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\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
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\h उत्पत्ति
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\toc1 उत्पत्ति
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\toc2 उत्पत्ति
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\toc3 gen
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\mt1 उत्पत्ति
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\v 1 परमेश्वर ने आरंभ में आकाश और पृथ्वी की रचना की।
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\v 2 जब उन्होंने पृथ्वी की रचना करना आरंभ किया तब पृथ्वी आकार रहित और सुनसान थी। गहरे जल की सतह पर अन्धकार था और परमेश्वर के आत्मा जल पर मण्डराते थे।
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\v 3 परमेश्वर ने कहा, "मैं वहाँ प्रकाश होने का आदेश देता हूँँ," और वहाँ प्रकाश हो गया।
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\v 4 परमेश्वर प्रकाश से प्रसन्न हुए। फिर उन्होंने कुछ स्थानों को कुछ समय में प्रकाशित कर दिया, जबकि अन्य स्थानों पर अभी भी अन्धकार था।
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\v 5 उन्होंने प्रकाश को "दिन" का नाम दिया और अन्धकार को "रात" का नाम दिया। शाम हुई फिर सुबह हुई, पहला दिन हो गया।
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\v 6 तब परमेश्वर ने कहा, "मैं आदेश देता हूँँ कि जल दो भागों में बँट जाए और मध्य में विशाल मेहराब के समान खाली स्थान हो।"
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\v 7 और ऐसा ही हुआ। परमेश्वर ने एक विशाल मेहराब के समान खाली स्थान बनाई और इसके ऊपर के जल को, इसके नीचे के जल से अलग किया।
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\v 8 परमेश्वर ने विशाल मेहराब को "आकाश" का नाम दिया। शाम हुई फिर सुबह हुई, दूसरा दिन हो गया।
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\v 9 तब परमेश्वर ने कहा, "मैं आकाश के नीचे के जल को एक स्थान पर एकत्र होने का आदेश देता हूँँ जिससे सूखी भूमि ऊपर आए और दिखाई दे।" और ऐसा ही हुआ।
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\v 10 परमेश्वर ने सूखी भूमि को "पृथ्वी", और एकत्रित जल को "समुद्र" नाम दिया। परमेश्वर पृथ्वी और समुद्रों को देखकर प्रसन्न हुए।
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\v 11 तब परमेश्वर ने कहा, "मैं पृथ्वी को अनेक प्रकार के पौधे उगाने का आदेश देता हूँँ जो स्वयं का पुन: उत्पादन करें - जिनमें बीज वाले पौधे हों और ऐसे वृक्ष भी हों जो बीज वाले फल दें" और ऐसा ही हुआ।
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\v 12 तब पौधे पृथ्वी पर बढ़े। प्रत्येक प्रकार के पौधे ने अपनी जाति के बीज को उत्पन्न किया, और प्रत्येक प्रकार के वृक्ष ने फल के साथ अपनी जाति के बीज भी उत्पन्न किये। परमेश्वर पौधों और वृक्षों से प्रसन्न हुए।
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\v 13 शाम हुई फिर सुबह हुई, तीसरा दिन हो गया।
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\v 14 तब परमेश्वर ने कहा, "मैं आकाश में कई ज्योतियों को चमकने का आदेश देता हूँँ। वे रात से दिन को अलग करेंगी। उनमें परिवर्तन दिखने के द्वारा वे विभिन्न पर्वों और अन्य बातों के लिए समय सूचित करेंगी जो लोग निश्चित समय और वर्षों में करते हैं।
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\v 15 मैं इन ज्योतियों को पृथ्वी पर चमकने का आदेश भी देता हूँँ। " और ऐसा ही हुआ।
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\v 16 परमेश्वर ने उनमें से दो को बहुत बड़ी ज्योति बनाया। परमेश्वर ने उन में से बड़ी ज्योति को दिन पर शासन करने के लिए बनाया और छोटी को रात पर शासन करने के लिए। उन्होंने तारे भी बनाए।
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\v 17 परमेश्वर ने इन ज्योतियों को आकाश में स्थित किया कि वे पृथ्वी पर प्रकाश दें,
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\v 18 दिन और रात पर शासन करें और अन्धकार को प्रकाश से अलग करें। परमेश्वर ज्योतियों को देखकर प्रसन्न हुए।
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\v 19 शाम हुई फिर सुबह हुई, इस प्रकार चौथा दिन हो गया।
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\v 20 तब परमेश्वर ने कहा, "जल मेरे द्वारा बनाए गये सभी प्रकार के जलीय जीवों से भर जाए, और पृथ्वी के ऊपर उड़ने वाले पक्षियों से आकाश भर जाए।"
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\v 21 इस प्रकार परमेश्वर ने समुद्र में बहुत बड़े-बड़े जल-जन्तु बनाए, और उन्होंने जल में अत्याधिक संख्या में अन्य सभी जल-जन्तु भी बनाए। उन्होंने पंखवाले हर प्रकार के पक्षियों को भी बनाया। ये सभी प्राणी स्वयं की संतान पैदा करने में सक्षम होंगे। परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था उसे देखकर वे प्रसन्न हुए।
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\v 22 परमेश्वर ने इन जानवरों को आशीष दी। उन्होंने कहा, "संतान उत्पन्न करो और असंख्य हो जाओ। मैं चाहता हूँँ कि जल के जीव सभी जलाशयों में रहें, और पक्षी भी असंख्य हो जायें।"
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\v 23 शाम हुई फिर सुबह हुई, इस प्रकार पांचवाँ दिन हो गया।
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\v 24 तब परमेश्वर ने कहा, "मैं पृथ्वी को विविध प्रकार के जानवरों को उत्पन्न करने का आदेश देता हूँँ जो पृथ्वी पर रहने के लिए पुन: जन्म देने की क्षमता रखते हों। यहाँ अनेक प्रकार के घरेलू जानवर, जीव जो भूमि पर रेंगते हों, और बड़े जंगली जानवर भी हो जाएं।" और ऐसा ही हुआ।
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\v 25 परमेश्वर ने सभी प्रकार के जंगली जानवरों, घरेलू जानवरों और सभी प्रकार के भूमि पर रेंगने वाले जानवरों को बनाया। वे सभी अपनी जाति के जानवरों को उत्पन्न कर सकते थे। परमेश्वर उनसे प्रसन्न हुए।
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\v 26 तब परमेश्वर ने कहा, " हम मनुष्य को अपने स्वरुप में बनाएँ। मैं चाहता हूँँ कि मनुष्य समुद्र की मछलियों, आकाश के पक्षियों, सभी घरेलू जानवरों और अन्य उन सभी जानवरों पर शासन करें जो पृथ्वी पर हैं।"
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\v 27 परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया जो कई प्रकार से परमेश्वर जैसा था। परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरुप में रचा। परमेश्वर ने उन्हें नर और नारी के रूप में बनाया।
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\v 28 परमेश्वर ने उन्हें आशीष दी और कहा, "बहुत से बच्चे पैदा करो, जो पूरी पृथ्वी पर निवास करें और उस पर शासन करें। मैं चाहता हूँँ कि तुम समुद्र की मछलियों और आकाश के पक्षियों और धरातल के सभी जीव जन्तुओं पर शासन करो।"
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\v 29 परमेश्वर ने कहा, " मैंने तुम लोगों को धरती के सभी बीज वाले पौधे और सारे फलदार पेड़ दिए हैं। ये सब तुम्हारे लिए भोजन होंगे।
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\v 30 मैंने सभी हरे पेड़-पौधे जंगली जानवरों, पक्षियों, और पृथ्वी के जीव-जन्तु के भोजन के लिए दिये है क्योंकि उनमें जीवन देने की क्षमता है। और ऐसा ही हुआ।
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\v 31 परमेश्वर ने जो कुछ भी बनाया उससे वे प्रसन्न थे। वास्तव में, यह सब बहुत अच्छा था। शाम हुई फिर सुबह हुई, इस प्रकार छठा दिन हो गया।
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\v 1 इसी प्रकार परमेश्वर ने पृथ्वी, आकाश और जो कुछ उनमें है, उन सभी जीवों की सृष्टी की जिनसे वे भर गये।
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\v 2 सातवें दिन तक परमेश्वर ने सब कुछ रचने का काम पूरा कर लिया था, इसलिए परमेश्वर ने सातवें दिन कोई काम नहीं किया।
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\v 3 परमेश्वर ने घोषित किया कि प्रत्येक सातवाँ दिन उनके द्वारा आशीषित होगा। इस दिन को विशेष दिन के रूप में अलग कर दिया गया, क्योंकि सातवें दिन परमेश्वर ने सब कुछ रच कर अपने काम को पूरा करने के बाद विश्राम किया।
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\v 4 परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी को कैसे रचा यह इसी का विवरण है।
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\p परमेश्वर, जिनका नाम यहोवा है, उन्होंने आकाश और पृथ्वी की रचना की।
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\v 5 तब पृथ्वी पर कोई पेड़ पौधा नहीं उगा था, क्योंकि यहोवा ने तब तक पृथ्वी पर वर्षा नहीं भेजी थी। इसके अतिरिक्त, भूमि को जोतने और उस पर फसल उगाने के लिए कोई न था।
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\v 6 परन्तु कोहरा पृथ्वी से उठता था कि पृथ्वी की सतह पर जल हो।
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\v 7 तब यहोवा परमेश्वर ने कुछ मिट्टी उठाई और पुरुष को बनाया। उन्होंने पुरुष की नाक में अपनी साँस फूँकी जिससे उसमें जीवन आया, फलस्वरूप पुरुष एक जीवित प्राणी बन गया।
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\v 8 यहोवा परमेश्वर ने अदन नामक स्थान में एक बाग लगाया, जो कनान देश के पूर्व में था। इसी बाग में यहोवा परमेश्वर ने अपने बनाए हुए पुरुष को रखा।
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\v 9 यहोवा परमेश्वर ने प्रत्येक प्रकार के पेड़ों को उगाया जो कि देखने में सुंदर थे और जो ऐसे फल देते हैं जो खाने में अच्छे है। उन्होंने बाग के बीच में एक पेड़ लगाया जिसका फल यदि कोई खाए तो सदा जीवित रहेगा। उन्होंने वहाँ एक और पेड़ लगाया जिसके फल को खाने के बाद कोई भी जान लेगा कि कौन सा अच्छा कार्य और कौन सा बुरा कार्य है।
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\v 10 अदन से होकर एक नदी बहती थी और वह बाग़ को सींचती थी। अदन के बाहर, वह नदी चार छोटी नदियों में विभाजित हो जाती थी।
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\v 11 पहली नदी का नाम पीशोन है। यह नदी हवीला प्रदेश से होकर बहती है, जहाँ सोना था।
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\v 12 वह सोना बहुत शुद्ध है। वहाँ सुगंधित मोती और सुलैमानी पत्थर भी मिलते हैं।
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\v 13 दूसरी नदी का नाम गीहोन है जो कूश देश के सारे प्रदेश से होकर बहती है।
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\v 14 तीसरी नदी का नाम हिद्देकेल है। यह अश्शूर शहर के पूर्व में बहती है। चौथी नदी फरात है।
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\v 15 यहोवा परमेश्वर ने उस पुरुष को अदन में खेत जोतने और बाग की देख-भाल करने के लिए रखा।
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\v 16-17 परन्तु यहोवा ने उस से कहा, "मैं तुझे उस पेड़ के फल खाने की अनुमति नहीं दूँगा जो तुझे यह जानने में सक्षम करेगा कि कौन सा काम अच्छा है और कौन सा बुरा। यदि तू ने उस पेड़ का फल खा लिया तो निश्चित है तू उसी दिन मर जाएगा। लेकिन तू बग़ीचे के अन्य किसी भी पेड़ का फल खा सकता है।"
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\v 18 यहोवा परमेश्वर ने कहा, "इस पुरुष का अकेला रहना ठीक नहीं है। मैं एक और साथी बनाऊँगा जो उसके लिए उपयुक्त होगा।"
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\v 19 यहोवा परमेश्वर ने कुछ मिट्टी ली और सभी प्रकार के जानवरो और पक्षियों को मिट्टी से बनाया, और वे उन्हें पुरुष के पास लाये कि यहोवा सुन सकें कि पुरुष उन्हें क्या नाम देगा। और पुरुष ने यहोवा द्वारा बनाये गए प्रत्येक जीव-जन्तु को नाम दिया।
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\v 20 तब पुरुष ने सभी प्रकार के पालतू पशुओं, पक्षियों और वन-पशुओं के नाम रखे, लेकिन इनमें से कोई भी जीव पुरुष का साथी बनने के उपयुक्त नहीं था।
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\v 21 इसलिए यहोवा परमेश्वर ने पुरुष को गहरी नींद में सुला दिया। जब पुरुष सो रहा था, यहोवा परमेश्वर ने पुरुष के शरीर से एक पसली को निकाल लिया। फिर यहोवा ने उस खाली स्थान को बन्द कर के स्वस्थ कर दिया।
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\v 22 तब यहोवा ने उसी पसली से जिसे उन्होंने पुरुष के शरीर से निकाला था, स्त्री की रचना की इसके पश्चात परमेश्वर स्त्री को पुरुष के पास लाए।
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\v 23 पुरुष ने कहा, "अंततः यह वास्तव में मेरे जैसी है! इसकी हड्डियाँ मेरी एक हड्डी से आईं, और इसका मांस मेरे मांस से आया। इसलिए मैं इसको नारी कहूँगा, क्योंकि यह मुझ नर में से निकाली गई।"
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\v 24 प्रथम स्त्री, पुरुष के शरीर से निकाल कर बनाई गयी अतः स्त्री और पुरुष जब विवाह करते हैं तब पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से अत्यन्त निकटता से मिला रहेगा कि वे दोनों ऐसे रहें मानों एक व्यक्ति हों।
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\v 25 पुरुष और उसकी पत्नी नग्न होने पर भी अपनी नग्नता से लज्जित न थे।
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\v 1 यहोवा द्वारा बनाए गए सभी जंगली जानवरों में साँप सबसे अधिक धूर्त था। साँप ने स्त्री से कहा, "क्या परमेश्वर ने सचमुच तुमसे कहा है कि तुम बाग के किसी भी पेड़ का फल ना खाना?"
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\v 2 स्त्री ने उत्तर दिया, "परमेश्वर ने कहा था, 'बाग के बीच जो पेड़ है उसके फल तुम नहीं खा सकते, तुम उसे छूना भी नहीं, नहीं तो मर जाओगे।
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\v 3 लेकिन तुम अन्य किसी भी पेड़ के फल खा सकते हो।'"
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\v 4 साँप ने स्त्री से कहा, "नहीं, तुम निश्चित रूप से नहीं मरोगी। परमेश्वर ने यह इसलिए कहा
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\v 5 क्योंकि वे जानते हैं कि जब तुम उस पेड़ का फल खाओगे तो नई बातों को समझोगे। तुम्हारी आंखें खुल जाएगी और तुम्हें अच्छे-बुरे का ज्ञान हो जायेगा जैसे परमेश्वर को है।"
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\v 6 स्त्री ने देखा कि उस पेड़ का फल खाने में अच्छा था, और देखने में बहुत सुंदर था। स्त्री को खाने की अभिलाषा हुई क्योंकि उसने सोचा कि यह उसे बुद्धिमान बनाएगा। तो उसने वह फल तोड़कर खा लिया। तब उसने अपने पति को भी उसमें से दिया, और उसने भी उसे खा लिया।
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\v 7 तुरंत उन्हें ऐसा लगा कि उनकी आँखें खुल गई हैं, और उन्हें अनुभव हुआ कि वे नग्न थे, इसलिए वे लज्जित हुए। उन्होंने अंजीर के कुछ पत्तों को तोड़कर जोड़ा और स्वयं को उनसे ढंका।
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\v 8 दोपहर का समय समाप्त होने वाला था और ठंडी हवा बह रही थी। उन्होंने यहोवा परमेश्वर की आवाज़ सुनी मानों जैसे वे बाग में चल रहे थे। पुरुष और स्त्री दोनों बाग में पेड़ों के पीछे छिप गए, कि यहोवा परमेश्वर उन्हें न देख सकें।
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\v 9 परन्तु यहोवा परमेश्वर ने पुरुष से कहा, "तू मुझसे छिपने का प्रयास क्यों कर रहा है?"
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\v 10 पुरुष ने उत्तर दिया, "मैंने बगीचे में आपके कदमों की आवाज़ सुनी। मैं नग्न था इसलिए मैं डर कर आपसे छिप गया।"
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\v 11 परमेश्वर ने कहा, "तुझे कैसे पता लगा कि तू नग्न था? ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि तूने उस विशेष पेड़ का फल खाया जिसके लिए मैंने आदेश दिया था कि इसका फल नहीं खाना " क्या तू ने ऐसा ही किया है?
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\v 12 पुरुष ने कहा, "आपने जो स्त्री मेरे साथ रहने के लिए मुझे दी थी उसी ने पेड़ का फल मुझे दिया इसलिए मैंने उसे खाया।"
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\v 13 तब यहोवा परमेश्वर ने उस स्त्री से कहा, "तू ने ऐसा क्यों किया?" स्त्री ने उत्तर दिया, "साँप ने मुझे धोखा दिया इसलिए मैंने फल खा लिया।"
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\v 14 तब यहोवा परमेश्वर ने साँप से कहा, "क्योंकि तूने यह किया है, सभी घरेलू जानवरों और जंगली जानवरों में तू अकेला शापित है। इसी श्राप के कारण तू और बाकि सारे साँप अपने पेट के बल धरती पर रेंगेंगे और जब तक तू जीवित रहेगा जो कुछ तू खाएगा उसमें धुल होगी।
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\v 15 मैं तुझे और स्त्री को एक दूसरे का शत्रु बनाऊँगा और तेरे वंशजों और उसके वंशजों को एक-दूसरे का शत्रु बनाऊँगा। तू इसके वंशज की एड़ी को डसेगा और वह तेरे सिर कुचल देगा।"
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\v 16 तब यहोवा ने उस स्त्री से कहा, "जब तू संतान को जन्म देगी मैं तुझको अत्यधिक प्रसव पीड़ा दूंगा। तू अपने पति के साथ रहना चाहेगी, लेकिन वह तुझ पर शासन करेगा।"
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\v 17 तब परमेश्वर ने पुरुष से कहा, "तूने अपनी पत्नी की बातें सुनी, और तूने उस पेड़ का फल खाया जिसे खाने की मैंने अनुमति नहीं दी थी। इसलिए जो कुछ तूने किया उसके कारण धरती पर फसल पैदा करना मैं कठिन बना दूंगा जब तक तू जीवित रहेगा इस धरती से फसल पैदा करने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ेगा।
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\v 18 काँटे, कंटीली झाड़ियां और अन्य खर-पतवार बढ़ेंगे और तेरे द्वारा लगाये हुए फसलों को उगने में बाधा उत्पन्न करेंगे। जो कुछ भी तेरे खेत में उगेगा वही तेरा भोजन होगा।
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\v 19 तुझे अपने पूरे जीवन काल में भोजन प्राप्त करने के लिए कठिन परिश्रम करके पसीना बहाना पड़ेगा। मृत्यु होने पर तेरे शरीर को भूमि में दफनाया जाएगा। मैंने तुझे मिट्टी से बनाया है, इसलिए तेरा शरीर फिर से मिट्टी बन जाएगा।"
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\v 20 मनुष्य जिसका नाम आदम था, उसने अपनी पत्नी का नाम हव्वा रखा, जिसका अर्थ है "जीवित", क्योंकि वह सभी जीवनधारियों की पूर्वज बनी।
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\v 21 तब यहोवा परमेश्वर ने कुछ जानवरों को मार के उनकी खाल से आदम और उसकी पत्नी के लिए कपड़े बनाए।
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\p
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\v 22 तब यहोवा परमेश्वर ने कहा, "ये दोनों हमारे जैसे बन गए हैं क्योंकि ये जानते हैं कि क्या करना अच्छा है और क्या करना बुरा। इसलिए अब यह उचित नहीं होगा कि ये दोनों उस जीवन के पेड़ से फल खा लें जो इन्हें सदैव जीवित रखने में सक्षम है"
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\v 23 तब यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी हव्वा को अदन के बाग से बाहर निकाल दिया। यहोवा परमेश्वर ने आदम को मिट्टी से बनाया था, और उसे उसी मिट्टी में हल चलाने के लिए विवश किया।
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\v 24 यहोवा परमेश्वर ने आदम और हव्वा को बाहर निकालने के बाद बाग के पूर्व में करुबीम को नियुक्त किया और एक आग की तलवार भी रख दी जो आगे और पीछे प्रकाश दे कर प्रवेश मार्ग को बाधित करती थी, कि वे उस पेड़ के पास वापस नहीं जा सकें जिसके फल खाने के बाद मनुष्य सदा जीवित रहने में सक्षम हो जाता है।
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\s5
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\c 4
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\v 1 आदम ने अपनी पत्नी हव्वा के साथ सहवास किया। हव्वा गर्भवती हो गई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया जिसे उसने कैन नाम दिया, जिसका अर्थ है "उत्पादन", क्योंकि हव्वा ने कहा, "यहोवा की सहायता से मैंने एक पुत्र पैदा किया है।"
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\p
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\v 2 कुछ समय बाद उसने दूसरे पुत्र को जन्म दिया, और उसने उसे हाबिल नाम दिया। बड़े होने पर हाबिल ने भेड़ और बकरियां रखीं और कैन एक किसान बन गया।
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\v 3 एक दिन कैन ने स्वयं की उगाई हुई कुछ फसलों की कटाई की और उन्हें परमेश्वर के लिए भेंट के रूप में लाया,
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\v 4 और हाबिल के भेड़-बकरियों में से कुछ ने अपने पहिलौठे बच्चों को जन्म दिया उन्हें वह ले आया और उन्हें मार डाला और उपहार के रूप में, यहोवा को चर्बीयुक्त मांस के सबसे अच्छे हिस्से को भेंट चढ़ाया। यहोवा हाबिल और उसकी भेंट से प्रसन्न हुए,
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\v 5 लेकिन वे कैन और उसकी भेंट से प्रसन्न नहीं थे। तो कैन बहुत क्रोधित हो गया, और उसका मुँह उतर गया।।
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\s5
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\v 6 यहोवा ने कैन से कहा, "तुझे क्रोधित नहीं होना चाहिए! तुझे ऐसा दिखावा नहीं करना चाहिए!
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\v 7 यदि तू सही करेगा, तो मैं तुझे स्वीकार करूँगा। लेकिन यदि तू सही नहीं करता है तो जो बुराई तू करना चाहता है वही तुझे निगल जाएगी, ये मानो इस प्रकार है जैसे शेर तेरे दरवाजे के बाहर तुम पर हमला करने की प्रतीक्षा कर रहा है। पाप करने की तेरी इच्छा ही तुझे नियंत्रित करना चाहती है, लेकिन तुझे इसे नियंत्रित करना होगा।"
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\p
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\s5
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\v 8 एक दिन कैन ने अपने छोटे भाई हाबिल से कहा, "आ हम मैदान में चलें।" कैन और हाबिल मैदान में गए और वे जब दूर चले गये तब अचानक कैन ने अपने भाई हाबिल पर हमला किया और उसे मार डाला।
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\p
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\v 9 यहोवा को ज्ञात था कि कैन ने क्या किया है, फिर भी उन्होंने कैन से कहा, "क्या तू जानता है कि तेरा छोटा भाई हाबिल कहां है?" कैन ने उत्तर दिया, "नहीं, मुझे नहीं पता। मेरा काम मेरे छोटे भाई की पहरेदारी करना नहीं है!"
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\v 10 यहोवा ने कहा, "तूने जो किया है वह भयानक है! तेरे भाई का खून जो भूमि पर गिर गया है, वह तुझे दोषी ठहराता है।
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\v 11 तूने अपने छोटे भाई को मार डाला है, और अब भूमि ने तेरे छोटे भाई के खून को सोख लिया है और यह भूमि अब तेरा स्वागत नहीं करेगी। और फसल उपजाने का तेरा प्रयास सफल नही होगा।
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\v 12 जब तू खेती करने के लिए भूमि को जोतेगा तो वह तुझे बहुत कम फसल देगी। तू निरन्तर पृथ्वी के चारों ओर घूमता रहेगा और स्थायी रूप से रहने के लिए कोई स्थान नहीं मिलेगी।"
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\v 13 कैन ने यहोवा से कहा, "यह दण्ड इतना अधिक है कि मैं इसे सहन नहीं कर सकता।
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\v 14 आप मुझे उस भूमि से बाहर निकालने वाले हैं जिसमे मैं खेती कर रहा था और अब मैं आपकी उपस्थिति में भी नहीं आ पाऊँगा। इसके अतिरिक्त, मैं निरन्तर पृथ्वी पर भटकता रहूँगा और मेरे पास स्थायी रूप से रहने के लिए कोई स्थान नहीं होगा और जो मुझे देखेगा वह मुझे घात करेगा। "
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\v 15 परन्तु यहोवा ने उस से कहा, "नहीं, ऐसा नहीं होगा। मैं तुझ पर एक निशान लगाऊँगा जिसे देख कर हर कोई सावधान हो जाएगा। यदि कोई तुझको मारेगा तो मैं उस व्यक्ति को बहुत कठोर दण्ड दूँगा।" तब यहोवा ने कैन पर एक निशान लगाया।
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\s5
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\v 16 तब कैन यहोवा को छोड़कर नोद नामक प्रदेश में रहने के लिए चला गया। नोद का अर्थ है 'भटकना', और यह प्रदेश अदन के पूर्व में था।
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\p
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\v 17 कुछ समय उपरांत, कैन ने अपनी पत्नी के साथ सहवास किया और वह गर्भवती हुई। उसने एक पुत्र को जन्म दिया और उसका नाम हनोक रख दिया। तब कैन ने एक नगर का निर्माण शुरू किया, और उसने नगर को 'हनोक' नाम दिया, वही नाम जो उसके पुत्र का था।
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\s5
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\v 18 हनोक बड़ा हुआ और उसका विवाह हुआ। वह एक पुत्र का पिता बना जिसे उसने ईराद नाम दिया। जब ईराद बड़ा हुआ तो वह एक पुत्र का पिता बना जिसे उसने महुयाएल नाम दिया। महुयाएल बड़ा हुआ और एक पुत्र का पिता बना जिसे उसने मतूशाएल नाम दिया। मतूशाएल बड़ा हुआ और लेमेक का पिता बना।
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\v 19 जब लेमेक बड़ा हुआ तो उसने दो स्त्रियों से विवाह किया। एक का नाम आदा था और दूसरे का नाम सिल्ला था।
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\v 20 आदा ने याबाल नाम के एक पुत्र को जन्म दिया। बाद में, याबाल पहला व्यक्ति था जो तम्बू में रहता था और उसके लोग पशुओं का पालन करके जीवन निर्वाह करते थे। उन्हें पशुओ को खिलाने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना पड़ता था।
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\v 21 याबाल के छोटे भाई का नाम यूबाल था। वह पहला व्यक्ति था जिसने वीणा और बाँसुरी बनाई थी।
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\v 22 लमेक की दूसरी पत्नी सिल्ला ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसे उसने तूबलकैन नाम दिया। बाद में उसने सीखा कि काँसे और लोहे से चीजें कैसे बनायी जाती हैं। तूबलकैन की छोटी बहन का नाम नामा था।
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\v 23 एक दिन लमेक ने अपनी पत्नियों से कहा, "मेरी दोनों पत्नियों आदा और सिल्ला, मेरी बातों को सावधानी से सुनो। एक जवान पुरुष ने मुझे मारा और घायल कर दिया इसलिए मैंने उसे मार डाला।
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\v 24 यहोवा ने बहुत समय पहले कहा था कि जो कोई भी कैन से बदला लेगा और दंडित करेगा, वह कैन से सात गुना ज्यादा दंडित किया जाएगा। तो यदि कोई मुझे मारने का प्रयास करता है तो उसे सतहत्तर गुना ज्यादा दंडित किया जा सकता है।"
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\v 25 आदम ने अपनी पत्नी के साथ सहवास जारी रखा और वह फिर गर्भवती हुई। हव्वा ने एक और पुत्र को जन्म दिया, जिसे उसने शेत नाम दिया। हव्वा ने कहा, "मैं इसे शेत नाम देती हूँँ क्योंकि परमेश्वर ने मुझे हाबिल की स्थान लेने के लिए एक और संतान दिया है, क्योंकि कैन ने उसे मार डाला था।"
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\v 26 जब शेत बड़ा हुआ, तो वह एक पुत्र का पिता बना जिसे उसने एनोश नाम दिया। उस समय से लोग यहोवा की आराधना करने लगे।
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\c 5
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\v 1 यह उन लोगों की सूची है जो आदम के वंशज हैं। जब परमेश्वर ने मनुष्यों को बनाया, तो उन्होंने उन्हें कई प्रकार से अपने स्वरुप में बनाया।
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\v 2 उन्होंने एक पुरुष और एक स्त्री बनाई। उन्होंने उन्हें आशीर्वाद दिया और जिस दिन उन्होंने उन्हें बनाया, उन्हें 'मनुष्य' कहा।
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\v 3 जब आदम 130 वर्ष का था तो वह एक पुत्र का पिता बना जो उसके जैसा था। आदम ने उसका नाम शेत रखा।
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\v 4 शेत का जन्म होने के बाद आदम 800 वर्ष जीवित रहा और इन वर्षों में वह अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
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\v 5 आदम 930 वर्ष तक जीवित रहने के बाद मर गया।
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\s5
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\v 6 जब शेत 105 वर्ष का था, तब वह एनोश का पिता बना।
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\v 7 एनोश का जन्म होने के बाद शेत 807 वर्ष और जीवित रहा, और अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
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\v 8 शेत 912 वर्ष तक जीवित रहने के बाद मर गया।
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\v 9 जब एनोश नब्बे वर्ष का था तो वह केनान नामक पुत्र का पिता बना।
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\v 10 केनान के जन्म के बाद, एनोश 815 वर्ष और जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
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\v 11 एनोश 905 वर्ष तक जीवित रहा और फिर मर गया।
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\s5
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\v 12 जब केनान सत्तर वर्ष का था, तब वह महललेल नाम के पुत्र का पिता बना।
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\v 13 महललेल के जन्म के बाद केनान 840 वर्ष और जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियों के पिता बना।
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\v 14 केनान 910 वर्ष तक जीवित रहा और फिर वह मर गया।
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\s5
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\v 15 जब महललेल पैंसठ वर्ष का हुआ तब वह येरेद का पिता बना।
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\v 16 येरेद के जन्म के बाद महललेल आठ सौ तीस वर्ष जीवित रहा और वह दूसरे पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
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\v 17 महललेल 895 वर्ष तक जीवित रहा, और फिर वह मर गया।
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\v 18 जब येरेद 162 वर्ष का हुआ तब वह हनोक का पिता बना।
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\v 19 हनोक के जन्म के बाद येरेद आठ सौ वर्ष और जीवित रहा और वह अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
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\v 20 येरेद 962 वर्ष तक जीवित रहा और फिर वह मर गया।
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\s5
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\v 21 जब हनोक 65 का था तब वह मतूशेलह का पिता बना।
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\v 22 हनोक मतूशेलह के जन्म के 300 वर्ष बाद तक परमेश्वर के साथ घनिष्ठ संगति में रहता था और वह अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
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\v 23 हनोक 365 वर्ष जीवित रहा।
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\v 24 वह परमेश्वर के साथ घनिष्ठ सहभागिता में था और एक दिन वह गायब हो गया क्योंकि परमेश्वर उसे अपने साथ रहने के लिए उठा लिया।
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\v 25 जब मतूशेलह 187 वर्ष का था तब वह लेमेक का पिता बना।
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\v 26 लेमेक के जन्म के बाद मतूशेलह 782 वर्ष और जीवित रहा, और दूसरे पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
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\v 27 मतूशेलह 969 वर्ष तक जीवित रहा और फिर वह मर गया।
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\v 28 जब लेमेक 182 वर्ष का था तो वह एक पुत्र का पिता बना।
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\v 29 जिसे उसने नूह नाम दिया क्योंकि लेमेक ने कहा था, "वह हमें कड़ी परिश्रम से राहत देगा जो हम भूमि से पैदावार के लिए करते है क्योंकि यहोवा ने भूमि को शाप दे दिया था।"
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\v 30 नूह के जन्म के बाद लेमेक 595 वर्ष जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
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\v 31 लेमेक 777 वर्ष तक जीवित रहा और फिर वह मर गया।
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\s5
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\v 32 जब नूह 500 वर्ष का था, तब वह पुत्रों का पिता बना जिसका नाम उसने शेम, हाम, और येपेत रखा।
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\s5
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\c 6
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\p
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\v 1 जब मनुष्यों की संख्या पृथ्वी पर बहुत अधिक होने लगी और तब उनसे लड़कियाँ पैदा हुईं।
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\v 2 परमेश्वर के पुत्रों में से कुछ ने देखा कि मनुष्यों की लड़कियाँ सुन्दर थीं। इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी बनाने के लिए उनमें से किसी को भी चुन लिया।
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\v 3 तब यहोवा ने कहा, "मेरी सांस हमेशा लोगों में नहीं रहेगी कि वे जीवित रहे। वे कमजोर मांस से बने हैं। वे 120 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेंगे।"
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\p
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\v 4 जब ये परमेश्वर के पुत्र मनुष्यों की पुत्रियों के साथ सोये तो उन्होंने बच्चों को जन्म दिया। ये वही दैत्य थे जो पृथ्वी पर उस समय और उसके बाद भी रहे। ये दैत्य वीर सैनिक थे और ये बहुत पहले से प्रसिद्ध थे।
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\s5
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\v 5 यहोवा ने देखा कि पृथ्वी पर मनुष्य बहुत अधिक दुष्ट हो गए हैं और जो कुछ मनुष्य अपने मन में विचार करते हैं वह निरन्तर बुरा होता था।
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\v 6 यहोवा को इस बात का दुःख हुआ कि उन्होंने पृथ्वी पर मनुष्यों को बनाया। इन बातो ने यहोवा को बहुत दुःखी किया।
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\s5
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\v 7 तब यहोवा ने कहा, "मैं अपनी बनाई पृथ्वी के सारे लोगों को खत्म कर दूँगा। मैं हर बड़े जानवर, पृथ्वी पर रेंगने वाले प्रत्येक जीवजन्तु और पक्षियों को भी नाश करूँगा। इनमें से कोई भी पृथ्वी पर जीवित नहीं रहेगा क्योंकि मैं इस बात से दुःखी हूँँ कि मैंने इन सभी को बनाया।"
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\v 8 परन्तु यहोवा नूह से प्रसन्न थे।
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\v 9 नूह एक ऐसा व्यक्ति था जिसका व्यवहार हमेशा धार्मिक था। उस समय का कोई भी व्यक्ति नूह की आलोचना नहीं कर सकता था। नूह परमेश्वर के साथ रहता था।
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\v 10 नूह के तीन पुत्र थे: शेम, हाम और येपेत।
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\s5
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\v 11 परमेश्वर ने देखा कि पृथ्वी पर प्रत्येक व्यक्ति बहुत दुष्ट थे और पृथ्वी पर सभी स्थानों के लोग एक-दूसरे के प्रति क्रूर और हिंसक थे।
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\v 12 परमेश्वर ने पृथ्वी पर दृष्टि की और देखा कि लोग कितने बुरे थे क्योंकि पृथ्वी पर सभी लोग एक-दुसरे के साथ दुष्टता का व्यवहार कर रहे थे।
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\s5
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\v 13 इसलिए परमेश्वर ने नूह से कहा, "मैंने सभी लोगों को नष्ट करने का निर्णय किया है क्योंकि सारी पृथ्वी पर लोग एक-दूसरे के प्रति हिंसक हैं। इसलिए मैं सभी जीवित प्राणियों से छुटकारा चाहता हूँ इसके साथ ही पृथ्वी की प्रत्येक वस्तु से भी। मैं उनको पृथ्वी से मिटाऊँगा।
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\v 14 गोपेर की लकड़ी से अपने लिए एक जहाज बना। इसके अंदर कमरे बना। जल अन्दर न आये इसलिए इसे राल से अन्दर और बाहर पोत दे।
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\v 15 तुझे इसे ऐसे ही बनाना है: यह जहाज 138 मीटर लंबा, 24 मीटर चौड़ा और 14 मीटर ऊँचा होना चाहिए।
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\s5
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\v 16 जहाज के लिए छत बना। हवा और प्रकाश प्रवेश करने के लिए किनारों और छत के बीच लगभग आधे मीटर की स्थान छोड़ देना। इसके अंदर तीन मंजिलें बना और एक दरवाजा रख।
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\v 17 ध्यान से सुन! मैं जल प्रलय लाने वाला हूँँ जो आकाश के नीचे रहने वाले और पृथ्वी के सभी प्राणियों को नष्ट कर देगा।
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\s5
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\v 18 किन्तु मैं तुझ से एक विशेष प्रतिज्ञा करता हूँ, तू और तेरी पत्नी, तेरे पुत्र और उनकी पत्नियाँ सभी जहाज में प्रवेश करेंगे।
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\v 19 तुझे अपने साथ जहाज में सभी जीवित प्राणियों के एक नर और एक मादा को भी ले जाना है ताकि वे भी जीवित रह सकें।
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\s5
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\v 20 तेरे पास हर प्रकार के दो प्राणी आएंगे ताकि तू उन्हें जीवित रख सके। इसमें प्रत्येक प्रकार के दो पक्षी और प्रत्येक प्रकार के दो बड़े जानवर और प्रत्येक प्रकार के पृथ्वी पर रेंगने वाले दो जन्तु हों।
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\v 21 तुमको सभी प्रकार के वैसे भोजन भी लेने हैं जिनकी आवश्यकता इन सभी प्राणियों को होगी। भोजन को जहाज में जमा कर लेना। "
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\v 22 तब नूह ने सब कुछ किया जो परमेश्वर ने नूह से करने के लिए कहा था।
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\s5
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\c 7
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\p
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\v 1 तब यहोवा ने नूह से कहा, "मैंने देखा है कि इस समय के सभी जीवित लोगों में तू ही एक अकेला है जो न्यायपूर्ण ढंग से काम करता है। इसलिए मैं चाहता हूँँ कि तू और तेरा परिवार जहाज में जा।
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\v 2 तू अपने साथ हर प्रकार के जानवरो के सात जोड़े लेना जिनका बलिदान मैं स्वीकार करूँगा। सात नर और सात मादा ले। एक नर और एक मादा उन जानवरों का लेना जिनका बलिदान स्वीकार करने से मैंने मना कर दिया था।
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\v 3 उनके वंश को पृथ्वी पर जीवित रखने के लिए हर प्रकार की पक्षियों के सात जोड़े भी लें।
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\s5
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\v 4 ऐसा इसलिए कर क्योंकि अब से सातवें दिन मैं पृथ्वी पर अत्याधिक वर्षा भेजूँगा। यह वर्षा चालीस दिन और चालीस रात होती रहेगी। इस प्रकार, मैंने पृथ्वी पर जो कुछ भी बनाया है उन सबको मैं नष्ट कर दूँगा।"
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\p
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\v 5 नूह ने वह सबकुछ किया जो यहोवा ने नूह को करने के लिए कहा था।
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\s5
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\v 6 धरती पर जल प्रलय आने के समय नूह छः सौ वर्ष का था।
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\v 7 वर्षा शुरू होने से पहले, नूह और उसकी पत्नी और उसके बेटे और उनके बेटो की पत्नियाँ जलप्रलय से बचने के लिए जहाज में आ गए।
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\s5
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\v 8 उन जानवरों के जोड़े जिनको परमेश्वर ने कहा था कि वह बलिदान के लिए स्वीकार किए जाएँगे और वे जोड़े भी जो बलिदान के लिए स्वीकार नहीं किए जाएँगे, और पक्षियों के जोड़े और सभी प्रकार के प्राणियों के जोड़े जो भूमि पर रेंगते हैं,
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\v 9 सभी प्रकार के नर और मादा जानवर नूह के पास आए और परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार जहाज में चढ़े।
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\v 10 सात दिनों बाद वर्षा शुरू हुई और जल पृथ्वी पर बढ़ने लगा।
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\v 11 जब नूह छह सौ वर्ष का था तो दूसरे महीने के सत्रहवें दिन पृथ्वी के नीचे का सारा जल फूट के बहना शुरु हो गया। उसी दिन पृथ्वी पर अत्याधिक वर्षा होने लगी ऐसा लगा मानो आकाश फट गया हो।
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\v 12 चालीस दिन और चालीस रात तक निरन्तर वर्षा पृथ्वी पर होती रही।
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\v 13 जिस दिन वर्षा शुरू हुई उसी दिन नूह, उसकी पत्नी, उसके पुत्र शेम, हाम और येपेत और उनकी पत्नियाँ जहाज़ में प्रवेश कर गए।
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\v 14 नूह और उसके परिवार सहित हर प्रकार के जंगली जानवर, हर प्रकार के पालतू पशु, धरती पर रेंगनेवाले प्रत्येक प्रकार के जन्तु, हर प्रकार के पक्षी और पंख वाले हर प्रकार के प्राणी जहाज में प्रवेश कर गए।
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\v 15 सांस लेने वाले सभी प्राणियों के जोड़े नूह के पास आए और उन्होंने जहाज में प्रवेश किया।
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\v 16 परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार सभी जानवरों के नर और मादा नूह के पास आये और जहाज़ में चढ़े। उनके अन्दर जाने के बाद यहोवा ने दरवाज़ा बन्द कर दिया।
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\p
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\s5
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\v 17 चालीस दिन तक जल प्रलय होता रहा और जल बढ़ना शुरु हुआ। जल ने जहाज को भूमि से ऊपर उठा दिया।
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\v 18 जल पृथ्वी पर बहुत ही बढ़ गया और जहाज जल के ऊपर तैरता रहा।
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\v 19 जल पृथ्वी पर इतना बढ़ गया कि ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और पृथ्वी पर सब कुछ उसमें डूब गए।
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\v 20 जल यहाँ तक बढ़ा कि ऊँचे पहाड़ भी छह मीटर से अधिक जल से ढके थे और आकाश के नीचे स्थिर थे।
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\s5
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\v 21 इसके परिणामस्वरूप, पृथ्वी के सभी जीव मारे गए। इसमें पक्षियों, पालतू पशु, जंगली जानवरों, और अन्य सभी जीव पृथ्वी पर रेंगने वाले जीव शामिल थे। पृथ्वी पर सभी लोग मारे गए।
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\v 22 पृथ्वी पर सांस लेने वाला प्रत्येक जीव मारा गया।
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\s5
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\v 23 इस प्रकार पृथ्वी के सभी जीव मर गये। मरने वालो में हर मनुष्य, हर एक बड़ा जानवर, हर एक रेंगने वाला जीव और हर एक पक्षी शामिल थे। जीवित बचने वालों में नूह और उसके साथ जहाज में रहने वाले थे।
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\v 24 जल 150 दिनों तक पृथ्वी पूरी तरह जल प्रलय में डूबी रही।
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\c 8
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\v 1 परन्तु परमेश्वर नूह को नहीं भूले, न ही परमेश्वर सभी जंगली जानवरों, और पालतू पशुओं को भूले जो नूह के साथ जहाज में थे। एक दिन परमेश्वर ने पृथ्वी पर हवा को बहाया और हवा बहने से सारा जल कम होने लगा
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\v 2 परमेश्वर ने पृथ्वी के नीचे से जल को निकलने से रोका और आकाश से भी जल का गिरना रोका और वर्षा रूक गई।
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\v 3 पृथ्वी पर जल धीरे-धीरे कम हो गया। बाढ़ के एक सौ पचास दिन बाद जल बहुत कम हो गया।
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\v 4 सातवें महीने के सत्रहवें दिन जहाज अरारात के पहाड़ों में से किसी एक पर आ टिका।
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\v 5 उस वर्ष के दसवें महीने के पहले दिन तक जल का कम होना जारी रहा और अन्य पहाड़ों की चोटियाँ दिखाई देने लगीं।
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\v 6 चालीस दिन बाद, नूह ने उस खिड़की को खोला जो उसने जहाज के किनारे पर बनायी थी, और एक कौवा बाहर भेजा।
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\v 7 कौवा इधर-उधर उड़ता रहा जब तक कि पृथ्वी की सतह पूरी तरह से नहीं सूख गयी।
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\v 8 तब नूह ने एक कबूतर भेजा यह पता लगाने के लिए कि जल पृथ्वी की सतह से कम हुआ है या नहीं।
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\v 9 लेकिन कबूतर को कहीं बैठने का स्थान नहीं मिला क्योंकि अभी तक जल पृथ्वी पर फैला हुआ था। इसलिए वह जहाज में लौट आया और नूह ने अपने हाथ को बाहर निकालकर कबूतर को जहाज के अंदर वापस ले लिया।
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\s5
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\v 10 नूह ने सात दिन के बाद फिर कबूतर को जहाज से बाहर भेजा।
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\v 11 इस बार कबूतर शाम को नूह के पास लौटा और आश्चर्य की बात है कि एक जैतून का पत्ता उसकी चोंच में था। तब नूह को ज्ञात हुआ कि अब जल पृथ्वी पर कम हो गया है।
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\v 12 नूह ने फिर से सात दिन प्रतीक्षा की और सात दिनों के बाद कबूतर को फिर से भेजा लेकिन इस बार वह नूह के पास वापस नहीं आया।
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\v 13 नूह अब 601 वर्ष का था। उस वर्ष के पहले महीने के पहले दिन, भूमि से जल पूरी तरह सूख चुका था। नूह ने जहाज की छत की खिड़की खोल कर देखा, और वह देखकर आश्चर्यचकित हुआ कि भूमि की सतह सूख रही थी।
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\v 14 अगले महीने के पच्चीसवें दिन तक, पृथ्वी पूरी तरह सूख गयी।
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\s5
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\v 15 तब परमेश्वर ने नूह से कहा,
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\v 16 "तू, अपनी पत्नी, अपने पुत्र और उनकी पत्नियाँ सभी को लेकर अब जहाज से बाहर निकलो।
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\v 17 तुम सभी पक्षियों, पालतू जन्तुओ, और पृथ्वी पर रेंगने वाले सभी जीवों को बाहर लाओ, ताकि वे पूरी पृथ्वी पर फैल सकें और अनगिनत हो जाएँ।"
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\s5
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\v 18 तब नूह अपने पुत्रों, अपनी पत्नी, अपने पुत्रों की पत्नियों के साथ जहाज़ से बाहर आया।
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\v 19 तब सभी जानवरों, सभी रेंगने वाले जीवों और सभी पक्षियों ने जहाज़ को छोड़ दिया। जहाज से वे अपनी जाती के जानवरों के साथ समूहों में निकले।
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\p
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\s5
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\v 20 तब नूह ने यहोवा के लिए एक वेदी बनाई। नूह ने कुछ जानवरों और पक्षियों को लिया जो बलिदान के रूप में स्वीकार्य थे और उनकी बलि दी। और नूह ने उनको वेदी पर पूरा जलाया।
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\v 21 जब यहोवा ने बलियों की सुगन्ध पाई तो वे प्रसन्न हुए। तब परमेश्वर ने स्वयं से कहा, "मैं कभी भी लोगों के पाप के कारण पृथ्वी का विनाश नहीं करूँगा। भले ही मनुष्य छोटी आयु से ही बुरी बातें सोचे, जैसा मैंने इस बार किया है इस प्रकार मैं कभी भी सारे प्राणियों का विनाश नहीं करूँगा।
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\v 22 जब तक यह पृथ्वी रहेगी तब तक इस पर फसल उगाने और फ़सल काटने का समय, गर्मी, सर्दी, दिन और रात सदा होते रहेंगे।"
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\c 9
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\p
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\v 1 तब परमेश्वर ने नूह और उसके बेटों को आशीष दी। परमेश्वर ने उनसे कहा, "मैं चाहता हूँँ कि तुम बहुत से संतान पैदा करो जो पूरी पृथ्वी पर भर जाएं।
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\v 2 पृथ्वी के सभी बड़े जानवर, हर एक पक्षी, पृथ्वी पर रेंगने वाला हर एक जीव, हर एक मछली तुम से डरेंगे। तुम इन सभी के ऊपर शासन करोगे। मैं उन्हें तुम्हारे अधिकार में रखता हूँँ।
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\v 3 पहले मैंने तुमको हरे पेड़-पौधे खाने की अनुमति दी थी। लेकिन अब तुम उन सभी को अपना भोजन बना सकते हो जिनमें प्राण है और जो चलते फिरते हैं।
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\v 4 लेकिन तुम उस मांस को नहीं खाना जिसमें खून है, क्योंकि उसके खून में उसका जीवन है।
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\s5
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\v 5 जो कोई भी मनुष्य को मारेगा मैं उसे दण्डित करूँगा- ताकि वह यहोवा के प्रति उत्तरदायी हो- चाहे वह पशु हो या मनुष्य। हत्यारों को अपने अपराधों के लिए पीड़ा सहनी पड़ेगी और अपने जीवन से ही उसका भुगतान करना होगा। यहाँ तक कि जब एक जानवर किसी व्यक्ति को मारता है, तब भी उस जानवर की जान लेनी होगी क्योंकि उसने मनुष्य का जीवन लिया है।
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\v 6 क्योंकि मैंने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया है इसलिए मैं जोर देकर कहता हूँ कि यदि कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की हत्या करता है तो लोगों को उसे मार डालना चाहिए। कोई भी किसी और का खून बहाता है उसका अपना भी खून बहेगा।
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\p
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\v 7 तुमसे मैं यह चाहता हूँ कि तुम बहुत सारी संतान पैदा करो ताकि वे और उनके वंशज पूरी पृथ्वी पर रह सकें।"
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\p
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\s5
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\v 8 परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों से यह भी कहा,
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\v 9 "ध्यान से सुनो। अब मैं तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को वचन देता हूँँ,
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\v 10 मैं यह वचन तुम्हारे साथ उस हर प्राणी को देता हूँ जो जीवित है- पक्षियों, पालतू पशु, जंगली जानवरों सहित पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक जीवित प्राणी जो तुम्हारे साथ जहाज से निकले हैं।
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\s5
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\v 11 मैं तुमको वचन दे रहा हूँ: मैं कभी भी बाढ़ से जीवित प्राणी को नष्ट नहीं करूँगा और न ही बाढ़ से पृथ्वी की किसी भी वस्तु को नष्ट करूँगा।"
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\v 12 तब परमेश्वर ने उससे कहा, "मेरी प्रतिज्ञा यह आश्वासन देने के लिए है कि जो वचन मैंने तुझे और सभी जीवित प्राणियों को दिया है उसे मैं हमेशा याद रखूँगा:
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\v 13 समय-समय पर मैं आकाश में मेघधनुष दिखलाऊँगा। यह तुम्हारे और पृथ्वी पर सबके मध्य दिये गए मेरी प्रतिज्ञा का चिन्ह होगा।
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\v 14 जब मैं बादलों से वर्षा करवाऊँगा तब आकाश में एक मेघधनुष दिखाई पड़ेगा।
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\v 15 यह मुझे उस प्रतिज्ञा को याद दिलाएगा जो मैंने तुम्हारे और सभी जीवित प्राणियों के साथ किया है। मेरी प्रतिज्ञा है कि बाढ़ फिर कभी पृथ्वी के प्राणियों को नष्ट नहीं करेगी।
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\v 16 जब भी आकाश में मेघधनुष निकलेगा और मैं उसे देखूँगा तब मैं उस प्रतिज्ञा को याद करूँगा जो मैंने पृथ्वी पर रहने वाले हर जीव के साथ की है और जिसे मैं सदा पूरा करता रहूँगा।"
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\p
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\v 17 तब परमेश्वर ने नूह से कहा, "मेघधनुष उस प्रतिज्ञा का चिन्ह होगा जो मैंने पृथ्वी पर सभी जीवित प्राणियों के साथ की है।"
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\v 18 नूह के पुत्र जो जहाज से निकले उनके नाम थे; शेम, हाम और येपेत। बाद में हाम कनान का पिता बना ।
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\v 19 संसार के सभी लोग नूह के इन तीनों बेटों के वंशज हैं।
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\v 20 नूह ने भूमि पर खेती करना आरम्भ किया। उसने अंगूर के बाग़ लगाए।
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\v 21 अंगूरों के फलने पर उसने अंगूरों से दाखरस बनाया। एक दिन उसने बहुत दाखरस पीलिया और मतवाला हो गया और वह अपने तम्बू में बिना कपड़े के लेट गया।
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\s5
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\v 22 कनान के पिता हाम ने अपने पिता को तम्बू में नंगा देखा। वह बाहर आया और हाम ने अपने बड़े भाइयों को जो देखा वह बताया।
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\v 23 तब शेम और येपेत ने एक बड़ा कपड़ा लिया, उसे पीठ पर डाल कर पीछे की ओर तम्बू में ले गए। उन्होंने कपड़े से अपने पिता के नग्न शरीर को ढँक दिया और उन्होंने अपने पिता के शरीर से मुँह फेर रखा था इसलिए उन्होंने अपने पिता को नग्न नहीं देखा।
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\s5
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\v 24 बाद में जब नूह सोकर उठा, वह शांत हो गया था। उसे ज्ञात हुआ कि उसके सबसे छोटे पुत्र हाम ने उसके साथ कितना बुरा व्यवहार किया था।
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\v 25 उसने कहा, "मैं हाम के पुत्र कनान और उसके वंशजों को शाप देता हूँँ कि वे अपने चाचाओं के दास होंगे।
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\q
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\v 26 मैं उन यहोवा की स्तुति करता हूँँ जिनकी आराधना शेम करता है। कनान के वंशज शेम के वंशज के दास हों ।
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\v 27 लेकिन परमेश्वर येपेत को अधिक भूमि दें। परमेश्वर येपेत के वंशजों को शेम के वंशजों के साथ शांतिपूर्वक रखे। कनान के वंशज शेम के वंशज के दास हों। "
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\v 28 जलप्रलय के बाद नूह 350 वर्ष जीवित रहा।
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\v 29 950 वर्ष की उम्र में नूह मर गया।
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\c 10
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\v 1 ये नूह के पुत्र शेम, हाम, और येपेत के वंशज थे जो जलप्रलय के बाद वे अनेक संतानों के पिता बने।
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\v 2 येपेत के पुत्र गोमेर, मागोग, मादै, यावान, तूबल, मेशेक और तीरास थे।
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\v 3 गोमेर के पुत्र अश्कनज, रीपत और तोगर्मा थे।
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\v 4 यावन के पुत्र एलीशा, तर्शीश, कित्ती और दोदानी थे।
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\v 5 यावन के पुत्र और उनके परिवार जो यावन के वंशज थे, द्वीपों और समुद्र के तट की भूमि में रहते थे।उनके वंशजों से ही लोगों का समाज बना, जिनकी अपनी-अपनी भाषा, कुल और प्रदेश थे।
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\v 6 हाम के पुत्र कूश, मिस्र, फूत और कनान थे।
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\v 7 कुश के पुत्र सबा, हवीला, सबता, रामा, सब्तका थे। रामा के पुत्र शबा और ददान थे।
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\p
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\v 8 कुश के पुत्रों में से एक पुत्र का नाम निम्रोद था। निम्रोद पृथ्वी का पहला शक्तिशाली योद्धा बना।
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\v 9 यहोवा ने देखा कि वह एक महान शिकारी बन गया है। यही कारण है कि लोग कहते हैं वह महान शिकारी है, यहोवा की दृष्टी में निम्रोद के समान महान शिकारी।"
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\v 10 निम्रोद एक राजा बन गया और उसने बाबेल प्रदेश पर शासन किया। बाबेल, एरेख अक्कद और कलने ये वो नगर थे जिन पर निम्रोद ने शासन किया था।
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\v 11 वहाँ से वह अन्य लोगों के साथ अश्शूर भी गया, और वहाँ उसने निनवे, रहोबोतीर, कालह और रेसेन नाम के नगरों का निर्माण किया,
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\v 12 रेसेन नीनवे और बड़े नगर कालह के बीच का एक बड़ा नगर था।
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\v 13 हाम का पुत्र मिस्र, लूदी, अनामी, लहाब और नप्तुह,
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\v 14 पत्रूस, कसलूह और कप्तोर के लोगों के समुदाय का पूर्वज बना। पलिश्ती लोग कसलूह के वंशज थे।
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\v 15 हाम का सबसे छोटा पुत्र कनान, सीदोन का पिता था जो सीदोन कनान का बड़ा पुत्र और हित्त उसका छोटा पुत्र था।
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\v 16 कनान के वंशज थे; यबूसी, एमोरी, गिर्गाशी
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\v 17 हिब्बी, अर्की, सीनी,
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\v 18 अर्वदी, समारी, हमाती के समुदाय आगे चलकर कनान के वंशज एक बड़े क्षेत्र में फैल गये।
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\v 19 उनकी भूमि उत्तर में सीदोन नगर से लेकर, दक्षिण में गाजा तक जो गरार के निकट पूर्व दिशा में सदोम और गमोरा, अदमा और सबोयीम के नगरों तक, वहाँ से लाशा तक थी।
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\v 20 ये सभी लोग हाम के वंशज हैं। इन सभी लोगों के अपने कुल, अपनी भाषा और अपनी भूमि थी।
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\v 21 शेम जो येपेत का बड़ा भाई था और उसके भी पुत्र थे, और शेम एबेर के सारे वंशजों का पूर्वज बना।
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\v 22 शेम के पुत्र एलाम, अश्शूर, अर्पक्षद, लूद और अराम थे।
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\v 23 अराम के पुत्र ऊस, हूल, गेतेर और मश थे।
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\v 24 अर्पक्षद शेलह का पिता बना। शेलह एबेर का पिता बना।
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\v 25 एबेर दो पुत्रों का पिता बना। उनमें से एक पुत्र का नाम पेलेग था, जिसका अर्थ है "विभाजन," क्योंकि उस समय के दौरान, पृथ्वी पर लोग विभाजित हो गए और हर स्थान बिखरे हुए थे। पेलेग का छोटा भाई योक्तान था।
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\v 26 योक्तान अल्मोदाद, शेलेप, हसर्मावेत, येरह,
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\v 27 हदोराम, ऊजाल, दिक्ला,
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\v 28 ओबाल, अबीमाएल, शबा,
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\v 29 ओपीर हवीला और योबाब का पिता था। ये सभी योक्तान के पुत्र थे।
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\s5
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\v 30 शेम के पुत्रों के कुल मेशा से सपारा तक फैलने लगे, जो पूर्व दिशा के पहाड़ी देश में है।
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\v 31 वे शेम के पुत्रों के वंशज हैं। वे ऐसे समुदाय थे जिनके अपने स्वयं के समूह, अपनी भाषाएं और अपनी भूमि थी।
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\p
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\s5
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\v 32 ये सभी कुल नूह के पुत्रों से निकले थे। प्रत्येक कुल की अपनी वंशावली थी और वे अलग समुदाय बने। इनके समुदाय जलप्रलय के बाद बढ़ते गये और पृथ्वी के चारों ओर फैल गए।
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\s5
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\c 11
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\p
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\v 1 इस समय, संसार के सभी लोग एक ही भाषा बोलते थे।
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\v 2 जब लोग पूर्व दिशा की ओर बढ़े, वे बाबुल क्षेत्र के एक मैदान में पहुँचे और वहाँ रहने लगे।
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\p
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\s5
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\v 3 तब उन्होंने एक दूसरे से कहा, "चलो हम ईंटें बनाते हैं और इन्हें आग में तपा कर ठोस करके इमारत बनाने में इसका प्रयोग करते हैं।" इसलिए उन्होंने पत्थरों की अपेक्षा ईंटों का प्रयोग किया, और गारे के स्थान पर राल का प्रयोग किया।
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\v 4 उन्होंने कहा, "हम अपने लिए एक नगर बनाएँ! हम एक बहुत ऊँची इमारत बनाएँगे जो आकाश को छुएगी। इस प्रकार लोग जान लेंगे कि हम कौन हैं! यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो हम पूरी पृथ्वी पर बिखर जाएँगे!"
