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\v 18 और दाखरस से मतवाले न बनो, क्योंकि इससे लुचपन होता है, पर पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होते जाओ,(नीति. 23:31-32, गला. 5:21-25) \v 19 और आपस में भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाया करो, और अपने-अपने मन में प्रभु के सामने गाते और स्तुति करते रहो,(कुलु. 3:16, 1 कुरि. 14:26) \v 20 और सदा सब बातों के लिये हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम से परमेश्वर पिता का धन्यवाद करते रहो। \v 21 और मसीह के भय से एक दूसरे के अधीन रहो। |