के दोनों ओर फलों के पेड़ थे, जिन्हें लोग इसलिए खाते हैं कि सदा जीवित रहें। पेड़ों में बारह प्रकार के फल लगते हैं; वे हर महीने एक फसल उपजाते हैं। लोगों के समूह पेड़ों की पत्तियों को दवा के रूप में काम में लेते हैं कि उनके घाव ठीक हो सकें।
\s5
\v 3 वहाँ कोई भी या कुछ भी नहीं होगा जिसे परमेश्वर शाप देंगे। परमेश्वर और मेमने का सिंहासन शहर में होंगे। परमेश्वर के दास वहाँ उसकी आराधना करेंगे।
\v 4 वे उन्हें आमने सामने देखेंगे, और उनका नाम उनके माथों पर लिखा होगा।
\v 5 फिर कभी रात नहीं होगी, परमेश्वर के सेवकों को दीपक के प्रकाश या सूरज की प्रकाश की आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि प्रभु परमेश्वर उन पर अपना प्रकाश चमकाएँगे। वे सदा के लिए शासन करेंगे।
\p
\s5
\v 6 स्वर्गदूत ने मुझ से कहा: "ये बातें जो कि परमेश्वर ने तुझको दिखाई हैं वे सत्य हैं, और परमेश्वर निश्चित ही ऐसा करेंगे। प्रभु परमेश्वर जो भविष्यद्वक्ताओं को प्रेरित करते हैं, उन्होंने अपने स्वर्गदूत को वह घटना जो शीघ्र ही होने वाली थी उन लोगों को दिखाने के लिए भेजा, जो उसकी सेवा करते हैं।"
\v 7 यीशु ने अपने सभी लोगों से कहा, "सुनो, मैं शीघ्र ही आने वाला हूँ; परमेश्वर इस पुस्तक में लिखी गई हर बात को मानने वाले सभी लोगों को बहुतायत से आशीष देंगे।"
\p
\s5
\v 8 मैं, यूहन्ना ही हूँ, जिसने सुना है और दर्शन में देखने के बाद इन बातों को लिखा है। जब मैंने उन्हें सुना और देखा, तो मैं तुरन्त उस स्वर्गदूत के समक्ष उसे दण्डवत करने के लिए झुका, जिसने मुझे इन बातों को दिखाया था।
\v 9 लेकिन उसने मुझ से कहा, "मुझे दण्डवत मत कर, मैं तेरे समान परमेश्वर का सेवक हूँ; मैं भी तेरे भाई-बहनों के समान सेवक हूँ, जो भविष्यद्वक्ता हैं, और जो इस पुस्तक के संदेश की आज्ञा मानते हैं। इसकी अपेक्षा, परमेश्वर ही को दण्डवत कर!"
\s5
\v 10 उसने मुझ से यह भी कहा, "इस पुस्तक में परमेश्वर ने जो भविष्यद्वाणी की हैं, उसके विषय में जो संदेश हैं उस को गुप्त मत रख। क्योंकि इस संदेश को पूरा करने का समय लगभग आ गया है।
\v 11 क्योंकि वह समय निकट है, यदि वे दुष्टता के काम करते हैं और करते रहना चाहते हैं, तो उन्हें ऐसा करने दो। परमेश्वर शीघ्र ही उन्हें उसका बदला देंगे। यदि नीच लोग नीच बने रहना चाहते हैं, तो उन्हें ऐसा करने दो। परमेश्वर शीघ्र ही उन्हें उसका बदला देंगे। जो लोग धार्मिकता से काम कर रहे हैं, उन्हें धार्मिकता के कार्य करते रहना चाहिए। जो सिद्ध हैं, वे सिद्ध रहें।"
\p
\s5
\v 12 यीशु ने सब लोगों से कहा: "सुनो! मैं शीघ्र आने वाला हूँ! और मैं हर एक को उसके किए गए कामों के अनुसार दण्ड या प्रतिफल दूँगा।
\v 13 मैं ही वह हूँ जिसने सब कुछ आरम्भ किया और मैं ही सब बातों का अंत करूँगा। मैं सब से पहले हूँ और मैं ही सब के अंत में हूँ।
\s5
\v 14 परमेश्वर उन लोगों से बहुत प्रसन्न हैं जो अपने वस्त्र धोते हैं और उन्हें साफ कर लेते हैं क्योंकि वे उस पेड़ के फल खाने के योग्य होंगे, जो लोगों को सदा का जीवन देगा। क्योंकि वे पवित्र शहर में फाटक से प्रवेश करने योग्य होंगे।
\v 15 बाहर ऐसे लोग हैं जो अपवित्र हैं। इसमें वे लोग हैं जो जादू-टोना करते हैं, जो यौनाचार के पाप करते हैं, जो अन्य लोगों की हत्या करते हैं, मूर्तिपूजा करते हैं, और वे जो झूठ बोलना पसंद करते हैं और लगातार झूठ बोलने वाले हैं। वे कभी भी उस शहर में प्रवेश नहीं कर सकते।"
\p
\s5
\v 16 "मुझ, यीशु ने अपने स्वर्गदूत को इसलिए भेजा था कि वह तुमको जो विश्वासियों के समूह हो, यह बताए कि ये सब बातें सत्य हैं। मैं राजा दाऊद का वंशज हूँ जिसके लिए भविष्यद्वक्ताओं ने कहा था कि वे आएँगे, जो चमकती हुई सुबह के सितारे के समान हैं।"
\p
\s5
\v 17 परमेश्वर के आत्मा और उनके लोग, जो मसीह की दुल्हन के समान हैं, उन सब से कहते हैं जो विश्वास करना चाहते हैं, "आओ!" जो भी इस बात को सुनते हैं वे उनसे जो विश्वास करने की इच्छा रखते हैं सब से कहें कि "आओ!" जो लोग आना चाहते हैं उन लोगों को आना चाहिए! हर किसी को जो जीवन जल की इच्छा रखता है जो लोगों को सदा के लिए जीने के योग्य बनता है, उस पानी को बिना मोल के प्राप्त करना चाहिए।
\p
\s5
\v 18 मैं, यूहन्ना, तुम सब को गम्भीर चेतावनी देता हूँ जो उस संदेश को सुनते हैं, जिसकी मैंने इस पुस्तक में भविष्यद्वाणी की है, कि अगर कोई इस संदेश में कुछ भी जोड़ता है, तो परमेश्वर उन्हें वही दण्ड दें जिनकी चर्चा इस पुस्तक में की गयी है।
\v 19 अगर कोई उसमें से कुछ निकाल देता है जिसके विषय में मैंने इस पुस्तक में भविष्यद्वाणी की है तो परमेश्वर उस पेड़ का फल खाने के लिए उस व्यक्ति का अधिकार छीन लेंगे जो लोगों को सदा के लिए जीवित रहने के योग्य बनाता है। परमेश्वर के शहर में प्रवेश करने के अधिकार को भी उससे छीन लेंगे। इन दोनों बातों का वर्णन इस पुस्तक में किया गया है।
\p
\s5
\v 20 यीशु, जो कहते हैं कि यह सब बातें सत्य हैं, कहते हैं, "निश्चित ही मैं शीघ्र आने वाला हूँ!" मैं, यूहन्ना, उत्तर देता हूँ, "ऐसा ही हो! हे प्रभु यीशु, आओ!"
\p
\v 21 मैं प्रार्थना करता हूँ कि हमारे प्रभु यीशु तुम सब पर जो परमेश्वर के लोग हैं कृपा करते रहें। आमीन!

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