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\p
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\s5
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\v 5 एक दिन यहोवा नगर और उस इमारत को जो लोग बना रहे थे देखने के लिए नीचे आये।
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\v 6 यहोवा ने कहा, "ये लोग एक समुदाय हैं जो एक ही भाषा बोलते हैं। यदि उन्होंने ऐसा करना शुरू कर दिया है तो ऐसा कुछ भी नहीं है जो वे करने का निर्णय करें और उनके लिए वह असंभव होगा!
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\v 7 इसलिए आओ हम नीचें चले और लोगों को अलग-अलग भाषाएँ बुलवाए ताकि वे एक-दूसरे की बातें समझ न सकें। "
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\p
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\s5
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\v 8 ऐसा करके, यहोवा ने लोगों को पूरी पृथ्वी पर बिखेर दिया और लोगों ने नगर का निर्माण बंद कर दिया।
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\v 9 नगर को बाबेल कहा जाता था, क्योंकि वहाँ यहोवा ने पूरी पृथ्वी के लोगों के साथ ऐसा किया कि अब सभी मात्र एक भाषा नहीं बोलते थे। और यहोवा ने उन्हें सारी पृथ्वी पर तितर-बितर कर दिया।
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\s5
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\v 10 ये सभी शेम के वंशज हैं। जलप्रलय के दो वर्ष बाद, जब शेम एक सौ वर्ष का था, वह अर्पक्षद का पिता बना।
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\v 11 अर्पक्षद के जन्म के बाद, शेम पांच सौ वर्ष जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियाँ का पिता बना।
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\v 12 जब अर्पक्षद पैंतीस वर्ष का था तब वह शेलह का पिता बना।
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\v 13 शेलह के जन्म के बाद, अर्पक्षद 403 वर्ष और जीवित रहा और दूसरे पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
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\s5
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\v 14 जब शेलह तीस वर्ष का था तब वह एबेर का पिता बना।
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\v 15 एबेर के जन्म के बाद शेलह 403 वर्ष और जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
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\s5
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\v 16 जब एबेर चौबीस वर्ष का था तो वह पेलेग का पिता बना।
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\v 17 पेलेग के जन्म के बाद एबेर 430 और वर्ष और जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
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\v 18 जब पेलेग तीस वर्ष का था वह रु के पिता बना।
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\v 19 रु के जन्म के बाद, पेलेग 209 और वर्ष जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
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\v 20 जब रु बत्तीस वर्ष का था तो वह सरूग का पिता बना।
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\v 21 सरुग के जन्म के बाद, रु 207 और वर्ष और जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
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\s5
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\v 22 जब सरुग तीस वर्ष का था, तब वह नाहोर का पिता बना।
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\v 23 नाहोर के जन्म के बाद, सेरुग दो सौ वर्ष और जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
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\s5
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\v 24 जब नाहोर उनतीस वर्ष का था, तब वह तेरह का पिता बना।
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\v 25 तेरह के जन्म के बाद, नाहोर 119 वर्ष और जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
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\v 26 तेरह जब सत्तर वर्ष का था तब वह अब्राम, नाहोर और हारान का पिता बना।
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\s5
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\v 27 यह तेरह के वंशजों का विवरण है: तेरह के पुत्र अब्राम, नाहोर और हारान थे। हारान के पुत्र का नाम लूत था।
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\v 28 हारान के पिता हारान के साथ थे जब हारन की मृत्यु ऊर नगर में हुई जो कसदियों का देश था। यह वह भूमि थी जहाँ वह पैदा हुआ था।
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\s5
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\v 29 अब्राम और नाहोर दोनों विवाहित थे। अब्राम की पत्नी का नाम सारै था, और नाहोर की पत्नी का नाम मिल्का था। मिल्का और उसकी बहन यिस्का हारान की पुत्रियाँ थीं।
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\v 30 सारै संतान को जन्म देने में असमर्थ थी।
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\p
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\s5
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\v 31 तेरह ने ऊर छोड़ने और कनान देश में रहने का निर्णय किया। इसलिए उसने अपने पुत्र अब्राम और अपने पोते लूत (हारान के पुत्र) और अब्राम की पत्नी सारै को अपने साथ ले लिया। लेकिन कनान जाने की अपेक्षा, वे हारान नगर में रुके और वहाँ ठहरना तय किया।
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\v 32 जब तेरह 205 वर्ष का था तो वह हारान में मर गया।
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\s5
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\c 12
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\p
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\v 1 तब यहोवा ने अब्राम से कहा, "अपने देश को छोड़ दे जहाँ तू रह रहा है। अपने पिता के कुल और उसके परिवार को छोड़ दे और उस देश को जा जिसे मैं तुझे दिखाऊँगा।
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\v 2 मैं तेरे वंशजों को एक बड़ा राष्ट्र बनाऊँगा। मैं तुझे आशीर्वाद दूँगा और प्रसिद्ध करूँगा। मैं तेरे लिए जो करूँगा वो दूसरो के लिए आशीर्वाद होगा।
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||
|
\v 3 मैं उन लोगों को आशीर्वाद दूँगा, जो तुझको आशीर्वाद देंगे और मैं उन लोगों को श्राप दूँगा जो तेरा बुरा करेंगे। मैं तेरे माध्यम से पृथ्वी के सभी कुलों को आशीर्वाद दूँगा।"
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\p
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\s5
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\v 4 तब अब्राम ने हारान देश को छोड़ दिया जैसा यहोवा ने उसे करने के लिए कहा था। अब्राम जब अपने परिवार और लूत के परिवार के साथ वहाँ से निकला तब वह पचहत्तर वर्ष का था ।
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\v 5 अब्राम अपनी पत्नी सारै, भतीजे लूत और हारान प्रदेश में जमा की गई सारी संपत्ति और दासों को भी अपने साथ ले लिया। वे वहाँ से कनान देश गए।
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\s5
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\v 6 कनान देश में शकेम के नगर तक उन्होंने यात्रा की और बड़े पेड़ के निकट जिसे मोरे का पेड़ कहते थे वहाँ छावनी लगाई। उस समय कनानी लोग उस देश में रहते थे।
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\v 7 तब यहोवा अब्राम के सामने प्रकट हुए और कहा, "मैं यह देश तेरे वंशजों को दूँगा।" तब अब्राम ने यहोवा को बलि चढ़ाने के लिए एक वेदी बनाई, क्योंकि यहोवा उसके लिए ही प्रकट हुए थे।
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\s5
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\v 8 शकेम से, अब्राम और उसका परिवार बेतेल के पूर्व दिशा की पहाड़ियों पर चढ़ गया। बेतेल वहाँ से पश्चिम में था जहाँ उन्होंने अपने तम्बू स्थापित किये थे, और आई नगर पूर्व दिशा में था। वहाँ उन्होंने एक और वेदी बनाई और बलि चढ़ाया और वहाँ यहोवा की आराधना की।
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\v 9 तब वे वहाँ से चले गए और दक्षिण में नेगव रेगिस्तान की ओर यात्रा को जारी रखा।
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\v 10 उस देश में अकाल पड़ा था इसलिए वे मिस्र देश में थोडे समय तक प्रवास करने के लिए आगे दक्षिण की ओर चले गए। उस देश में भोजन की कमी थी और यह गंभीर समस्या थी।
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\v 11 जब वे मिस्र देश के निकट पहुँचे तब अब्राम ने अपनी पत्नी सारै से कहा, "सुन, मुझे पता है कि तू बहुत सुंदर स्त्री है।
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\v 12 जब मिस्र के लोग तुझे देखेंगे तो वे कहेंगे, 'यह स्त्री इसकी पत्नी है!' और वे मुझे मार डालेंगे लेकिन वे तुझे नहीं मारेंगे।
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\v 13 इसलिए मैं तुझे जो कहने के लिए कहता हूँँ वही तू लोगों से कहना कि तू मेरी बहन है ताकि मैं सुरक्षित रहूँ और वे तेरे कारण मेरे जीवन को छोड़ देंगे।"
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\p
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\s5
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\v 14 और यही हुआ, जैसे ही वे मिस्र पहुँचे, मिस्र के लोगों ने देखा कि उसकी पत्नी वास्तव में बहुत सुन्दर थी।
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\v 15 जब राजा के अधिकारियों ने उसे देखा, तो उन्होंने राजा से कहा कि वह बहुत सुन्दर स्त्री है। तब राजा उसे अपने महल में ले आया।
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\v 16 राजा ने सारै के कारण अब्राम से अच्छा व्यवहार किया और उसने अब्राम को भेड़ें, मवेशी और गदहे, स्त्री और पुरुष दास और ऊंट दिए।
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\s5
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\v 17 परन्तु राजा ने अब्राम की पत्नी सारै को रख लिया इसलिए यहोवा ने राजा और राजा के परिवार को भयंकर बीमारियों से पीड़ित किया।
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\v 18 तब राजा ने अब्राम को बुलाया और कहा, "तूने मेरे साथ बहुत गलत किया है! तूने मुझे यह क्यों नहीं बताया कि सारै तेरी पत्नी है?
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\v 19 तूने क्यों कहा कि वह तेरी बहन है मैंने इसे इसलिए रखा कि यह मेरी पत्नी होगी। तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था! अब अपनी पत्नी को लेकर चले जाओ!"
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\v 20 तब राजा ने अपने अधिकारियों को अब्राम और उसकी पत्नी और उसकी सारी संपत्ति को मिस्र से बाहर ले जाने का आदेश दिया।
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\s5
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\c 13
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\p
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\v 1 अब्राम और सारै ने मिस्र छोड़ दिया और दक्षिणी जुदेन के जंगल में वापस चले गये। वे अपनी सारी सम्पत्ति साथ ले गये और लूत भी उनके साथ चला गया।
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\v 2 अब्राम बहुत धनी हो गया था। उसके पास बहुत से जानवर, चाँदी और सोना था।
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\v 3 वे दक्षिणी जुदेन के जंगल से बेतेल की ओर विभिन्न स्थानों की यात्रा करते हुए, बेतेल और आई के बीच के प्रदेश पहुँचे, जहाँ वे पहले अपने तम्बू लगाकर ठहरे थे।
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\v 4 यह वही स्थान था जहाँ अब्राम ने एक वेदी बनाई थी; वहाँ उसने फिर से यहोवा की आराधना की।
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\s5
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\v 5 लूत, जो अब्राम के साथ यात्रा कर रहा था उसके पास भी भेड़, बकरी, पशुओं के झुण्ड और तम्बू भी थे।
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\v 6 अब्राम और लूत के पास इतने अधिक जानवर थे कि वे सभी एक ही क्षेत्र में नहीं रह सकते थे।सभी जानवरों को जल और भोजन प्रदान करने के लिए पर्याप्त भूमि नहीं थी।
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||
|
\v 7 इसके अतिरिक्त, अब्राम और लूत के लोग जो पशुओं की देखभाल करते थे वे एक-दूसरे के साथ झगड़ा शुरू कर देते थे । कनान और पेरेज़ के वंशज भी उस क्षेत्र में रहते थे।
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\s5
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\v 8 तब अब्राम ने लूत से कहा, "हम और हमारे उन लोगों का जो जानवरों की देखभाल करते हैं, आपस में झगड़ा करना अच्छा नहीं है क्योंकि हम करीबी रिश्तेदार हैं।
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||
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\v 9 हम दोनों के लिए बहुत अधिक भूमि है इसलिए हमें अलग हो जाना चाहिए। तू जो भी हिस्सा चाहता है उसे चुन सकता है। यदि तू वह स्थान चाहता है तो मैं यहाँ रहूँगा और यदि तू यहाँ रहना चाहता है तो मैं वहाँ जाऊँगा।"
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\s5
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\v 10 लूत ने सोअर की ओर देखा कि यरदन नदी के पास पूरे मैदान में बहुत अधिक जल है। यह बात उस समय की है जब यहोवा ने सदोम और गमोरा को नष्ट नहीं किया था। उस समय यरदन की घाटी यहोवा के बगीचे के समान थी, जो नील नदी के पास मिस्र देश की भूमि के समान थी।
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||
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\v 11 इसलिए लूत ने स्वयं के लिए यरदन नदी के मैदानी भूमि को चुना। उसने अपने चाचा, अब्राम को छोड़ दिया और पूर्व दिशा की ओर चला गया।
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\s5
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\v 12 अब्राम कनान देश में रहा, और लूत यरदन नदी के मैदानी नगरों में रहने के लिए चला गया और उसने सदोम के पास अपने तंबू लगाए।
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\v 13 सदोम में रहनेवाले लोग बहुत दुष्ट थे और यहोवा के विरूद्ध भयानक पाप करते थे।
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\p
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\s5
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\v 14 अब्राम और लूत के अलग होने के बाद, यहोवा ने अब्राम से कहा, "इस पूरे क्षेत्र को देखो जहाँ तू है। उत्तर, दक्षिण देख, पूर्व और पश्चिम देख।
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\v 15 यह सारी भूमि, जिसे तू देखता है, मैं तुझे और तेरे वंशजो को दूँगा। मैं यह सदा के लिए तुझे दूँगा।
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\s5
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\v 16 मैं तेरे लोगों को पृथ्वी के कणों के समान अनगिनत बनाऊँगा। यदि कोई व्यक्ति पृथ्वी के कणों को गिन सकेगा तो वह तेरे लोगों को भी गिन सकेगा।
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\v 17 हर दिशा में जा क्योंकि मैं यह सब तुझे देनेवाला हूँँ।"
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\v 18 तब अब्राम ने अपना तम्बू हटाया और हेब्रोन चला गया और वह मम्रे के बड़े पेड़ों के पास रहने लगा। अब्राम ने यहोवा को बलिदान देने के लिए वहाँ पत्थर की एक वेदी बनाई।
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\s5
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\c 14
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\p
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\v 1 चार राजाओं का समूह था। वे शिनार का राजा अम्रापेल, एल्लासार का राजा अर्योक, एलाम का राजा कदोर्लाओमेर, गोयीम का राजा तिदाल था।
|
||
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\v 2 इन सभी राजाओं ने पाँच राजाओं के समूह पर हमला करने की तैयार की: सदोम के राजा बेरा, गमोरा के राजा बिर्शा, अदमा के राजा शिनाब, सबोयीम के राजा शेमेबेर तथा बेला, जो नगर सोअर भी कहा जाता है।
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\s5
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\v 3 पाँच राजा और उनकी सेना सिद्दीम की घाटी में जिसे मृत सागर की घाटी भी कहा जाता है, चार राजाओं और उनकी सेनाओं से लड़ने के लिए इकट्ठा हुए।
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\v 4 बारह वर्षों तक राजा कदोर्लाओमेर ने उन पर शासन किया था लेकिन तेरहवें वर्ष वे सभी उसके विरुद्ध हो गए और उन्होंने कर देने से मना किया।
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\v 5 अगले वर्ष, राजा कदोर्लाओमेर और उसके साथ के अन्य राजाओं ने अपनी सेनाएँ इकट्ठी कीं और पाँच राजाओं के क्षेत्र की ओर आने लगे। उन्होंने अशतरोत-कर्नयिम में रापाइयों को, हाम में जूजियों और एमी लोगों को शाबेकिर्यातैम में पराजित किया।
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\v 6 उन्होंने होरी लोगों को सेईर के पहाड़ी प्रदेश से लेकर एल्पारान के निकट मरूभूमि में हराया था।
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\s5
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\v 7 तब वे पीछे को मुडे और एन्मिशपात गये, जिसे अब कादेश कहा जाता है। उन्होंने अमालेकी लोगों और एमोरी लोगों को जो हसासोन्तामार में रहते थे उन पर विजय प्राप्त की।
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\p
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\v 8 तब सदोम, गमोरा , अदमा, सबोयीम और बेला के राजाओं की सेना सिद्दीम घाटी के चार राजाओं की सेनाओं से लड़ने के लिए बाहर निकली।
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\v 9 वे एलाम के राजा कदोर्लाओमेर की सेना, गोयीम के राजा तिदाल, शिनार के राजा अम्रापेल और एल्लासार के राजा अर्योक के विरुद्ध लड़े। चार राजाओं की सेना पाँच राजाओं की सेनाओं के विरुद्ध लड़ रही थी।
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\s5
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\v 10 सिद्दिम की तराई में कोलतार के अनेक गड्ढ़े थे। तो जब सदोम और गमोरा की सेनाएँ इनके सामने से भागी तो बहुत से योद्धा उन गड़हो में गिर पड़े। अन्य सैनिक बच कर पहाड़ों पर भाग गए।
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\v 11 जब वे युद्ध क्षेत्र से भाग गए तब शत्रु की सेना ने सदोम और गमोरा की सब मूल्यवान वस्तुओं तथा खाद्य सामग्री को जब्त कर लिया ।
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\v 12 उन्होंने अब्राम के भतीजे लूत को बन्दी बना लिया और उसकी संपत्ति पर भी कब्जा कर लिया क्योंकि लूत उस समय सदोम में रहता था।
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\s5
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\v 13-14 उस समय अब्राम मेम्रे के बड़े वृक्षों के निकट रहता था। मेम्रे एमोरी कुल के थे। अब्राम ने मेम्रे और उसके दो भाइयों, एशकोल तथा आनेर के साथ प्रतिज्ञा की थी कि यदि युद्ध हुआ तो वे एक दूसरे की सहायता के लिए खड़े होंगे। युद्ध से बचकर आए एक व्यक्ति ने अब्राम को युद्ध का समाचार सुनाया कि शत्रु उसके भतीजे लूत को बन्दी बना कर ले गए हैं। अब्राम ने अपने 318 पुरूषों को अपने साथ लिया जो जन्म से ही उसके साथ थे और युद्ध करना जानते थे, उनको साथ लेकर अब्राम ने दान नगर तक शत्रुओं का पीछा किया।
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\s5
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\v 15 रात के समय अब्राम ने अपने पुरूषों को अनेक दलों में विभाजित किया और विभिन्न दिशाओं से शत्रु की सेना पर धावा बोल दिया। और उन्हें हरा के दमिश्क के उत्तर में होबा तक उनका पीछा किया।
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\v 16 अब्राम के पुरुषों ने शत्रुओं द्वारा चुराई गई सभी चीजों को वापस ले लिया। उन्होंने लूत और उसकी सारी संपत्ति और उसकी पत्नी और अन्य लोगों को छुड़ा लिया और वापस ले आया।
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\p
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\s5
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\v 17 जब अब्राम कदोर्लाओमेर और उसके साथ के राजाओं को पराजित करके घर लौट रहा था तब सदोम के राजा शाबे नाम की तराई में, जिसे वे राजा की तराई भी कहते थे, अब्राम से भेंट करने आया।
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\v 18 उसी समय शालेम का मलिकिसिदक जो परम प्रधान परमेश्वर का याजक था, अब्राम के लिए रोटी और दाखमधु लेकर आया।
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\s5
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\v 19 मलिकिसिदक ने अब्राम को आशीर्वाद दिया और कहा: "अब्राम, सबसे परम प्रधान परमेश्वर, जिस परमेश्वर ने पृथ्वी और आकाश को बनाया, वे तुझे आशीष दें।
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\v 20 मैं उन परम प्रधान परमेश्वर की स्तुति करता हूँ क्योंकि उन्होंने तुझे इस योग्य बनाया कि तू शत्रु को पराजित कर सके।" तब अब्राम ने मलिकिसिदक को अपनी लूट का दसवां भाग अर्पित किया।
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\s5
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\v 21 सदोम के राजा ने अब्राम से कहा, "जो कुछ भी छुड़ाया है सब रख ले। मात्र अपने नगर से उन लोगों को जिन्हें तूने बन्दी बनाया है, उन्हें वापस लेने दे।"
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\v 22 परन्तु अब्राम ने सदोम के राजा से कहा, "मैंने ईमानदारी से यहोवा, परम प्रधान परमेश्वर, जिन्होंने स्वर्ग और पृथ्वी को बनाया है, उनके सम्मुख यह शपथ ली है;
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\v 23 कि जो कुछ तेरा है उसमें से मैं न तो एक सूत और न जूते का बंधन, कुछ भी नहीं लूंगा जिससे तू कभी न कह सके कि, "मैंने अब्राम को धनवान बनाया है।"
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\v 24 केवल एक चीज जिसे मैं स्वीकार करूँगा वह है, भोजन जो मेरे युवकों ने खाया है। लेकिन आनेर, एशकोल और मेम्रे ने इस युद्ध में मेरा साथ दिया था, अतः लाए गए सामान का हिस्सेदार उन्हें बनने दे। "
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\s5
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\c 15
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\p
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\v 1 कुछ समय बाद अब्राम को दर्शन में यहोवा का आदेश मिला, "किसी से मत डर, मैं तेरी रक्षा करूँगा और मैं एक बड़ा पुरस्कार दूँगा।"
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\v 2 परन्तु अब्राम ने भी उत्तर दिया, "हे यहोवा, मुझे वास्तव में जो चाहिए वह आप मुझे कैसे देंगे क्योंकि मेरी कोई संतान नहीं है। मेरी सम्पूर्ण सम्पदा का उत्तराधिकारी मेरा सेवक दमिश्कवासी एलीएजेर है।"
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\v 3 अब्राम ने यह भी कहा, "आपने मुझे कोई संतान नहीं दी है इसलिए मेरे घर में एक दास है जो मेरे पास जो कुछ भी है उसका उत्तराधिकारी होगा!"
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\s5
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\v 4 यहोवा ने उत्तर दिया, "नहीं! वह तेरी सम्पति का उत्तराधिकारी नहीं होगा। तू ही अपनी सम्पदा के उत्तराधिकारी का पिता बनेगा।"
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\v 5 तब यहोवा अब्राम को तम्बू के बाहर ले आए और कहा, "आकाश को देख! क्या तू सितारों को गिन सकता है? नहीं, तू नहीं गिन सकता क्योंकि वे अनगिनत हैं। तेरे वंशज भी सितारों के समान अनगिनत होंगे।"
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\s5
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\v 6 अब्राम ने परमेश्वर पर विश्वास किया कि यहोवा ने जो कुछ कहा है वह पूरा होगा। उसके इस विश्वास के कारण यहोवा ने उसे धर्मी माना।
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\v 7 मैं ही तुझे कसदियों के ऊर नगर से निकाल कर लाया हूँ। मैं तुझे यहाँ इसलिए लाया कि तू इस सम्पूर्ण प्रदेश का स्वमी बने।"
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\v 8 परन्तु अब्राम ने कहा, "हे प्रभु यहोवा, मुझे कैसे विश्वास हो कि यह प्रदेश मेरा हो जायेगा?"
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\s5
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\v 9 परमेश्वर ने उससे कहा, "मेरे लिए एक तीन वर्ष का बछड़ा और एक तीन वर्ष की बकरी और एक पेंडुकी और एक कबूतर का बच्चा ले आ।"
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\v 10 तब अब्राम उन सभी को ले आया। उसने उन्हें आधा-आधा काट कर आमने-सामने रख दिया परन्तु उसने पेंडुकी और कबूतर को काट कर आधा-आधा नहीं किया।
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\v 11 मृत जानवरों को खाने वाले पक्षी, शवों को खाने के लिए नीचे आए, लेकिन अब्राम ने उन्हें दूर कर दिया।
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\s5
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\v 12 जब सूर्य अस्त होने लगा, अब्राम चैन की नींद सो गया, और अचानक उसके चारों ओर सब कुछ अंधकारमय और डरावना हो गया।
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\v 13 तब यहोवा ने अब्राम से कहा, "मैं चाहता हूँँ तू जाने कि तेरे वंशज विदेशी बनेंगे और वे उस देश में जांएगे जो उनका नहीं होगा। वे वहाँ के स्वामियों के दास होंगे। चार सौ वर्षों तक उनके साथ उस क्षेत्र के स्वामी बुरा व्यवहार करेंगे।
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\s5
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\v 14 लेकिन फिर मैं उस राष्ट्र का न्याय करूँगा तथा उसे सजा दूँगा, जहाँ वे दास होंगे। तब तेरे वंशज उस देश को छोड़ देंगे और अपने साथ बहुत संपत्ति भी ले जाएँगे।
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||
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\v 15 लेकिन तू शान्ति से मरेगा और दफनाए जाएगा, तब जब तू अत्यधिक वृद्ध हो जाएगा।
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\v 16 तेरे वंशज चार सौ वर्षों तक दास होकर रहेंगे इसके बाद जब वे लौट कर इस स्थान में आ जाएँगे। वे इस देश को अपने वश में करके एमोरियों को पराजित करेंगे। यह समय के पहले नही होगा क्योंकि अमोर के लोगों ने अब तक उस स्तर तक पाप नही किया है जिस में उन पापों के लिए सजा मिले।"
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\s5
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\v 17 जब सूर्य अस्त हो गया और अंधेरा छा गया, तब एक मशाल और मिट्टी का एक पात्र जिसमें जलते हुए कोयलों से धुँआ उठ रहा था वे प्रकट होकर आधे कटे हूए पशुओं के मध्य से निकले।
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||
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\v 18 उस दिन यहोवा ने अब्राम के साथ प्रतिज्ञा की। यहोवा ने उसे बताया, "मैं यह सम्पूर्ण प्रदेश तेरे वंशजों को दूँगा जो मिस्र की पूर्वी सीमा में बहने वाली नदी से लेकर दक्षिण तक और परात नदी के उत्तर के बीच का प्रदेश है।
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\v 19 यह वह स्थान है जहाँ केनी, कनिज्जी, कदमोनी,
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\v 20 हित्ती, परिज्जी, रपाई,
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\v 21 एमोरी, कनानी, गिर्गाशी और यबूसी बसे हुए हैं।
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\s5
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\c 16
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\p
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\v 1 उस समय तक अब्राम की पत्नी सारै ने अब्राम के लिए किसी भी संतान को जन्म नहीं दिया था। लेकिन उसकी एक मिस्री दासी थी जिसका नाम हागार था।
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\v 2 सारै ने अब्राम से कहा, "मेरी बात सुन! देख, यहोवा ने मुझे गर्भवती होने से वंचित रखा है। इसलिए मेरी दासी हागार के साथ सहवास कर। संभव है कि वह संतान उत्पन्न करे जिन्हें मैं अपना कह सकूँ।" अब्राम ने अपनी पत्नी सारै की बात मान ली।
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\v 3 कनान में अब्राम और सारै के दस वर्ष रहने के बाद यह बात हुई, इस प्रकार अब्राम ने सारै की मिस्री दासी हागार को अपनी दूसरी पत्नी होने के लिए ले लिया।
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\v 4 उसने हागार के साथ सहवास किया और वह गर्भवती हुई। जब उसे पता चला कि वह गर्भवती है तो उसने अपनी मालकिन सारै के साथ तुच्छ व्यवहार करना शुरू कर दिया।
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\s5
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\v 5 तब सारै ने अब्राम से कहा, "सारा दोष तेरा ही है। मैंने अपनी दासी तुझे दी कि तू उसके साथ सहवास कर और अब जब वह गर्भवती हो गई है तो मुझे तुच्छ समझती है। क्योंकि मैं संतान रहित हूँ। यहोवा तुझे मेरे साथ किए जा रहे इस दुर्व्यवहार का दोषी ठहराए।"
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\v 6 तब अब्राम ने सारै से कहा, "मेरी बात सुन! वह तेरी दासी है, इसलिए उसके साथ जो भी तुझको अच्छा लगे वैसा व्यवहार कर सकती हो।" तब सारै ने उससे दुर्व्यवहार करना शुरू किया, इसलिए हागार वहाँ से भाग गई।
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\v 7 जब वह मरूस्थल में जल के सोते के पास थी यहोवा का एक स्वर्गदूत प्रकट हुआ। यह सोता सूर के मार्ग पर था।
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\v 8 उसने उससे कहा, "हागार, सारै की दासी, तू कहाँ से आयी है, और तू कहाँ जा रही है?" उसने उत्तर दिया, "मैं अपनी मालकिन सारै के यहाँ से भाग आई हूँँ।"
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\s5
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\v 9 यहोवा के स्वर्गदूत ने कहा, "अपनी मालकिन के पास वापस लौट जा और उसकी आज्ञा का पालन करना जारी रख।"
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\v 10 यहोवा के स्वर्गदूत ने उससे यह भी कहा, "मैं तेरे वंशजों को इतना अधिक बढ़ा दूँगा कि उनकी गिनती कोई नहीं कर पाएगा!"
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\v 11 यहोवा के स्वर्गदूत ने उससे कहा, "सुन! अभी तू गर्भवती है और तू एक पुत्र को जन्म देगी। उसका नाम इश्माएल रखना, जिसका अर्थ है 'परमेश्वर सुनते हैं,' क्योंकि यहोवा ने तेरा रोना सुना है,क्योंकि तू बहुत दुखी थी।
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||
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\v 12 परन्तु तेरा पुत्र जंगली गदहे के समान अनियंत्रित होगा। वह सभी का विरोध करेगा, और सभी उसका विरोध करेंगे। वह अपने सभी रिश्तेदारों से दूर रहेगा।"
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\s5
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\v 13 हागार ने मन में कहा, "यहोवा ने मुझे देखा है फिर भी मैं अब तक जीवित हूँ।" इसलिए उसने यहोवा को "अत्ताएलरोई" कहा जिसका अर्थ है, "वह परमेश्वर जो मुझे देखते हैं।"
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\v 14 यही कारण है कि उस कुएँ का नाम बएर-लहई-रोई पड़ा। "बएर-लहई-रोई", जिसका अर्थ है, "जीवित परमेश्वर जो मुझे देखते हैं उनका कुआँ।" यह अभी भी कादेश और बेरेद के बीच है।
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\p
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\s5
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\v 15 तब हागार ने अब्राम के पुत्र को जन्म दिया और उसने उसका इश्माएल नाम दिया।
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\v 16 अब्राम उस समय छियासी वर्ष का था जब हागार ने इश्माएल को जन्म दिया।
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\s5
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\c 17
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\p
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\v 1 जब अब्राम नब्बे वर्ष का था, तब यहोवा ने अब्राम को पुनः दर्शन दिया और कहा, "मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ। मैं चाहता हूँ कि तू मेरी इच्छा के अनुसार जीवन जीये। मैं चाहता हूँ कि तू कोई भी अनुचित काम न कर।
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\v 2 हमारे मध्य में हुए अनुबन्ध को मैं दृढ़ करूँगा। और तुझे बहुत अधिक संख्या में वंशज पैदा करने का कारण बनाऊंगा।"
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\s5
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\v 3 अब्राम भूमि पर मुँह के बल गिरा और दण्डवत् किया। तब परमेश्वर ने उससे कहा,
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\v 4 "सुन! मैं तेरे साथ जो अनुबन्ध करता हूँ वह यह हैः तू अनेक सामुदायों का पिता होगा।
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\v 5 तेरा नाम अब से अब्राम न होकर अब्राहम होगा क्योंकि मैं तुझे अनेक समुदायों का पिता बनाऊँगा।
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\v 6 मैं तेरे वंशजों की संख्या असीमित कर दूँगा और उनमें कई राष्ट्र और राजा होंगे।
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\s5
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\v 7 मैं यह प्रतिज्ञा तेरे और तेरे वंशजों की पीढ़ियों के बीच सदा के लिए करता हूँँ। इस अनुबन्ध के कारण तू और तेरे वंशज भी मेरी आराधना और मेरा अनुसरण करते रहोगे।
|
||
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\v 8 मैं तुझे और तेरे वंशजों को कनान की सारी भूमि दूँगा जहाँ तू इस समय रहता है। यह प्रदेश सदा के लिए उनकी सम्पदा होगी और मैं उनका परमेश्वर रहूँगा। "
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\p
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\s5
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\v 9 तब परमेश्वर ने अब्राहम से कहा, "अब अनुबन्ध का यह तेरा पक्ष है जो मैं तेरे साथ और तेरे वंशजों के साथ कर रहा हूँ, और तेरे वंशजों को पीढ़ी-पीढ़ी तक इसका पालन करना होगा।
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\v 10 यह अनुबन्ध की एक शर्त है जिसे मैं स्वयं के साथ, तेरे साथ और तेरे वंशजों के साथ करता हूँँ। तुम में से प्रत्येक पुरुष का खतना होना चाहिए।
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||
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\v 11 उनकी चमड़ी को काट देना जो एक चिन्ह होगा कि तू मेरे अनुबन्ध जो मैंने तेरे साथ किया हे उसे स्वीकार करता है।
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\s5
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\v 12 भविष्य की पीढ़ियों में प्रत्येक लड़का जब आठ दिन का हो जाए, तब तुझे उसका खतना करना होगा। प्रत्येक लड़का जो तेरे परिवार में पैदा हो या तेरे दास का हो, उसका भी खतना अवश्य होगा। उन विदेशियों का भी जो तेरे मध्य निवास करते हैं लेकिन तेरे परिवार के नही हैं
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\v 13 चाहे उनके माता-पिता तेरे परिवार के या गुलामों के सदस्य हैं जिन्हें तू ने खरीदा है; उन सभी का खतना होना चाहिए। तेरे शरीर पर यह चिन्ह होगा यह दिखने के लिए कि तू ने मेरे हमेशा के लिए किये गये अनुबन्ध को स्वीकार किया है।
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\v 14 हर एक पुरुष को जिसने खतना नहीं करवाया है तुझे उसे अपने समुदाय से निकालना होगा क्योंकि उसने मेरे अनुबन्ध का पालन नहीं किया है।"
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\p
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\s5
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\v 15 परमेश्वर ने अब्राहम से यह भी कहा, "सारै को अब तू सारै कहकर नहीं पुकारना। मैं उसका नाम भी बदल दूँगा। अब से उसका नाम सारा होगा।
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\v 16 मैं उसे आशीष दूँगा, और वह निश्चित रूप से तेरे लिए एक पुत्र को जन्म देगी। और मैं उसे इतनी आशीष दूँगा कि वह कई राष्ट्रों के लोगों की पूर्वज होगी। राजाओं और लोगों के समूह उससे निकलेगें। "
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\p
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\s5
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\v 17 तब अब्राहम ने मुँह के बल गिरकर परमेश्वर को भक्ति अर्पित की परन्तु मन ही मन हँसा और स्वयं से उसने कहा, "क्या सौ वर्ष का व्यक्ति एक पुत्र का पिता हो सकता है? और सारा जो नब्बे वर्ष की हो चुकी है, वह पुत्र को जन्म कैसे दे सकती है?"
