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31 या कौन ऐसा राजा है, कि दूसरे राजा से युद्ध करने जाता हो, और पहले बैठकर विचार न कर ले कि जो बीस हज़ार लेकर मुझ पर चढ़ा आता है, क्या मैं दस हज़ार लेकर उसका सामना कर सकता हूँ, कि नहीं?
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\v 31 या कौन ऐसा राजा है, कि दूसरे राजा से युद्ध करने जाता हो, और पहले बैठकर विचार न कर ले कि जो बीस हज़ार लेकर मुझ पर चढ़ा आता है, क्या मैं दस हज़ार लेकर उसका सामना कर सकता हूँ, कि नहीं? \v 32 नहीं तो उसके दूर रहते ही, वह दूत को भेजकर मिलाप करना चाहेगा। \v 33 इसी रीति से तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता।
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32 नहीं तो उसके दूर रहते ही, वह दूत को भेजकर मिलाप करना चाहेगा।
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33 इसी रीति से तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता।
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\v 34 “नमक तो अच्छा है, परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा। \v 35 वह न तो भूमि के और न खाद के लिये काम में आता है: उसे तो लोग बाहर फेंक देते हैं। जिसके सुनने के कान हों वह सुन ले।”
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\c 15 \v 1 सब चुंगी लेनेवाले और पापी उसके पास आया करते थे ताकि उसकी सुनें। \v 2 और फरीसी और शास्त्री कुड़कुड़ाकर कहने लगे, “यह तो पापियों से मिलता है और उनके साथ खाता भी है।”
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\v 3 तब उसने उनसे यह दृष्टान्त कहा: \v 4 “तुम में से कौन है जिसकी सौ भेड़ें हों, और उनमें से एक खो जाए तो निन्यानवे को मैदान में छोड़कर, उस खोई हुई को जब तक मिल न जाए खोजता न रहे? (यहे. 34:11-12,16) \v 5 और जब मिल जाती है, तब वह बड़े आनन्द से उसे कंधों पर उठा लेता है।
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\v 6 और घर में आकर मित्रों और पड़ोसियों को इकट्ठे करके कहता है, ‘मेरे साथ आनन्द करो, क्योंकि मेरी खोई हुई भेड़ मिल गई है।’ \v 7 मैं तुम से कहता हूँ; कि इसी रीति से एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में भी स्वर्ग में इतना ही आनन्द होगा, जितना कि निन्यानवे ऐसे धर्मियों के विषय में नहीं होता, जिन्हें मन फिराने की आवश्यकता नहीं।
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\v 8 “या कौन ऐसी स्त्री होगी, जिसके पास दस चाँदी के सिक्के हों, और उनमें से एक खो जाए; तो वह दिया जलाकर और घर झाड़-बुहारकर जब तक मिल न जाए, जी लगाकर खोजती न रहे? \v 9 और जब मिल जाता है, तो वह अपने सखियों और पड़ोसिनियों को इकट्ठी करके कहती है, कि ‘मेरे साथ आनन्द करो, क्योंकि मेरा खोया हुआ सिक्का मिल गया है।’ \v 10 मैं तुम से कहता हूँ; कि इसी रीति से एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने आनन्द होता है।”
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\v 11 फिर उसने कहा, “किसी मनुष्य के दो पुत्र थे। \v 12 उनमें से छोटे ने पिता से कहा ‘हे पिता, सम्पत्ति में से जो भाग मेरा हो, वह मुझे दे दीजिए।’ उसने उनको अपनी संपत्ति बाँट दी।
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\v 13 और बहुत दिन न बीते थे कि छोटा पुत्र सब कुछ इकट्ठा करके एक दूर देश को चला गया और वहाँ कुकर्म में अपनी सम्पत्ति उड़ा दी। (नीति. 29:3)
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\v 14 जब वह सब कुछ खर्च कर चुका, तो उस देश में बड़ा अकाल पड़ा, और वह कंगाल हो गया।
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Chapter 15
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"14-21",
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"14-23",
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"14-25",
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"14-25",
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"14-28"
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"14-31",
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"14-34",
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"15-title",
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"15-01",
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"15-03",
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"15-06",
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"15-08",
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"15-11"
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