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\v 13 \v 15 और परमेश्‍वर ने अब्राहम को प्रतिज्ञा देते समय*, कि जब शपथ लेने के लिये किसी को अपने से बड़ा न पाया, तो अपनी ही शपथ लेकर कहा, \p \v 14 “मैं सचमुच तुझे बहुत आशीष दूँगा, और तेरी सन्तान को बढ़ाता जाऊँगा।” (उत्प. 22:17) \p और इस रीति से उसने धीरज धरकर प्रतिज्ञा की हुई बात प्राप्त की।
\v 13 और परमेश्‍वर ने अब्राहम को प्रतिज्ञा देते समय*, कि जब शपथ लेने के लिये किसी को अपने से बड़ा न पाया, तो अपनी ही शपथ लेकर कहा, \p \v 14 “मैं सचमुच तुझे बहुत आशीष दूँगा, और तेरी सन्तान को बढ़ाता जाऊँगा।” (उत्प. 22:17) \p \v 15 और इस रीति से उसने धीरज धरकर प्रतिज्ञा की हुई बात प्राप्त की।

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\v 16 मनुष्य तो अपने से किसी बड़े की शपथ लिया करते हैं और उनके हर एक विवाद का फैसला शपथ से पक्का होता है। (निर्ग. 22:11) \p \v 17 इसलिए जब परमेश्‍वर ने प्रतिज्ञा के वारिसों पर, अपनी युक्ति को जो कभी बदलती नहीं, और भी साफ रीति से प्रगट करना चाहा, तो शपथ को बीच में लाया, \p \v 18 ताकि दो बे-बदल बातों के द्वारा जिनके विषय में परमेश्‍वर को झूठा ठहरना असंभव है, हमारी दृढ़ता से ढाढ़स बन्ध जाए, जो शरण लेने को इसलिए दौड़े है, कि उस आशा को जो सामने रखी हुई है प्राप्त करें। (गिन. 23:19, 1 शमू. 15:29)

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\v 19 वह आशा हमारे प्राण के लिये ऐसा लंगर है जो स्थिर और दृढ़ है*, और परदे के भीतर की उपस्थिति तक पहुँचता है। (गिन. 23:19, 1 तीमु. 2:13) \p \v 20 जहाँ यीशु ने मेलिकिसिदक की रीति पर सदा काल का महायाजक बनकर, हमारे लिये अगुआ के रूप में प्रवेश किया है।

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अध्याय 7

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"06-09",
"06-11"
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"06-19",
"07-title"
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