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\v 18 तब अब्राहम ने परमेश्वर से कहा, "आप इश्माएल को अपना आशीर्वाद दे सकते हैं और जो कुछ मेरे पास है, वह उसका उत्तराधिकारी होगा।"
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\s5
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\v 19 तब परमेश्वर ने उत्तर दिया, "नहीं! तेरी पत्नी सारा तेरे लिए एक पुत्र पैदा करेगी। तू उसका नाम इसहाक रखना। उसके साथ मैं अपने अनुबन्ध दृढ़ करूँगा, यह उसके और उसके वंशजों के साथ एक अनन्त अनुबन्ध होगा।
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\v 20 तू ने मुझसे इश्माएल के विषय में कहा था और मैंने तेरी बात सुनी कि तू ने उसके लिए क्या करने को मुझसे कहा। मैं उसे आशीष दूँगा। उसकी बहुत सी संताने होंगी। वह बारह बड़ी जातियों का पिता होगा। उसके वंशजों से एक बड़ा राष्ट्र बनेगा।
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||
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\v 21 परन्तु इसहाक के साथ जिसे सारा अगले वर्ष इसी समय जन्म देगी, मैं अपना अनुबन्ध दृढ़ करूँगा।"
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\s5
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\v 22 जब परमेश्वर ने अब्राहम से यह सब कह दिया तब परमेश्वर उसकी दृष्टि से ओझल हो गए।
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\p
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\v 23 उसी दिन, अब्राहम ने अपने पुत्र इश्माएल और घर में रहने वाले सभी पुरुषों का, अपने सभी दासों के सभी पुत्रों का खतना किया। उसने वैसा ही किया जैसा कि परमेश्वर ने उसे करने के लिए कहा था।
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\s5
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\v 24 जब खतना हुआ अब्राहम निन्यानबे वर्ष का था
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\v 25 और उसका पुत्र इश्माएल खतना होने के समय तेरह वर्ष का था।
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\v 26 अब्राहम और उसके पुत्र का खतना एक ही दिन हुआ।
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\v 27 उसके घर में सभी पुरुष जो वहाँ पैदा हुए थे और जिन को अब्राहम ने विदेशियों से खरीदा था, उन सभी का खतना हुआ।
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\s5
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\c 18
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\p
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\v 1 उस वर्ष के दौरान एक दिन, जब अब्राहम मम्रे के बांज वृक्षों के बीच दिन की गर्मी में अपने तम्बू के द्वार पर बैठा था तब यहोवा ने उसे दर्शन दिया।
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\v 2 अब्राहम अपने निकट खड़े तीन पुरुषों को देखकर आश्चर्यचकित हुआ। जब अब्राहम ने उन्हें देखा तो वह दौड़ते हुए उनसे मिलने गया। और उन्हें सम्मान देने के लिए मुँह के बल धरती पर गिरकर उन्हें प्रणाम किया।
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\s5
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\v 3 उसने उनमें से एक से कहा, "हे प्रभु, यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो थोड़ी देर के लिए यहाँ रहें।
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\v 4 मेरे सेवकों को थोड़ा जल लाने और आपके पैरों को धोने की अनुमति दें, और फिर इस पेड़ के नीचे विश्राम करें।
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\v 5 क्योंकि आप मेरे पास आए हैं तो मुझे अनुमति दें कि आपके लिए भोजन परोसूँ कि आप प्रस्थान करने से पहले बल प्राप्त करें।" उन पुरुषों ने कहा, "ठीक है, जैसा तू ने कहा, वैसा ही कर।"
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\s5
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\v 6 तब अब्राहम शीघ्रता से तम्बू में घुसा और सारा से कहा, "शीघ्र, सबसे अच्छे आटे में से बीस किलोग्राम आटा ला और कुछ रोटियाँ बना"
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\v 7 तब उसने अपने जानवरों में से एक ऐसा बछड़ा चुना जिसका मांस कोमल और स्वादिष्ट हो और अपने सेवकों को दिया उन्होंने बछड़े को मारकर भोजन तैयार किया।
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\v 8 जब मांस पक गया, तब अब्राहम दूध, दही और अपने सेवक द्वारा पकाया हुआ भोजन लेकर आया और उनके सामने रखा। जब वे भोजन कर रहे थे तब अब्राहम उनके पास एक वृक्ष के नीचे खड़ा हो गया।।
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\s5
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\v 9 खाने के बाद, उन्होंने अब्राहम से पूछा, "तेरी पत्नी सारा कहा है?" उसने उत्तर दिया, "वह तम्बू में है।"
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\v 10 तब समूह के अगुवे ने कहा, "मैं अगले वर्ष वसंत ऋतु में तेरे पास वापस आऊँगा, और सुन, उस समय तेरी पत्नी सारा के पास एक पुत्र होगा।" सारा तम्बू के द्वार पर खड़ी सुन रही थी, वह उस पुरुष के पीछे ही खड़ी थी।
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\s5
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\v 11 अब अब्राहम और सारा दोनों बहुत बूढ़े हो चुके थे। सारा प्रसव की उम्र को पार कर चुकी थी।
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\v 12 तब सारा अपने मन में हँसी क्योंकि वह सोच रही थी कि, "मेरा शरीर तो ढल चुका है और मेरा पति भी बहुत बूढ़ा हो गया है। क्या मुझे पुत्र प्राप्ति की खुशी मिलेगी?"
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\s5
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\v 13 यहोवा ने अब्राहम से कहा, "सारा क्यों हँस रही थी? वह क्यों सोच रही थी, 'मैं इतनी बूढ़ी हूँँ तो मैं बच्चा कैसे पैदा कर सकती हूँँ?'
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\v 14 क्या मेरे लिए कुछ असम्भव है? मैं अगले वर्ष के वसन्त ऋतु में फिर वापस आऊँगा। जो समय मैंने तय किया है उस समय सारा के पास एक पुत्र होगा। "
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\v 15 तब सारा डर गई और उसने झूठ बोला, "मैं नहीं हंसी थी।" लेकिन यहोवा ने कहा, "मना मत कर! तू हंसी थी।"
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\p
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\s5
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\v 16 जब तीन पुरुष जाने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने सदोम के नगर की ओर देखा और उसी ओर चल पड़े। अब्राहम उनको विदा करने के लिए कुछ दूर तक उनके साथ गया।
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\v 17 यहोवा ने मन में कहा, "अपनी योजना को अब्राहम से छिपाना मेरे लिए उचित नहीं है।
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\v 18 अब्राहम के वंशजों से एक महान और शक्तिशाली राष्ट्र बनेगा। और मैंने इसके लिए जो किया है उससे सब जातियों के लोग आशीषित होंगे।
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\v 19 मैंने उसे इसलिए चुना है कि वह अपनी सन्तानों को और उनके परिवारों को निर्देश दे कि वे मेरी आज्ञाओं को मानें और वह काम करें जो उचित और न्यायपूर्ण है जिससे कि मैं अब्राहम के लिए वह सब करूं जिसकी मैंने उससे प्रतिज्ञा की है।"
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\s5
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\v 20 तब यहोवा ने अब्राहम से कहा, "मैंने सदोम और गमोरा के विषय में कुछ भयानक बातें लोगों को कहते सुनी हैं। उनके पाप बहुत बढ़ गए हैं।
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\v 21 इसलिए मैं वहाँ जाऊँगा और देखूँगा कि मैंने जो भयानक बातें सुनी हैं, वे सच हैं या नहीं। "
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\s5
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\v 22 तब दो लोग मुड़े और सदोम की ओर चल पड़े। लेकिन अब्राहम यहोवा के सामने खड़ा रहा।
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\v 23 अब्राहम उसके निकट आया और कहा, "क्या आप दुष्टों के साथ उन लोगों को भी नष्ट कर देंगे जिन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है?
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\v 24 यदि उस नगर में पचास अच्छे लोग हों तो आप क्या करेंगे? क्या आप वास्तव में उन सभी को नष्ट कर देंगे और पचास धार्मिक लोगों के लिए नगर को नहीं छोड़ेंगे जिन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है?
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\v 25 निश्चित रूप से आप ऐसा नहीं करेंगे कि दुष्टों के साथ सदाचारियों को भी नष्ट कर दें और अच्छे लोगों और दुष्टों एवं सदाचारियों के साथ एक सा व्यवहार करें। आप ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि आप पृथ्वी पर हर किसी के न्यायाधीश हैं। निश्चित रूप से सदोम के लोगों के साथ वही करेंगे जो उचित है! "
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\v 26 यहोवा ने उत्तर दिया, "यदि मुझे सदोम में पचास धर्मी मनुष्य मिले जिन्होंने पाप नहीं किया तो उनके कारण मैं उस नगर को छोड़ दूँगा।"
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\v 27 अब्राहम ने उत्तर दिया, "मैं इस प्रकार आप से बात करने का साहस तो नहीं करता हूँँ क्योंकि मैं धूल और राख के समान मूल्यहीन हूँँ।
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\v 28 लेकिन यदि वहाँ पैंतालीस निर्दोष सदाचारी हों तो आप क्या करेंगे? क्या आप पूरे नगर में हर किसी को नष्ट कर देंगे क्योंकि वहाँ पचास नहीं पैंतालीस ही सदाचारी हैं? "यहोवा ने उत्तर दिया," यदि मैं वहाँ पैंतालीस सदाचारियों को पाऊँगा तो उस नगर को नष्ट नहीं करूँगा। "
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\v 29 अब्राहम ने इस प्रकार परमेश्वर से बातें करना जारी रखा, और कहा, "यदि वहाँ केवल चालीस सदाचारी हुए तो आप क्या करेंगे?" यहोवा ने उत्तर दिया, " मैं नगर को नष्ट नहीं करूँगा यदि मुझे वहाँ चालीस सदाचारी मिलें तो"
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\v 30 अब्राहम ने कहा, "कृपया मुझ पर क्रोधित न हों। मुझे एक बार और बोलने दें। यदि आपको केवल तीस सदाचारी मिलें तो आप क्या करेंगे?" उसने उत्तर दिया, "यदि वहाँ तीस सदाचारी भी हुए तो मैं ऐसा नहीं करूँगा।"
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\v 31 अब्राहम ने कहा, "मुझे साहस तो नहीं करना चाहिए परन्तु यदि वहाँ बीस सदाचारी भी पाए गए तो आप क्या करेंगे?" उसने उत्तर दिया, "उन बीस सदाचारियों को ध्यान में रख कर मैं उस नगर को नष्ट नहीं करूँगा।"
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\s5
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\v 32 अंत में, अब्राहम ने कहा, "हे मेरे परमेश्वर, क्रोध न करें मैं एक बार पुनः निवेदन करता हूँँ, यदि वहाँ केवल दस सदाचारी हुए तो आप क्या करेंगे?" यहोवा ने उत्तर दिया, "उस दस के कारण मैं उस नगर को नष्ट नहीं करूँगा।"
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\v 33 अब्राहम ने आगे कुछ नहीं कहा। जैसे ही यहोवा ने अब्राहम से बातें करना समाप्त किया, वे चले गये, और अब्राहम अपने घर लौट आया।
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\c 19
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\p
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\v 1 उस शाम, दो स्वर्गदूत सदोम नगर में आए। नगर के प्रवेश द्वार पर लूत बैठा था। जब उसने उन्हें देखा तो वह उनका स्वागत करने के लिए खड़ा हुआ और भूमि पर उनके सामने झुक गया।
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\v 2 उसने उनसे कहा, "महोदय, कृपया आज रात मेरे घर में रहें। वहाँ आप लोग अपने पैर धो सकते हैं, और कल जल्दी आप अपनी यात्रा आरम्भ कर सकते हैं।" लेकिन उन्होंने कहा, "नहीं, हम यहीं नगर के चौक में रात बिता लेंगें।"
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\v 3 लेकिन लूत अपने घर में चल कर सोने के लिए बार-बार कहता रहा। इसलिए वे उसके साथ उसके घर गए, और लूत ने उनके लिए भोजन तैयार करवाया। उसने खमीर के बिना कुछ रोटी तैयार करवाई और उन्होंने उसे खा लिया।
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\s5
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\v 4 जब वे भोजन समाप्त कर चुके और सोने जा ही रहे थे, सदोम नगर के लोगों ने, जवान से बूढ़े तक सब ने लूत के घर को घेर लिया।
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\v 5 उन्होंने लूत को बाहर बुलाकर कहा, "वे लोग कौन हैं जो आज शाम तेरे घर आए है? उन्हें बाहर लाओ, ताकि हम उनके साथ सहवास कर सकें!"
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\v 6 लूत घर से बाहर निकला और पीछे से उसने घर का दरवाज़ा बन्द कर लिया, ताकि वे अंदर न जा सकें।
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\v 7 उसने उनसे कहा, "मेरे मित्रों, ऐसे बुरे काम मत करो!
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\v 8 मेरी बात सुनो। मेरी दो पुत्रियाँ हैं जिन्होंने कभी किसी पुरुष के साथ सहवास नहीं किया है। मैं उन्हें अब तुम्हारे लिए लाता हूँ, तुम लोग उनके साथ जो चाहो कर सकते हो। लेकिन इन व्यक्तियों के साथ कुछ न करो। ये लोग हमारे घर के अतिथि हैं और मैं इनकी रक्षा अवश्य करूँगा।! "
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\v 9 परन्तु उन्होंने उत्तर दिया, "हमारे रास्ते से हट जा! तू विदेशी है इसलिए तुझे हमको यह बताने का कोई अधिकार नहीं है कि क्या सही है! हम तेरे साथ उनसे भी अधिक बुरा करेंगे!" तब वे लूत की ओर झपटे, और दृढ़तापूर्वक दरवाजे को तोड़ने का प्रयास किया।
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\s5
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\v 10 परन्तु दोनों स्वर्गदूतों ने सावधानी से दरवाजा खोला और लूत को घर के अन्दर खींच लिया। फिर उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया।
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\v 11 तब उन्होंने उन सभी पुरुषों को अन्धा कर दिया जो घर के दरवाजे के बाहर थे। सब जवान और बूढ़े अंधे हो गए, वे दरवाजा नहीं ढूंढ सकें।
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\v 12 दोनों स्वर्गदूतों ने लूत से पूछा, "यहाँ तेरे साथ ओर कौन-कौन है? यदि तेरे पास पुत्र या दामाद हैं या नगर में अन्य कोई जो तेरे साथ है, उन्हें नगर से बाहर ले जा।
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\v 13 क्योंकि हम इस स्थान को नष्ट करने जा रहे हैं। यहोवा ने उन सभी बुराइयों को सुन लिया है जो इस नगर में है और यहोवा ने हमें इसे नष्ट करने के लिए भेजा है।"
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\s5
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\v 14 इसलिए लूत बाहर गया और उन लोगों से बात की जिन्होंने उसकी पुत्रियों से विवाह करने का वचन दिया था। उसने उनसे कहा, "जल्दी करो! इस नगर से निकल जाओ, क्योंकि यहोवा इसे नष्ट करने वाले हैं!" लेकिन उन लोगों ने समझा कि लूत मज़ाक कर रहा है।
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\v 15 अगले दिन सुबह होते-होते उन स्वर्गदूतों ने लूत से कहा, "तुरन्त खड़ा हो जा और अपनी पत्नी और पुत्रियों के साथ इस नगर से बाहर निकल जा। यदि ऐसा नही करेगा तो जब हम इस नगर को नष्ट करेंगे तब तू भी नष्ट हो जाएगा।"
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\v 16 जब लूत दुविधा में रहा, स्वर्गदूतों ने लूत, उसकी पत्नी और उसकी दोनों पुत्रियों के हाथ पकड़ लिए। उन्होंने उन्हें सुरक्षित रूप से नगर के बाहर निकाला। स्वर्गदूतों ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि लूत के परिवार पर यहोवा की कृपा-दृष्टि थी।
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\v 17 जब वे नगर के बाहर आ गए तो एक स्वर्गदूत ने कहा, "यदि तुम जीवित रहना चाहते हो तो शीघ्र भागो और पीछे मत देखना! और घाटी में कहीं भी मत रुकना! पहाड़ों पर भाग जाओ! यदि तुम ऐसा नहीं करते, तो तुम मर जाओगे! "
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\v 18 लेकिन लूत ने उनमें से एक से कहा, "नहीं, महोदय, मुझसे ऐसा मत करवाओ!
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\v 19 कृपया, सुनो। आप मुझसे प्रसन्न हैं और मेरे लिए बहुत दयालु हैं और आप ने मेरी जान बचाई है। लेकिन मैं भाग कर पहाड़ों पर नहीं जा सकता। यदि मैं ऐसा करने का प्रयास करता हूँँ, तो मैं मारा जाऊँगा।
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\v 20 कृपया मेरी बात सुनें। यहाँ पास में एक नगर है। मुझे वहाँ भागने दें। वह सिर्फ एक छोटा सा नगर है यदि आप उसे नष्ट न करें तो हम वहाँ जा कर अपना जीवन बचा पाएँगे।"
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\v 21 स्वर्गदूतों में से एक ने लूत से कहा, "ठीक है, मैं तुझे ऐसा भी करने दूँगा। मैं उस नगर को नष्ट नहीं करूँगा जिसके विषय में तू कह रहा है।
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\v 22 लेकिन जल्दी भाग के वहाँ जाओ क्योंकि जब तक तुम वहाँ पहुँचते नहीं मैं सदोम को नष्ट नहीं कर सकता।" लोगों ने बाद में इस नगर को सोअर नाम दिया, जिसका अर्थ है 'महत्वपूर्ण नहीं', क्योंकि लूत ने कहा कि यह एक छोटा सा गांव था।
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\v 23 सूर्योदय होते-होते लूत और उसका परिवार उस नगर में पहुँच गए जिसका नाम सोअर था।
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\v 24 तब यहोवा ने सदोम और गमोरा पर आग और जलता हुआ गंधक बरसाया, जैसे कि आकाश से वर्षा हो रही हो।
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\v 25 इस प्रकार यहोवा ने उन नगरों को जला दिया और पूरी घाटी के सभी लोगों को जो उन नगरों में निवास करते थे। उन्होंने घाटी के प्रत्येक को यहाँ तक की सभी पेड़ पौधों को भी नष्ट कर दिया।
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\v 26 लेकिन लूत की पत्नी रुक कर पीछे पलटी कि देखें क्या हो रहा है इसलिए वह मर गई और उसका शरीर बाद में नमक का खंभा बन गया।
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\v 27 उसी सुबह अब्राहम उठकर उस स्थान पर गया जहाँ वह यहोवा के सामने खड़ा था।
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\v 28 उसने सदोम और गमोरा की ओर देखा, और देखकर आश्चर्यचकित हुआ कि सारी घाटी से, एक विशाल भट्ठी के समान धुआँ निकल रहा था।
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\v 29 जब परमेश्वर ने घाटी में उन नगरों को नष्ट कर दिया, तब परमेश्वर अब्राहम की सहायता करना नहीं भूले और लूत के नगर को नष्ट करते समय लूत को बचा लिया।
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\v 30 लूत सोअर में रहने से डरता था इसलिए अपनी दोनों पुत्रियाेँ के साथ पहाड़ों पर चला गया और वे एक गुफा में रहने लगे।
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\v 31 एक दिन बड़ी पुत्री ने छोटी पुत्री से कहा, "हमारा पिता बूढ़ा है और इस क्षेत्र में कोई पुरुष नहीं है जिससे हम यौन सम्बंध बनाएँ जैसा कि सारी पृथ्वी के लोग करते हैं।
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\v 32 आओ, हम अपने पिता को मदिरापान करा कर बेसुध कर दें और उसके अनजाने ही उसके साथ सोएं। इस प्रकार हम अपने वंश के लिए संतान उत्पन्न करें जो संतान आगे हमारे पिता के वंशज होंगे।"
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\v 33 इसलिए उस रात उन्होंने अपने पिता को दाखमधु पिलाकर नशे में किया। बड़ी पुत्री अंदर गई और अपने पिता के साथ सहवास किया, लेकिन वह इतना नशे में था कि उसे पता नहीं था कि वह कब उसके पास आई और कब चली गई।
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\v 34 अगले दिन उसकी बड़ी पुत्री ने उसकी छोटी पुत्री से कहा, "मैं कल रात पिता के साथ सोई थी। हम उसे आज भी दाखमधु पिलाकर नशे में कर देंगे और आज तू जाकर उसके साथ सहवास करना, इस प्रकार तू भी गर्भवती होकर संतान प्राप्त कर सकती है।"
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\v 35 इसलिए उस रात, उन्होंने अपने पिता को फिर से दाखमधु पिलाया और उसकी छोटी पुत्री अन्दर गयी और उसके साथ सो गई। लेकिन फिर, वह इतना अधिक नशे में था कि उसे पता नहीं था कि वह कब उसके पास आई और कब चली गई।
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\s5
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\v 36 इस कारण लूत अपनी दोनों पुत्रियों के गर्भवती होने का कारण बना।
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\v 37 बड़ी पुत्री ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसने लड़के का नाम मोआब रखा। वह मोआबियों का पूर्वज बना।
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\v 38 छोटी पुत्री ने भी एक पुत्र को जन्म दिया, जिसे उसने बेनअम्मी नाम दिया। वह अम्मोनियों का पूर्वज बना।
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\c 20
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\p
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\v 1 अब्राहम मम्रे को छोड़ कर दक्षिण-पश्चिम में नेगेव रेगिस्तान में चला गया। वहाँ वह कादेश और शूर के बीच गरार में रहने लगा। वह गरार नगर में एक विदेशी के समान रहता था।
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\v 2 जब वह वहाँ था, उसने लोगों से कहा कि सारा उसकी बहन है, पत्नी नहीं। तब गरार के राजा अबीमेलेक ने अपने कुछ लोगों को सारा को अपने पास लाने के लिए भेजा कि वे उसे उसकी पत्नी बनाने के लिए लाए।
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\v 3 परन्तु परमेश्वर रात में स्वप्न में अबीमेलेक के सामने प्रकट हुए और कहा, "मेरी बात सुन! तू मर जाएगा क्योंकि जिस स्त्री को तू ले आया है, वह किसी और की पत्नी है।"
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\v 4 अबीमेलेक अभी सारा के साथ नहीं सोया था इसलिए उसने कहा, "हे प्रभु, मेरी प्रजा और मैं निर्दोष हूँँ, तो क्या आप हमें मारेंगे?
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\v 5 अब्राहम ने मुझे बताया, 'यह स्त्री मेरी बहन है' और स्त्री ने भी कहा, 'यह पुरुष मेरा भाई है।' मेरा कुछ भी गलत करने का इरादा नहीं था और न ही मैंने कुछ भी गलत किया है।"
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\v 6 परमेश्वर ने उससे कहा, "हाँ, मुझे पता है कि तू कुछ भी गलत नहीं करना चाहता था। यही कारण है कि मैंने तुझे पाप करने से रोका और तुझे उसे छूने तक नहीं दिया।
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\v 7 उस पुरुष को उसकी पत्नी वापस कर दे क्योंकि वह एक भविष्यद्वक्ता है। वह तेरे लिए प्रार्थना करेगा और तू जीवित रहेगा। लेकिन यदि तू ने उसे उसकी पत्नी नहीं लौटाई तो तू मर जाएगा। और तेरे परिवार के सब सदस्य भी निश्चय ही मर जाएँगे।"
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\s5
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\v 8 अगली सुबह, अबीमेलेक ने अपने सभी अधिकारियों को बुलाया और स्वप्न में हुई सारी बातें उनको बताई। जब उन्होंने यह सुना, तो उसके लोग बहुत डर गए कि परमेश्वर उन्हें दंडित करेंगे।
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\v 9 अबीमेलेक ने अब्राहम को बुलाया और उससे कहा, "तुझे यह नहीं करना चाहिए था! क्या मैंने तेरे साथ कुछ गलत किया है? क्या मैंने तुझे विवश किया था कि तू मुझे और मेरी प्रजा को एक महापाप का दोषी बनाए? तू ने मेरे साथ जो किया है, वह तुझे नहीं करना था।
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\s5
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\v 10 तू ने ऐसा क्यों किया?"
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\v 11 अब्राहम ने उत्तर दिया, "मैंने कहा कि वह मेरी बहन थी क्योंकि मैं डर गया था, 'इस स्थान के लोग निश्चित रूप से परमेश्वर का आदर नहीं करते हैं। मैंने सोचा कि सारा को पाने के लिए कोई मुझे मार डालेगा।'
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\v 12 इसके अतिरिक्त, सारा को वास्तव में मेरी बहन भी माना जा सकता है क्योंकि वह मेरे पिता की पुत्री है हालांकि वह मेरी मां की पुत्री नहीं है। वह एक अन्य औरत की पुत्री है और मैंने उससे विवाह कर लिया।
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\s5
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\v 13 बाद में, जब परमेश्वर ने मुझे अपने पिता के घर-परिवार से दूर जाने के लिए कहा, तब मैंने उससे कहा, "तू अपनी स्वामीभक्ति इस प्रकार मुझ पर प्रकट करना कि हम जहाँ भी जाएँ, मेरे विषय यही कहना कि मैं तेरा भाई हूँ।"
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||
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\v 14 तब अबीमेलेक ने कुछ भेड़ और पशु अब्राहम को दिए। उसने उसे कुछ दास और दासी भी दिए। उसने अब्राहम की पत्नी सारा को लौटा दिया।
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\s5
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\v 15 और अबीमेलेक ने उससे कहा, "देख, मेरा देश तेरे सामने है। तू जिस स्थान में चाहे, रह सकता है।"
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\v 16 और उसने सारा से कहा, "देख, मैंने तेरे भाई को एक हजार चाँदी के टुकड़े दिए हैं। यह इसलिए कि इस बात की चर्चा फिर कभी कोई नहीं कर पाए और कहे कि मैंने कोई अनुचित काम किया है।
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\s5
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\v 17 तब अब्राहम ने परमेश्वर से प्रार्थना की और परमेश्वर ने अबीमेलेक की पत्नी और दासियों को चंगा किया ताकि वे बच्चो को जन्म दे सकें।
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\v 18 ऐसा इसलिए था क्योंकि अबीमेलेक के परिवार की सभी स्त्रियों को यहोवा ने बच्चो को जन्म देने की क्षमता से वंचित कर दिया था क्योंकि अबीमेलेक अब्राहम की पत्नी सारा को ले आया था।
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\s5
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\c 21
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\p
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\v 1 यहोवा अपने वचन के अनुसार सारा पर दयालु हुए जैसा कि उन्होंने कहा था। उन्होंने सारा के लिए वही किया जो उन्होंने करने की प्रतिज्ञा की थी,
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\v 2 वह गर्भवती हुई और अब्राहम के वृद्धावस्था में उसके लिए पुत्र को जन्म दिया, उसी समय पर जब परमेश्वर ने वचन दिया था वही हुआ।
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\v 3 अब्राहम ने सारा द्वारा जन्मे पुत्र का नाम इसहाक रखा।
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\v 4 परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार इसहाक के आठ दिन के होने पर उसका खतना किया गया।
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\s5
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\v 5 अब्राहम सौ वर्ष का था जब उसके पुत्र इसहाक का जन्म हुआ।
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\v 6 सारा ने कहा, " मैं पहले उदास थी क्योंकि मेरे पास कोई संतान नहीं थी लेकिन परमेश्वर ने अब मुझे प्रसन्नता से हँसने में सक्षम बनाया है और जो यह सुनता है की परमेश्वर ने मेरे लिए क्या किया, वह भी मेरे साथ प्रसन्न होता है।"
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\v 7 उसने यह भी कहा, "अब्राहम से कोई भी नहीं कह सकता था कि एक दिन मैं अपनी संतान को दूध पिलाऊँगी परन्तु मैंने अब्राहम को उसकी वृद्धावस्था में पुत्र दिया है।"
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\v 8 जब बच्चा इतना बड़ा हो गया कि एक दिन उसने माँ का दूध छोड़ दिया। उस दिन अब्राहम ने जश्न मनाने के लिए एक बड़ी दावत तैयार की।
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\v 9 एक दिन सारा ने देखा कि हागार का पुत्र इश्माएल इसहाक का मजाक उड़ा रहा था।
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\v 10 तब उसने अब्राहम से कहा, "उस दासी स्त्री तथा उसके पुत्र को यहाँ से भेज दे। मैं नहीं चाहती कि उस दासी स्त्री के पुत्र को मेरे पुत्र इसहाक की विरासत में हिस्सा मिले।"
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\v 11 अब्राहम इस बात से बहुत परेशान हुआ क्योंकि वह अपने पुत्र इश्माएल के विषय में भी चिंतित था।
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\v 12 लेकिन परमेश्वर ने अब्राहम से कहा, "अपने पुत्र, इश्माएल और अपनी दासी हागार के विषय में परेशान मत हो। सारा जो कुछ तुझे करने के लिए कह रही है उसे सुन, और वैसा ही कर। इसहाक ही वह है जो उन वंशजों का पूर्वज होगा जो मैंने तुझे देने का वादा किया है।
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\v 13 परन्तु मैं तेरी दासी हागार के पुत्र को भी एक बड़ी जाति का पिता बनाऊँगा क्योंकि वह भी तेरा ही पुत्र है।"
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\v 14 अब्राहम अगली सुबह जल्दी उठ गया। अब्राहम ने कुछ भोजन तैयार किया और मशक में जल डाला और हागार को दिया। उसने हागार के कंधे पर सामान रख दिया और उसे इश्माएल को भी सौंप दिया। वे निकल कर बेर्शेबा के जंगल में चले गए।
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\v 15 हागार और उसके पुत्र के पास जब पीने का जल समाप्त हो गया तो उसने लड़के को झाड़ियों के नीचे रखा।
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\v 16 तब हागार वहाँ से उतनी दूर गई जितनी दूर धनुष से निकला तीर जाता है। उसने सोचा, "मैं अपने पुत्र को मरते हुए नहीं देख सकती!" वहाँ बैठते ही वह जोर-जोर से रोने लगी।
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\v 17 शीघ्र ही परमेश्वर ने इश्माएल की आवाज़ सुनी, इसलिए उन्होंने स्वर्ग से एक दूत हागार के पास भेजा। उन्होंने कहा, "हागार, तुझे क्या परेशानी है? मत डर क्योंकि परमेश्वर ने तेरे पुत्र का रोना सुना है।
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\v 18 जा और अपने पुत्र को उठा और उसकी सहायता कर ताकि वह बलवान बने क्योंकि मैं उसे लोगों के बड़े समुदाय का पिता बनाऊँगा।"
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\v 19 तब परमेश्वर ने उसे जल का कुआँ दिखाया। वह कुएँ के पास गई और उसने उस कुएँ से जल भर कर इश्माएल को पिलाया।
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\v 20 परमेश्वर ने लड़के की सहायता की और वह जंगल में बड़ा हुआ। वह एक अच्छा तीरंदाज बन गया।
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\v 21 वह पारान नामक जंगल में रहने लगा। हागार मिस्र से अपने पुत्र इश्माएल के लिए एक पत्नी लाती है।
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\v 22 उस समय राजा अबीमेलेक और उसके सेनापति पीकोल ने अब्राहम से कहा, "हमें ज्ञात है कि परमेश्वर तेरे हर एक काम में तेरे साथ रहते हैं।
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\v 23 इसलिए तू परमेश्वर के सामने वचन दे कि तू मेरे और मेरी संतानों से कभी छल नहीं करेगा। तू यह वचन दे कि मेरे प्रति और जहाँ तू रह रहा है उस देश के प्रति दयालु रहेगा। तू यह भी वचन दे कि मैं तेरे प्रति जितना विश्वस्त रहा उतना तू मुझ पर भी विश्वस्त रहेगा।
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\v 24 तब अब्राहम ने ऐसा करने की शपथ ली।
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\v 25 अब्राहम ने अबीमेलेक से अपने एक कुएँ के जल के विषय शिकायत की जिस पर अबीमेलेक के सेवकों ने कब्ज़ा कर लिया था।
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\v 26 लेकिन अबीमेलेक ने कहा, "मुझे ज्ञात नहीं कि किसने ऐसा किया है। तू ने भी इससे पहले इस विषय मुझे कुछ नहीं कहा। मैंने आज से पहले इसके विषय में कुछ नही सुना।"
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\v 27 तब अब्राहम ने कुछ भेड़ों और पशुओं को लाकर उन्हें अबीमेलेक को दे दिया। और वे दोनों गंभीरता से अपने बीच शान्ति रखने के लिए सहमत हुए।
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\v 28 अब्राहम अपने पशुओं के पास गया और उन में से भेड़ के सात मादा बच्चों को चुना।
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\v 29 अबीमेलेक ने अब्राहम से पूछा, "तू ने इन भेड़ के सात मादा बच्चों को क्यों चुना है?"
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\v 30 अब्राहम ने उत्तर दिया, "मैं चाहता हूँँ कि तू मुझसे इन मादा मेम्नों को स्वीकार कर। इस प्रकार मेरी यह भेंट सब के समक्ष एक प्रमाण होगी कि यह कुँआ मेरा है। क्योंकि मैंने इसे खोदा है।"
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\v 31 तब अबीमेलेक ने मेम्नों को स्वीकार किया। अब्राहम ने उस स्थान का नाम बेर्शेबा रखा, जिसका अर्थ है 'शपथ का कुँआ ', क्योंकि उसने और अबीमेलेक ने एक दूसरे के प्रति शान्ति रखने के लिए यहाँ शपथ ली थी।
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\v 32 बेर्शेबा में संधि बनाने के बाद, अबीमेलेक और उसके सेनापति पीकोल लौट कर पलिश्तियों के देश आ गए।
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\v 33 अब्राहम ने वहाँ झाऊ का एक सदाबहार पेड़ लगाया और वहाँ उसने यहोवा, शाश्वत परमेश्वर की आराधना की।
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\v 34 अब्राहम लंबे समय तक पलिश्तियों के देश में परदेशी के रूप में रहा।
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\c 22
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\v 1 कई सालों बाद, परमेश्वर ने अब्राहम की परीक्षा ली कि वह उसकी आज्ञा का पालन करेगा या नहीं। उसने अब्राहम को बुलाया और अब्राहम ने कहा, "मैं यहाँ हूँँ।"
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\v 2 परमेश्वर ने कहा, "तेरा पुत्र, इसहाक, जिसे तू बहुत प्रेम करता है। वह एकमात्र पुत्र है जिसे मैंने तुझे देने की प्रतिज्ञा की थी। तू उसे अपने साथ ले कर मोरिय्याह के देश में, उस पहाड़ पर जाना जो मैं तुझे दिखाऊँगा और वहाँ तू उसे होमबलि के रूप में मुझे चढ़ाना।"
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\v 3 अब्राहम अगली सुबह उठा, अपने गदहे पर एक गद्दी कस कर और दो सेवकों और अपने पुत्र, इसहाक को साथ लिया। उसने होमबलि की आग के लिए कुछ लकड़ियाँ भी काटकर तैयार की। तब उन्होंने उस स्थान के लिए यात्रा आरंभ की जहाँ जाने के विषय में परमेश्वर ने उन्हें बताया था।
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\v 4 उनकी तीन दिन की यात्रा के बाद अब्राहम ने दूर से उस स्थान को देखा जहाँ परमेश्वर चाहते थे कि वह जाए।
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\v 5 अब्राहम ने अपने सेवकों से कहा, "तुम दोनों यहाँ गदहे के पास रूको, इसहाक और मैं वहाँ जाते हैं कि परमेश्वर की आराधना करें। उसके बाद हम लौट कर आयेंगे।"
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\v 6 तब अब्राहम ने होमबलि में आग लगाने के लिए लकड़ियाँ लीं और उसे अपने पुत्र इसहाक के कन्धों पर रखा। अब्राहम ने आग जलाने के लिए लकड़ियाँ और चाकू भी रखा और दोनों एक साथ चल पड़े।
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\s5
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\v 7 तब इसहाक ने अपने पिता अब्राहम से कहा, "पिताजी!" अब्राहम ने उत्तर दिया, "हाँ, मेरे पुत्र, मैं यहाँ हूँँ!" इसहाक ने कहा, "देखो, हमारे पास आग लगाने के लिए लकड़ी और कोयला भी हैं लेकिन होमबलि के लिए मेमना कहाँ है?"
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\v 8 अब्राहम ने उत्तर दिया, "हे मेरे पुत्र, परमेश्वर स्वयं होमबलि के लिए मेमना देंगे।" वे दोनों साथ-साथ आगे बढ़ते रहे।
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\s5
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\v 9 वे उस स्थान पर पहुँचे जहाँ जाने के लिए परमेश्वर ने कहा था। वहाँ, अब्राहम ने एक पत्थर की वेदी बनाई और उस पर लकड़ियाँ रखी। तब उसने अपने पुत्र इसहाक को बाँध कर उसे लकड़ी के ऊपर वेदी पर रख दिया।
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\v 10 तब अब्राहम ने अपने पुत्र को मारने के लिए छुरी बाहर निकाली।
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\s5
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\v 11 लेकिन यहोवा के दूत ने उसे स्वर्ग से आवाज देकर कहा, "अब्राहम! अब्राहम!" अब्राहम ने उत्तर दिया, "मैं यहाँ हूँँ!"
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\v 12 उस स्वर्गदूत ने कहा, "तू अपने पुत्र को चोट न पहुँचा क्योंकि मैं जान गया हूँ कि तू मेरा सम्मान करता है और मेरी आज्ञा मानता है। मैंने देखा की तू ने अपने एकलौते पुत्र को मेरे लिए बलि देने से मना नही किया।"
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\p
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\s5
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\v 13 तब अब्राहम ने पास की झाड़ियों में एक मेढ़े को सींगों से फँसा हुआ देखा। अब्राहम ने उस मेढ़े को पकड़ कर और उसे अपने पुत्र के स्थान पर मार कर होमबलि चढ़ाया।
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\v 14 इसलिए अब्राहम ने उस स्थान का नाम "यहोवा प्रदान करेंगे" रखा। आज तक वह पर्वत, "यहोवा का पर्वत जहाँ वे प्रदान करते हैं", कहलाता है।
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\p
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\v 15 यहोवा के स्वर्गदूत ने अब्राहम को दूसरी बार स्वर्ग से पुकारा।
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\v 16 उन्होंने अब्राहम से कहा, "मैं यहोवा, यह घोषणा करता हूँ कि तूने मेरी आज्ञा मानी और तू मेरे लिए अपने पुत्र को बलि करने के लिए भी तैयार था,
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\v 17 अतः निष्ठापूर्वक मैं प्रतिज्ञा करता हूँ स्वयं मेरी ही गवाही के द्वारा, कि "एक दिन तेरे वंशज आकाश के सितारों और समुद्र की रेत के कणों के समान अनगिनत होंगे। तेरे वंशज अपने शत्रुओं को हरा कर उनके नगरों पर अधिकार कर लेंगे।
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\s5
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\v 18 तू ने मेरी आज्ञा मानी है। इस कारण संसार की सभी जातियां तेरे वंशजों के द्वारा आशीर्वाद पाएंगी।"
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\v 19 इसके बाद अब्राहम और इसहाक अपने प्रतीक्षा करने वाले सेवकों के पास आए और वे सब बेर्शेबा को लौट गये। अब्राहम और उसके लोग वहीं रहते रहे।
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\s5
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\v 20 इन बातों के बाद किसी ने अब्राहम को समाचार दिया, "तेरे भाई नाहोर की पत्नी मिल्का ने भी बच्चों को जन्म दिया है।
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\v 21 उसके बड़े पुत्र का नाम ऊज था और ऊज के भाई का नाम बूज और कमूएल था। कमूएल अराम का पिता था।
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\v 22 कमूएल के बाद केसेद, फिर हजो, पिल्दाश, यिदलाप और बतूएल।
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\s5
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\v 23 बतूएल रिबका का पिता था। अब्राहम के भाई नाहोर की पत्नी मिल्का के ये ही आठ पुत्र थे।
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\v 24 नाहोर की एक रखैल भी थी जिसका नाम रुमा था। उससे भी चार पुत्र हुए जिनके नाम तेबह, गहम, तहश और माका थे।
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\c 23
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\p
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\v 1-2 सारा एक सौ सत्ताईस वर्ष तक जीवित रही। वह कनान प्रदेश के किर्यतअर्बा नगर में मरी, किर्यतअर्बा नगर को अब हेब्रोन कहा जाता है। अब्राहम ने उसके लिए शोक किया।
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\s5
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\v 3 वह अपनी पत्नी के शरीर को छोड़कर हित्त के वंशजों से बात करने गया। उसने कहा,
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\v 4 "मैं तुम्हारे बीच रहने वाला अस्थाई निवासी हूँँ इसलिए मेरे पास यहाँ पर कोई भूमि नहीं है। मुझे यहाँ कुछ भूमि दो ताकि मैं अपनी पत्नी के शरीर को दफना सकूँ।"
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\s5
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\v 5 उन्होंने उसे उत्तर दिया,
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\v 6 "महोदय, तू हमारे बीच एक प्रतिष्ठित व्यक्ति है। अच्छी कब्रों में से एक को चुन और उसमें अपनी पत्नी के शरीर को दफना। हम लोगों में से कोई भी तुझे भूमि देने से मना नहीं करेगा कि तू अपनी पत्नी के शरीर को दफना कर उसके लिए गुम्बद बना।"
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\s5
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\v 7 तब अब्राहम ने खड़े होकर हित्तियों के सामने झुक कर नमस्कार किया, हित्ति उस देश के स्वामी और हेत के वंशज थे।
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\v 8 उसने उनसे कहा, "यदि तुम लोग सचमुच चाहते हो की मेरी मरी हुई पत्नी को दफनाने में मेरी सहायता करो तो सोहर के पुत्र एप्रोन से मेरे लिए बात करो।
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\v 9 कि वो मकपेला की गुफा मुझे बेच दे जो उसके क्षेत्र के अंतिम भाग में है। उससे कहो कि वह मुझे यह भूमि पूरी कीमत में बेचे जो वह चाहता है और वह तुम सब के सामने मुझे बेचे। इस प्रकार मुझे यह भूमि दफन-स्थल के रूप में प्राप्त हो जाएगी।"
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\s5
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\v 10 एप्रोन नगर के द्वार पर लोगों के बीच बैठा था जहाँ उसके साथ अनेक अन्य हित्ती के वंशज भी उपस्थित थे। उन्होंने उसे अब्राहम की बातें सुनाई।
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\v 11 एप्रोन ने कहा, "नहीं, महोदय, मेरी बात सुन। मैं तुझे वह भूमि और गुफा बिना किसी मोल के देता हूँ और इसके गवाह ये सब उपस्थित लोग होंगे। कृपया अपनी पत्नी को यहाँ दफना।"
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\v 12 अब्राहम ने फिर से हित्ती लोगों के सामने अपना सिर झुकाया, जो वहाँ निवास करते थे
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\v 13 और सब के सामने एप्रोन से कहा, "नहीं, मेरी बात सुन। यदि तुझे स्वीकार हो तो मैं तुझे उसका मूल्य दूँगा। मुझे उसकी कीमत बता और मैं तुझे वह दूँगा। यदि तुम कीमत स्वीकार करोगे तभी वह भूमि मेरी होगी और मैं अपनी पत्नी का शरीर वहाँ दफनाऊँगा।"
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\s5
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\v 14 एप्रोन ने अब्राहम से कहा,
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\v 15 "महोदय, मेरी बात सुन। भूमि का मूल्य चाँदी के चार सौ टुकड़े के बराबर है लेकिन भूमि का मूल्य तेरे और मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं है। मुझे इस भूमि का मूल्य दो और अपनी पत्नी के शरीर को दफना।"
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\v 16 अब्राहम एप्रोन द्वारा कहे गए मूल्य से सहमत हो गया, और एप्रोन को चाँदी के चार सौ टुकड़े दिए, जिसके सब गवाह थे। उसने विक्रेताओं के मानक के अनुसार चाँदी तौल कर दी।
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\p
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\s5
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\v 17 इस प्रकार मेम्रे के निकट मकपेला का वह खेत जो एप्रोन का था वह गुफा, सब वृक्ष तथा सब वृक्ष जो भूमि की सीमा को चिन्हित करते थे, अब्राहम की सम्पति हो गए।
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\v 18 इस प्रकार अब्राहम ने संपत्ति खरीदी और नगर के फाटक पर जितने भी हित्ती उपस्थित थे वे उस सौदे के गवाह हुए।
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\s5
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\v 19 इसके बाद, अब्राहम ने अपनी पत्नी सारा के शरीर को मम्रे के पास मकपेला की गुफा में दफनाया जिसे अब हेब्रोन कहा जाता है जो कनान में है।
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\v 20 वह भूमि और गुफा आधिकारिक तौर पर हित्त के वंशजों द्वारा अब्राहम को बेची गई थी और इसका प्रयोग दफन-स्थल के रूप में हुआ।
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\s5
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\c 24
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\p
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\v 1 अब्राहम अब बहुत बूढ़ा हो गया था। यहोवा ने अब्राहम को कई आशिषें दी।
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\v 2 एक दिन अब्राहम ने अपने परिवार के मुख्य दास जो अब्राहम के पूरी सम्पति का प्रबन्धक था उससे कहा, "अपने हाथ मेरी जाँघों के नीचे रख कर शपथ खा की जो मैं कहूँँगा वह तू करेगा।
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||
|
\v 3 यह मानते हुए कि यहोवा, जिन्होंने स्वर्ग और पृथ्वी को रचा है वे सुन रहे हैं, मुझे वचन दे कि तू कनान की पुत्रियों में से मेरे पुत्र, इसहाक के लिए पत्नी नहीं लाएगा।
|
||
|
\v 4 इसकी अपेक्षा, तू मेरे देश और मेरे रिश्तेदारों के पास जा। वहाँ से मेरे पुत्र इसहाक के लिए पत्नी ला। "
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\s5
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||
|
\v 5 दास ने उससे पूछा, "यदि मैं तेरे रिश्तेदारों में से किसी स्त्री को खोजूँ और वह मेरे साथ इस देश में आना न चाहे तो मैं क्या करूं? क्या मैं तेरे पुत्र को उस देश में ले जाऊ जहाँ से तू आया है कि वह पत्नी खोजे और वहीं रह जाए?"
