Tue Nov 12 2024 11:04:38 GMT+0530 (India Standard Time)
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\v 17 \v 18 \v 19 \v 20 17 यदि तू स्वयं को यहूदी कहता है, व्यवस्था पर भरोसा रखता है, परमेश्वर के विषय में घमण्ड करता है, 18 और उसकी इच्छा जानता और व्यवस्था की शिक्षा पा कर उत्तम-उत्तम बातों को प्रिय जानता है; \v 19 यदि तू अपने पर भरोसा रखता है, कि मैं अंधों का अगुआ, और अंधकार में पड़े हुओं की ज्योति, \v 20 और बुद्धिहीनों का सिखानेवाला, और बालकों का उपदेशक हूँ, और ज्ञान, और सत्य का नमूना, जो व्यवस्था में है, मुझे मिला है।
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\v 17 यदि तू स्वयं को यहूदी कहता है, व्यवस्था पर भरोसा रखता है, परमेश्वर के विषय में घमण्ड करता है, \v 18 और उसकी इच्छा जानता और व्यवस्था की शिक्षा पा कर उत्तम-उत्तम बातों को प्रिय जानता है; \v 19 यदि तू अपने पर भरोसा रखता है, कि मैं अंधों का अगुआ, और अंधकार में पड़े हुओं की ज्योति, \v 20 और बुद्धिहीनों का सिखानेवाला, और बालकों का उपदेशक हूँ, और ज्ञान, और सत्य का नमूना, जो व्यवस्था में है, मुझे मिला है।
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\v 21 क्या तू जो औरों को सिखाता है, अपने आप को नहीं सिखाता? क्या तू जो चोरी न करने का उपदेश देता है, आप ही चोरी करता है? (मत्ती 23:3) \v 22 तू जो कहता है, “व्यभिचार न करना,” क्या आप ही व्यभिचार करता है? तू जो मूरतों से घृणा करता है, क्या आप ही मन्दिरों को लूटता है?
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"02-08",
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"02-10",
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"02-13",
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"02-15"
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