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||
|
\v 6 अब्राहम ने कहा, "नहीं! निश्चित कर कि तू मेरे पुत्र को वहाँ नहीं ले जाएगा!
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||
|
\v 7 यहोवा, जिन्होंने स्वर्ग बनाया, वे मुझे यहाँ लाए। वे मुझे अपने पिता के घर, जहाँ मेरे रिश्तेदार रहते थे वहाँ से निकाल कर मुझे यहाँ लाये और मुझसे बातें की और मुझे वचन दिया। उन्होंने कहा, 'मैं कनान देश तेरे वंशजों को दूँगा।' यहोवा अपने एक स्वर्गदूत को तेरे आगे-आगे भेजेंगे जिससे तू मेरे पुत्र के लिए पत्नी चुन सके।
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||
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\s5
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|
\v 8 परन्तु यदि वह स्त्री जिसे तू चुनेगा तेरे साथ आना न चाहे तो तू अपनी शपथ से मुक्त हो जाएगा। बस, एक ही काम जो तुझे नहीं करना है, वो यह है कि तू मेरे पुत्र को वहाँ नहीं ले जाएगा। "
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\v 9 तब उस दास ने अब्राहम की जांघों के बीच अपना हाथ रखा और इस बात की शपथ खाई।
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\p
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\s5
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\v 10 तब दास ने अपने स्वामी के ऊँटों में से दस ऊँटों को लिया और उन पर वह सब सामान रखा जो उसके स्वामी ने साथ ले जाने को दिया था। फिर वह उत्तरी मीसोपोतामिया के अरम्नहरैम नाहोर नगर के लिए निकला।
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||
|
\v 11 जब वह दास नाहोर नगर पहुँचा तब दोपहर के बाद का समय हो गया था। यह वह समय था जब स्त्रियाँ कुएँ पर जल भरने आती थीं। उसने नगर के बाहर उस कुएँ के पास अपने ऊँटों को बैठा दिया।
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\s5
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|
\v 12 दास ने प्रार्थना की, "हे परमेश्वर यहोवा जिनकी आराधना मेरा स्वामी करता है, आज मुझे सफलता प्रदान करें और मेरे स्वामी, अब्राहम के विश्वास का मान रखें!
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|
\v 13 मेरी बात सुनो। मैं यहाँ इस कुएँ के पास खड़ा हूँँ और जल भरने के लिए नगर से लड़कियाँ आ रही हैं।
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|
\v 14 मैं आपसे विनती करता हूँँ कि मैं जिस कन्या से कहूँ, "कृपया अपना पात्र झुकाकर मुझे जल पिला दे", और वह कहे, 'ले, पीले, मैं तेरे ऊँटों के लिए भी जल निकाल दूंगी कि वे भी पीएं।' तो मुझे विश्वास हो जाएगा कि वही वो स्त्री है जिसे आपने अपने दास, इसहाक के लिए चुन लिया है और मुझे निश्चय हो जाएगा कि आपने मेरे स्वामी के विश्वास का मान रखा है।"
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\s5
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\v 15 दास की प्रार्थना पूरी होने के पहले ही रिबका नाम की एक जवान स्त्री कुएँ पर आई। वह अब्राहम के छोटे भाई नाहोर की पत्नी मिल्का के पुत्र बतूएल की पुत्री थी।
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\v 16 वह बहुत सुंदर और कुँवारी थी। कोई व्यक्ति कभी उसके साथ सोया नहीं था। वह कुएँ में उतरी और अपना पात्र जल से भरकर ऊपर आई।
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\s5
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\v 17 अब्राहम का दास तुरन्त उससे मिलने के लिए गया, और कहा, "कृपया करके अपने घड़े से पीने के लिए थोड़ा जल दे।"
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\v 18 उसने उत्तर दिया, "महोदय! अवश्य पी और पात्र को कंधे पर से उतार कर हाथों में लिया कि उसे जल पिलाए।"
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\s5
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\v 19 रिबका ने जल पिलाने के बाद कहा, "मैं तेरे ऊँटों को भी जल दूंगी, जब तक वे प्रयाप्त पी न ले।"
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\v 20 उसने जल्दी-जल्दी घड़े का सारा जल ऊँटों के लिए बनी नाद में उड़ेल दिया। तब वह और जल लाने के लिए कुएँ की ओर दौड़ गई और उसने सभी ऊँटों को जल पिलाया।
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\v 21 दास ने चुप-चाप उसे देखा। वह जानना चाहता था कि क्या यहोवा ने उसकी यात्रा सफल की है या नहीं।
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\v 22 अन्त में जब ऊँट जल पी चुके तब उस दास ने छः ग्राम की नथ और दो सोने के कंगन जिनमें प्रत्येक का भार 110 ग्राम का था निकाले और रिबका को दिए कि वह उन्हें पहन ले।
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\v 23 फिर उसने कहा, "मुझे बता कि तू किसकी पुत्री है। साथ ही, मुझे यह भी बता कि क्या तेरे पिता के घर में मेरे और मेरे साथियों के लिए आज रात सोने का स्थान हैं?"
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\v 24 उसने उत्तर दिया, "मेरे पिता का नाम बतूएल है। वह नाहोर और उसकी पत्नी मिल्का का पुत्र है।
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\v 25 हाँ, हमारे पास पर्याप्त स्थान है जहाँ तुम सभी आज रात सो सकते हो और ऊँटों को खिलाने के लिए हमारे पास बहुत सारा भूसा और अनाज भी है।"
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\s5
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\v 26 दास ने यहोवा की ओर सिर झुकाया और यहोवा की आराधना की।
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\v 27 उसने कहा, "मैं यहोवा का धन्यवाद करता हूँँ, जिनकी मेरा स्वामी अब्राहम आराधना करता है। वह मेरे स्वामी के प्रति वफादार और भरोसेमंद हैं। यहोवा ने मुझे इस यात्रा में सीधा मेरे स्वामी के रिश्तेदारों में पहुँचा दिया है!"
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\s5
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\v 28 तब रिबका दौड़ी और जो कुछ हुआ था अपने माँ के घर में सबको बताया।
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\v 29 रिबका का एक भाई था जिसका नाम लाबान था। लाबान तुरन्त दास के पास गया, जो कुएँ के पास खड़ा था।
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\v 30 वह अपनी बहन को कंगन और नथ पहने देख तथा रिबका से उस पुुरुष की बातें सुनकर आश्चर्यचकित था। उसने जाकर देखा कि वह पुरुष ऊँटों के पास उस कुएँ के निकट खड़ा है।
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\s5
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\v 31 उसने अब्राहम के दास से कहा, "तू जो यहोवा द्वारा आशीषित है, तू यहाँ क्यों खड़ा है? मैंने तेरे लिए घर में एक स्थान तैयार किया है और तेरे ऊँटों के लिए भी स्थान तैयार किया है।"
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\v 32 तब दास घर गया, और लाबान के दासों ने ऊँटों पर से सामान उतारा। वे ऊँटों के लिए भूसा और अनाज लाए और दास और उसके साथियों के लिए पैर धोने के लिए जल लाए।
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\s5
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\v 33 उन्होंने खाने के लिए भोजन परोसा लेकिन उसने कहा मैं तब तक भोजन नहीं करूँगा जब तक मैं यह न बता दूँ जो मुझे बताना आवश्यक है।" लाबान ने कहा, "हमें बता!"
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\v 34 दास ने कहा, "मैं अब्राहम का दास हूँँ।
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\v 35 यहोवा ने मेरे स्वामी को बहुत आशीर्वाद दिया है और वह बहुत धनवान हो गया है। यहोवा ने उसे भेड़-बकरियाँ और मवेशी, बहुत सोना, चाँदी और दास-दासी,ऊँट और गदहे दिये हैं।
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\s5
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\v 36 सारा, मेरे मालिक की पत्नी थी। जब वह बहुत बूढ़ी हो गई थी उसने एक पुत्र को जन्म दिया और हमारे मालिक ने अपना सब कुछ उस पुत्र को दे दिया।
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\v 37 मेरे स्वामी ने मुझसे वचन लिया और कहा,"मेरे पुत्र के लिए कनानियों की पुत्रियों से पत्नी न लाना, जिनकी भूमि में हम रहते हैं।
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\v 38 इसकी अपेक्षा, मेरे पिता के परिवार के पास वापस जा, जो मेरा अपना कुल है और मेरे पुत्र के लिए पत्नी ला।'
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\v 39 तब मैंने अपने स्वामी से पूछा, 'यदि वह स्त्री मेरे साथ नहीं आएगी तो मैं क्या करू?'
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\v 40 उसने उत्तर दिया था, 'मैं यहोवा, जिनकी आज्ञा का पालन मैंने सदैव किया है, वे अपना दूत तेरे आगे भेजेंगे और तेरी सहायता करेंगे। तुझे यहोवा ही सक्षम बनाएँगे कि तू मेरे ही कुल से, मेरे पिता के परिवार से मेरे पुत्र के लिए पत्नी प्राप्त कर सके।
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\v 41 लेकिन यदि मेरा कुल तेरे साथ उसे आने की अनुमति न दे तब तू शापित होने से बच जाओगे की तू मेरी आज्ञा का पालन नहीं कर सका।'
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\p
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\v 42 जब मैं आज कुएँ पर आया तो मैंने प्रार्थना की, 'हे यहोवा परमेश्वर, जिनकी आराधना मेरा स्वामी अब्राहम, करता है यदि आप मुझे इस यात्रा में सफल बनाना चाहते हैं तो कृपया मेरे लिए ऐसा होने दें:
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\v 43 मैं कुएँ के पास खड़ा हूँँ जहाँ लड़कियाँ जल लेने आएँगी। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँँ कि मैं जिस युवती से कहूँ, 'मुझे अपने घड़े से जल पिला दे',
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\v 44 तो वह कहे, 'हाँ पी ले और मैं तेरे ऊँटों को भी जल पिला दूंगी', तो वह मेरे स्वामी के पुत्र के लिए आपकी ओर से चुनी हुई पत्नी होगी!
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\v 45 मेरी प्रार्थना पूरी होने के पहले ही रिबका कुएँ पर जल भरने आई। जल का घड़ा उसने अपने कंधे पर ले रखा था। वह कुएँ तक गई और उसने जल भरा। मैंने इससे कहा, "कृपा करके मुझे पीने के लिए जल दे!'
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\v 46 उसने तुरन्त कंधे से घड़े को झुकाया और मेरे लिए जल डाला और कहा, 'यह पी और मैं तेरे ऊँटों के लिए भी जल लाऊँगी।' इसलिए मैंने जल पीया और अपने ऊँटों को भी जल पिलाया।
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\s5
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\v 47 तब मैंने उससे पूछा, 'तू किसकी पुत्री है?' उसने कहा, 'नाहोर के पुत्र बतूएल और उसकी पत्नी मिल्का की पुत्री हूँ।' तब मैंने उसे नाक में पहनने को नथ और हाथों में पहनने को कंगन दिए।
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\v 48 तब मैंने अपना सिर झुकाकर यहोवा की स्तुति की और यहोवा परमेश्वर को धन्यवाद दिया जिनकी मेरे स्वामी अब्राहम आराधना करते हैं, उन्होंने मुझे सही मार्ग दिखाया की मैं अपने स्वामी के भाई की पोती को अपने स्वामी के पुत्र की पत्नी बना सकूं।
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\s5
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\v 49 अब यदि तुम मेरे स्वामी केअपने विस्तारित परिवार के हिस्से के रूप में परिवार को बढ़ने के लिए विश्वसनीय कार्य करना चाहते हो तो बताओ की जो मैं निवेदन कर रहा हूँ तुम वही करोगे, यदि नहीं तो वह भी स्पष्ट कह दो कि मैं जान सकूं कि मुझे आगे क्या करना है।"
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\s5
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\v 50 लाबान और बतूएल ने उत्तर दिया, "यह स्पष्ट रूप से यहोवा से आया है। इसलिए हम नहीं कह सकते कि यह करना या न करना उचित है।
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\v 51 रिबका तेरे सामने है। उसे ले जा, और उसे अपने स्वामी के पुत्र की पत्नी बना दे, जैसा यहोवा चाहते हैं।"
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\v 52 जब अब्राहम के दास ने यह सुना, तो उसने यहोवा को दंडवत किया।
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\v 53 तब दास ने सोने-चाँदी के आभूषण और वस्त्र निकालकर रिबका को दिए और उसके भाई लाबान एवं उसकी माता को भेंट दी।
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\v 54 फिर दास ने खान-पान किया। जो साथी अब्राहम के दास के साथ आये थे वे भी उस रात वहाँ सोये। अगली सुबह, दास ने कहा, "अब हमें अपने मालिक के पास जाने की अनुमति दे।"
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\v 55 परन्तु उसके भाई और उसकी माँ ने उत्तर दिया, "लड़की को हमारे साथ दस दिन तक रहने दे। उसके बाद तू उसे ले जा सकता है।"
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\s5
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\v 56 परन्तु दास ने उनसे कहा, "मुझसे प्रतीक्षा न करवाओ। यहोवा ने मेरी यात्रा सफल की है। मुझे न रोको अब मुझे अपने स्वामी के पास लौट जाने दो!"
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\v 57 उन्होंने कहा, "लड़की को बुलाओ और उससे पूछो कि वह क्या करना चाहती है।"
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\v 58 उन्होंने रिबका को बुलाया और उससे पूछा, "क्या तू इसके साथ जाएगी ?" उसने उत्तर दिया, "हाँ, मैं जाऊँगी।"
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\s5
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\v 59 उन्होंने अब्राहम के दास के साथ रिबका को उसकी दासियों समेत विदा किया जो दासियां आजीवन उसकी सेवा करती रही थी।
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\v 60 उन्होंने परमेश्वर से विनती की कि रिबका को आशीष दें और रिबका से कहा, "हमारी बहन, हमारा आशीर्वाद है कि यहोवा तुझे अनगिनत वंशजों की माता बनाएँ और जो उनसे घृणा करते हैं उनको पूरी तरह से पराजित करें।"
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\s5
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\v 61 तब रिबका और उसकी दासियाँ तैयार होकर ऊँटों पर सवार अब्राहम के दास के साथ चलीं। दास ने रिबका को साथ लिया और घर लौटने की यात्रा शुरू की।
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\v 62 इस समय इसहाक यहूदा के दक्षिणी जंगल में रहता था। वह बएर-लहई-रोई नाम के कुएँ से वहाँ आया था।
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\v 63 एक दिन वह शाम के समय चिंतन मनन करने के लिए मैदान में गया और ऊँटों को उस ओर आते देख चकित हुआ।
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\v 64 रिबका ने भी इसहाक को देखा। वह ऊँट पर से उतर गई
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\v 65 और दास से पूछा, "यह पुरुष कौन है जो आ रहा है?" दास ने उत्तर दिया, "वह मेरा स्वामी इसहाक है।" इसलिए उसने उसके सामने शिष्टाचार के लिए अपने चेहरे पर परदा डाल लिया।
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\v 66 दास ने इसहाक को वे सभी बातें बताई जो वहाँ घटित हुई थीं।
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\v 67 तब इसहाक रिबका को अपनी माँ के तम्बू में ले आया और वह उसकी पत्नी हो गई। वह उससे बहुत प्रेम करता था। इस प्रकार इसहाक को उसकी माँ की मृत्यु के पश्चात् सांत्वना मिली।
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\c 25
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\p
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\v 1 सारा की मृत्यु के कुछ समय बाद अब्राहम ने कतूरा नाम की महिला से फिर विवाह किया।
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\v 2 कतूरा ने छह पुत्रों को जन्म दिया: जिम्रान, योक्षान, मदना, मिद्यान, यिशबाक और शूह ।
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\v 3 योक्षान दो पुत्रों शबा और ददान का पिता बना। ददान के वंशज अश्शूर और लुम्मी लोग थे।
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\v 4 मिद्यान के पुत्र एपा, एपेर, हनोक, अबीदा और एल्दा थे। ये सब कतूरा की सन्तान थे।
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\s5
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\v 5 अब्राहम ने घोषित किया कि उसकी मृत्यु के बाद इसहाक संपूर्ण सम्पति का उतराधिकारी होगा।
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\v 6 परन्तु जब जीवित था तब उसने अपनी रखैलों के पुत्रों को उपहार दिये और उन्हें पूर्वी क्षेत्र में रहने के लिए स्थान दे दिया कि वे उसके पुत्र इसहाक से दूर रहें।
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\s5
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\v 7 अब्राहम एक सौ पचहत्तर वर्ष की उम्र तक जीवित रहा।
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\v 8 वह बहुत वृद्ध होकर मरा और अपने पूर्वजों में शामिल हो गया जो पहले मर चुके थे।
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\s5
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\v 9 उसके पुत्र इसहाक और इश्माएल ने उसे मकपेला की गुफा में दफनाया। इस क्षेत्र को अब्राहम ने सोहर के पुत्र एप्रोन से ख़रीदा था जो हित्त का वंशज था।
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\v 10 इसहाक और इश्माएल ने अब्राहम को वहीं दफनाया जहाँ अब्राहम ने पहले अपनी पत्नी सारा को दफनाया था।
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\v 11 अब्राहम की मृत्यु के बाद, परमेश्वर ने उसके पुत्र इसहाक को आशीष दी। इसहाक लहैरोई में रहता रहा।
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\p
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\s5
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\v 12 अब आगे उनकी सूची है जो अब्राहम के पुत्र इश्माएल के वंश के थे, जिसे सारा की मिस्री दासी, हागार ने जन्म दिया था।
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\s5
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\v 13 इश्माएल के पुत्रों के ये नाम हैं: पहला पुत्र नबायोत था, तब केदार पैदा हुआ, तब अदबएल, मिबसाम,
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\v 14 मिश्मा, दूमा, मस्सा,
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\v 15 हदद, तेमा, यतूर, नापीश और केदमा हुए।
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\v 16 ये इश्माएल के बारह पुत्रों के नाम थे। इश्माएल के बारह पुत्र अपने-अपने कुलों के प्रधान बने और उन्हीं के नाम पर उनके कुल आगे चले। उनमें से प्रत्येक की अपनी भूमि व्यवस्था और पड़ाव भूमि थी।
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\s5
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\v 17 इश्माएल एक सौ सैंतीस वर्ष जीवित रहा और मरने के बाद अपने पूर्वजों में शामिल हो गया जो पहले मरे थे।
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\v 18 उसके वंशज हवीला और शूर के मध्य बस गए। यह स्थान मिस्र की सीमा पर अश्शूर के मार्ग पर है। परन्तु वे आपस में शान्ति से नहीं रहे।
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\p
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\s5
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\v 19 अब यह अब्राहम के पुत्र इसहाक के विषय विवरण है। अब्राहम इसहाक का पिता था।
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\v 20 जब इसहाक चालीस वर्ष का था तब उसने बतू एल की पुत्री रिबका से विवाह किया। बतूएल पद्दनराम के अराम का वंशज था। रिबका लाबान की बहन थी, जो अरामियों से संबंधित था।
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\v 21 शादी के बाद लंबे समय तक रिबका के पास कोई संतान नहीं थी। इसहाक ने अपनी पत्नी के लिए यहोवा से प्रार्थना की, और यहोवा ने उसकी प्रार्थना का उत्तर दिया। इसहाक की पत्नी रिबका गर्भवती हुई।
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\v 22 उसके गर्भ में दो संतान थे और वे एक-दूसरे के साथ आपस में धक्का-मुक्की करते रहते थे। उसने यहोवा से पूछा, "मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है?"
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\s5
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\v 23 यहोवा ने उस से कहा, "तेरे जुड़वा बच्चों से दो जातियाँ उत्पन्न होंगी और वे एक दूसरे से अलग हो जाएँगी। उनमें से एक दूसरे से अधिक शक्तिशाली होगी परन्तु बड़ा छोटे की सेवा करेगा।"
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\p
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\s5
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\v 24 जब रिबका ने जन्म दिया, तो सच में जुड़वां लड़के पैदा हुए!
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\v 25 पहला बच्चा लाल हुआ। उसकी त्वचा रोंएदार पोशाक के समान थी। इसलिए उसका नाम एसाव पड़ा।
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\v 26 जब दूसरा बच्चा पैदा हुआ, वह एसाव की एड़ी को मज़बूती से पकड़े था। इसलिए उस संतान का नाम याकूब पड़ा। इसहाक की उम्र उस समय साठ वर्ष की थी। जब याकूब और एसाव पैदा हुए।
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\p
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\s5
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\v 27 लड़के बड़े हुए। एसाव जंगली जानवरों का कुशल शिकारी बन गया। वह मैदानों में बहुत समय बिताता था। किन्तु याकूब शान्त व्यक्ति था वह अधिकांश समय अपने तम्बू के पास में रहता था।
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\v 28 इसहाक एसाव को अधिक पसंद करता था क्योंकि एसाव इसहाक को शिकार का मांस खिलाता था। लेकिन रिबका को याकूब अधिक पसंद था।
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\p
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\v 29 एक दिन जब याकूब दाल पका रहा था तब एसाव भूखा मैदान से घर आया।
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\v 30 उसने याकूब से कहा, "मुझे वह लाल दाल खाने के लिए दो क्योंकि मैं भूखा हूँँ!" (यही कारण है कि एसाव का दूसरा नाम एदोम था।)
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\v 31 याकूब ने कहा, "मैं तुझे दाल तो दूँगा परन्तु तू मुझे पेहलौठे पुत्र होने का अपना अधिकार मुझे बेच दे ताकि पिता की अधिकांश सम्पति का मैं उत्तराधिकारी बन सकूं।"
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|
\v 32 एसाव ने उत्तर दिया, "ठीक है, मैं भूख से मरने वाला हूँँ। यदि मैं अब मर जाऊँ तो मेरा अधिकार मेरी सहायता नहीं करेगा।"
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||
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\v 33 याकूब ने कहा, "तू शपथ खा कि तू मुझे पेहलौठे पुत्र होने का अधिकार दे रहा है।" तो एसाव ने यही किया। उसने याकूब को अपना पेहलौठा पुत्र होने का अधिकार बेच दिया।
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||
|
\v 34 तब याकूब ने एसाव को कुछ रोटी और दाल दी। एसाव ने खाया, पिया और उठ कर चला गया। ऐसा करने के द्वारा, एसाव ने दिखाया कि वह पेहलौठे पुत्र होने के अपने अधिकार में रूचि नहीं रखता।
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\s5
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\c 26
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\p
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\v 1 कुछ समय बाद उस देश में एक भयंकर अकाल पड़ा। यह अकाल अब्राहम के समय के अकाल से अलग था। इसहाक दक्षिण पूर्व में गरार देश में चला गया ताकि पलिश्तियों के राजा अबीमेलेक से मिलकर बात करें।
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\s5
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\v 2 परन्तु यहोवा ने उसे दर्शन दिया और कहा, "मिस्र मत जा! उसी देश में रह जिसमें रहने के लिए मैं तुझे कहूँगा!
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\v 3 इसी देश में रह, और मैं तेरी सहायता करूँगा और तुझे आशीष दूँगा क्योंकि मैं तुझे और तेरे वंशजों को यह सारा प्रदेश दूँगा और मैं वही करूँगा जो मैंने तेरे पिता अब्राहम से प्रतिज्ञा की थी।
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\s5
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\v 4 मैं तेरे वंशजों को आकाश के सितारों के समान असंख्य बनाऊँगा और यह पूरा देश उन्हें दूँगा और तेरे वंशजों को पृथ्वी के सब समुदायों के लिए आशीष का कारण बनाऊँगा।
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||
|
\v 5 मैं यह इसलिए करूँगा क्योंकि तेरे पिता अब्राहम ने मेरी आज्ञा मानी थी। उसने उन सभी आज्ञाओं का पालन किया जो मैंने उसे आदेश दिये थे। अब्राहम ने उन सब नियमों का पालन किया जो मैंने उसे दिए थे।"
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\p
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\s5
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\v 6 इसहाक अपनी पत्नी और अपने पुत्रों के साथ गरार में ही रहा।
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\p
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\v 7 जब गरार के लोगों ने इसहाक से रिबका के विषय में पूछा कि यह महिला कौन है, इसहाक ने कहा, "यह मेरी बहन है।" उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वह यह कहने से डरता था कि, "वह मेरी पत्नी है।" उसने सोचा, "रिबका बहुत सुंदर है, इसलिए वे उसे पाना चाहेंगे। इसहाक को लगता था कि लोग उसकी पत्नी को पाने के लिए उसको मार डालेंगे।"
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||
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\v 8 जब इसहाक को वहाँ बहुत समय हो गया तब एक दिन पलिश्ती लोगों के राजा अबीमेलेक ने अपने महल की एक खिड़की से नीचे इसहाक को अपनी पत्नी रिबका के साथ प्रेम करते देखा और आश्चर्यचकित हुआ।
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\s5
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|
\v 9 तब अबीमेलेक ने इसहाक को बुलाया और कहा, "वह स्त्री तो निश्चय ही तेरी पत्नी है, फिर तू ने झूठ क्यों कहा कि वह तेरी बहन है? इसहाक ने उससे कहा, "मैं डरता था कि तुम उसे पाने के लिए मुझे मार सकते हो।"
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||
|
\v 10 अबीमेलेक ने कहा, " तुझे हमारे साथ यह नहीं करना चाहिए था! हमारे बीच का कोई भी पुरुष तेरी पत्नी के साथ सो सकता था, तब वह बड़े पाप का दोषी बन जाता।"
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||
|
\v 11 तब अबीमेलेक ने अपने सभी लोगों को आज्ञा दी कि इसहाक और उसकी पत्नी रिबका को नुकसान न पहुंचाएं! और जो ऐसा करेगा उसे निश्चित रूप से मार डाला जाएगा!"
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\p
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\s5
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\v 12 इसहाक ने उस साल उस भूमि पर खेती की और उस साल बहुत फसल हुई क्योंकि यहोवा ने उसे आशीष दी।
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\v 13 इसहाक अधिक से अधिक धन तब तक बटोरता रहा जब तक वह बहुत धनी नहीं हो गया।
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\v 14 उसके पास भेड़ों, बकरियों और मवेशियों के झुण्ड थे। उसके पास अनेक दास भी थे। उसकी समृद्धि देख पलिश्ती उससे ईर्ष्या करने लगे।
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\s5
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\v 15 इसलिए सभी कुएँ जो उसके पिता अब्राहम ने खुदवाये थे उन्हें लोगों ने मिट्टी से भर दिए।
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\v 16 तब अबीमेलेक ने इसहाक से कहा, "तुम हम से अधिक हो गए हो इसलिए मैं चाहता हूँँ कि तुम हमारे देश से निकल जाओ।"
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\v 17 इसलिए इसहाक और उसका परिवार वहाँ से चले गए। वे गरार की घाटी में अपने तंबू लगाकर वहीं रहने लगे।
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\s5
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\v 18 उस स्थान पर अब्राहम के समय अनेक कुएँ खोदे गए थे जिन्हें अब्राहम के मृत्यु के बाद पलिश्तियों ने मिट्टी से भर दिए थे। इसहाक और उसके दासों ने उन कुओं को फिर से खोदा और इसहाक ने उन कुओं को वही नाम दिए जो उसके पिता ने दिए थे।
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\s5
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\v 19 इसहाक के दासों ने घाटी में खुदाई की और उन्हें वहाँ ताजे जल का कुआँ मिला।
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\v 20 परन्तु गरार की घाटी के चरवाहों ने इसहाक के दासों से झगड़ा किया और कहा, "इस कुएँ का जल हमारा है।" इसलिए इसहाक ने उसका नाम एसेक रखा, जिसका अर्थ है "झगड़ा"। उसने यह नाम इसलिए दिया क्योंकि उसी स्थान पर उन लोगों में झगड़ा हुआ था।
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\s5
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\v 21 तब इसहाक के दासों ने एक और कुआँ खोदा। वहाँ के लोगों ने उस कुएँ के स्वामित्व के लिए भी झगड़ा किया। इसलिए इसहाक ने उस कुएँ का नाम सित्ना रखा, जिसका अर्थ है "विरोध"।
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||
|
\v 22 वे वहाँ से चले गए और एक और कुआँ खोदा, लेकिन इस बार कोई भी उसके स्वामित्व को लेकर झगड़ा करने नहीं आया। इसहाक ने उस कुएँ का नाम रहोबोत रखा, जिसका अर्थ है "खाली जगह", यह कहते हुए कि, "यहोवा ने हमें रहने के लिए एक खाली स्थान दी है, ऐसा स्थान जिसे कोई नहीं लेना चाहता। हम यहाँ बहुत समृद्ध हो जाएँगे।"
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\v 23 वहाँ से इसहाक बेर्शेबा गया।
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\v 24 वहीं पहली ही रात को यहोवा ने उसे दर्शन दिया और कहा, "मैं तेरे पिता अब्राहम का परमेश्वर हूँँ जिनकी आराधना अब्राहम करता था। तू किसी बात से मत डर। मैं तेरे साथ हूँँ और तुझे आशीष दूँगा और जो प्रतिज्ञा मैंने अपने दास अब्राहम से की है, उसके कारण तेरे वंशजों की संख्या बहुत बढ़ाऊँगा।"
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\v 25 इसहाक ने वहाँ एक वेदी बनाई और यहोवा की आराधना करने के लिए बलि चढ़ाया। उसने वहाँ अपने तंबू लगाए, और उसके दासों ने एक और कुआँ खोदना शुरू किया।
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\v 26 जब वे कुआँ खोद रहे थे, तब राजा अबीमेलेक गरार से इसहाक को देखने आया। अबीमेलेक अपने साथ सलाहकार अहुज्जत और सेनापति पीकोल को लाया।
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\v 27 इसहाक ने उनसे पूछा, " तू ने मुझे शत्रुतापूर्ण तरीके से दूर भेज दिया और तू अब मेरे पास क्यों आया है?"
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\v 28 उनमें से एक ने उत्तर दिया, "हमने देखा है कि यहोवा तेरी सहायता करते हैं। अतः हमनें एक दूसरे से कहा," हमारे और इसहाक के मध्य एक समझौता होना चाहिए।"अतः एक शान्ति संधि करनी होगी।
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\v 29 तू हमें वचन दे कि तू हमें नुकसान नहीं पहुँचाएगा। इसी प्रकार हम भी तेरा अपमान नहीं करेंगे।हम सदैव तेरे साथ अच्छी तरह पेश आए है और हमने तुझे शांतिपूर्वक दूर भेजा और देख अब यहोवा तुझे आशीष दे रहें हैं।"
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\v 30 तब इसहाक ने उन्हें दावत दी। सभी ने खाया और पीया।
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\v 31 अगली सुबह उन्होंने एक-दूसरे को वचन दिया और शपथ खाई। कि वे वही करेंगे जिसके लिए उन्होंने वचन दिया है, इसके बाद इसहाक ने उन्हें शांतिपूर्वक घर भेज दिया।
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\v 32 उस दिन इसहाक का सेवक उसके पास आया और उस कुएँ के विषय में बताया जिसे वे खोद रहे थे। उन्होंने कहा, "हमें कुएँ में जल मिल गया है!"
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\v 33 इसहाक ने उस कुएँ का नाम शिबा रखा। जो सुनने में इब्रानी शब्द के समान लगता था जिसका अर्थ "शपथ" है। अतः वह नगर अभी भी बेर्शेबा कहलाता है। जिसका अर्थ है, "शान्ति कि शपथ का कुआं"।
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\p
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\v 34 एसाव जब चालीस वर्ष का हो गया तब उसने बेरी की पुत्री यहूदीत और एलोन की पुत्री बासमत से विवाह किया। दोनों स्त्रीयां हित्त की वंशज थी, वे इसहाक के कुल की नही थीं।
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\v 35 एसाव की दोनों पत्नियों ने इसहाक और रिबका के जीवन को दुखी बना दिया था।
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\s5
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\c 27
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\p
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\v 1 जब इसहाक बूढ़ा हुआ तब वह प्रायः अँधा हो गया। एक दिन उसने अपने बड़े पुत्र एसाव को बुलाया और उससे कहा, "पुत्र?" उसने उत्तर दिया, "हाँ, पिताजी! मैं यहाँ हूँ "
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\v 2 इसहाक ने कहा, "मेरी बात सुन। मैं बहुत बूढ़ा हूँँ, और पता नहीं कि मैं कब मर जाऊँगा।
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\s5
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\v 3 तो अब अपने धनुष और तीर लेकर शिकार पर जा। मेरे खाने के लिए एक जंगली जानवर का शिकार कर ला।
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\v 4 उसे मार कर मेरे लिए मनपसन्द भोजन तैयार कर और ला कि मैं उसे खाऊँ और तृप्त हो कर मरने से पहले तुझे आशीर्वाद दे सकूँ।"
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\s5
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\v 5 इसहाक एसाव से यह सब कह रहा था तब रिबका सुन रही थी। जब एसाव तम्बू से निकल कर शिकार करने चला गया,
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\v 6 तब रिबका ने अपने पुत्र याकूब को बुला कर कहा, "मैं ने तेरे पिता को तेरे भाई एसाव से बातें करते सुना है। उसने एसाव से कहा,
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\v 7 'शिकार करके वन पशु ले आ और स्वादिष्ट भोजन बना कि मैं उसे खाऊँ और मरने से पहले मैं तुझे आशीष दूँ जब यहोवा सुन रहे हों। '
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\s5
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\v 8 तो अब, मेरे पुत्र सुन। मैं जो कहती हूँँ, वह कर।
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\v 9 भेड़ बकरियों के झुण्ड से दो बकरी के स्वस्थ बच्चे मार कर मेरे पास उनका मांस ले आ तो मैं तेरे पिता का मनपसन्द भोजन तैयार कर दूंगी।
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\v 10 तब तू उसे ले जाकर अपने पिता को देना कि वह उसे खाए। तब वह मरने से पहले तुझे आशीर्वाद देगा। "
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\v 11 परन्तु याकूब ने अपनी माता रिबका से कहा, "मेरे भाई एसाव के शरीर पर तो घने बाल है! मेरी त्वचा वैसी नहीं लेकिन चिकनी है!
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\v 12 क्या होगा यदि मेरे पिता ने मुझे छू लिया? उन्हें पता चल जाएगा कि मैं उन्हें धोखा दे रहा हूँँ, और मैं स्वयं पर शाप लाऊँगा, आशीर्वाद नहीं!"
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\v 13 उसकी माता ने कहा, "यदि ऐसा हुआ तो मेरे पुत्र को दिया गया श्राप मुझ पर आए! तू बस वही कर जो मैं कहती हूँ। जाकर मेरे लिए बकरी के बच्चे ले आ!"
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\v 14 इसलिए याकूब बाहर गया और उसने बकरी के दो बच्चों को पकड़ा और अपनी माँ के पास लाया। उसकी माँ ने इसहाक की पसंद के अनुसार विशेष ढंग से उन्हें पकाया।
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\v 15 तब रिबका ने अपने बड़े पुत्र एसाव के सबसे अच्छे कपड़े जो उसके पास तम्बू में थे, और उसने उन्हें अपने छोटे पुत्र याकूब को पहना दिये।
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\v 16 रिबका ने बकरी के बच्चों के चमड़े को लिया और याकूब के हाथों और गले पर बांध दिया।
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\v 17 तब रिबका ने रोटी और वह स्वादिष्ट मांस याकूब के हाथ में दिया।
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\v 18 याकूब ने उसे ले लिया और अपने पिता के पास गया और कहा, "पिताजी!" इसहाक ने उत्तर दिया, "मैं यहाँ हूँँ; हाँ पुत्र, तू कौन है?"
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\v 19 याकूब ने अपने पिता से कहा, "मैं तेरा पहला पुत्र एसाव हूँँ। तू ने जो कहा है, मैंने कर दिया है। अब तू बैठ और भोजन कर। ताकि तू मुझे आशीर्वाद दे सके।"
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\v 20 परन्तु इसहाक ने अपने पुत्र से पूछा, "हे मेरे पुत्र, यह कैसे हुआ कि तुझे इतनी जल्दी जानवर मिल गया और शिकार करके भी ले आया?" याकूब ने उत्तर दिया, "यहोवा जिनकी तू आराधना करता है, उन्होंने शिकार करने में मुझे सफल बनाया।"
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||
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\v 21 इसहाक ने याकूब से कहा, "मेरे पुत्र, मेरे पास आ ताकि मैं तुझे छू सकूँ और जान सकूँ कि तू वास्तव में मेरा पुत्र एसाव है या नहीं।"
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\s5
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\v 22 तब याकूब अपने पिता इसहाक के पास गया। इसहाक ने उसे छुआ और कहा, "आवाज याकूब की सी है, परन्तु हाथ बड़े भाई एसाव ही के समान रोम वाले हैं।"
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||
|
\v 23 इसहाक उसे पहचान नहीं पाया क्योंकि वह अँधा था। क्योंकि याकूब के हाथ बालों से भरे थे बिलकुल एसाव के समान। इसहाक उसे आशीर्वाद देने के लिए तैयार हो गया।
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\s5
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\v 24 लेकिन पहले इसहाक ने पूछा, "क्या सचमुच तू मेरा पुत्र एसाव है?" याकूब ने उत्तर दिया, "हाँ, मैं हूँँ।"
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\v 25 इसहाक ने कहा, "हे मेरे पुत्र, जो भोजन तू ने तैयार किया है उसे ले आ कि मैं उसे खाकर तुझे आशीर्वाद दूँ।" याकूब भोजन ले आया। इसहाक ने भोजन किया और याकूब दाखमधु भी लाया और इसहाक ने वह भी पिया।
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\s5
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\v 26 तब उसके पिता, इसहाक ने उससे कहा, "मेरे पुत्र, यहाँ आ और मुझे चूम।"
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\v 27 तब याकूब उसके पास गया, और उसके पिता ने याकूब के गाल को चूमा इसहाक ने याकूब के पहने वस्त्रों को सूंघा, और वह सुगन्ध एसाव के कपड़ो के समान थी अतः उसने कहा, "सचमुच, मेरे पुत्र की सुगन्ध यहोवा द्वारा आशीषित खेतों की सुगन्ध के समान है।
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\s5
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||
|
\v 28 इसलिए मैं परमेश्वर से निवेदन करूँगा कि परमेश्वर तेरे खेतों पर आकाश से ओस बरसाएँ और भूमि से बहुतायत फसल मिले, तथा अनाज की और दाखरस के लिए अंगूरों की अच्छी फसल हो।
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\s5
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\v 29 मैं तुझे आशीर्वाद देता हूँँ कि सभी समुदाय के लोग तेरी सेवा करेंगे और तेरे सामने झुकेंगे और तू अपने भाइयों पर शासन करेगा और तेरी माता के वंशज भी तेरे सामने झुकेंगे। जो तुझे शाप देगा, शापित होगा और जो तुझे आशीर्वाद देगा, आशीर्वाद पाएगा।"
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||
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\p
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\s5
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\v 30 जब इसहाक याकूब को आशीर्वाद दे चुका तब याकूब अपने पिता के तम्बू को छोड़कर जैसे ही बाहर निकला। वैसे ही उसका बड़ा भाई एसाव शिकार करके वापस आया।
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\v 31 एसाव ने स्वादिष्ट मांस पकाया और अपने पिता के पास ले आया। उसने अपने पिता से कहा, "मेरे पिता, कृपया बैठ और मैंने जो मांस पकाया है उसे खा ताकि मुझे आशीर्वाद दे सके!"
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\s5
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\v 32 उसके पिता, इसहाक ने उससे कहा, " तू कौन है?" उसने उत्तर दिया, "मैं एसाव हूँँ, तेरा पहला पुत्र!"
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||
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\v 33 यह सुनकर इसहाक काँपने लगा। उसने पूछा, "तो वह कौन था जिसने मुझे जानवर का शिकार करके उसका माँस खिलाया था? वह अभी-अभी तेरे आने के पहले ही यहाँ से निकला है। मैं तो उसे आशीर्वाद दे चुका हूँँ और उस आशीर्वाद को वापस नहीं ले सकता।"
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||
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\s5
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||
|
\v 34 जब एसाव ने अपने पिता की बातें सुनी तो वह जोर-जोर से रोने लगा। वह बहुत निराश हुआ। उसने अपने पिता से कहा, "मेरे पिता, मुझे भी आशीर्वाद दे!"
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||
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\v 35 लेकिन उसके पिता ने कहा, "तेरा भाई आया था, मुझे धोखा देकर मुझसे आशीर्वाद ले गया!"
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\s5
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||
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\v 36 एसाव ने कहा, "उसका नाम याकूब बिलकुल ठीक ही रखा गया है क्योंकि उसने मुझे दो बार धोखा दिया है। पहली बार उसने मुझसे पेहलौठे पुत्र होने का अधिकार ले लिया और इस बार उसने मेरा आशीर्वाद लिया!" फिर उसने पूछा, "क्या तेरे पास मेरे लिए कोई आशीर्वाद नहीं बचा है?"
|
||
|
\v 37 इसहाक ने एसाव से कहा, "मैं घोषित कर चुका हूँँ कि तेरा छोटा भाई तुझ पर शासक होगा और उसके रिश्तेदार उसकी सेवा करेंगे और परमेश्वर उसे बहुतायत से अन्न तथा दाखमधु दें। मेरे पुत्र, अब मैं तेरे लिए क्या करूं?"
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||
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\s5
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||
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\v 38 एसाव ने अपने पिता से कहा, "मेरे पिता, क्या तेरे पास केवल एक ही आशीर्वाद है? मेरे पिता, मुझे भी आशीर्वाद दे !" और एसाव जोर-जोर से रोया।
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||
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\s5
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||
|
\v 39 उसके पिता इसहाक ने उत्तर दिया, " तू जहाँ निवास करेगा वह उपजाऊ भूमि से और आकाश की ओस की बूंदों से जो परमेश्वर खेतों को सींचने के लिए देते हैं, दूर रहेगा।
|
||
|
\v 40 तुझे जीने की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मनुष्यों को लूटना होगा और उनकी हत्या करनी पड़ेगी।
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||
|
\q और तुझे अपने भाई के दास के समान जीना पड़ेगा।
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||
|
\q लेकिन जब तू उससे विद्रोह करने का निर्णय लेगा तब तू उसके नियंत्रण से बाहर निकल जाएगा।"
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\p
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\s5
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\v 41 उसके पिता ने याकूब को जो आशीर्वाद दिये थे उसके कारण एसाव ने अपने भाई से घृणा की। एसाव ने मन ही मन सोचा, "मेरे पिता जल्दी ही मर जाएंगे और मैं जैसे ही उनकी मृत्यु का शोक समाप्त कर लूँ , मैं याकूब को मार डालूँगा।!"
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\v 42 रिबका ने जब देखा कि उसका बड़ा पुत्र एसाव क्या सोच रहा है तब उसने अपने छोटे पुत्र याकूब को बुलाया, और उससे कहा, "मेरी बात सुन। तेरा बड़ा भाई एसाव धीरज धर कर तेरी हत्या करने के प्रतीक्षा कर रहा है कि तू ने पिता के साथ जो धोखा किया है उसका बदला ले।
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\s5
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\v 43 मेरे पुत्र, ध्यान से मेरी बात सुन। शीघ्र ही यहाँ से भाग जा और हारान में मेरे भाई लाबान के पास जा कर रह।
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\v 44 उसके पास थोड़े समय तक ही रह जब तक तेरे भाई का गुस्सा नहीं शांत होता।
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\v 45 जब तेरा भाई जो कुछ तू ने उसके साथ किया वह यह सब भूल जाएगा तब मैं सन्देश भेज कर तुझे बुलवा लूंगी। यदि एसाव तेरी हत्या कर दे तो दूसरे उसकी भी हत्या कर देंगे। मेरे दोनों पुत्र एक ही समय में मर जाएँगे!"
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\p
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\s5
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\v 46 रिबका ने फिर इसहाक से कहा, " तेरे पुत्र एसाव ने हित्ती स्त्रियों से विवाह कर लिया है। जो हेत की वंशज हैं वे मुझे परेशान कर रही हैं। यदि याकूब भी इसी क्षेत्र की किसी हित्ती स्त्री से विवाह करेगा तो मेरा जीवन व्यर्थ हो जाएगा! "
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\s5
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\c 28
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\p
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\v 1 तब इसहाक ने याकूब को बुलाया और उसे आशीर्वाद दिया। इसहाक ने कहा, " तू कनानी स्त्री से विवाह मत करना।
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\v 2 इसलिए अपने नाना बतूएल के घर पद्दनराम जा। अपनी माता के भाई लाबान से उसकी एक पुत्री का हाथ मांग ले।
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\s5
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\v 3 मैं प्रार्थना करूँगा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर तुझे आशीर्वाद दें और तुझे अनगिनत वंशजों का मूल ठहराए कि वे अनेक जातियाँ बने।
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\v 4 मैं यह भी प्रार्थना करूँगा कि वह तुझे और तेरे वंशजों को आशीषित करके इस देश का अधिकारी बना दें जिसमें आज तू परदेशी होकर रहता है जिस देश को परमेश्वर ने अब्राहम और उसके वंशजों को देने का वचन दिया था। "
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\s5
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\v 5 इसहाक ने याकूब को पद्दनराम के प्रदेश को भेजा ताकि वह रिबका के भाई लाबान के साथ रह सके, जो बतूएल का पुत्र था और अरामी समुदाय का व्यक्ति था। (इसी रिबका ने बाद में याकूब और एसाव को जन्म दिया था।)
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\p
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\s5
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\v 6 एसाव को पता चला कि उसके पिता इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद दिया है और फिर उसे पद्दनराम भेजा है। उसे यह भी पता चला कि जब उसके पिता ने याकूब को आशीर्वाद दिया, तो उसने उससे कहा, "कनानी स्त्री से विवाह मत करना।"
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\v 7 और याकूब पिता और माता की आज्ञा मान कर पद्दनराम चला गया।
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\v 8 एसाव ने इससे यह समझा कि उसका पिता कनानी स्त्री को पसंद नहीं करता।
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\v 9 इसलिए एसाव अपने संबंधी इश्माएल से मिलने गया और इश्माएल की पुत्री महलत से विवाह किया। महलत नबायोत की बहन और अब्राहम की पोती थी।
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\p
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\s5
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\v 10 इस बीच, याकूब बेर्शेबा से निकल कर हारान की ओर जाने लगा।
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\v 11 सूर्यास्त के समय याकूब मार्ग ही में था और जिस स्थान पर वह था वहीँ उसने रात बिताने का निर्णय किया। याकूब ने एक पत्थर को तकिया बना कर उस पर सिर रखा और सो गया।
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\s5
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\v 12 याकूब ने स्वप्न देखा। उसने स्वप्न में देखा कि एक बड़ी सीढ़ी है। सीढ़ी के नीचे का सिरा पृथ्वी पर था और ऊपर का आकाश में। याकूब ने यह भी देखा कि परमेश्वर के स्वर्गदूत सीढ़ी से ऊपर और नीचे आ-जा रहे थे।
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\v 13 और सीढ़ी के ऊपरी सिरे पर यहोवा खड़े थे। वे कह रहे थे, "मैं परमेश्वर यहोवा हूँ जिसकी आराधना तेरे दादा अब्राहम और तेरे पिता इसहाक करते थे। मैं तुझे और तेरे वंशजों को यह भूमि दूँगा जिस पर तू अभी सो रहे हो।
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\s5
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\v 14 तेरे वंशज पृथ्वी की धूल के कणों के समान अनगिनत होंगे और उनकी सीमाएँ दूर-दूर तक होंगी। वे पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण चारों दिशाओं में फैली हुई होंगी। मैं तेरे और तेरे वंशजों के द्वारा पृथ्वी के सब कुलों और जातियों को आशीष दूँगा।
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\v 15 तू जहाँ भी जाएगा, मैं तेरी सहायता करूँगा और तेरी रक्षा करूँगा। और तुझे लौटा कर इसी देश में ले आऊँगा। मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा। मैं तेरे साथ किये गये अपने सब वचनों को पूरा करूँगा।"
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\s5
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\v 16 जब रात को ही याकूब की नींद टूट गई वह उठकर सोचने लगा, "निश्चय ही यहोवा इस स्थान में उपस्थित हैं जिसके विषय में मुझे अब तक पता नहीं था!"
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\v 17 याकूब डर गया और उसने कहा, "यह स्थान बड़ा भयानक है। यह निश्चय ही परमेश्वर का निवास स्थान और स्वर्ग का द्वार है!"
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\v 18 याकूब दूसरे दिन सबेरे उठा और जिस पत्थर को उसने तकिया बनाया था उसे सीधा खड़ा करके परमेश्वर के दर्शन का स्मारक बनाया और उस पर जैतून का तेल डाल कर परमेश्वर के लिए पवित्र किया।
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\v 19 याकूब ने उसे बेतेल नाम दिया, जिसका अर्थ है "परमेश्वर का घर।" पहले उसका नाम लुज़ था।
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\v 20 याकूब ने ईमानदारी से परमेश्वर से वादा किया, "यदि आप मेरी यात्रा में मेरी सहायता करें और रक्षा करें और मुझे पर्याप्त भोजन और वस्त्र दें
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\v 21 कि मैं लौट कर अपने पिता के घर सुरक्षित पहुँच सकूँ तो आप यहोवा मेरे परमेश्वर होंगे और मैं आपकी आराधना करूँगा।
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\v 22 इस स्थान पर जो मैंने यह पत्थर खड़ा किया है यहाँ परमेश्वर का पवित्र स्थान होगा और आप परमेश्वर जो कुछ मुझे देंगे उसका दसवां अंश मैं आपको दूँगा। "
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\s5
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\c 29
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\p
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\v 1 तब याकूब ने अपनी यात्रा जारी रखी और वह कनान देश के पूर्व के प्रदेश में पहुँच गया।
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\v 2 वहाँ उसने मैदान में एक कुआँ देखा। वहाँ कुएँ के पास भेड़ों के तीन झुण्ड थे। यही वह कुआँ था जहाँ ये भेड़ें जल पीती थी। वहाँ एक बड़े पत्थर से कुएँ का मुँह ढँका हुआ था।
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\v 3 जब सब चरवाहे अपनी भेड़ों को लेकर वहाँ आते थे तब वे सब एकजुट होकर उस पत्थर को हटाते थे और अपनी भेड़ों के लिए जल निकालते थे और फिर से उस पत्थर को कुएँ पर रख देते थे।
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\p
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\s5
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\v 4 उस दिन, याकूब ने उन चरवाहों से पूछा जो वहाँ बैठे थे, " तू लोग कहाँ के हो?" उन्होंने उत्तर दिया, "हम हारान देश के हैं।"
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\v 5 उसने उनसे पूछा, "क्या आप नाहोर के पोते लाबान को जानते हो?" उन्होंने उत्तर दिया, "हाँ, हम उसे जानते हैं।"
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\v 6 याकूब ने उनसे पूछा, "क्या लाबान कुशल से है?" उन्होंने उत्तर दिया, "हाँ, वह कुशल से है। देखो उसकी पुत्री राहेल भेड़ों को लेकर आ रही है!"
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\s5
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\v 7 याकूब ने कहा, "अभी तो दिन ही का समय है। रात के लिए जानवरों को इकट्ठे करने का अभी समय नहीं है। इसलिए उन्हें जल देकर और उन्हें मैदान में लौट कर चरने के लिए जाने क्यों नहीं देते?"
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\v 8 उन्होंने उत्तर दिया, "हम लोग यह तब तक नहीं कर सकते जब तक सभी चरवाहे इकट्ठे नहीं हो जाते। तब हम लोग पत्थर को कुएँ के ऊपर से हटाएँगे और सभी भेडों को जल दिया जाएगा।"
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\p
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\s5
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\v 9 वह अभी उनके साथ बात कर ही रहा था, तब राहेल अपने पिता की भेड़ों के साथ आई। वही अपने पिता की भेड़ों को संभालती थी।
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\v 10 राहेल, लाबान की बेटी और याकूब की माता के भाई की पुत्री, और लाबान की भेड़ों को देख कर उसने अकेले ही कुएँ के ऊपर से पत्थर हटा दिया और अपने मामा की भेड़ों के लिए जल निकाला।
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\v 11 याकूब ने राहेल के गाल को चूमा और आनंद से रो पड़ा, क्योकि वह बहुत प्रसन्न था।
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\v 12 याकूब ने राहेल से कहा कि वह उसके पिता का संबंधी है। उसकी बुआ रिबका का पुत्र। राहेल दौड़ कर घर गई और उसने अपने पिता को समाचार दिया।
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\p
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\s5
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\v 13 जैसे ही लाबान ने सुना कि उसकी बहन का पुत्र याकूब आया है, वह उससे मिलने के लिए दौड़ता हुआ गया। उसने उसे गले लगा लिया और गाल पर चूमा। तब वह उसे अपने घर ले आया और फिर याकूब ने लाबान को सब कुछ बताया।
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\v 14 तब लाबान ने उससे कहा, "सच, तू मेरे परिवार का हिस्सा है!"
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\p याकूब लाबान के पास एक महीने तक रूका और उसके बदले उसने वहाँ काम किया।
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\v 15 तब लाबान ने उससे कहा, " तू मेरा संबंधी है तुझसे बिना वेतन काम कराना उचित नहीं। मुझे बता की मैं तुझे कितना वेतन दूँ ।"
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\v 16 लाबान की दो पुत्रियाँ थीं। बड़ी का नाम लिआ था और छोटी का राहेल।
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\v 17 लिआ की सुंदर आँखें थीं लेकिन राहेल रूपवती और आकर्षक थी।
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\v 18 याकूब राहेल से प्रेम करता था इसलिए उसने कहा, "मैं तेरे लिए सात वर्ष तक काम करूँगा और उसके बाद तू मुझे अपनी पुत्री राहेल से विवाह करने की अनुमति देगा, यही मेरा वेतन होगा।"
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\s5
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\v 19 लाबान ने उत्तर दिया, "यह मेरे लिए अच्छा है कि तू उससे विवाह करे इसके कि वह किसी और पुरूष से विवाह करे। इसलिए हमारे साथ यहाँ रह।"
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\v 20 याकूब ने राहेल को पाने के लिए सात वर्ष लाबान के पास काम किया परन्तु वे सात वर्ष उसके लिए ऐसे बीत गए जैसे कुछ ही दिन हो क्योंकि वह राहेल को बहुत प्रेम करता था।
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\v 21 सात वर्ष समाप्त होने के बाद याकूब ने लाबान से कहा, "अब मेरा विवाह राहेल से करा दे क्योंकि तेरे पास काम करने का समय जो हमने तय किया था, वह पूरा हो गया है और मैं अब राहेल से विवाह करना चाहता हूँ।"
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\v 22 तब लाबान ने उन सभी लोगों को इकट्ठा किया जो उस क्षेत्र में रहते थे और दावत दी।
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\s5
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\v 23 परन्तु उस शाम को राहेल की अपेक्षा, लाबान अपनी बड़ी पुत्री लिआ को याकूब के पास लाया। अंधकार के कारण याकूब देख नहीं पाया कि वह राहेल नहीं लिआ है। याकूब ने उसके साथ सहवास किया।
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\v 24 (लाबान ने अपनी दासी जिल्पा को पुत्री लिआ की दासी होने के लिए दिया।)
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\p
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\v 25 अगली सुबह याकूब लिआ को देख आश्चर्यचकित हुआ। वह लाबान के पास गया और गुस्से में उसने कहा, " तू ने मेरे साथ अनुचित किया है, मैंने राहेल को पाने के लिए तेरा काम किया, तो तू ने मुझे धोखा क्यों दिया?"
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\v 26 लाबान ने उत्तर दिया, "हमारे देश में छोटी पुत्री का विवाह बड़ी पुत्री से पहले करने की परंपरा नहीं है।
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\v 27 उत्सव के इस सप्ताह के पूरा हो जाने के बाद हम तेरा विवाह छोटी पुत्री के साथ करा देंगे परन्तु तुझे राहेल के लिए मेरे साथ सात वर्ष और काम करना होगा। "
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\v 28 याकूब ने यही किया और जब एक सप्ताह का उत्सव बीत गया। तब लाबान ने अपनी पुत्री राहेल को भी उसे उसकी पत्नी के रूप में दिया।
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\v 29 लाबान ने अपनी दासी बिल्हा को राहेल की दासी के रूप में भी दिया।
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\v 30 याकूब ने राहेल से भी विवाह किया, और उसे लिआ से अधिक प्रेम करता था। याकूब ने लाबान के लिए और सात वर्ष तक काम किया।
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\p
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\v 31 जब यहोवा ने देखा कि याकूब लिआ से अधिक प्रेम नहीं करता। इसलिए यहोवा ने लिआ को गर्भवती होने में सक्षम बनाया । लेकिन राहेल गर्भवती होने में सक्षम नहीं रही।
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\v 32 लिआ ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसको रूबेन नाम दिया गया। उसने कहा, "यहोवा ने मेरे कष्टों को देखा है। जिनसे मैं दुखी हूँ, इसलिए परमेश्वर ने मुझे एक पुत्र दिया है मेरा पति मुझसे प्रेम करेगा क्योंकि मैंने उन्हें एक पुत्र दिया है।"
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\s5
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\v 33 कुछ समय बाद वह फिर से गर्भवती हुई और एक और पुत्र को जन्म दिया। उसने कहा, "यहोवा ने देखा कि मेरा पति मुझसे प्रेम नहीं करता है इसलिए उसने मुझे एक और पुत्र दिया है।" इसलिए उसने उसका नाम शिमोन रखा अर्थात "कोई सुनता है।"
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\v 34 बाद में वह फिर से गर्भवती हो गई, और एक और पुत्र को जन्म दिया। उसने कहा, "अब अन्ततः में मेरा पति मुझे अपने पास ही रखेगा ।" इसलिए उसने उसका नाम लेवी रखा, जिसका अर्थ है "पास में रख।"
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\v 35 बाद में वह फिर से गर्भवती हुई उसने एक पुत्र को जन्म दिया। उसने कहा, "अब मैं यहोवा की स्तुति करूँगी," इसलिए उसने उसका नाम यहूदा रखा। उसके बाद, उसने किसी और संतान को जन्म नहीं दिया।
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\s5
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\c 30
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\p
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\v 1 राहेल ने देखा कि वह गर्भवती नहीं हो पा रही थी इसलिए वह अपनी बड़ी बहन लिआ से ईर्ष्या करने लगी। लिआ चार पुत्रों को जन्म दे चुकी थी। उसने याकूब से कहा "मुझे भी संतान दे नहीं तो मैं मर जाऊँगी!"
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\v 2 याकूब इस बात पर क्रोधित हुआ और राहेल से कहा, "मैं परमेश्वर नहीं हूँँ। तेरी कोख तो परमेश्वर ही ने बन्द कर रखी है!"
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\s5
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\v 3 तब उसने कहा, "देख, यह मेरी दासी है, बिल्हा। इसके साथ सो और वह मेरे लिए संतान को जन्म देगी। इस प्रकार मेरे पास भी मेरी भी संतान होंगी।"
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\v 4 याकूब को बिल्हा को एक और पत्नी के रूप में दिया और याकूब उसके साथ सोया।
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\s5
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\v 5 वह गर्भवती हुई और याकूब को एक पुत्र पैदा हुआ।
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\v 6 राहेल ने कहा, "परमेश्वर ने मेरे साथ न्याय किया है। उसने मेरी प्रार्थना सुन ली और पुत्र देकर मेरे साथ न्याय किया है।" उसने उसका नाम दान रखा जिसका उच्चारण इब्रानी शब्द के समान है जिसका अर्थ है, "उसने मेरा न्याय किया है।"
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\v 7 कुछ समय बाद राहेल की दासी बिल्हा फिर गर्भवती हुई और याकूब के लिए एक और पुत्र को जन्म दिया।
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\v 8 राहेल ने कहा, "मैंने अपनी बड़ी बहन के समान सन्तान पाने के लिए बहुत संघर्ष किया है और वास्तव में पुत्र प्राप्त किया।" इसलिए उसने उसका नाम नप्ताली रखा। इस इब्रानी शब्द का अर्थ है, "संघर्ष।"
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\v 9 लिआ ने सोचा कि वह और अधिक बच्चों को जन्म नहीं दे सकती। इसलिए उसने अपनी दासी जिल्पा को याकूब की एक और पत्नी के रूप में याकूब को दिया।
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\v 10 जिल्पा गर्भवती हुई और याकूब के लिए उसने एक पुत्र को जन्म दिया।
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\v 11 लिआ ने कहा, "मैं वास्तव में भाग्यशाली हूँँ!" इसलिए उसने उसे गाद नाम दिया, जिसका अर्थ है "भाग्यशाली"।
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\v 12 बाद में लिआ की दासी जिल्पा ने याकूब के लिए एक और पुत्र को जन्म दिया।
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\v 13 लिआ ने कहा, "अब मैं वास्तव में धन्य हूँँ और लोग भी मुझे धन्य कहेंगे।" इसलिए उसने उसे आशेर नाम दिया, जिसका अर्थ है "धन्य।"
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\v 14 गेहूँ कटने के समय रूबेन खेतों में गया और कुछ दूदाफलो को देखा। रूबेन इन फलों को अपनी माँ लिआ के पास लाया। लेकिन राहेल ने लिआ से कहा, "कृपा कर अपने पुत्र के फलों में से कुछ मुझे दे !"
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\v 15 लिआ ने राहेल से कहा, " तू ने मेरा पति छीनकर तो अच्छा नहीं किया, अब तू मेरे पुत्र के दूदाफल भी पाना चाहती है?" राहेल ने लिआ से कहा, "यदि तू मुझे दूदाफल देगी तो याकूब आज रात तेरे साथ सोएगा।" लिआ ने राहेल की बात मान ली।
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\v 16 संध्या के समय जब याकूब गेहूं के खेत से लौट कर आ रहा था तब लिआः उसके पास गई और उससे कहा, "आज रात तुझे मेरे साथ सोना है क्योंकि मैंने राहेल को दूदाफल देकर इसका दाम चुकाया है।"
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\v 17 परमेश्वर ने लिआ की प्रार्थना सुनी और वह गर्भवती हो गई और याकूब के पांचवें पुत्र को जन्म दिया।
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\v 18 लिआ ने कहा, "परमेश्वर ने मुझे अपनी दासी अपने पति को देने का प्रतिफल दिया है। इसलिए उसने अपने पुत्र का नाम इस्साकार रखा। इस्साकार का अर्थ है, "प्रतिफल।"
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\v 19 लिआ फिर से गर्भवती हो गई और याकूब के लिए छठे पुत्र को जन्म दिया।
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\v 20 लिआ ने कहा, "परमेश्वर ने मुझे एक अनमोल उपहार दिया है। इस बार मेरे पति मेरा सम्मान करेंगे, क्योंकि मैंने उनके लिए छह पुत्रों को जन्म दिया है।" इसलिए उसने उसे जबूलून नाम दिया।
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\v 21 बाद में उसने एक पुत्री को जन्म दिया और उसका दीना नाम दिया।
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\v 22 अब परमेश्वर ने राहेल पर भी कृपा-दृष्टि की और उसकी प्रार्थना सुनी और उसे गर्भवती होने में सक्षम बनाया।
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\v 23 वह गर्भवती हो गई और एक पुत्र को जन्म दिया। उसने कहा, "परमेश्वर ने मुझे संतान पैदा न करने के कारण लज्जित नहीं किया।"
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\v 24 उसने अपने इस पुत्र का नाम यूसुफ रखा। इस इब्रानी शब्द का अर्थ है, "यहोवा ने मुझे एक पुत्र दिया है।"
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\v 25 यूसुफ के जन्म के बाद, याकूब ने लाबान से कहा, "अब मुझे अपनी सेवा से मुक्त कर कि मैं अपने देश लौट जाऊँ।
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\v 26 तू जानता है कि मैंने तेरी कैसी सेवा की है इसलिए मुझे मेरी पत्नियाँ और मेरी सन्तान दो कि मैं लौट जाऊँ।"
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\v 27 परन्तु लाबान ने उससे कहा, "यदि तू मुझसे प्रसन्न है तो यहीं रह क्योंकि मैंने तांत्रिक गतिविधियाँ करके देखा है कि यहोवा ने तेरे कामों के कारण मुझे आशिषें दी हैं।
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\v 28 मुझे बता कि अपनी सेवा के बदले मैं क्या दूं कि तू मेरे साथ रहे और मैं वह तुझे अवश्य दूँगा।"
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\v 29 याकूब ने उससे कहा, " तू जनता है, कि मैंने तेरे लिए कठिन परिश्रम किया है। मेरी देख रेख में तेरा पशुधन बहुत बढ़ गया है।
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\v 30 मेरे यहाँ आने से पहले तेरे पास केवल कुछ जानवर थे। लेकिन अब तेरे पास बड़ी संख्या में जानवर हैं। परन्तु अब मुझे अपने परिवार की आवश्यकताओं का ध्यान रखना है। "
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\v 31 लाबान ने उत्तर दिया, " तू क्या चाहता है कि मैं तुझे दूं?" याकूब ने उससे कहा, "मैं तुझसे कुछ नहीं चाहता। मेरे लिए बस एक ही काम कर दे तो मैं तेरी भेड़ बकरियां चराऊँगा और उनकी रक्षा करूँगा।
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\v 32 मुझे अनुमति दे की मैं आज तेरे पशुओं के झुण्ड में जाऊ तेरी भेड़ बकरियों में से जो भेड़ या बकरी चित्ती धारी और चितकबरी हो और जो भेड़ काली हो और जो बकरी चितकबरी या चित्तीधारी हो उनको लेने दे, यही मेरा वेतन होगा।
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\s5
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\v 33 इस प्रकार भविष्य में तू सरलता से जान लेगा कि मैं भुगतान के मामले में इमानदार हूँ। यदि मेरे पास चित्तीधारी और चितकबरी बकरियों और काली भेड़ों के अतिरिक्त अन्य कोई भेड़ बकरी हुई तो तू जान लेगा कि मैंने चोरी की है।"
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\p
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\v 34 लाबान सहमत हुआ और कहा, "ठीक है, हम ऐसा ही करेंगे जैसा तू ने कहा है।"
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\v 35 परन्तु उसी दिन, लाबान ने सब धारी वाले और चितकबरे बकरों और सब चित्तीधारी बकरियों और सब काली भेड़ों को अलग करके अपने पुत्रों को सौंप दिया।
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\v 36 तब लाबान और उसके पुत्र इन भेड़ बकरियों को लेकर याकूब से तीन दिन की दूरी पर चले गए। याकूब लाबान की शेष भेड़ बकरियों को संभालता रहा।
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\p
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\v 37 तब याकूब ने चिनार, और बादाम और अर्मोन वृक्षों की पतली टहनियाँ लेकर उन्हें बीच-बीच में से छील कर धारीदार बना दिया कि टहनियों की सफेदी दिखाई दे।
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\v 38 और उन्हें उनके जल पीने के स्थान में गाड़ दिया कि जब भेड़ बकरियाँ जल पी लें तो वे छील कर धारीदार बनायी गयी टहनियाँ उनकी आंखों के सामने हों।
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\v 39 इस प्रकार उन टहनियों को देखते हुए जब भेड़ें और बकरियाँ गाभिन हुई तो उनके संतान धारी वाले और चितकबरे और काले हुए।
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\v 40 अगले कई वर्षों तक याकूब लाबान की भेड़ों और बकरियों को अन्य भेड़ बकरियों से अलग करके चित्ती वाले और सब काले बच्चों को साथ कर दिया जब उनके गाभिन होने के लिए मिलने का समय आता तो चितकबरी भेड़ों की ओर देखने की व्यवस्था करता। इस प्रकार उसी प्रकार के चिन्ह वाले पैदा होते फिर वह लाबान के झुण्ड से अलग करके अपने लिए रख लेता।
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\v 41 इसके अतिरिक्त जब-जब बलवन्त भेड़ें गाभिन होती थीं तब याकूब उन छिली हुई टहनियों को उनके जल पीने के स्थान में गाड़ देता था। ताकि उसके सामने ही वे गाभिन हों।
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\v 42 परन्तु जब दुर्बल भेड़ बकरियाँ जल पीने आतीं तब वह उन टहनियों को हटा देता था जिससे कि उनके संतान दुर्बल होते थे। इस प्रकार बलवन्त पशु याकूब के हुए और दुर्बल पशु लाबान के।
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\s5
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\v 43 इसके परिणाम स्वरूप याकूब बहुत धनी हो गया। उसके पास पशुओं के बड़े झुण्ड, बहुत से नौकर, ऊँट और गदहे थे।
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\s5
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\c 31
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\p
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\v 1 एक दिन, किसी ने याकूब से कहा कि लाबान के पुत्र शिकायत कर रहे थे, "याकूब हमारे पिता का सब कुछ लेकर बहुत समृद्ध हो गया है।"
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\v 2 याकूब ने यह देखा कि लाबान पहले के समान प्रेम भाव नहीं रखता है।
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\v 3 तब यहोवा ने याकूब से कहा, "अपने देश और अपने रिश्तेदारों के पास वापस जा और मैं वहाँ तेरी सहायता करूँगा।"
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\p
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\s5
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\v 4 याकूब ने राहेल और लिआ को सन्देश भेजा कि वे चारागाह में आएँ जहाँ उसकी भेड़ बकरियाँ चर रही थीं।
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\v 5 जब वे दोनों वहाँ आ गई तब उसने उनसे कहा, "मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि तुम्हारा पिता पहले के जैसा मित्र-भाव अब नहीं रखता है परन्तु मेरा पिता जिन परमेश्वर की आराधना करता था उन्होंने मेरी सहायता की है।
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\v 6 तुम दोनों जानती हो कि मैंने तुम्हारे पिता के लिए बहुत परिश्रम किया है।
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\s5
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\v 7 तुम्हारे पिता ने मुझे धोखा दिया। तुम्हारे पिता ने मेरा वेतन कई बार कम किया है। लेकिन हमेशा परमेश्वर ने लाबान के सारे धोखों से मुझे बचाया है।
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\v 8 जब लाबान ने कहा, 'मैं तुझे चित्ती वाले पशु तेरे वेतन के रूप में तुझे देता हूँ।' तब सब भेड़ बकरियों ने चित्ती वाले बच्चे दिए। जब उसने अपना विचार बदल कर कहा, "जिन पर काली और सफेद धारियां होंगी वे सब भेड़ बकरियाँ तेरी होंगी।" तब सब भेड़ बकरियों ने धारी वाले बच्चे दिए।
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\v 9 इस प्रकार परमेश्वर ने जानवरों को तुम लोगों के पिता से ले लिया है और मुझे दे दिया है।
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\p
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\s5
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\v 10 एक बार जब भेड़ बकरियों के गाभिन होने का समय था तब मैंने स्वप्न देखा। और स्वप्न देख कर मैं चकित हुआ क्योंकि जो गाभिन होने के लिए मिल रहे थे उनमें कुछ पर सफेद और काली धारियां थीं। और कुछ चित्ती वाले थे और कुछ धब्बे वाले थे।
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\v 11 स्वप्न में परमेश्वर के दूत ने मुझ से बातें की। स्वर्गदूत ने कहा, 'याकूब!' "मैंने उत्तर दिया, 'हाँ!' “मैं यहाँ हूँ।”
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\s5
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\v 12 स्वर्गदूत ने कहा, 'आँखें उठा कर देख कि सब बकरे चित्ती वाले, धारी वाले और धब्बे वाले हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है कि मैंने तेरे साथ लाबान का व्यवहार देखा है।
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\v 13 मैं वही परमेश्वर हूँ जिसने तुझे बेतेल में दर्शन दिया था। उस स्थान पर तू ने पत्थर खड़ा किया और उस पर जैतून के तेल से उसका अभिषेक किया था और उस स्थान पर तू ने मुझसे एक प्रतिज्ञा की थी। अब, उठ और यह स्थान छोड़ दे और वापस अपने जन्म भूमि को लौट जा। '"
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\p
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\s5
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\v 14 राहेल और लिआ ने उत्तर दिया, "हमारा पिता मरते समय भी हमें इससे अधिक कुछ नहीं देगा।
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\v 15 वह तो हमारे साथ ऐसा व्यवहार करता है जैसे कि हम परदेशी हैं। तू ने इतने वर्ष उसके लिए जो परिश्रम किया है, वह हमारा मूल्य था जो तू ने चुकाया है परन्तु तू ने जो धन सम्पदा उसके लिए बढ़ाई है उसके हम कोई उत्तराधिकारी नहीं है। हम लोगों का सारा धन उसने खर्च कर दिया है।
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\v 16 निश्चय ही परमेश्वर ने हमारे पिता से जो भी धन सम्पदा ले ली है वह हमारी और हमारी संतान की है। इसलिए परमेश्वर ने तुझसे जो कहा है वैसा ही कर।! "
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\v 17 तब याकूब ने अपनी पत्नियों और अपने बच्चों को ऊँटों पर बिठाया।
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\v 18 याकूब अपना सारा पशुधन हाँकते हुए चल पड़ा। उसने पद्दनराम में जितनी भी धन संपदा एकत्र की थी सब साथ ले ली। इस प्रकार वह अपने पिता इसहाक के पास कनान देश के लिए निकल पड़ा।
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\s5
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\v 19 इस समय लाबान अपनी भेड़ों का ऊन काटने गया था। उसकी अनुपस्थिति में राहेल उसके घर में घुसी और अपने पिता की लकड़ी की छोटी मूर्तियों को चुरा लाई।
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\v 20 याकूब ने अरामी लाबान को यह ना बताकर धोखा दिया कि वे जाने की योजना बना रहे थे।
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\v 21 इस प्रकार याकूब और उसका परिवार, अपनी संपूर्ण धन संपदा के साथ वहाँ से भागे। उन्होंने फरात नदी पार की और पर्वतीय क्षेत्र के दक्षिण की ओर गिलाद प्रदेश का मार्ग लिया।
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\s5
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\v 22 तीन दिन बाद लाबान को पता चला कि याकूब अपने परिवार के साथ चला गया।
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\v 23 इसलिए लाबान ने अपने कुछ रिश्तेदारों को अपने साथ लिया और याकूब का पीछा करना आरम्भ किया। वे सात दिन पैदल चल कर गिलाद के पर्वतीय क्षेत्र में याकूब के पास पहूँचे।
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\v 24 उस रात परमेश्वर ने लाबान के स्वप्न में प्रकट होकर कहा, "जब तू याकूब से मिले तो सावधान रहना कि क्या कहना है।"
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\v 25 अगले दिन जब लाबान याकूब के पास पहुँचा तब याकूब ने अपना तम्बू गिलाद के पहाड़ों पर लगाया था। इसलिए लाबान और उसके परिजनों ने भी वहीं अपना तम्बू खड़ा किया।
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\v 26 लाबान ने याकूब से कहा, " तू ने मुझे धोखा क्यों दिया? तू मेरी पुत्रियों को ऐसे क्यों ले जा रहा है मानो वे युद्ध में पकड़ी गई स्त्रियाँ हों!
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\v 27 मुझसे बिना कहे तू क्यों भागा? यदि तू ने कहा होता तो मैं तुझे दावत देता और लोग संगीत की धुनें बजाते, मृदंग और वीणा बजाते तब मैं तुझे विदा करता।
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\v 28 तू ने मुझे अपने नातियों को चूमने तक नहीं दिया और न ही पुत्रियों को विदा कहने दिया। तू ने यह करके बड़ी भारी मूर्खता की है।
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\v 29 मेरे परिजनों में और मुझमें तुझे हानि पहूँचाने की क्षमता है परन्तु तेरा पिता जिन परमेश्वर की आराधना करता था उन्ही परमेश्वर ने रात को स्वप्न में प्रकट होकर कहा, 'सावधान रहना कि तू याकूब से कैसी बातें करेगा।'
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\v 30 मैं जानता हूँ कि तू अपने घर लौटना चाहता है। यही कारण है कि तू वहाँ से चल पड़ा है। किन्तु तू ने मेरे घर से देवताओं को क्यों चुराया?"
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\v 31 याकूब ने लाबान से कहा, "मैंने तो अपने जाने की योजना तुझ पर प्रकट नहीं की क्योंकि मुझे भय इस बात का था कि तू बलपूर्वक अपनी पुत्रियों को मुझ से अलग कर देगा।
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\v 32 परन्तु यदि तेरी मूर्तियाँ हमारे यहाँ किसी के भी पास मिलीं तो हम उसे मृत्युदण्ड देंगे। हमारे परिजनों के सामने खोज करके देख ले कि तेरा कुछ भी मेरे पास नहीं है। यदि तुझे मिले तो ले जा!" याकूब को यह पता नहीं था कि राहेल ने लाबान की मूर्तियाँ चुरा ली थीं।
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\v 33 तब लाबान याकूब के तम्बू में गया, फिर लिआ के तम्बू में। तब दोनों दासियों के तम्बू में गया और अपनी मूर्तियों की खोज की, परन्तु उसे मूर्तियाँ नहीं मिलीं। वहाँ से निकल कर वह राहेल के तम्बू में गया।
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\v 34 परन्तु राहेल ने उन्हें ऊँट की काठी में छिपा दिया था जिस पर वह बैठी थी। लाबान ने सर्वत्र खोज करके भी उन मूर्तियों को नहीं पाया।
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\v 35 राहेल ने अपने पिता से कहा, "पिताजी, मुझ से अप्रसन्न न हो। मैं तेरे सम्मान में खड़ी नहीं हो सकती क्योंकि मैं माहवारी में हूँ।" इसलिए लाबान को मूर्तियाँ तम्बू में नहीं मिलीं।
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\v 36 तब इस पर याकूब ने क्रोधित होकर लाबान से कहा, "मैंने क्या अपराध किया है? तू ने किस पाप के दोष में मेरा पीछा किया है?
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\v 37 तू ने स्वयं ही मेरे तम्बू में खोज की और तेरी कोई वस्तु तुझे नहीं मिली। अब तेरे और मेरे परिजनों के समक्ष वह रख जो तुझे मेरे यहाँ मिला कि वे ही निर्णय लें कि कौन सही है, तू या मैं।
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\v 38 मैं बीस वर्ष तेरे साथ था। उस संपूर्ण समय तेरी भेड़ बकरियों के गर्भ कभी नहीं गिरे और न ही मैंने तेरी भेड़ बकरियों में से किसी मेढ़े को मार कर खाया।
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\v 39 यदि वन पशु तेरी भेड़ या बकरी को फाड़ देता था तो मैं उसे तेरे पास नहीं लाता था। उसकी हानि मैं ही भरता था। उनके स्थान पर मैं अपना जीवित पशु तुझे देता था। दिन हो या रात, यदि तेरे एक भी पशु की चोरी हो जाती थी तो तू उसकी कमी मुझसे पूरी करवाता था।
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\v 40 मैं दिन को गरमी और रात को ठंड की पीड़ा सहता था। मैं रात में सो भी नहीं पाता था।
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\v 41 बीस वर्ष मैं तेरे घर में रहा। मैंने तेरी पुत्रियों से विवाह करने के लिए चौदह वर्ष तेरी सेवा की और तुझसे भेड़ बकरियाँ पाने के लिए छः वर्ष और तेरी सेवा की। उस समय तू ने मेरा वेतन दस गुणा घटा दिया था।
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\v 42 मेरे दादा अब्राहम जिन परमेश्वर की आराधना करता था और जिनके सामने मेरा पिता इसहाक डर कर कांपता था, यदि वे मेरे साथ मेरे सहायक नहीं होते तो तू मुझे खाली हाथ भेज देता। परन्तु परमेश्वर ने मेरे कष्टों को देखा और मेरे कठोर परिश्रम पर दृष्टि की, इस कारण उन्होंने पिछली रात तुझे बताया कि तू ने जो मेरे साथ किया वह उचित नहीं था।"
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\v 43 लाबान ने उत्तर दिया, "ये दोनों स्त्रियाँ मेरी पुत्रियाँ हैं और उनकी संतान मेरे नाती है। और यह सब पशु मेरे हैं। यहाँ जो कुछ तू देखता है, वह सब मेरा है।
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\v 44 परन्तु मैं उन्हें अपने पास रखने के लिए कुछ नहीं कर सकता हूँ इसलिए हमें एक शान्ति समझौता करना चाहिए। यह शान्ति समझौता तेरे और मेरे बीच गवाह के रूप में रहेगा।"
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\v 45 तब याकूब ने एक बड़ा पत्थर सीमा पर खड़ा किया।
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\v 46 तब याकूब ने अपने परिजनों से कहा, "पत्थरों को इकटठा करो।" उन्होंने बड़े-बड़े पत्थर लेकर ढेर लगा दिया। उस ढेर के पास उन्होंने भोजन किया।
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\v 47 लाबान ने उस स्थान का नाम जैगर सहादुथा रखा। लेकिन याकूब ने उस स्थान का नाम गिलियाद रखा।
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\v 48 लाबान ने याकूब से कहा, "यह पत्थरों का ढेर हम दोनों को हमारी सन्धि की याद दिलाने में सहायता करेगा।" यह कारण है कि याकूब ने उस स्थान को गिलियाद कहा।
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\v 49 उन्होंने उस स्थान का नाम "मिस्पा" भी रखा, इब्रानी में इसका अर्थ है, "पहरे", क्योंकि लाबान ने कहा था, हम यहोवा से निवेदन करते हैं कि हमारे अलग हो जाने के बाद वे तेरी निगरानी करें कि हम एक दूसरे को हानि पहुँचाने का प्रयास न कर पाएं।
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\v 50 यदि तू मेरी पुत्रियों को हानि पहुंचाएगा या अन्य स्त्रियों से विवाह करेगा जिसका समाचार कोई मुझे न भी दे तो मत भूलना कि परमेश्वर तेरे और मेरे कामों को देखते हैं!"
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\v 51 लाबान ने याकूब से कहा, " तू इस बड़े पत्थर और चट्टानों के ढेर को देखता है जिन्हें हमने हमारे बीच रखा है।
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\v 52 पत्थरों का यह ढेर और यह बड़ा पत्थर हमें याद दिलाएगा कि मैं तुझसे लड़ने के लिए इन पत्थरो के पार कभी नहीं जाऊँगा और तू मुझसे लड़ने के लिए इन पत्थरो से आगे कभी नहीं आएगा।
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\v 53 अब्राहम जिस परमेश्वर की आराधना करता था, नाहोर जिस परमेश्वर की आराधना करता था और उनके पूर्वज, तेरह जिस परमेश्वर की आराधना करता था वे हम में से जो भी हानि करना चाहे, उसे दण्ड दें।" याकूब ने भी गंभीरतापूर्वक अपने पिता के परमेश्वर की शपथ खा कर शान्ति की प्रतिज्ञा दी।
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\p
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\s5
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\v 54 तब याकूब ने पहाड़ पर बलि समर्पित कि और उसने अपने परिजनों को भोजन में सम्मिलित होने के लिए बुलाया। भोजन करने के बाद उन्होंने पहाड़ पर रात बिताई।
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\v 55 अगले दिन सुबह लाबान ने अपने नातियों को और अपनी पुत्रियों को चूमा और परमेश्वर के नाम में आशीर्वाद देकर अपने घर लौट आया।
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\s5
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\c 32
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\p
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\v 1 याकूब ने अपने परिवार के साथ आगे की यात्रा जारी रखी। मार्ग में उसे परमेश्वर के स्वर्गदूत दूत मिले।
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\v 2 जब याकूब ने उन्हें देखा तो कहा, "यह परमेश्वर का पड़ाव है।" इसलिए याकूब ने उस स्थान का नाम महनैम रखा।
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\p
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\s5
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\v 3 याकूब ने कुछ लोगों से कहा कि वो उसके बड़े भाई एसाव के पास जाएँ जो एदोम के सेईर में रहता था।
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\v 4 उसने उनसे कहा, "मैं चाहता हूँ कि तू एसाव से कहना , 'मैं याकूब तेरा दास, तुझसे अपने स्वामी से यह कहता हूँ कि मैं अपने मामा लाबान के पास अब तक रह रहा था।
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\v 5 अब मेरे पास बहुत भेड़ बकरियाँ, गदहे, गाय, बैल तथा दास-दासियाँ हैं। मेरे स्वामी के पास यह सन्देश भेजने का मेरा उद्देश्य यह है कि मेरे आने पर तू मुझसे मित्रवत व्यव्हार करे।'"
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\p
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\s5
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\v 6 उसके सन्देशवाहकों ने जाकर एसाव को उसका सन्देश दिया। लौट आने पर उन्होंने याकूब से कहा, "हम तेरे भाई एसाव के पास गए थे। वह तुझसे भेंट करने को आ रहा है। उसके साथ चार सौ पुरूष हैं।"
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\p
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\v 7 यह सुन कर याकूब बहुत डर गया और चिन्ता में डूब गया। और उसने अपने समुदाय को दो दलों में विभाजित कर दिया। उसने अपनी भेड़ बकरियों, मवेशियों और ऊँटों को भी दो झुंडों में विभाजित किया।
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\v 8 वह सोच रहा था, "यदि एसाव और उसके साथी आ कर आक्रमण करें तो कम से कम एक दल तो बच कर भाग पाएगा।"
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\s5
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\v 9 तब याकूब ने प्रार्थना की, "मेरे दादा अब्राहम और मेरे पिता इसहाक जिस परमेश्वर की आराधना करते थे उन्होंने मुझसे कहा था, 'अपने देश और अपने परिवार में लौट जा। मैं तेरी भलाई करूँगा।'
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\v 10 मैं इस योग्य तो नहीं कि मैं आपका दास, विश्वास एवं निष्ठा के साथ निभाए गए आपके वचन के योग्य ठहरूँ। जब मैंने हारान जाने के लिए यरदन नदी को पार किया था तब मेरे पास मात्र एक छड़ी थी परन्तु अब मैं इतना धनवान हो गया हूँ कि मेरे परिवार और सम्पदा के दो बड़े समूह हैं।
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\s5
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\v 11 इसलिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि कृपा करके मुझे मेरे भाई एसाव से बचाइए। मैं उससे डरा हुआ हूँ। इसलिए कि वह आएगा और हम सभी को, यहाँ तक कि बच्चों और उनकी माताओं को भी जान से मार डालेगा।
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\v 12 परन्तु यह मत भूलें कि आपने मुझसे कहा था कि, 'मैं निश्चय ही तुझे समृद्धि प्रदान करूँगा। और तेरे वंशजों को समुद्र की रेत के समान अनगिनत कर दूँगा कि उनकी गणना कोई नहीं कर सकेगा।'"
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\s5
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\v 13 याकूब उस रात वहीं सो गया। अगले दिन सुबह उसने कुछ पशु चुने कि अपने भाई एसाव को भेंट करे।
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\v 14 याकूब ने दो सौ बकरियाँ, बीस बकरे, दो सौ भेड़ें तथा बीस नर भेड़े चुनी।
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\v 15 याकूब ने तीस ऊँट और उनके बच्चे, चालीस गायें और दस बैल, बीस गदहियाँ और दस गदहे चुने।
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\v 16 उनके अलग-अलग झुंड बना कर उसने उन्हें अपने दासों को सौंप दिया और उनसे कहा, "मेरे आगे-आगे चलो, एक के पीछे एक झुंड, लेकिन झुंडों के बीच में अन्तर रखना।"
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\s5
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\v 17 जो दास पहले झुंड को लेकर चल रहा था, उससे उसने कहा, "जब तू मेरे भाई एसाव के पास पहुँचोगे तो वह तुमसे पूछेगा, ' तुम कौन हो और कहाँ जा रहे हो और यह पशु किस के हैं?
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\v 18 तो उससे कहना, "यह तेरे दास याकूब के हैं। मेरे स्वामी ने यह भेंट तेरे लिए भेजी हैं। वह हमारे पीछे आ रहा है।'"
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\p
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\s5
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\v 19 उसने यही निर्देश दूसरे और तीसरे झुंड के रखवालों को और सब चरवाहों को भी दिया जो उन झुंडों के पीछे थे। उसने उनसे कहा, "जब तू एसाव से मिलो तो तुम भी वही कहना जो मैंने पहले झुंड के रखवाले से कहा है।
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\v 20 और यह अवश्य कहना, 'तेरा दास याकूब हमारे पीछे-पीछे आ रहा है।" याकूब ने उनसे ऐसा कहने के लिए इसलिए कहा कि वह सोचता था, "संभव है कि इस भेंट के द्वारा जो मैं अपने आगे एसाव के लिए भेज रहा हूँ, वह मेरे प्रति शान्ति का व्यवहार करे और बाद में जब मैं उसके सामने पहुँचू तब वह दया प्रकट करे।"
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\v 21 इसलिए भेंट लेकर उसके सेवक आगे-आगे चले परन्तु याकूब उस रात तम्बू में ही रूका।
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\v 22 उसी रात याकूब अपनी दोनों पत्नियों, दोनों दासियों और ग्यारह पुत्रों को लेकर यब्बोक नदी के घाट के पार हो गया।
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\v 23 जब उसने अपने सभी लोगों को यब्बोक नदी के पार भेज दिया तो उसने अपना सब कुछ नदी के पार पहुँचा दिया।
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\v 24 तब याकूब अकेला इस पार रह गया। लेकिन वहाँ एक पुरूष पूरी रात, भोर होने तक, उससे मल्लयुद्ध करता रहा।
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\v 25 जब उसने देखा कि वह याकूब से जीत नहीं पा रहा है तो उसने याकूब के कूल्हे के जोड़ की हड्डी उतार दी।
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\v 26 तब उसने याकूब से कहा, "मुझे जाने दे क्योंकि भोर का प्रकाश होने वाला है।" याकूब ने उससे कहा, "नहीं, जब तक तू मुझे आशीर्वाद नहीं देगा, मैं तुझे जाने नहीं दूँगा।"
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\v 27 उससे कहा, " तेरा नाम क्या है?" उसने उत्तर दिया, "याकूब।"
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\v 28 उसने कहा, " तेरा नाम अब से याकूब नहीं, इस्राएल होगा, जिसका अर्थ है, 'वह परमेश्वर से युद्ध करता है।' क्योंकि तू परमेश्वर और मनुष्यों से युद्ध करके प्रबल हुआ है।"
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\s5
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\v 29 याकूब ने उससे कहा, "कृपया अपना नाम मुझे बता दे।" उसने कहा, " तू मुझ से मेरा नाम क्यों पूछता है?" उसने याकूब को उस स्थान पर आशीष दी।
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\v 30 तब याकूब ने उस स्थान का नाम "पनीएल" रखा। जिसका अर्थ है, "परमेश्वर का चेहरा," क्योंकि याकूब ने कहा, "मैंने परमेश्वर को अपने सामने देखा और मैं मरा नहीं।"
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\p
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\s5
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\v 31 जैसे ही याकूब पनीएल से चला, तब सूर्योदय हो रहा था। वह लंगड़ा कर चल रहा था।
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\v 32 उसके कुल्हे का जोड़ क्षतिग्रस्त हो गया था। इस कारण इस्राएली आज तक पशुओं के कूल्हे की हड्डी से जुड़ी मांसपेशी को नहीं खाते हैं।
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\s5
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\c 33
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\v 1 तब याकूब अपने परिवार के साथ शामिल हुआ। उसी दिन कुछ समय बाद, याकूब ने देखा कि एसाव आ रहा था और उसके साथ चार सौ पुरुष थे। उन्हें देख कर याकूब चिंतित हो गया। उसने बच्चों को अलग-अलग कर दिया। लिआ के बच्चों को उसने लिआ के साथ और राहेल के बच्चों को राहेल के साथ कर दिया और दासियों के बच्चों को दासियों के साथ।
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\v 2 याकूब ने दासियों और उनके बच्चों को आगे रखा। उसके बाद उनके पीछे लिआ और उसके बच्चों को रखा और याकूब ने राहेल और यूसुफ को सबके अन्त में रखा।
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\v 3 वह स्वयं सब से आगे चला। जब वह अपने बड़े भाई के निकट पहुँचा तब सात बार भूमि पर झुककर प्रणाम किया।
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\v 4 लेकिन जब एसाव ने याकूब को देखा, वह उस से मिलने को दौड़ पड़ा। एसाव ने याकूब को अपनी बाहों में भर लिया और छाती से लगाया। तब एसाव ने उसकी गर्दन को चूमा और दोनों आनन्द से रो पड़े।
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\v 5 जब एसाव ने नज़र उठाई तो स्त्रियों और बच्चों को देखा। उसने पूछा, "तेरे साथ ये लोग कौन हैं?" याकूब ने उत्तर दिया, "ये मेरी पत्नियाँ और बच्चे हैं। जिन्हें परमेश्वर ने मुझे बड़ी दया करके दिया है।"
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\s5
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\v 6 तब दोनों दासियों और उनके बच्चों ने आकर एसाव को झुककर प्रणाम किया।
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\v 7 तब लिआ अपने बच्चों के साथ एसाव के सामने गई और उसने प्रणाम किया और अंत में राहेल और यूसुफ एसाव के सामने गए और उन्होंने भी प्रणाम किया।
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\p
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\v 8 एसाव ने पूछा, "ये जानवर जो मैं देखता हूँ उसका क्या अर्थ है?" याकूब ने उत्तर दिया, "मेरे स्वामी, यह सब तेरे लिए है कि तेरी दया दृष्टि मुझ पर हो।"
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\v 9 लेकिन एसाव ने उत्तर दिया, "मेरे छोटे भाई, मेरे पास पर्याप्त जानवर हैं, तू अपने लिए अपने जानवरों को रखो!"
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\v 10 परन्तु याकूब ने कहा, "नहीं! मैं तुझसे विनती करता हूँ। यदि तू सचमुच मुझे स्वीकार करता है तो कृपया जो भेट मैं देता हूँ तू उसे स्वीकार कर। मैं तुझको दुबारा देख कर बहुत प्रसन्न हूँ। मैं यह देखकर बहुत प्रसन्न हूँ कि तू ने सहर्ष मेरा स्वागत किया है। मेरे प्रति तेरी मुस्कराहट देखकर मैं आश्वस्त हो गया कि तू ने मुझे क्षमा कर दिया है। यह तो परमेश्वर का चेहरा देखने जैसा है।
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\v 11 इसलिए मैं विनती करता हूँ कि जो भेंट मैं देता हूँ उसे स्वीकार कर। परमेश्वर मेरे ऊपर बहुत कृपालु रहे हैं। मेरे पास अपनी आवश्यकता से अधिक है।" इस प्रकार याकूब ने एसाव से भेंट स्वीकार करने का अनुरोध करते रहे। अंततः एसाव ने भेंट स्वीकार की।
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\v 12 तब एसाव ने कहा, "अब तू अपनी यात्रा जारी रख सकता है। मैं तेरे आगे चलता हूँ।"
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\v 13 याकूब ने कहा, "हे मेरे भाई, तू तो जानता ही है कि मेरे बच्चे छोटे हैं और वे दुर्बल हैं और भेड़ बकरियों और गायों के दूध पीने वाले बछड़े भी हैं। यदि उन्हें अधिक हांका गया तो सब मर जाएँगे।
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\v 14 इसलिए तू आगे चल और मैं धीरे—धीरे तेरे पीछे आऊँगा। लेकिन मैं जानवरों और बच्चों के समान तेज़ी से चलूँगा। मैं सेईर में तुझसे मिलूँगा।"
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\s5
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\v 15 एसाव ने कहा, "तो मैं ऐसा करता हूँ कि अपने साथियों में से कुछ को तेरी सुरक्षा के लिए छोड़ जाता हूँ।" याकूब ने उससे कहा, "इसकी क्या आवश्यकता है? मैं तो बस यही चाहता हूँ कि तेरी कृपा दृष्टि मुझ पर बनी रहे।"
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\v 16 एसाव उसी दिन सेईर लौट आया।
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\v 17 किन्तु याकूब सुक्कोत गया। वहाँ उसने अपने लिए एक घर बनाया और अपने मवेशियों के लिए छोटी पशुशालाएँ बनाई। इसी के कारण उस स्थान का नाम सुक्कोत पड़ा, जिसका अर्थ है "आश्रय।"
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\s5
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\v 18 इस प्रकार याकूब और उसका परिवार पद्दनराम से चले गए और कनान देश की सुरक्षित यात्रा की। वहाँ उन्होंने शकेम नगर के पास एक मैदान में अपने तम्बू खड़े किए।
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\v 19 उस स्थान का एक प्रधान था जिसका नाम हमोर था। उसके अनेक पुत्र थे। याकूब ने उन्हें चाँदी के सौ टुकड़े दिए और उस स्थान को खरीद कर अपने तंबू लगा कर वहाँ रहा।
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\v 20 वहाँ उसने पत्थर की एक वेदी बनाई जिसका नाम उसने "एल एलोहे इस्राएल" रखा, अर्थात् "परमेश्वर, इस्राएल का परमेश्वर।"
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\s5
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\c 34
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\p
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\v 1 एक दिन दीना, जो याकूब और लिआ की पुत्री थी, उस क्षेत्र की कुछ स्त्रीयों से मिलने गई।
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\v 2 हिब्बी हमोर के पुत्रों में से एक, शकेम ने दीना को देखा। उसने उसे पकड़ लिया और अपने साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए विवश किया।
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\v 3 वह उससे बहुत आकर्षित था और शकेम दीना से प्रेम करने लगा। वह उससे मधुर बातें भी करने लगा।
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\v 4 शकेम ने अपने पिता से कहा, "कृपया इस लड़की को मेरे लिए ले आ, ताकि मैं इसके साथ विवाह कर सकूँ।"
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\p
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\v 5 जब याकूब को यह समाचार मिला कि शकेम ने उसकी पुत्री दीना के साथ ऐसी बुरी बात की है। याकूब के सभी पुत्र तब अपने पशुओं के साथ मैदान में गए थे। इसलिए वे जब तक नहीं लौटे, याकूब ने कुछ नहीं किया।
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\p
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\s5
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\v 6 इसी बीच शकेम का पिता हमोर याकूब के पास गया।
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\v 7 याकूब के पुत्र जब खेत से घर लौटे तब उन्हें पता चला कि क्या हुआ, तो वे चौंक गए और बहुत क्रोधित हुए। शकेम ने याकूब की पुत्री के साथ सो कर इस्राएल को कलंकित किया था। वह उनकी बहन थी! यह एक भयानक अपराध था जिसे कभी नहीं किया जाना चाहिए था।
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\p
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\s5
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\v 8 परन्तु हमोर ने भाइयों से बात की। उसने कहा, "मेरा पुत्र शकेम दीना से बहुत प्रेम करता है। कृपया उसे इसके साथ विवाह करने दो।
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\v 9 आओ हम एक ऐसा समझौता करते हैं कि हम तेरे युवकों के लिए अपनी पुत्रियाँ दें कि वे उनकी पत्नियाँ हों और तू हमारे युवकों के लिए अपनी पुत्रियाँ दो कि वे उनकी पत्नियाँ हों।
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\v 10 तुम लोग हमारे साथ एक प्रदेश में रह सकते हो। यदि तुझे कोई भूमि पसन्द आए तो उसे खरीद भी ले। तू यहाँ बेच या खरीद सकता है।"
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\p
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\s5
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\v 11 तब शकेम ने दीना के पिता और भाइयों से कहा, "यदि तुम सब की कृपा दृष्टि मुझ पर हो तो जो तुम चाहो, मैं दूँगा।
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\v 12 तुम जो कुछ मुझसे कहोगे मैं दीना के वधू मूल्य में दूँगा। मुझे केवल तेरी पुत्री से विवाह करना है।"
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\p
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\v 13 परन्तु शकेम ने उनकी बहन दीना के साथ अभद्र व्यवहार किया था, याकूब के पुत्र शकेम और उसके पिता, हमोर को धोखा दे रहे थे।
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\s5
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\v 14 उन्होंने उनसे कहा, "नहीं, हम अपनी बहन को किसी खतना-रहित की पत्नी होने के लिए नहीं दे सकते क्योंकि ऐसा करना हमारे लिए लज्जा की बात है।
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\v 15 ऐसा तब ही हो सकता है जब तुम लोग अपने सब पुरूषों का खतना करके हमारे जैसे हो जाओ।
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\v 16 तब हम अपनी पुत्रियाँ तुम्हारे युवकों की पत्नियाँ होने के लिए दे देंगे और तुम्हारी पुत्रियों को अपने युवकों की पत्नियाँ होने के लिए ले लेंगे। तब हम तुम्हारे साथ रहेंगे और हम सब एक ही समुदाय होंगे।
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\v 17 लेकिन यदि तुम खतना नहीं कराओगे तो हम अपनी बहन को लेकर यहाँ से चले जाएँगे। "
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\v 18 उनकी बात से हमोर और उसका पुत्र शकेम प्रसन्न हुए।
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\v 19 शकेम तो याकूब की पुत्री को पत्नी बनाना चाहता था और वह अपने पिता के परिवार में माननीय भी था। वह याकूब के पुत्रों की शर्त मानने के लिए तुरन्त तैयार हो गया।
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\s5
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\v 20 हमोर और शकेम अपने नगर के सभास्थल गए। उन्होंने नगर के प्रधानो से बातें की और कहा,
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\v 21 "ये लोग हमारे साथ मित्रभाव रखते हैं। इसलिए यह उचित है कि हम उन्हें अपने बीच रहने दें। इन्हें स्वतंत्रता से घूमने-फिरने दें। यह देश पर्याप्त बड़ा है कि हम सब का निर्वाह हो जाता है। हमारे पुत्र उनकी पुत्रियों से विवाह करें और उनके पुत्र हमारी पुत्रियों से विवाह करें।
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\v 22 परन्तु हमारे साथ मिलकर रहने के लिए उनकी एक शर्त है, हमारे सब पुरूष उनके समान खतना करवाएँ, जैसा उन्होंने कराया है।
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\v 23 यदि हम ऐसा करते हैं तो उनका पशु धन और संपूर्ण संपदा भी तो हमारी हो जाएगी। इसलिए हम लोग उनके साथ यह सन्धि करें और वे यहीं हम लोगों के साथ रहेंगे!"
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\v 24 नगर के फाटक पर उपस्थित सब लोग हमोर और उसके पुत्र के सुझाव से सहमत हो गए। इस प्रकार उस नगर के हर एक पुरूष का खतना किया गया।
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\p
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\v 25 इसके पश्चात तीसरे दिन जब उस नगर के पुरूष खतना के कारण पीड़ित थे तब शिमोन और लेवी, दीना के भाई जो याकूब के पुत्र थे, तलवार लेकर उस नगर में घुस गए, उन्हें किसी ने नही रोका और सब पुरूषों को मार डाला।
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\v 26 उन्होंने हमोर और उसके पुत्र शकेम को भी मार डाला। तब वे दीना को शकेम के घर से बाहर ले आए और नगर छोड़ कर वहाँ से चले गए।
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\v 27 तब याकूब के अन्य पुत्रों ने नगर में प्रवेश किया जहाँ शव पड़े हुए थे और उस नगर को लूट कर अपनी बहन के साथ हुए लज्जा के कृत्य का बदला लिया।
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\v 28 उन्होंने उस नगर के अन्दर और बाहर कि भेड़ बकरियाँ, गाय, बैल, गदहे और धन संपदा सब कुछ लूट लिया।
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\v 29 उन्होंने सब मूल्यवान वस्तुएँ यहाँ तक कि उनके बच्चों और स्त्रियों को भी उठा लिया। घरों में जो कुछ लूट कर ले गए।
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\p
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\v 30 तब याकूब ने इस पर शिमोन और लेवी से कहा, " तुमने मेरे लिए महासंकट उत्पन्न कर दिया है। अब कनानी और परिज्जी और इस देश के सब निवासी मुझसे घृणा करेंगे। मेरे पास तो इतने पुरूष भी नहीं कि यदि वे मुझ से युद्ध करने आए तो उनका सामना कर पाऊँ। वे तो हमें और हमारे संपूर्ण समुदाय को नष्ट कर देंगे! "
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\v 31 परन्तु उन्होंने उत्तर दिया, "क्या हमें शकेम को हमारी बहन के साथ वैश्या के समान व्यवहार करने देना चाहिए था?"
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\s5
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\c 35
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\p
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\v 1 कुछ समय बाद, परमेश्वर ने याकूब से कहा, "यहाँ से बेतेल नगर को जा, वहाँ बस जा और वहाँ आराधना के लिए वेदी बना। मैं वही परमेश्वर हूँ जिसने तुझे उस समय दर्शन दिया था जब तू अपने भाई एसाव से भाग रहा था।"
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\v 2 तब याकूब ने अपने परिवार और साथ के सब लोगों से कहा, "अपने पास से मीसोपोतामिया के सब देवी-देवताओं की मूर्तियों को निकाल दो, स्नान करो और साफ कपड़े पहनो।
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\v 3 तब हम सब तैयार होकर बेतेल को जाएँगे। वहाँ मैं परमेश्वर की आराधना करने के लिए एक वेदी बनाऊँगा क्योंकि जब मैं बड़े संकट में था और मुझ पर भय छाया हुआ था तब उन्होंने मेरी सहायता की थी और मैं जहाँ भी गया वहाँ वह मेरे साथ रहे।"
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\s5
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\v 4 अतः उन्होंने अपनी मूर्तियाँ और कान के कुंडल याकूब को दे दिए और याकूब ने उन्हें शकेम नगर के निकट एक बांज वृक्ष के नीचे गाड़ दिया।
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\p
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\v 5 जब वे वहाँ जाने के लिए तैयार थे, तो परमेश्वर ने वहाँ के सब निवासियों के मन में याकूब के परिवार का भय भर दिया जिससे कि उन्होंने उनका पीछा नहीं किया।
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\s5
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\v 6 इसलिए याकूब और उसके लोग लूज पहुँचे। अब लूज को बेतेल कहते हैं। यह कनान प्रदेश में है।
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\v 7 वहाँ उसने यहोवा के लिए एक वेदी बनाई और उसका नाम एलबेतेल रखा अर्थात "बेतेल का परमेश्वर" क्योंकि जब याकूब अपने भाई एसाव से डर कर भाग रहा था तब परमेश्वर का दर्शन उसे वहीं हुआ था।
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\p
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\v 8 वहाँ इसहाक की पत्नी रिबका को दूध पिलाने वाली धाय, दबोरा, जो अब बहुत वृद्ध थी, उसका देहान्त हो गया और उसे बेतेल के दक्षिण में एक बांज वृक्ष के नीचे दफन कर दिया गया। इसलिए उस स्थान का नाम अल्लोनबक्कूत रखा गया जिसका अर्थ है, "शोक का बांज वृक्ष।"
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\p
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\s5
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\v 9 जब याकूब पद्दनराम से लौटा तब परमेश्वर उसके सामने फिर से प्रकट हुए। परमेश्वर ने याकूब को आशीर्वाद दिया।
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\v 10 परमेश्वर ने उससे फिर कहा, " तेरा नाम अब याकूब नहीं इस्राएल होगा।" तब से याकूब "इस्राएल" कहलाने लगा।
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\s5
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\v 11 तब परमेश्वर ने उससे कहा, "मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ। तेरी अनगिनत संतान होगी। तुम्हारे वंशजों से अनेक राष्ट्र बनेगे और तुम्हारे वंशजों में से राजा निकलेंगे।
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\v 12 जिस देश को मैंने अब्राहम और इसहाक को देने का वादा किया था अब वो मैं तुझे दूँगा। मैं इसे तेरे वंशजों को भी दूँगा।"
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\p
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\v 13 जब परमेश्वर ने याकूब के साथ वार्तालाप समाप्त की और वहाँ से चले गये।
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\s5
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\v 14 याकूब ने उस स्थान में जहाँ परमेश्वर ने उससे बातें की थी, एक बड़ा पत्थर खड़ा किया और उस पर दाखमधू और तेल चढ़ा कर परमेश्वर के लिए उसका अभिषेक किया।
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\v 15 याकूब ने उस स्थान का नाम बेतेल रखा अर्थात "परमेश्वर का घर" क्योंकि परमेश्वर ने उससे वहाँ बातें की थीं।
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\p
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\s5
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\v 16 याकूब और उसका समुदाय बेतेल से निकल के दक्षिण में एप्राता की ओर बढ़ा। अभी एप्राता थोड़ी ही दूर था कि राहेल को प्रसव पीड़ा उठी।
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\v 17 जब उसकी पीड़ा बहुत बढ़ गई तब धाय ने उससे कहा, "मत डर क्योंकि तू ने एक और पुत्र को जन्म दिया है।"
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\v 18 लेकिन वह जीवित न रह पाई और अंतिम सांस लेते समय उसने उस पुत्र का नाम बेनोनी रखा अर्थात "मेरे दुख का पुत्र" परन्तु उसके पिता ने उसका नाम बिन्यामीन रखा अर्थात "पुत्र जो मेरा दाहिना हाथ है।"
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\p
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\v 19 राहेल की मृत्यु के बाद, और उसे एप्राता के मार्ग के किनारे दफन किया गया। एप्राता का नाम बाद में बैतलहम हुआ।
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\v 20 याकूब ने उसकी कब्र पर एक बड़ा पत्थर रख दिया जो आज भी वहाँ है और वहाँ राहेल की कब्र। यह दर्शाता है।
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\p
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\s5
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\v 21 याकूब जिसका नाम अब इस्राएल था परिवार के साथ यात्रा करते हुए आगे बढ़ गया और एदेर नामक मीनार के दक्षिण में अपने तम्बू खड़े किए।
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\v 22 उस स्थान में निवास करते समय रूबेन अपने पिता की एक रखैल बिल्हा के साथ सो गया। किसी ने याकूब को यह बात बता दी तो याकूब अत्यधिक क्रोधित हुआ।
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\p अब याकूब के बारह पुत्र थे।।
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\s5
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\v 23 लिआ से उसके छः पुत्र थे: रूबेन (सबसे बड़ा), शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, जबूलून।
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\v 24 राहेल के पुत्र यूसुफ और बिन्यामीन थे।
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\v 25 राहेल की दासी बिल्हा के पुत्र दान और नप्ताली थे।
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\s5
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\v 26 लिआ की दासी जिल्पा के पुत्र गाद और आशेर थे। बिन्यामीन को छोड़कर याकूब के सभी पुत्रों के जन्म के समय वे पद्दनराम में रह रहे थे।
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\p
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\v 27 याकूब अपने पिता इसहाक से भेंट करने के लिए मेम्रे गया जिसका नाम किर्यतअर्बा था जिसे अब हेब्रोन कहते हैं। इसहाक का पिता अब्राहम भी वहाँ रह चुका था।
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\s5
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\v 28 इसहाक 180 वर्ष तक जीवित रहा।
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\v 29 जब वह मरा, वह बहुत बूढ़ा था। वह मर कर अपने पूर्वजों में शामिल हो गया जो पहले मर गए थे। उसके पुत्र एसाव और याकूब ने इसहाक के शरीर को दफनाया।
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\s5
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\c 36
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\p
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\v 1 एसाव जिसका नाम एदोम भी था, उसी एसाव के परिवार का यह विवरण है।
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\v 2 एसाव ने तीन कनानी स्त्रियों से विवाह किया थाः हित्ती एलोन की पुत्री आदा, हिब्बी सिबोन की नातिन, अना की पुत्री ओहोलीबामा;
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\v 3 और बासमत, जो इश्माएल की पुत्री और नबायोत की बहन थी।
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\s5
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\v 4 एसाव की पत्नी आदा ने एलीपज को और बासमत ने रूएल को जन्म दिया।
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\v 5 ओहोलीबामा ने यूश, यालाम और कोरह को जन्म दिया। एसाव के ये सभी पुत्र पैदा हुए थे जब वह कनान देश में रहता था।
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\p
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\v 6-7 याकूब और एसाव की बहुत संपत्ति थी और इसी के कारण, उन्हें अपने पशुओं के लिए और भूमि की आवश्यक्ता थी। वह जिस भूमि पर रह रहे थे वो उनके पशुओं के लिए पर्याप्त नहीं थी। इसलिए एसाव, जिसका दूसरा नाम एदोम था, अपने परिवार के साथ याकूब से अलग हो कर दूर देश को चला गया।
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\v 8 वे सेईर के पहाड़ी प्रदेश में जाकर रहने लगे।
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\p
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\v 9 एसाव एदोम के लोगों का पिता है। सेईर एदोम के पहाड़ी प्रदेश में रहने वाले एसाव के वंशजों के ये नाम हैं।
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\v 10 एसाव की पत्नी आदा ने एलीपज को जन्म दिया था और उसकी दूसरी पत्नी बासमत ने रूएल को जन्म दिया।
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\v 11 एलीपज के पुत्र मान, ओमार, सपो, गाताम, और कनज थे।
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\v 12 एसाव के पुत्र एलीपज की एक तिम्ना नामक रखैल भी थी। तिम्ना और एलीपज ने अमालेक को जन्म दिया। ये छः पुत्र एसाव की पत्नी आदा के पोते थे।
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\p
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\v 13 रूएल के ये पुत्र थे, नहत, जेरह, शम्मा और मिज्जा। ये सब एसाव की पत्नी बासमत के पोते थे।
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\v 14 एसाव की पत्नी ओहोलीबाह जो सिबोन की नातिन और अना की पुत्री थी, उसने एसाव के इन पुत्रों को जन्म दिया। यूश, पालाम और कोरह।
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\p
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\v 15 ये एसाव के वंशजों में से प्रमुख हैं। उसके पहले पुत्र एलीपज के वंशज ये थे: तेमान, ओमार, सपो, कनज,
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\v 16 कोरह, गाताम, अमालेक और एलीपज के वंशजों में, एदोम देश के यही प्रधान थे और वे आदा से आए।
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\v 17 एसाव के पुत्र रूएल के वंश में जो प्रधान हुए वे थेः नहत, जेरह, शम्मा, मिज्जा। एदोम देश में ये प्रधान बासमत नामक एसाव की पत्नी के वंश से आए।
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\v 18 एसाव की पत्नी ओहोलीबामा के पुत्र, जो अना की माँ थी,अना जो यूश, यालाम और कोरह लोगों के समूह के पूर्वज थे।
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\p
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\v 19 यह सूची एसाव के पुत्रों और उन समुदाय की है जो उनके वंशज थे।
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\v 20 एदोम में सेईर नामक एक होरी समुदाय का व्यक्ति रहता था। सेईर के पुत्र ये हैं: लोतान, शोबाल, शिबोन, अना,
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\v 21 दीशोन, एसेर, दिशान। ये प्रत्येक सात पुरुष अपने-अपने समूह के पूर्वज बने। प्रत्येक समूह का नाम अपने पूर्वजों के नाम पर था।
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\v 22 लोतान के दो पुत्र थे: होरी और हेमाम। लोतान की बहन तिम्ना थी।
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\v 23 शोबाल के पुत्र आल्वान, मानहत, एबाल, शपो और ओनाम थे।
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\v 24 सिबोन के पुत्र अय्या और अना थे। अना ने अपने पिता सिबोन के गदहों को जंगल में चराते हुए गर्म जल के झरने खोजे थे।
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\v 25 अना का एक पुत्र, दीशोन और एक पुत्री ओहोलीबामा थी।
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\v 26 दीशोन के पुत्र हेमदान, एशबान, यित्रान और करान थे।
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\v 27 एसेर के पुत्र बिल्हान, जावान और अकान थे।
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\v 28 दीशान के पुत्र ऊस और अरान थे।
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\v 29-30 सेईर भूमि में होरी के वंशजों के समूह रहते थे। लोतान, शोबाल, शिबोन, अना, दिशोन, एसेर, दीशोन ये लोगों के समुदाय के नाम थे।
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\v 31 ये राजाओं के नाम हैं जिन्होंने एदोम में शासन किया था, इससे पहले किसी भी राजा ने इस्राएलियों पर शासन नहीं किया।
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\v 32 बोर का पुत्र बेला एदोम का पहला राजा था। वह नगर जहाँ वह रहता था उसे दिन्हाबा नाम दिया गया था।
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\v 33 बेला की मृत्यु के बाद, जेरह का पुत्र योबाब राजा बना। वह बोस्रा नगर का था।
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\v 34 योबाब की मृत्यु के बाद तेमानियों के देश का हूशाम उसके स्थान पर राजा बना।
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\v 35 हूशाम की मृत्यु के बाद बदद का पुत्र हदद राजा बना। हूशाम की सेना ने मोआब में मिद्यानियों की सेना को हराया था। उसकी राजधानी अबीत थी।
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\v 36 हदद की मृत्यु के बाद सम्ला राजा बना था। सम्ला मस्रेका से था।
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\v 37 जब सम्ला के मृत्यु के बाद शाऊल राजा बन गया। शाऊल फरात नदी के किनारे रहोबोत का था।
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\v 38 शाऊल की मृत्यु के बाद अकबोर का पुत्र बाल्हानान राजा बना।
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\v 39 अकबोर के पुत्र बाल्हानान की मृत्यु के बाद हदर उसके स्थान पर राजा बना। उसकी राजधानी का नाम पाऊ था और उसकी पत्नी का नाम महेतबेल था जो मत्रेद की पुत्री थी और वह मेज़ाहब की पुत्री थी।
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\p
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\v 40-43 यह एसाव वंशियों की सूची हैः तिम्ना, अल्वा, यतेत, ओहोलीबामा, एला, पीनोन, कनज, तेमान, मिबसार, मग्दीएल, ईराम। ये सब एदोम देश के निवासी थे। जिस स्थान पर उनका जो समुदाय रहता था वही उस देश का नाम पड़ गया।
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\c 37
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\v 1 याकूब कनान देश में रहने लगा जहाँ पहले उसका पिता रहता था।
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\v 2 याकूब के परिवार का वृतान्त यह है।
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\p जब याकूब का पुत्र यूसुफ सत्रह वर्ष का था तब वह भी अपने भाइयों के साथ भेड़-बकरियाँ चराने लगा। वह अपने पिता की दासी-पत्नियों बिल्हा और जिल्पा के पुत्रों के साथ जाया करता था और उनकी बुराइयों का समाचार अपने पिता को देता था।
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\p
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\v 3 याकूब यूसुफ से अन्य सब पुत्रों से अधिक प्रेम करता था क्योंकि यूसुफ उस समय उत्पन्न हुआ जब उसका पिता बहुत बूढ़ा था। उसने यूसुफ के लिए एक रंग-बिरंगा वस्त्र भी बनवाया था। जिसकी बाहें लम्बी थी।
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\v 4 जब यूसुफ के भाइयों को लगा कि उनका पिता उनकी अपेक्षा यूसुफ को अधिक प्रेम करता है। वे इसी कारण अपने भाई से घृणा करने गये। वे यूसुफ से अच्छी तरह बात भी नहीं करते थे।
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\p
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\v 5 एक रात यूसुफ ने स्वप्न देखा और अपने भाइयों को वह स्वप्न सुनाया जिसे सुनकर वे और भी अधिक ईर्ष्या से भर गए।
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\v 6 उसने उनसे कहा, "मैंने जो स्वप्न देखा वह यह था, सुनो!
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\v 7 मैंने देखा कि हम सब खेत में गेहूँ की फसल के गट्ठे बाँध रहे हैं। मेरा गट्ठा एकदम खड़ा हो गया और तुम सबके गट्टे उसके चारों ओर एकत्र होकर उसे झुक कर प्रणाम करने लगे!"
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\v 8 उसके भाइयों ने उससे कहा, क्या, तू ये सोचता है कि इसका अर्थ है कि तू हम लोगों पर शासन करेगा? उसके भाइयों ने यूसुफ से अब और अधिक घृणा करनी आरम्भ की क्योंकि उसने उनको अपने स्वप्न के विषय बताया था।
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\p
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\v 9 बाद में उसने एक और स्वप्न देखा और फिर उसने अपने बड़े भाइयों को इसके विषय में बताया। उसने कहा, " सुनो! मैंने एक और स्वप्न देखा है। इस स्वप्न में, सूर्य और चंद्रमा और ग्यारह सितारे मेरे सामने झुक रहे थे!"
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\v 10 उसने अपने पिता को भी इस स्वप्न के बारे बताया। उनके पिता ने उन्हें समझाते हुए कहा, " तू क्या कहना चाहता है? तेरे कहने का अर्थ है कि तेरी माता और मैं तेरे बड़े भाई एक दिन झुककर तुझे प्रणाम करेंगे?"
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\v 11 यूसुफ के बड़े भाई तो यह सुनकर उससे ईर्ष्या करने लगे लेकिन उसके पिता ने उसका यह स्वप्न स्मरण रखा।
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\v 12 एक दिन जब यूसुफ के भाई अपने पिता की भेड़-बकरियों को चराते हुए शकेम के निकट पहुँच गये थे।
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\v 13 तब याकूब ने यूसुफ ने कहा, "तुम्हारे भाई शकेम में भेड़-बकरियाँ चरा रहे होंगे, मैं तुझे उनका समाचार पूछने के लिए भेज रहा हूँ।" यूसुफ ने कहा, "मैं जाऊंगा।"
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\v 14 याकूब ने कहा, "जाकर अपने भाइयों और भेड़-बकरियों का हाल देखो कि वे सब कुशल से तो हैं भेड़ बकरियाँ शी सलामत हैं और मुझे समाचार दो।" याकूब ने यूसुफ को उस तराई से जहाँ हेब्रोन बसा हुआ है, उसके भाइयों के पास भेजा।
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\p और यूसुफ शकेम नगर के निकट पहुँचा।
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\v 15 शकेम में एक व्यक्ति ने यूसुफ को खेतों में भटकते हुए पाया। वह अपने भाइयों को खोज रहा था, तब उस व्यक्ति ने कहा, " तू क्या खोज रहे हो?"
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\v 16 यूसुफ ने उत्तर दिया, "मैं अपने बड़े भाईयों की तलाश में हूँ। क्या तू बता सकते हो कि वे अपनी भेड़ों के साथ कहाँ हैं?"
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\v 17 उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, "वे अब यहाँ नही हैं। मैंने किसी को यह कहते हुए सुना कि "चलो भेड़ बकरियों को लेकर दोतान नगर चलें।'"
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\p यूसुफ ने वह स्थान छोड़ा और उत्तर की ओर गया जहाँ उसने अपने भाइयों को दोतान के समीप पाया।
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\v 18 जब यूसुफ दूर ही था तब उसके भाइयों ने उसे देखकर उसकी हत्या करने की योजना बनाई।
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\v 19 वे आपस में कहने लगे, "देखो वह स्वप्न देखने वाला आ रहा है!"
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\v 20 "चलो उसे मार डालें और उसके शव को किसी गड्ढे में डाल दें, और हम यह कहेंगे कि किसी जंगली जानवर ने उसे मारकर खा लिया है। तब देखते हैं कि उसके स्वप्न कैसे पूरे होते हैं!"
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\p
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\v 21 रूबेन ने उनकी बातें सुनी, उसने उन्हें फुसलाने का प्रयास की कि वे यूसुफ को न मारें अतः कहा "नहीं हमें उसे नही मारना चाहिए।"
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\v 22 उसकी हत्या मत करो परन्तु उसे जंगल के इस गड्ढे में डाल दो। उसकी हानि नहीं करनी चाहिए।" यह कहकर वह वहाँ से चला गया। उसने योजना बनायी कि वह उसे बाद में गड्ढे से निकालकर पिता के पास पहुँचा देगा।
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\v 23 जब यूसुफ अपने भाइयों के पास पहुँचा तब उन्होंने उसे पकड़कर उसका रंग-बिरंगा लम्बी बाँहों वाला वस्त्र उतार लिया।
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\v 24 तब उन्होंने उसे पकड़ लिया और उसे गड्ढे में फेंक दिया। वह गड़हा सूखा था, उसमें जल नहीं था।
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\v 25 इसके पश्चात वे भोजन करने बैठ गए। उसी समय उन्हें गिलाद प्रदेश से आता इश्माएल वंशियों का एक दल दिखाई दिया जो ऊँटों पर सुगन्ध द्रव्य और गन्धरस लादे हुए मिस्र देश को जा रहा था कि वहाँ उसे बेचें।
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\v 26 यहूदा ने अपने बड़े और छोटे भाइयों से कहा, " अपने छोटे भाई को मार कर उसके शरीर को छिपाने से हमें क्या हासिल होगा?
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\v 27 आओ उसे नुकसान पहुँचाने की अपेक्षा हम उन लोगों को बेच दें जो इश्माएल के वंशज हैं। मत भूलो कि वह हमारा छोटा भाई है!" सब उसकी बात से सहमत हो गए।
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\v 28 जब वे मिद्यानी व्यापारी उनके निकट आए तब यूसुफ के भाइयों ने उसे गड्ढ़े से बाहर निकाला और उसे चाँदी के बीस टुकड़ों में यूसुफ को उन्हें बेच दिया। वे व्यापारी उसे मिस्र देश ले गए।
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\v 29 जब रूबेन उस गड्ढ़े के पास आया तो यूसुफ उसका छोटा भाई, वहाँ नहीं था। वह बहुत दुखी हुआ और उसने अपने वस्त्र फाड़े।
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\v 30 अपने छोटे भाइयों के पास जाकर कहने लगा, "यूसुफ तो वहाँ नहीं है! अब मैं क्या करू?"
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\v 31 उनकी हिम्मत नहीं हुई की वे यूसुफ के साथ हुई घटना पिता को बता दें, तब उन्होंने अपने पिता के भय से एक कहानी गढ़ी। उन्होंने उसका अंगरखा, एक बकरे को मारकर उसके खून में रंग दिया।
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\v 32 वे कपड़े के टुकड़े को अपने पिता के पास ले आये और कहा, "हमने यह पाया! इसे देख। क्या यह तेरे पुत्र के कपड़े है?"
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\v 33 उसने उसे पहचाना, और कहा, "हाँ, यह तो मेरे पुत्र का है। किसी खूंखार जानवर ने उस पर झपट कर उसकी हत्या कर दी होगी। मुझे पूरा विश्वास है कि उस जानवर ने यूसुफ के टुकड़े-टुकड़े कर दिए होंगे!"
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\v 34 याकूब इतना दुःखी था कि उसने अपने कपड़े फाड़े और बोरे को शरीर पर लपेट कर शोक किया।
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\v 35 उसके पुत्रों ने उसे शान्ति देने का प्रयास किया लेकिन उन्होंने जो कुछ कहा उस पर याकूब ने ध्यान ही नही दिया। वह यही कहता रहा, "मैं मरने तक शोक करता रहूँगा और फिर अपने पुत्र के पास चला जाऊँगा।" जो कुछ हुआ उसके लिए तथा अपने पुत्र के लिए रोता ही रहा।
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\p
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\v 36 उधर मिद्यानियों ने यूसुफ को मिस्र ले जाकर फ़िरौन के एक अधिकारी पोतीपर के हाथ बेच दिया। वह फ़िरौन राजा के अंगरक्षकों का प्रधान था।
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\s5
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\c 38
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\p
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\v 1 उस समय, यहूदा अपने भाइयों से अलग होकर अदुल्लाम जो पर्वतीय प्रदेश था वहाँ चला गया और वहाँ एक पुरुष के साथ रहने लगा। जिसका नाम हीरा था।
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\v 2 वहाँ शूआ नाम के एक कनानी पुरुष की पुत्री को यहूदा ने देखा। उससे विवाह करके उसके साथ सोया।
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\s5
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\v 3 वह गर्भवती हो गई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया। उनके पिता ने उसे एर नाम दिया।
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\v 4 बाद में वह फिर गर्भवती हुई और उसने दूसरे पुत्र को जन्म दिया, जिसे उसने ओनान नाम दिया।
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\v 5 कई सालों बाद यहूदा और उसका परिवार कजीब में रहने गए। वहाँ उसकी पत्नी ने एक और पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम उन्होंने शेला रखा।
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\p
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\v 6 यहूदा के पुत्र एर के बड़े हो जाने पर यहूदा ने उसका विवाह तामार नाम की एक युवती से करवाया।
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\v 7 परन्तु एर ने यहोवा की दृष्टि में दुष्टता की इसलिए यहोवा ने उसको मार डाला।
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\v 8 तब यहूदा ने ओनान से कहा, " तेरा बड़ा भाई बिना किसी पुत्र के मर गया। इसलिए उसकी विधवा से शादी कर और उसके साथ सो। हमारे रीति-रिवाज के अनुसार ऐसा ही करना चाहिए।"
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\v 9 ओनान जानता था कि यदि वह ऐसा करेगा तो इससे पैदा हुई संतान उसकी नहीं मानी जाएंगी। ओनान ने जब भी तामार के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाया उसने भूमि पर अपना वीर्य फेंक दिया। जिससे कि तामार गर्भवती न हो कि उसके बड़े भाई के नाम से वंश चले।
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\v 10 यहोवा ने उसके इस कर्म को दुष्टता मानकर उसे भी मार डाला।
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\v 11 तब यहूदा ने अपनी बहू तामार से कहा, "अपने पिता के पास चली जा लेकिन किसी से विवाह न करना। जब मेरा पुत्र शेला बड़ा हो जाएगा तब मैं तेरा विवाह उससे करा दूँगा। परन्तु सच तो यह था कि यहूदा नहीं चाहता था कि शेला तामार से विवाह करे क्योंकि वह डरता था कि शेला भी मर जाएगा जैसे उसके दो बड़े भाई मर गए थे। तामार यहूदा की बात मानकर अपने पिता के घर चली गई।
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\v 12 कुछ वर्षों बाद यहूदा की पत्नी, जो शूआ की पुत्री थी, मर गई और उसके शोक का समय पूरा हो गया तब यहूदा ने तिम्ना जाने का विचार किया क्योंकि वहाँ उसके सेवक उसकी भेड़ों का ऊन कतरवा रहे थे। उसका मित्र अदुल्लामवासी हीरा भी उसके साथ था।
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\v 13 किसी ने तामार को समाचार दिया, "तेरा ससुर तिम्ना जा रहा है भेड़ों का ऊन कतरने वालों की सहायता करने के लिए।"
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\v 14 वह जानती थी कि शेला वयस्क हो गया है परन्तु यहूदा ने उसे उसकी पत्नी नहीं बनाया। इसलिए उसने विधवा के वस्त्र उतारकर अपने मुख पर परदा डाला कि कोई उसे पहचान न सके और तिम्ना के मार्ग पर एनैम नगर के फाटक पर बैठ गई।
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\v 15 उसे देखकर यहूदा ने समझा कि वह वेश्या है। वह उसे पहचान नहीं पाया क्योंकि उसका मुँह ढंका हुआ था। वह वहाँ बैठी थी जहाँ वेश्याएं अक्सर बैठती थीं।
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\v 16 यहूदा को अनुभव नहीं हुआ कि वह उसकी बहू थी। तो उसने उससे कहा, "मुझे अपने साथ सोने दे।" उसने उत्तर दिया, " तू मुझे इसके बदले में क्या देगा?"
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\v 17 उसने उत्तर दिया, "मैं अपनी बकरियों में से एक बच्चा तेरे पास भेज दूँगा।" उसने कहा, " तू जब तक वह बकरी का बच्चा भिजवाएगा तब तक मेरे पास कुछ रखवा दे।"
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\v 18 उसने कहा, " तू क्या चाहती है कि मैं तेरे पास क्या रख दूँ?" उसने कहा "अपनी मुहर वाली अंगूठी और जिस पर तेरा नाम खुदा हुआ है जो एक धागे से तेरे गले में बंधी है तथा वह छड़ी जो तेरे हाथ में है।" उसने वह सब उसके पास रख दिया और उसके साथ सोया। परिणाम-स्वरूप वह गर्भवती हो गई।
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\v 19 घर लौटने के बाद उसने परदा हटा लिया और फिर अपनी विधवा के कपड़े पहन लिए।
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\v 20 यहूदा ने अदुल्लाम के एक अपने मित्र के हाथ बकरी का बच्चा उस स्त्री के पास भिजवाया, जैसा उसने उसे वचन दिया था। लेकिन उसके मित्र को वह स्त्री कहीं नहीं मिली।
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\v 21 इसलिए उसके दोस्त ने वहाँ रहने वाले लोगों से पूछा, "वह वेश्या कहाँ है जो एनैम के मार्ग के किनारे बैठी थी?" उन्होंने उत्तर दिया, "यहाँ कभी कोई वेश्या नहीं थी!"
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\v 22 तब वह यहूदा के पास वापस गया और कहा, "मुझे वह नहीं मिली। इसके अतिरिक्त, उस नगर में रहने वाले पुरुषों ने कहा, 'यहाँ कोई वेश्या कभी नहीं थी।'"
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\v 23 यहूदा ने कहा, "उसे वे वस्तुएं रखने दे क्योंकि यदि हम उसकी खोज करेंगे तो लोग हम पर हँसेगे। मैंने तो यह बकरी का बच्चा भेज कर अपना वचन निभाया लेकिन वह तुझे नहीं मिली कि उसे वह बकरी का बच्चा दे सके।"
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\p
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\v 24 लगभग तीन महीने बाद, किसी ने यहूदा से कहा, "तेरी बहू तामार एक वेश्या बन गई है और अब वह गर्भवती है!" यहूदा ने कहा, "उसे नगर के बाहर निकालो और उसे मार डालो!"
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\p
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\v 25 जब वे उसे नगर से बाहर ला रहे थे तब उसने अंगूठी और छड़ी किसी के हाथ यहूदा के पास भिजवा दी और कहलवाया कि जिस पुरूष से वह गर्भवती है, उसी की ये वस्तुएं हैं।" उसने उस वाहक से यह भी कहा कि उससे कहना, "इस अंगूठी और इसमें पिरोये गए धागे तथा छड़ी को पहचान ले कि वे किसके हैं?"
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\v 26 जब उस व्यक्ति ने ऐसा किया, तो यहूदा ने अंगूठी और छड़ी को पहचाना। वह बोला, वह मुझसे ज्यादा सही है क्योंकि मैंने प्रतिज्ञा की थी कि मैं शेला के साथ उसका विवाह करूँगा और अपने पुत्र शेला से उसका विवाह नहीं किया।" यहूदा फिर कभी उसके साथ नहीं सोया।
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\p
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\s5
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\v 27 जब जन्म देने का समय आया, तो वह आश्चर्यचकित थी कि उसके गर्भ में जुड़वां लड़के थे।
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\v 28 जब वह जन्म दे रही थी, उनमें से एक ने अपना हाथ बाहर निकला। दाई ने उसकी कलाई पर एक लाल रंग का धागा बांधा और कहा, "यह पहले पैदा हुआ है।"
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\s5
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\v 29 परन्तु उस संतान ने अपना हाथ वापस अन्दर खींच लिया। तब दूसरा बच्चा पहले पैदा हुआ। दाई ने कहा, " तू ही पहले बाहर निकलने में समर्थ हुए।" इसलिए उन्होंने उसका नाम पेरेस रखा। जो सुनने में इब्रानी शब्द के समान लगता है जिसका अर्थ है "खुल पड़ना।"
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\v 30 तब उसका छोटा भाई, जिसकी कलाई पर लाल रंग का धागा बंधा था, बाहर निकला। उसने उसका नाम जेरह रखा। इस इब्रानी शब्द का अर्थ है "सुबह की लाली।"
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\s5
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\c 39
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\p
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\v 1 इस बीच इश्माएलवंशी यूसुफ को लेकर मिस्र पहुँचे। वहाँ पोतीपर ने यूसुफ को उनसे खरीद लिया। पोतीपर एक मिस्री था जो राजा का अधिकारी था। वह राजा के महल के सुरक्षाकर्मियों का प्रधान था।
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\v 2 यहोवा यूसुफ के साथ थे इसलिए वह अपना काम बहुत अच्छी तरह कर सका। वह अपने मिस्री स्वामी के घर में सेवा कार्य करता था।
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\v 3 उसके स्वामी ने देखा कि यहोवा यूसुफ की सहायता कर रहे थे जो कुछ यूसुफ करता है, उसमें उसे सफल बनाने में सहायक थे।
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\v 4 यूसुफ का स्वामी उससे प्रसन्न था, अतः उसके स्वामी ने उसे अपने निजी सेवक के रूप में नियुक्त किया। इसके पश्चात उसके स्वामी ने उसे अपने परिवार और संपूर्ण संपदा की देखभाल करने के लिए नियुक्त किया।
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\v 5 जब से पोतीपर (स्वामी) ने यूसुफ को अपने घर का अधिकारी बनाया तब से यहोवा ने यूसुफ के कारण पोतीपर के घर में रहने वाले सब को समृद्धि प्रदान करना आरंभ कर दिया। यहोवा ने पोतीपर की फसल को भी बढ़ा दिया।
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\v 6 पोतीपर ने यूसुफ पर जो कुछ पोतीपर का था सबका पूरा प्रबंध सौप दिया अपने घर का पूरा प्रबंध छोड़ दिया। वह केवल अपने भोजन की चिन्ता करता था। उसे अपने घर में और किसी बात की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी।
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\p यूसुफ अब सुगठित शरीर वाला और आकर्षक हो गया था।
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\v 7 इसके कारण, उसके स्वामी की पत्नी उसको प्रेम भरी नजर से देखने लगी। एक दिन उसने यूसुफ से कहा, "मेरे साथ सो!"
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\v 8 लेकिन उसने अपने स्वामी की पत्नी से कहा, "सुन! मेरा स्वामी इस घर की किसी बात की चिन्ता नहीं करता है। उसने अपनी सम्पूर्ण सम्पति की देख-रेख के लिए मुझे नियुक्त किया है।
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\v 9 इस घर में मुझसे अधिक अधिकार और किसी के पास नहीं है। जिस एकमात्र पर उसने मुझे अधिकार नहीं दिया है वह तू है क्योंकि तू उसकी पत्नी है! मैं ऐसी दुष्टता कैसे कर सकता हूँ जिसके लिए तू मुझसे कह रही है? यदि मैंने ऐसा किया तो मैं परमेश्वर की दृष्टि में पाप करूँगा! "
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\v 10 वह दिन-प्रतिदिन यूसुफ से उसके साथ सोने के लिए कहती रही लेकिन वह मना करता रहा। वह उसके निकट भी नहीं जाता था।
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\p
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\v 11 एक दिन जब यूसुफ घर में अपना काम करने के लिए गया तब घर में अन्य कोई सेवक नहीं था।
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\v 12 पोतीपर की पत्नी ने उसके वस्त्र को पकड़ लिया और कहा, "मेरे साथ सो!" यूसुफ घर से बाहर भाग गया, लेकिन यूसुफ का वस्त्र उसके हाथ में ही रह गया।
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\v 13 जब उसने देखा कि यूसुफ अपना वस्त्र छोड़ कर बाहर भाग गया,
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\v 14 उसने घरेलू दासों को बुलाया। उसने उनसे कहा, "देखो! यह इब्रानी दास जिसे मेरा पति यहाँ लाया था। उसने मेरा अपमान किया है। वह मेरे पास अन्दर आया जहाँ मैं थी और मुझे अपने साथ सोने के लिए विवश करने का प्रयास किया, लेकिन मैं जोर से चिल्लाई।
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\v 15 मेरा चिल्लाना सुन कर वह अपना वस्त्र छोड़ कर बाहर भाग गया।"
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\s5
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\v 16 उसने यूसुफ के स्वामी के घर आने तक उसका वस्त्र अपने पास रखा।
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\v 17 तब उसे यह कहानी सुनाई, "वह इब्रानी दास जिसे तू यहाँ ले आया है, मेरे पास अन्दर आया और मेरे साथ सोने के लिए मुझे विवश करने लगा।
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\v 18 परन्तु जब मैं चिल्लाई तो अपना वस्त्र छोड़ कर बाहर भाग गया।"
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\v 19 यूसुफ के स्वामी ने अपनी पत्नी से जब यह कहानी सुनी जो वह सुना रही थी और जब उसने कहा, "तेरे दास ने मेरे साथ कैसा व्यवहार किया है।" वह बहुत क्रोधित हुआ।
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\v 20 यूसुफ के स्वामी ने यूसुफ को ले जा कर कारावास में डाल दिया। उस कारावास में राजा के सभी कैदियों को रखा गया था, यूसुफ भी वहीं रहा।
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\v 21 परन्तु यहोवा यूसुफ के प्रति दयालु रहे। पूर्वजों के साथ अपने वचन के कारण उसकी सहायता करते रहे। यहोवा ने ऐसा किया कि कारावास के प्रबंधक यूसुफ से प्रसन्न हो गया।
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\v 22 तब कारावास के प्रबंधक ने यूसुफ को कारावास के कैदियों का और अन्य सब कामों का प्रभारी बना दिया।
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\v 23 कारावास के प्रबंधक को किसी बात की चिन्ता नहीं करनी थी क्योंकि यूसुफ काम संभाल रहा था। यहोवा ने यूसुफ को अपने सब काम अच्छी तरह से करने में सहायता की।
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\c 40
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\p
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\v 1 कुछ समय बाद, मिस्र के राजा के दो अधिकारियों ने कुछ ऐसा किया जो राजा को अप्रसन्न करने वाला था। उनमें से एक उसके पिलाने वालों का प्रधान था और दूसरा उसके पकाने वालों का प्रधान था।
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\v 2 राजा दोनों से अप्रसन्न हो गया।
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\v 3 उसने उन्हें महल के सुरक्षा कर्मियों के प्रधान के कारावास में डलवा दिया। यूसुफ भी उसी कारावास में था।
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\v 4 दोनों व्यक्ति लंबे समय तक कारावास में थे। उस समय, महल के सुरक्षाकर्मियों के प्रधान ने यूसुफ को नियुक्त किया कि उनके लिए उनकी आवश्यकता की वस्तुओं का प्रबन्ध करे।
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\v 5 एक रात राजा के पिलाने वालों के प्रधान और पकाने वाले प्रधान, दोनों ने स्वप्न देखा। प्रत्येक स्वप्न का अलग अर्थ था।
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\p
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\v 6 अगली सुबह, जब यूसुफ उनके पास आया तो दोनों उदास दिख रहे थे।
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\v 7 इसलिए उसने उनसे पूछा, "आज तुम इतने दुःखी क्यों दिख रहे हो?"
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\v 8 उनमें से एक ने उत्तर दिया, "हम दोनों ने कल रात को स्वप्न देखा, लेकिन कोई भी यहाँ नहीं है जो हमें हमारे स्वप्न का अर्थ बता सके।" यूसुफ ने उनसे कहा, "परमेश्वर ही हैं जो सपनों के अर्थ को बता सकते हैं। मुझे बताओ कि तुम ने क्या स्वप्न देखा और परमेश्वर मुझे अर्थ बताएँगे।"
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\v 9 तो राजा को पिलाने वालों के प्रधान ने यूसुफ को अपना स्वप्न सुनाया। उसने कहा, "स्वप्न में मैंने देखा कि मेरे सामने अँगूर की बेल है।
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\v 10 उस अंगूर की बेल की तीन शाखाएँ थी। शाखाओं में कलियाँ लगीं और उनमे फूल आए और फिर उसमें अंगूर के गुच्छे फलने लगे।
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\v 11 मैं राजा का कटोरा हाथ में लिए हुए था इसलिए मैंने ताज़े अंगूरों को लिया और उनका रस निचोड़ा और कटोरे में भरकर राजा को पीने के लिए दे दिया।"
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\v 12 परमेश्वर ने तुरंत यूसुफ को बताया कि स्वप्न का क्या अर्थ है। तो यूसुफ ने उससे कहा, "यह तेरा स्वप्न है: बेल की तीन शाखाओ का अर्थ है तीन दिन।
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\v 13 तीन दिन में राजा तुझे कारावास से निकाल कर तेरे काम पर पुनः नियुक्त कर देगा। तू पहले के समान ही राजा के लिए वही काम करेगा जो तू पहले करता था।
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\s5
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\v 14 लेकिन जब तू कारावास से बाहर जाए और सब कुछ अच्छा हो जाए, तब कृपया मुझे मत भूलना।
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\v 15 लोगों ने मुझे बलपूर्वक मेरे देश से, जहाँ मेरे इब्रानी साथी हैं, निकाल कर यहाँ बेच दिया। यहाँ मिस्र में भी मैंने ऐसा कोई काम नहीं किया कि मुझे कारावास में डाल दिया जाए। इसलिए मुझ पर दया करके राजा से मेरी चर्चा करना कि वह मुझे कारावास से मुक्त करा दे!"
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\p
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\s5
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\v 16 जब प्रधान पकाने वाले ने सुना कि पिलाने वालों के प्रधान के स्वप्न का अर्थ बहुत अच्छा था, तो उसने यूसुफ से कहा, "मैंने भी एक स्वप्न देखा। मैंने देखा कि मेरे सिर पर रोटियों की तीन टोकरियाँ हैं।
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\v 17 ऊपर की टोकरी में राजा के लिए विभिन्न पके हुए व्यंजन हैं। लेकिन पक्षी आकर मेरे सिर पर रखी उस टोकरी में से खा रहे हैं।"
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\v 18 परमेश्वर ने फिर यूसुफ को बताया कि स्वप्न का क्या अर्थ है। उसने कहा, "तीन टोकरियों का अर्थ है तीन दिन।
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\v 19 तीन दिन के पश्चात राजा आज्ञा देगा कि तेरा सिर काटा जाए। तब तेरा शव पेड़ पर लटका दिया जाएगा और पक्षी तेरा मांस नोच-नोच कर खायेंगे।"
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\p
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\s5
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\v 20 इस के बाद तीसरे दिन राजा का जन्मदिन था। उस दिन राजा ने अपने सब अधिकारियों को जन्मदिन मनाने के लिए भोज पर आमंत्रित किया और पिलाने वालों के प्रधान और पकाने वाले के प्रधान को भी कारावास से निकलवाया।
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\v 21 पिलाने वालों के प्रधान को तो उसने दुबारा उसके पद पर नियुक्त कर दिया और वह राजा के हाथ में दाखरस का कटोरा देने लगा।
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\v 22 परन्तु प्रधान पकाने वाले के लिए उसने आज्ञा दी कि उसे वृक्ष पर लटका दिया जाए। जैसा यूसुफ ने स्वप्नों का अर्थ बताया था सभी बातें बिलकुल वैसी ही हुई।
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\v 23 लेकिन पिलाने वालों के प्रधान ने यूसुफ के विषय में नहीं सोचा। वह यूसुफ के निवेदन को भूल गया।
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\s5
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\c 41
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\v 1 पूरे दो वर्षों के बाद मिस्र के राजा ने एक स्वप्न देखा। अपने स्वप्न में वह नील नदी के तट पर खड़ा था।
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\v 2 अचानक वहाँ सात हष्ट पुष्ट गायें निकल कर नदी के तट पर घास चरने लगीं।
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\v 3 शीघ्र ही और सात गायें नील नदी से निकलीं वे दुर्बल और सूखी हुई थीं, वे हष्ट पुष्ट गायों के पास खड़ी हो गई।
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\v 4 इन सातों दुर्बल और सूखी गायों ने हष्ट पुष्ट सात गायों को खा लिया। तब राजा जाग गया।
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\p
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\v 5 राजा फिर से सो गया, और तब उसने एक और स्वप्न देखा। उसने देखा कि अनाज की सात बालें एक अनाज की टहनी के पीछे उगी हुई हैं, जो अच्छी और पक कर भरी हुई थीं।
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\v 6 उसके बाद, राजा ने देखा कि अनाज के पीछे सात अन्य बालें उगी हैं। अनाज की ये बालें पतली थी और पूर्व की गर्म हवा से सूख गई थी।
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\s5
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\v 7 तब सात पतली बालों ने सात मोटी और अच्छी बालों को निगल लिया। राजा फिर जाग उठा और उसने समझा कि यह केवल स्वप्न ही है।
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\p
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\v 8 लेकिन अगली सुबह वह स्वप्न के अर्थ के विषय में चिंतित था। इसलिए उसने मिस्र में रहने वाले सभी जादूगरों और बुद्धिमान पुरुषों को बुलाया। उसने उन्हें अपने स्वप्न सुनाए लेकिन कोई भी स्वप्नों के अर्थ नहीं बता सका।
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\s5
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\v 9 तब राजा के पिलाने वालों के प्रधान ने राजा से कहा, "अब मुझे कुछ याद आया है जो मुझे तुझे बताना चाहिए था! मैंने तुझे यह न बता कर गलती की।
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\v 10 एक बार तू ने क्रोध में आकर मुझे और पकाने वाले के प्रधान को महल के सुरक्षाकर्मियों के प्रधान के कारावास में डलवा दिया था।
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\v 11 जब हम वहाँ थे, तो रात में हम दोनों ने एक-एक स्वप्न देखा था, और दोनों स्वप्नों के अलग-अलग अर्थ थे।
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\s5
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\v 12 वहाँ हमारे साथ एक इब्रानी युवक भी था। वह महल के सुरक्षाकर्मियों के प्रधान का सेवक सा था। हमने उसे अपना-अपना स्वप्न सुनाया और उसने हमें स्वप्नों के अर्थ बताए।
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\v 13 उसके बाद जो हुआ वह ठीक वैसा ही था जैसा उसने बताया था। तू ने मुझे मेरे पद पर नियुक्त कर दिया और पकाने वाले को वैसे ही पेड़ पर लटका कर मार दिया। "
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\p
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\s5
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\v 14 यह सुनकर राजा ने सेवकों को भेज कर यूसुफ को बुलवाया। उन्होंने तुरन्त जाकर यूसुफ को कारावास से निकाला और बाल कटवा कर और वस्त्र बदल कर राजा के सामने उपस्थित किया।
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\v 15 राजा ने यूसुफ से कहा, "मैंने दो स्वप्न देखे हैं जिनका अर्थ बताने में कोई भी समर्थ नही है। किसी ने मुझे बताया है कि तू स्वप्न का अर्थ बता सकता है।"
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\v 16 परन्तु यूसुफ ने राजा से कहा, "नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता। यह तो परमेश्वर हैं जो स्वप्न का अर्थ जानते हैं, वे ही मुझे स्वप्न का अर्थ बताने की क्षमता देते हैं और इनका अर्थ कुछ अच्छा होगा।"
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\s5
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\v 17 राजा ने यूसुफ से कहा, "मेरे पहले स्वप्न में मैं नील नदी के तट पर खड़ा था।
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\v 18 अचानक वहाँ सात हष्ट पुष्ट गायें नील नदी से निकलीं और नदी के तट पर घास चरने लगीं।
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\s5
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\v 19 शीघ्र ही नदी से सात दुर्बल और सूखी हुई गायें भी निकलीं। मैंने संपूर्ण मिस्र में इतनी बदसूरत गायें कभी नहीं देखी थीं।
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\v 20 पतली बदसूरत गायों ने पहले आई हुए सात हष्ट पुष्ट गायों को खा लिया।
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\v 21 लेकिन कोई नहीं कह सकता था कि उन दुर्बल गायों ने उन हष्ट पुष्ट गायों को निगल लिया है क्योंकि वे पहले के समान पतली थीं। फिर मैं जाग गया।
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\p
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\s5
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\v 22 तब मैने एक और स्वप्न देखा था। मैंने अनाज की सात बालें देखी। वे अनाज की बालें भरी हुई, अच्छी और सुन्दर थीं और वे सभी एक ही अनाज की टहनी में लगी थीं।
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\v 23 मुझे आश्चर्य तब हुआ जब मैंने देखा कि एक ही अनाज के पीछे में से सात और बालें निकली। वे पतली थी और पूर्व दिशा की गर्म हवा से सूख गयी थी।
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\v 24 अनाज की पतली बालों ने सात अच्छी बालों को निगल लिया। मैंने जादूगरों को ये स्वपने बताया, लेकिन उनमें से कोई भी मुझे नहीं समझा सका कि इन स्वप्नों का क्या अर्थ है।"
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\p
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\s5
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\v 25 तब यूसुफ ने राजा से कहा, "तेरे दोनों स्वप्नों का अर्थ एक ही है। परमेश्वर तुझे स्वप्नों के द्वारा बता रहे है कि वह क्या करने वाले है।
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\v 26 सात हष्ट पुष्ट गायों का अर्थ है सात वर्ष और सात पकी हुई और भरी हुई बालों का अर्थ भी सात वर्ष है। दोनों स्वप्नों का एक ही अर्थ है।
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\v 27 सात दुर्बल गायों और सात सूखी हुई बालों का अर्थ है, अकाल के सात वर्ष।
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\v 28 वही होगा जैसा मैंने तुझे बताया है, क्योंकि परमेश्वर ने तुझे बताया है कि वे क्या करने वाले हैं।
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\v 29 यहाँ सात वर्ष पूरे मिस्र में अच्छी पैदावार और भोजन बहुत होगा।
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\v 30 इसके बाद के सात वर्ष अकाल के वर्ष होंगे। उस समय लोग समृद्धि के उन सात वर्षों को भूल जाएँगे क्योंकि वह अकाल जो आने वाला है पूरे देश का विनाश कर देगा।
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\v 31 भयंकर अकाल के कारण लोग पहले के प्रयाप्त भोजन को भूल जाएँगे।
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\v 32 परमेश्वर ने तुझे ये दो स्वप्न इसलिए दिखाए हैं कि उन्होंने दृढ़ निर्णय लिया है कि ऐसा ही हो और शीघ्र ऐसा ही करेंगे।
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\p
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\v 33 अब मैं सुझाव देता हूँँ कि तू किसी बुद्धिमान व्यक्ति को चुन ले जो उचित निर्णय ले सकता हो और उसे संपूर्ण देश की व्यवस्था का काम सौंप दे।
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\v 34 तू देश पर निरक्षकों को भी नियुक्त कर कि जब भोजन की बहुतायत का समय हो संपूर्ण फसल का पाँचवा भाग वह सात वर्ष तक बचाए। प्रत्येक नगर में इस प्रकार एकत्र किए हुए भोजन की निगरानी कर और उसे सुरक्षित कर।
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\v 35 इन सात वर्षों के दौरान उन्हें अनाज इकट्ठा करना होगा। जब अत्याधिक अनाज होगा प्रत्येक नगर के जमा किए गए अनाज की निगरानी और रक्षा करनी होगी।
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\v 36 यह अनाज जमा करके रखा जाना चाहिए ताकि इसे उन सात वर्षो के दौरान खाया जाए जब मिस्र में अकाल आएगा, ताकि इस देश के लोग भूख से न मरें।"
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\s5
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\v 37 राजा और उसके अधिकारियों को यह योजना अच्छी लगी।
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\v 38 तब राजा ने उनसे कहा, "क्या हमें यूसुफ जैसा कोई पुरूष मिल सकता है, ऐसा मनुष्य जिसे परमेश्वर ने अपना आत्मा दिया है?
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\v 39 तब राजा ने यूसुफ से कहा, "परमेश्वर ने तुझ पर यह सब प्रकाशित किया है इसलिए मुझे तो ऐसा लगता है कि तेरे समान बुद्धिमान और कोई नहीं है और ऐसा कोई नहीं जो तेरी तरह बुद्धि से निर्णय ले पाए।
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\v 40 अतः मैं तुझे अपने महल के सब कुछ का अधिकारी बनाऊंगा। मिस्र में जनता तेरे आदेशों का पालन करेगी। मैं केवल इसलिए अधिक अधिकार रख लेता हूँ क्योंकि मैं राजा हूँ।"
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\v 41 तब राजा ने यूसुफ से कहा, "अब मैं तुझे मिस्र के पूरे देश का अधिकारी बना रहा हूँँ।"
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\v 42 राजा ने अपनी उंगली से मुहर की अंगूठी उतार कर यूसुफ की उंगली में पहना दी। राजा ने उसे उत्तम वस्त्र पहना कर उसके गले में सोने का हार पहना दिया।
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\v 43 फिर यूसुफ के लिए रथ की व्यवस्था की कि उसे संपूर्ण मिस्र देश में घुमाकर प्रजा को यह दिखाएँ कि राजा के बाद दूसरा महत्वपूर्ण व्यक्ति वही है। जब यूसुफ रथ में सवार होकर जा रहा था तब सेवक लोगों को पुकार कर कहते थे, "प्रणाम करो!" इस प्रकार यूसुफ अपना काम देखने के लिए पूरे मिस्र में भ्रमण करने लगा।।
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\v 44 राजा ने यूसुफ से कहा, "मैं राजा अवश्य हूँ परन्तु संपूर्ण मिस्र में तेरी अनुमति के बिना कोई कुछ नहीं कर सकेगा।"
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\v 45 राजा ने यूसुफ को एक नया नाम दिया, सापनत-पानेह और ओन नगर के याजक पोतीपेरा की पुत्री, आसनत से उसका विवाह करा दिया। इस प्रकार यूसुफ संपूर्ण मिस्र देश में प्रतिष्ठित हो गया।
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\v 46 यूसुफ तीस वर्ष का था जब उसने मिस्र के राजा के लिए काम करना आरम्भ किया था। यूसुफ ने अपना काम करने के लिए, महल छोड़कर पूरे मिस्र देश में यात्राएँ कीं।
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\v 47 अगले पूरे सात वर्ष तक अतिशय उपज हुई, जिसके कारण भोजन सामग्री आवश्यकता से अत्याधिक हो गयी।
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\v 48 यूसुफ ने देश की संपूर्ण उपज का पाँचवां भाग एकत्र करके नगरों के गोदामों में सुरक्षित कर दिया। उसने हर एक नगर में कर्मियों को नियुक्त किया कि वहाँ के ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पन्न उपज को जमा करें।
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\v 49 यूसुफ ने अन्न के बड़े-बड़े भंडार बना लिए और अन्न इतना हो गया जितना समुद्र के तटीय रेत के कण। अन्न इतना अधिक हो गया था कि उन्होंने उसका लेखा रखना छोड़ दिया क्योंकि अन्न मापने से कहीं अधिक था।
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\s5
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\v 50 अकाल के सात वर्ष आरंभ होने से पहले यूसुफ की पत्नी आसनत ने दो पुत्रों को जन्म दिया।
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\v 51 यूसुफ ने बड़े पुत्र का नाम मनश्शे रखा, जो इब्रानी शब्द के समान लगता है जिसका अर्थ है, "भूलना" क्योंकि उसने कहा, "परमेश्वर ने मुझे अपने कष्ट और परिवार को भूलने में सहायता की है।"
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\v 52 उसने दूसरे पुत्र का नाम एप्रैम रखा जिसका अर्थ है, "संतान प्राप्ति" क्योंकि उसने कहा, "परमेश्वर ने मुझे इस देश में जहाँ मैंने कष्ट भोगा, मुझे संतान दी है।"
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\s5
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\v 53 बहुतायत अनाज के सात वर्षों का अंत हुआ।
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\v 54 तब सात वर्ष बाद अकाल के दिन शुरु हुए। यह ठीक वैसा ही हुआ जैसा यूसुफ ने कहा था। सारी भूमि में चारों ओर कहीं भी अन्न पैदा न हुआ। मिस्र में भी अन्न की उपज नहीं हुई थी लेकिन लोगों के पास खाने के लिए काफी था, क्योंकि यूसुफ ने अन्न जमा कर रखा था।
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\s5
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\v 55 जब प्रजा के लोगों की भोजन सामग्री समाप्त हो गई और उन्हें भूख लगी तब उन्होंने राजा से भोजन माँगा। राजा ने लोगों से कहा, "यूसुफ के पास जाओ और जैसा वह कहता है वैसा ही करो।"
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\p
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\v 56 जब अकाल के कारण देश की दुर्दशा होने लगी तब यूसुफ ने अपने सहकर्मियों से कहा कि वे गोदामों को खोल दें। तब उन्होंने मिस्र के लोगों को अनाज बेचा, क्योंकि पुरे मिस्र में अकाल बहुत भयंकर था।
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\v 57 आस-पास के कई देशों के लोग यूसुफ से अनाज खरीदने के लिए मिस्र आए, क्योंकि अकाल हर स्थान में बहुत भयंकर था।
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\s5
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\c 42
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\p
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\v 1 याकूब को जब यह समाचार मिला कि मिस्र में अन्न है और लोग जाकर खरीद सकते हैं तो उसने अपने पुत्रों से कहा, " तुम लोग यहाँ बैठ कर एक दूसरे की ओर क्यों देख रहे हो? हमें भी कुछ अनाज चाहिए!"
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\v 2 उसने उनसे कहा, "किसी ने मुझे बताया कि मिस्र में बिक्री के लिए अनाज है। वहाँ जाओ और हमारे लिए कुछ खरीद लाओ, ताकि हम जीवित रह सकें!"
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\p
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\v 3 यूसुफ के दस बड़े भाई कुछ अनाज खरीदने के लिए मिस्र गए।
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\v 4 लेकिन याकूब ने यूसुफ के छोटे भाई बिन्यामीन को भाइयो के साथ नहीं भेजा। वह डर गया था कि यूसुफ के साथ जो भयंकर घटना हुई उसके छोटे पुत्र के साथ भी वह न हो।
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\s5
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\v 5 तब याकूब के पुत्र अन्न खरीदने के लिए मिस्र गए। कनान से और भी लोग अन्न खरीदने वहाँ गए क्योंकि कनान में भी अकाल पड़ा था।
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\p
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\v 6 मिस्र देश का राज्यपाल यूसुफ ही था और वही सब लोगों को अन्न बेचता था। जो मिस्र और अन्य देशों से अन्न खरीदने के लिए आते थे । यूसुफ के भाई जब उसके पास आए तब उन्होंने उसे भूमि तक झुककर प्रणाम किया।
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\s5
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\v 7 जैसे ही यूसुफ ने अपने भाइयों को देखा तो उन्हें पहचान लिया परन्तु उसने जान बूझ कर नहीं पहचानने का नाटक करते हुए उनसे कठोरता से पूछा, " तुम लोग कहाँ से आए हो?" उनमें से एक ने उत्तर दिया, "हम लोग कनान देश से यहाँ अन्न खरीदने आए हैं।"
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\p
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\v 8 यद्यपि यूसुफ अपने भाइयों को पहचान गया था लेकिन वे उसे पहचान न पाए।
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\s5
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\v 9 यूसुफ को वर्षों पहले के अपने स्वप्न याद आए। परन्तु अभी वह उन पर प्रकट नहीं करना चाहता था कि वह उनका छोटा भाई यूसुफ है। उसने उन से कहा, " तुम लोग जासूस हो! तुम यह भेद लेने आए हो कि यदि तुम हमारे देश पर आक्रमण करोगे तो क्या हम स्वयं को बचाने में समर्थ हैं?"
|
||
|
\v 10 उनमें से एक ने उत्तर दिया, "नहीं, महोदय! हम तो केवल यहाँ अनाज खरीदने आए हैं।
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\v 11 हम सब एक ही पिता की संतान हैं। हम ईमानदार हैं, जासूस नहीं हैं।"
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\s5
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\v 12 उसने उनसे कहा, "मैं तुम पर विश्वास नहीं करता! तुम सिर्फ यह देखने के लिए आए हो कि हम पर हमला करने के बाद हम अपने आप को बचाने में समर्थ होंगे या नहीं!"
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\v 13 परन्तु उनमें से एक ने उत्तर दिया, "नहीं, यह सच नहीं है! मूल रूप से हम एक परिवार के बारह भाई हैं। हम सब एक ही पिता की संतान हैं। हम लोगों का सबसे छोटा भाई अभी भी हमारे पिता के साथ घर पर है और दूसरा भाई बहुत समय पहले मर गया।"
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\p
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\s5
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\v 14 यूसुफ ने उत्तर दिया, " तुम झूठ बोल रहे हो! मुझे लगता है जैसा मैंने तुम्हें कहा था तुम जासूस हो!
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\v 15 तुम्हारा सत्य जानने का एक ही उपाय है। राजा के जीवन की शपथ तुम जासूस ही हो। तुम यहाँ से जा नहीं सकते जब तक कि तुम्हारा सबसे छोटा भाई यहाँ न आए!
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\v 16 अपने में से एक को भेज कर अपने छोटे भाई को यहाँ ले आओ। शेष सब यहाँ कारावास में रहो। तभी मैं जान पाऊंगा कि तुम जो कह रहे हो वह सच है या नहीं। यदि ऐसा करने में तुम चूक गए तो राजा के जीवन की शपथ तुम निश्चय ही जासूस हो। "
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\v 17 तब यूसुफ ने उन्हें तीन दिनों के लिए कारावास में डाल दिया।
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\p
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\s5
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\v 18 उसके बाद तीसरे दिन यूसुफ कारावास में गया और उनसे कहा, "मैं परमेश्वर का भय मानता हूँ कि वे प्रतिज्ञा तोड़ने वाले को दण्ड देते हैं। इसलिए तुम मेरी बात मानों तो तुम जीवित रहोगे।
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\v 19 यदि तुम सच्चे मनुष्य हो तो तुम में से एक भाई यहाँ कारावास में रहे और शेष सभी अन्न लेकर घर जाओ क्योंकि अकाल के कारण वे भूखे होंगे।
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\v 20 यदि तुम यहाँ आओ तो अपने छोटे भाई को अवश्य लाना जिससे कि तुम अपनी बात को जो तुम ने मुझसे कही है, सत्य सिद्ध कर पाओ और मैं तुम्हें मृत्यु दण्ड न दूं।" उन्होंने उसकी बात मान ली।
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\v 21 उन्होंने एक दूसरे से कहा, "निश्चय ही यह यूसुफ के साथ किए गए हमारे दुष्कर्मों का परिणाम है। वह हमसे रो-रो कर विनती करता रहा परन्तु उसके जीवन को घोर संकट में देख कर भी हमने उस पर दया नहीं की। इसी के कारण हम भी अब संकट में पड़ गए हैं।"
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\p
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\v 22 रूबेन ने उनसे कहा, "मैं ने तुमसे कहा था कि उस लड़के को हानि मत पहुँचाओ लेकिन तुम ने मेरी बात नहीं सुनी। अब हम उसकी हत्या का दण्ड भोग रहे हैं।"
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\v 23 जब वे यूसुफ से बातें कर रहे थे तो वे दुभाषिये के माध्यम से बातें करते थे लेकिन वे आपस में अपनी मातृभाषा में बातें करते थे और यह नहीं जानते थे कि यूसुफ उनकी बातें समझ रहा था।
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||
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\v 24 उन्होंने जो कुछ कहा, उससे यूसुफ को यह अनुभव हुआ कि उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने यूसुफ के साथ कई वर्षो पहले जो किया था वह गलत था इसे उन्होंने स्वीकार कर लिया है। वह जानता था कि वह अपने आपको रोने से रोक नहीं पाएगा और वह उनके सामने रोना नहीं चाहता था इसलिए यूसुफ वहाँ से निकल गया और कमरे में जा कर रोने लगा। बाद में वह उनके पास लौट आया और फिर यूसुफ ने उनसे बात की। तब उसने शिमोन को चुन लिया कि उसे उनके सामने ही नौकर से उसे बन्दी बना लेने को कहा। उसने शिमोन को कारावास में डाल दिया और दूसरों से कहा कि वे जा सकते हैं।
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\v 25 यूसुफ ने आज्ञा दी कि उनके बोरे अनाज से भर दिए जाएँ और उनका पैसा भी प्रत्येक के बोरे के ऊपर रख दिया जाए। उन्हें मार्ग के लिए भोजन भी दिया जाए और उसके भाइयों ने यूसुफ के सेवकों से भोजन प्राप्त किया।
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\v 26 उन्होंने अपना-अपना बोरा गदहों पर लादा और वहाँ से निकल गए।
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\v 27 उस स्थान पर जहाँ वे रात को सोने के लिए रुके थे, उनमें से एक ने अपने गदहे के लिए कुछ अनाज निकालने के लिए अपना बोरा खोला। अपने बोरे में पैसा रखा देख कर चकित हो गया।
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\v 28 आश्चर्यचकित स्वर में उसने अपने भाइयों से कहा, "किसी ने मेरा पैसा मुझे लौटा दिया है, वह मेरे बोरे में ही है। वे भय से कांपने लगे और आपस में कहा, "परमेश्वर ने हमारे साथ यह क्या किया है?"
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\v 29 जब वे कनान देश में अपने पिता के पास लौट आए, तो उन्होंने सब कुछ अपने पिता याकूब को बताया। उनमें से एक ने कहा,
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\v 30 "जिस व्यक्ति के पास मिस्र की सारी भूमि का नियंत्रण है, वह हमारे साथ बहुत कठोरता से बातें कर रहा था। उसने हमारे साथ ऐसा व्यवहार किया जैसे हम उसके देश की जासूसी करने गए थे।
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\v 31 लेकिन हमने उससे कहा, "हम जासूस नहीं ईमानदार व्यक्ति हैं।
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\v 32 हम वास्तव में एक ही पिता के बारह पुत्र हैं। एक भाई तो मर गया है और सब से छोटा भाई पिता ही के पास कनान में है।'
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\s5
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\v 33 परन्तु वहाँ के राज्यपाल ने हमारा विश्वास नहीं किया और हमसे कहा, "मैं कैसे जानूँगा की तुम सभी ईमानदार हो उसे प्रमाणित करने के लिए तुम में से एक यहाँ रह जाए और शेष जन अन्न लेकर अपने परिवार में जाओ क्योंकि वे भूख से परेशान होंगे।
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|
\v 34 परन्तु जब तुम वापस आओगे, तो अपने सबसे छोटे भाई को मेरे पास लाओ, ताकि मैं जान सकूँ कि तुम जासूस नहीं हो बल्कि तुम ईमानदार व्यक्ति हो। तब मैं तुम्हारे इस भाई को मुक्त कर दूँगा और तुम इस देश में जो चाहे खरीद लेना।'"
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\p
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\s5
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\v 35 और जब वे अपने-अपने बोरे खाली कर रहे थे तब बोरों में अपने-अपने पैसों की थैली देख आश्चर्यचकित हो गए। जब उन्होंने और उनके पिता ने पैसों की थैली देखि तब वे डर भी गये।
|
||
|
\v 36 उनके पिता याकूब ने उनसे कहा, " तुम ने मेरे दो पुत्रों को मुझसे अलग कर दिया है। यूसुफ मर चुका है और शिमोन भी घर नहीं लौटा और अब तुम बिन्यामीन को मुझ से दूर ले जाना चाहते हो। इन सब बातों से तो मुझे ही कष्ट हो रहा है।"
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\p
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\s5
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\v 37 रूबेन ने अपने पिता से कहा, "मैं बिन्यामीन को लौटा कर लाऊंगा। मैं उसकी देख-रेख करूँगा। यदि मैं उसे लौटा कर नहीं लाया तो तुम मेरे दोनों पुत्रों को मरवा देना।"
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\v 38 परन्तु याकूब ने कहा, "मैं अपने पुत्र को तुम्हारे साथ वहाँ नहीं जाने दूँगा। उस का बड़ा भाई मर चुका है और वही मेरी पत्नी राहेल की एकमात्र निशानी है। यदि यात्रा में उसे हानि हुई तो मैं इस बुढ़ापे में शोक से रो-रो कर मर जाऊँगा।"
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\s5
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\c 43
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\p
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\v 1 कनान में अकाल और भी अधिक भयंकर हो गया।
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\v 2 आखिरकार, जब याकूब के परिवार में अन्न समाप्त हो गया तब याकूब ने अपने पुत्रों से कहा, "मिस्र जाकर हमारे लिए और अन्न ले आओ।"
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\s5
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\v 3 लेकिन यहूदा ने उससे कहा, "जिसने हमें अन्न बेचा था, उसने कठोर चेतावनी दी थी, 'यदि तुम आओ और तुम्हारा छोटा भाई तुम्हारे साथ नहीं होगा तो मैं तुम सब से नही मिलूँगा।'
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\v 4 अतः यदि तू हमारे छोटे भाई को हमारे साथ भेजे तो हम मिस्र से अपने लिए अनाज खरीद सकेंगे।
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\v 5 परन्तु यदि तू उसे नहीं भेजेगा तो हम वहाँ नहीं जाएँगे क्योंकि उस व्यक्ति ने हमसे कहा है, 'यदि तुम्हारा छोटा भाई साथ न हो तो मेरे सामने मत आना।' "
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\s5
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\v 6 याकूब ने उनसे कहा, " तुम ने मेरे लिए यह संकट क्यों उत्पन्न किया कि उसे बता दिया कि तुम्हारा एक छोटा भाई भी है?"
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\v 7 उनमें से एक ने उत्तर दिया, "उसने हमारे और हमारे परिवार के विषय में पूरी पूछताछ की थी। उसने पूछा था, 'क्या तुम्हारा पिता जीवित है? क्या तुम्हारे और भी भाई हैं? हमें तो उसके प्रश्नों के उत्तर देने ही थे। हमें क्या मालूम था कि वह कहेगा, "अगली बार जब तुम आओगे तो तुम्हारे साथ तुम्हारा भाई भी हो।'"
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\v 8 तब यहूदा ने अपने पिता से कहा, "उसको हमारे साथ भेज दे कि हम जायें और अन्न ले आयें कि हम और तू और हमारी सन्तान भूख से मर न जाये।
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\v 9 मैं विश्वास दिलाता हूँ कि वह सुरक्षित रहेगा। मैं इसका उत्तरदायित्व लेता हूँ। यदि मैं उसे तेरे पास लौटाकर न लाऊँ तो तू सदा के लिए मुझे दोषी ठहरा सकता है।
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\v 10 यदि हमने इतना समय बर्बाद नहीं किया होता, तो हम अब तक वहाँ दो बार जाकर लौट आते।"
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\v 11 तब उनके पिता याकूब ने उन से कहा, "यदि कोई दूसरा रास्ता नहीं है, तो ऐसा ही करो: इस देश में उपजने वाले कुछ श्रेष्ठ सामानों को अपने बोरे में रखो, और उसे उपहार के रूप में उस व्यक्ति को दो। कुछ बालसान, मधु, सुगन्ध द्रव्य, गन्धरस, पिस्ते और बादाम आदि भी रखो।
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\v 12 इस समय, पहले से दुगुना धन भी ले लो क्योंकि पिछली बार देने के बाद पैसे लौटा दिये गये थे। तुम्हें उनको पिछली बार रखी गई चाँदी भी वापस करनी है जो तुम्हारे बोरो में रख दी गयी थी। संभव है कि गलती से तुम्हारे बोरो में रखी गई हो।
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\s5
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\v 13 अपने सबसे छोटे भाई को ले लो और उस व्यक्ति के पास वापस जाओ।
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\v 14 मैं प्रार्थना करूँगा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर उस पुरुष के मन में तुम्हारे लिए दया डाल दे कि वह तुम्हारे उस भाई को और बिन्यामीन को तुम्हारे साथ लौटकर आने दे और यदि मेरे पुत्र मुझसे छीन लिए गए तो मैं निर्वंश हो जाऊँगा।"
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\v 15 याकूब ने जो कहा था उसके अनुसार उन्होंने उपहार लिए और अन्न के मूल्य से दो गुणा अधिक राशि लेकर, बिन्यामीन को भी साथ लेकर वे शीघ्रता से मिस्र गए। वहाँ पहुँच कर वे यूसुफ के सामने उपस्थित हुए।
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\v 16 जब यूसुफ ने बिन्यामीन को देखा तो अपने घर के प्रबन्धक से कहा, "इन लोगों को मेरे घर ले जा और एक पशु को मार और भोजन तैयार कर क्योंकि मैं चाहता हूँ कि वे दिन का भोजन मेरे साथ करें।" और उसने उसे समझाया कि उन्हें भोजन के लिए किस क्रम में बैठाया जाएगा।
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\v 17 उस सेवक ने जैसा यूसुफ ने कहा था वैसा ही किया। वह उन्हें यूसुफ के घर में ले गया।
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\v 18 लेकिन वे डर गए क्योंकि वह उन्हें यूसुफ के घर के अन्दर ले जा रहा था। वे सोच रहे थे, "वह हमें उस चाँदी के कारण वहाँ ले जा रहा है जो पिछली बार हमारे बोरों में थी। जब हम भोजन करने बैठेंगे तब वह हम पर अपने दासों से आक्रमण कराएगा और हमें पकडकर दास बनने के लिए विवश करेगा और हमारे गधे भी छीन लेगा।"
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\v 19 वे यूसुफ के घर के प्रबन्धक के साथ यूसुफ के घर गए। जब वे घर के प्रवेश द्वार पर पहुँचे,
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\v 20 उन भाइयों में से एक ने उससे कहा, " महोदय, कृपया मेरी बात सुन। हम पहले यहाँ आए थे और हमने कुछ अनाज खरीदा था।
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\v 21 हम घर लौटने की यात्रा करते समय रात में जब रुके और हमने अपने बोरे खोले, तब हम यह देखकर आश्चर्यचकित हुए कि हम सभी के बोरे में उतने ही चाँदी के सिक्के थे जो हमने अनाज की कीमत के रूप में दिया था। अब हम वह कीमत भी वापस अपने साथ लाये हैं।
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\v 22 इस बार हम अन्न खरीदने के लिए और अधिक चाँदी लाये हैं। हम नहीं जानते कि हमारे बोरे में चाँदी किसने रखी।"
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\v 23 यूसुफ के सेवक ने उत्तर दिया, "डरो नहीं, मुझ पर विश्वास करो। जो चाँदी तुम ले आए हो वह मुझे प्राप्त हो गयी तुम्हारा पिता जिन परमेश्वर की आराधना करता था उन्हीं परमेश्वर ने तुम लोगों के धन को तुम्हारी बोरियों में भेंट के रूप में रखा होगा।" और वह शिमोन को कारावास से निकाल कर उनके पास ले आया।
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\v 24 वह उन्हें यूसुफ के घर में ले गया और उन्हें पांव धोने के लिए जल दिया तथा उनके गदहों के लिए भी चारा दिया।
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\v 25 उसने उनसे कहा कि वे दोपहर में यूसुफ के साथ भोजन करेंगे। उन लोगों ने यूसुफ के लिए उपहार तैयार किये ताकि जब यूसुफ आए तो उसे दें।
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\v 26 जब यूसुफ घर आया तब उन्होंने उसे वह उपहार दिए और उसके सामने धरती पर झुककर प्रणाम किया।
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\v 27 यूसुफ ने उनकी कुशलता पूछी और पिता के विषय में भी जानकारी प्राप्त की क्या तुम्हारा बुढा पिता स्वस्थ है जिसके विषय में तुम ने पहले बताया था, क्या वह अब तक जीवित है?"
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\v 28 उनमें से एक ने कहा, "हाँ तेरा दास, हमारा पिता जीवित है और वह भला चंगा है। पुनः यूसुफ के सामने झुककर उन्होंने प्रणाम किया।
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\v 29 तब उसने बिन्यामीन को जो उसकी माता का दूसरा पुत्र था, देखा और उनसे पूछा, "क्या यही तुम्हारा वह छोटा भाई है जिसके विषय में तुम ने मुझसे कहा था?" उन्होंने कहा, "हाँ"। तब उसने बिन्यामीन से कहा, "हे बिन्यामीन, मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वे तुझ पर दया करें।"
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\s5
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\v 30 यूसुफ शीघ्र ही कमरे से निकल गया। उसे लगा कि वह रोने ही वाला है। वह अपने छोटे भाई के प्रति भावुक हो गया था। वह अपने निजी कमरे में गया और वहाँ रोया।
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\v 31 इसके पश्चात उसने अपने आँसू पोंछ लिए और अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण करके बाहर आया और अपने सेवक से कहा, "भोजन परोस।"
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\v 32 उन दिनों मिस्र वासियों के लिए इब्रानियों के साथ भोजन करना अपमानजनक था इसलिए सेवकों ने यूसुफ के लिए अलग भोजन परोसा और साथ बैठने वाले मिस्रियों के लिए अलग तथा यूसुफ के भाइयों के लिए अलग-अलग भोजन परोसा।
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\v 33 उनके भाई यह देखकर आश्चर्यचकित हुए कि उनके बैठने के स्थान उनकी आयु के क्रम अनुसार रखे गए थे, सबसे छोटे से लेकर सबसे बड़े तक।
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\v 34 उनके हिस्से का भोजन यूसुफ की मेज से लेकर परोसा गया, और बिन्यामीन को अन्य भाइयों से पाँच गुणा अधिक भोजन दिया गया। इस प्रकार उन्होंने यूसुफ के साथ भोजन किया और दाखमधु पिया और वे आनन्द से भर गए।
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\c 44
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\v 1 जब उसके भाई घर लौटने लगे तब यूसुफ ने अपने प्रबन्धक से कहा, कि “उनके बोरों को उतना भर दे जितना उनके गदहे ढो सकते है। प्रत्येक व्यक्ति की बोरी के ऊपर वह चाँदी भी रख दे जो उन्होंने अनाज के लिए भुगतान की थी।
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\v 2 और मेरा चाँदी का कटोरा सबसे छोटे भाई के बोरे के ऊपरी भाग में उसकी चाँदी के साथ रख दे।" और उसके सेवक ने वैसा ही किया।
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\v 3 अगले दिन सुबह वे अपने गदहों के साथ घर भेज दिए गए।
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\v 4 जब वे नगर से दूर निकल गए तब यूसुफ ने अपने प्रबन्धक से कहा, "उनका शीघ्र पीछा कर और जब तू उनको पकड़े तो उनसे कहना, "हमने तो तुम्हारे साथ भलाई की परन्तु तुम ने भलाई का बदला बुराई से क्यों दिया?
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\v 5 तुम ने वह कटोरा चुराया है जिसमें मेरे स्वामी पीते थे, यह वह कटोरा है जिसका उपयोग वे जानने के लिए करते हैं जिसे कोई नहीं जानता परन्तु तुम ने जो किया वह बहुत अधिक दुष्टता है! '"
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\v 6 जब दास ने उन्हें पकड़ा तब उनसे वही कहा जैसा यूसुफ ने उसे कहा था।
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\v 7 परन्तु उनमें से एक ने प्रत्युत्तर में कहा, "मोहोदय, तू ऐसा क्यों कह रहा है? हम तेरे दास हैं, हम ऐसा कुछ कभी नहीं करेंगे।
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\v 8 हम तो कनान से वह चाँदी भी लौटा लाए थे जो हमें बोरों के अन्दर मिली थी। निश्चय ही हम तेरे स्वामी के घर से चाँदी या सोना नहीं चुरा सकते।
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\v 9 यदि तुझे हम में से किसी के पास वह कटोरा मिले तो उसे मृत्यु-दण्ड दे और हममें से बाकी लोग तेरे दास बन जाएँगे।"
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\p
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\v 10 उसने कहा, "ठीक है, मैं वैसा ही करूँगा परन्तु जिसके पास कटोरा मिलेगा वह मारा नहीं जाएगा। वह दास बना लिया जाएगा और शेष तुम सब घर लौट सकोगे।"
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\v 11 उन्होंने अपना-अपना बोरा गदहों पर से उतारा और खोला।
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\v 12 तब सेवक ने उनके बोरों में वह कटोरा खोजना आरम्भ किया। और बड़े से लेकर छोटे तक के बोरों की खोज की तो वह कटोरा बिन्यामीन के बोरे में निकला और उसने वह कटोरा सबको दिखाया।
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\v 13 उसके भाइयों ने निराशा के कारण अपने कपड़े फाड़े। उन्होंने गदहे पर बोरे फिर से लाद लिए और वापस नगर लौट आए।
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\v 14 जब यहूदा और उसके बड़े और छोटे भाई यूसुफ के घर पहुँचे तब यूसुफ वहीं था। यूसुफ के सेवक ने उसे पूरा वृत्तान्त सुनाया। सब भाइयों ने यूसुफ के पैर पकड़ लिए।
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\v 15 उसने उनसे कहा, " तुम ने ऐसा क्यों किया? क्या तुम नहीं जानते कि मेरे जैसा मनुष्य अज्ञात बातों को जान लेता है?"
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\s5
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\v 16 यहूदा ने उत्तर दिया, "महोदय, हम क्या कह सकते हैं? हम कैसे साबित कर सकते हैं कि हम निर्दोष हैं? परमेश्वर ने हमें हमारे वर्षों पुराने पाप का बदला दिया है। हम और जिसके पास कटोरा निकला है तेरे दास हो गए हैं।"
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||
|
\v 17 परन्तु यूसुफ ने उत्तर दिया, "नहीं, मैं ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता। केवल जिसके पास मेरा कटोरा निकला है वही मेरा दास होगा। बाकी तुम सभी अपने पिता के पास शाँति से लौट सकते हो।"
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\v 18 तब यहूदा यूसुफ के पास आया और कहा, "महोदय, कृपया मुझे तुझ से कुछ कहने दे। तू राजा के समान है अतः मेरी हत्या की आज्ञा दे सकता है परन्तु तुझ से इस प्रकार बातें करने के कारण क्रोधित न हो।
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\v 19 तू ने हमसे पूछा, क्या तुम्हारा पिता अब भी जीवित है और तुम्हारा और कोई भाई भी है?"
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\v 20 हमने उत्तर दिया, 'हाँ, हमारा पिता जीवित है और वह बहुत वृद्ध है और हमारे पिता की वृद्धावस्था का एक पुत्र भी है और उसका बड़ा भाई मर चुका है। तो अब यह सबसे छोटा पुत्र जो जीवित है वह अपनी माता की एकमात्र निशानी है जिससे हमारा पिता अत्यधिक प्रेम करता है।'
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||
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\v 21 तब हमसे तू ने कहा, "अगली बार जब तुम आओ तो अपने छोटे भाई को अवश्य साथ लाना ताकि मैं उसे देख सकूँ।'
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||
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\v 22 हमने तुझसे कहा, 'नहीं, हम ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि लड़का अपने पिता को नहीं छोड़ सकता है। यदि वह अपने पिता को छोड़ देता है, तो उसका पिता दुःख के कारण मर जाएगा।'
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\s5
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\v 23 परन्तु तूने हमसे कहा था, 'यदि तुम्हारा सबसे छोटा भाई तुम्हारे साथ नहीं आएगा तो मैं तुमसे नहीं मिलूँगा।'
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\v 24 जब हम अपने पिता के पास लौट आए, हमने अपने पिता से तेरी बात कह दी थी।
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||
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\v 25 कई महीनों बाद हमारे पिता ने कहा, 'मिस्र वापस जाओ और कुछ अनाज खरीद कर लाओ!'
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|
\v 26 लेकिन 'हम लोगों ने अपने पिता से कहा, 'हम लोग अपने सबसे छोटे भाई के बिना नहीं जा सकते। हम उस व्यक्ति को देख ही नही सकते जो अनाज बेचता है यदि हमारा सबसे छोटा भाई हमारे साथ नहीं है।'
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\s5
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\v 27 हमारे पिता ने कहा, ' तुम जानते हो कि मेरी पत्नी राहेल ने दो ही पुत्रों को जन्म दिया था।
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\v 28 जिनमें से एक गायब हो गया। उसके लिए मैंने सोचा कि किसी वन पशु ने उसे फाड़ खाया है। मैंने उसे फिर कभी नहीं देखा।
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\v 29 यदि तुम इस दूसरे को भी मुझसे ले लेते हो और इसे कुछ भी नुकसान पहुँचता है, तो मुझे इतना दुःख होगा कि मैं मर जाऊँगा।'
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\p
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\s5
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\v 30 तो कृपया सुन। मेरा पिता तब जीवित रहेगा जब उनका सबसे छोटा पुत्र जीवित है।
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\v 31 जब वह देखेगा कि छोटा लड़का हम लोगों के साथ नहीं लौटा है तो वे मर जाएगा और यह हम लोगों का दोष होगा। कि हम लोग अपने बूढ़े पिता के घोर दुःख का कारण बने कि वह मर गया ।
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|
\v 32 मैंने इसके सुरक्षित लौटने का वचन दिया है। मैंने अपने पिता से कहा, " तू यही चाहता है की मैंने जो वचन दिया है वही करूं यदि मैं उसे तेरे पास लौटाकर न लाऊँ तो तू जीवनभर मुझे उसे ना लौटा लाने के लिए दोषी ठहरा सकता है।"
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\p
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\s5
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\v 33 अतः ऐसी कृपा कर कि इस बालक के स्थान पर मुझे ही आपना दास बना ले और इस बालक को अपने भाइयों के साथ मेरे पिता के पास लौटने दे।
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\v 34 इस बालक के बिना मैं अपने पिता के पास नहीं लौट सकता। मैं अपने पिता का दुःख देख नहीं पाऊँगा।"
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\s5
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\c 45
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\p
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\v 1 तब यूसुफ अपनी भावनाओं को और रोक नहीं सका। वह वहाँ उपस्थित सभी अपने सेवकों के सामने रोना नहीं चाहता था। इसलिए उसने ऊँचे स्वर में कहा, "इन सब को बाहर निकाल दो।" जब सब मिस्री बाहर चले गए तब यूसुफ ने अपने भाइयों पर प्रकट किया की वह कौन है।
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||
|
\v 2 वह इतनी जोर से रो रहा था, कि बाहर के सब लोगों ने भी सुना। यहाँ तक कि राजा के महल के लोगों ने उसका रोना सुना।
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||
|
\v 3 यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा, "मैं यूसुफ हूँँ! क्या हमारा पिता अभी भी जीवित है?" किन्तु भाई उसको उत्तर नहीं दे सके। क्योंकि जो कुछ उसने कहा उससे वे डर गये थे।
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\v 4 तब यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा, "मेरे पास आओ!" जब वे उसके निकट आए, तो उसने कहा, "मैं तुम्हारा भाई यूसुफ हूँ। मैं वहीं हूँ जिसे तुम ने व्यापारियों के हाथ बेच दिया था और वो मुझे लेकर मिस्र आ गए थे।
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||
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\v 5 परन्तु अब परेशान न हो, और अपने आप पर क्रोध मत करो कि तुम ने मुझे दास होने के लिए बेच दिया था। परमेश्वर ने मुझे तुमसे पहले यहाँ भेज दिया था कि तुम्हें अकाल में मरने से बचा लूँ।
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\v 6 इस देश में दो वर्ष से अकाल है और यह पाँच वर्ष तक और रहेगा। इन दिनों कोई भी यहाँ फसल नहीं उगा सकता और यहाँ कोई फसल नहीं होगी की काटी जा सके।
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\v 7 परमेश्वर ने मुझे तुम सब को भुखमरी से बचाने के लिए और तुम्हारे वंशजों को जीवित रखने के लिए ही यहाँ पहले भेज दिया था।
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\v 8 इसलिए, मुझे यहाँ भेजने वाले तुम नहीं परमेश्वर हैं। उन्होंने मुझे राजा के पिता के समान इस देश में रखा है। ताकि मैं राजा के महल की हर वस्तु का प्रभारी रहूँ और मिस्र में प्रत्येक व्यक्ति का शासक बनूँ!
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\v 9 अब मेरे पिता के पास जल्दी लौटकर उससे कहो, 'तेरा पुत्र यूसुफ यही कहता है, "परमेश्वर ने मुझे सम्पूर्ण मिस्र देश का राज्यपाल बना दिया है। इसलिए तुरन्त मेरे पास आ जाओ!
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\v 10 तुम गोशेन देश में रह सकते हो। तुम और तुम्हारी संतान और तुम्हारी संतानों की संतान, तुम्हारी भेड़ बकरियाँ, गाय बैल और तुम्हारा सब कुछ मेरे पास रहेगा।
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||
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\v 11 क्योंकि अकाल के पाँच वर्ष और शेष हैं, मैं सुनिश्चित करूँगा कि तुम्हारा पालन-पोषण किया जाए। यदि तुम यहाँ नहीं आओगे तो तुम और तुम्हारा परिवार तथा तुम्हारे सब दास-दासियाँ भूख से मर जाएँगे।"
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\v 12 यदि तुम और बिन्यामीन भी ध्यान से देखो तब तुम सभी जान सकोगे कि मैं जो तुमसे बातें कर रहा हूँ, मैं वास्तव में यूसुफ ही हूँ।
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\v 13 जाओ और मेरे पिता को बताओ कि यहाँ मिस्र में मेरी कैसी प्रतिष्ठा है और जो कुछ तुम ने देखा है उसका उससे वर्णन करो। मेरे पिता को यहाँ शीघ्र ले आओ।"
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\p
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\s5
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\v 14 तब उसने अपनी बाँहें फैलाकर अपने छोटे भाई बिन्यामीन को गले लगाया और रोया और बिन्यामीन भी उसके गले लग कर रोया।
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\v 15 फिर उसने अपने बड़े भाइयों के गालों को चूमा, और रोया। उसके बाद, सब भाई यूसुफ से बातें करने लगे।
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\s5
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\v 16 किसी ने राजा को समाचार दिया कि यूसुफ के भाई आए हैं, तो राजा और उसके सब कर्मचारी बहुत प्रसन्न हुए।
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\v 17 राजा ने यूसुफ से कहा, "अपने भाइयों से कह, 'अपने पशुओं पर अन्न लाद कर कनान जाएँ।
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\v 18 फिर वे अपने पिता और अपने परिवारों को यहाँ वापस लाएँ। मैं उन्हें मिस्र की सर्वोत्तम भूमि दूँगा और सब से उत्तम भोजन जो यहाँ का है, उन्हें दिया जाएगा।'
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\s5
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\v 19 अपने भाइयों से यह भी कह, 'मिस्र देश से गाड़ियाँ ले जाओ और अपनी स्त्रियों और बच्चों को और अपने पिता को लेकर शीघ्र ही मिस्र आ जाओ।
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\v 20 अपनी धन संपदा को लाने की चिन्ता मत करना क्योंकि मिस्र की सर्वोत्तम वस्तुएँ तुम्हारी होंगी। इसलिए तुम्हें कनान से कुछ भी लाने की आवश्यकता नहीं है।"
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\s5
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\v 21 याकूब के पुत्रों ने राजा के आदेश के अनुसार किया। यूसुफ ने उन्हें राजा के आदेश के अनुसार गाड़ियाँ और मार्ग के लिए भोजन दिया।
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\v 22 उसने उनमें से हर एक को नए वस्त्र दिए परन्तु बिन्यामीन को उसने पाँच जोड़ी नए वस्त्र और चाँदी के तीन सौ टुकड़े दिए।
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\v 23 अपने पिता के लिए उसने जो भेजा यह उसका विवरण है: मिस्र की सर्वोत्तम वस्तुओं से लदे दस गदहे और अन्न, रोटी और मिस्र की यात्रा हेतु पिता के लिए भोजन से लदी दस गदहियाँ।
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\v 24 तब उसने अपने भाइयों को यह कहते हुए विदा किया कि, "रास्ते में झगड़ा मत करना!"
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\p
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\v 25 इसलिए सभी भाई मिस्र से निकले और कनान देश में अपने पिता याकूब के पास आए।
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\v 26 उनमें से एक ने पिता को बताया, "यूसुफ अभी भी जीवित है! वास्तव में, वह पूरे मिस्र का राज्यपाल है!" याकूब आश्चर्यचकित हुआ और वह विश्वास नहीं कर सका कि यह सच है।
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\v 27 उन्होंने उसे वे सब बातें बताईं जो यूसुफ ने उनसे कहीं थी। उसने वे गाड़ियाँ भी देखीं जो यूसुफ ने उसे लाने के लिए और उसके परिवार और सम्पति के लिए भेजी थीं। तब याकूब सदमे से बाहर निकला।
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||
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\v 28 उसने कहा, "मेरे लिए तुम्हारी ये बातें विश्वास दिलाने के लिए पर्याप्त हैं कि मेरा पुत्र यूसुफ अभी भी जीवित है, और मैं मरने से पहले उसे देख सकूँगा!"
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\v 1 तब याकूब अपनी सारी सम्पति और अपने पूरे परिवार के साथ वहाँ से चल पड़ा। जब वह बेर्शेबा पहुँचा तब उसने परमेश्वर के लिए बलिदान चढ़ाया जिनकी आराधना उसका पिता इसहाक करता था।
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\v 2 उस रात, परमेश्वर ने दर्शन देकर याकूब से कहा, "याकूब! याकूब!" उसने उत्तर दिया, "मैं यहाँ हूँँ!"
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\v 3 परमेश्वर ने कहा, "मैं वह परमेश्वर हूँ जिसकी आराधना तेरा पिता करता था। मिस्र जाने से मत डर। मैं तेरे वंश को बहुत बढ़ाऊँगा और वे वहाँ एक बड़ी जाति बन जाएँगे।
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\v 4 मैं तेरे साथ मिस्र जाऊँगा, और बाद में मैं तेरे वंशजों को फिर कनान में लाऊँगा। तेरे मरने के समय यूसुफ तेरे साथ होगा।"
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\v 5 तब याकूब बेर्शेबा से निकला। उसके पुत्रों ने अपने पिता को, अपनी पत्नियों और बच्चों को राजा द्वारा भेजी गई गाड़ियों में सवार किया और चल पड़े।
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\v 6 इस प्रकार याकूब और उसका पूरा परिवार मिस्र गया। उन्होंने अपने साथ अपने सारे पशुओं और अन्य सभी संपत्तियाँ लीं जो उन्होंने कनान में प्राप्त की थीं।
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\v 7 यह इस्राएल के उन पुत्रों, पुत्रियों, पोते-पोतियों के और परिवारों के नाम हैं जो उसके साथ मिस्र गए।
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\v 8 यह याकूब के परिवार के सदस्यों के नामों की एक सूची है जो उनके साथ मिस्र गए थे: रूबेन याकूब का पहला पुत्र था।
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\v 9 रूबेन के पुत्र थे: हनोक, पल्लू, हेस्रोन और कर्मी ।
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\v 10 शिमोन के पुत्र: यमूएल, यामीन, ओहद, याकीन, सोहर और शाऊल। शाऊल कनानी पत्नी से पैदा हुआ था।
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\v 11 लेवी के पुत्र: गेर्शोन, कहात और मरारी।
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\s5
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\v 12 यहूदा के पुत्र: एर, ओनान, शेला, पेरेस और जेरह। (उसके अन्य पुत्र, एर और ओनान कनान में रहते समय मर गये थे।) पेरेस के पुत्र: हेस्रोन और हामूल।
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\v 13 इस्साकार और उसके पुत्र तोला, पुब्बा, योब और शिम्रोन।
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\v 14 जबूलून, और उसके पुत्र सेरेद, एलोन और यहलेल।
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\v 15 याकूब के ये पुत्र पद्दनराम में लिआ से जन्मे थे और उसकी पुत्री दीना भी थी। कुल पुत्र पुत्रियाँ तैंतीस थे।
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\v 16 गाद और उसके पुत्र सिय्योन हाग्गी, शूनी, एसबोन, एरी, अरोदी और अरेली।
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\v 17 आशेर और उसके पुत्र यिम्ना, यिश्बा, यिस्बी और बरीआ तथा उसकी पुत्री सेरह। बरीआ के पुत्र हेबेर और मल्कीएल।
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\v 18 (ये सब याकूब और लिआ के पिता द्वारा लिआ को दी गई दासी से उत्पन्न हुए थे। ये कुल सोलह जन थे।)
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\v 19 याकूब की पत्नी राहेल के पुत्र यूसुफ और बिन्यामीन।
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\v 20 (यूसुफ के पुत्र एप्रैम और मनश्शे मिस्र नहीं गए क्योंकि उनका जन्म तो मिस्र ही में हुआ था। उनकी माता का नाम आसनत था जो ओन नगर के याजक पोतीपेरा की पुत्री थी।)
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\v 21 बिन्यामीन, और उसके पुत्र बेला, बेकेर, अश्बेल, गेरा, नामान, एही, रोश, मुप्पीम, हुप्पीम और अर्द थे।
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\v 22 (ये राहेल और याकूब के पुत्र और पोते थे। वे चौदह लोग थे।)
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\v 23 दान और उसका पुत्र हूशीम।
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\v 24 नप्ताली और उसके पुत्रयहसेल, गूनी, सेसेर और शिल्लेम।
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\v 25 (ये याकूब और बिल्हा के पुत्र थे, दास लड़की, जिसे लाबान ने अपनी पुत्री राहेल को दिया था। वे सात लोग थे।)
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\v 26 याकूब का वंश जो उसके साथ मिस्र गया उनकी संख्या कुल छियासठ थी। उसके पुत्रों की पत्नियों की गणना नहीं की गई है।।
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\v 27 याकूब और यूसुफ और यूसुफ के दोनों पुत्र जिनका जन्म मिस्र में हुआ था उनकी भी गणना करें तो मिस्र में उसके और उसके पुत्रों के परिवार के सत्तर पुरूष मिस्र में थे।
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\v 28 याकूब ने पहले यहूदा को यूसुफ के पास भेजा। यहूदा गोशेन प्रदेश में यूसुफ के पास गया। जब याकूब और उसके लोग उस प्रदेश में गए।
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\v 29 जब वे वहाँ पहुँचे तब यूसुफ ने अपना रथ तैयार करवाया और अपने पिता से भेंट करने के लिए गोशेन गया। जब यूसुफ वहाँ पहुँचा तब अपने पिता के गले से लिपट कर बहुत देर तक रोया।
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\v 30 याकूब ने यूसुफ से कहा, "मैंने तुझे देखा है, और अब मुझे पता है कि तू अभी भी जिंदा है! तो अब मैं मरने के लिए तैयार हूँँ।"
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\v 31 तब यूसुफ ने अपने भाइयों और परिवार के सब सदस्यों से कहा, "मैं जाकर राजा से कहूँगा, 'मेरे भाई और मेरा पिता और उनका कुटुम्ब कनान से मेरे पास आ गया है।
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\v 32 सभी पुरुष चरवाहे हैं। वे अपने पशुओं का ख्याल रखते हैं, और वे अपने साथ अपनी भेड़ें, बकरियाँ, पशु, और जो कुछ भी उनके पास है, साथ लाये है। '
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\v 33 जब राजा तुम्हें बुला कर पूछे, ' तेरा व्यवसाय क्या है?'
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\v 34 तो उससे कहना, "हमने तो अपनी युवावस्था से ही पशुपालन किया है क्योंकि हमारे पूर्वज भी ऐसा ही करते थे।' तुम उससे ऐसा कहोगे तो वह तुम्हें गोशेन में रहने देगा। यूसुफ ने ऐसा इसलिए कहा कि मिस्री चरवाहों को पसंद नहीं करते थे।
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\c 47
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\v 1-2 यूसुफ ने अपने साथ राजा के पास जा कर बात करने के लिए अपने पाँच भाइयों को चुना। उसने उन्हें राजा के सामने पेश किया और कहा, "मेरे पिता और मेरे सब भाई कनान देश से आए हैं। ये अपनी सभी भेड़ें, बकरियाँ, जानवर और इनका जो कुछ था अपने साथ लाए हैं अन्य सभी चीजे भी लाये है। इस समय वे गोशेन प्रदेश में रह रहे हैं।"
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\v 3 राजा ने यूसुफ के भाइयों से पूछा, " तुम क्या काम करते हो?" उन्होंने राजा से कहा, "हम अपने पूर्वजों के समान चरवाहे हैं।"
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\v 4 उन्होंने उससे यह भी कहा, "हम कुछ ही समय के लिए यहाँ रहने आए हैं क्योंकि कनान में भयंकर अकाल पड़ा है। इस कारण हमारे पशुओं के लिए वहाँ चारा नहीं रहा। तो अब, कृपया हमें इस गोशेन क्षेत्र में रहने दे।"
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\s5
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\v 5 राजा ने यूसुफ से कहा, " तेरे पिता और भाई तेरे पास आए हैं।
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\v 6 वे मिस्र में जहाँ चाहें रह सकते हैं। अपने पिता और अपने भाइयों को भूमि का सबसे अच्छा भाग दे। वे गोशेन में रह सकते हैं। और यदि उनमें कोई पशुपालन में विशेष योग्यता रखता है तो वह मेरे भी पशुओं की देख-भाल कर सकता है।"
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\v 7 तब यूसुफ अपने पिता याकूब को महल में लाया और उसे राजा के सामने पेश किया। याकूब ने परमेश्वर से राजा को आशीर्वाद देने के लिए कहा।
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\v 8 तब राजा ने याकूब से पूछा, "तेरी उम्र कितनी है?"
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\v 9 याकूब ने उत्तर दिया, "मैं 130 वर्ष से यहाँ वहाँ की यात्रा कर रहा हूँ। मैंने अपने पूर्वजों के समान लम्बे समय तक जीवन नहीं जिया, और मेरा जीवन परेशानियों से भरा रहा है।"
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\v 10 तब याकूब ने फिर से परमेश्वर से राजा को आशीर्वाद देने के लिए कहा और वहाँ से चला गया।
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\v 11 इस प्रकार यूसुफ ने अपने पिता और भाइयों को मिस्र में निवास करने के लिए सक्षम बनाया। जैसा कि राजा ने आज्ञा दी थी, उसने उन्हें गोशेन में भूमि के सबसे अच्छे भाग में संपत्ति दी, जिसे अब रामसेस नगर कहा जाता है।
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\v 12 यूसुफ ने अपने पिता के परिवार के लिए भोजन भी उपलब्ध कराया। उसने उनकी संतानों की संख्या के अनुसार भोजन सामग्री देकर उनके पालन पोषण का प्रबन्ध किया।
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\v 13 भयंकर अकाल के कारण पूरे देश में अन्न नहीं उपजाया जा रहा था। मिस्र और कनान के लोग कमजोर हो गए क्योंकि उनके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं था।
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\v 14 यूसुफ के पास मिस्र और कनान के लोगों का सारा पैसा आ गया था जो अन्न की बिक्री का पैसा था। उसने वह सब पैसा राजा के महल में पहुँचा दिया।
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\v 15 जब मिस्र और कनान के लोगों का पैसा समाप्त हो गया तब वे यूसुफ के पास आ कर कहने लगे, "हमें भोजन दे क्योंकि अन्न के बिना हम मर जाएँगे। हमने अपना सारा पैसा अन्न खरीदने में लगा दिया है। अब हमारे पास कोई पैसा नहीं बचा है!"
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\v 16 यूसुफ ने उत्तर दिया, "तुम्हारे पास पैसा नहीं है तो मुझे अपने पशु दे दो। यदि ऐसा करोगे तभी मैं तुम्हारे पशुओं के बदले में तुम्हें अन्न बेचूँगा।"
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\v 17 इसलिए वे अपने पशुओं को यूसुफ के पास ले आए। यूसुफ ने उनके घोड़े, भेड़ बकरियाँ, गाय, बैल और गदहे के बदले उन्हें अन्न दिया।
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\v 18 जब वह वर्ष समाप्त हो गया, तो वे अगले वर्ष उसके पास आए और कहा, "हम तुमसे यह छिपा नहीं सकते: हमारे पास और पैसा नहीं है और अब हमारे सारे पशु तेरे पास हैं। अब तुझे देने के लिए हमारे पास केवल हमारे शरीर और भूमि है। हमारे पास कुछ और नहीं बचा है।
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\v 19 यदि तू हमें अन्न नहीं देगा तो हम भूख के कारण मर जाएँगे। यदि तू हमें बीज नहीं देगा तो हमारी भूमि किस काम की। हमें और हमारी भूमि लेकर बदले में हमें अन्न दे। इस प्रकार हम राजा के दास बन जाएँगे और हमारी भूमि का स्वामी वही होगा। हमें बीज भी दे कि हम पौधे लगाएं भोजन उगाएं कि मर न जाएँ और हमारी भूमि मरुभूमि न बने।"
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\v 20 तब यूसुफ ने राजा के लिए मिस्र में सभी खेतों को खरीद लिया। भयंकर अकाल के कारण मिस्र के लोगों ने अपनी भूमि बेच दी। उनके पास भोजन खरीदने का कोई और उपाय नहीं था। अतः सभी खेत राजा के हो गए।
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\v 21 इसके परिणाम स्वरुप यूसुफ ने देश की एक सीमा से दूसरी सीमा तक के लोगों को राजा का दास बना दिया।
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\v 22 लेकिन उसने याजकों की भूमि नहीं खरीदी, क्योंकि उनके लिए राजा की ओर से नियमित रूप से भोजन सामग्री पहुँचाई जाती थी। यही कारण था की उन्होंने अपने खेत नहीं बेचे थे।
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\v 23 यूसुफ ने लोगों से कहा, "आज मैंने तुम्हें और तुम्हारे खेतों को राजा के लिए खरीद लिया है। इसलिए खेती करने के लिए तुम्हें बीज दिया जा रहा है।
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\v 24 लेकिन जब तुम फसल काटोगे तुम्हें उसका पाँचवां भाग राजा को देना होगा। शेष फसल तुम्हारे लिए बीज बोने और तुम्हारे परिवार के बच्चों और प्रत्येक के लिए भोजन होगा।"
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\v 25 उन्होंने उत्तर दिया, " तू ने हमारी जान बचाई है। हम तुझे प्रसन्न करना चाहते हैं। हम राजा के दास होंगे।"
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\v 26 तब यूसुफ ने मिस्र की सारी भूमि के लिए एक कानून बना दिया, जिसमें कहा गया था कि फसलों का पाँचवां भाग राजा का होगा। वह कानून आज तक स्थिर है। केवल याजकों की भूमि राजा की भूमि नहीं बनी।
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\v 27 याकूब और उसका परिवार मिस्र के गोशेन प्रदेश में रहने लगा। वहाँ की भूमि उन्हें मिल गई। वहीं उनकी संताने भी उत्पन्न हुईं और परिणामत: उनकी आबादी बहुत अधिक बढ़ गयी।
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\v 28 याकूब 17 वर्ष मिस्र में रहा। कुल मिलाकर वह 147 वर्ष तक जीवित रहा।
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\v 29 जब याकूब का अंतिम समय आ गया तब उसने यूसुफ को बुलाया और उससे कहा, "यदि तू मुझसे प्रसन्न है तो मेरी जांघों के बीच अपना हाथ रखकर सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करो कि तू अपने पिता अर्थात मेरे प्रति विश्वासयोग्य रहेगा और जो मैं अब भरोसा करके कह रहा हूँ, वह करेगा: तू मेरे मरने के बाद मुझे मिस्र में दफन मत करना।
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\v 30 इसकी अपेक्षा, जब मैं मर कर अपने पूर्वजों में शामिल हो जाऊँ जो पहले मर गए हैं, तब तू मेरे शव को कनान देश ले जाना जहाँ उनकी कब्र है।" यूसुफ ने उत्तर दिया , "मैं वहीं करूँगा जो तू ने कहा है।"
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\v 31 याकूब ने कहा, "वचन दे कि तू ऐसा ही करेगा!" तब यूसुफ ने ऐसा करने की शपथ खाई। याकूब अपने बिस्तर पर सिरहाने की ओर झुका और परमेश्वर की आराधना की।
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\s5
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\c 48
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\p
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\v 1 इसके कुछ समय बाद, किसी ने यूसुफ से कहा, " तेरा पिता बीमार है।" यह सुन कर यूसुफ मनश्शे और एप्रैम, अपने दोनों पुत्रों को लेकर पिता से मिलने गया।
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\v 2 किसी ने याकूब से कहा, " तेरा पुत्र यूसुफ तुझे देखने आया है!" याकूब, (जिसे इस्राएल भी कहा जाता है) ने प्रयास किया और बिस्तर पर बैठ गया, जबकि उसके लिए बैठना बहुत ही कठिन था।
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\v 3 उसने यूसुफ से कहा, "जब मैं कनान के लूज नगर में था तब सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझे दर्शन दिया और मुझे आशीष दी।
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\v 4 और मुझसे कहा, 'मैं तुझे अनेक संतान का पिता बनाऊँगा। तेरे वंशज अनगिनत होंगे और वे अनेक समुदाय उत्पन्न करेंगे और मैं यह देश सदा के लिए उन्हें दे दूँगा।'
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\v 5 और अब मैं यह मानता हूँ कि तेरे ये दोनों पुत्र जिनका जन्म यहाँ, मिस्र में मेरे आने से पहले हुआ है, मेरी संतान हैं। एप्रैम और मनश्शे मेरे पुत्र होंगे और वे मेरे उत्तराधिकारी होंगे। ठीक वैसे ही जैसे रूबेन और शिमोन तथा अन्य पुत्र होंगे।
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\v 6 यदि इसके बाद तेरे और भी पुत्र जन्में तो वे मेरे पुत्र नहीं पोते होंगे। उन्हें भूमि के बँटवारे के समय अपने भाइयों के वंश में गिना जाएगा और उन्हें विरासत में वही मिलेगा जो भाइयों को मिलेगा।
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\v 7 वर्षो पूर्व, जब मैं पद्दनराम से लौट रहा था, तब तेरी माता राहेल का दुखद देहान्त कनान में हो गया था। उस समय हम मार्ग ही में थे जो एप्राता से अधिक दूर नहीं था। मैंने उसे एप्राता के मार्ग में ही दफन कर दिया। (एप्राता को अब बैतलहम कहते हैं।)
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\v 8 जब याकूब ने यूसुफ के पुत्रों को देखा और पूछा, "ये लड़के कौन हैं?"
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\v 9 यूसुफ ने अपने पिता से कहा, "ये मेरे पुत्र हैं जिन्हें परमेश्वर ने मुझे मिस्र में दिये है।" याकूब ने कहा, "उन्हें मेरे निकट ला कि मैं उन्हें आशीर्वाद दे सकूँ।"
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\v 10 याकूब लगभग अँधा हो गया था क्योंकि वह बहुत बूढ़ा था। वह अच्छी तरह से नहीं देख सकता था। यूसुफ अपने पुत्रों को पिता के पास लाया और याकूब ने उन्हें चूमा और गले लगाया।
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\s5
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\v 11 याकूब ने यूसुफ से कहा, "मुझे तेरा चेहरा फिर से देखने की उम्मीद नहीं थी, लेकिन देखो परमेश्वर ने न केवल तुझे देखना मेरे लिए संभव बनाया, परन्तु मुझे तेरे बच्चों को भी देखने का अवसर दिया!"
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\v 12 यूसुफ ने अपने लड़कों को याकूब के पैरों पर से ऊपर उठाया और यूसुफ ने अपने पिता को झुककर प्रणाम किया।
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\v 13 तब यूसुफ अपने दोनों पुत्रों को पिता के पास बुलाया और एप्रैम को याकूब के बाएँ हाथ की ओर और अपनी दाएँ ओर तथा अपने बाएँ हाथ की ओर मनश्शे को याकूब के दाहिने हाथ के समीप बैठाया।
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\s5
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\v 14 लेकिन याकूब ने वैसा नहीं किया जैसा यूसुफ चाहता था, की वह करे। इसकी अपेक्षा, उसने अपना दाहिना हाथ एप्रैम के सिर पर रखा यद्यपि वह छोटा पुत्र था और अपना बायां हाथ मनश्शे के सिर पर रखा यद्यपि मनश्शे बड़ा पुत्र था।
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||
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\v 15 तब उसने यूसुफ और उसके पुत्रों को आशीर्वाद दिया, "मेरे दादा, अब्राहम और मेरे पिता इसहाक ने परमेश्वर की इच्छानुसार जीवन व्यतीत किया और उन्ही परमेश्वर ने मेरा आज तक चरवाहे के रूप में मेरा मार्गदर्शन किया है। जैसे चरवाहा अपनी भेड़ों की देख-रेख करता है।
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||
|
\v 16 जिस स्वर्गदूत को उन्होंने भेजा है, उसने मुझे किसी भी प्रकार की हानि नहीं होने दी।
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\q मैं प्रार्थना करता हूँँ कि परमेश्वर इन लड़कों को भी आशीर्वाद दें।
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\q मैं प्रार्थना करता हूँँ कि लोग मेरे और मेरे पूर्वज, अब्राहम और इसहाक को याद रखेंगे परमेश्वर ने जो उनके लिए किया है, उसके कारण।
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\q मैं प्रार्थना करता हूँँ कि उनके अनगिनत वंशज होंगे जो पूरी पृथ्वी पर निवास करेंगे।"
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\p
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\s5
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\v 17 जब यूसुफ ने देखा कि उसके पिता ने एप्रैम के सिर पर अपना दाहिना हाथ रखा था, मनश्शे के सिर पर नहीं, तो वह दुखी हो गया। इसलिए वह अपने पिता के हाथ को एप्रैम के सिर से मनश्शे के सिर तक ले गया।
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\v 18 यूसुफ ने उससे कहा, "मेरे पिता, यह सही नहीं है! जिस पर तू ने अपना बायां हाथ रखा है वह मेरा बड़ा पुत्र है। अपना दाहिना हाथ इसके सिर पर रख।"
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\v 19 परन्तु उसके पिता ने मना कर दिया, "पुत्र, मैं जानता हूँ। मनश्शे का जन्म पहले हुआ है और वह महान होगा। वह बहुत से समुदायों का पिता भी होगा। किन्तु छोटे भाई के वंशज बड़े भाई के वंशजों से बड़े होंगे और छोटे भाई के वंशज अनेक राष्ट्र बनेंगे।"
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\v 20 उन्होंने उन दोनों को उसी दिन आशीर्वाद दिया, और कहा, "इस्राएल जाति के लोग तुम दोनों के नाम लेकर लोगों को आशीर्वाद दिया करेंगे। वे कहेंगे, 'हम प्रार्थना करते हैं कि परमेश्वर तुम्हें एप्रैम और मनश्शे के समान बना दें।" इस प्रकार, याकूब ने कहा कि एप्रैम मनश्शे की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होगा।
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\s5
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\v 21 तब याकूब ने यूसुफ से कहा, "मैं मरने वाला हूँँ। परन्तु मुझे पता है कि परमेश्वर तेरी सहायता करेंगे। एक दिन वे तेरे वंशजों को तेरे पूर्वजों के देश में ले जाएँगे।
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\v 22 तू जो अपने भाइयों से ऊपर है, मैं तुझे शकेम के प्रदेश में उपजाऊ पर्वतीय क्षेत्र देता हूँ। मैंने उस क्षेत्र को एमोरियों से अपनी तलवार और तीर धनुष के द्वारा कब्ज़ा किया है।"
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\c 49
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\v 1 याकूब ने अपने सभी पुत्रों को बुलाया और उनसे कहा,
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\v 2 "मेरे पास एकत्र हो जाओ कि मैं भविष्य के विषय में तुम्हें बताऊँ। हे मेरे पुत्रों, बात सुनो। मैं तुम्हारा पिता, याकूब हूँँ।
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\v 3 रूबेन, तू मेरा प्रथम पुत्र है। जब मैं जवान और उर्जावान था तब तेरा जन्म हुआ था। जब मैं जवान हुआ तब तू मुझसे उत्पन्न हुआ। तू मेरे शेष पुत्रों से अधिक अभिमानी और बलवन्त है।
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\v 4 लेकिन तू समुद्र की लहरों के समान अस्थिर है। इसलिए तू अन्य भाइयों से अधिक महत्वपूर्ण नहीं हो सकेगा क्योंकि तू उस स्त्री के साथ सोया जो तेरे पिता की रखैल थी। जिसके कारण मुझे अर्थात तेरे पिता को लज्जित होना पड़ा था।
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\v 5 शिमोन और लेवी, तुम दोनों भाइयों ने अपराधियों के समान काम किया है। तुम हिंसक कार्य करने के लिए अपनी तलवारों का उपयोग करते हो।
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\v 6 तुम जब बुरी योजना बनाते हो तब मैं तुम्हारे साथ रहना नहीं चाहता। मैं तुम्हारी सभाओं में सम्मान का भागी नहीं बनना चाहता क्योंकि तुम ने क्रोधित हो कर हत्याएँ की हैं और अपने मनोरंजन मात्र के लिए बैलों को चोट पहुँचाई है।
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\v 7 परमेश्वर कहते हैं, 'उनके अत्याधिक क्रोध के लिए मैं उन्हें श्रापित ठहराता हूँ क्योंकि क्रोध में आ कर वे निर्दयी हो गए थे। मैं उनके वंशजों को संपूर्ण इस्राएल में तितर-बितर कर दूँगा।'
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\v 8 यहूदा, तेरे बड़े और छोटे भाई तेरी प्रशंसा करेंगे। वे तेरे सामने झुकेंगे क्योंकि तू अपने शत्रुओं को अच्छी तरह से पराजित करेगा।
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\v 9 यहूदा एक जवान सिंह के समान है जो पशु का मांस खा कर संतोष से अपनी मांद में आ गया है। वह एक सिंह के सदृश्य है जो शिकार खा कर विश्राम करता है और उसके पास जाने का साहस किसी में नहीं होता।
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\v 10 यहूदा के वंशजों में हमेशा एक शासक होगा और उनमें से हर एक राजदंड पकड़ेगा यह दिखने के लिए कि उसके पास राजा के समान अधिकार है। वह ऐसा तब तक करेगा जब तक राष्ट्र उसकी आज्ञा का पालन न करें और उसकी स्तुति न करें।
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\v 11 उसके वंशजों के दाख के बागों में बहुत पैदावार होगी। परिणामस्वरूप वे उनमें युवा गदहों को बांधने पर आपत्ति नहीं जताएँगे और गदहे दाखलता की पत्तियाँ खायेंगे। उनके दाखो की फसल इतनी अधिक होगी कि वे उसके रस में अपने वस्त्र धोयेंगे। वे अपने वस्त्र दाखमधु में धोयेंगे जो रक्त के समान लाल रंग का होगा।
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\v 12 बहुत अधिक दाखमधु पीने के कारण उनकी आँखें लाल होंगी, लेकिन गायों से दूध पीने के कारण उनके दाँत बहुत सफेद होंगे।
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\v 13 जबूलून, तेरे वंशज समुद्र तट पर वास करेंगे जहाँ जहाजों के लिए सुरक्षित बंदरगाह होंगे। उनका देश उत्तर दिशा में सीदोन तक फैल जाएगा।
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\v 14 इस्साकार, तेरे वंशज बलशाली गधों के समान होंगे जो भेड़ों के दो झुंडों के मध्य लेटते हैं। और इतने थके हुए होते हैं कि खड़े नहीं हो सकते।
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\v 15 वे देखेंगे कि उनका विश्राम स्थान अच्छा है और उनकी भूमि उन्हें प्रसन्न कर देगी। लेकिन वे भारी बोझ उठाने के लिए झुकेंगे। और दूसरों के लिए परिश्रम करने के लिए विवश किए जाएँगे।
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\v 16 दान, यद्यपि तेरा गोत्र छोटा होगा परन्तु उसके अगुवे इस्राएल के अन्य गोत्रों के अगुवों के समान उनके लोगो पर शासन करेंगे।
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\v 17 तेरे वंशज मार्ग के किनारे के विषैले साँपो के समान होंगे। जो आने जाने वाले घोड़ो के पैरों को डसेंगे की उनके सवार पीछे की ओर गिर पड़े और घोड़े डंसे हुए पैरों से आगे बढ़ जाएं।"
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\v 18 तब याकूब ने प्रार्थना की, "हे यहोवा, मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ कि आप आ के मुझे शत्रुओं से बचाएं।"
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\v 19 तब याकूब अपने पुत्रों को भविष्य के विषय में बताता गया। उसने कहा, "गाद, तेरे गोत्र पर लुटेरे आक्रमण करेंगे परन्तु तेरा गोत्र उनका पीछा करके उन पर वार करेगा।
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\v 20 आशेर, तेरे वंशज स्वादिष्ट भोजन खायेंगे। वे भोज्य सामग्री उपजाएंगे ऐसा भोजन जो राजाओं के खाने के लिए पर्याप्त स्वादिष्ट होता है।
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\v 21 नप्ताली, तेरे वंशज स्वतंत्र दौड़ने वाले हिरण के समान होंगे, हिरण जिनके पास खूबसूरत बच्चे होते हैं।
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\v 22 यूसुफ तेरे वंशज अनगिनत होंगे। तेरी संतान जल के स्रोत के निकट लगाई गई दाखलता के फलों के समान अनगिनत होगी, जिनकी शाखाएँ दीवार पर फैली हुई होंगी।
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\v 23 शत्रु उन पर हमला करेंगे, और तीर धनुष से छोड़कर उनका पीछा करेंगे।
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\v 24 लेकिन मेरे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सामर्थ से उनके धनुष दृढ़ रहेंगे और उनकी भुजाएँ ताकतवर रहेंगी, क्योंकि यहोवा ही मेरे मार्गदर्शक और पालनहार हैं। वैसे ही जैसे चरवाहा अपनी भेंड़ो का मार्गदर्शक और पालनहार होता है। इस्राएल के लोग यहोवा से रक्षा करने के लिए कहेंगे, जैसे लोग एक ऊँची चट्टान के शिखर पर शरण लेते हैं।
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\v 25 जिन परमेश्वर की मैं आराधना करता हूँ, वे तेरे वंशजों के साथ होंगें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर उन्हें आकाश से वर्षा भेज कर आशीषित करेगें और उन्हें भूगर्भ का जल देगें। वह उन्हें अनेक संतान देकर पालन भी करेगें।
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\v 26 मैं तेरे लिए परमेश्वर से जो आशीष मांगता हूँ, वे आशीषे महान हैं। वे पहाडों से आने वाली आशीषों से और पर्वतों की आशीषों से भी अधिक महान है। उस शाश्वत पर्वत से आने वाली आशीषे भी महान हैं, यूसुफ मैं प्रार्थना करता हूँ कि ये आशीषे तुझे मिले क्योंकि तू ने अपने भाइयों का नेतृत्व किया है।
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\v 27 बिन्यामीन, तेरे वंशज खूंखार भेड़ियों के समान होंगे। सुबह के समय वे अपने शत्रुओं को ऐसा मारेंगें जैसे भेड़िया अपना शिकार फाड़ता है और शाम को वे अपने शत्रुओं से योद्धाओं द्वारा छिनकर लायी गई बची हुई लूट को बाटेंगे।"
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\v 28 वे बारह पुत्र इस्राएल के बारह गोत्रों के पूर्वज हैं। उनके पिता ने उन्हें आशीर्वाद देते समय प्रत्येक से उसके लिए उपयुक्त वचन कहे।
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\v 29 तब याकूब ने अपने पुत्रों से कहा, "मैं शीघ्र ही मर जाऊँगा और अपने पूर्वजों में शामिल हो जाऊँगा जो पहले से ही मर चुके हैं। मेरे शरीर को हित्ती एप्रोन से खरीदी गई गुफा में दफनाना जहाँ मेरे पूर्वजों को दफनाया गया था।
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\v 30 मकपेला का खेत मेम्रे के पूर्व में है जो कनान देश है। अब्राहम ने उसे एप्रोन से खरीदा था कि वह दफन स्थल हो।
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\v 31 वहीं अब्राहम और उसकी पत्नी को दफन किया गया था। वहीं मेरे पिता इसहाक और उसकी पत्नी रिबका को रखा गया था। वहीं मैंने अपनी पत्नी लिआ के शरीर को दफनाया था।
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\v 32 वह खेत और वह गुफा हित्तियों से खरीदी गई थी। मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे भी वहीं दफनाओ।"
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\v 33 अपने पुत्रों को ये निर्देश देकर वह अपने बिस्तर पर लेट गया और प्राण त्याग दिए।
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\v 1 यूसुफ अपने पिता के मुँह पर गिर कर रोया और उसे चूमा।
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\v 2 यूसुफ ने अपने सेवकों को जो शव दफन करने की तैयारी कर रहे थें आज्ञा दी कि उसके पिता के शव में सुगंध द्रव्य लगाये।
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\v 3 याकूब के शव में सुगंध द्रव्य लगाने में चालीस दिन लगे क्योंकि उस काम में चालीस दिन ही लगते थे। मिस्र के लोग याकूब की मृत्यु के शोक में सत्तर दिनों तक रोये।
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\v 4 जब शोक का समय समाप्त हो गया, तब यूसुफ ने राजा के अधिकारियों से कहा, "यदि तू मुझसे प्रसन्न है तो कृपया यह संदेश राजा को दे:
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\v 5 'जब मेरे पिता मरने वाले थे तो उन्होंने मुझे शपथ दी थी कि मैं उनके शरीर को कनान देश में ही दफन करूँ, उसी कब्र में जिसे उन्होंने स्वयं तैयार किया था। अतः कृपया मुझे कनान जाने दे ताकि मैं अपने पिता के शरीर को दफन सकूँ। दफन करने के बाद मैं वापस आ जाऊँगा।'"
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\v 6 राजा को जब यूसुफ का सन्देश मिला तब राजा ने उत्तर दिया, "जा और अपने पिता को दफन करके अपना वचन पूरा कर।"
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\v 7 तब यूसुफ अपने पिता को दफनाने के लिए कनान गया। राजा के सभी अधिकारी, राजा के सभी सलाहकार, और मिस्र के सभी बुजुर्ग उसके साथ गए।
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\v 8 उसके परिवार छोटे संतान और उनकी भेड़, बकरियाँ और उनके पशु गोशेन में ही रहे। लेकिन यूसुफ का परिवार, उसके भाई और उसके पिता का परिवार उसके साथ गया।
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\v 9 रथों और घोड़ों पर सवार लोग भी उसके साथ गए। यह बहुत बड़ा समूह था।
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\v 10 वे यरदन नदी के पूर्व की ओर आताद पहुँचे। वहाँ एक स्थान था जहाँ लोग अन्न दांवते थे, गेहूँ के दानों को पुआल से अलग करने के लिए। वहाँ यूसुफ ने याकूब के लिए सात दिनों तक शोक समारोह का आयोजन करवाया।
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\v 11 उनको शोक करते देख कनानियों ने कहा, "यह मिस्रियों का कोई भारी शोक प्रतीत होता है और उस स्थान का नाम आबेलमिस्रैम रखा गया है जिसका अर्थ है, 'मिस्रियों का शोक"।
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\v 12 इसके पश्चात याकूब के पुत्रों ने याकूब की आज्ञा के अनुसार सब कुछ किया।
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\v 13 वे यरदन नदी पार कर याकूब के शरीर को कनान देश में ले गए। उन्होंने इसे मम्रे नगर के पूर्व में मकपेला की गुफा में दफनाया। यह गुफा मम्रे के निकट उस खेत में थी जिसे अब्राहम ने हित्ती एप्रोन से खरीदा था।
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\v 14 अपने पिता को दफन करने के बाद यूसुफ अपने भाइयों और उसके साथ कनान गये हुए सब लोगों के साथ लौट आया।
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\v 15 याकूब की मृत्यु के बाद, यूसुफ के भाई चिंतित हो गए। उन्होंने अनुभव किया कि आगे क्या हो सकता है। उन्होंने कहा, "यदि यूसुफ के मन में हमारे लिए घृणा है और वह वर्षों पूर्व के हमारे बुरे कामों का बदला लेना चाहे तो क्या होगा?"
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\v 16 इसलिए उन्होंने यूसुफ के पास सन्देश भिजवाया, "हमारे पिता ने मरने से पहले हमसे कहा था:
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\v 17 'यूसुफ से कहना, कृपया अपने भाइयों को तेरे साथ की गई बुराई की क्षमा प्रदान कर दे, तेरे विरूद्ध किये गये उनके उस भयानक पाप को क्योंकि उन्होंने तेरे साथ जो किया वह अनुचित था।' इसलिए अब हम जो तेरे पिता परमेश्वर के दास हैं, तुझसे प्रार्थना करते हैं कि उस अपराध को क्षमा कर दे जो हम ने तेरे साथ किया था।" उनका सन्देश पा कर यूसुफ रोया।
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\v 18 तब यूसुफ के भाई उसके सामने गए और झुककर प्रणाम किया। उन्होंने कहा, "हम लोग तेरे दास बन जाएंगे।"
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\v 19 परन्तु यूसुफ ने उन्हें उत्तर दिया, "डरो मत क्योंकि दण्ड देने वाले परमेश्वर हैं। क्या मैं परमेश्वर हूँ?
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\v 20 तुम तो मेरे साथ बुराई ही करना चाहते थे परन्तु परमेश्वर ने उस में भी भलाई उत्पन्न की। वह अनगिनत लोगों को भूख से मरने से बचाना चाहते थे और ऐसा ही हुआ। आज वे जीवित हैं!
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\v 21 मैं फिर से कहता हूँँ, डरो मत! मैं यह सुनिश्चित कर दूँगा कि तुम और तुम्हारे बच्चों के पास खाने के लिए पर्याप्त हो।" इस प्रकार यूसुफ ने उन्हें विश्वास दिलाया।
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\v 22 यूसुफ अपने पिता के परिवार के साथ मिस्र में 110 वर्ष की आयु तक रहा।
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\v 23 वह एप्रैम के पुत्रों और पोतों को देखने तक जीवित रहा। मनश्शे के पुत्र माकीर जो यूसुफ का पोता था उस की संतान यूसुफ के मरने से पहले पैदा हो गई थी और उन्हें यूसुफ के वंशजों के रूप में जाना गया।
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\v 24 एक दिन यूसुफ ने अपने बड़े भाइयों से कहा, "मैं तो मरने वाला हूँ परन्तु परमेश्वर निश्चय ही तुम्हारी सहायता करेगें। एक दिन वे तुम्हारे वंशजों को अवश्य यहाँ से निकाल कर कनान ले जाएगें। जिसकी प्रतिज्ञा उन्होंने अब्राहम, इसहाक और याकूब से की थी कि वे उन्हें वह देश देगें।"
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\v 25 तब यूसुफ ने कहा, "जब परमेश्वर तुझे इसमें सक्षम बनाएँ तब तुम मेरा शरीर यहाँ से कनान ले जाना।" उसने अपने बड़े भाइयों को ऐसा करने की ईमानदारी से शपथ दिलाई।
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\v 26 यूसुफ मिस्र में मरा, तब वह एक सौ दस वर्ष का था। उसके शव को सुगंध द्रव्यों से लपेट कर मिस्र में एक सन्दूक में रखा गया।
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